Professional Documents
Culture Documents
Abstract
प्रस्तुत लेख संत रविदास के िीिन दशशन, ज्ञान परं परा एिं ितशमान में उसकी प्रासंमगकता पर
आधाररत िै । मध्यकाल में िब भारतीय समाि संक्रमण के दौर से गुिर रिा था तथा विमभन्न प्रकार
के सामाजिक, धाममशक एिं सांस्कृ मतक आन्दोलन या तो पनप रिे थे अथिा अपनी सामाजिक
स्िीकृ मत िे तु संघर्शरत थे उस समय मनगुण
श परम्परा के संत यथा कबीर- रविदास ब्रह्म की गुणातीत
व्याख्या कर ना केिल िेदाहद पर प्रिार कर िामतगत आधाररत कुरीमतयों का विरोध कर रिे थे बजकक
मसद्ध नाथों की परम्परा में िेदाहद, पाखण्ड, बाह्याडम्बर, िामत भेद के विरोध के द्वारा मनुष्यता की
मुवि की अलग ज्योमत प्रज्िमलत हकए। इस संत परम्परा ने ‘मन की साधना िी िास्तविक साधना िै ,
और भवि का सार तत्ि प्रेम िै ’१ की धाममशक दृवि को िनमानस के सामने प्रत्यक्ष हकया। कमथत तौर
पर नीची किी िाने िाली िामत में िन्म लेने के बाििूद संत रविदास ने अपनी िाणी, कमश एिं मन से
मनिृवत्त परक प्रिृवत्तमय मनष्काम कमश की मशक्षा दे ने एिं तदनुरूप अपने िीिन में सांगोपांग आचरण
करते िुए उच्च िीिन आदशश भी प्रस्तुत हकए। उन्िोंने अपने पदों –मशक्षाओं के माध्यम से विनम्र
शब्दािमलयों में सामाजिक बुराईयों एिं पाखण्ड आहद का विरोध कर समाि सुधार में अपना योगदान
श संतों की दृवि में ब्रह्म तीन गुणों से परे िै , िि सिश व्यापी िै ।२ उनके पदों में िजणशत सत्य
हदया। मनगुण
शास्ित िैं एिं उनकी प्रासंमगकता ितशमान समय में भी बरकरार िै ।
मुख्य शब्द- परं परा, मनगुण
श , पंथ, पाखण्ड, िणश, समाि, अद्वै तिाद, ब्रह्म, िीिन,दशशन
िीिन पररचय-
भारत भार्ाओँ एिं बोमलयों से समृद्ध दे श िै । यिााँ विमभन्न भागों में प्रचमलत
विमभन्न बोमलयों एिं उनके उच्चारण आहद में मभन्नता के कारण संत रविदास का नाम
विमभन्न रूपों में प्रचमलत िै यथा रै दास, रईदास, रयदास, रूईदास,रूद्रदास,तथा रविदास
आहद।३ इनमें से सिाशमधक प्रचमलत नाम रै दास एिं रविदास िैं । संत रविदास मनगुण
श
संत परम्परा के अंतगशत आने िाले अमधकतर संतों एिं कवियों जिनमें से सिाशमधक
कमथत तौर पर नीची किी िाने िाली िामतयों से सम्बंमधत थे की िन्ममतमथ के विर्य
में विद्वानों में मतभेद रिा िै । उनके पदों के माध्यम से उनकी िामतगत-पेशग
े त
सम्बद्धता का पता तो चलता िै हकन्तु िन्ममतमथ के विर्य में पूणश स्पिता का अभाि
िी रिा िै । आचायश पृथ्िी मसंि, रविदास संप्रदाय के विद्वान संत करम मसंि के दोिे को
उद्धत
ृ करते िुए संत रविदास का िन्म विक्रमी संित १४३३(१३७६ ई०) में माघ शुक्ल
पूजणशमा मतमथ को िुआ बताते िै ।
चौदि सौ तैंतीसकी, माघ सुदी पन्दरास।
दजु खयों के ककयाण हित प्रगटे श्री रविदास।।
संत रविदास की मृत्यु मतमथ संबंधी जस्थमत स्पि करने िे तु इस दोिे से सन्दभश मलया
िाता िै , जिसमे रविदास िी के िृद्ध शरीर के रवि में ममलने की बात किी िा रिी-
पंद्रि सौ चउरासी भी मचत्तौर मंि भीर।
िर िर दे ि कंचन भई रवि रवि ममकयौ शरीर।।४
उपयुि
श दोिों से संत रविदास के िीिन विर्यक सन्दभश लेने पर उनकी आयु लगभग
१५१ िर्श आती िै जिससे विद्वानों में संदेि उत्पन्न िोता िै क्योंहक इतनी सामान्यतः
प्राप्त करना मुजककल प्रतीत िोता िै । इस बाबत धमशपाल मैनी का मत िै हक “अन्य
हकसी प्रबल प्रमाण के अभाि में िमें संित १४३३ की माघ पूजणशमा िन्महदिस मान
लेने में आपवत्त निीं िोनी चाहिए थी लेहकन उनकी मृत्यु मतमथ संित १५८४ पयाशप्त
विश्वसनीय प्रतीत िोती िै । इस प्रकार उनकी आयु १५१ िर्श आती िै िो बिुत संभि निीं
िै . दस
ू री बात िन सामान्य में यि प्रचमलत िै हक रविदास िी कबीर से आयु में कुछ
छोटे थे। अतः यहद उनका िन्म संित १४५६ के आसपास मान मलया िाए तो रामानंद
के मशष्य िोने, कबीर से आयु में कुछ छोटे और समकालीन िोने तथा लगभग १२८ िर्श
की आयु पाने में विशेर् आपवत्तयों को स्थान निीं रिता िै । डॉ. बेनीप्रसाद शमाश िो हक
रविदास साहित्य के अमधकारी विद्वान माने िाते िैं ने संत रविदास का िीिनकाल १२८
िर्श मानते िुए उनकी िन्ममतमथ १४५६ ई० पर सिमती िताते िैं एिं प्रचमलत मान्यता
िै हक संभित रवििार को िन्म िोने की ििि से इनका नाम रविदास पड़ा।५
संत रविदास के िन्मस्थान के विर्य में भी विमभन्न साक्ष्यों के आधार पर
मभन्न-मभन्न मत प्रचमलत िैं । विश्वनाथ वत्रपाठी के अनुसार ‘आहद ग्रन्थ’ में संकमलत
संत रविदास के पदों से यि पता चलता िै हक उनका िन्म दमलत िामत की कुटबााँढला
नामक शाखा में िुआ था। इस िामत से सम्बंमधत लोग बनारस के आसपास के क्षेत्रों में
मरे िुए मिेमशयों को ढोने के काम में संलग्न िुआ करते थे।
नागर िना मेरी िामत वबजखआत चमार।
मेरी िामत कुटबााँढला ढोर ढ़ोंिता मनतहि बनारै सी आस पास।।६
तथा
िा के कुटु ं ब के ढे ढ सब ढोर।
ढोिंत हिरहि अििू बनारसी आसपास।।७
उपयुि
श पदों के अनुसार संत रविदास की िामत के विर्य में कोई संदेि शेर् निीं रि
िाता हकन्तु उनके िन्म स्थान के विर्य में भी अनेक मत प्रचमलत िैं । कुछ लोग
रािस्थान के मांडिगढ़ में संत रविदास की मशष्यों की अमधक संख्या तथा ििीँ रविदास
कुण्ड ि ् रविदास कुटी की जस्थमत िोने की ििि से उन्िें मांडिगढ़ या मंडािर के मनिासी
बताते िैं ।८ ‘रै दास रामायण’ में संकमलत पद के अनुसार संत रविदास का िन्मस्थान
बनारस के मनकट क्षेत्र में ‘मांडूर’ को माना िाना चाहिए-
काशी हडग मांडूर इसथाना शुद्ध िरण करत गुिराना।
मांडूर नगर लीन ओतारा रविदास शुभ नाम िमारा।।
संत रविदास की िन्ममतमथ एिं िन्म स्थान की तरि िी उनके पररिार एिं माता-वपता
के विर्य में भी स्पि रूप से कोई साक्ष्य उपलब्ध ना िोने की ििि से विद्वानों में भ्रम
की जस्थमत िै । अनेक विद्वान ् मभन्न मभन्न मत रखते िैं , डॉ. काशीनाथ मसंि भविष्य
पुराण को उद्धत
ृ करते िुए संत रविदास के वपता िी का नाम मानदास बताते िैं -
मानदासस्य पुत्रो रविदास इमत विश्रुतः९
हकन्तु ‘रविदास रामायण’ में उनके वपता िी का नाम रिु हदया िै । यि नाम
िनसामान्य में उनके वपता िी के प्रचमलत नाम रघू से ममलता िुलता िै । उनकी माता
िी का नाम प्रचमलत मान्यताओं के अनुसार कुछ लोग धुरवबमनया तो कुछ लोग
करमादे िी बताते िैं । रविदासी परम्परा के कुछ लोग इनके वपता िी का नाम रघू एिं
माता िी का नाम धुरवबमनया िी स्िीकारते िैं ।
संत रविदास के बारे में प्रचमलत िै हक उनका मन िीिन के शुरूआती
चरण में िी साधु-संतों में लग गया था। यद्यवप हक उनका बचपन विर्म जस्थमतयों से
भरा पड़ा था तथावप उनके धाममशक रूझानों से मचंमतत माता-वपता ने बचपन में िी
‘लोना’ नामक लड़की से इनका वििाि संपन्न करा हदया जिनसे इनको एक पुत्र
विियदास के िोने की मान्यता िै ।१० रविदास के बचपन में िी साधु संतों के प्रमत सेिा
भाि एिं उनके अपने चमश आधाररत कमश में संलग्न िोने का सन्दभश अनंतदास कृ त
‘रै दास पररचई’ में ममलता िै -
बड़ो भयौ तब न्यारौ कीन्िौ, बांटै आयौ से बााँटी न दीनौ।
राख्य बािरी की पमछिारै , कछु न कह्यो रै दास वबचारौ।।
सीधा चाम मोमल आिै, मतनकी पनिी अमधक बनािै।
टू टे िाटे िरिा िोरे , मसकत करर कािु न मनिारै ।।
संघर्शमय िीिन पररजस्थमतयों में िोने के बाििूद रविदास िी साधू संतों के सत्संग
आहद में प्रिृत्त रिें । उनके िीिन के विमभन्न क्षेत्रों के सामान िी उनके गुरु के विर्य में
भी विमभन्न सन्दभों में मभन्न मत ममलते िैं ।
अनंतदास अपनी रचना ‘भि रत्नािली’ में संत रविदास को रामानंद का मशष्य
बताते िुए मलखते िैं हक रामानंद के मशष्य कबीर तथा रै दास चमार थे-
आडम्बरों को नकारते िुए मानिधमश को स्थावपत करने का प्रयत्न हकया। उनकी िाणी
ने लोगों के अंतमशन पर प्रभाि डालने के साथ िी िैजश्वक शांमत एिं भाईचारे का सन्दे श
प्रसाररत हकया।
संत रविदास िी ने तत्कालीन समाि में प्रचमलत सगुण- मनगुण
श भवि मागश एिं
कहठन योग, तप, िागरण, िठयोग, प्राणायाम, व्रत-तीथश, विमभन्न िाद यथा
एकेश्वरिाद, ब्रह्मिाद, अद्वै तिाद, विमशिाद्वै त, द्वै ताद्वै त आहद ताहकशक बिस एिं िाद-
वििाद खड़ा करने िाली बिसों से इतर शुद्ध भविमागश िो नामभवि अथिा प्रेमाभवि के
रूप में प्रमसद्द िुआ पर िोर हदया।
संत रविदास िी ने शरीरधारी गुरू की मित्ता को मनराकार ईश्वर के ऊपर बताया।
उन्िोंने गुरू को मनुष्य रूप में परमात्मा माना एिं भि सागर से तरने में पतिार की
भांमत गुरु को सिायक बताया िै जिस प्रकार नदी पार करने िे तु नाि को खेने के मलए
पतिार आिकयक िोती िै -
गुरु ज्ञान दीपक हदया, बाती दई िलाय।
रविदास िरर भगमत कारनै,िनम मरण विलमाय।।
भौ सागर दभ
ू र अमत, मसन्धु मूररख यिू िान।
रविदास गुरु पतिार िै , नाम नाि करर िान।।
रविदास िी किते िैं हक सतगुरु की कृ पा से न केिल वपछले िन्मों के पाप नि िोते िैं
बजकक इस िीिन के भी सांसाररक विर्य िासना एिं संताप ममट िाते िैं , गुरु िि मागश
हदखलाता िै जिसके अनुसरण से ना केिल मन के संताप नि िोते िैं बजकक तृष्णा भी
बुझती िै एिं वपछले िन्मों आहद के पाप कमश भी नि िो िाते िैं -
सतगुरु िमिु लखाई बाट
िनम पाछले पाप नसाने, ममटीगौ सबु संताप।
असमानता, पाखण्ड, रूढ़ीिाद आहद कुरीमतयों को दे खने के बाद िो उससे अछूते निीं
रि सके बजकक िामतगत िीनता को दरू करने िे तु ना केिल अपनी िामत को खुले तौर
पर बताते बजकक िेदों का विरोध कर सामाजिक कदाचार के जखलाि आिाि भी
उठाया। संत रविदास ने किा हक िो उसे अपना गुरु मानते िुए उसकी िन्दना करते िैं
जिसने सिशप्रथम िेदों का बहिष्कार हकया।१७ उन्िोंने भवि के साथ समाि सुधार के
मलए भी अपने पदों के माध्यम से िनिागरूकता का प्रयास हकया जिससे समाि में
शांमत, सिअजस्तत्ि ि ् भाईचारे का प्रसार िो सके।
संत रविदास में तत्कालीन हिन्द ू समाि में व्याप्त िणशगत व्यिस्था को मनरथशक
किा तथा एक िी परमात्मा को सब का िीिन दाता माना-
ब्राह्मण, खत्री, िैस, सूद रै दास िनम ते नाहि ।
िो चािइ सुबरन कउ, पािई करमन माहि ।।
रविदास िी िन्म िामत आधाररत सम्मान का विरोध करते िुए गुणिीन ब्राह्मण
की अििे लना तथा ज्ञानिान चंडाल की आराधना करने को किते िैं -
रविदास ब्राह्मण ममत पूजिए, िउ िोिे गुनिीन ।
पूजिहि चरन चंडाल के, िउ िोिे गुण परिीन ।।२१
रविदास िी ने तात्कामलक समाि में प्रचमलत दो प्रमुख धमों यथा हिन्द-ू
मुजस्लम के बीच पूिा पद्धमत एिं सृिी सिशप्रधान िोने के नाम पर िोने िाले वििाद को
मनम्न पदों के माध्यम से मनपटाने का प्रयास हकया-
रविदास पेजखया सोध करर, आदम सभी समान ।
हिं द ू मूसलमान कउ, सृिा इक भगिान ।।
उपसंिार-
विकृ मत पररितशन को िन्म दे ती िै । संत रविदास जिस समय- समाि में उत्पन्न
िुए िो ना मसिश संस्कृ मतयों के संक्रमण का काल था बजकक सामाजिक स्तर पर
विमभन्न मुठभेड़ िारी थे। कुछ लोग बहिष्कृ त िो रिे थे तो कुछ लोग स्िीकृ त हकए िा
रिे थे और कुछ रूपांतररत िो रिे थे। िन िीिन की समस्याओं एिं अभािों के बीच संत
रविदास ने कमथत नीची किे िाने िाले कुल में िन्म प्राप्त करने के पिात भी अपने
अनुभििन्य ज्ञान से न केिल सिश समाि को हदशा दे ने का कायश हकए बजकक दबे
कुचले, मानमसक रूप से िीनभािना से ग्रस्त लोगों को आत्मविश्वास से भरने का कायश
हकए। संत रविदास िी ने धाममशक आडम्बरों, िनमानस में व्याप्त भेदभाि –उं च नीच
की भािना का ताहकशक रूप से खंडन एिं अपने कतशव्यों का सुचारू मनिशिन के द्वारा
समाि में आदशश एिं पूिनीय के रूप में प्रमतवष्ठत िुए. अपने पदों के माध्यम से उन्िोंने
धमश, समाि, मानि मात्र के प्रमत व्यििार आहद के मलए िो आदशश स्थावपत हकए िो ना
केिल तत्कालीन समय के मलए मागशदशशक थे बजकक ितशमान की आधुमनकता की दौड़
में संसाधनों की लूट में व्यस्त दमु नयां के लोगों क मलए भी अनुकरणीय िैं । संत
रविदास का िीिन एिं दशशन दोनों िी मानि मात्र के ककयाण भािना से युि रिा िो
सभी समािों के व्यवियों के मलए अपनाने योग्य एिं हदन प्रमतहदन के िीिन व्यििार
में लाने योग्य िै । उनके सिशकामलक दशशन की उपयोमगता सदै ि िी मानि समाि में
बनी रिे गी।
सन्दभश-
शमाश,रामविलास(२००९), भारतीय संस्कृ मत और हिं दी प्रदे श, हकताबघर प्रकाशन, नई हदकली,पृ ११९
ममश्र,भुिनेश्वरनाथ ‘माधि’(१९७३),िैष्णि साधना और मसद्धांत: हिं दी साहित्य पर उसका
प्रभाि,वबिार हिं दी ग्रन्थ अकादमी, पटना,पृ २४७
पाण्डे य,संगम लाल, संत रै दास: व्यवित्ि एिं कृ मतत्ि, पृ ९