You are on page 1of 7

Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language,

Online ISSN 2348-3083, SJ IMPACT FACTOR 2019: 6.251, www.srjis.com


PEER REVIEWED & REFEREED JOURNAL, DEC-JAN, 2021, VOL-9/43

कार्ट ून(चलचचत्र) एवं बाल केन्द्रित चिक्षा

हर्षवर्षन

शोध छात्र, शशक्षा शिभाग (शशक्षा शिद्यापीठ), महात्मा गाांधी अां तरराष्ट्रीय शहन्दी शिश्वशिद्यालय, िधाा , Email-
harsh20692@gmail.com

Abstract

प्रस्तुत शोध पत्र समीक्षात्मक शोध साशहत्य पर आधाररत है शिसका उद्दे श्य अशधगम, सां स्कृशत, पयाािरण एिां
िल सां रक्षण के प्रशत िागरुकता में कार्ट ा न(चलशचत्र) की भट शमका को िानना है। शनष्कर्ा में यह पता चला शक
शशक्षा प्रशिया में कार्ट ा न(चलशचत्र) का प्रयोग अशधगम प्रशिया को सरलता प्रदान करता है। इसके माध्यम से
शिद्याशथायोां का सिाांगीण शिकास शकया िा सकता है। अतः कहा िा सकता है शक कार्ट ा न(चलशचत्र) शशक्षा
प्रदान करने का सरलतम माध्यम है। इसके द्वारा शिद्याशथायोां को शिर्यिस्तु सरलता से समझाया िा सकता
है। िबशक प्रत्येक पाठ्य-सामाग्री के शलए कार्ट ा न(चलशचत्र) शनमााण करना अिश्य ही कशठन एिां समय साध्य
काया है लेशकन शशक्षक के प्रयास से यह काया सम्भि हो सकता है।
मु ख्य बिन्दु - कार्ट ा न(चलशचत्र),बाल केन्द्रित शशक्षा, अशधगम प्रशिया

Scholarly Research Journal's is licensed Based on a work at www.srjis.com

प्रस्तावना

चिक्षा एक समुि की भााँचत हैं , न्द्िसमें ज्ञान, उचचत आचरण, तकनीकी दक्षता और ववद्या प्राचि आदद समाववष्ट

हैं । इस प्रकार यह कौिलों, व्यापारों या व्यवसायों एवं मानचसक, नैचतक और सौंदयूववषयक के उत्कषू पर

केन्द्रित है । चिक्षा के माध्यम से एक पीढ़ी द्वारा चनचमूत ज्ञान को दस


ट री पीढ़ी में हस्तांतररत दकया िाता है । इस

ववचार से चिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है , िो व्यवि वविेष को समाि से िोड़ने में महत्वपटणू

भटचमका चनभाती है तथा समाि की संस्कृ चत की चनरं तरता को बनाए रखती है (लाल,एन.डी.)। ववद्याथी चिक्षा

द्वारा समाि के आधारभटत चनयमों, व्यवस्थाओं, समाि के प्रचतमानों एवं मटल्यों को सीखता है । ववद्याथी समाि

से तभी िुड़ पाता है िब वह उस समाि वविेष के इचतहास से अचभमुख होता है । चिक्षा व्यवि की अंतचनूदहत

क्षमता तथा व्यवित्व का ववकास करने वाली प्रदिया है । यह प्रदिया उसे समाि में एक वयस्क की भटचमका

चनभाने के चलए समािीकृ त करती है तथा समाि का सदस्य एवं एक न्द्िम्मेदार नागररक बनने के चलए व्यवि

को आवश्यक ज्ञान तथा कौिल उपलब्ध कराती है (चमश्रा, 2013)। व्यापक रूप में चिक्षा दकसी समाि में

Copyright © 2021, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language
हर्ािधा न
(Pg. 10785-10791) 10786

चनररतर चलने वाली उद्दे श्यपटणू सामान्द्िक प्रदिया है न्द्िसके द्वारा मनुष्य की िरमिात िवियों का ववकास,

ज्ञान, कौिल में वृवि एवं व्यवहार में पररवतून दकया िाता है । चिक्षा की सहायता से मानव को सभ्य,

सुसंस्कृ त एवं योग्य नागररक बनाया िाता है । मानव चनररतर नए-नए अनुभव प्राि करता है न्द्िससे उसका

ददन-प्रचतददन का व्यवहार प्रभाववत होता है । यह सीखना-चसखाना ववचभरन समटहों, उत्सवों, पत्र-पवत्रकाओं,

रे दडयों र्े लीवविन आदद से अनौपचाररक रूप से होता है । यह सीखना-चसखाना चिक्षा के ववस्तृत रूप में आते

हैं (मालवीय, 2012)।

प्राचीन काल में चिक्षा का उद्दे श्य केवल बालक को ज्ञान कंठस्थ कराना होता था। वह चिक्षा ववद्याचथूयों

के मन्द्स्तष्क में कुछ िानकाररयााँ भर दे ती थी(पाण्डे य, 2013)। लेदकन आधुचनक चिक्षा में बालक को केरि में

रखकर प्रत्येक कायू–योिना बनाई िाती है । वतूमान समय में बालक के सवाूगींण ववकास पर बल ददया िाता

है । बालक के सवाांगीण ववकास में बच्चे का िारीररक, मानचसक, सामान्द्िक, एवं संवेगात्मक ववकास आदद

सभी पक्ष िाचमल होते हैं । अतः अध्यापकों के चलए ‘चिक्षा मनोववज्ञान’ को िानना अत्यंत आवश्यक हो िाता

है , क्योंदक वबना मनोववज्ञान की िानकारी के अध्यापक बालक को न तो समझ पाएगा और न ही उसके

ववकास में योगदान दे पाएगा। इस प्रकार बाल मनोववज्ञान को समझते हुए बालकों के चलए चिक्षा की व्यवस्था

करने की आधुचनक व्यवस्था को बाल केंदित चिक्षा कहा िाता है (गुिा, 2017)। आधुचनक चिक्षा पिचत बाल

केंदित है । आि यदद हम चनिी ववद्यालय की बात करें तो पाते हैं दक ववद्याचथूयों के अनुसार चिक्षकों की चनयुि

दकया िाता है अथाूत ् िो अध्यापक ववद्याचथूयों को उचचत पिचतयों का प्रयोग करके चिक्षा प्रदान करता है

बालक उरहीं अध्यापको को पसंद करते हैं । इस व्यवस्था में प्रत्येक ववद्याथी पर ध्यान दे ने का प्रयास दकया

िाता है । वपछड़े और मंद बुवि वाले बालकों को चसखाने के चलए अलग-अलग पाठ्यिम की व्यवस्था की गई

है । व्यवहाररक मनोववज्ञान में ववद्याचथूयों की परस्पर चभरनताओं पर प्रकाि डाला गया है , न्द्िससे यह संभव हो

पाया है दक चिक्षक प्रत्येक ववद्याथी की वविेषताओं पर ध्यान दें व चिक्षा प्रदान करने के चलए उचचत प्रयास

करें (राष्ट्रीय पाठ्यचयाू की रूपरे खा, 2005)(मलु एवं मैकनेल, 2017)।

वतूमान चिक्षकों को केवल चिक्षा पिचत के बारे में ही नहीं बन्द्ल्क ववद्याचथूयों के बारे में भी िानना होता है

क्योंदक आधुचनक चिक्षा, ववषय प्रधान या अध्यापक प्रधान न होकर बाल प्रधान अथवा बाल केंदित है । यहााँ

Copyright © 2021, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language
हर्ािधा न
(Pg. 10785-10791) 10787

मुख्य ववषय यह है दक बालक के व्यवित्व का कहां तक ववकास हुआ है ? इसचलए हमें चिक्षा मनोववज्ञान का

ज्ञान होना अचत आवश्यक होता है (सोनी, 2015)।

बाल केन्द्रित चिक्षा की वविेषताएाँ

1. बाल केन्द्रित चिक्षा का केंि वबंद ु बालक होता है ।

2. इसके अंतगूत ववद्याचथूयों की रुचचयों, क्षमताओं तथा प्रवृवियों को ध्यान में रखते हुए चिक्षा प्रदान की

िाती है ।

3. वतूमान में सवाांगीण ववकास पर ध्यान ददया िाता है , न्द्िसके चलए मनोववज्ञान की महत्वपटणू भटचमका

होती है ।

4. ववद्याचथूयों के मन की न्द्स्थचत को समझते हुए उनके चलए चिक्षा की व्यवस्था करना ही बाल केन्द्रित

चिक्षा कहलाती है ।

5. बाल केन्द्रित चिक्षा में बालक पर व्यविगत रूप से ध्यान ददया िाता है इसचलए वपछड़े , मंद बुवि तथा

प्रचतभािाली बालकों के चलए चिक्षा का वविेष पाठ्यिम तैयार करने का प्रयास दकया िाता

है (मालवीय, 2018)।

6. चिक्षक को केवल चिक्षा पिचत के बारे में ही नहीं, बन्द्ल्क चिक्षाथी के बारे में भी िानना आवश्यक होता

है ।

7. चिक्षण से ही चिक्षक की समस्या का समाधान नहीं हो िाता है , उसके द्वारा बालकों के ज्ञान एवं

ववकास का मटल्यांकन भी करना आवश्यक होता है (राष्ट्रीय पाठ्यचयाू की रूपरे खा, 2005)।

कार्ट ून(चलचचत्र) का अथू है कोई भी हास्य या मनोरं िक चलचचत्र। कार्ट ून(चलचचत्र) द़िल्म एक चलचचत्र

चसनेमा या उसका दहस्सा होता है िो ववचभरन प्रकार के चलचचत्रों को एक साथ ़िोर्ोग्रा़िी करके बनाया िाता

है । प्रत्येक चचत्र अपने वपछले वाले चचत्र से थोड़ा अलग हरकत या चल-चचवत्रत करता है , िब उनको इसी तरह

लगातार प्रोिेक्र् के माध्यम से प्रस्तुत दकया िाता है , तो वे हमारी आाँखों को चलते-दिरते निर आते हैं ।

कार्ट ून द़िल्में मनोरं िन का अच्छा साधन हैं (खास तौर पर बच्चों के चलये)। कुछ र्ीवी चैनल चस़िू कार्ट ूनों के

चलये ही बने होते हैं (ववदकपीदडया) (मलु एवं मैकनेल, 2017)।

Copyright © 2021, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language
हर्ािधा न
(Pg. 10785-10791) 10788

कार्ट ून(चलचचत्र) का चिक्षा में योगदान

1. अच्छी आदतें- कार्ट ून(चलचचत्र) के माध्यम से ववद्याचथूयों को अनेक अच्छी आदतों के बारे में चसखाया

िाता है , लेदकन ववद्याथी अपने पसंदीदा कार्ट ून(चलचचत्र) दकरदारों को दे ख कर िल्दी सीखते हैं क्योंदक

वे उनसे मानचसक रूप से िुड़े होते हैं तथा कार्ट ून(चलचचत्र) बालकों को मानचसक रूप से बहुत ही

प्रभाववत करते हैं । वे उस गंभीरता से पुस्तकों का अध्ययन नहीं करते, न्द्िस गंभीरता से अपने

पसंदीदा दकरदार का अनुपालन करते हैं और िल्दी सीखते हैं (रुल एवं स्नाइडर, 2009)।

2. सहानुभटचत - आमतौर पर बालकों में भावनाओं का ववकास करना एक बहुत ही मुन्द्श्कल प्रदिया है

क्योंदक बालक का मन वबल्कुल साि होता है । न्द्िसमें दकसी भी प्रकार की भावनाओं को गढ़ा िा

सकता है इसचलए कहा िा सकता है दक कार्ट ून(चलचचत्र) एक ऐसा साधन है न्द्िससे बालकों में अनेक

प्रकार की भावनाओं का ववकास दकया िा सकता है (उदा॰-चमत्रता, सहानुभटचत, द:ु ख, खुिी आदद

)(बेमबेनुट्र्ी, 2009)।

3. बहु इन्द्रिय चिक्षण- कक्षा के वातावरण में ववद्याथी पठन-पाठन करते समय सुनता है तथा उसे ग्रहण

करने का प्रयास करता है इस दिया में वह केवल एक इं िीय का ही प्रयोग करता है न्द्िससे वह चिक्षा

ग्रहण करते समय कुछ समय के चलए ही सदिय रहता है एवं उसके बाद चनन्द्ष्िय हो िाता है । उसे

अचधगम के समय चनरं तर सदिय रखने के चलए कार्ट ून(चलचचत्र) सहायक हो सकते हैं इसमें ववद्याथी

केवल सुनता ही नहीं बन्द्ल्क वह उसे दे खता भी है , यही कारण है दक वह दकसी भी चीि को आसानी से

सीख सकता है तथा इससे चिक्षक का कायू भी आसान हो िाता है । कार्ट ून(चलचचत्र) के माध्यम से

कम समय में अचधक िानकारी ववद्याथी तक आसानी से पहंु चा सकते हैं (बेमबेनुट्र्ी, 2009)।

4. व्यविगत चभरनता- प्रत्येक ववद्याथी आपस में चभरन-चभरन होते हैं , वह चाहे िारीररक चभरनता हो या

मानचसक। इसी तरह उनकी सीखने की गचत भी चभरन-चभरन होती है इसचलए प्रत्येक ववद्याथी की

क्षमता के अनुसार चिक्षण कायू दकया िाना चादहए। कार्ट ून(चलचचत्र) के माध्यम से दकसी भी

ववषयवस्तु को आसानी से चसखाया िा सकता है और ववद्याथी को पटरा मौका चमलता है दक वह अपनी

क्षमता के अनुसार अचधगम कर सके(गिटर एवं िीलना, 2013)।

Copyright © 2021, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language
हर्ािधा न
(Pg. 10785-10791) 10789

5. अनुकरण- बाल्यावस्था में ववद्याचथूयों का अचधगम अचधकतर अनुकरण के द्वारा होता है । ववद्याथी घर

में अपने माता-वपता का अनुकरण करते हैं । बाचलका अपनी मां की तरह तथा पुत्र अपने वपता के

समान बनने का प्रयास करते हैं (पाण्डे य, 2019)। इस तरह कार्ट ून(चलचचत्र) के कुछ दकरदार होते हैं

और उनमें बालक के िो वप्रय दकरदार होते हैं वे उसे अपना आदिू मानते हैं तथा उसी दकरदार की तरह

बनने का प्रयास करते हैं यहां पर बालक अपने पसंदीदा दकरदारों की सभी आदतों एवं सीख को ध्यान

से केवल सुनता ही नहीं बन्द्ल्क अपने चररत्र में आत्मसात करने का प्रयास भी करते हैं (मलु एवं

मैकनेल, 2017)।

6. मनोरं िन- कार्ट ून(चलचचत्र) एक ऐसा माध्यम है न्द्िसके द्वारा ववद्याचथूयों के मन्द्स्तष्क पर पड़े रहे

दबाव को कम दकया िा सकता है । वतूमान समय में चिक्षा का मुख्य उद्दे श्य बालक का सवाांगीण

ववकास करना है , लेदकन इस उद्दे श्य की प्राचि न्द्िस माध्यम से की िा रही है उसमें इस बात पर ध्यान

नहीं ददया िाता है दक बालक के मानचसक स्तर पर क्या प्रभाव पड़ता है ? क्या वह पाठ्यवस्तु बालक

के चलए रुचचकर है ? क्या वह उस पाठ्यवस्तु को सीखने के चलए उत्सादहत है ? इन सभी चीिों को

ध्यान में रखते हुए पाठ्यवस्तु का चनमाूण इस तरह दकया िाए न्द्िससे बालक सीखने में रुचच ले सके

तथा उसका मनोरं िन भी हो सके(ओरे न एवं अरय, 2014)।

7. संस्कृ चत- संस्कृ चत दकसी सभ्यता की आत्मा होती है । भारतीय संस्कृ चत अत्यंत प्राचीन है लेदकन

वतूमान समय में भारतीय संस्कृ चत का लोप होता िा रहा है । इस लोप को रोकने के चलए हमें अपनी

संस्कृ चत की ओर वापस लौर्ना होगा(चमश्रा, 2013)। इसके चलए कार्ट ून(चलचचत्र) एक बेहतरीन

माध्यम हो सकता है वतूमान समय में ववचभरन सांस्कृ चतक दिया-कलापों को चलचचत्र के माध्यम से

प्रस्तुत दकया िा सकता है न्द्िससे ववद्याथी इसे सरलता से समझ सके तथा अपने व्यवहार में

आत्मसात कर सके। इसी तरह से हम अपनी संस्कृ चत को आगे हस्तांतररत कर सकेंगे(ओरे न एवं

अरय, 2014)।

Copyright © 2021, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language
हर्ािधा न
(Pg. 10785-10791) 10790

8. संकल्पना चनमाूण(Concept Mapping)- चलचचत्र के माध्यम से ववद्याचथूयों में दकसी ज्ञान के प्रचत

संकल्पना चनमाूण करने मे सहायता चमलती है तथा इसके द्वारा वे ज्ञान को सरलता से समझ सकते है

एवं उस ज्ञान का अपने दै चनक िीवन में प्रयोग कर सकते है (इं गेक, 2008)।

इसी तरह समस्या समाधान, अपसारी चचंतन,ववज्ञान चिक्षण, पयाूवरण चिक्षा, िल संरक्षण के प्रचत

िागरूकता के चलए भी कार्ट ून(चलचचत्र) कािी सहायक एवं प्रभावपटणू है । कार्ट ून(चलचचत्र) को केवल

मनोरं िन के चलए ही नहीं बन्द्ल्क इसके माध्यम से सुचिन्द्क्षत नागररकों का चनमाूण एवं अध्ययन-

अध्यापन करते समय ववद्याचथूयों को पाठ्य-सामग्री के प्रचत संकल्पना चनमाूण(Concept Mapping) में

भी सहायता चमलती है , न्द्िससे ववद्याथी उस पाठ्य-सामग्री को सरलता-पटवूक सीख एवं समझ पाते हैं ।

स्पष्ट है दक चिक्षा प्रदिया में कार्ट ून(चलचचत्र) का प्रयोग अचधगम प्रदिया को सरलता प्रदान करता है ।

इसके माध्यम से ववद्याचथूयों का सवाांगीण ववकास दकया िा सकता है । अतः कहा िा सकता है दक

कार्ट ून(चलचचत्र), चिक्षा प्रदान करने का सरलतम माध्यम है । इसके द्वारा ववद्याचथूयों को दकसी ववषय वस्तु

को सरलता से समझाया िा सकता है । प्रत्येक पाठ्य-सामग्री के चलए कार्ट ून(चलचचत्र) का चनमाूण करना

अवश्य ही कदठन एवं समय साध्य कायू है लेदकन चिक्षक के प्रयास द्वारा यह कायू सम्भव हो सकता है

(न्द्स्मथ एवं अरय, 2015)(र्ोलेडो एवं अरय, 2014)(रबानी एवं अरय, 2017)।

संदभू ग्रंथ

लाल, आर. एल. (एन. डी). भारतीय शशक्षा का शिकास एिां समस्याएँ . रस्तोगी पन्द्रिकेशन. Pp.395-433।
मालिीय, आर. (2012). शशक्षा के मट ल शसद्धान्त. शारदा पुस्तक भिन.Pp.1-27।
गुप्ता, एस. पी. (2017). उच्चतर शशक्षा मनोशिज्ञान. शारदा पुस्तक भिन.Pp.28-39।
शमश्रा, उ. (2013). शशक्षा का समािशास्त्र. न्यट कैलाश प्रकाशन.प्रयागराि.Pp.1-10।
पाण्डे य, आर. (2013). प्राचीन भारत के मनीर्ी. शारदा पुस्तक भिन.Pp.1-5।
राष्ट्रीय पाठ्यचयाा की रूपरे खा. (2005). राष्ट्रीय शैशक्षक अनुसांधान एिां प्रशशक्षण पररर्द.Pp.15-18।
सोनी, आर. (2015). थीम बेस्ड अशला चाइल्डहूड़ केयर एां ड एिुकेशन प्रोग्राम. राष्ट्रीय शैशक्षक अनुसांधान एिां
प्रशशक्षण पररर्द.Pp.251-253।
कार्ट ा न(चलशचत्र)
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4
%9F%E0%A5%82%E0%A4%A8
इां गेक, एस.के. (2008). यटस ऑफ कान्सैप्ट कार्ट ा न्स एस एन असे समें र् र्ट ल इन शिशिक्स एिुकेशन. यट०एस०-
चाइना एिुकेशन ररशियट, 5 (11).Pp.47-54।

Copyright © 2021, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language
हर्ािधा न
(Pg. 10785-10791) 10791

रूल, ए. सी., एिां स्नाइडर, िे.एस. (2009). िेयशर्ां ग, एिलुयशर्ां ग एां ड इम्प्रोशिांग हुमोरस कार्ट ा न्स रे लेर्ेड र्ट
शडिाइन शप्रशसपल्स फॉर शगफेर्े ड एिुकेशनल प्रोग्राम्स (ED504253). एररक.Pp.1-15।
बेमबेनुट्टी, एच. (2009). र्ीचसा ’ से ल्फ रे ग्यु लेशन: युशसां ग कार्ट ा न्स र्ट ररफ्लैक्ट र्ीचसा क्लासरूम मै नेिमें र्
न्द्रस्कल्स, से ल्फ-ऐशफकैसी एां ड स्टट डें र््स’ अकैडशमक डे लेय ऑफ
ग्राशर्शफकेशन(ED509458).एररक.Pp.1-15।
गफटर, के.ए., एिां शीलना, िी. (2013). रोल ऑफ कान्सैप्ट कार्ट ा न्स इन कैशमन्द्रस्टर
लशनांग(ED545358).एररक.Pp.1-9।
ओरे न, एफ. एस., एिां मे ररक, िी. (2014). से िेन्थ ग्रेड स्टट डें र््स’ प्रसे प्शन्स ऑफ युशसां ग कान्सैप्ट कार्ट ा न्स इन
साइन्स एां ड र्े क्नालिी कोसा (ED548762).एररक.Pp.121-137।
मलु, के.एफ., एिां मै कनेल, के. (2017). शिएशर्ां ग कार्ट ा न्स: ए लरनर-सें र्डा अप्रोच र्ु कोांपरहनशदां ग
कौशप्रहन्द्रजिग र्े क्स्टस (EJ1147115). एररक.Pp.28-31।
न्द्रिथ, एल. एल., क्लौसे न, सी. के., र्े सके, िे. के., घायर्ा द, एम., ग्रे, पी., कुहन, एम. के., सु शबया, एस.
ए., िाइने, एम.ए., एिां रूल, ए. सी., (2015). िेयशर्ां ग कार्ट ा न्स र्ट प्रमोर् लीडरशशपस न्द्रस्कल्स एां ड
एक्सप्लोर लीडरशशप क्वाशलर्ीस(ED560854).एररक.Pp.1-10।
र्ोलेडो, एम.ए., याांगको, आर.र्ी एिां एन्द्रिनोिा, ए.ए.(2014). मीशडया कार्ट ा न्स: इफैक्टस ऑन इशट
रे सोल्यटशन इन एनिायरनमें र्ल एिुकेशन(EJ1060551). एररक.Pp.19-51।
रबानी, ए.एच.ए., एिां अमृ , ई.एच. (2017). द इफैक्ट ऑफ युशसां ग कार्ट ा न्स ऑन डे िेलशपांग ओमनी ग्रेड 4
स्टट डें र््स अिेयरनेस्स ऑफ िॉर्र इशटस एां ड दीयर एट्टीर्ु डेस र्ट िड्ा स युशसां ग डै म इन र्ीशचांग सोशल
स्टडीस(EJ1141986). एररक.Pp.35-46।

Copyright © 2021, Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language

You might also like