You are on page 1of 2

कथाकार मुंशी प्रेमचंद

हिंदी कहानी के विकास क्रम में प्रेमचंद का योगदान अप्रतिम है I प्रेमचंद हिंदी के अप्रतिम कथाकार है I उनकी कहानियों में
समसामयिक समस्याएँ भी मनुष्य जीवन की शाश्वत संवेदनाओं का रूप ग्रहण कर प्रस्तुत हुई है I उनकी कहानियों में शोषण
,उत्पीडन ,सामाजिक कु रीतियों का उल्लेख बहुत है मार्मिक ढंग से हुआ है I यही कारण है की प्रेमचंद कभी ‘आउट डेटेड’ नहीं
होंगे I मुंशी प्रेमचंद जैसा भारतीय जनता का इतना बड़ा हितैषी कलाकार हिंदी साहित्य में अभी तक दूसरा नहीं I वह हमारी
सामजिक एवं राष्ट्रीय जागृति का अग्रदूत है I राजनीति के क्षेत्र में जो कार्य करके गांधी जी ने अमरता प्राप्त की है ,कथा –साहित्य
के क्षेत्र में वहीँ कार्य करके प्रेमचंद ने महत्त्व प्राप्त किया हैं I वे हिंदी के सर्वप्रथम सच्चे प्रगतिशील ,युग प्रवर्तक कलाकार कहे जा
सकते हैं ? जिस समय हमारी कविता छायावाद के काल्पनिक लोक में विचरण कर रही थी I उस समय प्रेमचंद ने अपनी
कहानियों और उपन्यासों में यथार्थ जीवन की सच्ची अभिव्यक्ति करके हिंदी साहित्य को एक नयी दिशा प्रदान की I

प्रेमचंद की तीन सौ से अधिक कहानियों से ही उनकी कहानियों के विभिन्न रूपों और शैलियों का पर्रिचय मिल जाता है I जीवन
की शायद ही ऐसी कोई समस्या हो जिस पर प्रेमचंद ने अपनी कलम न चलायी हो I यद्यपि उन्होंने अपनी कहानियों में ग्राम्य
जीवन का अधिक चित्रण किया है क्योंकि भारत की अस्सी प्रतिशत जनता ग्रामीण ही है ,पर फिर भी उनकी कहानियों में शहरी
जीवन के भी अनेक आयाम उपस्थित हुए है I बल्कि उन्होंने इन दोनों ही जीवन धाराओं का कई कहानियों में तुलनात्मक
विश्लेषण किया है I यद्यपि शैली की दृष्टि से प्रेमचंद ने अधिक विविध प्रयोग नहीं किये है और उनकी प्रायः सभी कहानियां वर्णन
प्रधान दृष्टा शैली में लिखी मिलती है ,इसके बावजूद उनकी कहानियों में रोचकता बनी रहती है वो अपनी वर्णन प्रधानता में भी
पाठक को उबने का अवसर नहीं देते I वातावरण की सजीवता प्रेमचंद की कहानी कला की ख़ास विशेषता है ,युगधर्म उनकी
रचनाओं में साकार हो उठता है I उनके कथा साहित्य में भारत के अर्द्धशताब्दी के सामजिक ,राजनितिक ,आर्थिक ,नैतिक
,सांस्कृ तिक सजीव जीवन का अध्ययन किया जा सकता है ,जो इतिहास की पुस्तकों में दुर्लभ है I मुहावरों ,लोकोक्तियों से युक्त
सरल ,सरस ,पात्रानुकू ल ,सुन्दर ,चुस्त व्यंग्यात्मक परिष्कृ त जनभाषा के वह जनक थे I

प्रेमचंद मूलतः यथार्थवादी लेखक हैं I हाँ , उनकी यथार्थवादी यात्रा में क्रम अवश्य पाया जाता है I प्रेमचंद
की आरंभिक कहानियों ---- सौत , पंचपरमेश्वर ,रानी सारंधा ,राजा हरदौल ,वरदान,प्रतीज्ञा ,सेवासदन ,प्रेमाश्रम आदि पहले
के उपन्यासों में प्रेमचंद का झुकाव यथार्थ के मुक़ाबले आदर्श वादी स्थापनाओं और निष्कर्षों में अधिक था I किन्तु बाद की
कहानियों और उपन्यासों जैसे गोदान,कफ़न,सदगति,पूस की रात ,मंदिर ,दूध के दाम ,सवा सेर गेंहू ,ठाकु र का कु आं,मन्त्र
,इत्यादि कहानियों में यथार्थवाद का आग्रह अधिक रहा I बल्कि हम यह कह सकते है किअपने लेखकीय जीवन के अंत समय में
प्रेमचंद आदर्शवादी निष्कर्षों को बहुत पीछे छोड़ दिया I प्रेमचंद का यथार्थवाद नग्न यथार्थ नहीं था I प्रेमचंद का यथार्थवाद पाठक
को सत्य और समय से रूबरू करवाता था उसे प्रेरित करता था I प्रेमचंद की कहानियां स्वस्थ यथार्थवादी कहानियां है
,यथार्थवादी कहानियों को लिखने के बावजूद प्रेमचंद ने कहानी में एक साफ्ट आदर्शात्मकता की अपील तो रखते ही थे जिससे
की लोंगों का समाज को देखने का नजरिया संतुलित रहें और यही करण है की प्रेमचंद की लेखन शैली को आदर्शोंन्मुखी
यथार्थवादी शैली भी कहा जाता है I प्रेमचंद हिंदी साहित्य के बेशकीमती अफसानानिगार है ,उन्होंने दुनिया के दुखों को देखने
की एक तड़प पैदा की उन्होंने इंसान से इंसानीयत बनाएं रखने की मांग की I हिंदी दुनिया और विश्व साहित्य में प्रेमचंद की जो
रचनाएँ अनुदित होकर पहुंची है उनसे पुरे विश्व को प्रेमचंद की लेखकीय क्षमता का पता चला I उन्होंने साहित्य को जो कु छ भी
दिया वह सब के वल रचनाएँ नहीं बल्कि मनुष्य के जीवन के संकटों ,दुःख –दर्द के अमर आख्यान है I भारतीय साहित्य प्रेमचंद
का सदैव ऋणी रहेगा I

You might also like