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छंद बंद
जिस को
परम पुरुष पूर्ण धनी स्वामी िी मराराि
ने
ज़बाने मुबारक से फ़माणया
राधास्वामी दयाल की दया
राधास्वामी सराय
परम संत हुज़ूर धनी स्वामी जिवदयाल ससर िी मराराि
राधास्वामी दयाल की दया
राधास्वामी सराय
राधास्वामी दयाल की दया
राधास्वामी सराय
भूजमका
की बार्ी का पाठ करते ररे । चूकूँ क उत्तर प्रदेि में पंिाबी ज़बान का ररवाि
बहुत कम रै और आम लोगों को पंिाबी समझने में कदक्कत 1 मरसूस रोती
थी इस जलये बहुत से प्रेमी सत्संजगयों और सत्संजगनों ने इस्त्रार 2 करके उन
ऊूँची और गूढ़ रूरानी रमिों को सरल भाषा में आम फ़रम ज़बान में करने
पर मज़बूर ककया । इसमें िक ऩरीं कक जिस खूबी के साथ हुज़ूर स्वामी िी
मराराि ने राज़राय सरबस्ता3 यानी गूढ़ भेदों को आसान और सलीस
ज़बान में कलम-बन्द ककया रै उस की नज़ीर4 आि करीं नरीं जमलती ।
यर अपनी नज़ीर आप री रै ।
11. िब्द की मजरमा तो तमाम मतों के ग्रन्थों में रै और खास खास संतों
ने गूढ़ भेद को ककसी क़दर वज़ारत के साथ भी बयान ककया रै, लेककन
स्वामी िी ने जनरायत तफ़सील के साथ यानी जवस्तार पूवक
ण िब्द भेद
ज़ाजरर फ़माणया रै ।
14. तरीक़ा राधास्वामी यानी संत —पन्थ का भजि मागण का रै, यानी
सच्चे और पूरे माजलक के चरर्ों में प्रेम और प्रीत और प्रतीजत करना ।
इसको उपासना और तरीक़त भी करते रैं । इस मागण में या तो संत सतगुरु
और साध गुरु की मजरमा रै और या उनके असली िब्द स्वरूप की
मजरमा रै । संत सतगुरु उनको करते रैं कक िो सत्तपुरुष और राधास्वामी
के मुक़ाम पर पहुूँचे, और साध गुरु उनको करते रैं िो ब्रह्म और पारब्रह्म
के मक़ाम पर पहुूँचे, और िो यराूँ तक नरीं पहुूँचे, उनको साध और
सत्संगी करा िाता रै । इन दोनों िानी संत और साध का असली स्वरूप,
िब्द स्वरूप रै और ज़ाजररी स्वरूप नर स्वरूप यानी इन्सानी जखकाण1 रै
िो कक वे लोगों के समझाने और बुझाने और उपकार और उद्धार के जलये
धर कर संसार में प्रकट रोते रैं । िब यर मालूम हुआ कक यर पूरे संत या
पूरे साध रैं तो कफर उन में और सत्तपुरुष या पारब्रह्म में भेद नरीं माना
िाता रै । इस वास्ते िब िब पूरे संत या पूरे साध प्रकट रोते रैं, तो
उनके चरर् सेवक उनकी मजरमा सत्तपुरुष या पारब्रह्म के बराबर करते
1. चोला, जलबास ।
भूजमका छ
रैं और बाजरर में उनकी पूिा और सेवा और आरती वगैरा उसी तौर से
बिा लाते रैं िैसे कक माजलक की करना चाजरये और इस ज़ाजररी स्वरूप
की सेवा और दिणन और बचन और उनके चरर्ों में प्रेम और प्रीजत करने से
और िो िुगत वे बतलावें उसके अभ्यास करने से सुरत यानी िीवात्मा मन
और माया के िाल से अलारदा रो कर आकाि में और उससे परे चढ़ती रै
और अन्तर के स्वरूप यानी िब्द में पहुूँचती रै, तब सच्चा और पूरा उद्धार
िीव का रोता रै ।
1. पूि
ं ी। 2. जनभणयता । 3. मुग्ध ।
ञ सार बचन
वचन आजखरी
वचन िो कक स्वामी िी मराराि ने आजखरी रोज़ पेितर अन्तर ध्यान
रोने के , वास्ते जरदायत साधूओं, सत्संजगयों व सत्संजगनों के खास ज़बाने
मुबारक से फ़माणये ।
तारीख 15 िून सन् 1878 मुताजबक असाढ़ वदी पड़वा (1) संवत् 1925
जब: रोि िनीचर वि अलस्सबार ।
1. असली नाम माता िी का माता नरायर् देवी िी था । लेककन चूकूँ क सेठ प्रताप
ससर जिन्रोंने यर वचन जलखें रै, उन को राधा िी के नाम से पुकारते थे, इस
वास्ते यारां राधा िी री दरि रै ।
2. छोटी माता िी से मुराद सेठ जबन्द्रावन िी साजरब िो कक हुज़ूर स्वामी िी
मराराि के मंझले भाई थे, की सुपत्नी से रै ।
ठ सार बचन
वचन 9---कफर रद्धी बीबी नें पूछा---कक रमारे वास्ते ककसको तिवीज़
ककया रै ? इस पर फ़माणया :---कक गृरजस्थयों के वास्ते तो राधा िी और
साधुओं के वासते सनमुख दास ।
वचन 12---कफर सेठ प्रताप ससर नें अज़ण ककया---कक मुझको भी अपने
संग ले चलो । इस पर फमाणया:---कक तुमसे अभी बहुत काम लेना
रै । बाग़ में ररोगे और सत्संग करोगे और कराओगे ।
अ
अंत हुआ िग मासर ००० 379
अंदरूूँ अिण रफ़्ता दीदम नूर ००० 180
अकर अपार अगाध अनामी ००० 8
अगम आरती राधास्वामी गाऊूँ ००० 245
अिब यर बूँगला जलया सिाय ००० 363
अटक तू क्यों ररा िग में ००० 121
अनरद बािे बिे गगन में ००० 94
अपने स्वामी की मैं करत आरती ००० 60
अब खेलत राधास्वामी संग रोरी ००० 358
अब चली तीसर परदा खोल ००० 227
अब चलो सिनी दूसर धाम ००० 226
अब चौथे की करी तयारी ००० 228
अब बरी सुरत मंझधार ००० 154
अब मन आतुर दरस पुकारे ००० 262
अब मैं कौन कु मजत उरझानी ००० 263
अब सतगुरु की आरत गाऊं ००० 48
अब सूरत पूछे स्वामी से ००० 215
अरे मन देख कराूँ संसार ००० 154
अरे मन नसर आई ००० 258
अरे मन रं ग िा सतगुरु प्रीत ००० 137
अली री मथ जनि सपडा ००० 305
दो सार बचन
आ
आओ री सखी िुड़ रोली गावें ००० 361
आओ री जसमट रे सजखओ ००० 289
आि आरती इक कहूं भारी ००० 43
आि आरती करूूँ सुरावन ००० 248
आि काि मेरे कीन्रें पूरे ००० 281
आि घड़ी अजत पावन भावन ००० 235
आि कदवस सजख मंगल खानी ००० 51
आि बधावा राधास्वामी गाऊूँ ००० 37
आि मेरे आन्नद रोत अपार ००० 76
आि मेरे धूम भई रै भारी ००० 38
आि मैं देखूं घट में जतल को ००० 286
आि सखी काि करो कु छ अपना ००० 138
आि साि कर आरत लाई ००० 52
आनूँद मंगल आि, साि सब ००० 55
आया मास अगरन अब छठा ००० 341
आरत आगे राधास्वामी के कीिे ००० 253
आरत करूूँ आि सतगुरु की ००० 62
आरत गाऊं पाूँच कड़ी की ००० 243
आरत गाऊूँ पूरे गुरु की ००० 239
आरत गाऊूँ सत्तनाम की ००० 243
आरत गाऊूँ स्वामी अगम अनामी ००० 239
आरत गाऊूँ स्वामी सुरत चढ़ाऊूँ ००० 300
आरत गावे दरसो अपनी ००० 60
आरत गावे सेवक तेरा ००० 42
आरत गावे स्वामी दास तुम्रारा ००० 242
सूची पि तीन
दोरा
राधास्वामी गाय कर, िनम सुफल कर ले ।
यरी नाम जनि नाम रै, मन अपने धर ले ।।3।।
बैठक स्वामी3 अद्भुती, राधा4 जनरख जनरार ।
और न कोई लख सके , िोभा अगम अपार ।।4।।
गुप्त रूप िरूँ धाररया, राधास्वामी नाम ।
जबना मेरर5 नसर पावई, िराूँ कोइ जबसराम ।।5।।
।। मंगलाचरर् ।।
करूूँ बन्दगी राधास्वामी आगे । जिन परताप िीव बहु िागे ।।1।।
बारम्बार करूूँ परनाम । सतगुरु पदम6 धाम सतनाम ।।2।।
आकद अनाजत िुगाकद अनाम । संत स्वरूप छोड़ जनि धाम ।।3।।
दोरा
चौपाई
।। बचन परला ।।
संदेि
आप उनके उद्धार के जनजमत्त1 संत सतगुरु रूप धारर् करके प्रगट हुये और
अजत दया करके भेद अपने जनि स्थान का और युजि उसके प्राजप्त की सुरत
िब्द के मागण2 से उपदेि करते रैं । िीवों को चाजरये कक उनके चरर् कूँ वल
में प्रेम करें ।।
इस मागण की कमाई से मन बस में आवेगा और जसवाय इसके दूसरा
कोई उपाव मन के जनश्चल और जनमणल करके चढ़ाने का आकाि के परे
इस कलयुग में जनश्चय करके नरीं रै । जितने मत संसार में प्रवृत 3 रैं, उन
सब का जसद्धांत4 संतो की पजरली मंजिल5 जनरायत दूसरी मिल तक
खतम6 रो िाता रै । िो सुरत िब्द का अभ्यास जवजध पूवणक बन आवे तो
मन और सुरत जनमणल रोकर और िब्द को पकड़ के आकाि के परे िो
घट घट में व्यापक रै, चढ़ेंगे और नौद्वार अथवा सपड देि को छोड़ कर
ब्रह्मांड यानी जिकु टी में पहुंचेंगे और वराूँ से सुरत मन से अलग रोकर
आगे चलेगी और सुन्न और मरासुन्न के जबलास देखती हुई और सत्त लोक
और अलख लोक और अगम लोक में दिणन सत पुरुष और अलख पुरुष
और अगम पुरुष का करती हुई राधास्वामी के जनि देि में प्राप्त रोगी ।
इसी स्थान से आकद में सुरत उतरी थी और जिलोकी में आकर कालके
िाल में फूँ स गई थी सो उसी स्थान पर कफर िा पहुंचेगी । सुरत िब्द
मागी को यर सब स्थान यानी जवष्र्ु -लोक और जिव-लोक और ब्रह्म-
लोक और िजि-लोक और कृ ष्र्-लोक और राम लोक और ब्रह्म और
पारब्रह्म पद और िैजनयों का जनवाणर् -पद और ईसाईयों का मकाम-खुदा
और रूहुल क़ु द्स का जनवाणर् -पद और ईसाईयों का मुकाम-ख़ुदा और
रूहुल क़ु द्स8 और मुसलमानों के आलमे मलकू त 9 और िबरूत10 और
लाहूत1 सुन्न के नीचे नीचे रास्ते में पड़ेंगे । यर सब लीला देखती हुई सुरत
संतों के प्रताप से अपने जनि देि को प्राप्त रोगी ।
।। िब्द परला ।।
आरती
चलो री सखी जमल आरत गावें । ऋतु बसंत आये पुरुष पुराने ।।1।।
अलख अगम का भेद सुनावें । राधास्वामी नाम धरावें ।।2।।
सुरत िब्द की रे ल चलावें । िीव चढ़ाय अगम पुर धावें ।।3।।
सतसूँग धारा जनतजर बरावें । राधास्वामी जछन जछन गावें ।।4।।
उमूँग उमूँग जरया भेंट चढ़ावें । काल िाल दुख दूर बरावें ।।5।।
ऐसे समरथ पुरुष अपारा । दृजष्ट िोड़ रहुं दिण अधारा ।।6।।
पल पल खटकत जवरर करारी2 । िस हूलत3 कोइ सेल4 कटारी ।।7।।
जबन देखे दीदार5 न मानूूँ । िग संसार सभी जवष िानूूँ ।।8।।
अमृत कुं ड रूप राधास्वामी । अचऊूँ6 जछनजछन तबमन मानी ।।9।।
जबन राधास्वामी मोसर कछु न सुरावे । चार लोक मेरे काम न आवे ।।10।।
ज्ञान ध्यान और िोग बैरागा । तुच्छ7 समझ मैनें इनको त्यागा ।।11।।
मैं तो चकोर चंद राधास्वामी । नसर भावे सतनाम अनामी ।।12।।
जबन िल मछली चैन न पावे । कं वल जबना अल8 क्यों ठररावे ।।13।।
स्वाूँजत जबना िैसे पजपरा तरसे । सुत जवयोग माता नसर सरसे9 ।।14।।
अस अस राल भया अब मेरा । कासे बरनूं कोऊ न रेरा10 ।।15।।
दान देयं तो दें राधास्वामी । और न कोई ऐसा अंतरिामी ।।16।।
ऐसी भजि रोय इक रं गी । काटे बन्धन मन बहुरं गी ।।17।।
।। िब्द दूसरा ।।
राधास्वामी धरा नर रूप िगत में । गुरु रोय िीव जचताये ।।1।।
जिन जिन माना बचन समझ के । जतनको संग लगाये ।।2।।
कर सतसूँग सार रस पाया । पी पी तृप्त अघाये11 ।।3।।
गुरु सूँग प्रीत करी उन ऐसी । िस चकोर चन्दाये ।।4।।
गुरु जबन कल नसर पड़त घड़ी इक । दम दम मन अकु लाये12 ।।5।।
िब गुरु दिणन जमलें भाग से । मगन रोत िस बछड़ा गाये ।।6।।
ऐसी प्रीत लगी जिन गुरुमुख । सो सो गुरु अपनाये ।।7।।
।। बचन दूसरा ।।
जसफ़त राधास्वामी नाम की
।। जसफ़त पजरली ।।
सोरठा
।। जसफ़त दूसरी ।।
।। जसफ़त तीसरी ।।
।। बचन तीसरा ।।
मजरमा परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी की िो कक संत सतगुरु रूप
धारन करके वास्ते उद्धार िीवों के िगत में प्रगट हुए और वर्णन प्रेम प्रीजत
उनके चरर् कूँ वल में
सोरठा
राधास्वामी नाम, िो गावे सोई तरे ।
कलकलेि सब नाि, सुख पावे सब दुख ररे ।।1।।
ऐसा नाम अपार, कोई भेद न िानई ।
िो िाने सो पार, बहुरर न िग में िन्मई ।।2।।
।। िब्द परला ।।
अकर अपार अगाध अनामी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।1।।
रैरत3 रूप अथार दवामी4 । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।2।।
िन्म िन्म ररी धोख धुखानी1 । क्या मेरे प्यारे राधास्वामी ।।48।।
अब मेरा भाग िगा िग िानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।49।।
काम क्रोध नरीं लोभ लुभानी । गये मेरे प्यारे राधास्वामी ।।50।।
िाल ज़बर अब सभी कटानी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।51।।
धाम जमला िराूँ अचरि बानी । कदया मेरे प्यारे राधास्वामी ।।52।।
संतन साथ हुई संतानी । िो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।53।।
बारम्बार करूूँ परनामी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।54।।
धाम आपना भला दुरानी2 । तुम मेरे प्यारे राधास्वामी ।।55।।
तुम्ररी गजत कु छ अिब करानी । सुनी मेरे प्यारे राधास्वामी ।।56।।
मैं ररी जनस कदन नाम दीवानी । तुम्ररे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।57।।
काल मार तुम दूर रटानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।58।।
मैं बल िाऊूँ चरन क़ु रबानी3 । रे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।59।।
गावत गुन तुम अजत ररखानी । ऐसे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।60।।
देख रूप तुम रहुं मगनानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।61।।
मैं चकोर तुम चन्द समानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।62।।
मैं जवररन तुम दरि घुमामी4 । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।63।।
मैं पल पल तुम दरि कदवानी5 । रे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।64।।
तुम्ररे बचन मद झूम झुमानी6 । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।65।।
तुम स्वाूँती मैं सीप जनमानी7 । यों मेरे प्यारे राधास्वामी ।।66।।
तुम्ररी गजत मजत गोप8 जछपानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।67।।
तुमरी सब जवजध लीला ठानी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।68।।
ज्यों पजपरा स्वाूँती तरसानी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।69।।
तुम चुम्बक मैं लोर करठनानी । सखच रहुं मेरे प्यारे राधास्वामी ।।70।।
।। िब्द दूसरा ।।
।। िब्द तीसरा ।।
।। िब्द चौथा ।।
1. गुप्त । 2. प्रगट ।
24 सार बचन बचन 3
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
1. करें । 2. पाप । 3. कु ल, सब ।
30 सार बचन बचन 3
1. सामान । 2. सखची ।
बचन 3 मजरमा राधास्वामी 33
।। बचन चौथा ।।
मजरमा दिणन परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी की और वर्णन दिा प्रेम
और आनन्द की उसकी प्राजप्त में
।। िब्द पजरला ।।
देओ री सखी मोजर उमंग बधाई । अब मेरे आनंद उर1 न समाई ।।1।।
जछन जछन ररखूं पल पल जनरखूं । छजब राधास्वामी मोसे करी न िाई ।।
आरत थाली लीन सिाई । प्रेम सजरत रस भर भर गाई ।।3।।
चरन सरन गुरु लाग बढ़ाई । अजधक जबलास ररा मन छाई ।।4।।
करा कहूं यर घड़ी सुराई । सुरत रंसनी गई रै लुभाई ।।5।।
िब्द गुरु धुन गगन सुनाई । अमी धार धुर से चल आई ।।6।।
रोम रोम और अूँग अूँग न्राई । बरन जबनोद2 कहूं कस भाई।।7।।
जलख जलख कर कु छ सैन िनाई । िानेंगे मेरे िो गुरु भाई ।।8।।
राधास्वामी करत बनाई । चार लोक में कफरी रै दुराई ।।9।।
सत्तनाम धुन बीन बिाई । काल बली अजत मुरछा खाई ।।10।।
अलख अगम दोउ मेरर कराई । राधास्वामी राधास्वामी दरस कदखाई ।।
।। िब्द दूसरा ।।
।। िब्द तीसरा ।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
।। िब्द छठवाूँ ।।
देखत ररी री दरस गुरु पूरे । चाखत ररी री प्रेम रस मूरे ।।1।।
िोभा सतगुरु बरनी न िाई । बाित घट में अनरद तूरे ।।2।।
बुदं चढ़ी ति सपड असारा । पहुंची िाय जसन्ध सत नूरे ।।3।।
गरित गगन जवरर उठ िागी । मन कायर अब रोवत सूरे ।।4।।
चरन कूँ वल गुरु जररदे धारी । करत तमोगुन दम दम चूरे ।।5।।
कृ पा दृजष्ट सतगुरु अब धारी । काल चक्र डारत अब तोड़े ।।6।।
समुद ं सोत धस सुरत समानी । मान सरोवर दरसत हूरे 1 ।।7।।
सुरत चढ़ाय गई सतनामा । पहुंची राधास्वामी चरन रज़ूरे ।।8।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
गुरु के दरस पर मैं बजलरारी । गुरु के चरन मेरे प्रार् अधारी ।।1।।
गुरु के बचन मेरे जरये जसगारी । गुरु स्वरूप कदन रै न सम्रारी ।।2।।
गुरु का संग कर जछन जछन प्यारी । गुरु का रं ग ले नैन जनरारी ।।3।।
गुरु के धाम पर सुरत लगा री । नील जिखर2 चढ़ श्याम3 तका री ।।4।।
सेत सूर िरं नूर लखा री । िब्द अनारद तूर बिा री ।।5।।
मुरली धमक और बीन सुना री । अद्भुत रस अचरि सखी भारी ।।6।।
जबरले संत यर भेद पुकारी । तू भी सरन पड़ उन की िा री ।।7।।
ज्यों मीना िल धार समा री । ज्यों चकोर चन्दा जनरखा री ।।8।।
अस परीत सतगुरु संग ला री । कर प्रताप घट रोत उिारी ।।9।।
भाग जबना क्या करे जबचारी । यर भी भाग गुरु से पा री ।।10।।
राधास्वामी करी िुजि यर सारी । उनके चरन से प्रेम लगा री ।।11।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
गुरु का दरस तू देख री । जतल आसन डार ।।1।।
।। बचन पाूँचवाूँ ।।
वर्णन भेद मागण और िोभा सत्तलोक की और
मजरमा जनि स्वरूप और जनि स्थान परम
पुरुष पूरन धनी राधास्वामी की
।। िब्द पजरला ।।
।। िब्द दूसरा ।।
सोरठा
।। िब्द तीसरा ।।
नगररया झाूँक ररी मैं न्यारी । गुरु ने मोसर दीन्रीं अचरि तारी4 ।।1।।
सुनी मैं अनरद धुन झनकारी । रूप अब जनरखा अद्भुत भारी ।।2।।
कहूं क्या गुरु की मेरर करारी5 । हुई मैं राधास्वामी चरन दुलारी6 ।।3।।
छोड़ कर देि पराया आई । मरल में राधास्वामी आन बसाई ।।4।।
भेद यर दीन्रा मोसर मेरे भाई । कहूं कस मजरमा उनकी गाई ।।5।।
सरन अब राधास्वामी दृढ़ कर पाई । छोट मुख क्योंकर करूूँ बड़ाई ।।6।।
भाग मेरा िागा िब्द सुराई । नाम रस पाया करूं कमाई ।।7।।
सुरत हुइ जनरमल सुखमन पाई । चली और नभ पर करी चढ़ाई ।।8।।
नैन दोउ फे रे िोत कदखाई । सरस दल कूँ वल मध्य धस आई ।।9।।
श्याम ति सेत रूप दरसाई । बंक चढ़ जिकु टी आन समाई ।।10।।
ओंग धुन गरि भली समझाई । सूर िरूँ लाल लाल कदखलाई ।।11।।
।। िब्द चौथा ।।
1. पास ।
बचन 5 भेद मागण और िोभा सत्तलोक 47
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
।। बचन छटवाूँ ।।
आरती परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी के चरर् कं वल में
अब सतगुरु की आरत गाऊं । कथ कथ आरत बहुत सुनाऊं ।।1।।
आरत बानी आगे भनी3 । जवजवध भाूँजत की आरत बनी ।।2।।
राधास्वामी करत बखाना । सतसंगी सुनें देकर काना ।।3।।
।। िब्द पजरला ।।
रे राधा तुम गजत अजत भारी । रे स्वामी तुम धाम अपारी ।
राधास्वामी दोउ मोसर गोद जबठारी ।।1।।
राधा चरन गरे मैं आ री । स्वामी सरन हुई गजत न्यारी ।
राधास्वामी की हुई मैं प्यारी ।।2।।
राधा अंतर दया जवचारी । स्वामी परगट ककया उबारी ।
राधास्वामी जमला कर मोसर सूँवारी ।।3।।
राधा पल पल नाम रटा री । स्वामी जतल जतल रूप जनरारी ।
राधास्वामी मुझ को ककया अपना री ।।4।।
राधा गुन क्या कहूं पुकारी । स्वामी मजरमा अकर अपारी ।
राधास्वामी अब मोसर लीन सुधारी ।।5।।
राधा दरस करठन गजररा री । स्वामी बचन सुनत मोरा री ।
राधास्वामी अब के जलया उबारी ।।6।।
राधा बल मन रार गया री । स्वामी बल मैं गगन चढ़ा री ।
राधास्वामी कीन्री मेरर करारी1 ।।7।।
राधा आरत करूूँ ससगारी । स्वामी संग आरती धारी ।
राधास्वामी आरत करन जवचारी ।।8।।
राधा चरन ससरासन धारी । स्वामी चरन सम्रार पखारी2 ।
राधास्वामी चरन अब जमला अधारी ।।9।।
राधा दृजष्ट दया कर डारी । स्वामी मेरर करी अब न्यारी ।
राधास्वामी कीन मोर उपकारी ।।10।।
राधा गल अब रार चढ़ा री । स्वामी सीतल जतलक लगा री ।
राधास्वामी पूिन आि करा री ।।11।।
राधा आगे भोग धरा री । स्वामी सन्मुख थाल भरा री ।
राधास्वामी दोनों मान जलया री ।।12।।
1. अत्यन्त । 2. धोया ।
50 सार बचन बचन 6
।। िब्द दूसरा ।।
।। तीसरा िब्द ।।
आि कदवस सजख मंगल खानी । मैं राधास्वामी सूँग आरत ठानी ।।1।।
तन मन थाल जवरर कर िोती । सुरत1 जनरत2 धुन माल3 परोती ।।2।।
गगन जिखर चढ़ अचरि देखूूँ । रंसन साथ मरासुन पेख4ूूँ ।।3।।
चरन गहूं अब राधास्वामी के । आरत गाऊूँ प्यारे जिय के ।।4।।
जछन जछन जनरखूूँ छजब राधास्वामी । तन मन अरपूूँ दुख रर नामी ।।5।।
जछन जछन जनरखूूँ छजब प्रीतम की । तन मन अरपूूँ दुख ररर जरये की ।।6।।
कराूँ लग बरनूूँ चोट जवरर की । कोई न िाने साल5 जिगर की ।।7।।
जवरर अजि तन मन मेरा फूूँ का । झाल उठी िग दीन्रा लूका ।।8।।
जबन राधास्वामी मोसर कौन सम्रारे । लोक चार मेरे ज़रा न अधारे ।।9।।
मैं भइ देरी तुम भये स्वाूँसा । तुम जबन नसर िीवन की आसा ।।10।।
तुम भये मेघा मैं भइ मोरा । तुम्ररे दरस मैं करती िोरा ।।11।।
मैं बुलबुल तुम गुल की क्यारी । मैं क़ु मरी6 तुम सवण7 अपारी ।।12।।
तुम चंदा मैं रै न अूँजधयारी । तुम से िोभा भई रमारी ।।13।।
1. प्रिा ।
बचन 6 आरती परम पुरुष राधास्वामी 53
आरत फे रूं सन्मुख ठाढ़ी । प्रीत उमूँग मेरी जछन जछन बाढ़ी ।।4।।
तन नगरी जबच बित ढूँढोरा । भागे चोर ज़ोर भया थोड़ा ।।5।।
सील जछमा आय थाना गाड़ा । काम क्रोध पर पड़ गया धाड़ा1 ।।6।।
स्वामी मेरर करी अब भारी । मैं भी उन चरनन बजलरारी ।।7।।
अब ते सरन पड़ी राधास्वामी । राखो सूँग सदा अन्तर िामी ।।8।।
मेरे और न कोई दूिा । मेरे जनस कदन तुम्ररी पूिा ।।9।।
तुम जबन और न कोई िानूं । जछन जछन मन में तुमको मानूं ।।10।।
मैं मछली तुम नीर अपारा । के ल करूूँ मैं तुम्रारी लारा ।।11।।
मैं पजपरा तुम सवाूँजत के बादल । सुख पाये दुख गये रैं रसातल2 ।।
तुम चंदा मैं कमोदन रीनी । तुम्ररी लगन में जनसकदन भीनी3 ।।
मैं धरनी तुम गगन जबरािे । कै से जमलूं मैं तुम सूँग आिे ।।14।।
सुरत जनरत से चढ़ कर धाऊूँ । कभी न छोड़ूूँ अस जलपटाऊूँ ।।15।।
मैं गुरबतीं राधास्वामी के चरन की । लाि रखो मेरी काल से अबकी ।।16।।
तुम्ररे बल से भइ हूं जनसचती । अब मन में नसर संका धरती ।।17।।
सूर ककया स्वामी खेत जिताया । मार जलया मैंने मन और माया ।।18।।
खाक जमला सब कपट खज़ाना । भाग गया दल मोर तुराना ।।19।।
गढ़ जिकु टी अब चढ़कर लीन्रा । सुन्न जिखर पर डंका दीन्रा ।।20।।
ससध मरासुन्न बीच में आया । सतगुरु कृ पा ने दीन तराया ।।21।।
भूँवरगुफा के मरल जबरािी । सत्तलोक चढ़ अचरि गािी ।।22।।
अलख लोक में सूरत सािी । अगम लोक को जछन में भािी4 ।।23।।
पोरप5 ससरासन क्या कहुूँ मजरमा । िराूँ राधास्वामी ने धारे चरना ।।24।।
उन चरनन पर िाय जलपटानी । आगे अकर की क्या कहुं बानी ।।25।।
अब आरत मैं कीन्री पूरी । भाखा भेद अगम गम मूरी ।।26।।
राधास्वामी की चरन धूर धर । आय गई अपने मैं जनि घर ।।27।।
।। िब्द पांचवां ।।
।। चौपाई ।।
तुम दीपक मैं भइ हूं पतंगा । भस्म ककया मन तुम्ररे संगा ।।5।।
तुम भृङ्गी मैं कीट अधीना । जमल गये राधास्वामी अजत परवीना ।।6।।
तुम चंदन मैं भइ हूं भुवग
ं न2 । सीतल भइ लग तुम्ररे चरनन ।।7।।
तुम समुद्र मैं लरर तुम्रारी । तुम से उठ कफर तुमसर सम्रारी ।।8।।
तुम सूरि मैं ककरनी आई । तुम से जनकसी तुमसर समाई ।।9।।
तुम मोती मैं भी भइ धागा । संग तुम्रारा कभी न त्यागा ।।10।।
अब तो कृ पा करो राधास्वामी । तुम रो घट घट अंतरिामी ।।11।।
तुम चंदा मैं कला तुम्रारी । घारट बाढ़ तुम्ररो आधारी ।।12।।
मैं बाली तुम जपत और माता । तुम्ररी गोद खेलूूँ कदन राता ।।13।।
नैन थाल और दृष्टी िोती । पलकन छड़ी खड़ी कर लेती ।।14।।
प्रेम नीर का घी अब डारूूँ । आरत तुम्ररे सन्मुख वारूूँ ।।15।।
घंटा िंख नाद धुन गािा । बीन बाूँसरी अचरि बािा ।।16।।
ताल मृदग
ं ककगरी धधकी । ढोल पखावि जछन जछन जखड़की ।।17।।
सरस धार अमृत की बरखा । गगन मूँडल कफरे िैसे चरखा ।।18।।
1. िैसे । 2. सपनी ।
बचन 6 आरती परम पुरुष राधास्वामी 55
घुमड़ूँ घुमड़
ूँ रोवे बजलरारी । आरत िोभा अब भइ भारी ।।19।।
समा बूँधा कु छ करा न िाई । सतसंगी जमल आरत गाई ।।20।।
रीरे लाल न्योछावर1 रोई । माजर्क मोती लजड़याूँ पोई 2 ।।21।।
फल और फू ल िराूँ अजत रािें । राधास्वामी िराूँ जबरािें ।।22।।
मगन हुआ अब तन मन मेरा । राधास्वामी जछन जछन रेरा3 ।।23।।
आरत कीन्री अब मैं पूरी । देओ प्रिाद अमीरस मूरी4 ।।24।।
प्रेम ध्विा अब गगन फरराई । धुन धधकार अगम से आई ।।25।।
।। िब्द छठवाूँ ।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
।। िब्द नवाूँ ।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
सुरत आि लगी चरन गुरु धाय । श्याम ति सेत ग्राम ठरराय ।।1।।
देख जनि नाली बंक समाय । जिकु टी चढ़ कर पहुंची आय ।।2।।
जरये जबच पंकि3 अिब जखलाय । सेत पद धिा अगम फरराय ।।3।।
रंस िराूँ बािे ररे बिाय । गुरु अस लीला दई कदखाय ।।4।।
राजगनी नइ नइ जनत्त सुनाय । भेद सब अक्षर4 दीन बताय ।।5।।
घाट जन:अक्षर5 पाया िाय । गुफा में धुन इक सुनी बनाय ।।6।।
पदम सत जनरखा भरम नसाय । बीन धुन पाई सुरत लगाय ।।7।।
अलख और अगम ररा दरसाय । परे जतस राधास्वामी धाम जमलाय ।।8।।
िरां अब आरत साि सिाय । जलये मैं राधास्वामी खूब ररझाय ।।9।।
कहूूँ क्या मजरमा बरनी न िाय । सुरत मेरी जछन जछन ररी मुसकाय1 ।।
राधास्वामी लीला कहूं जछपाय । जलया मोजर अपने अंग लगाय ।।11।।
आरती पूरी कीन्री आय । कहूं क्या अस्तुत2 राधास्वामी गाय ।।12।।
परम पद पाया काल भिाय3 । वेद भी ररा बहुत िरमाय ।।13।।
भेद यर जमला न अब तक काय । दया कर राधास्वामी कदया िनाय ।।14।।
करूं अब आरत उनकी गाय । सुरत मेरी राधास्वामी लीन िगाय ।।15।।
िोग और ज्ञान ररे मुरझाय । संत कोई जवरले कदया सुझाय ।।16।।
राधास्वामी अचरि खेल कदखाय । चरन में राधास्वामी गई समाय ।।17।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
चरन गुरु जररदे धार ररी ।। टेक ।।
भौ की धार करठन अजत भारी । सो अब उलट बरी ।।1।।
गुरु जबन कौन सम्रारे मन को । सुरत उमूँग अब िब्द गरी ।।2।।
कोरटन िन्म भरमते बीते । काहु मोरी आन न बाूँर गरी ।।3।।
अब के सतगुरु जमले दया कर । िब्द भेद उन सार दई ।।4।।
नौ4 को छोड़ द्वार दस लागी । अक्षर मथ नवनीत5 लई ।।5।।
नौका पार चली अब गुरु बल । अगम पदाथण लीन सरी ।।6।।
क्या क्या कहूं कर गजत नारीं । सुरत िब्द जमल एक हुई ।।7।।
ररन गरन की बात जनयारी । संत जबना कोइ नासर करी ।।8।।
सुन्न जिखर चढ़ मरासुन्न लख । भूँवरगुफा पर ठाट ठई6 ।।9।।
सत्तनाम सत धाम जनरख धुर । अलख अगम गजत पाय गई ।।10।।
सुरत जनरत सूँग चली अगाड़ी । राधास्वामी राधास्वामी चरन मई7 ।।11।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
।। िब्द तेररवाूँ ।।
पढ़ी फ़ारसी पढ़ी अंगरे ज़ी । हुई मेरर बुध पाई तेली ।।4।।
देखा सब िग झूठ पसारा । पाया नाम राधास्वामी का सारा ।।5।।
सुरत चढ़ी खुला िब्द अपारा । कु मत ररी1 और मनको गारा2 ।।6।।
प्रेम बदररया घुमड़न3 लागी । बरस बरस अनरद धुन िागी ।।7।।
चाूँद सुरि दोउ गये जछपाई । सुखमन नदी उमूँड़ कर आई ।।8।।
खुला द्वार फू टा घट गगना । सुन्न जिखर देखत मन मगना ।।9।।
बाल अवस्था खेल कू द की । खेल कदखाया साूँचा अब की ।।10।।
दया हुई अब स्वामी भारी । आरत पूरन हुई रमारी ।।11।।
।। िब्द चौदरवाूँ ।।
।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।।
भूँवर गुफा पहुंची इक जछन में । बंसी की धुन पड़ी श्रवन में ।।12।।
सोरं सोरं सुनी पुकार । रंसन रूप देख उजियार ।।13।।
वराूँ से चली अमर पद आई । सत्तनाम धुन बीन सुनाई ।।14।।
अलख अगम का नाका1 लीया । िराूँ अमी रस अद्भुत पीया ।।15।।
आगे को कफर सूरत धाई । राधास्वामी धाम समाई ।।16।।
अभेद आरती करी बनाई । भेद तासु कोई संत िनाई ।।17।।
नसर वराूँ थाल न दीपक बाती । सदा आरती बहु जबजध गाती ।।18।।
चरन सेव चरनामृत पीती । उमूँग सजरत परिादी लेती ।।19।।
जछन जछन राधास्वामी रूप जनरारूूँ । पल पल राधास्वामी जररदे धारूूँ ।।
सुरत िब्द सूँग आई िाग । राधास्वामी जमले बड़े मेरे भाग ।।21।।
।। िब्द सोलरवाूँ ।।
।। िब्द सताररवाूँ ।।
।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।
उमूँग आि हुई जरये में भारी । सरन में राधास्वामी िाय पुकारी ।।1।।
करूूँ अब आरत जववध प्रकारी । रोय िो मेरर अपार तुम्रारी ।।2।।
वरी ूँ राधास्वामी दृजष्ट जनरारी । करा कर आरत लेकर थारी ।।3।।
सुरत से जनरखो जतल कर यारी1 । खोल यर जखड़की पार जसधारी ।।4।।
गई नभ अन्दर िोत लखारी । देख कर तारा िब्द सुना री ।।5।।
बंक चढ़ जिकु टी आन पुकारी । सुन्न में अक्षर धुन धर धारी ।।6।।
मरासुन्न पहुंची खोल ककवाड़ी । भूँवर का राग सुना अजत भारी ।।7।।
सत्त पद आई अमर अटारी2 । अलख और अगम िाय परसा3 री ।।
करी यर आरत राधास्वामी सारी4 । करे कोई सिन सुरत सम्रारी ।।9।।
प्रेम की धारा बरी जनयारी । िब्द घट पाया सुरत कारारी ।।10।।
नाम रं ग लागा अिब बरारी । मगन रोय बैठी काि सूँवारीं ।।11।।
संत जबन सब री पच पच रारी । जमला नसर भेद ररे सब वारी5 ।।12।।
दई राधास्वामी वस्तु अपारी । मेरर अब रो गइ मुझ पर न्यारी ।।13।।
।। िब्द बीसवाूँ ।।
।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।
।। िब्द बाईसवाूँ ।।
।। बचन सातवाूँ ।।
जबनती और प्राथणना परम पुरुष धनी
।। िब्द पजरला ।।
।। िब्द दूसरा ।।
।। िब्द तीसरा ।।
।। िब्द चौथा ।।
।। बचन आठवाूँ ।।
मजरमा सतगुरु स्वरूप राधास्वामी की
।। िब्द पजरला ।।
गुरु गुरु मैं जररदे धरती । गुरु आरत की सामाूँ1 करती ।।1।।
गुरु मेरे पूरर् पुरुष जबधाता । जनत चरनन पर मन मेरा राता2 ।।2।।
गुरु रैं अगम अपार अनामी । गुरु जबन दूसर और न िानी ।।3।।
नसर ब्रह्म नसर जवष्र्ु मरेिा । नसर ईश्वर परमेश्वर िेषा ।।4।।
राम कृ ष्र् नसर दस औतारी । व्यास वजिष्ठ न आकद कु मारी ।।5।।
ऋजष मुजन देवी देव न कोई । तीरथ बतण धमण नसर रोई ।।6।।
िोगी िती तपी ब्रह्मचारी । िनक सनक संन्यास जवचारी ।।7।।
आतम परमातम नसर मानूं । अक्षर जनःअक्षर नसर िानू ।।8।।
सत्तनाम िानूं न अनामी । जलख ग्रन्थ सब करत बखानी ।।9।।
सब को करूं प्रनाम िोड़ कर । पर कोई नसर सतगुरु सम सर4 ।।10।।
सतगुरु कृ पा सबन को िाना । जबन सतगुरु कै से पजरचाना ।।11।।
सतगुरु भेद कदया इक इक का । तब िाना इन सब का ठे का ।।12।।
सतगुरु सब का भेद बखानें । अब ककसको गुरु से बढ़ िानें ।।13।।
गुरु ने सब का पद दरसाई । िस िस जिनकी गजत तस गाई ।।14।।
ताूँते सतगुरु सब के करता । सतगुरु री रैं सब के ररता ।।15।।
याते सतगुरु का पद भारी । सतगुरु सम नसर कोइ जबचारी ।।16।।
िब जिव सरन गुरु की आवे । कमण धमण और भमण नसावे ।।17।।
िो गुरु मारग देसर लखाई । सोइ जनि कमण धमण हुआ भाई ।।18।।
गुरु आज्ञा से िो जिष करई । वर करतूत भजि फल देई ।।19।।
ताते प्रथमे गुरु को खोिो । िब्द बतावें सो गुरु सोधो5 ।।20।।
1. असली मतलब ।
बचन 8 मजरमा सतगुरु 75
।। िब्द दूसरा ।।
गुरु जमले परम पद दानी । क्या गजतमजत उनकी करूूँ बखानी ।।1।।
मैं अिान मजरमा नसर िानी । जबना मेरर क्योंकर पजरचानी ।।2।।
गजत अजत गोप2 न िाने वेदा । ज्ञान िोग कर जमले न भेदा ।।3।।
पद उनका इन से ररे दूरी । यर तो थक ररे गाल रिूरी ।।4।।
वर दयाल पद अगम अपारा । तीन सुन्न आगे ररा न्यारा ।।5।।
संत जबना कोइ भेद न िाने । उस घर से वर आय बखानें ।।6।।
मैं भी उन चरनन कर दासा । भइ परतीत बूँधी पद आसा ।।7।।
सुरत िब्द मारग मोजर दीन्रा । ककरपा कर अपना कर लीन्रा ।।8।।
जनत अभ्यास करूूँ मैं ये री । इक कदन पाऊूँ िब्द जवदेरी4 ।।9।।
सतगुरु मेरे परम दयाला । करूूँ आरती रोउूँ जनराला ।।10।।
आतम थाल परमातम िोती । सत्तनाम पद पोया5 मोती ।।11।।
भाव भजि से आरत कीनी । पद सतगुरु िल में भइ मीनी6 ।।12।।
यर आरत अब पूरन भई । आगे कु छ करनी नसर ररी ।।13।।
।। िब्द तीसरा ।।
गुरु प्रीत बढ़ी जचतवन में । सुतण खैंच धरी चरनन में ।।1।।
मेरी दृजष्ट ररी दिणन में । अब प्रेम बढ़ा जछन जछन में ।।2।।
सतगुरु पर िाऊूँ बजलरारी । सतगुरु मेरी सुजध सम्रारी ।।3।।
लीन्रा मोसर भुिा पसारी । दीन्रीं मोसर भजि करारी ।।4।।
आरत अब उनकी करहूं । तन मन धन सभी अरपहूं ।।5।।
जबन गुरु कोइ और न मानूं । जबन नाम ठौर नसर िानूं ।।6।।
गुरु करें रोयगा सोई । गुरु जबन कोइ और न रोई ।।7।।
गुरु करता सब िग कारि । गुरु री सब िीव अचारि ।।8।।
गुरु तो मेरे प्रान अधारा । गुरु री मेरा करें उधारा ।।9।।
गुरु सम कोइ और न प्यारा । गुरु री मोसर लेयूँ सुधारा ।।10।।
मेरे जररदे गुरुजर जबरािें । िम काल लिावत भािें ।।11।।
छाया घट गुरु परतापा । रद्द बलाया दूर जिया तापा1 ।।12।।
आरत गुरु कर कर भींिूं । उमंग बढ़ाय प्रेम धुर खींचूूँ ।।13।।
मीना सम लइ गुरु सरना । अब ररा न मोसर कु छ करना ।।14।।
राधास्वामी गुरु रम पाये । पी चरन अंब2ु तृप्ताये ।।15।।
।। िब्द चौथा ।।
आि मेरे आनन्द रोत अपार । आरती गावत हूं गुरु सार ।।1।।
ककया मैं अचरि प्रेम ससगार । जबरािे सतगुरु बस्तर धार ।।2।।
दरस उन करूूँ सम्रार सम्रार । गाउं गुन उनका बारम्बार ।।3।।
आओ री सजखयो िुड़ जमल झाड़ । गाओ और दिणन करो जनरार ।।4।।
गुरु मेरे बैठे पलंग संवार । आि मेरा िागा भाग अपार ।।5।।
ररी मैं गुरु के सनमुख ठाड़3 । करूूँ मैं उन चरनन आधार ।।6।।
चाहुं नसर दूसर से उपकार । गुरु की बाूँधी टेक सम्रार ।।7।।
गुरु पर डारूूँ तन मन वार । बचन पर उन के रहुूँ हुजियार ।।8।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
आरत सतगुरु की अब करहूूँ । जछन जछन सुरत िब्द में धरहूूँ ।।1।।
आरत सामाूँ सिूूँ बनाई । थाल सुचेती कर4 में लाई ।।2।।
िोत सुिानी लीन िगाई । रूप सुदिणन घट में पाई ।।3।।
सतसंगी सब मीत सुमीता । घट परताप बढ़ा मन िीता ।।4।।
भजि भाव संग भोग लगाऊूँ । अमी ससध िल अमृत लाऊूँ ।।5।।
बैठ ससरासन सतगुरु गािे । िोत जनरं िन दोनों लािे ।।6।।
अब आरत सनमुख में फे री । कृ पा दृजष्ट से सतगुरु रेरी ।।7।।
कराूँ लग मजरमा उनकी गाऊूँ । बार बार चरनन बल िाऊूँ ।।8।।
मैं अजत दीन रीन आधीनी । वे दयाल ककरपाल क़दीमी5 ।।9।।
सुरत िब्द मारग कदया पूरा । घट में बिने लगा तूँबरू ा ।।10।।
नौबत जछन जछन झड़ने लागी । सुरत जनरत चढ़ चढ़ अब िागी ।।11।।
घाट जिबेनी ककये अस्नाना । सुन्न मूँडल जचत िाय समाना ।।12।।
आरत सब जवजध पूरी धारी । राधास्वामी ककरपा कीन्री भारी ।।13।।
।। िब्द छटा ।।
1. तीर । 2. गुप्त ।
बचन 8 मजरमा सतगुरु 79
।। िब्द सातवाूँ ।।
गुरु आरत जबजध दीन बताई । मोर नींद से जलया िगाई ।।1।।
िब्द अनारद पता िनाई । सुरत इधर से उधर लगाई ।।2।।
दृजष्ट खुली आर छजब कदखलाई । मगन रोय कर जनि घर आई ।।3।।
मानसरोवर थाल बनाया । िोत चन्द्रमा दीप धराया ।।4।।
लगन लाग से आरत सािी । नाद अनारद घट में बािी ।।5।।
मन बैरी से िीती बाज़ी । सुमत समाई दुरमत भािी1 ।।6।।
गुरु चरनन पर मैं बजल िाऊं । उनकी दया से सत पद पाऊ ।।7।।
डोर लगी और चढ़ी गगन को । उमंगा मन राधास्वामी करन को ।।8।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
।। िब्द नवाूँ ।।
गुइयाूँ1 री गुरु समझ सुनावें । प्रेम भरी सजखयाूँ जमल गावें ।।1।।
अगम देि का पता िनावें । सुरत िब्द मारग दरसावें ।।2।।
जिनके जबरर प्रेम अनुरागा । सो सुन सुन कर लगन बढ़ावें ।।3।।
सतगुरु प्यारा नाम रस पीवें । दर िाय जनि भाग िगावें ।।4।।
कौन करे मजरमा अब उनकी । जिनको सतगुरु चरन लगावें ।।5।।
घट का भेद अनारद बानी । सुन्न मूँडल का िब्द सुनावे ।।6।।
िोगी िती नाथ सब थाके । सो पद अपने दास लखावें ।।7।।
सत्तनाम सत्तधाम जपया का । सुरत जनरत कर ले दरसावें ।।8।।
अलख अगम का फोड़ जनिाना । अकर अनामी सैन2 िनावें ।।9।।
यर अभेद गत कोई न िाने । जबरले संत कोई ममण जपछाने ।।10।।
सो पद जमला सरि में रमको । ककस आगे रम बर्ण बखानें ।।11।।
अब आरत यर करी समापत । राधास्वामी सदा जधयावें ।।12।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
।। िब्द तेररवाूँ ।।
ऐसी सुरत प्रेम रं ग भीनी । जतनकी गजत क्या कहूूँ सुनाय ।।8।।
िोग बैराग ज्ञान सब रूखे । यर रस उन में दीखे न ताय1 ।।9।।
बड़ भागी कोइ जबरला प्रेमी । जतन यर न्यामत2 जमली अजधकाय ।।10।।
राधास्वामी करत सुनाई । यर आरत कोई गुरुमुख गाय ।।11।
।। िब्द चौदरवाूँ ।।
।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।।
।। िब्द सोलरवाूँ ।।
।। िब्द सताररवाूँ ।।
1. परोते रैं । 2. अपने घर वाजपस आते रैं । 3. कोई जसर से रोड़े िाते रै
कोई पैरों से मले दले िाते रैं ।
86 सार बचन बचन 8
।। बचन नावां ।।
।। िब्द पजरला ।।
।। िब्द दूसरा ।।
।। िब्द तीसरा ।।
।। िब्द चौथा ।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
।। िब्द छठवाूँ ।।
।। िब्द सातवां ।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
।। िब्द नावाूँ ।।
1. गुब
ं ि। 2. ककनारा । 3. जवद्वान् । 4. अभ्यास । 5. िो देखा देखी
शवाजरि पैदा रो । 6. जररसी । 7. ज़रा भी । 8. प्रतीत करना ।
94 सार बचन बचन 9
।। िब्द दसवाूँ ।।
अनरद बािे बिे गगन में । सुन सुन मगन रोत अब मन में ।।1।।
गुरु सुनावें यर धुन तन में । सुरत लगा तू भी अब घन5 में ।।2।।
मार ससर को चढ़ी इस बन में । िब्द जमला अब िुगन िुगन में ।।3।।
सुरत लगाई उसी लगन में । धुन िागी अब रगन रगन में ।।4।।
सुन सुन िब्द गई सुन धुन में । दूर ककये सब भूत और जिन में ।।5।।
सुरत न आवे अब कभी इन में । िब्द जमला गुरु कदया अपन में ।।6।।
िब्द प्रताप जमटाई तपन मैं । िाग उठी िग देख सुपन में ।।7।।
िब्द सुनूूँ जनत इसी भवन6 में । जछन जछन पकड़ूूँ यरी ितन में ।।8।।
अंतर पाऊूँ िब्द रतन में । िब्द िब्द संग करूं गवन7 में ।।9।।
िब्द गहूूँ अब मार मदन8 मैं । राधास्वामी करें पुकार सबन में ।।10।।
।। बचन दसवां ।।
जनर्णय िब्द अथवा नाम का
।। िब्द पजरला ।।
रे खता
।। िब्द दूसरा ।।
नाम रस चखा गुरु संग सार । काम रस छोड़ा देख असार ।।1।।
नाम रं ग रं गी सुरत मन मार । क्रोध को िारा जक्षमा सम्रार ।।2।।
नाम का जमला आि भंडार । लोभ को टाला िान कं गार3 ।।3।।
नाम गजत पाई चढ़ आकाि । मोर तम गया देख परकाि ।।4।।
।। बचन ग्याररवाूँ ।।
सतसंग मजरमा और भेद सत्तनाम का
।। िब्द पजरला ।।
।। दोरा ।।
।। दोरा ।।
।। दोरा ।।
।। बचन बाररवां ।।
वर्णन मरात्म भजि का
।। िब्द परला ।।
।। िबद दूसरा ।।
िगत भाव भय लिा छोड़ो । सुन प्यारे तू कर भजि ।।1।।
िाजत बरन भय लिा त्यागो । सुन प्यारे तू कर भजि ।।2।।
ििु जमि डर दूर रटाओ । सुन प्यारे तू कर भजि ।।3।।
मात जपता डर छोड़ गूँवाओ । सुन प्यारे तू कर भजि ।।4।।
िोरू लड़के मत डर इनसे । सुन प्यारे तू कर भजि ।।5।।
भाई भतीिों का डर मत कर । सुन प्यारे तू कर भजि ।।6।।
सास ससुर डर मन से छोड़ो । सुन प्यारे तू कर भजि ।।7।।
बहू िमाई इन का डर ति । सुन प्यारे तू कर भजि ।।8।।
यार आिना1 सब डर छोड़ो । सुन प्यारे तू कर भजि ।।9।।
नातेदार कु टु म्बी जितने । इनका डर ति कर भजि ।।10।।
भजि अंग में िब तू बरते । छोड़ जझझक2 इन कर भजि ।।11।।
िो मूरख रैं ममण न िानें । इनका डर क्या ? कर भजि ।।12।।
इनका डर कु छ मत कर मन में । सुन प्यारे तू कर भजि ।।13।।
भेष भेष को देख लिावे । सो भी कच्चा कर भजि ।।14।।
िब लग सब से जनडर न रोवे । तब लग कच्चा कर भजि ।।15।।
जज़ल्लत3 इज़्जज़त4 िो कु छ रोवे । मौि जवचारो कर भजि ।।16।।
गुरु का बल जररदे धर अपने । सुन प्यारे तू कर भजि ।।17।।
यर जबगाड़ कु छ करें न तेरा । क्यों जझझके तू कर भजि ।।18।।
जबना मौि गुरु कु छ नजर रोता । सुन प्यारे तू कर भजि ।।19।।
तू कच्चा यर करे कचाई । और कहूं क्या कर भजि ।।20।।
करते करते पक्का रोगा । और उपाव न कर भजि ।।21।।
कच्ची से पक्की रोय इक कदन । छोड़ कपट तू कर भजि ।।22।।
कपट भजि कु छ काम न आवे । सच्ची कच्ची कर भजि ।।23।।
राधास्वामी करत सुनाई । िैसी बने तैसी कर भजि ।।24।।
।। िब्द तीसरा ।।
।। बचन तेररवाूँ ।।
पजरचान पूरे गुरु की और सच्चे परमाथी की
।। िब्द परला ।।
गुरु सोई िो िब्द सनेरी4 । िब्द जबना दूसर नसर सेई5 ।।1।।
िब्द कमावे सो गुरु पूरा । उन चरनन की रो िा धूरा ।।2।।
और पजरचान करो मत कोई । लक्ष6 अलक्ष7 न देखो सोई ।।3।।
िब्द भेद लेकर तुम उन से । िब्द कमाओ तुम तन मन से ।।4।।
।। सार उपदेि ।।
।। पजरचान परमाथी की ।।
।। सोरठा ।।
अनुरागी िो िीव, जतन प्रजत अब ऐसी कहूं ।
सुनो कान दे चीत, बचन कहूं जवस्तार कर ।।5।।
जवषयन से िो रोय उदासा । परमारथ की िा मन आसा ।।6।।
धन संतान प्रीत नसर िाके । िगत पदारथ चार न ता के ।।7।।
तन इन्द्री आसि न रोई । नींद भूख आलस जिन खोई ।।8।।
जबरर बान जिन जररदे लागा । खोित कफरे साध गुरु िागा ।।9।।
साध फ़क़ीर जमले िो कोई । सेवा करे करे कदलिोई1 ।।10।।
भेष धार पाखंडी रोई । साधु िान करे जरत सोई ।।11।।
भेष नेष्ठा2 जनत प्रजत धारे । ले परिादी चरन पखारे 3 ।।12।।
ऐसी करनी िा की देखें । आप आय सतगुरु जतस मेलें ।।13।।
सतगुरु बचन सुने िब काना । उमगे जररदा प्रेम समाना ।।14।।
सतगुरु से िब प्रीत लगावे । दया मेरर उनकी कु छ पावे ।।15।।
।। जवजध दिणन की ।।
जनत प्रजत दिणन परसन करे । रूप अनूप जचत्त में धरे ।।16।।
चरनामृत परिादी लेवे । मान मनी ति तन मन देवे ।।17।।
।। जवजध सेवा की ।।
सेवा कर तन मन धन अरपे । सत्त पुरुष सम सतगुरु थरपे4 ।।18।।
।। प्रथम तन की सेवा ।।
आरत सेवा जनत री करे । काम क्रोध मद जचत से ररे ।।19।।
चरन दबावे पंखा फे रे । चक्की पीसे पानी भरे ।।20।।
।। िब्द दूसरा ।।
।। िब्द तीसरा ।।
1. जनगुर्
ण करने वाली िजि । 2. प्रकाि । 3. रतन । 4. चोटी ।
5. स्पिण करके । 6. आदर ।
बचन 13 पजरचान परमाथी की 109
।। िब्द चौथा ।।
।। बचन चौदरवाूँ ।।
।। जचतावनी भाग पजरला ।।
।। िब्द पजरला ।।
धुन से सुरत भइ न्यारी रे । मन से बूँधी कर भारी रे ।।1।।
भौिाल फूँ सी झख मारी रे । घट छू टा कफर उिाड़ी रे ।।2।।
गुरु ज्ञान नरीं जचत धारी रे । जवष भोगे जवषय जवकारी रे ।।3।।
जसर भार उठावत भारी रे । िम दंड सरे सरकारी1 रे ।।4।।
दुख जवपता बहुत सरारी रे । अब सतगुरु करत पुकारी रे ।।5।।
सुन मान बचन मेरा प्यारी रे । घट उलटो लख उजियारी रे ।।6।।
िब्द रस जपयो अपारी रे । चढ़ खोलो गगन ककवाड़ी रे ।।7।।
गुरु जबन नसर और अधारी रे । राधास्वामी काि सुधारी रे ।।8।।
।। िब्द दूसरा ।।
सुरत तू कौन कराूँ से आई ।। टेक ।।
िगत िाल यर मन रच राखा । क्यों या में भरमाई ।।1।।
पुरुष अंस तू सतपुर बासी । फाूँसी काल लगाई ।।2।।
सतगुरु दया साध की संगत । उलट चलो घर पाई ।।3।।
अनरद िब्द सुनो घट भीतर । राधास्वामी करत बुझाई ।।4।।
।। िब्द तीसरा ।।
झूँझररया झाूँको जवरर उमगाय ।। टेक ।।
मन इन्द्री घर बास जबगाना2 । या में ररो अलसाय ।।1।।
पूरे सतगुरु ममण लखावें । भमण देयूँ छु टकाय ।।2।।
अब के दाव पड़ा तेरा सिनी । कफर औसर3 नसर पाय ।।3।।
जतल को पेल तेल अब काढ़ो । लो घट िोत िगाय ।।4।।
राधास्वामी करा बुझाई । एक रठकाना गाय ।।5।।
।। िब्द चौथा ।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
।। िब्द छठा ।।
1. डेरा । 2. सोना ।
114 सार बचन बचन 14
।। िब्द बाररवाूँ ।।
।। िब्द तेररवाूँ ।।
पर1 िीव सतावे जखन2 जखन । छोड़ अपने औगुन जगन जगन ।।2।।
मक्खी सम मत कर जभन जभन । नसर खावे चोट तू जछन जछन ।।3।।
देखा कर सब के तू गुन । सुख जमले बहुत तोजर पुन पुन ।।4।।
मैं कहूं तोजर अब गुन गुन3 । तू मान बचन मेरा सुन सुन ।।5।।
गजत गाई मैं यर रंसन । यों वर्ण सुनाई संतन ।।6।।
अब कान धरो इन बचनन । नसर रोवोगे जसर धुन धुन ।।7।।
यर बात करी मैं चुन चुन । कर राधास्वामी चरन स्पिणन4 ।।8।।
।। िब्द चौथा ।।
मुसाकफर रजरना तुम हुजियार । ठगों ने आन जबछाया िाल ।।1।।
अके ले मत िाना इस रार । गुरु जबन नसर रोगा जनरबार ।।2।।
िमा सब लेंगे तेरी छीन । करें गें तुझ को अपना दीन ।।3।।
ठगों ने रोका सब संसार । गुरु जबन पड़ गइ सब पर धाड़5 ।।4।।
मान लो करना मेरा यार । संग इन तिना पकड़ ककनार ।।5।।
गुरु जबन और न कोइ रखवार । कहूं मैं तुम से बारम्बार ।।6।।
रोयगी मंजज़ल तेरी पार । गुरु से कर ले दृढ़ कर प्यार ।।7।।
गुरु के चरन पकड़ यर सार । इन्द्री भोग भुलावत झाड़ ।।8।।
यरी रैं ठजगया करत ठगार । करें राधास्वामी तोजर पुकार ।।9।।
सरन में आ िा लेउूँ सम्रार । नाम संग रोिा रोत उधार ।।10।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
जमि तेरा कोई नरीं संजगयन में । पड़ा क्यों सोवे इन ठजगयन में ।।1।।
चेत कर प्रीत करो सतसंग में । गुरु कफर रं ग दें नाम अरूँ ग6 में ।।2।।
धन सम्पत तेरे काम न आवे । छोड़ चलो यर जछन में ।।3।।
आगे रै न अंधरे ी भारी । काि करो कु छ कदन में ।।4।।
यर देरी कफर राथ न आवे । कफरो चौरासी बन में ।।5।।
गुरु सेवा कर गुरु ररझाओ । आओ तुम इस ढंग में ।।6।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
।। िब्द नावाूँ ।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
अटक तू क्यों ररा िग में । भटक में क्या जमले भाई ।।1।।
खटक तू धार अब मन में । खोि सतसंग में िाई ।।2।।
जवरर की आग िब भड़के । दूर कर िगत की काई ।।3।।
लगा लो लगन सतगुरु से । जमले कफर िब्द लौ लाई ।।4।।
छु टेगा िन्म और मरना । अमर पद िाय तू पाई ।।5।।
भाग तेरा िगर सोता । नाम और धाम जमल िाई ।।6।।
कहूं क्या काल िग मारा । िीव सब घेर भरमाई ।।7।।
नरीं कोई मौत से डरता । खौफ िम का नरीं लाई ।।8।।
पड़े सब मोर की फाूँसी । लोभ ने मार धर खाई ।।9।।
चेत करो रोय अब कै से । गुरु के संग नसर धाई ।।10।।
काम और क्रोध जबच जबच में । िीव से भाड़1 झोंकवाई ।।11।।
गुरु जबन कोइ नरीं अपना । िाल यर कौन तुड़वाई ।।12।।
कु टु म्ब पररवार मतलब का । जबना धन पास नसर आई ।।13।।
कराूँ लग कहूं इस मन को । उन्रीं से मास नुचवाई ।।14।।
गुरु और साध करें बहु जवजध । करन उनकी न पजतयाई2 ।।15।।
मेरर जबन क्या कोई माने । करी राधास्वामी यर गाई ।।16।।
।। िब्द तेररवाूँ ।।
।। िब्द चौदरवाूँ ।।
।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।।
।। िब्द सोलरवाूँ ।।
।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।
1. अक्ल, खयाल । 2. समा िायें, मन ब्रह्म में समा िायें सुरत सत्पुरुष में ।
126 सार बचन बचन 14
।। िब्द बीसवाूँ ।।
।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।
।। बचन सोलरवाूँ ।।
।। जचतावनी भाग तीसरा ।।
।। िब्द पजरला ।।
िब्द करा मैं गगन जिखर का । िब्द करा मैं सुन्न िरर का ।।6।।
िब्द करा मैं भूँवर डगर का । िब्द करा मैं अगम नगर का ।।7।।
गुरु पजरचान खूब मैं गाई । धोखा या में कु छ न रराई ।।8।।
िब्द कमावे सो गुरु पूरा । उन चरनन की रोिा धूरा ।।9।।
और पजरचान करो मत कोई । लक्ष1 अलक्ष2 न देखो सोई ।।10।।
िब्द भेद लेकर तुम उनसे । िब्द कमाओ तुम तन मन से ।।11।।
अपने िीव की कु छ दया पालो । चौरासी का फे र बचा लो ।।12।।
नसर नकण न में अजत दुख पइरो । अजग्र कुं ड में जछन जछन दजररो ।।13।।
यर सुख चार कदनों का भाई । कफर दुख सदा रोय दुखदाई ।।14।।
बार बार मैं कहूूँ जचताई । दया तुम्रारी मोसर सताई ।।15।।
मेरे मन करूर्ा4 अस आई । चेतो तुम गुरु रोयूँ सराई ।।16।।
जबन गुरु और न पूिो कोई । दिणन कर गुरु पद जनत सेई ।।17।।
गुरु पूिा में सब की पूिा । िस समुद्र सब नदी समािा ।।18।।
देवी देवा ईि मरेिा । सूरि िेष और गौर गनेिा ।।19।।
ब्रह्म और पारब्रह्म सतनामा । तीन लोक और चौथा धामा ।।20।।
गुरु सेवा में सब की सेवा । रं चक4 भमण न मानो भेवा5 ।।21।।
ताते बार बार समझाऊूँ । गुरु की भजि जछन जछन गाऊूँ ।।22।।
गुरुमुख रोय गुरु आज्ञा बरते । गुरु बरती इक जछन में तरते ।।23।।
गुरु मजरमा मैं कराूँ लग गाऊूँ । गुरु समान कोइ और न पाऊूँ ।।24।।
गुरु अस्तुत रै सब मत मारीं । गुरु से बेमुख ठौर6 न पाई ।।25।।
भोग जबलास हुकू मत िग की । धन और राककम के बस ररती ।।26।।
राककम सेवा तुम कस करते । धन और मान बड़ाई लेते ।।27।।
आज्ञा उसकी अस जसर धरते । खान पान सनद्रा भी तिते ।।28।।
सो धन िोड़ ककया क्या भाई । िगत लाि में कदया उड़ाई ।।29।।
सो िग की गजत पजरले भाखी । चार कदनां कफर रै नसर बाकी ।।30।।
।। िब्द दूसरा ।।
।। िब्द तीसरा ।।
सोचत करा सजख करले आरत । कफर नसर ऐसा समय परापत ।।1।।
।। बचन सतारवाूँ ।।
।। जचतावनी भेखों को ।।
भाग चौथा
।। िब्द पजरला ।।
।। िब्द दूसरा ।।
।। बचन अट्ठाररवाूँ ।।
उपदेि सतगुरु भजि का
।। िब्द पजरला ।।
गुरु करो खोि कर भाई । जबन गुरु कोइ रार न पाई ।।1।।
िग डू बा भौिल धारा । कोइ जमला न काढ़नरारा2 ।।2।।
िग पंजडत भेख जबचारे । क्या िोगी ज्ञानी रारे ।।3।।
संतन से प्रीत न धारी । क्यों उतरें भौिल पारी ।।4।।
तप तीरथ बतण पचे रे । पढ़ जवद्या मान भरे रे ।।5।।
भजि रस नेक न पाया । भिों की सरन न आया ।।6।।
भजि का भेद न िाना । गुरु को सतपुरुष न माना ।।7।।
गुरु सब को पार लगावें । िो िो उन चरन ध्यावें ।।8।।
गुरु से तू बेमख ु कफरता । मन के जनत सन्मुख ररता ।।9।।
करमों में पचता खपता । नर देरी बाद3 गूँवाता ।।10।।
अब चेतो समझो भाई । कर प्रीत गुरु संग आई ।।11।।
कर कर राधास्वामी गाई । करनी कर जमले बड़ाई ।।12।।
।। िब्द दूसरा ।।
।। िब्द तीसरा ।।
गुरु ध्यान धरो तुम मन में । गुरु नाम सुजमर जछन जछन में ।।1।।
गुरु री गुरु गावो भाई । गुरु री कफर रोयूँ सराई ।।2।।
जितने पद ऊूँचे नीचे । गुरु जबन कोइ नारीं पहूूँचे ।।3।।
गुरु री घट भेद लखाया । गुरु री सुन जिखर चढ़ाया ।।4।।
मरसुन्न भी गुरु कदखलाई । गुरु भूँवरगुफा दरसाई ।।5।।
गुरु सत्तलोक पहुंचाया । गुरु अलख अगम परसाया ।।6।।
गुरु री सब भेद बखाना । गुरु से राधास्वामी िाना ।।7।।
।। िब्द चौथा ।।
गुरु चरन पकड़ दृढ़ भाई । गुरु का संग करो बनाई ।।1।।
गुरु बचन करो आधारा । गुरु दिण जनरारो सारा ।।2।।
गुरु की गजत अगम अपारा । गुरु अस्तुजत करो सूँवारा ।।3।।
गुरु राखो जररदे मारीं । तो जमटे काल परछारीं1 ।।4।।
भोगों की आसा त्यागो । मन्सा ति िग से भागो ।।5।।
आसा गुरु िब्द लगाओ । मन्सा गुरु पद में लाओ ।।6।।
आसा और मनसा मोड़ी । मन इन्द्री गुरु में िोड़ी ।।7।।
कदन रात ररे गुरु ध्याना । गुरु जबन कोई और न िाना ।।8।।
गुरु स्वाूँस जगरास न जबसरे । तू पल पल गा गुरु िस2 रे ।।9।।
गुरु रैं जरतकारी तेरे । गुरु जबन कोइ जमि न रै रे ।।10।।
गुरु फं द छु ड़ावे िम के । गुरु ममण लखावें सम के ।।11।।
भौिल से पार उतारें । जछन जछन में तुझे सूँवारें ।।12।।
ज्यों जनि सेवे कच्छा3 । त्यों गुरु राखैं तेरी पच्छा4 ।।13।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
।। िब्द छठा ।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
गुरु की मौि ररो तुम धार । गुरु की रज़ा8 सम्रालो यार ।।1।।
गुरु िो करें सो जरतकर िान । गुरु िो करें सो जचत धर मान ।।2।।
िुकर की करना समझ जवचार । सुक्ख दुख देंगे जरकमत धार ।।3।।
ताढ़ और मार करें सोइ प्यार । भोग सब इन्द्री रोग जनरार ।।4।।
कहूं क्या दम दम िुकर गुज़ार । जबना उन और न करनेरार ।।5।।
दुखी जचत से न रो दुख लार । सुखी रोना नरीं सुख िार ।।6।।
जबसारो मत उन्रें रर बार । दुक्ख और सुक्ख ररो उन धार ।।7।।
गुरु और िब्द ये दोउ मीत । नरीं कोइ और इन धर चीत ।।8।।
यरी सतपुरुष यरी करतार । लगावें तोजर इक कदन पार ।।9।।
जबना उन कोइ नरीं संसार । देव मन सूरत उन पर बार ।।10।।
करें वर जनत्त तेरी सार1 । तेरे तन मन के रैं रखबार ।।11।।
िुकर कर राख जररदे धार । जमटावें दुक्ख सबरी झाड़ ।।12।।
करें क्या मन तेरा नाकार । नरीं तू छोड़ता जवष धार ।।13।।
भोग में जगरें बरम्बार । न माने करन उन की सार ।।14।।
इसी से जमले तुझ को दंड । नरीं तू मानता मजतमंद ।।15।।
सरो अब पड़े िैसी आय । करो फ़याणद गुरु से िाय ।।16।।
पकड़ कफर उन्रीं को तू धाय । करें गे वोरी तेरी सराय ।।17।।
जबना उन और नरीं दरबार । ररो उन चरन में हुजियार ।।18।।
गुनर तुम ककये कदन और रात । गुरु की कु छ न मानी बात ।।19।।
इसी से भोगते दुख घात । बचावेंगे वरी कफर तात ।।20।।
ररो राधास्वामी के तुम साथ । लगे कफर िब्द अगम तुम राथ ।।21।।
।। िब्द नावाूँ ।।
आि सखी काि करो कु छ अपना । गुरु दिण तको छोड़ो िग सुपना ।।1।।
नसर पजछतइरो जसर धुन रोइरो । िम की नगररया अनेक दुख सजररो ।।
मानो बचन सुनो धर कान । सुरत लगाय सुनो धुन तान ।।3।।
नसर मर मर िन्मो चारों खान । मान मान अब मेरी करी मान ।।4।।
गुरु के चरन का कर तू ध्यान । िान2 गुमान छोड़ अजभमान ।।5।।
गुरु जबन तेरा को न सराई । नाम जबना को3 पार लगाई ।।6।।
आि काि कर गुरु संग भाि । सूना पड़ा तेरा तशत और ताि ।।7।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
1. बेपवाणरी । 2. बेपवाणरी ।
बचन 19 गुरु और नाम भजि 141
लगा ररेंगा संग में गुरु के । सरि सरि िायद मन मान ।।20।।
राधास्वामी करैं बुझाई । ऐसे िीव रोयूँ रैरान ।।21।।
।। बचन उन्नीसवाूँ ।।
।। उपदेि गुरु और िब्द ।।
अथवा
।। नाम भजि का ।।
।।िब्द पजरला ।।
चेतो मेरे प्यारे तेरे भले की कहूं ।।1।।
गुरु तो पूरा ढू ूँढ़ तेरे भले की कहूं ।।2।।
िब्द रता गुरु देख तेरे भले की कहूं ।।3।।
जतस गुरु सेवा धार तेरे भले की कहूं ।।4।।
गुरु चरनामृत पी तेरे भले की कहूं ।।5।।
गुरु परिादी खाव तेरे भले की कहूं ।।6।।
गुरु आरत करले तेरे भले की कहूं ।।7।।
तन मन भेंट चढ़ाव तेरे भले की कहूं ।।8।।
बचन गुरु के मान तेरे भले की कहूं ।।9।।
गुरु को कर प्रसन्न तेरे भले की कहूं ।।10।।
जनत्त भिन कर नेम तेरे भले की कहूं ।।11।।
िीव दया तू पाल तेरे भले की कहूं ।।12।।
दुक्ख न दे तू काय तेरे भले की कहूं ।।13।।
बचन तान मत मार तेरे भले की कहूं ।।14।।
कड़़ुवा तू मत बोल तेरे भले की कहूं ।।15।।
सब को सुख पहुंचाव तेरे भले की कहूं ।।16।।
नाम अमीरस पी तेरे भले की कहूं ।।17।।
142 सार बचन बचन 19
1. मनमजत ।
बनच 19 गुरु और नाम भजि 143
।। िब्द दूसरा ।।
।। िब्द तीसरा ।।
।। िब्द चौथा ।।
गुरु जबन कभी न उतरे पार । नाम जबन कभी न रोय उधार ।।1।।
संग जबन कभी न पावे सार । प्रेम जबन कभी न पावे यार ।।2।।
िुजि जबन चढ़े न गगन मूँझार । दया जबन खुले न बज्र ककवाड़ ।।3।।
सुरत जबन रोय न िब्द सम्रार । जनरत जबन रोय न धुन आधार ।।4।।
गुरु से करना पजरले प्यार । नाम रस पीना मन को मार ।।5।।
काल घर िान तिा संसार । दयाल घर आई िन्म सुधार ।।6।।
संत गजत पाई गुरु की लार । िब्द संग जमली जमला पद चार ।।7।।
करा राधास्वामी अगम जवचार । सुने और माने करे जनरवार ।।8।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
।। िब्द छठवाूँ ।।
1. संग ।
146 सार बचन बचन 19
।। िब्द सातवाूँ ।।
सुरत क्यों हुई दीवानी । तेरी जबरथा बैस1 जबरानी2 ।।1।।
िग भोग रोग कदन बीते । तू िाय दोऊ कर रीते3 ।।2।।
िमपुर रोय धूमा धामी । तू पड़े चौरासी खानी ।।3।।
वराूँ कौन सराई तेरा । तू बचन मान अब मेरा ।।4।।
कर गुरु से जरत जचत लाई । सुन मान बचन गुरु भाई ।।5।।
सूरत िा िब्द जमलाई । कर जनस कदन यरी कमाई ।।6।।
तेरा भाग बढ़त जनत िावे । कफर काल न तोजर सतावे ।।7।।
रस अगम िब्द का पावे । मन भोग सरि छु ट िावे ।।8।।
चढ़ चढ़ नभ ऊपर धावे । दल सरस कूँ वल गजत पावे ।।9।।
जतल मोड़े जबिली चमके । सुन िब्द अनारद धमके ।।10।।
कफर चाूँद सुरि दोऊ दरसें । सुखमन मन सूरत परसें ।।11।।
गुरु मूरत अिब कदखाई । िोभा कु छ करी न िाई ।।12।।
नर रूप कदखावें तब री । मन खैंच चढ़ावें िब री ।।13।।
दे मदद बढ़ावें आगे । मन िुग िुग सोया िागे ।।14।।
चढ़ बंक चले जिकु टी में । कफर सुन्न तके सरवर में ।।15।।
िरूँ िोभा रंसन भारी । वर भूजम लगे अजत प्यारी ।।16।।
धुन ककगरी बिे करारी । सुन सुरत हुई मतवारी ।।17।।
कफर लगे मरांसन ु तारी । िरूँ दीप असचत सम्रारी ।।18।।
लख भूँवर गुफा हुई न्यारी । िरूँ सेत सूर उजियारी ।।19।।
चौथे पद करी तयारी । धुन बीन सुनी अजत भारी ।।20।।
लख अलख अगम्म लखा री । हुई राधास्वामी रूप जनरारी ।।21।।
मजरमा उनकी क्या कहुं भारी । मुझ गरीब की बहुत सुधारी ।।22।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
जबररनी गुरु की सरन सम्रार ।। टेक ।।
या िग में कोइ मीत4 न तेरा । करो नाम आधार5 ।।1।।
।। िब्द नवाूँ ।।
।। िब्द दसवाूँ ।
1. ऊूँची आवाज़ से ।
148 सार बचन बचन 19
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
।। िब्द तेररवाूँ ।।
।। िब्द चौदरवाूँ ।।
सुरत नसर चढ़े करा कररये । सपड नसर तिे झुरत रजरये ।।1।।
मन करा न करे कु मजत भररये । इन्द्री रस भोग अजधक िररये ।।2।।
गुन तीन कमण बस जनत डररये । दुख सुख संतापे बहु सजरये ।।3।।
कोई और उपाव नरीं चजरये । गुरु चरन सरन में जसर धररये ।।4।।
िब नाम अमीरस घट भररये । स्त्रुत खैंच गगन को अब चकढ़ये ।।5।।
संतन मत साूँचा यर कजरये । स्रुत िब्द लखावें सो गजरये ।।6।।
मन चढ़े गगन पर िा रजरये । स्त्रुत लगे िब्द से रस पइये ।।7।।
सुन िाूँच करो और घर अइये । कफर मौि करो आनंद लजरये3 ।।8।।
गुरु नाम रटो तब मन रररये । सतलोक चलो कारि सररये ।।9।।
घर अलख अगम िाकर लजखये । राधास्वामी चरन में कफर पककये ।।10।।
।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।।
।। िब्द सोलरवाूँ ।।
1. असली रठकाना ।
152 सार बचन बचन 19
।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।।
।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।
।। िब्द बीसवाूँ ।।
।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।
।। बचन बीसवाूँ ।।
।। उपदेि सुरत िब्द के अभ्यास का ।।
।। िब्द पजरला ।।
चलो री सखी आि जपया से जमलाऊूँ । तन मन धन की प्रीत छु ड़ाऊूँ ।।1।।
पुि कजलि1 िाल छु टकाऊूँ । सुन्न मंडल धुन अिब सुनाउूँ ।।2।।
गगन तख़्त पर िाय जबठाऊूँ । तीन लोक का राि कदलाऊूँ ।।3।।
जतरबेनी तीरथ परसाऊूँ । मन माधो2 से खूटं 3 छु ड़ाऊूँ ।।4।।
काल चक्र से तुरत बचाऊूँ । कमण काट जनि घर पहुंचाऊूँ ।।5।।
मरासुन्न और भूँवरगुफ़ा से । सत्तपुरुष दीदार कराऊूँ ।।6।।
दीन4 दुरबीन पुरुष इक ऐसी । अलख अगम के पार समाऊूँ ।।7।।
राधास्वामी पद रम िाना । करन सुनन का लगा रठकाना ।।8।।
।। िब्द दूसरा ।।
िागो री सुरत अब देर न करो । चालो री सुरत अब गगन चढ़ो ।।1।।
भागो री सुरत अब जपया से जमलो । लागो री सुरत अब िब्द रलो ।।2।।
ताको री सुरत अब जनरत5 करो । झाूँको री सुरत अब मूरत लखो ।।3।।
न्राओ री सुरत और नीर भरो । धाओ री सुरत और ध्यान धरो ।।4।।
गाओ री सुरत और गवन6 करो । भोगो री सुरत सुख सरि बरो7 ।।5।।
झूँझरी जनरख कफर नाम भिो । बंक छोड़ धुन गगन गरो ।।6।।
सुन्न तिो मरासुन्न ररो । भूँवरगुफा पर िाय अड़ो ।।7।।
सत्तलोक सतनाम रसो8 । अलख अगम के पार बसो ।।8।।
राधास्वामी राधास्वामी रटन करो । बहुत करा अब खतम करो ।।9।।
।। िब्द तीसरा ।।
भजि अब करो मेरे भाई । प्रीत अब धरो मेरे भाई ।।1।।
अिब यर औसर पाई । जमले अब राधास्वामी आई ।।2।।
।। िब्द चौथा ।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
।। िब्द छठवाूँ ।।
सुरत ररे लागी कदन और रात । िब्द रस अब नसर छोड़ा िात ।।18।।
गुरु का दम दम अब गुन गात । अमर पद पाया छू टा गात1 ।।19।।
नाम धुन चली अधर से आत । अिण2 का चरखा डाला कात ।।20।।
राधास्वामी धरा सीस पर राथ । मैं तिूूँ न उनका साथ ।।21।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
।। िब्द नवाूँ ।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
घुमर5 चल सुरत घोर सुन भारी । अरी सतगुरु संत जपयारी ।।1।।
िग ररना रै कदनचारी6 । क्यों भार उठावो भारी ।।2।।
गुरु करें पुकार पुकारी । धुन संग करो चल यारी ।।3।।
ममता सब झाड़ जनकारी । सुतण अगम देि पग धारी ।।4।।
यर काम नरीं संसारी । कोई गुरुमुख बूझ सम्रारी ।।5।।
मनमुख सब बाज़ी रारी । सतसंग कर छु टे जवकारी ।।6।।
इक नाम सार सब खारी । तू रोिा नाम अधारी ।।7।।
यर िुजि बताई न्यारी । नसर वेद कतेब जवचारी ।।8।।
अब मानो बात रमारी । ग़फ़लत ति रो हुजियारी ।।9।।
कामाकदक काढ़ जनकारी । कफर न्रावो सीतल धारी ।।10।।
मन माया दोनों मारी । तब काल करम दोउ रारी ।।11।।
कफर मुरत करे असवारी । सतगुरु के मरल जसधारी ।।12।।
तू अगम पुरुष की नारी । सब की अब हुई दुलारी ।।13।।
सतगुरु संग प्रेम बढ़ा री । देखे घट िब्द उिारी ।।14।।
सरबर7 की धारा िारी । राधास्वामी कर पुकारी ।।15।।
।। िब्द तेररवाूँ ।।
।। िब्द चौदरवाूँ ।।
।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।।
घन गिण सुनावत गररी । अब सुरत सुन सुन ठररी ।।1।।
मन छोड़त सब जवष लररी । तू चढ़ चल और वराूँ रर री ।।2।।
वर सुन्न बड़ी अजत गररी । लीला व्राूँ देख अूँधरे ी ।।3।।
कफर सेत कूँ वल सुतण ठररी । घट िब्द गुरु हुइ चेरी ।।4।।
व्राूँ संत करें जनत फे री । सुन बात सखी अब मेरी ।।5।।
सत िब्द िाय धुन रेरी । अब कफरी दुराई तेरी ।।6।।
जिन राधास्वामी चरन गरे री । उन जमटी चौरासी फे री ।।7।।
।। िब्द सोलरवाूँ ।।
सुरत तू चढ़ िा तुतण गगन को । लखो िाय पजरले िोत जनगुणन को ।।1।।
छोड़ चल सकल पसार सगुन ण को । काट अब िड़ से फाूँस जिगुन को ।।2।।
जनगुन ण छोड़ चलो आगे को । पकड़ो िाय मरा जनगुन ण को ।।3।।
या को त्याग सुनो सुन धुन को । यों तुम धारो संत बचन को ।।4।।
व्राूँ से चल पहुंचो मरासुन को । देखो आगे धाम सोरं को ।।5।।
सत्तनाम पद जमला सुरत को । अलख अगम िा पसण चरन को ।।6।।
राधास्वामी करत भेद जनि घर को । मेट कदया अब आवागवन को ।।7।।
।। िब्द सत्तररवाूँ ।।
त्याग चल सिनी िग की धार । बरे मत या में दुक्ख अपार ।।1।।
सुरत से रोिा सतगुरु लार । िब्द में तन मन दोनों गार1 ।।2।।
लगी रहु आठों परर सम्रार । अमी रस पीती रहु हुजियार ।।3।।
गगन का पकड़े रहु तू द्वार । नाद संग कर ले अब के प्यार ।।4।।
करें राधास्वामी रेला मार । सोच कर चढ़ना जिकु टी द्वार ।।5।।
।। िब्द अठाररवाूँ ।।
सुरत अब चढ़ो नाम रं ग लाग । िगत सब सोवे तू उठ िाग ।।1।।
1. गला दे ।
बचन 20 उपदेि िब्द अभ्यास 165
बड़े कफर तेरा अचरि भाग । सुने तू चढ़ कर अनरद राग ।।2।।
जमले तोजर प्यारी परम बैराग । लगे तेरा धुन से अजत अनुराग ।।3।।
जमटे सब मन का द्वेष और राग1 । मार ले नभ चढ़ काला नाग ।।4।।
खेल जनत सतगुरु संग तू फाग । बासना टू टे सब ज्यों ताग ।।5।।
हुई अब जनभणय िम भौ भाग । रंस संग जमली उड़ाया काग ।।6।।
हुई अब जनमणल छू टे दाग़ । राधास्वामी दीन्रा िब्द सुराग ।।7।।
।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।
।। िब्द बीसवाूँ ।।
।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।
।। िब्द बाइसवाूँ ।।
।। िब्द तेईसवाूँ ।।
।। िब्द चौबीसवाूँ ।।
।। िब्द पच्चीसवाूँ ।।
।। िब्द छब्बीसवाूँ ।।
घट में चढ़ खेल कबड्डी । स्वान5 ज्यों चूसे मत जवष रड्डी ।।1।।
मार मन चढ़ो काल की चढ्ढी6 । नाम गर पाला7 छोड़ जतगड्ढी8 ।।2।।
चलो घर चढ़ कर सूरत गड्डी9 । बनो तुम मीरी10 रो मत फड्डी11 ।।3।।
तरं गें रोको बाूँधों गड्डी12 । उखाड़ो ममत पुरानी गड्डी ।।4।।
पकड़ कर मूड ूँ काल की डढ्ढी14 । जवषय सब त्यागो खा मत बड्डी15।।5।।
सुरत मैं गुरु चरनन पर अड्डी18 । िगत की सभी वासना कढ्ढी17 ।।6।।
राधास्वामी नाम चढ़ो यर जसढ्ढी18 । काल की बातरोय सब कफड्डी19।।7।।
।। िब्द सत्ताईसवाूँ ।।
आगे चढ़ चढ़ अधर समानी । िब्द िब्द का ममण जपछाना ।।10।।
संत जबना कोइ समझे नारीं । आगे िो िो भेद कदखाना ।।11।।
करने में आवे नसर पूरा । उलटा सुलटा करत बखाना ।।12।।
बाचक अपनी उजि लगावें । अमल जबना नसर बूझ बुझाना ।।13।।
संतन की गजत संतजर िाने । और करो कै से पजरचाना ।।14।।
अपनी उजि चतुरता त्यागो । संत बचन को करो प्रमाना ।।15।।
वर करते देखो जनि अपनी । तू सुन सुन क्यों बुजद्ध लड़ाना ।।16।।
राधास्वामी सब से करते । संत भेद कोइ भेदी िाना ।।17।।
।। िब्द अट्ठाईसवाूँ ।।
।। िब्द उन्तीसवाूँ ।।
नाम रस पाइलो गुरु की नीत1 । िब्द धुन गाइलो अचरि गीत ।।3।।
समाइलो मनुवाूँ गर गुरु रीत । लगाइलो घट में जछन जछन प्रीत ।।4।।
भगाइलो काल करम दल िीत । जमटाइलो मन से भरम अनीत2 ।।5।।
बिाइलो सुन में िब्द अतीत3 । मेरर से पाइलो संतन सीत4 ।।6।।
बिाइलो राधास्वामी सरन पुनीत5 । धाररलो नाम रसायन चीत ।।7।।
।। िब्द तीसवाूँ ।।
सुन री सखी चढ़ मरल जवराि । िरूँ तेरे प्रीतम बैठे आि ।।1।।
कर जबलास और िग से भाि । तख़्त बैठ और कर व्राूँ राि ।।2।।
रंसन का िरूँ िुड़ा समाि । तू उन जमल कर अपना काि ।।3।।
गुरु चरन पकड़ ति कु ल की लाि । मन दपणन बहु जवजध कर माूँि ।।4।।
सुरत जनरत का लेकर छाि6 । छाूँट फटक7 डालो धुन नाि8 ।।5।।
बड़े भाग पाया सब साि । सतगुरु बख़्िा तख़्त और ताि9 ।।6।।
तीन लोक का खुल गया पाि10 । चार लोक चढ़ भोगूूँ राि ।।7।।
राधास्वामी कदया मोसर यर दाि11 । अब मेरा रोय न कभी अकाि ।।8।।
।। बचन इक्कीसवां ।।
जरदायतनामा12
चढ़ते चढ़ते करोड़ िोिन ऊपर चढ़ कर तीसरा पदाण फोड़ कर सुन्न
में पहुंची कक जिस को फ़ु करा ने आलमे -लाहूत करा रै । उसकी तारीफ़
क्या कहूं उस मुक़ाम पर रूरें बहुत जवलास करती रैं और रोिनी वराूँ
की ऐसी रै कक बारर बारर जरस्सा ज़्जयादा रोिनी जिकु टी से मालूम
पड़ती रै तालाबे-ज़़ुलाली13 व रौिे-कौसरी14 पुर-अज़-आबे-रयात15 कक
जरन्दी में उसको मानसरोवर करते रैं, िा-ब-िा16 मौिूद रैं और ककतने
री गुलिन17 और चमन 18 जखले हुये नज़र पड़ते रैं और अकसर रूरें ब-
सुरते-नाज़नीनाूँ19 मुक़ामाते मुशतजलफ़ 20 पर रक़्स21 कर ररी रैं व
जग़ज़ाराय लतीफ़अज़-बस-िीरीं22 व ख़ुिनुमा23 तरोताज़ा तैयार रैं
1. जछद्र । 2. धसाओ । 3. जिकोन । 4. चौड़ा । 5. लम्बा । 6. जवस्तार ।
7. सूर ि । 8. चन्द्रमा । 9. लजित । 10. आनन्द । 11. सूक्षम । 12. चैतन्य ।
13. जनमणल, साफ़ । 14. अमृत कुं ड । 15. अमृत । 16. िगर िगर, रर िगर,
इधर उधर । 17. फु लवारी । 18. बाग़ । 19. खूबसूर त । 20. ज़़ुदा ।
21. नृत्य । 22. उम्दा खाना और जमठाई । 23. सुरावनी ।
174 सार बचन बचन 21
।। ग़ज़ल परली ।।
मुर्शिदा आजिक़े दीदारे िमालत गश्तम ।
रे सतगुरु मैं तुम्रारे स्वरूप के दिणन का आजिक हुआ हूूँ ।
कदल खस्ता व िाूँबाख़्ता अज़ ख़ुद रफ़्तम ।।1।।
मन मुरझाया हुआ और िान से खोया हुआ और आपे से बाजरर हूूँ ।
यक जनगारे तो मरा चाक जगरे बां करदा ।
आप की एक नज़र ने मुझ को दीवाना और परे िान कर कदया ।
बचन 21 ग़ज़ल फ़ारसी व तरिुमा 179
।। ग़ज़ल दूसरी ।।
अंदरूूँ अिण रफ़्ता दीदम नूर ।
अिण यानी आसमान पर पहुूँच कर मैंने नूर देखा ।
कु श्ता िैताूँ व रम दमीदम सूर ।।1।।
और िैतान यानी काल को मार कर सूर को फूं का ।
(प्रलय यानी क़्यामत का बािा बिाया ।)
रोिे तन रफ़्त रूर बाला िुद ।
तन का रोि न ररा और रूर यानी सुरत ऊूँचे को गई ।
िा जगररफ़्ता ब िा कक साजबक़ बूद ।।2।।
और िराूँ कक पजरले थी वराूँ पहुूँच कर ठररी ।
।। गज़ल तीसरी ।।
आजिक़म ज़ाते मुर्शिदे काजमल ।
मैं सतगुर पूरे के जनि सरूप का प्रेमी हूूँ ।
कदले मन िूद ब क़ौले िाूँ माइल ।।1।।
और मेरा मन उनके बचन का आजिक रै ।
चूूँ जगररफ़्तम क़दम व खाके क़दम ।
अब से मैनें उनके चरन पकड़े और चरन धूर ली ।
ज़़ुलमते कदल िुदा रमा ज़ाइल ।।2।।
तब से मेरे मन का अंधरे ा जबलकु ल दूर रो गया ।
रूए ज़ेबा व क़द्दे सवे रवाूँ ।
और सतगुरु के सुरावने सरूप और खूबसूरत क़द्द ।
नूर दर सीना नफ़्स रा क़ाजतल ।।3।।
और नूर ने सीने में काल अंग को काट डाला ।
सोरबते मुर्शिदो कलामे रिीद ।
सतगुर के संग और उनके पहुूँचे हुए बचन ने ।
कदण दुजनया व दीन रा बाज़िल ।।4।।
दीन व दुजनया को झूठा कदखला कदया ।
184 सार बचन बचन 21
।। बचन बाईसवाूँ ।।
भेद काल मत और दयाल मत का और
वर्णन राल भूल भमण संसाररयों का
और मजरमा सतगुरु भजि और सुरत िब्द मागण की
।। िब्द परला ।।
चार खान चौपड़ िग रची । अंड1 िेर2 सेति3 उतभुिी4 ।।1।।
माया ब्रह्म पुरुष प्रकृ जत । मन इच्छा खेलें जिव िजि ।।2।।
सुरत नदण5 ता में बहु पची । धूम खेल की अजत कर मची ।।3।।
तीन गुनन का पांसा लीन्र । रिोगुन तमोगुन सतोगुन चीन्र ।।4।।
कमण राथ से पांसे डारे । भोग अंक ता में जबस्तारे ।।5।।
झूठ ूँ ी बाज़ी िानी सच्ची । कोइ पक्की कोई मारे कच्ची ।।6।।
नदण सुरत चौरासी घर में । भरमत कफरे दुक्ख और सुख में ।।7।।
रारे ब्रह्म और िीते माया । िीव नदण बहु जवजध दुख पाया ।।8।।
कजभ कजभ ब्रह्म िीत िो रोई । नदण लाल रोय ब्रह्म घर सोई ।।9।।
चौपड़ से बारर नसर रोई । जनि घर अपना पाये न कोई ।।10।।
माया ब्रह्म जखलाड़ी दोई । खेलें इन नरदन से सोई ।।11।।
भरमे नदण जपटे और कु टे । दुख उनका कोई नसर सुने ।।12।।
सभी नदण पछतावें दम दम । कै से छू टें इन से अब रम ।।13।।
करें फ़याणद दाद6 नसर पावें । रोवें झीखें और जचल्लावें ।।14।।
बार बार भरमें चौरासी । कोई न काटे उनकी फाूँसी ।।15।।
श्रुजत जसमृत और वेद पुरान । सबरी मारें इनकी िान ।।16।।
माया काल जबछाया िाल । अपने स्वारथ करें बेराल7 ।।17।।
कोई गोट न िावे घर को । र्यराूँ री खेल जखलावें सब को ।।18।।
सत्त पुरुष देखा यर राल । काल हुआ िीवन का काल ।।19।।
1. अन्डि यानी िो अन्डे से पैदा रोते रै । 2. िेरि यानी िो जझल्ली से पैदा रोते
रै । 3. स्वदेि यानी िो पसीने से पैदा रोते रै । 4. उजिि यानी िो जमट्टी या
खान से पैदा रोते रैं । 5. गोट । 6. इनसाफ़ । 7. परे िान, दुखी ।
बचन 22 भेद काल मत व दयाल मत का 187
दोरा
1. िला कर । 2. बने ।
188 सार बचन बचन 22
।। िब्द दूसरा ।।
1. बन्द ककया ।
190 सार बचन बचन 22
।। िब्द छठा ।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
1. मुर
ूँ । 2. अलेरदगी । 3. देखता । 4. लीला । 5. छीनता ।
192 सार बचन बचन 22
।। िब्द आठवाूँ ।।
वरां से बंक जतरकु टी छेदूँू । सुन्न जिखर में आसन लाय ।।44।।
मरासुन्न और भंवरगुफा पर । सत्तलोक में पहुंची धाय ।।45।।
अलख अगम के पार जसधारी । वराूँ आरती कीन्री िाय ।।46।।
प्रेम खिाना जमला अपारा । राधास्वामी जलये ररझाय ।।47।।
।। िब्द नवाूँ ।।
मैं भूली सतगुरु स्वामी । मैं चूकी अंतरिामी ।।1।।
क्या क्या कहूं जबथा1 बखानी । सब िग को पंजडयन कीन्र दीवानी ।।2।।
ब्राह्मर् और भेखन बहु भरमानी । ऊभट2 में पड़े भटक भटकानी ।।3।।
मारग िो सीधा दीन्र जछपानी । तीरथ और बरतन मासर भुलानी ।।4।।
गया गायिी रार खुलानी । यर कमण प्रवृजत्त3 करें करानी ।।5।।
उलटे जगर भौिल ग़ोता खानी । यर साधन जपछले हुए पुरानी ।।6।।
श्रुजत जसमृजत व्यास आकदक करें बखानी ।
यर साधन मुजि जनजमत्त न िानी ।।7।।
जनरवृजत्त4 साधन यों कर गानी । कलिुग में एक नाम जनधानी ।।8।।
सतगुरु सेवा सतसूँग ठानी । अब जनरवृजत पर जिन मन मानी ।।9।।
जतन िीवन प्रजत कहूूँ बुझानी । सतगुरु पूरा खोि ख़ुिानी ।।10।।
िब लग पूरा जमले न जमलानी । तब लग खोित ररे िरानी ।।11।।
खोिन में िो कदवस जबतानी । वर साधन में वृथा न िानी ।।12।।
सतगुरु पूरे िभी जभटानी5 । प्रेम प्रीत से सेवा आनी6 ।।13।।
तब वर भेद नाम दें दानी । नाम िुजि तुम ररो कमानी ।।14।।
नाम प्रताप मुजि गजत पानी । जबना नाम नसर ठौर रठकानी ।।15।।
कलिुग में जबन नाम जनिानी । मुजि न रोगी जनश्चय ठानी ।।16।।
करमी धरमी िोगी ज्ञानी । यर सब जपल ररे मनकी घानी ।।17।।
सतगुरु संत जमले नसर आनी । भूले पढ़ पढ़ जपछली बानी ।।18।।
सब से करी काल ठग राजन । संत जबना कोइ बचे न बचानी ।।19।।
1. जवपजत्त । 2. बुरी रार । 3. संसार में फूँ साने वाले । 4. संसार से छु ड़ाने
वाले । 5. भेटें यानी जमलें । 6. करो ।
बचन 22 भेद काल मत व दयाल मत का 195
जबरले संत नाम गजत गानी । चौथे लोक चढ पता िनानी ।।20।।
राधास्वामी करा भेद सब छानी । उनकी दया से महुं1 पुजन िानी ।।21।।
भमण जमटा भइ नाम दीवानी । आरत उन की सिूँ सिानी ।।22।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
सुन गुरु बचन करें िो तुझ से । कर परतीत मान जरत जचत से ।।1।।
चौथा लोक बतावें सतगुरु । तीन लोक भाखें सब री गुरु ।।2।।
वेद पुरान जसमृत और िास्तर । सबरी जमल भाखें चौदर पुर ।।3।।
उन के बचन सभी जमल मानें । कर परतीत झूठ लसर िानें ।।4।।
प्रत्यक्ष तो दो लोक कदखावें । और लोक सुन सुन सभ गावें ।।5।।
जिन जिन के मन में उनका जनश्चा । सो रखते सब उनकी दृढ़ता ।।6।।
।। बचन तेईसवाूँ ।।
राल उत्पजत्त प्रलय रचना का और मजरमा सुरत िब्द
मागण की वास्ते पहुूँचने जनि स्थान के
।। िब्द परला ।।
बंझा1 ने बालक2 िाया । जिन सकल िीव भरमाया ।।1।।
अज्ञानी नाम कराया । जिन माया सबल3 उपाया4 ।।2।।
ब्रह्मा और जवष्र्ु मरेिा । नारद और सारद िेषा ।।3।।
ऋजष मुजन और िोगी ज्ञानी । सब को उन ले धर खाया ।।4।।
वेद पुरान िास्त्र परमाना । दे दे िीवन अजधक भुलाया ।।5।।
िीव अिान ममण नसर िानै । काल दुष्ट िंिाल लगाया ।।6।।
ररट5 घड़ी सम ऊूँचे नीचे । भरमत कफरैं कु छ चैन न पाया ।।7।।
कोई ज्ञान कर ब्रह्म समाने । कोइ उपाि6 बैराट समाया ।।8।।
कोइ करमी स्वगणन में पहुंचे । कोइ जवषई नकण न भोगाया ।।9।।
मुजि पदारथ बढ़ कर िाना । ज्ञानी ऐसा धोखा खाया ।।10।।
कोई काल मुिी रस भोगा । कफर नर देरी आन बूँधाया ।।11।।
कमण करे िैसे देरी में । कफर तैसा फल पाया ।।12।।
करमी जवषई और उपािक । इन तो सदरी7 चक्कर खाया ।।13।।
काल िाल से कोइ न बाचा । जनि घर अपने कोई न आया ।।14।।
तब सतपुरुष दया जचत आई । कजल में संत रूप धर आया ।।15।।
सब िीवन को कदया संदस े ा । सत्तलोक का भेद िनाया ।।16।।
जबरले िीव बचन उन माना । उनको ले सतपुर पहुूँचाया ।।17।।
बहुतक िीव बूँधे श्रुजत जसमृत । संत बचन परतीत न लाया ।।18।।
कफर कफर माूँगें वेद प्रमाना । उन उस घर को नेजत सुनाया ।।19।।
िब नसर वेद वेद का करता । तब का भेद संत गुरराया ।।20।।
झूँझरी दीप1 की रचन रचाई । जनगुन ण काल की िरूँ ठकु राई2 ।।43।।
गुन तीनों र्यराूँ से उतपाने । ब्रह्मा जवष्र्ु मरेि कराने ।।44।।
यराूँ से सरगुन रचा पसारा । चार खान उत्पजत जवस्तारा ।।45।।
िन्में मरें िीव चौरासी । काल जनरं िन डाली फाूँसी ।।46।।
वर दयाल पद कोई न पावे । जनरगुन सरगुन चक्कर खावे ।।47।।
अब परलय का भाखू लेखा3 । िस जसमटाव िगत का देखा ।।48।।
काल आय िीवन को ग्रासा4 । िीव समाने काल की स्वाूँसा ।।49।।
देरी कारि पृथवी रोई । पृथवी ने जगरसी पुजन सोई ।।50।।
पृथवी घोली िल ने आय । िल को सोखा अजि धाय ।।51।।
अगजन जमली पवन के रूप । पवन हुई आकाि सरूप ।।52।।
आकाि समाना माया मासर । तम रूपा दीखे कु छ नासर ।।53।।
माया रली ब्रह्म में िाय । ििी5 जिव में गई समाय ।।54।।
जिव6 पहुंचे ओंकार मंझार । ओंकार समाने सुन्न का बास ।।55।।
सुन्न ककया मरासुन्न जनवास । भूँवरगुफा मरासुन्न का बास ।।56।।
यराूँ तक परलय कजभ कजभ रोई । सत्तलोक का द्वारा सोई ।।57।।
परलय गजत आगे नसर भाई । सत्तलोक में कभी न िाई ।।58।।
काल जिलोकी कीन्री नास । मराकाल पुजन काल जगरास ।।59।।
मराकाल पहुंचा सत द्वार । आगे गजत7 नसर रठटका8 वार ।।60।।
परलय मरापरलय गजत गाई । सपड प्रलय अब कहूं बुझाई ।।61।।
काल ककया िब तन परवेि । िीव चला ति यर परदेि ।।62।।
मूलद्वार9 पृथ्वी का बास । सखचा वराूँ से स्वाूँस और भास10 ।।63।।
सखच कर आया इन्द्री द्वार । व्राूँ से पहुंचा नाजभ मूँझार ।।64।।
नाभी से सखच जररदे आया । जररदे से कफर कं ठ समाया ।।65।।
पृथवी िल अिी और पौन । कं ठ मासर रूूँधन लगी रोन ।।66।।
चारों तत्त्व भास और स्वाूँस । यराूँ से चले सखचे आकाि ।।67।।
।। िब्द परला ।।
या ते ज्ञान िोग दोउ खंडन । भजि भाव संतन ककयो मंडन1 ।।71।।
सुरत िब्द की अब करो करनी । तो उनकी सी रो िाय ररनी ।।72।।
ईश्वर पद िब घट में पाओ । ईश्वर कोटी तुम रो िाओ ।।73।।
िब वर ज्ञान सफल रोय तुम को । नसर अजधकार ज्ञान का सब को ।।74।।
िब लग जनश्चल जचत्त न रोई । ज्ञान बचन को सुनो न कोई ।।75।।
जबन उपािना जचत नसर ठररे । िब्द जबना कोइ उपाि न रै रे ।।76।।
िो उपािना करे रम कीन्री । जपछले िन्म भुगत रम लीन्री ।।77।।
तो मन जनश्चल आतम मारीं । रोना चजरये अचरि नारीं ।।78।।
िो मन आतम रं ग न राचा2 । तो िानो सब करना काचा ।।79।।
अब चजरये कफर करें उपािन । िासे कटें सभी मन बासन3 ।।80।।
िो तुम करो कदाजचत4 ऐसी । ज्ञानी को करनी नसर ररती ।।81।।
लक्ष5 जगयानी की यर बातें । बाचक को िोभा नसर याते ।।82।।
अब मन में तुम खूब जवचारो । बाचक तुमरीं रो अस धारो ।।83।।
धोखा मत खाओ पढ़ पोथी । क्यों ऐसी बातें करों थोथी6 ।।84।।
भजि भाव को मन में धारो । कलिुग का यर धमण सम्रारो ।।85।।
सत्तपुरुष ने धारा रूपा । संत स्वरूप भये िग भूपा ।।86।।
हुक्म कदया क़तई अब ऐसा । भजि जबना तरना करो कै सा ।।87।।
गुरु भजि जबन तरे न कोई । जबन गुरु ज्ञान पार नसर रोई ।।88।।
िब्द ज्ञान गुरु ज्ञान जपछानो । और गुरु सब झूठे िानो ।।89।।
धुन का नाम िब्द रै भाई । द्वार दसम से िो जनत आई ।।90।।
िब तक सुरत न पकड़े धुन को । मार न सिा कोई मन को ।।91।।
जबन मन मारे कभी न तरना । िनम िनम भौसागर पड़ना ।।92।।
सुरत िब्द से मन को मारो । और ितन कोई मत धारो ।।93।।
काल पड़ा िीवन के पाछे । दूध जछपाय जपलावे छाछे 7 ।।94।।
खट िास्तर और चारों वेदा । यर संतन ने ककये जनषेधा ।।95।।
बुजध और जवद्या दोनों रारें । संत मते पर जसर धुन मारें ।।144।।
बुजध जवचार से समझा चारें । कभी न पावें भटका खावें ।।145।।
या ते बुजध बल सबरी छोड़ो । मन और सुरत िब्द में िोड़ो 146।।
करो कमाई जनस कदन भाई । बुजद्ध से कु छ भेद न पाई ।।147।।
दोरा
।। िब्द दूसरा ।।
राग द्वेष1 में जछन जछन बरतें । अब बैराग कराूँ गया भाई ।।16।।
अन जमलते के त्यागी िानो । ज्ञान लखौटा2 करत सुनाई ।।17।।
यों तो सख़्त कड़ा पत्थर सा । अजि आगे जपघला िाई ।।18।।
मुख से मान अपमान समाना । बरतन3 में जनि मानजर चारी ।।19।।
िो अपमान करे कोई उनका । क्रोध करें बैरी बन िाई ।।20।।
मान करें मन की सी बोलें । प्रीत करें स्वारथ जलपटाई ।।21।।
और कमण सबरी जनत करते । भजि भाव में ररें अलसाई ।।22।।
िो भजि संतन ने भाखी । ता का ममण नेक नसर पाई ।।23।।
खान पान बस्तर तन ककररया । सब करते इक भजि रटाई ।।24।।
व्यवराररक िग सत्त बतावें । भजि का व्यवरार छु ड़ाई ।।25।।
तीरथ भरत नेम खट करमा । पूिा पाठ करें जनत आई ।।26।।
पोथी पुस्तक जवद्या नाना । पढ़ें पढ़ावें बहु जवजध भाई ।।27।।
सैर तमािा देि कदिंतर । मेला ठे ला िात भ्माई ।।28।।
यर करतूत न छोड़ें कबरी । भजि से पुन4 िन्म बताई ।।29।।
ज्ञान मता मारग ठरारया । िो भजि का फल था भाई ।।30।।
भजि दीनता करें न आदर । अपनी भजि करन जसखाई ।।31।।
धन और माल देय िो कोइ । तो पाखूँड संग लेत गठाई ।।32।।
और व्यवरार करें सब िग का । इक भजि से जवरोध िनाई ।।33।।
भिी की परवार न राखें । राजन समझ मानो डरजर लगाई ।।34।।
गुरु भजि सुपने का ससर करें । ता को छोड़त देर न लाई ।।35।।
और कमण और भोग िगत के । यर नसर छोड़ें बरतें िाई ।।36।।
काग जवष्ट सम मुख से करते । सो नसर छू टे जवषठा खाई ।।37।।
भजि भाव को जछन में छोड़ा । और करम दम साथ जनबारी ।।38।।
जिन बातों में मन मरता था । सो जमथ्या कर दूर कराई ।।39।।
और कमण कोई ककया न जमथ्या । सब फ़े लों1 में जनत्त खपाई ।।40।।
ऐसे मूरख मन के मौिी । जनभणय बरतें खौफ़ न लाई ।।41।।
सुरत िब्द मारग नसर धारें । संत बचन परतीत न आई ।।42।।
राधास्वामी करत सुनाई । ऐसा मत कोई गरो न भाई ।।43।।
।। िब्द तीसरा ।।
।। बचन पच्चीसवां ।।
वर्णन भूल वेदान्त मत और वेदाजन्तयों का िो कक काल पुरुष के लक्ष
।। िब्द परला ।।
सोरठा
।। िब्द दूसरा ।।
।। बचन छब्बीसवाूँ ।।
।। सुरत संवाद ।।
जिस में कु ल भेद संत यानी राधास्वामी मत
।। प्रश्न परला ।।
अब सूरत पूछे स्वामी से । भेद करो अपना तुम मोसे ।।1।।
बास तुम्रारा कौन लोक में । र्यराूँ आये तुम कौन मौि में ।।2।।
देि तुम्रारा ककतनी दूर । खोिे सुरत न िानैं मूर1 ।।3।।
मैं जबछड़ी तुम से करो कै से । देि पराये आई िैसे ।।4।।
मेरा राल जभन्न कर गाओ । देि आपना मोसर लखाओ ।।5।।
मन तन संग पड़ी मैं कब से । दुख पाये बहुतक मैं िब से ।।6।।
क्यों भूली मैं देि तुम्रारा । आय पड़ी परदेि जनरारा ।।7।।
पाताल बसो कक मृत्यु लोक में । स्वगण बसो कक ब्रह्म लोक में ।।8।।
जवष्र्ु लोक बैकुंठ धाम में । इन्द्रपुरी या जिव मुक़ाम में ।।9।।
कृ ष्र् लोक या राम लोक में । प्रकृ त लोक या पुरुष लोक में ।।10।।
या तुम व्यापक सभी लोक में । चार खान चर अचर2 थोक में ।।11।।
क्यों मोसर डाला काल लोक में । अजत भरमाया रषण िोक3 में ।।12।।
अब क्यों आये मोसर जचतावन । रूप धरा तुम अजत मन भावन ।।13।।
मैं दासी तुम चरन जनरारे । भेद देवो तुम अपने सारे ।।14।।
जपरथम अगम रूप मैं धारा । दूसर अलख पुरुष हुआ न्यारा ।।19।।
तीसर सत्त पुरुष मैं भया । सत्तलोक मैं री रच लीया ।।20।।
इन तीनों में मेरा रूप । र्यराूँ से उतरीं कला1 अनूप2 ।।21।।
र्यरां तक जनि कर मुझ को िानो । पूरन रूप मुझे पजरचानो ।।22।।
अंस दोय सतपुरुष जनकारी । िोत जनरं िन नाम धरा री ।।23।।
यर दो कला उतर कर आईं । झूँझरी दीप में आन समाईं ।।24।।
यराूँ बैठ जतरलोकी रची । पाूँच तीन की धूम अब मची ।।25।।
तीन लोक से मैं रहुं न्यारा । चार पाूँच छः में जबस्तारा ।।26।।
तीन लोक एक बुन्द पसारा । ससध रूप मैं अगम अपारा ।।27।।
मैं न पताल स्वगण नसर जमरता3 । ब्रह्मा जबष्र्ु मरेि न िुगता4 ।।28।।
नसर गोलोक5 नरीं साके त6 । इन्द्रपुरी नसर ब्रह्म समेत ।।29।।
तीन लोक व्यापक मैं नरीं । बुन्द एक मेरी र्यराूँ ररी ।।30।।
उसी बुन्द का सकल पसारा । वेद ताजर करैं ब्रह्म अपारा ।।31।।
वेदान्ती याजर ब्रह्म बखानें । जसद्धान्ती याजर िुद्ध पुकारें ।।32।।
इसके आगे भेद न पाया । सतगुरु जबन उन धोखा खाया ।33।।
जितने मत रैं िग के मारीं । इसी बुन्द को ससध बतारीं ।।34।।
ससध असल ररा इन से न्यारा । वेद कतेब न ताजर जबचारा ।।35।।
ब्रह्माकदक सब वेद भुलाये । ऋजष मुजन करम भरम जलपटाये ।।
पीर पैग़म्बर क़ु तुब औजलया7 । बुन्द भेद पूरा नसर जमजलया ।।37।।
।। प्रश्न दूसरा ।।
यर कक िो सुरत अपने देि को लौट िावे तो कफर
काल देि में आवेगी या नरीं
चलने की तो करी तयारी । स्वामी से यों बचन उचारी ।।72।।
संिय एक उठा मोसर भारी । सो जनरवार करो जवस्तारी ।।73।।
दोरा
सेवा बस तुम काल को, सौंप कदया िब मोसर ।
तो अब कौन भरोस रै, कफर भी ऐसा रोय ।।74।।
।। उत्तर ।।
तब स्वामी रूँस कर यों बोले । कहूं बचन मैं तुम से खोले ।।75।।
िान बूझ रम लीला ठानी । मौि रमारी हुई सुन बानी ।।76।।
काल रचा रम समझ बूझ के । जबना काल नसर खौफ़ िीव के ।।77।।
क़दर1 दयाल नसर जबना काल के । मौि उठी तब अस दयाल के ।।78।।
कदया जनकाल काल को व्राूँ से । दखल काल अब कभी न र्यराूँ से ।।79।।
मैं समरथ हूं सब जवजध िान । बचन मोर तू जनश्चय मान ।।80।।
काल न पहुंचे उसी लोक में । अब न करूं कभी ऐसी मौि में ।।81।।
एक बार यर मौि ज़रूर । अब मतलब नसर डाली दूर ।।82।।
1. मजरमा ।
बचन 26 सुरत संवाद 219
तू िंका अब मत कर जचत में । चलो देि रमरे ररो सुख में ।।83।।
।। प्रश्न तीसरा ।।
यर कक िो िीव संत मागण पर नरीं चलते
और कमण और भमण में पड़े रैं, उन को इस
करनी का क्या फल प्राप्त रोगा
।। अंग पजरला ।।
सुन कर सुरत मगन रोय बोली । जनश्चय ककया बचन रम तोली ।।84।।
मेरे मन अब दया समाई । प्रश्न करूूँ िीवन जरत लाई ।।85।।
िग में सुरत अनेकन आई । काल िाल में गई भुलाई ।।86।।
कोई करे िप कोई तीरथ दाना । कोई मूरत कोई तप अजभमाना ।।87।।
कोई अचार1 कोई नेमी धरमी । कोई जवद्या पढ़ करते करनी ।।88।।
कोई वैराग त्याग सब देते । बन परबत में िा कर ररते ।।89।।
।। अंग दूसरा ।।
प्रार् योग कर मुद्रा साधें । पाूँच मुद्रा धरें समाधें ।।90।।
चाचरी भूचरी खेचरी भाई । और अगोचरी उनमुजन लाई ।।91।।
चक वेध घट खैंचे प्रार् । सरसकूँ वल चढ़ लावें ध्यान ।।92।।
।। अंग तीसरा ।।
कोई ज्ञानी बाचक कोई लक्ष । कोई खट िास्तर करते पक्ष ।।93।।
मीमान्सा वैिेजषक न्याय । पातंिली िोग ठरराय ।।94।।
सांशय करे जनत2 अजनत3 जवचार । वेदान्ती जमथ्या संसार ।।95।।
व्यापक सत जचत आनंद रूप । िीव ब्रह्म दोऊ एक स्वरूप ।।96।।
िीव वाच4 िैदर े बतावें । ईश्वर वाच ब्रह्ममंड सुनावें ।।97।।
जवश्व5 नाम तेिस6 और प्राग7 । िागृत स्वप्न सुषोपजत भाग ।।98।।
वैराट8 जररनगभण9 और अव्याकृ त10 । तीन नाम ईश्वर करें कजल्पत ।।
कोइ तारागन मंडल पावे । कोइ चाूँद सूयण के लोक समावे ।।143।।
कोइ सुमरे पर करे बसेरा । कोइ कै लास जरमांचल डेरा ।।144।।
कोइ गन्धवण लोक कोइ इं द्रपुरी में । कोइ जपिलोक कोइ जवष्र्ुपरु ी में ।।
कोइ िजि लोक कोइ ईि धाम में । कोइ ओंकार कोइ रं ग नाम में ।।
उत्पजत1 अजस्थत2 परलै मारीं । यर सब ररे काल की छारीं ।।147।।
काल रद्द से परे न कोइ । देि दयाल कोई नसर िोई ।।148।।
आवगवन न काहू छू टा । देर अवेर सभी िम लूटा ।।149।।
सतगुरु जबना न कोई बाचा । सत्तनाम पद जमला न साूँचा ।।150।।
फल करनी तो सबने पाया । सुखी हुए पर कफर भरमाया ।।151।।
ताते सतगुरु पद को सेवो । जबन सतलोक न छू टे फे रो ।।152।।
सुरत िब्द के मारग चलो । सत्त िब्द से चढ़ कर जमलो ।।153।।
।। प्रश्न चौथा ।।
यर कक संतों के जनि स्थान और उस के
मागण का भेद क्या रै
तब सूरत पूछे इक बाता । स्वामी देव भेद जवशयाता3 ।।154।।
।। उत्तर ।।
तब स्वामी ने बचन सुनाया । मारग का यों भेद लखाया ।।155।।
पाूँच नाम का सुजमरन करो । श्याम सेत में सूरत धरो ।।156।।
प्रथमे सुनो गगन में बािा । घंटा संख छाूँट धुन गािा ।।157।।
सरस कूँ वल दल िोत लखाई । बंकनाल में िाय समाई ।।158।।
बंक पार जिकु टी में गई । ओंकार और रआ़द4 धुन लई ।।159।।
आगे पहुंची सुन्न मूँझार । ररं कार धुन सुनी पुकार ।।160।।
ककगरी और सारं गी सुनी । मान सरोवर चढ़ चढ़ गुनी ।।161।।
आगे मरासुन्न मैदाना । िराूँ चार धुन जतजमर5 समाना 162।।
।। प्रश्न पाूँचवाूँ ।।
यर कक संत और साध और भेख और
पाखंडी की पजरचान क्या रै ।
इक संिय मेरे मन आई । सो जनर्णय कर करो सुनाई ।।177।।
संत नाम तुम ककसका गावो । साध भेख दोउ भेद बतावो ।।178।।
1. परख जलया ।
224 सार बचन बचन 26
घंटा िब्द तिी धुन दोई । गरि मृदग ं सुनाई सोई ।।5।।
सुरत चली और खोला द्वार । बंकनाल धस रो गई पार ।।6।।
ऊूँची नीची घाटी उतरी । जतल की उलटी फे री पुतरी ।।7।।
गढ़ भीतर िाय कीन्रा राि । भजि भाव का पाया साि ।।8।।
करम बीि अब कदया िलाई । आगे को कफर सुरत बढ़ाई ।।9।।
नौबत झड़ती आठों िाम । सूरत पाया मूल कलाम1 ।।10।।
मराकाल और कु रम2 बखाना । उत्पजत बीिा र्यराूँ से िाना ।।11।।
सूरि चाूँद अनेकन देखे । तारा मंडल बहु जवजध पेखे ।।12।।
सपड अंड से न्यारी खेली । ब्रह्मंड पार चली अलबेली3 ।।13।।
वन और परवत बाग़ कदखाई । चमन चमन फु लवारी छाई ।।14।।
नररें नकदयाूँ जनरमल धारा । समुन्दर पुल चढ़ रो गइ पारा ।।15।।
मेर सुमरे देख कै लासा । गई सुरत िरूँ जवमल जबलासा ।।16।।
राधास्वामी करत पुकारी । दूसर मंजज़ल करली पारी ।।17।।
।। िब्द स्थान तीसरा ।।
अब चली तीसर परदा खोल । सुन्न मंडल का सुन जलया बोल ।।1।।
दसवाूँ द्वार तेि परकाि । छोड़े नीचे गगन अकाि ।।2।।
मानसरोवर ककये अश्नान । रंस मंडली िाय समान ।।3।।
सुन्न जिखर चढ़ी सूरत घूम । ककगरी सारूँ गी डाली धूम ।।4।।
सुन सुन सूरत रो गइ सार । पहुंची िाय जिवेनी पार ।।5।।
मरासुन्न का नाका लीन्र । गुप्त भेद िाय लीन्रा चीन्र ।।6।।
अंध घोर िरं भारी फे र । सत्तर पालूँग4 िा का घेर ।।7।।
बानी चार गुप्त िरूँ उठती । सुरत राजगनी नइ नइ सुन्ती ।।8।।
झन्कारें अद्भुत करा बरनूूँ । सुन सुन धुन मन में अजत ररखूूँ ।।9।।
पाूँच अंड रचना तरूँ कीन्री । ब्रह्म पाूँच ता में हुए लीनी ।।10।।
।। बचन सत्ताईसवाूँ ।।
वर्णन राल जवरर और खोि सतगुरु का और उनके सतसंग का
।। िब्द परला ।।
मैं सतगुरु संग करूूँगी आरती । मो जवररन को कोइ मत रटको4 ।।1।।
जिगर5 िले का दीपक बारूूँ । मन बट कर मैं बाती डारूूँ ।।2।।
।। िब्द दूसरा ।।
ददण दुखी मैं जवरजरन भारी । दिणन की मोसर प्यास करारी ।।1।।
दिणन राधास्वामी जछन जछन चाहूं । बार बार उन पर बल िाऊं ।।2।।
वर तो ताड़ मार फटकारें । मैं चरनन पर सीस चढ़ाऊं ।।3।।
जनधणन जनबणल क्रोजधन मानी । औगुन अपने अब पजरचानी ।।4।।
।। िब्द तीसरा ।।
कै सी करूूँ कसक2 उठी भारी । मेरी लगी गुरु संग यारी ।।1।।
दम दम तड़पूूँ जछन जछन तरसूूँ । चढ़ ररी मन में जवरर ख़ुमारी3 ।।2।।
सुलगत जिगर फटत जनत छाती । उठन लगी जरये से जचनगारी ।।3।।
नैनन नीर बहुत िस नकदयाूँ । डू ब मरी माया मतवारी ।।4।।
ठं डी आर उठे पल पल में । छाय गई अब प्रीत करारी ।।5।।
तोड़ी न टू टे छोड़ी न छू टे । काल करम पच रारी ।।6।।
सुरत जनरत दोउ क़ाजसद4 कीन्रे । जबथा5 जलखूूँ अब सारी ।।7।।
पजतयाूँ भेिूूँ गुरु दरबारा । अब लो खबर रमारी ।।8।।
नगर उिाड़ देि सब सूना । तुम जबन िग अूँजधयारी ।।9।।
कौन सुने और कौन सम्रारे । सब मोसर दीन जनकारी ।।10।।
बरी िात नइया मूँझधारा । तुम जबन कौन उबारी ।।11।।
खेवरटया क्यों देर लगाई । क्यों कर करूूँ पुकारी ।।12।।
मैं मरी िाउूँ जिऊं अब कै से । तुम मेरी सुजध न सम्रारी ।।13।।
डालो िान देवो सरिीवन6 । मैं तुम पर बजलरारी ।।14।।
बचन सुनाओ दरस कदखाओ । ररो पीर मेरी सारी ।।15।।
राधास्वामी सुनो रमारी । मैं तुम्ररे आधारी ।।16।।
।। िब्द चौथा ।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
।। िब्द छठा ।।
।। बचन अट्ठाईसवाूँ ।।
।। वर्णन आनंद जवलास प्राजप्त सतगुरु का ।।
।। िब्द परला ।।
िाग री उठ खेल सुराजगन । जपया जमले बड़े भाग ।।1।।
लाग री उन चरनन । कफर न जमले अस दाव ।।2।।
सखी सरेली सब िुड़ आईं । गावत मंगल राग ।।3।।
िोभा भारी रूप जनरारी । बढ़ा प्रेम अनुराग ।।4।।
बिी बधाई रषण समाई । भाग चला बैराग ।।5।।
दया अस कीन्री राधास्वामी आये । पड़ी मैं उनके चरनन धाये ।।14।।
प्रेम और प्रीत लगी अजधकाये । नरीं सुध तन मन गई भुलाये ।।15।।
।। िब्द छठा ।।
कौन करे आरत सतगुरु की ।। टेक ।।
ब्रह्माकदक सब तरस ररे रैं । जमली नरीं यर पदवी ।।1।।
कोरट तेतीसों राग बैरागी । इं द्र मुसनदर1 भटकी ।।2।।
सतगुरु जबना खोि नसर पाया । करम भरम जबच अटकी ।।3।।
बड़े भाग िानो अब उन के । जिनको सरन परापत गुरु की ।।4।।
गुरु समान समरथ नसर कोई । जिन धुर घर की आन खबर दी ।।5।।
मेरे भाग बड़े अब िागे । जमल सतगुरु संग आरत करती ।।6।।
भाव भजि क्या कदखलाऊूँ । मैं सतगुरु जबन और न रखती ।।7।।
गुरु की दया सरसदल पाया । जिकु टी चढ़ कर सुन्न परखती ।।8।।
मरासुन्न और भूँवरगुफा लख । सत्तलोक चढ़ अजधक ररखती ।।9।।
अलख अगम दरसे पद दोनों । आगे राधास्वामी चरन परसती ।।10।।
।। बचन उनतीसवाूँ ।।
जबनती और प्राथणना सतगुरु के चरन कूँ वल में
।। िब्द परला ।।
सतगुरु संग आरत करना । भव में क्यों दुख सुख सरना ।।1।।
मन जचत का थाल सिाऊूँ । सम सुरत िोत िगवाऊं ।।2।।
चढ़ अधर गगन पर धाऊं । अनरद धुन सदा बिाऊं ।।3।।
गुरु ककरपा करो बनाई । अब मुझ पै ररो सराई ।।4।।
मैं दुजखया बहु दुख पाई । तन मन को रोग सताई ।।5।।
सतसंग भी ककया न िाई । ज़़ुल्मी2 बहु ज़ोर चलाई ।।6।।
अब मेरी कु छ न बसाई । कोइ चले न मोर उपाई ।।7।।
।। िब्द दूसरा ।।
।। िब्द तीसरा ।।
मेरे रोग असाध भरे रैं । तुम जबन को अस करे दवा री ।।27।।
िब चारो िब जछन में टारो । मेरर दया की मौि जनरारी1 ।।28।।
बारम्बार करूूँ मैं जबनती । और प्राथणना करूूँ तुम्रारी ।।29।।
तुम जबन और न कोई दीखे । तुमरीं रो मेरे रखवारी ।।30।।
बुरा बुरा कफर बुरा बुरा हूं । िैसा तैसा आन पड़ा री ।।31।।
अब तो लाि तुम्रें रै मेरी । राधास्वामी खेवो2 बला3 री ।।32।।
।। बचन तीसवाूँ ।।
।। आरती सतगुरु के चरन कूँ वल में ।।
।। िब्द परला ।।
आरत गाऊूँ स्वामी अगम अनामी । सत्तपुरुष सतगुरु राधास्वामी ।।1।।
सरि का थाल असचत की गादी4 । कूँ वल कटोरी जघय5 अमी डराई ।।2।।
मूल नाम की िोत िगाई । दोऊ राथ ले सनमुख आई ।।3।।
टोपी कमरी6 धोती पटका7 । मुख पोंछन रूमाल चढ़ाई ।।4।।
के सर जतलक माल फू लन की । धूप दीप8 और भोग धराई ।।5।।
अब आरत ले फे रन लागी । सुन्न मंडल अनरद धुन आई ।।6।।
दृजष्ट िोड़ जचत चरन लगाई । कृ पा दृजष्ट गुरु कीन्र बनाई ।।7।।
भान चनद्र छजब घट उजियारी । देखत देखत दृजष्ट समाई ।।8।।
सब रंसन जमल आरत गाई । समथण सब को जलया अपनाई ।।9।।
।। िब्द दूसरा ।।
आरत गाऊूँ पूरे गुरु की । मजरमा बरनूूँ गगन जिखर की ।।1।।
धुन पकड़ू मैं अनरद घर की । सैर करूं मैं सुन्न नगर की ।।2।।
बात कहूं मैं डगर9 की । पीर10 ररूं मैं अपने जिगर की ।।3।।
दीद11 करूं मैं पुरुष अधर की । दूर करूं मैं ममता धर12 की ।।4।।
।। िब्द तीसरा ।।
।। िब्द चौथा ।।
गुरु आरत मैं करने आई । दुक्ख भरम सब दूर नसाई ।।1।।
थाल जलया मैं सील जछमा का । पाया भेद मैं गुरु मजरमा का ।।2।।
िोत िगाई जवरर अजगन की । करी आरती प्रेम उमंग की ।।3।।
भोग लगाया अपने भाव का । फल पाया रम देर दाव का ।।4।।
दृजष्ट िोड़ कर सन्मुख ठाढ़ी1 । सतगुरु दया दृजष्ट िब डारी ।।5।।
राधा राधा जनत जनत गाऊूँ । स्वामी स्वामी सदा मनाऊूँ ।।6।।
राधास्वामी कफर दोउ एका । िुगल2 रूप की जनस कदन टेका ।।7।।
करूँ लग बरनूं िोभा उन की । कोरट सूर चूँद छजब इक अंगकी ।।8।।
देखत देखत मन जबगसाना3 । कूँ वल सूर िस प्रीत पुराना ।।9।।
करूँ लग आरत करूूँ बनाई । मन नसर माने जचत न अघाई4 ।।10।।
प्रेम उमंग अपनी अब रोकूं । पूरन आरत कर जरया पोखूूँ5 ।।11।।
राधास्वामी मगन रोय कर । दें परिादी लेउूँ गोद भर ।।12।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
।। िब्द छठा ।।
आरत गावे स्वामी दास तुम्रारा । प्रेम प्रीत का थाल सूँवारा ।।1।।
ज्ञान ध्यान का दीपक बारा । भजि िोग धुन सुन झनकारा ।।2।।
झुनक झुनक झनकार झुमावा1 । सुरत िब्द धुन आन समावा ।।3।।
अब आरत स्वामी मानो मेरी । गुनरगार भूला बहुतेरी ।।4।।
जछमा करो अपराध सुवामी । आगे न चूकूूँ पाइ रैरानी ।।5।।
दया करो दाता प्रभु मेरे । मैं सेवक जनि चरनन चेरे ।।6।।
दृजष्ट करो भरपूर अपारा । पद पाऊूँ िा का वार न पारा ।।7।।
नाम तुम्रार धुन्ध2 उजियारा । गुन गाऊूँ धुन अगम अपारा ।।8।।
दया करो अब राधास्वामी । देव प्रसाद मोसर अंतरिामी ।।9।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
गुरु मेरे दाता मैं भई दासी । िनम िनम की काटी फाूँसी ।।1।।
दुलभण नर देरी अब पाई । करूूँ भजि गुरु लेउूँ ररझाई ।।2।।
रटना नाम करूूँ मैं जनस कदन । गुन गाऊूँ अब स्वामी जछन जछन ।।3।।
दिणन पाऊं मन उमगाऊं । नैन िोड़ कर सुरत लगाऊं ।।4।।
तब अनरद अद्भुत पाऊं । गगन मंडल में िाय समाऊं ।।5।।
जिकु टी िाय ससरासन बैठी । करे राि घट घट में पैठी ।।6।।
आरत जवजध अब कीन्रा सािा । धुन धधकार गगन का बािा ।।7।।
धुन आई इक धुर से भारी । अधर पदारथ पाया सारी3 ।।8।।
बरसे अमी की धार अखंडा । भींिे सुरत तिा नौखंडा ।।9।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
।। िब्द सोलरवाूँ ।।
।। िब्द सिरवाूँ ।।
दम्पत2 आरत करूं राधास्वामी । प्रेम सजरत गाऊं गुन नामी ।।1।।
कर पकवान जमष्टान भोग धर । और वस्तर गोटन के सि कर ।।2।।
लाय भेट स्वामी के राखे । तब स्वामी अस आज्ञा भाखे ।।3।।
करो आरती प्रेम ससगारी । बार बार अस आरत धारी ।।4।।
रम भी आरत करें बनाई । राधास्वामी ररो सराई ।।5।।
सुरत िब्द भाूँवर3 अब लीन्री । सदा सुराग अचल गुरु दीन्री ।।6।।
गुरु दयाल तो कल्ल दयाला । सतगुरु पूरे करें जनराला ।।7।।
उन चरनन पर िाउं बजलरारी । उन जबन कौन करे उपकारी ।।8।।
1. झुड
ं । 2. िोड़ा । 3. पररक्रमा ।
248 सार बचन बचन 30
मैं कककर तुम चरन अधारा । तुम जबन को अब करे उबारा ।।9।।
मस्तक राथ धरो अब रमरे । प्रीत लगे अब चरनन तुम्ररे ।।10।।
ऐसी कृ पा करो राधास्वामी । भजि िुजि मोसर देव अनामी ।।11।।
मन और सुरत दोउ जमल आये । नूर तुम्रार जरये में लाये ।।12।।
अब दोनों को लेकर सरना । मारग अगम लखाओ अपना ।।13।।
सुरत चढ़ाओ सरसकूँ वल में । रूप जनरारूं िोत अब जतल में ।।14।।
कफर आगे को चढ़ूूँ बंक में । लखूूँ जतरकु टी धाम ओं में ।।15।।
सुन्न जिखर चढ़ पहुंचूूँ जछन में । मरासुन्न का धारूं पन1 मैं ।।16।।
भंवरगुफा बैठंू सुन धुन मैं । बीन बिाऊं िा सतपुर में ।।17।।
अलख अगम की दया समाई । राधास्वामी नाम सुनाई ।।18।।
सुनूं नाम और धारूं जचत में । करम भरम काटूूँ इक पल में ।।19।।
कर सतसंग मजलनता नासी । घट में चेतन कीन्र प्रकासी ।।20।।
अन्ध घोर अज्ञान नसाना2 । घोर अनारद जमला रठकाना ।।21।।
सुन सुन धुन मगनानी ऐसी । मीन मगन ररे िल में िैसी ।।22।।
दासी दास िुगल सरनाये । करके ब्यार आरती लाये ।।23।।
भेट चढ़ावें अब अजत गररी । तन मन धन तो तुच्छ भये री ।।24।।
मैं अिान कु छ ममण न िानूं । राधास्वामी नाम बखानूं ।।25।।
तुम दयाल मेरी आरत मानो । रम अिान तुम गजत न जपछानो ।।26।।
राधास्वामी दरस भाग से पाया । राधास्वामी सरन जचत्त अब आया ।।27।।
।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।।
1. आजखरकार ।
250 सार बचन बचन 30
मन तन मोर करत नसर कािा । सेवा भिन करत करे लािा ।।6।।
संत समागम दुलणभ भाई । सो ककरपा से जमल्यो मोसर आई ।।7।।
कौन भाग अब उदय रमारा । या ते दिणन पायो तुम्रारा ।।8।।
दूर देि से चल कर आयो । और काल बहु जबघन लागायो ।।9।।
मन उचाट कर जचत भरमावत । बारम्बार देि को धावत ।।10।।
सतसंग में ररना नसर चारत । धन जतररया की याद बढ़ावत ।।11।।
ताते सतगुरु मत को फे रो । तुम चरनन कर जनस कदन चेरो ।।12।।
सुरत चढ़ाओ गगन िब्द में । जनरत िमाओ धुनन अवध1 में ।।13।।
सरस कूँ वल जिकु टी लख लीला । सुन्न मरासुन खेलत सीला ।।14।।
भूँवर गुफा सतलोक कदखाई । अलख अगम की छजब जचत भाई ।।15।।
राधास्वामी दीन अवाज़ा । चलो सुरत घर अपना पािा ।।16।।
।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।
।। िब्द बाईसवाूँ ।।
सतगुरु की अब करूूँ आरती । िगा भाग और रहूं िागती ।।1।।
कदन कदन प्रीत पदारथ लाती । बढ़ी उमंग अब करां जछपाती ।।2।।
देख सारदा1 जनपट लिाती । सतगुरु मजरमा करी न िाती ।।3।।
िब िब दरस गुरु का पाती । तन मन धन सब अपण धराती ।।4।।
अस आरत मैं करूूँ बनाई । संत सरन मैं जनि कर पाई ।।5।।
काल दुष्ट इक जवघन लगाई । उलटी मो को देि पठाई ।।6।।
मैं गुरु मूरत जररदे धारी । पल पल जछन जछन करूूँ अधारी ।।7।।
तब तो काल ररे मुरझाई । जवरर प्रेम बल मार जगराई ।।8।।
दूर रहूं सतगुरु उर धारूूँ । काल जवघन सब दूर जनकारूूँ ।।9।।
मैं सतगुरु बल लीन्रा राथा । फोड़ूं काल करम का माथा ।।10।।
अब जछन जछन यर आरत गाऊूँ । सतगुरु चरनन जनत बल िाऊूँ ।।11।।
तन तो ररे देि के मारीं । मन तो ररे चरन की छारीं ।।12।।
यों दम दम गुरु पास बसानी । अब क्या जवघन करे मेरी रानी ।।13।।
राधास्वामी मूरत जररदे धारी । जछन जछन देखूं नैन उघाड़ी ।।14।।
।। िब्द तेईसवाूँ ।।
करूूँ री इक आरत अद्भुत भारी । चरन गुरु सेव रोकर न्यारी ।।1।।
सुरत मेरी लागी धुन में पागी । जनरत मेरी िागी ममता भागी ।।2।।
रंस गजत पाई पानी त्यागी । ररी मैं अब तक बहुत अभागी ।।3।।
गुरु ने अब दीन्रा मोसर सुरागी । मैं गुरु के चरन की हुई अनुरागी ।।4।।
भोग सब छू टे जचत बैरागी । गाउं अब जनसकदन सतगुरु रागी ।।5।।
कहूं करा मैं अब बड़ भागी । िब्द मासर सूरत मेरी लागी ।।6।।
करम धरम जबच दीन्री आगी । मान अपमान दोउ मैं त्यागी ।।7।।
सतगुरु चरन हुई मैं दाग़ी । नाम दान सतगुरु से माूँगी ।।8।।
1. सरस्वती ।
252 सार बचन बचन 30
गगन चढ़ूूँ देखूं पद आगी1 । सत्त िब्द में सुरत समागी2 ।।9।।
छू ट गई संगत सब कागी । रंसन साथ रला मेरा भागी ।।10।।
मन को िीता ममता भागी । राधास्वामी चरन परस परसागी ।।11।।
।। िब्द चौबीसवाूँ ।।
।। बचन इकतीसवाूँ ।।
वर्णन मन और इजन्द्रयों के जवकार और काल
के जवघ्नों का अभ्यास की रालत में
।। िब्द परला ।।
घट औघट झाूँका री सिनी ।। टेक ।।
मन मजतमन्द करन नसर माने । िब्द सुरत नसर ताका री ।।1।।
घर घर कफरे स्वान2 मजत लीये । झूठ झूठ जवष खाता री ।। 2।।
धन सम्पत सुख चार उठाई । मान मनी मद माता री ।।3।।
।। िब्द दूसरा ।।
1. परदा । 2. ददण ।
256 सार बचन बचन 31
।। िब्द नावाूँ ।।
।। बचन बत्तीसवाूँ ।।
प्राथणना सुरत की मन से और िवाब देना उसका
।। िब्द परला ।।
मन रे मान बचन इक मेरा ।। टेक ।।
मैं तेरी दासी िनम िनम की । तू हुआ स्वामी मेरा ।।1।।
तीन लोक का नाथ करावें । तीन देव तेरा चेरा ।।2।।
ऋजष मुजन सब पर हुकु म चलावे । िती सती सब घेरा ।।3।।
तेरे बस सुर नर और िोगी । कोइ तेरा हुकम न फे रा ।।4।।
जिस चारे जतस िगत फूँ साए । और चारे जतस करे जनबेरा ।।5।।
ऐसी मजरमा सुनी तुम्रारी । ताते तुम पै करूूँ जनरोरा3 ।।6।।
इस तन नगरी तुच्छ देि में । क्यों क़ै दी रोय पड़े अंधरे ा ।।7।।
सतगुरु मोसे करा बचन इक । मन को संग ले चलो सबेरा ।।8।।
ता ते तुम पै करूूँ बीनती । चढ़ो गगन क्यों करो अबेरा ।।9।।
इन्द्री द्वार जवषय अब त्यागो । करो अभी सुलझेरा4 ।।10।।
तुम सा संगी और न कोई । मैं तुम्ररी और तुम री मेरा ।।11।।
मुझ दासी का करना मानो । गगन मंडल चढ़ बाूँधो डेरा ।।12।।
िैसे थे तैसे कफर रोइ रो । क्यों दुख सुख यराूँ सरो घनेरा ।।13।।
सतगुरु पूरे भेद बताया । मन को संग लेकर घर फे रा ।।14।।
मैं हूं सुरत पड़ी बस तेरे । जबन तुम मदद िब्द नसर रेरा ।।15।।
िो यर करन न मानो मेरी । तो चौरासी करें बसेरा ।।16।।
अब तुम दया करो मेरे ऊपर । सुन जबनती खोिो धुन नेरा ।।17।।
रम तुम दोनों चढ़ें अधर में । िाकर बसें पराड़ सुमरे ा ।।18।।
तुम वराूँ ररना राि कमाना । रम पहुंचें िरूँ राधास्वामी डेरा 19।।
।। िब्द दूसरा ।।
मन बोला सुतण से कफर ऐसे । जवषय स्वाद मोसे िात न छोड़ा ।।1।।
कै सी करूूँ बचन कस मानूं । मैं इन्द्री बस हुआ न थोड़ा ।।2।।
बल पौरूष मैं सब री रारा । अब इन से मेरा चले न ज़ोरा ।।3।।
मैं चाहूं छोड़ूूँ भोगन को । देख भोग बस चले न मोरा ।।4।।
आगे पीछे बहु पछताऊूँ । समय पड़े पर रोवत चोरा ।।5।।
कै से चढ़ूं गगन को प्यारी । मैं चंचल ज्यों दौड़त घोड़ा ।।6।।
ताते तोसे कहूं ितन मैं । चल सतगुरु पै करो जनरोरा ।।7।।
सरन पड़ें जमल कर अब रम तुम । कर सतसंग रोयूँ कु छ पोढ़ा1 ।।8।।
दया करें सतगुरु िब अपनी । पल पल राखें मोको मोड़ा ।।9।।
मैं अपने बल चढ़ूूँ न कब री । िब लग जमलें न गुरु बंदी छोड़ा।।10।।
सुन कर सुरत अजधक ररखानी । चल िल्दी वर बन्धन तोड़ा ।।11।।
सतसंग सरन गरी अब दोनों । भर भर पीवत अमी कटोरा ।।12।।
दोनों जमल कर चढ़े गगन को । िब्द िब्द रस हुए चटोरा ।।13।।
दया करी राधास्वामी उन पर । रीरा मोती लाल बटोरा ।।14।।
राधास्वामी ऐसी मौि कदखाई । मार जलया अब काल कठोरा ।।15।।
1. मज़बूत ।
262 सार बचन बचन 33
।। बचन तेंतीसवाूँ ।।
फ़याणद और पुकार करना सतगुरु से और माूँगना
मेरर और दया का वास्ते चढ़ने सुरत के
और प्राजप्त दिणन स्वरूप सतगुरु की
।। िब्द परला ।।
अब मन आतुर दरस पुकारे । कल नसर पकड़े धीर न धारे ।।1।।
दम दम जछन जछन ददण दीवानी । सोऊूँ न िागूूँ अन्न न पानी ।।2।।
बेकल तड़पूूँ जपया तुम कारन । डस डस खावत सचता नाजगन ।।3।।
कौन उपाय करूूँ अब सिनी । भौिल से अब कारे को तरनी ।।4।।
याजर सोच में कदन कदन िलती । कोइ न सम्रारे आली पल पल गलती ।।
जपया तो बसें मेरे लोक चतुर में । मैं तो पड़ी आय मृत्यु नगर में ।।6।।
जबन जमलाप प्रीतम दुख भारी । रार चलूं नसर िात चला री ।।7।।
घाट बाट िरूँ अजत अूँजधयारी । कोई न सुने मेरी बहुत पुकारी ।।8।।
ितन न सूझे जरम्मत रारी । अपने जपया की मैं ना हुई प्यारी ।।9।।
िो जपया चारें तो दम में बुलावें । िब्द डोर दे अभी चढ़ावें ।।10।।
भाग रीन मैं धुन नसर पकड़ी । काम क्रोध माया ररी िकड़ी ।।11।।
सुरत िब्द मारग िो पाया । सो भी मुझ से गया न कमाया ।।12।।
मैं तो सब जवजध रीन अधीनी । मन नसर जनमणल सुरत मलीनी ।।13।।
तुम समरथ स्वामी अजत परबीना1 । मैं तड़पूं िैसे िल जबन मीना ।।14।।
काि करो मेरा आि सम्रारी । तुम्रारी सरन स्वामी मैं बजलरारी ।।
रार पड़ी अब तुम्रारे द्वारे । तुम जबन अब मोसर कौन सम्रारे ।।
तब स्वामी बोले अस बानी । मौि जनरारो ररो चुप ठानी ।।17।।
धीरि धरो करो जवश्वासा । अब करूं पूरन तुम्ररी आसा ।।18।।
सुनत बचन अब सीतल भई । चरन सरन स्वामी जनश्चल गरी ।।19।।
1. िानकार ।
बचन 33 फ़याणद और पुकार 263
।। िब्द दूसरा ।।
।। िब्द तीसरा ।।
1. पूरी रो । 2. पजरचान ।
266 सार बचन बचन 33
।। िब्द चौथा ।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
।। िब्द छठा ।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
।। िब्द नावाूँ ।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
।। िब्द गायाररवाूँ ।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
।। िब्द तेररवाूँ ।।
।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।।
तुम जबन और न कोई मेरा । चार लोक में तुमसर कदखाओ ।।14।।
अब तो दया करो राधास्वामी । िैसे बने तैसे घाट चढ़ाओ ।।15।।
।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।
सतगुरु से करूूँ पुकारी । संतन मत कीिे िारी ।।1।।
िीवन का रोय उधारी । मैं देखूं यरी बरारी ।।2।।
मैं मौि करूूँ कफर भारी । सब आरत करें तुम्रारी ।।3।।
मैं ररखूूँ खेल जनरारी । मानो यर अज़ण रमारी ।।4।।
मैं राखूं पक्ष तुम्रारी । अब कीिे दया जवचारी ।।5।।
मैं बालक सरन अधारी । मैं करूूँ बीनती भारी ।।6।।
िो मौि न रो यर न्यारी । तो फे रो सुरत रमारी ।।7।।
घट भीतर रोय क़रारी1 । िब्दारस करे अरारी ।।8।।
दोउ में से एक सुधारी । िो दोनों करो दया री ।।9।।
मैं राज़ी रज़ा तुम्रारी । मैं राधास्वामी गोद पड़ा री ।।10।।
।। िब्द बीसवाूँ ।।
लगाओ मेरी नइया सतगुरु पार । मैं बरी िात िग धार ।।1।।
तुम जबन नारीं को ककढ़यार2 । लगादो डू बी खेप ककनार ।।2।।
सरेली मत तू मन में रार । कदखाऊूँ िग का वार और पार ।।3।।
चढ़ाऊूँ सूरत उलटी धार । िब्द संग खेय उतारूूँ पार ।।4।।
गुरु को धर ले जरये मूँझार । नाम धुन घट में सुन झनकार ।।5।।
तरं गें उठतीं बारम्बार । भूँवर िरूँ पड़ते बहुत अपार ।।6।।
मेरर से पहुंची दसवें द्वार । राधास्वामी दीन्रा पार उतार ।।7।।
।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।
दिणन की प्यास घनेरी3 । जचत तपन समाई ।।1।।
िग भोग रोग सम दीखें । सतसंग में सुरत लगाई ।।2।।
।। िब्द बाईसवाूँ ।।
1. पहुूँच । 2. बीती ।
बचन 33 फ़याणद और पुकार 279
।। िब्द तेईसवाूँ ।।
धीरि धरो बचन गुरु गरो । अमृत जपयो गगन चढ़ ररो ।।1।।
दूर न िानो सतगुरु पास । जनस कदन करो चरन जवश्वास ।।2।।
सागर मेरर दया की मौि । राधास्वामी दीन्री अचरि चोि1 ।3।।
खेल जखलावें बाल समान । देखे मात ररख मन आन ।।4।।
रक्षक िब्द िान और प्रान । सो परलू छोड़े न जनदान ।।5।।
मन की घढ़त करावें दम दम । वर रैं जमि वरी रैं रमदम2 ।।6।।
भूल चूक बखिें3 वर जछन जछन । संग ररें इसके वर जनस कदन ।।7।।
यर मन कच्चा बूझ न िाने । उनकी गजत कै से पजरचाने ।।8।।
िगत िाल में ररा भुलाई । सुरत िब्द में नरीं िमाई ।।9।।
या से सोग जवयोग सतावे । मन का घाट राथ नसर आवें ।।10।।
गुरु कुं िी िो जबसरे नारीं । घट ताला जछन में खुल िाई ।।11।।
खुले घाट तब सुन्न में देखे । धुन की खबर रूप जनि पेखे ।।12।।
चढ़े अधर िब नाम समावे । रस पावे सूरत घर आवें ।।13।।
रतन खान घट में िब खुले । दुक्ख ददण और दुमत ण टले ।।14।।
मौि जनरारो सबर सम्रारो । भमण अूँधरे ा कौतुक4 टारो ।।15।।
अमल अचल पकड़ो गुरु चरना । सुक्ख जपरापत दुख सब ररना ।।16।।
यर संसार अजगन भंडार । सीतल िल सतगुरु आधार ।।17।।
बड़े भाग जिन सतगुरु पाये । चौरासी से तुरत रटाये ।।18।।
दुक्ख सुक्ख िो व्यापत रोई । जपछले कमण भोग रैं सोई ।।19।।
कोइ कदन सोग रोग रट िावें । देर नसर िल्दी भुगतावें ।।20।।
दोरा
राधास्वामी रक्षक िीव के , िीव न िाने भेद ।
गुरु चररि1 िाने नरीं, ररे कमण के खेद2 ।।21।।
खेद जमटे गुरु दिण से, और न कोई उपाय ।
सो दिणन िल्दी जमलें, बहुत करा मैं गाय ।।22।।
।। दो कजड़या छन्द ।।
धीरि धरना, मत घबराना, जचत ठरराना,
रूप समाना, जनत गुन गाना, नरीं बराना,
यरी जनिाना, ज्यों पजपरा स्वाूँती आस ।।23।।
घट में ररना, करीं न बरना, मन में सरना,
रस री लेना, धीरि गरना, ममण न करना,
ज्यों िल मीना, राधास्वामी पास ।।24।।
आगे दया मेरर सतगुरु की । वरीं दरसावें वर अब धुर की ।।25।।
राधास्वामी बचन सुनाया । िीवन की रठ से जलखवाया ।।26।।
दोरा
सुरत बसाओ िब्द में, िब्द गगन के मासर ।
जवरर बसाओ जरये में, जरया जतरकु टी मासर ।।1।।
सुरत िब्द इक अंग कर, देखो जबमल बरार ।
मध्य सुखमना जतल बसे, जतल में िोत अकार ।।2।।
िब्द स्वरूपी संग रैं, कभी न रोते दूर ।
धीरि रजखयो जचत्त में, दीखेगा सत नूर ।।3।।
सत्तनाम सतपुरुष का, सत्तलोक में पूर ।
1. लीला । 2. दुख ।
बचन 34 प्राजप्त मेरर व दया सतगुरु 281
।। बचन चौंतीसवाूँ ।।
प्राजप्त मेरर और दया सतगुरु की और पहुूँचना सुरत का
चढ़ कर स्थानों पर और वर्णन मजरमा िब्द और
सतगुरु की और भेद और लीला स्थानों की
।। िब्द परला ।।
िीव जचतावन आये राधास्वामी । बार बार जतन करूं प्रनामी ।।1।।
आरत उनकी करूूँ सिाई । जचत्त िुद्ध कर थाल बनाई ।।2।।
अब िीवों को चजरए ऐसा । चल कर अपें तन मन सीसा ।।3।।
िोत िगावें प्रथम जवरर की । बाती िोड़ें जबतण1 लगन की ।।4।।
िब आरत अस लई सूँिोई2 । सतगुरु दया दृजष्ट कर िोई3 ।।5।।
दीन्रा दीन िान उपदेिा । सुरत िब्द में करो प्रवेिा ।।6।।
खोलो िाकर गगन ककवाड़ी । श्याम कं ि तब लागी ताड़ी ।।7।।
सेत कूँ वल कफर मन ठरराना । प्रगटी िोत सुन्न में िाना ।।8।।
सेत श्याम दल दोनों छोड़े । तीसर दल में मन को िोड़े ।।9।।
बंकनाल का द्वारा सोई । तन की सुजद्ध वराूँ गइ खोई ।।10।।
मन और सुरत चेत कर िागी । जिकु टी िब्द गुरु में लागी ।।11।।
अब पाया जवश्राम रठकाना । आरत पूरन करी बखाना ।।12।।
इतना धाम सुरत ने पाया । राधास्वामी चरन समाया ।।13।।
।। िब्द दूसरा ।।
आि काि मेरे कीन्रें पूरे । बािे घट में अनरद तूरे ।।1।।
।। िब्द चौथा ।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
भेद तुम्रारा अजत कर सारा । सुरत िब्द मारग मैं धारा ।।10।।
पकड़ूं िब्द चढ़ाऊं सूरत । नभ जनरखूं और देखू मूरत ।।11।।
सरसकं वल धस घंट बिाऊं । बंकनाल चढ़ िंख सुनाऊं ।।12।।
जिकु टी घाट ककया िाय फे रा । ओंकार धुन से मन घेरा ।।13।।
मन हुआ लीन सुरत अब चीन्री । कान पड़ी धुन झीनी झीनी ।।14।।
मानसरोवर पैठ अन्राई । जनमणल रोय जनमणल पद पाई ।।15।।
सुन्न जिखर िाय फे रा दीन्रा । कोट मरासुन चढ़ कर लीन्रा ।।16।।
भंवरगुफा सोरं धुन सुनी । सत्तनाम धुन जछन जछन गुनी ।।17।।
सत्तलोक िाय बैठक पाई । सत्त सुरत सत िब्द समाई ।।18।।
अलख अगम के पार अनामी । यर भी पद दरसे मोसर स्वामी ।।19।।
मजरमा सतगुरु करं लग कहूं । आरत कर अब चुप रो रहूं ।।20।।
देओ प्रिाद रहूं चरनन में । गुन गाऊं पल पल जछन जछन में ।।21।।
।। िब्द छठा ।।
1. साथ ।
286 सार बचन बचन 34
।। िब्द सातवाूँ ।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
1. गई । 2. संसार ।
बचन 34 प्राजप्त मेरर व दया सतगुरु 287
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
करूं मैं आरत सजखयन साथ । गहूूँ मैं थाली सम जचत राथ ।।1।।
िोत में धारूं जवरर अनुराग । प्रेम सूँग गाऊं गुन और राग ।।2।।
सिाऊं आरत पाऊं लाभ । सुरत सखच पहुंची नभ6 ति नाभ7 ।।
कु लारल8 रोत गगन में आि । प्रेम संग भींिा सकल समाि ।।4।।
छोड़ नौ आई दसवें द्वार । खोजलया ताला सुन्न मूँझार ।।5।।
धुनों की रोत िराूँ झनकार । सुरत िरूँ देखत रूप अपार ।।6।।
मरासुन पहुंची सतगुरु लार । भूँवर चढ़ खुला िब्द भंडार ।।7।।
सत्त पद पाया अधर अधार । अलख का जलया िाय दरबार ।।8।।
अगम का पाया वार और पार । ररी अब राधास्वामी रूप जनरार ।।9।।
सुरत अब िब्द लखा जनि सार । कदया अब राधास्वामी भेद जवचार ।।
साध संग कीन्रा ति अरंकार । गुरु संग मेल ककया बहु प्यार ।।11।।
नाम धन पाया जवरर सम्रार । गुरु ने ममण लखाया पार ।।12।।
कं वल चढ़ झाूँकी मन को मार । घाट अब देखा घट में सार ।।13।।
चरन राधास्वामी जररदे धार । रहूं मैं दम दम चरन सम्रार ।।14।।
हुए राधास्वामी आि दयार । नाम रस पाया परखी धार ।।15।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
गुरु आरत तू करले सिनी । कदवस गया आई अब रिनी1 ।।1।।
मन को तोड़ चढ़ो जनि गगनी । सुरत िब्द रस पीवत मगनी ।।2।।
जरसण रवस2 िग जछन जछन तिनी । नाम ओर3 अब पल पल भिनी4 ।।3।।
िोत नाद संग दम दम रं गनी । लख जपया रूप बढ़ावत लगनी ।।4।।
जबन गुरु कौन करावत करनी । सुख अकाि ति जगरती धरनी ।।5।।
छू ट गया मेरा िन्म और मरनी । सतगुरु दया सुरत नभ भरनी ।।6।।
अमर लोक अब लागी चढ़नी । धुन अपार जररदे में िरनी ।।7।।
सत्तनाम सतगुरु हुइ सरनी । अलख अगम के चरनन पड़नी ।।8।।
गुरु पद परस परख घट चलनी । माया ममता तृष्र्ा दलनी ।।9।।
सुआ5 समान फूँ सा िग नलनी6 । गुरु प्रताप मेरे दुख टलनी ।।10।।
राधास्वामी दृजष्ट करी मन गलनी । बाल समान गोद गुरु पलनी ।।11।।
।। िब्द तेररवाूँ ।।
आओ री जसमट रे सजखयो । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।1।।
।। बचन पैतीसवाूँ ।।
चढ़ कर पहुूँचना सुरत का आकाि में और भेद
और लीला मुक़ामात की िो कक सुरत ने
रास्ते में देखी रै
।। िब्द परला ।।
।। िब्द दूसरा ।।
नाम थाल जलया राथ पसारी । जवरर अजि से िोत सूँवारी ।।3।।
अमी सरोवर भर लइ झारी । राधास्वामी सन्मुख कर कर ढारी1 ।।4।।
अगम लोक के सबिन लाई । राधास्वामी आगे भोग धराई ।।5।।
अम्बर चीर जपताम्बर िोड़े । भेट ककये मैंने राथी घोड़े ।।6।।
पाूँच तत्त्व गुन तीन जसपारी । मार जलये राघास्वामी की दुराई ।।7।।
चढ़ी गगन पर कीन्रा धावा । सुरत जनरत दोउ िब्द समावा ।।8।।
बंकनाल की तोप चलाई । जवरर अजि की जचनगी लाई ।।9।।
धमणराय की फ़ौि भगाई । धूम धाम मैंने बहुत मचाई ।।10।।
घंटा िंख मृदग ं बिाई । धौंसा2 धमक अिब धुन आई ।।11।।
गगन मूँडल का घाटा3 रोका । काल मंडली खाया झोका ।।12।।
अब चढ़ गई सुरत िजि4 द्वारे । तीन लोक के रो गइ पारे ।।13।।
भान ककरन िरूँ झलकन लागी । अगम रूप अद्भुत िरूँ पागी ।।14।।
खुली दृजष्ट िब जझरना झाूँकी । क्या कहूं िोभा अब मैं वराूँ की ।।15।।
कोरटन भान रोम इक लागी । देख सुरत अचरि अस िागी ।।16।।
सुरत िब्द का रो गया मेला । अगम पुरुष अब ररा अके ला ।।17।।
एक दोय कु छ करा न िाई । ऐसे पद में िाय समाई ।।18।।
आरत का मैं यर फल पाया । दुक्ख भमण सब दूर बराया ।।19।।
परम िाूँजत में आन समानी । क्या कहूं मजरमा अचरि बानी ।।20।।
अब कीिै स्वामी पूरन ककरपा । तन मन मैं सब तुम पर अरपा ।।21।।
राधास्वामी राधास्वामी अब जनत गाऊं । और बचन कु छ याद न लाऊूँ ।।
देओ प्रसाद अगमपुर धामी । भजि सजरत तुम चरन नमामी ।।23।।
।। िब्द तीसरा ।।
रे सरेली आली मौि करी अब भारी । चरन कूँ वल प्रीतम जिया धारी ।।
िगी रै िोत जरये भई उजियारी । गगन मंडल धुन भई धधकारी ।।2।।
चाूँद सुरि दोउ झाूँक झरोका1 । सुखमन जखड़की द्वार िाय रोका ।।3।।
प्रार् पवन िरूँ देती झोका2 । सुरत अड़ी अब माने न नेका ।।4।।
िब्द गुरु िाय कीन्रा ठे का । जिकु टी मरल पर पग अब टेका ।।5।।
मानसरोवर रंस समीपा । अक्षर का िरूँ रै जनि दीपा ।।6।।
चार भान काजमन िराूँ क़ांती4 । द्वादस भान रंस की भाूँती ।।7।।
लीला अद्भुत बरनी न िाई । देख देख मन िरूँ जबगसाई ।।8।।
इकटक4 ठाढ़ी सुरत जनरारी । धुन ककगरी िरूँ सुनत सम्रारी ।।9।।
मरासुन्न रोय सचखंड आई । अलख अगम में िाय समाई ।।10।।
मौि अनामी क्या कहूं लेखा । बरना न िाय रूप िस देखा ।।11।।
सोई रूप धारा राधास्वामी । िीव काि आये जनि धामी ।।12।।
उन चरनन पर तन मन वारूूँ । छजब उनकी पल पल जरये धारूूँ ।।13।।
आरत फे रूूँ प्रेम उमंग से । सुजध बुजध जबसरी अब मोरे तन से ।।14।।
फल पाया मैं अगम अपारा । अमी अरार करूूँ जनत सारा ।।15।।
।। िब्द चौथा ।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
।। िब्द छठा ।।
गुरु का अगम रूप मैं देखा । सतगुरु सत्तनाम सम पेखा ।।1।।
बल सतगुरु अब काल पछाड़ा । कमण काट सतगुरु पद धारा ।।2।।
सरसकं वल का थाल सुधारा । िोत रूप का दीपक बारा ।।3।।
धुन घंटा और िंख बिाई । बंक नाल में दृजष्ट िमाई ।।4।।
दृजष्ट सम्रारत मन हुलसाना । गगन मंडल धुन गरि जपछाना ।।5।।
देख रूप सूरि परकािा । जमटा अूँधरे ा झलक अकािा ।।6।।
पाया आतमपद1 अब भारी । ररं कार धुन िराूँ सम्रारी ।।7।।
चंद्र चांदनी चौक जनरारा । सेत सेत पद श्याम जनकारा ।।8।।
इकटक सुरत लगी वजर द्वारे । रंस िूथ2 बहु लगे जपयारे ।।9।।
राधास्वामी लीला धारी । आरत कर मन जबगसा भारी ।।10।।
दया मेरर परिादी पाऊं । रि चरनन की सीस चढ़ाऊं ।।11।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
गुइयाूँ3 री लख मरम िनाऊूँ । अब भेद अगम घट गाऊूँ ।।1।।
सुतण सरसकूँ वल पर लाऊं । लख नैन सैन दरसाऊूँ ।।2।।
िोती की झलक झकाऊूँ । श्यामा ति सेत जमलाऊूँ ।।3।।
कफर बंकनाल चढ़ आऊूँ । जिकु टी का राग सुनाऊूँ ।।4।।
सुन्नी4 िाय सुन्न समाऊूँ । सरवर में धमक चढ़ाऊूँ ।।5।।
रंसन से प्यार बढ़ाऊूँ । ककगरी अब जनत्त बिाऊूँ ।।6।।
राधास्वामी नाम िपाऊूँ । नौका अब पार लगाऊूँ ।।7।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
बहुररया5 धूम मचावत आई । चढ़न को सतगुरु धाम ।।1।।
भाव भजि और प्रेम कदवानी । आरत लीन्री साम6 ।।2।।
करूर्ाजनजध7 गुरु फू ल जबरािें । करें भिन जनि नाम ।।3।।
1. सुन्न । 2. झुड
ं । 3. सखी, सरेली । 4. सुरत । 5. दुलजरन । 6. सामान ।
7. दया के भंडार ।
296 सार बचन बचन 35
।। िब्द नवाूँ ।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
।। िब्द तेररवाूँ ।।
।। िब्द चौदरवाूँ ।।
।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।।
गगन नगर चढ़ आरत करहूं । सपड देि अब जछन जछन तिहूं ।।1।।
सुनूूँ गगन में अनरद रागा । बढ़त िाय पल पल अनुरागा ।।2।।
रूप अनूप देख जरये मारीं । करत न बने करा कहूं भाई ।।3।।
मथ मथ िब्द िोत परकािी । सुन सुन धुन भई सुतण अजवनािी ।।4।।
दुन्द1 धुन्ध2 से जनकसी पारा । सत्तनाम का खोला द्वारा ।।5।।
अंस रंस सूँग कीन्र जबलासा । देखा िाय बंस परकािा ।।6।।
सुरत सम्रार सुनी धुन बीना । कौन करे वर अचरि चीन्रा ।।7।।
िोगी थके समाध लगाई । ज्ञानी ररे आतम गजत पाई ।।8।।
यर संतन का भेद अमोला । जबना संत काहू नसर तोला ।।9।।
संतन की गजत अगम अपारा । क्योंकर कहूं वार नसर पारा ।।10।।
संत मौि से िा पर रेरा । कदया अमर पद जमट गया फे रा3 ।।11।।
यर आरत करी उमूँग प्रेम से । पाठ करूूँ और करूूँ नेम से ।।12।।
।। िब्द सोलरवाूँ ।।
आरत गाउूँ स्वामी सुरत चढ़ाऊूँ । गगन मंडल में धूम मचाऊूँ ।।1।।
श्याम4 सुन्दर पद जनरख जनरारूूँ । सेत पदम पर तन मन वारूूँ ।।2।।
जबन्द्राबन5 मथरा6 पद लीन्रा । गोकु ल7 िीत काजलन्द्री8 छीना ।।3।।
सुन्न मरावन जगरवर9 चीन्रा । मरासुन्न िाय अमृत पीना ।।4।।
धीरि थाल प्रेम की िोती । धुन जववेक घट मोती पोती ।।5।।
जवरर राग ति रं ग लगाऊूँ । सुरत जनरत ले िब्द समाऊं ।।6।।
रास मंडल घट लीला ठानी । कालीनाथ10 जनरख नभ िानी ।।7।।
घोर उठा अब गगन कुं ि में । मगन हुई लख तेि पुि ं में ।।8।।
मद और मोर रने और सूद11 े । मोरन मुरली बिी मन बोधे ।।9।।
।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।।
।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।
।। िब्द बीसवाूँ ।।
सुरत मेरी हुई िब्द रस माती । गुरु मजरमा अब जछन जछन गाती ।।1।।
अन्य गुरु जिन भेद लखाया । धुन अन्तर मन राती1 ।।2।।
राग राजगनी बारर बािे । यर सब तुच्छ बुझाती ।।3।।
जनरत सखी को अगुआ करके । पल पल िब्द समाती ।।4।।
िब्द फोड़ सुन िब्द को िाती । माया ममता कू टत छाती ।।5।।
धुन धुन जसर अब काल पुकारे । यर सूरत मेरे राथ न आती ।।6।।
पहुंची िाय सत्त दरबारा । अगम पुरुष का दिणन पाती ।।7।।
रंसन साथ आरती गावे । अमी अरार सदा जनत खाती ।।8।।
और नरीं कु छ करने िोगी । राधास्वामी के बल बल िाती ।।9।।
।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।
सुरत अब िाना जनि घर अपना । िब्द खोि रम पाया अपना ।।1।।
िगत अब भासा2 रमको सुपना । छू ट गया सब भरम कल्पना3 ।।2।।
करा करे ले िप और तपना । या में काल करे िग ठगना ।।3।।
संत भेद पर डाला ढकना । िीवन पाया बहुत भटकना ।।4।।
अब यामें कोइ कभी न अटकना । िैसे बने तैसे मन को झटकना ।।5।।
सुरत िब्द ले गगन सटकना4 । वराूँ िाय कर बहुत मटकना5 ।।6।।
कमण धमण से दूर फटकना6 । सतगुरु चरनन मासर जलपटना ।।7।।
।। िब्द बाईसवाूँ ।।
गाओ री सखी िुड़ मंगल बानी । आि जपया मेरे दीन्र जनिानी ।।1।।
घट में घाट द्वार मैं चीन्रा । प्रेम पदारथ जछन जछन लीन्रा ।।2।।
मन चढ़ चला छोड़ तन थाना । गगन मरल पर उमूँग समाना ।।3।।
तरां से सुरत चली रोय न्यारी । सुन्न नगर का िब्द पजरचाना ।।4।।
क्या कहूं मजरमा बरनी न िाई । काल कमण दोउ हुए कदवाना ।।5।।
मैं जपया की अपने सुध पाई । घाट घाट पर िोत िगाई ।।6।।
भागा जतजमर हुआ उजियारा । चौक चाूँदनी द्वार जनरारा ।।7।।
िोभा मरल कराूँ लग बरनूूँ । ककगरे ककगरे सूर रज़ाराूँ ।।8।।
आगे बाट चली नसर मेरी । राधास्वामी करो जनबेड़ा1 ।।9।।
।। िब्द तेईसवाूँ ।।
।। िब्द चौबीसवाूँ ।।
1. जनपटारा । 2. प्रर्ाम ।
बचन 35 चढ़ना सुरत व लीला मुकामात 305
।। िब्द पच्चीसवाूँ ।।
।। िब्द छब्बीसवाूँ ।।
।। िब्द सत्ताईसवाूँ ।।
।। िब्द अट्ठाईसवाूँ ।।
मुरजलया बाि ररी । कोइ सुने संत धर ध्यान ।।1।।
सो मुरली गुरु मोसर सुनाई । लगे प्रेम के बान ।।2।।
सपडा छोड़ अंड ति भागी । सुनी अधर में अपूबण तान ।।3।।
पाया िब्द जमली रंसन से । खैंच चढ़ाई सुरत कमान ।।4।।
यर बंसी सतनाम बंस की । ककया अिर घर अमृत पान ।।5।।
भूँवरगुफा कढग सोरं बंसी । रीझ ररी मैं सुन सुन कान ।।6।।
इस मुरली का ममण पजरचानो । जमली िब्द की खान ।।7।।
गई सुरत खोला वर द्वारा । पहुंची जनि अस्थान ।।8।।
सत्तपुरुष धुन बीन सुनाई । अद्भुत जिनकी िान ।।9।।
जिन जिन सुनी आन यर बंसी । दूर ककया सब मन का मान ।।10।।
सुरत सम्रारत जनरत जनरारत । पाय गई अब नाम जनिान ।।11।।
अलख अगम और राधास्वामी । खेल ररी अब उस मैदान ।।12।।
।। िब्द उनतीसवाूँ ।।
बोल री राधा प्यारी बंसी । क्यों तरसावत िान ।।1।।
तड़प ररी मैं कारन तोरे । सतगुरु ममण लखाया आन ।।2।।
जबरर बान की वषाण कीन्री । खैंच जलये मन प्रान ।।3।।
हुई दीवानी जमली जनिानी । जलया ममण सब छान ।।4।।
खान पान तन सुध जबसराई । सुरत समानी तान ।।5।।
सुन सुन धुन अब सूर भई रै । मारा काल जनदान ।।6।।
राधास्वामी देस कदखाना । कौन िुगत से करूूँ बखान ।।7।।
।। िब्द तीसवाूँ ।।
गुरु नाम रसायन1 दीन्रा । दाररद्र2 हुआ सब छीना ।।1।।
सुख रास3 जमली घट अंतर । धुन िब्द गरी गगनन्तर ।।2।।
करत जबलास एक हुए जछन जछन । देख रूप अब रोत मगन मन ।।2।।
लीला अद्भुत रोत न वर्णन । अिब अखाड़ा रचा सेत धुन ।।3।।
काल पछाड़ा कीन्रा मरदन । माया ममता भागी जसर धुन ।।4।।
चली सुरत और पहुंची मरासुन । सेि जबछाई िा चौथे खन1 ।।5।।
सत्तपुरुष मुख सुनी बीन धुन । अलख अगम को कीन्रा परसन ।।6।।
वरां से चली देख कु छ अगमन । राधास्वामी रूप जनरारत कदरगन ।।7।।
देख देख फू ली अब जनि तन । कौन करे वर गजत राधास्वामी जबन ।।
।। िब्द तेंतीसवाूँ ।।
सुरत अब चली ऐन2 में पैन3 । लखा िाय अचरि रूप अनैन4 ।।1।।
त्याग गुन तीनों और दस धैन5 । अधर में पहुंची पाया चैन ।।2।।
कहूं क्या घट की परखी सैन । चुका अब काल करम का दैन6 ।।3।।
खुले अब सुन में जररदे नैन । समझ तब आये वराूँ के बैन ।।4।।
सुरत अब लागी वराूँ रस लेन । िब्द की परखी अद्भुत करन ।।5।।
चाूँद और सूरि गरे दोउ गरन । सुखमना लागी सूरत ररन ।।6।।
राधास्वामी सूरत कीन्री परन7 । दई मोजर पदवी अब अजत मरन8 ।।
।। िब्द चौंतीसवाूँ ।।
।। िब्द पैंतीसवाूँ ।।
।। िब्द छत्तीसवाूँ ।।
।। िब्द सैंतीसवाूँ ।।
जखज़ां ति देखो मूल बरार । घूम चल देखो जतल का द्वार ।।1।।
जखला िरूँ अिब सदा गुलज़ार1 । पाूँच रं ग देखे पाूँचों सार ।।2।।
चमन िरूँ नूरी जखले अपार । नूर की क्यारी जनमणल धार ।।3।।
उतरता अमी लखा रर बार । फू ल ररी अद्भुत िरूँ गुलनार ।।4।।
सुरंगी2 सरवर भरे अपार । सुरत और िब्द करें िरं प्यार ।।5।।
मरल िरूँ देखे खुले दुवार । नीलगूूँ ककगुरे लगे क़तार ।।6।।
सैर यर देखी तन मन वार । गुरु ने मौि कदखाई सार ।।7।।
मेरर से दूर हुए सब खार3 । तिा कफर मन ने जनि अरंकार ।।8।।
गुरु जमल पहुंची गुरु दरबार । पड़ी अब राधास्वामी चरन मंझार ।।
।। िब्द अड़तीसवाूँ ।।
सुतण पजनरारी सतगुरु प्यारी । चली गगन के कू प ।।1।।
प्रेम डोर ले पनघट आई । भरी गगररया खूब ।।2।।
िब्द पजरचान अमीरस पागी । देखा अद्भुत रूप ।।3।।
नगर अिायब जमला डगर में । िराूँ छाूँर नसर धूप ।।4।।
पहूंची िाय अगमपुर नामी । दिण ककया राधास्वामी भूप ।।5।।
।। बचन छत्तीसवाूँ ।।
प्राजप्त िब्द और मुक़ामात की और वर्णन
आनंद और जबलास और मजरमा सतगुरु की
।। िब्द परला ।।
उमूँड ररी घट में घटा अपार ।। टेक ।।
चमक बीिली प्यार बढ़ावत । और घंटा झनकार ।।1।।
िोजभत अधर घाट सुतण प्यारी । िब्द खुला भंडार ।।2।।
देख ररी िरूँ कूँ वल ककयारी । फू ल ररी फु लवार ।।3।।
।। िब्द दूसरा ।।
।। िब्द तीसरा ।।
िब्द सूँग लगी सुरत की डोर । सुराजगन करे आरती िोड़ ।।1।।
भौसागर में तुलरा3 बांधा । िम के िाल जलये सब तोड़ ।।2।।
प्रेम प्रीत घट थाली धारी । िोत िगाई मन को मोड़ ।।3।।
सुरत लगाई िब्द समाई । जनत जनत धुन में रोती पोढ़4 ।।4।।
गगन द्वार धस ताला खोला । अनरद िब्द मचावत िोर ।।5।।
करम भरम सब दूर जनकारे । सतगुरु घट में कीन्रा दौर5 ।।6।।
िन्म िन्म का सोया मनुवां । िाग उठा सुन अनरद घोर ।।7।।
सपिर छोड़ उड़ा पंखेरू । चला गगन की ओर ।।8।।
जिकु टी िाय िब्द फल पाया । छू टा मोर और तोर ।।9।।
सुन्न जिखर िा रै न जबरानी । उदय हुआ घट भोर ।।10।।
सुन्न मरासुन भूँवरगुफा पर । सुरत चढ़ी सब नाके तोड़ ।।11।।
सत्त अलख और अगम रठकाना । राधास्वामी धाम जमला जचत चोर ।।
।। िब्द चौथा ।।
गुरु चरन धूर रम हुइयां । तुम सुनो रमारी गुइयां ।।1।।
क्या क्या सुख कहूं गुसइयां । जबन भाग नरीं कोइ पइयां ।।2।।
अब ध्यान कमान सखचइयां । सुतण बान चलावत गइयां ।।3।।
नभ िब्द जनिान धरइयां । फोड़ा और आगे चलइयां ।।4।।
सत िब्द जमलाप करइयां । राधास्वामी धाम समइयां ।।5।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
सतगुरु मैं पूरे पाये । मन घाट जलया बदलाये ।।1।।
सूरत ने िब्द िगाये । घट मोती चुन चुन खाये ।।2।।
रंसन के िूथ कदखाये । जमल उन संग प्रेम लगाये ।।3।।
घाटी चढ़ बाटी धाये । कफर सुन्न जिखर चढ़ आये ।।4।।
सतलोक सुरत को लाये । कफर िोनी बास न आये ।।5।।
सत रूप अिब दरसाये । कोरटन रजव1 चंद्र लिाये ।।6।।
रंसन छजब क्या कहूं गाये । षोड़स2 िजि3 भान4 कदखाये ।।7।।
राधास्वामी करत बुझाये । सुन सेवक अजत ररषाये ।।8।।
।। िब्द छठवां ।।
सुरत अब घूम चली तन छोड़ जनदान ।
चरन गुरु आन अड़ी गजर नाम रठकान ।।1।।
धुन बािे अनरद परख जनिान । सतगुरु दई कुं िी कु फ़ल5 खुलान ।।2।।
सुन्न सागर झाूँकी कर अश्नान । िब्द घट िागा सुरत समान6 ।।3।।
पोढ़ भइ नभ में कूँ वल जखलान । िोत लख पाई जतल परमान ।।4।।
काल की कला थकी अब िान । लखी गुरु मूरत िब्द जपछान ।।5।।
तीन गुन टारे छोड़ा थान7 । लखी मैं राधास्वामी अचरि िान ।।6।।
ररी नरीं अब कु छ िग की कान । गरी अब राधास्वामी पूरन आन8 ।।7।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
मन सोधो घट में िब्द संग । ति काम क्रोध और मोर रं ग ।।1।।
अब औसर पाया अिब ढंग । जमली देरी उत्तम गुरु संग ।।2।।
जनत बचन सुनूूँ मैं जवरंग अंग1 । अब रोत सफ़ाई जमटत ज़ंग2 ।।3।।
क्या उपमा बरनूूँ साध संग । जनमणलता पाई अंग अंग ।।4।।
तन दूत हूए सब आप तंग । घट भीतर लागी रोने िंग3 ।।5।।
गुरु प्रेम समाना जमट तरं ग । गुन जबतण रटाई जचत अपंग4 ।।6।।
सेत जमला रट श्याम रं ग । धुन िब्द सुनाई भरम भंग ।।7।।
कफर जनरत िगाई उड़ जबरंग । राधास्वामी पाये काल दंग ।।8।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
मौि करूूँ अब घट में बैठ । देवर5 मारा मारा िेठ6 ।।1।।
खोली राट अधर की पैंठ । धुन को सुना गई वराूँ पैठ7 ।।2।।
चाूँद सुरि दोउ देखे रेठ8 । सीस ककया सतगुरु की भेट ।।3।।
लोभ मोर सब डारे मेट । पाप पुण्य सब सोये लेट ।।4।।
इन्द्री भोग गये सब ऐंठ । राधास्वामी जमल गये भारी सेठ ।।5।।
।। िब्द नवाूँ ।।
मेरे घट का कदया गुरु ताला खोल । मैं सुनत रहूं जनत बाला बोल ।।1।।
क्या कहूं सुरत िब्द की तोल । पहुंची िाय नाम के कोल9 ।।2।।
अजधक हुलास जमला िरूँ चोल । माया की सब जनकसी पोल ।।3।।
का से कहूं यर भेद अमोल । जबन गुरु कोई न करता खोल ।।4।।
िीव जवचारे डावांडोल । जबन गुरु भरे न मन का डोल ।।5।।
मैं जवरजरन मेरे जररदे रौल10 । काल चढ़ाई मुझ पर रौल11 ।।6।।
मैं पकड़ी अब धुन की रोल । मार कदया सब माया ग़ोल12 ।।7।।
िो गुरु भाखें मुझ से क़ौल13 । मन मूरख जसर मारी धौल ।।8।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।।
।। िब्द सोलरवाूँ ।।
।। बचन सैंतीसवाूँ ।।
दिा सुरत और मन की और प्राजप्त िब्द
की और िुकराना सतगुरु का
।। िब्द परला ।।
गुरु ने अब दीन्रा भेद अगम का । सुरत चली ति देि भरम का ।।1।।
बल पाया अब जवरर मरम का । भटकन छू टा दैरो1 ररम2 का ।।2।।
वषणन लागा मेघ करम का । संिय भागा िनम मरन का ।।3।।
तोड़ कदया सब िाल जनगम3 का । सुख पाया अब रम दम दमका ।।4।।
फल पाया आि रम सम दम का । भूँवर हुआ मन सेत पदम का ।।5।।
फूूँ क कदया घर लाि िरम का । काटा फं दा नेम धरम का ।।6।।
ज्ञान ध्यान बाचक रम छोड़ा । भजि भाव का पजरना िोड़ा ।।7।।
भजि भाव की मजरमा भारी । िानेंगे कोइ संत जवचारी ।।8।।
सत्तनाम सतपुरुष अपारा । चौथे माजर करें दरबारा ।।9।।
सुरत िब्द मारग कोइ पावे । सो रंसा चढ़ लोक जसधावे ।।10।।
सो मारग अब राधास्वामी गाई । कोइ कोइ प्रेम भजि से पाई ।।11।।
।। िब्द दूसरा ।।
गुरु मारा बचन का बान । मेरा गया कलेिा छान ।।1।।
मैं सुनी सुन्न की तान । मर गये काल के मान ।।2।।
तन छू ट गया अजभमान । मैं करी िब्द पजरचान ।।3।।
टेक गुरु बाूँध ध्यान धरना । चरन गुरु पकड़ पड़ो सरना ।।6।।
सरसदल कूँ वल िाय लगना । जिकु टी चढ़ो चाल पकना ।।7।।
सुन्न में नरीं नैन झपना । मानलो राधास्वामी गुरु करना ।।8।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
नाल नभ तकी रोय न्यारी । सुरत को लगी अब जवरर करारी ।।1।।
मन बैठा भोग जबसारी । जिव छोड़ी कृ त1 संसारी ।।2।।
क्या कहूं जमले गुरु भारी । उन भेद कदया पद चारी ।।3।।
मैं पाऊूँ िब्द रस सारी । मेरे लगा ज़ख़्म अब कारी2 ।।4।।
मन तन पर कफरती आरी । क्यों िीऊूँ िीवना रारी ।।5।।
तब दया करी गुरु न्यारी । अब दीन्रा िब्द सम्रारी ।।6।।
मैं चढ़ गई गगन अटारी । वराूँ खेलूूँ जनत्त जिकारी ।।7।।
धुन सुन कर बहुत पुकारी । चढ़ भागी खोल ककवाड़ी ।।8।।
राधास्वामी चरन जनरारी । लख पाया भेद अपारी ।।9।।
।। िब्द छठवां ।।
गुरु की गजत अगम अपार । मैं कै से बरनूूँ पार ।।1।।
सतगुरु मोसर अंग लगाया । सतगुरु मोसर नाम दृढ़ाया ।।2।।
बैराजगन भइलो सतगुरु चरना । अनुराजगन भइलो नाम अनामा ।।3।।
सतगुरु मेरे दया जवचारी । भौिल से पार उतारी ।।4।।
ब्रर্্मड
ं ी खेल कदखाया । अनरद धुन तार बिाया ।।5।।
घट जतजमर पुराना नािा । िब्द उिास ककया परकािा ।।6।।
गुरु ऊपर बल बल िाऊूँ । राधास्वामी नाम जधयाऊूँ ।।7।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
मैं भई अगम की दासी । मेरी सुरत हुई अजवनासी ।।1।।
मैं िब्द ककया घट मंिन । मन रारा डरा जनरं िन ।।2।।
1. करतूत । 2. गररा ।
बचन 37 प्राजप्त िब्द व िुकराना सतगुरु 323
।। िब्द तेररवाूँ ।।
गुरु मोसर भेद कदया पूरा । सुरत संग बािा घट तूरा ।।1।।
हुआ मन तन में अब सूरा । लखूूँ मैं नभ चढ़ िजि सूरा ।।2।।
खुला अब घाट अगम नूरा । रटाया काल करम दूरा ।।3।।
कदखाया राधास्वामी पद मूरा । जतयागा िगत लगा कू ड़ा ।।4।।
।। िब्द चौदरवाूँ ।।
मैं सुनूं क्या जनत घट की । गुरु भेद कदया धुन में अब अटकी ।।
अब सुरत चढ़ी पहुंची नभ सटकी । मेरी फू ट गई कमणन की मटकी ।।2।।
कफर काम क्रोध डारे सब पटकी । सुतण सरसकूँ वल चढ़ झटकी1 ।।3।।
मन माया धर धर झटकी2 । आसा और तृष्र्ा िग की पटकी ।।4।।
गुरु खबर िनाई अंतर पट की । सुतण िग से जछन जछन रटकी ।।5।।
गुरु की मजत धारी दुमत
ण खटकी3 । सुतण मगन हुई धुन सुन सर4 तट5 की ।।
मन खेली कला उलट ज्यों नटकी । राधास्वामी गाई गजत उलट पलट की।।
।। िब्द पंद्ररवाूँ ।।
सोच ले प्यारी अस जमला िोग । गुरु दया करी सब जमटे रोग ।।1।।
सुतण जमली िब्द से ति जवयोग । यर जमला भाग से सरि िोग ।।2।।
गुरु जबन कब जमलता अस संिोग । अब करले जनस कदन िब्द भोग ।।3।।
मन की मजत त्यागी गया सोग । राधास्वामी ककरपा करी िोग6 ।।4।।
िो रोना था सो हुआ रोग । को सुने रमारी भूले लोग ।।5।।
।। िब्द सोलरवाूँ ।।
गुरु ने मोसर दीन्रा नाम सरी । तृष्र्ा सकल दरी ।।1।।
सतसंग करूूँ सार रस पीऊूँ । दृढ़ कर नाम गरी ।।2।।
गुरु की मजरमा करी न िावे । चरनन पकड़ ररी ।।3।।
जिस पर दृजष्ट पड़ी मेरे गुरु की । सोई पार गई ।।4।।
छोजड़या पानी जवपत जबडार । जनत्त मैं पीती रहूं सुधार ।।4।।
काल को डाला बहुत लताड़ । चरन गुरु पकड़े आि सम्रार ।।5।।
नाम संग रो गइ सूरत सार । मानसर न्राई मैल उतार ।।6।।
चुगूूँ मैं मोती िब्द जवचार । गुरु ने खोला घाट दुवार ।।7।।
धुनन को छाूँट जलया मन मार । घाट घट भीतर पड़ी पुकार ।।8।।
नाम गुरु लीन्रा मोसर जनकार । छोजड़या सारा िगत लबार1 ।।9।।
ककया अब राधास्वामी िगत उधार । जिऊूँ मैं राधास्वामी चरन पखार ।।
।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।
।। िब्द बीसवाूँ ।।
कदखाया रूप मनोरर गुरु ने । मेरी दृजष्ट खुली पहुंची धुर घर में ।।1।।
जनि भेद कदया सतगुरु ने । धुन धमक सुनी नभपुर में ।।2।।
मेरे ररख हुई अजत उर में । मैं उलट चली अब सुर7 में ।।3।।
चढ़ घोर सुना अन्दर में । मैं झाूँकी िा मंकदर में ।।4।।
मैं पाइ मौि सुन्दर में । गुरु चरन धरे अब जसर में ।।5।।
मैं धाई सुन्न जिखर में । अब पाये पुरुष अिर मैं ।।6।।
लग राधास्वामी हुई अमर मैं । मैं न्राई अमी नरर में ।।7।।
।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।
धुजबया गुरु सम और न कोय । चदररया धोई सूरत िोय1 ।।1।।
मैल सब काढ़ा जनमणल रोय । कहूं क्या गुरु की मजरमा सोय ।।2।।
घाट पर बैठे दीखें मोसर । सुरत मैं डारी चरन समोय ।।3।।
धार अब आई कसमल2 खोय । चटक कर दीन्र चदररया धोय ।।4।।
िब्द संग लागी प्रेमी रोय । भेद राधास्वामी पाया गोय1 ।।5।।
।। िब्द बाईसवाूँ ।।
चलो री सखी अब आलस छोड़ । सुनो अब चढ़कर घट में घोर ।।1।।
काल िो देवे कु छ झकझोर4 । भुिा उस डारो तुरत मरोड़ ।।2।।
दया गुरु सुन लो घट का िोर । अमीरस पीओ नभ में ज़ोर ।।3।।
बोल िराूँ परखो दादुर मोर । मेघ िराूँ गरित घोरम घोर ।।4।।
िब्द धुन परखी सूरत िोड़ । करम का कलसा डाला फोड़ ।।5।।
द्वार अब खोला ताला तोड़ । जमला भंडार अगम का मोर5 ।।6।।
भगाये घट के सब री चोर । गरी मैं जनि धुन की अब डोर ।।7।।
राधास्वामी डारा मन को तोड़ । चरन मैं परसे दोउ कर िोड़ ।।8।।
।। िब्द तेईसवाूँ ।।
सूरमा सुरत हुई गुरु देख प्रताप ।। टेक ।।
सुरत िब्द की करूूँ कमाई । पाऊूँ अपना आप ।।1।।
गगन मंडल अब झाूँकन लागी । कर कर सूरत साफ़ ।।2।।
चढ़ी अधर में देख उधर में । परमातम को आतम पात ।।3।।
करम कटाने भरम नसाने । िन्म िन्म के छू टे पाप ।।4।।
सुन्न जिखर पर पहुंची सूरत । करती अिपा िाप ।।5।।
अिब धाम पाया मैं सिनी । कौन करे यराूँ तोल और नाप ।।6।।
राधास्वामी खेल कदखाया । वोरी रैं मेरे मा और बाप ।।7।।
।। िब्द चौबीसवाूँ ।।
कु मजतया दूर हुई, गुरु हुये दयाल ।
सुमजतया दान दई, गुरु ककया जनराल ।।1।।
सरन गुरु आन लई, ति मन का िाल ।
मूल को पकड़ जलया, ति डारी डाल ।।2।।
नाम धन पाय गई, ति झूठा मान ।
गुरु संग लाग ररी, देख अचरि ख़्याल ।।3।।
परम पद पाय गई, चढ़ सुखमन नाल ।
भमण सब काट कदये, और मारा काल ।।4।।
काल अब थककत हुआ, अब पाया राल1 ।
राधास्वामी दूर ककये, मेरे सब दुख साल2 ।।5।।
।। िब्द पच्चीसवाूँ ।।
सुरत उठ िागी चरन सम्रार । गुरु संग लागी रूप जनरार ।।1।।
बचन सुन त्यागी मनसा शवार । सुरत हुई रागी3 िब्द सम्रार ।।2।।
अमीरस पीवत नभ के द्वार । छोड़ कर भागी िगत लबार ।।3।।
पकड़ कर आई गुरु दरबार । सरन गर बैठी तन मन वार ।।4।।
रंस रोय चुगती मुिा सार । नाम रस पागी सूरत नार ।।5।।
काल संग तोड़ा नाता झाड़ । दयाल घर पहुंची सतगुरु लार ।।6।।
जमले राधस्वामी ककरपा धार । छु टे सब संगय गया संसार ।।7।।
।। िब्द छब्बीसवाूँ ।।
मंगल मूल आि की रिनी4 । मसरमा कहूं कौन सुन सिनी ।।1।।
आनूँद छाय ररा नभ धरनी । रोम रोम अमृत रस भरनी ।।2।।
जतजमर रटावन धारे चरनी । रूप सुरावन पाइ मैं सरनी ।।3।।
अमी धार लागी अब जझरनी । सुरत जनरत लागी घट जघरनी ।।4।।
गगन मंडल लागी अब चढ़नी । जबन गुरु कौन करे यर करनी ।।5।।
ता ते सरन गुरु की पड़नी । जमगण टले और भागी जररनी ।।6।।
भान मध्य पहुंची िा ककरनी । सुरत अड़ी िा अब नसर जगरनी ।।7।।
राधास्वामी भेद कदया कर जनरनी । मैं नसर उन चरनन से कफरनी ।।8।।
।। िब्द सत्ताईसवाूँ ।।
िोभा देखुूँ मैं अब गुरु की । नैन जनरारूूँ जखड़की धुर की ।।1।।
खबर िनाऊूँ कफर सुर1 की । िान गई गजत अब उर उर की ।।2।।
मो को करें सभी दुर दुर2 की । मैं गरी टेक गुरु गुरु की ।।3।।
राधास्वामी गजत गाई ऊपर की । सुरत तिी मैं इस मरपुर3 की ।।4।।
।। िब्द अट्ठाईसवाूँ ।।
दौड़त गई गगन के घेर । तन को छोड़ जलया मन फे र ।।1।।
िराूँ िब्द अनारद लीन्रा रेर4 । ज़ीना5 चढ़ कर सुनी इक टेर6 ।।2।।
काल करम दोउ कीन्रे ज़ेर7 । चढ़ आई मैं आि सुमरे ।।3।।
धुन पाई मैं अब अजत नेर8 । िल्दी करी लगी नसर देर ।।4।।
गीदड़ से गुरु कीन्रा िेर । रेर रेर धुन घट में रेर ।।5।।
छोड़ी मन की सभी लगेड़9 । सुरत हुई अब धुन की चेर ।।6।।
अंतर दृजष्ट लाई फे र । दूर रटाया पापन ढेर ।।7।।
अब सतगुरु की रोगई मेरर । जमट गया आि काल का क़रर11।।8।।
लगी नरीं कु छ मुझे अबेर । मैं चढ़ पहुंची बहुत सबेर ।।9।।
तन मन झगड़ा सभी जनबेड़12 । जमला भजि भंडार कु बेर ।।10।।
बैररयन की खाल लई उधेड़ । मानसरोवर न्राई नरर ।।11।।
मन का सभी जमटाया फे र । राधास्वामी जलया मन घेर ।।12।।
।। िब्द उन्तीसवाूँ ।।
गुरु संग खेलूूँ जनस कदन पास । करूूँ मैं अचरि जबमल जबलास ।।1।।
सुखी रोय करती चरन जनवास । हुआ मोसर गुरु का अजत जवश्वास ।।
गुरु जबन और नरीं कोइ आस । जमली अब नाम रतन की रास ।।3।।
जधयाऊूँ पल पल स्वाूँसो स्वाूँस । काल और कमण हुए दोउ नास ।।4।।
िगत से ररती सरि उदास । जमली अब पदवी दासन दास ।।5।।
करे अब सूरत नभ पर बास । िब्द का पाया परम प्रकाि ।।6।।
लगन अस ररती बारर मास । चरन मैं पकड़े गुरु के खास ।।7।।
द्वार घट खोला चढ़ आकाि । काल मुरझाया सूखा मास ।।8।।
हुआ अब घर में दीप उिास । जमला जनि सूरि संग आभास1 ।।9।।
कहूं क्या मजरमा िब्द खवास2 । गरे3 िो पावे अमर अवास4 ।।10।।
करूं अब आरत राधास्वामी रास । िब्द का दीपक कीन्रा चास5 ।।11।।
।। िब्द तीसवाूँ ।।
।। िब्द इकतीसवाूँ ।।
सोच ररी री मौि की बजतयां । सुतण रजतयां1 कूँ वल जबलास ।।1।।
उमूँग प्रेम छजब लजखयाूँ । अब जरयरे बढ़त हुलास ।।2।।
जनमख2 जनमख अटकी दृग िोभा । जनरख ररी परकाि ।।3।।
भीित मन सीझत नृत न्यारी । धावत जनि आकाि ।।4।।
आवत घोर सुनत जनस3 बासर4 । उलट कफराया स्वांस ।।5।।
चेतन रोत सोख तम सागर । पावत अगम जनवास ।।6।।
चंद चकोर मगन प्रीतम रस । ज्यों िल मीना बास ।।7।।
िगे भाग कल5 कालख6 नासे । पाया सुख जवश्वास ।।8।।
अधर जपयारी चढ़ी अटारी । छू ट गई िम फाूँस ।।9।।
राधास्वामी दरस कदवानी । बैठी चरनन पास ।।10।।
।। िब्द बत्तीसवाूँ ।।
मेरे जपया की अगम रैं गजतयां । मैं कै से कै से गाऊूँ ।।1।।
कोइ ममण न पावत रजतयां7 । क्योंकर मन लाऊूँ ।।2।।
धुन ध्यान लगावत रजतयां8 । चुन चुन धुन लाऊूँ ।।3।।
जतल ताकत9 फे र उलरटयां । घट दीप10 िगाऊूँ ।।4।।
जलख भेिूूँ जपया को पजतयां11 । क़ाजसद12 पहुंचाऊूँ ।।5।।
जवरर अजि िलावत जनजतयां । घर घाट न पाऊूँ ।।6।।
राधास्वामी भाग पलरटयां । कमण काट िलाऊूँ ।।7।।
।। िब्द तैंतीसवाूँ ।।
जपया दरसत भइ री जनराल । राल क्या बरनूूँ अपना ।।1।।
काल गजत दूर जनकारी । िग लागा सुपना ।।2।।
घट में धुन अवगत िागी । खोया तन तपना ।।3।।
सुतण सीतल सरवर पाया । िब्दारस मगना ।।4।।
।। बचन अड़तीसवाूँ ।।
।। बाररमासा ।।
।। असाढ़ मास परला ।।
राल दुख सुख सरने िीव का संसार में मन और माया के संग भरम कर
और वर्णन कष्ट और क्लेि का िो कक जबना सतगुरु और नाम भजि के अन्त
समय में िमदूतों के राथ से सरता रै ।
मात जपता का रक़ सब भूले । कदन और रात नारर संग झूले ।।15।।
घटती चली लगन जपतु माता । नारर पुि संग मन अजत राता ।।16।।
जफ़्कर पड़ा उद्यम का िबरी । दर दर भरमे दुख अजत सररी ।।17।।
स्वान समान करी गजत अपनी । धन का सुजमरन धन की िपनी ।।18।।
धन पाया तो हुआ अनंदा । अन-जमलते पड़ा दुख का फं दा ।।19।।
गृर कारि अब जनत्त सतावें । कु ल और िाजत बहुत भरमावें ।।20।।
सब का बोझ भार जसर लीन्रा । अब तड़पे िस िल जबन मीना ।।21।।
मूरख ने यर भार उठाया । अब दुक्खन से बहु घबराया ।।22।।
भरमत कफरे सुक्ख के कारन । सुख नसर जमला हुआ दुख दारुन ।।23।।
ककये अपने को बहु पछतावे । पर अब कछू पेि नसर िावें ।।24।।
कल कलेि बहु वषणन लागे । वषाण ऋतु असाढ़ अब िागे ।।25।।
मोर पपीरा भमण िास के । रोग सोग दुख मोर आस के ।।26।।
बोलन लागे चहुंकदस घेरी । उमड़ी घटा मानो रात अूँधरे ी ।।27।।
भजि चन्द्रमा सूरि ज्ञाना । जछप गये दोनों घोर समाना ।।28।।
अज्ञान अूँधरे ा अजत घट छाया । लोक गया परलोक गूँवाया ।।29।।
यर भी बीते दुख में सब कदन । वृद अवस्था आई जछन जछन ।।30।।
।। दोरा ।।
वृद्धाई बादल उमड, घेर जलया तन खंड़ ।
लोभ नदी बाढ़न लगी, तृष्र्ा अजत परचंड ।।31।।
बुजद्ध रीन बल छीन रोय, वषाण तन से रोत ।
नैन नीर मुख नाजसका, बरन लगे िस सोत ।।32।।
।। सावन मास दूसरा ।।
सावन आया मास दूसरा । सास1 मरी घर आया ससुरा2 ।।1।।
काली घटा श्याम मन हूआ । श्याम कं ि में यर मन मूआ ।।2।।
तीि त्योरार कछू नसर भावे । मन में दुख, नसर रषण समावे ।।29।।
जपया जबन सावन कै सा आया । िेठ तपन िस िीव िलाया ।।30।।
।। दोरा ।।
।। दोरा ।।
1. मुसीबतें । 2. कु गत ।
बचन 38 बाररमासा 339
संत रूप धर जिव उपदेिें । बानी नाव बना जिव खेवें ।।18।।
सुरत अिान न बूझे बानी । कफर कफर डू बे करा न मानी ।।19।।
भौसागर में ग़ोते खावे । मनमत ठान चौरासी धावे ।।20।।
संत बतावें सत की रीत । यर नसर माने कु छ परतीत ।।21।।
जबन परतीत रीत नसर पावे । िन्म िन्म चौरासी िावे ।।22।।
चौरासी से संत बचावें । उनका बचन न मन ठररावे ।।23।।
मन के रं ग कफरे बहुरं गी । ढंग न सीखे बड़ी कु ढंगी ।।24।।
साध संत का ढंग नसर सीखे । भोगे दुख रस चाखे फीके ।।25।।
रस फीके संसार के सबरी । अंतर का रस अगम न लेरी ।।26।।
स्वाूँजत पदररया अंतर बरसे । सुरत लगावे तो मन सरसे1 ।।27।।
िदण चन्द्रमा अंतर दरसे । सुन्न की धुन्न िाय िब परसे ।।28।।
मोती चुने मानसरवर के । भोगे भोग मराल2 नगर के ।।29।।
िो संतन के बचन सम्राले । िाय िबेनी रोय जनराले ।।30।।
।। दोरा ।।
1. खुि रो । 2. रंस । 3. कृ पा ।
340 सार बचन बचन 38
कूँ वल तीसरे जवष्र्ु प्रकािा । चतुथण कूँ वल जिव िजि जनवासा ।।4।।
आतम कूँ वल पाूँचवाूँ रोई । छठा कूँ वल परमातम सोई ।।5।।
कूँ वल सातवें काल बसेरा । िोत जनरं िन का वराूँ डेरा ।।6।।
कूँ वल आठवाूँ जिकु टी मारीं । सूरि ब्रह्म बसे तेजर ठारीं ।।7।।
नवाूँ कूँ वल रै दसवें द्वारे । पारब्रह्म िरूँ बसे जनरारे ।।8।।
मरासुन्न में कूँ वल असचता । कूँ वल दसम का वराूँ बरतंता ।।9।।
कूँ वल इकादि भूँवरगुफा पर । द्वादस कूँ वल सत्तपद अंतर ।।10।।
खट चक्कर यर सपड सूँवारा । तीन चक्र ब्रह्मंड अधारा ।।11।।
तीन कूँ वल िो ऊपर ररे । संत जबना कोइ बरन न करे ।।12।।
खष्ट कूँ वल तक िोगी आसन । नवें कूँ वल िोगेश्वर बासन1 ।।13।।
सपड ब्रह्मंड का इतना लेखा । योगी ज्ञानी यराूँ तक देखा ।।14।।
आगे का कोई भेद न िाने । तीन कूँ वल सो संत बखाने ।।15।।
कोइ छः तक कोइ नौ तक भाखे । सवण मते इन भीतर थाके ।।16।।
बड़ा संत मत सब से आगे । संत कृ पा से कोइ कोइ िागे ।।17।।
िो पहुंचे द्वादस अस्थाना । सोई कजरये संत सुिाना ।।18।।
संतन का मत सब से ऊूँचा । िो परखे सोई धुर पहुंचा ।।19।।
पहुंचे की क्या करूूँ बड़ाई । सब मत उसके नीचे आई ।।20।।
िो मन में परतीत न देखे । तो कबीर गुरु2 बानी पेखे ।।21।।
तुलसी सारब का मत िोई । पलटू िगिीवन करें सोई ।।22।।
इन संतन का देऊूँ प्रमाना । इनकी बानी साख3 बखाना ।।23।।
िोग ज्ञान मत इनहूं भाखा । पुजन संतन मत ऊूँचा राखा ।।24।।
िोगी और वेदान्ती भाई । संतन मत परतीत न लाई ।।25।।
वेद कतेब4 न पहुूँचे तरूँ रीं । थके बीच में रस्ते मारीं ।।26।।
बार बार कर कर समझाऊूँ । संतन का मत ऊूँचा गाऊ ।।27।।
गुन गुन छाूँट लेय उन सारा । सार धार जतस करे अरारा ।।13।।
कर अरार पुष्ट हुआ भाई । िग भौ लाि अब गई नसाई ।।14।।
गुरु भजि िानों इश्क़ गुरू का । मन में धसा सुरत में पक्का ।।15।।
पक पक घट में गड़ा थाना । थान गाड़ अब हुआ कदवाना ।।16।।
गुरु का रूप लगे अस प्यारा । काजमन पजत मीना िल धारा ।।17।।
सतसंग करना ऐसा चजरये । सतसंग का फल येरी सरी रै ।।18।।
सतसंग सतसंग मुख से गावे । करें जनत्त फल कछू न पावें ।।19।।
सतसंग मजरमा रै अजत भारी । पर कोइ िीव जमले अजधकारी ।।20।।
अजधकारी जबन प्रगट नरीं फल । सतसंग तौ कीन्रा सब चल चल ।।21।।
चल चल आये सतगुरु आगे । बचन न पकड़ा दरस न लागे ।।22।।
सतसंग और सतगुरु क्या करें । सो जिव भौिल कै से तरें ।।23।।
पत्थर पानी लेखा बरता । िल जमसरी सम मेल न करता ।।24।।
बारर का संग िब अस रोई । सतगुरु सम प्रीतम नसर कोई ।।25।।
तब अंतर का सतसंग धारे । सुरत चढ़े असमान पुकारे ।।26।।
बोले अिण और गरिे गगना । बैठा कु रसी मन हुआ मगना ।।27।।
ला-मुक़ाम पाया लाहूत । छोड़ा नासूत मलकू त िबरूत ।।28।।
राहूत का िाय खोला द्वारा । हूतलहूत और हूत सम्रारा ।।29।।
हूत मुक़ाम फ़कीर अखीरी । रूर सुरत िराूँ देती फे री ।।30।।
।। दोरा ।।
सरस धार दल सरस कूँ वल में । उठें तरं गें फै लें मन में ।।8।।
मन चढ़ चला मरल अपने में । उल्टा पहुंचा गगन मंडल में ।।9।।
गगन मंडल लीला इक न्यारी । िब्द गुरु की जखल ररी क्यारी ।।10।।
मूल नाम और िाखा धुन की । फू ली िरूँ फु लवार जिगुन की ।।11।।
यर लीला घट मासर जनरारी । मजरमा नाम करा कहुं भारी ।।12।।
सरगुन नाम और सरगुन रूपा । वराूँ तक देखा मन का सूता ।।13।।
अब आगे सूरत चढ़ चली । पैठी1 िाय सुखमना नाली ।।14।।
सुखमन में जनि मन दरसाना । जनि मन आगे जनरगुन िाना ।।15।।
यर जनरगुन वर सरगुन देखा । दोनों घाट जभन्न कर पेखा ।।16।।
अब आगे पाूँिी2 इक गाऊूँ । गंधपण नाल के मध्य चढ़ाऊूँ ।।17।।
नाल भुवग ं न बायें त्यागी । दरने नाल धुन्धरी िागी ।।18।।
िागत नाल काल मुख मूद ं ा । घाट अठासी नाका रूूँधा ।।19।।
ससर पौल3 कढग झूँझरी जनरखी । सेत पदमनी िाली परखी ।।20।।
सुन्न ताल िरूँ धुन भंडारा । छिली किली दीप जनरारा ।।21।।
सागर नागर िाकर झाूँका । कु रम िेष अक्षर िराूँ थाका ।।22।।
िराूँ सुरंगी दीप झरोखा । सुरत अड़ी िाय द्वारा रोका ।।23।।
संदली चंदली चौकी डारी । सुरत मंडली पाट खुला री ।।24।।
कुं डल दीप छबीली रमना । दाजमन दीप सोत का झरना ।।25।।
नीलम कुं ड रतन नल पाल । मराकाल रजचया िरां िाल ।।26।।
कं कन घाटी सुरत झमाई । िाल काल सब दूर पड़ाई ।।27।।
सेत धरन िराूँ लाल अकासा । रंस छावनी देख जबलासा ।।28।।
यर पाूँिी जनरखी जनि धामी । जबमल दीप बैठे िराूँ स्वामी ।।29।।
पोरप नगर िराूँ अमृत धाम । रंस बसें पावें जवश्राम ।।30।।
।। दोरा ।।
बैठक स्वामी अद्भुती, राधा जनरख जनरार ।
और न कोइ लख सके , िोभा अगम अपार ।।31।।
गुप्त रूप िराूँ धाररया, राधास्वामी नाम ।
जबना मेरर नसर पावई, िराूँ कोई जवश्राम ।।32।।
।। फागुन मास नवाूँ ।।
उतरना सुरत का बीच नौ द्वार के और फूँ स िाना
मन और इजन्द्रयों का संग करके भोगों में और
कफर आना सत्तपुरुष दयाल का संत सतगुरु
रूप धार कर और पहुूँचाना सुरत का
जनि घर में िब्द मागण रास्ते की कमाई से
और वर्णन भेद रास्ते और
मुक़ामात का
फागुन मास रूँ गीला आया । धूम धाम िग में फै लाया ।।1।।
घर घर बािे गािे लाया । झाूँझा मिीरा डफ़ बिाया ।।2।।
यर नर देरी फागुन मास । सुरत सखी आइ करन जबलास ।।3।।
मन इन्द्री संग खेली फाग । उत से सोई इत को िाग ।।4।।
िग में आ संिोग जमलाया । लोक लाि कु ल चाल चलाया ।।5।।
भोग रोग पररवार बूँधानी । फगुआ खेली रोली ठानी ।।6।।
धूल उड़ाई छानी खाक । पाप पुन्य संग हुइ नापाक ।।7।।
इच्छा गुन संग मैली भई । रं ग तरं ग बासना गरी ।।8।।
फल पाया भुगती चौरासी । काल देस िरूँ बहुत जतरासी ।।9।।
आस िास मासर अजत फूँ सी । देख देख जतस माया रूँसी ।।10।।
रूँस रूँस माया िाल जबछाया । जनकसन का कोइ रार न पाया ।।11।।
तब संतन जचत दया समाई । सत्तलोक से पुजन चजल आई ।।12।।
बचन 38 बाररमासा 347
दोरा
सुरत चेत पाया जबसमाद1 । नसर िराूँ बानी नसर िराूँ नाद ।।24।।
आकद न अंत अनंत अपार । संतन का वर जनि दरबार ।।25।।
संत सभी वा घर से आवें । काल देि से िीव जचतावें ।।26।।
िो चेते जतस ले पहुंचावें । सुरत िब्द मारग बतलावें ।।27।।
िीव चेत िो माने करना । ताको कफर दुख सुख नसर सरना ।।28।।
मानो बचन करो कु छ करनी । सुरत जनरत की धारो ररनी ।।29।।
सतसंग करो गरो गुरु रं ग । सुरत चढ़ाओ गगन उमंग ।।30।।
।। दोरा ।।
सतगुरु संत दया करी, भेद बताया गूढ़1 ।
अब सुन िीव न चेतई, तो िानो अजत मूढ़ ।।31।।
भौसागर धारा अगम, खेवरटया गुरु पूर ।
नाव बनाई िब्द की, चढ़ बैठे कोइ सूर ।।32।।
।। बैसाख मास ग्याररवाूँ ।।
वर्णन भेद काल मत और दयाल मत का और प्रगट रोना सत्तलोक
का और रचना तीन लोक की और सबब फै लने काल मत
का और गुप्त रोना संत मते का
बैसाख मरीना जसर पर आया । साख गई जिव हुआ पराया ।।1।।
काल पक्ष सब िीवन धारी । पुरुष दयाल की सुजद्ध जबसारी ।।2।।
सुरत देि अपना जबसराना । काल देि इन अपना िाना ।।3।।
काल रची जतरलोकी सारी । दयाल रचा सतलोक सम्रारी ।।4।।
तीन लोक काल का थाना । चौथा लोक दयाल अस्थाना ।।5।।
काल कदया िीवन को धोका । चौथे पद से सब को रोका ।।6।।
दयाल पुरुष का भेद न दीना । कमण कांड में िीव अधीना ।।7।।
अपनी पूिा सब जवजध गाई । िीव चले चौरासी भाई ।।8।।
िैगन
ु रसरी िीव वूँधाना । ब्रह्मा जवष्र्ु मरेि पुिाना ।।9।।
देवी देवा पत्थर पानी । पाप पुण्य में िीव उरझानी ।।10।।
काल धरे िग दस औतारा । कला कदखाय िीव धर मारा ।।11।।
आपजर राम आप हुआ रावन । आपहु कं स आप िसुनन्दन ।।12।।
आपजर बल1 और आपजर बावन । आपजर कच्छ मच्छ धर धारन ।।13।।
परसराम और नरससर देख । प्ररलाद भि रोय बाूँधी टेक ।।14।।
खंभ फाड़ बारर रोय जनकला । रक्षक कला कदखाई सकला2 ।।15।।
चाूँद सूयण और गौर गनेिा । पुिवाये और राहु रोय ग्रसा ।।16।।
अस अस कला अनंत असंखा । कराूँ लग बरनूूँ भेद सबन का ।।17।।
काल जलया सब लोकन घेरी । दयाल पुषण कोइ ममण न रेरी ।।18।।
काल कला परचंड कदखाई । िीव चले सब उसकी रारी ।।19।।
संतन का कोइ भेद न िाना । संत मता ररा गुप्त जछपाना ।।20।।
संत मता खुल कर अब गाऊूँ । देकर कान सुनो समझाऊूँ ।।21।।
नसर पताल नसर मृत अकािा । पाूँच तत्त्व नसर जतरगुन स्वाूँसा ।।22।।
नसर जिव िजि न पुरुष प्रककरती । िोत जनरं िन नसर परककरती ।।23।।
तारा मंडल सूर न चंदा । सपड ब्रह्मंड रचा नसर अंडा ।।24।।
कु रम न िेष नरीं ओंकारा । माया ब्रह्म न ईश्वर धारा ।।25।।
आतम परमातम नसर दोई । सुन्न मरासुन रचा न सोई ।।26।।
अल्ला ख़ुदा रसूल न रोते । पीर मुरीद न दादा पोते ।।27।।
वेद पुरान क़ु रान न करते । मजस्िद काबा बांग3 न देते ।।28।।
नसर जिकाल सन्ध्या न नमाज़ा । तीरथ बतण नेम नसर रोज़ा ।।29।।
कमी िरई थे नसर भाई । िोगी ज्ञानी खोि न पाई ।।30।।
दोरा
िांत सुरत तरं कीन्र जबलासा । रंस रचे कर दीप जनवासा ।।22।।
दीपन िोभा क्या कहुं भारी । रंस कु तूरल1 करें अपारी ।।23।।
पुरुष दरस और लीला न्यारी । देख देख अनुभव गजत धारी ।।24।।
िुग के ते और मुद्दत के ती । करी न िावे उनकी जगनती ।।25।।
रचना सत्य सत्य वर देिा । नसर व्यापे िराूँ काल कलेिा ।।26।।
रंस सभा समरथ तरूँ बैठे । लीला देखें ररें इकट्ठे ।।27।।
कूँ वल द्वार दल धारा जनकसी । श्याम रूप अचरि रोय दरसी ।।28।।
पुरुष देख अचरि लौलीना । सेत मासर िस श्याम नगीना ।।29।।
सब रंसन जमल अज़ी कीन्रा । कौन कला यर रम नसर चीन्रा ।।30।।
पुरुष करा तुम करो जवलासा । यर कल रजचरै और तमािा ।।31।।
दोरा
रंसन मन अचरि भया, करा करे जवस्तार ।
पुरुष सेव जनत री करै , मन कु छ औरजर धार ।।32।।
धारा वर बढ़ती चली, कला न रोकी ताजर ।
पुरुष मौि ऐसी हुई, बोली कला बनाय ।।33।।
रचना रचूूँ और मैं न्यारी । यर रचना मोसर लगे न प्यारी ।।34।।
तीन लोक रचना मैं करूूँ । राि पाय ध्यान तुम धरूूँ ।।35।।
पुरुष कला को कदया जनकासी । जनकस कला कीन्रा अजत िासी ।।36।।
पुरुष दया कर िुगत बनाई । कला दूसरी और उपाई ।।37।।
पीत वर्ण वर कला ससगारी । दीन्री अज्ञा पुरुष जनरारी ।।38।।
एक काल कु छ अंस दयाली । दोनों जमल कीन्रा कु छ ख़्याली ।।39।।
आये मानसरोवर तीरा । अक्षर की देखी वरूँ लीला ।।40।।
लीला देख कला जचत िासा । तब अक्षर ने कदया कदलासा ।।41।।
दोरा
िोत जनरं िन दोउ कला, जमल कर उत्पजत कीन ।
पाूँच तत्त्व और चार खान, रच लीन्रे गुन तीन ।।42।।
1. लीला ।
बचन 38 बाररमासा 353
।। मूँगल दूसरा ।।
।। बचन उनतालीसवाूँ ।।
।। बसंत व रोली ।।
।। बसंत ।।
।। िब्द परला ।।
देखो देखो सखी अब चल बसंत । फू ल ररी िराूँ तराूँ बसंत ।।1।।
घट घट बाित धुन मृदग ं । बीन बाूँसरी और मुरचंग ।।2।।
खुल गये परदे अब जनसंग । लागी लगन मेरी रोय अभंग ।।3।।
मोसर जमल गये राधास्वामी पूरे संत । अब बाित जरये मैं धुन अनंत ।।4।।
मेरे घट में रूँ भा5 बहु नचंत । मानो इन्द्रपुरी आई असचत ।।5।।
अस औसर बाढ़ी अजत उमंग । मन कू दन लागा िस तुरंग6 ।।6।।
सब घट से जनकसे रूप रं ग । पद पायो अगम अनाम अरं ग ।।7।।
मैं ने मारो काल मरा भुिग ं । मो पै बरसन लागे गुल सुरंग ।।8।।
मोसर राधास्वामी दीन्रों ऐसो ढंग । मैं तो उड़न लगो अब िैसे चंग ।।9।।
मेरे घट में धारा बरी रै गंग । न्राओ न्राओ जसमट कर सबजर संग ।।10।।
स्वामी ककरपा कीन्री अजत उतंग1 । मैं तो सबसे रो गई अब असंग ।।11।।
अब छु ट गया मेरा सब कु संग । मैं ने पायो अद्भुत आकद रं ग ।।12।।
मेरा जबछ गया चौ-मरले पलंग । मैं ने छोड़ कदया नौ मरला तंग ।।13।।
मेरे नाि हुए मन के कु रं ग । मोसर जमल गया ऐसा साध संग ।।14।।
मुझे जपया ने जमलाया अपने अंग । मैं ने धारा अपने जपया का रं ग ।।15।।
करूँ लग बरनूूँ यर बसंत । मेरा पावे न कोई आकद अंत ।।16।।
मैं उबारे बहुतक िीव िंत । मेरा पावे न कोई परम मंत ।।17।।
मैं बरनूूँ अपना आप तंत2 । मैंने कर जलया घट का सब मथंत3 ।।18।।
कोइ नसर कजथ रै अस कथंत । मैंने भाखा अपना जनि बृतत ं ।।19।।
मैंने दूर ककया सब नाम नंग । मेरी सुरत उड़ी िैसे पतंग ।।20।।
मैंने मार लई अब मन की िंग4 । कोई कर न सके मेरा बाल बंक5 ।।
मेरी जमट गई अब िीिे की ज़ंग । अब न ररी मेरे कोइ उचंग ।।22।।
मैंने पाया अपना जपय जनरंग6 । अब आऊूँ िाऊूँ िस जबरंग7 ।।23।।
मोसर काल न परखे रोय दंग । राधास्वामी लगाई यर सुरंग ।।24।।
।। िब्द दूसरा ।।
घट में खेलूूँ अब बसन्त । भेद बताया सतगुरु सन्त ।।1।।
घर पाया मैं आकद अन्त । सुन सुन अनरद धुन अनन्त ।।2।।
कहूं करा मजरमा अतन्त8 । बरनूं कै से यर बृतन्त ।।3।।
सुरत जनरत दोऊ िगन्त । चली िाय मारग बेअन्त ।।4।।
छु ट गइ भीड़ भई एकन्त । सुरत िब्द का पाया तन्त9 ।।5।।
काल करी बहुतक ठगन्त । दयाल सुनाया अपना मन्त ।।6।।
मन और माया दोउ िरन्त । चढ़ी पहुंची जनि पन्थ ।।7।।
।। िब्द तीसरा ।।
खेल ररी मैं जनत बसन्त । सुरत जनरत कर जमली हूं कं त ।।1।।
राधास्वामी चरन मेरे जरये बसंत । खेलत उन संग आकद अन्त ।।2।।
िब्द िोर घट में उठन्त । सुन्न जिखर पहुंची तुरन्त ।।3।।
उल्टत जतल देखत परन्त2 । श्याम कं ि िोती िगन्त ।।4।।
गगन मूँडल पर बाित तन्त3 । घोर उठत जछन जछन अतन्त4 ।।5।।
छाय ररी िराूँ ऋतु बसंत । खेल ररी सूरत इकं त ।।6।।
यर सतगुरु से पावे पंथ । चढ़ कर पहुंची मरले संत ।।7।।
अमी धार िराूँ जनत जगरं त । भींित गुरुमुख रोय जनसचत ।।8।।
देि अगम बानी बृतत ं 5। कोइ जबरले साधु घट मंथत ।।9।।
सोइ सोइ पावे यर रसंत । राधास्वामी गाया अगम मंत ।।10।।
खोला पाट रूप दरसंत । कोरट भान छजब भाषत संत ।।11।।
नौका मेरी पार लगंत । अलख अगम के पार चढ़ंत ।।12।।
राधास्वामी नाम गरा जनि मंत । कूँ वल ककयारी िब्द जखलंत ।।13।।
।। िब्द चौथा ।।
रोली
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
अब खेलत राधास्वामी संग रोरी । धरन गगन जबच िोर मचो री ।।1।।
चाूँद सुरि तारागन मंडल । उतर उतर आये घर छोड़ी ।।2।।
िेषनाग और कु रम साि ले । चड़ पताल आये कर िोड़ी ।।3।।
पूरब पजश्चम उत्तर दजक्षर् । चार कदिा सब भइ इक ठौरी ।।4।।
सुर नर मुजन िोगी बैरागी । धूम धाम कु छ भइ रै न थोड़ी ।।5।।
सागर कू प भरे सब रं ग से । मेरू डंड जपचकारी छोड़ी ।।6।।
भींि ररीं सजखयाूँ सब संग की । बार बार रं ग प्रेम जनचोड़ी ।।7।।
समा बंधा लीला अजत उमगी । काल बली अब िात ठगो री ।।8।।
सुरत अबीर1 गुलाल िब्द का । अब सब के मुख िात मलो री ।।9।।
लोभ मोर अरंकार जवकारी । घर इनका सब आि िलो री ।।10।।
धुन धधकार सुन्न की बरषा । मुख उनका अब िात न मोड़ी ।।11।।
अगम खज़ाना जमला िब्द का । त्याग कदया धन लाख करोड़ी ।।12।।
सुन्न मरल सतलोक अटारी । िाय चढ़ी और नाम लखो री ।।13।।
नइ नइ िोभा पुरुष पुराना । करत न आवे बचन थको री ।।14।।
राधास्वामी खेल जखलाया । अनेक रूप िराूँ एक भयो री ।।15।।
।। िब्द छठा ।।
काया नगर में धूम मची रै । खेल ररी अब सूरत रोली ।।1।।
छाय ररी सतनाम जनरख पद । लाय ररी धुन परुष अतोली2 ।।2।।
आसा मनसा कर जपचकारी । गुन गुलाल घट भीतर घोली ।।3।।
रूँगता ममता दूर उड़ाई । प्रेम अबीर जलया भर झोली ।।4।।
संपजत रं भा3 नाच नची रै । जवपता नटनी अब मुख मोड़ी ।।5।।
रोग सोग दुख मार जनकाले । धार लई मन में गुरु बोली ।।6।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
।। बचन चालीसवाूँ ।।
।। सावन, सरडोला व झूला ।।
।। िब्द परला ।।
सावन मास आस हुइ झूलन । गिणत गगन मगन मन फू लन ।।1।।
सजखयाूँ सि सि आई ढूँढूलन1 । प्रेम भरी सुख सरि अमूलन2 ।।2।।
करा कहूं बजतयाूँ3 नसर खूलन4 । देख देख छजब मन सुध भूलन ।।3।।
गिणन धन और जबिली चमकन । श्याम घटा मानो अजत गि हूलन5 ।।4।।
देखत सूरत चढ़ी पद मूलन6 । झूलत िब्द सरडोल अतूलन7 ।।5।।
सुन सुन धुन काटे सब सूलन8 । मान-सरोवर मोती रूलन9 ।।6।।
राधास्वामी करत सरस यर सावन । देख देख सब करत ममूलन10 ।।7।।
।। िब्द दूसरा ।।
सावन मास सुराजगन आई । अपने जपया संग झूलन धाई ।।1।।
श्याम घटा अब चहुं छाई । गिण गगन अजत धूम मचाई ।।2।।
नई रागनी तान सुनाई । चमक धमक सूँग खेल कदखाई ।।3।।
अमी धार जछन जछन बरषाई । सुखमन नकदयाूँ प्रेम भराई ।।4।।
गगन सरडोला झोका लाई । सजखयाूँ संग की उमगत आई ।।5।।
रस भर भर जपया सूँग लुभाई । दाजमन11 चमचम12 अजधक सुराई ।।6।।
मोर पपीरा रटन लगाई । अचरि बानी घोर सुनाई ।।7।।
राधास्वामी छजब जनरखत रषाणई । अिब समा सब देत बधाई ।।8।।
।। िब्द तीसरा ।।
सुरत तू चेत री, अब सावन आया ।
गगन चढ़ झाूँक री, गुरु खेल कदखाया ।।1।।
िरां पड़ा सरडोला नाम का, धुन डोर बूँधाया ।
सखी सरेली संग ले, िग काम न आया ।।2।।
।। बचन इकतालीसवाूँ ।।
फु टकल िब्द
।। िब्द परला ।।
खोित ररी जपया पंथ, ममण कोइ नेक न गाया ।
रै न कदवस बेचनै , तरसते िन्म जबताया ।।1।।
करता ररा पुकार, दाद1 को करीं न पाया ।
भेख जभखारी िि गुरु, सब भरमें माया ।।2।।
िब्द जबना खाली कफरें , सब धोखा खाया ।
अब जमल गये पूरे सतगुरु, उन भेद सुनाया ।।3।।
सुरत सार लखवाय के , कफर गगन चढ़ाया ।
गगन मूँडल में पहुंच कर, अनरद बिवाया ।।4।।
िपी तपी मौनी बकी, ित िोग चलाया ।
1. इन्साफ़ ।
366 सार बचन बचन 41
कड़ी 1—िो सुरत कक सुन्न यानी चैतन मंडल की बासी थी, िब्द की धार को छोड़
कर इस संसार में भटक गई और मन का संग करके दुख पाती रै ।
" 2---और चक्र यानी चकई के मुवकफ़क़ चंचल रोकर भरम ररी रै और उलटी
रोकर देर में फै ल गई ।
" 3---और भोगों में िो ज़रर से भरे हुए रैं, बतण कर िगत में टक्करें खाती रै और
अपने धुर मुक़ाम की समझ नरीं लाती रै ।
" 4---और मोर के अन्धकार यानी रात में बेरोि सो ररी रै और िागने का
इरादा नरीं करती ।
" 5---और इजन्द्रयों के बस रोकर रर वि चंचल और बेकल रो ररी रै और इस
सबब से काल की कला यानी ज़ोर घट में व्याप ररा रै ।
" 6---और भोगों में जलपट कर कदन कदन रोग और सोग सरती रै ।
" 7---इस तरर िगत में बन्धन इसके खूब मिबूत रो गये और थोड़ा थोड़ा रस
पाकर रर एक चीि में पकड़ यानी मोर बढ़ गया ।
" 8---और िगत में बताणव प्यारा लग कर िो धार कक सुरत की ऊपर को चढ़नी
चाजरए थी, वर उलटी देर और संसार में बरने और जबखरने लगी ।
बचन 41 फु टकल िब्द 367
कड़ी 9---िब ऐसा राल रो गया तो अब जबना मेरर पूरे सतगुरु के मुख
इसका ऊपर यानी जनि घर की तरफ़ कै से मोड़ा िावे ।
" 10---और इसी सबब से आकाि का द्वारा िो कक परला सुखमन स्थान रै,
खुलना करठन रो गया बजल्क उसकी सुध भी भूल गई ।
" 11---और श्याम स्थान यानी काल के घेर से िुदा न रो सकी । कफर सेत
धाम िो उसका जनि स्थान रै, कै से पावे ॽ
" 12---और इसी सबब से धुन की छाूँट भी नरीं हुई ! कफर जनि धुन को कै से
प्राप्त रोवे ॽ
" 13---अब चाजरये कक अपने घट में जनश्चल रोकर और नेिों के द्वारे को
झांक कर अन्दर को चले । यरी सड़क ऊंचे जनि देि की रै ।
" 14---परली घाटी को कक जिसकी रद जिकु टी तक रै, तोड़ कर और काल
का मुख मोड़ कर और करमों को काटते हुए ऊंचे को चलना
चाजरये ।
" 15---राधास्वामी दयाल फ़रमाते रै कक इस रास्ते में जनरख जनरख और
परख परख कर कदम रखना चाजरये ।
368 सार बचन बचन 41
जचत चोर जलया, गुरु चरन अली । मन नाव चढ़ी, सतगुरु बल्ली ।।2।।
भौिल के पार जपली, गुरु पदम रली । धुन ध्यान जमली, सुतण कूँ वल जखली ।।
सब कमण िली, जनःकमण चली । घट खोि जपली, चढ़ गगन गली ।।
जवरर बान खली, तब कूँ वल जखली । गुरु रूप लखी, जपया पास पली ।।5।।
अमृत घट धार चली, जनस कदन मैं न्राऊूँ अली ।
मेरा भाग उदय, सत िब्द जमली ।।6।।
काल करम घर आग लगी । सब पूूँिी माया िाल िली ।।7।।
कफर खोदत खीदत खान खुली । क्या रीरे मोती लाल बली ।।8।।
जनि काया काल की िात गली । माया दल मारा दलन दली ।।9।।
मैं सुमजत दुआरा खोल चली । गुरुचरन पकड़ धुर धाम वली ।।10।।
अब आरत पूरन करत चली । गुरु प्रेम बढ़ावत घाट घुली ।।11।।
गुरु चरन पकड़ कहूं नासर टली । कफर चरन सरन में आन जरली ।।12।।
दम दम मेरे चरन अधार कली । कल नासर जपया जबन बे-अकली1 ।।13।।
कोइ परखत वेदन2 रोत वली । नसर िानत वेद कतेब तली ।।14।।
राधास्वामी चरन पकड़ रेली । तन मन से सूरत अधर चली ।।15।।
।। िब्द नवाूँ ।।
घुड़ दौड़ करूूँ मैं घट में । मुझे जमले जसपारी संत री ।।1।।
मैं चेत चली अब तट में । घट आकद अनादी अंत री ।।2।।
सूरत की मूरत जनरत चली । जपया पाये सरोवर तंत री ।।3।।
मन तोड़त तन अकु लाना । क्या वर्ण बताऊूँ िंतरी ।।4।।
मेरे कूँ वल दलन पर भूँवरा । क्या करूूँ गुनावन कं त री ।।5।।
अब परसूूँ जपया पद आि । पढ़ूूँ गुरु मंत री ।।6।।
मेरे भाग बड़े क्या भाखूूँ । िजि सूर अनेकन दंत री ।।7।।
तारागन गगन घुमाये । गुरु मजरमा करूूँ बे-अंत री ।।8।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
सुरत रत घोर सुनावत भारी । गुरु चरन कूँ वल मेरे जरये अधारी ।।
मैं चरन गुरु पर िाउूँ बजलरारी । िग भोग लगे सब खारी ।।2।।
मैं मारूूँ िगत कु ल तारी । क्यों भूलो भूत अनाड़ी ।।3।।
गुरु मंत सुनो अब आ री । नसर नकण न बीच दुखारी ।।4।।
गुरु मजरमा अगम सुना री । नसर िोत जनरं िन गा री ।।5।।
गजत ब्रह्मा जवष्र्ु करां री । क्या देवी देव पुकारी ।।6।।
सब बरे चौरासी धारी । गुरु जबन कोइ उतरे न पारी ।।7।।
या ते सब पकड़ो गुरु चरना री । क्यों बरते भौिल धारी ।।8।।
गुरु आकद पुरुष िग आये । सब रंस िीव चेताये ।।9।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
जनरखो री कोई उठकर जपछली रजतयाूँ ।। टेक ।।
माया छलन तरूँ ग मन रोकन । घट में कूँ वल जखलजतयाूँ ।।1।।
सीतल सागर मीन ममण िस । न्रावत मल मल गजतयाूँ ।।2।।
जसला उठाय कूँ वल दल फोड़त । तोड़त द्वार सुनत िराूँ बजतयाूँ ।।3।।
चमक िोत धारा धुन झककयाूँ । मन माया कू टत िराूँ छजतयाूँ ।।4।।
ररख ररख धावत पद उत्तम । तम संसार सकल जबनसजतयां ।।5।।
मौि जनरार पुरुष घर पावत । धावत सुरत जनरजतयां ।।6।।
पीवत अमी झकोल कूँ वल पद । के ल करत सत मजतयां ।।7।।
को कर सके नाम की मजरमा । संत बतावत िो गजत पजतयां ।।8।।
राधास्वामी करत सुनाई । मूल जमलो चढ़ ररटयां ।।9।।
।। िब्द तेररवाूँ ।।
सोधत सुरत िब्द धुन अंतर । घटत जतजमर नभ बासी ।।1।।
चमकत चाूँप धनुष गजत न्यारी । कं ि िोत जछटतक उजियासी ।।2।।
गगन गंग धारा उठ धावत । रोत िरां जनमणल गजत स्वांसी ।।3।।
िमुना तीर श्याम खुल खेलत । गोप गूिरी करत जबलासी ।।4।।
िसुधानंद कं स ररपु सुन्दर । धमक सुनत ति आसी ।।5।।
धूमत अजधक धधक धुन धावत । पावत काल तरासी ।।6।।
जबमल नगर िरां घोर अखाड़ा । खोित ररी नाम गजत पासी ।।7।।
मीन मानसर भूँवर कं ि पर । भृगं ी रोत समझ गुन तासी ।।8।।
राधास्वामी उठत धाम धुन । बैठे मगन अजवनासी ।।9।।
कड़ी 1---अभ्यासी सुरत, िब्द धुन छांट कर पकड़ती हुई नभ में पहुूँची और नीचे
के अन्धकार से न्यारी रो गई ।
" 2---इस तौर से तीर की भाल के मुवाकफ़क़ चमकती हुई तीसरे जतल से िो कक
धनुष स्थान रै पार रो कर िोत का प्रकाि देखने लगी (धनुष स्थान इस
सबब से करा कक दोनों आंखों से धारें कमान के मुवाकफ़क़ जमलती रै ) ।
" 3---अब वराूँ से (अथाणत सरसदल कूँ वल से ) सुरत की धार िो कक गंगा की
धार रै गगन की तरफ़ को दौड़ी िराूँ पहुूँच कर प्रार् जनमणल रोते रैं ।
" 4---और रास्ते में िमुना के ककनारे (अथाणत बाईं तरफ़) मन खुल कर सैर करता
िाता रै और सुरत भी उसके जबलास को देखती िाती रै ( गोपी रूप
गूिरी अथाणत सुरत िो इजन्द्रयों से न्यारी रो गई रै ) ।
" 5---और वरी मन िो की कृ ष्र् रै ऊपर की आवाि सुन कर िगत की आस
छोड़ कर ।
" 6---जनरायत धूम धाम के साथ धुन की धधकार पकड़ कर ऊपर को दौड़ता रै
और काल मुरझाता िाता रै ।
" 7---चढ़ते चढ़ते सुरत जबमल नगर (अथाणत सुन्न ) में िरां रंसों के अखाड़े िमा
रैं, पहुूँची और नाम की गजत वरां खोि कर अच्छी तरर से परचानी ।
" 8---कफर सुरत मछली की तरर मानसरोवर में और भूँवर की तरर गुफा में सैर
करती हुई सत्तलोक में परूँच कर भृङ्गी अथाणत सतगुरु स्वरूप की गजत को
प्राप्त हुई ।
" 9---और वराूँ से राधास्वामी धाम में राधास्वामी धुन सुनती हुई पहुूँच कर
मगन रो गई अजवनासी रूप रो कर वर जवश्राम ककया ।
बचन 41 फु टकल िब्द 375
।। िब्द चौदरवाूँ ।।
मेल करो जनि नाम गुसइयां । मेल करो जनि नाम ।। टेक ।।
गुरु के चरन धार रहूं जरय में । खुले सेत और श्याम ।।1।।
दुक्ख रटावन खेद जमटावन । टारन काल और िाम ।।2।।
ऐसे गुरु का ध्यान सम्रारन । पहुंच जतरकु टी धाम ।।3।।
मन और सुरत मान मद त्यागे । खोि जलया सतनाम ।।4।।
उल्टी घाटी चढ़ कर झांकी । सीतल हुई छु टी कजल धाम ।।5।।
मैं चकोर चंदा धुन पाई । छू ट गई कदि बाम1 ।।6।।
काल नगर की हुद्द छु ड़ानी । दयाल गुरु दीन्रा आराम ।।7।।
सुरत समानी िब्द रठकानी । पाया सुन्न जगराम2 ।।8।।
आरत करूूँ प्रेम रस भीनी । सतगुरु चरन जमला जवश्राम ।।9।।
राधास्वामी नाम अनामी । भेद कदया अब मूल मुक़ाम ।।10।।
।। िब्द पंद्ररवाूँ ।।
भरमी मन को लाओ रठकाने । प्रीजत लगे गुरु चरन समाने ।।1।।
दुजबधा छू टे मजत बदलाने । सुजमरन टेक तुम्रारी आने ।।2।।
तुम जबन भमण भुलाना भारी । िराूँ तराूँ की अटक सम्रारी ।।3।।
जबन सतसंग बूझ नसर आवे । भाग जबना सतसंग न पावे ।।4।।
क्यों कर कहूूँ ब्योंत3 नरीं कोई । तुम दयाल कु छ करो जबलोई ।।5।।
चरनामृत परिादी देना । और उपाव नरीं क्या करना ।।6।।
इतना काम सदा तुम करना । तो कारि उसका भी सरना ।।7।।
उसकी तरफ़ से आरत करो । प्रीत प्रतीत जचत्त में धरो ।।8।।
तब कु छ फल पावेगा थोड़ा । तो मन मजत िावे जचत मोड़ा ।।9।।
राधास्वामी करें समझाई । करो आरती प्रीजत लगाई ।।10।।
।। िब्द सोलरवाूँ ।।
सुतण बन्नी गुरु पाया बन्ना । देख दरस जछन जछन मन जभन्ना ।।1।।
तुररया घोड़ी सरि ससगारी । धीरि पाखर ता पर डारी ।।2।।
चाूँद सुरि दोउ करी रकाबें । गगन ज़ीन ता पीठ धरावें ।।3।।
मोती रीरे लाल िवाजरर । बुआ बजरन जमल ककये जनछावर ।।10।।
करें आरत रूँस बन्ना बन्नी । रंस पुकारें धन्ना, धन्नी ।।11।।
राधास्वामी रजलयाूँ मन्नी । मगन हुए भैया और बजरनी ।।12।।
।। िब्द सिरवाूँ ।।
धुन धुन धुन डालूूँ अब मन को । मैं धुजनया सतगुरु चरनन को ।।1।।
मन कपास सुरत कर रूई । काम जबनौले डाले खोई ।।2।।
हुई साफ धुन की सुजध पाई । नाम धुना ले गगन चढ़ाई ।।3।।
गाली मनसा गाले कमाण । चरखा चला कते सब भमाण ।।4।।
सूत सुरत बारीक जनकासा । कु कड़ी कर कदया िब्द जनवासा ।।5।।
जचत्त अटेरन टेर सुनाई । फे र फे र कूँ वलन पर लाई ।।6।।
कूँ वल कूँ वल लीला करा गाऊूँ । सुन सुन धुन जनि मन समझाऊूँ ।।7।।
सुरत रूँ गी करे िब्द जबलासा । तिी बासना बेची आसा ।।8।।
जनकर सपड सुन पैंठ समाई । सौदा पूरा ककया बनाई ।।9।।
राधास्वामी हुए दयाला । नफा जलया खोला घट ताला ।।10।।
।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।।
ठु मरी अब करी रै बखानी । सुरत चली ठु म ठु म अगवानी ।।1।।
जमल गया प्यारा झूँझरी झाूँकी । कहूूँ करा िोभा अब वराूँ की ।।2।।
ककगरी धुन अिब बिाई । सारं गी धुन वरां ररी छाई ।।3।।
यर ठु मरी कोइ साध जवचारी । िोगी िती ररे सब रारी ।।4।।
राधास्वामी कर कर भाखी । सेवक देखें खुल खुल आंखी ।।5।।
।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।
गुरु अचरि खेल कदखाया । सुतण नाम रतन घट पाया ।।1।।
बकरी ने राथी मारा । गउ कीन्रा ससघ अरारा ।।2।।
चींटी चढ़ गगन समाई । सपगला चढ़ पवणत आई ।।3।।
गूग
ूँ ा सब राग सुनावे । अंधा सब रूप जनरारे ।।4।।
मक्खी ने मकड़ी खाई । भुनगे ने धरन तुलाई ।।5।।
धरती चढ़ वृक्षा बैठी । पक्षी ने पवन चुगाई ।।6।।
िंगल में बस्ती ब्याई । बस्ती सब जखलक़त खाई ।।7।।
मूसे से जबल्ली भागी । पानी में अजि लागी ।।8।।
कड़ी 1---गुरु ने दया करके अचरि रूपी खेल घट में कदखाया, सुरत को नाम रूपी
रतन यानी दसवें द्वार का िब्द प्राप्त हुआ ।
" 2---सुरत ने मन को िीता और कफर सुरत ने काल को मारा ।
" 3---सुरत चढ़ कर गगन में परूँची । िो मन कक दौड़ना यानी चंचलता छोड़
कर जनश्चल रो गया वरी पवणत पर चढ़ गया यानी जिकु टी में पहुूँचा ।
" 4---िो िशस कक दुजनया की तरफ़ और अन्तर में बोलने से चुप हुआ वरी िब्द
कक धुनें सुनने लगा और जिस ककसी ने बारर से अपनी दृजष्ट बन्द की वरी
अन्तर में रूप देखने लगा ।
" 5---मक्खी नाम सुरत का रै िो मकड़ी यानी माया के घर में िब तक थी
उसका खािा रो ररी थी और िब कक दसवें द्वार की तरफ़ उलट कर पहुूँची
तब माया को जनगल गई---भुनगे यानी िीव या सुरत ने सूक्षम िरीर को
समेट कर आकाि में उठा जलया ।
" 6---सुरत चढ़ कर जिकु टी में पहुूँची---मन िो सैलानी था िब चढ़ कर जिकु टी
में पहुूँचा तब प्रार् पवन को जनगलता चला गया ।
" 7---बस्ती यानी रचना (और रचना करने वाली नाम सुरत का रै ) सो उसने
सपड रूपी िङ्गल में उतर कर रचना की और कफर िब उलट कर जिकु टी
या दसवें द्वार में पहुूँची तब सपड और ब्रह्मांड की रचना को जनगल गई
यानी समेट गई ।
" 8---चढ़ने वाली सुरत को देख कर माया रट गई । अमी की धार िो कक
सरसदल कूँ वल के मुकाम पर आई, वरी िोजत स्वरूप रोकर रोिन रो
ररी रै और वरी माया का स्वरूप रै और वरी अजि रै ।
बचन 41 फु टकल िब्द 379
कड़ी 9---िो मन कक परले कड़आ वाक्य बोलता था और अपने मतलब के जलये औरों
को दुख देता था वरी जिकु टी में चढ़ कर मीठी बोली के साथ राग राजगनी
सुनाता रै—सपड में नीचे का मन िो मेंडक के मुवाकफ़क़ थोड़ी रद में
उछलता कू दता था जिकु टी में चढ़ कर भौसागर की तौल और नाप करता
रै ।
" 10---मन िो कक सपड में बैठ कर मूरखता से भोगों में फूँ स ररा था िब गुरु
कृ पा से घट में चढ़ कर जिकु टी में पहुूँचा तब काल जिसने चतुराई करके
िाल जबछाया था उससे रार गया और कफर धरती यानी सपड में जिकु टी
के िब्द की धुनें फै ली ।
" 11---राधास्वामी ने सुरत और मन के उलटने का यर राल वर्णन ककया और
िो िीव कक उल्लू के मुवाकफ़क़ ब्रह्मरूपी सूरि का दिणन नरीं कर सकते थे
उनको जिकु टी में चढ़ा कर ब्रह्म का दिणन कराया ।
" 1---सुरत भोगों में फूँ स कर िड़ खान में उतर गई और संतों के दसवें द्वार को
िो तीन लोक की रचना का आकद रै और िरां से सुरत सपड में उतरी थी,
भूल गई ।
" 2---और कफर मध्य यानी मृत्यु लोक में नर देरी पा कर जतरलोकी के अन्त पद
को िो कक वरी दसवां द्वार रै, सुरत ने खबर ली ।
" 3---और कफर इन तीनों स्थान यानी दसवां द्वार और मृत्यु लोक और िड़ खान
को छोड़ कर अपने मूल पद यानी सत्तपुरुष राधास्वामी देि में पहुूँची, या
उसका जनिाना और इष्ट बाूँध कर उस तरफ़ को चलने लगी ।
" 4---सूली मतलब उस धार से रै िो सरसदल कूँ वल से गुदा चक्र तक आई रै सो
िो कोई उस धार को पकड़ कर ऊपर को चढ़े, वरी छठे चक्र के पार िाकर
मौत को िीत लेगा और कफर सत्तलोक में पहूूँच कर अमर रो िावेगा ।
380 सार बचन बचन 41
कड़ी 5---और कफर वरी सुरत िो कक मुवाकफ़क़ खरगोि के , सपड में ग़रीब और जनबणल
थी, दसवें द्वार में पहूूँच कर ससर यानी काल को मार लेगी ।
" 6---िब सुरत गभण में यानी खट चक्र के देि में आई तब पजरले उसने ब्रह्मांड और
सपड की रचना करी, यानी माया और ब्रह्म के पद उसी से प्रगट हुए, और
िब सुरत, िन्मी यानी िीव गभण से बारर आया तब वरी िीव सपड में उतर
कर बैठने से माया और ब्रह्म का पुि रो गया ।
" 7---और िब सुरत मछली की तरर िब्द की धार को पकड़ कर उल्टी यानी
ऊपर को चढ़ी तब वर धरन यानी सपड को पोला या खाली कर गई ।
" 8---और िब चढ़ते चढ़ते दसवें द्वार के परे गई तब सूरि और चाूँद यानी जिकु टी
और सुन्न स्थान दोनों पाताल यानी नीचे नज़राई कदये ।
" 9---िब सुरत यानी िीव का उतार हुआ तब काल और करम और काम क्रोध
लोभ मोर और अरंकार बग़ैरा चोरों ने इस को घेर कर बन्द यानी चोले में
जगरफ़्तार कर जलया ।
" 10---और िब वरी िीव यानी सुरत उलट कर अपने घर की तरफ को चली
और ब्रह्मांड के परे चढ़ गई और अमी की धारा बराने लगी तब वरी सब
चोर अमृत पी कर मर गये और उनकी ज़रर की गाूँठ खुल कर भस्म रो गई ।
" 11---राधास्वामी ने यर अमोल पद का अमोल भेद गाया ।
" 12---और इसको जबना संत के कोई नरीं समझ सकता रै ।
" 13---अिा बकरी को करते रैं सो यर सूरत सुरत की सपड में थी यानी काल भेजड़ये
का खािा रो ररी थी, सो िब सतगुरु की कृ पा से उलट कर ब्रह्मांड और
उसके परे पहुूँची तो मन और इजन्द्रयों को संग लेकर काल भेजड़ये पर चढ़
आई और उसको मार जलया ।
बचन 41 फु टकल िब्द 381
कड़ी 14---और तब सुरत का िब्द के साथ मेला रो गया यानी अमृत का भंडार
खोल कदया ।
" 1---गुरु ने यर उलटी बात बताई कक संसार में मूखण रोकर के बरत यानी
चतुराई छोड़ दे, तो तेरा कोई दामन नरीं पकड़ सके गा और दूसरे यर
कक मूर यानी मूल पद की रक्षा और सम्राल रख यानी इस तरफ़ से उलट
कर राधास्वामी के चरनों को दृढ़ करके पकड़ ।
" 2---जिस ककसी ने संसार की तरफ़ से उदास रोकर इसके कारोबार में दखल
देना छोड़ कदया यानी इस तरफ से सो गया और परमाथण में प्रेम की
दौलत पाई, और िो संसार की तरफ़ मुतविर ररा और बहुत
रोजियारी और िौक़ से इसके कारोबार करता ररा उसी ने परमाथण की
दौलत खोई और अपनी चैतन्यता मुफ़्त गूँवा दी ।
" 3---िो मन कक जनश्चल रोकर घट में बैठा वरी ऊूँचे की तरफ़ चढ़ने लगा
और परमाथण का रास्ता तै करता हुआ घर की तरफ़ चला और िो मन
की चंचल ररा और इधर उधर संसार में दौड़ता ररा उस को घर का
रास्ता नरीं जमला और न उस तरफ़ को चला ।
" 4---िो सुरत कक अभ्यास करके ब्रह्मांड में और उसके परे पहुूँची उसके संग
धरती यानी माया भी जिसका आकद जनकास जिकु टी से हुआ रै उलट
कर अपने असल में िा जमला ओर िो सुरत कक संसार में जलपट ररी वर
माया के साथ नीचे से नीचे के मुक़ाम तक उतरती चली गई ।
" 5---िो िशस कक अपने परमाथण की कमाई और तरक्की को िगत से जछपाये
हुए चला उससे माजलक प्रसन्न हुआ और जिस ककसी ने कक सचौटी के
साथ अपने परमाथण का भेद और कमाई का राल िगत के िीवें से खोल
कर करा उसी को अनेक तरर के जवघ्नों से मुकाबला करना पड़ा और
सशत तकलीफ उठानी पड़ी और उसके परमाथण में घाटा हुआ ।
382 सार बचन बचन 41
कड़ी 6---िब सुरत गगन की तरफ़ को चढ़ने लगी, तब अजि यानी माया ( िो सुरत
की मदद से चैतन्य थी ) कांपने लगी, यानी उसकी चैतन्यता सखच गई,
और िब अमृत की वषाण अन्तर में चढ़ने वाली सुरत पर रोने लगी, तब
ब-सबब सखचाव और जसमटाव सुरत के िो उसकी धारें नीचे की तरफ़
िारी थी वर सूखने लगी और जसमटती चलीं ।
" 7---और िब रोटी यानी माया और उसके पदाथण िो सुरत की धार से चैतन्य
थे अब उस चैतन्यता के जलये भूखे तड़पते रैं और इसी तरर पानी यानी
मन सुरत की चैतन्य धार के वास्ते प्यासा तड़पने लगा ।
" 8---िो परमाथण की तरफ़ से गाकफ़ल यानी सोता ररा वर माया के तले यानी
षट चक्र में दबा और फूँ सा ररा और िो परमाथण की कमाई चेत कर और
रोजियारी के साथ करने लगा वर सपड और संसार की तरफ़ से बे-खबर
रोता गया ।
" 9---बंझा यानी माया से (िब कक सुरत उसके घेर में उतर कर आई ) अनेक
प्रकार की रचना और अनेक पदाथण पैदा हुए, और िब सुरत यानी िनती
और असल करता उलट कर सपड और ब्रह्मांड के परे पहुूँची, तब सब रचना
जसमट गई, और वर अके ली अपने घर की तरफ जसधारी ।
" 10---िब कक सुरत िो सपड में फूँ स कर देर यानी पृथ्वी रूप रो ररी थी उलट
कर ब्रह्मांड की तरफ़ चली तो वर मन रूपी घोड़े पर सवार रोकर दौड़ी
और तब री ऊूँट यानी स्वांसा अथवा प्रार् उलट कर और गगन को फोड़
कर चढ़ गई ।
" 11---खुलासा इस िब्द का यर रै कक राधास्वामी ने अपनी मेरर और मौि से
सुरत को चढ़ा कर िब्द से जमला कदया ।
बचन 41 फु टकल िब्द 383
।। िब्द बाईसवाूँ ।।
सुन री सखी इक ममण िनाऊूँ । नई बात अब तोजर सुनाऊूँ ।।1।।
कदन जबच नाचत चंद कदखाऊूँ । रै न उदय कदन कर दरसाऊूँ ।।2।।
अजि पूतरी िल से ससचाऊूँ । िल की रं भा अजि नचाऊूँ ।।3।।
गगन मासर पृथवी चलवाऊूँ । पृथवी मध्य गगन लखावऊूँ ।।4।।
व्योम वलाय पवन थमवाऊूँ । ससर मार और स्यार जिताऊूँ ।।5।।
दुबणल से बलवान जगराऊूँ । जिकु टी चढ़ यर धूम मचाऊूँ ।।6।।
कागन झुडं रंस करवाऊूँ । लूकन को अब सूर कदखाऊूँ ।।7।।
उलटी बात सभी कर गाऊूँ । ऐसे समरथ राधास्वामी पाऊूँ ।।8।।
कड़ी 1---रे सखी तुझको एक भेद िनाता हूूँ और नई बात सुनाता हूूँ ।
" 2---सुन्न में िरां कक सदा रोिनी ररती रै यानी कदन ररता रै चन्द्र स्वरूप नज़र
आता रै, और जिकु टी के मुक़ाम पर िरां से कक माया यानी अन्धेरा और
रात िुरू हुई सूरिरूप रोिनी देता रै ।
" 3---सरसदल कूँ वल में िोत स्वरूप अमृत की िल धार से (िो ऊूँचे से आती
रै ) रोिन रै, और अमृत धार के संग िो धुन सरस दल-कूँ वल से नीचे
उतरी, वर अजि यानी माया के घेर में के ल कर ररी रै ।
" 4---आकाि में पृथ्वी यानी देर की बासी सुरत को चढ़ाऊूँ, और पृथ्वी यानी देर
में गगन यानी आकाि का लखाव करूूँ ।
" 5---व्योम यानी मन-आकाि िब सुरत की चढ़ाई के वि ऊूँपर को जसमटे, तब
प्रार् यानी पवन धीमी रोकर ठरर िाती रै, स्यार िो िीव से मुराद रै
वर गगन में चढ़ कर ससर यानी काल को िीत लेता रै ।
" 6---दुबल ण वरी िीव या सुरत से मतलब रै िो सपड में उतर कर जनरायत
बे-ताक़त रो िाती रै, और जिकु टी में चढ़ कर काल बली को पछाड़ कर
ज़ेर कर लेती रै ।
" 7---अनेक िीवों को िो सपड में जनपट काग यानी मन रूप रो कर बतण ररे रैं
दसवें द्वार में पहुूँचा कर रंस स्वरूप बनाऊूँ, और जनपट संसारी िो उल्लू
के मुवाकफ़क़ माजलक की तरफ से अन्धे और अिान रो ररे रैं उनको जिकु टी
में पहुूँचा कर सूरि ब्रह्म का दिणन कराऊूँ ।
" 8---यर सब उलटी बातें समथण सतगुरु राधास्वामी दयाल की दया में सरी
करके कदखाई िा सकती रैं ।
384 सार बचन बचन 41
।। िब्द तेईसवाूँ ।।
गूग
ूँ े ने गुड़ खाइया । वर कै से करे बनाय ।।1।।
बजररे ने धुन पाइया । वर क्योंकर करे सुनाय ।।2।।
अन्धे मोती पो जलया । वर ककसे कदखावन िाय ।।3।।
लूले ने नभ थाजमया । यर अचरि करा न िाय ।।4।।
सपगला पवणत चढ़ गया । कोइ साधु िाने ताय ।।5।।
रोगी सद िीजवत ररे । जबन रोगजर मर मर िाय ।।6।।
कड़ी 7---िो अपने प्रीतम सच्चे माजलक के जवयोग की जवरर में उदास और ग़मगीन
ररता रै, वर कदन कदन अन्तर में चरर् रस पाकर मगन रोता िावेगा, और
जिस ककसी के जररदे में माजलक के चरनों की जवरर और प्रेम नरीं रै, वरी
मनुष्य चौरासी में भरमता ररेगा ।
" 8---िो कोई अपने माजलक के जमलने और अपने िीव का सच्चा उद्धार और
कल्यार् करने की जचन्ता में ररता रै, वरी एक कदन अजचन्त पुरुष यानी
सच्चे माजलक से जमलकर जनजिचन्त रो िावेगा ।
" 9---जिस ककसी ने संसार से वैराग ककया यानी घर बार छोड़ कर भेष जलया
और माजलक के चरनों का प्रेम और प्यार उसके मन में नरीं आया तो वर
रमेिा चारों खानों में भरमता ररेगा, और जिस ककसी के मन में माजलक
के चरनों का राग और प्रेम समाया, वरी एक कदन मुजि पद में पहुूँच
िावेगा ।
" 11---और िो अपने अन्तर में िब्द का अभ्यास करें ग,े वरी इस कै कफ़यत को
समझेंगे और अपने घट में जनरख और परख कर बूझग ें े ।
" 12---इस वास्ते सतगुरु राधास्वामी दयाल सब िीवों को पुकार कर करते रैं
कक रे भाइयो ! िब्द की कमाई करो और अपने घट में रस और आनन्द लो
और दया और मेरर के परचे देखो ।
386 सार बचन बचन 42
।। िब्द चौबीसवाूँ ।।
।। बचन बयालीसवाूँ ।।
।। सेवा बार्ी ।।
।। िब्द परला ।।
स्वामी उठे और बैठे भिन में । कर कर ध्यान मगन हुए मन में ।।1।।
कफर भर कमूँडल धर कदया आगे । सतसंगी आय दिणन लागे ।।2।।
ककया चरनामृत लई परसादी । रार चढ़ा कर बूँदगी साधी ।।3।।
लोटे घर तब गये कदिा को । कफर आये िब टाल बला को ।।4।।
चौकी जबछा मैंने गद्दी जबछाई । स्वामी जबठा और राथ धुलाई ।।5।।
दाूँतन कर मंिन करवाई । मुख ककया िुद्ध और दाूँत सफ़ाई ।।6।।
कु ल्ली दई स्वामी कु ल मेरा उधरा । िन्म सुफल और तन मन सुधरा ।।7।।
बटना तन मल मैल गूँवाई । बाट खुली और सुरत चढ़ाई ।।8।।
तेल मला और चमक बढ़ाई । िोभा राधास्वामी अजधक सुराई ।।9।।
मानसरोवर िल भर लाई । तब राधास्वामी अश्नान कराई ।।10।।
बचन 42 सेवा बार्ी 387
।। िब्द दूसरा ।।
1. दुख, रं ि ।
388 सार बचन बचन 42
सतगुरु सेवा में रहुं लागी । जछन जछन चरन कूँ वल में पागी ।।7।।
।। िब्द तीसरा ।।
रात िगूूँ मैं सुन कर खड़का । उठत सुवामी मन मेरा फड़का ।।1।।
राथ धुलाऊूँ देऊूँ अूँगोछा । इस सेवा पर मन मेरा लोचा1 ।।2।।
भाव भजि से सबिन करती । थाल परोस स्वामी कढग धरती ।।3।।
िब राधास्वामी ने भोग लगाया । मगन हुआ मन अजत सुख पाया ।।4।।
ग्रास कदया परिादी का िबरी । घट के परदे खुल गये तबरी ।।5।।
राधास्वामी राधास्वामी जछन जछन गाया । कफर सतसंगी सब जमल पाया ।।
बटी परिादी सुख भया भारी । कफर पानी की भर लाई झारी ।।7।।
करमंडल ले िल अचवाया । पलूँग जबछा स्वामी पौढ़ाया ।।8।।
चरन पखारूूँ िागूूँ रै ना । कफर उठें स्वामी तब पाउूँ चैना ।।9।।
उठकर दिणन जछन जछन करती । चरनामृत परिादी लेती ।।10।।
।। िब्द चौथा ।।
1. लुभायमान हुआ ।
देिना (Index) सार बचन छंद बंद
अंग 13, 59, 69, 107 अचरि 2, 41, 45, 47, 53-54, 59,
अंडा (अंड) 26, 88, 101, 134, 168, . 76, 82, 158, 165, 170,
186, 212, 227-28, 299, 347 177, 189, 196, 198, 204-
अंतर-अभ्यास 108, 336, 206, 228-29, 268, 270,
अंतरिामी 4, 9, 44, 53-54, 71, 286, 300, 365, 378, 387
89, 135, 194, 230-32, 242 अिुध्या 191, 248-49
268, 278, 283, 299, 347 अद्भुत 2,6, 28, 41, 43, 45, 47, 55,
अंतर मुख 86, 108, 114, 149, 336, 58, 63, 81, 94, 108, 112,
385 163, 177, 198, 200, 205,
अंध घोर 62, 227, 248, 265 223, 227, 229, 309, 331
अंधा 91,109, 149, 157, 378, 384 अधम 84, 231, 237, 245, 249
अंजधयार 42, 68, 139, 200, 262, 284, 287,
355 अधर 13, 32, 46, 60, 62, 66, 80,
अकाि 3, 5, 88, 94, 211, 214, 233, 86, 92-94, 132, 141, 158-
262, 380 59, 165-66, 169, 211, 215,
अक्षर 7, 9, 58-59, 62, 65 , 69, 72, 236, 239, 260, 284, 299,
89, 95, 100, 168, 198, 211, 306, 364, 367
234-35, 253, 284, 317, अधार 38, 40, 70, 76, 81, 86, 90,
352, 365 139, 146, 228
अगमपुर 4, 71, 301 अजधकारी 2, 86, 132, 342
अगम पुरुष 3, 5, 6, 43,-44, 46, अनरद 226, 265, 343
48, 52, 162,177, 211, 223 अनरद घोर 40, 139, 163, 312
अगम लोक (कदिा) 2, 3, 5, 6, 12, 43 अनरद तूरा (तूरे) 38,41,281,306, 336
52-53, 62, 80, 128, 162 अनरद धुन 45, 47, 50, 52, 56, 61-
187,195-96, 198, 206, 211, 62, 82, 205, 239, 243, 247,
223 283, 286, 297-99,302, 308
अगरन मास (मागण िीषण) 341 317, 356, 360
अजि (अजगन, अगनी ) 12, 61, 89, अनरद नाद 34
148, 199, 208, 213-14,335 अनरद बािे 94, 102, 255, 288,
अज्ञानी 9, 197 291, 301, 316, 361
390 सार बचन
अनरद बार्ी (बानी ) 58, 156, 165, अमी 28, 48, 55, 64, 229, 233,
200 247
अनरद राग 165, 300, 357 अमी अरार 67, 198, 206, 282, 293,
अनरद िब्द 69, 110, 169, 312 303, 364
अनामी 4, 9, 52, 80, 89, 101, अमी कु न्ड 43
140, 196, 198, 211, 223, अमी िल 17
245, 283, 285, 293-94, अमी धार 37, 242, 259, 291, 329,
299, 300, 365, 269 357, 362
अनामी पुरुष 2, 43, 52, 82, 283 अमी रस 5, 39-40, 55-56, 63-64,
अनारद नाद 79 92-93, 141, 150, 158, 164,
अनारद बानी 80, 166 228, 253-54, 272, 286,291
अनारद िब्द 64, 79, 146, 161, 308, 326, 328, 399, 388
330 अमी सरोवर 6, 174, 292
अनाहू 175, 342 अमी ससध 77, 266
अनुभव 209, 210, 343, 352 अमृत 35, 44, 48, 57, 64, 67, 82,
अनुराग 46, 63, 80, 95, 165, 300 103, 165-66, 206, 247,307
अनुरागी 74, 106, 109, 251, 343- 327, 386
44 अमृत कुं ड 4, 206, 229, 308
अनूप 43, 56-57, 229 अमृत धारा 57, 139, 154, 174, 275
अपनाये 5, 84, 286 अमृत रस 46, 51, 163, 301, 329
अपार 8, 43, 65, 67, 72, 75, 76, अमृतसर 240
110, 161, 198, 206, 209. अमृत सागर 287
216, 228, 364 अिण 33, 38, 42, 153, 159, 178,
अभागी 81, 83, 114 299
अजभमान 85, 86, 138, 140, 142, अलक्ष 105, 128
192-93, 202, 219, 228, 257, अलख 46-48, 56, 61, 211
320 अलख अगम 15, 18, 20, 27, 29, 37,
अभ्यास 3, 75, 108, 131, 170, 253, 40, 46, 59, 63-68, 80, 82,
260, 267 88-91, 96-97, 108, 134-35,
अभ्यास सुरत िब्द 3, 155 143, 148-53, 155-58, 160,
अमर 36, 50, 65-66, 89, 169, 201, 164, 167, 169, 187, 194,
301-2, 327 200, 213, 216, 223 , 229,
अमर पद 15, 63, 96, 121, 159, 233-36, 248-53, 315
300, 321 अलख पुरुष 2, 3, 43, 52, 177, 198,
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 391
उत्पजत्त प्रलय ( उत्पजत प्रलय, परलै) 197, ओंग ( ओं, ओम् ) 40, 61-62, 89, 173,
200, 222 196, 235, 248
उत्पजत्त बेद ब्रह्मा 353 औगुन 67, 71, 99, 115-16, 209,
उनमुन 211, 219, 351 230-31, 238, 269
उपदेि 3, 74, 82,172, 206-7, 217, 225 औघट 16, 27, 94, 158
उपदेि गुरु और िब्द 141-54 औजलया 216, 350
उपदेि िब्द 87 औसर 6, 63, 68, 110-11, 113, 139,
उपदेि िब्द अभ्यास 155-70 140, 155, 157,165-66, 235
उपदेि सतगुरु भजि 127-31 237, 290, 314, 363
उपदेि सतसंग 82, 343 कच्छा (कछु आ) 134, 350
उपदेि सुरत िब्द मागण 3, 155-70 कड़़ुवा 141
206, 338 कनक कामनी 113, 135, 304
उपमा राधास्वामी 28-37 कपट 53, 56, 70, 73, 90, 104,
उपमा साध संग 314 118, 122, 131, 140, 163,
उपाव (उपाय) 3, 74, 99, 104,124-26 207, 254
उपाव जबन िब्द 161 कबीर 73, 89, 140, 189, 206, 340
उमंग 4, 37, 46-47, 53, 56, 58-61, कमंडल 107, 386-88
63-66, 76, 84, 158, 168, कमान 293, 307
230, 241, 315-16 कमोदनी 13, 53, 386
उलट 59, 94, 113, 148, 158, 165, करनी 68, 70, 90, 100, 106,
169, 172, 187, 194, 196 133,196, 207, 219-20, 343
209, 211, 302, 315 करमी (कमी ) 22, 82, 182, 194, 221
उलटी दृजष्ट 40, 64 कमण 39, 46, 48, 55, 65, 67, 77,
उलटी बात 157, 378-85 82,84,90-91, 101, 114-115
उलटी 221 124, 133, 143-45, 149-150
एतक़ाद 178 154-55, 158, 162-63, 166-
ऐराफ़ 221 67, 170, 186, 193-94, 200,
ओंकार 9, 59, 198-99, 226, 252, 208-9, 225, 227 , 231-32,
316, 347-50 234, 369, 388
ओंकार धुन 17, 44-45, 67, 90, 93, कमण कांड 101, 349
222, 253, 283, 235 कमण धमण 22, 71, 100, 206, 219
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 393
गुनरगार 99, 237, 242 गुरु पूरे 2, 41-42, 127, 131, 141
गुप्त 1, 5, 21, 30, 108, 188, 227-28, 165, 205, 239
259, 278, 287, 305, 346, 349 गुरु पूरे की पजरचान 105, 128
गुफा 15, 36, 58, 78, 153 गुरु बचन 51, 83, 97-98, 123, 134,
ग़़ुबार 93 149, 169, 195-96, 254,
गुमठ 93 259, 320
गुरु 30, 37, 41-42, 44, 72, 121, गुरु जबन 6, 59, 72-73, 79, 83, 95,
126, 133, 135, 139-40, 161, 110, 116-17, 121, 124, 134,
163, 168, 170, 192-93, 201, 144, 149, 151, 153-54, 205,
204, 214, 218, 234, 286, 249, 254, 260, 270, 287,
311, 315, 319, 324-25, 327, 325, 331, 371,
गुरु का दरस 41, 84, 133, 138 गुरु भजि 7, 33, 74, 75, 83-87, 103
गुरु का ध्यान 86, 119, 134, 143 107, 127-28, 130, 135, 141-
गुरु का बल 59, 84, 104, 133, 135 54, 165, 202-3, 208, 342
गुरु की जनन्दा 126 गुरु भजि जबन 74, 86, 113, 204,
गुरु की मजरमा 47, 325, 328, 371 210, 335
गुरु की मौि 95, 137 गुरु मता 46, 82, 103, 151, 325,
गुरु कुं िी 169, 279 366
गुरु के संग 41, 90, 96, 115, 118, गुरु मुख 6,60, 67, 63, 80, 82,82-83
121, 134, 157, 159, 167, 86, 94-95, 128, 136, 151,
235 162, 189, 209, 265, 320,
गुरु ज्ञान 42, 87, 110, 204, 214, 355, 357, 368
312 गुरु मुखता 86, 278, 318
गुरु चरन 40-41, 47, 58, 78-79, 81, गुरु मूरत 7, 50, 51, 83, 86, 146,
83-84, 105, 115-116, 122, 148, 165, 251, 273, 313,
130, 133, 36, 150, 153-54, 331, 337, 348
163, 168, 170, 233, 235, गुरु मेरर 45, 84, 86, 129, 150,
249, 269, 272, 313, 322- 163
24, 327, 370-72, 375 गुरु सरन 83, 111, 118, 143, 150,
गुरु चेला 108-9 159, 192, 234, 249
गुरु दया 47, 79, 90, 152, 169, 252, गुरु सेवा 74, 85, 107, 116, 122,
323, 328 128-29, 317
गुरु दिणन 6, 83, 139 गुरु स्वरूप 13, 41, 70
गुरु प्रीत 6, 76, 82, 129
396 सार बचन
गुरु 58, 67, 89, 93, 103, 159, 166 घर अपना 64, 108, 120, 139, 187
गूूँगे का गुड़ 57, 94, 384 घाट 5, 27, 38, 64, 91-92, 147,
गृरस्ती (गृरस्थ) 225, 339 151, 158-59, 167, 232-33,
गौकु ल 73, 300 262, 313, 328
गोपी कृ ष्र् 190 घाटी 82, 87, 93, 162, 313
गोरख 234 घात 98, 113, 118, 158
गौर 9, 32, 114, 128, 369 घोर 39, 40, 57, 114, 162, 169
ग़ौस 12 चंचल 131, 148, 151, 161, 203,
ज्ञान 42, 83, 93, 97-98, 143, 206, 232, 255, 257, 261
190, 197, 202-4, 208, 212, चंद चकोर 4, 6, 11, 25, 41-42, 51,
214, 218, 220, 228, 338 54, 89, 332, 372, 375
ज्ञान िोग 46, 59, 75, 83, 204, 318 चंदन 54, 61, 253
ज्ञान ध्यान 4,7, 32, 202, 320 चन्द्र 13, 43, 45, 55, 66, 69, 83,
ज्ञानी 147, 188, 197, 203-4, 207, 94, 108, 156, 159, 206,
212, 214, 228 229, 239, 283, 295
ज्ञानी िोगी 9, 47, 93, 97, 102, 133, चन्द्रमा 66, 79
137, 189, 194, 197, 234, चकवा चकवी 44
286, 297, 300, 321, 340, चकोर 4, 11, 25, 54, 86
350 चक्र (चक्कर ) 41, 86, 169, 199,
घंटा िंख (संख) 44, 48, 54, 56, 58, 219, 226
61, 90, 222, 226-27, 252- चढ़ना सुरत ब लीला मुक़ामात 291-
53, 285, 292, 295-96, 317, 311
घट 33, 41-42, 54, 64, 79, 88-94, चतुराई 117
97, 110, 124, 147, 149, चमन 166, 227, 302, 317, 344
153-54, 159, 161-70, 187, चरखा 54, 377
189, 207-209, 219, 226, चरन 11, 27, 38, 40, 48, 59, 63,
घट िोत 79, 110, 157 68, 70, 76, 98-100, 105,
घट धुन 81, 87, 147 118, 127, 133, 148, 156,
घट िब्द 7, 65, 87, 144, 162, 192 159-60, 164, 168, 207,
पर 2, 75, 83, 85, 92, 108, 110, 225, 230, 233, 237, 284,
126, 150, 156, 161, 166, 288-89, 292, 387
169 चरर् कं वल 3, 37, 41, 48, 69, 85
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 397
चरन धूर 47, 51, 83, 128, 266, चूक 120, 140, 192, 194
299, 313 चेतन 65, 88-89, 124, 147, 148,
चरन पखार 40, 99, 106, 327 192, 211, 214, 220, 248,
चरन सरन 5, 10, 27, 29, 35, 37, 354
46, 49, 58, 67, 69, 71, चैत मास 348
115, 166, 212, 240, 262, चोर 46, 53, 70, 238, 252, 328,
304, 315, 323, 370 380
चरनामृत 63, 106, 131, 135, 141, चौथे धाम 12, 29, 128
193, 225, 245, 258, 341, चौथे पद 2, 43, 69, 77, 97, 100,
375, 386, 388 146, 191, 198, 267, 349,
चररि 85, 280 354, 368
चाूँद 44 चौथे लोक 29, 88, 153, 187, 189-90
चाूँदनी 17, 44, 83, 295 195, 205-6, 223-24, 233,
चाूँद सूरि 10, 48, 61, 70, 88, 146, 337, 349, 354
222, 227 चौपड़ 186-87
चाचरी भूचरी खेचरी 219 चौरासी 73, 81, 86, 98, 109, 111-
चाजिक 86 12, 116, 119-20, 126-28,
चार दल 196 136, 146, 156-57, 164,169
चार कदवस 111, 118-19, 128, 130, 186, 188, 193, 199, 210,
153 225, 237, 261, 276, 279,
चार धाम 73, 193 335, 339, 346-47,353, 321
चार पद 19, 145, 160 385
चार लोक 4, 37, 51, 170, 212, चौला 221
277 छल बल 117, 122, 137, 201, 254
चार वेद 195, 204 जछमा 70, 96, 98
चारों खान 86, 138, 140, 165, 186, िग 4, 9, 11, 14, 30, 61, 69-70,
199, 215, 217, 254, 265, 82, 90, 105, 107, 109, 112,
352 114-15, 121-22, 124, 126-
चारों िुग 119 27, 132-34, 144, 146, 150-
चार 67, 85, 106, 115, 192, 54, 162-66, 170, 186, 188,
253, 256 192-95, 204, 208, 210,213
जचतावनी 110-27, 133 216, 219-21, 268
जचतावनी भेखों को 131-33 िग िीव 69, 82, 84, 137
चुम्बक 11, 35, 44, 372 िगत 19, 57, 75, 106, 108
398 सार बचन
110, 117-118, 130, 132-35, िम पुर 117-18, 135, 146, 157, 218
144-45, 149, 152-54, 164, 276, 335
168, 188, 190, 191-92,199, िम राय 111
203, 208, 210, 235, 256, िल 7, 38, 61, 81, 85, 107, 199,
301, 303, 210, 235, 256, 318, 386, 388
िगत िाल (िार) 40, 110, 117, 120, िल जबन मीना 230, 262, 334,
127, 143, 193, 253, 279 िल मीना 41, 75, 243, 248, 280,
िगत लिा (लाि)104, 115, 118, 332, 342, 387
128, 139, 342 िाग्रत 114, 202, 213, 219
िग मग 46, 69, 126 िात 142
िग सुपना 83, 94, 121, 138, 202, िात पाूँत 33, 112
210, 303, 308, 322 िाजत बरन 104, 192
िगात 10, 82 िाल 11, 40, 44, 116, 121, 124,
िड़ चेतन 108, 113, 158, 188, 196, 147, 150, 152, 155, 193,
211, 220, 338, 359-60 195, 226
ितन 84, 93-94, 100, 143, 161, ज़ाजरद 220, 350
165, 210, 244, 271, 360 जज़करूलकलूब 171
िती 72, 80, 92, 192 जज़ल्लत 104
िनक 72 िीव 1-4, 6, 60, 69-70, 81-84, 88-
िन्म 46, 56, 62, 73, 75, 83,102, 144, 89, 96, 106, 109, 114, 121-
157, 160, 188, 195, 202, 22, 128, 141, 144, 149-50,
204, 208-9, 245, 265, 387 189, 193-97, 199, 201-6,
िन्म मरन 88, 111, 121-22, 126-27, 209-11, 214, 218-19, 221,
203, 210, 273, 304 225-26, 235, 269,274, 322
िप 96, 131, 142 326, 336, 354
िप तप 32, 213, 219, 318, 336, िुजि (युजि) 3, 40-41, 93, 99, 105,
िबरूत 3, 342 120, 122, 125, 144, 152,
िम 10, 17, 24, 36, 82, 98, 110, 154, 162, 165, 187, 194,
112, 114-15,117,121, 124, 202-3, 215, 230, 244, 282,
131, 134, 138, 151, 158, 336, 360
165, 210, 222, 225, 633 िुग 66, 85-86, 101, 146, 153,
िम काल 36 203
िम िाल 156, 312 िुलमात 174
िम िाल 156, 312 िेठ 314
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 399
तरीक़त 221 तीरथ बरत ( ब्रत, बतण) 10, 23, 32, 72,
तसकर 246, 317 125-26, 133,142,147, 192,
तसबी 326 194, 202, 208, 213, 252,
तािील 172 313, 336, 350
तारा 10, 27, 44, 48, 65, 227, तीथणकर 205, 221
247, 350 तुररया पद 213-14
तारी 81, 88, 146 तुलसी 89, 189, 193, 206, 340
ताला 108, 279, 288, 294, 298, तूरे (तूरा) 38, 41, 201
जतजमर 13, 15, 47, 79, 84-85, 96, तृप्ताये 76, 212
207, 304, 322, 329, 387 तृष्र्ा 121, 135, 233, 255, 321,
जतजमर खंड 174 324
जतररया 111, 117, 250 तेला 221
जतल 14, 24, 27, 35, 41, 43, 48-50, त्याग 90, 164, 207, 219
64-66, 90, 97, 110, 146, जिकु टी 3, 5, 14, 27, 40, 44-48,
64-66, 90, 97, 110, 146, 53, 58, 61-62, 64-65, 67,
154, 159, 166-167, 171, 201, 78, 82, 89, 113, 140, 143,
226-27, 248, 252, 265, 280, 146,148,153,156,162, 164
286, 293, 298, 302, 311, 167, 173, 187,190-91,194,
313, 337, 357, 360, 369 196, 198, 200, 211, 213,
जतलक 107, 192 218,222,224,226,236,242,
तीि 336 248-53, 255, 281, 283-99,
तीन गुन 12, 19, 57, 95, 120, 157, 302,308-12,316, 322, 331,
150, 186, 199, 213, 217, 340, 342, 347-48, 359-61,
292, 302, 309, 313, 352-53, 364, 375, 383
387 जिकु टी घाट 5, 82, 249
तीन ताप 76, 336 जिगुन 9, 164, 350
तीन पुि 101 जितापा 76
तीन लोक 10, 12, 57, 88, 101, 128, जिबेनी (जतरबेनी), 77, 155, 157, 211,
155, 168, 170, 172, 195, 224, 227, 298, 320, 339
201, 205, 216-17, 225-26, जिलोकी 3, 88, 189, 198, 205-6,
229, 292, 337, 339, 352 212, 216-217, 224, 283,
तीन साधन 85 316, 353
तीरथ ( तीथण) 47, 72-73, 142, 155, िेता 13, 69
219, 368
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 401
121, 123, 128-31, 145, 157, 101, 119, 125, 138, 140,
207-9, 225, 238, 334 142-43, 155, 219,240, 386
धरती 12, 101, 263, 378 ध्रुव 12
धरजन ( धरनी, धरन) 88, 166, 247, ध्विा 55
304, 378 नई बात 383
धमण 32, 72, 100, 203-4, 207 नग्मरा 173
धमण राय 292, 305, 338 नज़र मेरर आलूद 171
धाम, 19, 34-36, 41, 45-46, 59, 93, नफ़्स अमारा (अम्मारा) 33, 171
111, 119, 121, 124, 131, नफ़ीरी 306
144, 152, 164-65, 187, 190, नभ 14, 35, 45, 65, 89-90, 111-12,
214, 273, 319, 369, 375 123, 137, 143, 146, 163,
धार (धारा), 4, 53, 67, 87-90, 101, 165, 167, 193, 199, 285,
108, 122, 147, 162, 164, 297, 300, 308, 316, 322,
168, 170, 211, 352 325, 329, 360, 367, 384
धीरि 131, 151, 262, 267, 271-72 नभ द्वार 90, 114, 140, 168, 249
275, 279-80, 284, 300, 318, नमाज़ 33, 350
376 नर देजर (देरी) 81, 84, 96,-111, 114,
धीरे 43, 89, 100 121, 133, 145, 157, 188,
धुन 35, 37, 39, 44, 51, 54-55, 58, 193, 197, 213, 242, 335,
78, 88, 91-96, 101, 110-11, 346, 368
118, 138-39, 145-47, 152- नर रूप 6, 146
58, 161, 164-70, 200-1, 204- नकण 114, 119, 122, 128, 130, 132,
5, 211, 218, 222-23, 227, 157, 197, 225, 265, 335,
334, 369 338, 351, 353, 371
धुन आत्मक 95 नकण की अजगना 121
धुनी 93, 95-96 नकण जनवास 117, 129
धूर 83, 105, 193 नकण स्वगण 337
धृग 68, 108 नदण 186-87, 305
धोखा 11, 63-64, 74, 85, 93, 97, नलनी 120, 289
105, 108, 120, 128, 172, नवनीत 59
188, 191, 193, 195, 202-4 नाका 44, 47, 94, 108, 112, 156,
209, 212, 214, 216-17, 220, 174, 211, 227, 305, 312
226, 238, 258, 271, 282, 365 नाज़नीनाूँ 173
धौल 60, 314 नाती 118-19
ध्यान 4, 31-32, 60, 78, 91, 93 नाद 12, 33-34, 48, 54, 78, 108
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 403
नूर 41, 108, 176, 248, 311, 344 परम पद 47, 55, 59, 75, 78, 156
नेम 60, 62, 73, 141, 202, 208, 350 159, 329
नेम धरम 192, 214, 320 परम पुरुष 2, 8, 37, 42, 69, 83, 234
नैन 10, 13, 22, 24, 26, 38, 41-42, परमातम 72, 101, 103, 337
45, 51, 54, 60, 67, 83, 87, परमारथ 80, 85, 106, 168
123, 139, 149, 152, 152, परमेश्वर 10, 72, 178, 344
187, 196, 231, 251, 302, परलय 198-99
309, 316, 324, 334, 363-64, परिादी 62, 63, 106, 131, 135,
369, 372, 386 141, 193, 245, 341, 375
नौका 15, 59, 77, 112, 357 386, 388
नौ खंड 88, 101, 242 परस राम 350
नौ द्वार 3, 14, 59, 66, 114, 135, पलटु 73, 340,
न्यारा 69, 110, 139 पवन 12, 20, 61, 199, 293, 343,
पंच (पाूँच) िब्द 7, 56, 81, 86-87, 376
161, 217, 225 पजरचान गुरु पूरे की 105, 125, 128
पंजडत (पजण्डत) 93, 114, 192, 194, पजरचान पाखंडी की 223-25
205, 221, 336, 368 पजरचान भेख की 224
पंजडत क़ािी 126 पजरचान संत 223
पंजडत ज्ञानी 147, 193 पजरचान सच्चे परमाथी की 105-9
पंजडत भेख 85, 97, 133, 147, 189, पजरचान साध 223-24
192, 264, 336 पजरचान मंजिल 3, 34
पंजडत भेख िेख 12, 126 पजरली सुन 81
पंथ 19, 64, 86, 202 पांच अंड 227
पचरं गी 14, 58, 60, 226, 316, 318, पाूँच इन्द्री 147, 165, 243, 360
344 पंच तत्व (तत्त) 57, 66, 120, 217,
पतंगा 54, 136, 230, 273, 324, 372, 243,245,292,297,331, 350
पजनरारी 39, 46, 259, 275, 311 352
पजपरा (पपीरा) 4, 7, 11, 53, 136, 280, पाूँच दुष्ट 243
319, 334, 362 पाूँच धुन 96, 161
परकाि (प्रकाि) 79, 94, 96, 103, पाूँच नाग 337
145, 198, 227 पाूँच नाम 222, 225-29
परककती (प्रकृ तण, प्रकृ त) 57, 101, पाूँच प्रार् 243
147, 186, 215, 245, 350 पाूँच ब्रह्म 227
पाूँच मुन्दरा (मुद्रा) 66, 219
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 405
96, 100, 104, 110-11, 120, मजरमा परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी
132, 134, 137, 169, 189, 8-37, 42-48
193, 197-98, 206, 208, मजरमा िब्द 88, 132, 206, 281-90,
मलकू त 3, 342 331
मलयाजगर 3, 342 मजरमा िब्द स्वरूप सतगुरु 87-94
मिायख 220 मजरमा सतगुरु 57, 72-87, 108, 196,
मजस्िद (मसीत) 33, 169, 220, 350 223, 251, 281-90, 311-20
मसान 118 341
मरल 53, 57, 151, 153, 168, 170, मजरमा सतगुरु भजि 186
228-29, 233, 298 मजरमा सत संग 97-102, 157, 342
मरा काल 48, 101, 158, 199, 227, मजरमा सुरत िब्द मागण 186, 197-
228-29, 298 207
मरा काल 48, 101, 158, 199, 227, मरेि 9, 72, 189, 191, 197, 338,
310, 345 371
मरातम 85, 192, 273 माखन 60, 89
मरातम भजि सतगुरु 103-5 माघ मास 344
मरा परलय 199 माजर्क 55, 61, 301, 316, 355,
मरा सुन्न 3, 5, 9, 12, 15, 27, 40- 376
48, 53, 59, 62-68, 78, 88, मात जपता 112, 136, 380
94-97, 100-1, 108, 134, 146 माता 4, 69, 80, 86
148, 152-53, 155-57, 160 माधो 63, 155
164, 167, 175, 187, 194, मान 74, 85-86, 93, 97, 100, 106,
196, 199-200, 211, 213, 130-35, 140, 142-45, 153,
222, 224, 227, 233-36, 240 157, 161, 166, 188, 193,
248-49, 282-83, 312, 315, 202, 208-9, 232-38, 253,
340, 365 256, 269, 307, 327, 375
मजरमा 19, 59, 68, 70-71, 75, 147, मान मनी 57, 106, 109, 355
163, 193, 198, 212, 240, मानसर 44, 78, 153, 158-59, 169,
मजरमा गुरु चरन 52 255, 305, 326
मजरमा गुरु पद 47, 50 मान सरोवर 5, 41, 44, 46, 48, 64,
मजरमा दिणन राधास्वामी 37-48 79, 108, 163, 173, 200-1
मजरमा जनि स्थान 42-48 222, 227, 249, 253, 273,
मजरमा जनि स्वरूप 42-48, 274 282, 284, 296, 301, 330
412 सार बचन
लीला 4, 5, 11, 14, 36, 40, 44, 46, 110, 121, 132, 144, 146
58-59, 62, 64, 71, 94, 158, 148, 169, 201, 213, 226,
,228 ,218 ,213 ,190 ,64-163 ,33-229 240-56, 264, 272,
233, 260, 281-90, 309, 331, 276, 292, 300, 307, 320,
352 322, 332, 370
लीला मुक़ामात 291-320, 344 जवररन 11, 57, 146, 232, 296
लूका 57 जवजिष्ठ 72, 177, 189
लैला 179 जवष (जवषय) 4, 52, 106, 110, 165,
लोभ 11, 16, 52, 96, 108, 121, 167-68, 253, 287
123, 1 35, 193, 324 जवष्र्ु 147, 215, 340
लोभ मोर 52, 67, 121, 125, 142, जवरंग 314
201 , 238, 358 वीर 90
लोर (लोरा) 11, 35, 44, 57 वेद 30, 46, 48, 59, 65, 73, 75, 84,
वि गुरु 33, 73-74, 242 93, 100-1, 178, 197-98
वज़ीफा 33 204, 212, 216, 226
वज़ीर 90 वेद कतेब पुरार् 10
वर्णन आनंद प्राजप्त सतगुरु 233-36 198, 213, 340, 370
वर्ाणत्मक 95-96 वेद कतेब पुरार् 10
वस्त्र (वस्तर) 50, 68, 76, 89, 107, वेदन 230, 333, 370
208, 284, 387 वेद पुरार् 101, 186, 201, 234, 350
वाच 96 वेद पुरार् िास्त्र 85, 189, 195, 197,
वाचक ज्ञानी 200, 219 200-1
जवकार 9, 36, 40, 48, 79-70, 90 वेद मता (मते) 102, 220
110, 154, 162, 188, 364 वेदान्त (वेदान्त) वेदान्ती 86, 100-1,
जवद्या 43, 85-86, 93, 125, 133, 142, 210-11, 214, 216
188, 192, 202, 206-10, 217- वैराट 197, 219, 226
19, 221, 317 व्यास 72, 129, 177-78, 189, 194,
जवजध आरत 79, 137, 284 202, 316
जवजध दरस 106 िऊर 288
जवजध पूवक ण 3 ििी (िजि) 101, 147, 189
जवजध सतसंग 341 िग़ल 88, 171
जवजध सेवा 106 िग़ल आवाज़ (आवाज़) 34, 176
जवरर 4, 10, 41, 51-52, 57, 63, 65, िग़ल नसीरा 171
67-68, 71, 74, 80, 93, 106
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 415
102-3, 126, 169, 194-45, सतगुरु दया 64, 99, 110, 114, 122,
198, 200, 224, 264, 299, 232, 234, 238, 241, 341,
338, 369 सतगुरु पूरे 37, 42, 62, 126, 145,
संत मता (मता) 43, 46, 78, 102, 125, 195-95, 243,247,255, 261,
150, 161, 163, 190-91, 193, 313, 326, 337, 365, 367
198, 200, 202-3, 205, 207, सतगुरु जबन 109, 193, 200, 221-
210, 215, 217, 219, 224, 23, 236, 264, 271, 335
273-74, 277, 312, 318, 339- सतगुरु भजि 127, 133, 145, 186
41, 350, 353 सतगुरु सरन 82, 156-57, 192, 200,
संत रूप 187, 197, 351 234, 250, 256, 283
संत सतगुरु रूप 2, 3, 338, 346 सतगुरु सेवा 81, 123, 130, 194, 225
संत सरन 124, 188, 193, 210, 224, सत जचत आनंद 219
226, 251 सत िुग 13, 69
संत स्वरुप 1, 204 सत धाम 13, 69
संदि
े 2-4 सत नाम 1, 41, 43, 55, 59, 63-64,
संसार 4, 99, 101, 116, 154, 162, 68-69, 72, 80, 86, 89, 98,
219, 276, 339, 355, 364, 100-3, 107, 124, 131, 135
373 140, 145, 152, 155, 164,
सच खंड 6, 46, 48, 86, 100-1, 198, 187, 190, 192, 196, 198,
206, 247, 249, 293, 342 209, 213,217,222-23, 229,
सच्चा 105, 108-9, 111 235, 240, 253, 280, 287,
सतगुरु 1, 2, 41-42, 44, 47, 59, 295-99, 300-2, 310, 315,
63, 68-69 , 72, 85, 99, 103, 318, 320, 326,331,337-38,
106, 111-12, 114, 120, 139, 342, 347, 351, 354, 365,
157-58, 162-65, 187-88, 190, 375
192, 194, 200, 226, 229-33, सत पद 65, 75, 78-79, 113, 289,
239-53, 262-98, 304, 306, 305, 317
308, 311, 313-14, 318-24, सतपुर 62, 68, 110, 169, 197, 248,
326-27, 329, 333, 335-38, 283, 372
341-49, 357, 359, 365-68, सत िब्द 43, 56, 89, 101, 161, 164
371, 375, 385-88 196, 222, 224, 252, 272,
सतगुरु कृ पा (ककरपा) 53,68, 72, 229, 285, 347
355, 357 सतसूँग (संग) 4, 6, 27, 33, 64-65,
सतगुरु चरन 57, 119, 375, 377 74, 77, 84-85, 97-102,
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 417
107, 111-12, 115-16, 121, समरथ 4, 71, 100, 131, 218, 230,
123, 125, 127, 130-32, 140, 237, 239, 262-64, 268,
142, 144, 152-53, 162-65, 276, 301
168-69, 194, 200, 225, 229- सरधा 99, 125, 130, 140, 190, 207
33, 248, 250, 264-277, 302, सरन 18, 24, 29, 35, 41, 45, 53,
325, 338, 342, 349, 354, 65, 81, 118, 123-26, 144-
375, 387 45, 152, 156, 160, 166,
सत संगी 48, 55, 77, 68, 200, 258 170,195-96, 201,212, 272,
386-88 399
सती 136 सरमदी 34
सत्तनाम धुन 37, 52, 55, 63-64 सरवन (श्रवन) 42, 63, 87, 91, 133
सत्त (सत) पुरुष 2, 3, 5, 44, 48, 56, सरवर (सरोवर) 57, 62, 66, 93, 146,
66-69, 82, 100, 102, 106, 162, 168, 234, 265
129, 133, 135, 138, 140, सरूप 45, 56
155, 176-77, 187-88, 197- सरस्वती 211
98, 204, 206, 216, 224, सगुन
ण (सगुर्
ण ) 164, 199, 274, 345
226, 229, 234, 247, 267, सरि 80, 321
275, 280, 282, 294, 301, सरस दल कं वल ( सरस कं वल ) सरंस
394-5, 307, 309, 315, 317, दल कं वल 45, 48, 62, 67,
319, 320, 337-38, 353, 387 78, 96, 146, 167, 187, 193,
सत्तलोक 3, 6, 12, 27, 40, 44, 53, 211, 213, 219, 222, 226,
57-58, 66, 73, 91, 101, 131, 236, 248-55, 282-99, 315,
134, 143, 148, 150, 153, 318, 322, 325, 331, 345,
155, 167, 176, 178, 187, 360, 364, 387
194, 196-200, 212, 216, साध 106, 117, 121, 124, 131-32,
222-25, 234, 236, 253, 280, 145, 154, 157, 165, 203,
285, 387 224-25, 333, 384
सत्य सत्य (सत्त सत्त) 101, 176, 198, साधन 85-86, 194, 202-3
217, 387 साध संग 110, 124, 126, 159, 289,
सनक 10, 72, 316 306, 316, 336, 338
सन्मुख (सनमुख) 49, 53-54, 56-57, सारूँ ग (सारËL ) 16, 48, 56, 78, 283,
61, 76-77, 105, 133, 207 364
सन्यास 72 सार 40, 42, 85, 90, 96, 107, 109,
सम दम 130, 142, 202-3 139, 147, 153, 161, 166,
418 सार बचन