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जैनें दर् कु

मार
जैनेन्द्र कु मार की जीवनी जीवन पररचय |
1. जैनेन्द्र कु मार की जीवनी
हहद ी के मनोवैज्ञाननक कहानीकार जैनेन्द्र चौथे दशक के लोकप्रिय
कथाकार हैं। इन्द्होने कहानी
कला को एक नई हदशा की ओर मोड़ने का कायय ककया। एविं बाह्य घटनाओिं
की अपेक् षा पात्रों क
अिं व र्दवारा वस्तु प्रवन्द्यास ेन्द्र का जन्दम
् 1905 में अलीगढ़ जजले क
तर्दयव ककया हैं। जन
र्

कौड़ड़याग में हुआ।
िंज गा

इनकी िारजभिक शशक् षा गााँव में ही हु ई। तत्पश्चात इन्द्होने


गुरुकु ल कागड़ी के आवासीय शशक्षण सिं स्थान में िवेश हदलाया
गया। उच्च शशक्षा के शलए ये बनारस चले गये। वहािं काशी हहन्द्दू
प्रवश्वप्रवर्दयालय से एम ए की परीक् षा उतीणय की और लेखन कायय में जट गये।

गािंधीजी र्दवारा देशव्यापी आिंदोलन चलाने पर उनसे


ििाप्रवत हु ए और सत्य अहहसा के शसर्दधािंतों को अपनाकर
गािंधीवादी प्रवचार धारा के पोषक बने। उनकी कहाननयों में
दाशयननकता झलकती हैं, ककन्द्तु श्रर्दधा और तकय दोनों का शमश्रण हु आ
हैं। वे गौतम बुर्दध के करुणावाद से िी ििाप्रवत
हु ए हैं। क्ािंनतकारी रचनाकार होने के कारण धारा से हटकर इन्द्होने
परभपरागत नैनतक मल्यों व
वजय नाओिं की उपेक्षा की हैं।

अतः कही कही ये गािंधी दशन के व्यवहाररक पहलू से हटकर नजर आते हैं,
तिी तो आचाय
निंददलारे वाजपेयी ने शलखा है कक रचना के क्षेत्र में जैनेन्द्र न तो
गाधीवादी है और न
आदशयवादी। ये एविं कल्पना जीवी ले खक जो वास्तप्रव-कता के िकाश
एकाजन्द्तक िावक ह में
धशू मल हदखाई देते हैं। जहााँ तक जनेन्द्र कु मार की दाशयननक दृजटट का
िश्न ह,ै वह व्यजततवादी
है और उसका प्रवश्ले षण उन्द्होंने मनोवैज्ञाननक धरातल पर ककया हैं।
वस्तुत
ः जन ेन्द्र ने जो अपनाया हैं तथा जजसमें अलौकककता, मनोप्रवज्ञानता
नया दशन और दशयन
आकर शमल गये हैं। उनके सभबन्द्ध में स्वयिं जैनेन्द्र ने शलखा है मैं
ककसी ऐसे व्यजतत को नहीिं जानता जो मात्र लौककक हो, जो
सभपूणयता से शारीररक धरातल पर रहता हो, सबके िीतर ह्रदय
है जो सपने देखता है। सबके िीतर आत्मा है, जो जगती हैं
जजसे शस्त्र छू ता नहीिं, आग जलाती नही। सबके िीतर वह
है जो अलौककल है मैं वह स्थल नहीिं जानता जो अलौककक न
हो।

2. जैने न्द्र का व्यक्तित्व


उतत कथन से जैनेन्द्र का व्यजततत्व वे ईश्वरवादी शसर्दध होते हैं। एक
मुखररत हो गया ह
स्थान पर उन्द्होंने शलखा है वह कण कहााँ है, जहााँ परमात्मा का
ननवास न हो। रोज के जीवन में काम आने वाली चीजों और
व्यजततयों का हवाला नहीिं हैं। तो तया उन कहाननयों में तो
अलौककक हैं ।

जो तुभहारे िीतर अधधक तहों में बैठा हैं। जो और िी घननटठ और


ननत्य रूप में तुभहारा अपना
हैं। जैनेन्द्र के कथा साहहत्य में एक ओर आस्थावादी प्रवचार शमलते है तो
दसरी तरफ फ् रायड युग
जैसे पजश्चमी प्रवचारकों के अनुसार सुप्त कामिावना व
वैयजततक अहिंिावना का धचत्रण िी हो गया हैं । तिी तो आलोचकों
के शलए वे एक समस्या बन गये हैं । उनके प्रवचार और दृजटट कोण में शिन्द्नता
होते हु ए िी उनके चमत्कारपूणय शशल्प प्रवधान एविं
अनुिूनत की गहनता देख बरबस उनकी िशिं सा करनी पड़ती हैं।

जैनेन्द्र कु मार में स मता ह,ै अर्दितु कौशल ह,ै ननरीह सरलता ह,ै
दाशयननक उलझने िी ह,ै
समाज से अलगाव के साथ साथ एक प्रवधचत्र मानवीय सिं वेदना िी हैं । व्यजततत्व की ये
प्रवशेषताएिं पाठकों को आकृ टट िी करती है और पाठक
किी किी क् षोम से िी िर उठता हैं ।

3. जैनेन्द्र का कृ तित्व रचनाएं

बहु मुखी गर्दयकार, कहानीकार, उपन्द्यासकार जनेन्द्र का रचना ससािं र


व्यापक हैं। वे नई कहानी
और िेमचिंदयुगीन कहानीकारों के स्य इनकी कहाननयों में
सेतु ह दोनों का कु छ देखा
कु छ सामज
जा सकता ह इनकी िमखु रचनाएिं अधोशलखखत हैं।
 कहानी सिं गर् ह– ध्रुवयात्रा, फािंसी, एक रात, वातायन, दो धचड़ड़यााँ,
नीलम देश की राजकु मारी,
जैनेन्द्र की कहाननयााँ दस िाग पाजेब, नई कहाननया,
स्पर्दयधा, एक हदन तथा एक रात, मे री प्रिय कहाननयााँ।
 उपन्द्यास– कल्याणी, सुनीता, , प्रववतय, व्यतीत, मुजततबोध सुखदा
त्याग पत्र, जयवधन आहद।

 ननबिंध सिं गर् ह– जैनेन्द्र के प्रवचार, िस्तुत


िश्न, जड़ की बात, सस् मरण, और िय,
श्रय
मिं थन, काम, िेम और पररवार, समय और हम तथा इत्सतत। इनके
अनतररतत पत्र पत्रत्रकाओिं में आलोचनात्मक ले ख िी शमलते हैं।

जैनेन्द्र की कु छ िशसर्दध कहाननयों में जाह्नवी, सजा, ईनाम,


मास्टरजी, पाजेब आहद उल्लेखनीय
है। उपन्द्यासों में त्याग पत्र एविं सनीता, सखु दा लोकप्रिय हएु
हैं। इस तरह जैनेन्द्र का समचा
साहहत्य वैचाररक एविं कलात्मक दृजटट से उत्कृ टट कहा जा सकता
हैं। जैनेन्द्र के परवती कथाकार इलाचिंर जोशी, अज्ञेय, यशपाल
िी इनसे बहु त ििाप्रवत हु ए हैं।
4. जैनेन्द्र की कहानी कला
मनोवैज्ञाननक कहानीकार जैनेन्द्र कहानी के एक सशतत हस्ताक्षर हैं।
वे कहानी को मानव मन में उथल पुथल मचाने वाली समस्याओिं
की हदशा में समाधान का एक ियत्न मानते हैं। इस सन्द्दिय में
उनका एक कथन दृटटव्य है कहानी तो िूख है जो ननरिंतर
समाधान पाने की कोशशश करती हैं। हमारे अपने सवाल होते हैं,
शिंकाएिं होती है और हम ही उनका उत्तर समाधान खोजने का
ननरिंतर ियास करते रहते हैं, हमारे ियोग होते रहते हैं।

उदाहरणों एविं शमसालों की खोज होती रहती है, कहानी उस खोज के


ियत्नों का एक उदाहरण हैं।
वह एक ननजश्चत उत्तर ही नहीिं देती, पर यह अलबत्ता कहती है कक उसे रास्ते
शमले। वह स क
होती है, कु छ सूझा देती है और पाठक अपनी को ले ले ते हैं । इस
धचतन िकक्या से उस स
कथन से स्पटट है कक जनेन्द्र मानवतावादी एविं जीवनवादी कहानीकार
हैं।

वे अपने आस पास के जनजीवन से ही कहानी की वस्तु सिंकशलत करते


हैं। उन्द्होंने ऐनतहाशसक,
पौराखणक घटनाओिं एविं पात्रों को लेकर िी कहाननयााँ शलखी है,
परन्द्तु उनकी सिंवदना धरातल
सदै व लौककक ही रहा हैं । पात्रों एविं घटना के चयन में उनकी दृजटट सदै व जीवन जगत
से सभबर्दध रही हैं। उनकी कहानी कला की प्रवशे षताएिं ननभन
हैं।

5. मनोवैज्ञातनकिा
कहानी का शशल्प मनोप्रवज्ञान से यवती व अन्द्य समकालीन कथाकारों में
सभबर्दध है। प िी
मनोवैज्ञाननक प्रवश्लेषण का गुण शमलता हैं। ककन्द्तु वहािं स्थूल
रूप ही हदखाई देता हैं। जैनेन्द्र की दृजटट सूक्षम मनोप्रवश्लेषण पर
अधधक रही हैं।

जैनेन्द्र ने अिंतर में होने वाले मिंथन, पीड़ा और उसकी घुमड़न के अज्ञात
कारणों का पता लगाया
है और एक सह्रदय मनोवैज्ञाननक कहानीकार के रूप में उनका धचत्रण कर हहदी
कहानी को न न
हदशा एविं दृजटट िदान की हैं। जैनेन्द्र की कहाननयों का
कथानक अल्प ही रहा है, पर उसमें मानवमन के रहस्यों का
उर्दघाटन एविं आिंतररक प्रवश्लेषण का आग्रह ही िमुख रहा हैं।
उनकी कहाननयों में िूशमका तथा उपसिंहार हेतु अवकाश
नहीिं रहा है और न ही िासिंधगक कथाओिं के शलए कोई
स्थान है। कहानी को एतय एविं िवाहमय रखने के प्रवषय में
वे कहते
हैं। मैं समझता हू ाँ कक कहानी को एतय िदान करने वाला,
सिंघहटत करने वाला जो िाव है, उस पर उसका ध्यान के जन्द्रत रहे ।

यहद ऐसा हो तो कहानी से सब अवयव दरुस्त रहगेें और सारी कहानी में


एतय तथा िवाह बना
रहे गा। जजसे चरम उत्कषय कहते हैं । उसकी ओर कहानी बही जा रही है , यह बात स्वयिं ही आ
जाये गी।

6.
दार् शतनकिा
रा सशतत पहलू है ा कहानी में जहााँ
जैनेन्द्र की दाशयननकता। अधन यथाथयवादी
कहाननयों का दस
दृजटटकोण अधधक रहा हैं, वहािं जैनेन्द्र ने मानव की अलौककक आत्मा
को प्रवषय का आधार बनाया हैं। जजसमें ईश्वर का ननवास है, आत्मा
में अतलीन उस अनिंत की सहज िेरणा से उनकी कहाननयों में
प्रवर्दयमान दाशयननकता ने कहानी जगत में जजस मौशलकता एविं क्ािंनत
को जन्दम ्
हदया हैं, वह आलोचकों को रास नहीिं आया हैं।

उनकी दाशयननकता पौराखणक कहाननयों में अधधक झलकती हैं। उसमें


कल्पना के साथ धमय, नीनत एविं प्रवप्रवध मानव आदशों की िनतटठा
की गई हैं। ये कहाननयााँ िारतीय सिंस्कृ नत के उज्जज्जवल
पक्षों को उर्दघाहटत करती हैं। इससे उनकी गभिीर धचतन शैली व्यतत हईु
हैं।

जैनेन्द्र की कहाननयों का शशल्प िी मौशलक है, िाव िाषा


अर्दप्रवतीय है। जैसे जाह्नवी कहानी
का कथानक अन्दत ् मयन्द्थन िी हटका हैं। जाह्नवी अपनी िेम पीड़ा
को दो नना मत खाइयों प्रपय
शमलन की आस में व्यतत करती हैं । इस तरह उनकी कहानी कला उत्कृ टट एविं अनुकरणीय हैं ।
7. प स्कार एवं सम्मान ।
 हहद स्तान स्कार। |1929|
अकादमी पर
 िारत सरकार शशक्षा मिंत्रालय पुरस्कार। |1952|
 उत्तर िदेश राज्जय सरकार परस्कार। |1971|
 हहन्द्दी साहहत्य सभमे लन। |1973|
 पद्म भषू ण। |1971|
 साहहत्य अकादमी पुरस्कार। |1979|

8. जैनेन्द्र कु मार की मत्यु |


गािंधी के प्रवचारों से बेहद ििाप्रवत रहे जैनेन्द्र कु मार जी ने
अपनी जीवन शैली अहहसावादी
बनाई। दशयन में इनकी रूधच तथा ज्ञान कई रचनाओिं में देखने को शमलता हैं।
लभबे समय तक
इन्द्होने हदल्ली में रहते हु ए साहहत्य लेखन ककया और 24 हदसभबर,
1988 ईई। को इनका दे हावसान हो गया।

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