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'बालि' 'रामायण' के प्रलसद्ध िात्रों में से एक है । वह ककष्ककन्धा का राजा और भगवान श्रीराम के लमत्र सुग्रीव का बडा भाई था।
अिनी मृत्यु के समय बालि ने िहिे तो राम को बहुत बुरा-भिा कहा, क्योंकक उसका कहना थाकक छििकर
मारना क्षत्रत्रयों का धमम नह ं है, ककं तु जब राम ने बालि को समझाया कक उसनेसुग्रीव की ित्नी को हरकर अधमम ककया है तथा
ष्जस प्रकार वनैिे िशुओं को घेरकर िि से मारना अनुचित नह ं है , उसी प्रकार िािी व्यष्क्त को दं ड दे ना भी धमोचित है ।
बालिने सुग्रीवऔर रामसे यह वादा िेकर ककवह उसकी िष्त्न तारा तथा िुत्र अंगद का ध्यान रखेंगे सुखिूवक
म दे हका त्याग ककया।
'वाल्मीकक रामायण' में िक्ष्मण की ित्नी के रूि में उलममिा का नामोल्िेख लमिता है । 'वाष्ल्मकी रामायण' के
अनुसार उलममिा जनक नंदनी सीता की िोट बहन थीं और सीता के पववाह के समय ह दशरथ और सुलमत्रा के िुत्र िक्ष्मण को
ब्याह गई थीं। इनके 'अंगद' और 'िन्रकेतु' नाम के दो िुत्र तथा 'सोमदा' नाम की एक िुत्री थी। आधुछनक साहहत्यकारों ने
उलममिा को पवपवध किाओं में िारं गत और कतमव्यिरायण नार के रूि में चित्रत्रत ककया है । राम के साथ िक्ष्मण के भी िौदह
वर्म के लिए वन जाने िर उलममिा ने अिनी पवरह-व्यथा को जीव-जन्तुओं के प्रछत सहानुभूछत में बदि हदया।
4.जामवन्त ककतने योजन समुर को िााँघ सकने में समथम थे? 90 योजन
'सम्िाती' नामक चगद्ध जटायु का बडा भाई था। वत्ृ तासुर-वध के उिरांत अत्यचधक गवम हो जाने के कारण दोनों भाई आकाश में
उडकर सूयम की ओर ििे। उन दोनों का उद्देश्य सूयम का पवंध्यािि तक िीिा करना था। सूयम के ताि से जटायु के िंख जिने
िगे तो सम्िाती ने उसे अिने िंखों से छििा लिया। जटायु तो बि गया, ककं तु सम्िाती के िर जि गये और उडने की शष्क्त
समाप्त हो गयी। वह पवंध्य िवमत िर जा चगरा। जब सीता को ढूंढ़ने में असफि हनुमान, अंगद आहद उस िवमत िर बातें कर रहे
थे, तब जटायु का नाम सुनकर सम्िाती ने सपवस्तार जटायु के पवर्य में जानना िाहा।
'शत्रुघ्न' का िररत्र अत्यन्त पविक्षण है । ये मौन सेवाव्रती थे। बििन से भरत जी का अनुगमन तथा सेवा ह इनका मुख्य व्रत
था। वाल्मीकक रामायणमें वखणमत है कक अयोध्या के राजा दशरथ की तीन राछनयााँ थीं- कौशल्या, कैकेयी और सुलमत्रा। कौशल्या
से राम, कैकई से भरत और सुलमत्रा सेिक्ष्मण एवं शत्रुघ्न िुत्र थे। शत्रुघ्न ने मधुिुर मथुरा के शासक िवण को मार कर
मधुिुर को कफर से बसाया था। शत्रुघ्न कम से कम बारह वर्म तकमथुरा नगर एवं प्रदे श के शासक रहे ।
'जयंत' दे वों के राजा इन्र के िुत्र कहे गये हैं। वाल्मीकक रामायण में भी इनका कई स्थानों िर उल्िेख हुआ है । ष्जस
समय रावण के िुत्र मेघनाद से इन्र का युद्ध हुआ और मेघनाद ने सब ओर अंघकार फैिा हदया, तब जयंत का नाना िुिोमा
उसे युद्ध भूलम से उठाकर समुर में िे गया। एक अन्य प्रसंग के अनुसार एक कोए के वेश में जयंत ने मांस की इच्िा
से सीता के स्तन िर भी प्रहार ककया था, ष्जस कारण उसे श्री राम के क्रोध का सामना करना िडा।
8.रावण और कुबेर िरस्िर ककस ररश्ते से आिस में सम्बष्न्धत थे? भाई-भाई
9.राम के िरण स्िशम से जो लशिा स्त्री बन गई, उस स्त्री का नाम क्या था? अहल्या
अहल्या महपर्म गौतम की ित्नी थी। ये अत्यंत ह रूिवान तथा सुन्दर थी। एक हदन गौतम की अनुिष्स्थछत में
दे वराज इन्र ने अहल्या से संभोग की इच्िा प्रकट की। यह जानकर कक इन्र उस िर मुग्ध हैं, अहल्या इस अनुचित कायम के
लिए तैयार हो गई। गौतम ने कुहटया से जाते हुए इन्र को दे ख लिया और उन्होंने अहल्या को िार्ाण बन जाने का शाि दे
हदया। त्रेता युग में श्री राम की िरण-रज से अहहल्या का शािमोिन हुआ और िुन: वह िार्ाण से ऋपर्-ित्नी हुई।
12.श्रीराम को िक्ष्मण के प्राण बिाने के लिए संजीवनी बूट का रहस्य ककस वैद्य ने बताया? सुर्ेण
सुर्ेण वैद्य का उल्िेख रामायण में हुआ है । रामायणानुसार सुर्ेण िंका के राजा राक्षसराज रावण का राजवैद्य था। जब रावण
के िुत्र मेघनाद के साथ हुए भीर्ण युद्ध मेंिक्ष्मण घायि होकर मूछिमत हो गये, तब सुर्ेण ने ह िक्ष्मण की चिककत्सा की थी।
उसके यह कहने िर कक मात्र संजीवनी बूट के प्रयोग से ह िक्ष्मण के प्राण बिाये जा सकते हैं, राम भक्त हनुमान ने वह
बूट िाकर द और िक्ष्मण के प्राण बिाये जा सके।
न्याय दशमन के कताम महपर्म गौतम िरम तिस्वी एवं संयमी थे। महाराज वद्ध
ृ ाश्व की िुत्री अहहल्या इनकी ित्नी थी, जो महपर्म के
शाि से िार्ाण बन गयी थी। त्रेता युग में भगवान पवकणु के अवतार राम ने िथ्
ृ वी िर जन्म लिया, ष्जनके िरण-स्िशम से ह
अहल्या शाि के प्रभाव से मुक्त हो गई। उसने िुन: लशिा से ऋपर् गौतम की ित्नी का िद प्राप्त ककया। महपर्म
गौतम बाण पवद्या में अत्यन्त छनिुण थे।
गरुड हहन्दू धमम के अनुसार िक्षक्षयों के राजा और भगवान पवकणु के वाहन हैं। ये कश्यि ऋपर् और पवनता के िुत्र तथा अरुण के
भ्राता हैं। िंका के राजारावण के िुत्र इन्रष्जत ने जब युद्ध में राम और िक्ष्मण को 'नागिाश' से बााँध लिया था, तब गरुड ने ह
उन्हें इस बंधन से मुक्त ककया।
'सुलमत्रा' रामायण की प्रमुख िात्र और राजा दशरथ की तीन महाराछनयों में से एक हैं। सुलमत्रा अयोध्या के राजा दशरथ की
ित्नी तथा िक्ष्मण एवं शत्रुघ्न की माता थीं। महारानी कौशल्या िट्टमहहर्ी थीं। महारानी कैकेयी महाराज को सवामचधक पप्रय थीं
और शेर् में सुलमत्रा जी ह प्रधान थीं। महाराज दशरथ प्राय: कैकेयी के महि में ह रहा करते थे। सुलमत्रा महारानी कौशल्या
के सष्न्नकट रहना तथा उनकी सेवा करना ह अिना धमम समझती थीं।
'िुकिक पवमान' का उल्िेख रामायण में लमिता है , ष्जसमें बैठकर रावण ने सीता हरण ककया था। रामायण में वखणमत है कक युद्ध
के बाद श्रीराम, सीता, िक्ष्मण तथा अन्य िोगों के साथ दक्षक्षण में ष्स्थत िंका से अयोध्या 'िुकिक पवमान' द्वारा ह आये थे।
िुकिक पवमान रावण ने अिने भाई कुबेर से बििूवक
म हालसि ककया था। मान्यता है कक िुकिक पवमान का प्रारुि एवं छनमामण
पवचध ब्रह्मपर्म अंचगरा ने बनायी और छनमामण एवं साज-सज्जा भगवान पवश्वकमाम द्वारा की गयी थी। इसी से वह 'लशल्िी'
कहिाये थे।
3.समुर मंथन से क्या प्राप्त नह ं हुआ था? ऐरावत कामधेनु िाररजात लसमंतक मणण
4.श्रीराम द्वारा िररत्याग कर दे ने के बाद गभमवती सीता ककसके आश्रम में रह थीं? वाल्मीकक
संस्कृत भार्ा के आहद कपव और आहद काव्य 'रामायण' के रिछयता के रूि में वाल्मीकक की प्रलसपद्ध है।
इनके पिता महपर्म कश्यि के िुत्र वरुण या आहदत्यथे। उिछनर्द के पववरण के अनुसार ये भी अिने भाई भग
ृ ु की भांछत िरम ज्ञानी
थे। वनवास के समय भगवान श्री राम ने स्वयं इन्हें दशमन दे कर कृताथम ककया। जब सीता जी का राम ने त्याग कर हदया, तब
सीता ने अिने वनवास का अष्न्तम काि इनके आश्रम िर व्यतीत ककया। महपर्म वाल्मीकक के आश्रम में ह िव और कुश का
जन्म हुआ। वाल्मीकक जी ने उन्हें रामायण का गान लसखाया।
6.रामायण के अनस
ु ार हनम
ु ान ककतनी बार िंका गये थे? तीन बार
वाल्मीकक रामायण' के अनुसार हनुमान एक वानर वीर थे। भगवान राम को हनुमान ऋकयमूक िवमत के िास लमिे थे। हनुमान
जी राम के अनन्य लमत्र, सहायक और िरम भक्त लसद्ध हुए थे। सीता का अन्वेर्ण करने के लिए ये िंका गए। राम के दौत्य
(अथामत सन्दे श दे ना या दत
ू का कायम) आहद का दाछयत्व इन्होंने अद्भुत प्रकार से छनवामह ककया। राम-रावण युद्ध में भी इनका
िराक्रम प्रलसद्ध है । रामावत वैकणव धमम के पवकास के साथ हनुमान का भी दै वीकरण हुआ। वे राम के िार्मद और िुन: िूज्य
दे व रूि में मान्य हो गये। धीरे -धीरे हनुमंत अथवा मारूछत िूजा का एक सम्प्रदाय ह बन गया है ।
अंगद बालि के िुत्र थे। वानरराज बालि इनसे सवामचधक प्रेम करता था। अंगद िरम बुपद्धमान, अिने पिता के समान बिशाि तथा
भगवान श्रीराम के िरम भक्त थे। भगवान श्रीराम का अंगद के शौयम और बुपद्धमत्ता िर िूणम पवश्वास था, इसीलिये
उन्होंने रावण की सभा में युवराज अंगद को अिना दत
ू बनाकर भेजा। रावण भी नीछतज्ञ था और उसने भेदनीछत से काम िेते
हुए अंगद से कहा- "बाि मेरा लमत्र था। ये राम-िक्ष्मण बाि को मारने वािे हैं। यह बडी िज्जा की बात है कक तुम अिने
पितघृ ाछतयों के लिये दत
ू कमम कर रहे हो।" ककं तु रावण की इन सब बातों से अंगद पविलित नह ं हुए और उसके बहकावे में
नह ं आये।
10.सगों की गणना करने िर सम्िूणम रामायण में ककतने सगम लमिते हैं? 645
रामायण कपव वाल्मीकक द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुिम महाकाव्य है । इसके 24,000 श्िोक हहन्दू स्मृछत का वह अंग
हैं, ष्जसके माध्यम सेरघुवंश के राजा राम की गाथा कह गयी है । रामायण के कुि सात अध्याय हैं, इस प्रकार सात काण्डों में
महपर्म वाल्मीकक ने रामायण को छनबद्ध ककया है । इन सात काण्डों में कचथत सगों की गणना करने िर सम्िूणम रामायण में
645 सगम लमिते हैं। सगामनुसार श्िोकों की संख्या 23,440 आती है , जो 24,000 से 560श्िोक कम है ।
11.राम और िक्ष्मण को आश्रमों की रक्षा करने के लिए वन में कौन-से ब्रह्मऋपर् िे गये थे? ववश्वालमत्र
पवश्वालमत्र को भगवान श्रीराम का दसू रा गुरु होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। जब ये दण्डकारण्य में यज्ञ कर रहे थे,
तब रावण के द्वारा वहााँ छनयुक्तताडका, सुबाहु और मार ि जैसे राक्षस इनके यज्ञ में बार-बार पवघ्न उिष्स्थत कर दे ते
थे। पवश्वालमत्र ने अिने तिोबि से यह जान लिया कक त्रैिोक्य को भय से त्राण हदिाने वािे
िरब्रह्म श्रीराम का अवतार अयोध्या में हो गया है । इसीलिए ये अिने यज्ञ की रक्षा के लिये राम और िक्ष्मण को
महाराजदशरथ से मााँग िे आये थे। पवश्वालमत्र ने भगवान श्रीराम को अिनी पवद्याएाँ प्रदान कीं और
उनका लमचथिा में जनक की िुत्री सीता से पववाह सम्िन्न कराया।
'मंथरा' अयोध्या के राजा दशरथ की रानी कैकेयी की पप्रय दासी थी। वह एक कुबडी स्त्री थी। जब कैकेयी का पववाह अयोध्या के
राजा दशरथ से हुआ, तब मंथरा भी कैकेयी के साथ ह अयोध्या आ गई थी। एक ककं वदं ती के अनुसार यह माना जाता है
कक िूवज
म न्म में मंथरा 'दन्ु दलु भ' नाम की एक गन्धवम कन्या थी। 'रामिररतमानस' के अनुसार मंथरा दासी के कहने िर
ह राम के राज्यालभर्ेक होने के अवसर िर कैकयी की मछत कफर गयी और उसने राजा दशरथ से दो वरदान मााँगे। िहिे वर
में उसने भरत को राज्यिद और दस
ू रे वर में राम के लिए िौदह वर्म का वनवास मााँगा।
अयोध्या के राजा दशरथ के िुत्र शत्रुघ्न का शौयम भी अनुिम था। वनवास के बाद एक हदन ऋपर्यों ने भगवान श्रीराम की सभा
में उिष्स्थत होकर िवणासुरके अत्यािारों का वणमन ककया और उसका वध करके उसके अत्यािारों से मुष्क्त हदिाने की
प्राथमना की। शत्रुघ्न ने भगवान श्रीराम की आज्ञा से वहााँ जाकर प्रबि िराक्रमी िवणासुर का वध ककया और 'मधुरािुर ',
आधुछनक मथुरा, को बसाकर वहााँ बहुत हदनों तक शासन ककया। भगवान राम के िरमधाम िधारने के समय मथुरा में अिने
िुत्रों का राज्यलभर्ेक करके शत्रुघ्न अयोध्या िहुाँि गये।
राजा जनक की िुत्री का नाम सीता इसलिए था कक वे जनक को हि कपर्मत रे खाभूलम से प्राप्त हुई थीं। उनका पववाह दशरथ के
िुत्र और अयोध्या के ज्येकठ राजकुमार राम से हुआ था। 'अशोक वाहटका' प्रािीन राजाओं के भवन के समीि की पवशेर् वाहटका
कहिाती थी। 'वाल्मीकक रामायण' के अनुसार अशोक वाहटका िंका में ष्स्थत एक सुंदर उद्यान था, ष्जसमें रावण ने सीता को
बंद बनाकर रखा था 'अरण्यकाण्ड' से ज्ञात होता है कक रावण िहिे सीता को अिने राजप्रासाद में िाया था और वह ं रखना
िाहता था, ककं तु सीता की अडडगता तथा अिने प्रछत उसका छतरस्कारभाव दे खकर रावण ने उन्हें धीरे -धीरे मना िेने के
पविार से प्रासाद से कुि दरू अशोक वाहटका में एक वक्ष
ृ के नीिे कैद कर हदया था।
15.मेघनाद का दस
ू रा नाम क्या था? इन्रग्जत
'मेघनाद' अथवा 'इन्रष्जत' िंका के राजा रावण का िुत्र था। जब मेघनाद का जन्म हुआ था तो वह मेघ गजमन के समान जोर
से रोया, इसी से उसका नाम 'मेघनाद' रखा गया। उसने युवास्था में ह दै त्यों के गुरु शुक्रािायम की सहायता से 'सप्तयज्ञ' ककए
और भगवान लशव के आशीवामद से रथ, हदव्यास्त्र और तामसी माया प्राप्त की थी। इन्रष्जतने राम की सेना से मायावी युद्ध
ककया था। कभी वह अंतधामन हो जाता तो कभी प्रकट हो जाता। मेघनाद पवशाि भयानक वटवक्ष
ृ के िास भूतों को बलि दे कर
युद्ध में जाता था, इसी से वह अदृश्य होकर युद्ध कर सकने में समथम था।
1.राम और हनम
ु ान का लमिन ककस िवमत के िास हुआ था? ऋष्यमक
ू
वाल्मीकक रामायण में वखणमत वानरों की राजधानी ककष्ककंधा के छनकट 'ऋकयमूक िवमत' ष्स्थत था। ऋकयमूक िवमत रामायण की
घटनाओं से सम्बद्ध दक्षक्षण भारत का एक िपवत्र िवमत है । यहााँ पवरूिाक्ष मष्न्दर के िास से ऋकयमूक िवमत के लिए मागम जाता
है । यह ं िर हनुमान की भेंट श्री राम से हुई, ष्जनके द्वारा सुग्रीव और राम की लमत्रता हुई। यहााँ तुंगभरा नद धनुर् के आकार में
बहती है । सुग्रीव ककष्ककंधा से छनककालसत होने िर अिने भाई बालि के डर से इसी िवमत िर छिि कर रहता था।
2.हनम
ु ान के पिता का नाम क्या था? केसरी
हनुमान केसर और अंजना (अंजनी) दे वी के िुत्र थे। अंजना वास्तव में िुष्न्जकस्थिा नाम की एक स्वगम अप्सरा थी, जो एक
शाि के कारण नार वानर के रूि में धरती िर जन्मी। उस शाि का प्रभाव भगवान लशव के अंश को जन्म दे ने के बाद ह
समाप्त होने का योग था।
जब राहु ने दे खा कक हनुमान सूयम को छनगिने जा रहा है , तब वह इन्र के िास गया और बोिा- 'मैं सूयम को ग्रसने गया था,
ककं तु वहााँ तो कोई और ह जा रहा है ।' इन्र क्रुद्ध होकर ऐरावत िर बैठकर िि िडे। राहु उनसे भी िहिे घटनास्थि िर आ
िहुाँिा। हनुमान ने उसे भी फि समझा तथा उसकी ओर झिटे । उसने इन्र को आवाज द । हनुमान ने ऐरावत को दे खा और
उसे भी बडा फि जानकर वे िकडने के लिए बढ़े । इन्र ने क्रुद्ध होकर अिने वज्र से प्रहार ककया, ष्जससे हनुमान की बायीं
ठोडी टूट गयी।
'सुबाहु' राम के भाई शत्रुघ्न के िुत्र थे। पवहदशा नगर के पवर्य में रामायण में एक िरं िरा का वणमन लमिता है , ष्जसके अनुसार
रामिन्र ने इस नगर को शत्रुघ्न को सौंि हदया था। शत्रुघ्न के दो िुत्र उत्िन्न हुये थे, ष्जनमें सुबाहु िोटा िुत्र था। उन्होंने
इसे पवहदशा नगर का शासक छनयुक्त कर हदया था। थोडे ह समय में यह नगर अिनी अनुकूि िररष्स्थछतयों के कारण
िनि उठा और समस्त भारत में प्रलसद्ध हो गया।
5.ककस ऋपर् ने श्री राम के सामने ह योगाष्ग्न से अिने शर र को भस्म कर लिया? शरभंग
'शबर ' का वास्तपवक नाम 'श्रमणा' था और वह भीि समुदाय की 'शबर ' जाछत से संबध
ं रखती थी। शबर के पिता भीिों के राजा
थे। सीता की खोज में जब राम और िक्ष्मणउसकी कुहटया में िधारे , तब उसने राम का सत्कार ककया और उन्हें सीता की खोज
के लिये सुग्रीव से लमत्रता करने की सिाह द । भगवान श्री राम के दशमन करने के बाद वह स्वयं को योगाष्ग्न में भस्म करके
सदा के लिये श्री राम के िरणों में ि न हो गई।
8.छनम्न में से ककस स्त्री को मतंग ऋपर् ने आश्रय प्रदान ककया? शबरी
पववाह की रात शबर घर से भागकर जंगि में आ गयी, ककं तु छनम्न जाछत की होने के कारण उसे कह ं आश्रय नह ं लमिा।
वह रात्रत्र में जल्द उठकर, ष्जधर से ऋपर् छनकिते, उस रास्ते को नद तक साफ़ करती। काँकर ि जमीन में बािू त्रबिा
आती। जंगि में जाकर िकडी काटकर डाि आती। इन सब कामों को वह इतनी तत्िरता से छििकर करती कक कोई ऋपर्
दे ख न िे। यह कायम वह कई वर्ों तक करती रह । अन्त में 'मतंग' ऋपर् ने उस िर कृिा की। महपर्म मतंग ने सामाष्जक
बहहककार स्वीकार ककया, ककन्तु शरणागत शबर का त्याग नह ं ककया।
दं द
ु भ
ु ी, कैिास िवमत के समान एक पवशाि दै त्य था, ष्जसमें हजार हाचथयों का बि था। एक भयंकर युद्ध में दं द
ु भ
ु ी का
वध बालि के हाथों हुआ, ष्जसने उसके शव को उठाकर एक योजन दरू फेंक हदया। मागम में उसके मुाँह से छनकि रक्त की बूंदें
महपर्म मतंग के आश्रम िर जाकर चगर ं। महपर्म मतंग ने बालि को शाि हदया कक वह और उसके वानरों में से कोई यहद
उनके आश्रम के िास एक योजन की दरू तक आयेगा तो मर जायेगा।
रामायण में राम-सेना के एक प्रलसद्ध वानर नि और नीि, पवश्वकमाम के अंशावतार थे। दक्षक्षण में समुर के ककनारे िहुंिकर राम
ने समुर की आराधना की। प्रसन्न होकर वरुणािय ने सगर िुत्रों से संबंचधत होकर अिने को इक्ष्वाकु वंशीय बतिाकर राम की
सहायता करने का विन हदया और उसने कहा-'सेना में नि नामक पवश्वकमाम का िुत्र है । वह अिने हाथ से मेरे जि में जो
कुि भी िोडेगा वह तैरता रहे गा, डूबेगा नह ं।'
मेघनाद ने 'छनकुंलभिा' के स्थान िर जाकर 'अष्ग्नकटोम', 'अश्वमेघ' आहद सात यज्ञ करके लशव से अनेक वर प्राप्त ककये थे।
मेघनाद को ब्रह्मा के वरदान से 'ब्रह्मालशर' नाम का अस्त्र और इच्िानुसार ििने वािे घोडे प्राप्त थे। वह ष्जस लसपद्ध को
प्राप्त करने छनकुंलभिादे वी के मंहदर में गया था, उसे लसद्ध करने के उिरांत दे वताओं समेत इन्र भी उसे जीतने में असमथम हो
जाते। ब्रह्मा ने उससे कहा था- 'हे इन्रष्जत, यहद तुम्हारा कोई शत्रु छनकुंलभिा में यज्ञ समाप्त करने से िूवम तुमसे युद्ध
करे गा तो तुम मारे जाओगे।
सांकाश्य प्रािीन भारत में िंिाि जनिद का प्रलसद्ध नगर था, जो वतममान संककसा, बसंतिुर, ष्जिा एटा, उत्तर प्रदे श में है ।
यह फ़रुम खाबाद के छनकट ष्स्थत है । सांकाश्य का सवमप्रथम उल्िेख संभवत: वाल्मीकक रामायण में है , जहााँ सांकाश्य-नरे श सुधन्वा
का जनक की राजधानी लमचथिा िर आक्रमण करने का उल्िेख है । सुधन्वा सीता से पववाहकरने का इच्िुक था। जनक के साथ
युद्ध में सुधन्वा मारा गया तथा सांकाश्य के राज्य का शासक जनक ने अिने भाई 'कुशध्वज' को बना हदया।
14.छनम्न में से ककस नगर की स्थािना राक्षसों के राजा मधु ने की थी? मधुपुरी
'रामायण' में 'नि' और 'नीि' नाम के दो वानरों का उल्िेख हुआ है , जो श्रीराम की सेना में थे। ये दोनों वानर दे वताओं के
लशल्िी पवश्वकमाम के अंशावतार थे। दक्षक्षण में समुर के ककनारे िहुाँिकर जब श्रीराम ने समुर की आराधना की, तब प्रसन्न होकर
वरुणािय ने सगर िुत्रों से संबंचधत होकर अिने को इक्ष्वाकु वंशीय बतिाकर राम की सहायता करने का विन हदया। उसने
कहा- "आिकी सेना में नि-नीि नामक पवश्वकमाम के िुत्र हैं। वह अिने हाथ से मेरे जि में जो कुि भी िोडेंग,े वह तैरता
रहे गा, डूबेगा नह ं।' इस प्रकार समुर िर िुि बना, जो 'निसेतु' नाम से पवख्यात हुआ।
2.िंका के उस प्रलसद्ध वैद्य का क्या नाम था, ष्जसे िक्ष्मण की मूच्िाम दरू करने हे तु हनुमान िंका से उठा िाये? सुर्ेण
सुर्ेण वैद्य का उल्िेख रामायण में हुआ है । रामायणानुसार सुर्ेण िंका के राजा राक्षसराज रावण का राजवैद्य था। जब रावण
के िुत्र मेघनाद के साथ हुए भीर्ण युद्ध में िक्ष्मण घायि होकर मूछिम त हो गये, तब सुर्ेण ने ह िक्ष्मण की चिककत्सा की
थी। उसके यह कहने िर कक मात्र संजीवनी बूट के प्रयोग से ह िक्ष्मण के प्राण बिाये जा सकते हैं, तब श्रीराम के
िरम भक्त हनुमान ने वह बूट िाकर द और िक्ष्मण के प्राण बिाये जा सके।
3.राजा जनक का मि
ू नाम क्या था? लसरध्वज
'जनक' लमचथिा महाजनिद के राजा और श्रीराम के श्वसुर थे। इनका वास्तपवक नाम 'लसरध्वज' और इनके भाई का नाम
'कुशध्वज' था। सीता महाराज जनक की ह िुत्री थीं, ष्जनका पववाह अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येकठ िुत्र राम से सम्िन्न हुआ
था। जनक अिने अध्यात्म तथा तत्त्वज्ञान के लिए अत्यन्त प्रलसद्ध थे। उनके िूवज
म ों में छनलमके ज्येकठ िुत्र दे वरात थे।
भगवान लशव का धनुर् उन्ह ं की धरोहरस्वरूि राजा जनक के िास सुरक्षक्षत था। जब राजा जनक ने एक यज्ञ ककया,
तब पवश्वालमत्र तथा मुछनयों नेराम और िक्ष्मण को भी उस यज्ञ में सष्म्मलित होने के लिए प्रेररत ककया। उन्होंने कहा कक उन
दोनों को लशव-धनुर् के दशमन करने का अवसर भी प्राप्त होगा।
4.'वाल्मीकक रामायण' की रिना ष्जस िन्द में हुई, उसका नाम क्या है ? अनुष्टुप
'अनुकटुि' संस्कृत काव्य में सवामचधक प्रयोग ककया जाता है । रामायण, महाभारत तथा गीता के अचधकांश श्िोक अनुकटुि िन्द में
ह हैं। हहन्द में दोहा की िोकपप्रयता के समान ह संस्कृत में अनुकटुि की िहिान है । वैहदक काि से ह इस िन्द का प्रयोग
लमिता है । प्रािीन काि से ह सभी ने इसे बहुत आसानी के साथ प्रयोग ककया।
'रामिररतमानस' एक िररत-काव्य है , ष्जसमें श्रीराम का सम्िूणम जीवन-िररत वखणमत हुआ है । इसमें 'िररत' और 'काव्य' दोनों के
गुण समान रूि से लमिते हैं। 'रामिररतमानस' तुिसीदास की सबसे प्रमुख कृछत है । इसकी रिना संवत 1631 ई.
की रामनवमी को अयोध्या में प्रारम्भ हुई थी, ककन्तु इसका कुि अंशकाशी (वाराणसी) में भी छनलममत हुआ था। यह इसके
'ककष्ककन्धाकाण्ड' के प्रारम्भ में आने वािे एक सोरठे से छनकिती है , उसमें काशी सेवन का उल्िेख है। यह रिना 'अवधी
बोि ' में लिखी गयी है । इसके मुख्य िन्द िौिाई और दोहा हैं, बीि-बीि में कुि अन्य प्रकार के भी िन्दों का प्रयोग हुआ है ।
6.उस गुप्तिर का क्या नाम था, ष्जसके कहने िर श्रीराम ने सीता का िररत्याग कर हदया? दम
ु ख
ुि
7.कैकेयी की उस दासी का नाम क्या था, जो मायके से ह उसके साथ अयोध्या रहने आई थी? मंथरा
'मंथरा' अयोध्या के राजा दशरथ की रानी कैकेयी की पप्रय दासी थी। मंथरा और कैकेयी 'केकय दे श' की थीं। एक ककं वदं ती के
अनुसार यह माना जाता है कक िूवज
म न्म में मंथरा 'दन्ु दलु भ' नाम की एक गन्धवम कन्या थी। जब कैकेयी का पववाह अयोध्या के
राजा दशरथ से हुआ, तब मंथरा भी कैकेयी के साथ ह अयोध्या आ गई थी। 'रामिररतमानस' के अनुसार मंथरा दासी के
कहने िर ह राम के राज्यालभर्ेक होने के अवसर िर कैकयी की मछत कफर गयी और उसने राजा दशरथ से दो वरदान मााँगे।
िहिे वर में उसने भरत को राज्यिद और दस
ू रे वर में राम के लिए िौदह वर्म का वनवास मााँगा।
8.उस तीथम का क्या नाम था, ष्जसमें डुबकी िगाकर श्रीराम ने िरमधाम को प्रस्थान ककया? गोप्रतार
हहन्दू धमम के कई त्योहार, जैस-े दशहरा और द िावि आहद, राम की जीवन-कथा से जुडे हुए हैं। माना जाता है कक राम का
जन्म प्रािीन भारत में हुआ था। उनके जन्म के समय का अनुमान सह से नह ं िगाया जा सका है । आज के युग में राम
का जन्म 'रामनवमी' के रूि में मनाया जाता है । श्रीराम के िरमधाम गमन के पवर्य में कहा जाता है कक जब
प्रभु श्रीराम, भरत और शत्रुघ्न ने सरयू नद के 'गोप्रतार घाट' िर पवकणु स्वरूि में प्रवेश ककया तो उनके साथ गया समस्त समूह
अथामत राक्षस, मनुज, र ि, िक्षी, वानर और यशस्वी व महान मनुकय आहद सभी को प्रभु का िरमधाम लमिा। ब्रह्माजी ये सब
दे खकर बहुत आह्िाहदत हुए और अिने धाम को ििे गए।
'पवश्वालमत्र' राजा गाचध के िुत्र थे। हहन्दू धालममक मान्यता के अनुसार यह माना जाता है कक उन्होंने कई वर्म राज्य ककया और
कफर िथ्
ृ वी की िररक्रमा के लिए छनकि िडे। पवश्वालमत्र को भगवान श्रीराम का दस ू रा गुरु होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। जब
ये दण्डकारण्य में यज्ञ कर रहे थे, तब रावण के द्वारा वहााँ छनयुक्त ताडका, सुबाहु और मार ि जैसे राक्षस इनके यज्ञ में बार-बार
पवघ्न उिष्स्थत कर दे ते थे। पवश्वालमत्र ने अिने तिोबि से जान लिया कक त्रैिोक्य को भय से त्राण हदिाने वािे िरब्रह्म
श्रीराम का अवतार अयोध्या में हो गया है । इसीलिए अिने यज्ञ की रक्षा के लिये राम को दशरथ से मााँग िे आये थे।
10.बालि और सग्र
ु ीव ष्जस वानर से उत्िन्न हुए थे, उसका नाम क्या था? ऋक्षराज
ऋक्षराज एक प्रलसद्ध िौराखणक िररत्र है । रामायण में वखणमत बालि और सुग्रीव के पिता ऋक्षराज थे। चिरकाि तक राज्य करने के
िश्िात जब ऋक्षराज का दे हान्त हुआ, तब उनका बडा िुत्र बालि राजा बना। बालि और सुग्रीव में बििन से ह बहुत प्रेम था।
ऋक्षराज के जन्म के पवर्य में कहा जाता है कक एक बार मेरु िवमत िर तिस्या करते समयब्रह्मा की आाँखों से चगरे हुए
आाँसुओं से एक बंदर उत्िन्न हुआ, ष्जसका नाम 'ऋक्षराज' था।
'रामायण' कपव वाल्मीकक द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुिम महाकाव्य है , जो त्रेतायुग से सम्बष्न्धत है । इसके माध्यम से
रघुवंश के राजा श्रीराम की गाथा कह गयी है । रामायण के सात अध्याय हैं, जो 'काण्ड' के नाम से जाने जाते हैं। इन काण्डों में
सगों की गणना करने िर सम्िूणम रामायण में 645 सगम लमिते हैं। सगामनुसार श्िोकों की संख्या 23,440 आती है, जो 24,000
से 560 श्िोक कम है । हहन्दू धमम में रामायण का महत्त्व बहुत अचधक है । धालममक दृष्कट से यह बहुत ह िपवत्र और आत्मज्ञान
प्रदान करने वािा ग्रंथ है ।
13.समुर मंथन से जो अश्व छनकिा था, उसका क्या नाम था? उच्चै:श्रवा
'उच्िै:श्रवा' िौराखणक धमम ग्रंथों और हहन्दू मान्यताओं के अनुसार दे वताओं के राजा इन्र के अश्व का नाम है । यह अश्व 'समुर
मंथन' के दौरान जो िौदह मूल्यवान वस्तुएाँ प्राप्त हुई थीं, उनमें से एक था। वह समस्त अश्व जाछत में एक अद्भुत रत्न था।
इसे दे वराज इन्र को दे हदया गया था। उच्िै:श्रवा के कई अथम हैं, जैस-े 'ष्जसका यश ऊाँिा हो', 'ष्जसके कान ऊाँिे हों' अथवा
'जो ऊाँिा सुनता हो'।
'साि वक्ष
ृ ' एक अधम-िणमिाती और द्पवबीजित्री बहुवर्ीय वक्ष
ृ है । इस वक्ष
ृ की उियोचगता मुख्यत: इसकी िकडडयााँ हैं, जो
अिनी मजबूती तथा प्रत्यास्थता के लिए प्रख्यात हैं। तरुण साि वक्ष
ृ की िाि से प्रास िाि रं ग और कािे रं ग का िदाथम रं जक
के काम आता है । साि वक्ष
ृ भारत के कई स्थानों िर पवशेर् रूि से िाया जाता है । हहमािय की तिहट से िेकर तीन से िार
हजार फुट की ऊाँिाई तक और उत्तर प्रदे श, बंगाि, त्रबहार तथा असम के जंगिों में यह प्रमुखता से उगता है ।
15.समुर मंथन से प्राप्त उस हाथी का क्या नाम था, जो श्वेत वणम का था? ऐरावत
'ऐरावत' दे वताओं के राजा इन्र के हाथी का नाम है । यह हाथी दे वताओं और असुरों द्वारा ककये गए समुर मंथन के दौरान
छनकि िौदह मूल्यवान वस्तुओं में से एक था। मंथन से प्राप्त रत्नों के बाँटवारे के समय ऐरावत को इन्र को दे हदया गया
था। बाँटवारे के समय इन्र ने ऐरावत के हदव्य गुण युक्त होने के कारण उसे अिनी सवार के लिए िे लिया। इसीलिए
ऐरावत का 'इंरहष्स्त' अथवा 'इंरकुंजर' नाम भी िडा। ऐरावत को शुक्िवणम और िार दााँतों वािा बताया गया है ।
1.समुर मंथन से जो भयानक पवर् छनकिा था, उसका नाम क्या था? हिाहि
'हिाहि पवर्' दे वताओं और असुरों द्वारा लमिकर ककये गए समुर मंथन के समय छनकिा था। मंथन के फिस्वरूि जो िौदह
मूल्यवान वस्तुएाँ प्राप्त हुई थीं, उनमें से हिाहि पवर् सबसे िहिे छनकिा था। हिाहि पवर् की ज्वािा से सभी दे वता तथा
असुर जिने िगे और उनकी काष्न्त फीकी िडने िगी। इस िर सभी ने लमिकर भगवान शंकर की प्राथमना की। दे वताओं
तथा असुरों की प्राथमना िर महादे व लशव उस पवर् को हथेि िर रख कर उसे िी गये, ककन्तु उसे कण्ठ से नीिे नह ं उतरने
हदया। उस कािकूट पवर् के प्रभाव से लशव का कण्ठ नीिा िड गया। इसीलिये महादे व को 'नीिकण्ठ' कहा जाने िगा।
2.समुर मंथन हे तु ष्जस िवमत को मथानी बनाया गया, वह कौन-सा था? मंदराचि
'मंदरािि' या 'मंदार' िवमत का उल्िेख िौराखणक धमम ग्रंथों और हहन्दू मान्यताओं में हुआ है । समुर मंथन की ष्जस घटना का
उल्िेख हहन्दू धालममक ग्रंथों में हुआ है, उनके अनुसार मंदार िवमत को मंथन के समय मथानी की तरह प्रयोग ककया गया था।
सहदयों से खडा मंदार िवमत आज भी िोगों की आस्था का केन्र बना हुआ है । यह प्रलसद्ध िवमतत्रबहार राज्य के बााँका ष्जिे के
बौंसी गााँव में ष्स्थत है । इस िवमत की ऊाँिाई िगभग 700 से 750 फुट है । यह भागििुर से 30-35 मीि की दरू िर ष्स्थत है ।
इस प्रलसद्ध कांड में 128 सगम तथा सबसे अचधक 5,692 श्िोक प्राप्त होते हैं। शत्रु के जय, उत्साह और िोकािवाद के दोर् से
मुक्त होने के लिए युद्धकांड का िाठ करना िाहहए। इसे 'बह
ृ द्धममिुराण' में 'िंकाकांड' भी कहा गया है । युद्धकांड में वानरसेना का
िराक्रम, पवभीर्ण-छतरस्कार, पवभीर्ण का राम के िास गमन, राम-रावण युद्ध, रावण वध, मंदोदर पविाि, पवभीर्ण का शोक, राम
के द्वारा पवभीर्ण का राज्यालभर्ेक, हनुमान, सुग्रीव, अंगद आहद के साथ राम,िक्ष्मण तथा सीता का अयोध्या प्रत्यावतमन, राम का
राज्यालभर्ेक तथा भरत का युवराज िद िर आसीन होना, रामराज्य वणमन और रामायण िाठ श्रवणफि कथन आहद का
छनरूिण ककया गया है ।
िौराखणक धमम ग्रंथों और हहन्दू धमम की मान्यताओं के अनुसार गरुड िक्षक्षयों के राजा और भगवान पवकणु के वाहन हैं। ये कश्यि
ऋपर् और पवनता के िुत्र तथा अरुण के भ्राता हैं। िंका के राजा रावण के िुत्र इन्रष्जत ने जब युद्ध में श्रीराम और िक्ष्मण को
नागिाश से बााँध लिया था, तब गरुड ने ह उन्हें इस बंधन से मुक्त ककया था। काकभुशुंडी नामक एक कौए ने गरुड को
श्रीराम कथा सुनाई थी।
5.अश्वमेध यज्ञ के अश्व के मस्तक िर जो ित्र बााँधा जाता था, उसका क्या नाम था? जयपत्र
वैहदक यज्ञों में 'अश्वमेध यज्ञ' का महत्त्विूणम स्थान है । यह महाक्रतुओं में से एक है । अश्वमेध मुख्यत: राजनीछतक यज्ञ था
और इसे वह सम्राट कर सकता था, ष्जसका अचधित्य अन्य सभी नरे श मानते थे। यज्ञ का प्रारम्भ बसन्त अथवा ग्रीकम
ऋतु में होता था तथा इसके िूवम प्रारष्म्भक अनुकठानों में प्राय: एक वर्म का समय िगता था। सवमप्रथम एक अयुक्त अश्व िुना
जाता था। यज्ञ स्तम्भ में बााँधने के प्रतीकात्मक कायम से मुक्त कर इसे स्नान कराया जाता था तथा एक वर्म तक अबन्ध
दौडने तथा बूढ़े घोडों के साथ खेिने हदया जाता था। इसके िश्िात इसकी हदष्ग्वजय यात्रा प्रारम्भ होती थी। इसके लसर िर
'जयित्र' बााँधकर िोडा जाता था।
7.श्रीराम आहद िारों भाइयों के पववाह कायम ष्जस ऋपर् ने सम्िन्न कराए थे, उनका नाम क्या था? वलसष्ठ
वेद, इछतहास, िुराणों में वलसकठ के अनचगनत कायों का उल्िेख ककया गया है । महपर्म वलसकठ की उत्िष्त्त का वणमन िुराणों में
पवलभन्न रूिों में प्राप्त होता है । कह ं ये ब्रह्मा के मानस िुत्र, कह ं लमत्रावरुण के िुत्र और कह ं अष्ग्निुत्र कहे गये हैं। इनकी
ित्नी का नाम 'अरून्धती दे वी' था। वलसकठ ने सूयव
म ंश का िौरोहहत्य करते हुए अनेक िोक-कल्याणकार कायों को सम्िन्न
ककया था। इन्ह ं के उिदे श के बि िर भगीरथ ने प्रयत्न करके गंगा जैसी िोक कल्याणकाररणी नद को िोगों के लिये सुिभ
कराया। हदि िको नष्न्दनी की सेवा की लशक्षा दे कर रघु जैसे िुत्र प्रदान करने वािे तथा महाराज दशरथ की छनराशा में आशा का
संिार करने वािे महपर्म वलसकठ ह थे। इन्ह ं की सम्मछत से महाराज दशरथ ने िुत्रष्े कट-यज्ञ सम्िन्न ककया और
भगवान श्रीराम का अवतार हुआ।
कौस्तुभ मखण को भगवान पवकणु धारण करते हैं। माना जाता है कक यह मखण दे वताओं और असुरों द्वारा ककये गए समुर
मंथन के समय प्राप्त िौदह मूल्यवान वस्तुओं में से एक थी। यह बहुत ह कांछतमान थी और जहााँ भी यह मखण होती है ,
वहााँ ककसी भी प्रकार की दै वीय आिदा नह ं होती। कहा गया है कककालिय नाग को श्रीकृकण ने गरुड के त्रास से मुक्त ककया
था। इस समय कालिय नाग ने अिने मस्तक से उतार कर श्रीकृकण को कौस्तुभ मखण हदया था।
10.कुबेर को ब्रह्माजी ने जो पवमान हदया था, उसका नाम क्या था? पुष्पक
'िुकिक पवमान' का उल्िेख 'रामायण' में लमिता है , ष्जसमें बैठकर िंका के राजा रावण ने सीता का हरण ककया था। रामायण में
वखणमत है कक युद्ध के बाद श्रीराम, सीता,िक्ष्मण तथा अिने अन्य सहयोचगयों के साथ दक्षक्षण में ष्स्थत िंका से अयोध्या िुकिक
पवमान द्वारा ह आये थे। िुकिक पवमान िहिे कुबेर के िास था, िेककन रावण ने अिने भाई कुबेर से बििूवक
म इसे हालसि
कर लिया था। िुकिक पवमान की यह पवशेर्ता थी कक वह िोटा या बडा ककया जा सकता था। उसमें मन की गछत से ििने
की क्षमता थी। यह एक आकाशिार दे व वाहन था, जो भूलम िर भी िि सकता था।
11.उस ब्राह्मण का क्या नाम था, ष्जसे श्रीराम ने कहा था कक वह अिने दं ड (डंड)े को जहााँ तक फेंक सकेंगे, वहााँ तक
की गायें उन्हें लमि जायेंगी? त्रत्रजट
हहमािय संस्कृत के 'हहम' तथा 'आिय' शब्दों से लमिकर बना है , ष्जसका अथम होता है - 'बफ़म का घर'। हहमािय भारत की
धरोहर है । इस िवमत की एक िोट का नाम 'बन्दरिुच्ि' है । यह िोट उत्तराखंड के हटहर गढ़वाि ष्जिे में ष्स्थत है । इसकी
ऊाँिाई िगभग 20,731 फुट है । इसे 'सुमेरु' भी कहा जाता है । हहमािय एक िूर िवमत शख ृं िा है , जो भारतीय उिमहाद्वीि
और छतब्बत को अिग करता है । यह भारतवर्म का सबसे ऊाँिा िवमत है , जो उत्तर में दे श की िगभग 2500 ककिोमीटर िंबी
सीमा बनाता है और दे श को उत्तर एलशया से िथ
ृ क करता है । कश्मीर से िेकर असम तक इसका पवस्तार है ।
'रामायण' के इस प्रलसद्ध कांड में प्रथम सगम ‘मूिरामायण’ के नाम से प्रख्यात है । इसमें नारद से वाल्मीकक संक्षेि में सम्िूणम
रामकथा का श्रवण करते हैं। हहन्दू धमम में धालममक दृष्कट से भी इस कांड का महत्त्व बहुत अचधक है । अयोध्या के राजा
दशरथ का यज्ञ, तीन राछनयों से िार िुत्रों का जन्म, पवश्वालमत्र का राम-िक्ष्मण को िे जाकर 'बिा' तथा 'अछतबिा' पवद्याएाँ
प्रदान करना, राक्षसों का वध, जनक के धनुर्यज्ञ में जाकर सीता का पववाह आहद वत
ृ ान्त वखणमत हैं। बािकांड में 77 सगम तथा
2280 श्िोक प्राप्त होते हैं।
14.उस सागर का क्या नाम था, ष्जसका दे वताओं और असुरों ने मंथन ककया था? क्षीरोद सागर
15.हनम
ु ान जब अशोक वाहटका में सीताजी से लमिने गए थे, उस समय वे ककस वक्ष
ृ िर छििे थे? अशोक
अशोक के वक्ष
ृ को हहन्दू धमम में काफ़ी िपवत्र, िाभकार और पवलभन्न मनोरथों को िूणम करने वािा माना गया है । अशोक का
शष्ब्दक अथम होता है - "ककसी भी प्रकार का शोक न होना"। यह िपवत्र वक्ष
ृ ष्जस स्थान िर होता है , वहााँ िर ककसी प्रकार का
शोक व अशाष्न्त नह ं रहती। मांगलिक एवं धालममक कायों में अशोक के ित्तों का प्रयोग ककया जाता है । इस वक्ष
ृ िर
प्राकृछतक शष्क्तयों का पवशेर् प्रभाव माना गया है, ष्जस कारण यह वक्ष
ृ ष्जस जगह िर भी उगता है , वहााँ िर सभी कायम
िूणत
म ः छनबामध रूिसे सम्िन्न होते ििे जाते हैं। भगवान श्रीरामने भी स्वयं ह इसे शोक दरू करने वािे िेड की उिमा द थी।
श्रीराम की जन्म-भूलम अयोध्या उत्तर प्रदे श में सरयू नद के दाएाँ तट िर ष्स्थत है । नहदयों में ऐछतहालसक दृष्कट से महत्त्विूणम
सरयू नद का अष्स्तत्व भी अब खतरे में है । 'रामायण' के अनुसार भगवान राम ने इसी नद में जि समाचध ि थी। सरयू
नद का उद्गम उत्तर प्रदे श के बहराइि ष्जिे से हुआ है ।बहराइि से छनकिकर यह नद गोंडा से होती हुई अयोध्या तक जाती
है । िहिे यह नद गोंडा के िरसिुर तहसीि में 'िसका' नामक तीथम स्थान िरघाघरा नद से लमिती थी। अयोध्या तक ये नद
'सरयू' के नाम से जानी जाती है , िेककन उसके बाद यह नद 'घाघरा' के नाम से जानी जाती है । सरयू नद की कुि िंबाई
िगभग 160 ककिोमीटर है ।
2.समुर में रहने वाि उस नाग माता का क्या नाम था, ष्जसने समर
ु िााँघते हुए हनुमान को रोका और उन्हें खा जाने को
उद्यत हुई थी? सरु सा
'सुरसा' रामायण के अनुसार समुर में रहने वाि नाग माता थी। सीताजी की खोज में समुर िार करने के समय सुरसा ने राक्षसी
का रूि धारण करहनुमान का रास्ता रोका था और उन्हें खा जाने के लिए उद्धत हुई थी। समझाने िर जब वह नह ं मानी,
तब हनुमान ने अिना शर र उससे भी बडा कर लिया। जैस-े जैसे सुरसा अिना मुाँह बढ़ाती जाती, वैसे-वैसे हनुमान भी अिना
शर र उसके आकार से अचधक बढ़ाते जाते। बाद में हनुमान ने अिानक ह अिना शर र बहुत िोटा कर लिया और सुरसा के
मुाँह में प्रवेश करके तुरंत ह बाहर छनकि आये। हनुमान की बुपद्धमानी और वीरता से प्रसन्न होकरसुरसा ने हनुमान को
आशीवामद हदया तथा उनकी सफिता की कामना की।
3.राजा दशरथ ने िुत्रोत्िष्त्त हे तु जो यज्ञ ककया था, उसका नाम क्या था? पुत्र कामेग्ष्ट यज्ञ
िुराणों और रामायण में वखणमत इक्ष्वाकु वंशी राजा दशरथ महाराज अज के िुत्र थे। इनकी माता का नाम इन्दम
ु ती था।
इन्होंने दे वताओं की ओर से कई बार असुरों को िराष्जत ककया था। वैवस्वत मनु के वंश में अनेक शूरवीर, िराक्रमी, प्रछतभाशाि
तथा यशस्वी राजा हुये, ष्जनमें से राजा दशरथ भी एक थे। राजा दशरथ की तीन राछनयााँ थीं। सबसे बडी कौशल्या,
दस
ू र सुलमत्रा और तीसर कैकेयी। िरं तु तीनों राछनयााँ छनःसंतान थीं। इसी से राजा दशरथ अत्यचधक चिंछतत रहते थे। एक बार
अिनी चिंता का कारण दशरथ ने राजगुरु वलसकठ को बताया। इस िर राजगुरु वलसकठ ने उनसे कहा- "राजन! उिाय से भी
सभी इच्िाएाँ िूणम हो जाती हैं। तुम श्रृंगी ऋपर् को बुिाकर 'िुत्र कामेष्कट यज्ञ' कराओ। तुम्हें संतान की प्राष्प्त अवश्य होगी।"
4.महपर्म पवश्वालमत्र की तिस्या ष्जस अप्सरा ने भंग की थी, उसका नाम क्या था? मेनका
'मेनका' स्वगम की सवमसुन्दर अप्सरा थी। दे वराज इन्र ने महपर्म पवश्वालमत्र के नये सष्ृ कट के छनमामण के ति से डर कर उनकी
तिस्या भंग करने के लिएमेनका को िथ्
ृ वी िर भेजा था। मेनका ने अिने रूि और सौन्दयम से तिस्या में ि न पवश्वालमत्र का
ति भंग कर हदया। पवश्वालमत्र ने मेनका से पववाह कर लिया और वन में रहने िगे। पवश्वालमत्र सब कुि िोडकर मेनका के
ह प्रेम में डूब गये थे। मेनका से पवश्वालमत्र ने एक सुन्दर कन्या प्राप्त की, ष्जसका नामशकुंतिा रखा गया। जब शकुंतिा
िोट थी, तभी एक हदन मेनका उसे और पवश्वालमत्र को वन में िोडकर स्वगम िि गई। पवश्वालमत्र का ति भंग करने में
सफि होकर मेनका दे विोक िौट तो वहााँ उसकी कामोद्दीिक शष्क्त और किात्मक सामथ्यम की भूरर-भूरर प्रशंसा हुई और
दे वसभा में उसका आदर बहुत बढ़ गया।
'कुशध्वज' लमचथिा के राजा छनलम के िुत्र और राजा जनक के िोटे भाई थे। जनक और ष्जन कुशध्वज की तीन िुत्रत्रयों के
साथ श्रीराम के शेर् तीन भाइयों का पववाह हुआ था, वे जनक के िोटे भाई थे। या तो जनक का मध्यम आयु में दे हांत हो
गया था या कफर कुशध्वज काफी द घामयु थे, क्योंकक सीरध्वज जनक का कोई िुत्र न होने के कारण, अथामत सीता का कोई भाई
न होने के कारण, कुशध्वज ह अिने भाई जनक के उत्तराचधकार बने थे। राजा जनक के िोटे भाई कुशध्वज के भी दो
कन्याएाँ थीं- श्रुतकीछतम औरमाण्डवी। इनमें माण्डवी के साथ भरत ने और श्रुतकीछतम के साथ शत्रुघ्न ने पववाह ककया,
जबकक िक्ष्मण ने लमथिेश कन्या उलममिा से पववाह ककया।
'शत्रुघ्न' अयोध्या के राजा दशरथ के िौथे िुत्र और श्रीराम के िोटे भाई थे। 'वाल्मीकक रामायण' में वखणमत है कक अयोध्या के
राजा दशरथ की तीन रानीयााँ थीं- कौशल्या, कैकेयी और सुलमत्रा। कौशल्या से राम, कैकई से भरत और सुलमत्रा
से िक्ष्मण एवं शत्रुघ्न उत्िन्न हुए थे। शत्रुघ्न का शौयम भी अनुिम था।सीता के वनवास के बाद एक हदन ऋपर्यों ने भगवान
श्रीराम की सभा में उिष्स्थत होकर िवणासुर के अत्यािारों का वणमन ककया और उसका वध करके उसके अत्यािारों से मुष्क्त
हदिाने की प्राथमना की। शत्रुघ्न ने श्रीराम की आज्ञा से वहााँ जाकर प्रबि िराक्रमी िवणासुर का वध ककया और 'मधुिुर '
बसाकर वहााँ बहुत हदनों तक शासन ककया।
लशव' हहन्दू धमम िुराणों के अनुसार समस्त सष्ृ कट के आहद कारण हैं। उन्ह ं से ब्रह्मा, पवकणु सहहत समस्त सष्ृ कट का उद्भव होता
हैं। भगवान लशव का िररवार बहुत बडा है । एकादश रुराखणयााँ, िौंसठ योचगछनयााँ तथा भैरवाहद इनके सहिर और सहिर
हैं। माता िावमती की सखखयों में पवजया आहद प्रलसद्ध हैं। यद्यपि लशव सवमत्र व्याप्त हैं, तथापि काशी और कैिास, ये दो उनके
मुख्य छनवास स्थान कहे गये हैं। भगवान लशव दे वताओं के उिास्य तो हैं ह , साथ ह उन्होंने अनेक असुरों- अन्धक, दन्ु दभ
ु ी,
महहर्, त्रत्रिुर, रावण, छनवात-कवि आहद को भी अतुि ऐश्वयम प्रदान ककया। कुबेर आहद िोकिािों को उनकी कृिा से यक्षोंका
स्वालमत्व प्राप्त हुआ था।
ब्रह्मतेज के मूछतममान स्वरूि महामुछन अगस्त्य का िावन िररत्र अत्यन्त उदात्त तथा हदव्य है । वेदों में इनका वणमन कई
स्थानों िर आया है । ऋग्वेद का कथन है कक 'लमत्र' तथा 'वरुण' नामक दे वताओं का अमोघ तेज एक हदव्य यक्षज्ञय किश में
िुंजीभूत हुआ और उसी किश के मध्य भाग से हदव्य तेज:सम्िन्न महपर्म अगस्त्य का प्रादभ
ु ामव हुआ। महपर्म अगस्त्य
महातेजा तथा महातिा ऋपर् थे। समुरस्थ राक्षसों के अत्यािार से घबराकर दे वता िोग इनकी शरण में गये और अिना द:ु ख
कह सुनाया। फि यह हुआ कक अगस्त्य सारा समुर िी गये, ष्जससे सभी राक्षसों का पवनाश हो गया। सारा समुर िी जाने से
ह इन्हें 'समुरिुिुक' भी कहा गया है ।
9.शबर को ककस ऋपर् ने अिने आश्रम में स्थान हदया था? मतंग
'मतंग' रामायण काि न एक ऋपर् थे, जो शबर के गुरु थे। यह एक ब्राह्मणी के गभम से उत्िन्न एक नापित के िुत्र थे।
ब्राह्मणी के िछत ने इन्हें अिने िुत्र के समान ह िािा था। गदम भी के साथ संवाद से जब इन्हें यह पवहदत हुआ कक
मैं ब्राह्मण िुत्र नह ं हूाँ, तब इन्होंने ब्राह्मणत्व प्राप्त करने के लिए घोर ति ककया। दे वराज इन्र के वरदान से मतंग'िन्दोदे व'
के नाम से प्रलसद्ध हुए। रामायण के अनुसार ऋकयमूक िवमत के छनकट इनका आश्रम था, जहााँ श्रीराम गए थे।
जब बालि ने दन्ु दभ
ु ी का वध ककया तो उसके शव को उठाकर बहुत दरू फेंक हदया। दन्ु दभ
ु ी के शव से रक्त की बूाँदें मतंग ऋपर्
के आश्रम में भी चगर ं। इसिर मतंगने बालिको शाि हदया कक यहद वह ऋकयमूक िवमत के छनकट भी आयेगा तो मर जायेगा।
'गरुड' िौराखणक धमम ग्रंथों और हहन्दू धमम की मान्यताओं के अनुसार िक्षक्षयों के राजा और भगवान पवकणु के वाहन हैं।
ये कश्यि ऋपर् और पवनता के िुत्र तथा अरुण के भ्राता हैं। िंका के राजा रावण के िुत्र इन्रष्जत ने जब युद्ध
में राम और िक्ष्मण को नागिाश से बााँध लिया, तब गरुड ने ह उन्हें इस बंधन से मुक्त ककया था। हहन्दू धमम तथा िुराणों में
गरुड से सम्बष्न्धत कई प्रसंग लमिते हैं। काकभुशुंडी नामक एक कौए ने गरुड को श्रीराम कथा सुनाई थी।महाभारत काि
में कालिय नाग भी इनसे भय खाकर यमुना में कालियदह में छिि गया था।
राजा छनलम महाराज इक्ष्वाकु के िुत्र थे और महपर्म गौतम के आश्रम के समीि वैजयन्त नामक नगर बसाकर वहााँ का राज्य करते
थे। एक बार छनलम ने एक सहस्त्र वर्ीय यज्ञकरने के लिये वलसकठ को वरण ककया। िेककन उस समय वलसकठ जी इन्र का यज्ञ
कर रहे थे। राजा छनलम क्षण भंगुर शर र पविार करके गौतम आहद अन्य होताओं को िुनः वरण करके यज्ञ करने िगे, जब
वलसकठ को िता ििा कक छनलम दस
ू रों से यज्ञ करा रहे हैं तो इन्होंने शाि दे हदया कक ये शर र से रहहत हो जायें। िोभ-वश
वलसकठ ने शाि हदया है, ऐसा जानकर छनलम ने भी वलसकठ को दे ह से रहहत होने का श्राि दे हदया। िररणामस्वरूि दोनों ह
जिकर भस्म हो गये।
भगवान लशव हहन्दू धमम के प्रमुख दे वताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुर है । लशव व्यष्क्त की िेतना के अन्तमयामी हैं। इनकी
अध्दाांचगनी (शष्क्त) का नामिावमती और इनके िुत्र 'स्कन्द' और 'गणेश' हैं। लशव योगी के रूि में माने जाते हैं और
उनकी िूजा 'लिंग' के रूि में होती है । भगवान लशव सौम्य एवं रौर रूि दोनों के लिए जाने जाते हैं। सष्ृ कट की उत्िष्त्त,
ष्स्थछत एवं संहार के वे अचधिछत हैं। त्रत्रदे वों में भगवान लशव संहार के दे वता माने जाते हैं। लशव का अथम कल्याणकार माना
गया है, िेककन उनका िय और प्रिय दोनों िर समान अचधकार है । इनके अन्य भक्तों में 'त्रत्रहाररणी' भी थे और लशव
त्रत्रहाररणी को अिने िुत्रों से भी अचधक प्यार करते थे।
रामायण के 'अरण्यकांड' में श्रीराम, सीता तथा िक्ष्मण दं डकारण्य में प्रवेश करते हैं। जंगि में तिस्वी
जनों, मुछनयों तथा ऋपर्यों के आश्रम में पविरण करते हुए राम उनकी करुण-गाथा सुनते हैं। मुछनयों आहद को राक्षसों का भी
भीर्ण भय रहता है । इसके िश्िात राम िंिवट में आकर आश्रम में रहते हैं। वह ंशूिण
म खा से लमिन होता है । शूिण म खा के
प्रसंग में उसका नाक-कान पवह न करना तथा उसके भाई खर दर्
ू ण तथा त्रत्रलशरा से युद्ध और उनका संहार वखणमत है ।
'बह
ृ द्धममिुराण' के अनुसार इस काण्ड का िाठ उसे करना िाहहए, जो वन, राजकुि, अष्ग्न तथा जििीडा से युक्त हो। इसके िाठ
से अवश्य मंगि प्राष्प्त होती है । अरण्यकांड में 75 सगम हैं, ष्जनमें 2,440 श्िोक गणना से प्राप्त होते हैं।
14.िंका का राजा रावण ककस वाद्य को बजाने में छनिुण था? वीणा
'रावण' रामायण का एक पवशेर् िात्र है । वह स्वणम नगर िंका का राजा था। रावण अिने दस लसरों के कारण भी जाना जाता
था, ष्जस कारण उसका एक अन्य नाम 'दशानन' अथामत 'दस मुख वािा' भी था। ककसी भी कृछत के लिये अच्िे िात्रों के साथ
ह साथ बुरे िात्रों का होना अछत आवश्यक है । ककन्तु रावण में अवगुण की अिेक्षा गुण अचधक थे। जीतने वािा हमेशा अिने
को उत्तम लिखता है , अतः रावण को बुरा कहा गया है । रावण को िारोंवेदों का ज्ञाता कहा गया है । संगीत के क्षेत्र में भी रावण
की पवद्वता अिने समय में अद्पवतीय मानी जाती थी। वीणा बजाने में रावण लसद्धहस्त था। उसने एक वाद्य भी बनाया था,
जो आज के 'बेिा' या 'वायलिन' का ह मूि और प्रारष्म्भक रूि है । इस वाद्य को 'रावणहत्था' कहते हैं।
हहन्द साहहत्य के आकाश के िरम नक्षत्र गोस्वामी तुिसीदास भष्क्तकाि की सगुण धारा की रामभष्क्त शाखा के
प्रछतछनचध कपव थे। वे एक कपव, भक्ततथा समाज सुधारक इन तीनो रूिों में मान्य है । युवावस्था में जब इनका
िररिय राम भक्त साधुओं से हुआ, तब इन्हें ज्ञानाजमन का अनुिम अवसर लमिा। तुिसीदास साधुओं के साथ भ्रमण करते रहे
और इस प्रकार समाज की तत्काि न ष्स्थछत से इनका सीधा संिकम हुआ। इसी द घमकाि न अनुभव और अध्ययन का
िररणाम तुिसी की अमूल्य कृछतयााँ हैं, जो उस समय के भारतीय समाज के लिए तो उन्नायक लसद्ध हुई ह , आज भी जीवन
को मयामहदत करने के लिए उतनी ह उियोगी हैं। तुिसीदास द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या 39 बताई जाती है । इनमें
'रामिररतमानस', 'कपवतावि ', 'पवनयित्रत्रका', 'दोहावि ', 'गीतावि ', 'जानकीमंगि', 'हनुमान िाि सा', 'बरवै रामायण' आहद
पवशेर् रूि से उल्िेखनीय हैं।