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1. ावना मीमां सा' श का अथ है -गहन िवचार, परी ण या अनुस ान। भारत के षड् दशनों
म से यह एक है ।
2. मूल प से मीमां सा दो ख ों म िवभ है -जै िमिन ारा वितत पू वमीमां सा और वादरायण
के नाम से िव ात उ रमीमां सा या मीमां सा।
मीमां सादशन का थम सू है -अथातो धमिज ासा अथात् अब इसिलये धम की िज ासा करनी चािहए।
इसी तरह वेदा सू का थम सू है -अथातो िज ासा अथात् इसी तरह अब की िज ासा करनी
चािहए। इस पर रामानुज भृित कुछ आचायों ने मीम
ं ां सासू और वेदा सू को एक ही वृ की दो
शाखाओं के पम ीकार िकया है । आचाय को अथातो धमिज ासा से ले कर वे दा के अ म
सू -अथावृि ः श ादनावृि ः श ात् तक शा ीय िच न की एक ही पिव धारा वािहत तीत होती
है । इस िवचार से अनु ािणत श राचाय के पूववत आचाय की एक ल ी पर रा है । इस पर रा
की ृंखला की ाय: अ म कड़ी िमिथला-मही की िवभूित स वत: म न िम ही थे । इस पर रा
के आचाय म कमसमु य का अनेक शै िलयों म ितपादन िकया है ।आचाय शं कर ने भी कम तथा
उपासना अथात् ान को िच शु के िलये उपादे य माना है । मीमां सादशन के खर एवं उ ट आचाय
कुमा रलभ थे।
जैिमिन-महिष जैिमिन मीमां सा-सू के रचियता तो ह, िक ु मीमां सा-दशन के वतक नही ं ह; ोंिक
इ ोंने यं अपने पूवव ा कई आचाय का उ े ख िकया है । उनम मुख ह-बाद र, आ ेय, कामुकायन
और ऐतशायनु भृित। दु भा वश इसकी चचा तो उपल है , पर उनकी कोई कृित उपल नही ं है ।
मीमां सासू की रचनाकाल- जैिमिन के मीमां सासू की रचना का काल डॉ. राधाकृ न् के अनु सार ई.
पूव 400 वष माना गया है (भारतीय दशन-डॉ. राधाकृ न् ) ।
मीमां सासू म िवषय-योजना- मीमां सासू दाशिनक सू ों म सवािधक िवपु ल का है । इसम सोलह
अ ाय ह; िजसम बारह अ ाय ' ादशल णी' नाम से िस है और अ म चार अ ायों को
'दे वताका ' कहते ह। मीमां सा के धमिज ासा, भे द, शे ष , यो - योजकभाव, म, अिधकार,
सामा , अितदे श, िवशेष-अितदे श, ऊह, बाध, त और स -ये बारह व िवषय ह। इसीिलए इ
' ादशल णी' भी कहा जाता है ।
एक िकंवद ी के अनुसार शबर ामी का नाम आिद सेन था। जैनों के आत से ये शबर अथात्
जंगली आदमी का वेश धारण कर जंगल म रहने लगे। उ ोंने अपना नाम शबर- ामी रख िलया।
1. कुमा रल भ ,
2. भाकर िम
3. मुरारी
1. भा मत,
2. गु मत
3. िम मत।
भा मत के आचाय
1 ोकवाि क,
2.त वाि क
3.टु ीका
1. पाथसारिथ,
2. माधवाचाय
3. ख दे व
म न िम —मा म न िम की दाशिनक ितभा िवल ण थी। मीमां सादशन के िच न म िम जी
का थान िनता महनीय है । मीमां सा के े म इनकी असाधारण ितभा एवं का पा की
िविश छाप आज भी ितभािसत है । ये कुमा रल भ के धान िश तथा अपने युग के सव े मीमां सक
थे। ये मैिथल ा ण थे। 'श रिद जय' के अनुसार एक बार श राचाय म न िम के साथ शा ाथ
करने के िलए उनके गाँ व मािह ती (आधुिनक सहरसा िजले के 'मिहषी') गाँ व प ं चे। वहाँ कुएँ पर पानी
भरने वाली पिनहा रन से म न िम के घर का पता पू छा। पिनहा रन ने उ घर का पता इस कार
बताया-
1. िविधिववेक,
2. िव मिववेक,
3. भावनािववेक मीमां सासू ानु मणी,
4. ोटिस ,
5. नै िस ,
6. िस - भृित।
1. ायर ाकर,
2. ायर माला.
3. त र
4. शा दीिपका।
माधवाचाय- िस भा कार सायणाचाय के माधवाचाय अ ज थे। इनके िपता का नाम मायण तथा
माता का नाम ीमती था। अपनी खर ितभा और बल पा तथा िवमल वै दु के कारण दाशिनक
समाज म ये समादरणीय थे ।
1. ायभाषािव ार,
2. मीमां सापादु का,
3. ई रमीमां सा,
4. सवदशनसं हािद।
गु मत के आचाय
कालिनधारण- कु ू ामी और डॉ. ग ानाथ झा भाकर का समय 610 ई0 से 690 ई. के बीच मानते
ह( डॉ. म न िम )। डॉ. कीथ भाकर को कुमा रल का पूववत मानते ह।
काल- इनका समय म न िम के बाद तथा वाच ित िम के पूव माना जाता है । यह समय नवम
शतक का है ।
ीभा के वृि कार सुदशनाचाय के ारा इनका नाम िनदिशत िकया गया है । अत: इनका समय 1200
ई. से 1300 ई. के बीच होना चािहए। 'त रह ' गु मत के त ों की जानकारी दे ने म उपयु है ।
1. वरदराज की 'दीिपका',
2. श र िम की 'पि का',
4. र दे व का 'िववेकत ' ।
ये सभी मीमां सा के े म मह पूण ह। गु मत के अ ों म-
2. रामानुजाचायरिचत त रह उ ेखनीय है ।
मुरा रिम -मुरा र िम िमिथला ा के िनवासी थे । मीमां सा-दशन म इनकी अलौिकक ितभा थी। वे
एक मीमां सक थे, िफर भी उनका ितभा िवल ण थी। मीमां सक होते ए भी वे एकमा को ही
पदाथ मानते थे। भा एवं गु मत के अित र यह उनका अपना और त मत था। इसीिलए उनके
स मे मुरारे ृतीयः प ाः यह सू चिलत ई। उ सू के ल भू त मुरा र िम को मीमां सा-
दशन के तृतीय स दाय का वतक होने का अलौिकक एवं अद् भुत गौरव ा है । मुरा र ने दशम
शतक म उप थत भवनाथ िम के मतों का कई थलों पर सयु ख न िकया है ।
1. 'ि पादीनीितनयन' और
2. 'एकादशा ायािधकरण' नामक दो उपल है ।
श और अपूव
वेद ितपा ो योजनवदथ धमः अथात् वेद- ितपािदत गािद योजन वाला ही धम है ।
एत तुिवधं ा ः सा ा म ल णम् ।।
ु ित ृितसदाचारः च ि यमा नः ।
कममीमांसा और मो िववेचन
1. िन कम,
2. नैिमि क कम,
3. ितिष कम और
4. का कम।
ितिष कम-ये कम ितिष ह। वेद म ऐसे कम का िनषे ध िकया गया है । हटपू वक ऐसे कम करने
से अशुभ होता है । जैसे-कलशं न भ येत् अथात् जहरीले अ से आहत पशु या प ी का मां स नही ं खाना
चािहए।
इस तरह हम दे खते ह िक मीमां सा-दशन म जो सव थान धम को उपल था, उसे परवत काल म
मो या अपवग ने ले िलया। है िक पहले मीमां सा का आ ह धम पर था और उसका ल था—
इससे ा ग; िक ु काला र म ग के थान पर मो को जीवन का चरम पु षाथ माना गया। इस
कार जैिमिन एवं शबर के मत म मो का कोई थान न होते ए भी भाकर एवं कुमा रल के मत म
उसे मह पूण ित ा िमली है । भाकर और कुमा रल दोनों ने मानव-जीवन म मो को ही चरम पु षाथ
माना है और ाय-वैशेिषकों की तरह उसकी क ना दु :ख के अ ाऽभाव के प म की है । ये दोनों
आचाय आ ा को मानते ह। ये ान को गुण या ि या मानते ह। दे ह और इ यों के साथ सं योग
होने पर ब आ ा म िवषय-स क से ान, सुख, दु :ख, इ ा, े ष, य आिद धम उ होते ह।
मो ाव था म दे हे य-िवषय-संयोग के िवलय होने के कारण आ ा म ान और आन उ नही ं हो
सकते। कहने का ता य यह है िक मीमां सा-दशन ने आ ा के सां सा रक ि िवध ब नों से सदा के िलए
मु होने को ही मो माना है । यथा- ि िवध ािप ब ा को िवलयो मो ः (शा दीिपका)।
भाकर ने मो को पा रभािषत ए कहा है -
अथात् जब शरीर के सारे धमाधम िवलु हो जाते ह, शरीर का आ क नाश हो जाता है , सां सा रक
ब नों से सदा के िलए मु िमल जाती है तो उस थित को मु ाव था कहा जाता है ।
मीमां सकों ने मो -जैसे मह पूण िवषय का िववेचन अित सू ि से िकया है । इस जगत् के साथ
आ स के िवलय को इ ोंने मो कहा है - पशस िवलयो मो ः ।
मो के साधन
1. अथदे वता,
2. श िविश अथदे वता,
3. श दे वता।
िव हो हिवषां भोग ऐ य स ता ।
दे वता भी मनु की तरह आकृितवान होते ह। हिव ान का भोजन करते ह। वे ऐ यशाली होते ह। वे
िजस पर स होते ह, उसके कृतकम का शु भाशु भ फल दे ते है । ये दे वता मनु की तरह िव हवान ह।
यहाँ भी श मयी दे वता का िस ा स तीत होता है , िक ु मीमां सा-दशन के सभी आचाय इस
िस ा पर एकमत नही ं ह।
उपसंहार
त ाता त ानां मो ा ूव ि या ये ।
उ र चयाभावात् दे ही नो ते पुनः ।।
- ोकवाि क
1. त मीमांसा
2. माण मीमांसा
3. ई र आिद
4. ामा वाद
5. ाितवाद