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P 5: मध्यकालीन काव्य-II (भहिकालीन काव्य) M7: हनगगुण भहिधारा: प्रहतरोध और सामाहजक रूपान्तरण
P 5: मध्यकालीन काव्य-II (भहिकालीन काव्य) M7: हनगगुण भहिधारा: प्रहतरोध और सामाहजक रूपान्तरण
पाठ का प्रारूप
1. पाठ का उद्देश्य
2. प्रस्तािना
3. हनगगण
ु भहि-धारा मं प्रहतरोध का स्िर
3.1. जाहत और िणु भेद का हिरोध
3.2. धार्ममक भेदभाि का खण्डन
3.3. कमुकाण्ड, आडम्बर और अन्धहिश्िास की आलोचना
4. हनगगण
ु भहि-धारा का सामाहजक रूपान्तरण
4.1 सामाहजक रूपान्तरण का प्रहतरोधी स्िर पर प्रभाि
5. हनष्कषु
2. प्रस्तािना
हनगगुण भहि-धारा मध्यकालीन भहि आन्दोलन का सबसे प्रगहतशील स्िर है। इसमं मौजूद प्रहतरोध का स्िर आधगहनक
चेतना के बहुत हनकट है। सामाहजक-सास्कृ हतक असमानता और रूकियं की कड़ी आलोचना इसे अत्यन्त महत्त्िपूणु बना
देती है। परन्तग यह स्िर समय के साथ बदलने लगा। इसके सामाहजक रूपान्तरण का प्रभाि इसकी सामाहजक स्िीकृ हत पर
भी पड़ा, और प्रहतरोध के स्िर पर भी। ऐसे मं हनगगण
ु भहि-धारा मं मौजूद प्रहतरोध का स्िरूप जानना जरूरी है। इस
प्रहतरोधी स्िर की प्रासहगकता, इसके सामाहजक सरोकार, हनगगुण भहि-धारा के सामाहजक रूपान्तरण के कारक, और
सामाहजक रूपान्तरण का हनगगण
ु -धारा की प्रहतरोधी चेतना पर प्रभाि जानना बहुत जरूरी है।
3. हनगगण
ु भहि-धारा मं प्रहतरोध का स्िर
हनगगुण भहि-धारा को अन्य भहि-धाराओं से खास पहचान कदलाने िाली हिशेषता उसकी प्रहतरोधी चेतना है। हनगगुण
साहहत्य मं मौजूद प्रहतरोध के स्िर ने रामचन्र शगक्ल को भी अपनी पहचान करा दी थी। हनगगण
ु धारा के प्रहत नकारात्मक
दृहि रखने के बािजूद उन्हंने हहन्दी साहहत्य मं इस स्िर को रे खाककत करते हुए हलखा कक, “बहुदेिोपासना, अितार और
मूर्मतपूजा का खण्डन ये मगसलमानी जोश के साथ करते थे और मगसलमानं की कग रबानी (हिहसा), नमाज, रोजा आकद की
असारता कदखाते हुए ब्रह्म, माया, जीि, अनहद नाद, सृहि, प्रलय आकद की चचाु पूरे हहन्दू ब्रह्मज्ञानी बनकर करते थे।”
(हहन्दी साहहत्य का इहतहास, पृ. 45, लोक भारती प्रकाशन, इलाहबाद) मध्यकाल मं जाहत-व्यिस्था, धमु की तरह ही
बहुत ताकतिर थी। कग छ हिचारक यह आरोप लगाते हं कक कबीर, दादू आकद हनगगण
ु सन्तं ने कहं भी राजा या सम्राट का
हिरोध नहं ककया। इनका प्रहतरोध हसर्ु जाहत और धमु को लेकर था। जब िे इतने उग्र थे तो तत्कालीन मगहस्लम शासकं
के प्रहत उदार क्यं थे? हालाकक इन कहियं ने कभी ककसी राजा का आश्रय ग्रहण नहं ककया। डॉ. रामबक्ष का मत है कक
हनगगुण सन्त सूर्ी कहियं की भाँहत तत्कालीन मगहस्लम शासकं के समथुक नहं थे। “यकद ऐसा होता तो िे भी सूफ़ी
कहियं कक भाँहत अपने ग्रन्थ के आरम्भ मं तत्कालीन सम्राट की प्रशसा करते। ऐसा उन्हंने ककसी स्थान पर नहं ककया है।
उनकी रचनाओं मं राज कमुचाररयं की प्रशसा मं एक साखी भी नहं हमलती है, हालाकक उनका हिरोध उग्र या मगखर भी
नहं है। यह हिरोध बड़े आए-गए ढग से प्रच्छन्न रूप से ककया हुआ है।”(रामबक्ष, दादू दयाल, पृ. 97, साहहत्य अकादमी,
नई कदल्ली)
हनगगुण कहि कहते है कक ईश्िर का न कोई रूप है, न रग। न उसकी िेशभूषा है और न उसका कोई स्थान। िह तो सब
प्रकार के गगणं और पहचान के हचन्हं से परे है। यकद ईश्िर ऐसा है तो उसकी न तो कोई महस्जद हो सकती है न कोई
महन्दर। जब आप महन्दर-महस्जद की अिधारणा से असहमत हं तो आपका प्रहतरोध उस सगरठत कमु से हो जाता है, जो
ईश्िर का एक स्थान तय करता है। कर्र उस स्थान की पूजा-आराधना होती है। आराधना की पद्धहतयाँ हनहश्चत की जाती
है। कर्र उसका एक पगजारी होता है। प्रत्येक व्यहि स्िय तो पूजा नहं कर सकता। एक महन्दर मं एक पगजारी होगा या
अनेक हंगे। उन पगजाररयं की व्यिस्था होगी। भगिान को भंट दी जाएगी। प्रसाद हितररत ककया जाएगा। यह सब काम
पगजारी के माध्यम से सम्पन्न होगा। इसके हलए व्रत होगा। उपिास होगा। रोजा रखा जाएगा। भगिान को प्रसन्न करने के
हलए अनेक किया-कलाप हनहश्चत ककए जाएँगे। कर्र एक पगस्तक होगी या अनेक पगस्तकं होगी। उसमं ईश्िर सम्बन्धी
हििेचन होगा। कग रान मं सब हलखा हुआ रहेगा। िेद अन्यं को प्रमाण के रूप मं प्रस्तगत ककया जाएगा।
धमु और समाज का यह सारा तन््र इस एक अिधारणा से हनरस्त हो जाता है कक ईश्िर तो हनगगुण है और िह सिुव्यापी
है। हसर्ु महन्दर मं नहं रहता। िह तो घट-घट व्यापी है। सभी मनगष्यं मं रहता है। तो सभी मनगष्य समान है। इस ईश्िर
को भहि द्वारा, प्रेम द्वारा प्राप्त ककया जा सकता है।
सन्तं ने बताया कक सब एक ही तरह के अियिं से यगि शरीर िाले हं। सब एक ही ज्योहत से पैदा हुए हं। कर्र कौन
ब्राह्मण और कौन शूर?
कबीर के अलािा अन्य हनगगुण सन्तं के यहाँ जाहतिादी हनम्नता का प्रहतरोध अपराजेय आत्महिश्िास के रूप मं सामने
आया। सन्तं ने अपनी जाहत और उसके कारण नीच समझे जाने को अपने दोष की तरह छग पाया नहं। उसके हिपरीत
उन्हंने अपनी जाहत का स्पि उल्लेख कर मानो स्िय को जाहत और िणु के कारण ऊँचा मानने िालं को बेहतर भि होने
की चगनौती दे डाली। रै दास ने अपनी जाहत और पररजन का उल्लेख करते हुए हलखा कक -
हनगगुण सन्तं के रूप मं जाहत और िणु भेद सम्बन्धी प्रहतरोध के स्िर के नए आधार बौद्धं, हसद्धं के यहाँ हमल गए। इस
प्रहतरोध का प्रसार और प्रभाि दूर और देर तक हुआ।
पत्थर पूजने से यकद ईश्िर हमल सकता है तो पहाड़ को ही पूज हलया जाना चाहहए। यकद ऐसा न कर सकं तो पत्थर की
बनी घर की चक्की है, उसे क्यं भगलाया जाए, हजसका पीसा हुआ अन्न हम रोज खाते हं। मूर्मतपूजा पर ककए गए ऐसे
कटाक्षं मं भी एक तकु है। इसी तकु आधाररत व्यग्य शैली मं कबीर ने मगसलमानं द्वारा अल्लाह को प्रसन्न करने के हलए
नमाज अदा करने, कर्र जीि हिहसा करने पर कटाक्ष ककया है। कबीर ने हलखा कक ककड़ पत्थर जोड़ कर महस्जद बनाते
हो। उस पर चिकर मगगे की तरह हनयत समय पर बाग देकर अल्लाह को की तरह हचल्लाकर बगलाते हो। क्या खगदा बहरा
हो गया है?
कबीर ने हहन्दू और इस्लाम, दोनं धमं की एक ही पद मं आलोचना करके उनमं एकता स्थाहपत करने का मागु बनाया है।
यह जनसाधारण तक पहुँच चगकी समानता की स्िीकृ हत थी। इसहलए उनके यहाँ प्रायः हहन्दू और मगसलमान साथ-साथ
आते हं। अलग-अलग पदं और एक ही पद मं दोनं धमं की आलोचना हम देख चगके हं। सूक्ष्म स्तर के रूप मं इस
आन्तररक स्िीकृ हत को हम एक ही पहि मं दोनं धमं के समािेशन के साथ देख सकते हं। कबीर हलखते हं कक -
हहन्दू को राम और तगकु (मगसलमान) को रहीम प्यारे हं। दोनं आपस मं लड़कर मर रहे हं, लेककन ममु कोई न समझ सके ।
यह ममु (रहस्य) राम रहीम के ऐक्य मं है। दो नाम सगनकर भ्रम मं पड़ने की जरूरत नहं है।
स्ि की सीमाओं से मगि यह स्िर शोषकं का श्र ग है, और हनबुलं का हहतैषी। िे हनबुलं को सताने िालं को आगाह करते
हं –
मध्ययगगीन समाज हििेकहीन धार्ममक-सास्कृ हतक और सामाहजक मूल्यं को जीिन-मूल्य बनाए हुए थे। हनगगण
ु सन्तं ने
बहुत से मूल्यं को तोड़कर, नए मूल्य की स्थापना का आह्िान ककया। उन्हंने अन्धहिश्िासं की आलोचना ककसी खास
जाहत और धमु के दायरे से मगि होकर की है। महन्दर-महस्जद, तीथाुटन, व्रत, उपिास का हिरोध करते हुए कबीर ने
हलखा यकद खगदा महस्जद मं तथा राम मूर्मतयं और तीथं मं बसते हं, तो बाकी मगल्क या चीजं मं ककसका िास है?
हनगगुण भि हनरन्तर धार्ममक कमुकाण्डं और सामाहजक कग रीहतयं का प्रहतरोध करते हुए सभी को भहि और अध्यात्म का
नया रास्ता कदखाते हं। िे देखते हं कक कमुकाण्डं के चक्कर मं पड़कर सभी अपने राम (ईश्िर) से दूर हो गए हं। कबीर
हलखते हं –
उन्हंने राम से दूर करने और यम के र्े र मं डालने िाले इन धार्ममक सस्कारं पर करारा व्यग्य ककया है। कबीर मूर्मत
पूजकं का मजाक बनाते हुए हलखते हं -
हहन्दू साँप की मूर्मत बनाकर पूजा करते हं। जब सचमगच का साँप देखते हं, तो डर जाते हं और उसे लाठी लेकर मारने
दौड़ते हं। मगसलमान कदन मं रोजा रखते हं, और रात को जीि हिहसा करते हं। िे जीि हिहसा करने िालं पर कटाक्ष करते
हुए हलखते हं कक घास खाने िाली बकरी की तो खाल काि ली जाती है। जो बकरी खाते हं उनका हाल क्या होगा?
हनगगुण भहिधारा के स्िर मं ब्राह्मणं के छग आछू त हिचार करने और समाज के बड़े तबके को भहि और धार्ममक सस्कारं से
िहचत रखने के हिरुद्ध प्रहतरोध भरा है। इस प्रहतरोध मं शोहषत और िहचत तबके के हलए न्याय, सम्मान और सहानगभूहत
का भाि है। कग छ तबके , मगख्य तथा स््र ी के शोषण और हस्थहत के हखलार् प्रहतरोध के स्िर का हनगगुण भहि-धारा मं भी
अभाि है।
4. हनगगण
ु भहि-धारा का सामाहजक रूपान्तरण
हनगगुण भहि-धारा की उत्पहत्त सामाहजक रूपान्तरण से सम्बद्ध थी। उसने प्रहतरोधी तेिर अपनाकर जड़ीभूत सामाहजक
व्यिस्था को बदलने पर मजबूर ककया। उसके समय की गहतशील सामाहजक सास्कृ हतक शहियं ने उसके द्वारा शगरू की
गई सामाहजक रूपान्तरण की प्रकिया को प्रभाहित ककया। एक तरर् तो इन शहियं ने हनगगुण-धारा की िैचाररकता के
अनगसार समाज को बदलना शगरू ककया, तो दूसरी तरर् उसने हनगगुण हिचारधारा के स्िरूप और तेिर को भी बदला।
हनगगुण प्रहतरोध की परम्परा हसद्धं, नाथं आकद योहगयं की सास्कृ हतक हिरासत का निीन प्रस्र्ग टन है। हजारीप्रसाद
हद्विेदी हलखते हं -
“यकद हनगगण
ु मतिादी सन्तं की िाहणयं की बाहरी रूपरे खा पर हिचार ककया जाए तो मालूम होगा कक यह सम्पूणत
ु या
भारतीय है, और बौद्ध धमु के अहन्तम हसद्धं और नाथपन्थी योहगयं के पदाकद से उसका सीधा सम्बन्ध है। िे ही पद, िे
ही राग-राहगहनयाँ, िे ही चौपाइयाँ कबीर आकद ने व्यिहार की हं, जो उि मत के मानने िाले उनके पूिुिती सन्तं ने की
थं। क्या भाि, क्या भाषा, क्या अलकार, क्या छन्द, क्या पाररभाहषक शब्द, सिु्र िे ही कबीरदास के मागुदशुक हं।
सद्गगरु शब्द सहजयाहनयं, िज्रयाहनयं, ताहन््र कं, नाथपहन्थयं मं समान भाि से समादृत है।” (पृ. 135-36)
बौद्ध हसद्ध नाथ आकद भारतीय समाज के रूपान्तरण की प्रकिया के ही पररणाम हं। हनगगुण भहि-धारा इसी परम्परा से
जगड़ी है। सामाहजक रूपान्तरण को प्रभाहित करने िाली गहतशील सामाहजक सास्कृ हतक शहियं मं समाज के उच्च िगु
की हनणाुयक भूहमका है। उच्च िगु ने हनगगण
ु भहि-धारा की प्रहतरोधी चेतना से किया-प्रहतकिया की, और उसके स्िर को
प्रभाहित ककया। आगे हम हनगगण
ु िगु के सामाहजक रूपान्तरण मं उच्च िगु की भूहमका समझने की कोहशश करं गे। हम यह
भी देखंगे कक उसने हनगगुण मत की प्रहतरोधी-चेतना को ककतना प्रभाहित ककया और स्िय उससे ककतना प्रभाहित हुई।
हनगगुण िाणी उच्च िगु को नापसन्द थी, लेककन उसकी जनस्िीकृ हत ने उच्च िगु के लोगं को उसे अपनाने पर मजबूर कर
कदया। इतना जरूर हुआ कक उन्हंने हनगगण
ु भहि के सामाहजक िाहन्तकारी रूप के बजाय उसके धार्ममक-आध्याहत्मक रूप
को स्िीकार ककया। हनगगण
ु भहि साहहत्य के इस प्रहतरोध का प्रहतरोध करने के हलए सगगण कहि आगे आए। सूरदास आकद
कृ ष्ण भि कहियं ने भ्रमरगीतं के माध्यम से हनगगुण भहि के दाशुहनक तत्त्िं का खण्डन ककया। इसके बाद गोस्िामी
तगलसीदास ने अपने समन्ियिादी दृहिकोण से हनगगुण भहि को सगगण मं समाहहत कर हलया। इसी तरह समाज मं इन
सभी हनगगुण सन्तं को प्रहतष्ठा हमल गई। उनकी मूर्मतपूजा होने लगी, उनके महन्दर बनने लगे और िे सब सन्त भी उसी
भारतीय परम्परा मं समाहहत हो गए, हजस परम्परा का इन्हंने जोर-शोर से प्रहतरोध ककया था।
ककए। कबीर के बाद सूर और तगलसी के साहहत्य मं न के िल हनगगुण मागु पर हमला ककया गया, बहल्क जोर-शोर से जाहत
और िणु आधाररत समाज की स्थापना की गई। हनगगुण पन्थ ने भी सामाहजक स्िीकृ हत को लेकर अपने िाहन्तकारी मागु
5. हनष्कषु
हनष्कषुतः हम कह सकते हं कक जन्म आधाररत भेदभाि का हिरोध, िणु और जाहत आधाररत सामाहजक व्यिस्था की
हनन्दा, रूकियं, अन्धहिश्िासं, बाह्याचारं, कमुकाण्डं, आडम्बर आकद की आलोचना हनगगण
ु भहि-धारा के प्रहतरोध के
स्िर के मगख्य रूप हं। हनम्न जाहत से आए हनगगुण भिं के साहहत्य मं शोषण और भेदभाि की कड़ी आलोचना की गई है।
उसके प्रहतरोध के िाहन्तकारी स्िर ने उसे हनम्न िगु मं बहुत लोकहप्रय बना कदया। जाग्रत हनम्न िगु की शहि और
स्िीकृ हत देखकर उच्च िगु ने भी अपना प्रहतरोध त्यागकर सन्तं को अपना हलया। ककन्तग उससे हनगगुण मत के िाहन्तकारी
सन्देश प्रभािहीन हो गए और िह सामाहजक पररितुन के स्िर से भहि के एक और स्िर के रूप मं ढल गई।