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नरक चतुर्द शी

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2017/10/18/%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A4%95-%E0%A4%9A
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भारत के कुछ भागों में नरकासुर की एक पौराणिक कथा का उल्लेख किया है । नरकासुर प्रागज्योतिषपुर
(वर्तमान-असम) के राजा थे।वे एक दष्ु ट असुर थे और महिलाओं को पकड़ने और उन्हें अपनी पत्नि बनाने के
लिए प्रयास करते थे । नरकासरु गंदगी का प्रतिक या गंदगी के दानव माना जाता था। स्वर्ग के दे वताओं श्री
कृष्ण से नरकासुर से छुटकारा पाने के लिए बिनती की और महिलाओं को बचा लेने का निवेदन किया । श्री
कृष्ण ने राक्षस के साथ लड़ाई लड़ी और उसे मार डाला। मौत के समय,असुर ने "हर कोई मेरी मत्ृ यु पर आनंद
मनाये " यह वरदान माँगा । भगवान कृष्ण ने उसे वरदान दिया।

जब श्री कृष्णा वह महिलाओं को बचाने के लिए गए तब महिलाओ ने यह कहा की राक्षस के साथ रहने से वे
अपवित्र हो गयी है । वे सभ्य समाज के लिए योग्य नहीं रही और कोई भी कभी उनसे शादी नहीं करे गा । इस
शर्म से उन्हें बचाने के क्रम में भगवान कृष्ण उन सबको अपनी पत्नी बनाने का निर्णय लिया। इस तरह १६००
महिलाओ कृष्ण की पत्नियों के रूप में सम्मान की जगह बहाल हुई ।

श्री कृष्ण घर लौटे तो वे पूरी तरह से असुर राज की गन्दगी से ढके हुए थे । इसलिए विशेष चंदन का लेप
बनाया गया सुगधि ं त तेलों से स्नान करवाया गया। आज तक, तेल या चंदन के लेप के साथ सुबह जल्दी
स्नान करना दिवाली के अनुष्ठान दीवाली का अभूतपूर्व अंग है ।
४. अन्य धार्मिक समुदायों के बीच भी दीवाली अलग अलग कारणों के लिए मनाई जाती है : जैन धर्म में , यह
दिन भगवान महावीर के निर्वाणा ( आध्यात्मिक जागति
ृ ) का प्रतीक है । सिख धर्म में गुरु हरगोबिंद जी ,
छठवे सिख गुरु कारावास से मुक्त इसी दिन पर किये गए थे।

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नरक चतर्द
ु शी के महत्वपर्ण
ू कृत्यों मे दीपदान का कृत्य है । इस दिन घर और बाहर दीप जलाने चाहिए। नाली पर दीपक
जरुर जलाना चाहिए। इस दिन यमराज के नाम से दीपक जला कर यमराज के सात नाम लेने चाहिए। कहते हैं की ऐसा
करने से नरक नहीं जाना पड़ता है । मदन पारिजात नामक ग्रन्थ ने वद्ध
ृ मनु के हवाले से यमराज के सात नाम एक श्लोक
में बताये हैं।

यमाय धर्मराजाय मृत्यवे चान्तकाय च |


वैवस्वताय कालाय सर्वभूतक्षयाय च ||
औदुम्बराय दध्नाय नीलाय परमेष्ठिने |
वृकोदराय चित्राय चित्रगुप्ताय ते नमः ||

यम नियन्त्रण- कर्त्ता शक्तियों को कहते हैं … जन्म- मरण की व्यवस्था करने वाली शक्ति को यम कहते हैं …
मत्ृ यु को स्मरण रखें , मरने के समय पश्चात्ताप न करना पड़े, इसका ध्यान रखें और उसी प्रकार की अपनी गतिविधियाँ
निर्धारित करें , तो समझना चाहिए कि यम को प्रसन्न करने वाला तर्पण किया जा रहा है …
राज्य शासन को भी यम कहते हैं …… अपने शासन को परिपुष्ट एवं स्वस्थ बनाने के लिए प्रत्येक नागरिक को, जो कर्तव्य
पालन करता है , उसका स्मरण भी यम तपर्ण द्वारा किया जाता है …
अपने इन्द्रिय निग्रहकर्त्ता एवं कुमार्ग पर चलने से रोकने वाले विवेक को भी यम कहते हैं … इसे भी निरं तर पुष्ट करते
चलना हर भावनाशील व्यक्ति का कर्तव्य है …… इन कर्तव्यों की स्मति
ृ यम- तर्पण द्वारा की जाती है ॥
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“मैं उन महापुरुषों का वंशधर हूँ, जिनके चरण कमलों पर प्रत्येक ब्राह्मण यमाय धर्मराजाय चित्रगुप्ताय वै
नमः का उच्चारण करते हुए पुष्पांजलि प्रदान करता है और जिनके वंशज विशुद्ध रूप से क्षत्रिय हैं। यदि
अपने पुराणों पर विश्वास हो तो, इन समाज सुधारकों को जान लेना चाहिए कि मेरी जाति ने पुराने जमाने
में अन्य सेवाओं के अतिरिक्त कई शताब्दियों तक आधे भारत पर शासन किया था। यदि मेरी जाति की
गणना छोड़ दी जाये, तो भारत की वर्तमान सभ्यता शेष क्या रहे गा? अकेले बंगाल में ही मेरी जाति में
सबसे बड़े कवि, इतिहासवेत्ता, दार्शनिक, लेखक और धर्म प्रचारक हुए हैं। मेरी ही जाति ने वर्तमान समय
के सबसे बड़े वैज्ञानिक (जगदीश चन्द्र बसु) से भारतवर्ष को विभूषित किया है । स्मरण करो एक समय था
जब आधे से अधिक भारत पर कायस्थों का शासन था। कश्मीर में दर्ल
ु भ बर्धन कायस्थ वंश, काबल
ु और
पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गज
ु रात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालक्
ु य कायस्थ
राजवंश, उत्तर भारत में दे वपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सातवाहन और परिहार
कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। अतः हम सब उन राजवंशों की संतानें हैं। हम केवल बाबू बनने के लिये
नहीं, अपितु हिन्दस्
ु तान पर प्रेम, ज्ञान और शौर्य से परिपूर्ण उस हिन्द ू संस्कृति की स्थापना के लिये पैदा
हुए हैं।संस्कृति की स्थापना के लिये पैदा हुए हैं।”

—स्वामी विवेकानन्द

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