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शतरं ज के खिलाड़ी – प्रेमचंद

प्रेमचन्द (जन्म 1880 – मत्ृ यु 1936)

लेिक पररचय - प्रेमचंद का जन्म बनारस जजले के लह्मी नामक ग्राम में हुआ था | इनका वास्तववक
नाम धनपतराय था | हहन्दी कहानी और उपन्यास साहहत्य में प्रेमचंद अपना ववशिष्ट स्थान रखते है
उन्होंने लगभग 300 से भी अधिक कहानियााँ और 12 उपन्यास शलखे हैं।उन्होंने कई पत्र पत्रत्रकाओं का
संपादन ककया |उनके द्वारा खोली गई प्रेस से हं स नामक पत्रत्रका भी ननकाली |

प्रमुि रचिाएाँ - सेवासदन ,प्रेमाश्रय ,रं गभूशम ,ननममला ,कायाकल्प गबन कममभूशम ,गोदान (उपन्यास )

कहानी संकलन – पूस की रात , दो बैलों की कथा , बड़े घर की बेटी ,प्रेम-पच्चीसी, प्रेम तीथम,
सप्तसरोज, प्रेरणा और प्रमोद, पंचपरमेश्वर आहद

भाषा -िैली - प्रेमचंद एक ऐसे उपन्यासकार एवं कहानीकार है जजनकी रचनाओं में सरल, सहज और
स्पष्ट भाषा-िैली हदखाई दे ती है उनकी कहाननयों की लोकवप्रयता से हहन्दी -उदम ू शमश्रश्रत मुहावरे दार भाषा
का बहुत बड़ा हाथ रहा है उन्होंने वणामत्मक िैली को भी अपनाया है ।प्रेमचंद की भाषा पत्रों के अनुसार
पररवनतमत हो जाती है

महान उपन्यासकार प्रेमचन्द द्वारा सन 1924 में शलखी गई ितरं ज के खखलाड़ी कहानी में वाजजद
अली िाह के िासनकाल के समय का वणमन बताया गया हैं |यह ऐनतहाससक पष्ृ ठ भूसम की कहािी है
|
वाजजद अली िाह लखनऊ और अवध के नवाब थे जजनका िासन काल सन 1847से 1856 तक रहा।
कहानी में उसी समय का वणमन ककया गया है | उस पतनिील समाज में लखनऊ के लोग घोर ववलाशसता
में डूबे रहते थे इसी समय अंग्रेजों ने भी भारत में िासन ककया। यह हहन्दी साहहत्य के इनतहास का
आधुननक काल था जजसके पूवम रीनतकाल में साहहत्य रचना राजदरबारों तक सीशमत हो गई थी। इस
समय कववयों को राज दरबारों में आश्रय प्राप्त था जो राजाओं की चाटुकाररता में कववताएं शलखते थे।
रीनतकाल के बाद हहन्दी साहहत्य के आधुननक काल में खड़ी बोली गद्य का आववभामव हुआ। इस समय
के प्रमुख लेखकों में प्रेमचन्द ने सवमप्रथम यथाथमवाद को अपने उपन्यासों और कहाननयों में स्थान हदया।
उनका यथाथमवाद तत्कालीन राजनीनतक, सामाजजक, आश्रथमक पररजस्थनतयों से प्रभाववत था।

कहािी का उद्दे श्य – इस कहानी का मुख्य उद्दे श्य यह कक व्यजतत को अपने िौक या आदतों के
गुलाम नहीं होना चाहहए| | गुलामी के कारणों के प्रनत हमेिा सचेत रहना चाहहए | जजस प्रकार युद्ध
के मैदान में बचाव और आक्रमण का महत्त्व होता है उसी प्रकार ितरं ज का खेल खेलने के शलए खखलाड़ी
को अपनी अतल और समय दोनों का प्रयोग करना पड़ता है | यहद शमरजा और मीर जैसे लोग अपनी
अतल दे ि के बचाव में लगाते तो दे ि को गुलामी से बचाया जा सकता था |
कहािी का सारांश - ितरं ज के खखलाड़ी की रचना प्रेमचन्द ने 1924 में की थी, जजसमें वाजजद अली
िाह के िासन काल की पररजस्थनतयों के यथाथम का श्रचत्रण है । कहानी में राजा और प्रजा सभी बटे र-

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तीतर लड़ाने, चौसर और ितरं ज खेलने, अफ़ीम तथा गााँजा पीने में व्यस्त हदखाए गए हैं। प्रजा की
आश्रथमक जस्थनत दयनीय थी। प्रेमचंद ने कहानी में एक स्थान पर शलखा है , “राज्य में हाहाकार मचा
हुआ था. प्रजा हदन दहाड़े लूटी जाती थी। कोई फ़ररयाद सुनने वाला न था। दे हातों की सारी दौलत
लखनऊ खखंची चली जाती थी। … दे ि में सव्ु यवस्था न होने के कारण वावषमक कर भी न वसूल होता
था।” अवध सामाजजक, आश्रथमक तथा राजनीनतक सभी प्रकार से दयनीय जस्थनत में था। जैसा
कक प्रेमचंद ने शलखा है ,“िासन ववभाग में , साहहत्य क्षेत्र में , सामाजजक व्यवस्था में , कला कौिल में ,
उद्योग धंधों में , आहार-ववहार में , सवमत्र ववलाशसता व्याप्त हो रही थी।”
कहानी के दो प्रमख
ु पात्र शमजाम सज्जाद अली और मीर रोिन अली को, जो सांकेनतक रूप से अवध के
सामंतवादी कुिासन का प्रनतननश्रधत्व करते हैं, उन्हें ितरं ज खेलने की लत थी । घर-पररवार से उन्हें
कोई मतलब नहीं था । जागीरदार होने के कारण दोनों के पास धन की कमी नहीं थी , इसशलए उनका
जीवन त्रबना कुछ कायम ककए आराम से ितरं ज की बाजजयों में डूबा हुआ है । हदन-रात शमजाम के घर पर
ितरं ज होने के कारण उनकी पत्नी के गुस्सा होने पर मीर साहब कहते है -“ बड़ी गस्
ु सेवर मालूम होती
है । मगर आपने उन्हें यों शसर पर चढ़ा रखा है यह मन
ु ाशसब नहीं। उन्हें इससे तया मतलब कक आप
बाहर तया करते हैं। घर का इंतजाम करना उनका काम है , दस
ू री बातों से उन्हें तया सरोकार।”
प्रेमचन्द ने यहााँ पुरूषों की जस्त्रयों के प्रनत सामन्तवादी मानशसकता पर भी कटाक्ष ककया है । जब तक
उनकी बेगम परे िान होते हुए भी दोनों की आवभगत करती रही, तब तक दोनों खुि रहते हैं। एक हदन
अपनी परे िानी को व्यतत करने पर उनके व्यवहार पर टीका-हटप्प्णी होने लगी और उनका दायरा घर
तक सीशमत रहने का भी संकेत दे हदया गया।
राजनीनतक जस्थनत दवु वधाजनक होने के बाद भी शमर्ाम और मीर का ितरं ज का खेल उसी प्रकार
चलता रहा, किर चाहे उन्हें अपनी त्रबसात घर से दरू वीराने में एक मजस्जद के पास ही तयों ना लगानी
पड़ी हो। इस दौरान वाजजद अली िाह को अपना शसंहासन छोड़ना पड़ा और अवध का िासन त्रिहटि के
हाथों में चला गया पर इन दोनों पात्रों की ितरं ज की लत पर कोई असर नहीं पड़ा। अंत में इसी लत
ने दोनों शमत्रों की आपसी लड़ाई में जान भी ले ली। अगर यही जानें अपने राज्य की रक्षा करने में
गाँवाई होती तो अवध इतनी आसानी से अंग्रेजों के अधीन नहीं हो पाता |

प्रेमचंद के साहहत्य में कथा-शिल्प और कथा-वस्त,ु दोनों ही में समाज और साहहत्य की इस त्रबगड़ती
हुई पररजस्थनत का प्रभाव हदखता है । ितरं ज के खखलाड़ी भी तत्कालीन भारत
की पररस्थनतयों को श्रचत्रत्रत करती हुई, प्रेमचंद की एक साथमक कहानी है , जजसमें एक तरि प्रेमचंद ने
ववलाशसता तथा अय्यािी में डूबे सुप्त (सोए हुए ) जनजीवन को पुनः जागरूक होने का सन्दे ि हदया
है और दस
ू री तरि रीनतकालीन साहहत्य के, समाज से कटे हुए चररत्र का यथाथमवादी लेखन के रूप में
एक ववकल्प प्रस्तुत करने का प्रयत्न ककया गया है |
शतरं ज के खिलाड़ी कहािी में निहहत सशक्षा या सन्दे श
प्रेमचंद द्वारा शलखी इस कहानी से यह सीख शमलती है कक ककसी भी वस्तु का िौक होना अच्छी
बात है , ककन्तु वहीीँ िौक रोजाना की लत बन जाए तो उसके व्यजततगत, पाररवाररक एवं सामाजजक
रूप से भयंकर पररणाम होते हैं |कहानी के प्रमख
ु पात्र शमरजा और मीर ितरं ज के खेल में जब दोनों
के बीज इतनी तकरार हो गई कक बात खानदान और रईसी तक पहुाँच गई दोनों के पास कटार और
तलवार थी ,दोनों ने एक दस
ू रे की जान ले ली | कहानी की प्रासंश्रगकता यह है कक मनुष्य को हर ऐसी

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आदतों से बचना चाहहए जजससे उनको हानन पहुाँचती हो खास कर युवा वगम को इस कहानी से प्रेरणा
लेनी चाहहए और अपने समय का सदप
ु योग कर सकारात्मक कायों में अपना मन लगाए |
सही विकल्प का चयि कीजजए -
1. ितरं ज के खखलाड़ी कहानी के माध्यम से लेखक तया हदखाने का प्रयास कर रहे हैं-
क. भारतीय िासकों का पतन
ख. खेल का महत्व
ग. हारने वाले खखलाडड़यों की मनोजस्थनत
घ. अंग्रेज िासकों का दमन
उत्तर- क. भारतीय िासकों का पतन

2. ितरं ज की बाजी पहले कहां त्रबछती थी-


क. शमजाम के घर
ख. अमीर के घर
ग. वाजजद अली िाह के घर
घ. अंग्रेजों के घर
उत्तर- क. शमजाम के घर

3. ितरं ज के खेल में प्रत्येक खखलाड़ी के अश्रधकार में कुल ककतनी मोहरे होती है -
क. 10
ख. 12
ग. 14
घ. 16
उत्तर – घ 16

4. प्रेमचंद की पहली कहानी संग्रह सत्य सरोज कब प्रकाशित हुआ -


क. 1917
ख. 1919
ग. 1922
घ. 1927
उत्तर -क. 1917

5. प्रेमचंद की कहाननयों का संकलन मानसरोवर के कूल ककतने खंड है -


क. 5
ख. 6
ग. 7
घ. 8
उत्तर- घ. 8

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6. प्रेमचंद को प्रेमचंद नाम ककसने हदया-
क. जय नारायण राय
ख. रामनारायण झा
ग. दया नारायण ननगम
घ. उपरोतत में से कोई नहीं
उत्तर – ग. दया नारायण ननगम

7. ितरं ज का खेल उस युग की ककस प्रवनृ त को व्यतत करता है -


क. उच्च वगम की ववलाशसता को
ख. खेलों के प्रनत गहरी अशभरुश्रच को
ग. सम्पन्नता और समद्
ृ श्रध को
घ. ककसी प्रवनृ त को व्यतत नहीं करता
उत्तर – क. उच्च वगम की ववलाशसता को
8. मीर साहब के पास घुड़सवार को ककसने भेजा था -
क. नवाब वाजजद अली िाह ने
ख. मीर साहब की बेगम ने
ग. फ़ौजी अश्रधकारी ने
घ. शमर्ाम ने
उत्तर- ख. मीर साहब की बेगम ने

9. लखनऊ पर ककसने अश्रधकार ककया -


क. त्रिहटि सेना ने
ख. वाजजदअली िाह की सेना ने
ग. ईस्ट इजडडया कम्पनी की फ़ौज ने
घ. अन्य राजाओं ने
उत्तर – ग. ईस्ट इजडडया कम्पनी की फ़ौज ने
10. ननम्न में से कौन सा नाम प्रेमचंद जी का नहीं है-
क. मुंिी प्रेमचंद
ख. नवाब राय
ग. कलाधर
घ. धनपत राय
उत्तर – ग. कलाधर

11. त्रबना युद्ध ककए लखनऊ पर अंग्रेजों का कब्र्ा करना तया बताता है –
क. वह समाज पूरी तरह से पनतत हो चुका था |

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ख. लोगों में राष्रीय भावना का अभाव था |
ग. समाज का उच्च वगम ववलाशसता में |
घ. उपरोतत सभी |
उत्तर – घ. उपरोतत सभी |

शतरं ज के खिलाड़ी(कहािी)

वाजजदअली िाह का समय था। लखनऊ ववलाशसता के रं ग में डूबा हुआ था। छोटे -बड़े, गरीब-अमीर सभी ववलाशसता
में डूबे हुए थे। कोई नत्ृ य और गान की मजशलस सजाता था, तो कोई अिीम की पीनक ही में मजे लेता था।
जीवन के प्रत्येक ववभाग में आमोद-प्रमोद का प्राधान्य था। िासन-ववभाग में, साहहत्य-क्षेत्र में , सामाजजक अवस्था
में, कला-कौिल में, उद्योग-धंधों में, आहार-व्यवहार में सवमत्र ववलाशसता व्याप्त हो रही थी। राजकममचारी ववषय-
वासना में, कववगण प्रेम और ववरह के वणमन में , कारीगर कलाबत्तू और श्रचकन बनाने में, व्यवसायी सुरमे, इत्र ,
शमस्सी और उबटन का रोजगार करने में शलप्त थे। सभी की आाँखों में ववलाशसता का मद छाया हुआ था। संसार
में तया हो रहा है , इसकी ककसी को खबर न थी। बटे र लड़ रहे हैं। तीतरों की लड़ाई के शलए पाली बदी जा रही
है । कहीं चौसर त्रबछी हुई है ; पौ-बारह का िोर मचा हुआ है । कही ितरं ज का घोर संग्राम नछड़ा हुआ है । राजा से
लेकर रं क तक इसी धन ु में मस्त थे। यहााँ तक कक िकीरों को पैसे शमलते तो वे रोहटयााँ न लेकर अिीम खाते
या मदक पीते। ितरं ज, ताि, गंजीफ़ा खेलने से बुद्श्रध तीव्र होती है , ववचार-िजतत का ववकास होता है , पेंचीदा मसलों
को सुलझाने की आदत पड़ती है । ये दलीलें जोरों के साथ पेि की जाती थीं (इस सम्प्रदाय के लोगों से दनु नया
अब भी खाली नहीं है )। इसशलए अगर शमरर्ा सज्जादअली और मीर रौिनअली अपना अश्रधकांि समय बुद्श्रध
तीव्र करने में व्यतीत करते थे, तो ककसी ववचारिील परु
ु ष को तया आपवत्त हो सकती थी? दोनों के पास मौरूसी
जागीरें थीं; जीववका की कोई श्रचत
ं ा न थी; कक घर में बैठे चखौनतयााँ करते थे। आखखर और करते ही तया? प्रातःकाल
दोनों शमत्र नाश्ता करके त्रबसात त्रबछा कर बैठ जाते, मुहरे सज जाते, और लड़ाई के दाव-पेंच होने लगते। किर
खबर न होती थी कक कब दोपहर हुई, कब तीसरा पहर, कब िाम ! घर के भीतर से बार-बार बुलावा आता कक
खाना तैयार है । यहााँ से जवाब शमलता- चलो, आते हैं, दस्तरख्वान त्रबछाओ। यहााँ तक कक बावरची वववि हो कक
कमरे ही में खाना रख जाता था, और दोनों शमत्र दोनों काम साथ-साथ करते थे। शमरर्ा सज्जाद अली के घर में
कोई बड़ा-बूढ़ा न था, इसशलए उन्हीं के दीवानखाने में बाजजयााँ होती थीं। मगर यह बात न थी शमरर्ा के घर के
और लोग उनसे इस व्यवहार से खुि हों। घरवालों का तो कहना ही तया, मुहल्लेवाले, घर के नौकर-चाकर तक
ननत्य द्वेषपूणम हटप्पखणयााँ ककया करते थे- बड़ा मनहूस खेल है । घर को तबाह कर दे ता है । खुदा न करे , ककसी को
इसकी चाट पड़े, आदमी दीन-दनु नया ककसी के काम का नहीं रहता, न घर का, न घाट का। बरु ा रोग है । यहााँ तक
कक शमरर्ा की बेगम साहबा को इससे इतना द्वेष था कक अवसर खोज-खोजकर पनत को लताड़ती थीं। पर उन्हें
इसका अवसर मुजश्कल से शमलता था। वह सोती रहती थीं, तब तक बाजी त्रबछ जाती थी। और रात को जब सो
जाती थीं, तब कही शमरर्ाजी घर में आते थे। हााँ, नौकरों पर वह अपना गुस्सा उतारती रहती थीं- तया पान मााँगे
हैं? कह दो, आकर ले जायाँ। खाने की िुरसत नहीं है ? ले जाकर खाना शसर पर पटक दो, खायाँ चाहे कुत्ते को
खखलायें। पर रूबरू वह भी कुछ न कह सकती थीं। उनको अपने पनत से उतना मलाल न था, जजतना मीर साहब
से। उन्होंने उनका, नाम मीर त्रबगाड़ू रख छोड़ा था। िायद शमरर्ाजी अपनी सिाई दे ने के शलए सारा इलजाम मीर
साहब ही के सर थोप दे ते थे।

एक हदन बेगम साहबा के शसर में ददम होने लगा। उन्होंने लौंडी से कहा- जाकर शमरर्ा साहब को बुला लो। ककसी
हकीम के यहााँ से दवा लायें। दौड़, जल्दी कर। लौंडी गयी तो शमरर्ाजी ने कहा- चल, अभी आते हैं। बेगम साहबा

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का शमजाज गरम था। इतनी ताब कहााँ कक उनके शसर में ददम हो और पनत ितरं ज खेलता रहे । चेहरा सुखम हो
गया। लौंडी से कहा- जाकर कह, अभी चशलए, नहीं तो वह आप ही हकीम के यहााँ चली जायेंगी। शमरर्ाजी बड़ी
हदलचस्प बाजी खेल रहे थे, दो ही ककस्तों में मीर साहब की मात हुई जाती थी। झाँझ
ु लाकर बोले- तया ऐसा दम
लबों पर है ? जरा सि नहीं होता?

मीर- अरे , तो जाकर सन


ु ही आइए न। औरतें नाजक
ु -शमजाज होती ही हैं।

शमरर्ा- जी हााँ, चला तयों न जाऊाँ ! दो ककस्तों में आपकी मात होती है ।

मीर- जनाब, इस भरोसे न रहहएगा। वह चाल सोची है कक आपके मुहरे धरे रहें और मात हो जाय। पर जाइए,
सुन आइए। तयों खामख्वाह उनका हदल दख
ु ाइएगा?

शमरर्ा- इसी बात पर मात ही करके जाऊाँगा।

मीर- मैं खेलाँ ग


ू ा ही नहीं। आप जाकर सन
ु आइए।

शमरर्ा- अरे यार, जाना पड़ेगा हकीम के यहााँ। शसर-ददम खाक नहीं है , मुझे परे िान करने का बहाना है ।

मीर- कुछ भी हो, उनकी खानतर तो करनी ही पड़ेगी।

शमरर्ा- अच्छा, एक चाल और चल लाँ ।ू

मीर- हरश्रगर् नहीं, जब तक आप सुन न आयेंगे, मैं मुहरे में हाथ ही न लगाऊाँगा।

शमरर्ा साहब मजबरू होकर अंदर गये तो बेगम साहबा ने त्योररयााँ बदलकर, लेककन कराहते हुए कहा- तम्
ु हें ननगोड़ी
ितरं ज इतनी प्यारी है ! चाहे कोई मर ही जाय, पर उठने का नाम नहीं लेते ! नौज, कोई तुम-जैसा आदमी हो !

शमरर्ा- तया कहूाँ, मीर साहबा मानते ही न थे। बड़ी मुजश्कल से पीछा छुड़ाकर आया हूाँ।

बेगम- तया जैसे वह खुद ननखट्टू हैं, वैसे ही सबको समझते हैं। उनके भी तो बाल-बच्चे हैं; या सबका सिाया कर
डाला?

शमरर्ा- बड़ा लती आदमी है । जब आ जाता है , तब मजबरू होकर मझ


ु े भी खेलना पड़ता है ।

बेगम- दत्ु कार तयों नहीं दे ते?

शमरर्ा- बराबर के आदमी हैं; उम्र में, दजे में मुझसे दो अंगल
ु ऊाँचे। मुलाहहर्ा करना ही पड़ता है ।

बेगम- तो मैं ही दत्ु कारे दे ती हूाँ। नाराज हो जायाँगे, हो जायाँ। कौन ककसी की रोहटयााँ चला दे ता है । रानी रूठें गी,
अपना सुहाग लेंगी। हररया; जा बाहर से ितरं ज उठा ला। मीर साहब से कहना, शमयााँ अब न खेलेंगे; आप तिरीि
ले जाइए।

शमरर्ा- हााँ-हााँ, कहीं ऐसा गजब भी न करना ! जलील करना चाहती हो तया? ठहर हररया, कहााँ जाती है ।

बेगम- जाने तयों नहीं दे ते? मेरा ही खून वपये, जो उसे रोके। अच्छा, उसे रोका, मुझे रोको, तो जानूाँ?

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यह कहकर बेगम साहबा झल्लाई हुई दीवानखाने की तरि चलीं। शमरर्ा बेचारे का रं ग उड़ गया। बीबी की शमन्नतें
करने लगे- खुदा के शलए, तुम्हें हजरत हुसेन की कसम है । मेरी ही मैयत दे खे, जो उधर जाय। लेककन बेगम ने
एक न मानी। दीवानखाने के द्वार तक गयीं, पर एकाएक पर-पुरुष के सामने जाते हुए पााँव बाँध-से गये। भीतर
झााँका, संयोग से कमरा खाली था। मीर साहब ने दो-एक मुहरे इधर-उधर कर हदये थे, और अपनी सिाई जताने
के शलए बाहर टहल रहे थे। किर तया था, बेगम ने अंदर पहुाँचकर बाजी उलट दी, महु रे कुछ तख्त के नीचे िेंक
हदये, कुछ बाहर और ककवाड़ अंदर से बंद करके कंु डी लगा दी। मीर साहब दरवाजे पर तो थे ही, मह
ु रे बाहर िेंके
जाते दे खे, चूडड़यों की झनक भी कान में पड़ी। किर दरवाजा बंद हुआ, तो समझ गये, बेगम साहबा त्रबगड़ गयीं।
चुपके से घर की राह ली।

शमरर्ा ने कहा- तुमने गजब ककया।

बेगम- अब मीर साहब इधर आये, तो खड़े-खड़े ननकलवा दाँ ग


ू ी। इतनी लौ खद
ु ा से लगाते, तो वली हो जाते ! आप
तो ितरं ज खेलें, और मैं यहााँ चूल्हे -चतकी की किक्र में शसर खपाऊाँ ! जाते हो हकीम साहब के यहााँ कक अब भी
ताम्मुल है ।

शमरर्ा घर से ननकले, तो हकीम के घर जाने के बदले मीर साहब के घर पहुाँचे और सारा वत्त
ृ ांत कहा। मीर साहब
बोले- मैंने तो जब मुहरे बाहर आते दे खे, तभी ताड़ गया। िौरन भागा। बड़ी गुस्सेवर मालूम होती हैं। मगर आपने
उन्हें यों शसर चढ़ा रखा है , यह मन
ु ाशसब नहीं। उन्हें इससे तया मतलब कक आप बाहर तया करते हैं। घर का
इंतजाम करना उनका काम है ; दस
ू री बातों से उन्हें तया सरोकार?

शमरर्ा- खैर, यह तो बताइए, अब कहााँ जमाव होगा?

मीर- इसका तया गम है । इतना बड़ा घर पड़ा हुआ है । बस यहीं जमें।

शमरर्ा- लेककन बेगम साहबा को कैसे मनाऊाँगा? घर पर बैठा रहता था, तब तो वह इतना त्रबगड़ती थीं; यहााँ बैठक
होगी, तो िायद जजंदा न छोड़ेंगी।

मीर- अजी बकने भी दीजजए, दो-चार रोज में आप ही ठीक हो जायेंगी। हााँ, आप इतना कीजजए कक आज से जरा
तन जाइए।

मीर साहब की बेगम ककसी अज्ञात कारण से मीर साहब का घर से दरू रहना ही उपयुतत समझती थीं। इसशलए
वह उनके ितरं ज-प्रेम की कभी आलोचना न करती थीं; बजल्क कभी-कभी मीर साहब को दे र हो जाती, तो याद
हदला दे ती थीं। इन कारणों से मीर साहब को भ्रम हो गया था कक मेरी स्त्री अत्यन्त ववनयिील और गंभीर है ।
लेककन जब दीवानखाने में त्रबसात त्रबछने लगी, और मीर साहब हदन-भर घर में रहने लगे, तो बेगम साहबा को
बड़ा कष्ट होने लगा। उनकी स्वाधीनता में बाधा पड़ गयी। हदन-भर दरवाजे पर झााँकने को तरस जातीं।

उधर नौकरों में भी कानािूसी होने लगी। अब तक हदन-भर पड़े-पड़े मजतखयााँ मारा करते थे। घर में कोई आये ,
कोई जाये, उनसे कुछ मतलब न था। अब आठों पहर की धौंस हो गयी। पान लाने का हुतम होता, कभी शमठाई
का। और हुतका तो ककसी प्रेमी के हृदय की भााँनत ननत्य जलता ही रहता था। वे बेगम साहबा से जा-जाकर कहते-
हुजरू , शमयााँ की ितरं ज तो हमारे जी का जंजाल हो गयी। हदन-भर दौड़ते-दौड़ते पैरों में छाले पड़ गये। यह भी
कोई खेल कक सुबह को बैठे तो िाम कर दी। घड़ी आध घड़ी हदल-बहलाव के शलए खेल खेलना बहुत है । खैर, हमें
तो कोई शिकायत नहीं; हुजूर के गुलाम हैं, जो हुतम होगा, बजा ही लायेंगे; मगर यह खेल मनहूस है । इसका

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खेलनेवाला कभी पनपता नहीं; घर पर कोई न कोई आित जरूर आती है । यहााँ तक कक एक के पीछे महल्ले -के-
महल्ले तबाह होते दे खे गये हैं। सारे मुहल्ले में यही चरचा रहती है । हुजूर का नमक खाते हैं, अपने आक़ा की
बुराई सुन-सुनकर रं ज होता है ? मगर तया करें ? इस पर बेगम साहबा कहती हैं- मैं तो खुद इसको पसंद नहीं
करती। पर वह ककसी की सुनते ही नहीं, तया ककया जाय।

मह
ु ल्ले में भी जो दो-चार परु ाने जमाने के लोग थे, आपस में भााँनत-भााँनत की अमंगल कल्पनाएाँ करने लगे- अब
खैररयत नहीं। जब हमारे रईसों का यह हाल है , तो मुल्क का खुदा ही हाकफ़ज है । यह बादिाहत ितरं ज के हाथों
तबाह होगी। आसार बुरे हैं।

राज्य में हाहाकार मचा हुआ था। प्रजा हदन-दहाड़े लूटी जाती थी। कोई िररयाद सुननेवाला न था। दे हातों की सारी
दौलत लखनऊ में खखंची आती थी और वह वेश्याओं में , भााँडों में और ववलाशसता के अन्य अंगों की पूनतम में उड़
जाती थी। अंग्रेज कम्पनी का ऋण हदन-हदन बढ़ता जाता था। कमली हदन-हदन भीगकर भारी होती जाती थी। दे ि
में सुव्यवस्था न होने के कारण वावषमक कर भी वसूल न होता था। रे जीडेंट बार-बार चेतावनी दे ता था, पर यहााँ तो
लोग ववलाशसता के निे में चूर थे, ककसी के कानों पर जाँू न रें गती थी।

खैर, मीर साहब के दीवानखाने में ितरं ज होते कई महीने गुजर गये। नये-नये नतिे हल ककये जाते; नये-नये ककले
बनाये जाते; ननत्य नयी व्यूह-रचना होती; कभी-कभी खेलते-खेलते झौड़ हो जाती; त-ू तू मैं-मैं तक की नौबत आ
जाती; पर िीघ्र ही दोनों शमत्रों में मेल हो जाता। कभी-कभी ऐसा भी होता कक बाजी उठा दी जाती; शमरर्ाजी
रूठकर अपने घर चले जाते। मीर साहब अपने घर में जा बैठते। पर रात भर की ननद्रा के साथ सारा मनोमाशलन्य
िांत हो जाता था। प्रातःकाल दोनों शमत्र दीवानखाने में आ पहुाँचते थे।

एक हदन दोनों शमत्र बैठे हुए ितरं ज की दलदल में गोते खा रहे थे कक इतने में घोड़े पर सवार एक बादिाही
िौज का अिसर मीर साहब का नाम पूछता हुआ आ पहुाँचा। मीर साहब के होि उड़ गये। यह तया बला शसर
पर आयी ! यह तलबी ककस शलए हुई है ? अब खैररयत नहीं नजर आती। घर के दरवाजे बंद कर शलये। नौकरों से
बोले- कह दो, घर में नहीं हैं।

सवार- घर में नहीं, तो कहााँ हैं ?

नौकर- यह मैं नहीं जानता। तया काम है ?

सवार- काम तुझे तया बताऊाँगा? हुजूर में तलबी है । िायद िौज के शलए कुछ शसपाही मााँगे गये हैं। जागीरदार हैं
कक हदल्लगी ! मोरचे पर जाना पड़ेगा, तो आटे -दाल का भाव मालम
ू हो जायगा !

नौकर- अच्छा, तो जाइए, कह हदया जायगा?

सवार- कहने की बात नहीं है । मैं कल खुद आऊाँगा, साथ ले जाने का हुतम हुआ है ।

सवार चला गया। मीर साहब की आत्मा कााँप उठी। शमरर्ाजी से बोले- कहहए जनाब, अब तया होगा?

शमरर्ा- बड़ी मुसीबत है । कहीं मेरी तलबी भी न हो।

मीर- कम्बख्त कल किर आने को कह गया है ।

शमरर्ा- आित है , और तया। कहीं मोरचे पर जाना पड़ा, तो बेमौत मरे ।

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मीर- बस, यही एक तदबीर है कक घर पर शमलो ही नहीं। कल से गोमती पर कहीं वीराने में नख्िा जमे। वहााँ
ककसे खबर होगी। हजरत आकर आप लौट जायाँगे।

शमरर्ा- वल्लाह, आपको खूब सूझी ! इसके शसवाय और कोई तदबीर ही नहीं है ।

इधर मीर साहब की बेगम उस सवार से कह रही थी, तुमने खूब धता बताया।

उसने जवाब हदया- ऐसे गावहदयों को तो चटु ककयों पर नचाता हूाँ। इनकी सारी अतल और हहम्मत तो ितरं ज ने
चर ली। अब भूल कर भी घर पर न रहें गे।

दस
ू रे हदन से दोनों शमत्र मुाँह अाँधेरे घर से ननकल खड़े होते। बगल में एक छोटी-सी दरी दबाये, डडब्बे में श्रगलौररयााँ
भरे , गोमती पार की एक पुरानी वीरान मसजजद में चले जाते, जजसे िायद नवाब आसफ़उद्दौला ने बनवाया था।
रास्ते में तम्बाकू, श्रचलम और मदररया ले लेते, और मसजजद में पहुाँच, दरी त्रबछा, हुतका भरकर ितरं ज खेलने बैठ
जाते थे। किर उन्हें दीन-दनु नया की किक्र न रहती थी। ककश्त, िह आहद दो-एक िब्दों के शसवा उनके मुाँह से और
कोई वातय नहीं ननकलता था। कोई योगी भी समाश्रध में इतना एकाग्र न होता होगा। दोपहर को जब भख
ू मालम

होती तो दोनों शमत्र ककसी नानबाई की दक ू ान पर जाकर खाना खाते, और एक श्रचलम हुतका पीकर किर संग्राम-
क्षेत्र में डट जाते। कभी-कभी तो उन्हें भोजन का भी ख्याल न रहता था।

इधर दे ि की राजनीनतक दिा भयंकर होती जा रही थी। कम्पनी की िौजें लखनऊ की तरि बढ़ी चली आती थीं।
िहर में हलचल मची हुई थी। लोग बाल-बच्चों को लेकर दे हातों में भाग रहे थे। पर हमारे दोनों खखलाडड़यों को
इनकी र्रा भी कफ़क्र न थी। वे घर से आते तो गशलयों में होकर। डर था कक कहीं ककसी बादिाही मल ु ाजजम की
ननगाह न पड़ जाय, जो बेकार में पकड़ जायाँ। हजारों रुपये सालाना की जागीर मुफ्त ही हजम करना चाहते थे।

एक हदन दोनों शमत्र मसजजद के खंडहर में बैठे हुए ितरं ज खेल रहे थे। शमरर्ा की बाजी कुछ कमजोर थी। मीर
साहब उन्हें ककश्त-पर-ककश्त दे रहे थे। इतने में कम्पनी के सैननक आते हुए हदखायी हदये। वह गोरों की िौज थी,
जो लखनऊ पर अश्रधकार जमाने के शलए आ रही थी।

मीर साहब बोले- अंग्रेजी िौज आ रही है ; खद


ु ा खैर करे ।

शमरर्ा- आने दीजजए, ककश्त बचाइए। यह ककश्त।

मीर- जरा दे खना चाहहए, यहीं आड़ में खड़े हो जायाँ !

शमरर्ा- दे ख लीजजएगा, जल्दी तया है , किर ककश्त !

मीर- तोपखाना भी है । कोई पााँच हजार आदमी होंगे कैसे-कैसे जवान हैं। लाल बन्दरों के-से मुाँह। सूरत दे खकर
खौि मालम
ू होता है ।

शमरर्ा- जनाब, हीले न कीजजए। ये चकमे ककसी और को दीजजएगा। यह ककश्त !

मीर- आप भी अजीब आदमी हैं। यहााँ तो िहर पर आित आयी हुई है और आपको ककश्त की सूझी है ! कुछ
इसकी भी खबर है कक िहर नघर गया, तो घर कैसे चलेंगे?

शमरर्ा- जब घर चलने का वतत आयेगा, तो दे खा जायगा- यह ककश्त ! बस, अबकी िह में मात है ।

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िौज ननकल गयी। दस बजे का समय था। किर बाजी त्रबछ गयी।

शमरर्ा- आज खाने की कैसे ठहरे गी?

मीर- अजी, आज तो रोर्ा है । तया आपको ज्यादा भूख मालम


ू होती है ?

शमरर्ा- जी नहीं। िहर में न जाने तया हो रहा है !

मीर- िहर में कुछ न हो रहा होगा। लोग खाना खा-खाकर आराम से सो रहे होंगे। हुजरू नवाब साहब भी ऐिगाह
में होंगे।

दोनों सज्जन किर जो खेलने बैठे, तो तीन बज गये। अबकी शमरर्ा जी की बाजी कमजोर थी। चार का गजर बज
ही रहा था कक िौज की वापसी की आहट शमली। नवाब वाजजदअली पकड़ शलये गये थे , और सेना उन्हें ककसी
अज्ञात स्थान को शलये जा रही थी। िहर में न कोई हलचल थी, न मार-काट। एक बूाँद भी खून नहीं श्रगरा था।
आज तक ककसी स्वाधीन दे ि के राजा की पराजय इतनी िांनत से, इस तरह खन ू बहे त्रबना न हुई होगी। यह वह
अहहंसा न थी, जजस पर दे वगण प्रसन्न होते हैं। यह वह कायरपन था, जजस पर बड़े-बड़े कायर भी आाँसू बहाते हैं।
अवध के वविाल दे ि का नवाब बन्दी चला जाता था, और लखनऊ ऐि की नींद में मस्त था। यह राजनीनतक
अधःपतन की चरम सीमा थी।

शमरर्ा ने कहा- हुजूर नवाब साहब को जाशलमों ने कैद कर शलया है ।

मीर- होगा, यह लीजजए िह।

शमरर्ा- जनाब जरा ठहररए। इस वतत इधर तबीयत नहीं लगती। बेचारे नवाब साहब इस वतत खून के आाँसू रो
रहे होंगे।

मीर- रोया ही चाहें । यह ऐि वहााँ कहााँ नसीब होगा। यह ककश्त !

शमरर्ा- ककसी के हदन बराबर नहीं जाते। ककतनी ददम नाक हालत है ।

मीर- हााँ, सो तो है ही- यह लो, किर ककश्त ! बस, अबकी ककश्त में मात है , बच नहीं सकते।

शमरर्ा- खुदा की कसम, आप बड़े बेददम हैं। इतना बड़ा हादसा दे खकर भी आपको दःु ख नहीं होता। हाय, गरीब
वाजजदअली िाह !

मीर- पहले अपने बादिाह को तो बचाइए किर नवाब साहब का मातम कीजजएगा। यह ककश्त और यह मात !
लाना हाथ !

बादिाह को शलये हुए सेना सामने से ननकल गयी। उनके जाते ही शमरर्ा ने किर बाजी त्रबछा दी। हार की चोट
बुरी होती है । मीर ने कहा- आइए, नवाब साहब के मातम में एक मरशसया कह डालें। लेककन शमरर्ा की राजभजतत
अपनी हार के साथ लुप्त हो चुकी थी। वह हार का बदला चुकाने के शलए अधीर हो रहे थे।

िाम हो गयी। खंडहर में चमगादड़ों ने चीखना िुरू ककया। अबाबीलें आ-आकर अपने-अपने घोसलों में श्रचमटीं। पर
दोनों खखलाड़ी डटे हुए थे, मानो दो खून के प्यासे सूरमा आपस में लड़ रहे हों। शमरर्ाजी तीन बाजजयााँ लगातार

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हार चुके थे; इस चौथी बाजी का रं ग भी अच्छा न था। वह बार-बार जीतने का दृढ़ ननश्चय करके साँभलकर खेलते
थे लेककन एक-न-एक चाल ऐसी बेढब आ पड़ती थी, जजससे बाजी खराब हो जाती थी। हर बार हार के साथ
प्रनतकार की भावना और भी उग्र होती थी। उधर मीर साहब मारे उमंग के गजलें गाते थे , चुटककयााँ लेते थे, मानो
कोई गुप्त धन पा गये हों। शमरर्ाजी सुन-सुनकर झाँुझलाते और हार की झेंप को शमटाने के शलए उनकी दाद दे ते
थे। पर ज्यों-ज्यों बाजी कमजोर पड़ती थी, धैयम हाथ से ननकला जाता था। यहााँ तक कक वह बात-बात पर झाँझ
ु लाने
लगे- जनाब, आप चाल बदला न कीजजए। यह तया कक एक चाल चले, और किर उसे बदल हदया। जो कुछ चलना
हो एक बार चल दीजजए; यह आप मुहरे पर हाथ तयों रखते हैं? मुहरे को छोड़ दीजजए। जब तक आपको चाल न
सूझे, मुहरा छुइये ही नहीं। आप एक-एक चाल आध घंटे में चलते हैं। इसकी सनद नहीं। जजसे एक चाल चलने में
पााँच शमनट से ज्यादा लगे, उसकी मात समझी जाय। किर आपने चाल बदली ! चुपके से मुहरा वहीं रख दीजजए।

मीर साहब का िरजी वपटता था। बोले- मैंने चाल चली ही कब थी?

शमरर्ा- आप चाल चल चुके हैं। मुहरा वहीं रख दीजजए- उसी घर में !

मीर- उस घर में तयों रख?


ूाँ मैंने हाथ से मुहरा छोड़ा ही कब था?

शमरर्ा- मुहरा आप कयामत तक न छोड़ें, तो तया चाल ही न होगी? िरजी वपटते दे खा तो धााँधली करने लगे।

मीर- धााँधली आप करते हैं। हार-जीत तकदीर से होती है , धााँधली करने से कोई नहीं जीतता?

शमरर्ा- तो इस बाजी में तो आपकी मात हो गयी।

मीर- मुझे तयों मात होने लगी?

शमरर्ा- तो आप मुहरा उसी घर में रख दीजजए, जहााँ पहले रतखा था।

मीर- वहााँ तयों रख?


ूाँ नहीं रखता।

शमरर्ा- तयों न रखखएगा? आपको रखना होगा।

तकरार बढ़ने लगी। दोनों अपनी-अपनी टे क पर अड़े थे। न यह दबता था न वह। अप्रासंश्रगक बातें होेेने लगीं ,
शमरर्ा बोले- ककसी ने खानदान में ितरं ज खेली होती, तब तो इसके कायदे जानते। वे तो हमेिा, घास छीला
करते, आप ितरं ज तया खेशलएगा। ररयासत और ही चीज है । जागीर शमल जाने से ही कोई रईस नहीं हो जाता।

मीर- तया? घास आपके अब्बाजान छीलते होंगे। यहााँ तो पीहढ़यों से ितरं ज खेलते चले आ रहे हैं।

शमरर्ा- अजी, जाइए भी, गाजीउद्दीन है दर के यहााँ बावरची का काम करते-करते उम्र गुजर गयी आज रईस बनने
चले हैं। रईस बनना कुछ हदल्लगी नहीं है ।

मीर- तयों अपने बुजुगों के मुाँह में काशलख लगाते हो- वे ही बावरची का काम करते होंगे। यहााँ तो हमेिा बादिाह
के दस्तरख्वान पर खाना खाते चले आये हैं।

शमरर्ा- अरे चल चरकटे , बहुत बढ़-बढ़कर बातें न कर।

मीर- जबान साँभाशलये, वरना बुरा होगा। मैं ऐसी बातें सुनने का आदी नहीं हूाँ। यहााँ तो ककसी ने आाँखें हदखायीं कक
उसकी आाँखें ननकालीं। है हौसला?

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शमरर्ा- आप मेरा हौसला दे खना चाहते हैं, तो किर, आइए। आज दो-दो हाथ हो जायाँ, इधर या उधर।

मीर- तो यहााँ तुमसे दबनेवाला कौन?

दोनों दोस्तों ने कमर से तलवारें ननकाल लीं। नवाबी जमाना था; सभी तलवार, पेिकब्ज, कटार वगैरह बााँधते थे।
दोनों ववलासी थे, पर कायर न थे। उनमें राजनीनतक भावों का अधःपतन हो गया था- बादिाह के शलए, बादिाहत
के शलए तयों मरें ; पर व्यजततगत वीरता का अभाव न था। दोनों जख्म खाकर श्रगरे , और दोनों ने वहीं तड़प-तड़पकर
जानें दे दीं। अपने बादिाह के शलए जजनकी आाँखों से एक बूाँद आाँसू न ननकला, उन्हीं दोनों प्राखणयों ने ितरं ज के
वजीर की रक्षा में प्राण दे हदये।

अाँधेरा हो चला था। बाजी त्रबछी हुई थी। दोनों बादिाह अपने-अपने शसंहासनों पर बैठे हुए मानो इन दोनों वीरों
की मत्ृ यु पर रो रहे थे !

चारों तरि सन्नाटा छाया हुआ था। खंडहर की टूटी हुई मेहराबें, श्रगरी हुई दीवारें और धल
ू -धस
ू ररत मीनारें इन लािों
को दे खतीं और शसर धुनती थीं।

ितरं ज के खखलाड़ी पाठ की भाषा िैली की वविेषता शलखखए


ितरं ज के खखलाड़ी यह कहानी भाषा की दृजष्ट से अन्य कहाननयों से शभन्न है इसमें अरबी िारसी के
िब्दों का प्रयोग ककया गया है साथ ही तत्सम और तद्भव िब्दों का भी इस्तेमाल है कहीं-कहीं अंग्रज
े ी
के िब्द भी है इस कहानी में हहंदी भाषा का एक शभन्न रूप है जजसे हहंदस्
ु तानी कहा जाता है हहंदस्
ु तानी
भाषा का वह रूप है जो हहंदी और अरबी, िारसी के लोक प्रचशलत सरल िब्दों के आधार पर बनी है
वस्तुतः यह कहानी की मांग है तयोंकक कहानी की पष्ृ ठभूशम और वातावरण के रूप में जजस स्थान और
समय को श्रचत्रत्रत ककया गया है वह है लखनऊ और वाजजद अली िाह का जमाना तब लखनऊ में
अश्रधकांि लोग उदम ू भाषी थे तथा राजकाज की भाषा भी फ़ारसी थी अतः कहानीकार के शलए यह
स्वाभाववक था कक तत्कालीन पररवेि के अनुसार भाषा का प्रयोग ककया जाए इस कहानी की भाषा पात्रा
अनुकूल और अथामत अथामत पात्रों के व्यजततत्व और उनकी भाव के अनुकूल है सभी पात्रों के संवाद से
उनके व्यजततत्व एवं उनकी सोच के बारे में पता चलतहै |

व्याकरण पयाायिाची, विलोम, एकाथी, अिेकाथी एिं शब्द यग्ु म (संकसलत)

पयाायिाची शब्द (Synonym)

पयामयवाची का अथम है - एक सा अथम बताने वाले िब्द।

पयामय का अथम होता है - दस


ू रा या शभन्न। पयामयवाची को समानाथी भी कहा जाता है ।

पररभाषाः- एक समान अथम बताने वाले िब्दों को पयामयवाची िब्द कहते हैं।

प्रत्येक िब्द की स्वतंत्र सत्ता होती है और उसका एक ननजश्चत अथम होता है। अतः एक िब्द
दस
ू रे िब्द का स्थान नहीं ले सकता है । िब्दों के अथों में और प्रयोग में कभी-कभी अंतर

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होता है। प्रसंग के अनुसार ही पयामयवाची िब्दों का प्रयोग ककया जाता है । उदाहरण -
‘हश्रथयार‘ िब्द के संदभम में ‘अस्त्र‘ और ‘िस्त्र‘ दोनों का प्रयोग होता हैं। पयामय होते हुए भी ये
दोनो िब्द समानाथी नहीं हो सकते, तयोंकक ‘अस्त्र‘ उन हश्रथयारों को कहते हैं, जजन्हें िेंककर
चलाया जाता है , और ‘िस्त्र‘ वा हैं, जो हाथ से पकड़कर चलाया जाता है।

इसी प्रकार यि और कीनतम - ‘यि‘ जीते जी प्राप्त होता है और ‘कीनतम‘ मरणोंपरांत प्राप्त होती
है।

पयामयवाची िब्द भाषा को समद्


ृ ध करते हैं।

पयाायिाची शब्दः

अजनन- आग, वजह्न, पावक, अनल, वायस


ु खा, दहन, धम
ू केतु, कृिान।ु

असरु - - दनज
ु , दानव, दै त्य, राक्षस, यातध
ु ान, ननशिचर, ननिाचर, रजनीचर।

अनप
ु म - अपव
ू ,म अनोखा, अद्भत
ु , अनठ
ू ा, अद्ववतीय, अतल
ु ।

अमत
ृ - पीयष
ू , सध
ु ा, अशमय, जीवनोदक।

अश्व - वाजज, हय, घोटक, घोड़ा, सैन्धव, तरु ग, तरु ं ग ।

आाँख - नेत्र, लोचन, नयन, चक्षु, दृग, अक्षक्ष, अम्बक, दृजष्ट, ववलोचन।

आकाि - व्योम, गगन, अभ्र, अम्बर, नभ, अन्तररक्ष, आसमान, अनन्त ।

आम - आम्र, रसाल, अमत


ृ िल, सहकार,

आनन्द - प्रमोद, हषम, आमोद, सख


ु , प्रसन्नता, उल्लास।

आश्रम - मठ, ववहार, कुटी, , अखाड़ा, संघ

इच्छा - आकांक्षा, ईप्सा, अशभलाषा, चाह, कामना, मनोरथ,

इंद्र - सुरपनत, मघवा, पुरन्दर, वासव, महे न्द्र,

कपड़ा - वस्त्र, पट, वसन, अम्बर, चीर

कमल - सरोज, जलज, पंकज, अरववन्द, पद्म,ितदल, सरशसज, नशलन

ककरण - अंिु, कर, रजश्म, प्रभा, अश्रचम

गणेि - ,गजानन ववनायक, एकदन्त, मूषकवाहन, गजवदन,गणपनत, ववघ्ननािक

गंगा - जाह्नवी, दे वनदी, सुरसररत, भागीरथी, मन्दाककनी

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घर - ननकेतन, भवन, सदन, आगार, आवास, गह

चन्द्र - चााँद, हहमांिु, सध


ु ांिु, सुधाकर, , राकेि, िशि

चोर - तस्कर, दस्यु, रजनीचर, मोषक,

जल - नीर, सशलल, पानी, अम्बु, तोय,वारर, पय, अमत


यमुना- सूयस
म ुता, सूयत
म नया, काशलन्दी, , कृष्णा ।

तालाब- सर, सरोवर, तड़ाग, पुष्कर, जलािय, पद्माकर।

दास - चाकर, सेवक, नौकर, भत्ृ य, पररचारक

दःु ख - पीड़ा, व्यथा, कष्ट, संकट, िोक, तलेि, वेदना, यातना, खेद

दे वता - सुर, अमर, दे व, ननजमर, ववबुध, त्रत्रदि, आहदत्य, गीवामण

द्रव्य - धन, ववत्त, सम्पदा, ववभूनत, दौलत, सम्पवत्त

नदी - सररता, तहटनी, ननझमररणी, कूलंकषा, तरं श्रगणी

नौका - नाव, तररणी, जलयान, जलपात्र,

पत्नी - भायाम, गहृ हणी, बहू, वध,ू प्राणवप्रया, अधामश्रगनी

पनत - भताम, वल्लभ, स्वामी, आयमपुत्र

हवा - वायु, समीर, मरुत ्, बयार, पवन।

पक्षी- ववहं ग, ववहग, खग, पखेरू, पररन्दा, श्रचडड़या, िकुन्त,

पवमत - भूधर, िैल, अचल, महीधर, श्रगरर, नग, पहाड़

पजडडत - सध
ु ी, ववद्वान ्, कोववद, मनीषी

पुत्र - -तनय, सुत, बेटा, लड़का, आत्मज, मनुज

पुत्री - तनया, सुता, बेटी, आत्मजा, दहु हता,

पथ्
ृ वी- इला, भूशम, धरा, धरती, धरणी, वसुधा, वसुन्धरा

पुष्प - िूल, सुमन, कुसुम, प्रसून

त्रबजली- चंचला, चपला, दाशमनी, तडड़त

िह्मा - आत्मभू, चतुरानन, वपतामह, हहरडयगभम, लोकेि, ववधाता।

वक्ष
ृ - तरु, द्रम
ु , पादप, ववटप, पेड़

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मछली - मत्स्य, झख, मीन, जलजीवन,

महादे व - िम्भु, ईि, पिुपनत, शिव, महे श्वर, िंकर, चन्द्रिेखर, हर, त्रत्रलोचन

मेघ - घन, जलघर, वाररद, बादल, नीरद, पयोद, अम्बुद, पयोधर

मुनन - अवधुत, संन्यासी, वैरागी, सन्त, शभक्षु, महात्मा, साध,ु

रात्रत्र - ननिा, रात, रै न, रजनी, याशमनी, ववभावरी,

राजा - नप
ृ , महीप, नरपनत, नरे ि, भूपनत, सम्राट्।

ववष्णु - गरुड़ध्वज, अच्युत, जनादम न, चक्रपाखण, मुकुन्द, नारायण,

समुद्र- सागर, जलश्रध, पारावार, शसन्धु नीरननश्रध, नदीि, पयोश्रध, अणमव

सरस्वती - िाह्मी, भारती, िारदा, वीणापाखण, वागीिा

सोना - सुवणम, स्वणम, कंचन, कनक, हहरडय

सपम - भुजंग, ववषधर, व्याल, नाग, सााँप

सूयम – हदनकर , रवव, भास्कर , सववता भानु

स्त्री - नारी ,वननता ,रमणी , महहला

विलोम शब्द -(ANTONYM / OPPOSITE)

ववलोम िब्द ककसे कहते हैं ? उदाहरण सहहत समझाईए।

ववलोम से आिय - ववपरीत अथम या उल्टा अथम।

पररभाषा - वे िब्द जो परस्पर ववपरीत आिय अशभव्यतत करें , ववलोम िब्द कहलाते हैं।
ववलोम िब्दों को ववरूद्धाथी या ववपरीताथमक िब्द भी माना जाता है।

विलोम शब्द के उदाहरणः-

कोमल- कठोर पक्ष-ववपक्ष दल


ु भ
म - सुलभ शमलन- ववरह

उदय-अस्त राग-द्वेष नूतन-पुरातन यि-अपयि

कृपण – दाता गरु


ु - लघु प्राचीन,परु ातन – नवीन, अवामचीन

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अिेकाथी शब्द

अनेकाथी िब्द ककसे कहते हैं? उदाहरण सहहत समझाइए।

हहन्दी भाषा में कुछ ऐसे िब्द होते हैं, जजनके एक से अश्रधक अथम होते हैं। ये िब्द
ववशभन्न प्रसंगों में वातयों में प्रयुतत होकर अलग-अलग अथम दे ते हैं। ये िब्द अनेकाथी िब्द
कहलाते हैं।

उदाहरण - कृष्ण - काला, भगवान कृष्ण, वेदव्यास

कर - हाथ, ककरण, टै तस, हाथी की सूाँड

हरर - इंद्र, ववष्णु, शसंह, वानर, सय


ू म

नाक - नाशसका, स्वगम, आसमान

अम्बर - आकाि, धतूरा

कनक - सोना, धतूरा

सौंधव - घोड़ा, नमक

वर - श्रेष्ठ, दल्
ू हा, वरदान

अिेक शब्दों (पदों) के सलए एक शब्द

जब ककसी वातय में प्रयोग ककए िब्दों के स्थान पर उसी भाव को प्रकट करने के शलए केवल
एक िब्द का प्रयोग ककया जाता है तो इसे अनेक िब्दों के शलए एक िब्द कहते है जैसे –
उपकार करने वाला में तीन िब्द है इसके स्थान पर एक िब्द उपकारी का प्रयोग करके उसी
भाव या अथम को अशभव्यतत कर सकते है | या कह सकते है कक कम से कम िब्दों में
अश्रधक से अश्रधक ववचारों या िब्द समूह को अशभव्यतत करना |

वातयखडड एक िब्द

जजसके पाखण (हाथ) में चक्र है चक्रपाखण (ववष्णु)

जजसके पाखण में वज्र है वज्रपाखण (इन्द्र)

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जजसके पाखण में वीणा है वीणापाखण (सरस्वती)

जजसके चार भुजाएाँ हैं चतुभज


ुम

जजसके दस आनन हैं दिानन (रावण)

जजसके आने की नतश्रथ (मालूम) न हो अनतश्रथ

जजसके िेखर पर चन्द्र हो चन्द्रिेखर (शिव)

जजसके समान द्ववतीय नहीं है अद्ववतीय

जजसके पार दे खा जा सके पारदिमक

जजसके पार दे खा न जा सके अपारदिमक

अध (नीचे शलखा हुआ अधोशलखखत

जो कहा ना जा सके अकथनीय

जो अक्षर पढ़ना जानता हो साक्षर

भववष्य में होने वाला भावी

आाँखों के सामने प्रत्यक्ष

जो नष्ट होने वाला हो नश्वर

जहााँ लोगों का शमलन हो सम्मलेन

इसके अलावा

समोच्चररत सभन्िाथाक शब्द (शब्द-युग्म)

हहन्दी में ऐसे अनेक िब्द है , जजनका उच्चारण मात्रा या वणम के कारण समान प्रतीत
होता है , ककन्तु अथम शभन्न या अलग होता है । इन िब्दों में सुक्ष्म अंतर होता है , ये उच्चारण
एवं वतमनी की दृजष्ट से इतने शमलते-जुलते है कक प्रयोगकताम उन्हें एक ही मान बैठते हैं,
जबकक उनका उथम एक-दस
ू रे से पूणत
म ः शभन्न होता है । ककन्तु इन्हें अनेकाथी िब्द नहीं माना
जाता है।

उदाहरणः-

अंस - कंधा

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अंि - भाग, हहस्सा

अशल - भ्रमर

आली - सखी

कुल - वंि

कूल - ककनारा

अननल - हवा

अनल - अजनन

प्रसाद - मंहदर का प्रसाद, कृपा

प्रसाद - भवन

सर - तालाब

िर - बाण, तीर

हहन्दी भाषा में बहुत बड़ी संख्या में पयामयवाची िब्द पाए जाते हैं परन्तु उनमें थोड़ा
बहुत अन्तर अवश्य होता है । इस प्रकार के सक्ष्
ु म अंतर वाले ककन्तु पयामयवाची प्रतीत होने
वाले कुछ - हहन्दी िब्द-युनम इस प्रकार है ।

अश्रधक - आवश्यकता

पयामप्त - आवश्यकता के अनुसार

अननवायम - जजसके त्रबना कायम संभव न हो।

आवश्यक - जरूरी

उत्साह - जोि

साहस - हहम्मत

कष्ट - सभी प्रकार के दःु ख

तलेि - मानशसक दःु ख

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युग्म शब्द (Word Combinations)

युनम िब्द ककसे कहते हैं? उदाहरण सहहत समझाइए-

यनु म का अथम - जोड़ा।

दो पयामयों के मेल से या दो ववपरीताथमकों के मेल से या दो साथमक - ननरथमक के मेल से भी


नए िब्दों का ननमामण होता है । ऐसे िब्द को युनमक िब्द कहते हैंः-

1. पयामय या पयामयवत ् युनम (शमलते-जुलते अथम वाले िब्द युनम) - ऐसे युनमों में दोनों
अंि परस्पर पयामयवाची या पयामय होते है जैसे -

काम-काज = काम (कायम) $ काज (कायम)

बाल-बच्चे = बाल (बालक) $ बच्चे (बालक)

बड़े-बढ़
ू े = बड़े (बड़ी आयु के) $ बढ़
ू े (बड़ी आयु के)

जैस-े तैसे , दे ख-भाल, मोटा-ताजा, मंगल-कुिल आहद।

2. ववपरीताथमक यनु म (ववलोम िब्द यनु म) - ऐसे यनु म के दोनों पद परस्पर ववपरीताथमक
िब्द या ववपरीत शलंग होते हैं। जैसे -

आना-जाना, राजा-रं क, जीवन-मरण, लाभ-हानन, गुण-दोष, महात्मा-दरु ात्मा।

3. साथमक-ननरथमक युनम- ऐसे युनमों में प्रायः एक पद साथमक होता है तथा दस


ू रा पद
ननरथमक होता है। जैसे

साथमक ननरथमक

चाय वाय

भीड़ भाड़

पतंग वतंग

अड़ोसी पड़ौसी

ठीक ठाक

लकड़ी वकड़ी

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पूछ ताछ

ध्वन्यात्मक या अनुकरण मूलक िब्द- मनुष्य अथवा पिु-पक्षक्षयों द्वारा अनेक प्रकार की
ध्वननयों को व्यतत ककया जात है । इन ध्वननयों को हहन्दी में प्रायः िब्द युनम द्वारा ही
शलखा व बोला जाता है। जो िब्द पहला होता है , वहीं दस
ू रा भी रहता है ।

उदाहरण - कााँव-कााँव, खट-खट, हटक-हटक, छप-छप।

5. उद्येश्य परक िब्द यनु म- इस प्रकार के िब्द युनम ककसी उद्येश्य वविेष को लेकर बनाए
जाते हैं। उद्येश्य धनात्मक भी हो सकता है और ऋणात्मक भी। इस प्रकार युनम कई तरह
के होते हैं।

(i) आवश्यकता और आवश्यकतापरक युनम

प्यास-पानी भूख-भोजन

(ii) ववकल्पों का युनम

चाय-काेिी रोटी-पराठा दही-छाछ आहद

(iii) तत्सम और तद्भव का युनम

दं त-दााँत कपाट-ककवाड़ आश्चयम- अचरज

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