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सार बचन राधास्वामी

छंद बंद

जिस को
परम पुरुष पूर्ण धनी स्वामी िी मराराि
ने
ज़बाने मुबारक से फ़माणया
राधास्वामी दयाल की दया
राधास्वामी सराय
परम संत हुज़ूर धनी स्वामी जिवदयाल ससर िी मराराि
राधास्वामी दयाल की दया
राधास्वामी सराय
राधास्वामी दयाल की दया
राधास्वामी सराय

भूजमका

1. परम संत हुज़ूर स्वामी िी मराराि कक जिनका नाम नामी सेठ


जिवदयाल ससर िी था, भादों वदी अष्टमी संवत 1875 जबक्रमी मुताजबक
25 अगस्त सन् 1818 ईसवी को बवक़्त क़रीब चार बिे तङके मरल्ला
पन्नी गली िरर आगरे में प्रकट हुए । आप बैंिल सेठ क्षजियों के एक मिहूर
खानदान से थे, िो असाण तक़रीबन दो सो साल का हुआ कक लारौर से
देरली और देरली से आगरे आए थे। आपके वाजलद िरीफ़ का इस्म गरामी1
सेठ कदलवाली ससर िी था, और आपके दादा साजरब सेठ मलूकचन्द िी
ररयासत धौलपुर में दीवान के ओरदे2 पर मुमताि3 थे ।

2. आपके खानदान में िु रू से री गु र बार्ी का प्रचार था और


िु म ला 4 अरले खानदान क्या मदण कया औरतें और बच्चे जिन की
मादरी ज़बान पं िाबी थी, जनरायत प्रे म और भाव के साथ रोज़मराण 5
गु रु नानक साजरब की बार्ी का पाठ ककया करते थे , सु ब रा को िपु िी
साजरब और िाम को सोदर रजररास । हुज़ू र स्वामी िी मराराि ने
जितना असाण सत्सं ग ककया गु रु ग्रन्थ साजरब और तु ल सी साजरब

1. िुभ नाम । 2. पद । 3. सुसजित । 4. सब । 5. प्रजतकदन ।


ख सार बचन

की बार्ी का पाठ करते ररे । चूकूँ क उत्तर प्रदेि में पंिाबी ज़बान का ररवाि
बहुत कम रै और आम लोगों को पंिाबी समझने में कदक्कत 1 मरसूस रोती
थी इस जलये बहुत से प्रेमी सत्संजगयों और सत्संजगनों ने इस्त्रार 2 करके उन
ऊूँची और गूढ़ रूरानी रमिों को सरल भाषा में आम फ़रम ज़बान में करने
पर मज़बूर ककया । इसमें िक ऩरीं कक जिस खूबी के साथ हुज़ूर स्वामी िी
मराराि ने राज़राय सरबस्ता3 यानी गूढ़ भेदों को आसान और सलीस
ज़बान में कलम-बन्द ककया रै उस की नज़ीर4 आि करीं नरीं जमलती ।
यर अपनी नज़ीर आप री रै ।

3. हुज़ूर स्वामी िी मराराि ने छ: साल की उमर से री रूरानी तल्कीन5


व जरदायत का जसलजसला िुरू कर कदया था । ख़ुद अपने वालदैन को और
नीज़ उन साधुओं को िो उनकी बज़ूरगी से वाकक़फ़ रोकर उनकी जखदमत
में राजज़र रोते थे रर तरर से परमाथण समझाते थे ।

4. आप करीब पंद्रर वषण तक अपने मकान की एक कोठरी में िो अन्दर


दूसरे कोठे के थी, बैठ कर सुरत िब्द योग का अभ्यास करते ररे, यराूँ तक
कक अक्सर औक़ात दो-दो तीन-तीन रोि तक बारर नरीं जनकलते थे और
न री इस अरसे में राित ज़रूरी की तरफ़ तविर रोती थी ।

5. अकसर सत्सं गी व सत्सं जगनें एक वषण से जज़यादा आम सत्सं ग


िारी करने के जलये रठ कर ररे थे और बारबार यरी प्राथण ना हुज़ू र
स्वामी िी मराराि के चरर्ों में करते थे । आजखर उनकी अज़ण
क़बू ल फ़माण कर सं व त 1997 (जबक्र मी) बरोज़ बसन्त पं च मी
मु ताजबक िनवरी 1861 (ईसवी) को हुज़ू र स्वामी िी मराराि ने

1. करठनता । 2. आग्रर करके । 3. गुप्त । 4. उदाररर् । 5. प्रचार, उपदेि ।


भूजमका ग

अपने मकान पर बयान संत-मत और उसका उपदेि परमाथी लोगों को


फ़माणना िुरू ककया और यर सत्संग सतरर वषण तक रात-कदन बराबर ज़ारी
ररा ।

6. राधासवामी मत का दूसरा नाम संत-मत रै िो कक जपछले िमाने में


जनरायत गुप्त ररा। िो संत प्रकट रोते वे मुद्दतों परखने और अज़माइि
करने के बाद और अंत: करर् यानी ज़मीर साफ़ करके जसफ़ण खास खास
अजधकाररयों को इस ऊूँचे और सच्चे नाम का भेद बताते थे । लेककन अब
इस घोर कलयुग में िीवों को जनरायत जनबणल यानी कमज़ोर और दुजनया
में फं सा हुआ देख कर हुज़ूर स्वामी िी माराराि ने अपनी दया मेरर का
बल देकर लोगों को भवसागर से पार करने के जलये फ़ै ज़े-आम1 ज़ारी फमाण
कदया । जपछले ज़माने में ककसी संत ने इस फ़ै् याज़ी2 और फ़राख-कदली3 से
नाम का भेद नरीं कदया । इस सबब से अक्सर मतों में लोग िग्ल रूरानी
यानी अन्तमुख ण ी अभ्यास को छोड़ कर पूिा पाठ वगैरै़ ा बारर-मुखी साधनों
की तरफ़ राजगब4 रो गये

7. राधास्वामी मत में तीन चीज़ें तरकार रैं --गुरू, नाम और सत्संग ,


और तीनों के ज़रीए री उद्धार रो सकता रै यानी निात 5 राजसल रो
सकती रै । अव्वल गुरू पूरा और सच्चा चाजरये यानी संत सतगुरु ।
वंिवाली6 गुरुओं से काम नरीं जनकलेगा । दोयम नाम भी सब से ऊूँचा
और सच्चा और पूरा और असली यानी ज़ाती चाजरये, ब-मैं भेद नामी
यानी मुसम्मा के । कृ जिम यानी जसफ़ाती नामों से काम नरीं चलेगा ।
तीसरे सत्संग भी सच्चा चाजरये । उसकी दो कक़स्में रैं, एक सत्संग

1. िीवों के लाभजरत । 2. बजशिि । 3. खुले कदल से । 4. ध्यान देने लग पड़े ।


5. मुजि । 6. गुरुओं के खानदान के कु ल गुरु मरन्त आकद ।
घ सार बचन

अन्तरी, दूसरा बाररी । अन्तरी सत्संग यर रै कक अभ्यासी अपनी सुरत


यानी िीवात्मा या रूर को अन्तर में चढ़ा कर सत्पुरूष राधास्वामी के
चरर्ों में लगावे या उस तरफ़ मुतविर1 करे । दूसरा यर कक िब उसको
दिणन और संग सत्पुरूषों का िो कक सच्चे और पूरे संत और साध रैं नसीब
रोवे यर उनके बचन सुने और दिणन करें और िो सेवा बन सके करे । इन
दोनों कक़स्म के सत्संग से कु छ कदनों में रालत साफ़ बदलती हुई मालूम
रोगी ।

8. और िो और काम परमाथी कक़स्म के रैं, जमस्ल तीथण और ब्रत मजन्दर


और मूरत और पोजथयों का पाठ और िप और सुजमरन जसफ़ाती नाम का,
इन कामों के करने से ज़रा भी रालत नरीं बदलती, क्योंकक इन कामों में
जनि मन और िीवात्मा यानी रूर जिसको संत सुरत करते रैं िाजमल नरीं
रोते और इसी सबब से इन कामों का असर ज़ाजरर नरीं रोता । अलबत्ता2
ज़ाजररी आन्नद और अरंकार वगैरा कदल में आ िाता रै ।

9. सुर त यानी िीवात्मा या रूर िो खास सत्पुरू ष राधास्वामी की


अं ि रै इस जिस्म में एक बड़ा िौरर रै कक जिसकी ताक़त से कु ल बदन
और मन और इन्द्रयाूँ वगैरा अपना अपना काम देती रैं । सो संतों ने
इसी िौरर को छाूँट कर उसके असल भण्डार और खज़ाने की तरफ़
मु त विार ककया और िब इसकी सच्ची तविर उधर को हुई, तब
आजरस्ता-2 इसकी रालत भी बदलती िाती रै और दुजनया और उसके
पदाथण रोज़-बरोज़ नज़र में ओछे और रक़ीर 3 कदखलाई देते रैं । इस
िौरर लतीफ़ 4 का असल मुक़ाम क़याम यानी ठरराव सपड यानी जिस्म
में आूँ खों के पीछे रै और वराूँ से यर तमाम देर में फै ला रै और सब

1. धयान देवे । 2. परन्तु, लेककन । 3. तुच्छ ।


भूजमका ङ

आज़ा ( अंङ्गो ) को ताक़त दे ररा रै और इस का भंडार और खज़ाना आकद


िब्द यानी आकद नाद रै ।

10. मालूम रोवे कक आकद िब्द कु ल का कताण और स्वामी रै, और आकद


सुरत यानी उसके अव्वल ज़हूर का नाम राधा रै । इन्रीं का नाम सुरत और
िब्द रै और िब इनकी धार नीचे आई, तब इसी आकद िब्द से और िब्द,
और आकद सुरत से और सुरत, और िब्द से सुरत और सुरत से िब्द बराबर
प्रकट रोते आये और अपने-अपने मुक़ाम पर कायम हुए ।

11. िब्द की मजरमा तो तमाम मतों के ग्रन्थों में रै और खास खास संतों
ने गूढ़ भेद को ककसी क़दर वज़ारत के साथ भी बयान ककया रै, लेककन
स्वामी िी ने जनरायत तफ़सील के साथ यानी जवस्तार पूवक
ण िब्द भेद
ज़ाजरर फ़माणया रै ।

12. खुलासा भेद िब्द का नीचे जलखा िाता रै:-- कु ल की आकद


राधास्वामी यानी कु ल मालक रै यराूँ िब्द जनरायत गुप्त रै और उसकी
उपमा यानी नमूना इस रचना में करीं नरीं रै । इसी िब्द से सत्तपुरुष
प्रकट हुए । िबद परला—सत्तपुरुष का िबद जिसको सत्तनाम और
सत्तिब्द भी करते रैं और जिसकी सत्त क़ु दरत से सोरं पुरुष और पारब्रह्म
और ब्रह्म और माया प्रकट हुए ।

दू स रा—सोंर पु रु ष का िब्द । तीसरा—पारब्ररम् का िब्द जिसकी


मदद से तीन लोक की रचना ठररी हुई रै । चौथा—ब्ररम् का िब्द,
िो कक प्रर्व रै , और जिससे सू क्ष्म यानी ब्ररम्डीं वे द और ईश्वरी
माया प्रकट हुई । पाूँ च वाूँ — माया और ब्ररम् का िब्द जिससे
जिलोकी की रचना का मसाला प्रकट हुआ और आकािी वे द
ज़ाजरर हुए । माया िब्द के नीचे वै राट पु रु ष का िब्द और
च सार बचन

िीव और मन का िब्द प्रकट हुआ ।

13. इस वक़्त में िो कोई िब्द के अभ्यास का जज़क्र भी करते रैं तो


जसवाय नीचे के िब्द के ऊूँचे िब्दों की उनको खबर तक भी नरीं रै और
बाज़े बैराटी िब्द को री कताण िब्द मानते रैं और कोई कोई माया और
ब्रह्म के जमले हुए िब्द का जसफ़ण जिक्र करते रैं । मगर उसकी मजरमा और
जसफ़त और उसके स्थान और अभ्यास की युजि से, जिससे वर प्राप्त रोवे,
नावाकक़फ़ रैं । इन सब िब्दों का राल इस पोथी में तफ़सील वार जलखा
हुआ रै ।

14. तरीक़ा राधास्वामी यानी संत —पन्थ का भजि मागण का रै, यानी
सच्चे और पूरे माजलक के चरर्ों में प्रेम और प्रीत और प्रतीजत करना ।
इसको उपासना और तरीक़त भी करते रैं । इस मागण में या तो संत सतगुरु
और साध गुरु की मजरमा रै और या उनके असली िब्द स्वरूप की
मजरमा रै । संत सतगुरु उनको करते रैं कक िो सत्तपुरुष और राधास्वामी
के मुक़ाम पर पहुूँचे, और साध गुरु उनको करते रैं िो ब्रह्म और पारब्रह्म
के मक़ाम पर पहुूँचे, और िो यराूँ तक नरीं पहुूँचे, उनको साध और
सत्संगी करा िाता रै । इन दोनों िानी संत और साध का असली स्वरूप,
िब्द स्वरूप रै और ज़ाजररी स्वरूप नर स्वरूप यानी इन्सानी जखकाण1 रै
िो कक वे लोगों के समझाने और बुझाने और उपकार और उद्धार के जलये
धर कर संसार में प्रकट रोते रैं । िब यर मालूम हुआ कक यर पूरे संत या
पूरे साध रैं तो कफर उन में और सत्तपुरुष या पारब्रह्म में भेद नरीं माना
िाता रै । इस वास्ते िब िब पूरे संत या पूरे साध प्रकट रोते रैं, तो
उनके चरर् सेवक उनकी मजरमा सत्तपुरुष या पारब्रह्म के बराबर करते

1. चोला, जलबास ।
भूजमका छ

रैं और बाजरर में उनकी पूिा और सेवा और आरती वगैरा उसी तौर से
बिा लाते रैं िैसे कक माजलक की करना चाजरये और इस ज़ाजररी स्वरूप
की सेवा और दिणन और बचन और उनके चरर्ों में प्रेम और प्रीजत करने से
और िो िुगत वे बतलावें उसके अभ्यास करने से सुरत यानी िीवात्मा मन
और माया के िाल से अलारदा रो कर आकाि में और उससे परे चढ़ती रै
और अन्तर के स्वरूप यानी िब्द में पहुूँचती रै, तब सच्चा और पूरा उद्धार
िीव का रोता रै ।

15. िब तक कक पूरे संत या पूरे साध न जमलें तब तक खोिी को मुनाजसब


रै की उनकी तलाि में ररे और िो कोई उनका सत्संगी यानी सेवक जमल
िावे कक जिसने उनके दिणन और सेवा बखूबी की रै और उनसे भेद िब्द
मागण का रासल करके अभ्यास ककया रै और कर ररा रै उससे प्रीजत करे
और भेद मागण और मंजिल का और िुगत उसकी प्राजप्त की यानी तरीक़ा
अभ्यास का दरयाफ़्त करके कमाई िुरू करे और सच्चा इष्ट राधास्वामी के
चरर्ों में िो कु ल के माजलक रैं, और िराूँ कक पहुूँचने का इरादा रर एक
परमाथी को मिबूत करना चाजरये, बाूँध कर अपना काम करना िुरू करे ।
िो प्रीजत और प्रतीजत सच्ची और िौक़ सच्चा और पक्का रोगा तो िरूर कु ल
माजलक आप ककसी न ककसी वक़्त पर चारे जिस स्वरूप से दिणन देकर इस
िीव का काम अपनी दया और कृ पा से बनावेंगे ।

16. राधास्वामी नाम कु ल माजलक ने अपना आप प्रकट ककया रै, और िब


कक हुिूर साजरब के चरर् सेवकों को कु छ कदन अभ्यास और सत्संग करने से
कु छ-कु छ उनकी भारी क़ु दरत और गजत मालूम हुई और कु छ उनरोंने अपनी
कृ पा से थोड़ी अपनी पजरचान बख़्िी, तब से उनको उसी नाम से जिस मुक़ाम
ि सार बचन

यानी राधास्वामी पद से कक वे आये थे पुकारना िुरू ककया और वर अपनी


मौि से इस कलयुग में िीवों पर जनरायत दया करके संत स्वरूप अवतार
धारर् करके प्रकट हुए । संत-मत में भी वरी क़ायदा िारी रै िो और
तरीक़त यानी उपासना वालों के मत में िारी रै और वर यर रै कक सतगुरु
पूरे यानी मुिद
ण -काजमल में और माजलक कु ल में भेद नरीं करते और इसी
सबब से उनको उसी नाम से पुकारते रैं िो कक असली नाम उस मुक़ाम
यानी पद का रै िराूँ से कक वे आये रैं । राधास्वामी नाम सुरत और िब्द
की एक जसफत रै, िैसे समुद्र और उसकी लरर, िब्द और उसको धुन, प्रेमी
और प्रीतम, इन सब का मतलब एक री रै ।

17. इस मत के मानने वालों और सुरत िब्द के अभ्यास करने वालों को


चन्द रोज़ में आप उनके अन्तर में मालूम रो िावेगा कक यर क्या भारी
जनयामत और दुलभ
ण पदाथण उन को जमला रै, और जिस क़दर कदन-कदन उन
की रालत मोक्ष और उद्धार की रोती िावेगी उसको वे आप देख लेंगे और
सब मतों के जसद्धान्त और मक़ाम की और उनकी गजत की आप खबर रो
िावेगी कक कौन मत कराूँ से जनकला रै और करां तक उसकी रसाई और
पहुूँच रै ।
18. यर मत और इसका अभ्यास खास-कर उन लोगों के वास्ते रै जिन को
सच्चे माजलक के जमलने की चार रै, और जिनको अपने िीव के कल्यार्
और उद्धार का कदल में कफ़क्र रै और िो लोग कक दुजनया के सामान और
नामवरी और मान और बढ़ाई और इल्म यानी जवद्या को पसन्द करते रैं और
परमाथण को अपना रोज़गार मुक़रण र करते रैं उनके वास्ते यर उपदेि नरीं रै
और न उनको यर कलाम पसन्द आवेगा, बजल्क िराूँ तक मुमककन रोगा वर
इस पर तान करें गे और गलत और फ़ु िूल ठररावेंगे और सबब इसका यर रै
भूजमका झ

कक इस कलाम को सुन कर उनका मन घबरा िाता रै कक इसको मानने से


उनकी दुजनया और देह् के मज़े जबलकु ल िाते ररेंगे और रोज़गार में फ़कण
आ िावेगा, इस वास्ते वे िराूँ तक बन सके गा ऐसी कोजिि करें गे कक यर
मत िारी न रोवे ताकक जिन िीवों को उन्रोंने गफ़लत में डाल रखा रै और
तरर ब तरर की पूिाओं में भरमा रखा रै और उनसे अपने रोज़गार और
आमदनी की सूग्त पैदा कर रखी रै, वे उनके गोल और हुक्म बरदारी से
अलारदा न रो िावें और उनकी पूिा और आमदनी में खलल न पड़े ।

19. हुज़ूर स्वामी िी मराराि ने भी अपनी जिन्दगी जमसल और गृरसथी


संतों के बसर की, और ककसी सत्संगी की भेट और पूिा अपने खाने पीने
या ज़ाती इस्तेमाल में नरीं लाये, और अपना कु ल सरमाया 1 परमाथण में
खरच कर कदया और दुजनया में आला से आला पजवि जज़न्दगी का नमूना
बनकर कदखा कदया । चूकूँ क ज़माना आज़ादी का था, इस वास्ते आपने
कलाम भी जनरायत आज़ादी और बेबाकी2 से फ़माणया रै, और दुजनया में
आपकी मुखालफ़त भी जसफ़ण चन्द अिखास जबरादरी तक री मरदूद थी ।
रर एक मज़रब व जमल्लत के लोग आप पर कदल व िान से फ़रे फ़्ता3 थे ।

आपने उनसठ साल दस मरीने तक िीवों का उद्धार करके आसाढ़ वदी


एकम संवत् 1935 जबक्रमी मुताजबक 15 िून सन् 1878 ई. को अपने
मकान पर पन्नी गली िरर आगरे में चोला छोड़ा ।

आजखरी बचन िो हुज़ूर मुक़द्दम व मुअल्ला ने चोला छोड़ने के मौक़े पर


ज़बाने-मुबारक से अिाणद फ़माणए, नीचे दिण ककये िाते रैं ।

1. पूि
ं ी। 2. जनभणयता । 3. मुग्ध ।
ञ सार बचन

वचन आजखरी
वचन िो कक स्वामी िी मराराि ने आजखरी रोज़ पेितर अन्तर ध्यान
रोने के , वास्ते जरदायत साधूओं, सत्संजगयों व सत्संजगनों के खास ज़बाने
मुबारक से फ़माणये ।

तारीख 15 िून सन् 1878 मुताजबक असाढ़ वदी पड़वा (1) संवत् 1925
जब: रोि िनीचर वि अलस्सबार ।

वचन 1---चनद्रसैन सत्संगी िो कक रर पूनो (पूर्म


ण ासी) को मौज़ा
कु रसंडे से वासते दिणन हुज़ूर स्वामी िी मराराि के आता था, उसको
स्वामी िी मराराि ने पास बुला कर फ़माणया: तुम बैठ िाओ और दिणन
खूब गौर से कर लो और इस स्वरूप को अपने ह्रदय में रख लो क्योंकक
दूसरी पूनों को तुमको दिणन न रोंगे तुम्रारी भजि पूर्ण हुई ।

वचन 2---वि आठ बिे सुबर के स्वामी िी मराराि ने फ़माणया


कक :---अब चलने की तैयारी रै । इसके बाद मराराि ने सुरजत चढ़ाई और
सब भास खैंच जलया, जसफ़ण सफ़ै द डेले आूँखों के पीले रो गये थे । कफर पाव
घंटे के बाद सुरजत उतारी और उस वि यर फ़माणया :---अब मौि कफर
गई, अभी देर रै । तब सेठ प्रताप ससर ने पूछा कक कब की मौि रै ? उस
पर फ़माणया :---कक बाद दोपरर के ।

वचन 3 —कफर भारा ससर साधु और सत्सं जगयों ने कु छ रू पया


भें ट करना िु रू ककया और बन्दगी करने लगे उस पर लाला
िगन्नाथ खिी पड़ोसी कर ने ल गे , कक इस वि मराराि का
भूजमका ट

ध्यान अन्तर में लगने दो, रूपया पेि करने का यर वि नरीं रै । तब


स्वामी िी मराराि ने उसकी तरफ़ मुतवज्ज्र रो कर यर फ़माणया:--- कक
ध्यान इसका नाम रै कक िब चारे तब सुरजत पहुूँचा दो और िब चारे तब
उतार लो, और रमने तो डेरे रात को री पहुूँचा कदये और सुरजत सत्तपुरुष
की गोद में पहुूँचा दी, मगर तुम लोगों से कु छ वचन करने को उतर आये
रैं ।

वचन 4---कफर यर फ़माणया कक तुम िानते रो कक मेरी छ: वषण की


उमर थी िब से मैं परमाथण में लगा हूं तब से यर अभ्यान पका हुआ रै और
यर दृष्टान्त फ़माणया;---कक कच्चा पैराक रो, उनको डू बते वि करो कक अब
तू पैर (तैर) तो उस वि वर क्या पैरेगा वर तो डू बे री गा । और िो
लड़कपन से तैरना सीख ररा रै उसको दरया में डाल दोगे तो वर नरीं
डू बग
े ा और यर देर तो खलड़ी रै, यर तो ककसी की भी नरीं ररी रै । इसका
क्या रै, और जज़न्दगी भर का भिन जसमरन जसफ़ण इसी वास्ते रै कक इस
वि न भूल,े इस वासते ऐसा नाम का अभ्यास करो कक चलते कफरते नाम
न भूले ।

वचन 5---कफर स्वामी िी मराराि ने राय साजरब सालगराम और


कु ल साधुओं व सत्संजगयों व सत्संजगनों की तरफ मुतविर रो कर
फ़माणया:---कक िैसा मुझ को समझते रो वैसा री अब राधा1 िी को
समझना और राधा िी और छोटी माता2 िी को बराबर िानना ।

1. असली नाम माता िी का माता नरायर् देवी िी था । लेककन चूकूँ क सेठ प्रताप
ससर जिन्रोंने यर वचन जलखें रै, उन को राधा िी के नाम से पुकारते थे, इस
वास्ते यारां राधा िी री दरि रै ।
2. छोटी माता िी से मुराद सेठ जबन्द्रावन िी साजरब िो कक हुज़ूर स्वामी िी
मराराि के मंझले भाई थे, की सुपत्नी से रै ।
ठ सार बचन

वचन 6---कफर राधा िी मराराि को हुकम कदया कक जसब्बो3 और


बुक्की3 और जबिनों3 को पीठ न देना ।

वचन 7---सनमुखदास4 को फमाणया:--- कक इसको सब साधुओं का


मरन्त ककया और यर फमाणया:---कक एसी मरन्ती नरीं िैसी दुजनया में
िाराण रै यानी सनमुखदास और जवमलदास साधुओं के अफ़सर हुए और
इन्तज़ाम और बन्दोबस्त साधुओं का इनके तअल्लुक़ ररेगा और बाग में
ठररें और बाग का माजलक “प्रतापा” (सेठ प्रताप ससर) ।

वचन 8---कफर फ़माणया:---कक गरणस्थी अपनी पूिा साधुओं से न करावें।

वचन 9---कफर रद्धी बीबी नें पूछा---कक रमारे वास्ते ककसको तिवीज़
ककया रै ? इस पर फ़माणया :---कक गृरजस्थयों के वास्ते तो राधा िी और
साधुओं के वासते सनमुख दास ।

वचन 10---स्वामी िी मराररि ने फ़माणया:--- कक गृरस्थी औरतें बाग़


में िाकर ककसी साधु की पूिा और सेवा न करें । इन सब को चाजरये कक
राधा िी के दिणन और पूिा करें । कफर फ़माणया:---कक िेर और बकरी को
एक घाट पानी मैनें जपलाया रै और ककसी का काम नरीं रै कक ऐसा करे ।

3. ये तीनों हुज़ूर स्वामी िी मराराि की खास सेजवकायें थी ।


4. िालन्धर िरर के बाजिन्दे हुज़ूर स्वामी िी मराराि के गुरुमुख सेवक थे ।
भूजमका ड

वचन 11---कफर बीबी बुक्की ने अज़ण ककया कक स्वामी िी मुझ को भी


अपने साथ ले चलो । इस पर फ़माणया---कक तुम घबराओ मत तुमको िल्दी
बुला लेंग,े तुम अन्तर में चरनों की तरफ ज़ोर देना ।

वचन 12---कफर सेठ प्रताप ससर नें अज़ण ककया---कक मुझको भी अपने
संग ले चलो । इस पर फमाणया:---कक तुमसे अभी बहुत काम लेना
रै । बाग़ में ररोगे और सत्संग करोगे और कराओगे ।

वचन 13---कफर सुदिणन ससर ने पूछा कक---िो कु छ पुछना रोवे तो


ककस से पूछे ? उस पर फमाणया:---कक जिस ककसी को पूछना रोवे वर
सालगराम से पूछे ।

वचन 14---कफर सेठ प्रताप ससर की मुतरफ तविर रो कर


फमाणया:---कक मेरा मत तो सतनाम और अनामी का था और राधास्वामी
मत सालगराम का चलाया हुआ रै । इसको भी चलने देना और सत्संग
िारी ररे और सत्संग आगे से बढ़कर रोगा ।

वचन 15---कफर फमाणया:---सब सत्संगी खार गृरस्थी या भेष, ककसी


तरर न घबरावें, मैं रर एक के अङ्ग सङ्ग हूं और आगे को सब की सूँभाल
पजरले से जविेष ररेगी ।

वचन 16---कफर फमाणया:---कक कलिुग में और कोई करनी नरीं


बनेगी, के वल सतगुरु के स्वरूप का ध्यान और नाम का जसमरन बनेगा ।
ढ सार बचन

वचन 17---सेठ प्रताप ससर ने अज़ण ककया---कक िब्द खुले । इस पर


फमाणया:---कक धुन का सुनाई देना और उस में आनन्द का प्राप्त रोना, यरी
िब्द का खुलना रै ।

वचन 18---कफर स्वामी िी मराराि ने राधा िी की तरफ मुतविर


रो कर फमाणया:---कक मैंने स्वाथण और परमाथण दोनों में कदम रखा रै यानी
दोनों बरते रैं सो संसारी चाल भी सब करना और साधुओं को भी अपनी
रीजत करने देना ।

वचन 19—कफर स्वामी िी मराराि सेर न में से भीतर कमरे के


तिरीफ ले गये और क़रीब पौने दो बिे बाद दोपरर के अन्तर ध्यान
हुए ।
सूची पि सार बचन छंद बंद

िब्द की टेक पृष्ठ


अंत हुआ िग मासर ००० 379
अंदरूूँ अिण रफ़्ता दीदम नूर ००० 180
अकर अपार अगाध अनामी ००० 8
अगम आरती राधास्वामी गाऊूँ ००० 245
अिब यर बूँगला जलया सिाय ००० 363
अटक तू क्यों ररा िग में ००० 121
अनरद बािे बिे गगन में ००० 94
अपने स्वामी की मैं करत आरती ००० 60
अब खेलत राधास्वामी संग रोरी ००० 358
अब चली तीसर परदा खोल ००० 227
अब चलो सिनी दूसर धाम ००० 226
अब चौथे की करी तयारी ००० 228
अब बरी सुरत मंझधार ००० 154
अब मन आतुर दरस पुकारे ००० 262
अब मैं कौन कु मजत उरझानी ००० 263
अब सतगुरु की आरत गाऊं ००० 48
अब सूरत पूछे स्वामी से ००० 215
अरे मन देख कराूँ संसार ००० 154
अरे मन नसर आई ००० 258
अरे मन रं ग िा सतगुरु प्रीत ००० 137
अली री मथ जनि सपडा ००० 305
दो सार बचन

िब्द की टेक पृष्ठ


आओ री सखी िुड़ रोली गावें ००० 361
आओ री जसमट रे सजखओ ००० 289
आि आरती इक कहूं भारी ००० 43
आि आरती करूूँ सुरावन ००० 248
आि काि मेरे कीन्रें पूरे ००० 281
आि घड़ी अजत पावन भावन ००० 235
आि कदवस सजख मंगल खानी ००० 51
आि बधावा राधास्वामी गाऊूँ ००० 37
आि मेरे आन्नद रोत अपार ००० 76
आि मेरे धूम भई रै भारी ००० 38
आि मैं देखूं घट में जतल को ००० 286
आि सखी काि करो कु छ अपना ००० 138
आि साि कर आरत लाई ००० 52
आनूँद मंगल आि, साि सब ००० 55
आया मास अगरन अब छठा ००० 341
आरत आगे राधास्वामी के कीिे ००० 253
आरत करूूँ आि सतगुरु की ००० 62
आरत गाऊं पाूँच कड़ी की ००० 243
आरत गाऊूँ पूरे गुरु की ००० 239
आरत गाऊूँ सत्तनाम की ००० 243
आरत गाऊूँ स्वामी अगम अनामी ००० 239
आरत गाऊूँ स्वामी सुरत चढ़ाऊूँ ००० 300
आरत गावे दरसो अपनी ००० 60
आरत गावे सेवक तेरा ००० 42
आरत गावे स्वामी दास तुम्रारा ००० 242
सूची पि तीन

िब्द की टेक पृष्ठ

आरत सतगुरु की अब करहूूँ ००० 77


आले में देखा ताक उिाला ००० 326
आजिक़म ज़ाते मुर्शिदे काजमल ००० 183

इक पुरुष अिायब पाया ००० 189
इन्द्री उलट लाओ अब तन में ००० 315

उठी अजभलाखा इक मन मोर ००० 249
उमंग आि हुई जरये में भारी ००० 65
उमंड घुमडं कर खेली रोली ००० 359
उमूँड ररी घट में घटा अपार ००० 311
उलट घट झाूँको गुरु प्यारी ००० 316

एक आरती और बनाऊ ००० 244
एक आरती कहूं बनाई ००० 61
एक जसफत यर वर्ण बताई ००० 7

करत हूं पुकार, आि सुजनये गुरार ००० 263
करूूँ आरती नाना जवजध से ००० 291
करूूँ आरती राधास्वामी, तन मन ००० 56
करूूँ बन्दगी राधास्वामी आगे ००० 1
करूूँ बेनती दोऊ कर िोरी ००० 69
करूूँ बेनती राधास्वामी आि ००० 71
करूूँ मैं आरत सजखयन साथ ००० 288
करूूँ री एक आरत अद्भुत भारी ००० 251
चार सार बचन

िब्द की टेक पृष्ठ

करे आरती सेवक भोला ००० 245


करो री कोई सतसंग आि ००० 111
करां लग कहूं कु रटलता मन की ००० 97
कहूूँ अब गोपी कृ ष्र् जवरार ००० 190
काजतक मास पाूँचवाूँ चला ००० 339
काया नगर में धूम मची रै ००० 358
काल ने िगत अिब भरमाया ००० 85
काल मत िग में फै ला भाई ००० 188
कु मजतया दूर हुई गुरु हुए दयाल ००० 329
कु मजतया बैरन पीछे पड़ी ००० 124
कै सी करूूँ कसक ऊठी भारी ००० 231
कोई मानो रे करन रमारी ००० 120
कोई सुनो रमारी बात ००० 158
कोमल जचत्त दया मन धारो ००० 168
कौन करे आरत सतगुरु की ००० 236
क्योंकर करूं आरती सतगुरु ००० 249
क्यों कफरत भुलानी िगत में ००० 112
कवार मरीना चौथा आया ००० 338

जखज़ां ति देखो मूल बरार ००० 311
खेल ररी मैं जनत बसन्त ००० 357
खोित ररी जपया पंथ, ममण कोइ ००० 365
खोि री जपया को जनि घट में ००० 126
खोलो री ककवजड़याूँ चड़ो री अटररयाूँ ००० 160
सूची पि पाूँच

िब्द की टेक पृष्ठ



गई आि सोच में मेरी सुरत ००० 255
गगन नगर चढ़ आरत करहूं ००० 300
गाऊूँ आरती लेकर थाली ००० 241
गाओ री सखी िुड़ मंगल बानी ००० 303
गुईयाूँ री गुरु समझ मुनावें ००० 80
गुईयाूँ री लख मरम िनाऊूँ ००० 295
गुज़र मेरी कै से रोय सरेली ००० 256
गुमठ चढ़ी मन बरिती ००० 319
गुरु अचरि खेल कदखाया ००० 378
गुरु आन जखलाई घट में रोली ००० 359
गुरु आरत तू कर ले सिनी ००० 289
गुरु आरत जबजध दीन बताई ००० 79
गुरु आरत मैं करने आई ००० 241
गुरु उलटी बात बताई ००० 381
गुरु करो खोि कर भाई ००० 133
गुरु करो मेरर की दृजष्ट ००० 269
गुरु करें खोल कर भाई ००० 161
गुरु करें िगत सब अंधा ००० 149
गुरु करें पुकार पुकार ००० 126
गुरु का अगम रूप मैं देखा ००० 295
गुरु का दरस तू देख री ००० 41
गुरु का मैं दामन पकड़ा ००० 324
गुरु की कर रर दम पूिा ००० 133
छः सार बचन

िब्द की टेक पृष्ट

गुरु की गजत अगम अपारा ००० 322


गुरु की दया ले िब्द सम्रारा ००० 90
गुरु के चरन पर जचत बजलरारी ००० 252
गुरु के दरस पर मैं बजलरारी ००० 41
गुरु के दिणन करने, रम आये ००० 287
गुरु क्यों न सम्रार तेरा नर तन ००० 151
गुरु गरो आि मेरी बजरयाूँ ००० 266
गुरु घाट चलो मन भाई ००० 147
गुरु चरन जबरर मेरे आये ००० 235
गुरु चरन धूर कर अंिन ००० 83
गुरु चरन धूर रम हूइयां ००० 313
गुरु चरनन पर िाऊूँ बजलरार ००० 79
गुरु चरन पकड़ दृढ़ भाई ००० 134
गुरु चरन प्रीत मन रं गा ००० 323
गुरु चरन बसे अब मन में ००० 81
गुरु चेला ब्योरार िगत में ००० 108
गुरु तारें गे रम िानी ००० 150
गुरु दररयाव चलो सुतण सिनी ००० 139
गुरु ध्यान धरो तुम मन में ००० 134
गुरु नाम रटूूँ अंग अंग से ००० 323
गुरु नाम रसायन दीना ००० 307
गुरु जनरखो री, जरये नैन खुलें ००० 369
गुरु ने अब दीन्रा भेद अगम का ००० 320
गुरु ने मोसर दीन्रा नाम सरी ००० 325
गुरु प्रीत बढ़ी जचतवन में ००० 76
सूची पि सात

िब्द की टेक पृष्ठ

गुरु बचन करें सो सुन रे ००० 169


गुरु मता अनोखा दरसा ००० 46
गुरु मारा बचन का बान ००० 320
गुरु जमले अमी रस दाता ००० 286
गुरु जमले परम पद दानी ००० 75
गुरुमुख प्यारा गुरु अधारा ००० 67
गुरु मूरत मेरे मन बस गइयां ००० 331
गुरु मेरे िान जपरान िब्द का दीन्रा दाना ००० 81
गुरु में दाता मैं भई दासी ००० 242
गुरु मेरे दीन दयाल, करी ककरपा धनी ००० 354
गुरु सरन आि मैं पाई ००० 83
गुरु का ध्यान कर प्यारे ००० 143
गुरु की आरत ठानूग ूँ ी ००० 77
गुरु की मौि ररो तुम वार ००० 137
गुरु को ऊपर ऊपर गाता ००० 257
गुरु गुरु मैं जररदे धरती ००० 72
गुरु पै डालूं तन मन वार ००० 285
गुरु जबन कभी न उतरे पार ००० 144
गुरु जबन कौन उबारे गा ००० 144
गुरु मैं गुनरगार अजत भारी ००० 237
गुरु मोसर अपना रूप कदखाओ ००० 274
गुरु मोसर दीिे अपना धाम ००० 273
गुरु मोसर दीन्री अमृत रास ००० 321
गुरु मोसर भेद कदया पूरा ००० 325
गुरु संग खेलूूँ जनस कदन पास ००० 330
गुरु संग िागन का फल भारी ००० 372
आठ सार बचन

िब्द की टेक पृष्ठ

गुरु सोई िो िब्द सनेरी ००० 105


गूग
ूँ े ने गुड़ खाइया ००० 384
गूिरी चली भरन गगरी ००० 259
गोरी जखली श्याम दल कजलयां ००० 312

घट औघट झाूँका री सिनी ००० 253
घट कपट दूर कर भाई ००० 207
घट का पट खोल कदखाओ ००० 276
घट चमन जखला उजियारी ००० 317
घट झम ररी अब सुरत रं गीली ००० 302
घट भीतर तू िाग री, रे सुरत पुरानी ००० 368
घट में अब िोर मचाय ररी ००० 317
घट में खेलूूँ अब बसन्त ००० 356
घट में चढ़ खेल कबडी ००० 168
घन गरि सुनवात गररी ००० 164
घर आग लगावे सखी सोई सीतल ००० 108
घामर घूमर करूूँ आरती ००० 245
घुड़ दौड़ करूूँ मैं घट में ००० 370
घुमर चल सुरत घोर सुन भारी ००० 162
घूूँघट खोल चली सुतण दुलजरन ००० 308
घोर सुन चढ़ी सुरत गगना ००० 321

चढ़ झाूँको गगन झूँझररया ००० 161
चढ़ सुरत गगन की घाटी ००० 162
सूची पि नौ

िब्द की टेक पृष्ठ

चढ़ो री घट देखो मौि भली ००० 310


चढ़ो री सखी अब अगम अटारी ००० 201
चमकन अब लागी घट में जबिली ००० 309
चमन को चीन्र री बुलबुल ००० 166
चमररया चार बसी घट माजर ००० 256
चरन गुरु जररदे धार ००० 59
चल अब सिनी जपया के देि ००० 369
चल री सुरत अब गुरु के देि ००० 114
चल सुरत देख नभ गजलयाूँ ००० 297
चली सुरत अब गगन गली री ००० 299
चलो री सखी अब आलस छोड़ ००० 328
चलो री सखी आि जपया से जमलाऊूँ ००० 155
चलो री सखी जमल आरत गावें ००० 4
चार खान चौपड़ िग रची ००० 186
चुनर मेरी मैली भई ००० 232
चेत चल िगत से बौरे ००० 118
चेत चली आि सुरत रूँ गीली ००० 299
चेत चलो यर सब िंिाल ००० 115
चेत मरीना आया चेत ००० 348
चेतो मेरे प्यारे तेरे भले की कहूं ००० 141
चेतो रे िम िाल जबछाया ००० 156
चौका बरतन ककया अचंभी ००० 387

छु टूं मैं कै से इस मन से ००० 254
दस सार बचन

िब्द की टेक पृष्ठ


ि
िग िाग्रत भौ दुखमूल ००० 213
िग में घोर अूँधरे ा भारी ००० 114
िगत भाव भय लिा छोड़ो ००० 104
िगत से चेतन ककस जवजध रोय ००० 124
िाग चल सूरत सोई बहुत ००० 111
िाग री उठ खेल सुराजगन ००० 233
िाग रे मन छोड़ बखेड़ा ००० 246
िागो री सुरत अब देर न करो ००० 155
िीव जचताय ररे राधास्वामी ००० 68
िीव जचतावन आये राधास्वामी ००० 281
िुगजनयाूँ चढ़ी गगन के पार ००० 39
िेठ मरीना िेठ भारी ००० 351
िोड़ो री कोई सुरत नाम से ००० 123

झंझररया झांको जवरर उमगाय ००० 110

ठु मरी अब करी रै बखानी ००० 377

डगर मेरी रोक लई या ज़़ुल्मी काल ००० 259

तिो मन यर दुख सुख का धाम ००० 119
जतल भीतर कदल िोड़ ००० 64
तुम दीपक मैं भइ हूं पतंगा ००० 54
सूची पि ग्यारर

िब्द की टेक पृष्ठ

तुम धुर से चल कर आये ००० 271


तुम साध करावत कै से ००० 131
तू देख उलट कर मन में ००० 148
त्याग चल सिनी िग की धार ००० 164

दमजनयाूँ दमक ररी घट मासर ००० 310
दम्पत आरत करूं राधास्वामी ००० 247
दया गुरु की अब हूइ भारी ००० 244
ददण दुखी जियरा जनत तरसे ००० 232
ददण दुखी मैं जवररन भारी ००० 230
दिणन की प्यास घनेरी ००० 277
कदखाया रूप मनोरर गुरु ने ००० 327
दुलरनी करो जपया का संग ००० 167
देओ री सखी मोसर उमंग बधाई ००० 37
देखत ररी री दरस गुरु पूरे ००० 41
देखन चली बसंत अगम पर ००० 357
देख जपयारे मैं समझाऊूँ ००० 275
देखो गगन के बीच, श्याम कं ि जखल ररा ००० 191
देखो देखो सखी अब चल बसंत ००० 355
देखो सब िग िात बरा ००० 119
दौड़त गई गगन के घेरे ००० 330

धन्न धन्न धन धन्न जपयारे ००० 87
धाम अपने चलो भाई ००० 152
धीरि धरो बचन गुरु गरो ००० 279
बारर सार बचन

िब्द की टेक पृष्ठ

धुन धुन धुन डालूूँ अब मन को ००० 377


धुन में अब सुरत लगाओ ००० 167
धुन सुन कर मन समझाई ००० 93
धुन से सुरत भइ न्यारी रे ००० 110
धुजबया गुरु सम और न कोय ००० 328
धूम धाम से आइ इक सिनी ००० 250
धोखा मत खाना िग आय जपयारे ००० 105
धोखे में सब िग िात पचा ००० 195

नगररया झाूँक ररी मैं न्यारी ००० 45
नाम दान अब सतगुरु दीिे ००० 268
नाम धुन सुनो िब्द धुन गुनो ००० 159
नाम जनर्णय करूूँ भाई ००० 95
नाम रस चखा गुरु संग सार ००० 96
नाम रस पीवो गुरु की दात ००० 269
नाल नभ तकी रोय न्यारी ००० 322
जनरखो री कोई उठ कर जपछली रजतयाूँ ००० 373
नैन कं वल गुरु ताक ००० 139

पंचम कक़ला तख़्त सुल्तानी ००० 229
पजिचम ति पूरब चल आया ००० 294
पाय गई राधास्वामी, रो गई सुराग भरी ००० 364
पीया दरसत भइ री जनराल ००० 332
जपया जबन कै से िीऊं मैं प्यारी ००० 231
जपया जबन प्यारी कै से रोय जनबार ००० 192
सूची पि तेरर

िब्द की टेक पृष्ठ

पूस मरीना िाड़ा भारी (पूस मास) ००० 343


प्रथम असाढ़ मास िग छाया (असाढ़ मास) ००० 333
प्रेम प्रीत घट धार आरती राधास्वामी ००० 63
प्रेम प्रीत घट भीतर आई ००० 293
प्रेम भरी मेरी घट की गगररया ००० 304
प्रेजमन दूर देि से आई ००० 287
प्रेमी सुनो प्रेम की बात ००० 80

फागुन मास रूँ गीला आया ००० 346
फै ल ररी सुतण बहु जवजध िग में ००० 260

बंझा ने बालक िाया ००० 197
बूँधे तुम गाढ़े बंधन आन ००० 117
बहुररया धूम मचावम आई ००० 295
बैसाख मरीना जसर पर आया ००० 349
बोल री राधा प्यारी बंसी ००० 307

भइ रै सुरत मेरी आि सुराजगन ००० 282
भजि अब करो मेरे भाई ००० 155
भजि मरात्म सुन मेरे भाई ००० 103
भिन कर मगन ररो मन में ००० 157
भर भर प्रेम आरती गाउं ००० 58
भरमी मन को लाओ रठकाने ००० 375
भादों मास तीसरा िारी ००० 336
भूजमका ००० क
चौदर सार बचन

िब्द की टेक पृष्ठ

भेद आरती सुन सजख मो से ००० 130


भोग धरे राधास्वामी आगे ००० 388

मंगल मूल आि की रिनी ००० 329
मंगलाचरर् ००० 1
मत देख पराये औगुन ००० 115
मन और सुरत चढ़ाओ जिकु टी ००० 295
मन घोटो घट में लाई ००० 163
मन चंचल करा न माने ००० 255
मन बजनया बनत बनाई ००० 324
मन बोला सुतण से कफर ऐसे ००० 261
मन मारो तन को िारो ००० 152
मन रे क्यों गुमान अब करना ००० 123
मन रे मान बचन इक मेरा ००० 260
मन सींचो प्रेम ककयारी ००० 386
मन सोधो घट में श्बद संग ००० 314
माूँगू इक गुरु से दाना ००० 272
माघ मरीना अजत रस भरा ००० 344
माजलनी लाई ररवा गूथ ूँ ००० 327
जमि तेरा कोई नरीं सूँजगयन में ००० 116
जमली नर देर यर तुम को ००० 121
मुरजलया बाि ररी कोई सुने संत ००० 307
मुर्शिदा आजिक़े दीदार िमालत गितम ००० 178
मुसाकफ़र ररना तुम हुजियार ००० 116
मेरी पकड़ो बाूँर रे सतगुरु ००० 237
सूची पि पंद्रर

िब्द की टेक पृष्ठ

मेरी सुरत राधास्वामी िोड़ी ००० 360


मेरे उर में भरे दुख साल ००० 297
मेरे गुरु ने जखलाई प्रेम सूँघ रोरी ००० 359
मेरे घट का कदया गुरु ताला खोल ००० 314
मेरे जपया की अगम रैं गजतयां ००० 332
मेल करो जनि नाम गुसइयां ००० 375
मैं कहूूँ कौन से भाई ००० 189
मैं कौन कु मजत उरझाना ००० 84
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की ००० 13
मैं भई अगम की दासी ००० 322
मैं भूली सतगुरु स्वामी ००० 194
मैं जलखूं गुरु को पाती ००० 272
मैं सतगुरु संग करूूँगी आरती ००० 229
मैं सुनूं कथा जनत घट की ००० 325
मोसर जमला सुराग गुरु का ००० 234
मौि इक धारी सतगुरु आि ००० 308
मौि करूूँ अब घट में बैठ ००० 314
मौत डर जछन जछन व्यापे आई ००० 267
मौत से डरत ररो कदन रात ००० 117

यर आरत दासी रची ००० 54
यर तन दुलभ ण तुम ने पाया ००० 127
यराूँ तुम समझ सोच कर चलना ००० 122

रात िगूूँ मैं सुन कर खड़का ००० 388
सोलर सार बचन

िब्द की टेक पृष्ठ

राधास्वामी आकद सुरत का नाम ००० 8


राधास्वामी आय प्रगट हुए िब से ००० 23
राधास्वामी का दरस मैं आि करूूँगी ००० 40
राधास्वामी घर बाढ़ो रं ग ००० 361
राधास्वामी झूलत आि सरडोला ००० 363
राधास्वामी दया प्रेम घट आया ००० 62
राधास्वामी धरा नर रूप िगत में ००० 6
राधास्वामी नाम, िो गावे सोई तरे ००० 1-व-8
राधास्वामी नाम, जसफत करूूँ इस नाम की ००० 7
राधास्वामी नाम सुनाया राधास्वामी ००० 19
राधास्वामी मेरे ससध गम्भीर ००० 50
राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी गाऊूँ ००० 240
राधास्वामी जलया अपनाय सखी री ००० 28
रोम रोम मेंरे तुम आधार ००० 69

लगाओ मेरी नइया सतगुरु पार ००० 277
लाई आरती दासी सि के ००० 291
लाि िग काि जबगाड़ा री ००० 115
लोभ री खुवजनयाूँ काम री दलजनयाूँ ००० 160

जवररनी गुरु की सरन सम्रार ००० 146
ि
िब्द की करी न कोई कमाई ००० 132
िब्द की करो कमाई दम दम ००० 91
िब्द धुन सुनी असमानी ००० 304
सूची पि सतरर

िब्द की टेक पृष्ठ

िब्द ने रची जिलोकी सारी ००० 88


िब्द जबना सारा िग अंधा ००० 91
िब्द संग बाूँध सुरत का ठाट ००० 92
िब्द संग लगी सुरत की डोर ००० 312
िोभा देखूूँ मैं अब गुरु की ००० 330

संत दास की आरती सुनो राधास्वामी ००० 283
संदेि (वार्शत्तक) ००० 2
सखी चल देख बरार जपया की ००० 369
सतगुरु आरत लीन्र ससगारी ००० 211
सतगुरु करें करो तुम सोई ००० 136
सतगुरु का नाम पुकारो ००० 135
सतगुरु की अब करूूँ आरती ००० 251
सतगुरु खोिो री प्यारी ००० 109
सतगुरु मेरी सुनो पुकार ००० 270
सतगुरु मैं पूरे पाय ००० 313
सतगुरु संग आरत करना ००० 236
सतगुरु संत जमले राधास्वामी ००० 284
सतगुरु सरन गरो मेरे प्यारे ००० 82
सतगुरु से करूूँ पुकारी ००० 277
सतसंग करत बहुत कदन बीते ००० 140
सब की आकद िब्द को िान ००० 88
समझ कर चल िगत खोटा ००० 153
सात कड़ी की आरत फे रूं ००० 243
सावन आया मास दूसरा ००० 334
सावन मास आस हुइ झूलन ००० 362
अठारर सार बचन

िब्द की टेक पृष्ठ

सावन मास सुराजगन आई ००० 362


जसफ़त तीसरी करूूँ बखाना ००० 8
जसफ़त राधास्वामी नाम की ००० 7
सुख समूर अन्तर घट छाया ००० 47
सुखमन िाय मन हुलसाना ००० 306
सुन गुरु बचन करें िो तुझ से ००० 195
सुन री सखी इक ममण िनाऊूँ ००० 383
सुन री सखी चढ़ मरल जवराि ००० 170
सुन री सखी तोजर भेद बताऊूँ ००० 225
सुन रे मन अनरद बैन ००० 149
सुन्नी सुरत िब्द जबन भटकी ००० 366
सुरत अब घूम चली तन छोड़ जनदान ००० 313
सुरत अब चढ़ो नाम रं ग लाग ००० 164
सुरत अब चली ऐन में पैन ००० 309
सुरत अब िाना जनि घर अपना ००० 303
सुरत अब िब्द मासर जनत भरना ००० 93
सुरत अब सार सम्रालो नाम ००० 166
सुरत आि चली आरती धार ००० 65
सुरत आि झूल ररी गुरु जमले झुलावन रार ००० 364
सुरत आि मगन भई ००० 305
सुरत आि लगी चरन गुरु धाय ००० 58
सुरत उठ िागी चरन सम्रार ००० 329
सुरत की आि लगा दे तारी ००० 275
सुरत को जमला खज़ाना नाम ००० 315
सुरत को साध, छबीली रो मगनी ००० 166
सुरत क्यों हुई कदवानी ००० 146
सूची पि उन्नीस

िब्द की टेक पृष्ठ

सुरत घर खोि री ऋतु जमलन जमली ००० 368


सुरत चढ़ी घट में अब दौड़ी ००० 302
सुरत चल बावरी, क्यों घर जबसराया ००० 367
सुरत तू कौन कराूँ से आई ००० 110
सुरत तू कौन कु मजत उरझानी ००० 113
सुरत तू क्यों न सुने धुन नाम ००० 111
सुरत तू चढ़ िा तुरत गगन को ००० 164
सुरत तू चेत री अब सावन आया ००० 362
सुरत तू दुखी ररे रम िानी ००० 113
सुरत धुन धार री ति भोग ००० 145
सुरत नसर चढ़े करा कररये ००० 150
सुरत ने िब्द गरा जनि सार ००० 326
सुरत बसाओ िब्द में ००० 280
सुरत बुद
ं सत ससध ति ००० 188
सुरत मेरी चढ़ गई गगन अटररयां ००० 363
सुरत मेरी दुजवधा आन छली ००० 214
सुरत मेरी धोय डालो ००० 274
सुरत मेरी हुई िब्द रस माती ००० 303
सुरत रत घोर सुनावत भारी ००० 371
सुरत संग सतगुरु धोवत मन को ००० 147
सुरत सखी आि करत आरती ००० 56
सुरत सरेली नभ पर खेली ००० 296
सुरत सुन बात री तेरा धनी बसे आकाि ००० 145
सुरजतया गगन चढ़ाई लो मीत ००० 169
सुतण चली धुलावन काि ००० 233
बीस सार बचन

िब्द की टेक पृष्ठ

सुतण पजनरारी सतगुरु प्यारी ००० 311


सुतण बन्नी गुरु पाया बन्ना ००० 375
सुतण भरी अगम िल गगरी ००० 323
सूरत सरकत पार, वार त्याग देरी तित ००० 318
सूरमा सुरत हुई गुरु देख प्रताप ००० 328
सोचत करा सजख कर ले आरत ००० 130
सोचत ररी री बेचन ै , रै न कदन बहु ००० 278
सोच ररी री मौि की बजतयां ००० 332
सोच ले प्यारी अस जमला िोग ००० 325
सोता मन कस िागे भाई ००० 125
सोधत सुरत िब्द धुन अंतर ००० 374
सोया भाग मेरा िागा आि सखी ००० 234
स्वामी उठे और बैठे भिन में ००० 386
स्वामी सुनो रमारी जबनती ००० 71

रंसनी क्यों पीवे तू पानी ००० 165
रंसनी छानो दूध और पानी ००० 165
जरत कर करता सुन सुतण बात ००० 112
जरदायत नामा (वार्शत्तक) ००० 170
जररदे में गुल पौद जखलानी ००० 301
हुआ मन आि दुखदाई ००० 257
रे राधा तुम गजत अजत भारी ००० 49
रे जवद्या तू बड़ी अजवद्या ००० 209
रे सरेली अब गुरु के मारग चलना ००० 112
रे सरेली आली मौि करी अब भारी ००० 292
बचनों का सूची पि

बचन जवषय पृष्ठ

1 मंगलाचरर् संदि े आरती ००० 1


2 जसफ़त राधास्वामी नाम की ००० 7
3 मजरमा राधास्वामी ००० 8
4 मजरमा दिणन परम पुरुष राधास्वामी ००० 37
5 भेद मागण और िोभा सत्तलोक ००० 42
6 आरती परम पुरुष राधास्वामी ००० 48
7 जबनती ००० 69
8 मजरमा सतगुरु ००० 72
9 मजरमा िब्द ००० 87
10 जनर्णय नाम ००० 95
11 मजरमा सतसंग ००० 97
12 मरातम भजक्त्त ००० 103
13 पजरचान पूरे गुरु और परमाथी की ००० 105
14 जचतावनी भाग 1 ००० 110
15 जचतावनी भाग 2 ००० 115
16 जचतावनी भाग 3 उपदेि सतगुरु भजि ००० 127
17 जचतावनी भेखों को भाग 4 ००० 131
18 उपदेि सतगुरु भजि ००० 133
20 उपदेि िब्द अभ्यास ००० 141
21 जरदायतनामा, गज़ल फ़ारसी व तरिुमा ००० 155
22 भेद काल मत व दयाल मत का ००० 186
बाईस सार बचन

बचन जवषय पृष्ठ

23 राल उत्पजत्त प्रलय ००० 197


24 माया संवाद ००० 200
25 वर्णन भूल वेदांत मत ००० 210
26 सुरत संवाद ००० 214
27 वर्णन राल जवरर और खोि सतगुरु ००० 229
28 वर्णन आन्नद जवलास प्राजप्त सतगुरु ००० 233
29 प्राथणना ००० 236
30 आरती ००० 239
31 वर्णन मन इजरद्रयों के जवकार ००० 253
32 प्राथणना सुरत की मन से और िवाब ००० 260
33 फ़याणद और पुकार ००० 262
34 प्राजप्त मेरर और दया सतगुरु ००० 281
35 चढ़ना सुरत और लीला मुक़ामात ००० 291
36 प्राजप्त िब्द और मुक़ामात ००० 311
37 प्राजप्त िब्द और िुकराना सतगुरु ००० 320
38 बारर मासा ००० 333
39 बसन्त व रोली ००० 355
40 सावन सरडोला व झूला ००० 362
41 फु टकल िब्द ००० 365
42 सेवा बार्ी ००० 386
देिना (Index) ००० 389
राधास्वामी दयाल की दया
राधास्वामी सराय
सोरठा
राधास्वामी नाम, िो गावे सोई तरे ।
कल1 कलेि सब नाि, सुख पावे सब दुख ररे ।।1।।
ऐसा नाम अपार, कोई भेद न िानई ।
िो िाने सो पार, बहुरर2 न िगमें िन्मई ।।2।।

दोरा
राधास्वामी गाय कर, िनम सुफल कर ले ।
यरी नाम जनि नाम रै, मन अपने धर ले ।।3।।
बैठक स्वामी3 अद्भुती, राधा4 जनरख जनरार ।
और न कोई लख सके , िोभा अगम अपार ।।4।।
गुप्त रूप िरूँ धाररया, राधास्वामी नाम ।
जबना मेरर5 नसर पावई, िराूँ कोइ जबसराम ।।5।।

।। मंगलाचरर् ।।
करूूँ बन्दगी राधास्वामी आगे । जिन परताप िीव बहु िागे ।।1।।
बारम्बार करूूँ परनाम । सतगुरु पदम6 धाम सतनाम ।।2।।
आकद अनाजत िुगाकद अनाम । संत स्वरूप छोड़ जनि धाम ।।3।।

1. काल । 2. कफर । 3. कु ल माजलक आकद िब्द । 4. आकद सुरत ।


5. दया । 6. सेत कूँ वल ।
2 सार बचन बचन 1

आये भव िल नाव लगाई । रम से िीवन जलया चढ़ाई ।।4।।


िब्द दृढ़ाया सुरत बताई । करम भरम से जलया बचाई ।।5।।

दोरा

कोरट कोरट करूूँ बन्दना, अरब खरब दंडौत ।


राधास्वामी जमल गये, खुला भजि का सोत1 ।।

चौपाई

भजि सुनाई सबसे न्यारी2 । वेद कतेब3 न ताजर जबचारी ।।1।।


सत्तपुरुष चौथे पद बासा । संतन का वराूँ सदा जबलासा ।।2।।
सो घर दरसाया गुरु पूरे । बीन बिे िरूँ अचरि तूरे4 ।।3।।
आगे अलख पुरुष दरबारा । देखा िाय सुरत से सारा5 ।।4।।
जतस पर अगम लोक इक न्यारा । संत सुरत कोई करत जबरारा ।।5।।
तराूँ से दरसे अटल6 अटारी7 । अद्भुत राधास्वामी मरल सूँवारी ।।6।।
सुरत हुई अजत कर मगनानी । पुरुष अनामी िाय समानी ।।7।।

।। बचन परला ।।
संदेि

संदि े 8 ---प्रगट रोना परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी का संत


सतगु रु रूप धार कर वास्ते उद्धार िीवों के ।।
सुनावना अजधकारी को इस संदे ि का कक परम पु रु ष धनी
राधास्वामी िीवों को मरा दुखी और भरम में भू ला हुआ दे ख कर

1. भं डार । 2. पृ थ क । 3. मिरबी ककताबें । 4. आवाि एक तरर के बािे


की । 5. तत्व वस्तु । 6. िो कभी नाि न रो । 7. सब से ऊपर का
मकान । 8. खबर ।
बचन 1 संदि
े 3

आप उनके उद्धार के जनजमत्त1 संत सतगुरु रूप धारर् करके प्रगट हुये और
अजत दया करके भेद अपने जनि स्थान का और युजि उसके प्राजप्त की सुरत
िब्द के मागण2 से उपदेि करते रैं । िीवों को चाजरये कक उनके चरर् कूँ वल
में प्रेम करें ।।
इस मागण की कमाई से मन बस में आवेगा और जसवाय इसके दूसरा
कोई उपाव मन के जनश्चल और जनमणल करके चढ़ाने का आकाि के परे
इस कलयुग में जनश्चय करके नरीं रै । जितने मत संसार में प्रवृत 3 रैं, उन
सब का जसद्धांत4 संतो की पजरली मंजिल5 जनरायत दूसरी मिल तक
खतम6 रो िाता रै । िो सुरत िब्द का अभ्यास जवजध पूवणक बन आवे तो
मन और सुरत जनमणल रोकर और िब्द को पकड़ के आकाि के परे िो
घट घट में व्यापक रै, चढ़ेंगे और नौद्वार अथवा सपड देि को छोड़ कर
ब्रह्मांड यानी जिकु टी में पहुंचेंगे और वराूँ से सुरत मन से अलग रोकर
आगे चलेगी और सुन्न और मरासुन्न के जबलास देखती हुई और सत्त लोक
और अलख लोक और अगम लोक में दिणन सत पुरुष और अलख पुरुष
और अगम पुरुष का करती हुई राधास्वामी के जनि देि में प्राप्त रोगी ।
इसी स्थान से आकद में सुरत उतरी थी और जिलोकी में आकर कालके
िाल में फूँ स गई थी सो उसी स्थान पर कफर िा पहुंचेगी । सुरत िब्द
मागी को यर सब स्थान यानी जवष्र्ु -लोक और जिव-लोक और ब्रह्म-
लोक और िजि-लोक और कृ ष्र्-लोक और राम लोक और ब्रह्म और
पारब्रह्म पद और िैजनयों का जनवाणर् -पद और ईसाईयों का मकाम-खुदा
और रूहुल क़ु द्स का जनवाणर् -पद और ईसाईयों का मुकाम-ख़ुदा और
रूहुल क़ु द्स8 और मुसलमानों के आलमे मलकू त 9 और िबरूत10 और

1. वास्ते । 2. रास्ते । 3. िारी । 4. आजखरी पद । 5. स्थान ।


6. पूरा । 7. अभ्यासी । 8. पजवि आत्मा । 9. देव लोक, िरां के वल
कफररिते ररते रैं । 10. सुषुजप्त ।
4 सार बचन बचन 1

लाहूत1 सुन्न के नीचे नीचे रास्ते में पड़ेंगे । यर सब लीला देखती हुई सुरत
संतों के प्रताप से अपने जनि देि को प्राप्त रोगी ।

।। िब्द परला ।।

आरती

चलो री सखी जमल आरत गावें । ऋतु बसंत आये पुरुष पुराने ।।1।।
अलख अगम का भेद सुनावें । राधास्वामी नाम धरावें ।।2।।
सुरत िब्द की रे ल चलावें । िीव चढ़ाय अगम पुर धावें ।।3।।
सतसूँग धारा जनतजर बरावें । राधास्वामी जछन जछन गावें ।।4।।
उमूँग उमूँग जरया भेंट चढ़ावें । काल िाल दुख दूर बरावें ।।5।।
ऐसे समरथ पुरुष अपारा । दृजष्ट िोड़ रहुं दिण अधारा ।।6।।
पल पल खटकत जवरर करारी2 । िस हूलत3 कोइ सेल4 कटारी ।।7।।
जबन देखे दीदार5 न मानूूँ । िग संसार सभी जवष िानूूँ ।।8।।
अमृत कुं ड रूप राधास्वामी । अचऊूँ6 जछनजछन तबमन मानी ।।9।।
जबन राधास्वामी मोसर कछु न सुरावे । चार लोक मेरे काम न आवे ।।10।।
ज्ञान ध्यान और िोग बैरागा । तुच्छ7 समझ मैनें इनको त्यागा ।।11।।
मैं तो चकोर चंद राधास्वामी । नसर भावे सतनाम अनामी ।।12।।
जबन िल मछली चैन न पावे । कं वल जबना अल8 क्यों ठररावे ।।13।।
स्वाूँजत जबना िैसे पजपरा तरसे । सुत जवयोग माता नसर सरसे9 ।।14।।
अस अस राल भया अब मेरा । कासे बरनूं कोऊ न रेरा10 ।।15।।
दान देयं तो दें राधास्वामी । और न कोई ऐसा अंतरिामी ।।16।।
ऐसी भजि रोय इक रं गी । काटे बन्धन मन बहुरं गी ।।17।।

1. तुररया । 2. तीब्र, तेज़ । 3. छेदता रै । 4. बरछा । 5. दरिन ।


पान करूूँ, जपऊूँ । 7. ओछा । 8. भूँवरा । 9. मगन रोती रै ।
10. पजरचानता ।
बचन 1 आरती 5

राधास्वामी राधास्वामी जनत गुन गाऊूँ । चरन सरनपर जरया उमगाऊूँ।।18।।


कराूँ लग बरनूं मेरर अपारा । कदन कदन रोवत मौि1 जनयारा ।।19।।
िगत िीव करा2 समझे लीला । देख देख रंसन जचत सीला3 ।।20।।
अब के दाव पड़ा मोरा सिनी । िब आयो राधास्वामी की सरनी।।21।।
खुल गये भजि प्रेम भडांरा । कोरटन िीव का रोय उधारा ।।22।।
चहुं कदस धूम पड़ी अब भारी । काल नगर मानो4 दे रैं उिाड़ी ।।23।।
स्वामी दयाल मौि ऐसी धारी । दीन रोय जतस लेरैं उबारी ।।24।।
मैं कककर उन चरनन दासा । सब िीवन को देऊूँ कदलासा5 ।।25।।
बाूँध सुरत चरनन में राखो । अगम अपार अमी रस चाखो ।।26।।
रंस सभा करा बरनूं सोभा । रोवत िराूँ िब्दन की बरषा ।।27।।
चमकत जबिली गरि अकािा । और करा कहुं9 अिब तमािा ।।28।।
बंकनाल के नाले छू टे । सुखमन नकदयाूँ भरम पुल टू टे ।।29।।
जिकु टी घाट बैठ मल धोई । मान सरोवर दुरमत खोई ।।30।।
रंस रूप रोय सुरत समानी । िब्द अगम धुन अंतर िानी ।।31।।
मरासुन्न के ऊपर गािी7 । राधास्वामी रो गये राज़ी ।।32।।
भूँवरगुफा की जखड़की खोली । सत्तपुरुष की सुन लइ बोली ।।33।।
रंस सभी अगवानी धाये । अलख लोक से लेवन आये ।।34।।
सुरत जसरोमन पहुंची धाई । अलख पुरुष का दिणन पाई ।।35।।
नाना जवजध िराूँ बित बधाई । रंस सभी जमल आरत गाई ।।36।।
अगम लोक िाय झंडा गाड़ा । अगम पुरुष का भेद उघाड़ा8 ।।37।।
वराूँ का मरम न कोई आखा । जबरले संत गुप्त कर भाखा ।।38।।
िीव दया अब अजत कर आई । राधास्वामी खुल क़र गाई ।।39।।

1. दया की धार । 2. क्या । 3. जचत्त की िांजत । 4. िैसे । 5.दरिन ।


6. पान करूूँ, जपऊूँ । 7. ओछा । 8. भूँवरा । 9. मगन रोती रै ।
10. पजरचानता ।
6 सार बचन बचन 1

मानो रे मानो िीव अभागी । राधास्वामी करर रैं सभागी ।।40।।


धाओ दौड़ो पकड़ो चरना । िैसे बने तैसे आओ सरना ।।41।।
कफर औसर1 नसर पाओ रे ऐसा । अब कारि करो िैसा रे तैसा ।।42।।
छोड़ो कमण धमण पाखंडा । सुरत चढ़ा फोड़ो ब्रह्मण्डा ।।43।।
िब रोवे जरये सुरत अखंडा । पहुंचे सत्तलोक सचखंडा ।।44।।
वराूँ से अलख लोक को धावे । अगम लोक में िाय समावे ।।45।।
अगम पुरुष का दिणन करई । अद्भुत रूप सुरत िब धरई ।।46।।
रंसा पाूँजत2 िोड़ िराूँ बैठे । झुड
ं झुड
ं ररें इकट्ठे ।।47।।
अरबन खरबन भान3 उिारा । करा कहुं सोभा भूजम4 अपारा ।।48।।
कूँ वलन क्यारी चहुं कदस5 लागी । झालर मोती झुम झुम6 आगी ।।49।।
राग रं ग धुन अजत झनकारा । अमी सरोवर7 भरे रैं अपारा ।।50।।
रीरे लाल रतन की धरती । चाूँद सुरि की चादर तनती8 ।।51।।
िराूँ राधास्वामी का तख़्त9 जबरािे । रंस मंडली अद्भुत रािे ।।52।।
धूम धाम जनत रोत सवाई10 । आनंद मंगल कदन प्रजत गाई ।।53।।
ऐसा देि रचा राधास्वामी । जनि भिन को करें जबसरामी ।।54।।

।। िब्द दूसरा ।।

राधास्वामी धरा नर रूप िगत में । गुरु रोय िीव जचताये ।।1।।
जिन जिन माना बचन समझ के । जतनको संग लगाये ।।2।।
कर सतसूँग सार रस पाया । पी पी तृप्त अघाये11 ।।3।।
गुरु सूँग प्रीत करी उन ऐसी । िस चकोर चन्दाये ।।4।।
गुरु जबन कल नसर पड़त घड़ी इक । दम दम मन अकु लाये12 ।।5।।
िब गुरु दिणन जमलें भाग से । मगन रोत िस बछड़ा गाये ।।6।।
ऐसी प्रीत लगी जिन गुरुमुख । सो सो गुरु अपनाये ।।7।।

1. समय । 2. पंजि । 3. सूयण । 4. िगर । 5. कदिा । 6. लटकती हुई ।


7. ताल । 8. फै ल हुई । 9. ससरासन । 10. अजधक । 11. तृप्त रो गये ।
12. घबराये ।
बचन 2 जसफ़त राधास्वामी नाम की 7

तन की लगन भोग इन्द्री के । जछन में सब जबसराये1 ।।8।।


गुरु की मूरत बसी जरये में । आठ परर गुरु संग रराये ।।9।।
अस गुरु भजि करी जिन पूरी । ते ते नाम समाये ।।10।।
स्वाूँजत बूद
ूँ िस रटत2 पपीरा । अस धुन नाम लगाये ।।11।।
नाम प्रताप सुरत अब िागी । तब घट िब्द सुनाये ।।12।।
िब्द पाय गुरु िब्द समानी । सुन्न िब्द सत िब्द जमलाये ।।13।।
अलख िब्द और अगम िब्द ले । जनि पद राधास्वामी आये ।।14।।
पूरा घर पूरी गजत पाई । अब कु छ आगे करा न िाये ।।15।।

।। बचन दूसरा ।।
जसफ़त राधास्वामी नाम की

।। जसफ़त पजरली ।।

सोरठा

राधास्वामी नाम, जसफ़त3 करूूँ इस नाम की ।


सुनो कान ते आन4 जभन्न, जभन्न5 वर्णन करूूँ ।।1।।
पाूँच अक्षर आये जरन्दी में । िबाूँ6 फ़ारसी अक्षर दस में ।।2।।
पाूँच िब्द का भेद बतावें । दस मुक़ाम को ले पहुंचावें ।।3।।

।। जसफ़त दूसरी ।।

एक जसफ़त यर वर्ण7 बताई । जसफ़त दूसरी खुल कर गाई ।।1।।


राधा धुन का नाम सुनाऊूँ । स्वामी िब्द भेद बतलाऊूँ ।।2।।
धुन और िब्द एक कर िानो । िल तरं ग सम भेद न मानो ।।3।।

1. भूले । 2. सुजमरता रै । 3. मजरमा । 4. आ करके । 5. िुदा ।


6. भाषा । 7. बयान करके ।
8 सार बचन बचन 3

।। जसफ़त तीसरी ।।

जसफ़त तीसरी करूूँ बखाना । सुनो जचत्त से देकर काना ।।1।।


राधा प्रीत लगावन रारी1 । स्वामी प्रीतम नाम करा री ।।2।।
यर भी जसफ़त बताय दई । राधास्वामी सुरत िब्द गाया री ।।3।।
।। जसफ़त चौथी ।।
राधा आकद सुरत का नाम । स्वामी आकद िब्द जनि धाम ।।1।।
सुरत िब्द और राधास्वामी । दोनों नाम एक कर िानी ।।2।।
सुरत िब्द संग करे जबलास । यों राधास्वामी कढग2 बास ।।3।।
राधास्वामी दो कर िान । रोयूँ एक सत लोक रठकान ।।4।।

।। बचन तीसरा ।।
मजरमा परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी की िो कक संत सतगुरु रूप
धारन करके वास्ते उद्धार िीवों के िगत में प्रगट हुए और वर्णन प्रेम प्रीजत
उनके चरर् कूँ वल में
सोरठा
राधास्वामी नाम, िो गावे सोई तरे ।
कलकलेि सब नाि, सुख पावे सब दुख ररे ।।1।।
ऐसा नाम अपार, कोई भेद न िानई ।
िो िाने सो पार, बहुरर न िग में िन्मई ।।2।।
।। िब्द परला ।।
अकर अपार अगाध अनामी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।1।।
रैरत3 रूप अथार दवामी4 । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।2।।

1. लगाने वाली । 2. पास । 3. अचरि । 4. रमेिा कायम ररने वाला ।


बचन 3 मजरमा राधास्वामी 9

अगम रूप धर आये अगामी1 । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।3।।


अलख धाम के कफर हुए धामी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।4।।
सतलोक में हुए सतनामी । वर मेरे प्यारे राधास्वामी ।।5।।
भूँवरगुफा बैठे अंतरिामी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।6।।
मरासुन्न पर बैठक ठानी2 । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।7।।
सुन में अक्षर3 रूप मुक़ामी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।8।।
गगन मूँडल ओंकार अकामी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।9।।
रूप जनरं िन धारा श्यामी4 । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।10।।
मन के घाट हुए अब कामी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।11।।
इन्द्री घाट जबकार घटामी5 । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।12।।
स्थूल रूप धर िगत िगामी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।13।।
जिगुन रूप िग रचा रचामी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।14।।
अललपच्छ6 सम कफर उलटामी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।15।।
पहुंचे कफर जनि धाम अनामी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।16।।
कफर हुए िस थे प्रथम अनामी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।17।।
मजरमा उनकी कस कर गामी7 । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।18।।
बार बार मैं करूूँ नमामी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।19।।
िोगी ज्ञानी ममण न िानी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।20।।
ब्रह्मा जवष्र्ु मरेि भुलानी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।21।।
गौर8 सजविी लछमी न िानी । गजत मेरे प्यारे राधास्वामी ।।22।।
िेष गनेि कु रम9 अज्ञानी । िस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।23।।
ऋजष मुजन नारदाकद भटकानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।24।।

1. िराूँ ककसी की गम यानी पहुूँच न रो । 2. मुक़रण र की । 3. अजवनािी । 4. श्याम


रं ग । 5. दूर ककया । 6. एक अकािी पक्षी िो अंडे से जनकलते री आसमान को
लौट िाता रै यानी ज़मीन तक नरीं आता । 7. गाऊूँ । 8. पारवती । 9. ओंकार ।
10 सार बचन बचन 3

सनकाकदक जपिाकद न िानी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।25।।


देवी देव ररे पछतानी । अस मेरे प्यारे राधासवामी ।।26।।
ईश्वर परमेश्वर भरमानी । क्या मेरे प्यारे राधास्वामी ।।27।।
वेद कतेब पुरार् नदानी1 । मत मेरे प्यारे राधास्वामी ।।28।।
चाूँद सुरि तारा गगनानी । िाने न मेरे प्यारे राधास्वामी ।।29।।
अल्ला ख़ुदा रसूल2 न मानी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।30।।
इन भी भेद नसर पजरचानी । िस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।31।।
गंगा िमुना सार न िानी । सो मैरे प्यारे राधास्वामी ।।32।।
तीरथ बरत िगत जलपटानी । रे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।33।।
तीन लोक सब काल चबानी3 । वार मेंरे प्यारे राधास्वामी ।।34।।
कोई न परखे तुम्ररी बानी । रे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।35।।
मजरमा कराूँ लग बनण बखानी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।36।।
दिणन रस ले रहुं अघानी4 । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।37।।
चरन सरन में रहूं जलपटानी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।38।।
दिण नैन रस रहूं तृप्तानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।39।।
बचन सुना दइ अगम जनिानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।40।।
सुरत िब्द मारग दरसानी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।41।।
भेद पाय मैं रहूूँ समानी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।42।।
रोय न कु छ कजभ मेरी रानी5 । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।43।।
मैं नारी तुम पुरुष सुिानी । रे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।44।।
जवरर भाव में हुई कदवानी6 । देख मेरे प्यारे राधास्वामी ।।45।।
िम िगात7 कु छ लगे न लगानी । बल मेरे पयारे राधास्वामी ।।46।।
कलमल दाग धुले व धुलानी । पाये मेरे प्यारे राधास्वामी ।।47।।

1. नरीं िाना । 2. पैग़म्बर । 3. खायगा । 4. तृप्त । 5. नुकसान ।


6. मस्त । 7. कर, मरसूल ।
बचन 3 मजरमा राधास्वामी 11

िन्म िन्म ररी धोख धुखानी1 । क्या मेरे प्यारे राधास्वामी ।।48।।
अब मेरा भाग िगा िग िानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।49।।
काम क्रोध नरीं लोभ लुभानी । गये मेरे प्यारे राधास्वामी ।।50।।
िाल ज़बर अब सभी कटानी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।51।।
धाम जमला िराूँ अचरि बानी । कदया मेरे प्यारे राधास्वामी ।।52।।
संतन साथ हुई संतानी । िो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।53।।
बारम्बार करूूँ परनामी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।54।।
धाम आपना भला दुरानी2 । तुम मेरे प्यारे राधास्वामी ।।55।।
तुम्ररी गजत कु छ अिब करानी । सुनी मेरे प्यारे राधास्वामी ।।56।।
मैं ररी जनस कदन नाम दीवानी । तुम्ररे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।57।।
काल मार तुम दूर रटानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।58।।
मैं बल िाऊूँ चरन क़ु रबानी3 । रे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।59।।
गावत गुन तुम अजत ररखानी । ऐसे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।60।।
देख रूप तुम रहुं मगनानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।61।।
मैं चकोर तुम चन्द समानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।62।।
मैं जवररन तुम दरि घुमामी4 । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।63।।
मैं पल पल तुम दरि कदवानी5 । रे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।64।।
तुम्ररे बचन मद झूम झुमानी6 । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।65।।
तुम स्वाूँती मैं सीप जनमानी7 । यों मेरे प्यारे राधास्वामी ।।66।।
तुम्ररी गजत मजत गोप8 जछपानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।67।।
तुमरी सब जवजध लीला ठानी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।68।।
ज्यों पजपरा स्वाूँती तरसानी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।69।।
तुम चुम्बक मैं लोर करठनानी । सखच रहुं मेरे प्यारे राधास्वामी ।।70।।

1. धोखा खाय । 2. जछपाया । 3. बजलदान करना । 4. मतवाली । 5. मस्त ।


6. मतवाली हुई । 7. दीन । 8. गुप्त ।
12 सार बचन बचन 3

मैं मृगनी तुम नाद समानी । रे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।71।।


मैं मछली तुम हुए मेरे पानी । रे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।72।।
राम न िाना कृ ष्र् न िानी । तुम को मेरे प्यारे राधास्वामी ।।73।।
सीता रूकजमन और पटरानी1 । सुने न मेरे प्यारे राधास्वामी ।।74।।
ईसा मूसा मररयम2 मानी । चूके मेरे प्यारे राधास्वामी ।।75।।
कु लकर3 और मुरादेवी रानी । पाये न मेरे प्यारे राधास्वामी ।।76।।
क़ु तुब5 पैग़म्बर5 ग़ौस5 रबानी5 । जमले न मेरे प्यारे राधास्वामी ।।77।।
जरन्दू मुसलमान क्या िानी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।78।।
ध्रुव प्ररलाद न मरम जपछानी । ऐसे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।79।।
नसर धरती नसर वराूँ असमानी । िराूँ मेरे प्यारे राधास्वामी ।।80।।
पवन न अजि और नसर पानी । िरां मेरे प्यारे राधास्वामी ।।81।।
तीनों गुन मरा तत्व न िानी । िराूँ मेरे प्यारे राधास्वामी ।।82।।
नसर आतम परमातम धामी । िराूँ मेरे प्यारे राधास्वामी ।।83।।
सुन्न और मरासुन्न अलगानी । िराूँ मेरे प्यारे राधास्वामी ।।84।।
भूँवरगुफा सतलोक जनचानी । ऊूँचे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।85।।
अलख लोक और अगम रठकानी । जतस परे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।86।।
और न कोइ ररें नाम जनिानी6 । िराूँ मेरे प्यारे राधास्वामी ।।87।।
मजरमा वराूँ की तुले न तुलानी । िराूँ मेरे प्यारे राधास्वामी ।।88।।
षट िास्तर नसर आकद पुरानी । िराूँ मेरे प्यारे राधास्वामी ।।89।।
तीन लोक नसर चौथे धामी । िराूँ बसें मेरे प्यारे राधास्वामी ।।90।।
पंजडत भेख न िेख जपछानी । सो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।91।।
ऐसे चरन पर हुई मस्तानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।92।।
कामाकदक सब दीन लुटानी । तब जमले मेरे प्यारे राधास्वामी ।।93।।

1. मरारानी । 2. ईसा की मां । 3. िैजनयों के देवता । 4. िैजनयों की आकद माता ।


5. फ़कीर, मुस्लमानों के मरात्मा । 6. रे खा ।
बचन 3 मजरमा राधास्वामी 13

हुई सफ़ाई गगन चढ़ानी । तब जलये मेरे प्यारे राधास्वामी ।।94।।


पंथ चली गइ अधर रठकानी । जमल गये मेरे प्यारे राधास्वामी ।।95।।
अजत जबलास आनन्द हुलसानी1 । मजल गये मेरे प्यारे राधास्वामी ।।96।।
िराूँ तराूँ वज्र कपाट खुलानी । देखे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।97।।
सतयुग िेता द्वाप2 जबतानी । कजल प्रगटे प्यारे राधास्वामी ।।98।।
खोि कदया और ककया अपनामी । ऐसे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।99।।
जतजमर3 रटाया रै न जबरानी4 । भानु रूप प्यारे राधास्वामी ।।100।।
भानु अनंत उगे5 घट आनी । ऐसे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।101।।
कोइ गजत मजत उन िाने न िानी । िस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।102।।
अंग अंग में प्रेम रं गानी । बसे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।103।।
चरर् न भूले देर भुलानी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।104।।
मम जररदे तुम ररो लुकानी6 । रे मेरे प्यारे राधास्वामी ।।105।।
िुग7 नसर छू टे रहूूँ िुगानी । बर दो मेरे प्यारे राधास्वामी ।।106।।
कजल साप तुम दूर बरानी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।107।।
िस कमोदनी8 चन्द्र कदखानी । अस मेरे प्यारे राधास्वामी ।।108।।
गुरु स्वरुप आये राधास्वामी । वार मेरे प्यारे राधास्वामी ।।109।।

।। िब्द दूसरा ।।

मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । गुन गाऊूँ उनका सार ।।1।।


मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । मुख देखूँू नैन जनरार ।।2।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । करूूँ सरवन बचन अधार ।।3।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । सब सेवा करूूँ सम्रार ।।4।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जनत राजज़र खड़ी दरबार ।।5।।

1. खुि हुआ । 2. द्वापर । 3. अूँधरे ा । 4. बीती । 5. उदय हुए । 6. गुप्त ।


7. िोड़ा । 8. कोई का फू ल ।
14 सार बचन बचन 3

मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । हुई दासी चरन जनरार ।।6।।


मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । लइ सरना अब की बार ।।7।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । उन कीन्री दया अपार ।।8।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । सब छू ट गया संसार ।।9।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । कफर त्यागा कु ल पररवार ।।10।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । लिा िग दई जनवार1 ।।11।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । मैं पकड़ी उनकी लार2 ।।12।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । कामाकदक कदये जनकार ।।13।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । मल धोये सब री झाड़3 ।।14।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । ईषाण दई जचत्त से डार ।। 15।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । मान मद भागे बड़े गूँवार ।।16।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । सफ़ाई रो गई जरये मूँझार ।।17।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । घट आई उलटी धार ।।18।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । मैं छोड़े अब नौ द्वार ।।19।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । कफर हुई वार से पार ।।20।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । नभ4 आई मन को मार ।।21।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जतल देखूूँ अिब बरार ।।22।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । िराूँ जझल जमल िोत उिार ।।23।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । पचरं गी गुल5 गुलज़ार6 ।।24।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । यर लीला लखी जनयार7 ।।25।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । कं ि8 में करती आि जबरार ।।26।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । चली आगे को पग धार ।।27।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । चढ़ खोला बंक दुआर ।।28।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जिकु टी में देख बरार ।।29।।

1. जनकाल दी । 2. संग । 3. झाड़ कर साफ़ करके । 4. जचदाकाि । 5. फू ल ।


6. फु लवारी, बग़ीचा । 7. िुदा, नयारी । 8. सरसदल कूँ वल ।
बचन 3 मजरमा राधास्वामी 15

मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । सुन चढ़ आई दसवें द्वार ।।30।।


मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । मरा सुन खेली खेल अपार ।।31।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । गुफा में सुनी एक झनकार ।।32।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । अमर पद पहुूँची खोल ककवाड़ ।।33।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । बीन की सुनी िराूँ धधकार ।।34।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । द्याल संग पाया काल जबडार1 ।।35।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । िब्द का चढ़ गया आि ख़ुमार ।।36।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । अलख में पहुूँची लगन सुधार ।।37।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । अगम का पाया अब भंडार ।।38।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । राधास्वामी देखा मैं दीदार ।।39।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जमटा मेरे घट का सब री खार3 ।।40।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । लगी मेरी नौका आन ककनार ।।41।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । उतर गया िनम िनम का भार ।।42।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । ममत और माया डाली मार ।।43।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जमटाया कमण भमण गुब्बार4 ।।44।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जमले अब मेरे जनि कदलदार5 ।।45।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । हुई मैं उनके गल की रार ।।46।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जवरोधी बैठे सब री रार ।।47।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जलया अब ऐसा अगम जवचार ।।48।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । बहूं नसर कबरी भौ की धार ।।49।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । रहूं मैं जनस कदन अब हुजियार ।।50।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जतजमर भी नासा हुआ उजियार ।।51।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । हुइ अब जछन जछन िुकर गुज़ार ।।52।।

1. दूर करके । 2. निा । 3. मैल, कड़वाई । 4. अन्धकार । 5. प्रीतम ।


16 सार बचन बचन 3

मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । डाररया उन पर तन मन वार ।।53।।


मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । कदया औघट1 से घाट उतार ।।54।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । ककया राधास्वामी यर ससगार ।।55।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । हुई मैं अब उन नाम अधार ।।56।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । गई मैं अपने जनि घरबार ।।57।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । लगी मैं रूप जनरार जनरार ।।58।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । हुआ मैं2 सेवा संग जपयार ।।59।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जमली जनि बस्ती छु टा उिाड़3 ।।60।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । सुन्न में खेलूूँ िब्द सम्रार ।।61।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । सुनूूँ धुन ककगरी सारूँ ग सार ।।62।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । िलाऊूँ सभी काल की िार4 ।।63।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । िगत का घटा सभी जवस्तार ।।64।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । लगी अब सूरत ति अरंकार ।।65।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । लोभ भी मारा बड़ा लबार5 ।।66।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । मोर भी भागा अिब चमार ।।67।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । काम पर पड़ी बहुत जधक्कार ।।68।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । काल दल िीता िीती नार6 ।।69।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । देखती घट में अब गुलज़ार7 ।।70।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । काट अब डारा सब िंिार ।।71।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । सुनू मैं तन में राग धमार8 ।।72।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । सुरत अब हुई बहुत सरिार9 ।।73।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । मूल गर10 छोड़ दई सब डार ।।74।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । चढ़न को आगे हूं तैयार ।।75।।

1. उलटा । 2. मोजर । 3. िंगल । 4. िान । 5. झूठा ।


6. माया । 7. फु लवार । 8. राग का नाम । 9. मस्त । 10. पक्ड़ कर ।
बचन 3 मजरमा राधास्वामी 17

मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । ससर1 भी भागा देख जसयार2।।76।।


मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । िब्द की बाूँधी कमर कटार ।।77।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । गुरु ने दीन्री अस तलवार ।।78।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । सूरमा3 सुरत चढ़ी ललकार4 ।।79।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । करम दल5 भागा सुनत पुकार ।।80।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । भरम भी भागा बािी तार9 ।।81।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । दूर हुई मन से िग की कार7 ।।82।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । गई अब सूरत गगन मंझार ।।83।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । चाूँदनी घट में खुली अगार8 ।।84।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । सुरत अस चढ़ती बारम्बार ।।85।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । खोजलया सुन्न का बज्र ककवाड़।।86।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । हुई अब रलकी उतरा भार ।।87।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । सुनूं धुन घट में रारं कार।।88।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । अमी िल भरा हुई पजनरार9 ।।89।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । बंद सब टू टे हुआ छु टकार।।90।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जमला अस मौसम10 सदा बरार ।।91।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जखिाूँ11 का काूँटा कदया जनकार ।।92।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । गुरु ने लीन्रा गोद जबठार ।।93।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । सुनाई पजरले धुन ओंकार ।।94।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । करूं मैं सेवा इक इक न्यार ।।95।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । छु टाई गुरु ने िग बेगार ।।96।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जमला अब प्रेम भजि औज़ार12 ।।97।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । कदया सब घट का कू ड़ा टार ।।98।।

1. काल । 2. िीव । 3. िूरवीर । 4. पुकार । 5. फ़ौि । 6. िब्द । 7. करतूत ।


8. प्रकािवान । 9. पानी भरने वाली । 10. ऋतु । 11. पतझड़ । 12. रजथयार ।
18 सार बचन बचन 3

मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । चली अब सुरत िब्द की लार ।।99।।


मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । कदया मैं तन मन अपना वार ।।100।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । गुफा चढ़ सुनी बीन झनकार ।।101।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । ककया मैं अलख अगम को पार ।।102।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । कदया राधास्वामी पार उतार ।।103।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । हुइ मैं उन पर अब बजलरार ।।104।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । नाम रस पाया ककया अरार ।।105।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । सब अटक जमटा आचार ।।106।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । भोग सब रो गये अब बीमार ।।107।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । करूूँ नसर उनका कु छ तीमार1 ।।108।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । भूँवर मन बैठा सुन गुंिार ।।109।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । अगम सुख पाया नरीं िुमार2 ।।110।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । मौन रोय बैठी ति गुफ़तार3 ।।111।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जमला मोसर आि सार का सार4।।112।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । सोई रै सब का सत करतार ।।113।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । रहूं मैं उसको सदा जचतार5 ।।114।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । रंस िराूँ बैठे बहुत क़तार6 ।।115।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । आनूँद अब जमला मोसर जबजसयार7 116।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । ककया मैं सब से आि ककनार8 ।।117।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । करूूँ मैं गुरु सूँग बहुत जपयार ।।118।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । जमले राधास्वामी अजत दातार ।119।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । गरी मैं सरना आि तुम्रार ।।120।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । बोझ मैं डाला सभी उतार ।।121।।

1. खाजतरदारी, ग़मशवारी । 2. जगनती । 3. बोलना । 4. खुलासा, िौरर, तत्व ।


5. याद रखना । 6. पंजि । 7. अजधक । 8. िुदा ।
बचन 3 मजरमा राधास्वामी 19

मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । तीन ति पाया मैं पद चार ।।122।।


मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । छु टाया मुझ से खेल असार1 ।।123।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । ककया मैं मन का आि जिकार ।।124।।
मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की । गई मैं राधास्वामी की सरकार ।।125।।

।। िब्द तीसरा ।।

राधास्वामी नाम सुनाया राधास्वामी ।


राधास्वामी रूप कदखाया राधास्वामी ।।1।।
राधास्वामी धाम लखाया राधास्वामी ।
राधास्वामी खेल जखलाया राधास्वामी ।।2।।
राधास्वामी मेल जमलाया राधास्वामी ।
राधास्वामी पंथ चलाया राधास्वामी ।।3।।
राधास्वामी सेव कराई राधास्वामी ।
राधास्वामी भेव2 िनाइ राधास्वामी ।।4।।
राधास्वामी मौि चलाइ राधास्वामी ।
राधास्वामी जसफ़त3 कराइ राधास्वामी ।।5।।
राधास्वामी गुन मैं गाऊूँ राधास्वामी ।
राधास्वामी मजरमा सुनाऊं राधास्वामी ।।6।।
राधास्वामी आरत बनाई राधास्वामी ।
राधास्वामी िोत िगाई राधास्वामी ।।7।।
राधास्वामी ममण लखावे राधास्वामी ।
राधास्वामी भेद सुनावे राधास्वामी ।।8।।

1. असत्त, झूठा । 2. भेद । 3. मजरमा ।


20 सार बचन बचन 3

राधास्वामी सुरत िब्द राधास्वामी ।


राधास्वामी धुनन बुलाई राधास्वामी ।।9।।
राधास्वामी संग कराया राधास्वामी ।
राधास्वामी रं ग चढ़ाया राधास्वामी ।।10।।
राधास्वामी बूझ1 बुझाइ राधास्वामी ।
राधास्वामी सूझ2 सुझाइ राधास्वामी ।।11।।
राधास्वामी भान3 ककरन राधास्वामी ।
राधास्वामी ससध बुन्द राधास्वामी ।।12।।
राधास्वामी चन्द्र कला राधास्वामी ।
राधास्वामी गगन जगरा4 राधास्वामी ।।13।।
राधास्वामी धरजन नीर राधास्वामी ।
राधास्वामी अजि पवन राधास्वामी ।।14।।
राधास्वामी तीन5 चार6 राधास्वामी ।
राधास्वामी एक7 दोय8 राधास्वामी ।।15।।
राधास्वामी सात9 बीस10 राधास्वामी ।
राधास्वामी सरस11 दसम12 राधास्वामी ।।16।।
राधास्वामी कं ि12 श्याम राधास्वामी ।
राधास्वामी सेत सुन्न राधास्वामी ।।17।।
राधास्वामी ओंग ररूँ ग राधास्वामी ।
राधास्वामी सोरूँग सत्त राधास्वामी ।।18।।
राधास्वामी अलख अगम राधास्वामी ।
राधास्वामी आप हुए राधास्वामी ।।19।।

1. समझ । 2. जनर्णय । 3. सूरि । 4. वार्ी िब्द । 5. तीन गुर् । 6. चार अन्तः


करन । 7. सत्त पुरुष राधास्वामी । 8. ब्रह्म और माया । 9. सात द्वारे । 10. दस
इजन्द्रय और उनके देवता । 11. सरस दल कूँ वल । 12. दसवाूँ द्वार ।
13. तीसरा जतल ।
बचन 3 मजरमा राधास्वामी 21

राधास्वामी मजरमा करें राधास्वामी ।


राधास्वामी अस्तुत करें राधास्वामी ।।20।।
राधास्वामी सार लखावें राधास्वामी ।
राधास्वामी प्यार करावें राधास्वामी ।।21।।
राधास्वामी चरन पुिावें राधास्वामी ।
राधास्वामी पाट1 खुलावें राधास्वामी ।।22।।
राधास्वामी िाब्द बतावें राधास्वामी ।
राधास्वामी देि बुझावें राधास्वामी ।।23।।
राधास्वामी गुप्त प्रकािें राधास्वामी ।
राधास्वामी तेि जनरारें राधास्वामी ।।24।।
राधास्वामी सम देखें राधास्वामी ।
राधास्वामी गम2 खोलें राधास्वामी ।।25।।
राधास्वामी गाउूँ ध्याउूँ राधास्वामी ।
राधास्वामी पुषण अिण3 राधास्वामी ।।26।।
राधास्वामी गीत नाद राधास्वामी ।
राधास्वामी गान नाद राधास्वामी ।।27।।
राधास्वामी छान4 छनाई राधास्वामी ।
राधास्वामी प्रीत लगाई राधास्वामी ।।28।।
राधास्वामी मथन मथी राधास्वामी ।
राधास्वामी आकद अंत राधास्वामी ।।29।।
राधास्वामी मद्ध जबरािें राधास्वामी ।
राधास्वामी िुजि ितन राधास्वामी ।।30।।
राधास्वामी रतन लाल राधास्वामी ।
राधास्वामी दयाल कृ पाल राधास्वामी ।।31।।

1. परदा । 2. भेद । 3. चैतन्य आकाि । 4. जनर्णय ।


22 सार बचन बचन 3

राधास्वामी आन1 मनाइ राधास्वामी ।


राधास्वामी आन िगाइ राधास्वामी ।।32।।
राधास्वामी पीव2 जपता राधास्वामी ।
राधास्वामी गुरु संत राधास्वामी ।।33।।
राधास्वामी अिर अमर राधास्वामी ।
राधास्वामी कु रम3 िेष4 राधास्वामी ।।34।।
राधास्वामी चेत जमलो राधास्वामी ।
राधास्वामी खेत जिताया राधास्वामी ।।35।।
राधास्वामी भजि जसखाई राधास्वामी ।
राधास्वामी भाव बढ़ाया राधास्वामी ।।36।।
राधास्वामी सुजमर सुजमर राधास्वामी ।
राधास्वामी लगन लगाइ राधास्वामी ।।37।।
राधास्वामी तोल तुलावें राधास्वामी ।
राधास्वामी मोल अमोल राधास्वामी ।।38।।
राधास्वामी नेम प्रेम राधास्वामी ।
राधास्वामी धरम करम राधास्वामी ।।39।।
राधास्वामी िुजि िोग राधास्वामी ।
राधास्वामी भुि भोग राधास्वामी ।।40।।
राधास्वामी रै न कदवस राधास्वामी ।
राधास्वामी जनजमष5 िाम6 राधास्वामी ।।41।।
राधास्वामी धूप छाूँव राधास्वामी ।
राधास्वामी सूर7 सोम8 राधास्वामी ।।42।।
राधास्वामी िाप मौन राधास्वामी ।
राधास्वामी नैन हृदय राधास्वामी ।।43।।
राधास्वामी अंतर बारर राधास्वामी ।

1. हुक्म । 2. पजत । 3. ब्रह्म । 4. पारब्रह्म । 5. पल । 6. परर ।


7. सूरि । 8. चाूँद ।
बचन 3 मजरमा राधास्वामी 23

राधास्वामी प्रोक्ष7 प्रत्यक्ष2 राधास्वामी ।।44।।


राधास्वामी अधर धरजन राधास्वामी ।
राधास्वामी व्याप व्यापक राधास्वामी ।।45।।
राधास्वामी दात दाता राधास्वामी ।
राधास्वामी करन कारन राधास्वामी ।।46।।
राधास्वामी तरन तारन राधास्वामी ।
राधास्वामी सृष्ट सृष्टा राधास्वामी ।।47।।
राधास्वामी दृष्ट दृष्टा राधास्वामी ।
राधास्वामी व्रत तीरथ राधास्वामी ।।48।।
राधास्वामी वेद कतेब राधास्वामी ।
राधास्वामी गाय गवाओ राधास्वामी ।।49।।
राधास्वामी पूि पुिाओ राधास्वामी ।
राधास्वामी अपर अपार राधास्वामी ।।50।।
राधास्वामी अधर अधार राधास्वामी ।
राधास्वामी अगम अगाध राधास्वामी ।।51।।
राधास्वामी परम अगार राधास्वामी ।
राधास्वामी कूँ वल भूँवर राधास्वामी ।।52।।
राधास्वामी उधर इधर राधास्वामी ।
राधास्वामी अघड़ सुघड़ राधास्वामी ।।53।।
राधास्वामी डाल मूल राधास्वामी ।
राधास्वामी गाऊूँ सब गाओ राधास्वामी ।।54।।

।। िब्द चौथा ।।

राधास्वामी आय प्रगट हुए िब से ।


राधास्वामी नाम सुनावें तब से ।।1।।

1. गुप्त । 2. प्रगट ।
24 सार बचन बचन 3

राधास्वामी नाम िपूूँ मैं मन से ।


राधास्वामी धाम जमला अब तन से ।।2।।
राधास्वामी दरस करूूँ नैनन से ।
राधास्वामी बचन सुनूूँ सरवन से ।।3।।
राधास्वामी करत रहूं जरयरे से ।
राधास्वामी सुनत रहूं जियरे से ।।4।।
राधास्वामी नाम धरूूँ प्रानन से ।
राधास्वामी नाम गहूं इजन्द्रन से ।।5।।
राधास्वामी रार चलूूँ पाूँवन1 से ।
राधास्वामी सेव करूूँ दोउ कर से ।।6।।
राधास्वामी संग करूूँ सब धर2 से ।
राधास्वामी पास बसूूँ अजत डर से ।।7।।
राधास्वामी गाय ररी मैं उमंग से ।
राधास्वामी ध्याय ररी कोइ कदन से ।।8।।
राधास्वामी रटन लगी दम दम से ।
राधास्वामी याद बढ़ी जछन जछन से ।।9।।
जबसरत नसर राधास्वामी जिगर3 से ।
जबछड़त नसर राधास्वामी पलक से ।।10।।
राधास्वामी रूप देख दोउ जतल से ।
राधास्वामी प्रीत लगी मेरे कदल से ।।11।।
राधास्वामी बोले इक कदन मुझ से ।
राधास्वामी पर बल4 गइ उस कदन से ।।12।।
राधास्वामी मजरमा क्या कहुं ककस से ।
राधास्वामी सरन छु ड़ावत िम से ।।13।।
राधास्वामी अलग ककया भरमन से ।

1. पैरों । 2. देर । 3. कलेिा । 4. बजलरार हुई ।


बचन 3 मजरमा राधास्वामी 25

राधास्वामी जलया छु टा करमन से ।।14।।


राधास्वामी जलया लगा चरनन से ।
राधास्वामी आये देि अगम से ।।15।।
राधास्वामी रंस ककया मोसर नर से ।
राधास्वामी दान कदया जनि घर से ।।16।।
राधास्वामी भेद सुनाया धुर से ।
राधास्वामी मोसर छु ड़ाया रम1 से ।।17।।
राधास्वामी अपना ककया िगत से ।
राधास्वामी जनपट2 बचाया छल से ।।18।।
राधास्वामी पार ककया भौिाल से ।
प्रेम लगा राधास्वामी गुरु से ।।19।।
मैं चकोर राधास्वामी चंद से ।
मैं कं वला राधास्वामी भान से ।।20।।
मैं कोककल3 राधास्वामी अम्ब4 से ।
मैं भौंरा राधास्वामी कूँ वल से ।।21।।
मैं कदनकर5 राधास्वामी गगन से ।
मैं फनधर6 राधास्वामी मजर् से ।।22।।
मैं बाली राधास्वामी मात से ।
मैं कु मार राधास्वामी तात7 से ।।23।।
मैं दरदी राधास्वामी िाजन्त से ।
मैं चकवी राधास्वामी काजन्त8 से ।।24।।
मैं घायल राधास्वामी जवरर से ।
मैं मायल राधास्वामी तरर10 से ।।25।।
राधास्वामी िब्द लखाया िुजि से ।

1. अरंकार । 2. जबलकु ल । 3. कोयल । 4. आम का दरशत । 5. सूरि ।


6. साूँप । 7. जपता । 8. सूरि का प्रकाि । 9. मोजरत । 10. छजव अन्दाि ।
26 सार बचन बचन 3

राधास्वामी नाम कमाया भजि से ।।26।।


मैं प्यारी राधास्वामी प्यार से ।
मैं मीना राधास्वामी धार से ।।27।।
मैं अंडा राधास्वामी कु रम1 से ।
मैं तरं ग राधास्वामी जसन्ध से ।।28।।
मैं गगरी राधास्वामी नीर से ।
मैं कमान2 राधास्वामी तीर से ।।29।।
मैं भइ बन राधास्वामी ससर से ।
मैं हुइ तन राधास्वामी िान से ।।30।।
मैं वृक्षा राधास्वामी सुफल से ।
मैं साखा राधास्वामी फू ल से ।।31।।
मैं दीपक राधास्वामी िोत से ।
मैं समुद्र राधास्वामी सोत से ।।32।।
मैं धरनी राधास्वामी मेघ से ।
मैं सूरा राधास्वामी तेग3 से ।।33।।
मैं देरी राधास्वामी नैन से ।
मैं रसना राधास्वामी बैन से ।।34।।
मैं लोरा राधास्वामी नाव से ।
मैं जनरधन राधास्वामी साव4 से ।।35।।
मैं सीपी राधास्वामी स्वाूँजत से ।
मैं मोजरत राधास्वामी भाूँजत से ।।36।।
मैं िीती राधास्वामी दाूँव5 से ।
मैं जतरपत राधास्वामी भाव से ।।37।।
मैं ब्यंिन6 राधास्वामी नोन से ।
मैं अंकुर राधास्वामी पौन से ।।38।।

1. कछु आ िो पानी में ररता रै । 2. धनुष । 3. तलवार ।


4. साहूकार, धनवान । 5. बािी । 6. भोिन ।
बचन 3 मजरमा राधास्वामी 27

मैं तारा राधास्वामी व्योम1 से ।


मैं कु मुदन2 राधास्वामी सोम3 से ।।39।।
राधास्वामी मेरर चली मैं घट से ।
राधास्वामी चरन पकड़ मेरी रठ से ।।40।।
राधास्वामी मोसर रटाया कपट से ।
राधास्वामी पार ककया जतल पट4 से । 41।।
राधास्वामी बंक चढ़ाया झट से ।
राधास्वामी घाट जमला औघट5 से ।।42।।
राधास्वामी द्वार खुलाया जिकु ट से ।
राधास्वामी रंस ककया सर तट6 से ।।43।।
चढ़ी मरासुन्न राधास्वामी बल से ।
राधास्वामी िुद्ध ककया कलमल से ।।44।।
राधास्वामी आि जमलाया सोरंग से ।
सत्तलोक आइ राधास्वामी संग से ।।45।।
राधास्वामी अलख लखाया मौि से ।
राधास्वामी अगम कदखाया चौि7 से ।।46।।
राधास्वामी रूप लखा सूरत से ।
लगा प्रेम राधास्वामी मूरत से ।।47।।
जमली िाय राधास्वामी चरन से ।
हुआ उद्धार राधास्वामी सरन से ।।48।।
राधास्वामी धाम गई मैं धि8 से ।
राधास्वामी मोसर ससगारी सि से ।।49।।
राधास्वामी अंग लगाया उमंग से ।
राधास्वामी भेद जमला सतसंग से ।।50।।

1. आकाि । 2. कोई का फू ल । 3. चाूँद । 4. जतल स्थान का पदाण । 5. अवघट,


करठन, दुगम
ण । 6. मानसरोवर तीर । 7. जबलास । 8. िान, ससगार ।
28 सार बचन बचन 3

पार हुई राधास्वामी लगन से ।


राधास्वामी आि रटाया मलन1 से ।।51।।
उपमा राधास्वामी कहूं कौन से ।
राधास्वामी काढ़ा सभी िोन से ।।52।।
राधास्वामी पाये बहुत करठन से ।
जमल गये राधास्वामी बड़े ितन से ।।53।।
जपउं अमी राधास्वामी धुन से ।
िाय रलू1ं राधास्वामी सुन से ।।54।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

राधास्वामी जलया अपनाय सखी री ।


िोभा अद्भुत आि लखी री ।।1।।
राधास्वामी बचन अगाध सुने री ।
राधास्वामी नाम अराध गुन3े री ।।2।।
राधास्वामी अगम अनाम लखे री ।
राधास्वामी गजत कस बुजद्ध भखे4 री ।।3।।
राधास्वामी चरन स्पिण5 करे री ।
राधास्वामी जररदे मासर धरे री ।।4।।
राधास्वामी संग भौिाल भने6 री ।
राधास्वामी संगत काल रने7 री ।।5।।
राधास्वामी काढ़ जलया िग से री ।
राधास्वामी रंस ककया खग8 से री ।।6।।
राधास्वामी अिब संदेि कदया री ।
राधास्वामी करत अंदेि9 गया री ।।7।।

1. मलीनता । 2. एक रस रोऊूँ । 3. सुजमरन । 4. करे । 5. छू ना ।


6. काटे । 7. नाि ककया । 8. काग । 9. संिय ।
बचन 3 मजरमा राधास्वामी 29

राधास्वामी गोद जबठाया मुझे री ।


राधास्वामी लेरैं उबार तुझे री ।।8।।
राधास्वामी िाम सुबर रट ले री ।
राधास्वामी आठ िाम भि ले री ।।9।।
राधास्वामी पल पल जरये बसे री ।
राधास्वामी मेरर िताऊं ककसे री ।।10।।
राधास्वामी संग न कोई करे री ।
राधास्वामी रं ग न कोई धरे री ।।11।।
राधास्वामी जिस पर मेरर करें री ।
राधास्वामी उस को पकड़ धरें री ।।12।।
राधास्वामी मेरर जबना क्या गत री ।
कस समझें राधास्वामी मत री ।।13।।
राधास्वामी चौथा लोक करें री ।
राधास्वामी अलख अलोक भनें1 री ।।14।।
राधास्वामी अगम सुगम कर दें री ।
राधास्वामी धाम िाय कफर ले री ।।15।।
राधास्वामी जमले भाग से अब री ।
राधास्वामी पकड़ अभी कफर कब री ।।16।।
राधास्वामी लाग बढ़ा जछन जछन री ।
राधास्वामी तेि देख कदन कदन री ।।17।।
राधास्वामी देर धरी आ िग री ।
राधास्वामी काल रटावें ठग री ।।18।।
तू राधास्वामी सरन मत ति री ।
तू राधास्वामी चरन जनत भि री ।।19।।
राधास्वामी लाम कटें सब अघ2 री ।
राधास्वामी काया मथ ली सगरी3 ।।20।।

1. करें । 2. पाप । 3. कु ल, सब ।
30 सार बचन बचन 3

राधास्वामी िब्द रूप तू सुन री ।


राधास्वामी सुरत साथ ले धुन री ।।21।।
राधास्वामी संग मार ले मन री ।
राधास्वामी काटें नाजगन1 फन री ।।22।।
राधास्वामी से गुरु कफर न जमलें री ।
राधास्वामी छोड़ें न जिसे गरें री ।।23।।
राधास्वामी मजरमा कौन करे री ।
वेद थके और िेष ररे री ।।24।।
राधास्वामी गुप्त प्रगट हुए अब री ।
राधास्वामी भेद कदया मोसर सब री ।।25।।
राधास्वामी चमन2 कदखाया घट री ।
राधास्वामी खोल कदये सब पट री ।।26।।
राधास्वामी कला3 जखलाई नट4 री ।
राधास्वामी गगन चढ़ाया झट5 री ।।27।।
राधास्वामी संग गई सुन तट री ।
राधास्वामी रं ग जलया िग रट री ।।28।।
राधास्वामी भरी आि सुतण गगरी ।
राधास्वामी अिब कदखाई नगरी ।।27।।
राधास्वामी संग ररी मैं पग6 री ।
राधास्वामी दमक7 लखी मैं सगरी ।।30।।
राधास्वामी जमले भाग उठा िग री ।
अमर हुई राधास्वामी सूँग लग री ।।31।।
राधास्वामी सरन प्रीत हुई जिगरी ।
राधास्वामी अिब सुनाई धुन ककगरी ।।32।।

1. माया । 2. फु लवार । 3. बाज़ी । 4. बाज़ीगर (मन) । 5. िल्दी ।


6. जवलीन । 7. चमक ।
बचन 3 मजरमा राधास्वामी 31

राधास्वामी ककया मोसर अपना री ।


राधास्वामी कदया जमटा खपना1 री ।।33।।
राधास्वामी िगत ककया सुपना री ।
राधास्वामी दूर ककया तपना री ।।34।।
राधास्वामी नाम सदा िपना री ।
राधास्वामी दरस आि तकना री ।।35।।
राधास्वामी भेद न काहु करना री ।
राधास्वामी जबन िग जबच बरना री ।।36।।
राधास्वामी कदया िब्द गरना2 री ।
राधास्वामी चंद नरीं गरना3 री ।।37।।
राधास्वामी संग न दुख सरना री ।
राधास्वामी संग सुखी ररना री ।।38।।
राधास्वामी परम जवलास कदया री ।
राधास्वामी भौिल पार ककया री ।।39।।
राधास्वामी कमण भमण काटे री ।
राधास्वामी चरन िभी चाटे री ।।40।।
राधास्वामी आरत जनत्त करूूँ री ।
राधास्वामी करें सो जचत्त धरूूँ री ।।41।।
राधास्वामी प्रेम िगाय रहूं री ।
राधास्वामी राधास्वामी जनत्त भंिू री ।।42।।
राधास्वामी करना मान चली री ।
राधास्वामी ध्यान अब िाय जमली री ।।43।।
राधास्वामी सीत4 जमला मोसर िब री ।
राधास्वामी िुद्ध ककया मोसर तब री ।।44।।
राधास्वामी गुन कस गाउं अली5 री ।
राधास्वामी गगन कदखाई गली री ।।45।।

1. वृथा मेरनत करना । 2. अभूषर्, िेवर । 3.ग्ररर् । 4.परिाद । 5. सखी ।


32 सार बचन बचन 3

राधास्वामी कमर बंधाई भली री ।


राधास्वामी धुन में िाय जपली री ।।46।।
राधास्वामी सब जवध काि ककया री ।
राधास्वामी अचरि साि1 कदया री ।।47।।
राधास्वामी आसन अधर धरा री ।
राधास्वामी दिणन वरीं करा री ।।48।।
राधास्वामी िोभा अिब बनी री ।
राधास्वामी छजब पर दृजष्ट तनी2 री ।।49।।
राधास्वामी िीव उद्धार करें री ।
राधास्वामी संत औतार धरें री ।।50।।
राधास्वामी मत कु छ अिब चला री ।
राधास्वामी भेद अब कदया भला री ।।51।।
राधास्वामी जगनें न ब्रह्म ज्ञान री ।
राधास्वामी थापें न िोग ध्यान री ।।52।।
राधास्वामी मानें न राम कृ ष्र् री ।
राधास्वामी मानें न ब्रह्म जवष्र्ु री ।।53।।
राधास्वामी पूिें न जिव गनेि री ।
राधास्वामी पूिें न गौर िेष री ।।54।।
राधास्वामी मानें न कमण धमण री ।
राधास्वामी िप तप िानें भमण री ।।55।।
राधास्वामी माने न तीथण बतण री ।
राधास्वामी मानें न िास्त्र स्मृजत री ।।56।।
राधास्वामी मानें न सूर चंद री ।
राधास्वामी मानें न गंग िमन री ।।57।।
राधास्वामी काटें जपछली टेक री ।
राधास्वामी भमण न राखें एक री ।।58।।

1. सामान । 2. सखची ।
बचन 3 मजरमा राधास्वामी 33

राधास्वामी बुत1 पूिा न धार री ।


राधास्वामी जपि पूिा न धार री ।।59।।
राधास्वामी करें गुरु भजि साध री ।
राधास्वामी भिन बतावे नाद री ।।60।।
राधास्वामी सतसंग करो करें री ।
राधास्वामी वि गुरु1 थरपें4 री ।।61।।
राधास्वामी ज़ात न पाूँत रखें री ।
राधास्वामी सरदू न तुकण गरें री ।।62।।
राधास्वामी वर्ण आश्रम न गायं री ।
राधास्वामी जमथ्या भमण सुनायें री ।।63।।
राधास्वामी भजि वर्ण बतायें री ।
राधास्वामी गुरु की भजि दृढ़ायें री ।।64।।
राधास्वामी वेद कतेब उड़ायें री ।
राधास्वामी मुरजिद5 कौल6 ठररायें री ।।65।।
राधास्वामी मुरजिद ख़ुदा कदखायें री ।
राधास्वामी पीर7 परस्ती8 जसखायें री ।।66।।
राधास्वामी रोज़ा नमाज़ उठायें री ।
राधास्वामी मजस्िद बाूँग छु ड़ायें री ।।67।।
राधास्वामी काबा न रि9 करायें री ।
राधास्वामी क़ु राूँ न विीफ़ा10 पढ़ायें री ।।68।।
राधास्वामी कदल पर क़ाबू कदलायें री ।
राधास्वामी नफ्स अमारा11 जगरायें री ।।69।।
राधास्वामी रूर12 असमान चढ़ायें री ।
राधास्वामी घट में अिण13 कदखायें री ।।70।।

1. मूर्शत । 2. िब्द । 3. वि का गुरु । 4. स्थाजपत करते रै । 5. गुरु । 6.


बचन । 7. गुरु । 8. पूिा । 9. यािा । 10. िाप । 11. मलीन मन । 12.
सुरत । 13. चैतन्य आकाि ।
34 सार बचन बचन 3

राधास्वामी रूर मेराि1 कदलायें री ।


राधास्वामी तन में ख़ुदा जमलायें री ।।71।।
राधास्वामी फ़क़र2 को बड़ा बतायें री ।
राधास्वामी करत रसूल3 न पायें री ।।72।।
राधास्वामी सात मकाम लखायें री ।
राधास्वामी फ़क़र मराजतब4 गायें री ।।73।।
राधास्वामी िगल5 आवाज़ करायें री ।
राधास्वामी रूर को सौत6 सुनायें री ।।74।।
राधास्वामी सुरत और िब्द मथें री ।
राधास्वामी रूर और सौत कथें री ।।75।।
राधास्वामी अनरद नाद करें री ।
राधास्वामी सौत7 सरमदी8 गरें री ।।76।।
राधास्वामी आकद धाम से आये री ।
राधास्वामी सब से ऊूँच धाये री ।।77।।
राधास्वामी की रै प्रथम मूँजिल़ री ।
सो सब मत जसद्धान्त समझ री ।।78।।
राधास्वामी पजरली मंजिल करी री ।
सब मत का जसद्धान्त वरी री ।।79।।
राधास्वामी मत अब बहुत बड़ा री ।
राधास्वामी मत यर िान पड़ा री ।।80।।
राधास्वामी सात मूँजिल9 बरनें री ।
राधास्वामी जभन जभन करें जनरने री ।।81।।
राधास्वामी गजत सब भाूँजत बड़ी री ।

1. चढ़ाई । 2. संत गजत । 3. पैगम्बर । 4. दरिे । 5. अभ्यास । 6. िब्द ।


7. आवाि । 8. अनरद । 9. स्थान ।
बचन 3 मजरमा राधास्वामी 35

राधास्वामी चरनन सुरत अड़ी री ।।82।।


राधास्वामी रैरत धाम ररें री ।
राधास्वामी अचरि नाम करें री ।।83।।
राधास्वामी चुम्बक1 मैं लोरा री ।
राधास्वामी रूप जनरख मोरा री ।।84।।
राधास्वामी भृग ं ी मैं कीड़ा री ।
राधास्वामी सकल ररी पीड़ा री ।।85।।
राधास्वामी पहुंचे दूर देि री ।
राधास्वामी अपना कदया संदेि री ।।86।।
राधास्वामी कूँ वला मैं भूँवरा री ।
राधास्वामी दरस देख सूँवरा2 री ।।87।।
राधास्वामी करें सोई करना री ।
राधास्वामी चरन सीस धरना री ।।88।।
राधास्वामी उपमा कौन करे री ।
राधास्वामी सरन िीव उधरे री ।।89।।
राधास्वामी मूरत देख जिउं री ।
राधास्वामी अमृत नाम जपउं री ।।90।।
राधास्वामी सूँग घट खोि करूूँ री ।
राधास्वामी सूँग पट मौि लहूं री ।।91।।
राधास्वामी सूँग अब सुरत भरूं री ।
राधास्वामी सूँग धुन िब्द सुनूं री ।।92।।
राधास्वामी सूँग जतल तोड़ चलूं री ।
राधास्वामी सूँग नभ फोड़ जमलूं री ।।93।।
राधास्वामी सूँग कफर िोत लखूं री ।
राधास्वामी सूँग सुन भेद तकूं री ।।94।।

1. चमक पत्थर । 2. सूँवारा गया ।


36 सार बचन बचन 3

राधास्वामी सूँग नल बंक धसूं री ।


राधास्वामी सूँग चढ़ गगन रंसूं री ।।95।।
राधास्वामी सूँग दस द्वार गहूं री ।
राधास्वामी सूँग मरासुन्न चढ़ूं री ।।96।।
राधास्वामी सूँग मैं गुफा रहूं री ।
राधास्वामी सूँग सतनाम लगूं री ।।97।।
राधास्वामी सूँग मैं अलख लखूं री ।
राधास्वामी सूँग अब अगम भखूं री ।।98।।
राधास्वामी राधास्वामी रं ग रं गू री ।
राधास्वामी राधास्वामी धाम बसूं री ।।99।।
राधास्वामी करें सो कार करूं री ।
राधास्वामी राधास्वामी पकड़ धरूं री ।।100।।
राधास्वामी लीला ताक तकूं री ।
राधास्वामी मरल अब िाय पकूं री ।।101।।
राधास्वामी िोभा अिब कहूं री ।
राधास्वामी आगे खड़ी रहूं री ।।102।।
राधास्वामी तशत जबराि ररे री ।
राधास्वामी सख़्त जवकार दरे री ।।103।।
राधास्वामी िीव जनवाि1 ररे री ।
राधास्वामी पीव रमार भये री ।।104।।
राधास्वामी अजत कर द्याल हुए री ।
राधास्वामी दया िम काल मुए2 री ।।105।।
राधास्वामी अब मोसर अमर ककया री ।
राधास्वामी पद मोसर अिर कदया री ।।106।।
राधास्वामी गुन गाऊं जनत जनत री ।
राधास्वामी मात हुए और जपत री ।।107।।

1. दया करने वाले । 2. मरे ।


बचन 4 मजरमा दिणन राधास्वामी 37

राधास्वामी सब से अलग ककया री ।


राधास्वामी सब बल तोड़ कदया री ।।108।।

।। बचन चौथा ।।
मजरमा दिणन परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी की और वर्णन दिा प्रेम
और आनन्द की उसकी प्राजप्त में

।। िब्द पजरला ।।

देओ री सखी मोजर उमंग बधाई । अब मेरे आनंद उर1 न समाई ।।1।।
जछन जछन ररखूं पल पल जनरखूं । छजब राधास्वामी मोसे करी न िाई ।।
आरत थाली लीन सिाई । प्रेम सजरत रस भर भर गाई ।।3।।
चरन सरन गुरु लाग बढ़ाई । अजधक जबलास ररा मन छाई ।।4।।
करा कहूं यर घड़ी सुराई । सुरत रंसनी गई रै लुभाई ।।5।।
िब्द गुरु धुन गगन सुनाई । अमी धार धुर से चल आई ।।6।।
रोम रोम और अूँग अूँग न्राई । बरन जबनोद2 कहूं कस भाई।।7।।
जलख जलख कर कु छ सैन िनाई । िानेंगे मेरे िो गुरु भाई ।।8।।
राधास्वामी करत बनाई । चार लोक में कफरी रै दुराई ।।9।।
सत्तनाम धुन बीन बिाई । काल बली अजत मुरछा खाई ।।10।।
अलख अगम दोउ मेरर कराई । राधास्वामी राधास्वामी दरस कदखाई ।।

।। िब्द दूसरा ।।

आि बधावा4 राधास्वामी गाऊूँ । चरन कूँ वल गुरु प्रेम बढ़ाऊूँ ।।1।।


ररख अजधक अब जरये समाऊूँ । राधास्वामी रूप जचत्त लाऊूँ ।।2।।
आि कदवस मेरा भाग अनोखा5 । दिणन राधास्वामी मनको पोखा6।।3।।
सतगुरु पूरे अंग लगाया । राधास्वामी अचरि खेल कदखाया ।।4।।

1. ह्रदय । 2. आनन्द । 3. हुक्म । 4. आनन्द गीत । 5. अचरि ।


6. िान्त ककया ।
38 सार बचन बचन 4

बाित घट में अनरद तूरा । राधास्वामी राधास्वामी खुला ज़हूरा ।।5।।


िगा भाग मेरा अजत गंभीरा । राधास्वामी नाम करत मन धीरा ।।6।।
खुल गये बज्र ककवाड़ अिण1 के । दिणन पाये राधास्वामी पुषण के ।।7।।
िोभा अजधक कराूँ लग भाखूूँ । राधास्वामी मूरत नैनन ताकूूँ ।।8।।
दरस अधार जिऊूँ जछन जछन में । राधास्वामी गुन गाऊूँ पल पल में ।।9।।
गुन गावत मन रोत हुलासा2 । राधास्वामी चरन बूँधी मम आसा ।।10।।
मीन मगन िस िल के मारीं । राधास्वामी सरन छू टत अब नारीं ।।11।।
के ल1 करूूँ जनत उन के संगा । राधास्वामी ककये भरम सब भंगा4 ।।12।।
जनरमल रोय चरन जलपटानी । राधास्वामी गजत अजत अगम बखानी ।।13।।
आनंद मंगल अब ररा छाई । राधास्वामी आगे गाऊूँ बधाई ।।14।।
अिब बधावा राधास्वामी गाया । उलट पलट राधास्वामी ररझाया ।।15।।

।। िब्द तीसरा ।।

आि मेरे धूम भई रै भारी ।


कहूं क्या राधास्वामी रूप जनरारी ।।1।।
घाट अब रो गया सुखमन5 िारी ।
आरती राधास्वामी करूूँ सूँवारी ।।2।।
प्रेम रं ग भीि गई सुतण सारी ।
जनरत6 सूँग राधास्वामी कीन पुकारी ।।3।।
हुइ िाय सुन में िब्द अधारी ।
चरन में राधास्वामी माथ धरा री ।।4।।
कहूं क्या आरत गावत न्यारी ।
लगी मोसर राधास्वामी धुन अब प्यारी ।।5।।
अगम गत कै से कोई जवचारी ।
रीत कु छ राधास्वामी अचरि धारी ।।6।।

1. चैतन्य आकाि । 2. आनन्द । 3. ककलोल । 4. दूर । 5. मध्य की धार ।


6. सुरत का जनर्णय करने वाला अंग ।
बचन 4 मजरमा दिणन राधास्वामी 39

छोड़ अब तन मन चढ़त अटारी ।


िराूँ राधास्वामी तशत जबछा री ।।7।।
टरल में ररती जनस कदन ठाढ़ी ।
अमी रस राधास्वामी दीन अरारी ।।8।।
बड़ा अब भाग अपार िगा री ।
तेि राधास्वामी बहुत बढ़ा री ।।9।।
कौन यर पावे घट उजियारी ।
दई राधास्वामी लाभ अपारी ।।10।।
धुनन की चेत सदा झनकारी ।
कीन राधास्वामी मोसर आपना री ।।11।।
इड़ा1 ति सपगला2 खोि करा री ।
जिखर चढ़ राधास्वामी घार सुनारी ।।12।।
सोरूँग3 में बंसी आन पुकारी ।
अिब गत राधास्वामी देखी न्यारी ।।13।।
काल पुजन रारा कमण कटा री ।
लगी ऐसी राधास्वामी नाम कटारी4 ।।14।।
सत्तसर4 गई सुरत पजनरारी ।
भरी राघास्वामी गगरी भारी ।।15।।
रंसनी रो गई रंसन प्यारी ।
जपया अब राधास्वामी नाम सुधा7 री ।।16।।
करत मैं मजरमा राधास्वामी रारी ।
करी मैं आरत राधास्वामी सारी ।।17।।
।। िब्द चौथा ।।
िुगजनयाूँ8 चढ़ी गगन के पार । सुनी राधास्वामी धूम अपार ।।1।।

1. बाईं ओर की नाड़ी । 2. दाईं ओर की नाड़ी । 3. भूँवर गुफा । 4. रजथयार ।


5. दस्मद्वार में िो अमृतसर रै । 6. पानी भरने वाली । 7. अमृत । 8. योग
करने वाली, जमलने वाली ।
40 सार बचन बचन 4

लगजनयाूँ1 मगन हुई दस द्वार । दगजनयाूँ2 मारी राधास्वामी झाड़ ।।2।।


सुूँघजनयाूँ3 सूूँघत मलय4 जनरार । नाम राधास्वामी पाया सार ।।3।।
सुिजनयाूँ लखी िब्द की धार । राधास्वामी गावत राग मलार ।।4।।
बैरागन भईलो सुरत रमार । चरन राधास्वामी मोर अधार ।।5।।
सुराजगन चली नाम की लार । लई राघास्वामी सेि सूँवार ।।6।।
जपया घर पहुूँची मौि जनरार । हुई राधास्वामी के मौि बजलरार ।।7।।
िाय िरूँ देखी लीला सार । राधास्वामी चरन पखार5 पखार ।।8।।
गई और झाूँकी जखड़की पार । राधास्वामी रूप ककया दीदार ।।9।।
दृजष्ट उलटी करत िुरार6 । राधास्वामी परसे ति रंकार ।।10।।
गये अब मन के सभी जवकार । दी अस राधास्वामी दृजष्ट डार ।।11।।
कामना ररी न अब संसार । राधास्वामी दीन्रा संिय टार ।।12।।
िुजि से डारा मन को मार । चलाई राधास्वामी पैनी7 धार ।।13।।
जमरगनी8 भागी बन से रार । राधास्वामी छोड़ा बान सम्रार ।।14।।
कहूं क्या देखी अिब बरार । कदखाया राधास्वामी इक गुलज़ार9।।15।।
िब्द गुल10 जखल गये बार और पार । लगा राधास्वामी से अब प्यार ।।16।।
घोर िराूँ अलरद उठत अपार । सुरत राधास्वामी दई सुधार ।।17।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

राधास्वामी का दरस मैं आि करूूँगी । पल पल जछन जछन पार रहूंगी ।।1।।


िगत िाल से बहुत बचूग ूँ ी । कमण काल को मार धरूंगी ।।2।।
सुरत चढ़ाय असमान भरूंगी । गगन मंडल की सैर करूंगी ।।3।।
धुन धधकार अनंत सुनग ूं ी । िब्द अमी रस अगम जपऊंगी ।।4।।
पुष्ट रोय गुरु चरन गहूंगी । सुखमन संग जवलास करूंगी ।।5।।
बंकनाल में सरि धसूग ं ी । जिकु टी िा मैं ओंग गहूंगी ।।6।।
सुन्न मरासुन पार सिूग ं ी । भंवरगुफा सतलोक रहूंगी ।।7।।
अलख अगम धुन जनत्त भिूग ं ी । राधास्वामी चरन स्पिण करूंगी ।।8।।
1. लगाने वाली यानी प्रेमी सुरत । 2. धोखा देने वाली माया । 3. सूघ
ूँ ने वाली
सुरत । 4. मजलयाजगरर चन्दन । 5. धोकर । 6. दंडवत । 7. तेि ।
8. माया । 9. चमन, बग़ीचा । 10. फू ल ।
बचन 4 मजरमा दिणन राधास्वामी 41

।। िब्द छठवाूँ ।।

देखत ररी री दरस गुरु पूरे । चाखत ररी री प्रेम रस मूरे ।।1।।
िोभा सतगुरु बरनी न िाई । बाित घट में अनरद तूरे ।।2।।
बुदं चढ़ी ति सपड असारा । पहुंची िाय जसन्ध सत नूरे ।।3।।
गरित गगन जवरर उठ िागी । मन कायर अब रोवत सूरे ।।4।।
चरन कूँ वल गुरु जररदे धारी । करत तमोगुन दम दम चूरे ।।5।।
कृ पा दृजष्ट सतगुरु अब धारी । काल चक्र डारत अब तोड़े ।।6।।
समुद ं सोत धस सुरत समानी । मान सरोवर दरसत हूरे 1 ।।7।।
सुरत चढ़ाय गई सतनामा । पहुंची राधास्वामी चरन रज़ूरे ।।8।।

।। िब्द सातवाूँ ।।

गुरु के दरस पर मैं बजलरारी । गुरु के चरन मेरे प्रार् अधारी ।।1।।
गुरु के बचन मेरे जरये जसगारी । गुरु स्वरूप कदन रै न सम्रारी ।।2।।
गुरु का संग कर जछन जछन प्यारी । गुरु का रं ग ले नैन जनरारी ।।3।।
गुरु के धाम पर सुरत लगा री । नील जिखर2 चढ़ श्याम3 तका री ।।4।।
सेत सूर िरं नूर लखा री । िब्द अनारद तूर बिा री ।।5।।
मुरली धमक और बीन सुना री । अद्भुत रस अचरि सखी भारी ।।6।।
जबरले संत यर भेद पुकारी । तू भी सरन पड़ उन की िा री ।।7।।
ज्यों मीना िल धार समा री । ज्यों चकोर चन्दा जनरखा री ।।8।।
अस परीत सतगुरु संग ला री । कर प्रताप घट रोत उिारी ।।9।।
भाग जबना क्या करे जबचारी । यर भी भाग गुरु से पा री ।।10।।
राधास्वामी करी िुजि यर सारी । उनके चरन से प्रेम लगा री ।।11।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
गुरु का दरस तू देख री । जतल आसन डार ।।1।।

1. पारब्रह्म देि की पजवि आत्मायें । 2. नील चक्र । 3. तीसरा जतल । 4. सार


और खुलासा ।
42 सार बचन बचन 5

िब्द गुरु जनत सनो री । जमल बासन1 िार ।।2।।


गुरु रूप सुरावन अजत लगे । घट भान उिार ।।3।।
कूँ वल जखलत सुख पावइ । भौंरा कर प्यार ।।4।।
गुरु ज्ञान न पाया रे सखी । जिन घट अंजधयार ।।5।।
पूरा सतगुरु ना जमला । भरमत भौ िार2 ।।6।।
मैं तो सतगुरु पाइया । िाऊूँ बजलरार ।।7।।
ज्यों चकोर चन्दा गरे । रहूं रूप जनरार ।।8।।
सतगुरु िब्द स्वरूप रैं । ररें अिण मूँझार ।।9।।
तू भी सुरत स्वरूप रै । ररो गुरु की लार ।।10।।
नैनन में गुरु रूप रै । तू नैन उघार3 ।।11।।
सरवन मैं गुरु िब्द रै । सुन गगन पुकार ।।12।।
राधास्वामी कर ररे । यर मारग सार ।।13।।
िो िो मानें भाग से । सो उतरें पार ।।14।।

।। बचन पाूँचवाूँ ।।
वर्णन भेद मागण और िोभा सत्तलोक की और
मजरमा जनि स्वरूप और जनि स्थान परम
पुरुष पूरन धनी राधास्वामी की

।। िब्द पजरला ।।

आरत गावे सेवक तेरा । संिय भरम ने जचत को घेरा ।।1।।


अब स्वामी ककरपा करो ऐसी । संिय िड़ सब िायें जबनासी ।।2।।
जनरसंिय जचत्त िब्द समाई । दसवें द्वार ररे ठरराई ।।3।।
आगे मरासुन्न मैदाना । मौि रोय तो करे पयाना4 ।।4।।
आगे भंवरगुफा की जखड़की । सोरंग धुन िराूँ जनसकदन खड़की5 ।।5।।

1. बासना । 2. िाल । 3. खोल । 4. चलना । 5. आवाि हुई ।


बचन 5 भेद मागण और िोभा सत्तलोक 43

तराूँ िाय कर आनंद पाऊं । आगे को कफर सुरत चढ़ाऊं ।।6।।


सत्तनाम सत िब्द रठकाना । चौथा पद सोइ संत बखाना ।।7।।
रंसन िोभा करी न िाई । खोड़स1 चन्द्र सूर छजब छाई ।।8।।
अद्भुत रूप पुरुष करा बरनूं । कोरट सूर चन्दा इक रोमूं ।।9।।
दीपन िोभा अिब सूँवारी । रंस रंस प्रजत2 दीप जनरारी ।।10।।
अमी कुं ड िराूँ भर ररे भारी । पुरुष दरस का करें अरारी ।।11।।
जनत जनत लीला नई िराूँ की । मजरमा करूँ लग बरनूं वराूँ की ।।12।।
अलख लोक जतस आगे थापा । गई सुरत तराूँ ति कर आपा ।।13।।
अलख पुरुष िोभा करा गाई । अरब कोरट िजि सूर लिाई ।।14।।
सुरत रूप वराूँ ऐसा पाई । कोरट भान छजब ऐसी गाई ।।15।।
सुरत चली आगे पग धारा । अगम लोक को िाय जनरारा ।।16।।
अगम पुरुष की िोभा न्यारी । कोरटन खरब सूर उजियारी ।।17।।
आगे ता के पुरुष अनामी । ता को अकर अपार बखानी ।।18।।
संत जबनाूँ वराूँ और न िाई । संतन जनि घर बर ठरराई ।।19।।
रे स्वामी यर जबनती रमारी । भेद कदया तुम अजत से भारी ।।20।।
पहुंचूं कै से सो भी गाओ । मन मेरे को बहुत उमाओ4 ।।21।।
सुरत िब्द की रार बताई । दया जबना नसर पहुंचे भाई ।।22।।
संिय भरम न राखो कोई । धीरे धीरे सुरत समोई5 ।।23।।
िब्द खोि तुम जनस कदन राखो । बार बार स्वामी यर भाखो ।।24।।
अब आरत पूरन कर गाई । संत मता सब कदया लखाई ।।25।।

।। िब्द दूसरा ।।

आि आरती इक कहुं भारी । सुजमरन राधास्वामी करूं अधारी ।।1।।


जतल का थाल िोत हुई बाती । प्रेम भरी सन्मुख स्वामी आती ।।2।।
रूप अनूप जरये में लाती । दिणन राधास्वामी जनि कर पाती ।।3।।

1. सोलर । 2. वास्ते । 3. न्यारे । 4. उमूँगाओ । 5. प्रवेि या लीन करना ।


44 सार बचन बचन 5

मैं चकवी सतगुरु हुए चकवा । रै न भई तो हुआ जबछोरा 1 ।।4।।


मैं अज्ञान रै न बस पड़ी । वार ररी और धीर न धरी ।।5।।
सतगुरु पार बसेरा कीन्रा । क्योंकर जमलूं रार नसर चीन्रा ।।6।।
तड़पूं जछन जछन जपय के जवयोग । कस पाऊूँ अब जपया संयोग ।।7।।
अजत आतुर2 घबराय पुकारी । तब स्वामी मेरी कीन सम्रारी ।।8।।
रात जबताई हुआ जबराना । घट के भीतर भान उगाना ।।9।।
चक4 के वार पड़ी थी थोथी5 । गुरु चक पार सुनाई पोथी6 ।।10।।
गुरु से जमली खोल कर पाट । घाट बाट घट बाूँधा ठाट ।।11।।
लोरा ज्यों चुम्बक सूँग जमली । सुरत िब्द से िाकर रली ।।12।।
सुरत दृजष्ट कर द्वारा झाूँका । तोड़ा िाय सुई का नाका7 ।।13।।
भीतर धस िो लीला देखी । बरनी ूँ कै से बात अगम की ।।14।।
अंतरिामी सतगुरु िाने । और भेदी पुजन आप पजरचाने ।।15।।
श्याम सेत के मद्ध समानी । घंटा िंख सुनी धुन बानी ।।16।।
सूर चाूँद दोऊ कदस देखे । सुखमन गगना तारे पेखे ।।17।।
आगे धसी बंक की नाल । अवगत काल जबछाया िाल ।।18।।
आगे पहुंची जिकु टी द्वार । लाल रूप िरूँ धुन ओंकार ।।19।।
सुन्न में गई मरल दस मासर । रंसन साथ मानसर न्राजर ।।20।।
सेत सेत वर सुन्न कदखाई । चंद्र चाूँदनी चौक लगाई ।।21।।
जिखर चढ़ी पजच्छम के द्वार । मरासुन्न के रो गई पार ।।22।।
भूँवरगुफा का ताक़ उधारा । सोंरूँग मुरली सुनी पुकारा ।।23।।
चौक परे सतलोक समानी । सत्त पुरुष धुन बीन बखानी ।।24।।
कोरटन सूर8 लगे इक रोम । कोरट कोरट िरूँ ऊगे सोम9 ।।25।।
सत्तपुरुष की आयस 9 पाय । अलख लोक में पहुंची धाय ।।26।।
अरब सूर िजि11 लिायूँ । ऐसी िोभा देखी आय ।।27।।

1. जवयोग । 2. तड़पती । 3. उदय हुआ । 4. चक्षु, आूँख । 5. बे-काम ।


6. आकाि बानी, िब्द । 7. मुख । 8. सूरि । 9. चाूँद । 10. आज्ञा ।
11. चन्द्रमा ।
बचन 5 भेद मागण और िोभा सत्तलोक 45

वराूँ से आज्ञा लेकर चली । अगम पुरुष से िाकर जमली ।।28।।


खरबन चन्द्र सूर उजियारा । और कहूं क्या अगम पसारा ।।29।।
वराूँ से भी कफर आगे बढ़ी । सुरत जनरत जनि पद में धरी ।।30।।
जनि पद रै वर राधास्वामी । कफर कफर कहूं मैं राधास्वामी ।।31।।

सोरठा

क्योंकर करूं बखान, मजरमा मैं उस धाम की ।


नील नील िजि भान, इक इक कं गुरे1 लग ररे ।।32।।
पदमन2 मजर् िड़ी मरलन में । िोभा वराूँ की कहुं क्योंकर मैं ।।33।।
संख और मरासंख िजि भान । जगदण ससरासन देखे आन ।।34।।
िस स्वरूप राधास्वामी धारा । िोभा वा की अकर अपारा ।।35।।
क्या दृष्टान्त देऊूँ मैं सरी । जगनती भी बाक़ी नसर ररी ।।36।।
यर आरत मैं बढ़की करी । कस बरनूूँ अब मीरी3 भई ।।37।।

।। िब्द तीसरा ।।

नगररया झाूँक ररी मैं न्यारी । गुरु ने मोसर दीन्रीं अचरि तारी4 ।।1।।
सुनी मैं अनरद धुन झनकारी । रूप अब जनरखा अद्भुत भारी ।।2।।
कहूं क्या गुरु की मेरर करारी5 । हुई मैं राधास्वामी चरन दुलारी6 ।।3।।
छोड़ कर देि पराया आई । मरल में राधास्वामी आन बसाई ।।4।।
भेद यर दीन्रा मोसर मेरे भाई । कहूं कस मजरमा उनकी गाई ।।5।।
सरन अब राधास्वामी दृढ़ कर पाई । छोट मुख क्योंकर करूूँ बड़ाई ।।6।।
भाग मेरा िागा िब्द सुराई । नाम रस पाया करूं कमाई ।।7।।
सुरत हुइ जनरमल सुखमन पाई । चली और नभ पर करी चढ़ाई ।।8।।
नैन दोउ फे रे िोत कदखाई । सरस दल कूँ वल मध्य धस आई ।।9।।
श्याम ति सेत रूप दरसाई । बंक चढ़ जिकु टी आन समाई ।।10।।
ओंग धुन गरि भली समझाई । सूर िरूँ लाल लाल कदखलाई ।।11।।

1. कं गूरा । 2. अनेक पदम (संशया जविेष) । 3. अव्वल नम्बर । 4. कु ञिी ।


5. तेि । 6. प्यारी ।
46 सार बचन बचन 5

सुन्न चल मानसरोवर न्राई । ररं ग धुन ककगरी खूब सुनाई ।।12।।


रंस रोय आगे पंथ चलाई । मरासुन सूरत अिब सिाई ।।13।।
धमक सुन भंवरगुफा कढग1 आई । बाूँसरु ी सोरंग संग बिाई ।।14।।
वराूँ से सचखंड पहुंची धाई । पुरुष का रूप अनोखा पाई ।।15।।
बीन धुन सुन कर बहुत ररझाई । मेरर हुई भारी करा न िाई ।।16।।
गुरु मोसर दीन्रा अलख लखाई । अगम का परदा खोला िाई ।।17।।
वराूँ से राधास्वामी धाम कदखाई । गई और चरन सरन जलपटाई ।।18।।
आरती अद्भुत लीन सिाई । बूँगला अचरि रूप बनाई ।।19।।
बैठकर राधास्वामी छजब कदखलाई । उमंग और प्रेम ररा मेरा छाई ।।20।।
सखी सब जमल कर देत बधाई । आि मेरा िन्म सुफल हुआ भाई ।।21।।
ब्रह्म और माया दोउ लिाई । काल और कमण ररे मुरझाई ।।22।।
िोग और ज्ञान थके पछताई । कहूं क्या कोई ममण न पाई ।।23।।
संत मत ठीक यरी ठरराई । सुरत और िब्द रार दरसाई ।।24।।
वेद नसर पावे संत बड़ाई । करी अब राधास्वामी यर गजत गाई ।।25।।

।। िब्द चौथा ।।

गुरु मता अनोखा दरसा । मन सुरत िब्द िाय परसा ।।1।।


लीला घट देखी भारी । हुइ सुरत गगन परररारी ।।2।।
अमृत रस भर भर पीया । तन मन सब सीतल हूआ ।।3।।
चोरी अब चोरन त्यागी । घर उनके अजि लागी ।।4।।
साहू अब घट में िागे । पररा दे िब्द अनुरागे ।।5।।
गुन गावत मन हुलसाया । धुन धावत अधर चढ़ाया ।।6।।
िगमग हुइ िोत उजियारी । घट जखल गइ कूँ वल ककयारी ।।7।।
सुन्दर की जखड़की खोली । सुखमन में धुन जनत बोली ।।8।।
चढ़ बंक ककवाड़ी खोली । जिकु टी िा हुई अमोली ।।9।।

1. पास ।
बचन 5 भेद मागण और िोभा सत्तलोक 47

बचन फे रत पान तमोली । यों धुन घट सूरत रोली1 ।।10।।


क्या मजरमा गुरु पद गाऊूँ । जछन जछन में उमूँग बढ़ाऊूँ ।।11।।
सुर नर मुजन गजत नसर िानी । यर अचरि अकथ करानी ।।12।।
सुन्न में िा िब्द समानी । अद्भुत धुन ककगरी छानी ।।13।।
गई मरा सुन्न के नाके । गुरु दया अचंभा2 ताके ।।14।।
कफर भूँवरगुफा लगी डोरी । सोरूँग िा सूरत िोड़ी ।।15।।
सतगुरु पद सत कर िाना । गजत मजत क्या कहूं बखाना ।।16।।
िजि सूर अनेकन पाूँती । देखे और आगे िाती ।।17।।
लख अलख अगम दरसाना । जमला राधास्वामी नाम जनिाना ।।18।।
यर अिब परम पद पाया । अब तक कोई भेद न गाया ।।19।।
नसर वेद कतेब सुनाया । िोगी नसर ज्ञानी धाया ।।20।।
यर वस्तु अमोलक पाई । कोइ जबरले संत बताई ।।21।।
मेरे राधास्वामी परम दयाला । जिन कीन्रा मोसर जनराला ।।22।।
मैं आरत उनकी करता । तन मन दोउ चरनन धरता ।।23।।
मैं रर दम यरी पुकारूूँ । मत अगम अगाध सम्रारूूँ ।।24।।
मेरा भाग उदय रो आया । राधास्वामी चरन जधयाया ।।25।।
िग स्वाद लगा सब फीका । राधास्वामी नाम मैं सीखा ।।26।।
गजत मजत मेरी उलटी पलटी । गुरु कर दइ सूरत3 सुल्टी4 ।।27।।
मेरा काि हुआ सब पूरा । मैं राधास्वामी चरनन धूरा ।।28।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

सुख समूर5 अंतर घट छाया । आरत सामाूँ6 आन सिाया ।।1।।


आनंद ररख अजधक जरये आया । गुरु चरनन में जचत्त समाया ।।2।।
दिणन कर गुरु मजरमा गाया । छजब अनूप नैनन में लाया ।।3।।
प्रेम सूर जनि गगन उगाया । भमण जतजमर सब दूर बराया ।।4।।
िगो भाग धुन अनरद पाया । अंतर सुखमन तीरथ न्राया ।।5।।

1. छाूँटी । 2. अचरि । 3. सुरत । 4. सीधी । 5. बहुत । 6. सामान, पदाथण ।


48 सार बचन बचन 6

सरसकं वल जतल उलट कफराया । मन को छोड़ सुरत संग धाया ।।6।।


िोत जनरं िन रूप कदखाया । अजत हुलास कु छ करा न िाया ।।7।।
घंटा नाद और संख सुनाया । चाूँद सूर तारा दरसाया ।।8।।
बंकनाल का द्वार खुलाया । जिकु टी चढ़ गुरु िब्द जमलाया ।।9।।
सूरि मंडल वेद पढ़ाया । अधण मािा मूल िनाया ।।10।।
सुन्न जिखर धुन ररं ग िगाया । माया काल दोउ सुलवाया1 ।।11।।
सेत चन्द्रमा फू ल जखलाया । मानसरोवर अमी जपलाया ।।12।।
रंसन साथ जमलाप बढ़ाया । ककङ्गरी सारङ्गी धूम मचाया ।।13।।
मरासुन्न धुन गुप्त लखाया । मराकाल बल छीन कराया ।।14।।
भूँवर गुफा अमृत बरसाया । सोरंग बंसी नाद बिाया ।।15।।
चढ़ी सुरत सतपुरुष गिाया2 । सच्चखंड िा तख़्त जबछाया ।।16।।
पुरुष मेरर दुरबीन कदलाया । अलख रूप िोभा परखाया ।।17।।
अगम पुरुष कफर अमी चुवाया । राधास्वामी भेद बताया ।।18।।
भि धाम येरी ठरराया । आरत कर राधास्वामी ररझाया ।।19।।
फल अपार दुख दूर गूँवाया । रसक रसक रस िब्द रसाया ।।20।।
िन्म िन्म के कमण नसाया । काल दाव अब खूब चुकाया ।।21।।
राधास्वामी चरनन माथ नवाया । राधास्वामी मूरत जरये बसाया ।।22।।
ति जवकार मन को समझाया । नाम पकड़ अब काम रटाया ।।23।।
सील जछमा दृढ़ थान िमाया । मन जबरंग को अधर उड़ाया ।।24।।
गुरु भृङ्गी यर कीट जचताया । राधास्वामी चरनजनपट जलपटाया ।।25।।

।। बचन छटवाूँ ।।
आरती परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी के चरर् कं वल में
अब सतगुरु की आरत गाऊं । कथ कथ आरत बहुत सुनाऊं ।।1।।
आरत बानी आगे भनी3 । जवजवध भाूँजत की आरत बनी ।।2।।
राधास्वामी करत बखाना । सतसंगी सुनें देकर काना ।।3।।

1. जनकद्रत ककया । 2. ऊूँची आवाज़ से बुलाया । 3. करो ।


बचन 6 आरती परम पुरुष राधास्वामी 49

।। िब्द पजरला ।।
रे राधा तुम गजत अजत भारी । रे स्वामी तुम धाम अपारी ।
राधास्वामी दोउ मोसर गोद जबठारी ।।1।।
राधा चरन गरे मैं आ री । स्वामी सरन हुई गजत न्यारी ।
राधास्वामी की हुई मैं प्यारी ।।2।।
राधा अंतर दया जवचारी । स्वामी परगट ककया उबारी ।
राधास्वामी जमला कर मोसर सूँवारी ।।3।।
राधा पल पल नाम रटा री । स्वामी जतल जतल रूप जनरारी ।
राधास्वामी मुझ को ककया अपना री ।।4।।
राधा गुन क्या कहूं पुकारी । स्वामी मजरमा अकर अपारी ।
राधास्वामी अब मोसर लीन सुधारी ।।5।।
राधा दरस करठन गजररा री । स्वामी बचन सुनत मोरा री ।
राधास्वामी अब के जलया उबारी ।।6।।
राधा बल मन रार गया री । स्वामी बल मैं गगन चढ़ा री ।
राधास्वामी कीन्री मेरर करारी1 ।।7।।
राधा आरत करूूँ ससगारी । स्वामी संग आरती धारी ।
राधास्वामी आरत करन जवचारी ।।8।।
राधा चरन ससरासन धारी । स्वामी चरन सम्रार पखारी2 ।
राधास्वामी चरन अब जमला अधारी ।।9।।
राधा दृजष्ट दया कर डारी । स्वामी मेरर करी अब न्यारी ।
राधास्वामी कीन मोर उपकारी ।।10।।
राधा गल अब रार चढ़ा री । स्वामी सीतल जतलक लगा री ।
राधास्वामी पूिन आि करा री ।।11।।
राधा आगे भोग धरा री । स्वामी सन्मुख थाल भरा री ।
राधास्वामी दोनों मान जलया री ।।12।।

1. अत्यन्त । 2. धोया ।
50 सार बचन बचन 6

राधा अमर चीर पजरना री । स्वामी अिर वस्त्र तन धारी ।


राधास्वामी िोभा अगम अपारी ।।13।।
राधा आरत अब हुइ भारी । स्वामी जचत में रषण बढ़ा री ।
राधास्वामी चरनन आन पड़ा री ।।14।।
राधा कदया परिाद दया री । स्वामी मेरर करी कु छ न्यारी ।
राधास्वामी पर मैं िाऊूँ बजलरार ।।15।।
जपरथम आरत राधा धारी । कफर आरत मैं स्वामी सम्रारी ।
राधास्वामी आरत कर लइ सारी ।।16।।
राधा अपना धाम कदया री । स्वामी चरनन मासर जलया री ।
राधास्वामी दोनों पार ककया री ।।17।।

।। िब्द दूसरा ।।

राधास्वामी मेरे ससध गम्भीर । कोइ थार न पावत बीर ।।1।।


रतनन के भरे भंडार । िराूँ लाल अमोलक सार ।।2।।
सुतण मीन करे िराूँ के ल1 । कल काल धरे िराूँ पेल2 ।।3।।
घट प्रेम धार अब उमूँगी । रस सार जपये कोइ संगी ।।4।।
जतल उलट चली सुतण प्यारी । देखी वराूँ िोत उिारी ।।5।।
दल द्वार खोल कर पैठी3 । नल पार अजवद्या ऐंठी4 ।।6।।
माया का चक्र रटाया । ब्रह्म दरस सरि में पाया ।।7।।
धुन अनरद सार बिाया । सुन भीतर िब्द िगाया ।।8।।
गुरु पर अब तन मन वारूूँ । गुन गावत कभी न रारूूँ ।।9।।
क्या मजरमा गुरु पद गाऊूँ । मैं जनत जनत बल बल िाऊूँ ।।10।।
गुरु मूरत हृदे5 जछपाऊूँ । मन अंदर द्वार खुलाऊूँ ।।11।।
गुरु संग जलये मोसर िावें । सत रूप अधर दरसावें ।।12।।

1. कलोल, आन्नद । 2. पीड़ के । 3. प्रवेि कर गई । 4. आकड़ गई, मुरझा


गई । 5. हृदय में ।
बचन 6 आरती परम पुरुष राधास्वामी 51

कूँ वलन के बाग़ कदखावें । रंसन संग के ल करावें ।।13।।


वर आनूँद करत न िाई । सुतण भीि ररी छजब छाई ।।14।।
अमृत रस झड़ी लगाई । जछन जछन पर धार चुवाई ।।15।।
मन गोता खावत भारी । सुतण िागी जमटी अूँजधयारी ।।16।।
कोइ सिन प्रेम जबलासी । देखत और खेलत पासी ।।17।।
गुरु बचन सुनत मैं राूँसी । हुइ राधास्वामी चरन जनवासी ।।18।।
दम दम में प्रेम बढ़ाती । गुरु मूरत अिब कदखाती ।।19।।
मैं नैन परान गूँवाती । तन मन की सुध जबसराती ।।20।।
गुरु मूरत अजधक सुराती । ज्यों चन्द्र चकोर समाती ।।21।।
राधास्वामी मौि कदखाई । मैं चरन धूर रोय धाई ।।22।।

।। तीसरा िब्द ।।

आि कदवस सजख मंगल खानी । मैं राधास्वामी सूँग आरत ठानी ।।1।।
तन मन थाल जवरर कर िोती । सुरत1 जनरत2 धुन माल3 परोती ।।2।।
गगन जिखर चढ़ अचरि देखूूँ । रंसन साथ मरासुन पेख4ूूँ ।।3।।
चरन गहूं अब राधास्वामी के । आरत गाऊूँ प्यारे जिय के ।।4।।
जछन जछन जनरखूूँ छजब राधास्वामी । तन मन अरपूूँ दुख रर नामी ।।5।।
जछन जछन जनरखूूँ छजब प्रीतम की । तन मन अरपूूँ दुख ररर जरये की ।।6।।
कराूँ लग बरनूूँ चोट जवरर की । कोई न िाने साल5 जिगर की ।।7।।
जवरर अजि तन मन मेरा फूूँ का । झाल उठी िग दीन्रा लूका ।।8।।
जबन राधास्वामी मोसर कौन सम्रारे । लोक चार मेरे ज़रा न अधारे ।।9।।
मैं भइ देरी तुम भये स्वाूँसा । तुम जबन नसर िीवन की आसा ।।10।।
तुम भये मेघा मैं भइ मोरा । तुम्ररे दरस मैं करती िोरा ।।11।।
मैं बुलबुल तुम गुल की क्यारी । मैं क़ु मरी6 तुम सवण7 अपारी ।।12।।
तुम चंदा मैं रै न अूँजधयारी । तुम से िोभा भई रमारी ।।13।।

1. आन्तररक िब्द का श्रवर् करना । 2. आन्तररक दृष्य देखना । 3. गूथ


ूँ ती ।
4. देखूूँ । 5. चोट का दुख । 6. एक घुग्गी की ककस्म की जचजड़या ।
7. सरू का बूटा ।
52 सार बचन बचन 6

प्रेम जसन्ध िब लरर उठाई । भरम कोट सब दीन बराई ।।14।।


काम क्रोध की बस्ती उिड़ी । आसा मनसा तन से जबछड़ी ।।15।।
लोभ मोर सब दूर जनकारी । जवषय बासना घट से टारी ।।16।।
राि जववेक हुआ अब भारी । सुख पाया तन रै यत1 सारी ।।17।।
मैं दासी सतगुरु चरनन की । ककये रैं मनोरथ पूरन अब की ।।18।।
कराूँ लग बरनू मजरमा उनकी । खबर पड़ी अब अनरद धुन की ।।19।।
सुरत चढ़ी पहुंची ब्रह्मर्डा । छोड़ गई यर खाकी सप डा ।।20।।
गगन मूँडल िाय बैठक पाई । सुन्न मरल में धधक चढ़ाई ।।21।।
द्वार दसम का पाया मरमा । दूर ककये सब कं टक करमा ।।22।।
कमण काट जनि घर को चाली । माया ठगनी दूर जनकाली ।।23।।
मरासुन्न का खेल कदखाना । क्या कहूूँ वराूँ का राल पूराना ।।24।।
ससर नाग िराूँ चौकी लाये । जबन सतगुरु कोइ पार न पाये ।।25।।
अन्ध घोर जतस आगे भारी । िब्द गुरु तराूँ कीन उिारी ।।26।।
झूँझरी पार झरोखा देखा । संतन िांका बरना लेखा ।।27।।
दायें बाट गइ दीप अजचन्ता । बाइूँ कदसा िराूँ सरि बसंता ।।28।।
मद्य रोय सूरत चढ़ी आगे । भूँवरगुफा िराूँ सोरूँग िागे ।।29।।
सोरूँ से िाय भेंटा कीन्रा । सत्तनाम धुन ता पर चीन्रा ।।30।।
अलख पुरुष की धुन सुन पाई । तराूँ से अगम पुरुष को धाई ।।31।।
अगम लोक िाय डेरा डाला । अब पाई पूरी टकसाला ।।32।।
अब ररा आगे एक अनामी । करा कहूूँ वर अकर करानी ।।33।।
अब आरत पूरन भइ मेरी । दया करो स्वामी मैं बल तेरी ।।34।।
।। िब्द चौथा ।।
आि साि कर आरत लाई । प्रेम नगर जबच कफरी रै दुराई ।।1।।
जवरर व्यथा के लुट गये डेरे । जमल गये राधास्वामी जबछड़े मेरे ।।2।।
जररदा थाल सुरत की बाती । िब्द िोत मैं जनत्त िगाती ।।3।।

1. प्रिा ।
बचन 6 आरती परम पुरुष राधास्वामी 53

आरत फे रूं सन्मुख ठाढ़ी । प्रीत उमूँग मेरी जछन जछन बाढ़ी ।।4।।
तन नगरी जबच बित ढूँढोरा । भागे चोर ज़ोर भया थोड़ा ।।5।।
सील जछमा आय थाना गाड़ा । काम क्रोध पर पड़ गया धाड़ा1 ।।6।।
स्वामी मेरर करी अब भारी । मैं भी उन चरनन बजलरारी ।।7।।
अब ते सरन पड़ी राधास्वामी । राखो सूँग सदा अन्तर िामी ।।8।।
मेरे और न कोई दूिा । मेरे जनस कदन तुम्ररी पूिा ।।9।।
तुम जबन और न कोई िानूं । जछन जछन मन में तुमको मानूं ।।10।।
मैं मछली तुम नीर अपारा । के ल करूूँ मैं तुम्रारी लारा ।।11।।
मैं पजपरा तुम सवाूँजत के बादल । सुख पाये दुख गये रैं रसातल2 ।।
तुम चंदा मैं कमोदन रीनी । तुम्ररी लगन में जनसकदन भीनी3 ।।
मैं धरनी तुम गगन जबरािे । कै से जमलूं मैं तुम सूँग आिे ।।14।।
सुरत जनरत से चढ़ कर धाऊूँ । कभी न छोड़ूूँ अस जलपटाऊूँ ।।15।।
मैं गुरबतीं राधास्वामी के चरन की । लाि रखो मेरी काल से अबकी ।।16।।
तुम्ररे बल से भइ हूं जनसचती । अब मन में नसर संका धरती ।।17।।
सूर ककया स्वामी खेत जिताया । मार जलया मैंने मन और माया ।।18।।
खाक जमला सब कपट खज़ाना । भाग गया दल मोर तुराना ।।19।।
गढ़ जिकु टी अब चढ़कर लीन्रा । सुन्न जिखर पर डंका दीन्रा ।।20।।
ससध मरासुन्न बीच में आया । सतगुरु कृ पा ने दीन तराया ।।21।।
भूँवरगुफा के मरल जबरािी । सत्तलोक चढ़ अचरि गािी ।।22।।
अलख लोक में सूरत सािी । अगम लोक को जछन में भािी4 ।।23।।
पोरप5 ससरासन क्या कहुूँ मजरमा । िराूँ राधास्वामी ने धारे चरना ।।24।।
उन चरनन पर िाय जलपटानी । आगे अकर की क्या कहुं बानी ।।25।।
अब आरत मैं कीन्री पूरी । भाखा भेद अगम गम मूरी ।।26।।
राधास्वामी की चरन धूर धर । आय गई अपने मैं जनि घर ।।27।।

1. डाका । 2. पाताल में । 3. भींिी हुई । 4. भागी । 5. पुष्प, फू ल ।


54 सार बचन बचन 6

।। िब्द पांचवां ।।

यर आरत दासी रची, प्रेम ससध की धार ।


धारा उमूँगी प्रेम की, िा का वार न पार ।।1।।
सन्मुख ठाड़ी रोय कर जबन्ती करूूँ पुकार ।
भाग रीन मैं क्यों हुई, स्वामी तुम दरबार ।।2।।
तुम से दाता कोइ नरीं, सब को लीन्रा तार ।
मुझ अपराजधन रीन की, अभी न आई बार ।।3।।
मैं पड़ती तुम दरस को, िैसे चन्द चकोर ।
सीप चरै जिजम1 स्वाूँजत को, मोर चाजर घनघोर ।।4।।

।। चौपाई ।।

तुम दीपक मैं भइ हूं पतंगा । भस्म ककया मन तुम्ररे संगा ।।5।।
तुम भृङ्गी मैं कीट अधीना । जमल गये राधास्वामी अजत परवीना ।।6।।
तुम चंदन मैं भइ हूं भुवग
ं न2 । सीतल भइ लग तुम्ररे चरनन ।।7।।
तुम समुद्र मैं लरर तुम्रारी । तुम से उठ कफर तुमसर सम्रारी ।।8।।
तुम सूरि मैं ककरनी आई । तुम से जनकसी तुमसर समाई ।।9।।
तुम मोती मैं भी भइ धागा । संग तुम्रारा कभी न त्यागा ।।10।।
अब तो कृ पा करो राधास्वामी । तुम रो घट घट अंतरिामी ।।11।।
तुम चंदा मैं कला तुम्रारी । घारट बाढ़ तुम्ररो आधारी ।।12।।
मैं बाली तुम जपत और माता । तुम्ररी गोद खेलूूँ कदन राता ।।13।।
नैन थाल और दृष्टी िोती । पलकन छड़ी खड़ी कर लेती ।।14।।
प्रेम नीर का घी अब डारूूँ । आरत तुम्ररे सन्मुख वारूूँ ।।15।।
घंटा िंख नाद धुन गािा । बीन बाूँसरी अचरि बािा ।।16।।
ताल मृदग
ं ककगरी धधकी । ढोल पखावि जछन जछन जखड़की ।।17।।
सरस धार अमृत की बरखा । गगन मूँडल कफरे िैसे चरखा ।।18।।

1. िैसे । 2. सपनी ।
बचन 6 आरती परम पुरुष राधास्वामी 55

घुमड़ूँ घुमड़
ूँ रोवे बजलरारी । आरत िोभा अब भइ भारी ।।19।।
समा बूँधा कु छ करा न िाई । सतसंगी जमल आरत गाई ।।20।।
रीरे लाल न्योछावर1 रोई । माजर्क मोती लजड़याूँ पोई 2 ।।21।।
फल और फू ल िराूँ अजत रािें । राधास्वामी िराूँ जबरािें ।।22।।
मगन हुआ अब तन मन मेरा । राधास्वामी जछन जछन रेरा3 ।।23।।
आरत कीन्री अब मैं पूरी । देओ प्रिाद अमीरस मूरी4 ।।24।।
प्रेम ध्विा अब गगन फरराई । धुन धधकार अगम से आई ।।25।।

।। िब्द छठवाूँ ।।

आनूँद मंगल आि, साि सब आरत लाई ।


राधास्वामी हुए रैं दयाल, काल डर दूर बराई ।।1।।
सुखमन थाल सिाय, बंक की खोल ककवाड़ी ।
चन्द्र कटोरी आन, भान की िोत सूँवारी ।।2।।
सुरत जनरत की छड़ी, अमी का भोग धराई ।
सेत चूँदरवा5 तान, सेत की तान6 सुनाई ।।3।।
कमण रे ख जमट गई, सुन्न में बिी बधाई ।
स्वामी ककरपा करी, रूप अद्भुत दरसाई ।।4।।
सत्तनाम धुन अगम, जरये जबच आन समाई ।
काया नगर मूँझार, पुरुष की कफरी दुराई ।।5।।
छोड़ कु टु म्ब और तोड़ िगत से, पोढ़7 परम पद पाई ।
राधास्वामी राधास्वामी, जनस कदन रटना लाई ।।6।।
प्रेम मगन मन हुआ, करा अब कछू न िाई ।
सतसंगी जमल आरत गावें, तन मन सुध जबसराई ।।7।।
स्वामी ककरपा करी, सुरत अब लीन िगाई ।
िब्द अगम का भेद, दीन सतगुरु दरसाई ।।8।।

1. वार कदये गये । 2. परोजतयां । 3. देखा । 4. मूल । 5. चंदोआ ।


6. राग । 7. मज़बूत ।
56 सार बचन बचन 6

उमूँग उमूँग कर उमूँग उमूँग कर, आरत गाई ।


पंच िब्द धुन पंच िब्द धुन, पूरन आई ।।9।।

।। िब्द सातवाूँ ।।

करूूँ आरती राधास्वामी, तन मन सुरत लगाय ।


थाल बना सत िब्द का अलख िोत फरराय ।।1।।
रंस सभी आरत करे , सन्मुख दिणन पाय ।
राधास्वामी दया कर, दीन्राूँ अगम लखाय ।।2।।
अनरद धुन घंटा बिे संख बिे जमरदंग ।
ओंकार मूँडल बूँधा, मेघनाद1 गरिंत ।।3।।
सुन्न मूँडस धुन सारूँ गी, ककगरी बिे अनूप2 ।
कोरट भान छजब रोम इक, ऐसा पुरुष स्वरूप ।।4।।
कूँ वलन की क्यारी बनी, भूँवर करें गुंिार ।
सेत ससरासन बैठ कर, देखें पुरुष सम्रार ।।5।।
बीन बाूँसरी मधुर धुन, बािें पुरुष हुज़ूर ।
सुन सुन रंसा मगन रोयूँ, जपवें अमीरस मूर3 ।।6।।
रं ग मरल सतपुरुष का, िोभा अगम अपार ।
रंस िराूँ आनूँद करें , देखें जबमल4 बरार ।।7।।
अब आरत पूरन भई, मन पाया जबसराम ।
राधास्वामी चरन पर, कोरट कोरट परनाम ।।8।।

।। िब्द आठवाूँ ।।

सुरत सखी आि करत आरती । िब्द गुरु मन अपने धारती ।।1।।


जनरत5 दीप का ककया उिाला । रोई माया झुर गया काला ।।2।।
जबरत6 जबबेक थाल जलया राथा । मद और मोर झुकाया माथा ।।3।।
दीन गरीबी आन समाई । कु रटल कपट अब दूर बराई ।।4।।

1. बादल की गरि । 2. उपमा रजरत । 3. मूल, सार । 4. जनमणल ।


5. आन्तररक प्रकाि । 6. वृजत्त ।
बचन 6 आरती परम पुरुष राधास्वामी 57

प्रेम भजि की िोत िगाई । लेकर सन्मुख स्वामी आई ।।5।।


फे रत आरत घेरत मन को । टेरत1 राधास्वामी चली धुन घन को ।।
घोर2 उठा घट भीतर भारी । उमूँगा जररदा चोट करारी ।।7।।
जिगर फटा कदल टु कड़े हुआ । तब राधास्वामी का दिणन हुआ ।।8।।
ऐसे करठन स्वामी दिणन पाये । कमण भमण सब दूर नसाये ।।9।।
प्रेम भजि की धारा छू टी । काम क्रोध की गठरी लूटी ।।10।।
मान मनी की मटकी फू टी । िगत बासना सबरी छू टी ।।11।।
तत्व पाूँच परककतण पचीसा । गुन तीनों धर पटके सीसा ।।12।।
सुरत छू ट चढ़ी गगन मूँडल को । घेर जलया िाय काल मूँडल को ।।13।।
िीत जलया गढ़ सुन्न मूँडल को । धार जलया मन अगम मूँडल को ।।14।।
मैं लोरा पारस राधास्वामी । पारस परस गई जनि धामी ।।15।।
मैं भुवंग3 तुम रो मजर् मेरे । तेि4 तुम्रारे सूक्ख घनेरे4 ।।16।।
मैं कं वला तुम सूर प्रकासी । दरस तुम्रारे पाउं हुलासी ।।17।।
मैं सरवर तुम कं वल अनूपा । िोभा पाउूँ मैं तुम्ररे रूपा ।।18।।
तुम सरवर मैं भइ हुूँ रंसला6 । मोती चुगूं और देखूं लीला ।।19।।
मैं प्यासी तुम अमृत धारा । मैं भूखी तुम्ररा अगम भंडारा ।।20।।
अगम आरती ऐसी गाई । जवरर भाव की धार बराई ।।21।।
कू ड़ा करकट7 सभी िलाया । मरल आपना साफ़ कराया ।।22।।
मुझ सी जवररन और न कोई । मैं सब अपनी गजत मजत खोई ।।23।।
घर फूं का और लीन्रा लूका8 । तीन लोक को जछन में थूका ।।24।।
सत्तलोक का पाया कू का9 । अब कीन्रा मैंने काल का टू का10 ।।25।।
पाया सतगुरु चरन जनवासा । रोत सदा अब जबमल जबलासा ।।26।।
मजरमा ताूँकी करी न िाई । गूगूँ े का गुड़ रो गया भाई ।।27।।

1. पुकारती हुई । 2. िोर । 3. सपण । 4. प्रकाि । 5. अजधक । 6. रंस ।


7. कू ड़ा । 8. पलीता, जिसमे आग लगाइ िावे । 9. आवाि । 10. काट जगराया ।
58 सार बचन बचन 6

।। िब्द नवाूँ ।।

भर भर प्रेम आरती गाऊं । नई उमूँग अब जचत्त समाउं ।।1।।


भजि ससध अजत लरर उठाई । प्रीत रीत मोती उपिाई ।।2।।
सुरत चंबेली घट में जखलाई । जनरत रं गीली संग जमलाई ।।3।।
िब्द गुरु गल रार जपन्राया । गगन मूँडल धुन अिब सुनाया ।।4।।
पीत सेत और लाल बखाना । ररा श्याम पचरं गी बाना ।।5।।
पाूँच रं ग फ़ु लवार जखलानी । देख देख दृष्टी ररखानी ।।6।।
िोत िगी जरये भया उिाला । श्याम जनरख कफर सेत सम्राला ।।7।।
अनरद बानी सुनी गगन में । मगन हुई सुतण पहुंची धुन में ।।8।।
घंटा िंख सूर कदस1 छाूँटा । बंक नाल का खोला घाटा ।।9।।
आरत एक करी जिकु टी में । गुरु स्वरूप जनरखा अब घट में ।।10।।
दूसर आरत सतगुरु कीन्री । सत्तलोक गइ सुरत प्रबीनी ।।11।।
तीसर आरत राधास्वामी । जनि कर करी देख जनि धामी ।।12।।
मजरमा उनकी क्योंकर गाऊं । चरन िरन में जनस कदन धाऊं ।।13।।
राधास्वामी धाम कदखाई । अद्भुत िोभा करी न िाई ।।14।।
राधास्वामी पुरुष अपारा । कहूं करा2 कु छ अिब बरारा ।।15।।

।। िब्द दसवाूँ ।।

सुरत आि लगी चरन गुरु धाय । श्याम ति सेत ग्राम ठरराय ।।1।।
देख जनि नाली बंक समाय । जिकु टी चढ़ कर पहुंची आय ।।2।।
जरये जबच पंकि3 अिब जखलाय । सेत पद धिा अगम फरराय ।।3।।
रंस िराूँ बािे ररे बिाय । गुरु अस लीला दई कदखाय ।।4।।
राजगनी नइ नइ जनत्त सुनाय । भेद सब अक्षर4 दीन बताय ।।5।।
घाट जन:अक्षर5 पाया िाय । गुफा में धुन इक सुनी बनाय ।।6।।

1. सूरि की कदिा यानी दाजरनी तरफ । 2. क्या करूं । 3. कूँ वल । 4. सुन्न ।


5. मरसुन्न ।
बचन 6 आरती परम पुरुष राधास्वामी 59

पदम सत जनरखा भरम नसाय । बीन धुन पाई सुरत लगाय ।।7।।
अलख और अगम ररा दरसाय । परे जतस राधास्वामी धाम जमलाय ।।8।।
िरां अब आरत साि सिाय । जलये मैं राधास्वामी खूब ररझाय ।।9।।
कहूूँ क्या मजरमा बरनी न िाय । सुरत मेरी जछन जछन ररी मुसकाय1 ।।
राधास्वामी लीला कहूं जछपाय । जलया मोजर अपने अंग लगाय ।।11।।
आरती पूरी कीन्री आय । कहूं क्या अस्तुत2 राधास्वामी गाय ।।12।।
परम पद पाया काल भिाय3 । वेद भी ररा बहुत िरमाय ।।13।।
भेद यर जमला न अब तक काय । दया कर राधास्वामी कदया िनाय ।।14।।
करूं अब आरत उनकी गाय । सुरत मेरी राधास्वामी लीन िगाय ।।15।।
िोग और ज्ञान ररे मुरझाय । संत कोई जवरले कदया सुझाय ।।16।।
राधास्वामी अचरि खेल कदखाय । चरन में राधास्वामी गई समाय ।।17।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
चरन गुरु जररदे धार ररी ।। टेक ।।
भौ की धार करठन अजत भारी । सो अब उलट बरी ।।1।।
गुरु जबन कौन सम्रारे मन को । सुरत उमूँग अब िब्द गरी ।।2।।
कोरटन िन्म भरमते बीते । काहु मोरी आन न बाूँर गरी ।।3।।
अब के सतगुरु जमले दया कर । िब्द भेद उन सार दई ।।4।।
नौ4 को छोड़ द्वार दस लागी । अक्षर मथ नवनीत5 लई ।।5।।
नौका पार चली अब गुरु बल । अगम पदाथण लीन सरी ।।6।।
क्या क्या कहूं कर गजत नारीं । सुरत िब्द जमल एक हुई ।।7।।
ररन गरन की बात जनयारी । संत जबना कोइ नासर करी ।।8।।
सुन्न जिखर चढ़ मरासुन्न लख । भूँवरगुफा पर ठाट ठई6 ।।9।।
सत्तनाम सत धाम जनरख धुर । अलख अगम गजत पाय गई ।।10।।
सुरत जनरत सूँग चली अगाड़ी । राधास्वामी राधास्वामी चरन मई7 ।।11।।

1. रूँसती हुई । 2. स्तुजत । 3. दूर करके , भगा कर । 4. नौ द्वार । 5. मक्खन ।


6. मुकाम ककया । 7. जमल गई ।
60 सार बचन बचन 6

अब आरत ससगार सुधारी । प्रेम उमंग मी बहुत चरी ।।12।।


काल कला सब दूर जबडारी1 । दयाल सरन अब आन लई ।।13।।
पचरूँ ग बाना 2 परन जबरािे । िोभा धारी आि नई ।।14।।
िीव काि जनि भवन छोड़ कर । िमा दूध कफर रोत दरी ।।15।।
मथ मथ माखन काढ़ जनकारा । जबरले गुरुमुख चाख चखी ।।16।।
राधास्वामी दीन अवाज़ा । चढ़ो अधर जनि धाम पई ।।17।।

।। िब्द बाररवाूँ ।।

अपने स्वामी की मैं करत आरती । कु ल कु टु म्ब सब अपना तारती ।।1।।


काल कमण जसर धौल3 मारती । ममता चादर जछन में फाड़ती ।।2।।
रस रस स्वामी जरये में धारती । रोग दोष सब जछन में िारती ।।3।।
थाल सिाया उमूँग प्रेम का । दीपक बाला दरस नेम का ।।4।।
भोग धराया भाव भजि का । राग सुनाया ध्यान िुजि का ।।5।।
दृजष्ट िोड़ कर दिणन करती । नैनन में ज्यों पुतली धरती ।।6।।
छजव स्वामी की बड़ी चरीती4 । मैं दरबारी स्वामी दर की ।।7।।
लौ5 लगाय चरनन मैं ररती । लउआ6 नाम मैं अपना धरती ।।8।।
श्याम कं ि मैं त्यागा येरी । सेत पदम में सूरत देई ।।9।।
सुरत चढ़ाय गई आकािा । जखल जखल देखूूँ जबमल तमािा ।।10।।
राधास्वामी चरन जनरारूं । तन अपना उन पर वारूं ।।11।।
आरत पूरन भई रै रमारी । पहुूँच गई सतगुरु दरबारी ।।12।।

।। िब्द तेररवाूँ ।।

आरत गावे दरसो7 अपनी । जछन जछन राधास्वामी राधास्वामी रटनी ।।


थाल इल्म8 का िोत अमल6 की । पढ़ पढ़ आयो राधास्वामी की सरनी ।।
क़लम लगन और प्रेम दवाता । जलखजलख राधास्वामी जरये जबच गाता ।।

1. जनकाल दी । 2. वस्त्र । 3. थप्पड़ । 4. प्यारी । 5. ध्यान । 6. िो जलव


लगावे । 7. जिसको दिणन की इच्छा रै । 8. जवद्या । 9. अभ्यास ।
बचन 6 आरती परम पुरुष राधास्वामी 61

पढ़ी फ़ारसी पढ़ी अंगरे ज़ी । हुई मेरर बुध पाई तेली ।।4।।
देखा सब िग झूठ पसारा । पाया नाम राधास्वामी का सारा ।।5।।
सुरत चढ़ी खुला िब्द अपारा । कु मत ररी1 और मनको गारा2 ।।6।।
प्रेम बदररया घुमड़न3 लागी । बरस बरस अनरद धुन िागी ।।7।।
चाूँद सुरि दोउ गये जछपाई । सुखमन नदी उमूँड़ कर आई ।।8।।
खुला द्वार फू टा घट गगना । सुन्न जिखर देखत मन मगना ।।9।।
बाल अवस्था खेल कू द की । खेल कदखाया साूँचा अब की ।।10।।
दया हुई अब स्वामी भारी । आरत पूरन हुई रमारी ।।11।।

।। िब्द चौदरवाूँ ।।

एक आरती कहूं बनाई । राधास्वामी हुए सराई ।।1।।


िाजन्त थाल और सत मत िोती । समता सील4 धरे िराूँ मोती ।।2।।
रत्नन माल परोई भाई । गल में स्वामी आन चढ़ाई ।।3।।
रीरे लाल थाल भर लाई । माजर्क पन्ना भेंट धराई ।।4।।
गरने कपड़े बहु पजरनाई । चोआ चन्दन अंग5 लगाई ।।5।।
अस अस सब ससगार बनाई । कूँ वल देख ज्यों मधुकर6 आई ।।6।।
स्वामी सन्मुख ठाढ़ी भई । आरत थाली कर7 में लई ।।7।।
आरत कर कर अजत ररखाई । राग राजगनी नइ नइ गाई ।।8।।
बािे बिें गगन के द्वार । उमूँग बढ़ी सुन सुन झनकार ।।9।।
अजि पवन और िल भंडार । तीनों पाये छोड़े वार ।।10।।
इनके पार सुरत िब भई । चाूँद सूर ति सुखमन गरी ।।11।।
िोत जनरारत मन हुलसाना । रूप जनरं िन अलख पजरचाना ।।12।।
घंटा नाद सुनी और पहुंची । संख नाद कफर सूरत खैंची ।।13।।
यराूँ से रटी बंक8 पट खोला । जिकु टी िाय ओंग धुन तोला9 ।।14।।

1. दूर हुई । 2. गला कदया । 3. छा िाना । 4. िीतल स्वभाव । 5. देर ।


6. भूँवरा । 7. राथ । 8. बंकनाल । 9. समझ ।
62 सार बचन बचन 6

गरि गरि आकाि पुकारी । आओ सुरत मैं तुझ पर वारी ।।15।।


लीला देखत चली अगाड़ी । सुन्न सरोवर कूँ वलन बाड़ी 1 ।।16।।
रंसन साथ मरा सुख पाई । मरा सुन्न में िाय समाई ।।17।।
भूँवरगुफा गइ सोरं पास । मुरली धुन सुन करे जबलास ।।18।।
यराूँ से चढ़ पहुूँची सतपुर में । सतगुरु पूरे जमले अधर में ।।19।।
नाना2 धुन सुन बीन बिाई । सतपुरुष दुरबीन लखाई ।।20।।
द्वारे धस गइ अलख लोक में । अगम लोक फल पाया जछन में ।।21।।
राधास्वामी पद दरसाना । क्या कहुूँ मजरमा अिब रठकाना ।।22।।
करना था सो अब कर चुकी । आरत पूरन अब मैं करी ।।23।।
राधास्वामी हुए दयाल । दे परिाकद ककया जनराल3 ।।24।।
रीरे लाल4 न्योछावर करती । तन मन धन तो तुच्छ समझती ।।25।।

।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।।

आरत करूूँ आि सतगुरु की । तन मन भेंट चढ़ाऊूँ अब की ।।1।।


ममता छोड़ूूँ मैं अब सब की । प्रीत करूूँ राधास्वामी चरनन की ।।2।।
सुजमरन नाम नेम से करूूँ । प्रेम सजरत अनरद धुन सुनूूँ ।।3।।
सुन सुन धुन कफर आगे चढ़ूूँ । सरसकं वल दल बानी पढ़ूूँ ।।4।।
श्याम सेत तक आगे चलूूँ । बंकनाल के भीतर धसूूँ ।।5।।
वराूँ से जिकु टी धाम सम्रारूूँ । ओंग ओंग संग बहुत पुकारूूँ ।।6।।
ररं कार धुन सरवर तीर । रंसन की िराूँ देखी भीड़ ।।7।।
सेत सेत पद िराूँ गंभीर । सुरत जनरत धस धारी धीर ।।8।।
िन्म िन्म की काटी पीड़ । छान करी िराूँ नीर और खीर ।।9।।
आतम अक्षर जनरख जनरारी । मरासुन्न की करी तयारी ।।10।।
अंध घोर िराूँ अजत कर भारी । सतगुरु बल से पार जसधारी ।।11।।

1. बग़ीचा । 2. कई तरर की । 3. प्रसन्न । 4. सुन्न और जिकु टी के िब्द ।


बचन 6 आरती परम पुरुष राधास्वामी 63

भूँवर गुफा पहुंची इक जछन में । बंसी की धुन पड़ी श्रवन में ।।12।।
सोरं सोरं सुनी पुकार । रंसन रूप देख उजियार ।।13।।
वराूँ से चली अमर पद आई । सत्तनाम धुन बीन सुनाई ।।14।।
अलख अगम का नाका1 लीया । िराूँ अमी रस अद्भुत पीया ।।15।।
आगे को कफर सूरत धाई । राधास्वामी धाम समाई ।।16।।
अभेद आरती करी बनाई । भेद तासु कोई संत िनाई ।।17।।
नसर वराूँ थाल न दीपक बाती । सदा आरती बहु जबजध गाती ।।18।।
चरन सेव चरनामृत पीती । उमूँग सजरत परिादी लेती ।।19।।
जछन जछन राधास्वामी रूप जनरारूूँ । पल पल राधास्वामी जररदे धारूूँ ।।
सुरत िब्द सूँग आई िाग । राधास्वामी जमले बड़े मेरे भाग ।।21।।

।। िब्द सोलरवाूँ ।।

राधास्वामी दया प्रेम घट आया । बंधन छू टे भमण गूँवाया ।।1।।


सीतल िब्द िोत लख पाई । गगन मूँडल में सुरत समाई ।।2।।
उमंगा जररदा सुजध जबसराई । तन मन धन सब भेंट चढ़ाई ।।3।।
अब रक्षा मेरर तुम्ररे राथा । चरन तुम्रार मोर ररे माथा ।।4।।
सुजमरन नाम करूूँ जनस2 बासर3 । िब्द िोग का पाया औसर4 ।।5।।
देखत रहूं रूप गुरु प्यारा । काम बाम4 को धर धर मारा ।।6।।
आरत करूूँ प्रेम रं ग पूरी । पास रहूं गुरु के ति दूरी ।।7।।
प्रेम उमूँग धारा घट बढ़ती । सुरत जनरत जनत उूँ चे चढ़ती ।।8।।
भूल भरम धोखा सब भागा । राघास्वामी चरन बढ़ा अनुरागा ।।9।।

।। िब्द सताररवाूँ ।।

प्रेम प्रीत घट धार । आरती राधास्वामी कीिे ।।1।।


मन माधो6 तन बास । सुरत चरनन में दीिे ।।2।।
थाल उमूँग और िोत जबरर । घट परगट कीिे ।।3।।

1. रद, सीमा । 2. रात । 3. कदन । 4. मौका । 5. माया । 6. माया के


पीछे दौड़ने वाला ।
64 सार बचन बचन 6

सतगुरु रोयूँ दयाल । दान कफर िब्द जमलीिे ।।4।।


िब्द िब्द चढ़ गगन । सुन्न में अमृत पीिे ।।5।।
मानसरोवर बास । रंस संग खेल जखलीिे1 ।।6।।
कूँ वल द्वार धस िाय । सेत पद आस धरीिे ।।7।।
मरासुन्न का घाट । दया सतगुरु से लीिे ।।8।।
भूँवरगुफा धुन बाूँसरी । आश्चर्ययण सुनीिे ।।9।।
सत्तनाम धुन बीन । ताजर में सूरत दीिे ।।10।।
अलख अगम दरबार । देख घट प्रेम भरीिे ।।11।।
सुरत सुराजगन हुई । काल बल सब री छीिे ।।12।।
धोखा सब री जमटा । पूरूष संग जछन जछन रीझे2 ।।13।।
संत कृ पा िब रोय । सुरत अपने घर सीझे3 ।।14।।
सतसूँग करो बनाय । अमी का छींटा लीिे ।।15।।
राधास्वामी नाम । जरये में आन धरीिे ।।16।।
रोम रोम मन मगन । आरती पूरन कीिे ।।17।।
।। िब्द अठाररवाूँ ।।
जतल भीतर कदल िोड़ । कूँ वल4 में आसन कररये ।।1।।
दृजष्ट उलट असमान । िोत फु लवारी जखजलये ।।2।।
बािे िब्द अनारदी । घट मंगल भररये ।।3।।
सुरत जिखर चढ़ गई । बंक में जछन जछन धररये ।।4।।
कूँ वल जिकु टी पाय । भूँवर मन कारि सररये ।।5।।
ररं कार धुन सुनी । काल दल मार जगरइये ।।6।।
संत कृ पा अब हुई । घाट घट सब री खुजलये ।।7।।
यर मारग जनि पीव का । जबन भाग न जमजलये ।।8।।
कौतुक6 क़ु दरत7 धार । प्रेम का खेल जखलइये ।।9।।
घट पट लीला देख । अमी रस धार बरइये ।।10।।
जनि भिन के काि । पंथ यर नया चलइये ।।11।।

1. खेजलये । 2. मोजरत रोवे । 3. पहुंचे । 4. सरंस दल कूँ वल । 5. प्यारा ।


6. खेल । 7. िजि, ताकत ।
बचन 6 आरती परम पुरुष राधास्वामी 65

वेद न िाने भेद । कमण बस योंरी बजरये ।।12।।


यर मारग जनि संत का । सतसूँग से पइये ।।13।।
सतगुरु की कर आरती । उन बहुत ररझइये ।।14।।
राघास्वामी दया से । पूरन पद पइये ।।15।।

।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।

उमूँग आि हुई जरये में भारी । सरन में राधास्वामी िाय पुकारी ।।1।।
करूूँ अब आरत जववध प्रकारी । रोय िो मेरर अपार तुम्रारी ।।2।।
वरी ूँ राधास्वामी दृजष्ट जनरारी । करा कर आरत लेकर थारी ।।3।।
सुरत से जनरखो जतल कर यारी1 । खोल यर जखड़की पार जसधारी ।।4।।
गई नभ अन्दर िोत लखारी । देख कर तारा िब्द सुना री ।।5।।
बंक चढ़ जिकु टी आन पुकारी । सुन्न में अक्षर धुन धर धारी ।।6।।
मरासुन्न पहुंची खोल ककवाड़ी । भूँवर का राग सुना अजत भारी ।।7।।
सत्त पद आई अमर अटारी2 । अलख और अगम िाय परसा3 री ।।
करी यर आरत राधास्वामी सारी4 । करे कोई सिन सुरत सम्रारी ।।9।।
प्रेम की धारा बरी जनयारी । िब्द घट पाया सुरत कारारी ।।10।।
नाम रं ग लागा अिब बरारी । मगन रोय बैठी काि सूँवारीं ।।11।।
संत जबन सब री पच पच रारी । जमला नसर भेद ररे सब वारी5 ।।12।।
दई राधास्वामी वस्तु अपारी । मेरर अब रो गइ मुझ पर न्यारी ।।13।।

।। िब्द बीसवाूँ ।।

सुरत आि चली आरती धार । गुरुन पै चली आरती धार ।।1।।


नाना जवजध के भूषर् पजरने । कर अपना ससगार ।।2।।
मन के मोती जचत की चुन्नी । जवरर नथजनया डार ।।3।।
नेर6 नौगरी7 चेतन चुटकी8 । जबछु आ7 पजरर जबचार ।।4।।

1. प्रीजत । 2. मरल । 3. छु आ । 4. खास, सार । 5. इस पार, माया


की रद में । 6. सन्नेर, प्रजत । 7. नाम गरने का ।
66 सार बचन बचन 6

पाूँच मुन्दरा1 मुन्दरी5 पजररी । जररदे रार सूँवार ।।5।।


करनफू ल5 कारूर्ा गुरु पाई । पहुंची गुरु दरबार ।।6।।
छन्न5 पछेली5 छान ज्ञान की । नौनग ति नौ द्वार ।।7।।
पाूँच तत्त पचलड़ी5 बनाई । सीसफू ल5 लख गगन मूँझार ।।8।।
बैना5 बैन2 सुने अनरद के । अधर चन्द्र5 का खोल द्वार ।।9।।
िुगनी5 िुग3 बाूँधा सतगुरु से । चली आरसी पार ।।10।।
अनवट5 बाट4 खुली अंदर में । मजन्दर िोत जनरार ।।11।।
झूमर5 अमर नगीना देखा । झूमी झुमके 5 साल सम्रार ।।12।।
सुजमरन नाम गुलब ू द
ं 5 डाला । रूँसली5 सील सम्रार ।।13।।
मोर तोड़ तोड़ा5 गल डारा । सतलड़5 हुई सत की लार2 ।।14।।
घुंघरू झाूँझ5 बिे घट भीतर । िोभा पयज़ेब5 उजियार ।।15।।
बाूँक5 बंक के द्वार समानी । टीका टेक अधार ।।16।।
जतल के छल्ले5 जपलकर पजररे । कड़े5 कड़क7 धुन सार ।।17।।
चंपाकली5 कं वल की कजलयाूँ । दल पर अिब बरार ।।18।।
चौकी5 चौक जनरार सुन्न का । चमक दाजमनी पार ।।19।।
मन इन्द्री बस छब्बा5 पजरना । लटकन5 लटक6 सम्रार ।।20।।
बेसर5 सरवर सुरत लगाई । रंसन साथ ककया िाय प्यार ।।21।।
मरासुन्न चढ़ भूँवरगुफा पर । भूँवरकली5 मुरली झनकार ।।22।।
सुन सुन धुन सतलोक जसधारी । जमली पुरुष से नार सुनार8 ।।23।।
सत्तपुरुष संग रत कीन्री । राथ जलया सत सोरं थार ।।24।।
कोरट चन्द्रमा सूर करोड़ों । िोत िगाई अजधक सुधार ।।25।।
पूरन पद पूरन परिादी । दई राधास्वामी जनरख जनरार ।।26।।
रीरे लाल जनछावर कीन्रे । उमंग बढ़ी िाका वार न पार ।।27।।

1. चाचरी, भूचरी, खेचरी, अगोचरी उनमुनी । 2. बानी, आवाि । 3. िोड़ ।


4. रास्ता । 5. नाम ज़ेवरों के । 6. भाव, ज़िबा । 7. ज़ोर दार आवाि ।
8. उत्तम स्त्री ।
बचन 6 आरती परम पुरुष राधास्वामी 67

।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।

गुरुमुख प्यारा गुरु अधारा1 । आरत धारा2 री ।।1।।


चरन जनरारा सरन सम्रारा । िब्द ससगारा री ।।2।।
राग3 जनकारा जबरर पुकारा । सुरत संवारा री ।।3।।
काल जबडारा4 मन को मारा । इन्द्री िारा री ।।4।।
गगन जसधारा नाम जसरारा5 । सुन्न मंझारा री ।।5।।
रूप अपारा नैन उघाड़ा । देख पसारा6 री ।।6।।
खोल ककवाड़ा पाट उघाड़ा । श्याम दुआरा री ।।7।।
कर दीदार सेत अखाड़ा । कमण पछाड़ा री ।।8।।
जनरमल धारा अगम अगारा7 । अमी अरारा री ।।9।।
चौक अपारा अिब बरारा । कीन जबरारा8 री ।।10।।
धुन धधकार छाूँटी सारा । गुरु दरबारा री ।।11।।
मनुआ रारा लीन ककनारा । िब्द कटारा9 री ।।12।।
गुरु दुलारा नाम जचतारा10 । सूर करारा री ।।13।।
धुन ओंकारा सूर आकारा11 । बित जचकारा12 री ।।14।।
तुम दीन दयारा फाूँसी टारा । कर उपकारा री ।।15।।
मैं नीच जनकारा अजत नाकारा । औगुन भारा री ।।16।।
तन अरंकारा काम लबारा10 । पड़ा उिाड़ा री ।।17।।
लोभ गंवारा मोर जबिारा14 । कु छ न जवचारा री ।।18।।
हुआ तुम्रारा सब से न्यारा । सीस चरन पर डारा री ।।19।।
चार चमारा नसर अचारा15 । तौ भी पार उतारा री ।।20।।
सरस कं वल दल जिकु टी चढ़चल । खोला दसवाूँ द्वारा री ।।21।।

1. आसरे । 2. धारर् । 3. संसारी । 4. दूर ककया । 5. परजखया देखना ।


6. पदाण खोला । 7. रोिन, अजबनासी । 8. जबलास । 9. कटार खन्डा ।
10. जचताया गया । 11. आकार । 12. एक प्रकार का बाज़ा । 13. झूठा ।
14. सांड, बैल । 15. िुद्ध करम ।
68 सार बचन बचन 6

सुन्न परे मरासुन्न अंधारा1 । देखा भूँवर ऊिारा री ।।22।।


गुफा परे सतपुरुष रमारा । पाया अब पद चारा री ।।23।।
अलख अगम को िाकर जनरखा । तन मन उन पर वारा री ।।24।।
सुरत जनरत दोउ चले अगाड़ी । धाम जमला जनि सारा री ।।25।।
आरत कर कर प्रेम बढ़ाऊं । धृग धृग सब संसारा री ।।26।।
राधास्वामी सतगुरु पाये । उन पर मैं बजलरारा री ।।27।।
करा कहूं कु छ करत न आवे । मैं अब उन की लारा2 री ।।28।।

।। िब्द बाईसवाूँ ।।

िीव जचताय ररे राधास्वामी । सतपुर जनिपुर अगम अधामी3 ।।1।।


भाग उदय उन िीवन भारी । राधास्वामी जिन घर चरन पधारी ।।2।।
कौन करे मजरमा इस औसर4 । रारे ब्रह्मा जवष्र्ु मरेिर ।।3।।
इक इक िीव काि ककया अपना । गुरु आरत कर हुए अजत मगना ।।4।।
गुरु संग रंस फौज़ चल आई । कर सन्मान रार पजरनाई ।।5।।
भोिन वस्त्र देख सब ररखे । अजत कर प्रीत भाव इन परखे ।।6।।
हुए प्रसन्न सतगुरु अजवनािी । कदया दान ककया सतपुर वासी ।।7।।
अन धन और संतान भोग रस । िगत भोग और जमला िोग रस ।।8।।
पर ककरपा सतगुरु अस ररई । मोर न व्यापे िग नसर फं सई5 ।।9।।
ररे सुरत जनरमल गुरु साथा । िब्द जमले ररे चरनन माथा ।।10।।
अपनी दया से गुरु कदयो दाना । सेवक तो कु छ माूँग न िाना ।।11।।
दया करें िब सतगुरु अपनी । जबना माूँग करवावें करनी ।।12।।
नाम अनाम पदारथ न्यारा । सो सतगुरु दीन्रा कर प्यारा ।।13।।
अब देवे को कु छ न रराई । सतगुरु री तेरे हुए भाई ।।14।।
राधास्वामी करा बनाई । सदा ररे सतनाम सराई ।।15।।

1. अूँधरे ा । 2. नाल, साथ । 3. अनामी पद पर आरूढ़ । 4. समय ।


5. बन्धन में पड़े ।
बचन 7 आरती परम पुरुष राधास्वामी 69

।। बचन सातवाूँ ।।
जबनती और प्राथणना परम पुरुष धनी

राधास्वामी के चरन कूँ वलो में

।। िब्द पजरला ।।

करूूँ बेनती दोउ कर िोरी । अज़ण1 सुनो राधास्वामी मोरी ।।1।।


सत्त पुरुष तुम सतगुरु दाता । सब िीवन के जपतु और माता ।।2।।
दया धार अपना कर लीिे । काल िाल से न्यारा कीिे ।।3।।
सतयुग िेता द्वापर बीता । काहु न िानी श्बद की रीता ।।4।।
कजलयुग में स्वामी दया जवचारी । परगट करके िब्द पुकारी ।।5।।
िीव काि स्वामी िग में आये । भौ सागर से पार लगाये ।।6।।
तीन2 छोड़ चौथा3 पद दीन्रा । सत्तनाम सतगुरु गत चीन्रा ।।7।।
िगमग िोत रोत उजियारा । गगन सोत4 पर चन्द्र जनरारा ।।8।।
सेत ससरासन छि जबरािे । अनरद िब्द गैब5 धुन गािे ।।9।।
क्षर6 अक्षर7 जनःअक्षर पारा । जबनती करे िराूँ दास तुम्रारा ।।10।।
लोक अलोक पाउं सुख धामा । चरन सरन दीिे जबसरामा ।।11।।

।। िब्द दूसरा ।।

रोम रोम मेरे तुम आधार । रग रग मेरी करत पुकार ।।


अंग अंग मेरा करे गुरार9 । बन्द बन्द से करूं िुरार9 ।।
रे राधास्वामी अधम अधार । मैं कककर10 तुम दीन दयार ।।1।।
इन्द्री मन मेरे भरे जबकार । तन भी बंधा िगत की लार ।।
मैं सब जवजध बरता भौ धार । तुमरी पार उतारनरार ।।

1. प्राथणना । 2. जिलोकी । 3. सत्तलोक । 4. भंडार यानी दसवाूँ द्वार ।


5. गुप्त । 6. जिकु टी । 7. सुन्न । 8. पुकार । 9. बंदगी । 10. दास ।
70 सार बचन बचन 7

रे राधास्वामी सुख भंडार । मैं अजत दीन फं सा संसार ।।2।।


काकढ़ जनकारो मोसर दातार । दात तुम्रारी अगम अपार ।।
दया जसन्ध िीवन आधार । तुम जबन कोइ न स्मरारन रार ।।
रे राधास्वामी सरन तुम्रार । गरी आन मैं नीच नकार1 ।।3।।
सदा रहूूँ तुम चरन अधार । कभी न जबछड़ूूँ यरी पुकार ।।
जनस कदन राखूं जरये सम्रार । चरन तुम्रार मोर आधार ।।
रे राधास्वामी अपर अपार । मोसर कदखाओ जनि दरबार ।।4।।
मम करनी कसर को जवचार । तो मैं ठररन िोग न द्वार ।।
तुम गंभीर धीर िग पार । मैं डू बत हूूँ भौिल वार ।।
रे राधास्वामी लगाओ ककनार । तुम खेवरटया सबसे न्यार ।।5।।
चोर चुग़ल बरतू अरंकार । कपट कु रटलता बड़ा लबार ।।
काम क्रोध और मोर जपयार । क्या क्या बरनूं भरा जवकार ।।
रे राधास्वामी जछमा सम्रार । लीिे मुझ को भी उबार ।।6।।
तुम मजरमा का बार न पार । िेष गनेि ररे सब रार ।।
माया ब्रह्म नरीं औतार । कर न सके बरे काली धार ।।
रे राधास्वामी सब के पार । इन सब के तुमरीं आधार ।।7।।
मैं तुम चरन िाउं बजलरार । देख न सकूं रूप उजियार ।।
तेि पुि ं 2 तुम अगम अपार । चाूँद सूर की िराूँ न िुमार3 ।।
रे राधास्वामी तुम दीदार । जबना मेरर को करे अधार ।।8।।
राधास्वामी राधास्वामी नाम तुम्रार । यरी मेरा कु ल और यरी पररवार ।।
राधास्वामी राधास्वामी बारम्बर । करत रहूूँ और रहूूँ हुजियार ।।
रे राधास्वामी ममण तुम्रार । तुम्ररी दया से पाऊं सार ।।9।।
गुरु स्वरूप धर जलया औतार । िीव उबारन आये संसार ।।
नर स्वरूप धर ककया उपकार । तुम सतगुरु मेरे परम उदार4 ।।
रे राधास्वामी िब्द दुवार5 । खोल कदया तुम बज्र ककवाड़ ।।10।।

1. नकारा । 2. समूर । 3. जगनती । 4. सखी । 5. दरवाज़ा रज़ीआ ।


बचन 7 बेनती 71

लीला तुम्ररी अिब बरार । कर न सके कोइ वार न पार ।।


जिसे कदखाओ सो देखनरार । तुम जबन कोई न परखनरार ।।
रे राधास्वामी गुरु रमार । तुम जबन कौन करे जनरवार ।।11।।

।। िब्द तीसरा ।।

करूं बेनती राधास्वामी आि । काि करो अर राखो लाि ।।1।।


मैं कककर तुम चरन नमामी । पाऊं अगमपुर और अनामी ।।2।।
कराूँ लग जबनती कर कर गाऊं । तुम्ररर सरन स्वामी मैं बल िाऊं ।।
जबनती करनी भी नसर िानूं । तुम्ररे चरन को पल पल मानूं ।।4।।
तुम जबन और न दूिा कोई । सेवक मुझ सा और न रोई ।।5।।
मैं िंगी तुम रो राधास्वामी । िोड़ जमलाया तुम अंतर िामी ।।6।।

।। िब्द चौथा ।।

स्वामी सुनो रमारी जबनती । मैं करूूँ तुम्रारी जबनती ।।1।।


मेरे औगुन मत करो जगनती । मैं तन मन अपना रनती1 ।।2।।
मैं कककर कु रटल कु पंथी । मैं रीन करूूँ अजत सचती ।।3।।
मजरमा अगम तुम्रारी सुनती । तुम दयाल दाता जनि संती ।।4।।
जनत कु मजत िाल उरझंती2 । तुम समरथ पुरष मराूँ सतवंती ।।5।।
मैं जवरर अजगन जबच रहुं िलंती । क्यों कर भौसागर पार परं ती ।।6।।
मेरी सुरत करो सतवंती3 । तुम चरन सरन की रहुं दृढ़वंती ।।7।।
सब कमण धमण ज्यों दाल दलंती । मुझे करो भि कु लवंती ।।8।।
रोग सोग दुख रहूं सरंती । दूर करो ऐसी मान मरंती3 ।।9।।

1. मारती । 2. फं सती । 3. बढ़ाई ।


72 सार बचन बचन 8

।। बचन आठवाूँ ।।
मजरमा सतगुरु स्वरूप राधास्वामी की

।। िब्द पजरला ।।

गुरु गुरु मैं जररदे धरती । गुरु आरत की सामाूँ1 करती ।।1।।
गुरु मेरे पूरर् पुरुष जबधाता । जनत चरनन पर मन मेरा राता2 ।।2।।
गुरु रैं अगम अपार अनामी । गुरु जबन दूसर और न िानी ।।3।।
नसर ब्रह्म नसर जवष्र्ु मरेिा । नसर ईश्वर परमेश्वर िेषा ।।4।।
राम कृ ष्र् नसर दस औतारी । व्यास वजिष्ठ न आकद कु मारी ।।5।।
ऋजष मुजन देवी देव न कोई । तीरथ बतण धमण नसर रोई ।।6।।
िोगी िती तपी ब्रह्मचारी । िनक सनक संन्यास जवचारी ।।7।।
आतम परमातम नसर मानूं । अक्षर जनःअक्षर नसर िानू ।।8।।
सत्तनाम िानूं न अनामी । जलख ग्रन्थ सब करत बखानी ।।9।।
सब को करूं प्रनाम िोड़ कर । पर कोई नसर सतगुरु सम सर4 ।।10।।
सतगुरु कृ पा सबन को िाना । जबन सतगुरु कै से पजरचाना ।।11।।
सतगुरु भेद कदया इक इक का । तब िाना इन सब का ठे का ।।12।।
सतगुरु सब का भेद बखानें । अब ककसको गुरु से बढ़ िानें ।।13।।
गुरु ने सब का पद दरसाई । िस िस जिनकी गजत तस गाई ।।14।।
ताूँते सतगुरु सब के करता । सतगुरु री रैं सब के ररता ।।15।।
याते सतगुरु का पद भारी । सतगुरु सम नसर कोइ जबचारी ।।16।।
िब जिव सरन गुरु की आवे । कमण धमण और भमण नसावे ।।17।।
िो गुरु मारग देसर लखाई । सोइ जनि कमण धमण हुआ भाई ।।18।।
गुरु आज्ञा से िो जिष करई । वर करतूत भजि फल देई ।।19।।
ताते प्रथमे गुरु को खोिो । िब्द बतावें सो गुरु सोधो5 ।।20।।

1. सामान । 2. मोजरत । 3. देवी, माया । 4. बराबर । 5. धारर् करो ।


बचन 8 मजरमा सतगुरु 73

अस गुरु सम कोइ और न आना1 । गुरु जमले कफर करा कमाना2 ।।21।।


या ते मो मत जनश्चय येरी । गुरु जबन दूसर और न सेई ।।22।।
िाके जररदे गुरु परतीती । काल कमण वा से नसर िीती ।।23।।
सब के जसर पर इन का डंका । काहू की उसके नसर संका ।।24।।
बड़े बड़े उधरें उस संगा । गुरुमुख रै इन सब से चंगा3 ।।25।।
गुरुमुख की गजत सब से भारी । गुरुमुख कोरटन िीव उबारी ।।26।।
कराूँ लग मजरमा गुरुमुख गाऊूँ । कोई न िाने ककस समझाऊूँ ।।27।।
िग में पड़ा काल का घेरा । िीव करें चौरासी फे रा ।।28।।
िो चौरासी छू टन चावें । तो गुरुमुख सेवा जचत लावें ।।29।।
और काम सब देसर बराई । िब्द गुरु की करें कमाई ।।30।।
कोरटन िन्म ररे कोइ कािी । वेद पाठ और तीरथ बासी ।।31।।
िप तप संिम बहु जवजध कराई । भेख बनावे जवद्या पढ़ई ।।32।।
जपछलों की िो धारें टेका । जिन को कभी आूँख नसर देखा ।।33।।
पोजथन में सुनी उनकी मजरमा । टेक बाूँध मन सब का भरमा ।।34।।
अब इन को िो कोइ समझावे । टेक छोड़ते जिव सा िावे ।।35।।
कोई जिव और कोई जवष्र्ु की । कोइ राम और कोई कृ ष्र् की ।।36।।
कोइ देवी कोइ गंगा िमना । कोइ मूरत कोइ चारों धामा4 ।।37।।
कोइ मथुरा कोइ टेक मुरारी । मदन मोरन कोइ कुूँ ि जबरारी ।।
कोइ गोकु ल कोइ बलभाचारी । कोइ कं ठी माला गल धारी ।।39।।
कोइ अचार कोइ संध्या तपणन । गया गायिी करें समपणन ।।40।।
कोइ गीता कोइ भागवत पढ़ते । कथा पुरान नेम से सुनते ।।41।।
क्या दादू क्या नानकपंथी । क्या कबीर क्या पलटू संती ।।42।।
सब जमल करते जपछली टेका । वि गुरु का खोि न नेका5 ।।43।।
जबन गुरु वि भजि नासर पावे । जबना भजि सतलोक न िावे ।।44।।

1. दूसरा । 2. करने में ररना । 3. नीरोग, अच्छा । 4. चार तीरथ के


स्थान यानी बद्रीनाथ, द्वारका , िगन्नाथ और रामेश्वर । 5. कु छ ।
74 सार बचन बचन 8

यर करना उन िीवन कारन । जिनके जवरर अनुराग की धारन ।।45।।


जवषई संसारी और रागी । इन को टेक न चजरये त्यागी ।।46।।
इन को टेक सरारा भारी । टेक जबना कु छ नासर अधारी ।।47।।
उनको नसर उपदेि रमारा । उनको िगत कामना मारा ।।48।।
कोइ कु टु म्ब कोइ धन आधीना । कोइ कोइ मान प्रजतष्ठा लीना ।।49।।
मारे डर के टेक न छोड़ें । वि गुरु में मन नसर िोड़ें ।।50।।
िो अनुरागी जबररी भाई । भजि गुरु की उन प्रजत गाई ।।51।।
वि गुरु िब लग नसर जमलई । अनुरागी का काि न सरई ।।52।।
पररथम सीढ़ी भजि गुरु की । दूसर सीढ़ी सुरत नाम की ।।53।।
िब लग गुरु भजि नरीं पूरी । मन मनसा यर रोयूँ न चूरी ।।54।।
मन चूरे जबन सुरत न जनमणल । कै से चढ़े और लगे िब्द चल ।।55।।
गुरु भजि अस कै से आवै । सतसूँग कर गुरु सेवा धावै ।।56।।
गुरु को पल पल मासर ररझावै । गुरु प्रसन्नता जनत्य कमावै ।।57।।
गुरु िब इसको प्यारे रोई । गुरु को प्यारा िब यर रोई ।।58।।
पूरन दया गुरु िब करईं । भजि पदारथ िबरी जमलई ।।59।।
यर भी िोग मेरर से रोगा । दया मेरर जबन िानो धोखा ।।60।।
।। दोरा ।।
क्या जरन्दू क्या मुसलमान, क्या ईसाई िन ।
गुरु भजि पूरन जबना, कोइ न पावे चैन ।।61।।
पररथम सीढ़ी रै गुरु भजि । गुरु भजि जबन काि न रत्ती ।।62।।
और उपाय अनेकन करते । गुरु भजि को मुशय न रखते ।।63।।
यरी कसर रै सब के मत में । जसद्धान्त1 न पावें औछे जचत में ।।64।।
।। दोरा ।।
गुरु भजि दृढ़ के करो, पीछे और उपाय ।
जबन गुरु भजि मोर िग, कभी न काटा िाय ।।65।।

1. असली मतलब ।
बचन 8 मजरमा सतगुरु 75

मोटे बंधन िगत के , गुरु भजि से काट ।


झीने1 बंधन जचत्त के , कटें नाम परताप2 ।।66।।
मोटे िब लग िायूँ नसर, झीने कै से िायूँ ।
ताते सबको चाजरये, जनत गुरु भजि कमायूँ ।।67।।
एक िन्म गुरु भजि कर, िन्म दूसरे नाम ।
िन्म तीसरे मुजिपद, चौथे में जनि धाम ।।68।।
अब आरत गुरु करूूँ सूँवारा । काया थाल मन दीपक बारा ।।69।।
भजि िोत और भोग अनुरागा । दृजष्ट िोड़ जचत चरनन लागा ।।70।।
यों आरत अब करी बनाई । सतगुरु पूरे ररें सराई ।।71।।

।। िब्द दूसरा ।।

गुरु जमले परम पद दानी । क्या गजतमजत उनकी करूूँ बखानी ।।1।।
मैं अिान मजरमा नसर िानी । जबना मेरर क्योंकर पजरचानी ।।2।।
गजत अजत गोप2 न िाने वेदा । ज्ञान िोग कर जमले न भेदा ।।3।।
पद उनका इन से ररे दूरी । यर तो थक ररे गाल रिूरी ।।4।।
वर दयाल पद अगम अपारा । तीन सुन्न आगे ररा न्यारा ।।5।।
संत जबना कोइ भेद न िाने । उस घर से वर आय बखानें ।।6।।
मैं भी उन चरनन कर दासा । भइ परतीत बूँधी पद आसा ।।7।।
सुरत िब्द मारग मोजर दीन्रा । ककरपा कर अपना कर लीन्रा ।।8।।
जनत अभ्यास करूूँ मैं ये री । इक कदन पाऊूँ िब्द जवदेरी4 ।।9।।
सतगुरु मेरे परम दयाला । करूूँ आरती रोउूँ जनराला ।।10।।
आतम थाल परमातम िोती । सत्तनाम पद पोया5 मोती ।।11।।
भाव भजि से आरत कीनी । पद सतगुरु िल में भइ मीनी6 ।।12।।
यर आरत अब पूरन भई । आगे कु छ करनी नसर ररी ।।13।।

1. सूक्षम । 2. गुप्त । 3. हुई । 4. सूक्षम, देर रजरत, माया से रजरत ।


5. परोया । 6. मच्छली ।
76 सार बचन बचन 8

।। िब्द तीसरा ।।
गुरु प्रीत बढ़ी जचतवन में । सुतण खैंच धरी चरनन में ।।1।।
मेरी दृजष्ट ररी दिणन में । अब प्रेम बढ़ा जछन जछन में ।।2।।
सतगुरु पर िाऊूँ बजलरारी । सतगुरु मेरी सुजध सम्रारी ।।3।।
लीन्रा मोसर भुिा पसारी । दीन्रीं मोसर भजि करारी ।।4।।
आरत अब उनकी करहूं । तन मन धन सभी अरपहूं ।।5।।
जबन गुरु कोइ और न मानूं । जबन नाम ठौर नसर िानूं ।।6।।
गुरु करें रोयगा सोई । गुरु जबन कोइ और न रोई ।।7।।
गुरु करता सब िग कारि । गुरु री सब िीव अचारि ।।8।।
गुरु तो मेरे प्रान अधारा । गुरु री मेरा करें उधारा ।।9।।
गुरु सम कोइ और न प्यारा । गुरु री मोसर लेयूँ सुधारा ।।10।।
मेरे जररदे गुरुजर जबरािें । िम काल लिावत भािें ।।11।।
छाया घट गुरु परतापा । रद्द बलाया दूर जिया तापा1 ।।12।।
आरत गुरु कर कर भींिूं । उमंग बढ़ाय प्रेम धुर खींचूूँ ।।13।।
मीना सम लइ गुरु सरना । अब ररा न मोसर कु छ करना ।।14।।
राधास्वामी गुरु रम पाये । पी चरन अंब2ु तृप्ताये ।।15।।
।। िब्द चौथा ।।
आि मेरे आनन्द रोत अपार । आरती गावत हूं गुरु सार ।।1।।
ककया मैं अचरि प्रेम ससगार । जबरािे सतगुरु बस्तर धार ।।2।।
दरस उन करूूँ सम्रार सम्रार । गाउं गुन उनका बारम्बार ।।3।।
आओ री सजखयो िुड़ जमल झाड़ । गाओ और दिणन करो जनरार ।।4।।
गुरु मेरे बैठे पलंग संवार । आि मेरा िागा भाग अपार ।।5।।
ररी मैं गुरु के सनमुख ठाड़3 । करूूँ मैं उन चरनन आधार ।।6।।
चाहुं नसर दूसर से उपकार । गुरु की बाूँधी टेक सम्रार ।।7।।
गुरु पर डारूूँ तन मन वार । बचन पर उन के रहुूँ हुजियार ।।8।।

1. तीन ताप यानी आजध, व्याजध, उपाजध । 2. चरनामृत । 3. खड़ी ।


बचन 8 मजरमा सतगुरु 77

कमण सब दीन्रे गुरु ने िार । उतारा नौका1 दे भौ पार ।।9।।


सुरत को िब्द सुनाइ धार । गगन चढ़ पहुंची घर करतार ।।10।।
सपड को छोड़ा चढ़ी मुनार2 । हुई अजत जनरमल छु टा गुबार ।।11।।
नाम की सुनी िाय धधकार । बाूँसरु ी सुनी नई झनकार ।।12।।
सुरत और जनरत लगाया तार । गई अब चौथे पद के पार ।।13।।
जमला राधास्वामी का दीदार । करूं अब जनस कदन उन दरबार ।।14।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

आरत सतगुरु की अब करहूूँ । जछन जछन सुरत िब्द में धरहूूँ ।।1।।
आरत सामाूँ सिूूँ बनाई । थाल सुचेती कर4 में लाई ।।2।।
िोत सुिानी लीन िगाई । रूप सुदिणन घट में पाई ।।3।।
सतसंगी सब मीत सुमीता । घट परताप बढ़ा मन िीता ।।4।।
भजि भाव संग भोग लगाऊूँ । अमी ससध िल अमृत लाऊूँ ।।5।।
बैठ ससरासन सतगुरु गािे । िोत जनरं िन दोनों लािे ।।6।।
अब आरत सनमुख में फे री । कृ पा दृजष्ट से सतगुरु रेरी ।।7।।
कराूँ लग मजरमा उनकी गाऊूँ । बार बार चरनन बल िाऊूँ ।।8।।
मैं अजत दीन रीन आधीनी । वे दयाल ककरपाल क़दीमी5 ।।9।।
सुरत िब्द मारग कदया पूरा । घट में बिने लगा तूँबरू ा ।।10।।
नौबत जछन जछन झड़ने लागी । सुरत जनरत चढ़ चढ़ अब िागी ।।11।।
घाट जिबेनी ककये अस्नाना । सुन्न मूँडल जचत िाय समाना ।।12।।
आरत सब जवजध पूरी धारी । राधास्वामी ककरपा कीन्री भारी ।।13।।

।। िब्द छटा ।।

गुरु की आरत ठानूूँगी । गुरु की सरन सम्रारूूँगी ।।1।।


गुरु की मजरमा गाऊूँगी । गुरु के चरन पखारूंगी6 ।।2।।

1. िब्द रूपी नाव । 2. चोटी । 3. हुजियारी । 4. राथ । 5. प्राचीन ।


6. धोउूँ गी ।
78 सार बचन बचन 8

गुरु पर मनुआ वारूंगी । गुरु संग सदरी धारूंगी ।।3।।


काल को जछन जछन टारूंगी । कमण को तुरत पछाड़ूूँगी ।।4।।
ध्यान गुरु जररदे लाऊंगी । रूप रस जछन जछन पाऊूँगी ।।5।।
बचन सुन जनत्त कमाऊंगी । सुरत कफर गगन चढ़ाऊंगी ।।6।।
सुन्न चढ़ िब्द िगाऊंगी । नाद दस द्वार बिाऊंगी ।।7।।
सत्त पद िाय समाऊंगी । उलट कफर िग में आऊंगी ।।8।।
कु टु म्ब को अपने लाऊंगी । गुरु के चरन लगाऊंगी ।।9।।
प्रीत की रीत जसखाऊंगी । आरती बहुत कराऊंगी ।।10।।
जपि पुरखा तराऊंगी । गया की धूर उड़ाऊंगी ।।11।।
भमण सब री जमटाऊंगी । भटक सब री छु ड़ाऊंगी ।।12।।
बुजद्ध जनरमल कराऊंगी । संत मत अब दृढ़ाऊंगी ।।13।।
सुरत नैनन िमाऊंगी । सरंस दल कं वल आऊंगी ।।14।।
िोत दिणन कदखाऊंगी । िब्द में िा समाऊंगी ।।15।।
बंक द्वार खुलाऊंगी । सारं गी धुन सुनाऊंगी ।।16।।
मानसर चढ़ अन्राऊंगी । सारं गी धुन सुनाऊंगी ।।17।।
मरासुंन पार पाऊंगी । गुफा धुन सर लगाऊंगी ।।18।।
सोरंग बंसी सुनाऊंगी । रौब2 धुन भेद गाऊंगी ।।19।।
सत्त की रार धाऊंगी । नाम पद कफर िनाऊंगी ।।20।।
दूर दुरबीन लगाऊंगी । अलख को िा लखाऊंगी ।।21।।
अगम गढ़ चढ़ कदखाऊंगी । भेद वराूँ का जछपाऊंगी ।।22।।
आरती अब सिाऊंगी । प्रेम अपना बढ़ाऊंगी ।।23।।
सुरत िोती जचताऊंगी । थाल भजि धराऊंगी ।।24।।
आरती राधास्वामी गाऊंगी । परम पद आि पाऊंगी ।।25।।

1. तीर । 2. गुप्त ।
बचन 8 मजरमा सतगुरु 79

।। िब्द सातवाूँ ।।

गुरु आरत जबजध दीन बताई । मोर नींद से जलया िगाई ।।1।।
िब्द अनारद पता िनाई । सुरत इधर से उधर लगाई ।।2।।
दृजष्ट खुली आर छजब कदखलाई । मगन रोय कर जनि घर आई ।।3।।
मानसरोवर थाल बनाया । िोत चन्द्रमा दीप धराया ।।4।।
लगन लाग से आरत सािी । नाद अनारद घट में बािी ।।5।।
मन बैरी से िीती बाज़ी । सुमत समाई दुरमत भािी1 ।।6।।
गुरु चरनन पर मैं बजल िाऊं । उनकी दया से सत पद पाऊ ।।7।।
डोर लगी और चढ़ी गगन को । उमंगा मन राधास्वामी करन को ।।8।।

।। िब्द आठवाूँ ।।

गुरु चरनन पर िाउूँ बजलरार । जिन घट िोत कदखाई सार ।।1।।


गया जतजमर आया परकाि । गुरु संग करता परम जबलास ।।2।।
गुरु जबन और न िानूं कोई । कमण भमण दुजबधा सब खोई ।।3।।
ऐसे गुरु के चरन जनरारूं । तन मन धन सब री ति डारूं ।।4।।
क्या गुरु मजरमा करूं बनाई । रात कदवस रहुं सुरत लगाई ।।5।।
गुरु िोभा भूषर् जनत घढ़ता । सुरत रथौड़ी मन अररन5 धरता ।।6।।
जचत्त कु ठाली मोर गलाता । जवरर अजि मुख नाल फु कांता ।।7।।
प्रेम िंतरी4 तार सखचाता । सुरत जनरत के पेच कदलाता ।।8।।
घढ़ तोड़ा5 गल रार जपन्राता । गुरु छजब देख मगन रोय िाता ।।9।।
बाज़ूबन्द5 प्रीत घढ़वाता । मन परतीत कड़े5 पजरनाता ।।10।।
नाम रतन रीरा िड़वाता । अंग अंगठु ी5 गुरु पजरनाता ।।11।।
राधास्वामी दीन दयाल । करूं आरती जचत्त सम्राल ।।12।।

1. भागी । 2. जिस पर गरना वग़ैरा रथौड़ी से गढ़ा िाता रै । 3. चाूँदी सोना


गालने का बतणन, घररया । 4. तार खींचने का यंि । 5. नाम गरने का ।
80 सार बचन बचन 8

।। िब्द नवाूँ ।।

गुइयाूँ1 री गुरु समझ सुनावें । प्रेम भरी सजखयाूँ जमल गावें ।।1।।
अगम देि का पता िनावें । सुरत िब्द मारग दरसावें ।।2।।
जिनके जबरर प्रेम अनुरागा । सो सुन सुन कर लगन बढ़ावें ।।3।।
सतगुरु प्यारा नाम रस पीवें । दर िाय जनि भाग िगावें ।।4।।
कौन करे मजरमा अब उनकी । जिनको सतगुरु चरन लगावें ।।5।।
घट का भेद अनारद बानी । सुन्न मूँडल का िब्द सुनावे ।।6।।
िोगी िती नाथ सब थाके । सो पद अपने दास लखावें ।।7।।
सत्तनाम सत्तधाम जपया का । सुरत जनरत कर ले दरसावें ।।8।।
अलख अगम का फोड़ जनिाना । अकर अनामी सैन2 िनावें ।।9।।
यर अभेद गत कोई न िाने । जबरले संत कोई ममण जपछाने ।।10।।
सो पद जमला सरि में रमको । ककस आगे रम बर्ण बखानें ।।11।।
अब आरत यर करी समापत । राधास्वामी सदा जधयावें ।।12।।

।। िब्द दसवाूँ ।।

प्रेमी सुनो प्रेम की बात ।। टेक ।।


सेवा करो प्रेम से गुरु की । और दिणन पर बल बल िात ।।1।।
बचन जपयारे गुरु के ऐसे । िस माता सुत तोतरर बात ।।2।।
िस कामी को काजमन प्यारी । अस गुरुमुख को गुरु का गात3 ।।3।।
खाते पीते चलते कफरते । सोवत िागत जबसर न िात ।।4।।
खटकत4 ररे भाल ज्यों जरयरे । दरदी के ज्यों ददण समात ।।5।।
ऐसी लगन गुरु संग िां की । वर गुरुमुख परमारथ पात ।।6।।
िब लग गुरु प्यारे नसर ऐसे । तब लग जररसी िानो िात ।।7।।
मनमुख कफरे ककसी का नारीं । करो क्योंकर परमारथ पात ।।8।।
राधास्वामी करत सुनाई । अब सतगुरु का पकड़ो राथ ।।9।।

1. सरेली । 2. इिारा । 3. िरीर । 4. चुभता ।


बचन 8 मजरमा सतगुरु 81

।। िब्द ग्याररवाूँ ।।

गुरु मेरे िान जपरान, िब्द का दीन्रा दाना ।


िब्द मेरा आधार, िब्द का ममण जपछाना ।।1।।
क्या गुर् गाऊूँ िब्द, िब्द का अगम रठकाना ।
जबना िब्द सब िीव, धुध ूँ में कफरें भरमाना ।।2।।
िल पाषान पूित ररें, ररें कागज़ अटकाना ।
मन मत ठोकर खाय, गये चौरासी खाना ।।3।।
बहु जवजध जबपता िीव को, जबन िब्द सुनाना ।
सतगुरु की सेवा जबना, नसर लगे रठकाना ।।4।।
िब्द भेद जबन सतगुरु, क्या करें अिाना ।
मन इन्द्री बस में नरीं, तो काल चबाना ।।5।।
राधास्वामी सरन ले, सब भाूँजत बचाना ।
मेरर दया जछन में करें , दें अगम खिाना ।।6।।

।। िब्द बाररवाूँ ।।

गुरु चरन बसे अब मन में । मैं सेऊूँ दम दम तन में ।।1।।


कफर प्रीत लगी घट धुन में । चढ़ पहुंची पजरली सुन में ।।2।।
अब सील क्षमा मन छाई । गइ तपन काम दुखदाई ।।3।।
कफर क्रोध लोभ भी भागे । अरंकार मोर सब त्यागे ।।4।।
धुन पाूँच िब्द घट िागी । मन हुआ सरि बैरागी ।।5।।
गुरु ककरपा सूर उगाना । अब हुआ िगत बेगाना ।।6।।
घट बैठी तारी1 लाई । बारर की ककररया2 दूर बराई ।।7।।
गुरु अद्भुत सुख कदखलाया । क्या मजरमा िाय न गाया ।।8।।
िग िीव अभागी सारे । नर देरी योंरी3 रारे ।।9।।

1. ध्यान । 2. करतूत । 3. अकाथण ।


82 सार बचन बचन 8

क्यों गुरु से प्रीत न करते । क्यों िम के कककर ररते ।।10।।


मैं ककस से कहूं सुनाई । कफर अपना मन समझाई ।।11।।
तू गुरुमत दृढ़ कर भाई । अब छोड़ो तात1 पराई ।।12।।
चल रर तू जिकु टी घाटी । चढ़ सुन्न जिखर की बाटी2 ।।13।।
मरासुन्न की तोड़ो टाटी3 । िा भूँवरगुफा की राटी4 ।।14।।
कफर सत्तपुरुष घर पाया । धुन बीना िाय बिाया ।।15।।
सुनी अलख अगम की बजतयाूँ5 । िजि सूर खरब िराूँ थककयाूँ6 ।।16।।
जपया परसे राधास्वामी । कु छ कहूं न पुरुष अनामी ।।17।।
मेरी आरत सब से न्यारी । कोई समझेगी जपया प्यारी ।।18।।
यर भेद अथार बखाना । जबन संत न कोई िाना ।।19।।
करमी िीव िग के अं धे । सब फूँ से काल के फूँ दे ।।20।।
उन से नसर करना चजरये । मत गूढ़ जछपाये रजरये ।।21।।
सुतण िब्द कमाई करना । सुजमरन में तन मन देना ।।22।।
गुरु दिणन बहुत जनरखना । धुन अनरद जनत्त परखना ।।23।।
सतसंग की चारत रखना । िब डौल7 बने तब करना ।।24।।
उपदेि ककया यर टीका8 । राधास्वामी नाम मैं सीखा ।।25।।

।। िब्द तेररवाूँ ।।

सतगुरु सरन गरो मेरे प्यारे । कमण िगात9 चुकाय ।।1।।


भूल भरम में सब िग पचता । अचरि बात न काहु सुराय ।।2।।
भागरीन सब िग माया बस । यर जनरमल गजत कोइ न पाय ।।3।।
जिन पर दया आकद करता की । सो यर अमृत पीवन चाजर ।।4।।
कराूँ लग मजरमा कहुूँ इस गजत की । जबरले गुरुमुख चीन्रत ताजर ।।5।।
जबन गुरु चरन और नसर भावे । इस आनूँद में ररे समाय ।।6।।
दिणन करत सपड सुध भूली । कफर घर बारर सुजध क्या आय ।।7।।

1. जचन्ता । 2. रस्ता । 3. परदा । 4. बाज़ार । 5. आवाज़ ।


6. लजित । 7. मौका । 8. सब से अच्छा । 9. मसूल, कर ।
बचन 8 मजरमा सतगुरु 83

ऐसी सुरत प्रेम रं ग भीनी । जतनकी गजत क्या कहूूँ सुनाय ।।8।।
िोग बैराग ज्ञान सब रूखे । यर रस उन में दीखे न ताय1 ।।9।।
बड़ भागी कोइ जबरला प्रेमी । जतन यर न्यामत2 जमली अजधकाय ।।10।।
राधास्वामी करत सुनाई । यर आरत कोई गुरुमुख गाय ।।11।

।। िब्द चौदरवाूँ ।।

गुरु सरन आि मैं पाई । मेरे आनन्द अजधक बधाई ।।1।।


गुरु कृ पाससध मैं पाये । मेरे घर दर बित बधाये ।।2।।
गुरु परम पुरुष सुखदाता । उन चरन मोर मन राता ।।3।।
गुरु भजि करूूँ कदन राती । मन जचत से अजत गुन गाती ।।4।।
गुरु दिणन सुरत लगाऊूँ । मन अंतर प्रेम बढ़ाऊूँ ।।5।।
गुरु मूरत नैनन ताकूूँ । िजि भान कोरट छजब झाूँकूूँ ।।6।।
गुरु सम अब कोइ न कदखाई । मैं फे रूूँ यरी दुराई ।।7।।
गुरु चरन पकड़ मेरे भाई । क्यों भरमे नर तन पाई ।।8।।
अब िन्म सुफल कर अपना । गुरु प्रेम करो िग सुपना ।।9।।
िग रै न अंधरे ी भारी । गुरु मूरत चन्द्र उगा री ।।10।।
सीतलता जररदे आई । गुरु बचन चाूँदनी छाई ।।11।।
गुरु से कोइ बड़ा न मेरे । सब पड़े काल के घेरे ।।12।।
गुरुमुख कोइ सतगुरु रेरे2 । मनमुख सब काल के चेरे ।।13।।
गुरु मजरमा मुख से करते । अंतर में प्रीत न धरते ।।14।।
भरमों में भटके कफरते । गुरु पद में जचत्त न धरते ।।15।।
वर िीव अभागी िानूूँ । मैं गुरु जबन और न मानूूँ ।।16।।
अब आरत गुरु की करता । राधास्वामी चरन पकड़ता ।।17।।

।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।।

गुरु चरन धूर कर अंिन । जरये नैन खुले मन मंिन ।।1।।

1. उसको । 2. उत्तम पदाथण ।


84 सार बचन बचन 8

घट जतजमर1 अनाकद नािन । गुरु रूप भान परकािन ।।2।।


मेरे जररदे प्रेम बढ़ावन । पल पल में उमंग समावन ।।3।।
सुतण चढ़े गगन गुरु पावन । सतगुरु पद िब्द सुनावन ।।4।।
सो सतगुरु िग मासर जबरािन । िग िीव अचेत जचतावन ।।5।।
क्या मजरमा सतगुरु गावन । जिव अधम नीच ककये पावन2 ।।6।।
मन माया ज़ोर चलावन । ठोकर दे दूर करावन ।।7।।
दासन का दास दसावन । सेवा पर तन मन वारन ।।8।।
मैं कककर कु रटल अपावन3 । गुरु गोद जलया और ककया अपनावन ।।9।।
यर मानुष िन्म जितावन । गुरु रूप लखा मन भावन ।।10।।
यर आरत दोना गावन । राधास्वामी ककया बखानन ।।11।।

।। िब्द सोलरवाूँ ।।

मैं कौन कु मजत उरझाना4 । गुरु दिण छोड़ घर िाना ।।1।।


अब कौन ितन अस कररये । गुरु चरन जचत्त में धररये ।।2।।
यर बचन करां मैं पाऊूँ । मन खेती बीि िमाऊूँ ।।3।।
जनस कदन ररे जचत्त उदासी । क्यों छोड़ूं चरन जबलासी ।।4।।
नर देर न बारम्बारी । क्यों भौिल डू बे आ री ।।5।।
सतगुरु संग कभी न छोड़ूं । मन तन से नाता तोड़ूं ।।6।।
गुरु बल से करम जनकारूं । सतसंग से काल पछाड़ूं ।।7।।
िो मेरर करें गुरु मुझ पर । यर बात बने अजत दुस्तर6 ।।8।।
मेरे मन में चारत येरी । गुरु चरन न छोड़ूं कबरी ।।9।।
गुरु से कोई अजधक न राखा । पुजन संत वेद अस भाषा ।।10।।
गुरु मजरमा सबजरन गाई । मैं दीन अधीन िनाई ।।11।।
मेरी लाग लगी गुरु चरनन । नख सोभा क्या करूं बर्णन ।।12।।

1. अूँधरे ा । 2. पजवि । 3. अपजवि । 4. जिस की यर आरती रै उस


का नाम । 5. फ़सा । 6. औखी ।
बचन 8 मजरमा सतगुरु 85

कोरटन रजव चन्द्र लिाई । उस नख की गजत नसर पाई ।।13।।


यर जतजमर बाररी खोवें । वर अन्तर मोती पोवें1 ।।14।।
जररदे में सदा उिारी । गुरु नख पर िाऊूँ बजलरारी ।।15।।
अब आरत उनकी करता । मन चरन कं वल में धरता ।।16।।
सुतण फे रो सतगुरु मेरी । घर िाऊं करूं कफर फे री2 ।।17।।
राधास्वामी काटो बेड़ी । यर जबनती सुजनये मेरी ।।18।।
मैं दासन दास तुम्रारा । तुम बचन मोर जनस्तारा ।।19।।

।। िब्द सताररवाूँ ।।

काल ने िगत अिब भरमाया । मैं क्या करूं बखान ।।1।।


िो साधन थे जपछले िुग के । सो कलिुग में ककये प्रमान ।।2।।
मूरख प्रानी मन सैलानी । सो अटके िल और पाषान ।।3।।
बुजद्धमान अजभमानी िो नर । जवद्या नारर के हुये गुलाम ।।4।।
बाक़ी िीव बीच के जितने । ना मूरख ना अजत बुजद्धमान ।।5।।
िप तप व्रत संिम बहु धोखे । पंच अजि में िले जनदान ।।6।।
देखो चररि काल करता के । कोई जसर कोई पैर रूंधान3 ।।7।।
भटक भटक भटकाया सब िग । कोइ न लगाया ठौर रठकान ।।8।।
ऐसी रालत देख िगत की । संत स तगुरु प्रगटे आन ।।9।।
गुरु सेवा और नाम मरातम । सतसंग सतगुरु ककया बखान ।।10।।
साधन तीन सार उन बरने । और साधन सब थोथे मान ।।11।।
वेद िास्त्र और स्मृत पुराना । पढ़ना इनका जबरथा िान ।।12।।
पंजडत भेख पेट के मारे । वे संतन पर करते तान ।।13।।
जरत कर संत उन्रें समझावें । वे मानी नसर मानें आन ।।14।।
उनके चार मान और धन की । परमारथ से खाली िान ।।15।।

1. परोते रैं । 2. अपने घर वाजपस आते रैं । 3. कोई जसर से रोड़े िाते रै
कोई पैरों से मले दले िाते रैं ।
86 सार बचन बचन 8

वे चौरासी चक्कर मारें । कफर कफर जगरते चारों खान ।।16।।


जपछले िुग की जवद्या पढ़ते । कोई न्याय वेदान्त बखान ।।17।।
ना साधन अजधकार न परखें । पढ़ने का करते अजभमान ।।18।।
इस िुग की जवद्या नसर पढ़ते । तांते उलटे जगरें जनदान ।।19।।
दीन गरीबी मत इस िुग का । और गुरु भजि कर परमार् ।।20।।
ताते जनरमल जनश्चल जचत रोय । गगन चढ़ाओ िब्द जनिान ।।21।।
सुरत िब्द मारग अंतरमुख । पाूँच िब्द का गरो रठकान ।।22।।
िाब्द िब्द पौड़ी1 पै चढ़ कर । पहुूँचो सच्चखंड सतनाम ।।23।।
ताते परले गुरु को ध्याओ । और काम सब पीछे िान ।।24।।
गुरु की मूरत हृदे बसाओ । चंद्र चकोर प्रीत घट आन ।।25।।
िब लग ऐसी प्रीत न रोवे । तब लग साधन यरी बखान ।।26।।
गुरु भजि िब पूरन रो ले । तब सुतण चढ़े अधर असमान ।।27।।
गुरु भजि जबन िब्द में पचते । सो भी मानुष मूरख िान ।।28।।
िब्द खुलग े ा गुरु मेरर से । खैंचे सुरत गुरु बलवान ।।29।।
गुरुमुखता जबन सुरत न चढ़ती । फू टे गगन न पावे नाम ।।30।।
गुरुमुखता रै मूल सबन की । और साधन सब िाखा िान ।।31।।
माता को िस पुि प्यारा । और कामी को काजमन िान ।।32।।
मछली को िस नीर अधारा । चाजिक2 को िस स्वाूँजत समान ।।33।।
ऐसा गुरु प्यारा िब रोगा । तब कु छ आगे पंथ चलान ।।34।।
करना था सो सब कर दीन्रा । अब तू चारे मान न मान ।।35।।
यर आरत गुरुमुख की गाई । गुरुमुख रोय सो करे प्रमार् ।।36।।
राधास्वामी भजि बताई । गुरु की भजि करो यर िान ।।37।।
और भजि सब दूर बराओ । क्यों पड़ते चौरासी खान ।।38।।
गुरु भजि सम और न कोई । राधास्वामी ककया बखान ।।39।।
गुरु का ध्यान करो तुम जनस3 कदन । गुरु का िब्द सुनो जनत कान ।।40।।

1. मंिल । 2. पपीरा । 3. रात ।


बचन 9 मजरमा िब्द 87

नैन श्रवर् और जररदा तीनों । िीि मरल सम जनरमल िान ।।41।।


राधास्वामी ज़ोर देय कर । गुरु भजि को करें प्रमार् ।।42।।

।। बचन नावां ।।

मजरमा िब्द स्वरूप सतगुरु की

।। िब्द पजरला ।।

धन्य धन्य धन धन्य जपयारे । क्या कहुं मजरमा िब्द की ।।1।।


िो परचे1 रैं िब्द से । सो िाने मजरमा िब्द की ।।2।।
जछन जछन रक्षा रो ररी । क्या उपमा कहुं मैं िब्द की ।।3।।
जबन िब्द कफरे भरमजतयाूँ । नसर िानी गजत मजत िब्द की ।।4।।
जिन गुरु पाया िब्द का । और प्रीजत करी जिन िब्द की ।।5।।
बड़ भागी वर िीव रैं । िो करें कमाई िब्द की ।।6।।
जबना िब्द मन बस नरीं । तुम सुरत करो अब िब्द की ।।7।।
वर क्यों आये इस िगत में । जिन जमली न पूूँिी िब्द की ।।8।।
धुन घट में रर दम रो ररी । क्यों सुने न बार्ी िब्द की ।।9।।
तू बैठ अके ला ध्यान धर । तो जमले जनिानी िब्द की ।।10।।
ति आलस सनद्रा काजरली2 । तू लगन लगा ले िब्द की ।।11।।
पाूँच िब्द घट में बिें । यर जनर्णय करले िब्द की ।।12।।
गुरु ज्ञान बताया िब्द का । तू रोिा ध्यानी िब्द की ।।13।।
मैं िब्द िब्द बहुतक करा । कोई न माने िब्द की ।।14।।
िन्म अकारथ खो कदया । िो चढ़े न घाटी िब्द की ।।15।।
राधास्वामी कर कर चुप हुए । जबन भाग न धारा िब्द की ।।16।।

1. मेल ककया । 2. सुस्ती ।


88 सार बचन बचन 9

।। िब्द दूसरा ।।

िब्द ने रची जिलोकी सारी । िब्द से माया फै ली भारी ।।1।।


िब्द ने अंड ब्रह्मंड रचा री । िब्द से सात दीप नौखंड बना री ।।
िब्द ने गुर् तीनों और परिा धारी । िब्द से धरजन अकाि खड़ा री ।।3।।
िब्द ने िीव और ब्रह्म ककया री । िब्द से चाूँद और सूर भया री ।।4।।
िब्द ने सुन्न मरासुन्न सूँवारी । िब्द ने चौथा लोक करा री ।।5।।
िब्द री घट घट करे पुरानी । िब्द कफर अलख अगम से न्यारी ।।
िब्द से खाली कोइ न ररा री । िब्द सब ठौर रठकान भरा री ।।7।।
िब्द की मजरमा क्या कहुं गा री । िब्द को िैसे बने तैसे पा री ।।8।।
गुरु अब करते रेला1 मारी । िब्द जबन कोइ न करे उपकारी ।।
िब्द में सुरत लगा कर यारी । िब्द री चेतन करे उिारी ।।10।।
िब्द की करनी करो सदा री । िब्द जबन ख़ुदी2 न िाय तुम्रारी ।।
िब्द का िग़ल3 करो मन मारी । िब्द से काल कमण सब रारी ।।12।।
िब्द में सुरत लगा सुन प्यारी । िब्द जबन रोय न कभी उबारी ।।
िब्द तेरे तन में बोल ररा री । सुरत से सुन सुन करो जबचारी ।।
सुरत को गगन जिखर लेिा री । धुनों की रोत िराूँ झनकारी ।।
िब्द की जवरर लगे िो कारी4 । सभी रस लगें तोजर कफर खारी ।।
िब्द को जनि कर कोइ न सुना री । भोगते कफरें िन्म मरना री ।।17।।
िब्द का मारग संत जनकारी । संत जबन कोई न ममण लखा री ।।
िब्द जबन रोगा बहुत ख़ुवारी । िब्द री पकड़ो क्यों झख मारी6 ।।
सुरत को बाूँध लगा दे तारी7 । भेद यर राधास्वामी खोल करा री ।।

।। िब्द तीसरा ।।

सब की आकद िब्द को िान । अंत सभी का िब्द जपछान ।।1।।


तीन लोक और चौथा लोक । िब्द रचे यर सब री थोक ।।2।।

1. पुकार कर । 2. अरंकार । 3. अभ्यास । 4. गररी । 5. खराबी ।


6. वृथा मेरनत करना । 7. ध्यान, लौ ।
बचन 9 मजरमा िब्द 89

िब्द सुरत दोउ धार समान । पुरुष अनामी के यर प्रार् ।।3।।


चेतनता सब इनकी मान । िब्द जबना कोइ और न आन ।।4।।
िब्द गुप्त तब हुआ अनाम । िब्द प्रगट तब धररया नाम ।।5।।
नाम अनाम िब्द परमान1 । िब्द जबना रोय सब की रान ।।6।।
िस अजि तदरूप पषान । तस तदरूपी2 िब्द अनाम ।।7।।
िब्दजर कारर् िब्दजर काि । िब्द रचाया सगला साि ।।8।।
िब्दजर अगम अलख कफर िब्द । िब्दजर सतनाम सत िब्द ।।9।।
िब्द जनःअक्षर3 अक्षर िब्द । सोरं िब्द ररं भी िब्द ।।10।।
ओअं िब्द जनरं िन िब्द । ब्रह्म िब्द और माया िब्द ।।11।।
िब्दजर िीव सीव4 भी िब्द । िब्द से सुरत सुरत से िब्द ।।12।।
ओतपोत5 यों िब्दजर िब्द । ऊूँच नीच दोउ िब्दजर िब्द ।।13।।
िब्दजर सेवक िब्दजर स्वामी । िब्दजर घट घट अंतरिामी ।।14।।
िब्द न मरे अमर भी िब्द । िब्द न िरे अिर भी िब्द ।।15।।
िब्द गुरु और िब्दजर दास । िब्द जबना झूठ ूँ ी सब आस ।।16।।
िब्द न जबनसे जबनसे काया । िब्द जबना कु छ राथ न आया ।।17।।
िब्द करा सब संतन सार । िब्द जबना कै से जनरवार ।।18।।
िब्द गरीर िब्द गंभीर । िब्द जबना पद जमले न थीर6 ।।
िब्द जबना कोइ रोय न धीर8 । िब्द जबना झूठ ूँ ी तदबीर ।।20।।
िब्द तुड़ावे सब ज़ंिीर । िब्द जमटावे तन मन पीर ।।21।।
िब्दजर मछली िब्द नीर । िब्द बखानें सत्त कबीर ।।22।।
िब्द बतावें नानक पीर8 । िब्द लखावें तुलसी धीर ।।23।।
िब्दजर बस्तर िब्दजर चीर । िब्दजर माखन िब्दजर रीर9 ।।24।।
िब्द जमले तू खोि िरीर । िब्द बसे नभ जिकु टी तीर ।।25।।
िब्द जबना सब िीव असीर10 । िब्द जमले कोइ जमले फ़क़ीर ।।26।।

1. सबूत । 2. वैसा री रूप । 3. मरासुन्न । 4. ईश्वर, जिसकी सेवा करता रै ।


5. उलट पलट । 6. जस्थर । 7. जनश्चल । 8. गुरु । 9. सारं ि । 10. क़ै दी ।
90 सार बचन बचन 9

िब्दजर बम1 िब्द री ज़ीर2 । िब्द जबना सब मथते नीर ।।27।।


िब्द पकड़ सब तेरी सीर3 । िब्द गरे िो वरी अमीर ।।28।।
िब्द िार और िबद वज़ीर । राधास्वामी करें समझ मेरे वीर 29।।

।। िब्द चौथा ।।

गुरु की दया ले िब्द सम्रार । गुरु के सूँग कर िब्द अधार ।।1।।


िब्द लगावे तुझ को पार । जबना िब्द चौरासी धार ।।2।।
िब्द कमाई करनी सार । िब्द चड़ावे दसवें द्वार ।।3।।
िब्द गुरु सूँग करले प्यार । और कमण सब त्यागो झाड़ ।।4।।
िब्द जबना नसर खेवनरार । िब्दजर करता सबकी सार ।।5।।
िब्द िब्द का भेद जनयारा । सो गुरु तुझ से करें सम्रार ।।6।।
तू तो सुरत िमा नभ द्वार । िब्द जमले छू टे िंिार ।।7।।
िब्द करे अब िग से पार । िब्द मासर तुम ररो हुजियार ।।8।।
िब्दजर िब्द करो जनरवार । िब्द जबना कोई बचे न यार ।।9।।
िब्द रटावे सब अरंकार । िब्द छु ड़ावे सभी जबकार ।।10।।
िब्द जबना कु छ और न सार । मैं तोजर कहूं पुकार पुकार ।।11।।
िब्द लगो मत बैठो रार । िब्द नाव चढ़ पहुंचो पार ।।12।।
िब्द ककया जिस घट उजियार । धन वे िन जिन िब्द अधार ।।13।।
तू भी सुन चढ़ िब्द पुकार । िब्द रोय कफर गल का रार ।।14।।
िब्द पकड़ और सब ति डार । जबना िब्द नसर रोत उधार ।।15।।
िब्द भेद तू िान गूँवार । क्यों भरमे तू मन की लार ।।16।।
सुरत खैंच तक जतल का द्वार । दजरनी कदिा िब्द की धार ।।17।।
बाईं कदिा काल का िार । ताजर छोड़ कर सुरत सम्रार ।।18।।
घंटा िंख सुनो कर प्यार । जतस के आगे धुन ओंकार ।।19।।

1. बांयां, टीप । 2. दांयां, खरि । 3. ज़मीन जिस पर कर नरीं लगता ।


बचन 9 मजरमा िब्द 91

सुन्न मासर सुन रारं कार । भूँवरगुफा मुरली झनकार ।।20।।


सत्तलोक धुन बीन सम्रार । अलख अगम धुन कहुं न पुकार ।।21।।
राधास्वामी भेद सुनाया झाड़ । पकड़ धरो अब जरये मूँझार ।।22।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

िब्द जबना सारा िग अंधा । काटे कौन मोर का फं दा ।।1।।


िब्द जबना जबरथा सब धंधा । िब्द जबना जिव बंधन बंधा ।।2।।
िब्दजर सूर िब्द री चंदा । िब्द जबना जिव ररता गंदा ।।3।।
िब्द जबना सबरी मजतमंदा । िब्दजर नाजसर1 िब्दजर पंदा2 ।।4।।
िब्द कमावे जमले अनंदा । िब्द जबना सबरी की जनन्दा ।।5।।
ताते िब्दजर िब्द कमाओ । िब्द जबना कोइ और न ध्याओ ।।6।।
िब्द भेद तुम गुरु से पाओ । िब्द मासर कफर िाय समाओ ।।7।।
िब्द अधर में करे उिारा । िब्द नगर तुम झाूँको द्वारा ।।8।।
िब्द ररे सबरी से न्यारा । िब्द करे सब िीव गुज़ारा3 ।।9।।
िब्द िाजनयो सब का सारा । िब्द माजनयो रोय उबारा ।।10।।
िब्द कमाई कर रे मीत । िब्द प्रताप काल को िीत ।।11।।
िब्द घाट तू घट में देख । िब्दजर िब्द पीव को पेख ।।12।।
िब्द कमण की रे ख कटावे । िब्द िब्द से िाय जमलावे ।।13।।
िब्द जबना सब झूठा ज्ञान । िब्द जबना सब थोथा ध्यान ।।14।।
िब्द छोड़ मत अरे अिान । राधास्वामी करें बखान ।।15।।

।। िब्द छठवाूँ ।।

िब्द की करो कमाई दम दम । िब्द सा और न कोई रमदम4 ।।1।।


िब्द को सुनो बंद कर सरवन । िब्द की गरो िाय धुन झम झम ।।
िब्द तेरी दूर करे सब रमरम5 । िब्द को पाय गरो वराूँ सम सम9 ।।

1. उपदेिक । 2. उपदेि । 3. जनवाणर । 4. जमि । 5. अरंकार । 6.एकता ।


92 सार बचन बचन 9

देजखयो िोत उिाला चमचम । ररो कफर धुनमें जछन जछन रम रम ।।


भोग सब त्यागे हुआ मन उपसम1 । सुनी अब चढ़कर धुन िराूँ घमघम2 ।।
करें गुरु रर तू उसमें िम िम । बहुरर सुन पाई इक धुन बमबम ।।6।।
सुरत कफर चढ़ी वराूँ से धम धम । सुन्न में पहुंची लई धुन छम छम ।।7।।
और भी सुनी एक धुन खम खम । कहूूँ क्या मजरमा िब्द अगम गम ।।8।।
करूं मैं जितनी री सब कम कम । खोल कस कहू बात ये मुबरम3 ।।9।।
सुरत को जमली अधर की गम गम । जपया सूँग बैठी करत परम रम4 ।।10।।
जमटा सब घटका अबरी तम तम । बरसने लागीं झजड़याूँ ररम जझम ।।11।।
तेि अब फै ला घट में इम इम5 । अमीरस चुआ चुए ज्यों िबनम6 ।।12।।
हुआ मन सभी ितन से बररम7 । सुरत के लागी अब धुन मररम ।।13।।
गुरु पर तन मन करूूँ समरपन । करें अस राधास्वामी बचन दमादम8 ।।

।। िब्द सातवां ।।

िब्द संग बाूँध सुरत का ठाट । बरें मत िग का चौड़ा फाट ।।1।।


िब्द जबन जमले न घर की बाट । िब्द का परखो घट में घाट ।।2।।
िब्द संग बाूँधो ऐसा ठाट । बहुरर तुम सोवो जबछाये खाट ।।3।।
गगन चढ़ िब्द अमी रस चाट । िब्द जबन और न सूधी बाट ।।4।।
िब्द संग भरलो मन का माट9 । िब्द री करे करम का काट ।।5।।
िब्द जबन रो गई बारर बाट10 । िब्द संग िग से ररी उचाट ।।6।।
िब्द री खोले ब्रि कपाट । िब्द संग झाूँका चौक सपाट11 ।।7।।
िब्द की करो सदा तुम छाूँट । िब्द रस पीवो और दो बाूँट ।।8।।
काल की ठोको कफर तुम टाूँट12 । िब्द संग ररे न कोई आूँट12 ।।9।।
राधास्वामी करते मार कु टाूँट14 । िब्द री खोलै घटकी साूँट15 ।।10।।

1. उपराम । 2. एक प्रकार की आवाज़ । 3. गुप्त । 4. जबलास । 5. इधर इधर ।


6. धुन्ध, ओस । 7. बेज़ार । 8. बारम्बार । 9. घड़ा । 10. खराब । 11. समान ।
12. जसर । 13. रूकावट । 14. ढोल बिाना । 15. गंड ।
बचन 9 मजरमा िब्द 93

।। िब्द आठवाूँ ।।

सुरत अब िब्द मासर जनत भरना । करो यर काम और नसर करना ।।


गगन में देखो कूँ वल चमकना । दृजष्ट पर देखो िोत दमकना ।।
सुरत मन वराूँ से अधर उलटना । घाट सुखमन का खोल पलटना ।।
इड़ा ति सपगला घाटी चढ़ना । तान कर सूरत आगे बढ़ना ।।
पकड़ धुन िाय धुनी से लगना । मान मद त्याग भमण सब तिना ।।
गुमठ1 का खेल अिायब तकना । ओं धुन पाई सुनी गरिना ।।
सुन्न में पहुंची सरवर तटना2 । रूँस रोय जनसकदन मोती चुगना ।।
सुरत को जमला धाम यर अपना । मगन रोय बैठी अब नसर रटना ।।
अमी रस वराूँ का जनतरी चखना । मौि राधास्वामी यरी जनरखना ।।

।। िब्द नावाूँ ।।

धुन सुन कर मन समझाई ।। टेक ।।


कोरट ितन से यर नसर माने । धुन सुन कर मन समझाई ।।1।।
िोगी िुजि कमावें अपनी । ज्ञानी ज्ञान कराई ।।2।।
तपसी तप कर थाक ररे रैं । िती3 ररे ित लाई ।।3।।
ध्यानी ध्यान मानसी लावें । वर भी धोक्खा खाई ।।4।।
पंजडत पढ़ पढ़ वेद बखानें । जवद्या बल सब िाई ।।5।।
बुजद्ध चतुरता काम न आवे । आजलम3 ररे पछताई ।।6।।
और अमल4 का दखल नरीं रै । अमल िब्द लौ लाई ।।7।।
गुरु जमले िब धुन का भेदी । िष्य जवरर धर आई ।।8।।
सुरत िब्द की रोय कमाई । तब मन कु छ ठरराई ।।9।।
जरसण5 रवस से राथ न आवे । तन मन देव चढ़ाई ।।10।।
बुल्रवसी6 और कपटी िन को । नेक7 न धुन पजतयाई8 ।।11।।

1. गुब
ं ि। 2. ककनारा । 3. जवद्वान् । 4. अभ्यास । 5. िो देखा देखी
शवाजरि पैदा रो । 6. जररसी । 7. ज़रा भी । 8. प्रतीत करना ।
94 सार बचन बचन 9

यर धुन रै धुर लोक अधर की । कोइ पकड़ें संत जसपारी ।।12।।


मन को मार करें असवारी । गगन कोट वर लेयूँ जघराई ।।13।।
खाई सुन्न पार मैदाना । मरासुन्न नाका1 परमाना ।।14।।
भूँवरगुफा का फाटक तोड़ा । िीि मरल सतगुरु कदखलाई 15।।
अद्भुत लीला अिब वराूँ की । ककरन ककरन सूरि दरसाई ।।16।।
सूरि सूरि िोत जनरारी । चन्द्र चन्द्र कोरटन छजब छाई ।।17।।
घट आकाि औघट परकािा । लख आकाि करटन परसाई ।।18।।
यर लीला कु छ अिब पेच की । उलट पलट कोइ गुरुमुख पाई 19।।
करां लग बरनूूँ भेद अगाधा । िो कोई लावे सुन्न समाधा ।।20।।
ूँ े गुड़ खाई ।
समझ बूझ गूग
अकथ अकर की बात जनराली । क्योंकर कहूूँ बनाई ।।21।।
राधास्वामी राज़3 जछपे को । परगट कर सरसाई4 ।।22।।

।। िब्द दसवाूँ ।।

अनरद बािे बिे गगन में । सुन सुन मगन रोत अब मन में ।।1।।
गुरु सुनावें यर धुन तन में । सुरत लगा तू भी अब घन5 में ।।2।।
मार ससर को चढ़ी इस बन में । िब्द जमला अब िुगन िुगन में ।।3।।
सुरत लगाई उसी लगन में । धुन िागी अब रगन रगन में ।।4।।
सुन सुन िब्द गई सुन धुन में । दूर ककये सब भूत और जिन में ।।5।।
सुरत न आवे अब कभी इन में । िब्द जमला गुरु कदया अपन में ।।6।।
िब्द प्रताप जमटाई तपन मैं । िाग उठी िग देख सुपन में ।।7।।
िब्द सुनूूँ जनत इसी भवन6 में । जछन जछन पकड़ूूँ यरी ितन में ।।8।।
अंतर पाऊूँ िब्द रतन में । िब्द िब्द संग करूं गवन7 में ।।9।।
िब्द गहूूँ अब मार मदन8 मैं । राधास्वामी करें पुकार सबन में ।।10।।

1. सीमा । 2. उलटा । 3. भेद । 4. कदखाया । 5. बादल की गरि ।


6. घर । 7. चलना । 8. काम ।
बचन 10 जनर्णय नाम 95

।। बचन दसवां ।।
जनर्णय िब्द अथवा नाम का

।। िब्द पजरला ।।

रे खता

नाम जनर्णय करूूँ भाई । दुधा1 जवजध भेद बतलाई ।।1।।


वर्ण2 धुनात्मक गाऊूँ । दोऊ का भेद दरसाऊूँ ।।2।।
वर्ण कहु चारे कहु अक्षर । िो बोला िाय रसना3 कर ।।3।।
जलखन और पढ़न में आया । उसे वर्ाणत्मक गाया ।।4।।
लखायक रै यरी धुन का । जबना गुरु फल नरीं ककनका4 ।।5।।
जमलें गुरु नाम धुन भेदी । सुरत धुन धुनी संग बेधी5 ।।6।।
एकता नाम और नामी । करावें िो जमलें स्वामी ।।7।।
नाम वर्ाणत्मक गाया । नामी धुनआत्मक पाया ।।8।।
वर्ण से सुरत मन माूँिो । बहुरर चढ़ गगन धुन साधो ।।9।।
धुनी धुन एक कर िानो । सुरत से िब्द पजरचानो ।।10।।
िब्द और सुरत भये एका । नाम धुन आत्मक देखा ।।11।।
गुरु जबन और जबना करनी । जमले कस करो यर ररनी ।।12।।
चार अनुराग जिस रोई । भाग बड़ गुरुमुखी सोई ।।13।।
नाम नामी दोऊ गाया । अभेदी भेद समझाया ।।14।।
गुरु की मौि में सब कु छ । जिसे चारें करें गुरुमुख ।।15।।
गुरुमुख रोय तन धन से । करे कफर प्रीत जनि मन से ।।16।।
लगे तब िाय धुन धुन से । गये तब तीन गुन तन से ।।17।।
वर्ण धुन भेद दोउ बरना । वाच6 और लक्ष7 इन करना ।।18।।

1. दोनों । 2. अक्षर । 3. ज़बान । 4. बहुत कम । 5. प्रवेि करना ।


6. प्रकट । 7. गुप्त ।
96 सार बचन बचन 10

वाच वर्ाणत्मक िानो । लक्ष धुन धुनी पजरचानो ।।19।।


वर्ण में भेष िग भूला । ममण धुन संत कोइ तोला ।।20।।
वर्ण िप िप पचें भेषी । जमले कु छ फल नरीं नेकी1 ।।21।।
भेद धुन का नरीं पाया । नाम फल राथ नसर आया ।।22।।
िपें जनत सरस और लाखा । खुले नसर नेक उन आूँखा ।।23।।
जतमर संसार नसर िावे । मोर मद काम भरमावे ।।24।।
धुनी धुन भेद नसर चीन्रा । सुरत और िब्द नसर लीन्रा ।।25।।
जमला नसर गुरु धुन भेदी । लखावे धुन जमटे खेदी2 ।।26।।
काल ने बुजद्ध उन छेदी । मुफ़्त नर देर उन दे दी ।।27।।
दया कर संत गोररावें । ज़रा नसर जचत्त में लावें ।।28।।
पाूँच धुन भेद बतलावें । सुरत की रार कदखलावें ।।29।।
धुनों के नाम दरसावें । रूप अस्थान कर गावें ।।30।।
सुरत का िोग लखवावें । िीव नसर करन उन मानें ।।31।।
सुरत ले गगन चढ़वावें । सपड में सार बतलावें ।।32।।
चढ़े ब्ररमंड तब परखे । सरसदल मध्य कु छ जनरखे ।।33।।
बंक चढ़ जतरकु टी धावे । सुन्न दस द्वार गजत पावे ।।34।।
मरासुन िाय ररखानी । भूँवर में िा सुनी बानी ।।35।।
अमर पद मूल िा देखा । बीन धुन का जमला लेखा ।।36।।
अलख और अगम भी पेखा । नाम का मूल अब देखा ।।37।।
कहूं क्या खोल राधास्वामी । सैन यर समझ परमानी ।।38।।

।। िब्द दूसरा ।।

नाम रस चखा गुरु संग सार । काम रस छोड़ा देख असार ।।1।।
नाम रं ग रं गी सुरत मन मार । क्रोध को िारा जक्षमा सम्रार ।।2।।
नाम का जमला आि भंडार । लोभ को टाला िान कं गार3 ।।3।।
नाम गजत पाई चढ़ आकाि । मोर तम गया देख परकाि ।।4।।

1. ज़रा । 2. दुख । 3. जनरधन ।


बचन 10 मजरमा सतसंग 97

नाम धन पाया गगन जनरार । मगन रोय बैठी ति अरंकार ।।5।।


नाम धुन सुनी सुन्न दस द्वार । नाम पद जमला मरासुन्न पार ।।6।।
सुरत जलया भूँवरगुफा आधार । सोरं और बंसी सुनी पुकार ।।7।।
पद चौथे चली नाम की लार । अलख में गई नाम को धार ।।8।।
अगम में पहुंची नाम सम्रार । जमला राधास्वामी नाम अगार1 ।।9।।
करो अब सतसूँग िग को िार । रोय घट भीतर नाम उिार ।।10।।
मान मद बैठे दोनों रार । नाम पद हुई सुरत गल रार ।।11।।
भेद यर गावें संत पुकार । भेष नसर मानें बड़े गूँवार ।।12।।
ररे पंजडत और िोगी वार । ज्ञान कर ज्ञानी मानी रार ।।13।।
संत कोई पहुंचे अगम जनरार । तोजड़या जिन जिन जतल का द्वार ।।
नाम पद बरने देख जवचार । ररा नसर धोखा खोला झार2 ।।15।।
नाम का परदा कदया उघाड़ । कहूं मैं तुम से कर अजत प्यार ।।16।।
जमलैं कोई सतगुरु परम उधार । करो यर करनी तुम जनरवार3 ।।17।।
पाओ तब नाम कु ल्ल करतार । बाूँध कर चढ़ो सुरत का तार ।।18।।
मीन मजत4 चढ़ गइ उलटी धार । मकर5 गजत पकड़ा अपना तार ।।19।।
काल अब थका पुकार पुकार । िरम कर बैठी माया नार ।।20।।
सुरत अब पाया जनि घर बार । जमले राधास्वामी पुरुष अपार ।।21।।

।। बचन ग्याररवाूँ ।।
सतसंग मजरमा और भेद सत्तनाम का

।। िब्द पजरला ।।

कराूँ लग कहूं कु रटलता6 मन की । कान7 न माने गुरु के बचन की ।।1।।


प्रेम गया और भजि जछपानी । बैर ईषाण की खुली खानी ।।2।।

1. सब के आगे । 2. कु ल । 3. छु टकारा । 4. समान, माजनन्द । 5. मकड़ी ।


6. दुष्टता, िरारत । 7. मयाणदा, क़ायदा ।
98 सार बचन बचन 11

माया लाई छलबल अपना । काल कदया कलमल1 का ढकना ।।3।।


ज्ञान बुजद्ध बल सतसंग भाई । जक्षमा मौि गुरु गई जरराई2 ।।4।।
देखो अचरि करा न िाई । कजलयुग का परभाव3 कदखाई ।।5।।
रैं गुर-भैजरन और गुर-भाई । जतन में जनस कदन रोत लड़ाई ।।6।।
काल दाव4 अपना यों खेला । सतसंग में आय कीन्रों मेला ।।7।।
सेवा में घुस पैठ कराई । और तरर कोइ घात न पाई ।।8।।
सेवा में अस कीन्रा पेचा । मन को सब के धर धर खैचा ।।9।।
गुरु ताड़ें सतसंगी झींखें5 । काल लगाई ऐसी लीकें 6 ।।10।।
गुरु समझावें सीख न मानें । मन मत अपनी कफर कफर ठानें ।।11।।
गुरु को देवें दोष लगाई । कफर कफर चौरासी भरमाई ।।12।।
इतने कदन सतसंग िो कीया । कु छ भी असर न उसका हुआ ।।13।।
सतगुरु से अब करूूँ पुकारा । काल मार मन लेव सुधारा ।।14।।
तुम से काल ज़बर नसर रोई । काटो फं दा िम का सोई ।।15।।
तुम्ररे चरन प्रीत रोय गाढ़ी । सतसंजगयन मन िुद्धता बाढ़ी ।।16।।
जरल जमल कर सब करें अनन्दा । द्रोर घात7 का काटो फं दा ।।17।।
सतसंगी सब जमल कर चालें । प्रीत परस्पर पल पल पालें ।।18।।
यरी हुकु म अब सब को कीना । िो नसर माने सो काल अधीना ।।19।।
िो कोई माने हुकु म रमारा । पहुंचे वर सतगुरु दरबारा ।।20।।
बुजद्ध अपनी लेव सम्रारी । बचन गुरु यर मन में धारी ।।21।।
जिन के मन को काल सम्रारा । सो नसर माने बचन रमारा ।।22।।
अब मन में जचन्ता मत राखो । सत्तनाम अब जछन जछन भाखो ।।23।।
दीन रीन िानो अपने को । जनपट नीच मानो अपने को ।।24।।
अब अरंकार करो क्या ककस से । मौत धार दम दम में बरसे ।।25।।
िैसे िग में मरा जभखारी । दीन गरीबी उन सब धारी ।।26।।

1. अंधकार, मलीनता । 2. िाती ररी । 3. असर । 4. पेंच । 5. दुजखत


रोना । 6. दाग़ । 7. ििुता और बैर ।
बचन 11 मजरमा सतसंग 99

कोई उसको कु छ कर लेवे । मन को अपने िरा न देवे ।।27।।


तुम सतसंग कर क्या फल पाया । उनका सा भी मन न बनाया ।।28।।
अब ऐसा तुम्रें करना चाजरये । अपने मन अधीनी धररये ।।29।।
रारा खाओ1 चरन पखालो2 । आपस में तुम जरल जमल चालो ।।30।।
िो कोइ जिस से रूठे भाई । सोई जतसको लेय मनाई ।।31।।
राथ िोड़ बहु जबनती करे । करे खुिामद चरनन पड़े ।।32।।
इतने पै िो माने नारीं । गुनरगार सतगुरु का भाई ।।33।।
िलन ईषाण जिस घट आई । वर दुख कै से िाय नसाई ।।34।।
कर जववेक मन को समझावे । या सतगुरु की दया समाई ।।35।।
सतगुरु दया जबना नसर रोई । जबन जववेक नसर िावे खोई ।।36।।
िो सतगुरु जनि दया जवचारें । तब यर दुरमत मन से टारें ।।37।।
िो कोइ दीन कपट से रोई । ता का रोग करो कस िाई ।।38।।
कपटी को ऐसा अब चारी । करे सफ़ाई कपट नसाई ।।39।।
िो बल उसका पेि न िावे । तो सतगुरु से जबनती लावे ।।40।।
खोले कपट न राखे परदा । गुरु से खोले रख रख सरधा ।।41।।
अपने औगुन उन से भाखे3 । बार बार जबनती कर आखे4 ।।42।।
रे स्वामी मेरी कपट जनकारो । मैं बलरीन मोसर तुम तारो ।।43।।
तुम्रारी दया रोय िब भारी । घट से जनकसे कपट रमारी ।।44।।
और उपाय न इसका कोई । जबना दया कोई िुजि न रोई ।।45।।
मन कपटी घट घट में पैठा । सब िीवन का पकड़ा फें टा5 ।।46।।
कर सतसंग भौ6 भाव बसावे । गुरु की दया कपट नस7 िावे ।।47।।
िो गुरु आगे कपट न खोले । जनष्कपटी अपने को बोले ।।48।।
दोररा कपट जलये रै सोई । उसका ितन कभी नसर रोई ।।49।।
बर सतसंग के लायक नारीं । वर असाध रोगी िग मारीं ।।50।।

1. दीनता के साथ जछमा मांगना । 2. धोओ । 3. बयान करे । 4. करे ।


5. कमरबन्द । 6. भय । 7. नाि ।
100 सार बचन बचन 11

पर िो सतगुरु समरथ पावे । और चरनन पर सीस नवावे ।।51।।


पड़ा ररे सतसंग के मारीं । धीरे धीरे तो छु ट िाई ।।52।।
सतसंग िल िो कोई पावे । सब मैलाई कट कट िावे ।।53।।
सतसंग मजरमा करा बखानूं । अस सम ित्न और नसर मानूूँ ।।54।।
कलिुग खास यत्न कोई नारीं । जबन सतसंग संत नसर गाई ।।55।।
कमण धमण तप पूिा दाना । इस करनी से जनत बढ़े माना ।।56।।
और ज्यों की त्यों रोय न आवे । तौ फल उलटा उसका पावे ।।57।।
याते संतन काकढ़ जनकारी । सतसंग की मजरमा कजर भारी ।।58।।

।। दोरा ।।

सतसंग ककसको करत रैं, सो भी तुम सुन लेय ।


सत्तनाम सतपुरुष का, िराूँ कीतणन रोय ।।59।।
चौथा पद सचखंड करावे । मरासुन्न के पार ररावे ।।60।।
मरासुन्न वर संतन भाखी । अक्षर से वर आगे ताकी ।।61।।
वर अक्षर रै वेद को मूला1 । ज्यों का त्यों ताजर वेद न तोला2।।62।।
नेजत नेजत वारी को करता । आगे की गत कफर कस लेता ।।63।।
वेद कतेब थके दोउ यरूँ री । अक्षर सुन के वार रराई ।।64।।
आगे का इन ममण3 न िाना । संतन ने यर करी बखाना ।।65।।
िोगेश्वर वेदांती भाई । यर भी ररे अक्षर लख4 मारीं ।।66।।
सत्तनाम संतन िो भाखा । सत्तलोक संतन िराूँ आखा ।।67।।
सो इन सब से आगे रोई । बुजद्ध से एक करो मत कोई ।।68।।
संतन साफ़ साफ़ कर डाला । मत वेदांत काल कर िाला ।।69।।

।। दोरा ।।

काल मता वेदांत का, संतन करा बनाय ।


सत्तनाम सतपुरुष का, भेद ररा अलगाय ।।70।।

1. िड़ । 2. जवचारा, खोला । 3. भेद । 4. लजखया िाने वाला ।


बचन 11 मजरमा सतसंग 101

कु ल्ल मते संसार के , सभी काल के िान ।


सत्तनाम सतपुरुष मत, यर दयाल पजरचान ।।71।।
सत्तनाम का भेद सुनाऊूँ । वा की आकद अूँत दरसाऊूँ ।।72।।
तब नसर रचा अंड ब्रह्मंडा । तीन लोक और नजर नौ खंडा ।।73।।
नरीं तब ब्रह्म नरीं तब आतम । नसर तब पारब्रह्म परमातम ।।74।।
नसर तब देवी नसर तब देवा । सुर नर मुजन कोइ रचे न सेवा ।।75।।
काल और मराकाल नसर दोई । सुन्न और मरासुन्न नसर रोई ।।76।।
धरती गगन न वेद पुराना । कोई जसद्धांत वेदांत न िाना ।।77।।
कराूँ लग कहूं खोल कर भाई । ककजचत1 रचना नसर प्रगटाई ।।78।।
तब ररे आप नाम अमाया2 । अपने में ररे आप समाया ।।79।।
मौि उठी एक धुन भइ भारी । सत्तनाम सत िब्द पुकारी ।।80।।
सच्च खंड इस धुन से रजचया । िराूँ लग मंडल धुन का बंजधया ।।
रंस रचे और दीप रचाये । सोलर सुत3 परगट रोय आये ।।82।।
सत्तलोक यों रचन रचानी । सत्तनाम मजरमा जनि ठानी ।।83।।
िुग के ते यारी जबजध बीते । सत्तनाम रस सब जमल पीते ।।84।।
सत्य सत्य वराूँ ररा पसारा । कफर नीचे का ककया जवस्तारा ।।85।।
एक धार वराूँ से चल आई । धार दूसरी आन समाई ।। 86।।
सुन्न मूँडल कीन्रा जनि थाना । पुरुष प्रकृ जत रचा अरथाना ।।87।।
िोत जनरं िन संतन गाया । माया ब्रह्म वरी ठरराया ।।88।।
जिव िजि इस री को करते । के ते िुग यारी को बीते ।।89।।
ब्रह्म सृजष्ट रचना इन ठानी । यर भी भेद न काहू िानी ।।90।।
ब्रह्म हुआ िब इनसे न्यारा । सत्तनाम का ध्यान सम्रारा ।।91।।
माया ने कफर रचना ठानी । तीन पुि लीन्रे उतपानी ।।92।।
नर सृष्टी इन से भई भारी । वेद रचे और कमण पसारी ।।93।।
कमणकांड में सब मन दीना । सुर नर मुजन भये काल अधीना ।।94।।

1. कु छ भी । 2. माया से रजरत । 3. सोलर कला ।


102 सार बचन बचन 11

ज्ञानी िोगी पच पच रारे । कमण भमण से हुए न न्यारे ।।95।।


सत्तपुरुष का भेद न िाना । वेद मते का बंधन ठाना ।।96।।
संत मता इन से बहु दूरी । यर क्यों िाने वर पद मूरी1 ।।97।।
याते संत संग अब कीिै । और संग सब परररर2 दीिै ।।98।।
सतसंग या का नाम करावे । जमलें संत तब यर घर पावे ।।99।।
सत्तनाम धुन अब कहूूँ खोली । बीन बाूँसरु ी धुन िरूँ बोली ।।100।।
काल नगर िराूँ अनरद बािा । बाइूँ कदिा यर धुन उन सािा ।।101।।
संतन की धुन इन से न्यारी । पावेगा कोइ चढ़ पद चारी ।।102।।
छाूँट छू ूँट कर मैं सब गाई । संत मता सब कदया लखाई ।।103।।
करने मैं कु छ कसर न राखी । खुले दृजष्ट तब देखे आूँखी ।।104।।
संत मेरर से कोइ कोइ पावे । जबना संत कु छ राथ न आवे ।।105।।

।। दोरा ।।

संत करी यर छान कर, मूरख माने नासर ।


जबना प्रीत परतीत के , कै से पावे ठासर3 ।।106।।
संतन से कर प्रीत अब , दृढ़ कर जचत्त लगाय ।
कमण भमण सब छोड़ कर, सुरत िब्द समाय ।।107।।
राधास्वामी गाय कर, िन्म सुफल कर ले ।
यरी नाम जनि नाम रै, मन अपने धर ले ।।108।।
भेद नाम का िब तू पावे ।
सतसंग में स्वामी के आवे ।।109।।

1. मूल । 2. त्याग । 3. रठकाना ।


बचन 12 मजरमा भजि 103

।। बचन बाररवां ।।
वर्णन मरात्म भजि का

।। िब्द परला ।।

भजि मरात्म सुन मेरे भाई । सब संतन ने ककया बखान ।।1।।


यरी मता गुरु-मत पजरचानो । और मते सब झूठ भुलान ।।2।।
जबना भजि थोथे सब मानो । जछलका रै मींगी1 की रान2 ।।3।।
ताते भजि दृढ़ कर पकड़ो । और सयानप तिो जनदान ।।4।।
भजि इश़्क प्रेम ये तीनों । नाम भेद रै रूप समान ।।5।।
भजि भाव यर गुरु-मत िानो । और मते सब मन मत ठान ।।6।।
प्रेम रूप आतम परमातम । भजि रूप सतनाम बखान ।।7।।
भजि और भगवंत एक रैं । प्रेम रूप तू सतगुरु िान ।।8।।
प्रेम रूप तेरा भी भाई । सब िीवन को यों री मान ।।9।।
एक भेद यामें पजरचानो । करीं बुदं करीं लरर समान ।।10।।
करीं ससध सम करे प्रकािा । करीं सोत और पोत करान ।।11।।
करीं इच्छा परबल रोय बैठी । करीं हुई माया बलवान ।।12।।
एक रठकाने माया थोड़ी । जसन्ध प्रताप िुद्ध हुई आन ।।13।।
सोत पोत में माया नारीं । वराूँ प्रेम री प्रेम ररान ।।14।।
वर भंडार प्रेम का भारी । िाूँ का आकद न अंत कदखान ।।15।।
जबना संत पहुंचे नसर कोई । सतगुरु संत ककया अस्थान ।।16।।
प्रेम भजि की ऐसी मजरमा । ग्ररर् करो यर अमृत खान3 ।।17।।
तांते पजरले करो भजि गुरु । पीछे पाओ नाम जनिान ।।18।।
आरत कर कर गुरु ररझाओ । पाओ उन से प्रेम जनधान4 ।।19।।
राधास्वामी करत सुनाई । जमला तुझे अब भजि दान ।।20।।

1. मगज़ । 2. नष्ट रो िाना । 3. खज़ाना ।


104 सार बचन बचन 12

।। िबद दूसरा ।।
िगत भाव भय लिा छोड़ो । सुन प्यारे तू कर भजि ।।1।।
िाजत बरन भय लिा त्यागो । सुन प्यारे तू कर भजि ।।2।।
ििु जमि डर दूर रटाओ । सुन प्यारे तू कर भजि ।।3।।
मात जपता डर छोड़ गूँवाओ । सुन प्यारे तू कर भजि ।।4।।
िोरू लड़के मत डर इनसे । सुन प्यारे तू कर भजि ।।5।।
भाई भतीिों का डर मत कर । सुन प्यारे तू कर भजि ।।6।।
सास ससुर डर मन से छोड़ो । सुन प्यारे तू कर भजि ।।7।।
बहू िमाई इन का डर ति । सुन प्यारे तू कर भजि ।।8।।
यार आिना1 सब डर छोड़ो । सुन प्यारे तू कर भजि ।।9।।
नातेदार कु टु म्बी जितने । इनका डर ति कर भजि ।।10।।
भजि अंग में िब तू बरते । छोड़ जझझक2 इन कर भजि ।।11।।
िो मूरख रैं ममण न िानें । इनका डर क्या ? कर भजि ।।12।।
इनका डर कु छ मत कर मन में । सुन प्यारे तू कर भजि ।।13।।
भेष भेष को देख लिावे । सो भी कच्चा कर भजि ।।14।।
िब लग सब से जनडर न रोवे । तब लग कच्चा कर भजि ।।15।।
जज़ल्लत3 इज़्जज़त4 िो कु छ रोवे । मौि जवचारो कर भजि ।।16।।
गुरु का बल जररदे धर अपने । सुन प्यारे तू कर भजि ।।17।।
यर जबगाड़ कु छ करें न तेरा । क्यों जझझके तू कर भजि ।।18।।
जबना मौि गुरु कु छ नजर रोता । सुन प्यारे तू कर भजि ।।19।।
तू कच्चा यर करे कचाई । और कहूं क्या कर भजि ।।20।।
करते करते पक्का रोगा । और उपाव न कर भजि ।।21।।
कच्ची से पक्की रोय इक कदन । छोड़ कपट तू कर भजि ।।22।।
कपट भजि कु छ काम न आवे । सच्ची कच्ची कर भजि ।।23।।
राधास्वामी करत सुनाई । िैसी बने तैसी कर भजि ।।24।।

1. दोस्त । 2. डर और लिा । 3. जनरादर । 4. आदर ।


बचन 12 मरात्म भजि 105

।। िब्द तीसरा ।।

धोखा मत खाना िग आय जपयारे । धोखा मत खाना िग आय ।।1।।


कोई मीत न िानो अपना । सब ठग बैठे फाूँसी लाय ।।2।।
िब सच्चा रोय चले डगर1 गुरु । तबरी चौंकैं रोकैं आय ।।3।।
ऊूँच नीच करैं बचन तोख2 के । मन को तेरे दें भरमाय ।।4।।
इनसे ररना समझ बूझ कर । रैं ये बैरी जरत कदखलाय ।।5।।
तेरी राजन लाभ नसर सोचैं । अपने स्वारथ ररें जलपटाय ।।6।।
तू भी चतुरा गुरु का प्यारा । उन संग रहु गुरु चरन समाय ।।7।।
उन को भी इस भाूँजत भलाई । तेरी भजि न थकती िाय ।।8।।
िो बेमुख गुरु भजि नाम से । कोई तरर क़ाबू नसर पाय ।।9।।
तो िुजि से दीन जवजध से । छोड़ चलो संग दोष न ताय ।।10।।
िो सन्मुख गुरु भजि नाम से । रोयूँ कदाजचत3 मेल जमलाय ।।11।।
राधास्वामी करत बनाई । बहुरर बहुरर तू भजि कमाय ।।12।।
भजि न छू टे कोई िुजि से । नसर तो बहु जवजध ररो पछताय ।।13।।

।। बचन तेररवाूँ ।।
पजरचान पूरे गुरु की और सच्चे परमाथी की

।। िब्द परला ।।

गुरु सोई िो िब्द सनेरी4 । िब्द जबना दूसर नसर सेई5 ।।1।।
िब्द कमावे सो गुरु पूरा । उन चरनन की रो िा धूरा ।।2।।
और पजरचान करो मत कोई । लक्ष6 अलक्ष7 न देखो सोई ।।3।।
िब्द भेद लेकर तुम उन से । िब्द कमाओ तुम तन मन से ।।4।।

1. रास्ता । 2. तान । 3. िायद, कभी । 4. प्रेमी । 5. सेवन करना ।


6. लक्षर् पूरा । 7. बे-लक्षर्, अधूरा ।
106 सार बचन बचन 13

।। सार उपदेि ।।
।। पजरचान परमाथी की ।।
।। सोरठा ।।
अनुरागी िो िीव, जतन प्रजत अब ऐसी कहूं ।
सुनो कान दे चीत, बचन कहूं जवस्तार कर ।।5।।
जवषयन से िो रोय उदासा । परमारथ की िा मन आसा ।।6।।
धन संतान प्रीत नसर िाके । िगत पदारथ चार न ता के ।।7।।
तन इन्द्री आसि न रोई । नींद भूख आलस जिन खोई ।।8।।
जबरर बान जिन जररदे लागा । खोित कफरे साध गुरु िागा ।।9।।
साध फ़क़ीर जमले िो कोई । सेवा करे करे कदलिोई1 ।।10।।
भेष धार पाखंडी रोई । साधु िान करे जरत सोई ।।11।।
भेष नेष्ठा2 जनत प्रजत धारे । ले परिादी चरन पखारे 3 ।।12।।
ऐसी करनी िा की देखें । आप आय सतगुरु जतस मेलें ।।13।।
सतगुरु बचन सुने िब काना । उमगे जररदा प्रेम समाना ।।14।।
सतगुरु से िब प्रीत लगावे । दया मेरर उनकी कु छ पावे ।।15।।
।। जवजध दिणन की ।।
जनत प्रजत दिणन परसन करे । रूप अनूप जचत्त में धरे ।।16।।
चरनामृत परिादी लेवे । मान मनी ति तन मन देवे ।।17।।
।। जवजध सेवा की ।।
सेवा कर तन मन धन अरपे । सत्त पुरुष सम सतगुरु थरपे4 ।।18।।
।। प्रथम तन की सेवा ।।
आरत सेवा जनत री करे । काम क्रोध मद जचत से ररे ।।19।।
चरन दबावे पंखा फे रे । चक्की पीसे पानी भरे ।।20।।

1. खाजतरदारी । 2. धारना । 3. धोवे । 4. माने ।


बचन 13 पजरचान परमाथी की 107

मोरी धो झाड़ू को धावे । खोद खदाना1 जमट्टी लावे ।।21।।


राथ धुला दातन करवावे । काट पेड़ से दातन लावे ।।22।।
बटना मल असनान करावे । अंग पोंछ धोती पजरनावे ।।23।।
धोती धोय अंगोछा धोवे । कं घा करे बाल बल खोवे ।।24।।
वस्त्र पजरनावे जतलक लगावे । करे रसोई भोग धरावे ।।25।।
िल अचवावे कमंडल भरे । पलंग जबछावे जबनती करे ।।26।।
नाना जवजध की सेवा करे । नीच ऊूँच िो िो आ पड़े ।।27।।
कोइ टरल में आर2 न लावे । िो गुरु करें सो कार कमावे ।।28।।
।। दूसरे धन की सेवा ।।
धन की सेवा यर रै भाई । गुरु सेवा में खचण कराई ।।29।।
गुरु नसर भूखा तेरे धन का । उन पै धन रै भजि नाम का ।।30।।
पर तेरा उपकार करावें । भूखे प्यासे को कदलवावें ।।31।।
उनकी मेरर मुफ्त तू पावे । िो उनको परसन्न करावे ।।32।।
उनका ख़ुि रोना रै भारी । सत्त पुरुष जनि ककरपा धारी ।।33।।
।। तीसरे मन और बुजद्ध की सेवा ।।
दिणन करे बचन पुजन3 सुने । कफर सुन सुन जनत मन में गुने ।।34।।
गुन गुन छाूँट लेय उन सारा । सार धार जतस करे अरारा ।।35।।
कर अरार पुष्ट4 हुआ भाई । िग भौ लाि अब गई नसाई ।।36।।
गुरु भजि िानो इश्क़ गुरु का । मन में धसा सुरत में पक्का ।।37।।
पक पक घट में गाढ़ा थाना । थान गाढ़ अब हुआ कदवाना ।।38।।
गुरु का रूप लगे अस प्यारा । काजमन पजत मीना िल धारा ।।39।।
सतसंग करना ऐसा चजरये । सतसंग का फल येरी सरी रै ।।40।।
।। दोरा ।।
िब सतगुरु प्रसन्न रोय, देयूँ नाम का दान ।
दीन रोय जररदे धरे , करे नाम पजरचान ।।41।।

1. जमट्टी का खान । 2. िमण । 3. कफर । 4. मज़बूत, बलवान ।


108 सार बचन बचन 13

चौथे सुरत और जनरत1 की सेवा


यानी अंतर अभ्यास
अंतरमुख बैठे एकान्त । अभ्यास करे पावे मन िान्त ।।43।।
दो दल उलट गगन को धावे । मगन रोय और नाद बिावे ।।44।।
िोत देख कफर देखे सूर । चन्द्र जनरारे पावे नूर2 ।।45।।
सत्तलोक पहुंचे और बसे । सुन सुन धुन तब सूरत रूँसे ।।46।।
तब सतगुरु की िानी मजरमा । जिन प्रताप बािी धुन बीना ।।47।।
अलख अगम और जमला अनामी । अब कहुं धन धन राधास्वामी ।।48।।

।। िब्द दूसरा ।।

घर आग लगावे सखी । सोई सीतल समुद ूँ समावे ।।1।।


िड़ चेतन की गाूँठ खुलानी । बुन्दा जसन्ध जमलावे ।।2।।
सुरत िब्द की क्यारी सींचे । फल और फू ल जखलावे ।।3।।
गगन मूँडल का ताला खोले । लाल ज्वाजरर3 पावे ।।4।।
सुन्न जिखर4 का मजन्दर झाूँके । अद्भुत रूप कदखावे ।।5।।
मानसरोवर जनरमल धारा । ता जबच पैठ अन्रावे ।।6।।
रंसन साथ राथ फल लेवे । धृग धृग िगत सुनावे ।।7।।
मरासुन्न का नाका तोड़े । भूँवरगुफा कढग िावे ।।8।।
सत्तनाम पद परस4 पुराना । अलख अगम को धावे ।।9।।
राधास्वामी सतगुरु पावे । तब घर अपने आवे ।।10।।

।। िब्द तीसरा ।।

गुरु चेला व्योरार िगत में । झूठा बरत ररा ।।1।।


का से कहूं खोि नसर काहू । धोखे धार बरा ।।2।।
गुरु तो लोभ प्रजतष्ठा6 चारत । जिष स्वारथ सूँग आन बूँधा ।।3।।
सच्चा मारग सुरत िब्द का । सो अब गुप्त भया ।।4।।

1. जनगुर्
ण करने वाली िजि । 2. प्रकाि । 3. रतन । 4. चोटी ।
5. स्पिण करके । 6. आदर ।
बचन 13 पजरचान परमाथी की 109

गुरु चेला पाखंडी कपटी । चौरासी में दोउ गया ।।5।।


िब्द सरूपी िब्द अभ्यासी । अस गुरु जमले तो पार हुआ ।।6।।
सुरतवन्त1 अनुरागी सच्चा । ऐसा चेला नाम करा ।।7।।
गुरु भी दुलभ
ण 2 चेला दुलभण । करीं मौि से मेल जमला ।।8।।
िब्द सुरत जबन िो गुरु रोई । ता को छोड़ो पाप कटा ।।9।।
राधास्वामी यों कर गाई । बूझ बचन तब काि सरा ।।10।।

।। िब्द चौथा ।।

सतगुरु खोिो री प्यारी । िगत में दुलभ


ण रतन यरी ।।1।।
जिन पर मेरर दया सतगुरु की । उनको दिण दई ।।2।।
दिण पाय सतलोक जसधारी । सत्तनाम पद कौन सरी ।।3।।
सरी नाम पाया सतगुरु से । जबन सतगुरु सब िीव बरी ।।4।।
िीव पड़े चौरासी भरमें । खान पान मद मान लाई ।।5।।
मान मनी का रोग पसररया3 । बड़े बने जिन मार सरी ।।6।।
छोटा ररे जचत्त से अंतर । िब्द मासर तब सुरत गई ।।7।।
िब्द जबना सारा िग अन्धा । जबन सतगुरु सब भमण मई4 ।।8।।
िब्द भेद और िब्द कमाई । जिन जिन कीन्री सार लई ।।9।।
िब्द रता सतगुरु पजरचानो । रम यर पूरा पता दई ।।10।।
खोलो आूँख जनकट रो देखा । अब क्या खोलूूँ खोल करी ।।11।।
आगे भाग तुम्रारा प्यारी । नसर परखो तो िून5 ररी ।।12।।
करना था सोई कर डाला । राधास्वामी खूब करी ।।13।।

1. संस्कारी । 2. कामयाब । 3. फै ला । 4. भरा हुआ । 5. योजन ।


110 सार बचन बचन 14

।। बचन चौदरवाूँ ।।
।। जचतावनी भाग पजरला ।।
।। िब्द पजरला ।।
धुन से सुरत भइ न्यारी रे । मन से बूँधी कर भारी रे ।।1।।
भौिाल फूँ सी झख मारी रे । घट छू टा कफर उिाड़ी रे ।।2।।
गुरु ज्ञान नरीं जचत धारी रे । जवष भोगे जवषय जवकारी रे ।।3।।
जसर भार उठावत भारी रे । िम दंड सरे सरकारी1 रे ।।4।।
दुख जवपता बहुत सरारी रे । अब सतगुरु करत पुकारी रे ।।5।।
सुन मान बचन मेरा प्यारी रे । घट उलटो लख उजियारी रे ।।6।।
िब्द रस जपयो अपारी रे । चढ़ खोलो गगन ककवाड़ी रे ।।7।।
गुरु जबन नसर और अधारी रे । राधास्वामी काि सुधारी रे ।।8।।
।। िब्द दूसरा ।।
सुरत तू कौन कराूँ से आई ।। टेक ।।
िगत िाल यर मन रच राखा । क्यों या में भरमाई ।।1।।
पुरुष अंस तू सतपुर बासी । फाूँसी काल लगाई ।।2।।
सतगुरु दया साध की संगत । उलट चलो घर पाई ।।3।।
अनरद िब्द सुनो घट भीतर । राधास्वामी करत बुझाई ।।4।।
।। िब्द तीसरा ।।
झूँझररया झाूँको जवरर उमगाय ।। टेक ।।
मन इन्द्री घर बास जबगाना2 । या में ररो अलसाय ।।1।।
पूरे सतगुरु ममण लखावें । भमण देयूँ छु टकाय ।।2।।
अब के दाव पड़ा तेरा सिनी । कफर औसर3 नसर पाय ।।3।।
जतल को पेल तेल अब काढ़ो । लो घट िोत िगाय ।।4।।
राधास्वामी करा बुझाई । एक रठकाना गाय ।।5।।

1. काल का । 2. पराया । 3. मौका ।


बचन 14 जचतावनी भाग पजरला 111

।। िब्द चौथा ।।

करो री कोई सतसंग आि बनाय ।। टेक ।।


नर देरी तुम दुलणभ पाई । अस औसर कफर जमले न आय ।।1।।
जतररया सुत धन धाम बड़ाई । यर सुख कफर दुख मूल कदखाय ।।2।।
या से बचो गरो गुरु सरना । सतसंग में तुम बैठो िाय ।।3।।
यर सब खेल रै न का सुपना । मैं तुम को अब कदया िगाय ।।4।।
झूठी काया झूठी माया । झूठा मन िो ररा लुभाय ।।5।।
सतसंग सच्चा सतगुरु सचा । नाम सचाई क्या कहुूँ गाय ।।6।।
मान बचन मेरा तू सिनी । िन्म मरन तेरा छु ट िाय ।।7।।
नभ चढ़ चलो िब्द में पेलो । राधास्वामी करत बुझाय ।।8।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

सुरत तू क्यों न सुने धुन नाम ।


भूल भूलइयाूँ आन फूँ सानी । क्या समझा आराम ।।1।।
भला तू समझ चेत चल धाम ।। टेक ।।
मन इन्द्री संग भोग जवलासा । यर िमराय जबछाया दाम1 ।।2।।
इन से जनकर भाग अब प्यारी । सतगुरु ममण लखावें ताम2 ।।3।।
अब की बार पड़ो गुरु सरना । कफर न बने अस काम ।।4।।
यराूँ तो चार कदवस ररे बासा । कफर भटको चौरासी ग्राम ।।5।।
ता ते बचन रमारा मानो । तिो मोर और काम ।।6।।
मन बौरा यर करा न माने । लगा भोग रस खाम3 ।।7।।
िीव जनबल क्या करे जबचारा । िब लग राधास्वामी करें न सराम4 ।।

।। िब्द छठा ।।

िाग चल सूरत सोई बहुत । कारे को पूूँिी अपनी खोत ।।1।।

1. िाल । 2. तमाम । 3. पागल । 4. सरायता ।


112 सार बचन बचन 14

पकड़ ले सतगुरु की तूं ओट । नाम गजर दूर करो सब खोट1 ।।2।।


काल अब मारे जछन जछन चोट । िब्द संग डार2 कमण की पोट ।।3।।
मैल मन क्यों नसर अब तू धोत । िब्द संग सूरत क्यों नसर पोत3 ।।4।।
जनरख ले घट में अद्भुत िोत । खोजलया राधास्वामी भजि सोत ।।5।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
जरत कर करता सुन सुतण बात । ग़ोता मत खा मूरख साथ ।।1।।
काम संग बरती कदन और रात । जमला तोजर भटक भटक यर गात4 ।।2।।
लगा ले नौका सतगुरु घाट । जमटा ले प्यारी िम की घात ।।3।।
छोड़ दे मन से सब उत्पात । रखो नसर मन में िात और पाूँत ।।4।।
जवघ्न यर भारी बुजद्ध भरमात । कहूं क्या कौन सुने मेरी तात5 ।।5।।
करैं कोइ सतगुरु तोजर जनि दात । नाम का भेद लखा धुन पात ।।6।।
करैं यर राधास्वामी अचरि बात । जमले िब सतसंग सरन समात ।।7।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
रे सरेली अब गुरु के मारग चलना । मन मारग जछन जछन तिना ।।1।।
कामाकदक भोग जबसरना । धुन सुन कर नभ पर चढ़ना ।।2।।
िग भट्टी में क्यों िलना । मद मान मोर नसर पचना ।।3।।
धीरे धीरे नाम रसायन6 िरना । भौिल से यों री तरना ।।4।।
राधास्वामी बचन पकड़ना । कफर िम से कारे को डरना ।।5।।
।। िब्द नावाूँ ।।
क्यों कफरत भुलानी िगत में, कदन चार बसेरा ।।1।।
स्वारथ के संगी सभी, जिन तुझ को घेरा ।।2।।
मात जपता सुत इस्तरी, कोइ संग न रेरा ।।3।।
जबन गुरु सतगुरु कौन रै, िो करे जनबेड़ा7 ।।4।।
नाम जबना सब िीव, करे चौरासी फे रा ।।5।।

1. कसर । 2. फें क दे । 3. गूथता, परोता । 4. िरीर । 5. प्यारा ।


6. कीजमया । 7. छु टकारा ।
बचन 14 जचतावनी भाग पजरला 113

मन दुलरा गगना चढ़े, सि सुरत सेररा ।।6।।


धुन दुलजरन को पाय कर, बसे िाय जिकु टी देररा1 ।।7।।
राधास्वामी ध्यान धर, तू साूँझ सबेरा ।।8।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
सुरत तू दुखी ररे रम िानी ।। टेक ।।
िा कदन से तुम िब्द जबसारा । मन संग यारी ठानी ।।1।।
मन मूरख तन साथ बूँधानी । इन्द्री स्वाद लुभानी ।।2।।
कु ल पररवार सभी दुखदाई । इन संग ररत भुलानी ।।3।।
तू चेतन यर िड़ सब जमथ्या । क्यों कर मेल जमलानी ।।4।।
ताते चेत चलो यर औसर । नसर भरमो तुम खानी ।।5।।
सतसंग करो सत्त पद खोिो । सतगुरु प्रीत समानी ।।6।।
नाम रतन गुरु देयूँ बुझाई । उलट चलो असमानी ।।7।।
इतना काम करो तुम अब के । कफर आगे की सतगुरु िानी ।।8।।
राधास्वामी करन सम्रारो । दुख छू टे सुख जमले जनिानी ।।9।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
सुरत तू कौन कु मजत उरझानी ।। टेक ।।
मन के साथ कफरे भरमानी । गुरु की सुने न बानी ।।1।।
कजनक2 काजमनी लागी प्यारी । रै न कदवस इन सूँग जलपटानी ।।2।।
मोर िाल यर काल जबछाया । दानां डाला िीव फं सानी ।।3।।
तू अंिान पड़ी लालच में । बहुत रोत तेरी रानी ।।4।।
मैं समझाय कहूं अब तोसे । गुरु जबना कौन बचानी ।।5।।
गुरु से प्रीत करो िग िारो । तन मन दिा भुलानी ।।6।।
नाम रसायन गुरु से पावो । छू टे सब रैरानी ।।7।।
कफर तू चढ़े गगन के नाके । तन से रोय अलगानी ।।8।।
िम की घात बचा ले प्यारी । राधास्वामी करत बखानी ।।9।।

1. डेरा । 2. सोना ।
114 सार बचन बचन 14

।। िब्द बाररवाूँ ।।

िग में घोर अूँधरे ा भारी । तन में तम का भंडारा ।।1।।


स्वप्न िाग्रत दोनों देखी । भूल भुलइयाूँ धर मारा ।।2।।
िीव अिान भया परदेसी । देस जबसर गया जनि सारा ।।3।।
कफरे भटकता खान खान में । िोजन िोजन जबच झख मारा ।।4।।
दम दम दुखी कष्ट बहु भोगे । सुने कौन अब बहु रारा ।।5।।
करे पुकार कारगर1 नारीं । पड़े नकण में िम धारा ।।6।।
भटक भटक नर देरी पाई । इन्द्री मन जमल यराूँ मारा ।।7।।
सतगुरु संत करें बहुतेरा । रार बतावें दस द्वारा ।।8।।
बचन न माने करन न पकड़े । कफर कफर भरमे नौ वारा ।।9।।
फोकट2 धमण पकड़ कर िूझे । बूझे न िब्द िुगत पारा ।।10।।
पानी मथे राथ कु छ नारीं । क्षीर3 मथन आलस भारा ।।11।।
िीव अभाग कहूं मैं क्या क्या । बारर भरमे भौ िारा ।।12।।
अंतरमुख िो िब्द कमाई । ता में मन को नसर गारा4 ।।13।।
वेद िास्त्र स्मृत और पुराना । पढ़ पढ़ सब पंजडत रारा ।।14।।
जबन सतगुरु और जबना िब्द सुतण । कोइ न उतरे भौ पारा ।।15।।
यरी बात भाखी मैं चुन कर । अब तो मानो गुरु प्यारा ।।16।।
राधास्वामी करा बुझाई । सुरत चढ़ाओ नभ द्वारा ।।17।।

।। िब्द तेररवाूँ ।।

चल री सुरत अब गुरु के देि । िराूँ न काया कमण कलेि ।।1।।


तन मन इन्द्री यर परदेि । छोड़ो भेष भवन का लेि5 ।।2।।
सुनो कान से गुरु संदि े । सुरत िब्द ले धाओ िेष6 ।।3।।
ब्रह्मा जवष्र्ु न गौर गनेि । िराूँ न नारद सारद7 िेष ।।4।।
संत सुरत िराूँ ककया प्रवेि । सतगुरु दया जमला वर देि ।।5।।

1. असर-दार । 2. खाली । 3. दूध । 4. गाल्या । 5. सपड की प्रीजत ।


6. अन्त पद । 7. सारदा, सरस्वती ।
बचन 15 जचतावनी भाग दूसरा 115

काल कमण की गई न पेि । तोड़े दाूँत और काटे नेि1 ।।6।।


सतगुरु को अब करूूँ अदेि2 । राधास्वामी पूरे धनी धनेि2 ।।7।।
।। बचन पन्द्ररवाूँ ।।
।। जचतावनी भाग दूसरा ।।
।। िब्द पजरला ।।
चेत चलो यर सब िंिाल । काम न आवे कु छ धन माल ।।1।।
गुरु चरन गरो लो नाम सम्राल । सतसंग करो धरो अब शयाल ।।2।।
काम क्रोध संग मन पामाल4 । भमण भुलाना कमणन नाल5 ।।3।।
करां कहूं यर मन का राल । रोग सोग संग रोत बेराल ।।4।।
िीव जगरासे6 िम और काल । देखत िग में यर दुख साल7 ।।5।।
तो भी चेत न पकड़े ढाल । जछन जछन मारे काल कराल ।।6।।
राधास्वामी गुरु िब रोयं दयाल । चरन सरन दे करें जनराल ।।7।।
।। िब्द दूसरा ।।
लाि िग काि जबगाड़ा री । मोर िग फन्दा डारा री ।।1।।
कु टु म्ब की यारी शवारी8 री । काल संग व्यारी क्वारी री ।।2।।
कमण ने फाूँसी डारी री । करे िम राूँसी भारी री ।।3।।
मरन की सुद्ध जबसारी री । देर अब लागी प्यारी री ।।4।।
मान में खप गइ सारी री । पोट9 जसर भारी धारी री ।।5।।
िीत कर बाज़ी रारी री । चार िग की नसर मारी री ।।6।।
राधास्वामी करत पुकारी री । करो कोई ितन जवचारी री ।।7।।
गुरु संग करो सुधारी री । नाम रस जपयो अपारी री ।।8।।
।। िब्द तीसरा ।।
मत देख पराये औगुन । क्यों पाप बढ़ावे कदन कदन ।।1।।

1. डंक । 2. बन्दगी । 3. भारी धनाडय । 4. अधीन ककया हुआ । 5. संग


(पंिाबी बोली) । 6. जनगले । 7. तकलीफ़ । 8. भयंकर । 9. बोझा ।
116 सार बचन बचन 15

पर1 िीव सतावे जखन2 जखन । छोड़ अपने औगुन जगन जगन ।।2।।
मक्खी सम मत कर जभन जभन । नसर खावे चोट तू जछन जछन ।।3।।
देखा कर सब के तू गुन । सुख जमले बहुत तोजर पुन पुन ।।4।।
मैं कहूं तोजर अब गुन गुन3 । तू मान बचन मेरा सुन सुन ।।5।।
गजत गाई मैं यर रंसन । यों वर्ण सुनाई संतन ।।6।।
अब कान धरो इन बचनन । नसर रोवोगे जसर धुन धुन ।।7।।
यर बात करी मैं चुन चुन । कर राधास्वामी चरन स्पिणन4 ।।8।।
।। िब्द चौथा ।।
मुसाकफर रजरना तुम हुजियार । ठगों ने आन जबछाया िाल ।।1।।
अके ले मत िाना इस रार । गुरु जबन नसर रोगा जनरबार ।।2।।
िमा सब लेंगे तेरी छीन । करें गें तुझ को अपना दीन ।।3।।
ठगों ने रोका सब संसार । गुरु जबन पड़ गइ सब पर धाड़5 ।।4।।
मान लो करना मेरा यार । संग इन तिना पकड़ ककनार ।।5।।
गुरु जबन और न कोइ रखवार । कहूं मैं तुम से बारम्बार ।।6।।
रोयगी मंजज़ल तेरी पार । गुरु से कर ले दृढ़ कर प्यार ।।7।।
गुरु के चरन पकड़ यर सार । इन्द्री भोग भुलावत झाड़ ।।8।।
यरी रैं ठजगया करत ठगार । करें राधास्वामी तोजर पुकार ।।9।।
सरन में आ िा लेउूँ सम्रार । नाम संग रोिा रोत उधार ।।10।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
जमि तेरा कोई नरीं संजगयन में । पड़ा क्यों सोवे इन ठजगयन में ।।1।।
चेत कर प्रीत करो सतसंग में । गुरु कफर रं ग दें नाम अरूँ ग6 में ।।2।।
धन सम्पत तेरे काम न आवे । छोड़ चलो यर जछन में ।।3।।
आगे रै न अंधरे ी भारी । काि करो कु छ कदन में ।।4।।
यर देरी कफर राथ न आवे । कफरो चौरासी बन में ।।5।।
गुरु सेवा कर गुरु ररझाओ । आओ तुम इस ढंग में ।।6।।

1. पराया । 2. जछन जछन । 3. जवचार कर । 4. छू ना । 5. लूट । डाका ।


6. जनमणल ।
बचन 15 जचतावनी भाग दूसरा 117

गुरु जबन तेरा और न कोई । धार बचन यर मन में ।।7।।


िगत िाल में फूँ सो न भाई । जनस कदन ररो भिन में ।।8।।
साध गुरु का करना मानो । ररो उदास िगत में ।।9।।
छल वल छोड़ो और चतुराई । क्यों तुम पड़ो कु गजत 1 में ।।10।।
सुजमरन करो गुरु को सेवो । चल ररो आि गगनमें ।।11।।
कल की खबर काल कफर लेगा । वराूँ तुम िलो अजगन में ।।12।।
अबरी समझ देर मत कररयो । ना िानूूँ क्या रोय इस पन2 में ।।13।।
यों समझाय करें राधास्वामी । मानो एक बचन में ।।14।।
।। िब्द छठा ।।
मौत से डरत ररो कदन रात ।। टेक ।।
एक कदन भारी भीड़ पड़ेगी । िम खूंदग ें े3 धर धर लात ।।1।।
वा कदन की तुम याद जबसारी । अब भोगन में ररो भुलात ।।2।।
एक कदन काठी बने तुम्रारी । चार कररवा4 लादे िात ।।3।।
भाई बन्धु कु टु म्ब पररवारा । सो सब पीछे भागे िात ।।4।।
आगे मरघट िाय उतारा । जतररया रोए जबखेरे लाट5 ।।5।।
वराूँ िमपुर में नकण जनवासा । यराूँ अजि में फूूँ के िात ।।6।।
दोनों दीन जबगाड़े अपना । अब नरीं सुनता सतगुरु बात ।।7।।
वा कदन बहु पछतावा रोगा । अब तुम करते अपनी घात 6 ।।8।।
ज्वानी गई वृद्धता आई । अब कै कदन का इन का साथ ।।9।।
चेत करो मानो यर करना । गुरु के चरन झुकाओ माथ ।।10।।
राधास्वामी करत सुनाई । अब तुमको बहुजबजध समझात ।।11।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
बूँधे तुम गाढ़े7 बंधन आन ।। टेक ।।
पजरले बंधन पड़ा देर का । दूसर जतररया िान ।।1।।

1. बुरी रालत । 2. अवस्था, उमर । 3. पाओं के नीचे दलेंगे । 4. काठी उठाने


वाले लोग । 5. बाल खोले हुए । 6. नुक़सान । 7. मज़बूत ।
118 सार बचन बचन 15

तीसर बंधन पुि जबचारो । चौथा नाती मान ।।2।।


नाती के कसर नाजत रोवे । कफर करो कौन रठकान ।।3।।
धन सम्पजत्त और रट रवेली । यर बंधन क्या करूूँ बखान ।।4।।
चौलड़ पचलड़ सतलड़ रसरी1 । बाूँध जलया अब बहु जवजध तान2 ।।5।।
कै से छू टन रोय तुम्रारा । गररे खूूँटे गड़े जनदान ।।6।।
मरे जबना तुम छू टो नारीं । िीते िी तुम सुनो न कान ।।7।।
िगत लाि और कु ल मयाणदा । यर बंधन सब ऊपर ठान ।।8।।
लीक पुरानी कभी न छोड़ो । िो छोड़ो तो िग की रान ।।9।।
क्या क्या कहूं जबपत मैं तुम्रारी । भटको िोनी भूत मसान ।।10।।
तुम तो िगत सत्य कर पकड़ा । क्योंकर पावो नाम जनिान ।।11।।
बेड़ी तौक़3 रथकड़ी बाूँधे । काल कोठरी कष्ट समान ।।12।।
काल दुष्ट तुम्रें बहु जवजध बाूँधा । तुम ख़ुि रोके ररो गलतान4 ।।13।।
ऐसे मूरख दुख सुख िाना । क्या कहूं अिब सुिान ।।14।।
िरम करो कु छ लज्या ठानो । नसर िमपुर का भोगो डान ।।15।।
राधास्वामी सरन गरो अब । तो कु छ पाओ उनसे दान ।।16।।

।। िब्द आठवाूँ ।।

चेत चल िगत से बौरे । कपट ति गरो गुरु सरना ।।1।।


कफरे गाकफ़ल तू मद माता । अंत जसर पीट कर मरना ।।2।।
लगे नसर राथ कु छ तेरे । कु टु म्ब के साथ क्यों जपलना5 ।।3।।
चार कदन के सूँगाती यर । बटाऊ6 कफर नरीं जमलना ।।4।।
ररो हुजियार िग ठग से । बचा पूूँिी कमर कसना ।।5।।
मुसाकफ़र रो गुरु संग लो । नाम िमिेर7 कर8 गरना ।।6।।
सुरत को तान गगना में । पकड़ धुन बान घट ररना ।।7।।
काल की घात से बच कर । गरो राधास्वामी के चरना ।।8।।

1. रस्सी । 2. कस कर । 3. गले का बन्धन । 4. डू बे हुए, भुले हुए ।


5. पचना । 6. मुसाकफर । 7. तलवार । 8. राथ ।
बचन 15 जचतावनी भाग दूसरा 119

।। िब्द नावाूँ ।।

तिो मन यर दुख सुख का धाम । लगो तुम चढ़ कर अब सत्तनाम ।।1।।


कदना चार तन संग बसेरा । कफर छू टे यर ग्राम ।।2।।
धन दारा1 सुत नाती कजरयन2 । यर नसर आवें काम ।।3।।
स्वाूँस दुधारा जनत री िारी । इक कदन खाली चाम ।।4।।
मिक समान िान यर देरी । बरती आठों िाम ।।5।।
तू अचेत गाकफ़ल रो ररता । सुने न मूल कलाम3 ।।6।।
माया नारर पड़ी तेरे पीछे । क्यों नसर छोड़त काम ।।7।।
जबन गुरु दया छु टो नसर या से । भिो गुरु का नाम ।।8।।
गुरु का ध्यान धरो जररदे में । मन को राखो थाम ।।9।।
वे दयाल तेरी दया जवचारें । दम दम करें सराम4 ।।10।।
छोड़ भोग क्यों रोग जबसावे5 । या में नसर आराम ।।11।।
गुरु का करना मान जपयारे । तो पावे जवश्राम ।।12।।
दुख तेरा सब दूर करें गे । देंगे अचल मुक़ाम ।।13।।
राधास्वामी करत सुनाई । खोि करो जनि नाम ।।14।।

।। िब्द दसवाूँ ।।

देखो सब िग िात बरा ।। टेक ।।


देख देख मैं गजत या िग की । बार बार यों वर्ण करा ।।1।।
चारों िुग चौरासी भोगी । अजत दुख पाया नकण ररा ।।2।।
िन्म िन्म दुख पावत बीते । एक जछन करीं न चैन लरा6 ।।3।।
पाप पुण्य बस जबपता भोगी । नसर सतगुरु का चरन गरा ।।4।।
अब यर देर जमली ककरपा से । करो भजि िो कमण दरा7 ।।5।।

1. स्त्री । 2. करावे । 3. िब्द । 4. सरायता । 5. खरीदना । 6. जमला ।


7. िलें ।
120 सार बचन बचन 15

अब की चूक माफ़ नसर रोगी । नाना जवजध के कष्ट सरा ।।6।।


गफ़लत छोड़ भुलाओ िग को । नाम अमल अब घोट जपया ।।7।।
मन से डरो करो गुरु सेवा । राधास्वामी भेद कदया ।।8।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।।

कोइ मानो रे करन रमारी ।। टेक ।।


िो िो कहूं सुनो जचत देकर । गौं1 की कहूं तुम्रारी ।।1।।
िग के बीच बूँधे तुम ऐसे । िैसे सुवना2 नलनी3 धारी ।।2।।
मरकट4 सम तुम हुए अनाड़ी । मुट्ठी दीन फूँ सा री ।।3।।
और मीना5 जिह्वा रस माती6 । काूँटा जिगर जछदा री ।।4।।
गि7 सम मूरख हुए इस बन8 में । झूठी रथनी देख बूँधा री ।।5।।
क्या क्या कहूं काल अन्याई । बहुजवजध तुमको फाूँस जलया री ।।6।।
तुम अंिान ममण नसर िाना । छल बल कर इन फाूँस जलया री ।।7।।
छू टन की जवजध नेक न मानो । क्यों कर छू टन रोय तुम्रारी ।।8।।
सतगुरु संग हुए उपकारी । उनका संग करो न स्मरारी ।।9।।
वे दयाल अस िुगत लखावें । कर दें तुम छु टकारी ।।10।।
पाूँच तत्व गुन तीन िेवरी6 । काटें पल पल बंधन भारी ।।11।।
उनकी संगत करो ममण ति । पावो तुम गजत न्यारी ।।12।।
िगत िाल सब धोखा िानो । मन मूरख संग कीन्री यारी ।।13।।
इसका संग तिो तुम जछन जछन । नसर यर लेगा िान तुम्रारी ।।14।।
अपने घर से दूर पड़ोगे । चौरासी के धक्के खा री ।।15।।
बड़ी कु गजत में िाय पड़ोगे । वराूँ से तुम को कौन जनकारी ।।16।।
ता ते अब री करना मानो । राधास्वामी करत जवचारी ।।17।।

1. मतलब । 2. तोता । 3. पकड़ने की कला । 4. बन्दर । 5. मछली ।


6. मस्त । 7. राथी । 8. संसार । 9. रस्सी ।
बचन 15 जचतावनी भाग दूसरा 121

।। िब्द बाररवाूँ ।।

अटक तू क्यों ररा िग में । भटक में क्या जमले भाई ।।1।।
खटक तू धार अब मन में । खोि सतसंग में िाई ।।2।।
जवरर की आग िब भड़के । दूर कर िगत की काई ।।3।।
लगा लो लगन सतगुरु से । जमले कफर िब्द लौ लाई ।।4।।
छु टेगा िन्म और मरना । अमर पद िाय तू पाई ।।5।।
भाग तेरा िगर सोता । नाम और धाम जमल िाई ।।6।।
कहूं क्या काल िग मारा । िीव सब घेर भरमाई ।।7।।
नरीं कोई मौत से डरता । खौफ िम का नरीं लाई ।।8।।
पड़े सब मोर की फाूँसी । लोभ ने मार धर खाई ।।9।।
चेत करो रोय अब कै से । गुरु के संग नसर धाई ।।10।।
काम और क्रोध जबच जबच में । िीव से भाड़1 झोंकवाई ।।11।।
गुरु जबन कोइ नरीं अपना । िाल यर कौन तुड़वाई ।।12।।
कु टु म्ब पररवार मतलब का । जबना धन पास नसर आई ।।13।।
कराूँ लग कहूं इस मन को । उन्रीं से मास नुचवाई ।।14।।
गुरु और साध करें बहु जवजध । करन उनकी न पजतयाई2 ।।15।।
मेरर जबन क्या कोई माने । करी राधास्वामी यर गाई ।।16।।

।। िब्द तेररवाूँ ।।

जमली नर देर यर तुम को । बनाओ काि कु छ अपना ।।1।।


पचो मत आय इस िग में । िाजनयो रै न का सुपना ।।2।।
देर और ग्रेर3 सब झूठा । भमण में कारे को खपना ।।3।।
िीव सब लोभ में भूले । काल से कोई नरीं बचना ।।4।।
तृष्र्ा4 अजि िग िारा । पड़ा सब िीव को तपना ।।5।।
नरीं कोइ रार बचने की । िले सब नकण की अजगना ।।6।।

1. भट्टी । 2. प्रतीत करना । 3. घर


122 सार बचन बचन 15

िलेंगे आग में जनसकदन । बहुरर1 भोगें िनम मरना ।।7।।


भटकते वे कफरें खानी । नरीं कु छ ठीक उन लगना ।।8।।
कहूं क्या दुक्ख वर भोगें । करन में आ नरीं सकना ।।9।।
दया कर संत और सतगुरु । बतावें नाम का िपना ।।10।।
न माने िुजि यर उनकी । सुरत और िब्द का गरना2 ।।11।।
जबना सतगुरु जबना करनी । छु टे नसर खान का कफरना ।।12।।
कराूँ लग मैं कहूूँ उनको । कोई नसर मानता करना ।।13।।
हुये मनमुख कफरें दुख में । वचन गुरु का नरीं माना ।।14।।
पुिावें आप को िग में । गुरु की सेव नसर करना ।।15।।
कफ़कर नसर िीव का अपने । पड़ेगा नकण में फु कना ।।16।।
समझ कर धार लो मन में । करें राधास्वामी जनि बचना ।।17।।

।। िब्द चौदरवाूँ ।।

यराूँ तुम समझ सोच कर चलना ।। टेक ।।


यर तो रार बड़ी अजत टेढ़ी । मन के साथ न पड़ना ।।1।।
भौिल धार बरे अजत गररी । जबन गुरु कै से पार उतरना ।।2।।
गुरु से प्रीत करो तुम ऐसी । िस कामी काजमन संग धरना ।।3।।
संग करो चेटक3 जचत राखो । मन से गुरु के चरन पकड़ना ।।4।।
छल वल कपट छोड़ कर बरतो । गुरु के बचन समझना ।।5।।
डरते ररो काल के भय से । खबर नरीं कब मरना ।।6।।
स्वाूँसो स्वाूँस रोि कर बौरे । पल पल नाम सुजमरना ।।7।।
यराूँ की गफ़लत बहुत सतावे । कफर आगे कु छ नसर बन पड़ना ।।8।।
िो कु छ बने सो अभी बनाओ । कफर का कु छ न भरोसा धरना ।।9।।
िग सुख की कु छ चार न राखो । दुख में इसके दुखी न ररना ।।10।।
दुख की घड़ी गनीमत4 िानो । नाम गुरु का जछन जछन भिना ।।11।।

1. कफर । 2. पकड़ना । 3. चार । 4. अच्छी, उत्तम ।


बचन 15 जचतावनी भाग दूसरा 123

सुख में गाकफ़ल1 ररत सदा नर । मन तरं ग में दम दम बरना ।।12।।


ता ते चेत करो सतसंगत । दुख सुख नकदयाूँ पार उतरना ।।13।।
अपना रूप लखो घट भीतर । कफर आगे को सूरत भरना ।।14।।
राधास्वामी करें बुझाई । िब्द गुरु से िाकर जमलना ।।15।।

।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।।

मन रे क्यों गुमान अब करना ।। टेक ।।


तन तो तेरा खाक जमलेगा । चौरासी िा पड़ना ।।1।।
दीन गरीबी जचत में धरना । काम क्रोध से बचना ।।2।।
प्रीत प्रतीत गुरु की करना । नाम रसायन घट में िरना2 ।।3।।
मन मलीन के करे ना चलना । गुरु का बचन जरये जबच रखना ।।4।।
यर मजतमंद गरे नसर सरना । लोभ बढ़ाय उदर3 को भरना ।।5।।
तुम मानो मत इसका करना । इसके संग िगत जबच जगरना ।।6।।
इस मूरख को समझ पकड़ना । गुरु के चरन कभी न जवसरना ।।7।।
गुरु का रूप नैन मैं धरना । सुरत िब्द से नभ पर चढ़ना ।।8।।
राधास्वामी नाम सुजमरना । िो वर करें जचत में धरना ।।9।।

।। िब्द सोलरवाूँ ।।

िोड़ो री कोई सुरत नाम से ।। टेक ।।


यर तन धन कु छ काम न आवे । पड़े लड़ाई िाम3 से ।।1।।
अब तो समय जमला अजत सुन्दर । सीतल रो बच घाम4 से ।।2।।
सुजमरन कर सेवा कर सतगुरु । मनजर5 रटाओ काम से ।।3।।
मन इन्द्री कु छ बस कर राखो । जपयो घूटूँ गुरु िाम6 से ।।4।।
लगे रठकाना जमले मुक़ामा । छू टो मन के दाम7 से ।।5।।
भिन करो छोड़ो सब आलस । जनकर चलो कजल ग्राम8 से ।।6।।
दम दम करो बेनती गुरु से । वरी जनकारें तन चाम से ।।7।।

1. भूला हुआ । 2. बनाना । 3. यमराि । 4. संसार की तपन । 5. मन को ।


6. प्याला । 7. िाल । 8. काल के देि से जनकालो ।
124 सार बचन बचन 15

और उपाव न ऐसा कोई । रटन करो सुबर िाम से ।।8।।


प्रीत लाय जनत करो साध संग । रट ररो िग के खासो आम से ।।9।।
राधास्वामी करें सुनाई । लगो िाय सतनाम से ।।10।।
।। िब्द सताररवाूँ ।।
िगत से चेतन ककस जवजध रोय । मोर ने बाूँध जलया अब मोसर ।।1।।
बेजड़याूँ भारी पड़ती िायूँ । फाूँजसयां करड़ी लगी आयूँ ।।2।।
िाल अब चौड़े जबछ गये आय । चाट1 अब सुख की कु छ कु छ पाय ।।3।।
दुक्ख अब पीछे रोगा आय । खबर नसर उसकी कौन बताय ।।4।।
पड़ेगी भारी इक कदन भीड़ । सरेगा नाना जवजध की पीड़ ।।5।।
करे गा पछतावा िब बहुत । अभी तो सुनता नसर कदन खोत ।।6।।
याद नरीं लाता अपनी मौत । रात कदन गफ़लत में पड़ा सोत ।।7।।
करे में मन के चलता बहुत । भरे रै कदन भर िग का पोत2 ।।8।।
रात को सोता खाट बछाय । रोि नसर कल को क्या रो िाय ।।9।।
काल ने मारा कर कर ज़ेर3 । कमण ने खूद ूँ ा धर धर पैर ।।10।।
तमोगुर् छाय गया घट मासर । खबर सब भूल गया यराूँ आय ।।11।।
संत और सतगुरु ररे जचताय । बचन उन मन में नरीं समाय ।।12।।
भिन और सुजमरन कदया जबसराय । प्रीत भी उन चरनन नसर लाय ।।13।।
करो कस छू टे िम की घात । भोग और सोग लगे कदन रात ।।14।।
गुरु जबन कौन छु ड़ावे ताय । हुआ यर क़ै दी बहु जवजध आय ।।15।।
जबना सतसंग और जबन नाम । न पावे कबरी अपना धाम ।।16।।
करी राधास्वामी यर गजत गाय । सरन ले संत की तू िाय ।।17।।
।। िब्द अठाररवाूँ ।।
कु मजतया बैरन पीछे पड़ी । मैं कै से रटाऊूँ िान ।।1।।
सतगुरु बचन न माने कबरी । उन संग धरे गुमान ।।2।।

1. मज़ा, चसका । 2. कर, लगान । 3. नीचे, अधीन । 4. कु चला ।


बचन 15 जचतावनी भाग दूसरा 125

काम क्रोध की सनी बुजद्ध से । परखा चारे उन का ज्ञान ।।3।।


सेवा करे न सरधा लावे । उलट करावे उनसे मान ।।4।।
अपनी गजत रालत नसर बूझे । कै से लगे रठकान ।।5।।
लोभ मोर की सूखी नकदयाूँ । ता में जनस कदन ररे भरमान ।।6।।
संत मता करो कै से बूझे । अपनी मजत के दे परमान ।।7।।
जतन से संत मौन रोय बैठे । सो जिव करते अपनी रान ।।8।।
कु मजत अधीन हुए सब प्रानी । क्या क्या उनका करूूँ बखान ।।9।।
जिन पर मेरर पड़े आ सरना । वे पावें सतगुरु पजरचान ।।10।।
अपनी उजि1 चतुरता छोड़ें । अपने को िानें अनिान ।।11।।
तब सतगुरु प्रसन्न रोय कर । देवें पता जनिान ।।12।।
कु मजत रटाय छु ड़ावें पीछा । सुरत लगावें िब्द ध्यान ।।13।।
जबना िब्द उद्धार न रोगा । सब संतन यर ककया बखान ।।14।।
सोई गावें राधास्वामी । िो कोइ माने सोइ सुिान ।।15।।

।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।

सोता मन कस िागे भाई । सो उपाव मैं करूूँ बखान ।।1।।


तीरथ करे बतण भी राखे । जवद्या पढ़ के हुए सुिान ।।2।।
िप तप संिम बहु जबजध धारे । मौनी हुए जनदान ।।3।।
अस उपाव रम बहुतक कीन्रे । तो भी यर मन िगा न आन ।।4।।
खोित खोित सतगुरु पाये । उन यर िुि करी परमान ।।5।।
सतसंग करो संत को सेवो । तन मन करो क़ु रबान ।।6।।
सतगुरु िब्द सुनो गगना चढ़ । चेत लगाओ अपना ध्यान ।।7।।
िागत िागत अब मन िागा । झूठा लगा िरान ।।8।।
मन की मदद जमली सूरत को । दोनों अपने मरल समान2 ।।9।।
जबना िब्द यर मन नसर िागे । करो चारे कोइ अनेक जवधान ।।10।।

1. अक्ल, खयाल । 2. समा िायें, मन ब्रह्म में समा िायें सुरत सत्पुरुष में ।
126 सार बचन बचन 14

यरी उपाव छाूँट कर गया । और उपाय न कर परमान ।।11।।


जबरथा बैस1 जबतावें अपनी । लगे न कभी रठकान ।।12।।
संत जबना सब भटके डोलें । जबना संत नसर िब्द जपछान ।।13।।
िब्द िब्द मैं िब्दजर गाऊूँ । तू भी सुरत लगा दे तान ।।14।।
घर पावे चौरासी छू टे । िन्म मरन की रोवे रान ।।15।।
राधास्वामी करें बुझाइ । जबना संत सब भटके खान ।।16।।

।। िब्द बीसवाूँ ।।

खोि री जपया को जनि घर में ।। टेक ।।


िो तुम जपया से जमलना चारो । तो भटको मत िग में ।।1।।
तीरथ बतण कमण आचारा । ये अटकावें मग2 में ।।2।।
िब लग सतगुरु जमलें न पूरे । पड़े ररोगे अघ3 में ।।3।।
नाम सुधा रस कभी न पाओ । भरमो िोनी खग4 में ।।4।।
पंजडत क़ािी भेख िेख सब । अटक ररे डग डग5 में ।।5।।
इन के संग जपया नसर जमलना । जपया जमले कोइ साध समग6 में ।।6।।
यर तौ भूले जवषय बास में । भमण धसे इन की रग रग में ।।7।।
जबना संत कोइ भेद न पावे । वे तोजर करें अलग में ।।8।।
िब लग संत जमलें नसर तुम को । खाय ठगौरी तू इन ठग में ।।9।।
राधास्वामी सरन गरो तो । रलो िोत िगमग में ।।10।।

।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।

गुरु करें पुकार पुकार । समझ मन करलो सुजमरजनयाूँ ।।1।।


स्वाूँसो स्वाूँस घटे तेरी पूूँिी । चली िाय यर उमरजनयाूँ ।।2।।
वि जमला यर तख़्तनिीनी । छोड़ बान7 अब घुरजबजनयाूँ8 ।।3।।

1. उमर । 2. रास्ता । 3. पाप । 4. पंछी । 5. क़दम क़दम । 6. संग ।


7. आदत । 8. मुरग़ी िो घूरा (कू ड़ा) चुगती रै ।
बचन 15 जचतावनी भाग तीसरा 127

यर मारग अब गुरु बतावें । पकड़ गरो तुम उर1 धजनयाूँ ।।4।।


िब्द संग तुम सुरत लगाओ । ररो जनत्त गुरु मुिरजनयाूँ2 ।।5।।
दया लेव तुम ररदम उनकी । सरन पड़ो उन चरनजनयाूँ ।।6।।
वर तो भेद बतावें घट का । पकड़ िब्द भौ तरनजनयाूँ ।।7।।
लागी लगन बहुरर नसर सूझे । सुरत अिर में िरनजनयाूँ ।।8।।
जिन जिन संग करा गुरु पूरे । छु टा िन्म और मरनजनयाूँ ।।9।।
िगत िार ति सार समझ तू । जमटे चौरासी भरमजनयाूँ ।।10।।
सतसंग करो प्रीत घट धारो । देख रूप चढ़ दपणजनयाूँ3 ।।11।।
गगन जगरा4 परखो धुन बानी । यरी कमाई करनजनयाूँ ।।12।।
पहुंचो िाय अधर में प्यारी । गाूँठ खुले तब तन मजनयाूँ ।।13।।
या िग में कोइ सुखी न देखो । गरो गुरु के बचनजनयाूँ ।।14।।
दुख के िाल फूँ से सब मूरख । तू क्यों उन संग फूँ सनजनयाूँ ।।15।।
मैं तू मोर तोर सब त्यागो । गरो राधास्वामी सरनजनयाूँ ।।16।।

।। बचन सोलरवाूँ ।।
।। जचतावनी भाग तीसरा ।।

।। उपदेि सतगुरु भजि का ।।

।। िब्द पजरला ।।

यर तन दुलभ ण तुमने पाया । कोरट िन्म भटका िब खाया ।।1।।


अब या को जबरथा मत खोवो । चेतो जछन जछन भजि कमावो ।।2।।
भजि करो तो गुरु की करना । मारग िब्द गुरु से लेना ।।3।।
िब्द मारगी गुरु न रोवे । तो झूठी गुरुवाई लेवे ।।4।।
गुरु सोई िो िब्द सनेरी । िब्द जबना दूसर नसर सेई ।।5।।

1. अन्तरी । 2. राजज़र । 3. आईना, िीिा । 4. वार्ी, िब्द ।


128 सार बचन बचन 16

िब्द करा मैं गगन जिखर का । िब्द करा मैं सुन्न िरर का ।।6।।
िब्द करा मैं भूँवर डगर का । िब्द करा मैं अगम नगर का ।।7।।
गुरु पजरचान खूब मैं गाई । धोखा या में कु छ न रराई ।।8।।
िब्द कमावे सो गुरु पूरा । उन चरनन की रोिा धूरा ।।9।।
और पजरचान करो मत कोई । लक्ष1 अलक्ष2 न देखो सोई ।।10।।
िब्द भेद लेकर तुम उनसे । िब्द कमाओ तुम तन मन से ।।11।।
अपने िीव की कु छ दया पालो । चौरासी का फे र बचा लो ।।12।।
नसर नकण न में अजत दुख पइरो । अजग्र कुं ड में जछन जछन दजररो ।।13।।
यर सुख चार कदनों का भाई । कफर दुख सदा रोय दुखदाई ।।14।।
बार बार मैं कहूूँ जचताई । दया तुम्रारी मोसर सताई ।।15।।
मेरे मन करूर्ा4 अस आई । चेतो तुम गुरु रोयूँ सराई ।।16।।
जबन गुरु और न पूिो कोई । दिणन कर गुरु पद जनत सेई ।।17।।
गुरु पूिा में सब की पूिा । िस समुद्र सब नदी समािा ।।18।।
देवी देवा ईि मरेिा । सूरि िेष और गौर गनेिा ।।19।।
ब्रह्म और पारब्रह्म सतनामा । तीन लोक और चौथा धामा ।।20।।
गुरु सेवा में सब की सेवा । रं चक4 भमण न मानो भेवा5 ।।21।।
ताते बार बार समझाऊूँ । गुरु की भजि जछन जछन गाऊूँ ।।22।।
गुरुमुख रोय गुरु आज्ञा बरते । गुरु बरती इक जछन में तरते ।।23।।
गुरु मजरमा मैं कराूँ लग गाऊूँ । गुरु समान कोइ और न पाऊूँ ।।24।।
गुरु अस्तुत रै सब मत मारीं । गुरु से बेमुख ठौर6 न पाई ।।25।।
भोग जबलास हुकू मत िग की । धन और राककम के बस ररती ।।26।।
राककम सेवा तुम कस करते । धन और मान बड़ाई लेते ।।27।।
आज्ञा उसकी अस जसर धरते । खान पान सनद्रा भी तिते ।।28।।
सो धन िोड़ ककया क्या भाई । िगत लाि में कदया उड़ाई ।।29।।
सो िग की गजत पजरले भाखी । चार कदनां कफर रै नसर बाकी ।।30।।

1. गुर्, लक्षर् । 2. औगुर्, कु लक्षर् । 3. दुख देती रै । 4. दया । 5. भेद ।


6. िगर ।
बचन 16 जचतावनी भाग तीसरा 129

सो धन कारर् राककम सेवा । ऐसी करते क्या कहुं भेवा1 ।।31।।


गुरु सेवा िो सदा सराई । ताको एसी पीठ कदखाई ।।32।।
कदन नसर पक्ष मास नसर बरसा । कभी न दिणन को मन तरसा ।।33।।
करो कै से तुम्रारा उद्धारा । नकण जनवास दुक्ख चौ धारा ।।34।।
उस दुख में करो कौन सराई । गुरु से प्रीत न करी बनाई ।।35।।
िो इसकी परतीत न लाओ । तौ मन अपना यों समझाओ ।।36।।
रोग दुक्ख जनत प्रती सताई । मौत जपयादे रैं यर भाई ।।37।।
मृत्यु रोन में नसर कु छ संसा । वर तो करे सकल जिव सरसा ।।38।।
यर सरसा तुम पर भी आवे । इक कदन काल सीस पर धावे ।।39।।
उस कदन का कु छ करो उपाई । धन राककम कु छ काम न आई ।।40।।
कारि लेना यर रै भाइ । गुरु सेवा में खचण कराई ।।42।।
गुरु नसर भूखा तेरे धन का । उन पै धन रै भजि नाम का ।।43।।
पर तेरा उपकार करावें । भूखे प्यासे को कदलवावें ।।44।।
उनकी मेरर मुफ़्त तू पावे । िो उनको परसन्न करावे ।।45।।
उनका खुि रोना रै भारी । सत्तपुरुष जनि ककरपा धारी ।।46।।
गुरु प्रसन्न रोयूँ िा ऊपर । वरी िीव रै सब के उपर ।।47।।
गुरु राज़ी तो करता राज़ी । कमण काल की चले न बाज़ी2 ।।48।।
गुरु की आन3 सभी जमल मानें । िुकदेव नारद व्यास बखानें ।।49।।
ताते गुरु को लेव ररझाई । औरन रीझे कु छ न भलाई ।।50।।
गुरु प्रसन्न और सब रूठे । तो भी उसका रोम न टू टे ।।51।।
औरन को प्रसन्न िो करता । गुरु से द्रोर4 घात िो रखता ।।52।।
गुरु की जनन्दा से नसर डरता । गुरु को मानुष रूप समझता ।।53।।
सो नरकी िानो अपघाती5 । उस संग दूत करें उतपाती ।।54।।
याते6 समझो बूझो भाई । गुरु को प्रसन्न करो बनाई ।।55।।

1. भेद । 2. चाल । 3. पक्ष । 4. बैर । 5. अपने िीव की घात करने


वाला । 6. इससे ।
130 सार बचन बचन 16

कु ल कु टु म्ब कु छ काम न आई । और जबरादरी करे न सराई ।।56।।


यर तो चार कदना के संगी । इन जनि स्वारथ में बुजध रं गी ।।57।।
लिा डर इन का मत करो । गुरु भजि में अब जचत धरो ।।58।।
गुरु सरायता र्यराूँ व्राूँ करें । उनसे करता भी कु छ डरे ।।59।।
कु ल कु टु म्ब से कु छ नसर सरे । इन के संग नकण में पड़े ।।60।।
कायण माि बरतो इन मारीं । बहुत मोर में बहु दुख पाई ।।61।।
ताते सतसंग सतगुरु सेवो । नाम पदारथ दम दम लेवो ।।62।।
गुरु समान और नाम समाना । तीसर सतसंग और न िाना ।।63।।
इन से सब कारि रोयूँ पूरे । कमण काट पहुंचो घर मूरे1 ।।64।।
यर करना मेरा अब मानो । नरीं अंत को पड़े पछतानो ।।65।।
धन और मान काम नसर आवे । हुकु म राककमी सभी नसावे ।।66।।
ता ते कु छ भजि कर लीिे । यर भी सुफल कमाई कीिे ।।67।।

।। िब्द दूसरा ।।

भेद आरती सुन सजख मो से । प्रगट बनाय कहूं अब तो से ।।1।।


सरधा थाल राथ लो पजरले । सम2 दम िोत प्रेम घी मेले ।।2।।
िगत भोग से कर बैरागा । काम क्रोध तब जछन में त्यागा ।।3।।
सुरत िब्द का गावो गीत । गुरु चरनन में िोड़ो चीत ।।4।।
दया करें तब राधास्वामी । इक कदन देवें पद जनि नामी ।।5।।
दृजष्ट िोड़ कर आरत फे रो । तन मन अपने दोनों घेरो ।।6।।
पूरन पद को करो पयाना4 । सत्तनाम सब सुरत समाना ।।7।।
आरत गाई प्रेम भजि से । मन को मोड़ा िब्द िुजि से ।।8।।

।। िब्द तीसरा ।।

सोचत करा सजख करले आरत । कफर नसर ऐसा समय परापत ।।1।।

1. मूल । 2. मन का रोकना । 3. इजन्द्रयों का रोकना । 4. चलने की तैयारी ।


बचन 17 जचतावनी भाग चौथा 131

करा1 करूूँ सिनी2 मैं जबन बल । तन मन मेरा रै अजत चंचल ।।2।।


कर धीरि मैं करूं उपाई । सतसंग कर स्वामी कढग3 िाई ।।3।।
वे दयाल िब ककरपा धारें । मन चंचल को जछन में मारें ।।4।।
िब्द थाल देवें स्त्रुत राथा । प्रेम िोत िगवावें साथा ।।5।।
िब आरत तू करे बनाई । तबरी मुजि पदारथ पाई ।।6।।
यर जनश्चय कर साूँची िानो । तुम स्वामी को समरथ मानो ।।7।।
भोग लगाय लेव परसादी । चरनामृत ले मन को साधी ।।8।।
राधास्वामी िप जनि नामा । सत्तलोक पावे तब धामा ।।9।।

।। बचन सतारवाूँ ।।
।। जचतावनी भेखों को ।।

भाग चौथा

।। िब्द पजरला ।।

तुम साध करावत कै से । मैं पूछूूँ तुम से ऐसे ।।1।।


मान न छोड़ो क्रोध न छोड़ो । कु रटल4 बचन नसर सरते ।।2।।
कोमल जचत्त न कोमल बोली । दया भाव नसर लेस5े ।।3।।
आप पुिावत काहु न पूित । मांग मांग धन िोड़त पैसे ।।4।।
काम न छू टा लोभ न छू टा । मोर ईषाण डारत पीसे ।।5।।
भिन भजि अभ्यास न करते । कभी न छू टो तुम इस िम से ।।6।।
घर छोड़ा उद्यम3 पुजन छोड़ा । मेरनत कोई न करते ।।7।।
देि जवदेि कफरो झख मारत । कफ़न7 पजरन क्यों लाि लगाते ।।8।।
दंभ8 कपट छल जररदे बसता । जगररी9 को आचार कदखाते ।।9।।
चौके से रम रोटी खावें । रोटी पूरी भेद समझते ।।10।।
बुजद्ध जवचार न गुरु जमला पूरा । जगररी की भय लिा करते ।।11।।

1. क्या । 2. सखी । 3. जनकट । 4. सशत, कड़वा । 5. ज़रा सा भी ।


6. रोिगार । 7. कफ़नी, साधुओं का कपड़ा । 8. फरे ब । 9. गृरस्थी ।
132 सार बचन बचन 17

साध चरन अठिठ1 से उत्तम । भूजम पजवि िराूँ पग धरते ।।12।।


तुम तो कमण भमण में भटके । साध नाम अपना क्यों धरते ।।13।।
भेख बनाय िगत को ठगते । काल ठगौरी2 डाली तुम पै ।।14।।
अब कु छ समझ करो सतसंगत । डरो ज़रा नकण न के दुख से ।।15।।
जबरर भाव बैराग सम्रालो । भजि करो और भागो िग से ।।16।।
मन को मारो इन्द्री बाूँधो । सुरत लगाओ िब्द अधर से ।।17।।
तब जचत्त कोमल बुजद्ध जनरमल । आप रोय छू टो मन ठग से ।।18।।
अब क्या कहूं करा मैं बहुतक । अजधकारी माने इक तुक3 से ।।19।।
िो जनलि कपटी िग मारे । वर क्या िानें भूत पिू से ।।20।।
राधास्वामी करत सुनाई । मानेंगे कोइ रंस बचन से ।।21।।

।। िब्द दूसरा ।।

िब्द की करी न कोई कमाई । कफर ममण कराूँ से पाई ।।1।।


यर िब्द अधर से आता । तू सुन सुन कर क्या गाता ।।2।।
अंतर में सुरत लगाता । तौ भेद अधर का पाता ।।3।।
यर करना सभी भुलाता । जबन िब्द न और सुराता ।।4।।
तू िब्द न दृढ़ कर गरता । ता ते मन जछन जछन बरता ।।5।।
िो िब्द राथ तेरे आता । तो रोता मन रस माता4 ।।6।।
जबन िब्द न और कमाता । इच्छा सब दूर बराता ।।7।।
कोइ मजरमा िब्द सुनाता । तू उस से प्रेम बढ़ाता ।।8।।
तैं क़दर िब्द नसर िानी । तेरी बातें झूठ करानी ।।9।।
िो िब्द का रजसया रोता । तो मान प्रजतष्ठा खोता ।।10।।
तेरी दिा और री रोती । तेरी सुरत न कबरी बरती ।।11।।
अब बात बना तू बहुती । पर िब्द कमाई न रोती ।।12।।
जिन िब्द कमाया भाई । उन सुरत अगम रस पाई ।।13।।

1. अड़सठ तीथण । 2. ठगाई या फ़रे ब । 3. कड़ी बचन । 4. मतवाला ।


बचन 18 उपदेि सतगुरु भजि का 133

सब िगत लगा उन फीका । इक िब्द सभी का टीका1 ।।14।।


राधास्वामी गायें यर ठीका । जिन मानी जतन रस चीखा ।।15।।

।। बचन अट्ठाररवाूँ ।।
उपदेि सतगुरु भजि का

।। िब्द पजरला ।।

गुरु करो खोि कर भाई । जबन गुरु कोइ रार न पाई ।।1।।
िग डू बा भौिल धारा । कोइ जमला न काढ़नरारा2 ।।2।।
िग पंजडत भेख जबचारे । क्या िोगी ज्ञानी रारे ।।3।।
संतन से प्रीत न धारी । क्यों उतरें भौिल पारी ।।4।।
तप तीरथ बतण पचे रे । पढ़ जवद्या मान भरे रे ।।5।।
भजि रस नेक न पाया । भिों की सरन न आया ।।6।।
भजि का भेद न िाना । गुरु को सतपुरुष न माना ।।7।।
गुरु सब को पार लगावें । िो िो उन चरन ध्यावें ।।8।।
गुरु से तू बेमख ु कफरता । मन के जनत सन्मुख ररता ।।9।।
करमों में पचता खपता । नर देरी बाद3 गूँवाता ।।10।।
अब चेतो समझो भाई । कर प्रीत गुरु संग आई ।।11।।
कर कर राधास्वामी गाई । करनी कर जमले बड़ाई ।।12।।

।। िब्द दूसरा ।।

गुरु की कर ररदम पूिा । गुरु समान कोई देव न दूिा ।।1।।


गुरु चरन सेव जनत कररये । तन मन गुरु आगे धररये ।।2।।
गुरु दिण करो आूँखन से । गुरु बचन सुनो सरवन से ।।3।।
गुरु के बल मन को मारो । गुरु के बल काल संघारो4 ।।4।।
गुरु ब्रह्म रूप धर आये । गुरु पारब्रह्म गजत गाये ।।5।।

1. सब से बड़ा । 2. जनकालने वाला । 3. जनष्फल । 4. नाि करो ।


134 सार बचन बचन 18

गुरु सत्तनाम पद खोला । गुरु अलख अगम को तोला ।।6।।


गुरु रूप धरा राधास्वामी । गुरु से बड़ नरीं अनामी ।।7।।

।। िब्द तीसरा ।।

गुरु ध्यान धरो तुम मन में । गुरु नाम सुजमर जछन जछन में ।।1।।
गुरु री गुरु गावो भाई । गुरु री कफर रोयूँ सराई ।।2।।
जितने पद ऊूँचे नीचे । गुरु जबन कोइ नारीं पहूूँचे ।।3।।
गुरु री घट भेद लखाया । गुरु री सुन जिखर चढ़ाया ।।4।।
मरसुन्न भी गुरु कदखलाई । गुरु भूँवरगुफा दरसाई ।।5।।
गुरु सत्तलोक पहुंचाया । गुरु अलख अगम परसाया ।।6।।
गुरु री सब भेद बखाना । गुरु से राधास्वामी िाना ।।7।।

।। िब्द चौथा ।।

गुरु चरन पकड़ दृढ़ भाई । गुरु का संग करो बनाई ।।1।।
गुरु बचन करो आधारा । गुरु दिण जनरारो सारा ।।2।।
गुरु की गजत अगम अपारा । गुरु अस्तुजत करो सूँवारा ।।3।।
गुरु राखो जररदे मारीं । तो जमटे काल परछारीं1 ।।4।।
भोगों की आसा त्यागो । मन्सा ति िग से भागो ।।5।।
आसा गुरु िब्द लगाओ । मन्सा गुरु पद में लाओ ।।6।।
आसा और मनसा मोड़ी । मन इन्द्री गुरु में िोड़ी ।।7।।
कदन रात ररे गुरु ध्याना । गुरु जबन कोई और न िाना ।।8।।
गुरु स्वाूँस जगरास न जबसरे । तू पल पल गा गुरु िस2 रे ।।9।।
गुरु रैं जरतकारी तेरे । गुरु जबन कोइ जमि न रै रे ।।10।।
गुरु फं द छु ड़ावे िम के । गुरु ममण लखावें सम के ।।11।।
भौिल से पार उतारें । जछन जछन में तुझे सूँवारें ।।12।।
ज्यों जनि सेवे कच्छा3 । त्यों गुरु राखैं तेरी पच्छा4 ।।13।।

1. छाया । 2. मजरमा । 3. कछु आ । 4. पक्ष ।


बचन 18 सतगुरु भजि 135

गुरु सम और नरीं को रक्षक । कु ल कु टु म्ब सब िानो तक्षक1 ।।14।।


ताते गुरु को कभी न छोड़ो । कनक काजमनी से मन मोड़ो ।।15।।
गुरु की भजि सदा सुखदाई । गुरु जबन मन बुजद्ध भी दुखदाई ।।16।।
गुरु जवश्वास जचत्त में धरो । गुरु परिाद िगत से तरो ।।17।।
मान मोर मद गुरु सब ररें । काम क्रोध भी तुझ से डरें ।।18।।
लोभ लरर सब देयूँ जनकारी । माया ममता बाज़ी रारी ।।19।।
तुझ से िीत सके नसर कोई । गुरु का बल िो मन में रोई ।।20।।
गुरु से पावे नाम रसायन । घट से भागे तृष्र्ा डायन ।।21।।
गुरु चरनामृत गुरु परिादी । प्रीत सजरत ले जमटे उपाधी2 ।।22।।
गुरु पै तन मन दोनों वारो । जररदे में गुरु रूप जनरारो ।।23।।
गुरु रैं दाता गुरु रैं दानी । गुरु आराधो3 जछन जछन प्रानी ।।24।।
सत्तपुरुष सतनाम गुरु रैं । अलख रूप और अगम गुरु रैं ।।25।।
राधास्वामी गुरु का नाम । जनि पद पाय करो जबसराम ।।26।।
गुरु सब जबजध रैं अंतरिामी । गावो ध्यावो राधास्वामी ।।27।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

सतगुरु का नाम पुकारो । सतगुरु को जरयरे धारो ।।1।।


सतगुरु का करो भरोसा । कफर करो न कु छ अफ़सोसा ।।2।।
सतगुरु तोजर जछन जछन पोसें4 । रूँगता5 तेरी सब जवजध खोसें6 ।।3।।
तू कर उन चरनन रोिें । सतगुरु से मत कर रोसें7 ।।4।।
सतगुरु गजत अब सुन मो से । कजर िात न रं चक8 मुूँर से ।।5।।
दसवें में खैचें नौ से । कफर एक करें तोजर दो से ।।6।।
िब्दा रस तोजर जपलावें । िमपुर से फे र बचावें ।।7।।
घर अगम तोजर दरसावें । मारग सब तोजर लखावें ।।8।।

1. सांप । 2. झगड़ा । 3. पूिा करो । 4. रक्षा करें । 5. अरंकार ।


6. दूर करें । 7. रंसी । 8. थोड़ी ।
136 सार बचन बचन 18

िो संगत उनकी करते । सो िग से कभी न डरते ।।9।।


िो बेमखु गुरु से कफरते । सो भौ सागर में जगरते ।।10।।
चौरासी चक्कर खावें । कफर िन्म िन्म दुख पावें ।।11।।
तुम सोचो अपने मन में । कोइ नासर गुरु सम िग में ।।12।।
जिन जिन गुरु भजि धारी । सो पहुंचे जनि दरबारी ।।13।।
गुरु भजि न जिन को प्यारी । जतन िीती बाज़ी रारी ।।14।।
गुरु चरनन आजिक़ रोना । यर बात बड़ी क्या करना ।।15।।
गुरु लगें जिसे अजत प्यारे । जतन कु ल कु टु म्ब सब तारे ।।16।।
धन मात जपता उन िन के । जिन भजि करी कु ल ति के ।।17।।
जिन सरी मलामत1 िग की । जतन जमली रास2 सुख घर की ।।18।।
िो कु ल लाि िगत से डरे । गुरु भजि से वर पुजन जगरे ।।19।।
सूरा रर् से कभी न टरे । सती सदा मुरदे संग िरे ।।20।।
रर् छोड़े कायर करलाय । सती कफरे भंगी घर िाय ।।21।।
पजपरा अपना पन3 नसर त्यागे । िले पतंगा िोती आगे ।।22।।
मछली को िैसे िल धारा । गुरुमुख को सतगुरु अस प्यारा ।।23।।
जिन पर बजशिि गुरु की रोई । गुरुमुख ऐसा जबरला कोई ।।24।।
राधास्वामी करी बनाय । सेवक को गुरु कदया िगाय ।।25।।

।। िब्द छठा ।।

सतगुरु करें करो तुम सोई । मन के करे चलो मत कोई ।।1।।


यर भौ में गोते कदलवावे । सतगुरु से बेमख ु करवावे ।।2।।
काल चक्र में डाल घुमावे । मोर िाल में बहुत फूँ सावे ।।3।।
जमि न िानो बैरी पूरा । गुरु भजि से डारे दूरा ।।4।।
दारा सुत सम्पजत पररवारा । डारे काम क्रोध की धारा ।।5।।
इन्द्री भोग बास4 भरमावे । भजि जववेक नाि करवावे ।।6।।
सतगुरु प्रीतम जमलें न िब तक । कभी न छू टें मन के कौतुक5 ।।7।।

1. जनन्दा । 2. भंडार, ढेरी । 3. प्रर्, अरद । 4. बासना । 5. खेल ।


बचन 18 सतगुरु भजि 137

छल बल मन के करूँ लग बरनूूँ । ऋजष मुनी कोइ िाने न मरमूूँ ।।8।।


ता ते सतगुरु खोिो जनि के । जबन सतगुरु कोइ चले न बच के ।।9।।
सतगुरु सम प्रीतम नसर कोई । मन मलीन को धोवें वोरी ।।10।।
मेरा भाग उदय हुआ भारी । सतगुरु की मैं हुइ अजत प्यारी ।।11।।
िगत िीव करा1 िानें मजरमा । वेद कतेब न िानें मरमा ।।12।।
ज्ञानी िोगी सब थक रारे । सतगुरु मजरमा कोई न जवचारे ।।13।।
ता ते सतगुरु सरन पुकारूं । आरत उनकी जनत प्रजत धारूूँ ।।14।।
आरत करूूँ प्रेम से िबरी । कु ल पररवार तरे मेरा तब री ।।15।।
आरत जबजध अब करूूँ ससगारा । राधास्वामी मेरे हुए दयारा ।।16।।
राधास्वामी परम दयाल । कर आरत उन हुआ जनराल ।।17।।

।। िब्द सातवाूँ ।।

अरे मन रं ग िा सतगुरु प्रीत । रोय मत और ककसी का मीत ।।1।।


यरी अब धारो जरत कर चीत । जवना गुरु िानो सभी अनीत2 ।।2।।
गुरु से लेना िा उन सीत3 । तिो सब कलमल ररो अतीत ।।3।।
मार लो मन को यरी पलीत5 । सुरत में धरो िब्द की रीत ।।4।।
चढ़ो तुम नभ में यर िग िीत । गरो अब संतन की यर नीत6 ।।5।।
गुरु का नाम सम्रारो चीत । लगाओ जछन जछन उनसे प्रीत ।।6।।
गायें राधास्वामी यर जनि गीत । तिो सब छल बल ममता तीत7 ।।7।।

।। िब्द आठवाूँ ।।

गुरु की मौि ररो तुम धार । गुरु की रज़ा8 सम्रालो यार ।।1।।
गुरु िो करें सो जरतकर िान । गुरु िो करें सो जचत धर मान ।।2।।
िुकर की करना समझ जवचार । सुक्ख दुख देंगे जरकमत धार ।।3।।
ताढ़ और मार करें सोइ प्यार । भोग सब इन्द्री रोग जनरार ।।4।।
कहूं क्या दम दम िुकर गुज़ार । जबना उन और न करनेरार ।।5।।

1. क्या करे । 2. अन्याय । 3. सीत प्रिाद । 4. माया से परे । 5. मलीन ।


6. जनयम । 7. माया । 8. भाना ।
138 सार बचन बचन 18

दुखी जचत से न रो दुख लार । सुखी रोना नरीं सुख िार ।।6।।
जबसारो मत उन्रें रर बार । दुक्ख और सुक्ख ररो उन धार ।।7।।
गुरु और िब्द ये दोउ मीत । नरीं कोइ और इन धर चीत ।।8।।
यरी सतपुरुष यरी करतार । लगावें तोजर इक कदन पार ।।9।।
जबना उन कोइ नरीं संसार । देव मन सूरत उन पर बार ।।10।।
करें वर जनत्त तेरी सार1 । तेरे तन मन के रैं रखबार ।।11।।
िुकर कर राख जररदे धार । जमटावें दुक्ख सबरी झाड़ ।।12।।
करें क्या मन तेरा नाकार । नरीं तू छोड़ता जवष धार ।।13।।
भोग में जगरें बरम्बार । न माने करन उन की सार ।।14।।
इसी से जमले तुझ को दंड । नरीं तू मानता मजतमंद ।।15।।
सरो अब पड़े िैसी आय । करो फ़याणद गुरु से िाय ।।16।।
पकड़ कफर उन्रीं को तू धाय । करें गे वोरी तेरी सराय ।।17।।
जबना उन और नरीं दरबार । ररो उन चरन में हुजियार ।।18।।
गुनर तुम ककये कदन और रात । गुरु की कु छ न मानी बात ।।19।।
इसी से भोगते दुख घात । बचावेंगे वरी कफर तात ।।20।।
ररो राधास्वामी के तुम साथ । लगे कफर िब्द अगम तुम राथ ।।21।।

।। िब्द नावाूँ ।।

आि सखी काि करो कु छ अपना । गुरु दिण तको छोड़ो िग सुपना ।।1।।
नसर पजछतइरो जसर धुन रोइरो । िम की नगररया अनेक दुख सजररो ।।
मानो बचन सुनो धर कान । सुरत लगाय सुनो धुन तान ।।3।।
नसर मर मर िन्मो चारों खान । मान मान अब मेरी करी मान ।।4।।
गुरु के चरन का कर तू ध्यान । िान2 गुमान छोड़ अजभमान ।।5।।
गुरु जबन तेरा को न सराई । नाम जबना को3 पार लगाई ।।6।।
आि काि कर गुरु संग भाि । सूना पड़ा तेरा तशत और ताि ।।7।।

1. खबरदारी । 2. िेखी, अकड़ । 3. कौन ।


बचन 18 सतगुरु भजि 139

िब्द जपछान सुरत जनि साि1 । छोड़ िगत और कु ल की लाि ।।8।।


मन और सुरत गुरु संग माूँि । नसर कफर खुजल रै तेरा पाि2 ।।9।।
कू ड़ पटक ले गुरु का छाि3 । भोग जबलास छोड़ यर खाि4 ।।10।।
राधास्वामी करी बनाई । िो नसर मानो भुग्तो भाई ।।11।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
गुरु दररयाव चलो स्नुत सिनी । मन की लरर सम्रार ।।1।।
जचत से चेत खेत को िीतो । यर औसर नसर बारम्बार ।।2।।
तेरा भाग बढ़ा गुरु ककरपा । न्राओ अमृत धार ।।3।।
मोती चुनो रंस गजत धारो । चढ़ो अंड5 के पार ।।4।।
खंड खंड ब्ररमंड पसारा । जनरखो नैन जनरार ।।5।।
कूँ वल पार दल द्वार खोल कर । पहूंची सुन्न मंझार ।।6।।
दीपक राथ चली घर अपने । मेटत घट आूँजधयार ।।7।।
धुन धधकार आकद की आई । पकड़ी ज्यों मक6 तार ।।8।।
समुन्द पार सेता पद न्यारी । सुनत भूँवर गुूँिार7 ।।9।।
सुन्न िब्द सतिब्द अधारी । पाया गुरु दरबार ।।10।।
सतगुरु प्रेम मगन लौ लाई । जबसरी सब संसार ।।11।।
सार िब्द िरूँ तेि अनामी । नाम रूप से न्यारा ।।12।।
संत धाम जनि अलख अगम पर । स्नुत पाया ससगार ।।13।।
राधास्वामी अचल मुकामी । मैं उनके बजलरार ।।14।।
यरी आरती करूं गुरु की । धसी वार से पार ।।15।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
नैन कं वल गुरु ताक अरे मन भूँवर ।।1।।
तू जनमणल सीतल रोय सुन अनरद घोरा ।।2।।
तेरा भाग बढ़ेगा भाई कर घट में दौरा ।।3।।

1. सूँवार । 2. कलई । 3. छि । 4. खुिली का रोग । 5. सरस्नदल कूँ वल ।


6. मकड़ी । 7. िब्द, आवाज़ ।
140 सार बचन बचन 18

जिकु टी में मेघा गरिे, तू रोिा मोरा ।।4।।


स्नुत तोड़ा नभ का द्वारा, वराूँ करती िोरा ।।5।।
स्नुत सेत पदम पर आई, गया काल का ज़ोरा ।।6।।
राधास्वामी रूप कदखाया, मन सूरत मोड़ा ।।7।।

।। िब्द बाररवाूँ ।।

सतसंग करत बहुत कदन बीते । अब तो छोड़ पुरानी बान1 ।।1।।


कब लग करो कु रटलता गुरु से । अब तो गुरु को लो पजरचान ।।2।।
गुरु को तुम मानुष मत िानो । वे रैं सत्तुरुष की िान ।।3।।
िैसे तैसे मन समझाओ । धर परतीत करो उन ध्यान ।।4।।
दया मेरर से बचन सुनावें । वे रैं पूरन पुरुष अनाम ।।5।।
धरी देर मानुष की गुरु ने । ज्यों त्यों तेरा करें कल्यान ।।6।।
सेवा कर पूिा कर उनकी । उनरी को गुरु नानक िान ।।7।।
वोरी कबीर वोरी सतनामा । सब संतन को वरीं जपछान ।।8।।
तेरा काि उन्री से रोगा । मत भटके तू ति अजभमान ।।9।।
चूके मत औसर अब पाया । बढ़कर इन से कोइ न जमलान ।।10।।
िो अब के तू गुरु से चूका । तो भरमेगा चारों खान ।।11।।
कफर ऐसे गुरु जमलें न कबरी । मान मान तू अबरी मान ।।12।।
पढ़ पढ़ पोथी गा गा साखी । क्यों मन में तू धरता मान ।।13।।
इसी मान ने शवार2 ककया रै । यरी मान अब करता रान ।।14।।
ता ते प्यारे कहूं बुझाई । यर इजस्तगना2 भली न िान ।।15।।
िल्दी करो कपट को छोड़ो । सरधा भाव बढाओ आन ।।16।।
इतने पर मन करा न माने । तो कफर अपनी तू री िान ।।17।।
जसर पर तेरे हुकु म काल का । ताूँ ते मन तेरा नसर मान ।।18।।
एक बात िानी रम भाई । रै तू बढ़का बे-ईमान ।।19।।

1. बेपवाणरी । 2. बेपवाणरी ।
बचन 19 गुरु और नाम भजि 141

लगा ररेंगा संग में गुरु के । सरि सरि िायद मन मान ।।20।।
राधास्वामी करैं बुझाई । ऐसे िीव रोयूँ रैरान ।।21।।

।। बचन उन्नीसवाूँ ।।
।। उपदेि गुरु और िब्द ।।
अथवा
।। नाम भजि का ।।
।।िब्द पजरला ।।
चेतो मेरे प्यारे तेरे भले की कहूं ।।1।।
गुरु तो पूरा ढू ूँढ़ तेरे भले की कहूं ।।2।।
िब्द रता गुरु देख तेरे भले की कहूं ।।3।।
जतस गुरु सेवा धार तेरे भले की कहूं ।।4।।
गुरु चरनामृत पी तेरे भले की कहूं ।।5।।
गुरु परिादी खाव तेरे भले की कहूं ।।6।।
गुरु आरत करले तेरे भले की कहूं ।।7।।
तन मन भेंट चढ़ाव तेरे भले की कहूं ।।8।।
बचन गुरु के मान तेरे भले की कहूं ।।9।।
गुरु को कर प्रसन्न तेरे भले की कहूं ।।10।।
जनत्त भिन कर नेम तेरे भले की कहूं ।।11।।
िीव दया तू पाल तेरे भले की कहूं ।।12।।
दुक्ख न दे तू काय तेरे भले की कहूं ।।13।।
बचन तान मत मार तेरे भले की कहूं ।।14।।
कड़़ुवा तू मत बोल तेरे भले की कहूं ।।15।।
सब को सुख पहुंचाव तेरे भले की कहूं ।।16।।
नाम अमीरस पी तेरे भले की कहूं ।।17।।
142 सार बचन बचन 19

सील जक्षमाजचत राख तेरे भले की कहूं ।।18।।


संतोष जववेक जवचार तेरे भले की कहूं ।।19।।
काम क्रोध को त्याग तेरे भले की कहूं ।।20।।
लोभ मोर को टार तेरे भले की कहूं ।।21।।
दीन गरीबी धार तेरे भले की कहूं ।।22।।
संतों से कर प्रीत तेरे भले की कहूं ।।23।।
भोिन बहुत न खाव तेरे भले की कहूं ।।24।।
सतसंग में तू िाग तेरे भले की कहूं ।।25।।
मान बढ़ाई छोड़ तेरे भले की कहूं ।।26।।
भोग वासना िार तेरे भले की कहूं ।।27।।
संम दम जररदे धार तेरे भले की कहूं ।।28।।
बैराग भजि न छोड़ तेरे भले की कहूं ।।29।।
गुरु स्वरूप धर ध्यान तेरे भले की कहूं ।।30।।
गुरु री का िप नाम तेरे भले की कहूं ।।31।।
गुरु अस्तुत कर जनत्त तेरे भले की कहूं ।।32।।
गुरु से प्रेम बढ़ाव तेरे भले की कहूं ।।33।।
तीरथ मूरत भमण तेरे भले की कहूं ।।34।।
ज़ात अजभमान जबसार तेरे भले की कहूं ।।35।।
जपछलों की ति टेक तेरे भले की कहूं ।।36।।
वि गुरु को मान तेरे भले की कहूं ।।37।।
तीरथ गुरु के चरन तेरे भले की कहूं ।।38।।
गुरु की सेवा बतण तेरे भले की कहूं ।।39।।
जवद्या गुरु उपदेि तेरे भले की कहूं ।।40।।
और जवद्या पाखंड तेरे भले की कहूं ।।41।।
लीक1 पुरानी छोड़ तेरे भले की कहूं ।।42।।

1. मनमजत ।
बनच 19 गुरु और नाम भजि 143

िो गुरु करैं सो मान तेरे भले की कहूं ।।43।।


मारग ज्ञान न धार तेरे भले की कहूं ।।44।।
भजि पंथ सम्रार तेरे भले की कहूं ।।45।।
सुरत िब्द मजत ले तेरे भले की कहूं ।।46।।
सुरत चढ़ा नभ मासर तेरे भले की कहूं ।।47।।
गगन जतरकु टी िाव तेरे भले की कहूं ।।48।।
दसवें द्वार समाव तेरे भले की कहूं ।।49।।
भूँवरगुफा चढ़ समाव तेरे भले की कहूं ।।50।।
सत्तलोक धस िाव तेरे भले की कहूं ।।51।।
अलख अगम को पाव तेरे भले की कहूं ।।52।।
राधास्वामी नाम जधयाव तेरे भले की कहूं ।।53।।
भटक अटक सब तोड़ तेरे भले की कहूं ।।54।।
टेक पक्ष गुरु बाूँध1 तेरे भले की कहूं ।।55।।

।। िब्द दूसरा ।।

गुरु का ध्यान कर प्यारे । जबना इस के नरीं छु टना ।।1।।


नाम के रं ग में रं ग िा । जमले तोजर धाम जनि अपना ।।2।।
गुरु की सरन दृढ़ कर ले । जबना इस काि नसर सरना2 ।।3।।
लाभ और मान क्यों चारें । पड़ेगा कफर तुझे देना ।।4।।
करम िो िो करें गा तू । वरी कफर भोगना भरना ।।5।।
िगत के िाल से ज्यों त्यों । रटो मरदानगी3 करना ।।6।।
जिन्रों ने मार मन डाला । उन्री को सूरमा करना ।।7।।
बड़ा बैरी यर मन घट में । इसी का िीतना करठना ।।8।।
पड़ो तुम इसरी के पीछे । और सबरी ितन तिना ।।9।।

1. गुरु पर जनश्चय रखकर, गुरु का पक्ष ले । 2. रोना । 3. बरादुरी ।


144 सार बचन बचन 19

गुरु की प्रीत कर पजरले । बहुरर घट िब्द को सुनना ।।10।।


मान दो बात यर मेरी । करें मत और कु छ ितना ।।11।।
रार िब िाय मन तुझ से । चढ़ा दे सुतण को गगना ।।12।।
और सब काम िग झूठा । त्याग दे इसरी को गरना1 ।।13।।
करैं राधास्वामी समझाई । गरो अब नाम की सरना ।।14।।

।। िब्द तीसरा ।।

गुरु जबन कौन उबारे गा । नाम जबन कौन सुधारे गा ।।1।।


भिन जबन को जनस्तारे गा2 । सरन जबन कौन सूँवारे गा ।।2।।
जबरर जबन कौन पुकारे गा । ददण जबन कौन जचतारे गा ।।3।।
िब्द जबन कौन ससगारे गा । संग जबन कौन जनरारे गा ।।4।।
काल को कौन गारे गा1 । कमण ककस भाूँजत रारे गा ।।5।।
संत कोइ आन मारे गा । भि कोइ दोऊ िारे गा ।।6।।
काम संतसंग सारे गा4 । िोई तन मन बारे गा ।।7।।
सोई जनि नाम धारे गा । िगत को आन तारे गा ।।8।।
िीव इक इक उबारे गा । मान मद मोर टारे गा ।।9।।
सरन सतगुरु सम्रारे गा5 । सोई वर धाम पावेगा ।।10।।
राधास्वामी िो सरावेगा5 । सोई वर धाम पावेगा ।।11।।

।। िब्द चौथा ।।

गुरु जबन कभी न उतरे पार । नाम जबन कभी न रोय उधार ।।1।।
संग जबन कभी न पावे सार । प्रेम जबन कभी न पावे यार ।।2।।
िुजि जबन चढ़े न गगन मूँझार । दया जबन खुले न बज्र ककवाड़ ।।3।।
सुरत जबन रोय न िब्द सम्रार । जनरत जबन रोय न धुन आधार ।।4।।
गुरु से करना पजरले प्यार । नाम रस पीना मन को मार ।।5।।
काल घर िान तिा संसार । दयाल घर आई िन्म सुधार ।।6।।

1. ग्ररर् करना, पकड़ना । 2. उद्धार करे गा । 3. जनकालेगा । 4. बनावेगा ।


5. स्तुजत करे गा ।
बचन 19 गुरु और नाम भजि 145

संत गजत पाई गुरु की लार । िब्द संग जमली जमला पद चार ।।7।।
करा राधास्वामी अगम जवचार । सुने और माने करे जनरवार ।।8।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

सुरत धुन धार री, ति भोग जनकाम ।। टेक ।।


दारा सुत धन मान बड़ाई । यर सब थोथा काम ।।1।।
लोक प्रजतष्ठा िगत बड़ाई । इन में नरीं आराम ।।2।।
सतगुरु भजि नाम रस पीवे । तौ पावें तू अजवचल धाम ।।3।।
तन मन साथ करो अब संगत । तब जमले नाम सतनाम ।।4।।
सुरत चढ़ाय चलो ऊपर को । रोत यराूँ धुन आठों िाम ।।5।।
नर की देर सुफल रोय तेरी । जमले िब्द जबसराम ।।6।।
स्वाूँस नक़ारा कूूँ च पुकारी । बिे सुबर से िाम ।।7।।
राधास्वामी नाव लगाई । भौ उतरो जबन दाम ।।8।।

।। िब्द छठवाूँ ।।

सुरत सुन बात री । तेरा धनी बसे आकाि।।1।।


तिो संग िार री । तू देख जपया परकाि ।।2।।
चलो गुरु की लार1 री । तू पावे अिर जनवास।।3।।
गरो सरन कोई साध री । िो जमले िब्द घर बास।।4।।
तन सपिरा यर काल का । क्यों करें पराई आस ।।5।।
दस इन्द्री के भोग की । तेरे पड़ी गले में फाूँस।।6।।
नौ द्वारन में बूँध ररी । अब चैन नरीं इक स्वाूँस।।7।।
दसवीं जखड़की खोल री । कर परम जबलास ।।8।।
सतगुरु पूरे कर ररे । तू मान बचन जवश्वास।।9।।
राधास्वामी नाम भि । रोयूँ कमण सब नाि ।।10।।

1. संग ।
146 सार बचन बचन 19

।। िब्द सातवाूँ ।।
सुरत क्यों हुई दीवानी । तेरी जबरथा बैस1 जबरानी2 ।।1।।
िग भोग रोग कदन बीते । तू िाय दोऊ कर रीते3 ।।2।।
िमपुर रोय धूमा धामी । तू पड़े चौरासी खानी ।।3।।
वराूँ कौन सराई तेरा । तू बचन मान अब मेरा ।।4।।
कर गुरु से जरत जचत लाई । सुन मान बचन गुरु भाई ।।5।।
सूरत िा िब्द जमलाई । कर जनस कदन यरी कमाई ।।6।।
तेरा भाग बढ़त जनत िावे । कफर काल न तोजर सतावे ।।7।।
रस अगम िब्द का पावे । मन भोग सरि छु ट िावे ।।8।।
चढ़ चढ़ नभ ऊपर धावे । दल सरस कूँ वल गजत पावे ।।9।।
जतल मोड़े जबिली चमके । सुन िब्द अनारद धमके ।।10।।
कफर चाूँद सुरि दोऊ दरसें । सुखमन मन सूरत परसें ।।11।।
गुरु मूरत अिब कदखाई । िोभा कु छ करी न िाई ।।12।।
नर रूप कदखावें तब री । मन खैंच चढ़ावें िब री ।।13।।
दे मदद बढ़ावें आगे । मन िुग िुग सोया िागे ।।14।।
चढ़ बंक चले जिकु टी में । कफर सुन्न तके सरवर में ।।15।।
िरूँ िोभा रंसन भारी । वर भूजम लगे अजत प्यारी ।।16।।
धुन ककगरी बिे करारी । सुन सुरत हुई मतवारी ।।17।।
कफर लगे मरांसन ु तारी । िरूँ दीप असचत सम्रारी ।।18।।
लख भूँवर गुफा हुई न्यारी । िरूँ सेत सूर उजियारी ।।19।।
चौथे पद करी तयारी । धुन बीन सुनी अजत भारी ।।20।।
लख अलख अगम्म लखा री । हुई राधास्वामी रूप जनरारी ।।21।।
मजरमा उनकी क्या कहुं भारी । मुझ गरीब की बहुत सुधारी ।।22।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
जबररनी गुरु की सरन सम्रार ।। टेक ।।
या िग में कोइ मीत4 न तेरा । करो नाम आधार5 ।।1।।

1. उमर, आयु । 2. ब्यतीत रो गई । 3. दोनों राथ खाली । 4. जमि ।


5. आसरा ।
बचन 19 गुरु और नाम भजि 147

चेतन डोरी िब्द लगाओ । खुले घाट और द्वार ।।2।।


काम क्रोध की कीचड़ छू टे । न्रावो जनरमली धार ।।3।।
गगन मंडल में अनरद गािे । सुन सुन करो अधार ।।4।।
जबना संत कोई अंत न पावे । चलो संत की लार ।।5।।
राधास्वामी जरत उपदेिी । करते रेला मार1 ।।6।।
िो समझे सो सार समावे । पावे भेद अपार ।।7।।

।। िब्द नवाूँ ।।

सुरत संग सतगुरु धोवत मन को ।। टेक ।।


प्रीत प्रतीत बढ़ावत जछन जछन । भेट चढ़ावत तन को ।।1।।
िुद्ध रोय िब्दारस पावत । चढ़त उलट घट घन को ।।2।।
इन्द्री पाूँच प्रककतण पचीसों । दूर रटावत तीनों गुन को ।।3।।
धुन रस पाय हुई मतवारी । करत न काहू िन को ।।4।।
जिन यर भेद स्वाद नसर िाना । कहूं करा अब जतन को ।।5।।
पंजडत ज्ञानी भेख भुलाने । तीरथ बरत करें करमन को ।।6।।
यर रस सार िब्द क्यों पावें । िाल जबछावें जनत भरमन को ।।7।।
कौन करे उनको समझाई । सुनें न संत बचन को ।।8।।
षट िास्त्र और जसमृत पुराना । लीक पीट छोड़ें नसर पन को ।।9।।
जिव और िजि गनेि मनावें । कौन करे अब उनको ।।10।।
जवष्र्ु सूर और देव अनेका । पुिवावें सबजरन को ।।11।।
गुरु भजि संतन की मजरमा । नेक न िानें वर इस गुन को ।।12।।
जरत कर करें कोई नजर माने । कौन गरज़ अब रम को ।।13।।
राधास्वामी भेद बतावें । पकड़ ररो तुम अब घट धुन को ।।14।।

।। िब्द दसवाूँ ।

गुरु घाट चलो मन भाई । सुरत चदररया लेव धुवाई ।।1।।

1. ऊूँची आवाज़ से ।
148 सार बचन बचन 19

सेवा साबन दिणन मंिन । प्रेम का नीर भराई ।।2।।


बचन की रे र1 भाव की भाठी । जवरर की अजगन िराई ।।3।।
भजि नदी िरूँ जनस कदन बरती । मल मल ता में मैल गूँवाई ।।4।।
उिवल जनमणल हुई सुरत िब । ओढ़त मन अब अजत ररखाई ।।5।।
चला गगन पर जमला िब्द संग । चढ़त चढ़त जिकु टी कढग आई ।।6।।
सुन्न जिखर चढ़ रंस रूप धर । मरासुन्न छजव औरजर पाई ।।7।।
भूँवरगुफा पर सोरं सोरं । राधास्वामी चरनन िाय समाई ।।8।।
अलख अगम को देखत देखत । राधास्वामी चरनन िाय समाई ।।9।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।।

तू देख उलट कर मन में । क्यों कफरे भटकता बन में ।।1।।


गुरु करें तोजर जछन जछन में । तू जसमर नाम जनस कदन में ।।2।।
गुरु मूरत धार अूँदर में । मन चंचल रोक मूँदर में ।।3।।
कफर सुरत लगा सुन्न-दर3 में । तू धस िा ब्रह्म रन्ध्र4 में ।।4।।
चुप बैठो गगन कूँ दर5 में । मन खैंच धरो धुन धर6 में ।।5।।
तुम सुरत िमाओ सुन में । भरमो मत तीनों गुन में ।।6।।
क्यों पड़ो िाय औगुन में । मत जगरो िाय दोषन में ।।7।।
तेरा िन्म गया धोखन में । अब खोि करो िब्दन में ।।8।।
जनत कर जबलास संतन में । मत पचो मान और धन में ।।9।।
मन इन्द्री बस कर तन में । तू लग ररो इसी ितन में ।।10।।
बस आवें यर कोई कदन में । कफर सुनो नाद सरवन में ।।11।।
कफर देर न रोय िागन में । तू मगन ररो रागन में ।।12।।
अब जगर राधास्वामी चरनन में । तेरा काि करें पल जछन में ।।13।।

1. कपड़ा धोने की जमट्टी । 2. पजरनता । 3. सुन्न का दर यानी द्वारा । 4. जछद्र,


द्वार । 5. गुफ़ा । 6. धुन की धार ।
बचन 19 गुरु और नाम भजि 149

।। िब्द बाररवाूँ ।।

सुन रे मन अनरद बैन । घट में मठ1 जनरखो नैन ।।1।।


गुरु िब्द गरो उपदेिा । रस पी पी करो प्रवेिा ।।2।।
चक्कर अब फे रो आई । धुन िब्द तभी खुल िाई ।।3।।
जबन नाम नरीं गजत पाई । सतगुरु यों2 करैं बुझाई ।।4।।
सतसंग अब करो बनाई । गुरु गरो आन सरनाई ।।5।।
िग भोग रोग सम िानो । धन माल चार दुख मानो ।।6।।
भौ सागर फाट3 अपारा । डू बे सब उसकी धारा ।।7।।
गुरु जबन कौइ पार न पाया । जबन नाम न धीरि आया ।।8।।
अब सुरत सम्रालो आई । िो िब्द राथ लग िाई ।।9।।
मन ईन्द्री तन भरमाई । दुख सुख में गये भुलाई ।।10।।
रौं रौं कर4 िन्म जबताई । करता की बूझ न आई ।।11।।
अब सोच करो तुम मन में । कु छ रोको मन जनि तन में ।।12।।
राधास्वामी करत बुझाई । तब सुरत िब्द घर पाई ।।13।।

।। िब्द तेररवाूँ ।।

गुरु करें िगत सब अंधा । कोई गरै न घट की संधा5 ।।1।।


बारर-मुख भरमें सारे । अंतर-मुख िब्द न धारे ।।2।।
मन िगत भोग रस बंधा । जनत करे कमण बस धंधा ।।3।।
फूँ स मरे काल के फं दा । अब हुआ िीव अजत गंदा ।।4।।
गुरु करैं जनत्त समझाइ । कर खोि िब्द घट िाई ।।5।।
यर सुने न गुरु के बैना । कस खुलैं जरये के नैना ।।6।।
जबरला कोइ जिव अजधकारी । गुरु बचन करे आधारी ।।7।।
िो बचन सम्रारे गुरु के । मन फं द लगावे छल के ।।8।।

1. मजन्दर । 2. इस प्रकार । 3. चौड़ाई । 4. अरंकार ।


5. जनिान यानी िब्द ।
150 सार बचन बचन 19

ज्यों त्यों कर िीव भुलावे । काल अपने खेल जखलावे ।।9।।


गुरु भजि न करने पावे । बहु भाूँजत उपाजध लगावे ।।10।।
कभी जमि रोय भरमावे । कभी वैरी बन धमकावे ।।11।।
कभी रोगन मासर झुमावे । नाना जबजध िाल जबछावे ।।12।।
िब्दा रस लेन न पावे । यों िीव सदा दुख पावे ।।13।।
गुरु मेरर करें जिस िन पर । सो बचे िब्द धुन सुन कर ।।14।।
तब गरे िब्द रस िाूँची । कफर िले न िग की आूँची1 ।।15।।
सब बात लगी अब काूँची । गुरु भजि जमली अब साूँची ।।16।।
राधास्वामी की लीन्री सरनी । सो िीव लगे भौ तरनी2 ।।17।।

।। िब्द चौदरवाूँ ।।

सुरत नसर चढ़े करा कररये । सपड नसर तिे झुरत रजरये ।।1।।
मन करा न करे कु मजत भररये । इन्द्री रस भोग अजधक िररये ।।2।।
गुन तीन कमण बस जनत डररये । दुख सुख संतापे बहु सजरये ।।3।।
कोई और उपाव नरीं चजरये । गुरु चरन सरन में जसर धररये ।।4।।
िब नाम अमीरस घट भररये । स्त्रुत खैंच गगन को अब चकढ़ये ।।5।।
संतन मत साूँचा यर कजरये । स्रुत िब्द लखावें सो गजरये ।।6।।
मन चढ़े गगन पर िा रजरये । स्त्रुत लगे िब्द से रस पइये ।।7।।
सुन िाूँच करो और घर अइये । कफर मौि करो आनंद लजरये3 ।।8।।
गुरु नाम रटो तब मन रररये । सतलोक चलो कारि सररये ।।9।।
घर अलख अगम िाकर लजखये । राधास्वामी चरन में कफर पककये ।।10।।

।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।।

गुरु तारें गे रम िानी । तू सुरत कारे बौरानी4 ।।1।।


दृढ़ पकड़ो िब्द जनिानी । तेरी काल करे नसर राजन ।।2।।

1. अजि । 2. संसार से पार रोने लगे । 3. लो । 4. बांवरी, पागल ।


बचन 19 गुरु और नाम भजि 151

तू रोिा िब्द दीवानी । मत सुनो और की बानी ।।3।।


सब छोड़ो भमण करानी । गुरु का मत लो पजरचानी ।।4।।
चढ़ बैठो अगम रठकानी । राधास्वामी करत बखानी ।।5।।

।। िब्द सोलरवाूँ ।।

गुरु क्यों न सम्रार । तेरा नर तन बीता भमण में ।।1।।


दारा सुत पररवार । ठजगयन संग क्यों खोवरी ।।2।।
क्यों नसर करत जवचार । िग जमथ्या यर रै सरी ।।3।।
मन रै बड़ा गूँवार । मोर ररा कर प्यार । छू टे कै से िार से ।।4।।
जबन गुरु चले न दाव । थाके सभी उपाय कर ।।5।।
नाम सम्रारो मीत । धीरि धर घट में ररो ।।6।।
मौि जनरारो पीव । िो करररैं सो सब भला ।।7।।
तेरी बुजद्ध मलीन । मन चंचल घाटा गरे ।।8।।
तू नसर िाने भेद । भमण िाल में फूँ स ररा ।।9।।
या ते कर जवश्वास । गुरु जबन और न दूसरा ।।10।।
गुरु का घाट जनरार । सुरत बाूँध जनि िब्द में ।।11।।
िब्द जबना कोइ नासर । िो काढ़े इस फं द से ।।12।।
ता ते िब्द ककवाड़ । खोलो गुरु कुूँ िी पकड़ ।।13।।
मरल मारीं धस िाय । गुरुमुख को रोकें नरीं ।।14।।
मनमुख भटका खाय । चढ़ उतरे जगर जगर पड़े ।।15।।
ठीका1 ठौर न पाय । क्यों कर गुरु समझावरीं ।।16।।
मन मत छोड़े नासर । गुरु को दोष लगावरीं ।।17।।
गुरु िो करें उपाय । उस में मन बांधे नरीं ।।18।।
क्योंकर रोय जनबार । िम धक्के खावत कफरे ।।19।।
राधास्वामी करत सुनाय । मन बैरी को मीत कर ।।20।।

1. असली रठकाना ।
152 सार बचन बचन 19

मन मारो तन को िारो । इजन्द्र रस भोग जबसारो ।।1।।


तुम जनद्रा आलस टारो । गुरु के संग िब्द पुकारो ।।2।।
सतसंग तुम जनत री धारो । गुरु दिणन जनत्त जनरारो ।।3।।
मन से क्यों दम दम रारो । िग आसा दूर जनकारो ।।4।।
यर भमण सभी अब टारो । कफर परखो तुम घर न्यारो ।।5।।
खोलो चढ़ गगन ककवाड़ो । धस बैठो दसवें द्वारो ।।6।।
कफर मरासुन्न रोय पारो । तरूँ देखो भूँवर उिारो1 ।।7।।
सतनाम जमला अजत प्यारो । िा अलख अगम को धारो ।।8।।
राधास्वामी धाम अपारो । कदया सतगुरु परम उदारो ।।9।।

।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।।

धाम2 अपने चलो भाई । पराये देि क्यों ररना ।।1।।


काम अपना करो िाइ । पराये काम नसर फूँ सना ।।2।।
नाम गुरु का सम्राले चल । यरी रै दाम गूँठ बूँधना ।।3।।
िगत का संग सब मैला । धुला ले मान यर करना ।।4।।
भोग संसार कोई कदन के । सरि में त्यागते चलना ।।5।।
सरन सतगुरु गरो दृढ़ कर । करो यर काि जपल3 ररना ।।6।।
सुरत मन थाम अब घट में । पकड़ धुन ध्यान धर गगना ।।7।।
फूँ से तुम िाल में भारी । जबना इस िुजि नजर खुलना ।।8।।
गुरु अब दया कर करते । मान यर बात जचत धरना ।।9।।
भटक में क्यों उमर खोते । करीं नसर ठीक तुम लगना ।10।।
बसो तुम आय नैनन में । जसमट कर एक यरूँ रोना ।।11।।
दुई यरूँ दूर रो िावे । दृजष्ट िोत में धरना ।।12।।
श्याम ति सेत को गरना । सुरत को तान धुन सुनना ।।13।।

1. उिाला, रौिनी । 2. स्थान । 3. तकड़े रोकर लगना ।


बचन 19 गुरु और नाम भजि 153

बंक के द्वार धस बैठो । जतरकु टी िाय कर लेना ।।14।।


सुन्न चढ़ िा धसो भाई । सुरत से मानसर न्राना ।।15।।
मरासुन चौक अूँजधयारा । वराूँ से िा गुफा बसना ।।16।।
लोक चौथे चलो सि1 के । गरो2 वरूँ िाय धुन बीना ।।17।।
अलख और अगम के पारा । अिब इक मरल कदखलाना ।।18।।
वरीं राधास्वामी से जमलना । हुआ मन आि अजत मगना ।।19।।

।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।

समझ कर चल िगत खोटा । मान मद त्याग मन मोटा ।।1।।


खुदी3 को छोड़ नसर टोटा4 । भजि कर खाय क्यों सोटा ।।2।।
करो सतसंग गुरु के रा5 । सुरत से लो गगन झोटा6 ।।3।।
मगन रोय बैठ कफर घट में । फ़तर कर जतरकु टी कोटा7 ।।4।।
कु टु म्ब संग चार कदन नाता । मोर संग क्यों पड़ा लोटा ।।5।।
करो कु छ भिन अंतर में । गरो गुरु चरन की ओटा8 ।।6।।
गुरु जबन कोइ नरीं संगी । उन्रीं सूँग बैठ मन घोटा9 ।।7।।
करें गे काि वर तेरा । उतारें पाप की पोटा10 ।।8।।
जमले तब नाम की रं गत । िब्द की सेि िा लोटा ।।9।।
भाग तेरा बड़ा िागा । हुआ मन अिण का तोता ।।10।।
उठा कफर िाग इक जछन में । िुगन िुग से पड़ा सोता ।।11।।
िगत को देख तू मथ कर । नरीं कु छ सार रै थोथा ।।12।।
उलट कर कदल मथो अपना । अमोलक वि क्यों खोता ।।13।।
गुरु ने अब करी ककरपा । कदया अब काल को गोता ।।14।।
करें राधास्वामी यर तुम को । चलो सतलोक दूूँ न्योता12 ।।15।।

1. त्यार रो कर । 2. पकड़ो । 3. अरंकार । 4. राजन । 5. का ।


6. झोका झूले का । 7. कक़ला । 8. सरन । 9. रगड़ा । 10. बोझ ।
11. जवचार कर, जबलो कर । 12. बुलावा ।
154 सार बचन बचन 19

।। िब्द बीसवाूँ ।।

अरे मन देख कराूँ संसार । झूठे भमण हुआ बीमार ।।1।।


भरे तेरे मन में सभी जवकार । ितन से इनको दूर जनकार ।।2।।
रोय कफर झूठा िगत असार1 । गरो कफर गुरु के चरन सम्रार ।।3।।
जमले तब उन से नाम अपार । देख कफर घट में मोक्ष दुवार ।।4।।
चलो कफर िब्द जवचार जवचार । पाओ इक िब्द सार का सार ।।5।।
पड़े क्यों भटको नैनन बार । झाूँक जतल जखड़की उतरो पार ।।6।।
गुरु से लेना िुजि यार । गुरु जबन नरीं खुले यर द्वार ।।7।।
कमाना िुजि तुम कर प्यार । लगाना सुरत सरि मन मार ।।8।।
चले कफर सूरत धुन की लार । चुए िरूँ पल पल अमृत धार ।।9।।
नाम रस जपयो ररो हुजियार । ऋजद्ध और जसजद्ध ररें तेरे द्वार ।।10।।
करो मत उनको अंगीकार । वराूँ से आगे धरो जपयार ।।11।।
चलो और देखो घट का सार । पहुंचना राधास्वामी के दरबार ।।12।।

।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।

अब बरी सुरत मूँझधार । गुरु जबन कौन लगावे पार ।।1।।


िकड़ कर पकड़ा इन संसार । नाम जबन कौन करे जनरवार ।।2।।
नाम का ककया न कु छ आधार । गुरु संग ककया न अब के प्यार ।।3।।
कमण का बहुत उठाया भार2 । काल ने खाया सब को झाड़ ।।4।।
साध कोइ ककया न अपना यार । देर में ककया बहुत अरंकार ।।5।।
कु मजत बस भरमें बारम्बार । सुमजत का ककया न नेक जवचार ।।6।।
देर संग ररी न कु छ हुजियार । हुई अब ग़ाकफ़ल भोगन लार ।।7।।
जबछाया िग में मन ने िार3 । पड़ी अब मन के क़ाबू रार ।।8।।
करैं राधास्वामी तोजर पुकार । पकड़ अब चरन सम्रार सम्रार ।।9।।

1. थोथा । 2. बोझ । 3. िाल ।


बचन 20 उपदेि िब्द अभ्यास 155

।। बचन बीसवाूँ ।।
।। उपदेि सुरत िब्द के अभ्यास का ।।
।। िब्द पजरला ।।
चलो री सखी आि जपया से जमलाऊूँ । तन मन धन की प्रीत छु ड़ाऊूँ ।।1।।
पुि कजलि1 िाल छु टकाऊूँ । सुन्न मंडल धुन अिब सुनाउूँ ।।2।।
गगन तख़्त पर िाय जबठाऊूँ । तीन लोक का राि कदलाऊूँ ।।3।।
जतरबेनी तीरथ परसाऊूँ । मन माधो2 से खूटं 3 छु ड़ाऊूँ ।।4।।
काल चक्र से तुरत बचाऊूँ । कमण काट जनि घर पहुंचाऊूँ ।।5।।
मरासुन्न और भूँवरगुफ़ा से । सत्तपुरुष दीदार कराऊूँ ।।6।।
दीन4 दुरबीन पुरुष इक ऐसी । अलख अगम के पार समाऊूँ ।।7।।
राधास्वामी पद रम िाना । करन सुनन का लगा रठकाना ।।8।।
।। िब्द दूसरा ।।
िागो री सुरत अब देर न करो । चालो री सुरत अब गगन चढ़ो ।।1।।
भागो री सुरत अब जपया से जमलो । लागो री सुरत अब िब्द रलो ।।2।।
ताको री सुरत अब जनरत5 करो । झाूँको री सुरत अब मूरत लखो ।।3।।
न्राओ री सुरत और नीर भरो । धाओ री सुरत और ध्यान धरो ।।4।।
गाओ री सुरत और गवन6 करो । भोगो री सुरत सुख सरि बरो7 ।।5।।
झूँझरी जनरख कफर नाम भिो । बंक छोड़ धुन गगन गरो ।।6।।
सुन्न तिो मरासुन्न ररो । भूँवरगुफा पर िाय अड़ो ।।7।।
सत्तलोक सतनाम रसो8 । अलख अगम के पार बसो ।।8।।
राधास्वामी राधास्वामी रटन करो । बहुत करा अब खतम करो ।।9।।
।। िब्द तीसरा ।।
भजि अब करो मेरे भाई । प्रीत अब धरो मेरे भाई ।।1।।
अिब यर औसर पाई । जमले अब राधास्वामी आई ।।2।।

1. स्त्री । 2. जिसका झुकाव माया की तरफ़ रो । 3. पल्ला, दामन । 4. दी ।


5. भीतर के दृश्य देखो । 6. यािा । 7. जपया का । 8. भीगो ।
156 सार बचन बचन 20

सेवा दिणन बाड़1 धराई । पौद अब िब्द जखलाई ।।3।।


सुरत िमिेर2 चलाई । काल जसर काट जगराई ।।4।।
धमक अब सुन्न समाई । चमक िरूँ चन्द्र कदखाई ।।5।।
श्याम ति सेत जमलाई । रेत कर नेत4 घर आई ।।6।।
मरासुन तार जमलाई । भूँवर का द्वार तुड़ाई ।।7।।
िब्द पद िाय समाई । अलख और अगम सराई8 ।।8।।
राधास्वामी अगम सुनाई । सरन अब पूरी पाई ।।9।।

।। िब्द चौथा ।।

चेतो रे िम िाल जबछाया । काल कु ल चक्र चलाया ।।1।।


सरन गरो सतगुरु के री6 । बचे चौरासी फे री ।।2।।
उलट कर घट में आवो । सुई के द्वार समावो ।।3।।
पकड़ मन खैंचो तानी । सुनो कफर अनरद बानी ।।4।।
िोत की गरो जनिानी । जनरं िन रूप पजरचानी ।।5।।
बंक चढ़ जिकु टी फोड़ी । सुन्न में आतम िोड़ी ।।6।।
काल की रद्द छु ड़ानी । दयाल पद जलया अगवानी7 ।।7।।
संत संग नाता िोड़ा । गगन का नाका8 तोड़ा ।।8।।
सुरत का घोड़ा दौड़ा । जनरत का चाबुक छोड़ा ।।9।।
सुरत का बान चलाया । भूँवर का चक्र कफराया ।।10।।
िब्द से िब्द समाया । परम पद अपना पाया ।।11।।
बीन धुन अिब सुनाई । सुरत िरूँ दीन तनाई ।।12।।
जमला अब प्रीतम प्यारा । सुरत मत रूप जनरारा ।।13।।
अलख का लखा उिाला । अगम पद िाय सम्राला ।।14।।
राधास्वामी कीन्र जनराला । सीस उन चरनन डाला ।।15।।

1. रोक । 2. तलवार । 3. प्रेम । 4. दसवाूँ द्वार । 5. मजरमा गाई ।


6. की । 7. आगे का । 8. रद, सीमा ।
बचन 20 उपदेि िब्द अभ्यास 157

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

भिन कर मगन ररो मन में ।। टेक ।।


िो िो चोर भिन के प्रानी । सो सो दुक्ख सरें ।।1।।
आलस नींद सतावे उनको । जनत जनत भमण बरें ।।2।।
काम क्रोध के धक्के खावें । लोभ नदी में डू ब मरें ।।3।।
गुरु संग प्रीत करें नसर पूरी । नाम न डोर गरें ।।4।।
तृ ष्र्ा अजि िलें जनस बासर । नकण न मासर पड़ें ।।5।।
संतन साथ जवरोध बड़ावें । उलटी बात करें ।।6।।
सतसंग मजरमा मूल न िानें । भेड़ चाल में जनत्त पचें ।।7।।
धन और मान भोग रस चारें । रोग सोग में आन फसें ।।8।।
भाग रीन मत रीन परार्ी । नर देरी बरबाद करें ।।9।।
ऐसी दिा मासर जनत बरतें । रम क्योंकर समझाय सकें ।।10।।
साध गुरु का करा न मानें । मनमत अपनी ठानठनें1 ।।11।।
खर2 कू कर सम वे नर िानो । जबरथा उदर भरें ।।12।।
िमपुर िाय बहुत पछतावें । व्राूँ कफर उनकी कौन सुने ।।13।।
िन्म िन्म चौरासी भोगें । यर िरीर कफर नासर धरें ।।14।।
दुलभ ण देर जमली यर औसर । ऐसी कर िो बात बने ।।15।।
सतगुरु सरन पकड़ ले अबकी । तो सब काि सरें 3 ।।16।।
जरत का बचन दया कर बोलें । तू नसर कान सुने ।।17।।
अंधा बररा कफरे िगत में । कु ल कु टु म्ब तेरी राजन करें ।।18।।
कर सतसंग मान यर करना । कान आूँख कफर दोऊ खुलें ।।19।।
देखे घट में िोत उिाला । सुने गगन में अिब धुनें ।।20।।
सुन्न िाय जतरबेनी न्रावे । रीरे मोती लाल चुने ।।21।।
मरासुन्न में सुरत चढ़ावे । तब सतगुरु तेरे संग चलें ।।22।।

1. रठ करके रखते रै । 2. गधा । 3. बनें ।


158 सार बचन बचन 20

भूँवरगुफा की बंसी बािी । मराकाल भी सीस धुन1े ।।23।।


अब चढ़ गई पुरुष दरबारा । वराूँ िाय धुन बीन गुने ।।24।।
ले दुरबीन चली आगे को । लख अगम का भेद भने2 ।।25।।
र्यराूँ से आगे चली उमूँग से । तब राधास्वामी चरन जमलें ।।26।।
जमला अधार पार घर पाया । लीला यराूँ की करे न बने ।।27।।

।। िब्द छठवाूँ ।।

कोइ सुनो रमारी बात । कोइ चलो रमारे साथ ।।1।।


क्यों सरो काल की घात । िम धर धर मारे लात ।।2।।
तुम चढ़ो गगन की बाट । तो खुले अधर का पाट3 ।।3।।
घट बाूँधो दृढ़ कर ठाट । छू टे यर औघट घाट4 ।।4।।
िब्द रस भरो सुरत के माट5 । बंक चढ़ खोलो सुखमन घाट ।।5।।
नाम की जमली अपूरब6 चाट । अब सोऊूँ जबछाये खाट ।।6।।
चेतन की िड़ से खोली साूँट7 । उलट मन कला खाय ज्यों नाट8 ।।7।।
मानसर देखा चौड़ा फ़ाट । गया कफर परदा सुन का फाट10 ।।8।।
काल की डारी गदणन काट । कमण की खुल गई भारी आूँट11 ।।9।।
सुन्न का जलया अमी रस बाूँट । िब्द की खुली जरये में राट ।।10।।
मोर मद रो गये बारर बाट12 । जमले अब सतगुरु मेरे तात13 ।।11।।
बाल ज्यों पावे जपत और मात । कहूूँ क्या खोल यर जवशयात ।।12।।
अब चले न माया घात । झड़ पड़ी वृक्ष ज्यों पात ।।13।।
कमण की कीन्री बाज़ी मात । लखी िाय सुन में धुन की भाूँत14 ।।14।।
टू ट गया सपड से मेरा नात । कदखाई गुरुने अचरि क्रान्त15 ।।15।।
पाइ अब मैंने ऐसी िांत । अब ररी न कोई भ्ांत16 ।।16।।
गुरु करी प्रेम की दात । सुरत अब हुई िब्द की ज़ात ।।17।।

1. जसर पटके । 2. वर्णन करती रै । 3. पट, ककवाड़ । 4. उल्टा घाट । 5. घड़ा ।


6. अचरि । 7. पेंच, लपेट । 8. नट । 9. पाट, चौड़ाई । 10. फट गया ।
11. जगरर, गाूँठ । 12. नष्ट । 13. प्यारे । 14. छजव । 15. प्रकाि । 16. भ्म ।
बचन 20 उपदेि िब्द अभ्यास 159

सुरत ररे लागी कदन और रात । िब्द रस अब नसर छोड़ा िात ।।18।।
गुरु का दम दम अब गुन गात । अमर पद पाया छू टा गात1 ।।19।।
नाम धुन चली अधर से आत । अिण2 का चरखा डाला कात ।।20।।
राधास्वामी धरा सीस पर राथ । मैं तिूूँ न उनका साथ ।।21।।

।। िब्द सातवाूँ ।।

नाम धुन सुनो, िब्द धुन गुनो3 ।


गगन चढ़ चलो, प्रेम लौ लाय ।।1।।
गुरु सूँग करो, साध संग रलो ।
चेत कर ररो, सदा जचत लाय ।।2।।
बाूँध मन धरो, सरन गुरु तको ।
चरन गजर4 चखो, अगम रस आये ।।3।।
धीर पुजन गरो, सील घर ररो ।
क्रोध को दरो, िान्त घर आय ।।4।।
काल कु ल दलो, दयाल पद चलो ।
मगन रोय ररो, परम पद पाय ।।5।।
घाट घट खुल,े बाट तब चले ।
द्वार जतल धसे, श्याम पद पाय ।।6।।
सेत पजरचान, िोत लख आन ।
सुखमना िान, बंक धस िाय ।।7।।
संख धुन जमले, सुरत कफर जपले5 ।
भेद तब खुल,े नाद धुन गाय ।।8।।
सुन्न चढ़ आय, मानसर न्राय ।
रंस गजत लाय, चन्द्र में धाय ।।9।।

1. तन । 2. आसमान । 3. जवचारो । 4. पकड़ कर । 5. इकट्ठी रोवे ।


160 सार बचन बचन 2

खोि कर चली , मरासुन जमली ।


पाय जनि गली, जवरंग1 रो िाय ।।10।।
भूँवर गढ़ तोड़, बाूँसरी घोर ।
सोरं का िोर, सुना रस खाय ।।11।।
पाय पद चार, पुरुष घर प्यार ।
बीन धुन सार, सुनी जनि आय ।।12।।
अलख घर जमला, अगम गुल2 जखला ।
चाल धुर चला, जलया सब काि बनाय ।।13।।
एक पद ररा, गुप्त सो करा ।
सीस अब धरा, चरन राधास्वामी िाय ।।14।।

।। िब्द आठवाूँ ।।

खोल री ककवजड़याूँ, चढ़ो री अटररयाूँ ।


सुरत नटररयाूँ, करो िब्द सूँग रजलयाूँ ।।1।।
पावो री मरजमयाूँ, छु टे री मरजनयाूँ ।
िन्म सुफजलयाूँ, झाूँको री जनरत गुरु गजलयाूँ ।।2।।
धावो री धरजनयाूँ4, गरो री सरजनयाूँ ।
रोवो री मगजनयाूँ, भइलो5 नाम कदवजनयाूँ ।।3।।
खोिो री अमजनयाूँ6, टले री िमजनयाूँ7 ।
छु टे री गुनजनयाूँ8,राधास्वामी िब्द िुगजनयाूँ9 ।।4।।

।। िब्द नवाूँ ।।

लोभ री खुवजनयाूँ10, काम री दलजनयाूँ ।


क्रोध री दगजनयाूँ11, मन संतोष जमलजनयाूँ ।।1।।

1. पक्षी । 2. फू ल । 3. जवलास । 4. संसारी सुरत । 5. रोवो । 6. जनमणल,


िुद्ध । 7. िमराि । 8. गुनावन । 9. योग । 10. खो देना । 11. िलाना ।
बचन 20 उपदेि िब्द अभ्यास 161

काटो री मलजनयाूँ1, चढ़ो री गगजनयाूँ ।


िाय री तपजनयाूँ, पकड़ो गुरु चरजनयाूँ ।।2।।
रौंमें री टलजनयाूँ, भाित2 गुनजनयाूँ3 ।
बढ़े री लगजनयाूँ, ररो जनस बास िगजनया ।।3।।
गावो री गुनजनयाूँ,4 धावो री धुनजनयाूँ5 ।
बुझे री अजगजनयाूँ, राधास्वामी िाजन्त कदवजनयाूँ6 ।।4।।

।। िब्द दसवाूँ ।।

गुरु करे खोल कर भाई । लग िब्द अनारद िाई ।।1।।


जबन िब्द उपाव न दूिा । काया का छु टे न कू ज़ा7 ।।2।।
घर में घर गुरु कदखलावें । धुन िब्द पाूँच बतलावें ।।3।।
धुन में अब सुरत लगावो । इस घर से उस घर िावो ।।4।।
वर घर रै अगम अपारा । दसवें के पार जनरारा ।।5।।
दस द्वारा घट चढ़ खोलो । सत िब्द अधर पै तोलो ।।6।।
जबन मेरर गुरु नसर पावे । जबन िब्द राथ नसर आवे ।।7।।
सुतण खैंच चढ़ावो गगनी । धुन िब्द सुनो यर करनी ।।8।।
मन चंचल जथर न ररावे । जचत जनमणल कस रोय आवे ।।9।।
सुतण िब्द कमाई करना । सब ितन दूर अब धरना ।।10।।
जनश्चय दृढ़ इस पर धरना । आलस कर कभी न कफरना ।।11।।
यर सार सार सब गाया । संतन मत भाख सुनाया ।।12।।
राधास्वामी भेद लखाया । सुन मान सार समझाया ।।13।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।।

चढ़ झाूँको गगन झूँझररया । धस देखो श्याम सुन्दररया8 ।।1।।


कफर तको िोत जझजलजमजलया । मध मान मोर दल मजलया9 ।।2।।

1. मैल । 2. भागे । 3. तीनों गुन । 4. मजरमा । 5. धुन को पकड़ कर चढ़ो ।


6. देता रै । 7. बरतन । 8. तीसरा जतल । 9. जमटा कदया ।
162 सार बचन बचन 20

सब दूर रोयूँ कलमजलया1 । धुन िब्द सुरत िा रजलया2 ।।3।।


जिकु टी चढ़ देख कूँ वजलया । धुन परखो सुन्न मूँडजलया ।।4।।
तब सुरत रोय जनमणजलया । तुम धारो यरी अमजलया3 ।।5।।
भागे कफर माया छजलया । सुतण पकड़ा िब्द अटजलया4 ।।6।।
यर अगम भेद अब जमजलया । राधास्वामी करन सम्रजलया ।।7।।

।। िब्द बाररवाूँ ।।

घुमर5 चल सुरत घोर सुन भारी । अरी सतगुरु संत जपयारी ।।1।।
िग ररना रै कदनचारी6 । क्यों भार उठावो भारी ।।2।।
गुरु करें पुकार पुकारी । धुन संग करो चल यारी ।।3।।
ममता सब झाड़ जनकारी । सुतण अगम देि पग धारी ।।4।।
यर काम नरीं संसारी । कोई गुरुमुख बूझ सम्रारी ।।5।।
मनमुख सब बाज़ी रारी । सतसंग कर छु टे जवकारी ।।6।।
इक नाम सार सब खारी । तू रोिा नाम अधारी ।।7।।
यर िुजि बताई न्यारी । नसर वेद कतेब जवचारी ।।8।।
अब मानो बात रमारी । ग़फ़लत ति रो हुजियारी ।।9।।
कामाकदक काढ़ जनकारी । कफर न्रावो सीतल धारी ।।10।।
मन माया दोनों मारी । तब काल करम दोउ रारी ।।11।।
कफर मुरत करे असवारी । सतगुरु के मरल जसधारी ।।12।।
तू अगम पुरुष की नारी । सब की अब हुई दुलारी ।।13।।
सतगुरु संग प्रेम बढ़ा री । देखे घट िब्द उिारी ।।14।।
सरबर7 की धारा िारी । राधास्वामी कर पुकारी ।।15।।

।। िब्द तेररवाूँ ।।

चढ़ सुरत गगन की घाटी । क्यों िले भरम की भाठी ।।1।।

1. काल का मैल । 2. रल जमल गई । 3. अभ्यास । 4. जनश्चल । 5. घूम कर ।


6. आयु की चार अवस्था-लड़कपन, िवानी, अधेड़, बुड़ापा । 7. मानसरोवर ।
बचन 20 उपदेि िब्द अभ्यास 163

क्यों चले काल की बाटी1 । तू खोल कपट की टाटी2 ।।2।।


तुझे पड़ी जबषय रस चाटी । तू रले एक कदन माटी ।।3।।
सौदा कर सतगुरु राटी3 । चल खोलो घट की टाटी ।।4।।
अब बाूँध सुरत संग ठाठी । तब छू टे कमण प्रपाटी4 ।।5।।
कफर खोलो चढ़ कर साूँटी5 । नभ चढ़ िा खोल कपाटी ।।6।।
घट देखो चौक सपाटी6 । िग छू टा हुई उचाटी7 ।।7।।
मन माना छोड़ लपाटी8 । मैं मारा काल झपाटी9 ।।8।।
घट बली िोत की लाटी10 । मैं राधास्वामी दर की भाटी11 ।।9।।

।। िब्द चौदरवाूँ ।।

मन घोटो घट में लाई । मन आसा सब जमट िाई ।।1।।


धुन िब्द सुनो गगनाई । सुतण लगे रोय मगनाई ।।2।।
चंचलता जचत्त भगाई । जनमणलता जमजल सफ़ाई ।।3।।
भोगों की आस छु टाई । सुजमरन मन अजधक लगाई ।।4।।
मल बास12 हृदे13 से िाई । अमृत रस जपया अघाइ ।।5।।
मजरमा कु छ करी न िाई । मन मारा सुरत समाई ।।6।।
घट अनरद घोर बिाई । गुरु सतगुरु लीन ररझाई ।।7।।
घट भान उदय रोय आई । चन्दा की िोत िगाई ।।8।।
संतन मत कहूूँ बड़ाई । श्रुजत जसमृजत सभी लिाई ।।9।।
आरत की बात चलाई । कफर सामां सब ले आई ।।10।।
गुरु आगे धरे बनाई । गुरु मेरर करी अजत भाई ।।11।।
मैं भी कफर आरत गाई । गुरु मुझ पर हुए सराई ।।12।।
गुरु चरनन दास कराई । मैं िोभा अद्भुत पाई ।।13।।
राधास्वामी नाम जधयाई । लीला कु छ अगम कदखाई ।।14।।

1. रास्ता । 2. परदा । 3. दुकान । 4. जसलजसला । 5. गाूँठ । 6. साफ़ ।


7. उदास । 8. लपेट की बात । 9. िल्द । 10. लौ । 11. भाट याने मजरमा
गानेवाला । 12. मलीन वासना । 13. हृदय ।
164 सार बचन बचन 20

।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।।
घन गिण सुनावत गररी । अब सुरत सुन सुन ठररी ।।1।।
मन छोड़त सब जवष लररी । तू चढ़ चल और वराूँ रर री ।।2।।
वर सुन्न बड़ी अजत गररी । लीला व्राूँ देख अूँधरे ी ।।3।।
कफर सेत कूँ वल सुतण ठररी । घट िब्द गुरु हुइ चेरी ।।4।।
व्राूँ संत करें जनत फे री । सुन बात सखी अब मेरी ।।5।।
सत िब्द िाय धुन रेरी । अब कफरी दुराई तेरी ।।6।।
जिन राधास्वामी चरन गरे री । उन जमटी चौरासी फे री ।।7।।
।। िब्द सोलरवाूँ ।।
सुरत तू चढ़ िा तुतण गगन को । लखो िाय पजरले िोत जनगुणन को ।।1।।
छोड़ चल सकल पसार सगुन ण को । काट अब िड़ से फाूँस जिगुन को ।।2।।
जनगुन ण छोड़ चलो आगे को । पकड़ो िाय मरा जनगुन ण को ।।3।।
या को त्याग सुनो सुन धुन को । यों तुम धारो संत बचन को ।।4।।
व्राूँ से चल पहुंचो मरासुन को । देखो आगे धाम सोरं को ।।5।।
सत्तनाम पद जमला सुरत को । अलख अगम िा पसण चरन को ।।6।।
राधास्वामी करत भेद जनि घर को । मेट कदया अब आवागवन को ।।7।।
।। िब्द सत्तररवाूँ ।।
त्याग चल सिनी िग की धार । बरे मत या में दुक्ख अपार ।।1।।
सुरत से रोिा सतगुरु लार । िब्द में तन मन दोनों गार1 ।।2।।
लगी रहु आठों परर सम्रार । अमी रस पीती रहु हुजियार ।।3।।
गगन का पकड़े रहु तू द्वार । नाद संग कर ले अब के प्यार ।।4।।
करें राधास्वामी रेला मार । सोच कर चढ़ना जिकु टी द्वार ।।5।।
।। िब्द अठाररवाूँ ।।
सुरत अब चढ़ो नाम रं ग लाग । िगत सब सोवे तू उठ िाग ।।1।।

1. गला दे ।
बचन 20 उपदेि िब्द अभ्यास 165

बड़े कफर तेरा अचरि भाग । सुने तू चढ़ कर अनरद राग ।।2।।
जमले तोजर प्यारी परम बैराग । लगे तेरा धुन से अजत अनुराग ।।3।।
जमटे सब मन का द्वेष और राग1 । मार ले नभ चढ़ काला नाग ।।4।।
खेल जनत सतगुरु संग तू फाग । बासना टू टे सब ज्यों ताग ।।5।।
हुई अब जनभणय िम भौ भाग । रंस संग जमली उड़ाया काग ।।6।।
हुई अब जनमणल छू टे दाग़ । राधास्वामी दीन्रा िब्द सुराग ।।7।।

।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।

रंसनी क्यों पीवे तू पानी ।। टेक ।।


सागर क्षीर भरा घट भीतर । पीवो सूरत तानी ।।1।।
िग को िार धसो नभ अंदर । मंदर परख जनिानी ।।2।।
गुरु मूरत तू धार जरये में । मन के संग क्यों कफरत जनमानी2।।3।।
तेरा काि करें गुरु पूरे । सुन ले अनरद बानी ।।4।।
कमण भमण बस सब िग बौरा । तू क्यों रोत कदवानी ।।5।।
सुरत सम्रार करो सतसंगत । क्यों जवष अमृत सानी ।।6।।
तेरा धाम अधर में प्यारी । क्यों धर3 संग बंधानी ।।7।।
िल्दी करो चढ़ो ऊूँचे को । राधास्वामी करत बखानी ।।8।।

।। िब्द बीसवाूँ ।।

रंसनी छानो दूध और पानी ।। टेक ।।


छोड़ो नीर जपयो पय4 सारा । जनस कदन ररो अघानी5 ।।1।।
िुजि ितन से घट में बैठो । सुरत िब्द समानी ।।2।।
खान पान जनद्रा ति आलस । सुन ले अधर करानी ।।3।।
कफर औसर नसर राथ पड़ेगा । भरमो चारों खानी ।।4।।
गुरु का करना मान सखी री । देत जसखापन6 िानी ।।5।।
पाूँचो इन्द्री उलटी तानो । इच्छा मार भवानी7 ।।6।।

1. नफ़रत और रग़बत । 2. रीन । 3. देर । 4. अमृत, दूध । 5. तृप्त ।


6. जिक्षा । 7. संसार में लाने वाली ।
166 सार बचन बचन 20

मन को साध चढ़ो गगनापुर । सुनो अनारद बानी ।।7।।


िोर रोत तेरे घट के भीतर । तू क्यों ररे अलसानी ।।8।।
राधास्वामी टेरत तो को । कर कर अमृत बानी ।।9।।

।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।

सुरत को साध, छबीली रो मगनी ।


चदररया धोय, अधर में िा रं गनी ।।1।।
करम सब िार, लगा ले घर अगनी ।
मान मद छोड़, दूर कर सब जवघनी ।।2।।
सोवना छोड़, रै न का ररो िगनी ।
गुरु यों करैं, बात ले मान, करो लगनी ।।3।।
सरन में आय, चरन उर धार, सुनो सिनी ।
करें राधास्वामी, मानो आि, धरन धरनी1 ।।4।।

।। िब्द बाइसवाूँ ।।

सुरत अब सार सम्रालो नाम ।। टेक ।।


चेत चलो तुम िग से अब के । कफर औसर नसर पाम2 ।।1।।
गुरु की भजि प्रेम जचत धारो । वरी सुधारें काम ।।2।।
नाम भेद दे सुरत चढ़ावें । पहुंचावें जनि धाम ।।3।।
तू सुख साथ सरि रस भोगे । पावे कफर आराम ।।4।।
राधास्वामी करें सुनाई । सेत जमला और छू टा श्याम ।।5।।

।। िब्द तेईसवाूँ ।।

चमन3 को चीन्र री बुलबुल । जखले िरूँ बहुत से गुल गुल4 ।।1।।


गुरु संग चल ररो जरल जमल । चढ़ाओ सुरत मन जमल जमल ।।2।।
लगाओ खैंच कर कदल कदल । समाओ िोत में जतल जतल ।।3।।

1. िो सपड को धारर् कर ररी रै यानी सुरत । 2. पावेगी । 3. फु लवाड़ी ।


4. फू ल ।
बचन 20 उपदेि िब्द अभ्यास 167

सरसदल कूँ वल लख जखल जखल । रटा कर देख दो जसल जसल1 ।।4।।


झाूँक वर घाट रहु खुल खुल । उतर िा पार चढ़ पुल पुल ।।5।।
सुगन्धें मरकतीं संदल । धुलें तब सुतण मन कल मल ।।6।।
रटे कफर काल की ककल ककल2 । लगे तब िब्द में जपल जपल ।।7।।
छु टाई कमण की दल दल । जमलो राधास्वामी से चलचल ।।8।।

।। िब्द चौबीसवाूँ ।।

धुन में अब सुरत लगाओ । िब्दा रस पी जिप्ताओ ।।1।।


इन्द्री सब घट उलटाओ । मन फै ला खैंच जमलाओ ।।2।।
गुनना जवष छोड़ समाओ । आलस ति िौक़ बड़ाओ ।।3।।
लय3 रोय न मन समझाओ । जवक्षेप3 जवघन यर दूर कराओ ।।4।।
इक िब्द पकड़ और सब जबसराओ । यर मारग जनत्त कमाओ ।।5।।
जबन सुरत िब्द कु छ और न गाओ । मन रोको नभ पर धाओ ।।6।।
जतल पर भी सुरत िमाओ । जपल कर दलसरस खुलाओ ।।7।।
िरूँ िोत जनरं िन पाओ । कफर िब्दजर िब्द सुनाओ ।।8।।
चढ़ बंकनाल में आओ । गढ़ जिकु टी फ़तर कराओ ।।9।।
सुन्न में धस खेल जखलाओ । व्राूँ का भी िब्द िगाओ ।।10।।
मरासुन्न जनरखते िाओ । कफर भूँवरगुफा पर छाओ ।।11।।
आगे सतलोक घुमाओ । व्राूँ से भी अलख चढ़ाओ ।।12।।
कफर अगम देि धस िाओ । राधास्वामी संग जमल िाओ ।।13।।

।। िब्द पच्चीसवाूँ ।।

दुलरनी करो जपया का संग ।। टेक ।।


दुलरा तेरा गगन बसेरा4 । तू बसे नइरर5 अंग ।।1।।
गुरु के साथ चलो उस नगरी । चढ़े प्रेम का रं ग ।।2।।
यर िोबन तेरा उतर िायगा । कफर तू रोगी तंग ।।3।।

1. परदे । 2. िोर । 3. जवघ्न अभ्यास के -लय, जवक्षेप, कषाय, रसास्वाद ।


4. बसता रै । 5. माूँ बाप का घर (सपड देि ) ।
168 सार बचन बचन 20

ताते अभी सम्रारो मग1 को । धारो ढंग उमंग ।।4।।


नाम रूँ गीला दुलरा तेरा । उड़ो गगन िस चंग2 ।।5।।
सूरत डोर बाूँध दे गुरु से । त्यागो सभी उचंग ।।6।।
जपया के द्वार तेरे नौबत3 झड़ती । जबच जबच बिे मुरूँ चंग4 ।।7।।
राधास्वामी पता बताया । चढ़ चल पकड़ तरं ग ।।8।।

।। िब्द छब्बीसवाूँ ।।

घट में चढ़ खेल कबड्डी । स्वान5 ज्यों चूसे मत जवष रड्डी ।।1।।
मार मन चढ़ो काल की चढ्ढी6 । नाम गर पाला7 छोड़ जतगड्ढी8 ।।2।।
चलो घर चढ़ कर सूरत गड्डी9 । बनो तुम मीरी10 रो मत फड्डी11 ।।3।।
तरं गें रोको बाूँधों गड्डी12 । उखाड़ो ममत पुरानी गड्डी ।।4।।
पकड़ कर मूड ूँ काल की डढ्ढी14 । जवषय सब त्यागो खा मत बड्डी15।।5।।
सुरत मैं गुरु चरनन पर अड्डी18 । िगत की सभी वासना कढ्ढी17 ।।6।।
राधास्वामी नाम चढ़ो यर जसढ्ढी18 । काल की बातरोय सब कफड्डी19।।7।।

।। िब्द सत्ताईसवाूँ ।।

कोमल जचत्त दया मन धारो । परमारथ का खोि लगाना ।।1।।


इन्द्री थान जवषय को त्यागो । सुतण िब्द में जनत्त लगाना ।।2।।
सार पदारथ गुरु से पाओ । चरन कूँ वल में प्रीत बढ़ाना ।।3।।
धारा अगम पकड़ सुतण िोड़ो । इस सतसंग में सदा समाना ।।4।।
चलो सुरत नभ द्वारा झाूँका । अंडा तीन लोक दरसाना ।।5।।
परे िाय ब्रह्मण्ड समानी । सुन्न सरोवर कूँ वल जखलाना ।।6।।
अब तो काल कला सब रारा । मानसरोवर पैठ अन्राना ।।7।।
अक्षर रूप जनरखती चाली । छोड़ कदया अब देि जबगाना ।।8।।
सूरत साफ़ ऊड़ी ऊूँचे को । छू ट गया सब मरल पुराना ।।9।।

1. रास्ता, मागण । 2. पतंग । 3. नक्क़ारा । 4. एक बािा । 5. कु त्ता ।


6. सवारी । 7. रद । 8. तीन गुनों का । 9. गाड़ी । 10. अव्वल । 11. सब से
पीछे । 12. गठरी । 13. गाड़ी हुई । 14. डाढ़ी । 15. ररिवत, घूस ।
16. ठरराई, रटकाई । 17. जनकाली । 18. सीढ़ी, ज़ीना । 19. फीका ।
बचन 20 उपदेि िब्द अभ्यास 169

आगे चढ़ चढ़ अधर समानी । िब्द िब्द का ममण जपछाना ।।10।।
संत जबना कोइ समझे नारीं । आगे िो िो भेद कदखाना ।।11।।
करने में आवे नसर पूरा । उलटा सुलटा करत बखाना ।।12।।
बाचक अपनी उजि लगावें । अमल जबना नसर बूझ बुझाना ।।13।।
संतन की गजत संतजर िाने । और करो कै से पजरचाना ।।14।।
अपनी उजि चतुरता त्यागो । संत बचन को करो प्रमाना ।।15।।
वर करते देखो जनि अपनी । तू सुन सुन क्यों बुजद्ध लड़ाना ।।16।।
राधास्वामी सब से करते । संत भेद कोइ भेदी िाना ।।17।।

।। िब्द अट्ठाईसवाूँ ।।

गुरु बचन करें सो सुन रे । अब सतसंग में जचत धर रे ।।1।।


तुझे नाम जमला रै अिर रे । तू सुरत सम्रार पकड़ रे ।।2।।
गुरु खैंचे तोजर अधर रे । उनके संग बाूँध कमर रे ।।3।।
तू फै ला बहुत पसर1 रे । गुरु खोवें तेरी कसर से ।।4।।
और मारें काल पकड़ रे । कफर खोवें सभी अकड़2 रे ।।5।।
तू सुरत लगा दे िकड़ रे । तेरा जमटे चौरासी चकर रे ।।6।।
मन माला फे र सुजमर रे । गुरु कुं िी राथ पकड़ रे ।।7।।
ले अनरद िब्द खबर रे । घट फोड़ो गगन अबर3 रे ।।8।।
तू छोड़ जवरर के सर4 रे । सुन घोर मानसर चल रे ।।9।।
कर सुन्न जिखर पर घर रे । धुन सुनता चल सतपुर रे ।।10।।
कफर अलख अगम िा तर रे । राधास्वामी धाम अमर रे ।।11।।
यर आरत जनत री कर रे । गुरु करें दया तुझ पर रे ।।12।।

।। िब्द उन्तीसवाूँ ।।

सुरजतया गगन चढ़ाइलो मीत । जमटाइलो सकल भरम भौ भीत5 ।।1।।


भवन6 ति गइलो अधर मसीत7 । बाूँग8 सुन ध्याइलो अिर अिीत ।।2।।

1. फै लकर । 2. ऐंठ, अरंकार । 3. बादल । 4. तीर । 5. भय । 6. घर ।


7. मसजिद । 8. नमाि के जलये बुलारे की आवाज़ ।
170 सार बचन बचन 20

नाम रस पाइलो गुरु की नीत1 । िब्द धुन गाइलो अचरि गीत ।।3।।
समाइलो मनुवाूँ गर गुरु रीत । लगाइलो घट में जछन जछन प्रीत ।।4।।
भगाइलो काल करम दल िीत । जमटाइलो मन से भरम अनीत2 ।।5।।
बिाइलो सुन में िब्द अतीत3 । मेरर से पाइलो संतन सीत4 ।।6।।
बिाइलो राधास्वामी सरन पुनीत5 । धाररलो नाम रसायन चीत ।।7।।

।। िब्द तीसवाूँ ।।

सुन री सखी चढ़ मरल जवराि । िरूँ तेरे प्रीतम बैठे आि ।।1।।
कर जबलास और िग से भाि । तख़्त बैठ और कर व्राूँ राि ।।2।।
रंसन का िरूँ िुड़ा समाि । तू उन जमल कर अपना काि ।।3।।
गुरु चरन पकड़ ति कु ल की लाि । मन दपणन बहु जवजध कर माूँि ।।4।।
सुरत जनरत का लेकर छाि6 । छाूँट फटक7 डालो धुन नाि8 ।।5।।
बड़े भाग पाया सब साि । सतगुरु बख़्िा तख़्त और ताि9 ।।6।।
तीन लोक का खुल गया पाि10 । चार लोक चढ़ भोगूूँ राि ।।7।।
राधास्वामी कदया मोसर यर दाि11 । अब मेरा रोय न कभी अकाि ।।8।।

।। बचन इक्कीसवां ।।
जरदायतनामा12

बीच बयान सुरबत और जखदमत-गुज़ारी13 मुर्शिद-काजमल14 के और


िरर15 दरिात फ़क़ीरी के और जिसमें उपदेि िब्द के अभ्यास का और
भेद िब्द मागण और उस के मुक़ामात का भी वर्णन ककया रै ।

जिन लोगों को िौक़ जमलने माजलक कु ल का रै और तरक़ीक़ात


मज़रब की मंज़ूर रै कक कौनसा मज़रब सब से बाला16 रै और तरीक़ 17

1. रीत, तरीक़ा । 2. अन्याय । 3. जनरमाया । 4. प्रसाद । 5. पजवि ।


6. सू प , छािन । 7. साफ़ करलो । 8. अनाि । 9. मु कु ट । 10. क़लई,
मु ल म्मा । 11. िरे ज़ यानी बखजिि । 12. अनु दे ि , उपदे ि । 13. से वा ।
14. पू रे सतगु रु । 15. बयान । 16. ऊूँ चा । 17. रास्ता ।
बचन 21 जरदायतनामा 171

भी उस का बहुत सीधा चारते रैं , उन के वास्ते यर कलाम 8 करा


िाता रै । उन को चाजरये कक कु छ दुजनया की मु र ब्बत कम करें यानी
ज़र और ज़न और औलाद की चार तक़दीर 2 के रवाले करके अव्वल
सु र बत फक़ीरों को मु क़ द्दम 3 रक्खें । फ़कीरों में सु र बत उस फ़कीर
की करें िो िाजग़ल 4 िग़ल 5 सु ल्तानु ल अज़कार 6 का रोवे या िग़ल-
नसीरा 7 करता रोवे , यानी अनरद िब्द के मागण को िानता रोवे और
दृ जष्ट की साधना जिसने करी रोवे और मदुमण क -चश्म 8 याने दोनों
जतलों को खींच कर िग़ल की मदद से एक ककया रोवे और आवाज़े -
आसमानी को सु न कर रूर को चढ़ाता रोवे और िो ऐसा फ़कीर
कम्याब 9 रो तो जज़करूल्क़लू ब 10 पासे - अनफ़ास 11 वालों को तलाि
करे , उसकी सु र बत से भी सफाई-कदल और कमज़ोरी-नफ़्से -
अम्मारा 12 की रोगी और कु छ लज़्जज़त अं द रूनी राजसल रोगी ले ककन
िो फ़ायदा कक रूर के चढ़ाने का रै वर तो तरीक़ सु ल्तानु ल -अज़कार
राजसल रोगा ।

अब चाजरये कक ऐसे फ़कीर की जखदमत में िा कर उन से मु र ब्बत


पै दा करो और उनकी जखदमत-गु ज़ारी में चु स्त व चालाक ररो और
तन से , मन से , धन से ब-रर-सू र त उनको अपने ऊपर मे र रबान
और मु त विर कर लो और दिण न उनका कदल और दीदा 13 से घं टे दो
घं टे बराबर करते ररो यानी अपनी आूँ खों से उनकी आूँ खो को ताकते
ररो और जिस कदर ताक़त अपनी दे खो पलक से पलक न लगाओ
और इस कसरस 15 को रोज़ ज़्जयादा करते ररो । जिस रोज़ और जिस
वि नज़र-मे र र-आलू द 15 उनकी तु म पर पड़े गी उसी कदन सफ़ाई
कदल की फ़ौरन रोगी और िब वर मे र र करके अपनी मौि व

1. बचन । 2. प्रारब्ध । 3. मुशय । 4. अभ्यासी । 5. अभ्यास । 6. सुरत


िब्द योग । 7. दृजष्ट का साधन । 8. आूँख की पुतली । 9. दुलभ
ण । 10. नाम
की ज़रब (चोट) कदल पर लगाना । 11. स्वाूँसा का अभ्यास । 12. मलीन मन ।
13. आूँख । 14. अभ्यास । 15. भरी हुई ।
172 सार बचन बचन 21

मरज़ीसे िग़ल बाला 1 का उपदेि करें तो रूर तुम्रारी आवाज़े -


आसमानी को पकड़ेगी और मुनाजसब रै कक तुम भी इस िग़ल को
रोज़मराण जबला-नागा2 चार बार दो बार जिस क़दर फु रसत जमले करते
ररो और िो कदल तुम्रारा क़बूल न करे और वसवसा 3 और खदिा
और गुनावन बे -फ़ायादा उठावे तो फ़याणद 5 मुर्शिद के आगे करो और
कफर उसी िग़ल में मेर नत रक्खो । उनकी तविर और तुम्रारी मेर नत
से रोज़-बरोज़ तरक़्की रोगी और िल्दी और इजज़्जतराबी 6 करना नरीं,
क्योंकक ‘तािील कारे ियातीं बुव द’ 7 –आजरस्ता आजरस्ता राजसल रोना
मुफ़ीद पड़ेगा और िल्दी िो कु छ रोगा, वर क़ायम नरीं ररेगा, क्योंकक
वर िैतान की तरफ़ से रोगा । िो मुर्शिद ररमान 8 की मदद से रोगा,
वर रमेिा क़ायम ररेगा । ज़ाजरर लवाज़मा 9 िो कु छ चाजरये सो मैं
कर चुका । अब बाजतनी 10 राल कक िो दरिे फ़क़ीरों को राजसल रैं,
उस को ब्यान करता हूं – कक

जिस वि जनगार तुम्रारी कदमाग़ के भीतर उलट कर आसमान को


देखेगी और रूर तुम्रारी जिस्म 11 को छोड़कर उपर को चढ़े गी तो तुम
को आकाि नज़र पड़ेगा कक जिस में थाना सरसदल कूँ वल का रै और
रज़ारों पंखजड़याूँ उस की िुदा िुदा काम तीनों लोक का दे ररी रैं ।
उस की सैर को देख कर तुम बहुत ख़ुि रोंगे और तीन लोक के माजलक
का दिणन पाओगे । और बहुत से मज़रब इसी मुक़ाम को पाकर और
इसी को माजलक-कु ल गरदान कर 12 धोखा खा गये, और नूर और
तिल्ली 13 इस िगर की देख कर तृप्त रो गये, आगे चलने का रास्ता
बंद रो गया, मुर्शिद आगे का उनको न जमला, िो मुर्शिद जमलता तो
आगे का रास्ता खुलता, सो इस से आगे का राल सुनो ।

1. ऊपर बयान ककये हुए । 2. जनत्त नेम से । 3. भरम । 4. सचता ।


5. पुकार । 6. बेचनै ी। 7. िल्दी िैतान का काम रै । 8. दयालु ।
9. सामान । 10. अंतरी । 11. देर । 12. मान कर । 13. प्रकाि ।
बचन 21 जरदायतनामा 173

इस आकाि के ऊपर एक दरवाज़ा ऐसा बारीक और झीना रै कक िैसे


रौज़न1 सुई के नाके का रोता । चाजरये कक उस रौज़न में अपनी रूर को
प्रवेि करो2 और आगे उस के बंकनाल, टे ढ़ा रास्ता, कु छ दूर तक सीधा
गया और कफर नीचा पड़ा और कफर ऊूँचे को चढ़ा, उस नाल को पार
करके दूसरे आसमान पर सुरत पहुूँची ।

उस आसमान पर एक मुक़ाम जिकु टी कक उस को मुसल्लसी 3 करते रैं,


लाख िोिन वसीअ4 और लाख िोिन तवील5 रै । उस में लीला और
तमािे तरर-ब-तरर के रैं । िरर6 उसकी कराूँ तक करूूँ, मगर कु छ
करता हूूँ कक रज़ार आफ़्ताब 7 और रज़ार मारताब 8 उसकी रोिनी से
खजिल9 रैं और आवाज़ “ओं ओं” और “हू हू” और बादल की सी गिण बहुत
सुरावनी आठ परर रोती ररती रै । उस मुक़ाम को पा करके रूर को
बहुत सरूर 10 राजसल रोता रै और रूर भी बहुत पाक और लतीफ़ 11 रो
िाती रै । आलमे रूरानी 12 की खबर उस िगर से पड़नी िुरू रोती रै ।
कोई कदन उस िगर की सैर करके कफर ऊपर को चढ़ती रै ।

चढ़ते चढ़ते करोड़ िोिन ऊपर चढ़ कर तीसरा पदाण फोड़ कर सुन्न
में पहुंची कक जिस को फ़ु करा ने आलमे -लाहूत करा रै । उसकी तारीफ़
क्या कहूं उस मुक़ाम पर रूरें बहुत जवलास करती रैं और रोिनी वराूँ
की ऐसी रै कक बारर बारर जरस्सा ज़्जयादा रोिनी जिकु टी से मालूम
पड़ती रै तालाबे-ज़़ुलाली13 व रौिे-कौसरी14 पुर-अज़-आबे-रयात15 कक
जरन्दी में उसको मानसरोवर करते रैं, िा-ब-िा16 मौिूद रैं और ककतने
री गुलिन17 और चमन 18 जखले हुये नज़र पड़ते रैं और अकसर रूरें ब-
सुरते-नाज़नीनाूँ19 मुक़ामाते मुशतजलफ़ 20 पर रक़्स21 कर ररी रैं व
जग़ज़ाराय लतीफ़अज़-बस-िीरीं22 व ख़ुिनुमा23 तरोताज़ा तैयार रैं
1. जछद्र । 2. धसाओ । 3. जिकोन । 4. चौड़ा । 5. लम्बा । 6. जवस्तार ।
7. सूर ि । 8. चन्द्रमा । 9. लजित । 10. आनन्द । 11. सूक्षम । 12. चैतन्य ।
13. जनमणल, साफ़ । 14. अमृत कुं ड । 15. अमृत । 16. िगर िगर, रर िगर,
इधर उधर । 17. फु लवारी । 18. बाग़ । 19. खूबसूर त । 20. ज़़ुदा ।
21. नृत्य । 22. उम्दा खाना और जमठाई । 23. सुरावनी ।
174 सार बचन बचन 21

और नग्मरा1 व तरानरा2 रर िाजनब को रो ररे रैं । उस आनन्द व


सरूर को रूर रसीदा 3 िानती रै । करने में आ नरीं सिा, और रर एक
िगर जझरने आबे -रयात के िारी रैं यानी अमी सरोवर भरे रैं, अमृत
की धारा चल ररी रैं । रोनक़ 4 और ज़ेबाइि 5 उस मुक़ाम की क्या कहूूँ,
रीरों के चबूतरे , पन्नों की क्याररयाूँ, िवाजररात के पौदे, लाल और
चुजन्नयाूँ िड़े हुए नमूदार 9 रो ररे रैं । मछजलयाूँ मुर स्सा 7 उन तालाबों
में तैर ररी रैं । दम दम पर झलक कदखाती रैं । पल पल पर चमक
उनकी कदल को पकड़ती रै । आगे उसके अनन्त िीि मरल बने हुए रैं
और रूरें अपने अपने मुक़ामों पर मुवाकफ़क़ हुक्म माजलक अपने के
मुक़ाम8 रैं और कै कफ़यत और जबलास नये नये परस्पर देखती रैं और
कदखाती रैं कक जरन्दी में उन्रीं रूरों को रंस मंड ली करके बयान ककया
रै । नक़्िाबंदी9 उन मुक़ामों की देखने री के ताल्लुक़ रै । कु ल कारखाना
उस िगर का रूरानी रै यानी चैतन्य लतीफ़ 10 –कसीफ़11 और िड़ नरीं
रै-और वराूँ की रूरों में लताफ़त 12 और पाकी13 अज़-बस14 रै,
कसाफ़त15 और मलीनता जिसमानी याने बदन की नरीं रै, और िरर
उस सैरगार की फ़कीर िानते रैं । ज़्जयादा खोलना उस का मुनाजसब
नरीं । मुद्दत कसीर 16 उस िगर रूर इस फ़कीर की ने सैर की, कफर
मुर जिदों की जरदायत से आगे को चली ।

चलते चलते पाूँच अरब पछत्तर करोड़ िोिन उूँ ची गई । आलमे


राहूत 17 का नाका तोड़ा । उस आलम की सैर की । उस मुक़ाम का
बयान क्या करूूँ , दस नील तक ज़़ुलमात याने अूँधेरा रै । गरराई उस
जतजमर-खूँड की कराूँ तक वर्णन करूूँ खरब िोिन तक रूर नीचे उतर
गई, और थार उसकी राथ न लगी, कफर उलट कर ऊपर चढ़ आई और
िो जनिाना कक मुर्शिदों ने बताया था, उसकी सुध लेकर उसी रास्ते पर

1. राग । 2. रागनी । 3. पहुं ची हुई । 4. िोभा । 5. सिावट । 6. कदखलाई


दे ते रैं । 7. िड़ाऊ । 8. ठररी । 9. जचिकारी और बनावट । 10. सू क्ष्म ।
11. स्थू ल , नापाक । 12. सू क्ष्मता । 13. जनमण ल ता । 14. बहुत । 15. गं द गी ।
16. बहुत ज़्जयादा । 17. मरासु न्न ।
बचन 21 जरदायतनामा 175

चली और अंत लेना उस मुक़ाम का अनसब 1 न समझा । आगे को


बढ़ी । यर मैदान मरासुन्न का रै । इस िगर चार मुक़ाम जनरायत गुप्त
रैं और ककसी संत ने खोले नरीं । उस िगर रूरें बे - िुमार िो कक
मरदूद 2 दरबार सच्चे ख़ु दा की रैं, उनके बन्दी-खाने बने हुए रैं । रोिनी
में अपना अपना कारि करती ररती रैं ले ककन दिण न माजलक का उनको
नसीब नरीं रोता । दिणन के न जमलने से अलबत्ता बे - कली रै मगर एक
सूर त मु आ फ़ी की उनके वास्ते भी मुक़ रण र रक्खी गई रै कक िब िब
संत उस रास्ते से गुज़ र करते रैं और िो रूरें नीचे के लोकों में से संतों
के वसीले से िाती रैं, जिन जिन रूरों को कक इजत्तफ़ाक़ उन सं तों के
दिण नों का रो िावे, इन रूरों के ले िाने की िो ख़ु िी कक संतों को
रोती रै और उस सच्चे ख़ुदा की जनरायत मेर रबानी और अल्ताफ़ 3 इन
रूरों पर रोता रै, संत उन रूरों को बख़्िा कर कफर सच्चे ख़ुदा के पास
बु ल वा लेते रैं और राल उस िगर का बहुत से बहुत रै मगर
कराूँ तक कहूं ।

उस मुक़ाम को छोड़ कर आलमे - हूतलहूत में पहुंची कक जिसको


जरन्दी में भूँव रगुफा करते रैं कक वराूँ एक चक्कर कक जिसको सरडोलना
करते रैं , ऐसा लतीफ़ कफर ररा रै और रूरें उस िगर सदा झू ल ती
ररती रैं और जगदण उस के अनन्त दीप रूरानी बने हुए रैं और उन दीपों
में से आवाज़, “अनाहू अनाहू” सदा उठ ररी रै और रूरें और रंस उन्रीं
धु नों से रमेिा जबलास करते ररते रैं और िो िो जसफ़त 5 इस मु क़ाम
पर और रै वर ज्यों की त्यों जलखने में नरीं आती । दे ख ते री के ताल्लुक़
रै । िब रूर इस मागण को कमाती कमाती पहुं चेगी, तब आप

1. मुनाजसब । 2. जनकाली हुई । 3. दया । 4. आवाज़ । 5. तारीफ़ ।


176 सार बचन बचन 21

देख लेवेगी, इस वास्ते मुनाजसब रै कक इस तरीके की कमाई करे


िाओ । यर िग़ले आवाज़ रै । इस को मत छोड़ो । अब यराूँ की सैर
देख कर रूर आगे को चढ़ी ।

आकाि मागण रो कर यानी ऊूँ चे को चढ़ती चली िाती रै, दूर से


सुगंधें मलया-जगर की और कक़स्म कक़स्म के इतररयात की सी लपटें चली
आती रैं और धुनें बाूँस ररयों की अनंत सुनाई देती रैं । उन को सुनती
और सूूँघती हुई रूर यानी सुरत आगे को चढ़ती चली िाती रै । िब
इस मैदान के पार पहुंची, नाका सत्तलोक का राजसल हुआ कक वराूँ से
आवाज़ ”सत्त सत्त” और “रक़ रक़” बीन के बािे में से जनकलती सुनाई
दी कक उसको सुन कर रूर मस्ताना-वार1 धसी चली िाती रै । और
वराूँ नररें सुनररी और रूपररी पुर -अि-आबे-ज़़ुलाल2 दीखने लगीं और
बाग़ बड़े बड़े नज़र आये । एक एक दरख़्त उसका करोड़ करोड़ िोिन
की बुलंदी3 रखता रै और सूर ि और चाूँद करोड़ों बिाये फू ल और फलों
के लगे हुए रैं और अनेक रूरें और रंस उन दरशतों पर बिाय िानवरों
के चरचरे और जबलास कर ररे रैं । अिब लीला उस मुक़ाम की रै कक
करने में नरीं आ सिी । यर लीला देखती हुई रूर यानी सुरत सतलोक
में दाजखल हुई और सत्तपुरुष का दिणन पाया ।

अब सत्तपुरुष के स्वरूप का वर्णन करता हूूँ कक एक एक रोम उस का


इस क़दर मुन व्वर 4 रै कक करोड़ों सूर ि और चाूँद िरसमदा रैं । िब कक
एक रोम की ऐसी जसफ़त रै तो तमाम रोमों की क्या जसफ़्त जलखने में
आवे और जिस्म की तारीफ़ की कराूँ गुंिाइि, नैन नाजसका और श्रवर्
मुख और राथ और पाूँव का क्या वर्णन करूूँ , मरज़ 5 नूर6 रै, नूर का
समुद्र कहूूँ तो नरीं बनता ।

1. मतवाली । 2. अमृत से भरी हुई । 3. ऊूँचाई । 4. रौिन, प्रकािवान ।


5. जबलकु ल । 6. प्रकाि ।
बचन 21 जरदायतनामा 177

एक पदम पालंग घेर सत्तलोक का रै और पालंग की िुमार यर रै कक


यर जिलोकी एक पालंग रै । पद दराज़ी1 और वुसअत2 सत्तलोक की ककस
क़दर बड़ी हुई कक क़यास3 काम नरीं कर सिा, और रूरें पाक कक जिन
को रंस करते रै, वराूँ बसती रैं और सत्तपुरुष का दिणन करती रैं और
नवाय4 बीना िा-ब-िा सुन ररी रैं व जग़ज़ाय5 अमी रमेिा खाती ररती
रैं ।

इस मुक़ाम का भी जबलास देख कर रूर आगे को चली और अलख लोक


में पहुूँची । अलख पुरुष का दिणन पाया । एक संख का घेर उस लोक का रै
और अरब खरब सूरिों का उिाला एक एक रोम में अलख पुरुष के रै ।

कफर वराूँ से ऊपर को चली । अगम लोक को पाया कक जिस का घेर


मरासंख पालंग का रै और करोड़ संख की काया6 अगम पुरुष की रै
और वराूँ के रंसों के रूप भी अद्भुत रैं और जबलास भी वराूँ के अचरि
रूप रैं । इस िगर बहुत मुद्दत जवश्राम ककया ।

इससे आगे राधास्वामी यानी अनामी पुरु ष का दीदार ककया और


उस में समाई । वर बे -इजन्तरा 7 और बे - िुमार और बे - अंत रै और
फ़क़ीरों का जनि स्थान वरी रै । उस को पाकर के सब संत चु प रो गये
और मैं भी अब चुप रोता हूूँ । इतनी बड़ी भारी गजत फ़क़ीर और संत
की रै । और िो लोग कक परले री मुक़ाम पर थक गये और उसको बे -
इजन्तरा 7 और बे- अन्त करने लगे, पस उनके मुरीदों और सेव कों को
कै से इन मुक़ामात का जनश्चय कराया िाय ? जसवाय संत और फ़क़ीर
काजमल के कोई नरीं िान सिा और यक़ीन भी इन मुक़ामों का उन्रीं
को रोगा कक जिन को संत और फ़क़ीर भेदी इन मुक़ामों के जमले
रोंगे । उन को इन के बचन पर एतक़ाद 8 रोगा तो यक़ीन लायेंगे । यर
मुक़ाम न पैग़ म्बर साजरब पर खुले और न व्यास और वजिष्ठ को मालूम

1. लम्बाई । 2. चौड़ाई । 3. समझ, अनुमान । 4. आवाज़ । 5. आरार ।


6. जिस्म । 7. अपार । 8. जनश्चय ।
178 सार बचन बचन 21

हुए, पस जरन्दू और मुसलमान कोई इसका यक़ीन कर नरीं सिा । उन


को इस राल का सुनाना भी ज़रूर नरीं क्योंकक वे पैग़म्बर और कु रान के
पाबन्द रैं और जरन्दू व्यास वजिष्ठ और वेद के कै दी रैं । इनसे यर बचन
सुने भी नरीं िावेंगे ।

इससे मुनाजसब रै कक जिस ककसी को एतक़ाद फ़क़ीर और संत पर


ऐसा रै कक इन सब से आगे संत पहुूँचे रैं और संतों की मजरमा बहुत भारी
रै और ख़ुदा और परमेश्वर दोनों के पैदा करने वाले संत रैं और इनकी
गजत को वे दोनों नरीं िान सिे , ऐसा एतक़ाद संत और फ़क़ीर पर जिस
ककसी का रै, उसको सुनना और करना इस राल का फ़ायदा करे गा । इस
वास्ते रर एक को यर सुनाना न चाजरये िब तक कक एतक़ाद उस का
ऐसा परख न जलया िावे िैसा कक ऊपर मैंने बयान ककया रै ।

।। ग़ज़ल फ़ारसी व तरिुमा ।।


बीच बयान चढ़ने रूर के अिण यानी आसमान
पर और पहुूँचना मुक़ाम हूत यानी सत्तलोक
और सैर मुक़ामात रास्ते के

।। ग़ज़ल परली ।।
मुर्शिदा आजिक़े दीदारे िमालत गश्तम ।
रे सतगुरु मैं तुम्रारे स्वरूप के दिणन का आजिक हुआ हूूँ ।
कदल खस्ता व िाूँबाख़्ता अज़ ख़ुद रफ़्तम ।।1।।
मन मुरझाया हुआ और िान से खोया हुआ और आपे से बाजरर हूूँ ।
यक जनगारे तो मरा चाक जगरे बां करदा ।
आप की एक नज़र ने मुझ को दीवाना और परे िान कर कदया ।
बचन 21 ग़ज़ल फ़ारसी व तरिुमा 179

रमचो मिनूूँ पए लैला चे परे िां करदा ।।2।।


िैसे मिनूूँ लेला के वास्ते हुआ ।

ददणमन्देम कदगर रेच न दरमाूँ दारे म ।


मैं दुजखया हूूँ और मेरा कोई इलाि नरीं रै ।

लुत्फ़े गुफ़्तारे जिगर रे ि चो मररम दारे म ।।3।।


आप के बचन मेरे ज़खमी कदल के जलये मररम रैं ।

रूए ज़ेबाय तो तारे कदले मन नूराूँ कदण ।


आप के िोभायमान मुखड़े ने मेरे अंधरे े मन को ऐसा रौिन ककया ।

मार व ख़ुरिैद रज़ाराूँ ब फ़लक जखिलाूँ कदण ।।4।।


कक रज़ारों िाूँद सूरि आसमान पर िरजमन्दा रैं ।

दौरे अफ़लाक चुनाूँ गरकदिे दौराूँ करदा ।


आसमानी चक्र ने ऐसी गरकदि ज़माने की की रै ।

आजिकाूँ रा ज़े क़दमबोजसये मरबूब नुमायाूँ करदा ।।


कक प्रेजमयों के प्रीतम के चरनों में लगने से मिहूर और ज़ाजरर ककया ।

जरसे दुजनया ज़े दरूनम रमा बेरूूँ गरदीद ।


संसार की चार मेरे अन्तर से जबलकु ल जनकल गई ।

िोक़े दीदार कदलम रा रमा सर पुर पेचीद ।।6।।


और दिणनों के िौक़ ने मेरे मन को भर कर फे र कदया ।

मररबा बख़्ते सफ़े दम क़दमे यार जगररफ़्त ।


धन्य रै मेरे भाग कक मैंने प्रीतम के चरन पाए ।

रूरे मन िक़्के क़मर कदो फ़लक रा जबजगररफ़्त ।।7।।


और मेरी सुरत चाूँद को चीर कर आसमान पर पहुूँच गई ।

नग़्मरा नेक िुनीदम व जनदारा वाकफ़र ।


वराूँ राग और राजगनी और आवािें सुरावनी सुनी ।

काबा बुतखाना ब जनज़्जदम िुदा रर दो क़ाकफ़र ।।8।।


और मेरे नज़दीक मसजिद और मंकदर दोनों काकफ़र मालूम हुए ।
180 सार बचन बचन 21

।। ग़ज़ल दूसरी ।।
अंदरूूँ अिण रफ़्ता दीदम नूर ।
अिण यानी आसमान पर पहुूँच कर मैंने नूर देखा ।
कु श्ता िैताूँ व रम दमीदम सूर ।।1।।
और िैतान यानी काल को मार कर सूर को फूं का ।
(प्रलय यानी क़्यामत का बािा बिाया ।)
रोिे तन रफ़्त रूर बाला िुद ।
तन का रोि न ररा और रूर यानी सुरत ऊूँचे को गई ।
िा जगररफ़्ता ब िा कक साजबक़ बूद ।।2।।
और िराूँ कक पजरले थी वराूँ पहुूँच कर ठररी ।

ददण मंदाने इश्क़े कू ए वरीद ।


अब िो कोई दरदी प्रीतम एक माजलक की गली के रैं ।
मेकिम अज़ िमा बसूए फ़रीद ।।3।।
उन को मैं भीड़ भाड़ से एकान्त में यानी बारर से अन्तर में लाता हूूँ ।
रचे गोयम िुनो बगोिे तमीज़ ।
अब िो कु छ कक मैं करता हूूँ उस को कान देकर सुनो ।
रूर रा कि रसाूँ ब सौते अज़ीज़ ।।4।।
कक अपनी सुरत को उस प्यारी आवाज़ में खैंच कर लगाओ ।
दर कदमाग़े तो गुलिनो मिजलस ।
तुम्रारे मस्तक में बाग़ व मरकफ़ल मौिूद रैं ।
सैर कु न तेज़ रौ ज़े मुर्शिद पुसण ।।5।।
सतगुर से पूछ कर िल्दी चलो और उस की सैर करो ।
चश्म बंदो व मदुमक
ण दर कि ।
अपनी आूँखें बंद करके पुतली को चढ़ाओ ।
बर फ़लक रौ कु िादा कु न तो दरि ।।6।।
और आसमान पर पहुूँच कर उस का दरवािा खोलो ।
बचन 21 ग़ज़ल फ़ारसी व तरिुमा 181

अन्दरूनि रवाूँ चो रूर नमूद ।


िब आसमान के अन्दर सुरत चलने लगे तब वराूँ की सैर करो ।
कु न तो सुरैि जनगर बरारे विूद ।।7।।
और इस िरीर में बरार देखो ।
दर विूदत अिब तमािाए ।
तुम्रारी देर में अिब तमािा रै ।
आसमाूँ ज़ेरो अज़ण बालाए ।।8।।
कक आसमान नीचे और ज़मीन ऊपर रै ।
कि नए दाद रार रूरम रा ।
बंकनाल के रास्ते से रो कर सुरत चली ।
दर रसीदम मुसल्लसी रर िा ।।9।।
और जिकु टी स्थान पर पहुूँची ।
िम्स दीदम बरं गे सुखण आूँ िा ।
वराूँ सूरि लाल रं ग का देखा ।
ख़ुर रज़ाराूँ न रमसरत ज़ेबा ।।10।।
कक जिसकी बराबरी रिारों सूरि भी नरीं कर सकते ।
मुल्के लाहूत पेि अज़ाूँ याबी ।
उस के आगे लाहूत का मुक़ाम रै ।
सुन्न मेगोयंद ओरा दर जरन्दी ।।11।।
कक जिसको जरन्दी में सुन्न करते रैं ।
सौते आूँिा जनदा रमीं दारद ।
वराूँ की आवाि का यर सरूप रै ।
रम्चो ककगरी व सारूँ गी आयद ।।12।।
िैसे कक सारं गी और ककगरी बिती रै ।
रौज़े आबे ज़़ुनान दीदम पुर ।
और अमृत के कु ण्ड भरे कदखलाई कदये ।
मेखऱु ं द आजमलाूँ दराूँिा दुर ।।13।।
और अभ्यासी वराूँ मोती चुगते रैं ।
182 सार बचन बचन 21

चूूँ गुज़श्तम ज़े आलमे लाहूत ।


िब मुक़ाम लाहूत यानी सुन्न से आगे चला ।
दर रसीदम ब आलमे राहूत ।।14।।
तो मुक़ाम राहूत यानी मरासुन्न में पहुूँचा ।
राले आूँिा बकै बुगोयं बाज़ ।
वराूँ का राल ककस से और कै से करा िावे ।
रूर रफ़्ता रर कक दानद आूँ आवाज़ ।।15।।
जिस की सुरत वराूँ पहुूँची रै वरी उस को और उस की आवाज़ को िाने ।
सौते पोिीदा रस्त तर बारीक ।
वराूँ आवाज़ जनरायत गुप्त और झीनी रै ।
साख़्त रारि ब क़ु दरते तारीक ।।16।।
और उस का रास्ता क़ु दती अंधरे ा बनाया गया रै ।
मुरजिद रमरार िुद दराूँ मैदाूँ ।
उस मैदान में सतगुरु आप संग हुए ।

िुदा रैराूँ बराय ओ िैताूँ ।।17।।


और उन को देख कर िैताने अज़ीम यानी मराकाल रैरान रो गया ।
रूर आूँ िा गुज़श्त बाला रफ़्त ।
कफर सुरत उस मुक़ाम को भी छोड़ कर ऊपर को गई ।
सौत अनाहू िुनीद दीद जगरफ़्त ।।18।।
और वराूँ आवाज़ अनाहू यानी भूँवर गुफा के स्थान की सुनी और देखी और पकड़ी ।
हूतल्हूत आलमे अिायब याफ़्त ।
आगे मुक़ाम हूतल्हूत यानी भूँवर गुफा अचरि रूप पाया ।
रूर रा अन्दरूूँ दरीचा ताख़्त ।।19।।
और रूर को जखड़की के अन्दर से दौड़ाया ।
पस जबरफ़्तो रसीद आलमे हूत ।
कफर चल कर मुक़ाम हूत यानी सत लोक में पहुूँची ।
बचन 21 ग़ज़ल फ़ारसी व तरिुमा 183

याफ़्त आबे रयात दम दम क़ू त ।।20।।


और वराूँ अमृत का दम दम पर आरार ककया ।
पेि अज़ाूँ रचे रस्ती रस्त ।
अब इसके आगे िो रै वर के वल सत्य री रै ।
लबे मन िुद खमोि बारम बस्त ।।21।।
और अब यराूँ मैं रोंट बंद करके चुप रोता हूूँ ।
िुज़ फ़क़ीरे कसे न याफ़्त मुक़ाम ।
जसवाए संत के यर मुकाम ककसी ने नरीं पाया ।
राधास्वामी न गुफ़्त आूँ रा नाम ।।22।।
और राधास्वामी भी उसको अनामी करते रैं ।

।। गज़ल तीसरी ।।
आजिक़म ज़ाते मुर्शिदे काजमल ।
मैं सतगुर पूरे के जनि सरूप का प्रेमी हूूँ ।
कदले मन िूद ब क़ौले िाूँ माइल ।।1।।
और मेरा मन उनके बचन का आजिक रै ।
चूूँ जगररफ़्तम क़दम व खाके क़दम ।
अब से मैनें उनके चरन पकड़े और चरन धूर ली ।
ज़़ुलमते कदल िुदा रमा ज़ाइल ।।2।।
तब से मेरे मन का अंधरे ा जबलकु ल दूर रो गया ।
रूए ज़ेबा व क़द्दे सवे रवाूँ ।
और सतगुरु के सुरावने सरूप और खूबसूरत क़द्द ।
नूर दर सीना नफ़्स रा क़ाजतल ।।3।।
और नूर ने सीने में काल अंग को काट डाला ।
सोरबते मुर्शिदो कलामे रिीद ।
सतगुर के संग और उनके पहुूँचे हुए बचन ने ।
कदण दुजनया व दीन रा बाज़िल ।।4।।
दीन व दुजनया को झूठा कदखला कदया ।
184 सार बचन बचन 21

राज़े जपनराूँ विूद िुद ज़ाजरर ।


और देर के अन्तर का भेद सब खुल गया ।
याफ़्तम लुत्फ़े मुर्शिदे आजमल ।।5।।
और मुझ पर सतगुर पूरे की मेरर हुई ।
रूरे जम चूूँ जगररफ़्त आवाज़े ।
और जिस वक़त मेरी सुरत ने आवाज़ को पकड़ा ।
बर फ़लक दर रसीद िुद क़ाजबल ।।6।।
उसी वक़त आसमान पर पहुूँची और समझ वाली रो गई ।
दीद नौरस बरार रफ़्त जखज़ाूँ ।
और वराूँ नई बरार देखी और जखिाूँ (पतझड़) दूर हुई ।
इल्मे अिी बयाफ़्त िुद फ़ाजज़ल ।।7।।
और आकािी (परा) जवद्या पढ़ कर मरा ज्ञानी रो गई ।
कु लफ़ते मौतो रं िे पैदाइि ।
िन्म मरन के दुखों पर पदाण पड़ गया ।

बर रूखे रर दो परदा िुद राइल ।।8।।


यानी दूर रो गया ।
राज़े बाजतन िुदा व मन ज़ाजरर ।
अन्दर का भेद मुझ पर उसी वक़त प्रगट रो गया ।
चूूँ िुदम पेिे पीरे ख़ुद साइल ।।9।।
िब कक मैं अपने सतगुर का मङ्गता हुआ ।

जिस्मे खाकी गुज़ाश्तम जबलफ़े ल ।


और इस खाक़ी देर की करतूत मैं ने फौरन छोड़ दी ।
िुदा िैताूँ बराय मन काजरल ।।10।।
और िैतान यानी काल मेरे वास्ते मुरझा गया ।
रूर परवाज़ कदण िाजनबे अिण ।
सुरत उड़ कर गगन को चली ।
बचन 21 ग़ज़ल फ़ारसी व तरिुमा 185

फ़े लो मफ़ऊल रफ़्त िुद फ़ाइल ।।11।।


कारर् व कायण को छोड़ कर आप कताण रो गई ।
नज़रे मेरर कदण मुर्शिदे मन ।
िो मेरे सतगुर ने मेरर की दृजष्ट की ।
जरज्र बुगज़
ु श्त मन िुदम वाजसल ।।12।।
तो जवयोग िाता ररा और संयोग रो गया ।
ज़ाजरदो मुत्तक़ी नमाज़ी पंि ।
िती तपी और नेमी धमी और पाूँचो वक़त नमाज़ी ।
कस न दानद चुनाूँ बिुज़ िाजग़ल ।।13।।
इस कै फ़ीयत व आनन्द को नरीं िानते रैं पर अभ्यासी िानें ।
रूबरू आजमलाने बाजतन फ़रम ।
अन्तर-मुख अभ्यासी और अनुभवी पुरूषों के सामने ।
आजलमाूँ इल्मे ज़ाजररी िाजरल ।।14।।
जवद्यावान और बाजरर-मुखी ज्ञानी मूखण रैं ।

रमा दुजनया कफ़तादा दर िुबरात ।


तमाम संसार संश्य और िकों (भ्मों) में पड़ा रै ।
रर कक रादी न याफ़्त िुद नाकक़ल ।।15।।
जिस को सतगुर पूरे न जमले वरी वाचक ब नक़ली ररा ।
िुमला रा कदण जिरल ज़ेरो ज़बर ।
ये सब मूखत
ण ा के चक्र में रैरान व परे िान रो ररे रैं ।
मुर्शिदे याफ़्त िुद रमा आकक़ल ।।16।।
जिस को सतगुर पूरे जमलें उसी को समझ आई और अनुभव हुआ ।
याफ़्ता राधास्वामी मेररे फ़क़ीर ।
राधास्वामी करते रैं कक संतों की मेरर हुई ।
रम िुदा लुत्फ़े एजज़दी िाजमल ।।17।।
और कु ल माजलक की दया भी िाजमल हुई ।
186 सार बचन बचन 22

।। बचन बाईसवाूँ ।।
भेद काल मत और दयाल मत का और
वर्णन राल भूल भमण संसाररयों का
और मजरमा सतगुरु भजि और सुरत िब्द मागण की
।। िब्द परला ।।
चार खान चौपड़ िग रची । अंड1 िेर2 सेति3 उतभुिी4 ।।1।।
माया ब्रह्म पुरुष प्रकृ जत । मन इच्छा खेलें जिव िजि ।।2।।
सुरत नदण5 ता में बहु पची । धूम खेल की अजत कर मची ।।3।।
तीन गुनन का पांसा लीन्र । रिोगुन तमोगुन सतोगुन चीन्र ।।4।।
कमण राथ से पांसे डारे । भोग अंक ता में जबस्तारे ।।5।।
झूठ ूँ ी बाज़ी िानी सच्ची । कोइ पक्की कोई मारे कच्ची ।।6।।
नदण सुरत चौरासी घर में । भरमत कफरे दुक्ख और सुख में ।।7।।
रारे ब्रह्म और िीते माया । िीव नदण बहु जवजध दुख पाया ।।8।।
कजभ कजभ ब्रह्म िीत िो रोई । नदण लाल रोय ब्रह्म घर सोई ।।9।।
चौपड़ से बारर नसर रोई । जनि घर अपना पाये न कोई ।।10।।
माया ब्रह्म जखलाड़ी दोई । खेलें इन नरदन से सोई ।।11।।
भरमे नदण जपटे और कु टे । दुख उनका कोई नसर सुने ।।12।।
सभी नदण पछतावें दम दम । कै से छू टें इन से अब रम ।।13।।
करें फ़याणद दाद6 नसर पावें । रोवें झीखें और जचल्लावें ।।14।।
बार बार भरमें चौरासी । कोई न काटे उनकी फाूँसी ।।15।।
श्रुजत जसमृत और वेद पुरान । सबरी मारें इनकी िान ।।16।।
माया काल जबछाया िाल । अपने स्वारथ करें बेराल7 ।।17।।
कोई गोट न िावे घर को । र्यराूँ री खेल जखलावें सब को ।।18।।
सत्त पुरुष देखा यर राल । काल हुआ िीवन का काल ।।19।।

1. अन्डि यानी िो अन्डे से पैदा रोते रै । 2. िेरि यानी िो जझल्ली से पैदा रोते
रै । 3. स्वदेि यानी िो पसीने से पैदा रोते रै । 4. उजिि यानी िो जमट्टी या
खान से पैदा रोते रैं । 5. गोट । 6. इनसाफ़ । 7. परे िान, दुखी ।
बचन 22 भेद काल मत व दयाल मत का 187

अपने स्वाद िीव भरमावे । पता रमारा काहु न िनावे ।।20।।


पुरुष दयाल दया उमगाई । संत रुप धर िग में आई ।।21।।
नदणन को बहु जवजध समझाया । काल जनदणई तुम को खाया ।।22।।
अब मैं कहूं करो तुम सोई । िाल िाल1 कर न्यारे रोई ।।23।।
सतगुरु संग बाूँध िुग चलो । चोट न खावो काल बल दलो ।।24।।
यर घर काल बसाया आन । तुम को लाया रमसे माूँग ।।25।।

दोरा

यर तो घर रै काल का, घर अपना मत मान ।


जनश्चय करके माजनयो, िो अब करूूँ बखान ।।26।।

जनि घर तुम्ररा रमरे देि । अब मैं कहूं देि सन्देि ।।27।।


सत्तनाम सतपुरुष कराई । चौथा लोक संत करें भाई ।।28।।
ता के परे अलखपुर बसा । संत सुरत जबन कोई न धसा ।।29।।
अगम लोक रचना जतस परे । जबन वराूँ पहुंचे काि न सरे 2 ।।30।।
आगे ता के जनि घर िान । राधास्वामी धाम जपछान ।।31।।
इन लोकन की िोभा भारी । देखे सो जिन िुजि सम्रारी ।।32।।
अब िुजि का भेद सुनाऊूँ । सुरत िब्द की रार लखाऊूँ ।।33।।
मन इन्द्री उल्टो घट मारीं । सुरत जनरत दोउ नैन िमाई ।।34।।
सरसकूँ वल चढ़ जिकु टी आओ । सुन्न के परे मरासुन पाओ ।।35।।
भूँवरगुफा सतलोक जनरारो । अलख अगम के पार जसधारो ।।36।।
राधास्वामी करी बनाय । चौपड़ खेली अद्भुत आय ।।37।।
पौ पर बाज़ी अटकी आय । गुरु जबन पौ का दाव न पाय ।।38।।
संत सतगुरु िो िन पाय । चौपड़ से बारर रो िाय ।।39।।
जनि घर अपने िाय समाय । राधास्वामी दिणन पाय ।।40।।

1. िला कर । 2. बने ।
188 सार बचन बचन 22

।। िब्द दूसरा ।।

सुरत बुन्द सत ससध ति । आई दसवें द्वार ।।1।।


व्राूँ से उतरी सपड में । बसी आय नौ वार ।।2।।
मन इन्द्री सम्बन्ध कर । पड़ी िगत को लार1 ।।3।।
िन्म िन्म दुख में ररी । बरी चौरासी धार ।।4।।
सुध भूली घर आकद की । सत्तपुरुष दरबार ।।5।।
नर देरी िब िब जमली । ककया न सतगुरु प्यार ।।6।।
संिय सोग भरमत ररी । क्यों कर उतरे पार ।।7।।
सतगुरु संत दया करी । आये धर औतार ।।8।।
बहु जवजध अब समझावरीं । मारग िब्द पुकार ।।9।।
काल जबछाया िाल अस । गुप्त ककया मत सार ।।10।।
करम भरम पाखंड का । कीन्रा बहुत पसार ।।11।।
जवद्या रस ज्ञानी ठगे । बाचक अजत अरंकार ।।12।।
िड़ चेतन ग्रन्थी2 बूँधे । थोथा करें जवचार ।।13।।
सुरत िब्द की रार को । करें न अंगीकार ।।14।।
मन बैरी धोखा कदया । तिे न मूल जवकार ।।15।।
इन की संगत मत करो । यर मारें घेरा डार ।।16।।
खोिी कोइ कोइ रोयगा । बादी4 सब संसार ।।17।।
रोज़गारी भेखी सभी । मानी मान अधार ।।18।।
राधास्वामी गाइया । इन से ररो हुजियार ।।19।।
संत सरन दृढ़ कर गरो । काल का बड़ा बररयार5 ।।20।।
सुरत न पावे िब्द रस । तब लग ररे ख़ुवार6 ।।21।।
ता ते सतगुरु संग कर । पहुंची जनि घर बार ।।22।।
।। िब्द तीसरा ।।
काल मत िग में फै ला भाई । दयाल मत भेद न काहू पाई ।।1।।

1. संग । 2. गाूँठ । 3. खाली । 4. झगड़ा करने वाले । 5. बलवान ।


बचन 22 भेद काल मत व दयाल मत का 189

बेद पुरान िास्त्र और जसमृत । इन सब रूूँधा1 मारग आई ।।2।।


ब्ररमा जवष्र्ु मरादेव िजि । दस औतार िाल फै लाई ।।3।।
ज्ञानी िोगी और संन्यासी । ब्रह्मचार तपसी भरमाई ।।4।।
करा कहूं सारा िग भूला । कोइ जबरले संत िनाई ।।5।।
पंजडत भेख टेक में भूले । सब भौ धार बराई ।।6।।
सारेब कबीर और तुलसी सारेब । दयाल मता इन आन चलाई ।।7।।
राधास्वामी खोल सुनाई । मैं भी इन संग मेल जमलाई ।।8।।
।। िब्द चौथा ।।
इक पुरुष अिायब पाया । कोई ममण न उसका गाया ।।1।।
जबन संत राथ नसर आया । ऋजष मुजन सब धोखा खाया ।।2।।
क्या व्यास वजिष्ठ भुलाया । क्या िेष मरेि भ्माया ।।3।।
पारासर िोगी नारद । श्रृग
ं ी ऋजष ग़ोता खाया ।।4।।
रंम करें कौन समझाई । परतीत न कोई लाया ।।5।।
संतन यर भाख सुनाया । कोइ गुरुमुख बूझ बुझाया ।।6।।
घट घट में काल समाया । श्रुजत जसमृत िाल जबछाया ।।7।।
खट िास्तर बुजद्ध चलाया । अंधे जमल धूल उड़ाया ।।8।।
कु छ राथ न उनके आया । जबन सतगुरु भटका खाया ।।9।।
संतन वर देि िनाया । तब तुच्छ िीव भी पाया ।।10।।
नीचों को घाट लगाया । ऊूँचों को काल बराया ।।11।।
राधास्वामी पता बताया । खोिी की कमर बूँधाया ।।12।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
मैं कहूूँ कौन से भाई । कोइ मेली नज़र न आई ।।1।।
िो बात संत बतलाई । काहू से मेल न खाई ।।2।।
जतरलोकी सभी सुनाई । चौथे का ममण न गाई ।।3।।
जिस चौथा लोक िनाई । सो अचरि करते भाई ।।4।।

1. बन्द ककया ।
190 सार बचन बचन 22

कोई माने न बहुत मनाई । अब क्यों कर करूूँ लखाई ।।5।।


मैं समझ यरी जचत लाई । जबन मेरर न सरधा आई ।।6।।
िो सतगुरु रोयूँ सराई । तो सभी बात बन आई ।।7।।
ता ते यर जगनत1 जमटाई । राधास्वामी चुप्प रराई ।।8।।

।। िब्द छठा ।।

कहूं अब गोपी कृ ष्र् जवरार2 ।। टेक ।।


मन रै कृ ष्र् इजन्द्रयाूँ गोपी । लीला भोग जवकार ।।1।।
कामाकदक सब ग्वाल बाल सूँग । जबन्द्रावन तन करत जखलार ।।2।।
नंद अनंद रूप जपत अपना । छोड़ जतरकु टी द्वार ।।3।।
नाद धाम ति िगत सम्रारा । आय फूँ सा नौ वार ।।4।।
कं स रूप अज्ञान जनिाचर3 । पड़ गया इस मन लार ।।5।।
नाद ज्ञान ले करी चढ़ाई । मारा कं स गूँवार ।।6।।
राधा सुरत जमली जिस मन को । वरी कृ ष्र् पहुंचा दस द्वार ।।7।।
आगे का गुरु जनला न उसको । ररा काल के िार4 ।।8।।
यर दोउ लीला कृ ष्र् सम्रारी । कभी नौ में और कभी दस द्वार ।।9।।
संत धाम इन भेद न पाया । काल हुआ यर कृ ष्र् मुरार ।।10।।
ता ते संतन वर्ण सुनाया । कृ ष्र् काल दोउ एक जवचार ।।11।।
िब लग सुरत न पावे सतपुर । ररे काल के वार5 ।।12।।
ता ते सतगुरु करत िनाई । छोड़ो कृ ष्र् दुआर ।।13।।
आगे चलो संत मत परखो । िाकी ऊूँची धार ।।14।।
चौथा लोक संत गुररावें । सत्त नाम पद सार ।।15।।
सुरत िब्द का मारग धारो । पहुंचो जनि घर बार ।।16।।
राधास्वामी करत बुझाई । त्यागो काल लबार6 ।।17।।
यरी राल तुम राम जवचारो । दोनों रैं इकतार7 ।।18।।

1. खयाल । 2. खेल । 3. राक्षस । 4. िाल । 5. द्वार । 6. झूठा ।


7. एक से ।
बचन 22 भेद काल मत व दयाल मत का 191

राम कृ ष्र् दोउ िग में आये । काल धरे औतार ।।19।।


वरी रावन को मार राम ने । सीता सुमत सुधार ।।20।।
आय अिुध्या तन के भीतर । राि जलया दस द्वार ।।21।।
पजरले जवपता बहुतक भोगी । िब लग चढ़े न जिकु टी पार ।।22।।
संत मता इनहूं नसर िाना । ररे काल के गार1 ।।23।।
राधास्वामी कर समझावें । कृ ष्र् राम दोनों ति डार ।।24।।
दस औतार काल के िानो । सब री से तुम गरो ककनार2 ।।25।।
चौथा पद िो संत बतावें । सुरत िब्द ले उतरो पार ।।26।।

।। िब्द सातवाूँ ।।

देखो गगन बीच, श्याम कं ि जखल ररा ।


भूँवरा गया लुभाय, वरीं चढ़ के जमल ररा ।।1।।
धोखे का वर मुक़ाम, उसे देखता ररा ।
बहु जसद्ध नाथ िोगी, उन्रें पेखता3 ररा ।।2।।
काल अपना िाल एक, िुदा री जबछा ररा ।
िो िो गये वराूँ, उन्रें उलटावता ररा ।।3।।
नाना कला4 कदखाय, वरीं मोरता ररा ।
सब की कमाई आप, खड़ा खोसता5 ररा ।।4।।
क्या क्या कहूं, अनथण बहुत भाूँजत कर ररा ।
जबन संत सतगुरु , वर सभी को जनगल ररा ।।5।।
आगे न कोइ िाय, इसी में भुला ररा ।
माया का झूला डाल, मुनन को झुला ररा ।।6।।
द्वारे के पार काहु को, िाने न दे ररा ।
कफर भेद व्राूँ के पार का, सबरी ढका ररा ।।7।।
क्या िेष क्या मरेि, सभी रार कर ररा ।

1. मुर
ूँ । 2. अलेरदगी । 3. देखता । 4. लीला । 5. छीनता ।
192 सार बचन बचन 22

जबन संत उसके पार, कोई भी न िा ररा ।।8।।


सो भेद राधास्वामी, सभी को सुना ररा ।
जिस पर रै मेरर उनकी, वर परतीत ला ररा ।।9।।

।। िब्द आठवाूँ ।।

जपया जबन प्यारी कै से रोय जनबार ।। टेक ।।


तू तो अचेत कफरे बौरानी । कस पावे सच िार ।।1।।
िगत भाड़ में क्यों तू भुनती । पावे जनस कदन दार ।।2।।
छोड़ उपाजध करो सत संगत । ले सतगुरु से रार ।।3।।
इन्द्री भोग जवसारो मन से । छोड़ो सब की चार ।।4।।
चेतन रूप जवचारो अपना । कफर लगो िब्द घट आय ।।5।।
करना मान जपयारी मेरा । अब तै1 पाया दाव ।।6।।
अब के चूके ठौर न पइरो । ररो बहुत पछताय ।।7।।
ता ते पजरले सोधो2 आपा । कफर सतनाम समाय ।।8।।
रार रकाना3 गुरु से लेना । सरन पड़ो उन िाय ।।9।।
जबन सरना उन काि न सरररै । ठग संग कारे ठगाय ।।10।।
पंजडत भेख देर अजभमानी । िग संग ररे गरठयाय4 ।।11।।
करम भरम संग हुए बावरे । तीरथ बरत पचाय ।।12।।
गंगा िमना मूरत मंकदर । माला जतलक लगाय ।।13।।
िप तप संिम और अचारा । िाजत बरर् जलपटाय ।।14।।
जिखा5 सूत6 और धोती पोथी । नेम धरम अटकाय ।।15।।
चौका दे दे करे रसोई । कच्ची पक्की छू त लगाय ।।16।।
पानी साथ िुद्धता मानें । नाम मरातम जचत न समाय ।।17।।
चौके बैठे मछली खावें । भिन साथ उपाजध लगाय ।।18।।
जवद्या पढ़ पढ़ मानी रोवें । पत्थर पानी िगत पुिाय ।।19।।

1. तू, तुम । 2. साफ करो । 3. तरकीब । 4. गठ ररे । 5. चोटी ।


6. िनेऊ ।
बचन 22 भेद काल मत व दयाल मत का 193

दान पुण्य की मजरमा गावें । देवी देवा ररे भुलाय ।।20।।


मथुरा कािी गया द्वारका । जपत्तर पूिा दाग़ दग़ाय1 ।।21।।
चारधाम2 पृथवी पररकमाण । धूर फाूँक कफर घर को आय ।।22।।
करम चढ़ाये भरम भुलाये । दुख भोगें कु छ लाभ न पाय ।।23।।
िड़ बुजद्ध अजभमानी भारी3 । सतसंग बचन न जचत ठरराय 24।।
गंगा िमना पाप कटावें । गोबर बजछया मूत जपलाय ।।25।।
पिु रोय पिुवन को पूिें । पीपल तुलसी पेड़ लगाय ।।26।।
नर देरी की सार न िानें । चौरासी में ग़ोता खाय ।।27।।
संत सीत4 और गुरु परिादी । चरनामृत को दोष लगाय ।।28।।
ऐसे मूरख भटका खावें । तुम उन संग करो मत भाय5 ।।29।।
कथा पुरान सुनावत डोलें । जिवका कारर् भटका खाय ।।30।।
िीव अकाि न सोचें कबरी । मान लोभ में ररे जलपटाय ।।31।।
सुनत सुनावत मरम न पावत । अरंकार में ररे भुलाय ।।32।।
भजि भाव की सार न िानत । िगत ठगौरी6 जनस कदन खाय 33।।
माया िाल जबछाया भारी । ऋजष मुनी सब धर धर खाय 34।।
दस औतार िती और िोगी । पंजडत ज्ञानी ररे पछताय ।।35।।
संत मते की सार न िानें । काल मते में अवजध7 जबराय8 36।।
सतगुरु जबन सब धोखा खावें । जनि घर अपने कोई न िाय ।।37।।
िगत िाल में ररे फूँ साई । बार बार चौरासी धाय ।।38।।
सुरत िब्द मारग अजत सूधा । ता का मरम न को कोई पाय 39।।
ऐसी भूल पड़ी िग मारीं । रम ककस ककस को करें बुझाय 40।।
िो िो संत सरन में आवें । सो सो पावें घर की रार ।।41।।
अब आरत सतगुरु की करहूं । बहुत करा यर झगड़ा गाय़ ।।42।।
सुरत चढ़ाय चलूूँ नभ ऊपर । सरसकूँ वल में बैठूँू िाय ।।43।।

1. बदन पर गरम लोरे से द्वारका में दाग़ लगवाना । 2. िगन्नाथ, बद्रीनाथ,


द्वारका, रामेश्वरम् । 3. बढ़के । 4. परिादी । 5. भाव, प्रीत । 6. धोखा ।
7. अवस्था, उमर । 8. जबताया ।
194 सार बचन बचन 22

वरां से बंक जतरकु टी छेदूँू । सुन्न जिखर में आसन लाय ।।44।।
मरासुन्न और भंवरगुफा पर । सत्तलोक में पहुंची धाय ।।45।।
अलख अगम के पार जसधारी । वराूँ आरती कीन्री िाय ।।46।।
प्रेम खिाना जमला अपारा । राधास्वामी जलये ररझाय ।।47।।
।। िब्द नवाूँ ।।
मैं भूली सतगुरु स्वामी । मैं चूकी अंतरिामी ।।1।।
क्या क्या कहूं जबथा1 बखानी । सब िग को पंजडयन कीन्र दीवानी ।।2।।
ब्राह्मर् और भेखन बहु भरमानी । ऊभट2 में पड़े भटक भटकानी ।।3।।
मारग िो सीधा दीन्र जछपानी । तीरथ और बरतन मासर भुलानी ।।4।।
गया गायिी रार खुलानी । यर कमण प्रवृजत्त3 करें करानी ।।5।।
उलटे जगर भौिल ग़ोता खानी । यर साधन जपछले हुए पुरानी ।।6।।
श्रुजत जसमृजत व्यास आकदक करें बखानी ।
यर साधन मुजि जनजमत्त न िानी ।।7।।
जनरवृजत्त4 साधन यों कर गानी । कलिुग में एक नाम जनधानी ।।8।।
सतगुरु सेवा सतसूँग ठानी । अब जनरवृजत पर जिन मन मानी ।।9।।
जतन िीवन प्रजत कहूूँ बुझानी । सतगुरु पूरा खोि ख़ुिानी ।।10।।
िब लग पूरा जमले न जमलानी । तब लग खोित ररे िरानी ।।11।।
खोिन में िो कदवस जबतानी । वर साधन में वृथा न िानी ।।12।।
सतगुरु पूरे िभी जभटानी5 । प्रेम प्रीत से सेवा आनी6 ।।13।।
तब वर भेद नाम दें दानी । नाम िुजि तुम ररो कमानी ।।14।।
नाम प्रताप मुजि गजत पानी । जबना नाम नसर ठौर रठकानी ।।15।।
कलिुग में जबन नाम जनिानी । मुजि न रोगी जनश्चय ठानी ।।16।।
करमी धरमी िोगी ज्ञानी । यर सब जपल ररे मनकी घानी ।।17।।
सतगुरु संत जमले नसर आनी । भूले पढ़ पढ़ जपछली बानी ।।18।।
सब से करी काल ठग राजन । संत जबना कोइ बचे न बचानी ।।19।।

1. जवपजत्त । 2. बुरी रार । 3. संसार में फूँ साने वाले । 4. संसार से छु ड़ाने
वाले । 5. भेटें यानी जमलें । 6. करो ।
बचन 22 भेद काल मत व दयाल मत का 195

जबरले संत नाम गजत गानी । चौथे लोक चढ पता िनानी ।।20।।
राधास्वामी करा भेद सब छानी । उनकी दया से महुं1 पुजन िानी ।।21।।
भमण जमटा भइ नाम दीवानी । आरत उन की सिूँ सिानी ।।22।।

।। िब्द दसवाूँ ।।

धोखे में सब िग िात पचा ।। टेक ।।


अपनी अपनी बुजध दौड़ावें । सार भेद नसर राथ लगा ।।1।।
कराूँ कराूँ की बरन सुनाऊूँ । सारेब सच्चा काहु न जमला ।।2।।
बुजध चतुराई सबजरन कीन्री । थकी बुजद्ध तब रार ररा ।।3।।
दसअष्टी2 कु छ और बखानें । छः िास्तर कु छ और करा ।।4।।
चार वेद जमल नेजत पुकारें । संत जबना कोइ नासर करा ।।5।।
सुरत चढ़ाय िब्द संग पहुंचे । अगम देि में राि ककया ।।6।।
जतन का बचन न कोई माने । मूरखता में बरक गया ।।7।।
जबन जमलाप सतगुरु पूरे के । िन्म िुए में रार कदया ।।8।।
जररसी िीव जमले बहुतेरे । उन से करो क्या काि सरा ।।9।।
मेरनत करें न मन को मारें । कै से छू टे िाल बड़ा ।।10।।
काल जिकारी जसर पर ठाढ़ा । िीव अनाड़ी फाूँस फूँ सा ।।11।।
राधास्वामी करत जवचारी । जबना सरन अब कौन बचा ।।12।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।।

सुन गुरु बचन करें िो तुझ से । कर परतीत मान जरत जचत से ।।1।।
चौथा लोक बतावें सतगुरु । तीन लोक भाखें सब री गुरु ।।2।।
वेद पुरान जसमृत और िास्तर । सबरी जमल भाखें चौदर पुर ।।3।।
उन के बचन सभी जमल मानें । कर परतीत झूठ लसर िानें ।।4।।
प्रत्यक्ष तो दो लोक कदखावें । और लोक सुन सुन सभ गावें ।।5।।
जिन जिन के मन में उनका जनश्चा । सो रखते सब उनकी दृढ़ता ।।6।।

1. मैं । 2. अट्ठारर पुरान ।


196 सार बचन बचन 22

तू सतगुरु का सेवक कै सा । उनका बचन न माने वैसा ।।7।।


एक लोक आगे वर करें । इन से ऊूँचा ता में ररें ।।8।।
सो परतीत न लावो भाई । यर अिरि मेरे मन आई ।।9।।
दोरा
मजरमा सतगुरु संत की, करते सब जमल झाड़ ।
करें संत सब से बड़े, कोई न पावत पार ।।10।।
गगन सात के ऊपरे , सतगुरु का जनि धाम ।
सुरतवंत कोई पावई सत्त िब्द जबसराम ।।11।।
गगन सात का भेद सुनाऊूँ । जभन्न जभन्न जनर्णय कर गाऊूँ ।।12।।
प्रथम गगन में दो दल बासा । श्याम सेत का वरीं जनवासा ।।13।।
दूसर गगन जतरकु टी थाना । कूँ वल चार दल ओं रठकाना ।।14।।
तीसर गगन सुन्न परमाना । दसवाूँ द्वारा संत बखाना ।।15।।
चौथा भूँवरगुफा पजरचानो । मरासुन्न के ऊपर िानो ।।16।।
पंचम सत्तलोक सतनामा । खष्टम अलख लोक परमाना ।।17।।
सप्तम अगम लोक स्रुत पाया । संतन यर पद ऊूँच सुनाया ।।18।।
जतस पर आकद अनाम समाना । आकद अंत जतसका नसर िाना ।।19।।
सो पद भेद संत कोइ पावें । राधास्वामी कर समझावें ।।20।।
दोरा
गगन भेद जनर्णय ककया, सैन1 बैन के संग ।
नैन उलट स्रुत मोड़ कर, चढ़े पुकारें संत ।।21।।
पद अनाम िो भाशया, सो सतगुरु का ठाम2 ।
िब्द िब्द को बेंधती , पहुंची मूल मुक़ाम3 ।।22।।
संत दया जबन कोई न पावे । जबना संत कु छ राथ न आवे ।।23।।
करनी भी सब संत बताई । जबना मेरर पचना रै भाई ।।24।।
ताते मुशय मेरर अब ररी । सरन पड़ो राधास्वामी करी ।।25।।

1. इिारा । 2. धाम । 3. स्थान ।


बचन 23 राल उत्पजत्त और प्रलय 197

।। बचन तेईसवाूँ ।।
राल उत्पजत्त प्रलय रचना का और मजरमा सुरत िब्द
मागण की वास्ते पहुूँचने जनि स्थान के
।। िब्द परला ।।
बंझा1 ने बालक2 िाया । जिन सकल िीव भरमाया ।।1।।
अज्ञानी नाम कराया । जिन माया सबल3 उपाया4 ।।2।।
ब्रह्मा और जवष्र्ु मरेिा । नारद और सारद िेषा ।।3।।
ऋजष मुजन और िोगी ज्ञानी । सब को उन ले धर खाया ।।4।।
वेद पुरान िास्त्र परमाना । दे दे िीवन अजधक भुलाया ।।5।।
िीव अिान ममण नसर िानै । काल दुष्ट िंिाल लगाया ।।6।।
ररट5 घड़ी सम ऊूँचे नीचे । भरमत कफरैं कु छ चैन न पाया ।।7।।
कोई ज्ञान कर ब्रह्म समाने । कोइ उपाि6 बैराट समाया ।।8।।
कोइ करमी स्वगणन में पहुंचे । कोइ जवषई नकण न भोगाया ।।9।।
मुजि पदारथ बढ़ कर िाना । ज्ञानी ऐसा धोखा खाया ।।10।।
कोई काल मुिी रस भोगा । कफर नर देरी आन बूँधाया ।।11।।
कमण करे िैसे देरी में । कफर तैसा फल पाया ।।12।।
करमी जवषई और उपािक । इन तो सदरी7 चक्कर खाया ।।13।।
काल िाल से कोइ न बाचा । जनि घर अपने कोई न आया ।।14।।
तब सतपुरुष दया जचत आई । कजल में संत रूप धर आया ।।15।।
सब िीवन को कदया संदस े ा । सत्तलोक का भेद िनाया ।।16।।
जबरले िीव बचन उन माना । उनको ले सतपुर पहुूँचाया ।।17।।
बहुतक िीव बूँधे श्रुजत जसमृत । संत बचन परतीत न लाया ।।18।।
कफर कफर माूँगें वेद प्रमाना । उन उस घर को नेजत सुनाया ।।19।।
िब नसर वेद वेद का करता । तब का भेद संत गुरराया ।।20।।

1. जिस स्त्री को संतान न रोती रो, माया । 2. मन । 3. बलवान । 4. पैदा


ककया । 5. पानी खींचने का चक्कर । 6. भि । 7. सदा, रमेिा ।
198 सार बचन बचन 23

उस घर ममण वेद नसर िाने । कफर क्यों कर परमान सुनाया 21।।


यर तो बात अगम गजत न्यारी । संत जबना कोइ नेक न गाया ।।22।।
ताते संत बचन को मानो । यर परतीत प्रमान दृढ़ाया ।।23।।
संत जबना कोइ ममण न िाने । वेद कतेब कराूँ से लाया ।।24।।
वर तो तीन गुनन में बरते । काल बचन क़ानून सुनाया ।।25।।
दोरा
वेद बचन िैगन
ु जवषय, तीन लोक की नीत ।
चौथे पद के राल को, वर क्या िाने मीत ।।26।।
अब उत्पजत वर्णन करूूँ, िस संतन मत मासर ।
पुजन परलय भी करत हूं, ताते भमण नसाय ।।27।।
सब की आकद कहूं अब स्वामी । अकर अगाध1 अपार अनामी ।।28।।
जतन से अगम पुरुष प्रगटाये । अगम लोक में आसन लाये ।।29।।
अलख पुरुष का हुआ उिाला । अलख लोक उन चौकी डाला ।।30।।
कफर सतनाम पुरुष मत सोई । सत्य सत्य रचना िरूँ रोई ।।31।।
सत्त लोक वर धाम सुरेला2 । रंस करें िरूँ अचरि के ला3 ।।32।।
इन लोकन की मजरमा भारी । कहूं करा अद्भुत जबस्तारी ।।33।।
सरस अठासी दीप जनवास । रंस करें िरूँ सदा जबलास ।।34।।
सुख का धाम सदा सुख िराूँ । दुख कलेि का नाम न वराूँ ।।35।।
नइ नइ लीला सदा अनंद । रंस करें जनत परमानन्द ।।36।।
अमी अरार भोग परचंड4 । सच्चखंड वर धाम अखंड ।।37।।
तरूँ से भूँवरगुफा रच राखी । सोरं पुरुष नाम कर भाखी ।।38।।
मरासुन्न इक रचा रठकाना । दीप असचत मरा मैदाना ।।39।।
जतस के नीचे सुन्न जबलास । अक्षर दीप रकार प्रकास ।।40।।
व्राूँ से रचा जतरकु टी धाम । ओंकार का िरूँ जवश्राम ।।41।।
वेद कतेब का यरी मुक़ाम । जतरलोकी का कारन धाम ।।42।।

1. अथार । 2. सुरावन, सुन्दर । 3. ककलोल । 4. प्रबल ।


बचन 23 राल उत्पजत्त और प्रलय 199

झूँझरी दीप1 की रचन रचाई । जनगुन ण काल की िरूँ ठकु राई2 ।।43।।
गुन तीनों र्यराूँ से उतपाने । ब्रह्मा जवष्र्ु मरेि कराने ।।44।।
यराूँ से सरगुन रचा पसारा । चार खान उत्पजत जवस्तारा ।।45।।
िन्में मरें िीव चौरासी । काल जनरं िन डाली फाूँसी ।।46।।
वर दयाल पद कोई न पावे । जनरगुन सरगुन चक्कर खावे ।।47।।
अब परलय का भाखू लेखा3 । िस जसमटाव िगत का देखा ।।48।।
काल आय िीवन को ग्रासा4 । िीव समाने काल की स्वाूँसा ।।49।।
देरी कारि पृथवी रोई । पृथवी ने जगरसी पुजन सोई ।।50।।
पृथवी घोली िल ने आय । िल को सोखा अजि धाय ।।51।।
अगजन जमली पवन के रूप । पवन हुई आकाि सरूप ।।52।।
आकाि समाना माया मासर । तम रूपा दीखे कु छ नासर ।।53।।
माया रली ब्रह्म में िाय । ििी5 जिव में गई समाय ।।54।।
जिव6 पहुंचे ओंकार मंझार । ओंकार समाने सुन्न का बास ।।55।।
सुन्न ककया मरासुन्न जनवास । भूँवरगुफा मरासुन्न का बास ।।56।।
यराूँ तक परलय कजभ कजभ रोई । सत्तलोक का द्वारा सोई ।।57।।
परलय गजत आगे नसर भाई । सत्तलोक में कभी न िाई ।।58।।
काल जिलोकी कीन्री नास । मराकाल पुजन काल जगरास ।।59।।
मराकाल पहुंचा सत द्वार । आगे गजत7 नसर रठटका8 वार ।।60।।
परलय मरापरलय गजत गाई । सपड प्रलय अब कहूं बुझाई ।।61।।
काल ककया िब तन परवेि । िीव चला ति यर परदेि ।।62।।
मूलद्वार9 पृथ्वी का बास । सखचा वराूँ से स्वाूँस और भास10 ।।63।।
सखच कर आया इन्द्री द्वार । व्राूँ से पहुंचा नाजभ मूँझार ।।64।।
नाभी से सखच जररदे आया । जररदे से कफर कं ठ समाया ।।65।।
पृथवी िल अिी और पौन । कं ठ मासर रूूँधन लगी रोन ।।66।।
चारों तत्त्व भास और स्वाूँस । यराूँ से चले सखचे आकाि ।।67।।

1. सरसदल कूँ वल । 2. हुकू मत, राि । 3. कै कफ़यत, जववरर् । 4. खाया ।


5. िोत । 6. जनरं िन । 7. पहुूँच । 8. ठरर गया । 9. गुदा चक्र ।
10. चैतन्य का प्रकाि, सत्ता ।
200 सार बचन बचन 23

दो दल कूँ वल काल के देि । कमण अनुसार खान परवेि ।।68।।


इस जवजध काल िीव को खाय । िन्मे मरे बहुत दुख पाय ।।69।।
सतगुरु जबन नसर लगे रठकाना । ता ते सतगुरु सरन समाना ।।70।।
सतगुरु करें भेद दरसाई । मारग घर का देयूँ बुझाई ।।71।।
जपरथम सरन गरो सतगुरु की । दुजतये बाड़1 धरो सतसंग की ।।72।।
गुरु िो भेद बतावें तुम को । धारो बचन कमाओ उनको ।।73।।
तन मन इं द्री सुरत समेटो । चढ़ आकाि िब्द गुरु भेटो ।।74।।
सुनो जनत्य तुम अनरद बानी । देखो अद्भुत िोत जनिानी ।।75।।
िोत फाड़ कफर सुन्न समाओ । सुखमन रोय बंक में आओ ।।76।।
बंक पार जिकु टी सुन गीत । काल कमण दोउ लीन्रे िीत ।।77।।
सुन्न जिखर चढ़ी सूरत घूम । मानसरोवर पहुंची झूम ।।78।।
मरा सुन्न िरूँ अजत अूँजधयार । गुप्त चार धुन बानी सार ।।79।।
भूँवरगुफा िाय लीन्री चीन्र । आगे सत्तलोक चढ़ लीन्र ।।80।।
अलख अगम को िाकर परसा । िब्द पकड़ मन सूरत सरसा2 ।।81।।
राधास्वामी नगर जनरारा । देखा िराूँ अगर उजियारा ।।82।।
उत्पजत परलय मारग भेद । िो िो सुने जमटे भ्म खेद ।।83।।
यर उत्पजत कर भली सुनाई । वेद िास्त्र ताजर िाने न भाई ।।84।।
सोरठा
संतन का मत गूढ़3, जबना संत को िानई ।
राधास्वामी ककया ज़हूर4, माने सतसंगी कोई ।।85।।
।। बचन चौबीसवाूँ ।।
।। माया संवाद ।।
भेद वेदांत और राल वाचक ज्ञाजनयों का
और यर कक जसद्धांत पद वेदांत का
सुरत िब्द मागण की कमाई से प्राप्त रोगा

1. ओट । 2. आनन्द पाया । 3. गुप्त । 4. प्रकाि ।


बचन 24 माया संवाद 201

।। िब्द परला ।।

चढ़ो री सखी अब अगम अटारी । खोल दई मेरे जरये की जपटारी ।।1।।


राथ लई मैंने जवरर कटारी । काल दुष्ट का सीस कटा री ।।2।।
जतल का परदा तुरत फटा री । गुरु से जलखाया अमर पटा1 री ।।3।।
देख जलया अब मूल अटारी । बाूँध लई मैंने प्रेम िटा री ।।4।।
छोड़ कदया िग देख मठा2 री । काम क्रोध अब दूर रटा री ।।5।।
लोभ मोर मेरा आि घटा री । करम भरम सब आप लटा3 री ।।6।।
मन करे मेरा खेल नटा री । भर गया मेरा प्रेम घटा4 री ।।7।।
दुख सुख संिय सभी घटा री । छाय गई अब जवरर घटा री ।।8।।
मानसरोवर पाया तटा री । फ़तर ककया गढ़ झटापटा री ।।9।।
अमल ककया िाय अगम पुरी में । झाूँक ररी अब सुन झूँझरी में ।।10।।
धुन धधकार उठी िरूँ भारी । तीन लोक से रो गइ न्यारी ।।11।।
धड़की छाती काल जिकारी । धर धर रोवे माया पुकारी ।।12।।
इन मेरा अब देि उिाड़ी । क्या ऐसी अब मन में धारी ।।13।।
जबनती करूूँ अब राधास्वामी पै । और उपाय नरीं अब मो पै ।।14।।
और िीव कोइ अब न जचतावें । घर मेरा िो चारें बसावें ।।15।।
बहुतक िीव जलए रैं उबारी । एक िीव यर सब पर भारी ।।16।।
बंद करो अब अपना रस्ता । बहुत ककया तुम मारग सस्ता ।।17।।
सुन लो स्वामी जबनती मोरी । मैं आई अब सरना तोरी ।।18।।
और िीव तेरे मैं हूं ककस की । मैं भी पकड़ी ओटा अब की ।।19।।
सुन कर बचन सुआमी बोले । छल बल तेरे सब रम तोले ।।20।।
िीव रमारा तू नसर पावे । अमर लोक को सीधा िावे ।।21।।
जसमृत िास्तर बेद पुराना । इन में सब जिव आय फूँ साना ।।22।।

1. पट्टा । 2. छाछ । 3. जनरबल रो गया । 4. घड़ा ।


202 सार बचन बचन 24

संत पंथ का मारग छू टा । तीरथ बतण नेम कर लूटा ।।23।।


बहुत पुिाया पत्थर पानी । करम भरम में जिव जलपटानी ।।24।।
ज्ञान ध्यान सब बाचक फै ला । िोग िुजि में ठे लमठे ला1 ।।25।।
साधन चारों2 सब के ढीले । िो समझाओ तो करें दलीलें ।।26।।
मन अजभमानी िैसे फ़ीले3 । संत पंथ में ढीले ढीले ।।27।।
ना गुरु भजि न नाम सनेरा । करो तो करें रम आगे कीया ।।28।।
जपछले िन्म का धोखा दे रैं । जवषई िीव को ले भरमैं रैं ।।29।।
बालपने से जवषय कमाये । जवद्या पढ़ पढ़ बुजद्ध बढ़ाये ।।30।।
बुजद्ध जवलास ककया अब सब ने । मान बड़ाइ में लागे खपने ।।31।।
देखो न्याव कर मन में अपने । बुजध से िग को करते सुपने ।।32।।
मन तरं ग में जछन जछन बरते । तब िग को िागृत सम करते ।।33।।
कोइ उन का ज़रा करे अपमाना । या कोइ का वर देखें माना ।।34।।
करें इषाण उसकी भारी । क्रोध करें अजत छाती िारी ।।35।।
बारर सूरत बहुत बनावें । अंतर में तलवार चलावें ।।36।।
यर उनके रै मन की ररनी । परख परख मैं सब कर दीनी ।।37।।
ज्ञान मते को दाग़4 लगाया । ऐसाजर मत क्या व्यास चलाया ।।38।।
वर तो भये िोग मत सूरे । ज्ञान ध्यान उन पाय पूरे ।।39।।
ब्रह्म देि उन बासा कीना । मन और सुरत करी वसर लीना ।।40।।
इतना पद उनका रै पूरा । इनका करना सब रै कू ड़ा ।।41।।
जबना िोग कीई ज्ञान बखाने । सम दम साधन कै से आने ।।42।।
या ते सुरत योग अब कीिै । सम दम साधन वाते लीिै ।।43।।
जबन सम दम नसर आत्म अनंदा । गाूँठ खुली नसर झूठा धन्धा5 ।।44।।
िैसे बुलबुल बाूँधे पेटी । गई बाग़ में गुल6 पर बैठी ।।45।।
जछन में खैंच जखलाड़ी लीना । जमट गया आनंद दुख भया दूना ।।46।।

1. बे-परवारी, ढीला । 2. वैराग, जववेक, षट सम्पजत और मुमोक्षता ।


3. राथी । 4. धब्बा । 5. करतूत । 6. फू ल ।
बचन 24 माया संवाद 203

ऐसे ग्रन्थ बग़ीचे मारीं । करें सैर यर ज्ञानी भाई ।।47।।


पढ़ते पढ़ते आनंद भोगें । कफर पीछे मन के बस रोवें ।।48।।
िो कोइ करे जचतावन कारन । जमथ्या कर कर मुख से भाखन ।।49।।
रोग सोग में रालत बदली । िानो गाूँठ बूँधी नसर खोली ।।50।।
ऐसे ज्ञान का नरीं भरोसा । कफर साधो मन खाया धोखा ।।51।।
सुरत िब्द का साधन कररये । तब सम दम जछन मारीं पइये ।।52।।
िो मन िब्द में ठररे नारीं । तब री िानो सम नसर भाई ।।53।।
िो सम रोता उन के राथा । तौ जछन में मन िब्द समाता ।।54।।
मन चंचल तौ ज्ञान भी चंचल । क्यों सुख पावे आतम जनश्चल ।।55।।
आतम सुख की क्या कहूं मजरमा । जिन्रें परापत जतनरी िाना ।।56।।
आतम में वर ररदम बरते । करो तुम ककतनी जबरती1 धरते ।।57।।
िो जबरती आतम नसर माने । तो सम री का घाटा2 िाने ।।58।।
िो जबरती आतम को परसे । कदन कदन आनंद बढ़ता दरसे ।।59।।
िगत भोग सब जछन में फें के । बान दिा रोय िग को छेके3 ।।60।।
अन्तर बररती ऐसी ररई । बारर से कु छ काि न सरई ।।61।।
आप आप को आप जपछानो । करा और का नेक न मानो ।।62।।
ज्ञानी के प्रारब्ध न ररती । देरी उसकी जवदेरी में बरती ।।63।।
यर िो गजत तुम में नसर आई । झूठा ज्ञान तुम्रारा भाई ।।64।।
जबना िोग ज्ञानी नसर रोई । िनम मरन से छु टे न कोई ।।65।।
जपछला िोग कभी नसर पाई । ताते सुरत िोग ठरराई ।।66।।
संत मता अब धारो नीका4 । सुरत िब्द यर सब का टीका5 ।।67।।
वर तो धमण िुगन जपछले का । इन िीवन का बल नसर बूता ।।68।।
िब थे जिव सब ईश्वर कोटी । अब िीवों की बुजद्ध रै खोटी ।।69।।
िीव कोरट में इनकी जगन्ती । यर नसर धारें उनकी िुगती ।।70।।

1. आचरन, मन का झुकाव । 2. कमी । 3. दूर करे । 4. अच्छे तौर से ।


5. सार, जसरमौर ।
204 सार बचन बचन 24

या ते ज्ञान िोग दोउ खंडन । भजि भाव संतन ककयो मंडन1 ।।71।।
सुरत िब्द की अब करो करनी । तो उनकी सी रो िाय ररनी ।।72।।
ईश्वर पद िब घट में पाओ । ईश्वर कोटी तुम रो िाओ ।।73।।
िब वर ज्ञान सफल रोय तुम को । नसर अजधकार ज्ञान का सब को ।।74।।
िब लग जनश्चल जचत्त न रोई । ज्ञान बचन को सुनो न कोई ।।75।।
जबन उपािना जचत नसर ठररे । िब्द जबना कोइ उपाि न रै रे ।।76।।
िो उपािना करे रम कीन्री । जपछले िन्म भुगत रम लीन्री ।।77।।
तो मन जनश्चल आतम मारीं । रोना चजरये अचरि नारीं ।।78।।
िो मन आतम रं ग न राचा2 । तो िानो सब करना काचा ।।79।।
अब चजरये कफर करें उपािन । िासे कटें सभी मन बासन3 ।।80।।
िो तुम करो कदाजचत4 ऐसी । ज्ञानी को करनी नसर ररती ।।81।।
लक्ष5 जगयानी की यर बातें । बाचक को िोभा नसर याते ।।82।।
अब मन में तुम खूब जवचारो । बाचक तुमरीं रो अस धारो ।।83।।
धोखा मत खाओ पढ़ पोथी । क्यों ऐसी बातें करों थोथी6 ।।84।।
भजि भाव को मन में धारो । कलिुग का यर धमण सम्रारो ।।85।।
सत्तपुरुष ने धारा रूपा । संत स्वरूप भये िग भूपा ।।86।।
हुक्म कदया क़तई अब ऐसा । भजि जबना तरना करो कै सा ।।87।।
गुरु भजि जबन तरे न कोई । जबन गुरु ज्ञान पार नसर रोई ।।88।।
िब्द ज्ञान गुरु ज्ञान जपछानो । और गुरु सब झूठे िानो ।।89।।
धुन का नाम िब्द रै भाई । द्वार दसम से िो जनत आई ।।90।।
िब तक सुरत न पकड़े धुन को । मार न सिा कोई मन को ।।91।।
जबन मन मारे कभी न तरना । िनम िनम भौसागर पड़ना ।।92।।
सुरत िब्द से मन को मारो । और ितन कोई मत धारो ।।93।।
काल पड़ा िीवन के पाछे । दूध जछपाय जपलावे छाछे 7 ।।94।।
खट िास्तर और चारों वेदा । यर संतन ने ककये जनषेधा ।।95।।

1. स्थाजपत । 2. भीना, भीगा हुआ । 3. बासना । 4. कभी । 5. प्रत्यक्ष ।


6. खाली । 7. मट्ठा, लस्सी ।
बचन 24 माया संवाद 205

बानी अपनी िुदी बनाई । मूरख उन से जवजध जमलाई ।।96।।


संग पंजडतन जिस ने कीन्रा । बुजद्ध ररी भये काल अधीना ।।97।।
काल दूत तुम उन को िानो । उन की बात िरा मत मानो ।।98।।
संतन का मत उन से न्यारा । गुरु पूरे संग करो जवचारा ।।99।।
जबन गुरु पूरे राथ न आवे । गुरु पूरा िो िब्द बतावे ।।100।।
िब्द अथण िो और लगावे । धुन के जबना झूठ वर गावे ।।101।।
िब्द करो चारे धुन अनरद । और अथण नसर येरी अद्भुत ।।102।।
बार बार मैं करा बनाई । िब्द जबना नसर और कमाई ।।103।।
िो तुम चारो अपन उधारा । पकड़ो िब्द करो मत बारा1 ।।104।।
मैं अपनी सी सब कर दीनी । आगे सारेब मौि अधीनी ।।105।।
जिन पर ककरपा उन की रोई । िब्द भेद िानेगा सोई ।।106।।
धुन अंतर मन राखो अपना । बार बार कहुं मानो बचना ।।107।।
काल बड़ा बररयार2 करावे । या से कोइ न बचने पावे ।।108।।
जबना संत कभी नासर उबारा । तीन लोक से रोय न पारा ।।109।।
चौथा लोक संत दरबारा । व्राूँ पहुंचे संतन का प्यारा ।।110।।
सुरत िब्द का मारग लीिै । सत्तलोक को प्याना3 कीिै ।।111।।
और मते सब काल पसारे । जरन्दू मुसलमान सब सारे ।।112।।
िैनी और अंगरे ज़ जबचारे । ईसा पारसनाथ पुकारे ।।113।।
वर ईसा को बेटा मानें । वर तीरथंकर उनको िानें ।।114।।
यर तो बात सरी मैं मानूं । पर इस में इक भेद बखानूं ।।115।।
जतरलोकी का नाथ िो कजरये । ईसा उनका बेटा सरी रै ।।116।।
तीरथंकर भी उसको िाना । नाम जनरं िन करें जनरबाना ।।117।।
पद जनवाणर् करें रैं िैनी । उनके मत की सब रम चीन्री 118।।
राम ब्रह्म सरदू कर बोले । अल्ला ख़ुदा मुसलमाूँ तोले ।।119।।

1. देरी । 2. ज़बरदस्त, बलवान् । 3. कूूँ च, रवानगी ।


206 सार बचन बचन 24

ख़ुद ख़ुदाय1 का ममण न िाना । राम ब्रह्म का बाप जछपाना ।।120।।


राम ब्रह्म से वर पद आगे । चौथा लोक संत िरूँ लागे ।।121।।
नानक और कबीर बखाना । तुलसी सारेब जनि कर िाना 122।।
उन की बानी वर पद गावे । सच्चखंड सतलोक लखावे ।।123।।
अब संिय कु छ करो न भाई । सत्तलोक की आसा लाई ।।124।।
जनश्चय कर आसा दृढ़ राखो । सुरत िब्द का मारग ताको ।।125।।
सब जवद्या और करमा धरमा । दूर बराओ यर सब भरमा ।।126।।
िीव उबार न इन से रोई । सुरत िब्द अब धारो सोई ।।127।।
चारों मत को यर उपदेिा । पकड़ िब्द िाओ उस देिा ।।128।।
चौथा लोक अगम रै भाई । िोभा व्राूँ की बरनी न िाई 129।।
सत्तपुरुष िरूँ सदा जबरािैं । कूँ वल ससरासन ता पर गािैं 130।।
कोरट सूर और चंद्र करान्ती2 । रोम रोम प्रजत3 सदा लिाती 131।।
रंसन दीप िुदे रच राखे । अमी अरार सभी जनत चाखे 132।।
अमृत कुं ड भरे िरूँ भारी । सच्च खंड की िोभा न्यारी ।।133।।
और जबलास अनेकन भाई । जभन्न जभन्न कु छ करा न िाई 134।।
रीरे मोती लाल अपारा । भरे िराूँ अचरि भंडारा ।।135।।
राग राजगनी सदा बसंता । मजरमा कहूं करा नसर अंता ।।136।।
अंतवंत4 जतरलोकी िानो । वर अस्थान सदा जथर5 मानो 137।।
िोभा रंसन करा कहूं भाई । सूर चंद बहु देख लिाई ।।138।।
नाना जवजध िरूँ उठें सुगंधा । कोरट मलय6 िरूँ मानो मंदा 139।।
रंस करें िरूँ सदा जबलासा । पुरुष दिण दूिी नसर आसा ।।140।।
रंस करें िरूँ सदा अनंदा । काल कष्ट नारीं कु छ धन्धा ।।141।।
देखें अचरि भोगें अचरि । कहूं करा सब अचरि अचरि 142।।
बुजधवानों की बुजद्ध जरराई । जवद्यावान नरीं कु छ पाई ।।143।।

1. सच्चे माजलक । 2. प्रकाि । 3. एक एक, ररे क । 4. नाि रोनेवाली ।


5. ठरराऊ । 6. मलयाजगर चंदन । 7. मंद, तुच्छ ।
बचन 24 माया संवाद 207

बुजध और जवद्या दोनों रारें । संत मते पर जसर धुन मारें ।।144।।
बुजध जवचार से समझा चारें । कभी न पावें भटका खावें ।।145।।
या ते बुजध बल सबरी छोड़ो । मन और सुरत िब्द में िोड़ो 146।।
करो कमाई जनस कदन भाई । बुजद्ध से कु छ भेद न पाई ।।147।।

दोरा

यर करनी का भेद रै, नारीं बुजद्ध जवचार ।


बुजद्ध छोड़ करनी करो, तो पावो कु छ सार ।।148।।

।। िब्द दूसरा ।।

घट कपट दूर कर भाई ।। टेक ।।


सरधा भाव चरन में राखो । प्रीत प्रतीत बढ़ाई ।।1।।
मुर
ूँ के करे काि नसर रोगा । िब लग मन में प्रेम न आई ।।2।।
बाचक सूर करें अपने को । जबन रन देखे करत बड़ाई ।।3।।
बैरी सन्मुख रोत कदाजचत । ऐसे भागें खोि न पाई ।।4।।
छाया जतजमर बुजद्ध पर ऐसा । अपनी गजत की बूझ न लाई ।।5।।
िैसे मूसा जबल का सूरा । जबल्ली का भय जचत न समाई ।।6।।
जबल में बैठे बातें मारें । जबल्ली को रम मार जगराई ।।7।।
जबल्ली जबल पर आन पुकारी । आओ सूरमा बड़े जसपारी ।।8।।
सुन कर म्याउूँ च्याउूँ घबराये । इक इक भागे खबर न पाई ।।9।।
ऐसे ज्ञानी बाचक िग में । जनि बैराग की करत बड़ाई ।।10।।
भाग रीन माया नसर पूछे । मन िाने रम त्याग कराई ।।11।।
धन वालों को ढू ूँढत डोलें । काहू के उपदेि समाई ।।12।।
िो संयोग बने कसर ऐसा । जवषय परापत रोता िाई ।।13।।
तो भोगी पूरे बन िावें । करवें मन का धमण सुनाई ।।14।।
अथवा प्रारब्ध जसर डालें । तरर तरर की बात बनाई ।।15।।
208 सार बचन बचन 24

राग द्वेष1 में जछन जछन बरतें । अब बैराग कराूँ गया भाई ।।16।।
अन जमलते के त्यागी िानो । ज्ञान लखौटा2 करत सुनाई ।।17।।
यों तो सख़्त कड़ा पत्थर सा । अजि आगे जपघला िाई ।।18।।
मुख से मान अपमान समाना । बरतन3 में जनि मानजर चारी ।।19।।
िो अपमान करे कोई उनका । क्रोध करें बैरी बन िाई ।।20।।
मान करें मन की सी बोलें । प्रीत करें स्वारथ जलपटाई ।।21।।
और कमण सबरी जनत करते । भजि भाव में ररें अलसाई ।।22।।
िो भजि संतन ने भाखी । ता का ममण नेक नसर पाई ।।23।।
खान पान बस्तर तन ककररया । सब करते इक भजि रटाई ।।24।।
व्यवराररक िग सत्त बतावें । भजि का व्यवरार छु ड़ाई ।।25।।
तीरथ भरत नेम खट करमा । पूिा पाठ करें जनत आई ।।26।।
पोथी पुस्तक जवद्या नाना । पढ़ें पढ़ावें बहु जवजध भाई ।।27।।
सैर तमािा देि कदिंतर । मेला ठे ला िात भ्माई ।।28।।
यर करतूत न छोड़ें कबरी । भजि से पुन4 िन्म बताई ।।29।।
ज्ञान मता मारग ठरारया । िो भजि का फल था भाई ।।30।।
भजि दीनता करें न आदर । अपनी भजि करन जसखाई ।।31।।
धन और माल देय िो कोइ । तो पाखूँड संग लेत गठाई ।।32।।
और व्यवरार करें सब िग का । इक भजि से जवरोध िनाई ।।33।।
भिी की परवार न राखें । राजन समझ मानो डरजर लगाई ।।34।।
गुरु भजि सुपने का ससर करें । ता को छोड़त देर न लाई ।।35।।
और कमण और भोग िगत के । यर नसर छोड़ें बरतें िाई ।।36।।
काग जवष्ट सम मुख से करते । सो नसर छू टे जवषठा खाई ।।37।।
भजि भाव को जछन में छोड़ा । और करम दम साथ जनबारी ।।38।।
जिन बातों में मन मरता था । सो जमथ्या कर दूर कराई ।।39।।

1. रग़बत, नफ़रत । 2. लाखका, (बनावटी) । 3. बरताव करने में ।


4. पुनिणन्म ।
बचन 24 माया संवाद 209

और कमण कोई ककया न जमथ्या । सब फ़े लों1 में जनत्त खपाई ।।40।।
ऐसे मूरख मन के मौिी । जनभणय बरतें खौफ़ न लाई ।।41।।
सुरत िब्द मारग नसर धारें । संत बचन परतीत न आई ।।42।।
राधास्वामी करत सुनाई । ऐसा मत कोई गरो न भाई ।।43।।

।। िब्द तीसरा ।।

रे जवद्या तू बड़ी अजवद्या । संतन की तैं2 कद़र न िानी ।।1।।


संत प्रेम के ससध भरे रैं । तैं उलटी बुजध कीचड़ सानी ।।2।।
संतन प्रेम लगा प्यारे से । उनकी सूरत िब्द समानी ।।3।।
तू धन मान प्रजतष्ठा चारे । और चतुरता में जलपटानी ।।4।।
कजल में िीव बहुत तैं घेरे । जबरले गुरुमुख बचे जनदानी ।।5।।
उनकी प्रेम अनुभवी बानी । तू बुजद्ध संग ररत खपानी ।।6।।
जवद्या पढ़ पढ़ बहुत पचे रैं । प्रेम जबना कु छ राथ न आनी ।।7।।
अथण संप्रदा3 कर कर फू लें । अनुभव की उन सार न िानी ।।8।।
बानी बन में ररे भुलाने । पढ़ पढ़ पोथी िन्म बतानी ।।9।।
घट के भीतर नेक न ठररें । मन चंचल की गजत न जपछानी।।10।।
बाररमुखी ग्रन्थ जनत पढ़ते । घट की पोथी पढ़ें न पढ़ानी ।।11।।
घट का भेद करो िो उनसे । तो उनका मन देत न रामी4 ।।12।।
संत गगन में सुरत चढ़ावें । वे सुनते जनत व्राूँ की बानी ।।13।।
उनकी गजत मजत अगम अपारा । तू लोगन को रीझ ररझानी ।।14।।
प्रेमी िीव न मानें तेरी । तू अपनी सी करत करानी ।।15।।
अस्तुजत के भूखे तुम जनस कदन । मान अस्तुती चार भरानी ।।16।।
अपने औगुन आप जवचारो । और काढ़न की िुगत कमानी ।।17।।
धोखे में क्यों िनम जबताओ । सुरत िब्द में जनत्त चढ़ानी ।।18।।
जवद्या छोड़ करो यर करनी । तो पावो सतनाम जनिानी ।।19।।

1. कामों । 2. तूने । 3. टीका । 4. मानना ।


210 सार बचन बचन 24

जवद्या पढ़ मन से नसर िीतो । जवरथा थोथे तीर चलानी ।।20।।


संत मता जवद्या से न्यारा । जवद्या ठगनी िीव ठगानी ।।21।।
भजि भाव प्रेम नसर उनके । प्रेमी वे मूरख िानी ।।22।।
जवद्या के बल ररैं अजभमानी । संतन से उन प्रीत न ठानी ।।23।।
िीव अकाि सोच नसर मन में । िगत बड़ाई मन में समानी ।।24।।
मुर
ूँ से जमथ्या िग को करते । बरतन में सो सच्चा मानी ।।25।।
मान अपमान समान न कीन्रा । बाचक जवद्या ररे भुलानी ।।26।।
ताते जवद्या सभी भुलाओ । संत सरन पकड़ो अब आनी ।।27।।
वे जवद्या के िो नर प्रेमी । सो संतन के संग जलपटानी ।।28।।
जवद्यावान एक नसर ठररे । ताते जवद्या जवघन जपछानी ।।29।।
संत न जवद्या पढ़ते कोई । उनके अनुभन समुद ूँ समानी ।।30।।
उनका प्यार लगा प्यारे से । जवद्या क्यो कर याद ररानी ।।31।।
तन मन की सब सुध जबसरानी । जवद्या बुजध कफर क्यों ठररानी ।।32।।
सब परकार प्रेम की मजरमा । जवद्या अजवद्या दोनों रानी ।।33।।
जिनका प्रेम िब्द में नारीं । उनको जवद्या ख़्वार1 करानी ।।34।।
िनम मरन से छु टें न भाई । चौरासी में वरें बरानी ।।35।।
जवद्या भूल चढ़ो अब घट में । सुरत िब्द में लाओ तानी ।।36।।
जवद्या भी बुजध जवषय जपछानो । यर आििी2 भली न िानी ।।37।।
कथनी बदनी3 काम न आवे । भजि जबना िम के सरे डानी4 ।।38।।
गुरु भिी जबन सब िग चूका । अनेक जसयानप5 में भरमानी ।।39।।
और ितन जमथ्या सब िानो । यरी ितन मैं करा प्रमानी ।।40।।
िब्द कमाई करो प्रेम से । राधास्वामी करत बखानी ।।41।।

।। बचन पच्चीसवां ।।
वर्णन भूल वेदान्त मत और वेदाजन्तयों का िो कक काल पुरुष के लक्ष

1. खराब । 2. पकड़ । 3. बरस मुबारसा । 4. दंड । 5. चतुरता ।


बचन 25 वर्णन भूल वेदान्त मत 211

स्वरूप को अनामी रूप और जसद्धान्त समझ कर उस में समाये और जसन्ध


स्वरूप राधास्वामी की प्रतीत नरीं करते और उस की खबर न पाई

।। िब्द परला ।।

सतगुरु आरत लीन्र ससगारी । िड़ चेतन से सुरत जनकारी ।।1।।


िीव चैतन्य देि अब छोड़ा । िब्द चैतन्य देि ककया पोढ़ा1 ।।2।।
सरस कूँ वल दल जलया आकाि । चढ़ कर पहुंची जगर2 कै लाि ।।3।।
द्वारा सुखमन नाका बंक । तोड़ा फोड़ा उलटी गंग3 ।।4।।
गंगा िमुना सरस्वती तीन । धार जिवेनी लीन्री चीन ।।5।।
जिकु ट िाय लंका गढ़ घेरा । रावन ब्रह्म राम मन रेरा4 ।।6।।
सीता धुन ले सूरत साधी । पहुंची िाय अवधपुर5 आदी6 ।।7।।
राि ककया घर अिर बसाया । रावन सीता राम समाया ।।8।।
जगर सुमरे परवत कं चन धर । भान उलट फे रा िजि7 मंदर ।।9।।
सुन्न नगर बस्ती िरूँ अक्षर । दीप असचत लखा जनःअक्षर ।।10।।
अक्षर जनःअक्षर धुन पारा । मरासुन्न का ताका द्वारा ।।11।।
द्वारे धस गई भूँवरगुफा में । धारा सोरं सुरत सफ़ा में ।।12।।
उलटी पहुंची सत्त नगर में । धाई दौड़ी अलख डगर में ।।13।।
अगम लोक िाय अधर जसधारी । अगम पुरुष दीदार करा री ।।14।।
संतन उनमुन8 देि बखाना । जबस्मादी9 रैरत10 अस्थाना ।।15।।
सोई अनामी अकर कराया । रूप न रे ख11 न रं ग धराया ।।16।।
यर पद संतन जनि कर थापा । जबन िाने सब करते आपा ।।17।।
इतने ऊूँचे िो कोई चढ़े । रूप रं ग रे खा ते टरे ।।18।।

1. मज़बूत । 2. पवणत । 3. सुरत की धार । 4. देखा । 5. दसवां द्वार ।


6. इब्तदाई, िुरू का । 7. चन्द्रमा । 8. अपने में आप मगन । 9. जविेष
समाजध । 10. अचरि रूपी । 11. जचन्र ।
212 सार बचन बचन 25

सत्तलोक जतरलोकी चारी । रूप रं ग रे खा सब धारी ।।19।।


चार लोक के िो रोय पार । रूप रं ग रे खा ति न्यार ।।20।।
ससध बुन्द ति आतम आया । सपड अंड ब्रह्मंड समाया ।।21।।
आतम लक्ष1 ज्ञान जलया जिसने । रूप रं ग रे खा नसर जतस में ।।22।।
बुन्द ज्ञान तृप्त हुए मन में । ससध ज्ञान पाया नसर सुपने ।।23।।
बुन्द देि रै अजत री नीचा । ससध देि रै सब से ऊूँचा ।।24।।
बुन्द ससध को एक जमलावें । बुन्द देि को जसन्ध बतावें ।।25।।
ससध देि िरूँ संत बखाने । संत बचन परतीत न आने2 ।।26।।
रूप रं ग रे खा से न्यारा । ससध देि को संत पुकारा ।।27।।
बुन्द मासर रं ग रूप न रे खा । बीि रूप था इन नसर देखा ।।28।।
यर पद वर पद एक न रोई । बुजध से जवधी3 जमलावें सोई ।।29।।
मेरे मत मूरख यर ज्ञानी । कै से इन को कहूं बखानी ।।30।।
यर परमान वेद का मानें । संतन की परतीत न आनें ।।31।।
संत देि इन सुना न देखा । सब को कदया काल ने धोखा ।।32।।
जसन्ध जछपाय बुन्द कदखलाई । बुन्द देख सब गये भलाई ।।33।।
ससध भेद िो संत बताबें । बुन्द मासर ले सभी घटावें ।।34।।
अब इनको क्योंकर समझाऊूँ । रार मान अब चुप्प रराऊूँ ।।35।।
आरत करूूँ और प्रेम बढ़ाऊूँ । इनका झगड़ा अब नसर गाऊूँ ।।36।।
सुरत िब्द ले खैंच चढाऊूँ । ससध मासर अब सरि समाऊूँ ।।37।।
राधास्वामी सतगुरु पाये । मजरमा उनकी अगम अथाये ।।38।।
बार बार िाऊूँ बजलरारी । चरन सरन पर तन मन वारी ।।39।।

सोरठा

वार पार का भेद, आकद अंत सबरी लखा ।


पाया अगम अभेद, भूल भरम सबरी थका ।।40।।

1. प्रतयक्ष । 2. लावे । 3.मेल ।


बचन 25 वर्णन मूल वेदान्त मत 213

।। िब्द दूसरा ।।

िग िाग्रत भौ दुख मूल । सुपना भी दुख सुख सूल1 ।।1।।


सुषपजत कु छ घर आराम । वर भी नसर ठररन धाम ।।2।।
तीनों में भरमत आठों िाम । पूरा नरीं करीं जबसराम ।।3।।
अब कररये कौन उपाय । का से अब पूछूूँ िाय ।।4।।
तड़पूूँ और तरसूूँ जनस कदन । जवरर अजि िलूूँ मैं कदन कदन ।।5।।
कोइ रार न सुख की गावैं । सब करम भरम भरमावैं ।।6।।
कोइ तीरथ बरत बतावें । कोइ िप तप मासर लगावैं ।।7।।
जनि भेद करे नसर कोई । जबरथा नरदेरी खोई ।।8।।
यर सोच करा मैं भारी । तब सतगुरु आन सम्रारी ।।9।।
कर दया भेद बतलाया । तुररया2 पद मारग गाया ।।10।।
तुररया से आगे बरना । कफर उस्से आगे चलना ।।11।।
जतस के भी परे लखाया । उस के भी पार सुनाया ।।12।।
जतस परे और समझाया । कु छ आगे और बुझाया ।।13।।
व्राूँ से पुजन आगे भाखा । जनि धाम मुशय यर राखा ।। 14।।
संतन गजत अगम सुनाई । िरूँ वेद कतेब न िाई ।।15।।
तुररया में सब थक बैठे । आगे कोई ममण न देखे ।।16।।
इतने पद संत बताई । जबन सुरत िब्द नसर पाई ।।17।।
सतगुरु कफर भेद बतावें । अब खुलकर तोजर सुनावें ।।18।।
तुररया पद सरसकूँ वल में । जतस आगे चढ़ जिकु टी में ।।19।।
दस द्वारा सुन्न चढ़ खोलो । कफर मरासुन्न चढ़ तोलो ।।20।।
चढ़ भूँवरगुफा तब आई । कफर सत्तनाम पद पाई ।।21।।
व्राूँ से भी चली अगाड़ी । हुइ अलख पुरुष दरबारी ।।22।।
िाय अगम लोक को लीन्रा । लीला सब व्राूँ की चीन्रा ।।23।।

1. कष्ट । 2. सरसदल कूँ वल ।


214 सार बचन बचन 25

राधास्वामी धाम लखाया । अब यरी ठीक घर पाया ।।24।।


वर तुररया भी नसर पावें । बातों की तुररया गावें ।।25।।
तीनों1 में चेतन बरते । वारी को तुररया करते ।।26।।
बाचक यर बड़े अन्याई । अवस्था चौथी सोऊ गूँवाई ।।27।।
िोगेश्वर ज्ञानी जपछले । चढ़ मूरधनी2 घट खेले ।।28।।
उन चार अवस्था गाई । पंचम करा चेतन भाई ।।29।।
चारों से न्यारा गाया । ताजर आतम भाख सुनाया ।।30।।
इन मूरधनी2 घर त्यागा । मन अकाि आतम कर भाखा ।।31।।
क्यों कर इन कहूं बुझाई । इन बहुतजर धोखा खाई ।।32।।
राधास्वामी करत सुनाई । तुम बजचयो इन से भाई ।।33।।
।। िब्द तीसरा ।।
सुरत मेरी दुजवधा2 आन छली । बान अस मारा काल बली ।।1।।
कौन उपाय करूूँ अब सिनी । संिय अजगन में िात िली ।।2।।
इक गुरु ज्ञान वेदान्त सुनावें । इक गुरु भाखें िब्द गली ।।3।।
मैं अिान कु छ ममण न िानूूँ । कौन रार को कहूं भली ।।4।।
िब्द कमाई रोय न मो से । यरी खटक अब जचत्त खली4 ।।5।।
ज्ञान बचन भी समझ न आवे । दोउ में एक न मोसर जमली ।।6।।
अब क्या करूूँ रार कर बैठी । मौि जबना क्या पेि चली ।।7।।
राधास्वामी करत बुझाई । छोड़ो दुजबधा िब्द जपली ।।8।।
ज्ञान मता यर काल पसारा । सब िीवन को खात दली5 ।।9।।
सुरत िब्द मत दयाल सुनाया । पकड़ गहूं अब नासर टली ।।10।।

।। बचन छब्बीसवाूँ ।।
।। सुरत संवाद ।।
जिस में कु ल भेद संत यानी राधास्वामी मत

1. िगृत, स्वप्न, सुषजु प्त । 2. ओंकार पद । 3. संिय । 4. दुख देती ररी ।


5. टुकड़े करके ।
बचन 24 सुरत संवाद 215

का और और मतों का िो संसार में प्रवृत रैं


और िुजि इसमें सुरत िब्द मागण की और
जनि भेद मुक़ामात का वर्णन ककया रै

।। प्रश्न परला ।।
अब सूरत पूछे स्वामी से । भेद करो अपना तुम मोसे ।।1।।
बास तुम्रारा कौन लोक में । र्यराूँ आये तुम कौन मौि में ।।2।।
देि तुम्रारा ककतनी दूर । खोिे सुरत न िानैं मूर1 ।।3।।
मैं जबछड़ी तुम से करो कै से । देि पराये आई िैसे ।।4।।
मेरा राल जभन्न कर गाओ । देि आपना मोसर लखाओ ।।5।।
मन तन संग पड़ी मैं कब से । दुख पाये बहुतक मैं िब से ।।6।।
क्यों भूली मैं देि तुम्रारा । आय पड़ी परदेि जनरारा ।।7।।
पाताल बसो कक मृत्यु लोक में । स्वगण बसो कक ब्रह्म लोक में ।।8।।
जवष्र्ु लोक बैकुंठ धाम में । इन्द्रपुरी या जिव मुक़ाम में ।।9।।
कृ ष्र् लोक या राम लोक में । प्रकृ त लोक या पुरुष लोक में ।।10।।
या तुम व्यापक सभी लोक में । चार खान चर अचर2 थोक में ।।11।।
क्यों मोसर डाला काल लोक में । अजत भरमाया रषण िोक3 में ।।12।।
अब क्यों आये मोसर जचतावन । रूप धरा तुम अजत मन भावन ।।13।।
मैं दासी तुम चरन जनरारे । भेद देवो तुम अपने सारे ।।14।।

।। उत्तर अंग परला ।।


तब रूँस िब्द सुवामी बोले । सुनो सुरत तुम मैं कहुं खोले ।।15।।
िो तू पूछे भेद रमारा । कहूं सभी अब कर जवस्तारा ।।16।।
मैं हूं अगम अनाम अमाया । रहूं मौि में अधर समाया ।।17।।
मेरा भेद न कोई पावे । मैं री कहूं तो करन में आवे ।।18।।

1. मूल । 2. चेतन्य और िड़ । 3. भंडार ।


216 सार बचन बचन 26

जपरथम अगम रूप मैं धारा । दूसर अलख पुरुष हुआ न्यारा ।।19।।
तीसर सत्त पुरुष मैं भया । सत्तलोक मैं री रच लीया ।।20।।
इन तीनों में मेरा रूप । र्यराूँ से उतरीं कला1 अनूप2 ।।21।।
र्यरां तक जनि कर मुझ को िानो । पूरन रूप मुझे पजरचानो ।।22।।
अंस दोय सतपुरुष जनकारी । िोत जनरं िन नाम धरा री ।।23।।
यर दो कला उतर कर आईं । झूँझरी दीप में आन समाईं ।।24।।
यराूँ बैठ जतरलोकी रची । पाूँच तीन की धूम अब मची ।।25।।
तीन लोक से मैं रहुं न्यारा । चार पाूँच छः में जबस्तारा ।।26।।
तीन लोक एक बुन्द पसारा । ससध रूप मैं अगम अपारा ।।27।।
मैं न पताल स्वगण नसर जमरता3 । ब्रह्मा जबष्र्ु मरेि न िुगता4 ।।28।।
नसर गोलोक5 नरीं साके त6 । इन्द्रपुरी नसर ब्रह्म समेत ।।29।।
तीन लोक व्यापक मैं नरीं । बुन्द एक मेरी र्यराूँ ररी ।।30।।
उसी बुन्द का सकल पसारा । वेद ताजर करैं ब्रह्म अपारा ।।31।।
वेदान्ती याजर ब्रह्म बखानें । जसद्धान्ती याजर िुद्ध पुकारें ।।32।।
इसके आगे भेद न पाया । सतगुरु जबन उन धोखा खाया ।33।।
जितने मत रैं िग के मारीं । इसी बुन्द को ससध बतारीं ।।34।।
ससध असल ररा इन से न्यारा । वेद कतेब न ताजर जबचारा ।।35।।
ब्रह्माकदक सब वेद भुलाये । ऋजष मुजन करम भरम जलपटाये ।।
पीर पैग़म्बर क़ु तुब औजलया7 । बुन्द भेद पूरा नसर जमजलया ।।37।।

।। उत्तर अंग दूसरा ।।


सुनो सुरत तुम अपना भेद । तुम रम में थी सदा अभेद ।।38।।
काल करी रम सेवा भारी । सेवा बस रोय कु छ न जवचारी ।।39।।
तुम को माूँगा रम से उस ने । सौंप कदया तुम्रें सेवा बस में ।।40।।
काल लाय तन मन में घेरा । दुख सुख पाय तुम बहुतेरा ।।41।।
दुख में देखा तुम को िबरी । दया उठी रम आये तबरी ।।42।।

1. अंि । 2. जिस की उपमा न कर सके । 3. मृत्यु लोक । 4. माया ।


5. कृ ष्र् लोक । 6. राम लोक । 7. ईश्वर भि ।
बचन 26 सुरत संवाद 217

आय ककया रम िब्द उपदेिा । िब्द मासर तुम करो प्रवेिा ।।43।।


िब्द िब्द पौड़ी1 रम रची । चढ़ चढ़ पहुंचो नगरी सच्ची ।।44।।
बुन्द देि को छोड़ो अबरी । ससध देि चल खेलो तबरी ।।45।।
बुन्द देि जतरलोकी िानो । रचन मुरक्कब2 र्यराूँ पजरचानो ।।46।।
मुफ़रद3 रचना रमरे देि । सत्त सत्त िरूँ सत्त संदि े ।।47।।
र्ययाूँ रचना तरकीबी4 हुई । सो मैं खोल सुनाऊं सरी ।।48।।
मुफ़रद बुन्द रमारी आई । दूसर माया आन जमलाई ।।49।।
पाूँच तत्त्व तीनों गुन जमले । यर सब दस आपस में रले ।।50।।
रल जमल कर इन रचना ठानी । तीन लोक और चारों खानी ।।51।।

।। उत्तर अंग तीसरा ।।


वेदान्ती अब ककया जवचार । नौ5 को छाूँट जलया दस सार ।।52।।
दसवीं वरी बुन्द मम अंस । छाूँट ताजर लीन्रा रोय रंस ।।53।।
िराूँ जमलौनी तराूँ जवचार । एक एक में करा जवचार ।।54।।
रमरे देि एक सतनाम । वराूँ जवचार का कु छ नसर काम ।।55।।
कर जवचार इन धोखा खाया । बुन्द मासर यर िाय समाया ।।56।।
चलना चढ़ना इन के नारीं । ता ते ससध न पाया इनरीं ।।57।।
ससध भेद िो इन से करते । तो परतीत न जचत में धरते ।।58।।
करें दलील बुजद्ध से भारी । रूँसी उड़ावें बचन न धारी ।।59।।
बुजध बल से वर करते तोल । कभी न पावें डावाूँ डोल ।।60।।
यर मारग रै प्रेम भजि का । चलना चढ़ना सुरत िब्द का ।।61।।
संत मते पर नसर परतीत । सुरत िब्द नसर धारें चीत ।।62।।
पाूँच िब्द मारग नसर चले । ससध पता करो कै से जमले ।।63।।

।। उत्तर अंग चौथा ।।


जवद्या पढ़ िो करें जवचार । बुन्द भेद भी जमला न सार ।।64।।

1. सीढ़ी चढ़ने की । 2. जमलौनी की । 3. बे जमलौनी की । 4. जमलौनी की ।


5. पाूँच तत्त्व तीन गुन और माया ।
218 सार बचन बचन 26

सार बुन्द रै जिकु टी पार । िोगेश्वर चढ़ करें जवचार ।।65।।


प्रार् िोग कर पहुंचे तराूँ । बुदूँ ज्ञान उन पाया वराूँ ।।66।।
आगे का गुरु जमला न उनको । व्राूँ का ज्ञान सुनाया सबको ।।67।।
िोग जबना जवद्या पढ़ करते । जवद्या बुजध से जतरपत ररते ।।68।।
यर तो जनपट अरंकार में भूले । इधर न उधर िमपुरी झूले ।।69।।
तू तो सुरत अब सुन मम बचन । चढ़ और चल सुन सुन्न की धुन ।।70।।
सुन सुन धुन चल देि रमारे । रम तुझको अब ककया अपना रे ।।71।।

।। प्रश्न दूसरा ।।
यर कक िो सुरत अपने देि को लौट िावे तो कफर
काल देि में आवेगी या नरीं
चलने की तो करी तयारी । स्वामी से यों बचन उचारी ।।72।।
संिय एक उठा मोसर भारी । सो जनरवार करो जवस्तारी ।।73।।
दोरा
सेवा बस तुम काल को, सौंप कदया िब मोसर ।
तो अब कौन भरोस रै, कफर भी ऐसा रोय ।।74।।

।। उत्तर ।।
तब स्वामी रूँस कर यों बोले । कहूं बचन मैं तुम से खोले ।।75।।
िान बूझ रम लीला ठानी । मौि रमारी हुई सुन बानी ।।76।।
काल रचा रम समझ बूझ के । जबना काल नसर खौफ़ िीव के ।।77।।
क़दर1 दयाल नसर जबना काल के । मौि उठी तब अस दयाल के ।।78।।
कदया जनकाल काल को व्राूँ से । दखल काल अब कभी न र्यराूँ से ।।79।।
मैं समरथ हूं सब जवजध िान । बचन मोर तू जनश्चय मान ।।80।।
काल न पहुंचे उसी लोक में । अब न करूं कभी ऐसी मौि में ।।81।।
एक बार यर मौि ज़रूर । अब मतलब नसर डाली दूर ।।82।।

1. मजरमा ।
बचन 26 सुरत संवाद 219

तू िंका अब मत कर जचत में । चलो देि रमरे ररो सुख में ।।83।।
।। प्रश्न तीसरा ।।
यर कक िो िीव संत मागण पर नरीं चलते
और कमण और भमण में पड़े रैं, उन को इस
करनी का क्या फल प्राप्त रोगा
।। अंग पजरला ।।
सुन कर सुरत मगन रोय बोली । जनश्चय ककया बचन रम तोली ।।84।।
मेरे मन अब दया समाई । प्रश्न करूूँ िीवन जरत लाई ।।85।।
िग में सुरत अनेकन आई । काल िाल में गई भुलाई ।।86।।
कोई करे िप कोई तीरथ दाना । कोई मूरत कोई तप अजभमाना ।।87।।
कोई अचार1 कोई नेमी धरमी । कोई जवद्या पढ़ करते करनी ।।88।।
कोई वैराग त्याग सब देते । बन परबत में िा कर ररते ।।89।।
।। अंग दूसरा ।।
प्रार् योग कर मुद्रा साधें । पाूँच मुद्रा धरें समाधें ।।90।।
चाचरी भूचरी खेचरी भाई । और अगोचरी उनमुजन लाई ।।91।।
चक वेध घट खैंचे प्रार् । सरसकूँ वल चढ़ लावें ध्यान ।।92।।
।। अंग तीसरा ।।
कोई ज्ञानी बाचक कोई लक्ष । कोई खट िास्तर करते पक्ष ।।93।।
मीमान्सा वैिेजषक न्याय । पातंिली िोग ठरराय ।।94।।
सांशय करे जनत2 अजनत3 जवचार । वेदान्ती जमथ्या संसार ।।95।।
व्यापक सत जचत आनंद रूप । िीव ब्रह्म दोऊ एक स्वरूप ।।96।।
िीव वाच4 िैदर े बतावें । ईश्वर वाच ब्रह्ममंड सुनावें ।।97।।
जवश्व5 नाम तेिस6 और प्राग7 । िागृत स्वप्न सुषोपजत भाग ।।98।।
वैराट8 जररनगभण9 और अव्याकृ त10 । तीन नाम ईश्वर करें कजल्पत ।।

1. लौककक धमण पालन करने वाला । 2. ठरराऊ । 3. नािमान । 4. प्रकट


स्वरूप । 5. िागृत । 6. स्वप्न । 7. सुषजु प्त । 8. स्थूल । 9. सूक्ष्म ।
10. कारर् ।
220 सार बचन बचन 26

वाच वाच दोउ जमथ्या मान । व्यापक लक्ष1 एक कर िान ।।100।।


जववतणवाद2 इन कीन्री जसद्ध । कोई अवछेद3 अिात4 जवजवद्ध5 ।।101।।
पर जसद्धान्त सबन का एक । व्यापक जनश्चय बाूँधी टेक ।।102।।
पाूँच िास्त्र इन ककये जनषेद । छठा िास्त्र माना मत वेद ।।103।।
चेतन को यर एक बतावें । और कु ल्ल रचना िड़ गावें ।।104।।
चेतन ज्ञान मगन रोय कफरते । सब को कजल्पत6 उसमें करते ।।105।।
कु छ करनी करतूत न रखते । चढ़ना चलना सब भ्म करते ।।106।।
आना िाना भी कु छ नरीं । चेतन री चेतन इक सरी ।।107।।
पर इक मतलब की उन धारी । व्यवरारक िग सत्य करा री ।।108।।
कोई कोई प्रारब्ध सत मानें । भोग चुकें तब असत बखानें ।।109।।
अब चेतन चेतन री ररा । िग िै काल7 कभी नरीं हुआ ।।110।।
मैं भी चेतन तू भी चेतन । मैं तू का यर भमण जमटावन ।।111।।
चेतन को पकड़ा मज़बूत । छोड़ा िग को जमथ्या कू त8 ।।112।।
सुरत अंस का भेद न पाया । िो सतपुर से आन समाया ।।113।।
यर तो भेद संत कोई िाना । और कोई नसर परख जपछाना ।।114।।
बुद्धी की गम उसमें नारीं । वर ररी चेतन चेतन मारीं ।।115।।
चेतन चेतन करत बखाना । सुरत चैतन्य का ममण न िाना ।।116।।
सब मत ऐसा धोखा खाया । सुरत भेद काहू नसर पाया ।।117।।
।। अंग चौथा ।।
मुसल्मान जरन्दू और िैनी । ईसाई क्या िानें करनी ।।118।।
कोइ नमाज़ कोइ रोज़ा रखते । कोइ मजस्िद कोइ काबा9 कफरते ।।
कोइ क़ु रान पढ़ राकफ़ज़10 रोते । पढ़ें वज़ीफ़ा11 रात न सोते ।।
कोइ जचल्ला कर मुल्ला बनते । कोइ आजबद12 कोइ ज़ाजरद13 ररते ।।
कोइ मिायख14 क़ालो राल के । कोइ सरोद15 कोइ रागो ताल के 122।।
1. गुप्त स्वरूप । 2. वेदान्त का वर जसद्धान्त जिसमें ब्रह्म को कत्ताण और संसार को
जमथ्या माना रै । 3. जिसका टु कड़ा नरीं हुआ । 4. िो िनमा नरीं । 5. रर तरर
के । 6. खयाली । 7. भूत यानी िो रो गया, भजवष्य िो रोवेगा, वत्तणमान िो रो
ररा रै । 8. तौल कर । 9. मक्का । 10. जिनको क़ु रान याद रो । 11. िाप ।
12. पुिारी । 13. पररेज़गार । 14. जवद्यावान । 15. राग ।
बचन 26 सुरत संवाद 221

कोई िरीअत1 कोई तरीक़त2 । कोई माफ़ण त3 कोई रक़ीक़त4 ।।123।।


।। अंग पाूँचवाूँ ।।
िैन धमण संिम बहु करते । भूख प्यास को अजत री सरते ।।124।।
बेला5 तेला6 चौला7 साधें । तीथणङ्कर कु लकर आराधें ।।125।।
िीव दया भी अजत कर पालें । दातन करें न दीबा बालें ।।126।।
मुख पर बस्तर बांधे बोलें । सूत मोरछल लेकर डोलें ।।127।।
ररी8 जतयागें पत्थर पूिें । कोइ जनवाणर् पद आतम बूझें ।।128।।
।। अंग छठा ।।
अब ईसाई का भाखूूँ बृत्तन्ता । पढ़ ककताब जगरिा िा पूिा ।।129।।
इक सम रोकर सब से बरतें । नीच ऊूँच ज़ाती नसर धरते ।।130।।
पूिें िल्पा9 और सलेब10 । मन के छोड़ें सबरी ऐब ।।131।।
रज़रत ईसा को यर मानें । पुि ख़ुदा का उसको ज़ानें ।।132।।
वर बख़्िावें रम को इक कदन । करें भरोसा उनका जनस कदन ।।133।।
यर भी मत रै काल के घर का । इन से भी मेरा मन फड़का ।।134।।
।। अंग सातवाूँ ।।
और अनेक मते िग मारीं । सब री चालो काल की छारीं ।।135।।
यर पूछूूँ मैं तुम से बात । स्वामी करो खोल जवशयात11 ।।136।।
इन िीवन को क्या फल रोई । जभन्न जभन्न कर भाखो सोई ।।137।।
।। उत्तर ।।
सुन अब सुरत कहूं मैं तो से । यर तो भूले रैं सब मो से ।।138।।
करमी िरई12 रैं यर िीव । सतगुरु जबन नसर पावें पीव13 ।।139।।
कोइ रािा कोइ पंजडत रोवे । कोइ धनवान सुखी िग सोवे ।।140।।
कोइ स्वगण िा करे जबलास । कोइ ऐराफ़14 बजरश्त जनवास ।।141।।
कोइ सैर्ययद कोइ िेख मौलवी । कोइ आजमल15 जसफ़ली16 कोइ उलवी17 ।।
1. कमण कांड । 2. उपासना । 3. ज्ञान । 4. जवज्ञान । 5. दो कदन का ब्रत ।
6. तीन कदन का ब्रत । 7. चार कदन का ब्रत । 8. साग, फल आकदक । 9. बपजतस्मा,
ककसी को ईसाई बनाने का संस्कार । 10. सूली । 11. प्रकट । 12. कमणकाूँडी ।
13. पजत । 14. स्वगण और नकण के बीच में िो मुक़ाम रै । 15. अभ्यासी ।
16. नीचे मुक़ामो का । 17. ब्रह्मांडी ।
222 सार बचन बचन 26

कोइ तारागन मंडल पावे । कोइ चाूँद सूयण के लोक समावे ।।143।।
कोइ सुमरे पर करे बसेरा । कोइ कै लास जरमांचल डेरा ।।144।।
कोइ गन्धवण लोक कोइ इं द्रपुरी में । कोइ जपिलोक कोइ जवष्र्ुपरु ी में ।।
कोइ िजि लोक कोइ ईि धाम में । कोइ ओंकार कोइ रं ग नाम में ।।
उत्पजत1 अजस्थत2 परलै मारीं । यर सब ररे काल की छारीं ।।147।।
काल रद्द से परे न कोइ । देि दयाल कोई नसर िोई ।।148।।
आवगवन न काहू छू टा । देर अवेर सभी िम लूटा ।।149।।
सतगुरु जबना न कोई बाचा । सत्तनाम पद जमला न साूँचा ।।150।।
फल करनी तो सबने पाया । सुखी हुए पर कफर भरमाया ।।151।।
ताते सतगुरु पद को सेवो । जबन सतलोक न छू टे फे रो ।।152।।
सुरत िब्द के मारग चलो । सत्त िब्द से चढ़ कर जमलो ।।153।।

।। प्रश्न चौथा ।।
यर कक संतों के जनि स्थान और उस के
मागण का भेद क्या रै
तब सूरत पूछे इक बाता । स्वामी देव भेद जवशयाता3 ।।154।।

।। उत्तर ।।
तब स्वामी ने बचन सुनाया । मारग का यों भेद लखाया ।।155।।
पाूँच नाम का सुजमरन करो । श्याम सेत में सूरत धरो ।।156।।
प्रथमे सुनो गगन में बािा । घंटा संख छाूँट धुन गािा ।।157।।
सरस कूँ वल दल िोत लखाई । बंकनाल में िाय समाई ।।158।।
बंक पार जिकु टी में गई । ओंकार और रआ़द4 धुन लई ।।159।।
आगे पहुंची सुन्न मूँझार । ररं कार धुन सुनी पुकार ।।160।।
ककगरी और सारं गी सुनी । मान सरोवर चढ़ चढ़ गुनी ।।161।।
आगे मरासुन्न मैदाना । िराूँ चार धुन जतजमर5 समाना 162।।

1. पैदायि । 2. ठरराव । 3. प्रकट । 4. बादल की गरि । 5. अूँधरे ा ।


बचन 26 सुरत संवाद 223

भूँवर गुफा ता ऊपर देखी । सोरं बंसी बिती पेखी1 ।।163।।


ता के परे धाम सत नामा । बीन बिे सतलोक रठकाना ।।164।।
सुनत सुरत कफर आगे चढ़ी । अलख लोक में िा कर धरी ।।165।।
कोरटन अरब सूर उजियारा । अलख पुरुष छजब अद्भुत धारा ।।166।।
तरूँ से अगम लोक को चली । अगम पुरुष से िाकर जमली ।।167।।
खरबन सूर चाूँद परकािा । धुन का व्राूँ की अगम जबलासा ।।168।।
धुन का वर्णन कै से गाऊूँ । िग में कोइ दृष्टान्त न पाऊूँ ।।169।।
ता के आगे ररत अनामी । जनि घर संतन बरना स्वामी ।।170।।
सुन कर सुरत अजत ररखानी । चलो सुवामी मैं सब िानी ।।171।।
जबन सतगुरु कोइ भेद न पावे । सतगुरु सो यर देि लखावे ।।172।।
सतगुरु की मजरमा अजत भारी । कोई न िाने पच पच रारी ।।173।।
िा पर कृ पा दृजष्ट वे करें । वर िाने और जनश्चय धरे ।।174।।
कोइ कोइ िीव करें जवश्वासा । कर प्रतीत वे धारें आसा ।।175।।
संत बचन िो सच्चा मानें । इस बानी को सो सच िानें ।।176।।

।। प्रश्न पाूँचवाूँ ।।
यर कक संत और साध और भेख और
पाखंडी की पजरचान क्या रै ।
इक संिय मेरे मन आई । सो जनर्णय कर करो सुनाई ।।177।।
संत नाम तुम ककसका गावो । साध भेख दोउ भेद बतावो ।।178।।

।। उत्तर अंग पजरला ।।


।। पजरचान संत की ।।
तब स्वामी बोले सुन लीिै । कान लगाय जचत्त अब दीिै ।।179।।
संत करें रम उनको भाई । सत्तलोक जिन सुरत समाई ।।180।।
चौथा लोक तीन के पारा । सत्तनाम सतगुरु दरबारा ।।181।।

1. परख जलया ।
224 सार बचन बचन 26

संत सुरत व्राूँ करे जबलास । सत्तपुरुष सत िब्द जनवास ।।182।।


जतरलोकी के आगे सुन्न । सुन्न के आगे रै मरासुन्न ।।183।।
मरासुन्न के पार रठकाना । भंवरगुफा ताजर करत बखाना ।।184।।
ता के परे लोक रै चौथा । जबन व्राूँ पहुंचे सब रै थोथा ।।185।।
संत जबना कोई वराूँ न पहुंचा । जबन व्राूँ पहुंचे संत न रोता ।।186।।
।। अंग दूसरा ।।
।। पजरचान साध की ।।
संत भेद सब जनर्णय कीन्रा । साध भेद अब तुम लो चीन्रा ।।187।।
संत मते का जनश्चय करे । सुरत िब्द के मारग चले ।।188।।
िाय जिवेर्ी मिन1 करे । सुन्न सरोवर2 जिकु टी परे ।।189।।
साध नाम रम या को गाई । जबन साधे यर साध न भाई ।।190।।
।। अंग तीसरा ।।
।। पजरचान भेख की ।।
भेख संत अब बर्ण सुनाऊूँ । यर भी छान तोजर समझाऊूँ ।।191।।
संतन की बार्ी िो पढ़ते । सुरत िब्द का जनश्चय करते ।।192।।
संत सरन जिन दृढ़ कर पकड़ी । कर जवश्वास सुरत जनि िकड़ी ।।193।।
जबना संत नसर और भरोसा । करम भरम ति जचत को पोसा3 194।।
सुरत िब्द मारग कु छ साधें । जितना बने उतना आराधें ।।195।।
इन का नाम भेख तुम िानो । प्रीत करो इन सेवा ठानो ।।196।।
चारे बस्त्र रं ग घर को छोड़ें । चारे घर ररें मन को मोड़ें ।।197।।
।। अंग चौथा ।।
।। पजरचान पाखंडी की ।।
जिन की नरीं धारना ऐसी । घर को छोड़ें रोयूँ परदेसी ।।198।।
कपड़े रं ग बातें बहु सीखी । िग को ठगें करावें भेखी ।।199।।

1. स्नान । 2. आन्तररक अमृतसर । 3. िाूँजत दी, सरारा कदया ।


बचन 26 सुरत संवाद 225

कमण जलखी वर भोगें अपनी । भरमत कफरें पजरन कर कफ़नी1 ।।200।।


उनका नाम भेख नसर रोई । वर पाखंडी िानो सोई ।।201।।
दीन गूँवाया दुजनया खोई । ना जगररी ना त्यागी दोई ।।202।।
िम के द्वारे धक्के खावें । नकण पड़ें चौरासी िावें ।।203।।
जगररी िीवन बहुत सतावें । खावें पीवें और धमकावें ।।204।।
पूिा अपनी बहुत करावें । धन खैंचे ब्यौपार बढ़ावें ।।205।।
साध संत अपने को करें । गृरस्थ जबचारे उन की सरें ।।206।।
यर भी जनर्णय तोजर सुनाया । साध संत और भेख लखाया ।।207।।
चौथे पाखंडी कर गाये । जिन िग में बहु फं द लगाये ।।208।।
उपदेि
सुनो सुरत अब कहूं बखानी । खोिो साध संत तुम िानी ।।209।।
सतगुरु कर उन सेवा ठानो । जचत्त लगाय चरन में आनो ।।210।।
चरनामृत परिादी लेना । दिणन पर तन मन सब देना ।।211।।
उनकी सेवा फल अजत देई । सत्तलोक तू इक कदन लेई ।।212।।
सतसंग उनका तुम जनत करना । बचन सुनो और जचत्तमें धरना ।।213।।
तीन लोक सब माया चेले । ब्रह्मा जवष्र्ु मरादेव पेले ।।214।।
तीन लोक अंतर और बारर । काल जबयापा देखा ज़ाजरर2 ।।215।।
।। दोरा ।।
जबन सतगुरु सतनाम जबन , कोई न बाचे िीव ।
सत्तलोक चड़ कर चलो, तिो काल की सीव3 ।।216।।
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वर्णन भेद पाूँच नाम यानी पाूँच िब्द क जवस्तार करके मय
नाम और रूप और लीला और धाम एक एक िब्द के ।
।। िब्द स्थान पजरला ।।
सुन री सखी तोजर भेद बताऊूँ । प्रथम अस्थान खोल कर गाऊूँ ।।1।।

1. साधू का कपड़ा । 2. प्रकट । 3. सीमा, रद्द ।


226 सार बचन बचन 26

सरसकूँ वलदल नाम सुनाऊूँ । िोत जनरिन बास लखाऊूँ ।।2।।


करता तीन लोक यर ठाऊूँ1 । वेद चार इन रचे िनाऊूँ ।।3।।
ब्रह्मा जवष्र्ु मरादेव तीनों । पुि इन्रीं के रैं यर चीन्रों ।।4।।
कु ल बैराट2 रचा इन जमल के । िीवन घेर जलया इन जपल के ।।5।।
िाल जबछाया िग में भारी । इनकी पूिा िीव सम्रारी ।।6।।
फूँ से िाल में पचे कमण में । धोखा खाया पड़े भरम में ।।7।।
अब िो इन को कोइ समझावे । सत्तपुरुष का भेद लखावे ।।8।।
तो नसर मानें झगड़ा ठानें । पक्षपात3 कर कढग नसर आवें ।।9।।
या ते मैं तो को समझाऊूँ । यर सब ठग खुलकर ितलाऊूँ ।।10।।
इनके मारग तू मत िाय । तू संतन की सरन समाय ।।11।।
सतगुरु करें सोई तुम मानो । इनका बचन न कर परमानो ।।12।।
रार रकाना5 देऊूँ दरसाई । पता भेद अब कहूं िनाई ।।13।।
मन और सुरत िमाओ जतल पर । घेर घुमर घट आओ जपल कर6 ।।14।।
जनरखो जखड़की देखो चौका । जचत्त लगाओ राखो रोका ।।15।।
पचरं गी फु लवारी जनरखो । दीपदान घट भीतर परखो ।।16।।
कोइ कदन ऐसी लीला देखो । नील चक्र ता आगे पेखो ।।17।।
जवरर प्रेम बल ताको फोड़ो । िोत जनरारो मन को मोड़ो ।।18।।
अनरद घंटा सुन सुन रीझो । िंख बिाओ रस में भीिो ।।19।।
यर पजरला अस्थान बताया । राधास्वामी बरन सुनाया ।।20।।

।। िब्द स्थान दूसरा ।।

अब चलो सिनी दूसर धाम । जनरखो जिकु टी गुरु का ठाम7 ।।1।।


ओंकार धुन िरं जबसराम । गरिे बादल और घनश्याम ।।2।।
सूरि मंडल लाल मुक़ाम । गुरु ने बताया गुरु का नाम ।।3।।
पंचम वेद नाद यजर गाया । चहुूँ दल कूँ वल संत बतलाया ।।4।।

1. स्थान । 2. पसारा । 3. तरफ़दारी । 4. बतलाऊं । 5. भेद, तरकीब ।


6. धस कर । 7. स्थान ।
बचन 26 सुरत संवाद 227

घंटा िब्द तिी धुन दोई । गरि मृदग ं सुनाई सोई ।।5।।
सुरत चली और खोला द्वार । बंकनाल धस रो गई पार ।।6।।
ऊूँची नीची घाटी उतरी । जतल की उलटी फे री पुतरी ।।7।।
गढ़ भीतर िाय कीन्रा राि । भजि भाव का पाया साि ।।8।।
करम बीि अब कदया िलाई । आगे को कफर सुरत बढ़ाई ।।9।।
नौबत झड़ती आठों िाम । सूरत पाया मूल कलाम1 ।।10।।
मराकाल और कु रम2 बखाना । उत्पजत बीिा र्यराूँ से िाना ।।11।।
सूरि चाूँद अनेकन देखे । तारा मंडल बहु जवजध पेखे ।।12।।
सपड अंड से न्यारी खेली । ब्रह्मंड पार चली अलबेली3 ।।13।।
वन और परवत बाग़ कदखाई । चमन चमन फु लवारी छाई ।।14।।
नररें नकदयाूँ जनरमल धारा । समुन्दर पुल चढ़ रो गइ पारा ।।15।।
मेर सुमरे देख कै लासा । गई सुरत िरूँ जवमल जबलासा ।।16।।
राधास्वामी करत पुकारी । दूसर मंजज़ल करली पारी ।।17।।
।। िब्द स्थान तीसरा ।।
अब चली तीसर परदा खोल । सुन्न मंडल का सुन जलया बोल ।।1।।
दसवाूँ द्वार तेि परकाि । छोड़े नीचे गगन अकाि ।।2।।
मानसरोवर ककये अश्नान । रंस मंडली िाय समान ।।3।।
सुन्न जिखर चढ़ी सूरत घूम । ककगरी सारूँ गी डाली धूम ।।4।।
सुन सुन सूरत रो गइ सार । पहुंची िाय जिवेनी पार ।।5।।
मरासुन्न का नाका लीन्र । गुप्त भेद िाय लीन्रा चीन्र ।।6।।
अंध घोर िरं भारी फे र । सत्तर पालूँग4 िा का घेर ।।7।।
बानी चार गुप्त िरूँ उठती । सुरत राजगनी नइ नइ सुन्ती ।।8।।
झन्कारें अद्भुत करा बरनूूँ । सुन सुन धुन मन में अजत ररखूूँ ।।9।।
पाूँच अंड रचना तरूँ कीन्री । ब्रह्म पाूँच ता में हुए लीनी ।।10।।

1. िब्द । 2. कछु आ । 3. सुरत मतवाली । 4. यर जतरलोकी एक पालंग


के बराबर रै ।
228 सार बचन बचन 26

अंडन सोभा बरनूूँ कै सी । सब्ज़ सेत कोइ पीत बरन सी ।।11।।


लख लख अरब तासु परमाना । यर अंडा अजत तुच्छ कदखाना ।।12।।
या में ब्रह्म जवयापक िोई । ता की गजत करो ककतनी रोई ।।13।।
ताका ज्ञान पाय यर ज्ञानी । फू लें मन में रोय अजभमानी ।।14।।
मेंडक सी गजत इन की िानी । कू प समुद्र िान मगनानी ।।15।।
करा करें यर रैं लाचार । वर तो देि न देखा सार ।।16।।
जबन देखे कै सै परतीत । उन नसर िानी अचरि रीत ।।17।।
इसी ब्रह्म को िान अपार । भूले मारग करें जवचार ।।18।।
अब इन को कै से समझाऊूँ । बर नसर मानें चुप्प रराऊूँ ।।19।।
राधास्वामी करी सुनाय । तीनों परदे कदये लखाय ।।20।।

।। िब्द स्थान चौथा ।।

अब चौथे की करी तयारी । चल री सुरत तू िब्द सम्रारी ।।1।।


नाल रंसनी घाटा1 फाूँदा । रूकजमन नाल सुरत को साधा ।।2।।
पाूँिी2 जनरखी िरूँ गंभीर । सुरत जनरत दोउ धारी धीर ।।3।।
दायें रचे दीप परचंड3 । बायें रचाये बहुतक खंड ।।4।।
मोती मरल और रतन अटारी । रीरे लाल िड़े िरूँ भारी ।।5।।
गुप्त भेद यर कदया िनाई । िानेंगे कोइ संत जसपारी ।।6।।
भूँवरगुफा का परवत जनरखा । सोरं िब्द िाय िरूँ परखा ।।7।।
धुन मुरली िरूँ उठत करारी4 । सेत सूर सूरत जनरखा री ।।8।।
तेि पुि ूँ 5 वर देि भला री । धुन अपार तरूँ रोत सदा री ।।9।।
रंस अखाड़ा6 लीला चौक । भि मंडली खेलें थोक7 ।।10।।
लोक अनंत भि िरूँ बसें । नाम अधार अमीरस रसें ।।11।।
राधास्वामी यर भी गाई । चौथा परदा लीन्रा िाई ।।12।।

1. घाट । 2. रास्ता । 3. बड़े । 4. तेज़ । 5. समूर । 6. झुड


ूँ । 7. इकट्ठा ।
बचन 27 राल जवरर और खोि सतगुरु का 229

।। िब्द स्थान पाूँचवाूँ ।।


पंचम कक़ला तख़्त सुल्तानी । बादिार सच्चा जनि िानी ।।1।।
चली सुरत देखा मैदाना । अिब िरर अद्भुत चौगाना1 ।।2।।
अमृत कुूँ ड अमी की खाई । मरल सुनररी रचे बनाई ।।3।।
चौक चाूँदनी दीप अनूपा । रंसन िोभा अचरि रूपा ।।4।।
खोड़स2 भान चंद्र उजियारा । सुरत चढ़ी देखा जनि द्वारा ।।5।।
द्वारपाल बैठे िरूँ रंस । कसर कसर अंस करीं कसर बंस ।।6।।
सरि सुरत तरूँ बचन सुनाये । करो भेद तुम यरूँ कस आये ।।7।।
सुरत नवीन करी तब बानी । संत जमले उन करी जनिानी ।।8।।
इतना कर तब भीतर धसी । सत्तनाम दिणन कर रूँसी ।।9।।
पुरप3 मध्य से उठी अवाज़ा । को तुम रो आये के जर कािा ।।10।।
सतगुरु जमले भेद सब दीन्रा । जतन की कृ पा दरस रम लीन्रा ।।11।।
दिणन कर अजत कर मगनानी । सत्तपुरुष तब बोले बानी ।।12।।
अलख लोक का भेद सुनाया । बल अपना दे सुरत पठाया ।।13।।
अलख पुरुष का रूप अनूपा । अगम पुरुष जनरखा कु ल भूपा ।।14।।
देखा अचरि करा न िाई । क्या क्या िोभा बरनूूँ भाई ।।15।।
तीन पुरुष और तीनों लोक । देखे सूरत पाया िोग ।।16।।
प्रेम जबलास िराूँ अजत भारी । राधास्वामी करत पुकारी ।।17।।

।। बचन सत्ताईसवाूँ ।।
वर्णन राल जवरर और खोि सतगुरु का और उनके सतसंग का
।। िब्द परला ।।
मैं सतगुरु संग करूूँगी आरती । मो जवररन को कोइ मत रटको4 ।।1।।
जिगर5 िले का दीपक बारूूँ । मन बट कर मैं बाती डारूूँ ।।2।।

1. चौक । 2. सोलर । 3. फू ल, कूँ वल । 4. मना करो । 5. कलेिा ।


230 सार बचन बचन 27

िोत िगाऊूँ ददण प्रेम की । आरत फे रूूँ सोज़1 मरम की ।।3।।


वेदन2 मेरी सतगुरु िाने । जबन दीदार नरीं मन माने ।।4।।
दुष्ट दूत अब अजधक सतावें । दिणन राधास्वामी नासर कदखावें ।।5।।
कौन उपाव करूूँ मैं सिनी । ज़ोर ज़़ुल्म उन कब लग सरनी ।।6।।
िल बल खाक ककया मैं अंगा । िस िोती पर िले पतंगा ।।7।।
कौन सुने मेरी ककस पै रोऊूँ । िैसी जबथा मेरी मैं री सरऊूँ ।।8।।
आर आर कर जनस कदन दैहूूँ3 । सबर न आवे कफर पछतै हूं ।।9।।
जबन राधास्वामी अब कोइ नसर मेरा । दुक्ख ददण ने अजत कर घेरा ।।10।।
अब घबराय करूं मैं जबनती । पल पल राधास्वामी जचत में धरती ।।11।।
दाद4 फ़याणद 5 सुनो मेरी सतगुरु । कं वल जबन िैसे तड़पे मधुकर6 ।।12।।
मैं तड़पूं िस िल जबन मीना । जिगर फटे को कै से सीना ।।13।।
तुम सब जवजध रो समरथ स्वामी । तुमसर ितन करो अन्तरिामी ।।14।।
मैं अिान कु छ िानत नारीं । िैसे बने तैसे काटो फारी7 ।।15।।
तब सतगुरु इक िुजि बताई । सुरत िब्द की करो कमाई ।।16।।
और आरत यर जनत प्रजत गाओ । घर में बैठो सुरत लगाओ ।।17।।
मौि जनरारो करो जवश्वासा । इक कदन रोगी पूरन आसा ।।18।।
अस अस सतगुरु दीन्र कदलासा । अब मन अंतर रोत हुलासा ।।19।।
यर अरज़ी अब मानो मेरी । मैं दुजखया तुम चरनन चेरी ।।20।।
उमूँग उमूँग कर आरत गाई । जनत्त करूूँ अस आरत आई ।।21।।

।। िब्द दूसरा ।।

ददण दुखी मैं जवरजरन भारी । दिणन की मोसर प्यास करारी ।।1।।
दिणन राधास्वामी जछन जछन चाहूं । बार बार उन पर बल िाऊं ।।2।।
वर तो ताड़ मार फटकारें । मैं चरनन पर सीस चढ़ाऊं ।।3।।
जनधणन जनबणल क्रोजधन मानी । औगुन अपने अब पजरचानी ।।4।।

1. तपन । 2. कष्ट । 3. तपूूँगी । 4. प्राथणना । 5. पुकार । 6. भूँवरा । 7. बन्धन ।


बचन 27 राल जवरर और खोि सतगुरु का 231

स्वामी दीन दयाल रमारे । मो सी अधम को लीन्र उबारे ।।5।।


मैं जज़कद्दन1 दम दम रठ करती । मौि हुक्म में जचत नरीं धरती ।।6।।
दया करो राधास्वामी प्यारे । औगुन बख़्िो लेव उबारें ।।7।।

।। िब्द तीसरा ।।

कै सी करूूँ कसक2 उठी भारी । मेरी लगी गुरु संग यारी ।।1।।
दम दम तड़पूूँ जछन जछन तरसूूँ । चढ़ ररी मन में जवरर ख़ुमारी3 ।।2।।
सुलगत जिगर फटत जनत छाती । उठन लगी जरये से जचनगारी ।।3।।
नैनन नीर बहुत िस नकदयाूँ । डू ब मरी माया मतवारी ।।4।।
ठं डी आर उठे पल पल में । छाय गई अब प्रीत करारी ।।5।।
तोड़ी न टू टे छोड़ी न छू टे । काल करम पच रारी ।।6।।
सुरत जनरत दोउ क़ाजसद4 कीन्रे । जबथा5 जलखूूँ अब सारी ।।7।।
पजतयाूँ भेिूूँ गुरु दरबारा । अब लो खबर रमारी ।।8।।
नगर उिाड़ देि सब सूना । तुम जबन िग अूँजधयारी ।।9।।
कौन सुने और कौन सम्रारे । सब मोसर दीन जनकारी ।।10।।
बरी िात नइया मूँझधारा । तुम जबन कौन उबारी ।।11।।
खेवरटया क्यों देर लगाई । क्यों कर करूूँ पुकारी ।।12।।
मैं मरी िाउूँ जिऊं अब कै से । तुम मेरी सुजध न सम्रारी ।।13।।
डालो िान देवो सरिीवन6 । मैं तुम पर बजलरारी ।।14।।
बचन सुनाओ दरस कदखाओ । ररो पीर मेरी सारी ।।15।।
राधास्वामी सुनो रमारी । मैं तुम्ररे आधारी ।।16।।

।। िब्द चौथा ।।

जपया जबन कै से जिउं मैं प्यारी । मेरा तन मन िात फु कारी ।।1।।


कोइ संत जमलें अब भारी । िो जपया को जमलावें आ री ।।2।।
मैं चढ़ूूँ गगन में सारी । कदन रात लगे मेरी तारी7 ।।3।।

1. रठ करने बाली । 2. पीर । 3. निा । 4. दूत । 5. तक़लीफ़ । 6. अमृत


बूटी । 7. ध्यान ।
232 सार बचन बचन 27

मैं जवरजरन लगी कटारी । मैं घायल कफरूूँ उिाड़ी ।।4।।


सतगुरु अब करें स्मरारी । तब जररदे घाव पुरा1 री ।।5।।
मोसर नाम देसर जनि सारी । यर मररम जनत्त लगा री ।।6।।
राधास्वामी करें दवा री । मैं उन पै िाउं बजलरारी ।।7।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

ददण दुखी जियरा जनत तरसे । तन मन में पीर घनेरी ।।1।।


कोइ सतगुरु संत दया कर रेरें । तो जमटे जबथा घट मेरी ।।2।।
मैं अजत दीन अनाथ अचेती । उन जबन को मोसर गरे री ।।3।।
क्या क्या कहूं काल िस कजसयाूँ2 । फूँ जसयाूँ आन अूँधरे ी ।।4।।
मन की बात मनजर पुजन िाने । मुख से क्यों करत बने री ।।5।।
अंतरिामी वैद जमलें िब । तब दुख दूर टरे री ।।6।।
आपजर आप रोग मेरा बूझें । आपजर दें कु छ दवा भली री ।।7।।
मैं तो अिान जनपट कर मूढ़ा । भूला गैल3 गली री ।।8।।
तुम दयाल कस ढील करोगे । िल्दी से अब कमण दलेरी ।।9।।
सतसंग सार न बूझे चंचल । ठररत नसर जछन एक पली री ।।10।।
राधास्वामी अचरि धामी । आन जमले सब पीर ररी री ।।11।।

।। िब्द छठा ।।

चुनर मेरी मैली भई । अब का पै िाऊूँ धुलान ।।1।।


घाट घाट मैं खोित रारी । धुजबया जमला न सुिान ।।2।।
नैरर4 रहुं कस जपया घर िाऊूँ । बहुत मरे मेरे मान ।।3।।
जनत जनत तरसूूँ पल पल तड़ूपूँ । कोइ धोवे मेरी चूनर आन ।।4।।
काम दुष्ट और मन अपराधी । और लगावें कीचड़ सान ।।5।।
का से कहुं सुने नसर कोई । सब जमल करते मेरी रान ।।6।।
सखी सरेली सब िुड़ आई ूँ । लगीं भेद बतलान ।।7।।

1. पुरना = भरना । घाव । अच्छा रोना । 2. बांधा । 3. मागण, रास्ता ।


4. मां का घर । 5. पापी ।
बचन 28 वर्णन आनन्द प्राजप्त सतगुरु 233

राधास्वामी धुजबया भारी । प्रगटे आय िरान ।।8।।


।। िब्द सातवाूँ ।।
सुतण चली धुलावन काि । चुनररया मैली भरी ।।1।।
गई सतसंग के घाट । सुरत गुरु चरन धरी ।।2।।
पाया िब्द अगाध । हुई घट बीच खरी1 ।।3।।
चली सुरत आकाि । उड़ी ज्यों उड़त परी ।।4।।
हुआ काम बल छीन2 । जतररष्र्ा सकल िरी ।।5।।
पाया प्रथम रठकान । जमली पद आन ररी3 ।।6।।
खोला बंक दुवार । सुफल हुइ देर नरी4 ।।7।।
सुन्न सरोवर पाय । सेत हुइ अब चुनरी ।।8।।
मरा सुन्न के पार । लगी झाूँकन झूँझरी ।।9।।
भूँवरगुफा कढग पहुंच । सुनी बंसी मधुरी ।।10।।
परसे पुरुष पुरान । गई अमरा नगरी ।।11।।
खोला अलख दुवार । अमी संग भरी गगरी ।।12।।
अगम पुरुष दरबार । देख लीला सगरी5 ।।13।।
राधास्वामी मरल कदखान । हुई सुतण अि अिरी ।।14।।

।। बचन अट्ठाईसवाूँ ।।
।। वर्णन आनंद जवलास प्राजप्त सतगुरु का ।।
।। िब्द परला ।।
िाग री उठ खेल सुराजगन । जपया जमले बड़े भाग ।।1।।
लाग री उन चरनन । कफर न जमले अस दाव ।।2।।
सखी सरेली सब िुड़ आईं । गावत मंगल राग ।।3।।
िोभा भारी रूप जनरारी । बढ़ा प्रेम अनुराग ।।4।।
बिी बधाई रषण समाई । भाग चला बैराग ।।5।।

1. जनमणल । 2. नाि । 3. जनरं िन । 4. नर की । 5. सब ।


234 सार बचन बचन 28

भजि भावनी जनरमल करनी । खेलत जनि कर फाग ।।6।।


सत्त सरोवर मिन कीन्रा । धोये कल मल दाग़ ।।7।।
सतगुरु सरन रंस रोय बैठी । छू टी संगत काग ।।8।।
राधास्वामी मगन हुए िब । दुमतण दीन्री त्याग ।।9।।
।। िब्द दूसरा ।।
सोया भाग मेरा िागा आि सखी ।
सोया भाग मेरा िागा । परम पुरुष गुरु पाया ।।1।।
कमण कला सब फूूँ क िलाई । सुरत िब्द रम पाया ।।2।।
सतगुरु दया द्वार घट खोला । सुखमन िाय बसाया ।।3।।
नाल काल ति िब्द समानी । सुन्न सरोवर न्राया ।।4।।
माया ममता सब धर खाई । सुन्न जिखर चढ़ आया ।।5।।
गुरु दयाल मोसर जरम्मत दीन्री । मरासुन्न के पार कराया ।।6।।
भूँवरगुफा रस अगम जपलाया । िब्द िोर िरूँ अजधक सुनाया ।।7।।
सत्तलोक सतपुरुष रूप लख । अलख अगम दरसाया ।।8।।
राधास्वामी धाम अिब गत । काहू भेद न पाया ।।9।।
वेद पुरान क़ु रान न िाने । वर पद अगम अथाया ।।10।।
िोत जनरं िन ममण न िाना । अक्षर लग सब वार रराया ।।11।।
ज्ञानी िोगी सब थक बैठे । वर पद ककनहुं न पाया ।।12 ।।
यर पद सार भेद जनि सारा । जबरले संत िनाया ।।13।।
ब्रह्मा जवष्र्ु मरादेव गोरख । इन को माया खाया ।।14।।
इस पद का कोइ भेद न िाने । राधास्वामी अब प्रगटाया ।।15।।
।। िब्द तीसरा ।।
मोसर जमला सुराग गुरु का । मैं पाया नाम गुरु का ।।1।।
मैं सरना जलया गुरु का । मैं कककर हुआ गुरु का ।।2।।
मेरे मस्तक राथ गुरु का । मैं हुआ ग़़ुलाम गुरु का ।।3।।
बचन 28 वर्णन आनन्द प्राजप्त सतगुरु 235

मैं पाया अधार गुरु का । मैं पकड़ा चरन गुरु का ।।4।।


मैं सरबस हुआ गुरु का । मैं रो गया अपने गुरु का ।।5।।
कोइ और न मुझसा गुरु का । गुरु का मैं गुरु का गुरु का ।।6।।
राधास्वामी नाम यर धुर का । मैं पाया धाम उधर का ।।7।।
।। िब्द चौथा ।।
आि घड़ी अजत पावन1 भावन2 । राधास्वामी आये िगत जचतावन 1।।
जिनके जगरर3 प्रेम पग धारन । जतन िीवन का करें उबारन ।।2।।
आनंद मंगल रषण सुरावन । िुड़ जमल रंस लगे गुन गावन ।।3।।
िोभा अजधक न िाय बखानन । करं लग कहूं वार नसर पारन ।।4।।
राधास्वामी िब्द मनावन4 । सुरत चढ़ी देखा घट चाूँदन ।।5।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
गुरु चरन जगरर मेरे आये । भाग मेरे सोते कदये िगाये ।।1।।
पौद5 मेरी सूखी ररी कराये । देि मेरा सूना आन बसाये ।।2।।
कहूं क्या आनूँद उर न समाये । फू लती कफरूूँ देर जबसराये ।।3।।
गुरु संग सतसंगी चल आये । रंस आकािी देख लिाये ।।4।।
अिब यर औसर करा न िाये । देव और मुजनिन गये लुभाये ।।5।।
कोरट तेतीसों ररे पछताये । दरस नसर पाया ररे भुलाये ।।6।।
आरती ऐसी कौन सुनाये । अगम गजत संत कौन कर गाये ।।7।।
जनरं िन िोत थके गुन गाये । ओं और अक्षर भेद न पाये ।।8।।
सोरं सतनाम रार में आये । अलख और अगम द्वार पर छाये ।।9।।
मरल राधास्वामी ऊंच कदखाये । करन में िोभा बरनी न िाये ।।10।।
जबना गुरु भेदी कौन लखाये । सुरत जबन िब्द कभी नरीं िाये 11।।
पलूँग पर बैठे सतगुरु आये । आरती अद्भुत लीन सिाये ।।12।।
द्वार सब घट के गये खुलाये । जवरंगी9 सुरत चढ़ी गुन गाये ।।13।।

1. पजवि । 2. प्यारी । 3. घर । 4. मनाते रै । 5. छोटे पेड़ । 6. पक्षी की


सी गजत रै जिसकी ।
236 सार बचन बचन 29

दया अस कीन्री राधास्वामी आये । पड़ी मैं उनके चरनन धाये ।।14।।
प्रेम और प्रीत लगी अजधकाये । नरीं सुध तन मन गई भुलाये ।।15।।
।। िब्द छठा ।।
कौन करे आरत सतगुरु की ।। टेक ।।
ब्रह्माकदक सब तरस ररे रैं । जमली नरीं यर पदवी ।।1।।
कोरट तेतीसों राग बैरागी । इं द्र मुसनदर1 भटकी ।।2।।
सतगुरु जबना खोि नसर पाया । करम भरम जबच अटकी ।।3।।
बड़े भाग िानो अब उन के । जिनको सरन परापत गुरु की ।।4।।
गुरु समान समरथ नसर कोई । जिन धुर घर की आन खबर दी ।।5।।
मेरे भाग बड़े अब िागे । जमल सतगुरु संग आरत करती ।।6।।
भाव भजि क्या कदखलाऊूँ । मैं सतगुरु जबन और न रखती ।।7।।
गुरु की दया सरसदल पाया । जिकु टी चढ़ कर सुन्न परखती ।।8।।
मरासुन्न और भूँवरगुफा लख । सत्तलोक चढ़ अजधक ररखती ।।9।।
अलख अगम दरसे पद दोनों । आगे राधास्वामी चरन परसती ।।10।।

।। बचन उनतीसवाूँ ।।
जबनती और प्राथणना सतगुरु के चरन कूँ वल में
।। िब्द परला ।।
सतगुरु संग आरत करना । भव में क्यों दुख सुख सरना ।।1।।
मन जचत का थाल सिाऊूँ । सम सुरत िोत िगवाऊं ।।2।।
चढ़ अधर गगन पर धाऊं । अनरद धुन सदा बिाऊं ।।3।।
गुरु ककरपा करो बनाई । अब मुझ पै ररो सराई ।।4।।
मैं दुजखया बहु दुख पाई । तन मन को रोग सताई ।।5।।
सतसंग भी ककया न िाई । ज़़ुल्मी2 बहु ज़ोर चलाई ।।6।।
अब मेरी कु छ न बसाई । कोइ चले न मोर उपाई ।।7।।

1. बड़े मुजन । 2. दुख देने वाला यानी काल ।


बचन 29 प्राथणना 237

तुम दाता सम্रथ दाना1 । िो चारो करो जनदाना ।।8।।


मोजर जनश्चय टेक तुम्रारी । तुम करररो भौिल पारी ।।9।।
इक जबनती सुनो रमारी । मोसर लीिे सरन सम्रारी ।।10।।
गुन गाऊं चरन जधयाऊं । तुम जबन कोइ और न गाऊं ।।11।।
मैं अधम दीन गजत मेरी । तुम चरन गरे रोय चेरी ।।12।।
अब जछन जछन मुझे सम्रारो । मन भटक भटक अब रारो ।।13।।
भजि की रीत जसखाओ । घट में मेरे प्रेम बढ़ाओ ।।14।।
दृढ़ पकड़ू चरन तुम्रारे । तुम जबन नसर और अधारे ।।15।।
मेरे मन आसा भारी । मुझ को भी लेरैं उबारी ।।16।।
राधास्वामी गुरु रमारे । कर दया दास भव तारे ।।17।।

।। िब्द दूसरा ।।

मेरी पकड़ो बाूँर रे सतगुरु । नसर बह्मो धार भौ सागर ।।1।।


मैं बचूं िाल से क्योंकर । तुम जबन कोई और न आसर2 ।।2।।
अब जमला अिायब औसर । िम काल बड़ा रै फनधर3 ।।3।।
कोइ मंि जसखाओ आ कर । लो चरन ओट ककरपा कर ।।4।।
मैं थका चौरासी कफर कफर । अब कै से जमले अमर घर ।।5।।
तब सतगुरु करा दया कर । अब सुरत चढ़ाओ गगन पर ।।6।।
वर घाटी रै अजत अड़बड़4 । मन इन्द्री खैंच उधर धर ।।7।।
तब जमले िब्द तोजर इजस्थर । तन मन धन आि अरप धर ।।8।।
गुरु प्रीत करो जचत सम कर । यर आरत करो अधर चढ़ ।।9।।
राधास्वामी सरन तू दृढ़ कर । कफर छोड़ न कभी उमर भर ।।10।।

।। िब्द तीसरा ।।

गुरु मैं गुनरगार5 अजत भारी ।। टेक ।।


काम क्रोध और छल चतुराई । इन संग रै मेरी यारी ।।1।।

1. अन्तरयामी । 2. सरारा । 3. सांप । 4. ऊूँची नीची । 5. पापी ।


238 सार बचन बचन 29

लोभ मोर अरंकार ईषाण । मान बड़ाई धारी ।।2।।


कपटी लम्पट1 झूठा सरसक2 । अस अस पाप करा री ।।3।।
दुक्ख जनरादर सरा न िाई । सुख आदर अजभलाष भरा री ।।4।।
सबिन3 स्वाद अजधक रस चारे । मन रसना यरी चाट पड़ा री ।।5।।
धन और काजमन जचत्त बसाये । पुि कजलत्तर4 आस भरा री ।।6।।
नाना जवजध दुख पावत पापी । तो बी यर करतूत न छाूँड़ी ।।7।।
यर मन दुष्ट काल का चेरा । जनत भरमावत जनडर हुआ री ।।8।।
िब िब चोट पड़ी दुक्खन की । तब डर डर कर भिन करा री ।।9।।
देखो दया मेरर सतगुरु की । उसी भिन को मान जलया री ।।10।।
बुजध चतुराई बचन बनावट । रार िीत की चरचा धारी ।।11।।
िेखी बहुत प्रीत नसर अंतर । भोले भिन धोख कदया री ।।12।।
नर नारी बहुतक बस कीन्रे । मान प्रजतष्ठा5 भोग ककया री ।।13।।
गुरु संग प्रीत कपट कु छ डर की । कभी थोड़ी कभी बहुत ककया री ।।14।।
करूँ लग औगुन बरनूूँ अपने । याद न आवत भूल गया री ।।15।।
चोर चुग़ल6 इन्द्री रस माता । मतलब की सब बात जवचारी ।।16।।
ख़ुद मतलबी जनदणई मानी । बहुतन का अपमान ककया री ।।17।।
कोरटन पाप ककये बहुतेरे । कहूं कराूँ लग वार न पारी ।।18।।
रे सतगुरु अब दया जवचारो । क्या मुख ले मैं करूूँ पुकारी ।।19।।
नसर परतीत प्रीत नसर रं चक7 । कस कस मेरा करो उबारी ।।20।।
मो सा कु रटल और नसर िग में । तुम सतगुरु मोसर लेव सुधारी ।।21।।
ितन करूूँ तो बन नसर आवत । रार रार अब सरन पड़ा री ।।22।।
यर भी बात करी मैं मुर ूँ से । मन से सरना करठन भया री ।।23।।
सरना लेना यर भी करना । झूठ हुआ मुर ूँ का करना री ।।24।।
तुम्ररी गजत मजत तुमरीं िानो । िस तस मेरा करो उबारी ।।25।।
मैं तो नीच जनपट संिय रत । लगे न चरनन प्रीत करारी ।।26।।

1. जवषयी । 2. रत्यारा, कष्ट पहुंचाने वाला । 3. अनेक प्रकार के भोिन,


पकवान । 4. स्त्री । 5. इज़्जित । 6. जनन्दक । 7. कु छ ।
बचन 30 आरती 239

मेरे रोग असाध भरे रैं । तुम जबन को अस करे दवा री ।।27।।
िब चारो िब जछन में टारो । मेरर दया की मौि जनरारी1 ।।28।।
बारम्बार करूूँ मैं जबनती । और प्राथणना करूूँ तुम्रारी ।।29।।
तुम जबन और न कोई दीखे । तुमरीं रो मेरे रखवारी ।।30।।
बुरा बुरा कफर बुरा बुरा हूं । िैसा तैसा आन पड़ा री ।।31।।
अब तो लाि तुम्रें रै मेरी । राधास्वामी खेवो2 बला3 री ।।32।।

।। बचन तीसवाूँ ।।
।। आरती सतगुरु के चरन कूँ वल में ।।
।। िब्द परला ।।
आरत गाऊूँ स्वामी अगम अनामी । सत्तपुरुष सतगुरु राधास्वामी ।।1।।
सरि का थाल असचत की गादी4 । कूँ वल कटोरी जघय5 अमी डराई ।।2।।
मूल नाम की िोत िगाई । दोऊ राथ ले सनमुख आई ।।3।।
टोपी कमरी6 धोती पटका7 । मुख पोंछन रूमाल चढ़ाई ।।4।।
के सर जतलक माल फू लन की । धूप दीप8 और भोग धराई ।।5।।
अब आरत ले फे रन लागी । सुन्न मंडल अनरद धुन आई ।।6।।
दृजष्ट िोड़ जचत चरन लगाई । कृ पा दृजष्ट गुरु कीन्र बनाई ।।7।।
भान चनद्र छजब घट उजियारी । देखत देखत दृजष्ट समाई ।।8।।
सब रंसन जमल आरत गाई । समथण सब को जलया अपनाई ।।9।।
।। िब्द दूसरा ।।
आरत गाऊूँ पूरे गुरु की । मजरमा बरनूूँ गगन जिखर की ।।1।।
धुन पकड़ू मैं अनरद घर की । सैर करूं मैं सुन्न नगर की ।।2।।
बात कहूं मैं डगर9 की । पीर10 ररूं मैं अपने जिगर की ।।3।।
दीद11 करूं मैं पुरुष अधर की । दूर करूं मैं ममता धर12 की ।।4।।

1. जनराली । 2. दूर करो । 3. आफ़त । 4. गद्दा । 5. घी । 6. जमरज़ई ।


7. िो कमर में बाूँधा िाय । 8. दीपक । 9. मागण, रास्ता । 10. ददण ।
11. दिणन । 12. देर ।
240 सार बचन बचन 30

िोजत िगाऊं प्रेम जवरर की । थाली धारूं सुरत जनरत की ।।5।।


मैं तो छोटा यर पद मोटा । कै से चढ़ूं स्वामी यर मन खोटा ।।6।।
कृ पा दृजष्ट का दीिै झोटा1 । तो िावे बुजध बल का टोटा2 ।।7।।
अब मन तुम चरनन पर लोटा । काल करम जसर मारा सोटा3 ।।8।।
खेल कू द सब मैनें छोड़ा । जचत्त चरन में जनस कदन िोड़ा ।।9।।
अब कीिे मो पै दया अपारी । मैं िाऊं स्वामी तुम बजलरारी ।।10।।
मैं कककर हूं दीन अधीना । नसर अबतक मैं तुम को चीन्रा ।।11।।
क्या आरत मैं करने िोगा । अपनी दया से मोको पोषा4 ।।12।।
अब रक्षा मेरी तुम कीिै । जबछड़ूं न कभी सरन में लीिै ।।13।।
दामन5 तुम्ररा पकड़ा स्वामी । तुम रो अगम अपार अनामी ।।14।।
प्रेम भजि और सेवा ध्याना । यर सब दीिै मुझ को दाना6 ।।15।।

।। िब्द तीसरा ।।

राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी गाऊूँ ।


नाम पदाथण नाम पदाथण नाम पदाथण पाऊूँ ।।1।।
िोत िगाय दृजष्ट भर देखूं । अगम अगाध रूप जरय पेखूं7 ।।2।।
मजरमा ता की बरनी न िाई । प्रत्यक्ष सतगुरु कदया कदखाई ।।3।।
चरन सरन वर8 माूँगू दाता । रो मेरे तुम जपत और माता ।।4।।
करी आरती जरत जचत लाई । अमृतसर अश्नान कराई ।।5।।
सुन्न मरल िाय बासा कीन्रा । धुन ककगरी सुन मन हुआ लीना9 ।।6।।
सुरत सखी िरूँ करे जबलासा । रंस मंडली अिब तमािा ।।7।।
लीला देखी यराूँ अजत भारी । आगे की अब करी तयारी ।।8।।
मरासुन्न में लगन लगाई । गुप्त भेद ले सुरत चढ़ाई ।।9।।
घाटा10 भारी सो अब तोड़ा । भूँवरगुफा सुनी सोरं घोरा11 ।।10।।
सत्तनाम धुन जनि कर पाई । राधास्वामी भेद िनाई ।।11।।

1. झूले का झोंका । 2. नुक़सान, घाटा । 3. डंडा । 4. सम्राला । 5. पल्ला


यानी आसरा । 6. बखजिि । 7. जनरखूूँ । 8. वरदान । 9. मगन ।
10. घाटी । 11. आवाज़ ।
बचन 30 आरती 241

।। िब्द चौथा ।।
गुरु आरत मैं करने आई । दुक्ख भरम सब दूर नसाई ।।1।।
थाल जलया मैं सील जछमा का । पाया भेद मैं गुरु मजरमा का ।।2।।
िोत िगाई जवरर अजगन की । करी आरती प्रेम उमंग की ।।3।।
भोग लगाया अपने भाव का । फल पाया रम देर दाव का ।।4।।
दृजष्ट िोड़ कर सन्मुख ठाढ़ी1 । सतगुरु दया दृजष्ट िब डारी ।।5।।
राधा राधा जनत जनत गाऊूँ । स्वामी स्वामी सदा मनाऊूँ ।।6।।
राधास्वामी कफर दोउ एका । िुगल2 रूप की जनस कदन टेका ।।7।।
करूँ लग बरनूं िोभा उन की । कोरट सूर चूँद छजब इक अंगकी ।।8।।
देखत देखत मन जबगसाना3 । कूँ वल सूर िस प्रीत पुराना ।।9।।
करूँ लग आरत करूूँ बनाई । मन नसर माने जचत न अघाई4 ।।10।।
प्रेम उमंग अपनी अब रोकूं । पूरन आरत कर जरया पोखूूँ5 ।।11।।
राधास्वामी मगन रोय कर । दें परिादी लेउूँ गोद भर ।।12।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

गाऊूँ आरती ले कर थाली । गगन जिखर सूरत मेरी चाली ।।1।।


उलट दृजष्ट देखूं मैं िोती । जछन जछन मन को तराूँ परोती ।।2।।
सुरत जनरत कर सुनती बािा । बना आरती का सब सािा ।।3।।
कर आरत लीन्रा फल पूरा । उदय हुआ घट में अब सूरा ।।4।।
सूर चाूँद दोउ देख उिाली । िब्द पौद सींचे मन माली ।।5।।
कूँ वलन क्यारी िाय सम्रारी । सुरत माजलनी फू ल सूँवारी ।।6।।
गूथ ं गूथ
ं स्वामी कढग लाई । आरत कर गल रार चढ़ाई ।।7।।
फू ल फू ल कर सन्मुख ठाढ़ी । आरत फे रूूँ दृजष्ट जनरारी ।।8।।
चार चमेली मन ककया मरूवा9 । भरा अमी से तन का चरूवा7 ।।9।।
मोर िाल का धागा तोड़ा । रोग सोग संिय अब छोड़ा ।।10।।

1. खड़ी हुई । 2. दोनों । 3. जखला, खुि हुआ । 4. तृप्त, संतष्ट


ु रोना ।
5. िांजत दूूँ । 6. एक फू ल का नाम । 7. बड़ा मटका ।
242 सार बचन बचन 30

खैंच खाूँच मन चरनन िोड़ा । ज्यों त्यों कर यर िग से मोड़ा ।।11।।


तन सीतल और मन भया सीतल । नसर भावे अब काूँसा पीतल ।।12।।
प्रेम प्रीत स्वामी से लागी । और काम सब दीन्रा त्यागी ।।13।।
आरत पूरन कीन्री अबरी । राधास्वामी दया करी पुजन िबरी ।।14।।

।। िब्द छठा ।।

आरत गावे स्वामी दास तुम्रारा । प्रेम प्रीत का थाल सूँवारा ।।1।।
ज्ञान ध्यान का दीपक बारा । भजि िोग धुन सुन झनकारा ।।2।।
झुनक झुनक झनकार झुमावा1 । सुरत िब्द धुन आन समावा ।।3।।
अब आरत स्वामी मानो मेरी । गुनरगार भूला बहुतेरी ।।4।।
जछमा करो अपराध सुवामी । आगे न चूकूूँ पाइ रैरानी ।।5।।
दया करो दाता प्रभु मेरे । मैं सेवक जनि चरनन चेरे ।।6।।
दृजष्ट करो भरपूर अपारा । पद पाऊूँ िा का वार न पारा ।।7।।
नाम तुम्रार धुन्ध2 उजियारा । गुन गाऊूँ धुन अगम अपारा ।।8।।
दया करो अब राधास्वामी । देव प्रसाद मोसर अंतरिामी ।।9।।

।। िब्द सातवाूँ ।।

गुरु मेरे दाता मैं भई दासी । िनम िनम की काटी फाूँसी ।।1।।
दुलभण नर देरी अब पाई । करूूँ भजि गुरु लेउूँ ररझाई ।।2।।
रटना नाम करूूँ मैं जनस कदन । गुन गाऊूँ अब स्वामी जछन जछन ।।3।।
दिणन पाऊं मन उमगाऊं । नैन िोड़ कर सुरत लगाऊं ।।4।।
तब अनरद अद्भुत पाऊं । गगन मंडल में िाय समाऊं ।।5।।
जिकु टी िाय ससरासन बैठी । करे राि घट घट में पैठी ।।6।।
आरत जवजध अब कीन्रा सािा । धुन धधकार गगन का बािा ।।7।।
धुन आई इक धुर से भारी । अधर पदारथ पाया सारी3 ।।8।।
बरसे अमी की धार अखंडा । भींिे सुरत तिा नौखंडा ।।9।।

1. घुमाया । 2. अंधरे ा । 3. सार, िौरर । 4. सपड ब्रह्मंड ।


बचन 30 आरती 243

रंस चाल अब चली सरोवर । पहुंची िाय असचत बरोबर ।।10।।


अगम1 जनगम2 से रो गइ पारा । फोड़ा िाय सत्त का द्वारा ।।11।।
सत्तनाम पद पाया नूरा । काल देख अब जछन जछन झूरा3 ।।12।।
मैं भी भई नाम रस माती । आरत सतगरू जनत प्रजत गाती ।।13।।
तुम दयाल देओ मोसर दाना । जचत्त ररे तुम चरन समाना ।।14।।
कभी न जबछडू ूँ ज्यों िल मीना । बार बार तुम चरन अधीना ।।15।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
आरत गाऊं पाूँच कड़ी की । पाूँच तत्त्व4 संग आन पची री ।।1।।
पाूँच प्रार्5 की डोर बंधी री । पाूँच दुष्ट6 संग आन अड़ी री ।।2।।
सतगुरु पूरे दया करी री । खुली गाूँठ और गगन चढ़ी री ।।3।।
काया मद्धे खूब लड़ी री । धुन के मोती पोये लड़ी री ।।4।।
सुन्न मंडल की धुन पकड़ी री । राधास्वामी चरनन आन पड़ी री ।।5।।
।। िब्द नवाूँ ।।
सात कड़ी की आरत फे रूं । सुरत चढ़ाय िब्द संग घेरूं ।।1।।
मन को मोड़ गगन को फोड़ूूँ । जचत्त को रोक चरन में िोड़ूूँ ।।2।।
सतगुरु मुखड़ा जछनजछन जनरखूूँ । जवजवध भाूँत अनरद धुन परखूूँ ।।3।।
मैं मृगनी सुनी नाद गुरु की । सुनत नाद तन मन सुध जबसरी ।।4।।
इन्द्री पाूँच सुरत मन दोई । सातों सूँग ले गगन समोई7 ।।5।।
आूँख कदखाऊं और झुूँझलाऊूँ । सतगुरु के बल ज़ोर चलाऊूँ ।।6।।
यर आरत मैं जनत्त करूूँगी । अब नसर रूठूूँ 8 सच्च कहूंगी ।।7।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
आरत गाऊूँ सत्तनाम की । िोत िगाऊूँ अधर नाम की ।।1।।
लीला देखूूँ कं ि श्याम की । सैर करूूँ मैं सेत धाम की ।।2।।
िड़ काटूूँ अब दुष्ट काम की । मैं चेरी गुरु जबना दाम की ।।3।।

1. दसवाूँ द्वार । 2. मरासुन्न । 3. सूख गया । 4. पृथ्वी, िल, अजि, पवन,


आकाि । 6. पाूँच वायु यानी अपान, व्यान, समान, प्रार्, उदान । 6. काम,
क्रोध, लोभ, मोर, अरंकार । 7. प्रवेि ककया । 8. खफा हूूँ ।
244 सार बचन बचन 30

सेवा धारूं आठ िाम1 की । त्याग दई धुन कदिा बाम2 की ।।4।।


प्रीत लगी िस अजलफ़ लाम3 की । नाद सुनी चढ़ ला-मुकाम4 की ।।5।।
संगत छोड़ी खासो आम की । ररी न लिा नंगो नाम5 की ।।6।।
िोभा देखी गगन बाम6 की । हुइ मस्तानी अिर िाम7 की ।।7।।
िगर नरीं अब कु छ कलाम8 की । आरत राधास्वामी अब तमाम की ।।8।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।।

दया गुरु की अब हुइ भारी । मैं भी आरत करन जवचारी ।।1।।


ज्ञान गुरु का थाल ससगारी । भजि िोत ले कर6 में धारी ।।2।।
खड़ी हुई िब गुरु के आगे । मद और मोर काम उठ भागे ।।3।।
दृजष्ट लकु रटया गुरु की लागी । ममता कु जतया भोंकत भागी ।।4।।
मंि बताया गुरु ने ऐसा । लोभ भूत छोड़ा तन देसा ।।5।।
सुरत चढ़ी अब गगन मंडल में । नौ छोड़े गइ अष्ट कं वल में ।।6।।
राधास्वामी नाम सम्रारा । रूप अनूप हृदे में धारा ।।7।।

।। िब्द बाररवाूँ ।।

एक आरती और बनाऊं । राधास्वामी आगे आन सुनाऊं ।।1।।


िुजि ितन कर जवरर िगाऊं । प्रेम प्रीत का थाल सिाऊं ।।2।।
कु ल कु टु म्ब से नाता तोड़ा । चरन कूँ वल में मन को िोड़ा ।।3।।
काल चक्र डाला बहुतेरा । छोड़ कदया सब मेरा तेरा ।।4।।
मन उमूँगा चरनन में भारी । सुध नसर को नर रै को नारी ।।5।।
िब्द भेद िो गुरु दरसाया । सुरत चढ़ाय द्वार पर आया ।।6।।
गगन मासर धस दास कराया । स्वामी चरन जनपट जलपटाया ।।7।।
घट में दिणन सतगुरु पाया । रूप अनूप देख ररखाया ।।8।।
गूूँित भूँवर सरोि11 सेत में । लेत सुगध ं और मगन रेत12 में ।।9।।
धुन की खबर िनावत न्यारी । लगी सुरत िरूँ अजधक करारी ।।10।।

1. परर । 2. बायाूँ । 3. प्रीत िो कभी न टूटे । 4. अधामी । 5. बदनामी


और नेकनामी । 6. अटारी । 7. प्याला । 8. बचन । 9. राथ । 10. लकड़ी ।
11. कूँ वल । 12. प्यार ।
बचन 30 आरती 245

राधास्वामी दया जवचारी । मो सी अधम को जलया उबारी ।।11।।


।। िब्द तेररवाूँ ।।
अगम आरती राधास्वामी गाऊूँ । तन मन धन सब भेंट चढ़ाऊूँ ।।1।।
छत बुरारूूँ1 छिे झाड़ूं । नीच नीच मैं सेवा धारूं ।।2।।
दया करो अब स्वामी मेरे । िन्म िन्म पड़ी काल के घेरे ।।3।।
अब दयाल ने मुरर2 लगाई । कं टक3 काल सब दूर पराई ।।4।।
देव प्रसाद मोसर राधास्वामी । पद पाऊूँ सतनाम नामी ।।5।।
मैं चेरी स्वामी तुम्ररे घर की । साफ़ करूूँ बुजध मायाबर4 की ।।6।।
।। िब्द चौदरवाूँ ।।
घामर घूमर5 करूूँ आरती । स्वामी हुए दयाल िी ।।1।।
खाउूँ परिादी ओढ़ूूँ परिादी । नाम तुम्रारा जलये िाउूँ गी ।।2।।
देखो चारे मत देखो स्वामी । मैं अपनी सी करे िाउूँ गी ।।3।।
देउूँ पररकमाण जपऊूँ चरनामृत । बूँदगी कर कर चरन गहूंगी ।।4।।
काल करम का माथा फोड़ूूँ । सुरत चरन में िोड़ रहूंगी ।।5।।
ऐसी दुलभ
ण भजि कमाऊूँ । उमंग उमंग गुन गाऊंगी ।।6।।
पूिा भेट धरूूँ नसर कौड़ी । आरत गाऊूँ नौड़ी नौड़ी6 ।।7।।
खफ़ा रोव तो रूसूूँ नारीं । चरन तुम्रारे पकड़ रहूंगी ।।8।।
।। िब्द पंद्ररवाूँ ।।
करे आरता सेवक भोला । नेर7 नगर का फाटक खोला ।।1।।
चौक आकाि साफ़ अब कीन्रा । िब्द गुरु का दिणन लीन्रा ।।2।।
कर कर दरस मगन हुआ मन में । सुरत सखी पहुंची इक जछन में ।।3।।
लगन लगी और प्रीजत अब िागी । राधास्वामी दिणन सूरत पागी8 ।।4।।
पाूँच तत्त्व फु लवारी देखी । प्रकृ त पचीसों क्यारी पेखी ।।5।।
सरन9 चौतरा सुन्न मझारा । तरूँ राधास्वामी ससरासन धारा ।।6।।

1. झाड़ू लगाऊूँ । 2. छाप । 3. दुख । 4. माया का पजत यानी काल ।


5. पररक्रमा देकर । 6. झुक कर । 7. प्रीजत । 8. दृढ़ हुई । 9. आूँगन ।
246 सार बचन बचन 30

जरया परात राथ अब लीन्री । बाला िोता1 धुन्ध टलीनी ।।7।।


अगम नगर ला भेट चढ़ाया । अमी सिीवन बूटी2 लाया ।।8।।
ककया आरता उमंग प्रेम का । फोड़ा माथा काल अधम का ।।9।।
धारा राधास्वामी नाम जवरंगम3 । दम दम तोड़े दाूँत धरमिम4 ।।10।।
फू ल पान और के सर टीका । भोग भाव धरा प्रीत रीत का ।।11।।
पाउं प्रसाद अब राधास्वामी का । गाउं गीत पल पल प्रीतम का ।।12।।
ककया आरता पूरा आि । िन्म अष्टमी पाया साि ।।13।।

।। िब्द सोलरवाूँ ।।

िाग रे मन छोड़ बखेड़ा । त्याग रे मन िगत अूँधरे ा ।।1।।


अब खोिो साूँझ सवेरा । कफर क़ाबू4 चले न तेरा ।।2।।
तब सतगुरु करें जनबेड़ा6 । तू करे न भौिल फे रा ।।3।।
काल यर डाला घेरा । सब खायूँ िीव भटभेड़ा7 ।।4।।
सतगुरु पद सेवो मेरा । छू टे सब मेरा तेरा ।।5।।
मत कर तू बहुत अबेरा । अब बाूँध अगम का बेड़ा8 ।।6।।
घाट घट भीतर रेरा । पद जमला आि बहु नेड़ा9 ।।7।।
मैं ककया गगन में डेरा । िरूँ संत करें जनत फे रा ।।8।।
तसकर10 सब मारे घेरा । सुख पाया आि घनेरा ।।9।।
संतन का चौकी पररा । मैं करूूँ असचत बसेरा ।।10।।
आरत की उमंग उठाऊूँ । सामान कराूँ से लाऊूँ ।।11।।
मन भूखा सूरत भूखी । इन्द्री तन भीतर सूखी ।।12।।
तब सतगुरु दीन्री टेरा । तू चढ़ आ छोड़ अूँधरे ा ।।13।।
जिकु टी का देख उिेरा । धुन से कर व्राूँ की नेररा11 ।।14।।
सुन्न में िाय चौकी डारी । अब जमल गइ सामाूँ भारी ।।15।।
अब आरत करूूँ ससगारी । सतगुरु पै िाऊूँ बजलरारी ।।16।।

1. बड़ी िोत । 2. िान देने वाली िड़ी । 3. पक्षी । 4. धमणराय । 5. उपाय ।


6. जनस्तार । 7. भटकना । 8. नाव । 9. पास । 10. चोर । 11. प्रीजत ।
बचन 30 आरती 247

उमगी अब सुरत करारी । यजर कर में लीन्री थारी ।।17।।


िरूँ सीतल िोत िगाई । झारी भर अमृत लाई ।।18।।
अमी मूर का भोग धराई । कं वलन गल रार परराई ।।19।।
सतगुरु की िोभा भारी । मैं जनरखूं दृजष्ट पसारी ।।20।।
मरासुन्न ग़लीचा डारा । िरं गगन धरन नसर तारा ।।21।।
िरं दीप रचे अजत भारी । रंसन गजत क्या कहुं न्यारी ।।22।।
भिन के िूथ1 बसाये । उपमा उन करी न िाये ।।23।।
आरत जवजध देखन आये । सब भूँवरगुफा कढग छाये ।।24।।
सचखंड बना ससरासन । सतपुरुष ककया तसर आसन ।।25।।
अनरद धुन बीन बिाई । रंसन जमल आरत गाई ।।26।।
िरं आरत कीन्री भारी । कफर अलख लोक पग धारी ।।27।।
आरत की धूम समाई । धुर अगम लोक तक आई ।।28।।
यर आरत बहुत बढ़ाई । परताप करा नसर िाई ।।29।।
राधास्वामी घर में आई । क्या भाग सराहूं भाई ।।30।।
आरत अब रो गइ पूरी । मैं राधास्वामी चरनन धूरी ।।31।।

।। िब्द सिरवाूँ ।।

दम्पत2 आरत करूं राधास्वामी । प्रेम सजरत गाऊं गुन नामी ।।1।।
कर पकवान जमष्टान भोग धर । और वस्तर गोटन के सि कर ।।2।।
लाय भेट स्वामी के राखे । तब स्वामी अस आज्ञा भाखे ।।3।।
करो आरती प्रेम ससगारी । बार बार अस आरत धारी ।।4।।
रम भी आरत करें बनाई । राधास्वामी ररो सराई ।।5।।
सुरत िब्द भाूँवर3 अब लीन्री । सदा सुराग अचल गुरु दीन्री ।।6।।
गुरु दयाल तो कल्ल दयाला । सतगुरु पूरे करें जनराला ।।7।।
उन चरनन पर िाउं बजलरारी । उन जबन कौन करे उपकारी ।।8।।

1. झुड
ं । 2. िोड़ा । 3. पररक्रमा ।
248 सार बचन बचन 30

मैं कककर तुम चरन अधारा । तुम जबन को अब करे उबारा ।।9।।
मस्तक राथ धरो अब रमरे । प्रीत लगे अब चरनन तुम्ररे ।।10।।
ऐसी कृ पा करो राधास्वामी । भजि िुजि मोसर देव अनामी ।।11।।
मन और सुरत दोउ जमल आये । नूर तुम्रार जरये में लाये ।।12।।
अब दोनों को लेकर सरना । मारग अगम लखाओ अपना ।।13।।
सुरत चढ़ाओ सरसकूँ वल में । रूप जनरारूं िोत अब जतल में ।।14।।
कफर आगे को चढ़ूूँ बंक में । लखूूँ जतरकु टी धाम ओं में ।।15।।
सुन्न जिखर चढ़ पहुंचूूँ जछन में । मरासुन्न का धारूं पन1 मैं ।।16।।
भंवरगुफा बैठंू सुन धुन मैं । बीन बिाऊं िा सतपुर में ।।17।।
अलख अगम की दया समाई । राधास्वामी नाम सुनाई ।।18।।
सुनूं नाम और धारूं जचत में । करम भरम काटूूँ इक पल में ।।19।।
कर सतसंग मजलनता नासी । घट में चेतन कीन्र प्रकासी ।।20।।
अन्ध घोर अज्ञान नसाना2 । घोर अनारद जमला रठकाना ।।21।।
सुन सुन धुन मगनानी ऐसी । मीन मगन ररे िल में िैसी ।।22।।
दासी दास िुगल सरनाये । करके ब्यार आरती लाये ।।23।।
भेट चढ़ावें अब अजत गररी । तन मन धन तो तुच्छ भये री ।।24।।
मैं अिान कु छ ममण न िानूं । राधास्वामी नाम बखानूं ।।25।।
तुम दयाल मेरी आरत मानो । रम अिान तुम गजत न जपछानो ।।26।।
राधास्वामी दरस भाग से पाया । राधास्वामी सरन जचत्त अब आया ।।27।।

।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।।

आि आरती करूूँ सुरावन । भावन पावन मन ललचावन ।।1।।


गावन लावन3 प्रीत बढ़ावन । छावन उमंग रटावन धावन4 ।।2।।
सुरत चलावन िब्द जमलावन । सरि समावन रं ग चढ़ावन ।।3।।
अघ5 रावर् कु ल नाि करावन । सीता राम अिुध्या लावन ।।4।।

1. इरादा, प्रजतज्ञा । 2. नाि हुआ । 3. सुन्दर । 4. चंचलता । 5. पाप ।


बचन 30 आरती 249

सुरत जसया मन राम करावन । दसवाूँ द्वार अिुध्या गावन ।।5।।


मानसरोवर घाट अन्रावन । मरासुन्न में िाय चढ़ावन ।।6।।
भंवरगुफा लीला दरसावन । सत्तलोक गजत बीन सुनावन ।।7।।
अलख अगम िा िब्द िगावन । राधास्वामी धाम कदखावन ।।8।।
।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।
उठी अजभलाषा इक मन मोर । करूूँ अब आरत गुरु की िोर ।।1।।
प्रेम की थाली लूग ूँ ी राथ । िब्द की िोत िगाऊं साथ ।।2।।
सुरत को बाूँधूूँगी अब तान । रूप गुरु जनरखुग ं ी अब आन ।।3।।
बचन कर मजरमा करूं बखान । चरन गुरु लाऊं जररदे ध्यान ।।4।।
गुरु जबन और न काहू मान । सरन में उनके पड़ी जनदान1 ।।5।।
करें गुरु खेवा मेरा पार । बचावें डू बत हूं मूँझधार ।।6।।
पकड़ अब लेना भुिा पसार । िगत का मेटो सभी ग़़ुबार ।।7।।
सुरत को लीिे आि सम्रार । चढ़ूं और झाूँकू नभ का द्वार ।।8।।
जनरं िन िोत लखूं उजियार । सरसदल छोड़ बंक के पार ।।9।।
घाट कफर जिकु टी लेउं जनरार । सुन्न चढ़ खोलूं बिर ककवाड़ ।।10।।
मरासुन पहुंचूं सतगुरु लार । भंवर चढ़ पकड़ूं बंसी धार ।।11।।
सच्चखंड आई बीन सम्रार । अलख और अगम ककया दरबार ।।12।।
ककया राधास्वामी मुझ से प्यार । हुई मैं उन पर अब बजलरार ।।13।।
करूं मैं आरत लूं आनन्द । जमला मोसर आि परमानन्द ।।14।।
।। िब्द बीसवाूँ ।।
क्योंकर करूं आरती सतगुरु । बल नसर धरूं प्रेम का जनि उर ।।1।।
तुम रो दीन दयाल कृ पाला । बंधन काट करो प्रजतपाला ।।2।।
मैं कककर अजत अधम उदासी । तुम्ररी गजत सब पर अजबनासी ।।3।।
मैं करा िानूं भेद तुम्रारा । जवषय भोग मेरा सदा अरारा ।।4।।
काल कला की धारा भारी । या ते पार उतरो तारी ।।5।।

1. आजखरकार ।
250 सार बचन बचन 30

मन तन मोर करत नसर कािा । सेवा भिन करत करे लािा ।।6।।
संत समागम दुलणभ भाई । सो ककरपा से जमल्यो मोसर आई ।।7।।
कौन भाग अब उदय रमारा । या ते दिणन पायो तुम्रारा ।।8।।
दूर देि से चल कर आयो । और काल बहु जबघन लागायो ।।9।।
मन उचाट कर जचत भरमावत । बारम्बार देि को धावत ।।10।।
सतसंग में ररना नसर चारत । धन जतररया की याद बढ़ावत ।।11।।
ताते सतगुरु मत को फे रो । तुम चरनन कर जनस कदन चेरो ।।12।।
सुरत चढ़ाओ गगन िब्द में । जनरत िमाओ धुनन अवध1 में ।।13।।
सरस कूँ वल जिकु टी लख लीला । सुन्न मरासुन खेलत सीला ।।14।।
भूँवर गुफा सतलोक कदखाई । अलख अगम की छजब जचत भाई ।।15।।
राधास्वामी दीन अवाज़ा । चलो सुरत घर अपना पािा ।।16।।

।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।

धूम धाम से आइ इक सिनी । पजत2 को संग पुि दोउ3 मगनी ।।1।।


आय सरन सतगुरु की लीन्री । तन मन सजरत प्रीजत परबीनी ।।2।।
आरत करन जवचारत गुरु की । उमंग प्रीत कदखलावत उर की ।।3।।
गुरु संग प्रीजत करी नसर थोड़ी । सुरत जनरत जनि चरनन िोड़ी ।।4।।
प्रेम िगावत कमण सुलावत । भिन भजि में धीर बढ़ावत ।।5।।
जनत्त नवीन प्रीजत अजधकाई । िोभा गुरु देखत मुसकाई ।।6।।
गुरु की मजरमा करी न िाई । कोरटन सूर इक रोम लिाई ।।7।।
गजत उनकी उनरीं की िानी । कौन करे यर अकथ करानी ।।8।।
सतसंग उनका िो कोइ पावे । िब्द मासर वर जछन जछन धावे ।।9।।
ताते सरन गरी राधास्वामी । तुमरी रक्षा करो जनदानी ।।10।।
मैं आरत कु छ करन न िानी । अपनी दया से लगन लगानी ।।11।।

1. दसवां द्वार । 2. मन । 3. बैराग और अनुराग ।


बचन 30 आरती 251

।। िब्द बाईसवाूँ ।।
सतगुरु की अब करूूँ आरती । िगा भाग और रहूं िागती ।।1।।
कदन कदन प्रीत पदारथ लाती । बढ़ी उमंग अब करां जछपाती ।।2।।
देख सारदा1 जनपट लिाती । सतगुरु मजरमा करी न िाती ।।3।।
िब िब दरस गुरु का पाती । तन मन धन सब अपण धराती ।।4।।
अस आरत मैं करूूँ बनाई । संत सरन मैं जनि कर पाई ।।5।।
काल दुष्ट इक जवघन लगाई । उलटी मो को देि पठाई ।।6।।
मैं गुरु मूरत जररदे धारी । पल पल जछन जछन करूूँ अधारी ।।7।।
तब तो काल ररे मुरझाई । जवरर प्रेम बल मार जगराई ।।8।।
दूर रहूं सतगुरु उर धारूूँ । काल जवघन सब दूर जनकारूूँ ।।9।।
मैं सतगुरु बल लीन्रा राथा । फोड़ूं काल करम का माथा ।।10।।
अब जछन जछन यर आरत गाऊूँ । सतगुरु चरनन जनत बल िाऊूँ ।।11।।
तन तो ररे देि के मारीं । मन तो ररे चरन की छारीं ।।12।।
यों दम दम गुरु पास बसानी । अब क्या जवघन करे मेरी रानी ।।13।।
राधास्वामी मूरत जररदे धारी । जछन जछन देखूं नैन उघाड़ी ।।14।।
।। िब्द तेईसवाूँ ।।
करूूँ री इक आरत अद्भुत भारी । चरन गुरु सेव रोकर न्यारी ।।1।।
सुरत मेरी लागी धुन में पागी । जनरत मेरी िागी ममता भागी ।।2।।
रंस गजत पाई पानी त्यागी । ररी मैं अब तक बहुत अभागी ।।3।।
गुरु ने अब दीन्रा मोसर सुरागी । मैं गुरु के चरन की हुई अनुरागी ।।4।।
भोग सब छू टे जचत बैरागी । गाउं अब जनसकदन सतगुरु रागी ।।5।।
कहूं करा मैं अब बड़ भागी । िब्द मासर सूरत मेरी लागी ।।6।।
करम धरम जबच दीन्री आगी । मान अपमान दोउ मैं त्यागी ।।7।।
सतगुरु चरन हुई मैं दाग़ी । नाम दान सतगुरु से माूँगी ।।8।।

1. सरस्वती ।
252 सार बचन बचन 30

गगन चढ़ूूँ देखूं पद आगी1 । सत्त िब्द में सुरत समागी2 ।।9।।
छू ट गई संगत सब कागी । रंसन साथ रला मेरा भागी ।।10।।
मन को िीता ममता भागी । राधास्वामी चरन परस परसागी ।।11।।

।। िब्द चौबीसवाूँ ।।

गुरु के चरन पर जचत बजलरारी । मन परतीत करूूँ दृढ़ सारी3 ।।1।।


कर अजभलाख दूर से आयो । अचरि दिण नैन भर पायो ।।2।।
काल करी अपनी ठजगयाई । मन जबच नाना भरम उठाई ।।3।।
कभी परतीत प्रीत दृढ़ताई । कभी सरन से देत कचाई ।।4।।
कभी झकोले मोर कदखाई । कु टुंब देस की याद कराई ।।5।।
चरन गुरु ज्यों त्यों दृढ़ करता । कफर भरमाय िगत में धरता ।।6।।
क्या क्या कहूं काल की लीला । तपन उठावत खोवत सीला ।।7।।
लीक पुरानी कु ल मरिादा4 । तीरथ बतण धमण को साधा ।।8।।
भरम उठावत अस अस भारी । दूर रटावत प्रेम जवचारी5 ।।9।।
मैं बलरीन दीन सरनागत । िस िानो तस टारो आफ़त ।।10।।
यर मन चोर कठोर रमारो । लोभ लरर में बरतो सारो ।।11।।
आस भरोस और जबश्वासा । गुरु चरनन में करे न बासा ।।12।।
क्यों कर इस मन को समझाऊूँ । गुरु की दया जबन ठौर न पाऊूँ ।।13।।
ता ते जबनती करूूँ तुम्रारी । ज्यों त्यों मन को लेओ सुधारी ।।14।।
तुम चरनन में रहूं सदा री । कभी न छोड़ूं देओ क़रारी6 ।।15।।
चरन भेद गुरु कदया बताई । नैन जनरख िरूँ सुरत लगाई ।।16।।
दो जतल छू ट एक जतल दरसा । िोत जनरं िन का पद परसा ।।17।।
आगे सुखमन घाट सुराई । द्वार बंक में िाय समाई ।।18।।
घंटा संख ररी लौ लाई । छोड़ ताजर कफर िकु टी आई ।।19।।
गरिा बादल मृदंग सुनाई । ओंकार गुरु िब्द िनाई ।।20।।

1. आगे का । 2. समा गई, धस गई । 3. पूरी । 4. रीजत । 5. जवचार ।


6.दृढ़ता ।
बचन 31 आरती 253

लीला देख सुरत ररखाई । आगे सुन्न सरोवर धाई ।।21।।


रंसन साथ उमंग बढ़ाई । मान सरोवर जबमल अन्राई ।।22।।
मरासुन्न की करी चढ़ाई । सतगुरु संग खेप जनभ आई1 ।।23।।
जतजमर छाूँट परकाि कदखाई । भूँवरगुफा बंसी सुन पाई ।।24।।
सच्चखंड सतिब्द लखाई । धुन अनंत और बीन बिाई ।।25।।
अलख अगम दिणन दरसाई । राधास्वामी धाम समाई ।।26।।
आरत कर लीन्रा घट भेदा । भई परापत सवण उमेदा ।।27।।
सकल मनोरथ पूरन हुए । रतन पदारथ राधास्वामी कदये ।।28।।
।। िब्द पच्चीसवाूँ ।।
आरत आगे राधास्वामी के कीिे । जबमल प्रकाि अमी रस पीिे ।।1।।
जचत कर चंदन जरत कर माला । आन चढ़ाऊूँ स्वामी दीनदयाला ।।2।।
गगन का थाल सुरत की बाती । िब्द की िोत िगे कदन राती ।।3।।
सरस कूँ वल दल घंटा बािे । बंकनाल धुन िंख सुनीिे ।।4।।
ओंकार धुन जिकु टी बािे । सुन्न जिखर अक्षर धुन गािे ।।5।।
भूँवरगुफा कढग सोरं बासा । सत्तलोक सतनाम जनवासा ।।6।।
दास तुम्रारे स्वामी आरत गावें । चरन कूँ वल में बासा पावें ।।7।।

।। बचन इकतीसवाूँ ।।
वर्णन मन और इजन्द्रयों के जवकार और काल
के जवघ्नों का अभ्यास की रालत में
।। िब्द परला ।।
घट औघट झाूँका री सिनी ।। टेक ।।
मन मजतमन्द करन नसर माने । िब्द सुरत नसर ताका री ।।1।।
घर घर कफरे स्वान2 मजत लीये । झूठ झूठ जवष खाता री ।। 2।।
धन सम्पत सुख चार उठाई । मान मनी मद माता री ।।3।।

1. जनर्शवघ্न पार हुई । 2. कु त्ता ।


254 सार बचन बचन 31

कु ल कु टु म्ब िग झूठ पसारा । जतन संग बाूँधा नाता री ।।4।।


घाट बाट सतगुरु नसर चीन्रे । खान चार जनत िाता री ।।5।।
क्यों कर कहूं बूझ नसर माने । कफर कफर भरम भुलाता री ।।6।।
छल और कपट ईषाण जनन्दा । दम दम पाप बढ़ाता री ।।7।।
गुरु का बचन साजत्वकी1 ररनी । इन में जचत न समाता री ।।8।।
करूँ लग कहूं रार अब मानी । गुरु जबन कौन बचाता री ।।9।।
गुरु चरनन पर प्रेम बढ़ाओ । जपरथम सीढ़ी गाता री ।।10।।
दूसर सीढ़ी सुरत िब्द की । मन अन्तरगत न्राता री ।।11।।
राधास्वामी करत बुझाई । िीवन काि सुनाता री ।।12।।

।। िब्द दूसरा ।।

छु टूं मैं कै से इस मन से । सुरत यर करती जनि मन से ।।1।।


िाल इन डाला बहु रस से । छु टाया मोसर धुर घर से ।।2।।
बूँधी मैं आय इन दस2 से । ककया परपंच3 इन मुझ से ।।3।।
द्वार मैं आन नौ परसे । जगराया मोसर दस दर4 से ।।4।।
लगी अब लाग भोगन से । छु टूं क्यों राय इस फूँ द से ।।5।।
गुरु जबन कोइ नसर दरसे । जनकाले मोसर इस वन से ।।6।।
कांपती मैं कफरूं िम से । छु ड़ावे कौन इस डर से ।।7।।
पिु सम रो गई नर से । करी नसर प्रीत मैं गुरु से ।।8।।
डार ज्यों टू ट गई िड़ से । पड़ी मैं दूर जनि घर से ।।9।।
करूं फ़याणद सतगुरु से । लगाओ मोसर चरनन से ।।10।।
दूर करो मैल सतसंग से । रोय कफर जभन्न इस तन से ।।11।।
जमले तब िाय सुन धुन से । अमीरस पाय तब सरसे5 ।।12।।
िब्द से िाय कर परसे । जमटे दुख कफर नरीं तरसे6 ।।13।।
लगूं मैं आय राधा7 से । करूूँ मैं प्रीत स्वामी से ।।14।।

1. सतोगुर्ी । 2. दस इजन्द्रय । 3. उपाजध । 4. द्वार । 5. खुि रो ।


6. तृष्र्ा करे । 7. आकद सुरत ।
बचन 31 मन और इजन्द्रयों के जवकार 255

करो राधास्वामी तुम अपना । पड़ी में आय तुम सरना ।।15।।


।। िब्द तीसरा ।।
गई आि सोच में ।। टेक ।।
मेरी सुरत कु चालन चाल । गई आि सोच में ।।1।।
अनरद बािे बिें गगन में । धरे न धुन पर ख़्याल ।।2।।
सतगुरु पूरे भेद बतावें । यर भरमे भौ िाल ।।3।।
सतसंग सार जनकार न िाने । पड़ी बहुत िंिाल ।।4।।
कै से कहूं बूझ नसर लावे । अजत भरमाया काल ।।5।।
जबन सतगुरु जबन नाम सम्रारे । कौन करे प्रजतपाल ।।6।।
जछन जछन फाूँसी पड़े गुनन की । कोइ काटें दीन दयाल ।।7।।
काम क्रोध आिा और तृष्र्ा । यर घट भारी पाल1 ।।8।।
जबरर अजगन उठ उठ बुझ िावे । क्यों कर करूूँ सम्राल ।।9।।
दूत दुष्ट अब मोसर सतावें । अपनी छाया डाल ।।10।।
सुरत िब्द मारग जबन पाये । कै से रोय जनराल ।।11।।
सरसकूँ वल चढ़ जिकु टी आवे । न्राय मानसर ताल ।।12।।
मरासुन्न चढ़ भूँवरगुफा तक । सत्तनाम पावे जनि माल ।।13।।
दया करो अब राधास्वामी । मेटो यर दुख साल2 ।।14।।
।। िब्द चौथा ।।
मन चंचल करा न मानें । मैं कौन उपाय करूूँ ।।1।।
गुरु जनत समझावें साध बुझावें । सतसंग में जचत िोड़ धरूूँ ।।2।।
सुन सुन बचन बहुत पछताऊूँ । बहुर भुलावे भमण रहूं ।।3।।
अपनी सी बहु िुजि सम्रारी । कै से मन को मार मरूूँ ।।4।।
सुरत िब्द का घाट न पाया । कफर क्योंकर मैं गगन भरूूँ ।।5।।
डावाूँडोल ररे संिय में । िगत आस से नासर टरूूँ ।।6।।

1. परदा । 2. ददण ।
256 सार बचन बचन 31

सतगुरु सरन पकड़ कर बैठंू । तो इस मन की व्याजध ररूूँ ।।7।।


िगत िाल यर अजत दुखदाई । इसी अजगन में जनत्त िरूूँ ।।8।।
जबना मेरर कु छ काि न सरररै । अब राधास्वामी की सरन पड़ूं ।।9।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
चमररया1 चार बसी घट मासर । गुरु अब कै से धारें पायूँ ।।1।।
दुक्ख सुख जनतरी आवें िायूँ । करम फल भोगत मन के मासर ।।2।।
िुद्धता सब री भागी िायूँ । प्रेम और भजि नरीं ठररायूँ ।।3।।
जवरर अनुराग जनकासे िायूँ । करूूँ क्या कोई ितन अब नासर ।।4।।
बहुरर कफर गुरुरी लेयूँ बचाय । नाम जबन करे न कोइ सराय ।।5।।
करूं अब सतसंग सरन समाय । िब्द में जनस कदन लगन लगाय ।।6।।
राधास्वामी कीन्री दृजष्ट झुमाय2 । चमररया घट से भागी िाय ।।7।।
।। िब्द छठवाूँ ।।
गुज़र मेरी कै से रोय सरेली । इस मन साथ ।।1।।
यर तो चोर चुग़ल छल कपटी । कभी न आवे राथ ।।2।।
गुरु समझावें मैं समझाऊूँ । पुजन पुजन करता अपनी घात ।।3।।
काम न छोड़े क्रोध न छोड़े । लोभ मोर संग अजत दुख पात ।।4।।
मान बड़ाई िगत बासना । जनत्त बढ़ावत िात ।।5।।
खान पान और भोग जबलासा । इन में सदा फं साता ।।6।।
सतगुरु दाता िब्द लखावें । सो नसर लेता दात ।।7।।
ऐसा दुष्ट करा नसर माने । छोड़त नसर उतपात ।।8।।
िम नगरी के दुक्ख सुनाऊूँ । तो भी भय नसर खात ।।9।।
सत्तलोक के सुख दरसाऊूँ । सो भी कु छ परतीत न लात ।।10।।
कहूूँ कराूँ लग नेक न माने । मैं तो रारा िात ।।11।।
कै सी करूूँ उपाय न सूझे । नसर या ते बजसयात3 ।।12।।

1. चमड़े से जिसकी प्रीजत रै । 2. घुमा कर । 3. जववि हूूँ ।


बचन 31 मन और इजन्द्रयों के जवकार 257

िो कु छ करें करें राधास्वामी । और न कोई दृजष्ट आत ।।13।।


।। िब्द सातवाूँ ।।
हुआ मन आि दुखदाई । कहूूँ मैं चाल इस गाई ।।1।।
न डर गुरु का न भय िम का । जगरे जनत पाप में िाई ।।2।।
करे सतसंग सुने बानी । समझ तो भी नरीं आई ।।3।।
स्वान की पूछ ूँ ज्यों िानो । कभी छोड़े न टेढ़ाई ।।4।।
जमरग सम रोय सदा चंचल । कभी लेवे न जथरताई ।।5।।
नाद घट में घुरे1 जनस कदन । सुने नसर एक जछन भाई ।।6।।
कमण और भमण में पचता । भोग में ररे लौ लाई ।।7।।
भोग और रोग में खपता । नाम रस लेत नसर आई ।।8।।
ररे अजभमान में भूला । गुरु संग करत चतुराई ।।9।।
करी राधास्वामी गजत मन की । दया जबन राथ नसर आई ।।10।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
गुरु को ऊपर ऊपर गाता । गुरु को कदल भीतर नसर लाता ।।1।।
गूरू का दिणन बारर करता । जचत्त में दिणन कभी न धरता ।।2।।
काि तेरा कै से रोवे भाई । ऊपरी गुरु संग लगन लगाई ।।3।।
भीतरी धन और मान जवरािा । ऊपरी नाम ग़रीबी सािा ।।4।।
भीतरी काम और क्रोध बसाये । ऊपरी सील जछमा कदखलाये ।।5।।
भीतरी लगन न गुरु से लागी । ऊपरी लगन करे क्या पािी2 ।।6।।
गुरु कस तेरे रोयूँ सराई । िब्द की प्रीजत न अन्तर आई ।।7।।
कौन जवजध कहूूँ तोजर समझाई । भाग कु छ ओछा री तैं पाई ।।8।।
तमोगुन छाय ररा घट तेरे । सतोगुन कभी न आवे नेरे3 ।।9।।
भिन तू करे न कबरी सच्चा । सरन में गुरु की रै तू कच्चा ।।10।।
ज़रा सी ताड़ मार नसर सरता । जनरादर करें िगत में बरता ।।11।।

1. बिे । 2. नीच, दुष्ट । 3. जनकट ।


258 सार बचन बचन 31

दुखों से डर कर कु छ कु छ लगता । गये दुख वोरी तुतण फड़कता1 ।।12।।


नाम रस पाय नसर अजवनासी । िगत से हुआ न कभी उदासी ।।13।।
ितन कोइ समझ नसर अब आता । गुरु की मेरर जबना क्या पाता ।।14।।
गुरु की मरज़ी कभी न परखी । मेरर करो आवे कै से धुर की ।।15।।
खबर नसर पाई तैं जनि घर की । िब्द में सुरत न तेरी सरकी2 ।।16।।
मरम यर मन का सबरी गाया । सुनो राधास्वामी करत सुनाया ।।17।।

।। िब्द नावाूँ ।।

अरे मन नसर आई परतीत ।।


गुरु की नसर आई परतीत । अब तक नसर आई परतीत ।।1।।
बहुतक भरमा िगत भमण में । नसर कीन्रा मन मीत ।।2।।
गुरु संग ररता सतसंग करता । चरनामृत पी खाता सीत ।।3।।
अब िो देखी रालत मन की । लगी न गुरु संग प्रीत ।।4।।
धोखा देत ररा मन पािी । गरी न गुरु की रीत ।।5।।
गुरु ने परख करी कु छ मन की । छोड़ चला संगीत3 ।।6।।
मन मूरख यर करा न माने । सोता ररे कपट नसर िीत ।।7।।
क्योंकर मन को देऊूँ सचौटी । कु टु म्ब िगत की लिा कीत ।।8।।
कु टु म्ब िगत संग सच्चा बरते । झूठा सतसंग लीत4 ।।9।।
िब देखो तब रूखा सूखा । गुरु दिणन में नसर हुलसीत ।।10।।
सतसंजगयन से रेल मेल नसर । िग िीवन संग रखता प्रीत ।।11।।
दारा5 सुत पररवार सकल संग । रंस रंस खेलत नीत6 ।।12।।
गुरु से सीधे मुर
ूँ नसर बोले । सतसंजगयन से टेढ़ा चीत ।।13।।
गुरु सतसंगी दोउ जरतकारी । जतन का जरत िाने न पलीत7 ।।14।।
िग जबच्छू जतररया रै नाजगन । इन संग ररत जमलीत ।।15।।
ज़रर रलारल8 जनत री खावत । डंक सरत कफर कफर पछतीता ।।16।।

1. बे रोक टोक बरतता रै । 2. आगे वढ़ी । 3. संगत । 4. जलया । 5. िोरू ।


6. जनत्त । 7. नापाक, अपजवि । 8. मार डालने वाला ।
बचन 31 मन और इजन्द्रयों के जवकार 259

गुरु के बचन अमी की धारा । जतन में न्रात न रो मगनीत ।।17।।


ऐसा नीच कु बुद्धी यर मन । गुरु को अपना िाने न मीत ।।18।।
गुरु संग प्रीत लगावत ऐसी । िस धागा कच्चा चटकीत1 ।।19।।
िो कोई बचन करे वर कड़़ुवा । और करें अपमान भलीत ।।20।।
तो मन फे रे घर को भागो । बैर करे कु छ करे अनीत ।।21।।
गुरु को दुख पहुंचावन चारे । क्यों नसर मेरा आदर कीत ।।22।।
िोरू लड़के गाली देवें । मूछ पकड़ वर खैंच सखचीत ।।23।।
उनकी ताड़ मार जनत सरता । उन से तौ भी मन न कफरीत ।।24।।
उनकी प्रीत लगी अस दृढ़ रोय । लोरे की संगलीत2 ।।25।।
अब तो चेत ज़रा तू रे मन । त्याग पिु की रीत ।।26।।
खान पान और लोभ लरर में । क्यों बरता ति भीत3 ।।27।।
राधास्वामी करत बुझाई । इस से बढ़ क्या गाऊूँ गीत ।।28।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
डगर मेरी रोक लई । या ज़़ुल्मी काल ।।1।।
मैं पजनरारी अमी अधारी । सतगुरु करो सम्राल ।।2।।
गगरी सुरत डोर जनि करनी । छू ट गया िंिाल ।।3।।
उधणमुखी कु इया4 चढ़ झाूँकी । भरत अधर रस राल ।।4।।
भेद गुप्त इक सतगुरु दीन्रा । पहुंची रूँसन ताल ।।5।।
राधास्वामी अगम अनामी । मुझ पर हुए दयाल ।।6।।
सुरत िब्द मारग दरसाया । काटा मन का िाल ।।7।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
गूिरी5 चली भरन गगरी । श्याम6 ने रोकी पनघटवा ।।1।।
सजखयन साथ उमंग से िाती । खोि लगाती धुन घटवा ।।2।।
अब क्या करूूँ ज़ोर नसर चले । कै से खोलूूँ घट पटवाूँ ।।3।।

1. टू ट िाता रै । 2. िंिीर । 3. भय, डर । 4. ऊपर मुख वाला कु आ यानी


मस्तक । 5. सुरत । 6. काल । 7. पाट, परदा ।
260 सार बचन बचन 32

मारग रोक भुलावत सब को । कला कदखावत ज्यों नटवा ।।4।।


धूम धाम कर कफर बगदावत1 । ठररन देत न काहु तटवा ।।5।।
ऐसा छजलया कान्र न माने । छोड़त नारीं जनि रटवा ।।6।।
गुरु जबन कौन बचावे या ते । खोल सुनावें धुन छूँटवा2 ।।7।।
राधास्वामी खेली लीला । दूर रटाया अब झटवा ।।8।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
फै ल ररी सुतण बहु जवजध िग में । जबन जपया भटक गई या मग में ।।1।।
इन्द्री रस अजधक सतावें । मन तरं ग बहुत भरमावें ।।2।।
राधास्वामी दया करावें । मन उलट फे र बदलावें ।।3।।
रस िब्द अधर चखवावें । तब तन मन िांजत धरावें ।।4।।

।। बचन बत्तीसवाूँ ।।
प्राथणना सुरत की मन से और िवाब देना उसका
।। िब्द परला ।।
मन रे मान बचन इक मेरा ।। टेक ।।
मैं तेरी दासी िनम िनम की । तू हुआ स्वामी मेरा ।।1।।
तीन लोक का नाथ करावें । तीन देव तेरा चेरा ।।2।।
ऋजष मुजन सब पर हुकु म चलावे । िती सती सब घेरा ।।3।।
तेरे बस सुर नर और िोगी । कोइ तेरा हुकम न फे रा ।।4।।
जिस चारे जतस िगत फूँ साए । और चारे जतस करे जनबेरा ।।5।।
ऐसी मजरमा सुनी तुम्रारी । ताते तुम पै करूूँ जनरोरा3 ।।6।।
इस तन नगरी तुच्छ देि में । क्यों क़ै दी रोय पड़े अंधरे ा ।।7।।
सतगुरु मोसे करा बचन इक । मन को संग ले चलो सबेरा ।।8।।
ता ते तुम पै करूूँ बीनती । चढ़ो गगन क्यों करो अबेरा ।।9।।
इन्द्री द्वार जवषय अब त्यागो । करो अभी सुलझेरा4 ।।10।।
तुम सा संगी और न कोई । मैं तुम्ररी और तुम री मेरा ।।11।।

1. लौटा देता रै । 2. छूँटी हुई । 3. जवनती, प्राथणना । 4. जनबेड़ा, सुलझाना ।


बचन 32 प्राथणना सुरत की मन से और मन का िवाब 261

मुझ दासी का करना मानो । गगन मंडल चढ़ बाूँधो डेरा ।।12।।
िैसे थे तैसे कफर रोइ रो । क्यों दुख सुख यराूँ सरो घनेरा ।।13।।
सतगुरु पूरे भेद बताया । मन को संग लेकर घर फे रा ।।14।।
मैं हूं सुरत पड़ी बस तेरे । जबन तुम मदद िब्द नसर रेरा ।।15।।
िो यर करन न मानो मेरी । तो चौरासी करें बसेरा ।।16।।
अब तुम दया करो मेरे ऊपर । सुन जबनती खोिो धुन नेरा ।।17।।
रम तुम दोनों चढ़ें अधर में । िाकर बसें पराड़ सुमरे ा ।।18।।
तुम वराूँ ररना राि कमाना । रम पहुंचें िरूँ राधास्वामी डेरा 19।।

।। िब्द दूसरा ।।

मन बोला सुतण से कफर ऐसे । जवषय स्वाद मोसे िात न छोड़ा ।।1।।
कै सी करूूँ बचन कस मानूं । मैं इन्द्री बस हुआ न थोड़ा ।।2।।
बल पौरूष मैं सब री रारा । अब इन से मेरा चले न ज़ोरा ।।3।।
मैं चाहूं छोड़ूूँ भोगन को । देख भोग बस चले न मोरा ।।4।।
आगे पीछे बहु पछताऊूँ । समय पड़े पर रोवत चोरा ।।5।।
कै से चढ़ूं गगन को प्यारी । मैं चंचल ज्यों दौड़त घोड़ा ।।6।।
ताते तोसे कहूं ितन मैं । चल सतगुरु पै करो जनरोरा ।।7।।
सरन पड़ें जमल कर अब रम तुम । कर सतसंग रोयूँ कु छ पोढ़ा1 ।।8।।
दया करें सतगुरु िब अपनी । पल पल राखें मोको मोड़ा ।।9।।
मैं अपने बल चढ़ूूँ न कब री । िब लग जमलें न गुरु बंदी छोड़ा।।10।।
सुन कर सुरत अजधक ररखानी । चल िल्दी वर बन्धन तोड़ा ।।11।।
सतसंग सरन गरी अब दोनों । भर भर पीवत अमी कटोरा ।।12।।
दोनों जमल कर चढ़े गगन को । िब्द िब्द रस हुए चटोरा ।।13।।
दया करी राधास्वामी उन पर । रीरा मोती लाल बटोरा ।।14।।
राधास्वामी ऐसी मौि कदखाई । मार जलया अब काल कठोरा ।।15।।

1. मज़बूत ।
262 सार बचन बचन 33

।। बचन तेंतीसवाूँ ।।
फ़याणद और पुकार करना सतगुरु से और माूँगना
मेरर और दया का वास्ते चढ़ने सुरत के
और प्राजप्त दिणन स्वरूप सतगुरु की
।। िब्द परला ।।
अब मन आतुर दरस पुकारे । कल नसर पकड़े धीर न धारे ।।1।।
दम दम जछन जछन ददण दीवानी । सोऊूँ न िागूूँ अन्न न पानी ।।2।।
बेकल तड़पूूँ जपया तुम कारन । डस डस खावत सचता नाजगन ।।3।।
कौन उपाय करूूँ अब सिनी । भौिल से अब कारे को तरनी ।।4।।
याजर सोच में कदन कदन िलती । कोइ न सम्रारे आली पल पल गलती ।।
जपया तो बसें मेरे लोक चतुर में । मैं तो पड़ी आय मृत्यु नगर में ।।6।।
जबन जमलाप प्रीतम दुख भारी । रार चलूं नसर िात चला री ।।7।।
घाट बाट िरूँ अजत अूँजधयारी । कोई न सुने मेरी बहुत पुकारी ।।8।।
ितन न सूझे जरम्मत रारी । अपने जपया की मैं ना हुई प्यारी ।।9।।
िो जपया चारें तो दम में बुलावें । िब्द डोर दे अभी चढ़ावें ।।10।।
भाग रीन मैं धुन नसर पकड़ी । काम क्रोध माया ररी िकड़ी ।।11।।
सुरत िब्द मारग िो पाया । सो भी मुझ से गया न कमाया ।।12।।
मैं तो सब जवजध रीन अधीनी । मन नसर जनमणल सुरत मलीनी ।।13।।
तुम समरथ स्वामी अजत परबीना1 । मैं तड़पूं िैसे िल जबन मीना ।।14।।
काि करो मेरा आि सम्रारी । तुम्रारी सरन स्वामी मैं बजलरारी ।।
रार पड़ी अब तुम्रारे द्वारे । तुम जबन अब मोसर कौन सम्रारे ।।
तब स्वामी बोले अस बानी । मौि जनरारो ररो चुप ठानी ।।17।।
धीरि धरो करो जवश्वासा । अब करूं पूरन तुम्ररी आसा ।।18।।
सुनत बचन अब सीतल भई । चरन सरन स्वामी जनश्चल गरी ।।19।।

1. िानकार ।
बचन 33 फ़याणद और पुकार 263

।। िब्द दूसरा ।।

अब मैं कौन कु मजत उरझानी । देि पराया भई हूं जबगानी1 ।।1।।


अब की बार मोसर लेओ सुधारी । मैं चरनन पर जनस कदन वारी ।।2।।
रहुं पछताय झुरूूँ मन अपने । कै से लगूूँ मैं संग जपया अपने ।।3।।
मैं धरती जपया बसें अकासा । जबन पाये जपया रहूं उदासा ।।4।।
रे सतगुरु सुनो मेरी टेरा । काल चक्र अब मारो घेरा ।।5।।
दीन दुखी रोय करत पुकारी । सुन स्वामी यर जबनती रमारी ।।6।।
तुम दयाल सब को देओ दाना । मैंरी अभाजगन भई दुख खाना ।।7।।
क्या कहुं मैं अब अपनी पीर की । िस कोइ छेदत भाल तीर की ।।8।।
तब स्वामी ने कदयो कदलासा । प्रेम पंख ले उड़ो अकासा ।।9।।
दया हुई अब जमली जपया से । ररी पीर दुख दूर जिया से ।।10।।

।। िब्द तीसरा ।।

करत हूं पुकार, आि सुजनये गुरार2,


मैं दीन हूं अधीन, तुम दाता दयार रो ।।1।।
अब कररये सम्रार, मेरी नाव रै मूँझधार,
मैं दुजखया अजत भार, तुम खेवट अगार3 रो ।।2।।
दूत और दुष्ट मोसर, घेर जलया वार, दुख देत रैं अपार,
भय कदखावत िमद्वार, तुम रक्षक हुजियार रो ।।3।।
लेना अब खबर मोर, मैं तो हूं सरन तोर,
काल ककया बहुत ज़ोर
धूम धाम करत िोर, तुम सूरन प्रधान रो ।।4।।
मेरी बुजद्ध रै मलीन, मन सुरत रै अलीन4,
बल पौरुष सब छीन, तुम सतगुरु प्रबीन5 रो ।।5।।
मोसर दीिे इक दान, मैं माूँगत हूं जनदान,

1. परदेजसन, पराई । 2. पुकार । 3. सब से भारी । 4. अपजवि ।


5. िानकार ।
264 सार बचन बचन 33

सुतण िब्द का जनिान , तुम समरथ सुिान रो ।।6।।


जवरर नासर, प्रेम नासर, भजि भाव चाव1 नासर,
सरधा परतीत नासर,
काम क्रोध लोभ मासर, कै से करोगे जनवाणर रो ।।7।।
रोग सोग जनत सतायूँ, भिन सुजमरन बनत नासर,
भोग बास घटत नासर, सचता डर अजधक दासर2
और कोई सुनत नासर, तुम री मेरे बैद रो ।।8।।
संतन जबन कोइ नासर, सतगुरु जबन ठीक3 नासर,
करम भरम नीक नासर,
िब्द जबना सीख नासर, यरी भीख दीजिये ।।9।।
सुरत को चढ़ाओ आि, िब्द का कदखाओ साि,
सरसकूँ वल िाय भाि, देखे व्राूँ का समाि,
मन को तब रोय लाि, यरी काि कीजिये ।।10।।
बंक परे जिकु ट घाट, खुले कफर सुन्न बाट,
मरासुन्न खोल पाट, भवूँरगुफा बाूँध ठाट,
सत्तिब्द पाय चाट, सतपुर पहुंचाइये ।।11।।
िरूँ से परे अलख देख, लोक एक अगम पेख,
राधास्वामी पद अलेख, पंजडत न िाने भेख,
क़ािी न मुल्ला िेख, संत जबन न िाइये ।।12।।
एक कहूं सीख मान, मन की तू छोड़ ठान4,
गुरु की गजत अगम िान, िब्द भेद ले पजरचान,
तेरी बुजद्ध रै अिान, काम क्रोध त्याजगये ।।13।।
सतसंग की क़दर िान, नर िरीर दुलणभ मान,
नाम रस करो पान, गुरु स्वरूप धरो ध्यान,
इन्द्री मन करो आन, पखण पखण चाजलये ।।14।।

1. िौक़ । 2. िलाने वाले । 3. रठकाना । 4. रठ, जज़द ।


बचन 3 फ़याणद और पुकार 265

जमि तेरा कोई नासर, कु ल कु टुंब लूट खासर,


िोबन धन साथ नासर, िि भमण फाूँस मासर,
काल कमण खोस खासर, खान चार िाईये ।।15।।
िन्म िन्म नकण बास, िम कदखावे अजधक िास,
तड़पे तू स्वाूँस स्वाूँस, पुिवे1 न करीं आस,
पावे न सुख जनवास, कष्ट बहु भोगाइये ।।16।।
िि भोग छोड़ चार, सब से तू रो अचार,
संतन को खोि िाय, सतगुरु की सरन आय,
बचन उनके मन समाय, बंद से छु ड़ाइये ।।17।।
गुरु का तू बचन पाल, मन की मजत तुतण टाल,
बुजद्ध के सांचे ढाल, मनमुख का संग िाल,
गुरुमुख की यरी चाल, काल राल िाररये ।।18।।
सूरत नैना सम्राल, जतल आकाि फाड़ डाल,
जनरखो िोती िमाल, द्वारे धस बंकनाल,
अनरद पर धरो ख़्याल, गगन में चढ़ाइये ।।19।।
सुन्न जिखर चन्द्र देख, दसम द्वार सेत पेख,
सरवर में मुजि लेख2, ककगरी धुन सुन जबिेष,
कमण की जमटाओ रे ख, रंस रूप धाररये ।।20।।
मरासुन्न अंध घोर, घाट अगम सुगम तोड़,
सूरत िरूँ कीन पोढ़, सतगुरु संग चली दौड़,
भूँबरगुफा सुना िोर, सोरूँग में समाइये ।।21।।
आगे की गली लीन्र, धुन अनन्त िब्द चीन्र,
रंस जमले अजत प्रवीन, प्रेम भाव बहुत कीन्र,
सत्तलोक द्वार लीन्र, बीन धुन बिाइये ।।22।।

1. पूरी रो । 2. पजरचान ।
266 सार बचन बचन 33

वराूँ से कफर चली पार, अलख लोक िा जनरार,


अलख पुरुष धुन सम्रार, देखा अचरि उिार,
ककया िाय धुन अधार, अलख दिण पाइये ।।23।।
अगम लोक खबर पाय, ऊपर को चढ़ी धाय,
अगम पुरुष दिण पाय, तेि पुूँि1 अिब िाय,
अमी ससध पहुंची आय, अगम रूप धाररये ।।24।।
यराूँ से भी चली सुत,ण ककया िाय वराूँ जनतण,
िस समुद्र नदी रलत, चरनन पर सीस धरत,
राधास्वामी संग जमलत, जनि घर अपना पाइये ।।25।।
कहूं करा बहुत करी, यरी बात रै सरी,
िन्म िन्म भूल ररी, चरन धूर धार लई,
करम भरम सभी बरी, राधास्वामी गाइये ।।26।।
लाओ अब प्रेम प्रीत, सतसंग में धारो चीत,
पाओ कफर सत्त रीत, गाओ यर अगम गीत,
बाज़ी यर लेव िीत, िग में कोइ नासर मीत,
मेरी तू कर प्रतीत, कदया सब बुझाइये ।।27।।

।। िब्द चौथा ।।

गुरु गरो आि मेरी बजरयाूँ2 । मैं बसूूँ तुम्रारी छइयाूँ ।।1।।


कलमल सब मेरे दजरयाूँ3 । मैं छोड़ी मन परछइयाूँ4 ।।2।।
कफर चलूं तुम्रारी रजरयाूँ4 । तुम जबन मेरा कोइ न गुसइयाूँ ।।3।।
उिड़ा घर तुमसर बसइयाूँ । दुख िन्म िन्म मैं सजरयाूँ ।।4।।

1. भंडार । 2. भुिा । 3. िला कदया । 4. परछाई । 5. मागण, रास्ता ।


बचन 33 फ़याणद और पुकार 267

अब करूूँ सोई तुम कजरयाूँ । मेटो िग भूल भुलइयाूँ ।।5।।


कमणन से खूटं 1 छु ड़इयाूँ । िब्दा रस सार जपलइयाूँ ।।6।।
मैं दुख सुख बहुतक सजरयाूँ । कु ल लाि तिी नसर िइयाूँ ।।7।।
इन्द्री बस आन पड़इयाूँ । भोगन में बहुत फूँ सइयाूँ ।।8।।
ऐसी कोइ करन न कजरयाूँ । िैसी तुम बात सुनइयाूँ ।।9।।
गगना में सुरत चढ़इयाूँ । मन माया दोऊ पचइयाूँ2 ।।10।।
सतपुरुष भेद बतलइयाूँ । कफर अलख अगम दरसइयाूँ ।।11।।
नइया मेरी पार लगइयाूँ । कफर अलख अगम दरसइयाूँ ।।12।।
राधास्वामी चरन समइयाूँ । जछन जछन में लेउूँ बलैयाूँ3 ।।13।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

मौत डर जछन जछन व्यापे आई । काल भय पल पल मोसर सताई ।।1।।


सुरत मन बहुत चढ़ाऊूँ भाई । गगन में रटके न जछन इक िाई ।।2।।
करो कस काटूूँ बड़ी बलाई4 । गुरु मोसर करें जनत्त समझाई ।।3।।
सुरत मन नेक नरीं ठरराई । करूूँ क्या कै से पाऊूँ रारी ।।4।।
गुरु से यर फ़याणद सुनाई । िब्द में कभी न िाय समाई ।।5।।
भरोसा दम का रै नसर भाई । ममण मैं अब तक कु छ नसर पाई ।।6।।
करूूँ क्या चले न कोई उपाई । सरन गुरु गहूं यरी ठरराई ।।7।।
प्रीत का घाटा बहुत कदखाई । सरन भी मो से गरी न िाई ।।8।।
दोऊ में एक न अब बन आई । मरूूँ क्या अब मैं माहुर5 खाई ।।9।।
गुरु तब बचन सुनाया सार । मरे मत बौरी6 धीरि धार ।।10।।
नाम रट मन से बारम्बार । रूप गुरु धारो जरये मूँझार ।।11।।
करो तुम जनत प्रजत यर करतूत । टलें तब तेरे घट के दूत ।।12।।
िुगत से बस7 कर मन का भूत । लगे तब धुन से तेरी सूत ।।13।।
तिो मत जनत कर यर अभ्यास । गुरु का संग कर रर कर पास ।।14।।

1. पल्ला । 2. थक गये । 3. वार दूूँ । 4. आफ़त, बला । 5. जवष, ज़रर ।


6. पागल । 7. वि में करो ।
268 सार बचन बचन 33

जमटे िब िग की तेरी आस । लगे तब घट में करन जबलास ।।15।।


भोग सब त्यागो रोहु जनरास । सुरत तब पावे गगन जनवास ।।16।।
िब्द रस पीवे स्वाूँसी स्वाूँस । मरल में िावे पावे बास ।।17।।
मौि को ताको कर जविवास । नरीं कु छ ितन नरीं पररयास1 ।।18।।
रोहु अब राधास्वामी दास । करें वर पूरन इक कदन आस ।।19।।

।। िब्द छठा ।।

नाम दान अब सतगुरु दीिे । काल सतावे स्वाूँसा छीिे2 ।।1।।


दुख पावत मैं जनस कदन भारी । गरी आय अब ओट तुम्रारी ।।2।।
तुम समान कोइ और न दाता । मैं बालक तुम जपता और माता ।।3।।
मो को दुखी आप कस देखो । यर अचरि मोसर रोत परे खो3 ।।4।।
मैं हूं पापी अधम जवकारी । भूला चूका जछन जछन भारी ।।5।।
अवगुन अपने करूँ लग वरनूूँ । मेरी बुजध समझे नसर मरमूं ।।6।।
तुम्ररी गजत मजत नेक न िानूं । अपनी मजत अनुसार बखानूं ।।7।।
तुम समरथ और अंतरिामी । क्या क्या कहूं मैं सतगुरु स्वामी ।।8।।
मौि करो दुख अंतर ररो । दया दृजष्ट अब मो पै धरो ।।9।।
माूँगूं नाम न माूँगूूँ मान । िस िानो तस देओ मोसर दान ।।10।।
मैं अजत दीन जभखारी भूखा । प्रेम भाव नसर सब जवजध रूखा ।।11।।
कै से दोगे नाम अमोला । मैं अपने को बहु जवजध तोला ।।12।।
रोय जनरास सबर कर बैठा । पर मन धीरि धरे न नेका ।।13।।
िायद कभी मेरर रो िावे । तो कहूं नाम नैक जमल िावे ।।14।।
जबना मेरर कोइ ितन न सूझे । बखजिि रोय तभी कु छ बूझे ।।15।।
ककनका नाम करे मेरा काि । रे सतगुरु मेरी तुमको लाि ।।16।।
अब तो मन कर चुका पुकार । राधास्वामी करो उधार ।।17।।

1. पररश्रमी, मेरनत । 2. घटती रै । 3. जवचार करने से ।


बचन 33 फ़याणद और पुकार 269

।। िब्द सातवाूँ ।।

नाम रस पीवो गुरु की दात । िब्द संग भींिो मन कर राथ ।।1।।


चरन गुरु पकड़ो तन मन साथ । मान मद मारो आवे िांत ।।2।।
परख कर समझो गुरु की बात । जनरख कर चजलयो माया घात ।।3।।
िगत सब डू बा भौिल िात । नाम जबन छु टे न िम का नात1 ।।4।।
घाट घट उलटो कदन और रात । मोर की बाज़ी रोगी मात ।।5।।
सुरत से करो िब्द जवशयात2 । गगन चढ़ देखो िा साक्षात3 ।।6।।
जमटे कफर मन की सब उत्पात4 । राधास्वामी परखी और परखात ।।7।।

।। िब्द आठवाूँ ।।

गुरु करो मेरर की दृजष्ट दास पल पल दुख पावत ।


मैं आरत करूूँ बनाय रोग सब री घट िावत ।।1।।
जनि औगुर् देखूं आय मनसर मन में पछतावत ।
क्यों कर करूूँ पुकार काल अब बहु भरमावत ।।2।।
काम क्रोध अजत ज़ो िीव इन में झख मारत5 ।
राधास्वामी लेओ बचाय रहूं मैं अजत घबरावत ।।3।।
सुजनये दीनदयाल तुम्रें मैं टेर9 सुनावत ।
तुम को समरथ िान, कहूं यर ददण बुझावत ।।4।।
खोलो प्रेम दुआर, नरीं मोसर कमण बरावत ।
िब्द मासर दृढ़ करो, रहूं जछन जछन गुन गावत ।।5।।
रजसक7 रहूं धुन मासर, और कछु नासर सुरावत ।
दुख पाये मैं बहुत, नीच मन करा मनावत ।।6।।
कै से करूूँ पुकार, िब्द में नरीं लगावत ।
आि बने तो बने, बहुरर यर दांव न पावत ।।7।।

1. बन्धन, ररश्ता । 2. परख । 3. प्रत्यक्ष । 4. उपद्रव । 5. अबस ररता रै ।


6. पुकार । 7. रसीला ।
270 सार बचन बचन 33

मैं हूं दीन अधीन, ईषाण, बहुत िरावत ।


मेटो कलर1 अपार, कारे को जनत्त बढ़ावत ।।8।।
तुमरीं करो सराय, मोर कु छ नसर बसावत2 ।
डरत रहूं कदन रात, काल से िान जछपावत ।।9।।
मैं जनत करूूँ पुकार, ख़्याल तुम क्यों नसर लावत ।
ममण न िानूूँ नेक, मौि तुम करा करावत ।।10।।
करूँ लग कहूूँ िनाय, नेक मन बस नसर आवत ।
सदा ररी तुम साथ, तौऊ तुम क्यों न बचावत ।।11।।
अचरि भारी रोत, समझ में नेक न आवत ।
गुरु जबन रक्षक नासर, करें सब यरी करावत ।।12।।
कौन कमण मैं ककये, जनत्त यर भुगतूं आफ़त ।
रार पड़ी अब द्वार, बहुरर मैं तुमसर मनावत ।।13।।
िस तस दीिै दान, और कोई जचत न समावत ।
राधास्वामी नाम, परर आठों अब गावत ।।14।।

।। िब्द नावाूँ ।।

सतगुरु मेरी सुनो पुकार । मैं टेरत3 बारम्बार ।।1।।


दुरमत मेरी दूर जनकारो । मुझे करलो चरन अधारो ।।2।।
मोसर भौिल पार उतारो । मेरी पड़ी नाव मूँझदारो ।।3।।
तुम जबन अब कोइ न सरारो । अपना कर मुझे सम्रारो ।।4।।
मैं कपटी कु रटल तुम्रारो । तुम दाता अपर अपारो ।।5।।
मैं दीन दुखी अजत भारो । िब चारो तब जनस्तारो ।।6।।
मैं आरत करूूँ तुम्रारी । तन मन धन तुम पर वारी ।।7।।
अब जमला सरारा भारी । मैं नीच अिान अनाड़ी ।।8।।
घट भेद नाद समझाया । मन बैरी स्वाद न पाया ।।9।।

1. जवघ्न । 2. बस चलता रै । 3. प्राथणना करती हूूँ ।


बचन 33 फ़याणद और पुकार 271

दुख सुख में बहु भरमाया । िग मान बड़ाई चारा ।।10।।


उल्टूं मैं इसको क्यों कर । जबन दया तुम्रारी सतगुरु ।।11।।
अब खैंचो राधास्वामी मन को । मैं जवनय सुनाऊं तुमको ।।12।।

।। िब्द दसवाूँ ।।

तुम धुर से चल कर आये । अब क्यों ऐसी ढील1 लगाये ।।1।।


िल्दी से काि सूँवारो । तुम दाता देर न धारो ।।2।।
मैं आतुर2 तुम्रें पुकारूं । जचत में कोइ और न धारूं ।।3।।
मेरा िीवन मूर अधारा3 । िस सीपी स्वाूँत जनरारा ।।4।।
अब मुिा4 नाम िमाओ । मेरे िी की आस पुराओ ।।5।।
मन सूरत अधर चढ़ाओ । अब के मेरी खेप जनबारो ।।6।।
भौसागर वार न पारा । डू बे सब उसकी धारा ।।7।।
रै जमथ्या झूठ पसारा । धोखे को सच सा धारा ।।8।।
सतगुरु जबन धोख न िाई । जबन िब्द सुरत भरमाई ।।9।।
या ते तुम सरना ताकूूँ । सोवत मैं क्यों कर िागूूँ ।।10।।
जबन मेरर ितन सब थाके । मैं कर कर बहु जवजध त्यागे ।।11।।
बल पौरूष मोर न चाले । मैं पड़ी काल िंिाले ।।12।।
जबनती अब करूूँ बनाई । तुम सतगुरु करो सराई ।।13।।
मैं दीन अधीन तुम्रारी । तुम जबन अब कौन सम्रारी ।।14।।
कु छ करो कदलासा मेरी । भरमों की पड़ी अूँधरे ी ।।15।।
परकाि करो घट भाना । जमटे भमण जतजमर अज्ञाना ।।16।।
तुम ति अब ककस पै िाऊूँ । मैं कर कर तुम्रें सुनाऊूँ ।।17।।
िब चारो तब री देना । तुम जबन मोसर ककससे लेना ।।18।।
मैं द्वारे पड़ी तुम्रारे । धीरि धर रहूं सम्रारे ।।19।।
मन आतुर दुख न सरारे । उठ बारं बार पुकारे ।।20।।

1. जवलंब, देर । 2. दुखी, घबराई हुई । 3. असली सरारा । 4. मोती ।


272 सार बचन बचन 33

मैं सरन दयाल तुम्रारी । कर िल्दी लो जनस्तारी ।।21।।


घर तुम्ररे कमी न कोई । कसर भाग ओछ1 मेरा रोई ।।22।।
यर भी सब तुम्ररे राथा । तुम चारो करो सनाथा ।।23।।
अब करूँ लग करूूँ पुकारी । मैं रार रार अब रारी ।।24।।
तुम दाता दीन दयाला । राधास्वामी करो जनराला ।।25।।
मैं आरत कीन्र अधारी । तुम राधास्वामी सब पर भारी ।।26।।

।। िब्द गायाररवाूँ ।।

माूँगूूँ इक गुरु से दाना । घट िब्द देव पजरचाना ।।1।।


मन साथ सदा भरमाना । कर ककरपा कमण छु ड़ाना ।।2।।
सुतण चढ़े सुने धुन ताना । मन मारो कमण नसाना ।।3।।
सब छू टे बान कु बाना2 । सत िब्द जमले दृढ़ थाना ।।4।।
अब कर दो नाम कदवाना । मैं ताकूूँ िब्द जनिाना ।।5।।
कोइ करे न मेरी राना । मोसर तुम पर बल बल िाना ।।6।।
कल3 धारा मुझे न बराना । मोसर देना िब्द रठकाना ।।7।।
मन रो गया बहुत जनमाना4 । अब राधास्वामी चरन समाना ।।8।।

।। िब्द बाररवाूँ ।।

मैं जलखूं गुरु को पाती । मन कीन्री बहु उतपाती ।।1।।


मेरी धड़के जछन जछन छाती । नरीं धीरि बहु दुख पाती ।।2।।
जवरर अजगन मोसर जनत्त िलाती । मैं पल पल गुरु गुन गाती ।।3।।
मेरे ददण उठा बहु भाूँजत । मैं ककस को वर्ण सुनाती ।।4।।
अब छोड़ी कु ल और ज़ाती । गुरु चरन सुरत मेरी राती5 ।।5।।
मैं रहूं लगन जबच माती6 । अब सुरत गगन को िाती ।।6।।
व्राूँ िब्द अमीरस खाती । गुरु प्रेम जरये में लाती ।।7।।
दिणन जबन रोय न िान्ती । उलटी कफर तन में आती ।।8।।

1. छोटा । 2. बुरी आदत । 3. काल की । 4. दीन अधीन । 5. रत हुई,


रर्शषत, मरव, मसत । 6. मतवाली ।
बचन 33 फ़याणद और पुकार 273

कोई सुने ना मेरी बाती । मैं रहूं सदा घबराती ।।9।।


मैं रोती कदन और राती । मन मारे बहु जवजध लाती ।।10।।
गुरु करो दया की दाती । तौ टले काल की घाती ।।11।।
मन आवे मेरे राथी । तौ मारे ससर1 को राथी2 ।।12।।
मेरे लगी प्रेम की काती3 । जररदे में धीर न लाती ।।13।।
अब रर दम उमंग िगाती । मैं देखूूँ गुरु कराूँती4 ।।14।।
मारूूँ अब माया ताती5 । गुरु मूरत जचत में ध्याती ।।15।।
अब छू टी सकल भ्ांती6 । मैं पाई नाम दराूँती7 ।।16।।
अब काटूूँ कमण सनाती8 । गुरु जबन क्यों और मनाती ।।17।।
गुरु को सब भेद िनाती । मैं पाये दुख बहु भाूँती ।।18।।
कस मानसरोवर न्राती । मैं उलटी धार बराती ।।19।।
िुग बूँधे िो गुरु के साथी । तौ ममण सभी दरसाती ।।20।।
गुरु चरन सदा परसाती । मैं सुरत पतंग उड़ाती ।।21।।
मन चादर नाम रूँ गाती । घट भीतर नाद बिाती ।।22।।
िन्म मरर् दुख दूर कराती । ममता में सकल खपाती ।।23।।
राधास्वामी सरन पराती9 । राधास्वामी दास कराती ।।24।।

।। िब्द तेररवाूँ ।।

गुरु मोसर दीिे अपना धाम ।। टेक ।।


मैं तो जनकाम भमण बस ररता । तुम दयाल लो मोको थाम ।।1।।
ना िानूूँ क्या पाप कमाये । गरे न सूरत नाम ।।2।।
कै सी करूूँ ज़ोर नसर चाले । मन नसर पावे दृढ़ जवश्राम ।।3।।
रे सतगुरु अब दया जवचारो । मैं दुख में रहूं आठों िाम ।।4।।
ना सुतण चढ़े न मन ठररावे । िब्द मरातम नसर पजतयाम10 ।।5।।
संत मता ऊूँचा सुन पकड़ा । क्यों नसर संत करे मेरी साम11 ।।6।।

1. काल । 2. मन । 3. कटारी । 4. प्रकाि । 5. अजि रूप । 6. भरम ।


7. रूँजसया, काटने वाला । 8. पुराना । 9. प्राप्त हुई या पड़ी । 10. प्रतीत
करती । 11. सरायता ।
274 सार बचन बचन 33

संत मते को लिा आवे । िो मेरा नसर पूरन काम ।।7।।


अपनी मजत ले करूूँ पुकारा । मौि तुम्रारी मैं नसर िाम1 ।।8।।
बार बार मैं जवनय पुकारूूँ । िस िानो तस देओ जनि नाम ।।9।।
राधास्वामी करें जनि नामी । ददी को चजरये आराम ।।10।।
।। िब्द चौदरवाूँ ।।
सुरत मेरी धोय डालो । नसर मरररों रोय ।।1।।
कमण मेरे खोय डालो । मैं सरना तोय2 ।।2।।
भमण मेरे सब टारो । मैं दासी तोय ।।3।।
ममण अब दे डारो । तुम सतगुरु मोय3 ।।4।।
काल को धर मारो । तुम सूरा रोय ।।5।।
प्रर् को धर धारो । नसर ररकत4 रोय ।।6।।
श्रम5 यर कर डालो । िो बखजिि रोय ।।7।।
मोर को ले डारो । तुम सम্रथ सोय ।।8।।
िाल से अब काढ़ो । लगी फाूँसी मोय ।।9।।
राधास्वामी गुरु न्यारो । अस लखा न कोय ।।10।।
।। िब्द पंद्ररवाूँ ।।
गुरु मोसर अपना रूप कदखाओ ।। टेक ।।
यर तो रूप धरा तुम सगुर्ण । िीव उबार कराओ ।।1।।
रूप तुम्रारा अगम अपारा । सोई अब दरसाओ ।।2।।
देखूूँ रूप मगन रोय बैठूँू । अभय दान कदलवाओ ।।3।।
यर भी रूप जपयारा मो को । इस री से उसको समझाओ ।।4।।
जबन इस रूप काि नसर रोई । क्यों कर वारी लखाओ ।।5।।
ता ते मजरमा भारी इसकी । पर वर भी लखवाओ ।।6।।
वर तो रूप सदा तुम धारो । या ते िीव िगाओ ।।7।।
यर भी भेद सुना मैं तुम से । सुरत िब्द मारग जनत गाओ ।।8।।

1. िानती । 2. तुम्रारी । 3. मेरे । 4. नुक़सान । 5. श्रम, कोजिि ।


बचन 33 फ़याणद और पुकार 275

िब्द रूप िो रूप तुम्रारा । वा में भी अब सुरत पठाओ ।।9।।


डरता रहूं मौत और दुख से । जनभणय कर अब मोसर छु ड़ाओ 10।।
दीनदयाल िीव जरतकारी । राधास्वामी काि बनाओ ।।11।।
।। िब्द सोलरवाूँ ।।
देख प्यारे मैं समझाऊूँ । रूप रमारा न्यारा ।।1।।
वर तो रूप लखे नसर कोई । िब लग देउूँ न सरारा ।।2।।
करनी करो मार मन डालो । इन्द्री रोक दुआरा ।।3।।
सुरत चढ़ाय गगन पर धाओ । सुन्न जिखर के पारा ।।4।।
सत्त पुरुष का रूप कदखाऊूँ । अलख अगम दर सारा ।।5।।
ता के आगे राधास्वामी । वर जनि रूप रमारा ।।6।।
धीरि धरो करो सतसंगत । मेरर दया से लेउूँ सुधारा ।।7।।
वर तो रूप कदखा कर छोड़ूूँ । तुम िल्दी क्यों करो पुकारा ।।8।।
तुम्ररी सचता मैं मन धारी । तुम असचत रर धरो जपयारा ।।9।।
संिय छोड़ करो दृढ़ प्रीती । और परतीत सूँवारा ।।10।।
यर करनी मैं आप कराऊूँ । और पहुचाऊूँ धुर दरबारा ।।11।।
राधास्वामी करत सुनाई । िब िब िैसी मौि जवचारा ।।12।।
।। िब्द सिरवाूँ ।।
सुरत की आि लगा दे तारी । गगन चढ़ पीऊूँ अमृत धारी ।।1।।
िब्द धुन उठती क़रारी1 । नाम सुन तन मन जलया पखारी2 ।।
गुरु का रूप जनरार जनरारी । मैं कककर अधम अनाड़ी3 ।।3।।
तुम सतगुरु पजतत उधारी । तुम्ररी गजत तुमसर जवचारी ।।4।।
मैं जछन जछन पल पल जवषय अरारी । तुम ककरपा अमृत धार बरा री 5।।
अब लीिै मोसर जनस्तारी । घट दीिै नाम सम्रारी ।।6।।
मैं भूला भूल फूँ सारी । तुम काढ़ो मोसर जनकारी ।।7।।
मैं दास दासन पजनरारी । तुम चरन िाऊूँ बजलरारी ।।8।।

1. तेज़ । 2. धोया । 3. मूढ़ ।


276 सार बचन बचन 33

अब मारग देव उघाड़ी1 । मेंरा मन करो िांत सुखारी ।।9।।


मेरा कोई नसर अपना री । मेरे तुम रो मैं भी तुम्रारी ।।10।।
क्या क्या कहूं बर्ण सुना री । मन िैसे नाच नचा री ।।11।।
इन्द्री मोसर जनत्त सता री । भोगन की चार बढ़ा री ।।12।।
रोगन में सदा जगरसा2 री । भव कू प पड़ा गररा री ।।13।।
कस जनकसूूँ कौन उबारी । सुतण हुई न िब्द जपयारी ।।14।।
जबन िब्द बहुत भरमा री । िल पत्थर िगत पुिारी ।।15।।
इन भमणन ररा भरमा री । तुम जमल अब कीन सुधारी ।।16।।
राधास्वामी चरन दुलारी । अब नाम देवो कर न्यारी ।।17।।

।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।।

घट का पट खोल कदखाओ ।। टेक ।।


यर मन िूझ िूझ कर रारा । लगे न एक उपाओ ।।1।।
तुम समरत्थ करा नसर तुम्ररे । क्यों एती देर लगाओ ।।2।।
मैं दुख सुख में खाऊूँ झकोले3 । क्यों न पड़ा मेरा अब तक दाओ ।।3।।
अब री दया करो मेरे दाता । मन और सूरत गगन चढ़ाओ ।।4।।
मन तो दुष्ट जवरर नसर लावे । प्रेम प्रीत का दान कदवाओ ।।5।।
यर तो सुख झूठे री चारे । सच्चे की परतीत न लाओ ।।6।।
भोग जबलास िगत के माूँगे । सुरत िब्द का रस नसर पाओ ।।7।।
क्योंकर कहुं ककस जवजध समझाऊूँ । गुरु का बचन न ररदे4 समाओ ।।8।।
इस मन की कु छ घढ़त अनोखी । िब्द मासर कु छ प्रेम न भाओ ।।9।।
कै से बचे पचे चौरासी । यर नसर चढ़ता गुरु की नाओ ।।10।।
संसारी के धक्के खावे । कफर िमपुर में जपटता िाओ ।।11।।
ऐसे दुक्ख सरेगा बहुतक । अब नसर माने गया भुलाओ ।।12।।
सब घट में गुरु तुमरीं प्रेरक । मुझ दुजखया को क्यों न बुलाओ ।।13।।

1. खोल । 2. फं सा । 3. झटका । 4. हृदय ।


बचन 33 फ़याणद और पुकार 277

तुम जबन और न कोई मेरा । चार लोक में तुमसर कदखाओ ।।14।।
अब तो दया करो राधास्वामी । िैसे बने तैसे घाट चढ़ाओ ।।15।।
।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।
सतगुरु से करूूँ पुकारी । संतन मत कीिे िारी ।।1।।
िीवन का रोय उधारी । मैं देखूं यरी बरारी ।।2।।
मैं मौि करूूँ कफर भारी । सब आरत करें तुम्रारी ।।3।।
मैं ररखूूँ खेल जनरारी । मानो यर अज़ण रमारी ।।4।।
मैं राखूं पक्ष तुम्रारी । अब कीिे दया जवचारी ।।5।।
मैं बालक सरन अधारी । मैं करूूँ बीनती भारी ।।6।।
िो मौि न रो यर न्यारी । तो फे रो सुरत रमारी ।।7।।
घट भीतर रोय क़रारी1 । िब्दारस करे अरारी ।।8।।
दोउ में से एक सुधारी । िो दोनों करो दया री ।।9।।
मैं राज़ी रज़ा तुम्रारी । मैं राधास्वामी गोद पड़ा री ।।10।।
।। िब्द बीसवाूँ ।।
लगाओ मेरी नइया सतगुरु पार । मैं बरी िात िग धार ।।1।।
तुम जबन नारीं को ककढ़यार2 । लगादो डू बी खेप ककनार ।।2।।
सरेली मत तू मन में रार । कदखाऊूँ िग का वार और पार ।।3।।
चढ़ाऊूँ सूरत उलटी धार । िब्द संग खेय उतारूूँ पार ।।4।।
गुरु को धर ले जरये मूँझार । नाम धुन घट में सुन झनकार ।।5।।
तरं गें उठतीं बारम्बार । भूँवर िरूँ पड़ते बहुत अपार ।।6।।
मेरर से पहुंची दसवें द्वार । राधास्वामी दीन्रा पार उतार ।।7।।
।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।
दिणन की प्यास घनेरी3 । जचत तपन समाई ।।1।।
िग भोग रोग सम दीखें । सतसंग में सुरत लगाई ।।2।।

1. जस्थर । 2. जनकालने वाला । 3. भारी ।


278 सार बचन बचन 33

गजत अगम तुम्रारी समझी । पर दरस जबन जतरपत नसर आई ।।3।।


गुरुमुखता बन नसर पड़ती । कफर कै से प्रत्यक्ष पाई ।।4।।
तुम गुप्त ररो िीवन से । संग सब के दूर न भाई ।।5।।
जबन ककरपा सतगुरु पूरे । जनि रूप न तुम कदखलाई ।।6।।
अब तरसूूँ तड़पूूँ बहु जवजध । तुम जनकट न रोत रसाई1 ।।7।।
रो समरथ दाता सब के । मुझ को भी खैंच बुलाई ।।8।।
मैं कै से देखूूँ तुम को । कोई ितन न अब बन आई ।।9।।
घट का पट खोलो प्यारे । यर बात न कु छ करठनाई ।।10।।
तुम चारो तो जछन में कर दो । नसर िन्म िन्म भटकाई ।।11।।
अब दरस कदखादो िल्दी । मैं रहूं जनत्त मुरझाई ।।12।।
अब दया जवचारो ऐसी । मैं रहूं चरन लौ लाई ।।13।।
तुम जबन कोई और न िानूं । तुमरीं से रहुं जलपटाई ।।14।।
यर आरत अद्भुत गाई । सूरत मेरी िब्द समाई ।।15।।
राधास्वामी करत सुनाई । मैं दासन दास कराई ।।16।।

।। िब्द बाईसवाूँ ।।

सोचत ररी री बेचन ै , रै न कदन बहु पछतानी ।


मेरी लगी न प्रीत संग िबद, करन मेरी सभी करानी ।।1।।
झुरत रहूं मन मासर, कौन से करूूँ बखानी ।
सुननरार नसर सुन,े करो मेरी करा बसानी ।।2।।
मौि जबना क्या रोय, मौि की सार न िानी ।
सबर न आवे जचत्त, ददण में रै न जबरानी2 ।।3।।
कदवस करूूँ फ़याणद, गुरु मेरे अन्तरिामी ।
अपनी चूक जवचार, रहूं मैं अजत घबरानी ।।4।।
दीना नाथ दयाल, सुनो िल्दी मेरी बानी ।

1. पहुूँच । 2. बीती ।
बचन 33 फ़याणद और पुकार 279

चरन पकड़ रठ करूूँ, मेरर कर देवो दानी ।।5।।


मैं तो अिान अभाग, कु रटल मोसर सब िग िानी ।
िो अपना कर जलया, लाि अब तुम्रें समानी ।।6।।
राधास्वामी कर ररे, यर अचरि बानी ।
सौदा पूरा जमले, रोय नसर तेरी रानी ।।7।।

।। िब्द तेईसवाूँ ।।

धीरि धरो बचन गुरु गरो । अमृत जपयो गगन चढ़ ररो ।।1।।
दूर न िानो सतगुरु पास । जनस कदन करो चरन जवश्वास ।।2।।
सागर मेरर दया की मौि । राधास्वामी दीन्री अचरि चोि1 ।3।।
खेल जखलावें बाल समान । देखे मात ररख मन आन ।।4।।
रक्षक िब्द िान और प्रान । सो परलू छोड़े न जनदान ।।5।।
मन की घढ़त करावें दम दम । वर रैं जमि वरी रैं रमदम2 ।।6।।
भूल चूक बखिें3 वर जछन जछन । संग ररें इसके वर जनस कदन ।।7।।
यर मन कच्चा बूझ न िाने । उनकी गजत कै से पजरचाने ।।8।।
िगत िाल में ररा भुलाई । सुरत िब्द में नरीं िमाई ।।9।।
या से सोग जवयोग सतावे । मन का घाट राथ नसर आवें ।।10।।
गुरु कुं िी िो जबसरे नारीं । घट ताला जछन में खुल िाई ।।11।।
खुले घाट तब सुन्न में देखे । धुन की खबर रूप जनि पेखे ।।12।।
चढ़े अधर िब नाम समावे । रस पावे सूरत घर आवें ।।13।।
रतन खान घट में िब खुले । दुक्ख ददण और दुमत ण टले ।।14।।
मौि जनरारो सबर सम्रारो । भमण अूँधरे ा कौतुक4 टारो ।।15।।
अमल अचल पकड़ो गुरु चरना । सुक्ख जपरापत दुख सब ररना ।।16।।
यर संसार अजगन भंडार । सीतल िल सतगुरु आधार ।।17।।
बड़े भाग जिन सतगुरु पाये । चौरासी से तुरत रटाये ।।18।।

1. खूबसूरती, जबलास । 2. गररे साथी । 3. क्षमा करें । 4. खेल ।


280 सार बचन बचन 33

दुक्ख सुक्ख िो व्यापत रोई । जपछले कमण भोग रैं सोई ।।19।।
कोइ कदन सोग रोग रट िावें । देर नसर िल्दी भुगतावें ।।20।।
दोरा
राधास्वामी रक्षक िीव के , िीव न िाने भेद ।
गुरु चररि1 िाने नरीं, ररे कमण के खेद2 ।।21।।
खेद जमटे गुरु दिण से, और न कोई उपाय ।
सो दिणन िल्दी जमलें, बहुत करा मैं गाय ।।22।।
।। दो कजड़या छन्द ।।
धीरि धरना, मत घबराना, जचत ठरराना,
रूप समाना, जनत गुन गाना, नरीं बराना,
यरी जनिाना, ज्यों पजपरा स्वाूँती आस ।।23।।
घट में ररना, करीं न बरना, मन में सरना,
रस री लेना, धीरि गरना, ममण न करना,
ज्यों िल मीना, राधास्वामी पास ।।24।।
आगे दया मेरर सतगुरु की । वरीं दरसावें वर अब धुर की ।।25।।
राधास्वामी बचन सुनाया । िीवन की रठ से जलखवाया ।।26।।
दोरा
सुरत बसाओ िब्द में, िब्द गगन के मासर ।
जवरर बसाओ जरये में, जरया जतरकु टी मासर ।।1।।
सुरत िब्द इक अंग कर, देखो जबमल बरार ।
मध्य सुखमना जतल बसे, जतल में िोत अकार ।।2।।
िब्द स्वरूपी संग रैं, कभी न रोते दूर ।
धीरि रजखयो जचत्त में, दीखेगा सत नूर ।।3।।
सत्तनाम सतपुरुष का, सत्तलोक में पूर ।

1. लीला । 2. दुख ।
बचन 34 प्राजप्त मेरर व दया सतगुरु 281

सुरत चढ़ाओ िब्द में, दिणन राल हुज़ूर ।।4।।


प्रेम प्रीत राचे ररो, कु मजत कु रटल से दूर ।
मन सूरत से िूझ कर, ररो िब्द में सूर ।।5।।

।। बचन चौंतीसवाूँ ।।
प्राजप्त मेरर और दया सतगुरु की और पहुूँचना सुरत का
चढ़ कर स्थानों पर और वर्णन मजरमा िब्द और
सतगुरु की और भेद और लीला स्थानों की
।। िब्द परला ।।
िीव जचतावन आये राधास्वामी । बार बार जतन करूं प्रनामी ।।1।।
आरत उनकी करूूँ सिाई । जचत्त िुद्ध कर थाल बनाई ।।2।।
अब िीवों को चजरए ऐसा । चल कर अपें तन मन सीसा ।।3।।
िोत िगावें प्रथम जवरर की । बाती िोड़ें जबतण1 लगन की ।।4।।
िब आरत अस लई सूँिोई2 । सतगुरु दया दृजष्ट कर िोई3 ।।5।।
दीन्रा दीन िान उपदेिा । सुरत िब्द में करो प्रवेिा ।।6।।
खोलो िाकर गगन ककवाड़ी । श्याम कं ि तब लागी ताड़ी ।।7।।
सेत कूँ वल कफर मन ठरराना । प्रगटी िोत सुन्न में िाना ।।8।।
सेत श्याम दल दोनों छोड़े । तीसर दल में मन को िोड़े ।।9।।
बंकनाल का द्वारा सोई । तन की सुजद्ध वराूँ गइ खोई ।।10।।
मन और सुरत चेत कर िागी । जिकु टी िब्द गुरु में लागी ।।11।।
अब पाया जवश्राम रठकाना । आरत पूरन करी बखाना ।।12।।
इतना धाम सुरत ने पाया । राधास्वामी चरन समाया ।।13।।
।। िब्द दूसरा ।।
आि काि मेरे कीन्रें पूरे । बािे घट में अनरद तूरे ।।1।।

1. धारा । 2. तैयार की । 3. देखा ।


282 सार बचन बचन 34

भाग उदय आि हुये रमारे । राधास्वामी चरन सीस पर धारे ।।2।।


जबमल आरती अब मैं गाऊूँ । परस चरन और बल बल िाऊूँ ।।3।।
कोरट िन्म से धोखा खाया । जबन स्वामी िोनी भरमाया ।।4।।
दाव पड़ा मेरा अब के ऐसा । राधास्वामी चरन आय मैं परसा ।।5।।
अब पाया मैंने अिर जवलासा । क्या कहूं मजरमा अजधक हुलासा ।।6।।
रोम रोम रग रग मेरी बोली । राधास्वामी राधास्वामी घुड ूँ ी1 खोली ।।
रं ग रं गी मेरे तन की चोली2 । सुन सुन धुन अब भइ हुं अमोली ।।8।।
घूम चली अब गगन मूँझारा । सुन्न जिखर का झाूँका द्वारा ।।9।।
मानसरोवर ककये अश्नाना । सत्तनाम सू3ूँ लागा ध्याना ।।10।।
मरासुन्न घाटी चढ़ भागी । सत्तपुरुष के चरनन लागी ।।11।।
रंसन साथ करूूँ अब आरत । प्रेम मगन रोय दुक्ख बरावत ।।12।।
अमी अरार ककया मैं भारी । जछन जछन दिणन पुरुष जनरारी ।।13।।
िोभा बरनी न िाय अपारी । आरत पूरन रो गइ सारी ।।14।।
धन धन धन धन क्या कहूं मजरमा । राधास्वामी राधास्वामी पलपल करना ।।
।। िब्द तीसरा ।।
भइ रै सुरत मेरी आि सुराजगन । लगी रै सुरत मेरी जछन जछन िागन ।।
स्वामी स्वामी लगी रै पुकारन । राधा राधा नाम सम्रारन ।।2।।
गगन मूँडल अब लागा गिणन । भाग गये मेरे घट से दुिन ण ।।3।।
तन मन मैंने कीन्रा अपणन । लगी सुरत अब सतगुरु चरनन ।।4।।
नाम थाल और बाती सुजमरन । िुजि िोत बाली मैं जनि तन ।।5।।
आरत फे र चढ़ाया जनि मन । गगन िाय सुनता अनरद धुन ।।6।।
संत कृ पा पाया पद पूरन । करम भरम डाले कर चूरन ।।7।।
साफ़ ककया मैं मन का दपणन । ममता माया कीन्री मदणन ।।8।।
नूर जनरं िन िगत सम्रारन । सरसकूँ वल चढ़ कीन्रा दिणन ।।9।।
सुई द्वार नाका लगी झाूँकन । पाप अनंत हुये िरं खंडन ।।10।।

1. गाूँठ । 2. परनने का कपड़ा । 3. से ।


बचन 34 प्राजप्त मेरर व दया सतगुरु 283

बंकनाल धस जिकु टी धावन । ओंकार धुन करी अब सरवन ।।11।।


सुन्न मूँडल धुन पाई रारूँ ग । ककगरी सुनी और बािी सारूँ ग ।।12।।
चन्द्र चौक िरूँ देखा चाूँदन । रंसन रूप धरे मन भावन ।।13।।
मरासुन्न सागर चली न्रावन । सूरत जमली िाय मरा चेतन ।।14।।
भूँवरगुफा द्वारा अजत पावन1 । धुन मुरली िरूँ बित सुरावन ।।15।।
रंसन िोभा मन जबगसावन2 । सुन सुन धुन अजत प्रेम बढ़ावन ।।16।।
चौक अगाध साध कर चालन । गइ सतपुर लगी पुरुष मनावन ।।17।।
चौथा लोक जिलोकी कारन । संत बसें जिव करें उबारन ।।18।।
अलख लोक इक पुरुष जबरािन । बैठे अचरि धार ससरासन ।।19।।
जतस आगे कफर अगम जनरारन । अगम पुरुष कढग िोभा पावन ।।20।।
लगी सुरत जनि भेद सुनावन । जमल गये राधास्वामी पजतत उधारन ।।
अब अनाम का क्या करूूँ छानन3 । सैन करी यर अकर अपारन ।।22।।
भई आरती अब सम्पूरन । छोड़ दई मैं सभी गुनावन4 ।।23।।

।। िब्द चौथा ।।

संत दास की आरती, सुनो राधास्वामी ।


मैं अजत दीन अधीन हूं, सेवक जबन दामी ।।1।।
िन्म िन्म सरनागती, तुम पुरुष अनामी ।
दया करो अपना करो, मुझे अन्तर िामी ।।2।।
मैं अन-समझ अबूझ हूं, तुम चरन नमामी ।
तुम दाता पद अधर के , मैं दास जनकामी5 ।।3।।
तुम्ररी गजत मजत को करे, तुम अगम रठकानी ।
मुझपर अस ककरपा करी, कु छ जमली जनिानी ।।4।।
अनरद धुन बािे बिें, मन रोय अकामी ।
सरन गरी सतगुरु की, ति लाि लोकानी6 ।।5।।

1. पजवि । 2. प्रफु जल्लत करने वाली । 3. जनर्णय । 4. जचन्त । 5. नीच ।


6. लोक यानी संसार की ।
284 सार बचन बचन 34

जिकु टी घाट सूरत चढ़ी, जमला पद जनरबानी ।


अब आगे का भेद यर, सुन अचरि बानी ।। 6 ।।
मानसरोवर घाट, करें रंसा जबसरामी ।
धुन ककगरी और सारूँ गी, तामें सुरत समानी ।। 7 ।।
यर पद रै जनि ब्रह्म का, लक्ष वाच प्रमानी ।
पारब्रह्म जतस ऊपरे , मरासुन्न पुरानी ।। 8 ।।
भूँवरगुफा सतलोक को, सब संत बखानी ।
दो पद आगे और रैं, सो गुप्त करानी ।। 9 ।।
तापर अगत1 अगाध रैं, जतस रूप न नामी ।
संत जबना नसर पाइये, यर भेद मुदामी2 ।।10।।
अब आरत फे रन लगा, धर धीरि थाला ।
दृजष्ट िोड़ सन्मुख खड़ा, काटा िंिाला ।।11।।
जवरर िोत िगमग हुई, और काल जनकाला ।
दया करी राधास्वामी, अगम कर कदया जनराला ।।12।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

सतगुरु संत जमले राधास्वामी । आरत करने की जवजध ठानी ।।1।।


अधर थाल और अक्षर िोती । प्रेम सुरत से दृजष्ट परोती ।।2।।
जनरत नाम धुन माला डारूूँ । सीतल जतलक के सरी धारूूँ ।।3।।
बस्तर भाव प्रीत पजरराऊूँ । अमी मूर मय3 भोग धराऊूँ ।।4।।
तन मन जनि मन भेंट चढ़ाऊूँ । नौ जनजध नौछावर करवाऊूँ ।।5।।
नओं द्वार पर नीत जबठाऊूँ । जचत्त िोड़ मुख आरत गाऊूँ ।।6।।
मैं अजत दीन अधम तुम दासा । आरत देखन उपिी आसा ।।7।।
दूर देि से आयो अबरी । आरत करूूँ ररझाऊं गुरु री ।।8।।
मो पर कृ पा दृजष्ट अब कीिै । दीनबन्धु मोसर सरना लीिै ।।9।।

1. जिसकी गजत न िानी िाय । 2. अजवनािी । 3. सजरत ।


बचन 34 प्राजप्त मेरर व दया सतगुरु 285

भेद तुम्रारा अजत कर सारा । सुरत िब्द मारग मैं धारा ।।10।।
पकड़ूं िब्द चढ़ाऊं सूरत । नभ जनरखूं और देखू मूरत ।।11।।
सरसकं वल धस घंट बिाऊं । बंकनाल चढ़ िंख सुनाऊं ।।12।।
जिकु टी घाट ककया िाय फे रा । ओंकार धुन से मन घेरा ।।13।।
मन हुआ लीन सुरत अब चीन्री । कान पड़ी धुन झीनी झीनी ।।14।।
मानसरोवर पैठ अन्राई । जनमणल रोय जनमणल पद पाई ।।15।।
सुन्न जिखर िाय फे रा दीन्रा । कोट मरासुन चढ़ कर लीन्रा ।।16।।
भंवरगुफा सोरं धुन सुनी । सत्तनाम धुन जछन जछन गुनी ।।17।।
सत्तलोक िाय बैठक पाई । सत्त सुरत सत िब्द समाई ।।18।।
अलख अगम के पार अनामी । यर भी पद दरसे मोसर स्वामी ।।19।।
मजरमा सतगुरु करं लग कहूं । आरत कर अब चुप रो रहूं ।।20।।
देओ प्रिाद रहूं चरनन में । गुन गाऊं पल पल जछन जछन में ।।21।।

।। िब्द छठा ।।

गुरु पै डालूं तन मन वार । गुरु पै िाऊं अब बजलरार ।।1।।


गुरु ने नाम सुनाया सार । गुरु ने दीन्रा भेद अपार ।।2।।
सुरत से सेऊं नाम सम्रार । सरसदल मध्य रोत झनकार ।।3।।
दाजमनी दमकत नैन जनरार । रूप का खुला िराूँ भंडार ।।4।।
छाूँट धुन घंटा बारम्बार । और धुन त्यागो सबरी झाड़ ।।5।।
िंख धुन पकड़ो उसके पार । बंक का खोलो िाकर द्वार ।।6।।
गरो कफर व्राूँ से धुन ओंकार । गिण जमरदंग रै जतस लार1 ।।7।।
ररं ग धुन रोवत दसवें द्वार । सुनो तुम िाकर अजत कर प्यार ।।8।।
मानसर न्राओ जनमणल धार । रंस हुइ छू टा काग अकार ।।9।।
मरासुन पहुंची िोभा धार । िब्द संग कीन्रा िाय जवरार ।।10।।
भूँवर चढ़ बैठी रोय हुजियार । नाम घर आई सुरत सुधार ।।11।।

1. साथ ।
286 सार बचन बचन 34

अलख लख अगम करा दरबार । जमले कफर राधास्वामी यार ।।12।।

।। िब्द सातवाूँ ।।

गुरु जमले अमी रस दाता । मैं अधम जवषय मद माता ।।1।।


मैं नीच अिान अनाड़ी । सुतण कीन्री िब्द दुलारी ।।2।।
गुरु मजरमा जछन जछन गाता । मन जनि मन चरन लगाता ।।3।।
घट में जनत आरत करता । सुतण सरसकं वल में धरता ।।4।।
िरं िोत िगाई न्यारी । जतल तोड़ा गगन जसरारी1 ।।5।।
धुन अनरद िोर मचाई । सुखमन में सुरत िमाई ।।6।।
गढ़ बंका तोड़ा भाई । धुन ओंकार सुन पाई ।।7।।
आगे को जनरत बड़ाई । श्यामा ति सेत समाई ।।8।।
चंदा िरूँ नूर कदखाई । रंसन की पाूँत िुड़ाई ।।9।।
मुिा िरूँ चुन चुन खाई । आतम जनि अक्षर पाई ।।10।।
सतगुरु कफर ककरपा धारी । हुइ मरासुन्न धस पारी ।।11।।
अनरद धुन मुरली बािी । कढग भूँवरगुफा सुतण गािी ।।12।।
बल सतगुरु सचखूँड आई । यरूँ आरत अद्भुत गाई ।।13।।
चढ़ आगे अलख कदखाई । गुरु अगम पुरुष दरसाई ।।14।।
लीला कु छ अचरि करी न िाई । ज्ञानी और िोगी भेद न पाई ।।15।।
सब काल देि में गये भुलाई । द्याल देि यर संत िनाई ।।16।।
राधास्वामी मरल अिब मैं पाया । रूप अगाध िाय नसर गाया ।।17।।

।। िब्द आठवाूँ ।।

आि मैं देखूूँ घट में जतल को । लगी यर बजतयाूँ प्यारी कदल को ।।1।।


गुरु अपनाय जछन जछन रमको । ममण मैं पाया चढ़ कर नभ को ।।2।।
सरसदल चढ़ कर जमली अलख को । िोत लख पाई छोड़ खलक2 को ।।
श्याम ति पहुंची सेत नगर को । चली और जनरखा जिकु टी घर को ।।4।।

1. गई । 2. संसार ।
बचन 34 प्राजप्त मेरर व दया सतगुरु 287

बहुर चल जनरखा सरवर तट को । खोल वर द्वारा फाड़ा पट1 को ।।5।।


मरासुन पा गइ गुप्त समझ को । भूँवर चढ़ परखा पुरुष रमज़2 को ।।6।।
सत्त पद आगे जमला सुरत को । सुनी धुन बीना धार जनरत को ।।7।।
अलख लख पहुंची िाय अगम को । जमला अब राधास्वामी धाम अधम को ।।
।। िब्द नवाूँ ।।
प्रेजमन दूर देि से आई । चलो सतगुरु की राट ।।1।।
जवरर जबमल अनुराग बढ़ाई । लगो अब सतगुरु घाट ।।2।।
ददण कदवानी रो मस्तानी । खोलो गगन कपाट ।।3।।
गुरु की मजरमा अगम बखानी । समझ समझ मुसक्यात ।।4।।
बचन बान गुरु अजधक चलाये । गया कलेिा फाट ।।5।।
करूँ लग कहूं खोट इस मन की । चले न सतगुरु बाट ।।6।।
अमृत सागर गुरु बतलाया । यर जनत जवषया3 खात ।।7।।
िब्द जनिानी पूरन बानी । सो गुरु कीन्री दात ।।8।।
मन बौराना जवषय कदवाना । उलटा भरमा िात ।।9।।
कौन सुने अब गुरु जबन मेरी । उन जबन को कमण काट ।।10।।
सेवा करूूँ सरन दृढ़ पकड़ूूँ । तौ धरें मेरर का राथ ।।11।।
चले सुरत कफर िब्द सम्रारे । सुने सुन्न जवशयात4 ।।12।।
सरसकूँ वल चढ़ जिकु टी आवे । गया दसम दर5 फाट ।।13।।
मरासुन्न से भूँवरगुफा तक । सत्तनाम की पाई चाट ।।14।।
अलख अगम का लगा रठकाना । राधास्वामी जनरखा ठाट ।।15।।
आरत करूं प्रेम से पूरी । काल बली की कीन्री घात ।।16।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
गुरु के दिणन करने, रम आये अब दूर से ।
आये अब दूर से, चल आये रम दूर से ।।1।।

1. परदा । 2. भेद । 3. िरर । 4. बानी । 5. द्वारा ।


288 सार बचन बचन 34

दीन अनाथ जभखारी दर के । हुए मंगता रम धुर घर के ।


गुरु जमलावें मूर1 से ।।2।।
और आस जवश्वास न कोइ । चरन गुरु के पकड़े सोई ।
वरी छु ड़ावें कू ड़2 से ।।3।।
सुरत डोर चरनन में लागी । जचत चंचलता सबरी भागी ।
वरी लगावें तूर3 से ।।4।।
अनरद बािे बिें गगन में । सुरत चढ़ी और लागी धुन में ।
दृजष्ट जमली अब नूर से ।।5।।
कायरता अब मन से भागी । सुरत िब्द में जछन जछन लागी ।
डरे काल गुरु सूर से ।।6।।
सरसकूँ वल ति जिकु टी आई । सुन्न परे मरासुन्न चढ़ाई ।
भेद जमला गुरु पूर से ।।7।।
भंवरगुफा का ताला तोड़ा । अमर नगर िा सूरत िोड़ा ।
जमल गई सत्त ज़हूर4 से ।।8।।
अलख पुरुष की प्रीत समानी । अगम लोक िा बैठक ठानी ।
हुई पावन गुरु धूर से ।।9।।
राधास्वामी चरन जनरारे । लगे मोसर अब अजतकर प्यारे ।
आरत करूूँ िऊर5 से ।।10।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।।

करूं मैं आरत सजखयन साथ । गहूूँ मैं थाली सम जचत राथ ।।1।।
िोत में धारूं जवरर अनुराग । प्रेम सूँग गाऊं गुन और राग ।।2।।
सिाऊं आरत पाऊं लाभ । सुरत सखच पहुंची नभ6 ति नाभ7 ।।
कु लारल8 रोत गगन में आि । प्रेम संग भींिा सकल समाि ।।4।।
छोड़ नौ आई दसवें द्वार । खोजलया ताला सुन्न मूँझार ।।5।।

1. मूल । 2. झूठा (पंिाबी बोली) । 3. एक प्रकार का बािा । 4. प्रकाि ।


5. जवजध । 6. सरसदल कूँ वल । 7. जिकु टी । 8. िोर ।
बचन 34 प्राजप्त मेरर व दया सतगुरु 289

धुनों की रोत िराूँ झनकार । सुरत िरूँ देखत रूप अपार ।।6।।
मरासुन पहुंची सतगुरु लार । भूँवर चढ़ खुला िब्द भंडार ।।7।।
सत्त पद पाया अधर अधार । अलख का जलया िाय दरबार ।।8।।
अगम का पाया वार और पार । ररी अब राधास्वामी रूप जनरार ।।9।।
सुरत अब िब्द लखा जनि सार । कदया अब राधास्वामी भेद जवचार ।।
साध संग कीन्रा ति अरंकार । गुरु संग मेल ककया बहु प्यार ।।11।।
नाम धन पाया जवरर सम्रार । गुरु ने ममण लखाया पार ।।12।।
कं वल चढ़ झाूँकी मन को मार । घाट अब देखा घट में सार ।।13।।
चरन राधास्वामी जररदे धार । रहूं मैं दम दम चरन सम्रार ।।14।।
हुए राधास्वामी आि दयार । नाम रस पाया परखी धार ।।15।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
गुरु आरत तू करले सिनी । कदवस गया आई अब रिनी1 ।।1।।
मन को तोड़ चढ़ो जनि गगनी । सुरत िब्द रस पीवत मगनी ।।2।।
जरसण रवस2 िग जछन जछन तिनी । नाम ओर3 अब पल पल भिनी4 ।।3।।
िोत नाद संग दम दम रं गनी । लख जपया रूप बढ़ावत लगनी ।।4।।
जबन गुरु कौन करावत करनी । सुख अकाि ति जगरती धरनी ।।5।।
छू ट गया मेरा िन्म और मरनी । सतगुरु दया सुरत नभ भरनी ।।6।।
अमर लोक अब लागी चढ़नी । धुन अपार जररदे में िरनी ।।7।।
सत्तनाम सतगुरु हुइ सरनी । अलख अगम के चरनन पड़नी ।।8।।
गुरु पद परस परख घट चलनी । माया ममता तृष्र्ा दलनी ।।9।।
सुआ5 समान फूँ सा िग नलनी6 । गुरु प्रताप मेरे दुख टलनी ।।10।।
राधास्वामी दृजष्ट करी मन गलनी । बाल समान गोद गुरु पलनी ।।11।।
।। िब्द तेररवाूँ ।।
आओ री जसमट रे सजखयो । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।1।।

1. रात । 2. तृष्र्ा और वासना । 3. तरफ़ । 4. भागना । 5. तोता ।


6. तोता फं साने की कल ।
290 सार बचन बचन 34

तुम िुड़ जमल बैठो गाओ । मैं आरत करूूँ गुरु की ।। 2 ।।


तुम अपने संग लगा लो । मैं आरत करूूँ गुरु की ।। 3 ।।
तुम प्रेम बढ़ा दो मेरा । मैं आरत करूूँ गुरु की ।। 4 ।।
तुम करो मदद मेरी जमल कर । मैं आरत करूूँ गुरु की ।। 5 ।।
तुम जबन मेरे बल नसर पौरूष । मैं आरत करूूँ गुरु की ।। 6 ।।
तुम सेवक साूँचे गुरु की । मैं आरत करूूँ गुरु की ।। 7 ।।
अब जबनती सुनो अधम की । मैं आरत करूूँ गुरु की ।। 8 ।।
तुम ढंग जसखाओ रं ग से । मैं आरत करूूँ गुरु की ।। 9 ।।
यर औसर जमले न कबरी । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।10।।
अस औसर कफर न जमलेगा । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।11।।
मन जवरर िोत अब बाली । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।12।।
कर1 उमंग थाल ले आई । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।13।।
सामाूँ सब हुई इकट्ठी । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।14।।
सुतण श्याम कं ि चढ़ झाूँकी । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।15।।
कफर बंकनाल धस आई । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।16।।
जिकु टी की जसला2 रटाई । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।17।।
सुन सेत रंस गजत पाई । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।18।।
मरासुन्न जनरखती चाली । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।19।।
मुरली धुन गुफा सम्रारी । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।20।।
सचखंड बीन धुन िागी । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।21।।
लख अलख पुरुष पद पागी । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।22।।
अब अगम गम्म कर धाई । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।23।।
राधास्वामी धाम कदखाई । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।24।।
राधास्वामी सतगुरु पूरे । मैं आरत करूूँ गुरु की ।।25।।

1. राथ । 2. बज्र कपाट ।


बचन 35 चढ़ना सुरत व लीला मुकामात 291

।। बचन पैतीसवाूँ ।।
चढ़ कर पहुूँचना सुरत का आकाि में और भेद
और लीला मुक़ामात की िो कक सुरत ने
रास्ते में देखी रै

।। िब्द परला ।।

करूूँ आरती नाना जवजध से । देखो स्वामी मेरर बेरद से ।।1।।


घट का थाल जचत्त की बाती । नाम चेतना1 िोत िगाती ।।2।।
भाव भजि का भोग धराऊूँ । सुरत दृजष्ट का िोग जमलाऊूँ ।।3।।
बािे अनरद जनत्त बिाऊं । अमी धार रस अगम चुवाऊं ।।4।।
रूप अनूपम गगन गंभीरा । झलकें िरं तरं मोती रीरा ।।5।।
सूरि मंडल तेि उिारा । चन्द्र मंडली खोला द्वारा ।।6।।
सुखमन नाली सुरत चढ़ाई । बंकनाल में सरि समाई ।।7।।
धुन धधकार सुनी ओंकारा । लाल रं ग िरूँ सूर जनरारा ।।8।।
जिकु टी घाट सुरत अब िागी । मानसरोवर चालन लागी ।।9।।
सेत सेत मैदान अनूपा । रंसन का िरूँ देखा रूपा ।।10।।
द्वादस सूर कला जिन के री । रंस रंस प्रजत ऐसी रेरी ।।11।।
िोभा वरां की अगम अगाधा2 । नसर पावे कर िोग समाधा ।।12।।
सुरत िोग से पहुंचे कोई । िा पर दया राधास्वामी की रोई ।।13।।
आगे भेद गुप्त रम राखा । अजधकारी को कसर कसर भाखा ।।14।।
यर आरत अब पूरर् रोई । स्वामी देओ प्रसादी मोरीं ।।15।।

।। िब्द दूसरा ।।

लाई आरती दासी सि के । नाम राधास्वामी का जछन जछन भि के ।।


सील जछमा की ओढ़ चदररया । काम क्रोध की छाूँट बदररया ।।2।।

1. याद करना । 2. अथार ।


292 सार बचन बचन 35

नाम थाल जलया राथ पसारी । जवरर अजि से िोत सूँवारी ।।3।।
अमी सरोवर भर लइ झारी । राधास्वामी सन्मुख कर कर ढारी1 ।।4।।
अगम लोक के सबिन लाई । राधास्वामी आगे भोग धराई ।।5।।
अम्बर चीर जपताम्बर िोड़े । भेट ककये मैंने राथी घोड़े ।।6।।
पाूँच तत्त्व गुन तीन जसपारी । मार जलये राघास्वामी की दुराई ।।7।।
चढ़ी गगन पर कीन्रा धावा । सुरत जनरत दोउ िब्द समावा ।।8।।
बंकनाल की तोप चलाई । जवरर अजि की जचनगी लाई ।।9।।
धमणराय की फ़ौि भगाई । धूम धाम मैंने बहुत मचाई ।।10।।
घंटा िंख मृदग ं बिाई । धौंसा2 धमक अिब धुन आई ।।11।।
गगन मूँडल का घाटा3 रोका । काल मंडली खाया झोका ।।12।।
अब चढ़ गई सुरत िजि4 द्वारे । तीन लोक के रो गइ पारे ।।13।।
भान ककरन िरूँ झलकन लागी । अगम रूप अद्भुत िरूँ पागी ।।14।।
खुली दृजष्ट िब जझरना झाूँकी । क्या कहूं िोभा अब मैं वराूँ की ।।15।।
कोरटन भान रोम इक लागी । देख सुरत अचरि अस िागी ।।16।।
सुरत िब्द का रो गया मेला । अगम पुरुष अब ररा अके ला ।।17।।
एक दोय कु छ करा न िाई । ऐसे पद में िाय समाई ।।18।।
आरत का मैं यर फल पाया । दुक्ख भमण सब दूर बराया ।।19।।
परम िाूँजत में आन समानी । क्या कहूं मजरमा अचरि बानी ।।20।।
अब कीिै स्वामी पूरन ककरपा । तन मन मैं सब तुम पर अरपा ।।21।।
राधास्वामी राधास्वामी अब जनत गाऊं । और बचन कु छ याद न लाऊूँ ।।
देओ प्रसाद अगमपुर धामी । भजि सजरत तुम चरन नमामी ।।23।।

।। िब्द तीसरा ।।

रे सरेली आली मौि करी अब भारी । चरन कूँ वल प्रीतम जिया धारी ।।
िगी रै िोत जरये भई उजियारी । गगन मंडल धुन भई धधकारी ।।2।।

1. जगराया । 2. वड़ा नक़क़ारा । 3. रास्ता । 4. चन्द्रमा ।


बचन 35 चढ़ना सुरत व लीला मुक़ामात 293

चाूँद सुरि दोउ झाूँक झरोका1 । सुखमन जखड़की द्वार िाय रोका ।।3।।
प्रार् पवन िरूँ देती झोका2 । सुरत अड़ी अब माने न नेका ।।4।।
िब्द गुरु िाय कीन्रा ठे का । जिकु टी मरल पर पग अब टेका ।।5।।
मानसरोवर रंस समीपा । अक्षर का िरूँ रै जनि दीपा ।।6।।
चार भान काजमन िराूँ क़ांती4 । द्वादस भान रंस की भाूँती ।।7।।
लीला अद्भुत बरनी न िाई । देख देख मन िरूँ जबगसाई ।।8।।
इकटक4 ठाढ़ी सुरत जनरारी । धुन ककगरी िरूँ सुनत सम्रारी ।।9।।
मरासुन्न रोय सचखंड आई । अलख अगम में िाय समाई ।।10।।
मौि अनामी क्या कहूं लेखा । बरना न िाय रूप िस देखा ।।11।।
सोई रूप धारा राधास्वामी । िीव काि आये जनि धामी ।।12।।
उन चरनन पर तन मन वारूूँ । छजब उनकी पल पल जरये धारूूँ ।।13।।
आरत फे रूूँ प्रेम उमंग से । सुजध बुजध जबसरी अब मोरे तन से ।।14।।
फल पाया मैं अगम अपारा । अमी अरार करूूँ जनत सारा ।।15।।

।। िब्द चौथा ।।

प्रेम प्रीत घट भीतर आई । दास आरती नई बनाई ।।1।।


जतल का थाल मदुमक ण 6 बाती । सरसकूँ वल दल सन्मुख लाती ।।2।।
चक्र फे र कर िोत िगाती । सोत पोत7 लख ऊपर िाती ।।3।।
सुन्न जनरख कफर धुन को सुनती । घाटी बंक मध्य रोय धसती ।।4।।
तराूँ संखनी8 करें पुकारा । और डंकनी8 अमल9 पसारा ।।5।।
िब्द कमान राथ लइ िबरी । धुन के बान छु टे बहु तबरी ।।6।।
झुड ं झुडं उनके सब भागे । सुरत िब्द ले चाली आगे ।।7।।
ब्रह्म देि िरूँ नाद अस्थाना । धुन अनंत िरूँ वेद रठकाना ।।8।।
नाग फाूँस डाली िरूँ काला । गरुड़ िब्द से काटा िाला ।।9।।
कफर सतगुरु िब भये सराई । जबघन अनेकन दूर बराई ।।10।।

1. सुराख । 2. धक्का । 3. रंसनी । 4. प्रकाि । 5. एक तरफ़ दृजष्ट िोड़


कर । 6. आूँख की पुतली । 7. भंडार । 8. माया की िजियां । 9. हुक्म,
दखल ।
294 सार बचन बचन 35

चौक चाूँदनी घट के पारा । पारब्रह्म का रूप जनरारा ।।11।।


मरासुन्न सागर गंभीरा । पार ककया दई सतगुरु धीरा ।।12।।
भंवरगुफा िाय द्वारा खोला । सत्तपुरुष तब बानी बोला ।।13।।
सुन सुन बानी सुरत समानी । अलख अगम की कफर गजत िानी 14।।
पद अनाम कु छ करा न िाई । देि संत का जनि कर पाई ।।15।।
अब आरत यर पूरन करहूं । राधास्वामी जछन जछन भिहूं ।।16।।

।। िब्द पाूँचवाूँ ।।

पजश्चम1 ति पूरब2 चजल आया । सतगुरु आरत सामाूँ लाया ।।1।।


दीन ग़रीबी भजि ससगारी । उमंग थाल जचत िोत संवारी ।।2।।
गुरु दर3 झाूँक झुकाया माथा । घेर घार मन चरनन लाया ।।3।।
आरत कीन्रीं जवजवध भाूँत से । िुद्ध ककया मन भमण भ्ांत से ।।4।।
काल रटाया िुजि घात से । जनमणल ककया मन अष्ट धात4 से ।।5।।
जगरा5 सुनी इक जिकु टी घाट से । सुरत चढ़ाई नैन बाट से ।।6।।
दो दल6 मोड़े िब ठाट से । सुरत रटाई नऊराट7 से ।।7।।
बज्र ककवाड़ दूसरा खोला । चारकं वलदल8 अन्दर मोड़ा ।।8।।
खटदलकूँ वल9 सुन्न में फू ला । अष्टकूँ वलदल10 आगे झूला ।।9।।
द्वादसदल11 मैं सुरत समानी । दल तेरर12 से जनकसी बानी ।।10।।
दस दल मरासुन्न के नाके । झार झरोखा धस कर ताके ।।11।।
संतोष दीप अमृत िरूँ जझरना । सुरत जनरत दोनों िरूँ भरना ।।12।।
आगे सतमत ताला खोला । पुरुष सत्त बानी सत बोला ।।13।।
लौ लागी गइ अलख अगम में । सुरत समानी अधर पदम में ।।14।।
राधास्वामी नाम अनामी । बार बार चरनन परनामी ।।15।।

1. नीचे । 2. ऊपर । 3. दरवािा । 4. पाूँच तत्त्व और तीन गुन । 5. आवाज़ ।


6. आंख । 7. नव द्वार । 8. तीसरा जतल । 9. तीसरे जतल के ऊपर का सुन्न ।
10. सरसदल कं वल । 11. जिकु टी । 12. सुन्न ।
बचन 35 चढ़ना सुरत व लीला मुकामात 295

।। िब्द छठा ।।
गुरु का अगम रूप मैं देखा । सतगुरु सत्तनाम सम पेखा ।।1।।
बल सतगुरु अब काल पछाड़ा । कमण काट सतगुरु पद धारा ।।2।।
सरसकं वल का थाल सुधारा । िोत रूप का दीपक बारा ।।3।।
धुन घंटा और िंख बिाई । बंक नाल में दृजष्ट िमाई ।।4।।
दृजष्ट सम्रारत मन हुलसाना । गगन मंडल धुन गरि जपछाना ।।5।।
देख रूप सूरि परकािा । जमटा अूँधरे ा झलक अकािा ।।6।।
पाया आतमपद1 अब भारी । ररं कार धुन िराूँ सम्रारी ।।7।।
चंद्र चांदनी चौक जनरारा । सेत सेत पद श्याम जनकारा ।।8।।
इकटक सुरत लगी वजर द्वारे । रंस िूथ2 बहु लगे जपयारे ।।9।।
राधास्वामी लीला धारी । आरत कर मन जबगसा भारी ।।10।।
दया मेरर परिादी पाऊं । रि चरनन की सीस चढ़ाऊं ।।11।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
गुइयाूँ3 री लख मरम िनाऊूँ । अब भेद अगम घट गाऊूँ ।।1।।
सुतण सरसकूँ वल पर लाऊं । लख नैन सैन दरसाऊूँ ।।2।।
िोती की झलक झकाऊूँ । श्यामा ति सेत जमलाऊूँ ।।3।।
कफर बंकनाल चढ़ आऊूँ । जिकु टी का राग सुनाऊूँ ।।4।।
सुन्नी4 िाय सुन्न समाऊूँ । सरवर में धमक चढ़ाऊूँ ।।5।।
रंसन से प्यार बढ़ाऊूँ । ककगरी अब जनत्त बिाऊूँ ।।6।।
राधास्वामी नाम िपाऊूँ । नौका अब पार लगाऊूँ ।।7।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
बहुररया5 धूम मचावत आई । चढ़न को सतगुरु धाम ।।1।।
भाव भजि और प्रेम कदवानी । आरत लीन्री साम6 ।।2।।
करूर्ाजनजध7 गुरु फू ल जबरािें । करें भिन जनि नाम ।।3।।

1. सुन्न । 2. झुड
ं । 3. सखी, सरेली । 4. सुरत । 5. दुलजरन । 6. सामान ।
7. दया के भंडार ।
296 सार बचन बचन 35

िोभा भारी कहूं सम्रारी । जबसर गये सब काम ।।4।।


तन मन की सुजध भूल गई रै । पाया अब आराम ।।5।।
सुरत चढ़ाय गगन पर आई । कौन िपे मुख राम ।।6।।
रम सतगुरु अब पूरे पाये । भेद कदया सतनाम ।।7।।
देखा जतल तोड़ा वर द्वारा । जखला कं ि घट श्याम ।।8।।
िोत िगमगी थाली उस की । पाया काल मुक़ाम ।।9।।
घंटा िंख धूम अजत डारी । रार गया अब िाम1 ।।10।।
नाली पार चढ़ी सुतण जवरजरन । बसी जतरकु टी ग्राम ।।11।।
सुन्न जिखर िा डंका दीन्रा । पाई सीतल छाम2 ।।12।।
मरासुन्न पर गािन लागी । भूँवरगुफा कीन्रा जबसराम ।।13।।
बंसी अधर बिावन लागी । लजित कोरटन श्याम3 ।।14।।
सत्तलोक में िाय समानी । बीन बिे िराूँ आठों िाम ।।15।।
अलख अगम का दिणन पाया । िराूँ खास नसर आम ।।16।।
आगे चली जमले राधास्वामी । अब पाया जवश्राम ।।17।।
आरत कर कर मगन हुई अजत । भागा लोभ और काम ।।18।।

।। िब्द नवाूँ ।।

सुरत सरेली नभ पर खेली । परखी मूरत िोत जनिान ।।1।।


आगे पेली4 धुन सूँग मेली । िब्द गुरु का पाया ज्ञान ।।2।।
सुन्न में िाय धुन अक्षर पाई । लखा चंद्र अस्थान ।।3।।
रूँसन साथ करे कं तूरल5 । मान सरोवर कर अश्नान ।।4।।
मरासुन्न चढ़ झांकी गुरु बल । देखा अजत मैदान ।।5।।
भूँवरगुफा पर आसन डारा । वरां लगाया ध्यान ।।6।।
सत्तलोक िा सतगुरु पाये । सुनी बीन धुन तान6 ।।7।।
अलख पुरुष का दिणन पाया । पहुंची अगम रठकान ।।8।।

1. िमराय । 2. छांर । 3. कृ ष्र् । 4. धसी । 5. जबलास । 6. स्वर, राग ।


बचन 35 चढ़ना सुरत व लीला मुक़ामात 297

राधास्वामी धुन सुन पाई । करी बहुत पजरचान ।।9।।


अब आरत ले सन्मुख आई । भेट चढ़ाई अपनी िान ।।10।।
प्रेम प्रीत चरनन में लागी । देख रूप मैं हुइ रैरान ।।11।।
करनी कथनी सब अब थाकी । देखे री परमान1 ।।12।।
यर आरत मैं अचरि कीन्री । बूझें जबरले संत सुिान ।।13।।
यर गजत मजत रै सब से न्यारी । ज्ञानी िोगी ममण न िान ।।14।।
रतन पदारथ घट में पाया । राधास्वामी दीन्रा दान ।।15।।

।। िब्द दसवाूँ ।।

चल सुरत देख नभ गजलयाूँ । िरूँ सरस कूँ वल की पसरी2 कजलयाूँ ।।


कली कली में देखीं नजलयाूँ । नली नली मध िोती बजलयाूँ ।।2।।
िोत जनरं िन करते रजलयाूँ । नाना रं ग फु लवारी जखजलयाूँ ।।3।।
देखत छजब मन िगत उगजलयाूँ । अनरद सुन धुन में सुतण जपजलयाूँ ।।4।।
सुख अगाध क्या कहु िो जमजलयाूँ । कमण कला िराूँ जछन जछन िजलयाूँ ।।
काम क्रोध आसा िरूँ दजलयाूँ । कफर आगे सूरत चढ़ चजलयाूँ ।।6।।
बंक जतरकु टी सुखमन खुजलयाूँ । देख सूर िजि चमक जबिजलयाूँ ।।7।।
सुन्न जिखर पर िाय सम्रजलयाूँ । सेत वर्ण िरूँ देख कूँ वजलयाूँ ।।8।।
मरासुन्न मराकाल जमलजनयाूँ । भंवरगुफा पर सुरत चलजनयाूँ ।।9।।
सत्तनाम िा ममण खुलजनयाूँ । अलख अगम पद जमले िुगजलयाूँ ।।10।।
राधास्वामी चरन परस मल धुजलयाूँ । आनंद अजधक मोसर अब जमजलयाूँ ।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।।

मेरे उर में भरे दुख साल । कब काटोगे दीन दयाल ।।1।।


मैं भरम ररी भौिाल । अचरि खेल कदखावत काल ।।2।।
कभी करत चाूँदना दीवा बाल । कभी घोर अूँधरे ा बाूँधत पाल5 ।।3।।
कभी पाूँच तत्त्व के रं ग कदखाल । कभी िब्द सुनावत डारत िाल ।।4।।

1. प्रतीत । 2. फै ली । 3. प्रवेि ककया । 4. दोनों । 5. परदा ।


298 सार बचन बचन 35

बहु भटकावत िोग सम्राल । िोगी भूले ऐसे ख़्याल ।।5।।


मैं भी भटका बहुतक काल । क्या क्या कहूं मैं अपना राल ।।6।।
अब सतगुरु मोसर जमले दयाल । कुं िी दे खोला जतल ताल1।।7।।
रूप जनरारूूँ अिब जविाल । िब्द सुनूूँ चढ़ बंकीनाल ।।8।।
जिकु टी घाट भेद दरसाल । सुन्न मूँडल अक्षर परसाल ।।9।।
देखी नदी चमकती चाल । अचरि लररें करत बेराल ।।10।।
बित िराूँ जछन जछन करताल । सुरत सुरत काटा िंिाल ।।11।।
मररम2 मरल न को अटकाल । सतगुरु दया सुफल हुइ घाल3 ।।12।।
अब आरत गुरु करूूँ सम्राल । राधास्वामी ककया जनराल ।।13।।
सेत पदम चढ़ मारा काल । मूल जमली और छू टी डाल ।।14।।

।। िब्द बाररवाूँ ।।

मन और सुरत चढ़ाओ जिकु टी । खेलो गगन और करो आरती ।।1।।


जनरख नाम पोओ धुन मोती । गरि गरि झलके िरूँ िोती ।।2।।
राथ झाड़ माया तब रोती । पाया ररं कार जनि गोती4 ।।3।।
आसा मंसा यरां ररी सोती । घाट जिबेनी चढ़ मल धोती ।।4।।
आलस नींद भूख सब खोती । ममता जवपता सब भई थोथी5 ।।5।।
जछन जछन प्रेम मगन सुतण रोती । कूँ वलन की िराूँ माल परोती ।।6।।
अब चली सत्तनाम पद न्योती6 । सुरत िब्द की क्यारी बोती ।।7।।
धन धन राधास्वामी मेरे सतगुरु । जिन यर मौि कदखाई चढ़ कर ।।8।।
क्या आरत मैं उनकी गाऊूँ । मजरमा अगम अगाध सुनाऊूँ ।।9।।
करत करत मैं कभी न अघाऊूँ7 । उमूँग प्रेम अब करा समाऊूँ ।।10।।
चरन कूँ वल जबन और न आसा । मन भूँवरा वसर करत जबलासा ।।11।।
राधास्वामी राधास्वामी उठी धुन जरये से । सुरत सुराजगन अब जमली जपय
से ।।12।।

1. ताला । 2. िानकर । 3. खेप । 4. गोि, िाजत । 5. खाली ।


6. जिसको नेवता कदया रै । 7. संतष्ट
ु रोऊूँ ।
बचन 35 चढ़ना सुरत व लीला मुक़ामात 299

।। िब्द तेररवाूँ ।।

चेत चली आि सुरत रं गीली । छू ट गई मजत बुजध सब मैली ।।1।।


राथ लगी अनरद धुन थैली । रोय गई जनि घर की चेली ।।2।।
द्वारा फोड़ गगन को पेली । अब सूरत भई अजत अलबेली1 ।।3।।
इड़ा थाल सपगला कर िोती । करी आरती सुखमन सेती ।।4।।
बंकनाल धुन िंख बिाई । जिकु टी घाट ओं धुन पाई ।।5।।
बािे मृदूँग गाि तम्बूरा । सुन सुन धुन अब मन भया सूरा ।।6।।
सूर रोयकर काल पछाड़ी । माया चादर जछन में फाड़ी ।।7।।
फाूँद2 सपड और तोड़ा अंडा । खंड खंड कीन्रा ब्रह्मंड़ा ।।8।।
भर छलाूँग3 पहुंची सचखंडा । पायगई पद अमर अखंडा ।।9।।
अब अनाम पद िाय समानी । आरत की जवजध पूरी िानी ।।10।।
राधास्वामी दया करी अब भारी । मैं अपना पद जलया सम्रारी ।।11।।

।। िब्द चौदरवाूँ ।।

चली सुरत अब गगन गली री । जमली िाय अब जपया से अली री ।।1।।


दली िाय मंसा सब मैली । सुन्न जिखर पर खुल खुल खेली ।।2।।
भई सुरत सतनाम की चेली । गगन फोड़ अब आई सरेली ।।3।।
अब पाया पद ऐसा रेली4 । जखलगई घट में पौद चमेली ।।4।।
पजरर लई गल धुन की सेली5 । चरर् धूर सतगुरु अब ले ली ।।5।।
अगम अटारी चढ़ी अके ली । िरूँ से यर रचना सब फै ली ।।6।।
अब याकी जवजध क्या कहूं खोली । संत जबना को समझे बोली ।।7।।
यर आरत रै परम पुरुष की । धुन पकड़ी मैं अधर अिण6 की ।।8।।
सतगुरु ने अब दया जवचारी । पद अपना दे काल जबडारी7 ।।9।।
िब्द अगम का सौदा कीन्रा । सरन पड़ी सतगुरु पद लीन्रा ।।10।।
दीनदयाल दयाजनजध स्वामी । काकढ़ जलया मोसर अंतरिामी ।।11।।

1. अनोखी । 2. लांघ करके । 3. उछाल । 4. रै आली, सखी । 5. गूलब


ू न्द ।
6. आकाि । 7. दूर ककया ।
300 सार बचन बचन 35

।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।।

गगन नगर चढ़ आरत करहूं । सपड देि अब जछन जछन तिहूं ।।1।।
सुनूूँ गगन में अनरद रागा । बढ़त िाय पल पल अनुरागा ।।2।।
रूप अनूप देख जरये मारीं । करत न बने करा कहूं भाई ।।3।।
मथ मथ िब्द िोत परकािी । सुन सुन धुन भई सुतण अजवनािी ।।4।।
दुन्द1 धुन्ध2 से जनकसी पारा । सत्तनाम का खोला द्वारा ।।5।।
अंस रंस सूँग कीन्र जबलासा । देखा िाय बंस परकािा ।।6।।
सुरत सम्रार सुनी धुन बीना । कौन करे वर अचरि चीन्रा ।।7।।
िोगी थके समाध लगाई । ज्ञानी ररे आतम गजत पाई ।।8।।
यर संतन का भेद अमोला । जबना संत काहू नसर तोला ।।9।।
संतन की गजत अगम अपारा । क्योंकर कहूं वार नसर पारा ।।10।।
संत मौि से िा पर रेरा । कदया अमर पद जमट गया फे रा3 ।।11।।
यर आरत करी उमूँग प्रेम से । पाठ करूूँ और करूूँ नेम से ।।12।।

।। िब्द सोलरवाूँ ।।

आरत गाउूँ स्वामी सुरत चढ़ाऊूँ । गगन मंडल में धूम मचाऊूँ ।।1।।
श्याम4 सुन्दर पद जनरख जनरारूूँ । सेत पदम पर तन मन वारूूँ ।।2।।
जबन्द्राबन5 मथरा6 पद लीन्रा । गोकु ल7 िीत काजलन्द्री8 छीना ।।3।।
सुन्न मरावन जगरवर9 चीन्रा । मरासुन्न िाय अमृत पीना ।।4।।
धीरि थाल प्रेम की िोती । धुन जववेक घट मोती पोती ।।5।।
जवरर राग ति रं ग लगाऊूँ । सुरत जनरत ले िब्द समाऊं ।।6।।
रास मंडल घट लीला ठानी । कालीनाथ10 जनरख नभ िानी ।।7।।
घोर उठा अब गगन कुं ि में । मगन हुई लख तेि पुि ं में ।।8।।
मद और मोर रने और सूद11 े । मोरन मुरली बिी मन बोधे ।।9।।

1. दुई । 2. अन्धेरा । 3. िन्म मरन । 4. सरसदल कूँ वल । 5. देर ।


6. मथकर, रकार पद । 7. इजन्द्रयों का देि । 8. काल की िजि । 9. ऊूँचा
देि । 10. काल को दबा कर । 11. मार कर दूर भगाए ।
बचन 35 चढ़ना सुरत व लीला मुक़ामात 301

गोपी धुन और िब्द ग्वाल जमल । सुरत गूिरी आई चल चल ।।10।।


खेलत कू दत िोर मचावत । दजध अकाि सब मथ मथ लावत ।।
पी पी चहुं कदि रोत पुकारा । सुन सुन राधा मगन जवरारा ।।12।।
स्वामी स्वामी धुन अब िागी । उमूँग जरये में जछन जछन लागी ।।13।।
िगत वासना सब रम त्यागी । मन हुआ मेरा सरि वैरागी ।।14।।
कृ पा करो अस राधास्वामी । करत रहूं तुम चरन नमामी ।।15।।
मन को फे रो दीनदयाला । जछन जछन जनरखूं दरस जविाला ।।16।।
अब तो जलये िात मोसर खींचे । मानत नासर डार मोसर भींचे1 ।।17।।
भजि पौद िो तुमसर लगाई । मेरर दया से सींचो आई ।।18।।
मेरा बस मन से नसर चाले । बहुत लगाये इन िंिाले ।।19।।
पर तुम समरथ पुरुष अपारा । काटोगे रम जनश्चय धारा ।।20।।
अब आरत सब जवजध हुइ पूरी । राधास्वामी रहूं रज़ूरी2 ।।21।।
।। िब्द सिरवाूँ ।।
जररदे में गुल3 पौद जखलानी । मैं बुलबुल सम भई मस्तानी ।।1।।
प्रेम प्रीत का लगा बग़ीचा । मन माली ताजर दम दम सींचा ।।2।।
अमर बेल फै ली चहुंकदस में । भीि ररी वर अमृत रस में ।।3।।
बािे अनरद बिे गगन में । सुध भूली तन उसी लगन में ।।4।।
दृजष्ट खुली और झाूँकी पाई । सूरत मूरत अगम कदखाई ।।5।।
माजर्क मोती िब्द नाद के । नीलम पन्ना धुन अगाध के ।।6।।
रतन िजड़त सुन्न चौकी पाई । देखत छजब मन गया भुलाई ।।7।।
मानसरोवर रंस जबलासा । के ल करें जमल अिब तमािा ।।8।।
रंस रंजसनी नाचें गावें । तूर तूँबरू ा अजधक बिावें ।।9।।
अस वेदी रच लीला ठानी । सुरत िब्द जमल बोले बानी ।।10।।
दुलरा दुलजरन दोऊ जबठाये । भाूँवर फे रे दोउ गरठयाये ।।11।।
व्यार भया और जनि घर आये । सत्तपुरुष का दिणन पाये ।।12।।

1. दबा जलये । 2. सन्मुख । 3. फू ल ।


302 सार बचन बचन 35

अिर चौतरा अमर अटारी । सेि अिूनी1 लीन्र ससगारी ।।13।।


अटल सुराग सुरत अब लीन्रा । पजत जमलाप अनरद धुन बीना ।।14।।
राधास्वामी लगन धराई । तब रम ऐसा दुलरा पाई ।।15।।
अिब तमािा नरीं जतरासा2 । मौि चौि3 िराूँ अजधक कदलसा ।।16।।

।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।।

सुरत चढ़ी घट में अब दौड़ी । सुन कर िब्द भई अब पौढ़ी ।।1।।


आसा मनसा िग की छोड़ी । लाि कान कु ल की सब तोड़ी ।।2।।
सतसंग रं ग पाया भई बौरी । सेत द्वार में जनि कर िोड़ी ।।3।।
श्याम नगर गइ परदा फोड़ी । गगन खंड कफर सूरत मोड़ी ।।4।।
गगन नगर पहुंची सुन्दर4 में । जखला चमन अब जरये अन्दर में ।।5।।
सरन5 जमला चौड़ा अब सुन में । मगन हुई पहुंची जनि धुन में ।।6।।
रस पाया अब अगम अधर में । पाया चैन आय गइ घर में ।।7।।
घट घट भीतर यरी जबलासा । देख देख मैं पाऊूँ हुलासा ।।8।।
िीव अचेत न चेते भाई । घर सुख ति बन बन भटकाई ।।9।।
िाके घर सुख का भंडारा । क्यों भरमे कफरे दर दर6 मारा ।।10।।
राधास्वामी करत सुनाई । कर सतसंग बूझ तब पाई ।।11।।

।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।

घट झूम ररी अब सुरत रं गीली । पट घूम गई सुन िब्द छबीली7 ।।1।।


उलट नैन जतल डाला पेली । िोत िगमगी झलके रेली ।।2।।
सुन सुन धुन जनरते8 अलबेली । गगन मूँडल चढ़ जिकु टी ले ली ।।3।।
धोय धोय जनमणल हुई मैली । छोड़ गई गुन तीन की फ़े ली9 ।।4।।
सुन्न सरोवर गई अके ली । जसमट गई धुन में नसर फै ली ।।5।।
मरासुन्न चढ़ अद्भुत खेली । सत्तनाम धुन जछन में ले ली ।।6।।
िब्द पेड़ पर चढ़ी सुतण बेली10 । नाम अगम गल डाली सेली11 ।।7।।

1. िूनो से रजरत । 2. डर, तकलीफ़ । 3. जबलास । 4. सुन्न का द्वार । 5. चौक ।


6. दरवाज़ा । 7. सुन्दर । 8. नाचे । 9. करतूत । 10. लता, बेल । 11. गुलब
ू न्द ।
।। व्याशया िब्द सोलरवाूँ ।।

कड़ी 1—आरती राधास्वमी दयाल की गाऊूँ और सुरत को गगन


मंडल में चढ़ा कर धूम मचाऊूँ यानी जबलास करूूँ ।
" 2—और चढ़ाई के वक़्त श्यामसुन्दर पद यानी श्याम पद िो
अजत सुन्दर रै, और वरी सुन्न यानी चैतन्य मंडल का द्वारा
रै, देखती चलूूँ और सेत पदम यानी सत्तलोक में पहुूँच
कर सत्तपुरुष पर तन मन वारूूँ यानी इन दोनों से न्यारी
रोकर पहुूँचूूँ ।
" 3---जबन्द्राबन, यानी देर को िो जबन्द से बनी रै, मथ कर
रकार पद यानी सुन्न में पहुूँची और गोकु ल यानी इजन्द्रयों
के देि से न्यारी हुई, और काल की िजि छीन हुई यानी
िाती ररी ।
" 4---सुन्न मंडल की िो मराबन रै, और वरी ऊूँच देि यानी
पराड़ रै, परचान करो, और वराूँ से आगे मरासुन्न में
पहुूँच कर अमृत पान ककया ।
" 5---धीरि का थाल लेकर यानी जचत्त में धीरि कर और प्रेम
की िोत िगा कर यानी प्रेम तेज़ करके मोती रूप धुनों
को घट में छांट कर पोती हुई यानी सुनती चली ।
" 6---संसारी भोगों की जवरर छोड़ कर प्रेम बढ़ाऊूँ और सुरत
और जनरत को िगा कर और संग लेकर िब्द में लगूूँ ।
" 7---यानी घट में रास मंडल की लीला करके और काल अंग
को नीचे डाल कर सुरत रास्ते की सैर करती हुई आकाि
में पहुूँची ।
" 8---आकाि में चढ़ कर आवाज़ गगन मंडल की सुनाई दी और
वराूँ पहुूँच कर जिकु टी में िो स्वरूप रै, उसका दिणन करके
खुि हुई ।
" 9---और मद और मोर दूर हुए और जनरायत रसीली बांसरु ी
की आवाज़ सुन कर मन को नया बोध हुआ ।
कड़ी 10---िब्द की धुनें और िब्द सुनती हुई िो कक गोपी और
ग्वाल रै, सुरत गूिरी यानी इजन्द्रयों को िलाने वाली
ऊपर को चढ़ती चली िाती रै ।
" 11---गोपी और ग्वाल यानी मन इजन्द्रय वग़ैरा जबलास और
िोर करते हुए और आकाि में से दजध यानी चैतन्य को
समेटते और छांटते हुए मगन रो ररे रैं ।
" 12---और सब चारों तरफ से अपने प्रीतम िब्द गुरु को
पुकारते रै और राधा यानी सुरत चलने वाली इस
जबलास को देख कर मगन रोती रै ।
" 13---कफर स्वामी नाम की धुन सुनती हुई नवीन उमंग जररदे
में बढ़ाती िाती रै ।
" 14---यर कै कफ़यत देख कर िगत की चार और बासना
जबलकु ल छोड़ दी और मन सरि में बैरागी यानी
उदासीन रो गया ।
" 15---रे राधास्वामी दयाल ऐसी री कृ पा मेरे ऊपर िारी
रक्खो, और मैं तुम्रारी बंदना करती रहूूँ ।
" 16---और मेरे मन को इस तौर से फे र दीजिये कक जछन-2
आप का दिणन करती रहूूँ ।
" 17---इस वि तो वर मुझ को अपनी तरफ़ं खींचे जलये िाता
रै और करना नरीं मानता और मुझ को तंग कर ररा रै ।
" 18---भजि की पौद िो आपने लगाई रै उस को आप री अपनी
मेरर और दया से सींचो यानी बढ़ाओ और तरक़्की दो ।
" 19---क्योंकक मेरा मन मेरे क़ाबू में नरीं रै और बहुत संसारी
िाल इसने फै ला रक्खा रै ।
" 20---लेककन आप सत्तपुरुष राधास्वामी दयाल समथण रो और
मुझको यक़ीन रै कक आप दया करके इस िंिाल को
काटोगे ।
" 21---अब यर आरती सम्पूर्ण हुई और मेरी अज़ण और मांग यरी
रै कक राधास्वामी दयाल के सदा सन्मुख रहूूँ ।
बचन 35 चढ़ना सुरत व लीला मुक़ामात 303

।। िब्द बीसवाूँ ।।
सुरत मेरी हुई िब्द रस माती । गुरु मजरमा अब जछन जछन गाती ।।1।।
अन्य गुरु जिन भेद लखाया । धुन अन्तर मन राती1 ।।2।।
राग राजगनी बारर बािे । यर सब तुच्छ बुझाती ।।3।।
जनरत सखी को अगुआ करके । पल पल िब्द समाती ।।4।।
िब्द फोड़ सुन िब्द को िाती । माया ममता कू टत छाती ।।5।।
धुन धुन जसर अब काल पुकारे । यर सूरत मेरे राथ न आती ।।6।।
पहुंची िाय सत्त दरबारा । अगम पुरुष का दिणन पाती ।।7।।
रंसन साथ आरती गावे । अमी अरार सदा जनत खाती ।।8।।
और नरीं कु छ करने िोगी । राधास्वामी के बल बल िाती ।।9।।
।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।
सुरत अब िाना जनि घर अपना । िब्द खोि रम पाया अपना ।।1।।
िगत अब भासा2 रमको सुपना । छू ट गया सब भरम कल्पना3 ।।2।।
करा करे ले िप और तपना । या में काल करे िग ठगना ।।3।।
संत भेद पर डाला ढकना । िीवन पाया बहुत भटकना ।।4।।
अब यामें कोइ कभी न अटकना । िैसे बने तैसे मन को झटकना ।।5।।
सुरत िब्द ले गगन सटकना4 । वराूँ िाय कर बहुत मटकना5 ।।6।।
कमण धमण से दूर फटकना6 । सतगुरु चरनन मासर जलपटना ।।7।।
।। िब्द बाईसवाूँ ।।
गाओ री सखी िुड़ मंगल बानी । आि जपया मेरे दीन्र जनिानी ।।1।।
घट में घाट द्वार मैं चीन्रा । प्रेम पदारथ जछन जछन लीन्रा ।।2।।
मन चढ़ चला छोड़ तन थाना । गगन मरल पर उमूँग समाना ।।3।।
तरां से सुरत चली रोय न्यारी । सुन्न नगर का िब्द पजरचाना ।।4।।
क्या कहूं मजरमा बरनी न िाई । काल कमण दोउ हुए कदवाना ।।5।।

1. लवलीन रो गया । 2. मालूम पड़ा । 3. खयाल । 4. िाना । 5. खुिी


का इज़रार (प्रकट) करना । 6. अलग रो िाना ।
304 सार बचन बचन 35

मैं जपया की अपने सुध पाई । घाट घाट पर िोत िगाई ।।6।।
भागा जतजमर हुआ उजियारा । चौक चाूँदनी द्वार जनरारा ।।7।।
िोभा मरल कराूँ लग बरनूूँ । ककगरे ककगरे सूर रज़ाराूँ ।।8।।
आगे बाट चली नसर मेरी । राधास्वामी करो जनबेड़ा1 ।।9।।

।। िब्द तेईसवाूँ ।।

प्रेम भरी मेरी घट की गगररया । छू ट गई मोसे मजलन नगररया ।।1।।


नौ दूतन मोसे धूम मचाई । दसवें ने मोसर खैंच चढ़ाई ।।2।।
रंस मंडली फ़ौि लड़ाई । काल दुष्ट अब पीठ कदखाई ।।3।।
माया आई मोजर लुभावन । कजनक काजमनी बान छु ड़ावन ।।4।।
मैं भी उमूँग नवीन सम्रारी । मार जलया दल उसका भारी ।।5।।
भागी माया छोड़ा देि । मैं सतगुरु को करूूँ आदेि2 ।।6।।
सतगुरु पकड़ी अब मोरी बजरयां । खैच चढ़ाया गगन मूँझइयां ।।7।।
धुन सुनकर अब भई जनराल । सतपुरुष मेरे दीन दयाल ।।8।।
दया करी मोसर अंग लगाई । चरन ओट गर सरन समाई ।।9।।
कोरट िन्म की खबर िनाई । िन्म मरन अब दूर नसाई ।।10।।
प्रेम प्रीत का जमला खज़ाना । िीत रीत गुरु िब्द जपछाना ।।11।।
िब्द पाय सत िब्द पुकारी । चली सुरत और जनि धुन धारी ।।12।।
राधास्वामी अन्तरिामी । गजत उनकी कस करूूँ बखानी ।।13।।

।। िब्द चौबीसवाूँ ।।

िब्द धुन सुनी असमानी । सुरत मेरी हुई रैरानी ।।1।।


जवरंग की चाल चलानी । मीन मत मारग िानी ।।2।।
मकर के तार समानी । लक़ा ज्यों उलट कदखानी ।।3।।
गगन ज्यों धरन जपछानी । नाम फु लवार जखलानी ।।4।।
िोत में िोत जमलानी । िोत िोती संग आनी ।।5।।

1. जनपटारा । 2. प्रर्ाम ।
बचन 35 चढ़ना सुरत व लीला मुकामात 305

सुरत मेरी हुई जनमानी1 । िब्द की लखी जनिानी ।।6।।


नाम की हुई कदवानी । भेद अब करूूँ बखानी ।।7।।
सुन्न की धुन दरसानी । मानसर ककये अश्नानी ।।8।।
सुरत अब अजत ररखानी । गुप्त पद बात जछपानी ।।9।।
खोल कस कहूं करानी । अकर की सैन2 प्रमानी ।।10।।
राधास्वामी अगम रठकानी । चलो अब रोय न रानी ।।11।।

।। िब्द पच्चीसवाूँ ।।

अली री मथूूँ जनि सपडा । राधास्वामी दीन्रा भेद अखंडा ।।1।।


प्रेम का धारूं झंडा । गगन में फोडू ूँ अंडा ।।2।।
द्वार दल नाका खंडा । चढ़ी और जलया ब्रह्मंडा ।।3।।
िगी वराूँ िोत प्रचंडा3 । काल जसर मारा डंडा ।।4।।
बंकनल द्वार समानी । िब्द गुरु गरी जनिानी ।।5।।
सुन्न धुन लीन्र सम्रारी । रंस संग कीन्री यारी ।।6।।
सुरत की लागी तारी । िब्द घट हुइ उजियारी ।।7।।
मरासुन जतजमर कदखाना । पार हुई भूँवर समाना ।।8।।
सत्त पद अपना िाना । अलख गजत अगम पजरचाना ।।9।।
राधा यर करत बखानी । स्वामी जनि कीन्र प्रमानी ।।10।।

।। िब्द छब्बीसवाूँ ।।

सुरत आि मगन भई । उन पाया िब्द का भेद ।।1।।


धमणराय अब जसर धुन मारे । जमटा कमण का खेद ।।2।।
िन्म मरन की िास नसाई । अरंमव े 4 मम डाला छेद ।।3।।
अजवनािी पद अगम जनरारा । अमर पदारथ जमला अभेद ।।4।।
अब की बार दाव रम पाया । लाल भई पद पाया सेत ।।5।।
नदण5 बचाई िुग गुरु बाूँधा । सत्तपुरुष पद धरी उमेद ।।6।।

1. दीन । 2. इिारा । 3. तेज़ । 4. अरंकार । 5. गोट ।


306 सार बचन बचन 35

चढ़ी सुरत और सपड जछपाना । गरी िब्द की टेक ।।7।।


खुला देि भंडार भजि का । सतगुरु दाता जछन जछन देत ।।8।।
मैं अजत दीन दुखी िन्मन की । भूल गई दुख सब सुख लेत ।।9।।
धन्य धन्य अब भाग रमारा । जनभ गइ अब के मेरी खेप ।।10।।
गुरु ककरपा और साध की संगत । सोया मनुवाूँ िागा चेत ।।11।।
मूल जमला और भूल जमटाई । पाया बीि वृक्ष नापैद1 ।।12।।
राधास्वामी खेल कदखाया । रैरत रैरत रैरत रेत ।।13।।
अब क्या कहूं करन में नारीं । अचरि भारी अद्भुत नेत ।।14।।

।। िब्द सत्ताईसवाूँ ।।

सुखमन िाय मन हुलसाना । सतगुरु संग कीन्र पयाना2 ।।1।।


चाूँद सूयण दोउ सम कर राखे । तब सतगुरु यों कर कर भाखे ।।2।।
अब सुन धुन रोत नफ़ीरी3 । तेरी सुरत करूूँ मैं झूँझीरी ।।3।।
तब सुन धुन अजत ररखानी । मजरमा नसर िात बखानी ।।4।।
मैं आरत कीन्रा सािा । सतगुरु घट मासर जबरािा ।।5।।
थाल सोसील4 धराया । सोमत5 की िोत िगाया ।।6।।
तन भीतर आरत फे री । मन लीन्रा चहुंकदि घेरी ।।7।।
अंबर6 का चीर पजरराया । सतगुरु अचरि रूप कदखाया ।।8।।
दिणन कर जतरपत आई । मन इन्द्री तराूँ िमाई ।।9।।
अब िन्म सुफल कर लीन्रा । आरत फल ऐसा चीन्रा ।।10।।
घट बािे अनरद तूरा । पट खोला जनरख ज़हूरा ।।11।।
अंतर हुई अिब सफ़ाई । गगन पर बिी बधाई ।।12।।
सुन्न और मरासुन देखा । धुर अगम लोक तक पेखा ।।13।।
जनि भेद अधर रस पाई । अस आरत राधास्वामी गाई ।।14।।

1. गुप्त, अप्राप्य िो पैदा न हुआ रो । 2. यािा । 3. िरनाई, बड़ी बाूँसूरी ।


4. िान्त स्वभाव । 5. सुमत । 6. आकाि यानी नूर ।
बचन 35 चढ़ना सुरत व लीला मुक़ामात 307

।। िब्द अट्ठाईसवाूँ ।।
मुरजलया बाि ररी । कोइ सुने संत धर ध्यान ।।1।।
सो मुरली गुरु मोसर सुनाई । लगे प्रेम के बान ।।2।।
सपडा छोड़ अंड ति भागी । सुनी अधर में अपूबण तान ।।3।।
पाया िब्द जमली रंसन से । खैंच चढ़ाई सुरत कमान ।।4।।
यर बंसी सतनाम बंस की । ककया अिर घर अमृत पान ।।5।।
भूँवरगुफा कढग सोरं बंसी । रीझ ररी मैं सुन सुन कान ।।6।।
इस मुरली का ममण पजरचानो । जमली िब्द की खान ।।7।।
गई सुरत खोला वर द्वारा । पहुंची जनि अस्थान ।।8।।
सत्तपुरुष धुन बीन सुनाई । अद्भुत जिनकी िान ।।9।।
जिन जिन सुनी आन यर बंसी । दूर ककया सब मन का मान ।।10।।
सुरत सम्रारत जनरत जनरारत । पाय गई अब नाम जनिान ।।11।।
अलख अगम और राधास्वामी । खेल ररी अब उस मैदान ।।12।।
।। िब्द उनतीसवाूँ ।।
बोल री राधा प्यारी बंसी । क्यों तरसावत िान ।।1।।
तड़प ररी मैं कारन तोरे । सतगुरु ममण लखाया आन ।।2।।
जबरर बान की वषाण कीन्री । खैंच जलये मन प्रान ।।3।।
हुई दीवानी जमली जनिानी । जलया ममण सब छान ।।4।।
खान पान तन सुध जबसराई । सुरत समानी तान ।।5।।
सुन सुन धुन अब सूर भई रै । मारा काल जनदान ।।6।।
राधास्वामी देस कदखाना । कौन िुगत से करूूँ बखान ।।7।।
।। िब्द तीसवाूँ ।।
गुरु नाम रसायन1 दीन्रा । दाररद्र2 हुआ सब छीना ।।1।।
सुख रास3 जमली घट अंतर । धुन िब्द गरी गगनन्तर ।।2।।

1. कीजमया । 2. जनधणनता । 3. भंडार ।


308 सार बचन बचन 35

सुखसागर ग़ोता मारा । भौसागर त्यागा भारा ।।3।।


धुन नाम जमले िराूँ मोती । सूरत अब लजड़यां पोती ।।4।।
श्रृग
ं ार ककया सुतण अपना । पजत जमला छोड़ िग सुपना ।।5।।
अनरद धुन अिपा िपना । सुन सुन इस तन से रटना ।।6।।
कामाकदक मन से तिना । गुरु िब्द मासर जनत लगना ।।7।।
नभ द्वारा लागा फटने । लगी नींद भूख अब घटने ।।8।।
अमृत रस जमला अधर में । पहुंची अब सुन्न जिखर में ।।9।।
लीला अब देखी न्यारी । वर्णन सब करूूँ सम्रारी ।।10।।
रतनन के भरे खज़ाने । अमृत के कुं ड कदखाने ।।11।।
रीरों की खान खुलानी । लालन की देख जनिानी ।।12।।
सूरत और चाूँद अनंता । तारों का मंडल बंधता ।।13।।
रं भा1 िराूँ गावे बानी । रंसन गजत अिब करानी ।।14।।
सुतण देख देख ररषानी । मजरमा क्या करूूँ बखानी ।।15।।
यर भेद सार बतलाया । राधास्वामी सब कदखलाया ।।16।।
।। िब्द इकतीसवाूँ ।।
मौि इक धारी सतगुरु आि । कहूं क्या करते आवे लाि ।।1।।
गगन में देखा अिब समाि । सुरत ने पाया अद्भुत साि ।।2।।
ससर ने मारा गउवन गाि । जमरग2 इक आया नभ में भाि ।।3।।
अमी रस चाखा छोड़ा नाि । सुरत गइ जिकु टी पाया राि ।।4।।
प्रेम का दुलजरन पाया दाि3 । सुन्न में दुलरा जमला अगाि ।।5।।
सुरत ने कीन्रा अपना काि । िब्द संग कीन्रा आन समाि ।।6।।
गुरु ने दीन्री इक आवाज़ । प्रेम की पाई बड़ी ररवाि ।।7।।
राधास्वामी सरन गरी मैं भाि । काि सब रो गया पूरा आि ।।8।।
।। िब्द बत्तीसवाूँ ।।
घूूँघट खोल चली सुतण दुलजरन । दुलरा िब्द जमला अब चढ़ सुन ।।1।।

1. अपसरा । 2. जररन । 3. दरेज़ ।


बचन 35 चढ़ना सुरत व लीला मुक़ामात 309

करत जबलास एक हुए जछन जछन । देख रूप अब रोत मगन मन ।।2।।
लीला अद्भुत रोत न वर्णन । अिब अखाड़ा रचा सेत धुन ।।3।।
काल पछाड़ा कीन्रा मरदन । माया ममता भागी जसर धुन ।।4।।
चली सुरत और पहुंची मरासुन । सेि जबछाई िा चौथे खन1 ।।5।।
सत्तपुरुष मुख सुनी बीन धुन । अलख अगम को कीन्रा परसन ।।6।।
वरां से चली देख कु छ अगमन । राधास्वामी रूप जनरारत कदरगन ।।7।।
देख देख फू ली अब जनि तन । कौन करे वर गजत राधास्वामी जबन ।।

।। िब्द तेंतीसवाूँ ।।

सुरत अब चली ऐन2 में पैन3 । लखा िाय अचरि रूप अनैन4 ।।1।।
त्याग गुन तीनों और दस धैन5 । अधर में पहुंची पाया चैन ।।2।।
कहूं क्या घट की परखी सैन । चुका अब काल करम का दैन6 ।।3।।
खुले अब सुन में जररदे नैन । समझ तब आये वराूँ के बैन ।।4।।
सुरत अब लागी वराूँ रस लेन । िब्द की परखी अद्भुत करन ।।5।।
चाूँद और सूरि गरे दोउ गरन । सुखमना लागी सूरत ररन ।।6।।
राधास्वामी सूरत कीन्री परन7 । दई मोजर पदवी अब अजत मरन8 ।।

।। िब्द चौंतीसवाूँ ।।

चमकन अब लागी घट में जबिली । यर घाट लखे कोइ सूरत जबरली ।।


सतगुरु ने दृजष्ट करी, मुझ पर अब सगली9 ।
जतल तोड़ जलया, नभ पार चढ़ी, िराूँ छाय ररी, जनत बदली ।।1।।
दृग झाूँक ररी, सुतण सूर भई, छेदा दल कदली ।
तन छोड़ चली, िड़ गाूँठ खुली । अब पाय गई, अपना गुरु अदली10 ।।2।।
धुन सार जमली, सुन पार चली, पाया पद अमली11 ।
खोला सुन द्वारा, झाूँका घर न्यारा । डार लई चौंकी अब सूँदली12 ।।3।।

1. खण्ड । 2. आंख । 3. तेज़ । 4. अगोचर । 5. इजन्द्रय । 6. क़रज़ा ।


7. चौड़ी । 8. बड़ी । 9. सब । 10. न्यायकार, मुजन्सफ़ । 11. जनमणल ।
12. चंदन की ।
310 सार बचन बचन 35

बैठी घर िानी, धुन मासर समानी । देख रंसन मंडली ।


जपया अमृत प्याला, घट हुआ उिाला, छाूँट दई माया सब गदली ।।4।।
पद आकद जमली, धुन साथ रली, बुजध दूर हुई कमली1 ।
मरासुन्न जमली, लख भूँवर गली, अब रोय गई सत पद अचली ।।5।।
लख अलख सरी, घर अगम ररी । कु ल काल दली, कफर चाल चली,
पा कूँ वल कली । राधास्वामी चरन पर िा मचली ।।6।।

।। िब्द पैंतीसवाूँ ।।

चढ़ोरी घट देखो मौि भली । अमीरस पाओ आि अली ।।1।।


नाम धुन अंतर खूब खुली । खोइ िमा मानो फे र जमली ।।2।।
चढ़ गगन जिखर बंक नली । जिकु टी में बैठी िब्द जपली ।।3।।
कफर वराूँ से पहुंची सुन्न गली । सुन में िा रंसन साथ रली ।।4।।
सब आजध2 जबयाजध3 उपाजध4 टली । कमणन की रसरी अजगन िली ।।5।।
मराकाल िाल भी िार चली । सोरं धुन पकड़ी मूर5 जमली ।।6।।
सतनाम लखा दुख दूर टली । अलख अगम धुन जचत्त खली6 ।।7।।
राधास्वामी चरन में आन जरली । मजरमा उन पाई सुरत घुली ।।8।।

।। िब्द छत्तीसवाूँ ।।

दजमजनयाूँ दमक ररी घट मासर । धुजबजनयाूँ7 धोय ररी मल नासर ।।1।।


रं जगजनयाूँ रं ग दई चटकासर । कूँ वल की जखल गई कजलयाूँ आसर ।।2।।
सुरजतया झूम ररी मुसक्यासर । तपजनयाूँ दूर भई जमली छासर ।।3।।
गगजनयाूँ फोड़ गई धुन पासर । जनरजतयाूँ छान लई छककयासर ।।4।।
ठगजनयाूँ नाि भई बल नासर । मगजनयाूँ मगन भई सुन मासर ।।5।।
सरजनयाूँ सरन पई गुरु पाूँय । धुनन की धुजनयाूँ धुन धुन लाय ।।6।।
गजवनयाूँ गान सुनावन िांय । करजनयाूँ राधास्वामी नाम सुनाय ।।7।।

1. पगली, (पंिाबी ज़बान) । 2. मन का दुख । 3. तन का दुख । 4. बारर का


दुख यानी लड़ाई, झगड़ा, सरदी गरमी बग़ैरा । 5. िड़ । 6. चुभी । 7. सुरत ।
बचन 36 चढ़ना सुरत व लीला मुक़ामात 311

।। िब्द सैंतीसवाूँ ।।
जखज़ां ति देखो मूल बरार । घूम चल देखो जतल का द्वार ।।1।।
जखला िरूँ अिब सदा गुलज़ार1 । पाूँच रं ग देखे पाूँचों सार ।।2।।
चमन िरूँ नूरी जखले अपार । नूर की क्यारी जनमणल धार ।।3।।
उतरता अमी लखा रर बार । फू ल ररी अद्भुत िरूँ गुलनार ।।4।।
सुरंगी2 सरवर भरे अपार । सुरत और िब्द करें िरं प्यार ।।5।।
मरल िरूँ देखे खुले दुवार । नीलगूूँ ककगुरे लगे क़तार ।।6।।
सैर यर देखी तन मन वार । गुरु ने मौि कदखाई सार ।।7।।
मेरर से दूर हुए सब खार3 । तिा कफर मन ने जनि अरंकार ।।8।।
गुरु जमल पहुंची गुरु दरबार । पड़ी अब राधास्वामी चरन मंझार ।।
।। िब्द अड़तीसवाूँ ।।
सुतण पजनरारी सतगुरु प्यारी । चली गगन के कू प ।।1।।
प्रेम डोर ले पनघट आई । भरी गगररया खूब ।।2।।
िब्द पजरचान अमीरस पागी । देखा अद्भुत रूप ।।3।।
नगर अिायब जमला डगर में । िराूँ छाूँर नसर धूप ।।4।।
पहूंची िाय अगमपुर नामी । दिण ककया राधास्वामी भूप ।।5।।

।। बचन छत्तीसवाूँ ।।
प्राजप्त िब्द और मुक़ामात की और वर्णन
आनंद और जबलास और मजरमा सतगुरु की
।। िब्द परला ।।
उमूँड ररी घट में घटा अपार ।। टेक ।।
चमक बीिली प्यार बढ़ावत । और घंटा झनकार ।।1।।
िोजभत अधर घाट सुतण प्यारी । िब्द खुला भंडार ।।2।।
देख ररी िरूँ कूँ वल ककयारी । फू ल ररी फु लवार ।।3।।

1. चमन । 2. खुि रं ग । 3. काूँटे ।


312 सार बचन बचन 36

यर अन्तरगत खेल न देखे । भटके बारम्बार ।।4।।


कौन करे जबन राधास्वामी । यर संतन मत सार ।।5।।

।। िब्द दूसरा ।।

गोरी1 जखलीं श्याम दल कजलयां । मन भूँवर करत िरां रजलयां ।।1।।


माया िरां अजधक लगावत छजलयां । जसद्ध िोगी बहुत जनगजलयां ।।2।।
मेरी गुरु जमल बात सम्रजलयां । नाम बल सकल उपाजध टजलयां ।।3।।
काल िरां डारत सब को दजलयां । मैं वरीं िब्द संग जमजलयां ।।4।।
मैं चली गगन की गजलयां । घट खोली अंतर नजलयां ।।5।।
कफर िब्द गुरु मैं जपजलयां । पहुंची सुन्न सेत कूँ वजलयां ।।6।।
धुन सुनी अजधक जनर्शमजलयां । गरे राधास्वामी चरन अमजलयां2 ।।7।।

।। िब्द तीसरा ।।

िब्द सूँग लगी सुरत की डोर । सुराजगन करे आरती िोड़ ।।1।।
भौसागर में तुलरा3 बांधा । िम के िाल जलये सब तोड़ ।।2।।
प्रेम प्रीत घट थाली धारी । िोत िगाई मन को मोड़ ।।3।।
सुरत लगाई िब्द समाई । जनत जनत धुन में रोती पोढ़4 ।।4।।
गगन द्वार धस ताला खोला । अनरद िब्द मचावत िोर ।।5।।
करम भरम सब दूर जनकारे । सतगुरु घट में कीन्रा दौर5 ।।6।।
िन्म िन्म का सोया मनुवां । िाग उठा सुन अनरद घोर ।।7।।
सपिर छोड़ उड़ा पंखेरू । चला गगन की ओर ।।8।।
जिकु टी िाय िब्द फल पाया । छू टा मोर और तोर ।।9।।
सुन्न जिखर िा रै न जबरानी । उदय हुआ घट भोर ।।10।।
सुन्न मरासुन भूँवरगुफा पर । सुरत चढ़ी सब नाके तोड़ ।।11।।
सत्त अलख और अगम रठकाना । राधास्वामी धाम जमला जचत चोर ।।

1. सखी । 2. जनमणल । 3. तैरने को मल्लार लोग फू स का बनाते रै ।


4. मज़बूत । 5. दौरा ।
बचन 36 प्राजप्त िब्द व मुक़ामात 313

।। िब्द चौथा ।।
गुरु चरन धूर रम हुइयां । तुम सुनो रमारी गुइयां ।।1।।
क्या क्या सुख कहूं गुसइयां । जबन भाग नरीं कोइ पइयां ।।2।।
अब ध्यान कमान सखचइयां । सुतण बान चलावत गइयां ।।3।।
नभ िब्द जनिान धरइयां । फोड़ा और आगे चलइयां ।।4।।
सत िब्द जमलाप करइयां । राधास्वामी धाम समइयां ।।5।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
सतगुरु मैं पूरे पाये । मन घाट जलया बदलाये ।।1।।
सूरत ने िब्द िगाये । घट मोती चुन चुन खाये ।।2।।
रंसन के िूथ कदखाये । जमल उन संग प्रेम लगाये ।।3।।
घाटी चढ़ बाटी धाये । कफर सुन्न जिखर चढ़ आये ।।4।।
सतलोक सुरत को लाये । कफर िोनी बास न आये ।।5।।
सत रूप अिब दरसाये । कोरटन रजव1 चंद्र लिाये ।।6।।
रंसन छजब क्या कहूं गाये । षोड़स2 िजि3 भान4 कदखाये ।।7।।
राधास्वामी करत बुझाये । सुन सेवक अजत ररषाये ।।8।।
।। िब्द छठवां ।।
सुरत अब घूम चली तन छोड़ जनदान ।
चरन गुरु आन अड़ी गजर नाम रठकान ।।1।।
धुन बािे अनरद परख जनिान । सतगुरु दई कुं िी कु फ़ल5 खुलान ।।2।।
सुन्न सागर झाूँकी कर अश्नान । िब्द घट िागा सुरत समान6 ।।3।।
पोढ़ भइ नभ में कूँ वल जखलान । िोत लख पाई जतल परमान ।।4।।
काल की कला थकी अब िान । लखी गुरु मूरत िब्द जपछान ।।5।।
तीन गुन टारे छोड़ा थान7 । लखी मैं राधास्वामी अचरि िान ।।6।।
ररी नरीं अब कु छ िग की कान । गरी अब राधास्वामी पूरन आन8 ।।7।।

1. सूरि । 2. सोलर । 3. चन्द्रमा । 4. सूरि । 5. ताला । 6. समाई ।


7. ठरराव की िगर । 8. हुक्म ।
314 सार बचन बचन 36

।। िब्द सातवाूँ ।।
मन सोधो घट में िब्द संग । ति काम क्रोध और मोर रं ग ।।1।।
अब औसर पाया अिब ढंग । जमली देरी उत्तम गुरु संग ।।2।।
जनत बचन सुनूूँ मैं जवरंग अंग1 । अब रोत सफ़ाई जमटत ज़ंग2 ।।3।।
क्या उपमा बरनूूँ साध संग । जनमणलता पाई अंग अंग ।।4।।
तन दूत हूए सब आप तंग । घट भीतर लागी रोने िंग3 ।।5।।
गुरु प्रेम समाना जमट तरं ग । गुन जबतण रटाई जचत अपंग4 ।।6।।
सेत जमला रट श्याम रं ग । धुन िब्द सुनाई भरम भंग ।।7।।
कफर जनरत िगाई उड़ जबरंग । राधास्वामी पाये काल दंग ।।8।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
मौि करूूँ अब घट में बैठ । देवर5 मारा मारा िेठ6 ।।1।।
खोली राट अधर की पैंठ । धुन को सुना गई वराूँ पैठ7 ।।2।।
चाूँद सुरि दोउ देखे रेठ8 । सीस ककया सतगुरु की भेट ।।3।।
लोभ मोर सब डारे मेट । पाप पुण्य सब सोये लेट ।।4।।
इन्द्री भोग गये सब ऐंठ । राधास्वामी जमल गये भारी सेठ ।।5।।
।। िब्द नवाूँ ।।
मेरे घट का कदया गुरु ताला खोल । मैं सुनत रहूं जनत बाला बोल ।।1।।
क्या कहूं सुरत िब्द की तोल । पहुंची िाय नाम के कोल9 ।।2।।
अजधक हुलास जमला िरूँ चोल । माया की सब जनकसी पोल ।।3।।
का से कहूं यर भेद अमोल । जबन गुरु कोई न करता खोल ।।4।।
िीव जवचारे डावांडोल । जबन गुरु भरे न मन का डोल ।।5।।
मैं जवरजरन मेरे जररदे रौल10 । काल चढ़ाई मुझ पर रौल11 ।।6।।
मैं पकड़ी अब धुन की रोल । मार कदया सब माया ग़ोल12 ।।7।।
िो गुरु भाखें मुझ से क़ौल13 । मन मूरख जसर मारी धौल ।।8।।

1. ऊूँचे चढ़ कर । 2. काई । 3. युद्ध । 4. जनश्चल । 5. सपडी मन ।


6. जनि मन । 7. ठरर गई । 8. नीचे । 9. पास । 10. डर, धड़का ।
11. रौला, रल्ला । 12. समूर । 13. बचन ।
बचन 36 प्राजप्त िब्द व मुक़ामात 315

कौन करे उस धुन का मोल । उसके आगे सभी कु बोल ।।9।।


बिे सुरावन घट में ढोल । सुन सुन बोझ जगरा हुइ रौल1 ।।10।।
पाई यर धुन करी टटोल । परर जलया अब प्रेम पटोल2 ।।11।।
अब जनत झूलूूँ गगन सरडोल । राधास्वामी अमी जपलाया झकझोल ।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
इन्द्री उलट लाओ अब तन में । मन को खैंच चढ़ाओ गगन में ।।1।।
सुरत लगाओ िा उस धुन में । सरसकूँ वल चढ़ देखो सुन्न में ।।2।।
िोत िगाय देख तू घन में । बंकनाल चढ़ पहुंच जनगुन ण में ।।3।।
अक्षर लखो िाय दरपन में । मरासुन्न चढ़ ररो अमन3 में ।।4।।
भूँवरगुफा धुन पड़ी श्रवन में । देख रूप सतपुरुष अपन में ।।5।।
धुन सुन पहुंची अलख अगम में । राधास्वामी रूप बसा नैनन में ।।6।।
आरत करी गुरु चरनन में । पाय दया गुरु हुई मगन मैं ।।7।।
प्रेम प्रतीत लगी अब उन में । कहूं करा मजरमा चुन चुन मैं ।।8।।
तन मन सीस करूूँ अपणन मैं । चरन सरन गजर गाऊूँ गुन मैं ।।9।।
खोल न कहूं भेद सबजरन में । नरीं समावत बचन रसन4 मैं ।।10।।
आनूँद रोत सदा जछन जछन में । राधास्वामी संग अब करूूँ रमन5 मैं ।।11।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
सुरत को जमला खज़ाना नाम ।। टेक ।।
सुरत जनमानी हुई कदवानी । कदया गुरु अस िाम6 ।।1।।
उमंग उमंग कर नभ पर पहुंची । जमला जनरं िन धाम ।।2।।
आगे चली बंक पट खोला । जमला गुरु का नाम ।।3।।
सुन्न द्वार दसद्वार समानी । पाया अब आराम ।।4।।
मरासुन्न से भूँवरगुफा पर । िाय जमली ্ सतनाम ।।5।।
अलख अगम से भेटा कीन्रा । राधास्वामी जमली मुक़ाम ।।6।।

1. रलकी । 2. वस्त्र । 3. बे-खटके । 4. ज़बान, जिह्वा । 5. जबलास ।


6. प्याला ।
316 सार बचन बचन 36

मनसा पूरन रोय सब आई । ररा न कोई काम ।।7।।


उमंग बढ़ी सूरत में भारी । आरत करूूँ मुदाम1 ।।8।।
राधास्वामी ममण लखाया । यर सब का अंिाम2 ।।9।।
समझ बूझ कर भाख सुनाया । अब सबको यर कदया पयाम3 ।।10।।

।। िब्द बाररवाूँ ।।

उलट घट झाूँको गुरु प्यारी । नैन दोउ तानो रो न्यारी ।।1।।


देख नभ मंडल उजियारी । अनेकन चंद्र सूर तारी ।।2।।
जखली िराूँ पचरं ग फु लवारी । नदी िराूँ बरती इक भारी ।।3।।
लाल और माजनक पन्ना री । झालरें मोती लख झारी ।।4।।
जझलजमल दाजमन चमका री । दमक िराूँ िोत लखी भारी ।।5।।
सरसदल मध्य घनकारी । धुनन की रोत झनकारी ।।6।।
सुना यर अनरद बािा री । करे िराूँ माया ससगारी ।।7।।
ठगे बहु िोगी मुजन भारी । रटके मत आगे चल प्यारी ।।8।।
चढ़ो अब घाटी बंका री । जनरख सब जिकु टी लीला री ।।9।।
गगन में परखो ओंकारी । गरि िस बादल गरिा री ।।10।।
लाल िरूँ सूरि दरसा री । मृदग ं और मुरं चंग बिता री ।।11।।
तख़्त िराूँ िारी जबछता री । जिलोकी नाथ बैठा री ।।12।।
िोगेश्वर ध्यान धारा री । परे इस िुद्ध गाया री ।।13।।
व्यास यर मत चलाया री । संत उस तान मारा री ।।14।।
रार जबच ररा अटका री । संत घर उस न पाया री ।।15।।
राम और कृ ष्र् औतारी । वजिष्ठ और िंकराचारी ।।16।।
थके िराूँ िेष नारद री । ररे िराूँ सनक सारद री ।।17।।
वेद भी नेत करता री । कूँ वलसुत4 जवष्र्ु जिव रारी ।।18।।
साध संग सुन्न में आ री । संत िराूँ करत दसद्वारी ।।19।।

1. रमेिा । 2. अन्त । 3. सूँदि


े ा। 4. ब्रह्मा ।
बचन 36 प्राजप्त िब्द व मुक़ामात 317

अगम परकाि धुन न्यारी । रकार अक्षर परख सारी ।।20।।


मरासुन चल करो यारी । संत अब हुए अगुवा री ।।21।।
भूँवर पा िा चढ़ी पारी1 । सुनी धुन बांसरु ी कारी2 ।।22।।
क़दम वराूँ से उठाया री । सत्त पद यरी पाया री ।।23।।
अलख और अगम धाया री । आरती राधास्वामी गाया री ।।24।।
।। िब्द तेररवाूँ ।।
घट में अब िोर मचाय ररी ।। टेक ।।
ऊूँचे चढ़ी सुरत सुन घोरा । प्रार् सपड से छू ट गई ।।1।।
िीते मुजि जमली सतगुरु से । क्या कहुं मजरमा चुप्प ररी ।।2।।
घट में खेल पसारा अद्भुत । देखे री परतीत भई ।।3।।
सुन सुन अचरि करती पजरले । बुजद्ध खराबा भुगत ररी ।।4।।
क्या क्या कहूं बुजद्ध की जवपता । करनी प्रेम बराय दई ।।5।।
जवद्या बुजद्ध चतुरता बैरन । अरंकार में डू ब ररी ।।6।।
जवद्या बुजद्ध चतुरता बैरन । गुरु सेवा मन त्याग दई ।।7।।
भजि पदारथ मजरमा िानी । सुरत चढ़ी और सुन्न गई ।।8।।
मरासुन्न और भूँवरगुफा की । लीला अद्भुत कौन करी ।।9।।
सत्तलोक सतपुरुष जपयारा । रूप जनरारा मगन भई ।।10।।
अलख अगम और राधास्वामी । उन को देखत मौन ररी ।।11।।
।। िब्द चौदरवाूँ ।।
घट चमन जखला उजियारी । गुरु ज्ञान जमला अब भारी ।।1।।
सुतण नदी चली धधकारी । पहुंची िाय ससध सम्रारी ।।2।।
धुन अनरद जनरत जनरारी3 । घंटा िराूँ िंख बिा री ।।3।।
मन पररा द्वार लगा री । तस্कर4 सब दूर जनकारी ।।4।।
दे सील क्षमा की बाड़ी । सत की फु लवार जखला री ।।5।।

1. पार । 2. कारगर । 3. जनराली । 4. चोर ।


318 सार बचन बचन 36

धीरि का कू प खुदा री । िल प्रेम सींच ररी क्यारी ।।6।।


भजि रस प्रीत जपया री । चढ़ गगन रौब फल खा री ।।7।।
दल कूँ वल सरस फु लवारी । पचरं गी रं ग बरारी ।।8।।
नौबत िरूँ बिती न्यारी । खुल खेली सुरत रमारी ।।9।।
सुन्न में चढ़ धुन लइ सारी । ककगरी गजत अगम जवचारी ।।10।।
गइ मरासुन्न पद पारी । िराूँ बंसी बित करारी1 ।।11।।
सतनाम जमला पद चारी । गजत अलख अगम धर धारी ।।12।।
राधास्वामी चरन सम्रारी । पाई गजत आि अपारी ।।13।।
कर आरत हुइ गुरु प्यारी । घर अिर अमर पाया री ।।14।।
सुतण मारग दूर चला री । रद बेरद पार जसधारी ।।15।।
ज्ञानी थक िोग थका री । श्रुजत जसमृत पार न पा री ।।16।।
संतन मत ऊूँच जनकारी । मानी जिन भाग बड़ा री ।।17।।
ब्रत तीरथ िगत पचा री । िप तप में वृथा खपा री ।।18।।
जवद्या पढ़ मान अरारी । जतरपत नसर बुजद्ध जबगाड़ी ।।19।।
भजि और प्रेम गया री । दासातन अब न ररा री ।।20।।
घट में क्यों िाय चढ़ा री । मन हुआ सुतत ं र2 भारी ।।21।।
मनमुखता अिब सूँवारी । गुरुमुखता दूर जनकारी ।।22।।
राधास्वामी करत पुकारी । रे सतगुरु लेओ सम्रारी ।।23।।
इन से मोसर लेओ बचा री । यर रूखे प्रेम न धारी ।।24।।
मैं राधास्वामी सरन पड़ा री । तुम रक्षा करो रमारी ।।25।।

।। िब्द पन्द्ररवाूँ ।।

सूरत सरकत पार, वार त्याग देरी तित ।


घट का घोर सुनाय, रात कदवस लागी ररत ।।1।।
नाम अमोलक पाय, गगन जगरा गरिी चलत ।

1. तेज़ । 2. खुद मुशतयार ।


बचन 36 प्राजप्त िब्द व मुकामात 319

धाम जलया सत िाय, पुरुष दिण पाई सुगत ।।2।।


मेरे गृर अजत रं ग, बोलत मोर पपीररा ।
स्वाूँती बरसत अंग, मेघ बरस तन मन ररा ।।3।।
ज्यों रररयावल भूजम, खोल दृजष्ट देखत रहूं ।
जबच जबच उठत तरं ग, मन तन सीतलता सहूं ।।4।।
खोलत बज्र ककवाड़, सुरत िराूँ टक लावई ।
सतगुरु जलया सम्रार, सुरत िब्द संग न्रावई ।।5।।
झूलत गगन सरडोल, सजखयाूँ जनकट झुलावरीं ।
मैं अब ककया ससगार, जपया ररझावत धावरी ।।6।।
अब आरत घट धार, अन्तर पट खोलत चली ।
दीपक िोत सम्रार, सूर चाूँद गगना गली ।।7।।
गावत राग मलार, धुन अनरद िोभा अजधक ।
रोत िराूँ झनकार, ढोल दमामा1 अजत धमक ।।8।।
जबन सतगुरु परताप, यर लीला नरीं को लखे ।
देखगें े जनि दास, पी पी अमृत जनत छके 2 ।।9।।
पूरर् पद जवश्राम, सेत पदम पर िा चढ़ी ।
राधास्वामी नाम, गावत रै सनमुख खड़ी ।।10।।

।। िब्द सोलरवाूँ ।।

गुमठ3 चढ़ी मन बरिती4 । काल अटक तुड़वाय ।।1।।


गुरु पासा5 अद्भुत जलया । गजत मजत करी न िाय ।।2।।
बोलत तूती6 अधर में । तोता7 कदया रै िगाय ।।3।।
देि जबराना छु ट गया । सपिरा8 दूर पराय ।।4।।
खुला उड़े आकाि में । तूती संग जमलाय ।।5।।
मरल अिब गत चाूँदना । सूरि ना ठरराय ।।6।।

1. नक्कारा । 2. अघाये । 3. जिखर । 4. रोकती । 5. तरफ़ । 6. धुन ।


7. मन । 8. िरीर ।
320 सार बचन बचन 37

धुन धधकार अनारदी । जबरले गुरुमुख पाय ।।7।।


लख जतरबेनी घाट को । ता में पैठ अन्राय ।।8।।
सुन समाजध िाको जमली । अनरद मासर समाय ।।9।।
अमी बषण बुूँकदयन झड़ी । रजसया ररे लुभाय ।।10।।
राधास्वामी चाख कर । वर्णन ककया बनाय ।।11।।

।। बचन सैंतीसवाूँ ।।
दिा सुरत और मन की और प्राजप्त िब्द
की और िुकराना सतगुरु का
।। िब्द परला ।।
गुरु ने अब दीन्रा भेद अगम का । सुरत चली ति देि भरम का ।।1।।
बल पाया अब जवरर मरम का । भटकन छू टा दैरो1 ररम2 का ।।2।।
वषणन लागा मेघ करम का । संिय भागा िनम मरन का ।।3।।
तोड़ कदया सब िाल जनगम3 का । सुख पाया अब रम दम दमका ।।4।।
फल पाया आि रम सम दम का । भूँवर हुआ मन सेत पदम का ।।5।।
फूूँ क कदया घर लाि िरम का । काटा फं दा नेम धरम का ।।6।।
ज्ञान ध्यान बाचक रम छोड़ा । भजि भाव का पजरना िोड़ा ।।7।।
भजि भाव की मजरमा भारी । िानेंगे कोइ संत जवचारी ।।8।।
सत्तनाम सतपुरुष अपारा । चौथे माजर करें दरबारा ।।9।।
सुरत िब्द मारग कोइ पावे । सो रंसा चढ़ लोक जसधावे ।।10।।
सो मारग अब राधास्वामी गाई । कोइ कोइ प्रेम भजि से पाई ।।11।।
।। िब्द दूसरा ।।
गुरु मारा बचन का बान । मेरा गया कलेिा छान ।।1।।
मैं सुनी सुन्न की तान । मर गये काल के मान ।।2।।
तन छू ट गया अजभमान । मैं करी िब्द पजरचान ।।3।।

1. मजन्दर । 2. मक्का । 3. वेद ।


बचन 37 प्राजप्त िब्द व िुकराना सतगुरु 321

मुरदे के पड़ गई िान । मेंरी करे न कोई रान ।।4।।


मुझे सतगुरु दीन्रा दान । मैं पहुंची अधर अमान ।।5।।
मेरी सुरत चढ़ी खरसान । मैं मारा काल जनदान ।।6।।
मैं ककया अमीरस पान । घट खुली रतन की खान ।।7।।
क्या मजरमा करूूँ बखान । अचरि का खेल कदखान ।।8।।
मैं पाया नाम जनिान । अब झूठा लगा िरान ।।9।।
मेरा छू टा आवन िान । मुझे जमला िब्द परमान ।।10।।
िग कफरे भरमता खान । कोइ सुने न अनरद कान ।।11।।
कोइ करे न गुरु की कान । घर घेर जलया िैतान ।।12।।
अब करो िीव कल्यान । धरो राधास्वामी ध्यान ।।13।।
।। िब्द तीसरा ।।
गुरु मोसर दीन्री अमृत रास । बुझी मेरी िन्म िन्म की प्यास ।।1।।
सुरत अब चढ़ गई फोड़ अकाि । जमली िाय िब्द लखा परकाि ।।2।।
िगत की छू टी सब री आस । गई अब तृष्र्ा बल हुआ नास ।।3।।
काल मोसर देखत करे िास । कमण भी भागा छोड़ा बास ।।4।।
दूर की वस्तु जमली मोसर पास । छु टी तन मन से हुई जनरास ।।5।।
गई अमरापुर ककया जनवास । गाउूँ गुरु मजरमा स्वाूँसो स्वाूँस ।।6।।
हुई मैं राधास्वामी चरनन दास । ज्ञानी और िोगी खोदें घास ।।7।।
।। िब्द चौथा ।।
घोर सुन चढ़ी सुरत गगना । भेद लख हुई अिब मगना ।।1।।
रूप उन पाया अब अपना । िगत हुआ झूठा ज्यों सुपना ।।2।।
चली अब गुरु पद सो लखना । काल पर पड़ा करठन तपना ।।3।।
कमण का छू ट गया खपना । सरि सुख जमला िब्द तकना ।।4।।
मेट मन कपट छु टा ठगना । अमर पद जमला िुगन िुगना ।।5।।
322 सार बचन बचन 37

टेक गुरु बाूँध ध्यान धरना । चरन गुरु पकड़ पड़ो सरना ।।6।।
सरसदल कूँ वल िाय लगना । जिकु टी चढ़ो चाल पकना ।।7।।
सुन्न में नरीं नैन झपना । मानलो राधास्वामी गुरु करना ।।8।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
नाल नभ तकी रोय न्यारी । सुरत को लगी अब जवरर करारी ।।1।।
मन बैठा भोग जबसारी । जिव छोड़ी कृ त1 संसारी ।।2।।
क्या कहूं जमले गुरु भारी । उन भेद कदया पद चारी ।।3।।
मैं पाऊूँ िब्द रस सारी । मेरे लगा ज़ख़्म अब कारी2 ।।4।।
मन तन पर कफरती आरी । क्यों िीऊूँ िीवना रारी ।।5।।
तब दया करी गुरु न्यारी । अब दीन्रा िब्द सम्रारी ।।6।।
मैं चढ़ गई गगन अटारी । वराूँ खेलूूँ जनत्त जिकारी ।।7।।
धुन सुन कर बहुत पुकारी । चढ़ भागी खोल ककवाड़ी ।।8।।
राधास्वामी चरन जनरारी । लख पाया भेद अपारी ।।9।।
।। िब्द छठवां ।।
गुरु की गजत अगम अपार । मैं कै से बरनूूँ पार ।।1।।
सतगुरु मोसर अंग लगाया । सतगुरु मोसर नाम दृढ़ाया ।।2।।
बैराजगन भइलो सतगुरु चरना । अनुराजगन भइलो नाम अनामा ।।3।।
सतगुरु मेरे दया जवचारी । भौिल से पार उतारी ।।4।।
ब्रर্্मड
ं ी खेल कदखाया । अनरद धुन तार बिाया ।।5।।
घट जतजमर पुराना नािा । िब्द उिास ककया परकािा ।।6।।
गुरु ऊपर बल बल िाऊूँ । राधास्वामी नाम जधयाऊूँ ।।7।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
मैं भई अगम की दासी । मेरी सुरत हुई अजवनासी ।।1।।
मैं िब्द ककया घट मंिन । मन रारा डरा जनरं िन ।।2।।

1. करतूत । 2. गररा ।
बचन 37 प्राजप्त िब्द व िुकराना सतगुरु 323

िोती अब चरन पखारे । संतन की ओट पुकारे ।।3।।


गुरु दया अनोखी कीन्री । मोसर चरन सरन गजत दीन्री ।।4।।
तन भीतर उलटी धाई । राधास्वामी हुए सराई ।।5।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
सुतण भरी अगम िल गगरी । मैं देखी राधास्वामी तेरी नगरी ।।1।।
मेरी प्रीत लगी अब जिगरी1 । मैं चढ़ी गगन की डगरी ।।2।।
मेरी दूर हुई ममता अब मगरी2 । मैं पहुंची सतगुरु मग3 री ।।3।।
गुरु करा िब्द िा पग4 री । रूँगता की उतरी पगड़ी ।।4।।
माया की इज़्जज़त जबगड़ी । राधास्वामी चरन तू तक री ।।5।।
।। िब्द नवाूँ ।।
गुरु नाम रटूूँ अंग अंग से । गुरु आरत करूूँ उमूँग से ।।1।।
मैं रूँ गी प्रेम के रं ग से । दुख दूर हुए कदल तूँग से ।।2।।
में छू टी िगत कु रूँ ग से । मन िोजभत नाम सुरूँग से ।।3।।
मैं रटी नाम और नूँग से । मैं तरी आि गुरु संग से ।।4।।
मेरा काि ककया गुरु ढूँग से । मैं पहुंची चाल जवरूँग से ।।5।।
मैं िीती काल जनरूँग5 से । मैं जमली िाय ओअं से ।।6।।
अब जनकसी िाल उचूँग6 से । सुरत साफ़ हुई कु ल ज़ंग7 से ।।7।।
सुतण लगी िाय सोरं से । राधास्वामी छु ड़ाया अरं से ।।8।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
गुरु चरन प्रीत मन रं गा । अब सब से हुआ असंगा ।।1।।
मन मारा संिय भंगा । जचत िुद्ध हुआ अब चंगा8 ।।2।।
अब जमटा काल का दंगा । डर ररा न नाम और नंगा9 ।।3।।
आरत अब सिूूँ अभंगा । मेरे प्रेम भरा अंगा अंगा ।।4।।
मेरी परखे न कोइ उमंगा । मैं पकड़ा सतगुरु संगा ।।5।।

1. अन्तरी । 2. माया । 3. रास्ता । 4. जमल । 5. मगर-मच्छ । 6. तरं गें ।


7. मैल । 8. अच्छा । 9. लाि ।
324 सार बचन बचन 37

मैं भौिल पार उलंघा1 । मेरी सुरत उड़ी िस चंगा2 ।।6।।


मैं घट में न्राया गंगा । मैं छोड़ा मन परसंगा3 ।।7।।
मन घोड़ा बाूँधा तंगा । अब जमट गइ ममता पंगा4 ।।8।।
सब मेटी जचत्त उचंगा । रौं5 िाली िस िोत पतंगा ।।9।।
गुरु चरन जमला आलंबा6 । सतगुरु का सीखी ढंगा ।।10।।
गुरु चरन प्रेम मैं मंगा7 । राधास्वामी दीन्र उतंगा ।।11।।
।। िब्द ग्याररवाूँ ।।
मन बजनयां बनत8 बनाई । घट भीतर तोल तुलाई ।।1।।
नैनन के पलड़े धारे । सुरत जनरत डोर गरठया रे ।।2।।
नभ डंडी पकड़ धरा रे । सुखमन का फुं दन लगा रे ।।3।।
िराूँ िब्द जिन्स तोला रे । मैं पाया आि नफ़ा रे ।।4।।
गुरु कीन्री दात अपारे । अस बजनि ककया िग आ रे ।।5।।
मेरी ररटया माल भरा रे । मैं करूूँ यरी व्योपारे ।।6।।
मोसर बाूँट जमले द्वारे । मैं तोलूूँ वस्तु सम्रारे ।।7।।
मेरे सतगुरु िार जपयारे । मेरी साख बढ़ी सब रारे ।।8।।
राधास्वामी खरा करा रे । खोटा घट दूर जनकारे ।।9।।
।। िब्द बाररवाूँ ।।
गुरु का मैं दामन पकड़ा । छोड़ूूँ नसर अब तो िकड़ा ।।1।।
तू मत कर मुझ से रगड़ा । मैं छोड़ा िग का झगड़ा ।।2।।
मैं मारा मन और पकड़ा । मेरे गुरु ने ककया मोसर तकड़ा9 ।।3।।
मैं छोड़ा काया छकड़ा10 । कफर कमण द्वार से जनकरा ।।4।।
मैं मारा मन का मकड़ा । तब काल देख बहु अकड़ा11 ।।5।।
अब कटा क्रोध का लकड़ा । और मरा लोभ का बकरा ।।6।।
मैं देखा गगन दमकड़ा12 । राधास्वामी नाम चमकड़ा ।।7।।

1. छलांग मार गया । 2. पतंग । 3. साथ । 4. लूँगड़ी । 5. अरंकार ।


6. सरारा । 7. मांगा । 8. बनाव । 9. बलवान । 10. गाड़ी । 11. ऐंठा ।
12. चमकीला ।
बचन 37 प्राजप्त िब्द व िुकराना सतगुरु 325

।। िब्द तेररवाूँ ।।
गुरु मोसर भेद कदया पूरा । सुरत संग बािा घट तूरा ।।1।।
हुआ मन तन में अब सूरा । लखूूँ मैं नभ चढ़ िजि सूरा ।।2।।
खुला अब घाट अगम नूरा । रटाया काल करम दूरा ।।3।।
कदखाया राधास्वामी पद मूरा । जतयागा िगत लगा कू ड़ा ।।4।।
।। िब्द चौदरवाूँ ।।
मैं सुनूं क्या जनत घट की । गुरु भेद कदया धुन में अब अटकी ।।
अब सुरत चढ़ी पहुंची नभ सटकी । मेरी फू ट गई कमणन की मटकी ।।2।।
कफर काम क्रोध डारे सब पटकी । सुतण सरसकूँ वल चढ़ झटकी1 ।।3।।
मन माया धर धर झटकी2 । आसा और तृष्र्ा िग की पटकी ।।4।।
गुरु खबर िनाई अंतर पट की । सुतण िग से जछन जछन रटकी ।।5।।
गुरु की मजत धारी दुमत
ण खटकी3 । सुतण मगन हुई धुन सुन सर4 तट5 की ।।
मन खेली कला उलट ज्यों नटकी । राधास्वामी गाई गजत उलट पलट की।।
।। िब्द पंद्ररवाूँ ।।
सोच ले प्यारी अस जमला िोग । गुरु दया करी सब जमटे रोग ।।1।।
सुतण जमली िब्द से ति जवयोग । यर जमला भाग से सरि िोग ।।2।।
गुरु जबन कब जमलता अस संिोग । अब करले जनस कदन िब्द भोग ।।3।।
मन की मजत त्यागी गया सोग । राधास्वामी ककरपा करी िोग6 ।।4।।
िो रोना था सो हुआ रोग । को सुने रमारी भूले लोग ।।5।।
।। िब्द सोलरवाूँ ।।
गुरु ने मोसर दीन्रा नाम सरी । तृष्र्ा सकल दरी ।।1।।
सतसंग करूूँ सार रस पीऊूँ । दृढ़ कर नाम गरी ।।2।।
गुरु की मजरमा करी न िावे । चरनन पकड़ ररी ।।3।।
जिस पर दृजष्ट पड़ी मेरे गुरु की । सोई पार गई ।।4।।

1. बढ़ाई । 2. जगराई । 3. अलग हुई । 4. मानसरोवर । 5. ककनारा ।


6. लायक ।
326 सार बचन बचन 37

धारा िब्द चली जनत आवे । कू ड़ा कमण बरी ।।5।।


काल टार मन मार जनकारा । सरि सुराग दई ।।6।।
मैं प्यारी सतगुरु अपने की । सत्तनाम की लार लई ।।7।।
धर को छोड़ अधर चढ़ चाली । सुरत रंसनी आि भई ।।8।।
काम क्रोध मद लोभ जबडारे । ममता खोय गई ।।9।।
धुर पद पहुंच िब्द संग पागी । मान ईषाण सकल दरी ।।10।।
राधास्वामी नाम दीवानी । अस्तुत कौन करी ।।11।।
।। िब्द सिरवाूँ ।।
आले1 में देखा ताक़ िाला ।। टेक ।।
सेत दीप में श्याम ककवाड़ी । सो मैं खोला ताला ।।1।।
घट में िाय गगन में पैठी । जपया अमीरस प्याला ।।2।।
चढ़ा अमल घट भीतर झूमी । भूमी2 भार जनकाला ।।3।।
अद्भुत ख़्याल कदखाया गुरु ने । मन मौिी का ककया जनवाला ।।4।।
चढ़ कर खोली सुन्दर जखड़की । झाूँका गगन जिवाला ।।5।।
मूरख िीव िगत में भटकें । पूिें ईंट कदवाला ।।6।।
सतगुरु के रम चरन पखारे । सुन्न नगर में फे रें माला ।।7।।
तसबी4 माला कसबी डाला । रम तो दूर जनकाला ।।8।।
सतगुरु पूरे पाये रमने । रम जनि नाम सम्राला ।।9।।
राधास्वामी गुरु रमारे । वे रैं दीन दयाला ।।10।।
काल िाल से तुरत जनकाला । कीन्रा मोसर जनराला ।।11।।
।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।।
सुरत ने िब्द गरा जनि सार । आि घट कु ल का हुआ उधार ।।1।।
नाम का पाया रं ग अपार । िीव ने धरा रंस औतार ।।2।।
दूध और पानी कीन्रा न्यार । दूध कफर पीया तन मन वार ।।3।।

1. ताक । 2. धरती यानी देर । 3. ग्राम । 4. माला ।


बचन 37 प्राजप्त िब्द व िुकराना सतगुरु 327

छोजड़या पानी जवपत जबडार । जनत्त मैं पीती रहूं सुधार ।।4।।
काल को डाला बहुत लताड़ । चरन गुरु पकड़े आि सम्रार ।।5।।
नाम संग रो गइ सूरत सार । मानसर न्राई मैल उतार ।।6।।
चुगूूँ मैं मोती िब्द जवचार । गुरु ने खोला घाट दुवार ।।7।।
धुनन को छाूँट जलया मन मार । घाट घट भीतर पड़ी पुकार ।।8।।
नाम गुरु लीन्रा मोसर जनकार । छोजड़या सारा िगत लबार1 ।।9।।
ककया अब राधास्वामी िगत उधार । जिऊूँ मैं राधास्वामी चरन पखार ।।

।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।

माजलनी लाई ररवा गूथ


ूँ । प्रेजमन डाले फु लवा िूूँथ ।।1।।
गुरुन से पाई नाम जवभूत2 । आरती िोड़ी लागा सूत ।।2।।
हुआ मन गगन मासर अवधूत3 । करे अस सेवा रोय सपूत ।।3।।
भगाये गुरु ने घट के दूत । चरन गुरु पकड़े अब मज़बूत ।।4।।
काल को डाला जछन जछन कू ट । मोर दल भागा लीन्रा लूट ।।5।।
गया सब तन से नाता टू ट । काल बल डाला सब री कू त4 ।।6।।
गुरु ने दीन्रा अमृत क़ू त5 । राधास्वामी दूर ककया कलबूत6 ।।7।।

।। िब्द बीसवाूँ ।।

कदखाया रूप मनोरर गुरु ने । मेरी दृजष्ट खुली पहुंची धुर घर में ।।1।।
जनि भेद कदया सतगुरु ने । धुन धमक सुनी नभपुर में ।।2।।
मेरे ररख हुई अजत उर में । मैं उलट चली अब सुर7 में ।।3।।
चढ़ घोर सुना अन्दर में । मैं झाूँकी िा मंकदर में ।।4।।
मैं पाइ मौि सुन्दर में । गुरु चरन धरे अब जसर में ।।5।।
मैं धाई सुन्न जिखर में । अब पाये पुरुष अिर मैं ।।6।।
लग राधास्वामी हुई अमर मैं । मैं न्राई अमी नरर में ।।7।।

1. झूठा । 2. बड़ी कला । 3. साधु । 4. तौल । 5. अरार । 6. देर से ।


7. धुन ।
328 सार बचन बचन 37

।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।
धुजबया गुरु सम और न कोय । चदररया धोई सूरत िोय1 ।।1।।
मैल सब काढ़ा जनमणल रोय । कहूं क्या गुरु की मजरमा सोय ।।2।।
घाट पर बैठे दीखें मोसर । सुरत मैं डारी चरन समोय ।।3।।
धार अब आई कसमल2 खोय । चटक कर दीन्र चदररया धोय ।।4।।
िब्द संग लागी प्रेमी रोय । भेद राधास्वामी पाया गोय1 ।।5।।
।। िब्द बाईसवाूँ ।।
चलो री सखी अब आलस छोड़ । सुनो अब चढ़कर घट में घोर ।।1।।
काल िो देवे कु छ झकझोर4 । भुिा उस डारो तुरत मरोड़ ।।2।।
दया गुरु सुन लो घट का िोर । अमीरस पीओ नभ में ज़ोर ।।3।।
बोल िराूँ परखो दादुर मोर । मेघ िराूँ गरित घोरम घोर ।।4।।
िब्द धुन परखी सूरत िोड़ । करम का कलसा डाला फोड़ ।।5।।
द्वार अब खोला ताला तोड़ । जमला भंडार अगम का मोर5 ।।6।।
भगाये घट के सब री चोर । गरी मैं जनि धुन की अब डोर ।।7।।
राधास्वामी डारा मन को तोड़ । चरन मैं परसे दोउ कर िोड़ ।।8।।
।। िब्द तेईसवाूँ ।।
सूरमा सुरत हुई गुरु देख प्रताप ।। टेक ।।
सुरत िब्द की करूूँ कमाई । पाऊूँ अपना आप ।।1।।
गगन मंडल अब झाूँकन लागी । कर कर सूरत साफ़ ।।2।।
चढ़ी अधर में देख उधर में । परमातम को आतम पात ।।3।।
करम कटाने भरम नसाने । िन्म िन्म के छू टे पाप ।।4।।
सुन्न जिखर पर पहुंची सूरत । करती अिपा िाप ।।5।।
अिब धाम पाया मैं सिनी । कौन करे यराूँ तोल और नाप ।।6।।
राधास्वामी खेल कदखाया । वोरी रैं मेरे मा और बाप ।।7।।

1. स्त्री । 2. मैल । 3. गुप्त । 4. झकोला । 5. मुझे ।


बचन 37 प्राजप्त िब्द व िुकराना सतगुरु 329

।। िब्द चौबीसवाूँ ।।
कु मजतया दूर हुई, गुरु हुये दयाल ।
सुमजतया दान दई, गुरु ककया जनराल ।।1।।
सरन गुरु आन लई, ति मन का िाल ।
मूल को पकड़ जलया, ति डारी डाल ।।2।।
नाम धन पाय गई, ति झूठा मान ।
गुरु संग लाग ररी, देख अचरि ख़्याल ।।3।।
परम पद पाय गई, चढ़ सुखमन नाल ।
भमण सब काट कदये, और मारा काल ।।4।।
काल अब थककत हुआ, अब पाया राल1 ।
राधास्वामी दूर ककये, मेरे सब दुख साल2 ।।5।।
।। िब्द पच्चीसवाूँ ।।
सुरत उठ िागी चरन सम्रार । गुरु संग लागी रूप जनरार ।।1।।
बचन सुन त्यागी मनसा शवार । सुरत हुई रागी3 िब्द सम्रार ।।2।।
अमीरस पीवत नभ के द्वार । छोड़ कर भागी िगत लबार ।।3।।
पकड़ कर आई गुरु दरबार । सरन गर बैठी तन मन वार ।।4।।
रंस रोय चुगती मुिा सार । नाम रस पागी सूरत नार ।।5।।
काल संग तोड़ा नाता झाड़ । दयाल घर पहुंची सतगुरु लार ।।6।।
जमले राधस्वामी ककरपा धार । छु टे सब संगय गया संसार ।।7।।
।। िब्द छब्बीसवाूँ ।।
मंगल मूल आि की रिनी4 । मसरमा कहूं कौन सुन सिनी ।।1।।
आनूँद छाय ररा नभ धरनी । रोम रोम अमृत रस भरनी ।।2।।
जतजमर रटावन धारे चरनी । रूप सुरावन पाइ मैं सरनी ।।3।।
अमी धार लागी अब जझरनी । सुरत जनरत लागी घट जघरनी ।।4।।

1. अन्तर की रालत । 2. पीड़ा कष्ट । 3. अनुरागी । 4. रात ।


330 सार बचन बचन 37

गगन मंडल लागी अब चढ़नी । जबन गुरु कौन करे यर करनी ।।5।।
ता ते सरन गुरु की पड़नी । जमगण टले और भागी जररनी ।।6।।
भान मध्य पहुंची िा ककरनी । सुरत अड़ी िा अब नसर जगरनी ।।7।।
राधास्वामी भेद कदया कर जनरनी । मैं नसर उन चरनन से कफरनी ।।8।।
।। िब्द सत्ताईसवाूँ ।।
िोभा देखुूँ मैं अब गुरु की । नैन जनरारूूँ जखड़की धुर की ।।1।।
खबर िनाऊूँ कफर सुर1 की । िान गई गजत अब उर उर की ।।2।।
मो को करें सभी दुर दुर2 की । मैं गरी टेक गुरु गुरु की ।।3।।
राधास्वामी गजत गाई ऊपर की । सुरत तिी मैं इस मरपुर3 की ।।4।।
।। िब्द अट्ठाईसवाूँ ।।
दौड़त गई गगन के घेर । तन को छोड़ जलया मन फे र ।।1।।
िराूँ िब्द अनारद लीन्रा रेर4 । ज़ीना5 चढ़ कर सुनी इक टेर6 ।।2।।
काल करम दोउ कीन्रे ज़ेर7 । चढ़ आई मैं आि सुमरे ।।3।।
धुन पाई मैं अब अजत नेर8 । िल्दी करी लगी नसर देर ।।4।।
गीदड़ से गुरु कीन्रा िेर । रेर रेर धुन घट में रेर ।।5।।
छोड़ी मन की सभी लगेड़9 । सुरत हुई अब धुन की चेर ।।6।।
अंतर दृजष्ट लाई फे र । दूर रटाया पापन ढेर ।।7।।
अब सतगुरु की रोगई मेरर । जमट गया आि काल का क़रर11।।8।।
लगी नरीं कु छ मुझे अबेर । मैं चढ़ पहुंची बहुत सबेर ।।9।।
तन मन झगड़ा सभी जनबेड़12 । जमला भजि भंडार कु बेर ।।10।।
बैररयन की खाल लई उधेड़ । मानसरोवर न्राई नरर ।।11।।
मन का सभी जमटाया फे र । राधास्वामी जलया मन घेर ।।12।।
।। िब्द उन्तीसवाूँ ।।
गुरु संग खेलूूँ जनस कदन पास । करूूँ मैं अचरि जबमल जबलास ।।1।।

1. धुन । 2. फटकार । 3. मृत्यु लोक । 4. ढू ूँड जलया । 5. सीढ़ी । 6. आवाज़ ।


7. अधीन । 8. जनकट । 9. लगाव । 10. चेली । 11. डंड । 12. जनपटा कर ।
बचन 37 प्राजप्त िब्द व िुकराना सतगुरु 331

सुखी रोय करती चरन जनवास । हुआ मोसर गुरु का अजत जवश्वास ।।
गुरु जबन और नरीं कोइ आस । जमली अब नाम रतन की रास ।।3।।
जधयाऊूँ पल पल स्वाूँसो स्वाूँस । काल और कमण हुए दोउ नास ।।4।।
िगत से ररती सरि उदास । जमली अब पदवी दासन दास ।।5।।
करे अब सूरत नभ पर बास । िब्द का पाया परम प्रकाि ।।6।।
लगन अस ररती बारर मास । चरन मैं पकड़े गुरु के खास ।।7।।
द्वार घट खोला चढ़ आकाि । काल मुरझाया सूखा मास ।।8।।
हुआ अब घर में दीप उिास । जमला जनि सूरि संग आभास1 ।।9।।
कहूं क्या मजरमा िब्द खवास2 । गरे3 िो पावे अमर अवास4 ।।10।।
करूं अब आरत राधास्वामी रास । िब्द का दीपक कीन्रा चास5 ।।11।।

।। िब्द तीसवाूँ ।।

गुरु मूरत मेरे मन बस गइयां । तन धन वारूं बल बल िइयां ।।1।।


अस जपया संग सुराजगन भइयां । अटल सुराग नाम धुन पइयां ।।2।।
करम भरम सब दूर बरइयां । िगत िाल िंिाल कटइयां ।।3।।
अब चढ़ सुरत श्याम6 घर अइयां । सेत दीप की दमक कदखइयां ।।4।।
सरस कूँ वल दल मोर दलइयां । काम क्रोध मद दूर करइयां ।।5।।
घंटा संख नाद सुन लइयां । पाूँच तत्त्व रं ग सूक्षम पइयां ।।6।।
लीला अद्भुत गुरु लखइयां । अब आगे को डगर7 चलइयां ।।7।।
बंकनाल का द्वार खुलइयां । जिकु टी घाट मौि दरसइयां ।।8।।
गुरु मूरत िरां सूर ललइयां8 । सुन्न जिखर चढ़ कमण िलइयां ।।9।।
मरासुन्न मजरमा क्या कजरयां । भूँवरगुफा चढ़ बंस बिइयां ।।10।।
सत्तनाम धुन बीन सुनइयां । अलख अगम िा सुरत नचइयां ।।11।।
जनि कर राधास्वामी दास करइयां । अब आरत पूरन करवइयां ।।12।।

1. छटा, झलक । 2. गुन । 3. पकड़े । 4. घर । 5. िगाया । 6. तीसरा


जतल । 7. रास्ता । 8. लाल ।
332 सार बचन बचन 37

।। िब्द इकतीसवाूँ ।।
सोच ररी री मौि की बजतयां । सुतण रजतयां1 कूँ वल जबलास ।।1।।
उमूँग प्रेम छजब लजखयाूँ । अब जरयरे बढ़त हुलास ।।2।।
जनमख2 जनमख अटकी दृग िोभा । जनरख ररी परकाि ।।3।।
भीित मन सीझत नृत न्यारी । धावत जनि आकाि ।।4।।
आवत घोर सुनत जनस3 बासर4 । उलट कफराया स्वांस ।।5।।
चेतन रोत सोख तम सागर । पावत अगम जनवास ।।6।।
चंद चकोर मगन प्रीतम रस । ज्यों िल मीना बास ।।7।।
िगे भाग कल5 कालख6 नासे । पाया सुख जवश्वास ।।8।।
अधर जपयारी चढ़ी अटारी । छू ट गई िम फाूँस ।।9।।
राधास्वामी दरस कदवानी । बैठी चरनन पास ।।10।।
।। िब्द बत्तीसवाूँ ।।
मेरे जपया की अगम रैं गजतयां । मैं कै से कै से गाऊूँ ।।1।।
कोइ ममण न पावत रजतयां7 । क्योंकर मन लाऊूँ ।।2।।
धुन ध्यान लगावत रजतयां8 । चुन चुन धुन लाऊूँ ।।3।।
जतल ताकत9 फे र उलरटयां । घट दीप10 िगाऊूँ ।।4।।
जलख भेिूूँ जपया को पजतयां11 । क़ाजसद12 पहुंचाऊूँ ।।5।।
जवरर अजि िलावत जनजतयां । घर घाट न पाऊूँ ।।6।।
राधास्वामी भाग पलरटयां । कमण काट िलाऊूँ ।।7।।
।। िब्द तैंतीसवाूँ ।।
जपया दरसत भइ री जनराल । राल क्या बरनूूँ अपना ।।1।।
काल गजत दूर जनकारी । िग लागा सुपना ।।2।।
घट में धुन अवगत िागी । खोया तन तपना ।।3।।
सुतण सीतल सरवर पाया । िब्दारस मगना ।।4।।

1. रत्त ररी रै । 2. पल । 3. रात । 4. कदन । 5. काल के । 6. क्लेि, दुख ।


7. रत्ती भर । 8. प्रेम के साथ । 9. देख कर । 10. िोत । 11. जचट्ठी ।
12. जचट्ठी ले िाने वाला ।
बचन 38 बाररमासा 333

जबन साध न कोई िाने । जनत घट में िगना ।।5।।


तन धरती अब रम त्यागी । पहुंची चढ़ गगना ।।6।।
अब लाि तुम्रें राधास्वामी । मैं रो गइ सरना ।।7।।

।। बचन अड़तीसवाूँ ।।
।। बाररमासा ।।
।। असाढ़ मास परला ।।
राल दुख सुख सरने िीव का संसार में मन और माया के संग भरम कर
और वर्णन कष्ट और क्लेि का िो कक जबना सतगुरु और नाम भजि के अन्त
समय में िमदूतों के राथ से सरता रै ।

प्रथम असाढ़ मास िग छाया । आसा धर जिव गभण समाया ।।1।।


आस आड़ ले िीव भुलाया । घर को भूल दुक्ख अजत पाया ।।2।।
कमण वेग1 ने बारर डाला । माया कीन्रा बहु िंिाला ।।3।।
बाल अवस्था अजत दुख पावे । बेदन2 भारी जनत्त सतावे ।।4।।
मुख बोले ना सैन चलावे । काहू दुख अपना न िनावे ।।5।।
दुख में रोवे अजत जबल्लावे । मात जपता बुजध काम न आवे ।।6।।
दुख कु छ रै औषध कु छ करर रैं । उलट पलट संतापे दे रैं ।।7।।
बालपना अजत दुख में बीता । भई ककिोर खेल मजत लीता ।।8।।
मात जपता चारें पढ़वाना । यर ररे जनस कदन खेल कदवाना ।।9।।
मार पीट जपतु मात घनेरी । वर भी दुख की भारी ढेरी ।।10।।
यर भी कदन दुख ग़फलत बीते । सुक्ख ना पाया ररे अब रीते ।।11।।
तरून अवस्था आवन लागी । मन तरं ग अब जछन जछन िागी ।।12।।
चार उठी तब करी सगाई । ब्यार हुआ घर नारी आई ।।13।।
नारर देख मन अजत ररषाना । बेड़ी भारी सो नसर िाना ।।14।।

1. िोर । 2. दुक्ख, ददण ।


334 सार बचन बचन 38

मात जपता का रक़ सब भूले । कदन और रात नारर संग झूले ।।15।।
घटती चली लगन जपतु माता । नारर पुि संग मन अजत राता ।।16।।
जफ़्कर पड़ा उद्यम का िबरी । दर दर भरमे दुख अजत सररी ।।17।।
स्वान समान करी गजत अपनी । धन का सुजमरन धन की िपनी ।।18।।
धन पाया तो हुआ अनंदा । अन-जमलते पड़ा दुख का फं दा ।।19।।
गृर कारि अब जनत्त सतावें । कु ल और िाजत बहुत भरमावें ।।20।।
सब का बोझ भार जसर लीन्रा । अब तड़पे िस िल जबन मीना ।।21।।
मूरख ने यर भार उठाया । अब दुक्खन से बहु घबराया ।।22।।
भरमत कफरे सुक्ख के कारन । सुख नसर जमला हुआ दुख दारुन ।।23।।
ककये अपने को बहु पछतावे । पर अब कछू पेि नसर िावें ।।24।।
कल कलेि बहु वषणन लागे । वषाण ऋतु असाढ़ अब िागे ।।25।।
मोर पपीरा भमण िास के । रोग सोग दुख मोर आस के ।।26।।
बोलन लागे चहुंकदस घेरी । उमड़ी घटा मानो रात अूँधरे ी ।।27।।
भजि चन्द्रमा सूरि ज्ञाना । जछप गये दोनों घोर समाना ।।28।।
अज्ञान अूँधरे ा अजत घट छाया । लोक गया परलोक गूँवाया ।।29।।
यर भी बीते दुख में सब कदन । वृद अवस्था आई जछन जछन ।।30।।
।। दोरा ।।
वृद्धाई बादल उमड, घेर जलया तन खंड़ ।
लोभ नदी बाढ़न लगी, तृष्र्ा अजत परचंड ।।31।।
बुजद्ध रीन बल छीन रोय, वषाण तन से रोत ।
नैन नीर मुख नाजसका, बरन लगे िस सोत ।।32।।
।। सावन मास दूसरा ।।
सावन आया मास दूसरा । सास1 मरी घर आया ससुरा2 ।।1।।
काली घटा श्याम मन हूआ । श्याम कं ि में यर मन मूआ ।।2।।

1. माया, इच्छा । 2. ब्रह्म ।


बचन 38 बाररमासा 335

गरिे बादल चमके जबिली । मनसा मोड़ी आसा बदली1 ।।3।।


सुरत जनरत की झजड़याूँ लागीं । धुन अनंत िब्दन से चालीं ।।4।।
बृद्ध अवस्था चेतन लागी । काल आय िब जसर पर गािी ।।5।।
िमपुर से अब सतगुरु राखें । बहुतक िीव मौत दर ताकें ।।6।।
काल घटा िब आकर छाई । धारा मौत अजधक बषाणई ।।7।।
िीव अनेक ररे घबराई । काया गढ़ न दीन्र ढवाई ।।8।।
िमपुर िाय िीव पछतावें । िम के दूत जतन बहुत सतावें ।।9।।
नाना कष्ट दें रैं पल पल में । कफर फाूँसी डालें गल गल में ।।10।।
कु म्भी नकण मासर दें ग़ोते । िीव सरें दुख अजत कर रोते ।।11।।
वे जनरदई2 दया नसर लावें । अजत िास से जिव मुरझावें ।।12।।
अजगन खंभ से कफर जलपटावें । राय राय कर तब जचल्लावें ।।13।।
सुने न कोई मुजश्कल भारी । सपणन माला ले गल डारी ।।14।।
मार मार चहुं कदस से रोई । पजत गजत अपनी सब जवजध खोई ।।15।।
नकण न में अजत िास कदखावें । कफर चौरासी ले पहुंचावें ।।16।।
गुरु भिी जबन यर गजत पाई । नर देरी सब बाद गूँवाई3 ।।17।।
िो िो भिन भजि से चूके । जतन के मुख िम पल पल थूके ।।18।।
ऐसी कु गजत रोयगी सब की । िो नसर धारें सतगुरु अब की ।।19।।
सतगुरु जबना कोई नसर बाचे । नाम जबना चौरासी नाचे ।।20।।
धन्य भाग रम सतगुरु पाया । चढ़ी सुरत मन गगन समाया ।।21।।
सुन्न मूँडल िाय झूला झूली । सावन मास जलया फल मूली ।।22।।
सजखयाूँ सब जमल गावन लागीं । माया ममता देखत भागीं ।।23।।
सभी सुराजगन झूलें घर घर । जपया अपने को जररदे धर धर ।।24।।
जपया जबमुख तरसें बहु नारी । जिनके पजत परदेि जसधारी ।।25।।
जतनको सावन काला नागा । डस डस खावे लागे आगा ।।26।।
बारर वषाण ररमजझम रोई । घट में उनके अजि समोई ।।27।।
अजि लगी मानो तन मन फूूँ का । उनके भावें पड़ गया सूखा ।।28।।

1. बदल गई । 2. कठोर, बे ररम । 3. बे फ़ायदा खोई ।


336 सार बचन बचन 38

तीि त्योरार कछू नसर भावे । मन में दुख, नसर रषण समावे ।।29।।
जपया जबन सावन कै सा आया । िेठ तपन िस िीव िलाया ।।30।।

।। दोरा ।।

िीव िले जवरर अजि में, क्योंकर िीतल रोय ।


जबन वषाण जपया बचन के , गई तरावत खोय ।।31।।
जिन को कं त जमलाप रै, जतन मुख बरसत नूर ।
घट सीतल जररदा सुखी, बािे अनरद तूर ।।32।।

।। भादों मास तीसरा ।।

चे तावनी िीवों को कक मनमत कमण और धमण और िप तप


और मू र्शत पू िा और तीथण व्रत से िीव की चौरासी नरीं छू टे गी
िब तक कक सं त सतगु रु और साध का सं ग और उनसे भे द नाम
का ले क र अं त रमु ख अभ्यास न करें गे और वर्ण न िु जि और भे द
सु र त िब्द मागण का

भादों मास तीसरा िारी । दौं1 लागी सब िग को भारी ।।1।।


तीन ताप का बड़ा पसारा2 । इक इक िीव घेर कर मारा ।।2।।
काम क्रोध मद लोभ सतावें । माया ममता आग लगावें ।।3।।
िल िल िीव पड़े घबरावें । छू टन की कोइ िुगत न पावें ।।4।।
कोई कमण कोइ धमण सम्रारे । कोइ जवद्या कोइ िप तप धारे ।।5।।
कोइ मंकदर िा मूरत पूिे । कोइ तीरथ कोइ बतण में िूझे ।।6।।
यर सब भूले भटका खावें । कोई न इनकी भूल जमटावें ।।7।।
क्या पंजडत क्या भेख गृरस्ती । यर सब बसे काल की बस्ती ।।8।।

1. प्यास लगने से िो भटकी लगती रै । 2. फै लाव ।


बचन 38 बाररमासा 337

चौरासी में बहु भरमावें । नकण स्वगण के धक्के खावें ।।9।।


िो कोई उन से करे समझाई । उलटी मानें करें लड़ाई ।।10।।
कलिुग कमण धमण नसर कोई । नाम जबना उद्धार न रोई ।।11।।
नाम भेद रै अजत कर झीना1 । जबन सतगुरु काहू नसर चीन्रा2 ।।12।।
अपने में सब गये भुलाई । नाम अगम कोइ भेद न पाई ।।13।।
िो सतगुरु पूरे जमल िाते । तो वे भेद नाम का गाते ।।14।।
नाम ररे चौथे पद मारीं । यर ढू ूँढ़ें जतरलोकी मारीं ।।15।।
तीन लोक में नाम न पावें । चौथे लोक में संत बतावें ।।16।।
तीन लोक में बसता काल । चौथे में ररे नाम दयाल ।।17।।
सोई नाम संतन से पावे । जबना संत नसर नाम समावे ।।18।।
अब मारग का भेद बताऊूँ । आूँख खुले तो भेद लखाऊूँ ।।19।।
पजरले सुती नैन िमावे । घेर फे र घट भीतर लावे ।।20।।
जवरर रोय तो यर बन आवे । मेरनत करे तो कु छ फल पावे ।।21।।
देखे जतल जपल िोत समावे । अनरद सुन मन बस में आवे ।।22।।
मन बस रोय तो सूरत िागे । जनरख अकाि आत्मा पागे ।।23।।
िब्द पकड़ परमातम जनरखे । आतम िाय परमातम परखे ।।24।।
परमातम से आगे िाई । सुन्न मरल में बैठक पाई ।।25।।
सुन्न के परे मरासुन लेखा । मरासुन्न पर जखड़की देखा ।।26।।
जखड़की आगे चौक अपारा । चौक परे जनरखा सत द्वारा ।।27।।
सत्तपुरुष सतनाम कराई । सत्तलोक जनि पाया आई ।।28।।
यर मारग संतन ने भाखा । भेद प्रगट कु छ गोय3 न राखा ।।29।।
लोक भेद बस िो जिव रोई । सो परतीत न लावे कोई ।।30।।

।। दोरा ।।

लोक वेद में िो पड़े, नाग पाूँच4 डस खायूँ ।

1. बारीक । 2. समझा । 3. गुप्त । 4. काम, क्रोध, लोभ, मोर, अरंकार ।


338 सार बचन बचन 38

िन्म िन्म दुख में ररें, रोवें और जचल्लायूँ ।।31।।


जिन सतगुरु के बचन की, करी नरीं परतीत ।
नसर संगत करी संत की, रोवें जसर पीट ।।32।।
।। क्वार मास चौथा ।।
आसि रोना िीवों का मन और इजन्द्रयों के भोगों में और
भूलना अपने सत्तकु ल को और प्रगट रोना सत्तपुरुष दयाल
का संत सतगुरु रूप धारन करके वास्ते उनके उद्धार के
और उपदेि करना सुरत िब्द मागण का
क्वार मरीना चौथा आया । जिव भौ सागर वार रराया ।।1।।
पार न िावे वार ररावे । साध संत संग प्रीत न लावे ।।2।।
िगत भोग में ररे अधीना । रोग सोग दुख सुक्ख मलीना ।।3।।
ज्ञान वैराग भजि नसर धारी । मोर राग रंकार पचा री ।।4।।
क्वारी सुरत करे व्यजभचारा । मन इन्द्री संग कफरती लारा ।।5।।
काम क्रोध में भरमत डोले । िड़ चेतन की गाूँठ न खोले ।।6।।
सतसंग करे न सतगुरु सेवे । भाव भजि में मन नसर देवे ।।7।।
काल चक्र क़ा पड़ा सरडोला । ऊूँच नीि खावे झकझोला ।।8।।
िन्म अनेक झूलते बीते । िम झोटन के सरे फ़ज़ीते1 ।।9।।
धमणराय जनत करे ख़ुवारी2 । नकण न में भोगे दुख भारी ।।10।।
कमण भार जसर ऊपर लादा । घेरे कफरे काल का प्यादा ।।11।।
प्यादों के संग इज्ज़त खोती । सत्तनाम कु ल की थी गोती ।।12।।
गोत लिाया िाजत गूँवाई । तो भी मन में लाि न आई ।।13।।
लाि करी तो मन के कु ल की । सुध भूली सब अपने कु ल की ।।14।।
कु ल इसका रै सब से ऊूँचा । संत जबना कोइ िराूँ न पहुंचा ।।15।।
िेष मरेि ररे सब नीचे । ब्रह्म और पारब्रह्म ररे बीचे ।।16।।
सत्तपुरुष को लिा आई । संत औतार धरा िग मारी ।।17।।

1. मुसीबतें । 2. कु गत ।
बचन 38 बाररमासा 339

संत रूप धर जिव उपदेिें । बानी नाव बना जिव खेवें ।।18।।
सुरत अिान न बूझे बानी । कफर कफर डू बे करा न मानी ।।19।।
भौसागर में ग़ोते खावे । मनमत ठान चौरासी धावे ।।20।।
संत बतावें सत की रीत । यर नसर माने कु छ परतीत ।।21।।
जबन परतीत रीत नसर पावे । िन्म िन्म चौरासी िावे ।।22।।
चौरासी से संत बचावें । उनका बचन न मन ठररावे ।।23।।
मन के रं ग कफरे बहुरं गी । ढंग न सीखे बड़ी कु ढंगी ।।24।।
साध संत का ढंग नसर सीखे । भोगे दुख रस चाखे फीके ।।25।।
रस फीके संसार के सबरी । अंतर का रस अगम न लेरी ।।26।।
स्वाूँजत पदररया अंतर बरसे । सुरत लगावे तो मन सरसे1 ।।27।।
िदण चन्द्रमा अंतर दरसे । सुन्न की धुन्न िाय िब परसे ।।28।।
मोती चुने मानसरवर के । भोगे भोग मराल2 नगर के ।।29।।
िो संतन के बचन सम्राले । िाय िबेनी रोय जनराले ।।30।।

।। दोरा ।।

रोय जनराल सुन्दर लखे, सुने ककगरी नाद ।


नाद सुरत रोवत मगन, कफर खोित पद आद ।।31।।
संत दया सतगुरु मया3, पाया आद अनाद ।
गजत मजत करते ना बने, सुरत भई जबस्माद ।।32।।

।। काजतक मास पाूँचवाूँ ।।

वर्णन कूँ वलों का अंदर काया के और बड़ाई संत मते की


काजतक मास पाूँचवाूँ चला । सुरत िब्द गुरु चेला जमला ।।1।।
तक काया कूँ वलन जवजध भाखी । कूँ वल दुवादस काया राखी ।।2।।
प्रथमे कूँ वल गनेि जबलासा । कूँ वल दूसरे ब्रह्मा बासा ।।3।।

1. खुि रो । 2. रंस । 3. कृ पा ।
340 सार बचन बचन 38

कूँ वल तीसरे जवष्र्ु प्रकािा । चतुथण कूँ वल जिव िजि जनवासा ।।4।।
आतम कूँ वल पाूँचवाूँ रोई । छठा कूँ वल परमातम सोई ।।5।।
कूँ वल सातवें काल बसेरा । िोत जनरं िन का वराूँ डेरा ।।6।।
कूँ वल आठवाूँ जिकु टी मारीं । सूरि ब्रह्म बसे तेजर ठारीं ।।7।।
नवाूँ कूँ वल रै दसवें द्वारे । पारब्रह्म िरूँ बसे जनरारे ।।8।।
मरासुन्न में कूँ वल असचता । कूँ वल दसम का वराूँ बरतंता ।।9।।
कूँ वल इकादि भूँवरगुफा पर । द्वादस कूँ वल सत्तपद अंतर ।।10।।
खट चक्कर यर सपड सूँवारा । तीन चक्र ब्रह्मंड अधारा ।।11।।
तीन कूँ वल िो ऊपर ररे । संत जबना कोइ बरन न करे ।।12।।
खष्ट कूँ वल तक िोगी आसन । नवें कूँ वल िोगेश्वर बासन1 ।।13।।
सपड ब्रह्मंड का इतना लेखा । योगी ज्ञानी यराूँ तक देखा ।।14।।
आगे का कोई भेद न िाने । तीन कूँ वल सो संत बखाने ।।15।।
कोइ छः तक कोइ नौ तक भाखे । सवण मते इन भीतर थाके ।।16।।
बड़ा संत मत सब से आगे । संत कृ पा से कोइ कोइ िागे ।।17।।
िो पहुंचे द्वादस अस्थाना । सोई कजरये संत सुिाना ।।18।।
संतन का मत सब से ऊूँचा । िो परखे सोई धुर पहुंचा ।।19।।
पहुंचे की क्या करूूँ बड़ाई । सब मत उसके नीचे आई ।।20।।
िो मन में परतीत न देखे । तो कबीर गुरु2 बानी पेखे ।।21।।
तुलसी सारब का मत िोई । पलटू िगिीवन करें सोई ।।22।।
इन संतन का देऊूँ प्रमाना । इनकी बानी साख3 बखाना ।।23।।
िोग ज्ञान मत इनहूं भाखा । पुजन संतन मत ऊूँचा राखा ।।24।।
िोगी और वेदान्ती भाई । संतन मत परतीत न लाई ।।25।।
वेद कतेब4 न पहुूँचे तरूँ रीं । थके बीच में रस्ते मारीं ।।26।।
बार बार कर कर समझाऊूँ । संतन का मत ऊूँचा गाऊ ।।27।।

1. बासा, ठरराव । 2. नानक सजरब । 3. गवारी । 4. क़ु रान ।


बचन 38 बाररमासा 341

िो परतीत न लावे या की । िानो काल ग्रसी बुजध वा की ।।28।।


वे करा िानें मत संतन को । एक जमलावें काूँच रतन को ।।29।।
उनसे यर मत खोल न कजरये । सैन िनाय मौन गजर रजरये ।।30।।
।। दोरा ।।
संत मता सब से बड़ा, यर जनश्चय कर िान ।
सुफ़ी और वेदान्ती, दोनों नीचे मान ।।31।।
संत कदवाली जनत करें , सत्तलोक के मासर ।
और मते सब काल के , योंरी धूल उड़ायूँ ।।32।।

।। अगरन मास छठवाूँ ।।


मजरमा सतगुरु की और जवजध सतसंग और भजि की
और चढ़ कर पहुूँचना सुरत का सत्तलोक
में उन की मेरर और दया से
आया मास अगरन अब छठा । अघ1 की राजन हुई मल घटा ।।1।।
मन हुआ जनमणल जचत हुआ जनश्चल । काम क्रोध गये इन्द्री जनष्फल ।।2।।
धरन छोड़ सुतण चढ़ी अकािा । िब्द पाय आई मराकािा ।।3।।
िब्द संग जनत करे जबलासा । देखे अचरि जबमल तमािा ।।4।।
छोड़ा यर घर पकड़ा वर घर । खोया िग को पाया सतगुरु ।।5।।
िब से सतगुरु सरना लीन्रा । सत्तनाम धुन घट में चीन्रा ।।6।।
धन सतगुरु धन उनकी संगत । जिन प्रताप पाई मैं यर गत ।।7।।
कर सतसंग काि ककया पूरा । पाप नसे2 मानो खाया धतूरा ।।8।।
पाप पुन्य दोउ गये नसाई । भजि भाव जिव हृदय समाई ।।9।।
अब यर सतसंग गुरु का पावे । जरल जमल चरन मासर जलपटावे ।।10।।
चरन सेव चरनामृत पीवे । गुरु परिादी खा जनत िीवे ।।11।।
दिणन करे बचन पुजन सुने । कफर सुन सुन जनत मन में गुने ।।12।।

1. पाप । 2. नाि हुए ।


342 सार बचन बचन 38

गुन गुन छाूँट लेय उन सारा । सार धार जतस करे अरारा ।।13।।
कर अरार पुष्ट हुआ भाई । िग भौ लाि अब गई नसाई ।।14।।
गुरु भजि िानों इश्क़ गुरू का । मन में धसा सुरत में पक्का ।।15।।
पक पक घट में गड़ा थाना । थान गाड़ अब हुआ कदवाना ।।16।।
गुरु का रूप लगे अस प्यारा । काजमन पजत मीना िल धारा ।।17।।
सतसंग करना ऐसा चजरये । सतसंग का फल येरी सरी रै ।।18।।
सतसंग सतसंग मुख से गावे । करें जनत्त फल कछू न पावें ।।19।।
सतसंग मजरमा रै अजत भारी । पर कोइ िीव जमले अजधकारी ।।20।।
अजधकारी जबन प्रगट नरीं फल । सतसंग तौ कीन्रा सब चल चल ।।21।।
चल चल आये सतगुरु आगे । बचन न पकड़ा दरस न लागे ।।22।।
सतसंग और सतगुरु क्या करें । सो जिव भौिल कै से तरें ।।23।।
पत्थर पानी लेखा बरता । िल जमसरी सम मेल न करता ।।24।।
बारर का संग िब अस रोई । सतगुरु सम प्रीतम नसर कोई ।।25।।
तब अंतर का सतसंग धारे । सुरत चढ़े असमान पुकारे ।।26।।
बोले अिण और गरिे गगना । बैठा कु रसी मन हुआ मगना ।।27।।
ला-मुक़ाम पाया लाहूत । छोड़ा नासूत मलकू त िबरूत ।।28।।
राहूत का िाय खोला द्वारा । हूतलहूत और हूत सम्रारा ।।29।।
हूत मुक़ाम फ़कीर अखीरी । रूर सुरत िराूँ देती फे री ।।30।।

।। दोरा ।।

अल्लाहू जिकु टी लखा, िाय लखा रा सुन्न ।


िब्द अनाहू पाइया, भूँवरगुफा की धुन्न ।।31।।
रक़्क़ रक़्क़ सतनाम धुन, पाई चढ़ सचखंड ।
संत फक़र बोली िुगल, पद दोउ एक अखंड ।।32।।
बचन 38 बररमासा 343

।। पूस मास सातवाूँ ।।


वर्णन स्वरूप सुरत और िब्द का और उपदेि सतगुरु भजि और सतसंग
का िो कक मुशय उपाय प्राजप्त मेरर और दया का रै
पूस मरीना िाड़ा भारी । कमण भमण ज्यों फू स िला री ।।1।।
िल िल ढेर हुआ िब भारी । प्रेम पवन से तुरत उड़ा री ।।2।।
मोर सीत1 ने जचत को घेरा । सूर जववेक2 ककया घट फे रा ।।3।।
फे रा करत भजि गुरु िागी । सुरत भई अनरद अनुरागी ।।4।।
राग भोग सब दूर जनकारा । जवमल जवरर वैराग सम्रारा ।।5।।
सरि िोग गुरु कदया बताई । सुरत िब्द मारग लखवाई ।।6।।
झीनी सुरत रूप नसर दरसे । परसे िब्द िाय मन घर से ।।7।।
सुन्न जिखर िाय रूप कदखाना । गगन मंडल के पार रठकाना ।।8।।
रूप सुरत का दरसा ऐसा । जबन अनुभव क्यों कर कहूं कै सा ।।9।।
अनुभव से वर िाना िाई । िब्द जबना अनुभव3 नसर पाई ।।10।।
सुरत िब्द दोउ अनुभव रूपा । तू तो पड़ा भमण के कू पा ।।11।।
करनी करकर सुरत चढ़ाओ । िब्द जमले अनुभव घर पाओ ।।12।।
जबना िब्द अनुभव नसर रोई । अनुभव जबन समझे नसर कोई ।।13।।
सुरत िब्द दोउ रूप अमोला । सुन्न चढ़े जिन जनि कर तोला ।।14।।
ताते करनी गुरु बताई । सतगुरु दया लेव संग भाई ।।15।।
मेरर दया करनी करवाई । करनी कर बहु मेरर बढ़ाई ।।16।।
करनी मेरर संग दोउ चलते । तब फल पूरा चढ़ चढ़ लेते ।।17।।
अस संिोग मौि से रोई । मौि उपाव नरीं अब कोई ।।18।।
पच पच थक थक सब री रारे । मौि जबना क्यों करें जबचारे ।।19।।
इक उपाव कु छ मन में आया । पर थोड़ा सा जचत्त समाया ।।20।।
िब िब संत िगत में आवें । ढू ंढ भाल उनके कढग िावें ।।21।।
िाय करें जनत सेवा दिणन । राजज़र ररें जगरें उन चरनन ।।22।।
जनत्त राजज़री उनकी करते । मन से दीन लीन रोय ररते ।।23।।
पर यर बात बड़ी अजत झीनी । संत करावें सनदा अपनी ।।24।।

1. सरदी । 2. जवचार । 3. प्रत्यक्ष ।


344 सार बचन बचन 38

जनन्दा चौकीदार जबठाई । कोई िीव धसने नसर पाई ।।25।।


जबरला िीव रोय अनुरागी । सनदा से वर जछन जछन भागी ।।26।।
सनदा सुन सुन जचत नसर धारे । संतन की यर िुगत जवचारे ।।27।।
िस िाने तस मन समझावे । संतन सन्मुख ज्यों त्यों आवे ।।28।।
ऐसी दृढ़ता िाकर रोई । तो कफर संत मौि करें सोई ।।29।।
संत मौि कफर कोइ न टारे । ईश्वर परमेश्वर सब रारे ।।30।।
दोरा
संत डाररया बीि, घट धरती िेजर िीव के ।
को अस समरथ रोय, िो िारे उस बीि को ।।31।।
कोई काल के मासर, वर बीिा अंकुर गरे ।
िब िब आवें संत, अंकूरी उन संग ररे ।।32।।
सोरठा
वर सीचें जनि पौद, रोय भि वर पेड़ सम ।
फल लागें अजत से सरस, भोगें सतगुरु मेरर से ।।33।।
कारि कीन्रा पूर, संत धूर जररदे धरी ।
सूर हुआ मन चूर, नूर तूर घट में प्रगट ।।34।।
।। माघ मास आठवाूँ ।।
वर्णन लीला और जवलास मुक़ामात का
और उनके रास्ते का अंतर में
माघ मरीना अजत रस भरा । काया बन मन गुलिन1 ररा ।।1।।
चमन2 चमन फु लवारी जखली । बाग़ बाग़ नररें अब चलीं ।।2।।
गुरु भजि और पौद प्रेम की । क्यारी धीरि दया नेम की ।।3।।
अस अस लीला देखी घट में । मन माली सींचे जछन जछन में ।।4।।
नैनन आगे पचरं ग फू ल । पल पल जनरखत जतल जतल झूल3 5।।
तत्त्व पृथवी जभन्न रोय दरसा । ऋतु बसंत फू ली मन सरसा ।।6।।
झलक िोत और उमंड घटा की । ररम जझम बरसे बूद ं अमी की ।।7।।

1. फु लवारी । 2. बग़ीचा । 3. झूलती रै ।


बचन 38 बाररमासा 345

सरस धार दल सरस कूँ वल में । उठें तरं गें फै लें मन में ।।8।।
मन चढ़ चला मरल अपने में । उल्टा पहुंचा गगन मंडल में ।।9।।
गगन मंडल लीला इक न्यारी । िब्द गुरु की जखल ररी क्यारी ।।10।।
मूल नाम और िाखा धुन की । फू ली िरूँ फु लवार जिगुन की ।।11।।
यर लीला घट मासर जनरारी । मजरमा नाम करा कहुं भारी ।।12।।
सरगुन नाम और सरगुन रूपा । वराूँ तक देखा मन का सूता ।।13।।
अब आगे सूरत चढ़ चली । पैठी1 िाय सुखमना नाली ।।14।।
सुखमन में जनि मन दरसाना । जनि मन आगे जनरगुन िाना ।।15।।
यर जनरगुन वर सरगुन देखा । दोनों घाट जभन्न कर पेखा ।।16।।
अब आगे पाूँिी2 इक गाऊूँ । गंधपण नाल के मध्य चढ़ाऊूँ ।।17।।
नाल भुवग ं न बायें त्यागी । दरने नाल धुन्धरी िागी ।।18।।
िागत नाल काल मुख मूद ं ा । घाट अठासी नाका रूूँधा ।।19।।
ससर पौल3 कढग झूँझरी जनरखी । सेत पदमनी िाली परखी ।।20।।
सुन्न ताल िरूँ धुन भंडारा । छिली किली दीप जनरारा ।।21।।
सागर नागर िाकर झाूँका । कु रम िेष अक्षर िराूँ थाका ।।22।।
िराूँ सुरंगी दीप झरोखा । सुरत अड़ी िाय द्वारा रोका ।।23।।
संदली चंदली चौकी डारी । सुरत मंडली पाट खुला री ।।24।।
कुं डल दीप छबीली रमना । दाजमन दीप सोत का झरना ।।25।।
नीलम कुं ड रतन नल पाल । मराकाल रजचया िरां िाल ।।26।।
कं कन घाटी सुरत झमाई । िाल काल सब दूर पड़ाई ।।27।।
सेत धरन िराूँ लाल अकासा । रंस छावनी देख जबलासा ।।28।।
यर पाूँिी जनरखी जनि धामी । जबमल दीप बैठे िराूँ स्वामी ।।29।।
पोरप नगर िराूँ अमृत धाम । रंस बसें पावें जवश्राम ।।30।।

1. धसी । 2. रास्ता । 3. दरवािा ।


346 सार बचन बचन 38

।। दोरा ।।
बैठक स्वामी अद्भुती, राधा जनरख जनरार ।
और न कोइ लख सके , िोभा अगम अपार ।।31।।
गुप्त रूप िराूँ धाररया, राधास्वामी नाम ।
जबना मेरर नसर पावई, िराूँ कोई जवश्राम ।।32।।
।। फागुन मास नवाूँ ।।
उतरना सुरत का बीच नौ द्वार के और फूँ स िाना
मन और इजन्द्रयों का संग करके भोगों में और
कफर आना सत्तपुरुष दयाल का संत सतगुरु
रूप धार कर और पहुूँचाना सुरत का
जनि घर में िब्द मागण रास्ते की कमाई से
और वर्णन भेद रास्ते और
मुक़ामात का
फागुन मास रूँ गीला आया । धूम धाम िग में फै लाया ।।1।।
घर घर बािे गािे लाया । झाूँझा मिीरा डफ़ बिाया ।।2।।
यर नर देरी फागुन मास । सुरत सखी आइ करन जबलास ।।3।।
मन इन्द्री संग खेली फाग । उत से सोई इत को िाग ।।4।।
िग में आ संिोग जमलाया । लोक लाि कु ल चाल चलाया ।।5।।
भोग रोग पररवार बूँधानी । फगुआ खेली रोली ठानी ।।6।।
धूल उड़ाई छानी खाक । पाप पुन्य संग हुइ नापाक ।।7।।
इच्छा गुन संग मैली भई । रं ग तरं ग बासना गरी ।।8।।
फल पाया भुगती चौरासी । काल देस िरूँ बहुत जतरासी ।।9।।
आस िास मासर अजत फूँ सी । देख देख जतस माया रूँसी ।।10।।
रूँस रूँस माया िाल जबछाया । जनकसन का कोइ रार न पाया ।।11।।
तब संतन जचत दया समाई । सत्तलोक से पुजन चजल आई ।।12।।
बचन 38 बाररमासा 347

ज्यों त्यों चौरासी से काढ़ा । नर देरी में कफर ले डाला ।।13।।


चरन प्रताप सरन में आई । तब सतगुरु अजतकर समझाई ।।14।।
तुझको कफर कर फागुन आया । सम्रल खेजलयो रम समझाया ।।15।।
सुरत करे सुनो संत सुवामी । कस खेलूूँ करो अंतरिामी ।।16।।
तब सतगुरु इक भेद लखाया । सुरत िोग मारग बतलाया ।।17।।
सुरत चली अब खेलन रोली । कर ससगार बैठ धुन डोली ।।18।।
जवरर अनुराग रं ग घट लीन्रा । मन को संग ले तन ति दीन्रा ।।19।।
िब्द गुरु से परले खेली । गगन चौक चढ़ जिकु टी लेली ।।20।।
जिकु टी मासर बहुत कदन खेली । ओंकार संग कीन्रा मेली ।।21।।
लाल गुलाल रूप सुतण पाया । तब सतगुरु सुन्न िब्द सुनाया ।।22।।
आगे बढ़ी चढ़ी ऊूँचे को । उलट न देखे अब नीचे को ।।23।।
चल चल पहुंची सत्तलोक में । फगुवा माूँगे सत्तनाम से ।।24।।
गई िराूँ से कफर वजर आई । पद में अपने आन समाई ।।25।।
रं ग रं ग जनत खेलत रोली । िो रोना था सो अब रो ली1 ।।26।।
छोड़ा सपडा छोड़ा अंडा । खंड खंड कीन्रा ब्रह्मंडा ।।27।।
जनि घर अपने िाकर बसी । सत्त िब्द धुन बीना रसी2 ।।28।।
रंस रूप अब धारा असली । देर रूप धर बहुतक फूँ सली3 ।।29।।
काल जनरं िन तोड़ी पसली । रो गइ सत्तनाम गल रूँसली4 ।।30।।

दोरा

िब आवे सुतण देर में, देर रूप ले ठान ।


िब चढ़ उलटे सुन्न को, रंस रूप पजरचान ।।31।।
सुरत रूप अजत अचरिी, वर्णन ककया न िाय ।
देर रूप जमथ्या तिा, सत्त रूप रो िाय ।।32।।

1. रो गया । 2. रस से भरी । 3. फूँ सी । 4. नाम गरने का ।


348 सार बचन बचन 38

।। चैत मास दसवाूँ ।।

चैत मरीना आया चेत । बाूँधा सतगुरु भौ में सेत1 ।।1।।


िीव जचताये िो थे वार2 । भौसागर से कीन्रे पार ।।2।।
भौसागर अजत गजरर गंभीर । सतगुरु पूरे बाूँधी धीर ।।3।।
तन मन धन की लई िगात3 । जिष्य उतारे गजरकर राथ5 ।।4।।
सुरत बरे थी नौ5 की धार । ताजर चढ़ाया गगन मूँझार ।।5।।
गगन िाय धुन िब्द जसरारी6 । देखा रूप िोत अजत भारी ।।6।।
िोत जनरारे देखे तारा । बंक नाल का खोला द्वारा ।।7।।
संख सुना और धुन ओंकारा । िब्द गुरु का घाट जनरारा ।।8।।
छोड़ा मन अब चेती सूरत । जिकु टी चढ़ जनरखी गुरु मूरत ।।9।।
गुरु चेला जमल आगे चाली । मानसरोवर िब्द सम्राली ।।10।।
रंसन साथ करी िाय यारी । सुरत सखी हुइ सबकी प्यारी ।।11।।
सुन्न िरर में कु छ कदन बसी । कफर चढ़ ऊपर आगे धसी ।।12।।
मरासुन्न इक नगर अपारा । कहूं करा अचरि जबस्तारा ।।13।।
धुन िराूँ चार गुप्त अजत झीनी । संत जबना कोइ परख न चीन्री ।।14।।
असचत दीप तरं दायें ररता । सरि दीप दस पालूँग बसता ।।15।।
मजरमा दीप करा कहुं भारी । संतोष दीप तराूँ बायें सूँवारी ।।16।।
तरूँ इक जझरना अिब रचानी । सुरत जनरत से गरी जनसानी ।।17।।
देख जनिान मध्य को धाई । भूँवरगुफा की गली समाई ।।18।।
जतस आगे मैदान कदखाना । सत्तलोक िराूँ पुरुष पुराना ।।19।।
जनि पद पाय पुरुष से जमली । देख गली आगे कफर चली ।।20।।
अलख लोक में ककया बसेरा । अगम लोक िाय डाला डेरा ।।21।।
िोभा वराूँ की क्या कर गाऊूँ । अरब खरब िजि सूर लिाऊं ।।22।।
अब अनाम िराूँ रूप न नामा । संत करें िाय वराूँ जवश्रामा ।।23।।

1. सतगुर ने भवसागर में पुल बांधा । 2. आर । 3. मरसूल । 4. राथ पकड़


कर । 5. नौ द्वार । 6. पकड़ी ।
बचन 38 बाररमासा 349

सुरत चेत पाया जबसमाद1 । नसर िराूँ बानी नसर िराूँ नाद ।।24।।
आकद न अंत अनंत अपार । संतन का वर जनि दरबार ।।25।।
संत सभी वा घर से आवें । काल देि से िीव जचतावें ।।26।।
िो चेते जतस ले पहुंचावें । सुरत िब्द मारग बतलावें ।।27।।
िीव चेत िो माने करना । ताको कफर दुख सुख नसर सरना ।।28।।
मानो बचन करो कु छ करनी । सुरत जनरत की धारो ररनी ।।29।।
सतसंग करो गरो गुरु रं ग । सुरत चढ़ाओ गगन उमंग ।।30।।
।। दोरा ।।
सतगुरु संत दया करी, भेद बताया गूढ़1 ।
अब सुन िीव न चेतई, तो िानो अजत मूढ़ ।।31।।
भौसागर धारा अगम, खेवरटया गुरु पूर ।
नाव बनाई िब्द की, चढ़ बैठे कोइ सूर ।।32।।
।। बैसाख मास ग्याररवाूँ ।।
वर्णन भेद काल मत और दयाल मत का और प्रगट रोना सत्तलोक
का और रचना तीन लोक की और सबब फै लने काल मत
का और गुप्त रोना संत मते का
बैसाख मरीना जसर पर आया । साख गई जिव हुआ पराया ।।1।।
काल पक्ष सब िीवन धारी । पुरुष दयाल की सुजद्ध जबसारी ।।2।।
सुरत देि अपना जबसराना । काल देि इन अपना िाना ।।3।।
काल रची जतरलोकी सारी । दयाल रचा सतलोक सम्रारी ।।4।।
तीन लोक काल का थाना । चौथा लोक दयाल अस्थाना ।।5।।
काल कदया िीवन को धोका । चौथे पद से सब को रोका ।।6।।
दयाल पुरुष का भेद न दीना । कमण कांड में िीव अधीना ।।7।।
अपनी पूिा सब जवजध गाई । िीव चले चौरासी भाई ।।8।।
िैगन
ु रसरी िीव वूँधाना । ब्रह्मा जवष्र्ु मरेि पुिाना ।।9।।

1. जविेष समाजध अवस्था । 2. गुप्त ।


350 सार बचन बचन 38

देवी देवा पत्थर पानी । पाप पुण्य में िीव उरझानी ।।10।।
काल धरे िग दस औतारा । कला कदखाय िीव धर मारा ।।11।।
आपजर राम आप हुआ रावन । आपहु कं स आप िसुनन्दन ।।12।।
आपजर बल1 और आपजर बावन । आपजर कच्छ मच्छ धर धारन ।।13।।
परसराम और नरससर देख । प्ररलाद भि रोय बाूँधी टेक ।।14।।
खंभ फाड़ बारर रोय जनकला । रक्षक कला कदखाई सकला2 ।।15।।
चाूँद सूयण और गौर गनेिा । पुिवाये और राहु रोय ग्रसा ।।16।।
अस अस कला अनंत असंखा । कराूँ लग बरनूूँ भेद सबन का ।।17।।
काल जलया सब लोकन घेरी । दयाल पुषण कोइ ममण न रेरी ।।18।।
काल कला परचंड कदखाई । िीव चले सब उसकी रारी ।।19।।
संतन का कोइ भेद न िाना । संत मता ररा गुप्त जछपाना ।।20।।
संत मता खुल कर अब गाऊूँ । देकर कान सुनो समझाऊूँ ।।21।।
नसर पताल नसर मृत अकािा । पाूँच तत्त्व नसर जतरगुन स्वाूँसा ।।22।।
नसर जिव िजि न पुरुष प्रककरती । िोत जनरं िन नसर परककरती ।।23।।
तारा मंडल सूर न चंदा । सपड ब्रह्मंड रचा नसर अंडा ।।24।।
कु रम न िेष नरीं ओंकारा । माया ब्रह्म न ईश्वर धारा ।।25।।
आतम परमातम नसर दोई । सुन्न मरासुन रचा न सोई ।।26।।
अल्ला ख़ुदा रसूल न रोते । पीर मुरीद न दादा पोते ।।27।।
वेद पुरान क़ु रान न करते । मजस्िद काबा बांग3 न देते ।।28।।
नसर जिकाल सन्ध्या न नमाज़ा । तीरथ बतण नेम नसर रोज़ा ।।29।।
कमी िरई थे नसर भाई । िोगी ज्ञानी खोि न पाई ।।30।।

दोरा

तपसी4 रबसी5 ज़ाजरदा6 नसर आजबद7 माबूद8 ।


क़ु तुब पैग़म्बर औजलया, कोई न थे मौिूद ।।31।।

1. एक दैत्यराि बजल । 2. सब । 3. अिान । 4. तप करने वाला । 5. प्रार्ों


को रोकने वाला । 6. िती । 7. भि । 8. भगवंत ।
बचन 38 बाररमासा 351

स्वगण नकण दोज़ख1 इरम2, अज़ण3 समा नसर रोय ।


मुसलमान जरन्दू नसर, िैन न ईसा कोय ।।32।।

।। िेठ मास बाररवाूँ ।।

िेठ मरीना िेठा भारी । िीवन जररदे तपन करारी5 ।।1।।


संत दयाल िीव जरतकारी । भेद करें अब जनि कर भारी ।।2।।
नसर खाजलक़6 मखलूक़7 न जखल्क़त । कताण कारन काि न कदक़्क़त ।।3।।
दृष्टा दृजष्ट नसर कु छ दरसत । वाच8 लक्ष9 नसर पद न पदारथ ।।4।।
ज़ात जसफ़ात न अव्वल आजखर । गुप्त न परगट बाजतन ज़ाजरर ।।5।।
राम ररीम करीम न के िो । कु छ नसर कु छ नसर कु छ नसर था सो ।।6।।
जसमृजत िास्त्र न गीता भागवत । कथा पुरान न विा कीरत ।।7।।
सेवक सेव10 न दास न स्वामी । नसर सतनाम न नाम अनामी ।।8।।
कराूँ लग कहूं नरीं था कोई । चार लोक रचना नसर रोई ।।9।।
िो कु छ था सो अब कर भाखूूँ । उनमुन सुन्न जबसमाधी राखूूँ ।।10।।
रैरत रैरत रैरत रोई । रैरत रूप धरा इक सोई ।।11।।
उनमुन रूप सदा वर ररता । उनमुन दिा सदा वजर बरता ।।12।।
वा की गजत कोई नसर िाने । वर अपनी गजत आप बखाने ।।13।।
संत तूप रोय िग में आया । अपना भेद आप उन गाया ।।14।।
आपजर आप न दूसर कोई । उठी मौि परगट सत सोई ।।15।।
तीन देि मौि ने रचे । अगम अलख सतनाम रोय रूँसे ।।16।।
धुन धधकार उठी इक भारी । सात सुरत रचना उन धारी ।।17।।
सांचा बन िामन पुन दीन्रा । सुरत परस्पर रचना कीन्रा ।।18।।
सोरं सुरत आकद यों बोली । सोरं सोरं सम्पट खोली ।।19।।
सरि धीर िामन तरां दीन्रा । ओं सोरं गभण धुन चीन्रा ।।20।।
मूल सुरत िरां पर प्रगटाई । मूल द्वार पर बैठी आई ।।21।।

1. नकण । 2. स्वगण । 3. पृथ्वी । 4. आकाि । 5. सशत । 6. पैदा करने वाला ।


7. रचना । 8. िो वार्ी द्वारा करा िावे । 9. िो देखा िावे । 10. जिसकी
सेवा की िाय ।
352 सार बचन बचन 38

िांत सुरत तरं कीन्र जबलासा । रंस रचे कर दीप जनवासा ।।22।।
दीपन िोभा क्या कहुं भारी । रंस कु तूरल1 करें अपारी ।।23।।
पुरुष दरस और लीला न्यारी । देख देख अनुभव गजत धारी ।।24।।
िुग के ते और मुद्दत के ती । करी न िावे उनकी जगनती ।।25।।
रचना सत्य सत्य वर देिा । नसर व्यापे िराूँ काल कलेिा ।।26।।
रंस सभा समरथ तरूँ बैठे । लीला देखें ररें इकट्ठे ।।27।।
कूँ वल द्वार दल धारा जनकसी । श्याम रूप अचरि रोय दरसी ।।28।।
पुरुष देख अचरि लौलीना । सेत मासर िस श्याम नगीना ।।29।।
सब रंसन जमल अज़ी कीन्रा । कौन कला यर रम नसर चीन्रा ।।30।।
पुरुष करा तुम करो जवलासा । यर कल रजचरै और तमािा ।।31।।
दोरा
रंसन मन अचरि भया, करा करे जवस्तार ।
पुरुष सेव जनत री करै , मन कु छ औरजर धार ।।32।।
धारा वर बढ़ती चली, कला न रोकी ताजर ।
पुरुष मौि ऐसी हुई, बोली कला बनाय ।।33।।
रचना रचूूँ और मैं न्यारी । यर रचना मोसर लगे न प्यारी ।।34।।
तीन लोक रचना मैं करूूँ । राि पाय ध्यान तुम धरूूँ ।।35।।
पुरुष कला को कदया जनकासी । जनकस कला कीन्रा अजत िासी ।।36।।
पुरुष दया कर िुगत बनाई । कला दूसरी और उपाई ।।37।।
पीत वर्ण वर कला ससगारी । दीन्री अज्ञा पुरुष जनरारी ।।38।।
एक काल कु छ अंस दयाली । दोनों जमल कीन्रा कु छ ख़्याली ।।39।।
आये मानसरोवर तीरा । अक्षर की देखी वरूँ लीला ।।40।।
लीला देख कला जचत िासा । तब अक्षर ने कदया कदलासा ।।41।।
दोरा
िोत जनरं िन दोउ कला, जमल कर उत्पजत कीन ।
पाूँच तत्त्व और चार खान, रच लीन्रे गुन तीन ।।42।।

1. लीला ।
बचन 38 बाररमासा 353

गुन तीनों जमल िगत का, ककया बहुत जवस्तार ।


ऋजष मुनी नरदेव अदेव1, रच बाढ़ो रंकार ।।43।।
।। सोरठा ।।
ब्रह्मा जवष्र्ु मरेष, और चौथी िोती जमली ।
भमण िाल की फांस, िीव न पावें जनि गली ।।44।।
आप जनरं िन हुए जनयारे । भार सृजष्ट सब इन पर डारे ।।45।।
दीप रचा इक अपना न्यारा । ता में कीन्रा बहु जवस्तारा ।।46।।
पालूँग आठ दीप परमाना । िोग आरं भ कीन जवजध नाना ।।47।।
स्वाूँस खैंच जनि सुन्न चढ़ाये । धुन प्रगटी और वेद उपाये ।।48।।
वेद जमले ब्ह्मा को आये । देख वेद ब्रह्मा ररखाये ।।49।।
मुख चारों से धुन उचारी । ताते वेद हुए पुजन चारी ।।50।।
ऋजष मुजन जमल कफर ककया पसारा । कमण धमण और भमण सम्रारा ।।51।।
जसमृत िास्तर बहु जवजध रचे । कमण धमण में सब जमल पचे ।।52।।
खोि जनरं िन ककनहुं न पाया । वेदहु नेजत नेजत गुरराया2 ।।53।।
।। दोरा ।।
दिण जनरं िन ना जमला, ककया ज्ञान अनुमान3 ।
कफर आगे सतपुरुष का, क्यों कर करें प्रमान ।।54।।
ताते यर मत संत का, ररा गुप्त िग मासर ।
गुन तीनों मानें नरीं, िीवहु मानें नासर ।।55।।
।। सोरठा ।।
संत पुकारें भेद, वेद पिु मानें नरीं ।
अब क्या करें उपाय, िीव पड़े सब भमण में ।।56।।
जतरलोकी का नाथ कराया । सो भी उनके राथ न आया ।।57।।
स्वगण नकण चौरासी फे रा । िन्म िन्म पड़े काल के घेरा ।।58।।

1. राक्षस । 2. वर्णन ककया । 3. कयास ।


354 सार बचन बचन 38

कोइ कोइ चेतन मासर समाने । सो भी कफर िनमे भौ आने ।।59।।


चौथा लोक संत दरबारा । जनश्चय ता का काहू न धारा ।।60।।
संत दया अपने जचत धरें । िीव न मानें तो क्या करें ।।61।।
भेद बतावें बानी करें । देर धरें और िग में ररें ।।62।।
िीव जचतावें ककरपा धार । बहुत उठावें िीवन भार ।।63।।
तौ भी कोइ परतीत न लावे । चौथा पद आसा नसर धारे ।।64।।
बारर मास बखान पुकारे । कर कर कर अब रम भी रारे ।।65।।
रार िीत कु छ रमरे नारीं । मूरख पर इक तान चलाई ।।66।।
सत्य सत्य सत्य मैं करी । अब करने को कु छ नसर ररी ।।67।।
राधास्वामी नाम उचारो । भजि भाव अब मन में धारो ।।68।।
संतन की जिन मन परतीत । और धारी जिन सतसंग रीत ।।69।।
सतसंग करे जनत्त िो आई । उन प्रजत यर बानी रम गाई ।।70।।

।। मूँगल दूसरा ।।

गुरु मेंरे दीनदयाल, करी ककरपा घनी ।


सुन कर बानी सार1 सुरत धुन में तनी ।।1।।
प्रेम प्रीत जचत धार, दास िोभा बनी ।
मैं औगुन की खान, कहूं कराूँ लग जगनी ।।2।।
िब्द भेद अजत गूढ़, थके िराूँ मुजन िनी ।
कोई न पावे भेद, छान ऐसी छनी ।।2।।
सत्तनाम सतपुरुष, अगम पूरन धनी ।
संत बतावें भेद, सार भाखें पुनी ।।4।।
िीव न माने नेक, काल बुजध उन रनी2 ।
प्रेमी सतसंगी कोई, जिन खोई मानमनी ।।5।।

1. बाररमासा । 2. नाि करी ।


बचन 39 बसन्त 355

नसर बूझे संसार, चाल मनमुख सनी ।


िौररी िाने कोय, परख माजनक मनी ।।6।।
पोत1 गरे िग मूढ़, छाूँड़ रीरा कनी ।
क्योंकर कहूं बुझाय, बात ऐसी बनी ।।7।।
सुरत रंसनी िाय, िब्द मोती चुनी ।
कोइ जबरले गुरुमुख िीव, ठान ऐसी ठनी ।।8।।
खोला अगम दुवार, ममण िाना जिनी ।
गई रात अूँजधयार, हुआ चाूँदन कदनी ।।9।।
सतगुरु ककरपा धार, साख ऐसी भनी2 ।
मार जलया मन खेत, सोई सूरा रनी ।।10।।
आकद नाम को भूल, हुई सब की ऋनी3 ।
ममत चदररया पजरन, कमण ने िो जबनी4 ।।11।।
मंि कदया गुरु देव, काल , मारा फनी ।
राधास्वामी नाम, जचत्त दे अब सुनी ।।12।।

।। बचन उनतालीसवाूँ ।।
।। बसंत व रोली ।।
।। बसंत ।।
।। िब्द परला ।।
देखो देखो सखी अब चल बसंत । फू ल ररी िराूँ तराूँ बसंत ।।1।।
घट घट बाित धुन मृदग ं । बीन बाूँसरी और मुरचंग ।।2।।
खुल गये परदे अब जनसंग । लागी लगन मेरी रोय अभंग ।।3।।
मोसर जमल गये राधास्वामी पूरे संत । अब बाित जरये मैं धुन अनंत ।।4।।
मेरे घट में रूँ भा5 बहु नचंत । मानो इन्द्रपुरी आई असचत ।।5।।
अस औसर बाढ़ी अजत उमंग । मन कू दन लागा िस तुरंग6 ।।6।।
सब घट से जनकसे रूप रं ग । पद पायो अगम अनाम अरं ग ।।7।।

1. कांच के मनके । 2. बयान करी । 3. देनदार । 4. बुनी । 5. अप्सरा ।


6. घोड़ा ।
356 सार बचन बचन 39

मैं ने मारो काल मरा भुिग ं । मो पै बरसन लागे गुल सुरंग ।।8।।
मोसर राधास्वामी दीन्रों ऐसो ढंग । मैं तो उड़न लगो अब िैसे चंग ।।9।।
मेरे घट में धारा बरी रै गंग । न्राओ न्राओ जसमट कर सबजर संग ।।10।।
स्वामी ककरपा कीन्री अजत उतंग1 । मैं तो सबसे रो गई अब असंग ।।11।।
अब छु ट गया मेरा सब कु संग । मैं ने पायो अद्भुत आकद रं ग ।।12।।
मेरा जबछ गया चौ-मरले पलंग । मैं ने छोड़ कदया नौ मरला तंग ।।13।।
मेरे नाि हुए मन के कु रं ग । मोसर जमल गया ऐसा साध संग ।।14।।
मुझे जपया ने जमलाया अपने अंग । मैं ने धारा अपने जपया का रं ग ।।15।।
करूँ लग बरनूूँ यर बसंत । मेरा पावे न कोई आकद अंत ।।16।।
मैं उबारे बहुतक िीव िंत । मेरा पावे न कोई परम मंत ।।17।।
मैं बरनूूँ अपना आप तंत2 । मैंने कर जलया घट का सब मथंत3 ।।18।।
कोइ नसर कजथ रै अस कथंत । मैंने भाखा अपना जनि बृतत ं ।।19।।
मैंने दूर ककया सब नाम नंग । मेरी सुरत उड़ी िैसे पतंग ।।20।।
मैंने मार लई अब मन की िंग4 । कोई कर न सके मेरा बाल बंक5 ।।
मेरी जमट गई अब िीिे की ज़ंग । अब न ररी मेरे कोइ उचंग ।।22।।
मैंने पाया अपना जपय जनरंग6 । अब आऊूँ िाऊूँ िस जबरंग7 ।।23।।
मोसर काल न परखे रोय दंग । राधास्वामी लगाई यर सुरंग ।।24।।
।। िब्द दूसरा ।।
घट में खेलूूँ अब बसन्त । भेद बताया सतगुरु सन्त ।।1।।
घर पाया मैं आकद अन्त । सुन सुन अनरद धुन अनन्त ।।2।।
कहूं करा मजरमा अतन्त8 । बरनूं कै से यर बृतन्त ।।3।।
सुरत जनरत दोऊ िगन्त । चली िाय मारग बेअन्त ।।4।।
छु ट गइ भीड़ भई एकन्त । सुरत िब्द का पाया तन्त9 ।।5।।
काल करी बहुतक ठगन्त । दयाल सुनाया अपना मन्त ।।6।।
मन और माया दोउ िरन्त । चढ़ी पहुंची जनि पन्थ ।।7।।

1. ऊूँचे की । 2. भेद । 3. मथन, जबलोना । 4. लड़ाई । 5. टेढ़ा ।


6. बे परदा । 7. पक्षी । 8. अत्यन्त, बहुत । 9. तत्त, सार ।
बचन 39 बसन्त 357

घर छू टा कफर जमला िुगन्त1 । पाय गई राधास्वामी कन्त ।।8।।

।। िब्द तीसरा ।।

खेल ररी मैं जनत बसन्त । सुरत जनरत कर जमली हूं कं त ।।1।।
राधास्वामी चरन मेरे जरये बसंत । खेलत उन संग आकद अन्त ।।2।।
िब्द िोर घट में उठन्त । सुन्न जिखर पहुंची तुरन्त ।।3।।
उल्टत जतल देखत परन्त2 । श्याम कं ि िोती िगन्त ।।4।।
गगन मूँडल पर बाित तन्त3 । घोर उठत जछन जछन अतन्त4 ।।5।।
छाय ररी िराूँ ऋतु बसंत । खेल ररी सूरत इकं त ।।6।।
यर सतगुरु से पावे पंथ । चढ़ कर पहुंची मरले संत ।।7।।
अमी धार िराूँ जनत जगरं त । भींित गुरुमुख रोय जनसचत ।।8।।
देि अगम बानी बृतत ं 5। कोइ जबरले साधु घट मंथत ।।9।।
सोइ सोइ पावे यर रसंत । राधास्वामी गाया अगम मंत ।।10।।
खोला पाट रूप दरसंत । कोरट भान छजब भाषत संत ।।11।।
नौका मेरी पार लगंत । अलख अगम के पार चढ़ंत ।।12।।
राधास्वामी नाम गरा जनि मंत । कूँ वल ककयारी िब्द जखलंत ।।13।।

।। िब्द चौथा ।।

देखन चली बसंत अगम घर । देख देख अब मगन भई ।।1।।


सजखयन साथ चली नभ ऊपर । िब्द गुरु संग लगन लगी ।।2।।
कूँ वलन क्यारी फू ल सूँवारी । पेख पेख अब गगन ररी ।।3।।
सतगुरु सूँघ6 परखती पहुंची । कमण बीि को अजगन दई ।।4।।
ममता मार अरूँगता िारी । सुरत िब्द की सरन लई ।।5।।
अनरद राग सुने घट अंतर । नाम रसायन रसन रसी ।।6।।
सुखमन पार सुन्न घर पहुंची । भजि जिरोमन7 परन8 गरी ।।7।।
सतगुरु ककरपा सत पद पाया । राधास्वामी धरन9 धरी ।।8।।

1. बहुत काल का, युगों के पश्चात্ । 2. पार या ऊपर की तरफ़ । 3. बािा ।


4. अत्यन्त । 5. राल । 6. जमलाप । 7. सब से उत्तम । 8. प्रजतज्ञा ।
9. धारना ।
358 सार बचन बचन 39

रोली
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
अब खेलत राधास्वामी संग रोरी । धरन गगन जबच िोर मचो री ।।1।।
चाूँद सुरि तारागन मंडल । उतर उतर आये घर छोड़ी ।।2।।
िेषनाग और कु रम साि ले । चड़ पताल आये कर िोड़ी ।।3।।
पूरब पजश्चम उत्तर दजक्षर् । चार कदिा सब भइ इक ठौरी ।।4।।
सुर नर मुजन िोगी बैरागी । धूम धाम कु छ भइ रै न थोड़ी ।।5।।
सागर कू प भरे सब रं ग से । मेरू डंड जपचकारी छोड़ी ।।6।।
भींि ररीं सजखयाूँ सब संग की । बार बार रं ग प्रेम जनचोड़ी ।।7।।
समा बंधा लीला अजत उमगी । काल बली अब िात ठगो री ।।8।।
सुरत अबीर1 गुलाल िब्द का । अब सब के मुख िात मलो री ।।9।।
लोभ मोर अरंकार जवकारी । घर इनका सब आि िलो री ।।10।।
धुन धधकार सुन्न की बरषा । मुख उनका अब िात न मोड़ी ।।11।।
अगम खज़ाना जमला िब्द का । त्याग कदया धन लाख करोड़ी ।।12।।
सुन्न मरल सतलोक अटारी । िाय चढ़ी और नाम लखो री ।।13।।
नइ नइ िोभा पुरुष पुराना । करत न आवे बचन थको री ।।14।।
राधास्वामी खेल जखलाया । अनेक रूप िराूँ एक भयो री ।।15।।
।। िब्द छठा ।।
काया नगर में धूम मची रै । खेल ररी अब सूरत रोली ।।1।।
छाय ररी सतनाम जनरख पद । लाय ररी धुन परुष अतोली2 ।।2।।
आसा मनसा कर जपचकारी । गुन गुलाल घट भीतर घोली ।।3।।
रूँगता ममता दूर उड़ाई । प्रेम अबीर जलया भर झोली ।।4।।
संपजत रं भा3 नाच नची रै । जवपता नटनी अब मुख मोड़ी ।।5।।
रोग सोग दुख मार जनकाले । धार लई मन में गुरु बोली ।।6।।

1. गुलाल या अबरक का मरीन चर जिसे रोली में लोग एक दूसरे पर डालते रै ।


2. जिसकी तोल न रो सके । 3. अप्सरा ।
बचन 39 रोली 359

िन्म िन्म के फं दा काटे । खेली काल संग आूँख जमचौली ।।7।।


भजि भाव रं ग माट भराया । रं ग रं गी मेरे मन की चोली ।।8।।
कु मजत उड़ाय सुमजत अब धारी । मार मार माया जसर धौली ।।9।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
उमंड घुमडं कर खेली रोली । सुमजत ज्ञान संग भर लई झोली ।।1।।
मार लई मैनें माया पोली । चढ़के चली अब प्रेम खटोली ।।2।।
गगन जिखर धुन जनिकर तोली । िड़ चेतन की गाूँठ सब खोली ।।3।।
सुरत जनरत मेरी भई रै अमोली । फे रूूँ िैसे पान तमोली ।।4।।
मन तन लाल भया िस रोली2 । सभी जवकार डारे मैंने रोली2 ।।5।।
मोर नींद मैं बहुतक सोली । अब राधास्वामी मेरी रं ग दी चोली ।।6।।
भरी नाम धन से जरये नौली3 । अब समझी सतगुरु की बोली ।।7।।
आसा मन्सा तन से डोली । अब नसर करत काल मोसे ठोली4 ।।8।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
मेरे गुरु ने जखलाई प्रेम संग रोरी । मैं तो रोय ररी सब िग से बौरी ।।1।।
सील गुलाल अबीर जछमा का । ता से मैं भर लई झोरी ।।2।।
काम क्रोध दोउ खेलन आये । मार मार उनका मुख मोड़ी ।।3।।
सुरत जनरत दोउ सजखयाूँ संग ले । िब्द खोि को चाली दौड़ी ।।4।।
सुखमन नाका िाय रम घेरा । बंकनाल जपचकारी छोड़ी ।।5।।
जिकु टी िब्द िाय रम पकड़ा । धूम धाम कु छ भई रै न थोड़ी ।।6।।
रंस सभा िरूँ मान-सरोवर । प्रगट भई माया की चोरी ।।7।।
ककगरी नाद रोत धुन भारी । सुरत तार अपना नसर तोड़ी ।।8।।
राधास्वामी दया रं ग घट भररया । िनम मरन दुख दूर करो री ।।9।।
।। िब्द नवाूँ ।।
गुरु आन जखलाई घट में रोली । धुन नाम लई तन अंतर खोली ।।1।।

1. लाल रं ग । 2. रोल कर । 3. बसनी, बांसली – रूपया रखने की । 4. ठठोली ।


360 सार बचन बचन 39

मन मार लई जतल ताला तोड़ी । सुतण फे र लई दल अंदर िोड़ी ।।2।।


िुग बाूँध लई गुरु से पट फोड़ी । पद पाय गई जिकु टी गढ़ दौड़ी ।।3।।
सुन िाय ररी सुतण घर िब मोड़ी । घर आय गई अपने भइ पोढ़ी ।।4।।
पंच इन्द्री जपचकाररयाूँ, भर उलटी छोड़ी ।
गुन तीनों की िेवरी1, जछन मासर िलोरी ।।5।।
रौंमें ममता छोड़ कर, चढ़ गगन चलोरी ।
जबखरी धुनें समेट कर, सब एक करो री ।।6।।
दृजष्ट िोड़ नभ में धरो, तब िोत लखोरी ।
िोत फाड़ आगे धसो, कफर सुन्न तकोरी ।।7।।
इस सुनकी धुन सोध लो, िस िंख बिोरी ।
राधास्वामी एक पद, यर कह्मो भलो री ।।8।।
।। िब्द दसवाूँ ।।
मेरी सुरत राधास्वामी िोड़ी । घट में अब खेलूूँगी रोरी ।।1।।
करम भरम की धूर उड़ाई । दुष्ट दूत सब का जसर फोड़ी ।।2।।
गगन मूँडल में माट भराया । िुगत ितन कर मन को मोड़ी ।।3।।
अनरद धुन अब धमकन लागी । जबिली चमक और उठी घनघोरी ।।4।।
तन मन की सब सुद्ध गई रै । िग से कु ल नाता तोड़ी ।।5।।
काल िाल के टु कड़े कीन्रे । सुन्न मूँडल तब सुरत बरोरी2 ।।6।।
िम िंदार3 खड़ा मेरे द्वारे । पल पल जछन जछन करत जनरोरी4 ।।7।।
िड़ चेतन की गाूँठ खुलानी । ममत माया से जतनका तोड़ी ।।8।।
सुरत छड़ी5 अब चढ़ी रै अटारी । पकड़ गरी अब धुन की डोरी ।।9।।
पंचमुखी जपचकारी छोड़ी । गई हूं जपया पै मैं दौड़ी दौड़ी ।।10।।
ऐसी रं गी मेरी सुरत चुनररया । अगम पुरुष मोसे करत जनठोरी9 ।।11।।
धन राधास्वामी ऐसा खेला जखलाया । तब ऐसी मैंने खेली रै रोरी ।।12।।

1. रस्सी । 2. उलटी । 3. दूत, प्यादा । 4. खुिामद । 5. अके ली ।


6. ठठोली ।
बचन 39 रोली 361

।। िब्द ग्याररवाूँ ।।

राधास्वामी घर बाढ़ो रं ग । मैं तो खेलूूँगी ऐसी रोली उमंग ।।1।।


सुरत जनरत की ले जपचकारी । राधास्वामी पै भर भर डारी ।।2।।
चाूँद सुरि दोउ क़ु मक़ु म1 कीन्रे । प्रेम गुलाल से भर भर लीन्रे ।।3।।
सुखमन रौज़ भरा अब भारा । बंकनाल का छु टा फु रारा ।।4।।
सरस2 धार रोय जिकु टी पारा । पहुंचा िाय सुन्न के द्वारा ।।5।।
रंसन से िाय खेली रोरी । बरन लगी िरूँ अमी की मोरी ।।6।।
अनरद बािे अद्भुत बािें । राधास्वामी खुल खुल गािें ।।7।।
ऐसी रोली खेलो मेरे भाई । सब संतन के िर मन भाई ।।8।।

।। िब्द बाररवाूँ ।।

आओ री सखी िुड़ रोली गावें । कर कर आरत परुष मनावें ।।1।।


तन मन क़ु मक़ु म भर भर मारें । जछड़क रं ग राधास्वामी ररझावें ।।2।।
लाल गुलाल वस्त्र पजरनावें । देख देख रं ग रूप जनरारें ।।3।।
सुरत अबीर थाल भर लावें । नैनन की जपचकार छु ड़ावें ।।4।।
राधास्वामी अपने जरये जबच धारें । उन संग जनस कदन प्रेम बढ़ावें ।।5।।
धरन गगन जबच धूम मचावें । राधास्वामी अब ऐसी रोली जखलावें ।।6।।
चाूँद सूरि दोउ खैंच जमलावें । सुखमन नकदयाूँ रं ग बरावें ।।7।।
सुरत चुनररया रं ग रं गावें । भींित जनरत खोि धुन पावें ।।8।।
दल बादल अब अजधक सुरावें । लाल लाल चहुं कदस जघर आवें ।।9।।
रं ग भरे रं ग री बरसावें । अचरि लीला आन कदखावें ।।10।।
अस रोली करो कौन जखलावें । राधास्वामी भेद बतावें ।।11।।

1. कांच के गोले गुलाल आकद डालने के जलए । 2. रज़ार ।


362 सार बचन बचन 40

।। बचन चालीसवाूँ ।।
।। सावन, सरडोला व झूला ।।
।। िब्द परला ।।
सावन मास आस हुइ झूलन । गिणत गगन मगन मन फू लन ।।1।।
सजखयाूँ सि सि आई ढूँढूलन1 । प्रेम भरी सुख सरि अमूलन2 ।।2।।
करा कहूं बजतयाूँ3 नसर खूलन4 । देख देख छजब मन सुध भूलन ।।3।।
गिणन धन और जबिली चमकन । श्याम घटा मानो अजत गि हूलन5 ।।4।।
देखत सूरत चढ़ी पद मूलन6 । झूलत िब्द सरडोल अतूलन7 ।।5।।
सुन सुन धुन काटे सब सूलन8 । मान-सरोवर मोती रूलन9 ।।6।।
राधास्वामी करत सरस यर सावन । देख देख सब करत ममूलन10 ।।7।।
।। िब्द दूसरा ।।
सावन मास सुराजगन आई । अपने जपया संग झूलन धाई ।।1।।
श्याम घटा अब चहुं छाई । गिण गगन अजत धूम मचाई ।।2।।
नई रागनी तान सुनाई । चमक धमक सूँग खेल कदखाई ।।3।।
अमी धार जछन जछन बरषाई । सुखमन नकदयाूँ प्रेम भराई ।।4।।
गगन सरडोला झोका लाई । सजखयाूँ संग की उमगत आई ।।5।।
रस भर भर जपया सूँग लुभाई । दाजमन11 चमचम12 अजधक सुराई ।।6।।
मोर पपीरा रटन लगाई । अचरि बानी घोर सुनाई ।।7।।
राधास्वामी छजब जनरखत रषाणई । अिब समा सब देत बधाई ।।8।।
।। िब्द तीसरा ।।
सुरत तू चेत री, अब सावन आया ।
गगन चढ़ झाूँक री, गुरु खेल कदखाया ।।1।।
िरां पड़ा सरडोला नाम का, धुन डोर बूँधाया ।
सखी सरेली संग ले, िग काम न आया ।।2।।

1. देखने । 2. अनमोल । 3. बातें । 4. खोलने वाली । 5. राथी का झूलना ।


6. मूल (आकद) । 7. अतोल । 8. सूल, कष्ट । 9. मोजतयों का रोलना (चुगना) ।
10. आनन्द । 11. जबिली । 12. चमक, चमक कर ।
बचन 40 सावन सरडोला व झूला 363

मैं जबरजरन जपय दरस की, कसर चैन न पाया ।


अब खुल खेलूूँ सुन्न में, गुरु भेद िनाया ।।3।।
ररमजझम वषाण रो ररी, मन मोर बुलाया ।
पी की री बजतयां सुन ररी, मन चाव1 बढ़ाया ।।4।।
घट में कर ससगार, जपया को आन ररझाया ।
सजखयन साथ जवलास यर, राधास्वामी गाया ।।5।।
।। िब्द चौथा ।।
राधास्वामी झूलत आि सरडोला । गगन मंडल धुन अद्भुत बोला ।।1।।
सुरत जनरत सजखयां जमल आई । झूमत घूमत रूप समाई ।।2।।
नैन जनरारत दरस पुकारत । राधास्वामी राधास्वामी नाम दृढ़ावत ।।
चाूँद सुरि दोउ खंभ सिे रे । सुखमन चौकी लाला िड़े रे ।।4।।
चरन धार राधास्वामी जबरािे । प्रेम मगन सब प्रीतम गािे ।।5।।
अिब समा अचरि यर औसर । रंस रंसनी छोड़ा सरवर ।।6।।
देख जबलास मगन हुए भारी । सुध बुध भूले देर जबसारी ।।7।।
धूम मची अब अमर नगर में । झूलत राधास्वामी बैठ अधर में ।।8।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
अिब यर बूँगला जलया सिाय । रंस भी रीझे देखत ताजर ।।1।।
बैठ गये राधास्वामी ता में आय । करें सब आरत सुर संग गाय ।।2।।
आि यर घड़ी सुरावन पाय । गई अब सब की दूर बलाय ।।3।।
हुई मैं पावन2 सरन समाय । कहूं क्या बंगला अिब कदखाय ।।4।।
ररी मैं राधास्वामी मजरमा गाय । सेत पद बंगला मोसर सुराय ।।5।।
।। िब्द छठा ।।
सुरत मेरी चढ़ गई गगन अटररयां ।
मैं धीरे धीरे चढ़ गई गगन अटररयां ।।1।।

1. उमंग, िौक़ । 2. पजवि ।


364 सार बचन बचन 40

मैं लख जलये राधास्वामी सुघड़1 सुिजनयां ।


मोसर डार दई गल में प्यारे गल बजरयां ।
मैं धारा जनि नैना में ज्ञान अूँिजनयां2 ।।2।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
पाय गई राधास्वामी रोगई सुराग भरी ।
जखल गये कूँ वला मैं पाय गई बन्ना3 ।।1।।
जनरार लई िोभा मैं पार गई गगना ।
छोड़े जबकार पाई सतगुरु सरना ।।2।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
सुरत आि झूल ररी । गुरु जमले झुलावन रार ।।1।।
वषाण ऋतु सजखयां रषाणनी4 । आईं सरेली लार5 ।।2।।
िब्द सरडोला पड़ा गगन में । झूल ररी सुतण नार ।।3।।
धुन की डोरी सखची अधर में । रोत िराूँ झनकार ।।4।।
सभी सुराजगन गावन लागीं । कर कर प्रेम ससगार ।।5।।
अिब अखाड़ा रचा सुन्न में । देखैं जनत्त बरार ।।6।।
गुरु ससरासन धरा अधर में । बैठे लीला धार ।।7।।
दिणन करत जरया उमगावत6 । खावत अमी अरार ।।8।।
भाग सरावत7 भजि बढ़ावत । भूल गई संसार ।।9।।
अधर धाम सतगुरु का डेरा । पहुंची खोल ककवाड़ ।।10।।
करे अनंद सदा सुख सागर । खोये सभी जवकार ।।11।।
आरत समा जमला भागन से । रोत िीव उपकार ।।12।।
खेलें जबगसें8 संग गुरु के । पाया भेद अपार ।।13।।
सरस कूँ वल में खेल िमाया । खोला जिकु टी द्वार ।।14।।
सुन्न नगर में धूमा धामी । बित सारं गी सार ।।15।।

1. सुन्दर । 2. सुरमा । 3. दुल्रा । 4. खुि हुई (आजन्दत हुई) । 5. जनकट ।


6. ह्दय में चाव उत्पन्न रोता रै । 7. मजरमा करती हुई । 8. ख़ुि रोवें ।
बचन 41 फु टकल िब्द 365

रंस रंसनी रचा अखाड़ा । अचरि िोभा धार ।।16।।


कौन करे मजरमा उस घर की । अक्षर का दरबार ।।17।।
सुरत रंसनी देख तमािा । आगे को पग धार ।।18।।
मरासुन्न मैदान अनूपा । पहुंची सतगुरु लार ।।19।।
सुन सुन िब्द हुई मस्तानी । भूँवरगुफा बंसी झनकार ।।20।।
सत्य धाम सतनाम जपयारा । जछन जछन मैं बजलरार ।।21।।
अलख पुरुष का खोि लगाया । कोरट अरब सूरि उजियार ।।22।।
अगम नाम का सुजमरन पाया । चली प्रेम की धार ।।23।।
आगे मरल अनूप कदखाना । राधास्वामी अगम अपार ।।24।।
ककगुरे ककगुरे नूर अपारा । बैठे िोभा धार ।।25।।
सुरत जनरत दोउ िाय समानी । पहुंची सब के पार ।।26।।
राधास्वामी अगम अनामी । कीन्रा उनसे प्यार ।।27।।

।। बचन इकतालीसवाूँ ।।
फु टकल िब्द
।। िब्द परला ।।
खोित ररी जपया पंथ, ममण कोइ नेक न गाया ।
रै न कदवस बेचनै , तरसते िन्म जबताया ।।1।।
करता ररा पुकार, दाद1 को करीं न पाया ।
भेख जभखारी िि गुरु, सब भरमें माया ।।2।।
िब्द जबना खाली कफरें , सब धोखा खाया ।
अब जमल गये पूरे सतगुरु, उन भेद सुनाया ।।3।।
सुरत सार लखवाय के , कफर गगन चढ़ाया ।
गगन मूँडल में पहुंच कर, अनरद बिवाया ।।4।।
िपी तपी मौनी बकी, ित िोग चलाया ।

1. इन्साफ़ ।
366 सार बचन बचन 41

यर मारग कोई ना करे, दुलभ ण दरसाया ।।5।।


धन्य संत और सतगुरु, जिन सार बुझाया ।
मनमत िग में फै जलया, गुरुमत नरीं आया ।।6।।
सुरतवंत जबरले कोई, जिन िब्द कमाया ।
राधास्वामी भेद दे, सब िीव जचताया ।।7।।
।। िब्द दूसरा ।।
सुन्नी सुरत िब्द जबन भटकी । अटकी मन संग दुख पाई ।।1।।
भरमत कफरे चक्र की नाई । उलट गई तन में छाई ।।2।।
जवष खावत िगमें झख मारत । समझ सोच धुर नसर लाई ।।3।।
सोवत ररी मोर अूँजधयारी । िागन चौप नरीं पाई ।।4।।
इन्द्री के बस पड़ी जवकल रोय । काल कला घट में छाई ।।5।।
भोगन में अजत कर जलपटानी । रोग सोग कदन कदन खाई ।।6।।
बंधन बूँधी िगत में गाढ़ी । बाढ़ी ममता रस पाई ।।7।।
िग व्यव्रार लगा अजत प्यारा । धारा उलटी यरां आई ।।8।।

कड़ी 1—िो सुरत कक सुन्न यानी चैतन मंडल की बासी थी, िब्द की धार को छोड़
कर इस संसार में भटक गई और मन का संग करके दुख पाती रै ।
" 2---और चक्र यानी चकई के मुवकफ़क़ चंचल रोकर भरम ररी रै और उलटी
रोकर देर में फै ल गई ।
" 3---और भोगों में िो ज़रर से भरे हुए रैं, बतण कर िगत में टक्करें खाती रै और
अपने धुर मुक़ाम की समझ नरीं लाती रै ।
" 4---और मोर के अन्धकार यानी रात में बेरोि सो ररी रै और िागने का
इरादा नरीं करती ।
" 5---और इजन्द्रयों के बस रोकर रर वि चंचल और बेकल रो ररी रै और इस
सबब से काल की कला यानी ज़ोर घट में व्याप ररा रै ।
" 6---और भोगों में जलपट कर कदन कदन रोग और सोग सरती रै ।
" 7---इस तरर िगत में बन्धन इसके खूब मिबूत रो गये और थोड़ा थोड़ा रस
पाकर रर एक चीि में पकड़ यानी मोर बढ़ गया ।
" 8---और िगत में बताणव प्यारा लग कर िो धार कक सुरत की ऊपर को चढ़नी
चाजरए थी, वर उलटी देर और संसार में बरने और जबखरने लगी ।
बचन 41 फु टकल िब्द 367

जबना मेरर सतगुरु पूरे के । कस उल्टे कस घर िाई ।।9।।


सुखमन द्वार गगन का नाका । करठन हुआ नसर सुजध पाई ।।10।।
श्याम धाम से हुई न न्यारी । सेत पदम कस कस पाई ।।11।।
धुन की छाूँट रोत नसर भाई । कै से सूरत धुन पाई ।।12।।
घट में बैठ जनरख दृग द्वारा । यरां से रार अधर िाई ।।13।।
घाटा तोड़ काल मजत मोड़ो । कमण काट ऊूँचे िाई ।।14।।
राधास्वामी करत सुनाई । समझ समझ पग धर भाई ।।15।।
।। िब्द तीसरा ।।
सुरत चल बावरी, क्यों घर जबसराया ।
सतगुरु के संग लाग री, धुर ले पहुंचाया ।।1।।
घट पट पजश्चम खोल कर, पूरब कदखलाया ।
अिब खेल अद्भुत दिा, रंसन परसाया ।।2।।
संत मंडली सेत दीप, िा िोत िगाया ।
मौि जनरारी सत्त पुरुष, धुन बीन सुनाया ।।3।।

कड़ी 9---िब ऐसा राल रो गया तो अब जबना मेरर पूरे सतगुरु के मुख
इसका ऊपर यानी जनि घर की तरफ़ कै से मोड़ा िावे ।
" 10---और इसी सबब से आकाि का द्वारा िो कक परला सुखमन स्थान रै,
खुलना करठन रो गया बजल्क उसकी सुध भी भूल गई ।
" 11---और श्याम स्थान यानी काल के घेर से िुदा न रो सकी । कफर सेत
धाम िो उसका जनि स्थान रै, कै से पावे ॽ
" 12---और इसी सबब से धुन की छाूँट भी नरीं हुई ! कफर जनि धुन को कै से
प्राप्त रोवे ॽ
" 13---अब चाजरये कक अपने घट में जनश्चल रोकर और नेिों के द्वारे को
झांक कर अन्दर को चले । यरी सड़क ऊंचे जनि देि की रै ।
" 14---परली घाटी को कक जिसकी रद जिकु टी तक रै, तोड़ कर और काल
का मुख मोड़ कर और करमों को काटते हुए ऊंचे को चलना
चाजरये ।
" 15---राधास्वामी दयाल फ़रमाते रै कक इस रास्ते में जनरख जनरख और
परख परख कर कदम रखना चाजरये ।
368 सार बचन बचन 41

अधण1 उधण2 के मध्य में, तीरथ परसाया ।


अंतर गजत नसर बूझते, जतन िन्म गूँवाया ।।4।।
जबन सतगुरु यर बाट, करो कोइ कै से पाया ।
मेरर करें िा पर धनी, कफर रं क3 न राया4 ।।5।।
ग़ोता मार समुद्र में मुिा चुन लाया ।
रतन माल जररदे धरी, बेरद पहुंचाया ।।6।।
जनरत सखी अगुवा हुई, िा िब्द समाया ।
राधास्वामी नाम यर, कोई गुरुमुख पाया ।।7।।
।। िब्द चौथा ।।
घट भीतर तू िाग री, रे सुरत पुरानी ।
जबना देि झाूँकत ररी, सब ममण भुलानी ।।1।।
काल दाव मारत ररा, पर तू न जचतानी ।
अब सतगुरु की मेरर से, मौसम बदलानी ।।2।।
नर देरी पाई सरि, सतसंग समानी ।
सुरत घाट अब पाइया, धुन िब्द जपछानी ।।3।।
यर मारग संतन करा, पंजडत नसर िानी ।
जिन यर मारग पाइया, सो छू टे खानी ।।4।।
श्याम कं ि के घाट से, सूरत अलगानी ।
चौथे पद में िा जमली, िरां अचरि बानी ।।5।।
पंचम षष्टम पाय के , राधास्वामी िानी ।
भाग सुराजगन पाइया, को करे बखानी ।।6।।
।। िब्द पाूँचवाूँ ।।
सुरत घर खोि री । ऋतु जमलन जमली ।।1।।
िब्द घर सोच री । चढ़ मरल चली ।।2।।

1. नीचा । 2. ऊूँचा । 3. कं गाल । 4. रािा ।


बचन 41 फु टकल िब्द 369

चन्द्र पद पाय अली । ऋतु सदण जखली ।।3।।


घूम कर िाय अड़ी । जतल घोट जपली ।।4।।
धुन धाम रली । गई गगन गली ।।5।।
जपया संग खेल ररी । सब कमण दली ।।6।।
बस्ती तन छू ट गई । जखली कूँ वल कली ।।7।।
गुन इन्द्री त्याग दई । िड़ काल जरली ।।8।।
राधास्वामी ध्यान धरी । जबसरूं नसर एक पली ।।
।। िब्द छठा ।।
चल अब सिनी जपया के देि । जमल अब गुरु से कर आदेि1 ।।1।।
लखो कफर घट में पद िाय िेष2 । थके िरूँ ब्रह्मा जवष्र्ु मरेि ।।2।।
गई नसर उनकी वराूँ कु छ पेि । रार कर बैठे गौर गर्ेि ।।3।।
काल ने मारा गजर3 कर के ि । संत जबन ककया न घट परवेि ।।4।।
ररे सब कै दी माया देि । बचे नसर भोगें काल कलेि ।।5।।
जमलें िो सतगुरु करें संदेि । जमटे कफर काल कमण का लेि ।।6।।
धरा अब सूरत रंसा भेष । काल के तोड़ कदये सब नेि4 ।।7।।
हुआ मैं राधास्वामी दर5 दरवेि6 । हुए अब राधास्वामी मेरे खेि7 ।।8।।
।। िब्द सातवाूँ ।।
सखी चल देख बरार जपया की । चढ़ो घट सेि सूँवार जपया की ।।1।।
सुनो धुन गगना पार जपया की । जनरख छजब देखी सार जपया की ।।2।।
अमीरस आई धार जपया की । सुतण रोगइ प्यारी नार जपया की ।।3।।
मैं रोगइ िग को िार जपया की । गुरु कीन्री सुरत गलरार जपया की ।।4।।
राधास्वामी जखलाई बाड़ जपया की । अब झांकी गली अगार जपया की ।।
।। िब्द आठवाूँ ।।
गुरु जनरखो री, जरये नैन खुलें । गुरु देखो री ।। टेक ।।
घट के पट खोल चली, दल काल दले । गुरु पेखो री ।।1।।

1. प्रर्ाम । 2. सरस दल कूँ वल । 3. पकड़ कर । 4. डंक । 5. दरवाज़ा ।


6. फ़कीर । 7. जनि ।
370 सार बचन बचन 41

जचत चोर जलया, गुरु चरन अली । मन नाव चढ़ी, सतगुरु बल्ली ।।2।।
भौिल के पार जपली, गुरु पदम रली । धुन ध्यान जमली, सुतण कूँ वल जखली ।।
सब कमण िली, जनःकमण चली । घट खोि जपली, चढ़ गगन गली ।।
जवरर बान खली, तब कूँ वल जखली । गुरु रूप लखी, जपया पास पली ।।5।।
अमृत घट धार चली, जनस कदन मैं न्राऊूँ अली ।
मेरा भाग उदय, सत िब्द जमली ।।6।।
काल करम घर आग लगी । सब पूूँिी माया िाल िली ।।7।।
कफर खोदत खीदत खान खुली । क्या रीरे मोती लाल बली ।।8।।
जनि काया काल की िात गली । माया दल मारा दलन दली ।।9।।
मैं सुमजत दुआरा खोल चली । गुरुचरन पकड़ धुर धाम वली ।।10।।
अब आरत पूरन करत चली । गुरु प्रेम बढ़ावत घाट घुली ।।11।।
गुरु चरन पकड़ कहूं नासर टली । कफर चरन सरन में आन जरली ।।12।।
दम दम मेरे चरन अधार कली । कल नासर जपया जबन बे-अकली1 ।।13।।
कोइ परखत वेदन2 रोत वली । नसर िानत वेद कतेब तली ।।14।।
राधास्वामी चरन पकड़ रेली । तन मन से सूरत अधर चली ।।15।।

।। िब्द नवाूँ ।।

घुड़ दौड़ करूूँ मैं घट में । मुझे जमले जसपारी संत री ।।1।।
मैं चेत चली अब तट में । घट आकद अनादी अंत री ।।2।।
सूरत की मूरत जनरत चली । जपया पाये सरोवर तंत री ।।3।।
मन तोड़त तन अकु लाना । क्या वर्ण बताऊूँ िंतरी ।।4।।
मेरे कूँ वल दलन पर भूँवरा । क्या करूूँ गुनावन कं त री ।।5।।
अब परसूूँ जपया पद आि । पढ़ूूँ गुरु मंत री ।।6।।
मेरे भाग बड़े क्या भाखूूँ । िजि सूर अनेकन दंत री ।।7।।
तारागन गगन घुमाये । गुरु मजरमा करूूँ बे-अंत री ।।8।।

1. व्याकु ल । 2. तकलीफ़ । 3. नीचे ।


बचन 41 फु टकल िब्द 371

मैदान उलट घट झाूँकी । धर मारे काल गिंत री ।।9।।


मेरे सतगुरु सूरे पूरे । दल मारें काल अनंत री ।।10।।
रस वेद राि रिघानी । गुरु बैठे आि मसंद री ।।11।।
मेरे गुरु का दरस कोइ देखे । रो िावे हूर परं द1 री ।।12।।
धुन िब्द सुनी िरां नाद री । िराूँ रारे कृ ष्र् और नंद री ।।13।।
यर भेद जमला मोसर अब की । घट कीन्रा आकद मंथत री ।।14।।
मैं पकड़े चरन गुरु के । नसर जबछड़ूूँ कोरट िुगत ं री ।।15।।
क्या रोष मरेि न िाने । मेरी मजरमां करत करंत री ।।16।।
ररर द्वारे अटके सबरी । सतगुरु पद िानें न पंथ री ।।17।।
यर अगम भेद रस भारी । कोइ पावे प्रेम मनंत री ।।18।।
मैं कककर दासन दासा । क्या बरनूूँ िोभा अंत री ।।19।।
गुरु जमले दयाल गुसाई । मैं पहुंची धुर घर कं त री ।।20।।
कोरटन रजव रोम जबराित । क्या िोभा बरनूूँ संत री ।।21।।
राधास्वामी दीन दयाला । यर भाखें बचन पुखत ं री ।।22।।

।। िब्द दसवाूँ ।।

सुरत रत घोर सुनावत भारी । गुरु चरन कूँ वल मेरे जरये अधारी ।।
मैं चरन गुरु पर िाउूँ बजलरारी । िग भोग लगे सब खारी ।।2।।
मैं मारूूँ िगत कु ल तारी । क्यों भूलो भूत अनाड़ी ।।3।।
गुरु मंत सुनो अब आ री । नसर नकण न बीच दुखारी ।।4।।
गुरु मजरमा अगम सुना री । नसर िोत जनरं िन गा री ।।5।।
गजत ब्रह्मा जवष्र्ु करां री । क्या देवी देव पुकारी ।।6।।
सब बरे चौरासी धारी । गुरु जबन कोइ उतरे न पारी ।।7।।
या ते सब पकड़ो गुरु चरना री । क्यों बरते भौिल धारी ।।8।।
गुरु आकद पुरुष िग आये । सब रंस िीव चेताये ।।9।।

1. उड़ने वाली, सुन्दर, तारों िैसी ।


372 सार बचन बचन 41

कौवों से दूर रराये । जनि प्रेमी खैंच बुलाये ।।10।।


तब काल करम मुरझाये । माया भी जसर धुन ररी पछताये ।।11।।
गुरु अगम देि अब दीन्रा । मैं कराूँ लग बरनूं मजरमा ।।12।।
मुझे लगे गुरु अजत प्यारे । ज्यों चंद्र चकोर जनरारे ।।13।।
गुरु रूप दीप1 उजियारे । मैं पतंग समान तन िारे ।।14।।
चुम्बक लख लोर सखचा रे । यों चरन गुरु मैं धारे ।।15।।
मैं जिऊूँ अधार गुरु प्यारे । मैं बन्धन तींड़ तरा2 रे ।।16।।
अब चढ़ूूँ गगन घट पारे । वराूँ से सतपुर पग धारे ।।17।।
लख अलख अगम उजियारे । राधास्वामी धाम समा रे ।।18।।
यर आरत करूूँ सदा रे । राधास्वामी फे र बुला रे ।।19।।

।। िब्द ग्याररवाूँ ।।

गुरु संग िागन का फल भारी ।। टेक ।।


सेवा जमले दरस पुजन पावे । बचन सुनत गुलज़ारी ।।1।।
रोम रोम रखणत जचत मंदर । अन्दर जखलत ककयारी ।।2।।
िोभा अजधक सुगजन्धत बन बन । भूँवर चक्र फु लवारी ।।3।।
इन्द्री द्वार कूँ वल दल न्यारी । सूरत अग्र3 जचतारी ।।4।।
नैन बैन सतगुरु सुन जनरखत । कूँ वल जखलत उजियारी ।।15।।
मारग छेक4 झकत माया मन । जनरत रोत सुजखयारी ।।6।।
सागर तोल बुन्द गजत जसन्धा । अधर चढ़त जपउ प्यारी ।।7।।
कोमल धाम कूँ वल रजव भूमी । भावन भार जनकारी ।।8।।
श्यामा सरस नील जगर सारी । धारी धरन उठा री ।।9।।
गुरु पद नाम अगम गम प्यारी । को कर सकत पुकारी ।।10।।
सूरत चढ़ी अधर पद डंडा । अंडा फोड़ जनरारी ।।11।।
मैं तो अिान ममण नसर िाना । राधास्वामी कीन्र दया री ।।12।।

1. दीपक । 2. तर गया । 3. आगे । 4. रोक ।


बचन 41 फु टकल िब्द 373

।। िब्द बाररवाूँ ।।
जनरखो री कोई उठकर जपछली रजतयाूँ ।। टेक ।।
माया छलन तरूँ ग मन रोकन । घट में कूँ वल जखलजतयाूँ ।।1।।
सीतल सागर मीन ममण िस । न्रावत मल मल गजतयाूँ ।।2।।
जसला उठाय कूँ वल दल फोड़त । तोड़त द्वार सुनत िराूँ बजतयाूँ ।।3।।
चमक िोत धारा धुन झककयाूँ । मन माया कू टत िराूँ छजतयाूँ ।।4।।
ररख ररख धावत पद उत्तम । तम संसार सकल जबनसजतयां ।।5।।
मौि जनरार पुरुष घर पावत । धावत सुरत जनरजतयां ।।6।।
पीवत अमी झकोल कूँ वल पद । के ल करत सत मजतयां ।।7।।
को कर सके नाम की मजरमा । संत बतावत िो गजत पजतयां ।।8।।
राधास्वामी करत सुनाई । मूल जमलो चढ़ ररटयां ।।9।।

कड़ी 1---जपछली चार घड़ी परले सूरि के जनकलने से सुबर तक रात के वि


अभ्यास करने से माया को छलने और मन की तरं ग रोकने की ककसी
क़दर ताक़त आवेगी, और घट में कूँ वल का भी दिणन रोगा ।
" 2---तब सुरत मछली की तरर सीतल सागर में अश्नान करके सफाई राजसल
करे गी ।
" 3---परले परदे को उठा कर और श्याम कूँ वल का दल फोड़ कर यानी
तीसरे जतल के अन्दर सुरत ने धस कर िब्द की आवाज़ सुनी ।
" 4---िोत की चमक और वरां की धुन की धार मालूम हुई और मन और
माया वरां पर छाती कू टने लगे कक यर अभ्यासी सुरत रमारी रद्द से
जनकल गई ।
" 5---और खुि रोकर सुरत वरां से आगे को बढ़ती चली और संसार यानी
जिलोकी माया का अूँधरे ा दूर हुआ ।
" 6---राधास्वामी दयाल की मौि के अनुसार सुरत और जनरत सत्तलोक की
तरफ को दौड़ने लगीं ।
" 7---सुरत ऊपर को चढ़ कर और दसवें द्वार में अमी का रस लेती हुई और
वरां से आगे बढ़ कर सत्त िब्द के साथ जबलास करती हुई चलती रै ।
" 8---संतों के नाम की मजरमा कोई नसर कर सकता रै । वे आप री उसकी
गत और पत वर्णन करते रैं ।
" 9---राधास्वामी दयाल समझा कर फरमाते रैं कक मूल पद से जमलना
चाजरये रास्ते के मुक़ामात तै करके ।
374 सार बचन बचन 41

।। िब्द तेररवाूँ ।।
सोधत सुरत िब्द धुन अंतर । घटत जतजमर नभ बासी ।।1।।
चमकत चाूँप धनुष गजत न्यारी । कं ि िोत जछटतक उजियासी ।।2।।
गगन गंग धारा उठ धावत । रोत िरां जनमणल गजत स्वांसी ।।3।।
िमुना तीर श्याम खुल खेलत । गोप गूिरी करत जबलासी ।।4।।
िसुधानंद कं स ररपु सुन्दर । धमक सुनत ति आसी ।।5।।
धूमत अजधक धधक धुन धावत । पावत काल तरासी ।।6।।
जबमल नगर िरां घोर अखाड़ा । खोित ररी नाम गजत पासी ।।7।।
मीन मानसर भूँवर कं ि पर । भृगं ी रोत समझ गुन तासी ।।8।।
राधास्वामी उठत धाम धुन । बैठे मगन अजवनासी ।।9।।

कड़ी 1---अभ्यासी सुरत, िब्द धुन छांट कर पकड़ती हुई नभ में पहुूँची और नीचे
के अन्धकार से न्यारी रो गई ।
" 2---इस तौर से तीर की भाल के मुवाकफ़क़ चमकती हुई तीसरे जतल से िो कक
धनुष स्थान रै पार रो कर िोत का प्रकाि देखने लगी (धनुष स्थान इस
सबब से करा कक दोनों आंखों से धारें कमान के मुवाकफ़क़ जमलती रै ) ।
" 3---अब वराूँ से (अथाणत सरसदल कूँ वल से ) सुरत की धार िो कक गंगा की
धार रै गगन की तरफ़ को दौड़ी िराूँ पहुूँच कर प्रार् जनमणल रोते रैं ।
" 4---और रास्ते में िमुना के ककनारे (अथाणत बाईं तरफ़) मन खुल कर सैर करता
िाता रै और सुरत भी उसके जबलास को देखती िाती रै ( गोपी रूप
गूिरी अथाणत सुरत िो इजन्द्रयों से न्यारी रो गई रै ) ।
" 5---और वरी मन िो की कृ ष्र् रै ऊपर की आवाि सुन कर िगत की आस
छोड़ कर ।
" 6---जनरायत धूम धाम के साथ धुन की धधकार पकड़ कर ऊपर को दौड़ता रै
और काल मुरझाता िाता रै ।
" 7---चढ़ते चढ़ते सुरत जबमल नगर (अथाणत सुन्न ) में िरां रंसों के अखाड़े िमा
रैं, पहुूँची और नाम की गजत वरां खोि कर अच्छी तरर से परचानी ।
" 8---कफर सुरत मछली की तरर मानसरोवर में और भूँवर की तरर गुफा में सैर
करती हुई सत्तलोक में परूँच कर भृङ्गी अथाणत सतगुरु स्वरूप की गजत को
प्राप्त हुई ।
" 9---और वराूँ से राधास्वामी धाम में राधास्वामी धुन सुनती हुई पहुूँच कर
मगन रो गई अजवनासी रूप रो कर वर जवश्राम ककया ।
बचन 41 फु टकल िब्द 375

।। िब्द चौदरवाूँ ।।
मेल करो जनि नाम गुसइयां । मेल करो जनि नाम ।। टेक ।।
गुरु के चरन धार रहूं जरय में । खुले सेत और श्याम ।।1।।
दुक्ख रटावन खेद जमटावन । टारन काल और िाम ।।2।।
ऐसे गुरु का ध्यान सम्रारन । पहुंच जतरकु टी धाम ।।3।।
मन और सुरत मान मद त्यागे । खोि जलया सतनाम ।।4।।
उल्टी घाटी चढ़ कर झांकी । सीतल हुई छु टी कजल धाम ।।5।।
मैं चकोर चंदा धुन पाई । छू ट गई कदि बाम1 ।।6।।
काल नगर की हुद्द छु ड़ानी । दयाल गुरु दीन्रा आराम ।।7।।
सुरत समानी िब्द रठकानी । पाया सुन्न जगराम2 ।।8।।
आरत करूूँ प्रेम रस भीनी । सतगुरु चरन जमला जवश्राम ।।9।।
राधास्वामी नाम अनामी । भेद कदया अब मूल मुक़ाम ।।10।।
।। िब्द पंद्ररवाूँ ।।
भरमी मन को लाओ रठकाने । प्रीजत लगे गुरु चरन समाने ।।1।।
दुजबधा छू टे मजत बदलाने । सुजमरन टेक तुम्रारी आने ।।2।।
तुम जबन भमण भुलाना भारी । िराूँ तराूँ की अटक सम्रारी ।।3।।
जबन सतसंग बूझ नसर आवे । भाग जबना सतसंग न पावे ।।4।।
क्यों कर कहूूँ ब्योंत3 नरीं कोई । तुम दयाल कु छ करो जबलोई ।।5।।
चरनामृत परिादी देना । और उपाव नरीं क्या करना ।।6।।
इतना काम सदा तुम करना । तो कारि उसका भी सरना ।।7।।
उसकी तरफ़ से आरत करो । प्रीत प्रतीत जचत्त में धरो ।।8।।
तब कु छ फल पावेगा थोड़ा । तो मन मजत िावे जचत मोड़ा ।।9।।
राधास्वामी करें समझाई । करो आरती प्रीजत लगाई ।।10।।
।। िब्द सोलरवाूँ ।।
सुतण बन्नी गुरु पाया बन्ना । देख दरस जछन जछन मन जभन्ना ।।1।।
तुररया घोड़ी सरि ससगारी । धीरि पाखर ता पर डारी ।।2।।
चाूँद सुरि दोउ करी रकाबें । गगन ज़ीन ता पीठ धरावें ।।3।।

1. बांई । 2. गाूँव । 3. साधन, उपाय, युजि ।


376 सार बचन बचन 41

जबिली पवन चली घोड़ी । फे र लगाम एड़ दे मोड़ी ।।4।।


रीरे लाल झालरें मोती । माजर्क पन्ना वारूूँ िोती ।।5।।
ता पर बन्ना करी असवारी । जबिली चाल पवन धधकारी ।।6।।
चल बरात पहुंची गगना पुर । बन्नी बन्ना जमले जिष्य गुरु ।।7।।
ब्यार हुआ और फे रे डाले । बन्नी ले बन्ना घर चाले ।।8।।
घर में धसे मात जपतु ररखे । प्रेम मगन मानो बादल बरखे ।।9।।

कड़ी 1---प्रेमी सुरत को िब सतगुरु प्रीतम जमले, तब उनका दिणन करके मन


जछन जछन मगन हुआ ।
" 2---तुररया यानी चैतन्य आत्मा की धार को घोड़ी बना कर उस पर धीरि
की पाखर डाली, यानी धीरि के साथ उस पर सतगुरु सवार हुए ।
" 3---चाूँद सूरि यानी इड़ा और सपगला की रकाबें बनाईं और गगन यानी
चैतन्य आकाि रूपी ज़ीन उस पर धरी ।
" 4---इस तरर सतगुरु उस तुररया की घोड़ी यानी चैतन्य धार पर सवार
रोकर जबिली और पवन की चाल के मुवाकफ़क चले और लगाम यानी
मुख उस धार का धर की तरफ़ मोड़ कर ऊपर चढ़ने के वास्ते ज़ोर
कदया यानी एड़ लगाई ।
" 5---ऐसे सतगुरु के ऊपर रीरे लाल और मोती की झालरें और माजर्क
पन्ना और िोत स्वरूप को (िो मुराद िब्दों की धुन और स्थानों के
स्वरूप से रै ) वार दूूँ । असल में िैसे कक सुरत चढ़ती िाती रै, सब
रास्ते के स्थान और वराूँ की रचना सतगुरु पर अपने आपे को वारते
रैं यानी नीचे पड़ते चले िाते रैं ।
" 6---ऐसी चैतन्य धार की घोड़ी पर सतगुरु बन्ने सवार हुए, और वर धार
जबिली और पवन की चाल और ज़ौर िोर के साथ चली और चढ़ी ।
" 7---चलते चलते सतगुरु और प्रेमी सुरत और बरात यानी और सतसंगी
और सतसंजगनों की सुरतें जिकु टी में परूँची और वराूँ सतगुरु और
सेवक का मेला हुआ ।
" 8---और प्रेमी सुरत सतगुरु की पररक्रमा करके उनके साथ घर को चली ।
" 9---िब सत्तलोक में पहुूँचे तब सत्तपुरुष (िो कक कु ल रचना के माता जपता
रैं ) देख कर मगन हुए । िैसे कक बादल की वषाण रोती रै, इसी तरर
प्रेम और आन्नद की बषाण रोने लगी ।
बचन 41 फु टकल िब्द 377

मोती रीरे लाल िवाजरर । बुआ बजरन जमल ककये जनछावर ।।10।।
करें आरत रूँस बन्ना बन्नी । रंस पुकारें धन्ना, धन्नी ।।11।।
राधास्वामी रजलयाूँ मन्नी । मगन हुए भैया और बजरनी ।।12।।
।। िब्द सिरवाूँ ।।
धुन धुन धुन डालूूँ अब मन को । मैं धुजनया सतगुरु चरनन को ।।1।।
मन कपास सुरत कर रूई । काम जबनौले डाले खोई ।।2।।
हुई साफ धुन की सुजध पाई । नाम धुना ले गगन चढ़ाई ।।3।।
गाली मनसा गाले कमाण । चरखा चला कते सब भमाण ।।4।।
सूत सुरत बारीक जनकासा । कु कड़ी कर कदया िब्द जनवासा ।।5।।
जचत्त अटेरन टेर सुनाई । फे र फे र कूँ वलन पर लाई ।।6।।
कूँ वल कूँ वल लीला करा गाऊूँ । सुन सुन धुन जनि मन समझाऊूँ ।।7।।
सुरत रूँ गी करे िब्द जबलासा । तिी बासना बेची आसा ।।8।।
जनकर सपड सुन पैंठ समाई । सौदा पूरा ककया बनाई ।।9।।
राधास्वामी हुए दयाला । नफा जलया खोला घट ताला ।।10।।
।। िब्द अट्ठाररवाूँ ।।
ठु मरी अब करी रै बखानी । सुरत चली ठु म ठु म अगवानी ।।1।।
जमल गया प्यारा झूँझरी झाूँकी । कहूूँ करा िोभा अब वराूँ की ।।2।।
ककगरी धुन अिब बिाई । सारं गी धुन वरां ररी छाई ।।3।।
यर ठु मरी कोइ साध जवचारी । िोगी िती ररे सब रारी ।।4।।
राधास्वामी कर कर भाखी । सेवक देखें खुल खुल आंखी ।।5।।

" 10---मोती रीरे लाल और िवाजरर, बुआ और बजरन यानी रंस और


रंसजनयों ने न्योछावर ककये, यानी सत्त िब्द की धुनों की िो रर एक
रीरा मोती और लाल रूप रै सतगुरु और प्रेमी सुरत पर वषाण रोने
लगी ।
" 11---कफर सतगुरु और प्रेमी सुरत ने मगन रोकर उमंग सजरत सत्तपुरुष
राधास्वामी दयाल की आरत उतारी, और चारों तरफ से रंस धन्य
धन्य पुकारने लगे ।
" 12---यर कै कफ़यत देख कर राधास्वामी दयाल मगन और प्रसन्न हुए और
रंस रंसनी भी इस जबलास में िाजमल रोकर आन्नद को प्राप्त हुए ।
378 सार बचन बचन 41

।। िब्द उन्नीसवाूँ ।।
गुरु अचरि खेल कदखाया । सुतण नाम रतन घट पाया ।।1।।
बकरी ने राथी मारा । गउ कीन्रा ससघ अरारा ।।2।।
चींटी चढ़ गगन समाई । सपगला चढ़ पवणत आई ।।3।।
गूग
ूँ ा सब राग सुनावे । अंधा सब रूप जनरारे ।।4।।
मक्खी ने मकड़ी खाई । भुनगे ने धरन तुलाई ।।5।।
धरती चढ़ वृक्षा बैठी । पक्षी ने पवन चुगाई ।।6।।
िंगल में बस्ती ब्याई । बस्ती सब जखलक़त खाई ।।7।।
मूसे से जबल्ली भागी । पानी में अजि लागी ।।8।।

कड़ी 1---गुरु ने दया करके अचरि रूपी खेल घट में कदखाया, सुरत को नाम रूपी
रतन यानी दसवें द्वार का िब्द प्राप्त हुआ ।
" 2---सुरत ने मन को िीता और कफर सुरत ने काल को मारा ।
" 3---सुरत चढ़ कर गगन में परूँची । िो मन कक दौड़ना यानी चंचलता छोड़
कर जनश्चल रो गया वरी पवणत पर चढ़ गया यानी जिकु टी में पहुूँचा ।
" 4---िो िशस कक दुजनया की तरफ़ और अन्तर में बोलने से चुप हुआ वरी िब्द
कक धुनें सुनने लगा और जिस ककसी ने बारर से अपनी दृजष्ट बन्द की वरी
अन्तर में रूप देखने लगा ।
" 5---मक्खी नाम सुरत का रै िो मकड़ी यानी माया के घर में िब तक थी
उसका खािा रो ररी थी और िब कक दसवें द्वार की तरफ़ उलट कर पहुूँची
तब माया को जनगल गई---भुनगे यानी िीव या सुरत ने सूक्षम िरीर को
समेट कर आकाि में उठा जलया ।
" 6---सुरत चढ़ कर जिकु टी में पहुूँची---मन िो सैलानी था िब चढ़ कर जिकु टी
में पहुूँचा तब प्रार् पवन को जनगलता चला गया ।
" 7---बस्ती यानी रचना (और रचना करने वाली नाम सुरत का रै ) सो उसने
सपड रूपी िङ्गल में उतर कर रचना की और कफर िब उलट कर जिकु टी
या दसवें द्वार में पहुूँची तब सपड और ब्रह्मांड की रचना को जनगल गई
यानी समेट गई ।
" 8---चढ़ने वाली सुरत को देख कर माया रट गई । अमी की धार िो कक
सरसदल कूँ वल के मुकाम पर आई, वरी िोजत स्वरूप रोकर रोिन रो
ररी रै और वरी माया का स्वरूप रै और वरी अजि रै ।
बचन 41 फु टकल िब्द 379

कउआ धुन मधुरी बोले । मेंडक अब सागर तोले ।।9।।


मूरख से चतुरा रारा । धरती में गगन पुकारा ।।10।।
राधास्वामी उलटी गाई । उल्लू को सूर कदखाई ।।11।।
।। िब्द बीसवाूँ ।।
अंत हुआ िग मासर । आकद घर अपना भूली ।।1।।
मध्य गरी पुजन आय । अंत को कफर ले तोली ।।2।।
आकद अंत मध छोड़ । गरी िा अपनी मूली ।।3।।
िीवन पदवी जमले । चढ़े िो अब के सूली ।।4।।

कड़ी 9---िो मन कक परले कड़आ वाक्य बोलता था और अपने मतलब के जलये औरों
को दुख देता था वरी जिकु टी में चढ़ कर मीठी बोली के साथ राग राजगनी
सुनाता रै—सपड में नीचे का मन िो मेंडक के मुवाकफ़क़ थोड़ी रद में
उछलता कू दता था जिकु टी में चढ़ कर भौसागर की तौल और नाप करता
रै ।
" 10---मन िो कक सपड में बैठ कर मूरखता से भोगों में फूँ स ररा था िब गुरु
कृ पा से घट में चढ़ कर जिकु टी में पहुूँचा तब काल जिसने चतुराई करके
िाल जबछाया था उससे रार गया और कफर धरती यानी सपड में जिकु टी
के िब्द की धुनें फै ली ।
" 11---राधास्वामी ने सुरत और मन के उलटने का यर राल वर्णन ककया और
िो िीव कक उल्लू के मुवाकफ़क़ ब्रह्मरूपी सूरि का दिणन नरीं कर सकते थे
उनको जिकु टी में चढ़ा कर ब्रह्म का दिणन कराया ।
" 1---सुरत भोगों में फूँ स कर िड़ खान में उतर गई और संतों के दसवें द्वार को
िो तीन लोक की रचना का आकद रै और िरां से सुरत सपड में उतरी थी,
भूल गई ।
" 2---और कफर मध्य यानी मृत्यु लोक में नर देरी पा कर जतरलोकी के अन्त पद
को िो कक वरी दसवां द्वार रै, सुरत ने खबर ली ।
" 3---और कफर इन तीनों स्थान यानी दसवां द्वार और मृत्यु लोक और िड़ खान
को छोड़ कर अपने मूल पद यानी सत्तपुरुष राधास्वामी देि में पहुूँची, या
उसका जनिाना और इष्ट बाूँध कर उस तरफ़ को चलने लगी ।
" 4---सूली मतलब उस धार से रै िो सरसदल कूँ वल से गुदा चक्र तक आई रै सो
िो कोई उस धार को पकड़ कर ऊपर को चढ़े, वरी छठे चक्र के पार िाकर
मौत को िीत लेगा और कफर सत्तलोक में पहूूँच कर अमर रो िावेगा ।
380 सार बचन बचन 41

ससे माररया ससर । कौन यर समझे बोली ।।5।।


मात जपता दोउ िने । पूत ने बैठ खटोली ।।6।।
मछली चढ़ी अकाि । धरन कर डारी पोली ।।7।।
चाूँद सूर पाताल से । जनकले पट खोली ।।8।।
चोरन पकड़ा सार । सार ने पजररी चोली ।।9।।
अमृत पी पी मरें । ज़रर की गाूँठी खोली ।।10।।
राधास्वामी गाइया । यर भेद अमोली ।।11।।
संत जबना को बूजझ रै । यर ममण तोली ।।12।।
अिा माररया भेजड़या । ले जमरगन टोली ।।13।।

कड़ी 5---और कफर वरी सुरत िो कक मुवाकफ़क़ खरगोि के , सपड में ग़रीब और जनबणल
थी, दसवें द्वार में पहूूँच कर ससर यानी काल को मार लेगी ।
" 6---िब सुरत गभण में यानी खट चक्र के देि में आई तब पजरले उसने ब्रह्मांड और
सपड की रचना करी, यानी माया और ब्रह्म के पद उसी से प्रगट हुए, और
िब सुरत, िन्मी यानी िीव गभण से बारर आया तब वरी िीव सपड में उतर
कर बैठने से माया और ब्रह्म का पुि रो गया ।
" 7---और िब सुरत मछली की तरर िब्द की धार को पकड़ कर उल्टी यानी
ऊपर को चढ़ी तब वर धरन यानी सपड को पोला या खाली कर गई ।
" 8---और िब चढ़ते चढ़ते दसवें द्वार के परे गई तब सूरि और चाूँद यानी जिकु टी
और सुन्न स्थान दोनों पाताल यानी नीचे नज़राई कदये ।
" 9---िब सुरत यानी िीव का उतार हुआ तब काल और करम और काम क्रोध
लोभ मोर और अरंकार बग़ैरा चोरों ने इस को घेर कर बन्द यानी चोले में
जगरफ़्तार कर जलया ।
" 10---और िब वरी िीव यानी सुरत उलट कर अपने घर की तरफ को चली
और ब्रह्मांड के परे चढ़ गई और अमी की धारा बराने लगी तब वरी सब
चोर अमृत पी कर मर गये और उनकी ज़रर की गाूँठ खुल कर भस्म रो गई ।
" 11---राधास्वामी ने यर अमोल पद का अमोल भेद गाया ।
" 12---और इसको जबना संत के कोई नरीं समझ सकता रै ।
" 13---अिा बकरी को करते रैं सो यर सूरत सुरत की सपड में थी यानी काल भेजड़ये
का खािा रो ररी थी, सो िब सतगुरु की कृ पा से उलट कर ब्रह्मांड और
उसके परे पहुूँची तो मन और इजन्द्रयों को संग लेकर काल भेजड़ये पर चढ़
आई और उसको मार जलया ।
बचन 41 फु टकल िब्द 381

सुरत िब्द मेला भया । ले अनरस घोली ।।14।।


।। िब्द इक्कीसवाूँ ।।
गुरु उलटी बात बताई । मूरखता खूब जसखाई ।।1।।
सोते ने िमा कमाई । िगते ने माल गूँवाई ।।2।।
बैठे ने रस्ता काटा । चलते ने बाट न पाई ।।3।।
धरती चढ़ गगना आई । सुन्नी पाताल समाई ।।4।।
चोरी से खासवद रीझा । सच्चे को मार खपाई ।।5।।

कड़ी 14---और तब सुरत का िब्द के साथ मेला रो गया यानी अमृत का भंडार
खोल कदया ।
" 1---गुरु ने यर उलटी बात बताई कक संसार में मूखण रोकर के बरत यानी
चतुराई छोड़ दे, तो तेरा कोई दामन नरीं पकड़ सके गा और दूसरे यर
कक मूर यानी मूल पद की रक्षा और सम्राल रख यानी इस तरफ़ से उलट
कर राधास्वामी के चरनों को दृढ़ करके पकड़ ।
" 2---जिस ककसी ने संसार की तरफ़ से उदास रोकर इसके कारोबार में दखल
देना छोड़ कदया यानी इस तरफ से सो गया और परमाथण में प्रेम की
दौलत पाई, और िो संसार की तरफ़ मुतविर ररा और बहुत
रोजियारी और िौक़ से इसके कारोबार करता ररा उसी ने परमाथण की
दौलत खोई और अपनी चैतन्यता मुफ़्त गूँवा दी ।
" 3---िो मन कक जनश्चल रोकर घट में बैठा वरी ऊूँचे की तरफ़ चढ़ने लगा
और परमाथण का रास्ता तै करता हुआ घर की तरफ़ चला और िो मन
की चंचल ररा और इधर उधर संसार में दौड़ता ररा उस को घर का
रास्ता नरीं जमला और न उस तरफ़ को चला ।
" 4---िो सुरत कक अभ्यास करके ब्रह्मांड में और उसके परे पहुूँची उसके संग
धरती यानी माया भी जिसका आकद जनकास जिकु टी से हुआ रै उलट
कर अपने असल में िा जमला ओर िो सुरत कक संसार में जलपट ररी वर
माया के साथ नीचे से नीचे के मुक़ाम तक उतरती चली गई ।
" 5---िो िशस कक अपने परमाथण की कमाई और तरक्की को िगत से जछपाये
हुए चला उससे माजलक प्रसन्न हुआ और जिस ककसी ने कक सचौटी के
साथ अपने परमाथण का भेद और कमाई का राल िगत के िीवें से खोल
कर करा उसी को अनेक तरर के जवघ्नों से मुकाबला करना पड़ा और
सशत तकलीफ उठानी पड़ी और उसके परमाथण में घाटा हुआ ।
382 सार बचन बचन 41

अजि को िाड़ा लागा । वषाण से सूखी साखा ।।6।।


रोटी जनत भूखी तरसे । पानी अब प्यासा तड़पे ।।7।।
सोते पर खाट जबछाई । िगते को सुषपजत आई ।।8।।
बंझा जनत िनती रारी । िनती पुजन बाूँझ कराई ।।9।।
घोड़े पर पृथवी दौड़ी । ऊूँटन चढ़ गगना फोड़ी ।।10।।
राधास्वामी मौि कदखाई । सूरत अब िब्द लगाई ।।11।।

कड़ी 6---िब सुरत गगन की तरफ़ को चढ़ने लगी, तब अजि यानी माया ( िो सुरत
की मदद से चैतन्य थी ) कांपने लगी, यानी उसकी चैतन्यता सखच गई,
और िब अमृत की वषाण अन्तर में चढ़ने वाली सुरत पर रोने लगी, तब
ब-सबब सखचाव और जसमटाव सुरत के िो उसकी धारें नीचे की तरफ़
िारी थी वर सूखने लगी और जसमटती चलीं ।
" 7---और िब रोटी यानी माया और उसके पदाथण िो सुरत की धार से चैतन्य
थे अब उस चैतन्यता के जलये भूखे तड़पते रैं और इसी तरर पानी यानी
मन सुरत की चैतन्य धार के वास्ते प्यासा तड़पने लगा ।
" 8---िो परमाथण की तरफ़ से गाकफ़ल यानी सोता ररा वर माया के तले यानी
षट चक्र में दबा और फूँ सा ररा और िो परमाथण की कमाई चेत कर और
रोजियारी के साथ करने लगा वर सपड और संसार की तरफ़ से बे-खबर
रोता गया ।
" 9---बंझा यानी माया से (िब कक सुरत उसके घेर में उतर कर आई ) अनेक
प्रकार की रचना और अनेक पदाथण पैदा हुए, और िब सुरत यानी िनती
और असल करता उलट कर सपड और ब्रह्मांड के परे पहुूँची, तब सब रचना
जसमट गई, और वर अके ली अपने घर की तरफ जसधारी ।
" 10---िब कक सुरत िो सपड में फूँ स कर देर यानी पृथ्वी रूप रो ररी थी उलट
कर ब्रह्मांड की तरफ़ चली तो वर मन रूपी घोड़े पर सवार रोकर दौड़ी
और तब री ऊूँट यानी स्वांसा अथवा प्रार् उलट कर और गगन को फोड़
कर चढ़ गई ।
" 11---खुलासा इस िब्द का यर रै कक राधास्वामी ने अपनी मेरर और मौि से
सुरत को चढ़ा कर िब्द से जमला कदया ।
बचन 41 फु टकल िब्द 383

।। िब्द बाईसवाूँ ।।
सुन री सखी इक ममण िनाऊूँ । नई बात अब तोजर सुनाऊूँ ।।1।।
कदन जबच नाचत चंद कदखाऊूँ । रै न उदय कदन कर दरसाऊूँ ।।2।।
अजि पूतरी िल से ससचाऊूँ । िल की रं भा अजि नचाऊूँ ।।3।।
गगन मासर पृथवी चलवाऊूँ । पृथवी मध्य गगन लखावऊूँ ।।4।।
व्योम वलाय पवन थमवाऊूँ । ससर मार और स्यार जिताऊूँ ।।5।।
दुबणल से बलवान जगराऊूँ । जिकु टी चढ़ यर धूम मचाऊूँ ।।6।।
कागन झुडं रंस करवाऊूँ । लूकन को अब सूर कदखाऊूँ ।।7।।
उलटी बात सभी कर गाऊूँ । ऐसे समरथ राधास्वामी पाऊूँ ।।8।।

कड़ी 1---रे सखी तुझको एक भेद िनाता हूूँ और नई बात सुनाता हूूँ ।
" 2---सुन्न में िरां कक सदा रोिनी ररती रै यानी कदन ररता रै चन्द्र स्वरूप नज़र
आता रै, और जिकु टी के मुक़ाम पर िरां से कक माया यानी अन्धेरा और
रात िुरू हुई सूरिरूप रोिनी देता रै ।
" 3---सरसदल कूँ वल में िोत स्वरूप अमृत की िल धार से (िो ऊूँचे से आती
रै ) रोिन रै, और अमृत धार के संग िो धुन सरस दल-कूँ वल से नीचे
उतरी, वर अजि यानी माया के घेर में के ल कर ररी रै ।
" 4---आकाि में पृथ्वी यानी देर की बासी सुरत को चढ़ाऊूँ, और पृथ्वी यानी देर
में गगन यानी आकाि का लखाव करूूँ ।
" 5---व्योम यानी मन-आकाि िब सुरत की चढ़ाई के वि ऊूँपर को जसमटे, तब
प्रार् यानी पवन धीमी रोकर ठरर िाती रै, स्यार िो िीव से मुराद रै
वर गगन में चढ़ कर ससर यानी काल को िीत लेता रै ।
" 6---दुबल ण वरी िीव या सुरत से मतलब रै िो सपड में उतर कर जनरायत
बे-ताक़त रो िाती रै, और जिकु टी में चढ़ कर काल बली को पछाड़ कर
ज़ेर कर लेती रै ।
" 7---अनेक िीवों को िो सपड में जनपट काग यानी मन रूप रो कर बतण ररे रैं
दसवें द्वार में पहुूँचा कर रंस स्वरूप बनाऊूँ, और जनपट संसारी िो उल्लू
के मुवाकफ़क़ माजलक की तरफ से अन्धे और अिान रो ररे रैं उनको जिकु टी
में पहुूँचा कर सूरि ब्रह्म का दिणन कराऊूँ ।
" 8---यर सब उलटी बातें समथण सतगुरु राधास्वामी दयाल की दया में सरी
करके कदखाई िा सकती रैं ।
384 सार बचन बचन 41

।। िब्द तेईसवाूँ ।।

गूग
ूँ े ने गुड़ खाइया । वर कै से करे बनाय ।।1।।
बजररे ने धुन पाइया । वर क्योंकर करे सुनाय ।।2।।
अन्धे मोती पो जलया । वर ककसे कदखावन िाय ।।3।।
लूले ने नभ थाजमया । यर अचरि करा न िाय ।।4।।
सपगला पवणत चढ़ गया । कोइ साधु िाने ताय ।।5।।
रोगी सद िीजवत ररे । जबन रोगजर मर मर िाय ।।6।।

कड़ी 1---जिसने कक अपने घट में िब्द का गररा रस पाया, वर उसको क्यों कर


बयान कर सकता रै । उसका राल वरी रोगा िैसा कक गूग ूँ े का िो गुड़
खाकर उसके स्वाद का बयान करने से लाचार रै । और यर कक जिस ककसी
को गररा रस अंतर में आया वरी उसके प्रकट करने में आम लोगों के सामने
गूग
ूँ ा रो गया ।
" 2---जिसने कक दुजनया की तरफ़ से अपने कान बन्द ककये उसी को अंतर में
िब्द खुला कफर वर उस िब्द और आनन्द के भेद को आम लोगों को कै से
ितावे या सुनावे ॽ
" 3---जिसने कक अपनी नज़र दुजनया की तरफ़ से खींच ली यानी आूँखें बन्द कर
ली, उसी ने अपनी सुरत की धार को दसवें द्वार में पहुूँचाया यानी मोती
पो जलया । कफर वर इस कै कफयत को अवाम को कै से कदखा सकता रै ॽ
" 4---िो मन कक दुजनया में दौड़ने से रर गया यानी जिसने चंचलता छोड़ दी
उसी ने चढ़ कर नभ यानी आकाि को थाम जलया और यरी अचरि की
बात रै ।
" 5---िो मन कक जनश्चल रो गया, वरी सपगला रै और वरी सतगुरु की दया से
सुमरे पवणत यानी जिकु टी पर चढ़ गया । इस राल को कोई अभ्यासी साधु
समझता रै ।
" 6---िो कोई माजलक के चरनों के इश्क़ यानी प्रेम का बीमार हुआ और जिस
ककसी ने अपने मन को बीमार िान कर सतगुरु से उसका इलाि कराना
िुरू ककया, वरी एक कदन अमर पद में पहुूँच कर अमर रो िावेगा और
जिस ककसी को प्रेम की बीमारी नरीं लगी या जिसने अपने मन की बीमारी
की खबर न ली यानी अपने को जनमणल और चंगा समझा, वर बारम्बार
िन्मेगा और मरे गा ।
बचन 41 फु टकल िब्द 385

सोगी जनत ररखत ररे । जबन सोग चौरासी िाय ।।7।।


जचन्ता में िो जनत ररे । सो जमले अजचन्ते आय ।।8।।
बैरागी भरमत कफरे । रागी मुजि समाय ।।9।।
सतगुरु यर परचा कदया । कोइ जबरले खोि कराय ।।10।।
अंतरमुख िो िब्द में । लेंगे बूझ बुझाय ।।11।।
राधास्वामी कर कदया । तुम लेना िब्द कमाय ।।12।।

कड़ी 7---िो अपने प्रीतम सच्चे माजलक के जवयोग की जवरर में उदास और ग़मगीन
ररता रै, वर कदन कदन अन्तर में चरर् रस पाकर मगन रोता िावेगा, और
जिस ककसी के जररदे में माजलक के चरनों की जवरर और प्रेम नरीं रै, वरी
मनुष्य चौरासी में भरमता ररेगा ।

" 8---िो कोई अपने माजलक के जमलने और अपने िीव का सच्चा उद्धार और
कल्यार् करने की जचन्ता में ररता रै, वरी एक कदन अजचन्त पुरुष यानी
सच्चे माजलक से जमलकर जनजिचन्त रो िावेगा ।

" 9---जिस ककसी ने संसार से वैराग ककया यानी घर बार छोड़ कर भेष जलया
और माजलक के चरनों का प्रेम और प्यार उसके मन में नरीं आया तो वर
रमेिा चारों खानों में भरमता ररेगा, और जिस ककसी के मन में माजलक
के चरनों का राग और प्रेम समाया, वरी एक कदन मुजि पद में पहुूँच
िावेगा ।

" 10---सतगुरु ने इस तरर से सच्चे प्रेजमयों को उनके घट में परचे कदये सो इस


बात को सुन कर कोई जबरले िीव उसके खोि और तलाि में लगेंगे ।

" 11---और िो अपने अन्तर में िब्द का अभ्यास करें ग,े वरी इस कै कफ़यत को
समझेंगे और अपने घट में जनरख और परख कर बूझग ें े ।

" 12---इस वास्ते सतगुरु राधास्वामी दयाल सब िीवों को पुकार कर करते रैं
कक रे भाइयो ! िब्द की कमाई करो और अपने घट में रस और आनन्द लो
और दया और मेरर के परचे देखो ।
386 सार बचन बचन 42

।। िब्द चौबीसवाूँ ।।

मन सींचो प्रेम ककयारी । सतगुरु अस रेला मारी ।।1।।


घट पौद जखली अब भारी । भजि की लग ररी बांड़ी ।।2।।
िल अमृत वषण बरा री । संतन संग देख बरारी ।।3।।
गुरु िब्द लगा सुतण तारी । सुखमन रस पी ले प्यारी ।।4।।
कूँ वल कमोदनी चन्द्र जनरारी । जखली सुरत और प्यार बढ़ा री ।।5।।
मन भूँवरा गुंिार लगा री । सूरिमुखी कूँ वल जनरखा री ।।6।।
मरूवा मोगर मन मोरा री । चार चमेली मेल जमला री ।।7।।
चम्पा चाूँप चढ़ा धनुवा री । सुरत बान से काल जगरा री ।।8।।
मौरसली नृत मोर रसा री । नरजगस नैन देख उजियारी ।।9।।

।। बचन बयालीसवाूँ ।।
।। सेवा बार्ी ।।

।। िब्द परला ।।

स्वामी उठे और बैठे भिन में । कर कर ध्यान मगन हुए मन में ।।1।।
कफर भर कमूँडल धर कदया आगे । सतसंगी आय दिणन लागे ।।2।।
ककया चरनामृत लई परसादी । रार चढ़ा कर बूँदगी साधी ।।3।।
लोटे घर तब गये कदिा को । कफर आये िब टाल बला को ।।4।।
चौकी जबछा मैंने गद्दी जबछाई । स्वामी जबठा और राथ धुलाई ।।5।।
दाूँतन कर मंिन करवाई । मुख ककया िुद्ध और दाूँत सफ़ाई ।।6।।
कु ल्ली दई स्वामी कु ल मेरा उधरा । िन्म सुफल और तन मन सुधरा ।।7।।
बटना तन मल मैल गूँवाई । बाट खुली और सुरत चढ़ाई ।।8।।
तेल मला और चमक बढ़ाई । िोभा राधास्वामी अजधक सुराई ।।9।।
मानसरोवर िल भर लाई । तब राधास्वामी अश्नान कराई ।।10।।
बचन 42 सेवा बार्ी 387

कर अश्नान पोंछ अंग लीन्रा । मगन हुई मैं िस िल मीना ।।11।।


कं घा ककया स्वामी बाल सुधारे । गया िंिाल1 मोर मद रारे ।।12।।
धोती बदली पजरने वस्तर । सतसंगी सब अब हुए इजस्थर ।।13।।
कमूँडल भर कफर दासी लाई । राधास्वामी कढग बैठ जपलाई ।।14।।
सतगुरु सत सत बोली बोला । श्रवर्ी सुनी सुख दर खोला ।।15।।
कली कली मन जचत्त जखलानी । नइ नइ िोभा आन समानी ।।16।।
सतसूँग में आय ककया उपदेिा । बचन करे कदया अगम सूँदि े ा ।।17।।
कफर भोिन कर बीड़ी खाई । बाूँटी बीड़ी कन्रैया भाई ।।18।।
सीत प्रसाद सभी जमल लीन्रा । िन्म िन्म से पातक छीना ।।19।।
माूँि कमंडल िल भर लाई । और स्वामी को कदया जपलाई ।।20।।
सेि जबछाई स्वामी पौढ़े । चरनन सेवा में जचत िोड़े ।।21।।
चरनन सेवा करी बनाई । दुलभ ण सेवा यर रम पाई ।।22।।
िागे स्वामी दिणन पाई । भाग आपना जलया िगाई ।।23।।
सेवा का वर्णन सब कीन्रा । गावे सुने रोय मन लीना ।।24।।
िो गावे यर मेवा बानी । सो पावे सतलोक जनिानी ।।25।।
राधास्वामी सेवा गाई । सुरत िब्द मारग तब पाई ।।26।।
बड़ भागी िो सेवा करते । प्रीत सजरत स्वामी सूँग ररते ।।27।।

।। िब्द दूसरा ।।

चौका बरतन ककया अचंभी । सफ़ा ककया मन अपना रम भी ।।1।।


नूर पुरुष का अद्भुत िागा । तेि प्रचंड जतजमर सब भागा ।।2।।
चौका कीन्रा दसवें द्वारा । पाूँचों बासन माूँि सूँवारा ।।3।।
चूल्रा धोया श्याम कं ि में । िोत िगाई सरसकूँ ल में ।।4।।
तीन गुनन का पोता मारा । करम भरम का कू ड़ा टारा ।।5।।
हुई सफ़ाई अचरि भारी । सतगुरु ने अब मोजर सम्रारी ।।6।।

1. दुख, रं ि ।
388 सार बचन बचन 42

सतगुरु सेवा में रहुं लागी । जछन जछन चरन कूँ वल में पागी ।।7।।

।। िब्द तीसरा ।।

रात िगूूँ मैं सुन कर खड़का । उठत सुवामी मन मेरा फड़का ।।1।।
राथ धुलाऊूँ देऊूँ अूँगोछा । इस सेवा पर मन मेरा लोचा1 ।।2।।
भाव भजि से सबिन करती । थाल परोस स्वामी कढग धरती ।।3।।
िब राधास्वामी ने भोग लगाया । मगन हुआ मन अजत सुख पाया ।।4।।
ग्रास कदया परिादी का िबरी । घट के परदे खुल गये तबरी ।।5।।
राधास्वामी राधास्वामी जछन जछन गाया । कफर सतसंगी सब जमल पाया ।।
बटी परिादी सुख भया भारी । कफर पानी की भर लाई झारी ।।7।।
करमंडल ले िल अचवाया । पलूँग जबछा स्वामी पौढ़ाया ।।8।।
चरन पखारूूँ िागूूँ रै ना । कफर उठें स्वामी तब पाउूँ चैना ।।9।।
उठकर दिणन जछन जछन करती । चरनामृत परिादी लेती ।।10।।

।। िब्द चौथा ।।

भोग धरे राधास्वामी आगे । लीन्रे सबिन अमी रस पागे ।।1।।


गगन जिखर पर बिा रै नगारा । भोग लगाया राधास्वामी सारा ।।2।।
काल करम को खा गये जछन में । िंगी नाम धराया पल में ।।3।।
ऐसा भोग लगा नसर कबरी । राधास्वामी खा गये सबको अबरी ।।4।।

-----इजत सम्पूर्ण समाप्त बचन सार बयालीस राधास्वामी के -----

1. लुभायमान हुआ ।
देिना (Index) सार बचन छंद बंद

अंग 13, 59, 69, 107 अचरि 2, 41, 45, 47, 53-54, 59,
अंडा (अंड) 26, 88, 101, 134, 168, . 76, 82, 158, 165, 170,
186, 212, 227-28, 299, 347 177, 189, 196, 198, 204-
अंतर-अभ्यास 108, 336, 206, 228-29, 268, 270,
अंतरिामी 4, 9, 44, 53-54, 71, 286, 300, 365, 378, 387
89, 135, 194, 230-32, 242 अिुध्या 191, 248-49
268, 278, 283, 299, 347 अद्भुत 2,6, 28, 41, 43, 45, 47, 55,
अंतर मुख 86, 108, 114, 149, 336, 58, 63, 81, 94, 108, 112,
385 163, 177, 198, 200, 205,
अंध घोर 62, 227, 248, 265 223, 227, 229, 309, 331
अंधा 91,109, 149, 157, 378, 384 अधम 84, 231, 237, 245, 249
अंजधयार 42, 68, 139, 200, 262, 284, 287,
355 अधर 13, 32, 46, 60, 62, 66, 80,
अकाि 3, 5, 88, 94, 211, 214, 233, 86, 92-94, 132, 141, 158-
262, 380 59, 165-66, 169, 211, 215,
अक्षर 7, 9, 58-59, 62, 65 , 69, 72, 236, 239, 260, 284, 299,
89, 95, 100, 168, 198, 211, 306, 364, 367
234-35, 253, 284, 317, अधार 38, 40, 70, 76, 81, 86, 90,
352, 365 139, 146, 228
अगमपुर 4, 71, 301 अजधकारी 2, 86, 132, 342
अगम पुरुष 3, 5, 6, 43,-44, 46, अनरद 226, 265, 343
48, 52, 162,177, 211, 223 अनरद घोर 40, 139, 163, 312
अगम लोक (कदिा) 2, 3, 5, 6, 12, 43 अनरद तूरा (तूरे) 38,41,281,306, 336
52-53, 62, 80, 128, 162 अनरद धुन 45, 47, 50, 52, 56, 61-
187,195-96, 198, 206, 211, 62, 82, 205, 239, 243, 247,
223 283, 286, 297-99,302, 308
अगरन मास (मागण िीषण) 341 317, 356, 360
अजि (अजगन, अगनी ) 12, 61, 89, अनरद नाद 34
148, 199, 208, 213-14,335 अनरद बािे 94, 102, 255, 288,
अज्ञानी 9, 197 291, 301, 316, 361
390 सार बचन

अनरद बार्ी (बानी ) 58, 156, 165, अमी 28, 48, 55, 64, 229, 233,
200 247
अनरद राग 165, 300, 357 अमी अरार 67, 198, 206, 282, 293,
अनरद िब्द 69, 110, 169, 312 303, 364
अनामी 4, 9, 52, 80, 89, 101, अमी कु न्ड 43
140, 196, 198, 211, 223, अमी िल 17
245, 283, 285, 293-94, अमी धार 37, 242, 259, 291, 329,
299, 300, 365, 269 357, 362
अनामी पुरुष 2, 43, 52, 82, 283 अमी रस 5, 39-40, 55-56, 63-64,
अनारद नाद 79 92-93, 141, 150, 158, 164,
अनारद बानी 80, 166 228, 253-54, 272, 286,291
अनारद िब्द 64, 79, 146, 161, 308, 326, 328, 399, 388
330 अमी सरोवर 6, 174, 292
अनाहू 175, 342 अमी ससध 77, 266
अनुभव 209, 210, 343, 352 अमृत 35, 44, 48, 57, 64, 67, 82,
अनुराग 46, 63, 80, 95, 165, 300 103, 165-66, 206, 247,307
अनुरागी 74, 106, 109, 251, 343- 327, 386
44 अमृत कुं ड 4, 206, 229, 308
अनूप 43, 56-57, 229 अमृत धारा 57, 139, 154, 174, 275
अपनाये 5, 84, 286 अमृत रस 46, 51, 163, 301, 329
अपार 8, 43, 65, 67, 72, 75, 76, अमृतसर 240
110, 161, 198, 206, 209. अमृत सागर 287
216, 228, 364 अिण 33, 38, 42, 153, 159, 178,
अभागी 81, 83, 114 299
अजभमान 85, 86, 138, 140, 142, अलक्ष 105, 128
192-93, 202, 219, 228, 257, अलख 46-48, 56, 61, 211
320 अलख अगम 15, 18, 20, 27, 29, 37,
अभ्यास 3, 75, 108, 131, 170, 253, 40, 46, 59, 63-68, 80, 82,
260, 267 88-91, 96-97, 108, 134-35,
अभ्यास सुरत िब्द 3, 155 143, 148-53, 155-58, 160,
अमर 36, 50, 65-66, 89, 169, 201, 164, 167, 169, 187, 194,
301-2, 327 200, 213, 216, 223 , 229,
अमर पद 15, 63, 96, 121, 159, 233-36, 248-53, 315
300, 321 अलख पुरुष 2, 3, 43, 52, 177, 198,
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 391

216 आरती परम पुरुष राधास्वामी 48-69


अलख लोक 3, 6, 12, 43, 44, 53, 62, आलस 3, 93
196, 198 आलस 87, 106, 114, 123, 152,
अलल पच्छ 9 157, 161, 165, 208
अल्ताफ़ 175 298, 328
अल्ला 10, 205, 350 अवागवन 164, 222
अल्लाहू 342 आवाज़ आसमानी 171-72
अजवद्या 50, 209 आसा 163, 206, 223, 230, 237,
असाढ़ मास 333 255, 262, 325
असाध 99, 239 आसा मनसा 52, 134, 298, 302,
अरंकार 16, 40, 67, 70, 81, 90, 97- 335, 358, 359
98, 154, 188, 193, 218, इजन्द्रयों के जवकार 253-60
238, 311, 317, 338, 353, इन्द्री 9-67, 81, 106, 113-14, 132,
358 147-48, 150, 152, 167-68,
आूँख 73, 96, 102, 109, 133, 157, 190, 199-200, 260-61, 264
243, 337, 359, 377 315
आकाि 199, 200, 331 इन्द्री भोग 116, 136, 145, 151, 192,
आतम 62, 156, 203-4, 212, 214, 314, 338
221 इच्छा 103, 132, 165
आतम-परमातम 12, 72, 75,101,103, इज़्जज़त 104
328, 337, 340, 350 इजज़्जतरावी 172
आकद अन्त 21, 88, 101, 103, 196, इड़ा सपगला 39, 93, 299
212, 379 इतररयात 176
आनंद 18, 37, 51, 55, 82-83 , 98, इश्क 103, 107, 342
150, 202, 206, 249, 364 इजस्रग़ना 140
आजवद 220, 350 ईषाण 14, 97, 99, 131, 202, 238,
आबे रयात 173-74 254, 270, 326
आरत 19, 37, 45, 47-48, 54, 61, ईश्वर 10, 72, 203-4, 219, 344
77, 86, 103, 106,131, 163, ईसा 12, 205, 221, 351
169, 194, 212, 239-53 ईसाई 3, 74, 220-21
आरत-गुरुकी 48, 62, 75, 193, 289- उिारा 42, 85, 88, 97, 162
90 उिाला 56, 58, 92, 157, 198
आरती 4-7, 38, 48, 56, 63, 35, उजियारा 45, 63,69-70,90,110, 200
229, 239-53 223, 239, 249, 304, 365
392 सार बचन

उत्पजत्त प्रलय ( उत्पजत प्रलय, परलै) 197, ओंग ( ओं, ओम् ) 40, 61-62, 89, 173,
200, 222 196, 235, 248
उत्पजत्त बेद ब्रह्मा 353 औगुन 67, 71, 99, 115-16, 209,
उनमुन 211, 219, 351 230-31, 238, 269
उपदेि 3, 74, 82,172, 206-7, 217, 225 औघट 16, 27, 94, 158
उपदेि गुरु और िब्द 141-54 औजलया 216, 350
उपदेि िब्द 87 औसर 6, 63, 68, 110-11, 113, 139,
उपदेि िब्द अभ्यास 155-70 140, 155, 157,165-66, 235
उपदेि सतगुरु भजि 127-31 237, 290, 314, 363
उपदेि सतसंग 82, 343 कच्छा (कछु आ) 134, 350
उपदेि सुरत िब्द मागण 3, 155-70 कड़़ुवा 141
206, 338 कनक कामनी 113, 135, 304
उपमा राधास्वामी 28-37 कपट 53, 56, 70, 73, 90, 104,
उपमा साध संग 314 118, 122, 131, 140, 163,
उपाव (उपाय) 3, 74, 99, 104,124-26 207, 254
उपाव जबन िब्द 161 कबीर 73, 89, 140, 189, 206, 340
उमंग 4, 37, 46-47, 53, 56, 58-61, कमंडल 107, 386-88
63-66, 76, 84, 158, 168, कमान 293, 307
230, 241, 315-16 कमोदनी 13, 53, 386
उलट 59, 94, 113, 148, 158, 165, करनी 68, 70, 90, 100, 106,
169, 172, 187, 194, 196 133,196, 207, 219-20, 343
209, 211, 302, 315 करमी (कमी ) 22, 82, 182, 194, 221
उलटी दृजष्ट 40, 64 कमण 39, 46, 48, 55, 65, 67, 77,
उलटी बात 157, 378-85 82,84,90-91, 101, 114-115
उलटी 221 124, 133, 143-45, 149-150
एतक़ाद 178 154-55, 158, 162-63, 166-
ऐराफ़ 221 67, 170, 186, 193-94, 200,
ओंकार 9, 59, 198-99, 226, 252, 208-9, 225, 227 , 231-32,
316, 347-50 234, 369, 388
ओंकार धुन 17, 44-45, 67, 90, 93, कमण कांड 101, 349
222, 253, 283, 235 कमण धमण 22, 71, 100, 206, 219
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 393

251, 336-37 44, 46, 48, 50, 53, 56, 59-


कमण धमण ममण 72, 253 60, 64, 67, 75, 78, 81, 84-
कमण ममण 2, 6, 15, 17, 31-32, 39- 85, 88, 91, 96-98, 101, 110
40, 57, 77, 79, 82, 88, 100, 115, 118, 120-22,124, 129,
102, 126, 132-33, 165, 188, 132-36, 140, 144-146, 149-
192, 201-2, 206, 213, 219, 50, 153-59, 162-63 ,167-70,
224, 226, 236, 248, 257, 195-201 , 204-6, 210, 212,
264, 274, 282, 303, 312, 214, 216, 218,222, 225, 231
343, 360, 387 34, 245, 250, 267, 303, 309,
कल कलेि 1, 7 329, 388
कल िुग 3, 13, 69, 98, 100, काल कमण 46, 60, 73, 88, 115, 129,
194, 204, 209, 337 154, 158, 162, 245, 251,
कलाम 119, 171, 244 265, 303, 309, 321, 330,
कजलि 155, 238 370, 372
कजल्पत 219-20 काल घेरा 73, 83, 245-46, 353
कसीफ़ 174 काल का िाल (िार ) 3-4, 16, 44, 66,
काग 165, 208, 234, 285, 372, 379 90, 100, 113, 186, 188, 190-
काि 74, 89, 109-10, 121,138,153 91, 197, 201, 326-390
काजतक मास 339 काल का दाव 48, 98, 368
कात 86, 106, 114, 116, 118, 138, काल चक्र 41, 136, 155-56, 244, 263
157 338
काकफ़र 179 काल देि 200, 215, 236, 349
काबा 33, 179, 220, 350 काल नगर 5, 102, 375
काम 16, 48, 57, 63, 67, 81, 96, काल बल 64, 187, 327
111-112, 123, 232-33 काल मत 100, 188, 193, 205, 221,
काम क्रोध 52-53, 57, 70, 106, 115 349, 397
121, 123, 125, 130, 135-36, कािी 73, 193
142, 147, 237, 255, 262 कककर 69, 71, 82, 84,234,240, 248-
269, 291, 314, 331, 338, 359 49, 275, 371
काम क्रोध लोभ 11, 15, 81, 96, 112, ककगरी 30, 46-47, 54, 146, 240,
131, 157, 162, 190, 201, 235, 293, 318, 339, 359
244, 256, 264, 308, 326 ककगरी सारं ग 16, 48, 56, 222, 227,
कामी 9, 80, 86, 122 283-84, 377
कायर 41 कीट 48, 54
काल 10, 11, 15, 28-29-37, 39-40,
394 सार बचन

कीतणन 100 207, 229


कुं ि जबरारी 73 गंगा िमुना 10, 32, 73, 192-93, 211
कुं िी 151, 169, 279, 298, 313, गंभीर (गम्भीर) 50, 62, 70, 89
कु रटल 56, 71, 84, 131, 238, 270, गंवार 97, 151
281 गउ 308, 378
कु रटलता 70, 97, 140 गगन 36-37, 39, 41-42, 44, 46, 53,
कु टुम्ब 55, 60, 74, 104, 115, 61, 64, 69, 77, 86, 93-97,
117, 121, 130, 135-36, 153, 101, 155-69, 191, 209, 222,
254, 258 227, 231, 247, 281, 299,
कु तुब 12, 216, 350 304, 312, 388
कु तूरल 352 गगन मंडल 9, 40, 52, 54, 57-58,
कु मत 61, 71, 84, 113, 124-25, 63, 108, 147,155, 282, 292,
150, 154, 263, 281, 359 300, 302, 328-30, 343, 357,
कु मुदन (कमोदन) 27, 53 360
कु म्भी नकण 335 गगरी 39, 259, 304, 311
कु रम 9, 22, 26, 227, 345, 350, ग़िल फ़ारसी 178-85
358 गजत 34, 38, 49, 59, 82-83, 96
कु लकर 12, 221 100, 119, 124-25, 133, 145,
कु ल कु टुम्ब 60, 130, 135-36 169, 203, 207,209, 213,322
कृ ष्र् औतार 191, 316 330, 371
क्रोध 53, 57, 96, 123, 131, 159, गजत मजत 11, 47, 57, 75, 87, 209,
202, 208, 230, 324 238, 319, 339
क्वार मास (आजश्वन) 338 गनेि 9, 32, 70, 114, 147
खिाना 53, 81, 315, 358 ग़फ़लता 120, 122, 124, 162, 333
खट करमा 208 ग़रीबी 86, 123, 141
खट िास्त्र 12, 147, 189, 204 गरने 61, 66, 118
खर 157 गांठ 108, 127, 202-3, 243, 309,
खाट 92, 124, 158 338, 359-60
खान 122, 208 ग़ाकफ़ल 118, 123
ख़ुदा 3, 10, 33-34, 175, 178, 205-6, गायिी 73, 194
221, 350 गीता 73
ख़ुदी 88, 153 गुइयां 80, 295
खेचरी 219 गुन 19, 36, 38, 46, 57, 76, 31,
खोि 35, 43, 89, 108, 149, 168, 83, 107, 147, 150, 159
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 395

गुनरगार 99, 237, 242 गुरु पूरे 2, 41-42, 127, 131, 141
गुप्त 1, 5, 21, 30, 108, 188, 227-28, 165, 205, 239
259, 278, 287, 305, 346, 349 गुरु पूरे की पजरचान 105, 128
गुफा 15, 36, 58, 78, 153 गुरु बचन 51, 83, 97-98, 123, 134,
ग़़ुबार 93 149, 169, 195-96, 254,
गुमठ 93 259, 320
गुरु 30, 37, 41-42, 44, 72, 121, गुरु जबन 6, 59, 72-73, 79, 83, 95,
126, 133, 135, 139-40, 161, 110, 116-17, 121, 124, 134,
163, 168, 170, 192-93, 201, 144, 149, 151, 153-54, 205,
204, 214, 218, 234, 286, 249, 254, 260, 270, 287,
311, 315, 319, 324-25, 327, 325, 331, 371,
गुरु का दरस 41, 84, 133, 138 गुरु भजि 7, 33, 74, 75, 83-87, 103
गुरु का ध्यान 86, 119, 134, 143 107, 127-28, 130, 135, 141-
गुरु का बल 59, 84, 104, 133, 135 54, 165, 202-3, 208, 342
गुरु की जनन्दा 126 गुरु भजि जबन 74, 86, 113, 204,
गुरु की मजरमा 47, 325, 328, 371 210, 335
गुरु की मौि 95, 137 गुरु मता 46, 82, 103, 151, 325,
गुरु कुं िी 169, 279 366
गुरु के संग 41, 90, 96, 115, 118, गुरु मुख 6,60, 67, 63, 80, 82,82-83
121, 134, 157, 159, 167, 86, 94-95, 128, 136, 151,
235 162, 189, 209, 265, 320,
गुरु ज्ञान 42, 87, 110, 204, 214, 355, 357, 368
312 गुरु मुखता 86, 278, 318
गुरु चरन 40-41, 47, 58, 78-79, 81, गुरु मूरत 7, 50, 51, 83, 86, 146,
83-84, 105, 115-116, 122, 148, 165, 251, 273, 313,
130, 133, 36, 150, 153-54, 331, 337, 348
163, 168, 170, 233, 235, गुरु मेरर 45, 84, 86, 129, 150,
249, 269, 272, 313, 322- 163
24, 327, 370-72, 375 गुरु सरन 83, 111, 118, 143, 150,
गुरु चेला 108-9 159, 192, 234, 249
गुरु दया 47, 79, 90, 152, 169, 252, गुरु सेवा 74, 85, 107, 116, 122,
323, 328 128-29, 317
गुरु दिणन 6, 83, 139 गुरु स्वरूप 13, 41, 70
गुरु प्रीत 6, 76, 82, 129
396 सार बचन

गुरु 58, 67, 89, 93, 103, 159, 166 घर अपना 64, 108, 120, 139, 187
गूूँगे का गुड़ 57, 94, 384 घाट 5, 27, 38, 64, 91-92, 147,
गृरस्ती (गृरस्थ) 225, 339 151, 158-59, 167, 232-33,
गौकु ल 73, 300 262, 313, 328
गोपी कृ ष्र् 190 घाटी 82, 87, 93, 162, 313
गोरख 234 घात 98, 113, 118, 158
गौर 9, 32, 114, 128, 369 घोर 39, 40, 57, 114, 162, 169
ग़ौस 12 चंचल 131, 148, 151, 161, 203,
ज्ञान 42, 83, 93, 97-98, 143, 206, 232, 255, 257, 261
190, 197, 202-4, 208, 212, चंद चकोर 4, 6, 11, 25, 41-42, 51,
214, 218, 220, 228, 338 54, 89, 332, 372, 375
ज्ञान िोग 46, 59, 75, 83, 204, 318 चंदन 54, 61, 253
ज्ञान ध्यान 4,7, 32, 202, 320 चन्द्र 13, 43, 45, 55, 66, 69, 83,
ज्ञानी 147, 188, 197, 203-4, 207, 94, 108, 156, 159, 206,
212, 214, 228 229, 239, 283, 295
ज्ञानी िोगी 9, 47, 93, 97, 102, 133, चन्द्रमा 66, 79
137, 189, 194, 197, 234, चकवा चकवी 44
286, 297, 300, 321, 340, चकोर 4, 11, 25, 54, 86
350 चक्र (चक्कर ) 41, 86, 169, 199,
घंटा िंख (संख) 44, 48, 54, 56, 58, 219, 226
61, 90, 222, 226-27, 252- चढ़ना सुरत ब लीला मुक़ामात 291-
53, 285, 292, 295-96, 317, 311
घट 33, 41-42, 54, 64, 79, 88-94, चतुराई 117
97, 110, 124, 147, 149, चमन 166, 227, 302, 317, 344
153-54, 159, 161-70, 187, चरखा 54, 377
189, 207-209, 219, 226, चरन 11, 27, 38, 40, 48, 59, 63,
घट िोत 79, 110, 157 68, 70, 76, 98-100, 105,
घट धुन 81, 87, 147 118, 127, 133, 148, 156,
घट िब्द 7, 65, 87, 144, 162, 192 159-60, 164, 168, 207,
पर 2, 75, 83, 85, 92, 108, 110, 225, 230, 233, 237, 284,
126, 150, 156, 161, 166, 288-89, 292, 387
169 चरर् कं वल 3, 37, 41, 48, 69, 85
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 397

चरन धूर 47, 51, 83, 128, 266, चूक 120, 140, 192, 194
299, 313 चेतन 65, 88-89, 124, 147, 148,
चरन पखार 40, 99, 106, 327 192, 211, 214, 220, 248,
चरन सरन 5, 10, 27, 29, 35, 37, 354
46, 49, 58, 67, 69, 71, चैत मास 348
115, 166, 212, 240, 262, चोर 46, 53, 70, 238, 252, 328,
304, 315, 323, 370 380
चरनामृत 63, 106, 131, 135, 141, चौथे धाम 12, 29, 128
193, 225, 245, 258, 341, चौथे पद 2, 43, 69, 77, 97, 100,
375, 386, 388 146, 191, 198, 267, 349,
चररि 85, 280 354, 368
चाूँद 44 चौथे लोक 29, 88, 153, 187, 189-90
चाूँदनी 17, 44, 83, 295 195, 205-6, 223-24, 233,
चाूँद सूरि 10, 48, 61, 70, 88, 146, 337, 349, 354
222, 227 चौपड़ 186-87
चाचरी भूचरी खेचरी 219 चौरासी 73, 81, 86, 98, 109, 111-
चाजिक 86 12, 116, 119-20, 126-28,
चार दल 196 136, 146, 156-57, 164,169
चार कदवस 111, 118-19, 128, 130, 186, 188, 193, 199, 210,
153 225, 237, 261, 276, 279,
चार धाम 73, 193 335, 339, 346-47,353, 321
चार पद 19, 145, 160 385
चार लोक 4, 37, 51, 170, 212, चौला 221
277 छल बल 117, 122, 137, 201, 254
चार वेद 195, 204 जछमा 70, 96, 98
चारों खान 86, 138, 140, 165, 186, िग 4, 9, 11, 14, 30, 61, 69-70,
199, 215, 217, 254, 265, 82, 90, 105, 107, 109, 112,
352 114-15, 121-22, 124, 126-
चारों िुग 119 27, 132-34, 144, 146, 150-
चार 67, 85, 106, 115, 192, 54, 162-66, 170, 186, 188,
253, 256 192-95, 204, 208, 210,213
जचतावनी 110-27, 133 216, 219-21, 268
जचतावनी भेखों को 131-33 िग िीव 69, 82, 84, 137
चुम्बक 11, 35, 44, 372 िगत 19, 57, 75, 106, 108
398 सार बचन

110, 117-118, 130, 132-35, िम पुर 117-18, 135, 146, 157, 218
144-45, 149, 152-54, 164, 276, 335
168, 188, 190, 191-92,199, िम राय 111
203, 208, 210, 235, 256, िल 7, 38, 61, 81, 85, 107, 199,
301, 303, 210, 235, 256, 318, 386, 388
िगत िाल (िार) 40, 110, 117, 120, िल जबन मीना 230, 262, 334,
127, 143, 193, 253, 279 िल मीना 41, 75, 243, 248, 280,
िगत लिा (लाि)104, 115, 118, 332, 342, 387
128, 139, 342 िाग्रत 114, 202, 213, 219
िग मग 46, 69, 126 िात 142
िग सुपना 83, 94, 121, 138, 202, िात पाूँत 33, 112
210, 303, 308, 322 िाजत बरन 104, 192
िगात 10, 82 िाल 11, 40, 44, 116, 121, 124,
िड़ चेतन 108, 113, 158, 188, 196, 147, 150, 152, 155, 193,
211, 220, 338, 359-60 195, 226
ितन 84, 93-94, 100, 143, 161, ज़ाजरद 220, 350
165, 210, 244, 271, 360 जज़करूलकलूब 171
िती 72, 80, 92, 192 जज़ल्लत 104
िनक 72 िीव 1-4, 6, 60, 69-70, 81-84, 88-
िन्म 46, 56, 62, 73, 75, 83,102, 144, 89, 96, 106, 109, 114, 121-
157, 160, 188, 195, 202, 22, 128, 141, 144, 149-50,
204, 208-9, 245, 265, 387 189, 193-97, 199, 201-6,
िन्म मरन 88, 111, 121-22, 126-27, 209-11, 214, 218-19, 221,
203, 210, 273, 304 225-26, 235, 269,274, 322
िप 96, 131, 142 326, 336, 354
िप तप 32, 213, 219, 318, 336, िुजि (युजि) 3, 40-41, 93, 99, 105,
िबरूत 3, 342 120, 122, 125, 144, 152,
िम 10, 17, 24, 36, 82, 98, 110, 154, 162, 165, 187, 194,
112, 114-15,117,121, 124, 202-3, 215, 230, 244, 282,
131, 134, 138, 151, 158, 336, 360
165, 210, 222, 225, 633 िुग 66, 85-86, 101, 146, 153,
िम काल 36 203
िम िाल 156, 312 िुलमात 174
िम िाल 156, 312 िेठ 314
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 399

िेठ मास 351 ठोकर 81, 84


िैनी 3, 74, 205, 220-21 ठौर 76, 85, 88,151,192,195
िोग 4, 32, 46, 59, 68, 83, 96, 252
202-3, 218-19, 229, 325, 365 डंका 53, 73
िोगी 9, 72, 80, 93, 97, 102, 189, डगर 105, 256
191, 193, 197, 286, 298, डर 104, 238
300, 312, 340, 358 ढूँडारा 53
िोगेश्वर 100, 214, 218, 316, 340 ढोल 54, 315, 319
िोत 14, 19, 35, 43, 45-46, 50, 52, 56- तूँबरू ा 77, 301
61, 63-66, 69, 75, 77-78, 92, तक़दीर 171
94, 108, 110, 112, 126, 130- तक्षक 135
31, 136, 152, 156, 159, तशत 48, 126, 138, 155, 170, 229,
161, 163-66, 200, 222, 316
226, 230, 240-53, 282, 304, तज़ल्ली 172
312, 316, 324, 360, 387 तन 34, 94-95, 106, 114, 123,
िोत जनरं िन 48, 77, 101, 167, 145, 147, 152
216, 226, 234-35, 249, तन मन 16, 18, 39, 46-47, 50-51,
253, 297, 340, 350, 352 55-56, 60-63, 68, 71, 76,
371 84, 89, 92-93, 105-6, 114,
िोरू 104, 259 125, 127-28, 130-33, 135,
झंिरी 52, 110, 155, 161, 199, 138, 141,144-45,164, 200,
201, 216, 233, 345, 377 210, 212, 215-16, 225,
झीने बंधन 75 231-32,235-236, 243, 260,
झूठ 103, 111, 204-5, 253, 271 269, 284-85,311,315, 322,
झूठ पसारा 61, 271 335-30, 360, 370, 386
झूठा ज्ञान 91, 203-4 तन मन धन 62-63, 76, 79, 106,
झूठा िग़त 321 155, 171, 237, 245, 248,
झूठा िरान 125, 321 270, 348
टीका 66, 82, 133 तप 85, 93, 100, 133, 219
टेक 73, 74, 76, 142-43, 189 तपसी 93, 189, 350,
टेक गुरु ( गुरु) 76, 143, 322, 330 तपी 72, 365
टेक जपछलों की 32, 73, 142 तम 96, 113
ठग 105, 116, 118, 126, 132, 151, तमो गुन 41, 124
192, 224, 226 तमोली 47, 359
400 सार बचन

तरीक़त 221 तीरथ बरत ( ब्रत, बतण) 10, 23, 32, 72,
तसकर 246, 317 125-26, 133,142,147, 192,
तसबी 326 194, 202, 208, 213, 252,
तािील 172 313, 336, 350
तारा 10, 27, 44, 48, 65, 227, तीथणकर 205, 221
247, 350 तुररया पद 213-14
तारी 81, 88, 146 तुलसी 89, 189, 193, 206, 340
ताला 108, 279, 288, 294, 298, तूरे (तूरा) 38, 41, 201
जतजमर 13, 15, 47, 79, 84-85, 96, तृप्ताये 76, 212
207, 304, 322, 329, 387 तृष्र्ा 121, 135, 233, 255, 321,
जतजमर खंड 174 324
जतररया 111, 117, 250 तेला 221
जतल 14, 24, 27, 35, 41, 43, 48-50, त्याग 90, 164, 207, 219
64-66, 90, 97, 110, 146, जिकु टी 3, 5, 14, 27, 40, 44-48,
64-66, 90, 97, 110, 146, 53, 58, 61-62, 64-65, 67,
154, 159, 166-167, 171, 201, 78, 82, 89, 113, 140, 143,
226-27, 248, 252, 265, 280, 146,148,153,156,162, 164
286, 293, 298, 302, 311, 167, 173, 187,190-91,194,
313, 337, 357, 360, 369 196, 198, 200, 211, 213,
जतलक 107, 192 218,222,224,226,236,242,
तीि 336 248-53, 255, 281, 283-99,
तीन गुन 12, 19, 57, 95, 120, 157, 302,308-12,316, 322, 331,
150, 186, 199, 213, 217, 340, 342, 347-48, 359-61,
292, 302, 309, 313, 352-53, 364, 375, 383
387 जिकु टी घाट 5, 82, 249
तीन ताप 76, 336 जिगुन 9, 164, 350
तीन पुि 101 जितापा 76
तीन लोक 10, 12, 57, 88, 101, 128, जिबेनी (जतरबेनी), 77, 155, 157, 211,
155, 168, 170, 172, 195, 224, 227, 298, 320, 339
201, 205, 216-17, 225-26, जिलोकी 3, 88, 189, 198, 205-6,
229, 292, 337, 339, 352 212, 216-217, 224, 283,
तीन साधन 85 316, 353
तीरथ ( तीथण) 47, 72-73, 142, 155, िेता 13, 69
219, 368
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 401

दप़फ़ 346 दीन दयार (दयाल) 67, 69, 231, 249,


दया 36, 52, 59-61, 63, 68-69, 74, 253, 255, 269, 272, 375,
82, 90, 99, 122, 126-27, 297, 299, 301, 304, 354,
157, 168, 187-88, 197, 371
213, 216, 221, 231, 236, दीन बन्धु 284
240, 244, 262-81, 283-84, दीप 43, 56, 79, 101, 146, 175,
291, 343 198-99, 206,211,216, 228-
दया जबन 43, 74, 257 29, 348
दया मेरर 106, 140, 238-39, 275, दीपक 54, 60, 63, 75, 139, 229, 331
280-90, 301 दुःख 1, 71, 99,110,122-24,127-30,
दयाल (द्याल) 5, 15, 36, 55, 60, 71, 132, 138, 141, 150, 157,
101, 156, 158, 159, 199, 164, 188, 193, 198, 200,
714, 218, 375 202, 213,215-16,230, 232,
दयाल देि 222, 286 263, 239, 273
दयाल मत 101, 188, 349 दुजवधा (दुजवधा) 79, 214, 375
दया जसन्ध 70 दुरबीन 48, 62, 78, 155, 158
दरबार 77, 98, 138-39, 154, 158, दुरमत 5, 79, 99, 234, 270, 279,
175, 188, 204, 223, 231, 225,
303 दुलभ ण 109, 111, 127, 157, 242,
दरस 37, 40, 43, 60, 76, 109, 206, 387
229, 231 डु लरा दुलजरन 113,167-68, 301, 308
दपणन 170, 282, 315 दुराई 37
दिणन 6, 32, 37, 43, 56, 60, 76, 80, दूध 60, 165, 204, 326
82, 106-7, 128-29, 148, 156, दूसरी मंजिल 3
171, 72, 175, 225, 229-30, दृष्ट 4, 32, 40-41, 60, 64-65, 75-76,
262-81, 287, 303, 364, 388 79, 93, 102, 152, 288, 295,
दाता 54, 69, 135, 270-72 301, 325, 327, 360
दादू 73 देवी देवा 10, 101, 128, 193, 371
दान 4, 25, 81, 100, 193, 219, दोिख 351,
270, 321 दो दल 108, 196, 200
दासन दास 84-85, 89, 275, 278, द्वापर 13, 69
331, 371 द्वारका 192
दीवाली 341 धतूरा 341
दीदार 4, 67, 77, 230 धन 85, 87, 90, 106-8,111, 116,-19
402 सार बचन

121, 123, 128-31, 145, 157, 101, 119, 125, 138, 140,
207-9, 225, 238, 334 142-43, 155, 219,240, 386
धरती 12, 101, 263, 378 ध्रुव 12
धरजन ( धरनी, धरन) 88, 166, 247, ध्विा 55
304, 378 नई बात 383
धमण 32, 72, 100, 203-4, 207 नग्मरा 173
धमण राय 292, 305, 338 नज़र मेरर आलूद 171
धाम, 19, 34-36, 41, 45-46, 59, 93, नफ़्स अमारा (अम्मारा) 33, 171
111, 119, 121, 124, 131, नफ़ीरी 306
144, 152, 164-65, 187, 190, नभ 14, 35, 45, 65, 89-90, 111-12,
214, 273, 319, 369, 375 123, 137, 143, 146, 163,
धार (धारा), 4, 53, 67, 87-90, 101, 165, 167, 193, 199, 285,
108, 122, 147, 162, 164, 297, 300, 308, 316, 322,
168, 170, 211, 352 325, 329, 360, 367, 384
धीरि 131, 151, 262, 267, 271-72 नभ द्वार 90, 114, 140, 168, 249
275, 279-80, 284, 300, 318, नमाज़ 33, 350
376 नर देजर (देरी) 81, 84, 96,-111, 114,
धीरे 43, 89, 100 121, 133, 145, 157, 188,
धुन 35, 37, 39, 44, 51, 54-55, 58, 193, 197, 213, 242, 335,
78, 88, 91-96, 101, 110-11, 346, 368
118, 138-39, 145-47, 152- नर रूप 6, 146
58, 161, 164-70, 200-1, 204- नकण 114, 119, 122, 128, 130, 132,
5, 211, 218, 222-23, 227, 157, 197, 225, 265, 335,
334, 369 338, 351, 353, 371
धुन आत्मक 95 नकण की अजगना 121
धुनी 93, 95-96 नकण जनवास 117, 129
धूर 83, 105, 193 नकण स्वगण 337
धृग 68, 108 नदण 186-87, 305
धोखा 11, 63-64, 74, 85, 93, 97, नलनी 120, 289
105, 108, 120, 128, 172, नवनीत 59
188, 191, 193, 195, 202-4 नाका 44, 47, 94, 108, 112, 156,
209, 212, 214, 216-17, 220, 174, 211, 227, 305, 312
226, 238, 258, 271, 282, 365 नाज़नीनाूँ 173
धौल 60, 314 नाती 118-19
ध्यान 4, 31-32, 60, 78, 91, 93 नाद 12, 33-34, 48, 54, 78, 108
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 403

159, 164, 190, 226, 243, नासूत 342


257, 273, 331, 339 जनन्दा 91, 254, 343-44
नानक 73, 89, 140, 206 जनःअक्षर 58, 69, 72, 89, 211
नाम 1, 31, 35, 39-40, 45, 48-49, जनि घर 25, 43, 53, 79, 97, 155
61-68, 75, 77, 85-86, 89, 164,186-90, 193,197, 223,
105, 111, 118, 120-22, 130, 254, 266, 298, 301, 347,
134, 142, 145-46, 150-60, जनि धाम 1, 9, 57-58, 60, 68, 75,
162, 168-69, 192, 194-95, 143, 166, 196, 213
202, 205, 232-35, 240, 302- जनि नाम 1, 102, 119, 131, 144,
310, 313-15, 318, 321-25, 274, 295, 326, 375
327, 329, 331-33, 335, 337 जनि पद 7, 45, 130, 135, 348
345, 351, 354-57, 359, 362, जनि मन 95, 254, 282, 284, 345
365, 368, 373, 388 377
नाम दान 107, 251, 268 जनि स्थान 3, 42, 101, 177, 197,
नाम धुन 97, 111, 159, 277, 331, 222, 307
377 जनि स्वरूप 42, 275, 278
नाम जनर्णय 95 जनदान 85-86, 103, 118, 125, 209
नाम पद 78, 97, 144 जनवाणन 104
नाम प्रताप 7, 75, 194 जनरं िन 9, 48, 61, 77, 89, 156,
नाम जबना 112, 138, 144, 154, 194, 199, 205, 315, 322, 353
256, 269, 335, 337 जनरत 38, 45, 56, 58, 155, 160
नाम भजि 141-54 303
नाम भेद 103, 112, 166, 194 जनगुनण 194, 199, 345
नाम रं ग 65, 96, 164, 222 जनमणल (जनरमल) 3, 38, 67-68, 74,
नाम रतन 79, 113, 378 77-78, 82, 86-87,108, 132,
नाम रस 18, 45, 80, 96, 115, 126, 139,146,148,161,165, 294
144-45, 154, 170, 257-58, 302
269, 329 जनवाणर् पद 3, 205, 221
नाम रसायन 112-13, 123, 135, 170, जनश्चय 131, 161, 206, 218, 224
307, 357 नींद (जनद्रा) 79, 87, 106, 128, 152
नार (नारी, नारर) 10, 66, 85, 97, 157, 165, 298, 308
119, 189, 197, 316, 369 नीच 67, 70, 84, 98
नारद 9, 114, 129, 189, 197, 316 नीर 54, 62, 86, 89-90, 148, 155,
नाव 2, 90, 145, 263, 270, 276, 339 165, 231, 334
404 सार बचन

नूर 41, 108, 176, 248, 311, 344 परम पद 47, 55, 59, 75, 78, 156
नेम 60, 62, 73, 141, 202, 208, 350 159, 329
नेम धरम 192, 214, 320 परम पुरुष 2, 8, 37, 42, 69, 83, 234
नैन 10, 13, 22, 24, 26, 38, 41-42, परमातम 72, 101, 103, 337
45, 51, 54, 60, 67, 83, 87, परमारथ 80, 85, 106, 168
123, 139, 149, 152, 152, परमेश्वर 10, 72, 178, 344
187, 196, 231, 251, 302, परलय 198-99
309, 316, 324, 334, 363-64, परिादी 62, 63, 106, 131, 135,
369, 372, 386 141, 193, 245, 341, 375
नौका 15, 59, 77, 112, 357 386, 388
नौ खंड 88, 101, 242 परस राम 350
नौ द्वार 3, 14, 59, 66, 114, 135, पलटु 73, 340,
न्यारा 69, 110, 139 पवन 12, 20, 61, 199, 293, 343,
पंच (पाूँच) िब्द 7, 56, 81, 86-87, 376
161, 217, 225 पजरचान गुरु पूरे की 105, 125, 128
पंजडत (पजण्डत) 93, 114, 192, 194, पजरचान पाखंडी की 223-25
205, 221, 336, 368 पजरचान भेख की 224
पंजडत क़ािी 126 पजरचान संत 223
पंजडत ज्ञानी 147, 193 पजरचान सच्चे परमाथी की 105-9
पंजडत भेख 85, 97, 133, 147, 189, पजरचान साध 223-24
192, 264, 336 पजरचान मंजिल 3, 34
पंजडत भेख िेख 12, 126 पजरली सुन 81
पंथ 19, 64, 86, 202 पांच अंड 227
पचरं गी 14, 58, 60, 226, 316, 318, पाूँच इन्द्री 147, 165, 243, 360
344 पंच तत्व (तत्त) 57, 66, 120, 217,
पतंगा 54, 136, 230, 273, 324, 372, 243,245,292,297,331, 350
पजनरारी 39, 46, 259, 275, 311 352
पजपरा (पपीरा) 4, 7, 11, 53, 136, 280, पाूँच दुष्ट 243
319, 334, 362 पाूँच धुन 96, 161
परकाि (प्रकाि) 79, 94, 96, 103, पाूँच नाग 337
145, 198, 227 पाूँच नाम 222, 225-29
परककती (प्रकृ तण, प्रकृ त) 57, 101, पाूँच प्रार् 243
147, 186, 215, 245, 350 पाूँच ब्रह्म 227
पाूँच मुन्दरा (मुद्रा) 66, 219
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 405

पाूँच रं ग 58, 311 पुन्य (पुन्न) 119, 193, 314, 341


पाूँच िास्त्र 220 पुरार् (पुरान) 10, 73, 85, 101, 114,
पाखंडा (पाखंडी ) 6, 106, 109, 142, 189, 193
पाठ 208 पुरुष 43, 46, 48, 55-56, 64, 72, 78,
पानी 106, 114, 165, 192, 202, 110, 155, 158, 160, 206,
262, 326, 388 352
पाप 109, 119, 153, 193, 273, 314, पूिूँ ी 87, 111, 118, 126
328, 330, 341 पूिा 100, 140, 193, 208, 225-26,
पाप पुन्न (पुण्य) 314, 346, 350 349
पारब्रह्म 3, 101, 133, 338 पूरन धनी 2, 8, 37, 42, 69, 115
पारस 57 पूरन पद 65-66, 282, 319
पारसनाथ 205 पूरा सतगुरु (गुरु) 42, 105, 110, 128,
पालूँग (पलंग) 177, 227 365
पावन 84 पूस मास 343
पासे अनफ़ास 171 पैग़म्बर 12, 177-78, 216, 350
सपगला 36, 93, 378, 384 पोथी 44, 73, 140, 192, 204, 208-9
सपिरा 145, 312, 319 पोरप 53
सपड 3, 41, 52, 77, 82, 96, 150, पौड़ी 86, 73, 140, 192, 204, 208-9
158, 188, 199, 212, 299, प्रजतष्ठा 74, 108, 132, 145, 209, 238
305, 340, 347, 350 प्रतीत (परतीत) 41, 75, 102, 123,
जपत 268, 380 189,192,195-96, 209, 212,
जपत और माता 36, 54, 69, 158, 240, 217, 223, 228, 238, 258
268, 333-34, 376 339
जपताम्बर 292 प्ररलाद 12, 350
जपि 10, 33, 78, 193 प्रार् (परान, जपरान, प्रान) 41, 51, 81,
जपया 40, 44. 80, 82, 92, 126, 145, 69, 219, 293
155, 168, 192, 231-33, 262, प्रार् अधार 76
63, 303-4, 335, 369 प्रार् योग 218-19
पीर 33, 89, 216, 231-32, 239, 263, प्राजप्त मेरर व दया 281-90
350 प्राजप्त िब्द व मुक़ामात 311-20
पीव 64, 91, 151, 221 प्राजप्त िब्द व िुकराना सत गुरु 320-33
पुकार 90, 98, 114, 262-81, 270 प्रारब्ध 203, 207, 220
पुि 86, 118, 155, 221, 226, 238, 250 प्राथणना 69, 236-39
406 सार बचन

प्राथणना सुरत की मन से व िवाब 260-61 फू ल 48, 55, 108


प्रीत (परीत) 6, 41, 53, 62-63, 68, फू लों के नाम 386
78, 83, 86-87, 95, 98, 106, बंक 27, 45, 61, 64-65, 96, 146
116, 122, 124, 127, 133, 155-56, 158-59, 194, 200
135, 144, 155, 157, 170 221-22, 248-53, 297
194, 208, 211, 231, 266, बंक ककवाड़ी 46-55
387 बंक दुआर (द्वार) 14, 66, 78, 153,
प्रीत प्रतीत (परतीत) 41, 79, 102, 140, 233, 252
147, 207, 238, 252, 275-76, बंक नाल 5, 36, 40, 44, 48, 58, 62,
375 96, 167, 173, 211, 222,
प्रेम 37, 41, 46, 50, 54-55, 60-64 227,253, 281, 283, 290-93
68, 79, 84, 97, 100, 103 295,298-99, 305, 359, 361
106, 130-32, 139, 142, 148, बूँगला 46, 363
158-59, 162, 166-67, 194, बंझा 197, 382
201, 207, 209-10, 212, 229- बन्दगी 1
30, 233, 235-36, 240, 244, बंधन 4, 63, 75, 91, 117-18
264, 298, 301, 303-5, 312, बंसी 39, 48, 63, 78, 97, 158, 223,
343, 386 233, 249, 307, 318, 365
प्रेम जबन 134 बचन 6, 10, 11, 41, 49, 76, 78, 84-
प्रेम भजि 57, 103, 217, 240, 256 85, 92, 98, 107, 109, 111,
फं दा (फन्दा, फं द) 98, 115, 134 122, 131, 140-41, 147-48,
फ़क़र 34 193,195, 197-98, 201, 205
फ़क़ीरी 170 204, 217-19,222-225, 229,
फगुवा 347 231, 329, 387
फ़याणद 138, 172, 186, 254, 262-91 बज्र ककवाड़ (वज्र कपाट) 13, 17, 38,
फल 55, 95-96, 99-100, 107-8, 318 70, 249, 294, 319, 382
फांसी 105, 110, 115, 124, 145, बरत (वतण, बतण) 10, 32, 72, 85, 126,
199, 255 147
फागुन मास 346 बल 27, 49, 93, 98, 207, 360
फ़ारसी ग़िलें 178-85 बल सतगुरु 243, 286, 295
फु ट कल िब्द 365-88 बजलरारी(बजलरारी)40-42, 50, 53,55,
फु लवारी 64, 226, 245, 304, 316, 68, 70, 76, 79, 85, 131
318, 344, 372 231-32,292, 275, 285, 371
बसंत 4, 206, 344, 355-57
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 407

बजरश्त 211 300, 337


बाइूँ (बाईं) 52, 90, 102 जबन सतगुरु 52, 72, 81, 109, 112,
बाूँग 33, 169, 350 114, 122, 137, 189, 191
बाचक 188, 204, 207, 210, 214, 320 195, 216, 223, 225, 271,
बािा (बािे) 54, 58, 61, 64, 94, 222, 278, 333, 368,
241 जबन सतगुरु प्रताप 319
बाती 43, 52, 63, 229, 253, 282 जबना प्रीत परतीत 102
बानी 10, 11, 62, 87, 96, 151, 166, जबना मेरर 1, 75, 121, 170, 189,
194, 200, 205-6, 209, 218, 196, 256, 268, 271
223, 227, 229, 339, 387 जबना मौि 104
बारर मास 331 जबरती 203
बारर मासा 333-55 बीि 84, 212, 227, 306
जबन्द्रावन 190, 300 बीन 2, 15, 18, 37, 41, 44, 46, 54
जबिली 5, 146, 297, 309, 311, 335 56, 59, 62-64, 82, 91, 96,
360, 362, 372 102, 108, 146, 153, 156,
जबन करनी 95, 122 158,160, 176-77, 223, 247
जबन गुरु 73, 76, 82, 96, 112 , 122, 248-49,265, 290, 307, 309
128, 133, 144, 151, 205, 331, 347, 355
235, 289, 314, 330 बुन्द 20, 212, 217
जबन गुरु दया 99, 119, 271 बुआ 377
जबन िल मछली 4 बुत 33
जबन नाम 76, 124, 144, 149, 194, बुजद्ध (बुध) 28, 61, 78, 93, 96, 98,
255 100, 107,131-32, 151, 163
जबन नाम भजि 333 169,193,195, 202, 205-12,
जबन भजि 73, 103, 204 217-18,220, 245, 268, 299
जबन भिन 144 317, 344
जबन भाग 64, 87, 313 बुजधमान (बुजद्धवान) 85, 206
जबन मेरर दया 74 बुलबुल 51, 166, 301
जबन िब्द 81, 87, 90, 125, 132, बुल्रवसी 93
144, 161, 235, 276 बूंद 41, 103, 108, 212, 216-17
जबन िब्द सुरत 109, 114, 167, 213, बेईमान 140
271 बेगाना 81
जबन संत 82, 103, 126 , 147, 189, बेड़ी 85, 118, 124
191-92, 194, 196, 205, 224
408 सार बचन

बेनती 69-71, 123, 286 127, 130-33, 142-43, 148,


बेमख ु 105, 128, 133, 136 153, 155, 204, 208, 234
बेला तेला चौला 221 250, 301, 306, 317, 338
बैर 97 भजि दान 103
बैराग 4, 83, 132, 142, 165, 208, भजि नाम 107, 129
219, 338, 343 भजि जबन 204, 210
बैसाख 349 भिी जबन 204, 210
बौरा 111, 118, 122, 165 भगवंत 103
ब्रह्म 9, 32, 50, 88-89, 101, 133, भिन 33, 117, 123-24, 131, 141,
186, 205-6, 211, 216, 219, 144, 153, 157, 238, 250
228, 338 257, 335, 386
ब्रह्मचारी 72, 189 भिन जबन 144, 264
ब्रह्म पारब्रह्म 128, 338, 340 भटक 78, 83, 85, 112, 114, 118,
ब्रह्म लोक (देि) 3, 202, 215 121, 126, 151-52, 154,
ब्रह्मंड (ब्रह्मण्ड) 3, 6, 52, 88, 96 189, 193-94, 207
101, 139, 168, 212, 219 भरमाई 98, 105, 110, 121, 194,
227, 299, 340, 347, 350 197
भंगी 136 भमण 2, 6,15,17, 31-32, 38, 42, 47
भंडारा 57, 103, 114, 206, 306 52, 59, 63, 78, 83, 90, 93
भूँवर 66, 277, 305 109-10, 121,142, 147, 151
भूँवर गुफा 5, 9, 12, 40, 42-48, 52- 53, 157-58, 162, 167, 170
53, 59, 62-67, 82, 91, 94- 186, 188, 193, 195, 198,
97, 108, 134, 143, 146, 200, 206, 212, 220, 297,
148, 152, 155-55, 160, 167 303, 329
175, 187, 194, 196, 198- भस्म 54
200, 211, 213, 223-24, 228, भाग 11, 37, 39, 41, 45, 68, 76
233-36, 240, 247-53, 283- 80, 87, 95, 109, 121, 146
99, 312, 315, 317, 331, 153, 164-65, 170, 233-35
340, 342, 348, 365 272, 387
भूँवरा 35, 42, 56, 139, 191, 311 भाग जबन 41, 375
370, 386 भागवत गीता 73, 351
भि 48, 64, 133, 144, 192, 228 भाग रीन 54, 82, 157, 207, 262
भजि (भिी) 2, 4, 33, 58, 72-77, भादों मास 336
86, 97, 103-5, 112, 119 भान (भानु) 6, 13, 20, 25, 42, 45
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 409

83-84, 163, 211, 229, 239, भेद पाूँच नाम 225-29


292-93 भेद मागण व िोभा सत्तलोक 42-48
भाव 77, 103, 114, 132, 140, 148, भेद मुक़ामात 170, 215, 281-90, 346
204, 207-8, 210, 320, 354 भेद राधास्वामी 19, 48, 161, 192,
भाव भजि 60, 75, 193, 204, 236, 215
264, 291, 320, 338, 341, भेद वेदान्त 200
जभखारी 98, 268, 365 भेद िब्द मागण 170, 200, 215, 244,
भुवंगन (भुवगं ) 54, 57 336
भूत 94, 118, 132, 244, 267, 371 भेद संत मत 215
भूल (भूला) 2, 63, 82, 96, 114, 186 भेद संसारी मतों का 215
188-89, 193, 210, 215 , 221, भेद सत्त नाम 97, 101-2
228, 232, 238, 275, 306 भेद सत्त लोक 42, 197
333 भेदी 44, 95-96, 169
भूल भूलइयाूँ (भुलइयाूँ) 111, 114, 267 भोग 18, 49, 60, 75, 77, 107, 110-
भूल वेदान्त मत 210-14 17, 124, 131, 134, 139,
भृगं ी 35, 48, 54, 374 142, 146, 163, 170, 190,
भेंट 63, 147, 314, 193, 198, 203, 208, 257,
भेख 12, 73, 97, 104, 106, 132-33 267, 273, 322, 366, 388
147, 189, 194, 336, 365 भोग इन्द्री 7, 137, 276, 338
भेखी 96, 188, 224 भोग रस 68, 111, 149, 157
भेड़ चाल 157 भोिन 68, 142
भेजड़या 380 भौंरा 25, 42, 298
भेद 1, 3, 5, 27, 32, 41, 45, 59, भौ 15, 42, 59, 77, 99, 107, 114,
63, 65, 72, 75, 89-91, 94, 127, 136, 145, 150, 165
97, 120, 127, 130, 147-151, 169, 213
157, 159, 164, 169, 191, भौिल (भव िल) 2, 25, 31, 70, 84,
200, 207, 212-13, 216-17, 112,122,133,194,237, 246
220, 222, 224, 226, 228-29 262, 269-70, 322, 324
232, 264, 305, 324 370-71
भेद काल मत 86-96, 349 भौ िाल 28, 110, 114, 255, 297
भेद दयाल मत 186-96, 349 भौ सागर 69, 71, 136, 204, 237,
भेद नाम 95, 102, 194, 337 271,308, 312, 338-39, 348
भेद जनि स्थान 3, 222 मंगला चरर् 1-2
410 सार बचन

मंिन 83, 148, 322, 386 354-66, 370, 372-73, 375-


मूँजिल (मंजिल) 34, 116 77, 386-88
मंडल 40, 56, 101, 227 मन इन्द्री 66-67, 69, 81, 110-11,
मंि 237, 244, 355-56, 370-71 114,123,134,148-49, 187-
मजन्दर (मूँदर) 66, 108, 148, 165, 88, 237, 253-60,306, 338-
192, 211, 327, 336, 372 46
मकर (मक, मकड़ी) 97, 139, 304, मन बैरी 79, 136, 143, 151, 188,
324, 378 270
मक्खी 116, 378 मन मत 81, 98, 103, 151, 157,
मछली (मच्छी) 4, 12, 136, 174, 192 253, 265, 336, 339, 366,
350, 380 375
मछली और िल 4, 136 मन माया 53, 84, 162, 267, 325
मछली और नीर 53, 86, 89 मन मारग 112
मिनूूँ 179 मन मुख 80, 83, 122, 151, 162,
मज़रब 170, 172 265, 355
मजर् 45, 57 मन मूरख 113, 120, 314
मत 3, 32, 34, 46, 74, 81, 83, 86- मन मुखता 318
87, 101, 157, 206, 212, मन मैल 112
216, 299 मन ले (को) मार 30, 67, 94, 96,
मथ 60, 90, 153 131-33, 143-44, 151, 163,
मथुरा 73, 193, 300 166, 168, 195, 204, 326,
मद 96-97, 112, 135, 153, 158, 360
161, 166, 300, 375, 387 मन िान्त 108
मदन 94 मनसा (मन्सा) 52, 74, 134, 335
मन मोरन 73 ममता 15, 60, 62, 135, 162, 168,
मद माता 118, 253 234, 239, 273, 282, 298,
मधुकर 61 303, 309, 324,326,335-36
मन 1, 3-4, 37-43, 46, 48, 53, मरदूद 175
56-61, 63-79, 81-85, 87-90, मयाणदा (मरिादा) 118, 252
92-95, 97-99, 101, 103-8, मररयम 12
110-41, 143-59, 161-70, मदुमकण 293
186, 192, 200-16, 219, 221-22 मदुमम ण क चश्म 171
306-9, 311-25, 327-48, 352, ममण (मरम) 5, 9, 19, 6,70,80,81, 88
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 411

96, 100, 104, 110-11, 120, मजरमा परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी
132, 134, 137, 169, 189, 8-37, 42-48
193, 197-98, 206, 208, मजरमा िब्द 88, 132, 206, 281-90,
मलकू त 3, 342 331
मलयाजगर 3, 342 मजरमा िब्द स्वरूप सतगुरु 87-94
मिायख 220 मजरमा सतगुरु 57, 72-87, 108, 196,
मजस्िद (मसीत) 33, 169, 220, 350 223, 251, 281-90, 311-20
मसान 118 341
मरल 53, 57, 151, 153, 168, 170, मजरमा सतगुरु भजि 186
228-29, 233, 298 मजरमा सत संग 97-102, 157, 342
मरा काल 48, 101, 158, 199, 227, मजरमा सुरत िब्द मागण 186, 197-
228-29, 298 207
मरा काल 48, 101, 158, 199, 227, मरेि 9, 72, 189, 191, 197, 338,
310, 345 371
मरातम 85, 192, 273 माखन 60, 89
मरातम भजि सतगुरु 103-5 माघ मास 344
मरा परलय 199 माजर्क 55, 61, 301, 316, 355,
मरा सुन्न 3, 5, 9, 12, 15, 27, 40- 376
48, 53, 59, 62-68, 78, 88, मात जपता 112, 136, 380
94-97, 100-1, 108, 134, 146 माता 4, 69, 80, 86
148, 152-53, 155-57, 160 माधो 63, 155
164, 167, 175, 187, 194, मान 74, 85-86, 93, 97, 100, 106,
196, 199-200, 211, 213, 130-35, 140, 142-45, 153,
222, 224, 227, 233-36, 240 157, 161, 166, 188, 193,
248-49, 282-83, 312, 315, 202, 208-9, 232-38, 253,
340, 365 256, 269, 307, 327, 375
मजरमा 19, 59, 68, 70-71, 75, 147, मान मनी 57, 106, 109, 355
163, 193, 198, 212, 240, मानसर 44, 78, 153, 158-59, 169,
मजरमा गुरु चरन 52 255, 305, 326
मजरमा गुरु पद 47, 50 मान सरोवर 5, 41, 44, 46, 48, 64,
मजरमा दिणन राधास्वामी 37-48 79, 108, 163, 173, 200-1
मजरमा जनि स्थान 42-48 222, 227, 249, 253, 273,
मजरमा जनि स्वरूप 42-48, 274 282, 284, 296, 301, 330
412 सार बचन

339, 348, 352, 359, 362, 120, 304


386 मुन्दरा (मुद्रा) 66, 219
मान मरंती 71 मुजि 75, 131, 194, 197, 265,
मानी 85 385
मानुष 84, 86, 140 मुक़ाम सात 34, 196
माबूद 350 मुनव्वर 176
माया 15, 48, 52, 82, 88, 97- मुजन 47, 101, 189, 197, 216
98, 101, 103, 111, 119, मुरदे 136, 321
135, 158, 162, 186, 191, मुरली 41-44, 62, 66, 91, 228,
193, 197, 199-201, 207 283, 300, 307
217, 225, 231, 234, 262 मुरजिद (मुर्शिद) 33, 170
282, 303-4, 309, 323, 333, मलामत 136
359-60, 372
माया काल 48 मुल्ला 220, 264
माया चक्र 50 मुसलमान 3, 12, 74, 178, 205, 220
माया ब्रह्म 46, 50, 70, 101, 186- 351
99 मुसल्लली 173
माया संवाद 200-10 मुसाकफ़र 116, 118
मारग 42, 64-65, 127, 167, 175, मूरख 84-86, 102-104, 112, 123
200-2 193, 105, 205, 209-10
मारग िब्द गुरू 127 212, 326, 334, 379
मारग सुरत िब्द 193 मूरत 35, 38, 48, 73, 83, 142,
मागण अनरद िब्द 171 155, 192, 219, 285, 296
मागण सत्त लोक 42 301, 336
माफ़ण त 221 मूर्शत (मूरत) पूिा 336
माला (माल) 51, 61, 192, 253, 336 मूसा (मूस)े 12, 207, 378
मास 121 मृगनी (जमरगनी) 12, 40
जमि 116, 134, 136, 150, 265, मृदग ं (जमरदंग) 54-56, 227, 252, 285
279 316, 355
जमरगन (जमरग) 257, 308 मेंडक 228
जमथ्या 33, 151, 203, 208-10, 219- मेराि 34
20, 271, 347 मेरर 1, 5, 27, 29, 37, 45-46, 48-
मींगी 103 49, 53, 51, 65, 74, 81, 102,
मीना (मीन) 26, 38, 50, 76, 97, 107, 106-7, 109, 125, 170, 192,
262-81, 311, 341,343, 398
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 413

मोक्षद्वार 154 राम 190-91, 205-6, 216, 248-49,


मोती 6, 54-58, 61, 75, 85, 93, 350-51
139, 157, 206, 228, 301, राम औतार 316
313, 316, 327, 339, 355, राम कृ ष्र् 12, 32, 72-73, 191, 316
362, 370, 376 राम लोक 3, 215
मोर 16, 52, 56, 68, 70, 79, 96, रारं कार (ररं कार) 17, 62, 64, 91, 198
111-12, 124, 131, 135, 144 222, 295, 298, 317
151, 153, 158, 161, 300, रावन 191, 211, 248-49, 350
314, 387 रुकजमन 12, 228
मोर का फं दा (फाूँसी) 91, 121 रूप 1, 4, 11, 24, 30, 38, 40, 42,
मोर िग 74, 115 46, 49-50, 57, 61, 63, 78,
मोर िाल 113, 136, 241 123, 129, 134, 156, 187,
मौि, 5, 42, 93, 95, 101, 104, 109, 190, 204, 212, 215-16
150-51, 205, 215, 218, 219, 229, 244, 267, 289,
230-31, 239, 262, 268, 270, 291-95 297-98, 300, 309,
275, 277, 298, 300, 314, 311, 316, 312, 342,346-47
343, 352, 373 351-52, 363, 370, 372
मौि गुरु 98, 104 रूप राधास्वामी 4, 37
मौि जबना 214, 343 रूहुल क़ु दस 3
मौत 98, 117, 121, 124, 129, 267, रे ल 4
275, 335 रै न 83, 111, 113, 116, 121
मौलवी 221 रोज़ा 33, 220, 350
ररूँ ग (ररं ग, ररं ) 20, 46, 48, 89, 283 रोम 43-44, 56, 64-69, 129, 206
रस 41, 83, 88, 92, 96, 101, 150 रौज़न 173
160, 166 लक़ा 304
रसूल 10, 34, 350 लक्ष 47, 95-96, 204, 211, 219-20
राग 6, 60, 65, 67, 165, 208 लक्ष्मी 9
राग राजगनी (राजगनी) 58, 51, 206, 303 लतींफ़ 173-74
राधा 1, 7, 8, 49, 190, 241, 301 लबार 67, 70, 190
राधास्वामी ( जरदायत नामा और बारर ला मुक़ाम 244, 342
मासा को छोड़ कर लगभग रर लाल 6, 44-45, 50, 55, 58, 61-62,
पृष्ठ पर रै ) 108, 157, 206, 228, 316,
राधास्वामी नाम 1, 4, 8, 64, 97, 163 370, 376
राधास्वामी जसफ़त 7-37 लाहूत 4, 173, 342
414 सार बचन

लीला 4, 5, 11, 14, 36, 40, 44, 46, 110, 121, 132, 144, 146
58-59, 62, 64, 71, 94, 158, 148, 169, 201, 213, 226,
,228 ,218 ,213 ,190 ,64-163 ,33-229 240-56, 264, 272,
233, 260, 281-90, 309, 331, 276, 292, 300, 307, 320,
352 322, 332, 370
लीला मुक़ामात 291-320, 344 जवररन 11, 57, 146, 232, 296
लूका 57 जवजिष्ठ 72, 177, 189
लैला 179 जवष (जवषय) 4, 52, 106, 110, 165,
लोभ 11, 16, 52, 96, 108, 121, 167-68, 253, 287
123, 1 35, 193, 324 जवष्र्ु 147, 215, 340
लोभ मोर 52, 67, 121, 125, 142, जवरंग 314
201 , 238, 358 वीर 90
लोर (लोरा) 11, 35, 44, 57 वेद 30, 46, 48, 59, 65, 73, 75, 84,
वि गुरु 33, 73-74, 242 93, 100-1, 178, 197-98
वज़ीफा 33 204, 212, 216, 226
वज़ीर 90 वेद कतेब पुरार् 10
वर्णन आनंद प्राजप्त सतगुरु 233-36 198, 213, 340, 370
वर्ाणत्मक 95-96 वेद कतेब पुरार् 10
वस्त्र (वस्तर) 50, 68, 76, 89, 107, वेदन 230, 333, 370
208, 284, 387 वेद पुरार् 101, 186, 201, 234, 350
वाच 96 वेद पुरार् िास्त्र 85, 189, 195, 197,
वाचक ज्ञानी 200, 219 200-1
जवकार 9, 36, 40, 48, 79-70, 90 वेद मता (मते) 102, 220
110, 154, 162, 188, 364 वेदान्त (वेदान्त) वेदान्ती 86, 100-1,
जवद्या 43, 85-86, 93, 125, 133, 142, 210-11, 214, 216
188, 192, 202, 206-10, 217- वैराट 197, 219, 226
19, 221, 317 व्यास 72, 129, 177-78, 189, 194,
जवजध आरत 79, 137, 284 202, 316
जवजध दरस 106 िऊर 288
जवजध पूवक ण 3 ििी (िजि) 101, 147, 189
जवजध सतसंग 341 िग़ल 88, 171
जवजध सेवा 106 िग़ल आवाज़ (आवाज़) 34, 176
जवरर 4, 10, 41, 51-52, 57, 63, 65, िग़ल नसीरा 171
67-68, 71, 74, 80, 93, 106
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 415

श़गल बाला 172 जिकारी 195, 201, 322


िब्द 2, 7, 15, 30, 43, 58, 61, 63- जिव 32, 73, 101, 316
67, 69, 86, 92, 94, 111, 121, जिव लोक 3
125-27, 131-32, 139, 147-56 जिव िजि 101, 147, 186, 199,
160, 162, 164-70, 195, 340, 350
96, 200, 203-4, 206, 211, िीि मरल 87, 94, 174
214, 217, 233-34, 304-7, िुकदेव 126
309, 311-32, 341, 343, 354, श्रंगी ऋजष 189
358, 374-385 िेख 9, 22, 30, 70, 72, 114, 189,
िब्द अभ्यासी 109 191, 197, 316, 338, 345,
िब्द कमाई 87, 90-91, 93, 105, 350, 358, 371
109, 114, 132, 205, 210, िोभा सतगुरु 41, 56, 58, 146, 163,
214, 346, 366, 385 247, 250, 330
िब्द गुरु (गुरु ) 37, 42, 52, 56, 58, श्याम कं ि 60, 191, 281-90, 296,
73, 90, 123, 127, 164, 200, 334, 357, 368, 387
245, 296, 312 श्याम सेत 44-45, 62, 67, 152, 156
िब्द धार 77, 326 159, 166, 222, 281, 286
िब्द धुन 150, 159, 161-63, 170, 295, 300, 302, 326, 331,
205, 275, 307, 368 367, 375
िब्द जबन (जबना) 88-92, 105, 109, संख 45, 159, 348
127, 144, 151, 204-5, 264- संग (सूँग) 31, 35, 41, 102
66 संत 2, 3, 32, 41, 43, 59, 63, 65,
िब्द भेद 59, 90-91, 105, 109, 128, 75, 85, 94, 97,103, 116,
205, 244, 354 120, 124-25, 133-34, 145-
िब्द मारग 88, 127, 188 47, 156-57, 162, 164, 170,
िब्द रस 92, 110, 135, 146-47, 175, 178, 187-90, 193-96,
150, 158, 167, 260, 277, 202,204,206,208-9,211-13,
303, 322, 332 220, 223, 225, 228-32, 312,
िब्द रूप 275 314, 318, 320, 323, 336,
िब्द सनेरी 105, 127 337, 342-44, 348, 353-54,
िब्द स्वरूप (स्वरूपी), 87, 109, 262-81 364, 369, 386
िब्द िरई 221, 350 संत कृ पा 64, 282, 340
िरीअत 221 संत बचन 124, 169, 197-98, 212
िास्त्र 32, 85, 189, 195, 2 1, 351 223-339
िार (सार) 90, 380 संत जबना (जबन) 43, 59, 65, 75, 88
416 सार बचन

102-3, 126, 169, 194-45, सतगुरु दया 64, 99, 110, 114, 122,
198, 200, 224, 264, 299, 232, 234, 238, 241, 341,
338, 369 सतगुरु पूरे 37, 42, 62, 126, 145,
संत मता (मता) 43, 46, 78, 102, 125, 195-95, 243,247,255, 261,
150, 161, 163, 190-91, 193, 313, 326, 337, 365, 367
198, 200, 202-3, 205, 207, सतगुरु जबन 109, 193, 200, 221-
210, 215, 217, 219, 224, 23, 236, 264, 271, 335
273-74, 277, 312, 318, 339- सतगुरु भजि 127, 133, 145, 186
41, 350, 353 सतगुरु सरन 82, 156-57, 192, 200,
संत रूप 187, 197, 351 234, 250, 256, 283
संत सतगुरु रूप 2, 3, 338, 346 सतगुरु सेवा 81, 123, 130, 194, 225
संत सरन 124, 188, 193, 210, 224, सत जचत आनंद 219
226, 251 सत िुग 13, 69
संत स्वरुप 1, 204 सत धाम 13, 69
संदि
े 2-4 सत नाम 1, 41, 43, 55, 59, 63-64,
संसार 4, 99, 101, 116, 154, 162, 68-69, 72, 80, 86, 89, 98,
219, 276, 339, 355, 364, 100-3, 107, 124, 131, 135
373 140, 145, 152, 155, 164,
सच खंड 6, 46, 48, 86, 100-1, 198, 187, 190, 192, 196, 198,
206, 247, 249, 293, 342 209, 213,217,222-23, 229,
सच्चा 105, 108-9, 111 235, 240, 253, 280, 287,
सतगुरु 1, 2, 41-42, 44, 47, 59, 295-99, 300-2, 310, 315,
63, 68-69 , 72, 85, 99, 103, 318, 320, 326,331,337-38,
106, 111-12, 114, 120, 139, 342, 347, 351, 354, 365,
157-58, 162-65, 187-88, 190, 375
192, 194, 200, 226, 229-33, सत पद 65, 75, 78-79, 113, 289,
239-53, 262-98, 304, 306, 305, 317
308, 311, 313-14, 318-24, सतपुर 62, 68, 110, 169, 197, 248,
326-27, 329, 333, 335-38, 283, 372
341-49, 357, 359, 365-68, सत िब्द 43, 56, 89, 101, 161, 164
371, 375, 385-88 196, 222, 224, 252, 272,
सतगुरु कृ पा (ककरपा) 53,68, 72, 229, 285, 347
355, 357 सतसूँग (संग) 4, 6, 27, 33, 64-65,
सतगुरु चरन 57, 119, 375, 377 74, 77, 84-85, 97-102,
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 417

107, 111-12, 115-16, 121, समरथ 4, 71, 100, 131, 218, 230,
123, 125, 127, 130-32, 140, 237, 239, 262-64, 268,
142, 144, 152-53, 162-65, 276, 301
168-69, 194, 200, 225, 229- सरधा 99, 125, 130, 140, 190, 207
33, 248, 250, 264-277, 302, सरन 18, 24, 29, 35, 41, 45, 53,
325, 338, 342, 349, 354, 65, 81, 118, 123-26, 144-
375, 387 45, 152, 156, 160, 166,
सत संगी 48, 55, 77, 68, 200, 258 170,195-96, 201,212, 272,
386-88 399
सती 136 सरमदी 34
सत्तनाम धुन 37, 52, 55, 63-64 सरवन (श्रवन) 42, 63, 87, 91, 133
सत्त (सत) पुरुष 2, 3, 5, 44, 48, 56, सरवर (सरोवर) 57, 62, 66, 93, 146,
66-69, 82, 100, 102, 106, 162, 168, 234, 265
129, 133, 135, 138, 140, सरूप 45, 56
155, 176-77, 187-88, 197- सरस्वती 211
98, 204, 206, 216, 224, सगुन
ण (सगुर्
ण ) 164, 199, 274, 345
226, 229, 234, 247, 267, सरि 80, 321
275, 280, 282, 294, 301, सरस दल कं वल ( सरस कं वल ) सरंस
394-5, 307, 309, 315, 317, दल कं वल 45, 48, 62, 67,
319, 320, 337-38, 353, 387 78, 96, 146, 167, 187, 193,
सत्तलोक 3, 6, 12, 27, 40, 44, 53, 211, 213, 219, 222, 226,
57-58, 66, 73, 91, 101, 131, 236, 248-55, 282-99, 315,
134, 143, 148, 150, 153, 318, 322, 325, 331, 345,
155, 167, 176, 178, 187, 360, 364, 387
194, 196-200, 212, 216, साध 106, 117, 121, 124, 131-32,
222-25, 234, 236, 253, 280, 145, 154, 157, 165, 203,
285, 387 224-25, 333, 384
सत्य सत्य (सत्त सत्त) 101, 176, 198, साधन 85-86, 194, 202-3
217, 387 साध संग 110, 124, 126, 159, 289,
सनक 10, 72, 316 306, 316, 336, 338
सन्मुख (सनमुख) 49, 53-54, 56-57, सारूँ ग (सारËL ) 16, 48, 56, 78, 283,
61, 76-77, 105, 133, 207 364
सन्यास 72 सार 40, 42, 85, 90, 96, 107, 109,
सम दम 130, 142, 202-3 139, 147, 153, 161, 166,
418 सार बचन

168, 193, 195, 207 236, 238, 256, 267, 271,


सार रस 6, 50, 147, 325 280, 296, 306, 334, 338,
सावन मास 334-336 349
सावन सरडोला 362-65 सुख देव 129
ससगार 16, 60-61, 65, 67, 76 सुख धाम 198
ससध (जसन्ध) 20, 41, 50, 58, 83, सुख भंडार 70
103, 108, 188-209, 211-12, सुख मन 5, 38, 40, 44-47, 55, 61,
216-17, 317 93, 146, 158-59, 200, 211,
ससर 17, 52, 94, 208, 308, 345, 234, 280, 299-300, 306,
378, 380 309, 329,357,359, 361-62,
ससरासन 45, 49, 53, 56, 69, 77, 367, 386
206, 242, 245, 247, 283, सुख मन तीरथ 47
364 सुत जवयोग 4
जसख 72, 93, 108 सुजध (सुध) 76, 82
जसद्धान्त 3, 34, 74, 101, 211, 216, सुन्न (सुन) 3, 12, 40, 55, 62, 64-67,
220 78, 88, 91, 93, 100, 139,
जसफ़त राधास्वामी नाम 7-37 146, 153-59, 167-70, 173,
जसफ़ली 221 187, 196-201, 211, 213,
सीत 31, 137, 170, 193, 258, 387 218, 222,224,233-35, 249,
सीतल 49, 54, 63, 108, 123, 139, 302, 309, 312
162, 242, 247, 262, 279, सुन्न मंडल 56, 57, 77, 80, 101,
284, 332, 336, 373, 375 155, 162, 227, 239, 283,
सीतलता 83, 319 335, 360
सीता 12, 191, 211, 248 सुन्न जिखर 48, 53, 59, 61, 82, 108,
सीप 11, 26, 54, 271 134, 148, 169, 194, 200,
सील 61, 66, 159, 317 227, 234, 248, 253, 265,
सील जछमा 48, 53, 81, 142, 291 275, 282, 299, 312, 327,
सुई का नाका (द्वारा) 44, 156, 173, 360
282 सुपना 83, 94, 111, 121, 202,
सुख 81, 123, 128, 137, 141, 150, 208, 212-13, 219, 303,
155, 166, 186, 198, 203, सुमत (सुमजत) 79, 154, 329, 359,
213, 219, 388 370
सुख दाता 83 सुजमरन 43, 62-63, 66, 82, 117, 222
सुख दुख 1, 53, 186, 201, 213, 216, सुरत (सुत,ण सूरत) 2, 16-17, 35, 37,
देिना (Index) सार बचन छंद बंद 419

39-40, 43, 57, 59, 61, 63- सुवना नलनी 120


67, 76, 78-79, 82, 86, 88, सुफ़ी 331
90, 92-97, 110, 113, 146-50, सूरि (सूर) 43, 53-54, 57, 66-67,
153-69, 186, 190, 193, 195, 81, 91,94,108, 136, 206-7,
200, 202-4, 211, 214-30, 222, 226, 228, 241, 274
233-37, 239-55, 258, 309, सृजष्ट (सृजष्ट) 101, 353
311-15, 317-21, 323-332, सेत 41, 48, 55-56, 58, 60, 62,
336-38, 341-43, 345-49, 66, 67, 69, 139-40, 146,
351, 375 163, 196,228,233,243-363
सुरत जनरत 45, 51, 53, 55, 58-59, सेवक 42, 68, 71, 89, 136, 196,
62-63, 68, 77-80, 144, 155- 242, 283, 313, 377
56, 170-187, 228, 231, 248- सेवा 73, 80, 84, 98, 101, 106-8,
51, 300, 324, 329, 335, 125, 140, 148, 155, 184,
349, 356, 359, 361, 363, 216, 218, 240, 387-88,
365 सेवा वार्ी 386-87
सुरत िब्द 4, 20, 59, 63, 68, 77, सैयद 221
82, 89, 95, 102, 108, 114, सोत 2, 41, 69, 112, 124
122-27, 130, 132, 138, 143, सोत पोत 103,
146, 150-51, 155, 158-59, सोता सन 125
161, 165, 168, 203-7, 209- सोरूँग ( सोरंग, सोरं ) 20, 27, 39, 42,
10, 212, 214, 217, 224, 230, 44, 46-48, 52, 62-63, 78,
234, 242, 255, 264, 276, 89, 97, 148, 160, 164, 175,
301, 305, 308, 311, 356-57, 198, 211, 223, 228, 235,
381 240, 265, 285, 307, 351
सुरत िब्द की लार (रार) 18, 43, सोरबते फ़कीरी 171
46, 96, 187-88 स्मृजत (स्मृत) 32, 85, 114, 163, 189,
सुरत िब्द मागण (मारग) 3, 10, 75, 194-95, 197, 201, 318
77, 80, 86, 135, 140, 193, स्मृजत पुरार् 114, 147, 186, 201
200, 205-6, 209, 215, 222, स्वगण 215-16, 221, 351, 353
224, 255, 259, 262, 274, स्वांजत (स्वाूँजत) 4, 7, 11, 26, 53-54,
284, 320, 338, 243, 287 86, 271, 280, 319, 339
सुरत संवाद 214-29 स्वान 168, 253, 257, 334
सुर नर मुजन 101, 358 स्वामी 1, 7, 43, 49, 52-55, 57-61,
सुल्तानुल अज़कार 171 69, 89, 96, 99, 102, 131,
420 सार बचन

194, 201, 215, 218, 221-23, 134-35, 138,142,199, 232,


230, 239-40, 262, 282, 244, 249, 273, 301, 309,
386-88 314, 335-36
स्वारथ 105, 108, 112, 130, 208 जररन गभण 219
रंस 5, 6, 43, 56, 62, 93, 101, रीरा (रीरे ) 55, 61, 79, 157, 174,
108, 132, 139, 165, 170, 206, 228, 308, 370, 376,
123-74, 198, 206, 215, 227, हुकु म 98, 130, 140, 204, 231
229, 240, 247, 252-53, हुलासा (हुलास) 38, 48
283-85, 290-301, 304-4, हुजियार 15, 70, 76, 90, 116, 118,
313, 345 138,154,164,188,263, 285
रक्क़ रक्क़ 342 हूत 178, 342
जरदायत नामा 170 हूतल हूत 175, 342
राकफ़ि 220 हू हू 173
राल उत्पजत्त प्रलय 197-200 रैरत 8, 35, 211
राल जवरर सतगुर 229-33 रोली (रोरी) 347, 355, 358-61
राहूत 174, 342 रौजज़ कौसर 173
सरदू 12, 33, 74, 178, 205, 220, ऋजष 72, 216
251 ऋजष मुजन (ऋजष मुनी) 9, 137, 189,
जररदे (जररदा) 28, 52, 57, 63, 66, 193, 197, 216, 353
73, 76, 83-87, 106, 119 ऋजद्ध जसजद्ध 154
राधास्वामी दयाल की दया
राधास्वामी सराय
राधास्वामी िी

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