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सिन्धु घाटी सभ्यता 

(3300 ईसापूर्व से 1700 ईसापूर्व तक, परिपक्व काल: 2550


ई.पू. से 1750 ई.पू.)
1. सिन्धु सभ्यता, सिन्धु घाटी की सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के नाम से जानी जाती है |

2. सिन्धु सभ्यता कांस्ययग


ु ीन सभ्यता थी |
3. हड़प्पा को वैदिक साहित्य में “हरियुपिया” कहा गया है ।

4. सिन्धु सभ्यता का नामकरण जान मार्शल ने किया था |

5. सिन्धु सभ्यता मेसोपोट्मिया की सभ्यता के समकालीन थी |

 6. सिन्धु सभ्यता जननी प्रधान थी |

7. उत्तर से दक्षिण दिशा में शव दफनायें जाते है |


8. लिपि की लिखावट दाहिने से बाएं ओर होती थी |

9.विषम स्नानागार एवं अन्नागार के अवशेष मोहन्जोदारो में मिले |

10.सिन्धु सभ्यता से प्राप्त हांथी एवं घोडा के साक्ष्य प्रमाणिक है |

11. सिन्धु सभ्यता में लोग पशुओं की भी पूजा करते थे, उमने प्रमुख
कूबड़ वाला सांड था |
12.सिन्धु घाटी के लोग मातद ृ े वी की उपासना करते थे |

13.चावल कि कृषि का साक्ष्य लोथल (गुजरात) से मिलता है |

14.सिन्धु सभ्यता की मुख्य उपज जौ तथा धान थी |


15.हवनकंु ड के अस्तित्व का साक्ष्य मिलता है |

16.सर्वप्रथम कपास उगने वाले सैन्धव निवासी थे |

17.चांदी का सर्वप्रथम प्रयोग सिन्धु वासियों ने किया |

18.सिन्धव
ु ासी लोहे से अपरिचित थे |

19.सड़के प्राय एक-दस


ु रे को समकोण पर काटती थी |

20. 400 वर्णों वाली सैन्धव लिपि चित्र प्रधान है |


21.सिन्धु सभ्यता के निवासी यातायात के लिए बैलगाड़ियों का प्रयोग
करते है |

22.सिंधु सभ्यता के मख्


ु य हथियार कुल्हाड़ी, गदा, कटार, भाला, धार वाली
तलवार व धनुष बाण थे |

23.यहाँ के निवासियों का मख्


ु य भोजन गें हू, जौ, दध
ू , फल और मछली का
मांस था |

24.सिन्धु सभ्यता में वक्ष


ृ पजू ा भी प्रचलित थी, पीपल को पवित्र पेड़
माना जाता है |

25.यहाँ के निवासियों का मख्


ु य व्यवसाय कृषि, पशप
ु ालन और व्यापार
था | 
महत्वपूर्ण शब्दों के अर्थ (पृष्ठ संख्या -17)

अतीत - बीता हुआ ।

अवशेष - बचे हुए चिन्ह ।

क्रांति – बदलाव ।

संदेह – शक ।

धर्मनिरपेक्ष - किसी विशेष धर्म में विश्वास ना करके सभी धर्मों को बराबर महत्व
देना ।
महत्वपूर्ण शब्दों के अर्थ (पृष्ठ संख्या -18)

अग्रदूत - सबसे आगे रहकर प्रेरित करना ।

नागर - नगरीय ।

धनाढ्य- अमीर।

श्रृंखला- कड़ी ।

अचरज- हैरानी ।
पुनरावृति प्रश्न
प्रश्न 1-सिन्धु घाटी के अवशेष किन किन स्थानों से प्राप्त होते हैं ?

प्रश्न 2-सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं क्या थी?

प्रश्न 3-सिंधु घाटी सभ्यता का किन-किन देशों से व्यापारिक संबंध था ?

प्रश्न4-खुदाई में प्राप्त किन चीजों से यह सिद्ध होता है कि सिंधु घाटी सभ्यता एक उन्नतशील सभ्यता थी?
वैदिक काल (आर्यों का भारत आना)

सिंधु घाटी सभ्यता के पश्चात भारत में जिस नवीन सभ्यता


का विकास हुआ उसे ही आर्य(Aryan) अथवा वैदिक सभ्यता
के नाम से जाना जाता है । इस काल की जानकारी हमे
मख्
ु यत: वेदों से प्राप्त होती है , जिसमे ऋग्वेद सर्वप्राचीन होने
के कारण सर्वाधिक महत्वपर्ण ू है ।
। वैदिक काल को दो कालों ऋग्वैदिक काल व उत्तर वैदिक काल में विभाजित किया
जाता है |

(1)    ऋग्वैदिक काल – (1500-1000 बी.सी.) - इस काल में लोगों को लोहे का ज्ञान नही हुआ

और वे कृषि बजाएँ मुख्यतः  पशुपालन पर निर्भर थे |

भारत में आर्यों के आगमन की जानकारी का मख्


ु य स्त्रोत ऋग्वेद है |
उत्तर वैदिक काल
इस काल में बहुदेववाद, वासुदेव सम्प्रदाय तथा षडदर्शनों
(सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा
तथा उत्तर मीमासां) का आरंभ हुआ।उत्तरवैदिक काल में
उपासना की पद्दति में यज्ञ एवं कर्मकांड प्रमुख हो गये ।
हालांकि इस काल में भी आर्य भौतिक सुखों की कामना हेतु
देवताओं से यज्ञ तथा प्रार्थनाएँ करते थे।
वैदिक साहित्य एक दृष्टि में
ऋगवेद : यह 10 किताबों से बना है और इसमे 1028 भजन हैं जिन्हे अलग अलग
ईश्वरों के लिए गाया गया है | मण्डल II से VII को पारिवारिक पुस्तक के नाम से
जानते थे क्यूंकि यह पारिवारिक कथाओं जैसे गत ृ समदा, विश्वामित्र, बामदे व, आरती,
भारद्व्जा और वसीष्ठा पर आधारित थे |

यजर्वे
ु द : यह राजनीतिक जीवन, सामाजिक जीवन, नियम और कायदों के बारे में
बताता है जिन्हे हमे मानना चाहिए | यह कृष्ण यजुर वेद और शुक्ल यजरु वेद म
विभाजित हैं
 
वैदिक साहित्य एक दृष्टि में

सामवेद :  यह कीर्तन व प्रार्थनाओं की


किताब है और इसमे 1810 भजन हैं |

अथर्ववेद :  यह जादईु वचनों , भारतीय


औषिधियों और लोक नत्ृ य पर आधारित है
|  
उपनिषद (ईसा पूर्व 800 के आस-पास)

उपनिषद वेदों का सार है। सार अर्थात निचोड़ या संक्षिप्त। उपनिषद भारतीय
आध्यात्मिक चिंतन के मूल आधार हैं, भारतीय आध्यात्मिक दर्शन के स्रोत हैं। ईश्वर
है या नहीं, आत्मा है या नहीं, ब्रह्मांड कै सा है आदि सभी गंभीर, तत्वज्ञान, योग,
ध्यान, समाधि, मोक्ष आदि की बातें उपनिषद में मिलेंगी। उपनिषदों को प्रत्येक हिन्दू
को पढ़ना चाहिए। इन्हें पढ़ने से ईश्वर, आत्मा, मोक्ष और जगत के बारे में सच्चा ज्ञान
मिलता है।
महा काव्य तथा इतिहास :-

प्राचीन काल में कवि ही महाकाव्यों के माध्यम से इतिहास


का संरक्षण भी करते थे। भारत में कई महाकाव्य लिखे गये
हैं। उन में रामायण तथा महाभारत का विशेष स्थान है।
क्योंकि रामायण तथा महाभारत ने भारत के जन जीवन
तथा उस की विचार धारा को अत्याधिक प्रभावित किया है।
रामायण
रामायण  की रचना ऋषि वाल्मीकि ने की है तथा यह विश्व साहित्य का
प्रथम ऐतिहासिक महा काव्य है। रामायण की कथा भगवान विष्णु के राम
अवतार की कथा है। राम का चरित्र कर्तव्य पालन में एक आदर्श पुत्र,
पति, पिता तथा राजा के कर्तव्य पालन का प्रत्येक स्थिति के लिये एक
कीर्तिमान है। 
महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति के


इतिहास वर्ग में आता है। इसे भारत भी कहा जाता है। यह काव्यग्रंथ
भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ
हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू
धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। 
सामाजिक ग्रंथ
सामाजिक जीवन से जुड़े प्रत्येक विषय पर कई मौलिक तथा
विस्तरित ग्रंथ उपलब्ध हैं जैसे कि आयुर्वेद, व्याकरण, योग
शास्त्र, कामसूत्र, नाट्यशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि।
 
श्रीमद् भागवद् गीता – 
मानव जीवन के हर पहलू से जुड़ी श्रीमद् भागवद् गीता सब से प्राचीन
दार्शनिक ग्रंथ है जो आज भी हर परिस्थिति में अपनाने योग्य है। गीता
समस्त वैदिक तथा उपनिष्दों के ज्ञान का सारांश है तथा सहज भाषा में
कर्तव्यपरायणता की शिक्षा देती है। यदि कोई किसी अन्य ग्रंथ को ना पढ़ना
चाहे तो भी पूर्णतया सफल जीवन जीने के लिये के वल गीता की दार्शनिक्ता
ही पर्याप्त है।
मनु स्मृति -:

मनु स्मृति विश्व में समाज शास्त्र के सिद्धान्तों का प्रथम ग्रंथ है। जीवन से जुडे़ सभी विषयों के बारे में मनु
स्मृति के अन्दर उल्लेख है। मनु स्मृति में सृष्टि पर जीवन आरम्भ होने से ले कर विस्तरित विषयों के बारे
में जैसे कि समय-चक्र, वनस्पति ज्ञान, राजनीति शास्त्र, अर्थ व्यवस्था, अपराध नियन्त्रण, प्रशासन,
सामान्य शिष्टाचार तथा सामाजिक जीवन के सभी अंगों पर विस्तरित जानकारी दी गई है।
अर्थशास्त्र
, कौटिल्य या चाणक्य (चौथी शती ईसापूर्व) द्वारा रचित
संस्कृ त का एक ग्रन्थ है। इसमें राज्यव्यवस्था, कृ षि,
न्याय एवं राजनीति आदि के विभिन्न पहलुओं पर विचार
किया गया है। अपने तरह का (राज्य-प्रबन्धन विषयक)
यह प्राचीनतम ग्रन्थ है। इसकी शैली उपदेशात्मक और
सलाहकार की है।
पुनरावृति प्रश्न
1. उपनिषदों का समय क्या माना जाता है?

2. भारत के दो प्रमुख महाकाव्य के नाम बताइए।

3. रामायण में किस की कथा वर्णित है?

4. महाभारत के रचयिता कौन थे?

5. भगवद्गीता में किसके बीच के संवाद वर्णित है?

6. अर्थशास्त्र के रचनाकार का नाम बताइए।


जातक या जातक पालि या जातक कथाएं बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक का सुत्तपिटक अंतर्गत खुद्दकनिकाय का १०वां भाग हैं। इन कथाओं में
भगवान बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथायें हैं। जो मान्यता है कि खुद गौतमबुद्ध जी के द्वारा कही गए हैं, हालांकि की कु छ विद्वानों का
मानना है कि कु छ जातक कथाएँ, गौतमबुद्ध के निर्वाण के बाद उनके शिष्यों द्वारा कही गयी हैं। प्रत्येक कथा में महात्मा बुद्ध का एक
संदेश छिपा है। इनसे सिद्ध होता है कि प्राणी के सद्कार्य उसे किसी न किसी जन्म में अवश्य ही बुद्ध बना देते हैं। प्रत्येक व्यक्ति बुद्ध
बन सकता है। वह उस संभावना को कै से दिशा दे, यह भी बताती हैं ये कहानियां। बुद्ध ने कर्मों पर जोर दिया है। इसलिए इन
कहानियों में यह भी दिया गया है कि कौन से कर्म करने योग्य हैं और किन्हें नहीं करना चाहिए। इस प्रकार प्रस्तुत पु्स्तक में महात्मा
बुद्ध द्वारा कही गई ऐसी कथाएं हैं जो व्यक्ति को नैतिकता सत्य, धर्म, प्रेम और भाईचारे का संदेश देती हैं।

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