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देवद पटनायक
सीता
रामायण का सिच पन
ु कथन
अनव
ु ाद : रचना भोला ‘यािमनी’
पगुइन बु स
उन सभी के नाम, जो यह मानते ह िक महाभारत,
रामायण क तुलना म कह अिधक यथाथवादी व जिटल है।
िशव ने शि से जो कहा
भगवती शि , भगवान िशव से आ ह करती ह िक वे कोई ऐसी कथा सुनाएँ , जो हर कार के
क के समय म सां वना दे सके। िशव, राम और सीता क कथा, ‘रामायण’ सुनाते ह।
यह कथा िविवध प , िविवध भाषाओं, िविवध श द , िविवध सू म भेद तथा िविवध भाव के साथ
वािहत होती आई है। कह यह ग प म है, तो कह प प म और कभी-कभी तो केवल
संकेत से भी कट क जाती है। च र उभरते ह, पांत रत होते ह और पलक झपकते ही ओझल
हो जाते ह। यह बोलने वाले पौध और सोचने वाले पशुओ;ं परािजत होने वाले देव तथा िवजयी
होने वाले रा स ; नायक के समान खलनायक तथा खलनायक व से यु नायक ; ऋिषय व
िशका रय , शोिषत तथा शोषक क चचा करती है। य - य कथा आगे बढ़ती है, समय व
थान नए-नए मोड़ लेते चलते ह।
एक िज ासु कौआ काकभुशुंिड इस कथा को सुन लेता है और उसे जो भी याद रहता है, वह उसे
नारद मुिन को सुना देता है, वे िनरं तर घम
ू ते रहने वाले एक ऐसे मुिन ह, िज ह ग प मारने तथा
वग व धरती के बीच बात के आदान- दान म िवशेष आनंद आता है। नारद को जो मरण रहता
है, वे उसे वा मीिक को सुना देते ह, वे उस कथा को गान म बदल कर, लव और कुश नामक
जुड़वाँ बालक को िसखा देते ह।
लव और कुश अयो या नरे श के सामने उसे गाते ह, वे नह जानते िक वे उस कथा के नायक व
उनके िपता ह। राम भी अपने पु को नह पहचान पाते और उनके िलए यह िव ास करना भी
किठन होता है िक बालक जो इतना सुंदर गीत सुना रहे ह, वह उनके अपने िवषय म ही है।
बालक अपने गान म संपण ू राम का वणन कर रहे ह। वे िजस सीता का मरण करते ह, वह भी
कई गुना बेहतर है। परं तु गीत अभी अधरू ा है। अभी तो कथा शेष है।
लव और कुश क कथा, पवू -रामायण, आरं िभक भाग है। इसम राम को एक-बाणी (िजसका तीर
सदा िनशाने पर लगता है), एक-वचनी (जो सदा अपने वचन का मान रखता है) तथा एक-प नी
(जो केवल एक ही प नी के ित पणू िन ा रखता है) कहा गया है। वे मयादा प ु षो म, िनयम
के महान संर क ह। यह कथा छह अ याय के साथ समा होती है, जहाँ राम, रा स-राज रावण
पर िवजय पाते ह और अंततः अयो या नरे श के प म उनका रा यािभषेक संप न होता है तथा
साथ म माता सीता िवराजती ह।
परं तु यह कथा उ र-रामायण म जारी रहती है, यह बाद वाला भाग है, िजस राम और सीता के
िवयोग, िपता व पु के बीच यु , सीता के धरती म समाने के साथ यु का अंत तथा राम ारा
सरयू म जल-समािध लेने का सातवाँ अ याय भी शािमल िकया गया है।
ू अ याय के साथ
तो सही मायन म रामायण कहाँ समा होती है? इसका अंत छठे स नतापण
मान या दुःखद सातव अ याय के साथ अंत मानना चािहए?
इस िवषय म तो यास मुिन भी मौन ह, िज ह ने वेद क ऋचाओं का सं ह तथा वग करण
िकया। वे हम बताते ह िक राम अपनी देह का याग करने के बाद, जो िक वयं िव णु थे; अपने
बैकुंठ लोक को चले जाते ह। यह लोक, ीरसागर म उनका विगक धाम है। इसके बाद वे कृ ण
क नई देह के साथ ज म लेते ह, जो राम से परू ी तरह अलग ह।
कृ ण न तो नरे श ह और न ही अपनी एकमा प नी के ित िन ावान, वे एक चरवाहे और
रथवान ह िज ह नेहवश माखन-चोर (जो माखन चुराता हो), िच -चोर (जो दय चुराता हो)
तथा रण-छोड़ (जो यु भिू म से भाग जाए तािक पुनः लड़ने के िलए जीिवत रह सके) भी कहा
जाता है। वे लीला प ु षो म, सव े लीलाधारी ह। महाभारत म उनक ही कथा सुनाई जाती है।
इस तरह महाभारत म रामायण का ही िव तार हो जाता है।
या महाभारत म उस कथा का अंत हो जाता है, िजसे रामायण म आरं भ िकया गया था?
व ण के एक हज़ार ने ह
इं के,सौ ने
रामायण के सािह य का अ ययन चार चरण म हो सकता है। पहला चरण, दूसरी ई.
तक रहा, जब वा मीिक क रामायण ने अंितम आकार िलया। दूसरे चरण म, दूसरी व
दसव सिदय ई. के बीच, रामायण को आधार बना कर अनेक सं कृत व ाकृत
नाटक व का य रचे गए। यहाँ हम राम को बौ व जैन परं पराओं म थािपत करने का
यास भी देखते ह, परं तु वे पौरािणक सािह य के मा यम से राम को, धरती पर िव णु
के राजसी प म थािपत करने म सफल रहे । तीसरे चरण म, दसव सदी के बाद,
इ लाम के बढ़ते भाव के बीच, रामायण को जन-जन ने अपनी आंचिलक भाषाओं म
रचा। यहाँ विृ भि मयी होती चली गई और राम को भगवान तथा हनुमान को
आदरणीय भ व अनुचर के प म िति त िकया गया। अंततः, चौथे चरण म,
उ नीसव सदी के बाद से, यरू ोिपयन व अमे रक ि से भािवत होने के बाद,
रामायण को याय व औिच य के आधुिनक राजनीितक िस ांत के आधार पर कूट-
मु करते हए, नए िसरे से रचा गया व उसक क पना क गई।
रामकथा सिदय से, मौिखक प से ही सं ेिषत होती रही, यह 500 ई.प.ू से, 200
ई.पत ू क, सं कृत म, अपने अंितम प म आई। इस लेखन का ेय केवल वा मीिक
को िदया जाता है। सारे िव ान ने एकमत से इस का य को उ लेखनीय माना है। इसे
पारं प रक तौर पर, आिद का य अथात थम किवता का नाम िदया गया है। उनके बाद
आने वाले सभी किव, वा मीिक को ही राम कथा का ोत मानते आए ह।
वा मीिक का लेखन, िवचरण करने वाले भाँड के मौिखक वाचन ारा सा रत हआ।
इसे बहत बाद म िलिखत प िदया गया। नतीजतन, इस मौिलक लेखन के दो मुख
सं ह िमलते ह - उ री व दि णी - िजनके आधे से अिधक ोक आपस म एक से ह।
सवस मित से यह माना जाता है िक पहले सात अ याय (राम का बा यकाल) तथा
अंितम अ याय (राम ारा सीता का प र याग) बाद म िलखे गए ह।
ा ण ने सं कृत लेखन का िवरोध करते हए, मौिखक परं परा ( ुित) का ही
अनुमोदन िकया। जैन तथा बौ िव ान ने, मौिखक श द पर लेखन को वरीयता
दान क , िजससे यह अनुमान लगाया जा सकता है िक जैन तथा बौ ारा
रामकथा का पुनलखन सबसे पहले पाली तथा ाकृत भाषा म आया।
1000 ई. के बाद ही आंचिलक रामायण अि त व म आई ं। इनम से पहली, बारहव सदी
म, दि ण से थी, इसके बाद पं हव सदी तक पवू से और अंत म, सोलहव सदी म
उ र से आई।
ि य क अिधकतर रामायण मौिखक ही रह । सारे भारतवष म, ि य ारा गाए गए
गीत म महाका य के वणन क बजाए घरे लू अनु ान तथा संग को ही िवषय
बनाया गया। हालाँिक, सोलहव सदी म, दो मिहलाओं ने रामायण क रचना क :
तेलुगू म मोला व बंगाली म चं बती रामायण िलखी गई।
रामायण के लेखक िविभ न समुदाय से रहे । बु ा रे ड्डी ज़म नदार के कुलीन वग से
थे, बलराम व सरला दास िलिपक व नौकरशाह के समुदाय से थे तथा क बन मंिदर
के संगीत के समुदाय से थे।
मुगल बादशाह अकबर ने, सोलहव सदी म, अपनी जा क सं कृित क शंसा म,
रामायण को सं कृत से फ़ारसी म अनिू दत करने का आदेश िदया और अपने दरबार
के कलाकार से कहा िक वे फ़ारसी शैली म महाका य को िचि त कर। इस कार
स हव , अठारहव व उ नीसव सिदय म राज थान, पंजाब, िहमाचल के राजाओं
ारा रामायण पर आधा रत लघु िच को संर ण दान करने क परं परा िवकिसत
हई।
परू े भारतवष म, ऐसे अनेक नगर व गाँव ह, जो वयं को रामायण के िकसी संग से
जोड़ते ह। उदाहरण के िलए, मुंबई म, बाणगंगा नामक एक तालाब है, कहते ह िक उसे
राम ने अपने बाण से बनाया था।
अिधकतर भारतीय ने रामायण को गीत या कथाओं के मा यम से सुना है अथवा
इसका नाटक य दशन, व पर िच के प म अथवा मंिदर म िभि -िच के प
म देखा है; बहत कम लोग ने इसे पढ़ा भी है हर कला शैली का अपना अनठ ू ा वणन,
भाव कटीकरण तथा ि कोण रहा है।
राम का आरं िभक िभि -अंकन, छठी सदी म, उ र देश के देवगढ़ मंिदर म िमलता
है, िजसे गु काल म थािपत िकया गया। यहाँ उ ह िव णु के अवतार के प म
िदखाया गया है, जो राजवंश से भी संबंध रखते ह।
तिमलनाडू के अलवर ने आरं िभक भि गीत म, राम का भि मयी प तुत
िकया, यह सातव सदी के आरं भ क बात है।
बारहव सदी म, रामानुज ने लोग को भि का अथ समझाया और वेदांत दशन पर
आधा रत सं कृत या याओं के मा यम से राम-भि (राम के प म, ई र के ित
भि ) को िविश प दान िकया। चौदहव सदी म, रामानंद ने उ र भारत म राम-
भि का चार िकया। स हव सदी म, रामदास ने यही महती काय िकया। रामानुज
(राम के छोटे भाई), रामानंद (राम का आनंद) तथा रामदास (राम का दास) आिद
नाम दशाते ह िक वे राम को िकतना मान देते थे।
ित बती िव ान ने आठव सदी से, ित बत म रामायण क कथाओं को दज़ िकया है।
ऐसे ही रकाॅड, पवू म मंगोिलया तथा पि म म, म य एिशया (खोतान) म पाए गए ह।
संभवतः इनका सार रे शम माग से हआ होगा।
रामकथा का सार परू े उपमहा ीप म हआ िकंतु दि ण-पवू एिशया म इसका सबसे
अिधक भाव िदखाई देता है, जहाँ इसे समु ी यापा रय ारा ले जाया गया, जो
कपड़ और मसाल का यापार करते थे। इन दि ण-पवू एिशयाई रामायण म उस
त व का अभाव है, जो भारत के भि आंदोलन से जुड़ा था, संभवतः यह सारण
दसव सदी से पवू हआ होगा, िजसके बाद राम भि आंदोलन के मुख के प म
सामने आए।
लाओस क रामायण प तौर पर बौ से संबंध रखती है, परं तु थाई रामायण
रामाक न वयं को िहंदू मानती है, हालाँिक बकाॅक म मंिदर क दीवार पर मरकत
जिटत बु दशाए गए ह।
चौदहव से अठारहव सदी तक, थाई राजवंश क राजधानी (लटू े जाने तक), अयु या
(अयो या) कहलाती थी और इनके राजाओं के नाम भी राम के नाम पर ही रखे जाते
थे।
रामायण अनेक दि ण-पवू एिशयाई देश क िवरासत का भाग बनी रही जैसे
इंडोनेिशया व मलेिशया, उनके इ लाम को हण करने के बाद भी यह भाव बना
रहा। इस कार उनक रामायण कथाओं म आदम रावण का सामना करता िदखाई
देता है।
येक थानीय भाषा म िकसी एक रामायण का नाम संदभ के तौर पर िलया जाता है
जैसे क बन क तिमल रामायण या एकनाथ क मराठी रामायण, िकंतु इनके
अित र हर भारतीय भाषा म रामायण से जुड़े दजन लेखन उपल ध ह। जैसे उिड़या
म बलराम दास क रामायण के अित र , सरला दास क रामायण (िबलंका
रामायण), उप भंज क (वैदेही-िवलास) तथा िव नाथ कुंिटया क (िबिच रामायण)
िमलती है।
एक क नड़ कहावत के अनुसार, धरती को अपने फण पर संभालने वाले नाग आिद-
शेष, असं य लेखक व किवय के भार तले कराह रहे ह, िज ह ने रामायण का
पुनलखन िकया है।
* ितिथयाँ अनम
ु ान पर आधा रत ह।
तावना
अयो या से अवतरण
दूवा के अंकुर!
उनके केश के अंितम छोर बाहर झाँक रहे ह!
जब सीता धरती म समाई ं तो उनका केवल यही अंश शेष िदख रहा था। अब वे कभी धरती पर
चलती िदखाई नह दगी।
अयो या क जा, बहत देर तक अपने महाराज को शांत व ि थर भाव से घास को सहलाते
देखती रही, उनक आँख म एक अ ुकण तक नह था। वे उनके चरण म िगर कर, उनसे
मायाचना करना चाहते थे। वे उ ह कंठ से लगा कर, सां वना देना चाहते थे। उ ह ने उनका
दय तोड़ा था, वे उनसे मा पाना चाहते थे परं तु वे यह भी जानते थे िक महाराज न तो उ ह
कभी दोष दगे और न ही कभी उ ह परख़गे। वे उनक संतान थे ओर वे, उनके िपता, रघु वंश के
वामी, अयो या के शासक, सीता के राम थे।
“चल, घर चलने का समय हो गया।” राम ने, अपने जुड़वाँ पु लव और कुश के कंध पर अपने
हाथ धरते हए कहा।
घर? या वह वन ही उनका घर नह था? वे सदा वह तो रहते आए थे। परं तु उ ह ने महाराज, उस
अजनबी के साथ तक नह िकया, अभी कुछ देर पहले ही जो यि उनका श ु था, अब उ ह
अपने िपता के प म संबोिधत करना था। परं तु उनके िलए माँ के अंितम िनदश परू ी तरह से साफ़
थे: “वही करना, जो तु हारे िपता कह।” वे अव ा नह करगे। वे भी रघुवंश के सुयो य पु बनगे।
य ही राजसी हाथी, अयो या नरे श और उनके पु क सवारी को, नगर के मु य ार से भीतर
ले कर आया, राम के वानर-अनुचर, हनुमान क ि , म ृ यु के भगवान यमराज पर पड़ी, जो
व ृ के पीछे िछपे, राम को िकसी आशय से ताक रहे थे।
ू धरती पर दे मारी: यह म ृ यु के भगवान के िलए चेतावनी थी िक वे
हनुमान ने झट से अपनी पँछ
अयो या नरे श और उनके प रवार के िकसी भी सद य के िनकट आने का साहस न कर।
यम भयभीत हो कर, अयो या से दूर चल िदए।
परं तु राम के छोटे भाई ल मण, यम से दूर नह रह सके: कुछ ही िदन बाद, जाने िकस रह यमयी
कारणवश, ल मण ने नगर का याग िकया और घने वन म चले गए, वहाँ उ ह ने अपना शीश
काट कर, अपने ाण दे िदए।
हनुमान कुछ समझ नह पाए। उनका सारा संसार चरू -चरू हो रहा था। पहले सीता और िफर
ल मण। इसके बाद िकसक बारी थी? राम? वे ऐसा नह होने दे सकते थे। वे ऐसा होने ही नह
दगे। उ ह ने अयो या के नगर ार से, टस से मस होने से भी इंकार कर िदया। न तो कोई बाहर
जा सकता था और न ही कोई नगर म वेश कर सकता था।
ू ी कह खो गई। वह उनक अंगुली से िफसली और महल के फ़श
कुछ समय बाद ही, राम क अंगठ
क एक दरार म जा िगरी। “ या तुम उसे मेरे िलए िनकाल कर ला दोगे, हनुमान?” राम ने
आ ह िकया।
अपने वामी को सदा स न देखने क इ छा रखने वाले हनुमान ने वयं को एक म खी के
आकार म बदला और उस दरार के भीतर चले गए।
उ ह यह देख कर आ य हआ िक वह कोई सामा य दरार नह थी। वह तो एक सुरंग थी, ऐसी
सुरंग, जो धरती क अतल गहराईय तक जा रही थी। वह उ ह सप के धाम, नाग-लोक तक ले
गई।
य ही उ ह ने वहाँ वेश िकया, दो सप उनके पैर से िलपट गए। उ ह ने उ ह दूर भनका िदया। वे
दो और साँप के साथ वािपस आ गए। हनुमान ने उ ह भी दूर कर िदया। ज दी ही, वे हज़ार सप
से िघर गए, जो उ ह अपने नीचे दबा लेना चाहते थे। अंत म हनुमान ने हिथयार डाल िदए और वे
उ ह घसीट कर, नागराज वासुिक के पास ले गए, वह बहत सारे फण वाले एक नाग थे, िजसके
हर फण पर एक अ ुत र न दमक रहा था।
“नाग-लोक म या करने आए हो?” वासुिक फँु फकारे ।
ू ी लेने आया हँ।”
“म अंगठ
ू ी! म तु ह उसका पता बता दँूगा, अगर तुम मुझे पहले थोड़ी जानकारी दे
“ओह, अ छा वह अंगठ
दो।”
“कैसी जानकारी?” हनुमान ने पछ
ू ा।
“ येक व ृ क जो जड़ धरती म वेश कर रही है, वह एक ही नाम बुदबुदा रही है: सीता। वे
कौन ह? या तुम जानते हो?”
“वे तो उस यि क ि या ह, िजनक अंगठ
ू ी क तलाश म म यहाँ आ गया।”
“तो मुझे उनके बारे म बताओ। और मुझे उनक ि या के बारे म भी बताओ। और म तु ह अंगठ
ू ी
का पता बता दँूगा।”
“सीता व उनके राम क गाथा सुनाना, मेरे िलए तो इससे आनंददायक काय कोई हो ही नह
सकता। म आपको जो भी बताऊँगा, उसम से अिधकतर तो मेरे िनजी अनुभव ह। कुछ मने दूसर
के मुख से सुने ह। इन सभी कथाओं म सब स य है। इसे परू ी तरह से कौन जानता है? व ण के
हज़ार ने ह; इं के सौ ने ह; और मेरे, केवल दो ने ह।”
नाग-लोक के सभी सप ने हनुमान के आसपास घेरा डाल िदया, वे उनक कथा सुनने को
ू या चं नह होता और न ही उनके पास अि न है। वासुिक के फण
उ सुक थे। नाग-लोक म सय
पर चमक रहे सात चमक ले र न से ही काश िमलता है। परं तु वही पया था।
सीता का संबंध सदा से ही वन पित से जोड़ा जाता है, िवशेष तौर पर घास से।
कुश लंबी और तीखी घास है, जो वैिदक अनु ान का अिनवाय अंग है। य का
आयोजन करने वाले, इस घास से बने आसन पर बैठते ह और अपनी अंगुली म कुशा
से बनी अंगठ ू ी धारण करते ह। इसे अि न लाने-ले जाने तथा अहाते म सफ़ाई के िलए
झाड़ के तौर पर भी योग म लाया जाता है। पुराण इसका संबंध ा के बाल , िव णु
के बाल (जब उ ह ने क छप अवतार िलया था) तथा सीता के बाल से जोड़ते ह।
राम रघुवंश या रघुकुल से संबंध रखते ह। तभी उ ह राघव कहते ह, जो एक रघु या
राघव ह, सभी रघुओ ं म सव े । रघु राम के पड़-पड़ दादा थे तथा सय ू वंशी राजाओं
से संबध रखते थे, िजसक थापना इ वाकु नरे श ारा क गई, जो अपने नैितक
मू य के पालन के िलए िव यात थे।
म ृ यु के भगवान यम को एक ऐसा देव माना जाता है, जो धरती पर िकसी का जीवन
अंत हो जाने पर यह नह देखते िक वह यि राजा था या रं क। वे िबना िकसी
भेदभाव के उसे यमलोक ले जाने आ जाते ह। माना जाता है िक वे हनुमान के
अित र और िकसी से भयभीत नह होते।
हनुमान एक वानर ह। वानर मनु य के चंचल और याकुल मन का तीक भी है। वे
बाधाओं को दूर करते ह (संकट मोचन), म ृ यु भी उनसे भय खाती है, इस कार वे
िहंदू देवगण म सवािधक लोकि य संर क देव के प म जाने जाते ह।
थलू प से, िहंदू िमथक य जगत के तीन तर ह: आकाश म देव , अ सराओं और
गंधव का वास है; पाताल लोक म असुर और नाग का राज है; तथा धरती पर मानव,
रा स तथा य वास करते ह। ये तीन लोक कहलाते ह; सबसे पहले वग-लोक,
सबसे नीचे पाताल-लोक तथा इनके म य म भ-ू लोक आता है।
फणधारी नाग मनु य का प भी ले सकते ह, माना जाता है िक इनके फण पर र न
पाए जाते ह। इन र न म अनेक जादुई िवशेषताएँ पाई जाती ह, िजनके बल पर वे
इ छा परू ी कर सकते ह, मतृ क को जीवन-दान दे सकते ह, रोगी को आरो य दान
करते हए, सौभा य व संपदा दे सकते ह।
पारं प रक तौर पर, रामायण को सदा अनु ािनक संदभ म बाँचा गया। उदाहरण के
िलए, आठव सदी म, भवभिू त का नाटक ‘महावीर च रत’, मंिदर म या िशव उ सव के
िदन म ही िदखाया जाता था।
जन ुित के अनुसार हनुमान ही राम क कथा सुनाते ह। कई बार इसे ‘हनुमान
नाटक’ भी कहते ह।
चारी वानर हनुमान, को अनेक परं पराओं म िशव का प, िशव के पु या िशव के
प म िदखाया जाता है। नाग उवरता का मतू प ह, इसिलए उनका भगवती से
िनकटतम संपक है।
पि मी िवचारधारा रामायण को ऐितहािसक और भौगोिलक संदभ म रखने को
वरीयता देती है: इसे िकसने िलखा, कब और कहाँ िलखा? पारं प रक भारतीय सोच,
रामायण को समय और काल क सीमाओं से मु रखना पसंद करती है। िव ान के
राम समय और थान क सीमा से बँधे ह। भ के राम, मनु य के मन म ह इसिलए
वे असीम और शा त ह। इस िवषय म, राजनेता िनःसंदेह एक अलग ही काय-सच ू ी
रखते ह।
खंड एक
ज म
‘वे धरती से ज म और ऋिषय के बीच पली-बढ ’.
हल-रे खा म प र य िशशु
खेत म बीजारोपण का समय हो गया था। कँटीली तार खेत को अर य से अलग कर रही थ ।
उनके बाहर कृ णमग
ृ मु भाव से चरते थे; खेत के भीतर िकसान यह तय करते िक कौन सी
फ़सल थी और या खरपतवार था!
िकसान ने अपने राजा जनक को आमंि त िकया िक वे सोने के हल से, खेत को सबसे पहले
जोत। घंट , ढोल तथा शंख क मधुर विन के बीच, महाराज ने धरती म हल चलाना आरं भ
िकया। गहरे आकाश सी अंधेरी, मुलायम और नम िम ी हल चलाने से, हल-रे खा बनाने लगी। जब
हल क रे खा वयं ही परू ी ढता और मज़बतू ी के साथ िव तार पाने लगी, तो महाराज आ त
हए और िकसान स न हो उठे ।
अचानक महाराज क गए। हल-रे खा म एक सुनहरा हाथ िदखाई िदया : न ही अंगुिलयाँ घास
क तरह ऊँची उठी हई थ , मानो सय ू परे हटाई और उसके
ू क िकरण से बनी ह । जनक ने धल
भीतर उ ह नम व कोमल माटी के नीचे से एक िशशु क या िमली, व थ व उ वल, आनंद के
साथ मु कुराती हई, मानो अपने िमलने क ही ती ा कर रही हो।
या वह कोई प र य क या थी? नह , िकसान ने कहा। उ ह परू ा िव ास था िक वह उनके
िनःसंतान राजा के िलए धरती-माँ क ओर से उपहार था। पर वह तो उनके बीज का फल नह था
- वह उनक पु ी कैसे हो सकती थी? जनक बोले, िपत ृ व िकसी बीज से नह , दय के भीतर
अंकु रत होता है।
जनक ने नवजात क या को बाँह म भर िलया, जो उनके पास आते ही ख़ुशी से हलस उठी।
उ ह ने उसे अपने दय से लगाते हए, घोषणा क , “यह धरती क पु ी, भिू मजा है। आप इसे
िमिथला क राजकुमारी, मैिथली या, िवदेह क युवती वैदेही अथवा जनक के िनकट रहने वाली
जानक के नाम से पुकार सकते ह। म इसे सीता कहँगा, वह सीता, जो हल जोतते समय, धरती
म बनी लक र म पाई गई, वह सीता, िजसने मुझे अपने िपता के प म चुना।”
वहाँ उपि थत येक यि के दय म उ लास उमड़ पड़ा। वह अनु ान वाकई सफल रहा।
िनःसंतान िपता, एक पु ी के िपता बन कर महल लौटे। इससे े फ़सल कौन सी हो सकती थी।
िवदेह आधुिनक िबहार (िमिथला ांत) म ि थत है। िजससे पता चलता है िक गंगा का
मैदानी इलाक़ा इसका आधार था।
वैिदक ोक म पशुपालन तथा कृिष संबंधी गितिविधय का प रचय िमलता है। हल
जोतने का यह अनु ान, वैिदक य वाजपेय से गहरा संबंध रखता है, जो िक ‘वाज’
या भोजन के िलए िकया जाता था।
हल-रे खाएँ कृित म नह पाई जात । ये कृिष-कम तथा मानव स यता का संकेत देती
ह। इस तरह सीता कृित के पािलता बनने तथा मानव स यता के उदय होने का मत ू
प बनती ह।
वेद म, सीता को उवरता क भगवती के प म, मा यता दी गई है।
जनक एक वंश का नाम है। पहले जनक िनिम थे। उनके पु िमिथ थे, िज ह ने
िमिथला नगरी बसाई।
महाभारत के रामोप यान म, सीता जनक क जैिवक पु ी ह। अनेक आंचिलक
सं करण म, सीता एक संदूक म िमलती ह या भ-ू देवी वयं आकर, जनक को वह
संतान उपहार म देती ह। ऐसे भी अनेक सं करण उपल ध ह जैसे जैन वासुदेव िहंदी
तथा क मीरी रामावतार-च रत िजनम सीता, रावण क पु ी ह, उ ह सागर म फका
गया और वे वहाँ से जनक तक पहँच ।
आनंद रामायण म, िव णु प ा नामक राजा को एक फल देते ह, िजसम एक क या
है, जो ल मी का अवतार है। उसका नाम प ावती रखा गया और वही सीता थ ।
सीता का ज म माँ के गभ से नह हआ इसिलए वे अयोिनजा कहलाती ह। ऐसी संतान
िवशेष मानी जाती है तथा म ृ यु को भी वश म कर सकती है।
कोई तकवादी कह सकता है िक सीता एक प र य ा िशशु थ ।
िबहार म सीतामढ़ी नामक िज़ला, उस खेत से संबंध रखता है, जहाँ जनक ने हल
चला कर, सीता को पाया था।
शांता नामक पु ी
कौशल म अयो या नरे श, दशरथ क भी एक पु ी थी। उसका नाम शांता था, वह बहत ही शांत
वभाव क थी, परं तु वह िपता के मन को शांित नह दे सक , वे अपने िलए पु चाहते थे।
तो दशरथ कैकेय के उ र म गए और अ पित नरे श से उनक पु ी का हाथ अपने िलए माँगा।
यह भिव यवाणी क गई थी िक राजक या एक यश वी पु को ज म देगी। राजा ने आपि क ,
“कौश या पहले से आपक प नी है और एक पु ी को ज म दे चुक है। अगर मेरी कैकेयी आपसे
िववाह करे गी तो वह केवल छोटी रानी ही बन कर रह जाएगी।”
“परं तु यिद उसने मेरे पु को ज म िदया तो उसका पु राजा होगा वह राजमाता कहलाएगी,”
दशरथ ने अपनी ओर से अ पित को आ ासन िदया और उ ह ने इस िववाह ताव के िलए
हामी भर दी।
दुभा यवश, कैकेयी ने िकसी संतान को ज म नह िदया। दशरथ ने सुिम ा नामक क या से
तीसरा िववाह िकया, परं तु वह भी संतान को ज म नह दे सक ।
दशरथ हताश हो उठे । अब वे अपना राजमुकुट िकसके िसर पर रखगे? वे मत ृ क क नगरी म,
वैतरणी नदी के पार, अपने पवू ज को या मँुह िदखाएँ गे, जब वे उनसे पछ
ू गे िक या वे अपने
पु को धरती पर छोड़ कर आए ह, जो उ ह धरती पर पुनः ज म पाने म सहायक होगा, तो वे
या यु र दगे?
तभी, अंग नरे श रोमपाद ने उनसे आ कर कहा, “मेरे रा य म इं के कारण ही सख
ू े क सी
ि थित बन गई है। आकाश के शासक, वषा के देव इं को, मेरे जाजन म से एक, ऋ य ंग के
बलशाली ऋिष पु िवभांडक से भय सता रहा है। मेरा मानना है िक मेरे रा य म अकाल का
कारण बनने वाले ऋ य ंग ही आपके िनःसंतान होने का कारण ह। यह संकट तभी समा होगा,
जब मेरी पु ी ऋिष को लुभा कर, उ ह िकसी कार गहृ थ जीवन यतीत करने के िलए मना ले,
इस कार इं क भी संतुि हो जाएगी। पर मेरी कोई पु ी नह है। दशरथ, या म आपक पु ी
को गोद ले सकता हँ। अगर वह अंग रा य म विृ लाने म सफल रही, तो म परू ा यास क ँ गा
िक ऋ य ंग इं को िववश कर द िक वे आपको पु - ाि का वरदान द।”
अचानक, पु ी ही दशरथ क सम या का समाधान बन गई।
शांता क कथा महाभारत तथा अनेक पुराण म आती है। कुछ सं करण म, जैसे
वा मीिक रामायण क दि णी पांडुिलिप म, वे दशरथ क पु ी ह, िज ह रोमपाद ने
गोद िलया था तथा दूसरे सं करण म, वे रोमपाद क पु ी ह और उनका दशरथ से
कोई नाता नह है। कथा यह प तौर पर नह बताती िक वह कौश या क पु ी है
अथवा नह ।
उप भंज के उिड़या वैदेही-िबलास म, जरता ारा भेजी गई गिणकाएँ ऋ य ंग को
लुभा कर, नाव पर ले आई ं, जहाँ उ ह ने य रचाया, िजससे अंग देश म वषा हई।
दशरथ ने स न हो कर, अपनी पु ी शांता उ ह स प दी और उ ह कौशल आने का
िनमं ण िदया तािक वे उनक पु ाि के िलए य संप न करवा सक। यह कथा,
ंगा रकता तथा गिणकाओं के साथ सहज यवहार को दशाती है, जो उन िदन तटीय
ओिड़शा के मंिदर क देवदासी सं कृित से जुड़ा है, यह िवशेष तौर पर, पुरी के
जग नाथ मंिदर से संबंध रखता है। तुलसीदास ने अवधी म रामच रत मानस क
रचना क , जो भि सािह य था, उसम कह भी ऋ य ंग का उ लेख नह िमलता।
सं कृत क अ या म रामायण म, त वमीमांसा पर बल िदया गया है, ऋ य ंग का
उ लेख तो है, िकंतु उ ह लुभाने या बहलाने क कथा नह आती।
पु ष- धान समाज म, जब िकसी युगल दंपि के यहाँ संतान नह होती, तो पहले
प नी को दोषी ठहराया जाता है और िफर पु ष के िवषय म िवचार िकया जाता है।
िहंदू पौरािणक गाथाओं म, भिू म क उवरता का संबंध, उस थान पर रहने वाल क
उवरता से जोड़ा जाता रहा है, िवशेष प से, वहाँ के राजा से! इस तरह यह कथा वषा
न होने का कारण, राजा ारा पु को ज म न दे पाने क अ मता से जोड़ती है।
यह कथा आ म संबंधी अ यास का संबंध अकाल से जोड़ती है। चय वषा पर बुरा
भाव डालता है। इससे आ म संबंधी अ यास के ित उभरते असंतोष का प रचय
िमलता है। यहाँ तक िक िशव जैसे साधु को भी, भगवती ारा शंकर नामक गहृ थ म
बदल िदया जाता है तािक, पवत का िहम िपघल कर, गंगा नदी को ज म दे सके और
िजसके िकनार पर स यता िवकिसत हो।
ऋ य ंग का अपहरण
िवभांडक ऋिष व मुिन कहलाते थे य िक वे जो देख सकते थे, वह िकसी दूसरे यि को नह
िदखता था। वह जानते थे िक भोजन अक म बदलता है और िफर र , माँस, नायु, हड्िडय और
म जा म बदलने के बाद बीज का प लेता है। जब बीज का याग िकया जाता है, तो नए जीव
का ज म होता है। मनु य तथा ख़ासतौर पर पु ष के अलावा, कोई भी जीिवत ाणी बीज के इस
याग क ि या को अपने वश म नह कर सकता।
जब बीज शरीर म ही बना रहता है, तो यह ओजस् म बदल जाता है। ओजस् को तप या के
अ यास से तप म बदल सकते ह। तप मन क वह अि न है िजसे यान व मनन से पैदा िकया
जाता है। तप से ही िसि तथा कृित को वश म करने क शि आती है : तब देव को भी िववश
िकया जा सकता है िक वे वषा कर, िनःसंतान ि य को संतानवती तथा नपुंसक पु ष को
वीयवान बना सकते ह, पानी पर चल सकते ह और पंख के िबना ही उड़ सकते ह। िवभांडक तप
करने, तप के मा यम से िसि पाने तथा कृित को वश म कर, उसे अपने संकेत पर नचाने के
िलए कृतसंक प थे।
इं को भय था िक कह िवभांडक अपने योजन म सफल हो गए, तो वे उनके िव अपनी
िसि का योग कर सकते ह। उ ह ने िवभांडक क तप या भंग करने के िलए वग क एक
अ सरा को भेजा। इस अ सरा को देखने भर से ही िवभांडक अपनी इंि य को वश म नह रख
सके। उनके न चाहने पर भी, शरीर से वीय िनकला और घास पर आ िगरा। उसे एक कबतू री ने
खा िलया। वह वीय इतना ओजवान था िक वह गभवती हो गई। उसने एक ऐसे बालक को ज म
िदया, िजसके िसर पर स ग थे, वही बालक ऋ य ंग के नाम से जाना गया।
िवभांडक ऋ य ंग को अपनी िनजी असफलता के तीक के प म देखते थे, उ ह ने इसी ेष
और मह वाकां ा के बीच, उसे ि य क संगित व जानकारी से दूर रखते हए, पाल-पोस कर
बड़ा िकया। उ ह ने अपने आ म के बाहर एक रे खा ख च दी थी, कोई भी मादा प उस रे खा के
भीतर, उनके पु के पास नह आ सकता था : यहाँ तक िक कोई गाय, घोड़ी, हंिसनी, कबत ू री
या कोई भी मादा जीव उस रे खा को छू नह सकता था। वहाँ कोई पु प नह उगते थे, वहाँ कोई
पु परस अथवा महक नह थी, वह एक वं या धरती थी। िवभांडक के आ म के िनकट आने वाली
कोई भी ी, उसी समय आग क लपट म जल कर भ म हो जाती। यही कारण था िक इं
ऋ य ंग को मोिहत करने के िलए, वग क िकसी अ सरा को नह भेज पा रहा था।
कुिपत इं ने, अंग रा य के िनकट आने से भी मना कर िदया, जहाँ ऋ य ंग का आ म ि थत
था। उसका कहना था िक पहले अंग नरे श को उसक इस सम या का हल िनकालना होगा।
अकाल क मार से पीिड़त रा य क दशा को देखते हए, अंगपाद ने अपने रा य क ि य से
मदद क अपे ा क िकंतु कोई भी पु ष अपनी प नी, बहन या पु ी का जीवन दाँव पर लगाने
को तैयार नह हआ। यहाँ तक िक राजा क रािनय , रखैल और दरबा रय ने भी इस बारे म
मदद करने से इंकार कर िदया। यही कारण था िक अंगपाद शांता को अपनी पु ी के प म पाना
चाहते थे, जो न केवल अपनी सुंदरता बि क अपनी बुि मता और साहस के िलए भी जानी जाती
थी।
शांता ने िदन म कुछ घंट तक ती ा क तािक िवभांडक वन से भोजन एक करने के िलए,
आ म से बाहर चले जाएँ । उसी अवसर का लाभ उठाते हए, वह आ म के ार पर जा खड़ी हई
और ऋ य ंग को आकिषत करने के िलए ेम और आवेग से भरे गीत गाने लगी। युवा तथा
िन कपट मुिन के िलए यह य अचरज से भरा था। वह यही सोचने लगा िक वह कौन सा जीव
थी। पहले तो वह भयभीत हआ िकंतु िफर उसे गीत म आनंद आने लगा, और अंत म उसने बात
करने का साहस जुटा ही िलया।
दशरथ के चार पु
रा य म भरपरू वषा हई। चार ओर फूल िखले और मधुमि खयाँ घम
ू ने लग । सभी ािणय म
चेतना का संचार हआ। अंग रा य म चार ओर खुशहाली छा गई। रोमपाद ने अपना वचन िनभाते
हए, ऋ य ंग से िनवेदन िकया िक वे दशरथ को पु ाि म सहयोग दान कर। ऋ य ंग ने
त काल हामी भर दी। कृित के सभी रह य म िन णात ऋिष ने एक य का आयोजन करने
का िनणय िलया।
ऋ य ंग ने दशरथ को, य का यजमान घोिषत िकया और य क तैयारी करने लगे। उ ह ने
अि न जला कर, देव को बुलावा देने के िलए शि शाली मं का उ चारण िकया। उ ह ने
दशरथ को िनदश िदए िक िजन देव को य का भाग पाने के िलए बुलाया जा रहा है, उ ह
िवशु घी से आहित दी जाए। जब भी दशरथ आग म घी क आहित देते, तो उ ह उसके साथ
‘ वाहा’ कहने का भी िनदश िदया गया, तािक देव को मरण करवाया जा सके िक वे उ ह
य भाग दे रहे थे। जब देव संतु हए, तो ऋ य ंग ने उनसे िवनती क िक वे भी दशरथ क
बल त ृ णा शांत कर। देव को आहित देने तथा िवनती करने का यह म तब तक जारी रहा,
जब तक वे वयं य क अि न से हिव य ले कर सामने नह आ गए, उसे हण करने के बाद
दशरथ क पि नयाँ गभ धारण करने यो य हो जात ।
दशरथ ने उस य साद का आधा भाग कौश या को िदया, िजनका वे बहत स मान करते थे,
आधा भाग कैकेयी को िदया, िजनसे उ ह बहत नेह था। कौश या ने अपने भाग म से एक
चौथाई सुिम ा को दे िदया तािक उ ह यह न लगे िक उ ह उपेि त िकया गया है। कैकेयी ने भी
ऐसा ही िकया। फल व प, कौश या ने राम, कैकेयी ने भरत तथा सुिम ा ने ल मण तथा
श ु न नामक जुड़वाँ पु को ज म िदया।
इस कार, दशरथ क तीन पि नयाँ, पु ी शांता के ताप से ही चार पु क माता कहलवाने
का गौरव पा सक ।
सल
ु भा और जनक
“आपको ऋ य ंग को िमिथला आने का िनमं ण देना चािहए।” जनक को ायः यह परामश
िमलता ही रहता था। सीता के आगमन के बाद, उनक प नी सुनन ै ा ने एक पु ी को ज म िदया,
िजसका नाम उिमला रखा गया और जनक के ाता, कुश वज के यहाँ दो पुि य ने ज म पाया,
िजनके नाम मांडवी और ुतक ित रखे गए। िवदेह भिू म म, दो भाईय के घर म चार पुि याँ थ
िकंतु पु एक भी नह था!
जनक यु र देते, “धरती जनक को वही देती है, िजसे पाने का वह अिधकार रखता है। अि न
दशरथ को वही देती है, िजसे पाने का वे अिधकार रखते ह। मने अपने िलए भा य म पुि य को
चुना है। उ ह ने अपने िलए पु क इ छा को साकार िकया है।”
यह समाचार सुलभा नामक ी के पास भी पहँचा। वे संुदर पोशाक पहन, मनोहारी प बना
कर, महाराजा के पास पहँची और उनसे एकांत म िमलने क इ छा कट क । सभी यह सोचने
लगे िक वे ऐसा य करना चाहती थ ?
सुलभा ने महाराज क अ यमन कता को भाँपा तो बोल , “यह तो िवदेह क धरती है अथात, देह
से परे । मुझे लगा था िक इस धरती के नरे श मेरी देह से अिधक मेरे मन को मान दगे। पर शायद
मेरा अनुमान ग़लत था।”
जनक ऐसा आ ेप सुन कर लि जत हो उठे ।
सुलभा बोल , “मनु य िविश होते ह। हमारे पास एक मन है, जो क पना कर सकता है। इसी
क पना के मा यम से, हम िकसी भी तरह क गित के िबना ही, समय और अंत र क या ा
कर सकते ह, उन सभी प रि थितय क भी सौगंध खा सकते ह, जो वा तव म कोई अि त व
नह रखत । यही एक गुण मानवता को सारी कृित से अलग करता है। ऐसा मन ही मनस्
कहलाता है, तभी मनु य को मानव कहा गया है। आप पु ष माँस-म जा के साथ मानव ह, म
ी माँस-म जा के साथ मानव हँ। हम दोन ही इस संसार को अलग-अलग ि से देखते ह,
उसका कारण यह नह िक हमारे शरीर अलग-अलग ह, ऐसा इसिलए है िक हम अलग-अलग मन
रखते ह। आप इस संसार को एक ि कोण से देखते ह और म दूसरे ि कोण से देखती हँ।
परं तु हमारे मन का िव तार हो सकता है। म आपके ि कोण से संसार को देख सकती हँ।
आपको भी मेरे ि कोण से संसार िदखाई दे सकता है। िवभांडक तथा ऋ य ंग जैसे लोग, अपने
मन का िव तार करने के थान पर, अपनी तप या तथा य के मा यम से, कृित को अपने
वश म करने का य न करते ह। वे संसार को उसके उसी प म वीकार नह करते, जैसा वह
है। य ? जनक, मनु य के मन का पता कर, आप इस देह और इस देह के आसपास बसे संसार
को कह बेहतर प म समझ सकगे, यही वेद है, यही ा है।”
जनक ने इन श द से े रत हो कर, आयवत के सभी ऋिषय को अपने यहाँ आने का िनमं ण
िदया तािक वे वेद के ान का चार- सार कर सक। वे गुहाओं, पवत-िशखर , निदय और
सागर के िकनार से होते हए, जनक के दरबार तक आए तािक आपस म िवचार का आदान-
दान करने के अित र संसार को देखने के अ य उपाय भी तलाश कर सक। आ मीय
वातालाप क यह सभा, जो िक मानवता क ि का िव तार करने म सफल रही, इसे उपिनषद
के नाम से जाना गया।
उपिनषद
सीता ने भी अपने िपता के इस स मेलन म िह सा िलया। पहले वे उनके कंध पर बैठ कर जात ,
िफर गोद म बैठने लग और अंततः इतनी बड़ी हो गई ं िक उस सभा म अपने िपता के साथ
शािमल होने लग , िजसम सकड़ साधु-संत, मुिन आिद िवराजमान होते। अ ाव , गाग तथा
या व य जैसे नाम भी वहाँ उपि थत होने वाले िवशेष अितिथ-गण म से थे।
जब अ ाव अभी माता के गभ म ही थे, उ ह ने वेद के िवषय म अपने िपता के मत को
संशोिधत िकया और उ ह ने कुिपत हो कर अपने अज मे पु को शाप िदया िक ज म से ही
उनका शरीर आठ जगह से टेढा होगा। इस कार उनका नाम अ ाव पड़ा अथात ऐसा यि
जो आठ जगह से व हो। अ ाव जनक से बोले, “मुझे इस बात का एहसास तक नह हआ
और म अपने ही िपता के िलए भय का कारण बन गया। पशु अपनी देह क र ा के िलए लड़ते ह।
मनु य अपने िवषय म क गई क पना क र ा के िलए शाप देते ह। हम या ह और दूसर को
हम िकसी ि से देखना चािहए, इस धारणा क क पना ही, अहं कहलाती है। अहं िनरं तर
बाहरी जगत से अपने िलए पुि चाहता है। जब वह उसे नह िमलती तो उसके भीतर असुर ा
ज म लेती है। अहं के भाव म आ कर ही मनु य व तुओ ं का सं ह करता है; हम लगता है िक
उन व तुओ ं के मा यम से लोग हम हमारे मनोवांिछत का पिनक प म देखने लगगे। जनक,
यही कारण है िक लोग अपने ान, संपदा व स ा का दशन करते ह। अहं यह इ छा रखता है
िक उसे देखा व सराहा जाए।”
गाग उन िवदुिषय म से थ जो हर चीज़ के बारे म सच
ू क नज़ रया रखती थ । “इस संसार
का अि त व य है? वह या है, जो आकाश और धरती को एक सू म िपरोता है? हम क पना
य करते ह? हम वयं क पना से आनंिदत य होते ह? दशरथ के दय म पु क बलवती
इ छा य थी? जनक अपनी पुि य से ही संतु य ह? दो नरे श आपस म इतने अलग य
ह?” यह सुन कर बहत से मुिनय को ोध आ गया और वे उनसे बोले, “अगर आप इतने
पछ
ू गी तो आपका िसर कट कर यह िगर जाएगा।” परं तु गाग अपने हठ पर अिडग रह । वे अपने
के उ र चाहती थ । उ ह अपने िसर के कट कर िगरने क परवाह नह थी; वे अपने िलए
एक और नया िसर उगा लेत , जो पहले से कह अिधक बुि मान होता।
या व य ने अपने ही गु के ित िव ोह कर िदया, िज ह ने के उ र देने से इंकार कर
िदया था। उ ह ने यह वीकार नह िकया िक तप या और य का उ े य यही है िक कृित को
मानवता का आदेश मानने के िलए िववश कर िदया जाए। उ ह ने सब कुछ देखने वाले, सय ू -देव
से इन के उ र चाहे । सय
ू ने उ ह बताया िक िकस कार म ृ यु के भय से पौधे पोषण क
इ छा रखते ह और सय ू के काश तथा जल क ओर उगते ह। म ृ यु का भय ही पशुओ ं को
चरागाह क ओर भागने तथा िशकार करने को िववश करता है। इसके साथ ही, जीवन क चाह
ही पशुओ ं को िछपने तथा िशकारी से बच कर भागने को िववश करती है। परं तु मनु य का भय
अनठ ू ा है; क पना से प रपू रत हो कर, अपने िलए अथ व मू य चाहता है। “ या म कोई मोल
रखता हँ? मेरा मोल कैसे बन सकता है?”
इस कार, यह सारा ान पा कर, या व य ने मनस् के िवषय म अपने ान को जनक के
दरबार म सबके बीच बाँटा। “ येक मनु य अपनी क पना से अपना तथा संसार का िनराला प
रचता है। इस कार येक यि अपने ही अहं का सजक है, ा है। अहं ाि म, म ही
हँ। तत् वम् अिस, तुम वही हो। हम अपनी क पना म भय के िम ण से अहं को ज म देते ह।
तप या और य ऐसे दो साधन ह, जो हम मन क गाँठ खोलने, भय से उबरने तथा आ मा यानी
अपने स चे अि त व क तलाश करने म सहायक होते ह।”
“मुझे आ मा के िवषय म िव तार से जानकारी द, महा मन्।”
“आ मा एक ा ण है, परू ी तरह से िव ततृ मन। आ मा कभी म ृ यु से नह डरती और न ही जीने
क आस रखती है। यह अपने िलए कोई वै ता नह चाहती। यह संसार के ित वैसा ही सा ी भाव
रखती है, जैसी यह है। आ मा ही ई र है, इसे िशव के नाम से भी जाना जाता है, जो तप या
करते ह तथा आ मसंतु तथा आ मिनभर ह। आ मा भगवान है, िजसे िव णु के नाम से भी जाना
जाता है, वे येक जीव के पोषण के िलए य रचाते ह, जबिक उ ह वयं इस पोषण क कोई
आव यकता नह है।”
“ई र करे िक तब तक ा के िसर का पतन होता रहे , जब तक वे ा ण को न पा ल।”
अ ाव बोले।
“इस काय को कौन आगे बढ़ाएगा?” गाग ने पछ
ू ा
“ ा ण, वेद के ान को ह तांत रत करने वाले,” या व य बोले।
वैिदक ान ोक म समािहत है, िजसे सं कृत भाषा म रचा गया है। सं कृत भाषा
का वरो चारण तथा ोक के पाठ से जुड़े अनु ान को परू ी तरह से लेखन म नह
उतारा जा सकता इसिलए वेद के ान को वािचक परं परा से लोग तक पहँचाया
गया। िजस समुदाय को यह काय स पा गया, उ ह ा ण कहा गया। वे अपना सारा
िदन इस ान को कंठ थ करने तथा उसे लोग को सुनाने म ही िबताते थे। इस
कार वे इन गाथाओं के वाहक बन, बहत मह वपण ू माने जाने लगे। िकसी ा ण
क ह या को बहत बड़ा पाप माना जाता था य िक इससे वैिदक ान क हािन होती
थी। ा ण ने वैिदक ोक व अनु ान को जन-साधारण तक पहँचाने का दािय व
संभाला, वे इनके िव े षण या वािम व का दावा नह रखते थे। समय बीतने के साथ,
वे अपने परम पद के साथ समाज पर वच व रखने लगे तथा अपने िलए उपािधय का
दावा करने लगे। यह इितहास क िवडं बना थी िक ान के वाहक ही अपने मन का
िव तार करने म अ म रहे , और अपने िलए दूसर पर शासन करने के सामा य पथ
का चयन कर िलया।
उपिनषद काल 1000 ई. प.ू से 500 ई. प.ू रहा, यह भारत म महान बौि क उ साह
का काल रहा। इस दौरान मण तथा आ म संबंधी यव था उ प न हई, िजसम य
क बजाए तप को य िदया गया। बौ तथा जैिनय क मण यव था सबसे
अिधक सफल रही। इन यव थाओं ने िहंदु व को भी िववश िकया िक वह वयं को
नए िसरे से प रभािषत करे और उस अंतराल को भरने क चे ा करे , जो इसके
बौि क व सामािजक प के बीच आ गया था।
िमिथला म आयोिजत उपिनषद सभा को, याग, उ जैन, नािसक तथा ह र ार म होने
वाली सभाओं और एक ीकरण का सं थापक माना जाता है, जहाँ गहृ थ तथा साधु-
समाज आपस मं िमल कर, लौिकक तथा पारलौिकक िवषय पर चचा करते ह।
अ ाव क कथा महाभारत म आती है। वे अ ाव गीता के लेखक ह।
गाग तथा या व य का संग बहृ दार यक उपिनषद म आता है। योग या व य
इन दोन के बीच का वातालाप है। कुछ अ य कथाओं म, गाग या व य को चुनौती
देती ह; जबिक कुछ कथाओं म इ ह उनक प नी के प म दशाया गया है।
िहंदू पुराणशा म ‘शीश काटने’ का पक बार-बार आया है। िजसका अथ यह है िक
मन को एक झटके के साथ बोध पाने के िलए िववश िकया जाए।
उपिनषद क कथाएँ कई सिदय से कही-सुनी जाती रही ह और इनम अनेक जनक
का संदभ िमलता है, संभवतः यह संर क राजाओं का परू ा वंश था। इनम से सीता के
िपता जनक का िवशेष मह व है, िजनक राजधानी िवदेह थी। एक ावान मनु य,
जो सारी भौितक व तुओ ं के मोह से परे थे, उ ह ने उवरता, वन पित वधन तथा
भौितक चुरता से जुड़ी भगवती का पालन-पोषण िकया। जनक कोई नह जो
केवल अहम् रचते ह; वे एक स चे ा ण ह, जो अहम् से परे जा कर, ा ण को पाना
चाहते ह और उनक पु ी भी ऐसी ही है।
सन ै ा का रसोईघर
ु न
सभी मुिन आ त हो गए िक उपिनषद म वेद का सार समाया था। जनक के दरबार म हई
िववेकस मत चचाओं को वेदांत का नाम िदया गया। जनक ने सभी ऋिषय को अनेक गौएँ दान
क । “इनका दूध आजीवन आपका आहार बने। इनके गोबर से आप आजीवन ई ंधन ा कर।
आपने मुझे सर वती, ा दान क ; म आपको ल मी, संपदा का दान देता हँ,।” िवदेह नरे श ने
स नता के साथ कहा।
या व य अपनी गौ दि णा को अपनी दोन पि नय मै ेयी और का यायनी के पास ले गए।
मै ेयी अपने िलए गौएँ नह चाहती थ ; उनक इ छा थी िक उ ह उपिनषद से ा ान संपदा
दान क जाए। का यायनी ने उन गौओं को रख िलया और बोल , “बुि मान को भी तो अंततः
आहार व भोजन क आव यकता होती ही है।”
यह सुन कर सीता सोचने लग , “िमिथला म िनवास करने वाले सकड़ ऋिष-मुिनय के भोजन
का बंध कहाँ होता था, उनके सोने क यव था कौन देखता था और जब वातालाप के दौरान
उनके कंठ व मुख शु क हो जाते, तो उनके र पा म जल कौन भरता था?
िववाह
‘जनक ने उनसे कहा िक उ ह िववाह से स नता पाने क
आकां ा रखने क बजाए िववाह को स नतापणू बनाना चािहए।’
िनयम का आरं भ
पशु अपना साथी पाने के िलए ित ंदी बनते ह और अपने े क र ा के िलए लड़ते ह। मनु य
को ऐसा नह करना होता। िनयम इसी बात को सुिनि त करते ह। पशु उस मा ा से अिधक नह
खाते, िजससे अिधक उ ह आव यकता है परं तु मनु य ऐसा करते ह। िनयम इ ह पर वजना
लगाते ह।
बहत समय पहले क बात है, उन िदन कोई िनयम नह होते थे। वेण नामक यि ने धरती से
उसक सारी संपदा व संसाधन का हरण कर िलया। िनराश हो कर, धरती ने गाय का प धरा
और वहाँ से अलोप हो गई। उस समय ऋिषय ने घास का एक ितनका िलया, मं का उ चारण
िकया और उस घास को एक ेपा म बदल िदया, उसे वेण क िदशा म छोड़ िदया गया। जब
वेण क म ृ यु हई तो उसके शरीर को खोला गया, उसम से जो भी अनाव यक था, उसे िनकाल
कर फक िदया गया।
उस देह म बची शुिचता से पथ
ृ ु नामक यि क रचना क गई। पथृ ु ने धरती पी गाय से ाथना
िक वह उसक जा का पोषण करे । धरती- पी गाय ने मना कर िदया। तब पथ ृ ु ने अपने श
उठा िलए।
धरती- पी गाय िच लाई, “यिद मेरा ही वध कर दोगे तो जा का पेट कैसे भरोगे?”
पथ
ृ ु ने भी िच ला कर कहा, “यिद तुम इसी कार भागती रह तो भी जा भख
ू ही मरे गी।”
अंत म धरती- पी गाय एक जगह पर क और पथ ृ ु क जा को दु ध-दोहन क अनुमित दी।
“तुम उ ह अित र दूध दोहने से रोक सकोगे, ऐसा न करने से मेरे थन म सज ू न आ सकती
है।” उसने कहा। पथ
ृ ु बोला, “ कृित म कोई िनयम नह होते िकंतु सं कृित को िनयम पर ही
आधा रत होना चािहए। म िनयम क रचना क ँ गा।”
ृ ु थम स ाट बने। धनुष उनका तीक था। शासक दंड था तथा उनके िनयम यंचा बने।
पथ
अिधक ढीला यानी धनुष अनुपयोगी हो जाएगा; और अिधक कसा होने पर धनुष के टूटने का
ृ ु सामािजक यव था के सं थापक, कृित व सं कृित के बीच संतुलन के
भय होता है। पथ
सरं क थे। उ ह ने धरती- पी गाय को वचन िदया जब-जब समाज म िनयम भंग ह गे या उसका
शोषण होगा, वे सब कुछ पुनः यवि थत करने के िलए धरती पर ज म लगे। यह सुन कर धरती
इतनी स न हई िक उसने वयं को ‘प ृ वी’ यानी, पथ
ृ ु क पु ी कह कर पुकारा।
पथृ ु क कथा िव णु तथा भागवत पुराण म आती है। सीता क तरह पथ ृ ु भी अयोिनज
है, वह िकसी ी के गभ से नह ज मा, िजससे उसका िवशेष पद पता चलता है। वह
भी िव णु का अवतार है परं तु बहत अिधक लोकि य नह है। उसक कथा उन समुदाय
क सच ू क है, जो िशकार खेलने वाले समुदाय क बजाए कृिष कम करने वाले
समुदाय म बदल रहे थे, वे समाज बल क बजाए िनयम पर आधा रत थे।
वेण का शेष शरीर िनषाद म बदल जाता है, जो वन म रहने वाले आिदवासी समुदाय
का सं थापक है, वे कृिष कम तथा पुशपालन से संतु ह और अपने िलए कोई िनजी
संपि नह चाहते। इस संग से आिदवासी तथा ग़ैर-आिदवासी समुदाय म अंतर पता
चलता है और हम यह सोचने पर मजबरू करता है िक स यता का िवकास कैसे हआ।
आिदवासी समुदाय, उ रजीिवता तथा कृित के साथ तारत य रखते हए सामिू हकता
क सामािजक लय को बनाए रखते जबिक ग़ैर-आिदवासी समुदाय सारी पुरानी
यव थाओं को कर, हमेशा कुछ नया चाहते रहे , चाहे वह बौि क हो या िफर
मानिसक िवकास, ऐसा करने के िलए वे कृित को भी दाँव पर लगाने को तैयार थे।
सातव सदी ई. म चीनी िव ान े न सांग ने िलखा िक पथ ृ ु वे पहले यि थे, िज ह
‘राजा’ क उपािध दान क गई।
राजा क तुलना एक गोपालक, चरवाहे से क जाती है, जो धरती को गौ के समान
मानता है, जो उसे सारे संसाधन दान करती है। वह उसक देख-रे ख करता है और
वह उसे पोषण दान करती है।
गाय भरण-पोषण का तीक है। जब िकसी ऋिष के पास गाय होती है, तो भोजन
(दूध) तथा ई ंधन (गोबर) क बुिनयादी ज़ रत आसानी से परू ी हो जाती ह। वह अपने
बौि क प पर यान कि त कर सकता है। यही कारण है िक गौ को धरती से जोड़
कर पज ू ा जाता है। गौ के िबना, ऋिष वेद के वण का समय न िनकाल पाते।
परशरु ाम क कु हाड़ी
परं तु िनयम मानवीय इ छाओं के आगे नह िटकते।
एक िदन, रे णुका ने िकसी गंधव को नदी म नान करते देखा। वह इतना सुंदर था िक रे णुका के
मन म उसके ित त काल आसि ने ज म िलया। तब तक, रे णुका का पाित य ही उसक
तप या थी और इसी के कारण उसे िसि ा थी; वह नदी क क ची माटी से बने मटके म भी
जल भर सकती थी। परं तु उस गंधव के िलए मन म वासना आते ही, वह शि जाती रही। अब वह
पहले क तरह क चे घड़े म पानी भर कर नह ले जा पा रही थी।
भगृ ु वंश से ऋिष जमदि न उनके पित थे, उ ह ने रे णुका पर यिभचार का आरोप लगाया, “यिद
तुम आसि के कारण िववाह क मयादा और िनयम को भंग करती हो तुम पर िव ास कैसे
िकया जा सकता है?” उ ह ने अपने पु को आदेश िदया िक वे अपनी माता का िसर काट द।
पहले चार बड़े पु ने ऐसा करने से मना कर िदया िकंतु सबसे छोटे पु ने अपनी कु हाड़ी के
एक ही वार से िपता क आ ा का पालन िकया। उनका नाम राम था। उ ह ने अपने परशु का
ऐसा घातक योग िकया इसिलए वे परशुराम यानी कु हाड़ी वाले राम के नाम से जाने गए।
परशुराम क अखंड िपतभ ृ ि से स न हो कर जमदि न ने पु से कोई वर माँगने को कहा,
“मेरी माता के ाण लौटा दीिजए।” परशुराम बोले। जमदि न ने अपनी िसि के बल पर ऐसा ही
िकया।
जमदि न के पास नंिदनी नामक गौ थी, वह वग य कामधेनु क वंशज थी, जो सारी इ छाओं
क पिू त कर सकती थी। राजा कातवीय ने गाय को देखा तो उसे बल योग से अपने साथ ले जाने
क चे ा क ।
कातवीय को हज़ार भुजाओं का वरदान िमला हआ था, उसके िलए अपने लोभ को रोकना किठन
था। जमदि न बोले, “तु ह ये भुजाएँ संसार क र ा करने के िलए दी गई ह और तुम इनसे लटू ने
और चोरी करने का घिृ णत काय करते हो। तुम कोई राजा नह , तुम तो चोर हो।” कातवीय को
इन कठोर श द को सुनने का भी समय कहाँ था। उसने जमदि न को पीछे धकेला और गाय को
अपने साथ घसीट ले गया।
ोध से आग-बबलू ा हए परशुराम ने एक बार िफर श उठाया और दु राजा क भुजाओं को
तब तक काटते रहे , जब तक शरीर से बहते र के कारण उसक मौत नह हो गई।
कातवीय के पु ने अपने िपता क मौत का ितशोध लेने के िलए, जमदि न का िसर काट
िदया। इस तरह परशुराम ने तीसरी बार अपनी कु हाड़ी उठाई, और एक संक प िकया, “यिद
राजा वयं ही समाज के िनयम का पालन नह करते, तो हम वयं को उन पशुओ ं से अलग कैसे
मान सकते ह, जो बलपवू क जीते ह? म समाज के िनयम क अवहे लना करने वाले हर नरे श का
वध कर दँूगा; समाज के िनयम िकसी भी राजा से कह बड़े होते ह।”
परशुराम सारे संसार म घमू ते हए, अ म राजाओं का वध करने लगे। इस कार सकड़ नरे श
मारे गए। कुछ राजाओं ने ि य क आड़ म िछप कर अपनी ाण-र ा क और उनसे ही कायर
क अगली पीढ़ी ने ज म पाया, जो िकसी भी तरह का शासन करने के यो य नह थे।
“ या कभी म िकसी ऐसे राजा से भट कर सकँ ू गा जो सही मायन म िववाह तथा समाज के
िनयम का आदर करता हो!” परशुराम िवचार करते।
परशुराम िव णु के उ अवतार ह जो िनयम को लागू करते ह; वे िनयम का पालन
करने वाले राम तथा िनयम को मोड़ने वाले कृ ण से िब कुल अलग ह। परशुराम क
कोई प नी नह राम क एक प नी है तथा कृ ण क अनेक पि नयाँ ह। भगवती
परशुराम क माता (रे णुका), राम क प नी (सीता) तथा कृ ण क सखी ( ौपदी) के
प म कट होती ह। इस कार इन तीन अवतार म गित का एक ढाँचा या बनावट
िदखती है।
परशुराम क कथा, उस दौर को िदखाती है जब राजाओं और मुिनय के बीच गहरा
संघष था। यह संपि के उदय क धारणा से जुड़ी है। ि य व पशुओ ं को संपि माना
जाने लगा था, जो िक िपतस ृ ा मक सोच का सच ू क है।
परशुराम का सच ू क आने वाली घटनाओं का सच ू क है, रावण सीता को सोने के िहरण
का लोभ िदखा कर, ले जाएगा और अपने वश म करना चाहे गा, जबिक वह दूसरे
यि क प नी है। कैकेयी अयो या के रा य को अपने पु के िलए चाहे गी और
कातवीय नंिदनी को पाना चाहे गा।
पुणे के िच पावन तथा केरल के नायर समुदाय के लोग वयं को परशुराम के वंशज
मानते ह। हालाँिक पारं प रक पुरोिहत के तौर पर, ये समुदाय अपने-अपने समाज के
राजनीितक मामल म अहम भिू मका रखते ह।
द खन ांत म, िवशेष तौर पर कनाटक, आं देश तथा महारा म रे णुका का कटा
शीश तथा धड़, भगवती ये लमा, एकवीर और हलीग मा के प म पज ू ा जाता है।
ये लमा तीथ देवदािसय क था से संबंध रखते ह, िजसे अब ग़ैर-क़ानन ू ी घोिषत कर
िदया गया है। इस था म क याओं को देव को समिपत कर िदया जाता था और उ ह
वे याविृ अपनाने के िलए िववश िकया जाता था।
िव ािम का य
घने अर य या वन, मनु य के िलए कोई मोल नह रखते य िक इस िनजन वन ांतर के बीच
मनु य और पशुओ ं म कोई भेद नह रहता। वन को पािलत कर िलया जाए तो यह खेत और
चरागाह व उ ान के प म, मनु य को वािम व और मोल दान करता है।
यही िव ािम के मि त क म च कर काटा करते। उ ह ने घने वन के बीच, एक आ म,
‘िस -आ म’ क थापना क । उ ह ने वहाँ एक य के आयोजन क योजना बनाई, िजसम
रा स ारा आ मण होने क संभावना थी। इस तरह वे, राजाओं को, िकसी थान को अनुकूल
बनाने और उसका पालक बनने से जुड़े िनयम का बेहतर ान दे सकते थे।
उ ह ने गंगा नदी के आस-पास बसे सभी रा य के राजाओं को सच
ू ना िभजवा दी िक वे उनक
य -शाला क रा स से र ा करने के िलए, अपने पु यानी राजकुमार को उनके पास भेज।
उ ह ने कहलवाया, “इसके बदले म, म उ ह यु तथा अ -श का यावहा रक ान दान
क ँ गा। म उ ह ऐसे मं का ान दँूगा िजसके बल पर वे अपने साधारण तीर को अि न, जल,
सय
ू , चं , वायु तथा वषा क शि से भरपरू ेपा म बदल सकगे।”
परं तु िकसी भी राजा ने अपने पु को उनक सहायता के िलए नह भेजा। वे लोग रा स तथा
वन के नाम से आतंिकत हो उठे ।
जब कोई छा अ यापक के पास नह आया तो अ यापक को ही छा क खोज म िनकलना
पड़ता है। िव ािम ने तय िकया िक वे वयं अपने िश य का चयन करगे और उसे एक संपण
ू
राजा के प म तुत करगे। उनके श ु विश के िश य से बेहतर कौन हो सकता था, िजनक
िववेक-बुि को वे सारे बैर-भाव के बावजदू सराहने लगे थे।
विश के छा
जब दशरथ ने महिष विश से कहा िक वे उनके चार पु को राजाओं क तरह आचरण करने
क िश ा दान कर, तो उ ह ने कहा था, “म उ ह अपनी ओर से ा ण बनाने का भरसक
यास क ँ गा।”
“पर म एक राजा हँ और मेरे पु राजकुमार ह, उ ह पुरोिहत क तरह नही, शासक क तरह
िशि त िकया जाना चािहए।” दशरथ च क कर बोले थे।
विश ने प िकया था, “आप ा ण वण और जाित के िवषय म िमत हो रहे ह। ा ण
जाित का यि , एक पुरोिहत, मं का उ चारण करने वाला तथा वेद का अनु ान करने वाला
होता है। ा ण-वण का यि उसे कहा जा सकता है, जो सीिमत मनस् के को े रत
करता है, िक वह असीिमत मनस् वाला ा ण बन जाए। कोई पंिडत हो या यो ा, कृषक हो या
चरवाहा, या कोई यापारी या िफर कोई ी या पु ष; सभी को अपने मनस् का िव तार करना
चािहए तथा एक अनुयायी व शू -वण क मानिसकता, एक यापारी क वै य-वण मानिसकता,
एक वामी क ि य-वण मानिसकता तथा एक तप वी क ा ण-वण मानिसकता से ऊपर
उठना चािहए।
“एक राजा अनुयायी, यापारी, वामी या संत कैसे हो सकता है?” दशरथ िवचार करने लगे।
विश बोले, “जब कोई राजा िबना सोचे-समझे, दूसरे राजाओं का अंधानुकरण करता है, तो वह
एक सेवक है। यिद वह अपनी इ छाओं क पिू त के िलए सारे िनयम का उ लंघन करता है, तो
वह यापारी है। जब वह आसपास के लोग पर अपने िवचार थोपता है, तो वह उनका वामी है।
जब वह शासन से जुड़े िनयम तथा िवचार को समझता है, तो वह एक संत है और इस तरह वह
उन सभी तक का आदर करता है िक िकसी िनयम को य माना जाना चािहए और िनयम को
य नह माना जाना चािहए। यिद कोई राजा ा ण क मानिसकता के साथ काम करता है तो
िनयम केवल अपना काम करते ह, वे उिचत या अनुिचत नह होते और हर कम क तरह उनके
प रणाम भी होते ह। उसके िलए िनयम, िकसी को अपने अधीन या वश म करने के साधन नह
होते। उसके िलए वे समाज को चलाने के वे साधन ह, िजनके बल पर, दुबल भी बलशाली के
स मुख अपने अिधकार का दावा कर सकता है।”
“ई र करे िक आप मेरे पु को ऐसे ही ा ण बनाने म सफल ह ।” दशरथ ने ऐसा ान पाने
के बाद यु र िदया।
जब उनक िश ा पण ू हई, तो दशरथ के चार पु को पवतीय थल पर तीथया ा के िलए भेजा
गया। जब वे वहाँ से वािपस आए तो सबसे बड़े राजकुमार, राम को अनुभव हआ िक एक गहृ थ
बनने क अपे ा साधु बनना कह ेय कर था। तब विश ने उ ह समझाया िक वे िकस कार
एक गहृ थ जीवन जीते हए भी, साधु के समान रह सकते थे।
वेद म विणत वण यानी मानिसकता तथा जाित यानी समुदाय अ सर उलझन पैदा
करते ह और इ ह ने नकारा मकता पैदा करने म भी कोई कमी नह रखी। मनु जैसे
ा ण तथा बाद म िश ािवदो्ं ने बलपवू क बहत सी जाितय को वण म िफ़ट करना
चाहा, उनका मानना था िक िनि त सोच, िनि त समुदाय से जुड़ी है। परं तु वेद
सामािजक होने से कह अिधक मानिसक भाव रखते ह, जो कहते ह िक िकसी भी
पेशे का यि या माली, िकसी अनुयायी, यापारी, वामी या संत क सोच कैसे रख
सकता है।
ा ण श द का असली अथ या है, यह उपिनषद तथा महाभारत म कई चचाओं
का मुख िवषय रहा है। इन सभी म यवसाय को नह सांसा रक नज़ रए को ही मु ा
बनाया गया। परं तु समाज म िश ािवदो्ं तथा राजनीित ने हमेशा यवसाय के मु े
को ही क िबंदु बनाया।
विश मन से े रत ह जबिक िव ािम समाज से े रत जान पड़ते ह। विश के
अनुसार मन साफ़ है तो सब प हो जाएगा परं तु िव ािम कम पर बल देते ह। कई
कार से, िव ािम हमारी आधुिनक पि मी कम पर आधा रत मानिसकता, ‘बस इसे
कर िदखाओ’ को य देते ह जबिक विश िबना िकसी ितरोध के सब देखते ह।
ताड़का वध
आ म जाते समय, िव ािम ने राम और ल मण को अनेक मं का उ चारण िसखाया, अनेक
गु मं क दी ा दी, िजनके बल पर वे अपने बाण को ेपा म बदल सकते थे, उ ह
पशुओ,ं ह तथा त व क शि से अनु ािणत कर सकते थे। राम ने सीखा िक बाण से िकस
कार िकसी व ृ को विलत िकया जा सकता था, धरती म बाण मार कर जल क धारा कैसे
िनकाली जा सकती थी या वायुदेवता को कैसे बुलाया जा सकता था। उ ह ने सीखा िक बाण को
िकस कार छोड़ा जाए िक वे िकसी ग ड़ क तरह उड़ान भर, िकसी बाघ क तरह झपट या
हाथी क तरह हँकार मार कर श ु को चरू -चरू कर द।
जब वे अंततः िस आ म पहँचे, तो िव ािम कुश वज को वहाँ देख सुखद आ य से भर उठे ,
जो िवदेह क चार राजकुमा रय के साथ वहाँ उपि थत थे। “हमारे वंश म कोई पु नह है िकंतु
जनक चाहते ह हमारी राजकुमा रय को वन म हो रहे इस य का सा ी होना चािहए।”
ल मण ने उन चार िवदेह राजकुमा रय को देखा िकंतु उ ह भी राम क भाँित, वहाँ होने जा रहे
य म अिधक िच थी। तब उसे एहसास हआ िक उसे तो जीवन म कभी बहन का नेह नह
िमला। वह सदा भाईय से ही िघरा रहा। वह सोचने लगा िक अगर िकसी के पास खेल म साथ देने
के िलए बहन भी हो तो उसे िकतना आनंद आता होगा।
अिह या का उ ार
जब य समा होने को आया तो िव ािम बोले, “हम धारा के िनचली ओर, गौतम ऋिष के
आ म म चलना चािहए। वहाँ हमारी आव यकता है।”
सभी ने संकरे और पहाड़ी पथ पर ऋिष का अनुसरण िकया, िजसके दोन ओर फल और फूल से
लदे व ृ थे। इसके बाद वे एक ऐसे आ म म पहँचे िजसे देख कर लगता था, वह जाने कब से
प र य और उपेि त पड़ा था। उसके बीच एक च ान पड़ी हई थी। िफर िव ािम उसक कहानी
सुनाने लगे।
अिह या एक सुंदर राजकुमारी थी िजससे अनेक राजकुमार िववाह करने के इ छुक थे िकंतु
उसका िववाह, उसक आयु से कह बड़े , गौतम ऋिष से कर िदया गया। गौतम अपना सारा िदन
य तथा तप आिद म यतीत करते और अिह या उनक सभी आव यकताओं का यान रखती।
वह उनसे िम ता तथा साथ क अपे ा रखती थी िकंतु उनके पास अपनी प नी क ओर यान
देने का समय ही कहाँ था।
एक िदन सुबह का समय था। गौतम ऋिष बड़ा ही िविच यवहार करने लगे। नदी म नान
करने के बाद, पवत पर यान के िलए जाने क बजाए, वे घर लौट आए और दोपहर का सारा
समय अिह या के साथ िबताया। इस दौरान वे उसके साथ बहत ही नेह और लगाव से पेश आए
और उसक सारी माँग परू ी क ।
परं तु य ही सं या िघरने लगी, अिह या ने देखा िक उसके पित जैसे िदखने वाले ऋिष घर म
वेश कर रहे थे; अंतर केवल इतना था िक बाहर खड़े ऋिष के मुख पर कठोर भाव थे और
उसक बाँह म लेटे ऋिष अितशय कोमलता से पेश आ रहे थे। तभी उसे पता चला िक उसक बाँह
के घेरे म बँधा यि , उसका पित नह बि क उनके वेश म कोई छिलया था। वह इं िनकला, जो
उसके पित गौतम ऋिष का प ले कर, एकांत म उसका शील भंग करने आया था। उसके असली
पित तो ार पर खड़े थे।
गौतम िकसी भी हाल म अिह या को मा नह करना चाहते थे। उ ह ने इं को ाप िदया िक
वह नपुंसक हो जाएगा और उसक परू ी देह पर घाव हो जाएँ गे। िफर उ ह ने अपनी प नी को ाप
िदया िक वह एक पाषाण म बदल जाएगी, वह न तो िहल-डुल सकेगी और न ही कुछ खा-पी
पाएगी। पशु उस पर मू -िवसजन करगे। या ी उसे लांघ कर जाएँ गे।
िव ािम बोले, “रघुवंश के उ रािधकारी, अयो या के राजकुमार, परख़ या भेदभाव से परे ,
उसका पश करो, वह इस ाप से मु हो जाएगी।”
“िकंतु या यिभचार को सबसे घिृ णत अपराध नह माना जाता, यह आपसी िव ास का अंत कर
देता है। रे णुका का िसर धड़ से केवल इसिलए अलग कर िदया गया था िक उ ह ने परपु ष के
िवषय म िवचार िकया; यह ि थित तो उससे भी बदतर है,” ल मण ने कहा।
“दंड क िकतनी मा ा को उपयु माना जा सकता है? कौन तय करता है िक या पया है?
एक राजा को ह त ेप करना चािहए और अपनी ता को क णा से संतुिलत करना चािहए।”
राम ने झट से उस च ान का पश िकया जो अिह या ही थी। वह िहली। वे पीछे हट गए और वह
एक आह भरने के बाद िवलाप करने लगी। वष बाद उसे अपनी ल जा और लािन से मुि िमली
थी।
गौतम भी एक ओर से सामने आ गए। वे उलझन म थे। प नी को पुनः पाने क स नता तो थी
ू े नह थे।
िकंतु अब भी अपने अपमान को भल
“महान ऋिष, अपनी आ म-दया तथा रोष से मु ह । आपके मन क सारी गाँठ सुलझ तथा अहं
का थान आ मा ले ले। तभी आप अपने आ म को नए िसरे से बसा कर, अपने संसार क खोई
ख़ुिशय को वािपस ला सकगे,” राम ने िकसी राजा क तरह पेश आते हए कहा।
गौतम ने सहारा देने को अपना हाथ आगे कर िदया। िकसी समय म संुदरी रही अिह या, अब
बहत दुबल हो गई थी। वह पल भर को िझझक , और िफर उस हाथ को थाम िलया। िव ािम ने
उनके जुड़े हाथ पर जल उड़े ला तािक वे एक नए जीवन का आरं भ कर सक।
कौतहू लवश मांडवी सोचने लगी िक िववाह म पर पर िन ा को इतना मह व य िदया जाता
है? उसने सुन रखा था िक रा सी ि याँ केवल अपने पित से ही संबंध नह रखत और इसी
तरह रा स भी अपनी पि नय के अित र अनेक ि य से संबंध रखते ह। कृित म, हर कार
के संयोग होते िदखते ह : हंस पर पर िन ा रखते ह जबिक बंदर के पास बंद रय का परू ा
हरम होता है, िजसक वे ई या-भाव के साथ पहरे दारी करते ह, रानी मधुम खी के ेिमय क भी
कमी नह होती। तो ऋिषय के िलए आपसी िन ा इतने मायने य रखती है?
“यह इस बात का मापदंड है िक हम अपने साथी क ओर से िकतने संतु ह। असंतु यि हर
थान पर अपनी संतुि तलाशता है,” िव ािम ने उ र िदया।
“म सदा अपनी सारी संतुि एक ही प नी से पाने का य न क ँ गा,” राम ने उ ोषणा क ।
“यिद तु हारी प नी तुमसे संतु न हई?”िव ािम ने राम से पछ
ू ा। वे अयो या कुमार का
उ र सुनने को याकुल थे। परं तु उ ह यह उ र राजकुमारी क ओर से िमला।
“यिद वह समझदार हई तो उस अधरू े पन को भरे गी। अगर वे समझदार हए, तो वे वयं िवकिसत
होने का यास करगे,” सीता ने कहा, जो अब भी अिह या तथा गौतम क सकुचाई हई कोमलता
को िनहार रही थ ।
कुश वज ने राम के मुख पर िखली मु कान को ल य िकया। वे िव ािम के पास एक ताव
ले कर गए। “हमारे साथ िमिथला नगरी चिलए। अयो या कुमार को भी साथ ले कर आइए। यिद
राम िशव धनुष के साथ अपना भा य आज़माना चाह तो मुझे स नता होगी। कौन जाने, वे
अपनी प नी के साथ घर लौट।”
िशव का धनष
ु
महा तप वी िशव ने ुधा का नाश कर िदया था। इस कार वे िहम से ढक पवत िशला पर जा
बैठे, जहाँ कोई वन पित नह उगती थी। वह कैलाश पवत था, जो ुव न के तले ि थत था।
कृित ने शि का प धर कर, उनसे कहा, “ ुधा से ाणी के जीिवत या मत
ृ होने का पता
चलता है। अगर आपके भीतर कोई ुधा नह रही तब तो आपको शव कहा जाना चािहए।”
“एक पौधा भोजन के ोत क ओर उगता है। एक पशु भोजन क ओर दौड़ता है। एक यि
तप या के मा यम से भोजन क माँग से ऊपर उठ सकता है। यही ल ण मानवता को सबसे
िवलग करता है,” िशव बोले।
“एक मनु य दूसरे क भखू को महससू कर सकता है और य के मा यम से भोजन पैदा कर
ू शांत कर सके। यह ल ण भी मानवता को सबसे अलग करता
सकता है तािक दूसरे क भख
है,” शि ने कहा। “जब य के िबना तप या क जाती है, िनजनता क कामना क जाती है,
कोई संबंध नह पनपते और समाज का पतन होता है। आप िवनाशक हो गए ह।”
तब िशव बोले, “जब तप के अभाव म य रचाया जाता है, तो हम अपनी ुधा शांत करने के
िलए, दूसर क ुधा का शोषण करते ह। इस कार एक समाज क रचना होती है।”
“सही कहा आपने, तप या तो धनुष के दंड क तरह है। य इसक यंचा है। यि गत प से,
ये धनुष क रचना नह करते। अगर धनुष बनाना है तो दंड को लचीला बन कर मुड़ना होगा
और यंचा को स त हो कर तनना पड़े गा।”
“ य़ादा ढीला धनुष अनुपयोगी होगा और अगर य़ादा कसा होगा तो वह टूट जाएगा,” िशव ने
ृ ु के राजा बनने के दौरान कहे थे।
वही श द दोहराए, जो िव णु ने पथ
“आइए, हम िमल कर वह धनुष बनाएँ , जो य और तप या का मेल करता है। इसे िववाह म सारे
पु ष तथा ी के संबंध का तथा रा य म राजा व रा य के संबंध का तीक बनने द।” ऐसा
कह कर शि ने, पवत पु ी पावती का प िलया और िशव को अपने साथ, ढलान से नीचे,
नदी िकनारे बसी, चहल-पहल से भरी काशी नगरी म ले गई ं। वहाँ उ ह ने अ न क भगवती
अ नपण ू ा का प िलया और वे ुधा को भी वश म कर लेने वाले िशव के थान पर, शंकर
गहृ थ म पांत रत हए, जो दूसर क ुधा शांत करने का िवचार करते ह।
उनके इसी वातालाप के म य एक धनुष कट हआ। उस धनुष क यंचा चढ़ाने वाले राजा को
ही एक संपणू राजा क सं ा दी जा सकती थी। िशव ने उपनिषद के सरं क जनक को वह धनुष
स प िदया। िव ािम क भी यही इ छा थी िक उनके िश य भी उस धनुष को देख, हालाँिक वे
इस िवषय म परू ी तरह से आ त नह थे िक राम उसक यंचा चढ़ा सकगे या नह पर अपनी
ओर से चे ा करने म भी कोई हािन नह थी।
1609 म, हाकोबो िफ़िनिशयो नामक एक पुतगाली जेशुइट िमशनरी, जो कालीकट के
ज़ैमो रन दरबार का िनवासी था और मलाबार बंदरगाह पर घम ू ने आया था, उसने
पि मी ोताओं के िलए, पहली बार िहंदू पौरािणक गाथाओं के अ ययन पर आधा रत
द तावेज़ तैयार िकया था। परं तु 1672 म बेलाड्यसू का अ ययन अिधक लोकि य
हआ था। इसम, उसने सीता के ज म का वािचक द तावेज़ भी शािमल िकया है। उसम
कहा गया है िक सीता ने लंका के अिभभावक के प म र ा क थी, एक िदन लंका
के ार पर कुछ भ म िगरी िजससे एक पेड़ उग गया, उस िवशाल पेड़ क एक शाखा
िमिथला पहँच गई और जनक ने उसे काट कर य म यु िकया। अि न से एक
क या कट हई, िजसके हाथ म एक धनुष था। उस धनुष पर िलखा था िक वह उसी
से िववाह करे गी, जो उस धनुष को भंग करने म समथ होगा।
यह भी मह वपण ू है िक ुधा से परे , वन पितहीन िहमा छािदत कैलाश पवत पर
बसने वाले िशव क प नी शि है, िज ह काशी म अ न क भगवती, अ नपण ू ा के
नाम से पजू ा जाता है। काशी नगरी एक नदी के िकनारे ि थत है। उनके रसोईघर म
साधु और गहृ थ दोन ही आ य पाते ह। भले ही साधु को भख ू न हो िकंतु उसे इतना
क णावान होना चािहए तािक वह उनक देखरे ख कर सके, जो उसक तरह साधु
नह ह। वे काम को भ म कर सकते ह, इ छाओं को न कर सकते ह इसिलए
कामांतक के नाम से जाने जाते ह, परं तु वे कामे री ह, कामा या ह, वे ऐसी भगवती
ह जो इ छाओं क शंसा करते हए, उ ह संतु करती ह।
िशव और शि के दो पु ह : गणेश, हाथी के म तक वाले लेखाकार, जो भोजन क
चाह रखने वाल को संतु करते ह और छह मुख वाले यो ा काितकेय, उनका र ण
करते ह, िज ह भय रहता है िक कह वे भोजन न बन जाएँ । इस कार िशव के साथ,
शि ऐसे वन क रचना करती ह, िजसम िशकार करने वाले तथा िशकार होने वाले,
दोन ही स न ह।
सीता धनष
ु उठाती ह
िशव का धनुष इतना भारी था िक दजन लोग िमल कर भी उसे नह उठा पाते थे। उसे एक गाड़ी
पर रख कर, िमिथला के श ागार म लाया गया और उस नगरी म आने वाले यो ा व बाहबली
दूर से ही उसे देख कर, शंसा िकया करते। जनक ितिदन उस पर भ म का लेप करते और
उसके आगे अपना स मान व ा कट करने के िलए दीपक जलाया करते।
एक िदन, सीता ने अपनी तीन बहन तथा एक दजन दािसय सिहत श ागार म वेश िकया।
उ ह सारे थान क साफ़ -सफ़ाई का दािय व स पा गया था। “कोई भी कोना, बरामदा, तंभ,
छत, फ़श या दीवार सफ़ाई से न छूटे। और श को साफ़ करना मत भल ू ना। उ ह प छना पड़ता
है तािक, लकड़ी पर दीमक न लगे और उनका लोहा कह जंग न खा जाए,” उनक माँ ने इन
िनदश के साथ भेजा था। जब दूसरी क याओं ने तलवार , भाल , चाकुओं, कवच तथा धनुष-
बाण को प छना आरं भ िकया तो सीता सीधा उस िशव धनुष क ओर बढ़ ।
एक दासी बोली, “वह तो िशव धनुष है, उसे तो कई पु ष भी िमल कर नह उठा पाते।”
“िफर भी इसक सफ़ाई तो करनी ही होगी,” सीता ने कहा, उ ह ने एक हाथ से उसे उठाया और
दूसरे हाथ से उसके िनचले िह से क झाड़-प छ करने लग ।
यह आ यजनक ख़बर राजा-रानी तक भी पहँची। वे श ागार म दौड़े आए और सीता से पुनः
वह धनुष उठाने को कहा। उ ह ने बहत आसानी से उसे उठा िलया और मन ही मन सोचने लग
िक भला इसम कौन सी बड़ी बात थी।
“वह बहत ही बलशािलनी है। इससे कौन िववाह करे गा?” माँ के मुख पर मु कान पर दय म
िचंता सवार हो गई।
“कोई उसके जैसा ही बलशाली या उससे भी अिधक बलशाली।” सीता के िपता बोले।
“और बुि मान भी,” सुनन ै ा ने कहा। वे जानती थ िक उनके पित बल से ऊपर िववेक तथा बुि
को वरीयता देते थे। “एक संपणू राजन्”।
जनक ने आयवत के सभी राजाओं तथा राजकुमार को यह संदेश िभजवा िदया िक वे िमिथला
नगरी म आमंि त ह। जो भी आ कर िशव धनुष पर यंचा चढ़ाने म सफल होगा, उसे ही वह
धनुष देने के साथ-साथ उनक पु ी सीता का हाथ भी स प िदया जाएगा। अब नगरी म उपिनषद
सभा क तरह, ा क चाह रखने वाले संत व मुिनय क नह , बि क स ा, वैभव तथा आनंद
से े रत राजकुमार क भरमार थी। वे सभी सीता को पाने क चाह रखते थे।
अनेक राजकुमार आए, अपना भा य आज़माया और असफल हो कर लौट गए।
अयो या म िजतने भी पु ष धनुष उठाने का य न करने आए, उनम से एक यि लंका नामक
सुदूर देश से भी आया था। वह रा य के सभी पु ष से लंबा था, बाल घने और घुंघराले थे, छाती
बहत ही चौड़ी तथा पेट सपाट था। उसके शरीर पर भ म का लेप था जो इस बात का सच ू क था
िक वह िशव भ था। िकसी ने उसके मुख क ओर नह देखा, उसक ि इतनी कड़ी थी िक
कोई भी उसक ओर देख नह सका। सबने अपनी नज़र झुका ल । वह िशव धनुष को उठाने के
िलए झुका और लगभग सफल हो ही गया था ,परं तु तभी वह यं या मक ढं ग से मु कुराया और
अपना संतुलन खो बैठा; धनुष ने उसे िकसी ोिधत नाग क तरह अपने नीचे दबा िलया।
जनक व उनके यो ा उसक मदद के िलए भागे िकंतु वे उसे उस धनुष के नीचे से नह िनकाल
सके। जब भ म म िलपटा, लाल आ नेय ने वाला अजनबी धनुष के नीचे दबा ास भी नह ले
पा रहा था, तब सीता को बुलवाया गया। उ ह ने एक हाथ से धनुष उठाया और उसे एक ओर रख
िदया। उस यि ने कोई आभार कट नह िकया। वह गरजा, “यिद म ही इस धनुष को नह उठा
सका, तब तो इसे कोई मनु य नह उठा सकेगा। जनक, तु हारी पु ी को एकाक िचर कुमारी के
प म ही ाण का याग करना होगा।”
जनक उन श द को सुन कर िवचिलत नह हए और बोले, “हो सकता है िक उसे एकाक जीवन
यतीत करना पड़े , िकंतु वह अकेली नह होगी, वह तु हारी तरह नह है।”
वह यि ओझल हो गया और उसके बाद कभी नह िदखा। परं तु नगर क गिलय म, धीमे सुर
म बात हो रही थ िक वह मुिन िव वा का पु तथा भयंकर रा सराज रावण था।
रावण का ज म
रा स वयं को वन क जीवन-शैली का र क या अिभभावक मानते थे, जहाँ बलशाली व चतुर
को ही य िदया जाता था, जहाँ कोई िनयम नह था, केवल िनदयी बल योग ही धान था। वे
सहज भाव से, ऋिषय के य तथा तप आिद क इतनी परवाह नह करते थे, जब तक सुमाली
क भट कुबेर से नह हई थी।
सुमाली र क के उस दल का नेता था, जो दि ण के वन म िवचरते थे।
एक िदन, उसका सामना य के नेता, कुबेर से हो गया, िजसने दि णी सागर के म य, ि कूट
ीप पर, एक वण नगरी बसाई थी िजसे सोने क लंका कहा जाता था; वह एक उड़ने वाले
िवमान पर सवार हो कर, सारे संसार का च कर लगाता था, िजसे पु पक िवमान कहा जाता था।
सुमाली को पता चला िक कुबेर क माता इडािवडा नामक यि णी थी िकंतु िव वा नामक ऋिष
उसके िपता थे। अपने िपता से ा तप या, य तथा वेद के ान के बल पर कुबेर बहत धनी
तथा शि शाली हो गया था। सुमाली भी अपने िलए कुबेर के समान बलशाली तथा समथ बालक
को पाने क इ छा रखता था। उसने अपनी पु ी कैकसी से कहा िक वह िव वा के पास जाए और
उनसे एक पु पाने क याचना करे । इस कार रावण का ज म हआ।
िव वा ने रावण को भी तप या, य तथा वेद के िवषय म सारा ान िदया। रावण ने अपने मन
का इतना िव तार कर िलया िक उसे अपनी बुि को संजोने के िलए दस मि त क तथा बल को
संजोने के िलए बीस भुजाओं क आव यकता पड़ गई।
नाना सुमाली, िनरं तर उसक तुलना कुबेर के साथ करते रहते इसिलए वह बा यकाल से ही,
कुबेर से अिधक बलशाली, उससे ितभाशाली तथा े बनने क इ छा के साथ बड़ा हआ। वह
मन ही मन ऐसा यि बनना चाहता था, िजससे सभी भयभीत ह और कुछ कहे िबना अनुसरण
कर। ऐसा होना सरल नह था, हैहय वंश के कातवीय क हजार भुजाएँ थ जबिक उसक तो
केवल बीस ही थ । िकि कंधा के वानर-राज बाली के पास तो एक ही पँछ
ू थी पर उस बलशाली
पँछ
ू म रावण क सारी भुजाओं क शि से कह अिधक शि थी।
इस कार रावण ने ा को तप से स न िकया और उनसे अमत ृ कलश ले कर, उसे अपनी
नािभ म िछपा िलया। जब तक उसक नािभ म यह अमत ृ िछपा था, कोई भी उसका वध नह कर
सकता था।
इसके बाद रावण ने िशव क तप या क । उसने अपना िसर काट कर, उससे एक वीणा तैयार क ,
िजसे वीणा का नाम िदया गया। इससे स न हो कर, िशव ने उसे अधचं ाकार खड्ग उपहार
म िदया, चं हास तलवार, िकसी भी यु म रावण को िवजयी बनाने के िलए पया थी।
चं हास को लहराते हए, रावण गरजता हआ, अपने र क के दल के साथ, ि कूट ीप पर जा
पहँचा। उसने कुबेर को लात मार कर लंका से बाहर धिकया िदया और वयं को लंका तथा
पु पक िवमान का वामी घोिषत कर िदया। यह देख कर सुमाली क स नता तथा िव वा के
दुःख क सीमा न रही।
कुबेर, उ र क ओर, पवत क िदशा म चला गया और िशव के पास शरण ली। वहाँ उसने एक
और लोकि य नगरी का िनमाण िकया, िजसे अलंका नाम िदया, यह लंका क िवपरीत थी, इसे
अलका नगरी के नाम से जाना जाता है।
ू ा, “दोन ही आपके भ
एक िदन शि ने िशव से पछ ह परं तु आप रावण या कुबेर म से िकसे
वरीयता देते ह?”
“दोन म से, कोई भी एक-दूसरे से अलग नह है। रावण छीनता है जबिक कुबेर संचय करता है।
दोन का यही मानना है िक उनक पहचान, उनक संपि से ही है। तभी तो वे िवचार के थान
पर व तुओ ं को मान देते ह। तभी तो उ ह ने अपनी बुि के िव तार से इंकार कर िदया है, जबिक
दोन ही ा ण क संतान ह,” िशव ने उ र िदया।
गंगा का अवतरण
िव ािम , कुश वज, अयो या के दो कुमार तथा िमिथला क चार राजकुमा रयाँ गंगा के िकनारे
से होते हए, दि ण से िवदेह क ओर चल िदए। माग म, िव ािम ने सबको गंगा क कथा
सुनाई।
राजा सगर अ मेध य संप न कर रहे थे, िजसम राजसी अ को यँ ू ही िवचरने के िलए छोड़
देते ह; िजतने भी े म अ को कोई चुनौती नह देता, वे राजा क िविजत संपि माने जाते ह
और उसके अिधकार े म आ जाते ह। इं को भय सताने लगा िक कह वह अ अमरावती म
आ गया, तो सगर उसके भी वामी हो जाएँ गे। उसने अ को चुराया और उसे किपल नामक ऋिष
के आ म म िछपा िदया।
जब सगर पु ने अंततः अ का पता लगा िलया तो उ ह ने किपल ऋिष पर अ चुराने का
आरोप लगाया। किपल तब तक अपने तप म लीन थे, उ ह ने खीझ कर य ही अपने ने खोले,
तप के भाव से उ प न वाला से सगर के पु जीिवत ही भ म हो गए। देखते ही देखते वहाँ
राख का ढे र बन गया।
“ या अब मेरे पु कभी जीिवत नह ह गे?” सगर िवलाप करने लगे।
“वे जीिवत ह गे, परं तु तु ह उनक भ म को गंगा म डुबोना होगा, यह नदी अमरावती म वािहत
होती है, अमरावती देव क नगरी है और यह वही नदी है िजसे तुम आकाश गंगा के प म देखते
हो।”
सगर इतने अश हो गए थे िक अब तप नह कर सकते थे और न ही उनम इतनी शि थी िक
इं को वगिनवािसनी गंगा को धरती पर भेजने के िलए िववश कर सक। उनके पास कोई पु
भी नह बचा था, जो उनके िलए यह काम कर पाता। उनक पु वधुएँ भी अभी िनःसंतान थ । उ ह
अपने पु के िलए आशा क कोई िकरण िदखाई नह दे रही थी।
सगर के एक पु क दो पि नयाँ थ , उ ह ने संक प िलया िक वे संतान उ प न करगी। उ ह ने
एक ऋिष को बुलवा कर, य का आयोजन करवाया तािक वे य साद को खा कर गभवती हो
सक। जब य से संतान पैदा करने का साद िमला तो एक रानी ने प नी के प म वह साद
खाया और दूसरी रानी ने उसके वग य पित के थान पर शारी रक संबंध बनाए। उनके संयोग
से एक बालक का ज म हआ। पर इस गभाधान म कोई पु ष शािमल नह था, इसिलए बालक के
शरीर म नायु व हड्िडयाँ नह थ , केवल माँस और र ही िदख रहा था। रािनय ने माँस व र
के उस लोथड़े को िलया और किपल मुिन के पास ले गई ं। उ ह ने अपने तपोबल से उस बालक
ू कर िदया। इस कार वह बालक भगीरथ के नाम से जाना गया।
को प रपण
भगीरथ ने तप या क और इं से गंगा को माँग िलया तािक वे धरती पर वािहत हो सक। गंगा
हँस द , “जब म धरती पर िग ँ गी, तो म सारे पवत को तोड़ते हए, सारे वन को संग बहा ले
जाऊँगी, मेरे भीतर इतना बल है।”
भगीरथ यह सुन कर भयभीत हो गए। वे िशव को स न करने के िलए तप करने लगे। उ ह ने
िशव से िवनती क िक वे वग य नदी को अपने बाल क जटाओं म थान द। िशव ने वीकृित
दे दी। गंगा आकाश से उछल और सीधा भगवान िशव के िसर म आ कर उतर । इससे पहले िक वे
कुछ समझ पात । वे िशव क जटाओं म उलझ कर, उनम ही फँस गई थ । वे िच लाई ं, “मुझे जाने
दो।”
“जाने क अनुमित तभी िमलेगी, जब तुम धरती के साथ स मान से पेश आओगी,” िशव बोले।
जब गंगा ने हामी भरी, तो िशव ने उ ह कोमलता से वािहत होने िदया। वे सागर क ओर जाते
हए, अपने दोन ओर, उवर िकनारे तैयार करती गई ं। भगीरथ ने उनके जल म अपने पवू ज क
अि थय को डुबोया, और उ ह ने सुना िक वे सब उनके ित आभार कट कर रहे थे।
िव ािम सबसे बोले, “िजस कार गंगा मानवता और वन पित को पुनज म देने म सफल रह ,
एक मिहला भी प रवार के पुनज म के यो य होती है, वह अपनी देह म, आगामी पीढ़ी के आने
क संभावना रखती है।”
“यिद िकसी मिहला को प नी बनाना हो, तो उसे उसी तरह अधीन करना चािहए, िजस कार
िशव ने गंगा को अपने अधीन िकया?” उिमला ने पछू ा “नह , इस िवचार को िलंग िवशेष से परे ले
जा कर देखो, एक अ छा दंपि बनने के िलए, चाहे वह पित हो या प नी, गंगा क चंचलता को,
िशव के गांभीय के साथ संतुिलत करना होगा। तभी िववाह पी नदी, उवर िकनारे पैदा कर
सकती है।”
िव ािम ने देखा िक जब भी जनक क पुि याँ कोई करत तो इससे उनक खर ा
का प रचय िमलता था। िनि त ही उनसे िववाह करने वाला सौभा यशाली होगा।
ारं िभक वैिदक ंथ म पंजाब, राज थान व ज मू क निदय का उ लेख िमलता है।
बाद के वैिदक ंथ म गंगा के मैदानी इलाक़ का प रचय आता है जो इस बात का
सच ू क है िक यह सं कृित पवू क ओर िवकिसत हई। कुछ लोग इसका संबंध, पि म
म, सर वती नदी (अब यह घ घर नामक छोटी नदी है) के सख ू ने से जोड़ते ह, िजसने
सं कृित को पवू क ओर मोड़ िदया। य - य जनसं या म बढ़ोतरी हई, सं कृित का
सार दि ण क ओर होता चला गया।
गंगा क कथा पुनज म क मा यता को य देती है, जो भारत म ज मे दशन क
आधारिशला है। ारं िभक वैिदक ंथ म, पुनज म का उ लेख आता है और इसे
िनरं तर इंिगत िकया गया है। उपिनषद काल म यह िवषय-व तु और भी धान हई।
पुनज म का यह िव ास, अि थरता म िव ास के साथ उपजा है। कुछ भी शा त नह
: न तो जीवन और न ही म ृ यु! तप वी और मण, पुनज म के च से मुि , मो
या कैव य पाने का ताव रखते ह। जीवन तथा मरण के ये दो पड़ाव, किपल के
ने से िनकली अि न तथा गंगा के अवतरण से ा जल से दशाए गए ह। वाला
उठती है, पुनज म के च से मोह को जला देती है; जल पुनः नीचे क ओर वािहत
होता है तािक मत ृ क को पुनः ज म िमल सके।
िव ािम राम को सगर व नदी क जो कथा सुनाते ह, वह उनक िश ा का
मह वपण ू अंग है। राम को यह सीखना है िक जीवन एक च है। उ ह बताया गया है
िक एक पु ष के प म उनका कत य बनता है िक वे िववाह कर तथा राजाओं क
अगली पीढ़ी को ज म द, य िक कुछ भी अनंत काल के िलए नह होता, यहाँ तक
िक उनका अपना रा य भी नह रहे गा।
प पुराण के बंगाली सं करण तथा कृि वास क बंगाली रामायण म, दो रािनय ारा
भगीरथ के ज म का संग दशाता है िक एक ही िलंग म बनने वाले संबंध भी उन
िदन अि त व रखते थे। यह संग एक तांि क मा यता पर आधा रत है िक माँस व
र जैसे कोमल उ क, ी के लाल बीज से बनते ह तथा पु ष के ेत बीज से
हड्िडयाँ व नायु आिद कठोर उ क बनते ह। कृि वास रामायण म, हड्िडय से रिहत
भगीरथ अ ाव को देख दूर से हाथ िहलाते ह। अ ाव अपनी िवकृत देह के िलए
बहत ही संवेदनशील थे। वे देव का मरण कर िवनती करते ह िक यिद वह युवक
उनक कु पता का उपहास कर रहा है तो उसे राख क ढे री म बदल द और यिद वह
सही मायन म िवकृत अथवा िवकलांग है तो उसे आरो य दान कर। इस तरह
भगीरथ को आरो य ाि होती है।
धनष
ु भंग
जब िव ािम और कुमार िमिथला पहँचे, तो सुननै ा अपनी पुि य से भट करने के िलए बाहर
दौड़ी आई ं, उनक पुि य ने उ ह उ साहपवू क बताया िक उ ह ने आ म क इस या ा के दौरान
या देखा व सुना।
जनक ने िव ािम और उनके दो युवा िश य का वागत िकया, “आप दोन वा तव म
भा यशाली ह िक आपको विश तथा िव ािम , दोन ही महिषय का िश य व पाने का
सौभा य िमला,” उ ह ने राम व ल मण से कहा। “मुझे बताएँ िक इनम से या अिधक मह व
रखता हैः विश का सै ांितक ान अथवा िव ािम का यावहा रक िश ण?”
“इनम से कुछ भी े अथवा िनकृ नह है। सै ांितक ान मन को िवकिसत करता है,
जबिक यावहा रक िश ण शरीर को िवकिसत करता है। दोन का ही मोल है और दोन के
िलए ही मोल चुकाना होता है। अहं ही इनके बीच अ छे या बुरे का भेद पैदा करता है। आ मा यह
सब देखती है, और मु कुराती है।” राम ने उ र िदया।
वे श द जनक के कान को िकसी संगीत क तरह सुनाई िदए। युवक केवल बलशाली और
आ ाकारी ही नह , बि क बुि मान भी था। वे भी मन ही मन यही मनाने लगे िक काश वह
धनुष भंग करने म सफल हो जाए!
जब उ ह ने श ागार म वेश िकया, तो जनक ने िव ािम से आ ह िकया िक वे राम का
औपचा रक प रचय द। “िशव के धनुष को ान होना चािहए िक उसक यंचा चढ़ाने का य न
करने कौन आया है।”
इस तरह िव ािम राम क वंशावली का प रचय देने लगे। “आरं भ म, नारायण अपनी मोहिन ा
म थे और संसार का कोई अि त व नह था। जब वे उठे , तो उनक नािभ से एक कमल उपजा,
िजसम ा जी िवराजमान थे, वे संसार म अकेले रहने के नाम से इतने भयभीत हए िक उ ह ने
अपने मानस पु क रचना कर ली। उनम से एक पु द भी थे। दूसरे पु मनु थे। िशव ने द
का शीश काट िदया। मनु के दो पु थे; इ वाकु और इला। इ वाकु से सय ू वंशी राजाओं का
आगमन हआ और इला से चं वंशी राजाओं का आगमन हआ। इ वाकु वंश म, रघु नामक राजा
हए, िज ह ने अनेक य संप न करवाए। उनके नाम से रघुवंश या रघुकुल का आरं भ हआ। उनके
ही वंश म, एक सगर राजा हए, िजनके पु ने खोए हए अ क तलाश म, धरती म इतना गहरा
गड्ढा खोद िदया था िक उसम वषा का जल एक हो कर, सागर म बदल गया। उनके ही वंश म
एक राजा भगीरथ हए, जो गंगा को आकाश से लाए थे, तािक वे धरती पर वािहत हो सक। इसी
वंश म एक िदलीप नामक राजा भी हए, िज ह ने एक भख ू े शेर से गाय क र ा करने के िलए,
अपना माँस उसके आगे डाल िदया था। इसी वंश म, एक राजा ह र ं हए, उ ह ने अपनी सारी
संपि , अपना सौभा य, अपनी मयादा व यहाँ तक िक अपना पु भी गँवा िदया िकंतु अपने वचन
का मान बनाए रखा। इसी वंश म एक राजा अज हए, उ ह अपनी प नी इंदुमती से इतना ेम था
िक उनक म ृ यु होते ही, त ण अज ने भी देह याग दी। अज से दशरथ का ज म हआ और
दशरथ से राम ने ज म पाया।”
तभी एक घटना घटी। राम ने सीता क आँख म देखा; एक णांश के िलए उनका यान
िवचिलत हआ, उ ह ने धनुष पर आव यकता से अिधक बल दे िदया और उसके दो खंड हो गए।
धनुष भंग होने का वर ऐसा था मानो, हज़ार िबजिलयाँ एक साथ कड़क ह । इसे सबने सुनाः
आकाश म िवराजमान देव तथा पाताल म ि थत नाग। सभी त ध हो उठे । राम सफल रहे या
असफल हो गए? सबके ने जनक क ओर थे।
और वे बोले, “राम! आज से तुम जानक व लभ कहलाओगे, अथात जनक क पु ी सीता के
ि य।” सारी सभा म हष लास क लहर दौड़ गई।
-संि प रवार व ृ
परशरु ाम का रोष
धनुष भंग होने का वर सुन, परशुराम ने अपना फरसा उठाया और िमिथला क ओर दौड़े । उनक
उपि थित ने सबको भयभीत कर िदया। “कौन है यह मनु य, िकसने िकया इतना साहस, जब
केवल िशव के धनुष को मोड़ने क बात तय थी तो उसने इसे भंग कैसे िकया?” परशुराम गरजे।
जनक उठ कर, ु तेज वी महा मा के रोष को शांत करने ही वाले थे िक िव ािम ने उ ह
बाँह से थाम कर रोक िलया। “यह युवक वयं ही सब संभाल लेगा।” उ ह ने जनक के कान म
धीमे से कहा।
राम के मुख पर भय क एक भी रे खा नह िदखी, वे बोले, “यह धनुष मने भंग िकया।”
“तुम कौन हो?”
“कौश या पु राम, रघु वंश का वंशज, अयो या का राजकुमार।”
“वही िजसने पाप कम म िल होने वाले यािभचा रणी अिह या का उ ार िकया। या तुम जानते
हो िक म कौन हँ?”
“आप मेरे जैसे नाम वाले, भग
ृ ु वंश के राम ह, िज ह अपने परशु के कारण, परशुराम भी कहा
जाता है, िज ह ने अपने िपता के कहने से अपनी माता रे णुका का शीश काट िदया था य िक वे
परपु ष का िवचार अपने मन म लाई ं थ ।”
“जब िकसी यो ा से धनुष को केवल मोड़ने के िलए कहा जाता है, और वह उसे तोड़ देता है तो
इससे पता चलता है िक उसका मन पर वश नह है, जैसे मेरी माता अपनी इ छा को वश म नह
कर सक , और जैसे कातवीय अपने लोभ को वश म नह रख सका,” परशुराम ने घोषणा क ।
“उस कार के मन को या कहगे, जो अपने रोष को वश म न रखते हए; एक के बाद एक
राजाओं, एक के बाद एक पीिढ़य तथा एक के बाद एक वंश को केवल इसिलए म ृ यु के घाट
उतार रहा है य िक उसे आशा है िक बार-बार द ड देने से, एक संपण
ू संसार क रचना क जा
सकती है?” राम ने पछ
ू ा।
परशुराम के पास कोई उ र नह था। उ ह ने इस युवक के मुख से ऐसे तीखे पलटवार क अपे ा
नह क थी। वायुमंडल म तनाव या था। उनके आसपास खड़े लोग, मारे भय के, खुल के ास
तक नह ले पा रहे थे। “ या तुम कहना चाहते हो िक दमन करना अनुिचत है?” परशुराम ने
पछ
ू ा।
“दमन या िनयं ण से पशुओ ं को अधीन िकया जा सकता है। समाज का उ े य यह नह होता िक
मानवता को पािलत बना िदया जाए, समाज मानवता को े रत करने के िलए बना है।” राम ने
उ र िदया।
“ऐसे म सं कृित क रचना कैसे होगी? िफर तो हम भी रा स क तरह जीना चािहए? िकसी भी
कार के िनयम के अभाव म, बलशाली दुबल पर राज करे गा और कोई भी असहाय जन का
सहाय नह होगा,” परशुराम िच लाए।
“िनयम को इस तरह लागू नह िकया जा सकता िक वे लोग को देख-रे ख करने के िलए िववश
कर सक। इस तरह तो केवल भय उ प न होगा। सारी सं कृित का चरम उ े य यही है िक इस
भय से उबरा जाए तािक हम िकसी का कुछ भी छीनने, िनयंि त करने या िकसी को अधीन
करने का िवचार भी मन म न आए। आपक माता का िशरो छे दन इसिलए नह हआ िक उ ह ने
परपु ष क चाहना क थी, ऐसा इसिलए हआ य िक आपके िपता ने वयं को अधरू ा महसस ू
िकया। आपने कातवीय का वध िकया और इसके कारण, उनके पु म ितशोध क भावना का
बीजवपन हआ, िजस तरह जमदि न क ह या से आपके भीतर ितशोध का बीज अंकु रत हआ।
आप इसे याय कहते ह िकंतु िकतने द ड को पया कहा जा सकता है - जबिक मा दे कर,
आगे बढ़ने का अवसर उपि थत हो? जो समाज अधरू े पन को थान नह देता, वह कभी एक
स नतापण ू समाज नह बन सकता।”
राम के ये वचन सुन परशुराम मुिदत हो उठे । धरती पर येक राजा कातवीय क तरह नह था।
अब भी आशा क िकरण शेष थी। वे मु कराए। सबने राहत क साँस ली।
परशुराम राम को अपना धनुष देते हए बोले, “तुमने िशव का धनुष, िपनाक भंग िकया है। म
देखना चाहता हँ िक तुम वै णव धनुष, सारं ग को संभाल पाते हो अथवा नह ?”
राम ने धनुष िलया, उस पर बाण चढ़ाया और सहज भाव से डोरी को पीछे ख च िदया। परशुराम
ृ ु वंश के पास था। उनके अित र कोई दूसरा उसे
भािवत हो उठे । वह धनुष अनेक पीिढ़य से भग
उठा तक नह सकता था, उसे चलाना तो बहत दूर क कौड़ी रही।
“मने इस धनुष पर बाण चढ़ाया है। अब मुझे इसे कहाँ छोड़ना चािहए? यह बाण यथ नह जा
सकता।” राम बोले।
“इस बाण को मेरे मन पर छोड़ द य िक मने यह मान िलया था िक म अकेला ही, िनयम को
लागू करते हए, संसार क सारी सम याओं को हल कर दंूगा। आप मेरे मन क सीमाओं को न
कर द, मुझे यह समझने म सहायता कर िक अगर एक स न समाज क रचना होनी है तो
िनयमेां का पालन वे छा से होना चािहए।”
राम ने जो बाण छोड़ा, वह परशुराम के मन म जा कर लगा और उ ह सारी सीमाओं से मु कर
िदया। आज से पहले सबने भौितक ल य ही देखे थे। आज वे िकसी मानिसक ल य के संधान के
सा ी बने थे।
परशुराम इतने स न हए िक उ ह ने संसार को यागने क घोषणा कर दी। “जब कातवीय ने
मेरे िपता क गाय चुराने का य न िकया और नरे श के ित हमारा िव ास भंग िकया, उसके
साथ ही कृत युग का अंत हआ। अब म देख सकता हँ िक राम के आगमन के साथ ही ेता युग
का आरं भ हआ है, जो राजाओं के ित मानवता के िव ास को पुनः जागतृ करगे। अब म न तो
ि य का वध क ँ गा और न ही उ ह क याणकारी बनने के िलए भयभीत क ँ गा, य िक अब
उनके बीच एक ऐसा यि है, जो उ ह यह िदखाएगा िक एक संपण ू राजा कैसा होता है। मेरा
काय परू ा हो गया है।”
परशुराम ने अपना परशु, सागर म डाल िदया और मह पवत पर चले गए, उ ह ने सदा के िलए
िहंसा का याग कर िदया था।
हाथी, अ , बैल व ख चर का बड़ा सा कारवाँ िमिथला से अयो या के िलए रवाना हआ, िजस
पर वे सभी उपहार लदे थे, जो वधुओ ं के घर से, भेजे गए थे। उनम व , आभषू ण और श
शािमल थे। अनेक कलाकार तथा उनके प रवार भी, िवदेह धरती से कौशल क ओर चले तािक
अपने कौशल का दशन कर सक। सीता ने िवशेष प से अनाज, दाल , सि ज़य , फल , मसाल
व जड़ी-बिू टय के बीज क र ा क । वे सब उनके पित के घर के बाग म उगाए जाने थे तािक
उनके मन म मायक क मिृ त बनी रहे । जब भी कोई वधु अपने पित के घर म वेश करती है तो
वह अपने साथ एक नई पीढ़ी का वचन ही नह लाती, वह अपने साथ नया आहार, एक नई
सं कृित तथा नए िवचार भी लाती है, जो उसके पित क गहृ थी को भरा-परू ा बनाते ह।
ायः कोई राजा िकसी एक राजकुमार से ही अपनी सारी पुि य का िववाह कर देता
था। यहाँ दशरथ के सभी पु के साथ जनक क पुि य का िववाह, इस महाका य के
आदश का मरण िदलाता है : एक ही ी से िववाह, यह था अिधकतर कथाओं म
नह िदखाई देती।
वैिदक काल से ही, िववाह को केवल एक ी तथा पु ष का संयोग ही नह माना
गया, यह दो सं कृितय के आपसी िवलयन का भी एक अवसर होता है तािक एक
पुराने घर म नई मा यताओं व िव ास को वेश िमल सके और उनका पुनः उ ार हो।
भारत के वैवािहक अनु ान म, ऐसे तीक िमलते ह, िजनक जड़ कृिष अ यास से
जुड़ी ह, िज ह आधुिनक मन अ िच से नकार सकता है, इन िवचार के अनुसार
पु ष एक कृषक है, जो बीज बोता है तथा ी खेत के प म बीज को अंकु रत
करती है।
तिमलनाडू, आं देश व कनाटक म, क याओं को उनके थम मािसक-धम अथवा
िववाह के समय, लाल चंदन क लकड़ी से बनी नर-मादा गुिड़याँ उपहार म देने का
चलन है। ये राजा-रानी गुड्डे -गुिड़याँ, नवराि उ सव के दौरान दशाए जाते ह और
गहृ थ जीवन के आनंद का सच ू क होते ह।
महाका य म जनक को एक पा के प म लेते हए, वा मीिक ने प कर िदया िक
वे राजाओं, चरवाह तथा कृषक के िवचारहीन भौितकवाद पर िच ह लगाना
चाहते ह। जनक क पुि य से अपे ा क जाती है िक वे व तुओ ं से नह िवचार के
मा यम से, स नता पाने क चे ा करगी।
िमिथला (सीता का घर), अयो या (राम का घर) का दि ण है तथा अयो या मथुरा
(कृ ण का घर) के दि ण म है। ये तीन ही गंगा के मैदानी इलाक़ म ह। सां कृितक
प से, यहाँ तक िक आज भी, इन तीन क सं कृित बहत िविश रही है। िमिथला
क सं कृित का संबंध ामीण कला व िश प से रहा; अवध या अयो या शहरी
प र कृत सं कृित का सच ू क रहा; ज या ज भि का क रहा। इनम से येक क
अपनी बोली है : मैिथली, अवधी व जभाषा।
अनेक िव ान के अनुसार ई र के अवतार राम, तथा नायक राम म अंतर है। वे पहले
और सातव अ याय यानी बाल-कांड व उ र-कांड को, बाद म िलखा हआ मानते ह।
उनका कहना है िक वे मल ू का अंश नह ह। हालाँिक रामायण का जादू, एक मनु य
के उन संघष से उपजता है, जो अपनी दैवीय संभावना को साकार करना चाह रहा है।
या हम अहम् से ऊपर उठ कर आ म का अनुभव पा सकते ह? या अहम् अिनवाय
प से वाथ तथा आ म अिनवाय प से यायी है? इनम से कौन अिधक नेही,
यायी व देख-रे ख करने वाले ह - नायक राम अथवा दैवीय राम? इस तरह एक
मानवीय उपजता है, िजसम एक यि एक अधरू े जगत म संपण ू जीवन जीने
क चे ा कर रहा है, जहाँ येक क िवचारधारा तथा मत िभ न ह।
नेपाल के जनकपुर म जानक मंिदर ि थत है, जहाँ स हव सदी के संत
सुरिकशोरदास जी को भगवती क सुवण ितमा िमली थी, उ ह ने ही सीता-उपासना
पर बल िदया। यहाँ ितवष नवंबर-िदसंबर माह म सीता का िववाह रचाया जाता है।
खंड तीन
वनवास
“वे पित क अनग ु ािमनी बन तािक उनके पित
वयं को कभी अधरू ा अनभ
ु व न कर।”
अयो या म वेश
तीन रािनयाँ, अयो या के ार पर खड़ी थ तािक उन चार ि य का वागत कर सक, जो
उनके पु को पु ष म बदल दगी। शंख विन क गई और जीभ को मुख म घुमाते हए, उलक ू
विन क गई तािक सकारा मक ऊजाओं को आकिषत करते हए, नकारा मक ऊजाओं को दूर
भगाया जा सके। सारे वायुमंडल म संगीत या था : ढोल, दमामे, नगाड़े और झाँझ बज रहे थे।
सारी नगरी को पि य , पु प व दीपक से सुसि जत िकया गया था। येक घर के स मुख,
वधुओ ं के वागत के िलए अ पना बनाई गई थी, िज ह सब, धन क भगवती ल मी के, लघु प
म देख रहे थे।
देिवय क भाँित वधुओ ं ने भी कमल पु प धारण िकए हए थे। उनके कंठ म मोितय क मालाएँ ,
हाथ क अंगुिलय म अंगिू ठयाँ तथा कलाईय म चिू ड़याँ थ । उनके केश म िसंदूर लगा था, जो
इं के िलए इस बात का सच ू क था िक वे िववािहत ि याँ थ , उन पर केवल उनके पित का
अिधकार था।
ार पर धान से भरे पा रखे गए, और वधुओ ं से कहा गया िक वे उ ह पैर से धकेल कर, भीतर
वेश कर। उ ह लाल रं ग पर चलने को कहा गया और उनके पैर क छाप, सत ू ी मलमल के व
पर संजो ली गई। उनके हाथ लाल महावर से रं गे गए और उ ह कहा गया िक वे ेत गौओं क
देह पर अपने हाथ क छाप अंिकत कर। उ ह घर के येक िह से म ले जाया गया, बाहरी
ांगण, जहाँ घर के पु ष िनवास करते थे और िफर अंतःपुर, जहाँ घर क ि य के िनवास थे।
उ ह गौशाला, अ शाला, हािथय के बाड़े , रसोईघर क बिगया तथा अंततः रसोईघर म ले जाया
गया। उ ह हरी शाक से भरे बतन म, कड़छी चलाने को कहा गया, िज ह आग पर पकाने के
िलए रखा हआ था। उ ह आँच पर रखे दूध म आए उबाल को देखने के िलए कहा गया। उ ह
िपजंरे म बंद शुक-शुक को देखने के िलए कहा गया और िफर उनसे कहा गया िक वे उसे िपंजरे
क क़ैद से मु कर द। इसके बाद उ ह ने मु पंिछय को एक साथ आकाश म उड़ान भरते
देखा।
चार राजकुमार को उनक वीरता का दशन करने को कहा गया। आकाश क ओर बाण
बरसाए गए; वे बाण पु पमालाओं म बदल गए और, सड़क के दोन ओर खड़ी, जय-जयकार
करती भीड़ के बीच, लोग के कंठ म आ िगरे । बड़ी द ता व िनपुणता के साथ तलवारबाज़ी तथा
भाल के संचालन का दशन हआ। कौशल के इस अभत ू पवू य को देख दशक चिकत हो उठे ।
अंततः, उनके नाक छे द कर, मोती व हीरे के ल ग पहनाए गए, वधुओ ं क बाई ं नािसका तथा वर
क दाई ं नािसका का छे दन िकया गया।
अयो या म येक जावासी आ त था भिव य सुरि त तथा उवर होने वाला था।
विश युवक से बोले, “जब तक तुम सबके जीवन म पि नय का वेश नह हआ था, तुम
िश य थे, िजनका संपि पर कोई अिधकार नह था। जब तक प नी साथ है, तभी तक तुम संपि
पर अपना अिधकार रख सकते हो। उसके िबना, तुम य नह कर सकते; तब केवल तप या ही
क जा सकती है।”
विश क प नी, भगवती अ ं धती भी वधुओ ं से भट करने आई ं व उ ह अपनी कथा सुनाते हए
कहा, “वन म हम सात जोड़े रहते थे। हमारे पित ऋिष थे, जो य व तप आिद म िन णात थे, हम
उनक िन ावान पि नयाँ थ । एक िदन, हम सब नान के प ात्, य -शाला म अि न क
उपासना करने गई ं। अ य पि नयाँ, अपना काय शी समा करने क चे ा म, अपने िववािहत
होने से जुड़े सारे तीक धारण करना भल ू गई ं - उनके गले म मंगल-सू , कलाईय म चिू ड़याँ,
केश म िसंदूर क रे खा व पैर म िबछुए आिद नह थे। अि न देव ने उ ह भल ू वश, पितय से रिहत
ि याँ मान िलया और उनसे संबंध थािपत कर िलए। म इस घटना से अछूती रही। ऋिषय ने
अपनी पि नय का याग कर िदया; अब वे मातक ृ ा के नाम से जानी जाती ह, वनदेिवयाँ, वे
िकसी भी पु ष से नह बँध ह। केवल म, विश ऋिष क प नी अ ं धती, य -शाला म अपने
पित क सेवा करती हँ, अ य छह तपि वन् हो गई ह तथा िकसी ी से भट नह करत । मेरे नाम
से स िष मंडल के िनकट ही एक तारा भी है तथा वे छह ि याँ, जो कभी मेरी बहन भी थ , वे
एक और तारा-समहू के नाम से िव यात ह, िजसे कृि का कहते ह।”
सुिम ा ने वधुओ ं से कहा िक उ ह उस रात अपने पितय से कहना चािहए िक वे उ ह अ ं धती
नामक तारा िदखाएँ । वे थम बार उनक देह का पश करगे, वे उनका हाथ थाम कर उ ह उस
तारे क ओर इंिगत करगे, िजसे वैिदक ा क भिू म, आयावत म, वैवािहक िन ा का तीक
माना जाता है।
“परं तु कुछ समय के िलए अलग ही रहना होगा,” कैकेयी बोल । य िक क याएँ अभी अ पायु
थ । उ ह उनके िनजी िनवास नह िदए जाएँ गे। वे अपने पितय क माताओं के साथ रहगी और
उनके पित, अपने िपता के िनवास थान म रहने चले जाएँ गे।
जब उिचत समय आने पर, कमल िवकिसत ह गे, तो ेम के भगवान, काम-देव को मरण िकया
जाएगा, िक वे युवा दय पर काम बाण चलाएँ और वर युवक को, भौर के प म उनक वधुओ ं
क पु प से सुसि जत शै या पर आमंि त िकया जाएगा।
तीन रािनय के साझे ांगण म, कैकेयी क माँग सबसे अिधक रहती थी। वे सबसे सुंदर तथा
साहसी रानी मानी जाती थ ।
क क दीवार पर िभि िच सजे थे, िजनम उ ह महाराज क सारथी के प म िदखाया गया
था, जब महाराज को देवराज इं क ओर से, असुर से यु के िलए जाना पड़ा था। उ ह ने बाण
क वषा से महाराज क र ा क और उ ह अपने श द से े रत करते हए, समरांगन म रथ को
भी कुशलतापवू क संभाला। उसी समय, रथ के पिहए क धुरी टूट गई। एक ण का भी संकोच
िकए िबना, वे झुक और पिहए म अपना हाथ झ क िदया, वे अपनी बाजू के अगले िह से को धुरी
के थान पर रख कर, रथ संभालती रह ।
कैकेयी क कथाएँ बहत ही आनंददायक थ , िवशेष प से उ ह अ के बारे म बहत जानकारी
थी। वे उ र-पि म म अ क भिू म से आई थ । उनक दासी मंथरा, िजसने एक दाई क तरह
उ ह बा यकाल से पाला-पोसा और िफर उनके पु भरत क भी धाय-माँ रही, वह बहत अ छा
भोजन पकाती थी। इस तरह क याओं का बहत सारा समय रसोईघर म बीतने लगा, जहाँ वे
कैकेय, कौशल तथा िवदेह म, अलग-अगल तरह से बनाए जाने वाले पकवान का िश ण लेने
लग ।
कौश या ने उन सबके िलए गुिड़याँ बनाई ं। सुिम ा उनके बाल सँवारते हए, उ ह नाना जतन से
सजात , परं तु वे कैकेयी के िक स तथा मंथरा के हाथ तैयार भोजन क ओर सवािधक
आकिषत होत ।
“वे जानती ह िक सबके दय पर एकछ राज कैसे िकया जाता है!” सुिम ा कहत ।
“भले ही वे महाराज क ि य रानी ह ,” कौश या बोल , “िकंतु राम उनका सबसे ि य पु है।”
मंथरा ने यह बात सुन ली और दुघटनावश उबलते दूध म न बू का रस का िनचोड़ बैठी, िजससे
सारा दूध फट गया।
सारे भारतवष म राम के चं मा अनुराग क कथा सुनाई जाती है। राम को रामचं भी
कहते ह य िक शपू णखा तथा सीता के िवषय म उनके िलए गए िनणय ने उनक
सय ू वंशी क ित को कलंिकत कर िदया था।
बाद म िलखी गई रामायण से कैकेयी ारा दशरथ क ाण-र ा वाला संग िमलता
है।
वा मीिक रामायण म कैकेयी को दशरथ क सबसे ि य रानी माना गया है, संभवतः
ऐसा इसिलए था य िक उसके ारा एक यश वी पु को ज म देने क भिव यवाणी
हई थी और वे ऐसा ही पु पाने के अिभलाषी थे।
कैकय भारत के उ र-पि म म, अफ़गािन तान व पािक तान के िनकट ि थत है।
महाका य क अनेक रािनयाँ जैसे महाभारत क गांधारी तथा मा ी भी इसी देश से
थ । यह थान अ से संबंध रखता है इसिलए कैकेयी के िपता, अ पित यानी अ
के वामी कहलाते थे।
तीन रािनयाँ
सीता जानती थ िक लोग उ ह जनक पु ी, िमिथला िनवािसनी तथा िवदेह भिू म से होने के नाते,
जानक , मैिथली तथा वैदेही के नाम से पुकारते थे। परं तु उनका एक नाम भी था, सीता। वे यही
िवचार करती रहत िक कौश या का वा तिवक नाम या रहा होगा, य िक उनके नाम का तो
केवल इतना ही अथ था िक वे कौशल देश क राजकुमारी थ ।
दशरथ उ र-कौशल के नरे श थे, िजनक राजधानी साकेत म थी। कौश या के भाई, दि ण
कौशल के महाराज थे, िजनक राजधानी काशी म थी। उन दोन के बीच कई बार यु हए। जब
दि ण कौशल क राजकुमारी ने, उ र कौशल के महाराज से िववाह के िलए आ ह िकया, तब
जाकर उनके बीच संिध थािपत हो सक । जब कौश या दशरथ क रानी बन , तो दोन रा य
िमल कर एक हो गए और साकेत को अयो या के नाम से जाना गया, जहाँ यु नह लड़े जाते।
सीता यह भी सोचती थ िक कैकेयी का नाम या रहा होगा, उनके नाम का भी तो यही अथ
िनकलता था, ‘कैकेय देश क राजकुमारी’। उनके िपता, अ पित अपने अ के वािम व के
िलए िस थे। उनके भाई, यु िजत एक महान यो ा थे। कैकेयी ायः अपने भाई के साहस क
कथाएँ सुनात ; उनके बीच बहत आ मीयता थी य िक कैकेयी अभी बहत छोटी थ , जब उनक
माता का िनधन हो गया था।
सुिम ा ने एक बार उिमला और ुतक ित को कैकयी क माता के बारे म बताया था। महाराज
अ पित को यह वरदान था िक वे पशु-पि य क बोली समझ सकते थे परं तु उ ह यह चेतावनी
दी गई थी िक यिद उ ह ने पि य के मुख से सुनी बात को िकसी से बाँटा तो वे त ण मारे
जाएँ गे। एक िदन, अ पित कैकेयी क माता के साथ झील के िकनारे बैठे थे, तभी उ ह ने एक
हंस के जोड़े को आपस म बात करते सुना। उस बातचीत को सुन कर उनके मुख पर हँसी खेल
गई। उनक महारानी जानना चाहती थ िक हंस ने या कहा। महाराज ने उ ह बताया िक ऐसा
करने से उनके ाण जा सकते ह। महारानी बोल , “यिद आप मुझसे स चा ेम करते ह, तो
आपको मुझे बताना ही होगा िक हंस आपस म या बात कर रहे थे।” महाराज को लगा िक
उनक प नी मख ू ा थी, िजसे अपनी बात का अथ समझ नह आ रहा था या उसे उनके ाण का
मोह नह था। जो भी हो, वे उसे अपने साथ नह रखना चाहते थे। उ ह ने उसे उसके मायके
िभजवा िदया। कैकेयी और यु िजत को, धाय माँ मंथरा के हाथ स प िदया गया, िजसने दोन को
पाल-पोस कर बड़ा िकया।
और सुिम ा? यह तो प था िक वे कह क राजक या नह थ । एक िदन, मंथरा ने दबे वर
म मांडवी को, च क पर गेहँ पीसते हए बताया था, “िकसी राजवंश से नह ह। िकसी ा ण क
भी क या नह ह। संभवतः िकसी यापारी, चरवाहे या िफर सारथी क पु ी ह ग । िकसी अनुचर
क पु ी भी हो सकती ह। कहते ह िक नीची जाित क क या से िववाह करने से, संतान का मुख
देखना सहज हो जाता है। परं तु यह टोटका भी काम नह कर सका इसिलए महाराज को संतान
ाि के िलए य रचाना पड़ा। यही कारण है िक उनके पु दास क तरह िवनीत ह।”
एक िदन, जब चार वधुएँ अपने वर के साथ, रानी माँ के अंतःपुर म बैठी थ , तो सीता ने तिनक
ू ा, “आपके िपता क तीन रािनयाँ ह, िजनम से एक का वे बहत स मान
सकुचाते हए राम से पछ
करते ह, एक से अितशय ेम करते ह तथा तीसरी उनक सेवा करती है। म इनम से आपक
कौन सी रानी रहँगी?”
राम ने एक ण को भी सोचे िबना उ र िदया, “भले ही उनक तीन पि नयाँ ह िकंतु मेरी एक ही
प नी रहे गी। मेरी यह प नी मुझे जो भी दान करे गी, म उससे ही संतु रहँगा और आशा करता
हँ िक वह भी मेरे दाय से संतु रहे गी।”
सीता ने पित के औपचा रक सुर को सुना और मु कुराते हए कोमलता से बोल , “मने आपसे
पि नय के िवषय म नह , रािनय के बारे म पछ
ू ा था।”
राम का सुर अब भी औपचा रक था, वे कोमलता से बोले, “म अब एक पित हँ, िजसक एक प नी
है। अगर म राजा बनँग
ू ा तो मेरी प नी रानी होगी। सीता, ये दोन बात एक ही नह ह। मेरी प नी
मेरे दय म वास करती है, उसक संतुि के िलए ही मेरा अि त व है। रानी राजा के िसंहासन
पर िवराजमान होती है और उसका अि त व रा य क संतुि के िलए होता है,”
“ या यह पित अपनी प नी को जानता है?” सीता ने पछ
ू ा।
“प नी को यह पछ
ू ने क या आव यकता है? या उसे संशय है?”
“इस प नी ने सही मायन म अपने पित से बात तक नह क ।” सीता बोल ।
“वा तव म,” राम अचानक िवचारम न हो उठे । अभी तक उनका संबंध पर पर वातालाप से नह
बि क रीित- रवाज़ , अनु ान व िनयम के अधीन था। उ ह ने एक-दूसरे का हाथ थामा,
य िक वे एक अनु ान िनभा रहे थे। वे एक-दूसरे के साथ बैठे, य िक एक रीित को िनभाने के
िलए ऐसा करना अिनवाय था। उ ह ने एक-दूसरे के मुख म भोजन का ास िदया य िक यह
परं परा थी। वे उनके साथ चल , य िक ऐसा ही होता है। परं तु या वे सही मायन म अपनी प नी
को जानते थे? या वे उ ह जानती थ ? या उ ह ने पर पर भट क ? उ ह ने पर पर या देखा
: मन अथवा शरीर? वे अब भी राजकुमार और राजकुमारी थे, अभी तक पित और प नी नह बने
थे।
राम ने सीता को कौतहू ल और िज ासा के साथ देखा। उनक आँख एक अ ुत िव मय से चमक
उठ । सीता उसी समय दूसरी ओर देखने लग , वे लजा गई ं और वयं को संभालने का जतन
िकया, वे उन कोमल ने क गहराई से लरज उठी थ ।
जैन व बौ लेखन के अनुसार दशरथ पहले काशी पर राज करते थे और वे बाद म
अयो या आ गए थे।
साकेत अयो या का ही ाचीन नाम है परं तु इसे एक अलग थान के प म भी जाना
जाता है।
वा मीिक रामायण के दि णी पाठ्य म, दशरथ के सारथी व परामशदाता सुमं ,
कैकेयी के िपता ारा उनक प नी के प र याग क कथा सुनाते ह। इस कथा को,
ओिड़शा तथा आं देश क लोकगाथाओं म िव तार से सुनाया जाता है। इस तरह क
प ृ भिू म कथाएँ , लोग के यवहार क प रचायक ह य िक भारत म सारे कम को
िपछले संग का प रणाम ही माना जाता है। ऐसा कुछ नह है, जो अकारण घटता हो।
जैन पौमाचया म, सुिम ा, कमलासनकुलपुरा के राजा, सुबंधु-ितलक क पु ी ह।
आंचिलक पुनलखन म सुिम ा को भी एक राजकुमारी क तरह मा यता दी गई है
परं तु उनके राजवंश के बारे म िव तार से नह बताया गया। कौश या और कैकेयी का
नाम उन रा य पर आधा रत है, जहाँ से वे आई ह : कौशल तथा कैकेय! सुिम ा के
राजवंशीय इितहास के िवषय म लेखक मौन ह।
सुिम ा का नाम सुमं से िमलता-जुलता है इसिलए यह अनुमान भी लगाया जाता है
िक संभवतः वे उनक पु ी न ह । गंगा के मैदानी इलाक़ म गाए जाने वाले लोक-
गीत म, सीता क प रक पना एक सौभा यशाली तथा लाडली पु वधु के प म क
गई है, िजनके िलए, उनके सुर, पित व देवर घर म ही कुआँ खुदवाते ह। उ ह पानी
भरने के िलए गाँव के कुएँ या नदी पर नह जाना पड़ता।
ाचीन भारत म, िकसी पु ष व ख़ासतौर पर, िकसी राजा के िलए बहत सारी रािनयाँ
रखना एक आम बात मानी जाती थी। वैसे तो ौपदी के पाँच पित थे िकंतु इसे एक
अपवाद माना जाना चािहए। भारत के िहमालय म तथा दि ण के िनचले इलाक़ म
ऐसी कुछ जाितयाँ ह, जहाँ मिहलाएँ बहत सारे भाईय से िववाह करती ह, परं तु यह
कभी एक आम चलन नह रहा।
वण का िशकार
दशरथ बहत स न थे। तीन पि नयाँ, चार वीर पु , चार वधुएँ। कौशल का भिव य सुरि त था।
एक यि इससे अिधक और या कामना कर सकता था?
वे आनंदपवू क िशकार खेलने िनकल पड़े । उ ह ने आकाश म उड़ते पि य तथा धरती पर भाग
रहे खरगोश को अपना िनशाना बनाया। उ ह ने एक बाघ का पीछा िकया और उस पर घात
लगाने म सफल रहे । उ ह ने एक िहरण का पीछा िकया। िफर अपनी िनपुणता क परख़ के िलए,
उ ह ने तय िकया िक वे अपने ने पर प ी बाँध कर, श दभेदी बाण से संधान करगे। उ ह लगा
िक िनकट के ताल से, िकसी िहरण के पानी पीने का वर सुनाई दे रहा था, उ ह ने उसी िदशा म
बाण चला िदया। उसी समय, एक मनु य का ममभेदी ची कार सुनाई िदया।
दशरथ आँख पर बँधी प ी को उतार, उस आवाज़ क िदशा म लपके। उनका भय िनराधार नह
था, एक िहरण के भुलावे म उ ह ने िकसी युवक पर अपना बाण चला िदया था। बाण उसक छाती
के पार हो गया था। अब उसके पास जीवन के कुछ ही ण शेष थे। वह िकसी तरह बोला, “मेरे
माता-िपता, हे अनजान दयालु यि ! मेरे माता-िपता, उ ह िकसी सुरि त थान पर छोड़ दो।
िजस िशकारी ने मुझे अपने बाण से िनशाना बनाया है, वह उ ह भी मार सकता है।” इतना कहते
ही उसक म ृ यु हो गई।
दशरथ ने देखा िक जल म एक पा तैर रहा था। उ ह ने जो आवाज़ सुनी थी, वह इसी पा म से
आई होगी। वहाँ कोई िहरण पानी नह पी रहा था।
दशरथ आ म- लािन के भार से दब गए, उ ह ने शव को बाँह म उठाया और उसके माता-िपता
को खोजने लगे। तभी िकसी पु ष का दुबल वर सुनाई िदया, “आ गए बेटा वण?” तु हारी
पदचाप इतनी भारी य सुनाई दे रही है? तुमने या उठा रखा है?”
दशरथ ने युवक के माता-िपता को देखा : वे बढ़ू े और लगभग ने हीन थे। वे दो टोक रय म बैठे
थे, िज ह बहंगी क तरह लंबे डं डे के दोन ओर लटकाया गया था। िजस युवक को उ ह ने मारा,
वह अपने माता-िपता को कंध पर उठाए चलता होगा। “म कौशल का राजा दशरथ हँ। आप लोग
वन म या कर रहे ह?” उ ह ने कहा।
युवक क माँ बोली, “हमारा बेटा, हम तीथया ा पर ले जा रहा है। वह थोड़ा जल लेने के िलए
तीथयाि य के िलए बने पथ से इस ओर आ गया था। हम बहत यास लगी थी। वण ने एक बाघ
और िहरण को साथ जाते देखा। उसे लगा िक वे दोन िनि त प से िकसी जल के ोत क
ओर ही जा रहे ह गे इसिलए वह अपना पा िलए उनके पीछे गया है। बस लौटने ही वाला होगा।”
“ मा कर द, मुझे!” यह कह कर दशरथ व ृ माता-िपता के चरण म जा िगरे । िफर उ ह ने उन
दोन को बताया िक कुछ देर पहले या अनथ हआ था।
उन दोन ने दशरथ के हाथ से अपने पु क देह को ख च कर उसक दय गित और न ज़
देखी। वह तो वा तव म मर चुका था। माता िवलाप करने लगी और िपता ने रोष म आ कर दशरथ
को ाप िदया, “िजस कार मेरी प नी िवलाप कर रही है, उसी कार तू भी अपने पु के िवयोग
म िवलाप करे गा। िजस तरह मेरा दय मारे शोक के फटने को आ रहा है, उसी तरह तेरा कलेजा
भी दो टूक होगा, जब तेरे आनंद का ोत तुझसे दूर कर िदया जाएगा।”
“कृपया, मुझे आपक सहायता करने द। कृपया इसे समझने क चे ा कर।”
“नह , हमसे दूर रहो। हम इसी तरह अपने पु के शव को गोद म िलए, ाण का याग करने दो।
बाघ हम जीते-जी खा जाए। हमारी मतृ देह को िग नोच-नोच कर खा जाएँ । तुमने जो पीड़ा दी
है, उसक तुलना म, कम से कम वह पीड़ा सहनीय तो होगी।”
दशरथ वहाँ से दु कार िदए गए और लािन और भय के साए म िलपटे, महल लौट आए। “मेरे
पु … मेरे पु को मेरे पास लाया जाए,” उ ह ने आदेश िदया। राम और ल मण, उस समय
हािथय के बाड़े म थे, िपता के पास दौड़े आए। “भरत और श ु न कहाँ ह? या उ ह कुछ हो गया
है?” दशरथ ने पछू ा
“िपता ी, आपको मरण नह ?” राम बोले। “आपने ही तो मग ृ या पर जाने से पवू उ ह िवदा दी
थी। यु िजत मामा ने कैकेय से रथ भेजा था तािक उ ह निनहाल ले जाया जा सके। व ृ महाराज
अ पित रोगी ह, वे अंितम ास परू े करने से पहले, अपने नाितय से िमलना चाहते थे।”
“और यिद आज मेरा ाणांत हो जाए?” अनुचर ने उनके म तक से पसीना प छा, उ ह पानी
िपलाया और उनके चरण दबाने लगे। सभी एक-दूसरे को देख रहे थे।
महाराज को हो या गया था? वे इतने भयभीत य थे? “नह , अब अगला राजा िनयु करने
का समय हो गया है। अयो या को एक युवा राजन चािहए; अब व ृ राजा को सेवािनव ृ िकया
जाए। ह म, इससे पवू िक कोई मुझे मेरे पु से िवलग करे , मुझे इस िसंहासन से िवलग होना है।”
कोई समझ नह पा रहा था िक महाराज िनरं तर या बुदबुदा रहे थे। परं तु जब विश आए तो
दशरथ ने उ ह प श द म कहा : “कल सुबह, म अपने ये पु राम के शीश पर राजमुकुट
रखना चाहता हँ। म चाहता हँ िक कल राम का रा यािभषेक कर िदया जाए। अब वह िववािहत है।
वह वध करने और मा देने का अनुभव पा चुका है। वह रघु वंश का नेत ृ व करने म स म है।
और म भी सेवािनव ृ होने के िलए तुत हँ, म सुख से बैठ कर, उसे शासन करता देखँगू ा और
उसके पु को उसी कार िशि त क ँ गा िजस कार कौिशक ने मेरे पु को िशि त िकया
था।”
विश मुिन को भी यही लगा िक यह एक उ म िवचार था। महाराज वैिदक समाज क आ म
यव था को आदर दे रहे थे, िजसके अनुसार येक मनु य को अपने जीवन को चार आ म म
िवभािजत करना चािहए। आयु का थम चतुथाश एक चारी के प म िबताना चािहए, दूसरे
चतुथाश म एक उ पादक गहृ थ के प म जीवनयापन करना चािहए, तीसरे चतुथाश म अपने
पु को सहयोग देते हए, पौ को िश ण देना चािहए तथा चौथे चतुथाश म एक सं यासी का
जीवन जीते हए, घर तथा प नी का याग कर देना चािहए। इस यव था म पीिढ़य के वच व
वाला समाज नह रहता, हर पीढ़ी, आने वाली पीढ़ी के िलए थान बनाती है। परं तु वे महाराज क
इस अधीरता के ित सशंिकत थे।
मंथरा का िवष
महाराज के दरबार से होते हए, सारी नगरी और िफर सारी भिू म तक समाचार सा रत हो उठा।
अगले ही िदन, भोर बेला म, एक नए महाराज का रा यािभषेक होगा और व ृ महाराज अवकाश
हण करगे; इस कार अयो या नगरी व कौशल देश के िलए िनरं तरता व ि थरता का
आ ासन बना रहे गा।
इस समाचार ने एक उ सव सा रच िदया, एक कभी न समा होने वाला, िनरं तर चलने वाला एक
समारोह। कृषक अपने खेत से ज दी लौट आए, चरवाहे पशुओ ं को शी ही वािपस ले आए और
मछुआर ने भी निदय से बाहर आने म समय नह लगाया, वे सभी समारोह का अंग बनना चाहते
थे। घर को साफ़ -सुथरा कर, पु प से सुसि जत िकया गया। माग जैसे धो-प छ कर चमका िदए
गए और सब जगह जल का िछड़काव िकया जाने लगा तािक धल ू न उड़ सके। दीपक से जगमग
रोशनी कर दी गई। अनेक कार क पताकाएँ व वज तैयार िकए गए, तािक ातःकाल उ ह
लगाया व फहराया जा सके। िवशेष कार के यंजन तैयार िकए जाने लगे - कुछ भी ख ा नह ,
सभी कार के िम ा न, सभी म खन व शु घी म तैयार िकए जाने लगे! ी और पु ष ने
अपने सबसे नवीन और सुंदर व व प रधान िनकाले तािक नए राजा क शोभाया ा के समय,
उनका अिभनंदन करने जा सक। वे जानते थे िक नए महाराज रा यािभषेक समारोह के बाद,
अपने राजसी रथ म सवार हो कर, हाथी दाँत से बने छ तले, नगर का दौरा करने िनकलगे।
नगर के चौक म एक भ य दावत का आयोजन िकया जा रहा था। कु तीबाज़ , मनोरं जन करने
वाले तथा संगीत , नगरी क ओर लपके तािक इन सभी समारोह म िह सा ले सक, उ सव क
उमंग म झमू सक।
महारािनय के अंतःपुर म भी यह समाचार पाते ही हष क लहर दौड़ गई। कौश या बोल , “परं तु
या हम भरत और श ु न के लौटने क ती ा नह कर सकते?”
“सही कहा, म भी यही सोच रही थी िक अचानक इतनी अधीरता य ? अथवा यह सब पवू
िनयोिजत था?” मंथरा ने सोचा। और य - य वह इस िवषय का गहनता से िव े षण करने
लगी, उसके िवचार मंद बयार से, तेज़ तफ़
ू ान म बदल गए। अचानक उसे वह सब िदखने लगा,
जो शायद अब तक िकसी ने नह देखा था। और इन ढाँच ने उसे बुरी तरह से भयभीत कर िदया।
वह कैकेयी क ओर दौड़ी। जा कर देखा तो वह अपने ि य आभषू ण छाँटने म म न थी।
मंथरा ने ार बंद िकया, वह कैकेयी के सामने बैठ कर, छाती कूटते हए, फ़श को ताकने लगी।
वह लगातार, तेज़ी के साथ यह सब तब तक दोहराती रही, जब तक कैकेयी क ि उस पर
नह पड़ी। “यह या माँ, या कर रही हो?”
“तुम एक सुंदरी, वीरांगना और बुि मान हो, तु ह तो राजमाता बनना चािहए था। तु ह एक
महान राजा क थम प नी होना चािहए था। परं तु नह , तु हारे िपता ने तु ह इस अधम के हाथ
स प िदया, िजसक पहले से एक प नी थी। उसने तु हारे िपता से वादा िकया था िक तु हारा पु
ही उसका उ रािधकारी होगा। इसके बाद उसने तुम पर आरोप लगाया िक तुम उसे पु नह दे
सक । अपने-आप को राजा कहता है िकंतु अपनी ही अनुवरता का दािय व नह ले सकता। यहाँ
तक िक उस अनुचर क पु ी क कोख भी, उसके दुबल बीज को अंकु रत नह कर सक । तब
उसने मुिन को बुलवाया और पु पाने के िलए य रचाया। देव ने उसे य का साद िदया तािक
वह िपता बन सके। और िपता भी कैसा! जो अपनी पहली प नी के पु के आगे िकसी को कुछ
नह जानता! वह उसे महल म अपने पास रख कर, तु हारे पु को उस नीच िव ािम के साथ
वन म भेजना चाहता था। और िफर तु हारे पु का िववाह एक िनकृ युवती से कर िदया, जो
बड़ी वधु क छोटी बहन है, वह भी रानी बनने का अिधकार नह रखती। और अब, जब तु हारा
पु रा य से बाहर है, तो उसने ि य राम के रा यािभषेक क तैयारी कर ली है।
इस तरह कौश या तो राजमाता हो जाएगी और तुम कहाँ जाओगी? तु हारा पु महाराज का दास
होगा और तुम, मेरी सुंदर, वीर, बुि संप न व उवर कैकेयी, कौश या क दासी बनोगी। और म
दासी क दासी बनँग ू ी। मने भारी दय के साथ दूसरी रानी क दासी बनना इसिलए वीकार कर
िलया था िक एक िदन तुम राजमाता बनोगी। परं तु आज, सारी आशाएँ िन फल हो गई ं। यह सब
इसिलए हआ य िक तुम महाराज को लुभा नही सक , वह कौश या तुमसे बाज़ी मार ले गई।”
इस तरह कौश या तो राजमाता हो जाएगी और तुम कहाँ जाओगी? तु हारा पु महाराज का दास
होगा और तुम, मेरी सुंदर, वीर, बुि संप न व उवर कैकेयी, कौश या क दासी बनोगी। और म
दासी क दासी बनँग ू ी। मने भारी दय के साथ दूसरी रानी क दासी बनना इसिलए वीकार कर
िलया था िक एक िदन तुम राजमाता बनोगी। परं तु आज, सारी आशाएँ िन फल हो गई ं। यह सब
इसिलए हआ य िक तुम महाराज को लुभा नही सक , वह कौश या तुमसे बाज़ी मार ले गई।”
कैकेयी, जो अब तक बहत स नमना थी, उसने तो इन बात को इस तरह सोचा ही नह था,
जैसे मंथरा बता रही थी, अचानक उसके मन म भय के साए रगने लगे। या वह राजा के िलए
कोई मोल नह रखती थी? या उसके पु का कोई मोल नह था? या अब वह महाराज क ि य
रानी नह रही; उसे राजमाता क दासी बनना होगा और भरत? या वह राम का प रचारक
होगा? िफर उसने सोचा : परं तु राम ही तो सबसे अ छा और बड़ा पु है। वह एक वीर, बलशाली
तथा बुि मान युवक है। अयो या पर उसका ही शासन होना चािहए। एक यो य राजा और उसक
नेक माता क सेवा करने म हज़ ही या है?
मंथरा क यं णा जारी रही, “बिलदान देना अ छी बात है। िनधन सदा से धिनक के िलए याग
करते आए ह। दुबल बलशािलय के िलए तथा अनुचर अपने वामी के िलए बिलदान करते ही ह।
हम कौश या के चरण म अपने थान, अपनी िनयित को वीकार कर लेना चािहए। चँिू क
तु हारा पालन-पोषण, तु हारी राजवंश म ज मी माँ के नह , बि क मेरे हाथ हआ, यही कारण है
िक तु ह भी िववश हो कर मेरी तरह एक प रचा रका के गुण व यो यता का दशन करना
होगा।”
कैकेयी ने िकसी ु नािगन क तरह फन उठा िलया, िजसक पँछ ू पर िकसी ने भल ू से पाँव धर
िदया हो। “कभी नह , म िकसी क दासी नह । म एक रानी हँ और सदा रहँगी। म अपने पित के
पास जा कर कहँगी िक वे ऐसा न कर। वे मेरी बात अव य सुनगे। वे सदा मेरी बात का मान
रखते ह।”
“हाँ, यह तो स य है िकंतु अभी ऐसा नह होगा, इस समय तो विश और कौश या उ ह घेरे बैठे
ह। उ ह यहाँ तु हारे पास एकांत म आने दो। तब उनसे माँग करना िक वे अपना वचन परू ा कर।”
“वचन, कैसा वचन?”
मंथरा ने कैकेयी को उन दो वचन का मरण कराया, जो दशरथ ने उसे, यु े म उसके ाण
क र ा करने पर िदए थे, वे अभी तक माँगे नह गए थे। “अरे हाँ।” कैकेयी के मुख पर धत
ू
मु कान खेल गई।
राम का मुख, यथावत् शांत रहा, वे बोले, “िदए गए वचन को तो अव य िनभाना चािहए। म
त काल वन जाने क तैयारी करता हँ और अपने भाई के िलए राजिसंहासन खाली करने म मुझे
हष का अनुभव हो रहा है। ऐसा न हो कह कोई कह दे िक रघुवंश के िकसी सद य ने अपने
वचन का मान नह रखा। जा कभी अयो या के नरे श क स यिन ा पर संशय न करने पाए।”
दशरथ बुरी तरह से िबखर गए। यिद उनके पु ने इस ताव का िवरोध कर िदया होता तो सब
कुछ िकतना आसान हो जाता, काश उसने अपनी ओर से कोई सफ़ाई माँगी होती या कम से कम
थोड़े रोष का ही दशन कर देता।
कैकेयी ने चुटक ली, “इसम कोई संदेह नह , यह आपका सबसे ि य पु य है। यह तो कोई भी
िकए िबना, आपक हर आ ा का पालन करता है।”
“दु ी! तू ने हीन हो गई है। यहाँ एक पु िपता क आ ा का पालन नह कर रहा। रघुवंश
का राजकुमार, राजक य ित ा का मान रख रहा है।”
कैकेयी को इन बात को सुनने क परवाह नह थी। और मंथरा कौश या के अंतःपुर क ओर,
उमगती हई दौड़ी, सबको यह शुभ समाचार भी तो देना था।
समाज म िकसी मनु य का मोल, उसक ाि य के आधार पर ही िकया जाता है। परं तु
राम इस तरह अपना मू यांकन नह करते। वे अयो या के िसंहासन को अपनी संपि
नह मानते। इस तरह वे उसे सहजता से छोड़ सकते ह। यह उनक ा का सचू क है।
तप या मनु य को इस यो य बनाती है िक वह सुिनि त कर सके, वह वयं को कैसे
मोल देना चाहता है; इस कार यह पता चलता है िक वह समाज म िकस कार का
य रचाएगा। परं तु राम ारा अयो या के ित िवरि का जो भाव पहले भला लगता
है, वही महाका य के अंत तक आते-आते भयंकर लगने लगता है, जब राम वयं को
अपनी प नी से भी िवमुख व िवर कर देते ह। यह महाका य िवरि के गहरे
अंधकार से भरे प क ओर भी इंिगत करता है। यह सब उतना क याणकारी नह
होता, िजतना इसे सदा बनाने का य न िकया जाता है।
राम को मयादा पु षो म के प म पज ू ा जाता है, जो िनयम का पालन करते ह। इस
कार उनके िनणय भाव पर नह , िकसी राजकुमार से अपेि त सामािजक यवहार
पर आधा रत होते ह। यह भेद बहत ही आलोचना मक है। राम भावनाओं के थान पर
िनयम को अिधक य देते ह, यही कटु स य उस समय न न प म आ जाता है,
जब वे अपनी प नी का याग करते ह। िनयम का पालनकता अपने राजसी वचन
तथा राजसी ित ा का मान बनाए रखता है। इससे उसे कोई अंतर नह पड़ता िक
उसके इस िनणय से उसके िपता व प नी का दय पीिड़त हो रहा है। िनयम का
पालनकता न तो आ ाकारी पु है और न ही नेही पित; वह तो केवल अपने िनयम
िनभाना जानता है। इस तरह यह समाज क आदश यव था का अिभयोग िदखाई देता
है, जहाँ िनयम व तं को यि य से अिधक मान िदया जाता हो।
वा मीिक रामायण म प प से िलखा है िक दशरथ ने कैकेयी को अपनी प नी
बनाते समय, यह वचन िदया था िक उनका पु ही राजिसंहासन का वा तिवक
उ रािधकारी होगा। राम को इस िवषय म जानकारी थी इसिलए वे कभी कैकेयी पर
अिभयोग नह लगाते।
पाँचव सदी ई. तक, राम को एक महामानव नायक माना जाता था, यहाँ तक िक
वा मीिक क रामायण म भी राम को अपनी िद यता का भास होने का संकेत िदया
गया है, परं तु इसे कभी कट नह िकया गया। पाँचव सदी ई. के बाद से, राम को
धरती पर िव णु के अवतार, एक आदश राजा के प म देखा जाने लगा, जो अपने
वचन को सबसे अिधक मान देते ह। दसव सदी तक, राम के दैवीय व प के िवषय
म कोई संदेह नह रहा। क बन के तिमल रामायण सं करण इरामवतारम् (इस
अवतार को राम कहा गया है) म राम अपनी ही िद यता से संघषरत ह तथा धीरे -धीरे
मौन म चले जाते ह, य िक उनके कम ायः, उन दैवीयता से रखी जाने वाली
अपे ाओं से ठीक िवपरीत जान पड़ते ह। बारहव सदी तक, वेदांत िव ान रामानुज के
लेखन के बाद, राम को ई र के समतु य माना जाने लगा और इस तरह राम-भि
का आरं भ हआ, जहाँ राम को ई र के प म दशाया गया है और उ ह अपने ई र व
का माण नह देना पड़ता। महाका य म यह सभी को ात है िक वे वयं भगवान ह
और सभी उनसे, इसी प म यवहार करते ह।
राम के साथी
कौश या और सुिम ा कैकेयी के महल म दौड़ी आई ं और उनके पीछे ही ल मण, सीता व उिमला
भी आ गए। अब तक अधंकार म डूबे महल म दीपक जलाए जा चुके थे। उ ह ने िटमिटमाती लौ के
बीच, महाराज को कैकेयी के पलंग पर और राम को उनके चरण के िनकट बैठा देखा। महाराज
बहत याकुल िदख रहे थे, कैकेयी के चेहरे पर िवजयी भाव थे और राम सहज व वाभािवक
िदखे। वे अपने आभषू ण को खोल कर, वह धरती पर ढे र करते जा रहे थे।
कौश या तो यह य देख बेसुध सी होने लग , परं तु सुिम ा ने थाम िलया। यह सारा य सच
था!!
ल मण ने घोषणा क , “म आपके साथ चलँग ू ा। म महल म भी सदा आपके साथ छाया क भाँित
रहा हँ। वन म भी आपक छाया बना रहँगा।” राम ने एक भी श द नह कहा।
“म भी साथ चलँग
ू ी,” सीता बोल
“नह ,” राम िच लाए और सभी त ध हो उठे । इसके बाद उ ह ने अपने सुर को थोड़ा नीचा करते
हए सीता को समझाया, “वन राजकुमा रय के िलए नह बने। यह महल म रह कर मेरी ती ा
करो।”
“मुझे साथ चलने के िलए आपक अनुमित नह चािहए। म आपक प नी हँ और मुझे सदा आपके
साथ होना चािहए, भले ही आप िसहांसन पर ह , यु भिू म म ह या िकसी वन म! आप जो खाएँ गे,
म भी वही खाऊँगी, आप जहाँ सोएँ गे, म भी वह िव ाम क ँ गी। आप उस धनुष क मठ ू ह, जो
हमारा िववाह है; आपको उसे परू ा करने के िलए डोरी चािहए। मेरा थान केवल आपके साथ है,
वह कह और नह है। भयभीत न ह , म आप पर भार नह बनँग ू ी; म अपना दािय व वयं ले
सकती हँ। जब तक म आपके साथ और आपके पीछे हँ, आपको िकसी चीज़ क आव यकता नह
होगी।”
िकशोरी सीता के वचन को सुन महल म सभी आ यचिकत हो उठे । वह तो सही मायन म
जनक क पु ी थी, धरती से ज मी, ऋिषय के बीच पली-बढ़ी, जो उस िशव धनुष को अकेले ही
उठा लेती थी, िजसने बाक़ सबको कुचल कर रख िदया था।
“और म अपने पित के साथ चलँग
ू ी,” उिमला बोली।
ल मण ने अपनी प नी को एक ओर ले जा कर कहा, “तुम यह रह कर, मुझे अपना सहयोग दो।
म अपने भाई तथा उनक प नी क सेवा के िलए वन म जा रहा हँ। अगर तुम साथ चलोगी, तो
मेरा यान भटक जाएगा।”
“आपक सेवा कौन करे गा?” उिमला ने पछ
ू ा
“तुम यह रह कर मेरी सेवा करो। मुझे अपने दय म धारण करो।”
सुिम ा ने वह कहा, जो सभी कहना चाहते थे, “वन म चौदह वष! या तु ह इसका अथ पता है?
चँवर के िबना चौदह वष क भीषण गम , ओढ़ने के िबना चौदह वष क शीत और छ के िबना
चौदह वष क वषा ऋतु।”
सीता बोल , “माँ, आप अपने पु क िचंता न कर। गिमय म, म छायादार व ृ खोज लँग ू ी,
िजनके तले वे िव ाम कर सकगे। सिदय म, म उनके शरीर को गरमाहट देने के िलए अलाव
जलाए रखँग ू ी। वषा ऋतु के दौरान म ऐसी कंदराएँ खोज लँग
ू ी िजनम रहने से वे भीगगे नह । वे
मेरे साथ परू ी तरह से सुरि त ह।”
कौश या का दय नेह-िवगिलत हो उठा : ‘यह ब ची नह जानती िक भा य ने इसके िलए
या- या िलख रखा है’, उ ह ने सोचा। उ ह लगा मानो उनक स नता से ई या रखने वाले
िकसी यि ने उनके कलेजे को कचोट िदया हो। मुख पर अ ुओ ं क धार बह िनकली, उ ह ने
अपनी बाजू से र ा कवच उतारा और उसे सीता क भुजा पर बाँध िदया।
उिमला सीता के कंठ से लग कर, सुबिकयाँ भरने लगी। वह अचानक वयं को अकेला महसस
ू
करने लगी थी।
वा मीिक क रामायण म, राम के वनवास गमन को बहत िव तार के साथ नाटक य
प म तुत िकया गया है। पहले दशरथ राम को कैकेयी के महल म बुलवाते ह। िफर
राम यह समाचार देने के िलए, पहले कौश या के महल म और िफर सीता के महल म
जाते ह। अंततः वे दशरथ के महल म आ कर, वन म जाने के िलए तुत होते ह।
या सीता राम के साथ इसिलए जा रही ह य िक यह उनका कत य बनता है अथवा
यह िनणय राम के ित ेम व उनक िचंता क उपज है? यह िनणय सामािजक िनयम
पर आधा रत है अथवा भावनाओं पर? महाका य इन त य को प नह करता।
परं तु जहाँ राम का झुकाव िनयम क ओर है, वह सीता भाव धान होते हए, उ ह
संतुिलत करने क चे ा करती ह। वे संतुलन साधते ह; सीता इस बात को समझती
ह।
पारं प रक कथाओं म सीता को एक िवनीत तथा आ ाकारी प नी के प म िचि त
िकया गया है जबिक वा मीिक क रामायण म सीता यि गत सोच रखती ह।
दरअसल, वे राम को फ़टकारती ह िक वे पु ष होते हए भी भयभीत ह और अपनी
प नी को साथ नह ले जाना चाह रहे ।
अ या म रामायण म, राम सीता को अपने साथ ले जाने के िलए इस तक पर अपनी
सहमित जताते ह िक िपछली सभी रामायण म भी सीता राम के साथ वनवास को गई
थ । इस तरह इस कथानक के अनेक पुनलखन क ओर संकेत है, या पवू ज म का
उ लेख है, जहाँ वे पहले भी राम थे। इस कार कथा म इस मा यता को बल िदया
गया है िक रामायण एक कभी न समा होने वाली च य कथा है, जो बार-बार,
िभ न-िभ न युग म एक साथ, एक ही म म घटती है और िविभ न किवय ारा
सुनाई जाती है, और हम, इसके अनेक सं करण म से, केवल एक तक ही पहँच
रखते ह।
वै णव सािह य म जब िव णु धरती पर अवत रत होते ह तो उनके साथी आिद शेषनाग
भी ह, िजन पर वे िव ाम करते ह तथा उनके अ -श भी मानव प धारण करते
ह। जब वे राम के प म आते ह, तो आिदशेष ल मण का प लेते ह व उनके अ -
श च व गदा, उनके भाई भरत व श ु न के प म अवत रत होते ह।
व कल व
सब कुछ बहत तेज़ी से घट रहा था। सं या समय महल म समारोह क तैया रयाँ चल रही थ । आधी
रात होने तक, यह िवषाद थल बन गया था। अनुचर महल म घम ू -घम
ू कर, संगीत को मना
कर रहे थे िक वे अब संगीत न छे ड़, रसोईय को मना िकया गया िक वे पकवान तैयार न कर,
दािसय को मालाएँ गँथू ने से मना िकया गया, सहायक से कहा गया िक वे दीपमाला न कर और
पंिडत को मं ो चार रोकने के संकेत दे िदए गए। अगले िदन के िलए तैयारी म य त,
मनोरं जन करने वाल क चहल-पहल, अब िचंता से भरी फुसफुसाहट म बदल गई थी।
शी ही िकसी अ भुजी समु ी जीव के पैर क तरह, यह समाचार महल से परू ी नगरी म फै ल
गया। यह तो अक पनीय घटा था : िजस राम को भोर-बेला म रा यािभषेक करने के बाद,
िसंहासन स पा जाना था, उ ह ही नगर से बिह कृत कर िदया गया और उ ह चौदह वष तक
वनवास करने व एक साधु क तरह रहने का आदेश दे िदया गया। अगले िदन क तैया रय के
िलए जागे हए अयो यावािसय ने अपने सारे काम छोड़े और महल क ओर आने लगे। उ ह यह
पुि करनी थी िक बात स ची थी अथवा िकसी ने उनके साथ ऐसा ू र उपहास िकया था।
इस दौरान, मंथरा ने राम, ल मण व सीता के िलए व कल व का बंध िकया। राम ने बहत ही
सहज भाव से अपने राजसी व याग िदए य िक वे विश ऋिष के आ म म भी इसी तरह के
व धारण कर चुके थे। सीता ने उपिनषद के िलए आए अनेक ऋिषय को उ ह पहने हए देखा
था परं तु वयं कभी व कल व नह पहने थे इसिलए वे थोड़ी िमत िदख ।
“म तु हारी सहायता करता हँ,” राम बोले।
कौश या ने सीता को देखते हए कहा, “ को! मेरी यारी पु वध!ू राम को एक मुिन के वेष म
रहने को कहा गया, तु ह नह ! तुम तो रघुवंश क ल मी का मिू तमान प हो। तु ह कभी िनधन
या असहाय अव था म नह िदखना चािहए, तु ह सदैव अपने आभषू ण व ी सिहत िदखाई देना
चािहए। यिद ऐसा न हआ तो देव कुिपत ह गे और तु हारे पित के घर म दुभा य का साया पड़
सकता है। कैकेयी, यह बात कहो इससे, या तुम चाहती हो िक तु हारे पु के रा य को भगवती
के कोप का सामना करना पड़े ?”
घटनाओं के अनपेि त व अ ुत प के मद म चरू कैकेयी ने उदारता दशन का िनणय िलया
और बोली, “हाँ, राम को मुिन वेष म रहना होगा। सीता, तु ह वधू के वेष म ही रहना चािहए। तुम
वन म भी रघुवंश क ित ा का तीक रहोगी। राम, इसक हर कार से र ा करना। अपने
श साथ ले जाना मत भल ू ना। कभी भरत को तु हारी िन ा पर संदेह न होने पाए।”
मंथरा दबी हँसी के साथ बोली, “हे ई र, यह क या वन म युवती होगी। तब या एक साधु,
वा तव म साधु रह पाएगा?”
“दु डायन, म तेरी ज़ुबान काट लँग
ू ा,” ल मण ने कहा
राम ने कम श द म, ल मण से कहा, “म चलता हँ, अगर मेरे साथ आना चाहो, तो अभी चलो।
अगर यह रह कर ज़ुबान काटना चाहते हो, तो वह भी तु हारी इ छा है।”
राम व कल व धारण कर, कैकेयी के महल से बाहर आ गए, उनके पास अपनी तलवार, एक
ू ीर के अित र कुछ नह था। सीता उनके पीछे चल , वे लाल
परशु, धनुष तथा बाण से भरे तण
प रधान तथा आभषू ण से इस तरह सुसि जत थ मानो अपने पित, राजा के साथ िसंहासन पर
िवराजने वाली कोई रानी ह । ल मण उनके पीछे चले िकंतु वे अपने रोष को िछपाने म असमथ थे।
राजकुमार के िलए छ व चामर िलए खड़े सहायक त ध खड़े थे, उ ह समझ नह आ रहा था
िक वे या कर।
यिद वे यु के िलए जा रहे होते, तो कोई शोक न करता। परं तु यह तो असहनीय था, यहाँ तक
िक अ वीकाय था : ब च को वन म रहने के िलए भेजा जा रहा था और माता-िपता महल म
िनवास करगे। य ही उ ह ने महल क देहरी लांघी, दशरथ अपने को वश म न रख सके। राजसी
मयादा को याग, एक िपता िवलाप कर उठा। कौश या और सुिम ा, जो अब तक उ ह सां वना
देने का य न कर रही थ , अब उनके धैय का बाँध भी टूट गया, वे भी रोने लग । उ ह रोता देख,
ू े - बुज़ुग रोने
उनक दािसयाँ व अनुचर भी रोने लगे, यो ा रोने लगे, पंिडत रोने लगे, सभी बढ़
लगे। ऐसा लग रहा था जैसे महल म िकसी का िनधन हो गया और सभी समवेत वर म शोक
मना रहे ह ।
थान
जब अयो यावािसय ने, महल के अंतःपुर से उठते िवलाप के सुर को सुना, तो उ ह ने महल का
ार अव कर िदया। वे राम को जाने ही नह दगे। भले ही महल म जो भी राजनीित चल रही
हो, यह उनके भिव य का भी था। वे मौन सा ी बने नह खड़े रहगे।
ार पर हो रहे कोलाहल से बचाव के िलए, यह िनणय िलया गया िक राम, ल मण व सीता को
राजसी रथ पर, नगर से बाहर ले जाया जाए। इस कार उनके िलए भीड़ से बच कर िनकलना
सरल होगा। राजा के सारथी सुमं ने यो ाओं को आदेश िदया िक वे कोड़ तथा लािठय क मार
से, लोग को पीछे धकेलने व माग बनाने क चे ा कर।
परं तु य ही रथ बाहर िनकला, सारी भीड़ आगे क ओर आ गई, उ ह ने भयभीत होने से इंकार
कर िदया था। उ ह ने धमक दी िक वे रथ के पिहय के नीचे कुचल कर, अपने ाण दे दगे। ‘हम
कैकेयी का वध कर दगे। हम भरत का वध कर दगे। राम, आप िव ोह करो, हम आपके साथ ह।
इस अ याय के आगे घुटने मत टेको।’ वे बोले।
अंततः राम अपने थान से उठे व प और कोमल वर म बोले, “आप सब यह जान ल,
अयो या मेरी या भरत क संपि नह , िजसे िकसी को भी िदया जा सके; अयो या रघुवंश क
संपि नह , उसका उ रदािय व है। यिद रघुकुल के राजा अपने वचन का मान नह रख सके, तो
यह अ याय होगा, यिद कैकेयी माता क इ छा का मान नह रखा गया तो यह अ याय होगा। मेरे
िपता ने उनक इ छाओं क पिू त का वचन िदया था और अब वे उसे परू ा करने का दािय व रखते
ह और वही दािय व मुझ पर भी है। कैकेयी को दोष न द, वे अपना दाय माँग रही ह। हाँ, संग
भले ही दुभा यपण ू है परं तु यह हमारे जीवन क एक घटना ही तो है; यिद हम चाह तो इसे ासदी
का नाम दे सकते ह। दोषारोपण से िकसी का क याण नह होता; हम इसका उ रदािय व लेना
चािहए। जीवन म कुछ भी तो अनायास नह होता : यह पवू कम का फल है। यह ण ठीक वैसा
ही है, जैसा इसे होना चािहए। म अपने अतीत का भार चुका रहा हँ और आप भी चुका रहे ह। हम
अपने जीवन क प रि थितय को नह चुन सकते, परं तु अपने चुनाव तो कर ही सकते ह। मने
अपने वंश के ित स यिन ा को चुना है। मेरी प नी ने, मेरी प नी के प म अपनी भिू मका को
चुना है। मेरे भाई ने अपनी भावनाओं के ित स य रहने का िवक प चुना है। हम हमारे चुनाव के
अनु प चलने क अनुमित दान कर। हमारे िनणय का आदर कर। आप िकसी रानी या उसके
पु , अथवा राजा से नह ह, आप कुिपत ह िक जीवन उस प म, आपके सामने नह आ पा
रहा, िजस प म इसे आना चािहए था। आप िजस संसार का अनुिचत लाभ लेते ह, वह एक पल म
कैसे भ मीभतू हो जाता है। अपने मानस का िव तार कर और समझ िक पीड़ा आपक धारणाओं
व अपे ाओं से उपजती है। घणृ ा के थान पर ेम का चुनाव कर, मानवता के उन भय तथा
दुबलताओं को वीकार, िजनके कारण ऐसी प रि थितयाँ सामने आती ह। यह ण िकसी ाप
का फल है या हो सकता है िक यह कोई ती ारत वरदान ही हो, कौन जाने? व ण के हज़ार
ने ह, इं के सौ ने ह, परं तु मेरे और आपके तो केवल दो ही ने ह।”
इसके बाद वहाँ िकसी तरह का ितरोध नह हआ। रथ सरलता से आगे बढ़ता चला गया और
जा पीछे क ओर हटते हए, थान देती गई।
जब रथ नगर ार से बाहर िनकला, तो लोग को ऐसा लगा मानो उनके दय र हो उठे ह
और वे अनायास ही रथ का पीछा करने लगे। वे रथ को नह रोक सके िकंतु वे अपने पैर को भी
तो नह रोक पा रहे थे। शी ही सारी नगरी वीरान िदखने लगी और एक रथ के पीछे चल रही
जा क लंबी क़तार िदखाई देने लग जो राजसी पताका फहराते हए, कौशल देश क सीमाओं
क ओर बढ़ा जा रहा था।
दशरथ अपनी पि नय का सहारा लेकर, वयं को कैकेयी के महल से घसीटते हए बाहर ले गए।
उ ह ने महल के ार से अपने पु को बाहर जाते देखा। वे अपने पंज के बल खड़े , गदन
उचकाए, तब तक रथ को देखते रहे , जब तक वह ि ितज पर कह िवलीन नह हो गया। वे बोले,
“राम चला गया। भरत यहाँ नह है। ल मण और श ु न भी नह ह। यिद म नह रहा तो अयो या
का या होगा?”
“कुछ नह होगा। सय ू पुनः उिदत होगा। प ी िफर चहचहाएँ गे और नगरी अपना सारा कामकाज
पहले क तरह करे गी। मेरे पितदेव, संसार को हमारी नह , हम संसार क आव यकता है। आइए,
हम भीतर चल कर भरत के रा यािभषेक क तैयारी कर। सौभा य तथा दुभा य तो आते-जाते
रहगे िकंतु जीवन िनरं तर चलायमान रहे गा।” कौश या ने उ कंिठत होते हए कहा
रामायण और महाभारत म ायः यह य िदखाई देता है िक ि य रथ म बैठ कर, िवदा
ले रहे ह। राम रथ म बैठ, अयो या से जा रहे ह और लोग उ ह रोकने क चे ा करते
ह। कृ ण रथ म आसीन हो, वंदृ ावन से जाना चाह रहे ह और वाल-बाल रथ के आगे
लेट कर, उ ह रोकने क चे ा करते ह। कृ ण ने तो वािपस आने का वचन नह
िनभाया िकंतु राम अपना वचन िनभाते ह व अयो यावािसय के पास लौट कर आते ह।
बु का थान गु प से हआ, िकंतु राम सावजिनक प से गहृ - याग करते ह,
वहाँ सभी िवलाप कर रहे ह िक उनके ि य राम अपने कत य के िनवाह हे तु जाने को
िववश ह।
िवदा के समय राम का सौ य व शांत प, अिधकतर जावािसय क ि म उ ह
दैवीय बना देता है। उ ह ने जो िकया, वह कोई साधारण मनु य कभी न करता; वे
मानवीय संभावना क पराका ा का दशन करते ह।
क मीरी रामायण के अनुसार, दशरथ िवयोग म इतना रोते ह िक वे ने हीन हो जाते
ह।
केवट गहु ा
रथ गंगा नदी के िकनारे जा कर ठहर गया। राम बोले, “हम िव ाम करना चािहए।” सभी
जाजन रथ के आसपास घेरा बना कर बैठ गए।
धीरे -धीरे रात गहराने लगी। लोग ज हाईयाँ लेते हए, अंगड़ाईयाँ लेने लगे। शी ही वे गहरी िन ा
क गोद म समाने लगे। सीता ने देखा िक राम अपनी जा को मातवृ त् नेह से िनहार रहे थे।
“आप भी कुछ समय के िलए सो य नह जाते?” सीता ने पछ ू ा
“नह , वन हमारी ती ा म है।” जब चार ओर से गहन िन ा के संकेत िमलने लगे तो राम
अपने थान से उठे और सुमं से कहा, “इनक िन ाव था के दौरान ही हम इनसे िवदा लगे।
जब वे उठ तो अयो या के नर-ना रय को मेरा संदेश देना, यिद वे स चे अथ म मुझसे नेह
रखते ह तो उ ह अपने घर को लौटना होगा। म आपसे और उन सबसे, चौदह वष प ात् पुनः भट
क ँ गा। कोई भी हण सदा नह रहता।”
राम नदी के ऊपरी िह से क ओर चल िदए। सीता और ल मण उनके पीछे चलने लगे। सुमं उ ह
झािड़य के पीछे ओझल होने तक ताकते रहे । जब तक वे मछुआर के गाँव पहँचे, आकाश म
लािलमा छा गई थी; सयू के उदय होने म बहत समय नह रह गया था। राम ने धीमे सुर म
पुकारा, “गुहा!”
“कौन है?” एक ककश कंठ ने उ र िदया। एक उ टी पड़ी नाव के नीचे से, मछुआर का मुिखया
बाहर आ गया। वह राम को पहचानते ही दमका। “आप इस भोर बेला म यहाँ या कर रहे ह?”
तब उसने उनके पीछे सीता और ल मण को भी खड़े देखा और राम व ल मण के व को देख
चिकत हो उठा, “ या यह कोई राजसी खेल है अथवा अनु ान? या आप वन-िवहार को िनकले
ह?”
राम ने उ र िदया, “हाँ, चौदह वष के िलए।” इसके बाद राम ने गुहा को महल म घटी घटनाओं
से अवगत करवाया। िफर उ ह ने गुहा से सहायता क याचना करते हए कहा, “हम उस पार ले
चलो। और आज सारा िदन िकसी और को नदी के दूसरी ओर मत ले जाना। म नह चाहता िक
कोई भी हमारा अनुसरण करे ।”
“आप हमारे साथ, यह य नह रह जाते? मेरी कुिटया कोई महल नह , और यह िकसी वन
िजतनी ही बुरी है, परं तु म आपके वास को आरामदेह बना दँूगा।”
“नह , म ऐसा नह कर सकता। िकसी ऐसे थान को वन क सं ा दी जाती है, जहाँ से हम
मनु य क ब ती के दीपक क रोशनी तक न िदखाई दे।”
“मनु य को इस तरह नह रहना चािहए। कम से कम राजकुमार और राजकुमा रय को तो
िकसी हाल म इस तरह नह रहना चािहए,” गुहा ने सीता क ओर देख कर कहा। वे िकतनी
अ पायु तथा सुकुमार थ । वे वन म कैसे रह सकगी? यह तो कोरी मख
ू ता थी।
“गुहा, नाव लाओ। राम ने कहा।” उनका कड़ा सुर िकसी आदेश से कम न था।
“कम से कम जाने से पवू थोड़ा भात तो खा लेते। म अपने हाथ से रांध कर, उसम थोड़ी काली
िमच डाल कर उसे वािद बना दँूगा,” गुहा ने आ ह िकया
“तप वी पका हआ भोजन नह करते। हम व ृ से टूटे फल अथवा धरती से िनकले कंद ही खा
सकते ह।”
“मुझे अपने साथ ले चल। म आपक सेवा क ँ गा।”
“तप वी अपने साथ कोई अनुचर नह रखते।”
य - य वनवास क कठोरता सीता के आगे आ रही थी, वे उतनी ही आ त होती जा रही थ
िक वे इन क को सहने तथा अपने पित व देवर क पीड़ा को कम करने यो य मता जुटा
लगी। वे कभी राम के स मुख ऐसा अवसर नह आने दगी, जहाँ उ ह प नी को अपने साथ लाने
के िवचार पर ख़ेद हो। जनक ने िवदा से पवू जो आशीवाद िदया था, वे उसे ही साकार करने क
चे ा करगी, “तुम जहाँ भी जाओ, स नता तु हारे क़दम चम ू े ।”
गुहा ने अपनी नाव को जल क ओर घसीट कर ले जाते हए, प रि थित क गंभीरता को ह का
करने के िलहाज़ से कहा। “सुना है, आपके पैर के पश से पाषाण िशला, नारी म बदल गई थी।
आशा करता हँ िक आप मेरी इस नाव को कुछ और तो नह बना दगे; यह मेरी आजीिवका का
एकमा ोत है।”
राम मु कराए और उस दयालु केवट, गुहा को कंठ से लगा िलया, िफर वह उन तीन को, नदी के
दूसरे िकनारे पर ले गया, जहाँ से रा स क सीमा, दंडक वन का आरं भ होता था।
सयू उदय हआ और राम कौशल देश क अंितम झलक पाने के िलए मुड़े। उ ह ने दूसरे िकनारे
पर, अयो या क जा को देखा। जा को उनक अनुपि थित का पता चल गया था और वे
चुपचाप पीछे चलते हए, मछुआरे के गाँव तक आ पहँचे थे, परं तु उ ह ने िवरोध का एक भी वर
जताए िबना, राम को जाने िदया। राम ने, उनके िववेक के स मान म, उ ह झुक कर णाम
िकया और वे भी उनक स जनता के आगे नतम तक हो उठे ।
िन ा देवी
वे सारा िदन चलते रहे और एक बार भी पीछे मुड़ कर नह देखा। इस तरह वे अपने देश से बहत
दूर आ गए। राम केवल मुड़ कर यह देख लेते थे िक सीता को कोई असुिवधा तो नह और सीता
माग म िमलने वाले बेर तथा फल आिद जमा करने म य त थ । श द का कोई आदान- दान
नह हआ, परं तु उन तीन ने अपने-अपने दािय व संभाल िलए थे : राम सबके िलए माग िनयत
करते, सीता भोजन व पानी एक करत और ल मण वन के घातक पशुओ ं से बचाव के िलए
रखवाली करते।
उ ह झील के िनकट एक बड़ी सी गुहा िदखाई दी। “हम राि यह यतीत करगे,राम बोले।” वे
सब िपछली राि क घटनाओं तथा सारा िदन पैदल चलने के कारण बहत लांत हो उठे थे। राम
और सीता तो अपनी आँख तक खुली नह रख पा रहे थे।
परं तु ल मण ने सोने से इंकार कर िदया। िन ा भगवती उनके आगे कट हई ं व कहा, “तु ह
सोना चािहए। यह कृित का िनयम है।”
“यिद म सो गया तो मेरे भईया और भाभी क र ा कौन करे गा? नह , म सोना नह चाहता।”
ल मण ने िन ा भगवती से िवनती क िक वे अयो या नगरी म उसक प नी उिमला के पास जाएँ
और उससे कह िक वह अपने पित के थान पर िन ा ले। “उससे कह िक वह िदन म मेरे िलए
तथा रात को अपने िलए न द परू ी करे ।”
जब िन ा ने उिमला के स मुख ल मण क इ छा कट क , तो वह पित क सहायता के िलए
स नता से त पर हो उठी। “उनक लांित भी मुझ पर हावी हो जाए तािक वे सदा तरोताज़ा और
सि य व सजग बने रह य िक वे अपने भईया-भाभी क सेवा म िनरत ह।”
इस कार यह तय हआ िक आने वाले चौदह वष के दौरान उिमला सारा िदन व सारी रात
सोएगी, जबिक ल मण सोए िबना ही, सदा राम क सेवा म त पर रहे ।
चौदह वष तक ल मण के िनरं तर जागने तथा उिमला के सोने का संग बु ा रे ड्डी
क रं गनाथ रामायण म िमलता है।
अनेक किवय ने उिमला क ि थित के िवषय म िवचार िकया है, पित ारा यागी गई
ऐसी प नी, िजसका पित अपने बड़े भाई के ित कत य िनवाह को अिधक मह व देता
है। उिमला के मा यम से, उ ह ने भारतीय नारी क ि थित को दशाया है, जो पित क
प रवार नामक वहृ द् सं था के ित िवनीत व सेवा-भाव रखती है। पित वयं अपने
प रवार के ित समिपत है। भारतीय सामािजक यव था म, यि प रवार से हीन या
छोटा होता है। वैयि ा केवल तप वी ही दिशत कर सकता है; अ य लोग को तो
एक गहृ थी क जीवनशैली का पालन करना ही पड़ता है। इस कार गहृ थ जीवन
एक बंधन है, िजससे यि मुि पाने को तरसता है। रामायण म, इस बंधन का
मानिसक िच ण, य के प म िकया गया है, िजसे दूसर के ित संवेदनशीलता
रखते हए रचाया जाता है। वह दूसरी ओर, तप वी या साधु, ऐसे यि के प म
देखा जाता है, जो अ य यि य क ुधा अथवा आव यकताओं के ित उदासीन
होता है।
रवी ंनाथ टैगोर ने अपने लेखन म, वा मीिक क िनंदा क है िक उ ह ने उिमला के
योगदान को उपेि त िकया, िजससे किव मैिथलीशरण गु जी े रत हए और अपनी
साकेत नामक रामायण म उिमला नामक पा को मह ा दान क ।
भरत से भट
राजकुमार को अनुभव हो गया था िक वह वन कोई वन-िवहार े नह था। विश तथा
िव ािम के साथ वन म या ा करना, दशरथ के साथ मग ृ या के िलए आना अथवा अनुचर के
साथ वन का अ वेषण करना अलग बात थी। अब वन म घम ू ने का अथ था िक उ ह असमतल
भिू म पर तीखे और नुक ले प थर व काँटेदार झािड़य के बीच, सप व िब छुओं से बचाव करते
हए, वयं अपने िलए भोजन और जल क खोज करते हए, व ृ तले धरती पर सोना व खुले
आकाश के चंदोवे के नीचे रहना था। िनरं तर िशकार करने वाले पशुओ ं से सावधान रहना भी
ज़ री था य िक वन के पशु नह जानते थे िक वे दशरथ क संतान ह।
कभी-कभार उनक भट तपि वय से हो जाती, जैसे वे गंगा तथा यमुना के संगम, याग पर
भार ाज ऋिष से िमले, िज ह ने उनक प रि थित के िलए सहानुभिू त कट क और उ ह
परामश िदया िक उ ह वन म अपना समय साथक प से कैसे िबताना चािहए।
वनवास म दो चं , राम व सीता, वट व ृ के तले िव ाम कर रहे थे। ल मण एक शाखा पर बैठे
पहरे दारी कर रहे थे। अचानक उ ह शंख तथा नगाड़ क विन सुनाई दी। िफर उ ह अपनी ओर
कुछ पताकाएँ फहराती हई िदख , यह तो वही माग था, िजससे वे अयो या से आए थे। वे उन
पताकाओं को पहचान गए : वे उनके िपता के वज थे।
“जान पड़ता है, िपता ी हम िलवाने आ रहे ह।” ल मण बोले।
“नह , हम उनके वचन को िनभाना है। रानी माँ क इ छा को परू ा करते हए, चौदह वष का समय
वनवास म ही िबताना होगा।”
पारं प रक प से, बड़ा पु ही िपता का अंितम सं कार संप न करता है। वा मीिक
रामायण म, राम क यथा दशाई गई है िक वे ये पु होते हए भी, िपता के दाह-
सं कार को संप न नह कर सके।
क बन रामायण म िव तार से विणत है िक दशरथ भरत को अपने दाह-सं कार से
जुड़े िकसी भी अनु ान म शािमल होने से मना करवा देते ह।
गडे के िशकार का यह संग, ओिड़शा के ामीण े म िदखाए जाने वाले रामायण
नाटक से िलया गया है।
िहंदुओ ं क मा यता है िक वैतरणी नदी, जीिवत तथा मत
ृ क क भिू म को अलग करती
है। जीिवत क धरती म पु िनवास करते ह। मत ृ क क भिू म म पवू ज या िपत ृ वास
करते ह। िपत,ृ पु के मा यम से ही पुनः ज म पाते ह। जो लोग पु उ प न नह कर
पाते, वे िववश हो कर पत ू नामक नक म िनवास करते ह। िव ान इस िवषय म
एकमत नह ह िक पु और िपत ृ श द को िलंग के ित तट थ श द माना जाना
चािहए अथवा ये श द िवशेष तौर पर पु व पवू ज के िलए ही यु िकए गए ह।
भास के नाटक, ितमा-नाटक म रावण उस अवसर का लाभ उठाता है, जब राम िपता
का अंितम सं कार संप न करने के िलए अकुलाए हए ह। वह अंितम सं कार करवाने
म िनपुण ा ण का वेष धर कर, राम को परामश देता है िक उ ह िहमालय म पाया
जाने वाला सुवण मग ृ भट करना चािहए, तभी उनके िपता क अत ृ आ मा को शांित
िमल सकेगी और वे स न ह गे। इस कार राम आ म को छोड़ िहमालय क ओर
थान करते ह और इस दौरान रावण सीता का हरण कर लेता है।
िबहार म गया नामक थान, िहंदुओ ं ारा अपने िपतर के अंितम सं कार करने के
िलए जाना जाता है। वहाँ फ गू नदी म कोई जल नह है, हालाँिक ऊपरी व िनचली
धारा म जल िदखता है, य िक यहाँ जल भिू मगत है। नदी के ताल को खोदने से जल
िदखाई देता है। कहते ह िक राम यहाँ ल मण के साथ दशरथ का ा संप न करने
आए थे और जब वे नान कर रहे थे, तो उस दौरान दशरथ क आ मा सीता के
स मुख कट हई और उ ह त काल भोजन परोसने को कहा। सीता के पास धान या
काले ितल नह थे, इसिलए उ ह ने उ ह रे त के कण से बने िपंड ही अिपत कर िदए।
इससे दशरथ स न हो उठे । जब राम लौटे तो सीता ने उ ह सारी बात बताई, वे
मानने को तैयार नह थे। सीता ने वट व ृ , नदी, गौ, तुलसी के िबरवे और पंिडत को
अपने सा ी बना कर तुत िकया। दुभा यवश, उनम से वट व ृ के अित र िकसी
ने भी सीता के प म सा ी नह दी। सीता ने रोष म आ कर नदी को ाप िदया िक
गया े म, उसके भीतर जल नह रहे गा, आगे से, गौ के अगले भाग क बजाए,
उसके िपछले िह से क पज ू ा होगी, गया म तुलसी का िबरवा नह पज
ू ा जाएगा और
पंिडत सदा भख ू े रहगे। उ ह ने वट व ृ को आशीवाद िदया िक उसके पास मत ृ क
माता-िपता के अित र मत ृ क िम , श ुओ,ं अप रिचत तथा िनःसंतान होने क दशा
म यि के वयं के अंितम-सं कार संबंधी भोग को हण करने क मता होगी।
राम क चरण-पादक
ु ा
म ृ यु के सभी सं कार दि ण क ओर मुख कर परू े िकए गए। जब शोक का काल समा हआ तो
दशरथ के पु से कहा गया िक वे पवू क ओर मुख कर तथा जीवन से जुड़े अनु ान आरं भ
कर। भरत बोले, “अब घर लौटने का समय हो गया। आप इस मख ू ता का याग कर। आप उसी
तरह अयो या नरे श ह गे, जैसे आपको होना चािहए और म आपक सेवा म रहँगा।”
राम के दय म िपता क मिृ तयाँ उमड़ आई ं और वे अपने सभी भाईय को बाँह के घेरे म बाँध
रोने लगे। अब वे अनाथ हो गए थे। िफर वे बोले, “हमारे िपता ने वचन का पालन करने के िलए ही
अपने ाण दे िदए। हम भी उनके िदए वचन का पालन करना होगा। मुझे चौदह वष तक का
समय वन म ही यतीत करना होगा।”
“मेरे साथ आई जा के मुख क ओर देख। उनक आँख म िछपी याशा को देख। वे सब यही
चाहते ह िक इस बुरे सपने का अंत हो जाए। चिलए, वािपस चल तािक सब कुछ पहले क तरह हो
सके।”
“नह भरत,” राम शांितपवू क बोले
“तब म भी सीता व ल मण क तरह वन म आपके साथ ही रहँगा।” भरत बोले।
“यिद ऐसा होगा तो अयो या क देख-रे ख कौन करे गा? भरत, हम राजवंश से ह, हम संवेदनाओं
क बिलवेदी पर उ रदािय व क बिल नह चढ़ानी चािहए। िपता ी हमारी माता को वरदान देने
के िलए िववश नह थे; परं तु उ ह ने ऐसा िकया और माता ी को एक नह , दो-दो वरदान िदए।
उनक ाण-र ा करने वाली प नी के ित आभार कट करते हए, वे भल ू गए िक वे एक रा य
के नरे श भी थे और उनके िदए वरदान के दूरगामी प रणाम हो सकते थे। अब हम उसी
असावधानी के प रणाम का सामना करना होगा। रघुवंश को ऐसे कुल के प म न देखा जाए
जो अपनी सुिवधा के अनुसार िनयम म फेर-बदल करता हो। हम िव सनीय शासक बनना है।”
“परं तु मुझे अपनी जा क देख-रे ख करने के िलए राजिसंहासन पर बैठने क आव यकता नह
है। म अपनी माँ ारा छल से दी गई हर व तु व अिधकार का याग करता हँ। म आपके ितिनिध
के प म अयो या का राजकाज संभालँग ू ा और आपक वापसी क ती ा क ँ गा।”
राम जानते थे िक भरत अपनी धुन के प के ह। उ ह िकसी भी दशा म रोका नह जा सकता था।
उ ह अयो या नरे श बनने के िलए िववश नह िकया जा सकता था। उससे पहले, कभी िकसी ने
राजवंश के ऐसे राजकुमार नह देखे थे, जो एक-दूसरे के िलए राजिसंहासन र रखना चाहते
थे। उ ह ने अनुभव िकया िक रघुवंश स चे अथ म यश वी, सय ू वंश क यो य शाखा के प म
य जाना जाता था।
तब भरत ने राम से आ ह िकया िक वे उन राजसी सुवण चरण-पादुकाओं को एक बार धारण
कर, िज ह अयो या के नरे श ारा पहना जाता है। “इ ह एक बार पहन कर, रा य पर अपना
उ रािधकार घोिषत कर। म इन चरण-पादुकाओं को आपके आने तक राजिसंहासन पर िति त
कर दँूगा। ये आपका तीक ह गी। म भी तब तक एक तप वी क भाँित जीवनयापन क ँ गा,
य िक एक दास को उन सभी सुख-सुिवधाओं का उपभोग नह करना चािहए, िजनसे उसके
वामी को वंिचत कर िदया गया हो।”
जाबािल
य ही रा य क ओर से आए हए दल ने थान क तैयारी क , भरत के साथ वन म आए एक
ऋिष बोल उठे : “तुम अपने िपता क ओर से िदए गए वचन तथा पा रवा रक ित ा को बहत
मान दे रहे हो। यह तु हारे िलए भार बन रहा है, तु ह जीवन का आनंद लेने से रोक रहा है। मू य
कृि म ह, जो मनु य ारा मनु य के िलए बने ह। उ हे तभी तक मानना चािहए, जब तक वे
एक स न समाज का िनमाण कर; यिद वे दुःखदायी समाज क रचना कर रहे ह तो उ ह
याग देना चािहए। कृित म, पादप व पशु जगत का केवल एक ही उ े य है िक वे पोषण तथा
उ रजीिवता पा सक, भले ही ऐसा दूसर क क़ मत पर य न हो। अपने िलए आनंद क तलाश
करने व जीवन का आनंद पाने म कोई बुराई नह है। इन पीड़ादायी संक प को भुला दो, अपनी
नगरी लौट जाओ, उस सुिवधा का उपभोग करो, जो तु ह एक राजवंश म ज म पाने के कारण,
संयोगवश िमल गई है।”
राम ने उनके आगे दंडवत णाम करते हए कहा, “आप एक नरे श या राजा के जीवन क
कामना रखते ह, िजसे मने आपके स मुख नकारा है। आप मुझे एक शोिषत के प म देख रहे
ह, िजसे एक अ ुत जीवन से वंिचत कर िदया गया है। आप मुझे मख ू समझ रहे ह िक म आपक
ि से जीवन को देखने क बजाए, अपने िपता के िदए वचन का पालन कर रहा हँ। आपको
लगता है िक आपके सारे मू य स चे और मेरे सारे मू य झठ
ू े ह। परं तु आपके और मेरे, हम दोन
के ही मू य का पिनक ह। अंतर केवल इतना है िक आप मेरा ि कोण बदलना चाहते ह, आप
चाहते ह िक म संसार और इसके मू य को आपके नज़ रए से देखँ,ू जबिक म यह समझना
चाहता हँ िक दूसरे मेरे नज़ रए से इन चीज़ को य नह देखते। म वयं को शोिषत नह
मानता। म िकसी राजा क तरह शान से जीवन नह िबताना चाहता। मुझे नह लगता िक राजसी
शान और सुिवधाओं से दूर, अिधकार और सुिवधा को याग कर, वनवास करना कोई ासदी है।
मुझे लगता है िक यह मेरे िलए एक अवसर है, और म यह सोचता हँ िक लोग मेरे ि कोण से
इन घटनाओं को समझने क चे ा य नह करते? म समझना चाहता हँ िक एक रा य म ऐसा
या आकषण है िक कैकेयी इसे पाना चाहती ह और वन म ऐसा या भयंकर है, िजससे
कौश या भयभीत ह। समाज से दूर, उ रदािय व से दूर, मुझे अंततः तप या करने का अवसर
िमलेगा तािक जब म वािपस आऊँ तो कह बेहतर प से य रचा सकँ ू ।”
इन श द से िवि मत जाबािल बोले, “अिधकतर यि जीवन का आनंद पाना चाहते ह।
अिधकतर लोग यि य व संपि पर अपना अिधकार चाहते ह। अिधकतर यि आनंद और
वच व के िबना जीवन को अधरू ा मानते ह। परं तु तुम ऐसे नह हो। तुम एक ऋिष हो, जो जीवन
को समझना चाहता है। तुम जनक के सुयो य दामाद हो। म तु ह णाम करता हँ।”
जाबािल ने राम के चरण- पश िकए। अयो या से भरत के साथ आए सभी लोग ने भी ऐसा ही
िकया, जो उ ह अपने साथ अयो या िलवाने आए थे। राम कोई बालक नह थे। वे कोई नायक नह
थे। वे तो ई र थे, येक मनु य ऐसा बनने क मता रखता है।
अंततः राम बोले, “सुनो मंथरा, तुम ा क इ छा के अनुसार ही चल रही हो। अपने पवू ज म म
तुम एक गंधव थ और हमारे सामिू हक िपता ने तु ह मंथरा के प म ज म लेने को कहा तािक
तुम रघुकुल के ये पु को वनवास िदलाने म सहायक हो सको और वह रा सी जीवनशैली
का अंत करते हए, उनके मनस् का िव तार कर सके और वे अपनी पाि क विृ य से ऊपर उठ
सक। अपने अगले ज म म, तुम पुनः एक कु प कु जा के प म ज म लोगी। तु ह कु जा या
ि व ा के नाम से जाना जाएगा। तब तुम पुनः मुझसे भट करोगी। म कृ ण के प म आऊँगा। म
तु ह बहत नेह से आिलंगन म लँग ू ा, िजससे तु हारी पीठ का कूबड़ दूर हो जाएगा और तुम िफर
से सुंदरी बन जाओगी। म तु ह यह वचन देता हँ।”
सीता और ल मण यह सुन कर िवि मत हो उठे ।
राम ने इससे आगे कहा, “िव णु के प म, इं के वग क र ा के योजन से, मने भग
ृ ुक
प नी तथा शु क माता का शीश काट िदया था, जो असुर को संर ण दे रही थ । उसी अपराध
के फल व प, मुझे राम के प म धरती पर ज म लेने, किठनाईय से भरा जीवन जीने तथा
महल के सुख याग, वन म तप वी क तरह जीवन िबताने का ाप िमला था। िजस कार मने
भगृ ु को उनक प नी के साथ से वंिचत िकया, उसी कार मुझे ाप िमला िक मुझे भी प नी-सुख
नह िमलेगा। यही कारण है िक सीता, मेरी प नी होने के बाद भी, मुझसे सदा एक बाँह क दूरी
पर रहे गी, तािक म एक तप वी के प म जीने का वचन िनभा सकँ ू । मुझे यह भी भय है िक
उसक संगित का आनंद भी अंततः रा स ारा मुझसे छीन िलया जाएगा। इसी तरह अयो या भी
इससे वंिचत रहे गी परं तु हम अपने क के िलए िकसी दूसरे को दोष नह दे सकते, हमारे सारे
संकट, हमारे िपछले कम का ही फल ह। हम अपने जीवन म आने वाले हर अ छे या बुरे ण के
िलए वयं ही उ रदािय व लेना होता है। हम ही कारण ह और हम ही प रणाम भुगतने होते ह।
यही कम का िवधान है।”
अपहरण
‘उनक देह भले ही बंदी रही, परं तु उनका मन कभी नह बन सका!’
दंडक वन म
सीता, दशरथ पु सिहत, िच कूट के वन को छोड़, निदय व पवत को लांघते हए, दंडक वन
म जा पहँच ।
यह थान कभी जन थान कहलाता था, िजस पर एक दंड का शासन था। एक िदन, दंड को
मगृ या के दौरान, एक अ जा नामक सुंदरी िदखी और उसने उस पर बल- योग करना चाहा। वह
रोते-रोते अपने िपता के पास गई, वे शु नामक ऋिष थे। “िजस भिू म पर सीमाओं का आदर न
होता हो, वह थान वन के समान ही है।” रोष म आ कर ऋिष शु ने ाप देते हए कहा िक धल ू
और आंधी से भरे तफ़ ू ान के कारण दंड का जन थान परू ी तरह से न हो जाएगा, उसका कोई
िच ह तक शेष नह रहे गा और वह थान वन म बदल जाएगा। इस कार वह थान एक भयंकर
वन म बदल गया, जहाँ जाने का साहस, बड़े -बड़े साहसी भी नह कर पाते थे।
वन म कोई सीमाएँ या िनयम नह होते। य ही राम ने वन म क़ दम रखा, उ ह ने अपने पवू ज
का मरण िकया और बोले, “राम ने भले ही अयो या का याग िकया हो परं तु अयो या राम का
याग कभी नह करे गी।” िफर वे सीता क ओर देख कर बोले, “िजस कार िवदेह ने कभी सीता
का प र याग नह िकया।”
शांता से भट
उन तीन ने भयंकर वन क सीमा पर राि यतीत करने का िनणय िलया। राम सो नह सके।
हवा का मधुर संगीत बहता रहा, वे िसतार को टकटक बांधे देखते रहे और उ ह यह भी पता था
िक सीता भी अपलक उ ह ही देख रही थ । वे बोल , “यह सब भी बीत जाएगा।” राम भी यह
जानते थे िकंतु यह ान ही याकुलता को िमटा तो नह सकता। उनका मन िकसी यिथत
धमू केतु क भाँित हो रहा था। सीता बोल , “ वामी, हमारे पास जो भी हो, हम उसका ही आनंद
उठाना चािहए। हमारे पास या था और या हो सकता है, इस बारे म िवचार करने से कुछ लाभ
नह होगा। आइए, इन िसतार के य का आनंद ल,” और जब ल मण अि न क ओर देख रहे
थे तो राम और सीता आकाश म ि गड़ाए लेटे रहे और अंततः िन ा भगवती ने उ ह अपने
आ य म ले िलया। य िप ने मँदू ने से पहले, राम ने सदा क तरह, अपने व अपनी प नी के बीच
अपना धनुष रख िदया था।
भोर बेला म सीता जग तो राम व ल मण को एक सुंदर ी के चरण- पश करते देखा। िवशाल
ने , उदार मु कान तथा मोहक देहयि वाली वह ी कौन थी? उस ी ने सीता को देख कर
पुकारा, “यहाँ आओ, यारी िबिटया! म तु हारे पित क बड़ी बहन शांता हँ।”
शांता ने सीता को अपनी गोद म िबठा िलया और बोल , “तुमने वन म पित का साथ देने का
िनणय िलया, यह बहत ही अ छी बात है। परं तु एक वधू के प म, वन म या ा करना सरल नह
होगा, तु हारे साथ दो मनमोहक युवक ह परं तु दोन म से कोई भी तु हारी ओर नह देखता, एक
तप वी है और दूसरा तु ह इसिलए नह देख सकता य िक तुम उसके भाई क प नी, उसके
िलए माता समान हो। तु ह अपने चार ओर, संभोग के िलए याकुल पशुओ ं क पुकार सुनाई
देगी। तुम सप , मढक , िहरण व बाघ को मैथुन रत देखोगी और तुम देखोगी िक पु प अपनी
गंध से मधुमि खय व िततिलय को अपनी ओर आकिषत कर रहे ह। तु हारी देह पुकार उठे गी;
सीता तुम अपनी इंि य क पुकार को कैसे उपेि त करोगी? और ये रा स, वे तो िन ा और
चय का अथ तक नह जानते। वे तु ह िववश करगे िक तुम और मेरे ये दो भाई उनक त ृ णा
शांत कर, उनके िलए तो यह वाभािवक सी बात है। तब तुम या करोगी, सीता? तुम अपनी
इ छाओं तथा अपने आसपास िमलने वाले पु ष से अपना र ण कैसे करोगी? सीता वन म कोई
सीमाएँ नह होत । जहाँ सीमाएँ नह होत , वहाँ लंघन भी नह कहलाता।”
अनसूया व अि
शांता सीता को अनसय ू ा व अि मुिन के आ म म ले गई ं। अनसय
ू ा, अ ं धती क तरह अपने
पाित य और सती व के िलए िव यात थ । वे रे णुका क तरह नह थ , उ ह ने कभी व न म
भी परपु ष के बारे म िवचार नह िकया था। न ही वे अिह या क तरह थ , िज ह ने यिभचार का
सहारा िलया।
एक बार, तीन मोहक तप वी उनके पास आए, उस समय अनसय ू ा के पित बाहर गए हए थे। वे
तीन बोले, “हम िपछले बारह वष से उपवासी ह। हम अपना उपवास तोड़ने के िलए, िकसी मुिन
क प नी का तनपान करना होगा। या आप हमारी सहायता कर सकगी?” अनसय ू ा ने हामी
भर दी। उ ह ने उन तीन युवाओं को अपनी संतान के प म देखा, जो उनके पास कभी थी ही
नह । उ ह ने य ही अपना आंचल नीचे िकया, वे तीन युवक नवजात िशशुओ ं म बदल गए।
तब उन तीन क पि नयाँ अपने पितय क ओर से मायाचना करने आई ं और अनसय ू ा ने जाना
िक उनका इस माँग के पीछे या अिभ ाय था: वे उ ह लुभाना चाहते थे, धरती पर सबसे पिव
और शुिचवान होने क ित ा को धल ू -धस
ू रत करना चाहते थे। अनसय ू ा ने िबना िकसी शत के
उन तीन को मा कर िदया, उनके अनुसार तप या करने के बावजदू , वे तीन अभी नवजात
िशशुओ ं के समान ही थे, जो छल-कपट से आनंिदत होते थे। उ ह ने उनका मोहक प लौटा िदया
और रसोई से िभ ा न दे कर, उनका उपवास समा करवाया।
आभार वश, उन तीन युवक ने अनसय ू ा को आशीवाद िदया िक वे द नामक महान पु क
माता ह गी, िज ह िकसी गु क आव यकता नह होगी; वे सब कुछ देखने से ही सीख जाएँ गे।
वे आकाश, धरती, अि न, जल, वायु, च ान , निदय , पौध , पशुओ,ं पि य , क ट , पु ष तथा
ि य से ही ान पा लगे और आिदनाथ के नाम से जाने जाएँ गे।
शरभंग का वग
अनसय ू ा व अि से िवदा लेने के बाद, सीता और दशरथ के पु , एक वयोव ृ ऋिष शरभंग के
आ म म आए, जहाँ उ ह ने एक अ ुत य देखा। उ ह ने देखा िक इं उनके आ म से िनकल
रहे थे, वे अपने ेत हाथी पर सवार थे, िजसक सात सँड ू तथा छह दाँत थे।
जब उ ह ने इं के आगमन के बारे म पछ
ू ा तो ऋिष ने बताया, “इं मुझे, देव क नगरी
अमरावती म बने नंदन-कानन के िलए िनमं ण देने आए थे, अमरावती िसतार के बीच बसी है,
जहाँ क पत व ृ है, िजसके नीचे खड़े होते ही सारी इ छाएँ पण
ू हो जाती ह। परं तु मुझे वह सब
पाने क कोई इ छा नह है।”
ल मण ने मुिन से पछ
ू ा, “ या तप या व य का यही अभी नह होता िक वह सब पाया जा
सके, जो इं के वािम व म है?”
“नह पु ! इं के पास सब कुछ है िकंतु िफर भी उसके मन म िनरं तर उसे खोने का भय समाया
रहता है। वग भले ही देवलोक है िकंतु मुझे वहाँ नह जाना।”
“आप कहाँ जाने क इ छा रखते ह?”
सत
ु ी ण का आ ह
इसके बाद, सीता, राम व ल मण सुती ण मुिन के आ म क ओर चले, िज ह ने उनका वागत
िकया व उन मुिनय के संकट से अवगत करवाया, जो दि ण क ओर थान कर गए थे।
उ ह ने सबको इस िवशाल तर पर होने वाले वास क कथा सुनाई।
“शि के मनाने पर, पहले िशव ने अपने ने खोले और िफर वे अपने मुख से वेद का सार
बखानने लगे। उ ह सुन कर, सारे मुिनगण उ र क ओर चले गए, िजससे धरती एक ओर झुक
गई। उ र व दि ण को अलग करने वाली िवं य पवत ेणी िशव के वचन को सुनने के िलए
इतनी उ सुक थी िक उसने अपना आकार बढ़ाना आरं भ कर िदया और अंततः सय ू क राह म
बाधा बन गई।
इसी संतुलन को पुनः पाने के िलए, िशव ने अपने पु काितकेय, भगवान के सेनापित से दि ण
क ओर जाने को कहा। अनेक मुिन उनके साथ गए, िजनम िव वा तथा अग य भी थे।
िवं य अग य का आशीवाद पाने के िलए उनके आगे झुका और उ ह ने उसे उसी मु ा म रहने
को कहा, तािक सय
ू क िकरण को आने-जाने म बाधा न हो। अग य अपने साथ कमंडल म
गंगा नदी का जल ले गए थे। जब उ ह ने उसे वहाँ उड़े ला तो उसने दि ण क बलशाली कावेरी
नदी का प ले िलया।
काितकेय ने अपने भाले से िवं य के कई िह से कर िदए। इस तरह उसम घािटयाँ बन गई ं, िजनसे
हो कर वे दूसरी ओर जा सकते थे। शि को लगा िक कह काितकेय को अपने पवतीय घर क
याद न सताए इसिलए उ ह ने असुर िहिड ब से कहा िक वह िहमालय क कुछ चोिटय को दि ण
म ले जाए। वे पलनी क पवत ंखलाएँ बन ।
“दि ण म ऋिषय का सामना रा स व य से हआ। िव वा ने एक यि णी व रा सी से िववाह
िकया तथा दोन से ही संतान उ प न क । उ ह ने अपने दोन पु को वेद का ान िदया।
यि णी के पु , कुबेर ने एक सुवण नगरी बनाई। रा सी पु रावण, कुबेर से ई या रखता था,
उसने नगरी पर धावा बोला और छल से उसे अपने अिधकार म ले िलया। रावण परम िशवभ है
िकंतु उसका मानना है िक बलशाली ही राज करता है।
चँिू क वही सबसे बलशाली है, अतः उसे ही सही माना जाता है। बहत समय से ऋिष उसे वेद के
सार क ओर वािपस लाने क चे ा कर रहे ह, परं तु वह उ ह अ िच से दु कार देता है। वह य
करने वाले, तप या या िसि पाने क चे ा करने वाल को अपना श ु मानता है; उसने सभी
रा स को ऋिषय के िव कर िदया है। या ताड़का का मरण है? उसे िव ािम के िस -
आ म म िकसने भेजा था? रावण !! राम, दि ण क ओर जाओ। तु हारे वनवास का यह संकट,
वनवािसय के िलए लाभदायक हो जाए। रा स को धम के पथ पर वािपस ले आओ, उ ह रावण
के चंगुल से मु करो। उ ह इस यो य बनाओ िक वे अपने मनस् का िव तार कर सक,”
सुती ण ने आ ह िकया।
“ या रा स दु व अधम नह होते, िजनका वध िकया जाना चािहए?” ल मण ने पछ
ू ा
“िव ािम के िश य , यह याद रखो, वे रा स हमारे जैसे मनु य ही ह, िज ह हमने समझने या
सहने से इंकार कर िदया है। यिद हम भी उ ह उसी तरह अ वीकार द, िजस तरह उ ह ने हम
अ वीकारा है, तो यह अधम होगा,” ऋिष बोले।
अग य व लोपामु ा
जब सीता, राम व ल मण दि ण क ओर चले, तो उ ह पहािड़य से िघरा एक िव ततृ पठार
िदखाई िदया। एक मुिन ने उ ह बताया िक बहत पहले, पवत के भी पंख हआ करते थे और वे
पि य क तरह आकाश म उड़ान भरते, परं तु उनके ऐसा करने से बहत कोलाहल होता था
इसिलए ऋिषय ने देव को बुलवाया और कहा िक पवत के पंख काट देने चािहए। इस तरह वे
सभी पवत धरती पर िगर गए और उसके बाद कभी िहल भी नह सके।
उ ह इंसानी बि तय से दूर रहना था, इसिलए वे तीन निदय के िकनारे नह चलते थे। सीता
क ू के सुखाए खोल म जल का सं ह करत परं तु कई बार जब उनके पास जल समा हो जाता
और कोई ताल भी िदखाई न देता, तो राम या ल मण धरती म तीर चला कर, िकसी भिू मगत
नाले से जल क यव था कर देते, िजसे देख सीता मुिदत हो उठत ।
वन म, सीता जनक क पु ी या दशरथ क पु वधू नह थ । राम एक पित के प म उन पर
अिधकार नह रख सकते थे, य िक वे एक तप वी के वेष म थे। वे एक ी थ , जो वे छा से
कुछ भी कर सकती थ । राम ने कभी उनके आगे कोई माँग नह रखी अतः जब वे उनक सेवा
करत तो वे यही सोचते िक सीता क ेरणा का ोत या है? या यह केवल एक दािय व था?
या यह एक कत य का िनवाह था? या यह दया थी? राम सीता को िजतना देखते, उ ह उतना
ही एहसास होने लगता िक यह भावना है, िजसे किवय ने ेम क सं ा दी है।
और सीता ने भी राम के िवषय म बहत कुछ ल य िकया। वे सदा उनसे बात करते हए, अपना
मुख दूसरी ओर घुमाए रखते तािक वे उनक ि के बहकावे म न आ जाएँ । और िफर भी, वे
अपने छोटे-छोटे हाव-भाव से नेह का दशन करते थे, सीता के माग से कंटक चुन देते, उसी
िदशा को चुनते, िजसके माग म िखले पु प सीता के मन को भाएँ , वे उ ह च ान पर चढ़ने के
बारे म योजना बनाते जो िफसलन से भरी न ह और सीता के िलए उन पर चढ़ना सुगम हो। सीता
उनके भोजन समा होने क ती ा करती थ , परं तु वे यह भी जानती थ िक राम सदा थोड़ा
कम खाते तािक उनके िलए पया मा ा म भोजन बचा रहे ।
अंततः सीता व दशरथ पु , अग य ऋिष के आ म जा पहँचे। वहाँ उ ह ने अ ुत य देखा। बाघ
बक रय व भेड़ के साथ खेल रहे थे; मानो वे कैलाश पवत पर आ गए ह , िजसके िवषय म
शरभंग मुिन ने बताया था िक वहाँ न तो ुधा होती है, न कोई िहंसक िशकारी होता है और न ही
कोई िशकार। अग य ने कहा, “िशकारी अपने िलए भोजन चाहता है। िशकार अपने िलए र ा
चाहता है। िशव के पु , त दयु , हाथी क सँड
ू वाले गणेश, भखू े िशकारी का पेट भरते ह। िशव
के दूसरे पु , बलशाली काितकेय भयभीत िशकार क र ा करते ह। िशव सभी को भय तथा ुधा
से उबरने म सहायता करते ह,”
अग य उ ह अपने घर ले गए। वह तो एक भ य महल था! सीता ने सोचा िक उसे िकसी मुिन के
िलए तो उपयु आवास नह माना जा सकता। तब अग य मुिन ने उ ह अपनी कथा सुनाई।
राम बोले, “म इन बात को अलग ि कोण से देखता हँ, म देखता हँ िक पादप त व से जीिवत
ह, पशु पादप के कारण जीिवत ह और माँसाहारी पशु, शाकाहारी पशुओ ं को खा कर जीिवत ह। म
उ ह देखता हँ जो खाते ह और िज ह खाया जाता है। जो खाते ह, उ ह भय है िक हो सकता है
िक उ ह पया मा ा म न िमले। िज ह खाया जा सकता है, उ ह यह भय सताता है िक उनका
उपभोग हो जाएगा। मुझे हर थान पर भय िदखाई देता है। िकसी भी संपण ू समाज म इस कार
का भय या नह होना चािहए। इसे ा करना ही स चे अथ म धम है।”
सारा िदन, जब वे वन म मण करते, तो सीता राम के पीछे तथा ल मण के आगे चलत । वे
िकसी का भी मुख नह देखती थ । अनेक वष के दौरान, उ ह ने राम के चौड़े कंध व पीठ को
सराहना सीख िलया था, जो वन वास के दौरान एक बार भी नत नह िदखे, उनक वचा का
रं ग तपते सरू ज के कारण साँवला पड़ गया था, अब उनके केश उस कार सुगंिधत तैलयु व
घँुघराले नह थे जैसे महल म हआ करते थे, अब उनक जटाएँ बनी हई थ । ल मण क ि सदैव
सीता के पदिच ह पर रहती। वे उनसे बच कर चलने क चे ा करते, उ ह ने देखा िक सीता के
पदिच ह सदा राम के बाई ं ओर, उनके दय के िनकट होते थे। वे सभी सं या होने क ती ा
करते, जब वे अि न के स मुख बैठते और आपस म िदन भर क घटनाओं पर िवचार-िवमश
करते।
एक िदन, सीता ने केले के गाछ के िनकट ही बेर का झाड़ देखा। अचानक तेज़ हवा के झ के क
वजह से कांट ने केले के मुलायम प को छे द िदया। “यहाँ अपराधी कौन है? कौन है
खलनायक?” उ ह ने राम से पछ ू ा।
राम बोले, “कोई भी नह , मनु य के ने ही व तुओ ं को मोल देते ह, वे ही ाकृितक घटनाओं को
संघष व समाधान से भरे , िवशाल रोमांच म बदल देते ह। यही माया है, मापदंड के ज म से
उ प न म!”
ल मण का संयम
वषा के िदन म, सीता गुफा म िनवास करने को ाथिमकता देत । वे सदा तीन भाग वाली गुफा
का चयन करते। उसका बीच वाला िह सा सीता के िलए तथा आसपास वाले िह से राम व ल मण
के िलए रहते। कई बार वे घास, पि य , ितनक व टहिनय क मदद से कुिटया तैयार करते, जो
केवल सीता के िलए होती। वे दोन भाई खुले आकाश तले सोना सीख गए थे। उ ह व ृ के नीचे
छन कर आती सय ू िकरण भाने लगी थ ।
एक िदन क बात है, राम मगृ या के िलए गए हए थे, सीता ने सोचा िक वे कुछ देर िव ाम कर ल
और ल मण पहरे पर थे। सीता ने व ृ तले मगृ छाल िबछाई और वहाँ लेट गई ं। शी ही मंद ि मत
बयार ने उ ह गहरी न द सुला िदया। बाद म जब वे गहरी न द म थ तो अचानक तेज़ हवा चली
और उनके व अ त- य त हो गए। सीता अपनी उघड़ी देह से अ जान, शांित से सोती रह ।
जब राम लौटे तो सीता को इस दशा म पाया, वे सबसे बेख़बर सो रही थ । ल मण उनक ओर
पीठ िकए, वन क ओर मुख करके बैठे थे। राम बोले, “अरे , कौन है ऐसा, जो इस कार व ृ तले
बेसुध पड़े स दय को उपेि त कर सकता है?”
ल मण भाँप गए िक राम सीता क ओर संकेत कर रहे ह, वे बोले, “वह जो दशरथ-सुिम ा का
पु , राम का भाई व उिमला का पित है, वह िनि त प से उस स दय के लोभन से वयं को दूर
कर सकता है जो राम के श द म, व ृ तले बेसुध पड़ा है।”
राम मु कुराने लगे। उनके भाई क िन ा पर व न म भी संदेह नह िकया जा सकता था।
परं तु इं इतने भािवत नह थे। उसने ल मण क परी ा लेनी चाही और एक अ सरा को भेज
िदया तािक उ ह लुभाया जा सके। ल मण ने उसे खदेड़ िदया िकंतु अ सरा इं कािमनी ने सोचा
िक य न ल मण के साथ चाल चली जाए। जब वह जाने लगी तो उसने छल से अपने कुछ बाल
वह िगरा िदए जो ल मण के व कल व से जा िचपके और वे जान भी नह सके।
वेदवती
एक िदन, तीन वनवासी एक ी से िमले, िजसने अपना प रचय वेदवती के प म िदया। वह
िव णु क प नी बनना चाहती थी इसिलए उसने उन सभी युवक को मना कर िदया, जो उसके
माता-िपता के पास उसका हाथ माँगने आए थे। उ ह म से एक युवक ने उसके माता-िपता क
ह या कर दी। वह िव णु से भट होने तक, वन म एक तप वी के पास रहने लगी। वह जहाँ भी
गई, उसे चाहने वाल ने बहत सताया िकंतु उसने तो संक प ले रखा था िक िव णु के अित र
िकसी और से िववाह नह करे गी। जब वेदवती ने राम को देखा तो वह बोली, “आप इस धरती पर
िव णु के समान ह। आप मुझसे िववाह कर। म अनेक वष से आपक ती ा कर रही हँ।”
राम बोले, “मेरे पास मेरी सीता है। उसका थान कोई नह ले सकेगा।”
वह बोली, “मुझे सीता क दासी ही बना द।”
“नह , तुम मुझसे ऐसी अपे ाएँ रखोगी, िज ह म परू ा नह कर सकँ ू गा। कुछ समय तक और
ती ा करो। िव णु एक िदन दूसरे अवतार म आएँ गे और तु ह प नी के प म वीकार करगे।”
उस िदन के बाद, रावण ने भी वेदवती के साथ बल योग करना चाहा, वेदवती ने दुःखी हो कर
अि न म छलांग लगा दी। उसे आस थी िक संभवतः अगले ज म म उसे िव णु क प नी बनने का
सौभा य ा हो जाए।
कंद पुराण म बताया गया है िक वेदवती प ावती के प म िव णु से िववाह करती है,
जो धरती पर अवतार ले कर, ित मला म, वकेटे र बाला जी के प म िनवास करते
ह।
ज मू म, वेदवती को वै णो भगवती के प म वीकारा गया है, िज ह ने भैरव का
म तक काट िदया था जो बल- योग से उ ह अपनी प नी बनाना चाहता था। इसके
बाद भैरव के कटे िसर ने उनसे मा चाही और कट िकया िक वह कोई अनु ान
कर रहा था और उसके िलए एक ी क आव यकता थी जो उसे जीवन-मरण के
च से मुि िदलवाने म सहायक हो सके। तब उ ह ने भगवती का प ले कर कहा,
ू ा करो। म तु ह जीवन-मरण के च से मु कर दँूगी।” वैसे तो भगवती
“तुम मेरी पज
के अिधकांश तीथ म र बिल दी जाती है िकंतु वै णो भगवती शाकाहारी ह, यह
उनके वै णववाद से िनकट संपक का संकेत देता है।
रामायण के परवत सं करण म, वेदवती संक प लेती है िक वह उसे अपमािनत
करने वाले रावण क ह या का कारण बनेगी। अि न-देव उसे वीकार नह करते, वे
उसे िछपा लेते ह और सीता के अपहरण से पवू , उसे सीता के थान पर रख देते ह। इस
कार रावण सीता के थान पर, सीता के प म वेदवती को ही लंका ले जाता है। मल ू
सीता, सीता क अि न-परी ा के बाद लौट आती ह।
वेदवती और शपू णखा के संग को देख तो दोन ही राम से िववाह करना चाहती ह।
वेदवती राम क इ छा का आदर करती है िक वे एक-प नी ता रहना चाहते ह जबिक
शपू णखा उनक इ छा का आदर नह करती; उसे अपनी इ छा के आगे िकसी क
कोई परवाह नह है।
परं तु इं ने उनके पास आ कर, बधाई देते हए कहा: “वह तप वी एक रा स था, रावण का
भतीजा। यिद वह तप या परू ी कर लेता तो वह मुझे भी पद युत करने म सफल हो जाता। मने ही
उस सअ ू र को तु हारी ओर भेजा था तािक तुम उस पर अपने तीर से वषा कर सको। तु ह लगता
है िक तु हारे हाथ एक तप वी क ह या हई है, परं तु मेरा कहना है िक तुमने जो िकया, वह
उिचत ही था।”
उस शाम, सीता और दशरथ पु आपस म कम के िवषय म चचा करने लगे। ल मण बोले,
“हमारे जीवन क सभी घटनाएँ िपछले कम क िति याएँ ह। आज मने दुघटनावश एक यि
के ाण ले िलए। इं को लगा िक वह अ छा हआ िकंतु मेरी ि म यह एक अपराध है। इसका
भिव य पर या भाव होगा? यह मेरे िलए सौभा य का सच
ू क होगा अथवा दुभा य लाएगा?”
राम ने कहा, “घटनाएँ तो घटनाएँ होती ह। मनु य ही उ ह अ छे या बुरे का दज़ा देते ह।”
सीता भी चुप नह रह सक व बोल , “हो सकता है िक वनवास के इन िदन म तु ह वह घटना
बुरी लगे परं तु मेरे िवचार से ठीक ही हआ। यहाँ वन म िकतनी व छं दता है, यहाँ ऐसे कोई
िनयम, अनु ान या रवाज़ नह ह, िजनसे हम घर म बंधे होते ह।”
राम बोले, “सभी व तुएँ व घटनाएँ घटने के बाद ही अ छी या बुरी जान पड़ती ह।”
रावण ने उसके पेट के भीतर से अपनी बहन से कहा, “तुम ऐसा ही करो। म तु हारे पु को अपना
उ रािधकारी बना दँूगा और िजस पु ष को चाहोगी, उसे तु हारा पित बना िदया जाएगा।” तब
शपू णखा ने अपने तीखे नख क सहायता से अपने पित का पेट चीर िदया और भाई क ाण-
र ाक।
वह िवधवा हो गई िकंतु उसे यह वतं ता दे दी गई िक वह वन म िकसी भी पु ष को अपने पित
के प म चुन सकती थी। और वह ती ा करने लगी िक रावण कब उसके पु को अपने
उ रािधकारी के प म चुनेगा। परं तु उसने ऐसा नह िकया। जब उसका पु बड़ा हआ तो वह
अधीर हो उठा, उसे लगा िक तप या करके, ऐसा कोई श पाना चािहए िजससे रावण का वध
िकया जा सके। तभी से वह वन म तप या कर रहा था, िजस दौरान ल मण ने उसक ह या कर
दी, इस कार अनजाने म ही रावण क ाणर ा हो गई थी।
पहले अपने पित और अब अपने पु को खो कर, शपू णखा बहत ही भयंकर हो गई थी। वह अपने
पित क म ृ यु के उ रदायी यि से ितशोध नह ले सकती थी य िक वह उसका अपना भाई
था, परं तु वह अपने पु के ह यारे , उस िशकारी क िनि त प से ह या करने का संक प ले
चुक थी।
उसने ल मण के पदिच ह का अनुसरण िकया और गोदावरी के तट तक जा पहँची। यह थान
पंचवटी के िनकट था, वहाँ उसने राम और ल मण को बैठा पाया। वे तो बहत मनमोहक थे।
अचानक ही उसके मन से ितशोध का भाव जाता रहा और उसक कामवासना जागतृ हो उठी।
खर व दूषण का बल
अगले ही िदन, य ही काश क पहली िकरण ने आकाश म क़दम रखा, वायु म चार ओर
गरजते रा स का कोलाहल गँज ू उठा। खर-दूषण अपने रा स के दल सिहत बहन का ितशोध
लेने आ पहँचे थे। राम और ल मण अपने धनुष और बाण से लैस हए और कुिटया के आसपास
घेरा डाल िदया।
उनके बीच एक भयंकर यु िछड़ गया, जो भोर बेला से ही आरं भ हो गया। रा स झँुड बना कर,
बौराई मि खय क तरह, कु हािड़याँ, भाले व गदा िलए एक के बाद एक आते रहे और उनके
ची कार से सारा वन दहलता रहा।
राम और ल मण ने उन पर अपने तीर क बौछार कर रखी थी। उ ह ने वायु तथा जल क शि
को मं ो चार से जागतृ िकया और रा स पानी म िफसल-िफसल कर िगरने लगे। वे व ृ व
च ान से टकरा कर, अपनी गदन तुड़वा बैठे। राम और ल मण के बाण म हािथय का सा बल
तथा तदुए जैसी तेज़ी थी। उ ह ने अपने बाण के बल पर रा स के झँुड को टुकड़ म बदल िदया।
जब तक आकाश म सरू ज िसर तक आया, खर-दूषण अपने रा स सिहत यमलोक िसधार चुके
थे। कई दजन शव, सीता क कुिटया के बाहर पड़े लोट रहे थे।
सव
ु ण मग
ृ क का छल
वे अपने डे रे को, गोदावरी नदी के तट से हटा कर, च ान से िघरे सुरि त थान पर ले गए, जहाँ
से राम व ल मण, िकसी भी तरह के भेिदए को, दूर से ही देख सकते थे। इस तरह वन थोड़ा परे
हो गया था। वहाँ सीता के िलए एक कुिटया बनाई गई। वे भाई सारा िदन च ान पर बैठ कर
पहरे दारी करते।
िदन स ाह म, स ाह महीन म बदल गए। िवराध और शपू णखा क मिृ त ीण हो चली थी। एक
बार िफर से, वन अपने फल और फूल के साथ पुि पत हो उठा था। निदय और पवत के पास
सुनाने के िलए अपनी ही कथाएँ थ । एक बार िफर, उन तीन पर नीरसता हावी होने लगी और वे
सोचने लगे िक सारा िदन िबताने के िलए या िकया जाए। भोजन भी भरपरू था इसिलए भोजन
क तलाश म भी जाने क आव यकता नह थी। और मग ृ या पर जाने से सीता अ स न होती थ ।
उस थान के आसपास कोई ऋिष नह थे, िजनसे वातालाप कर मन रमाया जा सके, और
आकाश के सारे तारे भी तो प रिचत हो चले थे।
“ या पशु भी उकता जाते ह?” ल मण ने पछ
ू ा
“ या व ृ भी नीरसता का अनुभव करते ह?” राम ने िवचार िकया
“चिलए हम िमल कर, समय िबताने के िलए प पर िवशेष कार के खेल तैयार कर। इस तरह
हमारा मन ऊब से बचा रहे गा,” सीता ने कहा। और तभी उनक ि , सुवण क तरह जगमग
करते िहरण पर पड़ी। उसके दो िसर व लंबे स ग थे। य ही उसने छलांग भरी, उसके खुर से
सीता का लगाया घास का टुकड़ा उखड़ गया और उसने अपने स ग से पु प से लदी लता को भी
जड़ से उखाड़ा फका, जो सीता क ि य थी।
राम बोले, “सीता, म तु हारे िलए इसे पकड़ लाता हँ। यिद जीिवत िमल गया तो यह तु हारा
पािलत होगा और जीिवत नह िमल सका तो इसक छाल से तु हारे िलए सुंदर िबछौना बनेगा,”
सीता ने राम को नह बरजा। वे तो उस जीव को देख मं मु ध हो उठी थ । वे उसे पाना चाहती थ ।
और राम ने उनके ने म िछपी इस लालसा को भाँप िलया था। इतने वष के दौरान, पहली बार,
वे अपने िलए कुछ पाना चाहती थ । “म अभी इसे तु हारे िलए ले कर आया,” उ ह ने वचन िदया,
वे उस राजकुमारी को स न करना चाह रहे थे िजसने अपनी ओर से कभी असंतोष का भाव
तक कट नह िकया था।
“हो सकता है िक यह िहरण परू े झँुड का नेता हो,” सीता बोल , उनके ने सकड़ सुवण िहरण
को एक साथ चौकड़ी भरते देखने क संभावना से िदपिदपा उठे ।
ल मण ने चेतावनी दी, “सुवण िहरण का कोई अि त व नह होता। यह तो अ वाभािवक और
अ ाकृितक सा जीव है।”
“यह भी तो हो सकता है िक आज तक िकसी ने पहले इस अनठ ू े और अि तीय मग
ृ को देखा ही
न हो,” सीता इस बात पर परू ी तरह से िव ास करना चाहती थ िक वह िहरण वा तव म
अि त व रखता था और उसे पकड़ कर, पालतू बनाया जा सकता था, उसे अपने अधीन िकया जा
सकता था।
सीता अपनी इ छा-पिू त होने पर कैसी भीनी मु कान दगी, इसी संभावना से मुिदत राम उसी
समय वन क ओर िनकल पड़े । “ल मण! तुम सीता का यान रखना, म इस िहरण का िशकार
करके आता हँ।” उ ह ने उस सोने के रं ग वाले िहरण के पीछे जाते-जाते ल मण से कहा।
अभी सयू परू ी तरह से उगा भी नह था, राम कुिटया से दूर िनकल गए। जब दोपहरी होने को आई
तो सीता क याकुलता बढ़ने लगी। “वे इतना समय तो कभी नह लगाते थे, हो या रहा है?”
“अगर वह इतनी तेज़ी से दौड़ते हए, राम को भी छल सकता है तो वह कोई साधारण मग
ृ नह
है,” ल मण बोले।
िफर, दोपहरी ढलने को थी, अचानक उ ह राम क पुकार सुनाई दी: “ल मण, मुझे बचाओ,
सीता, बचाओ मुझे। मेरे ाण जा रहे ह,” सीता ने राम के जाने के बाद से, न तो एक घँटू जल
िपया था और न ही कुछ खाया था। वे बुरी तरह से घबरा गई ं। उ ह एक बार िफर राम का वर
सुनाई िदया।
“ल मण, उनके पास जाओ। वे संकट म ह,” सीता बोल ।
“नह , म आपके पास से नह हट सकता।” ल मण बोले।
“परं तु राम को तु हारी आव यकता है।”
“म उनक आ ा का पालन क ँ गा और आपको इस दुगम वन म अकेला नह छोड़ँ गा।”
“ल मण, तु ह या हो गया है? या तुम चाहते हो िक तु हारे भईया इस संसार म न रह?”
ल मण इन श द को सुन िचहँके, “अव य ही यह कोई चाल है। यह वन ऐसे रा स से भरा है,
जो िकसी के भी उ चारण का अनुसरण कर सकते ह। मुझे नह लगता िक राम िकसी संकट म
ू तथा यास के कारण हमारा मन अनठ
ह। यह वात का भाव होगा। भख ू ी क पनाएँ कर रहा है।”
सीता ु हो उठ । “जाने य , तु हारे भीतर भाई के ाण क र ा के िलए कोई य ता नह
िदख रही? या तुम चाहते हो िक उनके ाण चले जाएँ , वन म, जब नर मुख क म ृ यु हो जाती
है तो, दूसरा नर उसक सािथन को अपने अधीन कर लेता है। या तुम भी यही चाहते हो?”
ल मण अपने कान पर िव ास नह कर सके, यह उ ह ने या सुना? उनक ऐसी कुलीन और
नेही भाभी, अपने भय के कारण, अधम व अनगल लाप पर उतर आई थ , तािक अपनी बात
मनवा सक। या वह इतनी भयभीत हो गई थ ? या उ ह राम पर भरोसा नह ? वे नह चाहते थे
िक प रि थितयाँ इससे भी िवकृत प धारण कर, ल मण ने िनणय िलया िक वे राम क खोज म
जाएँ गे।
परं तु उ ह ने जाने से पवू , सीता क कुिटया के आसपास एक रे खा ख च दी। “यह ल मण ारा
ख ची गई, ल मण-रे खा है। मने इसे उन मं क शि से जागतृ कर िदया है जो मने िव ािम
तथा विश मुिन के आ म म सीखे थे। जो भी यि इस रे खा को बलात् पार करना चाहे गा,
वह उसी ण आग क लपट म जल कर भ म हो जाएगा। इसी रे खा के भीतर रहना। इसके
भीतर अयो या है और आप राम क प नी ह। इसके बाहर सब जंगल है और आप एक अबला ी
ह, िजसे कोई भी अपने अधीन कर सकता है।”
मिु न क िभ ा
ल मण के जाने के कुछ ही देर बाद, सीता क कुिटया के बाहर, हाथ म िभ ा-पा िलए, एक
तप वी आ पहँचा। उसक सारी देह पर भ म का लेप था। “ या तु ह िस रघुकुल वंशज राम
क भाया हो?”
“जी, म वही हँ।” सीता बोल ।
“महान रघुकुल तो अपने आित य-धम को िनभाने के िलए जाना जाता है, न?” उसने अपनी ओर
से पुि चाही।
“जी, स य कहा आपने।”
“तब तो तु ह िनि त प से मेरी सेवा करनी चािहए। म कई िदन से भख ू ा हँ और इस उजाड़ वन
म खाने के िलए कोई बेर, फल या कंद-मल ू तक नह जुटा सका। म तुमसे िभ ा क याचना
करता हँ, तु हारी कुिटया म जो कुछ भी भ य है, उसे मेरे आगे परोस दो।”
“आप कुिटया के भीतर आ जाएँ ,” सीता बोल ।
“म भीतर नह आ सकता, तु हारे घर के आसपास कोई पु ष सद य नह िदख रहा। वे वन म
अथवा नदी पर गए ह गे। तुम इस समय घर म अकेली हो। ऐसे समय म, कुिटया के भीतर वेश
करना अनुिचत होगा। कोई भी तुम पर रे णुका या अिह या क तरह होने का लांछन लगा सकता
है। नह , यही े होगा िक तुम बाहर आ कर मुझे भोजन परोस दो।” ऋिष ने कहा और िफर
कुिटया से थोड़ी दूरी पर अपनी मग
ृ छाल िबछा कर, धरती पर ही आसन जमा िदया। वह िभ ा न
पाने के िलए त पर था।
सीता ने कुिटया के भीतर से कुछ फल और बेर एक िकए और बाहर आने ही वाली थ िक उ ह
कुिटया के बाहर बनी उस रे खा का मरण हो आया। वे अनायास ही एक दुिवधा से िघर गई ं। जब
तक वे उस रे खा के भीतर थ , पण
ू तया सुरि त थ । कुिटया के बाहर आते ही उनक सुर ा पर
आसानी से आघात हो सकता था।
परं तु यिद ऋिष उनक कुिटया के ार से भखू े लौट गए तो वे वन म थान- थान पर जा कर,
चा रत करगे िक रघुकुल क पु वधु वंश क ित ा का मान नह रख सक । “वे वयं को
कुलीन कहते ह िकंतु उनके ार से भख ू ा याचक रीता ही लौट गया। “जब भी तुम रघुकुल के
िकसी सद य से भट करो तो सीता को याद रखना, और उससे िकसी भी कार के आित य क
अपे ा मत रखना,” वे कहगे। इस प रि थित म या अिधक मह वपण ू था, वे वयं या रघुकुल
क आन व मयादा का स मान, वे िवचार करने लग । उ ह रे खा से बाहर आने का संकट मोल
लेना ही होगा, उनके पास कोई दूसरा िवक प शेष नह था।
इस तरह सीता ने तप वी को िभ ा देने के िलए, ल मण क ओर से ख ची गई रे खा को पार कर
िलया।
जटायु के पंख
सीता नह जानती थ िक वह िविच तप वी कौन था। वह कोई तप वी था भी या नह ?
“हे सुंदरी! यह जान लो, तु हारे पित ने िजस ी के अंग-भंग िकए, म उसका भाई तथा िजन
रा स को तु हारे पित ने मारा, उनका नेता, लंका का राजा रावण हँ। तु ह उसके पाप का दंड
भुगतना होगा। जब वह अपनी कुिटया म लौटेगा तो तुम उसे वहाँ नह िमलोगी और न ही उसे
कोई पदिच ह िमलगे, िजनका अनुसरण िकया जा सके। वह िकसी मख ू ेमी क तरह वष तक
वन क ख़ाक छानता िफरे गा और िफर िववश हो कर यही मान लेगा िक तु ह कोई जंगली पशु
या प ी खा गया, इसके बाद वह तु हारे िवयोग को वीकार कर, अपने जीवन म दूसरी युवती
को शािमल कर लेगा, संभवतः वह मेरी बहन को ही वीकार कर ले, उसने उसके साथ िकतना
िनदयतापण ू यवहार िकया िकंतु इसके बावजदू वह अब भी उस दु युवक के आकषण से िबंधी
है।
सीता ने अपने अपहरणकता क ओर आँख तक नह उठा कर देखा। वे उसे यह संतुि कभी नह
दगी िक वह उ ह रोते-चीख़ते या मारे भय के कंिपत होते हए देखे। उ ह ने नीचे क ओर देखा
- व ृ का गलीचा सा िबछा िदखाई िदया। वे वा तव म आकाश म उड़े जा रहे थे। सीता सोचने
लग िक या वह उसे देव क नगरी, अमरावती क ओर ले जा रहा था।
मानो रावण ने उनके मन क बात जान ली, वह बोला, “म तु ह इस धरती क सबसे अ ुत और
िवल ण नगरी, लंका म ले जा रहा हँ, वह सुवण नगरी, सागर के ठीक म य म ि थत है, जो िक
हर कार क मानवीय आबादी से बहत-बहत दूर है।”
सीता का मन अनायास ही भय और दुःख से भर आया। वे अपने िलए नह , राम व ल मण के िलए
दुःखी थ । उनक अनुपि थित म वे दोन िकतने य हो उठगे, वयं को ल जा व लािन से
िघरा अनुभव करगे। वे यो ा थे, गव ले पु ष, िज ह लगेगा िक वे अपने कत य िनवाह म
असफल रहे । और अक मात् िवचार आया िक जब वे कुिटया पर वािपस आएँ गे, तो कौन उनक
यास िमटाने के िलए जल लाएगा और उनके िव ाम के िलए फूस का िबछौना तैयार करे गा।
सीता दशरथ पु क संभािवत दशा का अनुमान लगा कर बहत दुिखत हई ं, उ ह अपनी कोई
िचंता नह थी। वे तो सब संभाल लगी, िकंतु उनके पित व देवर पर या बीतेगी?
वे सोचने लग िक राम को कैसे पता चलेगा िक उनक प नी का िकसी ने अपहरण कर िलया है।
यह तो प था िक उ ह दि ण क ओर ले जाया जा रहा था। उ ह ने अपने पैर के नुपुर, हाथ
म पहने गए बाजबू ंद, कंठ म पड़े हार व कान के आभषू ण को उतारा और उ ह नीचे िगराने
लग । उ ह लगा िक शायद उन आभषू ण क िनशानी से राम को, उनक िदशा का कुछ अनुमान
हो जाए। इस तरह उ ह सीता का पता लगाने म आसानी होगी। उ ह ने अपने केश म सजे
चड़ू ामिण के अित र सारे आभषू ण नीचे फक िदए। उ ह अपनी माँ क दी सीख भल ू ी नह थी।
माँ ने कहा था, “जब तक तुम अपने पित क िववािहता ी तथा प रवार क कुलवधू हो, तु हारे
केश सदा बंधे रहने चािहए। उ ह क के एकांत म, केवल अपने पित के स मुख ही खोलना,
क से बाहर आने के बाद, केश सदा बंधे रहने चािहए।”
अचानक उस रथ के सामने एक प ी कट हो गया। वह एक जटायु नामक बढ़ ू ा िग था, जो
अ सर उनक कुिटया क पहरे दारी करता था। उसने अपने पंख फै लाए और उड़ने वाले िवमान
का माग रोकना चाहा। उसने रावण को ं यु के िलए ललकारा। रावण ने अपनी चं मा के
आकार क खड्ग िनकाली और यु के िलए तुत हो गया। जटायु ने अपने पंख से उस पर
वार िकया, अपनी ती ण च च से उसक भुजाओं पर काट खाया, अपने पंज से उसका माँस नोच
िलया परं तु रावण बहत फुत ला था और जटायु एक बढ़
ू ा प ी था। रावण ने अपनी तलवार लहराई
और एक ही झटके म प ी को पंख से िवहीन कर िदया। जटायु आकाश से फड़फड़ाता हआ
धरती पर िगरने लगा।
अशोक वािटका
रावण सीता को अपने महल के िनकट बनी वािटका म ले आया और उसे एक व ृ के नीचे उतार
िदया। उसने अपने महल क ि य से कहा, “यह यह रहे गी। इसक आव यकताओं का यान
रखना और अपनी ई या को वश म रखना। म इस बात का आ ासन देता हँ िक तुम सबको
कभी िशकायत का अवसर नह िमलेगा। म तुम सबको संतु क ँ गा और वह मुझे संतु
करे गी।” जब उसने ऐसा कहा तो सारी ि याँ समवेत सुर म िखलिखला उठ , य िक रावण सदा
अपने वचन िनभाता था।
लाल व म िलपट तथा केशचड़ ू ामिण के अित र अ य आभषू ण रिहत सीता ने व ृ क ओर
मुख िकया और उसे इस कार आिलंगन म भर िलया मानो वह राम ह , जो यु कर, उ ह उस
क़ैद से मु करवाएँ गे। जब िकसी से उसक वतं ता छीन ली जाती है, तो इससे बड़ा दुभा य
कोई नह होता।
उ ह िजस वािटका म रखा गया था। उसम चार ओर अशोक के व ृ लगाए गए थे, म यम ऊँचाई
के, आम के व ृ क पि य जैसी पि य वाले व ृ पर लाल-संतरी रं ग के पु प के गु छ फलते
थे। सीता उ ह अपने िपता के घर व अयो या म देख चुक थ । वे ेम के भगवान, काम को
समिपत व ृ माने जाते थे। जब शीत ऋतु का समापन होता, तो ि य को उन व ृ का आिलंगन
करने को कहा जाता। मािलय क मा यता थी िक ऐसा करने से व ृ संपण ू प से पुि पत हो
उठते थे और बसंत छा जाता था। उ ह बंदी बनाने के िलए कैसा िनम ही थान चुना गया था, वह
तो िपंजरे क क़ैद से भी बदतर था, वह उ ह सदा राम क याद िदलाता रहे गा, ेम क उन सभी
संभावनाओं क याद िदलाएगा, िज ह पहले कैकेयी क ू रता ने और अब रावण के रोष ने परू ा
नह होने िदया।
सीता ने वयं को रावण के प रवार क ि य से िघरा पाया: उसक प नी मंदोदरी; उसक माता
कैकसी; उसक बहन शपू णखा, उसक भाभी सरमा, उसके भाई िवभीषण क प नी; उसक
भतीजी ि जटा, िवभीषण क पु ी; और उसक पु वधू सुलोचना, इं िजत क प नी। उन सबको
सीता क देख-रे ख करने के िन श िदए गए थे।
वे उनके िलए जल, भोजन, व व मन बहलाव के िलए गुिड़याँ ले कर आई ं। परं तु सीता को
िकसी भी व तु म िच नह थी। वे तो राम और ल मण के िलए यिथत थ । उ ह भोजन कौन दे
रहा होगा? उनक सेवा कौन करता होगा? वे उनके दुःख क क पना मा से दयनीय अनुभव
कर रही थ ! वे िनि त प से वन का कोना-कोना तलाश रहे ह गे। या उ ह टूटे हए पंख वाला
प ी जटायु िमला होगा? या उ ह वे आभषू ण िमल जाएँ गे, िज ह वे िनशानी के िलए धरती पर
िगरा आई थ ? या वे उनका पता लगा लगे, या वे उनक र ा कर सकगे?
सीता क पहरे दारी के िलए भी रा सी ि य को िनयु िकया गया था। उनम से कुछ दयालुता
से पेश आत । कुछ यवहार करत । कुछ उ ह समझात िक उ ह रावण क बात मान लेनी
चािहए। कुछ चेतावनी देत िक अगर सीता ने रावण क बात नह मानी तो भयंकर प रणाम
भुगतने ह गे। “ या तु ह लगता है िक तुम हमसे े हो? या तु ह लगता है िक वह तु हारे
यो य नह है?”
सीता इन तान का कोई उ र न देत । वे केवल अपने आसपास रखे कुशा के दो ितनक को
देखती रहत , िज ह उ ह ने अपने दाई ं और बाई ं ओर रखा हआ थ। उ ह ने दाई ं ओर पड़ी कुशा
का देख कर कहा, “वे मेरे राम ह।” और बाई ं ओर पड़ी कुशा को देख कर बोल , “वे मेरे देवर
ल मण ह।” उ ह परू ा िव ास था िक वे दोन उनक र ा करगे।
“उसके पास कोई सेना नह । वह रावण क हज़ार रा स वाली सेना का सामना कैसे करे गा?”
सीता ने कोई उ र नह िदया। वे जानती थ िक राम अपने रा य के िबना भी, राजा थे। यिद उ ह
लगे िक सीता क र ा के िलए सेना चािहए तो वे शू य से भी सेना खड़ी कर दगे।
जब शपू णखा बाग म सीता को कोसने और धमकाने आई, तो मंदोदरी उसे देख कर अपने गु से
को शांत नह रख सक और बोली, “ या यही ठीक नह था िक तु हारा भाई इस युवती के ाण
ले लेता, तािक इसका पित सां वना पाने के िलए तु हारी बाँह म आ जाता। वह इसे यहाँ य ले
आया? मख ू लड़क , या तुझे एहसास भी है, तेरे ितशोध क आड़ म, तेरे भाई ने अपनी वासना
पिू त का साधन जुटा िलया है?”
“रावण मुझसे बहत नेह रखता है।” शपू णखा बोली।
“रावण अपने अित र िकसी दूसरे से ेम नह करता,” मंदोदरी ने कहा। “झठ
ू ा िदखावा करने
से या होगा, हम उसके पािलत जीव से अिधक कुछ नह ह!
रावण का महल व प नी
लंका क ि य ने सीता को बताया िक रावण परम िशव भ था।
िशव एक तप वी थे और उ ह महल िनमाण कला के िवषय म कोई जानकारी नह थी। पावती ने
उनसे कहा िक वे यह काय िकसी वा तुिश पी को स पे द। रावण को बुलाया गया य िक वह
वा तुशा क अ छी िवशेष ता रखता था। रावण ने पावती के िलए, कैलाश पवत पर बहत
सुंदर महल क रचना क , िजसे देख कर पावती स न हो उठ । रावण उनक प नी क
स नता का कारण बना, यह देख िशव जी ने रावण से कहा िक वह कोई भी मँुहमाँगा वरदान
पा सकता था। रावण ने वह महल ही माँग िलया, जो उसने पावती के िलए तैयार िकया था य िक
वह उसे भी इतना भा गया था िक वह उसे छोड़ना ही नह चाहता था। इस तरह पावती के
िख नमना होने के बावजदू , रावण कैलाश पवत ि थत उस महल को, लंका के म य, ि कूट
पवत पर ले गया।
एक बार रावण ने अपने शीश को वीणा के िलए यु िकया, अपनी एक भुजा से उसका दंड तथा
भुजा के नायु से वीणा के तार बना कर, िशव को वीणा भट क । इस वा यं से स न हो कर,
िशव ने उसे िफर से वरदान लेने को कहा। रावण ने कैलाश पवत पर एक सुंदरी को िवचरण करते
देखा था। उसने कहा, “म उसी ी को प नी के प म पाना चाहता हँ,” िशव ने हामी भर दी।
उ ह कोई अनुमान नह था िक रावण ने उनक ही प नी को उनसे माँगा था। पावती को अपने
पित पर ोध नह आया य िक उ ह पता था िक वे इतने भोले थे िक प नी और ी का अंतर
तक नह कर सकते थे। परं तु उ ह रावण पर बहत ोध आया, िजसने उनके पित के भोलेपन का
अनुिचत लाभ उठाया था। उ ह ने ा जी से कहा िक वे उ ह क अनुकृित म, एक मादा मढक
को युवती बना द। उसका नाम मंदोदरी था, वह िदखने म पावती जैसी थी। रावण ने उसे ही पावती
समझा और अपने साथ रानी बना कर, लंका ले गया।
ये कथाएँ भी सीता को भािवत नह कर सक ।
“तुम उसे िशव का परम भ कह रही हो और उसे िशव जी का महल और उनक प नी माँगने म
ही ल जा नह आई? कैसी अत ृ इ छाएँ िलए डोलता है, उसने िशव क भि से भी कुछ नह
सीखा, जो सारी ुधाओं से ऊपर उठ गए ह?”
“वह योितष शा क िव ा म पारं गत है। उसने रावण-संिहता क रचना क है, िजसम यह
बताया गया है िक ह व न क गणना से भिव य म होने वाली घटनाओं का पवू ानुमान कैसे
लगाया जा सकता है अथवा र न क सहायता से भिव य क चाल कैसे बदली जा सकती है,”
ि जटा बोली।
“जो भिव य क गणना म व ृ होता है, वह असुरि त है। जो भिव य को अपने वश म करना
चाहता है, वह असुरि त है। अरे , तु हारा रावण, मेरे राम के चरण क धल
ू के समान भी नह ,”
सीता बोल ।
जब उ ह यह पता चला िक िकस कार लंका को कुबेर ने य के िनवास के िलए बनाया था
और िफर रावण ने उसे खदेड़ कर, लंका नगरी को रा स का आवास बना िदया था, तो वे
मु कुराई ं, वे एक ऐसे घर से थ जहाँ भाई एक-दूसरे को अपना सब कुछ देने को त पर थे और
कोई भी दूसरे का अिधकार नह रखना चाहता था। रावण का कुल, रघु-कुल नह था। रावण का
यवहार, उन बलशाली भु वसंप न पशुओ ं के समान था जो अपने ितयोिगय को दूर खदेड़
देते ह। ऐसा यवहार मनु य को शोभा नह देता। यह िनि त प से धम का वभाव नह है।
मंदोदरी क पु ी
मंदोदरी के िवषय म कहा जाता था िक जब उसने इं िजत नामक पु को ज म िदया, उससे बहत
पहले, उसने एक पु ी को भी ज म िदया था। उसने भल
ू वश, र से भरे पा को, जल-पा समझ
कर पी िलया था। वह ऋिषय का र था, जो रावण ने कर के प म िलया था तािक वह भगवती
को स न करने का अनु ान संप न कर सके और मनोवांिछत वर पा सके।
जब क या का ज म हआ, तो योितिषय ने भिव यवाणी क िक वह रावण क म ृ यु का कारण
होगी। इस कार उस क या को एक िपटारे म बंद कर, िपटारे को सागर म वािहत कर िदया
गया। मंदोदरी जब भी सीता को देखती तो उसके मन म िवचार आता, “ या सागर भगवान ने
मेरी पु ी को धरती-माँ को स प िदया था और धरती माँ ने जनक को, और जनक ने उसे राम को
दे िदया था। यही कारण था िक वह अपनी ओर से हरसंभव य न कर रही थी िक सीता को रावण
क क़ैद से मु करवा सके।
“एक ी, याद है न, भिव यवाणी के अनुसार एक ी ही आपक म ृ यु का कारण होगी?”
उसने रावण से कहा।
सबसे बड़ा समरांगन कौन सा है? िकसी ी का दय, जो दूसरे पु ष से ेम रखती हो। उसे
उसके ि यतम से अलग करना और इस तरह उसके दय म थान बनाना िक वह वे छा से
आपक अंकशाियनी बने, यह अपने-आप म िकसी बड़ी चुनौती से कम नह होता। और इस तरह
रावण ने अपनी ओर से, इस य न म कोई कमी नह रखी िक सीता उससे ेम करने लग।
उसने उनके िलए गीत गाया। लंका क सारी ि याँ रावण के सुर क शंिसकाएँ थ परं तु सीता
ने कान तक नह िदया।
उसने सीता के िलए न ृ य िकया। लंका क ि याँ उसके देह ला य पर लार टपकाती थ िकंतु
सीता ने उस ओर देखा तक नह ।
उसने उसे अनेक कथाएँ सुनाई ं। लंका क ि याँ सारी रात मं मु ध भाव से सुनती रह , िकंतु
सीता टस से मस न हई ं।
उसने अपने-आप को पीिड़त के प म भी तुत िकया और कथाओं के मा यम से बताना चाहा
िक िकस कार उसके िपता सदा कुबेर से उसक तुलना करते रहते थे और वह वयं को बाली
और कातवीय के स मुख अधरू ा अनुभव करता। लंका क सारी ि याँ उसे सां वना देने के िलए
आगे आ गई ं िकंतु सीता का दय नह िपघला।
उसने सीता पर उपहार क वषा कर दी - मनमोहक पु प, अित उ म आभषू ण तथा व , एक से
एक बढ़ कर एक वािद पकवान। लंका क ि य को लगा िक वह िकतनी सौभा यशाली थी
िकंतु सीता ने उन उपहार क ओर झाँका तक नह ।
“वह तुमसे बहत ेम करता है।” एक िदन ि जटा ने कहा।
“तो उसे मेरी स नता से अिधक अपनी स नता क इतनी परवाह य है?” सीता ने कहा।
“वह मुझे जाने य नह देता?”
“एक ी िकसी पु ष से इससे अिधक या चाह सकती है? उसने तु ह वह सब िदया, जो तुम
चाह सकती हो। उसने तु ह मान िदया, तु हारी क़ क , तु ह िदल से चाहता है।” कैसे ई या भाव
के साथ तु हारी र ा करता है और तु ह िकसी भी तरह क हािन नह होने देता।”
“यह ेम नह है। वह मुझे नह चाहता। वह तो मुझ पर अपना अिधकार चाहता है और जब म इस
बात के िलए वीकृित नह देती तो वह कुंिठत हो जाता है। ेम को बल से नह जोड़ा जा सकता;
ेम म तो हम समपण और वीकृित देते ह। अपने ि य के िलए सब कुछ अिपत कर देते ह। ेम तो
पर पर अनुभिू त का दूसरा नाम है। म राम को अनुभव करती हँ। वे मुझे अनुभव करते ह। म
चाहती हँ िक राम को मेरी अनुभिू त हो और राम चाहते ह िक मुझे उनक अनुभिू त हो। मने राम
को उनक सारी संवेदनाओं सिहत जाना है और वे भी मुझे इसी प म जानते ह। रावण िकसी
दूसरे को ेम कर ही नह सकता य िक वह िकसी को महसस ू नह करता, यहाँ तक िक वह
अपने भीतर तक नह झाँकता।”
“वह तु ह बलात् अपना बना सकता है।”
“ या यह मुझे भयभीत करने के िलए कहा जा रहा है? तुम इस देह को मुझसे कह अिधक मोल
देती हो। म मेरी देह नह हँ। म कभी दूिषत अथवा अपिव नह हो सकती।”
सीता ऐसी जड़ी-बिू टय के बारे म जानती थ , िजनसे िकसी घाव को ठीक िकया जा सकता था,
वचा को सुकोमल बनाया जा सकता था। वे बंद नाक खोलने के अित र पेट साफ़ करने वाली
जड़ी-बिू टय क जानकारी भी रखती थ और इनसे भी रोचक बात यह थी िक उ ह ने ि य को,
घर म सबके साथ िमल कर खेले जाने वाले वे सभी खेल भी िसखा िदए जो उ ह ने राम व
ल मण के साथ िमल कर वन म तैयार िकए थे।
शी ही, लंका के येक घर म, सीता ारा तैयार िकए गए वे खेल खेले जाने लगे। वे ऐसे खेल
थे, िज ह पित अपनी पि नय के साथ खेल सकते थे, नाती-पोते नाना-दादा के साथ खेल
सकते थे, ि य व पु ष के समहू आपस म खेल सकते थे। इस तरह वे िमल कर समय िबताने
लगे, अब उ ह एक-दूसरे क संगित म आनंद आने लगा था। उनके बीच पर पर कोई बहस या
लेश नह होता था, वे यह िस करने क होड़ म नह रहते थे िक उनम से कौन े है। सीता
ने अपनी उपि थित मा से, लंका को खेल के ऐसे मैदान म बदल िदया था, जहाँ सभी हँसते,
मु कुराते रहते थे।
राि के समय, लंका के हर दालान से हँसने और िखलिखलाने क आवाज़ सुन कर मंदोदरी ने
कहा, “आप अभी तक उसका दय नह जीत सके। और उसने हम सभी के दय पर अिधकार
कर िलया है। इस अ ुत युवती को वािपस जाने द।”
“कभी नह ,” रावण बोला। वह अपनी ही धरती पर परािजत नह हो सकता।
ती ा
‘उनके िव ास से उपजा था उनका धैय’
वृ पर िदखा वानर
सीता के िपता ने एक बार कहा था िक भले ही उनके साथ कोई न हो, िकंतु वे इस संसार म कभी
अकेली नह ह गी। परं तु उ ह ने ग़लत कहा था। सीता अकेली थ । अशोक व ृ फूल से लदा हआ
था और उस पर पुि पत फूल को देख कर लग रहा था मानो वे उनका उपहास कर रहे ह । उनके
आसपास क ि य को उन पर तरस आता था। वे वहाँ, अपने आसपास, अपने व आततायी के
बीच घास के दो ितनके रखे, िकसी च ान क भाँित सु ढ़ खड़ी थ , परं तु उनका दय हर बीतते
िदन के साथ यिथत होता जा रहा थाः उनके राम कब आएँ गे?
वे िकसी नवजात िशशु क तरह अपने-आप से ही िलपट कर लेट अपने माता-िपता व घर के बड़े -
बुज़ुग क कही बात का मरण करत । िफर उ ह ऋिषय क दयालुता का मरण हो आया। उ ह
िकसी ने नह बताया था िक यह संसार इतना िनदयी होगा, उ ह एक घर का याग करने के
िलए िववश होना होगा और िफर उ ह घसीट कर कह और ले जाया जाएगा। एक बार या व य
ने कहा था, “जब मोह उ प न होता है तो पीड़ा के अित र कुछ नह िमलता,” वे उसी पीड़ा को
अनुभव कर रही थ । वे मोह त थ । या यह अनुिचत था? वे मुि के िलए तरस रही थ : उनके
राम कब आएँ गे?
“वह तुझे भल
ू गया है, शी ही वह मुझे वीकार लेगा और तुझे िववश हो कर मेरे भाई को
वीकार करना ही होगा।” शपू णखा ने कहा। सीता ने कोई उ र नह िदया। वे वषा का आना-
जाना देखती रह । वे जानती थ िक वषा ऋतु म कोई या ा नह करता िकंतु वे जानती थ िक
उनके राम, उनके िलए जल- लावन और दलदल को भी लाँघ कर आएँ गे: परं तु उनके राम कब
आएँ गे?
िफर अचानक, एक रात, जब आकाश म चं मा अपनी चं िकरण िबखेर रहा था, उ ह कुछ सुनाई
िदया। बहत दूर से क ट व हवा क सरसराहट सुनाई दे रही थी।
“राम, राम।”
“हाँ, उ ह ने सही सुना था। परं तु कह वे सपना तो नह देख रह ? या उनक क पना ही उ ह
यह श द सुनने को िववश कर रही है?”
उ ह ने ऊपर क ओर देखा तो एक िविच ही य िदखा: एक पहला सा वानर राम का नाम
जप रहा था। वानर ने अपनी हथेली खोली और धरती पर कुछ िगरा िदया। वह तो एक अंगठ ू ी थी।
सीता के ने िव फा रत हो उठे ः वह तो राम क अंगठ
ू ी थी। उ ह ने िफर ऊपर देखा; वह वानर
नीचे आया और मनु य के वर म बोला: “म राम का संदेशवाहक हनुमान हँ। मुझे आपके पास
भेजा गया है।”
सीता तिनक सकुचाई ं, संशय ने िसर उठाया: कह रावण का ही एक और छल तो नह ?”
उनके भय का अनुमान कर, हनुमान बोले, “म कोई रा स नह । म एक वानर हँ। हम िकि कंधा
के वासी ह, जो उ र म दंडक तथा दि ण म लंका के म य ि थत है। य व रा स क भाँित,
हम भी पुल य ारा ा के वंशज ह। मेरी माता का नाम अंजना है, वे अिह या क पु ी ह। और
मेरा ज म वायु-देवता क कृपा से हआ था। मेरे िपता केसरी, वानर-राज ऋ क सेवा म थे। म
ऋ पु सु ीव क सेवा म हँ। सय ू -देवता मेरे गु ह। और राम, रघुकुल के ि य राम, जो अपने
िपता के वचन का मान रखने के िलए, तप वी के प म, वन म िवचरण करते ह, वे मेरी ेरणा
ह। हम आपके वे आभषू ण िमले, जो आपने रावण ारा बलात् पु पक िवमान म ले जाए जाने के
दौरान व य भिू म म िछतरा िदए थे और हमने, सागर के म य ि थत इस ीप, पर अशोक वािटका
के बीच आपका पता लगा िलया।
वे श द, वह सुर, इस तरह के एक पहल का सरासर दु साहस; सीता का सारा संशय िव ास म
बदल गया। इसी वानर के मा यम से, उनके राम उन तक आएँ गे। अंततः सीता के मुख पर
मु कान खेल गई, उनके दय म उमड़ता वार शांत हो गया था।
सीता के अपहरण तथा हनुमान से उनक भट के बीच परू ी वषा ऋतु आती है। उ ह वषा
ऋतु से पवू , ी म ऋतु म हरण कर, ले जाया गया था और राम व रावण का यु , वषा
ऋतु के बाद, हआ था, िजन िदन अब दशहरे का योहार मनाया जाता है।
सीता व हनुमान क भट का वणन कई अलग-अलग तरह से िकया गया है। वा मीिक
क रामायण म, हनुमान सीता के पास तब आते ह, जब रावण आ कर उ ह धमकाता
है िक यिद उ ह ने उसक नह सुनी तो वह उ ह मौत के घाट उतार देगा। तेलुगू
रामायण म, हनुमान देखते ह िक सीता आ मह या करने जा रही ह। मराठी रामायण
म वे एक वानर को राम के नाम का जप करते सुनती ह। ओिड़या रामायण म, वे राम
क मुि का िगरा कर, अपनी ओर यान आकिषत करते ह, वािटका के सारे र क
उस समय सो रहे ह य िक वे सारा िदन सीता को डराने और समझाने-बुझाने से
बहत थक जाते ह।
वा मीिक रामायण म, हनुमान सोचते ह िक उ ह सीता से देव-वाचम् यानी देव क
भाषा, सं कृत म बात करनी चािहए या मनु य वाचम् अथात इंसान क बोली म बात
करनी चािहए, िजसे हम ाकृत या तिमल कह सकते ह। दोन ही तरह से, उनके िलए
यह अचरज का िवषय होगा िक एक वानर बोल भी सकता है।
संवाद से पता चलता है िक िकस कार पहले सीता संदेह कट करती ह और िफर
धीरे -धीरे हनुमान अपने कूटनीितक कौशल से उनका िव ास अिजत कर लेते ह।
वा मीिक क रामायण म िद यता के संग को परे ही रखा गया है। राम को अपनी
िद यता का आभास तो है िकंतु वे इसे सबके स मुख कट नह करते। कई सिदयाँ
बीतने के बाद ही, राम क िद यता लोग के स मुख आ सक । उनका नाम एक मं
क तरह िलया जाने लगा।
जब राम का संबंध धीरे -धीरे िव णु के साथ िलया जाने लगा, हनुमान का संबंध िशव
से जोड़ा जाने लगा, उ ह अवतार या उनके पु के प म पज ू ा जाने लगा और
सीता का संबंध भगवती से जोड़ा गया। इस कार, रामायण के मा यम से, िहंदु व के
तीन मुख वाद या पंथ ने, वयं को कट िकया जो िशव, िव णु तथा शि को
समिपत थे।
सं कृत के हनम ु ान नाटक से हम पता चलता है िक के यारह प ह। इनम से
दस, रावण के दस िसर क र ा करते ह परं तु इनम से यारहवाँ हनुमान का प ले
लेता है।
कहा जाता है िक सीता को राम क जो मुि का दी गई, उस पर उनका नाम अंिकत
था। सं कृत, िहंदी, मराठी तथा गुजराती के िलए देवनागरी िलिप का योग, भारत म
लगभग एक हज़ार वष पवू ही आरं भ हआ जबिक रामायण लगभग दो हज़ार वष
पुरानी है, िजससे िव ान ने यह िन कष िनकाला है िक िलिखत श द का योग,
राम क कथा के बहत बाद म आरं भ हआ।
वानर क कथा
िकि कंधा के वानर, उ र क ओर मुड़ चुके थे, तभी उ ह िग के चीख़ने का वर सुनाई िदया।
उ होने देखा था िक िकस कार रावण के खड्ग के वार से, जटायु के पंख कटे और वह तड़पता
हआ, धरती पर आ िगरा। तब तक उड़ने वाला िवमान, दि ण िदशा क ओर जा चुका था। सारे
वातावरण म एक िवलापरत ी का वर गँज ू रहा था। उसने अपने सारे आभषू ण िनशानी के तौर
पर, धरती पर फके थे। वानर ने वन म से उन आभषू ण को एक िकया और उ ह सु ीव को
स प िदया, जो िवचार करने लगे िक यह सारा उप व िकसिलए था।
“सु ीव िकि कंधा नरे श ह, म उनका सेवक हँ। जब राम से उनक भट हई, तो वे भी वनवास पर
ही थे य िक उनके भाई के साथ कुछ कलह चल रहा था,” हनुमान ने बताया।
इसके बाद हनुमान ने सीता को वानर भाईय और उनक आपसी कलह का कारण बताया।
ा के पु का यप क िवनता नामक प नी थी, जो पि य क माता थी। एक िदन उ ह ने दो
अंडे िदए। परं तु बहत समय तक उन अंड से कुछ नह िनकला। अधीर हो कर, उ ह ने एक अंडा
तोड़ िदया। इस कार उससे अ िण नामक बालक का ज म हआ, वह भोर को भगवान है, उसका
िलंग अ ात है य िक उसके शरीर का िनचला िह सा परू ी तरह से िवकिसत नह हो पाया।
अ िण सय ू देवता के सारथी के प म सेवाएँ दान करता था, िजनका इं से पुराना बैर है। इं
वग का भगवान है, िजसके ताप से धरती पर मेघ वषा लाते ह। उनके बैर का कारण साधारण
सा था: जब सय ू चंड होता था तो धरती वासी वषा के भगवान के प म इं क उपासना करते
थे, और जब इं शि शाली हो कर अ यिधक वषा कर देता तो सय ू को स न िकया जाता था
तािक वह धरती को अपनी िकरण से ऊ मा व काश दान करे ।
ू देवता को बताए िबना ही, अ िण इं के दरबार म चोरी-िछपे चला गया तािक
एक िदन, सय
अ सराओं के कामुक न ृ य का आनंद पा सके। ऐसा करने के िलए उसे एक ी का प धरना
पड़ा। अ िण का अप रिचत मुख अचानक इं क ि म आ गया, वह तो अपनी सारी अ सराओं
को अ छी तरह जानता था। वह उसके पास गया, उसक संगित का आनंद िलया और उसके साथ
शारी रक संबंध थािपत कर िलए। प रणामवश, अ िण ने बाली नामक पु को ज म िदया। इस
बालक का ज म तुरंत हआ था, िजस कार देव के काल म हआ करता था। अ िण ने बालक
को गौतम ऋिष तथा अिह या के संर ण म छोड़ा और सय ू देव के पास वािपस लौट गया।
इस संग के कारण उसे सय ू देव के पास पहँचने म िवलंब हो गया परं तु जब उसने सय
ू देव को
अपनी देरी का कारण बताया तो वे िवि मत हो उठे । उ ह ने अ िण से कहा िक वे भी उसका ण ै
प देखना चाहते ह, उसे देख कर वे भी मोिहत हो उठे । उ ह ने भी अ िण से संभोग िकया और
अ िण ने उसी समय सु ीव नामक पु को ज म िदया, उसे भी ऋिष गौतम तथा अिह या को ही
पालन के िलए स प िदया गया।
गौतम और अिह या क एक पु ी भी थी, अंजना। अंजना ने अपने िपता को बताया िक जब वे घर
से बाहर थे तो इं अिह या से भट करने आया था। इस कार अिह या ने अंजना को वानर बनने
का ाप दे िदया। गौतम ने गु से म आ कर, उन दोन लड़क को भी वानर बनने का ाप दे
िदया, िज ह ने सब जानते हए भी अपने िपता को इस अवैध ेम- संग क जानकारी नह दी थी।
इसके बाद, अिह या को भी िशला होने का ाप िमला और गौतम को मातिृ वहीन वानर पर दया
आ गई। वे अपने ाप को तो वािपस नह ले सकते थे इसिलए ितकार व प, तीन वानर को,
िकि कंधा के संतानहीन वानर-राज ऋ को स प िदया।
जब वे वानर बड़े हए, तो ऋ ने सबका िववाह कर िदया: अंजना का िववाह केसरी से हआ, बाली
का िववाह तारा से तथा सु ीव का िववाह मा से संप न हआ। ऋ ने ाण यागने से पवू , बाली
और सु ीव से कहा िक वे रा य को आधा-आधा बाँट ल।
िकि कंधा म सब भली-भाँित चल रहा था, परं तु जब बाली ने दुंदुिभ नामक रा स का वध िकया
तो सारी प रि थितयाँ बदल गई ं।
दुंदुिभ के पु मायावी ने िकि कंधा म वेश िकया और अपने िपता क म ृ यु का ितशोध लेने के
िलए बाली को ं यु करने क चुनौती दी। वन म, ं यु करने क चुनौती को, अपने
अिधकार व स ा के ित चुनौती माना जाता है और इस कार कोई भी इसके िलए इंकार नह
कर सकता। सु ीव बाली और मायावी के बीच होने वाले यु को देखता रहा, जो भयंकर होता
जा रहा था। पहले वे एक-दूसरे पर व ृ तथा पवत उखाड़ कर फकते रहे और िफर पर पर घँस ू व
ठोकर क बौछार कर दी। ऐसा कई िदन तक चलता रहा। अंततः मायावी ने हार मान ली और
एक गुफा म जा िछपा।
बाली अपने िलए एक सुिनि त िवजय चाहता था। मायावी के ाण लेने के िन य के साथ, उसने
गुफा म रा स का पीछा करने का िनणय िलया और गुफा के ार पर खड़े सु ीव से कहा, “यिद
वह मुझे मारने या धोखा दे कर, बाहर आने म सफल रहा, तो तुम उसके ाण लेना। तुम यह
बाहर रह कर उसक ती ा करो। सु ीव बड़े धैय से गुफा के बाहर खड़ा ती ा करता रहा।
इसके बाद एक गहरा स नाटा छा गया और िवजय का कोई उ लास सुनाई नह िदया।
“तुम कुछ अिधक ही अनुमान लगा रहे हो,” झाड़ िच लाए। “सीता को तु हारी आव यकता नह
थी। तु ह उसक आव यकता है। वह तो मु है। तुमने ही एक बार उसे अपना कहा था। आज
िकसी और ने उस पर अपना दावा जता िदया है।”
“सीता पर कोई अिधकार नह कर सकता। धरती क तरह, मेरी सीता, वयं अिधकार करने क
अनुमित देती है। िजस तरह उसने मुझे अनुमित दी थी िक म उस पर अिधकार कर सकता हँ।
उसने मुझे इस यो य पाया और म उसका यह िव ास टूटने नह दँूगा। और म उसे खोज
िनकालँग
ू ा। हम िफर से एक ह गे।”
“केवल मख
ू ही इतना िनशं्िचत हो कर बात करते ह,” व ृ ने समवेत कंठ से कहा।
“तो म सीता का मखू बन कर स न हँ। उसने मुझे हँसना-मु कुराना िसखाया। उसने मुझे
िसखाया िक िकस कार हम अपनी सोच से ासदी को भी सुखांत बना सकते ह।” िफर राम
अपने शोक के मारे कंिपत उठे ।
व ृ मारे स नता के झम
ू ने लगे, वे राम के ेम को अनुभव कर सकते थे।
हनुमान ने तभी एक दूसरे तप वी को बात करते सुना, उ ह बाद म पता चला िक वे राम के छोटे
भाई ल मण थे - उ ह ने राम को फ़टकारा, “भईया, ऐसा आचरण आपको शोभा नह देता। यह न
ू िक आप रघुकुल के वंशज, अयो या नरे श ह।”
भल
राम ने उसी समय अपना शोक दशन बंद कर िदया। उ ह ने एक गहरी ास ली और िफर से
एक राजसी यो ा क तरह, वयं को हर कार क आ म-दया से मु कर िदया। “मेरी पीड़ा
ती ा कर सकती है। इस समय सीता क खोज करना अिधक मह व रखता है।”
अनेक ऋिषय व उनक पि नय ने भी, आकाश म होने वाले कोलाहल को सुना था इसिलए वे भी
पछू ताछ करने के िलए, गोदावरी नदी के तट तक आ गए थे। जब उ ह सारी बात पता चली तो
उ ह ने राम को सां वना देनी चाही। परं तु हनुमान ने देखा िक राम उन सबसे िवर हो उठे । “म
नह चाहता िक कोई मेरा पश करे । केवल सीता ही मुझे सां वना दे सकती है,” वे बोले। िफर
सबके िवषाद त मुख देख, उ ह ने कहा, “आप सब नेहवश मुझे आिलंगन कर सकते ह, और
म िनि त प से, आप सबको अगले ज म म यु र दँूगा, जब म इस धरती पर कृ ण के प म
अवत रत होऊँगा। परं तु अभी के िलए, राम के प म, म केवल सीता के साथ आ मीयता चाहता
हँ, कहाँ है वह?”
राम बार-बार सीता क कुिटया के आसपास, िव ततृ दायरे म च कर काटते रहे और अंततः वे
जटायु तक जा पहँचे। वह धरती पर पंखिवहीन पड़ा तड़प रहा था। र रं िजत प ी के पास बहत
थोड़े ास बचे थे। उसने उखड़ी ास को वश म करते हए बताया, “उसे रा स-राज रावण, अपने
उड़ने वाले िवमान म िबठा कर, दि ण िदशा क ओर ले गया। उस कायर का कहना था िक तुमने
उसक बहन का जो अपमान िकया, यह उसी का ितशोध है। मने उसे रोकना चाहा िकंतु असुर
ने अपनी तलवार से मेरे पंख काट कर, मुझे शि हीन बना िदया।”
हनुमान ने देखा िक राम प ी के अंितम ास भरने तक, उसे सहलाते रहे । िफर उ ह ने देखा
िक राम प ी के दाह-सं कार के िलए िचता सजाने लगे।
“परं तु वह तो एक प ी है, भईया,” ल मण बोले।
”हाँ, वह तो है पर उसने मेरी सीता क र ा करते हए अपने ाण का याग िकया है,” राम बोले।
“भला कौन सा पशु ऐसा करता है? नह , ल मण, वह िकसी मनु य से कम नह था। उसने
िकसी भी मनु य क तुलना म कह अिधक मानवता का दशन िकया है। हम, अपने िपता के
अभागे पु , उनके अंितम सं कार का अवसर तक नह पा सके, हम इस जीव का दाह-सं कार
करके ही अपने मन को संतुि दे ल, िजसने सीता क र ा उसी कार क , िजस कार हमारे
िपता करते। यह हमारे िलए िपता समान व आदरणीय है।”
जब जटायु क िचता क अि न क लपट आकाश क ओर जाने लग , तो राम िवचार करने लगे।
“ल मण, येक ि या क एक िति या होती है। सीता को दंड िमला य िक मने तु ह उस
ी का अपमान करने क अनुमित दी, िजसका दोष केवल इतना था िक वह मुझे चाहती थी और
उसने िववाह के िलए बने िनयम को वीकार करने से इंकार कर िदया। कम के िनयम मानवीय
तक को नह मानते। केवल साथ रहने भर से, उस िनद ष सीता को, मेरे अपराध का दंड भोगना
पड़ रहा है।”
यह सुन कर, सीता ने हनुमान से कहा, “वे मुझे सदा कहते थे िक ान को पीड़ा का ितकार
नह माना जा सकता।”
“ ान लकड़ी के तैरते हए ल े के समान है, जो हम दुःख पी सागर से तैर कर बाहर आने म
सहायक होता है। िकनारे तक आने के िलए हम अपनी टाँग पर बल देते हए, तैरना होगा। कोई
दूसरा हमारे िलए ऐसा नह कर सकता,” हनुमान ने कहा
हनुमान के मुख से ऐसे वचन सुनने के बाद, सीता के िलए यह िनणय करना किठन हो गया िक
वह िकसी वानर से बात कर रही थ या िकसी िस से, जो वे छा से प बदल सकता था। या
वह कोई तप वी था, िजसके पास जीवन को समझने के िलए गहन िववेक था।
राम के संताप से उनके िनजी जीवन क झलक िमलती है। अभी तक वे सामािजक
पणू ता तथा राजसी वैरा य या आ मसंयम के तीक िदख रहे थे। अब बुि कह पीछे
छूट जाती है और वे भाव धान हो उठते ह, ल मण उ ह भाव क ऐसी अनुिचत
अिभ यि के िलए डपटते ह तो वे पुनः अपने चोले म आ जाते ह।
असिमया ेमगीत म पि य के उन असंवेदनशील वा य का संग आता है िज ह
सुन कर राम कुिपत हो उठते ह। वे एक हंस को उसक गदन से पकड़ लेते ह और
च वाक् को ाप िमलता है िक वह सारी रात अपने साथी के िवरह म रोते-रोते काट
देगा।
कई बार च वाक् क तुलना चकोर, तीतर से क जाती है और माना जाता है िक वह
चं मा क िकरण से ेम करता है और सारा िदन िवलाप करता है य िक उसक
ेयसी केवल रात को ही आती है। ायः िवरह और उसक पीड़ा को दशाने के िलए
चं मा और चकोर का उदाहरण िलया जाता है।
राम व ृ तथा ऋिषय को पश करने से मना कर देते ह परं तु उ ह वचन देते ह िक
जब वे कृ ण के प म आएँ गे तो उन सबको आिलंगनब करगे, यह संग
लोकगाथाओं म आता है।
कहते ह िक शि , िशव क इ छा के िव , वन म सीता का प ले कर, राम से भट
करती ह तािक उ ह शांत कर सक। परं तु वे राम को मख
ू नह बना पात । वे उ ह
भगवती के प म पहचान लेते ह। वे उनके आगे झुक कर णाम करते ह। यह कथा
महारा क तुलजा भवानी लोकगाथा का अंश है। तुलसीदास भी यह संग सुनाते ह।
उनके सं करण म, जब शि राम क िद यता को नह पहचान पात और उनक
परी ा लेने का िवचार मन म लाती ह, तो उ ह सती के प म ाण का याग करना
पड़ता है।
राम का कृ ण के प म, अगले ज म म वािपस आना, ये कथाएँ दो अवतार को एक
सू म िपरोती ह। बाद म आने वाली रामायण म बारं बार इस बात को उठाया गया है।
उनक एकप नी ता छिव को उभारने के िलए बताया जाता है िक उनक केवल एक
प नी थी जबिक कृ ण क अनेक पि नयाँ थ ।
कबंध कथा
इसके बाद हनुमान ने सीता को बताया िक उ ह राम के ि य प व यु कौशल का अनुमान
कैसे हआ।
जटायु से िमली जानकारी के बाद, राम सीधा दि ण क ओर चल िदए, उ ह ने न िकसी ओर
देखा और न ही कुछ खाया-िपया। वे सीता को खोजने क धुन म अपनी नीदं तक भुला बैठे थे।
ल मण उनके साथ थे। राम को वन म गरज रहे भख ू े िसंह , व य हािथय के मतवाले समहू क
पदचाप और उन घने वन से कोई भय नह था, िजनके घने व ृ के झुरमुट, सरू ज क िकरण
का एक कतरा भी धरती तक नह आने देते थे। वे तो िनरं तर चलते ही जा रहे थे।
जब वे दि ण क ओर बढ़े , तो उनक राह म कबंध नामक रा स आ गया। सभी वानर को उस
भयंकर जीव के बारे म पता था। उसका कोई िसर नह था: िसर पेट से जा कर िमल गया था;
केवल उसके दो लंबे हाथ थे, िजनसे वह िशकार को लपक लेता था। उसक ुधा कभी शांत नह
होती थी और सारे वानर परू ी सावधानी के साथ उससे दूरी बनाए रखते।
राम और ल मण ने अचानक वयं को उस रा स क जकड़ म पाया। उसके एक हाथ म राम व
दूसरे हाथ म ल मण थे। कबंध के नख बहत लंबे व ती ण थे और उनम िपछले िशकार का र
व अवशेष भरे हए थे, परं तु दोन भाईय के मुख पर भय का एक भी िच ह नह िदखा। उ ह ने
अपनी तलवार उठाई ं और एक-एक झटके म, उसके दोन हाथ काट िदए, राम ने दाँया और
ल मण ने बाँया हाथ काटा और दोन भाई रा स क चपेट से आज़ाद हो गए।
शबरी के बेर
इसके बाद हनुमान ने सीता को बताया िक उ ह राम क संवेदनशीलता व क णा का प रचय
कैसे िमला?
राम कई िदन और रात तक चलते रहे , जब कभी सीता क दशा का यान आता तो रोने लगते,
उनका शरीर धल ू और वेद से भर गया। लान मुख पर बाल िछतराए हए थे, आँख मारे लांित
के लाल हो उठी थ ।
ल मण भी चुपचाप अपने भईया के पीछे चलते जा रहे थे। कभी-कभी उ ह अपराध-बोध का
अनुभव होता तो कभी लािन से भर उठते। वे जानते थे िक उनके भईया को दयापणू ने या
सां वना से भरा आिलंगन भी सहन नह होगा। वे केवल घने से घने वन के बीच, च ान व नाल
को पार करते हए साथ चलते रहे , िज ह आज से पहले, उ र से आए िकसी भी ऋिष ने कभी नही
लाँघा था।
“जाने य ऐसा लग रहा है िक कोई हम पर नज़र रखे हए है,” ल मण ने व ृ क ओर देखते
हए, उस म खी को देख कर कहा।
तभी एक ी पुकार सुनाई दी। “ को!” राम वह थम गए। वह ी एक वनवािसनी थी, उसने
पशुचम, पंख, खिनज व मोितय से बनी मालाएँ पहनी हई थ ।
“बैठो!” उसने कहा। राम वह बैठ गए। “तुम भख ू े िदखते हो,” वह बोली। “शायद तु ह कुछ खा
लेना चािहए। मेरे पास ये बेर ह। तुम इ ह खा सकते हो।” राम ने उस िविच भील ी के हाथ म
बेर देखे और मंद ि मत से, उ ह परोसे जाने क ती ा करने लगे।
ी ने बेर चखा और राम को दे िदया। राम ने उसे खाया, वह बड़ा मीठा और रसीला था। उसने
एक और बेर चखा और उसे दूर भनका िदया। इसके बाद तीसरा बेर चखा और ल मण को िदया।
ल मण घण ृ ा से िसहर उठे । “तुमने मुझे जठ
ू ा फल िखलाने का साहस कैसे िकया? म कोई सेवक
नह , जो ऐसा अपिव भोजन क ँ । म ल मण हँ, अयो या का राजकुमार और ये राम ह, अयो या
नरे श। या तु ह ज़रा भी िश ाचार नह आता?”
वह ी ल मण के इस खे यवहार से िचहँक उठी। वह बारं बार मा माँगने लगी और राम ने
उसे िदलासा देते हए, अपने भाई को कड़ाई से कहा, “यह तो प है, म जो देख सकता हँ, वह
तु ह िदखाई नह दे रहा। हम दो पु ष वन म श सिहत जा रहे ह। हम िदखने म भयंकर लग
रहे ह परं तु इसके बावजदू यह ी हम तक आई। वह िनि त प से एक जीवट वाली ी है। वह
हमारे िलए क है, हम भोजन देना चाहती है; वह ऐसा करने के िलए िववश नह है। वह एक
सेवापारायण और उदारमना नारी है। उसने वे बेर इसिलए चखे तािक हम केवल मीठे बेर ही परोस
सके। वह अपना आित य धम बहत अ छी तरह िनभाना जानती है। मने तो यही देखा परं तु तु ह
या िदखा? एक ऐसी ी, िजसे िश ाचार िनभाना नह आता, वे िश ाचार जो तुमने महल म
सीखे। उसे देखो, ल मण! वह एक वनवािसनी है, वह महल और उसके िश ाचार, इसके
राजकुमार और राजाओं के बारे म या जानती है? तुमने उसे अपने तर से परख़ा। तुमने
उसक ओर देखा तक नह । तुम ने होते हए भी, ने हीन बने रहे ।”
राम ने उस ी के िदए हए बेर बेहद चाव से खाए। वे उसका नाम नह जानते थे िकंतु उ ह ने
उसे शबरी के नाम से पुकारा, अथात शबर जाित क ी। आहार लेने के बाद िमली ऊजा के
साथ, वे िफर से सीता क तलाश म आगे चल िदए।
यह सुन कर, सीता हनुमान से बोल , “म भी तो शबरी के बेर क तरह हँ। म राम क हँ िकंतु
मुझे रावण चखना चाहता है। या मेरे इस दूिषत प को राम वीकारगे?”
“ कृित म कुछ भी दूिषत या अपिव नह होता,” हनुमान बोले
“ओह, परं तु राम कोई ऋिष नह , वे एक राजा ह। वे कृित क इतनी परवाह नह करते, िजतना
उ ह सं कृित का यान रहता है। सं कृित म तो, दूिषत को जाित युत कर िदया जाता है।”
हनम
ु ान वयं को कट करते ह
हनुमान ने इसके बाद सीता को िव तार से बताया िक उ ह ने वयं को राम के स मुख कैसे
कट िकया।
य ही दशरथ पु , पंपा सरोवर के िनकट, ऋ यमख
ू पवत पर पहँचे, वहाँ उनक भट एक युवा
तप वी से हई। उ ह ने उ ह आम का फल देते हए िवशु सं कृत म कहा, “आप कौन ह?
आपक उपि थित से वन के सभी जीिवत ाणी भयभीत हो उठे ह। आपने ि य क भाँित अ -
श धारण िकए ह िकंतु साधुओ ं क तरह व पहन रखे ह। आप सीधे दि ण िदशा क ओर बढ़े
जा रहे ह, आपके येक डग से आ मिव ास झलकता है। या आप देव ह? या आप असुर ह?
हे अप रिचत जन! कृपया अपना प रचय द।”
ू पर चला गया। वे उ ेिलत हो उठे ।
ल मण का हाथ तलवार क मठ
राम बोले, “आपने हम अपने िलए ख़तरा जाना और मेरे भाई को आपसे संकट उ प न हो गया।
हम एक-दूसरे को व य पशुओ ं क भाँित परख़ रहे ह और सोच रहे ह िक हमम से अिधक
बलशाली और फुत ला कौन है। परं तु हम पशु नह ह। हम मनु य ह। मने आपको देखा और आपने
मुझे देखा। मने देखा िक आप प र कृत बोली बोल रहे ह, िजससे पता चलता है िक आप
सुसं कृत होने का अथ जानते ह। और आपने मुझे सश तप वी के प म देखा, जो इस बात
का संकेत देता है िक संभवतः, म िमत हँ, शायद िव ािम अथवा परशुराम क तरह हँ, जो न
तो परू ी तरह से ि य ह और न ही परू ी तरह से ऋिष। म आपको अपना प रचय देता हँ। िफर आप
अपना प रचय देना।”
राम ने अपना प रचय देते हए, युवा तप वी को अपनी दुःख भरी गाथा कह सुनाई, वे कैसे िपता
ारा माता कैकेयी को िदए गए वचन क मयादा रखने के िलए वनवास कर रहे थे, उनक प नी
का, वन म कोई रा स अपहरण करके ले गया और वे कैसे उसे खोजने के िलए थान- थान पर
भटक रहे ह। “मुझे बताया गया है िक इन पवत म रहने वाले वानर हमारे िलए सहायक हो सकते
ह।”
तप वी ने उ र िदया, “जब से म आपको देख रहा हँ, उससे पवू सारे वन ने देखा िक िकस तरह
दु रावण ने हमारे जटायु को पंखिवहीन कर अधमरा छोड़ िदया। मने देखा िक आपने बेचारे
प ी का दाह-सं कार िकया, कबंध का वध िकया और एक शबरी के हाथ जठ ू े बेर खाए। आप
कोई साधारण मनु य नह ह। अब आपने मुझे बताया िक आपने वह रा य अपने भाई के िलए
याग िदया, िजस पर आपका अिधकार बनता था। यह तो वा तव म असाधारण बात है। म िजतने
सजीव को जानता हँ, वे भोजन का पीछा करते ह, भोजन लपकते ह और भोजन का सं ह करते
ह। कोई भी, िकसी को भी कुछ नह देता, य़ादा से य़ादा, माता-िपता अपने न हे ब च को तब
तक भोजन देते ह, जब तक वे अपने भोजन का वयं बंध करने यो य नह हो जाते। मने तो
आज तक िकसी ऐसे ाणी के िवषय म नह सुना, जो िकसी दूसरे क स नता के िलए, अपने
आनंद का याग करता है। आपने तो वह संभावना कट क है, िजसके िलए मुझे लगता था िक
मानवता म उसका कोई अि त व ही नह है। म आपको णाम िनवेिदत करता हँ। म अंजना व
केसरी पु , सु ीव का अनुचर, वानर का नेता, हनुमान हँ।”
इसके बाद वह तप वी वेष बदल कर, वानर प म आ गया।
“देखा, यह ाणी वह नह है, जैसा िदखाई दे रहा था।” ल मण ने एक बाण िनकाल िलया।
“तुमने यह कैसे मान िलया िक जब तक हम उसका िव ास नह जीत लेते, वह हम अपना स चा
व प िदखा देगा? अब उसे हम पर िव ास है। अब समय आ गया है िक तुम भी उसके ित
अपना िव ास कट करो,” राम बोले।
“मेरे कंध पर बैठ जाएँ , म आपको ऋ यमख
ू पवत पर ले चलँग
ू ा, जहाँ सु ीव रहते ह। माग म म
आपको हमारी कथा सुनाऊँगा।”
सीता ने न हे वानर को देखा और सोचने लग िक वह राम और ल मण को अपने कंध पर िबठा
कर, कैसे उड़ा होगा।
पि नय सेिवयोग
इसके बाद हनुमान ने राम और सु ीव क भट का िववरण सीता को सुनाया।
हनुमान, पहले म खी, िफर युवा तप वी, िफर छोटे वानर से, िवशालकाय वानर म बदल गए।
राम और ल मण उनके कंध पर बैठ गए और उ ह आकाश क ओर छलाँग भरते हए, ऋ यमख ू
पवत क ओर ले चले। दोन भाई यह देख िवि मत हो उठे । उ ह लगा िक वे प ी बन गए ह ,
उनके नीचे वन म दूर-दूर तक घास का गलीचा िबछा था, िजसके बीच म पहली च ान सजी
थ , नीली, हरी बलखाती, इठलाती निदयाँ अपनी राह बनात बह रही थ ।
ऋ यमख ू पवत पहँचने पर उनक भट सु ीव से हई। उनके बीच प रचय का आदान- दान हआ।
वे व ृ क शाखाओं पर जा बैठे, उ ह ने फल और पहाड़ी नाल के जल का सेवन कर, वयं को
तरोताज़ा िकया और हनुमान ने, सु ीव को दशरथ पु क सारी कथा कह सुनाई।
बाली का वध
इसके बाद हनुमान ने सीता को बताया िक सु ीव िकि कंधा का राजा के ै से बना
“वह िकसी ऋिष-मुिन क भाँित दाशिनक वभाव रखता है। वह तो ठीक है। परं तु मुझे वा तव म
एक ऐसे यो ा क आव यकता है जो बाली का वध कर सके,” सु ीव ने कहा। राम ने यु र
म, अपने धनुष पर एक बाण साधा, मं ो चार िकया और बाण छोड़ िदया। सभी िव मय से ताकते
रह गए और वह बाण, सात ताड़ व ृ को एक साथ भेदते हए, राम के तणू ीर म लौट आया।
“आप कौशलयु ह, परं तु या आप बलशाली भी ह?” सु ीव ने पछ ू ा। यु र म, राम ने दुंदुभी
के शव को ठोकर दे मारी, जो अब केवल हड्िडय का ढाँचा मा रह गया था, वह ठोकर इतनी
भीषण थी िक वह कंकाल, ऋ यमख ू पवत क ढलान से होते हए, ठीक सीधा िकि कंधा के म य
जा िगरा।
“यह तो अ ुत है। जब म उसे अपने साथ ं यु का यौता दँू, तब आप आड़ से बाण चला कर,
उसका ाणांत कर सकते ह। आप मुझे िकि कंधा का राजा बनने म सहायक ह और म अपने
वानर को सीता क खोज म भेजँग ू ा और उ ह बचाने म आपक सहायता क ँ गा।”
“ या यह उिचत नह होगा िक यु क चुनौती मेरी ओर से िमले और म उसे परािजत क ँ ?” राम
बोले।
“तब आप िकि कंधा के वामी ह गे, म नह । आप मेरे सहायक नह , मुि दाता ह गे। वानर मेरा
नह , आपका नेत ृ व मानगे। जब तक म उसे बुला कर, मौत के घाट नह उतार देता, तब तक
िकसी भी वानर के स मान का पा नह बन सकँ ू गा। और रहा औिच य का, तो वह सब
नगर म होता है, वन म नह !”
उनके इस अनुबंध तथा िम ता पर मुहर लगाने के िलए, हनुमान ने अि न जलाई और राम व
सु ीव ने हाथ थाम कर, अि न क सात बार दि णा क । इस कार इस अनु ान से बंधने के
बाद, वे दोन ही पर पर िन ा के नाते म आब हो गए थे।
सीता को हनुमान के मुख से सुने वणन के आधार पर अनुभव हआ िक सु ीव वै य- वण था,
एक ऐसा वानर, जो यापारी क तरह तेज़ िदमाग रखता है, जबिक उसका बैरी बाली ि य-वण
वानर था, जो एक वामी क तरह भु वसंप न मि त क रखता है। संभवतः हनुमान ही
एकमा वानर था जो एक ऋिषतु य मि त क का वामी था, बलशाली होने पर भी शि पाने
क चाह नह , ावान होने पर भी िववेक का ओछा दशन नह !
इसके बाद हनुमान ने दोन वानर भाईय के बीच हए संघष का िववरण िदया।
सु ीव हाथ म गदा थामे , बाली को गरज-गरज कर चुनौती देने लगा। बाली, एक झटके म, तारा
क संगित से उठ कर बाहर क ओर लपका, िजसने दोन भाईय के बीच आपसी संघष को
टालने का एक असफल यास िकया िकंतु बाली उसे वह छोड़, अपने कायर भाई से यु करने
आ पहँचा। राम, अपने हाथ म धनुष थामे, झाड़ी के पीछे जा िछपे।
ू व ठोकर के बाद, सु ीव अपनी जान बचा
सु ीव और बाली का कोई मेल नह था। कुछ ही घँस
कर भागा।
“आपने बाण य नह चलाया?” उसने राम से ु वर म पछ
ू ा।
“तुम दोन एक समान िदखते हो। उसे कल सुबह पुनः चुनौती देना। परं तु अपने कंठ म वनपु प
क माला धारण कर लेना तािक म तुम दोन के बीच भेद कर सकँ ू । कल सं या समय तक, बाली
क ह या हो चुक होगी और तुम िकि कंधा के राजा बन जाओगे।” राम बोले।
और इस कार, अगले िदन, अपने गले म पु पमाल पहने और हाथ म गदा िलए, सु ीव ने एक
बार िफर से बाली को यु के िलए ललकारा। “इस बार तो म तेरा ख़ा मा करके ही दम लँग
ू ा
तािक तू मुझे िफर से परे शान न कर सके।” बाली पैर पटकता हआ, जंगल क ओर आया।
वह यु बड़ा ही भयंकर था। सभी ने देखा िक बाली ने सु ीव को अपनी गदा से िनदयता से
कुचल िदया, रोष म भर कर उसके गाल नोच िदए और नख से उसक चमड़ी फाड़ दी। सु ीव
िकसी असहाय िशकार सा लगने लगा और बाली को देख कर लगा मानो कोई दुदात िशकारी
हो। कोई िव ास तक नह कर सकता था िक वे सहोदर थे।
तभी राम ने पेड़ क आड़ से बाण चलाया, जो बाली क पीठ को भेदते हए, दय के पार हो गया।
बाली एक ममातक ची कार के बाद, धरती पर ढे र हो गया।
दूर से ही इस यु को देख रहे वानर, इस छल को देख, कुिपत हो गए और मारे रोष के दाँत
िकटिकटाने लगे। तारा अपने पित क ओर लपक और िवलाप करने लगी, जब उसे एहसास हआ
िक उसके पित के बचने क कोई आशा नह थी: महान बाली का अंत होने जा रहा था। “िकसने
िकया है ऐसा छल?” वह जानना चाहती थी।
“मने िकया है, म रघुकुल वंशज राम हँ, अयो या के राजा भरत का ितिनिध तथा सु ीव का
िम , जो मुझे मेरी प नी सीता को खोजने म सहायक होगा, िजसे रा स का राजा रावण
अपहरण कर ले गया है।” राम आगे आ कर बोले।
“यह कायर तु हारी मदद करे गा?” बाली असहनीय पीड़ा के बावजदू वयं को रोक नह सका।
“वह कायर, िजसने मुझे छल से परािजत िकया? अगर तुम सीता को बचाना चाहते थे तो मेरे
पास य नह आए? म रावण से कह अिधक बलशाली हँ। मने एक बार उसे अपनी पँछ ू म बाँध
कर, िकि कंधा म पालतू बना कर रख िलया था। तुमने इस दुबल का साथ य िदया, जो
बलशाली को परािजत करने के िलए धत ू ता का आ य लेता है? या यह याय है? या यह
उिचत है?”
सीता ने बात के बीच म बाधा दी, “बाली ने उस रा य पर क़ ज़ा िकया, जो उसे अपने भाई के
साथ बाँटना चािहए था और अब वह यु म स य आचरण के िनयम लागू करना चाहता है। या
यह िविच बात नह है िक संसार म ायः अ यायी ही याय पाने क गुहार लगाते िदखते ह?”
ू देव के िश य, जो बाली और उसके िपता इं क कृित से प रिचत ह, वे कहते ह,
हनुमान, सय
“ याय क अवधारणा मनु य के पास होती है। यह वन म नह पाई जाती। केवल िकसी भी उपाय
से उ रजीिवता को ही य िदया जाता है। सु ीव ने अपना दाँव लगा िदया था। अपने दुबल भाई
के हाथ पराजय हण करना बाली के िलए इतना सरल नह था इसिलए उसने मानवता और
स यता क बात करना आरं भ कर िदया।”
इसके बाद हनुमान सीता को बताने लगे िक राम ने बाली के अिभयोग का या उ र िदया।
“तुम पशुओ ं के केवल एक ही िनयम के साथ जीते आए: तुमने बल योग से अपने भाई को दूर
खदेड़ िदया। तु हारे भाई ने पशु जगत के दूसरे िनयम को अपनाया: उसने धत
ू ता का आ य
िलया। अब तुम छल और कपट क दुहाई य दे रहे हो? मानवीय मू य का रोना य रो रहे हो?
तुमने अपना सारा जीवन एक पशु क तरह यतीत िकया और तु हारे जीवन को यह वीकार
करना चािहए िक वह एक पशु क तरह ही अपने ाण का याग करे । म एक िशकारी हँ और तुम
मेरी पुर कार रािश! और सु ीव को, राजाओं क इस डा म लाभ होगा।”
मरणास न बाली को बाँह म थामे , तारा ने राम को ाप िदया, “तुमने मेरे पित के ाण इसिलए
िलए तािक तु ह तु हारी प नी िमल सके। ई र करे , जब वह तु हारे साथ हो तो तु ह ण भर
को भी शांित न िमले।” तभी, ितिहंसक संतुि के साथ, बाली ने अपने ाण याग िदए।
उिचत अथवा अनुिचत, िकि कंधा म एक नई संगठन यव था का ज म हो चुका था। अब तक
बाली के साथ चलने वाले, वानर ने सु ीव का नेत ृ व वीकार िकया। यहाँ तक िक तारा ने भी
सु ीव को ही अपना नया वामी वीकारा। य िक पशु जगत का यही िनयम है। वहाँ ऐसा ही
होता आया है।
“सीता क खोज के काय को, वषा ऋतु समा होने तक िवलंिबत करना होगा,” सु ीव ने कहा।
राम ने िवषादयु मुख के साथ अपनी वीकृित दे दी।
चार माह तक वषा का कोप जारी रहा। वानर गुहाओं म िछपे, अपने सं ह िकए गए भोजन म से
सत-सत कर खाते रहे । उनका अिधकतर समय अपने साथी के साथ णय-िनवेदन और गाढ़
आिलंगन म ही बीतता य िक ऐसे समय म वे और कर भी या सकते थे। और वैसे भी भीगी
धरती तथा वषा क िगरती बँदू क गंध िकतनी मादक होती है। िकि कंधा वानर क णय-
डाओं के सुर से गँज
ू उठा।”
हनुमान सीता से बोले, “मने गुफा के बाहर खड़े हो कर देखा, राम एक पहाड़ी पर खड़े , दि ण
क ओर मुख िकए, बड़े ही धैय से आपके िवयोग म तरस रहे थे,”
ू िव ास के साथ बैठी
“इ ह िदन , म भी अशोक वािटका म, उ र िदशा क ओर मुख िकए पण
रही,” सीता हनुमान से बोल ।
ल मण का रोष
इसके बाद हनुमान ने सीता को एक ऐसे ण का िववरण िदया िजसके दौरान, सु ीव के वानर
व दशरथ पु के बीच सं ाम िछड़ सकता था।
धीरे -धीरे वषा का वेग थम गया। धरती सख
ू गई। पीले पु प वाले हरे -भरे व ृ से धरती
शोभायमान हो उठी। अब आकाश म मेघ नह थे और चं मा भी परू ी आभा के साथ आलोिकत था।
राम ती ा म थे िक कब सु ीव अपने वानर को सीता के संधान के िलए भेजेगा। परं तु सु ीव
का कोई अता-पता नह था। वह तो अब भी नाच-गाने, भोजन और अपनी रािनय के साथ भोग-
िवलास म म न था।
राम धैय से ती ा करते रहे , ती ा करते रहे , ती ा करते रहे । धीरे -धीरे धैय चुका और उसका
थान, पहले रोष और िफर ोध ने ले िलया। “ या हो गया है? वह अपना वचन य नह िनभा
रहा?” उ ह ने अपना धनुष-बाण उठाया और सु ीव क आनंद वािटका क ओर लपके।
उ ह इस तरह रोष म आता देख, हनुमान भी घबरा गए। वे सु ीव क ओर भागे और उसे कुिपत
भाईय के आने क सच ू ना दी। “राम ने अपने एक ही बाण से बाली का काम तमाम कर िदया था।
आपको मारने के िलए तो शायद उ ह एक बाण क भी आव यकता न पड़े ,” सु ीव एक ही
झटके म, अपनी मदालस अव था से बाहर आ गया, उसे अपनी भल ू का एहसास हआ। परं तु
ल मण का रोष शांत करना इतना सरल था या? सारे वानर भयभीत हो उठे ।
तारा बोली, “म उसे संभाल लँग
ू ी। वह ि य पर हाथ नह उठाता।”
“इस िवषय म इतनी आ त न ह ,” तारा के पु अंगद ने कहा। “ या आपको याद नही िक
राम ने ताड़का और ल मण ने शपू णखा का या ह िकया था?”
तारा िनभ क भाव से, दोन हाथ जोड़े ल मण के आगे जा खड़ी हई। उसके सौ य व कोमल मुख
पर मै ीपण
ू भाव थे। ल मण ने कड़े वर म पछ ू ा िक वह दु कहाँ है िजसे अपने वचन का मान
नह रखना आता, उसे अपना मनचाहा िमल गया तो यह भी भल ू गया िक उसने या वादा िकया
था? “कहाँ है वह कायर, जो वयं को िकि कंधा स ाट कहता है?” वे िनरं तर िच ला रहे थे।
तारा ने उनके आगे आने से पहले, अपने व भी नह संभाले थे। उसके बाल िबखरे हए थे।
अ न न देह पर संभोग के िच ह प तया अंिकत थे। उसक चाल म एक िविच सी
लडखड़ाहट थी, िजस देख कर लगता था जैसे वह अब भी उसी आनंद के बीच उमग रही हो।
“शांत राजकुमार! तुम िब कुल स य कह रहे हो, उनका ऐसा करना अनुिचत है िकंतु या इस
आनंद वािटका क शांित भंग करना अिनवाय है?”
ल मण लि जत भाव से दूसरी ओर ताकने लगे। उ ह अपनी ि थित िकसी घुसपैिठए सी लगने
लगी। रोष घुलने लगा था।
तभी तारा ने मधुर संगीत के से सुर म कहा, “पु ! ऐसे कठोर श द का योग मत करो। वष से
सु ीव वन म रहे , भोजन और जीवन के भोग-िवलास से दूर रहे । अब कह जा कर उ ह अपना
दाय िमला है, ऐसे म उनका संयम खो देना तथा अपने भोग-िवलास के बीच समय का अनुमान
न रहना, वाभािवक ही है। अ सराओं के आिलंगन म बंधे तप वी को सौ वष भी एक राि के
समान लगते ह, तो तुम वयं ही सोच लो िक एक वानर को यह सब कैसा लगता होगा। इस बात
को समझने क चे ा करो और सु ीव को मा कर दो।” यह सब सुनने के बाद ल मण का
कोप शांत हो गया। उ ह बात समझ आने लगी थी।
उ ह ने अपनी ि नीची रखते हए कहा, “ मा तो कर सकता हँ िकंतु यह अनुभिू त मेरे पास
नह है। आप िजस आनंद और िवलास क बात कर रही ह, मने उसे कभी नह जाना। म इसका
अनुभव पाने को अधीर हँ, परं तु अभी एक और वष ती ा करनी होगी। अगली बसंत ऋतु म, म
अपनी प नी उिमला के साथ का सुख लँग ू ा िकंतु यह तभी संभव हो सकेगा जब म अपने भईया
राम क प नी सीता के संधान म सफल हो सकँ ू गा। और म सु ीव और उनके वानर क सहायता
के िबना ऐसा िबलकुल नह कर सकता इसिलए कृपया उनसे कह िक वे अिवलंब अपने वानर
को सीता क खोज म भेज।”
सीता ने बड़े नेह से ल मण को मरण िकया: िन ावान, कमठ, शी ही कुिपत और िफर
स न हो जाने वाले। जब वे यह आदेश दे रहे ह गे तो उनके नथुने ोध से कैसे फड़के ह गे, वे
क पना कर सकती थ । िकतने सादगीि य और अपने िवर व उदासीन भाई से िकतने अलग!
खोजी दल
इसके बाद हनुमान ने सीता को बताया िक सु ीव, आनंद वािटका से खीस िनपोरते हए बाहर
आए और राम के चरण म िगरने को त पर हो उठे िकंतु राम बीती बात पर समय नह िबताना
चाहते थे। न ही उ ह सु ीव क मायाचना से िमली संतुि क चाह थी। वे केवल पता लगाना
चाहते थे िक उनक सीता कहाँ थी।
शी ही सु ीव के सकड़ -हज़ार वानर िकि कंधा म आ जुटे, िजसे देख राम के आनंद क सीमा
न रही। सु ीव ने आ ासन िदया िक वे सारी धरती छान मारगे तािक सीता का पता लगा सक।
यह तो साफ़ था िक लंका दि ण म ि थत थी। परं तु दि ण म कहाँ? दि ण-पवू या दि ण-पि म,
पहाड़ पर या घािटय म, या घने वन के बीच? िविभ न िदशाओं म जाने के िलए वानर के दल
बना िदए गए।
राम ने सुझाव िदया िक हनुमान को अंगद के नेत ृ व म भेजा जाना चािहए। सु ीव ने कहा,
“हनुमान को तो िकसी दल का नेता बनाया जाना चािहए।”
“यह दल लंका क खोज म जा रहा है। अंगद अभी युवा है और एक नेता होने के नाते अनुभवहीन
है। उसे अनुभव क आव यकता है। उसके िलए अवसर का अभाव नह है। हनुमान के भीतर इतना
िववेक है िक वह उसे नेत ृ व करने देगा और उस पर नज़ र भी रखेगा,” राम ने कहा। अंगद
वानर के दल के साथ जाने के िलए तैयार हो गया। हनुमान उसके साथ थे।
“िवदा लेने से पवू , म राम के पास गया और उनसे पछू ा िक आप कैसे जानगी िक म राम का
संदेशवाहक हँ। मने उनसे कहा िक वे मुझे कोई ऐसी िनशानी दे द िजससे म आपका भरोसा पा
सकँ ू । तभी उ ह ने मुझे अपने हाथ म पहनी हई मुि का दी थी, यह एकमा आभषू ण था, िजसे
उ ह ने िपता के आ ह पर, तप वी वेष धारण करते हए उतारा नह था।”
सीता ने राम क मुि का को देखा, वे हनुमान क दूरदिशता से भािवत हो उठ ।
दि ण म संधान
िफर हनुमान ने सीता को, सागर िकनारे पहँचने से पवू , अपने साथ घटे रोमांच क जानकारी
दी।
दि ण क ओर याण करने वाले दल, पहले अपने प रिचत और िफर अप रिचत वन को पार कर
आगे बढ़ने लगे। उ ह नई निदयाँ, न पवत, नए पशु व नए प ी िमले। केवल िसतार , न व
ू केतुओ ं से भरा आकाश नह बदला था।
धम
वानर को जो भी िमला, उ ह ने उसे राम और सीता क कथा सुनाई। िकतने लोग तो वे छा से
ही खोजी दल का िह सा बन गए, वे उस िव सनीय यि क प नी क खोज म योगदान देना
चाहते थे िजसने, शांित से, अपने भाई के िलए रा य का याग कर िदया, जो अपनी प नी के
अपहरणकता को खलनायक के तौर पर नह देखते थे और उ ह ने वानर तक को े रत िकया
था िक वे अपनी पाि क विृ य से उबरने क चे ा कर। वह िनि त प से कोई िवशेष यि
ही ह गे। तब तक, उन घनघोर वन ने, केवल ऐसे जीव ही देखे थे, जो संसार क हर चीज़ को
जीवन के ित संकट अथवा भोजन पाने के अवसर के प म देखते थे केवल राम ही संसार को
संभावनाओं से भरपरू मानते थे, अपने से परे , दूसर के भय तथा ुधा को समझने क यो यता
के साथ!
खोजी दल के साथ, जा बवंत नामक व ृ रीछ भी था, िजसे परू ा िव ास था िक अयो या के
राजकुमार धरती पर िव णु का अवतार थे।
दि ण म कह , अंगद के दल के वानर ने देखा िक गौएँ अपनी मज से दीमक से िघरी बाँबी पर
जात और वहाँ अपना दूध बहात । वानर ने देखा िक उसके भीतर एक िलंग ि थत था। वहाँ रहने
वाले सप ने उ ह बताया िक वहाँ उसे रावण ने िति त िकया था।
उ र म कैलाश पवत के अनेक दौर के दौरान, रावण ने िशव से कहा था िक वे उसे कोई ऐसी
भट द, जो तीका मक तौर पर उनका ितिनिध व करती हो। उसने कहा था, “म उसे लंका म
थािपत क ँ गा और क चे दूध, िब व के ताज़े प व धतरू े के पु प से उसका पज
ू न क ँ गा।”
रावण जानता था िक िशव का यह तीक यिद लंका म थािपत हो गया तो उसक नगरी सदा के
िलए अजेय हो जाएगी।
बुि मान रीछ, जा बवंत, वानर के खोजी दल का िह सा ह। उनक भिू मका बहत
मह वपण ू नह िकंतु वे इस आयु से जुड़े िववेक तथा धैय का मिू तमान प ह।
रीछ (भालुक) को कुछ आधुिनक या याकार ने, उन कबीले वाल के प म जाना
है, िजनका कुलिच ह रीछ रहा होगा।
पुराण म, जा बवंत को इतना बढ़ ू ा बताया गया है िक वे िव णु ारा असुर राज बिल
को अपने वश म करने क घटना के भी सा ी रहे ह, जब वे वामन का अवतार ले कर
आए थे। जब वामन ने िवशालकाय ि िव म प धर कर, अपने दो पग म तीन
लोक को माप िलया था, तो जा बवंत उनके पास से िनकले। वे बहत ही बलशाली थे
परं तु दुघटनावश ि िव म उनसे टकरा गए और इसके फल व प आई चोट ने
जा बवंत को दुबल कर िदया। यही वजह थी वे अब वैसा करने के यो य नह रहे थे जो
िक हनुमान कर सकते थे।
कथा म रीछ तथा वानर को इसिलए भी शािमल िकया गया य िक ये इंसान क
तरह अपने हाथ का योग कर सकते ह। गले लग सकते ह और लपक सकते ह, इस
तरह वे च च वाले पि य तथा अ य चौपाए पशुओ ं क तुलना म, मनु य के अिधक
िनकट हो सकते ह। इसे ायः िवकास के िस ांत क , आरं िभक समझ के प म िलया
जाता है। कईय का तो यह भी कहना है िक वानर और भालुक छूटी हई कड़ी ह।
क मीरी रामायण म वह संग आता है, जहाँ रावण को लघुशंका के िलए जाना पड़ता
है। यहाँ, नारद इस बात का बंध करते ह िक िशव-िलंग िकसी भी दशा म लंका न जा
सके।
वयं भा, सुलभा व गाग क तरह, एक सा वी ह।
रामायण के दि ण-पवू एिशयाई सं करण म, वयं भा को उन ि य म एक
िदखाया गया है, जो हनुमान के मोहजाल म आब होती ह।
वा मीिक रामायण म, गुहा म वेश करने वाला कोई भी यि जीिवत नह रह
सकता। वानर भी फँस जाते ह िकंतु हनुमान वयं भा को मना लेते ह िक वे अपनी
जादुई शि य के भाव से, उन सबको जाने द। तिमलनाडू के ित नलवेली िज़ले के
कृ णपुरम म एक हनुमान मंिदर है, जहाँ वयं भा क यह गुहा ि थत है। अयो या
वािपस जाते समय, रावण के वध के बाद, राम ने उनका अिभनंदन िकया और उ ह
उनके सहयोग के िलए ध यवाद ेिषत िकया।
स पाती लंका क सटीक िदशा िदखाने म एक मह वपण ू भिू मका िनभाता है; अ यथा
सारे वानर को जल समािध लेनी पड़ती। पहले जटायु राम को और िफर स पाती
हनुमान को, सीता के जाने क िदशा का ान देते ह। पि य को े गु चर माना
जाता है य िक वे जल तथा भिू म पर उड़ते हए, लंबी दूरी क या ाएँ सहज ही परू ी कर
लेते ह।
स पाती सय ू के बहत िनकट चला गया िजससे उसके पंख झुलस गए, इस कथा से
इकारस क यन ू ानी कथा क गँज
ू सुनाई देती है, जो लड़का मोम से बने पंख पहन
कर, सय ू के बहत िनकट चला गया था।
स पाती अपने पंख खोने के बाद उड़ नह सकता और ताजे माँस क खोज म नह जा
सकता। लोकगाथा के अनुसार, स पाती के बिलदान से स न हो कर, भगवान उसे
वरदान देते ह िक वह सड़ा हआ माँस भी पचा लेगा। इस तरह िग मत ृ क के
अपमाजक बनते ह परं तु उ ह कभी अशुभ नह माना जाता।
रामायण के िविवध सं करण म, जटायु और स पाती को, राम के िपता दशरथ के
िम बताया गया है।
यनू ानवासी िग क एक ऐसे प ी के प म पज ू ा करते ह जो कभी अपनी
उ रजीिवता के िलए िकसी जीिवत ाणी क हािन नह करते। पारसी भी इनका आदर
करते ह और क़ि तान , दखमा म इ ह आमंि त करते ह तािक वे मत ृ क क देह
को खा कर समा कर द।
ओिड़शा क मंिदर नगरी पुरी म, भगवती के गुसाई ं उ सव म स पाती क भी मिू तयाँ
होती ह, िजनम वह अपने िवशाल पंख पर वानर को िबठाए हए िदखाया जाता है। यह
िविच जान पड़ता है, य िक स पाती का संबंध पंख से नह है। परं तु लोकगाथा के
अनुसार, स पाती को उसके पंख लौटा िदए जाते ह तािक वह वानर क सहायता कर
सके और उ ह अपने पंख पर िबठा कर, िकि कंधा ले जा सके। संभवत कुछ आरं िभक
खोए हए, सं करण म, वानर पि य के पंख पर सवार हो कर, लंका गए ह । परं तु
यह एक अनुमान से अिधक कुछ नह है।
हनम
ु ान क कथा
“लंका पहँचने का सबसे ती साधन तो यही था िक सागर को छलाँग मार कर पार िकया जाए।
हर वानर छलाँग भर सकता हैः एक से दूसरे पेड़, एक खाई से दूसरी घाटी तक, पर उनम से
िकसी ने भी सागर को लाँघने का यास कभी नह िकया था। व ृ रीछ जा बवंत को परू ा यक न
था िक म ऐसा कर सकता हँ परं तु मुझे अपने पर िव ास नह था,” हनुमान ने सीता को बताया।
“सागर को लाँघना? या तुमने वा तव म ऐसा िकया? कैसे?” सीता ने हनुमान से पछ
ू ा।
“जा बवंत ने मुझे मेरे ज म क कथा सुनाई, िजसे म भल
ू चुका था। उसे सुनने के बाद ही यह
संभव हो सका।”
देवगण ने महायोगी िशव से िवनती क िक वे एक ऐसा यो ा तैयार कर, जो राम का सहाय होते
हए, रावण का सामना कर सके। इस तरह िव णु ने संुदरी मोिहनी का प धरा और िशव को मोह
िलया और उ ह तब तक मोहती रही जब तक उनका वीयपात नह हो गया। वायु भगवान ने झट
से उस वीय को संभाला और उसे अंजना के कान म डाल िदया। उसी बीज से, हनुमान का ज म
हआ, िज ह मा ित नाम से भी जाना जाता है य िक उनके ज म के िलए वायु देव सहाय हए थे।
वे चंड वायु के देव मा त भी कहलाते ह।
“म एक शि शाली बालक था, इतना शि शाली था िक मुझे अपने बल का अनुमान नह था।
एक बार मने आकाश म उगते सय ू को, फल समझ कर, खाने के िलए छलाँग भरी और म ह
के आसपास िसतार क तरह उलट-पुलट हो कर घम ू ने लगा। मुझे रोकने के िलए, इं ने अपने
व से मुझ पर हार िकया। यह देख कर वायु देव बहत कुिपत हए और उ ह ने सारे जगत से
वायु को ख च िलया। उ ह स न करने के िलए इं ने कहा िक मेरा शरीर िबजली से भी ती
और चंड तफ़ ू ान से भी अिधक बलशाली होगा। तभी मुझे व ांग या बजरं ग के नाम से जाना
जाता है,” हनुमान ने सीता को बताया।
“एक बार क बात है, मने अपने आसपास के भारी पाषाण और पवत को उनके थान से िहला
कर, इतना कोलाहल और उप व मचाया िक ऋिषय ने ाप िदया िक जब तक कोई उिचत समय
आने पर, मुझे मेरी शि का मरण नह करवाएगा, तब तक यह मेरे मिृ त-पटल से िवलु
रहे गी। जब म सागर िकनारे दुिवधा से िघरा खड़ा था तो जा बवंत ने कहा िक केवल म ही सागर
लाँघने क शि रखता था। उसने मेरी शि और बल क शंसा क और मुझे मेरी मता का
मरण कराया। मुझे आकाश म उड़ान भरते हए, लंका तक आने के िलए े रत िकया।”
वा मीिक रामायण तथा आरं िभक पुनलखन म, हनुमान एक बलशाली वानर ह तथा
वायु-देवता के पु ह। म ययुगीन-काल से ही हनुमान को िशव के पु तथा अवतार के
प म मा यता दी जाती रही है। बलराम दास क ओिड़या डांडी रामायण म, हनुमान
को प प से िशव का ही प माना गया है।
एकनाथ क मराठी भावाथ रामायण म, हनुमान ज म से ही कौपीन धारण िकए हए
थे, जो उनके आज म चय का सच ू क है।
जहाँ हनुमान को सदा अंजना पु माना जाता है, वह उनका िपत ृ व एक वानर
(केसरी) तथा एक देव (वायु) तथा ई र (िशव) के बीच बँटता है।
मलेिशया क एक रामायण म कहा गया है िक राम और सीता वानर का प धारण
कर, संतान उ प न करते ह जो हनुमान है, वे बाद म राम क र ा करने आते ह
तािक सीता को रावण से छुड़ाया जा सके। कुछ भारतीय आंचिलक लेखन म भी ऐसा
ही एक संग सुनने म आता है, जहाँ िशव और पावती वानर और वानरी का प ले
कर, हनुमान को ज म देते ह और िफर वे उ ह िनःसंतान अंजना व केसरी को पालन-
पोषण के िलए स प देते ह।
उ र भारत म, हनुमान को अ सर अक के प े चढ़ाए जाते ह, जो औघड़ िशव से
उनके संबंध को और भी पु करता है। दि ण भारत म, हनुमान को अंजना का पु
मानते हए, आंजनेय कहा जाता है और पान के प े व म खन अिपत िकया जाता है।
जा बवंत ने ही अपने ेरक श द से, अपने शंसा मक वा य से हनुमान को उनके
मलू प तथा शि व बल से प रिचत करवाया, इस कार उ ह वह सब करने का
साहस िमला, जो उ ह तब तक अपने जीवन म नह िकया था।
हनुमान को संकट दूर भगाने वाले देव के प म पजू ा जाता है। वे सय
ू और न को
भी अपने वश म कर सकते ह, इस तरह उनके भाव से ह के अशुभ साए को भी
टाला जा सकता है। परू े भारतवष म, मंगलवार और शिनवार को हनुमान जी का पज
ू न
होता है और उनके नाम से साद चढ़ाया जाता है य िक ये दोन ही िदन मंगल तथा
शिन ह के िदन भी ह। मंगल संघष उ प न करता है और शिन काय म िवलंब
करता है, हनुमंत इन दोन के दोष का िनवारण करते ह।
सागर लाँघना
इसके बाद हनुमान ने सीता को बताया िक उनक सागर के इस पार आने क या ा कैसी रही।
पहले उ ह ने अपनी देह का आकार बढ़ाया। जब उनके शरीर का आकार बढ़ने लगा तो व ृ
अपने फल, फूल, पि य और तन सिहत, उनसे िचपकने लगे। उ ह ने अपनी देह का िव तार
आकाश तक कर िलया और ह यह सोचने लगे िक उ ह उनके िसर के आसपास च कर
काटना चािहए या सयू के आसपास च कर लगाने का म जारी रखना चािहए। उनके भार से,
सागर िकनारे ि थत पवत, इस तरह तरल पदाथ क तरह रसने लगे जैसे ग ने क ढे री से
उसका रस िनकाला जाता है। इसके बाद एक भयंकर गजन के बाद, उ ह ने आकाश म उड़ान
भरी और दि ण म लंका क ओर थान िकया।
जब वे आकाश म उड़ने लगे तो उनके शरीर से िचपके पु प हवा के वेग से, सागर म िगरने लगे
और सभी जलचर कौतुकवश, बाहर आ कर यह अ ुत य देखने लगे। एक वानर िकसी प ी
क तरह लंका क ओर उड़ा जा रहा था। आज तक िकसी प ी ने उस ओर या ा नह क थी।
कोई भी मछली तैर कर उस ओर नह गई थी। ऐसी असंभव घटना को घटते देख, तीन लोक म
उ साह क लहर दौड़ गई।
इसके बाद, अपनी या ा के कुछ ही घंट के दौरान, हनुमान के आगे, सागर से िनकला एक पवत
आ खड़ा हआ। हनुमान जान गए िक संभवतः रा स ने ही वह बाधा उ प न क होगी। परं तु वह
तो िहमालय का पु मैनाक था, जो पवत के राजा थे। उसने कहा, “ को, हे वायु पु । मेरे िशखर
पर तिनक सु ता लो। इसके बाद आगे क या ा आरं भ करना,”। हनुमान बोले, “आपका
बहत‘बहत आभार, म एक मह वपण ू अिभयान पर िनकला हँ। उसक समाि से पवू िव ाम नह
कर सकता।” इसके बाद जलचर माता सुरसा ने हनुमान के पथ म बाधा देनी चाही, हनुमान
िच लाए, “मेरा माग छोड़ दो। म हनुमान हँ और अपने राम का काज परू ा करने िनकला हँ,”
सुरसा ने उ र िदया, “कौन राम? कौन हनुमान? कैसा अिभयान? म तो इतना जानती हँ िक म
ू ी हँ और तुम हो मेरे भोजन। िकसी अिभयान पर जाने क अपे ा, िकसी भख
भख ू े को भोजन
कराना कह बड़ा पु य कम होता है। तु ह मेरी ुधा का िनवारण करना ही होगा। मुझे भोजन दो
या मेरा आहार बनो। तभी म तु ह यहाँ से आगे जाने का माग दे सकती हँ।”
“मेरे पास तु ह देने के िलए भोजन नह है। यिद म ही तु हारा आहार बन गया तो तुम यहाँ से
जाने क अनुमित िकसे दोगी?” हनुमान ने पछ ू ा
सुरसा उस वानर क चतुराई पर मु कुरा कर बोली, “अगर तुम, जो भोजन बन सकता है अथवा
दे सकता है, मेरे भख
ू े मुख म वेश िकए िबना यहाँ से चले जाओगे तो तु ह अपने अिभयान म
कभी सफलता नह िमलेगी और तु ह अपयश का भागी बनना होगा।”
“तु ह भोजन देना, मेरा धम हो सकता है, परं तु यह तु हारा धम है िक तुम अपने िलए सामने
आए भोजन को लपको। अगर तुम मुझे पकड़ न सक , तो मुझे दोष मत देना,” हनुमान ने कहा
और अपने शरीर का आकार बढ़ाने लगे, िववश हो कर सुरसा को अपना मुख और भी चौड़ा
खोलना पड़ा िजससे उसके ज़ हरीले दाँत िदखने लगे। इसके फ़ौरन बाद, हनुमान ने अपना
आकार एक म खी िजतना छोटा कर िदया और झट से सुरसा के मुख म जा कर वािपस आ गए।
इससे पवू िक सुरसा कुछ समझ पाती िक ये या हो रहा था या हनुमान को पकड़ने के िलए
अपने जबड़े को बंद कर पाती, हनुमान लंका क ओर िनकल चुके थे।
हनुमान ने सुरसा क िखलिखलाहट भरे वर को सुना, “िजतना चतुर, उतना ही बलशाली, वह
िनि त ही अपने काज म सफल होगा।”
इसके बाद सागर म रहने वाली एक रा सी िसंिहका ने हनुमान को पकड़ िलया और उनक
छाया को अपने जादू से दबाने लगी। हनुमान का कोई िवरोध काम नह आ रहा था य िक उस
मायावी क माया बहत बलशाली थी। हनुमान शांत रहे और य ही उसने उ ह िनगला। उ ह ने
मुख के भीतर जाते ही, अपने आकार को बढ़ाया और उसके शरीर को फाड़ कर बाहर आ गए।
नीला सागर, चार िदशाओं म बह रहे र से जामुनी हो उठा।
अंततः, लंबी या ा के वेद तथा िसंिहका के र से लथपथ, हनुमान को सागर का एक छोर
िदखाई िदया। उसके िकनारे खड़े ना रयल व ृ इसी तरह लहरा रहे थे जैसे पि नयाँ यु भिू म से
लौटे पितय का वागत करती ह।
जब हनुमान ने िकनारे आ कर, लंका क ओर चलना आरं भ िकया तो रात हो गई थी। आठ
भुजाओं वाली एक भयंकर ी ने उनका माग रोक िलया। उसके आठ हाथ म मशाल, घंटा, एक
ि शलू पर सलू ी चढ़ा हाथी, िसंह के र से भरी तलवार, िवष उगलता सप, नर मंुड सिहत दंड,
अि न पा और फरसा पकड़े हए थे। उसके केश खुले थे और माथे पर िसंदूर मला हआ था। उसने
केवल नरमुंड क माला धारण कर रखी थी, िज ह उसने यु भिू म म मौत के घाट उतारा था।
“म इस नगरी क रि का, लंिकनी हँ।” वह बोली। “म इसके वामी क सेवा करती हँ। पहले
य राज कुबेर इसके वामी थे, िज ह ने यह नगरी बनवाई। अब रा सराज रावण इसका वामी
है, िजसने कुबेर को यहाँ से खदेड़ िदया और वयं को इस नगरी का वामी घोिषत कर िदया है।”
हनुमान ने अपनी पँछ
ू लहराई और लंिकनी को नीचे पटका। जब लंिकनी ने उठना चाहा, तो
ू फटकारी और उसे िच कर िदया। इसके बाद लंिकनी धरा से
उ ह ने एक बार िफर से अपनी पँछ
उठ न सक । वह उठना ही नह चाह रही थी। नगरी क अिभभािवका कुिपत नह थी। वह बहत
लंबे समय से नगरी क र ा करती आ रही थी। अब, अंततः उसे जाने का अवसर िमला था। “तुम
कोई साधारण वानर नह , तुम तो िवनाश के सच
ू क हो। रावण का अंितम समय िनकट जान
पड़ता है,” लंिकनी बोली।
सागर लाँघ कर आने वाले, इस वानर क रोचक कथा को सुन सीता आनंद व आशा से सराबोर
हो उठ । वानर न केवल बलशाली िकंतु चतुर भी था।
रामायण के पाँचव अ याय, सुंदर-कांड म, वानर ारा सीता क खोज का वणन आता
है, वह महाका य का सबसे लोकि य तथा शुभ कांड माना जाता है। यह आशा तीक
है, यह उसे खोजने व पाने का तीक है, िजसे कोई दय से चाहता हो।
हनुमान मैनाका के साथ धैय, सुरसा के साथ चतुराई तथा िसंिहका के साथ ू र बल
का दशन करते ह।
तकवािदय के अनुसार, हनुमान उड़े नह थे, वे तैर कर गए थे। वा मीिक रामायण म,
ायः उड़ने और तैरने के श द पर पर िविनयम म यु हए ह।
भारत म, येक गाँव, एक भगवती से संबंध रखता है। वे ामदेवी ह, भदू ेवी, जो उस
भिू म को बनाए रखती ह। लंिकनी कोई अपवाद नह है।
परू े भारत म नगर व गाँव का संबंध ामदेिवय से जोड़ा गया है जैसे- मुंबई क
मंुबादेवी, कोलकाता क काली, चंडीगढ़ क चंिडका आिद।
दि ण भारत के अनेक िह स म, लेटी हई भगवती क ितमाएँ पाई जाती ह। वे उस
धरती का तीक ह, जो बीज पाने के बाद, संतान पी पौध को ज म देती है।
भारत के अिधकतर िक़ ल को दुग कहा जाता है य िक दुगा उनक रि का ह। वे
िसंह पर सवार भगवती ह, जो अपने हाथ म श रखती ह। वे राजाओं क संरि का
भगवती रही ह।
लोकि य मा यता के िवपरीत िक सभी उवर इ ीिलंग ह गे तथा अिभभावक इ
पुि लंग ह गे, इस कथा म पता चलता है िक बलशाली रावण क नगरी क र ा एक
भगवती के अधीन थी। ताड़का क तरह लंिकनी भी बहत भयावह तथा बलशािलनी है।
लंिकनी क तुलना, ीक पुराकथाओं के एमेज़ स से क जा सकती है, वह भारतीय
लोकगाथाओं क मिहला यो ा है। कहा जाता है िक मिहला यो ाओं का एक द ता,
चं गु मौय क र ा करता था।
सीता का संधान
“लंका नगरी बहत िव ततृ है, यह ि य से भरी हई है। तु ह कैसे पता चला िक म ही सीता हँ,”
सीता ने पछ
ू ा
हनुमान ने वीकारा िक लंका म सीता क ख़ोज करना इतना सरल नह था। वे एक से दूसरे घर
क ओर उड़ते रहे , कई बार वे कभी म खी का प ले लेते तो कभी तोते का, वे लोग के घर क
िखड़िकय से भीतर झाँकते रहे । अिधकतर लोग िन ालीन थे। उ ह ने माताओं को ब च के साथ
व ब च को अपने हाथ म थामी गुिड़य के साथ सोते देखा। ेमी युगल सहवास के बाद
आिलंगनब हो कर सो रहे थे और व ृ ी-पु ष अधरू ी न द के बीच करवट बदल रहे थे।
वे सोचने लगे िक सीता कैसी िदखती ह गी। रावण के महल म, रावण को बहत सारी ि य से
िघरा, सोता हआ पाया, वे सभी संतु िदख । वे सभी भ य व व आभषू ण से सुसि जत थ ।
हनुमान ने देखा िक हर ओर सारे क संगीत और सुगंध से चहक रहे थे। उ ह लगा िक यिद
धरती पर कह वग होगा तो यह होगा।
उ ह रावण क शै या पर एक सौ य और शांत मुखी ी सोती िदखाई दी। या वे सीता हो
सकती थ ? परं तु भीतर से िकसी ने सा ी दी िक वह ी सीता नह हो सकती थी। उ ह ने दूसरे
थान पर देखने का िनणय िलया।
अंततः, भोर होने को थी, जब वे महल के िनकट अशोक वािटका क ओर पहँचे। वहाँ उ ह ने व ृ
के नीचे एक ऐसी ी को देखा, िजसक देह पर, केश म लगे चड़ ू ामिण के अित र कोई
आभषू ण नह था, वह कई राि सय से िघरी थी, जो पहरे दारी पर िनयु थ , परं तु वे सब ऊँघ
रही थ ।
“मुझे मरण था िक राम ने वानर ारा एक िकए गए उन िबखरे आभषू ण क पोटली देखते
हए कहा था िक वे सारे आभषू ण सीता के थे, उनम केवल चड़
ू ामिण नह थी। आपक देह पर भी
केवल चड़
ू ामिण िदखी, इसिलए मुझे लगा िक आप ही सीता ह गी। इस तरह मने आपका पता
लगा िलया,” हनुमान ने सीता से कहा।
इसके बाद हनुमान ने सीता से कोई िनशानी माँगी तािक वे राम को माण दे सक िक उ ह ने
सीता को खोज िलया है। सीता ने अपनी चड़ ू ामिण देते हए कहा, “जब िकसी ी के केश खुले
ह तो उसका अथ होता है िक वह मु है। जब वे उिचत कार से बंधे ह तो इसका अथ है िक वह
वचनब है। यह एकमा आभषू ण, चड़ ू ामिण, मने इसे वन म नह िगराया, िजसका अथ है िक म
अपने मन और आ मा के साथ राम से बंधी थी, परं तु रावण मेरे केश को खोलना चाहता है।
उनसे कहना िक वे शी ही आएँ । रावण को रोकना ही होगा, अ यथा इसके प रणाम भयंकर
ह गे।”
तभी हनुमान के मन म एक संदेह उ प न हआ। “कह राम को ऐसा न लगे िक मने इसे वन म
धरती से उठाया है? या आप मुझे कुछ ऐसा बता सकती ह जो िनःसंदेह इस बात का माण बन
सके िक मेरी भट िकसी और से नह , केवल आप से ही हई थी। संभवतः आप मेरे साथ कोई रह य
बाँट द, जो आपको और राम के अित र िकसी को न पता हो।”
“तुम तो सारी संभावनाओं पर िवचार करते हो,” सीता ने हनुमान से भािवत हो कर कहा। िफर
उ ह ने हनुमान को एक रह य बताते हए कहा, “एक िदन, जब वे सो रहे थे, तो एक कौेए ने
मुझे च च मारी, वह मुझे सताने लगा और मेरे कान पर काटा। वह कोई साधारण कौआ नह , वह
इं का पु जयंत था। म रोने लगी और कान से र भी बहने लगा िकंतु मने आवाज़ नह
िनकाली िक कह उनक न द न टूट जाए। परं तु उ ह न द म भी मेरी पीड़ा क अनुभिू त हो गई
और वे उठ गए। उ ह उस कौए पर इतना गु सा आा िक उ ह ने उसक एक आँख भेद दी और उसे
वािपस आकाश क ओर खदेड़ िदया।”
हनुमान को एहसास था िक सीता उनके साथ अपने जीवन का अंतरं ग अनुभव बाँट रही थ । इसी
से पता चलता था िक सीता उन पर िकतना िव ास करने लगी थ , और वे अपने र क राम के
िलए मन ही मन िकतनी याकुल थ ।
ू ा, “आप मेरी पीठ पर य नह बैठ जात ? म आपको उनके पास
तभी हनुमान को एक उपाय सझ
सुरि त ले चलँग
ू ा।”
“ या उ ह ने कहा था िक तुम मुझे वािपस ले आना?”
“नह , दरअसल उ ह पता नह था िक म ऐसा भी कर सकता हँ। यिद आप साथ चलगी तो उनके
िलए यह सुखद संयोग होगा। वे स न ह गे।” हनुमान ने कहा
“मेरे पित को ही मुझे वतं कराने दो। यहाँ उनका स मान दाँव पर लगा है।” सीता का उ र था।
वािटका का नाश
अब िवदा लेने का समय हो गया था। रा स पहरे दार और सहाियकाएँ अब उठने लगे थे। “इससे
पवू िक म यहाँ से जाऊँ, म कुछ खाना चाहता हँ। मने बहत िदन से कुछ नह खाया और वापसी
क या ा भी लंबी है।” हनुमान ने सीता से कहा।
सीता बोल , “यिद यह मेरी रसोई होती तो म तु ह अपने हाथ से वािद पकवान बना कर
िखलाती, परं तु यहाँ तो इन व ृ के फल ही खाए जा सकते ह। ये व ृ मेरी बहन ह, य िक ये भी
धरती क संतान ह। उनके फल खाओ, उनके अमत ृ का पान करो और तब तक उनक सुगंध से
आनंद लो, जब तक तुम मेरे राम के पास, वापसी या ा के िलए तरोताज़ा और ऊजा से भरपरू
नह हो जाते।”
सव
ु ण नगरी का दहन
“इं िजत, उस वानर को पकड़ कर मेरे पास लाओ,” रावण अपने पु क िनज व देह को भुजाओं
म भर कर बोला। रावण का बड़ा पु इं िजत, शी ही एक शंख बजाते हए वािटका म गया, उस
विन से उसके बल और रोष का अनुमान हो रहा था।
हनुमान ने इं िजत के साथ आए रा स के मुख पर भय और म का िमला-जुला प देखा।
लंका ने अपनी जा को जो भी सुर ा स पी हई थी, आज पहली बार, िकसी ने उसम सध लगा दी
थी। तब हनुमान को एहसास हआ िक अब समपण करने का समय हो गया था।
हनुमान ने वयं को इं िजत के बाण के आगे कर िदया और इं िजत ने जब उ ह पाश म बांधा तो
वे आसानी से बंध गए और कोई ितरोध नह िकया। इं िजत उ ह उनक पँछ ू से घसीटते हए,
रावण के भ य दरबार म ले गया और वे सब कुछ उसक इ छानुसार करते रहे । रा स राज रावण
अपने िसंहासन पर, मतृ क पु अ य को भुजाओं म िलए बैठा था, उसके आसपास िघरे रा स,
गु से से दाँत िकटिकटाते हए, त ण हनुमान का वध करने क हँकार भर रहे थे।
हनुमान उछल कर, रावण के ठीक सामने जा बैठे और उसे घरू ने लगे। आज तक रावण क आँख
म आँख डाल कर देखने का साहस िकसी ने नह िकया था। “ या तुम रा स को आित य धम
िनभाना नह आता?” हनुमान बोले। “शी ही मेरे िलए आसन का बंध करो!” रा स समझ
नह सके िक उ ह या करना चािहए। उ ह ने तो कभी िकसी वानर को बोलते हए भी नह सुना
था। उ ह ने कभी िकसी को रावण के स मुख ऐसी ध ृ ता से बोलते नह सुना था। “ या एक
अितिथ से ऐसा यवहार शोभनीय है?” हनुमान का यं या मक सुर रावण से िछपा न रहा। “तब
ठीक है, म वयं ही अपने िलए आसन का बंध कर लेता हँ।”
ू क लंबाई बढ़ाई और उसे कुंडली के आकार म लपेटते हए, एक ऊँची
हनुमान ने अपनी पँछ
मीनार सी बना दी। िफर वे उस पर चढ़ कर बैठ गए। रावण को उ ह देखने के िलए अपनी गदन
उचकानी पड़ रही थी। वह यह सब देख स न नह था। “कौन हो तुम? िकसने भेजा है तु ह?
तुम कोई साधारण वानर नह ; तुम सं कृत म वातालाप करते हो िकंतु कोई ा ण तो नह ,”
रावण ने कहा।
“केवल सं कृत बोलने भर से ही कोई ा ण नह बनता। यिद ा ण बनना है, तो अपने मनस्
का िव तार करना होगा। मने सोचा था िक तुम वेद के महान ाता हो, तु ह इस िवषय म पहले
से जानकारी होगी। यह तो प है, राम तुमसे कह अिधक ानी ह।” राम का नामो लेख आते
ही, परू ी सभा म एक असहज सा मौन याप गया। रावण को एहसास हआ िक लंका म उस वानर
का आगमन कोई दुघटना नह , वह िकसी अिभयान के अंतगत वहाँ आया था। “हाँ, मुझे राम ने
यहाँ भेजा है, िजनक प नी को तुम चोर क तरह हरण कर ले आए हो। वयं को ा ण कहते
हो, वयं को लंका का राजा कहते हो, और ऐसा कुकृ य! राम को उनक प नी सस मान लौटा
दो। धम का आदर करो।”
“अब एक वानर मुझे धम का पाठ पढ़ाएगा,” रावण ने उपहास िकया। यह देख, उसके अ य बंधु
भी हँसने लगे।
“भईया, या आपको िदखता नह , यह कोई साधारण वानर नह और राम, िजनक प नी का
आपने हरण िकया है, वे भी कोई साधारण मानुष नह ह? सीता को उनके पित के पास जाने द।
भले ही यिद आपको ऐसा लगता है िक सीता को उनक इ छा के िव रखने म कोई
अनैितकता नह है, तो भी नगर क सुर ा को यान म रखते हए, सीता को छोड़ दो।” एक
रा स ने आ ह िकया।
“िवभीषण! तुम कैसे भाई हो? तुम कैसे रा स हो, िवभीषण? एक वानर से भयभीत हो गए? तुम
उस राम से संिध करना चाहते हो, िजसने हमारी बहन का अपमान करते हए, उसका नाक
कटवा िदया! वह यि अपनी प नी को वन म अकेला छोड़ कर, मग ृ या के िलए गया था। वह
सीता के यो य नह है। यिद तुम राम के समथक हो, तो इसी ण लंका नगरी से बाहर िनकल
जाओ। जो लोग मेरा साथ नह देते, वे मेरे िव ह!” रावण गु से से िच लाया।
हनुमान को लंका म एकमा ऐसा वर सुनाई िदया, जो यान देने यो य था। िवभीषण! वह तो
रावण के अ य पु व बंधुओ ं से िकतना अलग था, जो रावण के स मुख मुख खोलने का साहस
नह कर सकते थे। “और तुम!” रावण ने हनुमान क ओर मुड़ते हए कहा। “म आज राि के
भोजन म तु ह भनू कर, तु हारा माँस खाऊँगा। तु ह अपनी इस पँछ
ू पर बहत घमंड है, हम सबसे
पहले इसे जला कर, तु हारी म ृ यु का आवा करगे!”
रावण के आदेश पर, रा स ने, हनुमान क पँछ
ू का िसरा पकड़ने का य न िकया। परं तु
ू का आकार बढ़ाते ही जा रहे थे, िजसे देख कर वे उ ेिजत हो उठे और
हनुमान अपनी पँछ
कोलाहल करने लगे। तब रावण ने कहा, “उस वािटका म जाओ, जहाँ सीता को बंदी बनाया गया
है। उसक देह पर िलपटे व को फाड़ कर ले आओ, उन चीथड़ से इस वानर क पँछ ू म आग
लगा दो।” यह सुन कर हनुमान को लगा िक इस तरह सीता के िलए संकट पैदा हो सकता है,
ू का आकार छोटा कर िदया, इसके बाद रा स ने पँछ
उ ह ने झट से अपनी पँछ ू को पकड़ कर,
उस पर चीथड़े लपेटे और उनम आग लगा दी। वे इस दौरान परू ी तरह से शांत बने रहे और उनक
कायवाही म बाधा नह दी।
तब हनुमान को लगा िक अि न म ताप नह था। वह तो उनके िलए शीतल और सुखदायक थी।
वे जानते थे िक सती ि य के पास जादुई शि याँ होती ह, जैसे तपि वय के पास िसि याँ होती
ह, इस तरह वे त व को अपने अधीन कर सकती ह। सीता का सती व, अि न के ताप से उनक
र ा कर रहा था। वे िज ह सहायता क आकां ा थी, वे उनक सहायता कर रही थ , िज ह
सहायता क कोई आव यकता नह थी। हनुमान का दय नेह से प रपू रत हो उठा। वे आज तक
िजतने भी वानर व रा स से भट कर चुके थे, राम और सीता, उनसे िकतने अलग थे।
य ही, उनक पँछू के छोर पर अि न दमक , उ ह ने अपनी भुजाओं पर लगे सारे बंधन खोल िदए
और उछल कर छत पर जा पहँचे। उ ह ने अपनी जलती हई पँछ ू से महल के सारे तंभ म आग
लगा दी। रावण के देखते ही देखते, उसके महल को सुसि जत करने वाले पद तथा गिलयार के
तंभ आग क लपट से िघर गए। वे लपट महल क ाचीर तथा छत से होते हए, िनकट ि थत
घर व महल क छत तक जा पहँची। कुछ ही देर म सारी नगरी अि न कुंड क तरह दहक रही
थी। ाचीर पर मंिडत सुवण िपघलने लगा। छत चरमरा कर ढह रही थ । लोग, अपने घर से
ची कार करते हए, यहाँ-वहाँ दौड़ने लगे। उनके मुख काले धू से और भी काले हो उठे । रा स
आग क इन लपट को वश म करने के िलए जल लेने दौड़े िकंतु आग तो सारी वीिथय म फै ल
चुक थी, वह अपने माग म आने वाली हर व तु को लीलती जा रही थी। अपने-अपने बाड़ व
अ तबल से बाहर िनकल कर भागने वाले अ व हािथय के कारण कोलाहल और उप व और
भी अिधक हो गया था।
“यिद तुमने सीता को मु न िकया तो इसे भा य क ओर से अपने िलए एक चेतावनी मान
लेना,” हनुमान बोले। इं िजत ने अपना धनुष उठा िलया तािक हनुमान को अपने बाण से
धराशायी कर सके परं तु हनुमान ने हवा म ऐसी छलांग भरी िक णांश म उसके बाण क पहँच
से दूर हो गए।
लंका म केवल एक ही थान ऐसा था, जहाँ यह आग नह पहँची। अशोक वािटका म सीता, लंका
क ि य व ब च से िघरी बैठी थ । वे उ ह वे सब गीत िसखा रही थ , जो उ ह ने अपने
बा यकाल म गाग से सीखे थे। वहाँ का प रवेश बहत ही शांत और शीतल था, अक पनीय
आतंक से िघरी एक नगरी के बीच एक म उ ान, एक ऐसी नगरी, जो कभी बहत ही शांत और
वैभवशािलनी रही थी।
अब, सीता िवचार करने लग , लंकावासी हनुमान को दोष दगे, राम को दोष दगे, उ ह दोषी
ठहराएँ गे िकंतु एक बार भी रावण को उसक ध ृ ता के िलए दोष नह िदया जाएगा। एक बार भी
वे शपू णखा को उसके िनल ज यिभचार के िलए नह कोसगे। जब मन भय के घेरे म आब हो,
तो सम या कभी भी, अपने भीतर नह , बाहर ही होती है।
मुि
‘लंका चाहती थी उनका आ मसमपण अयो या ने माँगी उनक पिव ता’
फुि लत वापसी
मधु, सबसे मधुर मधु, िकि कंधा क बाहरी सीमा पर ि थत, मधुवन म पाया जाता था। वहाँ िमलने
वाले मधुमि खय के छ को केवल वानर-नरे श के िलए आरि त रखा गया था। परं तु जब
गु चर वानर, अपनी दि ण या ा से वािपस आए, तो उ ह ने राजक य कोष पर ही डाका डाल
िदया और सारा शहद पी गए, उ ह ने वहाँ के ारपाल से िमल रही सारी धमिकय को भी
उपेि त कर िदया।
जब यह समाचार सु ीव को िदया गया, तो बड़े ही लाड से मु कराए, “ऐसी ध ृ ता तो केवल
सफलता से ही उपजती है।”
वा तव म यही तो हआ था। जब वानर ने उ सुकता से भरे वर म, अपने असं य रोमांच सुनाने
के बाद दम िलया, तो हनुमान ने अपनी हथेली खोली और सीता का िदया केश चड़ ू ामिण राम के
आगे कर िदया। तब उ ह ने राम को वह गु कथा सुनाई, जब वन म बहत समय पहले, एक कौए
ने सीता पर उस समय धावा बोला था, जब राम सो रहे थे। वे बोले, “िजस कार िवषा लताओं
क जकड़ म जकड़ा गव ला व ृ खड़ा रहता है, उसी कार रावण क अशोक वािटका म बंदी
बन सीता, आपके आने क बाट जोह रही ह।
“ या वे भयभीत ह, हनुमान?” राम ने पछ
ू ा
“नह , वे जानती ह िक आप आएँ गे।”
“िफर तो हम एक भी ण गवाँए िबना, शी ही, दि ण सागर तट क ओर थान करना चािहए
तािक वहाँ से रा स क ीप नगरी तक जाने का कोई माग तलाश सक।
वा मीिक वानर क उ लास व आडं बरपण ू वापसी का वणन करते हए बताते ह िक
उ ह ने अपनी सफलता का समारोह मनाने के िलए िकतना उप व मचाया।
हनुमान क वापसी के साथ ही, यु -कांड का ारं भ होता है, जो पवू रामायण का छठा
व अंितम अ याय है।
राम हनुमान के िलए अनंतकाल तक आभारी हो जाते ह य िक वे सीता का पता
लगा कर आए ह। वे उ ह एक भाई क तरह ेम आिलंगन म बाँध लेते ह। एक वग कृत
व सामंती समाज म, यह बहत ही मह वपण ू संग है। यह वामी के ऋण तथा स ा म
बैठे यि य ारा आभार कटन का सच ू क है।
हनुमान को इस सारे संग से कोई लाभ नह है। पहले तो वे केवल सु ीव का आ ा-
पालन कर रहे थे परं तु बाद म वे यह सब िनः वाथ नेह के वशीभत ू होकर करते ह।
इस कार लोग क ि म उनका तर एक भगवान क भाँित हो जाता है। हनुमान
के तीथ के िबना िव णु के िकसी भी मंिदर को पण ू नह माना जाता। उ र भारत म
लोग कहते ह,‘पहले हनम ु ान, िफर भगवान’।
कनाटक म उडुिप नामक थान पर, तेरहव सदी के वेदांत आचाय म व को हनुमान
का अवतार माना गया था। म व अपने त ै के िस ांत के िलए जाने जाते ह, जहाँ वे
भ को उसके इ से अलग मानते ह, जबिक इसके िवपरीत नव सदी के आचाय,
शंकर का कहना था िक ऐसे िवभाजन केवल एक म ह। म व नाम से, ‘मा यम’
श द का आभास होता है। िजस कार हनुमान के कारण राम व सीता के बीच संपक
होता है, उसी कार म व के िस ांत भ को भगवान से िमलाने क आशा य
करते ह।
सागर पर बाँधा पल
ु
राम के नेत ृ व म, हनुमान के पीछे वानर , रीछ , िग तथा अ य व य ािणय क भारी सेना
चल पड़ी। उनके िलए वन को पार करना सरल था, िकंतु सागर लंघन?
राम ने भी कभी सागर नह देखा था: ऐसा लगता था जैसे अनंत तक जल का िव तार हो, जो
ि ितज म आकाश तक जाते हए एकाकार होता िदख रहा था, और जल क लहर ु िसंह क
तरह गजन करत , िचंघाड़ते हािथय क तरह, आकाश का पश करने को आतुर थ । कहा जाता
था िक सागर म अतल जल के भीतर, अि न क ास छोड़ने वाली घोड़ी का वास था।
राम ने अपनी दोन हथेिलयाँ जोड़ और सागर के भगवान, व ण से ाथना करने लगे। वे चाहते
थे सागर दो िह स म िवभ हो कर, उनक सेना को लंका तक जाने का माग दे दे। परं तु
उनक िवनती के उ र म मौन के अित र कुछ नह िमला। वे कई िदन और कई रात तक
िनरं तर सागर के भगवान के आगे ाथना करते रहे । परं तु वहाँ से कोई उ र नह आया। िफर एक
िदन अनायास, राम अधीर हो कर, कुिपत हो उठे , उ ह ने अपना धनुष उठाया और बाण चढ़ा कर,
सागर को न करने क चेतावनी दे दी।
उसी समय व ण देव, एक िवशालकाय म य पर सवार हो कर वहाँ आ पहँचे व राम से कहा,
“सागर से मछली, नमक व मोितय का उपहार िमलता है। सागर के कारण ही वषा आती है। अगर
आप इसे ही न कर दगे, तो सारे जीवन का अंत हो जाएगा। राम, अपने रोष को शांत कर। आप
उसी कार मेरे ऊपर से उड़ कर जाएँ , िजस कार हनुमान गए थे अथवा, एक सेतु का िनमाण
कर परं तु मुझसे यह अपे ा न कर िक म अपनी कृित को बदलते हए, आपको या आपक सेना
को जाने का माग दँूगा।
व ण ने राम के पीछे खड़े , व य पशुओ ं के अथाह समहू को देखा, जो राम क उपि थित म
अपनी पाि क विृ य से कह अलग आचरण कर रहे थे। यिद उ ह पांत रत होने क ेरणा
िमली थी तो वह भी तो े रत हो सकता था। तो व ण ने एक रह य का उ ाटन िकया: “आपके
साथ आने वाले वानर के दल म, अि न-देव अि न के दो पु नल और नील भी ह। उनके ारा
सागर म फक गई च ान पानी म नह डूबगी। आप उनक सहायता से सेतु िनमाण कर सकते ह।
म उसे अपनी सतह पर तैराए रखँग ू ा। बस, केवल इतना ही कर सकता हँ।”
सारे वानर ने मारे स नता के हँकार भरी और राम मु कराए। व ण देव क ओर से यही
सहायता पया थी।
िग आकाश से गु चरी करने लगे, भालुओ ं ने योजना तैयार क और वानर उसे साकार प देने
के िलए तुत हो गए। वे भारी-भारी पाषाण ले जा कर, नल और नील भाईय को देने लगे, जो
उ ह सागर म उछाल देते। वे पाषाण व ण के कहे अनुसार, डूबने क बजाए सतह पर ही तैर रहे
थे, परं तु वे एक साथ नह तैर पा रहे थे: वे अलग-अलग िदशाओं क ओर जा रहे थे। “अब हम
या कर सकते ह?” वानर िच लाने लगे।
तब हनुमान ने उन प थर को नल और नील को स पने से पवू , उन पर राम का नाम अंिकत
करना ारं भ कर िदया। अब ये प थर िकसी माला क तरह पानी म एक साथ तैरने लगे। उनक
िदशा दि ण क ओर थी, सीता क ओर!
कहते ह िक सागर के तले आग उगलने वाली घोड़ी का वास था, िजसके ताप से
सागर का जल भाप व धँुध म बदल जाता और सागर धरती क ओर वािहत नह
होता। यह आग उगलने वाली घोड़ी ही कि क का मुख होगी, जो िव णु के दसव
अवतार माने जाते ह।
वैिदक काल म, व ण का संबंध नीित और नैितकता से जोड़ा जाता था। पौरिणक युग
म, वे सागर के भगवान तथा धन क भगवती, ल मी के िपता कहलाए, उनका संबंध
उदारता से जोड़ा जाने लगा। कला के े म, उ ह एक म य, हे ल या डाॅलिफ़न पर
सवार िदखाया जाता है, वे अपने हाथ म एक पाश या जाल थामे रखते ह।
राम अपने धनुष पर बाण चढ़ा चुके थे इसिलए उसे कह न कह तो छोड़ना ही था। वे
उसे उ र क ओर छोड़ते ह। बाण िजस थान पर जा कर िगरता है, वह राज थान के
थार रे िग तान म बदल जाती है।
न बे के दशक क पो टर कला म, राम समु क ओर देखते हए, धनुष पर बाण
चढ़ाए खड़े िदखाए गए, ये पो टर बहत लोकि य हए। इ ह राम को एक राजनीितक
ह ती के प म पांत रत करने के काम लाया गया, जो सीता (भारत) को रा स
(िहंदू िवरोधी बल) से मु करवा दगे। इस छिव म राम को ीक नायक क तरह
पौ ष व संप न व आ ामक िदखाया गया है, जबिक अपने पारं प रक प म वे बहत
ही सौ य, शांत व कोमल िदखाए जाते ह। राम क सौ यता को अनेक पि मी कला
इितहासकार ारा कामुकता तथा पौ षहीनता के प म िव े िषत िकया गया,
िजससे भारतीय क भावनाएँ आहत हई ं, और उ ह ने राम को पि मी मानिसकता के
अनुसार ढाल िदया।
लोकगाथाओं म बताया गया है िक राम ारा धनुष उठाने के संग पर समु -देवता
को इतना ोध आया िक उ ह ने कृ ण क नगरी ा रका को ही लील िलया, जो िक
राम का ही अवतार थे।
वा मीिक क रामायण म केवल नल का ही वणन है, िजसे िव कमा का प माना
गया है। तुलसी दास क रामायण म, अि न के पु , नल और नील के बारे म बताया
गया है।
येक मुख वानर देव से संबंध रखता है: बाली का संबंध इं से, सु ीव का सय
ू से,
हनुमान का वायु से, नल का िव कमा से तथा नील का अि न से संबंध है।
िग रधर क गुजराती रामायण उ नीसव सदी म रची गई, एक नल नामक वानर,
सागर म उन प थर को फकता रहता था, िजस पर ऋिष अपने व सुखाते थे। उ ह
ितिदन उस प थर को सागर से बाहर िनकालना पड़ता था। एक िदन वे तंग आ गए
और नल को ाप िदया िक उसका पश पाने के बाद, प थर जल म डूबगे नह , वे
जल क सतह पर तैरते रहगे। यही कारण है िक नल िजन प थर को सागर म फक
रहा था, वे उसक सतह पर तैर रहे थे।
िग रधर क रामायण म, इस िवचार को वीकार नह िकया गया िक राम का नाम
सागर म डाले गए प थर पर िलखा गया था येांिक तब उन प थर पर चलने का
अथ होता िक सभी राम के नाम पर चल रहे ह, जो िक अपने आप म राम के नाम क
अवमानना होती।
कृि वास क रामायण म, हनुमान नल से ोिधत हो जाते ह य िक नल वानर से
च ान लेते हए, अपने बाएँ हाथ का योग करते ह। राम हनुमान को यह कह कर
शांत करते ह िक काम करने वाले ऐसा ही करते ह, वे बाएँ हाथ से च ान लेते ह और
िफर दाएँ हाथ से उसे उिचत थान पर रखते ह।
पारं प रक तौर पर, िजस थान से पाषाण िलए गए, उसे आं देश तथा कनाटक क
भिू म माना जाता है य िक वे दोन थान िवशाल च ान के िलए जाने जाते ह।
हनुमान उन पाषाण पर राम का नाम अंिकत करते ह िजससे पता चलता है िक वे
िशि त थे और इस कार अिशि त वानर दल के बीच उनका मान-स मान और भी
बढ़ जाता है। एक वानर होने पर भी वे सं कृत भाषी ह। एक वानर होने पर भी, वे
ई र क सहायता कर सकते ह।
हनुमान ने राम का नाम िलखने के िलए िकस िलिप का योग िकया होगा?
वा मीिक के काल म तो लेखन था ही नह । उनक यह सारी कथा भी तो मौिखक ही
थी। खरो ी और ा ी िलिप भी तो बहत बाद म आई ं। बहत बाद म, क मीर म कभी
लोकि य रही शारदा िलिप, तथा िस म िलिप चलन म आई, जो िक ित बत म अब
भी यु होती है। बीसव सदी के बाद से, देवनागरी िलिप का योग आरं भ हआ।
लोकि य कैलडर कला म दशाया गया है िक हनुमान देवनागरी िलिप म िलखते ह।
राम सेतु चनू ा प थर से पाटा गया है जो रामे रम के ीप को, ीलंका म म नार
ीप से जोड़ता है। िहंदुओ ं क मा यता है िक यह वही सेतु है िजसे वानर ने तैयार
िकया था। ीलंका के इितहासकार इस दावे को वीकार नह करते। वतमान म बहत
से लोग, इस ाकृितक बाधा को तोड़ना चाहते ह तािक समु ीय गितिविध को सरल
िकया जा सके। इस योजना के िजतने समथक ह, उतने ही िवरोधी भी ह: कुछ लोग
इसे ऐितहािसक मारक क तरह देखते ह, कुछ इसे एक सहज पा रि थितक संबंधी
संवेदनशील थान तथा अ य एक पिव ढाँचे के तौर पर देखते ह, िजसक हर हाल
म र ा क जानी चािहए।
यरू ोिपयाई मानिच कार ने राम सेतु को एड स ि ज का नाम िदया है।
िगलहरी का योगदान
बहत सारे जानवर ने राम क इस अिभयान म सहायता क । अिधकतर काय वानर ही संभाल रहे
थे, परं तु इस सच
ू ी म हाथी, िहरण और कौए भी शािमल थे। राम क सहायता करने वाल म एक
नर िगलहरी भी था। वह पानी म छलांग लगाता और िफर आ कर रे त म लोटने लगता। जब
उसक देह पर रे त के कण िचपक जाते तो वह उ ह पुल पर जा कर उ ह झाड़ देता। इस तरह वह
अपनी साम य के अनुसार, पुल बनाने के काम म योगदान दे रहा था।
वानर को उसका यह उ साह भारी पड़ रहा था। वह बार-बार, उनके पैर के बीच आ जाता और वे
उसे दु कार कर दूर भगा देते। राम भी उसे देख रहे थे, उ ह ने उसे उठा कर पुचकारा और
िदलासा व शाबाशी देने के िलए उसक पीठ पर अपना हाथ िफराया। इस तरह उसक देह पर
धा रयाँ बन गई ं।
“आप तो छोटे-छोटे जीव को भी इतना मान देते ह।” सु ीव दबी हँसी हँसे।
“हो सकता है, तु हारी ि म इसका योगदान उतना मह व न रखता हो पर अगर उसके नज़
रए से देखो, तो उसका योगदान अतुलनीय है। हो सकता है िक िवशाल योजनाओं के बीच
उसका कोई काम नह परं तु उसक अपनी िवशाल योजनाओं का तो वह वयं ही कता है। वह भी
आपके और मेरी तरह, ा है, अपने ही ानंद का सजक। म इस संसार को उसके ि कोण
से देखते हए, देख पा रहा हँ िक वह मुझसे िनः वाथ भाव से नेह रखता है। जब तक हम इस
तरह यवहार नह करगे, तब तक अपने मनस् का िव तार कैसे कर सकते ह?”
सु ीव ने उस िदन जाना िक राम या ह। अगर िकसी को राम होना है तो उसे कैसा बनना होगा।
जब रावण चला गया तो ि जटा बोली, “पता है, यही षड़यं इसने राम के साथ भी खेला तािक
उनका मनोबल तोड़ा जा सके। िफर उसने सीता को बताया िक मायावी बजकाया को भेजा गया
तािक राम सीता क खोज याग द।
जब वे लोग पुल बना रहे थे, तो वानर ने दूर से पानी पर ितरता हआ कुछ देखा। वह लंका से
ज बू ीप क ओर आ रहा था। वह एक शरीर था और उसे पानी से बाहर िनकाला गया। वह एक
सुंदरी थी िजसक देह पर कोई आभषू ण नह थे। ल मण ने चरण देखे और घबरा कर बोले, “ये
तो सीता ह। रा स राजा ने उनका वध करके, उनक देह को सागर के हवाले कर िदया।”
जब ये समाचार राम तक गया तो वे अपने कान पर िव ास नह कर सके। या सीता वा तव म
नह रह ? या वे जनक पु ी क र ा करने म असमथ रहे ? उ ह अपने भीतर ही भीतर गहरी
कचोट का अनुभव हआ? वे मत ृ देह को देखने के िलए तट क ओर दौड़े और पाया िक हनुमान
ने पहले ही शव के दाह-सं कार का बंध कर िदया था। शव को िचता पर रख िदया गया था और
हनुमान िचता को अि न देने ही वाले थे। “नह , उसका अंितम सं कार िकसी राजकुमारी तथा
राजसी प रवार क पु वधू क मयादा के अनुसार ही होना चािहए,” राम ची कार कर उठे ।
राम को उपेि त करते हए, हनुमान ने िचता को आग लगा दी। राम ु हो कर, िचता क अि न
को बुझाने के िलए भागे तािक अपनी ि या के शव को भ म होने से बचा सक। तभी उ ह ने र
को भी जमा देने वाला ची कार सुना और शव जीिवत हो उठा। वह तो मायावी बजकाया थी। रावण
ने हनमुान क ती ण ि को कमतर आँक िलया था।
िवभीषण का आगमन
अचानक सभी वानर क ि आकाश क ओर गई तो उ ह ने एक रा स को दि ण िदशा से
उड़ कर आते देखा। वानर मारे डर और उ ेजना के िच लाने लगे, वे उस रा स का वध करने के
िलए उतावले हो उठे , परं तु हनुमान ने उ ह पहचान िलया, वे तो िवभीषण थे, िज ह ने रावण के
दरबार म िनभ क हो कर, हनुमान का साथ िदया था। हनुमान ने वानर को शांत िकया और
िवभीषण को राम से भट करवाने ले गए।
“म िवभीषण हँ,” रा स ने अपना प रचय देते हए कहा, “रावण का भाई, मने उसे उसके कुकृ य
के प रणाम से अवगत कराना चाहा तो उसने मुझे अपनी नगरी से ही बिह कृत कर िदया। म
आपक ओर से यह यु लड़ना चाहता हँ। कृपया मुझे अनुमित द। इससे पवू िक उसक िवि ता
सारी लंका को न कर दे, उसका वध होना अिनवाय है।”
राम ने िवभीषण का वागत िकया। ल मण दमके, “ह म! तो संसार म अ छे और भले रा स भी
होते ह।”
“यिद म कुछ अनुिचत क ँ , तो या तुम मुझसे यु करोगे?” राम ने ल मण से पछ
ू ा
“आप कुछ अनुिचत कर ही नह सकते,” ल मण बोले।
“मुझे परू ा िव ास है, रावण के अ य भाईय को यही लगता होगा िक वह कुछ अनुिचत कर ही
नह सकता। तो कौन े है: मेरा साथ िनभाने वाला भला रा स या रावण का साथ देने वाले
िन ावान रा स?”
राम के इन श द को सुन ल मण तथा िवभीषण दोन ही असहज हो उठे । या े था: उिचत
का साथ देना या िन ा िनभाना? दोन के ही अपने-अपने प रणाम थे।
लंका के गु चर
जब िवभीषण वानर के बीच घुल-िमल गए और राम काज के िलए उ ह अपनी ओर से परू ा
योगदान देने लगे, तो उ ह ने वानर के दल म कुछ वेष बदलने वाले रा स को ल य िकया: वे
रावण के गु चर थे। उ ह ने शुक, शादूल व सरन को पहचान िलया।
िवभीषण ने वानर को उनके बारे म बताया और वे अपने घँस
ू और ठोकर क मार से उनका
वागत करने लगे, तब राम क म य थता से ही गु चर क ाण क र ा हई।
“इ ह जाने दो। वे तो अपना काम कर रहे ह। इ ह रावण के पास जाने दो तािक ये बता सक
इ ह ने यहाँ या- या देखा। यह सेना और उसक योजनाएँ कोई अफ़वाह नह ह; यह एक
वा तिवकता है।”
गु चर रावण के पास दौड़े गए और जो भी देखा-सुना था, सब कह सुनाया। “उनके पास कोई
श नह ह। उनके पास ती ण नख और िवषैले दंत ह। वे लािठय और प थर से लड़ते ह। परं तु
उनके श क यह कमी, उनके आ मिव ास के कारण परू ी हो जाती है। वे राम के िलए लड़ना
चाहते ह। उनके आसपास का हर ाणी उनके नेत ृ व म यु करने तथा अपना सबसे े तम
दशन देने के िलए तुत है।”
ू ना पाकर रावण के गु से क सीमा न रही और उसने गु चर को ठोकर मार कर परे
यह सच
धकेल िदया। स य ने उसे भयभीत कर िदया था।
शुक बोला, “हमारा श ु हमारे साथ िकतने स मान से पेश आया। हमारे वामी हमारे साथ
िकतना िनंदनीय यवहार कर रहे ह।”
वा मीिक अपने समय के राजाओं ारा िनयु िकए जाने वाले गु चर के अ यास से
ू तया प रिचत थे। चं गु मौय के पास गु चर का परू ा िवभाग था, कौिट य ारा
पण
शासन कला क िश ा देने वाले ंथ, अथशा से इसका पता चलता है।
एक तर पर, रा स के पास प बदलने क अित ाकृितक शि याँ थ । दूसरे तर
पर, उ ह गु चर जैसी साधारण आव यकताएँ भी रहती थ ।
सन
ु हरी म यक या
लंका क ि याँ ि जटा और सरमा को उनके घर से बाहर ख च लाई ं और उ ह पीटने लग । वे
िवभीषण ारा िकए गए िव ासघात से ोिधत थ , उ ह तो दंड िदया नह जा सकता था, अतः
उनक प नी और पु ी को रा स का कोप भाजन बनना पड़ रहा था। यिद मंदोदरी ने उ ह
आ य न िदया होता तो गु साई भीड़ उनके ाण ही ले लेती।
सरमा को सीता फूटी आँख नह भा रही थ । वही तो सारी सम या क जड़ थ । परं तु ि जटा ने माँ
को समझाना चाहा, “आप उ ह दोष य देती ह? आप रावण को दोषी य नह मानत ?”
“ य िक वे हमारे प रवार के सद य ह,” सरमा बोली।
सरमा और ि जटा उ री तट पर बैठ उस पुल को देख रही थ , जो धीरे -धीरे लंका क ओर बढ़ा
आ रहा था। तभी लंिकनी भी उनके पास आ बैठी और बोली, “अब लंका के थोड़े ही िदन शेष रह
गए ह।”
सागर क लहर से अचानक, एक सुनहरे से जीव का सुर सुनाई िदया, “म सहमत हँ।” वह
सागर क रानी, सुवण-म या थी, वह रावण से ेम करती थी और उसके िलए कुछ भी कर
सकती थी। उसके पास उ ह सुनाने के िलए एक संग था।
“रावण ने मुझे आदेश िदया िक उस सेतु को न कर दँू। मने अपनी सारी मछिलयां, सप तथा
सागर म वास करने वाले रा स को आदेश िदया िक वे उन च ान को ख च कर, सागर के तल
मे ले जाएँ । सभी वानर असहाय हो गए। वे जल म वेश नह कर सकते थे, परं तु हनुमान नामक
वानर जल के भीतर आ गया। म उसे अपनी पँछ ू से फटकारना चाहती थी, अपने िवष को उसक
देह म उतार देना चाहती थी परं तु य ही मने उसे देखा, म तंिभत हो उठी। मने तो अपने परू े
जीवन म उससे सौ य और मनोहारी जीव नह देखा: सोना और चाँदी, िवशाल ने , चौड़े नासापुट
और ऊपर क ओर उठी पँछ ू , एक यो ा का सा देह सौ व और िकसी ऋिष का सा आभामंडल।
हमारे बीच यु हआ। नह , हमारे बीच म ल-यु हआ। म केवल उसक कठोरता का अनुभव
पाना चाहती थी। परं तु मेरी इ छा का अनुमान होते ही, वह पीछे हट गया। उसने कहा िक वह राम
के अित र और िकसी को अपनी सेवाएँ नह देगा। मने उससे कारण पछ ू ा। और उसने कहा िक
उसने मुझसे कोई अपे ा न रखते हए, मुझे मु कर िदया है। और तब मुझे एहसास हआ िक हम
अपनी ही अपे ाओं के जाल म कैसे उलझे रहते ह: वे अपे ाएँ , जो हम दूसर से रखते ह या वे
अपे ाएँ , जो दूसरे हमसे रखते ह। म रावण से कुछ अपे ा रखती हँ। रावण मुझसे कुछ अपे ा
रखता है। मने हनुमान से भी अपे ा रखी िकंतु उसने मुझसे कोई अपे ा नह रखी। मेरे भीतर से
अनायास ही मु होने क बलवती इ छा उठी। म हर चीज़ से मु हो जाना चाहती थी। मने सारा
संघष याग िदया। मेरे भीतर से भय कह भाग गया था। मने िनणय िलया िक म सेतु िनमाण के
काय म बाधा नह दँूगी। सभी समु ी जलचर से कहँगी िक वे इस काय म अपना सहयोग द। म
स नतापवू क रावण का कोप भाजन बनने को तैयार हँ।”
ि जटा ने तट पर बैठी ि य से कहा, “सीता ायः उपिनषद के दौरान सुनी एक बात बताती ह,
‘िजस कार म अपने संसार क रचियता हँ, उसी कार तुम भी हो। हम अपे ाओं क भल ै ा
ू -भुलय
से वयं को िनकाल कर, अपने संसार को और भी िव ततृ बना सकते ह। यिद हम वयं को
अपे ाओं के बीच उलझाते चले जाएँ तो हमारे संसार को संकुिचत होते भी देर नह लगेगी।”
सुवण म यक या बोली, “काश म केवल एक म य होती, मुझे सागर से कोई अपे ा न होती।
मने वयं के भरण-पोषण का दािय व िलया होता। पर चँिू क अब म आधी मीन हँ इसिलए मुझे
लगता है िक सागर मेरा पोषण करे , जब वह ऐसा नह करता, तो म कुंिठत हो उठती हँ। मेरा
मानवीय प सागर क िवनती करता रहता है, उसे फुसलाता रहता और उसे अपने अधीन रखना
चाहता है।”
सरमा ने कहा, “रावण भी अपने भाईय से एक ख़ास तरह से पेश आने क अपे ा रखता है। जब
वे ऐसा नह करते, तो वह उ ह नकार देता है। िवभीषण ने भी रावण से एक ख़ास तरह से पेश
आने क अपे ा क । जब ऐसा नह हआ, तो उ ह ने रावण को अ वीकृत कर िदया। यह राम, या
यह भी अपने माता-िपता, बहन अथवा भाई से कोई अपे ा रखता है? यिद वे उसक अपे ा के
अनुसार नह जीते, तो या वह भी उ ह अ वीकृत कर देता है?”
ू क ह, तो मुझे नह लगता िक ऐसा होता होगा।”
ि जटा ने उ र िदया, “यिद सीता एक सच
सुनहरी म यक या क कथा दि ण-पवू एिशया म कही जाती है और भारतीय
पुनकथन म इसका कोई संदभ नह िमलता। अिधकतर सं करण म इसे रावण क
पु ी कहा गया है।
यह कथा कंबोिडयाई रामायण न ृ य िवरासत के बचे हए अंश से ली गई है।
भारत म, हनुमान के चय का िनकटतम संबंध उनके बल से जोड़ा जाता है। परं तु
दि ण-पवू एिशया म ऐसा नह है, वहाँ उ ह एक कुलीन रिसक के प म जाना जाता
है िजनके असं य समागम होते ह।
जैन पुनकथन म भी हनुमान को एक रोमानी कुलीन के प म िदखाया गया है,
जहाँ वे ेम के भगवान काम के प म ह।
दि ण-पवू एिशयाई हनुमान एक संर क नायक क तरह ह, जो सीता को खोजने म
राम क सहायता करते ह। भारतीय पुनलखन म भगवान और भ का जो नाता
िदखता है, उसका यहाँ िनतांत अभाव है।
सोलहव सदी म, अवधी म रिचत, तुलसीदास कृत िवनयपि का को म मथ-मंथन के
प म िचि त िकया गया है, जो मन म इ छाओं का मंथन करते ह और इसके साथ ही
उ व-रे तस् कहलाते ह, अथात जो यान के मा यम से अपने वीय को गभ क ओर ले
जाने क बजाए, ऊपर मनस् क ओर ख च लेते ह। वे चारी होने के साथ-साथ
कामुक भी ह, यही कारण है िक सभी कामो ेक ऊजाएँ , उनके अि त व म आते ही
ा म पांत रत हो जाती ह। यही कारण है िक हनुमान तांि क योिगय , साधुओ,ं
सं यािसय तथा वैरािगय ारा अिधक सराहे जाते ह, िज ह ने सांसा रक जीवन का
याग िकया और अपने शरीर पर भ म का लेप कर, साधु बन गए।
यह कहानी मह वपण ू है य िक अ त ु रामायण म, हम हनुमान के एक पु के िवषय
म पता चलता है, जो एक समु ी जलचर, संभवतः िकसी मीन ारा हनुमान का वेद
हण करने के बाद उ प न हआ। भारतीय पुनलखन म ऐसा तब घटता है, जब वे
सागर लाँघ रहे थे और दि ण-पवू एिशयाई पुनलखन के अनुसार, जब उ ह ने सुवण
म यक या से यु िकया था।
हनम
ु ान क पूंछ
सागर पर बनने वाला पुल, पाँच िदन म तैयार हो गया और वानर का दल, राम और ल मण को
अपने कंध पर िबठाए, क़दमताल करता पुल पर चल िदया। यह वा तव म देखने यो य य था।
आकाश म विगक जीव क भीड़ जमा थी, जो यह सब देख कर भी िव ास नह कर पा रहे थे।
कैसा अक पनीय और अिव सनीय नज़ारा। राम ने तो असंभव को संभव कर िदखायाः वानर
के बल से सेना बना ली और प थर व लािठय के बल पर, सागर लाँघने के िलए सेतु बना डाला।
पि य ने सेना पर पु प वषा क और मछिलयाँ हष लास के वर के साथ उनका वागत कर
रही थ ।
परं तु सारी सेना लंका के िकनारे पहँचने ही वाली थी िक एक िव फ़ोट क विन सुनाई दी। पुल
के दोन ओर क च ान अलग-अलग हो गई ं। रावण ने अपने शि शाली धनुष से दो ती गामी
ेपा छोड़े थे, िजसने पुल को दोन छोर से तोड़ िदया था, सारी वानर सेना सागर के बीच
फँस गई। अचानक सागर म रहने वाले रा स मँुह खोले आ खड़े हए, उ ह ने सेना को घेर िलया
था, राम और उसक सेना उनके िलए भोजन थी। ऐसा लगा जैसे सब समा हो गया।
एक बार िफर, हनुमान ने ही मोचा संभाला। उ ह ने अपना आकार बढ़ाया और छलांग मार कर,
लंका के छोर तक जा पहँचे। वहाँ उ ह ने पुल के टूटे िह से से अपनी पँछ
ू बांध दी। इस तरह लंका
तक जाने के िलए पुल सुरि त हो गया। राम और उनक सेना उनक पँछ ू से होते हए, दूसरे िसरे
तक आ गई और उ ह उनक व रत बुि मता के िलए िदल खोल कर सराहा।
राम लंका क धरती पर क़दम रखने ही वाले थे िक िवभीषण ने एक रा स को उनक ओर आते
देखा; उसके ने पर प ी बंधी थी। “वह भ मलोचन है,” उ ह ने राम को बताया। “वह जब भी
अपनी प ी खोलेगा और अपनी पहली नज़र िजस पर भी डालेगा, वह उसी ण आग क लपट म
भ म हो जाएगा।”
राम ने झट से एक बाण छोड़ा, जो उसी समय एक दपण म बदल गया। य ही भ मलोचन ने
अपनी प ी हटाई, उसे ही सबसे पहले दपण िदखा। उसे तो राम और उनक सेना को भ म करने
के िलए भेजा गया था परं तु वह वयं ही भ म का ढे र बन गया।
रावण का सामना
अब ीप पर चार ओर वानर ही वानर िदख रहे थे। उ ह ने सारी धरती को इस तरह घेर िलया था,
जैसे िकसी पाश से घेर कर, लंका क ास अव कर देना चाहते ह ।
रावण लंका क सबसे ऊँची मीनार पर चढ़ा तािक तट पर जमा हए वानर सेना का जायज़ा ले
सके। वानर और राम को, पहली बार उस यि क झलक िमली, जो सीता को हर लाया था।
वह हाथ बाँधे, बड़े ही दप से सीना ताने खड़ा था, िसर पर िटके मुकुट पर हीरे -मोती िझलिमला
रहे थे। रावण को िशव के बैल, नंदी के श द मरण हो आए, “घमंडी मख ू ! एक िदन तू वानर के
हाथ ही परािजत होगा,” या उस ाप के फलीभत ू होने का समय आ गया था?
सकड़ वानर उस मीनार पर चढ़ने लगे, वे उसी समय दु रावण का अंत कर देना चाहते थे। वे
चाहते थे िक ना रयल के खोल क तरह उसके िसर के दो टुकड़े कर िदए जाएँ । उनक गुराहट
और तेज़ी ने रा स को भी हैरत म डाल िदया। इससे पहले िक वे जान पाते, या कुछ कर पाते,
बहत सारे वानर ने, महल पर लगी, फर-फर फहराती िवजय पताकाएँ नोच कर फाड़ द और
सु ीव रावण के िसर पर सजे मुकुट को धराशायी कर, उन पर नाचने लगे।
तट पर उपि थत वानर ने भी स नतापवू क हँकार भरते हए अपनी वीकृित दी। सु ीव मारे
ख़ुशी के उछलते हए, वािपस लौट आए। वे अपनी ओर से श ु के खेमे म हलचल मचा आए थे।
परं तु राम के मुख पर मु कान नह आई। उ ह ने ऐसे आ मण को नह सराहा; यह तो यु के
िनयम के िवपरीत था।
इं िजत को बहत ोध आया िक वे िनकृ वानर उसके िपता का सावजिनक प से अपमान
कर गए, उसने अपना धनुष-बाण उठाया और राम-ल मण पर अपने तीर क वषा करने लगा। वे
कोई साधारण बाण नह थे। वे तो नाग-पाश थे, उ ह ने राम व ल मण को अपने घेरे म ले िलया
और अपने िवष के भाव से िशिथल बना िदया। वानर ने बहत बल लगाया पर वे सप के उन
बंधन को नह खोल सके। राम और ल मण अपने शरीर क एक माँसपेशी तक नह िहला पा रहे
थे। अचानक, ि ितज पर बहत सारे पि य के झँुड आते िदखे। उनम िग , बाज, कौए व हंस
आिद प ी शािमल थे। वे प ी लंका क धरती पर उतरे । उ ह ने अपने ती ण नख तथा चंचुओ ं के
वार से सप को न करने म ज़रा भी देर नह क । उनका नेत ृ व पि य का नेता, ग ड़ कर
रहा थ।
“हमने सुना िक कोई हम पुकार रहा था,” ग ड़ ने कहा।
“वह कौन था,” राम ने पछ
ू ा।
“सीता, उ ह ने अशोक वािटका से हम सहायता के िलए पुकारा। वे जानती ह िक आप लंका क
धरती म वेश कर चुके ह और अब वे शी ही मुि पा लगी।”
े वाहक अंगद
संदश
सप-बाण से मु होते ही राम बोले, “हम गाँव को लटू ने आए बबर क भाँित यवहार नह
करना चािहए। हम रा स के पास अपना संदेश भेजना चािहए िक यिद वे मेरी सीता को लौटा द
तो हम शांित से वािपस लौट जाएँ गे।”
अंगद को राम के संदेशवाहक के तौर पर िनयु िकया गया। जब उसने रावण के दरबार म वेश
िकया, तो दाँत िकटिकटाते रा स ने उसे घेर िलया। परं तु युवा अंगद उनसे इतना सा भी भयभीत
नह हआ। उसने रावण के क म जाते ही, वहाँ खड़े यो ा रा स के हाथ म पकड़े अ -श
का िनरी ण िकया।
पहले अंगद ने अपना प रचय िदया: “बहत समय पहले क बात है, लंका के राजा रावण ने, बाली
को एक साधारण वानर मान कर, उसक पँछ ू पकड़ने का य न िकया। बाली ने रावण को
अपनी पँछ
ू म लपेटा और घसीटते हए िकि कंधा ले गया, जहाँ वानर ने रावण को शाही पालतू
समझ िलया। म उसी बाली का पु अंगद हँ।”
इसके बाद अंगद ने अपनी भिू मका बताते हए कहा, “बहत समय पहले क बात है, हैहय वंश के
कातवीय ने अपन सह भुजाएँ पसार कर, एक नदी का वेग रोक िलया था, नदी म आई बाढ़ के
कारण, वे सारे प और पु प बह गए, िज ह रावण ने िशव क पजू ा के िलए एक िकया था।
कातवीय के इस कृ य को रावण ने अपना अपमान जाना। कातवीय का वध परशुराम के हाथ
हआ, और परशुराम, रघुवंश के राम के हाथ परािजत हए। म उ ह राम का संदेशवाहक हँ।”
अंत म अंगद ने अपना संदेश सुनाया: “राम अपनी वानर सेना सिहत, नगरी के ारा पर
आ मण करने के िलए तुत ह परं तु यिद आप राम क प नी सीता को लौटा द, तो शांित
थािपत हो सकती है। एक राजा को अपने घमंड या वासना से परे जा कर, पहले अपनी जा का
िहत साधना चािहए।”
“वानर से सेना नह बनती,” रावण गु से फँु फकारा, “उ ह तो पकड़ कर, िशि त िकया जाता
है और िफर नचाया जाता है। राम तु हारा वामी है और तुम उसके सेवक। मेरे साथ आ जाओ,
तु ह आज़ाद कर दँूगा, तुम इन िनयम से छूट जाओगे। पर अगर िजद पर अिडग रहे , तो तुमसे
पशुओ ं क तरह ही यवहार होगा, जो िक तुम हो। म तु हारा िशकार क ँ गा और िफर तु हारा
माँस भनू कर खाऊँगा।”
“तुम हमारी शि का उिचत अनुमान नह कर पा रहे । देखँ ू तो सही, परू ी लंका म िकसी रा स
म इतना बल है िक धरती पर रखे मेरे इस पाँव को िहला कर तो िदखा दे।” यह चुनौती दे कर
अंगद ने अपना पैर कड़ाई से धरती पर जमा िदया।
रा स हँसने लगे, वे एक-एक कर आने लगे तािक उस ध ृ अस य वानर को उठा कर सागर म
उछाल द। वे सभी असफल रहे ।
तब भी रावण बोला, “मुझे तुमसे कोई भय नह । म तु ह, तु हारे वानर के दल, राम-ल मण और
उस कुल ोही को मौत के घाट उतार दँूगा जो वयं को मेरा भाई कहलाता है।”
रावण के िपता सुमाली को यह सब अ छा नह लगा और उ ह ने उसे राम से संिध करने का
परामश िदया।
रावण क माता कैकसी का भी यही कहना था। कैकसी के भाई मा यवान ने भी यही कहा परं तु
रावण तो अपने हठ पर अड़ा था। उसे कोई वानर मख
ू नह बना सकता था।
आ मण
भोर-बेला म, रा स क सेना, लंका क सुर ा के िलए चल पड़ी। वे हाथ म लािठयाँ और प थर
िलए, वानर क सेना से िकतने अलग थे। वे गध ारा ख चे जाने वाले रथ , बैल ारा ख चे
जाने वाले छकड़ , हािथय और अ पर सवार हो कर आए। उनके हाथ म चमचमाती पताकाएँ
थ जो आकाश म लहरा रही थ और इसके अित र अ -श क तो जैसे कोई िगनती ही
नह थी: मू र गदा, फरसे, भाले, तलवार, धनुष और बाण। हर िसपाही के पास एक कवच तथा
िशरो ाण था और उसने जादुई र क जंतर बाँधे हए थे। रावण वयं उनका नेत ृ व कर रहा था -
दशनीय य! िसर पर िवशाल और भ य छ , बीिसय हाथ म नाना कार के अ -श ,
आलीशान अ ारा ख चा जा रहा रथ और उसके आसपास घेरा बना कर चल रहे संगीत और
हँकारते हाथी, जो उसके आगमन क घोषणा कर रहे थे।
परं तु वानर को कोई भय नह था। वे मधुमि खय के झुंड क तरह, रा स क ओर लपके।
उ ह ने उन पर भारी-भरकम व ृ और प थर क वषा कर दी, िजससे रथ टूट गए, हाथी बुरी
तरह भयभीत हो गए। उनके चीख़ने-िच लाने के वर इतने भयानक थे िक अ पीछे क ओर
जाने लगे। लंकावािसय म से िकसी ने भी कभी वानर नह देखे थे।
रावण ने अपना धनुष बाण उठाया और उसके तीर ने दजन वानर मार डाले। इस य से
ो सािहत हो कर, रा स ने भी हिथयार उठा िलए और वानर से लड़ने लगे। वे तलवार के वार
से उनके िसर, हाथ और पैर काटने लगे। उनके कलेजे, आँत और आँख म भाले घुसाने लगे,
उ ह ने अपनी गदाओं के वार से वानर के िसर कुचल िदए और हड्िडयाँ तोड़ द । उनक आँख
से वाला बरस रही थी, उ ह ने दया करना नह सीखा था। जो रथ पर सवार थे, उ ह ने अपने
बाण क वषा से सकड़ वानर को धराशायी कर िदया। मत ृ ाय वानर क ची कार सुन, रावण
क स नता का अंत न रहा। उसका भय िनराधार था।
इस संहार को रोकना आव यक था। वे सब उनक प नी क र ा के िलए अपने ाण क आहित
दे रहे थे। राम ने अपना धनुष उठाया, उन मं का जाप िकया, जो उ ह िव ािम ने िसखाए थे,
िफर उनके ेपा ने एक-एक कर, रा स क सेना से परू ी-परू ी क़ तार का सफ़ाया कर
िदया। उ ह ने उनके धनुष तोड़ िदए, उनके च िबखेर िदए, उनके भाले और तलवारे िछटक कर
ृ क रा स के पीछे िछपने लगे। उ ह ने
दूर जा पड़े । बहत से रा स तो अपनी ढाल ले कर, मत
आगे बढ़ रही रा स सेना को वह ठहरने पर िववश कर िदया। कई थान पर तो रा स क
टुकिड़याँ वािपस जाने लगी थ ।
इस यु म सकड़ वानर , रा स , पु , िपताओं, भाईय , िम व सेवक के ाण गए। जाने
िकतने अंग-भंग करवा कर ने हीन, अंगहीन और अश हो गए। परं तु उनक ममभेदी ची कार
तथा सहायता क गुहार के बावजदू यु न थमा।
यु िदन म आरं भ हआ था और अब रात हो चली थी। रा स एक हाथ म मशाल और दूसरे हाथ म
श िलए यु कर रहे थे। वानर ने उनक मशाल छीन और नगर क ओर उछाल द । सारी
नगरी आग क लपट म आ गई।
केवल एक ही थान शांत और सुरि त था, अशोक वािटका। सीता ने देखा िक लंका क जा
अपनी ाण क र ा के िलए उसी ओर आ रही थी तािक वे सुरि त रह सक। उ ह ने परू े जीवन
म वयं को कभी इतना असुरि त नह पाया था।
अंततः राम ने रावण के धनुष से िनकले बाण को उसी समय काटना शु कर िदया। राम के
बाण क वषा इतनी सघन थी िक रावण के िलए अगला तीर िनकाल कर चलाना भी किठन हो
रहा था। उसने लांत हो कर, वािपस जाने का िनणय िलया, परं तु राम के बाण क वषा उसे
मुड़ने भी तो नह दे रही थी। उसने वयं को बंदी अनुभव िकया। वह न तो यु कर पा रहा था
और न ही वािपस जा पा रहा था। जब राम ने अपने बाण को िवराम िदया तब कह जा कर लंका
नरे श अपना रथ मोड़ कर, नगर क ओर जाने यो य हआ।
सारी नगरी म बात फै ल गई: रावण ने अपनी सेनाएँ हटा ल । हष लास से िकलका रयाँ मारते
वानर के वर वहाँ तक सुने जा सकते थे। उ ह िकसी ने उठा कर सागर म नह पटका था।
रा स को ही मँुह क खानी पड़ी।
सीता के यंजन
यु िछड़ा हो तो लोग के भोजन का भी बंध करना पड़ता है। और लंका के सामिू हक रसोईघर
य त थे। यु म जाने वाल को भोजन देना आव यक था; जो यु भिू म से लौट रहे थे, उनके
िलए भी भोजन चािहए था। भोजन े रत करने, सुिवधा देने तथा आवेग को िनयंि त करने के
काम आता है।
नगर क सड़क पर र , सड़ते हए माँस तथा जलती अ ािलकाओं क गंध के बीच उबलते
चावल , भुन रही सि ज़ य तथा तली जा रही मछिलय क गंध भी िमल गई थी।
वह गंध सीता क वािटका तक भी पहँची।
“ या तु ह यह गंध पसंद नह ?” ि जटा ने सीता के मुख के भाव देख कर कहा। िवभीषण पु ी
ि जटा, सीता क सखी बन गई थी।
“यिद म भोजन पकाती तो इन मसाल का अनुपात बदल देती,” सीता बोल । उ ह ने ि जटा को
कुछ सुझाव िदए िज ह त काल लंका के राजसी रसोईघर क ओर ेिषत कर िदया गया। मंदोदरी
ने उनके अनुसार ही मसाले डलवाए और देखते ही देखते, रसोईघर से आने वाली गंध बदल गई।
वह गंध इतनी मोहक थी िक रसोईघर के पाकशा ी रा स, सीता क अशोक वािटका म आ
कर, वािद भोजन तैयार करने के उपाय पछ ू ने लगे। सीता ने उ ह बताया, “थोड़ा नमक
अिधक डालो।” “ह दी क बजाए काली िमच डालो।”, “अदरक के साथ इमली िमलाओ।”
“लहसुन कम डालो और साथ म ना रयल पानी िमलाओ।” इन सुझाव पर त काल अमल हआ
और ज दी ही सारी लंका म वािद भोजन क सुगंध फै ल गई, भोजन इतना वािद बना िक
िपता-पु , पित व भाई, अपने घर म रहते हए, वािद भोजन का आनंद लेना चाहते थे। वे
यु भिू म म जाना ही नह चाह रहे थे। वे चाहते थे िक पेट भर कर खाएँ , डकार लगाते हए पैर
पसार कर सो जाएँ और िफर जब न द खुले तो ढे र सारा खा ल! वे पान के प म िलपटी सुपारी
खाते हए, झल ू पर अपनी पि नय क संगित म बैठना चाहते थे। न कोई यु , न कोई लेश,
केवल वािद भोजन से जुड़ी बात।
रावण ने ल य िकया िक उसके िसपाही आल य के मारे , यु नह करना चाह रहे थे। वे भयभीत
नह थे। वे मिदरा के मद म चरू भी नह थे। बस वे इतने स न थे िक यु करना ही नह चाहते
थे। रावण ने कुिपत हो कर आदेश िदया, “रसोईघर बंद कर दो! इ ह भख ू े ह गे तो
ू मरने दो। भख
ोध आएगा। और वे ोध म आ कर वानर को मारगे। अब वे केवल वानर का माँस ही खा
सकते ह। इ ह कोई और भोजन न िदया जाए।”
सीता क रसोई लोकगाथाओं तथा तीथ थल का अटूट अंग है। वे बहत अ छी पाक
कला िवशेष ा थ । पारं प रक प से, यह मा यता है िक जो लोग वािद भोजन
पाते ह, उ ह ोध कम आता है और वे िहंसक भी नह होते।
वा मीिक रामायण म माँसाहार के िवषय म, लंका के िलए प जानकारी िमलती है
परं तु जब अयो या या िकि कंधा क बारी आती है, तो वे मौन साध लेते ह। पारं प रक
तौर पर, भारतीय सािमष भोजन व मिदरा का संबंध काम वासना तथा िहंसा से जोड़ते
ह।
ल मण को आघात
यु अगले िदन भी जारी रहा। रावण ने अपने पु को समरभिू म म भेजा। वे अपने श सिहत
वीरतापवू क लड़े । परं तु जब वािपस आए तो उनके शरीर म ाण नह थे, वानर ने अि थयाँ भंग
कर द थ , राम और ल मण के बाण ने अंग को त-िव त कर िदया था। जब महल म िवधवा
ि य व अनाथ क सं या बढ़ने लगी तो रावण के बड़े पु इं िजत ने िनणय िलया िक अब
समय आ गया था िक वह सेनाओं का नेत ृ व करते हए, रणभिू म म वेश करे और अपने सैिनक
के टूटे हए मनोबल को संजोने का य न करे ।
इं िजत का नाम मेघनाद इसिलए रखा गया था य िक जब उसका ज म हआ तो उसने रोने के
थान पर, अपने मुख से िकसी तफ़ ू ानी मेघ क तरह गजना क थी। उसने इं को यु म
परािजत करने के बाद, अपने िलए यह उपािध अिजत क थी। इं िजत से सभी भय खाते थे। उसी
ने हनुमान को बंदी बनाया था और राम व ल मण को नागपाश म भी जकड़ा था। य िप उसे भी
अपने िपता के इस कुकृ य को देख अ छा नह लगा था, परं तु उसे लगता था िक एक पु होने
के नाते, अपने िपता के श ुओ ं से यु करना उसका कत य था।
“वह मेरा बहत आ ाकारी पु है,” रावण उसे कूच करता देख बोला।
“वह मख
ू है।” मंदोदरी ने मन ही मन सोचा। उसे यह िब कुल अ छा नह लग रहा था िक उसका
पु अपने िपता क सहायता करे तािक वह अपने िलए नई प नी ला सके।
इं िजत क प नी सुलोचना ने देखा िक सारे रा स उसके पित के नाम क जय-जयकार कर रहे
थे। वह नाग-वंश से थी और अपने साथ दहे ज म बहत सारे नाग-पाश लाई थी, िजनका योग
इं िजत यु िभमू म करता था। परं तु राम के प म ग ड़ भी थे, वह यही सोच रही थी िक या
अब नाग-पाश बाण उसके पित क र ा कर सकगे?
उस िदन, इं िजत क जादुई शि य ने यु को और भी भयावह बना िदया। वह अपने रथ को
अलोप कर देता और ऐसे म उ प न करता, िजससे राम और ल मण भी िवि मत हो उठते। एक
बार तो उसने यह म भी उ प न कर िदया िक सीता को पु पक िवमान म िबठा कर, यु भिू म म
लाया गया और वानर सेना के ऊपर ला कर, उनका वध कर िदया गया, इस य ने तो कुछ ण
के िलए राम को भी त ध कर िदया। राम को एहसास हआ िक अब तक वे िजतने भी यो ाओं से
लड़े , इं िजत उनसे कह अिधक चतुर व वीर था। इं िजत को भी पता चल गया िक राम कोई
साधारण यो ा नह थे। उ ह अपने वश म करने के िलए चतुराई और धत ू ता का ही आ य लेना
होगा।
इं िजत ने देखा िक राम सदा यु करते हए, अपना यान ल मण पर भी रखते थे तािक वह
सुरि त रहे । वह समझ गया िक ल मण ही राम क दुबलता ह; यिद िकसी तरह ल मण को
आहत िकया जा सके तो राम का मनोबल भी आसानी से तोड़ा जा सकता था, इस तरह संभवतः
वे यु से भी िवमुख हो जाते। उसने अपनी सारी ऊजा ल मण क ओर कि त करते हए, उन पर
ती ण बाण क वषा कर दी। ल मण ने उनके सारे बाण को िनर त कर िदया िकंतु एक बाण
उनके दय के िनकट आ लगा।
ऐसा लगा जैसे िकसी विृ क ने गहरा दंश िदया हो। य ही वे नीचे िगरे , ऐसा लगने लगा िक
कोई महासप उ ह जकड़ कर, देह से ाण को ख च लेना चाहता हो। उनके र म आग सी दौड़
रही थी। असहनीय पीड़ा का अनुभव हो रहा था। वे िच लाए और उनक एक ची कार से सारा यु
वह थम गया। इं िजत ने उनक िगरती देह को लपकना चाहा तािक उ ह घसीट कर नगरी म ले
जा सके, परं तु हनुमान उसी ण वहाँ आ गए और ल मण क िशिथल पड़ चुक देह को संभाल
िलया।
रा स िवजय और उ लास के गीत गाते वािपस जाने लगे, इं िजत ने उस िदन उनका मनोबल
टूटने से बचा िलया था। राम उसी ओर दौड़े , जहाँ ल मण अचेत पड़े थे। राम का दुःख िकसी भी
सां वना से परे था। “म सीता क र ा करने म असमथ रहा। म अपने ल मण क र ा करने म
असमथ रहा। जब म अयो या वािपस जाऊँगा तो ल मण क माता से या कहँगा? या म अकेले
अयो या वािपस जाऊँगा? या मुझे इस तरह अयो या लौटने का अिधकार है?”
जब रावण और इं िजत के संबंध को देखा जाता है तो राम और दशरथ का संबंध
िवरोधाभास क तरह सामने आता है। जहाँ दशरथ अपने पु के संर क िपता ह, वह
रावण अपने पु के िलए एक शोषक क भिू मका म सामने आता है। दशरथ अपने पु
को राजसी िनयम के चलते वनवास भेजने के िलए िववश ह जबिक रावण का रोष व
लालसा उसे सीता को वािपस नह करने देते, इस तरह इं िजत को िववश हो कर राम
से बैर मोल लेना पड़ता है।
राम भले ही ई र ह , परं तु वे सीता हरण तथा ल मण आघात के समय, िकसी मनु य
क तरह अपने मानवीय भाव का दशन करते ह। कुछ िव ान ने इसे लीला कहा है
तो कुछ ने अपने नाटक म िनभाई जा रही भिू मका का अंश! येक इस बात पर
सहमत है िक यह िहंदू परं परा का अ ुत ल ण है, जहाँ ई र को भी सभी मानवीय
अनुभव तथा भाव से दो-चार होना पड़ता है।
हनम
ु ान ने क ाण र ा
ल मण क िशराओं म िवष फै लने लगा तो व ृ भालुक जा बवंत ने कहा िक उ ह केवल
संजीवनी बटू ी दे कर ही बचाया जा सकता है, जो जड़ी-बिू टय से यु पवत गंधमादन पर िमल
सकती है। वह थान िहमालय क तलहटी म, िवं य के उ र म ि थत था। “हम यह बटू ी सय ू दय
से पवू िमल जानी चािहए। यिद यह काय कोई कर सकता है, तो वे केवल हनुमान ही ह।”
हनुमान ने झट से वायु म उड़ान भरी और उ र क ओर चल िदए।
रावण ने अपने दुग से हनुमान को एक िदशा म जाते देखा, तो अपने एक रा स कालनेिम को
हनुमान का अिभयान असफल करने के िलए भेज िदया। वह रा स बह िपया तो था ही, इसके
अित र समय के अंतराल म गित भी कर सकता था।
हनुमान शी ही गंधमादन पहँच गए, वहाँ उनका वागत एक ऋिष ने िकया, िज ह ने कहा िक
पहले हनुमान झील म नान कर, पिव हो जाएँ , तब वे संकेत से उ ह उ जड़ी के िवषय म
बता दगे। उनका कहना था िक पिव जड़ी-बटू ी को अशु हाथ से हण करना उिचत नह
होगा।
परं तु जल के भीतर तो एक िवशालकाय मगरम छ हनुमान को िनगलने के िलए तैयार था। जब
हनुमान उससे जझ ू रहे थे तो उसने एक ी के वर म कहा, “म एक अ सरा हँ। मुझे ाप िमला
था, जब तक कोई वानर आ कर मुझे अपने अधीन नह करता, तब तक मुझे इसी तरह जीवन
जीना होगा। अगर तुम मुझे अपने अधीन कर, मु करने म सफल रहे तो जान लो, पवत क
तलहटी म िजस ऋिष से भट हई थी, वह कोई मुिन नह , वह तो कालनेिम नामक रा स है, िजसे
रावण ने तु हारा अंत करने के िलए भेजा है।”
हनुमान िकसी तरह उस मगरम छ को वश म करने म सफल रहे । िफर वे कालनेिम को वंस
ू शी ही उदय होने वाला था, उसके
कर, जड़ी-बटू ी क खोज करने लगे। समय बीत रहा था; सय
बाद तो जैसे सब समा हो जाता।
इससे भी बुरा यह हआ िक आकाश के विगक जीव को अपने अधीन करने क मता रखने
ू को उनके िवरोध के बावजदू , िववश कर िदया िक वे समय से पहले उिदत ह ।
वाले रावण ने, सय
जब हनुमान को इस बात का पता चला तो उ ह ने सय ू को लपक कर, अपनी बगल म रख
िलया।
िफर हनुमान बटू ी क खोज करने लगे। चं मा के काश म पौध म अंतर करना किठन हो रहा
था। उ ह ने तय िकया िक वे परू े पवत को ही उखाड़ कर ज बवू न से लंका ले जाएँ गे। जब वे
अपना आकार बढ़ा कर, पवत को उखाड़ कर, आकाश क ओर उड़े तो आकाश से इस य के
सा ी बने सारे देवगण िवि मत हो उठे । हनुमान एक हाथ पर पवत को साधे तथा बगल म सय ू
देव को दबाए आकाश म उड़े चले जा रहे थे।
मंिदर म हनुमान क सवािधक ि य छिव यही िदखाई जाती है, जहाँ वे एक हाथ पर
पवत का संतुलन बना रहे ह और उनके पैर तले कालनेिम कुचला हआ है।
जड़ी-बिू टय के पवत के प म, िहमालय क तहलटी म, बदरी, उ राखंड क फूल
क घाटी को मा यता दी गई थी। कभी-कभी इसे गंधमादन या ोणिग र पवत भी
कहते ह।
हनुमान एक महान यो ा थे िकंतु वा मीिक रामायण म, उ ह िकसी इ क सं ा
नह दी गई। यह पांतरण आठव सदी के आसपास आरं भ हआ, जब नागा बाबा
अपना संबंध िशव से जोड़ने लगे और बाद म, उ ह िव ान तथा ऋिषय ने राम के
परम भ के प म मा यता दी जैसे बारहव सदी म तिमलनाडू के रामानुज, तेरहव
सदी म कनाटक के म व आचाय तथा चौदहव सदी म रामानंद, िजनका उ र भारत
म िवशेष भाव था और स हव सदी म रामदास जी, िजनका महारा म िवशेष भाव
रहा।
गंगा के मैदानी इलाक़ म, थानीय अखाड़े पाए जाते ह, जहाँ लोग हनुमान क तरह
बलशाली तथा चारी यो ा बनने का अ यास करते ह, जो िनः वाथ भाव से राम के
सेवक ह। वे यहाँ अपने अित र समय म, शारी रक सौ व तथा बल पाने के िलए
यायाम करते ह।
हनुमान संपण ू भारतवष म शारी रक िश ण के संर क देव के प म जाने जाते ह।
र्
हनम
ु ान व भरत क भट
दि ण क ओर जाने के िलए हनुमान को अयो या से होते हए जाना था और आकाश म उड़ते
पवत के य ने अयो यावािसय को भयभीत कर िदया। इससे भी ांितपण ू यह था िक पवत को
हाथ म उठाए िलए जाने वाला वानर िनरं तर राम का नाम जप रहा था।
कौशल रा य के संर क, भरत ने झट से बाण चढ़ाया और राम का नाम लेते हए, पवत क ओर
छोड़ िदया। वह बाण हनुमान को जा लगा और वे नंदी ाम के िनकट आ िगरे जहाँ भरत उन िदन
ू ा, “कौन हो तुम, तुम मेरे भाई राम का नाम य ले रहे थे?”
वास कर रहे थे। भरत ने पछ
हनुमान भरत के चरण म िगर पड़े , “ या आप राम के वही भाई ह, िज ह ने वह रा य भी याग
िदया, जो उनक माँ ने उनके िलए छल से ा िकया था? म तो आपसे िमल कर ध य हो गया।”
भरत को यह जान कर आ य हआ िक वह वानर तो उनके िवषय म बहत जानकारी रखता था।
इसके बाद हनुमान ने अपना प रचय िदया और भरत को राम क वतमान प रि थितय क
जानकारी। भरत जब से िच कूट से लौटे थे, उ ह राम के िवषय म कोई समाचार नह िमला था। वे
अपने भाई राम, सीता तथा ल मण के िलए दुिखत हो उठे तथा हनुमान को ध यवाद िदया जो
उनके भाई क सहायता कर रहे थे।
“सु ीव को तो राम का एहसान चुकाना है। परं तु तुम, तुम राम क सहायता य कर रहे हो?”
भरत ने पछ
ू ा।
“उ ह ने मुझे एक े मनु य बनने के िलए े रत िकया।” भरत एक वानर के मुख से ये श द
ू उदय हो जाएगा। मुझे भय है िक कह िवलंब ही न हो
सुन कर मु कुरा उठे । “परं तु शी ही सय
जाए। आपने मुझे रोक कर बाधा दे दी। कह ऐसा न हो िक ल मण के पास यह ाण-र क
औषिध समय पर न पहँच सके।”
“ऐसा न कहो, मेरे बाण पर बैठ जाओ। यह तु ह सही समय पर लंका पहँचा देगा।” भरत क
यो यता पर परू ा िव ास रखते हए, हनुमान अपने एक हाथ म पवत व बगल म सय ू देव को
दबाए, भरत के बाण पर िवराज गए, िजसे उ ह ने दि ण क ओर छोड़ िदया। मं क शि से
प रपू रत व राम के नाम क मिहमा से मंिडत वह बाण, देखते ही देखते लंका जा पहँचा।
जा बवंत ने पवत से उस बटू ी को खोजा और उसे झट से ल मण को िदया गया। वह बटू ी, इं िजत
के िवषैले बाण का भाव िनर त करने के िलए पया थी। उनक ास सहज हो गई, ने खुले
और सारे अंग म ऊजा दौड़ गई। वे यु करने के िलए उछल कर खड़े हो गए।
कंु भकण
“एक उसका भाई, जो कभी सोता ही नह और एक मेरा भाई है, जो सदा सोता ही रहता है,”
रावण कुंभकण को याद कर िच लाया, वह उसका छोटा भाई था जो वष म केवल एक ही िदन
जागता था।
कंु भकण ने अपनी तप या के बल पर एक वरदान पाया। वह अपने िलए इं का िसंहासन पाना
चाहता था, परं तु वह इं का िसंहासन कहने क बजाए, िन ा, न द क भगवती का िसंहासन
माँग बैठा और इस तरह वह वष म केवल एक ही िदन जाग सकता था। यह भिव यवाणी क गई
थी िक वह िजस िदन जागेगा, उस िदन वह अजेय होगा िकंतु यिद उसक न द म बाधा दी गई तो
वह उसी िदन ाण याग देगा।
वा मीिक रामायण म, कुंभकण इं िजत से पवू ही मारा जाता है। परं तु अलग-अलग
सं करण म अलग म से यह संग दशाया गया है। क मीरी रामायण म, पहले
इं िजत मारा जाता है।
कंु भकण का नाम, आम बोलचाल क भाषा म ऐसे यि के िलए यु होने लगा है,
जो हमेशा सोता ही रहता है। मरने से पवू , कुंभकण ाथना करता है िक उसके कटे
शीश को सागर म फक िदया जाए तािक रा स यह न देख सक िक वानर ने उसके
कान भी अपने दाँत से काट खाए थे।
नेपाल के कंचनजंघा पहाड़ पर एक छोटी पहाड़ी का नाम कंु भकण है। मा यता है िक
यु के बाद, कुंभकण का शीश वह आ कर िगरा था।
जहाँ इं िजत कौशल का ितिनिध व करता है वह कुंभकण नश ृ ंस बल का तीक है।
महाभारत म, युिधि र के िलए अजुन वही ह, जो इं िजत रावण के िलए है और
युिधि र के िलए भीम वही ह, जो कुंभकण रावण के िलए है। एक राजा को दोन क
ही आव यकता होती है, एक कौशलयु यो ा तथा बलशाली यो ा।
उ र भारत म राम-लीला दशन के दौरान, राम क भिू मका िनभा रहा नायक, रावण,
इं िजत तथा कुंभकण के पुतल को आग लगाता है। एक िस ांत के अनुसार, यह
अ यास, गंगा के मैदानी इलाक़ म म ययुग म आरं भ हआ, जो िक मुि लम शासन के
िवरोध का तीका मक प था।
तरणीसेन
इसके बाद रणभिू म म ऐसे यो ा ने वेश िकया, जैसा िकसी भी वानर या राम ने कभी नह देखा
था। वह वयं को तरणीसेन कहता था और उसके परू े शरीर पर राम-राम गुदा हआ था। उसने
यु भिू म म रा स का नेत ृ व िकया और वे भेिड़य के भख
ू े दल क तरह वानर पर टूट पड़े ।
“म उसे कैसे मार सकता हँ? वह मेरा ही नाम जपता है। या म अपने ही नाम से रि त दुग को
न कर दँू?”
िवभीषण बोले, “उसके मुख पर अपने बाण से हार कर। उसके दाँत उखाड़ द और जीभ काट द
य िक वहाँ आपका नाम नह िलखा। वही उसके शरीर के सबसे दुबल अंग और संवेदनशील अंग
ह।”
“िकंतु वह तो ाभाव से िनरं तर मेरा नाम जप रहा है।” राम बोले
“आप दो नाम जप के बीच के अंतराल म बाण से आघात कर,” िवभीषण बोले।
राम ने वही िकया, जैसा उ ह कहा गया था और तरणीसेन मारा गया।
“ या वह भी रावण का पु है?” राम ने पछ
ू ा
“नह ,” िवभीषण ने उ र िदया, “वह मेरा पु था। वह इतना िन ावान था िक उसने रावण का
याग करना उिचत नह समझा और मुझसे इतना कुिपत था िक िपता-पु का नाता ही तोड़
िदया।” िवभीषण के गाल से अ ुधार बह रही थी।
तरणीसेन नामक पा का संग केवल कृि वास रामायण म पाया जाता है।
दांडी रामायण म, रावण के पु वीरबाह का भी वणन आता है, जो एक महान यो ा
होने के अित र राम का परम भ भी था। वह राम से यु करता है, राम को परा त
करता है और िफर राम के चरण म िगर कर, उनसे ाथना करता है िक वे उसका
शीश काट द तािक वह िव णु के धाम, बैकुंठ जा सके, जहाँ यि पुनज म के च
से मुि पा लेता है। राम ऐसा करने से इंकार कर देते ह। वह राम को तब तक
अपश द कहता है, जब तक वे उसका शीश नह काट देते। यह िवपरीत-भि का एक
उदाहरण है, जहाँ ई र का उपहास उड़ा कर तथा िनंदा करते हए, उनक भि क
जाती है।
राम के नाम क मिहमा का चार चौदहव सदी म हआ। तब रामानंद जी ने िवशेष तौर
पर, उ र भारत म राम के ित भि व िन ा का चार िकया। राम के नाम का जप,
ई रीय शि के आवा का सबसे बड़ा व शि शाली मं बन गया।
मिहरावण
इसके बाद रावण ने, अपने िम मिहरावण क सहायता लेनी चाही, जो पाताल लोक का राजा था।
वह काली का परम भ और मायावी था। वह काली को नरबिल चढ़ा कर िसि याँ ा करता
था। “कुंभकण के घाती राम तथा इं िजत का वध करने वाले ल मण क भी बिल चढ़ा दो।
िनि त प से तु ह उनका वध करके, कई कार क िसि याँ ा ह गी,” रावण ने मिहरावण
से कहा। उस तांि क रा स को यह िवचार बहत भाया, य िप पहले-पहल उसके मन म संशय
आया िक वह िकसी ऐसे यि को य मारे िजसने उसे कोई हािन नह पहँचाई िकंतु रावण ने
उसे लोभ का माग िदखा िदया।
इस दौरान िवभीषण ने हनुमान से कहा, “कुंभकण और इं िजत नह रहे , अब रावण िनि त प
से मिहरावण से सहायता क आकां ा रखेगा। केवल तुम ही राम और ल मण क र ा करने म
समथ हो य िक तुम वयं भी िस हो।”
ू को लंबा िकया और उसे एक दुग के आकार म कुंडली कर िदया। राम और
हनुमान ने अपनी पँछ
ल मण से आ ह िकया गया िक जब वे यु भिू म म न ह , तो वे उसके भीतर ही िव ाम कर। कोई
भी हनुमान क अनुमित िलए िबना, उस घेरे के भीतर वेश नह कर सकता था।
ू से बने दुग म वेश करने के अनेक य न िकए; वह जा बवंत, कौश या और
मिहरावण ने पँछ
जनक के वेष म आया िकंतु हर बार िवभीषण ने उसे पहचान िलया। अंत म, वह िवभीषण का ही
प ले कर आ गया, वह िकसी तरह हनुमान को छल कर, दुग के भीतर जाने म सफल रहा।
उसने राम और ल मण को अपनी माया से मिू छत िकया और उ ह एक सुरंग के माग से पाताल
लोक ले गया, जो उसने पहले ही खोद कर तैयार कर ली थी।
जब हनुमान को अपहरण का पता चला, तो वे भी उस सुरंग म घुस गए और पाताल तक
मिहरावण का पीछा िकया, वे दोन भाईय क ाण-र ा के िलए ढ़-संक प थे।
पाताल के वेश ार पर उनक भट एक ऐसे यो ा से हई, जो बल म उनके समान था। वे बहत
देर तक आपस म संघष करते रहे परं तु हनुमान उसे अपने अधीन नह कर पा रहे थे। उ ह ने
पछू ा, “कौन हो तुम?” “म हनुमान का पु मकर वज हँ,” उसने कहा
“यह असंभव है। म ही हनुमान हँ और मेरी कोई प नी नह है। म तो बाल चारी हँ।”
मकर वज ने कहा िक वे अपने हनुमान होने का माण द। “पाताल क पाँच िविभ न िदशाओं म
पाँच दीपक जल रहे ह। अगर आप उ ह एक ही बार म अपनी फँ ू क म बुझा सकते ह, तो म िव ास
कर लँगू ा िक आप ही हनुमान ह।”
हनुमान ने अपने िसर के साथ शक ू र, ग ड़, अ तथा िसंह का िसर भी उगा िलया। िफर उ ह ने
पाँच मुख से, एक साथ, परू े वेग से फँ ू क मार , िजससे िविभ न िदशाओं म जल रहे दीपक बुझ
गए, िजससे मकर वज को िव ास हो गया िक वे सा ात हनुमान ही ह।”
मकर वज ने सच कहा था, पाताल म िकसी ने भी हनुमान का माग नह रोका। वे सीधा उसी
थान पर पहँचे, जहाँ राम और ल मण को लौह ंखलाओं म जकड़ कर रखा गया था, उन दोन
क बिल चढ़ाने क तैयारी क जा रही थी। उ ह ह दी का उबटन लगा कर, जवाकुसुम के पु प
से ंगार िकया गया था और वािद पकवान िखलाए गए। पाताल के िनवासी बोले, “तुम
िकतने सौभा यशाली हो। तु ह आज भगवती के आगे बिल चढ़ाया जाएगा,”
हनुमान ने एक मि का का प िलया और राम के कान के पास जा कर उ ह बताया िक उस
िवकट प रि थित से बाहर आने का या माग हो सकता था। जब राम को बिलवेदी पर ले जाया
गया और उ ह शीश झुकाने को कहा गया तािक उनके शीश को धड़ से अलग िकया जा सके,
तो वे हनुमान के ही श द को दोहराते हए बोले, “मै रघुकुल का ये पु , अयो या का
राजकुमार हँ। मने अपने परू े जीवन म कभी अपना शीश कह नह झुकाया। म चाहँगा िक महान
तांि क वयं मुझे बताएँ िक बिल के िलए शीश कैसे झुकाना चािहए।”
िजसे बिल चढ़ाया जा रहा हो, उसक सारी इ छाएँ पण
ू क जाती ह अतः मिहरावण अपने घुटन
के बल बैठा और बिलवेदी पर शीश रखते हए बताया िक शीश कैसे रखना चािहए। इसी दौरान
हनुमान ने िबजली क सी तेज़ी से, बिल चढ़ाने वाला खड्ग उठाया और उसक ही बिल भगवती
के चरण म चढ़ा दी। भगवती ने हनुमान को आशीवाद देते हए कहा, “जब राम इस धरती से चले
जाएँ । तब तुम मेरे अिभभावक संर क बन कर र ा करना।”
“परं तु राम इस धरती से कभी नह जाएँ गे,” हनुमान ने कहा। भगवती यह सुन कर मु कुराई ं
और राम भी मु कुराने लगे।
रावण क पि नयाँ
जब हनुमान धरती पर वािपस आए तो उ ह पता चला िक रावण काली का आवा कर रहा थाः
उसे मिहरावण क म ृ यु का समाचार िमल गया था, िजसने उसे आतंिकत कर िदया था। यिद
रावण को अपने अनु ान म सफलता िमल जाती तो यु भिू म म कोई उसके आगे िटक नह
सकता था।
हनुमान शी ही अंगद के साथ लंका पहँचे और पाया िक समाचार अस य नह था। उ ह ने
पज
ू न- थल पर उप व मचा िदया, सारे पिव पा व भगवती को अिपत िकए जाने वाले फल-
फूल से भरे टोकर को ठोकर से अपिव कर िदया। वे चीख़-िच ला कर, रावण का यान भंग
करने क चे ा करने लगे िकंतु रावण अपने यान म खोया रहा और उसने अपना अनु ान
रोकने से इंकार कर िदया।
िविभ न सं करण म रावण िशव अथवा काली के िलए अनु ान रचता है। इन
सं करण को मुख प से, बंगाल क आंचिलक रामायण म देखा जा सकता है, जो
शा सं दाय के उदय का सच ू क है, िजसके साथ ही शैववाद तथा वै णवाद सा रत
हआ।
कृि वास क रामायण म, हनुमान उस ताड़प से सारे मं ही िमटा देते ह, िजसे पढ़
कर रावण भगवती क तुित कर रहा है। इस कार रावण का येय पण ू नह हो पाता।
अ या म रामायण तथा अ य कुछ आंचिलक पुनलखन म अंगद ारा मंदोदरी का
अपमान िकए जाने का संग िमलता है। हालाँिक भारतीय महाका य म इस िवचार
को इतना य नह िदया गया िक श ु क प नी पर अिधकार जता कर, उसे अधीन
करने का य न िकया जाए; इसके िवपरीत यन ू ान के महाका य म ऐसे अनेक संग
आते ह, जैसे इिलयड म ऐसे अनेक उदाहरण ह जहाँ ाॅजन क मिहलाओं को
बला कार के बाद ग़ुलाम बना िदया जाता है।
दि ण-पवू एिशयाई सं करण म, अनेक रा सी ि य को हनुमान से ेम हो जाता
है। यह संग भारतीय उपमहा ीप म चिलत नह हो सका।
हनुमान इं िजत और रावण के उन य को वंस करते ह, जो वे िशव के िलए कर रहे
थे, यह संग उसी बात का परू क जान पड़ता है, जहाँ िशव भी द के य का वंस
करते ह।
य तथा पज ू न के िव वंस क ये कथाएँ , उन लोग के िवरोध म बन जो तं -मं व
जादू-टोने का आ य लेते थे। उ ह देख कर वे लोग कुिपत होते थे जो िकसी भी तरह
के जादू-टोने क बजाए भि व नेह को अिधक मान देते थे।
नीलकमल
राम बोले, “इं िजत ने काली का पजू न िकया। मिहरावण ने काली का पज
ू न िकया। रावण ने
काली का पज ू न िकया। मुझे भी काली का पज
ू न करना चािहए। उ ह ने मारे भय के, भगवती को
नरबिल अिपत क । म भगवती को स नेह केवल एक सौ आठ कमल ही अिपत क ँ गा।”
कमल एक िकए गए और राम भगवती का पज ू न करने लगे। वे भगवती का एक-एक नाम जप
करते हए, उ ह नीलकमल अिपत करने लगे। राम क अपने ित आ था क परी ा के िलए,
काली ने एक कमल कह िछपा िदया। जब राम ने एक सौ आठ नाम का जप कर िलया तो पाया
िक एक कमल कह नह था।
राम ारा दुगा को अपना ने अिपत करने क यह कथा बंगाल म चिलत है। दशहरे
के िदन, अनेक गहृ थ घर म, भगवती को एक सौ आठ कमल अिपत करने के
तीक व प एक सौ आठ दीपक जलाए जाते ह।
बसंत ऋतु म नौ िदन तक भगवती का पज ू न होता है। राम ही भगवती पज
ू न को शरद
ऋतु तक लाने के उ रदायी ह। शरद म दुगा पज ू न को, अकाल बोधन अथात असमय
आवा भी कहा जाता है।
महान िहंदी किव व लेखक सय ू कांत ि पाठी िनराला क िस किवता, ‘राम क
शि पज ू ा’, बंगाली रामायण के इसी संग पर आधा रत है।
यह संग उन िनजी बिलदान क ओर यानाकषण करता है, जो अपने ल य तक
जाने के िलए िनि त प से िकए जाने चािहए।
दुगा काली क भाँित रौ नह ह। वे गौरी िजतनी सौ य भी नह ह। वे एक वधू तथा
यो ा वेष के बीच खड़ी िदखती ह। काली का संबंध रा स से है जबिक दुगा का
संबंध राम से है जो इस बात का सच ू क है िक राम स यता का मिू तमान प थे, जो िक
रावण नह था।
रावण का पतन
रावण के पु क म ृ यु हो गई थी। उसके भाईय क म ृ यु हो गई थी। उसके िम भी नह रहे ।
उसके िसपाही मर चुके थे या मत
ृ ायः थे। सारी नगरी अपािहज व िवकलांग से भर गई थी:
उसके वीर यो ा अपने-अपने हाथ, पैर, आँख आिद यु क भट दे कर, कराह रहे थे। कई तो
शारी रक यं णा भोगने के साथ-साथ मानिसक प से भी आहत थे, वे सारी-सारी रात वानर
क चीख़ के कारण सो नह पा रहे थे। अ ािलकाएँ जल रही थ , ाचीर ढह रही थ । खाई म
सडांध पैदा करने वाले शव क सं या बढ़ती जा रही थ । वह दुगध असहनीय थी। ब चे रोते-रोते
अपने िपताओं के बारे म पछ
ू ते रहते, जो अब कभी नह लौटने वाले थे। कभी वैभव और िवलास
क नगरी कहलाने वाली लंका, भत ू व िवधवाओं का डे रा बन कर रह गई थी। जब रावण अंततः
श ु से आर या पार का िनणय लेने चला तो माग पर वही अशुभ चेहरे पंि याँ बाँधे खड़े िदखे।
“उसे छोड़ दो,” मंदोदरी ने िवनती क ।
“नह ,” रावण, सदा क तरह अपनी हठ पर अिडग था।
उसक शोभाया ा सदा क तरह भ य थी; उसके रथ को आलीशान अ ख च रहे थे, उसके साथ
तुितगान करते संगीत के दल के अित र हाथी सेना सवार भी थे। िकंतु पदाितक िकसी
तरह अपने पैर को घसीटते हए साथ चल रहे थे। यु का जयघोष भी उनके भीतर उमंग नह
जगा पा रहा था। िफर भी य अ ुत था। रा स राज क बीस भुजाओं म, धनुष और बाण थे, रथ
के दोन ओर पताकाएँ लहरा रही थ और वह अव ापण ू भाव से श ु क सेना को ताक रहा था।
“तुमने अपने बंदर को अ छा िश ण िदया है,” रावण ने, राम को देख उपहास िकया। उनके
पास कोई रथ नह था, वे हनुमान के कंध पर सवार थे।
“उ ह ने यु िकया य िक वे ऐसा करना चाहते थे। तु हारे रा स ने यु िकया य िक उनके
पास कोई और िवक प ही नह था,” राम बोले।
रावण ने िवभीषण को हौले से बोलते देखा तो वह रोष से गरजा, “हम अपनी दुबलताएँ केवल
उनके आगे ही कट करते ह, िजन पर नेह रखते ह और िजन पर िव ास करते ह। और तुम
इसी बात का लाभ उठा रहे हो, उन बात को इस ह यारे से करना चाहते हो तािक तुम लंका के
राजा बन सको!”
“म तु हारी तरह नह हँ,” िवभीषण इस आस म ज़ोर से िच लाए िक शायद उनके भाई को सुनाई
दे जाए। परं तु कुछ नह सुना गया। कुछ कहने अथवा सुनने का समय अब बीत गया था। रावण ने
अपने भाई को अपश द कहे और राम पर बाण क वेगवान वषा आरं भ कर दी।
राम रावण क नािभ पर बाण का संधान करने म सकुचा रहे थे। उ ह मरण था, िपता ी ने एक
बार कहा था िक यु म सेना के नेता को अपने बाण, दूसरी सेना के नेता के शीश या दय पर
ही चलाने चािहए। उ ह लगा िक ऐसा करना उिचत नह होगा। अपने भईया के मन क दुिवधा को
भाँप कर, ल मण राम और रावण के म य आ गए और उ ह ने अपने बाण से रावण क नािभ म
हार िकया और अमत ृ पा के टूटते ही रावण शि हीन होने लगा।
“तुमने ऐसा य िकया?” राम अपने भाई क ओर मुड़ कर बोले।
“ य िक आप ऐसा कभी न करते और िकसी न िकसी को तो करना ही था,” ल मण बोले। “अब
आप कोई िचंता या िवचार न कर, अपने काम को परू ा कर।”
राम ने िनणय िलया िक वे संसार का सबसे महानतम बाण, ा चलाएँ गे, जो ा जी क
शि से अनु ािणत है, ा के पौ क ह या के िलए वही उपयु होगा, ऐसा यि जो ा ण
होने का दावा तो करता है, परं तु कभी ा ण नह बन सका।
हनुमान के कंध पर सवार राम ने, उपयु मं का उ चारण िकया और ऐसा बाण छोड़ा जो
रावण के दय को चीरता हआ िनकल गया; वह उसी ण धरती पर िगर पड़ा, सभी यह देख कर
आ य से भर उठे , वह राम का नाम जप रहा था।
चार ओर त ध कर देने वाला स नाटा छा गया। वानर तो िव ास ही नह कर पा रहे थे िक
रावण धराशायी हो चुका था। रा स को भी कहाँ िव ास आ रहा था िक उनका महान, अजेय
नेता, वा तव म परािजत हो चुका था। सय
ू देव क गित थम गई। मेघ ि थर हो गए। पवन भगवान
स न खड़े रह गए। रावण का पतन हो चुका था। हाँ, िव वा का महान पु , पुल य और ा
का वंशज, अब कभी नह उठे गा।
कृि वास क बंगाली रामायण तथा अ य आंचिलक रामायण म राम ारा रावण के
चरण म बैठ कर, ान ा करने का य िदखाया गया है, वा मीिक क रामायण
म ऐसा कोई संग नह आता।
रामायण तथा महाभारत, दोन ही िकसी नायक क िवजय के साथ समा नह होते
परं तु इनके साथ ान का सं ेषण होता है, एक चेतावनी, जो मरण कराती है िक
यु व तुओ ं से नह बि क िवचार से संबंध रखता है।
िकसी यि को देखना अथात उसके दशन करना। इसका अथ यह नह होता िक
केवल व तु को िनरख िलया जाए। दशन का अथ होगा िक िकसी यि के च र को
इस तरह परखा जाए िक वह अपने ही च र म झलक उठे । सारी रामायण म, राम
बारं बार ल मण को इसी बात के िलए फटकारते ह िक वे व तुओ ं को उनके वा तिवक
व प म नह देखते और वे िकसी भी चीज़ पर अपने िनणय क मुहर लगाने म देर
नह करते। राम उ ह भावनाओं के वाह म बह कर िनणय लेने से भी मना करते ह।
पारं प रक प से, वानर व रा स का यह यु आठ िदन तक चला, कुछ लोग इसे
दस िदन का यु कहते ह और नौ-राि के उ सव से जोड़ते ह, िजसका अंत
िवजयदशमी अथात िवजय ी ा करने वाले दसव िदन होता है, िजसे दशहरा भी
कहते ह।
अि न परी ा
सीता ने धैय के साथ शोक के समा होने तथा समारोह ारं भ होने के िवषय म सुना। उ ह ने बड़े
धैय से देखा िक नगरी को िकस कार, नए महाराज के िलए साफ़ करके सँवारा जा रहा था।
उ ह ने धैय से देखा िक माग पर जल से िछड़काव हआ, पताकाएँ फहराई गई ं। उ ह ने धैय से
सुना िक यु के नगाड़ का थान आनंद से प रपण ू वंशी क धुन ने ले िलया। उ ह ने धैय से
ती ा क , राम शी ही उ ह िलवाने के िलए िकसी को भेजगे।
परं तु जाने य , भीतर ही भीतर मन बहत िवचिलत हो रहा था। उ ह मरण था िक केवल अपिव
िवचार के कारण ही, िकस कार रे णुका का शीश काट िदया गया। उ ह ने मरण िकया िक
िकस कार अिह या अपने अपिव कम के कारण िशला म बदल दी गई। परं तु वे न तो देह से
अपिव ह और न ही अपने मन से अपिव ह, परं तु अपनी पिव ता मािणत कैसे क जा सकती
है? जो िव ास करते ह, उ ह िकसी माण क आव यकता नह ; जो िव ास ही नह करते, वे
सभी माण को अ वीकृत कर देते ह। और भले ही वे इस बात को चाह न चाह, वे राम क
ित ा पर कलंक थ । रावण ने उनका हरण तब िकया, जब वे राम के संर ण म थ ; वे राम क
असफलता का तीक ह। या संसार भी उनक भाँित मावान होगा? या वे अपने मन क बात
कहगे अथवा उसी जगत को अपना वर दगे, िजस पर वे शासन करते ह?
उनके पास आई ि य ने समाचार िदया िक राम ने उ ह संदेश िभजवाया है। िवभीषण उ ह एक
भाई क तरह, अपने यहाँ से िवदा दगे। हनुमान को वर ारा, उनके साथ के िलए भेजा गया था;
वे अपने साथ उन आभषू ण को भी लाए थे, जो वानर को वन क िनजन भिू म म पड़े िमले थे
इसके अित र , लंका क ि य ने भी नेहवश, सीता के िलए एक-एक आभषू ण भेजा था। वे
चाहती थ िक जब सीता राम से भट कर, तो वे तार से जगमग करते आकाश से भी अिधक
दैदी यमान िदखाई द।
परं तु िफर एक बहस िछड़ गई। कुछ ि य ने कहा, “ या उसके पित को देखना नह चािहए िक
उसक अनुपि थित म वह िकतनी िन भ और आभािवहीन हो गई थी? उ ह पता तो चले िक वह
उ ह िकतना याद करती थी।” अ य ि य ने खंडन िकया: “नह , राम उ ह बहत समय बाद
देख रहे ह। सीता को इतना संुदर िदखना चािहए िक वे उसके स दय को देख अिभभतू हो उठ।”
कुछ ि य ने कहा, “यिद वे बहत सुंदर और कांितमान िदखगी तो कह वे यह अनुमान न लगा
ल िक सीता बंदी जीवन म स न थ । हम उ ह उसी तरह, मिलन और अ त- य त वेष म राम
के पास ले जाना चािहए, जैसे कोई व ृ पु प व प से रिहत हो गया हो।” “कह संसार यह न
कह दे िक लंका म अितिथय के साथ अ छा बताव नह होता,” सरमा ने कहा। “वे कोई अितिथ
नह , वे तो यहाँ बंदी थ ,” ि जटा ने गु से से कहा।
अंततः सीता को नान के प ात्, संुदर व और आभषू ण धारण करवा कर, शगुन के समय
गाए जाने वाले गीत क मधुर धुन के बीच, िसर पर छ क छाया तले िवदा दी गई। सीता
अशोक वािटका और लंका से िनकल और राम क ओर चल ।
येक लंकावासी उस ी को देखने के िलए उमड़ पड़ा, िजसके िलए इतना भीषण सं ाम लड़ा
गया। उ ह ने उसके िवषय म िकतना कुछ सुन रखा था। रा स और वानर, सीता क एक झलक
पाने के िलए एक-दूसरे पर िगरे जा रहे थे। भीड़ को वश म करने के िलए िसपािहय क मदद
लेनी पड़ी। पु ष ारा इस अधैय व अनुिचत यवहार के दशन से सु ीव व िवभीषण को ोध
आ गया िकंतु राम बोले, “कोई बात नह , उ ह देखने दीिजए िक यह यु िकसके िलए लड़ा
गया?”
“वे यु म िविजत कोई पुर कार नह , िजसे सबके स मुख दशन के िलए रखा जाए, वे एक
मनु य, आपक प नी ह,” ल मण बोले।
राम ने कोई उ र नह िदया।
जब सीता अंततः राम के पास पहँच , तो उ ह ने एक अलग ही यि को देखा, वह तो चमक ली
ि वाला युवा नह था, जो उनके िलए सुवण िहरण लाने गया था। वह तो एक लांत और
अिन य क सी ि थित म खड़ा एक यो ा था, िजसक देह यु म िमले घाव से त-िव त थी।
उ ह ने भाँप िलाया िक राम क मनोि थित उस समय िकसी ऐसी नाव क तरह थी जो धारा से
संघष कर रही हो। उनके मुख पर वैसा उ साह और उ ेजना नह िदखे, जैसे ल मण के मुख पर
िदख रहे थे। वे अपनी ि यतमा क ती ा म खड़े ेमी क नह , एक ऐसे राजा क भिू मका म
खड़े थे, जो मन ही मन कोई िनणय ले रहा था।
और िफर राम बोले, “म, रघु कुल का वंशज हँ, मने रावण का वध िकया है, वह यि िजसने
तु हारा अपहरण िकया था। इस कार मने अपने प रवार क खोई हई ित ा को पुनः अिजत
िकया है। सबको यह पता चलना चािहए िक यु का वा तिवक येय तु हारी र ा करना नह ,
बि क अपने प रवार का सुनाम वािपस पाना था। यह भी सबको ात हो िक मेरे स मुख तु हारी
उपि थित से मुझे हष का अनुभव नह हो रहा, तुम मेरी आँख म धल
ू के समान तथा मेरे प रवार
क ित ा पर कलंक के समान हो, य िक तुमने अपने ाण लेने क अपे ा, वषा ऋतु के
दौरान िकसी परपु ष के आ य म रहने का चुनाव िकया। म चाहँगा िक तुम वे छा से जहाँ जी
चाहे , चली जाओ। तुम िवभीषण, सु ीव या ल मण; िकसी के भी साथ जा सकती हो। यह सबको
ात हो िक म तुम पर कोई अिधकार नह रखता।”
राम सीता से िमलने से पवू िकसी िवरही ेमी और पित क तरह यवहार करते ह
परं तु जब सीता उनके सामने आती ह तो वे िनदयी भाव से रघुकुल के वंशज म
पांत रत हो जाते ह।
वा मीिक रामायण म, राम ने सीता को देख कर कहा था िक उ ह देख कर वैसा ही
क हो रहा है िजस कार रोगी ने को काश से क होता है।
तिमल ी वै णव परं परा म, कथा आती है िक राम िवभीषण के मा यम से सीता को
संदेश देते ह िक वे नान कर, अलंकृत हो कर, उनसे भट करने आएँ । सीता आ ा का
पालन करती ह परं तु उ ह देख कर राम कुिपत हो उठते ह। दरअसल उ ह सीता से
अपे ा थी िक वे उनके कहे श द का ता पय समझगी अथात उसी मिलन और अ त-
य त वेष म भट करने आएँ गी, जैसे वे उस समय थ ।
राम अपनी प नी के आगे प रवार को अिधक मान देते ह, यह परू े भारत म मिहलाओं
के िलए रोष का िवषय है, पारं प रक समाज म, युवा प नी को तब तक िनचले पद म
ही रहना होता है, जब तक वह गहृ थी क कुलमाता के पद पर नह आ जाती। इस
मा यता के पीछे यही भय रहता है िक कह युवाप नी अपने पित को अंगुिलय पर
नचाने न लगे, इस तरह उनका पु हाथ से जाता रहे गा। इस तरह पित ऐसा इलाक़ा
बन जाते ह, िजसे अपने अधीन करने के िलए प रवार और प नी म संघष िछड़ा रहता
है।
क मीरी रामायण म, सीता चौदह िदन तक जलने के बाद, दैदी यमान सुवण क तरह
िनखर कर, अि न से बाहर आती ह।
रामायण के म ययुगीन पुनकथन जैसे अ त ु रामायण तथा मलयालम रामायण म
कहा गया है िक रावण ने िजस सीता का अपहरण िकया था वह माया सीता अथवा
छाया सीता थी यह आ यान दूिषत होने क धारणा से उपजा है। जहाँ राम को एक
ई र के प म देखा जा रहा था, भ इस िवचार को हण नह कर पा रहे थे िक
उनक अ ् धांिगनी को िकसी दु रा स के हाथ अपिव या अशु माना जाए।
ीक पुरा यान म भी यह धारणा िमलती है िक ित प का हरण िकया जाता है और
ू क पिव ता बनी रहती है। हे रोदो स तक देता है िक िजस हे लेन को पे रस अपने
मल
साथ ाॅय ले गया था, वह असली नह थी, जब ीक और ोजन उसके िलए आपस म
लड़ रहे थे तो वह उस समय िम म अपने िदन काट रही थी। इस तरह यरू ीपाइड जैसे
नाटककार हम बताते ह िक वह एक पिव ी थी, वह ऐसी िनल जा नह थी, जैसे
होमर ने उसे िचि त िकया है। दुिनया भर क सं कृितय म ी क िन ा और
पिव ता, पु ष के स मान क वैधता बन गई, संभवतः इसिलए य िक यह पु ष
क आ म-छिव को त ृ करती है।
अि न परी ा को पिव ीकरण अनु ान के प म देखा जाता है। महाभारत म, जब
ौपदी एक से दूसरे पित के पास जाती है, तो वह वयं को शु करने के िलए अि न
म वेश करती है।
पिव ीकरण अनु ान तथा इससे उ प न पद म ने भारतीय समाज को आकार देने
म मह वपण ू भिू मका िनभाई है, जहाँ कुछ िनि त समुदाय के सद य जैसे विधक और
मोची तथा मेहतर आिद, व माँसाहारी भोजन करने वाले, परे ही रखे जाते ह।
महाभारत म, रामायण के पुनकथन, रामोप यान म, सीता अपनी िन ा पर
वाचक िच ह लगते ही बेसुध हो जाती ह और तब उ ह ा पुनज िवत करते हए,
उनक पिव ता क सा ी देते ह।
अ त ु रामायण म यह संग आता है, जहाँ दस हज़ार शीश वाले रा स का अंत राम
के नह , सीता के हाथ होता है, वह रावण से भी अिधक बलशाली है। यह कथा,
पं हव सदी म, शा िहंदु व के भाव से सामने आई।
ओिड़या म, सरला दास क िबलंका रामायण म भी सीता भगवती क कथा आती है।
िहंदु व क वैिदक िवचारधारा के अनुसार उस परमा मा को नर प म देखा जाता है,
जबिक तांि क मा यता उसे मादा प म मानती है। ये दोन ही शाखाएँ - सगुण ह - वे
जो, साकार म िद यता का संधान करते ह। अनेक यि िनगुण प को सराहते ह -
वे िद यता को िनराकार म पाना चाहते ह। परं तु जनसाधारण ने मतू प को ही चुना
य िक इस तक पहँच बनाना सरल लगता था, इस कार ई र को अनेक लिगक
प म देखने क आव यकता अनुभव क गई।
अ त ु रामायण म, बारी-बारी से भयंकर (चंडी- प) तथा सौ य (मंगल- प) का वणन
आता है, जो भगवती के ही प ह। मंिदर म ायः भगवती को व व आभषू ण अिपत
िकए जाते ह, पज ू न व अनु ान िकया जाता है िक वे वे छा से अपना सौ य तथा
मंगल प बनाए रख और मानवता का क याण हो सके। यिद यह काय
अिधकारपवू क करवाया जाए तो उसके भयंकर प रणाम भुगतने पड़ सकते ह।
अनेक पुनकथन म, यु -कांड को लंका-कांड भी कहा गया है।
तेलुगू क रं गनाथ रामायण म, रावण के िपता को पता चलता है िक जब वे यानम न
थे तो उनक प नी को दस बार मािसक धम नह हआ था। वे बहत उदास हए और
अंततः उ ह ऐसा पु िदया िजसके दस शीश थे, उनम से हर एक शीश, छूटे हए
मािसक धम क पिू त के िलए था।
मनोिव े षणा मक ि से, दशरथ और रावण िपता के समान ह, दोन ही राम के
आनंद म बाधा बनते ह, एक उ ह अयो या से िनकाला देता है तो दूसरा सीता को हर
ले जाता है। एक थान पर, राम अपना रोष कट नह कर सकते य िक ऐसा करने
से वे वयं को उ नत व ावान ाणी क सच ू ी म शािमल नह कर सकगे और दूसरे
थान पर, वे वानर के मा यम से अपना रोष कट करते ह।
ी वै णव सािह य म, सीता का वणन करते हए कहा गया है िक वे वयं रावण का
वध करने म स म थ परं तु वे ऐसा नह करत य िक उ ह राम क ओर से ऐसा
करने के िनदश नह िमले थे।
खंड सात
वतं ता
‘राम सं कृित म उलझे रहे, परं त ु कृित ने सीता को म ु कर िदया’
पु पक
यु समा हो चला था, रावण का अंत हआ, सीता मु हई ं, लंका को अपने िलए नया राजा
िमला, सु ीव अपने ऋण से उऋण हो गया और वनवास क चौदह वष क अविध भी पण ू हो गई
थी। अब घर लौटने का समय हो चला था। “हम शी ही चलना चािहए,” हम बहत पैदल माग तय
करना है।” राम बोले।
“जब आप उड़ कर जा सकते ह, तो पैदल य चला जाए?” िवभीषण ने कहा। “यह उड़ने वाला
रथ, पु पक, अपने वा तिवक वामी, कुबेर के पास जाने क इ छा रखता है। इसे अलका नगरी
जाने के िलए, उ र िदशा म ही जाना है। परं तु यह माग म, आपको आपके घर तो छोड़ ही सकता
है, या आपने इसे रावण के पंज से मु नह िकया?”
सीता सकुचा गई ं, उनके दय म उस उड़ने वाले रथ के िलए बहत ही दुःखद मिृ तयाँ अंिकत थ ।
“परं तु अब तो आप राम व ल मण के साथ ह,” िवभीषण बोले, “अब कैसा भय, वैसे भी, म, सरमा
व मंदोदरी तथा आपक सखी ि जटा भी आपके साथ चलगे।”
“हम भी साथ चलगे,” सु ीव, हनुमान, अंगद, नल, नील व जा बवंत ने कहा।
और इस कार सभी कुबेर के भ य पु पक िवमान म सवार हए। उसने िकसी हंस क भाँित अपने
पंख लहराए और आकाश म ऊँचा उठता हआ, उ र िदशा म, लंका से अयो या क ओर चल िदया।
प पुराण के अनुसार, राम और दूसरे लोग को उड़ कर इसिलए जाना पड़ा य िक
सागर पर बनाया गया पुल न हो गया था। िवभीषण ने राम से कहा था िक वे पुल
को न करवा द तािक कोई दूसरा लंका पर आ मण न कर सके।
कलाकार ने िवमान या उड़ने वाले रथ क क पना नाना कार से क है। कभी इसे
अ , ख चर या हंस ारा ख चा गया िदखाया जाता है तो कभी इसके पंख िदखाए
जाते ह।
एक पारं प रक िहंदू या जैन मंिदर को भी िवमान कहते ह, इसे िद य जीव ारा यु
िकए जाने वाले, उड़ने वाले रथ के प म देखा जाता है जो वग से धरती के म य
या ा करते रहते ह।
ीक पुरागाथाओं के अनुसार, देव तथा नायक क उड़ान के संग आते ह - य़स ू
के पास अपना ग ड़ था, बैलेरोफोन के पास उड़ने वाला अ है, हम ज के पास पंख
ू े ह और मीिदया के पास उड़ने वाले सपेा का रथ है। परं तु वग से धरती के
वाले जत
िववरण, सं कृत का य म अिधक पाए जाते ह, जो वा मीिक के साथ आरं भ हए।
राम का ायि त
उनका वह दल माग म अनेक थान पर ठहरते हए आगे बढ़ा।
सबसे पहले, वे ज बू ीप के छोर पर उतरे , जहाँ से लंका तक जाने का सेतु िनमाण िकया गया
था। राम और सीता ने िशव, स पाती तथा व ण के ित अपनी ाथना िनवेिदत क , उ ह यु के
दौरान उनके सहयोग के िलए आभार कट िकया। वयं भा क गुहाओं म कुछ समय के िलए
िव ाम करने के बाद, वे िकि कंधा से होते हए गुज़रे । राम ने वन के उस िह से क ओर संकेत
िकया, जहाँ उ ह ने बाली का वध िकया था और िजस पाषाण के पास उनक हनुमान से भट हई
थी। सीता ने उन व ृ तथा निदय के िकनार को पहचान िलया, िजनके िनकट उ ह ने अपने
आभषू ण फके थे। उ ह ने उन सबको ध यवाद िदया िक उ ह ने राम तक उनका संदेश पहँचाया।
इसके बाद वे उन सभी ऋिषय के आ म म भी गए, जहाँ वे ारं भ म गए थे : अग य, अि ,
शरभंग, सुती ण व भार ाज। पि य व सप ने ऋिषय को सीता क दुःख भरी गाथा सुना दी थी
और ऋिष उ ह सुरि त देख मुिदत हो उठे । लोपामु ा ने सीता से भिव य के बारे म िवचार करने
को कहा। अनसय ू ा ने उ ह चेतावनी दी िक वे अतीत क घटनाओं पर िवचार न कर।
इसके बाद, राम ने पु पक से आ ह िक वह उ ह अयो या से परे , िहमालय क ओर ले चले। “मने
एक ऐसे यि का वध िकया है, जो वेद क ऋचाओं का ाता था, वह अनेक िव ान तथा
कलाओं म िन णात था, उनके सं ेषक क ह या कर, मने ह या का पाप िकया है। मुझे
मानवता के ित इस असेवा भाव के िलए ायि त करना होगा।”
उिमला न द से जागी
पहले तो माताओं ने उ ह पहचाना ही नह ; जो िकशोर चौदह वष पवू घर से गए थे, वे अब संपण
ू
पु ष के प म घर लौटे थे। उनके बाल लंबे, तथा सयू के ताप से शु क हो गए थे। उनक वचा
गहरी व खुरदरी हो चली थी। उनके मुख पर दािढ़याँ बढ़ी हई थ , और शरीर दुबला गए थे, उनके
नैन-न श भी ीण हो चले थे।
उनक पु वध,ू जो एक िकशोरी के प म घर से गई थी, वह भी एक पण ू यौवना ी के प म,
वधू वेष म सुसि जत वािपस आई थी। पहले कभी जो आभषू ण उसके स दय म विृ करते थे, वही
अब उसके प से शोभायमान हो रहे थे।
उनके ने उन तपि वय क भाँित शांत थे, िज ह ने जीवन के सभी रह य को सुलझा िलया हो
और वे िकसी भी बात पर िवि मत न होते ह । वन ने उ ह अस य अथवा बबर नह बनाया, अिपतु
उनक उपि थित से वानर तथा भालुक भी स य हो उठे थे।
जब उ ह ने अयो या के वेश ार क धरती पर चरण रखे, तो सभी मारे उ लास के रोने लगे।
ू े महाराज के सारथी सुमं भी वह मौजदू थे।
िनषाद गुहा तथा बढ़
माताएँ भी तो िकतनी बदल गई थ , अब राजसी शोभा िवलीन हो चुक थी। उनक कमर झुक गई
थे, केश ेत हो चले थे और वचा पर झु रयाँ िदखने लगी थ । अिनं सुंदरी कही जाने वाली
कैकेयी क भी यही दशा थी। यह देख सीता रोने लग ।
सुिम ा ने ल मण से कहा, “जाओ, जा कर उिमला को जगाओ। वह अब बहत देर सो चुक ।”
ल मण अपनी माता के महल क ओर भागे और वहाँ चटाई पर, एक सुंदरी युवती को िन ालीन
पाया। या वह उिमला थी? उ ह ने उसका पश िकया। वह तंिभत हो कर उठ बैठी। वह उ ह
देख कर िच लाई ं, तब अंतःपुर क ि य ने उ ह आ त िकया िक वह दाढ़ी वाला तप वी,
कोई परपु ष नह , उनके पित ल मण ही थे। जब वह उठ तो मारे उ ेजना के काँप रही थ , वह
अपने खुले केश तक नह बाँध पा रही थ । ल मण ने उनके खुले केश बाँधे और वह लजा गई ं।
उन सबको नान करवाया गया। पु ष ने राजसी ओसारे म नान िकया, सीता व उिमला को
ि य के अंतःपुर म नान करवाया गया। उनके शरीर पर एक हई मैल तथा वेद को धोने के
िलए बहत सारा जल, दूध, ह दी, तैल तथा जड़ी-बिू टय व पु प से यु उबटन को बड़ी मा ा म
यु िकया गया।
पु ष ने राम और ल मण क भुजाओं व व पर आई खर च व घाव को देख कर अनुमान
लगाया िक वन म उनका जीवन िकतना कठोर रहा होगा। उनके पैर म घ े पड़ गए थे और
एिड़याँ बुरी तरह से फट गई थ । ल मण क छाती पर एक गहरा घाव था, जो इं िजत के बाण क
देन था। उनक दािढ़य क हजामत क गई, उनक मँछ ू को तैल के साथ सँवारा गया।
सीता क देह पर अनेक कार के आभषू ण िव मान थेः िजनम अयो या से ले जाए गए आभषू ण
के अित र वे अलंकार भी शािमल थे, जो उ ह आ म क ऋिष पि नय तथा लंका म अपनी
सिखय से उपहार म िमले थे। उ ह सीता क भुजा पर एक गहरा दाग िदखा, यह उस यि के
पश का ितफल था, िजसने िपछले चौदह वष के भीतर उ ह पश िकया था - रावण। सीता ने
उनके ने म देखा - हाँ, वे सुन चुक थ िक सीता के साथ वन म या हआ। उनके मन म या
चल रहा था? सहानुभिू त? उदासीनता? घणृ ा?
जब माताओं ने अपने हाथ से वनवास क यं णा सह कर आई संतान को भोजन करवा िदया
तो, राम को उनके नए महल म भेजा गया, िजसे अयो या क अगली महारा ी, सीता के िलए
बनवाया गया था। वे एक िवशाल और भ य झल ू े पर अधलेटे िव ाम करने लगे और सीता से कहा
गया िक वे पान के प े म कटी सुपारी लपेट कर, उ ह िखलाएँ और झल ू ा धीमे-धीमे िहलता रहा।
रघुवंश क ये पु ी, शांता भी इस उ सव का अंग बन और बोल , “इस घर के पु ष तथा
ि याँ एक लंबे समय से तपि वय क तरह साि वक भाव से जीवन यतीत करते आए ह। अब
महल म ख़ुिशय के लौटने का समय हो गया है। अब यहाँ रस-केिल और िफर न हे िशशुओ ं क
िकलका रय के वर सुनाई दगे।” उ ह ने कहा य िक केवल वही ऐसा कह सकती थ । सभी ने
उनके श द का आनंद उठाया और भरे भवन म युवा दंपि गहरी ल जा से सकुचा उठे ।
अंततः अयो या क जा ने राम से पछ
ू ा, “ या आप वन से हमारे िलए कुछ लाए ह?” “हाँ, शबरी
के बेर,” वे बोले।
ल मण हँसते ह
िव ािम तथा विश वन के आ म से अनेक ऋिषय सिहत रा यािभषेक समारोह को पण ू
करने के िलए पधारे , जो िकतने वष से िवलंिबत चला आ रहा था। परं तु जब रा यािभषेक
समारोह आरं भ होने ही जा रहा था तो ल मण हँसने लगे।
सभी उनक इस अनायास िखलिखलाहट को देख कर च के। या वे अयो या का उपहास कर रहे
थे, जहाँ महल क राजनीित का िशकार बनी जा, चौदह वष से अपने राजा के थान पर उनक
चरण-पादुकाओं को ही णाम िनवेिदत करती आ रही थी? या वे कौश या को देख कर हँस रहे
थे िज ह ने सदा अपने पु को अयो या के िसंहासन पर आसीन देखने का व न देखा? या वे
कैकेयी का उपहास कर रहे थे िजनक राजमाता बनने क सारी योजनाओं पर पानी िफर गया
था? या वे भरत का उपहास कर रहे थे िजसने राजा बनने का अवसर वयं याग िदया? या वे
अपनी माता सुिम ा तथा भाई श ु न का उपहास कर रहे थे, जो सदा अनुचर ही रहगे, भले ही
राजा कोई भी य न हो? या वे सु ीव का उपहास कर रहे थे, जो राम क सहायता से अपने
भाई का वध करने म सफल रहा तािक वह नरे श बन सके, अथवा िवभीषण का उपहास कर रहे थे
जो अपने भाई के श ु का प ले कर राजा बनने म सफल रहा? या वे जा बवंत का उपहास कर
रहे थे िक वह बढ़
ू ा भालुक सदा हनुमान क छ -छाया म दबा रहता था? या वे हनुमान का
उपहास कर रहे थे िजसने राम क प नी क र ा के िलए अपनी पँछ ू म आग लगवा दी और बदले
म कुछ नह पाया? सा वे सीता का उपहास कर रहे थे, िज ह लंका से मु होने के बाद,
अि न-परी ा दे कर अपनी पिव ता का माण देना पड़ा? या वे राम का उपहास कर रहे थे
िज ह ऐसी प नी का साथ िमला था, िजसक ित ा धल ू -धस
ू रत हो चली थी?
हनम
ु ान का दय
हनुमान ने जो भी िकया, उस सबके ित आभार कट करते हए, सीता ने हनुमान को एक
कंठमाल उपहार म दी। हनुमान हर मोती को दाँत से काट कर इस तरह देखने लगे, मानो वह
कोई फल हो। िफर जब उ ह मनोवांिछत व तु नह िमली तो उ ह ने उसे अ िच से दूर भनका
िदया। दरबा रय को लगा िक यह उनके महाराज का अपमान था। वे बोले, “यह मखू वानर या
कर रहा है?”
हनुमान बोले, “यह मख
ू वानर उन मोितय म अपने राम और सीता को खोज रहा है। यिद वे
उसम नह ह, तो वे उसके िलए यथ ह।” जब लोग यह कहते हए उपहास करने लगे िक एक
ने हीन भी जानता है, राम और सीता मोितय के भीतर नह , वे तो राजिसंहासन पर आसीन ह,
तो हनुमान अपना व चीर कर बोले, “म अस यवादन नह करता। राम और सीता मेरे दय म
वास करते ह। या वे तु हारे दय म वास नह करते? सभी यह अ ुत य देख त ध रह गए।
उ ह समझ नह आ रहा था िक इस य को देख कर कैसी िति या य कर। वे यही सोचने
लगे िक उनके दय म या था। वे उसे खोल कर िदखाने का दुःसाहस नह कर सके।
हनुमान के व क उस संपण
ू ता के म य, िवभीषण को रावण क अपण
ू ता का मरण हो आया।
रावण चाहता था िक िशव सदा उसके साथ रह य िक उनक संगित से उसे ऊजा ा होती थी,
स नता िमलती थी। इस कार, उसने अपने बीस हाथ से कैलाश पवत को ही उखाड़ िलया
तािक उसे िशव सिहत लंका ले जा सके। िशव क प नी और संतान कातर हो उठे तथा िवनीत
वर म रावण से ऐसा न करने को कहा। जब रावण ने उनक पुकार सुनने से इंकार कर िदया,
तो िशव ने अपने पैर के अंगठू े से पवत पर दबाव िदया। उस दबाव के कारण रावण घुटन के बल
िगरा और पवत उसक पीठ पर आ पड़ा। मायाचना करते हए, रावण ने िशव क मिहमा म, -
ोत क रचना क , िशव ने उसे कैलाश के नीचे से बाहर िनकाला और वह लि जत मुख िलए,
लंका वािपस लौट गया। उसने घर लौट कर कहा, “िशव मुझसे कह अिधक बलशाली ह।” वह यह
सुनने म असफल रहा िक िशव उससे या कहना चाहते थे : ई र कोई पुर कार नह , िजसे
वािम व म रखा जाए; ई र तो एक आंत रक मानवीय संभावना है, िजसक अनुभिू त क जा
सकती है। रावण ने संसार को उस ि कोण से देखने से इंकार कर िदया, जैसे िशव देख सकते
थे, परं तु हनुमान ने राम क ही भाँित संसार को सराहना सीख िलया था।
रावण का ज म एक यात िव ान के घर हआ और उसने एक राजा क तरह कम
िकया, परं तु इतने ान, संपदा व स ा के बावजदू ावान न बन सका। हनुमान का
ज म वानर के प म हआ, सय ू से िश ा हण क , न तो कोई सामािजक पद था
और न ही सपंदा, परं तु केवल राम क सेवा से उ ह ने अपने ान और शि के िलए
येय पा िलया, और इस कार ा के मिू तमान प बने। इन दो पा का िवरोधाभास
दुघटनावश नह है परं तु िवचार उ प न करने के िलए प प से रचा गया है।
एक क नड़ पुनकथन म, हनुमान अपनी हड्िडय पर अंिकत राम नाम को कट
करते ह परं तु हनुमान के दय म अंिकत राम और सीता क छिव ने लोग क
क पना को अपनी ओर अिधक आकिषत िकया।
स हव सदी के रामतापनीय उपिनषद म राम को पु ष तथा सीता को कृित के प
म तुत िकया गया।
जा बवंत राम से म ल यु करने क इ छा रखते थे। राम उ ह वचन देते ह िक जब वे
कृ ण प म आएँ गे तो एक िवषय म असहमित होने पर, उनके बीच म ल यु होगा।
भागवत पुराण के अनुसार, कृ ण जा बवंत क पु ी, जा बवती से िववाह करते ह।
एक ाचीन ओिड़या लोकगाथा के अनुसार, सु ीव सीता के चरण देख कर िवचार
करते ह िक वे कैसी अिनं सुंदरी ह गी। राम उनसे कहते ह िक वे अगले ज म म राधा
नामक युवती से िववाह करगे, जो सीता का ही अगला ज म होगा, परं तु वह संबंध
कभी पण ू ता तक नह पहँच सकेगा य िक वे कृ ण से ेम करती ह।
राम का नाम
हनुमान अयो या आए हए, सभी अितिथय क देख-रे ख कर रहे थे। इनम राजा, ऋिष, रा स,
य , देव, असुर, गंधव, भालुक, वानर तथा ग ड़ आिद सि मिलत थे। उनके बीच नारद नामक
ऋिष भी थे, वे िज ह सम याएँ खड़ी करने म िवशेष आनंद आता था।
उ ह ने हनुमान से कहा, “सभी ऋिषय क चरण-वंदना करना े है, यह एक िश ाचार भी है
परं तु िव ािम के चरण पश करने क आव यकता नह है, वे कोई वा तिवक ऋिष नह ह, वे
तो पहले एक नरे श थे, जो अब मुिन होने का आडं बर रचते ह।”
हनुमान ने वैसा ही िकया, जैसा उ ह कहा गया था। उ ह ने िव ािम को छोड़, सभी मुिनय क
चरण वंदना क । यह देख कर िव ािम को बहत बुरा लगा और उ ह ने राम से माँग क , “अभी
अपना धनुष उठाओ और अपने बाण से, मख ू वानर क पँछ ू को यह धरती म गाड़ दो।”
हनुमान ने नारद के मुख पर छाया कौतुक देखा व जान गए िक उनके साथ छल िकया गया,
प रि थित तनाव त होती जा रही थी। राम के िलए अपने गु क आ ा का पालन करना
अिनवाय था, भले ही उनक माँग िकतनी भी िविच य न हो। हनुमान िवचार करने लगे िक वे
वयं को राम के कोप से कैसे बचा सकते थे। तब उ ह िवभीषण के पु तरणीसेन क याद आई
और उ ह एक युि सझ ू गई।
वे धरती पर बैठ कर, राम का नाम जपने लगे। राम बाण चलाने लगे िकंतु वे अपने ही नाम क
मिहमा से मंिडत आवरण को नह भेद सके।
यह देख कर िव ािम मु कराए : िकसी यि का िवचार, उससे कह बड़ा होता है; राम से
बड़ा राम का नाम है; िव ािम के नाम से बड़ा, िव ािम का िवचार है। “अपना धनुष नीचे कर
लो, राम,” व ृ गु ने आदेश िदया, उ ह ने अभी-अभी एक नया पाठ सीखा था। “जब तक
हनुमान राम का नाम जपता है, तब तक तुम उसे परा त नह कर सकते।”
ायः हनुमान को लाल रं ग से रं गा िदखाया जाता है, िजसका संबंध भगवती से है।
कुछ कला इितहासकार क मा यता है िक ाचीन जनजातीय इ य र से नान
करते थे, िजसे बाद म लाल रं ग से बदल िदया गया। अब हनुमान का मानिसक िच ण
केस रया रं ग के बीच िकया जाने लगा है, िजसे चय से जुड़ा रं ग माना जाता है।
भि सािह य म भ और भगवान के बीच का संघष ायः िदखाया जाता रहा है।
भ इ के नाम जप के साथ अपना र ण करता है। इन आ यान के मा यम से यह
बताने का य न िकया गया है िक िवचार (इ का नाम), उस व तु (इ क छिव)
से कह अिधक मह वपण ू है। इस कार राम से बड़ा राम का नाम माना जाता है। यही
सव च मं है व मंिदर म दशन करने से अिधक उदा माना जाता है। यह सगुण
भि (साकार िद यता क उपासना), के थान पर िनगुण भि (िनराकार िद यता
क उपासना) के उदय का सच ू क है।
रामनामी भ के िलए राम का नाम जप ही ा तथा आ म-बोध पाने का सबसे
े मा यम है। वे ायः गंगा के मैदानी इलाक़ क िन न जाितय से संबंध रखते ह।
जब वे तुलसी दास ारा रिचत रामायण पुनकथन का पाठ करते ह, तो वे ायः उ च
जाित को य देने वाले, सभी संदभ के थान पर, ‘राम राम नाम’ बोलते ह।
पं हव और अठारहव सदी के बीच, संत परं परा के कबीर और नानक के िलए राम
एक यि नह , िद यता तक ले जाने का िवचार बनते ह।
भारत के अनेक भाग म, लोग राम-राम श द से, पर पर अिभवादन करते ह
िकसी मत ृ क को अंितम सं कार के िलए जाते समय, िहंदू ‘राम-राम अथवा ‘राम-नाम
स य है’, का उ चारण करते ह। यहाँ िजस राम का संदभ िदया जाता है, वे रामायण के
िद य नायक (सगुण राम) अथवा िनराकार दैवीयता (िनगुण राम) भी हो सकते ह।
सख
ु द िमलन
सारा िदन, अयो यावासी अपने महाराज और महारानी को इ वाकु वंश के सुवण राजिसंहासन पर
िवराजमान देख अघाते रहे , वे िकसी देवी-देवता क भाँित शोभायमान लग रहे थे।
उस रात, जब शेष सब चले गए, जब मेघ छँ टे और नई महारानी सीता के महल के ांगण म,
चं मा चमका; तब राम ने सीता को उस तरह देखा, िजस कार कोई पित अपनी प नी को
देखता है और सीता ने राम को इस कार देखा, जैसे एक प नी देख सकती है।
अंततः वनवास समा हआ।
राम का िनणय
पहले तो यह अफ़वाह दबे श द म लोग के बीच थी परं तु देखते ही देखते इसने लय का प
धर िलया। राम भी इसक उपे ा नह कर सके। रघुकुल क महारानी को तो िकसी भी कार के
कलंक से परे , िवशु व साि वक ित ा वाली होना चािहए। सीता ऐसी नह रही थ ।
“उसे िकसी बहाने से वन म ले जाओ और वह छोड़ आओ। जब वह मुझसे दूर, बहत दूर वन म
पहँच जाए और िकसी भी कार का िवरोध जताने क ि थित म न रहे , तब उसे मेरे इस िनणय से
अवगत करवाना,” राम ने ल मण से कहा।
“यह तो अ याय है, भईया। आपको अपनी जा को बताना चािहए िक सीता अि न परी ा दे कर
अपनी पिव ता मािणत कर चुक ह।” ल मण ने आ ह िकया।
“यहाँ पिव ता या िन ा का नह है। इस तरह क बकवाद के कारण जा को अवसर िमल
रहा है िक वे वयं को अपने महाराज से अिधक े मािणत कर सक। मेरे आचरण का यह
तर, संभवतः उ ह वयं को हीन समझने म सहायक हो। इस तरह वे महारानी के चुनाव म मेरा
उपहास करना बंद कर दगे। वे कहते ह, महारानी सीता मेरे तर के अनुसार पिव नह ह।” राम
बोले।
“वे पिव ह। उ ह ने अि न के बीच चल कर अपनी पिव ता मािणत क है।”
“िनःसंदेह वह अपनी देह तथा मनस् से पिव ह। परं तु या उनक ित ा भी पिव है? वह
ध बा अब कभी नह हटाया जा सकता। यह भी न भल ू ो िक मनु य वच व क इ छा रखता है।
धनी धन पर अपना अिधकार चाहते ह। िशि त िश ा पर अपना अिधकार चाहते ह। सुंदर लोगेां
को अपनी सुंदरता के कारण अिधकार चािहए। िजनके पास कुछ नह होता, वे पिव ता या शु ता
के िवचार को वच व पाने के िलए योग म लाते ह। इस कार माग क सफ़ाई करने वाले मेहतर
को अपिव घोिषत कर िदया जाता है, मिलन व धोने वाला धोबी हीन घोिषत कर िदया जाता
है, मािसक धम यु ी को अपिव घोिषत कर िदया जाता है। इसी मापदंड के अनुसार, उनका
कहना है िक सीता राम के यो य पिव नह रह । यिद मने ितरोध िकया, तो सदा के िलए
उनके उपहास का पा बन कर रह जाऊँगा। मेरे पास कोई िवक प शेष नह है।”
“आपके पास िवक प है। आप महाराज ह। आप लोग क इन दु इ छाओं क पिू त का साधन न
बन।”
“एक अ छे राजा को अपनी जा क बात सुननी चािहए और अपने प रवार के िनयम का पालन
करना चािहए, भले ही वे उसे िकतने भी अ िचकर य न जान पड़।”
“िनि त प से, एक राजा िनयम को प रवितत कर सकता है, लोग पर अपनी इ छा जारी कर
सकता है?”
“हाँ, िकि कंधा म ऐसा हो सकता है। लंका म ऐसा हो सकता है। परं तु अयो या म ऐसा नह हो
सकता, तब तक तो नह हो सकता, जब तक रघु-कुल वंशज राजिसंहासन पर िवराजमान है। म
आततायी व िनरं कुश नह बनँग ू ा। यह मेरी जा का याय है। इसका स मान होना ही चािहए।”
ू ह। िनदयी ह। भईया, उनक आ ा के आगे िसर न झुकाएँ ।”
“लोग तो मख
“मेरी जा अपनी ही िनदयता को कैसे देखेगी? वह कैसे जान सकती है िक वे लोग आ मा क
बजाए अपने अहम् से काम ले रहे ह? वे तो धमिन बनने म ही य त ह। उ ह सा ी बनना है
िक वे िकतने शि शाली ह, कैसे उ ह ने सीता को अपमािनत िकया और राम को अपनी इ छा
के आगे घुटने टेकने को िववश कर िदया।”
वन क ओर वापसी
जब सीता को पहली बार, गभाव था के दौरान मादा चीता का दूध पीने क इ छा उ प न हई तो
उ ह ने कहा था, “म मादा चीता का दूध पीना चाहती हँ।” ल मण को उनक इ छा पिू त के िलए
वन म भेजा गया था।
इसके बाद उ ह ने कहा, “जब हम लंका से वािपस आ रहे थे, तो मने सागर के म य, चंदन के
व ृ से प रपू रत ीप देखा था। िजसके सभी व ृ से शहद के छ े लटक रहे थे। मने व न म
देखा िक म उसी छ े का मधु चख रही हँ, जो चंदन व सागर क मदमाती सुगंध से यु है।” तब
हनुमान को उसे लाने भेजा गया।
“ओ माँ, ज़रा देखो तो, जो लड़क वन को गई थी, वह तो सही मायन म रानी बन कर लौटी है।”
महल म काम करने वाली औरत अकेले म यं य करत ।
सीता के मन म अ य इ छाएँ भी उ प न हई ं : अनसयू ा क रसोई वािटका म उगी इमली, अग य
के घर के पास लगे गाछ पर उगे केले; शबरी ारा राम को परोसे गए बेर, िजनके बारे म उ ह ने
सीता को िव तार से बताया था।
जब सीता को बताया गया िक उ ह वन म ले जाने के िलए राजसी रथ तैयार है, जहाँ शबरी के
बेर िमलते ह, अब वह उ ह अपने हाथ से चुन सकगी तो वे सुखद आ य से भर उठ ।
िपछली राि को ही सीता ने व न म वन देखा था। वे अपनी उस वतं ता को बहत याद करती
थ । उ ह उन बाघ और सप क याद सताती थी। उ ह व ृ , दूवा, कंद तथा मल ू के वाद व
पवतीय झरन का पानी बहत याद आता था। बस इस बार वे चाहती थ िक जब वे वहाँ ह , तो राम
ने उनका हाथ थाम रखा हो, उनक छाती पर सीता का िसर िटका हो और च ान पर, सय ू क
िकरण के ताप के बीच िव ाम करते हए, वे हौले-हौले उनके केश सहलाएँ ।
सीता ने थोड़ा सा सामान ही साथ िलया। उनके व , राम के व ; बस एक िदन का सामान। वे
जानती थ िक राम शी ही वािपस आना चाहगे, उ ह कई कार के राजक य दािय व का
िनवाह करना होता है जैसे कई तरह के अनु ान व पज
ू न संप न करना, गौओं का िवतरण
करना, जा क फ़ रयाद सुनना।
अभी महल म कोई सो कर उठा भी नह था, रथ को भोर बेला म ही तैयार कर िदया गया था।
उ ह ने रथ म ल मण को देखने क अपे ा नह क थी। न तो कोई सहायक साथ था और न ही
राम िदखाई िदए। ल मण के मुख पर, वन-िवहार के नाम पर आने वाली उ सुकता का लवलेश
तक न था। वा तव म, उ ह ने वयं को परू ी तरह से य त िदखाना आरं भ कर िदया। वे िनरं तर
अपने अ के खुर तथा रथ के पिहय क जाँच करने लगे तािक सीता से वातालाप करने का
अवसर ही न आए।
तभी सीता जान गई ं िक राम के मन का भय साकार प ले चुका था। लोग उनके बार म तरह-
तरह के वाद कर रहे थे। अयो या ने अपने महाराज और महारानी का उपहास िकया था।
“मेरी ती ा करना। म कुछ भल
ू गई हँ।” उ ह ने कहा
वे महल म वािपस गई ं और राजक य रसोईए को आदेश िदया, “उनके भात पर बहत सारा िवशु
घतृ डालना, भले ही वे मना भी य न कर। वे इसे मानगे नह परं तु उ ह यह वाद भाता है।”
उ ह ने क क सफ़ाई करने वाली दासी से कहा, “यह यान रहे िक क म बुहारी होने के बाद
ही प छा िकया जाए। वे कोई उलाहना नह दगे िकंतु धल
ू से उ ह क होता है।”
उ ह ने राम के व संभालने वाले से कहा, “उनके बा व पर मोगरे का इ अव य
िछडकना। वे कभी इसक माँग नह करगे, परं तु उ ह यह गंध बहत भाती है।”
उ ह ने राजसी उ ान के माली से कहा, “ ितिदन सुबह उनके िलए ेत कमल तथा तुलसी के
गहरे हरे प से पु पमाल तैयार करना। वे बहत संकोची वभाव के ह। वे कभी तुमसे इसक माँग
नह करगे।”
उ ह ने मािलश करने वाले से कहा, “उ ह मािलश का तेल थोड़ा गुनगुना ही भाता है, और जब
उनके पैर क मािलश करो तो थोड़ा नरमाई से हाथ चलाना। उ ह अब भी राजसी पद ाण पहनने
क आदत नह हई है।”
िफर वे रथ पर सवार हई ं व बोल , “चलो ल मण, अब सब ठीक है।”
सीता ने मुड़ कर देखा। उ ह िवदा देने के िलए महल के ार पर कोई नह था। उनक बहन अभी
सो रही थ । यहाँ तक िक िनजी दािसयाँ भी अभी जगी नह थ । माग िनजन थे। या अभी भोर भी
नह हई थी? परं तु आकाश तो रि म था जैसे उिदत होते सय ू का वागत कर रहा हो। और िफर
उ ह ने शंख विन सुनी जो इस बात क सच ू क थी िक राम िसंहासन पर िवराजमान थे। वे अपने
दरबा रय और जा क सुनवाई के िलए तुत थे। भोर बेला के आकाश पर, अयो या क गाढ़ी
पीताभ पताकाएँ गव से लहरा रही थ ।
शंबूक
जब अयो या म लोग तक यह बात पहँची िक र नाकर नामक द यु, वा मीिक नामक ऋिष बन
गया है, तो अनेक यि य ने िनणय िलया िक वे भी गहृ थ जीवन याग कर, साधु हो जाएँ गे।
पुरोिहत साधु बन गए; यो ा साधु बन गए; कृषक, गौपालक, कलाकार और यापारी साधु बन
गए। अयो या संकट म थी। “हमारे महाराज ने अपनी प नी को वन म छोड़ िदया और उनक जा
अपनी पि नय को छोड़ कर जंगल म जा रही है।” लोग िवलाप करने लगे।
एक िदन, एक पुरोिहत राम के महल म आ कर रोने लगा, “देिखए, मेरा युवा पु ाण याग रहा
है। उसक िचिक सा करने वाला कोई नह है। सभी तप या तथा य करने म य त ह।
पा रवा रक ढाँचे व अनु म और समाज के दुग ढह रहे ह। ऐसे संसार म, जीवन क बनी-बनाई
यव था का अंत िनि त है। युवक, व ृ से पहले ाण याग रहे ह। आप, राम, आप ही इस
अ यव था के उ रदायी ह। इससे पवू िक सब कुछ िबखर जाए, इसे पुनः यवि थत कर।”
राम वन म गए और तपि वय के नेता से भट क । वह शंबक ू नामक यि था। “यहाँ म िकसी
का दास नह हँ। म वन के दूसरे ािणय के समान ही हँ। म नगर के थान पर वन को
ाथिमकता देता हँ। यहाँ िकतनी ा है।” शंबक
ू ने कहा।
“वन का रोमानीकरण मत करो। वन म कोई भी असहाय क सहायता नह करता। तु ह सदा
अपनी सहायता वयं करनी होती है, तुम सदा भख ू े रहने या िकसी के हाथ िशकार होने के भय
से पीिड़त रहते हो। तु ह अपने साथी को पाने के िलए बलशाली बनना होता है, और जब मौसम
बदलता है तो तु ह वास करना पड़ता है। परं तु नगर म दुबल के िलए भी पया भोजन होता है।
और ऐसे सामािजक ढाँचे होते ह, जो तु ह अथ, उ े य और वै ता दान करते ह।”
“म िकसी से भी हीन होने से इंकार करता हँ। राम, आपक नगरी म, म यापारी, यो ा और
पुरोिहत से हीन माना जाता हँ, य ?”
“केवल िशव के कैलाश म ही कोई पद अनु म नह होता। केवल इं के वग म ही सारी इ छाएँ
परू ी होती ह। म, राम, अयो या म िव णु का बैकंु ठ लाने के िलए संघषरत हँ, जहाँ पद अनु म क
आवय यकता के िबना ही इ छाएँ परू ी हो सकती ह। म जीवन का वा तिवकता से इस तरह मंथन
करना चाहता हँ जहाँ बल व क पना, िवपरीत बल का काय कर। परं तु अयो या को बनाए रखने
के िलए, कत य को परू ा करना ही होगा। म येक गहृ थ को साधु या तप वी बनने क
अनुमित नह दे सकता। शंबक ू , घर वािपस चलो, अपने कत य का पालन करो। अपने कौशल,
अगली पीढ़ी को स पने के बाद तुम वन म आ सकते हो। अ यथा म तु हारे ाण ले लँग ू ा, तािक
उन सबका मनोबल टूट सके, जो तु हारा अनुसरण कर, वन म आ रहे ह।”
“राम, आप मेरी ह या कर सकते ह, परं तु म नगरी म वािपस नह आऊँगा।”
तब राम ने अपनी तलवार उठाई और उसी तरह शंबक ू का िसर काट िदया, िजस तरह परशुराम ने
ू नरे श को समाज के िनयम का
रे णुका का िसर तथा कातवीय क भुजाएँ काट दी थ । एक संपण
पालन करना ही होता है, भले ही वह वयं या उसक जा, उनके साथ सहमत हो या न हो।
जब राम घर लौटे, तो उस पुरोिहत का पु तब तक ाण याग चुका था। वह राम के पास आ कर
बोला, “मेरा पु ाण याग चुका था िकंतु चम का रक प से उसके ाण वािपस आ गए।
ू के बिलदान से स न ह।” राम ने उस युवक
यमराज ने उसे वािपस भेजते हए कहा िक वे शंबक
को देख कर कहा, “अपने िपता क तरह एक ा ण बनो।”
“मेरे िपता क तरह नह , शंबक
ू क तरह, मेरे िपता वेद क ऋचाओं को तो जानते ह परं तु उनके
अथ नह जानते। वे अपने वच व व े ता का आनंद उठाते ह। नह , म उनके जैसा नह बनँग ू ा।
म ा ण जाित पर, ा ण वण को चुनता हँ। म भी शंबक ू क तरह तप वी बनना चाहता हँ और
अयो या को, धरती का बैकुंठ बनाना चाहता हँ।”
राम, िजनके हाथ अब भी शंबक
ू के र से सने थे, उ ह ने आ ि त अनुभव क य िक वे
जानते थे िक शंबक
ू का पुनज म हो चुका है।
शंबकू का आ यान, वा मीिक रामायण के उ र-कांड म आता है।
शंबक ू क कथा अनेक ाचीन सं कृत नाटक का अंश रही, जैसे भवभिू त क
रामायण तथा म ययुगीन आंचिलक रामायण। नाटक म राम के िनणय को, राजक य
कत य के आधार पर यायसंगत ठहराया गया है। भि सािह य म, शंबक ू को उस
वध से लाभ होता है य िक उसका वध ई र के हाथ हआ; वह ज म और मरण के
बंधन से छुटकारा पा लेता है।
आधुिनक युग म, शंबक ू क कथा नाटक म, इस तरह िदखाई जाती है, जो रामायण
क जाित प धरता को दशाती है। ई.वी. रामा वामी का िवचार है िक यह ऐसी कथा है,
जो यह कट करती है िक राम उतने अ छे राजा नह थे िजतना अ छा उ ह िदखाया
जाता था। डाॅ. बी. आर. अंबेडकर का मानना था िक यह आ यान राम के च र से
संबंिधत नह , यह जाित था क अर णीयता से जुड़ा है िजसे लागू करने के िलए
िहंसा क आव यकता थी।
रामायण म िकसी एक जाित समहू को दूसरे से े दशाने का यास नह िकया
गया। यह यथाि थित को बनाए रखती है य िक पारं प रक प से, यह भय था िक
जाित म प रवतन, सामािजक ि थरता को न कर देगा। इस कार जाित रे खाएँ व
जाित पद म, संपण ू भारतीय इितहास म सदा बदलते आए ह, ऐसा िविवध जातीय
दल के बीच हआ, िजनम केवल ा ण ही नह , बि क ज़म दार समुदाय भी शािमल
थे, िज ह ने िविभ न गाँव को अपने अधीन रखते हए, सामािजक प से वीकृत
आदत जैसे शाकाहार आिद को अपनाया। इस ि या को भारतीय समाजशाि य ने
‘सं कारीकरण’ का नाम िदया; कुछ पि मी समाजशा ी इसे ‘ ा णीकरण’ का
नाम देना, अिधक बेहतर समझते ह।
रामायण म, सामािजक प से गौण जाितय के अनेक सद य का संदभ आता है :
िनषादराज गुहा, भील शबरी और इसके अित र वा मीिक, वानर और रा स का
नाम भी ले सकते ह। इन सबके साथ, राम के अलग-अलग संबंध रहे , जो िनयम क
अपे ा अिधक भाव धान थे, केवल शंबक ू का ही मामला ऐसा रहा, एक ऐसा संग,
जो राम के राजा बनने के बाद सामने आता है।
जुड़वाँ
सीता ने, वन के एकांत म संतान को ज म िदया। यिद वे महल म होत तो यह एक िवशाल और
भ य संग होता; वे बहन , माताओं, धाय-माँ और दािसय से िघरी होत । संगीत क मधुर विन
सुनाई देती, पताकाएँ फहराई जात और िम ा न िवत रत िकए जाते।
परं तु यहाँ वे अकेली थ , वे एक च ान के पीछे , सारी रात हरी घास पर लेटी, िसतार को देखते
हए, पीड़ा को सहन करती रह और जब ातःकाल के भगवान अ ण आकश म कट हए तो
उ ह ने उ ह अंितम बार, ज़ोर लगाने के िलए ो सािहत िकया।
महल म सवािधक मह व रखने वाले, पिव ता या अपिव ता के िनयम का यहाँ कोई लेन-देन
नह था, वे इस वन म लागू नह होते थे। उ ह त ण अपने पैर पर खड़े होना था, ऐसे फल,
कंद-मलू और बेर का सेवन करना था, िज ह खा कर उ ह बल और पुि िमले और वे अपनी
संतान को तनपान कराने यो य हो सक। वा मीिक अपनी रामायण िलखने म य त थे, उनक
प नी को अपने व ब च के िलए भोजन का बंध करना पड़ता था, उससे यह अपे ा नह क जा
सकती थी िक वह सीता और उनक नवजात के भोजन का भी बंध करे गी।
वा मीिक ने बालक का नाम लव रखा, जब बालक सोता तो वे उसक िनगरानी करते, तािक
सीता को अपने िलए थोड़ा समय िमल सके। वे नान कर, जल भर कर ला सक। जलावन के
िलए लकिड़याँ एक कर सक, अपनी रसोई वािटका क देख-रे ख कर सक और नदी िकनारे
क िम ी से कुछ बतन और पा तैयार कर सक।
शी ही िशशु घुटन के बल चलने के यो य हो गया। एक िदन, जब सीता वहाँ नह थ , और
वा मीिक राम के रा यािभषेक संग के दौरान, उिचत छं द क रचना करने म म न थे, तो लव
जाने कहाँ ओझल हो गया। वा मीिक को अपने आसपास असहज सा स नाटा महसस ू हआ, देखा
तो बालक वहाँ नह था। उ ह ने अपनी और सीता क कुिटया म देखा, लव नह िदखा। वह तो
टोक रय और बड़े पा के पीछे भी नह था। या वह ऊँचे प थर से बनी चारदीवारी लाँघ गया
था? या कोई लोमड़ी या िग उसे उठा ले गया था? वा मीिक भय और आतंक से िसहर उठे ।
इसके बाद उ ह ने सीता के वािपस आने क आहट सुनी, वे अपनी ि य लोरी गाते हए आ रही थ ।
वा मीिक को कुछ नह सझ ू ा तो उ ह ने झट से, थोड़ी कुशा घास ली, उसे इक ा कर, एक िशशु
का प िदया व अपनी सारी तप या के बल और िसि के भाव से उसे एक िशशु म बदल िदया,
जो िदखने म लव के ही समान था।
सीता उसी समय लव को अपनी भुजाओं म थामे भीतर आई ं व मु कुरा कर बोल , “यह मेरे पीछे -
पीछे नदी तक आ गया था,” तभी उ ह वा मीिक क गोद म जुड़वा िशशु िदखाई िदया। “यह
कौन है?”
“यह, यह तु हारा दूसरा पु कुश है।” वा मीिक ने तिनक संकोच से कहा।
सीता ने न तो कोई िकया और न ही वा मीिक को फटकारा। उ ह ने कुश को उठाया और
लव क ओर मुड़ते हए कहा, “देखो, तु ह एक भाई िमल गया। जुड़वाँ भाई!”
माता सीता
राम के पु वन क छाया म, व ृ , च ान , निदय तथा पशु-पि य के बीच पल कर बड़े हए।
भले ही यह जीवन सुनने म बहत सुर य लगे जैसा िक किवगण करते आए ह। परं तु वन म कई-
कई िदन ऐसे भी होते ह जब दावानल भड़क उठता है या आकाश से लगातार वषा होती है या जब
तफ़ू ानी हवा के बीच भख
ू े जानवर क गजना सुनाई देती है। कई-कई बार तो सीता और गोमती
को ब च का पेट भरने के िलए कंद या मल ू तक नह िमलते थे, तब यह व य जीवन इतना
सुर य नह रह जाता था। इस कार वे बालक बहत ही कठोर, उ रदायी व आ मिनभर
प रि थितय के बीच पले-बढ़े , जहाँ उ ह ने वा मीिक के िनरं तर चल रहे गान के बीच वन क
लय और ताल को जाना।
जुड़वाँ यही मानते आए थे िक वा मीिक ही उनके िपता थे परं तु जब वा मीिक के बालक ने उ ह
ताड़ना आरं भ िकया और कहा, “वे हमारे िपता ह। तुम अपने िपता खोजो।” तब उ ह पता चला
िक वे िपतािवहीन थे।
इस कार वे जुड़वाँ रोते हए सीता के पास गए और सीता से पछू ा िक उनके िपता कौन थे। सीता
ने उ ह स यकाम क कथा सुनाई। वे उपिनषद म आए थे और उस िवमश का िह सा बनना
चाहते थे। वहाँ उपि थत ऋिषय ने उनसे उनके िपता का नाम जानना चाहा। उ ह ने ऋिषय से
वही कहा, जो उनक माता ने उ ह बताया था : उ ह उनके िपता का मरण नह इसिलए उ ह
माता के पु जाबािल, जाबला के पु के नाम से ही जाना जाए। इस स यिन ा और स य को
वीकारने के साहस को देखते हए, ऋिषय ने उसे स यकाम नाम िदया और उसे उपिनषद म
भाग लेने का िनमं ण िदया। सीता ने कहा, “म चाहती हँ िक तुम भी स यकाम क तरह बनो,
सीता के पु बन कर ही संतु रहो।” उस िदन के बाद, उन बालक ने कभी अपने िपता को
मरण नह िकया।
उ ह ने सीता के साथ वन के सारे रह य और अ छे व बुरे कम को देखा, जाना व समझा। उनके
प रणाम को जाना। उ ह ने कहा, “देखो, िहरण रोज़ खाते ह परं तु कभी भी भरपेट नह खाते
य िक जब पेट भरा होगा तो तुम भाग नह सकते और चीता चाहे दस िदन म एक बार खाए,
परं तु वह पेट भर कर खाता है, य िक वह पेट भरने के बाद ही दौड़ सकता है। इस तरह, कृित
िशकार करने वाले या होने वाले; िकसी एक का प नह लेती” लव और कुश ने आखेटक क
ुधा तथा पीिड़त के भय को सराहना सीखा। उ ह ने व ृ क कृित को समझा, वे पि याँ, फल
और फूल य उ प न करते ह। रात के समय, माता सीता उ ह देव व असुर क कथाएँ सुनात
और वा मीिक ऋिषय क गाथाओं का गान करते।
बालक सीता क एक-एक गितिविध को देखते हए बढ़ने लगे। वे हर सुबह नदी पर नान करके,
जल भर कर लात । वे सारा िदन घर के रख-रखाव और चीज़ क मर मत म लगात , घर म
भोजन और आग का बंध बनाए रखत । घर म भोजन परोसने के िलए सदा केले के प े उपल ध
होते और क ू के सुखाए गए खोल म, नदी का मीठा पानी भरा रहता। वे सदा यान रखत िक
सबके गले म सुगंिधत पु प क मालाएँ पहनाई जा सक। वे कभी िव ाम न करत । वे सदा
मु कुराती रहत । उनके िलए घर के काम-काज कभी भार नह बने।
गोमती अपने केश सँवारती थी िकंतु सीता ने कभी अपने केश नह बाँधे, उनके केश यँ ू ही मु
हो कर हवा म लहराते। गोमती िनरं तर जीवन को कोसने के साथ-साथ वा मीिक को ताने देती
परं तु सीता को जीवन से कोई िशकायत नह थी। गोमती लव और कुश को याद िदलाती, “जीवन
से संतु रहना एक िवक प है। यिद तुम चाहो तो इससे और अिधक पाने क इ छा कट कर
सकते हो। यही मानवता क िवशेषता भी है।” सीता सुन कर शांत रहत । वे कभी तक न करत ।
जब वे बड़े हए तो सीता ने उ ह दो प थर को आपस म रगड़ कर आग जलाना िसखाया, उ ह
िसखाया िक िकस तरह वन म नीचे िगरी सख ू ी का बटोर कर, चू हे का जलावन जमा िकया
जा सकता है। िशकार के िलए तीखे हिथयार कैसे बनाए जा सकते ह, जाल कैसे बनाए जाते ह
और इसके अित र उ ह तलवार भाँजने, भाला चलाने और धनुष-बाण चलाने क कला भी
िसखाई। उ ह ने अपने पु से कहा, “भोजन के िलए आखेट करो, अपने र ण के िलए आखेट
करो िकंतु कभी मन बहलाव के िलए आखेट मत करना,”। “हमेशा यह देख कर बाण चलाना िक
तुम िकसका िशकार कर रहे हो। यही मत मान लेना िक झाड़ी के दूसरी ओर से िकसी िहरण के
पानी पीने का वर सुनाई दे रहा है। यह भी हो सकता है िक कोई युवक, पा म नदी का जल भर
रहा हो और वह उसी का वर हो।”
वे दोन िकशोर, आपस म एक-दूसरे से बहत अलग थे। लव को गिणतीय सू भाते थे तो कुश को
याकरण के िनयम म आनंद आता था। लव को पीछा करना पसंद था और कुश आमने-सामने
क ट कर पसंद करता था। लव को बातचीत करना पसंद था जबिक कुश को शांत रहना अ छा
लगता था। दोन ही िनपुण धनुधर थे िकंतु जहाँ लव को िहलती हई व तुओ ं का संधान करना
पसंद था। कुश को सुदूर थान पर बाण से भेदना पसंद था। सीता कभी एक से दूसरे क तुलना
न करत । वे कहत , “वन के सभी व ृ अनठ ू े ह और सबको मा यता दी जानी चािहए,” वे उ ह
यह भी मरण करवात , “पौधे सयू के काश के िलए तथा पशु अपने साथी के िलए पधा करते
ह। हम मानवता का आशीवाद ा है, केवल म और तुम ही ितयोिगता और पधा से परे रहने
का चुनाव कर सकते ह। ऐसा करना ही धम है।”
सीता ने अपने पु को अि न को मान देना िसखाया, यह भी बताया िक अि न को रसोईघर के
चू हे म कैसे संजोए रखना चािहए, उनका कहना था िक वही पहली य शाला थी। उ ह ने उ ह
उन पा को मान देना िसखाया िजनक सहायता से मनु य जब जी चाहे , िकसी भी थान पर
जल पी सकता था। उ ह ने उ ह वे ऋचाएँ िसखाई ं जो उ ह ने उपिनषद म आए ऋिषय से सीखी
थ । राि के समय, उ ह ने उ ह तार का ान िदया। और जब भी उ ह भख ू सताती तो उ ह पता
था िक माँ के पास उनके िलए कोई न कोई फल, सख ू ा मेवा या बेर आिद अव य होगा। सीता के
होते हए, भला कोई भख ू ा कैसे रह सकता था।
गंधव
एक िदन सीता ने िकसी को वीणा बजाते हए सुना। उसका वर रावण क -वीणा से िमलता
था। मिृ तयाँ जाग उठ । उ ह ने उ ह जागने िदया; वे उनके मुख पर मु कान ले आती थ । वे तो
अतीत के बालक थे, अब वतं थे, परं तु समय-समय पर उससे िमलने आते रहते थे। उ ह ने
लेखन म य त वा मीिक के िनकट िकशोर को छोड़ा और संगीत के ोत क खोज म चल
द।
हनम
ु ान क रामायण
अंततः, वा मीिक क रामायण लेखन का काय परू ा हआ। उ ह ने सीता को उसे िदखाया तो सीता
भी बहत स न हई ं। उ ह ने उसे अपनी प नी को िदखाया तो उसने भी सराहा। इसके बाद
उ ह ने उसे नारद को िदखाया, वे वग तथा धरती के बीच िवचरण करने वाले मुिनय म से ह,
परं तु वे उसे देख कर भािवत नह हए। “यह अ छी तो ह िकंतु हनुमान क रामायण इसक
तुलना म े है, वे बोले।”
“ या उस वानर ने भी रामायण िलखी है!” वा मीिक को यह सुन कर िब कुल अ छा नह लगा
और वे िवचार करने लगे िक िकसक रामायण को े माना जाना चािहए। अतः वे हनुमान क
तलाश म िनकल पड़े ।
नारद ने उ ह कदली-वन क ओर भेज िदया, यह थान अयो या से बहत दूर नह था, हनुमान
ायः वहाँ जाया करते। वहाँ वा मीिक को केले के गाछ के सात चौड़े प पर हनुमान ारा रची
गई रामायण िदखाई दी। उ ह ने उसे पढ़ा और पाया िक वह तो अपने-आप म संपण ू रामायण थी।
याकरण और श द का समुिचत चयन, सटीक छं द व लय आिद। वा मीिक वयं को रोक नह
सके। वे िवलाप करने लगे।
“ या यह वा तव म इतनी बुरी िलखी गई है?” हनुमान ने पछ
ू ा
“नह , यह वा तव म बहत अ छी िलखी गई है।” वा मीिक बोले।
“तब आप िवलाप य कर रहे ह?” हनुमान ने पछ
ू ा।
“ य िक.. हनुमान क रामायण पढ़ने के प ात् कोई भी वा मीिक क रामायण नह पढ़े गा। यह
सुन कर हनुमान ने त ण, उन सात प को फाड़ िदया, िजन पर उ ह ने राम के जीवन क
कथा उकेरी थी। “ये तुमने या िकया?” वा मीिक ची कार कर उठे , हनुमान ने उनके सामने ही
उन टुकड़ को वायु के वेग के साथ बहा िदया। “आज के बाद कोई भी हनुमान क रामायण नह
पढ़ सकेगा।”
हनुमान बोले, “तु हारी आव यकता मेरी आव यकता से अिधक बड़ी है। तु ह अपनी रामायण क
अिधक आव यकता है। तुमने अपनी रामायण इसिलए रची तािक संसार वा मीिक को मरण कर
सके; मने अपनी रामायण इसिलए रची तािक म राम को मरण कर सकँ ू ।”
उस ण म, वा मीिक को अनुभिू त हई िक वे िकस कार अपने काम से स मान पाने क इ छा
के वशीभतू थे। उ ह ने अपने लेखन को, वयं को अमा य होने के भय से मु करने के िलए
यु नह िकया। उ ह ने राम कथा के मा यम से, अपने मन क उलझी गाँठ को नह
सुलझाना चाहा। उनक रामायण, उनक मह वाकां ा क उपज थी; हनुमान क रामायण, राम
के ित उनके नेह क देन थी। यही कारण है िक हनुमान क रामायण बाँचने म अिधक आनंद
आया था।
वा मीिक हनुमान के चरण म िगर कर बोले, “िजस कार देह हम, मन से परे ले जा कर,
भटका देती है, उसी कार श द हम िवचार से परे ले जाते ह। अब म जान गया हँ राम का िवचार,
राम से भी कह िवशाल है।”
श ु न ने सन
ु ी रामायण
वा मीिक ने लव और कुश को, रामायण नामक गीत के मा यम से, राम नामक िवचार स पा।
उ ह यह भी आशा थी िक संभवतः वे बड़े हो कर, उस यि को सराह सकगे, जो उनके िपता थे,
वे यह समझ सकगे िक उनके िपता ने जो भी िकया, वह य िकया। जब लव और कुश ने राम के
जीवन क गाथा को सीखा तो िव मय से भर उठे और उ ह ने ानी और ावान होने के अंतर
को जाना।
िफर एक िदन, जब लव और कुश क आयु चौदह वष के लगभग थी, तो एक यो ा अपने सैिनक
सिहत वा मीिक व सीता के आ म म आया। उसके साथ आए सैिनक ने सय ू वंश तथा रघुकुल
क पताकाएँ थाम रखी थ । सीता ने पहचान िलया िक वह तो उनके देवर श ु न थे। वह िब कुल
ल मण क भाँित िदखते थे। उनके भीतर मिृ तय का वार उमड़ पड़ा। उ ह ने अपनी कुिटया के
भीतर ही रहना ेय कर समझा।
“ या म आज यहाँ राि िव ाम कर सकता हँ?” श ु न ने पछ ू ा। उ ह ने बताया िक वह मथुरा के
दु राजा लवण को परा त कर लौट रहे ह, िजसने राम के वच व को चुनौती दी थी। वा मीिक
ने उनका अिभनंदन िकया। उ ह फल व पानी के साथ, थोड़ी मछली भी परोसी गई, िजसे जुड़वाँ
ब च ने सुबह ही नदी से पकड़ा था। जब श ु न का भोजन हो गया, तो वा मीिक ने दोन
बालक से कहा िक वे उ ह वह गीत सुनाएँ , जो उ ह ने बा मीिक से सीखा है।
दोन ब च ने अपना तार यु वा यं उठाया और वे सारी रात गान सुनाते रहे । श ु न तो उन
छं द और सुर से मं मु ध हो उठे । “तु हारे हाथ म यह कौन सा वा यं है? यह िदखता तो
सारं गी क तरह है, परं तु उससे अलग है?”
“यह वीणा क तरह है परं तु हम इसके तार को अंगुिलय से छे ड़ने क बजाए, अपने धनुष को
इस पर िफराते हए, इससे सुर िनकालते ह। िकशोर ने कहा। “हम इसे रावण-ह कहते ह, रावण
का हाथ। वह हाथ िजसने सीता को राम से चुराया, अब वह हमारे िलए संगीत बजाता है, िजसम
राम क मिहमा का गुणगान िकया गया है।
“हम िजन धनुष से तीर चलाते ह। तुम उनसे संगीत बनाते हो। तुम दोन वा तव म ितभाशाली
हो।”
श ु न वा मीिक क ओर मुड़ते हए बोले, “आप इन दोन िकशोर को अपने साथ अयो या लाना
तािक वे अपने गान को महाराज के स मुख तुत कर सक। इसम उनके जीवन का बहत ही
संुदर वणन िकया गया है। यह सबसे उिचत समय है। वे अ मेध य रचा रहे ह, जैसा िक आप
जानते हो, इन अनु ान के बीच; चारण , नतक व गवैय को नगरी म मनोरं जन के िलए
बुलाया जाता है।”
अयो या म मनोरं जन दल
जब श ु न चले गए, तो वा मीिक दबी हँसी के साथ बोले, “अयो या राजकुमार को व न म भी
भान नह हआ िक वे अपने ही भतीज को, नगरी के माग पर िदल बहलाव करने वाले दल क
तरह यौता दे गए ह।”
“इसम बुरा भी या है?” सीता ने पछू ा। उ ह एहसास था िक वा मीिक उनक पहचान से पण
ू तया
प रिचत ह, परं तु इस िवषय म सीता के मौन का आदर करते ह। “ या आपको लगता है िक िदल
बहलाने वाला युवक िकसी राजकुमार से हीन अथवा िनकृ होता है? जब तक आप ऐसा सोचते
ह, तब तक ा सही मायन म ा ण नह हो सकगे, य िक पद म पशुओ ं ारा वच व पाने
क विृ से उ प न होता है, इसका मानवीय यो यता से कोई संबंध नह , जो ा ण बनने क
आतुरता के साथ अपने मनस् का िव तार करना चाहती है।”
ताड़ना पाने के बाद, वा मीिक ने िनणय िलया िक वे सीता के पु को अपने साथ अयो या ले
कर जाएँ गे तािक वे अयो या नरे श के स मुख रामायण का गान तुत कर सक। “ या मुझे
उ ह उनके िपता से प रिचत करवा देना चािहए?” वा मीिक िवचार करने लगे।
“राम पर िपत ृ व का भार न डाल। इस तरह अयो या म सम याएँ बढ़गी, इस कार ये बालक
उनके िसंहासन के उ रािधकारी हो जाएँ गे,” सीता बोल ।
“िकंतु या यह उनका ज मिस अिधकार नह है?” वा मीिक ने पछ
ू ा
“कोई रा य, िकसी राजा क संपि नह होता। वैसे भी संपि एक मानवीय म है, िजसे मनु य
ने मनु य के िलए रचा है। ब चे िकसी क संपि नह होते और वा तव म कुछ भी राम का नह
है।”
सीता के पु पहली बार अयो या जा रहे थे, वे उ सुक थे। उ ह ने उस महान नगरी के बारे म न
जाने िकतनी कथाएँ सुन रखी थ : िकस कार उ र कौशल के राजा तथा दि ण कौशल क
राजकुमारी के िववाह के बाद नगर अि त व म आई, कैसे अयो या के जावासी, वन क ओर जा
रहे राम के साथ नदी के िकनारे तक गए य िक वे अपने राजा को बहत चाहते थे और कैसे
अयो या के व ृ राजा दशरथ, अपने ही महल क दहलीज़ पर िगर कर म ृ यु को ा हए, जब
उनके पास न तो उनके पु थे और न ही उनक जा! जब वे जाने लगे, तो सीता ने वा मीिक
को अपनी चड़ ू ामिण देते हए कहा, “इसे आप राम क नई रानी को दे देना।”
“नई रानी? राम क तो कोई नई रानी नह है।”
“वे य रचा रहे ह। वे अपनी प नी को साथ िबठाए िबना, कोई भी अनु ान अथवा य पण ू नह
कर सकते। उस ी को मेरी ओर से स ेम भट कर देना। वह बहत अकेली होगी य िक म
जानती हँ िक राम उसे आदर तो दगे िकंतु कभी उस तरह ेम नह करगे, िजस तरह मुझसे करते
आए ह,” वे बोल । “यह तो होना ही था। म इसे परू ी मयादा के साथ हण करती हँ। हमारे मन को
दुःख तभी घेरता है, जब हम िकसी व न क पिू त के िलए, वा तिवकता का िवरोध करते ह।”
बालक ने आ म से बाहर िनकलने से पवू माता के चरण पश िकए। वा मीिक उ ह वन के माग
से अयो या क ओर ले चले। नगरी के चार वेश ार थे: पहला, ि य व यो ाओं के िलए,
दूसरा पुरोिहत व किवय के िलए, तीसरा कृषक , गौपालक , कलाकार तथ यापा रय के िलए,
और चौथा ार अनुचर व िदल बहलाने वाल के िलए था। सीता के पु ने चौथे ार से नगरी म
वेश िकया।
नगरी म वेश करते ही उ ह ने अपना न ृ य और गान आरं भ कर िदया। उनके पैर म लगे घुंघ
िथरक उठे । जा उन िकशोर को देखने के िलए थम गई िजनके एक हाथ म रावण-ह तथा
दूसरे हाथ म धनुष था। उनक भुजाएँ िकसी धनुधर क भाँित थ परं तु हाव-भाव से लग रहा था
िक िकसी मनोरं जन करने वाले दल से जुड़े ह। उनके वर बहत मधुर थे और वे िजन श द का
उ चारण कर रहे थे, वे तो वा तव म अ ुत थे। लोग तािलयाँ बजाते और हष लास के वर से
उनका वागत करते, साथ हो िलए और वे सब महल के स मुख बने उस चौरस ांगण म जा
पहँचे, जहाँ महाराज वह महान य रचा रहे थे।
वा मीिक ने राम को बाघ चम पर आसीन देखा, उनके गाल के आसपास कड़ी मँछ
ू गोलाई म
मुड़ी थ , अि न म आहित देते हए, उनक ि िकतनी शांत और सौ य िदख रही थी।
य समारोह के बीच अंतराल हआ, ऋिषय ने घोषणा क िक देव के शयन का समय हो गया
था। उ ह िव ाम करना था, लव और कुश को बुलवाया गया तािक वे राम के स मुख वा मीिक
का िसखाया गान तुत कर। अब वे एक सुवण िसंहासन पर िवराजमान थे। भरत ने उनके िसर
पर छ थाम रखा था। ल मण और श ु न सुरागाय क पु छ से बने चामर डुला रहे थे। प रवार
क ि याँ उनके पीछे बैठी थ , वे वण तथा हीरक आभषू ण से सुसि जत थ । तीन व ृ
राजमाताएँ थोड़ी दूरी पर, िवधवाओं के िलए बने झरोखे म िवराजमान थ । राम के चरण म एक
वानर बैठा था। वा मीिक ने बालक से कहा, “वे हनुमान ह। देखो, वे राम के चरण म िकतने
सुख से बैठे ह, ये वह महान ाणी है, जो सागर को लाँघ गए थे और अपनी पँछ ू म लगी आग से
लंका नगरी को जला कर राख कर िदया था।”
दोन िकशोर ने छह रात म, रामायण के छह अ याय का गान िकया। येक अ याय के अंत म,
महाराज दोन को सुवण मु ाओं से बनी एक-एक लड़ी भट देते। जब छठा अ याय समा हआ, तो
सभी उनके गान और दशन क शंसा करने लगे और राम ने कुछ ऐसा कहा िजसे सुन कर
सभी आ यचिकत हो उठे । “यह िकसक कथा थी? वह नेक और सदगुणी यि कौन है,
िजसक गाथा को तुमने इतने संुदर श द म बाँध कर तुत िकया?”
दोन िकशोर यह सुन कर चिकत रह गए, “अयो या नरे श! यह आपक कथा है, िजसे हमारी
माता ने हमारे गु वा मीिक को सुनाया और उ ह ने इसे छं दब व िलिपब िकया।”
“अ छा, ऐसा है, परं तु तुम िजस राम का वणन कर रहे हो, वह इतना भला है, जो म नह हो
सकता। और िजस सीता का तुम वणन कर रहे हो, िजतना मुझे मरण है, वह इतनी अ ुत नह
है।” सभी ने देखा, महाराज ने अपने ने मँदू े और गहरी ास ले कर मु कराए। वे जानते थे िक
राम अपनी प नी को मरण कर रहे थे। “मने तु ह जो भट दी ह, वे पया नह । तुम इससे भी
अिधक पाने के अिधकारी हो। बोलो, तुम या चाहते हो?”
लव ने कहा, “ या हम महारानी को देख सकते ह? इन छह िदन और छह रात के दौरान, जब
से यहाँ रामायण का गान चल रहा था, उ ह ने एक िदन भी महल से बाहर अपने चरण नह
रखे।”
“परं तु वह तो सदा से मेरे साथ थी। या तुमने उसे देखा नह ?” राम बाई ं ओर मुड़े और उ ह एक
छिव िदखी और िफर उ ह समझ आया िक वह तो सोने से बनी एक ितमा थी। “यह मेरी सीता
है। सुवण क भाँित पिव , िवशु तथा साि वक। वह कभी मेरा साथ नह छोड़ती।”
“यह तो एक ितमा है। हम तो वा तिवक सीता को देखना चाहते ह,” कुश बोला।
“यही सीता, मेरी प नी है। जो सीता, अयो या क महारानी थी, उसे तो बहत समय पवू ही रा य
से बिह कृत कर िदया गया था।”
लव और कुश इन श द पर िव ास नह कर सके। “आपने सीता का याग कर िदया!” वे
भयकातर हो कर िच लाए। य ? या वे अि न परी ा दे कर अपनी पिव ता का माण नह दे
चुक थ ?”
“िन ा का अभाव िकसी को यागने का कारण नह हो सकता।”
“तो िफर ऐसा य िकया?”
“अनजाने म ही, वह राजसी मयादा व ित ा पर कलंक बन गई थी, एक ऐसा कारण, िजससे
जा को अपने महाराज का उपहास करने का अवसर िमल रहा था। उसे इस कलंक को तो धोना
ही था।”
राम के इस कठोर और िनदयी वा य को सुन लव और कुश के ोध क सीमा न रही और
उ ह ने उनसे उपहार म िमली वण मु ाओं क लिड़याँ वह पटक द । उ ह ने अपने वा यं भी
वह फक िदए। “हम आज के बाद आपका गान कभी नह गाएँ गे,” उ ह ने कहा और अपने हाथ
म धनुष थामे , दनदनाते हए वहाँ से चले गए। ऐसी ध ृ ता का दशन देख, महाराज राम के
भाईय के हाथ अपनी तलवार क मठ ू पर चले गए।
वा मीिक ने त ण महाराज से मायाचना करते हए कहा, “वे अभी ब चे ह और हम लोग का
िदल बहलाने वाले भाट ह। हम राजा-महाराजाओं के तौर-तरीक़ क कोई जानकारी नह है।
कृपया हम मा कर द!”
राम ने अपने भाईय को शांत होने का संकेत करते हए, कहा, “आपको मा माँगने क कोई
आव यकता नह है। म यह अपे ा नह रखता िक कोई मेरी बात को समझे।”
लोग ने राम से पुनिववाह करने को कहा, उ ह कहा िक वे भी अपने िपता क तरह अिधक
पि नयाँ रख तािक उ ह अपने रा य के िलए उ रािधकारी िमल सके, या कम से कम अनु ान
व य कम संप न करने के िलए तो िववाह कर ल य िक उसके िलए प नी का साथ होना
अिनवाय है। परं तु राम ने यह कहते हए मना कर िदया, “भले ही ा जी क दो पि नयाँ ह -
सािव ी और गाय ी। िव णु क दो पि नयाँ ह - ीदेवी और भदू ेवी। िशव क दो पि नयाँ ह - गौरी
और गंगा। काितकेय क दो पि नयाँ ह - व ली और सेना। गणेश क दो पि नयाँ ह - रि और
िसि । कृ ण क तीन पि नयाँ ह गी - राधा, ि मणी और स यभामा। परं तु मेरे िलए, केवल एक
सीता ही रहे गी।”
सुवण धातु को सबसे पिव माना जाता है। राम इसी धातु से सीता क ितमा बनवाते
ह, यह त य मह वपणू है।
‘कुशीलव’ श द का अथ है, िवचरण करने वाले चारण अथवा भाट। िजन चारण ने
रामायण बाँची, वे वयं राम के पु ह, जो अपने िपता से कर रहे ह िक उ ह ने
अपनी प नी के याग का िनणय य िलया? या ऐसा इसिलए हआ य िक वे वयं
उन पर संदेह रखते थे? या ऐसा इसिलए हआ िक वे अपनी जा को संतु करना
चाहते थे? अथवा ऐसा इसिलए िकया गया िक समाज म िछपी धारणाओं पर सवाल
उठाया जा सके?
यिद रामायण को उसके पारं प रक प म देखा जाए, वा मीिक और सीता के पु
को, राम का तुित गान करने वाले तपि वय के प म देखा गया है। वे िदखने म
तप वी लगते ह परं तु वे चारण ह, समाज म सबसे िन न तर के सद य, िजनका
कोई मल ू नह होता। भारत के अनेक िह स म, नट उपहास का पा होते ह। राम के
पु को इस समुदाय के सद य बना कर, वा मीिक नाटक य प से, राजवंश से जुड़े
युगल क ासदी व सामािजक औिच य क क़ मत का दशन करते ह।
हे मचं ारा सं कृत म िलिखत, जैन रामायण, योगविश म, राम सीता को वािपस
लाने के िलए, वन म उनका अनुसरण करते ह परं तु उनका कोई पता नह िमलता। वे
मान लेते ह िक सीता क म ृ यु हो गई, उ ह व य जीव ने मार िदया है। यही सोच कर
वे उनका अंितम सं कार संप न कर देते ह।
तेलुगू लोक गीत म, गहृ थ मिहलाओं ारा सीता क सुवण ितमा को नान कराने
का संग आता है। सारी मिहलाएँ , राम क बड़ी बहन शांता के नेत ृ व म ऐसा करने से
मना कर देती ह।
राम का अ
अ मेध य के, एक भाग के प म, राजक य अ को खुला छोड़ िदया जाता और कुछ ि य
उसका अनुसरण करते। अ िजतने भी थान से िबना कोई चुनौती पाए, सहजता से िनकल
जाता, वे सभी राजा के िनयं ण के अधीन हो जाते। इस कार, िकसी भी कार के र पात के
िबना रघु कुल के सा ा य तथा भाव का िव तार िकया जा सकता था।
जब अ ने वन म वेश िकया तथा वा मीिक के आ म तक आया, तो लव और कुश ने अ को
पकड़ िलया और उसे छोड़ने से इंकार कर िदया। वे बोले, “हम राम क जा कभी नह बनगे,”
उ ह ने अपने धनुष उठा िलए और संक प िलया िक वे वयं राम के यो ाओं से यु करगे।
“यह अ वािपस कर दो या इसे यहाँ से जाने दो। ब च , यह कोई डा नह । यिद तुमने बात न
मानी, तो हम तु ह जंजीर से बँधे बछड़ क तरह, राजा क क़ैद म डाल दगे।” यो ाओं ने उ ह
घमकाया परं तु लव और कुश अपने हठ पर अिडग रहे ।
यो ाओं को यह देख कर आ य हआ िक बालक यु -कला म िनपुण थे और वे बाण को
ेपा म बदलने वाले मं ो चार भी जानते थे। अयो या के ि य ने वयं को शी ही ऐसे
बाण से िघरा पाया जो सप , ग ड़ , मष
ू क , िग तथा िसंह क शि से अनु ािणत थे। बाण
क अि न से रथ झुलसने लगे और हवा के तेज़ झ के उ ह आकाश म उड़ा ले गए। उन यो ाओं
को परा त करना तो दूर रहा, उ ह तो कोई चुनौती तक नह दे सकता था, वे िकंकत यिवमढ़
ू
हो उठे । कुछ समझ नह आ रहा था िक उनके साथ ये या हो रहा था।
अयो या म संदेश भेजा गया। राजा ने उन बालक को वश म करने के िलए अपने भाईय को
भेजा। परं तु श ु न, ल मण और भरत भी उनके हाथ परा त हो गए। यहाँ तक िक हनुमान को
भी उ ह ने पकड़ कर, िकसी पालतू पशु क तरह व ृ से बाँध िदया।
राम यह सुन कर आ य से भर उठे व वन म वेश िकया। वे सुवण कवच धारण कर, सुवण रथ
पर सवार हो कर आए, िजस पर उनके रा य क पताका शोभा दे रही थी। उनके हाथ म एक
अ ुत धनुष तथा बाण से भरा तण
ू ीर था। वे उन बालक को पाठ पढ़ाने का संक प ले कर आए
थे। बालक ने भी उस यि पर वार करने के िलए धनुष-बाण उठा िलए, जो अब उनका नायक
नह रहा था।
“ठहरो!” सीता ने राजा और बालक के बीच आते हए कहा। “आप इन बालक को परािजत नह
कर सकते। इ ह कोई परािजत नह कर सकता। वे सीता और राम क संतान ह।”
सीता अपने पित राम के पास वािपस लौटने से इंकार करते हए, सं कृित तथा समाज
के िनयम से िवमुख हो जाती ह। उ ह अपना पद पाने के िलए सामािजक ढाँचे क
आव यकता नह है। वे अपने िलए धरती को चुनती ह, जहाँ कोई िनयम या सीमाएँ
नह ह।
रामायण के अनेक आधुिनक तुितकरण म, राम ारा सीता के िन कासन पर
िवचार िकया गया है, परं तु उसम राम ारा पुनिववाह करने से इंकार तथा सीता के
याण के बाद, अपने जीवन से मोह टूटने का संदभ तक नह िदया जाता। ऐसे अधरू े
आ यान, ायः मिहलाओं के ही ि कोण को िदखाते ह, और युि पवू क एक अलग
तरह के राम को दशाते ह। पि म म इ ह बहत सराहा गया, संभवतः य िक वे भारत
और भारतीय क एक िनि त छिव का समथन करते ह।
गोिबंद रामायण म, लव और कुश ारा राम क पराजय के बाद, राम सीता के साथ
अयो या लौट आते ह और उसके बाद वे दस हज़ार वष तक रा य का संचालन करते ह
परं तु महल क ि याँ सीता से रावण क छिव का अंकन करने को कहती ह और यह
संग सामने आने पर, राम एक बार िफर माँग करते ह िक सीता को अपनी पिव ता
क अि न परी ा देनी होगी। उस समय वे धरती म समा जाती ह।
एक और लोक आ यान म, सीता राम के बुलावे पर भी अयो या जाने से मना कर
देती ह। िफर उ ह राम क म ृ यु का झठू ा समाचार िदया जाता है। वे अयो या नगरी क
ओर दौड़ी जाती ह, जब राम जीिवत िदखते ह और उ ह अपने छले जाने क अनुभिू त
होती है, तो वे धरती से कहती ह िक वह उ ह अपने भीतर समा ले।
एक असिमया रामायण म, हनुमान सीता क खोज म पाताल लोक तक जाते ह और
उ ह मना कर, राम के पास वािपस ले आते ह।
ह रयाणा रा य के करनाल म सीता माई मंिदर को वह थान िदखाया गया है, जहाँ
धरती दो खंड म िवभ हई और माता सीता धरती म समा गई ं।
एकाक राम
“म अपने िलए एकांत चाहता हँ,” राम ने लव और कुश को शै या पर सुलाने के बाद कहा।
उस रात, महल म अपनी रात को जुड़वाँ भाईय ने, धरती पर, सरकंड से बनी चटाई पर ही सोना
चाहा। राम ने उ ह ऐसा करना िदया। उ ह राजसी शै या तथा आरामदेह तोशक का अ य त होने
म कुछ समय लगेगा।
महल क सारी ि याँ, सारी रात बैठ , दोन बालक को सोते हए देखती रह । दीपक के मंद
काश म, उनम से एक राम तथा दूसरा सीता के समान िदखता था। चं मा के काश म, जो राम
जैसा िदखता था, वह सीता क तरह िदखने लगा और जो सीता क तरह िदखता था, वह राम
क तरह िदखने लगा।
व ृ ा माताओं ने सीता के वनगमन के बाद से, राम से बात तक नह क थ । वे सुबक उठ । वे
उनके पौ थे, तपि वय क तरह कृशकाय, कौन उ ह देख कर कह सकता था िक वे रघुकुल
के अगले भपू ित ह।
“म ार पर पहरा दँूगा। कोई भी आपको एकांत म बाधा नह देगा। अगर िकसी ने आपके क
का ार खोलना चाहा तो म उसके ाण ले लँगू ा,” ल मण बोले। वे सदा क तरह नाटक य थे।
इस बार, राम के मुख पर मु कान नह आई।
ल मण हाथ म तलवार िलए, सारी रात क के बाहर बैठे पहरा देते रहे ।
तब, उ ह ने भोर से ठीक पहले, दुवासा ऋिष को अपनी ओर दौड़ते देखा। “मुझे भीतर जाने दो।
मुझे इसी समय राम से भट करनी है,” दुवासा गरजे।
“वे अपने िलए एकांत क कामना रखते ह। कृपया कुछ देर ती ा कर।” ल मण ने उ ह णाम
िकया। वे दुवासा ऋिष के रौ प से भली-भाँित प रिचत थे।
अयो या क ओर आरोहण
हनुमान बोलते-बोलते शांत हो गए? अचानक उ ह लगा िक वे ऐसी घटनाओं का वणन कर रहे
थे, िजनके सा ी वे वयं नह रहे थे। वह वणन उनके िलए भी वैसा ही था, जो वासुिक के र न के
काश म बैठे, मं -मु ध भाव से सुन रहे नाग को सुनाई दे रहा था। वासुिक के र न क आभा
म, हनुमान को एहसास हआ िक उनसे कुछ ऐसा भी कहलवा िदया गया था, िजसे वे वीकार
करने को तुत नह थे।
“मने आप सभी को वह सब बता िदया, जो म राम क सीता के िवषय म जानता हँ,” हनुमान
बोले। “अब कृपया मुझे संकेत द िक सीता के राम क मुि का कहाँ िमलेगी?”
“तुम उ ह सीता के राम य कह रहे हो,” केवल राम य नह ? और सीता को केवल सीता
कहने क बजाए राम क सीता कहने से ता पय?” वासुिक ने हनुमान क अधीरता को उपेि त
करते हए पछ
ू ा।
“रावण के रोष ने सीता को राम से अलग िकया। अयो या क यथ बकवाद ने राम को सीता से
िवलग िकया। परं तु हनुमान क जीभ से, सीता से राम और राम से सीता कभी िवलग नह ह गे।”
“तब भी तुम यम को रोकना चाहते हो, जो उन दोन को एक कर देना चाह रहे ह?”
य ही हनुमान के मि त क म यह बात आई। उनके कंधे िशिथल हो गए और दय डूबने लगा, वे
अनुभव कर पा रहे थे िक राम, दूसरे छोर पर ती ारत सीता के िलए िकतना तरस रहे थे। एक
गहरी ास भर कर बोले, “मेरा अिभयान तो अब भी परू ा नह हआ। मने आपको सारी कथा सुना
दी। अब आप बताएँ िक राम क मुि का कहाँ है?”
“वह तु ह वहाँ िमल जाएगी,” वासुिक ने कहा, उ ह ने नाग-लोक के म य एक िवशाल पवत क
ओर संकेत कर िदया।
हनुमान पवत क ओर भागे और वहाँ जा कर देखा तो आ यचिकत हो उठे । वहाँ तो मुि काओं
का ढे र लगा था। हर मुि का ठीक वैसी ही थी, जैसी राम क मुि का थी। उ ह ने वासुिक से पछ
ू ा,
“यह कैसा रह य है?”
“ या तु ह लगा था िक यहाँ केवल एक मुि का है? जाने िकतनी मुि काएँ और िकतने सारे
राम? हर बार, नाग-लोक म एक मुि का िगरती है, एक वानर उसका पीछा करते हए यहाँ आता
है और वहाँ राम परलोक िसधार जाते ह। ऐसा पहली बार तो नह घट रहा। यह अंितम बार भी नह
होगा। हर बार संसार जागता है और ेता-युग का आरं भ होता है। ल मी सीता के प म धरती से
उिदत होती ह और िव णु राम के प म आकाश से अवत रत होते ह।
जब भी ेता-युग का अंत होता है, तो सीता धरती क ओर लौट जाती ह और राम आकाश क
ओर थान करते ह। ऐसा पहले भी हो चुका है और ऐसा बार-बार होता रहे गा।” वासुिक ने कहा
तो उनके सात फण से सह फण िनकल आए।
हनुमान के ने के आगे अनायास ही ा ड तथा राम क कथा कट हो उठी। “यह कथा
बारं बार वयं को य दोहराती है?”
“तािक येक पीढ़ी को मनु य के अि त व के िबंदु क अनुभिू त हो जाए,”
“कौन सा िबंदु?”
“भय एक िनरं तर बना रहने वाला भाव है, िव ास व आ था एक चुनाव है। भय कम से उपजता
है, िव ास से धम उपजता है। भय कैकेयी और रावण, बकवाद से भरे माग , कठोर िनयम म
जकड़े प रवार तथा ण-भंगुर ित ाओं को ज म देता है। वे सब सदा रहगे। िव ास से राम
और सीता उपजते ह। वे अि त व म तभी आएँ गे, जब हम यह िव ास होगा िक जब तक हम इस
संसार का याग नह करते, तब तक अपने मनस् का िव तार कर सकते ह, भले ही यह संसार
हम याग दे।”
हनुमान को मरण हो आया िक िकस कार राम और सीता सदा एक शांत भाव म बने रहते थे,
भले ही वे वन म रह या महल म, एक साथ ह या एक दूसरे से िवलग! एक-दूसरे के ित
वचनब होने के बाद, उ ह यह भय नह सताता िक कोई बा बल, उनक वचनब ता को तोड़
सकते ह। हाँ, संदेह, अिनि तता व उ ेग तो रहे िकंतु वे और अिधक ा के उ ाटन का साधन
थे। उ ह ने संसार व जीिवत ािणय क कृित को समझा और उ ह िनः वाथ भाव से अपना
नेह िदया। हनुमान ने वासुिक के आगे शीश झुकाया, िज ह ने उनके िलए अ य तथा
अ प को य व बोधग य बना िदया था।
हनुमान ने राम क वह मुि का वह छोड़ी और सुरंग के रा ते वािपस आए तो पता चला िक
अयो या नाथ-िवहीन हो चुक थी। उ ह ने राम के पदिच ह का अनुसरण िकया तो, सरयू नदी
के तट पर जा पहँचे और जाना िक िकस कार उनके वामी, सीता का नाम जपते हए, जल म
उतरते चले गए और सारी अयो या नगरी नदी के िकनारे खड़ी िवलाप करती रह गई। अब वे
कभी उस जल से बाहर आते नह िदखगे।
लव और कुश राजिसंहासन पर िवराजे। या वे आपस म िसंहासन बाँटगे? यिद कोई कर सका,
तो वे करगे।
िजस जल म राम ने समािध हण क , वह उस धरती म समा गया, िजसम सीता थ , और बीज
अंकु रत हआ। पि याँ उग , फूल िखले, फल आए। लव और कुश ने वे फल आनंद से खाए।
वैिदक िवचारधारा, िज ह वेदांत के नाम से जाना जाता है, उसम सदा संबंध क बात
क जाती है। संबंध कभी भी एक नह , दो होते ह। यही त ै है, वेदांत क त ै
िवचारधारा। ा म एक को अनुभिू त होती है िक वह दूसरे के िबना कुछ नह है और
दूसरे को अनुभिू त होती है िक वह पहले के िबना कुछ नह है। यही अ त ै है, वेदांत क
अ त ै िवचारधारा।
सीता के जाने के बाद, राम का याकुल होना, सांसा रक काय म शनैः-शनैः उनक
िचय का घटना और अंततः नदी म जल समािध लेने का संग; वा मीिक रामायण
के उ र-कांड म इन संग क िवशद चचा क गई है।
आधुिनक प से, यह िवचार लोग को अ िचकर लगता है िक महाराज वयं ही
अपने ाण ले लेते ह। तकवादी इसे आ मघात कहते ह जबिक भ ने इसे समािध का
नाम िदया, िजसम बु जन वे छा से देह याग देते ह। वे छा से देह- याग का यह
अ यास, जैन साधुओ ं व िहंदू तपि वय ारा भी अपनाया जाता रहा है, जैसे याने र
का नाम ले सकते ह।
राम का ज म माता के गभ से हआ, अतः उनक म ृ यु अव यंभावी है। इस कार इस
संसार म कुछ भी शा त नह है। य िप हनुमान अपने चय त के कारण
िचरं जीवी, व अनंत काल तक बने रहने वाले माने जाते ह। गहृ थ जीवन का पालन
करने वाले राम क म ृ यु होती है परं तु साधु हनुमान नह मरते। भारतीय पुराकथाओं
म सारी संभावनाएँ िनिहत ह।
जब भी एक पिव ंथ के प म रामायण बाँची जाती है, तो ोताओं के बीच एक
र आसन, हनुमान जी के नाम से भी रखा जाता है।
अनेक पुनकथन म, लव और कुश को दो अलग नगर पैतक ृ धरोहर के प म स पे
जाते ह; ाव ती और कुशावती। बाद म जब लव अयो या वािपस आता है तो वह उसे
प र और ीहीन पाता है। वह अयो या क पुरानी क ित और खोई ग रमा को
वािपस लाने का य न करता है। जैन सं करण म, लव और कुश, दोन ही साधु बन
जाते ह। कुछ सं करण म, कुश अपनी माता का अनुसरण करता है और लव अयो या
का संचालन करता है।
कािलदास क रघवु श ं म ् म राम के वंशज क कथा कही गई है, जो अि नवण पर
समा होती है। वह एक पथ और अहंकारी राजा है, िजसका अिधकतर समय
अपनी रािनय के बीच ही बीतता है। जब उसे जा को दशन देने के िलए कहा जाता है
तो वह एक गवा से अपना पैर भर िदखला देता है जैसे उसका आल य उसे शै या से
भी उठने नह देता। अंततः उसक म ृ यु हो जाती और उसक िवधवा रानी को
राजिसंहासन पर िबठाया जाता है।
स हव सदी म, अनोना प रवार के लैिटन अमे रक फल भारत आए, उ ह लोकि य
बनाने के िलए भारतीय नाम िदए गए। इस कार हम सीता-फल और राम-फल के बारे
म सुन सकते ह, जो िक शरीफा और लोना नाम से भी जाने जाते ह। इसके अित र
एक ल मण-फल तथा हनुमान-फल भी पाया जाता है।
भारतीय पुराकथाओं म हम िनरं तर राम और नई-नई रामायण के दशन होते रहे ह।
यह इस बात का सच ू क है िक जीवन एक रे खीय नह होता; इसम कह कोई पण ू
िवराम नह । जीवन च य है; जो भी छूट जाता है, वह वािपस लौट कर आता है। यही
कारण है िक अनेक भाषाओं म आने वाले कल तथा बीते हए कल के िलए केवल
‘कल’ श द का ही योग होता है।
पारं प रक तौर पर, सीता का मरण करने के बाद ही, राम का मरण िकया जाता है
अतः अिभवादन करते हए ‘जय िसया राम’ कहने क परं परा रही है अथात िसया के
राम क जय हो। हालाँिक कई जगह पर िसया या सीता के थान पर, अब केवल जय
ी राम कहा जाने लगा है, जो घटती हई सं कृित के उदय का सच ू क माना जा सकता
है। कुछ लोग का मत है िक ीश द को केवल आदरसच ू क नह माना जाना चािहए।
ल मी के वैिदक नाम म एक नाम ी भी है।
महाभारत क तरह, रामायण को भी इितहास कहा जाता है, िजसे दो प म
पांत रत िकया जा सकता है - इितहास के तौर पर, िजसम अतीत क घटनाओं का
िववरण दज िकया जाता है; दूसरे , एक ऐसी कथा के प म, जो काल िनरपे अथवा
समय क सीमाओं से परे हो। यह िकसी िनि त अविध (जैसे पाँच हज़ार ई.प.ू या) या
िकसी िनि त थान (गंगा के मैदानी इलाक़े) और िकसी िनि त किव (वा मीिक) से
संबंिधत हो सकता है; अथवा इसे येक पा के साथ मनोवै ािनक प म देखा जा
सकता है, जहाँ वह हमारे यि व का एक िविभ न प ही पाियत कर रहा हो।
आभार
भारतीय पौरािणक कथाओं व िमथक के बीच अ ुत संतुलन साधने वाले लेखक देवद
पटनायक क पु तक ‘सीता’ के अनुवाद का ताव िमला तो मन का कौतहू ल जाग उठा। वे
िद य पा व च र को श द के ऐसे ताने-बाने म बाँध देते ह िक वे िचर-प रिचत होते हए भी,
एक अिभवन रं ग- प व आभा के साथ कट होते ह। पु तक के प ृ दर प ृ पढ़ने पर ‘सीता’
अपने च र के परू े वैिव य के साथ सामने आती गई ं। अनुवाद करते हए कह भी ऐसा नह लगा
िक म रामायण क उस कथा को अनिू दत कर रही हँ, जो हम भारतीय को ज म से ही घु ी क
तरह सं कार के साथ दी जाती है। रामायण के सभी उपल ध और अनुपल ध सं करण और
िविभ न मा यम से तुत राम कथाओं, िच , छिवय और लोकगाथाओं के बीच से देवद
अनठ ू े और िनराले संग खोज लाए ह, जो ‘सीता’ क रोचकता और पठनीयता को और भी बढ़ा
देते ह। राम और सीता क कथा को ामािणक और दुलभ त य के बीच संजोया गया है, िज ह
पढ़ कर अनुभिू त होती है िक रामायण को मा एक भारतीय महाका य नह बि क एक चेतन
परं परा के प म देखा जाना चािहए।
इस पु तक क कथा-व तु लेखक क अनठ ू ी सोच को दिशत करती है। पाठक से आ ह
है िक वे धीरज के साथ इस कथा का आनंद ल, चँिू क आज हम सभी अं ज़ी म सोचने के आिद हो
चुके ह, भले ही हमारी बोलचाल क भाषा कोई अ य ही य न हो। ‘सीता’ का अं ेज़ी से िह दी
म अनुवाद करना अपने-आप म एक दु ह काय रहा। इसका एक कारण यह भी था िक दोन
भाषाओं के पाठक-वग अपनी िविश िवचारधारा से जुड़े ह और उसी के अनु प अपे ाएँ रखते
ह।
पु तक म सीता व हनुमान के पर पर संवाद म सीता नर और िवचार के िवषय म कहती ह
िक िवचार ही नर को नारायण तक ले जाते ह और हनुमान पछ ू ते ह िक नारायण कौन ह:
“िन ालीन िव ण:ु हमारी मानवीय संभावना, जो सदैव पिु पत होने क ती ा करती रहती
है।”
“यह मानवीय संभावना या है?”
“संसार को दूसरे यि के ि कोण से देखना और उससे साथकता पाना।” सीता उ र
देती ह।
रामायण म िछपी यह मानवीय संभावना ही इसक साथकता है। देवद उसी मानवीय
संभावना को साकार करने म अपनी ओर से मह वपण ू योगदान दे रहे ह। उ ह ने सं कृित व
कृित के अंतर को बड़ी बोधग यता के साथ तुत िकया है। अनुवाद क ि या बहत सहज
रही य िक लेखक ने कह भी अित र जानकारी और ान दशन ारा कथानक को बोिझल
या किठन नह होने िदया। पु तक क सबसे बड़ी ख़बू ी यही है िक वे रामायण क कथा को
अनाव यक िव तार देने के लोभ का संवरण कर पाए ह। धम और आ था का मनु य क
भावनाओं से गहरा और सीधा संबंध है, और लेखक के श द भल ू े से भी भावनाओं को आहत नह
करते, वे संवदेनशील भाव को ख़बू सरू ती से उजागर करते ह।
अंत म, पाठक वयं को इतना स म पाता है िक वह समुिचत िव े षण के बाद अपने िलए
े िवक प का चयन कर सके। िकसी भी अ छे लेखक क सबसे बड़ी िवशेषता यही है िक वह
अपनी मा यताएँ या िवचार पाठक पर न थोपे, और मेरे अनुसार देवद इसके िनवाह म सफल रहे
ह। इस सुंदर पु तक के िलए उ ह शुभकामनाएँ ।
ु ादक के बारे म
अनव