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स्वतंत्रता पक
ु ारती कववता बय जयशंकर प्रसाद
हहमाहि तग
ुं शग
ं से
प्रबद्ध
ु शद्ध
ु भारती–
स्वतंत्रता पक
ु ारती–
प्रशस्त पण्
ु य पंथ है , बढ़े ििो, बढ़े ििो!’
असंख्य कीनतष-रजममयााँ
ववकीणष हदव्यदाह-सी,
सपत
ू मातभलू म के–
स्वतंत्रता पक
ु ारती कववता जयशंकर प्रसाद का सारांश आज संपण
ू ष दे श में जानतवाद, प्रांतीयतावाद आहद से
अनेकानेक समस्याएाँ पनप रही हैं। इस संदभष में ‘िंिगप्ु त’ का अधोलिखखत उद्धरण हमें अब भी नव-संदेश प्रदान
करने में समथष है – \‘मेरा दे श मािव ही नहीं, गांधार भी है । यही क्या, समग्र आयाषवतष है ।’11 इससे प्रसाद जी
राष्ट्र की अननवायषता को ही व्यंजजत करते हैं।’प्रसाद जी ने नारी पात्रों के माध्यम से राष्ट्रीय-भावना को आयष-
संस्कनत की ठोस जमीन पर प्रस्तत
ु ककया है । इस राष्ट्रीय-भावना के अंतगषत एकता, त्याग और आत्मोत्सगष की
भावना पाई जाती है । प्रसाद जी की कमिा, रामा, जयमािा और अिका स्वेदशानरु ाचगनी नाररयााँ हैं। अिका,
मजलिका जैसी नाररयााँ आज के पररप्रेक्ष्य में पथ-भ्रष्ट्ट यव
ु कों तथा व्यजक्तयों को अपनी कोमि एवं मधुर वाणी से
सन्मागष पर अवतररत कर सकती है । आज नारी ववलभन्न सामाजजक समस्याओं का लशकार बनती है । वह अपनी
अजस्मता के लिए संघर्षशीि है, किर भी स्वाथषिोिप
ु समाज में कहीं उसे भोनया मात्र माना गया है , तो कहीं उसका
जीवन दनध होता है ।