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भूमिका

अपने मन के भावों और विचारों को दूसरों तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम है साहित्य। साहित्य में अन्य विधाओं के
सामान कहानी भी अपना स्थान रखती है। इस परियोजना के लिए समकालीन रचनाकार रवींद्र कालिया की दो कहानियों को
लिया गया है। परियोजना का विषय रखा गया है:- 'रवींद्र कालिया की कहानियों का अध्ययन: 'मौत' और 'नौ साल छोटी
पत्नी' के विशेष संदर्भ में।'

अध्ययन की समग्रता की दृष्टि से इसे तीन अध्यायों में विभाजित किया गया है - पहला अध्याय है:- 'रवींद्र
कालिया का व्यक्तित्व और कृ तित्व' इसमें उनके व्यक्तिगत जीवन की ओर इशारा करते हुए साहित्यक क्षेत्रों में उनकी
संभावनाओं पर प्रकाश डाला गया है।

दूसरा अध्याय है:- 'मौत' और 'नौ साल छोटी पत्नी' कहानियों की कथावस्तु। इसके अंतर्गत कहानियों का संक्षिप्त
परिचय दिया गया है। तीसरा अध्याय है:- 'मौत' और ' नौ साल की छोटी पत्नी' कहानियों का विश्लेषणात्मक अध्ययन।
इसके अंदर कहानियों के विभिन्न पहलुओं पर विचार हुआ है।

इस परियोजना में प्रोत्साहन देने वाले हिंदी विभागाध्यय डॉ. जूलिया एम्मनुवाल के प्रति कृ तज्ञता प्रकट करते हैं।
प्रस्तुत परियोजना आदरणीय गुरुवर डॉ. संगीता नायर जी के मार्गदर्शन में हुई हैं। उनकी प्रेरणा एवं मार्गदर्शन के लिए मैं दिल
से आभारी हूं। इस परियोजना के लिए मुझे सहायता प्रदान करने वाले सभी गुरुजनों, मित्रों तथा पुस्तकालय के कर्मचारियों
के प्रति भी में कृ तज्ञता ज्ञापित करती हूं।

इस परियोजना के लिए सहायक ग्रनथों का उपयोग किया, उसके लिए कॉलेज की सभी सदस्यों की प्रति कृ तज्ञता
ज्ञापित करती हूं।

अनुक्रमणिका

भूमिका

1. प्रथम अध्याय………………………………………2 – 10
रवींद्र कालिया का व्यक्तित्व और कृ तित्व

2. द्वितीय अध्याय…………………………………….12 - 13

‘मौत’ और ‘नौ साल छोटी पत्नी’ की कथावस्तु

3. तृतीय अध्याय………………………………………15- 24

मौत’ और ‘नौ साल छोटी पत्नी’ का विश्लेषात्मक अध्ययन

4. उपसंहार…………………………………………..26- 28

5. सहायक ग्रंथ सूची…………………………………. 29 - 30

प्रथम अध्याय

रवींद्र कालिया का व्यक्तित्व और कृ तित्व


रवींद्र कालिया का जन्म मध्यमवर्गीय परिवार में 11 नवंबर 1939 को पंजाब के जालंधर शहर में हुआ था।
पिता रघुनाथ सहाय कालिया किसान परिवार में जन्मे थे। उनकी माँ भारतीय संस्कारों से परिचालित सर्वसामान्य गृहिणी थी।
बड़ा भाई प्रेम तथा बहन शशि के साथ बचपन गुज़ारा।

रवींद्र कालिया की पत्नी का नाम ममता अग्रवाल है। 11 नवंबर 1964 के दिन उनके शादी हुई। उनके दो बच्चे हुए
बड़ा बेटा अनिरुद्ध और छोटा लड़का निरोध। उनकी माँ पचासी वर्षीय थी। जबसे पिता की मृत्यु हुई वह उनके साथ ही रहती
थी। बड़े भाई के नेडा में रहते थे, वह भी दो बार के नेडा हो आई थी। रविंद्र जी की माँ एक ममतामई माँ थी जिसने अपने
इलाज के पैसे भी चुका कर अपने बेटे को स्वस्थ होने की दुआएँ दे गई और खुद चल बसीं।

रवींद्र कालिया के परिवार में दोस्तों का स्थान भी मुख्य है। चतुर्वेदी, खोसा, मेनरा आदि उनके दोस्त उनका
परिवार मानते है। राके श, कमलेश, राजेंद्र यादव उनका संसार और नामवर सिंह, देवीशंकर अवस्थी, श्रीकांत आदि उनकी
दुनिया।

रवींद्र कालिया की प्रारंभिक शिक्षा जालंधर के विद्यालय में पूरी हुई, बि.ए (हिंदी) और एम.ए (हिंदी), डी.ए कॉलेज
में। उनके खानदान में घर में पढ़ने-पढ़ाने का माहौल था। उनका किताबों से गहरा संबंध था। वह पंजाब के होने के कारण
उनकी कृ तियों में पंजाबी शब्द देखने को मिलते हैं। उन्होंने बचपन से ही लिखना शुरू किया था। स्कू ल के दिनों से ही ‘शिशु
संसार’ पत्रिका में उनकी कृ ति छपने लगी थी। रवींद्र कालिया का नाम अखबार में छपने लगा था।

रवींद्र कालिया के घर का वातावरण शुद्धवादी था। सनातन धर्म, आर्य समाज और जैन धर्म का प्रभाव रहा। परिवार
में कोई भी सदस्य शराब या सिगरेट नहीं लेते थे। उनके घर में मांस मछली नही खाया जाता था। उनके नाना और मामा लोग
शुद्ध ब्राह्मण थे।

रवींद्र कालिया को हिंदी में रुचि थी। घरवालों के विरोध के बावजूद भी हिंदी में दाखिला ले लिया। मोहन राके श ने
2 वे कईं उर्दू कहानियों का भी अनुवाद करने लगे। ‘माया’,
ही बताया था कि बी.ए में उन्हें ‘आनर्स’ के साथ हिंदी लेनी चाहिए।
‘कहानी’ आदि पत्रिकाओं में उनके अनुवाद छपने लगे।
कृ तित्व

रवींद्र कालिया के व्यक्तित्व और कृ तित्व को अलग नही किया जा सकता। क्योंकि व्यक्तित्व से ही कृ तित्व बनता है।
उनके कृ तित्व में निराशा, ऊब, कुं ठा, घुटन,अके लापन, व्यर्थता बोध आदि दिखाई देते है। किसी भी साहित्यकार के
व्यक्तित्व की निर्मिती उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि से ही आवेष्टित होती है।

ग्रेजुएशन करने के पश्चात उन्होंने आजन्म अध्यापन कार्य करने का व्रत संपूर्ण निष्ठा और अनुशासन के साथ
निभाया। उनके गुरु मोहन राके श के सानिध्य से उनके मन में छिपा हुआ साहित्यकार सामने लाया गया, जिन्होंने ‘सिर्फ एक
दिन’ जैसी युवा हृदयों की मानसिकता का चित्रण करने वाली कहानियों के माध्यम से हिंदी साहित्य जगत पर अपना स्थान
बना लिया।

पारिवारिक विरोध के बावजूद भी हिंदी के प्रति अपनी रुचि और भाषा के प्रति आस्था को उन्होंने टू टने नही दिया।
‘हिंदी मिलाप’, ‘भाषा’, ‘त्रैमासिक’, ‘धर्म युग’, ‘गंगा यमुना’, एवं ‘वागर्थ’ पत्रिकाओं में कार्य करने के लिए उनके विचारों
और अनुभवों को विस्तार मिला।

नई दिल्ली में ममता अग्रवाल से प्रेम विवाह, ‘धर्मयुग’ से इस्तीफा और ‘गालिब छु टी शराब’ का लेखन भी किया।
दुनिया के सुख दुख को स्वयं महसूस करके पाठकों के हृदय के भी उन अनुभवों को जगा देने की क्षमता वे रखते हैं। इसलिए
उन्हें कलाकार कहा जाता है।

कहानी साहित्य 3

‘सिर्फ एक दिन’ कहानी लिखकर अपने साहित्यिक जीवन का आरंभ किया। अस्तित्ववादी जीवन दृष्टि को
आत्मसात करके ‘नौ साल छोटी पत्नी’ जैसी कहानी लिखकर नारी की संवेदना को वाणी दी है। नारी जीवन के प्रति
आधुनिक चेतना का सामाजिकरण रवींद्र कालिया की महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

कहानी संग्रह

1. नौ साल छोटी पत्नी


2. सत्ताईस साल की उम्र तक
3. गरीबी हटाओ
4. चकै या नीम
5. गली कू चे
6. जरा सी रोशनी

नौ साल छोटी पत्नी


रवीन्द्र कालिया का प्रथम कहानी-संग्रह 'नौ साल छोटी पत्नी'। इसका प्रकाशन 1969 में लोक भारती प्रकाशन,
इलाहाबाद से हुआ। इसका प्रमुख पात्र है कु शल और तृप्ता। इस कहानी-संग्रह की कहानियों में कालिया ने मध्यवर्गीय
तनावपूर्ण,व्यसन-रंजित जीवन का यथार्थ चित्रण किया है। इसमें युवा-वर्ग का आक्रोश और परम्परागत मूल्यों के पुनर्विलोकन
के भाव स्पष्ट दृष्टिगोचर है।

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सताइस साल की उम्र तक
इस कहानी संग्रह का प्रकाशन लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद से सन्‌1972 में हुआ। यह उनका दूसरा कहानी संग्रह है।
इसमें भोगे हुए यथार्थ को दिखाते हैं। अंग्रेजों द्वारा शासन के समय की तानाशाही, प्रशासन के विभिन्‍न विभागों में व्याप्त
भ्रष्टाचार, सामाजिक और राजनीतिक एवं आर्थिक समस्याओं को इन कहानियों में चित्रित किया है।

गरीबी हटाओ
इस कहानी संग्रह का प्रकाशन 1973 में लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद द्वारा हुआ। ‘गरीबी हटाओ' कहानी का नायक
मोहन ठठेर, 'हथकड़ी’ का नायक अदीब, 'चाल' का नायक प्रकाश युगीन विकलांग, अर्थ -व्यवस्था और सामाजिक
विषमताओं से झूझते व्यक्तियों की गाथा हैं। इस संग्रह में अभाव, तनाव,पारिवारिक और सामाजिक धरातल पर विषम जीवन
जी रहे व्यक्तियों का चित्रण है।

चकै या नीम
यह 1975 में लोक भारती - प्रकाशन, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित कहानी संग्रह है। इसमें नारी के स्वतन्त्र अस्तित्व और
परिवार की समस्याओं का चित्रण किया है। इसमें स्त्री अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयत्नशील में है।

जरा सी रोशनी
यह भी लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद से 2002 में प्रकाशित हुआ। इस में साम्प्रदायिक समस्या और उससे उत्पन्न
तनाव तथा विभिन्‍न विचारों, धर्मों के लोगों में विषाक्त भावना भरना और सामाजिक तोर पर विभाजन इन कहानियों में
दिखाई देती है। समाज में विभिन्‍न सम्प्रदाय बन गए, मठ और मंदिर धार्मिक आडम्बरों और अनाचार के अड्डे बनने लगे।
धार्मिक मत-भेद बढ़ने लगा। रवींद्र कालिया ने इस संग्रह कीकहानियों के माध्यम से साम्प्रदायिक सदभाव बनाये रखने की
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दिशा में प्रयास किया है।

गली - कू चे
वाणी प्रकाशन, दिल्ली द्वारा 1985 में ‘गली -कू चे’ का प्रकाशन हुआ। इस संग्रह में भी रवींद्र कालिया की प्रसिद्ध कहानियाँ
संग्रहित है। यह युगीन सत्य को प्रकाशित करती है और मन में गहरे से क्रांति उत्पन्न करतीहै। ये कहानियाँ बहुत ही रोचक
ओर सामाजिक चेतना को प्रदर्शित करती हैं।

उपन्यास साहित्य

रवींद्र कालिया ने धर्मयुग में इस्तीफा देने के पश्चात इलाहाबाद में प्रश्न व्यवसाय और लेखन के क्षेत्र में 24 वर्ष
तक लगातार कठिन परिश्रम किया है। इलाहाबाद के रानी मंडी क्षेत्र में स्थित दो संस्कृ तियों के मिलन और वैमनस्य के कारण
उन्होंने बहुत करीब से महसूस किया था। भारतीय समाज के विसंगतियों का चित्रण करते हुए खुदा सही सलामत है कृ तियों
के द्वारा प्रस्तुत किया है।

1. खुदा सही सलामत है

2. ए.बी.सी.डी

3. 17 रानडे रोड

संस्मरण साहित्य
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रवींद्र कालिया के विद्या वैभव में विविध से संवेदना ओं को स्थान प्राप्त हुआ है। इस बात से ही पता चलता है कि
उनकी सर्जगीय प्रतिभा का दायरा बहुत विशाल है। कहानी, उपन्यास के साथ संस्मरणों का भी लेखन किया है। ‘सृजन के
सहयात्री’ इसमें उन्होंने अपने साथी रचनाकारों के साथ बिताए गए सुखद क्षणों को पुनर्जीवित किया है।
उन्होंने कु ल चार संस्मरण लिखे हैं।

1.कामरेड मोनालिसा

2.स्मृतियों की जन्मपत्री

3. सृजन के सहयात्री

4. ग़ालिब छु टी शराब

व्यंग्य साहित्य

रवींद्र कालिया के व्यंग्य साहित्य में युग एवं समाज का साक्षात्कार के लिए समकालीन युग और समाज व्यवस्था की
सच्चाई एवं शासन की नीति पर निर्मम प्रहार किया गया है। उन्नति के शिखर पर जा बैठने की मानवीय आकांक्षाएँ किसी गलत
मार्ग का अनुसरण करने से

भी नहीं डरती। रवींद्र कालिया के साहित्य में हास्य एवं व्यंग्य प्राण तत्व है। उनके व्यंग्य साहित्य जन विकास की दशा में जन
मंगल को नया रूपाकार देने का प्रयत्न करते है।

1. नींद क्यों रात भर नहीं आती

2. राग मिलावट माल कौंस


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सम्मान

 उ.प्र. हिन्दी संस्थान का प्रेमचंद स्मृति सम्मान


 म. प्र. साहित्य अकादमी द्वारा पदुमलाल बक्शी सम्मान
 उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा साहित्यानभूषण सम्मान
 उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा लोहिया सम्मान
 पंजाब सरकार द्वारा शिरोमणी साहित्य सम्मान
निष्कर्ष

हिंदी साहित्य जगत में अन्य लेखकों के समान ही रवींद्र कालिया का स्थान भी प्रमुख है। उन्होंने के वल कहानी ही
नहीं उपन्यास, संस्मरण, व्यंग्य आदि अनेक विधाओं में अपना स्थान बनाया हुआ है।

उनके कृ तित्व से ही हमें यह पता चलता है कि उन्हें हिंदी साहित्य के प्रति कितना लगाव है। परिवार वालों के
विरोध होने पर भी उन्होंने अपना साहित्य प्रेम नहीं छोड़ा। उनकी कृ तियों में अनेक विषयों को हम देख सकते हैं। जैसे नारियों
की समस्या, पारिवारिक जीवन संबंधी समस्या, रिश्तो में दरार, पति-पत्नी के रिश्तो की अहमियत आदि।

रवींद्र कालिया अपने साहित्यिक जीवन में बिना किसी अंतराल के लंबे समय तक कार्यरत रहे यही उनकी
खासियत थी कि वे अनगिनत पुरस्कारों से सम्मानित हुए। चुनी हुई कहानियों के आधार पर उनके भीतर के कहानीकार से
आने वाले अध्याय में हम परिचित हो पाएँगे।

द्वितीय अध्याय

‘मौत’ और ‘नौ साल छोटी पत्नी’ की कथावस्तु


मौत

‘मौत’ रविंद्र कालिया की एक प्रमुख कहानी है। इस कहानी में लेखक अपने मित्र की मृत्यु के बारे में वर्णन किया
गया है। अकाल उम्र में ही उनकी मृत्यु हो जाने की खबर सुनकर लेखक डर जाते हैं। उस मित्र और लेखक की आदतों में
काफी समानताएं है। रात ग्यारह बजे उसकी मृत्यु हुई। रात होने के कारण लोग रोते-रोते सो गए। जब किसी ने अगरबत्ती लेने
को कहा तो लोग और एक मित्र अगरबत्ती खरीदने निकले। वहां सिर्फ एक दुकान खुली दी। वहां से चाय पीकर अगरबत्ती
खरीदें वापस घर लौटे।

मृत दोस्त का एक बच्चा भी है जो हॉस्टल में रहता है। पिता की मृत्यु होने पर वह भी घर लौट आया। पत्नी बहुत
परेशान थी। विधवा होने पर मन में अनेक ख्याल आने लगे। उसी क्षण पुलिस के बारे में सोचने लगी।

मृत दोस्त की पत्नी ने लेखक को कमरे में बुलाकर, मित्र की जेब से चाबी निकलने को कहा लेकिन उन्होंने
इनकार कर दिया और पत्नी खुद जाकर उसे वहां से खींच कर ले आए।

लेखक और पत्नी बहुत पास बैठे थे। मृत दोस्त उठकर उनके पास चला आता है और उन दोनों पर चिल्लाता है।
यह कहानी एक फैं टेसी के रूप में लिखा गया है।

नौ साल छोटी पत्नी

'नौ साल छोटी पत्नी' रविंद्र कालिया की एक प्रसिद्ध कहानी है। इसके मुख्य पात्र है कु शाल और तृप्ता। दोनों पति-
पत्नी है। इस कहानी की शुरुआत में कु शाल इस तरह घर में घुसता है जैसे वह घर अपना ना हो। वह तृप्ता को चौंकाना
चाहता था और वह चौंक भी जाती है। तृप्ता कु छ पढ़ रही थी, उसने उसे अपने ट्रैंक के अंदर छु पा दिया और वहां से उठकर
अपने पति के लिए चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई। कु शाल भी उसके पीछे चला गया।

चाय पीने के बाद शेव बनाने को कहती है। कु शल शेव बनाना नहीं चाहता लेकिन तृप्ता के कहने से वह शेव बना
लेता है। तब वहां सब्बी आती है। वह उनकी पड़ोसी है। तृप्ता उसे पसंद नहीं करती क्योंकि वह लड़कों को खत लिखती है।

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कु शाल मदन के साथ एक दुकान में काम करते हैं उनके दिल्ली के कारण ही कु शल घर जल्दी आ गया। एक दिन तृप्ता का
रिश्तेदार सोम घर आया था, उसी दिन वह कु शल से मिलने के लिए दुकान मैं भी गया था। लेकिन कु शाल ने मिलने से
इनकार कर दिया तृप्ता और सोम बहुत अच्छे भाई-बहन थे। लेकिन कु शाल उन्हें किसी और ना नजरें से देखता है। वह सोम
को पसंद नहीं करता। सोम के द्वारा दिया हुआ पैसा लेने के कारण भी तृप्ता को डांट खानी पड़ती है।

तृप्ता कहानियां लिखती थी। कु शाल ने उसकी कहानियों के मजाक उड़ने के कारण उसने लिखना भी बंद कर
दिया। इस कहानी के अंत में तृप्ता अपनी कहानियां जलाकर खाट पे लेटे हुए रोती है। यह देखने पर भी कु शाल उसे मनाने
नहीं गया और वहां से निकल जाता है। कु शल मानते हैं कि तृप्ता का रोना जायज है। निष्कर्ष

रवींद्र कालिया की दो कहानियां है 'नौ साल छोटी पत्नी' और 'मौत' इन दोनों कहानियों में नारी जीवन में आने
वाले संस्थाओं का चित्रण किया गया है।

'नौ साल छोटी पत्नी' कहानी में एक शादीशुदा नारी के जीवन संबंधी समस्याएं, जैसे चार दीवारों में कै द रहना,
कविता लिखनेवाली प्रतिभा को प्रोत्साहन मिलने के बजाय उसका मजाक उड़ाना, बात-बात पर पीत-पत्नी के बीच लड़ाई
होना आदि अनेक समस्याएं देखने को मिलते हैं।

'मौत' कहानी में काम कामकाजी स्त्री का चित्रण किया है। विधवा होने के बाद उसे किन-किन मुश्किलों का समना
करना पड़ता है, पति के मरने के बाद उसकी चाहतें बदल जाती है और वह अन्य पुरुष के पास जाता है। उसका चित्रण इस
में किया है। इस कहानी के अंतर्गत फैं टेसी भी देख सकते हैं। फैं टेसी के जरिए इस कहानी को चरण सीमा तक पहुंचाया गया
है।

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. तृतीय अध्याय
मौत’ और ‘नौ साल छोटी पत्नी’ का विश्लेषणात्मक
अध्ययन

नौ साल छोटी पत्नी कहानी का विश्लेषण

‘नौ साल छोटी पत्नी’ रवींद्र कालिया की एक प्रसिद्ध कहानी है। इसमें उन्होंने अनेक समस्याओं का चित्रण किया
है। जैसे नारी समस्या, अके लापन, रिश्तो में दरार, रिश्तों में भरोसे की कमी, पारिवारिक विघटन आदि।

पति पत्नी के बीच रहस्यों को छिपाना। इस कहानी की शुरुआत में यह देख सकते हैं कि कु शल जब अपने घर में
घुस रहा था तब वह चोर की तरह अपनी पत्नी को डराने की कोशिश करता है और वह डर भी जाती है। कु शल जानता था
कि वह चोरी छु पे कु छ काम करती है। वह हमेशा उसकी ओर एक नज़र बनाए रखता है। कु शल हमेशा उसके उस रहस्य को
जानने की कोशिश में लगा रहता। तृप्ता भी उसके बारे में उनसे कभी बात नहीं करती। हमेशा छु पाए रखती यहाँ उन दोनों के
बीच का व्यवहार किस प्रकार है किस तरह राशियों को छु पाए रखती। यहाँ उन दोनों के बीच का व्यवहार किस प्रकार है,
किस तरह रहस्यों को छु पाए रखते है यह सब हम देख सकते हैं।

कु शल हमेशा देर से घर आते हैं। उस दिन जल्दी आने के कारण तृप्ता के पूछने पर उन्होंने बता दिया कि मदन
दिल्ली गया हुआ है। इसलिए वह जल्द ही घर लौट आया। तृप्ता ने बहुत प्यार से पूछा था। उनका यह व्यवहार देखकर कु शल
को एक हमदर्दी महसूस हुई, और वह सोचने लगा कि वह तृप्ता की जगह होता तो इस समय कै से आ गए के स्थान पर
‘कहाँ से टपक पड़े’1 कहता तृप्ता हमेशा उनसे प्यार से व्यवहार करती। लेकिन कु शल के मन में पत्नी के प्रति कभी-कभी

1
रवींद्र कालिया, नौ साल छोटी पत्नी, पृ. सं: 11
विद्रोह बना रहता है। वह कभी भी प्रकट नहीं करता। उसके साथ ही प्यार भी उसके मन में बना रहता है। उस प्यार को प्रकट
न कर पाने का कारण भी दोनों के बीच का अधूरा संबंध ही है।

वर्तमान समय की सबसे बड़ी समस्या यह है कि पति पत्नी के बीच किसी भी रहस्य को बाँटते नहीं है। सब इस से
डरते है। यह सोचते है कि बाँटने से कहीं रिश्ते में कोई दरार न आ जाए। लेकिन कोई यह नहीं सोचते कि रहस्य को छु पाए
रखने से इसका अर्थ क्या होगा। हल ढूंढने के बजाय लोग छु पाने में सुख अनुभव करते हैं।इस कहानी में भी इस समस्या को
हम देख सकते है। पत्नी के द्वारा छिपाई गई चीज़ क्या है, क्यों छु पाते है यह कभी नहीं पूछता। कु शल पहले ही पूछ लिया
होता तो शायद इसका हल भी हो जाता।

कु शल के आने बाद तृप्ता का जो डरा हुआ व्यवहार था उसको देखकर, उस डर को मिटाने के लिए वह तृप्ता की
कहानियों के बारे में पूछता है। तृप्ता कु शल को बताती है कि

“शादी के बाद तो कु छ भी नहीं लिखा” 1

इससे यह पता चलता है की शादी से पहले और शादी के बाद उनकी पूरी जिंदगी ही बदल चुकी है। शादी से पहले
वह कहानियाँ लिखा करती थी। शादी के बाद जब तृप्ता ने अपने पति को कहानी दिखाई तो उसने उसका मज़ाक उड़ाया।
उसके बाद इसने लिखना बंद कर लिया। नारियों की जिंदगी शादी के बाद घर के चार दीवारों में कै द हो जाती है। पति और
ससुराल वालों से डर कर उसे सहमी जिंदगी जीने में मजबूर हो जाती है। उन्हें अपने मन के विचारों को प्रकट करने के लिए
भी कोई नहीं होता। उनके जीवन कोई भी समस्या आए तो उसका समाधान भी खुद ढूंढना पड़ता है। अपने घर जाने के लिए
भी ससुराल वालों से और घर के सभी से अनुमति लेनी पड़ती है। उनकी राय की कोई अहमियत नहीं होती।

उनके पड़ोसियों के यहाँ बच्चों के रोने की आवाज हमेशा सुनाई देती है। इतवार के दिन स्कू ल न होने के कारण
कु शल को सूना-सूना महसूस हो रहा था। और वह तृप्ता से पूछता है कि

“क्यों तृप्ता, गली के बच्चों के स्कू ल कब खुल रहे है?”2

यह सुनकर तृप्ता खुश होती है। एक स्त्री होने के नाते उनके मन में भी विचार होंगे। उनके माँ बनने की इच्छा को
यहाँ देख सकते है। कु शल के बच्चों के बारे में पूछने पर तृप्ता के चेहरे पर जो मुस्कान आया वह इसका संके त है। लेकिन इस
इच्छा को अपने पति के सामने प्रकट नहीं कर पाती। हर औरत की यही सबसे बड़ी समस्या रही है। इसके बारे में दोनों के
बीच बातचीत होने की आवश्यकता है। पत्नी को भी अपने विचारों और मत को प्रकट करने का अवसर देना चाहिए।
14

1
रवींद्र कालिया, नौ साल छोटी पत्नी, पृ. सं: 12
2
रवींद्र कालिया, नौ साल छोटी पत्नी, पृ. सं: 13
कु शल को सोम पसंद नहीं है। जब सोम उसके दुकान में आया तो कु शल ने उससे बात तक नहीं की। मिलने न
गया। जब शाम को कु शल घर लौटा तब सोम वहाँ से जा चुका था। जाने से पहल वह तृप्ता को पैसे भी देते गया। उन पैसों के
लेने के कारण भी तृप्ता को डांट खानी पड़ी। तृप्ता उन्हें अपना भाई मानती है। लेकिन कु शल इसका कोई और मतलब
निकालता है। एक नारी के अपने भाई समान रिश्तेदार से मिलने से भी पति इस पर शक करता है। वह घर में अके लापन
महसूस करती है। सोम ने कहा कि

“माँ बहुत याद कर रही थी”1

यह सुनकर तृप्ता को काफी दुख हुआ। वह अपने पति को अके ले छोड़कर भी नहीं जा सकती। उसे भी घर में
अके ले होने के कारण माँ की याद में लगी रहती है।

माँ के बारे में बताने पर कु शल ने उसे अनसुना कर दिया। इससे यह पता चलता है कि तृप्ता अपने घर गए बिना ही
वहाँ रहती है। माँ के पास जाने की भी अनुमति नहीं मिलती। एक माँ की मानसिकता के बारे में भी पति नहीं सोचते। कु शल
के वल अपने ही बारे में सोचते रहते। तृप्ता के जीवन में पति को ही प्रमुख स्थान दिया गया है। माँ के लिए कु छ भी नहीं कर
पाते। एक औरत को अपने माँ ही सबसे प्यारी होती है। लेकिन उस प्यार को अपनी शादीशुदा जिंदगी के लिए त्‍यागना पड़ता
है। इस तरह के अनेक समस्याएँ उनके जीवन में आ जाती हैं।

तृप्ता कु शल से शेव करने के लिए कहती है। वह मानता भी नहीं है और मना भी नहीं करता है उसे शेव करना
बिल्कु ल भी अच्छा नहीं लगता। शेव किया तो नहाना भी पड़ेगा। नहाने के लिए वह तैयार नहीं था। उनके पिंडलियों में दर्द हो
रहा था। फिर भी वह तृप्ता का कहना मान कर शेव करना शुरू करता है। तभी बाहर एक आवाज सुनाई देती है। बाहर सब्जी
आकर चली गई थी। तृप्ता उसको पसंद नहीं करती और वह कहती है कि “सुब्बी बहुत ख़राब लड़की है। वह हमेशा लड़कों
को खत लिखती रहती है। यह सुनकर कु शल कहता है कि
15
2
“लड़कियाँ सभी खराब होती है।”

समाज में लड़कियों का स्थान हमेशा नीचे ही रहता है। यहाँ यह देख सकते हैं कि एक औरत ही औरत की
बुराइयाँ करती है ।उनके खत लिखने के कारण उन्हें गलत नजरिए से देखती है। हर औरत को अपने मनचाहे ढंग से सही
रास्ते पर जीने की अधिकार है। खत लिखना कोई बुरी बात नहीं होती।

तृप्ता द्वारा उसके बारे में कई बुराइयाँ करने पर कु शल से सहा नहीं गया और वह उस बात को ठोक देता है। और
कु शल कहता है-
1
रवींद्र कालिया, नौ साल छोटी पत्नी, पृ. सं: 14
2
रवींद्र कालिया, नौ साल छोटी पत्नी, पृ. सं: 15
“तुम क्या खाक कहानियाँ लिखती होगी” 1

इस तरह कु शल तृप्ता की लेखन के बारे में बुराई करता है। उसके लेखन की प्रतिभा का साथ नहीं देता। इसलिए
वह शादी के बाद में अपनी प्रतिभा को प्रकट ही नहीं करती।

तृप्ता के घर में न होने पर कु शल उसका ट्रंक खोलकर देखता है। उनसे पूछे बिना उसके अंदर के सामान उठाकर
परख लेता है। जब तृप्ता कु शल से सोम के बारे में बातें करती हैं तो वह सोम और तृप्ता बीच के रिश्ते के बारे में पूछता है तृप्ता
बता देती है कि वह बुआ का लड़का है2। बुआ के लड़के को अरबी में रक़ीब कहते हैं। तृप्ता उस शब्द का मतलब नहीं जानते
इसलिए उसका मज़ाक उड़ाया जाता है। यह सब सुनकर तृप्ता को रोना आया और वह वहाँ घुटनों के बल गिर कर रोने लगी।
उससे कु शल को कोई फर्क नहीं पड़ता वह उसे इस हालत में छोड़कर चला गया।

वापस आने पर देखा कि तृप्ता खाट पर लेटी रो रही थी। स्टाव पर पानी उबल रहा था और जले हुए कागज भी
पानी में तैर रहे थे। यहाँ उसका प्रतिरोध झलक रहा था। यह सब देखने पर भी कु शल तृप्ता को मनाने के लिए नहीं गया वह
सोचता है कि तृप्ता का रोना जायज है। 16

मौत कहानी का विश्लेषण

‘मौत’ रवींद्र कालिया की एक प्रसिद्ध कहानी है। इस कहानी में लेखक द्वारा अपने मित्र के बारे में बताया गया है,
जिनकी मध्यम आयु में मृत्यु हुई है। मित्र जब भी बीमार होता है तब वह लेडी डॉक्टर से ही अपना इलाज करवाता है,
क्योंकि महिलाओं से उनकी दोस्ती आसानी हो जाती है। वह हमेशा मित्रों के साथ बाज़ार के सामने रहकर लड़कियों को
सीटी मारता रहता है।

जब उनकी मृत्यु हुई तब लेखक दोस्तों के साथ रम पी रहे थे। लेखक और मृत दोस्त की आदतों में काफी
समानताएँ थी। इसलिए मौत की खबर सुनकर वह डर गए।

मित्र की पत्नी ने शादी से पहले ही एक शर्त रखी थी कि- “शादी के बाद भी अंत तक नौकरी नहीं छोड़ेगी।”
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और उसने इस शर्त को कभी नहीं छोड़ा। वह पढ़ी-लिखी होने के कारण जिंदगी का मतलब समझती है ।

आज विश्व में नारी मुक्ति आंदोलन व्यापक हो गया है। आर्थिक दृष्टि से भी महिलाओं की आत्मनिर्भरता की भावना
का संचार हो गया है। लेकिन आज भी भारतीय नारियों के भाग्य का निर्णय उनके पति या परिवारवालों के हाथ में होता है।

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रवींद्र कालिया, नौ साल छोटी पत्नी, पृ. सं: 15
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रवींद्र कालिया, नौ साल छोटी पत्नी, पृ. सं: 17

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वह अपने विवाह, परिवार, यौन संबंधी और अन्य बातों के संबंध में मुक्त नहीं है। इस कहानी की नारी एक मध्यवर्गीय स्त्री
होने के कारण उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

कामकाजी नारियों की समस्याओं पर चर्चा करें तो उनका घरेलू जीवन भी इसमें आ जाता है। कार्यालय जाने से
पहले उन्हें बच्चों को स्कू ल के लिए तैयार करना, पति का टिफिन बनाना यह सब निपटाने के बाद ही उन्हें घर से निकलने में
फु र्सत मिलती है। पश्चिमी देशों की तरह भारत के पति पत्नी के हाथ नहीं बाँटते। उन्हें कार्यालय से थकी मांदी आकर बच्चों
की और पति की आवश्यकताओं को देखना पड़ता है।

मित्र का बच्चा हॉस्टल में रहता था। मृत्यु के अवसर पर वह घर आया पत्नी और बच्चे की हालत बिगड़ चुकी थी।
वहाँ सब रो रहे थे। मित्र की मौत रात के समय होने के कारण सब सोए बिना रोते-रोते थक गए। लेखक और एक मित्र
अगरबत्तियाँ लेने के लिए बाहर चले जाते हैं। रात होने के कारण किसी ने दुकान नहीं खोला। सिर्फ एक ही दुकान था वहाँ से
चाय पीकर, अगरबत्ती खरीद कर वापस लौटा। तब घर में सब रोते रोते सो गए थे।

घर पहुँचने के बाद वह वहां आराम कर रहे थे, तब लेखक की नजर मृत दोस्त की पत्नी की ओर गई। दूसरे कमरे
में आने का संदेश दिया। और वह कहने लगी

“अब क्या होगा, भैया जी, अब मैं कहाँ जाऊँ गी? मेरे शरीर का भी क्या मतलब रह गया है?1” यहाँ हम विधवा
स्त्रियों की हालत देख सकते है। सामाजिक क्रियाकलापों में भी विधवाओं की ओर समाज का नज़रिया अन्य महिलाओं की
अपेक्षा से भिन्न होती है। विधवा होने के कारण उनके सम्मान में भी कमी आती है क्योंकि लोग उन्हें दुर्भाग्य मानते हैं। गरीबी,
बुढ़ापा व विधवापन का दुख किसी भी जीते जागते इंसान को तोड़ने के लिए बहुत है।
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“मैं कही की न रही। वह बच्चे को कितना चाहता था, अब मेरे बच्चे को कौन पढ़ाएगा? मेरे बच्चे को कौन देखेगा?
भरी जवानी में वह मुझे छोड़कर चला गया।” 2

यहाँ एक विधवा के मन के विचारों को हम देख सकते है। पति के न होने की कमी और पिता की कमी यह सब एक
स्त्री के सहन की सीमा से बाहर है।

मृत दोस्त की पत्नी ने लेखक से पति की जेब से चाबी निकालने को कहा, पर उन्होंने जाने से मना कर दिया।
ऐसे में वह अके ले जाकर चाबी और अन्य सामान निकालती है और वही रो पड़ती है। लेखक जाकर उन्हें वहाँ से खींच कर
कमरे में लाए। दोनों कमरे में अके ले थे और बहुत पास भी। मृत दोस्त उठकर उन्हें देखने आए तो दोनों को पास देख कर

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रवींद्र कालिया, मौत, पृ. सं:40
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रवींद्र कालिया मौत पृ. सं:43
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रवींद्र कालिया मौत पृ. सं:43
बहुत गुस्सा किया। साथ ही लेखक को बहुत कु छ सुनाया। मृत दोस्त को कहानीकार ने फें टेसी के माध्यम से सचेत कर
उनके सामने ला खड़ा किया है। मृत दोस्त ने कहा कि-

“तुम मेरी जेब टटोलने आई थी, मैं तभी समझ गया था, तुम कै सी औरत हो। अब तो मैं तुम्हें आखिर तक नहीं
बताऊँ गा, मेरी जीवन बीमा की पॉलिसी कहाँ पड़ी है और किस-किस बैंक में लॉकर्स हैं।”1

पति की मृत्यु के उसी क्षण पॉलिसी के बारे में सोचती है और पति के अलावा अन्य पुरुष के पास जा बैठती है।
यहाँ हम पति पत्नी संबंध को महत्व न देने वाले एक स्त्री के रूप में देख सकते है। पति को भी अपने पत्नी पर विश्वास नहीं
होता। इसी के कारण ही लेखक ने फें टेसी के जरिए मरे हुए पति को जीवित करके पत्नी की असलियत को लोगों के सामने
लाया है।

पिछले हजारों सालों में समाज के अन्दर महिलाओं की स्थिति में बहुत बड़े स्तर पर बदलाव हुआ है। अगर गुज़रे
चालीस-पचास सालों को ही देखे तो हमें पता चलता है की महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक़ मिले इस पर बहुत ज्यादा
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काम किया गया है। पहले के ज़माने में महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर सख्त पाबन्दी थी। वे घर की चारदीवारी के
अन्दर रहने को मजबूर थी। उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य यही था की उन्हें अपने पति और बच्चों का ख्याल रखना है।
महिलाओं के साथ न तो पुरुषों जैसा व्यव्हार किया जाता था और न ही उन्हें पुरुषों जैसी अहमियत दी जाती थी। अगर वेदों
के समय की बात की जाए तो उस वक़्त महिलाओं की शिक्षा-दीक्षा का खास ख्याल रखा जाता था। इसके उदाहरण हम
प्राचीन काल की पुस्तकों में भी देख सकते है।

भारत के आजाद होने के बाद महिलाओं की दशा में काफी सुधार हुआ है। महिलाओं को अब पुरुषों के समान
अधिकार मिलने लगे है। महिलाएं अब वे सब काम आजादी से कर सकती है जिन्हें वे पहले करने में अपने आप को असमर्थ
महसूस करती थी।

आजादी के बाद बने भारत के संविधान में महिलाओं को वे सब लाभ, अधिकार, काम करने की स्वतंत्रता दी गयी
है जिसका आनंद पहले सिर्फ पुरुष ही उठाते थे। वर्षों से अपने साथ होते बुरे सुलूक के बावजूद महिलाएं आज अपने आप
को सामाजिक बेड़ियों से मुक्त पाकर और भी ज्यादा आत्मविश्वास से अपने परिवार, समाज तथा देश के भविष्य को उज्जवल
बनाने के लिए लगातार कार्य कर रही है।

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रवींद्र कालिया मौत पृ. सं:44
हमारे देश की आधी जनसँख्या का प्रतिनिधित्व महिलाएं करती है। इसका मतलब देश की उन्नति का आधा
दारोमदार महिलाओं पर और आधा पुरुषों के कं धे पर निर्भर करता है। हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते उस समय का जब
इसी आधी जनसँख्या को वे मूलभूत अधिकार भी नहीं मिल पाते थे जिनकी वे हक़दार है। उन्हें अपनी जिंदगी अपनी ख़ुशी
से जीने की भी आजादी नहीं थी। परन्तु बदलते वक़्त के साथ इस नए ज़माने की नारी ने समाज में वो स्थान हासिल किया
जिसे देखकर कोई भी आश्चर्यचकित रह जायेगा। आज महिलाएं एक सफल समाज सुधारक, उधमी, प्रशासनिक सेवक,
राजनयिक आदि है।

महिलाओं की स्थिति में सुधार ने देश के आर्थिक और सामाजिक सुधार के मायने भी बदल कर रख दिए है। दूसरे
विकासशील देशों की तुलना में हमारे देश में महिलाओं की स्थिति काफी बेहतर है। यद्यपि हम यह तो नहीं कह सकते कि
महिलाओं के हालात पूरी तरह बदल गए है पर पहले की तुलना में इस क्षेत्र में बहुत तरक्की हुई है। आज के इस
प्रतिस्पर्धात्मक युग में महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति पहले से अधिक सचेत है। महिलाएं अब अपनी पेशेवर जिंदगी
(सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक) को लेकर बहुत अधिक जागरूक है जिससे वे अपने परिवार तथा रोजमर्रा की दिनचर्या
से संबंधित खर्चों का निर्वाह आसानी से कर सके ।

भारतीय समाज के पुष-प्रधान होने की वजह से महिलाओं को बहुत अत्याचाटों का सामनाकरना पड़ा है। आमतौर
पर महिलाओं को जिन समस्याओं से दो-चार होना पड़ा है उनमे प्रमुख है दहेज़-हत्या, यौन उत्पीड़न, महिलाओं से
लूटपाट, नाबालिग लड़कियों से राह चलते छेड़-छाड इत्यादि। 21 वीं सदी के भारत में तकनीकी प्रगति औट महिलाओं के
विरुद्ध हिंसा दोनों ही साथ-साथ चल रहे है। महिलाओं के विरुद्ध होती यह हिंसा अलग-अलग तरह की होती है तथा
महिलाएं इस हिंसा का शिकार किसी भी जगह जैसे घर, सार्वजनिक स्थान या दफ्तर में हो सकती हैं। महिलाओं के प्रति
होती यह हिंसा अब एक बड़ा मुद्दा बन चुकी है और इसे अब और ज्यादा अनदेखा नहीं किया जा सकता क्योंकि महिलाएं
हमारे देश की आधी जनसँख्या का प्रतिनिधित्व कठती हैं।

भारतीय दंड संहिता के अनुसार बलात्कार, अपहरण अथवा बहला फु सला के भगा ले जाना, शारीरिक या
मानसिक शोषण, दहेज़ के लिए मार डालना, पत्नी से मारपीट, यौन उत्पीड़न आदि को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया
है। महिला हिंसा से जुड़े के स़ों में छगातट वृद्धि हो टही है और अब तो ये बहुत तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं। लिए मज़बूर करना,
विधवा महिला को सती- प्रथा के पाछठन करने के लिए दबाव डालना आदि सामाजिक हिंसा के अंतर्गत आती है। ये सभी
घटनाएँ महिलाओं तथा समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित कर रहीं हैं। महिलाओं के प्रति होती हिंसा में ठगातार इज़ाफा हो
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रहा है और अब तो ये चिंताजनक विषय बन चुका है। महिला हिंसा से निपटना समाज सेवकों के लिए सिरदर्द के साथ-साथ
उनके लिए एक बड़ी जिम्मेवारी भी है। हालाँकि महिलाओं को जरुरत है की वे खुद दूसरों पर निर्भर न रह कर अपनी
जिम्मेदारी खुद ले तथा अपने अधिकारों, सुविधाओं के प्रति जागऊक हो।
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उपसंहार
समकालीन हिंदी साहित्य में रवींद्र कालिया का स्थान महत्वपूर्ण है। उन्होंने के वल कहानी ही नहीं उपन्यास,
संस्मरण, व्यंग्य आदि विधाओं में भी अपना योगदान दिया है। उनके रचनाओं में निराशा, ऊब, कुं ठा, घुटन,अके लापन आदि
दिखाई देते हैं। उर्दू कहानियों का भी अनुवाद करते हैं। 'माया' 'महानी' आदि पत्रिकाओं में उनके अनुवाद छापने लगे।
परिवारवालों का विरोध होने पर भी हिंदी के प्रति अपना रुचि और भाषा के प्रति आस्था को उन्होंने टू टने नहीं दिया। उनके
इस रुचि के कारण है हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान बनाने में सक्षम हुआ है। 'हिंदी मिलाप', 'भाषा', 'त्रैमासिक', 'धर्म
युग', 'गंगा यमुना' एवं 'वागर्थ' आदि पत्रिकाओं में कार्य करके उनके विचारों और अनुभवों का विस्तार मिला।

रवींद्र कालिया के संदर्भ कहानी है 'सिर्फ एक दिन'। आज वह उस मुकाम पर पहुंच गया है जहां कु छ विरल ही
अपना स्थान बना पाते हैं। उन्होंने निरंतर अपनी लेखनी को नया आकार दिया। कहानी का याद भारतीय सच्चाई को शरारत
के रूप में पेश करने की अनुभ क्षमता है। उनकी पहली कहानी 'सिर्फ एक दिन' से ही पता चला है कि किस तरह उन्होंने
समाज के आधार पर को प्रस्तुत किया गया है। रवींद्र कालिया ने कु ल मिलकर पचास कहानियां लिखी है। उनकी कहानियां
आधुनिक अदा की समस्याओं का प्रदर्शनी करते हैं। नारी जीवन के प्रति रविंद्र कालिया का दृष्टिकोण अत्यंत संवेदनशील रहा
है।

वर्तमान काल में आधुनिक कहानी जाने वाली नारी की व्यथा पुरातन काल से भिन्न है। 'मौत' जैसे कहानियों में
रवींद्र कालिया ने नारी की इस स्थिति का के वल चित्रण ही नहीं बल्कि परिस्थितियों से घुटने की ताकत भी उनमें पाई दा की
है रवींद्र कालिया की कहानियां कहानी विधा की विकास प्रक्रिया में मानव जीवन संबंधी अनेक बुनियादी संघर्ष को प्रस्तुत
करती है। किसी भी गद्य विधा में भाषा का स्थान सर्वोपरि होता है। इसी दृष्टि से रवींद्र कालिया की कहानियां भाषा विशिष्ट के
कारण अपनी अलग पहचान लिखा हुए हैं। उनकी कहानियां उनके

भाषा में बिंब, प्रसिद्त्मकता, व्यंग्यात्मकता, चिंतन प्रधान भाषा, और डोट्स भाषा का प्रयोग हुआ है।

इस परियोजना के लिए रवींद्र कालिया की 'मौत' और 24


'नौ साल छोटी पत्नी' यह दो कहानियां को चुना है। दोनों
कहानियों में अके लापन, नारियों के शादीशुदा जीवन में अपने वाले समस्याएं, पारिवारिक समस्या, आधुनिक जीवन में नारी
और नारी मनोविज्ञान के विविध पक्षों को अपनी कहानियों में चित्रण किया है। मनुष्य अब सामाजिक प्राणी ना रहकर
अस्तित्व और असीमता को खो दोनों वाली एक चीज मात्र रह गया है। आज के समाज में खोए हुए मानवीकरण का भी चित्रण
उनकी कहानियों में मिलता है।

'मौत' कहानी में कामकाजी स्त्री, विधवा स्त्री, पति पत्नी के संबंध को अहमियत ना देने वाली एक स्त्री का भी
चित्रण किया गया है। इसमें एक स्त्री के विधवा होने पर उसे किन किन समस्याओं का सामना करना पड़ेगा पति के बिना
जीवन किस तरह बिताना पड़ेगा आदि का भी चित्रण मिलता है। इस कहानी में पति के मरने की उसी क्षण दूसरे आदमी के
पास जाते हैं और पुलिस के बारे में भी सोचने लगती है मौत कहानी का अंत एक फैं ड्री के रूप में प्रस्तुत किया हुआ है।

'नौ साल छोटी पत्नी' कहानी में नारी का चार दीवारों में बंद रहकर अके लापन महसूस करना पड़ता है। नारी का
जीवन शादी के पहले और शादी के बाद पूरी तरह बदल जाते हैं। इस कहानी में स्त्री पात्र की प्रतिभा को महत्व न देकर
उसका मजाक उड़ाना, बात बात पर तंग करना, पति पत्नी के बीच किसी बात को ना बांटना, एक दूसरे को समझने की
कोशिश ना करने पर उन अनेक समस्याएं उत्पन्न होना आदि, यह देख सकते है।

रवींद्र कालिया की इन दोनों कहानी की भाषा स्पष्ट और सरल है। इसमें उर्दू, अंग्रेजी, फारसी, अरबी आदि
भाषाओं को देखने को मिलते हैं। उनकी कहानियां सीधे पाठकों के मन को छू लेते हैं। इसका एक कारण भाषा ही है उनकी
इन कहानियों के जरिए प्रस्तुत अध्याय को द्वारा उनकी अन्य25रचनाओं की और बांटने की प्रेरणा भी मिल रही है।
सहायक
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ग्रंथ सूची

1. दस प्रतिनिधि कहानियाँ - रवींद्र कालिया

किताबघर प्रकाशन,2005

2. स्त्री विमर्श: भारतीय परिप्रेक्ष्य - के . एम. मालती

वाणी प्रकाशन, 2010

3. समकालीन हिन्दी साहित्य विविध विमर्श - प्रो. श्री राम शर्मा

वाणी प्रकाशन, 2009

4. एक औरत की नोटबुक - सुधा अरोड़ा

राजकमल प्रकाशन, 2015

5. समकालीन नरिवाद और दलित स्त्री का प्रतिरोध - अनीता भारती

स्वराज प्रकाशन, 2014

6. अतीत होती सदी और स्त्री का भविष्य - राजेन्द्र यादव

राजकमल प्रकाशन, 2008

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