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Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies,

Online ISSN 2278-8808, SJIF 2021 = 7.380, www.srjis.com


PEER REVIEWED & REFEREED JOURNAL, SEPT-OCT, 2021, VOL- 9/67

मर्यादय पु रुषोत्तम श्री रयम के अनन्य सखय: वयनररयज सुग्रीव

सुमन लतय ससिंह, Ph. D.


असिस्टे न्ट प्रोफेिर, बी0एड0 सिभाग, खु नखु न जी गर्ल्स पी0जी0 कॉलेज, लखनऊ
Email: singhlatasuman@gmail.com

Paper Received On: 21 OCT 2021


Peer Reviewed On: 31 OCT 2021
Published On: 1 NOV 2021

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आसि कसि िाल्मीसक रसित ‘रामायण’ श्री रामिररत पर आधाररत सिश्व का प्रथम महाकाव्य है । त्रै लोक्य पीड़क
रािण के िंरक्षण में पल्लसित फसलत राक्षिी िृसियों का िमूल नाशकर मानिीय मू ल्ों की स्थापना, लोकरञ्जक
श्री राम व्रत धारण कर िुके राघिेन्द्र, िानुज लक्ष्मण िसहत श्रीराम का िमु द्र िे ितुसिस क सघरी लं कानगरी पर
आक्रमण का तात्कासलक कारण रािण द्वारा महािे िी िीता का हरण था। सबना िानरराज िुग्रीि की िहायता के
न तो िीता-अनु िंधान िम्भि था, न ही िमु द्र पर िेतु बााँ ध िानरों की सिशाल िसहत रािण की पूरी तरह िुरसक्षत
लं कापुरी पर आक्रमण ही। मानिीय मू ल्ों के िंरक्षक तथा िम्वाहक श्री राम ने रािणोन्मू लन में िानरराज के
िहयोग के प्रसत कृतज्ञता का ज्ञापन बार-बार सकया है सिस्तार भय िे समत्रता की पृष्ठभू सम का उल्ले ख करना
आिश्यक नहीं प्रतीत हो रहा है । इि आलेख का िणसन सिषय िानरे न्द्र िुग्रीि की लं का के महािमर में प्रिसशस त
शौयसगाथा और रण िातुर्य्स का रे खां कन मात्र है ।
सिशु द्ध ऐसतहासिक दृसि िे सििार करने पर यह भलीभााँ सत सिसित होता है सक उि िमय भारतीय
प्रायद्वीप में तीन राजशक्तियााँ सिशे ष महत्त्वपूणस थीं- उिारिती भू भाग में इक्ष्वाकुिंशीय आयसशक्ति का पुरोधा जहााँ
अयोध्या का राजिंश था, िहीं िुिूर िसक्षण में िमु द्र में क्तस्थत लं का को केन्द्र बना रािण के िंरक्षण और ने तृत्व में
राक्षिी शक्ति त्रे ल्ोक्यपीड़क की सिश्वसिश्रु त कुख्यासत का ध्वजबाहक बनी थी। िोनों के मध्यिती घोर
िनाच्छासित भू -भाग में गीध, नाग और िानर िंज्ञक मानििमू हों का शािन था, सजनमें बासलन् के ने तृत्व में रािण
का मानमिस न कर िानरीशक्ति अपनी श्रे ष्ठता और िैन्यशक्ति का प्रमाण िे िुकी थी। सकन्तु िनप्रान्तर एिं पिसत
श्रे सणयों के मध्य भािासित िानरशक्ति सिस्तारिाि िे ििसथा िू र अपने स्थानीय िंिाधनों पर आसश्रत रहकर फल-
फूल रही थी। अयोध्या जै िी भव्यपुरी के यशस्वी राजकुमार लक्ष्मण तक िानरों की प्रमु ख राजधानी सकक्तिन्धापुरी
की िास्तु कला और िैभि को िे खकर आश्चयसिसकत रह गये थे । तारा की सिलक्षण तासकसक प्रसतभा िे असभभू त
रामानुज को िुग्रीि के िच्चे पश्चातपूणस मनोभािों ने पूणसतया शां तसिि बना सिया था। िुग्रीि की उपेक्षा के

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कोपाकुल सकक्तिन्धा पधारे लक्ष्मण िानरराज िुग्रीि की िहायता के प्रसत पूणसतया आश्वस्त और िंतुि हो अपने
आिरणीय अग्रज श्रीराम के पाि लौटे थे।
िे िी िीता के अन्वे षण के सनसमि िानर प्रमुखों को ितुसिस क भे जते िमय कसपराज िुग्रीि ने भू मण्डल के
प्रमु ख स्थानों का जो िजीि और यथाथस सििरण प्रस्तु त सकया था, उििे तो स्वयं श्री राम प्रभु भी सिस्मय िे भर उठे
थे 1 । श्री राघि द्वारा पूछे जाने पर ‘हररपुंगि’ (श्रे ष्ठ िानर पुरुष) ने स्पि सकया था सक अपने अग्रज बासल द्वारा िे श
िे सनिासित होने के पश्चात् इन स्थानों का स्वयं भ्रमण सकया था।2
आसिकसि के अनु िार िूयसपुत्र के रूप में प्रख्यात् िुग्रीि तथा उनके महाप्रतापी अग्रज के सपता का नाम
ऋक्षरजि् बताया है । ऋक्षराजा की मृ त्यु के उपरान्त िानर िसििों ने बाली को राजा तथा िुग्रीि को युिराज के
पि पर असभसषि सकया था।3 महाभारत इनकों िूयसपुत्र कहता है ।4 पुराण बाली और िुग्रीि को सकक्तिन्धा
नगरी के िुसिख्यात् िानरराज महे न्द्र एिं उनकी पत्नी ऋक्षरजा का पुत्र बताते हैं ।5 यही नहीं प्रिसलत मान्यता में
एक की िृक्तद्ध करते हुए, पद्मपुराण के पातालखण्ड में िुग्रीि की तीिरी पत्नी का नाम मोहना कहा गया है ।
िीता जी के िफल अन्वे षण के पश्चात् हनु मान जी ने िे िी जानी को िूसित करते हुए बताया था सक
करोड़ों िानरों के परमप्रतापी राजा िुग्रीि, सजनका मैं िसिि हाँ , के बल पर श्रीराम रािण का िध कर उनका
उद्धार करे गें6 । लं का के महािागर के प्रारम्भ िे पूिस आयोसजत िसििों की िभा में लं कािहन के िमय पिनपुत्र
के शौयस िे पररसित हो िुकी राजिभा को िम्बोसधत करते हुए लं केश के िसिि िज्रिं िर ने िुग्रीि के बल की
प्रशं िा करते हुए, शौय और पराक्रम की दृसि िे श्री राम श्री लक्ष्मण के बाि िानरीश्वर िुग्रीि का ही नामोल्लेख
सकया था।7 आक्रमणकारी िुसिशाल िानर िेना के सलये िमु द्र तट पर िरलतापूिसक खाद्य िामग्री एिं पानी की
उपलबता के आधार पर स्थान का ियन कर िानरे न्द्र िुग्रीि ने अपने -अपने राजनीसतक कौशल का पररिय सिया
था।8
रािण के गुप्तिर प्रमु ख शु क द्वारा सजन िानर ‘यूथयूथपों’ तथा ‘यूथापसियों’ का उल्लेख सकया गया है
उनमें ‘हररपुंगि िुग्रीि, युिराज अंगि, जाम्बिान, नल और नील जै िे अन्तरं ग िसििों के असतररि श्वे त, कुमु ि,
िण्ड, रम्भ, शरभ, पनि, सिनत, क्रोधन, गिय, हर, धूम्र, िम्भ, िंनािन, क्रथन, प्रमाथी, गिाक्ष, केिरी तथा
शतबसल के नाम उल्लेखनीय हैं ।9 आयु की दृसि िे िानरों के ‘सपतामह’ के रूप में िुख्यात् िंनािन के पश्चात्
क्रमशः धूम्राक्ष, जाम्बिान तथा केिरी नामक तीनों भाईयों का स्थान है। मानिीय मयास िाओं के मू सतसमान स्वरूप
प्रभु श्री राम ने अपने राजयासभषे क के उपरान्त असतसथयों की सबिाई के िमय इन िभी को प्रथम असभिािन के
िाथ ित्कृत कर, मानििमाज को ियोिृद्धजनों के प्रसत हासिस क िािसजसनक िम्मान का उिाहरण प्रस्तु त सकया
था।10 भू मण्डल के िमस्त िानर िंशीय मानिों के ििसमान्य स्वामी या असधपसत थे रूपीश्वर िुग्रीि। अधोसलक्तखत
पंक्तियों में श्री राम प्रभु के अनन्य िखा इि परमिीर के लंका के महािमर में प्रिसशस त पराक्रम की झलक मात्र
प्रस्तु त की गई है ।

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िे िी िीता के अन्वे षणाथस िानरों को भेजने िे ले कर, लं कापसत रािण के सिरुद्ध प्रयाण िे ले कर अपने
जीिन के अन्त तक इि िानरपुंगि ने समत्रता के सजि उच्चािशस का प्रस्तु सतकरण सकया, उिकी तुलना सिश्व
इसतहाि में अन्यत्र िु लसभ है । अपने िच्चे समत्र के सहतिाधन के सनसमि इि िनिािी िानराधीश्वर ने अपना ििसस्व
िााँ ि पर लगा सिया और अपने परमिखा के स्वगास रोहण के िमय उनके िाथ ही जलिमासध ले िबको असभभूत
कर सिया था।
तीनों लोगों के सलए आतंक बन िुके लं कासधपसत रािण के प्रलोभनपूणस प्रस्ताि को ठु कराते हुए इि अटू ट
मै त्री के प्रसतमान परमिीर ने प्रसतउिर में रािण को ििेत करते हुए कहा था- ‘‘हे रािण! न तो तुम मे रे समत्र हो, न
ही मे रे प्रसत मै त्री या कृपा के भाि रखने िाले ही हो। मे रे समत्र श्री राम के प्रसत घोर शत्रु ता के कारण बाली की भााँ सत
तुम भी िध करने योग्य हो। िे िताओं के सलये भी िु लसय श्री राम के प्रसत अपना मै त्रीधमस सनभाते हुए िह लं कापुरी
को भस्मात् करके ही िापि लौटे गें।’’11
िसक्षण िे िुिूर लं का िे िलकर िुिूर उिर में महसषस सिश्वासमत्र के सिद्धाश्रम (बक्सर-सबहार) तक आतंक
का पयास य बन िुके राक्षि योद्धा इि पराक्रमी िानरासधप के शौयस िे भलीभााँ सत पररसित थे , तभी रािण की युद्ध
पररषि में उिके िसिि िलाहकारों में िे एक िज्रिं िर ने महािीर हनु मान के पराक्रम िे िुपररसित राजिभा के
ििस्ों िसहत स्वयं लं कापसत को िम्बोसधत करते हुए कहा था, ‘‘राम, िुग्रीि और लक्ष्मण के रहते िानरिेना में
हनु मान की कोई गणना नहीं करना िासहए।12 यही नहीं रािण के गुप्तिर प्रमु ख शु क ने भी िभी िानरों के राजा
िुग्रीि को महापराक्रमी बताया था।13 कपीन्द्र को अपने शारीररक बल और मल्लयुद्ध में प्रिीणता पर पूरा सिश्वाि
था। यही कारण है सक िुबेल पिसत िे श्री राम जब लं का का सनरीक्षण कर रहे थे , तब रािण को िे ख कर यह
अपना क्रोध नहीं रोक पाये थे । रािण के सनकट िहिा पहुाँ ि, मल्लयुद्ध में उिको बुरी तरह थका कर िह
िकुशल प्रभु श्रीराम के पाि लौट आये थे। परमोिार पुरुषोि अयोध्यासधपसत ने इि िु स्साहि की पुनरािृसि न
करने के सलए अपने समत्र िानरे श्वर को िमझाया।14 अपनी भू ल स्वीकार करते हुए इन्ोंने श्री राघि िे कहा था
सक रािण को िे ख कर िह उिे क्षमा नहीं कर पाये थे ।15 यही नहीं शारीररक बल के आकार कुम्भकणस के िाथ
मल्लयुद्ध के िु स्सासहक कायस में उिके द्वारा अपहृत कर लंका ले जाते िमय िह मागस में ही उिकी नाक-कान
और पिली को क्षसतग्रस्त कर स्वयं मु ि हो िकुशल िापि लौट आए थे ।16
यहााँ यह राजनीसतक तथ्य अत्यन्त महत्त्वपूणस है सक िम्पू णस िानर िेना के प्रमुख िेनापसत होने के कारण
जहााँ श्रीराम तथा उनका अनुज होने के कारण लक्ष्मण जी की िुरक्षा महत्त्वपूणस थी, िहीं िानर िाम्राज्य के अधीश्वर
होने के कारण िानरे न्द्र िुग्रीि की िुरक्षा का तसनक भी कम महत्त्व नहीं था। यसि महािमर में िानरराज के िाथ
कोई अनहोनी हो जाती तो उिका सनसश्चत प्रसतकूल प्रभाि िानरिेना पर पड़ता। सफर भी इि पराक्रमी िानरराज
ने रािण, मे धनाि एिं इन्द्रसजत् जै िे योद्धाओं िे एकाकी सभड़ने में कोई िंकोि नहीं सकया था। यही नहीं रणक्षे त्र में
उनके द्वारा अने क अग्रणी राक्षि िेनासनयों का अन्त सकया गया, सजनमें राक्षि िेनानी प्रघि, कुम्भकणस के

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महाबल पुत्र कुम्भ, िु द्धसषस िेनानी सिरुपाक्ष एिं रािण तथा कुम्भकणस के मौिेर-िौतेले भाई पराक्रमी महोिर के
नाम सिशेष रूप िे उल्लेखनीय हैं ।
लं का के महािंग्राम के प्रारम्भ में ही िानरयूथपसतयों द्वारा सजन राक्षििेनासनयों का िध सकया गया, उनमें
प्रजं घ तथा प्रघि के नाम सिशेष रूप िे उल्ले खनीय हैं । िानरे न्द्र िुग्रीि की ललकार पर िानर यूथपसत िम्पासि
द्वारा प्रजं घ के िध िे कोपाकुल प्रघि ने िानर िेना का सिनाश प्रारम्भ कर सिया था। यह रािणमातुल िुमाली का
केतुमती िे उत्पन्न पुत्र था।17 क्रोध के आिेश में िानर िैसनकों का िध करते हुए उिने महािीर िानरासधपसत िे
टकराने की भयंकर भूल की थी। अने क घात-प्रसतघात के बाि भी कसपराज को सिशेष क्षसत पहुाँ िाने मे अिफल
अन्ततः िह उनके द्वारा यमििन पहुाँ िाया गया।18 यहााँ यह बता िे ना आिश्यक प्रतीत होता है सक यह प्रघि,
प्रमिािन अथिा अशोकिासटका उजाड़ने बजरं गबली हनु मान के हाथों मारे गये रािण के सिरुपाक्ष, यूपाक्ष, िु धसर,
प्रघि और भािकणस नामक पााँ ि िेनासपतयों में िे एक िे सभन्न था19 महाभारत में राक्षिराज िमथस क ‘प्रघि’
नामक राक्षिों और सपशािों के िल का उल्ले ख हुआ है ।20
िानर असधराज िुग्रीि द्वारा कुम्भकणस के पराक्रमी पुत्र कुम्भ का िध लं का के महािमर की अत्यन्त
महत्त्वपूणस घटनाओं में िे एक है । काले मे घ के िमान िणस िाले महाकाय और श्रे ष्ठ धनु धसर कुम्भ का रथ िािुसक
नाग ध्वज सिन्ां सकत था। अपने महापराक्रमी सपता के िध िे अत्यन्त कुसपत इि रणिु िसम राक्षि िेनानी ने अपने
अिूक लक्ष्यिेध के बल पर िानर युिराज अंगि िसहत मै न्द और सद्वसिि नामक िु द्धसषस िानर िेनापसतयों को
आहत कर सिया था। अपनी ओर ििैन्य अग्रिर जाम्बिान को भी उिने रोक िे ने में िफलता प्राप्त की थी।
इन्द्रजीत मे धनाि के िमान श्रेष्ठ धनु धसर तथा राक्षिेन्द्र रािण तुल् प्रतापी21 अपने पराक्रमपुञ्ज सपता के नाक, कान
और पिसलयों को क्षत-सिक्षत करने िाले ििसिानराज िुग्रीि को अपने प्रसतशोध का ग्राि बनाना िाहा। िानर
िैसनकों का िध करते हुए िह िानरे न्द्र िे जा टकराया था। भयंकर द्वं द्वयुद्ध के उपरन्त िानरासधराज िुग्रीि उिके
महासिनाशक धनुष को तोड़कर िू र िमु द्र में फेंक िे ने में िफल हुए थे । धनु षभं ग के कारण हतमनोबल कुम्भ
शीघ्र ही िानर-ििेश्वर िुग्रीि के हाथों अपना प्राणान्त करा बैठा था।22 अपने िहोिर के िध के उपरान्त सनकुम्भ,
कुम्भ के िाथ युद्ध में क्रान्त हो िुके िुग्रीि की ओर बढ़ा सकन्तु आगे बढ़ कर िुग्रीि िसिि पराक्रमपुञ्ज हनु मान ने
उिको रोक कर िंकटमोिक की भू समका सनभाई और मल्लयुद्ध में सनकुम्भ को धराशायी कर उिके सशरस्त्राण
और कुण्डकधारी सशरोभाग को उिके शरीर िे पृथक कर िू र फेंक सिया था।23
युिराज इन्द्रसजत् के िध के उपरान्त शोक िंतप्त रािण के पररजन प्रमु ख िेनापसतयों में सिरुपाक्ष,
महापाश्वस तथा महोिर जै िे कुछ प्रमु ख योद्धा ही शेष रह गये थे । इन्ीं को िाथ ले कर लं केश ने स्वयं बानरिेना के
ििसनाश का दृढ़ सनश्चय सकया था। उिके प्रसतशोध की भािना िे सिनि हो रही पलायमान िानर िेना को क्तस्थर
करने का िासयत्व अपने बीरिर श्विुर और कुशल िैद्यराज िुषेण को िौंप हररपासथस ि िुग्रीि ने स्वयं ही रािण िे
जू झने का सनणसय सलया था। अने क िानर यूथपों के िाथ रािण की ओर अग्रिर िानरराज िे रािण िेनानी
सिरुपाक्ष बीि ही में आ टकराया था। िानरों के भीषण प्रत्याक्रमण िे आतसनाि करती राक्षि िेना के मनोबल को

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बढ़ाने के उद्दे श्य िे उिने रथ िे उतर कर एक मि गजरात पर आरुढ़ होना आिश्यक िमझा था। िानरराज पर
गजारुढ़ सिरुपाक्ष द्वारा बाण िषास करते िे ख राक्षि िेना को आतसनाि रुक िा गया। उिके िाणप्रहार ने पहले िे
ही कुसपत रािण की ओर बढ़ते हरीश्वर का क्रोध और असधक बढ़ा सिया। युद्धसनपुण िुग्रीि के भीषण प्रहार िे
सिग्घाड़ता हुआ गजराज िमरभू सम में धाराशायी होने को हुआ सक सिरुपाक्ष उि पर कूि कर िुग्रीि पर िढ़
िौड़ा। उिके भीषण असि प्रहार िे राजा िुग्रीि का किि सििीणस हो गया और राक्षि िेनानी की तलिार उिमें
फाँि कर रह गई। उि तलिार को अपने हाथों िे खींिने के लोभ में राक्षि िेनापसत भयंकर आत्मघाती भूल कर
बैठा। िोनों हाथों िे अपनी तलिार खीि
ं रहे सिरुपाक्ष पर िानरराज ने ऐिा भीषण िाि-प्रहार सकया सक
आक्रमणकारी धपाक िे धरती पर जा सगरा। बि सफर क्या था शक्तिशाली कसपराज कूि कर उिकी छाती पर
जा बैठे और उिके िक्षस्थल और सशरोभाग पर तब तक भीषण मु सष्ठ प्रहार करते रहे जब उिका सशरोभाग िूर-
िूर नहीं हो गया। अपने असिरल बहती रिधार िे पाश्वसभूसम को लाल करता सिरुपाक्ष यमििन पहुाँ ि गया। िमर
भू सम एक िाथ हुए राक्षिों के आतसनाि एिं िानरों के हषस नाि िे सननासित हो उठा।24 महाभारत भी हररपुंगि
िुग्रीि द्वारा सिरुपाक्ष के िध का िमथस न करता है।25 लं का िमर में तीन सिरुपाक्ष नामधारी िेनासनयों में एक िध
महािन् हनु मान द्वारा अशोक िासटका में , िू िरे का िानर राजा िुग्रीि द्वारा और तीिरे का श्री रामानु ज लक्ष्मण जी
द्वारा सकया गया।26 तीिरे को माल्िान का पुत्र बताया गया है ।
अपने महाबलशाली अनु ज कुम्भकणस के िध का िमािार िुनकर रािण शोक िे मू क्तच्छसत हो गया। रािण
के पुत्रगण सत्रसशरा, िे िान्तक, नरान्तक और असतकाय फूट-फूट कर रोने लगे। अनायाि ही महानकमस करने िाले
श्रीराम द्वारा भाई कुभकणस के मारे जाने पर उिके िौतेले भाई महोिर और महापाश्वस भी शोक िे व्याकुल हो उठे
थे -
‘‘भ्रातरं सनहिं श्रुत्वा रामे णाक्तिि कमस णा।
महोिर महापाश्वौ शोकाक्रान्तौ बभू ितुः।।’’27
उल्ले खनीय है सक ये िोनों रािण की िगी मौिी पुष्पोत्कटा का ऋसष सिश्रिा िे उत्पन्न रािण के
िौतेले/मौिेरे भाई थे ।
लं का के इि महायुद्ध में िोनों पक्षों की िेनाओं के घात-प्रसतघात के महािंतान िे ग्रीष्म-ऋतु के क्षीण
होते िो महािरोिरों की भााँ सत राक्षि िेनाओं का मनोबल बढ़ाने हे तु लोकपीडक रािण जहााँ राक्षि योद्धाओं को
ललकार रहा था, िहीं हरीन्द्र िुग्रीि अपने व्यक्तिगत शौय प्रिशस न और भीमगजस ना िे सिरुपाक्ष के िध िे
आह्लासित िानरिीरों के बढ़े हुए उत्साह को सद्वगुसणत कर रहे थे । भग्रमनोबल राक्षिी िेनाओं के मध्य एममात्र
आशा का आधार घोसषत करते हुए रािण ने अपने िौतेले-मौिेरे भाई महोिर को श्रीराम, लक्ष्मण जी एिं
िानरराज के िध का आिे श सिया था।
िानरिेना को सिनि कर आगे बढ़ते िहोिर को महाशू र िुग्रीि का िामना करना पड़ा। िोनों के मध्य
िले भयंकर तुमुल िंग्राम में िानर राज ने िमरभू सम में पड़े एक पररघ को उठा उिके प्रहार िे महोिर के रथ के

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अश्वों का िध कर डाला। तिू परान्त िानर महाराज ने उिी पररघ िे महोिर पर प्रहार सकया सकन्तु राक्षि िेनानी
ने अपनी गिा िे उि भीषण प्रहार को रोक सलया। पररणामस्वरूप गिा और पररघ िोनों खक्तण्डत हो गये। इिके
पश्चात् मू िलधारी िानरराज तथा नई गिा धारण करने िाले रािण िेनानी में पुनः द्वन्द्द्व प्रारम्भ हो गया।
पररणामस्वरूप गिा और शूल िोनों खक्तण्डत हो गये। युद्धकुशल महाराज िुग्रीि को पीछे हटते न िे ख कोपाकुल
महोिर असिधारण कर उन पर झपटा। उिको असिधारण करते िे ख िूयसपुत्र िुग्रीि ने भी अपने हाथों में खड् ग
ले सलया। िोनों के घात-प्रसतघात में महोिर िानराधीश्वर पर भीषण असि प्रहार कर उनके किि को सििीणस करने
में िफल हुआ। यह तो िानरराज की िपलता ही थी सक उन्ोंने सिधुत्गसत िे पीछे हट अपने िक्षस्थल को सििीणस
होने िे बाँिा सलया था। सकन्तु महोिर की तलिार कसपराज के किि में फाँि कर रह गई थी। अपनी तलिार को
िोनों हाथों िे किि िे बाहर खीि
ं पुनः प्रहार के उद्दे श्य िे महोिर भयंकर आत्मघाती भूल कर बैठा। अििर का
लाभ उठा िानर महािीर ने अपने एक ही खड् ग प्रहार िे महोिर के सशरस्त्राण और रत्नजसटत कुण्डलधारी सशर
को भू लु क्तित कर सिया। कपीन्द्र के इि िु स्साहसिक िुकृत्य ने िे िताओं, यक्षों, गंधिों तथा सकन्नरों को हसषस त कर
सिया। महोिर के मरते ही राक्षिी िेना लं का की ओर भाग िली।28 पुराणों में भी रािण के इि िौतेले भाई का
उल्ले ख हुआ है ।29 यहााँ पर स्मरणीय है सक सजि ििसिानरराज पर िम्पू णस िानरिेना के िफल िंिालन,
अनु शािन, रणनीसत सनधास रण का िासयत्व था, उि िानरिम्राट के द्वारा इन महािीर राक्षिों का िध तथा लं केश
रािण, महाबली कुम्भकणस तथा इन्द्रसजत जै िे द्वद्धस षस और मायािी राक्षिों िे द्वन्द्द्वयुद्ध में स्वयं को िुरक्तखत बाँिा
ले ना उनके शौयस, शारीररक बल तथा युद्धकौशल का जीिन्त प्रमाण है । यही नहीं यह िानरराज का राजनीसतक
िातुर्य्स ही था सक उन्ोंने श्री राम को िानरिेना का ििोच्च िेनापसत घोसषत सकया था। िमु द्रिंतरण के सलए
सनसमस त रामिेतु िे िानर िेना के सलये लं का को प्रयाण के िमय श्रीराम को अपने ििास सधक सिश्वस्त िसिि हनु मान
तथा श्री रामानुज को युिराज अंगि के कन्धे पर सबठा कर िोनों के प्रसत अपने आगाध सिश्वाि और पूणससनष्ठा का
असतररि प्रमाण िािसजनसनक कर सिया था।
अनु ज िसहत प्रभु श्रीराम के प्रसत अपनी अटू ट सनष्ठा का प्रमाण िे ते हुए ही उन्ोंने िमरभू सम में
राघियुगल के मू क्तच्छसत होने पर, सिभीषण को आश्वस्त करते हुए अपने श्विुर िुषेण को िानर िैसनकों के िंरक्षण में
उपिाराथस सकक्तिन्धा ले जाने का आिे श िे ते हुए रािण का िध कर लं कापुरी को असििात् करने का अपना
दृढिंकल्प प्रकट सकया था।30
मानिीय मयास िाओं और आिशों के मू सतसमान स्वरूप रघुकुलभू षण श्री राम भला कहााँ पीछे रहने िाले थे।
उन्ोंने भारत िसहत अपने पररजनों की कौन कहे , िमस्त पुरिासियों को भी लं का सिजयोपरान्त अिधपुरी में
प्रिेश करते िमय सिशालकाय गजराज पर आरुढ़ िुग्रीि के प्रसत जनिामान्य के िमक्ष बार-बार अपने समत्र
िुग्रीि के प्रसत अपनी हासिस क प्रीसत को प्रकट करने में िंकोि नहीं सकया।31 राघिेन्द्र ने िुग्रीि एिं उनकी पसत्नयों
के अयोध्या प्रिाि के िमय न केिल अपना िुरम्य, िुिक्तित अशोकिासटका िे सघरे अपने भिन को प्रिान सकया
था, िरन् उनके सप्रय अनुज भरत जी स्वयं िानरासधपसत को उि भिन तक ले गये थे ।

Copyright © 2021, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


डॉ. िुमन लता सिंह
(Pg. 15701-15707) 15707

ििसिानर राज के सलये िाल्मीकीय रामायण, महाभारत एिं परिती िंस्कृत ग्रन्ों में अंसकत िम्बोधनों-
हररन्द्र, हरीश, कसपपुंगि, िानरे न्द्र, कसपराज, कपीश्वर, हरीश्वर, िानरासधप, ििसशाखा मृगेन्द्र आसि ने बहुत िे
लोगों को मल्लयुद्ध सिशारि, गिायुद्ध सिशे षज्ञ, गिा आसि के िसहत शू ल, खड् ग पररघ आसि के िालन में कुशल
िानर नामधारी आयेतर िनिासियों को, िामान्य बन्दर पशु मानने को प्रेररत सकया है जो ििसथा अनै सतहासिक
और अित्य है । उल्ले खनीय है सक सिश्वयुद्ध में िपलता प्रिशस न के कारण जापासनयों को ‘येलो मं की’ (पीला
बन्दर), भीषण युद्ध क्षमता के कारण रूसियों कोरसियन बीअर (रुिी भालू ) तथा आमने िामने के युद्ध में िन्नद्ध
अाँग्रेजों ‘जानबुल’ (श्रीमान बैल) कहा गया था।
सन्दर्भ्ा-सूची-
िा0रा0, सकक्तिन्धा0 िगस 46
िा0रा0, सकक्तिन्धा0 िगस 46
उिर0 36/36-30
िन0 84/147
ब्रह्माण्ड0 3/7/134-148 एिं भागित0 9/10/12
‘‘रामस् ि िखा िे सि िु ग्रीिो नाम िानरः...... अहं िं ग्रीि िसििो हनुमन्नाम िानरः।
िु न्दर0 34/36-40
यु द्ध0 8/10
यु द्ध0 22/88
यु द्धकाण्ड0 26िााँ िगस
उिर0 िगस 39िााँ
यु द्ध 20/23-24
यु द्ध0 िगस 8 श्लोक 9
‘‘ििस िानराजं ि िु ग्रीिं भीमसिक्रमम्’’ - यु द्ध0 29/2
यु द्ध0 40/7-30 एिं िगस 41 श्लोक 1-7
िही 41/6-8
यु द्ध0 67/83-89
उिर0 5/38-41
यु द्ध0 43/25
िु न्दर0 46िााँ िगस एिं रामिररतमानि, िु न्दरकाण्ड
िन0 145/1-2
धनुषीन्द्रसजतस् तु ल्, प्रतापे रािणश्च.......यु द्ध0 76/78
यु द्ध0 76/63-93
यु द्ध0 77/21-23
यु द्ध0 96/36
िन0 285/9
यु द्ध0 42/26
यु द्ध0 68/7
यु द्ध0 िगस 97
ब्रह्माण्ड0 2/8/55 तथा िायु0 70/49
यु द्धकाण्ड, िगस 22
यु द्ध0 128/39
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