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July – September, 2021 Volume No.-2, Issue No.

-3 Indraprasth Shodh Sandarsh

रामराज्य

डॉ. निनि अरोडा


एसोनसएट प्रोफे सर एवं नवभागाध्यक्ष
मौनिक नसद्ांत तथा संनिता नवभाग
आयुवेद एवं युिािी नतनबिया कािेज एवं िानपिटि
ियी ददल्िी

रामराज्य (िेखक – श्री आिुतोष राणा), कौटटल्य िुक्स, ियी ददल्िी, 2020

प्रपतुत िुपतक िर कु छ भी निखिे से िूवव मैं पिष्ट करिा रिा चािती हं दक यि िुपतक मेरे आकषवण
का के न्द्र क्यों ििी। वापतव में िारम्िार आक्रान्द्ताओं से आित भारत वषव में प्रभु श्रीराम के
अनपतत्व, चटरत्र और मयावदा िुरुषोत्तम िोिे िर अिेक प्रकार के कु तकव सामिे आते रिते िैं। यिां
तक दक प्रभु को अििी जन्द्मपथिी एवं अििे जन्द्म के प्रमाण न्द्यायािय में देिे िडते िैं। िांच सौ
कियुगी वषों का सडक से संसद तक संघषव करिा िडता िै, ति जाकर "अयोध्या" (जिां कभी
युद् ििीं िोता) िुिः अयोध्या िि िाती िै। वैददक संपकृ नत के उच्च मािकों के िोषक िटरवार में
जन्द्म िेिे के िश्चात् जिां निताजी िरम रामभक्त रिे और मैं तुिसीदास जी की दोिों चौिाईयों
के साथ ििी िढी, विां इस प्रकार की घटिाओं का रष्टा िििा प्राणान्द्तक वेदिा दे रिा था। इसी
समय में मेरे सौभाग्य और प्रभु श्रीराम की नविेष अिुकंिा के कारण हिंदी के सुप्रनसद् िेखक श्री
आिुतोष राणा जी की इस िुपतक को िढ िािे का संयोग ििा।

प्रभु श्रीराम िर निखिा िी अििे आि में एक अद्भुत अिुभूनत िै, और वि ‘'राम” जो भारत के
कण-कण में यिां के निवानसयों के मि प्राण में रिते िैं, उिके “रामराज्य” की िटरकल्ििा भी इस
युग में रोमांनचत कर जाती िै। अतः अििे इस औपतुक्य और प्रभु के प्रनत अििी श्रद्ा-निष्ठा से
अनभभूत िोकर इस समीक्षा िेतु प्रपतुत हुई हं। प्रारम्भ करिे से िूवव िी गोपवामी तुिसीदास जी
से प्रेटरत िोकर यि कििे का उद्योग कर िा रिी हं दक यि िेख नजतिा िरान्द्त: सुखाय िै उससे
किीं अनिक पवान्द्त: सुखाय िै। मेरी अल्ििुनद् तथा अज्ञता के कारण त्रुटटयों की प्रिि संभाविा
िै। अतः सभी सुिी िाठकगण मुझे क्षमा करें गे।

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रामराज्य

नवषय-वपतु

िुपतक समीक्षा के उिक्रम में इस िेख को नवनवि उि-िीषवकों में नवभानजत दकया िै। इिके
माध्यम से िुपतक िेखक के मूि भाव को अक्षुण्ण रखते हुए इसमें आए भारतीय संपकृ नत नसद्ांत
और मूल्यों का नवश्लेषण करिे का प्रयास िै।

िेखक एक अध्यात्म प्रिाि िटरवेि में िििे के कारण िाििि से िी मिादेव निव एवं प्रभु
श्रीराम के प्रनत निष्ठा से िटरिूणव रिे। अििे निता और गुरु के मुख से रामकथाओं को सुििे से वे
श्रीराम के आचरणों से अनत प्रभानवत हुए और यि नवचार उिके मनपतष्क में आया दक ऐसे नवराट
अनपतत्व की पतुनत करते हुए भी िम सि नत्रनवि ताि (आनिभौनतक, आनिदैनवक और
आध्यानत्मक) से ग्रनसत क्यों िैं। किीं ऐसा तो ििीं दक िम श्रीराम को मािते तो िैं िरन्द्तु उिके
आचरण का अिुकरण ििीं कर िाते? अथवा िम प्रभु राम को जािते िी ििीं? इसी प्रकार राम
कथा में राम के अनतटरक्त भी जो अन्द्य िात्र यथा कै के यी, सूिविखा, सीता, नवभीषण रावण आदद
के उन्नत कु ि एवं प्रचनित िारणाओं के असमंजपय के िीछे कोई गूढ रिपय भी िै क्या? इि
अिनगित संिय-भ्ांनतयों को दूर करिे के नवचार से उन्द्िोंिे गुरु की िरण िी और कािक्रम में
उि के सभी प्रश्नों का निराकरण िोता चिा गया। िेनखका के मत में इस िुपतक िेखि का
िरमुद्दश्े य रामकथा के माध्यम से ि के वि श्रीराम के उज्ज्वि चटरत्र का पमरण करते हुए िन्द्य
भाव की अिुभूनत करिा िै अनितु व्यनक्त और समाज में उस चटरत्र के प्रकाि में फै िी हुई
कु रीनतयों, कुं ठाओं का निपतारण करिा भी िै। साथ िी सुदढृ समाज की रचिा में स्त्री की िनक्त
को उसके नवनवि पवरूिों में प्रकानित करिा और इिके अनतटरक्त राजा और राज्य के आदिव
नचत्रण के साथ िी अन्द्य अिेक समाज, राष्ट्र और व्यनक्तगत उद्ार के निए उियोगी सूक्ष्म नवषयों
िर तकव िूणव एवं गंभीर हचंति प्रपतुत करिा भी िै।

िुपतक में एक संदभव की नववेचिा में िताया गया दक मां कै के यी भरत और राम दोिों को स्नेि के
साथ-साथ िाण संिाि आदद निक्षा भी देतीं थीं। इसी क्रम में एक ददि एक िक्ष्य भेदिे की
िरीक्षा में उन्द्िोंिे िाया दक भरत प्रेम भाव से भरे हुए िैं िेदकि माता और गुरु की आज्ञा में संिय
करते िैं। िरन्द्तु राम तो िूणव नवश्वास के साथ आज्ञा िािि में तत्िर िैं। मां िे जि श्रीराम से
इसका कारण िूछा तो उन्द्िोिे किा दक िुत्र एवं निष्य का कतवव्य िै दक वि अििे गुरु, अििी मां
के ददखाए मागव िर निभीकता से िढे। अिावश्यक संदि े और प्रश्न ि करें । अथावत् गुरु एवं माता
के प्रनत संिूणव निष्ठा का भाव रखे। इस घटिा के वणवि से यि भी समझ आया दक िािक की प्रथम
गुरु माता िी िोती िै।

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इसी प्रकार कै के यी के चटरत्र नवश्लेषण में िी दूसरा मूल्य आया मातृत्व के गुण ितािा। िेखक
किते िैं दक मातृत्व दैनिक ि िोकर भाविात्मक अवपथा िोती िै। और मां में जो तीि गुण
अनिवायव िैं, वि िैं िारण, कारण और तारण। संभवतः िेखक कििा चािते िैं दक िारणा िनक्त
के कारण िी असीम कष्ट उठाते हुए भी वि गभव को िौ मिीिे तक िारण करती िै। वि उस
िािक को के वि जन्द्म िी ििीं देती, अनितु उसके व्यनक्तत्व नवकास का कारण िोती िै। िािक
को नवनवि गुणों से संिन्न करते हुए जग-जीवि की उिझिों-समपयाओं से उिरिे के उिाय
नसखाकर तारण भी करती िै।

मिाराज दिरथ के चटरत्र को दिाविे के उद्योग में िेखक िताते िैं दक उन्द्िोंिे कमव में कौिि की
प्रतीक कौिल्या, कमव में इनतकतवव्यता की प्रतीक कै के यी और सभी में मैत्री भाव से रििे के
पवभाव की जीवट प्रनतमूर्तव सुनमत्रा के िीच जैसा संतुिि सािा, वैसा िी यदद मिुष्य अििे
जीवि में कमव, कौिि अथावत योग, कतवव्यनिष्ठा और सववत्र मैत्रीभाव का संतुिि ििा िाता िै,
तो उसका जीवि नपथर और संतोष से भरा रिता िै। वैमिपय से िी तो उनिग्नता िोती िै, मैत्री
भाव तो आत्मनवश्वास िढाता िै। इस एक मूल्य के माध्यम से िेखक िे मिाराज दिरथ की
मिािता और तीिों रानियों की नवनिष्टता को भी अनत सुद ं र रूि में प्रपतुत कर ददया िै। सत्कमव
एवं अिकमव की सटीक व्याख्या करते हुए श्रीराम और माता कै के यी के संवाद में यि नसद् दकया
दक कमव में उद्देश्य का अनतिय मित्व िोता िै। यदद उद्देश्य अिनवत्र िो तो सत्कमव भी अिकमव
पवरूि फि देता िै, जैसे दक रावण का ति साििा सत्कमव की श्रेणी में आता िै, तथानि उिका
उद्देश्य िासि करिा, प्रताडिा देिा और अिं तुनष्ट था, अतः उसका फि िंका नविाि अथावत्
राष्ट्र नविाि हुआ जो दक दकसी अिकमव का फि िोता िै। िरन्द्तु इसके नविरीत यदद उद्देश्य उत्तम
िो तो अिकमव भी सत्कमव पवरूि फि देता िै, यथा नवभीषण िे राजरोि रूिी जघन्द्य अिकमव
दकया, िरन्द्तु उिका उद्देश्य प्रभु श्रीराम की िरणागनत था, अतः वि सत्कमव पवरूि फिीभूत
हुआ।

अिुिासि के मित्व को िताते हुए श्रीराम अििी माता के साथ हुए संवाद में किते िैं दक
अिुिासि को सािे नििा सुिासि पथानित ििीं िो सकता। अिुिासि भी कै सा, नजसमें कानयक,
वानचक और मािनसक कायों में एकरूिता िो। कथिी और करिी में अंतर िोिे से सुिासि की
कल्ििा दुरूि िै। वचि िािि को सवोच्च आचरण िताते हुए श्रीराम किते िैं दक वचि भंग करके
जीिे की अिेक्षा वचि िािि करिे से प्राप्त मृत्यु अनिक कल्याणकारी िोती िै।

स्त्री-िनक्त का िटरचय

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रामराज्य

िेखक के मि में कै के यी के व्यविार को िेकर जो प्रश्न थे, विी प्रश्न संभवतः सामान्द्य जिमािस
में भी उत्िन्न िोते िैं । जैसे दक जो कै के यी राम को भरत से भी अनिक स्नेि देती थीं वि उिके
निए इतिी क्रूर क्यों िो गईं? अथवा मां सरपवती नजिकी कृ िा से जड भी ज्ञािवाि् िो जाता
िै, उन्द्िोंिे अज्ञािता और दुिुवनद्जिक नवचार मंथरा के माध्यम से कै के यी को क्यूं िहुंचाए? इि
प्रश्नों का उद्ार करते हुए िेखक िे िताया दक पवयं राम िे वि गमि की प्रिि इच्छा माता के
सामिे प्रकट की और उिसे नविम्र प्राथविा की दक वो कोई ऐसी व्यूिरचिा करें दक प्रभु की कामिा
िूणव िो जाए । क्योंदक राम हसंिासि के पथाि िर कु िासि िर िैठकर प्रजा का उत्थाि करिे के
इच्छु क थे। अििे िुत्र के श्रेष्ठ संकल्ि को जािकर मां कै के यी िे अििे ऊिर युग युगांतर तक
किंदकिी, कु माता आदद नविेषण पवीकार करके राम के नविय का माि रख निया। इस सूत्र से
िेखक िे कै के यी को तो मिाि ििाया िी, साथ िी यि भी िताया दक भारत की िारी कै से-कै से
समाज की सुख समृनद् के निए अििे ऊिर असह्य िीडा सिकर भी मौि ककं तु सिक्त भूनमका
निभाती िै। मां के इसी त्याग के कारण भगवाि राम अििे रावण वि के अवतरण िक्ष्य को िूणव
कर िाए।

इसी प्रकार सूिविखा की नपथनत को भी िताते हुए पिष्ट करते िैं दक नवश्रवा सुिणाव अथावत् अििी
िुत्री िूिविखा से किते िैं दक वि अििी और अििे कु ि की मुनक्त िेतु रावण को प्रभु राम से िेष
के निए प्रेटरत करें । ति उसिे अििे कु ि के मोक्ष के निए अििी प्रनतष्ठा को िून्द्य करके उस रूि
पवरूि में राम िक्ष्मण से भेंट की। इस प्रकार िारी िे नसद् दकया दक के वि िुत्र िी ििीं, िुत्री
भी कु ि की तारक ििती िै िमारी संपकृ नत में।

मां सीता के ित्नी िमव की सुद ं र नववेचिा करते हुए उन्द्िीं के मुख से िेखक कििवाते िैं दक वो
नववाि सप्तिदी में ददए गए अििे वचि को निभाएंगी और सुखद एवं नवकट दोिों िटरनपथनतयों
में अििे िनत का वि में भी अिुकरण करें गी। इस प्रकार स्त्री की कतवव्य निष्ठा, गृिपथ संिंिों की
िनवत्रता और भारत में िनवत्र अनग्न के सानक्षत्व के मित्व को िता ददया गया। यि भी नसद् हुआ
दक स्त्री प्रेम के रूि में भी िनक्त िी िै,वि िुरुष को अच्छे समय में आिंद तथा िुरे समय में
अविम्िि और समिवण दोिों देती िै।

राजा के गुणों की पथाििा तथा रामराज्य की िटरभाषा

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माता कै के यी से वि गमि के निए निवेदि करते हुए प्रभु श्रीराम के प्रसंग से िेखक िे पिष्ट दकया
दक राजा का कतवव्य दकसी भूखण्ड को जीतकर साम्राज्य का नवपतार करिा ििीं िोिा चानिए
अनितु मिुष्यों के भावखण्ड को जीतकर उसका िटरष्कार करिा िोिा चानिए। प्रभु के िी िबदों
में ऐसा पिष्ट दकया दक "मैं रामराज को ििीं, रामराज्य को पथानित करिा चािता हं। राजा की
िारणा निभवरता की िोषक िै तो राज्य की अविारणा आत्मनिभवरता को िढावा देती िै। जिां
व्यनक्त से अनिक मित्व नवचार का िो, व्यवपथा का िो।“ इस प्रकार िुपतक में रामराज्य की
अभूतिूवव व्याख्या की गई िै।

श्रीराम िे दंडकारण्य के घिे अरण्य को चुिा क्योंदक यिां प्राकृ नतक संिदा अनिक थी िरन्द्तु
रावण के भय के कारण अज्ञाि, अवसाद और दासत्व भाव से नघरी यिां की जिजानतयां इस
संिदा का उियोग ििीं जािती थीं। ति प्रभुराम िे जि-जि की आंतटरक िनक्त को जागृत करिे
के उद्देश्य से इस सत्य को प्रकानित दकया दक अन्द्याय के नवरुद् दृढता से दकया गया प्रनतकार
सफि िोता िै। इसके निए उन्द्िोंिे छद्म युद् के उिाय से अके िे िी खर-दूषण का वि कर ददया।
इस घटिा से िेखक राजा के कई गुणों को कि गए। प्रथम, राजा को युद् कौिि नििुण िोिा
चानिए। नितीय, सेिा का िेतृत्व युद् भूनम में प्रथम िंनक्त में रिकर करिा चानिए और तृतीय,
अल्ितम हिंसा में युद् समाप्त करिे का प्रयास करिा चानिए नजससे की अल्ि सैन्द्य-िनक्त भी
प्रिि िनक्त िर नवजयी िो सके । अल्ि िस्त्रादद सािि भी मािनसक पतर िर ित्रु को िििे िी
िरा देिा भी राजा की कु ििता िै।

रावण का सम्माि

मिारािी मन्द्दोदरी से अंनतम संवाद में रावण अििे को भाग्यिािी मािते हुए पवीकार करते िैं
दक वो मिादेव के अिन्द्य भक्त िैं िरन्द्तु उन्द्िोंिे निव से कल्याण ििीं के वि िनक्त मांगी। आिुतोष
भगवाि िे उन्द्िें वि दे दी। िर अि वो मुनक्त चािते िैं, इसनिए राम से ित्रुता कर रिे िैं। किते
िैं राम के संसगव में िी उिके सभी दुराग्रि और अिंकार का नविय िोगा, और वि प्रसन्नता से
उिके िाथों मरण िेतु जा रिा िै। इसी प्रसंग में िेखक िे िडी चतुराई से रावण के अमृतकु ण्ड
का दािवनिक नवश्लेषण भी कर ददया। इस प्रकार रावण के िानण्डत्य को नसद् करते हुए उिकी
भी माि-प्रनतष्ठा को संिोनित कर ददया।

सीता िटरत्याग

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रामराज्य

अयोध्या िौटिे िर एक िोिी के मिारािी सीता के चटरत्र िर िांछि िगािे से आित िोकर
प्रभु िे सीता जी को त्याग ददया। इस घटिा के कारण राम जी को सीता जी के प्रनत अन्द्याय
करिे की दृनष्ट से प्राय: देखा जाता िै। इस घटिा के िश्चात मिादेव निव जि राम से भेंट करते
िैं ति वे किते िैं दक प्रभु नजस समाज में स्त्री भाविा ििीं मात्र भोग्या मािी जाती िै, जिां स्त्री
आपथा ििीं, मात्र अनिकार का नवषय िै, विां आििे अििे एक निणवय से माता सीता के िवि
चटरत्र की ओर आिे वािी सभी िंका, संदि
े और किंक की िातों को अििी ओर मोड ददया।
आि िन्द्य िैं प्रभु। इस प्रकार की नववेचिा से इस जटटि नवषय को भी िेखक खोि देते िैं। यिां
पवयं श्रीराम के मुख से त्याग एवं िटरत्याग का अंतर भी पिष्ट कर देते िैं। जिां त्याग व्यनक्तगत
िाभ-िानि का नवषय िि जाता िै विीं िटरत्याग सामानजक संतोष और आग्रिों की तुनष्ट िै।
िटरत्याग में प्रभु िे सीता जी को अििे हृदय में िारण करके प्रजा के नवश्वास की तुनष्ट की और
राजा के िारा प्रजा को सदाचरण का अिुिम अनितीय उदािरण प्रपतुत कर ददया जो आज भी
िमारी प्रेरणा का स्रोत िै।

िटरभाषाओं के माध्यम से भाषा की प्रांजिता एवं िेखक की नवनिष्ट िैिी का अविोकि

िुपतक में अिेक सामान्द्य िबदों की नवनिष्ट िटरभाषा दी गई िै। इिके माध्यम से भारतीय हचंति
का अिूठा नचत्रण करिा िेखक की हचंति िनक्त, भाषा िर नियंत्रण, तकव िूणव गंभीर
नवश्लेषणात्मकता का िटरचायक िै। यि िेखि िैिी भी नविक्षण िी िै। यिां िेख की िबद मयावदा
के कारण कु छ िी को उदािरणपवरूि उद्िृत कर रिी हं, यथा-
 असार में सार को देखिा प्रेम दृनष्ट िै जिदक सार में से असार को िृथक कर देिा ज्ञाि
दृनष्ट िै।
 आिन्द्दिूववक दकया गया श्रम िी आश्रम िै।
 संपकृ नत एक किा िै। सभ्यता इसका कौिि। सभी गुणों को सम्यक रूि से िारण करिा
िी संपकृ नत िै। अथावत् सत्व, रजस, तमस तीि गुणों का पवरूि िटरवर्तवत दकए नििा
िी इिका सुंदर संतुिि संपकृ नत िै और सभ्यता ददखाई देिे वािा िरीर िै।
 जि कोई व्यनक्त रक्षण के मागव को छोडकर भक्षण के मागव का अिुसरण करता िै ति वि
राक्षस िो जाता िै।

इस प्रकार नवनभन्न प्रसंगों में िहुत सी िटरभाषाएं िैं नजिसे जीवि मूल्यों की झांकी नमिती िै।

उिसंिार

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िुपतक की उियुवक्त नविद नववेचिा के िश्चात यि किकर उिसंिार करिा चािती हं दक प्रनतनष्ठत
िेखक श्री आिुतोष राणा जी िे ‘रामराज्य' िुपतक के माध्यम से समाज में नस्त्रयों की माि मयावदा
की पथाििा करते हुए समाज की उन्ननत में उिकी भूनमका का सुंदर नचत्रण दकया िै। समाज में
व्यनक्तगत अिुिासि और संतुिि के प्रभाव को रे खांदकत दकया िै। यि भी पथानित दकया दक
समाज में व्याप्त भ्ांनतयों का निवारण उच्च तकव िनक्त से दकया जा सकता िै, यदद मि और संकल्ि
में अििी सभ्यता और संपकृ नत में अटूट नवश्वास िो। सकारात्मक दृनष्टकोण ऊिािोि को समाप्त
कर संिय निवारण का अजेय उिाय िै। और अनन्द्तम िरन्द्तु सिसे मित्विूणव हिंद ु जो मुझे िगा,
वि यि दक राजा और प्रजा के सुसंगटठत िरपिर नवश्वास और नविदता से ििे संिंि से
’रामराज्य‘ दकसी भी कािखंड में किोिकल्ििा ि िोकर सत्य की भांनत प्रपथानित िो सकता
िै।

इस प्रकार श्रीराम कथा को उसके सभी िात्रों सनित सम्मानित करती यि िुपतक अवश्य िी
िढिे योग्य िै। युवा िीढी में अििी संपकृ नत में नवश्वास जगािे की योग्यता रखती िै। मैं िेखक
को इस िुपतक के िेखि िर ििाई देती हं तथा हृदय से उिका आभार प्रकट करती हं। इस
समीक्षा को अिो निनखत दोिे से नवराम देते हुए यि िुभच्े छा करती हं दक मिाि् भारत भूनमिर
िुिःऐसा िी रामराज्य पथानित िो, और िम सि उस िुण्य काि में पवयं को िन्द्य करते रिें-

दैनिक दैनवक भौनतक तािा। रामराज ििीं कािहु व्यािा।।


सि िर करहिं िरपिर प्रीनत। चिहिं पविमव निरत श्रुनत िीती।।

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