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भारत का भूगोल (2022) by PCS Mantra
भारत का भूगोल (2022) by PCS Mantra
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PCS Mantra भारत का भगू ोल राज होल्कर (+919650697922)
भारत की अवलथिलत :
• भारत की आकृ तत चतुष्कोणीय है। भारत, अक्ाांशीय दृति से उत्तरी गोलार्द्ध में तथित है तिा देशान्तरीय दृति
से पर्वू ी गोलार्द्ध में तथित है।
• भारत का उत्तर-दतक्ण तर्वथतार 3,214 तकमी. तिा पूर्वध-पतिम की चौड़ाई 2,933 तकमी. है। दोनों के बीच
का अांतर 281 तकमी. है।
• भारत की जलर्वायु मानसनू ी है इसका तर्वथतार उष्ण तिा उपोष्ण दोनों कतिबधां ों में है।
क्षेत्रफल:
• भारत का क्ेत्रफल 32,87,263 र्वगध तकमी. (तर्वश्व के क्ेत्रफल का 2.42 प्रततशत) है।
• क्ेत्रफल की दृति से भारत का लवश्व में थिान सातवााँ है (रूस, कनाडा, चीन, अमेररका, ब्राजील एर्वां
ऑथरेतलया के बाद) ।
भौगोललक लवथतार:
• भारत के मुख्य थिलीय भू-भाग का अक्ाांशीय तर्वथतार 8°4’ से 37°6’ उत्तरी अक्ाांश एर्वां 68°7’ से
97°25’ पूर्वी देशाांतर के मध्य है।
• भारत भूमध्य रे खा के उत्तर में 6°4’ से 37°6’ उत्तरी अक्ाांश एर्वां 68°7 से 97°25’ पूर्वी देशाांतर के मध्य
तथित है।
• भारत का दतक्णतम तबांदु इांतदरा पॉइिां (6°4’) पर अर्वतथित है।
मानक समय रेखा:
• 82°1/2 पूर्वी देशाांतर भारत के लगभग मध्य से इलाहबाद के नैनी से होकर गुजरती है। इसे भारत का मानक
समय माना जाता है।
• भारत का मानक समय ग्रीनतर्वच समय से 5 घांिा 30 तमनि आगे है।
• मानक समय रे खा तजन राज्यों से होकर गुजरती है र्वे राज्य – उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़,
ओलिशा एवं आन्ध्रप्रदेश।
ककक रेखा: ककध रे खा भारत के मध्य से होकर गुजरती है। ककध रे खा भारत के आठ राज्यों से होकर गुजरती है। र्वे
राज्य तजनसे ककध रे खा गुजरती है – गुजरात, राजथिान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंि, पलिम बंगाल,
लत्रपुरा एवं लमजोरम
थिलीय सीमा:
• भारत की थिलीय सीमा की लांबाई 15,200 तकमी. है तिा भारत की मुख्य भूतम की तिीय सीमा की लांबाई
6100 तकमी है।
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• द्वीपों सतहत भारत की कुल तिीय सीमा की लांबाई 7,516.6 तकमी. है।
• भारत की कुल सीमा की लांबाई 22,716.6 तकमी. {15,200 (थिलीय सीमा) + 7,516.6 (तिीय
सीमा)}है।
जलीय सीमा :
1. प्रादेतशक समुद्री सीमा (Maritime Belt) : भारत की आधार रे खा से 12 समुद्री मील तक तर्वथतृत है। इस
क्ेत्र के सम्पूणध उपयोग करने के अतधकार भारत को प्राप्त हैं।
2. सांलग्न क्ेत्र (Contiguous Zone): भारत की आधार रे खा से 24 समुद्री मील तक तर्वथतृत है। इस क्ेत्र में
भारत को साफ़-सफाई, सीमा शुल्क की र्वसूली एर्वां तर्वत्तीय अतधकार प्राप्त हैं।
3. अनन्य आतिधक क्ेत्र (Exclusive Economic Zone) : भारत की आधार रे खा से 200 समद्रु ी मील तक
तर्वथतृत है। इस क्ेत्र में भारत को र्वैज्ञातनक अनुसांधान एर्वां नए द्वीपों के तनमाधण तिा प्राकृ ततक सांसाधनों के
तर्वदोहन के अतधकार प्राप्त हैं।
भारत के चतलु दकक सीमा के अलं तम लबदं ु :
• दतक्णतम तबांदु : इतां दरा पॉइिां (ग्रेि तनकोबार द्वीप) उत्तरतम तबांदु : इतां दरा कॉल (जमू-कश्मीर)
• पतिमोत्तर तबांदु : गौरमोता (गुजरात) पूर्वोत्तम तबांदु : तकतबिू (अरुणाचल प्रदेश)
भारत के पिोसी देशों के साि संलग्न सीमा रे खा :
• भारत-बाग्ं लादेश सीमा (4096.7 लकमी.) [सवाकलिक] : भारत के पााँच राज्य – असम, मेघालय,
लत्रपुरा, लमजोरम तिा पलिम बंगाल की सीमा बाांग्लादेश को थपशध करती है। बाांग्लादेश से थपशध करती
हुई सर्वाधतधक लांबी सीमा रे खा प. बांगाल (2217 तकमी.) की है।
• भारत-चीन सीमा (3,488 लकमी.) : भारत के पाांच राज्य / कें द्र शातसत प्रदेश – लहमाचल प्रदेश,
लद्दाख, उत्तराखंि, लसलककम एवं अरुणाचल प्रदेश की सीमा चीन से लगती है। इस सीमा रे खा की
सर्वाधतधक लबां ाई अरुणाचल प्रदेश में है।
• भारत-पाक सीमा (3,323 लकमी.) : भारत के पाांच राज्य / कें द्र शातसत प्रदेशों की सीमा पातकथतान को
थपशध करती है ये राज्य / कें द्र शातसत प्रदेश जम्मू-कश्मीर, राजथिान, लद्दाख, पंजाब एवं गुजरात हैं।
पालकथतान के साि सवाकलिक लबं ी सीमा रेखा राजथिान की है।
• भारत-नेपाल सीमा (1,751 लकमी.) : भारत के पाांच राज्य – उत्तराखंि, उत्तर प्रदेश, लबहार, प. बंगाल
एवं लसलककम नेपाल की सीमा को थपशध करते हैं। इन राज्यों में तबहार, नेपाल के साि सर्वाधतधक लम्बी
(729 तकमी.) सीमा बनाता है।
• भारत-म्यामं ार सीमा (1,643 लकमी.) : भारत के चार राज्यों – अरुणाचल प्रदेश, नागालैंि, मलणपुर
तिा लमजोरम की सीमा म्याांमार की सीमा रे खा को थपशध करती है। इस सीमा की सर्वाधतधक लम्बाई
अरुणाचल प्रदेश (520 तकमी.) में है।
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• भारत-भूटान सीमा (699 लकमी.) : भारत के चार राज्यों – लसलककम, प. बंगाल, असम एवं
अरुणाचल प्रदेश की सीमा भूिान की सीमा रे खा को थपशध करती है। सर्वाधतधक लम्बाई असम (267
तकमी.) के साि
• भारत-अफगालनथतान सीमा (106 लकमी.): कें द्र शातसत प्रदेश लद्दाख से सीमा लगती है।
लवलभन्ध्न देशों के साि अंतराकष्ट्रीय सीमा बनाने वाले राज्य / कें द्र शालसत प्रदेश :
• बांग्लादेश : पतिम बांगाल, मेघालय, तमजोरम, तत्रपुरा एर्वां असम
• चीन : लद्दाख, तहमाचल प्रदेश, उत्तराखडां , तसतककम एर्वां अरुणाचल प्रदेश
• पालकथतान : गुजरात, राजथिान, पांजाब, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख
• नेपाल : उत्तर प्रदेश, तबहार, पतिम बांगाल, तसतककम एर्वां उत्तराखांड
• म्यामं ार : अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, तमजोरम एर्वां मतणपरु
• भूटान : पतिम बांगाल, तसतककम, अरुणाचल प्रदेश एर्वां असम
• अफगालनथतान : लद्दाख
भारत की अंतराकष्ट्रीय सीमाएं :
• िूरंि रेखा : पातकथतान एर्वां अफगातनथतान के बीच
• मैक-मोहन रेखा : भारत एर्वां चीन के बीच
• रेिलकलफ रेखा : भारत और पातकथतान के बीच
• शून्ध्य रेखा : तत्रपुरा एर्वां बाांग्लादेश के बीच
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भू-गभीय सांरचना की दृति से भारतीय उपमहाद्वीप को चार भौततक तर्वभागों में बाांिा जा सकता है –
मध्य जीर्वकल्प (Mesozoic) के अतां में गोंडर्वाना भतू म तिा अगां ारा भतू म के बीच तथित िेतिस सागर का
तल प्रदेश भूगभध की हलचलों के कारण ऊपर उठने लगा। उठते-उठते उसके जल ने गोंडर्वाना भूतम के कुछ तनचले
प्रदेशों को आर्वृत कर तलया। इसी के साि गोंडर्वाना महाद्वीप तर्वथिापन के प्रभार्व से िूि गया और उसके थिान पर
तहन्द महासागर की सृति हुई, परन्तु िेतिस सागर के तल प्रदेश का उत्िान इतने पर भी समाप्त नहीं हुआ। तर्वथिापन
के कारण एर्वां र्वलन के कारण भारतीय प्लेि यूरेतशयन प्लेि के साि तनरांतर र्वतलत होती रही और िेतिस सागर का
तल प्रदेश अतधकातधक ऊांचा उठता गया। पररणामथर्वरूप कुछ ऐसी पर्वधत श्रेतणयाां बनी तजन्हें हम चीन से लेकर
यरू ोप तक फै ली हुई पाते हैं। इन्हें अल्पाइन समहू की पर्वधत श्रेतणयाां भी कहते हैं तजसका तहमालय पर्वधत एक भाग है।
तहमालय की उत्पतत्त ितशधयरी काल में हुई।
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तहमालय तर्वश्व की नर्वीनतम मोडदार या र्वतलत पर्वधतमाला है। कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक तहमालय
पर्वधत श्रृांखला 2500 तकमी. लम्बाई में फै ली हुई है। पूर्वध में इसकी चौड़ाई 150 तकमी. तिा पतिम में 500 तकमी. है।
तहमालय पर्वधत श्रृख ां ला की औसत ऊाँचाई 6000 मीिर है। तहमालय पर्वू ध की अपेक्ा पतिम में अतधक चौड़े होने का
कारण पतिम की अपेक्ा पूर्वध में दबार्व बल का अतधक होना है। दबार्व बल अतधक होने के कारण ही पूर्वी तहमालय
पतिमी तहमालय की अपेक्ा अतधक ऊांचा है।
उत्तरी पर्वधतीय प्रदेश को तीन भागों में बााँिा जा सकता है –
1. रासां तहमालय या ततब्बत तहमालय प्रदेश
2. तहमालय पर्वधतीय प्रदेश
3. पर्वू ाांचल की पहातड़याां
रास
ं लहमालय या लतब्बत लहमालय प्रदेश:
• राांस तहमालय मूलतः यूरेलशयन प्लेट का एक खांड है। इसका तनमाधण तहमालय से पूर्वध हो चक ु ा िा।
• पतिम में यह श्रेणी पामीर की गााँठ से तमल जाती है। इसका मुख्य तर्वथतार जम्मू-कश्मीर राज्य में तिा ततब्बत
में है।
• ततब्बत में तथित होने के कारण इसे लतब्बत लहमालय प्रदेश भी कहा जाता है।
• यह अवसादी चट्टानों से बना है। इसमें ितशधयरी से लेकर कै तम्ब्रयन युग तक की चट्टानें पायी जाती हैं।
• राांस तहमालय, र्वृहद तहमालय से शचर जोन या लहन्ध्ज लाइन के द्वारा अलग होता है।
• इसकी लबां ाई लगभग 965 तकमी. है। इस भाग में र्वनथपतत का अभार्व है।
रांस लहमालय की श्रेलणयां:
A. काराकोरम श्रेणी: यह भारत का सबसे उत्तरी पवकत है। इसे उच्च एतशया की रीढ़ भी कहते हैं। भारत
की सबसे ऊांची चोिी ‘गॉिलवन ऑलथटन (K-2)’ इसी में तथित है। काराकोरम श्रेणी की नूब्रा घािी में
तसयातचन ग्लेतशयर तथित है।
B. लद्दाख श्रेणी: यह काराकोरम के दतक्ण में तथित है। लद्दाख श्रेणी का पूर्वी भाग कै लाश श्रेणी (ततब्बत,
चीन) है। तर्वश्व की सबसे खड़ी ढाल र्वाली चोिी ‘राकापोशी’ इस श्रेणी की सर्वोच्च पर्वधत चोिी है।
C. जांथकर श्रेणी: यह लद्दाख के दतक्ण एर्वां महान तहमालय के उत्तर में तथित है। लद्दाख श्रेणी एर्वां जाथां कर
श्रेणी के बीच तसन्धु नदी घािी तथित है। इसका तर्वथतार जम्मू-कश्मीर एर्वां उत्तराखांड राज्यों में है। ‘नंगा
पवकत’ इस पर्वधत श्रेणी की सबसे ऊांची चोिी है।
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• इसे तहमातद्र या सर्वोच्च या महान अिर्वा आतां ररक तहमालय भी कहते हैं।
• इसका आांतररक भाग आतकध यन शैलों जैसे – ग्रेनाइि, नीस तिा तशि शैलों से बना हुआ है तिा इसके तसरे
एर्वां पि भागों में कायाांतररत अर्वसादी शैल पायी जाती हैं।
• यह पलिम में नंगा पवकत से पूवक में नामचा बरवा पवकत तक एक चाप की भााँती फै ला हुआ है।
• लवश्व की सवाकलिक ऊंची चोलटयााँ जैसे – माउांि एर्वरे थि, कांचनजगां ा, धौलातगरी, अन्नपणू ाध, मकालू, नांदा
देर्वी, तत्रशूल, बद्रीनाि, नीलकांठ एर्वां के दारनाि आतद इसी श्रेणी में पायी जाती हैं।
• माउंट एवरेथट (चोमो लुन्ध्गमा) या सागरमािा इसकी सबसे ऊांची चोिी है।
• इस श्रेणी के मध्य भाग से गगं ा, यमनु ा और उसकी सहायक नतदयााँ आतद का उद्गम है।
• र्वृहद तहमालय, मध्य तहमालय से मेन सेन्ध्रल थ्रथट के द्वारा अलग होता है।
अन्ध्य तथ्य:
तहमालय का सर्वोच्च तशखर: माउांि एर्वरे थि (इसे ततब्बत में चोमोलगां मा एर्वां नेपाल में सागरमािा कहा जाता
है) इसकी र्वतधमान ऊाँचाई 8,848.86 मीिर (तदसांबर, 2020 तक) है।
भारत का सर्वोच्च तशखर: गॉडतर्वन ऑतथिन (माउांि K-2) है। यह पाक अतधकृ त कश्मीर में तथित है।
भारत में तथित तहमालय की सबसे ऊांची चोिी: कांचनजघां ा (तसतककम और नेपाल की सीमा पर तथित) है।
महान तहमालय या र्वृहत तहमालय में पूर्वध की तुलना में पतिमी भाग में तहमरे खा की ऊाँचाई अतधक है इसका
कारण पतिमी भाग का अतधक शुष्क होना है।
इस पर्वधत श्रेणी में तथित दरे : बतु जधल दराध (कश्मीर), जोतजला दराध (लद्दाख), बारा लाप्चा ला (तहमाचल प्रदेश),
तशपकी ला (तहमाचल प्रदेश), िाांगला (उत्तराखांड), नािुला एर्वां जेलेप ला (तसतककम)
• इसका तर्वथतार मख्ु य तहमालय के दतक्ण में है। ये पर्वधत प्री-कै तम्ब्रयन तिा पैतलयोजोइक चट्टानों से बने हुए
हैं। पीरपंजाल श्रेणी इसका पतिमी तर्वथतार है।
• इसकी चौड़ाई 80 से 100 तकमी. के बीच है। इसकी ऊांचाई 3700 से 4500 मीिर के बीच है।
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• इसके ढालों पर कोंणधारी र्वन तिा छोिे-छोिे घास के मैदान पाए जाते हैं तजन्हें कश्मीर में मगक (जैसे-
गुलमगक, सोनमगक) एर्वां उत्तराखंि में बुग्याल और पयार कहते हैं तिा मध्यर्वती भागों में दुआर एवं दून
कहते हैं (जैसे – हररद्वार एर्वां देहरादनू )।
• लववतकलनकी दृलि से यह तहमालय प्रायः शांत है।
• भारत के प्रतसर्द् थर्वाथ्यर्वधधक थिान जैसे – लशमला (िौलािार श्रेणी में लथित) , मसूरी, नैनीताल,
रानीखेत, दालजकललंग आतद लघु तहमालय के तनचले भाग में अिाधत लघु तहमालय और तशर्वातलक श्रेणी
के बीच में तथित हैं।
• मध्य तहमालय तिा तशर्वातलक तहमालय के बीच मेन बाउंड्री फॉल्ट पायी जाती है।
• लघु तहमालय के अांतगधत कई छोिी-छोिी श्रेतणयाां हैं जो तनम्नतलतखत हैं –
o पीरपांजाल श्रेणी धौलाधार श्रेणी
o नागतिब्बा श्रेणी महाभारत श्रेणी
C. लशवाललक श्रेणी या बाह्य लहमालय:
• यह तहमालय की सबसे बाहरी एवं नवीनतम श्रेणी है। इसका तनमाधण काल मध्य मायोसीन से तनम्न
प्लीथिोसीन अिाधत सेनेजोइक युग में माना जाता है।
• तशर्वातलक श्रेणी लघु तहमालय के दतक्ण में अर्वतथित है। इसका तर्वथतार पतिम में पजां ाब के पोतर्वार बेतसन
से प्रारांभ होकर पूर्वध में कोसी नदी तक है।
• यह तहमालय पर्वधत श्रृांखला का नर्वीनतम भाग है। इसे गोरखपुर के समीप ‘हंिवा श्रेणी’ तिा पूर्वध में ‘चूररया
मरू रया श्रेणी’ कहा जाता है।
• तशर्वातलक को अरुणाचल प्रदेश में डफला, तमरी, अबोर और तमशमी पहातड़यों के नाम से जाना जाता है।
• तशर्वातलक को लघु तहमालय से अलग करने र्वाली घातियों को पतिम में दनू एर्वां पूरब में द्वार कहते हैं।
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पूवाांचल की पहालियां:
ये भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में फै ली हैं। इनमें से कई भारत एर्वां म्याांमार की सीमा रे खा के साि फै ली हैं तिा कई
देश के आतां ररक तहथसे में हैं। जैसे – पिकई बमु , नागा पहातड़याां तिा तमजो पहातड़याां आतद।
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भारत के प्रमख
ु दरे (Passes) :
दरे का नाम सबं लं ित राज्य लवशेषता
चाांग ला लद्दाख
काराकोरम दराध लद्दाख भारत का सबसे ऊांचा दराध (5,664 मी. ऊाँचाई पर)
जोजीला दराध लद्दाख (जाथकर श्रीनगर – लेह मागध इसी से गुजरता है।
श्रेणी में)
बुतजधल दराध जम्मू-कश्मीर श्रीनगर को तगलतगत से जोड़ता है।
पीर पांजाल दराध जम्मू-कश्मीर
बतनहाल दराध जम्म-ू कश्मीर जम्मू से श्रीनगर मागक इसी से गजु रता है। इसी दरे पर जवाहर
सुरंग का तनमाधण तकया गया है।
तशपकीला दराध तहमाचल प्रदेश यह लशमला को लतब्बत से जोड़ता है। सतलज नदी इसी दरे से
(जाथकर श्रेणी में) होकर भारत में प्रवेश करती है। यह दराध भारत-चीन के मध्य
व्यापाररक मागध है।
देब्सा दराध तहमाचल प्रदेश कुल्लू तजले को थपीतत से जोड़ता है।
लुांगला चा दराध तहमाचल प्रदेश लेह (लद्दाख) को मनाली से जोड़ता है।
रोहतागां दराध तहमाचल प्रदेश
(पीरपांजाल श्रेणी में)
बाड़ालाचा दराध तहमाचल प्रदेश लेह (लद्दाख) को मांडी (लाहौल) से जोड़ता है।
(जाथकर श्रेणी में)
माना दराध उत्तराखांड (कुमाांऊ
गढ़वाल (उत्तराखंि) को लतब्बत से जोड़ता है। इस दरे पर तथित
श्रेणी में) देर्वताल झील से सरथर्वती नदी तनकलती है।
नीतत दराध उत्तराखांड इस दरे से मानसरोवर कै लाश यात्रा की जाती है।
तलपू लेख दराध उत्तराखांड उत्तराखंि को लतब्बत से जोड़ता है।
नािू ला दराध तसतककम (डोगेकया यह ततब्बत जाने का मागध देता है। यह भारत-चीन का व्यापाररक
श्रेणी में ) मागध भी है।
डोंतकया दराध तसतककम भारत की सर्वाधतधक ऊांचाई पर तथित झील चोलाम इसी पर
अर्वतथित है।
जेलेप ला दराध तसतककम ततब्बत जाने का मागध देता है।
बोमतडला दराध अरुणाचल प्रदेश ल्हासा (ततब्बत) जाने का मागध इसी से होकर गुजरता है।
याांग्दाप दराध अरुणाचल प्रदेश इस दरे के तनकि से ब्रह्मपुत्र नदी भारत में प्रर्वेश करती है।
तदफू दराध अरुणाचल प्रदेश के भारत-म्याांमार के मध्य पररर्वहन तिा व्यापार को सुगम बनाता है।
पास
पागां साऊ दराध अरुणाचल प्रदेश
तुजू दराध मतणपुर इम्फाल से म्याांमार जाने का मागध इससे गुजरता है।
िाल घाि दराध महाराष्र मबुं ई-नागपरु -कोलकाता रे लमागध गजु रता है।
भोर घाि दराध महाराष्र मुंबई को पुणे से जोड़ता है।
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पाल घाि दराध के रल कालीकि-तत्रचरू से कोयांबिूर-इडां ोर रे ल एर्वां सड़क मागध गुजरता है।
िाांग ला दराध उत्तराखांड
सेन कोट्टा दराध के रल तलमलनािु को के रल से जोड़ता है।
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उत्तर का
तर्वशाल मैदान
पलिमी मैदान:
A. लसन्ध्िु का मैदान: भारत में इसका सतलज बेतसन ही आता है अतः भारत में इसे सतलज का मैदान भी कहते
हैं।
B. पंजाब-हररयाणा का मैदान: यह पतिम में तथित मैदानी भाग है जो पांजाब एर्वां हररयाणा में फै ला हुआ है। इसमें
सतलज, व्यास एवं रावी नतदयााँ बहती हैं। यह मुखतः बागां र से तनतमधत है लेतकन नतदयों के तकनारे एक सकां री पट्टी
में खादर भूतम भी पायी जाती है तजसे थिानीय भार्ा में ‘बेट’ कहा जाता है। इस मैदान में पााँच दोआब तथित हैं जो
तनम्नतलतखत हैं –
दोआब अर्वतथितत
लबथट दोआब व्यास एर्वां सतलज के बीच
बारी दोआब व्यास एर्वां रार्वी के बीच
रचना दोआब रार्वी और तचनाब के बीच
चाज दोआब तचनाब और झेलम के बीच
लसंि सागर दोआब झेलम-तचनाब एर्वां तसन्धु के बीच
C. राजथिान का मैदान: इसका तर्वथतार अरार्वली के पतिम से लेकर भारत-पातकथतान की सीमा तक है। यहााँ की
प्रमखु नदी ‘लनू ी’ है जो कच्छ के रन में तर्वलीन हो जाती है। सााँभर, िीिवाना, पचपदरा आतद इस मैदान की
प्रमुख नमकीन झीलें हैं। सााँभर झील, भारत की सबसे बिी अन्ध्तः थिलीय (Inland) नमकीन झील है।
पूवी मैदान:
A. गंगा का मैदान: इस मैदान का तर्वथतार उत्तर प्रदेश, लबहार एवं पलिम बंगाल राज्यों में है। इस मैदान की
गहराई अतधक है। गांगा के मैदान को धरातल के तर्वचार से दो भागों में बाांिा गया है –
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बागं र: यह प्राचीन जलोढ़ लमट्टी से लनलमकत मैदान है। खादर की तुलना में यह अलिक ऊंचा होता है। इस
प्रदेश में बाढ़ का पानी सामान्यतः नहीं पहुचाँ पाता। बाांगर तमट्टी के कुछ क्ेत्रों में अत्यतधक तसांचाई के कारण
कहीं-कहीं भतू म पर नमक की सफ़े द परत जम जाती है तजसे ‘रेह’ या ‘कल्लर’ कहते हैं। बागां र भतू म को दो
क्ेत्रीय तर्वभेद कर सकते हैं –
बाररंद मैदान: बांगाल के डेल्िाई क्ेत्रों में तथित यह र्वाथततर्वक रूप से गांगा का प्राचीन डेल्िा है।
भरू (Bhur) क्षेत्र: इसका तनमाधण हर्वा द्वारा तनक्ेपण से हुआ है। यह आज बागां र उच्च भतू म पर एक
लगातार किक के रूप में पाया जाता है। इसमें बालू की मात्रा अतधक पायी जाती है।
खादर: यह नवीन जलोढ़ के जमा होने से बना है। यह अपेक्षाकृत नीचा प्रदेश होता है। यहााँ नतदयों की
बाढ़ का पानी लगभग प्रततर्वर्ध पहुचाँ ता है तजससे यह उपजाऊ बना रहता है। तबहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश एर्वां पतिम
बांगाल के र्वैसे प्रदेश जो नदी घातियों से सिे हैं, खादर के अांतगधत आते हैं। पांजाब में यह ‘बेट’ कहलाता है।
B. ब्रह्मपत्रु का मैदान: इसको असम घािी भी कहते हैं। यह मेघालय पठार और लहमालय पवकत के बीच में
एक लम्बा और पतला मैदान है। यह के र्वल 80 तकमी. चौड़ा है ब्रह्मपुत्र नदी ने इस घािी को बनाने में यहााँ पर भारी
मात्रा में तमट्टी का तर्वसजधन तकया है तमट्टी के इस जमार्व के कारण कहीं कहीं द्वीप भी तनतमधत हो गए हैं। माजुली द्वीप
इसी प्रकार का द्वीप है जो लवश्व का सबसे बिा नदी द्वीप है। ब्रह्मपुत्र नदी सातदया के तनकि मैदान में प्रर्वेश करती
है और 720 तकमी. बहने के पर धुबरी के तनकि दतक्ण की ओर मुड़कर बाांग्लादेश में प्रर्वेश कर जाती है।
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A. अरावली पवकत: यह एक अवलशि पवकत है। यह तर्वश्व के प्राचीनतम मोिदार पवकतों में से एक है।
अरार्वली की लांबाई 1100 तकमी. है। यह लदल्ली से अहमदाबाद तक फै ला हुआ है। यह मालर्वा के पठार के उत्तर
पतिम में तथित है। अरार्वली पर्वधत का सवोच्च लशखर ‘गरुु लशखर’ है।
B. मध्यवती उच्च भलू म:
• मालवा का पठार: यह पठार नमधदा और ताप्ती नतदयों एर्वां तर्वांध्याचलपर्वधत के उत्तर-पतिम में फै ला हुआ
है। इसकी ऊाँचाई 800 मीिर है। यह ग्रेनाइि जैसी कठोर चट्टानों से बना है। लार्वा तनक्ेपों से तनतमधत काली
तमट्टी यहााँ पायी जाती है। यहााँ बहने र्वाली प्रमुख नतदयााँ – बनास, चंबल, लसंि, माही एवं बेतवा हैं।
• बुंदेलखंि का पठार: यह मालर्वा पठार के पूर्वध में तथित है। इसकी थिलाकृ तत नीस तिा कर्वािधजाइि के
गहन अपरदन से तर्वकतसत हुई है। चबां ल नदी द्वारा बने महाखड्डों के कारण ही इस प्रदेश को ‘उत्खात
भूलम का प्रदेश (Bad land Topography)’ कहते हैं।
• लवन्ध्ध्य पवकत श्रेणी: इसकी लांबाई 1200 तकमी. है। इस श्रृांखला का भारी अपरदन हो चक ु ा है। इसकी
औसत ऊांचाई 500-700 मीिर है। इसके पतिमी भाग पर लार्वा है परन्तु पूर्वी भाग पर लार्वा नहीं है। इसके
पतिम में भारनेर श्रेणी तिा पूवक में कै मूर पवकत श्रेतणयाां हैं।
C. दककन का पठार:
• यह पठार ताप्ती नदी के पतिम में फै ला हुआ है। यह उत्तर पतिम में सतपड़ु ा तिा तर्वन्ध्याचल, उत्तर में महादेर्व
और मैकाल, पूर्वध में पूर्वी घािी तिा पतिम में पतिमी घािी से तघरा हुआ है।
• तक्रिेतशयस तिा पूर्वध ितशधयरी काल में होने र्वाले ज्र्वालामुखी उद्गार से तनकले बेतसक लार्वा से इसका
तनमाधण हुआ है।
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• इसका सामन्य ढाल उत्तर तिा उत्तर पतिम से दतक्ण तिा दतक्ण पूर्वध की ओर है इसी कारण इस पठार से
तनकलने र्वाली नतदयााँ पूर्वधर्वातहनी हैं। ताप्ती नदी इसकी उत्तरी सीमा बनाती है।
• यह पठार मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आर
ं प्रदेश, कनाकटक तिा गज
ु रात राज्यों के भागों में फै ला हुआ है।
दककन के पठार के भाग:
दककन का लावा पठार (महाराष्ट्र): मूलतः यह लार्वा तनतमधत बेसाल्ि से बना है। लार्वा की गहराई 2000
तकमी. तक है। इसकी औसत ऊांचाई 300-900 मीिर है।
तेलगं ाना का पठार: इसका फै लार्व आांध्रप्रदेश के आतां ररक भागों में है। इसका उत्तरी तहथसा पठारी है एर्वां दतक्णी
तहथसा मैदान के रूप में है। यह तालाब तनमाधण के तलए अनुकूल थिलाकृ तत है। इसी कारण इस क्ेत्र में तालाब
अतधक पाए जाते हैं। गोदार्वरी नदी इस पठार को दो भागों में तर्वभातजत करती है।
मैसरू (कनाकटक) का पठार: यह मख्ु यतः आतकध यन ग्रेनाइि तिा नीस चट्टानों से बना है लेतकन बगां लुरु से मैसरू
के मध्य लार्वा पठार भी पाए जाते हैं। दतक्ण की ओर यह नीलतगरी पर्वधत द्वारा सीमाबर्द् है। बाबाबूदन की
पहालियााँ इस पठार का तहथसा हैं अतः लौह अयथक की दृति से यह धनी है। कार्वेरी मैसूर के पठार पर बहने
र्वाली मख्ु य नदी है। कनाधिक में शरावती नदी पर जोग या गााँिी या गरसोप्पा जल प्रपात तथित है।
D. पूवक के पठार:
• बघेलखिं का पठार: यह मैकाल श्रृख ां ला के पर्वू ध में तथित है। इसके उत्तर में सोनपरु की पहातड़याां एर्वां
दतक्ण में रामगढ़ की पहातड़याां तथित हैं। मध्य भाग पूर्वध से पतिम की ओर ऊांचा है।
• छत्तीसगढ़ का पठार: यह बघेलखांड पठार के दतक्ण में तथित है। यहााँ कुडप्पा सांरचना की चट्टानें तमलती
हैं। इस पठार में र्वेनगगां ा की घािी तिा महानदी का ऊपरी बेतसन सतम्मतलत है। इस पठार की ऊाँचाई दतक्ण
की ओर बढती जाती है।
• दंिकारण्य पठार: यह छत्तीसगढ़ तिा आांध्रप्रदेश के सीमार्वती क्ेत्र में तथित है। यह आतकध यन चट्टानों से
बना ऊबड़-खाबड़ पठार है।
• छोटानागपरु का पठार: यह उत्तरी-पूर्वी सीमार्वती पठार है। पारसनाि की पहातड़याां इसी पर तथित हैं। इस
पठार पर बहने र्वाली प्रमुख नतदयों में महानदी, सोन, दामोदर एर्वां थर्वणधरेखा नदी प्रमुख हैं। यह खतनज
पदािों की दृति से अत्यतधक धनी पठार है।
• मेघालय का पठार: इसे तशलॉांग का पठार भी कहते हैं। यह छोिानागपुर पठार का समकालीन पठार है।
यह अत्यांत किा-छांिा एर्वां र्वनों से भरा पठार है। इसमें गारो पहातड़याां, खासी, जयतन्तया एर्वां तमतकर पहातड़याां
भी शातमल हैं। इस पठार पर बहने र्वाली प्रमुख नतदयााँ ददु नई एर्वां कै सनई हैं।
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E. पूवी घाट पवकत: ये पर्वधत पूर्वी समुद्र तिीय मैदान के समानाांतर महानदी की घाटी से दलक्षण में नीललगरी
तक उत्तर-पूर्वध से दतक्ण-पतिम तदशा में फै ले हुए हैं। इनकी लंबाई 1800 लकमी. है। ये अवलशि पवकत हैं एर्वां
इनका तर्वकास कुडप्पा सांरचना से हुआ है। ये श्रृांखला ओलिशा से तलमलनािु तक है। पतिमी घाि पर्वधत की तुलना
में इसका अपरदन अलिक हुआ है अतः उसकी तल ु ना में यह कम ऊाँचा है। नदी अपरदन के कारण इसकी क्रमबर्द्ता
भी लगभग समाप्त हो चक ु ी है। पूर्वी घाि पर्वधत का सवोच्च लशखर लवशाखापत्तनम चोटी है इसका दसू रा सर्वोच्च
तशखर महेंद्रतगरर है।
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F. पलिमी घाट पवकत: इन पर्वधतों का फै लार्व नमकदा घाटी से लेकर कन्ध्याकुमारी तक है। इसे सह्यालद्र भी
कहते हैं। यह तहमालय के बाद भारत की दूसरी सबसे लंबी पवकत श्रेणी है। इसे दो भागों में बाांिा जा सकता है –
• उत्तरी सह्यालद्र: उत्तरी सह्यातद्र की ऊपरी सतह पर लार्वा तनक्ेप है। उत्तरी सह्यातद्र का सवोच्च लशखर
‘कालसुवाई’ है। उत्तरी सह्यातद्र में दो दरे तथित हैं –
1. िालघाट: मुांबई से नातसक
2. भोरघाट: मुांबई से पुणे
• दलक्षणी सह्यालद्र : उत्तरी एर्वां दतक्णी सह्यातद्र की तर्वभाजक रे खा 16° उत्तरी अक्षाश
ं है। यह गोर्वा से
गुजरती है। दतक्णी सह्यातद्र का सवोच्च लशखर ‘कुद्रेमुख’ है। दतक्णी सह्यातद्र का तनमाधण आतकध यन
चट्टानों से हुआ है।
नीललगरर पहािी: नीलतगरी की पहाड़ी एक थिलाकृ ततक गााँठ है जहााँ पूवीघाट पवकत एवं पलिमी घाट पवकत
आकर लमलते हैं। नीलतगरर का सवोच्च लशखर दोदाबेट्टा है जो दतक्ण भारत का दसू रा सर्वोच्च तशखर है। दतक्ण
भारत का सवोच्च लशखर अनाईमुिी है यह अन्नामलाई पर्वधत की चोिी है।
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A. उत्कल का तटीय मैदान : यह गांगा के डेल्िा से कृ ष्णा के डेल्िा तक लगभग 400 तकमी. तक तर्वथतृत
है।
B. आर ं या काकीनािा का तटीय मैदान : यह बेहरामपरु (आध्रां प्रदेश) से तिीय भाग में पतु लकि झील
तक फै ला हुआ है। इस ति पर लवशाखापत्तनम, काकीनािा एवं मुसलीपत्तनम प्रमुख बांदरगाह हैं।
C. तलमलनािु या कोरोमंिल का तटीय मैदान : यह मैदान पुतलकि झील से लेकर कुमारी अांतरीप तक
लगभग 675 तकमी. तक फै ला हुआ है। चेन्ध्नई, तूतीकोरन एवं नागपत्तनम यहााँ के मुख्य बांदरगाह हैं।
मन्नार की खाड़ी मोततयों के तलए प्रतसर्द् है।
पलिमी एवं पूवी तटीय मैदानों की तुलना :
पलिमी तटीय मैदान पवू ी तटीय मैदान
यह सक ां रा तिा अतधक आद्रध है। यह चौड़ा तिा अपेक्ाकृ त शष्ु क है।
यहााँ छोिी एर्वां तीव्रगामी नतदयााँ बहती हैं जो डेल्िा यहााँ बड़ी-बड़ी नतदयााँ (कृ ष्णा, कार्वेरी, गोदार्वरी,
बनाने में असमिध होती हैं तिा ज्र्वारनदमखु (एिअ ु री) महानदी) बहती हैं तिा बड़े बड़े डेल्िा का तनमाधण
का तनमाधण करती हैं। करती हैं।
इस मैदान के दतक्णी भाग में अनेक लैगून हैं। इस मैदान में लैगून की सांख्या कम है।
पतिमी ति अतधक किा-फिा है इस कारण यहााँ पर पूर्वी ति कम किा-फिा है और इसी कारण यहााँ
अतधक बांदरगाह हैं। बांदरगाह भी अपेक्ाकृ त कम हैं।
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• अडां मान एर्वां तनकोबार द्वीप समूह मूलतः ितशधयरी युग में बने सागरीय र्वतलत पर्वधतों के समुद्र में उभरे भाग
हैं। यहााँ लगभग 350 द्वीप हैं तजनमें के र्वल 38 द्वीपों पर मानर्व अतधर्वास है। अडां मान-तनकोबार द्वीप समहू
की सर्वोच्च चोिी सैडल पीक (उत्तरी अांडमान में 738 मी.) है। इस द्वीप समूह में से एक ‘बैरन द्वीप’ भारत
का एक मात्र सतक्रय ज्र्वालामुखी है।
• क्ेत्रफल एर्वां आबादी की दृति से अडां मान-तनकोबार द्वीप समहू लक्द्वीप की तल
ु ना में बड़ा है।
• भारत का सबसे दतक्णतम तबांदु ‘इतां दरा पॉइिां ’ ग्रेि तनकोबार में तथित है।
• 10° चैनल अांडमान को तनकोबार से अलग करता है।
• ‘डांकन दराध (डांकन पास)’ दतक्णी अडां मान और लघु अडां मान के बीच है।
• अांडमान का दसू रा ज्र्वालामुखी नारकोंडम है जो सुप्त अर्वथिा में है।
• अांडमान की राजधानी पोिध ब्लेयर दतक्णी अांडमान में तथित है।
• अांडमान-तनकोबार द्वीप समूह का सबसे उत्तरी द्वीप लैंडफॉल द्वीप है।
• अिं मान-लनकोबार द्वीप समूह पर पाया जाने वाला नृजातीय समहू –
o ओजां ेस (तनग्रोइड प्रजातत)
o सेंिीनेलीज (तनग्रोइड प्रजातत)
o जारर्वा (तनग्रोइड प्रजातत)
o शोम्पेन (मांगोलॉइड प्रजातत)
o अांडमानी (तनग्रोइड प्रजातत)
o तनकोबारी (मांगोलॉइड प्रजातत)
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(ब) अरब सागर के द्वीप : इसके अतां गधत लक्द्वीप समहू के 36 द्वीप (10 आर्वातसत) को सतम्मतलत तकया जाता
है। ये मख्ु यतः तभतत्तयों के जमार्वों से बने हैं। इनमें सबसे दतक्ण में तमतनकॉय तथित है जो मालदीर्व से आठ तडग्री
चैनल द्वारा पृिक तकया जाता है।
लक्द्वीप समूह: यह द्वीप अरब सागर में लथित है। इस द्वीप समूह का तनमाधण लक्द्वीप-चैगोस अन्तः सागरीय किक
के ऊपर प्रर्वाल के तनक्ेप से हुआ है। भारत के समद्रु ी भाग में पाए जाने र्वाले एटॉल मख् ु यतः लक्षद्वीप में पाए जाते
हैं। ‘एिॉल’ प्रर्वाल तभतत्त का एक प्रकार है जो अांगूठी या घोड़े की नाल की आकृ तत का होता है। एिॉल उच्च जैर्व-
तर्वतर्वधता के क्ेत्र हैं। द्वीपों के चारों ओर प्रर्वाल तभतत्तयाां पायी जाती हैं तजन पर नाररयल के र्वृक् हैं। लक्द्वीप समूह
के अतां गधत 36 द्वीप हैं तजनमें 10 पर मानर्व अतधर्वास है।
• कार्वारत्ती लक्द्वीप की राजधानी है। आगाती यहााँ का एकमात्र द्वीप है जहााँ हर्वाई अड्डा है।
• एड्रं ोट लक्द्वीप समूह का सबसे बड़ा द्वीप है।
• नाररयल यहााँ का एकमात्र कृ तर् उत्पाद है। मत्थयन यहााँ का मख्ु य पेशा है। ‘िूना मछली’ यहााँ पकड़ी जाने
र्वाली प्रमुख मछली है।
• यहााँ तथित ‘तपट्टी द्वीप’ को पक्ी अभ्यारण्य घोतर्त तकया गया है।
• यहााँ की लगभग 94 प्रततशत जनसाँख्या मतु थलम धमाधर्वलबां ी है जो सन्ु नी सम्प्रदाय से सबां धां रखती है।
• यहााँ तमतनकॉय द्वीप को छोड़कर सभी द्वीपों पर ‘मलयालम’ भाषा बोली जाती है। तमतनकॉय में ‘महल
भाषा’ बोली जाती है। महल भार्ा मूलतः मालदीर्व की भार्ा है।
• लक्द्वीप का दतक्णतम द्वीप तमतनकॉय है जो 9° चैनल जलधारा द्वारा शेर् द्वीपों से अलग होता है।
• लक्द्वीप एर्वां मालदीर्व 8° चैनल जलधारा द्वारा परथपर अलग होते हैं।
• 11° अक्ाांश के सहारे लक्द्वीप को दो भागों में तर्वभक्त तकया जाता है। उत्तरी भाग को ‘अमीनीदीर्वी’ कहते
हैं एर्वां दतक्णी भाग को ‘कन्नानोर’ कहते हैं।
(स) अपतटीय द्वीप : लक्द्वीप और अांडमान समूह के द्वीपों के अततररक्त भारत के पतिमी ति, पूर्वी ति, गांगा
डेल्िा एर्वां मन्नार की खाड़ी में कई द्वीप तथित हैं। जैसे- पम्बन (मन्नार की खाड़ी), श्री हररकोिा (पुतलकि झील),
व्हीलर (महानदी-ब्राह्मणी मुहाना), न्यूमूर (गांगा डेल्िा) द्वीप।
• श्रीहररकोटा द्वीप: यह पुतलकि झील के अग्र भाग में अर्वतथित है। यह प्रवाल लनलमकत द्वीप है।
• पम्बन द्वीप: यह मन्नार की खाड़ी में भारत और श्री लक ं ा के बीच तथित है। यह आदम लब्रज का भाग
है।
• न्ध्यू मूर द्वीप: यह द्वीप बांगाल की खाड़ी में बांग्लादेश तिा भारत की सीमा पर अर्वतथित है। दोनों देशों
के बीच इस पर अतधकार को लेकर तर्वर्वाद बना हुआ है। गांगा के मुहाने पर मलबों के तनक्ेप से बना यह
अतत नर्वीन द्वीप है।
• व्हीलर द्वीप: यह द्वीप महानदी-ब्राह्मणी के मुहाने पर तथित है।
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एक तनधाधररत जलमागध द्वारा जल के प्रर्वाह को अपर्वाह कहा जाता है। इस प्रकार कई जलमागों के जाल को अपर्वाह
तांत्र कहते हैं। नतदयों और उनकी सहायक नतदयों के द्वारा प्राकृ ततक अपर्वाह तांत्र का तर्वकास होता है।
अपर्वाह प्रततरूप को प्रभातर्वत करने र्वाले कारक:
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तहमालयी नतदयााँ मैदानी भागों में लम्बी दरू ी तय करती प्रायद्वीपीय नतदयााँ मागध में जलप्रपात बनने तिा जल की
हैं तिा नाव्य (नौकायन योग्य) होती हैं। मात्रा घिने-बढ़ने के कारण नौकायन के अनुकूल नहीं
होती ये नतदयााँ डेल्िाई भागों में नौकायन योग्य होती हैं।
मैदानी भागों में बहने के कारण तिा भू-भाग के भरु भरु े प्रायद्वीपीय नतदयााँ कठोर चट्टानी भू-भाग से होकर
होने के कारण नतदयााँ तर्वसपध का तनमाधण करती हैं। बहती हैं। कई नतदयााँ भ्रांश घातियों से होकर बहती हैं।
इनका मागध सीधा एर्वां रे खीय होता है। नमधदा, तापी आतद
भ्रश
ां घातियों में बहने के कारण रे खीय प्रर्वाह तर्वकतसत
करती हैं।
तहमालयी नतदयााँ प्रायः मुहाने पर डेल्िा का तनमाधण प्रायद्वीपीय नतदयााँ मुहाने पर प्रायः ज्र्वारनदमुख
करती हैं। (एिुअरी) या छोिे डेल्िा का तनमाधण करती हैं।
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• तसन्धु नदी की बायीं ओर से लमलने वाली नलदयों में सतलज, व्यास, रार्वी, तचनाब, झेलम, जाथकर,
सोहन, थयाांग, तशगार प्रमुख है।
• तसन्धु नदी में दायीं ओर से लमलने वाली नलदयााँ श्योक, काबल
ु , कुरध म, तोची, गोमल एर्वां तगलतगत हैं।
• यह तचल्लास के तनकि पातकथतान में प्रर्वेश करती है। पातकथतान में मीठनकोट के लनकट इसमें पंचनद
(सतलज, व्यास, लचनाब, रावी एवं झेलम) की संयुक्त िारा लमलती है।
• यह कराची (पातकथतान) के पर्वू ध में अरब सागर में तमल जाती है।
लसन्ध्िु नदी की सहायक नलदयााँ :
झेलम नदी:
• झेलम, तसन्धु नदी की सहायक नदी है यह वेरीनाग (कश्मीर) के लनकट शेषनाग झील से लनकलती
है।
• श्रीनगर के तनकि र्वल ु र झील से प्रर्वातहत होने के बाद यह सक
ां रे गॉजध से होकर पातकथतान में पहुचाँ ती है।
• पातकथतान में यह तचनाब नदी में तमल जाती है अतः यह लचनाब नदी की भी सहायक नदी है।
• झेलम नदी लगभग 170 तकमी. तक भारत-पाक सीमा बनाती है।
• झेलम नदी पर जम्मू-कश्मीर में तुलबुल पररयोजना एवं उरी पररयोजना चलायी जा रही हैं।
लचनाब नदी:
• तचनाब, चन्द्र और भागा नाम की दो सररताओ ां के तमलने से बनी है। ये दोनों सररताएां के लाांग के तनकि
तांडी में तमलती हैं।
• यह सतम्मतलत धारा चन्ध्द्रभागा के नाम से लहमाचल प्रदेश से उत्तर पतिम तदशा में बहती है और
जम्मू-कश्मीर में तचनाब नाम से प्रर्वेश करती है।
• तचनाब नदी को झेलम और रार्वी नतदयों से जल प्राप्त होता है।
• तचनाब, लसन्ध्िु नदी की सबसे बिी सहायक नदी है।
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• तचनाब नदी पर तनतमधत प्रमुख जल पररयोजनाएां – सलाल पररयोजना, बगललहार पररयोजना एवं
दुलहथती पररयोजना हैं।
रावी नदी:
• इस नदी की उत्पतत्त तहमाचल प्रदेश में रोहतांग दरे के पास कुल्लू पवकत से होती है।
• माधोपुर के तनकि यह पांजाब में प्रर्वेश करती है और अमृतसर से 26 तकमी. नीचे पातकथतान में प्रर्वेश
करती है।
• रांगपरु के तनकि यह तचनाब में तमल जाती है। यह लचनाब की सहायक नदी है।
• रार्वी नदी पर तनतमधत प्रमुख पररयोजनाएां – चमेरा पररयोजना (लहमाचल प्रदेश) एवं िीन पररयोजना
(पंजाब एवं लहमाचल प्रदेश की संयुक्त पररयोजना) हैं।
व्यास नदी:
• इस नदी की उत्पतत्त रोहताांग दरे के पास से हुई है। पोंग के तनकि व्यास नदी मैदानी भाग में प्रर्वेश करती
है।
• हररके नामक थिान (व्यास एवं सतलज का सगं म) पर ‘हररके बैराज’ से भारत की सबसे लबां ी नहर
‘इंलदरा गांिी’ नहर तनकाली गयी है।
• पोंग पररयोजना व्यास नदी पर ही तनतमधत है।
सतलज नदी:
• सतलज नदी मानसरोर्वर के नजदीक राकस ताल (लतब्बत) से तनकलती है। यह एक पूवकवती नदी है
जो तहमालय को कािकर तशपकी ला दराध से होकर भारत में प्रर्वेश करती है।
• व्यास नदी हररके में सतलज से लमलती है। सतलज नदी रोपड़ नामक थिान पर मैदानी भाग में प्रर्वेश
करती है।
• सतलज नदी 120 तकमी. लम्बी भारत-पाक सीमा बनाती है।
• सतलज नदी मीठनकोि से िोडा ऊपर तसन्धु नदी से जा तमलती है।
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• गांगा जब पतिम बांगाल में पहुचाँ ती है तो भागीरिी और हुगली नाम की दो प्रमुख तर्वतररकाओ ां में बांि जाती
है।
• मुख्य नदी बाांग्लादेश में चली जाती है जहााँ र्वह पहले पद्मा और बाद में मेघना नाम से बहती हुई बांगाल की
खाड़ी में तगर जाती है।
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पंचप्रयाग
प्रयाग सगं म
देर्वप्रयाग भागीरिी – अलकनांदा
रूद्र प्रयाग अलकनांदा – मांदातकनी
कणध प्रयाग अलकनांदा – तपांडार
नन्द प्रयाग अलकनांदा – नांदातकनी
तर्वष्णु प्रयाग धौलीगांगा – तर्वष्णु गांगा
गंगा में बाएाँ लकनारे से लमलने वाली प्रमुख नलदयााँ: रामगांगा नदी, गोमती नदी, घाघरा नदी, गांडक नदी,
बूढी गांगा नदी, कोसी नदी, महानांदा नदी और ब्रह्मपुत्र नदी
गंगा में दाएं लकनारे से लमलने वाली प्रमुख नलदयााँ – यमुना नदी, िोंस नदी और सोन नदी
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• चम्बल नदी: चम्बल मध्य प्रदेश के मालर्वा पठार पर तथित ‘मह’ के लनकट जानापाव की पहालियों
से तनकलती है। यह पहले उत्तर तदशा में राजथिान के कोिा तजले तक एक गॉजध से होकर गजु रती है बाद में
यह बूांदी, सर्वाईमाधोपुर और धौलपुर से होती हुई अांत में उत्तर प्रदेश के इटावा लजले में यमुना नदी में
तमल जाती है। चम्बल नदी अपनी ‘उत्खात भूलम (Bad Land Topography) या अवनाललका
अपरदन’ के तलए प्रतसर्द् है। उत्खात भूतम को यहााँ ‘बीहड़’ कहा जाता है। चम्बल नदी की प्रमुख सहायक
नतदयााँ – बनास, लक्षप्रा, कालीलसंि एवं पावकती नदी हैं।
• के न नदी: यह मध्य प्रदेश के सतना तजले में तथित कै मूर की पहालियों से तनकलती है एर्वां बांदा लजले
के लनकट यमुना नदी में तमल जाती है।
• बेतवा नदी: इसका उद्गम कुमरा गााँर्व (तजला-रायसेन) में लवन्ध्ध्य पवकत श्रख
ृं ला से होता है। प्राचीन काल
में इसे ‘नेत्रवती’ के नाम से जाना जाता िा। यह मध्य प्रदेश में बहती हुई ओरछा के तनकि उत्तर प्रदेश में
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प्रर्वेश करती है। बेतर्वा मध्यप्रदेश एवं उत्तर प्रदेश की सीमा बनाती है। उत्तर प्रदेश के हमीरपुर लजले में
यह यमुना नदी में तमल जाती है। इस नदी पर बनी सबसे प्रमुख पररयोजना माताटीला है।
• टोंस नदी: परु ाणों में इसका उल्लेख ‘तमसा’ नाम से प्राप्त होता है। यह गगं ा की सहायक नदी है। इसका
उद्गम सतना तजले में कै मरू की पहालियों से होता है। यह उत्तर प्रदेश में लसरसा के पास गगां ा नदी में तमल
जाती है।
• सोन नदी: इसका नाम सोण, सुवणक या शोणभद्रा भी िा। यह गांगा नदी की सहायक नदी है। इसका
उद्गम अमरकांिक (तजला-अनूपपुर) में तर्वन्ध्य पर्वधत श्रृांखला की मैकाल पहालियों से सोनभद्र नामक
थिान से होता है। यह उत्तर प्रदेश में प्रर्वेश कर तफर झारखण्ड में प्रर्वेश कर तबहार में प्रर्वेश करती है तिा
अांत में पटना के लनकट गंगा नदी में तमल जाती है। इस पर तनतमधत सबसे प्रमुख पररयोजना बाणसागर
पररयोजना (मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं लबहार की संयुक्त पररयोजना) है।
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o दामोदर नदी पर दगु ाधपरु में बैराज बना कर नहर तनकाली गयी है तजसका प्रयोग तसचां ाई के तलए
होता है। बाढ़ की तर्वभीतर्का के कारण दामोदर नदी को ‘बांगाल का शोक’ कहा जाता है। इस
पररयोजना का मूल उद्देश्य बाढ़ तनयांत्रण िा।
• मयरू ाक्षी पररयोजना: यह अतर्वभातजत तबहार (र्वतधमान झारखडां ) एर्वां पतिम बगां ाल की सयां क्त ु
पररयोजना है। झारखडां के दमु का तजले में मयरू ाक्ी नदी पर बााँध बनाया गया है। इसे ‘कनाडा बााँध’ भी
कहते हैं।
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पूवकवालहनी नलदयााँ
महानदी: महानदी अमरकांिक के दतक्ण में लसहं ावा (छत्तीसगढ़) के तनकि से तनकलती है। यह नदी ओतडशा में
बहती हुई बगं ाल की खािी में तगरती है। हीराकुंि बााँि इसी पर तनतमधत है।
गोदावरी: गोदार्वरी, प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लबं ी नदी है। आय,ु आकार और लबां ाई के कारण इसे ‘दलक्षण
गगं ा’ या ‘वृद्ध गगं ा’ कहते हैं। यह महाराष्र के नातसक तजले में पतिमी घाि पर तथित त्र्यबं क नामक जगह से
तनकलती है। इन्ध्द्रावती, प्राणलहता, पूणाक एवं दुिवा आतद गोदार्वरी की प्रमुख सहायक नतदयााँ हैं।
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कृष्ट्णा: पूर्वध की ओर बहने र्वाली यह नदी प्रायद्वीपीय भारत की दसू री सबसे लांबी नदी है। यह महाबलेश्वर के
लनकट पतिमी घाि से तनकलती है। तुंगभद्रा एवं भीमा इसकी प्रमुख सहायक नतदयााँ हैं। कोयना, पंचगंगा,
घाटप्रभा, मालप्रभा, दूिगगं ा एवं मस ू ी इसकी अन्य सहायक नतदयााँ हैं। यह चापाकार िेल्टा बनाते हुए बगं ाल
की खािी में तगरती है। आांध्रप्रदेश में नागाजकनु सागर बााँि एर्वां कनाधिक में अल्माटी बााँि कृ ष्णा नदी पर ही है।
पेन्ध्नार (उत्तरी): यह कनाकटक के नंदीदुगक पहािी से तनकलती है। आांध्रप्रदेश में बहती हुई यह बांगाल की खाड़ी
में तगरती है।
पेन्ध्नार (दलक्षणी): यह के शव की पहािी (कनाकटक) से तनकलती है और उत्तरी पेन्नार के दतक्ण में बहते हुए
बगां ाल की खाड़ी में तगरती है।
कावेरी: यह कनाधिक राज्य के कुगध तजले की ब्रह्मलगरी की पहालियों से तनकलती है। इसके ऊपरी जलग्रहण क्ेत्र
(कनाधिक) में दतक्ण-पतिम मानसून से तिा तनचले जलग्रहण क्ेत्र (ततमलनाडु) में उत्तरी-पूर्वी मानसून से र्वर्ाध होने
के कारण इस नदी में र्वर्ध भर जल प्रर्वाह बना रहता है। कावेरी नदी की द्रोणी का 56 प्रलतशत भाग तलमलनािु
में 41 प्रलतशत भाग कनाकटक में एवं 3 प्रलतशत भाग के रल में है। कार्वेरी नदी एक चतुभकज ु ाकार िेल्टा का
तनमाधण करती है।
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इस नदी के मागध में कई प्राकृ ततक जल प्रपात हैं तजनमें लशवसमुद्रम (कनाकटक) एवं होगेनकल
(तलमलनािु) प्रतसर्द् हैं। कार्वेरी नदी जब कनाधिक के कोडागू पहाड़ी से आगे बढती है तो उच्चार्वच में अांतर के
कारण जड़ु र्वााँ जलप्रपातों गगनचकु की (पलिमी) एवं भाराचकु की (पवू ी) का तनमाधण करती है जो सलम्मललत
रूप से लशवसमुद्रम जलप्रपात के नाम से जाने जाते हैं।
ताप्ती / तापी नदी: यह मध्य प्रदेश के बैतूल लजले में मुल्ताई से तनकलती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी पूणाध
है। यह नदी भ्रांश घािी में बहती है और सूरत के आगे खंभात की खािी में तगरती है।
पेररयार नदी: यह के रल की प्रमुख नदी है। यह अन्ध्नामलाई की पहालियों से तनकलती है तिा बेम्बनाद झील
के उत्तर में अरब सागर में तगरती है।
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• नमकदा घाटी पररयोजना: यह एक बहुउद्देशीय नदी घािी पररयोजना है तजससे लाभातन्र्वत होने र्वाले राज्य
महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात एवं राजथिान हैं। इस पररयोजना के अांतगधत 29 बड़े बााँध बनाए जा रहे
हैं। इसमें मध्य प्रदेश का नमकदा सागर बााँि तिा गुजरात का सरदार सरोवर बााँि सर्वाधतधक महत्र्वपूणध
हैं। बााँध के अतधक ऊांचा होने के कारण बड़े क्ेत्र पर जल-जमार्व की समथया पैदा होगी, बड़े भू-भाग से र्वन
कािे जाएांगे तिा बड़ी जनसाँख्या को तर्वथिातपत होना पड़ेगा। इन्ही समथयाओ ां के कारण बााँध की ऊांचाई
को कम रखने की मागां समाजशातियों एर्वां पयाधर्वरणतर्वदों के द्वारा उठाई जा रही है। मेिा पाटेकर ने इस
तर्वरोध को जन आन्दोलन का थर्वरुप तदया है।
• उकाई पररयोजना: यह गुजरात और महाराष्ट्र की सांयुक्त पररयोजना है। तापी नदी पर उकाई नामक
थिान (गजु रात) पर बााँध बनाया गया है।
• काकरापार योजना: यह गुजरात की योजना है। तापी नदी पर काकरापार नामक थिान पर बााँध बना
कर जल-तर्वद्युत उत्पादन तकया जा रहा है।
• माही योजना: इस योजना के अतां गधत मध्य प्रदेश में माही नदी पर बााँध बनाया गया है। बााँध के पीछे
तथित जलागार का नाम ‘जमना लाल बजाज सागर’ रखा गया है।
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• शरावती जल-लवद्युत पररयोजना: यह पररयोजना कनाकटक के लशमोगा लजले में शरार्वती नदी पर
तक्रयातन्र्वत की गयी है। इसके अांतगधत भारत के सबसे ऊांचे जल प्रपात जोग (महात्मा गाांधी) पर जल तर्वद्युत
उत्पादन कें द्र थिातपत तकया गया है। इसके जलागार का नाम ‘ललगं नमककी जलागार’ है।
• इिुककी पररयोजना: यह के रल के इडुककी तजले में पेररयार नदी पर लथित के रल की सबसे बिी जल
लवद्युत पररयोजना है।
• पररम्बकुलम अललयार योजना: यह के रल एवं तलमलनािु की सांयुक्त योजना है। इसके अांतगधत
अन्नामलाई पर्वधत की छः नतदयों तिा मैदानी क्ेत्र की दो नतदयों के जल का उपयोग तकया गया है।
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भारत की झीलें
लववतकलनक झील: इन झीलों का तनमाधण भकू ां प तक्रया द्वारा या पृ्र्वी की आतां ररक हलचलों द्वारा होता है। जैसे
– र्वल
ु र झील (कश्मीर) । यह भारत में मीठे पानी की सबसे बिी झील है।
क्रेटर झील (ज्वालामख
ु ी लक्रया द्वारा लनलमकत): इस प्रकार की झीलों का तनमाधण ज्र्वालामख
ु ी तक्रया द्वारा
होता है। ज्र्वालामख
ु ी तक्रया द्वारा तनतमधत क्रेिर में पानी भरने से इन झीलों का तनमाधण होता है जैसे - महाराष्ट्र की
लोनार झील
लैगून झील / अनूप झील: इनका तनमाधण समुद्र तिीय भागों में होता है। जैसे – लचल्का झील, ओलिशा।
यह भारत की सबसे बिी लैगून झील है। अन्य लैगून झील: पुलीकट झील (आंर प्रदेश एवं तलमलनािु),
अिमुिी झील (के रल), कोलेरू झील (आंर प्रदेश)
लहमानी लनलमकत झील: इनका तनमाधण तहमातनयों के द्वारा होता है जैसे – राकसताल, नैनी ताल, सातताल, भीम
ताल आतद।
प्लाया झील: इनका तनमाधण र्वायु के तनक्ेपों द्वारा होता है। इसके प्रमुख उदाहरण – राजथिान की सांभर,
िीिवाना, पंचपदरा एवं लूणकरणंसर आतद झीलें।
राज्यवार भारत की प्रमख
ु झीलें
झील सबं ंलित राज्य झील संबंलित राज्य
र्वल
ू र झील, डल झील, जम्मू-कश्मीर राकसताल, नैनीताल, उत्तराखांड
शेर्नाग, अनतां नाग, सातताल, भीमताल,
बैरीनाग, नातगन झील, खुरपाताल, समताल, पूनाताल,
मानसबल, गांधारबल नौकुतछयाताल, देर्वताल, रूप
कांु ड
लोनार झील, पोर्वई झील, महाराष्र लोकिक झील मतणपरु
गोरे र्वाडा झील, सलीम अली
सरोर्वर
तचल्का झील ओतडशा सूरजकुण्ड झील हररयाणा
पुतलकि झील आध्रां प्रदेश एर्वां फुल्हर झील उत्तर प्रदेश
ततमलनाडु
अष्ठमड़ु ी झील, बेम्बनाद, के रल उतमयम झील मेघालय
पेररयार झील
कोलेरू झील आांध्र प्रदेश नल सरोर्वर, नारायण सरोर्वर गुजरात
साांभर झील, डीडर्वाना, राजथिान चपनाला झील असम
पांचपदरा, लूनकरणसर,
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भारत की प्रमख
ु घालटयााँ
घािी राज्य / अर्वतथितत तर्वशेर्
मुखाध घािी लद्दाख
कश्मीर घािी जम्मू-कश्मीर
नब्रु ा घािी लद्दाख तसयातचन ग्लेतशयर से तनकलने र्वाली नुब्रा नदी द्वारा तनतमधत
सुरु घािी लद्दाख
पार्वधती घािी तहमाचल प्रदेश
तकन्नौर घािी तहमाचल प्रदेश सेर्व उत्पादन के तलए प्रतसर्द्
पागां ी घािी तहमाचल प्रदेश
कुल्लू घािी तहमाचल प्रदेश िौलािार एवं पीरपंजाल श्रेलणयों के बीच अर्वतथित
सागां ला घािी तहमाचल प्रदेश इसका अन्य नाम बाथपा घािी भी है
चम्बा घािी तहमाचल प्रदेश चम्बा, भारमौर, डलहौजी एर्वां खतज्जयर पयधिक थिल इसी में
काांगड़ा घािी तहमाचल प्रदेश
मालना घािी तहमाचल प्रदेश लहमाचल प्रदेश का छोटा यूनान के रूप में प्रतसर्द्
सोर घािी उत्तराखांड
नेलाांग घािी उत्तराखांड गांगोत्री नेशनल पाकध में तथित
जोहार घािी उत्तराखांड इसके अन्य नाम लमलाम घाटी एवं गोरी गंगा घाटी भी हैं
फूलों की घािी उत्तराखडां
जुकु घािी नागालैंड
यिू ागां घािी तसतककम हॉट लथप्रग्ं स के ललए प्रलसद्ध
अराकू घािी आांध्र प्रदेश
नेओरा घािी दातजधतलगां (प. बगां ाल)
कम्बम घािी ततमलनाडु
शाांत घािी के रल जैव लवलविता के ललए प्रलसद्ध
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जलवाय:ु तकसी थिान अिर्वा देश में लम्बे समय के तापमान, र्वर्ाध, र्वायुमांडलीय दबार्व तिा पर्वनों की तदशा र्व
र्वेग का अध्ययन र्व तर्वश्लेर्ण जलर्वायु कहलाता है। सम्पूणध भारत को जलर्वायु की दृति से उष्णकतिबांधीय मानसूनी
जलर्वायु र्वाला देश माना जाता है।
भारत में उष्णकतिबधां ीय मानसनू ी जलर्वायु पायी जाती है। मानसनू शब्द की उत्पतत्त अरबी भार्ा के
‘मौतसम’ शब्द से हुई है। मौतसम शब्द का अिध ‘पर्वनों की तदशा का मौसम के अनुसार उलि जाना’ होता है। भारत
में अरब सागर एर्वां बांगाल की खाड़ी से चलने र्वाली हर्वाओ ां की तदशा में ऋतुर्वत पररर्वतधन हो जाता है इसी सन्दभध
में भारतीय जलर्वायु को मानसनू ी जलर्वायु कहा जाता है।
भारतीय जलवायु को प्रभालवत करने वाले कारक:
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जाती है। यहााँ गमी में तापमान 40° C तक बढ़ जाता है तिा शीत काल में तापमान 27° C तक रहता है।
इन जलर्वायु प्रदेशों में वषाक मुख्यतः ग्रीष्ट्मकाल में होती है शीतकाल शुष्ट्क होता है।
7. लघु ग्रीष्ट्मकाल यक्त ु आद्रक जलवायु (DFc प्रकार): इस प्रकार की जलर्वायु लसलककम, अरुणाचल
प्रदेश और असम (लहमालय का पूवी भाग) के लहथसों में पायी जाती है। शीतकाल ठांडा, आद्रध एर्वां
लम्बी अर्वतध का होता है। शीतकाल में तापमान 10° C तक होता है।
8. टुन्ध्ड्रा तुल्य जलवायु (ET प्रकार): यहााँ तापमान सालभर 10° C से कम रहता है। शीतकाल में तहमपात
के रूप में र्वर्ाध होती है। इसके अांतगधत – उत्तराखंि के पवकतीय क्षेत्र, कश्मीर, लद्दाख, लहमाचल प्रदेश
के 3000 मी. से 5000 मी. ऊांचाई र्वाले क्ेत्र शातमल हैं।
9. रुवीय तुल्य जलवायु (E प्रकार): यहााँ तापमान सालभर 0° C से कम (तहमाच्छातदत प्रदेश) होता है।
इसके अतां गधत लहमालय के पलिमी और मध्यवती भाग में (जम्मू-कश्मीर एवं लहमाचल प्रदेश के )
5000 मी. से अलिक ऊंचाई वाले क्षेत्र शातमल हैं।
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बांगाल की खाड़ी शाखा उत्तर-पतिम भारत के तनम्न दाब क्ेत्र की ओर अतभसररत होती है। पूर्वध से पतिम
की ओर जलर्वाष्प की कमी के साि ही र्वर्ाध की मात्रा में कमी होती जाती है।
व्यापाररक पवनें : व्यापाररक पर्वनें 5° से 30° उत्तरी एर्वां दतक्णी अक्ाांशों के बीच चलने र्वाली पर्वनें हैं जो 35°
उत्तरी एर्वां दतक्णी अक्ाांश (उच्च दाब) से 0° अक्ाांश (तनम्न दाब) के बीच चलती हैं।
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शीत ऋतु में सूयध की तकरणें मकर रे खा पर सीधी पड़ती हैं। इससे भारत के उत्तर-पतिमी भाग में अरब सागर र्व बांगाल
की खाड़ी के तुलना में अतधक ठण्ड होने के कारण उच्च दाब (H.P.) क्ेत्र का तनमाधण एर्वां अरब सागर तिा बांगाल
की खाड़ी में तनम्न दाब (L.P.) क्ेत्र का तनमाधण (कम ठण्डा होने के कारण) होता है। इस कारण मानसनू ी पर्वनें
तर्वपरीत तदशा में बहने लगती हैं।
शीत ऋतु में उत्तर-पूर्वी व्यापाररक पर्वनें पुनः चलने लगती हैं। यह उत्तर-पूर्वी मानसून लेकर आती हैं तिा
बगां ाल की खाड़ी से जलर्वाष्प ग्रहण कर ततमलनाडु के ति पर र्वर्ाध करती हैं।
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लवषवु तीय पछुआ पवन लसद्धातं या प्रलत लवषवु तीय पछुआ पवन लसद्धातं : इस तसर्द्ातां का प्रततपादन
फ्लोन के द्वारा तकया गया है। इसके अनसु ार, तर्वर्ुर्वतीय पछुआ पर्वन ही दतक्ण-पतिम मानसनू ी हर्वा है। इसकी
उत्पतत्त अन्तः उष्ण अतभसरण के कारण होती है।
फ्लोन ने मानसून की उत्पतत्त हेतु तापीय प्रभार्व को प्रमुख माना है। ग्रीष्म काल में तापीय तर्वर्ुर्वत रे खा के
उत्तरी तखसकार्व के कारण अन्तः उष्ण अतभसरण (ITCZ) तर्वर्र्वु त रे खा के उत्तर में होता है। तर्वर्र्वु तीय पछुआ पर्वनें
अपनी तदशा सांशोतधत कर भारतीय उपमहाद्वीप पर बने तनम्न दाब की ओर प्रर्वातहत होने लगती हैं तिा यह प्रतक्रया
ही दतक्ण-पतिम मानसून को जन्म देती है।
शीत ऋतु में सूयध के दतक्णायन होने पर तनम्न दाब क्ेत्र, उच्च दाब क्ेत्र में बदल जाता है तिा उत्तरी-पूर्वी
व्यापाररक पर्वनें पुनः गततशील हो जाती हैं।
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भारतीय मानसनू की उत्पलत्त का जेट थरीम लसद्धातं : इस तसर्द्ातां का प्रततपादन येथि (Yest) द्वारा तकया
गया है। जेि थरीम ऊपरी र्वायमु डां ल (9-18 तकमी.) के बीच अतत तीव्रगामी र्वायु प्रर्वाह प्रणाली है। मध्य भाग में
इसकी गतत अतधकतम (340 तकमी. प्रतत घांिा) होती है। ये हर्वाएां पृ्र्वी के ऊपर एक आर्वरण का कायध करती हैं जो
तनम्न र्वायुमांडल के मौसम को प्रभातर्वत करती हैं।
भारत में आने र्वाले दतक्ण-पतिम मानसनू का सबां धां उष्ण पर्वू ी जेि थरीम से है। यह 8° उत्तरी से 35° उत्तरी
अक्ाांशों के मध्य चलती हैं। उत्तरी-पूर्वी मानसून का सांबांध उपोष्ण पतिमी जेि थरीम से है। यह 20° से 35° उत्तरी
एर्वां दतक्णी दोनों अक्ाांशों के मध्य चलती हैं।
उपोष्ण पतिमी (पछुआ) जेि थरीम द्वारा उत्तर-पूर्वी मानसून की उत्पतत्त: शीतकाल में उपोष्ण पतिमी जेि थरीम सांपूणध
पतिमी तिा मध्य एतशया में पतिम से पूर्वध तदशा में प्रर्वातहत होती हैं। ततब्बत का पठार इसके मागध में अर्वरोधक का
कायध करता है एर्वां इसे दो भागों में बााँि देता है। एक शाखा ततब्बत के पठार के उत्तर से उसके समानाांतर बहने लगती
है तिा दसू री शाखा तहमालय के दतक्ण में पर्वू ध की ओर बहती है।
दतक्णी शाखा की माध्य तथितत फरर्वरी में लगभग 25° उत्तरी अक्ाांश के ऊपर होती है। इसका दाब थतर
200 से 300 तमलीबार होता है। पतिमी तर्वक्ोभ जो भारत में शीत ऋतु में आता है इसी जेि पर्वन द्वारा लाया जाता
है। रात के तापमान में र्वृतर्द् इन तर्वक्ोभों के आने का सूचक है।
पतिमी जेि थरीम ठांडी हर्वा का थतांभ होता है जो सतह पर हर्वाओ ां को धके लता है। इससे सतह पर उच्च
दाब का तनमाधण होता है (भारत के उत्तरी-पतिमी भागों में) ये हर्वाएां बांगाल की खाड़ी (तुलनात्मक रूप से अतधक
तापमान के कारण तनम्न र्वायु दाब क्ेत्र) की ओर प्रर्वातहत होती हैं। इन हर्वाओ ां के द्वारा ही शीत ऋतु में उत्तर प्रदेश
एर्वां तबहार में शीत लहर चलती हैं। बांगाल की खाड़ी में पहुचाँ ने के बाद ये हर्वाएां अपने दातहने ओर (Right Hand
Side) मुड जाती हैं और मानसून का रूप धारण कर लेती हैं। जब ये पर्वन ततमलनाडु के ति पर पहुचाँ ती है तो बांगाल
की खाड़ी से ग्रहण तकये गए जलर्वाष्प की र्वर्ाध ततमलनाडु के तिीय भागों में करती है।
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उष्ण पूर्वी जेि थरीम द्वारा दतक्ण-पतिमी मानसून की उत्पतत्त: गमी में पतिमी जेि थरीम भारतीय उपमहाद्वीप पर नहीं
बहती है इसका तखसकार्व ततब्बत के पठार के उत्तर की ओर हो जाता है। इस समय भारत के ऊपरी र्वायुमांडल में
उष्ण पर्वू ी जेि थरीम चलती है। उष्ण पर्वू ी जेि थरीम की उत्पतत्त का कारण मध्य एतशया एर्वां ततब्बत के पठारी भागों
के अत्यतधक गमध होने को माना जाता है।
ततब्बत के पठार से गमध होकर ऊपर उठने र्वाली हर्वाओ ां में क्ोभमांडल के मध्य भाग में घडी की सुई की
तदशा में चक्रीय पररसचां रण प्रारांभ हो जाता है। यह ऊपर उठती र्वायु क्ोभ सीमा के पास दो अलग अलग धाराओ ां में
बांि जाती है। इनमें से एक तर्वर्ुर्वत र्वृत्त की ओर पूर्वी जेि थरीम के रूप में चलती है तिा दसू री ध्रर्वु की ओर पतिमी
जेि थरीम के रूप में चलती है।
पर्वू ी जेि थरीम भारत के ऊपरी र्वायमु डां ल में दतक्ण पतिम तदशा की ओर बहती हुई अरब सागर में नीचे
बैठने लगती है। इससे र्वहाां र्वृहत उच्च दाब का तनमाधण होता है। इसके तर्वपरीत भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर जब ये
गमध जेि थरीम चलती है तो सतह की हर्वा को ऊपर की ओर खींच लेती है तिा यहााँ र्वृहत तनम्न दाब का तनमाधण
करती है। इस तनम्न दाब को भरने के तलए अरब सागर के उच्च दाब क्ेत्र से हर्वाएां उत्तर-पर्वू ध की ओर चलने लगती
हैं। यही दतक्ण-पतिम मानसून पर्वन कहलाती हैं।
उष्ण पूर्वी जेि थरीम के कारण ही भारत में मानसून पूर्वध ‘उष्ण कतिबांधीय चक्रर्वात’ आते हैं। इससे भारी
र्वर्ाध होती है। पर्वू ी जेि थरीम न के र्वल मौसमी है र्वरन अतनयतमत भी है। जब यह भारत के र्वृहत क्ेत्र के ऊपर लम्बी
अर्वतध तक चलती है तो बाढ़ की तथितत बनती है। जब ये हर्वाएां कमजोर होती हैं तो सूखा आता है।
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भारतीय मानसनू की उत्पलत्त का एलनीनो लसद्धातं : लगभग 3 से 8 र्वर्ों के अतां राल पर महासागरों तिा
र्वायमु डां ल में एक तर्वतशि उिल-पिु ल होती है। इसकी शरुु आत पर्वू ी प्रशातां महासागर के पेरू ति से होती है। पेरू
के ति पर हम्बोल्ि या पेरू की जलधारा (ठांडी जलधारा) प्रर्वातहत होती है। यह जलधारा दतक्ण अमेररकी ति से दरू
उत्तर की ओर प्रर्वातहत होती है। हम्बोल्ि जलधारा की तर्वशेर्ता शीतल जल का गहराई से ऊपर की ओर आना
(Upwelling) है। तर्वर्र्वु त रे खा के पास यह दतक्ण तर्वर्र्वु त रे खा जलधारा के रूप में प्रशातां महासागर के आर-पार
पतिम की ओर मुड जाती है।
एलनीनो के आने के साि ही ठन्डे पानी का गहराई से ऊपर आना बांद हो जाता है एर्वां ठन्डे पानी का
प्रततथिापन पतिम से आने र्वाले गमध पानी से हो जाता है। अब पेरू की ठांडी जलधारा का तापमान बढ़ जाता है।
इसके गमध जल के प्रभार्व से प्रिमतः दतक्णी तर्वर्ुर्वतीय गमध जलधारा का तापमान बढ़ जाता है चांतू क दतक्णी
तर्वर्ुर्वतीय गमध जलधारा पूर्वध से पतिम की ओर जाती है अतः सम्पूणध मध्य प्रशाांत महासागर का जल गमध हो जाता
है तिा र्वहाां तनम्न र्वायु दाब का तनमाधण होता है। जब कभी इस तनम्न दाब का तर्वथतार तहन्द महासागर के पर्वू ी-
मध्यर्वती क्ेत्र तक होता है तो यह भारतीय मानसून की तदशा को सांशोतधत कर देता है। इस तनम्न दाब की तुलना में
भारतीय उपमहाद्वीप के थिलीय भाग पर बना तनम्न दाब (ग्रीष्म ऋतु में) तुलनात्मक रूप से कम होता है। अतः अरब
सागर के उच्च दाब क्ेत्र से हर्वाओ ां का प्रर्वाह दतक्ण-पर्वू ी तहन्द महासागर की ओर होने लगता है। इससे भारतीय
उपमहाद्वीप में सूखे की तथितत बनती है। इसके तर्वपरीत जब एलनीनो धारा का प्रर्वाह मध्यर्वती प्रशाांत तक सीतमत
रहता है तो दतक्ण-पतिम मानसूनी पर्वनों का मागध बातधत नहीं होता तिा भारत में भरपूर र्वर्ाध होती है।
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भारतीय मानसून
दलक्षण-पलिम मानसून:
सामान्यतः भारत में मानसून का समय जनू से तसतांबर तक रहता है। इस समय उत्तरी-पतिमी भारत तिा पातकथतान
में तनम्न र्वायुदाब का क्ेत्र बन जाता है। अन्तः उष्ण कतिबांधीय अतभसरण क्ेत्र (ITCZ) उत्तर की ओर तखसकता
हुआ तशर्वातलक के पर्वधतपाद तक चला जाता है। इसके कारण भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर तसन्धु-गांगा मैदान में
एक लम्बाकार तनम्न दाबीय मेखला का तनमाधण होता है, तजसे मानसून गतध (Trough) कहते हैं। इस तनम्नदाब को
भरने के तलए दतक्णी गोलार्द्ध में चलने र्वाली द.पू. र्वातणतज्यक पर्वन (Trade Winds) तर्वर्र्वु त रे खा को पार कर
पूर्वध की ओर मुड जाती है (फे रे ल के तनयमानुसार) तिा दतक्णी-पतिमी मानसूनी पर्वन का रूप ले लेती है।
भारत में दतक्णी-पतिमी मानसून की उत्पतत्त का सम्बन्ध ‘उष्ट्ण पूवी जेट थरीम’ से है। दतक्ण पतिमी
मानसनू भारत में सवकप्रिम अिं मान एवं लनकोबार तट पर 25 मई को पहुचाँ ता है। तफर 1 जनू को चेन्नई एर्वां
ततरुर्वनांतपुरम तक पहुचाँ ता है। 5 से 10 जून के बीच कोलकाता एर्वां मुांबई को छूता है। 10 से 15 जून के बीच पिना,
अहमदाबाद, नागपुर तक पहुचाँ ता है तिा 15 जून के बाद लखनऊ, तदल्ली, जयपुर जैसे शहरों में पहुाँचता है।
प्रायद्वीपीय भारत में दथतक देने के बाद दतक्ण-पतिम मानसून दो शाखाओ ां में बांि जाता है –
A. अरब सागरीय शाखा
B. बगां ाल की खाड़ी शाखा
दतक्ण-पतिमी मानसूनी की अरब सागरीय शाखा: दतक्ण-पतिम मानसून की यह शाखा पतिमी घाि की उच्च भूतम
में लगभग समकोण पर दथतक देती है। अरब सागर शाखा द्वारा भारत के पलिमी तट, पलिमी घाट पवकत,
महाराष्ट्र, गज
ु रात एवं मध्य प्रदेश के कुछ लहथसों में वषाक होती है।
अरब सागर शाखा द्वारा भारत के पलिमी घाट पवकत के पलिमी ढाल पर तटीय भाग की तुलना
में अलिक वषाक होती है। उदाहरणथर्वरुप – महाबलेश्वर में 650 सेमी. र्वर्ाध होती है जबतक मुांबई में मात्र 190 सेमी.
र्वर्ाध होती है। पतिमी घाि पर्वधत के पर्वू ी भाग में र्वर्ाध की मात्रा काफी कम होती है कयोंतक यह र्वृतिछाया प्रदेश (Rain
Shadow Area) है। पुणे में मात्र 60 सेमी. र्वर्ाध होती है।
अरब सागर शाखा राजथिान से गुजरती हुई तहमालय से िकराती है तिा जम्मू-कश्मीर एर्वां तहमाचल प्रदेश
के पर्वधतीय ढालों पर र्वर्ाध करती है। राजथिान से गुजरने के बार्वजदू इस मानसनू ी शाखा द्वारा यहााँ र्वर्ाध नहीं हो पाती
इसके दो प्रमुख कारण हैं –
इसके फलथर्वरूप र्वृति छाया क्ेत्र (Rain Shadow Area) का तनमाधण होता है। पहाड़ की ऊांचाई तजतनी अतधक
होगी उतने ही तर्वथतृत र्वृतिछाया क्ेत्र का तनमाधण होगा।
दतक्ण-पतिम मानसून की बांगाल की खाड़ी शाखा: मानसून की यह शाखा श्रीलांका से इडां ोनेतशया द्वीप समूहों के
समु ात्रा द्वीप तक सतक्रय रहती है। बगां ाल की खाड़ी शाखा दो धाराओ ां में आगे बढती है। इस शाखा की उत्तरी धारा
मेघालय में तथित खासी पहातड़यों में दथतक देती है तिा इसकी दसू री धारा तनम्न दबार्व द्रोणी के पूर्वी छोर पर बायीं
ओर मुड जाती है। यहााँ से यह हर्वा की धारा तहमालय की तदशा के साि-साि दतक्ण-पूर्वध से उत्तर-पतिम तदशा में
बहती है। यह धारा उत्तर भारत के मैदानी क्ेत्रों में र्वर्ाध करती है।
- उत्तरी मैदानी क्ेत्रों में मानसूनी र्वर्ाध को पतिम से बहने र्वाले चक्रर्वाती गतध या पतिमी हर्वाओ ां से और
अतधक बल तमलता है।
- मैदानी इलाकों में पर्वू ध से पतिम और उत्तर से दतक्ण में र्वर्ाध की तीव्रता में कमी आती है। पतिम में र्वर्ाध में
कमी का कारण नमी के स्रोत से दरू ी का बढ़ना है। दसू री, ओर उत्तर से दतक्ण में र्वर्ाध की तीव्रता में कमी
की र्वजह नमी के स्रोत का पर्वधतों से दरू ी का बढ़ना है।
- अरब सागरीय शाखा एवं बगं ाल की खािी शाखा दोनों शाखाएाँ छोटानागपरु के पठार में लमलती
हैं।
- अरब सागरीय मानसून शाखा, बांगाल की खाड़ी शाखा से अतधक शतक्तशाली है इसके दो प्रमुख कारण हैं
–
o अरब सागर, बगां ाल की खाड़ी से आकार में बड़ा है।
o अरब सागर की अतधकााँश शाखा भारत में पड़ती है जबतक बगां ाल की खाड़ी शाखा से म्यामां ार,
मलेतशया और िाईलैंड तक चली जाती है।
- दलक्षण पलिम मानसून अवलि के दौरान भारत का पूवी तटीय मैदान (लवशेष रूप से तलमलनािु)
तुलनात्मक रूप से शुष्ट्क रहता है। कयोंतक यह मानसूनी पर्वनों के सामानाांतर तथित है और साि ही यह
अरब सागरीय शाखा के र्वृति छाया क्ेत्र में पड़ता है।
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बांगाल की खाड़ी के ऊपर से र्वापस जा रहा मानसून मागध में आद्रधता ग्रहण कर लेता है तजससे अकटूबर-
नवंबर में पूवी या तटीय ओलिशा, तलमलनािु और कनाकटक के कुछ लहथसों में वषाक होती है। अकिूबर में
बगां ाल की खाड़ी में तनम्न दबार्व बनता है, जो दतक्ण की ओर बढ़ जाता है और नर्वबां र में ओतडशा और ततमलनाडु
ति के बीच फांस जाने से भारी र्वर्ाध होती है।
मानसनू में रुकावट: र्वर्ाध ऋतु में जुलाई और अगथत महीने में कुछ ऐसा समय होता है जब मानसनू कमजोर
पड़ जाता है। बादलों का बनना कम हो जाता है और तर्वशेर् रूप से तहमालयी पट्टी और दतक्ण पूर्वी प्रायद्वीप के
ऊपर र्वर्ाध होनी बांद हो जाती है। इसे मानसनू में रुकार्वि के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है तक ये
रुकार्विें ततब्बत के पठार की कम ऊांचाई की र्वजह से आती हैं इससे मानसून गतध उत्तर की ओर मुड जाता है। इस
अर्वतध में जहााँ पूरे देश को तबना र्वर्ाध के ही सांतोर् करना पड़ता है तब उपतहमालयी प्रदेशों एर्वां तहमालय के
दतक्णी ढलानों में भारी र्वर्ाध होती है।
पलिमी लवक्षोभ (Western Disturbance): आमतौर पर जब आकाश साफ़ रहता है परन्तु पतिम तदशा
से हर्वाओ ां के आने से अच्छे मौसम के दौर में तर्वघ्न पड़ जाता है। ये पतिमी हर्वाएां भूमध्य सागर से आती हैं और
इराक, ईरान, अफगालनथतान और पालकथतान को पार करने के पिात भारत में प्रवेश करती हैं। ये हर्वाएां
राजथिान, पांजाब और हररयाणा में तीव्र गतत से बहती हैं। ये उपतहमालयी पट्टी के आसपास पूर्वध की ओर मुड जाती
हैं और सीधे अरुणाचल प्रदेश तक पहुचाँ जाती हैं तजससे गांगा के मैदानी इलाकों में हल्की र्वर्ाध और तहमालयी पट्टी
में तहमर्वर्ाध होती है।
यह घिना मुख्य रूप से शीत ऋतु में होती है कयोंतक इस समय उत्तर पतिम भारत में एक क्ीण उच्च दाब
का तनमाधण होता है। इसी समय भारत पर ‘पलिमी जेट थरीम’ का प्रभाव होता है जो भूमध्य सागर से उठने
वाले शीतोष्ट्ण चक्रवात को भारत में लाती है। इसे ही पलिमी लवक्षोभ कहते हैं। इससे मुख्य रूप से
प्रभालवत राज्य पंजाब, हररयाणा, पलिमी उत्तर प्रदेश, राजथिान, लहमाचल प्रदेश एवं जम्मू-कश्मीर हैं।
इससे होने र्वाली र्वर्ाध रबी की फसल तर्वशेर्कर गेहां की फसल के तलए बहुत उपयोगी होती है। यह र्वर्ाध ‘मावठ’
नाम से जानी जाती है।
भारत की ऋतुएाँ
भारतीय मौसम तर्वभाग द्वारा भारत की जलर्वायु को चार ऋतुओ ां में तर्वभातजत तकया गया है –
1. शीत ऋतु 2. ग्रीष्म ऋतु
3. र्वर्ाध ऋतु 4. शरद ऋतु
शीत ऋत:ु इसका काल मध्य लदसंबर से फरवरी तक माना जाता है। इस समय सूयध की तथितत दतक्णायन हो
जाती है। अतः उत्तरी गोलार्द्ध में तथित भारत का तापमान कम हो जाता है। इस ऋतु में समताप रे खाएां पूर्वध से पतिम
की ओर प्रायः सीधी रहती हैं। 20° की समताप रेखा भारत के मध्य भाग से गुजरती है। इस ऋतु में भूमध्य
सागर से उठने वाला शीतोष्ट्ण चक्रवात पलिमी जेट थरीम के सहारे भारत में प्रवेश करता है । इसे पलिमी
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लवक्षोभ कहते हैं। यह पंजाब, हररयाणा, राजथिान, पलिमी उत्तर प्रदेश, लहमाचल प्रदेश एवं जम्मू-कश्मीर
में वषाक करवाता है। शीतकाल में होने वाली यह वषाक मावठ कहलाती है । यह र्वर्ाध रबी की फसल के तलए
उपयोगी होती है।
ग्रीष्ट्म ऋतु : यह ऋतु माचध से मई तक रहती है। सयू ध के उत्तरायण होने से सारे भारत में तापमान बढ़ जाता है। इस
ऋतु में उत्तर और उत्तर-पतिमी भारत में तदन के समय तेज गमध एर्वां शष्ु क हर्वाएां चलती हैं जो लू नाम से जानी जाती
हैं। इस ऋतु में सूयध के क्रमशः उत्तरायण होते जाने के कारण अांतर उष्णकतिबांधीय अतभसरण क्ेत्र (ITCZ) उत्तर की
ओर तखसकने लगता है एर्वां जुलाई में 25° अक्ाांश रे खा को पार कर जाता है।
इस ऋतु में थिलीय शुष्क एर्वां गमध पर्वन जब समुद्री आद्रध पर्वनों से तमलती है तो उन जगहों पर प्रचांड तूफ़ान
की उत्पतत्त होती है। इसे मानसून पूर्वध चक्रर्वात (Pre Monsoon Cyclone) के नाम से जाना जाता है। भारत में
मानसून पूर्वध चक्रर्वात के थिानीय नाम तनम्नतलतखत हैं –
• नावेथटर: पूवी भारत (पलिम बंगाल, लबहार, झारखण्ि, ओलिशा) यह चाय, जूट और चावल की
खेती के ललए लाभदायक है।
• कालवैशाखी: पलिम बंगाल में नावेथटर का थिानीय नाम
• चेरी ब्लॉसम: कनाकटक एवं के रल (कॉफ़ी के फूलों के लखलने में सहायक)
• आम्रवृलि / आम्र बौछार / आम्र वषाक: दलक्षण भारत (आम के जल्दी पकने में सहायक)
• बोिोलचल्ला: नावेथटर का असम में थिानीय नाम
वषाक ऋत:ु इस ऋतु का समय जून से लसतंबर तक रहता है। इस समय उत्तर पतिमी भारत तिा पातकथतान में
तापमान अतधक रहने के कारण तनम्न र्वायुदाब का क्ेत्र बन जाता है। अतः अांतर उष्णकतिबांधीय अतभसरण क्ेत्र
(ITCZ) उत्त की ओर तखसकता हुआ तशर्वातलक के पर्वधत पाद तक चला जाता है एर्वां गगां ा के मैदानी क्ेत्र में तनम्न
दाब बन जाता है इस दाब को भरने के तलए द. पू. व्यापाररक पर्वने तर्वर्ुर्वत रे खा को पार कर द.प. मानसूनी पर्वनों के
रूप में भारत में प्रर्वेश करती हैं। ये द. प. मानसूनी पर्वनें दो शाखाओ ां में तर्वभातजत हो जाती हैं। पहली शाखा, अरब
सागरीय शाखा भारत के पतिमी घाि, पतिमी घाि पर्वधत, महाराष्र, गजु रात, मध्य प्रदेश, तहमाचल प्रदेश एर्वां जम्मू-
कश्मीर में र्वर्ाध करती है। दसू री शाखा, बांगाल की खाड़ी शाखा भारत में उत्तर-पूर्वी भारत, पूर्वी भारत, उत्तर प्रदेश,
राजथिान एर्वां उत्तराखांड आतद भागों में र्वर्ाध करती है।
गारो, खासी एर्वां जयतां तया पहातड़याां कीपाकार में फै ली हुई हैं, एर्वां समद्रु की ओर खुलती हैं अतः बांगाल
की खाड़ी से आने र्वाली हर्वाएां यहााँ फांस जाती हैं और अत्यतधक र्वर्ाध करती हैं। खासी पहाड़ी के दतक्णी भाग में
तथित मालसनराम संसार का सवाकलिक वषाक प्राप्त करने वाला थिान है।
शरद ऋतु : इस ऋतु का समय तसतांबर से मध्य तदसांबर तक माना जाता है। इस समय का मौसम सहु ार्वना होता है
तिा न अतधक गमध होता है और न ही अतधक ठांडा होता है। यह भारत में मानसून के लौिने का समय होता है।
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• जलवायु दशाए:ं यह र्वनथपतत उन क्ेत्रों में पायी जाती है जहााँ र्वर्ाध की मात्रा 200 cm र्वातर्धक र्वर्ाध से
अतधक एर्वां तापमान र्वर्ध भर ऊांचा रहता है। इन क्ेत्रों की र्वायु आद्रध एर्वां सतां प्तृ रहती है। यहााँ तापमान 25°
C से 27° C के मध्य रहता है। इन क्ेत्रों की आद्रधता 75% के आसपास रहती है।
• लवशेषताए:ं इन र्वनों के र्वृक् काफी सघन एर्वां सदाहररत रहते हैं। र्वृक्ों की ऊांचाई 30 से 60 मीिर तक होती
है। र्वृक्ों की लकड़ी कठोर होती है। लकड़ी के कठोर होने के कारण ये आतिधक दृति से अतधक महत्र्व के
नहीं होते। इन र्वृक्ों की लकड़ी का उपयोग जलार्वन के रूप में होता है।
• मुख्य वृक्ष या वनथपलत: इन र्वनों में महोगनी, आबनूस, जारुल, बाांस, बेंत, तसनकोना, रबर, आयरनर्वडु ,
रोजर्वडु , ताड़ आतद र्वृक् पाए जाते हैं। ये र्वन मसालों के बागानों के तलए भी उपयोगी होते हैं। रबर एर्वां
तसनकोना दतक्णी सह्याद्री और अडां मान-तनकोबार द्वीप समहू में तमलते हैं। अडां मान-तनकोबार का 95
प्रततशत भाग इन्हीं र्वनों से ढांका हुआ है। उत्तरी सह्याद्री में इन र्वनों को ‘शोला र्वन’ के नाम से जाना जाता
है।
• लवतरण: उत्तर-पर्वू ी भारत, पतिमी घाि पर्वधत का पतिमी ढाल, अडां मान एर्वां तनकोबार द्वीप समहू , सह्यातद्र
(पतिमी घाि), तशलॉांग पठार, लक्द्वीप, अरुणाचल प्रदेश एर्वां नागालैंड इत्यातद।
आतिधक दृति से बहुत महत्र्वपूणध होते हैं। इनकी लकतड़यों का उपयोग फनीचर बनाने एर्वां रे लर्वे थलीपर
बनाने के काम में तकया जाता है।
• मख्
ु य वक्षृ या वनथपलत: सागर्वान, साल (सखआ ु ), चन्दन, शहततू , महुआ, आर्वां ला, शीशम, आम,
बााँस, खैर, तत्रफला, िीक आतद इस प्रकार के र्वनों में पाए जाने र्वाले प्रमुख र्वृक् हैं। साल, सागर्वान एर्वां
शीशम की लकड़ी फनीचर बनाने के काम आती है। साल की लकड़ी का उपयोग रे लर्वे थलीपर बनाने में
तकया जाता है।
• लवतरण: पतिमी घाि पर्वधत के पूर्वी ढाल, तहमालय का तराई क्ेत्र, तबहार, उत्तर प्रदेश, ओतडशा, पतिम
बांगाल, महाराष्र, आांध्रप्रदेश, कनाधिक, मध्य प्रदेश, तशर्वातलक श्रेणी के सहारे भार्वर एर्वां तराई क्ेत्र, प्रायद्वीप
का उत्तर पूर्वी पठारी भाग, छत्तीसगढ़ एर्वां छोिानागपुर आतद क्ेत्रों में इस प्रकार के र्वन पाए जाते हैं।
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लवशेषताए:ं
• उच्च ज्र्वार के र्वक्त ये जल में डूबी रहती हैं एर्वां तनम्न ज्र्वार के र्वक्त ये शुष्क होती हैं अतः ये र्वनथपततयाां
क्रतमक बाढ़ एर्वां शुष्कता के तलए सहनशील होते हैं।
• ये र्वनथपततयाां समुद्री खारे जल के प्रतत सहनशील होती हैं।
• तिर्वती क्ेत्रों में तथित होने के कारण ये र्वनथपततयाां तिों की सुनामी एर्वां चक्रर्वात से रक्ा करती हैं कयोंतक
इनकी जड़ें बहुत लबां ी एर्वां तर्वथतृत होती हैं।
• इनसे ईधन
ां के तलए लकड़ी एर्वां मजबूत तिकाऊ लकड़ी प्राप्त होती है तजससे नार्व बनाई जाती हैं।
• ये तिों के अपक्रण को रोक तिा तथिरता प्रदान करते हैं एर्वां समुद्री लहरों से ति को सुरक्ा प्रदान करते
हैं।
• ये र्वृक् प्रदर्ू ण को कम करने में भी उपयोगी होते हैं।
मख्ु य वृक्ष या वनथपलत: मैंग्रोर्व, नाररयल, सुांदरी, ताड़, बेंत, बाांस सोनेररिा, फॉतनकस आतद इस प्रकार के र्वनों की
प्रमखु र्वनथपततयाां हैं। सुांदरी र्वृक्ों की अतधकता के कारण गगां ा डेल्िा के मैंग्रोर्व र्वनों को सदुां रर्वन भी कहा जाता है।
ये र्वन अपनी जैर्व तर्वतर्वधता के तलए प्रतसर्द् हैं।
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o बागं र: प्राचीन जलोढ़क (यह पहले से जमा की गयी तमट्टी है जो खादर से कम उपजाऊ होती है)
• इसमें पोिाश, फॉथफोरस एर्वां चनू ा पयाधप्त मात्रा में पाया जाता है।
• इसमें नाइरोजनी तत्र्व एर्वां जैतर्वक पदािों की कमी होती है।
• शुष्क प्रदेशों में इसमें क्ारीय अांश अतधक होता है।
क्षेत्रफल एवं लवतरण:
2. काली लमट्टी
उत्पलत्त: ये तमरट्टयााँ ज्र्वालामख
ु ी के दरारी उद्भेदन से तनकले पैतठक लार्वा के जम जाने से बनती है। इसका तनमाधण
बेसातल्िक लार्वा पदािों के तर्वखांडन से हुआ है। अतः ये तचकनी, लार्वा प्रधान एर्वां उपजाऊ तमट्टी है।
लवशेषताए:ं
• इसका रांग गहरा काला और कणों की बनार्वि घनी एर्वां महीन होती है।
• इसकी जलिारण क्षमता अलिक होती है। तचकनी होने के कारण जल के सूख जाने से इसमें दरारें पड़
जाती हैं।
• इसमें चनू ा, पोिाश, एल्युतमतनयम, मैग्नीतशयम एर्वां लोहा पयाधप्त मात्रा में होता है।
• इसमें फॉथफोरस, जीर्वाश्म (ह्यूमस) तिा नाइरोजन का अभार्व पाया जाता है।
• पठारी ढालों पर यह कम उपजाऊ होती है र्वहाां इसमें गेह,ां कपास, गन्ना, के ला, ज्र्वार, चार्वल, तम्बाकू,
अरण्डी, मगूां फली, सोयाबीन, फल, सतब्जयाां आतद पैदा तकए जाते हैं।
• यह एक क्ेत्रीय तमट्टी है।
• यह ‘काली कपास लमट्टी’ या ‘रेगुर’ लमट्टी के नाम से भी जानी जाती है। यह तमट्टी कपास की खेती के
तलए सर्वाधतधक उपयुक्त होती है।
क्षेत्रफल एवं लवतरण:
• इस तमट्टी का तर्वथतार मुख्यतः महाराष्र, दतक्ण-पूर्वी गुजरात, पतिमी मध्य प्रदेश, उत्तरी कनाधिक, उत्तरी
आध्रां प्रदेश, उत्तर-पतिम ततमलनाडु एर्वां दतक्णी-पर्वू ी राजथिान में है।
• महाराष्ट्र में इस लमट्टी का सवाकलिक लवथतार पाया जाता है।
• नमधदा, तापी, गोदार्वरी और कृ ष्णा नतदयों की घातियों में यह 60 मीिर से भी अतधक गहरी पायी जाती है।
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3. लाल-पीली लमट्टी
उत्पलत्त: ये तमरट्टयााँ अपक्य के प्रभार्व से ग्रेनाइि (आग्नेय) एर्वां नीस (रूपाांतररत) चट्टानों के िूि-फूि के कारण बनी
है। लोहे के ऑकसाइड तमले होने के कारण इस तमट्टी का रांग लाल होता है तिा जलयोतजत रूप में यह पीली तदखाई
पड़ती है। इनमें मूल चट्टान से चोकलेिी रांग के खतनज तत्र्व जैसे – फे ल्ड्सपार, ऑतलतर्वन के महीन कण पाए जाते
हैं। इसी कारण इसका रांग पीला तदखाई पड़ता है।
लवशेषताएाँ:
• अनेक प्रकार की चट्टानों से बनी होने के कारण इनमें गहराई, कणों की सांरचना और उर्वधराशतक्त में तभन्नता
पायी जाती है।
• ये तमरट्टयााँ अत्यांत रांध्रयुक्त होती हैं। अतः शुष्क एर्वां ऊांचे मैदानों में यह उपजाऊ नहीं होती है।
• इस तमट्टी में लोहा, एल्युतमतनयम और चनू ा प्रचरु मात्रा में पाया जाता है। इस तमट्टी में नाइरोजन, फॉथफोरस
और ह्यूमस का अांश कम होता है।
• यह अत्यतां बारीक तिा गहरी होने पर ही उपजाऊ होती है। इस तमट्टी में कपास, गेह,ां धान, अलसी, आल,ू
दालें एर्वां मोिे अनाज पैदा तकये जाते हैं।
क्षेत्रफल एवं लवतरण:
4. लैटराइट लमट्टी
उत्पलत्त: इन तमरट्टयों का तनमाधण शष्ु क एर्वां नम क्रतमक मौसम र्वाले क्ेत्रों में होता है जहााँ र्वर्ाध सामान्यतः 200 CM
र्वातर्धक से अतधक होती है। ये तमरट्टयााँ चट्टानों की िूि फूि एर्वां रासायतनक तक्रया से बनती है। अतधक र्वर्ाध के कारण
लैिराइि चट्टानों का अपक्ालन होता है। तजसके फलथर्वरूप बालू एर्वां चनू े के अांश ररसकर नीचे चले जाते हैं एर्वां
मृदा के रूप में लोहा एर्वां एल्युतमतनयम के यौतगक बन जाते हैं।
लवशेषताएाँ:
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o पहातड़यों पर पायी जाने र्वाली तमट्टी शष्ु क एर्वां कम उपजाऊ होती है कयोंतक इनकी जलधारण
क्मता कम होती है।
o तनम्न भूतमयों पर पायी जाने र्वाली इस तमट्टी के साि नम, तचकनी और दोमि तमट्टी भी तमली होती
है तजससे इसकी जलधारण क्मता बढ़ जाती है और अपेक्ाकृ त यह अतधक उपजाऊ होती है।
• इस तमट्टी में चनू ा, नाइरोजन एर्वां पोिाश की कमी होती है इस तमट्टी में जीर्वाश्म (ह्यूमस) भी नहीं पाया
जाता। चनू े की कमी के कारण यह तमट्टी अम्लीय प्रकृ तत की होती है। अम्लीय तमट्टी होने के कारण ही इसमें
चाय की खेती की जाती है।
• इस तमट्टी में एल्युतमतनयम एर्वां लोहे की प्रधानता पायी जाती है। यह तमट्टी अपक्ालन (Leaching) प्रतक्रया
द्वारा भी प्रभातर्वत रहती है फलथर्वरूप इसमें से चनू े का अश
ां छन छन कर बह जाता है।
• इस तमट्टी पर कनाधिक एर्वां महाराष्र में काजू, ततमलनाडु के पतिमी घाि की पहातड़यों पर चाय एर्वां के रल
र्व दतक्णी कनाधिक के घाि पर कहर्वा पैदा तकया जाता है। यहााँ िैतपकोआ (एक प्रकार की घास) एर्वां अन्य
उष्णकतिबधां ीय फसलें भी पैदा की जाती हैं।
• इस तमट्टी पर मुख्य रूप से मूांगफली, काजू, रबर, कॉफ़ी, चाय और मसाले पैदा तकये जाते हैं।
क्षेत्रफल एवं लवतरण:
• यह तमट्टी मख्ु य रूप से पर्वू ी एर्वां पतिमी घाि पर्वधत, राजमहल की पहातड़यााँ, के रल, कनाधिक, ओतडशा के
पठारी क्ेत्र, छोिानागपुर पठार एर्वां मेघालय पठार, ततमलनाडु, महाराष्र (रत्नातगरी, कोलार्वा, सतारा
तजला), पतिम बांगाल आतद थिानों पर पायी जाती है।
• इस तमट्टी का सर्वाधतधक तर्वथतार के रल राज्य में है।
5. पवकतीय लमट्टी
• ये तमरट्टयााँ पतली, दलदली एर्वां रांध्रयक्त
ु होती हैं।
• पहाड़ी ढालों की तलहिी में तछद्रमय बलुई एर्वां कम उपजाऊ ितशधयरी तमट्टी पायी जाती है।
• इस तमट्टी में अच्छी तकथम की चाय, चार्वल एर्वां फल पैदा होते हैं। पतिम तहमालय के ढालों पर सामान्य
उपजाऊ श्रेणी की तमट्टी तमलती है।
• मध्य तहमालय के क्ेत्र में पायी जाने र्वाली तमट्टी में र्वनथपतत के अांशों की अतधकता के कारण यह उपजाऊ
होती है।
• इसमें ह्यमू स की अतधकता के कारण ये अम्लीय प्रकृ तत की होती है। इस तमट्टी में पोिाश, फॉथफोरस एर्वां
चनू े की कमी होती है।
• ये तमट्टी अपरदन की समथया से प्रभातर्वत रहती है।
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7. मरुथिलीय लमट्टी
• यह र्वाथतर्व में बलुई तमट्टी होती है। इसमें लोहा एर्वां फॉथफोरस पयाधप्त मात्रा में होता है।
• इसमें नाइरोजन एर्वां ह्यूमस की कमी होती है।
• यह एक क्ारीय गुण र्वाली मृदा है।
• तसांचाई सांसाधन उपलब्ध करर्वाकर इसे उर्वधर बनाया जा सकता है।
• इस तमट्टी में मोिे अनाज जैसे ज्र्वार, बाजरा एर्वां रागी पैदा तकया जाता है।
• ये मृदा पतिमी राजथिान, दतक्णी हररयाणा, दतक्णी पजां ाब तिा पतिमी उत्तर प्रदेश में पायी जाती है।
8. पीट या जैलवक लमट्टी
• यह तमट्टी अतधक र्वर्ाध एर्वां उच्च आद्रधता र्वाले क्ेत्रों में पायी जाती है। ये क्ेत्र दलदली क्ेत्र होते हैं।
• यह तमट्टी रांग में काली एर्वां बहुत अतधक अम्लीय प्रकृ तत की होती है।
• मृदा में जीर्वाश्म के अश
ां पयाधप्त मात्रा में उपतथित होते हैं अतः इस मृदा में ह्यमू स अतधक होता है।
• इस मृदा में लोहे के अांश भी पाए जाते हैं।
• इस मृदा में फॉथफोरस एर्वां एल्युतमतनयम सल्फे ि के अतधक होने के कारण यह पौधों के तर्वकास हेतु
हातनकारक होती है।
• इस तमट्टी में पोिाश की कमी होती है।
• यह तमट्टी मुख्यतः के रल के एल्लपी (अलपुआ तजला), उत्तराखांड के अल्मोड़ा तजला, सुांदरर्वन डेल्िा
(पतिम बांगाल एर्वां ओतडशा) एर्वां तनचले डेल्िाई क्ेत्रों में पायी जाती है।
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o इस कृ तर् की प्रमख
ु तर्वशेर्ताएाँ – ज्यादा पाँजू ी लागत, तर्वशाल भूतम, प्रबधां न कौशल, तकनीकी
ज्ञान, अत्याधुतनक कृ तर् मशीनरी, उर्वधरक, अच्छी पररर्वहन सुतर्वधा एर्वां खाद्य प्रसांथकरण
कारखाना आतद हैं।
o इस प्रकार की कृ तर् के तहत उगाई जाने र्वाली प्रमुख फसलें – रबर, चाय, कहर्वा, कोको, के ला,
नाररयल एर्वां मसाले हैं।
• थिानातं ररक कृलष या झमू कृलष
o इस प्रकार की कृ तर् में आतदर्वासी लोगों द्वारा जमीन के एक िुकड़े को कृ तर् के तलए साफ़ तकया
जाता है। 2-3 र्वर्ों के बाद जब जमीन की उर्वधरता कम हो जाती है तब उस भूतम को त्याग तदया
जाता है और तफर र्वे आतदर्वासी दसू री जमीन की तलाश में आगे बढ़ जाते हैं।
o यह कृ तर् की अततप्राचीन पर्द्तत है पररणामथर्वरूप पर्वधतीय तहथसों पर बड़ी सांख्या में र्वनोन्मूलन
एर्वां मृदा अपरदन होता है।
o यह कृ तर् मख्ु यतः असम, मेघालय, नागालैंड, मतणपरु , तत्रपरु ा, तमजोरम, ओतडशा, अरुणाचल
प्रदेश, मध्य प्रदेश एर्वां आांध्र प्रदेश में रहने र्वाली जनजाततयों द्वारा अपनायी जाती है।
o इस कृ तर् के अांतगधत धान, मकका, बाजरा, तम्बाकू, गन्ना इत्यातद की खेती की जाती है।
हररत क्रालन्ध्त
• भारत में हररत क्रातन्त की शुरुआत सन 1966-67 में हुई। भारत में हररत क्रातन्त लाने का श्रेय एम. एस.
थर्वामीनािन को जाता है।
• तर्वश्व में हररत क्रातन्त लाने का श्रेय नोबल परु थकार तर्वजेता प्रोफ़े सर नॉमधन बोरलॉग को जाता है।
• हररत क्रातन्त का अतभप्राय देश में तसांतचत एर्वां अतसांतचत कृ तर् क्ेत्रों में अतधक उपज देने र्वाले सांकर तिा
बौने बीजों के उपयोग से फसल उत्पादन में र्वृतर्द् करना है।
हररत क्रालन्ध्त के घटक : हररत क्रातन्त के कुल 12 घिक हैं –
1. उच्च उपज तकथम के बीज 2. तसांचाई 3 रासायतनक उर्वधरकों का प्रयोग
4. कीिनाशक दर्वाओ ां का प्रयोग 5. कमाांड एररया तर्वकास 6. जोतों का सुदृढीकरण
7. भूतम सुधार 8. कृ तर् ऋण की आपूततध 9. ग्रामीण तर्वद्युतीकरण
10. ग्रामीण सड़कें एर्वां तर्वपणन 11. कृ तर् का मशीनीकरण 12. कृ तर् तर्वश्वतर्वद्यालय
हररत क्रालन्ध्त के प्रभाव
सकारात्मक प्रभाव नकारात्मक प्रभाव
कृ तर् उत्पादन में र्वृतर्द् अतां फध सल असतां ल
ु न
तकसानों की उन्नतत क्ेत्रीय असांतुलन में र्वृतर्द्
खाद्यान्नो के आयात में किौती बड़े तकसानों को ही लाभ प्राप्त
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फसलों का वगीकरण
• खाद्य फसलें: चार्वल, गेह,ाँ मकका, ज्र्वार, बाजरा आतद
• नकदी फसलें: कपास, जूि, गन्ना, तम्बाकू, मूांगफली आतद
• रोपण फसलें: चाय, कहर्वा, नाररयल, रबर, मसाला आतद
• बागवानी फसलें: सेर्व, आम, के ला, अगां रू एर्वां अन्य फल
• चार्वल उष्ट्णकलटबंिीय फसल है। इसके तलए उष्ट्णाद्रक जलवायु एर्वां औसत ताप 24° C की
आर्वश्यकता होती है।
• चार्वल की फसल के तलए 150 सेमी. से अलिक वषाक की आर्वश्यकता होती है।
• चार्वल की फसल के तलए गहरी उवकर लचकनी या दोमट लमट्टी की आर्वश्यकता होती है।
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गेहं (Triticum)
• गेह,ां भारत में चार्वल के बाद अन्य प्रमुख खाद्यान्न फसल है। देश की कुल लगभग 14 प्रततशत भाग पर
गेहां की खेती की जाती है।
• गेहां के प्रमुख उत्पादक क्ेत्रों में उत्तर प्रदेश, पांजाब, हररयाणा, मध्य प्रदेश एर्वां राजथिान शातमल हैं।
• भारत में तर्वश्व का 12 प्रततशत गेहां का उत्पादन होता है।
• उत्तरी भारत में गेहां की बुआई अकटूबर-नवंबर में एर्वां कटाई माचक-अप्रैल में होती है जबतक दलक्षणी
भारत में गेहां की बुआई लसतंबर-अकटूबर में एर्वां कटाई लदसंबर-जनवरी में होती है।
• गेहां रबी की फसल है तिा शीतोष्ट्ण जलवायु की फसल है।
• शीतकालीन वषाक (मावठ) गेहां की फसल के तलए अत्यतधक लाभदायक होती है।
आवश्यक दशाएं :
ज्वार
• यह रबी एवं खरीफ दोनों ऋतुओ ां में होती है। यह अफ्रीकी मूल का पौिा है।
• भारत में यह महाराष्र (38%), कनाधिक (13%), मध्य प्रदेश (13%) उत्पातदत होती है।
• ज्र्वार की सवाकलिक उत्पादकता आंरप्रदेश में पायी जाती है।
आवश्यक दशाए:ं
• वषाक: 30-100 सेमी. र्वातर्धक
• तापमान: 26° C से 33°C के बीच
• मृदा: हल्की दोमि, काली तचकनी तमट्टी
• यह उष्ट्णकलटबिं ीय फसल है।
बाजरा
• यह अफ्रीकी मूल का पौिा है। भारत में यह खरीफ की फसल है।
• भारत में बाजरा का सर्वाधतधक उत्पादन राजथिान (27%), गुजरात (19%), महाराष्र (15%) एर्वां
हररयाणा में होता है।
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मकका
• यह खरीफ की फसल है। इसके तलए अद्धक शुष्ट्क जलवायु की आर्वश्यकता होती है।
• मकका का उत्पादन आांध्रप्रदेश, कनाधिक, तबहार एर्वां राजथिान आतद राज्यों में होता है।
• मकका की फसल के तलए 50-100 सेमी. वालषकक वषाक, 25°-30° C तापमान एवं गहरी दोमट
लचकनी या कााँप लमट्टी की आर्वश्यकता होती है।
मूंगफली
• मूांगफली का सर्वाधतधक उत्पादन गुजरात, मध्य प्रदेश एर्वां ततमलनाडु में होता है।
• मूांगफली की फसल के तलए 50-75 सेमी. वालषकक वषाक, 20°-30° C के बीच तापमान एवं हल्की
दोमट या बलुई लमट्टी की आर्वश्यकता होती है।
चना
• चना एक रबी की फसल है। यह उष्ट्णकलटबंिीय फसल है।
• भारत में चना उत्पादक राज्यों में पांजाब, हररयाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्र एर्वां राजथिान प्रमुख
हैं।
• चना का सर्वाधतधक क्ेत्र मध्य प्रदेश में तिा सर्वाधतधक उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है।
• चना की फसल के तलए 40-50 सेमी. वालषकक वषाक, 20°-25° C तापमान एवं दोमट लमट्टी की
आर्वश्यकता होती है।
कपास
• कपास उष्ट्णकलटबंिीय एवं उपोष्ट्ण कलटबंिीय फसल है।
• कपास खरीफ की फसल है। भारत में कपास उत्पादन में अमेररका एर्वां चीन के बाद तृतीय थिान पर है।
• भारत में कपास की सवाकलिक उत्पादकता पज
ं ाब राज्य में है।
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• कपास उत्पादन करने र्वाले प्रमुख राज्य महाराष्र, गुजरात, आांध्रप्रदेश एर्वां पांजाब राज्य हैं।
• कपास की फसल के तलए 50-75 सेमी. वालषकक वषाक, 21°-30° C तापमान एवं गहरी काली
दककनी पठारी मदृ ा की आर्वश्यकता होती है।
जूट
• यह उष्ट्णाद्रक जलवायु की फसल है। जूि खरीफ की फसल है।
• तर्वश्व के कुल जूि उत्पादन का 66% उत्पादन अके ला भारत करता है।
• भारत में जिू उत्पादन करने र्वाले शीर्ध राज्य पलिम बगं ाल, लबहार, असम एवं झारखिं हैं।
• जूि की फसल के तलए 100-200 सेमी. वालषकक वषाक, 24°-35° C तापमान एवं जलोढ़ या कााँप
मृदा की आर्वश्यकता होती है।
गन्ध्ना
• यह उष्ट्णकलटबिं ीय फसल है। इसके तलए अलिक ताप एवं अलिक आद्रक ता की आर्वश्यकता होती
है।
• भारत में गन्ना उत्पादन करने र्वाले प्रमुख राज्य उत्तर प्रदेश, महाराष्र, ततमलनाडु, कनाधिक आतद राज्य हैं।
• दलक्षण भारत में आद्रकता अलिक होने के कारण प्रलत हेकटेयर उपज उत्तर भारत से अलिक होती
है।
• भारत में सवाकलिक लसंचाई का उपयोग गन्ध्ना की फसल के ललए तकया जाता है।
• गन्ना की फसल के तलए 150 सेमी. वालषकक वषाक से अलिक वषाक की आर्वश्यकता होती है, इसके
तलए 20°-26° C तापमान एवं उपजाऊ दोमट मृदा की आर्वश्यकता होती है।
तम्बाकू
• भारत में दो प्रकार की तम्बाकू का उत्पादन होता है –
o तनकोतिना िोबेकम: उपयोग – तसगरे ि, तसगार एर्वां चेरुत में
o तनकोतिना रतथिका: उपयोग – खैनी, हुकका एर्वां बीडी में
• भारत में 90 प्रलतशत तम्बाकू लनकोलटना रलथटका उत्पातदत की जाती है।
• भारत में तम्बाकू उत्पादन करने र्वाले प्रमुख राज्य आांध्रप्रदेश, कनाधिक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पतिम
बांगाल एर्वां तबहार हैं।
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• तम्बाकू के पौधे के तलए 50 सेमी. वालषकक वषाक से अतधक र्वर्ाध की आर्वश्यकता होती है जबतक 100
सेमी. वालषकक वषाक से अलिक वषाक हालनकारक होती है। इसके तलए 15° C से 38° C तापमान एर्वां
लवण व अम्ल यक्त ु अच्छी बलईु लमट्टी की आर्वश्यकता होती है।
रबर
• रबर एक उष्ट्ण एवं आद्रक जलवायु का पौधा है।
• भारत, िाईलैंड और इडां ोनेतशया के बाद तीसरा सबसे बड़ा रबर उत्पादक देश है।
• भारत में रबर का उत्पादन मुख्य रूप से के रल, ततमलनाडु, असम एर्वां कनाधिक में तकया जाता है।
• के रल में देश का लगभग 92 प्रलतशत रबर का उत्पादन लकया जाता है।
• रबर के पौधे के तलए 200 सेमी. से अलिक वालषकक वषाक, 25° C से 35° C के मध्य तापमान एवं
हल्की अम्लीय लैटराइट या पवकतीय प्रकार की लमट्टी की आर्वश्यकता होती है।
चाय
• यह उष्ट्ण-आद्रक जलवायु का छाया पसंद पौिा है। इसे छाया र्वाले थिानों में लगाया जाता है।
• इसकी जिों में पानी नहीं रुकना चालहए अतः यह ढालनमु ा भलू म पर उगाया जाता है।
• भारत में चाय उत्पादन करने र्वाले प्रमुख राज्य असम, पतिम बांगाल, ततमलनाडु एर्वां तत्रपुरा हैं।
• चाय के पौधे के तलए 200-300 सेमी. वालषकक वषाक, 24°-30° C तापमान एवं भुरभुरी दोमट,
अम्ल की प्रचरु मात्रा व काबकलनक पदािो से युक्त लमट्टी की आर्वश्यकता होती है।
नाररयल
• यह तटीय जलवायु वाला पौिा है।
• नाररयल के उत्पादन, लनयाकत एवं उपभोग में भारत का लवश्व में प्रिम थिान है।
• भारत में नाररयल उत्पादन करने र्वाले प्रमुख राज्य के रल, कनाधिक, ततमलनाडु एर्वां आांध्र प्रदेश हैं।
• नाररयल के तलए 150 सेमी. वालषकक से अलिक वषाक, 20° C से 25° C तक तापमान एवं लैटराइट
प्रकार की लमट्टी की आर्वश्यकता होती है।
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मैंगनीज
राज्य उत्पादक क्ेत्र
ओतडशा कयोंझर, कालाहाडां ी, सदुां रगढ़
मध्य प्रदेश बालाघाि, तछांदर्वाड़ा
महाराष्र नागपुर, भण्डारा, रत्नातगरी
झारखण्ड पतिमी तसांहभूम
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बॉकसाइट
राज्य उत्पादक क्ेत्र
ओतडशा कालाहाडां ी, रायगढ़, पचां पत्तमल्ली, गधां मदधन
मध्य प्रदेश किनी, जबलपुर, शहडोल, माांडला
झारखडां पलाम,ू लोहदरगा
छत्तीसगढ़ बथतर, तबलासपुर, सरगुजा
तााँबा
राज्य उत्पादक क्ेत्र
राजथिान खेतड़ी, खो दरीबा
मध्य प्रदेश मलाजखांड (बालाघाि तजला)
झारखांड मोसाबानी, राखा, सोनामाखी
चााँदी
राज्य उत्पादक क्ेत्र
राजथिान जार्वर क्ेत्र
कनाधिक कोलार क्ेत्र, तचत्र दगु ध
आध्रां प्रदेश कुडप्पा, गिुां ू र, कुनधल
ू
अभ्रक
राज्य उत्पादक क्ेत्र
झारखण्ड कोडरमा, तगररडीह, हजारीबाग़
राजथिान जयपुर, उदयपुर, भीलर्वाड़ा
आांध्र प्रदेश नेल्लोर, तर्वशाखापत्तनम, कृ ष्णा तजला
सोना
• देश का लगभग 90 प्रततशत सोना कनाधिक राज्य से प्राप्त होता है।
• उत्पादन क्षेत्र: कोलार की खान, हट्टी की खान, थर्वणधरेखा नदी, सोन नदी की बालू
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िोररयम
• यह मोनोजाइि तिा इल्मेनाइि अयथक से प्राप्त तकया जाता है।
• तर्वश्व में िोररयम का सर्वाधतधक भण्डार भारत में पाया जाता है।
• प्रालप्त थिल:
के रल: के रल में इसका सर्वाधतधक के न्द्रीकरण कोल्लम एर्वां पलककड़ तजले में है। के रल में इसका र्वाथततर्वक
श्रोत त्रार्वणकोर पहाड़ी है।
झारखण्ि: झारखण्ड में इसके सतां चत भण्डार हैं।
ततमलनाडु एर्वां ओतडशा के तिीय बालू में भी िोररयम तमलता है।
िोररयम, महानदी डेल्िा के आांध्रप्रदेश, ओतडशा र्वाले भागों में भी तमलता है।
यूरेलनयम
• यह झारखांड, कनाधिक, आांध्र प्रदेश, राजथिान, के रल, ततमलनाडु आतद क्ेत्रों में पाया जाता है।
• झारखांड का जादगु ोड़ा क्ेत्र यूरेतनयम के तलए प्रतसर्द् है।
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• इस सांयांत्र को लौह अयथक की प्रातप्त हॉथपेि क्ेत्र, बाबा बूदन पहाड़ी एर्वां तचकमांगलूर से होती है।
• यह सयां त्रां कोयले की प्रातप्त कान्हन घािी (मध्यप्रदेश) एर्वां तसगां रे नी (आध्रां प्रदेश) से करता है।
• इस सांयांत्र को जल एर्वां जल तर्वद्युत की प्रातप्त तुांगभद्रा पररयोजना से होती है।
एल्युलमलनयम उद्योग
• यह एक ऐसा उद्योग है तजसमें बड़े पैमाने पर तबजली की उपलब्धता का होना आर्वश्यक है। अतः इसका
थिानीयकरण र्वैसी जगहों पर हुआ है जहााँ सथता तर्वद्युत उपलब्ध होता है।
• भारत में एल्यतु मतनयम का पहला कारखाना जे.के . नगर (पतिम बगां ाल) में लगाया गया िा।
• दसू री पांचर्वर्ीय योजना में थिातपत एल्युतमतनयम सांयांत्र:
o हीराकांु ड (ओतडशा)
o रे णुकूि (उत्तर प्रदेश)
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• कारखाना: रे णक
ु ू ि (उत्तर प्रदेश) में
• बॉकसाइि आपूततध: राांची (झारखण्ड), पलामू एर्वां लोहदरगा (झारखण्ड)
• तर्वद्युत आपूततध: ररहदां जल तर्वद्युत पररयोजना (उत्तर प्रदेश)
2. इलं ियन एल्यलु मलनयम कंपनी लललमटेि (INDALCO): भारत में इसके कारखाने तनम्नतलतखत थिानों पर
थिातपत तकए गए हैं –
1. मुरी (झारखांड) 2. अल्र्वाये (के रल) 3. बेलूर (प. बांगाल)
4. हीराकांु ड (ओतडशा) 5. बेलगााँर्व (कनाधिक)
3. भारत एल्युलमलनयम कंपनी लललमटेि (BALCO): भारत में इसके कारखाने कोरबा (छत्तीसगढ़) एर्वां
कोयना (महाराष्ट्र) में थिातपत तकये गए हैं।
4. मद्रास एल्युलमलनयम कंपनी (MALCO): इसका कारखाना मैिूर (ततमलनाडु) में तथित है।
5. नेशनल एल्युलमलनयम कंपनी (NALCO): भारत में इसके कारखाने: दामनजोरी (कोरापुट, ओलिशा),
अगं ल
ु (िेनकनाल, ओलिशा)
6. एल्युलमलनयम कॉपोरेशन ऑफ इंलिया: इसका कारखाना जे. के . नगर (प. बांगाल) में तथित है।
7. वेदातं ा एल्यलु मलनयम लललमटेि: इसका कारखाना झारसगु डु ा (ओतडशा) में तथित है।
सीमेंट उद्योग
• सीमेंि उद्योग एक आधारभतू उद्योग है। यह एक र्वजन ह्रास उद्योग है। अतः इस उद्योग का थिानीयकरण
कच्चे माल के क्ेत्र में होता है।
• सीमेंि उद्योग में कच्चा माल कोयला, चनू ा पत्िर एर्वां तजप्सम होता है। चांतू क मध्य प्रदेश में चनू ा पत्िर के
सर्वाधतधक भण्डार हैं इसतलए इस उद्योग का सर्वाधतधक तर्वकास मध्यप्रदेश में ही हुआ है।
सीमेंट उद्योग के कारखानों के प्रकार:
1. थलज आिाररत कारखाना: इन कारखानों में रासायतनक उर्वधरकों से प्राप्त अपतशि का उपयोग कच्चे
माल के रूप में होता है उदाहरण – तसांदरी कारखाना
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2. थलैग आिाररत कारखाना: इन कारखानों में लौह – इथपात उद्योग से प्राप्त अपतशि का उपयोग कच्चे
माल के रूप में होता है उदाहरण : सींकपानी (झारखांड), भद्रार्वती, राउरके ला, दगु ाधपुर, तर्वशाखापत्तनम एर्वां
दगु ध (छत्तीसगढ़) के कारखाने आतद।
3. समुद्री जीवों के कवच आिाररत कारखाना: इन कारखानों में मृत समुद्री जीर्वों के कर्वचों से चनू ा पत्िर
प्राप्त कर कच्चे माल के रूप में उपयोग तकया जाता है जैसे – द्वाररका, चेन्नई, ततरुर्वनांतपुरम एर्वां पोरबांदर
आतद के कारखाने।
प्रमख
ु सीमेंट उत्पादक राज्य एवं कें द्र:
• मध्यप्रदेश: सतना, किनी, जबलपुर, रतलाम, नीमच, मैहर, बनमोर आतद।
• छत्तीसगढ़: जामुल, दगु ध, मांधार आतद।
• आंरप्रदेश: तर्वजयर्वाडा, कृ ष्णा, गुांिूर, कुनूधल, तर्वशाखापत्तनम आतद।
• राजथिान: सर्वाईमाधोपरु , उदयपरु , चरू
ू , तचत्तोडगढ आतद।
• गुजरात: पोरबांदर, जामनगर, द्वाररका, र्वड़ोदरा, अहमदाबाद आतद।
• तलमलनािु: तुलुकापट्टी, िलैयुिू, ततरुर्वेन र्वेली आतद।
• महाराष्ट्र: चादां ा, रत्नातगरी, सेनरी आतद
नोट:
• सीमेंि उत्पादन में भारत तर्वश्व में तद्वतीय थिान पर है।
• सीमेंि उद्योग को र्वर्ध 1989 में पूणधतः तर्वके न्द्रीकृ त तकया गया िा।
• भारत में मध्य प्रदेश एर्वां छत्तीसगढ़ सीमेंि के कुल उत्पादन में लगभग 22.5 प्रततशत योगदान देते हैं।
• भारत में सीमेंि की सर्वाधतधक उत्पादन क्मता आध्रां प्रदेश राज्य की है।
• भारत में सर्वाधतधक सांख्या में सीमेंि सांयांत्र आांध्रप्रदेश में थिातपत हैं।
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पेरो-रसायन उद्योग
• पेरो रसायन उद्योग को चार भागों में तर्वभातजत तकया जा सकता है –
1. पॉलीमर
2. कृ तत्रम रे शा
3. इलेकरोमशध
4. Surfactant Intermediate
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1. पॉलीमर
• पॉलीमर का तनमाधण एतिलीन एर्वां प्रोपीलीन से होता है जो तेल शोधन के दौरान प्राप्त होते हैं।
• नेशनल आमेतनक के तमकल तलतमिेड (NOCIL) देश का पहला नेफ्िा आधाररत रसायन कारखाना है।
इसकी थिापना र्वर्ध 1961 में मुांबई में हुई िी।
• पॉलीमसध से प्लातथिक तैयार की जाती है। भारत में प्लातथिक उत्पादन के प्रमख
ु कें द्र मबुां ई, बरौनी (तबहार),
मैिूर (ततमलनाडु), तपम्परी (पुणे) एर्वां ररसरा (प. बांगाल) हैं।
2. कृलत्रम रेशा
• कृ तत्रम रे शों का इथतेमाल र्वि उद्योग में होता है। नायलॉन एर्वां पॉलीएथिर प्रमुख कृ तत्रम रे शे हैं।
• नायलॉन एर्वां पॉलीएथिर कारखाने : कोिा, तपम्परी, मुांबई, पुणे, उज्जैन एर्वां नागपुर आतद थिानों पर।
• एक्रेतलक थिेपल रे शे कारखाने : कोिा एर्वां र्वड़ोदरा में।
• पॉलीएथिर थिेपल रे शे कारखाना : कोिा, र्वड़ोदरा, िाणे, गातियाबाद एर्वां मनाली में।
3. इलेकरोमशक (प्रत्याथिलक) एवं कृलत्रम लिटजेंट कारखाना: हतल्दया में।
4. पटाखा बनाने का उद्योग एवं कारखाने: औरै या (उत्तर प्रदेश), जामनगर, गाांधी नगर एर्वां हजीरा
(गुजरात), रत्नातगरी (महाराष्र), तशर्वकाशी (ततमलनाडु), तर्वशाखापत्तनम (आांध्र प्रदेश), हतल्दया (पतिम बांगाल)
में।
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चीनी उद्योग
• भारत में चीनी का उत्पादन गन्ने से तकया जाता है। (यूरोप में चक
ु ां दर से तकया जाता है)
• र्वर्ध 1903 में अांग्रेजों द्वारा तबहार के मढौरा (सारण तजला) में प्रिम सफल चीनी तमल की थिापना की गयी।
इसके बाद उत्तर प्रदेश के इलाकों और तबहार में अन्य चीनी तमलें लगाई गयीं।
• चीनी उद्योग एक र्वजन ह्रास उद्योग है। चीनी की तुलना में गन्ने का पररर्वहन कतठन होता है अतः चीनी
मीलों की थिापना गन्ना उत्पादक क्ेत्रों के आसपास की जाती है।
भारत के प्रमुख गन्ध्ना उत्पादक राज्य – उत्तर प्रदेश, महाराष्र, ततमलनाडु, कनाधिक, गुजरात, आांध्र प्रदेश एर्वां
तबहार आतद राज्य हैं।
1. उत्तर प्रदेश: यहााँ गन्ना उत्पादन एर्वां चीनी तमल के दो प्रमुख क्ेत्र हैं –
• गांगा-यमनु ा दोआब : सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गातजयाबाद आतद।
• उत्तर-पूर्वी तराई क्ेत्र : गोरखपुर, बथती, देर्वररया, गोंडा, सीतापुर, फै जाबाद आतद।
2. महाराष्ट्र:
• यहााँ गोदार्वरी, कृ ष्णा, प्रर्वरा एर्वां नीरा नतदयों से तसतां चत काली तमट्टी में गन्ने की अच्छी पैदार्वार होती है।
• महाराष्र में अहमदनगर, कोल्हापुर, पुणे, नातसक, शोलापुर, सतारा आतद प्रमुख चीनी उत्पादन कें द्र हैं।
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3. तलमलनािु:
• ततमलनाडु में गन्ने की प्रतत हेकिेयर उपज अतधक होती है तिा शकध रा की मात्रा भी अतधक पायी जाती
है। इसका मुख्य कारण आद्रध समुद्र तिीय जलर्वायु है।
• यहााँ कोयांबिूर, ततरुतचरापल्ली, बेल्लोर एर्वां अकाधि चीनी उत्पादन के प्रमुख कें द्र हैं।
4. अन्ध्य उत्पादन कें द्र: अन्य उत्पादन के न्द्रों में कनाधिक, आांध्रप्रदेश, गुजरात, तबहार, पांजाब, हररयाणा एर्वां
राजथिान प्रमुख हैं।
चीनी उद्योग का दलक्षण भारत में लवकें द्रीकरण के कारण:
• दककन के पठार की काली मृदा गन्ने की फसल के तलए अनुकूल होती है। नमी धारण क्मता अतधक होने
के कारण यहााँ तसांचाई की आर्वश्यकता कम होती है।
• समुद्री आद्रध जलर्वायु गन्ने में शकध रा की मात्रा में पेराई की अर्वतध में र्वृतर्द् करता है तजससे शकध रा की मात्रा
में कमी अतधक नहीं हो पाती।
• दतक्ण भारत की चीनी तमलों की थिापना सहकाररता के माध्यम से हुई है।
• दतक्ण भारत के गन्ने में रस की मात्रा अतधक होती है।
• दतक्ण भारत में तर्वद्यतु ससां ाधनों की उपलब्धता सुगम है।
जटू उद्योग
• यह कृ तर् आधाररत एर्वां र्वजन ह्रास उद्योग है अतः उद्योग का थिानीयकरण कच्चे माल के क्ेत्र में होता है।
• भारत तर्वभाजन से पूर्वध जूि उद्योग पर भारत का एकातधकार िा। तर्वभाजन के बाद जूि उद्योग पर प्रततकूल
प्रभार्व पडा। कयोंतक तर्वभाजन के बाद भारत में अतधकतर जूि कारखाने रह गए जबतक जूि उत्पादन का
अतधकतर क्ेत्र पर्वू ी पातकथतान (र्वतधमान बाग्ां लादेश) में चला गया िा।
• र्वतधमान में भारत में इस उद्योग का के न्द्रीकरण पतिम बांगाल राज्य में है।
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कागज़ उद्योग
• आजादी के समय देश में अखबारी कागि की पहली तमल नेपानगर (शहडोल, मध्य प्रदेश) में लगाई गयी
िी।
• कागि बनाने का सफल कारखाना लखनऊ में र्वर्ध 1879 में थिातपत तकया गया तिा पुनः 1881 में
िीिागढ़ (प. बांगाल) में कारखाने लगाए गए। यहीं से आधुतनक कागि उद्योग की शुरुआत मानी जाती है।
• कागि उद्योग एक र्वजन ह्रास उद्योग है। अतः इस उद्योग का थिानीयकरण मुख्यतः कच्चे माल के क्ेत्रों में
ही हुआ है।
कागज़ उद्योग में प्रयुक्त कच्चा माल:
• मल
ु ायम लकिी: यह तहमालय के कोणधारी र्वनों से प्राप्त होती है। कागि उद्योग के कुल कच्चे माल के
7 प्रततशत मुलायम लकड़ी का उपयोग तकया जाता है।
• बााँस: भारत में कागि उद्योग का 70 प्रततशत कच्चा माल बााँस से प्राप्त होता है। भारत में कनाधिक में बााँस
के सर्वाधतधक र्वृक् हैं।
• सवाई घास: सर्वाई घास से कागि उद्योग का 15 प्रततशत कच्चा माल प्राप्त होता है। मध्य प्रदेश में सर्वाई
घास का सर्वाधतधक उत्पादन होता है।
• बगासी: यह गन्ने की खोई से प्राप्त तकया जाता है। कागि उद्योग के कच्चे माल के रूप में 7 प्रततशत
कच्चा माल इसी से प्राप्त तकया जाता है।
• रैकस: कागि के िुकड़ों एर्वां कपडा के िुकड़ों से तैयार की गयी लुगदी रै कस कहलाती है। इसका प्रयोग हथत
तनतमधत कागि बनाने में तकया जाता है। भारत हथत तनतमधत कागि उत्पादन में तर्वश्व में प्रिम थिान पर है।
एतशया का सबसे बड़ा हथत तनतमधत कागि का कारखाना पदु चु ेरी में है।
प्रमुख कागज़ उत्पादक क्षेत्र:
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रेशम उद्योग
रे शम उद्योग 2 अर्वथिाओ ां में पूणध होता है। पहली अर्वथिा में रे शम का रे शा प्राप्त करने के तलए रे शम कीि का पालन
तकया जाता है। दसू री अर्वथिा में प्राप्त रे शे का उपयोग कर रे शम के र्विों का उत्पादन तकया जाता है।
रेशम कीट पालन:
• रे शम कीि पालन को सेरीकल्चर कहते हैं।
• रे शम कीि पालन मुख्य रूप से शहतूत के पेड़ पर तकया जाता है।
भारत में उत्पालदत रेशम के प्रकार:
• शहततू ी रेशम (मालबरी रेशम): शहततू के पेड़ पर कीि पालन कर प्राप्त तकया जाता है। इसका उत्पादन
कनाधिक, के रल, प. बगां ाल एर्वां जम्मू-कश्मीर में होता है। यह उच्च कोति का रे शम होता है।
• माँगू ा रेशम: यह भी शहतूत के पेड़ पर पाले गए कीड़ों से प्राप्त तकया जाता है। इसका उत्पादन असम, पतिम
बांगाल एर्वां जम्मू-कश्मीर में तकया जाता है।
• टसर रेशम: इसका उत्पादन जगां ली शहततू के पेड़ों से तकया जाता है। इसके उत्पादन कें द्र झारखडां , ओतडशा
एर्वां मध्य प्रदेश हैं।
• अरण्िी रेशम: इसका उत्पादन अरण्डी के पेड़ पर पाले गए कीड़ों से होता है। यह तनम्न कोति का रे शम
होता है।
रेशमी वस्त्र उद्योग: भारत में रे शमी र्वि उद्योग के कें द्र मैसूर, बांगलुरु, कोयांबिूर, र्वाराणसी, ततरुपतत, मदरु ै ,
काांजीर्वरम, भागलपुर, चेन्नई एर्वां मुांबई हैं।
कुल रेशम उत्पादन में लवलभन्ध्न प्रकार के रेशमों की लहथसेदारी:
• मालबरी रेशम: लगभग 79 प्रततशत
• एरी रेशम: लगभग 13.5 प्रततशत
• टसर रेशम: लगभग 5.7 प्रततशत
• कच्चा रेशम: लगभग 0.6 प्रततशत
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