You are on page 1of 15

Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies,

Online ISSN 2278-8808, SJIF 2021 = 7.380, www.srjis.com


PEER REVIEWED & REFEREED JOURNAL, JAN-FEB, 2023, VOL- 10/75
संत रविदास की सामाजिक चेतना एिं ज्ञान की विरासत

धीरि प्रताप ममत्र


शोध छात्र, समािशास्त्र विभाग, काशी हिन्द ू विश्वविद्यालय, िाराणसी, उत्तर प्रदे श
dpmitra@bhu.ac.in

Paper Received On: 25 FEBRUARY 2023


Peer Reviewed On: 28 FEBRUARY 2023
Published On: 01 MARCH 2023

Abstract

प्रस्तुत लेख संत रविदास के िीिन दशशन, ज्ञान परं परा एिं ितशमान में उसकी प्रासंमगकता पर
आधाररत िै । मध्यकाल में िब भारतीय समाि संक्रमण के दौर से गुिर रिा था तथा विमभन्न प्रकार
के सामाजिक, धाममशक एिं सांस्कृ मतक आन्दोलन या तो पनप रिे थे अथिा अपनी सामाजिक
स्िीकृ मत िे तु संघर्शरत थे उस समय मनगुण
श परम्परा के संत यथा कबीर- रविदास ब्रह्म की गुणातीत
व्याख्या कर ना केिल िेदाहद पर प्रिार कर िामतगत आधाररत कुरीमतयों का विरोध कर रिे थे बजकक
मसद्ध नाथों की परम्परा में िेदाहद, पाखण्ड, बाह्याडम्बर, िामत भेद के विरोध के द्वारा मनुष्यता की
मुवि की अलग ज्योमत प्रज्िमलत हकए। इस संत परम्परा ने ‘मन की साधना िी िास्तविक साधना िै ,
और भवि का सार तत्ि प्रेम िै ’१ की धाममशक दृवि को िनमानस के सामने प्रत्यक्ष हकया। कमथत तौर
पर नीची किी िाने िाली िामत में िन्म लेने के बाििूद संत रविदास ने अपनी िाणी, कमश एिं मन से
मनिृवत्त परक प्रिृवत्तमय मनष्काम कमश की मशक्षा दे ने एिं तदनुरूप अपने िीिन में सांगोपांग आचरण
करते िुए उच्च िीिन आदशश भी प्रस्तुत हकए। उन्िोंने अपने पदों –मशक्षाओं के माध्यम से विनम्र
शब्दािमलयों में सामाजिक बुराईयों एिं पाखण्ड आहद का विरोध कर समाि सुधार में अपना योगदान
श संतों की दृवि में ब्रह्म तीन गुणों से परे िै , िि सिश व्यापी िै ।२ उनके पदों में िजणशत सत्य
हदया। मनगुण
शास्ित िैं एिं उनकी प्रासंमगकता ितशमान समय में भी बरकरार िै ।
मुख्य शब्द- परं परा, मनगुण
श , पंथ, पाखण्ड, िणश, समाि, अद्वै तिाद, ब्रह्म, िीिन,दशशन

Scholarly Research Journal's is licensed Based on a work at www.srjis.com

िीिन पररचय-
भारत भार्ाओँ एिं बोमलयों से समृद्ध दे श िै । यिााँ विमभन्न भागों में प्रचमलत
विमभन्न बोमलयों एिं उनके उच्चारण आहद में मभन्नता के कारण संत रविदास का नाम

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


धीरि प्रताप ममत्र 18045
(Pg. 18044-18058)

विमभन्न रूपों में प्रचमलत िै यथा रै दास, रईदास, रयदास, रूईदास,रूद्रदास,तथा रविदास
आहद।३ इनमें से सिाशमधक प्रचमलत नाम रै दास एिं रविदास िैं । संत रविदास मनगुण

संत परम्परा के अंतगशत आने िाले अमधकतर संतों एिं कवियों जिनमें से सिाशमधक
कमथत तौर पर नीची किी िाने िाली िामतयों से सम्बंमधत थे की िन्ममतमथ के विर्य
में विद्वानों में मतभेद रिा िै । उनके पदों के माध्यम से उनकी िामतगत-पेशग
े त
सम्बद्धता का पता तो चलता िै हकन्तु िन्ममतमथ के विर्य में पूणश स्पिता का अभाि
िी रिा िै । आचायश पृथ्िी मसंि, रविदास संप्रदाय के विद्वान संत करम मसंि के दोिे को
उद्धत
ृ करते िुए संत रविदास का िन्म विक्रमी संित १४३३(१३७६ ई०) में माघ शुक्ल
पूजणशमा मतमथ को िुआ बताते िै ।
चौदि सौ तैंतीसकी, माघ सुदी पन्दरास।
दजु खयों के ककयाण हित प्रगटे श्री रविदास।।
संत रविदास की मृत्यु मतमथ संबंधी जस्थमत स्पि करने िे तु इस दोिे से सन्दभश मलया
िाता िै , जिसमे रविदास िी के िृद्ध शरीर के रवि में ममलने की बात किी िा रिी-
पंद्रि सौ चउरासी भी मचत्तौर मंि भीर।
िर िर दे ि कंचन भई रवि रवि ममकयौ शरीर।।४
उपयुि
श दोिों से संत रविदास के िीिन विर्यक सन्दभश लेने पर उनकी आयु लगभग
१५१ िर्श आती िै जिससे विद्वानों में संदेि उत्पन्न िोता िै क्योंहक इतनी सामान्यतः
प्राप्त करना मुजककल प्रतीत िोता िै । इस बाबत धमशपाल मैनी का मत िै हक “अन्य
हकसी प्रबल प्रमाण के अभाि में िमें संित १४३३ की माघ पूजणशमा िन्महदिस मान
लेने में आपवत्त निीं िोनी चाहिए थी लेहकन उनकी मृत्यु मतमथ संित १५८४ पयाशप्त
विश्वसनीय प्रतीत िोती िै । इस प्रकार उनकी आयु १५१ िर्श आती िै िो बिुत संभि निीं
िै . दस
ू री बात िन सामान्य में यि प्रचमलत िै हक रविदास िी कबीर से आयु में कुछ
छोटे थे। अतः यहद उनका िन्म संित १४५६ के आसपास मान मलया िाए तो रामानंद
के मशष्य िोने, कबीर से आयु में कुछ छोटे और समकालीन िोने तथा लगभग १२८ िर्श

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


धीरि प्रताप ममत्र 18046
(Pg. 18044-18058)

की आयु पाने में विशेर् आपवत्तयों को स्थान निीं रिता िै । डॉ. बेनीप्रसाद शमाश िो हक
रविदास साहित्य के अमधकारी विद्वान माने िाते िैं ने संत रविदास का िीिनकाल १२८
िर्श मानते िुए उनकी िन्ममतमथ १४५६ ई० पर सिमती िताते िैं एिं प्रचमलत मान्यता
िै हक संभित रवििार को िन्म िोने की ििि से इनका नाम रविदास पड़ा।५
संत रविदास के िन्मस्थान के विर्य में भी विमभन्न साक्ष्यों के आधार पर
मभन्न-मभन्न मत प्रचमलत िैं । विश्वनाथ वत्रपाठी के अनुसार ‘आहद ग्रन्थ’ में संकमलत
संत रविदास के पदों से यि पता चलता िै हक उनका िन्म दमलत िामत की कुटबााँढला
नामक शाखा में िुआ था। इस िामत से सम्बंमधत लोग बनारस के आसपास के क्षेत्रों में
मरे िुए मिेमशयों को ढोने के काम में संलग्न िुआ करते थे।
नागर िना मेरी िामत वबजखआत चमार।
मेरी िामत कुटबााँढला ढोर ढ़ोंिता मनतहि बनारै सी आस पास।।६
तथा
िा के कुटु ं ब के ढे ढ सब ढोर।
ढोिंत हिरहि अििू बनारसी आसपास।।७
उपयुि
श पदों के अनुसार संत रविदास की िामत के विर्य में कोई संदेि शेर् निीं रि
िाता हकन्तु उनके िन्म स्थान के विर्य में भी अनेक मत प्रचमलत िैं । कुछ लोग
रािस्थान के मांडिगढ़ में संत रविदास की मशष्यों की अमधक संख्या तथा ििीँ रविदास
कुण्ड ि ् रविदास कुटी की जस्थमत िोने की ििि से उन्िें मांडिगढ़ या मंडािर के मनिासी
बताते िैं ।८ ‘रै दास रामायण’ में संकमलत पद के अनुसार संत रविदास का िन्मस्थान
बनारस के मनकट क्षेत्र में ‘मांडूर’ को माना िाना चाहिए-
काशी हडग मांडूर इसथाना शुद्ध िरण करत गुिराना।
मांडूर नगर लीन ओतारा रविदास शुभ नाम िमारा।।
संत रविदास की िन्ममतमथ एिं िन्म स्थान की तरि िी उनके पररिार एिं माता-वपता
के विर्य में भी स्पि रूप से कोई साक्ष्य उपलब्ध ना िोने की ििि से विद्वानों में भ्रम

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


धीरि प्रताप ममत्र 18047
(Pg. 18044-18058)

की जस्थमत िै । अनेक विद्वान ् मभन्न मभन्न मत रखते िैं , डॉ. काशीनाथ मसंि भविष्य
पुराण को उद्धत
ृ करते िुए संत रविदास के वपता िी का नाम मानदास बताते िैं -
मानदासस्य पुत्रो रविदास इमत विश्रुतः९
हकन्तु ‘रविदास रामायण’ में उनके वपता िी का नाम रिु हदया िै । यि नाम
िनसामान्य में उनके वपता िी के प्रचमलत नाम रघू से ममलता िुलता िै । उनकी माता
िी का नाम प्रचमलत मान्यताओं के अनुसार कुछ लोग धुरवबमनया तो कुछ लोग
करमादे िी बताते िैं । रविदासी परम्परा के कुछ लोग इनके वपता िी का नाम रघू एिं
माता िी का नाम धुरवबमनया िी स्िीकारते िैं ।
संत रविदास के बारे में प्रचमलत िै हक उनका मन िीिन के शुरूआती
चरण में िी साधु-संतों में लग गया था। यद्यवप हक उनका बचपन विर्म जस्थमतयों से
भरा पड़ा था तथावप उनके धाममशक रूझानों से मचंमतत माता-वपता ने बचपन में िी
‘लोना’ नामक लड़की से इनका वििाि संपन्न करा हदया जिनसे इनको एक पुत्र
विियदास के िोने की मान्यता िै ।१० रविदास के बचपन में िी साधु संतों के प्रमत सेिा
भाि एिं उनके अपने चमश आधाररत कमश में संलग्न िोने का सन्दभश अनंतदास कृ त
‘रै दास पररचई’ में ममलता िै -
बड़ो भयौ तब न्यारौ कीन्िौ, बांटै आयौ से बााँटी न दीनौ।
राख्य बािरी की पमछिारै , कछु न कह्यो रै दास वबचारौ।।
सीधा चाम मोमल आिै, मतनकी पनिी अमधक बनािै।
टू टे िाटे िरिा िोरे , मसकत करर कािु न मनिारै ।।
संघर्शमय िीिन पररजस्थमतयों में िोने के बाििूद रविदास िी साधू संतों के सत्संग
आहद में प्रिृत्त रिें । उनके िीिन के विमभन्न क्षेत्रों के सामान िी उनके गुरु के विर्य में
भी विमभन्न सन्दभों में मभन्न मत ममलते िैं ।
अनंतदास अपनी रचना ‘भि रत्नािली’ में संत रविदास को रामानंद का मशष्य
बताते िुए मलखते िैं हक रामानंद के मशष्य कबीर तथा रै दास चमार थे-

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


धीरि प्रताप ममत्र 18048
(Pg. 18044-18058)

रामानंद के मशष्य कबीर,जिने चीन्िै भगिंत।


और ऐक रै दास चमारा, िन नारद लीनो औतारा।।
डॉ. ििारी प्रसाद हद्विेदी का मानना िै हक रामानंद के बारि मशष्य थे, जिनमें से
एक संत रविदास भी थे. अन्य मशष्य कबीर, धन्ना, सेना, पीपा, भिनंद,
सुखानंद,आभानंद,सुरसुरानंद, परमानंद, मिानंद, श्री आनंद थे।११
नाभादास ने भी ‘भिमाल’ में रामानंद के अन्य मशष्यों का िणशन करते िुए संत
रविदास का नामोकलेख हकया िै -
अनंतांद, कबीर, सुखा, सुरसुरा, पद्मािमत, नरिरर।
पीया, भिानंद, रै दास, धना, सेन, सुरसरी की धरिरी।।
रविदास िी ने अपने पद के द्वारा जिसमे िो मलखते िैं हक रामानंद मुझे गुरू रूप
में प्राप्त िुए जिससे मुझे ब्रह्म की प्रामप्त िुई में रामानंद को गुरु बताया िै -
रामानंद मोहि गुरू ममकयों, पाया ब्रह्म विलास।
रामनाम अमी रस पीयौ, रविदास हि भयौ खलास।।
दस
ू री तरि सेन नाई ने ‘रविदास-कबीर गोष्ठी’ में रविदास को कबीर का मशष्य
माना िै तदनुसार संत रविदास किते िैं हक-
धमन कबीर धमन िौ सतगुरु, जिन परम तत लखाय।
किै रै दास सुनो िो स्िामी, पण तुम्िारी आया।।
इसी प्रकार कबीर ने भी रविदास िी के बारे में ‘संतमन में संत रविदास..’ कि कर
उनके मित्ि का पररचय िनमानस को हदया था।१२
डॉ. काशीनाथ उपाध्याय इस वििाद को संदमभशत करते िुए किते िैं हक “यि संभि िै हक
रविदास िी ने अपने िीिन के प्रारं मभक िर्ों में रामानंद िी के संपकश में आए िो और
उन्िें गुरू मानते रिे िों तथा बाद में कबीरदास िी से दीक्षा मलए िो...”
कमथत रूप से नीची किी िाने िाली िामत में िन्म लेने तथा हकसी भी विद्यालय
में विमधित मशक्षा प्राप्त न करने के बाििूद भी संत रविदास िी ने अपने िीिन एिं

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


धीरि प्रताप ममत्र 18049
(Pg. 18044-18058)

आतंररक अनुभिों के आधार पर आध्याजत्मक उन्नमत के विर्य में िो किा उन पदों से


उनकी हिं दी, उदश ,ू िारसी एिं अनेक स्थानीय भार्ाओँ पर पकड़ स्पि िोती िै । उनके
द्वारा दे श भर में हकए गए दे शाटन की ििि से रािस्थान, पंिाब, गुिरात, मिाराष्ट्र एिं
दजक्षण भारत आहद क्षेत्रों में उनके अनुयायी बने। उनके मशष्यों को रविदामसया पंथ के
लोगों के नाम से भी िाना िाता िै । पंथ को बगेस एिं पाकश एक ऐसे संगठन के रूप में
पररभावर्त करते िैं िो विद्यमान रूहढ़यों के प्रमत द्वे र् की भािना रखता िो।१३ संत
रविदास के मशष्य के रूप में ििााँ डॉ. धमशपाल मैनी ने मीराबाई को संदमभशत हकया िै
ििीँ डॉ. ििारी प्रसाद हद्विेदी ने भी मीराबाई का संत रविदास से सम्बन्ध बताया िै ।
मीराबाई के पदों में संत रविदास का नाम स्पि रूप से दे खा िा सकता िै -
रै दास संत ममले मोहि सतगुरु, दीन्िी सूरत सिदानी।
इसी प्रकार
मीरा ने गोविन्द ममकया िी, गुरू मममलया रै दास।
वप्रयादास ने ‘भवि रसबोमधनी’ में मचत्तौड़ की झाली रानी को संत रविदास की
मशष्य बताया-
बसत मचत्तौर मांझ रानी एक झाली नाम।
नाम वबन काम खाली आनी मशष्य भई िै ।।

संत रविदास का धाममशक दृविकोण-


मध्यकाल की संक्रमणकालीन सामाजिक-सांस्कृ मतक पररजस्थमतयों के बीच
धाममशक पाखण्ड, कमशकांड आहद को नकारते िुए संत रविदास न केिल अपनी प्रेमाभवि
के माध्यम से ईश्वर से स्ियं िुड़े बजकक िीिन –िगत के िास्तविक रिस्यों को सरल
रूप से बतलाते िुए उसे सभी धमों एिं िामतयों के व्यवियों के मलए सिशसल
ु भ बना
हदया। ई. बी. टायलर का कथन िै हक “धमश आध्याजत्मक सत्ता में विश्वास िै ”१४ एिं इसी
सन्दभश में दजु खशम का मत िै हक “धमश ने उन सभी को िन्म हदया िै िो समाि में
आिकयक िैं , यि इसमलए क्योंहक समाि की धारणा धमश की आत्मा िै ।”१५ उन्िोंने बाह्य

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


धीरि प्रताप ममत्र 18050
(Pg. 18044-18058)

आडम्बरों को नकारते िुए मानिधमश को स्थावपत करने का प्रयत्न हकया। उनकी िाणी
ने लोगों के अंतमशन पर प्रभाि डालने के साथ िी िैजश्वक शांमत एिं भाईचारे का सन्दे श
प्रसाररत हकया।
संत रविदास िी ने तत्कालीन समाि में प्रचमलत सगुण- मनगुण
श भवि मागश एिं
कहठन योग, तप, िागरण, िठयोग, प्राणायाम, व्रत-तीथश, विमभन्न िाद यथा
एकेश्वरिाद, ब्रह्मिाद, अद्वै तिाद, विमशिाद्वै त, द्वै ताद्वै त आहद ताहकशक बिस एिं िाद-
वििाद खड़ा करने िाली बिसों से इतर शुद्ध भविमागश िो नामभवि अथिा प्रेमाभवि के
रूप में प्रमसद्द िुआ पर िोर हदया।
संत रविदास िी ने शरीरधारी गुरू की मित्ता को मनराकार ईश्वर के ऊपर बताया।
उन्िोंने गुरू को मनुष्य रूप में परमात्मा माना एिं भि सागर से तरने में पतिार की
भांमत गुरु को सिायक बताया िै जिस प्रकार नदी पार करने िे तु नाि को खेने के मलए
पतिार आिकयक िोती िै -
गुरु ज्ञान दीपक हदया, बाती दई िलाय।
रविदास िरर भगमत कारनै,िनम मरण विलमाय।।

भौ सागर दभ
ू र अमत, मसन्धु मूररख यिू िान।
रविदास गुरु पतिार िै , नाम नाि करर िान।।
रविदास िी किते िैं हक सतगुरु की कृ पा से न केिल वपछले िन्मों के पाप नि िोते िैं
बजकक इस िीिन के भी सांसाररक विर्य िासना एिं संताप ममट िाते िैं , गुरु िि मागश
हदखलाता िै जिसके अनुसरण से ना केिल मन के संताप नि िोते िैं बजकक तृष्णा भी
बुझती िै एिं वपछले िन्मों आहद के पाप कमश भी नि िो िाते िैं -
सतगुरु िमिु लखाई बाट
िनम पाछले पाप नसाने, ममटीगौ सबु संताप।

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


धीरि प्रताप ममत्र 18051
(Pg. 18044-18058)

किी रविदास गुरु राि हदखािई


वत्रखा बुजझ मममत मन संताप।।
संत रविदास गुरु द्वारा प्रदत्त नाम दीक्षा को दीघश मन्त्रों- पाठों आहद के स्थान पर
िपने की बात किते िैं बिाय िहटल कमशकांड, योग-प्राणायाम आहद में संलग्न िोने
के। इस प्रकार िि आम िनमानस के मलए ईश्वर भवि का सरलतम रूप प्रस्तुत करते िैं
जिससे िो शास्त्र अध्ययन एिं योग की कहठन िहटलताओं में ना िंसने पाए-
जिह्वा सो ओंकार िप, ित्थां सो कर कार।
राम ममलहि घर आई कर, कहि रै दास विचार।।

इड़ा वपंगला सुसम्


ु ना, वबध चक्र प्राणायाम।
रविदास िों सबहि छांडीयो, िबहि पाईिु सत्तनाम।।
रविदास िी ईश्वर नाम िो गुरु द्वारा प्रदत्त िोता िै को साक्षात ् अमृत बताते िुए
किते िैं की यि िि पारस िै हक लौि सदृश व्यवि भी स्पशश मात्र अथाशत इसके िपने
भर से स्िणश िो िाता िै , हिर उसे हकसी भी कमशकाण्ड, चाप-मतलक, व्रत आहद की
आिकयकता निीं पड़ती िै -
नामु तेरो आरती भिनु मुरारे
िरर के नाम वबनु झूठे सगल पसारे
नामु तेरो आसनो नामु तेरो उरसा
नामु तेरो केसरो ले मछडकारे
नामु तेरो अभुला नामु तेरो चंदनो
घमस िपे नामु ले तुझहि का उचारे

रविदास िी प्रभु नाम के स्मरण को इस प्रकार बताते िैं हक उन्िें उसकी लत लग


गयी िै िो छोड़े से ना छूटती िै । अब िो प्रभु के सिारे िो हदन रात मानमसक स्मरण-
िब में लीन रिते िैं । अब िो सब कुछ अपना प्रभु को समवपशत कर चुके िैं -

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


धीरि प्रताप ममत्र 18052
(Pg. 18044-18058)

अब कैसे छूटै नाम रट लागी


प्रभुिी तुम चंदन िम पानी । िाकी अंग अंग बास समानी।।
प्रभुिी तुम धन बन िम मोरा । िैसे मचतित चंद चकोरा ।।
प्रभुिी तुम दीपक िम बाती । िा की िोमत बरे हदन राती।।
प्रभुिी तुम मोती िम धागा । िैसे सोनहिं ममलत सुिागा।।
प्रभुिी तुम स्िामी िम दासा । ऐसे भवि करे रै दासा।।
रविदास िी सभी प्रकार की शास्त्रीय चचाशओं,िाद-प्रमतिाद को त्यागकर प्रभु
नाम स्मरण पर िोर दे ते िैं -
रै दास रामत न सोिए, हदिस न कररये स्िाद ।
अि-मनस िरीिी सुममररये, छाहड़ सकल प्रमतिाद ।।
रविदास िी चूंहक बचपन से िी साधू संतों के सामनध्य को पसंद करते थे, उन्िोंने
सत्संग की महिमा एिं आिकयकता को अपने पदों में भी िजणशत हकया यथा-
िो िन दि
ु कुमारगी, बइठहि नंहि मतंि पास ।
िो िन संत सुमारगी, मतन पायं लागो रविदास ।।

प्रभुिी संगमत सरन मतिारी। िग िीिन राम मुरारी । ।


X X X
तुम चंदन िम िरं ड बापुरे, मनकट तुम्िारे बासा ।
नीच रूख तै ऊाँच भए िैं , तुम्िरी बास सुबासा ।।
िामत भी ओछी पांमत भी ओछी, ओछा कसब िमारा ।
तुम्िारी कृ पा तै ऊाँच भए िैं , किै रविदास चमारा।।
संत रविदास िी ने जिस प्रकार का हक्रयात्मक कमशप्य िीिन जिया तथा गृिस्थ
िीिन की चुनौमतयों से मुंि निीं मोड़ा उसी का सन्दे श अपने पदों के माध्यम से भी
हदया यथा-
सौ बरस ल िगत मंहि िीित रहि करू काम ।

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


धीरि प्रताप ममत्र 18053
(Pg. 18044-18058)

'रविदास करम िी धरम िै , करम करिु मनष्काम।।


धरम िे तहिं कीजिये, सौ बरस लों कार ।
'रविदास करमहि धरम िै , िल मंहि नहि अमधकार ।।
रविदास िी किते िैं हक िो भि मनजिन्त भाि से ईश्वर का स्मरण करता रिता
िै , ईश्वर उसकी मचंता अथाशन लालन- पालन की जिम्मेदारी स्ियं उठाते िैं -
जिह्वा भिे िररनाम मनत, ित्थ करं हि मनत काम ।
'रविदास' भए मनिमचंत िम, मन मचंत करै गे राम ।।
संत रविदास िी सांसाररक बंधनों से विरि भाि िोना, एकमात्र ईश्वर के
शरणागत िोने उनके नाम को भिने को िी भवि किते िैं . उसके अमतररि दान, संसार
का त्याग, माला पिनना, िठयोग आहद को व्यथश बतलाया। सच्ची भवि िो अिम ् को
त्यागकर ईश्वर शरणागत िोने को मानते िैं -
भगमत न मनंद्रा साधैं, भगमत न िैराग बांधै ।
भगमत न ऐ सब िेद बड़ाई ।
भगमत न मूंड मुंडाए, भगमत न माला हदखाई।
भगमत न चरण धोिाएं, ऐ सब मुमन िन गाई ।
भगमत न तौ लौं िानी, िौलौं आप कंू आप बखानी ।
िोई िोई करै , सोई सोई कर बड़ाई ।
आपौ गयौ तब भगमत पाई, औसी भगमत िै भाई।
राम ममकयौ अपनौ गुन खायौ, ररवद्ध मसवद्ध सबै िु गंिाई।
किै रविदास छूटी सब आस, तब िरर तािी के पास ।

संत रविदास का सामाजिक दृविकोण-


मध्यकाल में भारतीय समाि अनेक प्रकार की िहटलताओं एिं अंतविशरोधों से
ग्रमसत था। िामत-धमश आधाररत भेदभाि, रूहढ़यााँ प्रबल थी तथा पाखण्ड का बोलबाला
था।१६ यद्यवप संत रविदास का मूल उद्दे कय भवि थी तथावप समाि में व्याप्त भेदभाि,

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


धीरि प्रताप ममत्र 18054
(Pg. 18044-18058)

असमानता, पाखण्ड, रूढ़ीिाद आहद कुरीमतयों को दे खने के बाद िो उससे अछूते निीं
रि सके बजकक िामतगत िीनता को दरू करने िे तु ना केिल अपनी िामत को खुले तौर
पर बताते बजकक िेदों का विरोध कर सामाजिक कदाचार के जखलाि आिाि भी
उठाया। संत रविदास ने किा हक िो उसे अपना गुरु मानते िुए उसकी िन्दना करते िैं
जिसने सिशप्रथम िेदों का बहिष्कार हकया।१७ उन्िोंने भवि के साथ समाि सुधार के
मलए भी अपने पदों के माध्यम से िनिागरूकता का प्रयास हकया जिससे समाि में
शांमत, सिअजस्तत्ि ि ् भाईचारे का प्रसार िो सके।
संत रविदास में तत्कालीन हिन्द ू समाि में व्याप्त िणशगत व्यिस्था को मनरथशक
किा तथा एक िी परमात्मा को सब का िीिन दाता माना-
ब्राह्मण, खत्री, िैस, सूद रै दास िनम ते नाहि ।
िो चािइ सुबरन कउ, पािई करमन माहि ।।

िन्म िात मत पूमछए, का िात अरु पात ।


रविदास पूत सभ प्रभ के, कोइ नहिं िात कुिात ।।१८
रविदास िी ने िामत भेद को मिारोग बताया िो मानिता िे तु विनाशक िै ,
उन्िोंने किा हक िामत भेद के चक्कर में सब लोग उलझ गए िैं जिससे उत्पन्न
समस्याओं से मानिता की िामन िो रिी िै -
िात-पात के िेर महि, उरजझ रिइ सभ लोग ।
मनुष्यता कू खात िइ, 'रविदास' िात का रोग।१९
संत रविदास िी ने सभी मनुष्यों की एक ईश्वर से उत्पवत्त बताते िुए ब्राह्मण-
चमार भेद भाि पर प्रश्न उठाया और किा की िब सिशत्र संसार उस एक िी परमात्मा से
उत्पन्न िुआ िै तब समाि में ब्राह्मण- चमार आहद िन्म आधाररत भेदभाि का क्या
औमचत्य ठिरता िै -
रविदास इक िी नूर ते, जिमम उपज्यों संसार ।
ऊाँच नीच हकि वबध भये, ब्राह्मन अरु चमार ।।२०

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


धीरि प्रताप ममत्र 18055
(Pg. 18044-18058)

रविदास िी िन्म िामत आधाररत सम्मान का विरोध करते िुए गुणिीन ब्राह्मण
की अििे लना तथा ज्ञानिान चंडाल की आराधना करने को किते िैं -
रविदास ब्राह्मण ममत पूजिए, िउ िोिे गुनिीन ।
पूजिहि चरन चंडाल के, िउ िोिे गुण परिीन ।।२१
रविदास िी ने तात्कामलक समाि में प्रचमलत दो प्रमुख धमों यथा हिन्द-ू
मुजस्लम के बीच पूिा पद्धमत एिं सृिी सिशप्रधान िोने के नाम पर िोने िाले वििाद को
मनम्न पदों के माध्यम से मनपटाने का प्रयास हकया-
रविदास पेजखया सोध करर, आदम सभी समान ।
हिं द ू मूसलमान कउ, सृिा इक भगिान ।।

मंहदर मजस्िद दोउ एक िै , इन मंि अंतर नांहि ।


रै दास राम रिमान का झगड़उ कोउ नांहि ।।२२
रविदास िी ने मंहदर मजस्िद के भेद को समाप्त कर सब िगि ईश्वर की
उपजस्थमत मिसूस करने पर िोर हदया-
रविदासन पूिइ दे िरा, अरू न मजस्िद िाय ।
ििं तिं ईस का बास िै , तिं तिं सीस निाय ।।
रविदास िी ने िुन्दओ
ु ं-मुजस्लमों की पूिा पद्धमतयों , आडम्बरों यथा छाप-मतलक
आहद को ठगी बताते िुए उनका विरोध हकया-
िो खुदा पजिम बसै, तौ पूरब बसत िै राम ।
'रविदास' सेिा जिि ठाकुर कंू मति का ठांि न नाम।।

माथे मतलक िाथ िप माला, िग ठगने कंू स्िांग बनाया।


मारग छांहड कुमारग डिके, सााँची प्रीत वबनु राम न पाया।
रविदास िी ने बाह्याचारों यथा नाच-गाना, मुंड मुंडाना, तपस्या आहद को
मनरथशक बताया िै , िो परम तत्ि को मानि मात्र के भीतर पिचानने पर िोर हदए-

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


धीरि प्रताप ममत्र 18056
(Pg. 18044-18058)

किा भयो नाचे अरु गाये, किा भयो तप कीन्िें ।


किा भयो िे चरन पखारे , िौ लौं तत्त्ि न चीन्िें ।
किा भयौ िे मूण्ड मुण्डाए, किा तीरथ ब्रत कीन्िें ।
रविदास िी ने समाि में प्रचमलत िीि ित्या, बमल, िलाल आहद के माध्यम से
दे िी-दे िताओं को प्रसन्न करने की परं परा को दोर्युि बताया तथा अपने पदों के
माध्यम से उनकी मनंदा की-
रविदास िीि कंू माररकर, कैसे ममला िै खुदाय ।
पीर पैगंबर, औमलया, कोउ न किइ समुझाय ।।
'रविदास' मूंडि काहट करर, मूरख कित िलाल ।
गला कटाििु आपना, तउ का िोइहि िाल ।।
रविदास िीि मत मारहिं , इक साहिब सभ मांहि ।
सभ मांहि एकउ आतमा, दस
ू रि कोउ नांहि ।।

आधुमनकता एिं िैश्वीकरण के युग में िब मनुष्य दस


ू रों पर मनयंत्रण करने तथा
अमधकामधक भौमतक सुख संपवत्त के साधनों को एकवत्रत करने में िुटा िै तथा इन
सबके बीच असमानता, गैरबराबरी का रोग सिश व्यापी िो चुका िै । िमें संत रविदास िी
के पदों में उनकी विश्वदृवि का भान िोता िै िो ना केिल तत्कालीन समाि के
मागशदशशक थे बजकक ितशमान में और भी ज्यादा प्रासंमगक िो गए िैं । पराधीनता के
विर्य में उन्िोंने मलखा हक-
पराधीन को दीन क्या, पराधीन बेदीन ।
रै दास दास पराधीन कौ, सबहिं समझे िीन ।।
ऐसा चािू राि मैं, ििााँ ममले सबन को अन्न ।
छोट बड़ो सभ सम बसें, रै दास रिे प्रसन्न ।।२३

उपसंिार-

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


धीरि प्रताप ममत्र 18057
(Pg. 18044-18058)

विकृ मत पररितशन को िन्म दे ती िै । संत रविदास जिस समय- समाि में उत्पन्न
िुए िो ना मसिश संस्कृ मतयों के संक्रमण का काल था बजकक सामाजिक स्तर पर
विमभन्न मुठभेड़ िारी थे। कुछ लोग बहिष्कृ त िो रिे थे तो कुछ लोग स्िीकृ त हकए िा
रिे थे और कुछ रूपांतररत िो रिे थे। िन िीिन की समस्याओं एिं अभािों के बीच संत
रविदास ने कमथत नीची किे िाने िाले कुल में िन्म प्राप्त करने के पिात भी अपने
अनुभििन्य ज्ञान से न केिल सिश समाि को हदशा दे ने का कायश हकए बजकक दबे
कुचले, मानमसक रूप से िीनभािना से ग्रस्त लोगों को आत्मविश्वास से भरने का कायश
हकए। संत रविदास िी ने धाममशक आडम्बरों, िनमानस में व्याप्त भेदभाि –उं च नीच
की भािना का ताहकशक रूप से खंडन एिं अपने कतशव्यों का सुचारू मनिशिन के द्वारा
समाि में आदशश एिं पूिनीय के रूप में प्रमतवष्ठत िुए. अपने पदों के माध्यम से उन्िोंने
धमश, समाि, मानि मात्र के प्रमत व्यििार आहद के मलए िो आदशश स्थावपत हकए िो ना
केिल तत्कालीन समय के मलए मागशदशशक थे बजकक ितशमान की आधुमनकता की दौड़
में संसाधनों की लूट में व्यस्त दमु नयां के लोगों क मलए भी अनुकरणीय िैं । संत
रविदास का िीिन एिं दशशन दोनों िी मानि मात्र के ककयाण भािना से युि रिा िो
सभी समािों के व्यवियों के मलए अपनाने योग्य एिं हदन प्रमतहदन के िीिन व्यििार
में लाने योग्य िै । उनके सिशकामलक दशशन की उपयोमगता सदै ि िी मानि समाि में
बनी रिे गी।

सन्दभश-
शमाश,रामविलास(२००९), भारतीय संस्कृ मत और हिं दी प्रदे श, हकताबघर प्रकाशन, नई हदकली,पृ ११९
ममश्र,भुिनेश्वरनाथ ‘माधि’(१९७३),िैष्णि साधना और मसद्धांत: हिं दी साहित्य पर उसका
प्रभाि,वबिार हिं दी ग्रन्थ अकादमी, पटना,पृ २४७
पाण्डे य,संगम लाल, संत रै दास: व्यवित्ि एिं कृ मतत्ि, पृ ९

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


धीरि प्रताप ममत्र 18058
(Pg. 18044-18058)

शमाश,बी.पी., श्री गुरु रविदास चररतं, पृ ५१


शास्त्री,स्िामी रामानंद, संत रविदास और उनका काव्य, पृ८४
वत्रपाठी, विश्वनाथ(२००७), हिं दी साहित्य का सरल इमतिास, ममलक एंड कंपनी प्रकाशन,ियपुर,
हदकली, पृ २४ पूिोि
मसंि, गुरुचरण, संत रविदास: विचारक और कवि, पृ२२
भविष्य पूराण, खंड ४,अध्याय १७
शास्त्री, स्िामी रामानंद एिं पाण्डे य, िीरें द्र, संत गुरु रविदास और उनका काव्य, पृ७२
हद्विेदी, ििारीप्रसाद(२००८), हिं दी साहित्य की भूममका, रािकमल प्रकाशन, नई हदकली, पृ ५५
मसंि, पद्म गुरुचरण(१९७७), संत रविदास: विचारक और कवि, नि मचंतन प्रकाशन, िालंधर, पृ १३१
पाकश,रोबटश इ. एंड बगेस, अनेस्ट डब्कयू(१९२१), इं ट्रोडक्शन टू द साइं स ऑफ़ सोमशयोलॉिी,
यूमनिमसशटी ऑफ़ मशकागो प्रेस, पृ ८७२
टायलर,ई िी(१९२४), वप्रममहटि ककचर, न्यूयाकश
दख
ु ीम,इमाइल(१९१२), द एलीमेंट्री िॉम्सश ऑफ़ ररलीजियस लाइि, द मैकममलन कंपनी न्यूयाकश, पृ
१७
अहिरिार, रामकुमार(२००८), संत रविदास िीिन और दशशन, गौतम बुक सेंटर, हदकली, पृ १३
अहिरिार, रामकुमार(२००८), संत रविदास िीिन और दशशन, गौतम बुक सेंटर, हदकली, पृ १५
बाबा, संत सुररं दर दास, िगतगुरु रविदास अमृत िाणी एिं संजक्षप्त िीिन, श्री गुरु रविदास िन्म
स्थान पजब्लक चैररटे बल ट्रस्ट, िाराणसी, यू पी, पृ २६८
पासिान, रािेश कुमार(२००७), दमलत अजस्मता और रै दास का काव्य, पी एच डी शोध प्रबंध, भारतीय
भार्ा केंद्र, भार्ा साहित्य एिं संस्कृ मत अध्ययन संस्थान, ििािर लाल नेिरू विश्वविद्यालय,
नई हदकली, पृ ४० पूिोि
बाबा, संत सुररं दर दास, िगतगुरु रविदास अमृत िाणी एिं संजक्षप्त िीिन, श्री गुरु रविदास िन्म
स्थान पजब्लक चैररटे बल ट्रस्ट, िाराणसी, यू पी, पृ २६९
दीपक, दे िेन्द्र (२०११), संत रविदास की रामकिानी, आयश प्रकाशन मंडल, गांधीनगर, हदकली, पृ १६७
बाबा, संत सुररं दर दास, िगतगुरु रविदास अमृत िाणी एिं संजक्षप्त िीिन, श्री गुरु रविदास िन्म
स्थान पजब्लक चैररटे बल ट्रस्ट, िाराणसी, यू पी, पृ ११७

Copyright © 2023, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies

You might also like