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हर्षवर्षन
शोध छात्र, शशक्षा शिभाग(शशक्षा शिद्यापीठ), महात्मा गाां धी अांतरराष्ट्रीय शहां दी शिश्वशिद्यालय,
िधाा , महाराष्ट्र -442001. ई-मेल. harsh20692@gmail.com
Abstract
प्रस्तुत शोध लेख शिशभन्न साशहत्य की समीक्षा के आधार पर शलखा गया है । इस शोध पत्र में प्राथशमक शशक्षा की समस्याओां का
िर्ान शकया गया है तथा इन समस्याओां का समाधान करने एिां शशक्षा को गुर्ित्तापूर्ा बनाने के शलए शिन निाचारोां (िैसे- बाल
सांसद, अशभनि युक्त शशक्षर्, छात्र प्रोफाइल, खेल-खेल में शशक्षा, सामुदाशयक सहभाशगता, सरल अांग्रेिी माध्यम एिां कान्सैप्ट
मैशपांग आशद) का प्रयोग ितामान प्राथशमक शशक्षा में शकया िा रहा है उसका सांशक्षप्त िर्ान शकया गया है । निाचार से आशय
कम से कम खचा पर शिद्यालय में उपलब्ध सांसाधनोां का अशधक से अशधक प्रयोग कर शशक्षा में गुर्ित्ता लाना है एिां शशक्षक-
छात्र के मध्य सौहादा पूर्ा सांबांध स्थाशपत करना, शिद्याशथायोां में रचनात्मकता का सृिन एिां शशक्षा को रुशचकर एिां सरल बनाकर
शिद्याशथायोां को अशधगम के शलए प्रेररत करना है ।
िुख्य मिन्दु - प्राथशमक शशक्षा, समस्याएँ , निाचार
प्रस्तवाना- प्राथशमक शशक्षा सम्पूर्ा शशक्षा व्यिस्था का आधार है । यह एक ऐसे प्रकाश की तरह है शिससे बालकोां
की अांतशनाशहत शक्तक्तयोां का शिकास कर उसे एक सांतुशलत व्यक्तक्तत्व प्रदान शकया िाता है । बालक के उज्ज्वल
भशिष्य के शनमाा र् में प्राथशमक शशक्षा की महत्वपूर्ा भूशमका होती है । यह मनुष्य के शिकास का मागा प्रशस्त करती
है । प्रत्येक राष्ट्र के शनमाा र् में प्राथशमक शशक्षा का मुख्य योगदान होता है । यही िह प्रथम सोपान है शिसकी सहायता
से प्रत्येक व्यक्तक्त, समाि एिां राष्ट्र अपने लक्ष्ोां की प्राक्तप्त कर सकते है । ितामान समय में कोई भी राष्ट्र प्रगशत के
शक शशक्षा का स्तर शगरता िा रह है सिाल यह है शक क्या हम हमेशा समस्या की ही बात करते रहें गे? यशद हम शसफा
समस्या की बात करते रहे गें तो इसका समाधान नहीां हो सकता है । इसशलए हमें इसके समाधान की बात करनी
चाशहए। क्योांशक शिस समस्या को हमने शचक्तित शकया है उसका समाधान भी हम स्वयां कर सकते है । िता मान समय
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में एक सामान्य व्यक्तक्त की यह अिधारर्ा बन गई है शक सरकार द्वारा सांचाशलत प्राथशमक शिद्यालय के शिद्याथी कभी
उन्नशत के उत्कर्ा पर नहीां पहँ च पाएां गे। इस भ्ाां शत को दू र करने के शलए हमें स्वयां शिम्मे दारी लेनी होगी। हमें एक
अच्छा नेतृत्वकताा बनना होगा। नेतृत्व करने का काया केिल शशक्षक का ही नहीां होना चाशहए बक्ति इसमें समाि
के सभी सदस्योां का सहयोग होना आिश्यक है । शबना इनकी सहायता के शशक्षा में गुर्ित्ता नहीां आ सकती है ।
शशक्षा केिल शिद्यालय तक ही सीशमत नहीां रहती है बक्ति यह समाि के प्रत्येक पहलू में शिधमान है (शाला सारथी,
2021)।
सन् 1937 में महात्मा गाां धी िी के द्वारा 'राष्ट्रीय शशक्षा योिना' प्रस्तुत की गयी थी शिसमें 7 से 14 िर्ा आयु
िगा के बच्ोां को कक्षा 1 से 8 तक की शशक्षा को शनशु ि एिां अशनिाया करने का प्रस्ताि रखा। गाां धी िी एिां उनके
साशथयोां ने इसके शलए मातृभार्ा एिां हस्तकौशल प्रधान पाठ्यचयाा तैयार शकया और इसका सांबांध िीिन से िोड़ा।
तभी से हमारे दे श में प्राथशमक शशक्षा से अथा कक्षा 1 से 8 तक की आधारभूत शशक्षा से शलया िाने लगा। आगे चलकर
इसे दो भागोां में शिभाशित शकया गया- शनम्न प्राथशमक शशक्षा और उच् प्राथशमक शशक्षा। हमारे सांशिधान की धारा-45
में यह घोर्र्ा की गई थी शक सांशिधान लागू होने के समय से 10 िर्ा की अिशध के अांदर 14 िर्ा तक के सभी बच्ोां
की अशनिाया एिां शनशुि शशक्षा के लक्ष् को प्राप्त शकया िाएगा। राष्ट्रीय शशक्षा नीशत-1986 के अनुसार भारतीय
शशक्षा की ितामान सांरचना 10+2+3 है और इसकी प्रथम 10 िर्ीय आधारभूत पाठ्यचयाा को तीन भागोां में शिभाशित
शकया गया है - कक्षा-1 से 5 तक प्राथशमक, कक्षा-6 से 8 तक उच् प्राथशमक, कक्षा-9 तथा 10 माध्यशमक और +2
अथाा त् कक्षा 11 तथा 12 को उच् माध्यशमक शशक्षा कहा गया है । स्पष्ट् है शक इस समय हमारे दे श में 6 से 14 आयु
िगा के बच्ोां की कक्षा-1 से 8 तक की शशक्षा प्राथशमक शशक्षा के अांतगात आती है (लाल, 2016)। निीन राष्ट्रीय शशक्षा
नीशत-2020 के अनुसार भारतीय शशक्षा की सांरचना 5+3+3+4 प्रस्ताशित की गई है । प्रथम 5 िर्ा की शशक्षा को
आधारभूत, 3 िर्ा प्रारां शभक चरर्, 3 िर्ा मध्य चरर् एिां 4 िर्ा माध्यशमक चरर् कहा गया है (राष्ट्रीय शशक्षा नीशत,
2020)।
भारतीय सांशिधान में 86िाां सांशोधन अशधशनयम- 2002 द्वारा अांत: स्थाशपत अनुच्छेद 21(क) को मौशलक
अशधकार के रूप में 6 से 14 िर्ा के आयु िगा समूह में सभी बच्ोां को मुफ्त और अशनिाया शशक्षा का प्रािधान करता
है (मौया एिां अन्य, 2017)। शन:शुि और अशनिाया बाल शशक्षा अशधकार (RTE) अशधशनयम- 2009 में बच्ोां के
अशधकार की बात करता है तथा इस अशधशनयम को 1 अप्रैल, 2010 को पूर्ा रूप से लागू शकया गया। इस अशधशनयम
को लागू करने का यह आशय था शक प्राथशमक शशक्षा में उन शिद्याशथायोां को शाशमल करना िो शशक्षा प्राप्त नहीां कर
पा रहे हैं या शशक्षा प्राप्त करने से िां शचत हो िाते हैं (भारत का रािपत्र, 2010)। ितामान समय में प्राथशमक शशक्षा की
गुर्ित्ता के शिकास के शलए अिरोध उत्पन्न करने में अने क समस्याएां शिम्मेदार हैं शिनमें से कुछ समस्याओां की
िाता है लेशकन इन शक्तक्त के शिकास के शलए केिल शशक्षक, पाठ्य-सामग्री, शियाकलापोां पर ही शनभा र नहीां रह
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सकते हैं इनके साथ शिद्यालय सांरचना पर भी ध्यान शदया िाना चाशहए। शिद्यालय सांरचना में शिद्याशथायोां के बैठने की
व्यिस्था, पीने के पानी, शौचालय की व्यिस्था, शिद्यालय की दीिार एिां छत का भी ध्यान रखना होता है । ितामान
समय में एक मध्यम पररिार का व्यक्तक्त अपने बच्ोां को सरकारी शिद्यालयोां में नहीां पढ़ाना चाहता है क्योांशक सरकारी
शिद्यालयोां की अिसांरचना बहत ही खराब क्तस्थशत में है । िहीां मध्यम से शनम्न स्तर के पररिारोां के पास केिल सरकारी
शिद्यालयोां का ही सहारा रहता है (पाल, 2019)।
2.कक्षा िें िच्चं की संख्या- कक्षा में शिद्याशथायोां की सांख्या भी प्राथशमक शशक्षा की एक बड़ी समस्या है िहाँ गैर-
सरकारी एिां सै शनक स्कूल में शिद्याशथायोां की सांख्या अशधक होती है तो एक ही कक्षा के शिद्याशथायोां को शिशभन्न िगों
में(कक्षा-1ए, 1बी, 1सी ) बाँ ट शदया िाता है तथा यहाँ शशक्षकोां की सां ख्या भी अशधक होती है शिससे शशक्षा की
गुर्ित्ता बनी रहती है िहीां सरकारी प्राथशमक शिद्यालयोां में एक ही कक्षा में कई कक्षा-िगा के शिद्याशथायोां को एक
साथ पढ़ाते हैं शिससे शशक्षक को शशक्षर् काया करते समय अनेक कशठनाई होती है इसका मुख्य कारर् शिद्यालय
में कक्षाओां एिां शशक्षकोां की कमी है । इसके साथ ही सरकारी शशक्षक को पढ़ाने के अलािा अनेक प्रकार के शिद्यालयी
एिां सरकारी कायों को भी करना पड़ता है (पाल, 2019)।
3.िाल श्रि- 2011 की िनगर्ना के आां कड़ोां के अनुसार भारत में बाल मिदू रोां की सांख्या 1.01 करोड़ है शिसमें
56 लाख लड़के और 45 लाख लड़शकयाां हैं । दु शनया भर में कुल शमलाकर 15.20 करोड़ बाल(6.4 करोड़ लड़शकयाां
और 8.8 करोड़ लड़के) मिदू र होने का अनुमान लगाया गया है अथाा त दु शनया भर में प्रत्येक 10 बच्ोां में से एक
बच्ा बाल मिदू र है । शपछले कुछ सालोां से बाल श्रशमकोां की दर में कमी आई है । इसके बाििूद बच्ोां को कुछ
कशठन कायों में भी लगाया िा रहा है - िैसे बांधुआ मिदू री और दे ह ि् यापार। भारत में शिशभन्न उद्योगोां में बाल
मिदू रोां को काम करते हए दे खा िा सकता है , िैसे ईांट भट्ोां पर काम करना, कपड़े तैयार करना, घरे लू कामकाि,
खान-पान सेिाएां (िैसे चाय की दु कान पर) खे तीबाड़ी, मछली पालन और खानोां में काम करना आशद। इसके अलािा
भी बच्ोां के शोर्र् होने का खतरा बना रहता है शिसमें यौन उत्पीड़न एिां चाइल्ि पोनोग्राफी शाशमल है । बाल
मिदू री और शोर्र् के अने क कारर् हैं शिनमें गरीबी, सामाशिक मापदां ि, शकशोरोां के शलए अच्छे काया करने के
अिसरोां की कमी आशद शाशमल है (यूशनसेफ, 2020)।
4.मिक्षा की गु णवत्ता- ितामान समय में शशक्षा की गुर्ित्ता एक बड़ी समस्या है तथा यह लगातार शगरती िा रही
है । इसका मुख्य कारर् शशक्षकोां की कमी से है । ग्रामीर् क्षेत्रोां में क्तस्थत प्राथशमक शिद्यालयोां में शशक्षकोां की कमी होती
है कहीां दो शशक्षक सम्पूर्ा शिद्यालय का सांचालन करता है तो कहीां एक ही शशक्षक, प्रधानाचाया एिां शशक्षक दोनोां की
भूशमका का शनिा हन करता है । इससे शिद्यालय सांचालन एिां अध्ययन-अध्यापन में कशठनाई होती है । एक तरफ
शशक्षक का काया एिां दू सरी तरफ शिद्यालय सांचालन का काया, शशक्षक के काया को कशठन बना दे ता है । शिससे
कर पा रही है । इसका कारर् पुरानी शिर्यिस्तु का प्रयोग करना है । इसमें शकसी तरह के बदलाि को अभी तक
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सुशनशित नहीां शकया गया है िो एक बड़ी समस्या है । इसके कारर् शिद्याथी पठन-पाठन में रुशच नहीां लेते हैं उिें
शकताबें बोझ स्वरूप लगती हैं िे शकताबोां के पन्नोां का प्रयोग केिल नाि ि अन्य खेल सामग्री बनाने में करते हैं (राष्ट्रीय
6.मवमर्- शकसी पाठ्यिस्तु को पढ़ाने के शलए शशक्षर् शिशध की आिश्यकता होती है । शशक्षर् शिशध पठन-पाठन की
प्रशिया को सरल बना दे ती है लेशकन प्राथशमक स्तर पर अभी भी पुरातन शशक्षर् शिशधयोां का प्रयोग शकया िा रहा
है । िो शशक्षर् प्रशिया को नीरस बना दे ती है शिससे शिद्याथी सीखने की प्रशिया में सशिय रूप से सहभाग नहीां कर
प्रश्न यह उठता है शक इन सभी समस्याओां का समाधान कैसे शकया िाए? क्या इन समस्याओां का समाधान करने की
शिम्मेदारी केिल सरकार की है या शशक्षक की? इन सब समस्याओां का समाधान करने के शलए हमे शशक्षा में निीन
निाचरोां का प्रयोग करना चाशहए। निाचार से आशय कम से कम खचा पर शिद्यालय में उपलब्ध सांसाधनोां का अशधक
से अशधक प्रयोग कर शशक्षा में गुर्ित्ता लाना है एिां शशक्षक-छात्र के मध्य सौहादा पूर्ा सांबांध स्थाशपत करना, शिद्याशथायोां
में रचनात्मकता का सृिन एिां शशक्षा को रुशचकर एिां सरल बनाकर शिद्याशथायोां को अशधगम के शलए प्रेररत करना
है । शशक्षा के क्षे त्र में कुछ निाचार िैसे- छात्र प्रोफाइल, खेल-खेल में शशक्षा, सामुदाशयक सहभाशगता, सरल अांग्रेिी
माध्यम, कान्सै प्ट मैशपांग एिां बाल सांसद आशद हैं । अब प्रश्न यह उठता है शक आक्तखर इन निाचरोां के माध्यम से इन
का सांचालन स्वयां करते हैं । इससे शिद्याशथायोां में शशक्षर् प्रशिया के प्रशत सशियता बनी रहती है एिां िह शकसी समस्या
का समाधान स्वयां करने में सक्षम होते हैं (अरशिदोां सोसाइटी, 2018)।
2. स्वाभाशिक रूप से शिद्याशथायोां का िीिन खेल कूद के शलए होता है । शिद्याशथायोां की गशतशिशधयाां उनके पररिे श
एिां रुशच पर शनभार करती हैं । लेशकन समय-समय पर हए शैशक्षक पररितानोां के कारर् ितामान शशक्षा प्रर्ाली
शिद्याशथायोां में अरुशच उत्पन्न कर दे ती है , साथ ही साथ यह भी दे खा िाता है शक िशटल शिर्योां के प्रशत शिद्याथी
उदासीन हो िाते हैं िैसे- गशर्त एिां शिज्ञान। यशद इन शिर्योां को खेल- खेल में पढ़ाया िाए तो िह इन शिर्य को
सरलता से सीख एिां आत्मसात कर सकते हैं । इससे शिद्याशथायोां की एकाग्रता में िृ क्ति होगी तथा खेल शिशध द्वारा
शशक्षर् प्रशिया रुशचकर एिां सरल बनेगी (अशिहोत्री एिां अन्य, 2014)।
3. शिद्याशथायोां की अरुशच एिां पाठ्यिस्तु को समझने की अक्षमता को दू र करने के शलए पाठयिम में निीनतम
दृशष्ट्कोर् को सक्तम्मशलत करने की आिश्यकता है । अशभनय शशक्षर् शिशध इस क्तस्थशत में महत्वपूर्ा भूशमका शनभा
सकती है । यह शिशध शिद्याशथायोां में शशक्षा के प्रशत रुशच उत्पन्न करती है । शिद्याथी इस प्रशिया में केिल शनक्तिय श्रोता
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ही नहीां होता है बक्ति िह शशक्षा प्रशिया में सशिय रूप से भाग लेता है िै से- गशर्त के पाठ के समय शिद्याशथायोां को
दो िगों(बालक एिां बाशलका) में बाँ ट कर बालकोां को सम सांख्या के िम में एिां बाशलकाओां को शिर्म सांख्या के
िम में बै ठाया िा सकता है । इससे शिद्याशथायोां को सांख्याओां का ज्ञान आसानी से कराया िा सकता है एिां शिर्यिस्तु
भूशमका शनभा सकते हैं । कलात्मक शिशधयोां में शाशमल शिद्याशथायोां की शिचार करने की क्षमता अन्य शिद्याथी की
अपेक्षा अशधक होती है । कलात्मक अशभरुशच में भाग लेने से शिद्याशथायोां के मक्तस्तष्क का शिकास तीव्र गशत से होता
है । इसमें अशभरुशच रखने िाले शिद्याथी शकसी समस्या का समाधान सरलता से कर लेते हैं । उनमें कई गुर्ोां(शिचारोां
का आदान-प्रदान, अनुशासन, आत्मसम्मान एिां व्यिस्थापन) का शिकास होता है । इससे शिद्याशथायोां के व्यक्तक्तत्व
का समग्र शिकास होता है । इसशलए यह आिश्यक है शक शिद्याशथायोां में शिशभन्न दक्षताओां के शिकास के शलए शिद्यालय
कमिोर होते हैं । इससे शिद्याशथायोां में आत्मशिश्वास उत्पन्न होता है । दै शनक बाल अखबार में शिद्यालय के शदन प्रशत
शदन की शियाओां का लेखा िोख तैयार शकया िाता है तथा सप्ताह या महीने के शकसी शदन शिद्याशथायोां द्वारा शशक्षक
एिां शिद्याशथायोां के समकक्ष प्रस्ततु शकया िाता है । इससे शिद्याशथायोां में अपने शिचारोां को अशभव्यक्त करने की क्षमता
का शिकास होता है (अरशिदोां सोसाइटी, 2018)।
6. प्राथशमक स्तर पर शिद्याथी कच्ी शमट्ी की तरह होता है तथा इस कच्ी शमट्ी को सुव्यिक्तस्थत स्वरूप प्रदान
करने का काया शशक्षक का होता है । शशक्षक के अथक प्रयास के द्वारा शिद्याशथायोां के भशिष्य का शनमाा र् होता है ।
अतः शशक्षक का यह उत्तरदाशयत्व बनता है शक िह शिद्याशथायोां को उनकी रुशच के अनुसार शशक्षा प्रदान करें । शिससे
शिद्याथी को भशिष्य शनमाा र् की रह शमल सके। यह काया केिल शिद्याथी के शलए ही नही बक्ति राष्ट्र के शनमाा र् के
शलए भी आिश्यक है । इससे शिद्याथी शशक्षा के महत्व को समझ सकेंगे तथा अपने लक्ष्ोां की प्राक्तप्त के शलए प्रेररत
से ग्रशसत होते हैं शक उनके अथक प्रयास के बाद भी शिद्याथी पाठ्यिस्तु को आत्मसात नहीां कर पाते। यह एक
सामान्य सी समस्या है लेशकन यशद शकसी पाठ्य को कहानी एिां शचत्रोां के माध्यम से पढ़ाया िाए तो शिद्याथी को
पढ़ने- सीखने में आनांद की अनुभूशत होगी। इसका एक अच्छा उदाहरर् हमारे बचपन में शमलता है िब हम लोग
चाचा चौधरी एिां नागराि की कॉशमक्स पढ़ते थे। इस कॉशमक्स में अक्षरोां के साथ-साथ शचत्रोां का भी समािे श था।
इसे पढ़ने पर यह सरलता से याद हो िाती थी तथा इसका स्मरर् लांबे समय तक रहता है , ऐसा क्योां? क्योांशक बच्े
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इसे पढ़ने के साथ-साथ उसमें शदये गए शचत्रोां को दे खते थे यह दो शियाएँ एक साथ हो रही हैं शिससे बच्े इसे
सरलता से समझ िाते हैं । इसशलए ितामान समय की पाठ्य-पुस्तकोां में शचत्रोां का प्रयोग शकया िाना चाशहए (अरशिदोां
सोसाइटी, 2018)।
8. ग्रामीर् पररिे श में शिद्यालय की व्यिस्था में सुधार है लेशकन इस सुधार के बाििूद ग्रामीर् पररिे श में सबसे बढ़ी
समस्या शिद्याशथायोां को शिद्यालय तक ले िाने की है । शिद्यालय में शिद्याशथायोां का नामाां कन करा शदया िाए तब भी
शिद्याशथायोां का शिद्यालय में अनु पक्तस्थत रहने की समस्या बनी रहती है । इसके अलािा अशभभािकोां के अशशशक्षत एिां
कम पढ़े -शलखे होने के कारर् िह शिद्यालय आने में लज्जा महसूस करते हैं । इस समस्या का समाधान सामुदाशयक
िागरूकता के माध्यम से शकया िा सकता है । इसशलए शिद्यालय में समय-समय पर िागरूकता सांबशधत कायािमोां
का आयोिन, अशभभािकोां का सम्मान एिां सरकार द्वारा चलाए िा रहे शिशभन्न कायािमोां की िानकारी अशभभािकोां
दे ना चाशहए। शिससे शिद्यालय एिां समुदाय की खाां ई को समाप्त शकया िा सके।
9. शिद्यालयोां में बहत सी ऐसी शिर्यिस्तु होती है शिसे आसानी से याद नहीां शकया िा सकता है िैसे- शिज्ञान। इसे
पढ़ने के शलए कान्सैप्ट मैशपांक का प्रयोग शकया िा सकता है । कान्सैप्ट मैशपांक का अथा शिसमें मु ख्य या साां केशतक
शब्ोां के माध्यम से िै चाररक आरे ख शचशत्रत शकया िाता है । यह शिद्याशथायोां के शलए श्रेष्ट्तम शिशध है (शबशबाली, 2006)।
प्राथशमक शशक्षा में उपयुाक्त समस्याओां के समाधान के शलए सरकार द्वारा कई उपयुक्त कदम उठाए गए हैं लेशकन
इन समस्याओां के समाधान के शलए हम केिल सरकार के द्वारा शकए िा रहे काया पर ही हम शनभार नहीां रह सकते
हैं इसके शलए हमे स्वयां भी प्रयास करना होगा। अब प्रत्ये क व्यक्तक्त का यह प्रश्न हो सकता है शक इन समस्याओां के
समाधान के शलए हम क्या कर सकते हैं ? अशभभािक के द्वारा सप्ताह में केिल एक शदन शिद्यालय िाकर शिद्यालय
का शनरीक्षर् शकया िा सकता है । इसकी सहायता से शिद्यालय की यथा क्तस्थशत पता चलेगी। इसके साथ ही प्रशतशदन
1 से 2 घण्टे अपने बच्ोां की पढ़ाई पर ध्यान दे कर उनकी समस्याओां की पहचान कर उसका समाधान शशक्षकोां के
माध्यम से शकया िा सकता है एिां इसके माध्यम से सामूशहक सहभाशगता का शिकास होता है । प्राथशमक स्तर पर
सांचाशलत निाचारोां के माध्यम से बालकोां में सहयोग, आत्मसांयम, आत्मशनभारता, सद् -भािना, सहानुभूशत, दू सरोां के
प्रशत प्रेम एिां आदर की भािना, शनःस्वाथापरकता एिां अनु शासन आशद गु र्ोां का शिकास होता है । शनष्कर्ा: शिद्यालय
में सामूशहक िीिन की सािाा शधक महत्वपूर्ा शिशेर्ता बालकोां के द्वारा स्वयां को शिद्यालय का अशभन्न अांग समझने,
शिद्यालय के कायों एिां उद्दे श्योां के साथ अपने कायों एिां उद्दे श्य का समन्वय, सहयोग एिां सहानुभूशतपूर्ा व्यिहार
करने के शलए पररलशक्षत होता है (गुप्ता एिां अन्य, 2014)
संदर्ष
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