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असुर

असुर
परा जत क गाथा
रावण व उसक जा क कहानी

आनंद नीलकंठन

अनुवाद : रचना भोला ‘या मनी’


First published in India by

Manjul Publishing House Pvt. Ltd.


• 2nd Floor, Usha Preet Complex,
42 Malviya Nagar, Bhopal 462 003 - India
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Email: manjul@manjulindia.com Website: www.manjulindia.com

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Ahmedabad, Bengaluru, Kolkata, Chennai,
Hyderabad, Mumbai, New Delhi, Pune

English edition originally published in India by Platinum Press


an imprint of Leadstart Publishing Pvt. Ltd.

© Story: Anand Neelakantan, 2012


© Illustrations: Leadstart Publishing, 2012

Abridged Hindi translation of Anand Neelakantan’s


ASURA - Tale of the Vanquished

This edition first published in 2014

ISBN 978-81-8322-435-2

Translation by Rachna Bhola ‘Yamini’


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advocacy.
परा जत भ इस तरोताज़गी से भरपूर कथानक का नायक है, जसे लेखक ारा एक
अ भनव यास के प म दे खा जा रहा है, ज ह ने कसी सामा य जन क अपे ा, भ के
कोण से रामायण को नए सरे से तुत करने का साह सक क़दम उठाया है। यह सही
मायन म, रावण तथा उसक जा क स मो हत कर दे ने वाली कथा है।
–द ह
असुर सा ा य के एक सामा य नाग रक तथा परा जत असुर स ाट के कोण के
साथ-साथ, यह उप यास हमारे युग पुराने महाका को एक संपूण प से ताज़ा व नया
नज़ रया दे ता है। यह परा जत तथा अब तक मूक रहे लोग क कथा है। एक ब कुल ही
नवीन कोण।
– डेकन ॉ नकल
यह रामायण के एक असंभा नायक – रावण के कोण का आ मकथा मक
ववरण है। संभवतः पहली बार कोई उप यास रावण के कोण से लखा गया है। रावण
का दं भ हम सोचने पर ववश कर दे ता है।
– द यू इं डयन ए स ेस
इससे कोई अंतर नह पड़ता क आप पौरा णक गाथा म व ास रखने वाले ह
अथवा नह , असुर – परा जत क गाथा, एक पठनीय पु तक है य क इसका नया वषय
आपके म त क को आंदो लत करने क पया त मता रखता है। लेखक ने रामायण क
घटना को उ लेखनीय व ता कक प म तुत कया है। एक भावो पादक उप यास।
– आ टरनून वॉइस
लेखक ने अपनी वणना मक शैली म ब त ही सुंदर तरीके से रावण तथा राम के पा
को च त कया है। यह पु तक असुर तथा दे व के म य ए संघष का उ लेखनीय दशन
करती है। वतमान के े महाका कथानक म सव े तथा ब त ही क पनाशील!
– नट मरर
यह रावणायन है, रामायण का असुर सं करण।
– वव मैगज़ीन
एक तथा उसके लोग क कथा, ज ह ने ःसाहस कया। एक असुर महागाथा –
यह न त प से रावण क ओर से सुनाई जाने वाली पौरा णक कथा म एक ब कुल ही
नया मोड़ है।
– इं डया लाज़ा लटरेरी र ू
रावण, ‘भुलाया आ नायक’। हमारी बे ट सेलर सूची म एक रोमांचक मोड़ है, असुर।
– ॉसव ड ऑ फ़ शयल लॉग
य द आप पौरा णक गाथाएँ, इ तहास तथा चाण य मं , नागा रह य जैसी पु तक पढ़ना
पसंद करते ह, तो यह न त प से आपके लए ही है। एक बेहद सफल पु तक।
– लडमाक ऑ फ़ शयल लॉग
मेरे माता- पता
वग य ी एल. नीलकंठन व
चे लमाल नीलकंठन को सम पत,
ज ह ने मेरे लए भारतीय पौरा णक
गाथा से रचे
जा ई संसार के ार खोले!
लेखक के वषय म
मेरा ज म, केरल म कोचीन क बाहरी सीमा पर थत, एक छोटे से वल ण गाँव
पूनीतुरा म आ। वबानाड झील के पार, एरनाकुलम के पूव म थत इस गाँव को, कोचीन
के शाही प रवार का थान होने का गौरव ा त आ था। य प, यह अपने सैकड़ व च
दे वालय ; अपने शा ीय कलाकार तथा संगीत व ालय के लए अ धक स था। मुझे
आज भी मरण है, मेरी कतनी ही शाम, दे वालय से आते चड , क म म धुन तथा संगीत
व ालय क खुरदरी द वार को भेद कर आती बाँसुरी के सुर को सुनने म बीतती थ ।
य प खाड़ी से आए धन तथा तेज़ी से व तार कर रहे कोचीन नगर ने उस पुराने संसार के
आकषण के बचे-खुचे अवशेष को भी धो-प छ कर बहा दया है। पूरा गाँव एक आम व
साधारण उपनगरीय नक म बदल गया है, जसके त प पूरे भारत म दे खे जा सकते ह।

म आव यकता से अ धक मं दर वाले गाँव म पला-बढ़ा, अतः इसम कोई आ य नह क


रामायण ने मुझे ब त आक षत कया। यह भी एक वडंबना रही क म इस महाका के
खलनायक – रावण, और उसक जा – असुर के त अ धक आक षत रहा। म ायः
उनके जा ई संसार के वषय म सोचता परंतु मेरा यह आकषण अनेक वष तक सु ताव था
म ही रहा। यह ायः तभी सामने आता, जब म पा रवा रक समारोह म, धा मक वभाव
वाली मेरे प रवार क म हला को अपनी बात से खझाता अथवा चढ़ाता। जीवन चलता
रहा… म एक इंजी नयर बना; इं डयन ऑयल कॉप रेशन का ह सा बना, बंगलौर आया,
अपणा से ववाह कया और अपनी पु ी अन या तथा पु अ भनव का जीवन म वागत
कया।

परंतु असुर स ाट ने मुझे कभी अकेला नह छोड़ा। छह वष से वह मुझे सपन म आतं कत


करता आया है, मेरे साथ-साथ चला है और मुझसे आ ह कया है क म उसक ओर से
कथा का सं करण तुत क ँ । केवल वही नह था, जो यह चाहता था क म उसक कथा
लखू।ँ एक-एक कर, रामायण के अ ासं गक व गौण माने जाने वाले पा भी, अपनी-अपनी
कथा के सं करण ले कर स मुख आते रहे। भ , जो अ य सामा य असुर म से एक था,
ज ह रावण ने े रत कया, नेतृ व दया और अंततः उनसे छल कया। उसके पास भी एक
उ लेखनीय कथा थी, जो उसके महाराज से सवथा भ थी। और उन दोन क कथाएँ,
रामायण क उस कथा से ब कुल ही अलग ह, जसे पछले तीन सह वष से, पूरे ए शया
म सह व वध प व कार म सुनाया जाता रहा है। तो आपके लए तुत है असुरायन,
असुर क गाथा, परा जत क गाथा!

आनंद नीलकंठन से संपक कर: mail@asura.co.in


दशमुख
रावण को दस शीश वाले के प म य दशाया जाता है?

य प, एक सव च खलनायक के प म दस शीश तथा भुजा वाले रावण से, येक


भारतीय तथा भारतीय पौरा णक गाथा का व ान प र चत है। परंतु ब त कम ही
ऐसे ह, जो यह जानते ह क उसे इस प म य दशाया जाता है। पारंप रक भारतीय ववेक
तथा ा, के भाव पर नयं ण को मह व दे ते ह और बु को े स ा के प म
व णत कया जाता है।

महान नरेश महाब ल, रावण को परामश दे ते ह क वह ोध; अ भमान; ई या; स ता;


उदासी; भय; वाथपरकता; आवेग तथा मह वाकां ा जैसे नौ आधारभूत भाव को
याग कर, केवल बु को ही य दे , आदर-मान दे । भारतीय आ या मक गु ने भी
सदै व अपने ‘ व’ से ऊपर उठने तथा आ मा के वकास के लए, इन भाव को हा नकारक
माना है।

परंतु, महाब ल को यु र दे ते ए, रावण तक दे ता है क इन सभी दस भाव को संपूण


प से अपना कर ही वह एक संपूण मनु य बना है। इस कार पौरा णक गाथा म रावण
को दस सर वाला दशाया जाता है, जब क उसक बीस भुजाएँ उसक श तथा बल का
तीक ह। रावण वयं को एक संपूण मनु य के तीक के प म दे खता है; वह वयं को
कसी भी कार के प व छ ावरण अथवा सामा जक व धा मक वजना म नह बाँधता।
वह कसी भी साधारण मनु य क ही भाँ त भला व बुरा है, जैसा क कृ त मनु य को
बनाना चाहती है। समाज उसके नौ अ य मुख पर तबंध लगाने म असफल रहा, जैसा क
राम के वषय म कया गया है। इस कार राम को ई र के प म दे खा जा सकता है, परंतु
रावण कह अ धक संपूण मनु य है। हमारे महाका ने रावण के दस सर को, ऐसे
के तीक के प म लया है, जो अपने अ नयं त आवेग स हत – जीवन के रसा वादन
तथा आ लगन के लए तुत है – सम प से।
रावण के असुर सा ा य के चरमो कष के दौरान ाचीन भारत
वषय सूची
तावना
1. अंत
2. बीजवपन
3. बंद
4. गु
5. दसमुख, दस मुख वाला
6. शैतान का आ मण
7. परा जत का परामश
8. महाराज
9. य मारीच
10. मोती प का संकेत
11. समु द यु क घेराबंद
12. वा पटु
13. समु द यु का हंगामा
14. ववाह का शुभ मु त
15. ां तकारी
16. एक ां तकारी क मृ यु
17. अ पृ य राजा
18. असुर राजकुमारी
19. उसे जी वत रहने दो
20. दे शभ
21. अंधकार का पु
22. उप व
23. ं यु
24. दे श ने अपने नायक को ध यवाद दया
25. पु ी का ववाह
26. समय आ गया है
27. असुर राजकुमारी क वापसी
28. अल वदा मारीच
29. कोतवाली
30. मृ यु का संदेशवाहक
31. मेरे नगर को जलने दो
32. शां त का संदेशवाहक
33. यु क सुगबुगाहट
34. मेरे लोग के लए
35. नरंकुश यु
36. पु मोह
37. मृ यु क पदचाप
38. कसके लए?
39. नायक क वापसी
40. एक धानमं ी क मु हम
41. मंदोदरी संग
42. आदशवाद का अंत
43. कुंभकण का आ मण
44. मेघनाद वध
45. शहीद का अं तम सं कार
46. एक असफल स ाट
47. मृ यु क कामना
48. एक व का अंत
49. वजेता व उनका वहार
50. नए जीवन का अंकुर
51. धम पी खड् ग
52. आरंभ
आभार
तावना
इ तहास सचाई का पूरा बखान अकसर नह करता: वह एक से सचाई को दे खता-
समझता है और उसम सरी संभव य का अहसास भले ही हो, वह उ ह समा हत करने
क ज़ रत नह समझता या क वैसा करने क कोई हक़मत नह खोज पाता। सा ह य को
शायद इसी लए ‘ सरा इ तहास’ कहा जाता है क वह अ त व, मानवीय वड बना और
समय म अ यथा को हसाब म लेता है, उसके प को भी समा व करने क चे ा करता है।
भारत के दो कालजयी महाका ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ ऐसी सा ह यक कृ तयाँ ह
जनम महाका ा मकता का अथ ही उसम च रताथ अ छाई और बुराई, पु य और पाप,
आ म और अ य, शुभ और अशुभ आ द क सजग-स य ा मकता से है। इन दोन ही
महाका ने भारतीय सा ह य म ऐसी अनेक कृ तय को उपजाया है जो उनम अल त,
अ वव त, उपे त रह गये च र और संग पर आधा रत है।

ह द म ही उ मला पर के त मै थली शरण गु त का का ‘साकेत’, धमवीर भारती के


नाटक ‘अ धा युग’ के च र अ थामा आ द को, इस सल सले म याद कया जा सकता
है। आन द नीलकंठन ने ऐसे ही एक बड़े च र , रावण क से कथा नयो जत क है: यह
रामकथा के बर स रावण-कथा है। यह सुर क नह असुर क गाथा है। यह वजेता क
नह परा जत क कहानी है। एक ऐसे अभागे समय म जब हमारी परंपरा क अनेक ढ़
और वज ड़त ा या का बोलबाला है, ऐसा करना सा ह यक साहस है। पर सा ह य
यही करता है: वह इ तहास क तरह सफ़ वजेता से आ ा त नह होता, उसम परा जत
का प रखने का साहस भी होता है। यही क पनाशीलता और साहस उसे उसका अनूठा
नै तक बल और आभा दे ते ह। उसके लए खलनायक भी नायक होता है।

जो लोग सचाई को दोटू क काले और सफ़ेद म दे खने-समझने के आद ह, वे सचाई को


सरलीकृत करते ह: काले और सफ़ेद के बीच ब त सारा भूरा अहाता होता है जसे सा ह य
अपने भूगोल का के बनाता है। इस उप यास म ऐसी ही सचाई का ब त रोचक और ठोस
योर के साथ ल बा पठनीय वृ ा त है। रावण को अपने कम का फल मला पर उसके प
को समझे बना उस पर नणय दे ना उ चत नह है। हम नणय दे ने क हड़बड़ी को थामना
चा हए। अगर आप यह उप यास पढ़कर नै तक असमंजस म पड़ते ह तो यह सा ह य क
अपनी सफलता है। सा ह य अपनी ज़ मेदारी नह नभाता अगर वह पर परा, इ तहास,
लोक व ास आ द को ांकन के घेरे म न लाता हो।
अशोक वाजपेयी
1 अंत

रावण
कल मेरा अं तम सं कार होगा। म नह जानता क वे मुझे कसी खुजली वाले कु े क तरह
दफ़ना दगे या मुझे कसी स ाट के लए उपयु अं तम सं कार का भागी माना जाएगा –
एक भूतपूव स ाट। परंतु इससे कोई अंतर भी नह पड़ता। म छ ना-झपट के कारण सयार
के मुख से नकल रही व न सुन सकता ँ। वे मेरे प रजन व म के शव को अपना आहार
बना रहे ह। अचानक ही पैर के ऊपर से कुछ सरसरा कर नकलने का आभास आ। ये या
था? मुझम तो सर उठा कर दे खने क श तक शेष नह रही। घूस… बड़े और काले बाल
वाले चूहे। जब मूख ने पर पर वनाश का काय पूण कर लया तो यु े पर इन घूस ने
अपना अ धकार जमा लया है। आज का दन उनके लए कसी उ सव से कम नह है, जो
क पछले यारह दन से चलता आ रहा है। सड़े ए माँस, पस, र , मू व शव से आती
सड़ांध और भी गहराती जा रही है। श ु प क और हमारी भी! परंतु कोई अंतर नह
पड़ता। कसी भी बात से अंतर नह पड़ता। म भी शी ही ाण याग ँ गा। यह क दायी
पीड़ा अब सहन नह होती। उसके ाणघातक तीर ने मेरे उदर पर गहरा वार कया है। म
मृ यु से भयभीत नह ँ। म कुछ समय से इसके वषय म वचार करता आ रहा ँ। पछले
कुछ दन म हज़ार जान ग ।

सागर क गहराइय म कह , मेरा भाई कुंभ; वशाल मछ लय ारा अधखाई गई दे ह के साथ


मृत पड़ा होगा। कल ही मने अपने पु मेघनाद क चता को मुखा न द थी। या फर शायद
एक दवस पहले? अब तो समय का भी कोई आभास शेष नह रहा। म अनेक व तु के
वषय म ान खो बैठा ँ। ा ड क गहराइय म कह एक अकेला तारा हौले से टम टमा
रहा है। मानो कसी दे व का ने हो। काफ़ हद तक भगवान शव के तीसरे ने क भाँ त;
सब कुछ वन कर दे ने वाला, सब कुछ लील जाने वाला ने । मेरी य लंका आज त-
व त ई पड़ी है। म अब भी वे बुझे अँगारे दे ख सकता ँ, जनके बीच कभी एक भ
नगरी आ करती थी। मेरी राजधानी, कोट, संसार क महानतम नगरी थी परंतु एक नर-
वानर आया और पूरी नगरी को अ न क लपट म वाहा कर दया। कोट कई दन तक
धू-धू कर जलती रही। कान, घर, ासाद, पु ष, याँ व शशु, सब कुछ जल कर राख हो
गया परंतु हमने नए सरे से उसे पुनः था पत कया। लगभग येक यो य ने कोट
के पुन नमाण म अपना सहयोग दया। फर वे नर-वानर अपने वामी के साथ आए और सब
कुछ वन कर दया। हनुमान ने हमारी यह दशा क । वही नर-वानर हम मृ यु, वनाश व
पराजय क ओर ख च ले गया।
म इस वषय म अ धक वचार नह करना चाहता। मुझे तो उसी समय उसे मृ यु के घाट
उतार दे ना चा हए था, जब मेरा पु उसे बंद बना कर लाया था। इसक बजाय, मने अपने
छोटे भाई क बात मानी, जसने मेरे ही व षड़यं रचा। परंतु छल-कपट व व ासघात
असुर के लए कोई नई बात तो नह है। म ब त ही न कपट था। मने मूखतापूण व ास
कया क म सदै व अपने भाइय व जाजन के नेह का पा बना र ँगा। मने कभी क पना
तक नह क थी क मेरे साथ ही छल-कपट होगा। मुझे लग रहा था क ज़ोर-ज़ोर से अ हास
क ँ । परंतु जब कसी क अंत ड़याँ चीथड़े हो कर आसपास बखरी ह तो इस तरह हँसना
भी सहज नह होता। नगर से आते उ लास के वर ने मेरे दय पर सीधी चोट क । श ु प
अपनी वजय का समारोह मना रहा है। नर-वानर कोट म लूट मचाने म त ह गे। मेरे
मं दर लूटे जाएँगे; अनाज के भंडार को आग क लपट के हवाले कर दया जाएगा,
पाठशाला और अ पताल को भी जला दया जाएगा। वजयी दल ऐसे ही तो होते ह।
हमने भी अनेक दे व ाम क इसी कार और संभवतः इससे भी भयंकर दशा क है, यह
सब उन दन क बात है, जब वजय ी मेरी अधा गनी आ करती थी। कुछ कु प वानर
न त प से मेरे अंतःपुर म भी वेश कर गए ह गे। आशा करता ँ क मेरी रानी को इतनी
सुबु द आ जाएगी क कुछ भी अनथ होने से पूव, कसी ऊँची च ान से छलांग लगाकर
अपने ाण का अंत कर दे । म अब कसी भी व तु पर नयं ण नह कर सकता। म मृ यु क
उ ण ास को अपने शरीर पर अनुभव कर सकता ँ। सयार आ गए ह। वे मेरे शरीर के
कस अंग को पहले खाएँग? े संभवतः मेरी अँत ड़य को ही नशाना बनाएँ, य क उनम से
अब भी र क धारा वा हत हो रही है। अगर मेरी पसली का कोई टु कड़ा कसी सयार के
गले म फँस जाए तो या हो? म यही सोच कर मंद-मंद मु करा उठा। ओह! ये या। म तो
यह शत भी हार गया। उ ह ने मुझे चेहरे से खाना आरंभ कर दया है। एक सयार ने मेरे गाल
म अपने दाँत गड़ा कर, माँस का एक टु कड़ा नोच लया है। चूहे मेरे पैर क अँगु लयाँ कुतर
रहे ह।
म, रावण, एक ब त लंबी री तय कर आया ँ। अब मेरे पास ऐसा कुछ नह बचा, जसके
लए यु कया जा सके; केवल सयार के साथ कया जाने वाला यु ही शेष है। कल,
सड़क से एक शोभाया ा नकाली जाएगी। वे मेरा कटा आ सर एक खंभे पर टाँग दगे
और उ ह सड़क से हो कर नकलगे, ज ह ने कभी मुझे राजसी रथ म दौड़ते दे खा था।
मेरी अपनी ही जा भय तथा वकृत आनंदवश, इस य को दे खने के लए उमड़ पड़ेगी। म
अपने लोग क मान सकता से भली-भाँ त प र चत ।ँ उनके लए तो ये एक ब त बड़ा
तमाशा होगा।

म एक बात नह समझ सका क जब म गरा था तो राम मेरे पास आकर य खड़ा हो गया
था। वह वहाँ इस कार खड़ा था मानो मुझे अपना आशीवाद दे रहा हो। उसने अपने भाई से
कहा क म इस जगत का सबसे व ान ाणी व एक महान राजा था और कोई भी मुझसे
शासन व ा क श ा ले सकता था। मने लगभग ज़ोर से ठहाका लगाया। मने तो इस
कार सुशासन चलाया क आज मेरा ही सा ा य मेरे आगे चूर-चूर आ पड़ा था। म अपने
सै नक क जली ई दे ह क गध अनुभव कर सकता था। कोट के जलने से उ प
ती ण गंध अब भी मेरी इं य म बसी है। म अब भी अपनी भुजा म मेघनाद के शीतल
और ाणहीन शव को अनुभव कर सकता था। म इन दो यो ा व उनक वानर सेना से
अपनी जा क र ा नह कर सका और वह कह रहा था क म एक महान शासक था? म
इस अ वधान को अव य ही सराह सकता था। म अपने श ु का उपहास करना चाहता
था; उन सब मूख का उपहास करना चाहता था ज ह ने मुझ पर व ास कया और आज
यु भू म म सर वहीन, अंग से र हत तथा नज व अव था म पड़े ह। म सभी मनु य के
लए समानता के उन आदश व का उपहास उड़ाना चाहता था जनके आधार पर मने
अपने सा ा य क आधार शला रखी थी। नःसंदेह यह सब उपहास यो य ही था परंतु कसी
स ाट के जीवन के अं तम ण न त प से ऐसे नह होने चा हए थे। मने कठोर प र म
कया और दे व व उनके ारा चुने गए मनु य के साथ यु कया। मुझे तो संदेह है क या
वग म उन लोग को थान मल पाता होगा, जो हँसते-हँसते ाण याग दे ते ह।

तभी अक मात् प से, जस तरह चूह और सयार क बन आई थी, उसी तरह वे शांत भी
हो गए। अंधकारपूण रा से भी अ धक अंधेरी छाया मुझ पर पड़ी। घुंघराले बाल वाले
काले से सर ने उस एकांत म टम टमा रहे तारे को मेरे ने से ओझल कर दया। या वह
मृ यु का दे व, काल था जो मुझे लेने आया था? मने अपनी आँख पूरी तरह से खोलने का
भरसक य न कया कतु सूखा र पलक पर जम गया था। या यह राम के अनुचर म से
कोई था जो मेरा शीश काटने आया था ता क उसे यु म व जत पुर कार क भां त दशाया
जा सके? म उसका चेहरा दे खना चाहता था। म अपने इन अं तम ण म अपलक व
अ वचल भाव से ताकना चाहता था। उस सर व घुंघराले बाल को दे खते ही अचानक मुझे
मेरे अतीत क याद आ गई। या म उसे जानता ? ँ वह झुका और मेरे चेहरे क ओर दे खा।
ओह! ये तो भ है। म , संभवतः एकमा जी वत म पर म यह नह जानता क उसे म
कह भी सकता ँ अथवा नह ? वह आरंभ म मेरा एक अनुचर, पैदल सै नक था। फर वह
जाने कहाँ खो गया। वह बार-बार मेरे जीवन म आता-जाता रहा और कई बार तो वष
दखाई नह दया। जब म कसी ां तकारी सेना क बजाय लुटेर के दल सरीखे दखने
वाले दल का मुख था तो भ क प ँच मेरे नजी डेरे तक थी। फर जब म छोटे से प का
राजा बना तो उसक प ँच मेरे नजी क तक थी। अंततः, जब म भारत पर शासन कर
रहा था तो उसक प ँच मेरे शयनक तक हो गई थी। इससे भी बड़ी बात यह थी क भ
क प ँच मेरे मन के अंधकारमय कोन तक भी थी; एक ऐसा ह सा जसे मने अपने
भाइय , अपनी प नी, अपनी े मका, अपनी जा व यहाँ तक क वयं से भी छपा रखा
था।

भ यहाँ या कर रहा है? परंतु म इतना आ यच कत य ँ? यह थान उसके जैसे


य के लए ही तो है, जो यहाँ दन ढलने पर मंडराते दखते ह। म उसे सुब कयाँ भरते
सुन सकता ।ँ भ भावुक हो रहा है? वह तो कभी ो धत, उदास या स नह होता था।
आज वह ऐसे वहार कर रहा था मानो कतना भावुक हो। परंतु म जानता था क
उसके मन म भाव के लए कोई थान नह था। और भ भी यह जानता था क यह बात
मुझे पता थी। “भ , मुझे यहाँ से ले चलो, मुझे यहाँ से ले…।” इसके आगे कुछ कहने क
श ही नह रही। दरअसल, म नह जानता था क श द वा तव म मेरा साथ छोड़ चुके थे
अथवा मेरे कंठ के भीतर घुट कर स ाटे से भरी मौत मर गए थे? भ ने अपनी गदन हलाई।
मेरा पूरा शरीर ठं डा पड़ा था, पूरी तरह से ठं डा। मेरे शरीर से जीवनी श ीण होती जा
रही थी। फर भ ने मेरा सर अपने व म भर लया। म उसके वेद क गंध को अनुभव
कर सकता था। मेरे शरीर के पोर-पोर से दद बह नकला और उसने मेरी शरा म अपने
वषा पशक गड़ा दए। म ज़ोर से कराहा। भ ने मुझे गीली धरती पर लेटा दया, जो मेरे
अपने र , मेरे अपने लोग के र , मेरे सपन के र और मेरे जीवन के र से भीगी ई
थी। सब कुछ शेष हो चुका था।

एक तरह क उदासी और खालीपन ने मुझे घेर लया। “महाराज! म आपके अधूरे काय को
पूरा क ँ गा। आप चता न कर। आप शां त से ाण याग। म अपनी जा त के लए ऐसा
क ँ गा। हो सकता है क मेरे तरीक़े भले ही अलग ह , वे आपके तरीक़ क तुलना म अधम
ही य न जान पड़। म भी तो कभी एक यो ा था, परंतु अब म वृ हो चला ँ। अब मुझे
सेनाएँ भयभीत कर दे ती ह। म यु से डरने लगा ँ। म अब एक बालक को भी चोट नह
प ँचा सकता। जो भी हो, मेरे अपने तरीक़े ब त ही घातक ह। म आपके लए तशोध
लूँगा, मेरे लए और हमारी अ भशा पत जा त के लए! राम ने हमारे साथ जो कया, उसके
लए उसे मा नह कया जाएगा। मेरा व ास कर व शां त से ाण याग।”

मने भ क अ धकांश बात सुनी ही नह । कतनी व च बात है, य प मुझे बड़ा ही सुकून
मला और म इस गधयु असुर से कह र, अपने बा यकाल म लौट गया। मेरे म त क
म हज़ार छ वयाँ नाचने लग । मेरे ारं भक संघष, नेह व प र याग क पीड़ा, वयोग,
सं ाम व यु , संगीत व कला क छ वयाँ; वे असंगत प से मेरे म त क म घूम रही थ ,
उनका कोई अथ नह था… ब कुल अथहीन… जैसे यह जीवन है।

मने अनुभव कया क भ मेरे चरण पश के लए झुका और फर वहाँ से चला गया।


“भ …” म चाहता था क वह लौट आए और मुझे कसी च क सक के पास ले जाए, जो
मेरी अंत ड़य को उनके थान पर वा पस बैठा दे , मेरी बा आँख को फर से लगा दे , जो
खोखल से बाहर आ गई है और कसी तरह मेरे न ाण होते जा रहे शरीर म नई जीवन
श फूँक दे । म चाहता था क मु य भू म म थत स वन म लौट कर गु र ला यु कला
का आ य लू,ँ जैसे महाब ल ने आज से वष पूव कया था। म सब कुछ नए सरे से आरंभ
करना चाहता था। म फर से वही भूल दोहराना चाहता था, उ ह लोग से नेह रखना चाहता
था, उ ह श ु से पुनः यु करना चाहता था, उ ह पुनः अपना म बनाना चाहता था,
उ ह प नय से पुनः ववाह रचाना चाहता था और फर से उ ह पु को ज म दे ना चाहता
था। म पुनः वही जीवन तीत करना चाहता था। मुझे उस पद को पाने क कोई आकां ा
नह है, जो राम ने मेरे लए वग म नयत कर रखा है। म केवल अपनी मनोरम धरती से मोह
रखता ँ। म जानता था क यह सब पुनः घ टत नह होने वाला था। म सोलह वष का नह ,
साठ वष का था। य द म जी वत भी रहा तो नःसंदेह कसी एक आँख वाले, गंदे व बूढ़े
भ ुक के प म, सड़क कनारे बने मं दर म, बदबू से गंधाते, चथड़े हो चुके व म
अपना जीवन बताना होगा। म जो भी था, आज उससे तो र, ब त ही र नकल आया ँ।
म अब शां त से मरना चाहता ।ँ म यहाँ से चले जाना चाहता ँ। अ न क लपट से घरे इस
नगर को अपनी र ा वयं करने दो। असुर को अपने यु वयं लड़ने दो और दे व के साथ
अ भशा पत रहने दो। म तो केवल अपने बा यकाल क ओर लौट जाना चाहता ँ और सब
कुछ नए प म आरंभ करना चाहता ँ, एक-एक काय फर से करना चाहता ,ँ फर से
और फर से… सब कुछ एक नए सरे से…
2 बीजवपन

रावण
मानसूनी हवाएँ उस छोट सी कु टया को हलोर दे ने म कोई कमी नह छोड़ रही थ , जो एक
पवत क खड़ी च ान पर सं द ध प से थत थी। बस हवा का एक और ध का और वह
नीचे ता से मुँह खोले, ती ारत् काली चंड धारा म जा गरती। तब हम मृ यु के हाथ
त होने वाले छोटे कण मा होते। वैसे तो यह सब कुछ यूँ ही समा त हो जाता तो कह
बेहतर था, परंतु यह तो अंत का आरंभ मा था। या मुझे इ तहास के प से यूँ ही मटाया
जा सकता था – बस यूँ ही? या म एक ऐसा अ भयान नह था, जो असफल हो चुका था?
यह बात म तब नह जानता था, परंतु मने तो कसी सरे क नय त को पूरा करने के लए
ज म लया था। मने ज म लया ता क कसी सरे को दे वता बनने का सौभा य मल
सके।

तीन भाई-बहन व लान मुख माँ के साथ, मने अपने सौतेले भाई के जगमगाते महल पर
डाली। यह सब ब त नकट था, परंतु उसके बावजूद मानो एक सरे ही संसार का अंश
था। म एक बार, अपनी नधन और गहरी काली रंगत वाली माँ क ओढ़नी म छप कर वहाँ
गया था। छोटे भाइय ने मेरी अँगुली थाम रखी थी और मेरी बहन माँ के कँधे पर, कसी गंदे-
पुराने चथड़े क तरह भूखी- यासी, बेसुध ल दे सी पड़ी थी। हम द र थे, अ यंत नधन।
हमारे पास केवल एक ही व तु चुर मा ा म थी, और वह थी हमारी नधनता, हमारी
द र ता, हमारी ुधा और हमारी ल जा!

एक अं तम य न के प म, माँ अपने सौतेले पु कुबेर के सम वनती करने के लए हम


घसीट ले गई, जो इस धरती का सबसे धनी व संप व अकूत धन-संपदा का वामी
था। उस राज ासाद क चकाच ध के बीच, तथा जी मचला दे ने वाली गंध के साथ हम हाथ
म भ ा पा थामे खड़े थे। हम अपनी भ ा मली। सोने के कुछ टु कड़ के साथ, मेरे
सौतेले भाई क प नय क अपमानजनक का भी दं श सहना पड़ा। हमारी माँग व
आव यकताएँ ब त कम थ और उसका समय इतना ब मू य था क उसे हम जैसे लोग पर
य नह कया जा सकता था। उसके एक हाथ का संकेत, थोड़े खुले पैसे और इसके बाद
उसे हमारे बारे म सोचने का समय ही कहाँ था। उसे तब तक हमारे वषय म वचार करने का
समय नह मला, जब तक मने एक धमाके के साथ और ब त ही खे तरीक़े से, हमारे
अ त व के बारे म याद नह दलाया। परंतु वह सब तो ब त बाद म घ टत आ और तब
हम भ ुक नह रहे थे।

मने उस धनलोलुप व लोभी, वैभवपूण राजभवन से जो सबसे बड़ी संप अ जत क थी,


वह थी – मेरी ती वलंत मह वाकां ा। उस महल ने मेरे भीतर मह वाकां ा क जो
चगारी भर द थी, उसे भूख क अ न भी कभी शांत नह कर सक । म जानता था क वह
जस संसार का वामी था और उससे भी कह परे, सब कुछ मेरा होगा, केवल मेरा। हो
सकता है क आज माँ के साथ मेरा अं तम दन हो। कल य द यह कु टया वषा क चंड
धारा को सह कर, अपना अ त व बरकरार रख सक , तो हम अपनी या ा का शुभारंभ
करगे। मेरा मानना था क अभी हमारे पास जीतने के लए पूरी नया पड़ी थी। एक बेहतर
संसार हमारी ती ा म था।

मेरे भाइय को और मुझे कभी कोई ऐसी श ा नह मली, जसके वषय म बताया जा
सके। य द हम कसी ा ण के यहाँ नःशु क काय करने के लए भी तैयार हो जाते, तो भी
कोई हम श ा दे ने को तैयार नह था। हम अस य, काले व शरारती थे। हमने जाना था क
हम वणसंकर थे। हमारे पता एक व यात मह ष थे, परंतु हम इसका कोई लाभ नह मल
सका। वे अपनी व ा के संसार म इतना म न थे क उ ह अपनी संतान के वषय म वचार
करने क सुध ही नह थी। वे एक ा ण थे। मेरी माँ एक अ ात असुर वंश से थ । उ ह ने
इस संबंध को एक मु रह य के प म रखा। वे सं कृत वेद के वषय म पया त जानकारी
रखते थे, जसके लए ा ण का दावा था क उसम सारे संसार का ान समा हत था।

वा तव म, पता कोई बुरे नह थे। वे अपनी जा त के कसी भी अ य क भाँ त


ही थे; म हमामं डत प से व-क त। उनका यह मानना था क उनके घर म हमारी
उप थ त मा ही, हमारे लए कसी वरदान से कम न थी। उ ह ने बड़े ही सु वधाजनक प
से इस त य को व मृत कर दया था क इंसान को जी वत रहने के लए भोजन क
आव यकता भी होती है। नःसंदेह, उ ह ने हमारे नाम रा स के नाम पर ही रखे य क
हमने कभी उनक श ा म कोई च ही नह ली। ायः हम उनका उपहास करते, और जब
वे अपने म के साथ वेद का पाठ करते तो म पूरे शौय के साथ, उनके इस व ास पर
सूचक च ह लगा दे ता। हमारे क चे आँगन म, म, कुंभकण और शूपणखा, तीन मल
कर उनक नकल उतारते। केवल मेरे छोटे भाई वभीषण के लए यह सब व मत कर दे ने
वाला य होता। जब वह ा ण को कसी र तोते क तरह मं रटते दे खता, तो मानो
उसके ने अपलक वह थर हो जाते।

यह बात तब क है, जब मेरे पता मेरे सौतेले भाई कुबेर को अपना सारा धन दे चुके थे।
हमारे पास कुछ नह बचा था। इन प र थ तय म पलना-बढ़ना इतना सरल भी नह था,
एक नरंतर सु कर दे ने वाली पीड़ा का अनुभव, एक ऐसी पीड़ा, जो नरंतर ट स मारती
रहती है और धीरे-धीरे अपनी काली अँगु लयाँ क आ मा पर फैला दे ती है। य प
हमने सदाचार के पथ को कभी नह यागा। हम कभी अपने धम व न ा से पीछे नह हटे ।
सु श त व गौरवा वत वग जस याय भावना को समु चत मानता था, हमारी धारणाएँ
उससे अलग थ । हमने अपने लए सदाचार के नयम वयं बनाए और अ धकार को अपने
ही अनुसार प रभा षत कया। हमने सीखा था क स य को अपनी आव यकता के
अनुसार तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है। हमारा धम ब त साद बात पर नभर था: एक
को सदै व अपने दए वचन का पालन करना चा हए; उसे हमेशा अपने दल क बात कहनी-
सुननी चा हए और ऐसा कोई काय नह करना चा हए, जो उसे वयं अनु चत जान पड़े। भले
ही कोई असफल ही य न होने वाला हो, उसे कभी कसी के साथ छल-कपट नह करना
चा हए। को य को आदर-मान दे ना चा हए और कसी का अपमान नह करना
चा हए। य द कह कोई अ याय होता दखता, तो हम हर हाल म उसका तकार करते।
हमने कभी ाचीन असुर व दे व संत ारा द गई महान श ा को नह जाना। हम कसी
परंपरा का पालन नह करते थे। हम लगभग घ टया व दोगले आद मय क ेणी म गने
जाते थे।

अगले दन, हम इस प को छोड़ कर जाने वाले थे। म सुन चुका था क उ र क ओर भी


अनेक महान रा थे। म भारत के एक कोने से सरे कोने क या ा करने जा रहा था। म
हमालय क हमा छा दत पवत ंखला पर चढ़ना चाहता था, वषा ॠतु म ती व चंड
वेग के साथ बहती गंगा क ख़तरनाक धारा म तैरना चाहता था। मने सपना दे खा था क
म व य व स के घने वन को पार करते ए नर वानर को दे खूँगा और य व क र के
रा य तक जा प ँचूँगा। मने सपना दे खा था क मेरा जीवन गंधव के संगीतमय संसार म
तीत होगा। ओह, ऐसे संसार पर वजय पाने क कामना बलवती होती जा रही थी!
कतना आनंदमयी जीवन होगा! एक दन रावण इस संसार पर राज करेगा। श शाली
हमालय से ले कर लंका तक, नह , लंका से ले कर हमालय तक, म पूरी नया पर राज
करता, एक ऐसा सा ा य था पत करता, जसम सबके लए याय, शां त व समृ होती।

मेरे व वध सपन के बीच कह संदेह क ह क सी छाया भी मँडरा रही थी। या ये सब


अ त व कह भूख से उ प म क अव था तो नह थे? हो सकता है क म आज ही
इन हरहराती काली लहर के मुख म समा जाऊँ और ये गजना करता वाह, मुझे अपने साथ
घसीट ले जाए। हो सकता है क मेरा जीवन ण भर के लए कसी लौ क तरह टम टमाए
और गहरे स ाटे के बीच शांत हो जाए। तब कोई उन आवेग व मह वाकां ा को कैसे
जान पाएगा, जो मेरे दय के इतने नकट ह? कौन जान सकेगा क मने अपने लोग के लए
या- या सोच रखा है? मेरा जीवन मानो उस काले पानी के नीचे झाग क तरह बैठ जाता
और कसी अ ात दशा क ओर थान कर दे ता।

मेरी माँ के आँसू जैसे मेरी आ मा को भेदते चले गए थे। वे चाहती थ क हम बाहर जाएँ
और संसार को जीत ल, हालाँ क वे हम सदा अपने पास भी दे खना चाहती थ । संभवतः
उ ह ने मेरी आँख म जलती चगा रयाँ दे ख ली थ इस लए तय कर लया था क मुझे नह
रोकग । जब मने पीछे मुड़ कर दे खा तो मुझे चीथड़ म लपट , कूबड़ के भार से दोहरी माँ
खड़ी दखाई द , जसक गोद म मेरी बदसूरत बहन टँ गी थी। वह हमारे लए सबसे सुंदर
शशु थी कतु जब मने अपनी माँ के ारा सखाई गई न प भावना के साथ उसे दे खा तो
मुझे न चाहने पर भी, अपने पता क कही बात का ही अनुमोदन करना पड़ा क उ ह ने मेरी
बहन से बदसूरत जीव, इस संसार म सरा नह दे खा था। म उनके ारा कही गई इस बात
के कारण उनसे घृणा करता था। म उनसे इस बात के लए और भी घृणा करता था क ये
बात स य थी।

मेरे सौतेले भाई के महल का ारपाल, सागर तट पर अपने म के साथ बैठा था। उ ह ने
हम तीन कशोर को बेड़े के साथ जूझते दे खा तो सभी ठहाके लगाने लगे, और हमारी मौत
के नाम अपने जाम भरे। यहाँ तक क उ ह ने भ े गाने गाते ए, मेरी माँ का अपमान भी
कया। म उनक गदन नापना चाहता था परंतु म अपनी माँ को वचन दे चुका था क जब
तक म इस संसार के तौर-तरीक़े नह सीख लेता और मुझम अपनी श को पूरी न प ता
व याय के साथ, योग म लाने क बु नह आ जाती, तब तक म हसा का योग नह
क ँ गा। मने सु र सागर के सरे छोर पर अपनी अ ुपू रत आँख टका द – वहाँ इस
नदयी जगत, मेरे अपने जगत तथा मेरे गु के लए, सफलता क आशाएँ थ ।

मने अपने भाइय के साथ स के सदाबहार घने वन के बीच अपनी या ा आरंभ क । हमने
वैभवशाली ासाद तथा बंदरगाह दे खे, हाथी दाँत, चंदन, मोर व वानर दे खे। हमने सु र ांत
म जा रहे रंगीन समु जहाज़ दे खे, जो वण, हीरे-जवाहरात, काली मच व मसाल से लदे
थे। हमने वे मं दर दे ख,े जनम नवास करने वाले इ दे व अपने भ से उनक आय का
एक अंश माँगते थे, जसे वे कड़े प र म से अ जत करते। हमने ई र के उन त न धय को
भी दे खा, जो उसके नाम पर लूटमार करते थे। नगर सूय के उ वल काश क तरह
चमचमाते थे और याँ इतनी रमणीय थ , जैसे वग म होती ह। मने उन जहाज़ को
क चत् गव, ई या व ोध के म त भाव के साथ दे खा, जन पर मेरे सौतले भाई कुबेर के
नाम क पताकाएँ लहरा रही थ । हम जस भी नगर म गए, वह कुबेर के त न धय का
कायालय दे खने को मला। वह प म थत, अपने महल से ही इतने बड़े वसाय का
नयं ण करता था। अ ारोही संदेशवाहक उसके ावसा यक साझेदार व ापार संघ के
पास मह वपूण प ले जाते। उसके वा म व म एक सौ तीस से अ धक समु जहाज़ थे,
जो यूनान, म व चीन जैसे दे श क या ा पर रहते। मुझे पूरा व ास था क य द हमने
कुबेर के भाई होने का संकेत दया होता, तो उसके उन असं य वणमं डत कायालय म बैठे
क न बंधक न त प से हमारा वागत करते। परंतु म ऐसा कभी नह करना चाहता
था। म अपने सौतेले भाई के इन कायालय म से, कसी एक म काम करते ए, बड़ी ही
सरलता से अपना पूरा जीवन तीत कर सकता था। इस तरह कम से कम, मेरे प रवार के
लए दन म एक समय के भोजन का बंध तो हो ही जाता परंतु म अपने भाई क उन
उदासीन आँख व वर को कैसे अनेदखा कर सकता था, जो उसने हम सोने के
स के दे कर, महल से वदा करते ए द थी। म उसके इतने बड़े, समृ वसाय म कसी
छोटे पद पर काय करने के थान पर मृ यु का वरण करना कह ेय कर समझता। हो
सकता है क यह झूठा अ भमान ही हो। संसार म अनेक ववेक व ानी स जन कह गए ह
क मनु य को संसार के साथ चलना हो तो उसे अपने जीवन के सी मत साधन से ही
ावहा रक तौर पर संतु रहना चा हए। परंतु म तो एक व दश था और म कसी भी
क़ मत पर इस संसार के साथ क़दम से क़दम मला कर चलने को तुत नह था। म तो इस
पर अपना वा म व चाहता था।

हमारे लोग इतने वनीत व कायर य थे? म हमेशा से ही इस वषय म वचार करता आया
ँ। ऐसा य होता है क केवल कुछ लोग ही पूरे संसार क स ा व संपदा पर नयं ण पा
लेते ह और शेष जन उनके सेवक बन कर रह जाते ह और यहाँ तक क इन वाथ दल क
सहायता के लए अपने ाण तक ब लदान कर दे ते ह ता क वे उनक व उनक संतान का
शोषण कर सक। या ये भय था? म नह जानता परंतु मने जहाँ भी दे खा, वहाँ दमन का
च ही चलता दखाई दया। धन, जा त, अनु ान, परंपराएँ, व ास व मा यताएँ; मानो सब
कुछ मल कर वनीत मानवता को कुचलने का षड़यं रच रहे ह । या जीने के लए इससे
बेहतर तरीक़ा नह हो सकता था? जस ण से मने इस ‘ य ’ के बारे म सोचना आरंभ
कया, तभी से मुझे गम दमाग़ वाला ोधी कहा जाने लगा। एक बार मेरे पता के ा ण
म ने मुझ पर यह आरोप लगाते ए, गाँव से बाहर नकालना चाहा क मुझ पर बुरी
आ मा का साया था, उ ह ने कहा क म एक रा स था – एक असुर, असुर! संभवतः
म अभी ब त छोटा और ढ ठ था और संसार के त मेरे कोण को अनुभव ारा समृ
होने म अभी समय था। सदै व शांत रहने वाले मेरे छोटे भाई वभीषण को छोड़ कर, म हमारे
शेष सभी लोग म एक सी ाकुलता दे ख सकता था। मेरा मानना था क वभीषण काफ़
हद तक जड़ बु का था परंतु जब हम बड़े हो रहे थे तो वह पूरे ाम क आँख का तारा
बना आ था। वह सदै व पु तक व ंथ म लखी बात का पालन करता और कभी कोई
नह करता था। कई बार मुझे ऐसा भी लगा क वह इस समाज के लए उपयु था और
आगे चल कर बड़ा नाम कमाने वाला था। और म उसे पसंद करता था। वह इतना छोटा और
नाजुक था क मुझे लगता था क उसे इस नदयी संसार से बचाना चा हए। मुझे सचमुच
थोड़े से आ म व ास क आव यकता थी। वैसे पारंप रक तौर पर दे खा जाए तो म बु मान
नह था।

जस कार वभीषण वेद का पाठ करके आनं दत होता था, म उस कार वेदपाठ नह कर
पाता था। जो भी हो, मुझे तो यही लगता था क वेद थ का छल-कपट थे और इस बात से
कोई अंतर नह पड़ता था क आप कस प म उनका पाठ करते ह। मेरे पता क भाँ त
कुछ आजी वकाहीन ा ण ने, हज़ार वष पूव उ ह रचा था। ा ण वयं को उपयोगी
बनाने क अपे ा, उ ह दे वता का पूजन करते, ज ह उ ह ने वषा, सूय, अ , गौ, धन
तथा अ य व तु के लए आ व कृत कया था। वे जन अ भश त थान से आए थे, वहाँ
संभवतः शीत का आ मण रहता होगा। अ यथा वे मढक क तरह टराते ए, अ न म
चय नत का के टु कड़े डाल कर दे वता के स मुख याचना य करते?
संभवतः म पूवा ही हो रहा था। मुझे यह नह मानना चा हए क जो य काय वे कर रहे थे,
वे य थ अथवा अनुपयोगी थे। वा तव म, यह धन अ जत करने व भौ तक सुख-सु वधाएँ
ा त करने का सव े साधन था। वे ा ण कोई मूख नह थे वे जानते थे क का के
टु कड़े जलाने के थ व अनुपयोगी काय को भी कस कार धरती को तं भत कर दे ने
वाली, वै ा नक खोज के प म तुत कया जा सकता था। उनका दावा था क उ ह ने
इस संसार को नयं त करने वाले बल को, अपने वश म कर लया था। और यह भी बड़ी
रोचक बात थी क बढ़ई, राज म ी व कसान आ द अ धकतर , जो वा तव म कोई
साथक काय कर रहे थे, वे सूय के ती ताप म टराते, इन बे द के स मुख वनय भाव से
झुके रहते। धधकती वाला के सामने उनके मुख से वेद धाराएँ बहत और दै व जाने वे
या- या मं जपते रहते। उनके पास तो मानो इस संसार म येक काय के लए कोई पूजा
या अनु ान नयत था। तु ह कु रोग हो अथवा सद -जुकाम, कोई न कोई ऐसा दे वता
अव य होता, जसे तु ह पूजा दे कर स करना पड़ता। य द तुम चाहते क तु हारी
खःदायी प नी, तु हारे कलहपूण पड़ोसी के साथ घर से भाग जाए तो नःसंदेह इसके लए
भी पूजा और वधान थे। गौ माता के गभ से बछड़े क कामना हो अथवा प नी के लए पु
क इ छा, ा ण आपक सहायता के लए तुत थे। वे केवल एक पूजा दे ते और बछड़े या
एक द पु के आगमन का माग श त हो जाता। आप सदा ा ण के प म रहगे तो
सोलह वष क आयु तक आते-आते आपके पु क गणना व के जाने-माने पं डत म क
जाने लगेगी। य द नह , तो संभवतः वह मेरी तरह उ व अस य होगा, जो ा ण अथवा
कसी भी कार के अनु ान को आदर-मान नह दे गा। मेरा यह मानना है क अब हमारे
बीच और भी अनेक रा स उप थत ह। संभवतः, यह ‘ य ’ नामक सं मण के सा रत
होने के कारण था। या ा ण ऐसी कोई पूजा अथवा अनु ान नह कर सकते थे क हमारे
पापपूण वचार से ओत- ोत म त क को शु व प व कया जा सके? मुझे समय पाते ही
इस मह वपूण त य पर चतन करना था।

मने जहाँ क भी या ा क , वह ऐसे अनेक ब पय से सामना आ जो आम जनता को


यह कह कर ठगते थे क उनका ई र या दे वता से य संबंध था। यह कतनी व च
बात थी क कस कार ाचीनकाल के राजा-महाराजा अक मात् दे व बन बैठे थे। वे वशेष
दे व के प म कैसे पांत रत ए, यह तो और भी व मत कर दे ने वाली बात थी। म कोई
ना तक नह । म दे व के अ त व म पूरी तरह से व ास रखता ँ तथा वयं भी अपनी
भौ तक व आ या मक ग त के लए सदै व ाथना करने के लए इ छु क रहता ।ँ परंतु मेरे
लए, ई र एक गत स ा है और यह ाथना मौन भाव से, मेरे दय म ही मुख रत
होनी चा हए।
3 बंद

रावण
असुर एक जा तहीन समाज से थे और उनके पास एक संपूण जातां क ढाँचा था, जहाँ
कसी नरेश क अपे ा, चुनी गई प रषद के हाथ म ही वा त वक श थी। वे एक घुमंतू
जा त से थे, जो अपने अ त व क र ा के लए शकार करते व लूटमार मचाते, परंतु
संभवतः दो हज़ार वष पूव, वे न दय के कनारे नगर तथा क बे बना कर नवास करने लगे।
कहा जाता है क असुर नगर क सड़क सुवणमं डत आ करती थ परंतु उ ह ने कतने
वशाल सा ा य क आधार शला रखी थी! यह प म म सधु से ले कर पूव म पु तथा
उ र म हमालय से ले कर, द ण म नमदा तक फैला था। यह बड़ी सरलता से, धरा का
त कालीन वशालतम सा ा य हो सकता था। जब म के राजा वयं को दफ़नाने के लए
महान मकबर के नमाण म त थे, तो असुर सा ा य क जातां क प रषद सड़क,
अ पताल, जल नकासी व था तथा वह सब कुछ तैयार करवाने म त थी, जो उनके
अनुसार जा के लए उपयोगी हो सकता था।

मेरी माँ का दावा था क वे एक मुख असुर वंश, हे त से संबंध रखती थ । कुछ लोग उनक
बात का व ास भी करते थे। जो भी हो, मुझे यह सोच कर गव का अनुभव होता क म
वा तव म, एक कुलीन जनजा त से संबंध रखता था। हालाँ क, असुर कभी य प से
धा मक नह रहे, परंतु हमारे भी अपने दे वता थे। उनम से शव सबसे मुख थे। हमने जाना
था क शव पुरातन काल के एक महान असुर राजा थे, उस समय असुर एक घुमंतू जा त
थी। मुझे यह सोच कर ब त ही अ छा लगता क वे ई र थे। वे मुझे गत प से य
थे। हो सकता है क यह करीब एक हज़ार वष पुरानी बात रही हो, जब म य ज बू प के
अ ारोही नृशंस व अस य कबील ने, मैदानी इलाक़ म बसे असुर नगर म लूटपाट मचाई
थी। दस राजा क एक प रषद ने श शाली असुर का नेतृ व कया और झेलम नद के
समीप, घुड़सवार नृशंस कबील से उनका सामना आ। लुटेर के दल के नेता का नाम इं
था, जसे अपने अ याचार के कारण ही पुर या ‘नगर का ह यारा’ कहा जाने लगा था।
हज़ार य को मौत के घाट उतारा गया; य क आयु क भी मयादा नह रखी गई
और वे सामू हक बला कार का शकार , ब च को जी वत ही अ न क लपट के हवाले
कर दया गया और अनाज के भंड़ार लूट लए गए। भ नगर व त हो गए। एक पूरी
स यता न हो गई थी और ग त का च मानो स दय पीछे चला गया था। असुर ने अपना
सब कुछ खो दया और वे अपनी ाण र ा के लए द ण क ओर आ गए। नागा पूव
पहा ड़य क ओर लौट गए और क र व य रा य का पूरी तरह से सफ़ाया हो गया। गंधव
एक घुमंतू जा त बन गए और शी ही इ तहास व पौरा णक ग लय म कह खो गए।
इस आ मण के दौरान, असुर स यता अपने चरमो कष पर थी, परंतु वे अपनी यु करने
क श खो बैठे थे। सं कृ त, संगीत, कला, वा तुकला ने मल कर ऐसा षड़यं रचा क
असुर सेना क श धू मल होती चली गई, जो वा तव म, और कुछ नह केवल एक
पहेली थी। रा ीय सुर ा के नाम पर, न तो भावी नेतृ व था और न ही ावसा यक आदे श,
न कोई रणनी त थी और न ही कोई योजना। इसम कोई आ य नह था क श शाली
असुर सेना इं के ओज वी नेतृ व तले चलने वाले, मु भर आ मणका रय के हाथ खदे ड़
द गई थी। नःसंदेह, असुर वंश क महानता या सव े ता का अ तशयो पूण वणन कया
जा सकता था। एक परा जत जा त ायः पराजय से उ प ल जा को ढाँपने के लए अपनी
सां कृ तक े ता का आ य लेती है। वजयी प को सदै व उन नृशंस के प म च त
कया जाता, ज ह ने छल-कपट व तं -मं के बल पर, सुसं कृत व सु वक सत स यता को
परा जत व न - कर दया हो।

परंतु असुर ने पराजय नह मानी और फर से यु े म उतर आए। उ ह ने अपनी खोई


ई भू म पाने के लए द ण से यु छे ड़ दया। यदा-कदा हाथ आने वाली वजय के
मा यम से, बीच-बीच म पूरे भारत पर भी आ धप य जमाते रहे। हालाँ क वे बौ क तर पर
लड़े जाने वाले यु म परा त हो रहे थे। उ र-प म से आए ए कबीले, अपने बंधन खोल
रहे थे और असुर के साथ संयोग होने लगा था। उ ह ने महान असुर दे वता शव को चुरा
लया। गु ा भी उनके दे वता बन गए। य प, व णु अक मात ही एक मुख दे व के
प म कट हो गया। दे व के औपचा रक पुरो हत, ा ण ने, ब त ही ज टल अनु ान
करने आरंभ कर दए। उ ह ने पाया क महानगरीय व सव ापी स यता ही असुर नगर का
धान बल थी। असुर मु वभाव के थे। उनक उवर क पना ने शव को एक नेही
दे व म पांत रत कर दया था, जो कसी से कोई आकां ा नह रखते थे, और उनक पूजा
करने के लए कसी कार के अनु ान क आव यकता न थी। वे असुर के म , संबंधी,
पु , पता या कोई भी हो सकते थे, यह सामने वाले क क पना पर नभर करता था।
अनेक नगर म तो शव को पु ष व व उवरता का उ सव मनाने के लए लग प म भी
पूजा जाने लगा था।

जब नगर पर वजय पाने के बाद, मं दर न कर दए गए, तो ा ण ने माँग रखी क


परा जत लोग को एकमा नराकार दे व जाप त ा क आराधना करनी होगी। असुर
के लए तो यह धारणा पूरी तरह से नई थी, जसके प रणाम व प पर पर कलह और संघष
होने लगे।

यह नणय लया गया क मूल नवा सय के धम से कोई ख चतान नह क जाएगी। परंतु


वजेता के राजनै तक ग लयार म कुच रचने वाले दन-रात काय करने लगे। वे अपने
ही नेता को दै वीय अंश स करने म जुट गए। और शी ही, शा सत वग अपने-आप को
दे वता कहलाने लगा। ये दे वता हज़ार और फर लाख म गु णत होते चले गए। ा ण ने
अपने शासक से नचला थान हण कया, जो वयं को दे व कहलाते थे। हालाँ क, जैसे-
जैसे समाज क ज टलता व अथहीन अनु ान म वृ होती गई, ा ण को समाज पर
और अ धक नयं ण मलता चला गया। यह घटना कई स दय म जा कर घट , परंतु व च
बात तो यह थी क ा ण का यह वा जाल तं कभी नह थका और व जत जनता पर
अपना आ धप य जमाने म पूरी तरह से सफल रहा। परा जत लोग दास कहलाते और उ ह वे
सभी काय करने पड़ते जो ा ण व शासक वग को शा त आमोद- मोद व आनंद क
धारा म वा हत रखने के लए आव यक होते। वे ब त ही बुरे शासक तथा दयनीय शासक
थे। उनके वक त शासन ने वशाल जनसं या को व ोही सेना का सहायक बनने पर
ववश कर दया और केवल भी व बलहीन ही नगर के ग़रीब इलाक़ म रह गए।

म उ र म कभी सु र थान तक नह गया कतु मने जहाँ भी या ा क , चार ओर अ त-


तता का सा ा य ही पाया। दे व सा ा य धीरे-धीरे गु र ला यु कला के अथक दबाव के
चलते कराह रहा था। म सु र से आ रहे जन व ोह क सुगबुगाहट अनुभव कर सकता था।
परा जत असुर कबीले वष से, ब त ही भयंकर यु लड़ते आ रहे थे, परंतु असुर के
इलाक़ पर अपना दावा जताने म, आं शक प से ही सफल रहे थे। कुछ वष तक,
केरलपु वंश के महाब ल जैसे य ने असुर के मृत ायः व म ाण का संचार
कया, ज ह ने पूरे भारत पर लगभग अ ारह वष तक आ धप य रखा या फर अजेय ाता,
हर यक यप व हर या ने द ण-म य भारत म अपना सा ा य था पत कया। परंतु वे
सभी शी ही काल के गाल म समा गए।

ारंभ म, असुर के पास सव े यु कला रणनी तयाँ, यु के लए यं बनाने वाले


अ भयंता तथा वीरतापूवक यु का नेतृ व करने के लए महान सेनानायक व राजा थे। परंतु
दे वता का चातुय तथा असुर के अपने ही लोग का व ासघात, सदा उनके लए पराजय
के ार ही खोलता रहा। यह तो प ही था क असुर म एकता का अभाव था। सर पर
हावी रहने क आदत, झूठा गव, अपनी श य पर आव यकता से अ धक आ म व ास
और नःसंदेह यह व ास क दे व सदै व ईमानदारी से ही यु करगे; हालाँ क दे व वयं भी
यही मान कर चलते थे कतु कभी इस व ास का पालन नह करते थे। इन सभी बात ने
सु न त कर दया क असुर जा त लगभग एक हज़ार वष तक भारत के नजन वन ांतर
म भटकती ही रहेगी।

और फर जा तय व कबील का पर पर संयोग आरंभ आ। कोई भी न त प से यह


दावा नह कर सकता था क उसक रग म वशु दे व र था या असुर र दौड़ रहा था।
गहरे यामल असुर का संयोग ह के सुनहरे वण के दे व से आ, और इस तरह कई कार
क रंगत वाली संतान ने ज म लया। इसी कार गंधव क सुनहरी व पीली रंगत, क र
का वशु ेत रंग तथा य क गहरी काली रंगत आपस म घुल- मल गए। ायः ऐसा
पाया जाता क कोई दे व युवती गहरे काले रंग क होती और उसक आँख का रंग
नी लमायु होता या कसी असुर क चमड़ी का रंग सुनहरा और बाल का रंग भूरा
होता। य द कसी कोयले जैसे काले भाई क आँख भूरी व सीधे बाल होते, उसक बहन
गहरी काली आँख , गोरे रंग व घुंघराले बाल वाली होती और उसी प रवार म सरे भाई-
बहन सुनहरे रंग व घुंघराले काले बाल वाले होते, तो इसम कुछ भी असामा य नह माना
जाता था। म वयं भी तो गौर वण, घने घुंघराले बाल तथा गहरे याम ने वाला ँ। मेरी
बहन का वण आधी रात क तरह काला, बाल सीधे तथा ने भूरे ह। कुंभकण का शरीर
भारी, वचा का रंग काला, काले घुंघर वाले बाल तथा काले ने ह। जब क वभीषण का
वण ह का बादामी, नीली आँख तथा भूरे घुंघराले बाल ह।

आरं भक दन म म त जा तय को हेय से दे खा जाता था। दे व ने उ ह कु रो गय


क तरह याग दया और वे असुर के उपहास का भी पा बनत । सामा जक भावना तथा
तर कार के चलते इन म त जा तय का एक समूह म य भारत के वन क ओर चला
गया। वे बल व अस य थे, और दे व के तर के अनुसार, कोई भी उ पादक काय कए
बना, नरतर बकवास म लीन रहते। वे एक अप र कृत तथा खदायी अ त व के साथ जी
रहे थे, वे वन से शहद तथा बेर एक करते, वृ पर बने घर तथा गुहा म रहते तथा
यदा-कदा, सुवण तथा य क चाह म, आसपास के गाँव पर धावा बोलते रहते। वे बंदर
जा त कहलाने लगे – वानर। उनक अ धकतर उपे ा ही क जाती व उ ह गँवार माना
जाता। दे व तथा असुर क भाषा म, वानर श द कसी अ भशाप से कम न था और
कसी को वानर कह कर पुकाराना ब त बड़ा अपमान माना जाता था, कभी-कभी तो इसी
कारण से आपस म ं यु हो जाते व लोग को जान से हाथ धोना पड़ता।

बाली के आगमन तक वानर का जीवन क कर ही रहा। वह इस प र य म इस तरह कट


आ मानो ी म ॠतु म, आकाश म कह बजली गरजी हो। बाली एक महान रणनी त व
े सेना धप त था। वानर जा त म व ोह के वर दबाने के प ात, वह सव े नेता व ू र
तानाशाह बन बैठा। उसने अपने छोटे भाई सु ीव के साथ मल कर, अपने रा य से कई बार
दे व तथा असुर पर धावा बोला। उसक राजधानी क कंधा, तुंगभ ा नद के कनारे थत
थी। शी ही वानर ने प मी पवत से पूव पहा ड़य तक अपना शासन था पत कर लया
तथा लंका क सीमा के लए भी ख़तरा बन गए। उ र म, गंगा तक फैले सभी छोटे दे व
सा ा य नरंतर भय के साए म जी रहे थे। परंतु बाली ने का त वीराजुन के साथ शां तपूण
संबंध बनाए रखे, वह एक श शाली जनजातीय भूप त व मूल कबीले का वंशज था, जो
क भारत के मूल अ धवासी थे। उसका शासन सागर के म य प मी तट पर संक ण तट य
खंड तथा नमदा नद के कनारे थत व य पवत के दोन ह स पर, कुछ थान तक फैला
था।

प र थ तयाँ ब त ही ख़तरनाक थ । प म म का त वीराजुन, म य भारत म बाली तथा


समा त ायः इं सा ा य के बीच ब त ही सं द ध प से स ा का संतुलन बखरा आ था
य क हमालय तथा उ र क वशाल न दय के बीच असं य दे व रा य तथा द ण म
लड़ाकू असुर कबीले फैले ए थे।

असुर क दशा सवा धक शोचनीय थी। कभी व यात रह चुके नगर पर नधनता, रोग ,
महामारी व ख क भयंकर छाया छाई ई थी। अ तीय वा तुकला तथा कावेरीप नम व
मुजू़री जैसे बंदरगाह शहर म फल-फूल रहे वा ण य के अ त र , असुर क अ धकतर
जनसं या म लनता व द र ता के बीच जी रही थी, उनके पास कोई वा भमान या आशा क
करण शेष न थी। धन तो केवल कुछ ही लोग के पास सं चत था, जैसे मेरा सौतेला भाई
कुबेर। सेना का नेतृ व दे व , मूल कबील तथा वानर के साथ मूखतापूण यु म न आ
जा रहा था, परंतु इससे भी अ धक, वे कसी योजना या रणनी त के अभाव म, पर पर ही
लड़-लड़ कर न हो रहे थे।

हमने पूण नद को पार कया। आगे चार ओर र- र तक शांत व नजन, घना वन दखाई
दया, जसम भाँ त-भाँ त क लताएँ तथा बेल आ छा दत थ । हालाँ क म थोड़ा च तत था।
ये वन व भ असुर कबील से जुड़े गु र ला दल के छपने के थान बने ए थे। हमने आगे
बढ़ने का नणय लया पर अचानक सश लोग ने हम घेर लया। उ ह ने जस तरह हमारे
आसपास घेरा डाला था, म उनके कौशल को दे ख भा वत आ। बीस तने ए धनुष हमारी
ओर तीर बरसाने के लए तुत थे। मने अपनी के संकेत से कुंभकण को कने को
कहा। वह गँवार अपनी जीण-शीण यान म से, ज़ंग खाई तलवार को नकालने क चे ा कर
रहा था। म कोई कायर नह था, परंतु हम तीन का यु कौशल, धनुष-बाण से लैस उन
बीस य के सामने थ था। यह कसी भी तरह से अपनी वीरता दशाने का समय नह
था और म यह भी नह जानता था क वे का त वीराजुन के सपाही थे अथवा असुर के
गु र ला यो ा। उनका रंग गहरा काला था इस लए वे दे व तो कदा प नह हो सकते थे।

े केश वाला, गठे ए शरीर का एक


त मेरे पास आया और गदन पर तलवार क धार
टका द । एक अ य, जो क आयु म काफ़ छोटा था, हमारी तलाशी लेने लगा। म अभी
वचार कर ही रहा था क या म इसक जांघ के ऊपरी ह से पर एक ठोकर दे मा ँ और
इसक तलवार अपने क ज़े म कर लूँ परंतु इतने म ही एक अ य ने वभीषण क गदन पर
अपनी तलवार टका द । मेरा नडर छोटा भाई ब च क तरह र रयाने लगा। मुझे बात
समझ आ गई और म अडोल खड़ा रहा। मने वयं से कहा क यह अपनी वीरता दखाने क
जगह नह है। फर हम र सय से बाँध कर, आँख पर प बाँध द गई और कसी तरह
घसीटते ए घने वन क झा ड़य के बीच ले जाया गया।
4 गु

रावण
हम गुफा म खड़े थर-थर काँप रहे थे और कसी के आने क ती ा म थे। उसके भीतरी
ह स से बातचीत के वर तैर रहे थे। अचानक ही सारे वर ीण होते चले गए और एक
ममभेद चु पी छा गई। मेरा दल ब त बुरी तरह से धक-धक कर रहा था और मुझे यह दे ख
कर ब त श मदगी होने लगी क वभीषण रोने लगा था। छोटे भाई के लए मेरा दय वत
हो उठा। वह तो संसार के तौर-तरीक़ से ब कुल ही अन भ था। और फर एक गहरे और
गूँजने वाले वर म आदे श आया, “इनक आँख पर बँधी प याँ खोल द जाएँ।” जब
उ ह ने आदे श का पालन कया और हमने गुफा के वातावरण म अपनी आँख को अ य त
करने के लए आँख मच मचा , तो वशाल पाषाण सहासन पर एक वृ को आसीन
पाया। वह ब त ही लालसा से हम टकटक बाँधे दे ख रहा था। मने अपना सर ऊँचा उठाया
और उसे पलट कर दे खा। धीरे-धीरे, उसके चेहरे पर एक सौ य व मृ मु कान खेल उठ ।
मानो कसी ने जा क छड़ी से छू कर, एक कठोर व नीच दखने वाले को ऊजा व
जीवंतता से भरपूर म पांत रत कर दया हो। उसके चेहरे क सहजता का श द म
वणन नह कया जा सकता। उसक मु कान जाने कतनी स दय क बु मता व ववेक
बु का प रचय दे ती तीत हो रही थी। धीरे-धीरे, म भी उ ह पहचान गया, ये तो महाब ल
थे! असुर नरेश म सवा धक श शाली व महान स ाट मेरे स मुख उप थत थे। परंतु
अचानक ही मेरे म त क म उनके त अव ा व अपमान का भाव य तर आया?
महाब ल ने अनेक भ सै य अ भयान क कमान संभाली थी, अपने श ु का वनाश
कया था और एक महा प पर यायपूवक शासन चलाया था परंतु उ ह ने अपना सा ा य
केवल इस लए खो दया य क वे उस दए गए वचन के पालन से पीछे नह हटना चाहते थे,
जो उ ह ने एक द र दे व ा ण, वामन व णु को दया था। वह इस बलशाली स ाट से दान
क याचना करने आया था। जब महाब ल का शासन अपने शखर पर था, तो स ाट ने पूरे
भारत पर अपना आ धप य घो षत करने के लए राजसूय य का आयोजन कया। भारत
के सभी रा य तथा जा तय से संबं धत नरेश, सरदार, राजा व महाराजा, असुर क मुजूरी
राजधानी म एक त ए ता क नरेश के भी नरेश को अपनी ांज ल अ पत कर सक।
एक अनु ान के अनुसार महाराज ने वचन दया क ार पर आए याचक क येक इ छा
पूण क जाए। उसे खाली हाथ नह लौटाया जाएगा। इसी अवसर का लाभ उठा कर वामन
व णु, एक द र ा ण युवक के भेष म आ प ँचा। उसने असुर राजधानी म ा ण
श ण क क थापना हेतु तीन पग धरती दान म दे ने क याचना क । महाब ल अपने दए
गए वचन से पीछे नह हटना चाहते थे अतः उ ह ने यह अनुम त दे द क असुर राजधानी म
दे व ा ण अपने धम का उपदे श कर सकते थे। शी ही यह छोटा सा क एक वशाल धम
चारक सं था म प रव तत हो गया। वहाँ दन-रात कई कार के षड़यं रचे जाने लगे और
वह दरबार के त कूटयु य का क बन गया। अंततः, इससे पूव क असुर का सं ांत
वग यह समझ पाता क वे कस षड़यं का शकार ए ह, दे व ा ण अं तम असुर
सा ा य को अपने अधीन कर चुके थे। महाब ल को अधोलोक म न का सत कर दया गया
और उ ह ने पछले दो दशक म जो सा ा य खड़ा कया था, वह शी ही सैकड़ यु रत
छोटे रा य म वभा जत हो गया। परंतु महाब ल इस पौरा णक गाथा म जी वत रहे।

बा यकाल से ही जस छ व को एक नायक के प म त त कया था, उसे आज स ाण


दे ख कर, म व मत हो उठा। परंतु इसके साथ ही मुझे नराशा भी ई। महाब ल मेरे
बा यकाल म रची गई, नायक क उस सुग ठत छ व से तो कह भी मेल नह खाते थे, जसे
बा यकाल म सुनी सैकड़ परीगाथा तथा पौरा णक कथा के मेल ने रचा था।

“हम पछले कुछ स ताह से तुम लोग का पीछा करते आ रहे ह। तुम इन े म या लेने
आए हो, जहाँ कोई पैर रखने का साहस तक नह करता? ये बड़ा ही क ठन समय है और
यह कोई ऐसा थान नह , जहाँ तुम सरीखे मूख यहाँ-वहाँ मँडराते फर।” वह गहरा वर
सारी गुहा म त व नत हो कर लौटा और म अपनी तं ा से जाग गया।

मने अपने सम बैठ उस महान आ मा को णाम कया व बोला, “महान नरेश, हम


सौभा य क तलाश म ह। हम द णी सागर म थत, लंका के मोती प से आए ह।” यह
कहते ही मानो मुँह म म का सा वाद घुल गया, परंतु म अपनी जड़ से तो र नह जा
सकता था न? यहाँ तक क हमारा पता व पहचान भी उधार लए ए थे। “हम कैकसी के
पु तथा कुबेर के सौतेले भाई ह। म रावण ँ तथा ये मेरे छोटे भाई, कुंभकण तथा वभीषण
ह।”

उनके वृ व ीणकाय चेहरे के म तक पर छोट सी यौरी दखाई द । उनके चौड़े म तक


पर चता क गहरी रेखाएँ थ । उनके वर क शीतलता को प प से अनुभव कया जा
सकता था। “रावण, तु हारी कु या त तो तुमसे पूव ही हम तक आ प ँची है। नःसंदेह
तु हारे वषय म मेरी यही राय थी। मेरे गु तचर ने मुझे तु हारे पछले कुछ वष के कुकृ य
का सारा ववरण दया है। यह कतनी भा यपूण बात है क असुर जा त ने तु हारे जैसे
बेकार व सर फरे को ज म दया है। तुम वयं को एक यो ा कहते हो? परंतु मेरे
पछले दस दन से तु हारे पीछे थे। वे पछले स ताह ही, जाने कतनी बार तु हारा गला
आसानी से रेत सकते थे। और तुम वयं को एक यो ा कहते हो? म तो यही क ँगा क
तु हारा म त र ही इस अ मता का मूल कारण है। एक मूख क भाँ त वहार करना
बंद करो और उस मह वाकां ा के यो य बनो, जो दन-रात तु हारे दय म धधक रही है।”

मेरे भीतर ोध का वालामुखी फूट पड़ा। इस परा जत वृ को मुझे यह सब कहने का


साहस कैसे आ, यह कोई अ धकार नह रखता? य प, म जानता था क वे सही कह रहे
थे। म इस लए ो धत था य क उनके कथन म स यता छपी थी। मेरे मन म भाव का
वार उमड़ पड़ा और म स ाट के स मुख कसी प ाघात से त क भाँ त अडोल
खड़ा रह गया, न न, पूरी तरह से उघड़ा आ! म अनुभव कर सकता था क उनक तीखी
भेदती ई मुझे ता ड़त कर रही थी, चुनौती दे रही थी, सां वना दे रही थी, भयभीत कर
रही थी।

“जो भी हो, तुम इस संसार के लए कुछ उपयोगी तो हो ही सकते हो। ारंभ म, मने तु ह
उन थ व अनुपयोगी लोग म से ही एक समझा था, जो भुला दए गए व प र य असुर
जन समाज को ऐसे नकृ क ट के समान मानते ह, जो केवल क त पाने का व दे खते ह
और कुछ नह कर पाते। वे वा त वक अथवा का प नक जगत म ही वचरते ह और कसी
ऐसे चम कार के घटने क ती ा करते रहते ह, जो उनक व उनक जा त क र ा कर
सके। परंतु रावण म एक चगारी दे ख सकता ँ, भले ही वह अभी छोट सी है, परंतु वा तव
म वह एक चगारी ही है, य द उसे उ चत य मल जाए तो वह धधकती वाला म बदल
सकती है। म नह जानता क तुम हमारे दयनीय लोग के लए कोई वरदान बन कर आए हो
अथवा अ भशाप! ये वही लोग ह जो एक ववेकहीन श ु के क़दम तले र दे गए ह। रावण,
महाब ल के इस धाम म तु हारा वागत है। तुम जब तक जी चाहे, यहाँ रह सकते हो, परंतु
यहाँ आकर कुछ सीखना कह अ धक मह व रखता है। यहाँ मु मन के साथ आओ और
यह मरण रखो क यह थान तु ह ब त कुछ सखा सकता है।”

वृ पु ष क अपनी ही एक शैली थी। फर उ ह ने हाथ के संकेत तथा दया भरी मु कान के


साथ हम वहाँ से हटाने को कहा। उनके मुँह के कोन पर ह के ं य का आभास दखाई
दया। स ाट ने हम दरबार से वदा दे द थी।

जब एक लंबी लहराती दाढ़ वाला, गठे ए शरीर का मनु य हम वशालकाय गुहा क ओर


ले कर चला, तो म महाब ल के वषय म ही वचार करता रहा। महाब ल का यह पतन
हा या पद व व च था। इससे पूव आए असुर सा ा य का पतन क त व नायक व से
मं डत नह रहा था। व यात जुड़वाँ भाइय हर य तथा हर या का महान असुर
सा ा य, संपूण भारत म सव े के शखर पर आने ही वाला था, जब एक व य सूकर के
हाथ हर य मृ यु को ा त हो गया। हर या को अपने ही पु ाद के हाथ छल का
शकार होना पड़ा, जो दे व के अ धप त इं के साथ जा मला था। वह एक बल स ाट बना
और शी ही उसका रा य टु कड़ म वभा जत हो गया। उसने भारी कर लागू करके, पूरे दे श
को तबाह कर दया। कृ षकाय तथा पशुपालन न हो गए, ापार संघ सरे थान पर जा
बसे और कला वलु त हो गई। इसी दौरान, एक और ाणघाती इस प र य म वेश कर
चुका था – वह परशुराम नामक ा ण था – राम, जसके पास सताने के लए एक कुठार
थी, उसने ठग को एक त कर, एक दल बनाया और द ण म अपने आतंक का सा ा य
फैला दया।

जब भी परशुराम कसी े म वजय ा त करता, वह इस बात का वशेष यान रखता क


ा ण को ही सभी सव च पद पर त त कया जाए। मलय तथा वनन सरीखे पूव
पुरो हत को नगर से न का सत कर, ाम म भेज दया गया। अ भावी तथा न य
स ाट ाद ने, परशुराम से एक बड़ी व अपमानजनक क़ मत पर शां त ा त क तथा उसे
आ त कया क असुर क सामा जक व था म भी ा ण का वच व था पत रहेगा।

ाद क मृ यु के बाद जब महाब ल ने शासन संभाला, तो एक नया प रवतन दे खने को


मला… एक ही दशक के भीतर महाब ल इं के सा ा य को अपने अधीन कर चुके थे और
आने वाले अगले कुछ वष म उ ह ने पूरे उपमहा प को व जत कर लया।

जब हम एक कोने म प ँचे तो वह वृ अक मात् ठठका व हमारी ओर मुड़ा। “यहाँ तुम


लोग के शयन क व था है। हम कल से अपने पाठ क श ा आरंभ करगे।”

इससे पूव क हम ध यवाद दे पाते, वह वहाँ से चला गया। हम वह लेटे-लेटे अपने भ व य


का चतन करते रहे। मुझे रह-रह कर अपनी माँ और बहन क चता सता रही थी। मने आशा
क क कसी तूफ़ानी हवा के झ के ने हमारी कु टया को च ान से धकेला नह होगा। मने
अपने पुराने व दयनीय बचपन को मरण कया, जब पड़ो सय के घर से मला बासी
भोजन भी हमारे भूखे उदर को भरने के लए वा द जान पड़ता था। मने उस दन को भी
याद कया, जब हम चार अपने सौतेले भाई के महल म सूकर क भाँ त ठूँ स-ठूँ स कर खाने
के उपरांत, उदर पीड़ा से अधमरे हो गए थे; घी तथा फल के अन य त उदर ने ऐसा व ोह
रचाया क हम लगभग एक स ताह तक दयनीय दशा म रहे।

माँ क सुब कयाँ ायः मेरे मम म कह कसी थान पर ऐसा भेदत क म भी अपनी
पीड़ा , भ व य म आगत संघष , अतीत क बखरी आशा , अपने लोग तथा अपनी
जा त के लए वलाप करने लगता। उस दन मने अपनी असहाय अव था, कुंठा तथा इस
टू टे ए जीवन के लए दन कया। यहाँ तक क म हमारी काली चमड़ी के लए भी रोया।
मने हमारी अ ानता तथा अपने लोग क क पत क त से जुड़ी मीठ याद के लए भी
अ ु बहाए। ये अ ु न तो द र ता म हमारे नायक व के रंग को धो-प छ कर बहा सकते थे
और न ही हमारे मूख सा थय को कसी योजन अथवा ल य हेतु ाण का ब लदान करने
क ेरणा दे सकते थे। ये अ ु मेरे सौतेले भाई जैसे क नीचता को नह धो सकते थे,
जसने वयं को इस संसार के अभाव से कह परे, सुर त कर लया था। इसके बाद म
अपने लए रोया। फर हम एक घने आवरण क भाँ त घेरे ए अभे अंधकार के बीच, मेरे
दोन ओर से दो जोड़ी हाथ बाहर आए और मुझे अपने आ लगन म ले लया – वे मेरे दोन
भाइय के थके हाथ थे, एक – जसक मने आजीवन र ा करने का संक प लया था और
सरा – जो मेरे लए अपने ाण तक ब लदान कर सकता था।

धीरे-धीरे जैसे सब कुछ प होने लगा। एक वृ स ाट ारा यूँ ही बोया गया छोटा सा बीज
अंकु रत होने लगा। म जब यह वचार करने लगा क मेरा व वजय का व कसी द र
व आ यहीन बालक का दवा व नह था, तो मने दोन भाइय को अपने गले से लगा
लया। हो सकता है क आने वाला समय अपने साथ कुछ बेहतर लाने वाला था। आने वाला
दन, एक और नया दन और एक नया आरंभ।
5 दसमुख, दस मुख वाला

रावण
लहराती दाढ़ वाले वृ ने हम ातःकाल जगाया और सभी को क़दमताल कराते ए, उस
पहाड़ी झरने क ओर ले गए, जहाँ हम न य कम से नवृ होना था। वे उस समय काफ़
वाचाल जान पड़े मानो उ ह अचानक ही अनुभव आ हो क उ ह कोई कहानी सुनानी है
और हम उ साही ोता के प म सामने थे। “कृपया मुझे ा कह कर पुकार। यह
हमारी पा रवा रक उपा ध है। अ यापन हमारे र म है और हम ाचीन काल से ही गु
का थान हण करते आए ह। ान प रषद म चार गु थे और तवष, वे असुर सा ा य
के व वध भाग म फैली सैकड़ , हज़ार पाठशाला के लए पा म नधा रत करते।
हमने ही उस असुर जगत क रचना क , जसे आज हम जानते ह। मेरे प रवार ने वधान
बनाए और उ ह दे व क भाँ त पूजा जाता था। इसके अ त र शव का प रवार भी पूजा
जाता था, जो सधु नद के कनार पर थत महान सा ा य के काल से ही, खेत , संप
तथा पशु क र ा करते आए थे और समाज म अपने इसी काय के कारण पशुप त नाम
से जाने जाते थे। हमने एक स यता वक सत क ।”

वे आगे बड़बड़ाते रहे, “और फर दे व के आ मण आरंभ ए। इं ने हमारे नगर ,


पाठशाला व मं दर को जला कर राख कर दे ने से आरंभ कया - वह सब कुछ अ न क
लपट के हवाले कर दया गया, जो हमारी ग त को ो सा हत कर सकता था। हम लोग
उस समय, माया जा त के साथ वा तुकला व यं शा संघ म सहयोगी थे, और तकनीक के
े म उ त के पथ पर अ सर थे। हमने तो एक उड़ने वाला यं - पु पक भी वक सत कर
लया था। हालाँ क, केवल एक ही ा प तैयार हो पाया था। आ मण ने जैसे सब कुछ
तहस-नहस करके रख दया। प रवार का मु खया, व ान व तकनीक वभाग का चौथा
मुख सद य, सबसे पहले नृशंस व बबर अ याचा रय का नशाना बना और उसके साथ ही
असुर व ान का भी ाणांत हो गया। मय शाखा मुख, अपने पु पक वमान म उड़ कर बच
नकला और अब उसके वंशज तु हारे सौतेले भाई के संर ण म ह, जसने उड़ने वाले पु पक
वमान के ा प को और भी नखार दया है। म नह जानता क मनु य को पुनः आकाश के
रह य को जानने म कतनी स दयाँ और लग जाएँगी। मेरे पूवज अ तथा सै य उपकरण
के नमाण म स ह त थे। जो ा प रवार कला, ह तकला तथा संगीत के े म वशेष
थे, वे इस समय गंधव सा ा य के संर ण म ह। महान वानर राज बाली ने वा तुकला के
ा गु को संर ण दया और म य भारत म महान नगर का नमाण कर रहा है। चौथा
ा वंश, दे व से जा मला और वे दाश नक वचन के वशेष थे। वे अब दे व के
बु जीवी गु ह। इस कार, भले ही म तुम सबको येक संभव शाखा म ान दान
क ँ गा, परंतु म वशेष प से अ व सै य रणनी तय पर क त र ँगा। मेरी मा यता है
क यो ा होने के नाते, तु हारे पास इस मह वपूण व ा का होना ब त मह व रखता है।”

वे हमारा यान अपनी ओर ख चने म सफल रहे। हम ा वंश के मूल प के वषय म कोई
वशेष ान नह था कतु हमारे सम , आलथी-पालथी लगाए बैठे वृ पु ष, इतनी ाचीन
बु मता के वाहक थे, यह हमारे लए आ य का वषय था। वे दखने म कह से भी महान
गु जैसे नह थे। वे कसी सादे , नाटे , गंजे व त द वाले क तरह दखते थे कतु
लहराती ेत दाढ़ तथा ने क उ वल यो त, उस ाचीन व जजर आवरण म छपी
तभा को छपा नह पाती थी।

उस दन, जब स वन के ऊपर सूय दय आ और तथा हरे-भरे पवत के बीच इठलाती


भ पूण स रता का रंग जामुनी हो उठा, तो हमारे जीवन म एक नए युग का सू पात आ
ा हमारे लए, द घ काल से खोए ए पता, पीछे छू ट आई माता, गु , हमारे ई र व
हमारे र क के समान थे। वही तो थे ज ह ने हम वशु व अनेक पी ढ़य के ान से सं चत
प व व ा का ान दान कया। यब सब जान कर म पूण प से मु ध हो उठा। उ ह ने
हम द घकाल से व मृत कला तथा ंथ का ान दान कया और सबसे अ धक मेरी
उवर कतु ाकुल आ मा के भीतर ान पाने क पपासा का बीज-वपन कया। वही थे
ज ह ने मुझे कृ त म बसे संगीत को सुनना सखाया। उ ह ने मुझे बताया क प य क
चहचहाहट कैसे सुनते ह, उ ह ने मेरे दय को व य झरन के सुर पर थरकना सखाया,
उ ह ने मेरे अंतमन को कसी ग ड़ क भाँ त मु आकाश म ऊँची उड़ान भरना सखाया।
मने वयं को शु अनुभव कया। य द म अपने जीवन म कसी का आभारी ,ँ तो वे मेरे
गु ही थे। उ ह ने मेरी मह वाकां ा को एक नया आकार, मेरे व को नए पंख, मेरे
नज़ रए को नई प ता व मेरी भुजा को एक नया बल दान कया।

म अपनी दा य वहीन कशोराव था म वेद तथा उप नषद को रटं त व ा कह कर अ वीकृत


करता आया था परंतु महाब ल व ा ने मेरे स मुख ाचीन असुर तथा दे व के प व ंथ
म छपे ान तक जाने के जा ई ार खोल दए। म उन ंथ म छपी भ दाश नक
गणना के आगे मं मु ध सा खड़ा रह गया। वे महान बु जी वय तथा तभावान ारा
रची गई कृ तयाँ थ । मेरे पता जैसे लोग वेद के नाम पर जो पंच रच रहे थे, यह सब तो
उससे कह परे था।

अनु ान , पशु के ब लदान, जा त था के कलंक - इनम से कसी भी बात के लए वेद म


अनुम त नह द गई थी और न ही ऐसी कोई दै वी उ ोषणाएँ अथवा राजादे श जारी कए गए
थे। जब तक ा व महाब ल अथव वेद के ा यान तक प ँच,े तब म इस वषय म
आ त हो चुका था क म वेद के नाम पर आडंबर रचने वाले कसी भी छद वेषी व ान
को चुनौती दे सकता था। प व ंथ के वा त वक अथ ने मुझे जा त था, पशु क ब ल
तथा अ य अथहीन अनु ान पर आ मण करने का अ तम संक प दान कया जो क
पुरो हत वग ारा चा रत कए जाते थे। म इन सभी सारहीन अनु ान , ब लदान तथा
जा त था के अ भशाप पर रोक लगाना चाहता था।

हमारी श ा लगभग संपूण होने को थी। अं तम कुछ क ाएँ तो वयं महान असुर स ाट
लेने वाले थे। उ ह ने मन पर नयं ण तथा इं य पर वश करने के वषय म व तार से चचा
क।

उ ह ने जस पथ का अनुमोदन कया, वह थोड़ा क र व सीधा था। यह कठोर, चुनौतीपूण


तथा पूरी तरह से अ ावहा रक था। “ ोध सबसे न नतम भाव है। यह बु पर पदा डाल
दे ता है और तुमसे मूखतापूण काय करवा सकता है। तुम कारण के त उपे ा रखते ए,
बना कसी सोच- वचार के, केवल अपने शरीर के त त या दे ने लगते हो। इस कार
जीवन के येक प म पराजय का सामना करना पड़ता है। तु ह इस दोष का अपने तं से
समूल नाश करना होगा।”

“अगला आधारभूत भाव अ भमान है। अ भमान से ही अहंकार ज म लेता है। यह वशु
चतन तथा को न कर दे ता है। अहंकार के कारण तुम अपने श ु को अपने से
कमतर आँकने लगते हो और अपने वषय म अ धक ऊँची धारणा बना लेते हो। ई या एक
घृ णत भाव है, तथा इसे वश म करना, मुन य के लए चुनौतीपूण काय म से है। ई या के
वशीभूत होकर तुम सर के रा य, धन, प नी तथा स क कामना करने लगते हो। यही
भाव युग -युग से अनेक यु , र पात तथा अ ु का ज मदाता रहा है।”

“ स ता तथा वषाद दन तथा रात क भाँ त दो शा त स य ह। े बु वाला


कभी इन भाव से भा वत नह होता। ये दोन ही आधारभूत भाव नह ह परंतु हमारे
वचार का त बब ह, हम जन व तु को दे खते, सुनते अथवा करते ह, यह उनक
त या मा है। कसी यो ा म समभाव का होना वां छत ही नह अ पतु अ नवाय होता
है। इसके अभाव म तुम कसी यु भू म म पड़े मृतक के ही समान हो।”

“भय कोई भाव नह , एक रोग है। यह अपने नेता से अनुया यय म तथा इसके वपरीत
अपने अनुया यय से नेता तक जाता है। यु भू म म इसी भय के कारण जतनी मृ यु होती
ह, उतनी कसी सरे कारण से नह होत । एक यो ा को कस बात का भय होना चा हए?
मृ यु? परंतु यह तो अंत म येक के जीवन म आनी ही है। या तुम घाव से भयभीत
होते हो? या अ धक मह वपूण है? तु हारा र अथवा वजय का अमृत? वचार करो।
वचार करने से ये सभी संदेह तरो हत हो जाएँग।े ”

“ वाथपरता से अ धक हेय अथवा अपमानजनक कुछ नह होता। जो केवल अपने


ही बारे म वचार करता है, वह सबसे भा यशाली है। उसका ज म य आ है? या
केवल इस लए क वह खा-पीकर मोटे पेट के साथ जीए? सूकर क भाँ त अनेक संतान को
ज म दे ते ए, वंश वृ करे? इस मनोरम धरती को अपने मल उ सजन से षत कर दे और
फर इस संसार म कोई भी लहर उ प कए बना, इससे वदा ले ले? य द वह हमारे लोग
के जीवन को र दने वाले अंधकार म काश क एक भी करण दे ने का काय तक नह कर
सका तो उसके जीवन का या योजन रहा, उसके जीवन का सार ही या रहा? रावण,
वाथपरता के इस घृ णत भाव को सदा के लए याग दो।”

“ ेम एक ऐसी ंखला है जो तु ह छल क च क के पाट से बाँध दे ता है। एक यो ा को


केवल वजय ी और केवल वजय ी पर ही क त रहना चा हए। यही तु हारा एकमा धम
होना चा हए। अपनी जा, माता- पता, प नय , बहन , भाइय तथा ई र के त कत
का पालन करो, परंतु उनसे कभी भी नेह का भाव वक सत मत करो। उनसे ेम मत करो।
ेम तु ह बल बनाता है। ेम म ऐसे अनदे खे बंधन होते ह, जो तु ह उन मह वपूण ण म
असफलता के गहरे खंदक म ख च ले जाते ह, जब वजय तथा सफलता पूरी तरह से
संतुलन म होते ह। इस ेम से सावधान रहो।”

“अंततः, रावण! अपनी मह वाकां ा को नयं ण म रखो। म तु हारी आँख म दन-रात


सुलगती मह वाकां ा को दे ख सकता ँ पंरतु अ वचारी मत बनो। जीवन से वही लो, जो वह
तु ह दे ना चाहता है, जो सही अथ म तु हारा है। अपने जीवन को उसके अनुसार ही चलने
दो। व तु के लए ल य साधो व उ ह ा त करो, परंतु अपने पाँव ढ़ता के ठोस धरातल
से कभी डगने मत दो। कोई भी काय करने से पहले सोचो, और फर सोचो। बना वचार
कए कोई भी काय मत करो।”

“केवल तु हारा मन ही स चे अथ म संर त करने यो य है। तुम अपने गु , ंथ व


जीवन से जो भी ान हण करते हो, मन उसे अपने भीतर संजोता है और उसे महान
बु मता म प र कृत कर दे ता है। तु ह इसी को वक सत करना है। तुम जतने भी ण के
लए जी वत हो, तु ह येक ण, अपने मन को ताज़े व सकारा मक वचार से प रपूण
करना है। इससे तु हारे कोण को प ता मलेगी व तु हारे कम को असीम बल ा त
होगा। तु हारे ारा क जाने वाली भूल क सं या म कमी आएगी और तुम उ ह के ारा
कह बेहतर ग त से श ा ले सकोगे। रावण! एक महान नय त तु हारे स मुख खड़ी है। म
आज से पूव कसी भी ऐसे से नह मला, जसम मेरे बखरे व को संजोने का
साहस रहा हो। इससे पूव, इन असहाय असुर को भी ऐसा कोई उपयु पा नह मला जो
उ ह वजय ी व शा त क त क ओर ले जा सके। रावण, पूरे ववेक तथा समानुभू त के
साथ इनका नेतृ व करो। तुम ही उ ह उनका खोया सा ा य लौटा सकते हो और उ ह उनक
भूली ई स यता पुनः मरण करवा सकते हो, तुम उनक मह वाकां ा को एक नए रंग
म रंग सकते हो, उनक क पना को जागृत कर सकते हो। म मान सक च ण कर सकता ँ
क तुम एक ती वेग से दौड़ने वाले अ पर सवार हो, तु हारा खड् ग हवा म लहरा रहा है,
तु हारे घने काले केश धूल भरी आँधी म उड़ रहे ह, तुम वीर असुर यो ा का नेतृ व करते
ए, दे व क सेना पर आ मण करने के लए बढ़ते जा रहे हो। म दे व के नगर को कुचला
आ दे ख सकता ँ। हाँ, म एक आने वाले तूफ़ान क पदचाप सुन सकता ।ँ य प अभी
वह ब त म म है, परंतु वह इस भारत क प व धरा पर जस श को अवत रत करने
वाला है, वह अपने आप म अ त होगी। उस आहट से वतमान तं का समूल नाश हो
जाएगा, करोड़ मथक धूल म मल जाएँगे व इ तहास नए सरे से लखा जाएगा। रावण,
मेरा मानना है क यह संसार तु हारा होगा, जब तक तुम मेरे ारा द गई दस श ा को
याद रखोगे, तु हारा कोई बाल भी बाँका नह कर सकेगा। म यह मानता ँ क ा ने तु हारे
लए इतना य न तो कर ही दया है क तुम अपने नौ वचार करने वाले सर को वयं से
वलग कर दो। केवल वह सवा धक मह वपूण मन ही शेष रह जाए। जो श ा तुमने हण
क है, वह अंततः याग है, तु हारी तप या है। अब तुम पूरी तरह से वशु हो जसके पास
प र कृत बु का वरदान है। तुम इसी प तकश तथा कम के बल पर, असुर का
नेतृ व करोगे ता क उ ह उनके गौरवशाली अतीत से सा ा कार करवा सको। जाओ रावण,
जाओ और यह जग जीत लो!”

या वह युवाव था क मूखता थी या अपने दय क बात कहने क ता, जसने मुझे


त ण महान स ाट क बात के व बोलने के लए उकसाया? मुझे अभी तक इस बारे
म पता नह चला। परंतु यहाँ तक क अब भी, जब म जी वत ही चूह व सयार का भोजन
बना आ ,ँ तो भी म उन सभी बात पर व ास करता ँ, जो मने उनसे उस समय कही
थ । म अब भी पहले आ य, फर ोध और फर अनंत व अवणनीय वषाद के उन भाव
को मरण कर सकता ँ, जो उनके वृ मुख पर तर आए थे। आज भी इस वषय म
सोचता ँ तो दल को ठे स लगती है, परंतु उस दन संभवतः युवाव था क धृ ता ने ही मुझे
इतना मुखर बना दया था।

“महाराज! ये वचार तो अ त उ म ह, परंतु आप मुझसे जो माँग रहे ह, वह दे ना तो असंभव


है। म ऐसा कहने के लए मा चा ँगा, कतु या नौ भाव अथवा आपके कहे अनुसार नौ
वचारक सर को, ज ह मुझे सफलता पाने के लए वयं से वलग करना है, ऐसा कर
सकना ावहा रक है? म एक अ छा छा रहा ँ तथा मने अपने सारे पाठ भली-भाँ त
मरण कए ह परंतु अ य बात के वषय म मेरी अपनी धारणाएँ रही ह। कृपया आप मुझे
अ भमानी न समझ। मेरी बात को यान से सुन।”

“महाराज! आप ोध के वषय म बात कर रहे थे। म आपसे सहमत ँ क अ नद शत ोध


हा नकारक हो सकता है परंतु या यह जीवन के आधारभूत भाव म से एक नह है? य द म
असुर जा त क इस दशा पर ो धत नह होता, जो क इस धरा पर अब तक क महान
स यता नमाता के प म जानी जाती है तो म इसके यो य पु म से एक होने का दावा
कैसे कर सकता ँ? जब हज़ार क सं या म ाणी, दे व नरेश तथा उनके असुर म
के अधीन दयनीय अमानवीय दशा म जीते ह, तो या म ो धत भी नह हो सकता, य द
म ब कुल व मृत कर द गई असुर कला , न ायः असुर धम, भ नावशेष म बदल चुके
असुर मं दर तथा धूल म मल चुके असुर सा ा य व वयं को असुर के हत के त न ध
मानने वाले तथा दे व नरेश व उनक जा के आगे चौपाय क भाँ त घ घयाते कायर के
लए कुंठा का अनुभव नह कर सकता, तो कृपया मुझे बताएँ ीमान! मुझे कौन से भाव
का अनुभव करना चा हए? या यह ोध ही नह है जो मेरे वचार को नया बल दान
करेगा और सकारा मक कम क ेरणा दे गा? मुझे मा दान कर महाराज! परंतु म अपने
इस भावा मक सर का कभी याग नह क ँ गा, मेरा यह ोधयु भाव अथवा सर सदै व
मेरे साथ रहेगा।”

“घमंड तथा आडंबर को हेय से य दे खा जाना चा हए? म अपने लोग , अपनी जा त,


अपनी स यता, भाषा, कला तथा संगीत के त गव का अनुभव करता ँ। म अपने त भी
गव का अनुभव करता ँ क मेरे पास सफल होने के लए असीम ऊजा व संक पश का
भंडार है। म तो ऐसा नह मानता क मनु य को सदै व भी बने रहना चा हए, भोजन के
लए भ ा माँगनी चा हए और शा त द र ता के बीच जीना चा हए और वह सब करना
चा हए जसके लए ा ण सदा उपदे श दया करते ह, परंतु उनम से कोई एक भी इसका
अ यास नह करता। य द मने अपने जीवन म सफलता अ जत करने के लए कड़ा प र म
कया है तो मुझे उस पर गव अनुभव करने का भी पूरा अ धकार है। मुझे अपने आडंबर व
वैभव- वलास के बीच रहने का पूरा अ धकार है। ाचीन काल के महाराजा ने महान
मं दर व नगर का नमाण य करवाया? जा दान धम आ द म व ास य रखती थी?
या ये सब उनके अहंकार तथा घमंड का दशन नह था? अ धकतर वनयी या तो
पाखंडी होते ह या उनके पास इतना अ धक होता है क वे उसके त वनय दशा सकते ह।
सफलता से ही घमंड तथा आडंबर उपजते ह और यह घमंड अथवा अहंकार ही सफलता
का एकमा पुर कार है।”

“ई या वशालतम बल है, जो मनु य जा त को े रत करता है। सा ा य एक- सरे से


तयो गता य करते ह? य द वे ई या का अनुभव नह करते, तो वे अपने ारा कए जाने
वाले हर काय के मा यम से सरे राजा को नीचा अथवा हेय य दखाना चाहते ह? ई या ही
ग त का ेरक बल है, पधा ही जीवन का ेरक बल है। भोजन, आ य तथा काम क
आधारभूत भौ तक आव यकता क पू त के प ात मह व पाने क इ छा ही सवा धक
मह वपूण इ छा है। यहाँ तक क इन आधारभूत इ छा का मूल भी ई या म ही छपा है।
य द हम ई या के भाव को अ वीकार करते ह तो यह कुछ ऐसा ही होगा मानो हम मनु य क
सहज व अंतजात कृ त को अ वीकृत कर रहे ह । मा कर महाराज! परंतु आप जो कह
रहे ह, वह पूण प से अ ावहा रक है।”
“आपने ःख तथा स ता दोन म ही सम व क बात कही है। या ऐसा सदै व करना संभव
है? जब मेरे यजन इस संसार से वदा ल, तो या मुझे तब भी शांत रहना चा हए? या
मुझे वयं को सां वना दे ने के लए अ ुपात नह करना चा हए? य द म स ता का अनुभव
करने म अ म हो गया, तो मेरा या होगा? य द म सूय दय क सुंदरता म स ता का
अनुभव नह करता, य द म एक न हे बालक क मीठ सी मु कान से उ ल सत नह हो
सकता, य द म संगीत से उ प स ता के रस म सराबोर नह हो सकता, तो या यह
जीवन जीने यो य रह जाता है?”

“भय ही मनु य तथा पशु क सबसे वशाल अंतजात कृ त अथवा वभाव है और आप


मुझे इसे ही उपे त करने को कह रहे ह। महाराज! मुझे यह कहने म त नक भी भय नह है
क म भयभीत ँ। म अनेक व तु से भयभीत होता ँ। म कोई कायर नह कतु मेरे दय
क गहराइय म कह न कह भय छपा है। म मृ यु से डरता ँ और मुझे उन लोग से भी
भय है, जो यह दावा करते ह क वे मृ यु से नह डरते। वे या तो मूख ह जो अपने साथ-साथ
अय य को भी पतन क ओर ले जाएँग,े अथवा वे ऐसे ह, जो येक से
घृणा करते ह। म अनेक व तु को खो दे ने के भय से भयभीत ँ, भले ही वे नरथक जान
पड़ परंतु मने उ ह पाने के लए अपना वेद व र बहाया है। म भयभीत ँ क मेरे यजन
रोग त हो सकते ह। म भयभीत ँ क कसी न कसी यु क वभी षका मेरे न ावान
भाइय को मुझसे वलग कर सकती है। वषा का ती वाह मेरी माँ और बहन को उस सागर
क ओर ले जा सकता है, जो उनक ती ा म मुँह फाड़े खड़ा है। म भली-भाँ त जानता ँ
क म अपनी येक ास के साथ अपनी मृ यु क ओर क़दम बढ़ा रहा ँ। परंतु मुझे भय से
इतना भय नह लगता जतना क इसके अ त व से इंकार करने से लगता है। यह भय ही तो
है, जो मुझे आने वाले ख़तर का सामना करने के लए तैयार रखता है। भय ही मुझे यह
समझाता है क कुछ ऐसी चीज़ भी ह, ज ह म वश म नह रख सकता। यह मुझे अपने-आप
को और ई र को समझने म सहायक होता है।”

“आपने वाथपरता को एक आधारभूत भाव कहा है। परंतु इसी वशेषता अथवा गुण के बल
पर व के महान नगर का नमाण आ और यही मह वाकां ा का आधार भी है। सघन
प से क त अहं तथा इस संसार के ख़ज़ान को पा लेने क कामना रखे बना, या कोई
जीवन म सफल होगा? जब म कसी मनोहारी युवती, कसी आकषक थल, सुंदर गाँव,
चमचमाते हीरे अथवा एक समृ दे श को दे खता ,ँ तो मह वाकां ा मेरी आ मा म हलोर
लेने लगती है। म चाहता ँ क इस व क येक सुंदर व आकषक व तु मेरी हो, केवल
मेरी! आप मेरे इन आधारभूत वचार क ह या करने का यास कर सकते ह, परंतु
महाराज! मेरी धृ ता को मा कर और अपने दय क पूरी ईमानदारी के साथ मेरे का
उ र द, या आपने भी इसी वाथपरता के कारण इतना वशाल सा ा य नह खड़ा कया
था? आप कोई भ ुक नह बने, आपने इस पूरे व का स ाट बनने क इ छा रखी। य द
यह सब वाथपरता के आधारभूत भाव के कारण नह था, तो आपने यु भू म म हज़ार
नद ष के ाण क आ त य द ? आपने दे व के व अपनी श शाली सेना को
य खड़ा कया? आपका एक ही ल य था, आप अपने लए, अपने वंश अथवा अपनी
जा त के लए क त व नाम क चाह रखते थे। भले ही इसे कसी भी कोण से य न
दे ख, यहाँ ‘आप’ वशेष प से सबम मुख रत है। म वह सब पाना चाहता ँ, जो आपने
पाया और संभवतः उससे भी अ धक। म कसी नः वाथ व अ त व-हीन क भाँ त
ाण याग दे ने क अपे ा इस संसार म सबसे वाथ मनु य कहलाने का ख़तरा मोल लेने के
लए इ छु क ँ।”

वृ पु ष के ने आग उगल रहे थे। मने वयं को भयकातर पाया परंतु म नह चाहता था


क अपनी बात को बीच म ही अधूरा छोड़ ँ । मने अपने वचार को समेटा और आगे कहा,
“ कतनी खेदजनक बात है क आप व ा नेह व ेम को एक आधारभूत व नीच भाव के
प म दे खते ह। इस ेम के अभाव म, कसी भी चीज़ का अ त व नह रहेगा। यही तो
सभी भाव का राजा है। एक माँ का अपने शशु के त ेम से बढ़ कर तो कुछ भी शु हो
ही नह सकता। य द कसी ने अपने यजन का साथ पाने के लए पीड़ाजनक तड़प
को अनुभव नह कया, य द आप अपने ही भाई-बहन के त नेह का अनुभव नह करते,
जस पता ने आपको बनाया, जस माता ने अपनी कोख म रख कर अपने र व ध से
पालन-पोषण कया, उससे नेह नह रखते, अपने म व उनके साथ बीते ण से नेह
नह रखते, आपके साथ आपका जीवन बाँटने वाली प नी तथा आपके जीवन को आगे क
ओर ले जाने वाली संतान के त ेमभाव नह रखते, तो या ऐसा जीवन जीने यो य है?
भले ही दे श, जा त, भाषा, धम, दे व तथा अ य व तु के त रखा गया ेम तु छ जान
पड़े परंतु उ ह अपने अंतरतम म बड़े ही नेह से छपाए रखता है, इसी के कारण इतने
र पात व यु नह ए? पहले भी लोग ेम के नाम पर अपने ाण क आ त दे ते आए ह
और तब तक दे ते रहगे, जब तक इस संसार का अ त व शेष रहेगा। मने आपको जन बात
के वषय म बताया, म सदा उ ह अपना यार दे ता र ँगा। परंतु हाँ, म उन सबसे अ धक
अपने-आप से ेम क ँ गा। जो सब कुछ ेम करने यो य है, वह मेरे बना तो ब कुल ही
नरथक हो जाएगा। म ेम करता ँ य क म अ त व रखता ँ और म अ त व रखता ँ
य क म ेम करता ँ - म अपने-आप से ेम करता ँ।”

“मह वाकां ा ही सफलता तक जाने क कुंजी है। य द मह वाकां ा न होती तो इस समय


म के स ाट वे परा मड बनवाने म इतने त न होते। य द मह वाकां ा न होती तो, तो
संभवतः मनु य शकारी ही बन कर रह जाते। केवल आखेट ही करते। च , घोड़ागा ड़य
अथवा रथ , भ नगर , मं दर व महल तथा आलीशान नौसेना जहाज़ का कोई अ त व
ही न होता। य द मह वाकां ा न होती तो आज हमारे पास इं व महाब ल भी न होते।
मह वाकां ा ही तो वह अ है, जस पर सवार हो कर हम अपने जीवन म आगे बढ़ते ह।
पछले कुछ वष म मनु य ने जस अ त ग त से ग त क है, य द कुछ य के
म त क म मह वाकां ा क वह छोट चगारी न रही होती, तो संभवतः यह सब कभी संभव
ही न हो पाता, आप मुझे जन भाव को अंगीकार करने से रोक रहे ह, उ ह ने ही इस चगारी
को एक वशाल धधकती अ न म बदलने म सहायता क ।”

“अपनी मता पर उ प अ भमान ही मनु य को फलने-फूलने के लए आ म व ास तथा


मह वाकां ा दान करता है; कोई सरा उससे अ धक ा त कर लेगा, यह ई या भाव ही
उसे और कड़ा प र म करने तथा भावी प से काय करने क ेरणा दान करता है;
स ता को ा त करने क चाह ही इस व तृत मह वाकां ा के प म सम आती है;
उदासी का भय उसे रात को जगाए रखता है और आगे बढ़ने के लए बल बनता है;
असफलता का भय उसे और अ धक सावधान, सजग व दै व-भी बनाता है; वाथपरता
उसके प रवार, नगर, वंश, जा त व दे श को एक सू म बाँधे रखती है और उसे अ धक कड़े
प र म क ेरणा दे ती है। जीवन के त ेम तथा जीवन को ब मू य बनाने वाली व तु
के त नेह के कारण ही वह अपनी उपल धय क सुर ा करता है। और मुझे इस बात का
पूरा व ास है क मनु य ारा और अ धक पाने क यह अद य तथा शा त मह वाकां ा ही
मनु यजा त को ग त क ओर ले जाएगी। एक ग त, जसक हम क पना तक नह कर
सकते, अपने अ प जीवनकाल म समझ तक नह सकते।”

“मेरे य स ाट, य द म आपसे अपने हा दक उ ार कर रहा ँ तो कृपया आप इसके


लए अ स ता का अनुभव न कर। आप केवल एक ही सर से जुड़ी बु मता के वषय म
कह रहे थे। म आपसे सहमत ँ क यह ब त मह वपूण है। परंतु इ तहास ने हम यह भी तो
सखाया है क भाव के अभाव म यह एक खोखला ढाँचा भर है। इसम कोई जीवन शेष नह
रह जाता। ीमान, मह षय अथवा मु नय ने स यता का नमाण नह कया, यह काय
उन असाधारण मनु य के हाथ आ, ज ह ने कभी अपने भाव को नयं त नह कया,
उ ह ने सदै व उन भाव को उसी दशा म वा हत होने दया, जहाँ कृ त उ ह वा हत
करना चाहती थी। वन म नवास करने वाला कोई भी भ ुक कभी एक महान नगर के
वषय म सोच तक नह सकता, कसी भी साधु-महा मा ने कभी महान मं दर के नमाण का
संक प नह कया, कसी भी ा ण ने कभी ापार अथवा वा ण य हेतु वशाल पोत
बनाने क इ छा कट नह क । ये सब उ ह मनु य के ारा न मत कए गए, जनक नस
म अ भमान व दय म ोध हलोर ले रहा था, ये वे लोग थे जो अ स ता अनुभव करने पर
रोए और स होने पर हँसे, ये वे लोग थे जो अपने स मुख, अपने से कुछ बलवान अथवा
सेना को दे ख कर भयभीत ए, कतु एक संक प और वाथपू रत ेम के साथ आगे बढ़े ।
वे नरतर अपनी मह वाकां ा के तर को ऊँचा उठाते रहे। बु मता तो हमारे भाव क सेवा
करने का एक साधन मा है और म उसी प म जीना चाहता ँ, जस कार ई र ने इस
मनु य को धरा पर रहने के लए भेजा है। म न तो ई र बनने क इ छा रखता ँ और न ही
मुझे मो ा त क आकां ा है। जहाँ तक मेरा मानना है, ये सब कपोलक पत क से ह।
म ऐसे कसी वग क क पना म व ास नह रखता, जहाँ आपको वह सब कुछ दया
जाएगा, जो आपने वे छा से इस संसार म लेने से इंकार कर दया। मै पुनज म म भी
व ास नह रखता, य द म ा ण के ारा बताए गए माग पर चलते ए, इस ज म म नेक
काय क ँ गा तो अगले ज म म एक ा ण के प म ज म पाऊँगा। य द एक ा ण के
प म ज म पाना ही शा त उपल ध है, तो हो सकता है क म पुनज म के भय से मरने से
इंकार कर ँ ।”

“मुझे इस बात का खेद है क मेरी बात ने आपको नराश कया है, परंतु म एक मनु य क
भाँ त ही जी वत र ँगा व एक मनु य क भाँ त ही मरना चा ँगा। म कभी एक ई र नह
बनना चा ँगा। म ठ क उसी तरह जीउँगा, जस तरह मेरे भाव मुझे जी वत रखना चाहगे। म
भावी पी ढ़य के लए कोई अनुकरणीय आदश नह बनना चाहता। मेरा जीवन मुझसे ही
ारंभ होता है व मुझ पर ही समा त होगा। परंतु म अपने जीवन को भरपूर जीउँगा और उसी
तरह इस संसार से वदा लूँगा, जस तरह एक मनु य को जाना चा हए। तो म आपके ही दए
श द को उधार लेते ए कहना चाहता ँ, म दस चेहर वाला एक बनूँगा - म एक
दसमुख ँ।”

इसके बाद घना मौन पसर गया। ा नंगे पाँव खड़े, मुझे ही ताक रहे थे और सकुचाए ए
स ाट के आग उग़लते ने , मुझे नगलने को तुत थे। मुझे अचानक ही अपनी शरा म
ऊजा का वाह अनुभव आ। जब तक म यह लंबा भाषण दे ता रहा, तब तक तो मुझे भी
अपने जीवन के इस दशन पर पूरा व ास नह था। तब तक तो म यही वचार करता आ
रहा था क या म उस वृ पु ष के उस व ास को छल रहा था, जो उ ह ने मुझ पर कया
था? परंतु अक मात् ही मने पाया क म उ ह एक नई ही से दे ख रहा था। वे मेरे अनुमान
के अनुसार बड़ी ती ता से सकुचाते जा रहे थे। वे अब एक सकुचाए ए, परा जत व अधमृत
क भाँ त दख रहे थे, जो अपने वषय म बड़ी ही आंडबरयु धारणाएँ रखता आया
हो, मानो वह अब भी इस दे श पर शासन कर रहा हो। वे तो केवल एक पहाड़ी चूहे भर थे,
जो दे व सेना से छपते फर रहे थे और अपने ही घर के पछवाड़े बने आँगन म यु का
अ भनय कर रहे थे।

मने जो वर सुना, वह एक बल बुदबुदाहट से अ धक नह था। उ ह ने वयं को उठाने क


चे ा क परंतु मेरे सामने ढ़े र हो गए। मने भयभीत हो कर दे खा। वह ह क पीली पड़ चुक
आकृ त हौले से अपने घुटन के बल खड़ी ई। वे अपनी नम आँख से मुझसे परे कह दे खते
रहे और फर बड़े ही नाटक य प से अपना सर उठा कर मुझे घूरने लगे। मेरे पास कसी
वृ के असंगत लाप को सुनने का समय नह था। मने उनसे अपनी पीठ मोड़ी और सर
को झटकते ए, अपने भाइय के साथ बाहर नकल गया, जो मेरे पीछे आ रहे थे। वभीषण
लड़खड़ाते क़दम से आगे तो बढ़ रहा था परंतु उसने इस दौरान कई बार पीछे मुड़ कर, उस
वृ को दे खा, जसने अब अपने दोन हाथ उठा कर आकाश क ओर फैला दए थे और
लाप कर रहा था। परंतु मेरे पीछे आ रहे कुंभकण के चेहरे पर मु कान थी और उसके क़दम
मुझसे भी अ धक ढ़ न य के साथ उठ रहे थे। महाब ल के यो ा का ब रंगी दल भी
हमारे पीछे आने लगा। जब वे साथ चल रहे थे तो उनक तलवार व ढाल से एक अ त
संगीत मुख रत हो रहा था।

म अपने अनुया यय के साथ, आकाश म चमचमाते खर सूय के नीचे आ खड़ा आ। हाल


ही म पड़ी फुहार से धरती नहा कर तरोताज़ा ई पड़ी थी मानो वधाता अभी अपना काम
नबटा कर नान करने गए ह । मने वन तथा गीली लाल माट क उस स धी गंध को अपने
नथुन म भरा और भीतर ले गया। प य क मधुर चहचहाहट कान म संगीत क तरह रस
घोल रही थी। पूरा संसार मेरे लए बाँह फैलाए ती ारत् था, वह मुझे इस उ लासपूण
जीवन क या ा म शा मल होने के लए नमं त कर रहा था। जैसे ही मने अपना पहला
क़दम भरा, मुझे उस गुहा से रोने का एक तीखा वर सुनाई दया, जसे म अपने पीछे छोड़
आया था। मेरा मे दं ड सहर उठा परंतु म आगे बढ़ता गया, मने उस वृ के आ मा को भी
भेद दे ने वाले वलाप को अनुसना करने क पूरी चे ा क , जो उस गंधाती गुफा क गहराइय
से उठ रहा था।

“यह मने या कर दया?” सनक बूढ़ा लगातार यही कहे जा रहा था। मने शी ही वयं को
उन दयनीय वर तथा वृ ारा मेरे स मुख रखे गए संसार से काट लया। म एक लंबे समय
तक इन सब बात को भुला कर ही जीता रहा, जब तक वह मेरे सपन म आकर मुझे सताने
नह लग । परंतु ये तो ब त बाद क बात ह, ब त बाद क …। अभी तो म वयं से भी आगे
रहकर दौड़ रहा ँ।
6 शैतान का आ मण


म पछले कुछ वष से, मूख का यह यु लड़ता आ रहा ँ। पहले म महाब ल के अधीन,
छह वष तक यु रत रहा, फर मने अपना दल बनाने क चे ा क परंतु असफल रहा। फर
मने सुमाली के अधीन रह कर यु कया। म न तो कोई बड़ा यो ा था और न ही कोई ब त
बड़ा संगठनकता। नाटा, गदबदा और कोमल हाथ वाला, म तो एक सामा य ँ। जैसे
कोई स जी बेचने वाला, बैलगाड़ी चलाने वाला, बाज़ार म चलने वाला एक आम इंसान और
यहाँ तक क जैसे कोई धोबी। म तो कुछ भी नह ँ। मेरे पास पाषाण का भी र जमा दे ने
वाली नह है और न ही मेरी भव धनुषाकार ह। मेरी ना सका मुड़ी ई नह है और न ही
मेरे ह ठ एक ढ़ न य को दशाने वाली सीधी रेखा बनाते ह। न तो मेरे गाल उ त ह और न
ही चबुक म ग ा पड़ता है। पहले कभी जीवन म मेरा कोई और नाम रहा होगा, परंतु अब म
केवल भ के नाम से जाना जाता ँ।

मेरी मह वाकां ाएँ कभी ब त ऊँची नह रह । म पूणा नद के तट पर अपने खेत म कृ ष-


काय करता था। वहाँ काली मच क कुछ लताएँ, कुछ ना रयल के वृ तथा दो गौएँ थ । म
अपनी प नी और तीन वष या पु ी के साथ ब त स था। मेरा गाँव भले ही छोटा था, कतु
वहाँ सब कुछ था – प व उपवन, शव का छोटा सा तीथ, ताड़ी क कान और एक छोट
पाठशाला, जहाँ राज- म ी का काम, खेती-बाड़ी, ग णत व अ य आव यक वषय क
श ा द जाती थी। वहाँ एक आनंद गृह था, एक झोला छाप ओझा, जो वयं को वै कहता
था, हम ठगने के लए एक पुरो हत और एक सावज नक नानागार, जहाँ हम अपनी भस
के साथ नान करते। म अपने पता क भाँ त जीवन तीत करता, जैसे मेरे पता ने अपने
पता क भाँ त कया था। मेरे ब चे भी मेरी तरह ही जीते, उसी पगडंडी पर पलते-बढ़ते,
उसी तलैया म नहाते, गाँव क सं या के स दय से मोह रखते, ववाह करते, संतान को ज म
दे ते और चुपचाप इस संसार से वदा ले लेत,े कुछ लोग उनक मृ यु का शोक अव य मनाते
परंतु इस संसार म उनका कोई वशेष अभाव अनुभव न कया जाता।

मेरा जीवन भी कुछ इसी कार बीत जाता, उसम वराम च ह न होते; केवल एक पूण
वराम के अ त र ! परंतु दे व के आगमन ने मानो सब कुछ बदल दया। जब तक उ ह ने
आकर हम र दा नह , तब तक तो हम यह तक नह जानते थे क दरअसल वे थे कौन? म
आज भी उन दन को मरण करते ए भयभीत हो जाता ँ। हम ायः उन ापा रय के
मुख से, कह सु र चलने वाले यु क सुगबुगाहट सुनते, जो हमारे खेत से काली मच क
फसल लेने आते थे। वे बताते क कस कार दे व सेनाएँ, मुख दे व व णु के नेतृ व म एक
हो रही थ , और कस कार महाब ल यु के लए ज़ोर-शोर से तैया रय म जुटा था। हम
इन अफ़वाह क उपे ा कर दे ते। ये सब मह वहीन घटनाएँ थ , जो कह सु र थान पर
अय य के जीवन म घट रही थ । राजा-महाराजा यु करते और इन यु म अपनी
राजधा नय व जीवन को जीतते-हारते रहते। हम तो साधारण मनु य थे और राजनी त क
इस घनौनी नया से हमारा कोई लेन-दे न नह था। मेरा मानना था क महाब ल अजेय थे।
वे यायी माने जाते थे और अपनी जा के हत-अ हत को यान म रखते ए, शासन चलाने
का य न करते।

कम से कम गाँव के बूढ़े-बुजुग ने तो हम यही बताया था और हमारे पास उन पर अ व ास


करने का कोई कारण भी नह था। हम अपने ही तरीक़े से जीते रहे, इस बात से कोई अंतर
नह पड़ता था क सु र राजधानी पर कसका शासन था। जब तक उनक ओर से कोई
सम या नह आई थी, हम सदै व यही कहते क वे अ छे और भले शासक थे।

एक धूल भरी सं या को, जब हम अपने खेत से पूरे दन के काम के बाद लौट रहे थे, तो एक
घुड़सवार संदेशवाहक कट आ। वह एक लंबा था, उसका चेहरा चेचक के दाग से
भरा था और आँख म एक व च सा भाव दखाई दे रहा था। उसने हमसे कहा क हम
अपने शव तीथ को गरा द और व णु के स मुख आ मसमपण कर द। गाँव वाले उसके
साथ ब त अ छ तरह पेश आए, परंतु उसे इस चेतावनी के साथ लौटाया गया क उसे शव
के कोप को नमं ण नह दे ना चा हए। यहाँ तक क, वह संदेशवाहक लौटने से पहले, वयं
शव मं दर म गया और उनके आगे म तक टे का। हम सारा दन, दे व के वषय म ही बात
करते रहे।

कुछ लोग ने कहा क हमारे स ाट पहले ही परा जत हो कर, भू मगत हो गए ह और अब


व णु हमारा नया स ाट है। उ ह ने दावा कया क संदेशवाहक का हमारे गाँव म आना,
उनके कथन क पु करता था। अ य य ने कहा क महाब ल दे व वंश म जा मले थे
और वे बड़ी शी ता से सभी शव मं दर को व णु मं दर म बदल रहे थे। ताड़ी क कान म
कतार लगी थी और मेरे म क नाक पर एक ो धत क र शवपंथी ने घूँसा दे मारा।

म स था क चलो इस स ाटे से भरे गाँव म कोई खलबली तो मची। आमतौर पर यहाँ


कुछ भी ऐसा नह घटता था, जो उ ेजना या रोमांच से भरा हो और हर आने वाला दन,
अगले दन जतना ही नीरस होता था। और… उस रात, मुझे मेरी प नी ने जगाया। म अपनी
न द म झकझोर कर उठा दए जाने के कारण भ ाया आ था और चाहता था क उसे इस
धृ ता के लए दो-चार धौल रसीद कर ँ ।

तब मने अपने सोने के कमरे म खड़े कुछ अजनबी य को दे खा। मेरे पहले कुछ वचार
थे, जो क मुझे आज भी अ छ तरह याद ह; ‘हे भु! अब म इन लोग को या खलाऊँगा?
ये सब तो रात के भोजन के समय के बाद मेरे घर आए ह।’

शी ही मुझे ोध आ गया। इ ह ने मेरे सोने के कमरे म वेश करने का ःसाहस कैसे


कया? धीरे-धीरे, मुझ पर भय हावी होने लगा। ये लोग कौन थे? वे यहाँ या कर रहे थे?
मेरा पड़ोसी, वह बेअ ल आदमी, जो त दन पान खा कर, उसक लाल-लाल पीक मेरे
आँगन म फक दे ता था और उसके बाद होने वाली झड़प का आनंद लेता, उसे जी वत ही
अ न क लपट के हवाले कर दया गया था और उसने अपने घर के बाहरी बरामदे को
रोशन कर रखा था। दे व यो ा ने हमारे गाँव पर क ज़ा कर लया था। पूरा गाँव धू-धू कर
जल रहा था। लोग मुग के भयभीत चूज़ क भाँ त यहाँ-वहाँ भाग रहे थे। मने दे खा क
लोग के साथ बुरी तरह से मार-काट क गई थी। उनके घर आग क लपट म बेतहाशा घरे
थे। अ क पीठ पर सवार गोरे दे व यो ा, नदयी व शैतानी चेहरे लए लोग का उपहास
कर रहे थे, भीषण आतंक मचाते ए लोग के ाण ले रहे थे। अब वे अजनबी मेरी प नी को
घूर रहे थे और म अपनी प नी क कँपकँपाहट को अनुभव कर सकता था।

म साहस कर उठा और प रवार को अपने ह थयार क आड़ म कर लया। वे शैतान ठहाके


लगाने लगे। फर मने अजीब सा वर सुना, जो मेरे घर के फूस के छ पर म आग लगने से
उ प हो रहा था। कसी ने अपनी तलवार क मूठ से मुझ पर हार कया। मेरी नाक क
ह ी टू ट गई और पूरे शरीर म तीखे दद क लहर दौड़ती चली गई। एक लड़का जो मु कल
से पं ह वष का रहा होगा, उसने मेरी ब ची को टाँग से पकड़ कर घसीटा और दे खते ही
दे खते, उसे कसी चीथड़े क तरह लहराते ए क ची द वार पर पटक कर दे मारा। मने
अपनी यारी ब ची क खोपड़ी खुलने क आवाज़ सुनी। उसका र और फटा आ
म त क हमारे चेहर पर आकर पड़ा। वे नदयी शैतान अ हास कर रहे थे। म सं ाशू य हो
कर, वह फ़श पर ढे र हो गया। मेरी प नी भी बेसुध हो चुक थी। जब वे मेरी प नी को ख च
कर अंधेरे कोने म ले जा रहे थे तो मने उसे कलाई से थामते ए, रोकने का भरसक य न
कया। मेरे नाखून उसक बाजू पर र रं जत रेखाएँ छोड़ते चले गए, परंतु वह मेरी पकड़ से
फसल गई। मने खड़े होने क चे ा क । चार ओर र ही र बखरा था। मेरा पाँव रपटा
और म गर गया। मेरे हाथ ने ब टया के चीथड़े हो चुके सर को छु आ। म काँप उठा, म उस
ओर दे खना नह चाहता था। मुझे कोई ह थयार तलाशना था। कुछ भी ऐसा जससे म उन
कुक मय के सर कुचल सकता। मुझे कसी भी तरह, अपनी प नी क र ा करनी थी।

मेरी प नी क चीख़, गाँव म उठ रही वैसी ही सरी चीख़ के बीच कह खो गई, जो सब


जगह से आ रही थ । म आगे बढ़ा, हालाँ क मेरे शरीर क सारी श ीण हो चुक थी परंतु
मने बरामदे का एक खंभा उखाड़ने क को शश क । यह एक ठोस बाँस था परंतु म यह दे ख
कर नराश हो गया क गदा क तरह इसका योग करना तो र रहा, म इसे उठा तक नह
सकता था। म उस सूअर पर कूद पड़ा, जो मेरी प नी के साथ बला कार कर रहा था। म
बना कसी ह थयार के, जी-जान से लड़ा परंतु म उन दे व यो ा के आगे कहाँ से टकता।
उ ह ने अगले ही पल मुझे धराशायी कर दया और मुझ पर घूँसे बरसाने लगे। मेरे चेहरे पर,
ठोस लकड़ी से बने जूत क ठोकर पड़ने लग और वे मुझे क चड़ म घसीट ले गए। मुझ पर
घूँस क ताबड़तोड़ बरसात हो रही थी। एक बेरहम ने मुझ पर दया दखाई, उसने अपनी
तलवार मेरे पेट म भ क द और इसके बाद मुझे केवल इतना याद है क चार ओर अंधकार
ही अंधकार दख रहा था।

जब मेरी आँख खुली तो अभी अंधकार ही था। चार ओर से अब भी आग क लपट दख


रही थ पर वे मंद हो गई थ । म कह र से आ रही सयार क आवाज़ भी सुन सकता था।
फर अगला दन नकला, मने एकदम वचार कया, ओह! मुझे तो गौ का ध हने जाना
है, परंतु म वह पड़ा रहा। उस समय धरती कतनी उ ण, शीतल व आरामदे ह लग रही थी।
फर म धीरे-धीरे, ब त धीरे-धीरे रगा और एक झटके से उठ बैठा। मेरे पूरे शरीर म तीखे दद
क ऐसी सुइयाँ चुभ , जनके अ त व के वषय म मुझे पता तक नह था। मेरी आँख अपने
ही र के थ क के सूखने से जम गई थ । मने उ ह खोलने क भरसक चे ा क । फर मेरी
नज़र कुछ अधम दे व पर पड़ी, जो एक पेड़ के तले बैठे म दरापान कर रहे थे।

मेरे आसपास, मेरा गाँव, मेरा जीवन, सब कुछ छतरा पड़ा था। मने खड़े होने क को शश
क और शायद उसी को शश म एक डाली टू ट गई। वह आवाज़ मेरे कान को ऐसे सुनाई द
मानो कह बजली गरजी हो। उन भू तया साय ने पीछे मुड़ कर दे खा। म बना हले वह बैठ
गया। मने सोचा, “वे जानते ह क म जी वत ँ और वे मुझे मारने जा रहे ह।”

एक ण के लए, मुझे यह सोच कर सुकून भी मला क दे व ने मेरे बारे म यादा खोजबीन


नह क । तभी मेरी नज़र उस पर पड़ी, एक लंबा और गहरा साया मेरी ओर आ रहा था,
उसने हाथ म तलवार उठा रखी थी। म भयभीत हो गया। जब वह पास आ गया तो मने
पहचाना क यह तो वही लड़का था जसने मेरी ब टया को द वार पर पटक कर मारा था।
वह म दरा के नशे म चूर था और उसके पाँव लड़खड़ा रहे थे। मने ती ा क , मेरे हाथ कोई
ऐसी चीज़ तलाश रहे थे, जसे ह थयार के प म यु कया जा सके। मेरे सर के पास
खड़ा वह लड़का ज़रा सा लहराया। तभी उसे कसी ने पुकार लया। वह ज़रा सा हचका।
तब तक मेरे हाथ, एक पुराना चाकू लग चुका था, जो शायद कसी ने वहाँ छोड़ दया होगा
और फर एक ही झटके म मने उसे लड़के क जांघ के ऊपरी ह से म दे मारा। जब वह
बना कोई आवाज़ कए, मुझ पर ही लुढ़का तो म आ य म पड़ गया। मने अपने चाकू को
ख चा और उसक गदन के पछले ह से म घ प दया

“अरे!” जो हम दोन क ओर भागा आ रहा था, वह हैरानी और भय के मले-जुले


वर म च लाया। मने दे खा क बाक लोग भी उसके पीछे आ रहे थे। मने खुद को उस शरीर
के भार से अलग करना चाहा पर वह लड़का ब त भारी था। जब तक मने कसी तरह खुद
को उससे अलग कया, तब तक म पसीने और खून से लथपथ हो चुका था। कुदरतन मेरे
पाँव, गाँव के सीमांत पर थत वन क ओर बढ़ते चले गए। म अपनी दे ह क बची-खुची
श बटोर कर भागा। म उन रा स से, अपने अतीत से और अपने चर-प र चत उस
जीवन से कह र भाग जाना चाहता था। म अपने य, थ, अथहीन, खोखले व सारहीन
जीवन क र ा के लए भागा। इस रा ते म, म हाँफ़ते-काँपते ए, अपने ही भाइय व म
के सड़े-गले पजर पर फसलता भागता जा रहा था कतु तब इन बात से कोई अंतर नह
पड़ता था। वे तो सड़े-गले शव मा थे, जो इस ती ा म थे क दे व ने जो तांडव आरंभ
कया था, उसम ग पूणा त दे द। मौत मेरा पीछा कर रही थी और म अपने जीवन के
पीछे भाग रहा था, जो बड़ी ती ग त से आगे नकला जा रहा था।

अचानक ही मेरे कंध म दद क तीखी लहर उठ और मुझे अपने ही रा ते म र के ताज़ा


छ टे गरते दखाई दए। वे कमीने मुझ पर बाण बरसा रहे थे। तीर मेरे कान के पास से
सनसना कर नकलते और ज़ोर क आवाज़ के साथ, पेड़ के तन म जा कर लगते। उनम
से कोई एक मेरा गला चीर सकता था और इस तरह इस ः व का एक दयालुता से भरा
अंत हो जाता। तब अचानक सब कुछ धुँधलाता चला गया। मुझे ऐसी भारहीनता का अनुभव
आ मानो म कह तैर रहा था। गहरे हरे रंग का मौत का एक सागर मुझे लील गया। टह नयाँ
मेरे चेहरे से जा टकरा । म गर रहा था, बड़ी तेज़ी से एक गहरी खाई म गर रहा था। तो
मौत ऐसी होती है। इतनी दयालु और अक मात् प से सामने आने वाली! मेरे चेहरे क
सलवट, भारहीनता का वह अनुभव, तैरने का सा आनंद, और उ फ! एक ण के लए तो
जैसे म मर ही गया।

जब म होश म आया तो म एक गंधाती गुफा के भीतर, खुरदरी र सी से बुनी चारपाई पर


पड़ा था। मेरे आसपास से कराहने के वर आ रहे थे। मने उठ कर बैठना चाहा पर ववश हो
कर फर से लेटना पड़ा य क म बुरी तरह से दद के शकंजे म था। मने धीरे से अपना सर
मोड़ा और दे खा क गुफा म अनेक पड़े ए थे, जनक हालत ब त नाजक थी। म
बुरी तरह से काँप उठा। या म एक यु बंद था जो दे व क दया पर जी वत था? परंतु दे व
ने तो कभी कसी को बंद नह बनाया? वैसे भी म तो सेना से नह , ब क एक साधारण
था। म अपने दमाग़ म चल रहे ऊल-जुलूल वचार के साथ उधेड़-बुन म लगा रहा।
लोग क बात के अंश मेरे कान म पड़ने लगे। “उनम से आधे तो शायद बच ही नह सकगे
और जो बचगे, उ ह भी चलने- फरने के यो य होने म महीन लग जाएँग।े ” नःसंदेह कोई
प र कृत त मल भाषा म बोल रहा था। ऐसी बोली सु श त व कुलीन नागर ही बोलते ह।
मने अनुभव कया म श ु के बीच नह था परंतु उनक बात म दम था और उन वर से
ई भ व यवाणी को सुन कर म अवणनीय भय से घर गया। जस तरह, धीरे-धीरे लहर पूणा
नद के कनार से टकरा रही थ , मेरे मत म त क म मृ तयाँ टकराने लग और चेतना
का अंश बन ग । मेरा दय इतना थत आ क म चीख़-चीख़ कर रोने लगा। पूरी गुफा म
ऐसे ही कई वर गूँज रहे थे, जो आस मृ यु क ती ा म पड़े त- व त लोग के मुख से
नकल रहे थे। मने एक परा जत का वर सुना जो अपने जीवन म सादगी और अथ
क हा न को ले कर वलाप कर रहा था, जो क उसके जीवन म कभी थे ही नह । यह उन
ण म से था, जब मने वयं को अपने ही लोग क आह और कराह के म य पाया और
दे व से तशोध लेने का संक प लया।
7 परा जत का परामश

रावण
हम सभी पछले चार माह से ऐसे ही चलते आ रहे थे और अब भूख और थकान से नढ़ाल
हो चुके थे। मने अनुभव कया क जब म हमेशा क तरह ातःकाल दया जाने वाला उपदे श
आरंभ करता तो अ धकतर यो ा बुरी तरह से ऊब जाते, “आज हम दस राजा के यु के
वषय म जानगे, जसके कारण असुर के सा ा य का पूण प से पतन आ तथा दे व का
आगमन आ। ारंभ म, बलशाली असुर स ाट के लए दे व छोटे -मोटे उप व से अ धक
मह व नह रखते थे। वे यदा-कदा सीमांत पर बसे नगर म धावा बोलते रहते। य प, इं के
आते ही, सब कुछ तेज़ी से बदलने लगा। इं के पास खोने के लए कुछ था ही नह । उसक
ू रता के क स ने उसे आगे बढ़ने म सहायता क । उसने हमालय के उ र-प म म अनेक
छोटे रा य को न कर दया और अनेक सुंदर नगर को अ न क लपट से राख कर दया।
वह येक परा जत नगर के नवा सय को जान से मार दे ता और सामू हक वशाल जलती
ई चता के स मुख, दे व घेरा बना कर नृ य व मं जाप करते।”

“जब दस राजा क असुर प रषद ने नणय लया क इन नृशंस ह यार को सबक सखाने
का समय आ गया था, तब तक इं वयं को अपने द धनुधर क सहायता से, गांधार के
पवत क अनुवर तथा हमा छा दत े णय म था पत कर चुका था। बलशाली असुर सेना,
कसी वशाल सेना अथवा सै य वशेष ता के अभाव म भी, अपनी सी मत सै य श के
बल पर दे व ह यार के छोटे से इलाक़े को कुचल सकती थी परंतु गांधार क संक ण घा टय
म, दस राजा के हा थय का कोई उपयोग न था। असुर नरेश गंगा तथा सधु नद के म य,
खुले व वशाल भू-खंड पर यु करने के अ य त थे। उनके हा थय क सेना, भारी-भरकम
गदा व तलवार चलाने वाले सै नक, रथ; जो ायः सामान ढोने के काम आते थे, अ -श
व मनु य के आवागमन के वाहन आ द खुले थान के लए कह अ धक उपयु थे।”

“परंतु इं ने असुर नरेश से यु के लए, संक ण गांधार े को चुन कर बु मता का


प रचय दया। उसने ऊँची पवत ंखला म छप कर असुर नरेश के वहाँ प ँचने क
ती ा क ता क अपनी शत पर उनसे यु कर सके। असुर अपने प रणाम को ले कर पूरी
तरह से आ त थे। उ ह ने इससे पूव भी उ र तथा उ र-प म क अनेक जा तय क
ओर से असं य आ मण का सामना कया था। यह तो उनके आमोद- मोद से भरपूर
मण का एक अंश मा था, जब वे श ु को कुचल दे त,े उसके नेता को बंद बनाते, अपनी
उदारता का प रचय दे ते ए उसे मा दान करते, और परा जत दल को अपने महल म
ी तभोज के लए नमं त करते।”
“बेचारे असुर! वे कहाँ जानते थे उनका सामना कनसे होने वाला था? यह तो एक अलग ही
कार का श ु था, , नदयी व वजय क अद य आकां ा रखने वाला एक श ु। म पहले
कभी गांधार नह गया था कतु हमने ा के मुख से जो सुना था, उससे हम अनुमान लगा
सकते थे क दस राजा के यु के समय, यह सब कैसा रहा होगा।”

मने रेत पर उ र-प मी भारत का एक न शा उकेर दया था और अपने भाइय व एक


यो य म यम आयु के ह त से घरा खड़ा था, जो हमारा सेनाप त था। सरे यो ा
यानपूवक सुन रहे थे, ह त ने दावा कया क वह मेरी माँ का कोई सु र संबंधी था और
इस नाते से मेरा मामा लगता था, हालाँ क मुझे उसक बात पर संदेह था। वह सरी ओर,
मेरी मां के अनेक असुर संबंधी थे, इस लए यह बात सच भी हो सकती थी। य द वह यह
सोचता था क म राजा बनने के बाद उस पर कोई वशेष कृपा दखाने वाला था, तो
नःसंदेह उसके हाथ नराशा ही लगने वाली थी परंतु ह त एक समथ व बु मान था
और म उसका मान करता था।

जब मने कुछ सै नक को अधीर होते दे खा, तो मने अपनी बात वह रोक द । मुझे उनके
लए खेद भी आ। अ धकतर सै नक अ श त व नधन थे। वे सामा य अव था म
कसान, कारीगर या फर ापारी होते, परंतु वे अपनी मातृभू म से खदे ड़ दए जाने के बाद,
कसी समय म महान रह चुके स ाट का साथ दे रहे थे, जो उ ह उनके पुराने सुर त संसार
म वा पस ले जाने का वचन दे चुका था। वे सब छले गए थे और उ ह ने एक बार फर अपनी
उ मीद, मुझ सरीखे बेघर युवा जाबांज़ पर लगा द थ , जो उ ह उनक खोई ई नया से
मलाने वाला था।

“इं ने, ारंभ म एक साम रक भूल कर द थी। उसने सर वती नद के तीर पर थत,
चारद वारी से घरी ा नगरी पर आ मण कर दया था, जो क महाराज मयु क
मुख बंदरगाह थी। वह कोई छोटा-मोटा जीव नह था, जसे आसानी से कुचला जा सकता
हो। उसने अपनी पूरी सेना ला कर सामने खड़ी कर द । 500 हाथी, गदा व भारी तलवार से
लैस 10,000 पैदल सै नक तथा बैल के रथ म सवार 500 धनुधारी, नगर क चारद वारी से
अचानक ही सामने कट हो गए। इं के पास केवल 600 धनुधारी अ ारो हय क छोट सी
सेना थी। उसने उनम से दो सौ सै नक को आगे वाले ार पर भेज दया और नगर म पछले
ार से वेश करने क चे ा क । मयु ने अपने नगर के चार ार खोल दए और उसक
श शाली सेना, वयं को वभा जत करते ए, हर मोच पर लोहा लेने के लए आ डट । इं
उसके इस साह सक क़दम को दे ख तं भत रह गया। दे व सेना ने कोन म छपे चूह क
भाँ त पूरे शौय के साथ यु कया परंतु असुर क सेना उनसे कह बड़ी थी। वैसे भी खुले
मैदान के कारण असुर को अपने तरीक़े से यु करने का भरपूर अवसर मल रहा था।
अ पर सवार दे व, बड़ी सरलता से उनका नशाना बन रहे थे। हा थय के हौद म सवार
यो ा, दे व सेना पर अपने भारी-भरकम भाल व ब छय से वार कर रहे थे और भारी तीर
क वषा से दे व सेना के कवच याज़ के छलक जैसे दखने लगे थे। इं ने लौटने का आदे श
भी दया परंतु उसने अपनी सेना को जस अ त- तता के बीच फँसा दया था, उससे बच
कर नकलना अब इतना सहज नह रहा था। उसक अ सी तशत से अ धक सेना न हो
चुक थी परंतु इं ने पूरी वीरता से यु कया और मयु को घायल करने म भी सफल
रहा।”

“इसे यु क मूखता ही कहा जाएगा क वह अपने हाथी से उतरा और इं को यु करने


के लए चुनौती द । और जब वह इं से यु करने लगा तो जड़बु असुर सै नक गोल घेरा
बना कर खड़े हो गए और उन दोन क खनकती तलवार के बीच ता लयाँ बजाते ए
कोलाहल करने लगे। ऐसा लग रहा था मानो वहाँ असुर यो ा के मनोरंजन का कोई बंध
कया गया हो। उ ह ने इं क चु त तलवारबाज़ी का भी करतल व न से वागत कया।
मयु ने पूरी वीरता के साथ यु कया। उसक ओर से यु के पतर म कह कोई कमी
नह थी परंतु इं अपने ाण क र ा के लए यु रत था इस लए उसने अलग तरह से यह
बाज़ी खेली। अक मात् उसने अपनी ढाल से वप ी क आँख म धूल झ क द और इसके
साथ ही अपनी तलवार से एक गहरा हार भी कया। मयु भी कुछ कम न था परंतु उस
दन वह ह का सा चूक गया और उसके कंधे पर तलवार ने गहरा घाव कर दया। वह
यु भू म म ही अचेत हो गया। इसके बाद जो म का वातावरण बना, उसी का लाभ उठाते
ए इं ने सदमे से सु पड़ी ई सेना के बीच जबरन अपना माग बनाया और अपने आगे
आने वाले तीन सै नक को तलवार से मौत के घाट उतार दया। फर वह झट से अपने अ
पर सवार आ और मु भर जी वत सै नक के साथ पलक झपकते ही ओझल हो गया।”

“मुझे कसी भी परा जत राजा क कहानी बताओ, म तु ह वहाँ कोई ऐसा अव य


दखा ँ गा जसके झूठे अ भमान ने उसक मूखता म वृ ही क होगी।” ह त ने कहा।

मने अपनी बात जारी रखी, “सही कहा, य द वह परा जत राजा यह मान लेता क जो हो
गया, सो हो गया और इसके बाद अपने रा य पर शासन करने लौट जाता तो संभवतः इं
का यह यु इ तहास के प पर एक सं त ट पणी भर होता। उस राजा ने ऐसा नह
कया य क इससे उसके अंहकार को ठे स लगी थी। मयु को केवल इसी त य से संतोष
नह आ क कम से कम उसक जा का वह ह तो नह आ, जो इं के हाथ पड़ने के
बाद सरे नगर के नवा सय का आ था। उसे इस बात से भी संतु नह थी क श ु प
के राजा के हाथ उसक गत पराजय के अ त र , उसक सेना तो यु भू म म दे व
सेना को पछाड़ने म कामयाब रही थी। इस घटना से उसक छ व धू मल ई थी। ाचीन
काल म असुर राजा के पास शासन करने का दै वीय अ धकार नह होता था। राजा एक
चुना गया नेता होता था, जो क नगर का सबसे यो य तथा एक महान यो ा होता।
और यही वा त वकता थी।”
“ मयु को अपने दरबार के गु तचर से यह सूचना मली क उसक जा के बीच उसक
लोक यता म कमी आ रही थी और संभवतः ऐसा भी लग रहा था क उसका पुनः चयन
नह हो पाएगा। उसे अपनी खोई ई त ा व मान-मयादा पाने के लए कुछ कठोर क़दम
उठाने क आव यकता थी। ऐसे वचार कसी भी नरेश के लए घातक स होते ह। यहाँ
कोई भी गत पराजय या वजय नह होनी चा हए। अगर आपक सेना क वजय ई
हो तो इस बात से कोई अंतर नह पड़ता क आपका बैरी आपसे अ छा तलवारबाज़ था,
परंतु असुर तो हमेशा से ही अपने अहंकार को सीने पर तमग क तरह लटकाते आए ह। इस
तरह उनका चतन, उनक सोच धुँधला जाती है और वे एक के बाद एक साम रक भूल करते
चले जाते ह।” ह त ने कहा और मने इस दौरान मटके से पानी पी लया।

म दे ख सकता था क सभी दशक व ोता बड़े मनोयोग से हमारी बात सुन रहे थे। मने
उ ल सत भाव से अपनी बात को आगे बढ़ाया, “राजा ने सभी दशा म अपने गु तचर
रवाना कर दए। उसे कसी तरह इं का पता लगा कर, उससे अपना तशोध लेना था।
मयु ने असुर राजा क आम प रषद भी बुलवाई। इसम भारत के सभी ह स से आए
राजा शा मल थे, जो एक समान पद व मयादा रखते थे। ये दस राजा वष म एक बार जल के
वतरण, कर- नधारण, रा य-कर, पथ-कर, बंदरगाह-कर पर पर पर वचार- वमश तथा
संगीतकार व कलाकार के आदान- दान के लए एक होते। जब तक कसी रा य क
सुर ा का सवाल नह आ जाता था तब तक कसी भी कार क आपातकाल बैठक नह
बुलाई जाती थी। ायः सभी रा य के पास अपनी सेनाएँ तैयार रहती थ परंतु तेज़ी से वृ
कर रहे, सां कृ तक वकास के कारण उनक यु कला बुरी तरह से भा वत ई थी। वे अब
पहले क भाँ त शूरवीर यो ा नह रहे थे। इस भू म म ही मानो कोई रह य छपा था। जब
भी महान व जत सेनाएँ अपने यु म सफल रहत और वशाल सधु-गंगा नद के मैदान
के बीच बस जात तो ऐसा जान पड़ता मानो वे अपने शौय को कह पीछे छोड़ कर, धीरे-
धीरे ैण होती जा रही ह । यह भू म उ ह महान बबर से शांत व सौ य जीव म बदल दे ती,
जो जीवन क बेहतरीन व तु के त च रखते ह । असुर से पूव भी, सभी महान
व जत सेना के साथ यही आ था, और अब तुम दे ख सकते हो क वतमान म उ र के
दे व रा य के साथ भी यही हो रहा है। और असुर जा त के साथ भी यही आ। परंतु, राजा
वयं को उन महान यो ा के वंशज के प म ही दे खना चाहते थे, जो पूरे दे श म फैले थे।
वे अपनी सै य श य के वषय म पूण प से आ त थे। उनक सेना केवल एक ऐसा
दं भी संगठन भर थी जसम संगीतकार , नत कय , जा गर व बाज़ीगर , कलाबाज़ , फूल
व े ता , रसोइय , ापा रय व पुरो हत का जमावड़ा था। हम उनक सेना के वषय
म जो सं याएँ सुनते ह, वे सब अस य ह। व तुतः दस हज़ार क सेना के बीच केवल कुछ ही
वा त वक यो ा होते थे। शेष सेना के साथ यु े म जाते और वयं ही उप व का
कारण बनते।”

“दस म से छह राजा ने आम प रषद क बैठक म इस बात पर असहम त कट क क


इं का आ मण चेताने वाला नह था। उनका मानना था क कसी भी समृ नगर पर
आ मण हो सकता था। परंतु उस दन मयु ने अपने तक से सबको परा जत कर दया।
उसने कहा क सधु के मैदान म सीमांत नगर पर धावा बोलने वाली जा तय ने कभी कसी
बड़े रा य क राजधानी पर हमला करने का ःसाहस नह कया था। उसका मानना था क
यह समूह उन आम हमलावर म से नह था जो ायः सीमांत नगर म बने भंडारघर पर
आ मण करता और जो हाथ आता, उसे लूट कर ले जाता। दरअसल इन य ारा
अभूतपूव साहस व चतुराई का दशन कया जा रहा था और वे धावा बोलने के लए एक
व च से पशु का योग कर रहे थे। असुर सेना इन पशु क नपुणता दे ख कर दं ग थी जो
बैल से कह यादा चपल व ती ग त वाले थे। मयु ने तक दया क जब तक इनको
समा त नह कया जाएगा, तब तक उनक जा इन बबर लुटर के भय से आ ांत रहेगी।
य प उस रात प रषद कोई नणय नह ले सक और सभा यूँ ही समा त कर द गई। अगले
दन ातःकाल जब उ र-प मी े के असुर राजा के क म संदेशवाहक ने आकर
सूचना द क अ ारोही कबीलाई लोग ने मलतामुख को आग के हवाले कर दया है तो स
वह रोक दया गया। यह मुख ापा रक माग म से एक पर थत मु य नगर था, जो क
गंगा के मुहाने से ले कर गांधार तथा उससे भी परे तक फैला था। इस आ मण ने आग म घी
का काम कया और सभी दस राजा ने मल कर नणय कया क वे एक वशाल सेना का
गठन करगे, जो न केवल अ ारोही जा त का अंत करेगी ब क इसके साथ ही उन छोटे -मोटे
द यु तथा लुटेर के दल का भी सफ़ाया कर दया जाएगा, जो म व मैसोपोटा मया के
महान नगर क ओर जाने वाले मुख ापा रक माग पर लूट-खसोट मचाते रहते थे।”

“तीसरे दन भी प रषद क बैठक बुलाई गई और यु के लए योजनाएँ तैयार क ग ।


मयु को सेनाप त का पद स पा गया, ऐसा इस लए नह कया गया था क उसके पास
अतुल श अथवा व र ता का अनुभव था, उसे यह पद इस लए स पा गया य क वह
एकमा ऐसा था जो अनजाने े म भी श ु का पीछा करने म संकोच नह करता
था। अ धकतर रा य आरामदायक अव था म थे और वे यु नह करना चाहते थे। ापार
फल-फूल रहा था और लोग के जीवन सुख-सु वधा से प रपूण थे। उन साहसी यो ा
के वृ दल अब ओझल हो चुके थे, जो शव के नेतृ व म अपने बैल पर यु कर चुके थे,
धूल- म म सन कर सोए थे और स ताह म एक बार मल रहे भोजन से तृ त हो जाते थे। ये
तो वे थे ज ह जीवन क मठास क लत लग चुक थी और वे ऐसी जा तय के साथ
कोई लंबे यु नह करना चाहते थे, जनके पास खोने के लए कुछ शेष था ही नह ।”

“ मयु क सेना ने सधु नद के कनारे से कूच कया। उसक सेना म एक लाख से अ धक


धनुधर तथा यो ा शा मल थे, जो गदा, भाल , ब छय व मुड़ी ई तलवार से लैस थे।
लगभग दस हज़ार हा थय तथा तीन हज़ार बैलगा ड़य के साथ दस हज़ार ढोल बजाने
वाले, बाँसुरीवादक, नत कयाँ, खेमे बनाने वाले, असुर राजा क वीरता व शौय पर
क वताएँ रच कर, उ ह सुनाने वाले भाँड तथा समाज के अ य नाकारा क म के लोग भी थे
जो ायः असुर सेना के साथ हो लेते थे। इस बलशाली ‘भीड़’, जी हाँ, इसे भीड़ ही तो
कहगे, ने सधु तथा सर वती नद को पार कया तथा छोटे -मोटे लुटेर व आ मणकारी
कबील को न करने लगे। सेना पूरी सफलता के साथ आगे बढ़ । मयु ने उन
संदेशवाहक के साथ ब त ही बेहतर सं ेषण व था बनाए रखी, जो बीच म बसे गाँव से
समाचार ला-ले जा रहे थे। गु तचर असुर राजा को श ु के छपे ठकान क सूचना दे ते
और असुर सेना आ यजनक ग त व नममता से उ ह गाँव पर धावा बोल दे ती, जनम
श ु के गु तचर के छपे होने का संदेह होता। मयु सफलता के इस नशे म चूर हो
गया। उसके गु तचर ने सू चत कया क इं अपनी छोट सी सेना स हत गांधार के उ र-
प मी पवत क ओर थान कर रहा था। मयु के शौय का गुणगान करने वाले भाँड
अपने काम म जुटे थे जसने अ य नौ राजा के भंगुर अहं को बुरी तरह से चो टल कर
दया था, जो बेमन से उसके साथ यु के मैदान म खड़े थे। उ ह ऐसा लग रहा था मानो वे
मयु क सेना म अपनी सेवाएँ दे ने वाले हीन नेता ह । मयु वयं भी दन-ब- दन घमंडी
होता जा रहा था। आरंभ म, उसने सरे राजा ारा दए जा रहे परामश क उपे ा क ।
फर बाद म खुलेआम उनक आलोचना करने लगा और उनक साम रक रणनी तय का
उपहास करने लगा।”

मने मयु क सेना के थान माग क ओर संकेत कया, जो लगभग एक हज़ार वष पूव
स तापूवक अपने वनाश क ओर बढ़ती चली गई थी। सपाही मेरे ारा धरती पर ख चे
गए न शे को नहारने के लए एक साथ आगे झुक आए।

मुझे ह क सी थकान महसूस ई और थोड़ा व ाम करने क इ छा जागी, तो ह त ने


आगे क कमान संभाल ली। उसने अपने भारी कंठ वर म कहा, “जब तक सेना ह कुश
पवत के तले ऊबड़-खाबड़ मैदान तक प ँची तो वह एक छोटे -मोटे लड़ाकू दल से अ धक
नह रह गई थी। तीन राजा ने व ोह कर दया था और धमक दे द थी क य द इस
अ भयान को यह न रोका गया तो वे अपनी सेनाएँ ले कर लौट जाएँग।े इस समय तक,
मयु म स हत प म को जीतने के बारे म बात करने लगा था और उसने वयं को व
का स ाट घो षत कर दया। जब तीन राजा ने व ोह कया तो उन पर दे श ोह का
आरोप लगाते ए, उ ह त काल बंद बना लया गया और एक छोट सी सुनवाई के बाद
खुलेआम फाँसी क सज़ा दे द गई। इससे पूरी सेना म भय क लहर दौड़ गई। उनका
मनोबल तो पहले ही टू टने क कगार पर था। उ ह ने इस अ भयान के साथ जस कार के
आमोद- मोद क क पना क थी, यह तो उसका शतांश भी नह नकला। यह अ भयान
उनक जान पर भारी पड़ने लगा था। शी ही, फाँसी पाने वाले राजा क सेना के एक
बड़े ह से ने व ोह कर दया और उनके अ त र कई सरे सपाही भी बाग़ी हो गए।
मयु ने सै नक पर बबरतापूण प से आ मण करवाया। भाँड ने उसका क तगान
करते ए कहा क उसने अपनी ही सेना के नौ हज़ार सपा हय को मौत के घाट उतार दया
था। जो सै नक सेना छोड़ कर भागे थे, उनका पीछा कया गया और वा पस लाया गया।
फर एक कृ म सुनवाई के बाद, उन सबको फाँसी क सज़ा सुना द गई। इस दौरान कुछ
यो ा तट थ बने रहे। उ ह ने कसी का भी प नह लया। ऐसा जान पड़ता है क यह
गृहयु ही असुर सेना क पराजय का मूल कारण बन गया। अंततः, मयु छह राजा
को अपने साथ चलने के लए मनाने म सफल रहा और हर कार के व ोह को भली-भाँ त
दबा दया गया परंतु इस दौरान वह काफ़ ब मू य समय न कर चुका था। जब उसने इं व
उसक सेना क तलाश म, उस पवतीय ांत म जाने का नणय लया, तब तक शीत ॠतु का
आगमन हो चुका था।”

“वाराणसी के राजा वभोग ने मयु से ी म ॠतु आने तक ती ा करने को कहा परंतु


उसने यह ताव अ वीकार कर दया। वह इं को पकड़ कर, शी तापूवक अपनी राजधानी
म घसीट कर ले जाना चाहता था। वह तो पूरे व का स ाट बनने जा रहा था, भला वह
खड़े नुक ले पवत तथा हमा छा दत च ान से भयभीत य होता? उसने इस परामश क
अवहेलना क और शी ही उनके हाथी फसल कर गहरी खाईय व पगडं डय के कनारे
गरने लगे, इससे घंट तक आगे-जाने के माग म बाधा आ जाती। बैल से चलने वाले रथ
तथा हा थय को भी उन संकरे माग पर ही छोड़ना पड़ा। सेना का अनुशासन टू ट गया और
सै नक मनमाने तरीक़े से पहाड़ पर चढ़ने लगे। भारी गदा, कु हा ड़य व धनुष को उठा कर
चलना सरल नह था और मैदानी इलाक़ से आए सै नक भी पवत क जमा दे ने वाली शीत
लहर के अ य त नह थे। यही कम नह था क मयु ने अपने लए आव यक सारी
आपू त बैलगा ड़य म लदवा द और यो ा को उसे पहाड़ पर ले कर जाना था।
नत कय , भाँड व संगीतकार , जा गर तथा पुरो हत के दल ने इतना उप व मचाया क
उनके कारण, पवत पर चढ़ने क ग त लगभग थम सी गई। इस कार पवत पर चढ़ने क
ग त न के समान ही रही।”

मने ह त के हाथ से कहानी क कमान संभाली, “यह भीड़ एक माह से अ धक समय तक


रह यमयी इं व उसक सेना क तलाश म चलती रही। अनेक सै नक सेना छोड़ कर लु त हो
गए और कइय ने थकान व ाकृ तक कोप के कारण दम तोड़ दया। उन लोग के पास
खा पदाथ क आपू त समा त हो गई थी और अब पेट भरने के लए, यदा-कदा मलने
वाली पहाड़ी बकरी तथा छोटे प य के अ त र कोई साधन नह रहा था। आधे से
अ धक हाथी मारे गए और भूखी व थक सेना का पेट भरने के लए अपने ही बैल का वध
करना पड़ा। अब सेना के पास अपने भारी-भरकम अ -श भी नह रहे थे। नाकारा लोग
तो यूँ ही पीछे छू ट चुके थे और अब सेना क पं याँ सात मील के इलाक़े म फैली थ । गंदे व
चीथड़ म लपटे अपने भारी व नरथक ह थयार के साथ वयं को यं णादायी पवत
के बीच, घसीटते ए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। उ ह ने पछले एक वष से, एक भी दे व
सै नक क झलक तक नह पाई थी। इस महान अ भयान के दौरान, असुर यो ा को या
तो अपने ही लोग के व या फर राह म मलने वाले लुटेर के दल के ख़लाफ़ ही श
उठाने पड़े थे। अब तक मयु को भी अपनी मूखता का भान हो चला था और वह अपनी
सुंदर राजधानी म थत महल के सुख-सु वधा से भरपूर आराम व वला सता के बीच
लौट जाना चाहता था। परंतु सेना पूरी तरह से बखर चुक थी। बफ़ पड़ने तथा भू- खलन के
कारण अनेक मैदानी माग बंद हो चुके थे। मयु ने हर संभव दशा म, एक के बाद एक
अपने संदेशवाहक भेजे ता क छोटे -मोटे असुर कबील के मु खया उ ह सहायता व खा
आपू त दे सक परंतु एक भी संदेशवाहक वा पस नह लौटा। माना जाता है क इं क सेना
ने उन संदेशवाहक को आगे जाने ही नह दया। और जब असुर क सेना का मनोबल
ब कुल ही खोखला हो चला था, तो अचानक एक ठं डी व कोहरे से भरी सुबह, इं के
अ ारोही सै नक उन पर अ नबाण क वषा करने लगे। मयु क सेना एक संकरी
पवतीय खाई के बीच फँसी थी और एक सीधी कतार म, दस मील से अ धक े म फैली
थी।”

मने अपनी बात पर बल दे ने के लए, न शे म एक ब के आसपास घेरा बनाया। “इं ने


अपने से अ धक सं या म उप थत असुर सेना को एक संकरे पवतीय माग के बीच घेर
लया था, जसके एक ओर गहरी खाईयाँ तथा सरी ओर सीधी खड़ी तीखी च ान थ । ती
व चपल अ पर सवार दे व सेना असहाय असुर भीड़ पर अपने ह के बाण से वार पर वार
कर रही थी। इं के पास असुर क पचास हज़ार क बलशाली सेना का सामना करने के
लए बमु कल पाँच सौ यो ा रहे ह गे परंतु इसके बाद जो आ, वह तो खुलेआम नरसंहार
था। असुर के भारी तीर गु वाकषण के नयम के व होने के कारण उस ऊँचाई तक
नह जा पा रहे थे, जहाँ दे व सेना ने अपने लए सुर त ठकाने बना रखे थे। वहाँ
कु हा ड़य , गदा व भाल का तो कोई काम ही नह था। असुर सेना के पास ऐसा कोई
साधन नह था जो ऊपर से, दे व सेना ारा लुढ़काए जा रहे भारी-भरकम वशालकाय
पाषाण क बाढ़ को रोक पाता, वे केवल ती ा कर सकते थे क कब कोई वशाल
पाषाण, राह म अनेक य को कुचलता, नीचे क ओर लुढ़कता आएगा और उनके ाण
ले लेगा। लड़ने क थोड़ी-ब त चे ा करने के बाद सेना वा पस लौटने के इरादे से ततर-
बतर होने लगी।”

“ मयु अपनी सारी भूल के बावजूद एक वीर यो ा था और उसने अपनी बखरी सेना
का मनोबल बनाए रखने के लए उन च ान पर चढ़ना आरंभ कया, जहाँ दे व सेना के
धनुधर का एक बड़ा दल तैनात था। उसने बड़ी ही त परता व सट कता से कुछ तीर छोड़े
और कुछ दे व सै नक को मौत के घाट उतारने म सफल रहा। अपने राजा क ऐसी वीरता
दे ख, अ य असुर सै नक ने भी उसके पीछे आने का नणय ले लया परंतु उसक अ धकतर
सेना अलोप हो चुक थी। केवल वाराणसी का राजा ही उसके साथ था, जसने इस अ भयान
को, उ चत समय पर बंद करने का परामश दया था। उसके अ त र , प रषद के अ य पाँच
राजा व उनक सेनाएँ वहाँ से गायब हो चुके थे।”

“यु के कारण मची भगदड़ म अनेक सै नक कुचल कर मारे गए और कई वहाँ क खाइय


व खंदक म जी वत ही दफ़न हो गए। मयु व वभोग ने अपने कुछ हज़ार सै नक के
साथ ऊपर पवत पर जा कर, बड़े ही साहस का प रचय दे ते ए, यु कया। यह छोटा सा
दल ही दे व सेना पर ब त भारी पड़ा। इं ने इस संकट को भाँपा और वयं यु का नेतृ व
करने के लए आगे आ खड़ा आ। मयु और इं एक बार फर से यु के मैदान म
आमने-सामने थे। वभोग बड़े शौय से यु रत था और उसने मयु को पीछे हटने का
संकेत कया ता क वह वयं यु क कमान संभाल सके परंतु मयु यह अवसर कैसे छोड़
दे ता, उसे तो पछले ं म इं के हाथ मली पराजय का तशोध लेना था। उसने झट से
इं को जा घेरा और कुछ ही समय म अपने घात - तघात से इं को थकान से चूर कर
दया। उसक तलवार उस दन आग उगल रही थी परंतु दे व सेना असुर क सेना क भाँ त
एक घेरे म खड़ी, तलवारबाज़ी के कौशल को दे ख कर ता लयाँ नह बजा रही थी। उ ह साफ़
दखाई दे रहा था क उनके नेता के ाण संकट म थे। बड़ी चतुराई से छोड़ा गया एक बाण
मयु क गदन म आ धँसा और सीधा उसके दाएँ ने से बाहर नकल आया। यह दे ख
वभोग तं भत रह गया और उ ह कुछ ण का लाभ उठाते ए, सात दे व तलवार ने
वभोग के टु कड़े-टु कड़े कर दए।”

“ मयु अगले कुछ ण तक लड़ता रहा परंतु इं ने अपनी तलवार के एक तेज़ वार से,
ब त ही मया दत ग त से अपने वप ी का गला चीर दया। उसने वजय के उ लास म
आकर जो व न उ चा रत क , उसने बाक बची असुर सेना को कं पत कर दया। इं ने
वप ी के कटे सर को तलवार क नोक पर उठा दया ता क बाक बचे वप ी भी उसे दे ख
सक। असुर सेना सब कुछ भुला कर अँधाधुँध भागी। इं ने कुछ हज़ार सै नक को तो
भागने का अवसर दया और फर शेष बचे ए सै नक को भा यवश उसके कोप का
भाजन बनना पड़ा। उस भा यपूण दन म असं य यो ा मारे गए। उस े से भली-भाँ त
प र चत दे व यो ा ने असंग ठत असुर सेना को पवत से बाहर नकलने के लए ववश
कर दया। जब असुर सेना, बड़े ही क सहने के बाद, मैदानी इलाक़े म प ँची तो उनक
सं या दो सौ रह गई थी। पवतीय सै नक ने उ ह बुरी तरह से खदे ड़ा। जो पाँच राजा
यु भू म से अपने सै नक ले कर लौट गए थे, य द वे चाहते तो लौट कर, सुसंग ठत प से
जवाबी हमला कर सकते थे। अ ारोही दे व यो ा खुले मैदान म थे, जहाँ असुर सेना के
भारी-भरकम अ -श उनको बुरी तरह से कुचल कर रख दे त।े यही कारण था क इं ने
अपनी सेना को साम रक से, एक सुर त री पर रखा, असुर के भारी बाण क वषा
के प ँच से भी परे! परंतु असुर इतने नकट थे क दे व सेना के ह के तीर क प ँच के भीतर
रहे। शी ही, दे व सेना क सं या म वृ हो गई, अनेक शकारी तथा असुर सेना के भगोड़े
भी उनके साथ शा मल हो गए, ये कुछ इस कार के लोग होते ह, जो सदै व वजयी प का
ही साथ दे ना चाहते ह। चार ओर यह समाचार सा रत हो गया क असुर सेना बुरी तरह से
परा जत रही और अब दे व सेना, उनक बची ई सेना का पीछा कर रही थी। जब असुर सेना
ने उ र क ओर कूच कया था, तो अनेक लुटेर के दल तथा व य जा तयाँ जो अपने छपने
के ठकान म जा बके थे, यह समाचार पाते ही, दे व सेना से आ मले।”
“सबसे पहले, ढोल पीटने वाल , नत कय तथा सेना के साथ घूमने वाले नाकारा दल के
लोग को दे व सेना क श का सामना करना पड़ा, वे लोग तो अपनी सेना के प रणाम से
अनजान, अपने घर क ओर लौट रहे थे। पहले उ ह असुर सेना के रोष को सहना पड़ा और
फर असुर का पीछा कर रहे दे व अ ारोही यो ा उन पर कसी महामारी क तरह टू ट पड़े।
भीड़ अ नयं त हो उठ और केवल कुछ सौ मूल यो ा के अ त र कोई भी इं के
आदे श का पालन नह कर रहा था। इन यो ा म अ धकतर तो वे व य जनजातीय
कबील के लोग तथा लुटेरे थे जो येक गाँव म लूटपाट मचाने के लए ठहर जाते। उ ह ने
अपनी राह म आने वाले घर पर क़हर बरपा दया, नगर म जी भर कर लूटपाट क , हज़ार
क सं या म आम जा को मौत के घाट उतार दया और म हला से सामू हक बला कार
कया। शी ही, परा जत असुर सेना के नगर म प ँचने से पूव ही, बड़े नगर के नाग रक म
भी भगदड़ मच गई। यह तो मानो एक कार का मानव आपदा थी और चार तरफ दं गे होने
लगे। पूरे दे श म एक कार क अ त- तता का सा ा य हो गया और मु भर बबर
अ याचा रय ने क़हर ढा दया।”

“असुर सेना ने भी इसी भगदड़ के बीच, दे व सेना के हाथ बंद बनने से पहले, नगर म
व वंस करना आरंभ कर दया। वह नगर को आग क लपट के हवाले करने लगी। छोटे
नगर म रहने वाले लोग ने वयं ही ह थयार उठा लए ता क वहाँ आतंक मचा रही असुर
सेना से लोहा ले सक। इस कार एक भयंकर गृहयु आरंभ हो गया।”

“चार ओर यह अफ़वाह फैल गई क पाँच असुर राजा दे व से जा मले थे और उ ह ने


श शाली मयु स हत अ य पाँच राजा का वध कर दया था। शी ही असुर रा य
पर पर संघष करने लगे जब क दे व क श व बल म दन नी रात चौगुनी वृ हो रही
थी। असुर से ए इस संघष के प ात इं क मान-मयादा म आशातीत वृ ई थी। शी
ही अ य घुमंतू दे व झुँड भी उनसे आ मले, जब क असुर सेनाएँ दन ब दन बल हो कर
बखरती चली ग ।”

“एक महान सा ा य को न होने म केवल सात माह का समय लगा, एक ऐसा सा ा य


जसे प रप वता क अव था तक आने म हज़ार वष का समय लगा था। जब इं पूरी तरह
से आ त हो गया क असुर सा ा य बल हो चुका था तो उसने असुर के संर त
अ त व के परख चे उड़ा दे ने का नणय ले लया। यह यु कला तथा शासनकला क श ा
पा रहे छा के लए एक ब त बड़ा पाठ है क उ ह कसी भी व जत े के साथ कैसा
वहार करना चा हए। कोई भी स यता अपने ारा न मत दे वालय , अपने ारा तैयार
करवाए गए ंथ , अपने यहाँ संर त कलाकार व वा तुकार तथा अपने ारा न मत नगर
आ द पर गव अनुभव करती है। कसी भी वजेता का पहला कत यही बनता है क वह
स य अ त व के इन माण को चूर-चूर कर दे , उनका नामो नशान तक मटा दे । इं ने
ब त ही ख़ूबसूरती से यह काय संप कया। उसने यथासंभव वनाश व व वंस का च
चलाया। उसने पु तकालय को जला कर राख कर दया, क वय तथा वा तुकार का
बबरतापूवक वध करवा दया, मं दर को र द कर रख दया और य व ब च पर मनमाने
अ याचार करवाए। शी ही असुर क सारी ब मू य थाती न हो गई। और यह से मूल इं
को ‘पुर ’ अथवा ‘नगर का ह यारा’ कहा जाने लगा। इसके बाद सभी असुर त काल
भू मगत हो गए और उनक ओर से यदा-कदा ही व ोह के वर उठते दखाई दे ते थे, परंतु
उनम से अ धकतर अ भावी ही रहे। इं ने असुर स यता के कंकाल को आधार शला बनाते
ए, अपने सा ा य क न व रखी। लगभग 300 वष तक, पूरा दे श इं के शासन के नयं ण
म रहा।”

“इस काल के दौरान, मैदानी इलाक़ ने दे व को सौ य बना दया। एक बार फर से कला व


स यता अपने चरमो कष पर आ गए और दे व अपनी चंडता भुला बैठे। वे भी सुख-सु वधा
तथा वला सता के दास हो गए। अनेक महान नगर का नमाण आ, य प वे असुर ारा
न मत नगर से कह हीन थे। सरे इं के शासनकाल म पर पर वलयन व मेलजोल क
या आरंभ ई। असुर के सव च दे व, शव को दे व ने भी अपने दे व के प म वीकार
लया। असुर जा त के महान गु , ा जी भी, एक दे वता के प म वीकारे गए। इसके
बाद आने वाले इं स ाट ब त बल थे और वे शी ही व णु के हाथ का खलौना बन कर
रह गए, जो इं तृतीय क सेना का मुख सेनाप त था। यारहव इं के शासनकाल के अंत
तक, व णु का वंश ही सही मायन म रा य पर शासन कर रहा था और इं केवल नाममा
के ही स ाट रह गए थे। जैसे क असुर जा त के शव राजा के साथ आ, वे हमालय के
ऊपरी े म, कैलाश के समीप छोट सी श बन कर समट गए थे। यह सब दस राजा
के शासन से ब त पहले क बात है।”

“ व णु ने इं के नाम पर लगभग सात सौ वष तक राज-काज का संचालन कया। वे इं


के नाम तथा दे व क स यता के संर ण म सफल रहे और ा ण ने सामा जक व था
के संर क के प म उनक जयजयकार बनाए रखी। शी ही, वचार को एक
कौतूहलपूण म ण सामने आया। ान का मूल वा म व रखने वाले ा ‘सजक’; व णु
तं के ‘पालक’ तथा शव को ‘संहारक’ के प म जाना जाने लगा। यह भी कैसी वडंबना
थी क इं के थान पर सा ा य का नमाण करने वाले शव को ही संहारक क उपा ध दे द
गई। वे भारत के तीन दे व थे – मू त। इन प रवार के पहले सद य को ई र क उपा ध द
गई और वे आज भी दे व ारा बड़े ही आदर भाव से पूजे जाते ह। हम शव तथा पहले ा
को भी ई र के प म वीकार करते ह परंतु ा ण इस बात पर बल दे ते ह क दे व के
सेना धप त तथा दे व रा य के सेवक व णु को भी सव च दे व के प म मा यता द जानी
चा हए। ऐसा करना लगभग असंभव है। असुर के बीच अनेक महान व ोही सामने आए,
जो व णु को मा यता नह दे ते थे। हर य ाता तथा महाब ल जैसे महान ,अ प
काल के लए एक व तृत असुर सा ा य क थापना करने म सफल भी रहे परंतु बाद के
वष म, जस कार असुर सा ा य दस रा य म वभा जत हो गया था, उसी कार दे व
सा ा य भी अनेक छोट रयासत व जागीर क भट चढ़ गया।”

“जब कोई सा ा य बखर कर, छोटे -छोटे रा य व जागीर म बदल जाता है तो हम जान
लेना चा हए क एक नए सा ा य के नमाण का समय हो गया है। जब म य भारत म बाली
जैसे वणसंकर तथा स पवत े णय म कात वीराजुन जैसी आ दम जा तयाँ, दे व
सा ा य म से बड़े-बड़े रा य का नमाण करने म सफल हो जाएं तो हम जान लेना चा हए
क इ तहास का एक च पूरा होने को है। इं के पास बलशाली परंतु वभा जत असुर
सा ा य को परा जत करने के लए छोट सी सेना थी। म आशा करता ँ क आप सबने
उस भयंकर यु क घटना से कुछ सबक ले लए ह गे, जो हमारे अपने लोग के पतन का
कारण बनी। अब समय आ गया है क हम वप य को मुँह तोड़ ज़वाब द।”

“आप लोग यह याद रख क श शाली व णु प रवार भी आपसी संघष के चलते बल हो


गया है और केवल एक छोटा सा दल ही उ लेखनीय है, जो सरयू नद के कनारे थत
अयो या रा य पर शासन कर रहा है। तो हम तब तक अपना यह संघष जारी रखना होगा
जब तक हमारे पास पया त सं या म अ तथा सेनाएँ नह हो जाते। तब हम इन दे व को
दखा दगे क वे इ तहास से मले पाठ को भुला बैठे ह।”

य प हमारे स मुख खड़ी भीड़ के लए यह ा यान काफ़ बो झल हो गया था। बेहतर तो


यही होता क उ ह छोटे व प आदे श दए जाते ता क वे उन पर आसानी से अमल कर
सकते, इ तहास क हजम न होने वाली ख़ुराक से उनका कोई लेना-दे ना नह था। मुझे इस
बात क नराशा थी क कसी ने भी मेरी बात का वरोध नह कया था और न ही इतने लंबे
संबोधन के बीच कोई सवाल उठाया था।

मने अपने भावी यो ा को दोपहर के भोजन के लए जाने का आदे श दे दया। फर म


अपने भाइय तथा र ते के अ य भाइय के साथ उस वटवृ के तले जा बैठा, जो उस
मैदानी इलाक़े से र नह था, जहाँ हमारे भावी सै नक आमोद- मोद मनाने व अपश द से
भरे अथ चुटकुले सुनाने म म न थे। हमने पछले कुछ दन से चली आ रही चचा को फर
से उठा लया। हम अपने अ भयान का आरंभ कहाँ से करना चा हए?
8 महाराज

रावण
म इस को तब से दे खता आ रहा ँ, जब से यह सुमाली के साथ आया है, हालाँ क
इसम ऐसी कोई ख़ा सयत नह क इस पर यान दया जाए। वह न न ेणी के उन सै नक
म से एक था, जो कसी भी सेना के लए अ नवाय तो होते ह, परंतु ायः उ ह बना कसी
आभार के भुला दया जाता है। वह सदा मेरे पास आने का य न करता रहता। वह सचमुच
कुछ कहना चाहता था। मने उसे पास बुला कर कहा क वह या चाहता था। मुझे कई
स ताह पूव ही ऐसा कर लेना चा हए था परंतु मने ही यह नणय भी लया था क सेना के
उ च अ धका रय व न न े णय के सै नक के बीच एक री बनी रहनी चा हए। पहले-
पहल, हम तीन भाई, सारे सेनाप तय के साथ मल कर म दरापान करते। पर अब म इस
तरह क यारी-दो ती के दशन से असहज अनुभव करने लगा था।

यह प रवतन तब आया जब मेरे संबंधी अपने सै नक के दल के साथ, हमारे पास आ गए


और इस तरह श शाली असुर सेना और भी बलशाली हो गई। मेरे मामा सुमाली यह
सु न त कर लेना चाहते थे क हम राह चलते ठग का दल नह , ब क एक सेना का गठन
कर। वे इस वषय म हमसे काफ़ लंबी चचाएँ करते आ रहे थे। संभवतः यह असुर क
सबसे बड़ी बलता हो सकती है – बात को लंबा ख चते ए बहस करने क वृ ! उ ह ने
मेरे दमाग़ म नरंतर यही बात बैठाने का भरसक य न कया क य द म अपनी सेना म
अनुशासन लागू करना चाहता था, तो मुझे पदानु म को मान दे ना होगा। पदानु म को मान
दे ने के लए यह आव यक था क म पहले उसे उ प करता। मने ब त शी सब कुछ सीख
लया और इसके बाद बाक लोग को हेय से दे खने लगा, लोग वनीत भाव से मेरे इस
वहार को हण करने लगे थे।

वह गहरे रंग का नाटा व गठ ला युवक मेरी ओर आया, बड़े ही आदर से झुक कर णाम
कया और खानपान क साम ी नकट ही रख द । म उसके चेहरे क ओर नह दे खना
चाहता था। मुझे भय था क कह मने उसके चेहरे को यादा यान से दे ख लया तो उसके
चेहरे पर छपे हेय तथा घृ णत भाव को पहचान लूँगा, ज ह वे अपनी अथहीन चाटु का रता
व अ य धक बचाव क वृ के साथ छपाए डोलते ह। वह कुछ दे र तक मेरे समीप ही
खड़ा रहा और जब मने उसक उप थ त को उपे त कया, तो वह मौन भाव से, क से
बाहर हो गया। म इस वषय म इतना च तत य था क वे मेरा आदर करते थे या नह ? मने
उस भ े से दखते इंसान को अपने दमाग़ से परे झटकने के बाद, सेना के संगठना मक ढाँचे
म अपना यान एका करना चाहा।
हम दस अ धका रय क प रषद के लए सहमत हो गए थे जसम मेरे मामा ह त, सुमाली,
मारीच, ज बूमाली, पूव लंका मोती प के सुयो य रा यपाल तथा हम तीन भाई स मलत
थे। उनम क भी शा मल था, जो क महाब ल के कुलीन र क वग का एकमा जी वत
ाणी था, जब वामन व णु ने स ाट पर आ मण कया था तो वह एक भ ुक के वेष म
वहाँ से बच नकला था। महाब ल क सेना का आपू त व वतरण मुख धु ा तथा
महाब ल क सेना का सेनाप त व धम भी हमारे साथ था। इसके अ त र अनेक
क न अ धकारी थे, ज ह छोट इकाईय के संचालन का काय भार स पा गया था। मेरे मौन
ने यह सु न त कर दया था क मुझे मुख सेनाप त के प म चुना जाए। जब मुझे इस
पद को मलने के बाद स ता व शां त का अनुभव आ, तभी मने जाना क म इस पद को
पाने के लए भीतर ही भीतर कतना था। मने ह त व व धम क ओर से थोड़ी सी
सुगबुगाहट अनुभव क परंतु वे तथा सरे लोग भी यह जानते थे क वे इस पद के उपयु
दावेदार नह थे। छह वष के प रणामहीन यु के बाद, सै य दल न सा हत थे इस लए वे
सब नराश हो चुके थे और उ ह ने इस सारी व था को भलेमानुष क तरह वीकार कर
लया।

मौन ताव यह पा रत आ था क येक नणय मतदान के बाद ही लया जाएगा और


मुझे एक मुख के प म मा यता द जाएगी। हम असुर को अभी, दे व क तरह
राजनी तक शासन के उ चतम तर तक जाने म काफ़ समय लगने वाला था। यही वह
े था, जसम म दे व क नकल करना चाहता था, जनके पास सु प राजनी तक
शासन था, जहाँ राजा या नरेश ही सव े शासक माना जाता था। वह अपने-आप म एक
दै वी अवतार, धरती पर जी वत ई र का त प होता और वही अपनी जा के हत-अ हत
के लए नणय लेता। इसका लाभ यह होता क नणय बड़ी शी ता से लए जाते और फर
उनके या वयन म भी समय नह लगता था। इस प त क हा न यह थी क य द शासक
सुयो य न हो तो बुरे नणय को भी काय प लेने म वलंब नह होता था जससे पूरे रा को
कुप रणाम भुगतने पड़ सकते थे। जब हम असुर, यु के दौरान भी, अपनी प रषद ारा
नणय लए जाने क ती ा म थे, तब तक दे व ने हमसे हमारा सा ा य छ न लया था।

जो भी हो, मेरे ारा क पत द ता, जसे मने इन दन सच मानना आरंभ कर दया था,
मेरे और उस गहरे रंग के नाट दे ह वाले युवक क बीच बाधा बनी खड़ी थी। म मत था
और इस वषय म सुमाली से चचा करना चाहता था। वह युवक कोई गु तचर भी तो हो
सकता था। वह कसी ग से एक-एक चीज़ व घटना को परख रहा था और मने उसे
ायः अपने लए ऐसे काम का चुनाव करते दे खा था, जससे वह हमारी प रषद चचा के
बीच आसपास बना रह सके।

म अपने ही गहन वचार म म न था और लंका पर भावी आ मण के लए कोई ठोस


योजना नह बना पा रहा था। म इस तनाव तथा दबाव को महसूस कर सकता था और मुझे
अपने मन को शांत करने के लए, अपने आसपास कसी क आव यकता थी जस
पर चीख़- च ला कर अपनी कुंठा नकाली जा सके। मने बड़ी अधीरता से कहा क हम मेरे
सौतेले भाई कुबेर से लंका छ न लेनी चा हए। अब मुझे एहसास होता है क उस बात म कोई
तुक ही नह थी।

“ ीमान! या म कुछ क ? ँ ” उस गहरे रंग के नाटे व गठ ले युवक ने यह वा य बोल कर


मुझे झुँझलाहट से भर दया। यह तो वही था जो पछले कई दन से अपनी ग से मेरा
पीछा करता आ रहा था।

“तुम या चाहते हो? या तु हारे पास करने के लए इससे कोई बेहतर उपाय है?” म अपनी
ही ता पर च कत था। वह वह खड़ा रहा। उसक आँख मेरी आँख से टकरा । म उससे
लंबाई म काफ़ बड़ा था पर वह मुझे समान भाव से दे ख रहा था। उसक आँख म न तो
कोई धमक थी और न ही कोई भय! मने ती ा क क कब वह अपनी नगाह नीची करेगा
और अपने पाँव क अँगु लय को एकटक ताकेगा परंतु मेरे सामने खड़े उस म तो
लेशमा भी घबराहट का च ह न था।

उसके भीतर कुछ ऐसा चल रहा था, जो बाहर आना चाहता था। वह एक ऐसा था जो
अपने भाव को नयं त कर सकता था और आसपास के माहौल म बखूबी घुल- मल
सकता था। वह घास म लेट कर कसी वषैले सप क तरह घात लगा सकता था ता क बना
कसी आहट या आवाज़ के, पूरी नदयता के साथ अपने श ु पर भयंकर ाणघातक वष
क वषा कर सके। उसक आँख चमक रही थ और वह मुझे टकटक बाँधे दे ख रहा था। म
अक मात् ही भयभीत हो उठा।

मेरे हाथ अपनी खड् ग क मूठ पर कसे थे ता क उस वषैले भुजंग के हरकत म आते ही
त काल यु र दे सकूँ। उसने बना कसी चेतावनी के, अचानक ही मेरे चरण म गर कर,
मुझे बुरी तरह से च का दया। म ो धत होने के साथ-साथ व ांत भी हो उठा। ोध इस
बात का था क उसने भी उसी असुर वहार का प रचय दया था जो बड़ी सरलता से कसी
का भी आ धप य वीकार कर लेते ह। सुकून इस बात का था क मुझे ऐसे आ दम बल से
संघषरत नह होना पड़ेगा। उस के वहार म एक अलग तरह का अप र कृत,
अनाड़ी व अनूठा सा भाव था। वह कृ त का मौ लक बल था, धरती का आ दम पु ! वह
एक साधारण मुन य था व यही त य उसे असाधारण बनाता था।

“महाराज! मेरे राजन्, मेरा व ास कर; म इस धरती पर ज मे कसी भी मनु य क तुलना म


कह बेहतर सेवाएँ दान क ँ गा। म आपके लए अपने ाण तक का ब लदान कर ँ गा।
मुझे अपना दास बना ल। म जानता ँ क आप ही हमारे मु दाता ह। आप ही ई र क
ओर से भेजे गए, वे असुर-राज ह जो हमारी असुर जा त को दे व के पंज से छु ड़ाने आए
ह।” वह अचानक ही सुब कयाँ भरने लगा, जससे उसक दे ह रह-रह कर काँप उठती। म
भाव के इस अक मात् ए व फोट के बारे म सोचते ए, ला न से, सर झुकाए खड़ा था।
उसने मेरी टाँग जकड़ रखी थ । म नह जानता था क मुझे कैसी त या दे नी चा हए या
या कहना चा हए। मने तो ऐसे कसी वहार क अपे ा तक नह क थी। तभी मने ह त
को हमारी ओर, हाथ म तलवार लए आते दे खा। मने उसे अपनी अँगुली के संकेत से मना
कर दया। यह दे ख कर आ य आ क कस तरह गव ला ह त भी अचानक ही मेरे छोटे
से संकेत को समझ कर वह थम गया था।

कतने आ य क बात थी! य द और अ धक इस तरह मेरे पाँव पर गरने लगगे, तो


मुझे न केवल इन बात म रस आने लगेगा अ पतु म अपने लए ऐसे ही वहार क नरंतर
माँग भी करने लगूँगा। ारं भक दया का आवेग शांत हो चला था और इसके थान पर, मेरे
पैर म गरे उस असहाय के लए मेरे मन म, नेह म त घृणा का भाव मुख रत हो
गया था। म अनुभव कर सकता था क वह पूरी तरह से मेरी श के अधीन था। म उसे
ठोकर मार सकता था, उसे घसीट सकता था और यहाँ तक क उसका सर भी धड़ से
वहीन कर सकता था। और कोई अँगुली तक उठाने का साहस न करता। म भयभीत भी
था। मेरा या होगा? इस तरह क श , राजा के लए उ रदा य व के बोझ के प म आती
है; उसे अपनी जा के ख-दद को सुन कर, उनक सम या के हल नकालने होते ह। म
यही क ँ गा। म इस नया का सबसे दयालु राजा बनूँगा।

मने उसे अपने हाथ से उठाया और उसके चेहरे को ताका। उसक आँख लाल हो गई थ
और म दे ख सकता था क यह भावना का झूठा दशन नह था।

“म तु हारे लए या कर सकता ँ?” मने अपने वर को भरसक दयालु बनाते ए पूछा व


सोचने लगा क कह मेरी आवाज़ एक राजा होने के नाते अ धक भारी तो नह हो गयी थी।

“महाराज! हम इसी वषय म बात कर रहे ह क आप असुर के स ाट बन जाएँ। हम शी


अ तशी आपको सहासन पर वराजमान दे खना चाहते ह। खेमे के सभी सपा हय का
मानना है क आप महाब ल के स चे उ रा धकारी ह और हम चाहते ह क आप हमारा
नेतृ व कर। म उन सभी सै नक का त न ध बन कर आया ँ, जो आपक सफलता हेतु
जीने व मरने को त पर ह।”

“तुम जानते हो क म तु हारा सेनाप त ँ और जस तरह तुम इस काम के लए जीने-मरने


को तैयार हो, म भी ऐसा ही करना चाहता ँ।”

मेरा सुर ह का तीखा था हालां क मुझसे मेरा उ साह छपाए नह छप रहा था। असुर सेना
के सभी लोग मुझे अपने राजा के प म दे खना चाहते थे। प रषद यह सोच सकती थी क
अभी इतना बड़ा उ रदा य व लेने के लए मेरी आयु ब त कम थी परंतु मेरे सै नक मेरा
नेतृ व चाहते थे और मेरे लए यह बात ब त मह व रखती थी। म यह सोच कर ाकुल था
क म प रषद मुख के प म अपनी सेवाएँ दे ने क हामी दे चुका था। अब यह सुंदर युवक
मुझे एक राजा के प म संबो धत कर रहा था और केवल ‘ ीमान’ कह कर ही नह पुकार
रहा था, जैसे सै नक असुर सेना के व र अ धका रय को पुकारते ह। म मन ही मन मु दत
था परंतु मने ह त के चेहरे पर व मत भाव दे खा और उसे अपने दमाग़ म बैठा लया।

“मेरे महाराज! हम चाहते ह क आप हमारे राजा बन। हम प रषद के लए ब त यु कर


चुके ह। हम हर बार परा जत ही होते आए ह य क प रषद म कोई न कोई राज ोही नकल
ही आता था। हम अपने लए एक ऐसा राजा चाहते ह, जैसे दे व के स ाट होते ह, एक ऐसा
राजा जो असुर पर शासन करने के लए उपयु हो तथा लंका से ले कर गांधार तक, पूरे
दे श पर शासन चला सके। हम अपने लए एक ऐसा राजा चाहते ह जो महाब ल के शासन
का त पध हो। महाराज! हमारे लए इस महान व से बड़ी ेरणा कोई हो ही नह
सकती। महाराज, आप जो असुर सा ा य न मत करने जा रहे ह, हम बड़ी स ता से
उसके लए अपने ाण का ब लदान कर दगे।”

“हम प रषद म इस वषय म वचार करना होगा। तु हारा नाम या है?”

“महाराज! म भ ँ। म पूणा नद के कनार पर रहने वाला भ ँ। महाराज! हम आपके


नणय क ती ा करगे। कृपया मेरी धृ ता के लए मा दान कर परंतु हमारे पास इसके
सवा कोई वक प नह था।” वह मेरी ओर से पीठ मोड़े बना, उसी तरह पीछे हटता चला
गया, जस कार कसी राजा को आदर-मान दया जाता है।

ह त आगे आया व मेरे कंधे पर अपना हाथ रख दया। “चलो प रषद क सभा बुलाएँ।”
उसके वर म बड़ी न ु र कठोरता थी परंतु मुझे भी कहाँ परवाह थी। मेरे कान म तो
सपा हय के खेमे से उठ रहे नारे त व नत हो रहे थे।, ‘महाराज रावण क जय हो!’

“सभा नर त क जाती है।” म ह त के भ च के पड़ गए चेहरे को दे ख कर मु कराया व


बोला, “तुम मेरे धानमं ी हो।”

म ह त को वचार करने का समय दे ने के लए वहाँ से बाहर आ गया। अंदर ही अंदर, म


अनुभव कर रहा था क मुझे खलौना बना कर नचाया जा रहा था। मने खेम पर नज़र डाली
तो पाया क भ अपने सपा हय के बीच उ लास के वे ण बाँटने के बाद, अकेला खड़ा
शू य म ताक रहा था। उसके मुख के कोन पर वजयी मु कान के च ह थे। हमारी नज़र
मल व उसक मु कान लु त हो गई। वह नीचे क ओर झुका। म राजसी ठाठ से खेमे के
पास से नकल गया। मुझे अ भयान आरंभ करने से पूव अपनी माँ व बहन को पास बुलाना
था। उस रात म व वहीन न ा क गोद म समाया तो मेरे म त क म केवल यही वचार
मँडरा रहा था।
9 य मारीच

रावण
मने उ ह अपने मामा मारीच के साथ आते दे खा। मेरी बहन बड़ी हो चली थी; उसे सही
मायन म सुंदर तो नह कह सकते परंतु उसके भीतर बहती ऊजा को भी कोई उपे त नह
कर सकता था। म अपने मं य क प रषद के साथ सभा म उप थत था। य प अब यह
कोई लोकतां क संगठन नह रहा था पर म इस बात का यान रखता था क उनके मत भी
सुने जाएँ। यह एक पहेली थी और येक को यह भली-भाँ त व दत था क मेरी ही
बात अंत तक मानी जाएगी परंतु कसी भी वषय पर जब असुर को बहस व चचा का
वषय मल जाता था तो उ ह उसी से संतु हो जाती थी।

सभा बीच म ही रोक द गई तथा येक अपने थान से उठ खड़ा आ। मेरे वृ


मामा मारीच मु करा रहे थे और हम दे ख कर हाथ हला रहे थे। उनक जुड़वाँ संतान उनके
पीछे लड़खड़ाती चल रही थ , और उनके साथ मामी आ रही थ जो दखने म अब भी कसी
सुंदरी से कम नह थ । मेरी माँ व बहन उनके पीछे थे और वे सब इस ती ा म थे क हम
अपनी मह वपूण सभा को रोक द ता क वे हमारे समीप आ सक। वभीषण तो माँ क ओर
ऐसे प ले क तरह दौड़ा, जसने हाल ही म अपनी खोई ई माँ को खोज लया हो, वह
आनंदा तरेक से च ला रहा था। म भी भाग कर अपनी माँ व बहन को बाँह म भरने के लए
अकुला उठा, परंतु म इस वषय म न त नह था क ऐसी प र थ त म एक राजा को कस
तरह पेश आना चा हए। कुंभकण वभीषण के पीछे भागा और वे दोन जुड़वाँ इस तरह
चीख़ते- च लाते ए उसक ओर बढ़े क वन के झुरमुट म चहचहाते प ी भी डर के मारे
ततर- बतर हो गए। म एक राजा क भाँ त यथो चत मयादा के साथ लंबे डग भरते ए आगे
बढ़ा। मेरे साथ, मेरे मामा ह त व हमेशा म तक पर यौ रयाँ सजाए घूमने वाले मामा
सुमाली भी थे

“आप लोग को माग म कसी कार क असु वधा तो नह ई?” ह त के पास भावुक
अ भवादन व बातचीत के लए समय नह था।

“केवल राह म व ण के कारण परेशानी आई परंतु हमने उसे एक छोटा सा उपहार दे कर


संभाल लया।”

“इसने सुल णा का मो तय वाला हार उन समु लुटेर को दे दया। उसने उस संघ म सात
वष के कड़े प र म के बाद वह कंठहार बनवाया था।” मेरी माँ के सुर से नेह छलक रहा
था। मारीच मामा ने कंधे झटके मानो कहना चाहते ह क उन समु डाकु को मो तय
वाला हार का दया जाना कोई ब त बड़ी बात नह थी। मने उनके चरण पश कए और
उनके गले से लग गया।

“तो तुम राजा बन गए हो, ह म?” मामा ने मेरी पीठ पर कस कर धौल जमाया। म वहाँ
खड़ा कसी ऐसे बालक क तरह दाँत नपोरता रहा, जसने हाल ही म मौ खक परी ा म
अ छे अंक पाए ह ।

“अब हम तु हारे लए एक रा य भी खोजना होगा।”

सै नक दल खोल कर हँसे और मने भी अपने चेहरे क मु कराहट बनाए रखने का भरपूर


यास कया। उनक हा य यता से दल को चोट लग सकती थी, पर या क ँ , म इस बूढ़े
को दल-जान से चाहता जो ँ। हम अ छ तरह से मरण है क जब हम कशोर थे तो, मेरे
मामा-मामी हमारे जीण-शीण झ पड़े म अपने दो ब च के साथ आए थे, जो अभी मु कल
से कुछ ही स ताह के रहे ह गे। ये उन कठोर वषा के तूफ़ानी दन म से एक दन था, जब
हम कातर भाव से शव से ाथना कया करते थे क वे हमारे उस एकमा आ य को तूफ़ान
सहने क श दे द। वे दोन थकान से चूर व प त दख रहे थे, मेरे मामा फटे हाल थे, माथे
पर प बँधी थी और एक बाजू को खप ची से बाँधा गया था। मेरी मामी मरणास अव था
म होने के बावजूद, बड़े ही नेह से मु करा रही थी। उन दोन ने एक-एक बालक को अपनी
बाँह म थाम रखा था। बना कुछ कहे सब समझ जाने वाली मेरी माँ आगे बढ़ और उनक
थक ई भुजा से दोन बालक को ले लया। हमने अपनी अपया त काँजी को उनके
साथ बाँटा और वे सारी रात बेसुध सोए रहे।

वे बालक अभी इतने बल थे क ठ क से रो भी नह पाते थे, परंतु मुझे याद है क माँ को


उनके लए ध क चता सताने लगी थी। मेरी मामी क आयु इस यो य नह थी क वे
संतान को ज म दे पात और हम पूरा व ास था क उ ह ने वे बालक कह से गोद लए थे।
मेरे मामा-मामी अपना रा य छन जाने के बाद, हमेशा से ही नधन रहे थे, य प उनक
दयालुता ने अब भी उनका साथ नह छोड़ा था। हम गाँव म कसी भी ऐसे को नह
जानते थे, जो अपना दया भाव दशाते ए, हम थोड़ा ध उधार दे दे ता। हमारे पड़ोसी इतने
नधन थे क वे गाय नह पाल सकते थे और ध तो उनके लए भी कसी वला सता से कम
न था। हमेशा क तरह, इस बार भी कुंभकण ने उपाय खोज नकाला। हमने उस के
यहाँ से ध चुराने का नणय लया, जो केवल एक नह ब क सैकड़ गौ का वामी था।
यह काम क ठन चाहे हो परंतु असंभव नह था। इस मु हम म छपे संकट ने इसे और भी
रोमांचक बना दया। हालाँ क वभीषण बेमन से ही राजी आ था य क उसे भय था क
कह हम उसे कायर न कह, जो क वह न त प से था। जब हमने कुबेर क गौशाला म
चारद वारी कूद कर जाने क बात क तो वह वह खड़ा रह कर पहरेदारी करने के लए मान
गया ता क कोई ख़तरा होने पर, हम संकेत दे कर चेता सके। वहाँ घना अंधकार छाया था
और हम ध हने के लए कोई गौ तलाश रहे थे। हमम से कसी को भी पहले गाय का ध
हने का अ यास नह था। यह एक बुरा उपाय लगने लगा था और अब हम उस थान से
अ त शी बाहर नकलना चाहते थे। कोई बाहर से खाँसा और हमारे कलेजे उछल कर मुँह
को आ गए। हमने एक ह क सी सीट का वर सुना और बुरी तरह से भयभीत हो गए। वह
वभीषण था जो हम बता रहा था क उस ओर कोई आने वाला था। हम भागे पर अपने
होशो-हवास खो बैठे। गौएँ जाग कर रंभाने लग । मशाल जला द गई थ । वे सभी गौशाला
क ओर बढ़े आ रहे थे। हम कसी तरह बाहर आए और वहाँ आकर पाया क हम महल के
र क ने घेर लया था। हम लड़े और उनम से दो को धराशायी भी कर दया, पर ज द ही
हम उनके क ज़े म थे। उ ह ने हम बाँध दया और फर हम पीटा गया। उ ह ने हम ला ठय
से पीटा; उ ह ने कुंभ का एक दाँत तोड़ दया; और हम मशाल से दागा गया। हम अपनी
यातना आरंभ होने पर, कुछ ण के लए तो दम साधे रहे पर उसके बाद ज़ोर-ज़ोर से
च लाने लगे। अगला दन नकलने तक हमारी पटाई जारी रही।

जब म जागा तो मेरे चेहरे पर र क परत जम गई थ व वचा का पोर-पोर पीड़ा से सुलग


रहा था। कुंभ मुझसे पहले ही जाग गया था और अपनी सूजी ई, काली आँख से मुझे ही
ताक रहा था। उसके चेहरे क हालत बदतर थी, नाक व दाँत तोड़ दए गए थे और ह ठ भी
कट गया था। उसने मुझे दे ख कर, मु कराते ए आँख दबाई और उस ण म मुझे इस संसार
म उससे यारा कोई नह लगा। म जानता था क एक दन, हम दोन म से कोई एक, सरे के
लए अपने ाण का ब लदान करेगा। म भी उसे दे ख कर मु कराया। हम अ तबल के तंभ
से बाँध कर अकेला छोड़ दया गया। फर म सोचने लगा क वभीषण का या आ और
एक- सरे से नेह संबंध रखने वाले दो य के मौन सं ेषण के बीच ही, मने यही
कुंभकण के चेहरे पर भी दे खा। हम दोन ही भयभीत हो गए। हमने यथासंभव अपनी गदन
मोड़ व आसपास ताका क शायद कह वभीषण को भी इसी तरह मार कर, कसी तंभ से
न बाँधा गया हो परंतु उसका कोई अता-पता नह चला। हम पूरा यक़ न था क र क ने उसे
जान से मार कर, वह कह चुपचाप गाड़ दया होगा या वह संभवतः हमारी माँ व गाँव के
सयाने बुजग को यह सूचना दे चुका हो क हम बंद बना लए गए ह। वे आकर कुबेर से
वनती कर क वह हम छोड़ दे ।

हम अभी उस प रप व आयु तक नह आए थे, जसम असुर के नयमानुसार या तो क़ैद म


डाल दया जाता है या भुजाएँ काट द जाती ह। हम कुछ माह के लए मजबूरन कुबेर क
तेल क धानी या खेत म दास क तरह काम करना पड़ सकता था। कुबेर जैसे धनवान को
द ड दे ने का यह तरीक़ा आ थक से ब त कारगर लगता था और इस कार उसके लए
कुछ स क क बचत भी हो जाती थी। वह आधा गंधव तथा आधा ा ण था और असुर
नह था, परंतु इस बात का पूरा यान रखता था क असुर के सभी कायदे -कानून का पालन
हो। वह इसे अपनी भाषा म, मूल नवा सय के धम तथा मा यता म अ-ह त ेप क नी त
कहता था। इस कार वह वा ण य तथा ापार म अपना पूरा यान एका कर सकता था।
मने कुंभ को खाली-खाली नज़र से ताकते दे खा, वह मौन भाव से वभीषण को जी वत
रखने क ाथना कर रहा था। उसके गाल से अ ु क धारा वा हत हो रही थी और जब
उसने दे खा क म उसे दे ख रहा ँ, तो भी उसने अपने आँसु को छपाने या अपना मुख
सरी ओर मोड़ने का यास नह कया। मेरी अपनी आँख आँसु से धुँधला गई थ । एक
वृ ारपाल ने आकर हम खोला तो कुंभ वह ढे र हो गया। ारपाल ने उसे ू रता से उठाया
और सहायता के लए कसी को पुकारने लगा। म चल भी नह सकता था। दो पहरेदार ने
कुंभ को एक मोटे से ल े से इस तरह बाँध दया, जैसे हाल ही म मारे गए शकार को लटका
कर ले जाया जाता है। लगभग दोपहर हो चुक थी और वषा ॠतु म नकलने वाली खर
धूप के कारण बड़ी उमस थी। यह वह ॠतु थी जब सूयदे व लाल क चड़ से लथपथ धरती को
तपाने के लए केवल कुछ ही घंट तक दशन दे ते ह।

धन का दे वता तथा यायी कुबेर, अपने सहासन पर वराजमान था। वह अपनी शाही मुहर
से ताड़प पर ह ता र करने म त था व बीच-बीच म वा ण य, जहाज़ क दर , काली
मच के दाम , इलायची के भार के बराबर सुवण आ द के लए व वध अ न तता के
नदश भी दे ता जा रहा था, ज ह प के व भ बंदरगाह पर बैठे अ धका रय तक प ँचा
दया जाएगा और फर अरबी घोड़ पर सवार संदेशवाहक त ग त से उ र ले कर भी लौट
आएँगे। वहाँ अ य कई अपराधी भी थे, जो धन के दे वता कुबेर क ओर से दए जाने वाले
याय व ववेक क ती ा म थे कतु इस उ च तरीय वा ण य तथा ापार के व म,
बाक सब कुछ जैसे मह वहीन था।

मने दे खा क कुंभ प त हो चुका था और मुझे डर था क कह मेरा भी वही हाल न हो। म


सुनना चाहता था क धन के दे वता कुबेर क संप पर अ त मण करने के लए हम या
द ड दया जाने वाला था। यह ती ा तो जैसे अंतहीन जान पड़ रही थी और म अपने
जीवन म पहली बार अपनी मृ यु के वषय म वचार कर रहा था। म अभी मौत जैसी बात के
बारे म सोचने के लए ब त छोटा था परंतु दे ह के खते घाव के बीच, और कौन सा वचार
मन म आ सकता था? तभी मुझे भीड़ के बीच अपने मामा दखाई दए जो याय सुनाए जाने
क ता से ती ा कर रहे थे। जैसे ही हमारी आँख चार , उ ह ने ब त ही यारी और
अपनेपन से भरी मु कान द , मुझे तो अपनी सारी पीड़ा भूल गई। उनके आगे के कुछ दाँत
अब नह रहे थे परंतु म उस क गंभीरता को महसूस कर सकता था। इसके साथ ही वे
थोड़े च तत भी दखे, मुझे ऐसा लगा क जब तक वे वहाँ थे, हमारे साथ कुछ बुरा घट ही
नह सकता था।

सहासन के समीप खड़ा एक सै नक गरजा, “अगला!” इस दौरान कुबेर का यान अपने


वसाय के कुछ प म था। वह एक भावी समय बंधक था। हम ारपाल आगे घसीट
ले गए, “इन पर शाही गौशाला म घुसने व गौएँ चुराने का आरोप है।” मुख र क दहाड़ा।
“हम अपराधी नह ह।” म ज़ोर से च लाना चाहता था परंतु मेरे कंठ से एक बचकाना सा
वर नकल कर रह गया। अचानक ही दरबार म स ाटा छा गया। कसी ने भी आज तक
राजा क उप थ त म बोलने का ःसाहस नह कया था। कुबेर अब भी अपने ताड़ प म
म न था और उसे दरबार म अचानक छाए इस मौन को भाँपने म कुछ ण लगे। उसने
व तार से उस प को पढ़ा व एक ओर रख दया। फर उसने अपना सर ऊँचा उठाया।
उसके चेहरे पर एक मु कान खेल गई। वह एक सुदशन पु ष था और मु कराहट के साथ तो
और भी द लग रहा था।

परंतु उसक ग त व धयाँ कसी मकड़े क तरह वसप सी थ । “ओह ध य भाग हमारे, आज
यहाँ कौन पधारा है? मेरे य सौतेले भाई आए ह। आपने यहाँ आकर मेरा मान बढ़ा दया।
मुझे कह दया होता, म वयं ही आपको कुछ गौएँ दान कर दे ता। इसक बजाय तुमने चोरी
करने का वक प चुना। ख़ैर इसम तु हारा दोष भी या है? यह तो वाभा वक ही था। म
दे ख सकता ँ क तुम लोग अपनी माँ पर ही गए हो। तो तुम लोग या पसंद करोगे, तु हारी
भुजाएँ काट द जाएँ; नाक काट द जाए; या तु हारे गाल पर गम सलाख से दाग दया जाए
क तुम चोर हो? म अपने ऊपर यह आरोप नह लगा सकता क मने अपने संबं धय का
प लया है।”

“ ीमान, आपसे एक वनती करना चाहता ँ।” मारीच भरे दरबार के बीच हाथ जोड़ कर
खड़े हो गए और सैकड़ आँख उनक ओर ही घूम ग । मेरा मानना है क उ ह ने दे व दरबार
के व तृत नयम म से एक का उ लंघन कर दया था। ये अस य असुर! ये ब च क तरह
पेश आते ह। संभवतः यह दे व का ही उ रदा य व बनता है क वे हम स य बनाएँ। म अपने
मामा क करनी को भयभीत से दे खता रहा। म ब त ज़ोर से चीख़ कर बोलना चाहता
था, अपने य मामा को कुछ कहने से रोकना चाहता था और मुझे उस समय कसी भी
तरह के द ड का भय नह रहा था। वह मूख वृ कतनी बड़ी भूल करने जा रहा था। मेरे
मन म थोड़ी आशा भी जगी क शायद हम छोड़ दया जाए।

“महाराज! ये तो अभी बालक ह और इतना भी नह जानते क ये कर या रहे थे।”

जैसे ही सबक नगाह मूख लड़के पर आ टक तो मने महसूस कया क शम के मारे मेरे
गाल दहकने लगे थे। म सोलह का हो चला था और अब भी मुझे एक बालक के प म
संबो धत कया जा रहा था। भले ही म यहाँ से छू ट भी जाऊँ परंतु आजीवन म मुझे इसी
बात के लए चढ़ाते रहगे। म अपनी कशोराव था क इसी उधेड़बुन म, दरबार म चल रही
कायवाही के कुछ वा य नह सुन सका और जब मुझे यह समझ आया क मामा कह या
रहे थे, तब तक थोड़ी दे र हो चुक थी।

“तो तुम चाहते हो इन भ े बगड़ैल के थान पर तु ह दं डत कया जाए? उ मीद करता ँ


क तुम पछली रात क मद क खु़मारी म नह हो और वे छा से ही ऐसा करने को कह रहे
हो। तुम कहते हो क तुम एक सपाही हो। तु हारे आगे के टू टे ए दाँत और बाँह म ह ी
जोड़ने वाली खप ची भी शायद इसक ही गवाही दे रही है।” दरबार म गूँजते हँसी के ठहाके
हमारे आसपास मँडरा रहे थे, जब मने अपने मामा को इस अव था म, कह सु र नज़र
गड़ाए खड़े दे खा तो मेरे गाल गु से से दहकने लगे। वे उस मूख से कुछ ही इंच क री
पर नज़र जमाए खड़े थे, जो अपने-आप को राजा कहलाता था।

“तेल फेरने क च क म छह वष” यह आदे श गरजने वाली बजली क तरह सामने आया
और म काँप कर रह गया। कुंभ को भी होश आने लगा था। म दे ख सकता था क मारीच भी
स रह गए थे। छोट सी चोरी के आरोप के लए तो यह द ड ब त बड़ा था। म उस वृ के
गाल से बहते आँसु क धारा दे ख सकता था। म उनक प नी व जुड़वाँ ब च के चेहरे
दे ख सकता था। म ही उनके लए इन प र थ तय का दोषी था। उनक आयु कतनी रही
होगी?

संभवतः तीस या पतीस? सोलह क उ म तो बीस वष से अ धक आयु का येक


वृ ही जान पड़ता है। छह वष का अथ था क जब वे द ड पूरा करके लौटगे तक वे
इकतालीस वष के हो चुके ह गे। वह भी तब, य द वे वहाँ अंत तक जी वत रहने म सफल
रहे। तेल क च क वाली सज़ा सारी सज़ा म से सबसे भयंकर मानी जाती थी। तेल
नकालने के लए बैल के थान पर मनु य को बाँध दया जाता और वे लगातार घूम-घूम
कर चलते ए, धानी म तल या खोपर पीसते रहते। इस तरह उनक दे ह से ाण नकल
जाते। चौबीस घंट क कमर तोड़ मेहनत, वष के तीन सौ पसठ दन और फर उसे छह से
गुणा कर द। केवल इस लए क उनके सर फरे भांज,े अपनी वीरता दखाने से बाज़ नह
आए और अपने सौतेले भाई, ापारी राजा क गौशाला म जा घुसे।

“इस बदजात क सज़ा म एक और वष जोड़ दया जाए ता क यह सीख सके क राजा को


कैसे संबो धत कया जाता है। अगला अपराधी लाया जाए!”

मने ब त ही गहरे सदमे के साथ यह सब सुना। यह याय था। पूरी तरह से ती तथा न प
याय। दरबार क अवमानना के आरोप म मेरे मामा क सज़ा म एक वष क अव ध बढ़ा द
गई थी। अब उ ह सात साल तक एक दास क तरह तेल क च क म काम करना था। मेरे
मामा अपनी पाँव क अंगु लय को घूर रहे थे। सै नक आगे आए व उ ह हथक ड़याँ पहना
द । फर उ ह बे ड़य म जकड़ कर, वहाँ से घसीट कर ले जाया जाने लगा। लोग हँसने लगे।
मेरे अपने ही लोग, असुर, वे सब अपने ही एक जा त भाई को, बना कसी दोष के जानवर
क तरह घसीट कर ले जाया जाता दे ख कर, खीस नपोर रहे थे। कसी ने सीट बजाई। हम
दरबार से बाहर घसीट कर, कोने म पटक दया गया। अब रा य को हमारी कोई आव यकता
नह रही थी। हमारी ह याँ टू ट चुक थ और भीतरी अंग त त थे इस लए हम माँस खा
कर बची ह य क तरह र फक दया गया था। हमारे माँस को रा य ने नोच खाया था।
तभी, मुझ पर एक प थर आकर पड़ा। शी ही जैसे प थर क मूसलाधार वषा होने लगी।
मेरे अपने लोग, मुझ पर प थर बरसा रहे थे य क मेरे कारण मेरे वृ मामा को इतने कड़े
प र म वाली सज़ा भुगतनी होगी। उनका नपुंसक ोध दो कशोर पर नकल रहा था तो
मुझे लगा क अब हमारा अंत आ चुका है। अब म अपने मामा को अपने हाथ जेल भेजने के
बाद, माथे पर चोर का ठ पा लए, अपने ही लोग ारा बरसाए गए प थर क मार से घायल
हो कर दम तोड़ने जा रहा था। एक मूख का कैसा अंत होने जा रहा था, जसने इस संसार
को जीतने व अपने जा त भाइय को मु कराने का व दे खा था।

अचानक ही जस तरह प थर क वषा आरंभ ई थी, उसी तरह थम भी गई। मने अपने
र से सने चेहरे से माँ को ज़ार-ज़ार रोते दे खा, जसने कुंभ को प थर क मार से बचाने के
लए अपनी बाँह म भर रखा था। भा यवश, अभी हमारे लोग, स यता क उस पराका ा
तक नह प ँचे थे, जहाँ वे कसी ी को अपने प थर क मार से घायल करते ए, मौत के
घाट उतार दे त।े म ई र को उसक उन कृपा के लए ध यवाद दे ना चा ँगा, जो उसने
समय-समय पर मेरे प रवार पर बरसा । धीरे-धीरे हम हमारी कु टया म ले जाया गया। मेरी
मामी बेसुध पड़ी थ और उनके जुड़ँवा ब चे गला फाड़-फाड़ कर रो रहे थे। हमारी भ
मोट पड़ो सन क जबान भले ही काली थी पर दल सोने का था, उसने उ ह शांत कराने क
को शश क । तभी मेरी नज़र वभीषण पर गई, जो एक कोने म बैठा सं कृत का कोई ंथ
पढ़ रहा था और हमारी ओर दे खने से भी क़तरा रहा था। म ोध से उबल पड़ा। तो सै नक
ने इसे मार कर कह दफ़न नह कया। वह अ छा और पढ़ाकू लड़का घर आकर सो गया,
जस समय वहाँ हमारी पटाई हो रही थी। और जब, हमारे मामा को ज़बरद ती घसीट कर
को के बैल क जगह बाँधा गया तो यह कमीना, यहाँ बैठा कसी मढक क तरह कोई
बे दा दे व ंथ टरा रहा था।

जी म तो आया क वह , उसी व उसक ह या कर ँ । म चाहता था क ऋगवेद का वह


ंथ ही उसके कंठ म भ क ँ । जब उसने मेरी ओर दे खा, तो म ब त कुछ करना चाहता था।
वह आगे आया और फ़श पर, मेरे पैर के पास बैठ गया। मने अपनी टाँग उठा कर उसके
अभागे चेहरे पर ठोकर मारनी चाही पर तभी मेरी अपनी चीख़ नकल गई। कुबेर के सै नक
ने मेरी हालत पतली करने म कोई कसर नह छोड़ी थी। तभी वभीषण कसी छोटे बालक
क तरह बलख उठा। उसने मेरे पाँव जकड़ लए। हे भगवान! पोर-पोर म दद लहरा उठा पर
वह इतनी आसानी से छोड़ने वाला नह था। वह कमीना मुझसे मा चाहता था। उसने कहा
क वह डर गया था और उसे सुबह भी मामा को सारी बात बताने के लए बड़ा साहस
जुटाना पड़ा। वह हर बात के लए श मदा था और चाहता था क बड़ा भाई उसे मा दान
कर, अपने सीने से लगा ले।

म चाहता था क उठ कर उसके दो टु कड़े कर ँ । मने उठने क को शश क । मुँह से एक


अजीब सा गुराहट का वर नकला, जससे शायद मेरी माँ भयभीत हो गई। वह कुंभ को
छोड़ कर मेरे पास आ गई। फर उसने मेरे बीते बचपन के यारे से गीत से मेरे मन को
बहलाने क को शश क । वह इस तरह गा रही थी मानो म अब भी झूले म झूलता कोई शशु
था, जो ध पीने के लए अपनी माँ का तन तलाश रहा हो। उसने असुर क वीरता व शौय
तथा उनक खोई ई क त के उदास कर दे ने वाले गीत गाए। म अपने भाई के लए दय म
बसे व े ष के थान पर ेम भाव के बीच सो गया। जब म जागा तो मन का रोष शांत हो
चुका था।

म जानता था क मेरी मामी ने अगले ही दन गाँव छोड़ दया था और बाद म उनक ओर से


एक संदेश आया था क वे जुलाह के एक संघ म काम करने लगी थ । भले ही वेतन अ धक
नह था पर उ ह सर ढाँपने के लए छत और दो जून क रोट तो नसीब हो ही गई थी। यह
कसी छोटे असुर रा य क भूतपूव रानी के लए उपयु जीवन तो नह था, परंतु न त
प से उस कु टया के जीवन से तो े ही था, जसम रात को छत से चाँद व तारे झाँकते
ह।

म एक लंबे समय के बाद अपने प रवार से मलने जा रहा था, उसके लए झुर दार गाल
वाले वृ क मु कान को ध यवाद दे ना होगा, उसके लए प नी ारा वष से कड़ी मेहनत से
कमाए गए कंठहार का दया जाना भी बड़ी बात न थी, वह तो केवल इतनी तस ली चाहता
था क उसक बहन सुर त प से अपने पु के पास प ँच जाए; न ही उसे आततायी क
तेल क च क म तल पीसने से कोई द कत थी, बस वह अपने भांज को कारागार से
मु दे खना चाहता था। उस बूढ़े ने अपने कुछ और दाँत गँवा दए थे परंतु पछली बार
ज़ंजीर म जैसा दे खा था, उससे तो कह व थ लग रहे थे। मानो वे हम सबसे कह अ धक
समय तक धरती पर टके रहने वाले थे। वे बयालीस वष के हो चले थे, परंतु अब भी वही
दयालु और मनमौजी वभाव बरकरार था। अपने समय म कभी राजा रह चुके मामा, आज
भी वही दयालु मामा थे, जो अपने नेह के पा के लए सदै व अपने ाण का याग करने
के लए त पर रहते थे। म सदै व इस बात को मरण रखूँगा।
10 मोती प का संकेत

रावण
मं ी प रषद बरगद के वृ तले एक हो चुक थी। मने सभा क अ य ता क , ह त ने
म य थ क भू मका नभाई और बहस गम होती चली गई। कसी क भी बात का कोई सार
नह नकल रहा था। येक कसी न कसी तरह लंका पर आ धप य चाहता था, परंतु
कसी के पास भी ऐसा करने के लए कोई ठोस उपाय न था।

“महाराज! या हम ापा रय के भेष म वहाँ नह जा सकते?” भ के वर ने मुझे च का


दया। मुझे उसके आने का पता ही नह चला था। वह दबे पाँव ही वहाँ चला आया था।

“और हम कस व तु का ापार करगे?” म वयं को यह पूछने से रोक नह पाया।

“हम मुजूरी म अरब से अ का बंध करगे। हम पहा ड़य से काली मच ले सकते ह, पूव


तट से लाल मा ण य व मुजू रय के यूनानी खेम से सोना लया जा सकता है। हम धनी
ापा रय से प े पर कुछ जलयान ले सकते ह… हम समु माग से ाय प क ओर जा
सकते ह और भारत के द ण-पूव छोर से लंका म वेश कर सकते ह, जहाँ से सागर ब त
ही सँकरा है। दो ही जहाज़ काफ़ ह गे, जो लगभग चार सौ लोग को ले जा सकते ह …।”

“और तुम, मूख शरोम ण, केवल चार सौ सै नक क सहायता से लंका पर वजय पाने का
व दे ख रहे हो?” म चाहने पर भी अपने रोष को वश म नह रख सका।

भ ने मेरा रोष शांत होने क ती ा क व आगे बोला, “इन जहाज़ पर हर बार मोती व
हाथी दाँत के साथ बीस ले जाए जा सकते ह। इस तरह वे मु य भू म पर लौट कर
फर से ापार कर सकते ह। बाक लोग वहाँ के राजा से आ ह कर सकते ह क उ ह
तट य े म ापार संघ बनाने क आ ा द जाए, य द कोट ग के पूव ार के नकट,
जुलाह क गली के पास, इसे बनाने क अनुम त मल जाए तो और भी बेहतर होगा।”

जब एक बार पहली खेप प ँच जाएगी, तो हम सैकड़ लोग को छोट ड गय म भेज सकते


ह, जो क दस या पं ह के दल म, मछु आर के प म ह गे। जहाज़ का सरा दौरा और
अ धक सं या म सै नक को प ँचा सकता है और वे उ री ार के समीप ापार संघ बना
सकते ह। य द हम इसी तरह करते रहे तो एक ही माह के भीतर, हमारी आधी सेना वहाँ
प ँच चुक होगी। तीसरी बार म, हम अ व अ -श ख़रीद सकते ह और उ ह गहरे
सागर म, बंदरगाह से परे रख सकते ह। अगर वायु क दशा अनुकूल रही तो वे सागर तट से
बमु कल एक घंटे क री पर रहगे।” मुझे योजना अ छ लगी।

“महाराज! म सबसे पहले लंका जाना चाहता ँ। इस तरह म आपके लए सहायक र ँगा।”

वह एक गु तचर बनने जा रहा था। वह तो गर गट क तरह रंग बदलने म मा हर था। या


वह हमारा खेमा छोड़ने जा रहा था? या वह कुबेर का कोई गु तचर था, जो हम जाल म
फाँसने के लए जी-तोड़ य न कर रहा था?

अचानक ही, म बुरी तरह से ाकुल हो उठा। मने उससे कहा क वह कह नह जा रहा था।
म उससे रात को व तार से बात करना चाहता था और फर वह सुबह रवाना हो सकता था।
म दे ख सकता था क वह यह सुन कर, कस तरह उलझन म पड़ गया था। उसने झुक कर
णाम कया और वहाँ से चला गया।

हमेशा क तरह, प रषद म अंतहीन वचार- वमश तथा चचाएँ चल परंतु अंततः म सब पर
अपनी इ छा थोपने म सफल रहा। मने अपने खेमे म लौटने से पूव, भ को बंद बनाने का
आदे श दे दया।


मुझे इस थान से बाहर नकलना ही था। मुझे लंका प ँचना था। मने बाहर झाँका। यह एक
गहरी अंधेरी और स ाटे से भरी रात थी। मने रसोई के छोटे चाकू क सहायता से तंबू म एक
छे द कया और बाहर आ गया। पहरेदार का यान मेरी ओर नह था। म वहाँ से, इस उ मीद
म भागा क भागने से मेरे पैर क आहट, हवा के साथ मल जाएगी और कसी को पता नह
चलेगा परंतु तभी मेरे सर के ऊपर से एक तीर सनसनाता आ नकल गया। मने एक भी
ण वचार कए बना, नद म छलांग लगा द । जब मेरा शरीर उस बफ़ जैसे शीतल जल से
टकराया तो मुझे गहरा झटका सा लगा। वषा लोहे क सुईय क तरह चुभ रही थी। म पानी
के तेज़ वाह के बीच कसी न ाण प े क तरह बहता जा रहा था, पानी म डू बते-उतरते,
बस और गहराइय म धंसता चला जा रहा था। और फर, इससे पहले क म जान सकता,
अचानक ही म कह से गर रहा था, ब त नीचे, अंधेरी गहराइय म गरता जा रहा था। मेरे
आसपास शु जल का हरहराता और ग तमान तंभ था, जो मुझे नरंतर नीचे क ओर
धकेल रहा था और ऊपर नह आने दे रहा था।

जब मने अपने ने खोले, तो म एक ल े पर तैर रहा था। आकाश साफ़ हो चला था और


झरना भी कह र रह गया था। तब अचानक ऐसी थकान हावी ई क म अपनी पीठ के
बल ढे र हो गया। जब वह ल ा अपने-आप लहराता, बलखाता महासागर क ओर चला तो
म सो चुका था।
सूय क चल चलाती धूप के कारण मेरी आँख खुल । नद ने एक छोटा सा धीमा मोड़ काटा
और म वहाँ प ँच गया। मुजूरी क बंदरगाह नगरी, समय क सीमा से भी परे बसा एक नगर,
कभी महाब ल क राजधानी रहा यह नगर, कला व स यता का क , व का सबसे बड़ा
सावलौ कक नगर था! ीक, रोमन, सी रया, सुमे रया, मैसोपोटा मया, चीनी, अरब, य द ,
दे व तथा व वध असुर जा तय व म वा सय के अपने माग तथा उपासना थल थे। वहाँ
वभ कार के ापार संघ थे। म कनारे तक आया और समीप म थत एक सराय म
चला गया। लोग मुझे घूर रहे थे। मेरी दशा ही कुछ ऐसी रही होगी। यह एक पुरानी सी
झ पड़ी थी, छोट पर साफ़-सुथरी। इसक छत पर फूस क छाजन थी। कुछ लोग यहाँ-वहाँ
मँडरा रहे थे, जनम से अ धकतर ना वक थे। सराय का मा लक दयालु था और शायद उसे
मेरी कहानी पर भी व ास हो गया था। मने उसे बताया था क मेरी धान के बोर से भरी
नाव तेज़ वषा म डू ब गई थी।

और वह सराय वास के दौरान मने जाना क मेरे भीतर एक छपी तभा भी थी।
घटनावश ही यह त य मेरे आगे आ गया क म एक अ छा रसोइया था। अचानक एक दन
जब सराय का रसोइया बना कुछ कहे, कह गायब हो गया तो मने वयं को मेहमान के
लए भोजन पकाने क सेवा म नयु कर दया। कुछ ही समय म, मने अ छा नाम कमा
लया। वहाँ शाम को आने वाले, भ के हाथ से बनी, तली मछली का वाद अव य लेत।े वे
कहते क मेरे हाथ तैयार मछली के साथ ताड़ी ( थानीय म दरा) का वाद और भी बढ़
जाता था। शी ही मुझे अलग-अलग जहाज़ के क तान क ओर से भी नमं ण आने लगे।

पर म जानता था क मुझे धीरज रखना होगा। मने तब तक ती ा क , जब तक मुझे कुबेर


के एक जहाज़ क ओर से नमं ण नह आया, जो क लंका जाने वाला था। यह राजसी
सु वधा से यु वशाल पोत था, जो तूफ़ानी वषा के मौसम म भी सागर के लए सुर त
व उपयु माना जाता था। म छह दन क या ा के बाद लंका म उतरा। फर मुझे कुबेर के
रसोईघर म सहायक रसोइये के पद तक प ँचने म थोड़ा समय लग गया।

मुझे कुबेर का कमचारी बने, लगभग एक माह होने को था। हमारे जलयान का कह कोई
अता-पता नह था। ायः, म बहाने से मसाल क मंडी क ओर नकल जाता ता क वहाँ से
दखते बंदरगाह पर नज़र डाल सकूँ क संभवतः भीड़ म कोई प र चत जलयान या चेहरा
दख जाए।

अंततः, मने एक दन उ ह दे ख ही लया, वे सामान से लदे कुछ घोड़ के साथ मसाल क


मंडी क ओर ही आ रहे थे। वे अनेक छोटे दल म बँट गए थे परंतु म रावण को सरलता से
पहचान सकता था। म बुरी तरह से भयभीत था। वह दखने म कोई ापारी नह लग रहा
था। वह एक राजा क भाँ त अ पर सवार था। और कौन सा राजा मसाल क मंडी म
आता है? रावण तो अपनी इन हरकत के कारण सारी योजना पर पानी फेरने पर तुला था।
“तो अ छा… तुम इस लए यहाँ आए हो?” म कुबेर के ारपाल मुख व म का वर सुन
कर च ँका। वह मेरे पीछे खड़ा घास का एक तनका चबा रहा था, वह एक छोटे ापारी के
भेष म था जो लोग क भीड़ म मलने के बाद साधारण मनु य जैसे ही दखते ह।

इससे पहले क वह कुछ कर सकता। मने उसके पाँव क अंगु लय पर अपने पाँव रखे और
उसे एक करारा ध का दया। वह लड़खड़ाया और पीठ के बल धड़ाम से गरा। हालाँ क
उसने उठने म दे र नह क पर म तब तक वहाँ से नकल चुका था। म खंजर क धार को सूय
क धूप म चमचमाता दे ख सकता था। भीड़ च लाने लगी। म भीड़ म से नकलने के लए
यथासंभव रा ता बनाता गया और इसी अफ़रातफ़री के बीच मने फल से लदे ठे ले पलट
दए, स र के ढे र को र दता चला गया और इसके लए वहाँ बैठे फेरी वाल क चीख़-
च लाहट भी सहनी पड़ी।

रावण मेरी ओर मुड़ा। उसके चेहरे पर म क छाया थी। तब अचानक ही वह मुझे पहचान
गया। मने दे खा क उसके सुंदर मुख पर घृणा के साए लहरा उठे थे। मने दे खा क हमारे
आसपास चार ओर से लोग आ रहे थे और हम घेरने क तैयारी म थे। सादे वेष म छपे
ारपाल हमारी ओर बढ़ रहे थे। व म ब कुल तैयार था और हम उसके हाथ म उन
न बु क तरह पड़ने वाले थे, ज ह नचोड़ कर पूरा रस नकाला जा सकता था। उसने हम
बुरी तरह से नचोड़ने का काम शु कर दया था।

“हट जाओ!” म अपने सुर म भरसक तेज़ी लाते ए च लाया। मने रावण के हाथ म थमी
तलवार क धार को चमचमाते ए दे खा और फर उसके बाद भीड़ म सैकड़ तलवार उठ
खड़ी । रावण के बच नकलने के लए संघष करने लगे तो बाज़ार म धूल के
बवंडर उठने लगे। म महाराज के अ के पास प ँच कर च लाया, “महाराज, मुझे ले चल।
मुझे अपने साथ ले चल महाराज।”

व म ब त पास था। कसी भी ण, या तो म यमराज के ार प ँच जाता या मुझे बंद


बना लया जाता। रावण गरजा, “राज ोही, नीच पु ! जा नक म सड़!!” उसने मेरी नाक पर
जो ठोकर दे मारी, उससे मुझे उतनी चोट नह आई, जतनी उसके श द से दल को ठे स
लगी। म लगभग व म पर गर ही पड़ा परंतु उसने अपने को बचाया और रावण पर
लपका। उसने अ क लगाम थाम कर, महाराज रावण को घेरना चाहा। रावण क एक
ज़ोरदार ठोकर आई और व म धूल म, मुँह के बल च जा गरा। मने बड़े ही सुकून के
साथ दे खा क रावण के लोग, उन र क क घेराबंद तोड़ने म सफल रहे थे। रावण लोग
क भीड़ को ठे लते ए, अपने लए माग बनाता आ आगे जा रहा था और वापसी के लए
आदे श दे रहा था। शी ही वह अपने लोग स हत बाज़ार से ओझल हो गया, कुछ लोग घोड़
पर साथ थे तो कुछ पैदल ही उसके पीछे भागे जा रहे थे। यह छोटा सा दल बाज़ार से
नकला तो वहाँ केवल कुछ दरबान ही रह गए थे, जो बेमन से उनका पीछा कर रहे थे।
म कसी पागल कु े क तरह दौड़ा। मुझे यह समझने म कुछ ण लगे क म तो राजसी पथ
क ओर बढ़ा चला जा रहा था। म कसी भी समय अ ारोही सै नक के सामने पड़ सकता
था और अ के खुर का वर सुन सकता था। म अचानक ही दा ओर मुड़ा व एक गली म
नकल गया। वहाँ चार ओर अँधकार था य क माग पर जलने वाले द पक बुझ चुके थे।
एक आयताकार काश का घेरा, उस अं धयारी गली के सू र कोने म, रोश नय के नए-नए
नमूने बना रहा था। जब म उसक ओर बढ़ा तो म वहाँ हो रही बातचीत सुन सकता था। एक
ी एक पु ष के साथ बहस कर रही थी, जो संभवतः म दरा के नशे म चूर था। म घबराया
आ था और छपने के लए कसी थान क तलाश म था।

धड़ाम क आवाज़ के साथ दरवाज़ा खुला और म अंधेरे साय के बीच, दो क़दम पीछे हट
गया। केवल अंतव पहने, एक भारी-भरकम दे ह के को घर से बाहर धकेल दया
गया था। वह कुछ क़दम लड़खड़ाया, एक द पक तंभ से टकराया और नाली म धे मुँह
जा गरा। उसके पीछे अपश द क बौछार सी सुनाई पड़ी। वह टस से मस नह आ।
नःसंदेह यह उसका अपना घर तो नह था। कोई भी स य ी इस तरह के अपश द का
योग न करती। यह थान न त प से नाचघर म एक होगा या फर कसी का आमोद
भवन रहा होगा। इससे पहले क वह दरवाज़ा बंद कर पाती, म अंधेरे से बाहर नकला और
दरवाज़े क ओर क़दम बढ़ा दया। वह एक ण के लए भ च क रह गई। मने दे खा क
उसक आयु अ ारह या बीस के लगभग रही होगी, आँख ह क भूरी और काले घने लहराते
केश! वह कसी दे व क या क भाँ त गौर वण थी या फर कोई संकर जा त! उसने एक
रेशमी कंचुक पहनी थी, जो उसके व थल को छपाने के थान पर अनावृ कर रही थी व
ना भ से कुछ इंच नीचे रेशमी धोती कमर म ख सी गई थी। उसके व के बीच एक पतली
सुनहरी ज़ंजीर म हीरा झूल रहा था। इससे पहले क वह च लाती, म घर म चला गया और
उसके गले पर अपनी तलवार रखते ए, अपने बाएँ हाथ से दरवाज़ा बंद कर दया।

“मुझे अपने क म ले चलो।” मने कहा, य क म जानता था क उसके मादक शरीर ने मेरे
पौ ष को जागृत कर दया था। अगले कुछ स ताह तक, एक वे या का घर ही मेरा आ य
थल रहा। वह मेरे लए एक ऐसा कंधा बन गई थी जस पर मने अपने ःख व सपन का
सारा भार डाल दया था।

उसका नाम माला था और हमारे एक वातालाप के दौरान, उसने बताया क व म उसके


नय मत ाहक म से था। मेरे म त क म एक योजना पलने लगी। धीरे-धीरे, मने उसे अपने
जीवन के ल य के बारे म बताया। पहले तो उसने अ च कट क , परंतु दो स ताह तक मेरी
बातचीत म ह सा लेने के बाद, उसे मेरी बात म रस आने लगा। शी ही उसे भी मेरे उ साह
क छू त लग गई और मने उसे भी घृणा का पाठ पढ़ा दया। उसने मुझे ेम दया और मने
उसे इसके बदले म घृणा स पी। म उसे अपनी ओर मलाना चाहता था। मने उसे षड़यं म
अपना भागी बना लया।
एक शाम, वह मेरे क म आई व बताया क आज रात व म उसका अ त थ बनने वाला
था। म ई या से सुलग उठा परंतु हमारी योजना को मूत प दे ने का इससे बेहतर अवसर
और या हो सकता था! म भारी पद के पीछे जा छपा और ता से उसके आने क
ती ा करने लगा। मने व म को क म वेश करते दे खा। माला उठ और उसक ओर
आगे बढ़ , फर उसने उसके होठ पर एक चुंबन अं कत कर दया।

शी ही व म अधोमुख आ पड़ा था। उसका गठा आ ह का पीला शरीर, आने वाले


ण क याशा म रह-रह कर सहर उठता। माला ने उसक धोती उतारी और टाँग भी
बाँध द । म हौले से व म के पास जा प ँचा। माला वहाँ से उठ , अपने व लए और
पहनने लगी। फर वह एक ही झटके म क से बाहर हो गई।” ये सब हो या रहा है…!”
व म का चेहरा गु से से लाल हो गया और उसे सारी व तु थ त को भाँपने म कुछ पल
लगे। म तो उसक मौत था, जो तेज़ी से उसक ओर बढ़ रहा था। वह वह जम गया। मने
अपने चेहरे पर सबसे सजीली मु कान बखेरी व एक-एक क़दम भरते ए, उसके पास जा
प ँचा। उसने उठना चाहा परंतु माला ने उसे ब त अ छ तरह से व कस कर बाँधा था।

म उसे हौले-हौले मारने लगा, उसे पूरी यातना दे ते ए, समा त कया गया और सुबह होने
तक, म और माला फ़श पर बखरे, व म के टु कड़े सहेज रहे थे। हमने उन टु कड़ को एक
बोरे म भरा और चीनी डाल कर जला दया ता क शरीर का कोई नामो नशान बाक न रहे। म
बाहर गया और दो आवारा कु को मार लाया, उ ह भी जलती दे ह के बीच डाल दया गया।
इस तरह पड़ो सय के कौतूहल को भी शांत रखा जा सकता था।

इस कार, राजमहल का मुख र क व म मारा गया। म उसक जेब से कुंजी नकालने म


सफल रहा और अब मुझे कसी तरह ग म जाना था। इससे पूव क मुख ारपाल के
लापता होने का समाचार फैलता, मुझे वहाँ तक प ँचना था। जैसे ही म राज ासाद के समीप
गया, मने सुर ा ार के समीप खड़े दो ारपाल को दे खा, म उ ह दे ख कर घबराने क
बजाय बड़े ही अ धकार व रौब से आगे बढ़ता गया और उ ह ने झट से मुझे दे ख कर, अदब
से सलाम ठ का। एक ही झटके से दरवाज़ा खुला और म भीतर चला गया। मने अपने पीछे
दरवाज़ा बंद कया और मन ही मन उन ारपाल को ध यवाद दया। मने अपने हाथ म थामे
ए म के छोटे से पा को दे खा। मुझे इस व तु को तैयार करने म दस दन से भी अ धक
समय लगा था।

मने ारपाल मुख क वद उतारी, उसक पोटली बनाई व एक झाड़ी म छपा द । फर म


अपने व म आ गया, म वहाँ से शाही रसोईघर म प ँचा, जहाँ म पहले भी काम कर चुका
था। सरे रसोइये अपने काम म म न थे इस लए औपचा रक अ भवादन के अ त र कोई
बात नह ई। जब मुझे यह व ास हो गया क कोई नह दे ख रहा था तो मने म का पा
लया व उसे खौलते चावल क दे ग म पलट दया।
सै नक अलग-अलग तरह क स जयाँ लेना पसंद करते थे परंतु चावल तो सभी खाते थे। म
इस त य से भली-भाँ त प र चत था। म दम साधे ती ा करता रहा। एक के बाद एक
बैलगा ड़याँ आती रह और व भ सै नक खेम म तैयार भोजन प ँचाती रह । वे अपने
साथ बड़े-बड़े पतील म उबले चावल व तरी ले जा रहे थे। य द कुछ जहाज़ रा य के समीप
ही सागर म होते, तो उनके पास नाव के ज रए भोजन प ँचाया जाता।

करीब एक घंटे बाद, मुझे बाहरी ह से म हलचल महसूस ई। वे एक के बाद एक सै नक


को ला रहे थे, तड़पते ए मनु य, मौत के पंज म जकड़े मनु य, पीड़ा से ठते मनु य!
बैलगा ड़य तथा अ ारा ख ची जाने वाली गा ड़य म भर कर, नगर के कोने-कोने से
सै नक को लाया जा रहा था और महल के ाँगण म उतारा जा रहा था ता क महल के शाही
च क सक जाँच सक क उ ह आ या था? म बाहर क ओर भागा। कसी ने भी मेरी ओर
यान नह दया। म अपने वामी के पास प ँचना चाहता था। म चाहता था क मेरा राजा,
रावण आए और इस रा य को अपने अ धकार म ले ले। म उन सभी सै नक के बीच से होते
ए भागा, जो अपने सर हथे लय म दए, ना लय म मुँह गाड़े वमन कर रहे थे, लोग अपने
पेट पकड़े, मृ यु क यं णादायी पीड़ा से जूझ रहे थे। मने एक घुड़सवार के हाथ से घोड़े क
लगाम छ न ली जो एक हाथ से घोड़े को संभाले था और सरी ओर वमन कर रहा था। मने
उसे ठोकर मारी, घोड़े पर सवार आ ओर सुबेला पहा ड़य क ओर घोड़े को एड़ लगा द ।
आम जनता सड़क पर मजमा लगाने लगी थी और मौत के मुँह म जा रहे सै नक को
न पाय भाव से ताक रही थी। एक दे श ापारी नरेश के अ याचार से मु होने जा रहा
था।

जैसे ही म सुबेला क पहा ड़य पर चढ़ने लगा। मेरी आँख अ ु से धुँधला उठ । ऐसा जान
पड़ा मानो, श द कह गले म ही अटक गए ह , “महाराज, नगर अब आपका है, मने कुबेर
क सेना को समा त कर दया है…।” म अपने राजा को दे खते ही च लाया।

“इसे बंद बना लो।” यह वर सुनते ही मेरा कलेजा दहल उठा। जन सै नक को म पहले
दन से अपना मानता आया था। आज वही, मुझे चार ओर से घेर,े मेरा वध करने के लए
तुत थे।

“रावण! उसक बात तो सुन लो।” म एक कुलीन वृ क आकृ त को अपनी ओर आते दे ख


सकता था, वे तो ह त थे। मारीच भी आगे आए। सपा हय को पीछे धकेला और मुझे
ज़मीन से उठा लया। उ ह ने मुझे बाँह म भरा व पीठ थपथपाई। म कसी न हे ब चे क
तरह सुबक उठा और म मारीच के उन आँसु का भी सा ी था, जो मेरी न न पीठ को
भगो रहे थे।
11 समु द यु क घेराबंद

रावण
मुझे इस बात का अनुभव होने म थोड़ा समय लगा क भ कोई व ास ोही नह अ पतु
एक म था। वह तो वही मु दाता था, जसक म जाने कब से ती ा म था। हम एक नए
उ साह के साथ, उन पवत ंखला से नीचे उतरे और भूखी सेना के दल, जतनी ग रमा के
साथ क़दमताल कर सकते थे, उ ह ने करने का यास कया। जैसे ही हम शाही सड़क के
पास प ँच,े तो हम दे ख सकते थे क सड़क के दोन ओर खड़े हज़ार लोग अपनी करतल
व न व जय-जयकार से हमारा अ भनंदन कर रहे थे। म मु दत था। ये वजय ी से जुड़े वही
ण थे, जनक मुझे याशा रही थी। अकूत धन-संपदा मेरे लए ती ारत् थी। म इस
रा य के महान संसाधन के बल पर एक वशाल सेना न मत कर सकता था और फर पूरे
उप-महा प पर अपना आ धप य था पत कर सकता था। इससे बड़ी बात यह थी क म
अपने सौतेले भाई कुबेर को सड़क पर ला सकता था, जसका वह सही मायन म अ धकारी
था, और फर अपने एक हाथ के संकेत मा से उसे भीख म सोने के कुछ टु कड़े दे सकता
था। म अपने पता के चेहरे को दे खते ए उनका उपहास कर सकता था। म ब त सी बात
कर सकता था। म तो राजा और स ाट था। रावण, लंका का स ाट, सुनने म अ छा लगता
है। रावण, भारत का स ाट, यह तो सुनने म और भी बेहतर लगता है। या म ब त अ धक
मह वाकां ी हो रहा था? नह , नह , म तो सदा से ही आ म व ासी रहा था। तभी अचानक,
मेरा मन ता से भर उठा। ये वजय ी तो खोखली थी। यह तो मुझे एक बदसूरत, गँवार,
अस य तथा अ श त कसान व ामीण तथा नीच सप जैसे ारा थाल म परोस कर,
उपहार म द गई थी।

य ही मने महल म वेश कया, ापारी राजा के स मुख, हाथ म भ ा का कटोरा थामे
एक नधन म हला और उसके चार ब च का च मेरी आँख के आगे नाच उठा। इस कभी
न भुलाए जा सकने वाले य तथा कुबेर के हाथ के संकेत ने मेरे पूरे शरीर को द ध कर
दया। पेट म अजीब सी उथल-पुथल होने लगी। मने गौशाला क ओर झाँका व मारीच को
कन खय से दे खा। उ ह ने भी उस ओर दे खा व मुझे दे ख कर मु कराए। मुझे उनक वह
मु कान बेहद यारी लगती है।

“कहाँ है वह?” म कुबेर के लए च लाया। ह त पूरे एक मनट तक घूरता रहा और फर


अपनी अँगुली सु र दख रहे सागर क ओर उठा द । मने दे खा क कुबेर क आधी झुक
व णम पताका वाला वशाल जलयान बंदरगाह से छू ट रहा था। मेरी वजय का सारा
उ लास वह हवा हो गया।
“महाराज! व ण का जहाज़ी बेड़ा हमारे कनार क ओर आ रहा है।” बुरी तरह से हाँफ रहे
संदेशवाहक का वर सुन कर म अपनी आल य भरी तं ा से बाहर आया। वह कसी पगलाए
कु े क तरह बौखलाया आ था। सारा महल मानो थर हो उठा। मेरे रा या भषेक
समारोह पर एक ण म पानी फर गया! मने त काल सभी समारोह को रोकने का आदे श दे
दया।

इस आपातकाल से नबटने के लए हमारी प रषद क सभा बुलाई गई। हमारे पास जवाबी
हमले के लए कोई सेना न थी। कुबेर अ धकतर नौसेना अपने साथ ही ले गया था। बाक
बचे लोग वषा भोजन के भाव म थे, कुछ लोग मर चुके थे और कुछ बुरी तरह से रोगी
हो गए थे। तो हमारे पास उस द यु राजा से यु करने के लए केवल तीन सौ य क
सेना ही शेष थी। मने बना कसी र पात के यह रा य ा त कया था और इसी बात ने मुझे
चता म डाल रखा था। म व ण से यु करना चाहता था; म कसी के साथ दो-दो हाथ
करना चाहता था। म इस बात को ब कुल भी नह पचा पा रहा था क म कोई वीरतापूण
कृ य कए बना, राजा के पद पर कैसे आसीन हो सकता ? ँ हमने एक सेना से कपट
करके, उसक रसती आँत क दया से रा य ा त कया है। ध कार है!

ह त ने उस द यु से सौदे बाज़ी क और अंत म, येक को अपनी योजना सुना कर सहमत


कर लया। जब ह त अपने दो सहायक के साथ, एक छोट नौका म सवार हो कर, सु र
तज म दखते जहाज़ी बेड़े के पास चल दया तो म मारे गु से के आगबबूला हो गया। म
बुरी तरह से खीझा आ था क तभी एक काँपते ए अनुचर ने सू चत कया, “मय आपसे
मलना चाहते ह।”

म कसी ऐसे से कसी भी हाल म नह मलना चाह रहा था जो अंक क गणना और


फ त के माप से अपनी आजी वका चलाता हो परंतु इससे पूव क म अनुचर को वहाँ से
हटाता, मय खीस नपोरते ए भीतर आ गए। अनुचर चुपके से खसक गया।

म व मय के साथ दे खता ही रह गया और मेरे आगे खड़े केश वहीन वृ ने, कसी वानर
क तरह, वा तुकला व अ भयां क क तकनीक बारी कय पर बकवास करना ारंभ कर
दया। और मने ल य कया क वे मुझे रावण कह कर संबो धत कर रहे थे। म अभी इस
मनः थ त म कतई नह था क कसी अनापे त गु से अ भयां क क आरं भक श ा
हण क ँ । जी म तो आ रहा था क उठूँ , उ ह उनक गदन से पकड़ कर, सर को झुकाऊँ
व उनक नाक ज़मीन पर रगड़ ँ परंतु इसक बजाय मने भरसक श ाचार बटोरते ए
कहा, “आपने यहाँ आकर मुझे जो सौभा य दान कया, उसके लए म आपका आभारी ँ।
क हए म आपके लए या कर सकता ँ?” मने आशा क क मेरा सुर मेरे भाव के अनुकूल
न हो और मने जो भी श द कहे वे एक आदरणीय वृ गु तथा वा तुकार के मान के
अनु प ही थे।
“म यहाँ से गुज़र रहा था इस लए सोचा क य न तुमसे कुछ वातालाप करता चलू।ँ ” पाँच
मनट बीत गए और म वह खड़ा रहा, जब क इस दौरान वे वृ स जन कुछ न त बात
को मन मन गुनगुनाते ए, वराम च ह स हत खेद व स ता के वर नकालते रहे। मने
उन सब घटना क क पना कर ली, जो उनके साथ घट हो सकती थ जैसे – कसी
वशालकाय तंभ का उनके म तक पर गरना, जैसे व णु का एक सह का मुखौटा लगाए
तंभ म से, अपने छपे ए थान से कट होना; जैसे मय का धरती पर गरना और उनके
बाक बचे दो दाँत का टू टना। फर अचानक ही मेरे म त क म एक वचार क धा। उ ह तो
मेरी माँ, बहन तथा अपनी धृ पु ी के साथ मु य भू म म होना चा हए था। वे यहाँ कैसे
प ँच गए? इससे भी अ धक मह वपूण वचार यह था क मेरी माँ और बहन कहाँ थे? या
वे व ण क ू रता का शकार हो गए थे? य द मेरी माँ को कुछ हो जाता तो म व ण को
जी वत ही गाड़ दे ता। फर चाहे हमारे आपसी समझौते, सं धयाँ, ह त क कूटनी तयाँ तथा
राजनी त के दाँव पच भले ही भाड़ म जाते।

“ शव! शव, मय भाई तुमने अभी तक इसे कुछ बताया नह ,” माँ का वर सुनते ही मेरे पेट
म मच रही खलबली अचानक ही शांत हो गई।

उनके पीछे ही मुझे अपनी बहन दमकती ई दखाई द । मने उनके साथ खड़ी एक हठ सी
दखती युवती पर भी नज़र मारी, उसक आँख नःसंकोच मेरी आँख का सामना कर रही
थ , मानो उसने ल जा करना सीखा ही न हो।

“ओह! व ण कतना भलामानस है। हमारी या ा कतनी सुखद व आनंददायक रही!” माँ ने
बेलाग भाव से कहा

“तो जंबूमाली कहाँ ह? इससे पहले क म कसी को आपको लवाने भेजता, आप वयं ही
य चली आ ?” मने पूछा

“जंबूमाली तो अब भी व ण के जहाज़ पर ही है। व ण को इस बात क ब त स ता है


क तुमने लंका का शासन संभाल लया है। लोग कहते ह क वह एक द यु है परंतु वह तो
श ाचार का ब त प का नकला और उसने मेरे हाथ तु हारे द घकालीन व समृ शाली
शासन के लए शुभकामनाएँ भी े षत क ह।”

“ ह त उससे बातचीत करने गया है।”

“मेरे पु ! यह राजनी त तो तुम ही जानो। पु ! अब तु हारी आयु ववाह यो य हो गई है।


कुछ लोग तो यह भी कहते ह क इस समय तुम से अ धक सुदशन व सुयो य कुँआरा युवक
र- र तक नह है। तो ववाह के वषय म तु हारा या वचार है?”
“माँ! मुझे नह लगता क म अभी इस उ रदा य व को वहन करने के लए तुत ँ। मुझे
पूरे रा य का काय-भार संभालना है और अभी तो मने काम का आरंभ ही कया है।” मने
अपना वरोध कट कया।

“तो… मने मय से पूछ लया है क या वे स तापूवक अपनी पु ी मंदोदरी का हाथ तु हारे


हाथ म दे ना चाहगे?” माँ ने मेरे वरोध को पूरी तरह से उपे त करते ए अपनी बात कही।

म तो भ च का रह गया। म कसी अकड़े ए काठ सरीखी युवती से तो ववाह करने के लए


ब कुल सहमत नह था। मने उसक ओर नहारा तो उसके चेहरे पर ल जा या संकोच का
एक भी भाव नह दखा। उसने इतनी गहराई से मेरी आँख म झाँका क म तं भत रह गया।
उसक आँख गहरी काली व तीखी थ तथा भारी पलक से ढक थ । माना वह सुंदर थी
परंतु उसक सुंदरता एक सीमा तक कठोर जान पड़ रही थी। मानो उसके भाव म एक
व च सा घमंड झलक रहा हो। मानो उसके पता ने उसे अपने फ ते से माप-तोल कर गढ़ा
हो, तभी वह कसी तराशी ई पाषाण तमा क भाँ त लगती थी।

“मेरे वचार से हम तुम दोन को पर पर प र चत होने के लए कुछ समय दे ना चा हए, तो


या हम बड़े लोग बगीचे म चल।”

इतना कह कर, वे मंदोदरी को मेरे साथ छोड़ कर, सबके साथ बाहर चली ग । म वहाँ से
भागना चाहता था, क के वातायन से कूद कर ग़ायब हो जाना चाहता था। मंदोदरी! भला
यह भी कोई नाम आ?

“यह क ब त ही दशनीय है।” उसने कहा और मने मन ही मन सोचा क जैसा पता वैसी
पु ी। मने सी मत श द म उ र दया, “हाँ।” इसके बाद वह शांत हो गई और म मन ही मन
कुछ कहने के लए श द क तलाश करता रहा। काश! मुझे बोलने के लए कुछ श द तो
मल जाते। क का वातवरण ब त ही गहन और बो झल होता जा रहा था। मुझे अब तक
इस बात का प का यक़ न हो चुका था क ववाह करने का यह तरीक़ा तो ब कुल ही
अनु चत था।

“ख़ौर… मने ा जी से धनु व ा क श ा ली है और म संगीत ेमी भी ँ। म ब च के


रोग क दवाएँ व च क सा खोजने म च रखता ँ और…।” मने बमु कल हकलाते व
लड़खड़ाते ए अपनी बात कही।

वह मुड़ी, अपनी भुजाएँ मोड़ और मेरी आँख म सीधा दे खते ए बोली, “मेरे पता ने मुझसे
कहा क आप मेरे भावी प त ह तथा एक आ ाकारी पु ी होने के नाते, म उनके इस ताव
से सहमत ।ँ म दे व के सभी वेद का ान रखती ँ तथा मने दे व तथा असुर के इ तहास
का भी अ ययन कया है। मने अपने पता के अधीन वा तुकला तथा अ भयां क क श ा
भी हण क है। म क वताएँ लखती ँ तथा च कारी का भी शौक़ रखती ँ। मुझे शकार
खेलना ब त पंसद है और म एक कुशल नशानेबाज़ ।ँ ”

कसी ने नह पूछा क या म एक चलते- फरते व कोश से ववाह करने के लए तुत


था? उसने अपनी बात समा त क और म ती ा करने लगा क या वह कुछ और कहना
चाहेगी? मने उसके स मुख वयं को छोटा, अस य तथा उपल धहीन अनुभव कया। म
जानता था क म एक अ छा तथा शूरवीर यो ा था, परंतु इससे या अंतर पड़ता था, क
के अधीन तीन सौ सै नक को श त कया गया था। मुझे ा के अधीन श त कया
गया परंतु मने अपनी अ धकतर औपचा रक श ा को नकार दया था। म चाह रहा था क
इस सा ा कार को वह समा त कर दया जाए। म उस सं ध के वषय म वचार कर रहा था,
जो ह त उस द यु के साथ करने जा रहा था। साथ ही यह चता भी सताने लगी क या
हम उस सं ध को बरकरार रख पाएँगे। तभी गाने के वर से मेरी तं ा टू ट । ये या! मंदोदरी
तो गाने लगी। वह एक मधुर गीत था, जसम महाब ल के शासन क म हमा का वणन कया
गया था और उसने उसे भली-भाँ त गाया भी। उसके सुर, लय और ताल म कह कोई कमी
नह थी और वह सुर के आरोह-अवरोह को भी बखूबी नभा रही थी। परंतु उसके इस
नद ष गान म आ मा का अभाव था। यह इतना संपूण था क गान क आ मा ही कह न
हो गई थी। इसम कसी तरह का कोई आवेग नह झलकता था। मंदोदरी जो गा रही थी, वह
उन श द के भाव को नह समझ पा रही थी अतः यह उसके लए कसी अ यास क भाँ त
ही था; एक यां क, भावर हत, आवेगर हत परंतु संपूण प से तुत कया गया अ यास!
कोई भी संगीत गु उसके गान म दोष नह नकाल सकता था परंतु कह न कह कोई
अधूरापन अव य था।

जस तरह अक मात् प से उसने गान आरंभ कया था, उसी तरह एक ही झटके म गान
रोक भी दया। हमारे बीच एक ाकुल सा मौन पसर गया। म नह जानता था क अब मुझे
या करना चा हए। या मुझे उसक शंसा करनी चा हए? उसका गान सुन कर करतल
व न से वागत करना चा हए? उसक पीठ थपथपा कर, उसक कोमल वचा क अनुभू त
लेनी चा हए? या केवल एक मु कराहट दे ना पया त होगा? या हो सकता है क मुझे इसके
बदले म एक गीत गाना चा हए? म बुरी तरह से चकराया आ था और इसी ती ा म था
क बाहर से कोई आए और मुझे इस ःखदायी थ त से उबार ले। पहले मुझे इस बात से
बड़ी खीझ होती थी क क के बाहर से नकल रहा कोई भी मूख, मुझसे ब तयाने के लए
सीधा अदं र घुसा चला आता था। अब म ब त ही अकुला कर ाथना कर रहा था क कोई
आए और मेरी र ा करे, फर भले ही वह मय ही य न हो।

“तो, अब तुम दोन म प रचय हो गया। अगले र ववार तु हारा ववाह है और मने
संदेशवाहक के हाथ उन संबं धय को यह संदेश भजवा दया है, जो अगले र ववार तक
यहाँ प ँच सकते ह। शेष संबं धय को हम बाद म सू चत कर दगे।” माँ क म वेश कर
चुक थ और अ भयां क महोदय वातायन के समीप थत अलंकृत तंभ को अपने हाथ
से टोह कर दे ख रहे थे। दहलीज़ पर खड़ी मेरी बहन, अपनी होने वाली भाभी को दे ख खीस
नपोर रही थी।

“परंतु माँ…।” इससे पूव क म अपनी बात पूरी कर पाता, अचानक ही कई क़दम क
आहट सुनाई दे ने लगी और क शांत हो गया। ह त ने जंबूमाली के साथ वेश कया और
उनके पीछे मारीच भी भीतर आ गए। म इस गत संग के बीच बाहरी य के
आगमन से हो गया परंतु इसके साथ ही मुझे बड़ा सुकून भी मला। माँ को दे खते ही
ह त ने दोन हाथ जोड़ कर णाम कया तथा उनके वा य के वषय म कुशल-मंगल
पूछने लगा। मारीच सीधा माँ के पास गए और आँख म एक चमक के साथ बोले, “तो बहन,
जोड़े मलाने का काम पूरा हो गया? और ज़रा दे खो तो, वह कैसे लजा रहा है!”

जी म तो आया क वह उनका गला दबा ँ ।

कुंभ और वभीषण क म दौड़े चले आए और कुंभ ने मुझे गले से लगा लया, उसक दो
दन क बढ़ दाढ़ मेरे चेहरे पर चुभ रही थी। उसके मुँह से ताड़ी क गध आ रही थी।

“ह म… य द आप म हलाएँ बुरा न मान तो या इस क से वदा ले सकती ह, हम रा य से


जुड़े कुछ मह वपूण मसल पर वचार- वमश करना है।”

मेरी बहन ह ठ फुला कर बाहर नकल गई और माँ क छोड़ने से पहले आगे आई और मेरे
म तक पर एक चुंबन अं कत कर दया। जब मने दे खा क मंदोदरी के होठ के कोन पर
एक तरछ रेखा खच आई थी, तो म बुरी तरह से लाल पड़ गया। मय वह बने रहे मानो वे
कुछ दे र और वा तुकला का आनंद लेना चाहते ह परंतु मारीच जस दयालुता के साथ उ ह
वहाँ से बाहर ले कर गए, यह काय उनके अ त र कोई सरा कर ही नह सकता था। हम
लोग वहाँ छाई चु पी के बीच बैठे रहे, इतना समय बीत गया क इस बात का भय पैदा हो
गया क कह ह त पगला कर अ ील गीत न गाने लगे। तभी मारीच ने अपनी गदन
हलाते ए तथा आँख मटकाते ए क म वेश कया।

“य द आपके यह वल ण काय पूरे हो गए ह तो या अब हम काम क बात कर ल,


मारीच!” मारीच के चेहरे पर मु कान आ गई। ह त अपना बदला लेने म कामयाब रहा। “ये
कोई छोटा-मोटा सौदा नह था। यह द यु ब त बड़ा समझौतेबाज़ है। म जानता ँ क आप
इसे पंसद नह करने वाले परंतु हम अपने बल व ताकत को बनाने के लए अभी थोड़ा समय
चा हए।” ह त एक ण के लए शांत आ। मेरा चेहरा पीला पड़ गया। दरअसल म सं ध
से जुड़ी शत सुनना ही नह चाहता था। म तो यु करने के लए अकुलाया पड़ा था परंतु
तक ने मुझे समझाया क यह मूखतापूण नायक व मुझे कह नह ले जाने वाला था। अनेक
असुर ने इसी तरह अपने ाण का ब लदान कया था और अब वे केवल उन भाँड के
क तगान का ही एक अंश बन कर रह गए थे।

ह त ने अपने वर को भरसक सामा य रखते ए कहा, “इस समय दो लाख वण मु ाएँ,


येक तीसरे माह म बीस हज़ार वण मु ाएँ, हमारे सात सव े जहाज़, हमारे कुल काली
मच उ पादन का एक तहाई ह सा, इलायची व ल ग क फसल का पाँचवाँ ह सा और
बंदरगाह से एक कए जाने वाले सीमा शु क के राज व का एक चौथाई ह सा!”

“इन छोटे लाभांश के बदले म हम या ा त होगा?” मने आशा क क मेरा यह ं य वृ


महाशय को भड़काने का काम नह करेगा।

“महाराज! हम कसी भी कार क , कोई भी माँग रखने क थ त म नह ह।” ह त ने


अपने एक समान व शु क वर म बात जारी रखी। “उसने सभी बल से हमारे बचाव का
ताव रखा है। उसने हम नौसेना के जवान दे ने का भी ताव रखा है ता क हम अपने
समु को समु द यु के आंतक से मु रख सक।”

एक बार फर से बड़ी ही व च चु पी छा गई। येक मन ही मन इस सं ध क शत


को लाभ-हा न क कसौट पर तौल रहा था। हमम से कसी को भी प का पता नह था क
हम उसे कतना दे ना होगा। हम यह भी पता नह था क उस समय रा य के कोष क या
थ त थी, हमारे गोदाम तथा अनाज के भंडार क दशा कैसी थी, हम रा य से कतना
आयकर व अ य राज व एक करते थे या फर आय के अ त र साधन कौन-कौन से थे?
हम यो ा ऐसी बात पर कभी वचार ही नह करते थे, ायः हम इन बात को अपने से न न
तर के ा णय पर ही छोड़ दया करते, ज ह मुनीम कहा जाता था। वही हमारे आय- य
का लेखा-जोखा रखते थे।
12 वा पटु


उस दन, जब मुझे उसका घर मला, तब ब त रात हो चली थी। म उस समय तक म दरा के
नशे म चूर हो चुका था और रा ते म ताड़ी क तीन कान का फेरा लगाता आ आया था।
मने ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा भड़भड़ाया और बाहर से ही माला पर अपश द क बौछार करने
लगा। माला ने दरवाज़ा खोला व पानी से भरी बा ट मेरे सर पर उड़ेल द । शीतल जल ने
मुझे सु कर दया, फर वह मुझे कमर म बँधे व से ख चते ए, भीतर घसीट ले गई,
जससे पानी चू रहा थ। म जानता था क म उसके ेम म पड़ चुका था।

मने एक लंबे समय तक ती ा क थी क कोई आता और मुझे मेरे वामी के पास ले जाता।
दन बीतते गए, लोग एक- सरे से ब तयाने म म न, राजनी त और अपने भ व य क चचा
करते ए सड़क पर झुँड बनाए नकलते रहे। म भी उस भीड़ का ह सा बनना चाहता था
ता क सड़क पर चल रहे उन लोग क जानकारी लेते ए, उनक मनः थ त भाँप सकूँ।
परंतु म इस बात से डरता था क कह म बाहर चला गया, तो वह संदेशवाहक खाली हाथ
लौट जाएगा, जसे मेरे वामी मुझे लवाने के लए भेजगे। वह न त प से मुझे लेने आने
वाला था। मेरे वामी वयं मुझसे मलने आने वाले थे। वे मुझे अपने समीप बुला कर उन सब
बात के लए ध यवाद दे त,े जो पछले कुछ दन म घट थ । फर म कहता क यह सब तो
शव क कृपा का फल था। म तो उनक इस बाजी का अदना सा यादा भर था। म दन-रात
यही सपने दे खता रहा परंतु कोई नह आया, कोई भी तो नह ! म वह बैठ गया, मेरे चेहरे से
दो वेद धाराएँ बहते ए, छाती को भगो रही थ । य प म हलने का साहस नह कर
सका। मेरे स ाट मुझे पहले ही व मृत कर चुके थे। म इस बात पर व ास नह कर सका।
नह , वे त थे। वे अपने प रवार के सभी सद य के अपने-अपने काम पर लौटने क
ती ा म थे, इसके बाद वे न त तौर पर मुझे बुलाने वाले थे। परंतु साँझ ढलते-ढलते, म
इस वषय म इतना न त नह था। म वहाँ जाने और अपना चेहरा दखाने से भयभीत
अनुभव कर रहा था। म कौन था? एक नकृ जीव! मानो कोई छोटा सा क ट। जी म तो
आया क अपने ही चेहरे पर थूक ँ ।

चूँ क मेरे पास करने के लए कोई काम नह था इस लए म एक दन माला के साथ स जयाँ


लेने के लए हाट चला गया। जब हम लौट रहे थे तो मने एक संप को दे खा जो बड़े
ही नेह से, माला के आँगन म खड़े, अपने घोड़े क अयाल को सहला रहा था। जैसे ही हम
भीतर प ँचे तो वह हमारी ओर दे ख कर मु कराया। मने दे खा क माला का चेहरा उ जवल
हो उठा था, उसने उसी उ लास के बीच स जय का थैला मुझे थमाया और स तापूवक
पुकारते ए, उस के आ लगन म प ँच गई। म उस नीम अंधकार के बीच सु आ
खड़ा था, म हल भी नह पा रहा था, जोड़ा बड़ी नल जता से एक- सरे को आ लगन म ले
कर चुंबन दे रहा था। म अब भी हाथ म स जयाँ थामे खड़ा था, वे दोन अपने कमरे म घुसे
और बड़ी धृ ता से दरवाज़ा बंद कर लया। मने दे खा क घोड़ा मुझे दे ख कर हन हना रहा
था। म एक व च से सूनेपन से घर गया, आ म-दया क लहर ने मुझे भगो दया, मुझे
जीवन के इस प पात पर ोध व कुंठा का अनुभव होने लगा। म घोड़े के पास गया और
स ज़य का थैला उसके आगे ढे र कर दया।

म वा पस बाज़ार क ओर चल दया व तीन दन तक भूखे पेट रहने के बाद, मुझे एक


थानीय सराय म रसोइये का काम मल गया।

शीत ॠतु का अंत नकट था, एक छोट सी घटना ने पूरे नगर म वशाल तर पर दं गे फैला
दए। कसी ने सोचा तक नह था क नरहंकारी तथा अनाड़ी महागु तथा अब शासन के
मुख अ भयंता मय, इन दं ग का कारण ह गे। जब उ ह ने अपने अ भयां क कौशल के
दशन क ठानी तो उ ह ने बुरी तरह से डसे गए, तनाव त तथा भूखे लोग क खती रग
पर हाथ रख दया। यह शीत ॠतु क एक सुहावनी सुबह थी, म सड़क पर हो रहे ह ले-
गु ले के वर को सुन कर न द से जगा। जब बाहरी शोर-शराबा सहनश से बाहर हो गया
तो मने ब तर से उठना चाहा। बाहर से एक अलग सी घराहट का वर आ रहा था। म
चड़ चड़ाहट व न द से बो झल आँख के साथ बाहर नकला, तो एक वमान म सवार मय
को दे खते ही मेरी जंभाई बीच म ही थम गई। वह तो एक उड़ने वाला यं था। यं आकाश म
कलाबा ज़याँ खा रहा था और दे ख कर लगता था क मय को ब त आनंद आ रहा था, इस
वजह से नीचे जो कोलाहल हो रहा था, वह तो वाभा वक ही था। सारी भीड़ उसे दे ख कर
आ य व भय के मारे चीख़- च ला रही थी।

यह तो पु पक था, जो वतमान मय के पतामह, ाचीन मय ारा न मत था। मने केवल


कुबेर ारा वक सत कए गए, एक ा प के अ त व के वषय म सुना था, जो उसने
कसी ाचीन मय ारा तैयार करवाया था परंतु अ क एक दौड़ म उसक असमय मृ यु
के कारण, धनी ापारी-नरेश क यह प रयोजना बीच म ही रह गई थी। कुबेर कुछ इसी
कार के यं को वक सत करने के लए ब त सा धन य कर चुका था परंतु वह कभी
ऐसा कोई यं तैयार नह करवा सका, जसे उड़ाया जा सके। म आ य के साथ दे ख ही रहा
था क पु पक ने बड़ी ही शालीनता से मोड़ काटा और महल क तरफ जाते ए ग़ायब हो
गया।

इसके बाद लोग म हलचल व सुगबुगाहट होने लगी। लोग जाने कतनी अलग-अलग तरह
क बात कर रहे थे। तभी मने उसे दे खा – माला का ेमी! वह एक ाचीर पर खड़ा, कसी
को च ला कर कोई आदे श दे रहा था। म सुनना चाहता था क वह या कह रहा था
इस लए म भीड़ के म य राह बनाते ए आगे बढ़ा। धीरे-धीरे कोलाहल शांत हो गया और
वहाँ केवल ह क फुसफुसाहट, बुदबुदाहट और गहरी साँस भरने के सवा कोई श द नह
सुनाई दे रहा था। मानो वहाँ के वातावरण म एक व च सी याशा झूल रही हो। तब
अचानक ही मेरा श ु ो धत हो कर श द के व फोट करने लगा।

“मेरे य भाइय ! यह तो कोरी मूखता है। या हम इसके अ धकारी ह? जहाँ एक ओर हम


भूख मर रहे ह और हमारा राजा वला सता व ऐ य के बीच म न है…।” भीड़ ने गरज कर
अपनी सहम त कट क । “रावण तु हारे लए एक अ भशाप है, या हम ऐसे शासक क
आव यकता है?”

“नह ! नह ! नह !।” मने अपने वर को भी इस समवेत वर म मला पाया।

“यहाँ तु हारी संतान भूख से दम तोड़ रही ह और वहाँ महल म तमाशबीन उड़ने के सपने
दे ख रहे ह।” उसने अपनी बात वह समा त क और आसपास दे ख कर, वहाँ के वातावरण
का अनुमान लगाया। “इसने तो दे व क भी अव ा कर द है। यहाँ तक क इस तरह तो
दे वता भी नह उड़ते और यह राजा मूख वै ा नक के लए पानी क तरह पैसा बहा रहा है
ता क उड़ने वाले वमान व यं बनवा सके।” भीड़ ने समथन म अपना वर मलाया। “जब
तु हारी संतान भूख से दम तोड़ रही ह, खेत तु हारी संतान क लाश से पटे ह, जब तु हारे
पशु जल के अभाव म यासे दम तोड़ रहे ह तब तु हारा शासक तु हारे शव के ऊपर से
वमान म उड़ेगा और आकाश के ऊपर से तु हारे वनाश का यह य दे खेगा, य ?”

“ य ? य ?” उसके के यु र म हज़ार त व नयाँ गूँज उठ ।

“ य क वह तुमसे भयभीत है। य क वह नीचे उतर कर, तुम सामा य जन से मलने-


जुलने म डरता है। रावण पर ध कार है!” वह अपनी ही छाती पर एक श शाली घूँसा
जड़ते ए च लाया।

“ ध कार है! ध कार है! भीड़ ने भी यही कहा और वैसा ही कया।

“वह कहता है क व ण के कारण तुम लोग का जीवन इतना दयनीय हो गया है। यह व ण
कौन है और लंका के नवा सय पर या अ धकार रखता है? वह एक द यु है। यह तु हारा
भा य नह , तु हारी बलता है क तु हारे पास रावण सरीखा कायर राजा है।”

भीड़ के पछले ह से म कुछ ग त व ध होने लगी तो म उछल-उछल कर दे खने क को शश


करने लगा क आ ख़र वहाँ हो या रहा था? आपस म कसी क ह क सी झड़प ई थी
इस लए मने पुनः अपना यान व ा क ओर लगा दया। “ या हमने रावण को यहाँ आने
का नमं ण दया था? या हमने रावण से कहा था क वह आए और हम पर शासन करे?”
“नह ! नह ! नह !” भीड़ ने गजना क ।

“ पछला राजा एक ठग था परंतु वह एक वीर ठग था।”

“सुनो! सुनो! मेरी बात सुनो।”

“उसने द यु को हमसे सदै व र रखा। उसने तुम लोग को ठगा पर फर भी उसका ववेक
अभी मरा नह था। उसने तु ह झुकाया अव य था परंतु कभी तोड़ा नह ! अपनी संपूण
वला सता के बावजूद वह इतना तो छोड़ ही दे ता था क तुम लोग का पेट भर सके। इस
कायर रावण ने छल-कपट से यह रा य ा त कया है और अब तुम पर अपना पैशा चक
शासन थोप रहा है। वह तो ऐसा है क एक शशु के मुख से भी ध छ न लेगा। वह
तु हारा र पान करेगा। य द उसे लगेगा क उसे अपने वला सता व ऐ यपूण जीवनशैली के
लए कसी कार के आ थक अनुदान क आव यकता है तो वह तु हारी प नय तक को
बाज़ार म बेच दे गा। वह बल, ू र तथा सबसे बढ़कर एक कायर राजा है।”

म तो उस क ा यान कला से मं मु ध हो उठा। वह ब त अ छ तरह से अपने


भाव को कट कर रहा था। उसके सुर का उतार-चढ़ाव ब कुल सट क था। उसके
शारी रक हाव-भाव श शाली थे, और म अनुभव कर सकता था क भीड़ इन भाव म
बहती जा रही थी।

“मेरे लंका नवा सय उठो, जागो। हम असुर अपने शासक के प म बल व नमम


य को नह चाहते। चलो, इस ब पए को इसके पद से हटा द और इसक मंडली के
बाक सद य को सागर क लहर के हवाले कर द। फर हम व ण से दो-दो हाथ करगे और
उसे उसक औकात याद दला दगे। आओ, महल क ओर चल और इस रा स को राजग
से उतार फक। आओ चल…।” अचानक ही वहाँ एक स ाटा छा गया और मने उसे धीरे से
आगे क ओर गरते दे खा। उसक छाती र से लाल थी और तभी मेरा यान उसक मु म
भचे तीखे बाण क ओर गया, जसे उसने अभी-अभी अपनी छाती से ख च कर नकाला
था। अभी भीड़ सकते म ही थी क अचानक अ ारोही चार दशा से कट ए और भीड़
को हाँकने लगे। वहाँ चार ओर बड़ा ही व च सा आंतक छा गया। मने क को पूरी ग त
से अपने काले अ पर भागते दे खा, जो अपनी राह म आने वाले येक ोता को
नःसंकोच कुचलता जा रहा था। य प म इस संकट से र हो जाना चाहता था परंतु जाने
य इस तमाशे के क क ओर आक षत होता चला गया। म अपने श ु का ाणांत होते
दे खना चाहता था इस लए म अपनी पीड़ा को उपे त करते ए भागा, वपरीत दशा म
भागने के कारण म अनेक लोग से टकरा-टकरा कर चो टल हो रहा था परंतु मुझे इसक
परवाह नह थी।
जब तक म द वार के पास प ँचा, तब तक मेरे पाँव कई बार ज़मीन से उखड़ चुके थे। मने
दे खा क क ोध व कुंठा के मारे थर-थर काँप रहा था। उस के शरीर से कोई र
नह नकल रहा था और वह वहाँ धे मुँह पड़ा था। क ने कुं ठत हो कर अपनी तलवार
क मूठ से एक सै नक पर वार कया। फर वह उस घायल सपाही के शरीर से फूट रहे र
क बौछार को उपे त करते ए, अपने सरे सा थय को नदश दे ने लगा क वे व ोही क
तलाश कर। वह अभी अ धक री तक नह जा सकता था। म नराश हो गया और मन ही
मन ाथना क क वह तीर फलीभूत हो गया हो तथा कुछ ही घंट म वह दम तोड़ दे ।
परंतु म यह भी जानता था क इस बात पर आसानी से व ास नह कया जा सकता था
य क म अपने जीवन म कभी भा यशाली नह रहा था। फर मने नगर के व भ भाग से
उठती आग क लपट दे ख । लंका धू-धू कर जल रही थी। और ऐसा पहली बार नह था क
वह प नगरी आग क लपट म वाहा हो रही हो।
13 समु द यु का हंगामा

रावण
“ व ोही को पूरे बल से कुचल दो। कसी भी ोही को छोड़ा नह जाएगा।” मने समु क
ओर दे खते ए, अपने लोग को नकवास दे ने का फ़रमान सुना दया। फर अपने-आप को
सां वना द , “म यह सब अपने लोग के क याण के लए ही तो कर रहा था।” अचानक ही
मेरे भीतर से वही कठोर वर गूँज उठा। ‘रावण, इ तहास का येक अ याचारी अपने-आप
से यही तो कहता आया है। काश म अपनी अंतरा मा से उठते इस वर को सदा के लए मौत
क न द सुला पाता।”

एक-एक कर, सभी क से बाहर चले गए। मने वयं को अकेला अनुभव कया, ब त ही
अकेला। म कह सु र से उठती धू रेखा दे ख सकता था, जो आकाश क ओर उठती जा रही
थी। हो सकता था क वहाँ कुछ मनु य जी वत ही जल रह ह । मेरी याय व सदाचार क
भावना भी जैसे उसी धुएँ म वलीन हो कर, मेरे महल के आसपास बखर गई थी। म जानता
था क एक राजा के प म अपने जीवन का नया आरंभ करने के प ात, ऐसी हा न के बारे
म वचार करने के लए तो अभी ब त समय था। मुझे तो अभी ब त र तक जाना था।
अभी तो असं य लोग को यातनाएँ दे नी थ , जाने कतने जीवन उजाड़ने थे, अपने-आप को
जाने कतनी और सफ़ाईयाँ दे नी थ और ब त से भयंकर काय करने शेष थे। अभी कसी
ऐसे नायक क भू मका नभाने के लए ब त समय पड़ा था, जो प ाताप क अ न म जल
रहा हो। या व ण के जहाज़ पर अब भी कसी न न तर के कमचारी का पद मेरे लए
र था?

धीरे-धीरे, एक व च सा अधूरापन मुझ पर हावी होता चला गया। म अपने आस-पास घट


रही घटना पर वश नह कर सका था। अभी थोड़े समय पहले तक, मने अपनी नय त को
भी वश म करने के बारे म, कभी सोचा तक नह था, यहाँ तक क सर क नय त को भी
अपने हाथ म लेने का भी वचार नह कया था। अब मुझे एक ऐसे कृत न रा य के पंज के
बीच छोड़ दया गया था, जो मुझे कुचल दे ना चाहता था। समु क ओर से आई शीतल
नमक न हवा ने, क म रखी द पक क लौ को ह का सा तड़पाया और फर मौत क गोद
म सुला दया। म सागर के तट से टकराती लहर के वर को सुन सकता था। समु के ऊपर
तैर रहा झाग धीरे-धीरे ऊँचा होता जा रहा था। सु र से दख रही, काश क रेखाएँ ऐसी
दख रही थ , मानो नृ य कर रही ह । संभवतः वे व ण के जलपोत रहे ह गे। मेरे म त क म
एक योजना क ध गई। म कुछ करना चाहता था। म नह चाहता था क म हाथ पर हाथ धरे
बैठा र ँ और सरे लोग मेरे जीवन क योजनाएँ बनाते रह। म खड़क से पीछे हटा और…
“कौन है वहाँ?” मने झट से यान से अपना खड् ग ख च लया। दरवाज़े क दहलीज़ के पास
ही एक छोट सी परछा खड़ी दखाई द । यह तेज़ी से कह अंधेरे म गुम हो गई और म
अपनी आँख को उस अंधेरे का अ य त करने के लए मच मचाता ही रह गया। म हाथ म
तलवार लहराते ए, उसी कोने क ओर लपका। मेरी पीठ द वार क ओर थी इस लए केवल
आगे से सुर ा दे नी थी। मुझे इस बारे म कोई चता नह थी क मुझ पर पीछे से भी वार हो
सकता था।

“महाराज! ये तो म ँ!”

“कौन हो तुम?”

एक चु पी… य द वह कोई श ु होता तो उसने न त प से बोलते ए, अपनी थ त का


ान न दया होता। म थोड़ा न त हो गया, परंतु पूरी तरह से नह ! मने पैर क आहट सुन
कर कहा, “म तु ह कोई हा न नह प ँचाऊँगा। काश म आओ।” फर मने अपनी आँख
उसी ओर लगा द , जहाँ से मुझे उसके कट होने क याशा थी। एक परछा आगे बढ़
और मेरी कलाई थाम कर, हौले से बोली, “महाराज! मुझे मा कर।” उसने अपने शरीर को
मेरी ठोकर से संभा वत बचाते ए कहा, “मेरा व ास कर, म आपका कोई श ु नह , सेवक
मा ँ।”

फर मने उसे बरामदे क टम टमाती रोशनी के बीच दे खा। यह चेहरा तो कह दे खा आ था,


मानो एक सप – एक फन उठाए खड़ा सप, एक वषैला सप, जो डसने के लए तैयार खड़ा
हो।

“भ !…”

“महाराज! आपक सेवा म तुत ँ।”

“तुमने यहाँ तक आने का ःसाहस कैसे कया?”

“महाराज! मुझे इस धृ ता के लए मा दान कर परंतु पहले मेरी बात सुन ल।”

म वह खड़ा वचार करने लगा क अब मुझे या करना चा हए।

य द मने उसे वह समा त कर दया होता, तो आज इ तहास ही कुछ और होता। ओह


इ तहास… यह हमेशा ही अलग-अलग लोग के लए अलग-अलग ही होता है और अपनी ही
राह चलता है। संभवतः एक दन कुछ भी तो मह व नह रखता। सब कुछ मह वहीन हो
जाता है। आज इस यु े म, जहाँ म र से लथपथ पड़ा, आस मृ यु क पदचाप सुनने
क ती ा कर रहा ँ, मेरा मानना है क मने इ तहास म एक महान अ याय जोड़ा है; कसी
नायक क भाँ त जया; और एक खलनायक क मौत मरा; या फर इसके वपरीत भी कह
सकते ह। परंतु हो सकता है क म केवल इस भ ता के म म ही जी रहा ँ।

एक छोटे से युवराज राम तथा उसके नर वानर के साथ ए इस यु ने, मेरे जीवन को न -
कर दया और वह सब थ हो गया, जो मने आज तक हा सल कया था, यह सब
मानव जा त के इ तहास म ब त ही ु व मह वहीन हो सकता था। म कब से इ तहास क
परवाह करने लगा? इ तहास मुझ से ही ारंभ होता है और मुझ पर ही समा त होता है।
शायद मेरे अंग को नोच-नोच कर खा रहा सयार यह जान कर आ यच कत हो सकता है
क वह इ तहास के ही एक अंग को नगल रहा है। यह सब या मायने रखता है, क मेरे
जैसा नधन , जसने एक साथ स ाट व मूख क भू मका नभाई और कभी-कभी
दोन भू मकाएँ एक साथ भी नभा या नभाना भूल गया; वह इस ू र व नमम भुवन म
या मह व रखता है, जो क उसके अ त व से भी ब त पहले से व मान है और मेरे धरती
म दफ़न हो जाने के बाद भी यूँ ही व मान रहेगा।

परंतु उस समय म यह सब जानने के लए ब त अ पायु था और अब इतना वृ हो चला ँ


क इन बात क परवाह ही नह रही। तो मने उसक बात को यान से सुना। जब वह मुझे
अपने अतीत क गहरी अंधेरी ग लय से, वतमान क ऊबड़-खाबड़ संकरी ग लय तक लाया
तो म सब कुछ सुनता रहा। जब वह रोया तो म उदासीन हो उठा। जब उसने मुझ पर
अ भयोग लगाया क मने लंका पर वजय पाने के बाद, उसे भुला दया था, तो म बुरी तरह
से व मत हो उठा। या वह मेरी योजना नह थी, जो सफल ई थी? इस आदमी का उन
बात से या लेना-दे ना था? परंतु मने उसके लए सहानुभू त भी अनुभव क , जैसे मुझे उस
अभागे प ले पर दया आई थी, जो मेरे सौतेले भाई कुबेर के रथ तले कुचल जाने के बाद,
सारी रात दद के मारे तड़प कर र रयाता रहा था। म इस को अपने पालतू प ले क
तरह रख सकता था ता क ह त को चढ़ा सकूँ। यह वचार तो आनंददायी था। म मु कराया
क मूख भ यही सोचेगा क अंततः मेरे मन म अपने कए पर पछतावा आ ही गया। वह मेरे
पैर पर गर कर, उ ह चूमने लगा।

म बुरी तरह से थक गया था। एक को अपने-आप को इतना गराना य पड़ता है?


मने अपने पैर को पीछे ख च लेना चाहा परंतु इस काम म भी बड़ा ही आनंद आ रहा था।
मने मन ही मन एक स ता क लहर अनुभव क , परंतु अचानक ही उभर आए
अपराधबोध ने उस लहर को कह दबा दया और मने उसे हलाया। म उसके व अपने त
तर कार अनुभव कर रहा था।

“तुम मेरे नजी अनुचर हो। कोई राजसी सहायक या कुछ और नह । बस एक नजी सेवक,
तुम वही करोगे, जो म करने के लए क ँगा।”
“महाराज! म एक ान क तरह आपक सेवा क ँ गा।”

मेरे भीतर एक चटाक क सी आवाज़ ई। या उसने मेरे मन क बात जान ली थी? या वह


मेरे भीतर पल रही अवहेलना को पहचान सका होगा? मेरा पालतू प ला, मेरे हाथ का
खलौना, भ । मने वयं को अपनी ही नज़र म नदनीय व नीचा अनुभव कया। नह , म
उससे एक म क तरह पेश आऊँगा, कसी समक क तरह, हालाँ क पूरी तरह से नह ,
परंतु काफ़ हद तक इस बात को यान म रखूँगा। अपने वामी क तरह, समान अ धकार
रखने वाला एक दास? म तो हँसते-हँसते मर जाता। ‘पर रावण, ज़रा उसका मुख तो दे खो,
उसक कमज़ोर भुजा व मोट त द को दे खो, या वह तु हारे समान है? भ धरती का
कचरा है, वह धरती के उन नकृ तम जीव म से है, नय त ने इन पर राज करने के लए
तु ह भेजा है।’ नह , वह मेरी द र असुर जा त का त न ध है। वह आम लोग और मेरे
बीच सेतु बन सकता है। वह मुझे लोग के वचार से अवगत करवाता रहेगा और म सा ा य
संभाल लूँगा, हाँ सबके लए याय व समृ क भावना के साथ कया गया शासन!

“अब तुम जा सकते हो।” उसने नीचे तक झुक कर णाम कया और क से बाहर नकल
गया।

अब मुझे अपने लए कुछ करने क आव यकता अनुभव हो रही थी। म उन योजना पर


वचार करने लगा, जो मने बीच म ही छोड़ द थ । मने ब त व तार से सब कुछ सोचा और
इसी दौरान शायद मेरी आँख लग गई। अगले दन सुबह, मुझे और मुसीबत का सामना
करना था। मारीच मुझसे कुंभकण के बारे म बात करना चाहते थे।

“कुंभ को या आ? या आप प व मन वाले वभीषण के लए कुछ कहना चाहते ह?”


मने अपने छोटे भाई के त ने हल भाव से पूछा।

“म वभीषण के बारे म कसी और दन बात क ँ गा। आज जो चचा म करना चाहता ,ँ वह


त काल यानाकषण चाहती है। मुझे उस गँवार के बारे म बात करनी है।” मुझे कुंभकण के
बारे म उनक धारणा सुन कर हँसी आ गई। “रावण! ये हँसने क बात नह है। वह बुरी
आदत क जकड़ म है। हम सब जानते ह क युव तयाँ उसक बलता ह। जहाँ तक यह
सब ढका- छपा है, वहाँ तक तो सब ठ क है, हम इस बारे म चता नह करनी चा हए। वह
म दरालय म जाने लगा है। वहाँ वह कसी मदम त हाथी क तरह दे सी म दरा का पान
करता है और कभी क़ मत नह चुकाता।”

“कुछ नह , ब चा थोड़ी मौज़-म ती कर रहा है। कसी को भेज कर, उसका कज़ अदा
करवा द और ये ख़च मेरे नजी खाते म डालने को कह। मेरा मतलब है, हमने लंका पर
आ मण से पूव जो बटोरा था, उसम से जो भी बचा है। म नह चाहता क मेरे भाई क
म दरापान क आदत के लए रा य क ओर से कोई सहायता द जाए।”

“रावण! केवल यही बात नह है। वह नशे क व तु का सेवन भी करने लगा है। उसके
म का एक दल है जो भाँग से नशे क व तुएँ तैयार करते ह। वे सोम पौधे से अवलेह भी
बनाते ह। मुझे लगता है क उ ह ने कुंभ को अपने वश म कर लया है… मने अपने दो े
अ धका रय को उनके पीछे लगाया था ता क पता लग सके क वे करते या ह। उ ह ने वही
बताया जसक मुझे पछले दो दन से आशंका हो रही थी। रावण, वह मूख पूरे दन म
अ धकतर मद व मादक पदाथ के नशे म चूर रहता है।”

“वह ब त ज द कसी को भी अपना म मान लेता है।” परंतु कुंभ तो हमेशा से ही


मै ीपूण वभाव वाला रहा था। मानो एक बड़ा सा ान, जो कसी के हाथ लारे जाने क
ती ा कर रहा हो।

“म नह जानता क उन लोग को म भी कह सकते ह या नह । वे उस मूख क मूखता का


लाभ उठा रहे ह। और मूख इस वषय म जानता तक नह है।”

“तो मामा जी, आप मुझसे या चाहते ह?”

“उसे कोई आ धका रक पद स प दो। उसे करने के लए कोई काम दे दो।”

“म नह चाहता क मुझ पर संबं धय का प लेने का आरोप लगाया जाए।”

“रावण! मूखता से भरी बात मत करो। इस समय भी जतने लोग उ चपद थ ह, उनम से
अ धकतर, तु हारे संबंधी ही तो ह, जैसे म और ह त!”

“ये तो अलग बात है। आपके पास लंबा शास नक अनुभव है और आप एक बार रा य का
संचालन भी कर चुके ह। कुंभ और वभी तो अभी ब चे ह।”

“और तुम चाहते हो क वे हमेशा यूँ ही रह? या तुम नह चाहते क वे भी बड़े हो कर,
अपने पैर पर खड़े ह ? रावण, या तुम अपनी संतान के लए ये पद बचाना चाहते हो?
या तु ह भय है क कह तु हारे भाई ही, तु हारे शासन के लए चुनौती न बन जाएँ?”

“अब आप थ क बात न कर। आप जानते ह क म ऐसा नह ।ँ म हमेशा शासन करने


के भी प म नह ँ। मेरे भी कुछ आदश व स ांत ह…।”

“मेरे बेटे! तुम जस सहासन पर जा बैठे हो, वह ायः उसूल व स ांत को, सहांसना ढ़
स ाट के अनुसार ढालने क मता रखता है।”
“ येक मुझ पर ही यह लांछन य लगा रहा है क मुझे स ा ने कर दया है? भला मेरे
पास कौन सी स ा है? चूँ क इस लए क मेरे पास शासन करने के लए एक रा य है और
उसके आधे से अ धक मुझे मृत दे खना चाहते ह, इसका अथ यह तो नह क मुझे यह
स करना होगा क म वह अधम, नरंकुश व वे छाचारी असुर नह , जैसा वे मुझे बनाना
चाहते ह।” “परंतु मुझे अपने भाइय जैसे मूख के साथ स ा य बाँटनी चा हए?”

“य द तु ह प का यक़ न है क तुम ऐसे नह हो और स ा तु ह नह कर दे गी…।”

“ ह त क तरह बात के ल छे बनाना बंद कर। मने यहाँ आपको एक योजना पर वचार-
वमश के लए बुलवाया है। म आपका परामश चाहता ँ और मेरी इ छा है क कुंभ भी
हमारा साथ दे ।”

जब कुंभ भी आ गया, तो मने उ ह अपनी योजना से अवगत करवाया। वहाँ चार ओर मौन
पसर गया।

“परंतु कल तो तु हारा ववाह है और यह काय जो खम से भरा है।” मने मारीच क गहरी व


सकुड़ी भव दे ख तो पहली बार अपनी योजना बेतुक और सारहीन जान पड़ी। अब तो मुझे
भी उसके सफल होने म संदेह होने लगा था।

“मुझे तो यह ब त पसंद आई। यह तो अ त है।” कुंभ ने पूरे क म ह ला मचा दया।

“तु ह कतने लोग क आव यकता होगी?”

“मामा जी आप, कुंभ, म और भ … और संभवत: एक दजन अ छे तैराक!”

मारीच अपना सर हलाते ए बोले, “बड़ा ही ख़तरे वाला काम है और जहाँ तक भ का


है, हम उस पर कतना भरोसा कर सकते ह?”

“हमारे पास कोई और चुनाव भी तो नह है।” मने कहा

“म इससे सहमत नह हो सकता।” मारीच ने कहा और वे दोन बाहर चले गए।

यह योजना कोरी मूखता ही तो थी। कुछ गनती के जहाज़ के साथ, मु भर सै नक का


साथ, मूखता क पराका ा ही तो था। और अब म कोई भावी सै नक तो नह रहा था। एक
राजा को इतना अ वचारी होना शोभा नह दे ता। मने क पना क क जब ह त को पता
चलेगा क महाराज, आधी रात के घने अंधकार म, अ श त सपा हय क एक छोट
टु कड़ी के साथ, व के सबसे भयंकर समु द यु का सामना करने के लए चले गए ह, तो
उसका चेहरा कैसा दखेगा! यही सोच कर मेरे चेहरे पर मु कान खेल गई। केवल ह त को
ही नीचा दखाने के उ े य से यह आ मघाती योजना बुरी नह थी।

मने समु द यु के जहाज़ी बेड़े को दे खा। वहाँ आमोद- मोद समा त हो चुका था और
जहाज़ क ब याँ बुझा द ग थ । मने उ मीद क क सभी समु द यु म दरा के नशे म
चूर हो कर, धे मुँह पड़े ह गे। मुझे इस बात का प का पता नह था क द यु राजा व ण,
उनम से कस जहाज़ म हो सकता था। यह सबसे बड़ा कारक ही अभी मेरे लए एक रह य
बना आ था। मेरा शासन इसी पर नभर करता था। म जानता था क इस काम म ब त
ख़तरा था और अगर म समु द यु के हाथ पकड़ा जाता, तो लंका के ार उसके लूटमार
करने वाले झुँड के लए पूरी तरह से खुल जाते। म भी भयभीत था। यह एक ऐसा भय था,
जो शरीर को सु कर दे ता है, मानो शरीर को प ाघात हो गया हो। जो असहाय आ माएँ,
उस द यु राज के हाथ पड़ जाती थ , उनको वह कतनी भयंकर यातनाएँ दे ता था, ये क से
तो अब पौरा णक कथा क तरह कहे जाते थे। उसका भयंकर, कठोर व न ु र आचरण
उसे दे व के समक ले आया था। मने अपने दे शवा सय तथा सगे-संबं धय के त अपने
कत भाव को याद करते ए, इस भय पर काबू पाने का य न कया।

म अपने पीछे खाँसने का वर सुन कर ठठक गया। मुड़ कर दे खा तो भ का घृणा पद


चेहरा दखाई दया।

“महाराज! आपक जा, आपक सेवा म तुत है।” इस ाणी स हत बीस , मेरे एक
आदे श पर अपने ाण क आ त दे ने के लए तैयार खड़े थे। परंतु म वैसा अनुभव य
नह कर पा रहा था, जैसा क कसी यु म सेना का नेतृ व करते समय महसूस कया करता
था?

म उ त म तक के साथ, कंध को तानने का यास करते ए, मौन भाव से अपने क से


बाहर आ गया। मने पूरे आ म व ास के साथ चलने का य न कया और पुराने युग के
यो ा का अनुकरण करने क चे ा क । या वे सब भी मेरी भाँ त भयभीत थे?

च ान से टकराती लहर क गजना ने मुझे, मायूस कर दे ने वाले इस भीतरी वर क लोरी से


जगा दया। भ तथा सरे मज़बूत से दख रहे ने तीन ड गयाँ ख च कर पानी म
उतार द । एक-एक कर, वे सभी कमर तक पानी म उतरे और नाव म जा बैठे। म वह
तं भत सा खड़ा, हरहराते सागर और वहाँ हमारे लए ती ारत् खड़ी मृ यु को एकटक दे ख
रहा था। व ण के जहाज़ ने कनारे के समीप ही लंगर डाला था, य प अब भी ऐसा ही
जान पड़ता था क वे तज के छोर को छू रहे ह । मने जैसे ही लहर म क़दम रखा, उसी
समय पानी म डू ब गया। लहर मुझे फर से कनारे पर ख च लाई। म लड़खड़ा कर उठा और
अपश द कहते ए, नाव क ओर बढ़ा। मने अपने सपा हय के काले चेहर पर बखरी
मु कान को अनदे खा करने का नणय लया और पहली नाव म कूद गया। ज द ही हमारा
कारवाँ मं ज़ल क ओर रवाना हो गया। कह र से तूफ़ान के वर सुनाई दे रहे थे। गहरे
तज पर, द यु राज के जहाज़ पर पड़ी बजली क चमक र से दखाई दे रही थी। सागर
भयानक हो चला था। हमारी दो नाव पीछे छू ट ग पर वे साथ आने क पूरी को शश म थे।
ज द ही उनका प र म रंग लाया और हम जहाज़ी बेड़ के पास प ँच गए।

गरजते पानी और आकाश को एक और व ुत करण का शत कर गई। मने अपने


क टव के अ त र बाक व उतारे और हमशीतल जल म छलाँग लगा द । उस समय
तलवार मेरे मुँह म दबी थी। फर म उन जहाज़ क ओर तैरने लगा। म अपने पीछे आ रहे
सपा हय के तैरने के वर भी सुन सकता था। ये जहाज़ हरहराते सागर म हलोर ले रहे थे
और मेरे लए उनके नकट रहना असंभव हो गया। म अपने अनुमान से उस जहाज़ क ओर
बढ़ा, जसम व ण हो सकता था। यह संकेत पाते ही, दो सपाही जहाज़ पर चढ़ गए। उ ह
अपना काय करते दे खना भी एक अ त य था य क वे लकड़ी के त त पर पकड़
बनाने के लए वशेष कार के पंज का योग कर रहे थे। वे छपक लय क तरह तेज़ी से
सरसराते ए, जहाज़ पर जा चढ़े । परंतु इससे पूव क दो र सयाँ दखाई दे त , ऐसा जान
पड़ा मानो इस घटना को घटते ए वष हो गए ह ।

मने छलाँग लगाई और उनम से एक र सी को थाम कर ऊपर चढ़ने लगा। भ सरी र सी


क मदद से मेरे पीछे आने लगा। इसके बाद, शी तापूवक सरे सै नक भी आने लगे। म ही
जहाज़ पर सबसे पहले प ँचा और जो य दखा, वह मेरे दय को आंदो लत करने के लए
पया त था। हमसे पहले जो दो जहाज़ पर चढ़े थे, उनके शव वह पड़े दखाई दए। म
च लाया, “यहाँ से हटो। यह श ु प का बछाया जाल है।”

तेज़ वषा होने लगी और जहाज़ सागर क उ ाल तरंग म हचकोले खाने लगा। मेरे कुछ
सै नक पानी म जा पड़े परंतु कुछ मेरे साथ जहाज़ के छत वाले ह से म उप थत थे। वहाँ
हरहराती हवा के शोर के सवा चार ओर स ाटा पसरा आ था। हम वहाँ अपनी तलवार
थामे खड़े रहे। यह सब कतना हा या पद था। हम वहाँ पानी से पूरी तरह भीगे ए व
अधनँगे खड़े, अपनी आस मृ यु क ती ा कर रहे थे। वषा ने र के क़तर व बूँद को
धो-प छ कर बहा दया था। इसके साथ ही मेरे झूठे साहस क भी ध जयाँ उड़ गई थ । ‘हे
ई र! यह मने या कर दया था?’

फर अंधकार को चीरते ए पैशा चक हँसी के वर सुनाई दए। आकाश म बजली चमक


और उसी णांश म मने दे खा क हम भारी ह थयार से लैस द यु से घर चुके थे। हम
गंभीर प से सं या म ब त कम थे और वहाँ से बच कर नकलने क संभावना न के बराबर
थी। मने अपनी ढ़ संक पश का आ य लेते ए, अपनी तलवार घुमाई और एक
भयभीत से दख रहे द यु क अंत डय से पार कर द । यह दे ख कर मेरे दल म भी उ साह
का संचार आ और तूफ़ान म हचकोले खा रही छत पर भीषण सं ाम होने लगा। म भी पूरी
नममता से यु रत था और इस बात के लए आ य हो रहा था क आ ख़र मेरा भय कहाँ
गया? म पूरे दल से लड़ा और यह तक मरण नह क उस दन मने कतने लोग को यम के
ार प ँचाया होगा। जहाज़ क लकड़ी क छत पर र से लथपथ होने के कारण फसलन
से भर गई थी और साथ ही वहाँ फैली र सय से ख़तरा और भी बढ़ गया था। मुझे तीन घाव
लगे जनसे नरंतर पूरे वेग से र बह रहा था परंतु उस समय वह मेरी चता का वषय न
था। मुझे धीरे-धीरे अनुभव आ क अब हम जहाज़ पर अपना क ज़ा जमा सकते थे। हम
यह दे ख कर नराशा ई क सरे जहाज़ भी हमारे नकट आ गए थे। द यु सागर क लहर
के बीच बेधड़क छलाँग लगा रहे थे और द वान क तरह तैरते ए, हमारे जहाज़ क ओर
बढ़ रहे थे। य द वे वहाँ प ँच जाते तो पासा पलटने का पूरा डर था।

आ ख़र वह दोगला व ण कहाँ था? काश! म उससे दो-दो हाथ कर पाता। सरे जहाज़ से
आए द यु हमारे जहाज़ क छत पर चढ़ने का यास करने लगे। मने उनम से एक को ठोकर
मारी और लहराते सागर म गरते दे खा। संभवतः व ण नचले क म था। मने एक ठोकर
मार कर दरवाज़ा खोला और सी ढ़य से ऊपर जाते ए, नचले क म छलाँग लगा द । वह
अलंकृत ार बंद था तथा उसक दरार से छन कर काश क करण बाहर आ रही थी।
जहाज़ क मुड़ी ई द वार पर भू तया साए लहरा रहे थे। छत पर हो रहे यु के ह के वर
यहाँ तक सुनाई दे रहे थे परंतु या व ण भीतर था? मने ार को ठोकर मार कर खोला और
अपनी तलवार लहरा द । वह क तो खाली था। मने अपनी तलवार को रेशमी पद के बीच
घुमाया।

मने फ़श पर लेट कर दे खा क कह वह कायर ब तर के नीचे तो नह छपा था। तभी


अचानक एक हमशीतल इ पात क धार, मेरी गदन के नचले ह से से टकराई। “तो असुर
स ाट, इस नधन मछु आरे के क म राजसी अ त थ बन कर पधारे ह। महाराज! म तो ध य
हो गया।”

मने उस द यु-राज का चेहरा दे खने क चे ा क जससे म इतनी घृणा करता था परंतु उसने
अपने लकड़ी के जूत से मेरे मुख पर ठोकर दे मारी। मेरी ना सका से र का फ वारा बह
नकला और वहाँ फ़श पर जमा होने लगा। मेरा भय वा पस लौट आया था। म तो जाल म
फँस चुका था! या मेरा यही अंत था? म अपनी कुंठा तथा ोध के कारण यु करने लगा
परंतु लगभग चालीस वष य व ण ने बड़ी ही सरलता से मेरे सभी घात तथा तघात को
नर त कर दया। मेरी लगभग बीस वष य ऊजा तथा जवानी का उस आ म व ास से
भरपूर अनुभवी के स मुख कोई मोल न था।

“द यु व ण! वह थम जाओ अ यथा अपने सर के टु कड़े करवाने के लए तैयार रहो।”


मने मुड़ कर दे खा तो आ य क सीमा न रही। वेश ार पर दो धनुधारी उप थत थे। मुझे
अपने मामा मारीच तथा भाई कुंभकण को पहचानने म कुछ ण का समय लगा। उ ह ने
अपने धनुष व ण क ओर तान दए और उस दन मने व ण को पहली बार अपना संयम
खोते दे खा। इससे पूव क म कोई त या दे सकता, उसने क के खुले वातायन से सागर
म छलाँग लगाने क चे ा क । मने उसे टाँग से धर-पकड़ा और वह फ़श पर धे मुँह जा
गरा। इससे पहले क व ण मुझे कोई हा न प ँचाता, म और कुंभकण दोन उस पर चढ़ बैठे
और उसे दबोच कर, उसके दोन हाथ उन रेशमी पद से बाँध दए, ज ह मारीच ने फाड़ कर
हम स प दया था।

“आप लोग अचानक ब कुल सही व पर यहाँ कैसे आ प ँच?


े ” म वयं को इस परीकथा
सरीखे कथानक पर व ास करने के लए राजी नह कर पा रहा था, जहाँ अचानक ही
मु दाता नायक आकर संकट से उबार लेते ह।

मारीच क ास उखड़ी जा रही थी परंतु वे अपनी बात कहने से पीछे नह हटे । “जब आज
ातःकाल तुमने हमारे साथ इस योजना पर चचा क तो म नरंतर इसी बारे म वचार करता
रहा। मने इसके वषय म जतना वचार कया, यह योजना उतनी ही वचारहीन व
मूखतापूण जान पड़ी। म तु हारे क म तु ह सावधान करने आया था क भूल कर भी ऐसी
थ क योजना को फलीभूत करने का य न मत करना पर तुम वहाँ से ओझल हो चुके थे।
तुम कहाँ जा सकते हो, इस बात का अनुमान लगाने के लए ह त जतना बु मान होने
क कोई आव यकता नह है। न त प से तुम दे र रात क सैर पर तो नह नकले थे। मने
इस कमअ ल को जगाया, फर कसी बौराए कु े क तरह भागा और यु का बगुल बजा
दया। म केवल कुछ सौ सै नक को ही एक कर सका। उनम से आधे तो म दरा के नशे म
धु थे। ये असुर भी बस…। फर हम तेज़ी से च पू चलाते ए, उस तमाशे को दे खने आ
प ँच,े जो तुम आधी रात को समु क छाती पर खेल रहे थे।”

“ या हमने अपने कुछ खो दए?”

“ मा करना, परंतु मुझे लगता है क तु हारा य भ अ य छह य स हत सागर क


लहर म कह खो गया है। मुख सेनाप त वाय त ने उसे पानी म गरते दे खा और उसके
बाद से उसका कोई समाचार नह है।”

“ ाता ी! हम इस समु द यु का या करगे?”

“इसके हाथ-पाँव बाँध कर समु म फक दो – एक समु द यु के लए इससे अ छा अंत हो


भी या सकता है।” मारीच एक ण के लए भी हच कचाए बना बोले।

“इससे तो इसके ाण स ते म ही छू ट जाएँग।े नह , जरा ठहरो। इसे लंका ले चलते ह। कल


इसे लंगोट म, लंका क सड़क पर घसीटा जाएगा।” म ब त उ सा हत हो रहा था।

मारीच मुझे घूरते रहे। फर कुछ ण सोचने के बाद बोले, “य द तुम समु द युराज को
सागर माता के ही हवाले कर दे ते तो बेहतर होता।”

मने उनके परामश को उपे त कर दया, परंतु य द म अपने जीवन के उस अ याय को पुनः
लख सकता, तो संभवतः उसी एक ण से आरंभ करता और मारीच व कुंभ से कहता क
वे व ण को उठा कर पानी म धकेलने म मेरी सहायता कर।
14 ववाह का शुभ मु त

रावण
हमारे लंका प ँचने से पूव ही यह समाचार कसी दावानल क भाँ त पूरी लंका म सा रत हो
गया था क लंका के महान श शाली राजा ने द यु स ाट व ण को पकड़ लया था।
समु द यु के क टव तार-तार कर दए गए, उन पर क चड़ व धूल फक गई, उन पर
थूका गया, उ ह नदयता से पीटा गया और फर उ ह उनके परा जत राजा का अनुकरण
करते ए, वीभ स जुलूस म चलने के लए ववश कया गया। सड़क पर हज़ार क सं या
म खड़े लोग, इस वजय का उ लास-पव मना रहे थे।

म तो वहाँ एक ऐसा नायक-स ाट बन बैठा था, जसने लंका को उस भीषण व दात


द युराज के पंज से मु दलवाई थी। मेरा दय अ भमान से दोगुना हो गया। मने व ण के
मुख पर एक करारा वार कया और उसके नाक से र क धारा बह नकली। ओह! कतना
अ छा लगा। मने उसे फर से मारा और तलवार उठा ली। भीड़ च लाने लगी, “रावण अमर
रह! हमारे असुर स ाट अमर रह।” कुछ नधन आ माएँ आगे आ और मेरे क़दम म गर
ग । मेरे सपा हय म से एक ने उसे ठोकर मारी तो भीड़ ठहाके लगाने लगी। मेरे समीप
खड़ा कोई कारते ए ‘ छः- छः’ करने लगा। मने भीड़ को घूरा और सभी सहम कर
शांत हो गए। म उनके भीतर बसे भय को भाँप सकता था। ये वही लोग थे जो बवाल मचा
कर, मुझे सहासन से युत कर दे ना चाहते थे और अब मुझसे भयभीत थे। सफलता भी
कतनी मधुर हो सकती है। लोग मुझे दे ख कर झुक गए।

मने पीछे मुड़ कर दे खा, तो च लाने और ठहाके लगाने वाले सपाही भी अचानक शांत हो
गए, मने उ ह घूरा तो उन लोग ने भी अपने सर झुका लए। मने कुंभ को दे खा तो वह मेरी
ओर दे ख कर मु कराने लगा। मने उसक मु कराहट का यु र तो नह दया परंतु अचानक
मेरी मारीच क से जा टकराई। उ ह ने बड़ी उदासीनता से अपनी गदन हलाई।
‘उ ह ने मुझे झुक कर णाम य नह कया?’ म भीतर ही भीतर खौलने लगा। र से सने
चेहरे वाले व ण से नज़र मल तो वह मुझे दे ख कर दानवी हँसी हँसा। म उसक उस हँसी से
भयभीत हो उठा परंतु उससे भी कह अ धक म वयं से भयभीत था, ‘म कस तरह का
रा स बन रहा था? म अपनी ही जा से इस तरह वहार य कर रहा था? जब मारीच ने
मुझे आदर-मान नह दया तो मुझे उन पर ोध य आया?’ म चाहता था क दौड़ कर उ ह
अपने आ लगन म बाँध लूँ और उनसे मायाचना क ँ परंतु जाने कसी चीज़ ने मेरे क़दम
रोक लए। मने अपनी ग त बढ़ाई और महल के वेश ार से भीतर चला गया।

व तृत ांगण के सरे छोर पर खड़ा ह त, मेरी ती ा कर रहा था। उसके माथे पर
सलवट थ और चेहरे पर ह का सा रोष भी झलक रहा था। म ह त के आसपास नृ य
करते ए झूमना चाहता था। यह मूख मुझे नरंतर सावधान रहने क सलाह दे ता आ रहा था।
उसक सलाह उसे और उसके त दयल असुर को ही मुबारक ह । जब म उसके समीप
प ँचा, तो अपनी चाल धीमी कर, उसक आँख म झाँका।

“महाराज दरबार लग गया है।” ारपाल अपने पूरे ज़ोर के साथ च लाया। मुझे यह वर
सुन कर स ता ही ई और म उसके पास से नकल गया, ह त और सरे दरबारी मुझ पर
कस कार के क बौछार करने वाले थे और मुझे उनके या उ र दे ने चा हए, यही
वचार करते-करते म दरबार म प ँच गया।

“महाराज!” मने ल य कया क ह त का वर थोड़ा मंद था। “हम आपसे समु द युराज
व ण के वषय म कोई नणय करने क ाथना करते ह… आपको इस बारे म कोई नणय
करना होगा।”

“ धान मं ी आपक इस वषय म या राय है?” मुझे पूरा व ास था क वह यही परामश


दे गा क समु लुटेरे को पूरे आदर-मान के साथ, शाही दावत दे कर वा पस भेज दे ना चा हए
और अनेक उपहार भी दए जाने चा हए। वह मुझे ऐसे कुछ असुर स ाट के क से सुनाता,
जो संभवतः कुछ हज़ार वष पूव ए भी थे या नह ए थे, जो क अपने बं दय के साथ
ब त ही आदरपूण वहार कया करते थे। म जानना चा ँगा क अपने कै दय के साथ
इतना शालीन व उदारतापूण वहार करने वाले उस अ त असुरराज के साथ या आ
होगा, संभवतः कुछ ही वष म वे छोड़े गए क़ैद और अ धक दल-बल स हत आए ह गे और
उसे व जत कर बंद बना लया होगा, और उसक उदारता व य धम के वषय म त नक
भी वचार कए बना, अमानवीय द ड दे दया होगा परंतु इ तहास से तो कोई भी सबक
नह लेता।

ह त ने अपनी बात रखी, “महाराज! हमारा यह मानना है क समु द युराज को द ड


दया जाना चा हए। वह इतना ख़तरनाक है क उसे यूँ ही छोड़ा नह जा सकता और वह हम
ज़रा सा भी बल पाते ही, पुनः हम अपने वश म करना चाहेगा। नी त के अनुसार उसे कठोर
से कठोर द ड दया जाना चा हए ता क रा य व प रषद के अ य श ु को भी इससे सबक
मल सके… वे जान ल क…। हम सभी मं य का मत यही है क उसे दं डत कया जाना
चा हए।”

म तो दं ग रह गया। यह तो पूरी तरह से अनपे त था। नःसंदेह म क ठनाई म था। य द म


उसे छोड़ दे ता तो ऐसा लगता क म अपने भाई वभीषण क बात का मान रख रहा था और
य द म उसे दं डत करता तो ऐसा लगता क म अपने मं य के हाथ का खलौना था, उनके
नयं ण म था। ओह! ये सब या मुसीबत है!
ह त क तीखी व भेदती नगाह मुझे भेद रही थ मानो मुझे उसके व जाने क चुनौती
दे रही ह । द युराज वहाँ शांत भाव से, अडोल खड़ा था। उसके भावहीन चेहरे पर कोई भाव
प रल त नह थे। मने मन ही मन उसके इस उदासीन रवैए के लए उसे सराहा।

“म उसे कोई द ड नह दे ने जा रहा।” क क बुदबुदाहट एकदम शांत हो गई। कुछ ण


क ममातक चु पी के बाद, मेरे सभी मं ी एक-एक कर खड़े हो गए। “मुझे लगता है क मुझे
आप लोग को इस वषय म व तार से बताना चा हए। मेरा यह अ भ ाय कतई नह है क
इस द यु को मु कर दया जाए। मने आदे श दे दया है क इसके सभी जहाज़ी बेड़ को
बंद बना कर राजसी नौसेना म शा मल कर लया जाए। द यु को पूण प से सै य
श ण दे ने के प ात नौसेना म ही रख लया जाए। और जहाँ तक द यु-राज का
है…।” म व ण क ओर बढ़ा। वह मुझसे केवल आधे क़दम क री पर खड़ा था। मने उसे
घूरा और भचे दाँत के साथ कहा, “म इसे सड़क पर घसीटने वाला ,ँ इसका सर आधा
मूँड दो और फर गधे क पीठ पर बैठा कर पूरे नगर म च कर लगवाओ। फर म एक सूअर
से द यु-राज का ववाह रचाऊँगा। यह सब शाही कोष से य कया जाएगा, रा य क ओर
से ायो जत ववाह। यह मेरे ही ववाह के साथ संप होगा।”

व ण के होठ पर एक तरछ मु कान खेल गई। उसने मेरी तीखी नज़र से नज़र मलाते ए
कहा, “तो वह दन आ प ँचा, जब सभी सूअर ववाह बंधन म बँधगे।”

मं य क हँसी पघलते लावे क तरह मेरे कान से उतरती चली गई और मने व ण के मुख
पर ठोकर दे मारी। फर म भी उसके इस उपहास म शा मल हो गया और ठहाके लगाने
लगा। केवल ह त ही शांत रहा, उसके अ भजातीय चेहरे पर हँसी क एक भी रेखा नह
दखी।

“महाराज! य द आप इस बंद को फाँसी क सज़ा नह दगे तो म आपसे वनती क ँ गा क


इसे आजीवन काल कोठरी म बंद कर दया जाए तथा सावज नक प से इसे और
अपमा नत न कया जाए।”

“म वही क ँ गा जो मेरा जी चाहेगा। तुमने अपना मत दे दया है। अब अपना परामश अपने
पास रखो।” मने ह त को मुँहतोड़ उ र दया और यह बात यह समा त हो गई। या फर
शायद ऐसा मुझे लगा था। म अपने मं य स हत सभा से बाहर आ गया, जब क व ण को
धकेल कर ले जाया गया ता क उसका आधा सर मूँडा जा सके और सरी यं णाएँ व
ताड़ना द जा सक।

चार दन बाद, शु वार को ववाह का शुभ मु त नकला था। म गत प से सभी


बंध दे ख रहा था। नह -नह , म अपने ववाह के लए नह ब क द यु राज को द जाने
वाली यथासंभव ताड़ना तथा अपमान से जुड़े बंध क दे ख-रेख कर रहा था। म उस
के साहस क शंसा कए बना नह रह सका। उसने एक भी श द मुख से उ चा रत
कए बना, सब कुछ धीरज के साथ सहन कया। व ण ने मुझे दे खा तो र रं जत होठ के
साथ, टू टे दाँत दखाते ए मु कान द । मने उसे मारने के लए अपना हाथ उठा लया, पर
उसक आँख म दे खते ही मेरा हाथ वह का वह थम गया। म भी कैसा उ था?

तभी मने दे खा क मेरे पता वहाँ एक वशाल कुस पर वराज चुके थे। मेरी माँ फ़श पर बैठ
उनके पैर क मा लश कर रही थ । मेरा भाई वभीषण भी बड़े ही आदर से उनके नकट
खड़ा था। ह त के अ त र मेरे सभी मं ी वह उप थत थे और इस तरह वनयपूवक खड़े
थे मानो कसी अ त थ स ाट के त अ भवादन कर रहे ह । शूपणखा अपने पता को
भा वत करने क पूरी चे ा कर रही थी, जब क वे उसक बात पर यान तक नह दे रहे थे।

“गव ले पता तथा महान उपल धकता क भट। आह! कैसा नाटक य य था।” कुंभकण
वह खड़ा खीस नपोर रहा था।

“तो तुमने वशाल पुन मलन समारोह म ह सा नह लया?” म चाह कर भी अपने ोध को


वश म नह रख सका।

“मने यही नणय लया क उसम भाग न ही लू।ँ शायद म पा रवा रक गान क पं याँ भी
भूल गया ।ँ ” अब कुंभ ज़ोर-ज़ोर से हँस रहा था। उसके मुख से आती दे सी दा क गंध
मेरे नथुन से कसी व फोटक पदाथ क तरह टकराई।

मने उसे तर कार भरी से दे खा। वह भ ा, मोटा तथा अ य धक म दरापान के कारण


त दयु होने क वजह से, कोई बीस वष य युवक नह ब क चालीस वष य अधेड़ दखता
था। म उस पर ज़ोर से च लाया, “तुमने इस तरह शराब पी कर यहाँ आने का साहस कैसे
कया?” मने उसे बाल से पकड़ा और सर को द वार पर दे मारा। “तुम नाकारा… नीच।” म
उसके सर को लगातार द वार पर पटकता रहा और वह खुद को बचाने के असफल यास
म लगा रहा।

यह हलचल सुन कर पा रवा रक पुन मलन समारोह भंग हो गया और वे सभी मेरे क म
दौड़े चले आए। कुंभ खाद के ढे र क तरह वह फ़श पर गरा पड़ा था। उसक नाक से र
टपक रहा था और वह पीड़ा से कराह रहा था। मारीच ने मुझे थाम लया और शूपणखा र
दे ख कर च लाने लगी। चटाक! मेरे कान जलने लगे और मने आ य से दे खा क माँ ने मुझे
तमाचा रसीद करते समय, मेरे कान के कुंडल से अपना हाथ काट लया था। उ ह ने मेरे
मं य , मेरे अनुचर के सामने – मुझ पर हाथ उठाया था और अब यह घटना कसी दावानल
क तरह पूरे दे श म फैलने वाली थी – एक राजा जो अपनी माँ के प लू के साए म जीता है।
एक राजा, जससे उसक माँ एक नादान बालक क तरह पेश आती है।

मने मारीच को पीछे धकेल दया और कन खय से दे खा तो पाया क उनका सर फ़श से जा


टकराया था। भला मुझे या परवाह पड़ी थी! मने अपनी माँ को बाल से पकड़ा और
घसीटते ए क से बाहर ले गया। ह त वह माग म अपनी पीठ के पीछे हाथ बाँधे खड़ा
था, उसे दे खते ही मानो म वह जड़ हो गया। माँ के बाल पर पकड़ ह क ई तो वे वयं ही
उठ बैठ । म जो अपराध कर बैठा था, अब उसका आतंक मुझ पर बजली क तरह टू टा। म
बुरी तरह से दहला आ था पर मन के कसी कोने म संतु व स भी था।

“महाराज! क़ैद अपना द ड पाने के लए तुत है।” उसने ह का सा झुकते ए कहा।


कुछ ण के लए तो जैसे मुझे कुछ सूझा ही नह । क़ैद , कौन सा क़ैद ? ऐसा जान पड़ता
था क व ण का वह संग मृ युशै या तक मेरे संग रहने वाला था।

“पहले तुम मेरा नबटारा करो। म तु हारी पहली बं दनी ँ।” माँ पीछे से च लाई। “मेरे बाल
उतरवा दो और नव कर, गधे पर बैठा कर, पूरे नगर म घुमवाओ। तुम क य गए?
नीच अधम! बोलो।”

मने मारे शम के अपना सर झुका लया। अब मेरी माँ क चीख़- च लाहट कसी वातो माद
क सुब कय म बदल चुक थी। मेरे हाथ काँप रहे थे। म कसी क भी नज़र का सामना
नह कर सकता था। कसी ने मेरे कंध पर अपना हाथ रखा। “कैकसी! यह ब कुल नह
बदला। मुझे तो यह कहने म भी ल जा आती है क यह मेरा पु है। सोचा तो था इस अवसर
म शा मल हो कर इसक शोभा बढ़ाऊँगा। म अपने व ान म को भी साथ लाया था ता क
इस रा स का ववाह रचा सक और इस शैतान ने अपनी माँ पर हाथ उठाया और मेरे म
के ही स मुख अपने भाई को मार-मार कर लगभग अधमरा ही कर दया!”

मेरी नस म खून खौलने लगा। मने बरामदे के कठघरे को ज़ोर से जकड़ लया। जब हम
भूख से तड़प रहे थे तब ये तथाक थत ा ण महाशय कहाँ थे? तब ये कहाँ थे, जब मेरी माँ
भोजन व व के लए भ ा माँग रही थी? तब ये कहाँ थे, जब हम मानसूनी तूफ़ानी
हवा म झूमती उस जीण-शीण कु टया के बीच अकेले जूझने के लए छोड़ दया गया था?

“मुझे सारा दोष इसे ही नह दे ना चा हए। चाहे जो भी हो, यह है तो एक असुर ही न! एक


और अ धक अ भशा पत जा त, जसे मुझे अभी दे खना है। छलकपट, भचार, घृणा;
आप कसी भी अवगुण का नाम ल, यह राचारी जा त बड़ी सरलता से उस पर अपना
एका धकार होने का दावा जता सकती है। अ ेत, भ े व बदसूरत ाणी…।”

म ब कुल तन कर खड़ा आ और पूरी नीचता के साथ अपने पता क ओर बढ़ा। वे


भयभीत हो कर सकुड़ने लगे। म उनसे लगभग दो फ़ट क री पर जा खड़ा आ। ोध तो
इतना आ रहा था क एक ही चोट म उनका ाणांत कर ँ परंतु म अब भी अपने उस
अपराध से ल जत था, जो मने अपनी माँ के त कया था। माँ समझ ग क इन ण म
कुछ भी हो सकता था इस लए वे हम दोन के बीच आ खड़ी । उ ह ने मेरी छाती पर हाथ
रखे और मुझे पीछे धकेल दया। मने उनके चेहरे क ओर दे खा और एक बार फर उ ह चोट
प ँचाने के अपराधबोध से ल जत हो उठा।

मेरी माँ बोल , “म जा रही ।ँ तु हारे पता, दोन भाई, बहन और म, आज के बाद कभी
तु हारे घर म क़दम नह रखगे। हम तुमसे दोबारा मलना ही नह चाहते। और जब हम मर
तो हमारी मृ यु का शोक मनाने भी मत आना। स ा ने तु ह रा स बना दया है। तु ह…
तु ह… कभी शां त नह मलेगी…।”

म लड़खड़ा कर पीछे हटा और कमरे के कोने म बने तंभ को कस कर पकड़ लया ता क


कह फ़श पर गर कर ढे र ही न हो जाऊँ। मने दे खा क माँ ने शूपणखा का हाथ कस कर
थाम लया था। जब माँ उसे बाहर क ओर ले जाने लग तो वह सुब कयाँ भर रही थी। मेरी
बहन ने मेरे चेहरे को दे खा तो उसे मेरे गाल से बहते अ ु क धारा दखाई द । उसने हौले
से, कोमलता के साथ वयं को माँ क पकड़ से मु कया। म अपने माँ के चेहरे पर छाए
सदमे को दे ख सकता था। माँ कुंभ क ओर बढ़ , जो ज़मीन पर पसरा आ था। वह बेसुध
हो चुका था।

“कुंभकण, कुंभ उठो! उठो पु !” परंतु माँ क सारी चीख़-पुकार भी कुंभ को उसक न द से
नह जगा सक । वह उठता भी कैसे, वह तो मद के नशे म चूर हो कर सोया था। म लगभग
मु कराया। “रावण! तूने इसका वध कर दया है। तुमने अपने ही भाई को मौत के घाट उतार
दया है। अपने ही छोटे भाई के ाण ले लए ह।”

अब तो यह नाटक य य और भी शखर पर आ प ँचा था। “माँ, वह मरा नह है। तु हारा


पु मद के नशे म चूर है। तुम अपने ेत व सुदशन प त से आ ह कर सकती हो क वह उसे
अपने कंध पर उठा कर ले जाएं।” म यह क पना कर ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा क जब वह
मोटा जड़बु अपने वशालकाय पु को कंध पर लादे ले जाएगा तो कैसा दे खने
यो य य होगा।

“ वभीषण! या तुम इस महान व भलेमानस दे व व व ान ा ण के साथ जाना चाहोगे?”


मने अपने छोटे भाई वभीषण क ओर बढ़ते ए पूछा।

“नह , नह … नह भैया! मेरा मतलब है…।” वभीषण बुरी तरह से हकलाने लगा। म उसके
इतना नकट चला गया था क उसके म तक पर मली प व भ म क गंध भी सूँघ सकता
था। वह वेद से लथपथ था।
मेरे पता न त प से कोई अ भशाप दे ना चाहते थे परंतु उसके भय से उ ह ने अपना मुँह
तक नह खोला। माँ ने बची-खुची मयादा समेट कर, प त का हाथ अपने काँपते हाथ म
थामा और अपने नाटक य अंदाज़ म घोषणा क , “म भले ही ाण याग ँ गी परंतु इस नक
म कभी क़दम नह रखूँगी। म तु ह और तु हारे भाई-बहन को अपनी मृ यु के शोक से भी
वं चत करती ।ँ तुम मेरा मरा मुँह तक नह दे ख पाओगे। तु ह अपने माता- पता के त
कए गए इस अपमान का बदला चुकाना होगा। म नह जानती क यह सब इसी संसार म
होगा या अगले ज म म, परंतु न त प से तु ह इसका बदला चुकाना ही होगा।”

वह मेरे महल से बाहर नकल ग और उनके साथ ही पता भी बाहर चले गए। क के एक
कोने से दबी सुब कय का वर सुनाई दे रहा था, मने दे खा क मेरी य बहन, दोन हाथ म
चेहरा थामे, सुब कयाँ भर-भर कर रो रही थी। वभीषण बड़े ही अटपटे तरीक़े से पास खड़ा
सब दे ख रहा था। म बहन के पास गया और उसके कंधे पर हाथ रख दया, वह मेरे व थल
से लपट कर ज़ार-ज़ार रोने लगी। उसने मुझे कस कर जकड़ रखा था। या म एक भाई के
प म असफल रहा? या मने उसके त कोई अ याय कया था? अचानक ही मेरे भीतर
से एक ही वर बार-बार उठने लगा। ‘मेरी य, य बहन, मने तुमसे या छ न लया है?’

अचानक ही मेरे भीतर स ता का एक छोटा सा बुलबुला उठा और वह धीरे-धीरे बड़ा, और


बड़ा आकार लेने लगा और फर वह मेरे पूरे दय म घर कर गया। अंततः मु मल ही गई!
अब म अपनी माँ पी प ी के संर क पंख क क़ैद से मु था। अब मुझे भला कौन रोक
सकता था? आने वाले दन म, म बार-बार नए से नए सपने दे खूँगा। मने अपनी युवाव था
के उ लास को पा लया था। जब तक म वशाल तर पर व दे खता र ँगा, तब तक
उ लास का यह पव भी समा त नह होगा। और मेरे व ही मेरी कहानी बन गए।
15 ां तकारी


“ या वह जी वत रहेगा?” मेरे कान को एक गहरा वर सुनाई दया।

“आशा तो कर ही सकते ह।” कसी ैण वर ने कहा और एक ही झटके म मुझे सब कुछ


मरण हो आया – माला! माला! मेरी उपप नी, मेरी चर व मृत या। मने उठ कर बैठना
चाहा परंतु उसने मुझे पीछे धकेल दया। म उससे पूछना चाहता था क उसने मुझे उस ग ार
के लए य छोड़ दया था? परंतु, म ऐसा नपुंसक नकला, केवल एक थके-माँदे व परा जत
असुर क तरह चुपचाप वह पड़ा रहा।

उसके पीछे एक साया लहराता दखाई दया, द पक के जलते काश म चेहरे का केवल
आधा भाग ही का शत था। मने शव को ध यवाद दया क मने अपना मुँह नह खोला था।
यह साया और कोई नह , ब क व ुत ज हा ही था। म जस तूफ़ान से बच कर नकला था,
उससे भी चंड वेग से ोध व घृणा ने मुझ पर हार कया। वह ा औरत तो उसके साथ
ही रह रही थी।

म अपने पलंग पर पड़ा, एक छपकली को नहार रहा था जो एक म खी पर झपटने क


तैयारी म थी। जैसे ही व ुत ज हा क लंबी आकृ त मेरे नकट आई। मने उसे कहते सुना,
“बैठे रहो! बैठे रहो! माला ने कहा है क तुम कसी रोज़गार क तलाश म हो। यह एक
लड़ाकू संगठन है कोई ापार संघ नह है। यहाँ कसी के भी लए कोई सु न त काय नह
होता।” वह अचानक ही नाटक य हो उठा और अपनी भुजाएँ दाएँ-बाएँ हलाते ए, कमरे म
टहलने लगा। “हमने एक समान तथा यायी जगत क रचना का संक प लया है। हम जस
संसार क रचना करना चाहते ह, वहाँ रावण सरीखे़ आततायी के लए कोई थान नह होगा।
येक समान होगा। अब कोई राजा या ज़म दार नह ह गे। पंडे-पुरो हत, ओझा या
ापा रय जैसे जा के शोषक भी नह ह गे। म जस नए व क रचना क ँ गा उसम
सभी य को एक समान अ धकार ा त ह गे।” वह साँस लेने के लए एक ण को
थमा और उसके वा य म ‘हम’ से ‘म’ का थानांतरण मुझसे छपा नह रहा। “जा त था
क कुरी त का समूल नाश कर दया जाएगा। म ापार संघ को न कर ँ गा। लोग क ही
एक प रषद तय करेगी क हमम से येक के पास या होना चा हए? मुझे शोषण का कोई
भी प वीकार नह होगा। कुबेर जैसे र पपासु का समूल नाश कर दया जाएगा। इस
संसार के सभी रावण कुचल कर रख दए जाएँग।े तब कोई दे वता नह रहगे। इस संसार से
सभी इं का भी समूल नाश कर दया जाएगा। न तो कोई पुजारी-पुरो हत ह गे और न ही
धन का कोई अ त व होगा। लोग वे छा से एक- सरे क सहायता करगे व स रहगे। यह
संसार तब आम लोग का होगा, भ जैसे आम लोग क नया! भ ! म तुम जैसे लोग के
लए एक वग क रचना क ँ गा। एक आदश जगत क रचना के लए कए जा रहे इस
अं तम संघष म हमारा साथ दो।”

ऐसा नह था क म वत नह आ था। अपने वा म व के एक संसार का वचार ही ब त


आकषक था। एक नया वीरता व शौय से भरपूर जगत तो र रहा, मेरे पास अपने वा म व
म दो जोड़ी व तक नह थे। परंतु जैसा मूख म ँ, मने कभी उस पर व ास नह कया।
मने ऊपरी तौर पर ऐसा दखावा कया मानो म उसके वचार से ब त उ सा हत आ ँ परंतु
भीतर ही भीतर म जानता था क वह और कुछ नह , केवल एक आततायी ही था, जो
अभी अपनी पूण अव था म सामने आने क तैयारी कर रहा था। मेरी सी मत बु ने उस
महान क रदश वचारधारा को हण नह कया।

उसने मेरे कंध पर हाथ से चपत लगाई और गले से लगा लया परंतु इस या म उसका
यास यही रहा क हमारे शरीर का पश न हो। सभी एक समान हो सकते ह परंतु वे
इस सीमा तक भी समान नह होते। “हमारी श ण क ा म आओ। माला, इसके लए
व व भोजन आ द का अ छ तरह से बंध कर दे ना और इससे कहो क यह नान कर
ले।”

व ुत ज हा अपना रेशमी चोगा, जाते-जाते पीछे फहरा गया। उसका समक , भ , अपनी
उपप नी के साथ वह खड़ा रह गया।

“तुम उस पर व ास नह करते?” माला ने पूछा।

“ या तुम करती हो?” माला ने एक आह भरी और बाहर चली गई। म उसके पीछे -पीछे
गया, मुझे व ो हय को दए जा रहे श ण के वषय म ब त ज ासा हो रही थी। मुझे
व ुत ज हा के समक माने जाने वाले एक बल असुर ारा नान के लए अंगोछा व कुछ
जड़ी-बू टयाँ द ग , वह बुरी तरह से फटे हाल थे और नंगे पाँव म छाले पड़े ए थे। म नान
के लए पास ही दख रहे, छोटे कुएँ क ओर बढ़ा। मने उस थान को भली-भाँ त रगड़ कर
मला परंतु समानता क वह गंध अभी छू ट नह थी। शी ही, म उसका भी अ य त हो गया।

म कुछ ही दन म व ुत ज हा का व त बन गया। व ोही नेता के गु तचर ारा महल


के भीतर के समाचार आते रहते थे और मुझे अभी भी यह नणय लेना था क मेरा वामी
कौन होगा, मुझे अपना भा य रावण के हाथ स पना चा हए अथवा अपने जीवन क
बाग़डोर व ुत ज हा के हाथ म थमा दे नी चा हए। चोरी- छपे कभी-कभी, माला के साथ
चुंबन के आदान- दान का भी अवसर मल जाता, य प मुझे अब भी उसके साथ रा
बताने का अवसर नह मल सका था। व ोही नेता के साथ बने रहने के पीछे एक यह
आकषण भी था।

एक दन, व ुत ज हा ने मुझे सागर तट पर बुलवाया। सूया त हो चला था और वह पू णमा


क रात थी। सागर चाँदनी म चमचमा रहा था और चार ओर चमेली क गंध फैली थी। डेर
क ओर से एक गीत के अलसाए वर तैर रहे थे, वह वरह क पीड़ा और मलन के आनंद
को दशाने वाला एक गीत था, जब पु ष के पेट भरे ह और शरीर व थ ह तो वे इसी क
कामना रखते ह। नेता सागर के समीप खड़ी एक च ान पर उप थत था। म भी वह चल
दया पर म थोड़ा भयभीत था। “ या तुम रा कालीन समु या ा के लए तुत हो।” म
उसका चेहरा नह दे ख सका।

“हाँ।” म हकलाया। उसने मुझे एक ओर धकेला और सागर क ओर जाने वाली अनगढ़


सी ढ़य से उतरने लगा। अचानक ही पानी म एक छोट नाव गोते लगाती दखाई द । वह
उसम कूद गया और मने भी लड़खड़ाते क़दम से पीछा कया। वह अपने चौड़े च पू क
सहायता से लहर का सीना चीर कर आगे बढ़ने लगा। कुछ ही मनट बाद, उसने मुझे च पू
संभालने का संकेत कया। म च पू चलाने लगा और नाव को उसक वां छत दशा म बढ़ा
दया।

जैसे ही हम आगे क ओर प ँच,े तो म खड़ी च ान पर क़ले का गहरा त बब दे ख सकता


था। कोट पहाड़ी क ऊपरी ढलान पर कुहासा छा चुका था। रात के घने अंधकार म महल
ब त भयानक दख रहा था। मानो उस पर रा स का साया पड़ गया हो। बुरी व
आ मा तथा रा स से जुड़े सारे पुराने क से मेरे म त क म भटकने लगे। धीरे-धीरे हम
कनारे तक आ गए।

“मेरे आने तक यह ती ा करना।” व ुत ज हा क़ले के पछले ार क ओर चल दया।


वह कसी ऐसे आ म व ास से भरपूर क भाँ त क़दम बढ़ा रहा था, जो पहले सैकड़
बार ऐसा कर चुका हो। म एक व ोही नेता के साथ, अपने पुराने वामी के महल म था। य द
म पकड़ा जाता तो न त प से मेरी मृ यु तो प क थी। म ाकृ तक प से च ान क
परछाईय क ओर बढ़ गया। करीब एक घंटे बाद मेरा नया वामी लौट आया।

मने कई बार अपने वामी के साथ उसक रा कालीन या ा म साथ दया। और म इस


वषय म और अ धक ज ासु होता चला गया क आ ख़र यह सब हो या रहा था? म तो
यही वचार करता रहता क वह बना कसी क पहचान म आए, रावण के महल म वेश
कैसे करता था और उससे भी आ य क बात यह थी क वहाँ से बच कर कैसे लौट आता
था? यह तो प ही था क महल के भीतर कोई उसक सहायता कर रहा था परंतु यह भी
कसी कम जो खम का काम नह था। राजा क पूरी सेना उसे मृत या जी वत प म तलाश
रही थी और यहाँ वह कतने आराम से राजा के ही महल के ांगण म टहल रहा था।
नःसंदेह म इस व च काय को दे ख कर व मय म था।

एक दन, मने अपने अंतहीन कौतूहल को शांत करने का नणय लया और उसका पीछा
करने का मन बनाया। मने कुछ ण तक ती ा क और फर उसके पीछे चल दया। वह
एक ऊँची द वार पर चढ़ा और पल भर म ही अ य हो गया। म द वार के पास गया और
वहाँ टँ गी र सी का नरी ण कया, जसक सहायता से वह महल म गया था।।

म बड़ी क ठनाई से उससे पार जा सका। जब तक म ऊपर प ँचा, म पसीने से लथपथ हो


कर, बुरी तरह से हाँफ रहा था। मने ग के ांगण म हौले से कूदते ए, उसे कोसा। तभी
कह पास म ही व क सरसराहट और हौले से बुदबुदाने के वर सुनाई दए। म धीरे से
उस वर क दशा म बढ़ा। गहन अंधकार म दो साए एक- सरे से लपटे थे और आवेग से
भरे चुंबन का आदान- दान हो रहा था। म व ुत ज हा क लंबी आकृ त को दे ख सकता
था। वह ी भी कुछ प र चत सी जान पड़ी। राजकुमारी शूपणखा! म तो वह तं भत रह
गया।

अचानक ही मेरे म त क म एक योजना क ध गई। अपने श ु से तशोध लेने का अ छा


अवसर हाथ आया था। यही वे ण थे, जब मुझे अपने दो वा मय के म य, कसी एक का
चुनाव करना था। व ुत ज हा ने रावण के महल म बना कसी संर ण के अकेले वेश
करने क मूखता कर ली थी। वह मान सक व शारी रक प से पूरी तरह से अकेला था। मेरी
ओर से घात लगाने का यही मौका था। म महाराज से गु त प से मलना चाहता था ता क
उ ह यह समाचार वयं सुना सकूँ।

मने एक बार महल का च कर लगाया और झा ड़य क आड़ म छपते ए, यह जानने का


यास करता रहा क भीतर जाने के लए कौन सा थान उ म रहेगा। म आम के एक वृ
पर इस उ मीद म चढ़ा क शायद ऊपरी जीने तक जाने के लए कोई वातायन खुला होगा।
ब त भीषण गम व उमस थी। कोई खाँसा और म वह जड़ हो गया। म अपने ही दय क
धक-धक सुन सकता था, ऐसा लग रहा था मानो कोई हथौड़े से लगातार चोट कर रहा हो। म
पहले कुछ ण तो अडोल खड़ा रहा और फर अपना काय आरंभ कया। एक वातायन
खुला दखा तो म उसी ओर बढ़ा। क म कोई ब तर पर सो रहा था। म यक़ न से नह कह
सकता था क वह रावण का ही क था य क वहाँ उसक प नी तो नह थी। परंतु उस
का डील-डौल रावण से ब त मलता-जुलता था। मुझे थोड़ा संकोच आ परंतु यह
भी भान था क समय तेज़ी से फसला जा रहा था। ब तर के समीप ही तेल का छोटा सा
द पक जल रहा था। चेहरे पर परछा पड़ रही थी।

मने क म वेश कया और हौले से बुदबुदाया, “महाराज!…।” जब कोई यु र नह


मला तो म उस आकृ त के और नकट हो गया ता क जान सकूँ क वह महाराज रावण ही ह
या नह । अचानक ही कसी खूँखार चीते क तरह, वह मुझ पर उछला और मुझे गले
से दबोच लया। म इतना भयभीत हो गया था क गले से वर ही नह फूटा। उसने अपने
सरे हाथ से द पक क लौ तेज़ कर द ।

जस ने मुझे गदन से दबोच रखा था, वह तो वभीषण था। पूरे महल के इतने क म
से, मुझे भी इसी प व पा प के क म आना था! उसने धीरे से गदन पर पकड़ ढ ली क
और म वह फ़श पर लुढ़क गया। वह हाथ म अपनी तलवार लए, मुझ पर सवार था।

“महाराज! मुझे न मार। कृपया मुझे हा न न प ँचाएँ।” म च लाया।

“भ ! कमीने, तुम मेरी ह या करने क चे ा कर रहे थे?”

ऐसा लगा क वह वयं मत था। उसक इसी वधा का लाभ उठा कर, मने अपनी वनती
जारी रखी। उसने ोध म अपने पाँव पटके। म रगते-रगते द वार क ओर सरका और एक
गद क तरह जा समटा। म अब भी बुरी तरह से काँप रहा था। उसका ोध ब त भयंकर
था। मुझे हमेशा से ही यह संदेह रहा था क वह एक ख़तरनाक था और उसका यह
शांत व मया दत प एक छलावा भर था, परंतु उस दन जब उसे तलवार हाथ म थामे,
ता से भरी चमक के साथ मुझे घूरते पाया तो मेरा संदेह व ास म बदल गया क वह न
केवल एक ख़तरनाक था अ पतु मेरे ारा दे खे गए सभी असुर म से सवा धक चतुर
व नमम भी था। महान ानी मं ी तथा सवा धक श शाली रावण जैसा राजा भी जस
बात पर संदेह तक नह कर सकता था, मूख शरोम ण भ उस त य को जानता था। एक
दन, य द कोई भी अवसर हाथ लगा, तो यह घ टया आदमी भू म के एक टु कड़े अथवा कुछ
वण मु ा के लए अपनी आ मा तक को बेच दे गा।

म पुनः उसके पैर म जा गरा।

“तुम मेरे क म या कर रहे हो?” उसके सुर म एक अलग सा तीखापन था।

“यह बात आपक बहन से संबंध रखती है। वह कसी से एकांत म मल… कृपया मुझे
ठोकर से न मार…।”

उसने मुझे गदन से पकड़ कर, धरती से उठाया और बड़े ही ता से भरे सुर म बोला,
“सूअर के ब चे! तु हारा मेरी बहन से या लेना-दे ना है?”

ँ धे कंठ तथा खाँसी के दौरे के बीच कसी तरह मने पूरे संतोष के साथ कहा, “ व ोही राजा
दे श ोही व ुत ज हा, जसे आप लोग पछले कुछ माह से तलाश रहे ह, वह इस समय
आपक बहन के साथ है… वे दोन बगीचे म ह।” मने एक ं य के गहरे वार के साथ अपनी
बात ख़ म क । ‘जाओ उस कमीने असुर को पकड़ लो…।’

उसने मुझे नीचे पटक दया, परंतु म अनुभव कर सकता था क उसक सारी श कह चुक
गई थी। म वयं को यह कहने से भी रोक नह सका, ‘अभी तो उनका मलन काय म
समा त भी नह आ होगा…।’ उसने मुझे खा जाने वाली नज़र से घूरा और मने एक और
भारी-भरकम घूँसे क अपे ा क परंतु वह चुपचाप क से नकल गया। म भी उसके पीछे -
पीछे बाहर चल दया। मारीच सबसे नचले तल पर अपने प रवार के साथ सो रहे थे। हम
लकड़ी क सी ढ़य से नीचे उतरे। वह मारीच के क के बाहर एक ण के लए का और
फर हौले से ार खटखटा दया। ार एक ह क चरमराहट के साथ खुल गया। मारीच
अधन द आँख के साथ खड़े थे और साफ़ दख रहा था वे गहरी न द से जगाए जाने के
कारण झुँझलाए ए थे।

“मामा ी! हमारे लए शूपणखा के कारण एक सम या आन पड़ी है।” यह सुनते ही मारीच


सतक हो उठे । उ ह ने अपनी पीछे ार बंद कया और बाहर आ गए। वभीषण ने उ ह सब
कुछ व तार से बताया और जब उसने इस बीच मेरा नाम लया तो मारीच के ने आ य से
भर उठे । उ ह ने सब कुछ सुना और अपने क म लौट गए। जब वे बाहर आए, तो वे पूरी
तरह से ह थयार से लैस थे। हम खराटे भर रहे दरबान को पीछे छोड़ते ए, महल से बाहर
आ गए। जब हम बाग़ म प ँचे तो मने उस ओर संकेत कर दया, जहाँ उनक बहन उप थत
थी और वयं थोड़ा पीछे हट गया। दोन यो ा दो दशा से वहाँ कट हो गए। अचानक
ही वहाँ से एक कणभेद वर सुनाई दया और राजकुमारी च लाते ए महल क ओर
भागी। वह लगभग नव थी। वहाँ हलचल का वर सुनाई दया, जब मारीच ने दे खा क
राजकुमारी सुर त प से महल के भीतर जा चुक है तो उ ह ने च ला कर दरबान को भी
बुला लया। व ुत ज हा पूरी वीरता से लड़ा और य द ब त से ह थयारबंद सपा हय ने उसे
पकड़ न लया होता तो शायद उसने वभीषण क ह या कर द होती। दरबान अधन दे ,
म रयल व मद के नशे म चूर थे परंतु वे सं या म कह अ धक थे इस लए वे हावी रहे।

अंततः अब म वतं था! अब म हमेशा के लए माला को पा सकता था! अब मुझे माला को


उन रो मल ने वाले कुलीन पु ष के साथ नह बाँटना होगा, जो अपने साथ भ ता का
म बनाए रखते ह। म ज़ोर-ज़ोर से च लाते ए, नाचना चाहता था, गाना चाहता था परंतु
म उ ह झा ड़य क आड़ म छपा रहा। य द कह इस दौरान व ुत ज हा उन पर हावी हो
जाता या कोई बहा री दखाते ए बच नकलता तो म ग़लत समय पर उनके सामने नह
पड़ना चाहता था।
16 एक ां तकारी क मृ यु

रावण
म अपने ब तर पर लेट कर करवट बदलता रहा। न ा मानो मुझे छल रही थी। बाहर उ ान
से कह कोलाहल के वर सुनाई दे रहे थे। म हौले से उठ कर खड़क के पास गया। यह बंद
थी। यहाँ तक क उमस से भरी गम रा म भी, मेरी प नी मुझे क क खड़ कय के पट
खोलने नह दे ती थी।

कसी ने दरवाज़ा खटखटाया। इससे पहले क म उठ कर उसे खोल पाता, खटखटाने का


वर तेज़ होने लगा। मने दरवाज़ा खोलते ए, रानी क ओर झाँका। वह कसी भी तरह के
कोलाहल क आशंका से परे, कसी शशु क भाँ त न ालीन थी। मामा मारीच बाहर खड़े
थे, वे पूरी तरह से श से लैस थे और इससे पूव क म कुछ पूछ पाता। उ ह ने मुझे शांत
रहने का संकेत कया, फर वे मुझे बाएँ हाथ से घसीटते ए बाहर ले गए।

मारीच मेरे कान म बुदबुदाए, “हम एक संकट म ह।” मने वयं को यह समाचार सुनने के
लए तुत कर दया क कसी भयंकर दे व सेना ने हमारे रा य पर आ मण कर दया था
अथवा व ण ही हमसे ोह पर उतर आया था। मने तो कभी क पना तक नह क थी क
इस घटना का समाचार मेरी बहन से भी हो सकता था। मने तो कभी व म भी नह सोचा
था क इस धरती के सभी व बदजात के बीच, मेरी बहन को दय का बंधन बाँधने के
लए व ुत ज हा ही मलेगा। मने आ य, नराशा तथा ोध के मले-जुले भाव के साथ
अपनी बहन क इस भचारी कथा के व गक रोमांच को सुना। उसने वयं को एक क
म बंद कर लया था और बाहर नकलने से इंकार कर दया था। उस रात, मुझे केवल एक ही
शुभ समाचार मला था और वह यह था क मेरा सबसे बड़ा श ु तथा व ोही व ुत ज हा
पकड़ा गया था। और यह एक आ य था, संभवतः मेरे जीवन का सबसे बड़ा आ य क यह
काय मेरे भाई वभीषण के हाथ संप आ, संभवतः यह उसके जीवन का एकमा साथक
काय रहा था।

मने अपनी शाला और खड़ाऊ तक पहनने क चे ा नह क । मने मारीच से कहा क सभी


मं य को त काल दरबार म बुलवाया जाए और मुक़दमे क सुनवाई आरंभ हो। म
यथासंभव शी ता के साथ सभा क ओर बढ़ा। मुझे पूरा व ास था क मेरी प नी ने धड़ाम
क आवाज़ के साथ बंद होने वाले दरवाज़े का वर नह सुना होगा। ई र उसका क याण
करे!

शी ही मेरे सभी मं ी सभा म आ प ँच।े ह त सदै व क तरह, अपने भावहीन वर तथा


सधे-सट क वचार के साथ सबको झुँझलाने म सफल रहा। उसने कहा क कल सुबह, सरे-
बाज़ार व ोही का सर कलम कर दया जाना चा हए, ता क उन सभी लोग को सबक मल
सके, जो रा य के व आवाज़ उठाने क मंशा रखते ह। एक बार तो मुझे लगा क ह त
जो कह रहा है, हम वही करना चा हए परंतु म अभी कारवाई को इतनी शी , उसके भाषण
के साथ समा त नह करना चाह रहा था। कोई भी उसक बात के वप म बोलने के लए
खड़ा नह आ। मने थकान के साथ सभा क कायवाही वह रोक द और क म लौट
आया।

मेरी प नी अब भी सो रही थी और चं मा के काश क एक पहली करण उसके चेहरे को


का शत कर रही थी। वह इतनी द तथा नद ष दख रही थी क म उसके मुख के उस
का से अ भभूत हो उठा। जाने कैसे, ववाह के चार माह के भीतर, मेरी आ मा के भीतर
उसके लए ेम का बीज अंकु रत हो उठा था। मेरी इ छा तथा संक प के व , मने पाया
क म अपनी प नी से हा दक नेह रखने लगा था। म वहाँ लेट गया और यह यान रखा क
कह उससे पश न हो, फर म भ के बारे म वचार करने लगा, वह कस तरह एक बार
फर मेरे जीवन म लौट आया था, फर मेरी सोच मेरी बहन पर जा अटक । वह ऐसे लोग म
से थी ज ह अ सर हर चीज़ से वं चत ही रखा जाता है। जब वह ब ची थी तो माँ के नेह से
वं चत रही। और फर हम बड़े ए, म अपने-आप तथा अपनी मह वाकां ा से इतने गहरे
मोह म था क मने अपनी बहन के अ त व को पहचान तक नह द । वह सदा से ही एक
ऐसी ब ची के प म पली, जसका कोई साथी नह था। एक गहरे काले रंग क थुलथुली
लड़क , जसम सुंदरता का नामो नशान तक न था, जब तक वह लंका क राजकुमारी नह
बनी, तब तक उसका अ त व ब त ही नीरस व एकांत भरा रहा। फर तो ववाह के लए
आने वाले ताव का कोई अंत न रहा। म अपने शासन म इतना खोया रहा क उसक
नगरानी नह रख सका। मुझे इतना एहसास तो था क वह पहले से कह चंचल तथा स
रहने लगी थी, परंतु यह पता नह था क उसके वभाव म प रवतन का मूल कारण या था।
अब म समझा क वह इतनी स य रहने लगी थी। वह ेम करने लगी थी या वह ऐसा
समझती थी क उसे कसी से ेम हो गया था। म नह जानता क वह भी उसके त
यही भाव रखता था या नह ? उस नीच क इतनी ह मत क राजा क बहन के साथ णय-
याचना करे, और वह भी तब, जब उसके सर क क़ मत लगी हो। या वह मेरी बहन को
कसी दाँव क तरह योग म ला रहा था? म इस बात का पूरा यान रखूँगा क उसे अपने
कए का भरपूर द ड मले। कल क का दन ब त अ छा जाने वाला है।

अगली सुबह, जब म सभा म प ँचा तो सभी मं ी, मेरी ही ती ा म थे। मुझे दे री हो गई थी


और मने शी ता से राज सहासन क ओर क़दम बढ़ाए। म वहाँ के वातावरण म ा त तनाव
क गंध अनुभव कर सकता था। और फर मने उसे दे खा। मुझे यह सब पसंद नह आया।
मुझे यह सब ब कुल भी अ छा नह लगा। शूपणखा वहाँ खड़ी थी। वह बखरे बाल व रोने
से सूजी ई लाल आँख स हत गु से से भरी खड़ी थी। म सभा म इस कार क भावा मक
धमक तो कसी भी दशा म नह चाहता था। जब मेरा शासन गत संग के साथ
म त हो जाता था तो मुझे इससे ब त घृणा होती थी। यहाँ तो मेरे लए जीतने का सवाल
ही नह पैदा होता था। मुझे पूरा व ास था क वह अपने हर संभव हथकंड का योग
करके, मुझे अपना नणय बदलने के लए ववश कर दे गी क म उसके ेमी को फाँसी के
फँदे पर न लटकाऊँ। सभा म लोग क खुसर-पुसर शांत होते-होते, मेरा पारा सातव
आसमान तक जा प ँचा था। मने आसपास दे खा तो मेरी मारीच के ने से जा टकराई।
वे अपनी गदन हला रहे थे और मने वयं को बदतर से बदतर थ त के लए तैयार कर
लया। ह त छाती पर हाथ बाँधे बैठा था, उसक ढ़ चबुक तनी ई थी और चेहरे पर
सव च घमंड तथा अनादर के भाव प रल त हो रहे थे। कुंभ अपने थान पर बैठा ऊँघ रहा
था और वभीषण कुछ ताड़प के अ ययन म म न था।

“म व ुत ज हा से ववाह करना चाहती ।ँ ” सभा क म पूरी तरह से मौन पसरा आ था,


शूपणखा कुछ क़दम आगे बढ़ और मेरी आँख म आँख डाल कर दे खते ए, अपना वा य
दोहराया, “म उनसे ववाह क ँ गी और उसके बाद तुम उ ह फाँसी पर चढ़ा सकते हो। जब
तुम उनक ह या कर दोगे तो म उनक चता पर सती हो जाऊँगी।”

म अनजाने म ही पीड़ा से सकुड़ सा गया। एक असुर ी ारा, दे व वधवा क री त का


अनुकरण ही अपने-आप म तं भत कर दे ने वाला था, भले ही वह मेरी बहन न होती, तो भी
मुझे ऐसा ही अनुभव होता! हमारा सारा वंश लोग के बीच उपहास का पा बन जाएगा।
“मुझे धमकाने क चे ा मत करो।” म गला फाड़ कर च लाया।

फर वह कसी वातो माद क भाँ त वहार करने लगी। वह दोन हाथ से अपना माथा
पीटने लगी, अपने बाल नोचने लगी और गला फाड़-फाड़ कर रोने लगी। दे खने वाला य
था। म दे ख सकता था क अनुचर व ारपाल बमु कल अपनी हँसी दबाने का य न कर
रहे थे। मेरा चेहरा पीला पड़ गया और कुछ समझ नह आ रहा था क इन प र थ तय को
वश म करने के लए या कया जाना चा हए। यह तो बड़े ही ल जाजनक ण थे।

शूपणखा मुझे तरह-तरह के अपश द कहने लगी और मुझे लगा क मुझे उसका भी सर
काट दे ना चा हए। मेरी बहन के मूखतापूण दन, चीख़ तथा ाप के अ त र पूरे महल म
चु पी पसरी ई थी। मने वयं को असहाय, ो धत, थका आ व मत पाया परंतु इससे
भी अ धक, मुझे इस बात का अपराधबोध सता रहा था क म एक अ छा भाई न बन सका,
अपने प रवार क सही तरह से दे ख-रेख न कर सका, अपने भाई-बहन को माता- पता से
वलग कर दया और कतनी ू रता से अपनी ही मह वाकां ा को पोसता रहा। म जानता
था क म भीतर ही भीतर बल हो रहा था।

मारीच, वभीषण तथा कुंभ को छोड़ कर, एक के बाद एक, मेरे सभी मं ी उठ कर चले गए।
म दोन हाथ म अपना सर थामे राज सहासन पर बैठा था। सर के भीतर, कह गहराई म
तीखा दद उभर आया था। मारीच मेरे नकट आए और मेरे कंधे थपथपा कर कहा क मुझे
वही नणय लेना चा हए, जो मेरा दल, मेरी अंतरा मा कहे। इसके बाद सब कुछ जैसे मेरे
वश से बाहर होता चला गया। वभीषण व कुंभ ने तक दया क हमारी बहन क स ता से
अ धक कुछ भी मह वपूण नह था। उ ह ने बल दया क य द हम अपनी ही बहन क
स ता का यान नह रख सके, तो रा य क स ता भी कोई मायने नह रखती। म इस
बात का वरोध करना चाहता था, म कहना चाहता था क रा य के साथ ग ारी करने वाले
को द ड अव य मलना चा हए, उसे केवल इस लए नह छोड़ा जा सकता क मेरी बहन
उससे ेम करती है। म, एक राजा के प म बुरा उदाहरण तुत नह कर सकता। मेरे पास
अनेक तक उप थत थे क व ुत ज हा को फाँसी पर य लटकाना चा हए परंतु मुझे यह
कहने म ल जा आती है क म चुप रहा। एक भी श द नह कह सका। मने उ ह पूरा अवसर
दया क वे मुझे इस बात के लए मना ल क शूपणखा व उसके ेमी का ववाह कर दया
जाना चा हए। तो इस कार, अपने याय के व , अपने मं य के परामश के व ,
उ चत, नै तक व ावहा रक बु के व जा कर मने अपनी बहन को श ु से ववाह क
अनुम त दे द । म अपने क म लौट आया, म पूरी तरह से टू ट चुका था। मने वभीषण को
यह काय स पा क वह मेरी बहन को यह समाचार सुना दे ।
17 अ पृ य राजा


व ुत ज हा को रावण क बहन का प त बने छह माह होने को ह। मेरा जीवन, सदा क
भाँ त दयनीय ही रहा। म महल म अपना मुँह नह दखा सकता था य क व ुत ज हा
न त प से मुझे मौत के घाट उतार दे ता। म रावण के वषय म भी सु न त नह था।
अब चूँ क वे आपस म संबंधी बन चुके थे, म नह जानता था क वहाँ मेरी या थ त थी। म
कुछ दन तक घने वन म छपा रहा और जब भूख के कारण छपने के थान से बाहर आना
पड़ा तो म सड़क पर नकल आया। पहले कुछ स ताह तो इसी भय के साए म बीते क
कह म पकड़ा न जाऊँ। जब भी म कसी सपाही को दे खता अथवा सड़क पर राजा के
सै नक के रथ क गड़गड़ाहट सुनता तो कह छप जाता। धीरे-धीरे मेरा भय तरो हत हो
गया। म इतना नीच और छोटा था क राजा या उसके संबं धय को मेरे बारे म वचार
करने के लए समय नह था।

अगले अनेक स ताह तक, सड़क पर मारा-मारा फरने के बाद, मने माला के यहाँ ही शरण
ली। पहले-पहल वह मुझसे अ स रही और वह मुझसे कोई लेन-दे न नह रखना चाहती
थी। ां तका रय का पूरा दल बखर चुका था, मत आदशवाद मु य भू म म बसे ाम
म लौट गए थे और अवसरवा दय ने, जो क अ धक सं या म थे, रावण क सेना म अनेक
श शाली पद संभाल लए थे। माला लोग के लए उपहास क पा ा थी य क उसका
ेमी नायक उसे अ ेत व भ राजकुमारी के लए याग गया था।

धीरे-धीरे, मेरे म त क म एक योजना आकार लेने लगी। मुझे कसी कार रावण से भट
करनी थी। म एक भ ुक क भाँ त दखाई दे ता था। मने अपने हाथ से बाल सँवारे और
माथे पर भ म मल ली। फर म महल क ओर चल दया। जब म मु य वेश ार के समीप
प ँचा तो वहाँ लोग का भारी जमघट दखाई दया। मुझे इस हलचल के वषय म कौतूहल
हो रहा था। वहाँ अनेक मठाई तथा मूँगफली व े ता घूमते दखाई दए, चार ओर अफ़रा-
तफ़री का वातावरण था और कशोर का एक दल भीड़ म अपने लए थान बनाने क चे ा
म लगा था। मने एक लंबे, काले व गठे ए बदन वाले युवक से पूछा क वहाँ या हो रहा
था?

“तु ह नह पता क यहाँ या हो रहा है?” उसक बड़ी-बड़ी आँख आ य से और भी फैल


ग ।

“हद हो गई! भला मुझे इस बारे म कैसे पता होगा?”


“ठ क ही तो है। तुम ब त बूढ़े हो इस लए तु ह इस बारे म चता करने क आव यकता ही
नह है।” उसने कहा। म बुरी तरह से खीझ गया था। म तो अभी केवल पतीस वष का था
परंतु संभवतः कसी उ ीस वष य युवक को, बीस से ऊपर का येक बूढ़ा ही जान
पड़ता है। मने अपनी कुढ़न को यथासंभव छपाते ए पूछा, “ये मूख कस बात के लए
गु थमगु था ए जा रहे ह?”

“ओ बूढ़े कमीने! हम सब तो स ाट के सै नक बनने जा रहे ह…।” “स ाट, कौन से


स ाट?” मने उसक बात बीच म ही काट द । संभवतः राजा ने ही अपने पद क मयादा म
वृ कर ली होगी। जब तक वह मुझे कोई हा न नह प ँचाता तब तक मुझे इस बात से
कोई अंतर नह पड़ता क वह महाराजा कहलाए या फर कोई स ाट!

“ शव क सौगंध! तुम तो वाकई बेवकूफ हो, काका!” उसके सा थय ने चुटक ली। “हमारे
स ाट उ र भारत पर आ मण करने क योजना बना रहे ह। हम असुर को अपना
तशोध लेने का अवसर मलने वाला है। हम दे व को ऐसा सबक सखाएँगे क वे उसे
आजीवन नह भूलगे।”

अचानक एक ही ण के भीतर पूरी भीड़ म जैसे व ुत का आवेग सा दौड़ गया। लहर क


भाँ त एक वशाल पुकार गूँज उठ । म महल के सबसे ऊँचे परकोटे पर खड़ी एक चमकदार
आकृ त को दे ख सकता था। भीड़ के बीच नारे गूँज उठे – ‘हमारे स ाट अमर रह! असुर
क जय हो! दे व का नाश हो! नाना कार के आभूषण तथा सुस जत पोशाक से अलंकृत
रावण अपनी तलवार उठा कर गरजा, “हर हर महादे व! शव क जय हो! और भीड़ भी यही
जयकारे लगाने लगी। पूरी भीड़ म हर हर महादे व के वर ही सुनाई दे रहे थे। भीड़ उमड़ी जा
रही थी और म लगभग बीच म था। शी ही, एक और आकषक आकृ त, रावण के साथ आ
खड़ी ई। व ुत ज हा अपनी दमकती पोशाक म, रावण के साथ परकोटे पर आ खड़ा
आ। इसके बाद बड़ी त द वाला कुंभकण और उससे कुछ ठगना वभीषण भी आ प ँचा।
इसके बाद एक-एक कर, रावण के मं ी तथा सेना धप त परकोटे पर आ गए। भीड़ द वानी
हो उठ । नगाड़े पीटे जा रहे थे। चड तथा त मल बजा कर उ ह ने सारे वातावरण को और
भी चंड बना दया था। यु का बगुल बजने लगा और शंख फूँके जाने लगे।

म रोमां चत हो उठा। मेरे भीतर ही भीतर पल रही गु त इ छा ने फर से सर उठा लया, म


भी उन दे व से तशोध लेना चाहता था, ज ह ने मेरी पु ी का सर टु कड़े-टु कड़े कर छतरा
दया था और मेरी प नी के साथ बला कार कया था। म इसी ण क ती ा म तो जीता
आ रहा था। म भी गला फाड़ कर च लाया, “हर हर महादे व! दे व का नाश हो! इं का नाश
हो! महे र क जय हो!”

जा के उ साह का तो जैसे अंत ही नह था। यह सब एक घंटे से भी अ धक समय तक


चलता रहा। सूरज लगभग सर पर आ गया था और काले बदन धूप म चमचमा रहे थे। गम
व उमस के कारण वहाँ एक व च सी गध फैली थी। नारे लगाने से गला खने लगा था
परंतु मने तब तक जयजयकार करना बंद नह कया, जब तक कसी और ने यह कमान नह
संभाली। तब अचानक, सारी भीड़ म एक चु पी छा गई। महान ह तयाँ भीतर जा चुक थ
य क सूय का भीषण ताप सहना उनके वश म नह था। वे अपने शीतल क म लौट गए।
भीड़ म से, पीछे से कसी ने एक बार फर शव के नाम क जयजयकार क । म भीड़ म
सवार अ ारो हय को दे ख सकता था। अ के पास हलचल दखाई द और खा साम ी
के बंद पु लदे गराए जाने लगे। हज़ार अ ेत हाथ उ ह लपकने के लए ऊपर उठ गए। म
भी आगे क ओर धकेला गया और कसी तरह अपने लए एक बंद पु लदा पाने म सफल
रहा। मने दे खा क केले के सूखे प े म बासी माँस, थोड़े चावल और मसालेदार मछली का
झोल दया गया था। म झट से उसे नगल गया। दोपहर ढलने तक भीड़ छतरा गई थी। अब
महल के मैदान म केले के सूखे प , मछली क ह याँ तथा बखरे ए भोजन क जूठन ही
दखाई दे रही थी।

सां य ाथना के वर व दे वालय म बजती घं टय के मधुर वर, मं दर क सी ढ़य से जा


रही युव तय क चू ड़य क खनक म म त हो गए थे। वायु म चार ओर उ साह तथा
जीवंतता का वातावरण था। य प मुझे अचानक भय सताने लगा क ब त शी , यह सुंदर
शाम, कसी कुहासे म वलीन हो जाएगी। मुझे तो यह भय था क उसके बाद जब अंधकार
का सा ा य होगा, तो या होगा। म र , यु तथा मृ यु क ह क गंध को अनुभव कर
सकता था। परंतु इससे भी अ धक मुझे छल-कपट तथा पतन क बू आ रही थी। हमारी
नधन तथा उजड़ी ई जा त का व फ का पड़ने लगा था।

म अपने पाँव घसीटते ए महल क ओर बढ़ा और स ाट से गत प से भट करने क


इ छा कट क । मोट त द वाले दरबान ने मुझे कुछ इस तरह दे खा मानो म कसी
पागलखाने से नकल कर आया होऊँ! उसने मुझे त ण बाहर धकेल दया। मने महल के
समीप बने बगीचे म ती ा क , अशोक वृ के तले बैठा, यही आस लगाए रहा क स ाट
मुझे अपने क के वातायन या परकोटे से दे ख लगे और वयं मलने के लए बुलवाएँग।े मेरी
इसी सोच से पता चलता है क मुझे अभी जीवन के ब त से सबक लेने बाक थे। उस रात,
म उसी मोटे वृ के तले सोया रहा और अगली सुबह, वषा होने लगी तो म अपनी कु टया म
लौट आया। फर शाम को म उसी अशोक वृ के तले बैठ कर ती ा करने लगा।

रावण
धीरे-धीरे दवस का अवसान हो गया। भीषण गम थी, पूरा प ऐसा लग रहा था मानो
कसी भीगे कपड़े को गम पानी से धो दया गया हो। म बुरी तरह से तनाव त व घबराया
आ था। पछले कुछ स ताह से यु क तैया रयाँ आरंभ हो चुक थ । मेरे लए यह
अ भयान कसी तीथया ा से कम न था। घने वन के रा ते, हमालय के एक छोटे से दौरे के
अ त र , म कभी नमदा से आगे नह गया था और म सर वती तथा सधु नद के कनारे
बसे उन पौरा णक नगर के दशन के लए उ सुक था, जनका नमाण असुर स यता ने
अपने चरमो कष के दौरान कया था। भले ही अब उसम से ब त कुछ शेष नह रहा होगा।
सधु के उठते वार , हौले-हौले सूख रही सर वती, धाव तथा घेराबं दय ने उन नगर को
हमारी जा त व स यता के वशालतम क़ तान म बदल दया था।

परंतु यु क योजना तथा एक क जाने वाली धनरा श से कह अ धक चता, मुझे


अपनी न ही ब टया के भा य क थी। उसका ज म ब त क ठनाई से आ और हमने तो
आशा तक याग द थी क, वह जी वत भी बच पाएगी। जब मने उसक न ही सी काया को,
वष के यु अ यास से कठोर पड़ गए, अपने हाथ म लया, तो मन गहन संतोष से भर
उठा। मुझे अनुभव आ क म पूरे संसार का वामी था और जब म अपनी प नी को, ब टया
को लारते, तनपान कराते या नान कराते दे खता, तो ऐसा जान पड़ता क उन पल के
दौरान और कुछ भी मायने नह रखता था। म तो पूरा जीवन उ ह इस कार दे खते ए बता
सकता था।

परंतु फर एक दन, सब कुछ जैसे अचानक बदल गया। महल म एक यो तषी का आगमन
आ, जो मेरे पता का म होने का दावा करता था, उसने मेरी पु ी को दे खते ही, सबके
सामने घोषणा क क वह असुर के वनाश का कारण होगी। उस दन के बाद से, मेरे
प रवार के सभी सद य, महल के अनुचर व मेरे मं ी बड़ा ही व च वहार करने लगे। जब
मेरी पु ी मेरी या मेरी प नी मंदोदरी क भुजा म होती तो वे बड़ा आदर-मान तथा नेह
कट करते परंतु म उस ब ची के त उनक घृणा व भय को अनुभव कर सकता था। असुर
तो हमेशा से ही अंध व ासी रहे ह। मुझे अपनी पु ी को उनके बीच असुर त छोड़ कर,
अ भयान पर जाने म भी संकोच हो रहा था। वह अभी मु कल से कुछ स ताह क थी और
असुर कुछ भी कर सकते थे। मुझे अपनी पु ी के ाण का भय था। मंदोदरी को यह
मनवाना सहज न होगा क म पु ी को यु अ भयान म साथ ले जाऊँ, परंतु म कोई न कोई
माग नकाल ही लूँगा। नःसंदेह कसी नवजात शशु को यु के अ भयान म साथ ले जाना
हा या पद था परंतु यह इससे तो बेहतर ही होता क उसे यहाँ वष दे दया जाता या गला
दबा कर मार डाला जाता। म कुछ भी जान तक न पाता य क म उस समय अपने सा ा य
नमाण म म न रहता। य द वह मेरे साथ रहती तो म उसक नगरानी कर सकता था।
संभवतः म भ से कह सकता था क वह उसका यान रखे। परंतु या म उस पर भी व ास
कर सकता था?

म सोने जा ही रहा था क अचानक मृत ायः अंधकार के बीच, एक अकेली आकृ त को


महल से र जाते दे खा। उस छोट व काली आकृ त के साथ प रचय कुछ पुराना सा लगा।
अचानक ही इतना काश हो गया मानो सुबह नकल आई हो और म उस काश म,
भयभीत भाव से ऊपर क ओर दे ख रही, आकृ त को पहचान गया। भ ! ऐसा लगता है क
यह इंसान कभी मर ही नह सकता। म नह जानता क उसे दे ख कर, मेरे भीतर कैसी
भावना ने ज म लया, ये राहत थी या घृणा या फर सहानुभू त! म नह जानता। परंतु
फर, मने अपने अनुचर को बुलवाया और उस बेव त म, महल के आसपास घूम रहे
को अपने पास लाने का आदे श दे दया।


अलकापुरी का घेराव ब त ही भयंकर रहा, मने इससे अ धक र पात से भरा यु कभी
नह लड़ा था। जब तक हम कुबेर के रा य के समीप प ँच,े असुर सेना कई लाख क सं या
तक जा प ँची थी और हरहराती सेना, अनेक रा य का व वंस करते ए, अनेक गाँव को
आग क लपट के हवाले करते ए आगे बढ़ रही थी। तब तक, साठ से अ धक छोटे व बड़े
राजा तथा आ दवासी कबील के मु खया, रावण का आ धप य हण कर चुके थे और
वजयी सेना म भागीदारी कर ली थी। अनेक नगर म व णु क तमाएँ न कर द ग व
उ ह कुचल कर, उनके थान पर शव लग क थापना क गई। यह असुर के खोए ए
अ भमान क , नए सरे से ाण त ा थी। इसने पूरे दे श को आंदो लत कर दया, जो
दमनकारी दे व के व एक हो कर खड़ा हो गया। रावण ने कई बार तो मोच पर इतनी
वीरता से नेतृ व कया क वह काफ़ हद तक मूखता क ेणी म गना जा सकता था परंतु
असुर को तो हमेशा से ही ऐसे नेता से ेरणा मलती आई थी जो मृ यु के भय से भयभीत न
होता हो, सीना तान कर यम का सामना करने का साहस रखता हो।

शी ही आ मघाती द ते कसी तूफ़ान क तरह छोटे ग पर छा गए और उ ह एक के बाद


एक बंद बनाते चले गए, कई बार नीरसता क सीमा तक जाने वाली मुठभेड़ होती तो कई
बार र रं जत संघष के बाद वजय ी मा यापण करती। ह त, क, व धम , मारीच,
व ुत ज हा, कुंभकण व धू ा आ द सभी असुर नायक, रावण क नमम रणनी तय को
या वत करते ए, अपने लए नाम कमा रहे थे। कुछ हज़ार दे व या असुर यो ा के
ाणांत से उ ह कोई अंतर नह पड़ता था। वे केवल क त क चाह रखते थे, जसे उ ह ने
र व मारकाट के मा यम से ा त कया। कुछ असुर युवक क मृ यु तो संयोगवश होनी ही
थी और वह बात इतना अ धक मह व भी नह रखती थी।

हमने कुबेर क सेना को आ यच कत कर दया। उ ह ने भी वीरतापूवक यु कया परंतु


हमारी सेना ने ग को चार ओर से घेर लया था। जब आकाश के पूव छोर म लाली दखी
तो हम पूरी रात क घेराबंद के बाद आगे बढ़े , कुबेर क सेना या तो मारी गई थी या यु का
मैदान छोड़ कर भाग नकली थी। जब हम कुबेर के क म प ँचे तो वह धू-धू कर जल रहा
था। हमने यह सोच कर स ता कट क क कुबेर मारा गया परंतु ह त ने सारे य का
बारीक़ से अ ययन करने के बाद घोषणा क क वह आग लगी नह थी। उसे जानबूझ कर
लगाया गया था और कुबेर वहाँ से भाग नकलने म सफल रहा। फर हम जंगल क ओर
नकलने वाले एक और गु त माग का पता मला, परंतु हमारी ओर से ब त दे र हो चुक थी।
कुबेर कब का नकल चुका था। य प कुबेर के अ के पैर के नशान से पता चल रहा था
क वह कस दशा म अलोप आ है। हमारे खोजी दल ने आसपास के इलाक़ म उसक
तलाश भी क परंतु वे इस काम को यादा समय तक करने के इ छु क नह थे य क इस
दौरान उनके सहकम लूटपाट के मनपसंद काय म म न थे। वे भी ज द से ज द इस काय के
लए लौटना चाहते थे। हमने अलकापुरी म जो लूटपाट क उससे रावण क सेना को और
अ धक बलशाली बनाने म मदद मली।

अलकापुरी के पतन के बाद, बाक सब कुछ सामा य भाव से चलने लगा। हमने दे व रा य
को कुचल कर न - कर दया; व णु के मं दर म आग लगा द , जहाँ संभव हो सका,
शव लग क त ा क तथा यु से जुड़े सभी अनु ान जैसे बला कार तथा लूटमार आ द
का बड़ी ही न ा से पालन कया।

जब तक हम, सरयू नद के कनारे थत अयो या के छोटे से रा य तक प ँच,े मानसून का


अंत हो चुका था। सरयू पूरे वेग से बह रही थी। हम कुछ री से, टू टे-फूटे मकान तथा
झ प ड़य पर लगी जीण-शीण पताका को दे ख सकते थे। उन पर उगते ए सूय का च ह
अं कत था परंतु उनक दशा दे ख कर तो इसे सूया त क नगरी कहना ही अ धक उपयु
होता। रावण ने अयो या के राजा, अनार य को संदेश भजवाया क वह आ मसमपण कर
दे ।

परंतु छह दन बीत गए और वहाँ से कोई संदेश नह आया। रावण ने अधीर हो कर, हम


आदे श दया क नद पार करके, नगर पर आ मण कर दया जाए। परंतु जब हम नगर म
प ँचे तो कैसा अभूतपूव य दे खने को मला! मने अब तक जतने थान दे खे थे, संभवतः
यह उन सबम से अ धक दयनीय दशा म था। सड़क टू ट ई थ और बालक नव डोल रहे
थे। आवारा कु के सड़े कंकाल पर म खयाँ भन भना रही थ । सूअर बचे भोजन क
जूठन पर ऐश उड़ा रहे थे। लोग सड़क पर रहते और वह मल-मू का वसजन भी करते।
ग लयाँ ब त सँकरी तथा धूल से भरी थ । यह तो मानो धूल व गंदगी का घर था। य द यह
हमारे माग म न आता, तो यह थान इस यो य था ही नह क यहाँ कोई आए। वहाँ तो लूटने
के लए कुछ था ही नह । हमारे वागत के लए कोई वप ी सेना भी तैयार नह मली।
इसक बजाय, भ ुक का एक दल, बाँह पसारे, भ ा क आस म हमारी ओर दौड़ा। हम
उलझन म थे और इसी दौरान अपनी जेब खंगालने लगे ता क उनके हाथ पर कुछ रख सक।

लंका व अलकापुरी के वैभव तथा वला सतापूण राज ासाद को दे खने के प ात इस जीण-
शीण व व त महल को दे खना कसी बड़े सदमे से कम न था। फ़श हमारे जूत तले चरमरा
रहे थे, तंभ को द मक चाट गई थी, पद म धूल भरी थी और छत म सुराख ए पड़े थे।
एक वृ व णु क तमा के आगे, आलथी-पालथी लगाए नतम तक था और मन ही मन
कुछ बुदबुदा रहा था। रावण ने कुछ ण तक ती ा क और फर उसने वृ का कंधा
थपथपाया। पहले कुछ ण तक तो कुछ नह घटा। फर धीरे-धीरे वह वृ अपने थान से
लड़खड़ाते ए उठा। रावण ने उसे हाथ का सहारा दे ना चाहा तो वह उसका हाथ परे झटक
कर ऐसे वर म च लाया, जो उसक आयु को भी झुठला रहा था, “अरे अ पृ य शू ! मुझे
अशु मत कर!” हम तो तं भत रह गए। एक श शाली स ाट, जो अब तक के लगभग
आधे प र चत जगत पर अपना आ धप य जमा चुका था, एक अश वृ के स मुख खड़ा
था, जो बड़ी ही नल जता से वयं को एक व त नगर का राजा कहता था। भयकातर होने
क अपे ा, वृ राजा, स ाट को आदे श दे रहा था क वह उसे पश कर अप व न करे।
मने अपने राजा को घूरा। वह ण भर के लए तो सकते म आ गया और मन ही मन कुछ
बड़बड़ाया जो सुनने म काफ़ हद तक यही लगा, ‘मेरे पता भी एक ा ण ह।’

“अछू त! तु हारी माँ क कोई जा त नह थी इस लए तुम भी अछू त हो।” वृ लगभग च ला


रहा था।

रावण के ने म लाल डोरे झलक आए, उसने वृ को गदन से दबोच लया और अपनी
तलवार क नोक उसक गदन से सटा द । “म कसी ऐसे अश बूढ़े क ह या नह करना
चाहता, जो यु न कर सके। तुम आ मसमपण कर दो और म तु ह ाणदान दे ँ गा।”

“म एक शू के सम आ मसमपण नह क ँ गा।”

“तो एक शू के हाथ ाण यागने के लए तुत हो जाओ।” रावण गरजा।

“शू ! म तु ह व णु क ओर से ाप दे ता ।ँ मेरे वंशज, तुमसे तशोध लगे क तुमने मुझे


अप व कया था। वे तु हारे नगर, तु हारे वंश व तु हारी प नय के मान-स मान, तु हारे
पु … को वन कर दगे…।”

रावण ने एक ही वार म अयो या के राजा का काम तमाम कर दया।

फर मानो संकेत पाते ही पूरी सेना, मृत राजा के छोटे से दे वालय पर टू ट पड़ी और उसे
गराने म दे र नह क । हम तमा के भीतर छपे मा ण य मले और तमा को मं डत करने
वाली मालाएँ ठोस सुवण क बनी थ , जनम हीरक जड़े थे। मृतक राजा ने यह कह कर
हमारा घोर अपमान कया था क हमारे पश मा से वह अप व हो जाएगा। इसी अपमान
को मरण करते ए, हमारा आ ोश गु णत हो उठा और हमने उनके मृत दे व व उनक
थूल प नय क तमा को लूटने म कोई कसर नह छोड़ी। परंतु भीतर ही भीतर, कह
कोई रा स अपने तीखे वषदं त से मुझ पर हार कए जा रहा था। हमारा स ाट, असुर
का मु दाता, दे व राजा के स मुख लगभग मा-याचना करते ए, यह बुदबुदाते ए सुना
गया था क उसका पता भी एक ा ण है।
18 असुर राजकुमारी

रावण
मने जीण-शीण राज ासाद को अपनी सेना के लए छोड़ दया ता क वे उसे लूट सक। जब
म नगर के बाज़ार से नकला तो लोग मुझे दे खते ही माग दे ने के लए, पीछे हटने लगे।
पहले-पहल, मने यही सोचा क संभवतः मुझे एक व जत नरेश के प म मान- त ा दे ने
के लए ही ऐसा वहार कया जा रहा है परंतु मुझे यह समझने म यादा दे र नह लगी क
यह सब इस लए हो रहा था य क म एक शू था। म उनके महान नगर को षत कर रहा
था। उसे अपनी उप थत से अप व कर रहा था। यहाँ तक क हम दे खना भी बुरा माना
जाता था। हम दे खने से ही सामने वाला अशु हो जाता। मने मैल-े कुचैले व म
लपटे ा ण को दे खा, जो हाथ म पकड़ी लाठ को ज़ोर-ज़ोर से ज़मीन पर पटक रहे थे
ता क शू को अपने साए से भी र रहने क चेतावनी दे सक। बाज़ार के सभी काय भी इस
कार कए जाते थे क कसी भी प म, य का पर पर पश न हो या वे एक- सरे
को अप व न कर सक। परंतु वे सड़क तथा माग पर पान के रस क पीक भी थूक रहे थे
और उ ह पर नःसंकोच चल भी रहे थे। लोग खुलेआम मल याग कर रहे थे परंतु इस वषय
म पूरी तरह से सतक थे क कह कसी शू से उनका पश न हो जाए। य द यह सब इतने
वरोधाभास से भरा तथा दयनीय न होता तो नःसंदेह यह एक हा या पद वषय था। य द म
इस मूखता से प रपूण था को न रोकता, तो जा त था क यह अ त पूरे भारत म फैल
जाती। और य द ऐसा हो जाता, तो हम अपनी वतं ता को सदा के लए वदा दे नी पड़ती।

एक दन, म गहरी झपक म था क अपने खेमे के बाहर हो रही हलचल से आँख खुल गई।
म बाहर नकला तो य दे ख कर भ च का रह गया। वहाँ चार-पाँच असुर खड़े, एक युवती
के साथ हाथापाई कर रहे थे। म गु से से आग हो उठा। बेशक जब आपने कड़े संघष के बाद
कोई यु जीता हो और आप कसी युवती को, वशेष प से कसी दे व युवती को अपने
लए पाना चाह रहे ह तो यह वीकाय था परंतु हर बात क एक सीमा होती है। मेरे
अंगर क कहाँ थे? तभी मने दे खा क वे भी युवती पर झपटने वाले असुर म स म लत थे।

“छोड़ दो उसे।” म गु से से दहाड़ा। तीन असुर, जनम से एक क चड़ म गर कर लथपथ


हो गया था, वह झट से उठा और वे अलोप हो गए। शेष दो ने मेरे हाथ म नंगी तलवार दे खी
तो उ ह ने भी भागने म दे री नह क । इसके बाद ही म दे ख सका क भला वे कस के लए
आपस म संघष कर रहे थे? उस युवती के मुख से अवगुंठन हट गया था। कैसा सुंदर मुखड़ा
था! काली गहरी आँख अ न क भाँ त द त थ , घनी व मुड़ी ई पलक, उसे और भी
मासूम बना रही थ । उसके लाल भरे-भरे ह ठ, तीखी व उ त ना सका के नीचे ब त भले
लग रहे थे। काले, घुँघराले बाल से माथे पर लट बन रही थ । उसक वचा बेदाग थी और
क चत ह ठ सकोड़ने क अदा से, उसक ल जा कट हो रही थी। म उसे एकटक घूरता
रहा। य ही उसे मेरी वासना भरी का आभास आ, वह ल जा से और भी संकु चत हो
उठ । मने आज तक उससे अ धक गौर वण युवती नह दे खी थी। उससे त ण ैण
आकषण तथा कोमलता कट हो रही थी। म उसे पाना चाहता था। उसने अपनी पोशाक
ठ क क और मुझसे नज़र फेर ल ।

इस ी ने मेरे भीतर एक पा क वासना जागृत कर द थी। म उसक ओर बढ़ा और उसे


कलाइय से जकड़ लया। उसने अपनी बाजू पीछे ख ची व वयं को छु ड़ाने का यास
कया। मने उसे पुनः पकड़ना चाहा और उसने उसी ण एक करारा तमाचा मेरे मुँह पर
रसीद कर दया। मेरा गाल दहकने लगा। म दं ग रह गया। जब मने उसे दोबारा पकड़ना
चाहा, उसने फर से मेरे चेहरे पर एक तमाचा दे मारा। इस बार मेरी ना सका से र आने
लगा था। वह तो बड़ी ही मज़बूत काठ क औरत नकली। मने इस तरह मुड़ने का दखावा
कया मानो उसे छोड़ दया परंतु उसी ण पलटा और च कर खाते ए, उसे धरती से उठा
लया। उसक चीख़-पुकार व खर च को उपे त करते ए, सीधा अपने खेमे म ले गया। म
ो धत था परंतु इससे भी बड़ी बात यह थी क म उसे चाहता था। मने उसे पलंग पर पटक
दया और जब उसने वहाँ से जबरन उठना चाहा तो मने उसे एक करारा तमाचा दे मारा।
उसने मुझ पर थूक दया। मने रेशमी चादर से उसके हाथ-पाँव बाँधे और कसी पोटली क
तरह ब तर पर पटक दया। इस दौरान उसने मुझे तीन बार काटा व असं य खर च द ।

फर म हाँफ़ते-काँपते ए, नकट पड़ी कुस पर जा कर बैठ गया। वह मेरी ओर पीठ कए


पड़ी थी; उसके गोल-गोल नतब को दे ख, एक बार पुनः वासना क अ न भड़क उठ …
‘वह मेरे साथ संभोग य नह चाहती? म तो भारत का स ाट ँ। महान असुर राज रावण!’

कुछ ण के मौन के बाद, मने उसे अपनी ओर मोड़ने क चे ा क । “तु हारा नाम या है?”
मने उसी ण पूछा और पूछते ही मुझे अपनी मूखता का आभास हो गया। उसने हौले से
अपना मुख ऊपर उठाया, उसके काले घुँघराले बाल, माथे पर लट के नमूने बना रहे थे।
उसक आँख मानो मुझे भेदती चली ग और म भयभीत हो उठा। मेरे पूरे मे दं ड म
कँपकँपी सी दौड़ गई।

“ या तु ह कसी युवती का बला कार करने से पूव, उसका नाम व पता भी जानने क
आव यकता होती है?” उसने पूछा। मुझे कुछ समझ नह आया क उसे या उ र ँ । मेरे
मन के कसी कोने को यह बात इतनी हा या पद लगी क म खुल कर ठहाका लगाना
चाहता था परंतु फर म एक मूख क भाँ त उठ खड़ा आ, मेरे पास कोई श द नह थे, म
नह जानता था क मुझे इस अवसर पर या कहना चा हए। म खाँसा, हकलाया और वहाँ से
बाहर नकल आया।
“जब तुम मेरे साथ अपनी इ छा पू त कर लो, तो कृपया मुझे कुछ ण के लए जी वत छोड़
दे ना, म तु हारे राजा, महान असुर स ाट, रावण से भट करना चाहती ँ।” उसने इ ह श द
के साथ वह धरती पर थूक दया।

“परंतु… रावण तो म ही ँ।” मेरा वर थरथरा उठा।

उसके भीतर से एक पशुवत् ची कार नकली और म बुरी तरह दहल गया। वह अपने-आप
को छु ड़ाने के लए संघष कर रही थी परंतु अंततः परा जत हो कर, सुब कयाँ भरने लगी। म
कुछ ही री पर खड़ा, उसे दे खता रहा। कुछ समय बाद, म उसके समीप आया, म उसे पश
करना चाहता था परंतु मेरे हाथ काँप रहे थे और मने सकुचाते ए, अपनी भुजा धीरे से
उसके कंधे पर रखी। वह ज़रा सा हली और मुझे गहन घृणा के भाव से दे खा। मने अपना
हाथ पीछे हटा लया।

“ या तुम जानते हो क एक दे व वधवा अपना जीवन कस कार तीत करती है?” उसने
र रयाते ए पूछा। म शांत रहा।” या तुम जानते हो क एक दे व वधवा के पास या
वक प होते ह… तुम जानोगे भी कैसे? तुम तो वजेता हो। तु ह कुछ लोग क जान से
भला या योजन होने लगा…?”

म बुरी तरह से वत हो उठा। परंतु म एक भ स यता से संबंध रखता था। मने भी दे व


य क दयनीय व शोचनीय दशा के वषय म सुना था और मुझे लगता था क वे संग
इतने भयंकर थे क उ ह न त प से, श द का जाल बुनने वाले असुर अथवा नागा ने
दे व को नीचा दखाने के लए ही गढ़ा होगा।

“तु हारे लोग ने मेरे प त क ह या कर द । वह एक नधन था… एक ा ण, जसने


आज तक कभी कसी क कोई हा न नह क थी… तु हारे लोग ने उसके ाण य लए?”

म बुरी तरह से खीझ उठा। ‘म एक ा ण क वधवा के साथ या कर रहा था? या वह


एक ा ण युवती थी, इस लए म उसक ओर आक षत आ? या उसके गौर वण ने मेरे
भीतर पा क वासना को जगाया था?’

“हम अपने सुर के घर म एक बंद का जीवन जी सकती ह… हम अपने केश का मुंडन


करना होगा… हाथ व कंठ को आभूषण से र हत करना होगा… जान-बूझ कर वयं को
अनाकषक बनाए रखना होगा… एक जी वत लाश क भां त… न माथे पर ब दया… न हाथ
म खनखनाती चू ड़याँ… न ही रंगीन व व सा ड़याँ… केवल कोरे सफ़ेद व … कोई जीवन
नह … बना कसी वेतन क नौकरानी… एक चलती- फरती लाश!”

म दहल उठा। म तो कसी असुर ी के लए ऐसे जीवन क क पना तक नह कर सकता


था। य द प त क मृ यु हो जाती, तो वह न त तौर पर, कुछ समय के लए उसक मृ यु का
शोक अव य करती और फर अपने लए कोई और जीवनसाथी खोज कर, जीवन क राह
पर आगे चल दे ती।

“तुम श शाली राजा हो, ँह!… जानते हो, म अपने प त क जलती चता म कूद कर दे वी
बन सकती थी… एक म हमामयी सती। तब वही लोग, जो मेरे जीवन म मुझसे कसी पशु से
अ धक पेश न आते, वही लोग मेरे नाम पर मं दर बनवाते और मेरा पूजन करते, मेरी जय-
जयकार करते।”

“तु हारा नाम या है?” मने उससे पूछा। म उसके समीप गया और उसे चबुक से थाम
लया। उसक आँख म अ ुधारा उमड़ पड़ी और वे चमकने लग । मने उनम अपना ही
त बब दे खा और वह इतना छोटा जान पड़ा क म अपनी ही नज़र म मह वहीन हो उठा।
वह ब त दे र तक, मेरे चेहरे को ताकती रही। अंततः उसके होठ के कोन पर एक मु कान
खेल उठ । म पघल उठा। “वेदवती।” उसके मुख से ये श द नकले और म त ण इस दे व
ा ण युवती से ेम करने लगा।


जब ारपाल ने मुझे न ा से झकझोर कर जगाया तो म उसे और उसके पूवज को कोसने
लगा। मेरे मुख से दे सी शराब क बू आ रही थी इस लए मने एक बार और पानी से मुख
शु क और वयं को धानमं ी के खेमे क ओर घसीट ले गया। मुझे य नह बुलाया
गया था? ये पछले कुछ माह हमारी जा त के लए कसी अ भशाप से कम नह रहे थे। खेमे
के अ धकतर लोग इस अ भयान के त मत थे। हम नमदा नद के कनारे, घने वन म
खेमे लगाए बैठे थे, हम जंगली बेर व उन मूख जंगली वानर को मार कर अपना पेट भरते,
जो अपनी मूखतावश हमारे खेम के आसपास मंडराते रहते थे। हम ग़लत तरीक़े से बनी
गंद शराब पीते, और कसी मु हम पर जाने क अंतहीन ती ा करते।

ह त जैसे बु मान सर भड़ाए, फुसफसा कर बात करते। परंतु हमारे राजा रावण को तो
मनबहलाव का अ छा साधन मल गया था। वह अपने साथ अ भयान पर नकले सभी मूख
को भुला कर, एक हठ ा ण युवती को फुसलाने व उसका दल पघलाने क जी-तोड़
को शश म लगा था। उसने अपने मं य से भट करने से इंकार कर दया था, सेना का
नरी ण करना याग दया था, और यहाँ तक क अपने ेरणा पद ा यान दे ना भी भुला
बैठा था। वेदवती नद के समीप आलथी-पालथी लगा कर, यान रमाती अथवा असुर राजा
को बुरी तरह से कोसती, जसके कारण उसके सभी इ -संबंधी परलोक सधार गए थे।
राजा ेम म द वाने कसी कशोर क भाँ त उसके आसपास मँडराता, उसका यार पाने के
लए वनती करता रहता। यहाँ तक क वह उस न ही सी जान को भी भुला बैठा था, जसे
वह अपने साथ र ा के लए यु अ भयान म ले आया था, न ही ब ची भूख से अकुला कर
च लाने लगती परंतु फर भी वह अपनी ेम मूछा से नह जागता था। वह ा ण युवती
उसके सभी आकषण से अछू ती रही और इसी बात ने रावण को और भी कर दया
था। मुझे तो यह समझ नह आता था क वह उसे बलपूवक अपना य नह बना रहा था?

हमारा अ भयान दल न े य यहाँ-वहाँ वचरण करता रहा। हम बड़े रा य को उपे त


करते ए आगे बढ़े , अ धकतर तो हम वन म डेरा डालते और यदा-कदा कसी ाम के
ख लहान व कोठार पर धावा बोल कर, कुछ खाने को जुटा लेत।े अंततः, कई माह तक
भटकने के प ात, हम नमदा नद के तट पर प ँचे और हमारे राजा ने तय कया क वह
अपनी तैरने क कला का प रचय दे कर, वेदवती का दल जीत लेगा। उसने अपने व
उतारे और वेग से वा हत नद म छलाँग लगा द , फर वह उस ती वेग के साथ ही कह
बह गया। कम से कम उस युवती ने प रषद को तो यही बताया था। हमारे स ाट ने
अंगर क को भी र भेज दया था, तो उस युवती के अ त र वा तव म कोई नह जनता
था क आ या था?

कुछ ही दन बाद, हमारे पास राजा कात वीराजुन का संदेशवाहक आया, उसका दावा था
क असुर राज रावण उनक क़ैद म था। सारी सेना को गरवी रखना पड़ा। पूरे तीन दन तक,
असुर प रषद, धानमं ी के खेमे म बंद रही। वे सब गहन वचार- वमश म म न थे। इस
दौरान खेमा दो भाग म वभा जत हो गया था। व ुत ज हा के अनुया यय ने अफ़वाह
फैला द थी क रावण तो पहले ही मारा जा चुका था। उनका तक था क लंका वा पस
लौटना ही कह बेहतर वक प था।

क के अधीन सरा दल, यह ताव रख रहा था क उ ह कात वीराजुन जैसे वणसंकर


पर धावा बोल कर, उसे सबक सखाना चा हए था, भले ही हमारे राजा के ाण संकट म
य न आ जाएँ। उसके साथ सुमाली तथा मा यवान जैसे समथक थे, जनका यह मानना
था क असुर क त ा दाँव पर लगी थी और एक न त प रणाम के साथ कए जाने
वाले त काल यु क आव यकता थी। न:संदेह, ये सब अटकल उन ारपाल ारा लगाई
जा रही थ , जो प रषद के खेमे के बाहर खड़े थे।

जब मने तंबू म वेश कया तो सभी महान ग े दार आसन म धँसे थे। मने ह का सा
झुक कर णाम कया और अपने मुँह पर हाथ रख लया। मेरी आँख धरती को ताक रही
थ , रीढ़ क ह ी झुक थी और म इसी को शश म था क उनसे नज़र न मलानी पड़। राजा
का सहासन र था परंतु ह त समीप ही आसीन था। वहाँ एक ाकुल कर दे ने वाली
शां त का सा ा य था।

फर ह त बोला, “भ ! हम तु ह एक वशेष काय स प रहे ह। हम अनुभव होता है क


केवल तुम ही वह काय कर सकते हो।”

“हो सकता है क यह तु ह नकृ जान पड़े परंतु जो भी हो, तु ह इसे नभाना ही होगा।”
मारीच मेरे समीप आए और सां वना से भरा हाथ मेरे कंधे पर रख दया।

व ुत ज हा ता से मेरी ओर बढ़ा और म भयभीत हो उठा। म सीधा खड़ा हो कर, उसक


आँख म आँख डाल कर दे खना चाहता था परंतु मेरा शरीर उसी तरह झुका रहा। वह बोला
“तुम उस दे व युवती को कह ले जा कर समा त कर दो। और साथ ही उस भा य को
यौतने वाली राजकुमारी को भी ले जाना।”

मने अभी-अभी जो सुना था, उसे सुन कर मेरा बदन सहर उठा। मुझे भी वह युवती कभी
पसंद नह आई परंतु वह हमारे राजा क ेयसी थी।

“ या हम उसे मार दे ना चा हए? उस न ही सी राजकुमारी को भी…।” मारीच बुदबुदाए

“थू…।” व ुत ज हा वह धरती पर थूकते ए बोला, “हमारा राजा नल ज क भाँ त उस


युवती के पीछे मँडराते ए, पहले ही हमारे लए ब त सा भा य यौत चुका है। या तुम उन
भ व यवा णय को भूल गए? रावण क यह न ही पु ी हमारी पूरी असुर जा त के लए एक
अपशकुन है। वह हम सबके लए मृ यु तथा वनाश का कारण होगी और हमारा राजा यह
मानता है क ये सब मूखता से पूण अंध व ास ह। म तो कसी भी तरह का कोई संकट मोल
नह लेना चाहता।”

मारीच का वर सुनाई तक नह दे रहा था मानो उ ह ने कुछ नगल लया हो और साथ ही


बोलने क चे ा भी कर रहे ह । “हमारा यु अ भयान ब त ही नाजुक मोड़ पर आ खड़ा
आ है। हम बुरी तरह से परा जत होने के कगार पर ह। हमारा राजा बंद बना लया गया है
और हम भय है क राजा को कात वीराजुन से बँधक छु ड़ाने म ही हम सब न हो जाएँग।े
हमारी सेना का मनोबल टू ट चुका है और प रषद ने अपनी बु मता व ववेक का प रचय
दे ते ए, यह नणय लया है। हमारा यह मानना है क वह ी ही हमारे स ाट के पतन का
कारण रही और वह संपूण असुर जा त के गले म च क का पाट बन कर लटक गई है।”

ह त मेरी ओर बढ़ा और फर एक ऊँचाई तक प ँच कर, मेरे कान म हौले से फुसफुसाया,


“उसे ले जाओ और समा त कर दो।”

व ुत ज हा भी समीप आया और फुँफकारा, “उस न ही ब ची को मत भूलना।”

मुझे ह त ने हाथ के संकेत से जाने को कहा और म भारी दय के साथ अपने तंबू क ओर


लौट आया। म पछाड़ खा कर, अपने ब तर पर गर पड़ा। म इन लोग के लए एक ान क
तरह वामीभ दखाते- दखाते तंग आ गया था।

‘इन कमीन को यह दै वी अ धकार कसने दया क ये हम जैसे नधन पर अपना रौब


दखाएँ?’ मुझे अपने ही भीतर से रोस व ोध उठता दखाई दया, परंतु जस ण वह
उबाल पर आने को था, उसी ण म एक सै नक ने भीतर वेश कया और सु वा ंजन
से सजी थाली मेरे आगे ज़मीन पर रख द । उसने धातु के एक गलास से टं कार क और
उसम ब ढ़या शराब भर द । म अपने ब तर से उठ बैठा और इस काय को मन मार कर
दे खने लगा।

“तुम उनके आगे गड़ गड़ाए होगे? है न? ख़ैर! तु ह भरपेट भोजन दया जा रहा है।” उसने
दाँत भ चे और बाहर चला गया।

हम पछले कुछ दन से, भोजन के नाम पर केवल कुछ च मच चावल तथा तरीयु द लया
ही दया जा रहा था। वह पेट भरने के लए कभी पया त नह होता था। परंतु दल के
मह वपूण य के लए तो कभी व तु का अभाव था ही नह , उनके लए सदै व
अतर ंजन उपल ध रहते। जब आप कुछ करते, जो उनक इ छापू त म सहायक
होता, तो वे यदा-कदा अपने मेज से आपके आगे रोट के कुछ कौर डाल दे त।े म ब त दे र
तक थाली को घूरता रहा। अचानक ही, पेट म भूख के बगूले से उठने लगे। मने भूख महसूस
क । मने धोती से हाथ प छे और बड़ी ही आकुलता से अपनी थाली पर टू ट पड़ा। फर मने
अपनी तस ली के लए थाली तक चाट डाली और एक ही घूँट म म दरा भी नगल गया।
इसके बाद धातु का गलास बाहर भनका दया। वह बाहर कह अंधकार म जा कर गरा
और ख के वर के साथ अपनी उप थ त दज क ।

जब मुझे गहरी न द से झकझोर कर जगाया गया, तो बाहर अभी अँधेरा ही था। मेरा सर
मारे दद के फटा जा रहा था, संभवत: यह म दरा का भाव रहा होगा। म बैलगाड़ी तैयार
कए जाने के वर को सुन सकता था। म बाहर गया और शीतल जल से अपना मुख धोया,
पूरा शरीर कँपकँपा रहा था, खुल कर अंगड़ाई लेने से बदन को थोड़ी राहत मली। म मारीच
क लंबी आकृ त को अपनी ओर आते दे ख सकता था।

उसने कहा, “भ ! हमने तु ह जो काम स पा है, म उसके लए तुमसे मा चाहता ँ परंतु


तु ह उसे कसी भी दशा म करना ही होगा, तु हारी जा त के लए, तु हारे स ाट के लए!”

म शांत व अ वचल खड़ा रहा। कह र, समय से पहले ही, मुग ने बाँग द । “म आशा करता
ँ क हम जो कर रहे ह, वह ब कुल अनु चत नह है… मुझे उस क या के लए ःख है…
और न:संदेह उस ा ण युवती के लए भी खेद है। भ ! बाक सब भुला दो और केवल
अपने कत पर यान दो। अपने दमाग़ पर कोई ज़ोर मत डालो। तुम सब कुछ हम पर
छोड़ दो।” और वह मुड़ कर लौट गया।

म कुछ ण तक वह झुका खड़ा रहा। बेशक म सादे दमाग़ वाला आदमी था परंतु मने
अपने हाथ को उन नद ष के र से सना पाया। म सीधा खड़ा हो कर भीतरी शां त व
श के लए ाथना क और अपने भीतर से उस भावना के कट होने क ती ा क , जो
मुझे े रत करने वाली थी क म तो केवल अपने कत का पालन कर रहा था। परंतु ती ा
के बाद भी अपने भीतर केवल आ म-दया का भाव ही मुख रत आ और उस भावना से
खीझ कर, म गाड़ीवान के थान पर बैठ कर, आने वाले ण क ती ा करने लगा।

जब वे उसे लाए तो पूव के एक छोर पर लाली दखने लगी थी। उसे बेहोशी क दवा सुँघा
कर बेसुध कया गया था। दो लोग उसे पीठ पर लाद कर लाए और मुझे दे ख कर आँख
मारी। वे उसे वह छोड़ कर लौट गए। कुछ दे र बाद मारीच ने क़दम रखा। उसने ब त ही
नज़ाकत से उस पोटली को थामा आ था जसम न ही सी ब ची थी। उसने हौले से उस
ब ची का माथा चूमा और उसे उस युवती के समीप रख दया। वह पीछे मुड़ा और मेरी
नज़र से नज़र चुराने का यास कया। मने दे खा क ब ची क जाँघ पर एक आँसू चू गया
था। वह हौले से हली और अपनी न ा के बीच कसी दे व त क तरह मु कराई और शां त
से पुनः सो गई।

मने बैल को झटके से एक कोड़ा फटकारा और बैलगाड़ी हचकोल के साथ चलने लगी जब
म उफनती ई नमदा के कनारे प ँचा, तब तक सूयदे व पूव दशा म पूरे भाव स हत उ दत
हो चुके थे। चार ओर र म आभा छाई थी। ातःकालीन सूय के काश ने बूँदाबाँद को भी
ह के सुनहरे रंग म रंग दया था। सु र तज पर एक वशाल इं धनुष दख रहा था और
मने उससे अपना मुँह मोड़ लया। बैलगाड़ी घने वन म, पगडंडी पर हचकोले खाती, दे व के
रा य क ओर बढ़ रही थी। मेरा शकार अब तक अपनी बेहोशी क न द म था। वन क
सुदंरता ने मुझे लुभाया और म कुछ समय के लए अपने गहरे वचार से मु पाने म सफल
रहा। मने अपने मुख पर आती सुखद शीतलहरी का आनंद लया, सुगं धत वायु ने मेरे गाल
को सहलाया और म तो यह भी भूल बैठा क मुझे या काय स पा गया था। म तो सचमुच
ब त ही सीधा और सरल दमाग़ वाला था, है न?

जब म व ाम के लए एक थान पर ठहरा तो अंधकार होने को था और सूय कह सु र


पहा ड़य के पीछे अ त हो रहा था। वह युवती अब भी सो रही थी। मने अपने भीतर वासना
क लहर दौड़ती अनुभव क । जैसे ही म काँपते हाथ से उसक ओर बढ़ा, न ही ब ची
एकदम हली-डु ली। म झटका खा कर पीछे बैठ गया और मने वयं को ल जत अनुभव
कया।

तभी मेरा ोध लौट आया। वह मेरी थी और म उसके साथ, जो जी म आए, कर सकता था।
मुझे ही तो उसे नपटाने का काम स पा गया था। हम यह कहानी चा रत करनी थी क म
उसे और छोट ब ची को, खेमे से कुछ ही मील क री पर थत, गाँव के वै के पास ले जा
रहा था य क उन दोन को ही जंगली बुखार हो गया था, परंतु दोन को ही मौत के मुँह म
जाने से नह बचाया जा सका। अब तक, म डेरे से कई मील र आ चुका था। अगर म उसके
साथ कुछ करता भी तो भला कौन जान लेता? संभवतः प रषद मेरे इस काय को भी सराहे।
म फर से आगे बढ़ा और अपने हाथ उसके व पर रख दए। मने उसके व से बँधा व
खोलने क चे ा क परंतु म अपनी उ ेजना के कारण यह काम कर नह पा रहा था। म
अपनी को शश म सफल होने ही वाला था क उसने अचानक अपनी आँख खोल और मुझे
कसी गाय क तरह एकटक घूरने लगी। म भयभीत हो उठा, उसे छोड़ा और पीछे छटक
गया। उसक आँख म आँसू छलछला उठे और उसक आँख से गरा आँसू, गाड़ी पर बछे
लाल रेशमी व को भगो गया। मने वयं को ल जत अनुभव कया और अपना मुख
सरी ओर फेर लया। फर उसके मुख से एक चीख़ नकली – एक ऐसी चीख़ जसम पीड़ा,
ःख व पूण प र याग के म त भाव थे। यह सुन कर आसपास के प ी च ँक उठे ।
म अपने साथ तेल का जो छोटा द पक लाया था, वह छलका और रेशमी चादर व उसके
व पर तेल के ध बे पड़ गए। मने उसे सीधा करना चाहा पर मारे भय के, मेरे हाथ
कँपकँपा रहे थे। वह गला फाड़ कर च लाई, “अस य असुर, तूने मुझे छू ने का साहस कैसे
कया? तेरी इतनी मजाल!” छोट ब ची जाग कर, ज़ार-ज़ार रोने लगी।

“आज तक तु हारे वामी क इतनी ह मत नह ई क मुझे हाथ लगा जाए और तू… ।


तूने इतना साहस कैसे कया?”

मेरा ोध फर से हावी हो गया था। वह उस घने वन म अकेली थी और मुझे उसका वध


करने के नदश दए गए थे। उसने पीछे हटने क चे ा क तो म उसक ओर बढ़ा। उसने
गाड़ी से बाहर जाने क चे ा क परंतु जस तेल के द पक ने उसके व पर तेल के ध बे
डाले थे, उसक फड़फड़ाती लौ एकदम से जी वत ई और वायु के कारण उसके व म
आग लग गई। मने सहज वभाववश उस आग को बुझाने के लए हाथ आगे कया परंतु
उसने मुझे एक करारा तमाचा जड़ दया और वयं नद क ओर भागी। वह आग का एक
गोला लग रही थी जो गु से व पीड़ा के मारे च ला रही थी। वह कभी नद तक न प ँच
पाती। म उसके पीछे भागा ता क उसे पकड़ सकूँ और य द संभव हो, तो उसक ाण र ा
कर सकूँ। वह लगातार च लाती रही, पर उसका पूरा शरीर आग क लपट म घरा आ
था। वह नद के कनारे से कुछ ही री पर गर पड़ी और उसके पास कोई सहायता उपल ध
नह थी। मने भी उसे बचाने का यास याग दया। जो भी हो, मुझे तो समा त करने का ही
काय स पा गया था। य प, वह एक लंबे समय तक जीने के लए संघष करती रही। नद के
कनारे पड़ी वेदवती, कसी अधजली गद क तरह लग रही थी और उसे दे ख कर, भय का
अनुभव हो रहा था। वह नरंतर पूरी असुर जा त को कोसती रही। वह च लाई क रावण ने
उसक यह दशा क है अतः वह अगले ज म म लौट कर, उसे भूत बन कर सताएगी। म उसे
एक उदासीनता के साथ मरते ए दे खता रहा, जो काफ़ हद तक नीरसता म बदल गई। वह
अं तम साँस लेने से पहले च लाई क वह एक आ मा के प म न ही असुर राजकुमारी के
शरीर म वेश करेगी और यह य न करेगी क पूरी असुर जा त का नाश हो जाए और
उसके इस ाप, प व ता व मूखता के कारण ही यो त षय क वह भ व यवाणी स य
स हो जाएगी। अंततः जब उसने दम तोड़ा तो सूय लगभग अ त हो चला था।

न ही ब ची का रोना भी थम गया था। म छकड़े क ओर भागा उसने मुझे बड़ी ही नद ष


मु कान के साथ दे खा। मुझे नह पता था क अब या करना चा हए और मने वचार कया
क मुझे पास ही दख रही च ान पर ब ची को पटक कर, उसक जान ले लेनी चा हए फर
मुझे अपने ही घर म, दे व ारा मार कर फक गई, एक ब ची क खोपड़ी क झलक दखाई
द । या म इस ब ची के साथ ब कुल वैसा ही करना चाहता था? मने उसे उठाया और
उसक न ही सी मु , मेरी छोट अंगुली के आसपास कस गई। म नह कर सकता था। म
ऐसा कभी नह कर सकता था। म ब ची को गोद म ले कर वह ढे र हो गया और फूट-फूट
कर रोने लगा।

म वहाँ काफ़ दे र तक, न ही ब ची को गोद म लए सोता रहा और अचानक ही कोलाहल से


मेरी न ा टू ट । एक वशाल शकारी दल दखाई दया – मने सैकड़ अ ारो हय तथा पैदल
सै नक को अ -श से लैस दे खा। वे नद के समीप खाली थान पर खेमा लगा रहे थे।
ब ची एकदम नढाल पड़ी थी, संभवतः उसक भी मृ यु हो गई थी। मुझे वहाँ से नकलना
था। शकारी दल इतना शोर कर रहा था क पूरा एक गाँव जाग जाता। मुझे भय था क कह
ब ची जग कर रोने न लगे। वे लोग दे व तीत होते थे, य प उनम अनेक अ ेत वण के लोग
भी शा मल थे। म नह चाहता था क वे उस मृतक ा ण युवती, ब ची और मुझे एक साथ
दे ख… मुझे कसी भी तरह, वहाँ से नकलना था।

परंतु जैसे ही म जाने के लए मुड़ा, मेरा पाँव उलझा और म एक नचली ढलान म जा गरा।
ब ची मेरे हाथ से छू ट और सीधे क चड़ से भरे ग े म जा गरी, वह गला फाड़-फाड़ कर
च लाने लगी। यह दे ख कर तो म अधमरा ही हो गया क एक सपाही मेरी ओर मुड़ा और
उसने इस ओर संकेत करते ए, सरे सपा हय का यान भी इस ओर आक षत कया। वे
छानबीन के लए हमारी ओर आने लगे। म बरगद के एक बड़े वृ पर जा चढ़ा और यही
उ मीद रखी क उनक नज़र मुझ पर नह पड़ी होगी। म क मत वाला था क उन लोग ने
ऊपर क ओर नह दे खा। मने और सपा हय को इसी दशा म आते दे खा और फर सबको
चौकस रहने का संकेत भी दया गया। उ ह नद के समीप, अधजली अव था म मृतक युवती
भी मल गई थी। मने उनम से एक को मु य डेरे क ओर, भाग कर जाते दे खा। फर आपस
म कोलाहल का वर सुनाई दया, वे लोग क चड़ से लथपथ जोहड़ से ब ची को नकालने
क को शश कर रहे थे। हालाँ क वह गहरा नह था परंतु ब ची धीरे-धीरे डू ब रही थी। सै नक
जानते थे क जस ण वे उसम क़दम रखगे, वे भी उस दलदली जोहड़ म फँस जाएँग।े

तभी एक मह वपूण सा दखता आया, उसक पीठ झुक ई थी। सारे दल ने उसे
झुक कर णाम कया और उ सा हत वर म वातालाप करने लगे। उसने जोहड़ म झाँका
और अपने एक अनुचर को हल लाने का आदे श दया। उसने उस हल क सहायता से, ब ची
को सावधानीपूवक बाहर नकाल लया। उसने ब ची के दल क धड़कन को महसूस कया
और ब त सी चीज़ लाने का आदे श दया। उसके सपाही आदे श क पू त के लए यहाँ-वहाँ
छटक गए। कुछ ही ण बाद, ब ची रोने लगी और वे सब स हो उठे । मेरा दल चाहा
क वृ क झुरमुट से च ला कर, म भी स ता कट क ँ परंतु मने कसी तरह अपने-
आप को रोक लया।

मने शाखा क ओट म ही छपे- छपे दे खा क उ ह ने वेदवती के शरीर के बचे अंश का


अं तम सं कार कर दया था और लोग क आपसी बातचीत से पता चला क वह व ान सा
दख रहा , म थला का राजा जनक था। उस दोपहर, सभी अपने राजा तथा मं जाप
कर रहे ा ण पुरो हत के पास एक ए, राजा ने झुक कर, उस ब ची को दया गया नाम
हौले से कहा। सारे दल म स ता क लहर दौड़ गई। वे ब ची का नाम ले कर जयजयकार
करने लगे। उसका नाम ‘सीता’ रखा गया अथात ऐसी बा लका जसका ज म हल क नोक
से आ हो। म उस ब ची के लए स था। कसी हसक व य पशु का आहार बनने के
थान पर, अब वह एक दे व राजकुमारी थी। म थला के राजा जनक क पु ी! वह एक
भा यशाली ब ची थी और मने आशा कट क क उसका यह भा य सदै व उसके साथ
रहेगा। वह मेरे वामी क पु ी थी, लंका क राजकुमारी, एक असुर राजकुमारी; परंतु एक
ऐसी राजकुमारी, जो एक अ भशाप के प म ज मी थी, अपनी ही बखरी ई जा त के
लए मृ युप थी!

बाद म, जब उनक मौज़-म ती समा त ई और उनम से तकरीबन या तो सो गए या म दरा


के नशे म चूर हो गए तो म पेड़ से उतरा और झट से डेरे म जा घुसा। मने रसोई से थोड़ा
भोजन चुराया और उनके आधे खाली जग से ले कर म दर भी पी। असुर राजकुमारी को
एक बार दे खने क ती इ छा मन म पैदा हो रही थी। मने ब त ही वैभवपूण दख रहे खेमे
म क़दम रखा। द पक के मंद काश म दे खा क तेज़ी से नाक बजा रहे राजा के समीप ही,
ब ची सफ़ेद रेशमी चादर म लपट पड़ी थी। मने पास जा कर, उसके ख़ूबसूरत चेहरे को
यान से दे खा। म झुका और उसके गाल पर एक चुंबन अं कत कर दया। संभवतः उसे
जलन क गध अनुभव ई होगी, उसने अपना मुँह बनाया और दो-तीन बार ह ठ चाटे । म
वहाँ कुछ दे र खड़ा, उसके न हे हाथ-पाँव दे खता रहा। फर बेमन से ही, खेमे से बाहर आया।
मेरे गाल से अ ुधार वा हत हो रही थी और टाँग भाव के कारण बल तीत हो रही थ ।
जैसे ही बाहर क ओर जाने लगा तो मने एक बार, फर से मुड़ कर दे खा। ऐसा लग रहा था
मानो म अपनी ही पु ी को वहाँ छोड़े जा रहा था। मने शव के आगे ाथना क क वे उसे
स रख। मने ाथना क क वह एक यारी सी राजकुमारी के प म बड़ी हो और उसका
ववाह कसी ऐसे अ छे दे व राजा से हो, जो उसे आजीवन स रख सके। यह राजा दखने
म भला, व ान तथा बु मान जान पड़ता था। जब म जंगल म, असुर के खेमे क ओर
चला तो दल म आ रहा था क ब ची को वा पस ले चलूँ और उसे अपनी बेट बना कर
पालूँ।

जब म प चतन करने यो य थ त म आया तो सबसे पहले एक ही वचार मन म आया।


‘मुझे तो उस ब ची का वध कर दे ना चा हए था।’ म एकबारगी वह ठठक गया परंतु मन ही
मन मुझे यह आशंका भी थी क एक दन वह ब ची लौट कर आएगी और अपने पता तथा
उसके वंश का समूल नाश कर दे गी। म नह जानता क म यह सब कैसे जानता था परंतु ये
वचार बार-बार मेरे म त क को आंदो लत करते रहते। मने शव के आगे हाथ जोड़े परंतु
भीतर ही भीतर म यह भी जानता था क यहाँ तो शव भी असहाय थे। इस मामले म वे भी
कुछ न कर पाते।
संभवतः यही उसका तशोध होगा – एक घमंडी व दयहीन जा त के त असुर
राजकुमारी का तशोध, जो उसे तभी मार दे ना चाहता था, जब उसने जीवन के सही मायने
तक नह जाने थे। वह मनु य जा त के इ तहास को बदल दे गी। पंरतु म तो अपने से भी आगे
भाग रहा ँ। मुझे संदेह है क म सचमुच इतना कुछ जानता था या मन ही मन यह क पनाएँ
कर रहा था। यह सब कुछ आगे आकर, हम लील जाने वाला था और मेरे दे श को आने वाले
अनेक सह वष तक अंधकार म डु बो दे ने वाला था।
19 उसे जी वत रहने दो

रावण
म कसी को भी अपना मुँह दखाना नह चाहता था। मुझे बाज़ार म बक रहे कसी बैल क
तरह, सामान के साथ अदला-बदला गया था। मेरे लोग मुझे वह सब दे कर ख़रीद लाए थे,
हमने जो कुछ भी अ भयान म एक कया था। अपमान का यह चरण पूरा हो चुका था।
कात वीराजुन ने एक ही झटके म मेरी सारी सेना को न भावी कर दया था। हमारे पास
लंका वा पस ले जाने के लए कुछ नह बचा था। हम केवल नजी तलवार को छोड़ कर,
सारे श , अ , हा थय तथा सुवण का आ मसमपण करना पड़ा। और बदले म हम जो
मला, वह था मेरा ‘ नरथक जीवन’। म अपने ाण याग दे ना चाहता था परंतु इससे तो यह
सारा ब लदान ही थ हो जाता। इससे भी खेदजनक बात यह थी क म यु भी नह कर
सका था।

वेदवती ने मुझे ती वेग से बहती वा हत नद को पार करने क चुनौती द और म भी कैसा


मूख नकला, मने पल भर म ही हरहराती नमदा म छलाँग लगा द । मुझे ऐसा लगा क मानो
कोई कशोर अपनी ेयसी को भा वत करने क चे ा कर रहा हो परंतु मने ती वेग से
बहती जलधारा का ग़लत अनुमान लगाया था। और इससे पहले क म अनुपयु प से
लगाई गई छलाँग से उबर पाता, मेरा सर एक भू मगत च ान से टकराया। म लगभग डू ब ही
गया और फर एक धारा मुझे बहा कर ले गई। जब मने अपनी आँख खोल तो वयं को एक
अंधकूप कारागार म पाया, मुझे कसी उ माद क तरह, लोहे के पलंग से, ज़ंजीर से बाँधा
गया था। ारंभ म, मुझे अपने पर, वेदवती पर, असुर पर, कात वीराजुन पर, ब त ोध
आया, मुझे ऐसा लगा क म उसके हाथ ही बंद बनाया गया ँ। परंतु शी ही उस अंधकूप
के अंधकार म वह ोध कह खो गया। जब बासी भोजन अंदर फकने के लए ह का सा
दरवाज़ा खुला तो मेरे मन म आशा क एक करण जगी। कुछ ही दन बाद, वह आशा क
करण भी जाती रही। शी ही म दन व समय क गनती भी भूल गया और साथ ही अपनी
मह वाकां ा, पद क मयादा तथा अ भमान को भी भुला बैठा। म तो केवल एक चूहा था,
जो जी वत रहने के लए अंधकूप म बैठा भोजन कुतरता रहता था।

उ ह ने कुछ दन बाद, मुझे ज़ंजीर क क़ैद से आज़ाद कर दया था। मेरी ह मत जवाब दे
चुक थी परंतु मने बाहर चहलक़दमी कर रहे दरबान क पदचाप गनने के साथ वयं को
सजग बनाए रखा। मुझे न न ेणी के उन दरबान ारा पीटा गया। य द कात वीराजुन वयं
मेरी यं णा का जायज़ा लेने आया होता तो संभवतः मुझे इतना बुरा न लगता। मने उसे
सदमा प ँचाने के लए कहे जाने वाले कुछ श द का अ यास भी कर लया था। म उसे
दखाना चाहता था क म कसी भी कार क यं णा या पीड़ा सहन कर सकता था और
मेरी आ मा पर कभी वजय नह पाई जा सकती थी। परंतु वह नह आया और मुझे लगता है
क इसी बात ने मुझे सबसे अ धक ठे स प ँचाई थी। म उस अंधेरे क म कसी बालक क
भाँ त फूट-फूट कर रोया; मने अपनी खोई ई क त, वतं ता व मेरी मह वकां ा के
लए वलाप कया। कभी-कभी मुझे अपनी लंका तथा लगभग व मृत प नी का भी मरण
हो आता।

मंदोदरी! म पके ए आम क गंध के लए तरसा। पूणा नद के जल पात से आते जल के


छ ट क फुहार के लए तरसा, मुजूरी के नकट, ेत रेत से अठखे लयाँ करती लहर के
लए तरसा, पू णमा क रा म झूमते ना रयल के वृ के लए तरसा, बेले के पु प क
गंध…”

और फर एक दन, जब मेरी सारी आशाएँ दम तोड़ चुक थ और मेरे भीतर ही दफ़न हो


कर, सड़ गई थ , मेरे लए बाहरी नया का ार खुला। कात वीराजुन के अनेक सपाही
तथा अनुचर कतार म खड़े, मुझे वदा दे ने आए थे। दन क उ वल काश मेरी आँख म
चुभने लगा और मने अपनी आँख बंद ही रख । म कसी ने हीन क तरह मु होने के लए
छटपटा रहा था। मुझे तो उस ण म अपने श ु से तशोध लेने का संक प लेना चा हए था,
उससे पार पाने के लए योजनाएँ बनानी चा हए थ परंतु बड़े खेद से कहना पड़ता है क
मुझे उस समय एक उ तरे के सवा दमाग़ म कुछ नह आ रहा था। मेरी दाढ़ ब त बढ़ गई
थी और उसे मूँडने के अलावा दमाग़ म कोई बात नह आ रही थी। यहाँ तक क अब भी
मुझे यह याद करके श मदगी हो रही है क मेरे दमाग़ म और कोई वचार य नह आया?

जब म डेरे पर प ँचा तो उन लोग ने मेरी उपे ा क । अब म कोई राजा नह रहा था, कम से


कम उनक सोच के दायरे म तो राजा नह रहा था। मने अपनी या व पु ी को हर संभव
थान पर तलाशा। मुझे अपने कसी भी मं ी का सामना करने से भय हो रहा था। वे सब भी
घर वा पस जाने क तैयारी से जुड़े नदश दे ने म त थे – नःसंदेह खाली हाथ वापसी!
अंततः मने नराश हो कर, मारीच क शरण ली। उ ह एक कोने म ले गया, पहले उन दोन
का समाचार माँगा और फर उनके आगे वनती क , म कसी भी दशा म वेदवती तथा अपनी
पु ी का समाचार पाना चाहता था।”

पु ! वयं को भा यपूण समाचार सुनने के लए तैयार कर लो।” उनके श द ने मेरे मन म


छपे उस भय क पु कर द , जो कारागार से लौटने के बाद से, मुझे आशं कत कए ए
था। म वह धरती पर बैठ गया।

“कैसे और कब?” मने कसी कार साहस बटोर कर पूछा


“इन घने वन म अनेक रोगी ए और अनेक य क जान ग । वह भी आसपास
फैले रोग क चपेट म आ गई और न ही राजकुमारी को भी रोग से बचाया नह जा सका।
उ ह कुछ ही री पर थत वै के पास भी ले जाया गया, पंरतु दोन ने हमेशा के लए वन म
ही अं तम समा ध ले ली। जंगली बुखार ने उनके ाण ले लए।” यह कह कर वे सरी ओर
दे खने लगे।

म फूट-फूट कर रोया। मुझे अब कसी भी तरह का दखावा करने क आव यकता न थी। म


कोई क त अथवा रा य नह चाहता था, असुर जा त वयं ही अपनी दे खरेख कर लेगी।
ह त, व ुत ज हा अथवा जो कोई भी चाहे, यह रा य ले सकता है। म जाने या- या
बड़बड़ाता चला गया। मुझे मारीच के गम आँसू अपने कंध पर गरते महसूस ए। तभी एक
नरंतर य करने वाले भ े से संदेह ने सर उठा लया, “नह , यह स य नह हो सकता। कम
से कम मारीच तो मेरे म थे, वे भला मेरे साथ ऐसा य होने दगे?” मने अपना सर झटक
दया और इस सोच से मु पा कर मारीच से पूछा, “उ ह वै के पास कौन ले गया था?”

मारीच क आँख जाने कहाँ खोई थ । वे द वार पर एक ब पर नज़र गड़ाए, बोले, “शायद
कोई सै नक या कोई और…। म तु ह पूछ कर बता ँ गा परंतु पु , तु ह इन बात को याग
कर, अब आगे बढ़ना होगा…।”

“नह ! म च लाया। मुझे बताओ क उ ह वै के पास कौन ले गया था।” मने उ ह पकड़
कर झकझोर दया और म उनक आँख म लहराते भय के साय को पहचान सकता था
परंतु उनके ह ठ कस कर भचे थे और वे मेरी नज़र से नज़र मलाने से हच कचा रहे थे।
“ या यह काम भ का था?” म ज़ोर से च लाया य क यह नाम अपने मुख से लेते ही
मेरी रग-रग म ज़हर भर गया था।

एक गहरी ख़ामोशी… और फर वे बोले, “रावण! कृपया, इस बात को भुला दो… जाने


दो…।”

मने उ ह लगभग ध का दे कर गरा ही दया और वहाँ से भागा। मेरे हाथ म नंगी तलवार थी
और म भ को पुकार रहा था। जब नीच भ आया, तो म मुड़ा और उसे अपने पीछे आने
का संकेत कया। जैसे ही म अपने खेमे म प ँचा, मने भ को गले से दबोच लया और
अपनी तलवार क धार से उतनी ज़ोर से दबाया क उसक गदन से र क एक बूँद
छलछला उठ । वह भयभीत हो उठा और जाने मन ही मन या बके जा रहा था।

“तुमने मेरी न ही सी पु ी और वेदवती के साथ या कया?” म च लाया।

वह सुब कयाँ भरते ए, मायाचना करने लगा। उसने मुझे बताया क वेदवती और मेरी पु ी
के साथ या आ था, और म वहाँ कसी तंभ क भाँ त खड़ा, उन बात को चुपचाप सुनता
रहा। मुझे भय था क वे मारी जा चुक थ , परंतु मने जो भी सुना, उसने मुझे गहरे खेद और
शोक के सागर म डु बो दया। म अपने पैर पर बसूर रहे अहमक को ठोकर मार कर, र
धकेल दे ना चाहता था, परंतु उसने मुझे कसी अजगर क तरह ज़ोर से जकड़ रखा था।
उसके मुख से नकल रहे असंब वर तथा बुड़बुड़ाहट के बावजूद, कुछ बात छन कर मेरे
म त क क तह तक जाने लग और मने उनका अथ नकालने क चे ा क । धीरे, ब त
धीरे, सब कुछ प होता चला गया। “मेरी पु ी अभी जी वत थी। उसे एक दयालु राजा ने
गोद ले लया था, एक दे व राजा, वह अब भी एक राजा क ही पु ी थी, अब वह एक दे व
राजकुमारी के प म पल रही थी।”

ण भर के लए मेरे चेहरे पर स ता क लहर दौड़ गई। मेरी पु ी अभी जी वत थी परंतु


अब वह श ु प क राजकुमारी थी। मेरे भीतर एक नई ऊजा का संचार आ। म अपनी
सेना को नए सरे से तैयार करके, जनक के रा य पर हमला कर ँ गा। म उसक सेना को
कुचल ँ गा, रा य को न - कर ँ गा और अपनी पु ी को छ न कर वा पस ले आऊँगा।
वह एक असुर राजकुमारी थी और कोई भी दे व राजा उसे मुझसे छ न कर नह ले जा सकता
था। वह लंका क राजकुमारी थी, उसका पालन-पोषण एक असुर राजकुमारी के प म ही
होना चा हए। फर म भयभीत हो उठा। मुझे नए सरे से अपनी श संजोनी थी, उसे
वा पस लाने के लए अपने बल म वृ करनी थी। ‘ या मेरी सेना इतनी बलशाली थी? मेरे
पास अब सेना थी भी या नह ?’ हालाँ क सफलता मलने के बाद भी, म उसक सुर ा के
वषय म आ त कैसे हो सकता था, जब ह त और व ुत ज हा जैसे र पपासु मेरे
रा य म खुलेआम घूम रहे थे। मने वयं को असहाय व कुं ठत अनुभव कया। मने भ को
बुरी तरह से ठोकर मारी और उसक ना सका से र छलछला उठा। ‘नीच ाणी’। कभी-
कभी तो ऐसा लगता है क दे व ारा बनाई गई जा त- था नरथक नह है, इसम कोई न
कोई तक अव य है। वह नीच और म, एक समान हो भी कैसे सकते थे?

मेरे म त क म न ही सी ब टया क याद च कर काटने लग । ‘वह मेरे जैसी दखती थी या


वह अपनी माँ मंदोदरी जैसी दखाई दे ती थी?’ मंदोदरी क याद आते ही, पूण व कावेरी नद
के तट पर बीती, वे सुहावनी शाम एक बार फर से साकार हो उठ , पु पत वृ क गंध,
मंदोदरी क गौर व कोमल वचा, बेला क गंध, सुखद शीतल समीर, सैकड़ मधुम खय
क भन भनाहट तथा गलह रय क कुटकुट का वर, हमारा पर पर आ लगन म बँध कर,
पड़े रहना, एक- सरे के त न ल-कोमल नेह…

मने वयं को बमु कल उस अधम असुर क जकड़ से मु कया और पाँव घसीटते ए,


नद क ओर बढ़ गया। म अपनी याद के साथ कुछ समय अकेले बताना चाहता था। मेरी
सभी वासनाएँ व कामनाएँ, मेरी आ मा क सुब कय म कह खो कर रह ग ।

हम म य भारत से खाली हाथ लौट आए। येक हमारे राजा से व पर पर कु पत था,
हमारी सेना, हमारे मं ी! मेरे लए तो प र थ तयाँ और भी बदतर थ । व ुत ज हा कुछ
मं य के साथ पहले ही लंका के लए थान कर गया था, तब रावण क़ैद म ही था। मुझे
पूरा व ास था क उस ने माला के साथ अपने ेम- संग को पुनः जी वत कर लया
होगा और म यही सोच-सोच कर ई या से जल-भुन रहा था।

हमने लंका से वापसी के दौरान, अपने अपमान क ृंखला म एक और कड़ी जोड़ ली।
व य पहा ड़य क द णी तलहट म, श शाली वणसंकर बाली का राज था। वह
अपमानजनक तरीक़े से वानर-राज कहलाता था और उसक जा वानर कहलाती थी।
वानर क यह जा त, क कंधा म नवास करती थी और उ र के दे व सा ा य तथा द ण
के असुर रा य ; दोन के लए ही संकट का कारण बन गई थी। चूँ क उ ह ने वयं को म य
भारत के वन तक ही सी मत कर लया था इस लए, हम तट य माग पर चलते ए, उ र
दशा वाले अ भयान म, उनके संपक म नह आए थे।

बाली का छोटा भाई सु ीव, वानर-राज बाली का श ु था तथा हनुमान जैसे व यात यो ा
बाली को याग कर, सु ीव के प म चले गए थे, इस त य ने न त प से हमारे स ाट
को े रत कया होगा, जो पुनः अपनी खोई त ा पाने के लए जी-तोड़ य न कर रहा था।
रावण क दशा ब त ही शोचनीय थी। वह नरंतर इसी भय के साए म जी रहा था क ह त
या व ुत ज हा म से कोई, रा य पर अ धकार न जमा ले। वे लोग उसके क़ैद से छू टने से
पहले ही लंका लौट गए, यही त य बारंबार संदेह को ज म दे रहा था और उसने क कंधा
पर आ मण करने क योजना बना ली। उसे पूण आशा थी क यह अ भयान उसक खोई
ई त ा लौटाने म सहायक होगा।

अमाव या क रा को हमारे टू टे ए मनोबल वाले दल ने आ मण कया और हम त ण


खदे ड़ दया गया। हमने ब त ही सरलता से आ मसमपण कर दया। जब अगली सुबह,
वानर-राज अपने कै दय से मलने आया, उसे यह जान कर आ य आ क उस पर असुर
सेना ने आ मण कया था। उसने कहा क उसे लगा, हम कोई राह चलते लुटेरे थे, जो रात
को धावा बोलने नकले थे, यह सुन कर हम ऐसी चोट लगी, जो असं य यु म मले घाव
से भी नह लगी थी। इसके बाद, वह हम पर कृपा करते ए, जस वनीत भाव से पेश आया,
वह तो और भी अपमानजनक था। उसने हम सबको एक समान भाव से आदर-मान दया
और उसके कारण हम ई असु वधा के लए मायाचना भी क । फर बड़े ही स मा नत
अ त थय क भाँ त हम भोजन करवाया गया। हमने ठूँ स-ठूँ स कर, ब त सारा खाना खाया
और लंबे समय के बाद, जी भर कर म दरापान कया। हम व य वानर के नगाड़ क धुन पर
सारी रात नाचते रहे, थरकते रहे। अगली सुबह तक हम अपनी ल जा व ला न भूल कर,
परम मै ी क डोर म गुँथ चुके थे। हमने वानर तथा असुर के म य शा त मै ी के संक प
लए। हमने दे खा क रावण वानर-राज को गले से लगा रहा था और ऐसा लग रहा था मानो
वह असुर राज को कोई परामश दे रहा हो। हम सबने बड़ी उमंग व उ साह के साथ उनसे
वदा ली और मने सुना क वानर के रा य के साथ शा त मै ी सं ध पर ह ता र कए गए
थे। बाली हमारे असुर राज का म , दाश नक व मागदशक बन गया था। हालाँ क मुझे यह
दे ख कर कौतूहल आ पर मेरे जैसे सीधे दमाग़ वाले के लए ऐसे मामले समझ से
कह परे थे। मेरे लए तो अगले समय का भोजन ही चता का वषय था।

हम अपनी मु य भू म के द णी छोर तक जाने म करीब एक माह का समय लगा। हम


सभी शी ता से सागर लांघ कर, अपने य प तक प ँचना चाहते थे। परंतु हम व ण के
वे जहाज़ कह दखाई नह दए, जो हम प से यहाँ तक लाए थे। हमने पूरे एक पखवाड़े
तक ती ा क , हर बीतते दवस के साथ हमारी ता बढ़ती ही जाती थी, अंततः रावण ने
ही इस काय का बीड़ा संभालने का नणय लया। उसने हम वृ काटने का आदे श दया और
कुछ ही समय बाद हमारे पास कुछ नौकाएँ तैयार थ । यह एक साह सक योजना थी परंतु
मारीच ब त ही थत थे।

अंततः, उ ह ने सुझाव दया क केवल कुछ ही लोग को लंका क ओर थान करना


चा हए। उ ह यह संदेह लगातार खाए जा रहा था क अब हमारा स ाट, स ाट नह रहा था
और ह त या व ुत ज हा म से, कसी एक ने लंका पर आ धप य था पत कर लया था।
जब तैया रयाँ चल ही रही थ तो हम कावेरी नद के मुहाने से, बंदरगाह क ओर आता,
जहाज़ी बेड़ा दखाई दया।

रावण ने हम जंगल म लौटने का आदे श दया और हम वह छपे, जहाज़ को लंगर डालते


ए दे खते रहे। हमने दे खा क छोट नौका म लोग सवार ए और उसी कनारे क ओर
बढ़ने लगे, जस ओर हम ठहरे ए थे। हम लगभग आधे घंटे तक वहाँ ती ा करते रहे।
फर हम ह त व अ य कुछ सै नक च पू चलाते, छछले पानी क ओर आते दखाई दए।
हमने वह अपने डेरे लगा रखे थे। रावण व मारीच अपनी नंगी तलवार के साथ छपने के
थान से बाहर आ गए और ह त क ओर बढ़े ।

ह त ने अपना सर ऊँचा रखते ए, रावण क ओर अव ापूण भाव से दे खा और रावण ने


अपना मुख सरी ओर कर लया। मारीच ने ज द ही खुद को संभाल लया और ह त व
रावण के बीच आ खड़े ए। हम यह दे ख आ यच कत रह गए क ह त अचानक नीचे
झुका व रावण को णाम कया। हम सभी स ता से झूम उठे । मारीच भी सकते म आ गए
और इस स तापूण आ य से मं मु ध हो उठे । उ ह ने ह त को अपने व थल से लगा
लया।
हम अपना अनुशासन भूल कर, आगे क ओर दौड़े। ह त ब त ाकुल अनुभव कर रहा
था परंतु मारीच ने उसे सां वना द और फर पूछा क आ ख़र आ या था। ह त ने बेमन
से कहा, “मेरा मानना था, जब मने आपको व राव…, मेरा मतलब है, महाराज को छोड़ कर
व ुत ज हा के साथ जाने का नणय लया, तो वह मेरी एक भूल थी। मुझे आरंभ से ही उस
कमीने पर संदेह था परंतु म यह नह समझ पाया क वह इतनी नीचता पर उतर आएगा।
हमारे लंका प ँचने तक वह ब त ही मधुर व कूटनी तपूण वभाव के साथ पेश आया परंतु
जैसे ही हम लंका प ँच,े तो वह आपक वापसी तक, एक अ थायी नरेश क व था के
लए दबाव दे ने लगा। मने बल दया क असुर परंपरा म तो अभी राजा को ग पर बैठाने
क व था भी नई ही थी।” इसके बाद ह त ने रावण क ओर दे खा, जसने अपनी नज़र
सरी ओर घुमा ली थ ।

ह त ने अपनी बात जारी रखी, “परंतु आप सब तो जानते ही ह क वह कतना वा पटु


व ा है, उसने प रषद के सरे सद य को भी साम-दाम-दं ड व भेद क नी त अपना कर,
अपने साथ मला लया। केवल जंबूमाली और मने ही उसका वरोध कया। मने वरोध कट
करते ए, प रषद से याग-प दे दया और य द इस नए स ाट व ुत ज हा ने चार ओर
आंतक का सा ा य न फैलाया होता तो संभवतः मने राजनी त से ही सेवा नवृ ले ली
होती।। व ुत ज हा के अ धकतर काय अनाव यक थे। उसने तीन ही माह के भीतर,
अथ व था को न - कर दया, हर जगह मनमाने कर तथा लगान आ द लगा दए।
उसने द यु राज को लूटमार मचाने क छू ट दे द और उसके साथ लूट का माल बाँटने लगा।
परंतु अब वे दोन फर से अलग हो गए ह। व ण उस जहाज़ म राव… मेरा अथ है क
महाराज रावण क ती ा कर रहा है क वे आएँ और अपनी नौसेना क बाग़डोर संभाल
ल। वह उस से तशोध लेने के लए तड़प रहा है।

रावण एक क़दम आगे बढ़ा व ह त से पूछा, “परंतु मेरे भाइय , मेरी प नी व बहन का या
आ, वे लोग कहाँ ह?”

“महाराज! आपक बहन सुर त कतु अ स है। वह अब भी अपने प त से हा दक नेह


रखती है। म आपक प नी को पहा ड़य म छपने के एक ठकाने पर ले आया था और बाद
म उ ह उनके पता के घर भेज दया। इस समय राजकुमार कुंभकण, हमारे लए चता का
सबसे बड़ा वषय ह, जो अपनी बहन के प त ारा ढाए जा रहे अ याचार के व
आवाज़ उठाने वाले एकमा थे। महाराज! वे साहसी ह परंतु म यह कहने के लए
मा भी चा ँगा क वे ब त अधीर भी ह। वे बड़ी ही सरलता से भूल कर बैठते ह। उ ह
त ण उनके ही म ारा छला गया, बंद बना कर यातनाएँ द ग और फर उ ह यम के
रा य म भेज दया गया। उनक मृ यु नह ई। उ ह घने वन के म य थत, स क पूव
ढलान पर बसे भयंकर मादक पदाथ के रा य म भेज दया गया है। जहाँ यम नामक एक
बटमार वषैले आसव तथा पेय पदाथ तैयार करता है तथा कई कार मादक पदाथ भी तैयार
कए जाते ह। व तु ज हा मादक पदाथ के वामी यम का श य था, और उसने अपने गु
को पुर कार के प म एक असुर राजकुमार भट कर दया ता क वह उन पर मनमाने योग
कर सके।”

रावण मारे ोध के काँपने लगा। मारीच ने सां वना से भरा हाथ राजा के कंधे पर रखा, पर
रावण ने ता से उसे परे झटक दया। “यु क तैयारी करो। हम इस ब पए को सबक
सखा दगे।” वह च लाया।

अचानक ही वहाँ कोलाहल सा मच गया। अब हमारे पास एक उ े य था, यह कसी एक


क क त के लए कया जा रहा, अथहीन यु नह था। यह तो एक आततायी के
हाथ हमारे भाई-बहन , हमारी प नय व संतान तथा माता- पता को मु कराने क मु हम
थी।

परंतु ह त के हाथ उठाते ही चार ओर मौन पसर गया। “महाराज! पहले हम राजकुमार
कुंभकण को मु कराना होगा। हम नह जानते क उन योग के बाद वे कसी दशा म
ह गे।”

रावण ने यु र दे ने से पूव कुछ ण क ती ा क । फर वह ह का सा झुकते ए बोला,


“मेरे धानमं ी! म तु हारे बु मता से भरे परामश को मान दे ता ँ और तु हारे पद को
णाम करता ँ। भ व य म भी म तु हारा मागदशन लेता र ँगा।” फर वह मारीच क ओर
मुड़ा, जसका चेहरा स ता से दमक उठा था, उसने कहा, “मारीच मामा ी! कृपया हमारे
म बाली के पास एक संदेशवाहक भेज द क वह मादक के वामी यम को समा त
करने म हमारी सहायता करे। हम उसक सहायता क आव यकता होगी।” मारीच ने झुक
कर णाम कया और हमारे शाही संदेशवाहक को बुलाने चल दए।

फर रावण ने कुछ ण वचार करने के बाद ह त से पूछा, “हमारे छोटे भाई वभीषण का
या आ?”

ह त ने एक दबी सी मु कराहट के साथ उ र दया, “वह, महाराज! उ ह ने वयं को एक


छोटे से मं दर म बंद कर लया, जसे उ ह ने अपने हाथ से न मत कया था। वे दे व के भु
व णु से ाथना करते रहते ह क वे उ ह इस अशुभ तथा गुण से मु कर। वे पूजा-पाठ
करने के अ त र कुछ नह करते।”

“ ध कार है!” रावण ने घृणा तथा अवमानना के भाव से वह थूक दया और हमम से ब त
से लोग म कारी से, हन हनाते ए हँस दए।
20 दे शभ

रावण
हमने यम के नगर- ग पर क ज़ा जमा लया था और मेरे भाई कुंभकण क तलाश अभी
जारी थी। मेरे हज़ार घाव व खर च से र नकल रहा था और म बेसुध सा अपने अ पर
सवार था। मृत ायः मनु य तथा पशु क कराह तथा आह के अ त र वह थान
ब कुल ही नजन व शांत था। हम अब तक र क गध के अ य त हो चले थे अतः इससे
कोई अंतर नह पड़ता था। मने ह त और मारीच को दे खा और अपना अ उसी ओर बढ़ा
दया। मारीच ने दे ख कर मु कराहट द , परंतु ह त ने ह का सा झुक कर अ भवादन करने
के प ात खोजी दल को आदे श दे ने का काम जारी रखा। मारीच अचानक मुड़े और बोले,
“यह ह त का ही वचार था क हम ग पर प म दशा से आ मण कर। उसका एक
साथी पहले से ग म उप थत था, जसने हमारे लए ार खोल दए, और जैसे ही यु
आरंभ आ, हम प म क ओर बढ़ते चले गए। व तुतः ह त ने यु आरंभ होने से ब त
पहले ही, अपने अनेक य को प म दशा म तैनात कर दया था।”

म ोध के मारे आगबबूला हो उठा। मुझे एक आम सपाही क तरह यु म यु कया


गया था और म अपने ही मं य क व वध रणनी तय का शकार आ था। मुझे इस बात
का भी रोष था क इस योजना के बारे म मने वयं वचार य नह कया? इसके अ त र
मेरे म त क म हज़ार बेतुक बात च कर काटती रह और म उसी नकारा मकता से घरा
रहा। ता लय क तेज़ गड़गड़ाहट सुन कर, मेरा यान ग के प मी छोर पर गया, जहाँ मुझे
सपा हय का एक दल नाचता-गाता दखाई दया, उ ह ने अपने कंध पर एक वशालकाय
मनु य को लादा आ था। जैसे ही म और पास गया तो दखाई दया क मेरा भाई कुंभकण
ही उनके अ ेत कंध पर उछाला जा रहा था। यह ब त ही हा या पद य था। म मु कराया
और मारीच क ओर मुड़ा। ह त मेरे पास अपनी चर-प र चत कठोर मुखमु ा के साथ
खड़ा था। म उससे पूछना चाहता था क उसने मुझे अंधेरे म य रखा और यही वचार
म त क म आते ही मेरा ोध पुनः भड़क उठा। म ह त से यह पूछने ही वाला था क
अचानक मेरी नज़र मारीच से टकरा और वे त काल मेरे कान म फुसफुसाए, “हम संदेह
था क हमारे बीच श ु के गु तचर उप थत थे। म तु ह बताना चाहता था कतु ह त ने ही
ज़ोर डाला क तु ह इस वषय म नह बताना चा हए। उसने तक दया क इस तरह तुम यु
के दौरान नेतृ व के लए अपना े दशन न दे पाते और श ु को हमारे छल-बल के बारे म
संदेह हो जाता, अतः हमने तु ह वीरता व शौय से प रपूण यु करने के लए छोड़ दया और
वयं पीछे से ताँक-झाँक करते रहे।”
मुझे ऐसा लगा मानो मुझे छला गया हो। मने वयं को ब त ही हीन अनुभव कया। म उनके
हाथ का एक खलौना बन कर रह गया था। ‘म एक राजा था और ये जरा च क सक मुझसे
ही चाल चल रहे थे।’ म उस वृ पर अपना ोध शांत करने के लए मुख से कुछ कहने ही
वाला था क उसी समय ह त ने अपना सर घुमाया और मुझे एक मु कान द । मारीच भी
मुझे दे ख कर मु कराए।

“हम जीत गए रावण, हमारी वजय ई। य द तुमने इतनी वीरता से यह यु न लड़ा होता तो
संभवतः हम कभी न जीत पाते।” उ ह ने आव यकता से अ धक तेज़ सुर म यह बात कही
और हमारी पूरी सेना जयजयकार करने लगी। जल क लहर क भाँ त सै नक ने अपने
ह थयार ऊँचे कए और नारे लगाने लगे। ‘हर हर महादे व’, ‘ शव जी क जय हो’, महाराज
रावण क जय हो, असुर के महान स ाट क जय हो!’, ‘असुर क जय हो’!

मेरा सीना गव से फूल उठा। म नह जानता था क मुझे या करना चा हए इस लए मने भी


बस अपना खड् ग ऊँचा उठा दया। मेरी सेना क जयजयकार म और भी बुलंद आ गई।
अचानक ही मुझे याद आया, “म इन दोन वृ का आभारी ।ँ “परंतु फर अचानक ही मेरा
रोष जाग उठा और मने अपना मन बदल लया। मने उनसे पूछा, “मामा ी! यम के डेरे म
छपा वह गु तचर कहाँ है, जसने हमारी सहायता क ?” मने आ य के मारे व फा रत ने
क पूरी तरह से उपे ा कर द और अपने कंठ से हीरक हार उतार कर कहा, “म उसे
पुर कार दे ना चाहता ँ।”

“रावण! या तुम पगला गए हो?”

मेरी ाकुलता और भी भड़क उठ । मने आदे श दया, “आप उसके वषय म बता द अ यथा
म वयं पता लगवा लूँगा।” मारीच बड़ी उदासी से अपनी गदन हलाते ए बोले, “रावण!
कभी-कभी तो तुम सचमुच मुझे आ य म डाल दे ते हो। जब ह त ने ग म पहला क़दम
रखा तो सबसे पहले उसक तलवार क धार ने उसी गु तचर के र का वाद चखा था।”

मेरे चेहरे पर सदमे क रेखाएँ दे ख, उ ह ने आगे कहा, “रावण, यह तो राजनी त का


आधारभूत पाठ है। कसी ोही पर कभी व ास मत करो, भले ही उसने तु हारे लए कोई
कुकृ य भी य न कया हो। हो सकता है क आने वाले समय म, वह तु हारे ही व हो
जाए।” एक ण के प ात, उ ह ने आगे कहा, “खैर, तुम ऐसी बात के वषय म चता मत
करो। हम इस यु म वजयी रहे, हालाँ क यम बच कर भाग नकला, परंतु तु हारा भाई
सुर त है।”

अपनी मु म भचे हीरक हार के साथ, म कसी मूख से कम नह लग रहा था। इससे पहले
क ह त मुड़ कर उसे मेरे हाथ म दे खता, म उसे र भनका दे ना चाहता था। म उसक हेय
व अपमानजनक मु कराहट का सामना न कर पाता। मने आसपास नज़र दौड़ाई तो एक
सपाही को दे खा, जो ग क द वार से पीठ टकाए बुरी तरह से हाँफ रहा था, उसक टाँग
खुली थ और कट नाक का र रं जत ह सा ब त ही भयंकर जान पड़ रहा था। उसके
शरीर के अनेक घाव से र रस रहा था और मेरे मन म अचानक ही उसके लए सहानुभू त
व दया क लहर उमड़ पड़ी। इस ने मेरे लए क उठाया था; उसने लगभग अपने
ाण क बाजी लगा द थी।

मेरा मन पघल गया। कुछ ण के लए वह बड़े ही अबूझ तरीक़े से पलक झपकाता रहा।
फर अचानक ही उसके चेहरे पर भय के साए लहरा उठे । उसने उठने क चे ा क परंतु वह
ढे र हो गया। फर वह रगता आ मेरी ओर बढ़ा। मने एक अजीब सी कुढ़न महसूस क । वह
कसी घायल कु े क तरह मेरी ओर रगता आ रहा था। मने अपने हाथ म थामे ए हीर के
हार को दे खा। वह हार उस जैसे भ ुक के लए नह बना था इस लए मने अपने कंठ से
मो तय क माला उतारी और उसे कुछ ण के लए प ाताप के साथ नहारा परंतु इससे
पहले क म उसे दे ने के वषय म अपने नणय पर दोबारा वचार कर पाता, मने उसे उस
झुक ई दे ह-आकृ त पर फक दया। वह उससे कुछ क़दम क री पर जा गरा। वह
कसी उ लू क तरह आँख फड़फड़ाने लगा, दरअसल वह समझ ही नह पाया क उसके
आगे या फका गया था। फर उसने उसे झप ा मार कर उठाया और कसी वानर क तरह
सूँघने लगा। ‘उस ने मेरे उपहार क अवहेलना क थी। उसका इतना ःसाहस?’ फर
उसके दमाग़ म जैसे हौले-हौले बात घुसी और उसने मुझे बड़ी भयभीत से दे खा।
पहले-पहल मुझे उसक आँख म अवेहलना तथा तर कार के भाव दखे जो अचानक ही
आभार तथा ध यवाद के भाव म बदल गए। वह बड़े ही अहोभाव से मुझे णाम करते ए
धरती पर झुका और उसे चूम लया।

मने उसके काँपते ए शरीर को दे खा, जसे दे ख कर लग रहा था क वह अभी ाण याग


दे गा। उसने धीरे से अपना सर उठाया और गाल से बहती अ ुधारा के बीच, मुझे दे ख कर
मु कान द । उसके आगे के दो दाँत गायब थे और उसके चेहरे को दे खते ही अचानक ऐसा
लगा क म शायद उस भ ुक को जानता ँ। म उसे नकट से दे खना चाहता था इस लए
अपना अ उसी ओर बढ़ा दया। भ ! ‘यह नीच सदा मेरे जीवन म घुसपैठ य
करता रहता है?’ दल म तो आया क उससे अपना हार छ न लूँ और उस भ े चेहरे पर
ठोकर जमाते ए, उसक काली चमड़ी पर कोड़े बरसा ँ । तब अचानक ही उपहार लेते
समय उसके चेहरे के कृत ता भाव मरण हो आए और म शांत हो गया। ‘सब ठ क है।’

मने वयं को भरसक शांत कया। वह भी कभी-कभार छोटे -मोटे पुर कार पाने का
अ धकारी था। मने वयं को स व संतु पाया य क मुझे लग रहा था क मने उसे
पुर कार दे ने का नणय ले कर अनु चत नह कया। बाद म जब दावत समा त हो गई और
सभी अपने-अपने व ाम क म लौट गए और म न द म डू बने-उतरने लगा तो उस समय
मुझे भ का आभार व कृत ता के भाव से भरा चेहरा याद नह आ रहा था। इसक बजाय,
मेरे उपहार को पहली बार पश करते समय उसके चेहरे पर तर कार के जो भाव तर आए
थे, वही मेरे म त क म च कर लगाते रहे। ाकुलता से करवट बदलते ए, मने वयं को
असुर के काले और भ े चेहर क याद से परे ले जाना चाहा ता क क त, मह वाकां ा
तथा अपनी नय त के सुवण-मं डत पथ के व णम व म उतर सकूँ।


हम मु य प से लौट आए थे। रावण व ुत ज हा व उसके सा थय को समा त करने क
धमक दे चुका था, जो दे श म लूट-खसोट मचाने म त थे। व ुत ज हा इस धमक से
भयभीत आ और उसने रावण के आगे शां त का ताव रख दया। उसने लंका के द णी
भाग को छोड़ कर, बाक पूरे भारत पर रावण का आ धप य वीकार कया, जसे रावण
पहले ही व जत कर चुका था। लंका के द णी भाग को वह अपने लए चाहता था। रावण
अपने पूरे रा य को वा पस लेना चाहता था कतु यहाँ शूपणखा हमारे राजा क इ छा पू त म
बाधा बन गई। जब दोन प म दरा व सु वा ंजन के बीच आपसी समझौते पर वचार-
वमश कर रहे थे, तो सड़क पर लोग भोजन, जल, दवा के लए लड़ते ए दम तोड़ रहे
थे।

शी ही हम वह भयंकर आदे श सुनने को मला। मने उस छोटे सं क म उस मो तय क


माला को खोजा, जहाँ उसे होना चा हए था। ‘आ ख़र वह गया कहाँ?’ उस दन जब म वयं
को घसीटते ए डेरे तक लौटा तो मने उसे ब तर पर गरने से पहले, वह फक दया था।
अब अगर महाराज मुझे उस माला के बना दे खते तो वे सोच सकते थे क मने उनके उपहार
क क नह क , जो क काफ़ हद तक सच भी था। मने उसे गले म पहना और अपने
सी मत कोष म संभाले गए, ब मू य छोटे दपण म, वयं को नहारा। म दे खना चाहता था
क मो तय क माला मुझ पर कतनी फबती थी। नाक के कटे कोने, बाएँ गाल पर घाव के
गहरे नशान तथा डेढ कान के साथ म ब त ही भयावह दख रहा था। मने खीस नपोर और
आगे के दो गायब दाँत के बीच के अंतराल के कारण मेरा चेहरा हा या पद, वीभ स व
घृ णत दखने लगा।

मने वयं को बड़ी क ठनाई से, ब तर से उठाया। अँगु लय क मदद से बाल सँवारे और
प रषद के खेमे क ओर चल दया। मने भीतर वेश कया और यथासंभव झुक कर णाम
कया।

“भ !” मुझे मारीच का दयापूण वर सुनाई दया। “एक बार पुनः पूरी असुर जा त तु हारा
मुँह जोह रही है। वे सब तुम पर ही नभर ह। तु हारे दे श और तु हारे महाराज को आज
तु हारी फर से आव यकता आन पड़ी है…।” वह जाने या- या बड़बड़ाता रहा। य द वे
मुझे केवल इतना ही बता दे ते क वे मुझसे कौन सा नीच व घनौना कृ य करवाना चाहते थे,
तो वह कह बेहतर होता। दे शभ व जा त के लए ेम क ये बड़ी-बड़ी बात सुन कर मेरा
दमाग़ ख़राब हो रहा था परंतु म अव ा के भय से एक भी श द मुख से नह नकाल सका।
म अपने अ य दे शवा सय व वशेष प से काली चमड़ी वाले, अ पबु , अ श त ,
करोड़ न नवग य तथा मासूम क भाँ त वन , शांत तथा शासक का आ ाकारी सेवक
दखने क कला म पारंगत हो चुका था, जब क वा तव म मेरे भीतर करोड़ व ोही ोध से
खौल रहे थे।

मुझे यह समझने म कुछ समय लगा क मुझे व ुत ज हा को समा त करने का नीच काय
स पा गया था। मेरा दल ब लय उछलने लगा। मने संभवतः प रषद के बारे म ब त ही
ज दबाजी म और खेपन के साथ धारणा बना ली थी। ये तो मेरे लए एक दे व- द
अवसर से कम नह था। मने नीचे झुक कर णाम कया और प रषद क ओर पीठ कए
बना, हौले-हौले चलते ए, क से बाहर हो गया।

मुझे शाम का अंधेरा गहराने तक ती ा करनी थी। यह काय ब त ही रोमांचक व ख़तरनाक


था। ग म गु त प से, छल ारा वेश करना और व ुत ज हा को मौत के घाट उतारना
कोई सरल काय न था परंतु उस के त मेरी गत घृणा तथा कुछ वशेष कर
दखाने क मह वाकां ा ने मुझे इस काय को करने क ेरणा द । जैसे ही म प रषद से
लौटा, तो मने यान से अपनी कटार नकाली और उसक धार जाँची।

मने अपने काम के लए ातःकाल से पूव कुछ घंटे चुने थे, जब अंधकार ब त घना होता है।
म सूय दय से तीन घंटे पूव ही अपने खेमे से नकला और पछले ार के पास ती ा करने
लगा। दो दरबान पहरे पर थे परंतु न ा म लीन थे। एक और सपाही पहरे पर था परंतु वह
युवक दरबान संभवतः कोई नया रंग ट था, वह अपने मा लक को स करने के लए
ऊजा व उमंग से भरपूर दखाई दे रहा था। म चोरी से उसके पास से नकला और ग के
पछले ार क चा बयाँ चुराने क को शश करने लगा, वे न ा म म न एक दरबान क धोती
के छोर से बँधी लटक रही थ । म अभी अंधेरे म हाथ से टटोलते ए चा बयाँ नकाल ही रहा
था क अचानक चा बय का गु छा झनझनाहट के साथ धरती पर गरा। म तो वह सु हो
गया। सोता आ दरबान हौले से कुनमुनाया परंतु उसक आँख नह खुली। म झट से वहाँ से
हला और ार के वशालकाय तंभ क परछाइय के पीछे जा छपा। वह दरबान लड़का
कुछ ही क़दम क री पर था, वह उसी अंधकार म आँख फाड़-फाड़ कर दे ख रहा था, जहाँ
म कुछ ही ण पहले अलोप आ था। ऐसा लग रहा था मानो वह वधा म हो क वयं ही
आगे आकर जाँच-पड़ताल क जाए या अपने व र को जगा कर इस शोर के बारे म सचेत
कया जाए। अंत म उसने वयं ही दे खने का नणय लया। हालाँ क उसे यह नणय लेने म
कुछ ही ण लगे ह गे परंतु मुझे लगा मानो उसने नणय लेने म घंट लगा दए ह । वह हौले
से मेरी ओर बढ़ा और आँख को घने अंधकार के बीच अ य त करने क चे ा करने लगा।
मेरे पास अपना जौहर दखाने के लए एक ण का सौवाँ अंश ही था। म अपनी कटार के
साथ उस पर झपटा और इससे पहले क वह कोई त या दे पाता, म अपनी तीखी कटार
उसक गदन क कोटर म उतार चुका था। वह बना कसी आहट के धरती पर जा गरा।

म तेज़ी से उन दोन दरबान क ओर मुड़ा, जो अब तक जाग गए थे, मेरी कटार से र


टपक रहा था। उनम से एक ने मुझे दे ख कर मछली क तरह पलक झपकाई, एक चीख़
उसके गले म ही फँस कर रह गई। म चुपके से उसक ओर बढ़ा और उसका गला रेत दया।
तीसरा दरबान शायद सबसे अनुभवी था। उसने झट से अपना हाथ तलवार पर रखा। म उस
पर झपटा परंतु वह मुझसे भी तेज़ नकला। उसने मुझे बड़ी ज़ोर से ठोकर दे मारी और म
ज़मीन पर धे मुँह जा पड़ा। तभी उसने अपनी तलवार ऊँची उठा ली ता क उसे मेरी छाती
के आरपार कर दे । मुझे अपना अंत नकट दखाई दया परंतु मेरे पास खोने के लए था ही
या? मने अपनी कटार उसके मुख पर दे मारी और वह वीभ स सी मु ा म वह खड़ा रह
गया। मुझे भय आ क शायद म नशाना चूक गया परंतु अचानक ही उसक र से
लथपथ, बा आँख म घुसी कटार दखाई द , वह ण भर के लए थरथराया और फर मेरे
ऊपर ही ढे र हो गया। उसक तलवार, मेरे सर से परे, कुछ क़दम क री पर जा गरी।
नशाना लगने के भी अपने फ़ायदे होते ह। मने उसके नीचे से अपने-आप को नकाला और
अपनी कटार वा पस ख च ली।

तभी मुझे कुछ क़दम क आहट सुनाई द । कुछ और सै नक छानबीन करने आ रहे थे। म
द वान क तरह बचने का माग खोजने लगा। दरवाज़ा खोलने के लए चा बय से हाथ
उलझने लगा। ‘ताला नह खुलेगा’ मेरे पसीने से लथपथ हाथ, भय के मारे थरा उठे । ‘वहाँ
सही चाबी कौन सी थी?’

“अरे! तुम कौन हो?” कोई च लाया। मेरी चाबी क तलाश और भी ती हो गई। एक तीर,
मेरे कान के पास से सरसराते ए नकला और लकड़ी के दरवाज़े म जा घुसा। म अब भी
उसके आने क व न कान म महसूस कर सकता था। अगला तीर, मेरे बाएँ कंधे के पास से
होते ए नकल गया। उसके पंख ने मुझे छु आ। म अपनी ओर आती पदचाप सुन सकता
था परंतु अंततः वह दरवाज़ा खुल ही गया। जैसे ही एक तलवार क धार ने, दरवाज़े क धातु
क कनारी से टकरा कर आवाज़ क , मने ग म क़दम रखा और धकेल कर दरवाज़ा बंद
कर दया। म एक बार फर से, उन चा बय से उलझने लगा। वे लोग दरवाज़ा खोलने क पूरी
को शश कर रहे थे परंतु मने अपना पूरा बल लगाते ए, दरवाज़े को बंद रखा और उसे ताला
लगाने म सफल रहा। फर म सर पर पाँव रख कर वहाँ से भागा।

म दे ख सका था क जब म महल म थत राजा के क क ओर भागा जा रहा था तो ग के


अलग-अलग कोन से मशाल जलने लगी थ । म ागंण म लटक रही बेल के सहारे, कसी
ब ली क तरह ऊपरी बरामदे म जा प ँचा। म भी कोई कम खलाड़ी नह था। वहाँ खड़े
सपा हय ने कठघरे म खड़े हो कर, कोलाहल का कारण जानना चाहा तो मने उ ह उसी
ण नीचे धकेल दया। फर एक ठोकर मार कर क का दरवाज़ा खोला। म हाथ म कटार
लए ती ा करता रहा परंतु कुछ नह आ। कुछ भी हलने-डु लने का वर सुनाई नह
दया।

एक छोटा सा तेल का द पक टम टमा रहा था और एक गहरी आकृ त पलंग पर लेट


दखाई द । मने हौले से दरवाज़ा सटा कर उसे भीतर से बंद कर दया। फर म चुपके से
द पक क ओर बढ़ा और उसक लौ तेज़ कर द । ‘राजकुमारी शूपणखा? वह कमीना कहाँ
था? या वह बच नकला?’ मेरा मन नराशा से भर उठा। म वहाँ जतने भी ण ठहर रहा
था, मृ यु के उतने ही नकट होता जा रहा था। जब मने कसी घंट के खनकने क तरह मधुर
हा य लहरी सुनी तो म मारे कुंठा के, ज़ोर से च लाना चाहता था। भले ही यह ब त म म
थी परंतु इसे तो म मील र से भी पहचान सकता था। ‘माला! वह यहाँ या कर रही थी?’
म इस तरह आवाज़ को सुनने लगा मानो कोई जंगली ब ली घात लगाए बैठ हो। हा य का
वर साथ वाले क से आ रहा था और तभी अचानक मुझे समझ म आ गया क माला
व ुत ज हा के साथ होगी। म द वान क तरह, साथ वाले क का ार तलाशने लगा। म
सुन सकता था क ारपाल मेरी तलाश म थे और हर बीतते ण के साथ मेरे बच नकलने
के अवसर घटते जा रहे थे। कसी ने दरवाज़ा खटखटाया और राजकुमारी हली। मने खुद
को द वार के साथ चपका दया। उसने अपनी आँख खोल कर, दरवाज़े क ओर दे खा। फर
उसने हाथ से पलंग को टटोलते ए, अपने प त को दे खा और जब वह नह दखा तो
उसक भृकु ट तन गई। जब म अपनी अंगु लय से टटोल कर सरे क के दरवाज़े क
अगला खोल रहा था तो बाहर से खटखटाने का वर तेज़ हो गया।

“कौन है?” उसने पूछा।

“कोई आपके क म घुसा है, महारानी जी।” बाहर से कसी ने पुकारा। मेरा दल वेग से
धड़कने लगा। उसे यह बात समझने म कुछ समय लगा क या कहा गया था। फर वह
पलंग से उतरी और कुछ ण के संकोच के बाद ार क ओर बढ़ । मने सोचा, “आज तो म
गया!” सै नक भीतर घुसे चले आए और राजकुमारी को पीछे धकेल दया। तभी मेरे हाथ से
वह अगला खुल गई। दरवाज़ा खुलते ही, म अपनी पीठ के बल जा गरा। मने पैर से ही
दरवाज़े को बंद कया और उठ कर,उसे झट से बंद कर दया। य ही म मुड़ा तो मुझे
व ुत ज हा और माला दखाई दए। वह मेरी ेयसी के साथ वहाँ था! वे दोन मारे भय के
जड़ हो गए।

बाहर से दरबान ने ार को धकेला। वे कसी भी ण, उसे तोड़ कर भीतर आ सकते थे।


मने अपने बाएँ हाथ के पछले ह से से माला के मुख पर इतनी ज़ोर से मारा क वह तीन
फ़ट र क द वार से जा टकराई। एक छलाँग मारी और व ुत ज हा के पेट पर चढ़ बैठा। म
अपनी ं या मक मु कान को रोक न सका। पता नह उस दन मुझम इतनी ू रता कहाँ से
आ गई थी। म नरंतर, अपने वषैले खंजर से उसके चेहरे पर हार पर हार करता चला
गया।

मने यह अनुभव तक नह कया क माला अपने ेमी को बचाने के य न म, मेरी पीठ को


अपने नख से कुरेद रही थी या बाहर से ारपाल जबरन ार खोलने के लए को शश कर
रहे थे। केवल राजकुमारी क चीख़ ही मुझे मेरे होश म वा पस ला सक । अ य जन भी उस
वीभ स य को दे ख कर त ध रह गए और मुझ पर आ मण तक नह कर सके। म यह
न त प से नह कह सकता क राजकुमारी अपने प त का वध होते दे ख च लाई या वह
उसके छल से ःखी ई थी। मुझे उस तरस भी आया। मेरे शरीर से र टपक रहा था और म
थकान महसूस कर रहा था। जब शूपणखा अपने पूरे ज़ोर के साथ च लाई तो म लगभग
अपनी ह मत हार चुका था, “भ ! भ !… मेरे भाई ने तु ह मेरे प त क ह या करने के लए
भेजा… रावण… य , य , य ?” वह दोन हाथ से अपन सर पीटने लगी।

सै नक का यान, वलाप करती राजकुमारी क ओर गया। खड़क खुली थी और मने वहाँ


से छलाँग लगाने म दे र नह क । य ही म गरा तो उनका अ धनायक च लाया। म सीधा
अशोक के एक पेड़ पर जा गरा और उसक शाखा से उलझते ए, धरती पर आ पड़ा।
मने इसे तब नह जाना परंतु मेरी तीन पस लयाँ टू ट गई थ और गरने से बा बाजू म भी
चोट आई थी। परंतु उस समय तो कुछ भी मह व नह रखता था। म अपनी ाणर ा के लए
भागा, मुझे इस बात क स ता थी क मने अपने वामी, अपने वंश, अपनी जा त, अपने
रा और मेरे अपने लए कतनी महान उपल ध अ जत क थी। चार दशा से तीर क
वषा हो रही थी परंतु यह भी व च चम कार था क उनम से एक भी मुझे पश नह कर
सका। म प मी द वार म एक दरार के बारे म जानता था, जहाँ से सागर म छलाँग लगाई
जा सकती थी, बस वहाँ तक प ँचने क दे र थी। म अपनी दे ह क बची-खुची श बटोर
कर भागा। कुछ और क़दम, बस कुछ और क़दम, इसके बाद सागर माता मुझे अपने व म
छपा कर सुर त कर लेती।। जैसे ही म द वार क उस सध तक प ँचा, मुझे एक व च सा
अनुभव आ – कोई भी मेरे पीछे नह आ रहा था। ‘ या यह कोई व था?’ म इतना
भयभीत था क क कर दे खने का साहस ही नह था।

तभी मने शंख फूँकने का वर सुना। मने आ य से पीछे मुड़ कर दे खा। ग के वशाल चौड़े
ार से एक शोभाया ा भीतर वेश कर रही थी। रावण एक स ाट के प म हाथी पर
आसीन था और उसके पीछे हा थय , अ , रथ व पैदल सै नक के साथ सेना चली आ रही
थी। उनके साथ ही संगीत का दल भी था। वे सभी क़दमताल करते आगे बढ़ रहे थे। पूरी
शोभाया ा क भ ता दशनीय थी। पूरे जोश व उ लास के साथ चड पीटे जा रहे थे,
तुर हयाँ बजाई जा रही थ व झाँझ – मंजीरे खनक रहे थे। एक के बाद एक, व ुत ज हा के
न ावान सै नक ने अपने ह थयार डाल दए। जय शंकर! हर हर महादे व! रावण क जय
हो! वजय ी हमारी ई! अंतत हम वजयी रहे! म तो मं मु ध हो उठा। गव से सीना फूल
गया और म अपनी दे ह म बसी पीड़ा को भुला कर, शोभाया ा क ओर दौड़ा।

य म समीप प ँचा तो ल जत हो उठा। म केवल धोती म था। म ब त ही भ ा व काला


था और शरीर के सैकड़ घाव से र टपक रहा था। यहाँ सभी असुर मुख व मं ी कतने
वैभव के साथ शोभाया ा म भाग ले रहे थे। जब म माग म खड़ा, इस वषय म वचार कर ही
रहा था क दो सै नक आगे आए और मुझे वहाँ से घसीट कर, पास बने फुटपाथ पर डाल
दया। म वह ल जत भाव से पड़ा रहा। ऐसा लग रहा था क म बुरी तरह से ठगा गया था
और छले जाने का यह एहसास मेरी छाती पर चढ़ बैठा था। म शाही हाथी के गले म बँधी
घंट का वर सुन सकता था। रावण का हाथी समीप आ गया था। मने अपना सर उठाया
और रावण से मेरी मली। या उनम नराशा थी, घृणा थी अथवा आभार दख रहा था,
या था उनम? दे ख कर तो यही लगता था क संभवतः रावण ने मुझे पहचाना तक नह था।

म अचानक ही बेतरह कड़वाहट से भरी हँसी हँसने लगा। म उसी ग े म पड़ा, व त क


भाँ त खल खलाता रहा। जब सूय नकला और दोपहर होने को आई तो ताप व उ णता
बढ़ने लगे, मने थोड़ी श बटोर कर, अपनी कु टया क ओर दे खा। चार ओर, समारोह के
वर सुने जा सकते थे। कुछ लोग ने मेरी ओर स के उछाल दए थे और कुछ ण के
संकोच के बाद मने उ ह सहेज लया। मुझे इस बात का भरोसा नह था क म आने वाले
दन म पेट भरने के लए कोई काम भी कर सकूँगा या नह य क पीड़ा ती होती जा रही
थी। हर स का मेरे लए ब मू य था। हर ओर समारोह का वातावरण था। स ाट,
राजकुमार तथा मं ी, सभी उ लसत थे। उ ह ने वजय ी जो ा त क थी परंतु मेरे पास तो
जाने के लए अपनी कु टया ही थी, एक ऐसा छे द, जसम मुझे रग कर जाना था और अपने
घाव चाटने थे, एक व ासघा तनी ी से नपटना था और आजी वका चलाने के लए कुछ
करना था। जहाँ तक मेरा था, मेरे लए ये बात स ाट के रा या भषेक समारोह से कह
अ धक मह व रखती थ । इस लए म लगातार चलता ही गया।
21 अंधकार का पु

रावण
वह अपने आप से बाहर हो गई थी और व त क भाँ त वलाप कर रही थी। शूपणखा
मेरे चेहरे पर लपक और अपने हाथ से मेरे गाल फाड़ दए। जसने भी उसके पास जाने क
चे ा क , उसने उसी को काटना व खसोटना चाहा। उसके केश बखरे थे, चेहरा काला पड़
गया था, वह मुझे और लंका के सभी मं य को कोस रही थी, बीच-बीच म वह अपनी बँधी
मु य से छाती पीटने लगती। वह कसी शकारी ान क भाँ त व ुत ज हा के शव क
र ा कर रही थी। उसने पुजारी को भी आगे नह आने दया और वयं अपने प त के अं तम
सं कार क तैयारी करने लगी। उसने हम सभी को और वशेष प से मुझे कोसते ए,
अपने प त के शव को नए व धारण करवाए। म उसे सां वना नह दे ना चाहता था। यह
सच था क म उसके प त क मृ यु चाहता था और म ही उसके लए दोषी भी था परंतु उसने
वयं ही अपने लए यह नय त चुनी थी। जब उसने मेरा राज सहासन छ नना चाहा तो उसी
दन अपने मौत के परवाने पर द तख़त कर लए थे। उसने वयं ही अपने लए इस संकट
को नमं ण दया था।

भ ने मेरे लए यह काम कर दखाया था। उसके इस नीच व नदनीय कृ य के दौरान, मुझे


एक ही बात से घृणा का अनुभव हो रहा था क म उस मूख का एहसानमंद हो गया था। ‘या
म उसका एहसानमंद नह था?’ वह तो एक दास मा था, दास तो वही करते ह, जो उनके
वामी आदे श दे ते ह, इसम एहसान या आभार वाली बात कहाँ से आ गई?’ मने अपनी बहन
के प त के शव को नहारा। उ ह ने इसे साफ़ कर दया था परंतु वह अब भी वीभ स दख
रहा था। जब मने पहली बार शव को दे खा तो कै करने क इ छा होने लगी थी। सच कोई
वकृत मान सकता वाला ही ऐसा अमानवीय व घृ णत काय कर सकता था। यह भ
भी कैसा जीव था! कमीना कह का! अचानक एक तेज़ चीख़ के साथ हो रहे वलाप ने मुझे
मेरी तं ा से जगा दया। शूपणखा अपना सर फ़श पर पटक रही थी।

और उसके पीछे , उससे भी तेज़ सुर म, मेरी माँ का वलाप जारी था। मने उनक इतनी
शी ता से आ प ँचने क अपे ा नह क थी। “र पपासु रा स! अब तेरी संतु हो
गई?” म इस अनपे त आ मण से पीला पड़ गया “तूने अपनी ही बहन को वधवा कर
दया। म श मदा ँ क मने तुझ जैसे रा स को नौ माह तक अपनी कोख़ म रखा!”

मने अपनी मु भ च ली ता क अपने-आप को व फोट से बचा सकूँ। माँ के हर आ ेप के


साथ शूपणखा क चीख़ एक नए शखर पर प ँच जात । “आततायी!… कु े… आज तेरे
कारण मेरी बेट इस तरह बसूर रही है।… तु ह इसका मोल चुकाना होगा… एक न एक दन
तु ह इसका बदला चुकाना होगा। वह अगले आधे घंटे तक इसी टे क के साथ चालू रही और
बीच-बीच म, अपने दामाद के गुण का गुणगान भी करती रही। य द मुझे उसने इस हसन
म न ख चा होता तो नःसंदेह यह सब मेरे लए हा या पद होता। “तुम स ा के मद म चूर हो
गए हो, तु ह मह वाकां ा के मद ने बेसुध कर दया है।”

“मार दे ! मुझे भी मार दे ! मेरे बूढ़े शरीर को अपनी राजनी तक सफलता के लए पायदान
बना कर योग कर ले।” मेरी माँ ने अपना माथा व छा तयाँ पीटते ए कहा। फर वह
अचानक मेरी छाती पर दोह थड़ बरसाने लगी।

मेरे पता भी साथ आए थे, वे एक कोने म बैठे, उन दो ा ण के साथ वचार- वमश कर


रहे थे, जो सदै व उनके साथ रहते थे। वे अपने दामाद के लए दे वो चत अं तम सं कार क
योजना बना रहे थे, जसम कुछ ह व ज टल अनु ान तथा ा ण को उपहार दया
जाना भी स मलत था। म ज द से ज द इन बात से छु टकारा पाना चाह रहा था।

भले ही शूपणखा ने कतना भी कठोर अ भनय य न कया हो, उसक तुलना कुंभकण से
नह क जा सकती थी। जब से हम उसे बचा कर लाए थे, वह पूरी तरह से बदल गया था।
यम का बंद होने के बाद से, वह अ धकतर समय कसी पाषाण मू त क भाँ त जड़वत बना
रहता। वह दन के अ धकतर समय म सोता रहता और उठने पर उप व मचाता।

मुझे अपनी बहन के लए खेद का अनुभव आ, जो भी हो, वह उसका प त था, जो


आज एक न ाण शव बन कर, धरा पर पड़ा था। वह मेरे बारे म जो भी सोचती थी, उसे
वह सोचने का पूरा अ धकार था। ‘बेचारी लड़क ! संभवतः मुझे इतना कठोर नह होना
चा हए।’ मुझे उसके प त को बंद बना लेना चा हए था। म कोई समझौता कर सकता था।

व ुत ज हा का चेहरा बुरी तरह से कुचला गया था। मुझे भ के त ती घृणा का आवेग


अनुभव आ। ‘वह ऐसा बबर तथा जघ य कृ य कर भी कैसे सका?’ वह एक असुर स जन
था, जसे एक व य पशु क तरह हलाल कर दया गया था और वह भी एक नीच व नदनीय
के हाथ ! मने श मदा महसूस कया क मने यह काय उस भ को स पा।

इस वजय ी म कोई उपल ध नह थी और न ही इसम कोई नायक व था। म भी तो भ के


समान एक नीच ही तो था। मने ह त क बात पर यान य दया? दं भी गँवार। हे शव!
मने अपनी ही बहन के साथ यह या कया? मने उसके जीवन से उस छोट सी स ता को
भी य छ न लया? या मेरे लए सा ा य इतना मह व रखता था? या लंका और यहाँ
तक क भारत मेरी मह वाकां ा क पू त के लए पया त थे? और यह या था, जसक
आधार शला म अपने ही लोग के शव पर रख रहा था? म जाने कतनी मौत के लए
उ रदायी अनुभव कर रहा था? या हम उस खड़ी च ान पर ख़तरनाक तरीक़े से झूलती
कु टया म अ धक सुखी नह थे? जीवन क सबसे बड़ी ासद यह थी क हमने बड़े हो कर,
अपने बालपन के सपन को साकार कया।

चेहरे पर पड़े एक करारे तमाचे ने मुझे मेरे अप रप व दाश नक चतन से बाहर ला पटका।
सारा क मेरी आँख के आगे नाच उठा और म लड़खड़ा कर गर गया। म कुछ ण के
लए जैसे ने हीन हो उठा और मेरा सर गोल-गोल घूमने लगा। मने उठने क चे ा क , और
तभी मेरे ो ण दे श म एक ज़ोरदार ठोकर आकर लगी। “कमीने ान…!” म कुंभकण क
च लाहट सुन सकता था और ऐसा लग रहा था मानो वे कसी गहरे कुएँ से नकल कर आ
रही हो। उठने क चे ा म सर एक बार फर से भ ा उठा पर ठोकर ने दोबारा लेटने पर
ववश कर दया। मेरी आँख सूज गई थ और ह ठ बुरी तरह कट गए थे। म कसी तरह खड़ा
आ, क म खड़े तंभ का सहारा लया ता क वयं को गरने से बचा सकूँ। धीरे-धीरे, सारा
य प हो गया।

मारीच तथा अ य तीन सै नक कुंभकण को वश म करने क चे ा म लगे थे। उसक आँख


दे ख कर ऐसा लग रहा था मानो कोई ब त बड़ा ह यारा हो और इसके बाद वह फर से जड़
हो गया। उसने अपने-आप को छु ड़ा कर, मेरी ओर लपकने व दोबारा ठोकर मारने क चे ा
क पर मुझ तक प ँच नह सका।

मने मुड़ कर दे खा क मेरे पता तथा दो त दयल ा ण बड़े ही ं य से मु कराते ए, इस


य का आनंद ले रहे थे। मेरी माँ नाटक य प से अपने हाथ से सर पीट रही थी और
शूपणखा आँख म जड़वत भाव लए शू य म ताक रही थी। कुछ ारपाल लगभग मु करा
रहे थे पर कसी तरह अपनी हँसी को दबाए खड़े थे। हमारे समाज के न नवग य लोग को
इस तरह के पा रवा रक नाटक ब त ही उ े जत करते ह। सं या तक, पूरा नगर, यहाँ घटे
हसन को, अ तशयो पूण सं करण के साथ गा रहा होगा। इस अनपे त आ मण क
तुलना म, ल जा का बोझ अ धक दं श दे रहा था।

मेरे चेहरे पर बढ़ता कालापन दे ख कर, मारीच कुंभकण को क से बाहर घसीट ले गए। म
उसे वह जान से मार दे ता पर जाने य , मुझ पर अपराधबोध हावी हो गया था। म ल जा व
अपराधबोध से त, वह सर झुकाए खड़ा रहा, मेरा पोर-पोर आ ोश से सुलग रहा था पर
म अपनी अँगुली तक नह हला सका। कुंभ मेरी मह वकां ा , मेरे अहंकार, मेरी
वाथपरता, लोग के त मेरे हेय भाव, मेरे अयो य अ भमान तथा मेरे वा त वक व क पत
दोष को चीख़-चीख़ कर गनाता रहा। उसने मुझे जी भर कर अपश द कहे और इ छा कट
क क मुझे अपने ाण याग दे ने चा हए थे।

म अब यह सब और नह सह सकता था। जी म तो यही आ रहा था क क छोड़ कर


नकल जाऊँ और इतनी म दरा पी लूँ क अपनी भी सुध न रहे। म मुड़ा तो बाहर बाग़ म
गई, मेरा धा मक वभाव का भाई वभीषण आलथी-पालथी मारे बैठा था, उसक आँख बंद
थ और चेहरे पर संतोष के मूखतापूण भाव प रल त हो रहे थे। जब सारा घर इतनी गहन
पीड़ा के बीच घरा हो तो इसम आँख मूँद कर इतना संतु व स होने वाली या बात थी?
म उसके समीप जा कर, उसके चेहरे पर चपक उस मु कान को धो-प छ दे ना चाहता था
परंतु वह संभवतः हमारे पूरे वंश म सबसे अ धक हा नर हत जीव था। उससे कसी भी
कार क हा न क क पना तक नह क जा सकती थी। वह मह वाकां ा र हत युवक,
अपने-आप म ही संतु था तथा वयं को जीवन व इसके पंच से अनास रखने क चे ा
करता। आवेग य कुंभकण, माँ, शूपणखा व यहाँ तक क मेरे भी बाद, वह हमारे प रवार म
प रवतन के एक अ या शत सुखद झ के क तरह था। मेरे पास इतना सहज व शांत रहने
वाला मन नह था और म अपने भाई के इस आ म-संतोष तथा सरल जीवनशैली से ई या
रखता था। संभवतः, एक मह वकां ा र हत जीवन ही जीने के सवथा यो य माना जाना
चा हए। य द म चाहता भी, तो भी कभी वभीषण नह बन सकता था, परंतु मने रावण बनने
के अ त र कभी कुछ चाहा ही नह !

मने आह भरी और अपने दाश नक भाई को उसक आनंददायी मूखता के बीच छोड़ कर,
अपने क म लौट आया। म म दरा पान करना चाहता था। जैसे ही मने वेश कया, तो
मंदोदरी को शै या पर बैठा पाया। वह चमचमाते रेशमी व तथा वण व हीरक आभूषण
से सुस जत थी मानो कोई चलता- फरता कोष हो। मुझे दे खते ही उसका चेहरा उ वल हो
उठा।

म अचानक ही ल जा व अपराध बोध से घर गया। वेदवती का गौर वण अभी मेरे म त क


म ताज़ा था और म अपनी प नी से उसक तुलना कए बना रह नह सका। मंदोदरी का
स दय एक कार से मं मु ध तो करता था परंतु वह कसी भी से कामो ेजक नह था।
वह कसी सा वी से कम नह थी और म ायः उसके पास जा कर वयं को भयभीत व
घबराया आ पाता। मानो उसने मुझे मेरी अंतरा मा के दशन कराने के लए एक दपण हाथ
म ले रखा हो और वह नरंतर मुझे मेरे छपे ए, भ े दाग तथा म से दखाती रहती। मने
घृणा तथा खीझ के बीच अपनी घबराहट को ढाँपने का य न कया। आ य क बात तो यह
थी क उस लंबे अ भयान के दौरान, मुझे कभी उसक याद नह सताई थी, यहाँ तक क जब
म कात वीराजुन के गहरे अंधेरे तहखाने म बंद था या जीवन व मरण के नणायक
ाणघातक यु लड़ रहा था, तब भी मने कभी उसे मरण नह कया। म उस काल म भी
केवल वेदवती के लए तड़पा था और अपनी पहली नवजात क या का मुख दे खने को तरसा
था।

जब म चेहरे पर एक अटपट सी मु कान के साथ जड़वत खड़ा था तो वह चेहरे पर उदासी


से भरी मु कान लए खड़ी हो गई। उसक मु कान ने चेहरे को चमचमा दया और म उसके
चेहरे क चमक क ताब न ला सका। मुझे अपनी नज़र घुमानी पड़ । मने बाहर दे खा तो
अपने भाई को अब भी यानम न दे ख, मेरी खीझ व कुढ़न और भी बढ़ गई। जब म मुड़ा, तो
वह मेरे इतना नकट आ गई थी क म उसक दे ह गंध अनुभव कर सकता था। उसक दे ह से
ताजे बेला व कपूर क गंध आ रही थी। उसने पलक फड़फड़ाई तो उनम अ ुकण
झल मला उठे । वह ब त ही संकोची व ल जाशील दखाई दे ने लगी। दल तो चाहा क उसे
अंक म भर लूँ और आँख म छलक रहे मोती प छ ँ पर म अपना एक भी अंग नह हला
सका। जाने या था, जो मुझे ऐसा करने से रोक रहा था।

“औरत! तूने शराब कहाँ रखी है?” अपना ही वर मेरे कान को ककश जान पड़ा और म
सरी ओर दे खने लगा। म उसके दल को लगी ठे स को अनुभव कर सकता था इस लए
उसक ओर दे खना नह चाहता था। म आगे पड़ी कुस पर जा बैठा व छत को ताकने लगा।
वह कैसा महसूस कर रही थी? व ुत ज हा उससे कैसे पेश आया होगा? या उसने मुझे
याद कया? मेरे दमाग़ म सैकड़ सवाल च कर काट रहे थे, परंतु म एक भी श द नह
बोला। म अपने अ भयान के वषय म ड ग हाँकना चाहता था, उन सभी य के बारे म
बताना चाहता था, जो मने इस दौरान दे ख,े दे व क व च व आकषक भू म के वषय म
बताना चाहता था, ओझल हो चुक जा तय , कारागार म सही पीड़ा तथा वानर-राज बाली
के हाथ मली पराजय व यहाँ तक क उसे उस दे व ा ण क या के साथ ए चंड
आवेगयु ेम के वषय म भी बताना चाहता था – परंतु म चुपचाप बैठा छत को ही ताकता
रहा।

मंदोदरी ने मेरे लए म दरा उड़ेली और अपनी शै या के पास लौट गई। मने एक भी श द कहे
बना, सारी म दरा अपने भीतर उड़ेल ली और ाकुलता से, कुस के काठ पर अपनी
अँगु लयाँ ठकठकाने लगा। वह त ण लौट और मेरे लए सरा गलास भर दया। म
नरंतर पीता रहा। पूरे महल म एक व च सी चु पी छाई थी। यदा-कदा, कह से माँ अथवा
बहन के वलाप का वर सुनाई दे जाता। जब मने उन दयनीय वर को सुना, तो अपनी
भावना को म दरा म ही डु बो दे ने का नणय लया। फर उस क से वेदमं के वर
सुनाई दे ने लगे, जहाँ शव को रखा गया था। वे ा ण मेरे बहनोई क आ मा को तैयार कर
रहे थे ता क वह म खन, मधु, आ द से बनी न दय को पार करते ए, न व न दे व के वग
तक जा प ँच।े कुछ ारपाल ार तक आए व कहा क वे लोग व ुत ज हा के शव को
अं तम सं कार के लए शमशानभू म ले जा रहे थे और मेरी ती ा क जा रही थी क म
आकर मृतक को अपनी ओर से अं तम ांज ल अ पत क ँ ।

म ोध से आग-बबूला होते ए खड़ा हो गया और म दरा का धातु पा , एक तेज़ खनक के


साथ लुढ़कता चला गया। सारे कालीन पर ध बे पड़ गए। म उस दरबान पर च लाया और
वही पा उठा कर उसे दे मारा। मने इतनी ज़ोर से उसे फका क य द वह उसे लग गया होता
तो बेचारा वह दम तोड़ दे ता। वह सर पर पाँव रख कर, वहाँ से भागा। मने उसके जाते ही
भड़ाम के साथ दरवाज़ा बंद कर दया और वातायन बंद करने लपका ता क वहाँ से
हा या पद यौ गक मु ा म यानरत वभीषण क छ व से मु पा सकूँ। संभवत वह ऐसा
करके ा ण को अपना सहयोग दे रहा था।

फर म अपनी प नी क ओर मुड़ा। वह मारे भय के थर-थर काँप रही थी। मने उसे कमर से
जकड़ा तो उसने आ यजनक बल के साथ मुझे पीछे धकेल दया, चूँ क म म दरा के नशे म
चूर था, म लड़खड़ा कर गर गया। “मेरी दे ह का पश मत करना।” उसने धीमे कतु ढ़ वर
म कहा। म वह फ़श पर, मूख क भाँ त बैठा पलक झपकाता रहा, म ऐसी भी ी ारा
ऐसे श दशन को दे ख त ध तथा उलझन म था। “तुम म दरा के नशे म चूर हो। मुझे
हाथ लगाने क चे ा भी मत करना।” वह अपना सर ऊँचा कए, वह खड़ी थी। मुझे चुनौती
दे रही थी। मुझे धमका रही थी क म उसे पश तक न क ँ ।

म ोध म आकर खड़ा आ और उसक ओर पुनः लपका। उसने सामने रखे पा से, फल


तराशने वाला चाकू उठा लया और उसे मेरी ओर तान दया। ‘ओह, मुझे अ छा लगा। ये तो
बड़ी जीवट वाली नकली। मुझे इस खेल म आनंद आ रहा था!’ अरे ये या! उसने अचानक
ही उस चाकू क नोक को अपनी ओर मोड़ लया, वह चाकू को अपने उदर से सटा कर
बोली, “अगर मुझे पश करने क जरा सी भी चे ा क तो…।” फर वह सुब कयाँ भरने
लगी, जनसे उसक दे ह रह-रह कर काँप उठती और म इस सारे संग से कुं ठत हो उठा।

म बड़ी सरलता से, बलपूवक उसे अपने वश म कर सकता था पर अब ऐसा करना नह


चाहता था। इसक बजाय मने उसे कोसा, अपश द कहे, त कए फाड़ दए, पलंग क रेशमी
चादर उतार कर, उस पर दे मारी। कुछ ही ण बाद, मुझे अपनी मूखता का भान आ और
म उसे कोसते ए, क से बाहर आ गया। बाहर आते समय, भड़ाम से ार बंद करना भी
नह भूला।

म ब त ोध म था। जी म आ रहा था क कसी के ाण ले लूँ। यह बड़ी ही भा यपूण बात


थी क उस समय एक सुंदरी दासी, ांगण बुहार रही थी। जब उसने मुझे पाँव पटकते ए,
शाही क से नकलते दे खा तो वह मूख क तरह दं ग रह गई, फर वह अपने हाथ का
झाड़न वह छोड़ कर, ज़ोर से भागी। मने उसक ओर यान तक न दया होता परंतु उसक
घबराहट मुझसे छप न सक । मने उसका पीछा कया और लगभग छलाँग लगाते ए, उसे
कलाई से थाम लया। मने अपनी हथेली के ज़ोर से उसक चीख़ को रोकना चाहा और उसे
पास वाले क म घसीटता ले गया। वहाँ मने उसके साथ बलात् संभोग कया। ारंभ म, वह
इ छु क नह थी; संभवतः उसने सोचा होगा क म उसक ह या करने जा रहा था परंतु एक
ही ण बाद, वह शांत हो गई और कोई वरोध न करते ए, प र थ त के आगे घुटने टे क
दए। तो इस कार जब मेरी बहन अपने प त क ह या पर वलाप कर रही थी; मेरी माँ मुझे
कोस रही थी; मेरे भाई मेरी बहन के प त क चता को अ न दे रहे थे; मेरी प नी दय
वदारक सुब कयाँ भर रही थी तो म राजा, भारत का स ाट एक नीची जा त क दासी के
साथ त था। और फर उसी अपराध व ला न से मेरे काले रंग के, मोटे व भ े पु ,
अ तकाय का ज म आ था।
22 उप व


मुझे पूरी तरह से संभलने म एक वष का समय लगा। जब असुर लूट-मार मचाने तथा पर पर
संघष करने म त थे तो मेरी कु टया पर ःख क काली छाया मँडरा रही थी। न केवल
मेरा मुह ला, ब क उन दन अ धकतर कान व घर, अ न क लपट म जल कर वाहा हो
गए थे, जब रावण तथा व ुत ज हा के म य स ा को पाने के लए वीभ स तांडव रचा जा
रहा था। कुछ दन तक मेरा मन कड़वाहट से भरा रहा। माला, उसी फूस क जीण कु टया म
लौट आई थी, जो मने, शाही माग के एक ओर, बरगद के वृ तले डाली थी। उससे पूव, म
उसके बारे म अपनी ओर से पता लगा चुका था और मने पाया क वह महल म काम करने
वाली एक तु छ दासी के अ त र कुछ नह थी। यह अफ़वाह भी सा रत हो चुक थ क
राजा ने उसे गभवती कया था और रावण ने उसे अपनी ूसरी रानी बना लया था। मुझे
ई या का अनुभव आ और दल को ठे स भी लगी। म उसक ह या कर दे ना चाहता था परंतु
अब वह पद म मुझसे कह ऊपर थी इस लए म ऐसा चाह कर भी नह कर सकता था।

फर एक दन, वह मेरे पास आई। वह तो कह से भी, रानी जैसी नह दखती थी। वह


ब कुल साद पोशाक म थी और धूल से मैली-कुचैली लग रही थी, उसके कंध पर चीथड़
क एक पोटली थी, वदा लेती सुंदरता के नशान ने उसे और भी बदसूरत बना दया था।
एक राजा क रखैल अथवा उपप नी कहलाने के लहाज़ से तो माला क दशा ब त
शोचनीय थी। मुझे उसके छल से जो ोध आया था, वह अब एक ऐसी पीड़ा म बदल चुका
था, जो सु हो गई थी। वह न त प से थोड़े से भोजन व वला सता क व तु के लए
अपनी दे ह का ापार करती रही होगी, या फर कसी भी नधन कतु ख़ूबसूरत ी के लए
व ुत ज हा तथा रावण जैसे राजा के राज म जीने का और कोई साधन हो भी या
सकता था? अपने कारनाम को अंजाम दे ने बाद, म कुछ माह तक ोध, आ म-दया तथा
ई या के बीच जलता-भुनता रहा। परंतु जब तक वह मेरे पास आई, मेरा रोष शांत हो चुका
था। जस दन वह मेरी कु टया म आई, उसी दन मुझे ज़ोर का ताप चढ़ा था, वह एक भी
श द कहे बना मेरी सेवा करने लगी। म नह जानता क उसने उन थोड़े से चावल क भ ा
माँगी अथवा उ ह चुरा कर लाई पर उसने मेरे लए थोड़ा सा पतला द लया बनाया। वह मुझे
खलाने लगी और जाने य म फूट-फूट कर रोने लगा। वह कुछ नह बोली परंतु प े से बने
च मच से द लया खलाती रही।

जब तक मेरी तबीयत संभली, तब तक ये बात पूछने के लए ब त दे र हो चुक थी। मुझे


उसक आव यकता थी और मेरा मानना था क उसे भी मेरी ज़ रत थी, जब तक कोई और
धनी पु ष अपनी वासनापू त के लए संकेत न करता, तब तक तो उसे मेरी आव यकता थी
ही। धीरे-धीरे मेरा जीवन एक न त दनचया म ढलने लगा। यह समय काफ़ हद तक शांत
था और हम अ धकतर दन म इतना तो कमा ही लेते थे क कम से कम एक व क रोट
पेट भर कर खा लेते थे। नगर, महल, मं दर , हाट-बाज़ार व ाम क चौड़ी-संकरी ग लय
म लगातार घूमने वाले भ ुक व अनाथ, जा गर व सँपेरे, नट व बंजारे, ायः उस बरगद क
छाँव तले सु ताने आ जाते। यह राहगीर के सु ताने के लए ाकृ तक आ य थली थी।
अपनी नीरसता से पार पाने के लए, म तरह-तरह के खा पदाथ के साथ योग करने लगा
और उसे राह चलते लोग के बीच बाँट दे ता। माला ने मुझे हमारी पहली छाजन वाली कान
बनाने म सहायता क , जहाँ हम नमक न ना ता व मठाइयाँ बेचते थे। परंतु यदा-कदा, वह
महल के भी ऊट-पटाँग काम करती और वह अपने पु अ तकाय को भी नय मत प से
महल ले जाती। य प म इस बात के लए उससे घृणा करता था परंतु जीवन म अनेक वष
के बाद ऐसा ठहराव आया था, जब म शां त के साथ भरपेट भोजन कर पा रहा था इस लए
म कसी भी तरह का ख़तरा मोल नह लेना चाहता था।

माला ने भोजन व ना ता पकाने व उसे परोसने का दा य व संभाल लया। मने पाया क मेरे
पास एक और नर भी था। म थोड़ी सी धनरा श म ही या य के व धो दे ता। म जानता
था क कस पौधे या बीज से कपड़ को अ छ तरह धोया जा सकता है और म इस दशा म
लगातार योग करता रहता। य प एकाध बार कसी कपड़े का रंग भी चला गया था परंतु
मने शी ही, घोल का सही अनुपात बनाना सीख लया और लोग मुझे एक अ छे धोबी के
प म जानने लगे। मने अपने संर क भी बदल लए थे और म जन धनी ापा रय के
लए काम करता था, वे अपने महँग,े आया तत, चीन से आए रेशमी व , ब ढ़या छपाई के
सूती व तथा मूल भू म भारत के मलमल के लए, मुझ पर व ास करने लगे थे।

यह राह चलती छ पर वाली कान, शी ही ग पबाजी़ तथा दलबहलाव का अ छा साधन


बन गई। मने सुना था क राजकुमारी शूपणखा अपने माता- पता के साथ लंका याग कर,
मु य भू म पर चली गई थी। उसने कसम खाई थी क वह कभी अपने बड़े भाई रावण का
मुख तक नह दे खेगी।

मने शारी रक प से, माला को कई बार महल जाने से रोकना चाहा, परंतु वह कसी कार
आँख बचा कर नकल ही जाती। जब वह लौटती तो म उसका जीना नक कर दे ता, पर वह
मेरी मार-कुटाई और ठोकर को अद य सहनश के साथ सहन कर जाती। अंततः, एक
दन उसने वीकार ही लया क रावण ने उसके साथ बलात् संभोग कया था और अ तकाय
राजा का ही पु था। परंतु उसने दावा कया क उस घटना के बाद, राजा ने उसे कभी नह
सताया और सदा घृ णत अवमानना व हेय से ही दे खा है। वह ायः रानी मंदोदरी के
बुलावे पर महल म जाती थी। रानी का अ तकाय के त नेह ही, माला को बार-बार महल
के ार पर ले जा कर खड़ा कर दे ता। जब भी नय मत प से महल का च कर लगा कर
आती, म कुछ भी सोचे-समझे बना उसे पीटता, इस तरह यह एक कार का द तूर सा बन
गया था। और हमारा ववाह, अगर इसे ववाह कह सकते ह, तो वह कसी कार जी वत
रहा।

रावण के इस अवैध पु के ज म के लगभग एक माह बाद, रानी मंदोदरी ने रावण के जायज़


पु को ज म दया। चूँ क वह बालक गहरी अंधकार से भरी मानसूनी रा म ज मा था, उसे
मेघनाद नाम दया गया, ‘एक ऐसा जसका वर गरजते मेघ के समान हो’।

शी ही राजकुमार कुंभकण के घर एक सुंदर सी क या ने ज म लया और वभीषण भी


वथ व -पु पु ी का पता बना। हमारे लए ये सभी घटनाएँ मह वपूण रह । ऐसा
इस लए नह था क हम शाही उवरता को ले कर ब त च तत थे, ब क इनसे प तथा
ाय प के, ामीण इलाक़ के लोग, नगर आने के लए आक षत होते थे और यह हमारे
ापार के लए ब त अ छा व लाभदायक था। धीरे-धीरे, समय के साथ-साथ, राजा ने
अपनी जा का दल जीत लया। संभवतः वह अपनी ाकृ तक मह वाकां ा को याग
चुका था अथवा एक पु के ज म ने उसके दय से यु व नए े को व जत करने क
पपासा को शांत कर दया था। धीरे-धीरे, इस प स हत भारत के े समृ अ जत करने
लगे और फर से उस शखर पर जा प ँचे, जहाँ समृ तथा वैभव उनके चरण पखारते थे।
ापार एक बार पुनः फलने-फूलने लगा।

ारंभ म, वभीषण को सभी पसंद करते थे। उसने गली-नु कड़ म बने, व मृत शव मं दर
तथा अ य दे व के मं दर को पुनः त त कया तथा मं दर के शासन के वषय म उसक
नी तय ने, अनेक शंसक को उसक ओर आक षत कया परंतु वह शी ही छोटे व णु
मं दर बनवाने लगा और उसने बड़े ही व च दे व री त- रवाज़ लागू करने आरंभ कर दए।
वह कुछ ा ण को भी साथ ले आया और धीर-धीरे, ये लोग जा त था क घृ णत व
नदनीय दे व परंपरा को भी लागू करने लगे। नःसंदेह, कुछ ऐसे मूख भी थे, ज ह ने
वभीषण के इन काम को सराहा और इन लोग ने त काल ा ण के कमकांड को अपना
लया। स ांत वग, पूरा दल बना कर, इनका साथ दे ने लगा और वे प व य ोपवीत धारण
करने लगे, जो ा ण को सदा पहनना होता था। वे येक उस को तर कृत से
दे खने लगे, जो कोई उपयोगी काम करता हो।

जब तक हम इस बात को समझते, हमने अपने-आप को मु य धारा से बाहर पाया।


राजकुमार वभीषण ारा एक गु त अ भयान चलाया जा रहा था, जसम सभी मह वपूण
सरकारी पद ा ण के लए सुर त थे। तीन ही वष के भीतर, सभी मह वपूण ापा रक
काय व पद, या तो नव-द त अथवा उन ा ण के हाथ आ गए थे, जो उ र से, यहाँ
आकर बस गए थे। लोग म रोष पनपने लगा। उ री भारत से गोरी चमड़ी वाले ा ण के
झुँड के झुँड आने लगे और वे सभी मह वपूण नगर व ाम म आकर फैल गए।
जन ापा रय ने दे व तौर-तरीक़ को नह अपनाया था, उ ह धीरे-धीरे महल से न का सत
कर दया गया। सड़क तथा मं दर के सावज नक ठे के, केवल नव-द त को ही दए जाने
लगे। फर हम जैसे लोग के लए सड़क भी बंद कर द ग । हमारी अपनी ही धरती पर,
हमसे कैसा वहार हो रहा था, मेरी कान त दन इस ोध व नपुंसक रोष क सा ी
बनती। नव न मत वशाल व भ मं दर म हमारा वेश न ष कर दया गया। पुराने
पुरो हत को मं दर से नकाल दया गया और उनम ा ण क त काल भत कर द गई।
लोग ब त ही नेह से महाब ल के शासन को मरण करते, जब सबके साथ समान भाव से
पेश आया जाता था। धीरे-धीरे अतीत क यश-गाथा पर धूल क परत जमने लग ।

यह दबा आ आ ोश अंततः उप व व दं ग के प म सामने आया और हम अपना सबक


तभी सीख सके, जब हमारे हज़ार लोग सै नक के हाथ मारे गए। हम शी ही इस भुवन म
अपना थान पहचान गए। यह ान से कोई ब त बेहतर नह था।
23 ं यु

रावण
न ा मुझे छल रही थी। द का काला व भ ा चेहरा, मेरे मन म वीभ स आकार म तांडव
रच रहा था, कभी मुझे भयभीत करने लगता तो कभी मेरे आगे वनती करने लगता। म
अपनी चादर पर पड़ा करवट बदल रहा था। कल म मारीच को उसके पास भेजूँगा। संभवतः
कुछ सुवण मु ाएँ उसके मुख पर मार कर, म इस ला न से मु हो सकूँ। परंतु साथ ही म
इस पर ो धत व श मदा भी था। यह सब कुछ बलता के एक ण के भीतर आरंभ
आ। म इतना नीचे कैसे गर गया? मेरे आचरण के वषय म कोई सफ़ाई नह द जा सकती
थी। म इस बात को भुला कर, अपने जीवन म आगे बढ़ सकता था, परंतु शव क ओर से
मले इस उपहार का या? यह तो मेरी समझ से भी परे था क वासना से भरा एक कुकृ य,
एक संतान को ज म दे सकता था जब क म और मेरी प नी, अपने पु मेघनाद को एक भाई
दे ने के लए, बारह वष तक यास करने के बाद सफल ए थे। अ य कुमार का ज म
अनेक वष बाद आ परंतु तब तक मेघनाद के जीवन म उसका एक सौतेला भाई ज म ले
चुका था – अ तकाय। मंदोदरी जानती थी और उससे इतनी घृणा करती थी क वह उस
दासी और उसके पु से कुछ अ धक ही दयालुता से पेश आती। अंधकार के कुछ ण;
प नी, जा त और मेरे जीवन के लए मेरा ोध – बस अंधकार म ज मे इस जीव के लए
इ ह चीज क आव यकता पड़ी थी – अ तकाय, मेरी अवैध संतान! चाहता तो माँ व पु
को एक ही शाही आदे श से हमेशा के लए ओझल कर सकता था परंतु जाने कस बात ने
मुझे रोक लया – संभवतः मेरे भीतर कोई थोड़ी-ब त मानवता का अंश शेष रह गया होगा
या हो सकता है क खोए ए ेम अथवा एक दे व राजा ारा छल से ह थया ली गई असुर
राजकुमारी क मृ त म ऐसा आ हो। जो भी हो, काला तथा भ ा व लंबे दांत वाला
अ तकाय, मेरा ही तो पु था और म समझदार, ववेक व बु मान होता जा रहा था; आप
यह भी कह सकते ह क शायद म ऐसा मूख था क इतना जघ य कृ य नह कर सकता था।
जस कार मेरी पु ी दे व सा ा य म पल-बढ़ रही थी, उसी कार मेरे पाप से ज मा पु भी,
शी ता से बड़ा हो गया।

यह स य था क म दन- त दन के शासन के काय म च नह ले रहा था। मेरे मं ी सुयो य


थे और मने खुद को पा रवा रक जीवन म म न कर दया था। मेरे कोष लबालब भरे थे और
मेरे भीतर कसी और वजय क मह वाकां ा शेष नह रही थी। म पचास वष के लगभग हो
गया था और पूरी तरह से संतु था। म जानता था क म एक अ छा और दयालु राजा था
और मेरे जाने के बाद भी जा, लंबे समय तक मेरे शासन को मरण करेगी। म यम आयु के
अ धकतर शासक क भाँ त, म अपने पीछे एक वरासत छोड़ कर जाने म अ धक च
रखता था। अब म मृ यु के पंज से ब त र नह था। म अपनी गदन पर उसक ास
अनुभव कर सकता था। अब म कोई अजेय या अमर नह रहा था। कतनी व च बात थी,
म जीवन को मान दे ने लगा था। म येक ण का आनंद लेने लगा था। अब म छोट बात
पर भी अपना यान क त करने लगा था जैस;े सु र दे वालय से आते घं टय के वर,
तलवारबाज़ी का नर सीखते, पु मेघनाद क तलवार के टकराने का वर; मेरी प नी ारा
छोटे पु अ य को लारने का वर; महल के ांगण म यहाँ-वहाँ कुलाँचे भरती, कशोरी
भतीजी जटा क कलाइय म बजती चू ड़य क खन-खन… जीवन के इन छोटे -छोटे
आनंद म ही मुझे असीम स ता मलने लगी थी।

माला से ज मा मेरा पु अ तकाय, ववाद का क था। म इस संसार म सबसे अ धक अपने


पु मेघनाद से ेम करता था, यहाँ तक क अपने-आप से भी अ धक! मेघनाद जो भी था,
अ तकाय वह नह था। मेघनाद इतना सुंदर था क म उसे आँख भर कर दे खने से भी
क़तराता था। अ तकाय मानो काले माँस का बड़ा सा ल दा था, वह इतना भ ा व बदसूरत
था क लोग उसे दे ख कर, आ य से अपना मुँह तक बंद करना भूल जाते। जहाँ मेघनाद
कसी वशु न ल के अ क भाँ त मया दत था वह माला का पु गँवार, अप र कृत तथा
फूहड़ था। मेघनाद आकषण तथा बु मता का जीता-जागता त प था जब क अ तकाय
दन-ब- दन, वयं को अपनी ही मूखता तले दबाता चला जाता था। मानो कृ त माता ने
अपना सब कुछ मेघनाद को ही स प दया था और उसके पास अ तकाय को दे ने के लए
कुछ बचा ही नह था। मुझे तो इस बात से उलझन होती थी क भला एक ही पता के पु ,
आपस म इतने अलग कैसे हो सकते थे? म अ तकाय से उतनी ही घृणा करता था, जतना
मुझे मेघनाद से नेह था। परंतु अ तकाय मुझसे सदा अपश द सुनने के बावजूद कसी
पालतू प ले क तरह पीछे लगा रहता। म उससे जतना भी बचने क को शश करता, वह
कसी न कसी प म मेरा साथ बने रहने क को शश करता। ायः म उसके साथ ू रता से
पेश आता, सावज नक प से तमाचा जड़ दे ता या फर एकाध बार तो ठोकर भी दे मारी
थी, उस पर बुरी तरह से च लाया था, फर भी वह खड़ा मूख क भाँ त खी-खी करके, दाँत
नपोरता रहता, अपने गंदे पीले व बाहर क ओर नकले दाँत का दशन करता रहता। य द
मेघनाद आसपास होता, तो वह खल खला कर हँसता। अ तकाय उसके लए दल-बहलाव
का साधन था। जब मेरी आयु कम थी तो संभवतः मुझे इस भावना का एहसास नह हो सका
परंतु अब म समझ सकता था क म अपने इस मूख पु से भी एक अलग ही कार से नेह
रखता था। य प यह उस नेह से अलग था, जो म मेघनाद, मंदोदरी, अपने भाइय , तथा
ब त सारे भतीज तथा भती जय के लए रखता था। यह यार कुछ ऐसा ही था मानो आप
जब कसी आवारा कु े को एक बार कुछ खलाने के बाद, उसे लार तो दे ने लगते ह, परंतु
उसक बदसूरती व गध के कारण उसे अपना पालतू नह बना सकते।

य द भ बीच म न होता, तो शायद मने इस लड़के से ब त पहले ही पीछा छु ड़ा लया होता।


द मेरे जीवन म पुनः तब लौटा, जब मेरे जीवन म उसके जैसे लोग के वषय म वचार तक
करने के लए समय नह रहा था। यह सब उस सामू हक ह याकाँड के बाद घटा, जब
वभीषण ने ा ण के व आवाज़ उठाने वाले असुर व ो हय को कुचला था। म
ा ण का कोई ब त बड़ा शंसक नह था और सच क ँ तो, मुझे तो इन उप व से
स ता ही ई थी। जब वभीषण त- व त व र से लथपथ ा ण के साथ दरबार म
आया तो सबसे पहले मुझे यही लगा था क य न खुल कर एक ठहाका लगा लया जाए।
पंरतु सदा क भाँ त, इस बार भी ह त ने ही मुझे राह दखाई। तब वह पचास के उ राध म
था परंतु अब भी मुझे अपने वचन व उपदे श सुना-सुना कर खझाता रहता था। हमारे बीच
अब भी बहस होती थ पर म काफ़ हद तक, उस पर नभर रहने लगा था। म उसे रोज़मरा
के शासन संबंधी काय म सब कुछ संभालने दे ता, परंतु जब भी कोई मह वपूण अवसर या
घटना होती तो म अपने पद क ग रमा व मयादा मरण कराने म दे र नह करता था। हम
दोन सही मायन म म नह थे, परंतु म उसका आदर करता था। दरअसल वह उन कुछ
लोग म से था, जो मुझसे भयभीत नह होते थे और न ही वे चाटु कार थे। उसने उस दन,
भरी सभा म मेरे साथ इस वषय पर चचा नह क , उसने मा माँगी और मुझे एकांत म ले
जा कर बोला क यह तो वही अवसर है, जसक ब त समय से ती ा क जा रही थी। हम
व ो हय को दल-बल स हत कुचलना था ता क उस दन के बाद, कोई भी असुर, कभी
याय तथा व था को अपने हाथ म लेने का ःसाहस न कर सके। ह त का तक था क
राजा ही सव च स ा है, कसी म भी इतना साहस नह होना चा हए क वह उसे चुनौती दे
सके या उसके व आवाज़ उठा सके।

चूँ क म ही सव च स ा था इस लए मुझे उसक बात मानने म कोई सम या नह आई परंतु


म ा ण का प लेने क बात सोच कर ाकुल हो रहा था। तभी अचानक म त क म
आया क म एक ही तीर से दो नशाने लगा सकता था। इस तरह, हमने कुछ घंट के लए
लंका नगरी को उसके हाल पर छोड़ दया, उसे आग क लपट म जलने दया और लुटेर को
लूट मचाने क पूरी आज़ाद द गई। फर हम मोच पर लौटे । हमारे सपा हय ने बना कसी
प पात के, ा ण व असुर , दोन क ही गदन काटनी आरंभ कर द । मने अपने असुर
सै नक को पूरी छू ट द क वे व णु के नाम पर बने मं दर को व त कर द। उ ह ने बड़े ही
मनोयोग से यह काय कया और उन दे वालय को शवालय म बदल दया गया। ा ण पूरे
दल के दल बना कर, अपनी ज मभू म क ओर दौड़े और व ण ने अ छे -खासे शु क के बाद
सागर के सरी ओर जाने का बंध करवाया। प र थ तयाँ चाहे जो भी ह , व ण को लाभ
कमाने के सब तरीक़े आते थे। क ने अपना काम इतनी द ता से कया क उसके बाद
मुझे कभी कसी व ोही का मुँह तक नह दे खना पड़ा। यह तो सच था क कुछ णा के
लए वभीषण सकते म आ गया था, परंतु उससे भला कसी को या अंतर पड़ने वाला था।
य प, भाई के लए मुझे खेद आ था और मने उसे यह कह कर सां वना द थी क म उन
ा ण को कसी कार क यातना नह ँ गा, जो कसी कार लंका छोड़ कर नह जा पाए
थे। धीरे-धीरे वह सहज हो गया और मने सोचा क मने अपने छोटे भाई क सनक तथा
गत व श ता को वश म कर लया। संभवतः ऐसा केवल मने ही सोचा था।
जब भ मेरे स मुख आया, तो म भाँप सकता था क वह भीतर ही भीतर ोध से सुलग रहा
था और मेरा हाथ तलवार तक जा प ँचा। मने कसी छोटे बालक क भाँ त अपनी खड् ग को
चं हास नाम दे रखा था और उस पर पूरा अ धकार रखता था। यह एक दशनीय तलवार थी
जसे एक व यात लुहार ने गढ़ा था और यह हमेशा मेरे यान म लटक रहती। फर
अचानक ही, भ फूट-फूट कर रोने लगा। पहले उसक चीख़ ह क रह और फर उसक
पूरी दे ह, रह-रह कर काँप-काँप उठती। पहले वह घुटन के बल गरा और फर मेरे पाँव म
लोट गया। य द पहले का समय रहा होता तो ऐसी प र थ त म, मने उसके मुख पर एक
ज़ोरदार ठोकर दे मारी होती। म कसी भी क ऐसी बलता सहन कर ही नह सकता
था परंतु मने दे खा क भ के ये अ ु कसी बलतावश नह अ पतु अपनी उ रजी वता के
लए थे। अपना अ भमान याग कर भी, जी वत रहना, इसके लए कतने साहस क
आव यकता होती है। अपने च लाते अहं-बोध को दबा कर, कसी सरे के स मुख
गड़ गड़ाने के लए भी कतनी संक प श क आव यकता होती है। अंदर ही अंदर गु से
से आग होने के बावजूद, अपना शीश झुका कर, वन ता के दशन के लए भी कड़े
संक प क आव यकता होती है। अंततः वजय ी, अ भमान, गव तथा क त व यश; इनम
से कुछ भी तो मह व नह रखता, मह व रखती है तो वह है ‘उ रजी वता’! उ रजी वता के
ये वषय ही तो के लए सब कुछ होते ह – उसका जीवन, उसके उ रा धकारी,
उसका वंश, उसक जा त व भाषा! बाक सब व तुएँ अथहीन थ , अनुपयोगी थ परंतु म तो
म ही था और वह, वही था, जो वह बन चुका था। हम दोन म से कोई भी, इस वषय म कुछ
कर ही नह सकता था। तो म नीचे झुका और उसे उठने म सहायता क ।

“भ !” मने उसक सुरमा लगी आँख म झाँका। एक घृणा क ती लहर आई और फर


त काल एक मृत भाव का प ले लया। मने उस घृणा को उपे त कया। मने उस गध को
उपे त कया। जीवन इतना छोटा था क उसम ऐसी तु छ बात के लए कोई थान नह
था। मने अपने-आप को काफ़ हद तक, भला महसूस कया।

“ या तुमने कुछ खाया” मने अपने उसी सुर म पूछा, जो मेरी क पना म दया से भरपूर था।
उसने अपना सर हलाया। “जाओ, पाकशाला म जा कर, कुछ खा लो। म उ ह नदश भेज
ँ गा।”

वह वह अ वचल भाव से खड़ा रहा। यह बड़ी ही व च सी प र थ त थी। वह कुछ बोल


नह रहा था और मेरे पास कुछ कहने के लए श द नह थे। उसक गध मेरे दमाग़ को
चकराने लगी थी। मने उस ु जीव के त दया व सहानुभू त का जो आवरण ओढ़ा था,
उसे बनाए रखने का भरसक य न कया, परंतु भीतर ही भीतर एक अ वीकृ त उभरने लगी
थी। मने उससे लड़ना चाहा, अपनी आँख उसक काली व दरार से भरी चमड़ी, बखरे व
धूल म लपटे बाल , टाँग पर पड़े ण , बाहर को नकली त द तथा बदबूदार गंदे दाँत से
हटा ल । परंतु वह गध रह-रह कर मेरे नासापुट से टकराने लगी। म अपने हाथ धोना
चाहता था, म खुद को ब त ही अशु व षत अनुभव कर रहा था। न चाहते ए भी, मने
एक रेशमी माल से अपने हाथ प छ लए और जब उसने मेरी इस ग त व ध को गौर से
दे खा तो म असहज हो कर, ला न से भर उठा।

तभी तीन वष य मेघनाद क म दौड़ा चला आया और पूरे वातावरण को अपनी


खल खलाहट से गुलज़ार कर दया। वह अचानक ठठक गया। उसक यारी आँख, उस गंदे
व काले असुर को दे ख आ य से भर उठ जो उसके पता, महाराज रावण के स मुख, आदर
से शीश झुकाए खड़ा था। म अपने पु को उठाना चाहता था और उसक ओर बढ़ा भी पर
तभी मुझे कुछ यान आ गया और मने उसे पश करने का वचार याग दया। म नह चाहता
क उसे उ ह गंदे हाथ से पश क ँ , जनसे अभी भ को छु आ था। एक बार फर मने
अपने हाथ प छे और उस भ े जीव क ओर से ोध क अनदे खी लहर को अनुभव कया।
मेरे भीतर एक वार क भाँ त ोध उठा और म उसक ओर पलटा तभी मेरा अवैध पु ,
काला व बदसूरत अ तकाय भी क म दौड़ा चला आया। उसने अपने शरीर पर धोती के
सवा कुछ नह पहना था। उसक तीन वष य अंगु लयाँ, अधखाए पके आम से सनी थ ।
उसक आँख भ पर जा टक । म नह जानता क उस तीन साल के लड़के के दमाग़ म
या था, वह भूख से अधमरे भ क ओर बढ़ा और अपना आम उसके आगे कर दया।
इससे पूव क म कोई त या दे पाता, भ उसे ले कर, इस तरह खाने लगा मानो इसके
बाद उसे संसार म कभी खाने को कुछ मलेगा ही नह ! ये या! मेरे दे खते ही दे खते, मेघनाद
ने अपना हाथ उसके आगे फैला दया और उसने वह अधखाया व चुसा आ आम, उसके
हाथ पर रख दया। मने हाथ को ज़ोर से ठोकर मारी और वह आम छत से बाहर जा पड़ा।
मने अपने हाथ के पछले ह से से भ पर हार कया। मेरा सारी दया व सहानुभू त हवा हो
गए थे। ‘इस नीच ने मेरे महल म घुसने और फर राजकुमार को अपनी जूठन दे ने क ह मत
कैसे क ?’ भ एक व च से संतोष के साथ, वह ज़मीन पर जा गरा।

दोन लड़के गला फाड़-फाड़ कर च लाने लगे। मने अ तकाय को कंध से पकड़ा और बुरी
तरह से झकझोर दया। मेघनाद ने अपने सौतेले भाई को मुझसे छु ड़ाना चाहा। वह न हे हाथ
से मुझसे जूझने लगा और तभी मंदोदरी वहाँ भागती ई आई, उसने अ तकाय को मेरे हाथ
से ख च लया।

“रावण तुम पगला गए हो? या तुम इस बालक क ह या करना चाहते हो?” वह च लाई

उसने वलाप कर रहे अ तकाय को वह छोड़ा और मेघनाद को गोद म ख च लया। वह माँ


के व से लग कर रोने लगा। यह य दे ख कर, अ तकाय का शोर और भी यादा हो गया।

“तुम मेघ को इस गंदे बालक के साथ खेलने य दे ती हो?” मुझे अपने ही श द खोखले
जान पड़े।
मेरी प नी झपट । “रावण! यह तु हारा गंदा बालक है।” उसने अपने रोते ए, पु को बाँह
म उठाया और पाँव पटकते ए बाहर नकल गई। म तं भत रह गया। ‘उसने मुझसे इस
तरह बात क , उसका इतना साहस?’ वह तो मेरे समीप आने से भी भयभीत आ करती थी
परंतु जब से एक पु का ज म आ था, वह इस तरह से पेश आती थी मानो मेरी वा मनी
हो। अब वह मुझसे भयभीत नह होती थी। अब उसे अपना काम नकलवाने के लए मुझसे
ऊँचे सुर म बात करने, अपश द कहने या उलाहने दे ने म भी ल जा नह आती थी। म यदा-
कदा ो धत होने के अ त र , ायः वत हो जाया करता था। लोग कह सकते थे क म
उसका दास व हण कर चुका था। भले ही म चीख़- च ला कर, अपना रोब जमाने क चे ा
करता था परंतु अ धकतर तो वही बाजी मार ले जाती थी। वह मुझे वश म करने के लए,
उसके त मेरे नेह तथा मेरे पु को ही अपना अ बनाती और सच क ँ तो म इन बात से
स ही था।

मुझे यह पता लगाने म कुछ ण का समय लगा क वहाँ स ाटा छा गया था। मने आसपास
दे खा। अ तकाय और भ भी मुझे अकेला छोड़ कर, वहाँ से अलोप हो गए थे। मने बाहर जा
कर, नीचे झाँका। म एक झुक ई, काली सी आकृ त को, गंदे बालक का हाथ थामे,
पाकशाला क ओर जाते दे ख सकता था। तभी सागर क ओर से वायु का एक खुशनुमा
झ का आया और साथ ही उनके वातालाप के कुछ सुर भी तैर उठे । उनके हा य म लपटे ,
एक श द ने मेरे दय के मम थान पर तीखा हार कया। अ तकाय, जस पु को मने
कभी नह चाहा, उसने अपने मासूम से वर म, भ को अपना ‘बाबा’ कह कर पुकारा था।
म नह जानता क भ ने उसे ऐसा पुकारने के लए कहा था या बालक ने वयं ही कहा
होगा। परंतु इससे मेरे दल को ठे स लगी। फर मुझे यह सोच कर थोड़ी राहत मली क वह
गंदा लड़का, मुझसे और मेरे य पु मेघनाद से तो र रहेगा।

य प येक यह जानता था क मेघनाद मेरा पु था, फर भी जब भ ने उस दासी


से ववाह कर लया, जसके साथ मने ब त पहले बला कार कया था, तो इससे मुझे
सहायता ही मली। तो इस तरह भ व अ तकाय के संबंध म यह अपनापन वाभा वक ही
था। मुझे यह सोच कर ला न होती थी क म अपने अनुचर क प नी से बलात् संभोग कर
चुका था और मने उस प रवार को एक संतान द थी, परंतु धीरे-धीरे म इस श मदगी का
अ य त होता चला गया। चाहे तो कसी भी चीज़ का अ य त हो सकता है, भले ही
वह श मदगी ही य न हो! वशेष छू ट के प म, मने शाही अ यापक को नदश दे दया
था क वे मेघनाद का सबक पूरा होने के बाद अ तकाय को भी पढ़ा दया कर। और म यह
जान कर आ यच कत रह गया था क वह अ -श के चालन म ब त नपुण था। उसने
न त प से यह कौशल मुझसे ही लया होगा। मने सोचा था क उसे मेरे पु के श
अ यास के लए अ छे त ं के तौर पर खड़ा कया जा सकता था।

समय बीतता गया और वे दोन लड़के बड़े हो गए। मने ब त ही गव के साथ अपने पु
मेघनाद के नातक होने के उपल य म कए जा रहे काय म क घोषणा क । यह समारोह
ावण मास क पू णमा को मनाया जाने वाला था। मेरा नकटतम म बाली, राजक य
अ त थ के प म पधार रहा था। मेरी युवाव था क उस भूल के बाद, हमारी म ता म वृ
ई और म बाली का ब त बड़ा शंसक बन गया, मेरा व ास था क यही भाव बाली के
दय म भी थे। उसक प नी तारा और मेरी प नी क भी गहरी म ता थी। बाली और मेरे,
दोन के ही भाई उ ं ड व धृ थे और ायः हम दोन इस वषय म चचा कया करते। बाली
मेरी बहन पर नगरानी रखता था, जो उसके रा य क बाहरी सीमा के समीप जा बसी
थी। वह कहता था क वह एक दन सबके लए वनाश का कारण बनेगी य क वह ब त
ही आ मक त थी, परंतु मने यह सोच कर उसक बात को अनसुना कर दया क शूपणखा
इतनी मह वपूण नह थी क कसी भी कार का भाव उ प कर सके। उसे तो अपने लए
पु ष क आव यकता रहती थी और वह बना कसी भेदभाव के उ ह ा त करती रहती
थी। वह प रवर के नाम पर एक कलंक थी, परंतु जब तक वह, मेरी माँ अथवा मेरे धूत पता,
लंका से बाहर थे, म लोग क बात क परवाह नह करता था। बाली जब मेरे पु के नातक
समारोह के लए कोट आया तो उस समय वह क त के उ ुंग शखर पर था। उसका
अपना पु अंगद, मेघनाद से कुछ ही वष बड़ा था, वह भी साथ आया। वह दखने म थोड़ा
व ोही वभाव का कशोर लगता था परंतु कशोराव था म ऐसा कौन सा कशोर होता है
जो व ोही भाव नह रखता? मने अनुभव कया क मेरा म अपने पु के साथ कुछ
अ धक ही ता के साथ पेश आता था।

ब च को फलने-फूलने के लए वतं वातावरण क आव यकता होती है, य द वे वशाल


बरगद सरीखे पता क छाँह म ही रह तो ऐसा हो पाना संभव नह होता। उस वशाल बरगद
के तले तो कुछ भी नह पनप सकता। वह लड़का ायः शांत ही रहता और कई बार कड़े
वभाव वाले पता के त खुल कर कड़वाहट उड़ेल दे ता। अंगद क तुलना म, मेरा पु
कसी दे व त से कम नह था। व तुतः, मेरा पु तो कसी भी सरे क तुलना म एक
दे व त ही था। मुझे अंगद के साथ उसक म ता से हमेशा ही भय रहता था, परंतु मेघनाद
बल के त आवाज़ उठाने वाल म से था। मेरा यह मानना था क हम जस आधु नक युग
म रहते थे, यह उसके सवथा अनुपयु था। मेरे पु के पास एक बीत चुके, पारंप रक युग
के, स दय पुराने नै तक मू य थे। गु त प से, म उसके भ व य के त च तत ही रहता
था। परंतु वह सदा पूरे आवेग के साथ तक दे ता क लोग बु नयाद प से अ छे व भले ही
होते ह, सभी मनु य अपनी जा त, वंश अथवा धम के बावजूद एक समान ही होते ह। उसके
अनुसार मू य, स य, नै तकता तथा सदाचार आ द शा त थे और मानव जा त ारा क गई,
कोई भी ग त उ ह बदल नह सकती थी। म उसके लए गव का अनुभव करता और साथ
ही उसके भ व य के त च तत भी रहता।

भा यवश, म स य स आ। बेचारा लड़का, वह छल-कपट करने वाल के बारे म जानता


ही या था? वह भाइय व म के हाथ मले व ासघात, पाखंड, बदसूरत व एक- सरे
को फाड़ कर खा जाने वाले इस संसार के वषय म जानता ही कतना था? नःसंदेह! कभी
मने भी पूरे संसार म प रवतन लाने के बड़े-बड़े व दे खे थे और जब उसक आयु का था तो
एक महान व समृ समाज क थापना भी क थी परंतु फर म बड़ा हो गया और ऐसे
सपन के लए, मेरे पास कोई थान नह रहा। मेघनाद वला सता के बीच पला था और
उसक आयु म, मेरे पास केवल एक ही व तु थी, भूख! केवल भूख!

परंतु म वषयंतर कर रहा ँ। सयार ने भी मुझे अकेला छोड़ दया है। वे मेरे इस चंचल व
उ े जत म त क को खा कर, सभी वचार का एक ही बार म अंत य नह कर दे त? े
कतना कुछ है, जो मुझे याद करना होगा। हे शव! अब तो मुझे अपने धाम म बुला लो। य द
वा तव म तुम हो, तो मेरी वनती सुनो! वैसे तो म वयं भी यह सब ज द ही जान लूँगा क
तुम हो अथवा नह ! जाने कतनी छ वयाँ मेरे म त क म च कर काट रही ह, जाने
कतनी…! उनम से मेरे पु के नातक समारोह क झल कयाँ मुख ह। म मंदोदरी के मुख
पर आ मतु के भाव दे ख सकता ँ। म जानता था क उस दन उसके चेहरे पर यह उजास
इस लए नह थी क उसका पु सुंदर था, जब वह हमारे पास से अपना अ दौड़ाता नकला
तो उसके काले घने केश हवा म लहरा रहे थे और वह दशनीय जान पड़ रहा था, अथवा वह
कतनी त परता से अ ारोहण के दौरान ही, अपने धनुष-बाण से प य अथवा मछ लय
पर नशाना साध रहा था। दरअसल उसे अपने पु पर गव इस लए था य क वह उसक
सखी तारा के पु से कह अ धक े था। उसका पु मेरे अवैध पु से कह अ धक े
था। गव क अनुभू त तो मुझे भी थी परंतु मंदोदरी को तो दे ख कर लगता था मानो उसने
मातृ व क कोई दौड़ ही जीत ली हो। जाने ये माता- पता इतने तयोगी कब बन जाते ह?

और उसी दन, मेरे जीवन क सबसे ल जाजनक घटना घट । मेरा पु अचानक ही अ क


पीठ से फसल कर, लड़खड़ा गया, लोग अवाक् रह गए। बाली और तारा के म य बैठा
अंगद खल खला उठा। मेरे पु ने ण भर म अपना संतुलन साध लया और बड़े ही
मया दत प म अपना अ ारोहण जारी रखा। य प म भीतर ही भीतर गु से से जल रहा
था कतु मने अंगद के पैशा चक हा य को उपे त करने का नणय लया। परंतु घटना तो
अभी शेष थी, इसके बाद जो आ, वह कसी भयंकर वनाश से कम न था। इसने मेरे दे श
को लगभग यु के कगार पर प ँचा दया और मेरी राजधानी वन होते-होते बची। मने
कोलाहल सुना तो मुड़ कर दे खा… ये या! म तो य दे खते ही तं भत हो उठा। अंगद धूल
म पड़ा लोट रहा था। चार ओर ाकुलता से भरी चु पी छाई थी। जैसे ही हमारे पु ने,
हमारे पीछे , कुछ री पर अपना अ रोका व उससे उतरा तो अ तकाय क काली व भारी-
भरकम दे ह, अपने थान से उठ कर खड़ी हो गई। फर वह हौले से वहाँ से खसका… ‘ओह
इस मूख ने ये या कर दया था? ये नीच दासी का पु !’

“पकड़ो इस मूख को!” मने गजना क । सैकड़ ारपाल तलवार ख च कर आगे आए और


उ ह ने अंगद व अ तकाय, दोन के आसपास घेरा डाल दया। बाली का चेहरा ोध से लाल
हो गया था।

अ तकाय अपने मोटे व काले ह ठ खोले खड़ा था, उसक काली घुँघराली लट हवा म लहरा
रही थ , वह सकारा मक प से व मत दखा। वह कसी मूख वृषभ क भाँ त दख रहा
था परंतु म उसके हाथ के तनाव को दे ख सकता था। क अपनी नंगी तलवार लए,
उसक ओर बढ़ा।

“उस… उस… उसने मेरे भाई… मेरा मतलब है… राजकुमार मेघनाद… क…का अपमान
कया।” अ तकाय हकलाया। सारी भीड़ म एक व च सी बुदबुदाहट फैल गई। मेघनाद के
मुख पर नेह व मनोरंजन के भाव थे।

“इसे कारागार म डाल दो। हम कल इसके भा य का नणय करगे।” म च लाया, मने


को शश क क बाली क नज़र से सामना न हो।

“इससे तो म यह और अभी नपटूँ गा।” यह अंगद का वर था।

“अंगद…” बाली ने हमशीतल वर म कहा परंतु उसके पु ने अपने पता के ोध क


उपे ा कर द ।

मने उस दन अंगद क म वही घृणा दे खी, जो म अपने पता के लए रखता था। म


अपने ही सहासन म वा पस धँस गया, म जान गया था क अब यह मामला मेरे हाथ से
नकल गया था, यह बात मेरे वश म नह रही थी। मेरी एकमा ाथना यही थी क अंगद
त काल इस मूख अ तकाय को समा त कर दे और संग यह समा त हो जाए, काय म
न व न समा त हो।

“ऐ मूख…!” बाली ने गु से से दाँत पीसे परंतु अंगद कहाँ सुनने वाला था। उसने नाटक य
प से सभी सै नक व क को पीछे हटने का संकेत कया और उ ह ने आदे श के लए
मुझे दे खा। मने भी त काल हामी द और क के आदे श से सभी सै नक पीछे हट गए।

“उसने मुझे ठोकर मारी है और म अपना खोया आ मान, पुनः वा पस पाना चाहता ँ।”
अंगद ने अपने पता को दे ख ँकार भरी। फर उसने पूरी सभा म घोषणा क ,
“लंकावा सय ! अब तुम दे खना क हम वानर उन गध से कैसे पेश आते ह, जो अपने-आप
को सह समझने क भूल करते ह!” अ तकाय वहाँ मूख क भाँ त मुँह बाए खड़ा रहा,
उसक आँख कसी उलूक क तरह झपक रही थ । मेघनाद अपने अ से उतर कर,
अ तकाय के समीप आया। उसने उसका हाथ थामा, उसके कान म कुछ हौले से कहा और
फर हाथ थाम कर, उसे अखाड़े के म य म ले आया। जब मेरे पाप से उपजा पु , मेरे य
पु मेघनाद के साथ, वहाँ प ँचा तो जा ने भारी गजन के साथ उनका वागत कया।
राजकुमार के उस एक संकेत के कारण, अ तकाय उस दन अक मात् सबका य बन बैठा
था। मेघनाद ने अपनी तलवार ख च कर हवा म उछाल फक और अ तकाय ने जस कार
उसे हवा म ही लपका, उसे दे ख कर तो म सकते म आ गया। सचमुच लड़के म कुछ तो बात
थी। अब म बुरी तरह से प त था। म चाहता था क अ तकाय क पराजय हो ता क म अपने
दे श तथा बाली के साथ पुरानी म ता को जी वत रख सकूँ। परंतु कह भीतर ही भीतर, मेरा
पता सुलभ अ भमान भी ास ले रहा था, हौले से धड़क रहा था। म चाहता था क
अ तकाय को वजय ी मले। जो भी हो, वह था तो मेरा ही र !

अंगद भी आगे बढ़ा। मुझे चार ओर से अलग-अलग वर सुनाई दे ने लगे। तभी भीड़
च लाने लगी, ‘वानर का नाश हो; वानर नक म सड़; वानर क हाय-हाय!’ मने कन खय
से बाली को दे खा, उसके हाथ ने अपने सहासन को कस कर थामा आ था और यह पकड़
हर बीतते ण के साथ कड़ी होती जा रही थी। उसक वशाल भुजा के कड़े नायु
कँपकँपा रहे थे परंतु वह वयं न ल त मुख लए बैठा था। भीड़ ने वानर को अपश द
कहना आरंभ कर दया था, वे उ ह वणसंकर तथा नर-वानर कह कर पुकार रहे थे। कईय ने
तो वानर-राज के लए भी अपश द का योग कया। मने क को खोजना चाहा परंतु मुझे
यह दे ख कर ब त आ य आ क वह भी मेरी ओर पीठ कए, बड़े ही उ साह से ं यु
आरंभ होने क राह दे ख रहा था। वहाँ होने वाले कोलाहल से कान के पद फटने को आ रहे
थे। तभी उस कोलहाल के म य, तलवार क पहली टकराहट क खनक सुनाई द । और
फर उन दोन म यु आ – मेरे म का वशालकाय पु तथा मेरी दासी का पु । पहले
कुछ ण के भीतर, अंगद कई बार सफल रहा। वह अ तकाय से कह अ धक फुत ला व
त पर था। अ तकाय अभी पूरी तरह से यु र नह दे पा रहा था, लाख यास करने पर भी
वह अंगद को छू तक नह सका। म थोड़ा न त होने लगा परंतु मन उदास भी था। सारी
भीड़ शांत व तनाव त थी। म वायु म घुल रही ता क गंध को अनुभव कर सकता था।
म भाँप सकता था क बाली भी थोड़ा सहज हो चला था। तभी, उ मूल म एक तेज़ ठोकर
के साथ ही, अंगद ने अ तकाय को धूल चटा द , वह धे मुँह जा गरा। धड़ाम का एक वर
सुनाई दया। सारी भीड़ यह य दे ख अवाक् हो उठ । अंगद बड़ी ज़ोर से हँसा व गजना
क।

अ तकाय एक ढे र सा बना बेसुध था या कौन जाने, संभवतः ाण ही याग चुका था। अंगद
ने अपनी तलवार जा क ओर लहराई। वह चाहता तो अपनी तलवार के एक ही वार से
अ तकाय का वह ाणांत भी कर सकता था परंतु उसने ऐसा कुछ नह कया। उसके लए
यह सब ब त ही साधारण वहार होता। वह एक असुर पर वानर राजकुमार को मली
वजय के उन ण का रसा वादन कर रहा था और एक-एक ण का भरपूर रस लेना
चाहता था। म बाली के मुख के एक कोने म खच आई तरछ मु कान और चेहरे पर तर
आए, ह के से गव के भाव को भी दे ख सकता था। म उदास कतु न त था। एक खद
घटना होते-होते टल गई थी। पंरतु फर मने अपने पु क लंबी-चौड़ी आकृ त को अपने
अधमृत पड़े सौतेले भाई क ओर बढ़ते दे खा। अंगद अपने करतब बंद कर, मेरे पु को
कड़वाहट के साथ दे खने लगा। मने ाथना क कह अंगद उसे पर पर ं के लए चुनौती
न दे बैठे। मेरे पु को उसे वीकार करना ही पड़ता और इसके प रणाम चाहे जो भी होते,
हमारे लए भयंकर व वनाशकारी ही होने थे। जब म उस ओर दे ख रहा था तो मने ल य
कया क मेरा पूरा शरीर थरथर काँप रहा था। ‘बाली का मूख पु । म तो आज उसक ह या
कर दे ता। समझ नह आता क लोग अपनी संतान का सही तरह से पालन-पोषण य नही
करते?’

मेघनाद ने अ तकाय का सर अपनी गोद म रखा व उसके कान म हौले से कुछ कहा।
वातावरण म एक असहज सी चु पी छाई थी। समय मानो कह थम सा गया था। यह एक
गम व उमस से भरा दन था और उस दन सागर से आने वाली हवा भी थमी ई थी। कह
र, कोई बकरी रंभाई और फर उसके मेमने ने अपनी माँ क पुकार का उ र दया। मेरी
पीठ, अपने ही वेद से भीग चुक थी। अ तकाय के हलते ही भीड़ म ह क बुदबुदाहट
आरंभ हो गई। फर उसने, मेघनाद के एक कंधे पर हाथ रख कर, उठने क चे ा क । वह दो
बार लड़खड़ाया परंतु मेघनाद ने उसे मज़बूती से थामे रखा। फर उसने मेघनाद को भी पीछे
धकेल दया और दो लड़खड़ाते डग भरते ए, अंगद क ओर बढ़ा। उसने अपने-आप को
थर करते ए, ँकार भरी। यह कसी मनु य क ँकार नह लगती थी, उसक त व न
पूरे अखाड़े क णक चु पी के बीच गूँजी और फर कह खो गई। फर भीड़ ने हज़ार कंठ
से उससे कई गुना तेज़ वर म ँकार द । वह वर सुन कर म जड़ हो उठा।

मेघनाद ने मारीच के हाथ से गदा ली व अ तकाय क ओर चल दया। अ तकाय के ने ,


अपने श ु पर टके थे, उसने मेघनाद क ओर दे खे बना ही, बाएँ हाथ से गदा ली और उसे
अपने दाएँ हाथ म थाम लया। वहाँ वह अपनी टाँग चौड़ी कए खड़ा था, सैकड़ घाव से
र नकल रहा था, उसका वशाल बाँया हाथ नतंब पर टका था और उसका काला व भ ा
चेहरा अंगद को लगातार घूरे जा रहा था। अंगद के पास कोई चुनाव नह था। वह भी ववश
था क अपनी तलवार नीचे रख कर, गदा से पर पर संघष के लए तुत हो जाए। जैसे ही
उसने गदा ली, सारी भीड़ समवेत वर म च लाई, “वानर का नाश हो। नर-वानर क मृ यु
हो! वानर- हाय! हाय!”

सारा पाँसा जैसे ण भर म ही पलट गया। अ तकाय अपनी तलवार के साथ अपना नर
नह दखा सका था। उसका भारी शरीर, अंगद क भाँ त लचीला नह था इस लए उसने मात
खाई। परंतु अब भारी गदा के साथ, उसके शरीर का भार कसी लाभ से कम न था। अंगद
अब भी पूरे कौशल व ती ता के साथ अ तकाय पर हार कर रहा था परंतु अ तकाय ने
सट कता के साथ जतने भी हार कए, उ ह ने त ं को चोट अव य प ँचाई। अंगद का
नर यहाँ, भारी शरीर वाले अ तकाय के सामने फ का पड़ने लगा। नःसंदेह वह
तलवारबाज़ी म नपुण था परंतु गदा के साथ, जब तक ज़ोर से नशाने पर साध कर हार न
कया जाए, तब तक उसका कोई भाव नह होता। खा़सतौर पर जब सामने वाला
अ तकाय जैसा हो, जो भीड़ क जयजयकार के बीच और भी बलशाली होता जा रहा था।

मने अपने पु के लए गव का अनुभव कया। ‘य द एक वणसंकर नर-वानर ने यह सोचा


क वह अपने बबर पु के साथ आएगा और हमारे ही यो ा को धूल चटा दे गा तो वह
उसक भूल थी!’ फर मने अपने-आप पर ही वार कया। व तुतः म भयभीत था क य द
अ तकाय क वजय ई तो या होगा? म बाली का म बने रहना चाहता था। वह मेरा
साम रक म था, वह ऊपरी गंगा मैदान से आए ू र दे व दल को मुझसे र रखता था।
उनसे हमारे रा य क र ा करता था। ऐसी म ता को यागा नह जा सकता था। हाँ, अवैध
पु को यागने म कोई क ठनाई नह थी। परंतु वह मेरा र था, यह दासी क वशालकाय
तथा मूख संतान, जस तरह से वह वार पर वार कए चले जा रहा था, उसे दे ख कर तो यही
लगता था क वह बाली को मेरा सबसे बड़ा श ु बना कर ही दम लेगा।
अंगद धरती पर जा गरा। उसक दोन भुजाएँ टू ट कर, बुरी तरह से मुड़ गई थ । अ तकाय
भी र से सराबोर था और उसके बाएँ पाँव के नकट र कुंड एक होता जा रहा था।
उसने अपना दाँया पाँव ज़ोर से अंगद क छाती पर रखा और अंगद के तो जैसे ाण ही सूख
गए। बाली अपने थान से उठ खड़ा आ। उसक मु याँ भची ई थ और भुजाएँ फड़क
रही थ । चेहरे पर ब त ही स त भाव थे। उसक रानी का चेहरा, भय के मारे जड़ हो गया
था। भीड़ द वान क भाँ त च लाई, “मार दे ! मार दे ! मार दे इसे, इस वानर के पु को मौत
के घाट उतार दे !” वह गजना हर ओर सुनी जा सकती थी।

अ तकाय ने अपनी गदा को पीठ के पीछे ले जाते ए, ऊँचा उठा दया। वह उसे ज़ोर से,
अंगद के मुख पर मारते ए, बुरी तरह से चेहरे को कुचल दे ता।

“ क!” म अपनी पूरी श के साथ च लाया। मुझे यह पता नह था क उसने मेरा वर


सुना भी या नह ? ऐसा लगा मानो कतने ही युग बीत गए। पर तभी अ तकाय ने अपना
चेहरा मेरी ओर घुमाया। ‘मने उस दन, उसक आँख म यह या दे खा – घृणा, आ य,
सहानुभू त अथवा वशु तर कार?’ वह एक ण के लए यूँ ही खड़ा, मुझे ताकता रहा।
सारी भीड़ शांत हो गई थी। वे छ वयाँ आज भी मेरे दलो- दमाग़ म बसी ह। फर क क
नज़र मुझसे मल और वह सब समझ गया। उसने केवल हाथ लहराया और लगभग बीस
सै नक म य म अखाड़े क ओर दौड़ पड़े। बी सय सै नक अपनी गदा व ला ठय के साथ,
चार दशा से उस पर पल गए। अ तकाय वह खड़ा, मानो मेरी आ मा म झाँक रहा था,
ऐसा पु , जसे मने कभी नह चाहा। वह अपने ऊपर पड़ रही उस मार क वृ से अचेत, यूँ
ही कसी वशाल वट वृ क भाँ त खड़ा रहा, उसे उसके लए रचे जा रहे मौत के तांडव से
भी भय न था। अंगद अब भी उसके वशालकाय पाँव के नीचे दबा था। भीड़ से एक गहरी
आकृ त नकली और लगातार सै नक क मार खा रहे, अ तकाय के समीप जा प ँची परंतु
क ने अपनी तलवार क मूठ से ऐसा तेज़ हार कया क वह आकृ त वह धराशायी हो
गई। बाद म मुझे पता चला क वह तो मूख भ था। वह कुछ ण के लए, भागते सै नक
के पाँव के नीचे कुचला गया और फर न े हो गया। म दे ख सकता था क मेघनाद तथा
मारीच क को रोकने का य न कर रहे थे। भीड़ इतनी तं भत थी क कोई त या
नह दे पा रही थी। यह ब कुल अनु चत हो रहा था और मुझे तो भय था क जब भीड़
अपनी तं ा से जगेगी तो कैसे पेश आएगी? म सुन सकता था क ह त अपने सै नक को
नदश दे रहा था, उ ह सब कुछ संभालने के आदे श दए जा रहे थे। यह दे ख कर तो म ही
सकते म आ गया, मेरा अपना पु व मेरे मामा, मेरे अवैध पु के बचाव के लए मेरे सेनाप त
व उसके सै नक से लोहा लेने लगे थे। यह सब कसी ः व से कम नह था। भीड़ भी
सै नक से लड़ने लगी और कह से आग चटकने के वर भी सुनाई दए। वहाँ चार ओर
भगदड़ मच गई।
तभी मने बाली को मैदान के बीच भाग कर जाते दे खा। जब बाली सबके बीच माग बनाते
ए वहाँ तक प ँचा तो मेघनाद और मारीच काफ़ हद तक सै नक व क को वश म कर
चुके थे। बाली को दे खते ही मेघनाद उसक ओर पलटा और मेरा हाथ झट से तलवार पर जा
प ँचा। परंतु इससे पूव क म कुछ कर सकता, बाली ने मेघनाद को कलाई से पकड़ा व
उसक तलवार को र भनका दया। फर एक ज़ोरदार ठोकर के साथ, उसने क को धूल
चाटने पर ववश कर दया। उसने मेघनाद को धकेला तो वह लड़खड़ा कर, दो क़दम पीछे
जा गरा। इसके प ात मेरे साहसी मामा ी क बारी थी। बाली ने मारीच को उठाया और
उ ह करीब दस फ़ट क री पर उछाल फका। सरे सै नक ने आगे आने का साहस ही नह
कया और वहाँ से ततर- बतर हो गए। अ तकाय अंगद पर ही ढे र हो चुका था और बुरी
तरह से कराह रहा था। बाली ने उसक वशालकाय दे ह को बड़ी ही सरलता से अपनी
भुजा म उठा लया। ‘वह अब मेरे पु को उठा कर, ज़मीन पर पटकने ही वाला है। उसने
आगे आकर मेरे ही पु को जान से मारने का साहस कैसे कया?’ मने सोचा

भीड़ वानर से दो-दो हाथ करने को तैयार थी और कुछ लोग सुर ा घेरा तोड़ कर आगे भी
नकल आए थे। मुझे लग रहा था क बाली अपने पु को दे खने से पहले, अ तकाय को वह
पटक कर समा त कर दे गा परंतु बाली ने तो अपने वहार से सबको आ यच कत कर
दया। वह मेरे पु को अपनी भुजा म लए चल दया – मेरा र से लथपथ, त- व त,
परा त, अ ेत व बदसूरत पु ! और भीड़ के बीच स ाटा छा गया। जो लोग बाली से लड़ने
के लए भागे चले आ रहे थे, वे वह थम गए और नज़ारा दे खने लगे। तारा सुब कयाँ भरने
लगी और मेरी प नी ने भी उसका साथ दया। परंतु तभी मेरी अपनी आँख म भी अ ु
छलक उठे । म उ ह छपाना चाहता था इस लए अपना मुख घुमा लया और सै नक को
चीख़-चीख़ कर आदे श दे ने लगा।

परंतु कसी ने भी मेरी बात पर यान नह दया। और फर मेरा म , वह भला यो ा,


संभवतः मने अपने जीवन म उससे न प नह दे खा था, सही मायन म स चा
यो ा, वह महान मेरे परा त पु को भुजा म लए मेरी ओर आया। उसका पु वहाँ
जी वत पड़ा था अथवा अं तम ास भर रहा था, यह हमम से कोई नह जानता था। परंतु
उस के भीतर याय यता तथा न प ता कूट-कूट कर भरी थी। वह तो ख़रे सोने
जैसे दय का वामी था। मने जो भी कया, म उसके लए ल जत था। उस दन, म, असुर
का बलशाली स ाट, अपने हज़ार जावा सय के स मुख रो दया था। मने संसार से अपना
चेहरा छपाया और फूट-फूट कर रो दया।

वे अ तकाय तथा मूख भ को भी शाही वै के पास ले गए। वे मेरे म के पु को भी वहाँ


से उठा ले गए, जो पराजय क ल जा व ला न के साथ-साथ, अ तकाय के भारी-भरकम
घूँस क मार से भी अधमरा आ पड़ा था। उनके घाव तो भर जाते परंतु हमारे दय पर
लगे घाव का या होगा? या वे कभी भरगे? म ता व ासघात तो सह सकती है, कतु
या यह दयालुता तथा दय क वशालता के इस असाधारण कृ य के बीच भी कह जी वत
रह सकती है?

भीड़ छतरा गई परंतु उ ह मंद होते वर के बीच मने कुछ ऐसा सुना, जो आने वाले क़हर
का संकेत दे ता तीत हो रहा था। अंगद अपने पता के समीप से नकलते ए फुँफकारा,
“कायर! तुझसे तो म बाद म नपट लूँगा” बाली वह खड़ा सु र म ताकता रहा मानो उसने
कुछ सुना ही न हो। मने दे खा क तारा अपने प त को वशु घृणा के साथ ताक रही थी
और मुझे अपने य म के लए भय का अनुभव आ। उसी ण, म भयभीत हो गया क
म जस संसार को जानता था, वह बदल चुका था। हमारी पीढ़ व हमारे मू य को अंगद
जैसे घमंड़ी व असं कारी युवा को यह जगत स पना था। मुझे भय था क हम सरीखे
लोग का तो आने वाले समय म नामो नशान तक मटा दया जाएगा। हमारे मू य कह खोते
जा रहे थे और जीवन इतनी ती ग त से भागा जा रहा था क मेरे जैसा उसके साथ
दौड़ नह लगा सकता था। म ब त तेज़ी से वृ ाव था क ओर जा रहा था। मने धीरे से
अपनी प नी का हाथ थामा और रथ क ओर बढ़ गया। उस दन मेरी प नी ने भी मुझे मेरी
नया म अकेला छोड़ दया और म अपने ही अंधकार के भीतर एक क ड़े क तरह समट
कर रह गया। अगले दन, ातःकाल, बाली और तारा अपने घायल पु को साथ ले कर लौट
गए। और इसके बाद मने अपने म को फर कभी नह दे खा।
24 दे श ने अपने नायक को ध यवाद दया


जब वे उसके खर च से भरी दे ह को, प य म बाँध कर, घर लाए तो पौ लगभग फटने को
थी। जब वे भीतर आए, तो वह हौले से कराहा। उ ह ने एक भी श द कहे बना, अ तकाय
को नीचे लेटा दया और वे एक भी श द कहे बना वहाँ से लौट गए। अ तकाय मेरी बाँह म
पला-बढ़ा था। जब वह तीन वष का आ था, तब से वह मुझे ही अपना पता मानता आया
था। ारंभ म उसने मुझे बाबा कह कर पुकारा तो म भयभीत हो उठा। वह एक राजकुमार
था, भले ही अवैध ही य न हो, और म तो वही था, जो म था। म उस पर च लाया था,
उसके आगे हाथ जोड़े थे और यहाँ तक क रोया भी था, वह मुझे अपना पता कह कर न
पुकारे, परंतु फर भी उसने अपनी टे क नह छोड़ी। य प, मन ही मन म चाहता था क
अ तकाय मुझे पता कह कर पुकारे। अब वह मेरा पु था। कोई भी राजा उस पर यह दावा
नह कर सकता था क वह उसका पु था। उसने मुझे इस धरती से सदा बाँधे रखा। हम
दोन मल कर कोट नगरी, वन तथा उसके आसपास थत अ वाही जल व पहा ड़य क
ख़ाक छानते। मने उसे अ चलाना सखाया। वह मेरी वनीत कु टया का राजकुमार था।
और वह मेरा अ भमान था, मेरा भ व य! जब उसका उपहास कया जाता; जब उसे जारज
पु के साथ कसी कु या के प ले क तरह घसीटा जाता तो मुझे पीड़ा होती! वह घमंडी
मेघनाद, उसे कौन नह जानता। परंतु अ तकाय अपने सौतेले भाई के त असीम नेह का
भाव रखता था। वह उसके त और मेरी प नी माला के त जो नेह भाव रखता था, उसे
दे ख कर मुझे ई या का अनुभव होता। मने उसे कई बार महल के भीतर जाने से रोका भी
परंतु ायः राजा अथवा उसके पु क ओर से बुलावा आता ही रहता। उ ह बेतुके काम के
लए कसी क आव यकता तो पड़ती ही थी। अ तकाय राजा तथा उसके पु के त कसी
ान क भाँ त वामीभ रखता था। वह सचमुच इतना सीधा, मासूम व सरल वभाव का
था। वह दे ह से भले ही बलशाली था परंतु उसका म त क बल था। वह ायः लोग क
सहायता करना चाहता पर चूँ क वह समाज के न न वग से था अतः उसक अ छाई को भी
सही अथ म न लया जाता।

येक उसे मूख ही समझता था। परंतु मुझे इस बात का पूरा व ास था क उस


कोमल व दयालु चेहरे के पीछे , एक ब त ही सश च र छपा था। यदा-कदा, मुझे उस
छपे इ पात क झलक भी दखती, परंतु अ धकतर तो अ तकाय एक युवा, सरल व नद ष
लड़का ही था, और इस संसार के लोग उसके भोलेपन का नाजायज़ फ़ायदा उठाने पर तुले
थे। दयालुता, साहस, नै तकता, स ांत व सहानुभू त जैसे मू य, हमारे जैसा सामा जक पद
रखने वाल के लए ख़तरनाक माने जाते थे। काली चमड़ी के तले, सोने जैसा दल रखना
सुर त नह माना जाता था। ये तो धनी, दयालु, उ च-वग य तथा गोरी चमड़ी वाल के लए
थे, वे भी इ ह तभी योग म लाते थे जब उ ह इससे कोई लाभ होता दखाई दे ता। मेरा
वशाल दे ह वाला, काला व भ ा पु , उनके बना भी अपना गुज़ारा चला सकता था परंतु
ज़रा सी चमचा गरी, ह क सी नममता, उ रजी वता के लए कसी भी वामी क सेवा
करने क त परता, अपने भीतर उफन रहे ोध को छपाने क यो यता तथा अपने से
श शाली लोग के स मुख कायरता दखाना ही हमारे जगत म, जी वत बने रहने के मुख
साधन थे। और म इनम से कसी भी बात के लए मूख अ तकाय को राजी नह कर सका।

उस दन ब त ही गम थी और म जैसे अपने ही वेद से नहा उठा। म धीरे से उठा तो दे ह


खने लगी। भूख से आँत कुलबुला रही थ । मने उठने क चे ा क पर सर चकरा गया। मने
द वार पकड़ ली और कुछ ण तक वह खड़ा हाँफता रहा। फर म लेट गया और न े
पड़ा रहा। अपने अ ु व ोध के घूँट भरते ए म आ म-दया से वत हो उठा। म मुड़ा
और रगते ए रसोई क ओर चल दया। म ऊबड़-खाबड़ फ़श पर सुराख दे ख सकता था।
वहाँ चार ओर धूल ही धूल थी, जस पर मने आज से पहले शायद कभी यान नह दया
था। म धरती के इतना समीप था क उसे लगभग सूँघ सकता था। यह कमीनी औरत घर को
साफ़ य नह रख सकती? म अपनी प नी से था। आज इसे वा पस आने दो, म इसे
सखाऊँगा क घर को साफ़-सुथरा कैसे रखा जाता है?

य ही मने रसोई म वेश कया तो एक बड़ा सा काला मकड़ा तेज़ी से नकल कर भागा। म
कुछ ण तक उसे घूरता रहा परंतु शी ही यह एहसास हो गया क केवल दे खने भर से
मकड़ को जान से नह मारा जा सकता। म कसी तरह रगते ए चू हे के पास प ँचा और
वह पाँव पसार कर, कसी तरह बैठ गया। फर मने एक-एक कर, सभी बतन व ड ब के
ढ कन खोल कर दे खे। खाली। कुछ भी नह ! मेरा पेट मारे भूख के ठने लगा। एक कोने म
डोरी से एक बतन टँ गा था। शायद उसम दही हो। माला ने उसे चूह से बचाने के लए इतनी
ऊँचाई पर टाँगा होगा। या हो सकता है क उसम गुड़ या फर कोई सरा सु वा ंजन हो।
म उस तक कैसे प ँच सकता था? म तो खड़ा भी नह हो सकता था। फर म हँस दया।
सु वा ंजन और यहाँ? एक शू के घर म? संभवतः रावण के अहंकार का थोड़ा सा अंश
मुझे भी छू गया था। म भी बड़ा सपना दे ख रहा था।

‘ये माला कहाँ गई?’ मने र से आती एक गाड़ी का वर सुना, जो घर के बाहर आकर थम
गया। या राजा अब उसे रथ म घर वा पस भेजने लगा था? म रगते ए वेश ार क ओर
बढ़ा। बाहर से फुसफुसाहट के से वर सुनाई दए और फर कसी ने आधे भड़े ए ार को
खटखटाया। मने बड़ी शां त से ती ा क । एक आभूषण मं डत हाथ ने चरमराते ार को
खोल दया, जससे फ़श व द वार पर सूय क करण का जाल सा बछ गया। मेरा पु फर
से कराहा। गद भरी हवा चलने से, कोने म रखे व लहराए और पीछे खुली खड़क से
बाहर जा गरे। म बाहर से आ रही सूय क रोशनी के बीच ऊकडँ आ बैठा था। तभी मुझे
कुमार मेघनाद क लंबी आकृ त भीतर आती दखाई द । उसके साथ ही मारीच क भारी-
भरकम दे ह ने क़दम रखा। एक अछू त क कु टया म दो कुमार! म तो इस य पर व ास
नह कर सका। मने न चाहने पर भी उठने क चे ा क परंतु फर से ढे र हो गया। मारीच
मु कराते ए आगे आया और मुझे हौले से उठा कर, टू ट ई कुस पर बैठा दया। मने
वरोध कट करते ए, खड़े रहने का यास कया, पर उसने मुझे फर से कुस पर बैठने को
ववश कर दया। मेरे य ई र! म अपनी कु टया म इन लोग के त अपना आ त य धम
कैसे नभाऊँ? एक राजकुमार और वह भी मेरी कु टया म! म ो धत था क वे मेरी
नधनता, मेरी टू ट कुस , मेरे चीथड़े, मेरे ब तर क फट चादर, मेरी दरार से भरी द वार
और मेरी बल दे ह दे ख रहे थे। यह मेरा घर था और म अपने लए थोड़ी सी गोपनीयता
चाहता था ता क अपनी असफलता को उस नमम जगत क से छपा सकूँ, जसम इन
दोन जैसे जाने कतने धनी राजकुमार रहते थे। या ये लोग हमारे ःख को, बड़े ही लालसा
से ताकने आए थे। म एक उ लू क तरह बैठा रहा, नःश द सब कुछ ताकते ए…!

“भ कैसे हो अब तुम?” मारीच के सुर का भी जवाब नह !

‘मुझे आपके सै नक के हाथ जो पटाई खाने का सौभा य मला, उसके लए आपका


आभार’ म चीख़-चीख़ कर कहना चाहता था परंतु मुख से एक भी श द नह फूटा। मेघनाद
ब तर पर अ तकाय के समीप बैठ गया और उसके घाव को दे खने लगा। वह ब त धीरे-धीरे
बोल रहा था और अ तकाय ने ऐसे यु र दया मानो वह कोई खोया आ प ला हो, जसे
अंततः अपने वामी मल गए ह ।

मने ब त ही नराशा के साथ वचार कया, ‘अगर अ तकाय के शरीर पर कोई पूँछ होती तो
वह न त प से, इस समय ज़ोर-ज़ोर से हल रही होती।’

“म जानता ँ भ ! हमने तु हारे साथ ब त ग़लत वहार कया। तु ह ग़लत समझा।”


मारीच का हाथ मेरे कंधे पर था और हम इतने नकट थे क म उसके शरीर से आती दामी
इ क गंध भी सूँघ सकता था। मने अपनी घुमा ली। म इतनी दयालुता सह नह सकता
था। मने कन खय से यह दे खना चाहा क कह मारीच ने भी रावण क तरह मेरी काली
चमड़ी को हाथ लगाने के बाद, पहने ए व से हाथ तो नह साफ़ कए? नह , उसने नह
कए। म नराश हो गया। संभवतः, वह अपने महल म वा पस प ँच कर नान करेगा।

“भ ! तु ह यह नह समझना चा हए क तु हारे राजा को तु हारी परवाह नह है।” म


ब कुल भा वत नह आ। उस वृ ने मुझे अपने आ लगन म ले लया और उसक आँख
म अ ु छलक उठे । संभवतः उसे मुझे छू ते ए, अपनी महानता का एहसास हो रहा हो या
मेरे साथ इतने उ च वचार क बात करने से मन भर आया हो। मुझे उसे इन महानता से भरे
ण का आनंद लेने दे ना चा हए। संभवतः इन बीते वष ने मुझे ब त ही कठोर बना दया
था। म सुन सकता था क अ तकाय कैसे सुब कयाँ भर रहा था! बेचारे लड़के का दल
पघल गया था। वह भा यशाली था क उसे अब तक ऐसी बड़ी-बड़ी बात पर व ास था।
वह अभी तक उस णता से त नह आ था, जसम हमारी आयु के लोग ायः जकड़े
जाते ह – असा य नराशावाद! परंतु मेरी गंधाती कु टया के भीतर खड़े श शाली
तथा मह वपूण थे। अतः मने अपना आडंबर बनाए रखा। मने कृ म प से यही दशाया क
म उनके त ब त ही आभार तथा कृत ता अनुभव कर रहा था। म दे ख सकता था क,
मूख वृ मेरे चेहरे के भाव से ही वग लत हो गया था। बेचारा मूख, उसे तो कोई भी
सहजता से छल सकता था। फर अचानक ही उस वृ के लए मेरा दय वत हो उठा।
य द हमारे सभी ठग मं य म से कोई वा तव म धीर-गंभीर कहा जा सकता था, तो
वह यह कठोर, गंदमी रंग का बूढ़ा मारीच ही था।

“महाराज चाहते ह क तु ह उनक ओर से स ावना दशन के प म यह उपहार दया


जाए। नःसंदेह आज तक तुमने जो भी सेवाएँ द या फर तुमने हमारी जा त तथा दे श के
गौरव व मान को बनाए रखने के लए जतने भी क सहे ह, इस उपहार से उनक पू त तो
नह क जा सकती, परंतु कृपया हमारे दयालु महाराज क ओर से यह उपहार वीकार
करो।” यह कह कर मारीच ने, स क से खनखनाती कपड़े क एक पोटली मेरी गोद म रख
द । उसके चेहरे पर संतोष के भाव थे। उसने मेरी ओर से आभार व कृत ता दशन क
अपे ा क परंतु म शांत रहा, मने कुछ नह कहा। म केवल उस पोटली को एकटक घूरता
रहा।

मेघनाद ने अ तकाय से वदा ली और मने अपने पु को राजकुमार से कहते सुना, “जब


आपने मुझे अपने लए ऐसा करने को कहा तो म सब कुछ भुला बैठा था। महाराज! म तो
आपके लए अपने ाण का भी ब लदान कर ँ गा। अपने ाण को आपके लए अ पत कर
ँ गा।” और उसने मेघनाद के हाथ को चूम लया। मेरे भीतर ही भीतर जैसे कुछ कचोट
उठा। यह मूख इस राजुकमार के लए अपने ाण क आ त दे गा? या हमारा यही भा य
था – हम इस उ च व श शाली वग के लए संघष कर, जीएँ, दन-रात ए ड़याँ रगड़ और
फर एक दन अपने ाण का याग कर द। मने भी एक बार इसी राजकुमार के पता के
लए ऐसा कया था, और हो सकता है क मुझे पुनः ऐसा करने के लए ववश कया जाए!
हे शव! या हमारे लए बचाव का कोई उपाय नह था? और अब मेरा पु कहता है क वह
वयं को तथा अपने माता- पता को भी भुला कर, अपने वामी के लए ाण का ब लदान
कर दे गा। या ये दं भ रखते ह क ये हम सरीखे नकृ जीव को मरने का आदे श दे
सकते ह? या इ ह लगता है क ये सदै व हम जैसे अ ेत , अ भशा पत, अ ासं गक तथा
छोटे लोग को अपने पैर तले कुचलते ए, क त, समृ तथा नय त क ओर क़दम बढ़ा
सकते ह?

म उठ खड़ा आ। मेरा सर चकरा गया परंतु भीतर कुंडली मार कर बैठे ोध ने मेरे बल व
जजर शरीर को एक नई श से प रपू रत कर दया। “बाहर नकल जाओ! बाहर नकलो,
कमीन !”

म च लाया। मने स क क पोटली र भनका द जो खुले ार से सीधा बाहर जा गरी।


थैली का कपड़ा फट गया और धूल भरी सड़क तथा नाली के समीप स के ही स के बखर
गए। शरारती ब चे व भ ुक वह आ जुटे थे परंतु कसी ने चमचमाते स क को छू ने का
साहस नह कया। राजकुमार तथा मं ी क उप थ त तथा ज़ोर-ज़ोर से च ला रहे बूढे भ
क चीख़-पुकार के आगे, स क का आकषण भी मंद हो गया था। म अपनी सीमाएँ पार
कर चुका था इस लए तय कया क आज तो मन म छपी कुढ़न को नकाल ही लेना
चा हए। “तुम सोचते हो क मेरी कु टया म आकर, तुमने मुझ पर कोई ब त बड़ा एहसान
कया है? तुमने तो मेरे और मेरे पु के ाण लगभग ले ही लए थे। तु हारे स के कौन
चाहता है? उ ह अपने पास ही रखो। तुम कहते हो क राजा बड़ा दयालु है?” मने अपनी
बात को वज़नी बनाने के लए वह थूक कर कहा, “ या वह जानता है क जब कसी
से कसी सं ामक रोग क तरह पेश आया जाता है तो उसे कैसा तीत होता है? या वह
भूख क पीड़ा को जानता है? असफलता के दं श से प र चत है? या उसे असहायता के
धधकते संताप के वषय म पता है? या वह बेघर होने का ःख जानता है? वह नह चाहता
क अ ेत व नधन असुर के साथ अ पृ य जैसा वहार कया जाए। वह चाहता है क
हम नगर म ही रह। म जानता ँ क वह ऐसा य चाहता है। तुम महान, धनी तथा
तथाक थत ा ण-वग हमारी काली चमड़ी, हमारी गध और हमसे बैर रखते हो… परंतु
हमसे यादा तु ह हमारी आव यकता है। अगर हम यहाँ से हटा दया गया तो तु हारा कचरा
कौन ढोएगा? तु हारी सड़क पर सफ़ाई कौन करेगा, तु हारी गा ड़याँ कौन हाँकेगा, तु हारे
छोटे -मोटे यु म, तु हारे लए ाण का उ सग कौन करेगा?”

ऐसा लगा मानो मेरा कंठ शीतल हो गया हो। मने उस शीतल लौह धार को महसूस करते ही,
मेघनाद क चमकती आँख को घूरा और उसी ण मेरा सारा साहस हवा हो गया। म मारे
भय के थर-थर काँपने लगा। म धड़ाम से धरती पर जा गरा।

मने जो कुछ भी बका था, वह सब बबरता के साथ मेरे आगे नाचने लगा। भय तथा बेचारगी
के अ ु गाल से बहने लगे। मेरे लए तो सब कुछ समा त हो गया था। तलवार क धार का
दबाव बढ़ता गया और मने अपनी ही ीवा से नकलती र धार क उ णता को अनुभव
कया। नःसंदेह आज मुझे मेरी इस धृ ता के लए अपने ाण यागने ह गे।

“मेघनाद! इसे छोड़ दो। मुझे लगता है क यह म दरा के नशे म चूर है।” मने मारीच को
कहते सुना। धीरे-धीरे वह दबाव घटा और मेघनाद ने अपनी तलवार हटा ली। उसने अपने
हाथ से, तलवार पर लगे मेरे र को प छा व उसे यान म रख लया परंतु इस दौरान वह
लगातार मुझे ही घूरता रहा। म धरती से उठा और थर-थर काँपता, कुस पर ही ढे र हो गया।
“भ ! अब हम चलगे। अपनी सेहत संभालो और इतनी म दरा मत पीया करो। सच क ँ तो
तुम पागल होते जा रहे हो।” मारीच ने मु कराते ए कहा परंतु म दे ख सकता था क उसक
आँख म मु कराहट नह थी। म उन आँख म तर कार का भाव दे ख सकता था। मेघनाद
आगे गया और सुबकते अ तकाय को गले से लगा लया। फर राजकुमार तथा मं ी,
चमचमाती धूप म बाहर नकल गए। मने घोड़ को फटकारने और फर रथ के चलने का
वर सुना। म वह पड़ा रहा, दमाग़ जैसे सु हो गया था। फर मने बाहर कुछ लोग के
आपस म भड़ने का वर सुना। पहले तो कुछ समझ नह आया पर धीरे-धीरे यान आया क
वे लोग उन चाँद के स क के लए लड़ रहे थे, ज ह मने ही बाहर भनकाया था। वे तो मेरे
स के थे! मने उठना चाहा परंतु संतुलन बगड़ा और म मुख के बल गर पड़ा। फर म रग
कर बाहर गया और वहाँ भीड़ के बीच छलाँग लगा कर अपने लए जगह बना ली। मेरे
तकरीबन सभी स के वहाँ से गायब हो चुके थे। म रग-रग कर अपनी ओर से संघष करता
रहा। मने दो लड़क को कुचला व एक भ ुक को ठोकर मारी, बेशक मुझे भी बदले म यही
मला, परंतु म तो पीड़ा क सीमा से परे जा चुका था। वह मेरा पैसा था, मेरी गाढ़े खून-
पसीने क कमाई! अंततः म नाली के पास से एक मु धूल से सने स के चुनने म सफल
रहा। य प कई लोग ने उ ह भी झपटने का यास कया। मने उनक ठोकर व घूँस के
बीच भी अपनी संप को अपने से वलग नह होने दया। अंत म भखा रय व मेरे
पड़ो सय ने हार मान ली और वे पर पर कोसते ए, अपनी-अपनी राह चल दए। म नाली
के पास से उठा व अपने स के गने। वे इ क स थे। संभवतः वे मूल रा श का सौवाँ ह सा
थे। म उ ह ब त दे र तक एकटक दे खता रहा। म इससे पूव भी उन सभी अवसर को गँवा
चुका था, जो जीवन ने मेरे आगे रखे थे। संभवतः म इसी यो य था। खैर, कोने वाली ताड़ी
क कान तो अब भी खुली होगी। वहाँ ब त सी दे सी शराब मल सकती है। ओह! मुझे यही
तो चा हए! म वदा लेते सूरज के साथ, लड़खड़ाते क़दम से चल दया, मु म वे स के थे,
ज ह जान पर खेल कर वा पस पाया था। एक शराब का याला – बस, जीवन यही तो है।
25 पु ी का ववाह

रावण
मुझे ब त ही ाकुल कर दे ने वाले समाचार ा त हो रहे थे। म अपने ारा च त कए जा
रहे भ च पर अपना यान क त करना चाहता था परंतु जाने य , मेरा यान एका
ही नह हो सका। रंग तथा उनके ह के रंग का संयोजन, वैसा नह बन पा रहा था, जैसा म
चाहता था। समाचार ब त ही ाकुल कर दे ने वाला था और म यही वचार कर रहा था क
उसे कसके साथ बाँटा जा सकता था? परंतु यह तो एक ऐसा रह य था, जसे ब त ही गु त
प से पोसा गया था। मारीच, नह , यहाँ तक क वे भी नह ! वे इस न त संबंध को ले कर
ब त सहानुभू तपूण रवैया नह रखते थे और हो सकता है क वे मेरी बड़बड़ाहट और
आ म-दया से भरपूर बात न सुनना चाह।

मने वयं को शरीर तथा आ मा, दोन से ही वृ अनुभव कया। मने उसे अनेक वष पूव
दे खा था। तब वह सोलह अथवा स ह वष क रही होगी। यह एक ब त ही ख़तरनाक मु हम
थी, जो मेरे पु के नातक होने के तुरंत बाद घ टत ई। म अ तकाय से जस तरह पेश
आया था, उससे मेरा दय तार-तार हो उठा था और म प ाताप क अ न म जल रहा था,
जब मारीच आए और मुझे उससे, एक ही झटके म बाहर नकाल दया। उ ह ने पूरी नममता
के साथ खुले श द म कहा क मुझे इस बात के लए खेद मनाने क कोई आव यकता नह
थी। म ही तो था, जसने अपने पहली संतान को जा त से ब ह कृत कर दया था। म बुरी
तरह से झ ला उठा और उ ह मरण करवाया क उनके बु मान प रषद सद य ने ही यह
नणय लया था। उ ह ने उपालंभ दया क मने भी तो उसके बाद कुछ नह कया था। यह
सुन कर तो म व मय वमूढ़ हो उठा। मने बड़े ही घमंड का प रचय दे ते ए, उ ह क से
बाहर जाने को कहा और अपने ही खोल म समट गया। म अपनी प नी पर च लाया और
यहाँ तक क पु मेघनाद को भी क से बाहर धकेल दया। आधी रात को, अचानक ही
आँख खुली तो म ठं डे पसीने से लथपथ था। मने एक भूत दे खा था। य द यह बात कसी
और ने कही होती क उसने असुर के स ाट के राज ासाद के भीतर भूत दे खा है, तो
न त तौर पर मने उसक ख ली उड़ाई होती।

तब तक, मेरे लए भूत एक ऐसा अ त व था, जो बचपन क कहा नय म ही ताँक-झाँक


करता है। परंतु उस रा , मने उसे प प से दे खा। मने एक म हला को दे खा, जसका
चेहरा घूँघट क आड़ म था। जब वह क के वातायन के समीप खड़ी, मुझे ही एकटक
दे खने लगी तो उसका चेहरा कुछ चर-प र चत सा जान पड़ा, म अपना एक भी अंग तक
नह हला सका। म अपने ही भय का अनुमान लगा सकता था। धीरे-धीरे वह चेहरा प
होता चला गया, म हौले से छू कर, मंदोदरी को जगाना चाहता था परंतु मेरे हाथ हलने को
राजी नह थे। वह चेहरा ण- त ण प हो रहा था और म गहन भय व याशा के म य,
उस अं तम कट करण हेतु वयं को तुत कर रहा था। और फर हवा के एक ही झ के से
वह अवगुंठन हट गया। यह तो वेदवती थी! मेरा कंठ शु क हो उठा। मने जतने भी भाव को
अपनी आ मा म दफ़न कर रखा था, वे सब एकदम मेरे कंठ म आ अटके। वेदवती व त
क भाँ त खल खलाने लगी। फर धीरे-धीरे, वह उस कुहासे म वलीन हो गई। म अपने ही
भय के साए से लपटा पड़ा रहा, मेरे उस अधूरे अनु रत ेम तथा उसके बाद घटने वाली
ासद क छ वयाँ मेरा कंठ अव करती रह ।

धीरे-धीरे, मने अपने हाथ-पैर हलाए और पलंग से उतर कर, अपनी खड़ाऊ तलाशने लगा।
म एक ण के लए कसी भी वचार तथा भाव के बना अडोल खड़ा रहा, मेरी र
थर भाव से पू णमा के उजास म खड़े, ना रयल वृ क प य पर टक थी। फर म
जानता था क मुझे या करना होगा। म क का ार खुला छोड़ कर, त काल बाहर नकल
आया। मने खराटे भर रहे दरबान को उपे त कया और ांगण से भागते ए, मारीच के
क तक जा प ँचा। मने दरवाज़े को तब तक भड़भड़ाना जारी रखा, जब तक उ ह ने उसे
खोल नह दया। जैसे ही उ ह ने मेरा चेहरा दे खा तो एक अपश द उनके होठ तक आकर ही
दम तोड़ गया।

“हम अभी जाना होगा… मुझे उससे अभी मलना है।” मने उनसे कहा

“ कसे?

“ज द से अपनी पोशाक पह नए और मेरे साथ च लए। म उससे अभी भट करना चाहता ँ


और आप मेरे साथ चल रहे ह।”

“ कसे?”

मने उ ह क से बाहर ख च लया। म मारीच को बाहर बाग़ म ख च ले गया व बोला, “मने


उसे दे खा… वेदवती को।” मने मारीच के मुख पर उभर आए संदेह तथा म क उपे ा करते
ए अपनी बात कहना जारी रखा, “म अपनी पु ी से त काल भट करना चाहता ँ।”

“ या तुम म दरा के नशे म चूर हो?” मारीच ने मेरी पकड़ से वतं होने के लए संघष
कया।

मने अधैय से अपना पाँव पटका व उनसे पूछा, “बड़े वाले छाजन क कुँ जयाँ कसके पास
होती ह?”
“रावण अपने होश म आओ। तुम इस समय म थला जाना चाहते हो? म थला, दे व दे श के
म य म, और तुम चाहते हो क म तु हारे साथ, तु हारे सुर ारा न मत मृ यु जाल म उड़ान
भ ँ ? तुमने आ ख़री बार उस उड़नखटोले को कब उड़ाया था?”

“मुझे कुँ जयाँ दो और मय को जगा दो।” म लगभग अपने होशो-हवास खो बैठा था।

यह कोलाहल सुन कर, एक दरबान दौड़ा आया और म उस पर च लाया क वह बड़े छाजन


क कुँजी ले कर आए, जहाँ क वह पु पक वमान रखा था। मेरे पगले और हमेशा बड़बडाते
रहने वाले सुर ने उस उड़ने वाले यं को यही नाम दया था। मेरे हाथ के संकेत से वह
दरबान भागा पर मारीच अब भी मुझे ही ताके जा रहे थे।

“हम अभी जा रहे ह। मने बात को अं तम प दे ते ए कहा। मारीच ने गदन हलाई और


एक ओर चल दए। “अब आप कहाँ चल दए?” हर बीतते ण के साथ मेरा ोध भी
बढ़ता जा रहा था। मुझे कोई उ र दए बना, उ ह ने यहाँ से जाने क ह मत कैसे क ?

“व बदलने जा रहा ँ।” उ ह ने भी च ला कर यु र दया और अपने क का ार


भड़ाक से बंद कर लया। म उस वृ को दे ख कर मु कराया। फर म वह खड़ा सोचता रहा
क इसके बाद या होने वाला था? जैसा क मारीच ने कहा था, यह मु हम बड़े संकट से
प रपूण थी। यह भी सही था, मने एक लंबे अरसे से पु पक वमान को नह उड़ाया था। मुझे
आकाश म उड़ना ब कुल नह भाता था। मनु य उड़ने के लए नह बने। य द ऐसा होता तो
न त प से ई र ने उसे भी पंख दए होते। यह उड़ने वाला यं , एक कार से ई र के
लए एक चुनौती थी। मने अपने-आप से यह भी कया क अंततः कस भाव के
वशीभूत हो कर, म अपनी पु ी से भट करना चाह रहा था। जब वह बड़ी हो रही थी, मेरा
मतलब है क उस दे व रा य म उसका पालन-पोषण हो रहा था, तो उस दौरान मने उसक
पूरी नगरानी रखी परंतु जब मेरे पु का ज म आ, तो मने अपने गु तचर ारा, उसके
वषय म भेजे गए द तावेज़ तक को भी पढ़ना छोड़ दया था। म थला ब त र थी और
इतनी छोट थी क उसका मेरे वशाल और दन नी रात चौगुनी ग त कर रहे सा ा य से
कोई लेन-दे न नह था। चूँ क वह मुझसे ब त र थी अतः मेरे मन म उसके लए कोई वचार
तक नह आता था। शी ही वह मेरे लए कसी मृतक के समान हो गई थी। मानो उसक
याद को मने दल के कसी अंधेरे कोने म दबा दया हो और उससे भी बदतर, मानो उसका
ज म कभी आ ही नह था। तो सेना के बना, श ु के इलाक़े म ख़तरनाक घुसपैठ, वा तव
म कोरी मूखता ही थी।

“रावण!… पु रावण, म ब त स … ँ!” मेरे सुर मेरे सम खड़े कसी स मन


बालक क भाँ त हाँफ रहे थे। वृ महाशय, कुछ ही ण म अपनी कमर म बँधी कुँ जय
का गु छा छनकाते, दौड़े चले आए थे। म इस भुल कड़ ा यापक को पसंद करने लगा था।
जब तक उ ह ने गोकण के वशाल मं दर के नमाण का काय-भार नह संभाला था, तब तक
मने कभी उ ह गंभीरता से नह लया था। तब से वे हमारी प व न दय के तट पर, वैसे ही
जाने कतने भ ढाँचे न मत करवा चुके थे। वे तो वा तव म एक कुशल कारीगर तथा
अ भयंता थे।

वृ मय लक चाल से उस छाजन क ओर भागे, जहाँ वशालकाय पु पक वमान को रखा


गया था। पहले तो वे कुँ जय से उलझते रहे और फर चौड़ा सा वेश ार खोल दया। मने
सदै व इस व च यं के कलपुज क बनावट को सराहा था। इसके वशाल पंख ब त तेज़ी
से गोल-गोल च कर काटते थे। यह दखने म एक प ी क भाँ त था परंतु फर भी काफ़
हद तक एक म य क भाँ त भी लगता था। इसे उड़ाने के लए इसम कुछ कल लगी थ
और इन वष म, म इ ह संभालने म स ह त हो चला था। य प म इसे उड़ाने क कला म
पारंगत नह था, परंतु फर भी, संभालना तो जानता ही था। मय व भ कल व पुज के
योग के बारे म जाने या बड़बड़ाते रहे, उ ह ने यह भी बताया क एक न त ऊँचाई पर
जाने के बाद, इसे हवा म इस तरह छोड़ा जा सकता मानो यह हवा म तैर रहा हो। परंतु मेरे
कान म तो कुछ नह जा रहा था। या मुझे मंदोदरी को बताना चा हए? यह दो हज़ार मील
से अ धक लंबी या ा थी और इसम तीन दन का समय लग सकता था।

अंततः मने उसके नाम एक संदेश छु ड़वा दया क म एक स ताह म लौट आऊँगा। फर म
एक ण के लए सकुचाया और साथ ही मेरे अपराध-बोध ने मुझे यह भी मरण करवाया
क म उससे ेम करता था। तब तक मारीच लौट आए थे, उ ह ने अपने सामान व व के
साथ-साथ मेरे लए भी व , थोड़ा भोजन व म दरा तथा अ -श बाँध लए थे। उ ह ने
वह सारा सामान वमान के पछले ह से म फका और पूरी आशा के साथ पूछा, “रावण,
या तुम वा तव म जाना चाहते हो?”

उ ह ने अपनी गदन हलाई तो म झट से वमान म कूद गया और उ ह ने भी ऐसा ही कया।


पहले-पहल म थोड़ा था परंतु फर मन ही मन शव का जाप करने के बाद, मने कल
दबा द और वह यं धीरे-धीरे गोल-गोल घूमने लगा। मने एक और कल दबाया, तो पंखे
तेज़ी से गोल-गोल च कर काटने लगे और तब तक घूमते रहे, जब तक वमान एक झटके से
हवा म नह उठ गया। म दे ख सकता था क मारीच ने अपने बैठने के थान के आगे लगी
धातु क छड़ को कस कर थाम रखा था। म भी थोड़ा भयभीत था परंतु मने बलपूवक अपने
मन क वधा तथा ं को परे धकेल दया। यह सोचते ही भय से झुरझुरी आ जाती थी क
हम प ी के मल क भाँ त, धरती पर गर सकते थे जो नीचे खड़ी च ान पर यहाँ-वहाँ फैल
जाता।

हमारे नीचे लंका का य ओझल होता चला गया, वह उस सागर म एक हरे रंग के अ ु ब
के समान दखने लगी, जो रात क पहली चाँदनी म चमचमा रहा था। घने काले आकाश म
हज़ार तारे यहाँ-वहाँ बखरे थे, मानो दे वता अपने ओढ़ने के कंबल से बाहर झाँक रहे ह ।
हमारे आसपास बल व धुँधले बादल के टु कड़े तैर रहे थे। मेरे घने केश, फरफराती हवा म
लहरा रहे थे। मने क पना क क कसी अजनबी को म कतना भावशाली दख रहा
होऊँगा और यह सोचते ही मेरे चेहरे पर एक मु कान खेल गई। अब तक मारीच भी थोड़ा
सहज हो चले थे। जैसे ही हम सागर से बाहर आकर मु य भू म वाले े म आए तो मने
स ता से ँकार भरी और मारीच ने भी मेरा साथ दया। मने अपनी कशोराव था म गाए
जाने वाले उन भ े गीत को मरण करने का यास कया। और हम उ र क ओर, बबर के
दे श उड़ चले, हमारे होठ पर असुर के वे नटखट गीत थरक रहे थे – साठ वष य वृ तथा
चालीस वष य अधेड़ , ऐसे दो कशोर क तरह पेश आ रहे थे मानो उ ह इस जगत म
कोई चता ही न हो और वे घर के बुजग के साथ के बना, अपनी पहली मनोरंजक या ा पर
नकले ह ।

मने पाल समेट लए थे और हम बड़ी तेज़ी से आगे जा रहे थे। पंख क आव यकता तभी
पड़ती थी, जब नीचे उतरना हो। हमारे नीचे, भारत अपनी समृ तथा ःख के साथ पसरा
था। वहाँ कुहासे से भरे, घने वशाल वन थे, जो प म म लगभग सागर को छू ते थे, खुले
मैदान के बीच छोट पहा ड़याँ दखती थ । सागर से लौट जलरा शय के समीप ना रयल के
वृ हरी बने खड़े थे। केवल कुछ दे वालय थे, जो लंबाई म, उ ह भी मात करते थे। धरती के
कान से पहली न दयाँ झाँक रही थ और धान के हरे-भरे खेत पर, पहली चाँदनी खल
उठ थी, यह सब ब त ही मनोरम था। जब मेरी उस शु क ामीण इलाक़े पर पड़ी,
जसे मने समृ बनाने म कोई कसर नह छोड़ी थी, तो मेरा दय गव से फूल उठा। यह मेरा
भारत था, मेरा सा ा य, असुर क ाचीन भू म! म जानता था क कल रा तक म, उस
धरती के ऊपर से उड़ान भर रहा होऊँगा, जो घने वन , लता -प तथा म य भारत के
रेतीले ट ल से भरी है। यह न ष थल था, जो प व गंगा, यमुना व सर वती नद के
कनार व उससे भी परे थत बबर दे व रा य को मेरे रा य से अलग करता था। मुझे खेद
का अनुभव आ क मने भगवान शव के धाम तक अपने रा य का व तार य नह कया
था?

हमालय भी असुर से संबंध रखता था, जस कार गंगा, जो क एक असुर दे वता – दे व के


दे व, परमे र महादे व क जटा से नकली थी। मने अपने अ भयान को म य म ही य
रोका? मुझे अपने रा य को अपनी संपूण ाचीन भू म तक लाना चा हए था और दे व को
सर वती व सधु से भी परे, एकांत व नजन दे श म फकना चा हए था। मने कतनी
मह वाकां ा के साथ अ भयान का आरंभ कया था, परंतु जाने कैसे, इतने वष के दौरान,
मेरी मह वाकां ा ने मानो दम तोड़ दया था और मेरे व भी जैसे कह सो गए थे। म
लगभग आधे भारत को ही समृ व धनवान बना कर स था। संभवतः यह एक बु मानी
से भरा नणय था।
मारीच शांत हो गए थे और शायद ऊँघ रहे थे। मने फर से नीचे दे खा और धरती माँ के
वशाल आकार को दे ख कर वचार करने लगा। मने वयं को वनीत अनुभव कया। मेरे यश
पाने के जतने भी व थे, मने जतने भी यु लड़े थे, जतने भी रा य ा त कए थे – वे
सब इसक तुलना म कतने तु छ, कतने बौने व हेय थे। यह धरती ही केवल शा त थी, शेष
सब न हो जाने वाला था। जाने कतने मनु य ने मेरी तरह मह वाकां ी व पाले ह गे
और उ ह ा त कया होगा, जाने कतन ने अपने भा य सँवारे ह गे? जाने इस धरा ने कतने
स ाट दे खे ह गे और अभी न जाने कतने आने शेष ह। अंततः, या उनका यह प र म
धरती माँ के लए कोई मह व रखता है? वह मनु य के ऐसे तु छ यास से अछू ती रहती है।
मनु य छल, कपट, ेम, संघष, असफलता, पतन व उ थान म म न रहता है और मरने तथा
सदा के लए न होने अथवा पुनज म क या को दोहराता रहता है। परंतु धरती इन सब
बात से सु र तथा अप रवतनशील रहती है। म तो इस श शाली ा ड म तैर रहा, एक
छोटा सा कण मा था। आने वाले दवस म, अथवा संभवतः अगले ही ण म, म यहाँ से
वदा ले लूँगा। या इससे कसी को कोई अंतर पड़ेगा? कुछ लोग उदास अव य ह गे परंतु
स होने वाल क सं या ही अ धक होगी, परंतु यह सब कुछ ण के लए ही ासं गक
होगा। बीतते समय के साथ, मेरी उपल धयाँ, मेरा ज म व मेरी मृ यु भी अ ासं गक हो
जाएँग।े अतः मेरे सा ा य का आकार कोई मह व नह रखता था और अब कसी भी तरह
के र पात क आव यकता नह थी। जीवन इतना छोटा है क इसम यु लड़ने के लए
समय नह है और इतना यारा है क मह वाकां ा जैसी तु छ भावना को इससे बाहर
धकेल दया जाना चा हए। म इस बात पर व ास करना चाहता था क म मृ यु से भयभीत
नह था। एक दन, सभी को मृ यु के मुख म समाना है। कृ त इसी तरह अपना काय करती
है। यह उसका वाभा वक कम है। आपको अपने आगे आने वाले जी वत ा णय को थान
दे ना होगा। मान सक प से, म कभी मृ यु से भयकातर नह आ था। परंतु म इस ख़ूबसूरत
जीवन को इतनी सरलता से छोड़ भी कैसे सकता था? हवा मेरे कान म सीट का मधुर
संगीत सा घोल गई और मने ातःकाल क शीतल वायु म एक गहरी ास ली। मने जीवन
क एक ास ली थी।

पूव दशा म लाली छा गई, बादल यूँ तैर रहे थे मानो लाल रंग से रंगी कपास, पूव तज
पर फैला द गई हो। प म म अब भी अंधकार का सा ा य था, जहाँ से अ त हो रहे बल
व धुँधले चं मा को दे खा जा सकता था। मारीच अपनी न ा म ही हले। मने उस को
दे खा, जो मेरे लए कसी भी सरे क तुलना म सवा धक न ावान रहा था। मने
उनके ेत केश , और केश से र हत होते सर व उनक थर बलशाली भुजा को दे खा
और मन ही मन उदास हो उठा। जीवन ब त तेज़ी से, हमारे नकट से गुज़र रहा था। एक
दन वे भी इस भुवन को याग कर चल दगे और म नपट अकेला रह जाऊँगा। वह इस समय
या कर रही होगी? वह कसक तरह दखती है? संभवतः अपनी माँ जैसी दखती होगी?
जैसे ही मुझे अपने वष पुराने व मृत ेम का मरण आ, तो भीतर से जैसे कुछ चटकने
का वर सुनाई दया। या सचमुच उसके आगे सारा सा ा य फ का था? संभवतः मंदोदरी
मेरे लए एक आदश जीवनसं गनी रही थी। वेदवती भी ऐसी ही सुयो य थी क वह मेरी प नी
अथवा रानी बन सकती थी। म उस समय अपनी पु ी का मुखड़ा दे खने के लए बुरी तरह से
तरस रहा था। मने उसके इलाक़े से आने वाले ववरण को कुछ समय से नह पढ़ा था परंतु
कुछ अ प सा मरण था क उसके ववाह के लए कुछ बंध कए जा रहे थे।

इन उ री इलाक़ म रहने वाल के भी व च ही री त- रवाज़ ह। भावी वधू का पता, अपनी


पु ी के लए उपयु वर के म य एक तयो गता क घोषणा करता। मुझे तो यह ब त ही
अस य जान पड़ता। या वधू कोई पुर कार थी, जसे तयो गता म जीत कर ले जाया जा
सकता था? मने तो यहाँ तक सुना था क दे व पु ष अपनी प नय को दास क तरह बेच
दे त,े गरवी रख दे ते या फर उ ह दाँव पर लगा दे त।े यह सब ब त ही भयंकर था परंतु आप
अध-स य तथा घुमंतू जा त से, इससे अ धक अपे ा भी या रख सकते थे? दे व पु ष
य से इस कार पेश आते, मानो वे उपभोग के लए बनी कोई व तु ह । संभवतः म
पूवा ही हो रहा था य क म एक पूरी तरह से अलग स यता से संबंध रखता था। परंतु मेरा
हमेशा से यही मानना था क एक समाज तभी स य कहा जा सकता है जब यह य तथा
द लत के साथ सही तरह से पेश आए, जा त था का तो वचार ही बड़ा कठोर था। नचले
वग से जुड़े लोग क दयनीय दशा, क पना से भी परे थी।

नःसंदेह असुर के पास अलग तरह क सम याएँ थ । असुर पु ष भौ तक व तु से ब त


मोह रखते थे। असुर याँ आ ामक तथा लगभग अनै तक वभाव क होत , परंतु हमारे
यहाँ पु य का पालन-पोषण भी पु क भाँ त ही कया जाता। असुर म भी जा त था
जैसे सामा जक भेदभाव थे परंतु वे ज म अथवा चमड़ी के रंग पर आधा रत नह थे। कोई
भी अपने भा य तथा कड़े प र म के बल पर, कसी सव च पद अथवा स ा तक
जा सकता था। म तो इस त य का सव े उदाहरण था।

मने अपनी पु ी के वयंवर आरंभ होने तक, वहाँ प ँचने क आशा क । मुझे ब त
ाकुलता अनुभव हो रही थी। कौन सा अस य दे व मेरी पु ी से ववाह रचाने जा रहा था?
उसका जीवन कतना बदल जाएगा? जाने य , मुझे आशंका थी क उसका जीवन इतना
सरल नह होने वाला था। म इस बात को और अ धक प नह कर सकता परंतु ायः यह
भावना मेरे मन को कचोटती रहती थी। मुझे आज भी वेदवती क व त जैसी हँसी याद
थी। उसका अ भशाप नरंतर मुझे क चता रहता था। मेरी बेट ही असुर के वनाश तथा
मृ यु का कारण होगी, य द यह यो तषीय भ व यवाणी स य स ई तो या होगा? य द
अ न क लपट म घरी वेदवती के मुख से नकला ाप स य हो गया तो…? यह तो कोरी
बकवास थी। म जाने कौन से म म घरा था।

म नमदा के समीप आता जा रहा था और अचानक ही म अपनी आगे क या ा के बारे म


वचार करने लगा। हम अभी एक दन क या ा और करनी थी। उड़ान भरने का उ साह मंद
हो गया था और नीचे दखाई दे रहे शु क मैदान, कसी भी तरह क ेरणा दे ते नह तीत हो
रहे थे। म भी कई बार ऊँघा। म चाहता था क क कंधा क ओर से होता आ जाऊँ ता क
बाली से अपनी म ता क सं ध को नए सरे से तरोताज़ा कया जा सके परंतु मेरा अहं तो
सदा मेरे कंठ से च क के पाट क भाँ त बँधा रहता था, मने वह माग चुना, जस पर जाने से
क कंधा जाने क आव यकता न रहती। हम तुंगभ ा नद के कनारे कुछ घंट के लए
ठहरे ता क कुछ खा-पी कर सु ता सक, परंतु म हड़बड़ाहट म था, मुझे शी -अ तशी
अपनी पु ी का वयंवर आरंभ होने से पूव म थला प ँचना था।
26 समय आ गया है

रावण
हम ातःकाल के आरं भक चरण म, म थला के समीप जा प ँच।े मने नगर से कुछ मील
क री पर, एक ऐसा वीरान व एकांत कोना खोज लया था, जहाँ कसी क नज़र नह जा
सकती थी। फर हमने पु पक को पौध व लता के झुरमुट म छपा दया और दे व के व
पहन कर बाहर आ गए। हम महल क ओर बढ़ने लगे। अनेक उसी दशा म जा रहे
थे। सैकड़ फेरी वाले अपनी व तुएँ बेच रहे थे। यहाँ-वहाँ आवारा घूम रही गौ तथा लोग
के कारण चार ओर अफ़रा-तफ़री सी मची थी। मने दे खा क सड़क संकरी थ और वहाँ
जल नकासी क कोई व था नह थी। घर भी ब त साधारण तथा अप र कृत थे और
महल दे ख कर लगता था मानो लंका के कसी म यमवग य कसान का वशाल घर हो। म
भा वत नह आ परंतु मने इससे अ धक क अपे ा भी नह क थी। सां कृ तक व
आ थक; दोन ही प म यह सब समा त ाय था जब क इसे उ र के े नगर म गना
जाता था। अ धकतर लोग के ह के भूरे रंग के बाल तथा ह का गौर वण था जब क कुछ
लोग अ ेत वण य भी थे। मुझे महल म अनेक अ ेत ी-पु ष दखे। संभवतः वे आने-जाने
के लए क ह सरे माग का योग करते ह गे। मने अनुमान लगाया क वे बेचारे, द लत
जन थे। अ छे व म सजे, ये गौर वण य लोग इन बेचार क उपे ा करते और ये
अधमानव अछू त बड़े ही धैय से ती ा करते क तथाक थत सं ांत व प व ी-पु ष के
जाने के बाद ही नकल। ये कस तरह के ाणी थे? या मेरे सा ा य म ऐसा कभी होता?

य प जनक को बु राजा म से एक माना जाता था कतु फर भी वह अपनी भावना


से मु नह हो सका था। म उससे कह े स ाट था। केवल रावण ही एक समृ व यायी
समाज क थापना कर सका था। मने गव तथा तर कार के म त भाव स हत उस
वशाल क म वेश कया, जहाँ एक व च से आकार का धनुष म य म रखा था। मने
सोचा ‘यह तो इतना भारी है क कसी काम आ ही नह सकता।’ अनेक गणमा य ह तयाँ
ऊँचे थान पर वराजमान थ । संभवतः वह राज सहासन का का रहा होगा, उस पर मेरी
ही आयु का बड़ी ही मान-मयादा स हत बैठा दखा। म उसके ऊपर बने कठघरे म,
कुछ आकृ तयाँ दे ख पा रहा था, वे सभी ढके ए चेहर म थ । मेरा दय तेज़ी से धड़कने
लगा। उनम से ही कोई एक मेरी पु ी हो सकती थी। मने द वान क भाँ त उस ओर दे खा।
‘वह कैसी दखती होगी?’ मने दे व क इस परंपरा को कोसा, जसके अनुसार वे अपनी
य को घूँघट क ओट म रखते ह।

राजा जनक खड़े हो गए और सभी उसके मुख से नकलने वाले श द क याशा म झूलने
लगे। उसका वर, वशाल क म गूँज उठा। “बलशाली नरेश व युवराज ! आज का दन
ब त ही शुभ है। आज मेरी य पु ी सीता का वयंवर है। आप म से सवा धक श शाली,
वीर तथा नपुण ही, आज मेरी सुंदरी पु ी से ववाह रचा सकेगा।” वह एक ण के
लए का और मने यहाँ-वहाँ ताका। अनेक त दयु तथा म रयल से दख रहे राजा भी बड़ी
आस लगाए बैठे दखे। “इस तयो गता के नयम ब त ही सरल ह। यहाँ रखे इस भारी
धनुष को उठा कर, उसक यंचा चढ़ानी है। स जन ! यह कोई सरल काय नह है। यह
धनुष ‘ य बक’ कहलाता है और एक बार वयं भगवान शव ने इसका योग कया था। जो
भी इसे उठा कर, यंचा चढ़ाने म सफल होगा, वही मेरी पु ी सीता के वरण का अ धकारी
होगा।”

मुझे तो इतनी हँसी आई क उसे दबाते-दबाते गला ही ँ ध गया। ‘ये लोग शव के धनुष को
उठा भी कैसे सकते थे?’ शव का धनुष, भाड़ म जाए सब! संभवतः उ ह इस क पना से ही
रोमांच हो रहा होगा क कोई तो शव के धनुष को उठा कर, उसक यंचा चढ़ाने म सफल
होगा, आ दकालीन असुर नरेश तथा दे वता शव का धनुष! “नरेश तथा युवराज ! मेरी पु ी
सभा म उप थत है।’ जनक के वर को सुनते ही म अपनी उधेड़-बुन से बाहर आ गया। म
याशा म काँप रहा था। सारी सभा म गहरा स ाटा छाया था। तभी ब त सी घं टय वाला
ार खनखनाहट के वर के साथ खुला और एक आभूषण मं डता नारी आकृ त ने अपनी
दा सय के साथ वेश कया। मने मारीच का हाथ कस कर थाम लया। म अपने चेहरे क
माँसपे शय क ठन अनुभव कर सकता था और दय उछाल भर रहा था। वह सैकड़
पु ष के म य खड़ी, थर-थर काँप रही थी, इस दौरान अनेक वासना से भरे ने उसे लील रहे
थे – एक मूखतापूण तयो गता का पुर कार! एक दासी आगे आई और उसने हौले से सीता
का घूँघट उठा दया। सारी सभा अवाक् हो उठ । वह वहाँ खड़ी इतनी यारी और सुंदर दख
रही थी क म लगभग रो ही दया। वह अपनी माँ जैसी दखती थी पर उसका वण गहरा था,
मानो उसके वण म मधु मला दया गया हो। उसके केश काले व घने थे। वह मेरी पु ी थी,
असुर राजकुमारी!

म अपनी पु ी से आँख ही नह हटा पा रहा था। उसने बड़ी ही ग रमा से अपना सर उठाया
और उन लोग क भीड़ को नहारा, जो उसे आँख ही आँख मं पी रहे थे। उसने कसी भी
मुख पर, कुछ ण से अ धक अपनी नह टकाई। जब उसने मुझे घूरा तो मेरा दल
मानो धड़कना ही भूल गया। उसने मुझे एकटक घूरा और म भयभीत हो उठा। भीतर ही
भीतर मानो एक कचोट सी उठ । या वह अपराध-बोध था अथवा मेरा भय? म नह जानता
और फर मने त ण मुख घुमा लया। जब मने दोबारा उसक ओर दे खा तो वह एक
अ ारह वष के लगभग युवक को ताक रही थी। वह कोई राजकुमार नह था। वह साधारण
ेत प रधान म था परंतु उसके कंधे पर धनुष लटक रहा था और बाल क जटाएँ बाँधी गई
थ । वह ब त लंबा और गठ ले बदन का था और उसम कुछ तो ऐसा था, जो अनायास ही
अपनी ओर यान आक षत करता था। वह ब कुल शांत च व सहज दख रहा था।
उसक आयु के युवक के लहाज़ से तो उसक सहजता व आ मसंयम शंसनीय थे।

मने दे खा क मेरी पु ी के ने मानो उससे जुड़ गए थे। वह उसे दे ख कर लजाई और उसके


साँवले गाल का ग ा दमक उठा। वह झट से नीचे दे खने लगी, मुड़ी और आगे चली गई। मने
उस गहरे रंग के युवक को यान से दे खा। ऐसा लगा मानो मेरी शरा म उसके त ई या व
घृणा धधक उठ हो। संभवतः उसे भी मेरी भावना का अनुमान हो गया होगा, वह मुड़ा
और मुझे दे ख कर मु कराया। म भीतर ही भीतर सकुड़ गया। म नह जानता क य व
कैसे परंतु म इतना जान गया था क वह ख़तरनाक था। मुझे पूरा व ास था क वही
मेरी पु ी का वरण करने जा रहा था। म अपने लए तथा अपनी पु ी के लए भयभीत हो
उठा। म चाहता था क भाग कर आगे जाऊँ और अपनी पु ी को उस आस संकट से बचा
लू।ँ म उसे यहाँ से नकाल कर, लंका ले जाना चाहता था परंतु अपने भय तथा आशंका
स हत वह जड़म त बन कर खड़ा रहा और कसी चम कार क ाथना करता रहा, जो
संभवतः मेरी पु ी क र ा कर पाता।

एक लंबी लहराती ई ेत दाढ़ वाला वृ ा ण, उस युवक के पास खड़ा था। उनके


समीप ही एक और युवक खड़ा था, जो नरंतर अपने म तक पर यौ रयाँ डाले, मुझे ही घूरे
जा रहा था। जब मेरी उससे मली तो उसने मुझे ऐसी तर कृत से दे खा क म
भीतर ही भीतर सकुड़ कर रह गया। ‘इतनी अ पायु म ऐसा आ म व ास व घमंड, भला
आया कहाँ से?’ म कभी युवा था परंतु म तो कभी कसी से इस कार पेश नह आया। म
सदै व अपने से बड़ के त वन ता तथा सौज य का दशन करता था। मुझम तो घमंड
लेशमा भी न था।

तयो गता आरंभ ई। एक के बाद एक, तयोगी आगे आते व भारी धनुष को उठाने क
चे ा करते और असफल हो कर लौट जाते। उनम से कुछ को दे खने के बाद मने पता लगा
लया क धनुष का भार, दोन ओर से अलग-अलग था। पहले उसे उठाने के सही तरीक़े के
वषय म वचार करना होगा, उसके बाद ही उसे उठाया जा सकता है। शी ही, सभी
नमं त अ त थय ने अपना हाथ आज़मा लया और नराश हो गए। क म एक ाकुल
कर दे ने वाली चु पी छाई थी परंतु मुझे ब त अ छा लग रहा था।

अब कोई भी ू र दे व मेरी पु ी को याह कर नह ले जा सकता था। अब समय आ गया था


क म जनक के सामने अपना वा त वक प रचय कट कर ँ और उससे अपनी पु ी वा पस
माँग लूँ। म उसे अपने साथ लंका ले जाता और एक ऐसा जीवन दे ता, जो सही मायन म एक
असुर राजक या के लए होता। वह वे छा से अपने लए वर तलाश लेती अथवा म उसके
लए सुयो य वर का संधान कर दे ता। म मंदोदरी को सब कुछ बता कर, उससे मा-याचना
कर लेता। अपनी युवाव था म क गई मूखता के लए केवल म ही दोषी था और म ही
उनके लए मा माँग सकता था। मने अपने क़दम आगे बढ़ाए।
मने अनुभव कया क जब म राजा क ओर जा रहा था तो पूरी सभा मुझे घूर रही थी। परंतु
तभी मुझे अपनी भूल का एहसास आ। येक यही सोच रहा था क म भी वयंवर
म भाग लेने आया था। पहले तो जनक ने मुझे आशा भरी नगाह से दे खा और फर उसके
म तक पर बल आ गए। संभवतः उसे म अपनी पु ी के लए ब त अ धक आयु का वर लगा
होऊँगा। म केवल छयालीस वष का था परंतु जस समाज म छह वष क क या का
ववाह कर दया जाता हो, उनके लए तो म एक ाचीन आ दम था। म धनुष के नकट जा
कर ठठक गया। म उ सुक था। मने उसे पश कया, उसके उभरे ए ह स पर अपनी
अँगु लयाँ फेर । मने उस पर अपनी पकड़ बना ली। उसक कारीगरी कोई ब त अ छ नह
थी और मुझे पूरा व ास था क उस पर यंचा चढ़ ही नह सकती थी। य द कोई उसे
उठाने क चे ा भी करता, तो वह वह टू ट जाता। शव भी न त प से इस नकृ को ट
के धनुष का योग नह कर सके ह गे।

जनक ने इसे अ -श का नमाण करने वाले कसी क से लया होगा, जहाँ श ु


धनुष-बाण न मत करने का श ण पाते ह। यह एक अपूण व अप र कृत नमूना था और
ये लोग इसके सहारे मेरी पु ी का ववाह रचाने क तयो गता कर रहे थे।

“ ीमान! य द आप भी इसे उठा कर दे खना चाहते ह तो आपको थोड़ी शी ता दखानी


होगी”, एक मं ी बोला। मने उसे घूरा। ‘य द म उसे उठा भी लेता तो या करता? अपनी ही
पु ी से ववाह रचाता?’ तभी वह साँवला सलोना युवक आगे आया तथा राजा को णाम
कया। मने ऊपर दे खा। सीता अपने चेहरे का घूँघट हटा चुक थी और बड़ी ही याशा से
उस युवक को ताक रही थी। मेरे दय का कोई कोना चाह रहा था क उस युवक क वजय
हो। कम से कम मेरी पु ी को ऐसा वर तो मल जाएगा जसे वह पसंद कर रही है, भले ही
अभी उनके बीच ेम न आ हो परंतु मन का कोई अंधकार से भरा कोना, बार-बार ये
चेतावनी भी दे रहा था क सीता उस युवक के साथ कभी स नह रह पाएगी। म पूरी तरह
से न त था क वह युवक धनुष उठा भी लेगा तो भी यंचा चढ़ाने के य न म ही धनुष
टू ट जाएगा। य द ऐसा होगा तो अ थायी प से सीता इस तयो गता से बच जाएगी।

म भी उस युवक क बात सुनने के लए ती ा करने लगा। “महाराज! म अयो या के राजा


दशरथ क पहली संतान, अयो या का राजकुमार ‘राम’ ँ,” फर उसने राजा जनक को
णाम कया। अयो या? ह म… मने ये नाम पहले कहाँ सुना था? संभवतः यह उ ह म से
एक है, जो धूल-धूस रत उ री मैदान म छोटे व अ ासं गक, ा य रा य म से एक है।

अनायास म त क म एक नाम क ध गया, राजा अनार य तथा मेरा अ भयान…। हे ई र!


वह भयंकर नधनता के सा ा य म डू बा, एक छोटा सा रा य, जो आकार म म थला से
आधा भी नह था।’ मुझे मरण हो आया क वह थान कतना साधारण तथा आ दम था।
मने तो उसके अं तम स ाट को ब त पहले समा त नह कर दया था? इन मैदानी इलाक़ म
तो कुकरमु क खेती क तरह राजा उग जाते ह।

म पीछे क ओर हटा। राम ने धनुष क तीन-चार बार प र मा करते ए, उसे सावधानी से


दे खा। म भा वत आ। यह युवक बु मान तथा संसाधनपूण था। उसे अपनी श के
दशन क कोई ज द नह थी। उसने अपनी म यमा अँगुली तथा अँगूठे से पहले धनुष को
मापा और फर उसे म य से तीन अँगुल ऊपर एक थान मल गया। उसने बड़े ही आराम से
उस धनुष को वहाँ से उठा लया। वह उस भार से लगभग लड़खड़ा गया था परंतु उसने वयं
को शी ही संतु लत कर लया। मेरी दे ह से वेदधारा वा हत हो उठ । ‘ या वह
तयो गता जीत लेगा?’ य द मुझे अपने अ -श ान पर भरोसा था तो म दावे से कह
सकता था क यंचा चढ़ाने का य न करते ही, उसके दो टु कड़े हो जाते। मने सीता क
ओर दे खा। वह तनाव त थी। उसके दोन हाथ मौन ाथना क मु ा म जुड़े थे।

राम ने नीचे से डोरी उठाई और उसे बाँधने क चे ा क । उसक माँसपे शयाँ गठ ई थ और


मुख से यास का तनाव कट हो रहा था। म आक षत हो कर दे खता रहा। ‘यह युवक एक
अ छा यो ा था।’ हो सकता है क मेघनाद जैसा कुशल यो ा! धनुष झुका और राम ने
डोरी से पहली टँ कार क । म वातावरण म फैले तनाव को अनुभव कर सकता था। येक
दे ख रहा था क यह इस असंभव काय को कैसे कर दखाएगा? अ त, उसने
तो धनुष क यंचा चढ़ा द । भला यह कैसे संभव आ? ‘ या इस वषय म मेरा ान इतना
खोखला नकला?’ मने अयो या कुमार के गठ ले बदन से नगाह हटा कर अपनी पु ी क
ओर दे खा और उसी एक ण म कुछ टू टने क आवाज़ सुनाई द । म झट से मुड़ा। मेरा दय
तेज़ी से धड़क रहा था। म वह व न पहचानता था। अगले ही ण धनुष के दो टु कड़े हो गए।
राम भी एक ण के लए तं भत हो उठा। येक इस कार त ध था क कसी के
मुख से बोल नह फूटे । मेरे उ लास क सीमा न रही। कोई भी यंचा नह चढ़ा सका था।
अब म सीता को लंका ले जा सकता था। मने मारीच क ओर दे खा। परंतु उ ह ने बड़ी ही
उदासीनता से अपनी गदन हला द । म मत था और मने सूचक फेरी।

तभी चार ओर हष लास का वर सुनाई दे ने लगा। मने ब त ही व मय तथा नराशा के


साथ दे खा क मेरी पु ी ने आगे आकर, अयो या कुमार के गले म वरमाला पहना द । उसी
ण से, राम व सीता प त-प नी बन गए। मेरे ने म अ ु उमड़ आए। मने युगल दं प को
दे खा और म राम के ने म स ता तथा गव के मले-जुले भाव को दे ख सकता था जो इस
अनपे त वजय व पुर कार को पाने के कारण उ प ए थे। यह दे ख कर म ाकुल हो
उठा। युवक! तुम सीता के यो य नह हो! म चीख़-चीख़ कर कहना चाहता था। तभी मुझे
सीता के ने म वशु व न ल नेह छलकता दखाई दया और मने वयं को असहाय
अनुभव कया। मुझे अपनी पु ी क स ता को न करने का या अ धकार था? ‘पु ी म
तु हारा यो य पता नह बन सका।’ मने आशा कट क क उसने अपने लए जस
को चुना था, वह एक प त के प म सदा उसक स ता का कारण होगा। वह उसके साथ
आदर-मान से पेश आएगा और उसे उतना ही ेम करेगा, जतना वह करती है। मने ई र से
ाथना क क वह युवक सीता के सुयो य नकले। मेरा अपनी पु ी पर कोई अ धकार नह
कतु म उसक स ता के लए ाथना तो कर ही सकता ँ। मन ही मन जैसे कोई कह रहा
था क सीता ने जसे अपना प त चुना था अथवा जस ने सीता को पुर कार के प
म पाया था, वह केवल उसके लए ःख का ही कारण होगा। मने मन ही मन चाहा क मेरा
अनुमान ग़लत नकले परंतु मने यह नणय भी लया क म आज से सीता पर नगरानी
रखूँगा ता क उसका प त उसका कसी भी कार अ हत न कर सके। सीता को अपने पता
रावण क ओर से संर ण मलेगा। वह धरती के महाश शाली स ाट क पु ी थी। य द
मुझे कभी भी लगा क वह युवक उसके यो य नह था तो म उसे सबके बीच से उठा कर,
उसके घर लंका वा पस ले जाऊँगा। उसे अपने महल, अपने अंक म छपा कर, कसी भी
कार क हा न से उसक र ा क ँ गा। म मुड़ा और हरहराती भीड़ के म य राह बनाते ए
बाहर नकल आया। म बुरी तरह से थक गया था और पसीने से लथपथ था, लाख चाहने पर
भी ने से अ ुधारा रोके नह क रही थी। मने सीता को अपने म त क से बाहर
नकालना चाहा और वयं को कोसा क मुझे इस या ा पर आना ही नह चा हए था।

मने उस थान क तलाश क , जहाँ हमने पु पक वमान को छपाया था। म इस दे व


राजधानी और इसके व च री त- रवाज़ से थक गया था। म अपनी लंका, अपनी प नी,
अपने पु व अपनी जा के पास लौट जाना चाहता था। छपने के थान पर प ँचा तो वह
जा कर एहसास आ क मारीच मेरे साथ नह थे। मारीच थोड़ी दे र बाद आए। म अब भी
अपनी पु ी को ले कर च तत था। ‘चलो, कम से कम उसका प त एक यो य यो ा तो
दखता था। दे ख क आगे या होता है!’ पु पक म सवार होते समय भी, सीता के भ व य
को ले कर मन म आने वाले वचार को परे नह धकेल पा रहा था। मने मारीच को पीछे आने
का संकेत कया।

“मारीच! हमारे लोग से कहना क वे इन पर नगरानी रख। इस लड़के पर भी नज़र रख।”


उ ह ने हौले से अपनी गदन हलाई और बोले, “हम सीता को वा पस ले जाने के लए इतनी
दे र नह करनी चा हए थी।” मुझे ल जा का अनुभव आ परंतु अब इन बात के बारे म
सोचने से कोई लाभ नह था।

हम दो दन म लंका प ँच।े मने मंदोदरी को उस दे व युवती के साथ अपने णय- संग के


वषय म बता दया था। भले ही ऐसा करना आसान नह था परंतु मने सब कुछ बता दया।
मने उसे अपनी पु ी और उससे जुड़े भय के बारे म बताया। वह मेरे इस व ासघात के लए
रोने लगी परंतु फर उसने मुझे मा भी कर दया। मुझे ऐसा लगता था क मंदोदरी इस
वषय म पहले से ही सब कुछ जानती थी परंतु उसने अपने मुख से कभी एक श द भी नह
कहा था। जब मने अपने दल क हर बात उसके सामने रखी तो इससे हम दोन के लए ही
अ छा आ। मुझे ऐसा लगा क उस दन से उसक नज़र म मेरे लए त ा और भी बढ़
गई थी। मंदोदरी ने बताया क वह भी अपनी पु ी को वा पस लाना चाहती थी परंतु चूँ क
अब उसका ववाह हो चुका था अतः बेहतर यही था क हम उसे, उसके प त के पास ही
रहने द। अंततः म चैन क न द सो सका।

जैसा क मने वयं को वचन दया था, मने उस पर नकट से नगरानी रखी। मुझे यह जान
कर ब त ःख तथा व मय आ क राम ने रा य के त अपना उ रा धकार केवल
इस लए याग दया य क उसक वमाता अपने पु को अयो या का राजा बनाना चाहती
थी। उसक वमाता ने अपने प त से वचन भरवा लया क उसका बड़ा पु राम चौदह वष
के लए वनवास करेगा और उसके पु भरत को अयो या क राजग स पी जाएगी। मेरा
दामाद भी… कैसा मूख नकला, वह वे छा से रा य को यागने तथा वन म भटकने के
लए राजी हो गया। य प अयो या क जा यही चाहती थी क राम को ही राजा बनाया
जाए, उसने अपने मरणास पता क अं तम इ छा पूरी करने के लए जन सामा य क
इ छा क भी उपे ा कर द । मुझे राम के इस झूठे अ भमान तथा संसार के सामने अपनी
स य- न ा मा णत करने क त परता के कारण घृणा ई। म तो उसका तक कभी नह
समझ सका। और उसके पता को तो दे खो… भला वह ऐसा वचन कैसे दे सका? एक
राजा कभी ऐसा नह कर सकता। यह तो राजधम के व था। उ रा धकारी होने के नाते,
राम का दा य व बनता था क वह उस राजा के ख़लाफ़ खड़ा होता जसने ऐसा अ याय
कया था। उसे तो अपने पता को राजग से उतार कर, वयं राजा बन जाना चा हए था।
इसक बजाय उसने अपने सौतेले भाई के लए ग का याग कर दया। और उसका छोटा
भाई ल मण, वह भी उसके साथ वन म आ गया। और अब मेरी यारी पु ी भी उन दोन के
साथ वन म मारी-मारी फरती थी।

मने अपने सै नक को नदश दए क वे उन तीन क श ु से र ा कर और मुझे उनके


वषय म सू चत करते रह। मुझे पता चला क राम पूरे भारत के वन- ांतर म भटक रहा था
और कभी-कभी मेरे गु तचर ने सीता को अकेले म, मूक ं दन करते भी दे खा था। मुझे
संदेह था क ल मण एक अस य तथा था और मुझे हमेशा यही भय सताता रहता
क कह वह मेरी पु ी को कोई हा न न प ँचा दे ।

पंरतु मेरे सभी भय नमूल तथा नराधार नकले। ल मण तो अपने भैया-भाभी के त ब त


न ावान नकला। इस दौरान, लंका फलने-फूलने लगी और मने अपनी नगरी म अनेक
सुधार भी लागू कए। परंतु सीता हमेशा मेरे वचार म बनी रही। म उसके लए च तत था।
तब एक दन, शूपणखा मेरे दरबार म दौड़ी-दौड़ी आई। समय आ गया था।
27 असुर राजकुमारी क वापसी


म पचास के लगभग हो गया ँ, सर पर अब केश नह रहे, मेरे अंग तथा म त क क श
भी अब पहले जैसी नह रही। येक दन, बीते ए दन जैसा ही तीत होता है। म सुबह
होने पर उठता, दै नक चया पूरी करता, कुछ जलपान करता, जीवन म कह न कह दे खी
गई सुंदरी युव तय क क पना करता, आसपास क प र थ तय पर सर धुनता, शराब
पीता, नया के ताज़ा हालात को ले कर बसूरता, ोता को अपनी युवाव था क
वा त वक व का प नक कथाएँ सुना-सुना कर पकाता और दन के अंत म, अपने ब तर पर
जा कर ढे र हो जाता ता क अगले दन फर से उठ सकूँ। इसी तरह यह च चलता रहा।
रावण क ां त से हम जैसे लोग के हाथ कुछ नह आया था। संभवतः हम पहले से कुछ
बेहतर ए थे परंतु हम हमारे ही थान पर रखा गया था और शी ही यह भी सखा दया
गया था क हम कैसे पेश आना चा हए। उनके पास ब त से भ जन तथा संप थे।
पहले वे सु वधाभोगी लोग आते थे और फर हम जैसे लोग क बारी आती। जब तक हम
अपने थान पर टके ए थे, तब तक हम आराम से जी सकते थे परंतु हमम से भी
अ धकतर लोग उ च पद तक जा प ँचे थे, इसम उनका भा य था या म या फर उनक
चाटु का रता! म नह बता सकता। सेना म मेरे साथ रहे, अ धकतर साथी मेरी तरह नधन ही
रहे परंतु कुछ तो सचमुच ब त ही अहम पद तक जा प ँचे थे।

पछले कुछ वष म जस कार ा ण वग ने ग त क थी, यह बात वा तव म खझाने


वाली थी। सेना ारा ा ण के दमन तथा नृशंस मार-काट के कुछ समय तक, ा ण ने
अ थायी प से द ण क ओर आना याग दया था। यहाँ उनके धम के ब त ही कम
अनुयायी शेष रह गए थे। परंतु कुछ समय प ात, वे लोग फर से पनपने लगे। तब तक
रावण ने भी अपनी वचारधारा तैयार कर ली थी क एक महान राजा को अपनी जा से
कस तरह पेश आना चा हए। मु न अग य के नेतृ व म साधु के एक दल ने, असुर रा य
म शरण पाने के लए वनती क । ह त ने उ ह आ य दे ने का वरोध कया तथा जा ने भी
इसका खुल कर वरोध कट कया परंतु रावण ने एक भले नरेश क भू मका म आते ए,
उ ह आ य दे ने का नणय ले लया।

कुछ वष तक, अग य व उनके ा ण का दल, नगर से र ही रहा और शां तपूण


अ त व के साथ जी वत रहा। वे अपने तक ही सी मत रहे और उनके कारण कसी को कोई
क नह आ। अग य लगभग त दन महल म जा कर, रावण से आ ह करते क उ ह
हमारे रा य के भीतर अपने ाम बसाने क अनुम त द जाए। वभीषण भी उस मु न का ही
प लेता और उसक ओर से आ ह करता। अंततः उ ह ने द ण भारत के प मी व पूव
तट पर अपने ाम बना ही लए, जनम लंका का प भी शा मल था। यह सब ब त धीरे-
धीरे आरंभ आ। गौर वण ा ण ने सा ा य के लगभग सभी मुख नगर व क ब म
अपने न हे प न मत कर लए। और इससे पूव क हम जान पाते क ये सब या हो रहा
था, वे सभी सरकारी पद पर अपना अ धकार जमा चुके थे, मं दर को अपने अधीन कर
चुके थे और अ य लोग को बड़ी ही भावो पादकता के साथ लाभ द तथा मह वपूण पद
से परे ले जा चुके थे।

रावण का मानना था क य द उसे संसार म मान पाना है तो उसे एक धम नरपे स ाट बनते


ए, येक धम के साथ स मान तथा स ह णुता का भाव अपनाना होगा। जन आदश के
लए मेरे जैस,े जाने कतने ही असुर ने यु कया था, उ ह पूरी तरह से व मृत कया जा
चुका था। वह तो इस सीमा तक कहने लगा था क अ पसं यक भी दे श के संसाधन पर
समान अ धकार रखते थे और एक स ाट होने के नाते, उसका कत बनता था क वह उ ह
संर ण दान करे।

लोग अंदर ही अंदर सुलगते रहे। असुर क क त व यश के लए यु करने तथा आदश


असुर सा ा य के लए सब कुछ ब लदान करने के बाद, या हम यही पाने के अ धकारी
थे? ऐसा जान पड़ता था क केवल अ पसं यक के अ धकार तथा धा मक भावनाएँ ही
मह व रखते थे और हमारी भावनाएँ कोई मह व नह रखती थ । ा ण का आभार, असुर
के मुख खा पदाथ ‘गौ माँस’ को न ष कर दया गया था। ा ण हमारे दे वालय म
वेश कर सकते थे और हमारे साधारण दे व को अपश द कह सकते थे और इससे भी
बदतर, उ ह मं दर म अ छा चढ़ावा चढ़ता दखाई दे ता तो वे उसे अपने अ धकार म भी ले
सकते थे। अंततः वे ऐसी प र थ तयाँ पैदा कर दे ते क हम हमारे ही मं दर म जाने क
मनाही कर द जाती। जो भी हो, हम अशु व अप व जन थे। शा सत वग के लए
अ पसं यक के अ धकार का मामला एक द वानगी बन गया था। अनेक असुर दे व धम म
द त हो गए परंतु अब भी मुझ सरीखे अनेक अ ड़यल सूकर बचे थे, ज ह ने ऐसा करने से
इंकार कर दया था।

जब मुझे और अ तकाय को उस ं यु के बाद नममता से पीट कर, लगभग अधमृत कर


दया गया था तो उस घटना के बाद से, म महल म क़दम तक नह रखना चाहता था। म
उनके लए एक पायदान क भू मका नभाते- नभाते थक चुका था। म अपना ापार पुनः
आरंभ करना चाहता था परंतु अब वह थान ही कहाँ रहा था? उ ह ने वे सड़क चौड़ी कर द
थ और जहाँ कभी मेरा पुराना वट वृ खड़ा रहता था, वहाँ अब बगीचा बना दया गया था।
चार दशा से कोट का व तार होने से, हम जैसे लोग सीमांत पर खदे ड़ दए गए थे।
वहाँ आने वाले या य का कहना था क यह नगर मुजूरी के मुख बंदरगाह नगर से भी
ख़ूबसूरत दखता था परंतु मेरे जैसे लोग के लए तो कुछ भी नह बदला था। हम अब भी
लोग क आँख क कर करी थे और हम मह वपूण लोग क से छप कर रहना पड़ता
था, परंतु उ ह हमारी आव यकता भी थी। भई, य द हम न होते तो उनके बाग़ क दे खरेख
कौन करता? उनके घर म दा सयाँ व सेवक कौन बनता? उनके लए पानी कौन भरता?
लक ड़याँ कौन काटता? सड़क कौन बुहारता? उनक गंदगी कौन साफ़ करता?

इस कार, य प वे लोग हम पसंद नह करते थे परंतु उ ह ने हम सहन कया। हमने भी


अ य बन कर जीना सीख लया था। हमम से अ धकतर, सुबह नगर के जागने से पूव ही
अपने काय करते और कह ओझल हो जाते। इसी कार जीवन चलता रहा। जब उ ह ने
मुझे और मेरे पु को पीटा था, उस बात को लगभग चौदह वष बीत गए थे। जब कोट
फली-फूली और उसका व तार आ तो म अपने प रवार स हत एक छोट कु टया म आ
गया, जो नगर के द ण म कई मील क री पर थी। वहाँ मने कृ ष काय करना आरंभ
कया। मने थोड़ा सा वन- ांतर का े साफ़ कया और नणय लया क वहाँ काली मच
तथा इलायची क खेती क ँ गा। मेरे पास बीज नह थे इस लए मुझे एक थानीय जम दार से
कुछ धन उधार लेना पड़ा। और फर हम धनी होने के व दे खने लगे। कुछ समय बाद, वे
व केवल आरामदे ह तरीक़े से जीने के व म बदल गए। इसके बाद हम केवल यही व
दे खने लगे क कसी तरह दो जून क रोट नसीब हो। फर हम व दे खने लगे क कम से
कम ऋण के बोझ से तो मु हो जाएँ और अंत म आकर, हमने व दे खना ही छोड़ दया।

परंतु धनी व संप जा और भी धनी होती गई। वे पूरे संसार को अपनी संपदा तथा वैभव
के अ तशय दशन से चकाच ध कर दे त।े और कहा जाता था क रावण के राज म, असुर
सा ा य ने दन- नी-रात-चौगुनी ग त क । यह अ र ः स य था। सं ात वग ने ग त क
इस लए दे श ने भी ग त क । या इस बात से सचमुच कोई अंतर पड़ता है क ब सं यक
संघष करते रह अथवा कृषक अपने शोषक के चंगुल से बचने के लए आ मघात करते रह?

हम तो अ य लोग थे, जो कसी भी गनती म ही नह आते थे। मुझे इसी त य से ब त


सां वना मलती थी क मेरा दे श, संसार के, सबसे ती ता से ग त कर रहे रा क गणना म
सव प र था। य प इस त य से मेरा पेट तो नह भरता था परंतु इससे मुझे शेखी बघारने म
सहायता मलती और अहं क तु होती। मेरे साथ मेरे ही जैसे कई और साथी भी थे। हम
त दन कसी थानीय ताड़ी क कान पर बैठ कर, ताड़ी पीते और अपने राजा व असुर
सा ा य के नाम जाम पेश करते।

वह दन भी आम दन जैसा ही एक दन था। गम, उमस से भरा, नीरस व उबाऊ! उस दन


सं या समय, हवा नह चल रही थी और म एक थानीय ताड़ी क कान पर बैठा, कई
मट कयाँ घ टया ताड़ी चढ़ाने के बाद लगभग बेसुध हो चुका था। म घर नह जाना चाहता
था। य द म वहाँ कुछ दे र और बैठ पाता तो मुझे अ छा लगता था, कोई न कोई मूख मुझे
थोड़ी और ताड़ी दलवा ही दे ता। तो म वह बैठा, राजकुमारी शूपणखा के रसीले क स
तथा कामुक रोमांच को चटकारे ले कर सुन रहा था। वह मुझे पता चला क वन म घूम रहे
क ह दो पु ष ने उसे बुरी तरह से अपमा नत कया, अफ़वाह के आधार पर संभवतः वे
कोई दे व, वानर अथवा नाग थे; ज ह ने राजकुमारी के साथ बलात् संभोग करने के बाद
उसक नाक व तन काट दए थे। लोग तो यह भी कह रहे थे क रावण अपनी बहन के साथ
ए अ याचार व अपमान का तशोध लेने के लए, वशाल तर पर एक यु आरंभ करने
जा रहा था। तभी हम उड़नखटोले का कणभेद वर सुनाई दया। हम सभी बाहर क ओर
भागे। एक ब त बड़ी भीड़ आकाश क ओर नज़र गड़ाए खड़ी थी। लोग ने चार ओर
ध कामु क मचा रखी थी। म भी उस भीड़ म ध के खाते ए, अपने लए थान बनाने म
सफल रहा।

सड़क का सारा यातायात थम गया था। या पगला मय पुनः कोई आकाशीय करतब
दखाने के च कर म था? तभी सारी भीड़ के बीच एक चु पी सी छा गई। म रावण क गहन-
गंभीर आकृ त दे ख सकता था, जो पु पक वमान के कलपुज के साथ त था और उसे
वश म करने क चे ा कर रहा था य क वह वशालकाय लौह प ी हमारे सर पर मँडरा
रहा था। अ त हो रहे सूय क ला लमा के म य, मुझे एक ऐसा य दखा जसने मेरा सारा
नशा र कर दया, मने दे खा क वमान म एक युवती बैठ सर झुकाए रो रही थी। सूय का
काश इतना पया त था क उस ी का मुख दे खा जा सकता था। मेरी पूरी दे ह म सहरन
दौड़ गई। यह चेहरा तो मेरे ब त पुराने अतीत से जुड़ा लग रहा था। या वह मंदोदरी थी?
वह युवती दखने म युवाव था क मंदोदरी के समान दखी परंतु इसका वण उसक अपे ा
थोड़ा साँवला था। ‘अब राजा के दमाग़ म या चल रहा था?’ म नह जान सका, म बस
इतना जानता था क मेरे पूरे शरीर म एक व च सा भय ा त हो रहा था। मन ही मन म
जानता था क हम सभी कसी मुसीबत म पड़ने वाले थे, कोई संकट सामने आने वाला था –
ब त बड़ा संकट!
28 अल वदा मारीच

रावण
मारीच मारे जा चुके थे। व तुतः उनक नृशंस ह या क गई थी और इसके लए म उ रदायी
था। म उनके लए कुछ न कर सका। यह एक मूखतापूण व संकट से भरी ई योजना थी। म
कसी रोमांच य कशोर क भाँ त बड़ी ही नममता से इसे या वत कर बैठा और इसके
बदले म उ ह गँवाना पड़ा। उ ह ने तो मुझे ऐसा न करने का परामश दया था। म राम से
अपनी य पु ी को तो छु ड़ा लाया परंतु अपने य मामा ी मारीच का ब लदान करना
पड़ा। आज जब पलट कर वचार करता ँ तो समझ आता है क कुल मला कर पूरी योजना
ही मूखतापूण थी। हम उस अ भयान पर जाना ही नह चा हए था। जब मने पछली शाम
अपनी सभा म, व थल तथा ना सका र हत शूपणखा को च लाते दे खा तो त काल अपनी
त या दे बैठा। पूरी सभा सकते म आ गई थी। कुछ ण के लए तो हम समझ ही नह
पाए क दरअसल वह कहना या चाहती थी। उसके सारे श द बड़बड़ाहट मा लग रहे थे।
वह ब कुल ही व त क भाँ त लाप कर रही थी और गहरे सदमे म थी। लगभग आधे
घंटे बाद, हम उसक कुछ-कुछ बात समझ म आने लगी। जब म उसक बात समझा, तो पूरी
दे ह म मानो आग सी दौड़ने लगी। ‘उस नीच का इतना साहस क उसने मेरी बहन पर
हाथ उठाया?’ और वह बेचारी कतनी दयनीय दशा म थी। वह कभी सुंदरी नह रही, यहाँ
तक क अपनी युवाव था म भी सुंदर नह दखी परंतु तीस के उ राध म, अपनी कट
ना सका के साथ तो और भी भयंकर दख रही थी। वह लगातार बड़बड़ाती रही क कैसे
उसने एक सुंदरी युवती को वन म दो युवक के साथ वचरण करते दे खा और उस युवती से
केवल यही पूछा क या वह उसके असुर स ाट भाई से ववाह करना चाहेगी।

यह सुन कर, छोटा युवक उस पर लपका और उसने उसक जो दशा क थी, वह तो सबको
दखाई ही दे रही थी। मने उसके कंध पर हाथ रखते ए सां वना दे नी चाही परंतु वह बुरी
तरह से बफर उठ , मुझे कोसते ए, उलाहना दे ने लगी क उसका भाई ब कुल ही कायर
था और कसी रीढ़ वहीन ाणी क तरह न ाण था।

म अपनी बहन के अपमान से उ े जत हो उठा परंतु यह त य कह अ धक ल जाजनक था


क वह ी मेरी बहन थी। वह ब त समय पहले, हमारे र के संबंधी भाइय खर व षण के
साथ रहने चली गई थी, वे उ री दे व भू म के सीमांत पर थत मेरे दो छोटे रा य के राजा
थे। तब से मुझे उस पर नज़र रखनी पड़ती थी। ारंभ म मेरे लए यह कौतुक का वषय था
क उसने कतने पु ष को लुभाने म सफलता अ जत क परंतु बाद म म इस बात से
ल जत सा अनुभव करने लगा था। भले ही असुर के सामा जक नयम के अनुसार यह
कोई अपराध न था, परंतु समय पहले से ब त बदल गया था। दे व के कुछ ल ण जैसे क
नै तकता आ द मुझ पर भी हावी होने लगे थे। यह घटना संभवतः तभी घट होगी जब वह
कसी पु ष का पीछा कर रही होगी और इसी अव ध म उसने उन दो पु ष व उस ी को
दे खा होगा, जो न त प से मेरी पु ी, उसका प त व दे वर ही थे। नःसंदेह शूपणखा हमारे
इस संबंध से अनजान थी, अ यथा उसने मेरे आगे कोई और अस य कहा होता।

एक और वचार ने मुझे चता म डाल दया, ‘इन दो ख़तरनाक पु ष के साथ मेरी अपनी
पु ी कतनी सुर त थी?’ म सभा को जारी रखने क मनः थ त म नह था इस लए मने
सभा थ गत क और अपने नजी क म आ गया। मने मंदोदरी को बुलवा कर अपने नणय
से अगवत करवाया। यह सरल नह था। उसे मेरी योजना के वषय म सुन कर कोई स ता
नह ई परंतु मने उससे कहा क म अपनी पु ी को उन पु ष के साथ कभी नह छोड़
सकता था जो इतनी नममता से कसी ी के कान व नाक काट सकते थे। म अपनी पु ी
क सुर ा के लए थत था।

तब मंदोदरी ने ही परामश दया क मुझे यु क घोषणा करते ए, सीता को पकड़ लेना


चा हए। म उन दो तु छ ा णय के साथ यु करने के वचार मा से ही खल खला कर हँस
दया। इसम बड़ी सरदद थी और काम भी कुछ कम यसा य नह था। म जानता था क
म या करने जा रहा था और अब पीछे मुड़ कर दे खने या पुन वचार करने का ही नह
उ प होता था।

मने मारीच को अपनी योजना से अवगत करवाया। उ ह ने इसे उपयु नह माना और कहा
क म भावुक हो कर, बचकाना नणय ले रहा था। म बुरी तरह से ख सया गया और अपनी
नाराज़गी कट क । म उस वृ क आँख म पीड़ा व कचोट दे ख सकता था परंतु वे नरंतर
मुझसे तक- वतक करते रहे। म इतने ोध म था क मने अकेले ही उस अ भयान को पूरा
करने क ठान ली। अंततः, वे मेरी योजना के अनुसार चलने के लए सहमत हो गए और हम
आकाश माग से, मेरी पु ी क खोज म नकल पड़े। जब हमने उ र क ओर थान कया
तो मारीच ने एक बार पुनः मुझे फुसलाना चाहा। मने उ ह उपे त कर दया। वे बोले, “तुम
राम और उसके भाई का वध करके सीता को वा पस ला सकते हो और साथ ही उसे यह भी
बता दे ना क उसके ज म का स य या है।” परंतु म राम का वध नह करना चाहता था। मेरी
पु ी उसके त न ावान थी और म उसे कसी भी प म, ःख के सागर म नह डु बोना
चाहता था।

मेरी योजना केवल यही थी क सीता को तब तक लंका म रखा जाए, जब तक राम का वह


वै छक वनवास समा त नह हो जाता। तब वह अपने प त के साथ उसके उस तु छ रा य
क रानी बनने के लए जा सकती थी। मन ही मन, कह यह आस भी छपी थी क संभवतः
जब म उसे लंका ले आऊँगा तो पता के जगमगाते राज ासाद दे ख कर, वह अपने प त को
भी वह रहने के लए मना ले। ऐसा नह था क म अचानक ही उस को पसंद करने
लगा था परंतु म उसे भी वीकार करने के लए तुत था। म राम को अपनी उ री सा ा य
का एक अंश दे ने के लए भी मन ही मन तैयार था।

परंतु सब कुछ ारंभ से अनु चत होता चला गया। जब हम उस थान पर प ँच,े जहाँ राम
सीता व अपने अनुज के साथ रह रहा था तो उस समय ातःकाल क बेला थी। वन ब त ही
रमणीक जान पड़ रहा था य द वह कोई और अवसर होता तो मने अपनी सारी चताएँ भुला
द होत और हाथ म कूची थामे, ताड़प पर वन के वे य रह य उकेरता, जो कतनी
उदारता से मेरे आसपास बखरे थे। वृ पर धुँध का ह का सा आवरण आ छा दत था और
घास का एक – एक क़तरा, सूय क चमचमाती करण से सजी धूप म, जगमगा रहा था।
गड़गड़ करते नाले के समीप, ढलान पर ही फूस से बनी एक कु टया दखाई द । वहाँ अनेक
रंग क हज़ार तत लयाँ मँडरा रही थ । शीतल वायु म हौले-हौले झूल रहे वृ के झुरमुट से
छन कर आती सुनहरी रोशनी कभी दखने लगती तो कभी ओझल हो जाती। प ी व झ गुर,
मधुम खय क गुँजार तथा पतंग के वर, कुल मला कर वन के इस वातावरण को और
भी समृ बना रहे थे। हरण आल य से चर रहे थे और धूप म चमकते घास के कतरे को
संशय से नहारते ख़रगोश व गलह रयाँ हर आहट पर चौक े हो कर यहाँ-वहाँ ताकने
लगते। वह च ान पर मेरी पु ी सीता कसी वनदे वी के समान बैठ , अपने ही वचार म म न
दखाई द । उसके हाथ ना भ के पास बँधे थे, उसक टाँग क मुलायम व साँवली वचा पर
पानी कुछ बूँद अठखे लयाँ करती दख , जो संभवतः उस नाले से उड़ कर आ गई ह गी।

मारीच ने कंधे पर हाथ रखा तो मानो म एक स मोहन से जगा। तभी मुझे वह य दखाई
दे ना आरंभ आ, जो क वह वा तव म था। वह श ु का इलाक़ा था। श ु हमारे नकट ही हो
सकता था। य द मेरा सामना राम से होता तो मुझे उसे मारना पड़ता। मेरे गु तचर ने जो
सूचना द थी, उसके वपरीत सीता तो ब त स दख रही थी। ‘कायर कह के! उ ह ने
मुझे वही बताया, जो म सुनना चाहता था’ उ ह ने यही अनुमान लगाया होगा क म उस
युवती म च रखता था। अब म वातालाप के कुछ टु कड़े सुन पा रहा था और म भी वह
उसी दशा म ताकने लगा, जहाँ मारीच एकटक दे ख रहे थे। वन क ओर से नकल कर, दो
पु ष आते दखाई दए। वे शका रय जैसे दख रहे थे और म एक ही झटके म राम-ल मण
को पहचान गया। दोन भाई पहले से अ धक साँवले व बड़े हो गए थे। मुझे उ ह दे खे भी तो
लगभग चौदह वष होने जा रहे थे। मेरी आँख को वे भ े व कु प जान पड़े, य प अब भी
राम के चेहरे पर कुछ आंत रक आभा वराजमान थी। ‘दे व कुमार इतने साँवले य कर ए?
यहाँ तक क मेरा वण भी उनसे साफ़ था?’

मारीच मेरे कान म हौले से बोले और पलक झपकते ही वन म अ य हो गए, “म राम को


राजकुमारी से र ले जाता ँ। मुझे लगता है क उसके अनुज को तो तुम संभाल ही लोगे।”
म उ ह बताना चाहता था क म तो दोन को ही संभाल सकता था परंतु वे तो ओझल हो चुके
थे। बस मने उ ह अं तम बार वह दे खा था। जैसा क मने पहले भी कहा क यह योजना
मूखतापूण थी तथा ब त ही हड़बड़ाहट म बनाई गई थी, जो क मारीच सरीखे अनुभवी के
अनुसार ब कुल अनुपयु थी। ऐसा नह क मुझम अनुभव का अभाव था परंतु उस दन
अब भा य को दोष द या नय त का नाम ल परंतु म एक के बाद एक भूल करता चला गया।
म पछले दो घंट से ती ा म था और अब लगभग अधीर हो चला था। ‘ या मुझे वहाँ भाग
कर जाना चा हए और उन दोन से दो-दो हाथ करने के बाद, अपनी पु ी को ले आना
चा हए?’ मने तकरीबन ऐसा ही करने का न य कर लया था क नाले के सरे कनारे पर
एक चमक ली सी व तु दखाई द । म भी आक षत हो उठा। यह तो सोने का एक हरण था।
केवल उसका अगला ह सा तथा तराशे ए स ग दख रहे थे परंतु र से दे खने पर यह कोई
वग य जीव दखाई दे रहा था। उसने ब त ही कोमल तथा मधुर सुर नकाला और झा ड़य
के पीछे ओझल हो गया। वे दोन तथा सीता भी एकदम पीछे मुड़े और वमु ध भाव
से हरण को ताकने लगे। हवा से सरसराती प य तथा प य के चहचहाने के मधुर वर
के अ त र पूरे वन म शां त का सा ा य था। सीता ने हरण को दे खते ही ती वर म
अपना उ लास कट कया। मने दे खा क वह वण हरण एक बार फर आगे आया और
पलक झपकते ही झा ड़य म ओझल हो गया। मने दे खा क ल मण ने इसी दौरान उस पर
नशाना साधने क तैयारी भी कर ली थी। उसने अपना धनुष झाड़ी क ओर तान दया। कुछ
ण के लए राम व सीता सब भुल कर, उसी ओर ताकते रहे। मानो युग के बाद, हरण ने
पुनः वहाँ दशन दए। ल मण के धनुष से एक बाण सनसनाता आ नकला और उस वृ
को भेद दया, जसके तले, कुछ ण पूव वण हरण गोचर आ था। वृ म धँसा बाण
कं पत होता रहा। मेरी म उसके लए अचानक ही शंसा का भाव आ गया। ‘भले ही
अस य हो परंतु वह अ छा धनुधारी था और उसे बड़ा अ छा श ण दया गया था।’

म तकरीबन ज़ोर से ही हँस पड़ा। म जानता था क हरण के वेष म मारीच ही थे और उ ह


तीर के नशाने पर लाना कोई सरल काय नह था। मारीच ने ही कसी हरण को मारा होगा
और उसक खाल पहन कर, कौतुक रचा रहे थे। यह एक ब त ही ब ढ़या और सादा भेष
था। म दे ख सकता था क पहले सीता ने ल मण को बाण चलाने के लए फटकारा और फर
राम के आगे नहोरा करने लगी क उसे वह हरण ला दया जाए। मने दे खा क पहले तो राम
कुछ समय के लए संकु चत आ और फर हरण के छपने के थान क दशा म चल
दया। जब वह सरे कनारे क ओर प ँचने ही वाला था तो हरण गनी चपलता से, वहाँ से
नकल लया। राम ने ल मण को च ला कर कहा क वह हरण क खोज म जा रहा है और
इस अव ध म ल मण सीता का यान रखे।

जी म तो आया क एक ब ढ़या से बाण से नशाना साध कर ल मण का वह ाणांत कर ँ ।


म लगभग इस काम के लए तुत ही था परंतु यह तो कायर का काम होता है। कसी वृ
के पीछे छप कर, अपने श ु पर वार करने का काम तो नपुंसक करते ह। म तो एक असुर
था, एक स ाट था। ऐसा काय मेरे पद, मयादा व ग रमा को शोभा नह दे ता था। यह मेरी
याय तथा न प ता क नी त के भी व था। परंतु य द म उस समय यह जानता क राम
व उसका भाई ल मण कस तर तक नीचे जा सकते थे, तो मने उन दोन को उसी थान पर
और उसी समय समा त कर दया होता। म एक मूख था और मुझे हाथ आए अवसर को
गँवाना नह चा हए था? य द मने उस दन ही उन दोन का वध कर दया होता, तो म ब त
से ी-पु ष को पीड़ा के गत म गरने से बचा सकता था, ज ह ने मुझ पर व ास कया
और यह मान कर चले क म हर संभा वत संकट तथा बुराई से उनक र ा क ँ गा।

जब उस दन, मेरे हाथ काँपे तो मुझे जान लेना चा हए था क मै जीवन म असफल रहा।
परंतु आज म अपने व अपनी जा के र म नात, यहाँ पड़ा ;ँ अपनी य संतान क
चता को मुखा न दे ने के प ात, वह सब भी गँवा बैठा ँ, जो मने वष के कड़े प र म से
पाया था; म जानता था क य द वही प र थ त मेरे सामने रही होती; राम व ल मण बड़ी
सरलता से नशाने पर होते और म वषबुझा तीर लए, वृ के पीछे छपा होता तो भी म उन
पर वार न करता अथवा कोई सरा भी न करता। यह तो कायर का काम था। संभवतः यही
कारण था क इस समय मृ यु मेरे सर पर तांडव रच रही थी, परंतु म कम से कम अपना
सर गव से ऊँचा रख कर तो मर सकूँगा। मुझे ऐसे के लए और कुछ नह बस केवल
ःख का अनुभव होता है जो अ छा व नेक कहलाने के लए इस तर तक नीचे गर गया।
‘राम, या यह सब पाने के लए इसे करना ज़ री था?’ तुमने जो भी र पात कया, वह
मेरे और तु हारे जाने के युग बाद भी तु ह और इस दे श को सताता रहेगा। तुम अनै तक
साधन से अ जत पु य व नेकनामी को अपने पास रखो और म अपने मनु य व को अपने
साथ रखते ए, कसी स चे यो ा क भाँ त अपने ाण का याग क ँ गा।

अभी म बैठा वयं ही तक- वतक के जाल म उलझा था क मुझे ल मण का वध करना


चा हए अथवा नह , उसी समय हमने दय को कातर कर दे ने वाली पुकार सुनी। उसे सुन
कर ऐसा लगता था मानो मारे भय के र जम जाएगा। सीता व ल मण ने भी इसे सुना और
वे भी तं भत रह गए। म उस वर को पहचानता था परंतु तब म यह नह जान सका क यह
मेरे य मामा ी का वह वर था, जो उ ह ने भावी मृ यु क पदचाप को सुन कर कंठ से
नकाला था। म भी सकते म आ गया और कुछ ण के लए समझ ही नह सका क मुझे
अब करना या चा हए। मने अपने-आप को समझाना चाहा क संभवतः यह भी मारीच क
ही योजना का एक अंश होगा। मने सीता के वलाप करने तथा ल मण के तेज़-तेज़ बोलने
का वर सुना। मने दे खा क वह भी उसी दशा म लपका, जहाँ से कुछ दे र पहले, उसका
भाई गया था। म अब भी संकोच म था। ‘ या मुझे उसका पीछा करना चा हए और अगर
मारीच वा तव म संकट म ह, तो उनक र ा करनी चा हए?’ परंतु मारीच एक अनुभवी
यो ा थे। वे वयं अपनी दे ख-रेख कर सकते थे। फर मने फुत दखाते ए, अपने अ -
श छपा दए य क म अपनी पु ी को भयभीत नह करना चाहता था। मने अपने
आभूषण खोले और पोटली म बाँध कर, कमर म ख स लये। मेरे माथे पर पहले से ही भ म
से ऐसा ट का व रेखाएँ बने थे क म दे खने म कोई शवभ जान पड़ रहा था। आभूषण
उतारने के बाद तो म ब कुल ही एक भ ा माँगने वाला भ ुक लगने लगा। जब उसने
पीछे मुड़ कर, मुझे दे खा तो म उसके नकट प ँच गया था। उन यारी व गहरी आँख को
अपनी ओर ताकते दे ख, म वत हो उठा और ऐसा लगा मानो कंठ म कुछ अटक गया हो।
म उसे पश करना चाहता था, अपनी भुजा म भरना चाहता था। ‘सीता, मेरी पु ी! मेरी
न ही ब टया!’ म मुड़ा व अपने ने मूँदे वह खड़ा हो गया। म अपने-आप को समा त कर
दे ना चाहता था। ‘मने उसे अकेला य छोड़ा? मने उसे य भुला दया? मने उसका सारा
बालपन गँवा दया था। म म थला पर धावा बोल कर, उसे वा पस य नह ला सका?
संभवतः य द मने जनक को सब कुछ स य बता दया होता, तो र पात क भी नौबत न
आती। जनक भले दे व राजा म से था। वह एक ानी तथा ववेकवान था, वह
न त प से मेरी पु ी लौटा दे ता परंतु म उसके प त पर भरोसा नह कर सकता था। उन
दोन भाइय ने मेरी बहन के साथ जो कया, उसके लए म उ ह मा नह कर सकता था।
सीता उनके साथ सुर त नह थी और एक असुर राजकुमारी तथा रावण क पु ी का जीवन
इस लए नह था क वह उसे एक भ ुक क भाँ त वन म वचरण करते ए तीत कर दे ।
मने जो कुछ भी पाया तथा अ जत कया, सोने क लंका, संपूण असुर सा ा य; सब कुछ
मेरी पु ी का ही तो था।

परंतु य द वह मेरे वैभव, मेरी संप ता, मेरे रा य तथा नेह को ठु करा दे तो या हो? वह
अपने प त के त जतना गहरा ेम तथा ा रखती थी, उसे जान कर मेरा मन भयभीत
था। मुझे भय था क कह म वष पूव क गई उस यो तषीय भ व यवाणी को आकार दे ने
क भू मका तो नह रच रहा था? मुझे उन सभी श द का भय सता रहा था, जो वेदवती ने
मृ यु के समय कहे थे। तब अचानक ही वे वचार जस कार मन म सध लगा रहे थे, उसी
कार अचानक गायब भी हो गए। म मन ही मन ाथना करते ए मुड़ा और पाया क वह तो
वहाँ से जा चुक थी। वह मेरे लए कु टया से भ ा लेने गई थी। वह मेरे पास आई और मेरे
हाथ का कटोरा दे खने लगी। परंतु मने उसे उसी ण अपनी ओर ख च लया, अपने हाथ से
उसक कमर के आसपास घेरा कसा व उसे अपने कंध पर उठा लया। फर म उस ओर
भागा, जहाँ हमने पु पक वमान को छपाया था। सीता ारंभ म तो इतना हत भ हो गई क
कसी भी कार क त या ही नह दे सक परंतु कुछ ही ण म संभलने के बाद, उसने
रोना तथा मुझसे हाथापाई करना आरंभ कर दया। उसने अपने हाथ से मेरा मुख न च
लया। म उन खर च से रसते र को महसूस कर सकता था। मुझे यह सब सोच कर
व च सी स ता का बोध आ क म इसी वहार का अ धकारी था य क मने उसका
याग कया था, एक अवै ा नक भ व यवाणी पर ऐसा व ास कया क अपनी ही पु ी से
भयभीत हो उठा और एक पता के प म, उसे कुछ नह दे सका।

अंततः मने उसे पु पक वमान म पटका और ार बंद कर दया। फर म मारीच क ती ा


करने लगा। मने तब तक ती ा क , जब तक सूय आकाश म, प म क ओर तीन-चौथाई
या ा कर चुका था। मेरी पु ी क सुब कय के वर तथा सु र से आ रहे प य व पशु के
वर के अ त र वन म कोई शोर नह था। म उसे अकेला छोड़ कर, मारीच क तलाश म
नह जाना चाहता था। अंततः, भारी दय के साथ, अपनी मामी का सामना करने का साहस
संजोते ए, मने पु पक वमान म लंका क ओर जाने के लए या ा आरंभ क । यह वापसी
क या ा ब त ही नारक य रही। एक बड़ा सा प ी, एक वशालकाय ग पु पक के पंख
म उलझ गया। यह एक भयावह ण था। पंख क ग त बा धत होने से हमारा वमान
लड़खड़ाने लगा और हम कसी पाषाण क तरह सीधा धरती क ओर आने लगे। ऐसा लगा
मानो धरती पर मृ यु हम आ लगन म लेने के लए तैयार थी। प ी ने अपने ाण बचाने के
लए संघष कया और पंख म यादा उलझ गया। मने एक मूखतापूण आकषण के साथ
मृ यु को हमारी ओर आते दे खा। सीता क चीख़ सुन कर, म तं ा से जगा और अपनी
तलवार ले कर उस प ी के पंख काटने क चे ा क । पु पक लड़खड़ा रहा था। फर
अचानक ही उसने कलाबाजी खाई और यं नीचे क ओर जाने लगा। सीता फसली और
बस काल के गाल म समाने ही वाली थी क मने उसे अपने एक हाथ से, कमर से पकड़
लया।

मेरे हाथ क तलवार हवा म झूल रही थी और वह हम दोन म से कसी को भी चोट प ँचा
सकती थी, अगले ही ण वह वमान म गर गई। हवा का वेग तेज़ था और सीता वमान से
बाहर लटक रही थी। मने उसे एक ह के से झटके के साथ वा पस ख चा और वमान थोड़ा
और लड़खड़ा गया। यह सब कुछ ही ण म घटा। फर मने अपने एक हाथ को पु ी क
कमर पर कस लया और सरी टाँग से, नीचे गरी चं हास लपक । मने अपनी तलवार के
तीखे हार से प ी के टु कड़े-टु कड़े करने आरंभ कए। धरती ब त ज द नकट आ रही थी
और अब मुझे वृ क प याँ दखने लगी थ । मने प ी पर अपने कुछ अं तम वार कए
और अपनी पूरी श लगा द । वमान अब भी डावाँडोल हो रहा था। य द पाल ढ ले हो
जाते तो हम ाण से हाथ धोना पड़ता।

अंततः प ी, अथवा वह जो भी ाणी था, नीचे गर गया। हम उसके र से नहा गए थे। मने
आगे बढ़ कर, कल पुज को घुमाया ता क यं का संतुलन साधा जा सके। पंखे घूम नह रहे
थे। मने उ ह ब त आगे-पीछे धकेला परंतु शायद वे जाम हो गए थे। लंबे वृ इतने समीप
आ गए थे क उन पर मँडराते प य के वे झुँड भी दे खे जा सकते थे, जो अपनी ओर आते
एक वशालकाय लौह प ी को दे ख भयभीत हो उठे थे और यहाँ-वहाँ पर फड़फड़ाते उड़ रहे
थे। ‘बस यही अंत था’ मुझे लगा क म उस शंकु समान अव था म ही दम तोड़ने जा रहा
था और वह भी तब जब म अपनी पु ी को उसके घर वा पस ले जा रहा था। मेरा पूरा जीवन
ने के सामने क ध गया। म असहाय सा दे खता रहा। अचानक सीता के कंठ से नकली
ससक का वर सुन कर, म च का। नह , म उसे तो इस तरह मृ यु के मुख म समाने नह दे
सकता। वह तो अभी युवती है। उसने अभी जीवन म दे खा ही या है! या म उसे उसके
प त से बचा कर केवल इस लए लाया था क यहाँ बीच आकाश म उसे ाण यागते दे खूँ?
मने अपनी पूरी श के साथ वमान के कलपुज को हलाया-डु लाया और अचानक ही
वमान के पंख काम करने लगे। मने राहत क साँस लेते ए ने मूँदे परंतु आधे ही ण बाद
एक और आतंक का साया सर पर मँडरा रहा था। नह , अब ब त दे र हो चुक थी! वमान
के पंख वृ क प याँ कतर रहे थे। ‘ या हम बच पाएँगे? हे शव!’ फर धीरे-धीरे वमान
ऊपर क ओर जाने लगा। अब हम सबसे लंबे पेड़ से कुछ फ़ट क ऊँचाई पर थे। म अपनी
ओर से हर संभव को शश म लगा रहा और हम इस तरह करीब बीस फ़ट तक आ गए। जस
ण म मुझे लगा क शायद अब हम बच जाएँग,े उसी ण म हमारे आगे एक वशाल च ान
आ गई। हम अब सीधा उसम टकराने वाले थे। ‘ या हम उससे बचगे?’ मेरे पसीने छू ट रहे थे
और अँगु लयाँ खने लगी थ । अब वह भारी पाषाण केवल बीस फ़ट क री पर था और
उसे पार करने के लए हम अभी तीस फ़ट क ऊँचाई तक जाना था। पंखे ने उस च ान को
छु आ और जस एक ण म मुझे लगा क हम टकराने वाले थे, उसी ण पु पक ने ग त
पकड़ ली और हम उससे टकराते-टकराते बचे। म वमान क ऊँचाई बढ़ाता रहा और जब
हम सुर त ऊँचाई तक प ँचे तो मने पंखे मोड़ कर संभाले और पाल भी उतार दए। म
वमान म नढाल हो कर गर पड़ा। मेरी पु ी कसी पाषाण क तरह जड़ थी और मुझे उसके
लए खेद भी आ। तब मुझे मारीच क याद आई। म उ ह खो चुका था। पता व पु ी,
अपने-अपने ःख व हा न के मूक जगत म खोए बैठे थे, इतने समीप परंतु फर भी कतने
र! और हम लंका क ओर चल दए।

जब सीता ने पहली बार लंका के दशन कए तो म उसके व फा रत ने म छपे आ य के


भाव को दे ख सकता था। एक ण के लए मानो वह अपना ःख भी भुला बैठ । मेरा दय
गव से फूल उठा। म उसे दखाना चाहता था क मने उसके लए कतनी क तयाँ अ जत कर
रखी थ । ‘सीता! मेरी ब ची! यह लो तु हारी लंका!’ वह उस सुवण महल म रहने वाली थी।
म चाहता था क वह उन बगीच को दे खे तथा सागर क गंध का अनुभव करे; जगमगाते
हाट-बाज़ार ; ह रयाली से लहलहाते धान के खेत ; ना रयल व ताड़ के झूमते वृ तथा
मसाल के बगीच ; शाही राजमाग , गगनचुंबी ग तथा राज ासाद को दे ख।े परंतु म मौन
था। म केवल उसके आ य से व फा रत ने को दे खता रहा, जब सूया त क ला लमा मेरे
महल के सुवण गुंबद पर त ब बत होने लगी तो मने वशालकाय लौह प ी को उतारने क
तैयारी क । इससे पूव क उसके पंख कते, मने छलाँग लगा द और तब शायद म कुछ
ण के लए सीता को भी भूल ही गया था। मंदोदरी दौड़ी आई और उसके पीछे ही जटा
व मेघनाद भी आ गए। उ ह भी हमारे अ त थ को दे खने का कौतूहल हो रहा था।

मेरी मामी अपने प त को खोज रही थ परंतु म अपनी नज़र चुराता रहा। वह भयंकर ण
आ प ँचा था और म नह जानता था क अब या कहना चा हए। म ब कुल सु पड़ गया
था। मारीच मर चुके थे। यह मेरे इस भा यपूण रोमांच का एक न न स य था। उस घने वन
के म य कह , वह वृ मृत पड़ा था। म उ ह उन दो नृशंस युवक क दया के आसरे छोड़
आया था। उस समय मने उनके बारे म, उनके नः वाथ नेह तथा उन ब लदान के बारे म
नह सोचा, जनके बल पर म वह बन सका, जो आज म था। मने उनक चीख़ सुनी थी परंतु
उसके बावजूद म उनका बचाव करने नह गया। मने सुना क राम के तीर ने न त प से
उनके बूढ़े शरीर को भेद दया था और यह भी जानता था क वे अपने जीवन के उन अं तम
ण म भी मेरे ही हत के वषय म वचार कर रहे ह गे परंतु म फर भी उनके पास नह
गया। जब वे चीख़ तो उनका वर राम के वर से इतना मलता-जुलता लगा था क सीता
उसे अपने प त का वर मान बैठ और उसने ल मण को अपने भाई क सहायता के लए
भेज दया। मने इस दौरान सीता को उठाया और मारीच के वषय म वचार तक कए बना,
लंका के लए रवाना हो गया। अभी तक तो वापसी क संघषपूण या ा तथा अपनी पु ी
सीता को लंका वा पस लाने के उछाह ने, मारीच क मृ यु के शोक को कह दबा रखा था
पंरतु जब मने अपनी मामी ी का मुख दे खा तो मुझ पर असफलता, ला न तथा अपनी
नरथकता के भाव हावी हो गए। मने उ ह आ लगन म बाँध लया और अपने ह ठ कस कर
भ च लए ता क अपने अ ु क धारा को वश म कर सकूँ। उ ह ने मेरी आँख म झाँका,
फर वह सब पढ़ लया जो प अ र म अं कत था और वे मेरी भुजा म ही अचेत हो
ग ।

उसने मेरे महल म वेश करना वीकार नह कया। उसने अशोक वृ के तले एक छायादार
कोने म अपना आवास बनाया, जहाँ मेघनाद बचपन म ायः खेला करता था। मेरी ओर से
उसे महल म रहने के लए मनाने क हर संभव को शश थ रही और मुझे हार कर, जटा
को उसक र ा व दे ख-रेख का भार स पना पड़ा। इसके बाद, मने वयं को अपने क म
बंद कर लया और अपने य म व परामशदाता मारीच क याद म फूट-फूट कर रोया;
इसके प ात मने उनक शोकसंत त वधवा तथा अपनी संदेह त प नी को बताया क मुझे
उ ह कन प र थ तय म श ु क दया के सहारे छोड़ कर आना पड़ा; और फर जब म
उनके पास से आया तो ला न व अपराधबोध के भँवर म गोते लगाने लगा, म अपने ही मामा
के ाण क र ा नह कर सका था।

रात बीतती रही और म अपने पलंग पर करवट बदलता रहा। यह एक उदासी से भरी
अमाव या क रात थी और म महसूस कर सकता था क मंदोदरी भी जाग रही थी। म उसके
समीप गया व उसे पश कया कतु वह ज़रा भी नह हली। मने उसक त या के लए
ती ा क ; म चाहता था क वह मुझे अंक म भर कहे क मने जो भी कया, उसम कुछ भी
अनु चत नह था परंतु वह ब कुल नह हली। धीरे-धीरे मने अपना हाथ हटाया और सरी
ओर मुख कर लया।

म एक झटके से उठ बैठा। मुझे लगा क मने कसी क सुब कय का वर सुना था। यह


मंदोदरी क ओर से तो नह आ रहा था। ‘ या यह मेरे मन क क पना थी?’ म वातायन के
समीप गया तथा बाहर झाँका। बाहर तो घने अंधकार का सा ा य था। बाग़ म कुछ
अधजली मशाल, अंधकार से लड़ने का हर संभव य न कर रही थ । फर बना कसी
चेतावनी के, अचानक ही वषा होने लगी। मशाल फड़फड़ाते ए बुझ ग और कह कोई
खुली खड़क , तेज़ वर म बजने लगी। उस पट के हलने क त व न, भाँय-भाँय करते
ांगण म गूँज रही थी।

मेरे भीतर गहन भय का भाव उ प आ। मने अपनी पु ी क क पना क , जो उस अंधकार


म, ब कुल अकेली बैठ भीग रही थी। परंतु म वहाँ से नह हला। म भयभीत था। म वयं
से भयभीत था। आकाश म गजना बढ़ती गई और धरती वग से गरते अ ुकण से भीगने
लगी तो म अपने पलंग पर ही बैठा रहा। अकेला ही भयभीत होता रहा; उस भ व यवाणी
तथा वेदवती के ाप को मरण करते ए भयभीत होता रहा।
29 कोतवाली


उस दन मने एक बड़ा ही व च सा य दे खा तथा वचार करने लगा क या मुझे उस
वषय म रावण के उ चा धका रय को बताना चा हए? ब त दे र होती जा रही थी। म सारा
दन यहाँ-वहाँ मँडराता रहा था और धनी ापा रय के रथ क साफ़-सफ़ाई से जो चंद
स के हाथ आए थे, उ ह भी ताड़ी पर य कर चुका था। म भूखा था परंतु मुझे यह भी
पता था क घर पर भी खाने के लए कुछ नह मलने वाला था। दरअसल, लगभग पूरे छह
माह होने को थे, मुझे अ छा भोजन करना नसीब नह आ था।

मुझे मारीच के भ अं तम सं कार का समारोह मरण हो आया। ारंभ म तो हमम से कोई


नह जान सका क अंततः मारीच क मृ यु ई कैसे? वह वृ था परंतु रोगी नह था और
जब मने उसे अं तम बार काले अ पर सवार दे खा था तो वह अ छा-खासा व थ दखा
था। उसक मृ यु हम सबके लए कसी गहरे सदमे से कम नह थी। राजक य प से घोषणा
क गई क मारीच क मृ यु वृ ाव था के कारण ई और उनका नधन, ाय प पर, असुर
रा य क उ री सीमा के नकट आ था। यह भी कहा गया क उनका अं तम सं कार भी
वह कर दया गया। वे अपनी मृ यु से पूव इतनी र य व कैसे प ँच गए, यह रह य भी
कुछ कम नह था। लोग ने उ ह एक दन पूव ही दे खा था और कसी ारा एक ही
दन म इतनी लंबी री तय करना असंभव था। लोग दबे वर म मय के उड़नखटोले क बात
भी कर रहे थे परंतु इससे कोई अंतर नह पड़ता था। वहाँ खड़े हो कर यहाँ-वहाँ क हाँकने
से कोई लाभ नह होने वाला था अतः म व मेरी प नी महल क ओर लपके, हमने सुना था
क वहाँ उस दन नधन को अ छा भोजन कराने के साथ-साथ व भी दए जाने थे।

महल क ओर जाने वाले सभी माग पर लोग का ताँता बँधा था। म महल के नकट प ँचा
तो पाया क वहाँ तो पहले से ही अ छ खासी भीड़ एक थी। लोग थान के लए आपस म
ध का-मु क कर रहे थे; कान को चीर दे ने वाला ककश कोलाहल सुनाई दे रहा था; बड़े ही
तेज़ तथा तीखे वर म चुनी ई गा लय व अपश द क बौछार जारी थी। भीड़ ठुँ सी ई
थी, सब ओर से ध के आ रहे थे और भगदड़ सी मची थी। लोग क दे ह पसीने से और पाँव
क चड़ से लथपथ थे; अपने फेफड़ म धूल के गुबार भरे, य ही भीड़ आगे को करीबन एक
इंच खसकती, पीछे से और लोग के आने से यादा ध के पड़ने लगते। नदयी सूय अपना
पूरा ताप उगल रहा था और हज़ार भूखे लोग क पसीने व दे ह से आती गध सहन कर
पाना क ठन होता जा रहा था। मने अपनी प नी क बा कलाई जकड़ी ई थी ता क उसे
ध क से बचा सकूँ परंतु भीड़ म शा मल हर ी क तरह वह भी पूरी तरह से कुचली जाती
रही, उसके पास यह सब सहन करने के सवा कोई उपाय नह था। वहाँ नःशु क सामान
मलने वाला था इस लए लोग ारा दबाया या कुचला जाना, छा तय पर हाथ मारना या
कमर म चकोट काटने जैसी बात से हम कोई अंतर नह पड़ता था। हम आगे क ओर
धकेले जाते रहे।

य ही हम और आगे बढ़े , ध का-मु क भी पहले से यादा हो गई। मने भी ठोकर मारी


और घूंसेबाज़ी करके, अपने लए एक पु लदा लेने म कामयाब रहा, जो क आपस म
गु थमगु था हो रहे औरत व मद के ऊपर से होते ए, मुझ तक आया था। मने उसे अपनी
प नी को दे दया और अपना ह सा पाने के लए फर से भीड़ का ह सा बन गया। तभी
एक सपाही ने मुझे धकेला और म अपना संतुलन खो कर, नीचे जा गरा। भीड़ ने मुझे
कुचलने म ण भर क भी दे र नह क । म कसी तरह उसे कोसते ए, वहाँ से खड़ा आ।
म मायूस था क हम दोन के पास बाँटने के लए एक ही पु लदा था। हम औरत व मद क
उस भीड़ म रा ता बनाते नकलने लगे जो उदार व दानी राजा ारा दए गए उन उपहार को
लेने आई थी, ज ह वह अपने य मामा क मृ त म बँटवा रहा था। उस दन मने मन ही
मन ाथना क काश राजा का कोई एक मामा त दन इसी तरह ाण का याग करे!

इसके बाद दोहपर के भोजन का बंध था। शाही माग के दोन ओर, क ची धरती पर ग े
खोदे गए थे और उनम केले के प े रखे गए थे। फर इन अ थायी पा म भात परोसा गया
और मुझे जैसे हज़ार लोग ने उसे वाद से खाया। जब हम खा रहे थे तो लंका के मं य
तथा मु य ाय प से आए कुछ मं य के रथ, हमारे माग पर धूल व क चड़ उड़ाते नकल
गए और हमारा भोजन धूल से अट गया। आसपास म खयाँ भनक रही थ और कुछ
आवारा कु े भी हमसे हमारी दावत का अंश छ नने के लए कतार म आ जुटे थे। सं या
समय, महल के अनुचर ारा ताज़ी ताड़ी से भरे लकड़ी के बड़े-बड़े गोल पा लुढ़काए गए
और फर से अँधाधुँध छ नाझपट आरंभ हो गई। अध रा तक, हम सभी ी व पु ष ताड़ी
पी कर बेसुध होने के कगार पर थे। अलग-अलग थान पर ई झड़प म चार लोग क मृ यु
ई परंतु हम अगले दन तक यह सब पता नह चला था। और न ही मुझे ऐसी कसी बात क
परवाह थी।

अगला दन आते-आते मेरी अव था और भी शोचनीय हो गई। मने जो भी अ जत कया था,


वह तो एक ही स ताह म य हो गया। इसम से यादातर तो ताड़ी क कान के हवाले
आ था। परंतु माला ने मुझे बताए बना थोड़ी बचत कर ली थी। जब मुझे इस बारे म पता
चला तो म उसके गले पर अँगूठा रख कर, बस नकलवा लाया। मने उसे एक ज़ोरदार ठोकर
रसीद क और चीख़ती ई माला के हाथ से स के छ न कर, ताड़ी के ठे के पर आकर ही
दम लया। बस वह आ ख़री दन था, जस दन मने ज मनाया था।

अगली सुबह से, भूख कसी संक पब साए क तरह हमारा पीछा करने लगी। कभी-
कभार, मुझे यहाँ-वहाँ के कोई काम जुट जाते तो हमारा पेट भरता परंतु कुल मला कर हम
भूख क चपेट म थे। हम ब कुल ही बेआसरा थे और यही सबसे बड़ा स य था। संभवतः
ा ण जो पछले ज म के कम क बात करते थे, उनम कोई न कोई स यता तो अव य रही
होगी। हम भी न त प से अपने पछले ज म के बुरे कम ही भोग रहे थे। ब त से लोग
नधन थे, तो पछले ज म म ब त से लोग पापी रहे ह गे।

परंतु सभी ऐसे नह थे। ापारी वग, नौकरशाह व सरकारी अ धकारी, कलाकार तथा
संगीत ; बाक सभी दन-ब- दन संप होते जा रहे थे। हमने दे खा क रात -रात ऊँचे भवन
खड़े हो जाते और लोग अपने चमचमाते रथ म बैठ कर, उन जगमगाती कान से भड़क ले
व व जूते लेने आते; उन लोग के भवन क छत प क थ और घर म बैठने के लए मेज
व कु सयाँ आ द थे; प म के सु र ांत से आए गलीचे व कालीन से घर क सजावट
होती; जो इतने महँगे होते थे क उस रा श से पूरा एक गाँव कई माह तक अपना पेट भर
सकता था; तेज वी तथा मेधावी बालक अपने गु के पास श ा हण करने जाते जो
केवल धनी तथा सं ांत प रवार से आए ब च को ही व ा का दान दे ते थे। वहाँ कई रंगमंच
भी थे परंतु हम सरीखे लोग वहाँ पास भी फटकते तो नगर र क हम बाहर कर दे ते।

म कभी पढ़ना- लखना जानता था। म एक श त यो ा भी था अथवा ये सब कसी बूढ़े


के म मा थे जो थ म ही पछली क त तथा साह सक काय क क पना म खोया रहता
था? म इस वषय म न त प से कुछ नह कह सकता था। जैसा क अब म अपने बल
शरीर, दरार से भरी चमड़ी, गंजे सर तथा भीतर क ओर धँसे गाल के साथ दखाई दे ता
था, उसे दे ख कर कोई भी अनुमान नह लगा सकता था क म कभी यो ा रहा होऊँगा। मै
तो अब सही तरह से पढ़ तक नह सकता था। वैसे अब यह सब कोई मह व भी नह रखता
था। म पचास से ऊपर हो गया था और करने के लए कुछ शेष रहा भी नह था। एक दन म
भी इसी तरह मृ यु के दे वता के पास चला जाऊँगा और चार लोग मुझे ले जा कर, दे ह का
अं तम सं कार कर दगे।

ऐसा नह था क म ऐसी या ा के लए ता से ती ा कर रहा था। य प म ायः ऐसी


इ छा कट कया करता था, परंतु म चाहता तो यही था क प नी मुझे इन श द के साथ
सां वना दे क अभी मेरी आयु ही या थी और म अभी इतना वृ नह हो गया था क
अपनी मृ यु क कामना करता र ँ। हाल ही म, मने ल य कया था क जब भी म कोई इस
कार क बात करता तो उसक ओर से कोई उ र ही नह आता था। संभवतः वह भी यही
चाहती थी क म और जी वत न र ँ। नःसंदेह उपाय तो बुरा नह था परंतु म मरना नह
चाहता था। म हमेशा-हमेशा जी वत रहना चाहता था।

जब म घर लौट रहा था तो मेरा यान सड़क से आ रही उस रोशनी क ओर चला गया,


जसके साए बड़े ही व च प म कट हो रहे थे। एक सुंदरी पास से नकली तो मने
उसक दे ह से आती सुगं ध को अनुभव कया। आसपास से मधुर संगीत सुनाई दे रहा था।
कुछ प रवार फुटपाथ पर ही रात बताने क तैयारी म थे। बेचारे लोग! संभवतः वे कसी ाम
या भारत क मु यभू म से थे। उ ह शी ही वहाँ से खदे ड़ दया जाएगा। वह जगह इतनी
यारी थी क वहाँ उन जैसे मूख को सोने के लए थान नह दया जा सकता था। म नद के
कनारे बने हाट को पार करते ए, अपने घर क तरफ बढ़ रहा था। हज़ार मसाल क सड़ी
व तीखी गंध मेरे ना सकापुट म भर रही थी। कानदार कान बंद कर रहे थे और कुछ सारा
दन क कमाई गनने म लगे थे। ऐसी कान के बाहर डेरा जमाने वाले ठग ने मुझे घूरा तो
मै हर संभव तरीक़े से आँख बचा कर नकलने लगा। फर म बाज़ार से बा ओर मुड़ा। सड़ी
स जयाँ व मछ लयाँ कचरे म पड़ी, गंधा रही थ । कुछ कु े कचरे म कुछ पाने क आस म
मुँह मार रहे थे। एक थोड़ा हचकते ए, मुझ पर भ कने लगा। मने य ही झुक कर प थर
उठाना चाहा। वह टाँग म म दबाते ए नकल भागा। इन दन केवल यही एक ाणी था
जो मुझसे सरलता से भयभीत हो जाता था।

र से, रावण का ग अभे व अजेय दखाई पड़ता था। मेरा पु न त प से अपने


वामी युवराज मेघनाद के साथ ही होगा। मूख कह का! पछले छह माह से उसे दे खा तक
नह था। यह याद करके दल को ब त कचोट आती थी क वह सही मायन म महल से ही
संबंध रखता था और म तो केवल उसका पालक पता था।

य द म पूण नद के तट पर अपने प रवार के साथ ही रह पाता तो कतना अ छा होता! काश


मेरी प नी व पु ी मेरे साथ जी वत होते! काश उन कमीने दे व ने हमारे नधन ाम पर
आ मण न कया होता! न त प से मेरा जीवन कह े व कह अलग होता! इसक
बजाय म एक राजा के सपन क पू त के लए लड़ा और अपने जीवन का अ धकांश े
भाग खपा दया ता क रावण सरीखे ठग संप ता, क त व अतुलनीय बल के साथ जी वत
रह सक। कतने खेद क बात है, मेरा जीवन कई तरह के पछताव से भरा था और पूरा
जीवन ही अपने-आप म एक प ाताप बन कर रह गया था। य प यह तस ली थी क कम
से कम मेरा पु तो भरपेट खा रहा था। वह एक युवराज के साथ, उसक भाँ त जीया परंतु
केवल उस वचार से मन को पूरा संतोष कहाँ था। केवल वही य ? मुझे भी वह सारा सुख
य नह मला? मने अपने मन क कड़वाहट को अनुभव कया और एक बार फर
जगमगाते राज ासाद को दे खा। तभी मुझे एक व च सा काश दखाई दया।

म वह थम कर, यान से दे खने लगा। ारंभ म यह कहना क ठन था क वह या था। मानो


कोई ग पर चढ़ रहा था। एक चोर? ऐसा कौन सा मूख चोर होगा जो असुर स ाट के महल
म सध लगाने का ःसाहस करेगा? य द जी वत पकड़ा गया तो उसक जीते-जी खाल
उतरवा ली जाएगी। मने कुछ ण क कर ती ा क क कोई हलचल हो रही थी या नह
परंतु चार तरफ स ाटा छाया था। संभवतः यह ताड़ी तो मेरी सोच से भी कह ताकतवर
नकली। म अपनी आँख फरा कर, अपने सारहीन तथा थ जीवन क ओर मुड़ने ही वाला
था, तभी मुझे वह दखाई दया।

जगमगाते राज ासाद क ाचीर पर वह एक परछा मा था अतः म उसका मुख नह दे ख


सका परंतु वह एक गठे ए शरीर वाला था और ग पर खड़ा, महल का नरी ण कर
रहा था। उसके कंध पर एक वशाल गदा थी। भला वह कौन हो सकता था?

तभी मुझे एक झटके से वानर-राज बाली का मरण हो आया। यह उस से मलता-


जुलता था परंतु वानर-राज को असुर स ाट के महल म चोरी- छपे वेश करने क कौन सी
आव यकता आन पड़ी? मुझे वे सब अफ़वाह भी याद थ , लोग का कहना था क महान
वानर-राज बाली तो कसी दे व शकारी के हाथ मारा गया था जसने कसी वृ के पीछे
छप कर, उस पर छल से तीर चलाया और उसके ाण हर लए। जब उस ने अपना
मुख घुमाया तो उसके कान म पहनी ई ब मू य बाली पर मेरी नज़र पड़ी। नह , वह बाली
नह था। तभी अचानक ही फुत से, जो क केवल वानर म हो सकती है; उस ने
छलाँग भरी और मने उसके भाव से, वृ के झुरमुट को हलते दे खा। जब म वहाँ तं भत
सा खड़ा था तो वहाँ क शू यता मुझे ही ताक रही थी। अभी-अभी कसी ने रावण के महल
म वेश कया था। म वहाँ मत खड़ा था। ‘ या मुझे कसी को सू चत करना चा हए? या
मुझे अपने घर जा कर चैन क न द सो जाना चा हए?’ अगर कसी ने राजा के महल म
वेश कया था तो उसक सरदद थी। इससे मुझे य परेशानी हो रही है? फर अचानक ही
मेरे म त क म वे छ वयाँ क ध ग , जब दे व ने छल से मेरे घर म वेश कया था और म
उसी माग से वा पस भागने लगा, जससे अभी आया था।

मुझे कसी ऐसे क तलाश करनी थी। जो इस वषय म कुछ कर पाता। म आस


संकट क बू को सूँघ सकता था। जब तक म शाही माग पर बनी कोतवाली तक प ँचा तो म
कसी कु े क तरह हाँफ रहा था। वहाँ जाते ही, मुझे भीतर जाने म संकोच होने लगा।
भीतर तेज़ काश वाली मशाल जल रही थी और चार सपाही सर भड़ाए पाँसे खेलने म
म न थे। एक मोटा नगर आर क मेज़ पर पाँव पसारे लंबी तान रहा था। एक कोने म ती ता
से जल रही मशाल के इद- गद म खयाँ भनक रह थ ।

“ ीमान!” मने पुकारा। वहाँ से कोई यु र नह आया। “ ीमान!” मने पुनः पुकारा। एक
सै नक ने अपना मुख ऊपर कया और उसके ने व फा रत हो उठे । मेरी टाँग काँप और म
संकु चत हो उठा। म कोई अपराधी नह था परंतु म नधन व भूखा था और यही सबसे बड़ा
अपराध था।

“ या चाहता है?” यह साफ़ था क उसे मेरी घुसपैठ पसंद नह आई।

“ ीमान! म… मने एक को दे खा…!”


“वह तो मने भी दे खा है।” वह अपने ही इस बुरे मज़ाक़ पर हँसने लगा और सरे भी उसके
साथ शा मल हो गए। कोतवाल ने आँख खोल । पल भर को झपकाई और फर से अपनी
तं ा म म न हो गया। म वा पस जाना चाहता था। राजा अपनी र ा वयं कर लेगा। यही
सोच कर म बाहर जाने लगा। “अरे सुन! तेरा इतना साहस! ऐसी बकवास करने के लए
यहाँ चला आया और अब वे छा से लौटने लगा?” एक र क च लाया।

“ ीमान! मने तो आपसे कुछ भी अनु चत नह कहा।” मने अपनी ओर से थोड़ा सा साहस
व श ाचार दखाया।

“ठहर तो, पलट कर जवाब दे ता है।” इसके बाद जो आ, वह तो ब कुल ही अनपे त


था।

एक ही झटके म वह आगे आया और मेरी टाँग के बीच ठोकर दे मारी। म वह ढे र हो गया।


ोध के आँसु , ल जा तथा पीड़ा ने मुझे अधमरा कर दया था। बाक लोग भी अपना
खेल छोड़ कर आगे आ गए। उ ह मेरे प म कह बेहतर मनोरंजन मल गया था। “ भखारी
कह के, कमीने, ये बता तू इस समय राजमाग पर या भाड़ झ क रहा था?”

मने अपने पर होने वाले अगले वार को बचाने का भरसक य न कया परंतु म बल था।
“ ीमान, ीमान! कृपया आप मेरी बात तो सुन। कोई राजा के महल म घुसा है।” मुख पर
ऐसा तमाचा आया क म चार खाने च रहा। फर अचानक वे थम गए। जब म उठा तो
पाया क कोतवाल खड़ा मुझे ही घूर रहा था। उसने मुझे बचे-खुचे बाल से ख च कर उठाया
तो म दद से तल मला उठा। फर उसने मुझे मेज़ क ओर धकेला, म भू म पर जा गरा। म
दे खा क उसक भारी-भरकम दे ह मेज़ पर पसरी थी। वह उसके भार तले चरमरा रहा था
और मने ाथना क काश वह मेज़ टू ट जाती।

“तू मुझे बता!” वह गरजा। म चुप रहा तो उसने एक तेज़ ठोकर दे मारी। फर मने अपना
राग अलापा। मने जो भी दे खा था, उसे बता दया। उसके माथे पर एक बल आकर ठहर
गया। वह कुछ चबाते ए, नरतर वचार करने लगा। फर उसने अपने सपाही से कहा,
“तुम जा कर महल ारपाल मुख को बता कर आओ।” फर कुछ सोच कर आगे कहा,
“इस आदमी को अंदर बंद करो। दे खो, कैसे नशे म धु है।”

बाक दो लोग मुझे एक कालकोठरी जैसे थान पर घसीट कर ले गए और कोने म फक


दया। उ ह ने वहाँ ताला लगाने क भी परवाह नह क और फर से खेलने लगे। जस
को महल भेजा जा रहा था वह बड़ी अ न छा से उठा और जाते-जाते मुझे कोसने लगा, मने
अपने-आप को कोसा क मुझे इतना राजभ बनने क या आव यकता थी। राजा अपने
महल के साथ या करता है, इस बात से मेरा कोई लेन-दे न नह है। म भी कतना मूख था।
एक और बेचारा जीव सरे कोने म बल बला रहा था। कोतवाल अपनी कुस पर वा पस जा
कर खराटे भरने लगा। मेरी दे ह जाने कहाँ-कहाँ से ख रही थी। मूख कह का! म वह बैठा
अपने भा य को कोसने लगा और अपनी अधीरता पर लानत भेजी, इसके बाद धीरे-धीरे मुझे
न द आ गई।

जब म जागा तो लंका धू-धू कर जल रही थी।


30 मृ यु का संदेशवाहक

रावण
बगीचे म हो रहे कोलाहल व चीख़-पुकार को सुन कर मेरी न द टू ट । लोग न े य यहाँ से
वहाँ दौड़ रहे थे। ारर क यहाँ-वहाँ भागते ए च ला रहे थे और एक- सरे को अपश द
कह रहे थे। महल म हज़ार मशाल जलने से रोशनी हो गई थी। मंदोदरी भी उठ बैठ और
मुझे सूचक नगाह से दे खने लगी। मने ार खोल कर दे खा क कुछ ारपाल बाहर, नीचे
बरामदे म झुक कर कुछ च ला रहे थे। म उनके पास प ँचा तो वे एकदम चौक े हो कर
खड़े हो गए।

“ये कोलाहल कैसा?”

धीरे से एक व र ारपाल आगे आया व णाम करते ए बोला, “महाराज! एक नर वानर


छल से महल के बाग़ म घुस आया है और वह उस दे व युवती से वातालाप कर रहा था। तभी
कुछ ारपाल ने उसे पकड़ना चाहा, उसने उनसे भयंकर यु कया और दो-तीन लोग को
गंभीर प से घायल करते ए, मृ यु के घाट उतार दया। अब वह वृ के बीच कह जा
छपा है।”

म तो तं भत रह गया। मेरे महल के बाग़ म कोई नर-वानर चोरी से घुस गया। यह बात तो
मेरी क पना से भी परे थी। म अपनी पु ी सीता के वषय म वचार करने लगा। वह उस
अशोक के तले सुर त नह थी। य प मेरे ारपाल उसके लए पहरा दे ते थे परंतु मने
अचानक ही एक व च सी ाकुलता अनुभव क । लगभग चार माह पूव, मने बाली वध के
वषय म सुना था। नर-वानर के राजा को राम ने मार डाला था। अब वानर का राज, बाली
के कपट व भाई सु ीव के हाथ म था। मुझे यह जान कर ब त खेद आ क मेरे दामाद
ने, बाली पर कस तरह वार कया था। वह एक वृ के पीछे जा छपा और वह से बाली के
दय पर ती ण बाण से हार कया। यह जान कर तो मुझ और भी भयंकर ोध आया क
जब राम ऐसा कर रहा था तो बाली उस समय अपने भाई सु ीव के साथ एक नरथक ं
यु म ल त था।

जी म तो आया क उस वानर राज को उखाड़ फकूँ और अपने म क मृ यु का तशोध ले


लूँ। मने तो अपनी सेना तथा नौसेना को भी वानर पर आ मण का आदे श तक दे दया था
परंतु जब मेरा पु सागर से ले कर श शाली हमालय तक, संपूण भारत उपमहा प पर
वजय ी ा त कर लौटा तो यु के त मेरा मोह कुछ समा त ाय सा हो गया। इसके
अ त र सु ीव मेघनाद के त न ा करने के लए सहमत हो गया था और वषा ॠतु
भी आरंभ हो गई थी। हमने अपनी योजना थ गत कर द परंतु य ही वषा ॠतु आरंभ ई,
वह कमीना सु ीव पुनः अपने छल-कपट पर लौट आया। मुझे पूरा व ास था क राम कभी
भी उन अनुशासन-हीन नर वानर क सेना के साथ कोई भी मूखतापूण अ भयान नह
छे ड़ेगा। यह तो साफ़ ही था क म कुछ आव यकता से अ धक आ मतु हो गया था। मेरे
महल के बाग़ म घुस आया वह नर वानर, इस बात का जीता-जागता माण था और मने
अपनी रद शता क कमी को कोसा।

यह एक आपातकालीन थ त थी। प रषद क सभा बुलवानी पड़ी। मने प नी से कहा क


वह अपने क का ार तथा वातायन बंद कर ले। वह मेरी इस असामा य सावधानी से थोड़ी
च तत दखी परंतु मने उसक उपे ा कर द और भड़ाम से ार बंद करते ए बाहर नकल
आया। म मेघनाद के क क ओर बढ़ा कतु वह तो खुला आ था। सभा म पया त काश
था, ारर क अपने थान पर थे और ब कुल सतक खड़े थे। मेरे मं ी बड़ी उ सुकता से
आपस म वचार- वमश कर रहे थे।

“युवराज मेघनाद कहाँ ह?” मने उन लोग के बीच अपने य पु का मुख तलाशते ए
पूछा।

“महाराज! वे प मी छोर पर गए, खोजी दल का नेतृ व कर रहे ह।” ह त ने उ र दया।

“सुर ा का आवरण तोड़ कर कोई भीतर कैसे आ गया?” मुख से ये श द नकलते ही मेरा
पारा सातव आसमान पर जा प ँचा। मने अपनी ही हथेली पर मु दे मारी और पूरी सभा म
स ाटा छा गया। “म अभी इसका उ र चाहता ँ।” म च लाया। जब यह गु सा अचानक
ही चता म बदलने लगा तो मने बेहतर अनुभव कया।

“वह उस समय प म दशा वाली द वार से, चोरी- छपे भीतर आ गया, जब हमारे हरी सो
रहे थे। उसने उनका वध कया और फर अशोक-वन जा प ँचा। उन ह रय के मृत शव
नाली म पड़े मले। उनके गले चीरे गए थे।” ह त ने हौले से कहा।

“ब त अ छे ! यह भी खूब रही। एक भी असुर ने इस को रावण के ग म वेश करते


ए नह दे खा? मेरे ह रय को उनक न द के दौरान ही मौत के घाट उतार दया गया। मेरे
पास पचास हज़ार से अ धक सपाही ह और एक इकलौता नर वानर न केवल महल म घुस
आया ब क अब भी कह बका आ है। तु हारी पहरेदारी तथा र ण व था के या
कहने!”

मने दे खा क ह त व जंबूमाली मेरा ताना सुनने के बाद, एक- सरे को आँख दखा रहे थे।

“महाराज! व तुतः एक म दरा के नशे म धु शराबी ने शाही माग पर बने थाने म यह


शकायत दज़ करवाई थी क उसने कसी को ग म चोरी से वेश करते दे खा है…।”

“परंतु उस समय उप थ त अ धकारी अपने थान से हलना नह चाहता था। उ ह ने कोई


क़दम नह उठाया और इस मामले क उपे ा क गई। या तुम मुझे इसके बाद यही बताना
चाहते हो?” मने खीझ कर कहा।

मेघनाद कहाँ था? मेरी चता बढ़ती जा रही थी। वह नर वानर कह भी छपा हो सकता था।
रा के घने अंधकार म, कसी भी वृ के पीछे से आया एक घातक बाण, मेरे पु का गला
चीर सकता था। यह एक ख़तरनाक खेल था। यह कोई नयम से लड़ा जाने वाला यु नह
था। पूरी सभा म एक व च सी ाकुलता छा गई। हम बाहर से आ रहे कोलाहल को सुन
सकते थे, लोग यहाँ-वहाँ भागते ए च ला रहे थे, तलवार के खनकने के वर आ रहे थे।
अचानक ही मने हष लास के कुछ वर सुने। सभी उस ओर दे खने लगे। वे कह रहे थे
‘रावण क जय हो… मेघनाद क जय हो!’ म उ सुकता के मारे खड़ा हो गया और सारी
सभा मेरे साथ उठ खड़ी ई। म चाहता था क भाग कर बाहर जाऊँ और दे खूँ क मेरा पु ,
मेरे लए या पुर कार ला रहा था परंतु म वह खड़ा रहा और स ता व याशा के साथ
अपने हाथ मलते ए, मन के उछाह को दबाने क भरसक चे ा क । जुलूस के आगे-आगे,
मेरे लंबे और गठ ले पु ने बड़े ही गव से सभा म वेश कया। उसने हाथ म बड़ी ढ़ता से
धनुष थामा आ था। सारी सभा ने ह षत हो कर जयजयकार क । असुर र क आसपास
नृ य करने लगे चड नगाड़ के सुर ज़ोर-ज़ोर से सुनाई दे ने लगे। म नीचे उतरा और अपने पु
को आ लगन म ले लया।

तभी मुझे उसके पीछे खड़ा एक लंबा, गठ ला व काला वानर दखाई दया। उसके हाथ व पैर
र सय से बँधे थे। उसक दे ह क माँसपे शयाँ फड़फड़ा रह थ । ‘मेरे पास भी युवाव था म
ऐसा ही सुडौल बदन आ करता था!’ मने अपनी त द पर हाथ फेरते ए सोचा।

वह लगभग मेघनाद जतना ही लंबा था। उसक पूरी दे ह पर काले बाल थे और काले
घुँघराले बाल, मुख के दोन ओर लहरा रहे थे। वह तो दखने म एक अजेय यो ा लगता था।
मुझे एक ही झटके म आभास आ क वह तो बाली से काफ़ मलता-जुलता था। मेरा म
बाली, जसक राम ने ह या कर द थी।

म नपे-तुले क़दम के साथ अपने सहासन पर जा बैठा। मं ी भी अपने थान पर लौट


आए। मेघनाद उस वानर के समीप खड़ा था और उसक तलवार तनी ई थी। मने अपने
हाथ के संकेत से चडवादक को वहाँ से जाने को कहा। सभा से अ य अमह वपूण य
को भी हटने को कहा गया। कुछ ण क चु पी के बाद, मने पूछताछ का सल सला आरंभ
कया। वानर ने पहले कुछ का कोई उ र नह दया। वह मुझे कसी हठ क भाँ त
घूरता रहा। उसका यह वहार तथा आ म- व ास दे ख कर मुझे ाकुलता अनुभव होने
लगी।

वह संसार के सबसे श शाली स ाट क सभा म था, उसे एक गु तचर के प म पकड़ा


गया था और उसके लए मृ युदंड से कम तो कोई वधान हो ही नह सकता था। फर भी वह
वहाँ कुछ इस तरह खड़ा था मानो बालक को कोई खेल खेलते दे ख रहा हो। मने उ र पाने
के लए ह त क ओर दे खा। वह उठ खड़ा आ परंतु इससे पूव क वह कुछ कह सकता,
वानर ने गहन गंभीर वर म अपनी बात आरंभ क ।

“म हनुमान ँ, मा त का पु ! म अपने राजा तथा संर क ी रामचं भु क ओर से


उनका संदेशवाहक बन कर आया ।ँ म चाहता ँ क मुझे वही स मान तथा त ा द जाए
तो एक राजा को सरे राजा के राज त को दे नी चा हए। मुझे पूण व ास है क असुर
स ाट, व ान तथा ानी यो ा-नरेश रावण भु, राजधम के अनुसार राज त के त
नभाए जाने वाले श ाचार से पीछे नह हटगे।” उसने एक मु कान के साथ अपना
वातालाप समा त कया जससे उसका पूरा मुख दमक उठा।

“ ी हनुमान! राज त अधरा को अपने संदेश नह दे त।े हमारे पास यह व ास करने के


लए सश कारण उप थत ह क तुम एक गु तचर हो और जस राजधम क तुम हाई दे
रहे हो, य द हम उसी राजधम का आ य लेते ए नी त क बात कर, तो एक गु तचर को
मृ युदंड दया जाना चा हए। और जहाँ तक हम जानकारी है, तु हारे वामी भी राजधम के
त कत न नह ह, तुम भी इस बात से सहमत होगे क आपस म ं यु म रत दो
यो ा म से एक पर, वृ के पीछे से छप कर, घातक हार करना और उसे कसी भी
कार क चेतावनी दए बना, उसके ाण हर लेना, कसी भी तरह से राजधम का अंग नह
है।” ह त ने ढ़ श द म कहा।

नर वानर थोड़ा असहज दखा। मेरे धानमं ी ने उसके ारा मनोवै ा नक े ता मा णत


व वरीयता था पत करने के यास क ध जयाँ उड़ा कर रख द । उसने एक और रणनी त
चली। “रावण महाराज! जब तक म इन र सय से जकड़ा र ँगा, म तब तक आपसे बात
करना अ वीकार करता ँ। मुझे यथायो य आसन द तथा मेरे बंधन खुलवा द, तब म आपके
सभी का उ र ँ गा।”

“इसे कालकोठरी म डाल दो। जब क इस वानर के काले शरीर पर अपने कारनामे


दखाएगा तो हम दे खे लगे क यह हमारे के उ र दे ता है अथवा नह ।” मने कहा और
सीधे हनुमान क आँख म झाँका, म दे खना चाहता था क यह बात सुनने के बाद उसके
भीतर भय जागृत आ या नह ? परंतु वहाँ कोई भय नह था। वह तो पूरी तरह से शांत व
सहज रहा। मेरे र क उसके पास गए व उसे कोह नय से पकड़ लया।
तभी मेरा भाई वभीषण कुछ कहने के लए उठ खड़ा आ। मने उसे दे खा व अपनी खीझ
को छपाने क चे ा क । “महाराज! जब कोई यह घोषणा कर दे ता है क वह कोई
गु तचर नह अ पतु एक राज त है और उसने कोई बड़ा अपराध भी न कया हो तो, हमारी
नी त यह कहती है क उसके साथ वही वहार कया जाना चा हए जो क एक राज त के
साथ कया जाता है।”

“काका ी!” मेघनाद गरजा। वह एक ण के लए भूल गया क वह सभा म खड़ा था।


“इसने हमारे दो र क को मौत के घाट उतारा है और पूरे बाग़ को तहस-नहस कर दया है।
यह एक गु तचर तथा अपराधी है। इसे उसी के अनु प दं ड दया जाना चा हए।”

“ या कोई सा ी है क हनुमान ने ही उन र क क ह या क है? जब तक उसका अपराध


मा णत नह हो जाता, तब तक उसे नद ष ही माना जाएगा। म नह कह रहा क उसे मु
कर दे ना चा हए। म केवल इतना चाहता ँ क कोई भी असुर स ाट पर यह आरोप न लगाए
क उ ह ने एक अस य वानर के साथ वहार करते समय, यथो चत राजधम का पालन
नह कया।” वभीषण ने अपना अं तम वा य पूरा करते ए, मेरी ओर दे खा।

“म यह परामश दे ता ँ क स ाट जैसा उ चत समझ, क़ैद के साथ उसी कार वहार


कर।” ह त ने अपने थान से उठ कर कहा।

‘ये असुर भी न! पूरे संसार म ऐसी कोई व तु या बात हो ही नह सकती, जस पर कोई दो


असुर सहमत ह गे। ये सदा तक- वतक म उलझे रहते ह और हठ म आकर, अपने तरीक़े से
काम करने पर बल दे ते रहते ह।’ मने कसी बु मान मूख क भाँ त उन दोन को ही संतु
करने का नणय लया। “पहले इसे खोल दो! फर हम दे खगे क इसके साथ या कया
जाना चा हए!”

“परंतु पता ी!…” मने मेघनाद को एक ती ू-भंग से शांत करवा दया और र क धीरे-
धीरे हनुमान के बंधन खोलने लगा।

य ही वे र सयाँ खुल , हनुमान बोला, “म, मा त पु हनुमान, क कंधा नरेश वानर राज
सु ीव का मं ी तथा अयो या के राजकुमार रामचं जी का सेवक, महान श शाली स ाट
लंके र को अपने वामी भु रामचं क ओर से मै ीपूण परामश दे ना चाहता ँ। आपने
उनक ववा हता प नी तथा अयो या क रानी का अपहरण करके ब त अनु चत कया है
तथा उ ह अपने यहाँ बं दनी बना लया है। मेरे वामी आपसे वनती करते ह क आप पूरी
मान-मयादा स हत उनक प नी उ ह लौटा द और उनसे मायाचना कर ल। य द इस
परामश क उपे ा क गई तो मुझे पूरा अ धकार दया गया है क म अपने वामी क ओर
से, लंका व असुर के साथ यु आरंभ होने क घोषणा कर ँ । हम वचन दे ते ह क य द
ऐसा आ, तो हम असुर का दमन कर दगे, तु हारी पापमयी नग रय को धूल के हवाले कर
दगे तथा अपनी रानी को मु करा लगे।”

वहाँ एक कोलाहल व उप व सा होने लगा। एक ही ण म सैकड़ तलवार अपनी यान से


नकल कर चमक उठ । मेघनाद ने अपनी तलवार क धार, उस धृ तथा अस य वानर क
ीवा से सटा द । यह तो अपमान क सीमा ही पार हो गई थी। इस वानर का इतना साहस
क यह दरबार म आकर असुर स ाट को चुनौती दे गा? इसने अधस य वानर के पय कड़
नरेश के नाम पर, यह सब कहने का ःसाहस कैसे कया? इसक इतनी मजाल क इसने
एक मणशील शकारी के नाम पर, संसार के सबसे श शाली स ाट को ललकारा? इसने
इतना साहस कैसे कया क यह मेरी ही सभा म, सबके बीच मुझे य प से चुनौती दे
रहा है?

इसे प थर मार-मार कर, मौत के घाट उतार दया जाए!” म गरजा और मेरे साथ ही पूरी
सभा गरज उठ । वह अपने लए नयत दं ड सुनने के बाद भी वह अडोल खड़ा रहा मानो
उसे कोई अंतर ही न पड़ा हो।

“ कतु भाई, या यह अ धक अ छा वक प नह होगा क हम इसे अपना संदेश दे कर


वा पस भेज? इसके वामी को भी पता चले क य द उसने लंका क ओर आँख भी उठा कर
दे खा तो उसे यहाँ से मुँहतोड़ जवाब दया जाएगा। य द हमने इसक यूँ ही ह या कर द तो
हम इसके वामी तक अपना उपयु उ र प ँचाने के अवसर से वं चत रह जाएँग।े संभवतः
यह भी हो सकता है क हम इस अनाव यक यु को टाल सक। हम कह सकते ह क हम
राम क प नी को तब तक बंधक बना कर अपने यहाँ रखगे, जब तक वह हम अपना नृशंस
व आततायी अनुज ल मण नह स प दे ता ता क हम उसे हमारी बहन का अपमान करने के
अपराध म उ चत दं ड दे सक।”

“यह कह तो सही रहा है!” मने सोचा व वभीषण क ओर दे खा परंतु म अब भी वानर ारा
कए गए अपमान से अब भी भीतर ही भीतर उबल रहा था।

ह त उठा, मेरी ओर मुड़ा व बोला, “महाराज! इससे पूव क हम हड़बड़ाहट म इसका वध


कर द अथवा इसे वा पस भेज, हम इस भ पु ष से कुछ सूचना व जानकारी नकलवानी
चा हए। म आपसे वनती करता ँ क आप मुझे ी रामचं के इस आदरणीय राज त से
गत पूछताछ का स मान दान कर।”

म अ नणय क थ त म था। उस समय तो दय म केवल यही इ छा थी क कसी कार


हनुमान से अपने अपमान का तशोध लू।ँ भला ऐसा कैसे हो सकता था क वह मेरी ही
सभा म आकर, मुझे ही अपमा नत करे और बड़े ही आराम से चलता बने। इस बार भी
वभीषण ने ही म य माग सुझाया।

“इसके शरीर को दाग दया जाए।” वभीषण ने सादा श द म अपनी बात रखी। गम लोहे
क सलाख से कसी के शरीर को दागना, असुर का युग पुराना अ यास रहा था। यह ब त
ही पीड़ादायी तथा अपमानजनक दं ड था। शरीर पर थायी नशान पड़ जाते और वह
अपने शरीर पर इस अपराध व ला न के च ह को अपनी क तक साथ ले जाता। वह च ह
पूरे संसार म यह उ ोषणा करने के लए पया त था क उस ने कोई ब त बड़ा
अपराध कया था और उसके शरीर पर उसक असफलता तथा ला न के च ह को जबरन
बना दया गया था ता क पूरा संसार उसे दे ख कर ध कार सके। मने इस वषय म जतना
सोचा, मुझे यह वचार उतना ही पसंद आने लगा। यह वानर अपने वामी के पास लौटे गा तो
इसके शरीर पर रावण ारा दागने का नशान होगा… मुझे इसे कहाँ दगवाना चा हए?…
इसक चौड़ी छाती पर?… इसके गठ ले पेट पर…? या फर इसक चौड़ी पीठ पर?

“इसके व उतार दो तथा पूँछ पर दागो।”

महाराज! म आपको सुझाव दे ना चा ँगा क हम ऐसे बबर व नृशंस कृ य को बंद कर दे ना


चा हए। हम इसके साथ एक गु तचर क तरह पेश आना चा हए और उसी के अनुसार बताव
करना चा हए। हम ऐसा नीच वहार शोभा नह दे ता।” ह त ने एक बार फर अपने
खझाने वाले श द से वार कया।

“इसक पूँछ म आग लगा दो। इसे तब पता चलेगा जब उठते, चलते, बैठते या लेटते समय
नरंतर पीड़ा सालती रहेगी। इसे पता तो चले क एक असुर स ाट का अपमान करने का
या दं ड हो सकता है?” म अपनी सभा से उठ रहे हष लास के वर के बीच फूल उठा और
नराशा के साथ अपना सर हलाते ह त को पूरी तरह से उपे त कर दया।

मेरे र क क को बुलाने भागे। कोतवाल मुख अपने सहायक के साथ आया तथा णाम
कया। हनुमान तब भी न े खड़ा रहा। यह तो ब त ही कठोर वानर था। म ण- त ण
और भी ो धत होता जा रहा था। क के दागने के लए सीसा तथा धधकती अ न
ले कर तुत थे। तभी कुछ ऐसा घटा, जसके बारे म कसी ने वचार तक नह कया था।
नर वानर ने ब त ही आसानी से अपने पेट व टाँग के आसपास लपट र सयाँ तोड़ द और
ऐसी ठोकर मारी जससे मेघनाद के हाथ म पकड़ी तलवार र जा गरी। एक ण के लए
तो सभी त ध रह गए। वानर यो ा के लए यही ण पया त थे। उसने अपने र सय से
बँधे हाथ जलती अ न म झ क दए जससे उसके बंधन खुल गए। फर, उसने अपने हाथ
मु होते ही उस वशाल पा को उठा लया, जसम सीसे को पघलाया गया था और उसे
मुझ पर दे मारा। म तो सर झुका कर बच गया परंतु वह पा सहासन के पीछे लगे रेशमी
पद से, ज़ोर से टकराया और उनम आग लग गई। म एक ही झटके म वहाँ से भागा य क
पूरे मंच पर आग लग गई और वह धड़ाम से नीचे आ गरा। फर मेरी सारी सभा जलने लगी।
चार ओर कोहराम छा गया। हनुमान ने क को आग म धकेल दया। बेचारा कोतवाल
मुख बुरी तरह से जलने लगा, जब तक उसके उसे आग से नकालते व उसे
संभालते, तब तक हनुमान लकड़ी के कुछ जलते ए ल े ख च चुका था और उसने मेरे
महल म आग लगा द । र क भयभीत ख़रगोश क तरह भागने लगे। कुछ लोग मेरे बचे-
खुचे सहासन पर पानी डाल रहे थे। म व कोलहाल के इसी वातावरण के म य हनुमान
बच कर, नगरी क ओर नकल गया। उसने दोन हाथ म जलते ल े पकड़े ए थे। केवल
ह त म ही उस समय इतनी त काल बु बची थी क उसने अपनी कटार, उस आततायी
पर दे मारी परंतु वह नशाना चूका और कटार, सभा के ार से एक तेज़ व न के साथ टकरा
कर रह गई। मेघनाद भी त ण उसके पीछे भागा पर जलते तंभ के टु कड़े गरने से उसक
ग त भी मंद हो कर रह गई।

और म, एक कायर होने के नाते, मने मेघनाद को भी वा पस बुला लया। वानर को तो कभी


भी पकड़ा जा सकता था परंतु उस समय तो हमारा महल जल रहा था। यह सब कसी
ः व से कम नह था। चार ओर भय तथा अराजकता का वातावरण था। म अपने भाई
तथा पीछे आ रहे अ य लोग के साथ अंतःपुर क ओर भागा, जहाँ महल क याँ रहती
थ । क च ला रहा था ता क अपने य को थोड़ा काबू म कर सके परंतु सभी र क
उसके आदे श को अनसुना कर अपने ाण क र ा के लए भगदड़ मचाए ए थे। एक
बड़ा सा जलता आ ल ा हमारे ठ क पास आकर गरा और बस हम मरते-मरते बचे। वह
वहाँ धरती पर पड़ा कसी जी वत ाणी क तरह फुँफकार रहा था। चार ओर जो गम फैल
गई थी, उसक तो कसी ने कभी क पना तक नह क थी। चार ओर धुएँ के गहरे बादल
छाए थे। मने ठोकर मार एक वातायन के पट खोले और बाहर छलाँग लगा द , म सीधा बारह
फ़ट नीचे स त धरती पर जा गरा। मेरे टखन म दद होने लगा परंतु मने भागना जारी रखा।
म अपने अंतःपुर से उठती चीख़ के वर सुन सकता था। अ न ने मेरी सभा को लगभग
जला कर राख कर दया था और बड़ी तेज़ी से आसपास के भवन को वाहा करने के लए
बढ़ जा रही थी। और मेरे आगे, मेरी अपनी ही नगरी जल रही थी। लपट कुछ ही ण म
फूस क बनी छत को लील जात । आतंक व मृ यु से भरी हज़ार चीख़, पूरे आकाश म
त व नत हो रही थ । लोग-बाग़ अपने घर से नकल कर भाग रहे थे। कुछ बहा र लोग
इस अ न से लड़ने का य न भी कर रहे थे परंतु उ ह इसके आगे घुटने टे कते दे र नह लग
रही थी। वायु म चार ओर जलते माँस, लकड़ी तथा व क गंध फैली थी। अ अपने
अ तबल से नकल कर, सड़क पर द वान क तरह दौड़ते फर रहे थे और अपनी राह म
आने वाले येक को कुचल रहे थे। म अपने अंतःपुर क ओर भागा। मेरी प नी वहाँ
थी, मेरे पु वहाँ थे। मुझे उनके ाण क र ा करनी थी। परंतु लपट क ग त तो मुझसे
कह अ धक ती नकली। महल क पूरी छत ने आग पकड़ ली थी। चीख़ कर नदश दे ने
तथा पुकारने से मेरे गले का सुर फट गया था परंतु वहाँ सुनने वाला था ही कौन? ‘मेरे
अंगर क कहाँ गए? मेरी सेना कहाँ थी? मेरे मं ी कहाँ थे?’ म असहाय खड़ा अपने महल
को धू-धू कर जलते दे खता रहा।

तभी मने दे खा क एक वशाल अ ेत दे हाकृ त बड़ी नममता से जलते ए अंतःपुर क ओर


बढ़ती जा रही थी। मने उस मूख को वहाँ जाने से रोका परंतु उसने धधकती अ न म
छलाँग लगा द और वहाँ से अलोप हो गया। म साहस के इस अतुलनीय दशन को दे ख
भ च का रह गया। ‘संभवतः वह कोई सर फरा रहा होगा।’ इस समय तक, मेरे कुछ मं ी
तथा ह त आ द भी वहाँ आ प ँचे परंतु मेरे मुख से एक श द नह फूटा। क भी थोड़ी
सी व था कायम करने म सफल रहा और उसके आग बुझाने म जुट गए। महल का
एक अंश पूरी तरह से जल कर राख हो चुका था और ऐसा लगता था क कम से कम महल
के पूव ह से क आग पर तो काबू पा लया गया था परंतु अंतःपुर म तो अब भी आग क
लपट धधक रही थ और मने तय कया क अपने प रवार क दशा के वषय म वचार नह
क ँ गा।

आग का सामना करने के लए करीब साठ हाथी लाए गए। तभी वह बड़ी सी काली आकृ त,
जो आग म कूद थी। उसने महल के पहले तल से छलाँग लगाई और बाग़ म आकर लुढ़क ।
मने दे खा क उसने अपनी पीठ पर मेरी रानी मंदोदरी को लादा आ था। हम उस क
ओर दौड़े। जब हम वहाँ प ँचे तो मने उसे एक ही झटके म पहचान लया। वह तो कोई और
नह , मेरा अवैध पु अ तकाय था। वह रानी को अपनी पीठ से उतारने के लए हाथ-पैर मार
रहा था। मने दे खा क उसका हाथ बुरी तरह जल गया था परंतु इससे पूव क म कुछ कह
सकता। अ तकाय फर से जलते ए महल म भाग गया।

इस बार, र क का एक पूरा दल उसके पीछे गया। आग का रोष थोड़ा शांत हो गया था


परंतु यह अब भी ख़तरनाक थी। महल के भीतर धीरे-धीरे आग नयं त हो रही थी परंतु
महल के बाहर, अब भी वह भभक रही थी। मने मन ही मन यान कया क मेघनाद तथा
जंबूमाली महल से बाहर जा चुके थे ता क नगर म आग बुझाने क ग त व धय को नद शत
कर सक। क ने उस नर वानर क तलाश नए सरे से आरंभ कर द थी जसने इतनी सुंदर
नगरी व महल को खंडहर म बदल कर रख दया था। परंतु म तो उस समय कसी भी तरह
के तशोध या दं ड के कसी भी वचार से कह परे थ। व तुतः म इन घटना के ऐसे
भयंकर आघात से सु पड़ गया था। रानी के वषय म ब त चता सता रही थी। र क
अंतःपुर से शरीर नकाल रहे थे। कुछ लोग जी वत थे परंतु गंभीर प से जल चुके थे अथवा
अचेत थे। कुछ लोग को आग ने ऐसा वकृत कर दया था क उनके मुख तक नह पहचाने
जा सकते थे। मृतक क पहचान तक करना क ठन था।

मेरी रानी ने धीरे से आँख खोल । मने उसे अंक म भर लया। म अपने अ ु को वश म न
रख सका परंतु उसने मुझे पीछे धकेला तथा खड़े होने क चे ा क । “अ य! मेरा अ य
कहाँ है?” वह हौले से बोली। मने आसपास दे खा। मेरा छोटा पु कहाँ था? आठ वष य
अ य कुमार कहाँ था? म बदतर क क पना से भयभीत हो कर उठ खड़ा आ। मेरे पास
इतना साहस नह बचा था क म अपनी प नी का सामना कर पाता।

ह त झुका और र क को बुला कर, उनके कान म कुछ फुसफुसाया। वे महल क ओर


भागे परंतु मने दे खा क येक मुझसे नज़र मलाने से क़तरा रहा था। मने अपने-आप को
धीरज बँधाया क मुझे अपनी ह मत नह हारनी। शव मेरे पु के सहाय ह गे। म अपने मन
को यही आस बँधाता रहा। म आदे श पर आदे श दे ने लगा। ‘यहाँ दे खो… वहाँ दे खो।’ जाने
या- या बके जा रहा था! म जानता था क यह सब थ था परंतु म कुछ करना चाहता
था। मेरे पीछे से वलाप का वर सुनाई दया पर मुझम मुड़ कर दे खने का साहस नह बचा
था। कसी ने मेरे कंधे पर दलासा से भरा हाथ रखा परंतु इससे मुझे कोई दलासा नह
मला। म ब त गु से म था। म उस ं दन तथा उसके पीछे छपे कारण, दोन को जानता था।
परंतु तभी मेरा ोध जाने कहाँ हवा हो गया और म कसी फटे चीथड़े क तरह ढे र हो गया।
गम राख से भरी धरती, मेरे मुख से टकराई। म वहाँ च पड़ा था, चेहरे से र टपक रहा था
और अ ु मेरे ही र म घुल- मल गए थे। म अपने आसपास पदचाप तथा आहट सुन
सकता था। मेरे मेरे नकट आने से भयभीत थे। हो सकता है क वे मेरे ःख को मान
दे रहे ह ।

रावण का ःख उनका अपना ःख था। मुझे अपना ःख इस उदासीन तथा ू र जगत से


य बाँटना चा हए? मेरा ब चा, मेरा न हा राजकुमार, कसी मुग क तरह आग म जी वत ही
भुन गया था। नह , म अब उसे दे खना भी नह चाहता। म उसक अं तम मृ त के प म
उसक भोली, सुंदर व न ल मु कान को ही याद रखना चाहता ँ। उस न ही जान ने इस
गंभीर तथा नदयी संसार म अपनी मासू मयत, संसार के त अपनी ज ासा व आकषण से
इतना रंग भर दया था क मुझ जैसे नृशंस के लए इसे सहन करना सरल हो गया था, वह
सब कुछ छ न लया गया। म लड़खड़ा कर खड़ा हो गया। मने दे खा क मेरी प नी कसी को
बुरी तरह से पीट रही थी। कुछ लोग उसे अ तकाय से परे हटाने क चे ा कर रहे थे। ‘तुमने
केवल मुझे ही य बचाया… तुम उस ब चे को वहाँ कैसे छोड़ सके, जो उस समय, मुझ पर
हाथ रखे वह सो रहा था? या तुम कसाई हो… तुम ह यारे हो…!’

उसने पूरी श से उस द घकाय को झकझोर दया। वह वह ल जा तथा ला न से


अपना सर झुकाए खड़ा रहा। या फर वह मंदोदरी के ऐसे वहार से ु था? उसने अपने
ाण पर खेल कर मंदोदरी क ाणर ा क थी और वह उस पर यह आरोप लगा रही थी
क उसने उसक बजाय उसके पु क ाण र ा य नह क ? कौन जाने अ तकाय के मन
म या चल रहा था? म नह जानता था और न ही मुझे इसे जानने क परवाह थी।
अ तकाय, उसका गु सा अथवा ला न, मेरे लए कोई मह व नह रखते थे। मने हाल ही म
अपनी संतान खोई थी। म उन मृत दे ह क ओर बढ़ता चला गया जो मेरे कभी हरे-भरे रह
चुके बाग़ म, कतार लगाए पड़ी थ । भयावह आकृ तयाँ मेरी ती ा म थ । म चलता रहा
और अंत म उस न हे शव के पास प ँच गया।

र क ने झुक कर णाम कया परंतु य द उ ह ने मेरे मुख पर थूका भी होता तो संभवतः


मुझे कोई अंतर न पड़ता। मने कोयला बन चुक दे ह को अपने अंक म भर लया। वह न हा
सा चेहरा कोयले जैसे काले पड़ चुके मुख से मुझे ही ताक रहा था। मेरा पु मानो मेरी हर
बात का उपहास कर रहा था; मेरा झूठा अ भमान, मेरा जीवन, मेरी उपल धयाँ, मेरा
अहंकार! म इसे जानता था और नय त व दे व से ु था, ज ह ने मेरे साथ ऐसा कया।
मेरे अनुचर मेरा भार लेने के लए दौड़े आए, परंतु मने इंकार कर दया। यह मेरा भार था
और इसे मुझे अकेले ही उठाना था। या संसार म कुछ भी मेरे पु से बढ़ कर था? या मेरा
रा य मेरे पु के ाण से बढ़ कर था? मने एक संतान क र ा के लए सरी संतान का
ब लदान कर दया था। म उ ह लोग के लए तबाही का संदेश ले आया, जो मुझे अपना
र क मानते थे।

फर, उस रात के दमघ टू अंधकार म, मने अपनी पु ी का नमम हा य सुना। ‘रावण!


असुर, तू यही सब पाने का अ धकारी था। तू और तेरी जा इसी तरह मेरे प त, अयो या के
राम के हाथ नममतापूवक मृ यु पाएँगे।’

म इसका ही अ धकारी था, मेरी पु ी? म इसका अ धकारी था? मने तु हारे लए छोटे भाई
का ब लदान कर दया। म सब कुछ हार सकता ँ परंतु म तु हारे लए हमेशा खड़ा र ँगा।
एक बार तु ह यागा था पर अब ऐसा कभी नह होगा। जब तुम अपने पता के संर ण से
बाहर जाओगी, तु ह उसी ण समझ आ जाएगा क तु हारा प त कैसा है। परंतु बड़े खेद से
कहना पड़ता है, य पु ी! तब तक ब त दे र हो चुक होगी। म इन सभी बात को चीख़-
चीख़ कर सीता से कहना चाहता था परंतु अब मेरे भीतर श नह रही थी। म अकेला ही
चल दया। हाथ म न हे राजकुमार के शव को उठा रखा था और म गहरी रात के अंधकार म
चलता चला गया। संभवतः वहाँ मुझे कुछ सां वना मल सके, कोई ऐसा जो मेरे अ ु प छ
सके, जहाँ म वयं को अंधकार क गोद के हवाले कर सकूँ। म चलता गया, मेरा न हा मृतक
पु बड़ी शां त से मेरी भुजा म सो रहा था।
31 मेरे नगर को जलने दो


पूरा नगर धू-धू कर जल रहा था। राजा के सपाही ओझल हो गए थे और कोतवाली के
बाहरी ह से म आग लगी थी। मेरे भाग नकलने का माग बंद था और आग कसी भी समय
मेरे कारागार क तक आ सकती थी। गाढ़ा व काला धुआँ भीतर घुस आया। म दम घुटने के
कारण बेतरह खाँसने लगा। म तो जाल म फँस गया था। मने उस आग म से नकल कर
भागना भी चाहा पर जैसे ही आग क गम लपट ने छु आ तो मेरी सारी ह मत वह टू ट गई।
ास लेना भी भर था। म नह जानता क या करना है। भले ही म बच गया था। परंतु इस
बार म पूरी तरह से न त नह था। नारंगी चीभ वाली आग क लपट, अपनी राह म आने
वाली हर व तु को लील गई थ । छत का एक ह सा ढह गया और नीला आकाश भीतर ही
घुस आया। धुआँ नकलने से वातावरण थोड़ा साफ़ दखने लगा।

मने द वार फाँदने क चे ा क परंतु ऐसा कुछ नह दखा जसे पकड़ कर उस पर चढ़ कर


कूद पाता। दरोग़ा क मेज़ पर छत का एक शहतीर आ गरा और वह भी जलने लगी। मने
उसे हटाने क चे ा क और ब त दे र तक ख चतान करने के बाद सफल रहा। मने उसे उठा
कर, द वार पर दे मारा। गम शहतीर से हाथ जल रहे थे परंतु उस समय मुझे जलन का कोई
एहसास नह हो रहा था। वह सब तो बाद म पता चला। म ेज पर चढ़ा और फर द वार से
कूद कर, अपनी जान बचा कर भागा।

बाहर तो और भी अराजकता फैली थी। घर, कान तथा सड़क पर सब कुछ, आग क


लपट म घरा था। म कुछ ही री पर जल रहे महल को भी दे ख सकता था। म अपने घर क
ओर भागा। आग ने बना कसी भेदभाव के, सबको लील लया – ा ण, शू , दास, नाई,
ापारी, नशेड़ी, पं डत, ारपाल, जुआरी, वे याएँ, वृ ाएँ, शशु, संत तथा सड़क पर
आवारा घूमने वाले, आग ने सब को समा त कर दया था। आकाश मं मानव दे ह जलने क
तीखी गंध फैली थी। कई लोग भीड़ म कुचल कर मारे गए। कुछ लोग अधमरे हो चुके थे।
कुछ लोग आग बुझाने के यास म थे। कुछ लोग अपनी संप तथा यजन के वयोग म
वलाप कर रहे थे। म उन सड़क पर दौड़ा, जहाँ मृ यु ने अपना तांडव रचा था। म भयभीत
व भूखा था परंतु फर भी म भागता ही गया। म नह जानता क य व कैसे परंतु जब म
मु य माग को याग कर, छोटे घर क ओर गया तो वहाँ पाया क अ न ने कोई अ धक
हा न नह प ँचाई थी।

लोग अपने घर से बाहर नकल चुके थे और अवाक् हो कर, उन गगनचुंबी लपट को दे ख


रहे थे, जो हमारे पूरे नगर को लील रह थ । कई लोग ने मुझे रोक कर यह पूछना चाहा क
वहाँ हो या रहा था? मने भागना जारी रखा। म तो बस अपने घर प ँचना चाहता था ता क
राजा , महल , गु तचर तथा उनके भयंकर कृ य से र जा सकूँ। नगर को जलने दो, ी-
पु ष को जलने दो। म अपने घर म सुर त होना चाहता था। जब तक म अपनी गली तक
प ँचा, यह सब कसी ः व क भाँ त लग रहा था। वह चु पी केवल कुछ आवारा कु के
भ कने से ही टू ट रही थी, जो हमारी ग लय म भरे ए थे।

य ही म घर प ँचा तो अपने घर के दरवाज़े को खुला दे ख ठठक गया। मने हौले से भीतर


क़दम रखा और पुराने काठ के उस दरवाज़े से हो रही ककश व न को पूरी तरह से अनसुना
कर दया। म म रोशनी म खराटे भरती प नी क परछा दखी, जो नगर म मृ यु का तांडव
रच रहे अ नकांड से अन भ सुख न ा म म न थी। मने उसे कोसा और अपने पलंग पर जा
प ँचा। तभी मने कसी को अपने ब तर पर सोया पाया। म व मत रह गया। अ न क
लपट म घरे नगर क ह क रोशनी भी उस आकृ त का प रचय नह दे पा रही थी। मने
अपनी कमर म बँधी कटार पर हाथ मारा तो वह वहाँ नह मली। म इतना भयभीत हो गया
था क हल भी नह पा रहा था। “बाबा…।” वह वर कं पत आ।

“कौन…?” मने काँप कर पूछा

“म अ तकाय ँ…।”

“ य … तू मूख… तू… तू।” म उस आकृ त क ओर बढ़ा, जो अब पलंग पर बैठ चुक थी।


मने उसका सर अपने हाथ म भर लया। “मने राजकुमार को मार दया… मने उसे मार
डाला…।” “ या…?” इस मूख ने भला या कर दया था, या वह राजकुमार मेघनाद को
मार आया था?

अब या होने वाला था? म आशंका से भयभीत हो उठा। ‘ या पूरी सेना हम खोज


नकालेगी?’ मेरी प नी उठ बैठ और असंगत लाप करने लगी। म उस पर च लाया तो वह
कातर हो कर सकुड़ गई। मने अ तकाय को पकड़ कर झकझोर दया और उसके मुख पर
एक करारा तमाचा दे मारा। “मूख! तू न द से उठ बैठा है और जाने या- या बक रहा है…
बेअ ल गँवार कह का!”

फर मने टु कड़े-टु कड़े कर, सारी बात के सरे जोड़ने क को शश क । पहले तो मुझे यह
जान कर तस ली ई क मेरा यह गँवार लड़का, कसी भी प म, छोटे राजकुमार क ह या
के मामले म ल त नह था ब क वह तो एक नायक था जसने रानी क ाण र ा क । तब
मेरा मन ता से भर उठा। ‘न तो राजा और न ही उसके आसपास, सदा पूँछ हलाते घूमते,
वे गौर वण चाटु कार, हम जैसे लोग के साह सक काय को य दगे, कभी हम अपनी
वीरता का ेय नह लेने दगे। हम जैसे साधारण य ारा कए गए नः वाथ काय के
लए, कभी कोई भाँड या क व शंसापूण तु तगान नह करेगा। अब छोड़ो भी भाँड को,
उनक परवाह भी कसे है?’

मने मेरे पु के साथ मगजमारी कर रही प नी को, उनके हाल पर छोड़ दया। बाहर, पूव
दशा म आकाश पर, सूयादय क ला लमा आ रही थी और उधर प म म आग क लपट ने
आकाश को र ाभ कर दया था। म अंगड़ाई लेता आ, नद क ओर चल दया और वचार
करने लगा क उस नर-वानर को हमारे नद ष ब च , ी व पु ष तथा सुंदर महल को आग
के हवाले करके या मला। नद के सरे छोर पर थत, मशान क ओर अं तम सं कार के
लए जुलूस नकलना आरंभ हो गया था। म उस या ा म शा मल लोग के चेहरे तो नह दे ख
सका परंतु म उनके अ ु स ने तथा मुख क क पना कर सकता था। य ही पहली
चता जली और गाढ़ा धुँआ आकाश म उठने लगा तो म वर भाव से दे खने लगा। फर म
अपने घर के क चे आँगन म जा कर बैठ गया और अपने जलते ए नगर पर छाए धुएँ के
बादल को दे खता रहा। इसके अ त र और कर भी या सकता था?
32 शां त का संदेशवाहक

रावण
ह त ने ही मुझे बाहर आकर, नगर पर एक नज़र डालने के लए ववश कया। मुझे उस
समय उस पर ब त ोध भी आया परंतु उसका आ ह जारी रहा। उसने कहा क एक राजा
के प म, मेरा कत बनता था क म अपनी जा क दे ख-रेख क ँ और यह जानूँ क वे
कन क तथा प र थ तय के बीच घरे थे ता क म त काल उनके क घटाने के लए कोई
य न कर सकूँ। म उस पर च लाया और यहाँ तक क उसे पद युत करने व धड़ से सर
अलग करने क धमक भी द परंतु वह अपनी बात पर अड़ा रहा और कुछ भी कहने क
बजाय, केवल कोमल वर म यही समझाता रहा क मुझे अपना कत नभाना चा हए।
अंततः उसने मुझे मना ही लया और मने उसे कोसते ए, साथ चलने क सहम त दे द ।

मने दे खा क मेरे कारण मेरे नाग रक कतने घोर क व यं णा सह रहे थे। म ह त के साथ
सादे वेष म था और कह से भी, कोई राजा नह दख रहा था। म भी तो उनक तरह एक
आम आदमी था जो इस संताप को झेल रहा था। घर म ःख का सा ा य था, सड़क पुराने
चीथड़ व टूू टे काठ-कबाड़ से भर थ । अलग-अलग कोन म कचर के ढे र जमा थे, ज ह
दे ख कर लगता था मानो मानव अवशेष का ढे र लगा हो। कई भवन ढह गए थे और टू ट
द वार काली पड़ गई थ । कई घर म तो खड़ कयाँ अथवा चौखट ही शेष रहे और पूरी क
पूरी छत उड़ गई थ । कुछ भवन म केवल तंभ ही शेष बचे, जो बलबलाते धुएँ के बीच खड़े
दख रहे थे। उ ह दे ख कर ऐसा लगता था मानो कोई संबंधी अपने य के अं तम सं कार के
समय, ःखी मन से आसपास खड़े ह । ी व पु ष कोन म खड़े थे, वे इस वनाश, हा न
तथा अक मात आई वपदा को दे ख कर जड़ हो गए थे। मुझे कई कोन से सुबकने क
आवाज़ सुनाई द और एक मोट द वार वाले घर से वलाप के वर भी सुनाई दए, जो
लगभग गरने के कगार पर था। पशु के अधजले कंकाल सड़क पर बखरे थे। यह सब
दे ख कर जी मतला रहा था। म अपने राजमहल म लौटना चाहता था ता क इस अमानवीय
यं णा व क के य से मुँह छपा सकूँ। मने भी अपना छोटा पु खोया था परंतु इन य
क तुलना म तो वह कुछ भी नह था।

परंतु अचानक ही अपने खोए ए पु का वचार मन म आते ही मेरे ःख का बाँध टू ट गया।


मने वनती से भरी के साथ ह त को दे खा परंतु वह तो अपने ही वचार म म न था। म
अपने अ ु को रोकने म असफल रहा और साथ ही मुझे उस नर-वानर, ह त, इस सारे
संसार पर भी ोध आया, ज ह ने मुझे इन प र तय म ला पटका था। परंतु म इतना
व मत था क क़दम तक नह उठ रहे थे। सड़क पानी व क च से भरी थी जो मेरे व
तथा पैर म पहनी पा का से भी चपक गई थी। इन मौत क ग लय म व च सी, रोगी
कर दे ने वाली गंध तथा वायु मँडरा रही थी। मेरा जी बुरी तरह से मचला गया और म अपना
पेट पकड़ कर वह दोहरा हो गया। मानो म अपनी सारी आँत से एक-एक क़तरा नकाल
दे ना चाहता था। तभी एक वृ ा ने मुझे पहचान लया। वह अपने घर से दौड़ती ई आई और
ब त ज़ोर से चीख़ी। म सकते म आ गया और समझ नह आया क मुझे या करना चा हए।

“रा स कह के! दे खा तूने, दे खा क हम तेरी वासना का या प रणाम भुगते रहे ह!” वह


च लाई। ह त ने उसे रोकना चाहा परंतु उसने उसे पूरे बल के साथ पीछे धकेल दया। फर
वह अपनी छा तयाँ पीटते ए, वलाप करने लगी, “मने कतने याग व ब लदान के साथ दो
पु को पाल-पोस कर बड़ा कया था। उनक प नयाँ, मेरे पौ -पौ याँ, सब जल कर
वाहा हो गए। सब तु हारी वासना क लपट म भ म हो गए… तु हारे पास दे व त जैसी
प नी है और फर भी तुम दे व युव तय पर कु रखते हो? और दे खो, उसके कारण हम
असुर क कैसी दयनीय दशा ई है?”

उसके आसपास एक भीड़ एक हो गई थी। चार ओर से ोध से भरी बुदबुदाहट सुनाई दे ने


लगी और मने कुछ भची मु याँ भी दे ख । म तो जैसे धरती म ही गड़ गया था। मुझे भय था
क वे मुझे जान से ही मार दगे। म कैसा शासक था? मुझे अपने पर ही ला न होने लगी।
लंका चार दशा से जल रही थी। मने जो भी बनाया था, मेरी जा ने अपने सपन के जो
महल तैयार कए थे, अपनी मह वकां ा, आवेग तथा कड़े प र म के बल पर जन सपन
को साकार कया था, वह मेरे चार ओर भ नावशेष के प म बखरा था। म एक राजा के
प म असफल रहा था। म एक नीच वानर से अपने नाग रक क र ा नह कर सका। म
एक पता के प म असफल रहा। म अपने न हे पु को आग क लपट म भुनने से नह
रोक सका। म एक परा जत था। ह त मुझे संभालने के लए आगे आया परंतु इससे
पूव उसे भीड़ पर भी काबू पाना था। मेरे घुटने जवाब दे गए और म वह धड़ाम से गरा। मने
काँपते हाथ से उस, ो धत वृ ा के चरण पश करने क चे ा क ।

“माँ…! मुझे मा कर दो… म… म। मानो कंठ म कुछ अटक गया और म कुछ न कह सका।

ह त ने मुझे उठाया परंतु वृ ा मेरे ही चरण पर गर पड़ी। “मुझे मा कर महाराज!…


आप हमारे स ाट ह… आपको मेरे चरण म गरना शोभा नह दे ता!” वह सुब कयाँ भरने
लगी। कुछ ण पहले जो भीड़ गु से के मारे मेरे ाण लेने पर उता थी, उसके वहार म
अचानक ही नरमी दखाई द , वे सब वत हो कर पीछे हट गए। म लड़खड़ाते क़दम से
अपने वृ कतु बलशाली मं ी ह त क भुजा थाम कर, जजर हो चुके महल क ओर चल
दया।

भीड़ म से कसी ने कहा, “महाराज रावण क जय हो!” सारी भीड़ ने समवेत वर म


अनुमोदन कया। हर-हर महादे व! हम मृ युपयत आपका साथ दगे, महाराज!” कोई
च लाया, ‘दे व का नाश हो!’ कसी सरे ने कहा, “असुर क जय हो… महाराज! हम इन
आतता यय से बदला लगे। हम अपने हाथ से एक-एक ट जोड़ कर, अपनी लंका नगरी
को नए सरे से बसा दगे!”

सैकड़ वर एक साथ उठे , “हर हर महादे व! श ु का नाश हो! नर-वानर का नाश हो!”
म अपने ग म जाते समय, अपनी शरा म खौल रही ऊजा को अनुभव कर सकता था।
अब म ह त से भयभीत नह था। म सड़क पर अपनी जा को दे ख सकता था। भीड़ म
जैसे कोई व ुत आवेग भर आया था। हज़ार खड् ग धूप म चमचमा रहे थे। मने अपने हाथ
हलाए और भीड़ म उमंग से भरी गजना सुनाई द ।

“चलो, लंका का पुनः नमाण कर!” म च लाया और लोग ने हर-हर महादे व के वर के


साथ मेरी बात का अनुमोदन कया। “ शव क सौगंध! हम नर-वानर तथा दे व से इस ू र
आ मण का तशोध ले कर रहगे।”

“हाँ! न त प से ऐसा ही होगा।” भीड़ गरजी

ह त मेरे पीछे खड़ा मु करा रहा था। म उसके कान म हौले से बोला, “चलो, लंका को नए
सरे से बनाएँ!” उसने मुझे झुक कर णाम कया और हमेशा क तरह भावी बंध क
व था करने नकल गया। नगर शासन व अ भयंता मं ी मय को बुलवाया गया और वे
कसी स बालक क तरह उमगते ए आ प ँचे मानो उ ह कोई ब त बड़ा खजाना स पा
जा रहा हो। चूँ क पूरा नगर बन कर वक सत हो गया था अतः उनके पास उसके शासन के
नीरस काय के सवा कोई काय नह बचा था। अब उ ह जले ए नगर को पुनः बनाने का
अवसर दया जा रहा था और वे उसे उसक खोई ई क त लौटाने के लए कृतसंक प थे।
मने दोन मं य को चचा म म न छोड़ दया।
महल अंधकार म खोया था और म अपने मृत पु तथा गत हा न क वा त वकता म
आ प ँचा। हज़ार नाग रक क आह व कराह तथा कभी समा त न होने वाली सामू हक
भावना से मुझे जो ऊजा ा त ई थी, महल के ार पर उसने मेरा साथ छोड़ दया? सब
कुछ जैसे एक छलावा दखने लगा था, यहाँ तक क सड़क पर उस म हला के त मेरा ःख
भी तो एक दखावा ही था। ‘ या म सही मायन म उनके त समानुभू त रखता था? या
वह उस गु साई भीड़ से बचने का एक साधन था, जो मुझे लील जाने को तैयार खड़ी थी?
या मने ही अपनी नजी मह वकां ा क पू त के लए अपने लोग को क व मौत के
हवाले नह कर दया था?’ मेरे म त क म इसी संदेह के क ड़े कुलबुलाने लगे और दमाग़
सु पड़ गया।

‘मने तो अपने लोग से यार कया था? या मने अपनी जा के लए एक शू य से इतने बड़े
सा ा य का नमाण नह कया था? और या मने ही उस शो षत व द लत समाज को
उनका खोया आ मस मान दे ने म सहायता नह क थी? म इस कार वचार य कर रहा
ँ? या मने ही लोभ तथा वाथ को मानवीय ग त के दो वशाल तंभ के प म
म हमामं डत नह कया था? परंतु फर य म वयं को दोषी पा रहा था? मुझे ऐसा य
लग रहा था क म ही अपनी जा के ःख व क का एकमा दोषी था?

ार चरमराहट के साथ खुला और ार पर पड़ती, सूया त क तरछ करण म, मुझे मेरी


प नी क परछा दखाई द । धीरे-धीरे चलते ए, वह मेरे पास आकर बैठ गई। म उसे दे खने
का साहस नह जुटा सका। म जानता था क मेरी आँख नम थ और मेरी ओर से ज़रा सी भी
हलचल, उन आँसु क बाढ़ को बहने दे ती, जो आँख के कोन पर छपे बैठे थे। उसने मेरे
कंध पर हाथ रखे और मेरी आँख छमाछम बरसने लग । गाल आँसु से भीग गए थे।

“म सदा तु हारा साथ ँ गी। सीता को उसके प त के पास मत जाने दे ना। हम नह जानते क
वह उसके साथ कैसा वहार करेगा? चाहे जो भी हो, हम मल कर इन प र थ तय का
सामना करगे। वह हमारी पु ी है। रावण, म तु हारे मन को समझती ।ँ ” मने अपना सर
हलाया। य द मेरी पु ी ही मेरा संर ण नह चाहती तो मुझे उसके लए अपना सब कुछ य
ब लदान कर दे ना चा हए? तब तक मने उसे उसके बबर प त को स पने के बारे म वचार
नह कया था परंतु जब मंदोदरी ने यह वषय उठाया तो म भी यही वचार करने लगा क
य न उसे उसके प त को लौटा दया जाए और म पहले क भाँ त अपना जीवन तीत
क ँ ? अपनी पु ी क र ा के वाथ ल य क पू त के लए अपनी जा को क के गत म
ढकेलने का अ धकार मुझे कसने दया, म उनके साथ ऐसा वहार करने वाला कौन होता
ँ? भले ही म एक संपूण नरेश अथवा एक संपूण मनु य न रहा होऊँ परंतु म नह चाहता क
मुझे हमेशा उन माँ क बद आ के साथ जीना पड़े, ज ह ने अपनी मान-मयादा या
अपनी संतान गँवा द । बस ब त आ! म वभीषण को बुलाऊँगा और उसे क ँगा क राम
को सीता स प दे ।

ऐसा लगा मानो मंदोदरी ने मेरे मन क बात जान ली हो, वह बोली, “नह , रावण नह ! हम
जानते ह क दे व अपनी य से कैसे पेश आते ह। अब जब क वह हमारे बीच रह चुक है,
वे उसे अशु मानगे। हम पहले ही अपनी एक संतान खो चुके ह।” उसने मेरा कंधा कस कर
थाम लया। “अब म सरी संतान खोना नह चाहती।”

“ ह त आपसे सभा म मलना चाहता है।” एक ारपाल ने कहा। म अपनी प नी को दे खे


बना ही उठ खड़ा आ और शीतल जल से अपना मुख ालन कया। मने उस शीतल
जलधार म अपने अ ु को बहने दया। जब मने दपण म दे खा तो पाया क एक वृ
चेहरा मेरी ओर ताक रहा था। उसके बाल पक गए थे। चेहरे पर झु रयाँ दख रही थ । सूजी
आँख के नीचे याह घेरे और झु रय को दे ख कर लगता था क वह इंसान कतना टू टा आ
था। वह युवाव था कहाँ गई? वह रावण कहाँ गया, जसने दे वता को भी चुनौती द थी?
वह राजा कहाँ गया जसने अपने जीवन म इतना कुछ पाना चाहा था क उसने कभी सर
क भावना क क तक नह क ? वह अ न म धधकता यौवन कहाँ गया, जसने एक के
बाद एक यु का नेतृ व कया था, नगर का वनाश कया था, ी-पु ष को नममता से
मौत के घाट उतारते ए, एक ऐसे सा ा य का नमाण कया था, जो उसके मौ क प से
ले कर, मु य ाय प पर, नमदा के द णी कनार तक व तृत था? वह कहाँ गया
जसने असुर को उनके भूतपूव महान स ाट महाब ल से भी अ धक आ म-स मान तथा
या त दान क थी? और वह कृ त, संगीत, कला तथा जीवन के त आस व ेम
कहाँ गया? रावण कहाँ था?

मेरा उ र ार पर खड़ा था, पु षो चत भाव से उसका सर गव से तना था। सारे संसार को


जीत लेने क इ छा तथा जी वत रहने क गहन इ छा लए रावण, रावण अपने म हमामं डत
यौवन तथा लाख व स हत, संसार क सभी अ छ व तु के लए कभी न बुझने वाली
पपासा लए रावण, जो रावण दपण म नह था, वह ार पर खड़ा, मुझे जीवन म वा पस
लौटने का संकेत दे रहा था। यह मेघनाद था। “ पता ी!” मं ी प रषद आपक ती ा कर
रही है।” मने मुड़ कर अपने अंगव सही कए और मेघनाद के कंधे पर हाथ रख लया।
मेरा पास इतना समय कहाँ था क सदै व आ म-दया म डू बा र ँ। मुझे तो पूरे दे श का शासन
संभालना था।

अपने पु के यौवन क धधकती वाला से थोड़ी ऊजा पाने के प ात, म उसके कंध के
साथ झुका सभा क ओर चल दया ता क अपने जीवन को नए सरे से आरंभ कया जा
सके। मने अपनी सुबकती प नी को ब त पीछे छोड़ दया और वायु के बीच तैरते उन वर
पर यान रमाया जो मेरे अपने लोग , असुर व मेरी जा के थे। वे कल ए एक नृशंस
आतंकवाद हमले के बाद, नए सरे से अपने नगर का नमाण कर रहे थे। आशा के अंकुर
पुनः फु टत होने लगे। मने पु को भी पीछे छोड़ दया तथा सभा म वेश कया। फर मने
सभा क कारवाई आरंभ क । और मन ही मन, म पुनः स ाट तथा इस धरती का सबसे
महान शासक बन गया। अभी तो ब त से यु म वजय ी को गले लगाना था।

हम बैठ कर यु क योजना पर चचा करने लगे। म गत प से भी तशोध क


वाला म जल रहा था। य प म राम को अपनी पु ी के लए जी वत ही पकड़ना चाहता था
परंतु ल मण ने मेरी बहन का जो अपमान कया था, उसके लए म उसका गला रेत दे ना
चाहता था और अगर हनुमान पकड़ म आता तो उसे म अपने हाथ से ही गला दबा कर मार
दे ता। म उन अंतहीन यु योजना व साम रक रणनी तय से अधीर हो उठा। म मेघनाद म
भी उसी अधैय को दे ख सकता था। खैर, वभीषण अब भी शां त के एक अं तम यास के
लए जी तोड़ को शश म था। उसने कहा क वह नजी प से राज त बन कर जाएगा और
राम से बात करेगा। ह त का कहना था क यह लंका के कुमार के हत म नह था क वे
उन बबर के बीच शां त ताव ले कर अकेले जाएँ। वे उ ह बँधक बना सकते थे और बदले
म सीता क रहाई क माँग क जा सकती थी। अंततः, यह नणय लया गया क वभीषण
अपने साथ थोड़ी सेना ले कर जाएगा और व ण क जलसेना उसे सागर क ओर से सुर ा
दान करेगी।

वभीषण ने हम यह आ ासन भी दया क य द आव यकता पड़ी और कसी भी तरह बात


न बनी तो वह बल योग ारा राम को बंद बना लेगा। ह त ऐसे कसी भी तरह के क़दम
के स त वरोध म दखा। “हम ज द से आगे जा कर राम क तु छ सेना का अंत कर दे ना
चा हए। हम अचानक होने वाले इस हमले का लाभ लेने से नह चूकना चा हए। इस बार यु
के सामा य नयम लागू नह हो रहे ह य क उ ह ने ही सबसे पहले हमारी असुर राजकुमारी
के अंग-भंग ारा आ मण कया और हमारे असुर सा ा य के व आतंकवाद
ग त व धयाँ आरंभ क ।” वभीषण उसक बात से सहमत नह था। म थक गया था और
वभीषण से कहा क वह अपनी ओर से संदेश ले कर जा सकता था। मने व ण को भी
नदश दे दए क वह वभीषण क सहायता के लए तुत रहे।

ह त ु हो उठा परंतु जब मने एक बार नणय ले लया तो वह मौन भाव से, कुमार
वभीषण के थान के समु चत बंध करने म जुट गया। इस अ भयान पर भेजने के लए
सबसे श त टु क ड़य को चुना गया। मने दरबार क कायवाही समा त क व अपने क
म लौट गया। म बुरी तरह से थक चुका था और कुछ ही घंट पूव, अपने छोटे बेटे का अं तम
सं कार करने के प ात गहरी न द सोना चाहता था।
33 यु क सुगबुगाहट


य ही घेराबंद आरंभ ई। बाज़ार से दै नक योग क आव यक व तुएँ गायब हो ग ।
व तु के दाम आकाश छू ने लगे। बुरा व आ गया था। परंतु मेरे जैसे लोग, अपने झु रय
से भरे हाथ तथा जजर व के साथ – अ य, अ ासं गक तथा मौन ही रहे, हम तो अ छे
व म भी यातनाएँ ही सहते आए थे। बुरे व म हम भूख से दम तोड़ने लगे। हम दबे
वर म, यु के वषय म चचाएँ करते। यु तो र, अनेक नई पी ढ़य ने तो कोई छोटा-
मोटा संघष तक नह दे खा था। यह तो स य है क कुछ मेघनाद के साथ उसके उ र के यु
अ भयान म गए थे परंतु वे यु तो सरे लोग के दे श म लड़े गए थे। जो लोग मारे गए,
बला कार या लूट के शकार ए, वे सरे दे श के हमारे जैसे भूख-े नंगे लोग थे। केवल उनका
वण तथा जा त अलग थे। परंतु अब यह यु तो अपने ार पर द तक दे रहा था। हवा म
चार ओर बड़ा ही, भयंकर शीत का कुहासा फैला था, जो कभी नह छँ टता।

हमारा राजा मूख था। अ यथा मूखता क और या प रभाषा द जा सकती है? राह चलते,
कसी भी साधारण से भी पूछो तो वह बता सकता था क राजकुमार वभीषण
कतना पाखंडी व था। केवल रावण सरीखा सीधा तथा नी त से अनजान राजा ही इस
मह वपूण अ भयान पर वभीषण व व ण को भेज सकता था। कुछ ही दन पूव, जा ने
एक भ सावज नक काय म म, वभीषण को वदाई द थी। हज़ार लोग असुर क
पताकाएँ लए, सागर तट पर एक ए थे। बयालीस यु पोत रवाना कए गए जनम सारी
शाही नौसेना तथा लगभग तीन चौथाई असुर सेना थी, वे लोग राम को पकड़ने तथा उसके
वानर को कुचलने के लए गए थे।

येक जानता था क शां त क वाता तो एक छल था। हम ती ा करते रहे क एक


ही पखवाड़े के भीतर हमारे यु पोत लौट आएँगे और उनके साथ ज़ंजीर म कसा राम भी
होगा परंतु बीस दन बीत जाने पर भी असुर सेना तथा नौसेना क ओर से कोई समाचार नह
आया। चार ओर, कसी दावानल क भाँ त अफ़वाह फैल ग । लोग कह रहे थे क वानर
क सेना ने, महाब लपुरम के नकट तट पर, शव मं दर पर असुर क सेना को खदे ड़ दया
था। य प मुझ जैसे कुछ संदेहशील ा णय का यह मानना था क वभीषण ने वहाँ जा कर
अपना मत बदल लया था और अब वह श ु प के साथ था। और इसके बाद शाही घोषणा
ई। हमारा अनुमान सही नकला। प के हर कोने व नु कड़ से यह घोषणा क गई क
राजकुमार वभीषण तथा नौसेना मुख व ण राम से जा मले थे। अब वे श ु प के साथ
थे। स ाट के भाई ने अपनी ओर से संदेशवाहक भेज कर आ ह कया था क वह
मायाचना करते ए, राम को सीता लौटा दे और उसे राजग स प दे । व ण ने भी रावण
को प लखा क अब रावण असुर का स ाट नह रहा था य क राम ने महाब लपुरम म
रचाए गए, एक समारोह म, वभीषण को लंका तथा असुर का राजा घो षत कर दया था।
दोन खलनायक के संयु ह ता र स हत एक और प आया था जसम लखा था क
अ धकतर असुर सेना तथा रावण क सारी राजसी नौसेना अपना प बदल कर, राम के
समथन म चली गई थी। अब उनक न ा दे व के त थी। रावण के पास तो कोई वक प
नह बचा था। य द रावण को अपने ाण का मोह था और य द वह लंका को सरे वनाश
तथा अनाव यक र पात से बचाना चाहता था तो उसके पास यही वक प शेष था क वह
शां तपूवक अपने भाई वभीषण को राज सहासन स प कर, सप रवार हमालय क ओर
थान कर जाता। परंतु रावण ने येक नाग रक से आ ह कया क वे अपनी मातृभू म क
र ा के लए आगे आएँ। ऐसा नह था क लंका तथा मु य ाय प का येक नाग रक
एक समृ जीवन तीत कर रहा था और एक समान अ धकार का आनंद ले रहा था, उसे
कसी भी कार के जा तवाद तथा अनु म का सामना नह करना पड़ता था। य प हम
सभी रावण के राज म धीरे-धीरे फैल चुके जा तवाद तथा रंगभेद को सहते आ रहे थे और
उस पर शोक भी कट करते थे परंतु भीतर ही भीतर, हम यह भी जानते थे क राजा य
प से असुर सा ा य म फैली इस अराजकता व सड़न के लए दोषी व उ रदायी नह था।
वा तव म उसने व ह त ने तो, उ र क ओर से उठे जा तवाद को रोकने के लए कड़े क़दम
उठाए थे, य प वभीषण तथा उसके ा ण समुदाय ने चोरी- छपे भेदभाव से भरे धम को
लोग के बीच सा रत करने म कोई कसर नह छोड़ी थी। अब उसी वभीषण ने दे व नरेश से
म ता कर ली थी और रावण को सहासन युत करने क धमक द थी। लोग यही सोच कर
काँप उठते क य द पूरा रा य वभीषण तथा उसके ा ण के अं तम अ धकार के वश हो
गया तो उनका जीवन कैसा होगा?

दे व तथा असुर के म य अं तम संघष क सारी तैया रयाँ आरंभ हो चुक थ – यह दो


स यता का अं तम व नणायक यु होता। इस छल से भरे यु म, असुर एक भुजा से
लड़ने वाले थे य क हमारा एक हाथ पीछे बँधा था। एक आम आदमी के प म, ारंभ म
हमने रावण के यु म जतना भी साथ नभाया, उसका केवल एक ही ल य था क हम
परा जत नगर म लूटपाट कर सक। एक लंबे समय के बाद, एक था पत असुर सा ा य को
ऐसे ही आ मण का सामना करना था, जैसा क पहले कभी उन दस राजा ने कया था,
जब इं ने भारत पर धावा बोला था। एक जीवनशैली, समानता तथा वतं ता क स यता,
भौ तक सुख को मान दे ने वाली तथा उ सव य परंपरा, एक सरी स यता क ओर से होने
वाले अं तम आ मण के लए तुत थी। अब यह राम तथा रावण के म य गत
मामला नह रहा था।

पहले जब लोग ने सोचा क रावण ने सीता के त वासना रखी और उसके कारण ही उन


पर भा य के बादल मँडराने लगे ह तो उ ह ने रावण से घृणा क , परंतु जब उ ह ने ये
अफ़वाह सुन क सीता असुर राजकुमारी थी, हमारे राजा क पु ी थी तो वे सीता को राम के
हाथ स पने के वचार से ही कातर हो उठे । य प म रावण को कभी मा नह कर सकता,
वह मेरे द क पु अ तकाय से जस तरह पेश आया था, वह ब त ही नमम वहार था।
उसने यह भी भुला दया था क वह अंततः उसका ही तो र था। अंतर केवल इतना था क
सीता ने कसी महान वै ा नक क पु ी के गभ से ज म पाया था और अ तकाय का ज म,
महल क साफ़-सफ़ाई करने वाली दासी के गभ से आ था।

असुर अ छाई तथा बुराई के बीच होने वाली इस लड़ाई के लए तुत थे। क ने सड़क
पर पैदल तथा अ ारोही सेना को उतारा। लोग तनाव त हो उठे । सेना के जवान ने
लोग के साथ चीख़- च लाहट क व उ ह अकारण पीटा भी। फर खाड़ी के समीप रहने
वाले मछु आरे तथा ग के बाहर रहने वाले लोग अपने प ी तथा पशु ले कर आ प ँच।े लोग
सड़क कनारे रहने लगे। बंदरगाह के समीप रहने वाले असुर समाचार लाए – नर वानर
सागर के सरी ओर से एक पुल का नमाण कर रहे थे। यह सब कुछ ब त ही व च ,
आकषक तथा भयभीत कर दे ने वाला था। परंतु वह सेतु हमारे प क ओर धीरे-धीरे बढ़ता
आ रहा था। यह जैस-े जैसे बढ़ता गया, इसके भयभीत कर दे ने वाले भाव म भी वृ होती
गई। लोग मं दर के शखर पर, ऊँचे वृ पर अथवा पहाड़ीनुमा ऊँचे थान पर चढ़ कर,
दबे वर म चचा करते।

रात -रात कई थान पर असुर क यु कला ‘कला रप टु’ सखाने वाले क कुकरमु क
तरह उग आए। सड़क ी, पु ष, बूढ़े व जवान असुर से भरी रहत जो हाथ म तलवार,
धनुष-बाण, भाले तथा तरह-तरह के ह थयार लए, एक से सरे थान पर आते-जाते रहते।
रावण ने ही लोग को ो सा हत कया था क वे अपने अ -श ले कर, श ु के ख़लाफ़
रणभू म म उतरने क तैयारी कर ल। पहले हम असुर के लए जन मं दर के ार बंद रहते
थे, उ ह अब हमारे लए यु श वर म बदल दया गया। सं ांत ा ण वग ने अलगाव तथा
भेदभाव का नयम समाज पर थोप दया था, वह रात -रात कह अलोप हो गया, उनम से
अ धकतर तो लंका छोड़ कर, राम क सेना म जा मले थे। असुर का ाचीन समभाव एक
बार पुनः लौट आया था।

यही वह अं तम यु था, वही नणायक यु था, जो यह तय करेगा क या भारत के नधन


व शो षत समाज को समान भाव से आगे आने का अवसर मलेगा? यह दयहीन जा त था
तथा छु आछू त क भावना के व खुली जंग थी। यह तो मानो न न तरीय ा णवाद को
खुली चुनौती थी। म इस वडंबना पर मु करा दया। ा णवाद के व होने वाला यह
यु एक ऐसे राजा के नेतृ व म लड़ा जा रहा था जो गु त प से इस बात पर गव करता था
क वह एक ा ण पता क संतान था। य प हम नधन, अभागे व काली चमड़ी वाल के
पास, इसके सवा कोई व कप भी तो नह था। हम इस दे श म जतने भी नेता अथवा राजा
अब तक मले, उनम से रावण ही सबसे े था। वह अपनी भूल के बावजूद एक मनु य था
– और उसके वक प के प म, वभीषण का राज, इसक तो क पना भी भयभीत कर दे ने
के लए पया त थी।

हम सब पूरी तरह से न त थे क महादे व शव अ छाई पर बुराई क वजय कभी नह होने


दगे। य प अपने मन के कसी भीतरी कोने म, म यह भी जानता था क हम ई र क
अभागी संतान थ और दयालु तथा शव समान सवश मान दे व भी, हमारी चमड़ी के रंग
तथा औकात को दे ख कर ही कोई नणय लेत।े संभवतः हम चमड़ी के ग़लत रंग के साथ
ज मे थे।
34 मेरे लोग के लए

रावण
महल म अंधकार छाया था। ठहरी ई गुम हवा के बीच कुछ व च से वर तैर रहे थे, एक
प ा भी नह हल रहा था। म बरामदे म बैठा सागर क ओर ताक रहा था। मृ यु व पराजय
मुझे मुँह बाए दे ख रहे थे। मने अपने-आप को कोसा क मने, ब त समय पहले, उस रात
व ण को अपने हाथ से सागर क लहर के हवाले य नह कर दया था? म ब कुल सु
हो गया था। मने अ ु , प र म तथा मृ यु का मोल चुका कर जो जीवन बनाया था, वह
मेरी ही आँख के आगे मसला जा रहा था। महल के अनुचर ने घंट पहले जो मशाल व
द पक जलाए थे वे एक धीमी मौत मरते ए, फड़फड़ा रहे थे। महल के बगीच म, यहाँ-वहाँ
एक अटपटा सा काश तंभ चमकते ए, जी वत रहने के लए अं तम यु कर रहा था।

कई घंट तक मेरा म त क कसी कोरे पृ क भाँ त र रहा। फर अचानक ही एक


सरदद क तरह, कनप टय के पास दद क लहर दौड़ पड़ी, वह भावनाएँ लौट आई थ ः म
अपनी पु ी से मलना चाहता था। मने इस वचार को अपने म त क से नकालना चाहा
और यह कुछ ण के लए थम भी गया परंतु कुछ ही समय बाद, यह पुनः मुझ पर हावी हो
गया। म उठ कर उस वशाल अशोक वृ के नकट चल दया, जहाँ मेरी पु ी रहती थी। घना
अंधकार छाया था। महल के वातायन से छन कर आ रहा काश, झा ड़य पर वशाल
परछा याँ रच रहा था जससे वे और भी भयावह दख रही थ । य ही म वृ के समीप
प ँचा, एक प ी अपने वशाल पंख फड़फड़ाते ए वहाँ से उड़ गया जससे ख़रगोश व
गलह रयाँ डर के मारे बल म जा बके। एक चमगादड़ मेरे कान के ब त ही नकट से
उड़ा, अपनी दशा बदली और फर अंधकार म वलीन हो गया।

वह सो रही थी। वह दो असुर म हला र काएँ, मेरी उप थ त से अन भ ऊँघ रही थ ।


‘वाह! मेरी पु ी क या सुर ा हो रही है!’ मने सोचा। मने अपने हाथ म हो रहे कंपन के
लए वयं को कोसा। म उसे पश करके, उसके उस बा यकाल म लौटना चाहता था, जसे
मने दे खा तक नह था। म अपनी न ही ब टया क छोट -छोट अँगु लयाँ महसूस करना
चाहता था, उसे झुलाना चाहता था, उसे अपने आगे बड़ा होते दे खना चाहता था। अनायास
काले-घने मेघ को चीरते ए, चं मा नकल आया और अशोक के प से छन कर आती
एक करण, मेरी पु ी के दे व त जैसे नद ष मुख पर पड़ने लगी। चं मा क रोशनी बाग़ के
गहरे साय के साथ आँख- मचौली खेल रही थी। एक ह का सा झ का प को सरसरा
गया। वह ज़रा सा हली। उसक आँख के कोने से एक आँसू टपका और उसक नाक पर आ
टका, फर उस आँसू ने नाक के छोर पर संतुलन साधना चाहा पर अंत म नीचे जा गरा।
मेरी न ही सी यारी ब टया के लए दय म हाहाकार सा होने लगा। वह अपने प त के ेम
के लए तरस रही थी। या मने उसे उसके य पा से वलग करके, कोई भूल कर द थी?
म अक मात् ही ो धत हो उठा। वह अपने पता का नेह य नह दे ख सकती? राम म
ऐसा या था क उसे मेरे सारे ऐ य तथा वैभव का मोह भी नह ापा था? फर ण भर म
ही ोध जाता रहा और उसके थान पर असहाय सा भाव आ गया। मने उसे ग़लत समझा।
जब उसे मेरी सबसे अ धक आव यकता थी तो मने उसे याग दया था। म तो अपने लए
सा ा य बनाने म म न था। सफलता क उस अंधी व मूखतापूण दौड़ म, मने अपनी पु ी का
बालपन खो दया। अब, जब क वह अपने प त के ेम पी संसार म म न थी तो म उसे वहाँ
से ले आया था। मुझे ऐसा करने के लए अपने-आप से घृणा होने लगी। परंतु वह इस बात
को समझ य नह सकती? उसका प त उसे कभी वा पस नह ले जाएगा। वह मेरे नगर के
ार पर खड़ा, एक वृ के लए मृ यु तथा वनाश का संदेश इस लए नह लाया था
क वह अपनी प नी से ब त ेम करता था, या उसने यह सब इस लए ही कया था?

म अपनी ब ची को एक बार फर से खोना नह चाहता था। म नह चाहता था क राम उसे


मुझसे र ले जाए। वह एक असुर राजकुमारी और मेरी पु ी थी। म उसे एक बार खो चुका
था और अब ऐसा पुनः नह होने ँ गा।

अचानक ही उसक आँख खुली और वह मुझे चेहरे पर नराशा तथा म के साथ दे खने
लगी। म एक पता के प म उसे मनाने आया था क वह हमारे साथ रहने चले परंतु य ही
म उसक ओर बढ़ा तो वह च लाने लगी। मेरी तं ा भंग हो गई और म नराश हो कर,
लड़खड़ाते ए, पीछे हट गया। उसने मुझे अपश द कहे, वलाप करने लगी और राम को
पुकारने लगी ता क वह आकर उसक र ा करे। असुर म हलाएँ एक ही झटके से उठ बैठ
और उलझन म पड़ ग । इससे पहले क उनक मुझ पर पड़ती, म एक ओर हो गया
और तेज़ी से अपने महल क ओर चल दया। मने वत दय के साथ अपने शयनक म
वेश कया तो मंदोदरी को शै या पर बैठा पाया। म उसका सामना नह कर सका।

“तुम कहाँ थे?” या उसके श द म एक तीखापन था? मने कंधे झटके और उसक ओर
पीठ करके लेट गया। हर चीज़ को मरण करते ए मन गु से व कड़वाहट से भर गया। ‘वह
मेरे जीवन म य आई?’ म अपने ब तर म करवट बदलता रहा परंतु इन वचार ने मेरा
पीछा नह छोड़ा। फर मने अपने कंधे पर एक उ णता से भरे हाथ का पश अनुभव कया
और म अपनी प नी को आ लगन म लेने के लए मुड़ गया।

म नह जानता क उस रात हम कतने घंट तक यूँ ही लेटे रहे, परंतु धीरे-धीरे वह न ा क


गोद म समा गई और शै या पर अपने थान पर करवट ले ली। उस रात शां तपूण न ा बड़ी
ही नममता से मुझे छलती रही। म त क म करोड़ वचार च कर काट रहे थे जनम से
अ धकतर नरथक थे। इन सबके म य म ही कह चता तथा पराजय के भाव ने भी आ घेरा।
म यह सब समा त कर दे ना चाहता था। जीवन का कोई अथ ही नह रह गया था। सब कुछ
अथहीन था। म एक से सरी ओर करवट बदलता रहा और फर ऊँघ सवार हो गई।

फर जब पूव आकाश पीला पड़ने लगा तो म वेद से लथपथ हो कर, अक मात उठ बैठा।
म मय से यो तष तथा खगोल व ा का ान ा त करता रहा था। य - य म बड़ा होता
गया, इन व ा त मेरी हणशीलता म और भी वृ ई। जीवन कतना छोटा था और
जीवन म सीखने के लए कतना कुछ शेष था। म उन दन एक पु तक, सं हता क रचना
कर रहा था, जो यो तष व ा तथा शकुन वचार पर आधा रत थी। हो सकता है क उसके
कारण ही मने वह ः व दे खा हो, जसम मने दे खा क एक लंबा तथा गौरवण युवक मेरी
पु ी सीता को घसीट कर लए जा रहा था और उसने उसे धधकती अ न म फक दया। राम
एक ऊँचे मंच पर बैठा दखा और ब त ही ःखी लग रहा था। समीप ही कह , एक और
अ न धधक रही थी। अपनी पु ी क इस भयंकर नय त से अ धक भय मुझे उस भयावह
चेहरे को दे ख कर लगा, जसे अ न क ुधात लपट लील रही थ ; यह सब दे ख कर म एक
ही झटके से उठ बैठा, दल सीने म तेज़ी से धड़क रहा था। यह तो असुर स ाट का चेहरा
था। या यह एक अपशकुन था, आने वाली घटना का एक संकेत मा ?

यो तष व ा अपने-आप म एक ब त ही गूढ़ तथा रह यमयी व ा थी और म शकुन-


अपशकुन म इतना व ास नह रखता था। मने ब त चाहा क म फर से न ा क गोद म
समा जाऊँ परंतु इस छ व ने मुझे बुरी तरह से ाकुल रखा और थका दया। मेरे अनुचर, दो
बार उठाने आए कतु मने दोन बार उनक उपे ा क , म उस चादर के अंदर भी सहम रहा
था, जसम कसी भयभीत बालक क तरह लपटा पड़ा था। अंत म मंदोदरी आई और मुझे
झकझोर कर जगा दया। यह एक अंधेरी सी सुबह थी। आकाश म बादल छाए थे और सागर
पर भी अंधकार मँडरा रहा था।

“महाराज! प रषद आपक ती ा कर रही है।” ह त के वर ने मुझे च का दया और मने


उसे धुँधली आँख से दे खा।

म तो जैसे हर चीज़ से ही उकता गया था – ये तु छ राजनी त व अहंकार के तमाशे; ये नदा


व आपसी झड़प, अंतहीन सभाएँ तथा चाटु कार ारा मुझे अटू ट दे श ेम के दशन ारा
स करने क चे ाएँ; मेरा जगमगाता महल; मेरा सा ा य; वह यु जो अब मुझे कसी
भी दशा म, राम के साथ करना ही था। म जीवन से तंग आ गया था। म चाहता था क ह त
जैसे लोग, मेरे जीवन से कह र चले जाएँ और मेरे संसार म पुनः क़दम न रख। ‘मने एक
राजा बनने का व य दे खा?’ मुझे तो पूण नद के सुंदर तट म से एक पर सादा जीवन
जीना चा हए था, छोटे व दे खने चा हए थे, और उन करोड़ सामा य जन क भाँ त ही
जीना-मरना चा हए था, जो इस धरती पर इसी प म जीते आए ह।’ एक छोट सी कु टया,
एक न ावान प नी, सुंदर संतान, कृ ष काय के लए कुछ खेत और इस संसार के आनंद का
उपभोग करने के हेतु ब त सारा समय – परंतु म यह भी जानता था क अब ये व ,
व मा ही तो रह गए थे। म ह त के जाने के बाद, ब त समय तक भगवान शव क
तमा के आगे पड़ा रहा और पूरे दय से साहस के लए आत वर म ाथना करता रहा।

जब म अंततः सभा म प ँचा तो प रषद के सद य घेरा बनाए खड़े थे, वे पाठशाला म पढ़ने
वाले छा क भाँ त ब तया रहे थे। य ही मने वेश कया तो एक स ाटा सा छा गया और
वे अपने-अपने थान पर जा बैठे।

मने कहा, “श ु हमारी गदन दबा रहा है। हम एक के बाद एक व ासघात का सामना कर
रहे ह। वभीषण…, जस भाई को मने अपनी भुजा म खलाया, अपने पु क तरह माना,
वह मुझे छोड़ कर, श ु से जा मला। व ण…, सप कह का, जसे मने भरोसा करके
अपनी जलसेना स पी, जसे अपना परम म जाना, वह भी दे व युवक का दास बन बैठा।
हमारी आधी सेना तथा संपूण जलसेना ने अपने प बदल लए। मने जस असुर सा ा य व
वंश क क त के लए अपना र , अपनी संतान, अपने व , अपना जीवन यौछावर कर
दया, उसने मुझे या दया?”

“हम सुबेला पहा ड़य पर चले जाना चा हए। वहाँ पर थत ग, श ु के बड़े से बड़े


आ मण को सह सकता है। हमारे पास वहाँ कई माह क रसद का भी पया त बंध है। हम
वह ती ा करगे और श ु को अपने नगर से खदे ड़ दगे।” ह त ने ह त ेप कया।

मुझे यह सब समझने म थोड़ा समय लगा क आ ख़र ह त कह या रहा था और तभी


अचानक मुझ पर ोध सवार हो गया, “नह , म दो दे व युवक तथा उनक बे द वानर सेना
से घबरा कर नह भागूँगा। म असुर का स ाट ँ और म पहा ड़य म नह छपूँगा। म उ ह
कुचल कर रख ँ गा।”

मेरे मं य के बीच एक कोलाहल सा होने लगा। तभी जंबूमाली बड़ी क ठनाई से खड़े हो
कर बोले, “महाराज! य द हम वषा ॠतु के आगमन तक पहा ड़य वाले ग म रह तो हम
राम क सेना को हरहराते सागर तथा नगर के बीच ही दबोच सकते ह। हम तब तक श ु प
को बल बनाने के लए गु र ला यु णाली का आ य ले सकते ह।”

“तुम चाहते हो क म अपनी नगरी को श ु क दया पर आ त छोड़ ँ ? मुझे लगता है तुम


मूख इ तहास से मले सबक को भुला बैठे हो। जाने कतनी भ असुर नग रयाँ लूटने के
बाद, राख के ढे र म बदल द ग । हमने भी पहले, जाने उनके कतने नगर के साथ यही ह
कया है? या तु ह लगता है क वे इं के पु हमारी इस भ नगरी को वन करने म कोई
कसर छोड़गे?”

“परंतु, महाराज! इस समय हम बल ह। हम रणनी त बनानी होगी, योजनाएँ बनाने के बाद


अपनी ही शत पर यह यु लड़ना होगा। सुबेला क पहा डयाँ ावहा रक प से अजेय ह।
वषा ॠतु के आते ही सुबेला ग क ाचीर इतनी फसलन से भरी हो जाएँगी क वे वानर
भी उन पर नह चढ़ सकते। वैसे भी हम व ण के जहाज़ पर सवार, अ नवषक बाण चलाने
वाल क मार से बचे रहगे।” ह त ता से मेरे यु र क ती ा करने लगा।

म उस क म ा त तनाव क गंध को अनुभव कर सकता था परंतु मने कुछ नह कहा। मेरे


धानमं ी का कहना उ चत था। य द हम सुबेला पहा ड़य पर चले गए तो राम को हमेशा
अपने से एक सुर त री पर रख सकते थे। व ण के कुछ लोग को र त दे कर, अपनी
ओर मलाया जा सकता था और फर हम ी म ॠतु आते ही, राम पर हमला कर दे ते। म
जानता था, मेरा एक रा यपाल खर, जो क भारत के म य म थत, मेरे रा य क उ री
सीमा पर था, वह राम को पीछे से घेरने के लए तेज़ी से आगे बढ़ रहा था। मुझे पूरा व ास
था क य ही राम का प बल होगा, व ण पुनः हमसे आ मलेगा परंतु खर को अपनी
वशाल सेना के साथ इतनी री तय करने म कुछ माह का समय लगने वाला था। या हम
तब तक यु क संभावना को रोक सकते थे? य द हम रोक भी लेते तो मेरी नगरी व जा
का या होगा? नह , रावण कसी कायर क भाँ त मुँह छपा कर नह भागेगा। भले ही यह
उ चत रणनी त हो अथवा न हो, म यह र ँगा तथा अपनी जा क र ा क ँ गा।

अचानक ही हम सड़क तथा माग से व च सा कोलाहल सुनाई दे ने लगा। ारंभ म यह


म म था परंतु अचानक ही यह पूरी तरह से प हो गया। प रषद के सद य अपने थान
से उठ खड़े हो गए और म भी अपने कौतूहल को शांत न रख सका। या राम क सेना ने
आ मण कर दया था? म खुले बरामदे क ओर लपका, जहाँ से म ायः अपनी जा को
सुबह के समय दशन दया करता था व उनक शकायत सुनता था। एक सपाकार जुलूस
महल क ओर बढ़ता चला आ रहा था। जहाँ-जहाँ तक नज़र जाती थी, ी, पु ष , ब च ,
बूढ़ व जवान का जूम दखाई दे रहा था। महल के ारपाल ने उ ह रोकना चाहा परंतु
भीड़ ने उनक एक न सुनी।

‘श ु का नाश हो!’ ‘हर-हर महादे व!’ ‘रावण क वजय हो!’ भीड़ म से ो धत वर


गरज उठे और वे अपने अ -श का दशन करने लगे जनम दस फुट लंबे भाले,
तलवार, बाग़बानी करने के उपकरण व यहाँ तक क रसोई के काम आने वाले चाकू तक
शा मल थे। चडवादक ती ग त से धुन बजाने म म न थे।

‘म अपनी जा को यहाँ अर त छोड़ कर, सुबेला पहा ड़य पर थत ग म रहने के बारे म


सोच भी कैसे सकता था?’ मने अपने हाथ हलाए और भीड़ ने समवेत वर म मेरा समथन
कया। मने अपने ारर क को संकेत दया क वे भीड़ को आराम से भीतर आने द। ‘म
उ ह रोकने वाला कौन होता था?’ भीड़ हरहरा कर भीतर आ गई। उ ह ने मेरे सुंदर बगीच
को र द दया, पु प से सजे फूलदान को तोड़ दया और कुछ ब चे फ वार के बीच उछलने
लगे। महल ने मेरी जा के लए अपने ार खोल दए थे। मुझे ब त सुखद अनुभू त ई। मने
आकाश क ओर हाथ उठाए तो भीड़ म एक स ाटा छा गया। उस एक ण म, ऐसा लगा
मानो म उनका भगवान बन गया था। मने अनुभव कया क स ा के इन ग लयार म मेरा जो
आकषण कह खो गया था, आज वह मेरे पास लौट आया था। मुझे लगा क म एक बार
फर अपनी जा के साथ तारत य था पत करने म सफल रहा। मने अपना यौवन पुनः पा
लया था।

“ब त समय पूव, जब म मु कल से स ह वष का रहा होऊँगा, मने आप सबसे एक वादा


कया था। मने आपके साथ एक ऐसे संसार का वादा कया था जसम सभी ी-पु ष
समान ह गे। मने आपको वचन दया था क आपको एक दन महाब ल का वही वण युग
लौटाऊँगा। हमने आशा क थी क एक दन अपनी खोई ई क त व यश पुनः पा लगे।
हमारे पास उस एक आस व उ मीद के सवा कुछ नह था। आप सबने मेरे नेतृ व म अपना
व ास बनाए रखा और मने आपक न ा को कभी व मृत नह कया। हमने मल कर दे व
सा ा य को ललकारा। हमने मु भर आद मय के बल पर, असमानता, दमन तथा अथहीन
अनु ान के व अ भयान चलाया। आज हम अपने आसपास जो भी दे खते ह, उसे हमने
आपके वेद व र के बल पर बनाया है। हमने इस मोती प से ले कर, व य क तलहट
तक असुर पताका फहराई है। हमारे लोग संप ए ह। हमने भ नग रय का नमाण कया
और व ान, कला व सं कृ त के े म दन नी रात चौगुनी ग त क । हमारे महान मं दर,
शव क क त को म हमा मं डत करते ह। हमारे अ भंडार, असुर के प र म से सदै व
भरपूर रहते ह। हमने व ा के मं दर बनवाए तथा यह सु न त कया क कोई भी असुर
नर र न रहे। हमारे अ पताल ने रो गय क दे ख-रेख क । हमने सड़क बनवा तथा नहर
खुदवा । हम बड़े ही आ म व ास के साथ इस संसार का सबसे धनी सा ा य होने का दावा
कर सकते ह।” म जा पर अपनी बात का भाव जानने के लए ण भर को थमा।

चार दशा से एक बार फर ‘हर-हर महादे व तथा रावण क वजय हो!’ के नारे गूँज उठे ।
जा ने ब त ही उ साह से जयजयकार क । “य प ग त क इस राह पर बढ़ते ए, हमसे
कुछ भूल भी । हम स य न ा के उस पथ से वमुख हो गए जस पर हमारे नेता, अब तक
बड़े ही क के साथ चलते आए थे। हमने अपने वचार क शु ता तथा जीवन क सादगी
को खो दया। हम भी दे व क भाँ त यही मान बैठे क कुछ लोग वशेष सु वधा ा त होते ह।
संभवतः य द हम यो यता तथा गुण के आधार पर यह नणय लेते तो कह े होता।
परंतु बलशाली असुर सेना के हाथ परा जत होने के बावजूद दे व स यता, हौले-हौले
हमारे म त क म अपना थान बनाने लगी और उ ह वषा कर दया। उनक भाँ त हम
भी कुछ मनु य को दै वीय मानने लगे; हम भी यही मान बैठे क कुछ मनु य पूरी तरह से
प व थे और शेष प व व शु नह थे – यह सब कुछ उनके कम तथा मान सकता पर
नह अ पतु उनके ज म पर आधा रत था। आपके नेता के प म मुझे यह दे खना चा हए था
क कस कार जा तवाद के बुरे वचार ने हमारे समाज म भी डेरा डाल लया था। कतने
खेद से कहना पड़ता है क म अपनी ही क त क यश-पताका लहराने म म न रहा।” भीड़
ने समवेत वर म आह भरी।

“म वयं ही अपने मू य भूल गया था, तो मुझे समाज को दोष य दे ना चा हए? केवल कुछ
लोग ने ही हर कार के लाभ ह थया लए और आप जैसे सभी लोग को सड़ने के लए
अकेला छोड़ दया गया। म आप लोग के लए, एक नेता के प म असफल रहा ँ, मने
अपने भाई, व ास ोही वभीषण को यह अनुम त द क वह सु वधा के इस वचार को
केवल कुछ ही य तक सी मत रखता रहे। मुझे यह कहने म ल जा आती है क म
वयं को आप सबसे यही सोच कर े मानता रहा क म तो एक ा ण पता क संतान
था। म गु त प से अपने गौर वण पर गव अनुभव करता रहा और काली चमड़ी वाल को
बुरा व गंदा मानता रहा।”

सारी भीड़ दम साधे एक-एक श द को मानो पी रही थी य क यह तो उ ह के वचार क


त व न लग रही थी। “आज, हमारी स यता एक दोराहे पर खड़ी है। म आपके सामने एक
स ाट के प म नह , कसी दं भी सव वजेता रा स के प म नह (जैसा क ायः मेरे
नदक मुझे कहते ह।) अ पतु एक साधारण , एक असुर जा के प म अपने दल
क बात कह रहा ँ। मने पाप कया है य क म कोई दे वता नह ब क आप सब क तरह
एक आम मनु य ही ँ। म अपनी सभी भूल वीकार करता ँ। आपने मेरे नेतृ व को अपना
जो व ास स पा, उसक दय से सराहना करता ।ँ म शव से ाथना करता ँ क वे मेरे
कंध को, यह भारी बोझ वहन करने क मता दान कर। यह यु वैसा नह है जैसा क
अनेक सोचते ह, इसे दे व कुमार राम क सुंदरी प नी सीता के लए नह छे ड़ा गया
और न ही यह एक वृ राजा ारा कसी सरे क प नी पर वासना भरी डालने
का प रणाम है। राम तथा उसके भाई ल मण के हाथ मेरी बहन शूपणखा का जो अपमान
आ, यह यु उसके तशोध के लए भी नह है। यह तो…।” म बोलते-बोलते ठहर गया।
मान श द का सोता सूख सा गया। पूरी भीड़ याशा म कान लगाए खड़ी रही।

“मेरे य असुर म !… सीता… सीता मेरी पु ी है।” लोग के बीच घना कोलाहल सुनाई
दया और मने उनके शांत होने क ती ा क । दोपहरी का सूरज बेरहमी से सर पर नाच
रहा था, वह मेरी ऊजा को सोखते ए, म त क को भोथरा बना रहा था। चेहरे से मानो वेद
क न दयाँ वा हत हो रही थ । हज़ार अ ेत, पसीने से लथपथ, ःख से थत हो उठे ।
भीड़ म ोध, उ साह व म का मला-जुला भाव था। म पीछे मुड़ कर अपने मं य का
सामना नह करना चाहता था, य प मुझे संदेह था क वे पहले से ही सीता के वषय म
जानते थे। मेरे पास अब उनका सामना करने का साहस शेष नह रहा था। कुछ ही ण पूव,
मने योजना बनाई थी क असुर स यता के भ व य पर चचा करके, अपनी असुर जा को
वश म कर लूँगा, अब वे वही श द कह मुँह बकाए बैठे थे। मने गोल कठघरे का सहारा
लया और ती ा करने लगा। म जानता था क भीड़ इस समय हसक व ख़तरनाक तरीक़े
से भी पेश आ सकती थी।

‘सीता मैया क जय! असुर राजकुमारी क जय हो!’ एक कोने से कसी का आत वर सुनाई


दया। इसके बाद भयंकर स ाटा छा गया। सभी सर बड़े ही आ य से वर क दशा म
मुड़े। मने भी धूप से बचाव करते ए, यह दे खना चाहा क वह वर कसका था? या वह
भ था, वही बूढ़ा कमीने? म लाठ के सहारे झुक कर काँपते बूढ़े को दे ख सकता था जसके
समीप ही एक ह ा-क ा काला नौजवान खड़ा था। वैसे म उस युवक का चेहरा नह दे ख
सका। वह बूढ़ा एक बार फर से च लाया, ‘सीता मैया क जय!’ बस अब तो जैसे भीड़ भी
द वानी हो उठ और सभी सीता व रावण क जयजयकार करने लगे। जो चड शांत हो गए
थे, वे व य असुर धुन बजाने लगे और पूरी भीड़ झूमते ए, कसी वशालकाय सप क भाँ त
रग कर, मेरे महल से बाहर चल द , उसके पीछे बस धूल के बड़े-बड़े गुबार के पहाड़ ही शेष
रह गए थे।

यु के नगाड़े म म ए तो मने मं य को संबो धत कया, “तो यह न त रहा। हम यह


रह कर, यह यु करगे।” ह त के अ त र सबने झुक कर अनुमोदन कया। म एक झटके
से अपने क क ओर बढ़ा तो ह त के ने म अनायास उभर आई नमी को दे खा। जैसे ही
हमारे ने मले तो उसने अ तसू म प से अपनी गदन हलाई। जब ब त दे र बाद जा के
उ साह से उ प अ न थोड़ी शांत हो गई तो मने वयं को एक अंधेरे शीतल क म, शव के
स मुख ाथनारत पाया क वे मेरे भीतर पनप रहे इस भय से मुझे मु कर। लंका पर भावी
अ न के साए लहरा रहे थे। म इसे सूँघ सकता था; म इसे अपने आसपास अनुभव कर
सकता था। संभवतः ह त हमेशा क तरह सही था। य प अपनी जा को उस भयंकर
वानर सेना के हाथ छोड़ने क अपे ा म अपने ाण यागना तथा सब कुछ छोड़ना कह
बेहतर समझता। म जानता था क हम अब भी ता कक प से पीछे हट सकते थे परंतु म
ब त गव ला तथा भावुक था। म यह रह कर, अपनी आधी सेना के साथ रणभू म म
उत ँ गा। कम से कम म अपनी जा का इतना ऋणी तो था ही। उन एकां तक ण म, जब
म दल और दमाग़ के बीच हो रहे वाद- ववाद का नणय कर रहा था तो उ ह ण म असुर
सा ा य, करोड़ अ ेत असुर क नय त सदा के लए तय हो गई थी। य द मने अपने
दमाग़ क सुनी होती तो शायद प रणाम कुछ और होते परंतु जो भी हो म भी तो मोह-माया
म बँधा जीव ही तो था। म भी आवेग के पाश से मु नह था। म एक रावण क भाँ त जीया
था और एक रावण क भाँ त ही म ँ गा। म राम बनने क इ छा नह रखता और न ही मुझे
कोई संपूण पु ष अथवा कोई ई र बनना था। मेरे दे श म पहले से ही दे वता तथा ई र का
कोई अभाव नह था। इसम अभाव था तो केवल मनु य का – ऐसे लोग का, जो सही
मायन म केवल मनु य ही ह …।
35 नरंकुश यु


मने अपनी पूरी श के साथ असुर राजकुमारी के लए जयजयकार क । म स था क
कम से कम एक शासक तो इतना ईमानदार नकला क उसने स य को अंगीकार कया।
इसके बाद भीड़ क मनोदशा ही बदल गई। कौन जाने? उस दन मने ही रावण क ाण-
र ा क ! म भी भीड़ के साथ वा पस चल दया परंतु इतना थक गया था क कु टया तक
लौटने क श ही नह रही। म सड़क के कनारे बनी पगड़ंडी पर, एक रेशमी व क
कान के आगे ही सो गया। वहाँ और भी ब त से लोग सोते दखे। जब से यु आरंभ होने
का अंदेशा होने लगा था, तब से नगर र क का दमन-च भी कुछ थम सा गया था। अब वे
नगर र ा के लए इतने त पर नह दखते थे अनायास, रा के घने अंधकार म, हाट-बाज़ार
म अ न-बाण क वषा होने लगी। एक तेज़ धमाके के साथ यु आरंभ हो चुका था।
बाज़ार-हाट अ न क चपेट म थे। व ण के अ न-बाणवषक, अपने उन जहाज़ से तीर
बरसा रहे थे, ज ह ने तट से कुछ ही री पर लंगर डाला आ था। तीर हवा म फुँफकारते
ए आते, व तु से टकराते; य को भेदते; फूस क छत पर गरते और उ ह दे खते
ही दे खते नगल जाते।

जब मृ यु लंका पर कसी मानसूनी वषा क भाँ त बरस रही थी तो आकाश को दे ख कर


ऐसा लगता था मानो आग क लपट सह ज ा के प म लपलपा रही ह , आनं दत हो
रही ह । य द मुझे ाण का भय न होता तो म न त प से वह खड़े हो कर, आकाश म
हो रही उस अ त आ तशबाजी को दे खता, जो व ण ने अपने लंका के सा थय के लए
आयो जत क थी।

लोग यहाँ-वहाँ भागने लगे। पूरे आकाश म उनक चीख़ गूँज उठ । माँस के जलने क गध
उठने लगी। घर को ती ता से जल रही अ न क लपट नगल रही थ और गहरा काला
धुआँ गोल-गोल च कर काटते ए, आकाश म जा रहा था। ऐसा जान पड़ता था मानो हम
नक म आ गए ह । म पहली बार कसी यो ा क तरह नह अ पतु एक साधारण क
तरह यु का सामना कर रहा था। मने पाया क यु े क तुलना म एक आम आदमी क
भाँ त यु का सामना करने के लए मुझे कह अ धक साहस क आव यकता थी। वहाँ हम
कम से कम यह जानते तो थे क हमारे श ु कौन थे? यहाँ मृ यु व वध प म छल रही थी:
जैसे गरते ए तंभ, लुटेर के दल, दम घ ट दे ने वाला काला गहरा धुआ,ँ धधकती वालाएँ
तथा तीर क वषा। यहाँ हम बैठ कर ती ा करते थे क मौत हम कब अपने आ लगन म
लेगी?
श ु पहले नाग रक को ही अपना नशाना बना रहे थे। वे सबके बीच आतंक फैला कर, जा
का मनोबल तोड़ना चाहते थे और उसे बल बनाना चाहते थे। दन क रोशनी म वे सेतु पार
करते और अपनी पैदल व अ ारोही सेना के साथ आ मण कर दे ते। ‘हमारा राजा या कर
रहा था?’ वह अपने बड़े-बड़े दाव के बावजूद सुबेला क पहा ड़य म बसे ग म जा छपा
था। आप इन राजा का इतना सा भी व ास नह कर सकते। अब ये अ तकाय जाने कहाँ
चला गया? मेरे पेट म ह का सा भय कुलबुलाने लगा। म भी अँधाधुँध भाग रही भीड़ का
ह सा बन गया; कई बार गरा, कुचला गया और फर उठ कर भगा। सारे ी-पु ष
भयभीत चूह क भाँ त भागते फर रहे थे। मेरे आँसु क झड़ी बरसने को तैयार थी। मने
अपने को काश तंभ का सहारा दया और वहाँ खड़ा हाँफने लगा। आकाश काले धुएँ से
आ छा दत था।

भयभीत भीड़ के बीच एक कार क असहायता व हमारे शासक के त नराशा का भाव


दे खा जा सकता था। म उनके भय को भाँप सकता था। मानो मेरे का उ र दे ने के लए,
एक अ ारोही इकाई, घने धुएँ के बीच कट ई। कुछ लोग घबराहट के मारे भागना छोड़
कर, उसे ही दे खने लगे परंतु उस सेना ने तो लोग को कुचलना व दबाना आरंभ कर दया। वे
लोग अपनी तलवार घुमाते ए, बड़ी ही नदयता से अपने लए माग बना रहे थे। हे ई र!
यह तो राम क सेना क टु कड़ी नकली, पहले मने यही सोचा परंतु उसके बाद व धम
क झलक दखाई द जो दल का नेतृ व कर रहा था। यह तो असुर अ ारोही सेना थी जो
राम क वानर-सेना से लोहा लेने जा रही थी। सड़क पर लोग घायल व मृत अव था म पड़े
थे। म राम व रावण दोन क सेना क ओर से आ रहे तीर से भयभीत हो कर, रावण के
महल क ओर चल दया। चार ओर मनु य व पशु के दे ह कंकाल बखरे दखाई दए।
कुछ री पर जाने के बाद, आकाश धुएँ के बादल से र दखा तो म फेफड़ म ताज़ी वायु
भरने के लए वह थम गया। मृ यु से भी भयावह स ाटे के म य महल खड़ा दखाई दया।
व ण के अ नबाण म अभी इतनी मता न थी क वे महल को छू पाते, तो इस समय राजा
पूरी तरह से सुर त था। केवल उसक बेचारी जा के लए ही ाण पर संकट बन आया
था। मने सागर क ओर दे खा। व ण के जहाज़ बड़े ही आराम से लहर पर तैर रहे थे। म
दे ख सकता था क हज़ार अ न तीरवषक लोग के नवास थान व बाज़ार पर अ न
बाण क वषा कर रहे थे। म एक छोट सी पहाड़ी पर जा चढ़़ा, वह मु य माग से कुछ ही
री पर थी, जससे सागर तट का य और भी प प से दे खा जा सकता था।

राम का सेतु लगभग पूरा होने को था। जहाज़ से मनु य, हाथी व घोड़े उतारे जा चुके थे और
एक लंबी सपाकार पदा तक सेना, लंका क ओर चली आ रही थी। म दे व क पताकाएँ
फहराते ए दे ख सकता था, जन पर व णु का शंख अं कत था। म यह भी दे ख सकता था
क वह सेना, पहली बार इतनी वैभवसंप नगरी को दे ख उ सा हत ई जा रही थी।

मने दे खा क हमारे सागर तट क सुंदर पहली रेत पर व धम व वानर सेना के बीच


भयंकर टकराव आ। अभी कुछ ही दवस पूव तक, ेमी युगल इन थान पर हाथ म हाथ
डाले वचरते थे और माएँ अपने न हे मु ारा रेत म बन रहे पैर के नशान दे ख मु दत
होती थ । उसी रेत पर, जहाँ जीवन इतने सुंदर प म नखरा था, अब मृ यु माँ काली के
प म नतन कर रही थी। असुर सेना ने एक वशालकाय पाषाण उठा कर, दे व सेना पर दे
मारा, जो ब कुल नशाने पर जा कर लगा।

इसके बाद एक और, फर एक और बड़ा पाषाण आया और यह सब तब तक जारी रहा,


जब तक एक पोत लहर के हवाले नह हो गया। असुर क ओर से उ लास का वर गूँज
उठा। ग के ार खुले तथा शेष असुर सेना, पैदल सै नक व अ ारो हय के प म
हरहराती ई बाहर नकल आई। हज़ार कंठ ने समवेत वर म हर-हर महादे व क गजना
क और अपने अ -श स हत दे व सेना पर धावा बोलने चल द । मने आसपास दे खा।
यह तो एक यश वी दन था। सामने र- र तक फैले सागर म असीम नीला आकाश
त ब बत हो रहा था। मेरे आसपास गुँजार करते पतग तथा खले पु प ने कुछ समय के
लए र तथा मृ यु क गंध को भी भुला दया। म अब धरती तथा ओस क गंध को अपने
नासापुट म अनुभव कर सकता था। तभी अचानक, प ता से प रपूण उन आ यजनक
ण म, मुझे सब कुछ साफ़ दखने लगा। मनु य के इन तु छ कायकलाप के त संसार
उदासीन था। इसे कोई अंतर नह पड़ता था क वजय ी राम को मा यापण करे अथवा
रावण को अपनाए। यह असुर क दयनीय दशा के त उसी कार वर था जस कार
कसी बाघ के मृ यु पी शकंजे म कसा हरण! धरती मनु य , पशु तथा धरती के येक
सजीव ाणी के र से रं जत थी। येक ण म, कह न कह , कोई न कोई काल के गाल
म समा रहा था – संभवतः कोई श ु के हाथ रणभू म म दम तोड़ रहा था; कोई घर म घुस
आए ह यारे क हसा का शकार हो रहा था अथवा कसी भूखे शेर के हाथ पड़ गया था;
कोई सड़क घटना म मारा जा रहा था; या कोई दे व क र पपासा शांत करने के लए
ब ल चढ़ाया जा रहा था। संसार म केवल हसा का ही सा ा य था। बाक सब तो एक
अध वराम क तरह था, जसके बाद हसा और भी भयावह तथा हसक प से सामने आती
थी। कतनी व च बात थी, यह कुछ भी मह व नह रखता था। ये मान-स मान व घमंड, ये
वंश तथा वचा का वण, ये नै तकता तथा परंपराएँ, ये हार और जीत क बड़ी-बड़ी बात; ये
सब सृ के वशाल अनु म म कह कोई मह व नह रखती थ , ये नतांत अ ासं गक थ ।

य प मेरे भीतर कुछ धड़क रहा था। भय? आशा? तशोध क भावना? चता तथा इन
वचार क अथहीनता मेरे म त क को चकराने लगी। और इ ह अ नयं त भाव के
घटाटोप के म य कह , मने इस द वानगी से भरे जीवन क साथकता पर वचार करना चाहा।
बाद म, ब त बाद म मुझे इस स य क अनुभू त ई क जीवन का एकमा अथ यही था क
इसका कोई अथ नह था। य प, तब तक इन बात के लए ब त दे र हो गई थी। म महल
क ओर बढ़ने लगा। म सागर तट पर चल रहे घमासान यु से आ रही चीख़-पुकार सुन
सकता था। आकाश म धूल के गुबार मँडरा रहे थे। म पाँव उचका कर अ तकाय को दे खने
लगा। ‘मेरा पु कहाँ था। इससे पूव क वह वयं अपने ही ाण का मोल कर ले, मुझे उसे
खोज नकालना था।’

म अपनी प नी माला के पास घर लौटना चाहता था और य द संभव हो सकता तो अ तकाय


को भी खोज नकालता और उसे समझाता क वह ऐसी मूखता को याग दे और राम व
रावण के इस जगत से बाहर आ जाए। वह था कहाँ? या वह अभी से कसी सागर तट पर
मृतक अव था म पड़ा था? म भारी क़दम से अपने-आप को घसीटते ए, महल क ओर
चल दया।

महल धूल के उठते गुबार के पीछे जा छपा था। ार बंद थे और ार र क पूरी मु तैद के
साथ तैनात थे। म का, अपनी साँस को उखड़ने से रोका और फर अपने मूख पु तथा उस
बेअ ल को कोसने लगा, जसके कारण यह यु आरंभ आ था। मने ाथना क क
अब यह सब शी ही समा त हो जाए। चाहे जैसे भी हो, बस यु समा त हो जाना चा हए।
सूरज मेरी पीठ पर जा प ँचा और मने अपनी अंगु लय क ओट से, आँख को धूप से
बचाना चाहा। मने महल के ांगण म झाँका क संभवतः कह से अ तकाय क झलक दख
जाए। ऐसा लगता था मानो महल वीरान पड़ा हो। फर धीरे-धीरे, जब मेरी आँख धूप क
चकाच ध झेलने के बाद, महल के अंधेरे कोने दे खने क अ य त तो मने दे खा लंबा व
गौरवण असुर स ाट एक छत पर अकेला खड़ा था। वह नरंतर एकटक सागर तट को दे ख
रहा था। यही वह था जसने अपने लए व अपनी जा के लए ऐसी यश वी नगरी
बसाई और वह वयं उसे अपनी ही आँख के आगे धूल-धूस रत होते दे ख रहा था। भले ही
उसके चेहरे पर क ण तथा उदासीन भाव थे परंतु वह अब भी गव से सीना ताने खड़ा था।

वह वायु म लहराती ेत दाढ़ के साथ दै वीय जान पड़ रहा था। मने अपने अहं को पीछे
रखते ए, उसे झुक कर णाम कया। वह मेरी ओर मुड़ा और हमारी आँख आपस म मल ।
उसने हामी भरी और मेरा दय आनंद से ब लय उछलने लगा। उसने अपने इस नधन
अनुचर को याद रखा, इस नधन व बेचारे भ को याद रखा, जो उस समय से उसका साथ
दे ता आ रहा था जब वह युवाव था म अपने रौ प से दे व को भी कं पत करने म सफल
रहा था। मने एक ार र क को अपनी ओर आते दे खा। स ाट अपनी छत क मुँडेर से
अलोप हो गया था। ार र क ने मुझे महल म वेश करने का आदे श दया। य ही मने
रावण के ग के वण ार से वेश कया तो म वह खड़ा, महल क सुंदरता का पान करने
लगा। मुझे बड़ी ता से एक ओर धकेल दया गया। इसके पूव क म कोई वरोध कट
कर पाता, एक रथ मेरे नकट से, ब त ती ग त से नकल गया। जब मने उसम पड़े शव को
दे खा तो अपश द क बौछार मुख म ही थम गई। एक नज व दे ह रथ म पड़ा था। सर
इतनी बुरी तरह कुचला गया था क पहचान होना क ठन था। य ही रथ मुड़ा तो मने उस
को पहचान लया। वह तो व धम था।
36 पु मोह

रावण
वजय ी के साथ हमारे दवस क समा त ई। क को व क मृ यु के प ात सेना क
कमान स प द गई थी। उसने, सुमाली तथा ह त के कुशल श -संचालन ने अपना जौहर
दखाया, उनक ड गय ने ही राम क सेना को ततर- बतर कर दया। राम क वानर-सेना
नृशंसता से कुचली गई। ह त व ण के जहाज़ी बेड़े से तीन यु पोत पर नयं ण पाने म
सफल रहा। ये सारी घटनाएँ आने वाले दन म ब त सी बात को प म कर सकती थ ।
अनेक य ने व को अपनी ांज ल अ पत क , जसे महल के मु य ार पर
अं तम दशन हेतु रखा गया था। जो लोग उसके जीते-जी, मारे भय के पास नह फटकते थे,
अब वही कतार बाँधे असुर सेुनाप त के दशन करने आ रहे थे। म इस के घमंडी
वभाव, उसक मनोवृ य तथा कसी क परवाह न करने वाली वृ से घृणा करता था।
उसने अ थर दशा पर वश पाने के लए, जो अ याचार कए थे, उ ह ने सदा के लए,
असुर ारा कए जाने वाले धम तथा क णा के दावे को समा त कर दया था। परंतु मने
व धम सरीखे लोग के कंध पर ही इतना बड़ा सा ा य तैयार कया था। उसके जैसे
य के अभाव म; जो क कसी के ाण लेने म ण भर का भी संकोच नह करते थे,
जो अपनी ू रता के लए जाने जाते थे…, य द वे न होते तो यह असुर सा ा य एक नधन,
वणसंकर तथा भूख से अधमरे असुर लड़के क आँख क एक चमक मा बन कर रह
जाता।

जब म अपने मं य तथा संबं धय के साथ बाहर आया तो, वहाँ खड़ी भीड़ दो ह स म बँट
गई। म अपना सर झुका कर, अपने धान सेनाप त के नज व शव के आगे खड़ा रहा। उस
थत कर दे ने वाले स ाटे के म य उसक प नी व पु ी क धीमी सुब कयाँ सुनी जा सकती
थ । म उस शव के हमशीतल पैर को पश करते समय, अपने हाथ के कंपन को वश म
नह रख सका। मने मा दायक औघड़ शव से ाथना क । मने उस क आ मा के
लए हाथ जोड़े जसने यथासंभव ू रतम अपराध कए थे ता क उसके अपने लोग, अपनी
खोई ई त ा पुनः अ जत कर सक।

मृतक क शोभाया ा सड़क से नकाली गई। अपने सेनाप त के साथ ाण क आ त दे ने


वाले सै नक के शव भी साथ लाए गए थे। जब आग के धधकते गोले, सूय ने वयं को सागर
के हवाले करने का न य कया तो मेरे उन लोग क जलती चता से उठता काला गहरा
धुआँ आकाश क ओर जा रहा था, ज ह ने राम क सेना से अपनी असुर मातृभू म क र ा
म ाण गँवाए। सागर के सरी ओर, श ु प क जलती चता को भी दे खा जा सकता
था। परंतु हमारे यहाँ शहीद ए य क संतान का सामू हक ःख भी, हमारे खेमे के
उ लास को कम नह कर सका। हम उन े दे व से आगे रहे थे और आज उ ह ऐसा सबक
दया था, जसे वे कभी नह भुला सकगे। मने आशा कट क क वे मेरी पु ी को वा पस
छोड़ कर लौट जाएँग।े म अब इतना वृ हो चला था क कसी अथहीन यु म अपने अ छे
लोग व जा को न करने क ताब नह रही थी। म दे व से जो घृणा करता था, वह तो ब त
पहले ही कह वलीन हो गई थी। म मान-स मान, तशोध, यु अ भयान तथा जातीय
े ता से परे जा कर प रप व हो चुका था। यह संसार इतना वशाल था क इसम दे व तथा
असुर दोन ही समान प से समा सकते थे। इसम राम तथा रावण दोन के लए ही पया त
थान था। बस वह मेरी पु ी को छोड़ दे । वह कभी उसके साथ अ छ तरह से पेश नह
आया और न ही कभी आएगा…। इन दोन का जोड़ा भी व च था; वे राम और ल मण,
एक राम था जो अपनी प नी के लए हज़ार य व पु ष के ाण को न करने म भी
नह सकुचा रहा था और सरी ओर वह ल मण था जो चौदह वष के लंबे वनवास म अपनी
प नी को अकेला छोड़ आया था।

जब चता क अ न धीरे-धीरे शांत हो गई और आम लोग क भीड़ छँ टने लगी, तो म


अपने क क ओर लौट आया। चँ मा तीन चौथाई प म भी चमक रहा था और उसने
लंका पर अपनी चाँदनी से एक पहला जा ई जाल सा बुन रखा था। सागर शांत था और
मधुर वायु के झ क से ना रयल के वृ झूम रहे थे। ताड़ वृ के पतले व पहले कनार
पर पसरी चाँदनी रेत पर ब त ही सुंदर नमूने उकेर रही थी। य द हाल ही म वैध क भट
चढ़ य तथा अनाथ हो चुके ब च को भुला दया जाए तो यह, ब त ही मनोरम रा
थी। म यु क इस वभी षका पर और वचार नह करना चाहता था। मेरे म त क म कई
राग च कर काट रहे थे। य ही मने अपने क म वेश कया, तभी वीणा पर पड़ती
चं करण ने मेरा यान आक षत कया। जाने कतना समय हो गया था, मुझे इस वा यं
को बजाने का समय ही नह मला था। मुझे यह व च वा यं हमालय क तलहट से
मला था। यह उस समय क बात है जब हम सभी एक हम तूफ़ान क चपेट म आ गए थे।
महान पवत क भ ता, मेरे य भगवान शव का धाम, हम सभी को अपने वश म कर
चुका था। मृ यु को ब त समीप से दे खने का अनुभव मला और फर एक कसान क
कु टया के कारण ाणर ा संभव हो सक । इस घटना ने मुझे वन ता का पाठ पढ़ाया।
इसने मुझे यह भी सखाया क यह मनु य जीवन कतना मह वहीन था। मने जीवन क
सुंदरता के वषय म जाना और हमालय क तलहट म सु र बसी उस कृषक क कु टया म
अपने भीतर छपे संगीत को पहचाना। जब तक म अपने वमान पर सवार हो कर, अपने
द ण नवास क ओर चला, तब तक म एक नपुण वीणावादक बन गया था। तब यह
संगीत ही मेरा जुनून बन गया और मने असुर के चड, मृदंगम, मलावु, त मल तथा
मड लम व गंधव क यं णादायी बाँसुरी क धुन के साथ अ भनव योग कए। मेरे पास
दे श- वदे श से आए कलाकार का जमावड़ा रहता य क म एक यात संगीत के प म
स पा चुका था। मने लंका के बगीच म अनेक भ संगीत रा याँ तीत क ह, जहाँ
जाकर म एक सा ा य से जुड़े सभी तनाव तथा दबाव भूल जाता और अपने संगीत ारा
बजाय जा रहे राग तथा धुन म खो जाता, मेरी वीणा पर थरकती अंगु लय से जो राग
नकलते, उनक धुन म, म न हो जाता।

आज ऐसी ही जा से भरी रात थी। म अपनी अंगु लय को वीणा पर दौड़ाना चाहता था।
जस कार कोई ेमी अपनी ेयसी क ओर बढ़ता है। उसी कार म आगे बढ़ा और वीणा
को, नेह से अपनी गोद म धर लया। फर म यु को भूल गया; राम और उसक वानर सेना
को भूल गया; म जी वत तथा मृतक को भूल गया और यहाँ तक क अपने-आप को भी
भूल गया। म एक ऐसा पंख बन गया, जो हवा के साथ कह उड़ता जा रहा था; बेपरवाह,
ल यहीन, भारहीन और कसी भी तरह क आस से परे! म न तो धरती से आब रहा
और न ही आकाश से। म उस समय केवल म था। मेरे प नी मंदोदरी ने क म वेश कर,
अपना यारा मुख मेरे कंधे पर टका दया था; मुझे तो उसक भी सुध नह थी। म नीचे बाग़
म चल रहे ज से भी अन भ था, जसे असुर अपनी अ थायी वजय के उपल य म मना
रहे थे। जब मेरी अंगु लय ने उन तार को चूमा तो म केवल उस व गक दै वीय सुर के
अ त व के त ही सजग था, जो मेरे आसपास वा हत था। मेरे लए उस समय मानो
उससे बढ़ कर, जीवन म कुछ था ही नह !

“महाराज! मेरा पु कहाँ है?” म एक ही झटके म यु तथा मृ यु के तांडव से भरी इस


नया म लौट आया। मुझे सुध आई तो ने म ोध क र म आभा झलक उठ । पद के
पीछे से भ क भ व कुबड़ी आकृ त कट ई। ‘इस भ ुक का इतना ःसाहस, इसने
मेरे नजी क म कससे पूछ कर वेश कया?’ इसे यह अनुम त कसने द ?’ परंतु इससे
पूव क म कोई त या दे पाता। वह मेरे पाँव पर गर चुका था और अपने दोन हाथ से
मेरे पाँव जकड़ लए थे। म वह थर अडोल खड़ा रहा; समझ नह पा रहा था क आ ख़र
क ँ या? फर मने हौले से उसे उठाया। भ संकु चत हो गया और कसी भयभीत मूषक
क भाँ त सकुड़ गया।

“सब ठ क है।” मने कहा, य प मेरा अपना वर इस बात के लए इतना न चत नह था।

“ मा कर, मने आपको पश करके षत कर दया।” वह नीचे दे खते ए, भराए सुर म


बोला।

मंदोदरी तेज़ी से उस वृ क ओर बढ़ और उसके हाथ थाम लए। उसने वयं को छु ड़ाना


चाहा। वह अपने भीतर यथासंभव क णा सहेज कर बोली, य प म तो कभी ऐसा साहस
नह कर सकता था, “भ ! या आ?”

यु र म, भ क दे ह सस कय से काँप उठ । मने अ प श द म सुना क भ अपने


द क पु अ तकाय क तलाश म था। अपने मन के भीतरी कोने म म यह जानता था क
अ तकाय क शरा म मेरा र दौड़ रहा था और मने उसे जानबूझ कर भुला रखा था।
यह व मरण मेरे काले अतीत के कई अवां छत य को आँख के आगे ले आया। मने
अनुभव कया क यह बूढ़ा भ ुक मेरी नजी तथा गंद अटारी म घुसपैठ कर रहा था, जहाँ
मने अपने सभी काले गु त रह य, संसार क नज़र से भी छपा रखे थे।

तभी मेरे पु ने दनदनाते ए क म वेश कया। म उसक दे ह से आती म दरा तथा घमंड
क गंध को अनुभव कर सकता था। एक साए क तरह, काली सी आकृ त ने उसके पीछे -
पीछे वेश कया। उसे दे खते ही, भ उसक ओर दौड़ा। अ तकाय ने वृ को बड़ी बे खी़
से पीछे धकेल दया। भ लड़खड़ाया और नीचे गर गया। मेरा मुख ोध व ला न से लाल
हो गया। कमीने, अ ेत व भ ा अ तकाय मेरे पु मेघनाद क बराबरी पर खड़ा था और वे
दोन स ाट के नजी क म उप व कर रहे थे।

“ पता ी! हमने उन को मज़ा चखा दया! आपको दे खना चा हए था क मने कस


कार, एक क धोती म आग लगा द थी। … और अ तकाय का तीर तो ल मण के पछवाड़े
पर जा लगा। ही-ही-ही…!” अ तकाय भी इस ठहाके म शा मल हो गया और मेघनाद क
पीठ पर एक धौल रसीद कर दया।

“मेघनाद…!” म गला फाड़ कर च लाया। “ या माता- पता के स मुख इसी अभ वर म


वातालाप कया जाता है?”

“अ तकाय…! अपने पता से मा माँगो।” म आगे बढ़ा और उसके गाल पर एक करारा


तमाचा जड़ दया। मेघनाद एक ण के लए तो भ च का रह गया और फर मुख से एक भी
श द कहे बना, ल जा से सर झुकाए, वहाँ से बाहर चला गया। अ तकाय भी उसके पीछे
चल दया। भ ने खुद को घसीट कर उनके माग म खड़ा कर दया और उनका माग रोकने
क चे ा क । “अ तकाय! मत जा। भगवान के लए मेरे साथ लौट चल। हम यहाँ से कह र
चले जाएँग।े हम ाय प पर चले जाएँग।े भगवान के लए वा पस चल!”

“बूढ़े कमीने! रा ते से हट जा।” अ तकाय के एक और ध के ने भ को पुनः गरा दया।


“जा कह नक म सड़!” इ ह श द के साथ भ को कोसते ए, अ तकाय मेघनाद के साथ
अंधकार म कह लोप हो गया।

मंदोदरी ने मुझसे कुछ कहना चाहा परंतु मने उसे हाथ के संकेत से चुप करवा दया। मने उसे
भी बाहर जाने का संकेत कया। म एकांत म रहना चाहता था। म अकेला खड़ा, उस व च
कतु सुंदर सी रात को दे ख रहा था। पु तो पु ही होते ह; भले ही उनका ज म राजमहल म
आ हो अथवा कसी नधन दासी क कु टया म! परंतु इस कार का घमंड तो न त प
से वनाश का सूचक था। अचानक ही एक चीख़ सुनाई द और इसके बाद महल के उस
बाग़ीचे म से हो-ह ला होने लगा, जहाँ कुछ दे र पहले ज मनाया जा रहा था। कुछ तो ब त
ही भयंकर घट गया था। मेरा दल तेज़ी से धड़कने लगा। म बाग़ क ओर भागा, उसी भगदड़
के बीच मुझे बुरी तरह से टू ट चुके भ के शरीर पर पाँव रख कर भागना पड़ा, जो मेरे नजी
क के फ़श पर मृत ाय पड़ा था।
37 मृ यु क पदचाप


म थोड़ी दे र बाद उठा। दल ब त भारी हो रहा था। अब कसी भी व तु का औ च य ही या
रहा था? कुछ बचा ही नह था जससे आने वाले कल क कोई उ मीद रखी जा सकती। मेरा
पु हमेशा के लए कह खो चुका था। म जानता था क उसे कभी नह दे ख सकूँगा या फर
हो सकता है क उसका न ाण शव ही दे खने को मले। व च प से, मुझे असुर स ाट
के त समानुभू त होने लगी, कसी स ाट अथवा महान नेता के प म नह , जसने असुर
वंश के लए अपना जीवन तथा परा म यौछावर कर दया था परंतु यह ःख एक खयारे
पता क ओर से सरे खयारे पता के लए था। अपने शाही व तथा राजमुकुट उतारने
के प ात वह मेरी तरह एक सामा य ही तो था। अथवा म अपने-आप को मूख बना
रहा था? या श शाली व समथ लोग कसी सरे प म अ स ता व ःख का सामना
करते ह?

महल म चार ओर अभे चु पी का आवरण छाया था। सभा से आती म म रोशनी म, मने
बाग़ म लगे वृ तथा झा ड़य के त बब दे खे। कुछ न कुछ तो गु त प से चल ही रहा
था। मने ब त पहले ही नणय ले लया था क अब मह वपूण य के संग से मेरा
कसी भी कार से, कोई लेन-दे न नह होगा परंतु कौतूहल से कैसे पार पाया जा सकता है?
मने वातायन से भीतर झाँका तो स ाट को अपने सहासन पर सर झुकाए बैठे पाया, उसका
चेहरा मरणांतक प से पीला पड़ा आ था और उसके मं य ने धरती पर कुछ नज व
पड़ी दे ह के इद- गद डेरा डाल रखा था। म तनाव त हो उठा। मने ास रोक कर, कसी के
हलने क ती ा क ता क मुझे वहाँ का प य दखाई दे सके। “यह अ य है।”
स ाट ने हमशीतल वर म कहा। मं ी ाकुलता से पलटे ।

“जब म वहाँ प ँचा तो य ब त ही वीभ स था। हमारे लोग बड़ी ही नृशंसता से काटे जा
रहे थे। चार ओर घने अंधकार का साया था और यह पता नह चल पा रहा था क कौन
कसके प के य क ह या कर रहा था। म वहाँ से हट गया और ह रय को पुकारा।
य ही हम वहाँ प ँच,े मने दो गहरे साए दे खे। म न त प से तो नह कह सकता परंतु
दे ख कर तो यही लगा क वे दोन अंगद व उसका म थे। मने उ ह वश म करना चाहा,
अंगद पर अपनी कटार का नशाना भी साधा परंतु उसे चोट नह आई और इसी ामक
वातावरण का लाभ उठाते ए, वे दोन बच नकले। तभी महाराज भी वहाँ आ प ँचे।
संभवतः आप अंगद क चीख़ सुन कर ही सतक ए ह गे।” ह त ने कहा और उसके बाद
एक तनाव से भरी चु पी छा गई।
“यह अव य ही कसी भे दए का काम है। मुझे लगता है क हम असुर के काय करने क
शैली से परे हट रहे ह। आज हमारी जीत लगभग सु न त थी और जब हमने अपनी वजय
को पराजय के ू र पंज से छु ड़ा ही लया था क यह सब घट गया। हम तो दास बना दे ना
चा हए। मेरे दो व र मं य को, मेरे ही महल के बाग़ीच म नममता से मार डाला गया। हम
एक ऐसे श ु का सामना कर रहे ह, जसके पास कोई नै तकता नह , उसे न तो उ चत-
अनु चत का ान है और न ही वह धम के वषय म कुछ जानकारी रखता है। वे ब त ही ू र
ह तथा अपने ल य क ा त के लए कसी भी सीमा तक नीचे गर सकते ह। हम इस
समय दे श ो हय तथा गु तचर से घरे ह। मेरा भाई व ासघाती बन गया, मेरे म ने मेरे
साथ ोह कया, म तो यह वचार कर रहा ँ क उनके अ त र और कौन है जो दे व क
सहायता करेगा? सुमाली व मा यवान भले लोग थे। हो सकता है क वे यो ा न रहे ह परंतु
वे ऐसे अंत के अ धकारी भी नह थे। क! हमारा उ े य यही होना चा हए क हम श ु क
सेना को अ धक से अ धक हा न प ँचा सक। म नह चाहता क हम भी उनक तरह
आततायी बन कर आ मण करने पर उता हो जाएँ व न ालीन य को मौत के घाट
उतारने लग कतु हम उ ह पकड़ने के लए छल व कपट का आ य तो ले ही सकते ह। मेरे
पु को खोजो, य द उसक सुध लौट आई हो, तो उसे मेरे पास ले आओ। ह त, सुमाली
और मा यवान जो भी करते थे, अब उस काय को शां त थापना तक, तुम संभालोगे। हम
रणनी त बनानी होगी ता क उ ह उनके ही तरीक़े से सबक सखाया जा सके।” स ाट ने कड़े
व ढ़ श द म कहा।

मने एक गहरी साँस ली। वे तो बेचारे वृ मं ी थे। वे सावज नक प से ब त भले व नेक


माने जाते थे परंतु उनक मृ यु मेरे लए कोई मह व नह रखती। इस संसार म उनके समान
ब त से लोग भरे ए थे, ज ह पलक झपकते ही वक प के प म तुत कया जा सकता
था और कोई यह अंतर जान भी न पाता। परंतु भीतर जो भी घट रहा था, वह ब त ही
आकषक था और म अपने थान पर अ वचल खड़ा रहा। शी ही, मने मेघनाद तथा
अ तकाय को सभा म वेश करते दे खा। मं ी अपने आसन पर वराजमान थे कतु जन दो
मं य क नृशंस ह या क गई थी, उनके शव धरती पर पड़े थे और शीश द ण क ओर
मुड़े ए थे। ना रयल के खोल से तैयार कए गए तैल द पक उनके सर के पास टम टमा
रहे थे। अ तकाय व मेघनाद वे शव दे ख कर तं भत रह गए। कुछ ण तक, कोई भी कुछ
नह बोला। दोन युवक ने धरती पर णाम करते ए, मृतक को अपनी ांज ल अ पत
क । फर मेघनाद ने अपना थान हण कया और अ तकाय वह धरती पर, उसके नकट
जा बैठा। रावण ने अ तकाय को दे खते ही अपनी भ उठाई परंतु दोन युवक ने अपने बुजग
क इस अ च क उपे ा कर द ।

“कल जब क पूव दशा से आ मण करेगा तो ह त अपने वश म कए गए यु पोत क


सहायता से सागर क ओर से धावा बोलेगा और द यु के अ य जहाज़ को पकड़ने अथवा
डु बोने का य न करेगा। मुझे पूरा व ास है क कल वे दोन भाई ही यु का नेतृ व करगे।
चूँ क कल उनका सेतु टू ट चुका है, हो सकता है क वे आज छोट ड गय का योग कर
और नगर क उ री दशा से हमारे बाएँ प को घेरना चाह। हम इन पहा ड़य को अपने
लाभ के लए योग म लाएँगे और यह यान रखगे क बड़े व भारी पाषाण पूरे बल के साथ
नीचे, राम क सेना पर लुढ़काए जा सक। श ु क हमारे नगर ार तक प ँचने क ती ा
करो और फर उन पर प थर तथा गम तेल से खौलते पीप क बौछार कर दो। अपने शला
ेपक तथा अ न बाण का पूरे कौशल से योग करो। ह त उ ह सागर क ओर से
घेरेगा और उनक वापसी का माग रोक दे गा या वह कम से कम व ण को तो उलझा ही
सकता है ता क उ ह सागर क ओर से कसी भी कार क कोई सहायता न मल सके।
सहायक सेनाप त धू ा को यह काय स पो। उसे अपने पूरे भाव के साथ वानर सेना म
आतंक फैलाना होगा। जब उन पर चार दशा से हमला होगा तो उस समय अ तबल
मुख सुरांतक, ग के ार खोल कर, शाही हा थय को उन पर छोड़ दे गा। उ ह हमसे यह
अपे ा नह होगी क हम ग के ार खोलगे। उ ह भीतर आने दो और यह व ास करने दो
क उ ह ने असुर के ग के भीतर वेश करके, ब त बड़ी वजय ा त क है। जब वे
पहा ड़य तथा नगर ाचीर के म य संकरे थान पर फँस जाएँ, तो उस समय उन पर वे
वशालकाय हाथी दौड़ा दो। हम वानर को दखा दगे क हम या कर सकते ह। और
मेघनाद तुम, तुमसे म एकांत म कुछ वातालाप करना चाहता ।ँ म तु ह एक ऐसा काय
स पूँगा जो दे व सेना क कमर तोड़ कर रख दे गा। हमारे इन महान शहीद के अं तम सं कार
का बंध करो। आज के यु म जो लोग शहीद ए ह। उनके प रवार म जाकर शोकसंत त
प रवार को सां वना दान करो। हम उ ह यह आ ासन दे ना होगा क उनके इस ःख के
समय म, पूरा असुर समुदाय उनके साथ है और रा कभी अपने शहीद को व मृत नह
करेगा।” यह कह कर स ाट अपने थान से उठ खड़ा आ तथा अ य मं ी भी अपने थान
पर स मानवश खड़े हो गए।

पूव दशा केस रया रंग म रंगी थी और वृ पर प ी चहचहाने लगे थे। असुर स ाट जो भी
करने जा रहा था, उसे सुन कर म रोमां चत हो उठा परंतु साथ ही साथ एक अनजाना भय
भी सता रहा था। म स था क अंततः हम मोच से नेतृ व तो कर रहे ह। स ाट ने अपना
खोया शौय पुनः पा लया था और इस बार तो अनुभव भी उसके साथ था। यह एक र पात
से भरा नृशंस यु था और मेरे पु को कसी गु त योजना का अंश बनाया गया था। म नह
चाहता था क वह कसी भी प म, इस यु म शा मल हो परंतु पु तो पु ही होते ह। म
बुरी तरह से थक गया था। म घर गया और योजना बना रहे राजा तथा धावा बोल रहे
कुमार को ब त पीछे छोड़ आया। म चाहता था क जी भर कर म दरापान क ँ और कसी
ान क भाँ त सो जाऊँ!
38 कसके लए?

रावण
दो मं य क मृ यु मेरे लए कसी बड़े सदमे से कम नह थी। मने आज तक जतने भी यु
कए थे, यह उनम से सबसे ही व च था। पूरा महल गु तचर से भरा पड़ा था। ह यार को
बना कसी दं ड के मु कया जा रहा था। मने उ मीद क क आज हम राम का समूल नाश
कर दगे। मने सुना था क वानर उसे व णु का ही अवतार मानने लगे थे। मुझे यह जान कर
और भी सदमा लगा क साधारण असुर भी राम क द ता म व ास रखने लगे थे।

आज, पूरी आशा है क य द शव क इ छा ई तो म उसके मुख से द ता का मुखौटा


उतार फकूँगा। म ब त ाकुल था और बस यही चाहता था क उस दे व कुमार से आमना-
सामना हो जाए। वह मुझसे आयु म कह छोटा था, परंतु मेरी भुजा म अब भी ब त श
थी। ह त मुझे चेता चुका था क मुझे वयं यु के मैदान म नह उतरना चा हए य क
ऐसा करना मेरे ाण के लए संकट का कारण बन सकता था। हमारे बीच ही व ासघा तय
क कमी नह थी और मेरी ही सेना क ओर से आया एक बाण, हमेशा के लए असुर स ाट
का ाणांत कर दे ता परंतु म इस यु के लए तड़प रहा था। जब मेरे अपने लोग ाण क
आ त दे रहे थे तो म अपने नजी क म ार बंद कर, कैसे बैठ सकता था? मने एक र क
को बुलवाया तथा सभी संत रय को बरामदे म पं बनाने को कहा। मने उनम से, उसे चुना
जो मेरे जैसे डील-डौल वाला था और बाक सबको वहाँ से हटवा दया। मने उस उपयु
को व उतारने को कहा और फर उसे एक छोटे से क म बंद कर दया। इसके
बाद म उसक वद पहन कर यु भू म म जा प ँचा। म जानता था क यह ब त बचकानी
तथा मूखतापूण योजना थी, परंतु म इस वषय म कुछ नह कर सकता था। म कुछ करना
चाहता था और यह दे खना चाहता था क मेरे लोग यु भू म म या जौहर दखा रहे थे।

म अ तबल क ओर गया, जो भी पहला अ दखा, उसी पर सवार आ और उसे एड़


लगाते ए, पूव ार क ओर चल दया। म वहाँ से कसी बादल क तरह उड़ते धूल के
गुबार को दे ख सकता था। वहाँ प ँचते ही मुझे जस म तथा हसा का सामना करना पड़ा,
वह तो मेरी क पना से भी परे था। जैसा क योजना बनाई गई थी, सुरांतक नर-वानर पर
शाही हाथी छोड़ चुका था। वे ग क ाचीर के संकरे ांगण तथा तीन सौ फुट से भी अ धक
ऊँची खड़ी च ान के म य जा फँसे थे। ग के ार खुलने पर जो वानर सेना भीतर दौड़ी
चली आई थी, उसने अपने-आप को क क बलशाली सेना तथा मतवाले हा थय के बीच
फँसा पाया। मने अपना अ , ग के भीतर, एक नकटतम पहाड़ी क ओर बढ़ा दया, जहाँ
से और भी प य दे खा जा सकता था। वानर नृशंसता से कुचले जा रहे थे। उन पर तीखी
खड़ी च ान से भारी-भरकम पाषाण लुढ़काए जा रहे थे। नीचे से क क सेना बाण क
वषा कर रही थी। असहाय वानर पर खौलते तेल से भरे पीपे लुढ़काए गए और उनम से
कुछ घटनावश, मतवाले बने हा थय पर जा गरे, वे दद के मारे और भी बुरी तरह से
तल मला उठे । सु ीव श ु के आ मण का नेतृ व कर रहा था और मने दे खा क वह अपने
वानर को बचाने क हरसंभव को शश कर रहा था। तीर बड़े ही ख़तरनाक तरीक़े से उसके
सर के पास से नकल जाते और कुछ तो उसके कंध व जांघ पर भी जा लगे थे परंतु वानर
का राजा अपने मोच पर डटा रहा। उसके लए वा पस जाने का माग बंद हो चुका था। वह
इस जाल से जी वत बच कर नह लौट सकता था। क इस बात का पूरा यान रखने वाला
था। हमारी योजना का यह भाग ब कुल कारगर रहा। मने अपना अ उ री छोर क ओर
मोड़ दया, जहाँ से राम व ल मण यु का नेतृ व कर रहे थे।

मेघनाद ने आ मणका रय के उ री ार तक आने क ती ा क और उसी ण ग के


बाहर असुर के रथ आ डटे । अ को रा के घने अंधकार का लाभ लेते ए, समीप के
वन म छपा दया गया। केवल थोड़ी सी सेना उ री ग पर पहरा दे ती रही और रथ को भी
वन म अलग से छपा दया गया। फर सबुह से पहले, रथ को पुनः तैयार कया गया और
फर दोपहर होते-होते, मेघनाद क सेना ने राम पर पीछे से धावा बोल दया। इस दौरान,
ह त व ण के यु पोत को मोच से हटाने म सफल रहा था, इस कार राम क सेना के
पास नौसेना क ओर से कोई सहायता नह थी। मेघनाद क रथ सेना ने बड़ी ही ती ग त से
वानर सेना को घेर लया और उनका वध करने लगी। जो असुर वृ तथा ग म छपे थे
तथा ातःकालीन आ मण के समय पीछे रहे थे, अब योजना के अनुसार वे सभी एक साथ,
राम क वानर सेना पर तीर बरसाने के लए तुत थे। दोन भाई जाल म फँस गए। उसका
एक भाग मेघनाद क ओर था। वह उसक र ा कर रहा था। ‘ सरी ओर से यह कमान कौन
संभाल रहा है?’ मने बेहतर तरीक़े से दे खने के लए अपनी गदन उचकाई। वह जो भी था,
मेघनाद से कह े दशन दे रहा था। और जब धूल का गुबार छँ टा तो मने दे खा क वह तो
मेरा पु अ तकाय ही था। वानर सेना चार दशा से घेरी जा चुक थी और असुर वानर
का संहार करने म जुटे थे। केवल हनुमान क सेना पूरे परा म व शौय के साथ डट रही।
राम क सेना के अ धकतर , मु य भू म पर, अधटू टे सेतु के सरी ओर फँस गए थे।

तेज़ी से बढ़ती ड गय तथा ह त ारा क ज़े म कए गए यु पोत ने राम क सेना के


अ म मोच को उन लोग से काट दया जो मु य भू म पर कु टल बूढ़े कमीने जांबवन के
अधीन रह गए थे। बाली का अ सी वष य बूढ़ा सेनाप त, अब भी सु ीव के अधीन अपनी
सेवाएँ दान कर रहा था। म अपने महल क ओर लौट आया, म वयं ही अपने साह सक
कारनामे कर दखाने क कशोरो चत उ कंठा को दे ख आ य म था। मेरे लोग योजना के
अनुसार लड़ रहे थे। य द सब कुछ योजना के अनुसार रहा तो आज हम जीत का ज मना
सकगे। जब तक म महल के ार तक प ँचा, तब तक म अपने नकली वेष से बाहर आ गया
था परंतु जांबवन का वह बने रहना, मेरे मन म शंका उ प कर रहा था। ‘उस धूत बूढ़े श ु
सेनाप त ने अपने कुछ लोग को पीछे ही य रोक लया था?’ ‘वह व ण कहाँ था? या
इसम भी उनक कोई चाल थी?’ मुझे जो समाचार मले थे, उनसे तो यही पता चलता था क
वह अपने बचे-खुचे जहाज़ के साथ, प से ब त र, गहरे सागर म लौट गया था परंतु
द यु-राज क ओर से यह वहार शं कत कर रहा था, वह इस तरह पेश आने वाल म से
नह था। म कसी चीज़ को ब त याद कर रहा था। मुझे ह त क याद सता रही थी।

म अपनी पु ी को दे खने के लए बगीचे क ओर चल दया। वहाँ बाग़ म तो मानो एक अलग


ही संसार बसा था। य द कोई ब त कान लगा कर सुनता तो यु का ब त धीमा सा
कोलहाल ही सुनाई दे ता था अ यथा यह एक आम दन क भाँ त था। मने अपने यु तथा
राम से जुड़े सभी वचार तथा चता को वह तलांज ल दे द और एक छतरीनुमा इमली
के वृ के तले खड़ा हो कर, आसपास बसे संसार क सुंदरता म म न हो गया। म सागर क
म म आहट सुन सकता था और ह क वायु म हलते प को दे ख सकता था। मेरे पछले
ागंण म गुबरैल ने जो सुर छे ड़ा था, मुझे उसम भी सुर सुनाई दे रहा था। मेरा मन अपने
शानदार बालपन म जा प ँचा, जो इस प के वन तथा स पहा ड़य म ही बीता था। यह
भी कतने आ य क बात थी क मन ने पीड़ादायी अतीत, यं णादायी नधनता, दन-
त दन होने वाले अपमान तथा भूख के तल मला दे ने वाले क को भुला दया था और
उसे केवल स ता म बीते ण ही मरण रहे। इन बीती याद म भी आनंददायी पीड़ा थी;
हमेशा के लए खो चुक चीज़ के लए एक गहरी तड़प; इन व तु के इद- गद बुना गया
एक जा , जो क उनके आसपास हो सकता था परंतु नह था; गु त आशा तथा य
कुं ठत इ छा क धूल! और दन- त दन के जगत क वे छोट -छोट चीज़… वे सब
कसी कोयल क कूक या गलहरी क कुट-कुट क तरह मेरे दय के साथ थ । जो कुछ भी
पीड़ादायक था, वह क ह गहरे साय के पीछे जा छपा था और लंबे समय से भुली द गई
स ता नए सरे से जगमगा उठ थी।

सीता अशोक वृ के तले बैठ कसी दे व त क भाँ त नद ष लग रही थी। उसके समीप ही
मेरी भतीजी जटा बैठ थी। मुझे उसे सीता के समीप दे ख कर स ता नह ई। म अपनी
पु ी से एकांत म वातालाप करना चाहता था। जटा का चेहरा-मोहरा, काफ़ हद तक,
अपने धूत पता कुंभ के समान था। कुंभ भचार के अपने ही संसार म म न था। ढ़
संक प तथा च र के अभाव म, उसक महती मह वाकां ाएँ ब त पहले दम तोड़ चुक
थ । वह ायः अपने क म, म दरा के नशे म चूर पड़ा रहता। उसने अपने लए अगाध क त
तथा नजी सा ा य क कामना क थी, परंतु उसके पास जीवन म कभी महान व तुएँ
अ जत करने क संक प श नह रही। संभवतः वह आजीवन मेरे ही साए तले पलता
रहा। म सदा उसका अ ज बना रहा और आपक सफलता का लाभ, आपके सगे भाई-
बहन से अ धक कोई और नह लेता। संभवतः म जो भी था, यह प प से मेरा भा य
बन गया। म उस आयु म था, जहाँ आकर कोई नह सोचता क कड़ा प र म, संक प तथा
मह वाकां ा ही कसी क नय त रचते ह। ब त समय पहले, मेरे भीतर बसने वाले ना तक
ने, बना कसी पूवसूचना के दम तोड़ दया था। मने इतना कुछ दे ख लया था और इस बात
पर व ास करने लगा था क मनु य वयं अपना भा य गढ़ता है और इसके सवा कुछ भी
मह व नह रखता, शेष सब नरथक है। इसके अ त र आज भी जब म वष पूव, उस
अंधेरी गुहा म वा त वक असुर स ाट महाब ल के साथ कए गए बचकाने तक- वतक को
मरण करता ँ तो सर ल जा से झुक जाता है। मने उस वृ को भा वत करने के लए
जस ता तथा मूखता के साथ अपना वह बे दा दशन बघारा था, उसे मरण कर होठ पर
मु कान नाच उठ । कुछ तो ऐसा था जो मनु य क मान सक मता तथा सामा य ान क
सीमा से परे था। ढ़ संक प, कड़ा प र म तथा गु ारा कहे गए वे सभी वचन तभी
भावी व उपयोगी होते ह जब आपको यह न त करना हो क सामने घट रही घटना के
लए कैसी त या दे नी है परंतु मने व तु के म को दे खा, दन और रात कस कार
बदलते थे और कस कार जी वत ाणी ज म लेत,े जीते तथा ाण का याग कर दे ते।
य प तब भी ब त सी चीज ऐसी थ जनक ा या केवल भा य अथवा नय त के
मा यम से ही संभव थी।

सीता का हा य सुन कर म अपनी तं ा से जगा। मने उसक ओर दे खा। वह दै वीय प से


मनोहारी दख रही थी। उसने अपनी आ मा तथा आवेग पैतृक दाय म मुझसे लए थे और
उसका संपूण प से सुग ठत मुख तथा दे ह मंदोदरी क दे न थे। म उससे र होने के बारे म
सोच भी कैसे सका?

“ओह! स ाट के भी स ाट, असुर के नरेश… या तुम मुझसे मलने आए हो? रावण! बस


अब तू अपने दन गनने आरंभ कर दे । मेरे राम तेरा और तेरे इस बुरे सा ा य का अंत करने
आ गए ह। तुम रा स ने जो कुछ भी बनाया है या जस भी चीज़ पर तुम इतना मान करते
हो, वह बस शी ही भ मीभूत हो जाएगा। मेरे प तदे व मुझे लेने आ गए ह और म शी ही
इन ने से तेरे सा ा य का पतन होते दे खूँगी। य द तू अपनी संतान के ाण क
सलामती चाहता है तो जा कर उनके चरण म गर जा। परंतु म यह भी जानती ँ क तू ऐसा
नह करेगा। तुझे तो अपनी बु मानी तथा ववेक पर ब त दं भ है। मेरे श द याद रखना।
रा स, तेरा अंत समय आ प ँचा है।” वह खल खला कर हँसने लगी और अपनी उस घृणा
के बीच घृणा पद दखने लगी। जटा ने ल जा व भय के साथ मेरी ओर दे खा।

म पूरी तरह से नराश व अ वीकृत हो कर वहाँ से मुड़ा। ‘म उसे यह स य बता य नह


सका क म ही उसका पता ँ?’ म उसे उसके प त से बचाने का यास कर रहा था। परंतु म
उसके मुख क ओर दे खते ए, उसे यागने के कृ य को वै कैसे ठहरा सकता था, उसे कैसे
समझा सकता था क मने अंध व ास के चलते, य पु ी को अपने से र रखा। उसे चाह
कर भी अपने पास नह रख पाया। और वह अपने प त राम से जो इतना उ कट ेम करती
थी, उसे भी म उपे त कैसे कर सकता था? वह य नह दे ख सक क उसका पता उसे
उसके प त से भी कह अ धक नेह करता था? वह य नह दे ख सक क मेरे पास जो भी
था, मने सब कुछ उसक स ता के लए दाँव पर लगा दया। फर उसे यह भी य नह
पता क वह कभी अपने प त के साथ स नह रह सकेगी। जस ण वह मेरी सुर ा के
आवरण से बाहर आएगी, उसके जीवन म संकट के बादल छा जाएँग? े संभवतः म वयं को
ही मूख बना रहा था। संभवतः वे दोन धरती के सबसे आदश दं प , साँवले दे व राजकुमार
तथा उसक य प नी के प म स होने वाले थे और मेरी गणना एक वकट रा स के
प म होगी, जसने उनक स ता को वन करने का यास कया था? सभी अपशकुन
तथा यो तषीय भ व यवा णयाँ उसके जीवन के आस संकट क ओर संकेत कर रहे थे
और साथ ही मेरे व मेरी जा के लए भी भयावह भ व य क झाँ कयाँ दखा रहे थे। या
रावण भ व य को बदल सका? संभवतः म अपनी यौवनाव था म सही सोचता था, यह सब
यो तष व ा कसी काम क न थी। एक उदासीन से दखते आकाश के गहरे अंधकार म
कह सु र बैठे तार क बजाय, रावण ने अपना भ व य वयं लखा था परंतु मेरी पु ी मुझसे
इतनी घृणा य करती थी? कसी भी पता के साथ इस तरह का वहार नह कया जाना
चा हए, उसे इस कार क यातना नह द जानी चा हए। संभवतः मेरा समय आ गया था। म
इस युवती के लए अपना पूरा जीवन दाँव पर य लगाता? इस ण म हज़ार लोग क
जान ग – जाने कतने पता, पु व भाई मारे गए, ज ह ने मुझ पर व ास कया और जो
मेरे लए लड़ रहे थे। हो सकता है क यह ब कुल सही था क मेरा व आ गया था। म एक
नाकारा राजा था जो अपनी जा को अनाव यक यु , मृ यु तथा वनाश क ओर ख च
लाया। परंतु म अपनी पु ी राम को कैसे स प सकता था, जब क म यह भी जानता था क
वह उससे कैसे पेश आएगा। य न नय त को आने वाले समय क रचना करने द जाए,
उसे ही भ व य क दे ख-रेख स प द जाए। म अपनी अं तम ास तक यु क ँ गा और
कौन जाने, हो सकता है क म यु म जीत ही जाऊँ!

महल के बाहर भीषण यु छड़ा था। त बब लंबे होते जा रहे थे और एक वग क र म


आभा से पूरा नगर रंग गया था मानो सब कुछ एक दै वीय आभा म स ः नाता हो। मेरी पु ी
के श द मानो मेरे कान म त व नत होते रहे। ‘तूने जो कुछ भी आज तक बनाया है, वह
सब और तेरी जा भ मीभूत हो जाएँग।े ’ म चाहता था क इतनी म दरा पीऊँ क कुछ भी
मरण न रहे। य ही मने महल म वेश कया तो वे मेरे सम , मेरे सेनाप त क का मृत
शरीर ले कर आ गए। हो सकता है क मेरी पु ी मुझसे कह अ धक बेहतर जानती थी।
39 नायक क वापसी


म अपनी फूस क कु टया के बरामदे म बैठा था। मेरी प नी मेरे पास जो गम भाप उग़लता
भात व आम का अचार रख गई थी, वह ठं डा और लस लसा हो चला था। म खय क
धृ ता बढ़ती जा रही थी और वे अब कटोरे के कोन पर बैठ कर, लंबे समय तक भनकने
लगी थ । मेरे मन म ऐसी कोई इ छा पैदा नह हो रही थी क म उ ह वहाँ से उड़ाता। रसोई
से बतन क प र चत कतु अ प खनखन तथा पा को रखने का वर सुना जा सकता
था, जहाँ मेरी प नी रोज़मरा के काम म त थी। मेरे सर म ह का सा दद था – शायद
अभी कल क पी ई ताड़ी का असर ख़ म नह आ था। काम-धंधा मंदा ही था। जब अगले
दन तक जीने-मरने का भी पता न हो तो ऐसे म व धुलवाने क कसी को या पड़ी
होगी?

य प मने अपने-आप को अपने पु क नय त के हाथ स प दया था परंतु ायः उसक


लंबी व भारी-भरकम दे ह को दे खने का मोह उ प हो जाता। कभी-कभी म यह आस भी
लगाता क शायद वह घायल या चो टल हो कर, हमारे पास आ जाए ता क हम उसे सेवा-
सु ूषा दे कर व थ कर सक। परंतु म यह भी जानता था क वह कभी रणभू म, अपने म
और भाई मेघनाद को नह छोड़ेगा। जब से यु आरंभ आ था, तब से कई बार हमारी
सड़क पर मृ यु क पदचाप सुनी जा चुक थी। कई पड़ोसी अपने यजन के वयोग म
तड़प रहे थे। आसपास के वातावरण म एक अजीब सा स ाटा था। ारंभ म भावा मक
व फोट होते, जा सड़क से नकलते मृतक असुर यो ा के शव दे ख वत होती परंतु
जैस-े जैसे यु भू म म होने वाली मौत क सं या बढ़ने लगी, मृ यु ने अपने नएपन का
आकषण खो दया और नायक व एक घ टया, तु छ व आम सी व तु बन कर रह गया।
मृतक यो ा का जो वीर महाका रचा जाता, वह केवल उ ह कुछ प रवार म थोड़ी
उदासी पैदा करने का कारण बनता, जनके प रवार से कोई जाता था। ऐसा जान पड़ता था
मानो पूरे दे श ने अपने-आप को एक तरह के खोल म लपेट लया था ता क वयं को उस
होनी से बचा सके, जससे बच पाना लगभग असंभव होता जा रहा था। पता एक अजीब
तरह के स पड़ चुके रवैए के साथ अपने पु के अवशेष जलती चता के हवाले करते।
माएँ एक साथ सर जोड़ कर, मौन आँसू बहात और वधवाएँ वयं को उस एकां तक ता
व शू य के बीच बंद कर दे त । इन सभी कुं ठत भाव पर, भय पी तलवार लटक रही थी
और वभीषण के राज म अ ेत द र असुर के लए एक भयंकर भ व य ती ारत् था।

सड़क तो ब त पहले ही वीरान हो ग थ । अनेक सामा य असुर अपने प रवार स हत वन


म चले गए और कुछ ने अनगढ़ दे सी नाव क मदद से सरे थान पर जाने म सफलता पा
ली। य प अ धकतर लोग ने अपने-आप को अपने घर क चारद वा रय म बंद कर लया
था, उनके घर के जजर ार पूरी मु तैद के साथ बंद थे। इससे पूव क मं ी कुछ जान या
समझ पाते, द र असुर ने ब त पहले ही पराजय व वनाश क इस गंध को पा लया था,
य प कसी ने भी खुल कर इस वषय म कुछ नह कहा। रात तो और भी भयावह होत ।
साए लंबे होते तो हम इतना भयभीत हो जाते, जतना जीवन म पहले कभी नह ए थे।
अभी यु आरंभ ए केवल दस ही दन ए थे और दोन प म असं य जान जा चुक
थ । श ु प के इतने समाचार नह मलते थे परंतु हमारी ओर से क, व धम , सुमाली
व मा यवान सरीखे मं ी तथा सेनाप त काल के गाल म समा चुके थे। असुर सेना के पास
नेता का अभाव हो रहा था। केवल व ण को परे रखने वाला तथा राम का सागर से
वापसी का माग रोकने वाला ह त तथा युवराज मेघनाद ही अनुभवी यो ा के प म
शेष बचे थे। बूढ़े थ लाप करने वाले मय को भी कमान स पी गई थी परंतु हमने सुना क
उसने उसे लेने से इंकार कर दया। व मं ी जंबूमाली इतने वृ थे क उनके लए चलना
भी ब त बड़ी बात थी। प र थ तयाँ न त प से शोचनीय रही ह ग , तभी तो अ सी
बरस के बूढ़े वै ा नक को असुर सेना का नेतृ व करने को कहा गया था। रावण को वयं
यु क बाग़डोर अपने हाथ म ले लेनी चा हए थी परंतु संभवतः वह वयं भी ऐसे काम के
लए ब त बूढ़ा हो चला था।

मेरे मन म जाने या आया क मने महल क ओर जाने क सोची। हो सकता है क वहाँ


अ तकाय कह बेसुध पड़ा मला जाए, वह घायल कतु जी वत हो। तब म उसे घर वा पस
ला सकता था। मने मैली-कुचैली धोती से हाथ प छे और प नी को बताने का क कए बना
ही महल क ओर चल दया। कुछ समय के लए सड़क पर म अकेला ही था। तब मने खाने-
पीने के छोटे ठे ल पर, लोग को आपस म सर जोड़े ब तयाते दे खा। कुछ घर के दरवाज़े
पूरी तरह से बंद थे और दखने म वीरान लगते थे पर कुछ लोग ने अपने घर के अगले
दरवाज़े खोल दए थे और सब कुछ सामा य होने का दखावा कर रहे थे। कुछ बंद ार के
पीछे से, अब भी दबी आह व कराह को सुना जा सकता था। संभवतः उन घर म कसी के
पु अथवा प त क मृ यु ई हो। सूरज मेरे सर पर तेज़ी से चमचमा रहा था। माथे से पसीना
बहा जा रहा था। मुझे कम से कम नान तो कर ही लेना चा हए था। य ही म महल के
नकट प ँचा तो एक व च सी क पना म त क म आई क हो सकता है क महल म ही
घायल अ तकाय क मरहम प हो रही हो।

कुछ ही री पर बलशाली तथा अजेय ग जैसा महल दखाई दे ने लगा। इसके सुनहरे गुंबद
तथा शखर सूय के काश म चमचमा रहे थे। ‘ वण’ – स ाट अपनी छत क सजावट के
लए वण का योग करते ह और हम जैस को दो जून पेट भर रोट भी नह नसीब होती।’
हो सकता है क वह इसी दशा का अ धकारी रहा हो परंतु वह कम से कम ू र तो नह था
और उसने अपने लोग को ऊँचा उठाने का यास तो कया था। म उन लोग म से था,
जनका कोई अ त व नह होता, एक ऐसे दे श के करोड़ द र असुर म से एक, जो बड़ी
ही ती ता से ा ण का दे श बनता जा रहा था। यु के अंत म, म तो एक अ पृ य ही रहने
वाला था, इस धरती का बोझ और भार! म वह बैठ कर ती ा करने लगा क शायद कसी
अ धकारी क नज़र मुझ पर पड़े और वह मुझे पहचान कर महल के भीतर ले जाए। मुझे
दे खना था क मेरा पु वहाँ था या नह ।

जब म पूरे दन के बाद, यु से लौट रही सेना क ग वापसी के शोर से जगा तो उस


समय सं या हो चली थी। जो ब त ही मह वपूण थे, उनके गंभीर प से घायल
अथवा मृतक शरीर वा पस लाए गए थे। आम सपा हय के शव को रणभू म म ही छोड़
दया गया था ता क वहाँ ग उ ह अपना आहार बना सक। जब म वहाँ से गुज़र रही सेना
के म य, अपने पु अ तकाय को तलाश रहा था तो दल बुरी तरह धड़क रहा था मानो कोई
हथौड़े बरसा रहा हो। रणभू म से लौट रहे सै नक अपनी ही धुन म म न थे और म बार-बार
उनक पं य म घुस कर अपने पु को खोजता रहा। अपनी गदन उचका-उचका कर, चार
ओर ताकता रहा। इस दौरान मुझे कई बार धकेला व र दा गया परंतु मने परवाह नह क । म
लगातार बढ़ती मायूसी के साथ अपने पु को दे ख रहा था। और फर तभी वह मुझे दखाई
दया – वह तो रथ म, राजकुमार मेघनाद के साथ सवार था। लंबा, काला व भारी-भरकम
दे ह वाला अ तकाय तन कर रथ म खड़ा था। राजकुमार के कंधे तथा अ य अंग घाव के
कारण र नात थे। अ तकाय क छाती पर भी एक भयंकर घाव दखा, जसे उसने र से
भीगे चीथड़े से कस कर बाँध रखा था। म रथ क ओर भागा परंतु राजकुमार के अंगर क
ने बड़ी बेरहमी से मुझे पीछे धकेल दया। “अ तकाय …मेरे ब चे!” मेरा ककश वर, सै नक
ारा मचाए जा रहे कोलाहल के बीच सुनाई नह दया। म छोटे -बड़े, लंबे व भारी असुर
यो ा को असहाय हो कर ताकने लगा। ‘आजकल के छोकरे कतने लंबे होने लगे ह।’
मने कसी उ माद क भाँ त अपने हाथ हलाए और उछलने लगा ता क उनका यान अपनी
ओर आक षत कर सकूँ। अनायास ही मेरी आँख उससे जा मल । मने हाथ हलाए और
शाही रथ तक जाने क भरसक को शश क । मने दे खा क उसके ने म पहले तो आ य के
भाव आए और फर वे त ण ल जा म बदल गए। मेरा पु राजग पर आसीन होने वाले
कुमार के साथ उसके रथ म बैठ कर, अपने जीवन के सबसे अ त ण का आनंद ले रहा
था और म, एक नधन धोबी, एक नाकारा, म उसके इस जीवन म सध लगाने का यास कर
रहा था। उसने एक ही म वह सारी आशा समा त कर द थी, जो उन ण म अचानक
ही मेरे दय के कसी कोने म उग आई थी। जो भी हो, म उसका पालक पता ही तो था। वह
कसी अ ेत असुर क टू ट -फूट कु टया से कोई संबंध नह रखता था। वह तो स ाट का
अपना र था, भले ही उसे षत य न माना जाए परंतु वह मेघनाद का सौतेला भाई तो
था ही। वह ऐसे संसार म रहता था, जहाँ मुझ जैसे क ट का कोई अ त व नह था। वह तो
बलशाली य तथा महान नायक से संबंध रखता था, जो अपनी मृ यु के हज़ार वष
प ात भी लोग के बीच चचा का वषय बने रहते। भ जैसे तो कोई मह व ही नह
रखते थे।
अचानक राजकुमार ने मुझे दे खा। उसने हाथ से संकेत कया और अंगर क ने मुझे आगे
आने के लए थान दे दया। एक ण के लए तो म वह ह का-ब का खड़ा ताकता रहा।
‘ या सारी पं याँ मुझे थान दे ने के लए थम गई थ ।’ ‘ या मुझे एक बार फर से आगे
जाने के यास म ध का मलने वाला था।’ राजकुमार होठ पर थक सी मु कान के साथ
मुझे गहराई से ताक रहे थे। म आदर तथा मान दे ने के लहाज़ से कुछ क़दम क री पर
खड़ा हो गया। मेरे बेटे ने मुझे र से ही यूँ ताका मानो मेरा बूढ़ा तथा जजर शरीर उसके लए
ल जा का कारण था। मुझे वयं ही अपने-आप पर ब त ल जा हो रही थी। मुझे नान तो
कर ही लेना चा हए था। मेरे शरीर से कैसी सड़न उठ रही थी। राजकुमार ने हाथ के संकेत से
बुलाया परंतु म वह जड़ पाषाण बना खड़ा रहा। एक सपाही मेरे पास आकर गरजा, “गधे!
दखता नह है क युवराज बुला रहे ह।”

म घबराहट के साथ रथ क ओर बढ़ा। य ही म पास गया तो राजकुमार ने मुझे रथ पर


बुलाने के लए अपना हाथ आगे कर दया। म उन शाही अंगु लय को छू ने से क़तरा रहा था
पर उसने चपल ग त से मुझे रथ पर ख च लया। सारी भीड़ अवाक् रह गई। एक नीच तथा
गध से भरा भ ुक, राजकुमार के साथ शाही सवारी का आनंद ले रहा था। मने गव का
अनुभव कया। मने उसके पता को अपना म समझने क कभी भूल क थी, उसने भी
कभी दयालुता का ऐसा दशन नह कया था। फर म मुड़ा तो मुझे अपने द क पु के ने
म घृणा का वालामुखी बरसता दखाई दया। म भी उसक इस ल जा का सहभागी था।
राजकुमार नीच लोग के साथ अपने वजय के ण बाँटते ए, राजनी तक प से यश बटोर
रहा था। यह भी हो सकता है क यह कसी भले आदमी ारा कया जा रहा एक नेक काज
हो पर म अपने जीवन के त अनुभव से इतना कुं ठत हो चुका था क कसी क
स दयता के वषय म सोच ही नह पाता था। धनी तथा बलशाली जो भी करते; भले
ही वह दान, सहानुभू त तथा उदारता के आवरण म य न लपटा होता, वह सब वाथ क
ही उपज होता था। मने अपने नरथक जीवन से जो भी सबक सीखे थे, यह उनम से एक
बड़ा सबक था। मने संप वग के ने म दया दे खी थी; मेरे जैसे लोग के साथ दयालुता
दखाते ए गव का अनुभव करने वाले धनी दे खे थे; परंतु इन सबसे अ धक, मने भय दे खा
था; यहाँ तक क महाबलशाली असुरराज रावण क आँख म भी भय दे खा था। वे हमसे
डरते थे, उ ह संसार के पालतू, पशुवत् आचरण वाले, अ ानी व अ ेत ी-पु ष से भय
लगता था। यह दया, संर ण, दानशीलता, दं भ, गव व उदासीनता; उसी बचाव तं का एक
अंग थे, जो धनी व संप वग हमारे भय से मु पाने के लए योग म लाता था।

अचानक मुझे ऐसा लगने लगा क म असुर राजकुमार से भी कह अ धक श शाली था –


भ ता पर लौ ककता क वजय! यह सब कुछ पूरी तरह से प था। वह अपनी
यौवनाव था म ही यु म कसी अध खले पु प क भाँ त कु हला जाता, परंतु म जी वत
रहता। वह ाचीन इ तहास के क ह पृ के बीच दब जाता और म अपने जीवन के छोटे -
छोटे यु को लड़ते ए, जी वत रहता। कोई भी क व मेरे लए यशोगान न करता परंतु
इसक परवाह ही कसे थी? यह यु शी ही समा त हो जाने वाला था और इसके साथ ही
सभी नायक व खलनायक भी मारे जाते परंतु मेरा यु नरंतर अनवरत चलता रहेगा और
मेरे जैसे करोड़ लोग, धरती के अलग-अलग कोन पर भोजन, जल, वायु, आ य तथा
थोड़ी सी मान-मयादा पाने के लए अपने छोटे -छोटे यु लड़ते रहगे।

म अभी अपने वचार म ही म न था क राजकुमार ने कहा, “आज तु हारे पु ने मेरे ाण


क र ा क है। आप एक वीर के पता ह। म आपके आगे अपना शीश झुकाता ँ।” मेरा मन
कसैला सा हो आया। म अपने लए ऐसा कोई ढ ग या दखावा नह चाहता था। म इस बात
पर ो धत था क राजकुमार मुझे अपने राजनी तक हथकंडे के लए यु कर रहा था।
व तुतः जीवन ने ही मुझे इतना सनक बना दया था क म उस राजकुमार पर भी अपना
संदेह कर रहा था, जो मुझे अपने रथ म थान दे कर, अपने भलेपन का प रचय दे रहा
था। संभवतः वह सही मायन म एक भला युवराज था। म शांत रहा और अपने काँपते होठ
का कँपन रोकने के भरसक य न म लगा रहा। आँख को ह का सा भ च कर आँसु को
भीतर ही रोकने क कला म म मा हर था और आज भी मने यही कया, य प आज यह
कौशल नाकाम रहा और म फूट-फूट कर रो दया। युवराज ने पूरी क णा के साथ मुझे
आ लगन म लया और मेरे गाल चूम लए। मेरा पु सरी ओर दे ख रहा था। म नरंतर
सुबकता रहा। रथ चलने लगा और दोन ओर चल रहे सै नक वजय का उ ोष करते ए
जय-जयकार करने लगे।

य ही ग के ार खुले तो मने दे खा क राजा व रानी अपने पु के वागत के लए सबसे


ऊपरी सीढ़ पर खड़े ती ारत् थे। ऊपरी मुँडेर पर दा सय , अनुचर तथा सभा म रहने
वाले अ य सभी ा णय के झुँड खड़े थे। वे सभी युवराज को दे ख अपना हष लास कट
करने लगे। सूया त के धू मल काश ने स ाट को ह के लाल रंग म रंग दया था और उसी
आभा के बीच वह एक श शाली असुर स ाट क भाँ त दख रहा था। वह गव से सीधा
तन कर खड़ा था और जब वह पु का वागत करने आगे आया तो उसक ेत दाढ़ , हवा म
लहराने लगी। तब मुझे भान आ क वह तो वजय क शोभाया ा थी। ‘ या यु समा त हो
गया था?’

रावण ने हाथ ऊँचा कया तो भीड़ च लाई। ‘हर-हर महादे व!’ चार ओर यह वर गूँज उठा
और येक असुर के ाण म मानो नवजीवन का संचार हो गया। मुझे उन लोग के नार के
बीच ही फुसफुसाहट से पता चला क मेघनाद ने दोन श ु राजकुमार का वध कर दया।
चड पीटे जा रहे थे और इसी शोरगुल के बीच वजयी सै नक पर पु पवषा हो रही थी। मेरे
दय से कोई भारी शला हट गई। हम सुर त थे। मेरा पु सुर त व वजयी था। अब
असुर जा तवाद क च क म नह पसगे।

और मेरा पु भी इस वजय ी का एक अंग था। वह इस वजय का नायक था। कोई आ य


नह क आज मेघनाद ने मुझे अपने शाही रथ क सवारी का आनंद य लेने दया? व तुतः
एक नायक का पता होने के नाते मुझे तो और अ धक मान व त ा मलने चा हए थे। य
ही रथ सी ढ़य के समीप जा कर थमा, असुर स ाट तेज़ी से नीचे उतरा परंतु इससे पूव क
गौरवा वत पता अपने पु से मलता, उसक माँ लपक और अपने पु को गले से लगा
लया। मेघनाद का पता कुछ री पर खड़ा कुढ़ता रहा क उसे अपने पु के गले से लगने
और उसके पु के अंग म समाई श को अनुभव करने का अवसर नह मला। अ तकाय
कुछ ही क़दम क री पर खड़ा था, गौरवण राजकुमार का काला त बब, उसके सपाट
मुख पर मूखतापूण व ख सयाई ई मु कान थी। जब मंदोदरी ने पु को छोड़ा तो पता व
पु ने एक- सरे को कड़ी नगाह से दे खा। कुछ ण क तनाव से भरी चु पी के बाद उसने
मेघनाद को कस कर गले से लगा लया।

सारी भीड़ ने मारे हष के गजना क । फर वे महल क ओर बढ़े । मेरा पु मेघनाद के पीछे


ऐसे चल रहा था मानो कोई ान अपने मा लक के पीछे म हलाता चल रहा हो। मेरे वहाँ
होने का मानो कोई अ त व ही नह था। न कसी ने एक भी श द कहा और न ही कोई
आभार कट कया। म वहाँ त ध खड़ा रहा। सारी भीड़ आनंदो सव म म न हो गई। म नह
जानता था क मुझे या करना चा हए? कुछ समय बाद, एक ारपाल ने मेरा कंधा
थपथपाया, ‘ये लो, युवराज क ओर से, तु हारे लए है।’ उसने मुझे संदेहा पद सी दखने
वाली पोटली थमा द । मने उसे यूँ ही खोल कर झाँका। उसम अलग-अलग सामान भरा था।
कुछ योग म लाए गए व – रेशमी, परंतु उतरन! कुछ ताँबे के पा और कुछ मठाइयाँ।
एक नायक के पालक पता के लए यह उपहार भेजा गया था – इसे इं को भी परा त कर
दे ने वाले असुर युवराज मेघनाद ारा स नेह भेजा गया था। संभवतः युवराज ने अपने ाण
का यही मोल लगाया था। वह ारपाल मुझे बड़ी ई या तथा व च सी वर से ताक रहा
था। वह अपनी ब शीश पाने के लए ती ा कर रहा था। ‘यह दे श कभी नह बदलेगा।
जहाँ से हो सके, जो भी मल सके, बस लपक लो – इसका यही एक मं था!’ इस सड़े ए
दे श म लोभ ही तो सबसे बड़ी आधार शला थी। मने एक भी श द कहे बना, सरकार ारा
भेजा गया वह नेहोपहार, उसी के हाथ थमा दया। वह न ावान सरकारीकम
मुझसे कुछ न कुछ पाने के लए कृतसंक प था इस लए य ही मने उसे वह पोटली थमाई
तो वह पलक तक झपकाए बना, वहाँ से अलोप हो गया। म राम क मृ यु के उपल य म
मनाए जा रहे समारोह म शा मल हो गया।
40 एक धानमं ी क मु हम

रावण
अंततः यह गाथा समा त ई। मेरे पु ने हमारे सबसे बड़े श ु को परा त कर दया। मुझे
उस पर ब त ही गव का अनुभव हो रहा था परंतु इसके साथ ही म थत भी था। कुछ तो
अनु चत हो रहा था। वह अपने म अ तकाय के साथ मल कर, राम व ल मण को उनके
सेनाप तय से परे ले जाने म सफल रहा और दे व कुमार को आमने-सामने के भयंकर संघष
म आना पड़ा। ह त, कल ही अपनी आधी सेना को प क पूव दशा म ले गया था और
उसक सेना सारी रात पैदल या ा करके गई ता क दे व पर पीछे से धावा बोला जा सके। वह
हनुमान तथा सु ीव को अपने वा मय से परे ले जाने म सफल रहा और उ ह यही आभास
दलाया गया क असुर सेना वा पस लौट रही थी। वानर सेना उ सा हत हो कर असुर को
खदे ड़ने लगी और जब वे राम से पया त री पर आ गए तो असुर ने दोगुने वेग के साथ
वापसी क और भीषण सं ाम कया। मने अपने ग से यह सब दे खा तथा ह त के
सेनाप त व से भा वत हो उठा।

राम के पास केवल कुछ ही र क रह गए थे। वे भी मेघनाद तथा अ तकाय के हाथ मारे
गए। वे राम क त- व त सेना के बीच माग बनाते ए, वहाँ तक जा प ँच।े उनके पास
अ धक समय नह था इस लए मेघनाद ने आगे क योजना पर काम करना आरंभ कया। दे व
कुमार भी बाण के संधान म कुछ कम नह थे। उ ह ने मेरे पु तथा उसके सहायक को
अपने बाण से अनेक बार घाव दए। अ तकाय ने ही सुझाव दया क उ ह शी ा तशी दे व
कुमार के नकट जाना चा हए ता क उनके बाण क ती ण वषा से अपना बचाव कर सक।
मेघनाद व अ तकाय ने अपने रथ का याग कया और नंगी तलवार के बीच भागते ए,
आगे बढ़ने लगे। वे यु रत लोग के बीच आड़े- तरछे भागते ए, सीधे दे व कुमार के पास
जा प ँचे और धावा बोल दया। यह भी दे खने यो य य था क राम अपने बाण के संधान
म कतना चपल था। उसने कुछ ही ण म अपना धनुष लया व मेघनाद के कंधे पर एक
तीर मारने म सफल रहा। मेघनाद ने अपनी तलवार के एक तेज़ वार से राम का सामना
कया और इस दौरान अ तकाय छोटे दे व कुमार के साथ भीषण ं म ल त हो गया।
ल मण ने धनुष-बाण याग कर, तलवार नकाल ली। दे व तलवार अपने-आप म एक भयंकर
अ था। यह असुर क खड् ग क भाँ त मुड़ी ई, भारी तथा लौह न मत नह थी। दे व क
तलवार एक लंबी छु रीनुमा धार क तरह थी जसे एक कटार क तरह भी भ का जा सकता
था। मेघनाद राम को गरा दे ख, उसे मृतक जान, अ तकाय क सहायता करने को लपका
परंतु राम ने उसे टाँग से पकड़ कर ख चा व गरा दया। जस एक ण म, अ तकाय अपने
वामी क दशा दे खने के लए मुड़ा, उसी ण म ल मण क तलवार ने अ तकाय के शरीर
को घायल कर दया।

ल मण वेग से पलटा, उसने अपने दोन हाथ से तलवार को ऊँचा उठा लया और मेरे पु के
सीने पर वार करने के लए आगे बढ़ा, जो धरती पर धे मुँह पड़ा था। तभी अपने घुटन के
बल बैठे अ तकाय ने, मेघनाद को परे घसीट लया। ल मण क तलवार का नशाना असुर
राजकुमार से चूक गया और तलवार सीधे धरती म जा गड़ी। मेघनाद ने अपनी तलवार,
ल मण के उदर म गहराई तक भ क द । उसने दे खा क अनुज कुमार दद से तड़पा, धरती
पर गरा और फर शांत हो गया।

तब तक, वानर के एक वृ सेनाप त ने, असुर सेना के दल पर, उस पहाड़ी से धावा बोल
दया, जहाँ वह अभी तक छप कर बैठा था। वह बूढ़ा सेनाप त पहाड़ी से यह सारी लीला
दे ख रहा था और जब उसने ह त के दल को दे खा तो उसने अपने अ भयान क योजना
बदल द । वह ख़तरा भाँप कर, अपने य स हत राम क सहायता के लए भागा।
अ तकाय ने मेघनाद से लौटने का आ ह कया परंतु तब मेघनाद बेसुध हो गया था। य प
अ तकाय के शरीर से र क धाराएँ वा हत हो रही थ परंतु उसने फर भी मेघनाद को
अपने कंध पर उठा लया। वह लोग के बीच से रा ता बनाते ए रथ तक प ँचा तथा
मेघनाद को सुध म लाने का य न करने लगा।

वह जांबवन के आद मय को नकट आते दे ख सकता था। जांबवन ने सु ीव व हनुमान को


भी संदेश भेज दया था क वे अपने नेता क सहायता के लए वा पस आएँ। पूरी वानर
सेना, एक दे ह क भाँ त झटके म पलट तथा मेघनाद क वापसी का माग अव कर
दया। पीछे से ह त क सेना ने धावा बोला। म दे ख सकता था क मेरा पु फँस गया था,
य प मुझे यह नह पता था क वह अपनी सुध भी खो बैठा था। म अपने ग से केवल यह
दे ख सका क उसक वजा रथ पर गरी ई थी। जब मने उसके रथ को यु भू म के बीच -
बीच दे खा तो म च तत हो उठा। ‘यह लड़का इतना लापरवाह कैसे हो गया क अपना रथ
छोड़ कर, श ु से दो-दो हाथ करने के लए उनके सामने जा प ँचा।’ कम से कम अनुभवी
यो ा तो इस कार नह लड़ा करते। यह न केवल ख़तरनाक कतु मूखतापूण भी था। परंतु
अब ब चे तो ब चे ही रहगे और अंततः वे अपने परा म तथा साहस के बल पर,
श य को परा त करने म सफल रहे। तभी अ तकाय गला फाड़ कर च लाया, ‘राम व
ल मण मारे गए। राजकुमार मेघनाद क जय हो।’ उसके ये वर असुर क सेना म भी प ँचे
और वहाँ हष लास छा गया। म अ छ तरह सुन नह सकता था क वहाँ हो या रहा था,
परंतु मेरी यु क अ य त आँख से वानर सेना का वह प रवतन छपा न रह सका। वे लोग
एकदम ही ढ ले पड़ गए और असुर को अपना जौहर दखाने का अवसर मल गया।
जांबवन ने अपनी सेना का मनोबल बढ़ाने क चे ा क और वह नरंतर च ला रहा था क
यह असुर क कपटलीला थी परंतु वह समाचार कह अ धक तेज़ी से फैल चुका था। वानर
के लए तो यह समाचार अ व सनीय था। राम उनके लए एक ई र था, कृ त का एक
अजेय बल और वे इस बात को इतनी सरलता से पचा नह पा रहे थे क राम एक सामा य
असुर राजकुमार के हाथ मारा गया। हनुमान के नेतृ व म चल रहा दल भी थोड़ा धीमा हो
गया और ह त के दल के साथ भीषण संघष होने लगा। अ तकाय के इस म म
आकर, ग क ओर भागे। तब तक मेघनाद को भी सुध आ गई थी और वह भी च लाया
क उसने राम का वध कर दया था। राम क सेना का मनोबल पूरी तरह से ीण हो चुका
था। सभी ावहा रक उ े य के साथ, यु का अंत हो गया था। मने ह त क सेना को,
शेष बचे वानर को नपटाते दे खा। परंतु जांबवन ने वहाँ प ँचाने क चे ा क , जहाँ दे व
कुमार के मृत शरीर पड़े ए थे।

म अपने भाई वभीषण को मृत पड़े कुमार क ओर भागते दे ख, गु से से बलबला उठा। वह


जतना हेय था, य द उसे यह व ास हो जाता क असुर क वजय ई थी तो वह एक ण
म कसी चैपाए क तरह, मेरे तलवे चाटने प ँच जाता। मने दे खा क जांबवन दे व कुमार के
नज व शरीर उठा कर ले जा रहा था। ‘कुछ अनु चत था। कुछ गंभीर प से अनु चत था।’
म वानर के बदले ए वभाव से इसे परख सकता था। धूत बूढ़े वानर सेनाप त ने कुमार के
शरीर रथ म डाले और सेना का ख सागर क ओर मोड़ दया। ह त ने पीछा करना चाहा,
परंतु सु ीव व हनुमान ने उसे सेना स हत आगे नह जाने दया। मने दे खा क सागर तट पर
एक नौका आई और दे व कुमार को उसम लेटा दया गया।

तब तक, मेघनाद क जय शोभाया ा ग के ार तक आ गई थी और मेरी च तत प नी


बाहर क ओर लपक । उसने मुझे कहा क म भी बाहर आकर अपने वजयी पु का वागत
क ँ । परंतु मेरे ने , सागर क लहर पर मचल रहे उस गु त तमाशे से चपके रहे। वह नाव
बड़ी तेज़ी से एक सुनसान पड़े प क ओर चल द , जो मु यभू म क ओर, सागर क
उ र-प म दशा म, कसी ब क भाँ त थत था। य ही, वह नाव एक सुर त री
तक प ँची, हनुमान का दल, राम के सेतु से होता आ सागर क ओर उमड़ा। जब व ण क
सेना अचानक पीछे से आ टपक तो ह त के लए अनायास सब संभाल पाना क ठन हो
गया। यह एक कपट जाल था जसने नर वानर को वहाँ से अलोप होने का अवसर दया।
हनुमान क सेना ने सेतु पार कया और प से अपने संपक के साधन को न कर दया।

जैसे ही यह समाचार चार ओर सा रत आ क मेघनाद ने श ु मुख का वध कर दया है,


तो सारी असुर सेना एक हो गई और वे लोग जीत का ज मनाने लगे। केवल जीत या
मामला नपटाने क थोड़ी सी बात रह गई थी और यह काम तो कल भी कया जा सकता
था। ह त ने अपने अनुशासन से बाहर जा चुके असुर सै नक को वश म करना चाहा, जो
ग म हो रहे, वजयो सव म भाग लेने के लए दौड़ आए थे। परंतु मुझे भीतर ही भीतर एक
अंदेशा सा हो रहा था और म ह त के मुख से पूरा समाचार सुनने क ती ा करने लगा। म
हमारी वजय के लए स था परंतु जस कार जांबवन कुमार को उठा ले गया था, वह
बात मुझे बार-बार खटक रही थी। ‘ या वे सचमुच मारे गए थे?’ जहाँ तक मुझे लग रहा था,
वे गंभीर प से घायल थे। मुझे इस बात क खीझ हो रही थी क मेघनाद ने राम व ल मण
के शीश य नह काट दए। वह लड़का काफ़ गहरे दबाव म रहा होगा और उसने पूरी
वीरता से यु कया भी परंतु ये छोट -छोट बात यु भू म म त ता पलट सकती ह। मेघनाद
को यह अनुमान नह लगाना चा हए था क केवल उदर म तलवार भ कने से या कुछ तीर से
घायल करके ही, श ु प को मौत के घाट उतारा जा सकता था परंतु य द परा जत श ु का
सर धड़ से अलग कर दया जाता तो उसे कोई चम कार ही जी वत कर सकता था। यह एक
ऐसा सबक था जसे मने, वष पूव महाब ल तथा ा के अधीन, घने वन म सीखा था।

य द मुझे अपनी युवाव था म ऐसा अवसर मला होता तो मने राम व ल मण के सर काट
दए होते और उ ह एक खंभे पर लटका दे ता ता क सरे लोग भी उ ह दे ख सक। जस ण
म आप मुख बनते ह, उसी ण यु समा त हो जाता है। इससे सरे यो ा का मनोबल
ीण हो जाता है। मने अपनी युवाव था के अनेक सै य अ भयान म ऐसा दे खा है। कई बार
ऐसा आ है क म गहरे संकट म पड़ जाता था और जान पर बन आती परंतु जस ण, म
श ु प के सेनाप त या मुख को अपनी चं हास का वाद चखा दे ता, उसी ण सारा यु
मेरे प म हो जाता। भले ही उस समय मेरे आसपास कतने भी श ु ह या म मौत के
कतना भी नकट य न होता। म उनके मुख का सर काटता, ऐसा य न करता क उसे
सब दे ख सक और उसी ण वह यु समा त हो जाता। मेघनाद ने कतनी बड़ी मूखता क
क उसने राम व ल मण का शरो छे दन नह कया। यह कतनी बड़ी साम रक भूल थी।
मेघनाद म अब भी वह बात नह थी जो अनुभवी तथा स ह त यो ा म पाई जाती है।
या उसम ू रता का अभाव था? वह लड़का इतना कोमल दय हो कर, तो एक अ छा
यो ा कभी नह बन सकता था। मने तो यह कुकृ य करने म एक ण का भी वलंब न
कया होता। य द मेरे थान पर बाली, राम, हनुमान, ह त, क अथवा महाब ल होते तो
संभवतः वे भी यही करते।

इस बात का सीधा सा अथ यह था क अभी श ु समा त नह आ था। राम व ल मण म


न त प से ाण शेष रहे ह गे अ यथा जांबवन उ ह नाव म लेटा कर, अनजान प पर
य ले जाता? श ु अब भी धावा बोल सकता था। मूख मेघनाद। इस लड़के ने कभी जीवन
क कठोरता नह दे खी थी, तभी वह उन चीज़ क पूरी क नह कर पाता था ज ह मने
अपने र व वेद का मोल चुका कर पाया था। उसे अभी तक उस असहाय अव था का
बोध नह था, जब मनु य को यह नह पता होता क उसे अगली बार का भोजन मलेगा
अथवा नह ? उसने उस माँ क आँख म छपी पीड़ा नह दे खी थी, जो अपनी संतान को
भरपेट भोजन तक नह दे सकती। मने मंदोदरी को दोषी ठहराया। वह अपने पु को इस
तरह रखती थी मानो वह इस संसार क सबसे ब मू य व तु हो। वह इतना सुंदर, यारा व
दयालु वभाव का था क कोई भी उस कमीने को चाहे बना रह ही नह सकता था, परंतु
मुझे उसका पालन-पोषण थोड़ा और बेहतर तरीक़े से करना चा हए था। आज रणभू म म
एक वण अवसर हाथ से नकल गया। मूख कह का! जड़म त! जी म तो आ रहा था क
उसे उसक इस मूखता के लए ऐसा दं ड ँ क वह उसे आजीवन मरण रखे। उसने मुझे
दे ख कर, गव त मु कान द । म उसके साथ एकांत म वातालाप के लए उ चत अवसर क
ती ा म था। सरा मूख, अ तकाय वह धरती पर कसी स मन दोगले ान क भाँ त
बैठा था। दल म आ रहा था क वे दोन जो कारनामा करके आए थे, उसके लए उ ही के
मुँड आपस म भड़ा ँ । वे उस अवसर को गँवा कर, नायक क तरह बैठे थे, जसे असुर
कभी पाने क आस तक नह लगा सकते थे।

“रावण! दे खो, मेरे पु के शरीर पर कतने घाव आए ह। वह इस समर म मारा भी जा


सकता था।” मंदोदरी सुब कयाँ भरते ए, मुझे उसके बदन पर लगे घाव तथा खर च दखाने
लगी। मेघनाद माँ से मल रहे इस लार का आनंद ले रहा था। ‘वह या अपे ा कर रही
थी? उसका पु यु लड़ने गया था। वह आमने-सामने लड़ा जाने वाला एक संघष था। वह
औरत इस बात के लए इतना य भन भना रही थी?’ तभी अक मात मुझे यान आया।
दरअसल मंदोदरी ने इससे पूव कभी कोई रण दे खा ही नह था। वह पहली बार यह सब दे ख
रही थी। मेरे सभी अ भयान सु र थान पर लड़े गए थे। जब मने मेघनाद को रणभू म म
अकेले यु करने भेजा तो मुझे भी चता ई थी य क म जानता था क रणभू म म, कुछ
ही ण म या से या हो सकता था। एक ही पल म मौत के साए मँडरा सकते थे। म उस
एक तीर को ले कर बसूरता रहता जो कह से भी भूले-भटके आकर, उसक आँख को
भेदते ए, भेजा बाहर नकाल सकता था। य द याँ उन रणभू मय के य दे ख ल, जहाँ
मूख एक- सरे को मौत के घाट उतारते ह तो इस संसार म कभी यु ही न होते। मेरे पास
इस य को दे खने क ताब न थी इस लए म क से बाहर आ गया।

ह त मेरे नकट आया व झुक कर णाम कया। मने उसका हाथ जकड़ा और उसे छत क
मुँडेर पर एकांत म ले गया।

“तुम या सोचते हो? या राम वा तव म मारा गया?” मने पूछा, जब क म इस का


उ र अ छ तरह जानता था। उसने अ वीकृ त सूचक गदन हला द ।

“लगता है क लड़क ने क चा काम कया है।” मने कहा और वह उदासी से मु कराया।

“हम उ ह दोषी नह ठहरा सकते। मेघनाद ब त ही कोमल दय तथा अनुभवहीन है। परंतु
हम उनक इस भूल क भारी क़ मत अदा करनी पड़ सकती है।” ह त ने मुझसे नज़र
चुराते ए कहा। म उसक बात म छपी कुंठा अनुभव कर सकता था। “उसे रोका जाना
चा हए था।” ह त के ने उस सु र थत प को एकटक ताक रहे थे, जहाँ जांबवन ने
अपने घायल नेता के साथ डेरा डाल रखा था। मने दे खा क वह कसी उलझन म था।

“महाराज! मुझे यह समाचार मला था क दोन भाई मृ यु के कगार पर थे और अं तम ास


ले रहे थे परंतु वानर के पास महान च क सीय ानसंपदा है। वे जानते ह क पौध से
जीवन-र क रस व औष धयाँ कैसे ा त क जा सकती ह। वे हमारी तरह रसाय नक चूण
का योग नह करते। वे च क सा के लए आयुवद शा का योग करते ह, जसम पौध
से ा त रस पर बल दया जाता है।”

“तुम या परामश दे ते हो?”

“हम इस वषय म न त प से नह कह सकते क राम जी वत है अथवा नह । वह बुरी


तरह से घायल व मरणास था और संभवतः अब तक उसक मृ यु भी हो चुक हो परंतु य द
वह जी वत है और वानर के वै उसे चम का रक प से व थ करने म सफल रहे, तो उ ह
उनके लए औष धयाँ पकानी ह ग । वे जस कार के पौधे इस काय के लए योग म लाते
ह, वे भारत के केवल तीन ही ांत म पाए जाते ह – लंका म, मु य भू म के द ण-प मी
सागर तट पर तथा हमालय पर! हमालय ब त र है। वे लंका म वेश नह कर सकते
य क ऐसा करना, उनके लए ख़तरे से खाली नह होगा परंतु वे य न कर सकते ह और
हम ऐसी कसी भी को शश को नाकाम बनाने के लए अपनी ओर से सतक रहना होगा।
उनके पास केवल यही वक प बचता है क वे मु य भू म के प मी तट पर जाएँ। वानर इन
दोन वक प पर शी ही अमल करगे।

“हम आज ही उस प पर हमला करके, उ ह बंद य न बना ल?” म इस वक प के लए


पूरी तरह से आ त नह था परंतु मने अपने मन क बात ह त के आगे रख ही द ।

“न, व ण के यु पोत र क बने खड़े ह। यह काय संकट को ज म दे सकता है। हम केवल


यही आशा रख सकते ह क राम व ल मण क मृ यु हो जाए। फर हम बड़ी ही सरलता से,
सौदे बाज़ी करते ए लोभी वानर राज सु ीव को अपने साथ मला सकते ह। इस दौरान हम
अपने प क सुर ा को भी मज़बूत बनाना होगा। अंगद लंका म पुनः वेश का यास कर
सकता है। महाराज! हम त काल लं कनी को सतक कर दे ना चा हए।”

लं कनी मु य भू म के द णी छोर पर थत असुर शा सका थी, जहाँ तीन सागर का


पर पर मलन होता था। वह मु य भू म के उन द णी इलाक़ पर पूरे याय व स ती के
साथ शासन करती आई थी। य प वह मेरे अधीन थी परंतु मने वहाँ जाना लगभग छोड़ ही
दया था य क वह मुझे मेरे ह से क धनरा श भेजने म कभी कोई कोताही नह बरतती
थी। उसे राम पर पीछे से हमला करते ए, मेरी सहायता करनी चा हए थी परंतु मेरे सरे
औप नवे शक य क तरह, वह भी एक ओर बैठ , यही ती ा कर रही थी क कस
प क जीत होती है ता क वह जा कर वजयी प से हाथ मला सके। मने उसे अपनी ओर
से ज़ोर डालते ए अनेक प व संदेश भजवाए परंतु उनम से एक का भी यु र नह
आया। मेरा मन कड़वाहट से भर गया परंतु म जानता था क यह नया ऐसे ही चलती है।
“हम लं कनी को सू चत कैसे करगे?” म इस पूरी योजना के लए और भी थत होता जा
रहा था परंतु कसी तरह ह त के होशोहवास कायम थे। उसने जो भी कहा, उसक बात म
दम था। म उन वानर पर हमला करने क सोच रहा था जो सु र प पर बैठे, अपने अगले
वक प को या वत करने क योजना बना रहे थे परंतु यह एक ब त ही अटपट सी
योजना थी जसके र- र तक सफल होने के कोई आसार नह थे। नह , सबसे ब ढ़या
वक प तो यही था क राम क ही मृ यु हो जाती। मेरे मन म अपनी पु ी के लए सहानुभू त
क एक लहर दौड़ पड़ी परंतु मने उसे झट से परे धकेल दया।

“हम ज द से ज द यहाँ से नकलना होगा। म एक सप नौका ले कर वयं जाऊँगा।” ऐसा


लगा मानो ह त मुझे यह बात कहने क बजाय अपने-आप को ही सुना रहा था। आज से
अनेक वष पूव, जब ाय प से प मी तट तक, महाब ल का शासन था, तब उनक
जलसेना म इन नौका का भरपूर योग होता था। वे ब त लंबी और पतली होत और उ ह
चलाने के लए कम से कम 120 ना वक क आव यकता रहती। ये प मी सागर म फैली
झील के लए आदश थ , जो छोटे ब क तरह, चार ओर फैली थी परंतु खुले सागर म
इनका योग नह कया जाता था। य प वे पु पक वमान के बाद, यातायात के ती गामी
साधन म से थ ।

“महाराज! म वयं इस मु हम क बाग़डोर संभालूँगा। मुझे व ण के यु पोत से छपते-


छपाते नकलना होगा ता क ातःकाल तक ाय प प ँच सकूँ। यह ब त ख़तरनाक काम
है और य द मेरे पास चुनाव का अवसर होता तो म कभी इसके लए अपनी वीकृ त न दे ता।
परंतु जल क लहर को मुझसे बेहतर कोई नह जानता। मुझे पूरा व ास है क वानर अपने
कुमार के संभलने तक, कसी भी कार के आ मण के बारे म वचार नह करगे। म अब
थान क ँ गा। य द आप सेनाप त के नेतृ व क कमान अपने भाई कुंभ को स प द तो यह
एक बेहतर उपाय होगा।”

इससे पूव क म उसे रोक कर, कुछ कह पाता। वह अपना सर झुका कर नकल गया। ‘मेरे
भाई कुंभ के हाथ म सेना क कमान?’ यह बात कहनी सरल थी परंतु इसे अमल म लाना
उतना ही क ठन था। मेरा छोटा भाई जाने कतने दन से म दरा व मादक पदाथ के नशे म
चूर पड़ा था। दन-ब- दन म दरा व मादक पदाथ क आदत बढ़ती ही जाती थी और म उसे
अपनी आँख के आगे न हो कर, बखरते दे ख सकता था। कह ऐसा तो नह था क उसके
भीतर पनप रहे कसी व ोही क गंध को भाँप कर, मने उसे उन कु सन से र करने का
य न नह कया ता क वह मेरी राह क बाधा न बन सके? म नह जानता। और अब जब
हमारे पास अ छे सेनाप तय का अभाव हो रहा था तो ह त ने मुझे मेरे भाई का मरण
करवा दया था। मुझे महल के कसी अंधकार पूण कोने म छपे क से उसे खोज कर बाहर
नकालना था और उसे उसक स ता के काले कूप से नकाल कर अपने यु के लए
तैयार करना था। यह सब करना इतना सरल भी नह था, जतना दखाई दे रहा था।
41 मंदोदरी संग


ये वही ण थे, जस समय उषाकाल से पूव का अंधकार इतना गाढ़ा व घना होता है क
आपको लगता है क वह आपक वचा से चपक गया है, उसी ण मने कुछ पदचाप सुन ।
मेरी पशुवत वृ याँ आयु के साथ धू मल नह ई थ । म दरा के नशे म चूर होने के
बावजूद, मेरे कान आस ख़तरे क आहट भाँप सकते थे। मने अपना सर नह उठाया कतु
कुछ तो था जो ब त हौले-हौले हल रहा था और यह ग त व ध न त प से कसी संकट
का सूचक थी। म कसी सरी आहट क ती ा म कान लगाए रहा। रात को जलाए गए
द पक जाने कब से बुझ चुके थे। आकाश म बादल छाए थे और एक उ लू के ककश वर के
अ त र कोई सरा वर सुनाई नह दे रहा था। म इस तरह कान लगाए सुनता रहा क
ास तक लेने म भय होने लगा। इस वषय म कोई संदेह नह रहा था क वे ब त से लोग
थे। म रात के उस अंधकार म भी उनक उप थ त को अनुभव कर सकता था। वे वृ पर
थे और धीरे-धीरे घात लगाते ए, सैकड़ खराट भरते, असुर सै नक क ओर बढ़ रहे थे।
मने धीरे से अपनी आँख खोल । म महल के ार पर असुर सै नक क धू मल आकृ तयाँ
दे ख सकता था। मने पहले तल के समीप वाली मुंडेर के पास खड़े वृ पर कुछ हलचल
सुनी और कई गहरी काली आकृ तयाँ बड़ी सरलता से कूद कर वहाँ आ ग । ये तो केवल
वानर ही हो सकते थे। मेरी पूरी रीढ क ह ी झनझना उठ । ‘वे लोग यहाँ य थे?’

ारर क कल ए वजयो सव के मद म अभी तक चूर थे और म दरा पी कर बेसुध पड़े थे।


म धीरे-धीरे चौपाय क तरह रगते ए, महल क ओर बढ़ा। आज तो कुछ भी भयावह घटने
क पूरी संभावना थी। म ार के समीप प ँचा तो पाया क सै नक को मार दया गया था,
उनके गले रेत दए गए थे। श ु महल म घुस चुका था। या मुझे च ला कर शोर मचाना
चा हए? परंतु या कोई इसे सुन कर उठे गा? मुझे कसी भी दशा म रावण तक यह बात
प ँचानी थी। म जानता था क शाही क कस ओर थे परंतु मारे भय के मेरी घ घी बँधी ई
थी। श ु कह भी हो सकता था। महल के उन घने अंधेरे साय के बीच, मौत मुझ पर अपना
वार करने के लए घात लगाए बैठ थी। मने हमेशा से यही माना था क म मृ यु का वागत
करने के लए तुत था। य द म मर जाता तो कसी को कोई अंतर न पड़ता, संभवतः मेरी
प नी तक को भी नह , न त प से मेरे पु को भी नह । परंतु फर भी म जी वत रहना
चाहता था।

मने ह के से भी वर से काँप उठने वाली थक दे ह को जबरन आगे धकेला, यहाँ तक क


खुल कर ास लेने से भी भय हो रहा था। फर म पहले तल क ओर बढ़ा, जहाँ रावण का
शयनक था। यह भी तभी कारगर होगा, अगर अब तक रावण क मृ यु नह ई होगी।
काश मेरे शरीर म और बल होता और म पहले क तरह युवा तथा ःसाहसी बन पाता। मने
सी ढ़य पर दबे पाँव चढ़ने क चे ा क ता क कसी तरह क कोई आहट न हो। मुझे एक
ह क सी कराह सुनाई द , फर एक धड़ाम का वर सुना और इसके बाद ऐसा लगा मानो
कुछ घसीटा जा रहा था। मने धड़कते दल के साथ नीचे झाँका तो कुछ वानर को यहाँ-वहाँ
भागते दे खा। म एक ही ण म उनके नेता कुमार अंगद को पहचान गया। उसने अपने
कंध पर कसी को लाद रखा था और क से बाहर भाग रहा था। कुछ ारर क सौभा य
से, म दरा के भाव से मु थे और अब वे भी जाग गए थे। उ ह ने उसे रोकने का य न
कया। अंगद ने एक ण क भी दे र नह क । वह अपने माग म आने वाले येक को
अपनी तलवार का वाद चखाता जा रहा था। म शाही क के वेश ार क ओर भागा तो
वहाँ अपने ही र म नहाए सै नक को मृत पाया। जन ारर क ने वानर अंगद से संघष
करने का साहस कया था, वे मारे जा चुके थे या उनक अंत ड़याँ ख़ूबसूरत कालीन पर
बखरी थ , वे र कुंड के भीतर पड़े छटपटा रहे थे।

मने शाही क के हलते दरवाज़े को दे खा और एक ण के लए सकुचा उठा। फर मने


अपने-आप को मन ही मन तैयार कर लया क संभवतः मुझे असुर स ाट को छाती म ख पी
गई कटार के साथ दद से कराहते दे खना पड़ सकता है। म भीतर गया तो क र था। वहाँ
कोई शव भी दखाई नह दया। केवल पलंग को दे ख कर लगता था क वहाँ न त प से
कोई संघष आ होगा। तभी मेरे म त क म बजली सी क धी। ‘अंगद असुर सा ा ी
मंदोदरी को उठा ले गया है। वह असुर स ाट का वध करने के न य से आया होगा और
जब वह यहाँ नह मला तो वह उसक प नी को ही उठा ले गया। रावण को इसक सूचना
दे नी ही होगी। भला वह था कहाँ?’ म महल के ांगण क ओर दौड़ा। म दरवाज़ पर ज़ोर-
ज़ोर से हाथ मारते ए, अ तकाय को पुकारने लगा। ब त से लोग जाग गए थे और म गला
फाड़ कर च लाने लगा क अंगद महारानी मंदोदरी का अपहरण कर ले गया था। पहले तो
कोई त या दखाई नह द । इसम कोई संदेह नह , लोग को यही लगा होगा क म म दरा
के अ य धक भाव म आने के कारण ही बकवास कर रहा था। फर अचानक लोग के बीच
भय दखाई दया। ार र क जागे और अँधाधुँध यहाँ-वहाँ भागने लगे। कुछ लोग च ला रहे
थे तो कुछ चीख़-चीख़ कर आदे श दे रहे थे परंतु उनका पालन करने के लए वहाँ कोई न
था। कुछ लोग बैठे केवल पलक झपका रहे थे, वे समझ ही नह पा रहे थे क अक मात रा
के घने अंधकार म ये कैसा कोलाहल होने लगा था?

करीब आधे घंटे बाद मुझे मेघनाद तथा अ तकाय का पता मला। मने अपने पु को ठोकर
मारी तो वह म दरा के नशे से जागा और उछल कर खड़ा हो गया। कोई भी आकर, बड़ी
सरलता से असुर राजकुमार तथा उसके अनुचर का वध कर सकता था। वाह! कैसी असुर
सुर ा! राजकुमार को शी ही सुध आ गई और जब तक मने उसे व तु थ त से अवगत
कराया, तब तक वह सजग हो गया था। वह उछला और यान से तलवार नकाल कर बाहर
क ओर लपका। मने राजकुमार के पीछे भागते ए, यह बताना जारी रखा क मने या- या
दे खा था। अ तकाय ने हम बाहरी ागंण के नकट दे खा तो वह भी भागा आया और मेघनाद
ग के वशालकाय घंटे क ओर लपका। उसने बड़ी फुत से सी ढ़याँ लाँघ । म बुरी तरह से
प त था इस लए उसके साथ वहाँ तक नह जा सका। अ तकाय मेरे पास से दनदनाता आ
नकल गया। उसे मेघनाद के पास प ँचने क ज द थी। शी ही पूरे ग म उस घंटे के वर
गूँज उठे । ‘मेरे दमाग़ म यह बात य नह आई?’

कुछ ही ण म, सारे बरामद म चु त व चौकस सै नक आ खड़े ए। “यहाँ हो या रहा


है?” असुर स ाट ज़ोर से च लाता आ ग तंभ क ओर लपका। मेघनाद ने जब सब
बताया तो एक ण के लए रावण का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। फर उसके चेहरे क रंगत
लौट और उसने ोध म आकर, अपनी मु तंभ क ाचीर पर दे मारी। वहाँ पल तर व
धूल का अंबार दखने लगा। “उस कमीने अंगद को पकड़ो और मेरे सामने पेश करो।”

“ पता ी! म खोजी दल को ले कर नकलता ँ। हो सकता है क यह उनका रचा कोई


षड़यं हो अतः आपको महल म ही रहना चा हए। अगर वानर ने नेता र हत ग पर धावा
बोल दया तो हम क ठनाई म पड़ सकते ह।”

“मेघनाद तुम यह रहो। उ ह ने मेरी प नी का अपहरण करने का ःसाहस कया है। म


खोजी दल का नेतृ व क ँ गा और उन कमीन को सबक सखाऊँगा। और मुझे लगता है क
कुंभकण को जगाने का सही समय आ गया है। मुझे उसक ब त आव यकता है। म पूरी
रात उस गधे को सुध म लाने का य न करता रहा ँ।”

रावण अपने य अ पर सवार आ और अंधकार म वलीन हो गया। सैकड़ अ ारोही


सै नक का खोजी दल, हाथ म मशाल लए, अ पर सवार त ग त से आगे जाते असुर
स ाट के साथ चलने के लए एड़ी-चोट का बल लगा रहा था। सै नक अपने हाथ म भाले व
गदाएँ लए उन अ के पीछे दौड़े, वे लोग ब त कोहराम मचा रहे थे परंतु अपने लए
सरदद बढ़ाने के सवा उ ह इससे कोई लाभ नह हो रहा था, म भी उनके साथ हो लया।
जब तक हम सुबेला पहा ड़य के कोने तक प ँचे तो अ वह छोड़े जा चुके थे और खोजी
दल पहाड़ी पर काफ़ ऊपर तक चढ़ चुका था। सुबेला का घना व अंधकार से भरा वन अपने
वशालकाय प थर व च ान के कारण अजेय जान पड़ रहा था। म पूरी तरह से न त नह
था क मेरा थका आ बूढ़ा शरीर इतनी क ठन चढ़ाई कर भी पाएगा या नह परंतु कौतूहल
ने मुझे ेरणा द और म हाँफ़ते-काँपते, कसी तरह अपने-आप को घसीटते ए ऊपर तक ले
ही गया। औपचा रक खोजी दल ारा बनाए गए माग पर उ सुक युवा सै नक पूरे उ साह व
उमंग से आगे बढ़ रहे थे। घने वन म यदा-कदा जलती मशाल का च ह ही हमारा पाथेय था।
दो बार तो म उलझ कर गर भी गया परंतु मने पीड़ा को अनेदखा कर दया और वन म
बसने वाले वषा सप के भय को भुला कर, उन य के साथ चलने का य न कया
जो आयु म मुझसे करीब प चीस वष छोटे रहे ह गे।

जब हम चोट से सैकड़ फ़ट नीचे, खुले थान पर प ँचे, तब सभी बुरी तरह से हाँफ रहे थे।
हम र से ही दे ख सकते थे क पहले से तलाश म नकले दल, एक थान पर एक होने लगे
थे। पूव आकाश म पौ फटने लगी थी और तारे म म होते जा रहे थे। अनेक मशाल बुझ
चुक थ । जब मेरे दल के युवक अपने म से मलने भागे तो म सु ताने के लए वह ठहर
गया। फर धीरे-धीरे पहाड़ी पर चढ़ना आरंभ कया। मने कसी तरह भीड़ को ठे ल कर अपने
लए जगह बनाई। वहाँ धरती पर महारानी मंदोदरी वव तथा अचेत पड़ी थ । रावण त ध
खड़ा मन ही मन रो रहा था। म आगे बढ़ा और अपने फटे -पुराने उ रीय से असुर स ा ी क
न न दे ह ढाँप द । धीरे-धीरे महारानी ने आँख खोल । रावण ने उसे बाँह म लया और कस
कर कंठ से लगा लया। महारानी ने ण भर के लए, उस भीड़ को दे खा जो उसे नरंतर
ताक रही थी और फर अचानक उसे अपनी न नता, अपनी ल जा, अपने साथ ए
बला कार का भान आ। उसने ची कार करते ए वयं को उस गधयु शॉल म छपाने
का असफल य न कया। वह लड़खड़ा कर उठ और वहाँ से भागना चाहा। रावण ने एक
झटके से उसक भुजा थाम ली और कस कर गले से लगा लया। वह रावण के कंधे म मुख
छपा कर ससक उठ । भीड़ बेमन से वहाँ से हट गई। कुछ लोग पानी लेने भागे, कुछ अपनी
रानी के लए व का बंध करने लगे तो कुछ लोग कामचलाऊ डोली बनाने लगे ता क
महारानी को महल वा पस ले जाया जा सके। म वह समीप खड़ा, नय त के इस फेर को
दे ख रहा था। वह बार-बार कह रही थी क वह इस ल जा के साथ जीना नह चाहती थी।
अंगद और उसके सा थय को जब यह पता चला क वे म से, सीता क बजाय असुर
महारानी को उठा लाए थे तो उन ने उसके साथ बलात् संभोग कया। मंदोदरी अब
रावण क प नी के प म जी वत नह रहना चाहती थी; वह अपने ाण का याग करने पर
उता थी। रावण केवल यही कहता रहा क वह उसक ववा हता प नी थी और वह वही
रहेगी। उसने इसके अ त र एक भी श द नह कहा। उसक नजी पीड़ा का सा ी बनने से
मुझे ला न होने लगी परंतु उस के लए मन ही मन सराहना का भाव भी उ प आ,
जो अपनी प नी के ःख म उसका सहभागी बना खड़ा था। एक शासक होने के नाते, उसके
साथ इससे बदतर तो कुछ हो ही नह सकता था, यहाँ तक क उसक अपनी मृ यु भी इससे
अ धक भयावह न होती। रानी को उन ने हमेशा के लए अप व कर दया था और
रावण के लए सबसे सरल चुनाव तो यही था क वह उसे कसी फटे चीथड़े क तरह याग दे
परंतु उसने अपने लए क ठन राह चुनी, उसने अपने उ ह क न के स मुख अपनी प नी
को अंगीकार कया जो उसके पीठ फेरते ही उसक प नी क कलंक गाथा को चूण चटकार
के साथ सुनाने लगगे। संभवतः ऐसे ही चुनाव म उसक महानता छपी थी और यही उसक
बलता भी थी। उस समय, मुझे थोड़ा संदेह था क अपनी बला कार क शकार प नी के
साथ उसके वहार को म पूरी तरह सराह पा रहा ँ अथवा नह ? ब त बाद म, इस घटना
के ब त बाद म, जब म इस गंभीर प र थ त क तुलना म कम गंभीर प र थ त म, एक
ारा अपनी चुनी गई प नी के त वहार का सा ी बना, तब म समझा क रावण
पर दे व वारोपण य नह हो सकता था। व तुतः वह सही मायन म एक मनु य था जसे
दे वता बनाया ही नह जा सकता था।

म वहाँ से चुपचाप खसक जाना चाहता था परंतु रावण ने मुझे वहाँ से जाते दे ख लया
“भ !” उसने पुकारा और मुझे उसे मुड़ कर दे खना पड़ा। म दे ख सकता था क उसे इस
बात पर ोध व ल जा आ रही थी क म उसके इन नजी ण का सा ी बना। उसने मुझे
दे खे बना कहा, “मेघनाद कहाँ है?” म नह जानता था परंतु कसी और ने उ र दया क
राजकुमार मेघनाद तथा अ तकाय अंगद व उसके सा थय क खोज म नकले थे।

“आशा करता ँ क वह कमीने जी वत हाथ आ जाए।” मुझे अपने राजन के लए खेद


होने लगा। वह अपनी खं डत मयादा के टु कड़े बीनने क चे ा कर रहा था। शी ही एक
कामचलाऊ पालक तैयार कर द गई और वे उसम राजा-रानी को बैठा कर, उस बीहड़ व
गम पथ से नीचे उतरने लगे।

जब हम महल के नकट प ँचे तो मने पाया क मने अपने जस शॉल से रानी को ढाँपा था,
वह वहाँ पड़ा रा ते क धूल फाँक रहा था। उसक दशा इतनी बुरी थी क पहचान म भी नह
आ रहा था। वह तो पहले से भी यादा मैला-कुचैला हो कर चीथड़े म बदल गया था। बेशक
इतने सै नक के पैर तले कुचलने के बाद हो भी या सकता था। पहले तो मने सोचा क
उसे ठोकर मार कर खुली नाली म फक ँ परंतु दोबारा सोचने पर ऐसा लगा क मुझे उसे
संभाल लेना चा हए। हो सकता है क वह वन चीथड़ा राजा-रा नय के उ े य क पू त
करने के बाद उ े यहीन हो चुका हो परंतु मुझे जैसे द र के लए यह अब भी उपयोगी हो
सकता था। संभवतः म उसे ठ क करने के बाद काम म ला सकता था। मेरे पास उसके
अ त र कोई और कपड़ा था भी नह , अतः मुझे तो उसी से काम चलाना था। हो सकता
था क अ छ तरह धोने पर, उसम बसी अंगद तथा रावण क गंध नकल जाती।
42 आदशवाद का अंत

रावण
सूया त के समय ह त का नज व शव महल म लाया गया। जब म अपनी प नी के साथ,
अपने गत नक से नकल कर बाहर आया, जहाँ म छपा बैठा था तो वह सभा क के
शीतल फ़श पर न े पड़ा था। पूरा शरीर नीला पड़ गया था और वह अपनी आयु से कह
बड़ा दख रहा था। लगता था मानो एक सा ा य क चता , नयोजन व षड़यं , हठ
मह वाकां ा , वयं ओढ़ गई स य न ा के आवरण तथा धम के त अ डग रहने क
असंभव सी इ छा व रंग से र हत सादे जीवन ने उसे त- व त कर दया हो। मने अपने
सबसे अ छे म तथा सबसे बदतर श ु के लए आँख से टपकने को तैयार अ ु को वह
दबा दया। म उसके नज व शरीर क ओर झुका। कुछ अ ु मेरे वावहा रक व कड़े
आ मसंयम के बाँध को तोड़ते ए बह नकले व फ़श पर आड़े- तरछे नमूने रचने लगे। ‘कौन
था यह ?’ ब त समय पहले क बात है, म उससे भयभीत रहा करता था। मुझे पूरा
व ास था क वह मेरा राज सहासन छ न लेना चाहता था। उसम वह सब था जो म कभी
बनना चाहता था पर चाह कर भी बन नह सका। उसम वह सब था, जो म कभी नह बनना
चाहता था परंतु बन भी सकता था। वह उस संयम अथवा वजना के प म सदै व सामने रहा
जसने मेरे भीतर बसे पशु को कभी बाहर नह आने दया। वह सदै व मेरी अंतरा मा के प
म काय करता रहा।

वह वही था जसने मुझे एक रा स बनने से रोके रखा। म सबसे अ धक उसी से भयभीत


रहता था। और म अपने दय म जानता था क वह मेरी तुलना म, असुर के लए कह े
नेता स हो सकता था। वह एक आदश असुर नेता था, महाब ल का वा त वक
उ रा धकारी। वीर, नै तक, ईमानदार, कत न तथा व ासपा । वह कभी राम जैसी
आपदा को यौता न दे ता, जैसा क मने कया था। वह कभी धम के पथ से वमुख न होता।
हो सकता है क उसने इतने बड़े सा ा य का नमाण न कया होता परंतु वह ब कुल ही
नाकारा हो कर, वेदवती के मोह म भी न पड़ा होता। वह असुर जा त के क याण के लए
अपनी पु ी का ब लदान करने म, एक ण के लए भी संकोच न करता और य द उसे यह
व ास हो जाता क वह भ व यवाणी नरथक थी तो वह पूरे साहस के साथ संसार म
इसक घोषणा भी करता। य द उसक पु ी जनक के पास चली भी जाती तो वह पूरे साहस
के साथ आगे बढ़ता और अपनी पु ी को बल अथवा कूटनी त से वा पस ले आता। वह ब त
समय पूव ही अपनी पु ी को घर ले आया होता। वह कभी अपनी प नी को नर वानर क
वासना का शकार न होने दे ता। परंतु… संभवतः, वह उसे वा पस भी न लाया होता और
उसके साथ घट घटना के कारण उसे वह ेम भी न दे पाता, जैसा क पहले दे ता था। उसने
ऐसे ब त से काम न कए होते, जो क मने कए थे परंतु तब वह ह त और म रावण न
होता।

मेरे दरबारी शांत खड़े थे। जंबूमाली ब त ःखी था। ह त उसका बालसखा रहा था। वे
दोन चतन म, एक ही पीढ़ से संबंध रखते थे। जब पुराने म इस संसार से वदा लेते ह,
तो वे आपके जीवन से भी कुछ न कुछ साथ ले जाते ह। म उस खी दय वृ को गले से
लगाना चाहता था परंतु मुझम कसी से भी नज़र मलाने का साहस नह था। मुझे
ावहा रक बन कर दखाना था। सूया त से पूव ह त का अं तम सं कार कया जाना
आव यक था। म ह त के शव को अपनी भुजा म भर कर कहना चाहता था क मने
आज तक उसके सवा कसी को इतना आदर नह दया था और न ही कसी से इतना नेह
रखा था। म उसे यह भी कहना चाहता था क वह सदा मुझे अपने परामश तथा धम के पथ
से जुड़े उपदे श से खझाए रखता था। अचानक ही मेरे भीतर से उसके लए घृणा का भाव
उभर आया। ‘तुम मेरा सहासन पाना चाहते थे और तुम मुझसे कह बेहतर राजा होते,
य क तुम मुझसे कह बेहतर मनु य थे।’ य द वह राजा होता और म उसके धानमं ी के
पद पर होता, तो म कैसे पेश आता? म तो ऐसी कोई क पना तक नह कर सकता य क म
ऐसी थ त म कभी ब त समय तक न रह पाता। म अपने वामी से पीछा छु ड़ा कर उस
थान तक प ँच जाता, जो वा तव म मेरे लए बना था। ‘इस मनु य के पास मेरे साथ ऐसा
ब त कुछ करने के अनेक अवसर थे। वह मुझे वष दे सकता था, अ भयान के दौरान, मेरे
क म मेरी न ाव था म मेरा वध कर सकता था, वह सैकड़ उपाय से मुझे इस संसार से
वदा लेने पर ववश कर सकता था।’ परंतु मेरे भीतर का वाथ व े षी भी ऐसा नह सोच
सकता था क ह त ऐसा कभी करता। मने उस पर व ास कया था। वह अपने धम तथा
स ांत से इस कदर बँधा था क राजा का पद पाने के लए इतने न न तर तक गरने के
बारे म क पना तक नह कर सकता था। वह कसी र रं जत सहासन क तुलना म अपनी
आ मा को कह मू यवान मानता था।

म उठ खड़ा आ। एक क न शास नक अ धकारी आगे आया व णाम कया। मने


आदे श दया क ह त के अं तम याकम का बंध तुरंत कया जाए। इसके बाद सब कुछ
अपने-आप घटता चला गया। दो इन या-कम संबंधी काम म नपुण थे, उ ह ने
सारी व था का भार अपने सर ले लया। मेरे धानमं ी को लाल असुर वज म लपेटा
गया और उसके शव को ले जाने क तैयारी क गई। म भी उसक अथ को कंधा दे ना
चाहता था परंतु यही सोच कर मन मार लया क कह यह अ त नाटक य न लगे। जो भी हो,
म अब भी एक राजा था। तो म उस अं तम शोभाया ा के पीछे चल दया। लोग सड़क के
दोन ओर कतार लगाए खड़े थे और घर क छत व मुंडेर पर भी ख़ासी भीड़ जमा थी। यह
शोभाया ा उन यु से त त हो चुक सड़क से हो कर नकलने लगी ज ह ने हज़ार
क सं या म हसक मौत दे ख ली थ ।
म अपनी सुंदर नगरी क ऐसी दशा दे ख भ च का रह गया। म चाहता था क यह सब शी
ही समा त हो और म महल म जा कर सो सकूँ। म ब त थक गया था। पंरतु फर भी अपने
कत का नबाह तो करना ही था। म अपने य म और सबसे बड़े श ु का ऋणी था।
वलाप करती जा के बीच से नकला तो यह दे ख कर आ य आ क वह लोग के बीच
कतना लोक य था। वह कभी लोग तक नह प ँचा और उसने ब त से अ य नणय भी
लए थे परंतु जब भी लोक य या उ चत म से कसी एक को चुनने का अवसर आता तो वह
उसी का साथ दे ता जो उ चत होता था। वह हमेशा न प रहता। यह मेरे लए नई सी बात
थी। आप एक शासक के प म जा के लए जो अ पकालीन लोक य काय करते ह,
जा आपको उनके लए नह चाहती, वह आपको इस लए चाहती है य क आप याय य
थे। पूरा दे श मौन भाव से उस के लए ं दन कर रहा था जो उनके लए कसी
अनुशासन य पता क भू मका नभाता आया था। और अचानक ही, मुझे अपने अतीत से
भय होने लगा। ह त और मेरे सहासन के बीच जो भी था, वह उसक न प ता तथा
उ चत का साथ दे ने क यो यता व खूबी ही तो थी। ह त के अं तम दशन के लए उमड़
रही जा के भीतर ऐसे लोग भी हो सकते थे ज ह ने संभवतः कुछ ही घंट पूव अपने कसी
यजन क चता को मुखा न द होगी परंतु फर भी उ ह ह त के अं तम दशन करना
आव यक लगा। य द उसने इन सभी लोग को अपने साथ आने के लए एक आवाज़ द
होती तो म हवा म उड़ते पंख क तरह कह छतरा जाता। परंतु ह त ने तो कभी महल म
नवास नह कया था। जब भी उसे अवसर मलता तो वह नगर से कुछ मील क री पर
थत अपने ामीण घर म रहने चला जाता। वह हमेशा कहता था क उसे अपने दे हात क
आबोहवा ब त रास आती थी। आज जब याद करता ँ तो यान आता है क उसने कभी
अपने प रवार के वषय म बात नह क , कभी कसी संबंधी को सरकारी नौकरी दलवाने
क अनुशंसा नह क और ऐसे कोई अनै तक लाभ नह लेने चाहे, जो क ायः मेरे सरे
दरबारी य अथवा अ य प से लेते ही रहते थे। मुझे लगता था क वह अपने अहं के
कारण ऐसा नह करता और इसी बात को ले कर म उससे े ष रखता था। परंतु अब, जब
हम अं तम याकम के लए उसके घर क ओर रवाना ए तो म दे ख सकता था क उसने
अपने ढ़ व ास व स ांत के लए ऐसा कया था। वह जस पड़ोस म रहता था, वह न तो
ब त ही धना था और न ही ब त द र , वहाँ के वातावरण म एक ा य आकषण था और
लोग ब त ही सादे व सरल वभाव के थे।

वह शोभाया ा एक ऐसे थान पर जा कर ठहरी, जो दखने म कसी कसान का घर लगता


था। यह ह त का घर था, एक साफ़-सुथरी कु टया, उस पर छाई फूस क छाजन से ब त
ही आरामदायक अनुभव हो रहा था। ांगण म गंदगी का नामो नशान नह था। गौशाला के
समीप एक कुआँ था, कुछ फल के वृ तथा पु प क लताएँ दखाई द और पास ही एक
ताल म कुछ बतख भी तैर रही थ । अब म समझा क मेरे धानमं ी को मेरे भ महल क
तुलना म यह दे हाती थान य आक षत करता था। उसने अपने लए द र ता को नह
ब क सादगी को चुना था। म जस से इतनी घृणा तथा भय करता था, उसके इस प
को तो म कभी जान ही नह सका। वहाँ अनेक उप थत थे, भले ही वे समाज के
उ च वग से जुड़े संप नह थे परंतु नधन ामीण तथा छोटे तर के कमचारी समूह बनाए
खड़े थे। मेरे वहाँ जाते ही स ाटा छा गया और मुझे ऐसा लगा मानो म उनके गत ःख
म घुसपैठ कर रहा था। ह त जैसा दखने वाला बाहर आया तथा मेरे आगे
नतम तक आ। कोई फुसफुसाया क वह धानमं ी का पु था। मने उसका कंधा
थपथपाया और आगे चल दया। कु टया के घने अंधकार म ःख के भार से थत य
क आकृ तयाँ दखाई द । एक ी हौले से उठ व मेरी ओर बढ़ । य ही उसके मुख पर
काश क करण पड़ी तो मने अपने वग य धानमं ी क प नी को पहचान लया।

“मुझे ब त खेद है।” मने कहा, परंतु मुझे अपने ही श द जैसे खोखले व नरथक जान पड़े।
वह ब कुल नह हली, वह अडोल खड़ी रही। म ाकुल हो उठा। म इन मृ यु के शोक
समारोह म कभी सहज नह रह पाता। इ ह दे ख कर मुझे अपनी न रता का मरण हो
आता है। म सुन सकता था क प रवार के पु ष एक वशाल आ वृ को काट रहे थे ता क
ह त क चता सजाई जा सके। हमारे असुर म यह परंपरा रही है क जब कसी बालक
का ज म होता तो उसके नाम से एक आम का वृ रोपा जाता। वह वृ बालक के साथ ही
बड़ा होता और येक जी वत ाणी को अपनी सेवाएँ दे ते ए, इस संसार को एक बेहतर
थान बनाने क चे ा करता। ब चे से भी यही अपे ा क जाती क वह भी बड़ा हो कर,
इसी कार समाज को अपनी सेवाएँ दे गा। और जब अं तम या ा का समय आता तो वह
वृ उस के नाम पर अं तम ब लदान दे ते ए, अपने बालसखा के साथ चता क
अ न म जल कर भ म हो जाता। अंततः सब समा त हो गया था। ह त और उसके वे सभी
स ांत, जनके लए वह सदै व आवाज़ उठाता रहा, वे सभी उसके साथ भ मीभूत हो गए
थे। वह आकारहीन धू धीरे-धीरे पतली वायु म वलीन होता चला गया। मेरे आसपास खड़े
लोग से छलक रही पीड़ा व संताप से मुझे ई या अनुभव हो रही थी परंतु वे सब धीरे-धीरे
छतरा गए, और अपने ही संसार म म न होने लौट गए। अंधकार होने लगा था और चार
ओर से क ट-पतंग का वर सुनाई दे ने लगा था। मेरे सहायक बाहर मेरी ती ा म थे ता क
हम महल म वा पस लौट सक। म अपनी तं ा से जगा। मेरा दय ब त भारी हो रहा था और
म उस स ः वधवा से सां वना के दो श द कहना चाहता था। संभवतः ह त के पु व पु ी
को भी थोड़ा दलासा दे सकता। ‘म भी कस तरह का नेता था?’ म तो यह तक नह जानता
था क मेरे धानमं ी क कतनी संतान थ । मेरे युवाव था के वे आदश वचार कहाँ गए?
उन सभी वचार का या आ, जनके अनुसार म सबको एक प रवार के सू म परोना
चाहता था, एक स दय व दयालु नेता बनना चाहता था? मेरा धानमं ी अपने प रवार को
कस दयनीय दशा म छोड़ गया था। वे तो अब कृषक मा थे, घोर द र कृषक! जब उनके
घर का वामी, दे श का धानमं ी था तो उस सादगी म भी एक आकषण था। हो सकता है
क यह भी कोई राजनी तक दाँव पच ही रहा हो परंतु अब वे नधन के अ त र और कुछ
नह रह गए थे और मेरा कत बनता था क म उनक सहायता क ँ ।
म ह त के पु को बुलावा भेजने ही वाला था क वह वयं आ गया और मेरे आगे
न तापूवक शीश झुकाया। उसने संकु चत होते ए, रेशमी व क एक पोटली मेरे पैर म
धर द और फर से शीश झुकाया। मेरे एक अंगर क ने मुझे दे खा। मेरी वीकृ त पा कर,
उसने पोटली को मेरे आगे खोला। म ु हो उठा। उस पोटली म एक सुवण बाजूबंद था
जस पर असुर का च ह अं कत था, एक सुवण ज़ंजीर थी जसम सुवणमं डत बघनखा
था। इनके अ त र कुछ रेशमी पोशाक करीने से सहेज कर रखी गई थ । वे ह त क
गत उपयोग क व तुएँ थ , यही वह सामान था जो उसने एक धानमं ी के प म,
मेरे दरबार से लेना गवारा कया था।

“ये सब या है?” मेरा हाथ सीधा तलवार क मूठ पर जा पड़ा।

वह युवक ण भर के लए तो सकुचाया खड़ा रहा। संभवतः मने उसे भयभीत कर दया


था। फर उसने धीरे से अपनी उठाई व बोला, “ मा कर महाराज! यह हमारे पता ी
क अं तम इ छा थी। वे ायः कहते थे क ये व तुएँ उनक नह थ परंतु दे श के नाग रक
क थ । उ ह ने उ ह यह सब आभूषण कुछ इसी तरह पहनने क अनुम त द थी मानो वे
महल के र क क वद का एक अंग ह । उनका कहना था क जस ण वे अपने पद से
यागप द, सेवा नवृ ह अथवा उनक मृ यु हो जाए, उसी ण यह सब राजा को लौटा
दया जाए, जो अपने दे श के नाग रक क ओर से इसे हण करगे। म तो केवल अपने पता
क अं तम इ छा क पू त कर रहा ँ।”

वहाँ मृ यु से भी भयंकर मौन ा त था। फर जस कार कसी रसते ए पा से पानी का


रसाव होता है, उसी कार म भी वत हो उठा और मेरे ने म अ ु उमड़ आए। ह त ही
एकमा ऐसा था जो असुर का स ाट होने के यो य था परंतु या, या उसम मुझे
जैसा आकषण था? या उसम मेरे जैसी ता व मान थी? हो सकता है क उसके पास
ये सब भी रहा हो परंतु उसने उन बात के लए जीने और मरने का नणय लया जो इनसे
ब त परे थ । सबसे बड़ी बात तो यह थी दे श ने उसक बजाय मुझे चुना था, यही सबसे बड़ा
कटु स य था और वह भी इससे अन भ नह था। म दे श का शासक बना। यह दे श तथा
इसके मूख लोग इस यो य नह थे क इ ह ह त सरीखा शासक दया जाता। वे तो मेरे
अथवा मुझसे भी बदतर तथा मेरे भाई वभीषण सरीखे वाथ कमीन के यो य थे, जो सागर
पार से आने वाले गोरी चमड़ी वाल से एक मु सुवण पाने के लोभ म अपने दे श तथा जा
को भी बेच दे त।े

म ह त क उस कु टया से र आ गया। मुझे अभी से उसके तक , उसक धृ ता तथा


परामश क बेतरह याद सताने लगी थी। मुझे अपनी युवाव था तथा उस समय हमारे
तनावपूण संबंध क ब त याद आई। य द म इस यु से जी वत बचा तो अपने सा ा य का
नमाण नए सरे से क ँ गा, परंतु यह कह अ धक क णामयी होगा, जसम सरकारी
कमचारी कह अ धक स य न ह गे, शासन कह अ धक पारदश होगा, उसम नौकरशाही
के लए थान नह होगा और अ धक से अ धक लोग को क म रखा जाएगा। संभवतः
ह त जीते जी मुझ पर इतना भाव नह रख सका, जतना उसने अपनी मृ यु के बाद
छोड़ा था। मने आशा क क उसका यह ब लदान थ नह जाएगा परंतु ऐसा कौन सा
ब लदान है जो थ नह गया था?

लं कनी। उसने हमारे साथ छल कया। परंतु मुझे पहले से ही उससे ऐसे ही वहार क
अपे ा थी। य द असुर म छल तथा कपट क वृ न रहे तो उ ह असुर कौन कहे? अभी
कुछ समय पूव ही तो मने ह त से कहा था क वह क याकुमारी क उस धूत र का से
मल कर, हनुमान को रोकने का काय करे। ‘एक दन म यह या से या हो गया था? कल
तो हम एक महान वजय के इतना नकट थे। अब तो जैसे पाँसा ही पलट गया था।’ मुझे
सारे समाचार मल रहे थे परंतु उनसे जो त वीर उभर रही थी वह ब त ही ज टल दख रही
थी। ह त बुरे मौसम क चपेट म आ गया और जब तक वह लं कनी के पास प ँचा तब
तक वह सौदे बाज़ी कर हनुमान से हाथ मला चुक थी। लं कनी को राम का प ले कर
ब त लाभ हो रहा था, उसने ह त को यह व ास दला दया क हनुमान को अभी
ाय प प ँचने म समय लगेगा इस लए उसे थोड़ा व ाम कर लेना चा हए। ह त के
भोजन म न द क दवा मलाई गई थी और जब वह नशे से भरी न द म था तो उसी दौरान
लं कनी ने उसका वध कर दया। तब तक हनुमान अपने साथ वह औष धयु पौधा ले
आया था जससे राम व ल मण के ाण क र ा क जानी थी। म नह जानता था क राम
व ल मण के ाण क र ा ई अथवा नह परंतु लं कनी ने मेरे धानमं ी के शव को मुझ
तक प ँचाने का काय अव य कर दया था। मने नणय लया क एक बार राम से नपट लूँ
उसके बाद लं कनी से कुछ ासं गक सवाल पूछूँगा। म यु से बुरी तरह से थक चुका था
परंतु अब इसे रोकने क श भी मुझम नह रही थी। यह सब अपने-आप ही चलायमान था
और उ चत समय आने पर वयं ही बंद होगा। इस वशालकाय वाहन म बैठे लोग इसे वयं
नह रोक सकते। यह अपने माग म आने वाली येक व तु को न कर दे ता है जैसे – घमंड,
श , जीवन, आदर तथा सब कुछ!

महल म प ँचने तक तो अंधकार और भी गाढ़ा हो चला था। सागर क ओर से आने वाली


नमक न वायु के बीच मशाल फड़फड़ा रही थ और पूरा संसार इस काश व साए के खेल म
म न था। आकाश ने बादल का काला कंबल ओढ़ रखा था, जसके छ से कह -कह तारे
झाँकते दख रहे थे। कभी जलते, कभी बुझते, कभी चमकते तो कभी धू मल हो जाते। म
थक चुका था परंतु इतना साहस नह हो रहा था क शयनक म जा कर प नी का सामना
कर पाता। इसक बजाय म अपनी पु ी को दे खने चल दया। वह ब त शीतल रात थी और
वह अशोक वा टका म उस वृ तले अकेली थी। मने अपने पु मेघनाद, अ य व यहाँ तक
क अ तकाय के बारे म भी सोचा। मने आस लगाई क राम क मृ यु हो गई हो और नर
वानर अपने नगर म लौटने क तैयारी कर रहे ह । इसके बाद मेरा मन आनं दत हो उठा पर
इसके बाद सारे वचार का ताँता जैसे थम सा गया।

कह सु र से, सागर के बीच बसे, अंधकार म छपे एक एक प से हष लास के वर कट


हो रहे थे। मुझे मेरा उ र मल गया था… राम जी वत था और वह अगले दन पूरे वेग के
साथ मुझ पर आ मण करने वाला था। पता नह य यह सोच कर मेरे मन को बड़ी
दलासा मली। यु , चाहे जो भी हो, यही तो मेरी सु पड़ चुक आ मा को जागृत करने का
एकमा साधन रह गया था। नणय चाहे जो भी हो, बस अब शी ही नणय हो जाना
चा हए।

मेरे आगे खड़े सै नक ने झुक कर णाम कया, “महाराज! राजकुमार कुंभकण जाग गए ह
और आपसे भट करना चाहते ह।” मने वीकृ तसूचक सर हलाया और कुंभ भीतर आ
गया। य ही मने उसका मुख दे खा तो म जान गया क म मुसीबत म पड़ने वाला था।
43 कुंभकण का आ मण


कसी चम कारी वानर औष ध से राम तथा ल मण के ाण क र ा हो गई। हमारे दय म
आशा क जो न ही सी करण जागी थी, उसे बुझते दे र नह लगी। जब ग के ार खुले और
असुर सेना फर से क़दमताल करते ए, राम और उसके नर-वानर से दो-दो हाथ करने के
लए रणभू म क ओर चली तो म चुपचाप ताकता रहा, दे ह म इतना बल भी नह था क म
खड़ा हो पाता। सै नक टु क ड़य के म य, एक लंबे से हाथी पर राजकुमार कुंभकण
वराजमान था। यह दल कुछ व च ही था। अ धकतर सै नक के पास धनुष-बाण अथवा
तलवार नह थ । आगे वाली पं य के पास बाँस के लंबे तंभ थे, जो आगे से नुक ले थे।
इसके बाद कुंभकण था जो रणभू म म उतारे जाने वाले हा थय के दल का नेतृ व कर रहा
था। इस बार सेना म रथ नह थे। लंका के मुलायम, सफ़ेद व रेतीले सागर तट पर वे कोई
खास कारगर नह थे। कुंभकण ने एक ही दन म, असुर क र ा पं य क बलता भाँप
ली थी। असुर उसी कार यु करते आ रहे थे, जस कार वे मु य ाय प पर लड़ा करते
थे।

यह एक अ छ र ा रणनी त थी और अचानक ही म उ साही हो उठा। मने ख़तरे को


अनदे खा कया और सै नक दल के पीछे चल दया। कुंभकण यु को श ु के खेमे तक ले
जा रहा था। मने दे खा क दल म अनेक सेना य आ मले थे। उनम से कुछ मेरे जानकार
थे। उ ह ने मुझे साथ चलने को कहा। यह पागलपन था परंतु म भी उनम शा मल हो गया।
सेना क पं याँ हमारे पीछे मील तक फैली थ । तभी मने दो चमकती आकृ तय को अ
क पीठ पर सवार दे खा। सूय उनके पीछे था इस लए म उनके मुख नह दे ख सका। “वे
राजकुमार मेघनाद तथा उनका सहायक है।” अंशका लक नाई ने कहा जो मेरे घर के समीप
सड़क पर थत मं दर के पुरो हत का सहायक भी था।

उसने अपने हाथ म प थर क एक गदा थाम रखी थी, जो उसके लहाज़ से ब त बड़ी थी।
तभी उन आकृ तय को पहचान कर म भयभीत हो उठा। सफ़ेद अ पर राजकुमार मेघनाद
सवार था और अ तकाय पूरी न ा के साथ काले अ पर उसके पीछे आ रहा था। गदा
तथा असुर क चमकती काली दे ह के समु के बीच, वे दोन खड़े ए तो उनके आभूषण
सूय के काश म जगमग कर उठे । ‘वे तो बड़ी सरलता से वानर के नशाने पर आ सकते
थे। ये छोकरे भी कतने मूख ह।’ मने वयं को राजकुमार तथा अपने पु क ओर ले जाने
क चे ा क परंतु भीड़ के रेले ने सरी ओर धकेल दया।

मुझे सागर के पास र तक वानर क पं याँ भी दख रही थ । उनम से अनेक उस सेतु पर


भी टके थे, जसका उ ह ने नए सरे से नमाण कर लया था। तज म दा ओर व ण के
पोत का व तार था। सागर तट पर चार ओर वानर ने अपना आंतक मचा रखा था, वे
उसके आसपास तथा पोत से भेजी गई नाव पर कोलाहल मचा रहे थे। व ण के पोत से
कसी ने पहला अ नबाण मारा, जो यो ा के सर के ऊपर से नकल गया। लोग
च लाने लगे। च ान पर, वृ पर चढ़े असुर यो ा, सागर तट पर वचरण कर रहे वानर
पर तीर बरसाने लगे। अनेक वानर ढे र ए परंतु उनके गरते ही जाने कहाँ से सरी खेप
सामने आकर खड़ी हो जाती।

कुंभकण ने हमारी सेना को सागर के समीप प ँचने से पहले ही रोक दया। ब त ही तेज़ी से
आदे श दए गए परंतु वहाँ चार ओर म का वातावरण उ प हो गया। सेना य आदे श दे
रहे थे। लोग के बीच अफ़रा-तफ़री मची थी और इसी हड़बड़ी के बीच काफ़ समय न
आ। अंततः सेना धनुषाकार म खड़ी हो गई, अब वे लोग खाली मैदान म आने क बजाय
वृ क आड़ म थे। असुर ने ती ा करना आरंभ कया। वह खड़े हाथी भी अपनी सूँड म
भारी-भरकम ल े दबाए ती ारत् थे। म दे ख सकता था क अपने अ पर सवार
राजकुमार मेघनाद ब त ाकुल हो उठा था और वह दनदनाता आ राजकुमार कुंभकण के
पास जा प ँचा। वामीभ ान अ तकाय भी उसके साथ ही था।

अचानक ही असुर सेना के बीच मचने वाली खलबली शांत हो गई। दोन राजकुमार आपस
म बहस कर रहे थे। कुंभकण का रोष बढ़ता जा रहा था परंतु मेघनाद अपने काका पर
च लाता ही रहा। अ तकाय भी कुंभकण को अपश द कहने क मु हम म शा मल हो गया।
मेघनाद उसी समय ह ला बोलना चाहता था परंतु कुंभकण के पास एक योजना थी जो क
मेघनाद को ब कुल रास नह आ रही थी। उसने कुंभकण को एक कायर और बूढ़ ी
कहा और कुंभकण ने मेघनाद तथा अ तकाय को बंद बनाने का आदे श दे दया। सेनाप त
का आदे श भला कौन टाल सकता था? प र थ तयाँ वकट हो चली थ । कुंभकण के लोग
ने मेघनाद तथा अ तकाय को घेर कर, तलवार ख च ल । मेघनाद के लोग भी अपने नेता क
ओर से लड़ाई के मैदान म आ डटे और शी ही पूरी सेना पर पर यु करने लगी। असुर को
परा जत होने के लए भला दे व क सहायता क या आव यकता थी। म इस नक से बाहर
नकलना चाहता था।

तभी कुछ वानर सै नक वन क आड़ से बाहर नकल आए। वानर के सेनाप त जांबवन ने


च ला कर उ ह वह रहने को कहा परंतु मने दे खा क यह काय अंगद के मूखतापूण नेतृ व
म हो रहा था। ‘ये छोकरे वृ तथा अनुभवी सयान को नीचा दखाने के लए मूखतापूण
हरकत य करते ह?’

कुंभकण ने आ मण का आदे श दया और सेना के बीच होने वाली हाथापाई वह थम गई।


हाथी आगे बढ़े । वे अपने भारी-भरकम शरीर के साथ, सूँड म काठ के बड़े-बड़े ल े लए
बड़ी ही अ व सनीय त ग त से वानर क सेना क ओर बढ़े । अंगद व उसके साथी कुछ
ण पूव तक उमंग व जोश से भरपूर थे, वे बुरी तरह से त- व त हो गए। वे अपने ाण
क र ा के लए सर पर पाँव रख कर भागे। परंतु भीमकाय हा थय से पार पाना आसान
नह था। उ ह ने अपने आगे आने वाले हर को र दना व कुचलना जारी रखा। वानर
उनका सामना करने के लए आगे आते और कुछ ही ण म अपनी आ ख़री ास गनते
दखाई दे त।े भयभीत वानर सागर क ओर दौड़े परंतु पीछे से असुर क सेना ने ह ला बोल
दया। वहाँ उनक गदा के वार ने वानर को यमराज के ार तक प ँचाने म वलंब नह
कया। वानर क सेना म हा थय ने भगदड़ मचा द थी। लंबे तंभ वाली र ा पं ने
वानर क र ा पं को छ - भ कर दया। शी ही वानर आंत कत हो कर भगदड़
मचाने लगे। उन पर ऊँची च ान से वशालकाय पाषाण लुढ़काए जा रहे थे।

अंगद एक बौराए हाथी क चपेट म आ गया जसने उसे र पटक दया। घमंडी वानर कुमार,
धड़ाम से वानर सेना के बीच जा पड़ा, वह अपने ही लोग के पैर तले कुचला जाता परंतु वह
कसी तरह वहाँ से खड़ा होने म सफल रहा और यु म शा मल एक अ ारोही से उसका
अ ले कर, उस पर सवार हो गया। मुझे यह दे ख कर ब त ही नराशा ई क वह कायर
अपनी जान बचाने के लए खेमे क ओर भाग गया था और उसने जस अ ारोही का अ
लया था, वह बेचारा वहाँ एड़ लगाते अ के म य कुचल कर मारा गया।

यु पोत से आने वाले अ नबाण क वषा थम गई थी य क वे लोग गहरे सागर क ओर


लौट गए थे। शी ही असुर ने उस सारी भू म पर क ज़ा कर लया, जहाँ कुछ दे र पहले
भीषण सं ाम हो चुका था। म अ म मोच पर तो नह गया परंतु र से ही हा थय ारा
कुचले ए वानर को दे ख सकता था जो अंग भंग के बाद, चलने से भी न पाय हो रहे थे।
दोपहर ढलने तक असुर राम के बनाए सेतु तक जा प ँचे थे और वानर को वहाँ तक खदे ड़
दया था। अब केवल ढ़ न यी हनुमान के नेतृ व म वानर का एक छोटा सा दल ही राम
तथा त- व त वानर सेना के बीच शेष बचा था। हनुमान ने बड़ी ही नपुणता से अपने
य को नयं त कया व उ ह योग म लाया, उसने नगाड़ के शोर से हा थय को
मत कर दया और साथ ही, उसके वानर अ ारोही असुर पर बाण क वषा भी करते
रहे।

म वचार कर रहा था क भला मेघनाद गया कहाँ, तभी मुझे आकाश म एक व च सा वर


सुनाई दया। शोर बढ़ता ही गया और लोग ने आपसी मार-काट रोक कर, कौतूहलवश
आकाश म ताकना आरंभ कर दया। इस भीड़ के ब त समीप, आकाश म मेघनाद मय के
उड़नखटोले पर सवार दखा। उस यं के वशाल पंख तेज़ी से घूम रहे थे जसने आसपास
क रेत तथा जल म हलचल पैदा कर द थी। म यं म सवार अ तकाय को भी दे ख सकता
था और वे यं से ही वानर पर अ नबाण क वषा कर रहे थे। कुछ असुर ने अपने नायक
को दे ख कर उ लास भी कट कया परंतु कुंभकण के ने का रोष छपा न रहा। उसने
पु पक क ओर संकेत करते ए कुछ कहा जसे कसी ने नह सुना, य प उसक बात का
उ र आते दे र नह लगी और कुछ ही ण म वह उड़नखटोला सेनाप त कुंभकण के
राजमुकुट को लगभग छू ते ए उड़ा। कुंभकण ने अपने बौखलाए हा थय को वश म करने
क चे ा क ।

हाथी इतने बगड़ गए क वे अपने महावत क सुनने को तैयार नह थे। मेघनाद व अ तकाय
के अनेक अ नबाण नशाने पर जा कर लगे तथा कई वानर भी परलोक सधारे, परंतु जब
असुर आकाश म रचे जा रहे इस तमाशे को दे खने म त ए तो उनके ारा कए जा रहे
आ मण म अचानक ही मंद आ गई। तभी अचानक वह क़हर बरपा। यं क व न म
एकदम प रवतन आया और वह उड़ने वाला यं लड़खड़ाने लगा, उसके पंख क ग त धीमी
हो गई और वह सेतु के नकट पानी म कसी पाषाण क तरह जा गरा। यह पहले तो पानी
म डू ब गया और फर तैर कर सतह पर आ गया। मेरा दल तो वह डू ब गया ‘मेरा पु
अ तकाय!’ म आगे क ओर भागा पर अपने से श शाली लोग ारा रोक दया गया जो
इस तमाशे को दे खने के लए मुझसे भी अ धक आ ही थे।

जब म प प से कुछ दे खने के यो य आ तो मने दे खा क मेघनाद कसी तरह कूद कर


सेतु पर आ गया था और अपने यं को पानी से बाहर लाने क चे ा म लगा था। हनुमान ने
अवसर पाते ही अपने वानर को आगे आने का आदे श दया ता क वे राजकुमार मेघनाद को
पकड़ सक। अ तकाय भी सेतु पर आ गया और राजकुमार का हाथ बँटाने लगा। वे दोन
मल कर अपने यं को पानी से नकालने म म न थे। कुंभकण राजकुमार क ाण र ा के
लए आगे भागा और इसी उ ेजना के बीच वह अपनी सेना से ब त आगे आ गया। वह
चाहता था क हनुमान के वहाँ प ँचने से पूव वह अपने भतीजे क र ा के लए प ँच जाए।

कुंभकण का वशालकाय हाथी मेघनाद से केवल दस फ़ट क री पर था तभी एक लोहे का


तीर सनसनाते ए हाथी के म तक म जा लगा और दो फ़ट तक उसके सर म उतर गया।
उसक वशाल दे ह बुरी तरह काँपी और वह धरती पर पछाड़ खा कर, तड़पने लगा।
कुंभकण अपने हौदे से नीचे जा गरा। ब त से तीर मेघनाद व अ तकाय के आसपास से
नकल रहे थे परंतु सौभा य से एक भी तीर उ ह छू नह सका। वे अपने यं को सेतु तक
लाने म लगभग सफल हो चुके थे और अब उसे एक आड़ क तरह यु कर रहे थे। कई
तीर आकर यं से टकराए या उसके पास से हो कर नकल गए। कुंभकण अपने मृत हाथी
के पास भागा ता क वहाँ से अपनी गदा ला सके। म दे ख सकता था क बलशाली नर वानर
के कंध पर सवार राम व ल मण कुंभकण व मेघनाद पर बाण क ती वषा कर रहे थे।
असुर सेना संकु चत ई खड़ी थी, व तुतः उ ह व ास ही नह हो पा रहा था क वे अपने
ने से या दे ख रहे थे। हनुमान व उसके नर वानर अब मेघनाद से कुछ ही फ़ट क री पर
थे और कुंभकण अपने हाथी के वशाल शरीर के नीचे दबी गदा को नकालने म जुटा था।
मने आतंक के बीच दे खा क वह धूत, वृ कमीना जांबवन इन ण का भरपूर लाभ उठा
ले गया। उसने हा थय पर अ नबाण बरसाने का आदे श दे दया। सागर तट पर हाथी एक
श शाली ाचीर क भाँ त खड़े थे और वहाँ से उ ह नयं त करना सरल था। वह वह
संकरा सेतु था, जस पर हाथी एक-एक कर चल रहे थे और उनके नीचे हरहराता सागर
लहरा रहा थ। अचानक ही एक अ नबाण हाथी को आकर लगा और वह बौखलाहट म
वा पस मुड़ गया। सेतु पर उसके मुड़ने के लए कोई थान नह था, वह बड़ी त ग त से
भागा और अपने माग म आने वाले हा थय को कुचलने लगा। जससे चार ओर हाहाकार
मच गया। असुर क सारी र ा पं य म खलबली मच गई। हाथी बौखला कर भाग रहे थे
और अपनी राह म आने वाली हर व तु तथा को र द रहे थे। कुछ तो वानर क ओर
भी भागे और इसी या म मेघनाद व कुंभकण बाल-बाल बचे। हाथी जहाँ भी जाते, वहाँ
एक अनूठ वनाश लीला तथा मृ यु का तांडव रच दे त।े य प अ धकतर भयभीत हाथी
असुर क सेना म ही घुसे थे। उनम से कुछ पानी म जा गरे।

म अपनी जान बचा कर भागा और ताड़ के पेड़ पर चढ़ गया। वहाँ नीचे, दोन प के यो ा
आपस म यु करने क अपे ा बौराए पशु से लड़ रहे थे। एक ज़ोर क गड़गड़ाहट के
साथ पुल टू ट गया। मेघनाद, अ तकाय तथा कुंभकण उस ओर रह गए थे, जहाँ उनके व
हज़ार श ु तैयार खड़े थे। वानर सेना अपनी ओर आने वाले कुछ हा थय का वध करने म
सफल रही। कुंभकण ने कसी तरह अपनी गदा को नकाल लया और वह अब उसे मेघनाद
व अ तकाय तथा हनुमान के नर वानर के बीच लए खड़ा था।

असुर सेना म भगदड़ मची थी। मुझे यह दे ख कर ब त आ य आ क मेघनाद तथा


अ तकाय वमान म सवार हो कर, उसे उड़ाने क चे ा कर रहे थे। ‘वे अपने काका ी क
र ा करने का य न नह कर रहे थे।’ कुंभकण नरंतर अपनी भारी गदा के सहारे कुछ तीर
को परे धकेलता रहा और इस दौरान हनुमान के कुछ सै नक भी मार गराए।

कुंभकण दे व सेना के ब त नकट था। वह उनम जा कर इस तरह मल गया था क वे उस


पर तीर नह चला पा रहे थे। वह वानर को अपनी गदा से कुचल रहा था और इससे पहले
क वे अपने धनुष-बाण उठाते या तलवार चलाने क को शश करते, वह उसी ण उनके
अंग भंग कर दे ता।

इस तरह जब केवल एक उस संकरे सेतु पर, इतनी वशाल वानर सेना संभाल रहा था
तो यह दे ख कर जांबवन अपने सै नक पर च लाया क वे नाव म बैठ तथा कुंभकण को
पीछे से घेर ल परंतु कुछ असुर क म त लौट आई थी और उ ह ने जांबवन क नाव को
कुंभकण के समीप जाने से रोकने क चे ा क । सागर म एक बार फर भीषण रण छड़ गया
था। म दे ख सकता था क व ण के यु पोत भी लौट आए थे। वहाँ से कुछ ड गयाँ खोली
ग जो बड़ी ग त से कनार क ओर आ रही थ । ‘हम कतनी दे र तक सब संभाल सकगे?’
कतनी ज द सारा खेल पलट गया था और यह सब उस मूख मेघनाद तथा उसके दखावे
क वृ का कया-धरा था।

अब वानर राज सु ीव तथा हनुमान अपनी वशालकाय लौह गदाएँ चमचमाते ए म य म


आ गए थे। मने अपनी आँख श ु के मुख पर लगाने क चे ा क । ‘ये राम और ल मण
कहाँ चले गए थे?’ ऐसा लग रहा था मानो कह ग़ायब हो गए ह । पु पक वमान के पंख
धीरे-धीरे घूमने शु हो गए थे। वे थोड़ा सा घूमने के बाद बंद हो गए, फर थोड़ा सा घूमे और
फर बंद हो गए। इस दौरान कुंभकण हनुमान व सु ीव के साथ ं यु कर रहा था। जब
वह अकेला दो महान यो ा से जूझ रहा था तो उसका भतीजा उड़नखटोले के तं से
जूझ रहा था। अब असुर सेना नेतृ व वहीन थी। वह दे ख रही थी क उसके दोन नेता, यानी
कुमार, श ु के म य फँसे अपने ाण क र ा के लए संघषरत थे।

कुंभकण ने एक मज़बूत वार से सु ीव को पानी म फक दया परंतु तभी हनुमान र ा पं


तोड़ कर मेघनाद क ओर लपका। कुंभकण मुड़ा और लगभग छलाँग लगाते ए हनुमान को
उसके पैर से दबोच लया। दोन यो ा म भीषण संघष होने लगा। कुछ तीर ने कुंभकण
को भेदा और हनुमान को भी कई घाव आए। जब मने दे खा क कुंभकण ने हनुमान को उठा
कर, धरती पर धड़ाम से पटका तो आकाश म ला लमा छाने लगी थी। मेरे हष का ठकाना न
रहा और मने मारे खुशी के ची कार कया। हनुमान धरती पर च पड़ा था। तभी उसी ण
म एक तीर सनसनाता आ आया, उसने कुंभकण क गदन म पीछे से वार कया और
उसक नोक ने कंठ को भेद दया। आकाश म ढलते सूरज क लाली छाई थी। धीरे-धीरे वीर
असुर राजकुमार क वशालकाय दे ह न ाण हो कर सेतु पर जा गरी और फर सागर के
हवाले हो गई, उसके साथ ही सेतु का ब त बड़ा टु कड़ा भी टू ट कर सागर म जा पड़ा।

अंततः जांबवन साम रक थ त पाने म सफल रहा और इस बार भी राम ने कोई चूक नह
क थी।

असुर बड़े ही भय तथा आतंक के बीच अपने सेनाप त को मरता दे खते रहे और वानर सेना
आगे क ओर भागी ता क पु पक वमान म बैठे राजकुमार मेघनाद तथा उसके सहायक को
भी यमलोक प ँचा दे । मेरा सर चकराने लगा। या म अपने पु के वध का सा ी बनने जा
रहा था? या मेरे आगे उसके टु कड़े-टु कड़े कर दए जाएँग?े तभी हनुमान हला और वानर
सेना आ यच कत हो उठ , उ ह ने तो यह मान लया था उनका सेनाप त भी यु म मारा
गया। हनुमान क दे ह म जीवन का संचार होने लगा तो वे वह ठठक गए। वह लड़खड़ाया,
ह का सा झूमा और फर वयं को पु पक वमान के सहारे साध लया। तभी उस यं के पंख
ग त करने लगे। उसने घबरा कर छलाँग लगा द और इससे पूव क वानर यह जान पाते क
यह सब हो या रहा था, पंखे बड़ी ती ग त से घूमने लगे। जांबवन ने यं को ऊपर उड़ते
दे खा तो उसने उसे रोकने के लए आदे श दे ना आरंभ कर दया। वानर सनसनाते तीर ,
आपस म टकराती गदा के म य भागे तथा अपने-आप को चोट प ँचाते ए उस यं को
रोकना चाहा जो बड़ी ग त से ऊपर उठने लगा था। कुछ वीर ने अ तम साहस का प रचय
दे ना चाहा पर गोल घूमते पंख क चपेट म आकर टु कड़े-टु कड़े हो गए।

जैसे ही सूया त आ, राजकुमार तथा मेरा पु अपने पु पक म सवार हो कर, रावण के


महल म सुर त प ँच गए। उ ह ने उन सभी सै नक को वानर क दया के आसरे छोड़
दया था। जो लोग अपने वंश व जा त क क त को अ ु ण बनाए रखने के लए अपने
प रवार को याग आए थे, वही लड़े, सर को मारा और मारे गए। सरी ओर भी बेचारे
वही वानर जान से गए जो कसी ऐसे के यश के लए अपने ाण को नछावर कर रहे
थे, जसके वषय म उ ह ने कुछ माह पहले तक सुना भी नह था। बाद म, जब जांबवन ने
अपने वानर को पीछे हटने का आदे श दया और वानर अपने प पर वा पस लौट गए, तो
म भी अपने आ य थल से उतर कर, घर लौट गया।

कुंभकण अब उन मछ लय का आहार था जो सौभा यवश कसी वीर अथवा नायक का


मोल नह जानत और नायक व खलनायक दोन का ही आनंद से उपभोग करती ह। आज
य द कोई मुझे म दरा पला दे ता। म उसके लए कुछ भी दे ने को तैयार था। यह एक ब त ही
सुंदर रात थी, गहरी अंधेरी तथा व च , एक ऐसी रात, जो म दरा पी कर बेसुध होने तथा
कसी ान क तरह सोने के लए ही बनी थी।
44 मेघनाद वध

रावण
म मंदोदरी से ब त ो धत था। म अपने पु का नामो नशान मटा दे ना चाहता था। मूख!
समझ नह आ रहा था क उस जड़म त के साथ या क ँ ? कभी-कभी वह अचूक परा म
व शौय दशाता; वय क क भाँ त वचार तथा वहार करते ए स चे नेतृ व के गुण का
दशन करता; और कई बार ऐसे पेश आता मानो उससे बड़ा गधा कोई और हो ही नह !
मुझे जो भी सूचनाएँ मल रही थ , वे पूणतया प थ । यह इस मूख क मूखता का ही
प रणाम था क हमने यु म अपने एक े सेनाप त को खो दया। कुंभ क मृ यु पर मुझे
ह त व मारीच क मृ यु से भी अ धक शोक आ।

पछले दो दन म, मेरे पु ने दो बार, हाथ आई वजय को अंगीकार करने का अवसर गँवा


दया था। और फर मूख सदै व अपने ाण क र ा के लए माँ के प लू म जा छपता। और
वह अ ेत कमीना, राजा के क म या कर रहा था? वह कोने म खड़ा अपनी वशाल दे ह
को छपाने क नाकाम को शश म था। म मेघनाद क ओर लपका परंतु एक बार फर
मंदोदरी ने ह त ेप कया, “रावण! इन लड़क को अकेला छोड़ दो। इ ह हाथ भी मत
लगाना।”

“लड़क को छोड़ दो! लड़क को छोड़ दो। जब दे खो, तब यही रट लगाए रहती हो। जाने ये
मूख बड़ा कब होगा? कह इस संग त ने ही तो इसे इतने मोटे दमाग़ वाला नह बना दया
है?” मने अ तकाय को घूरा, शायद उसे मेरी बात सुन कर बुरा लगा था।

“रावण! मुझे ऐसी बात कहने पर ववश मत करो, जनके लए मुझे बाद म प ाताप हो।
या तुम सचमुच यही चाहते हो क म तु ह मरण करवाऊँ क यह यु य कर आरंभ
आ? या तुम मेरे मुख से यह सुनना चाहते हो क तु हारी हठध मता तथा दं भ के कारण
ही सारा असुर वंश वनाश के कगार पर आ खड़ा आ है। कृपया मेरी ज ा को ऐसी बात
कहने के लए ववश मत करो।”

म अपने ोध के साथ असहाय खड़ा रह गया। इन श द से चोट लगी य क ये स य थे।


“मंदोदरी! जुबान संभाल कर बात करो। तुम असुर के स ाट से बात कर रही हो।” वे श द
तो मुझे वयं ही हा या पद से जान पड़े।

वह केवल मुझे घूरती रही, “रावण! बेहतर तो यही होगा क तुम इस समय जा कर व ाम
करो।” म कुछ दे र तो वहाँ ककत वमूढ़ सा खड़ा रहा और फर वहाँ से चला आया। मने
वयं को अकेला, अपमा नत, कुं ठत व आवेश त पाया। मेरे साथ ही इतनी भयंकर घटनाएँ
य घटती ह? म अपने जीवन म इतना खी तथा अभागा य था? मुझे ही हर चीज़ के
लए संघष य करना पड़ता था? मेरे लारे पु ने जो भूल क थ , म ऐसी भूल कदा प न
करता। वह एक दन उस वशालतम सा ा य का उ रा धकारी होगा, जसे संसार ने इससे
पूव दे खा तक नह था।

कुंभ, मेरे भाई! तुझे तो मने ब त समय पूव ही याग दया था। मने तुझे कभी पतन के गत म
जाने से नह रोका। हो सकता है क मने तुझे अ य प से ो सा हत ही कया हो
य क तेरी यह दशा मेरे लए भी अनुकूल थी। म तुझसे भयभीत था। म तेरे म त क म
च कर काटती मह वाकां ा को पढ़ सकता था और तेरे भीतर पनप रहे ई या भाव को
अनुभव कर सकता था। तू भी राजा बनना चाहता था। तुझे कहाँ पता था क यह राज,
कसी काँट के ताज से कम नह होता या यह स ा कस कार, को करते ए,
उसक आ मा का य कर दे ती है। तुमने अपनी मह वाकां ाएँ म दरा व अफ़ म म डु बो द
परंतु स ा क जो अफ़ म म ले रहा था, वह तेरे ारा लए गए कसी भी मादक पदाथ से
कह अ धक श शाली थी। तू नरंतर वषपान करते ए, अपनी लत पूरी करता रहा और
मने मनमाने अ याचार से यह अभाव पूरा कया। तू कसी वशाल क तरह था, जो
अपने ही अ ान के नशे म चूर था और म एक छोटा था, जो अपनी स ा के साथ
दन-रात जागता था। तेरी मह वाकां ा अप र कृत व भावनाएँ पारदश थ । तू मुझे भयभीत
करता था य क मुझे तुझसे अ धक अपने राज सहासन से ेम था। म तो स ा व श को
अपने-आप से भी अ धक चाहता था। म डरता था क एक दन जब तू अपनी तं ा से
जागेगा तो मेरी पीठ पीछे , सहासन पाने के लए षड़यं रचने लगेगा। जब तू म दरा पी कर
बेसुध होता, तो म न त हो जाता। य प मने तुझ पर पूरी नगरानी रखी, मने हमेशा यान
रखा क तू म दरापान कर, बेसुध हो, सोता रहा करे। कुंभ, तू उन य म से था, ज ह ने
मेरी न ा भंग क । परंतु जब मुझे व ासघात का उपहार मला तो यह तु हारी ओर से नह
था। यह उस छोटे भाई से मला, जससे हम सभी हा दक नेह रखते थे। हम कैसे उसक
टाँग ख चते, उसक पीठ पीछे उसक हँसी उड़ाते और उस असुर छोकरे के बारे म रोचक
क से गढ़-गढ़ कर सुनाते जो ा ण बनने का हर संभव य न कया करता था। अब वह
सारा उपहास हम पर आ पड़ा है। हम ही एक मज़ाक बन कर रह गए ह। श ु ार तक आ
प ँचे और हमारा ही छोटा भाई, मशाल लए, उनका नेतृ व कर रहा है। वह हमारे सभी व
को ः व म बदलने के लए तुत है। मेरी भूल भाई, यह मेरी भूल है। मुझे मा करो, म
तु ह ही ख़तरनाक मान कर, तु हारी नगरानी करता रहा और इस आ तीन के साँप पर
चैकसी रखना भूल गया। कुंभ! तुम हमेशा से सही कहते थे। मुझे याद है, तुमने ब त पहले,
वभीषण के वभाव के इस ल ण व उसक न ा पर संदेह कट कया था। परंतु म ही
अनाड़ी था और मने सोचा क तुम जानबूझ कर कसी षड़यं क भू मका बाँध रहे थे। मुझे
लगा क तुम मुझे छोटे भाई से लड़वा कर, वमुख करना चाहते थे ता क स ा तक आने के
लए तु हारे माग का हर काँटा साफ़ हो जाए। परंतु जब मुझे कसी क आव यकता पड़ी,
इस असुर जा त को अपनी र ा के लए कसी के सहारे क आव यकता पड़ी तो उस समय
तुम ही हमारे काम आए। हमने तु हारी ही सहायता ली। तुमने पूरे साहस के साथ मुझे मेरी
मूखता का भान तो कराया परंतु अनाव यक परामश दे ने क चे ा नह क । अब मुझे
एहसास आ क तुम सही मायन म या थे, परंतु अब इन बात के लए ब त वलंब हो
गया है। अब तो यु भी हाथ से नकला जा रहा है। शी ही क ठनाईय से अ जत यह
स यता, सभी य के लए समानता के आदश, सुंदर नग रयाँ व महल, भ दे वालय
तथा राजसी राजमाग, वे बंदरगाह, जहाँ ापा रय के पोत हमारे सबसे े मसाल तथा
व के लए ती ा करते ह, हमारी कला तथा रंगमंच; यह सब कुछ हमारे श ु के पैर
तले कुचला जाएगा। तुम सौभा यशाली हो। तुम यहाँ नह होगे, जब असुर के व , पलक
झपकते ही कह वलीन हो जाएँग।े तुम यहाँ नह होगे, जब सब ा ण का म त क होगा;
दे व यो ा अंग ह गे तथा कुबेर जैसे धूत, हमारे इस भ समाज का धड़ ह गे। एक ऐसा
समाज, जसे हमारा छोटा भाई हमारी लाश पर खड़ा करना चाहता है। भाई, तुम न र
दे हधा रय के भा य के साए से ब त र चले गए हो। हो सकता है क म भी ब त शी
तु हारे पीछे ही आ जाऊँ। मेरा एकमा भय यही है क जब हमारी भट होगी, तो या म
तु हारी आँख म आँख डाल कर दे ख सकूँगा?

मंदोदरी आकर, मेरे समीप खड़ी हो गई। उसके पश से मेरे वचार क ंखला टू ट ,
“रावण! हमारे ब चे का दल बुरी तरह से आहत आ है। उसे लगता है क आज उसक
भूल के कारण ही उसके काका के ाण गए। यह सारा दोष उसी का था।”

“ये उसका दोष था। रणभू म लोग को भा वत करने के लए, ःसाहस दखाने का थान
नह होता। कुंभ क मृ यु हमारे लए एक अपूरणीय त है और म ल जत ँ क मेरा पु
इस हा न का मूल कारण बना। म नह चाहता क अब वह पुनः रणभू म म वेश करे। असुर
अब और ऐसी भूल सहन नह कर सकते।”

“रावण! मेरे बेटे का दल पहले ही ब त खी है… या तुम उसे मा नह कर सकते?”

मेरा पारा फर से सातव आसमान पर जा प ँचा। “कभी संग त दे खी है उसक ? उसे अपने
साथ उस काले-कूलटे नौकर को ले कर घूमने क या आव यकता है…?” मने मंदोदरी से
नज़र बचाते ए अपनी बात पूरी क ।

“बस ब त आ रावण! इस यु को जारी य रखा जाए? हम समझौता य नह कर


सकते? तुम राम को उसक प नी लौटा य नह दे ते?” वह लगभग सुबक रही थी।

“तु ह या लगता है क मेरा कोई अपना गौरव या मान-स मान नह है? तुम चाहती हो क
म अपने सबसे े यो ा, भाई, म व मं ी गँवाने के बाद, राम के चरण म अपना सर
रख ँ ? तुम चाहती हो क असुर का स ाट, एक तु छ रा य के राजकुमार तथा छोटे -मोटे
साह सक कृ य कर दखाने वाले यो ा के आगे, रहम क भीख माँगे?”

“एक तु छ रा य का वह नृशंस राजकुमार अब तक आधे से अ धक असुर सा ा य को


लील गया है। तुम इस मूखतापूण यु को समा त करने से पूव, और कतने लोग के ाण
क आ त दे ना चाहते हो? तुम यह यु कसके लए लड़ रहे हो?”

“अब यह यु असुर क त ा का है। एक ऐसा यु जो जा तवाद को फैलने से…।”

“अपने राजनी तक भाषण जनता को फुसलाने के लए बचा कर रखो। तुम यह यु अपने


वाथ कारण से लड़ रहे हो।

“मंदोदरी! तुम यह भूल रही हो क यह वही राजकुमार है जसने मेरी बहन का अपमान कर,
उसका अंग-भंग कया था। या तुम कह रही हो क मुझे उसे उस अपमान को भी भुला दे ना
चा हए?”

“अ छा वही बहन, जसे तुमने वयं वैध के ार पर ला खड़ा कया था…?”

“बस ब त आ! भला याँ इन बात के वषय म या समझती ह…।”

“म सब कुछ भली-भाँ त समझती ।ँ रावण, मुझे अपना वह नद ष चेहरा मत दखाओ,


जसे दखा कर तुम अपनी जा को गाँठ बाँधते हो। तुम आवेग से भरे जीव हो। दं भी,
कामना से भरे व ाहीन ाणी हो। तुम वयं को एक ऐसे ता कक के प म
च त करना चाहते हो जो उन सभी अंध व ास तथा अता कक मा यता से थत नह
होता, जो क सामा य असुरो म घर कर चुक ह। परंतु तुम अपने दय म, उतने ही
अंध व ासी तथा भयभीत हो, जतना क सड़क पर चलता कोई सामा य असुर जन! जब
तुमने पुनः अपनी खोई श व बल पा लया था तो या कारण था क तुम जनक से अपनी
पु ी को वा पस लेने नह जा सके? य द तुमने म थला पर धावा भी बोला होता, तो वह
तु हारे आगे कतने घंटे टकती? परंतु तुम डर गए थे। तु ह भय था क य द तु हारी न ही
ब टया लौट आई तो वह असुर के वनाश का कारण बन जाएगी। असुर जा त का अंत कर
दे गी। तो तुमने उसे माँ के नेह से वं चत कया और वह नेह भी नह दे सके, जो उसे अपने
पता से मलना चा हए था। तुम स ा के मद म चूर थे और तु ह अपने सहासन से, अपने
प रवार से भी अ धक मोह स ा से था। तुम उस भ व यवाणी से भयभीत थे परंतु जब
शूपणखा क ना सका काट गई तो यह तु हारे अ भमान पर एक कड़ा वार था और तुमने
अपनी पु ी को उसके प त से ही चुराने का न य कर लया। कतनी ल जा क बात है!
भले ही सीता हमारी पु ी थी, तु ह उसका अपहरण करने क बजाय, राम से य यु
करना चा हए था। अब जब क श ु ार पर खड़ा है और वह भ व यवाणी स य स होने
जा रही है तो तुम अपने झूठे दं भ व अहंकार का रोना लए बैठे हो और यह भूल गए हो क
तुम एक पता बाद म और एक रा य के स ाट पहले हो। मने सदै व शांत भाव से तु हारे
घमंड तथा अ भमान को सहन कया है। जब तुमने मेरी दासी से बला कार कर, उसे गभवती
कया, म तब भी शांत रही। म तब भी शांत रही, जब मने यह सुना क तुम उस ा ण
युवती को लुभाने का य न कर रहे थे। जब तुमने उसक मृ यु का शोक मनाया तब भी म
चुपचाप उस पीड़ा को सहती रही। म शांत रही, जब मने तु हारे होठ से, न द म भी वेदवती
का नाम सुना। म तब भी मौन भाव से जीती रही, जब तुम मुझे वष के लए अकेला छोड़
गए और अपने सा ा य का नमाण करने, हसक यु लड़ने तथा वही सब ू र कम करने
म म न हो गए, जनके लए तुम दे व को दोषी ठहराते आए हो। तुम अपनी मातृभू म से र,
अपने यु अ भयान म त रहे। म भी, सरी य क भाँ त शांत रही जब तुम मूख
लोग, धरती को र से लथपथ करते रहे। और दे खो, आज तुम हम या दन दखाने आए
हो… बस यही दे खना बाक रह गया था। मेरे य, मेरे नाथ! मेरी एक बात मान लो। सीता
को उसके प त को लौटा दो।”

अपनी बकवास बंद कर औरत!” म फट पड़ा। “तू ब त बोल रही है।”

म नह जानता था क उसे या जवाब ँ । ऐसा लग रहा था मानो म भरे बाज़ार नव खड़ा


था। मेरे सभी आंत रक वचार बाहर आ चुके थे और वे सब भले और सुदंर नह थे। “तु ह
या लगता है, राम को सीता लौटाने क बात कहना मुझे ब त अ छा लग रहा है? परंतु
रावण, म अपनी पु ी से जतना ेम करती ँ, उससे कह अ धक तु ह चाहती ँ। म तु ह
खोना नह चाहती। रावण, हम इस यु म हार जाएँगे। हार जाएँग!े जस ण तुम उसे लंका
म लाए थे – म उसी ण भयभीत हो गई – उसके लए, मेरे लए और तु हारे लए! म
चाहती थी क तुम उसे उसके प त के पास वा पस भेज दो परंतु इसके पूव क म कुछ कर
पाती, तुमने यु आरंभ कर दया। हज़ार लोग क जान जा चुक ह। या तुमने कभी सोचा
क हम याँ कतना कुछ सहती ह? मने भी अपना पु खोया है। परंतु म उन सभी बेचारी
य म से एक ँ, ज ह ने अपने पु , पता, प त, भाई, घर, उनका मान व इ ज़त खोए ह।
केवल या तु हारे पास ही अ भमान है? तुम जानते हो क तु हारे श ु ने मेरे साथ या
कया? और तुमने या कया? या तुम रणभू म तक म गए? नह , तुमने अपने पु , अपने
भाई, अपने म , अपने मं य को भेजा परंतु तुम वयं एक कायर क भाँ त छपे रहे…।”

“शांत हो जा!…।” मने उसे गदन से दबोच लया।

“आओ, आगे बढ़ो और मार दो मुझे!”

मने खीझ कर उसे परे फक दया और दनदनाते ए क से बाहर आ गया। म नपुंसक ोध


से अंधा आ पड़ा था। मने वयं को नरथक व रोगी अनुभव कया। अनजाने म ही, मेरे
क़दम अशोक वा टका क ओर चल दए, जहाँ सीता बैठ थी। म अंधकार म झुक कर बैठ
आकृ त दे ख सकता था। एक छोटे से द पक से म म काश फूट रहा था। य ही म वहाँ
प ँचा तो उसने सर उठा कर दे खा और फर मेरी ओर से पीठ फरा ली। म उसे छू ना चाहता
था, उसे कंठ से लगा कर कहना चाहता था, “दे खो! म तु हारे लए कतना ब लदान कर रहा
ँ।” परंतु जाने या सोच कर म ऐसा नह कर सका।

म वहाँ ब त दे र खड़ा रहा। अपनी ही पु ी से बात करने का साहस संजो रहा था। तभी मने
ब त ही हौले से, न सुनाई दे ने वाले वर म कहा, “पु ी…!”

कुछ दे र तक कोई त या नह ई और मुझम इतना साहस नह था क उसे पुनः उस


संबोधन से पुकार पाता। फर मने दे खा क उसक न ही दे ह रह-रह कर कांप रही थी और म
उसक ह क सुब कय का वर भी सुन सकता था। “सीता… तुम मेरी पु ी हो! मने इस
संसार म तु हारी माँ को सबसे अ धक ेम कया है परंतु अब म तुमसे इतना ेम करता ँ
क उतना तो वयं से भी नह करता।” उसक सुब कय के अ त र कुछ भी नह सुना जा
सका। म नह जानता था क आगे या क ँ कतु फर भी कहता चला गया, “ या तुम यहाँ
अपने पता के पास रहोगी, लंका क राजकुमारी बनोगी? य द तुम हामी दो तो… म सं ध के
लए बात क ँ गा… राम इस यो य नह क वह तु हारा प त बने। तुम सदा अपने पता के ही
पास रहना।”

उसक ओर से कोई उ र नह आया। यहाँ तक क उसने मुड़ कर भी नह दे खा। कृपया मत


जाओ…! अपने प त के साथ वा पस मत जाओ।” वह बड़े ही ोध से मुड़ी और बोली, “म
उनसे ेम करती ँ… म उनक ववा हता प नी ँ।”

म उसके इस ोध भरे उ र को सुन हत भ रह गया। म नह जानता था क आगे या


कहना चा हए परंतु मने अपनी ओर से एक अं तम यास कया।

“सीता, म तु हारा पता ँ और…।”

“मेरे पता का नाम जनक है और म भु ीराम क प नी ँ।”

म वह असहाय अव था म खड़ा रहा। जब म मुड़ा तो मेरी आ मा पीड़ा से कराह रही थी।

“काका ी!…।” तभी मेरा यान जटा क ओर गया। म इस समय उसका सामना नह
करना चाहता था। उसने भी न त प से अपने पता के बारे म सुना होगा। “काका ी!
या आज मेरे पता ने एक वीर असुर यो ा क भाँ त यु कया?”

“पु ी जटा! मुझे मा करना…।” मेरे पास उससे कहने के लए कोई और श द नह थे।
“मने अपनी माँ से सुना है क मेरे पता सदा ही एक महान यो ा रहे थे। म दरा के वश म
आने से पूव, वे आपसे भी कह े यो ा थे। परंतु, जब म बड़ी हो रही थी तो इस दौरान वे
अपने-आप को पूरी तरह न कर चुके थे। एक पय कड़ क बेट के प म कारा जाना,
मेरे लए यह सब इतना आसान नह था। काश! वे भी मेरी स खय के पता क भाँ त
एक आम और सीधे-साधे इंसान होते। म उनसे घृणा करती थी। परंतु अब, जब…।”

“ जटा! तु हारे पता एक वीर पु ष थे, अनेक वीर क तुलना म कह अ धक वीर…।”


मने अपनी भतीजी को अंक म भर लया और वह मेरे कंधे से लग कर रोने लगी। वहाँ चार
ओर अंधकार था और हम दे खने वाला कोई न था, अतः म भी रोया। यह स मान तथा
अ भमान भी कतने बड़े क का कारण बन सकते ह। यह भयंकर यु , यह बखरा आ
जीवन तथा वीर व तथा हसा का तु तवाचन – म इन सब चीज़ से तंग आ गया था, इनसे
ऊब गया था।

हाँफ़ते ए एक संदेशवाहक के वर ने मुझे आ म-दया के सागर से बाहर नकाला। इसके


प ात! जो भी घटा, वह सब नरथक था। इसके बाद मानो कुछ मायने ही नह रखता था। म
समय के च क एक धुरी मा बन कर रह गया। म एक ऐसा प थर बन गया, जस पर चढ़
कर कोई महानता व भु व तक जा प ँचा। इसके बाद म राम के नायक व क महागाथा का
एक गौण पा बन कर रह गया। उस एक ण म, जैसे सब कुछ ही बदल गया था।

“महाराज,” बेचारे के पसीने छू ट रहे थे और उसके मुख को दे खते ही मानो म जड़ हो गया।


मेरे चेहरे से जैसे कसी ने सारा र सोख लया था। “महाराज! युवराज मेघनाद को कुछ हो
गया है…।” वह वह खड़ा धरती को ताकता रहा। मने जटा को पीछे धकेला और
संदेशवाहक से आगे-आगे चल दया, वह भी मेरे पीछे आने लगा।

“कहाँ है वह? या आ उसे?” मने उसके उ र क भी ती ा नह क । म सबसे बदतर


क क पना से भयभीत था, परंतु मन ही मन, ऐसी कसी संभावना से इंकार कर रहा था। म
संतरी चौक से भाग कर नकला और एक घोड़ा लपक लया। ग के ार खुले और म
कसी उ माद क भाँ त, पहाड़ी वाले ग क ओर अ भगाने लगा। नगर क सीमा के
समीप से नकलते ए, मुझे अ न क गजना सुनाई द । मने मुड़ कर दे खा क नगरी धू-धू
कर जल रही थी, परंतु म वह सब दे खने के लए क नह सका। ‘नगरी को आग म जलने
दो, सारी मनु यजा त को न होने दो। मेरा पु कहाँ था? मेघनाद! हे शव, मेरे पु क र ा
करना। उसका अ हत मत होने दे ना’। म अ क दे ह से नकलते चप चपे वेद क गंध
अनुभव कर सकता था, य प मुझे अब भी ऐसा ही लग रहा था क मेरा अ तेज़ नह दौड़
रहा था। ग के समीप जा कर दे खा क उसके ार पूरी तरह खुले थे। म उन सै नक के पास
से नकला, जो धरती पर न ाण पड़े थे, वे अपने ही र कुंड म नहाए ए थे। सारा ग
मानो मौत के गहरे स ाटे के बीच था। म अ से उतरा व अपने पैर को घसीटते ए, महल
क ओर चल दया। म वहाँ जाना नह चाहता था। म जानता था क वहाँ मेरे लए कौन सा
य ती ारत् था। य प फर भी म सर वहीन दे ह , अंगहीन धड़ तथा र से सनी
ाचीर को पार करते ए चलता रहा।

“महाराज!” म यह वर सुन कर त ध रह गया। मेरा व मं ी तथा ग र क जंबूमाली,


धरती पर बैठा था और उसने एक तंभ का आ य लया आ था। वह र से नहाया आ
था और वृ ने खड़े होने क चे ा क ।

“मेघनाद कहाँ है?” मने उससे पूछा य प म जानता था क मुझे या उ र मलने वाला
था। उसने पूजा क क ओर संकेत कर दया, जहाँ मेरा पु ायः नृ यरत शव क मू त
नटराज के स मुख म तक नवाया करता था। मेरे मन म आस क एक करण सी जागी।
“मेघनाद! मेघनाद पु ! मेरे पु !” मन म कह ह क सी आशा थी क वह अभी खीस
नपोरते ए बाहर आ जाएगा। मने काँपते हाथ से क का ार खोला। वहाँ मेरे पु का
नज व शव पड़ा था। म वह धरती पर गर गया, म अपने ने को भरसक उस भयावह य
से परे रखना चाह रहा था य प फर भी मेरी बार-बार वह जा रही थी। मेघनाद का
कटा शीश शव के चरण म रखा था और बाक शरीर कुछ क़दम क री पर था। उसक
पीठ म चार तीर छदे ए थे। साफ़ दख रहा था क मेरा पु मरने से पहले यह तक नह
जान सका क वहाँ हो या रहा था। उस पर पीछे से वार कया गया था। जब उसके ाण
नह रहे तो उ ह ने उसका सर धड़ से अलग कर दया।

“वह ल मण ग म घुस आया था। वे करीब चालीस थे। कोई नह जानता क वे लोग
कहाँ से आए और उ ह ने ग म कैसे वेश कया या वे कैसे जानते थे क युवराज यहाँ पूजा
कर रहे थे।” वृ सुब कयाँ भरे जा रहा था “जब युवराज यहाँ आए तो उनका मनोबल बुरी
तरह से बखरा आ था। उ ह ने मुझे बताया क यु म उनक पराजय ई और वे ही अपने
काका ी क मृ यु के उ रदायी भी थे। वे पूजा करना चाहते थे… परंतु… दे खए कैसे…
वे…।”

“वह सरा लड़का कहाँ है?” म लगभग सु हो चुका था।

वह भी मारा गया। शायद बाहर कह पड़ा होगा। सभी मारे गए। उ ह ने मुझे छोड़ दया
शायद मेरे बुढ़ापे पर दया आ गई होगी।”

अचानक ही नटराज क मू त के पीछे थोड़ी सी हलचल ने मेरा यान अपनी ओर आक षत


कया परंतु मुझम इतना साहस नह था क म वहाँ तक जा सकता य क मुझे मेघनाद के
शरीर के कटे अंग पर पैर रख कर वहाँ जाना पड़ता। एक वशाल काले हाथ ने तमा का
सहारा लया और धीरे से अ तकाय उठ खड़ा आ। वह र से नहाया आ था परंतु उसने
हमारी ओर आने क चे ा क । उसने मेघनाद को दे खा तो उसके मुख से पशु क तरह
दयनीय ची कार नकली। वह मुझे और जंबूमाली को र ने से ताक रहा था। अ तकाय
का चेहरा गंभीर प से वकृत हो चला था। मने अपने वृ धानमं ी को दे खा। उसका रंग
पीला पड़ गया था। जंबूमाली भागने लगा तो अ तकाय अपना पूरा बल सहेज कर उसके
पीछे भागा। इससे पहले क जंबूमाली भाग सकता, मने उसे भुजा से थाम कर वह रोक
लया। अ तकाय अभी वहाँ प ँचा भी नह था क वह धे मुँह गरा और उसका मुख
र रं जत हो उठा। उसने एक बार फर से उठना चाहा परंतु नह उठा सका। मने जंबूमाली
को वपरीत कोने म धकेल दया, जहाँ से वह मुझसे र नह भाग सकता था। वह कोने म
बैठ गया, पूरी दे ह मारे भय के काँप रही थी। म अ तकाय क ओर बढ़ा तो उसने अपना
चेहरा मेरी ओर घुमाया।

“यही था… यही था… इसने खोले थे… ार… मने राजकुमार को बचाने क ब त
चे ा क … मुझे मा कर… म नह बचा सका… मने य न कया… ब त य न कया…
ल मण यहाँ आया था… यही जंबूमाली उसे यहाँ लाया… म बाहर था और… मने सब
दे खा… राजकुमार अकेला रहना चाहता था… तभी म बाहर गया… वहाँ ार के पास था…
जब म लौटा… मने उसे दे खा… वह मेघनाद के शरीर के पास… म लड़ा… पर वे बच कर
भाग नकले… मने को शश क … को शश क …।” उसके ाण पखे उड़ने को तैयार थे।
मने उसे उठाना चाहा परंतु उसक वशालकाय दे ह को हलाना सहज नह था। धीरे-धीरे,
मेरा अवैध पु मेरी आँख के आगे दम तोड़ रहा था और उसने दम तोड़ दया। मने उसे हौले
से नीचे रख दया। म ब त ज़ोर से रोना चाहता था परंतु म उठ खड़ा आ। बूढ़ा जंबूमाली
कोने म बैठा कसी डरपोक चूहे क तरह काँप रहा था। म उसके पास गया और टाँग के
बीच ठोकर दे मारी। वह च लाया और मेरे पाँव पकड़ लए। “दया… दया… महाराज!” वह
घ घयाने लगा। मने अपनी कटार नकाली और उसके टु कड़े-टु कड़े कर दए। धीरे-धीरे, मने
पूरा रस लेते ए यह काय संप कया। अब तो मेरे पास समय ही समय शेष था। मने उसके
ने से आरंभ कया और फर नीचे के बाक अंग को अपना नशाना बनाया। इस काय म
मुझे ब त ही आनंद आया। उसक चीख़ मेरे कान को कसी मधुर संगीत से कम नह लग
रही थ ।
45 शहीद का अं तम सं कार


जब मने वह समाचार सुना, जसका मुझे सबसे अ धक भय था तो म महल क ओर भागा।
ातःकाल का समय था। सब कुछ अंततः समा त हो गया था। मेरा पु , मेरा मूख पु भी
राजकुमार मेघनाद के साथ मारा गया था। म जानता था क एक न एक दन तो ऐसा होना
ही था। और म इस वषय म कुछ नह कर सका था। एक पता का अपने पु के त नेह,
सदै व एकतरफ़ा होता है। जब म वहाँ प ँचा तो म ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा, अपनी छाती पीट
और सड़क पर लोटने लगा। म अपने-आप को संभाल नह सका। जो भी कोई मुझे सुनता,
म उसे यह बताना चाहता था क मेरे पु ने राजकुमार के लए अपने ाण क आ त दे द
थी परंतु कसी ने भी सुनने क परवाह नह क । वे सभी राजकुमार क मृ यु का शोक मनाने
जा रहे थे। वे उस भ अं तम सं कार का एक ह सा बनना चाहते थे। सड़क के दोन ओर
भारी भीड़ जमा थी। म यही सोच रहा था क आज कोई यु य नह था। यह तो मानो
दै नक चया का एक अंग बन गया था इस लए यु के बना नकला आ दन, बड़ा ही
नरथक सा लगा। उ ह ने मुझे महल क ओर नह जाने दया। मने उनसे वनती क और घूस
दे ने का यास कया परंतु आज तो वे पहले से भी अ धक अ श ता व ता से पेश आए।
उ ह ने मुझे पीछे धकेल दया। “मेरा पु मारा गया है। मेरे पु ने राजकुमार के लए अपने
ाण याग दए ह। मेरा पु !”

“ऐ भखारी! हट रा ते से।” एक सै नक ने इतनी ज़ोर से ध का दया क म संतुलन खो कर,


मुँह के बल धरती पर जा गरा परंतु म ु हो कर उठ खड़ा आ। मेरा पु अपने दे श के
लए शहीद आ था और एक शहीद का पता होने के नाते, मुझसे आदर-मान से पेश आने
क बजाय, वे मुझे एक भ ुक समझ कर कार रहे थे।

कृपा करके मुझे भीतर जाने दो…।”

“बेअ ल कह के… राजकुमार का शव सुबेला से यहाँ आने ही वाला है।”

एक और बे दे से र क ने मुझे कोने म धकेल दया। म असहाय हो कर, वह खड़ा हाँफता


रहा। कसी ने भी मेरी नह सुनी। मेरा पु मारा गया था और मुझसे सां वना या सहानुभू त
के दो बोल कहने वाला तक कोई नह था। म ण- त ण ो धत होता जा रहा था और
रावण तथा येक उस का नाम ले कर अपश द कहने लगा, जो मुझे उस समय
मरण रहे। कुछ ण के लए तो लोग ने मुझे उपे त कया परंतु उसके बाद एक र क
आगे आया और मेरे गाल पर एक करारा तमाचा जड़ दया। मेरा सर चकराया और म एक
नाली म जा गरा। म वह पड़ा बसूरता रहा, अब तो मुझम उठने क भी ताकत नह रही
थी। न ही म वहाँ से उठना चाहता था। जब मने सु र से आते रथ के प हय क घरघराहट
सुनी तो रग कर उठ खड़ा आ। मने आगे आने क चे ा क तो लोग ने घना कर मुझे माग
दे दया। रथ समीप आते गए तो भीड़ म ध कामु क होने लगी। लोग कसी तरह आगे
आना चाहते थे। वे लोग नारे लगा रहे थे और कुल मला कर अपनी उदासी का पूरा आनंद ले
रहे थे। शहीद के शव धीरे-धीरे महल क ओर ले जाए जाने लगे तो जा वलाप करने लगी।
लोग मानो तेज़ वर म वलाप करने क होड़ कर रहे थे। शव पर पु पवषा क जा रही थी।
येक मेघनाद के लए आँसू बहा रहा था। ‘मेरा पु मारा गया था और इन लोग के लए
यह कोई तमाशा था।’

जूलूस म सबसे आगे, रावण सर झुकाए बैठा था। उसक गोद म मेघनाद था। मौन अ ु
तथा वेद क धाराएँ राजा के य पु के म तक को चूम रही थ । राजकुमार का चेहरा
र रं जत था और भयावह दख रहा था। मृ यु ने उसक सारी सुदंरता तथा यौवन सोख
लया था। जब वे मेरे नकट आए, मेरा दल ज़ोर से धड़कने लगा। ‘मेरा पु , मेरा अ तकाय
कहाँ था?’ शव को नकट आता दे ख लोग जैसे बौरा गए। मने आगे आना चाहा पर लोग
क भीड़ ने मुझे पीछे धकेल दया। मने दे खा क राजसी रथ के पीछे ब त सी बैलगा ड़याँ
भी आ रही थ जनम ब त से साधारण सै नक के शव के ढे र लगे थे। हो सकता था क
अ तकाय उनके बीच पड़ा हो।

ब त से लोग उन गा ड़य के पीछे भागे। कुछ लोग दय वदारक चीख़ मार रहे थे और म


भी उनम शा मल हो गया। जब तक म अं तम छकड़े तक प ँचा तो बुरी तरह से हाँफने लगा
था। लोग के न ाण शव, छकड़ म स जय के बोर क तरह लदे थे। उनसे टपकता र ,
सड़क पर नशान छोड़ता आ रहा था। कौए उन पर मंडरा रहे थे ता क मानव-माँस खाने का
अवसर मल सके। मृ यु ब त स ती थी परंतु मेरा पु मारा जा चुका था। ‘उसका शव कहाँ
था? या वे उसे लाना ही भूल गए?’ मने शव के चेहरे दे ख कर पहचानने का असफल
यास कया परंतु नाकाम रहा य क सभी मृतक के मुख एक से दख रहे थे। मेरी आँख
धुँधला ग । ‘उस ब चे ने मेरी बात य नह मानी?’ वह बुरी संग त म था। मुझे ब त पहले
ही लंका याग कर, कह और चले जाना चा हए था। मुझे पूण नद के तट पर थत अपने
छोटे से गाँव म लौट जाना चा हए था। म यह य का रहा? मुझे इस संसार के राम और
रावण से या लेना-दे ना था? वे और उनके यु । रावण ने मेरी प नी से बला कार कया
और मुझे एक पु दया और जब म उस पु से ेम करने लगा तो वह मुझसे उसे छ न ले
गया।

सभी चताएँ एक कतार म सजाई ग । सं कार के लए छकड़ म भर कर लक ड़याँ लाई ग


और चता को तैयार कया जाने लगा। मने र क से वनती क क उन शव म से एक
शव मेरे पु का भी था और म अपने मृतक पु के अं तम दशन करना चाहता था। अंत म
एक को मुझ पर दया आई और वह मुझे हाथ से थाम कर मृतक के बीच ले गया। मने हर
उस अभागे का मुख दे खा जो इस नरथक यु म अपने ाण गँवा बैठा था परंतु वह
वहाँ नह था। ‘मेरा अ तकाय कहाँ था? या वह अब भी जी वत था? मेरे मन म आशा क
न ही सी करण जागी। हो सकता है क वह भयभीत हो कर कह छप गया हो। हो सकता
है क वह कुछ दन बाद साहस संजो कर घर लौट आए।’

तभी मुझे दखाई दया क महल का एक ार धीरे-धीरे बंद हो रहा था और भीड़ को वहाँ से
पीछे रखने का य न कया जा रहा था। वहाँ भीतर दो चताएँ सजाई जा रही थ । एक पर
मेघनाद का न ाण शव रखा था और नःसंदेह सरी चता पर मेरे अ तकाय का भारी-
भरकम नज व शरीर पड़ा था। म बंद हो रहे दरवाज़ क तरफ भागा। र क पसीने से
लथपथ थे और भीड़ से जूझते-जूझते प त हो चुके थे। मने उस थोड़े से खाली थान से
भीतर झाँकना चाहा तो मुझे बड़ी बे खी से पीछे धकेल दया गया। मने अपनी राह म आने
वाले र क के मुख पर घूँसा दे मारा और अपनी ही ताकत पर आ यच कत हो उठा। लंबा
सा र क, एक बूढ़े के हाथ का घूँसा खा कर, क चड़ म जा गरा। इससे पहले क उसके
साथी कुछ समझ पाते। म भाग कर वहाँ से आगे नकल गया। मेरे पीछे खड़े कुछ सरे
लोग ने भी अपनी क मत आज़माने क सोची। इससे यह तो लाभ हो ही गया क वे लोग
आपस म ही उलझने म त हो गए और म चता के समीप जाने म सफल रहा।

मने दे खा क मेरा पु राजा ारा तैयार करवाई गई चंदन क चता पर शां तपूवक पड़ा था।
उसके शरीर पर सैकड़ घाव थे और चेहरे से यौवन क आब जाती रही थी। ऐसा लगता था
मानो कोई बदसूरत रा स मरा पड़ा हो। परंतु फर भी वह मेरा पु था, मेरे जीवन का
एकमा उ े य। कोई भी स ाट उस पर अपना दावा नह कर सकता था। वे जीते-जी तो
मुझे उससे र कर चुके थे परंतु अब मेरे मृत पु को भी मुझसे र रखा जा रहा था। उसक
भी एक माँ थी, जो एक छोट सी कु टया म उसक ती ा कर रही थी। कोई भी रावण मुझे
एक पु को उसक माँ के पास ले जाने से नह रोक सकता था। राजा वह खड़ा था और
चेहरे पर गहन ःख व पीड़ा के भाव थे। रानी धरती पर पड़ी थी। उसके केश खुले थे और
वह हौले-हौले सुबक रही थी। महल के चाटु कार, वलाप के ती सुर के लए आपस म
तयो गता कर रहे थे। वे दखाना चाहते थे क उ ह राजकुमार क मृ यु का कतना ःख
था और इस तरह उ ह ने वहाँ उप व मचा रखा था। कुछ लोग चंदन क लकड़ी सज़ा रहे थे
जो कुछ ही ण म मेरे पु तथा राजकुमार को लील जाती। उसे महल म कभी अपने यो य
थान नह मला। वह जब तक जी वत रहा, उसने कभी मेरी एक नह मानी। वह तो महल
का एक ान था। कम से कम, वह मृ यु के समय तो यह दावा कर ही सकता था क वह भी
एक मनु य था। म राजा के समीप गया और धृ क भाँ त खड़ा हो गया। मने उसे झुक कर
णाम तक नह कया। ‘अगर यह इस धृ ता के लए मेरा शीश धड़ से अलग करवाना चाहे
तो बड़ी स ता से करवा सकता है।’
“म अपना पु वा पस चाहता ँ।” मने कहा कतु वह मुझे अपलक ताकता रहा। ऐसा लगा
क उसने सुना तक नह ।

“म अपना पु वा पस चाहता ।ँ ” म इतनी ज़ोर से बोला क इस बार सबका यान मेरी ओर


आक षत हो गया। राजा को तो जैसे मेरी उप थ त का एहसास तक नह हो रहा था। ‘ या
मुझे उसे उसके बाल से पकड़ कर, कान म चीख़ना होगा?’ म तो कुछ ऐसा ही करना भी
चाह रहा था। तभी राजा ने मेरी ओर दे खा।

म बुरी तरह से सस कयाँ लेने लगा। उसने मेरे कंधे पर हाथ धरा परंतु म उसका हाथ झटक
कर च लाया। ‘मुझे मेरा पु वा पस दो।’

रानी अपने ःख के सागर से उबरी और हमारे पास आई। उसने एक-एक श द ऐसे कहा
मानो उसे बोलने से ममातक पीड़ा हो रही हो। “रावण! इसे इसका पु दे दो। इसे उसका
शव ले जाने दो।”

राजा का चेहरा गु से से लाल हो गया। वह रानी से हौले से बोला, “कभी नह , वह मेरा पु


है।”

“ ब कुल नह ! तु ह यह दावा तब करना चा हए था। जब वह जी वत था। तु हारा तो केवल


एक ही पु है और वह है मेघनाद! य द तुमने अपनी भूल वीकारी होती और उसे नवजात
अव था म ही महल म ले आए होते तो म उसका भी मेघनाद क भाँ त पालन-पोषण करती
परंतु तुमने तो उसके ज म से पूव ही उसे याग दया। अब हम उस पर कोई अ धकार नह
रखते। व तुतः हमारा उस पर कभी कोई अ धकार था ही नह ।”

रावण ने ोध उग़लते ने से मुझे व अपनी प नी को दे खा परंतु रानी उसक आँख म


नभ क हो कर ताकती रही। मुझम इतना साहस नह था क उसके गु से का सामना कर
पाता इस लए मने खुद को ममभेद सुब कय क आड़ म छपा लया और उससे थोड़ा परे
हट गया। “ले जा, ले जा इसे यहाँ से। य द यह मेरे पु मेघनाद का म न होता, तो यहाँ तक
क कसी ान को भी उसके मरने क परवाह न होती।” बलशाली स ाट मेरे कान म
फुसफुसाया।

‘हाँ मेरे राजा, म जानता ँ, मेरे पु जैसे युवक क मृ यु के लए तो कसी ान को भी


परवाह नह होती, जसने आपके लए अपने ाण का याग कया। आप जो गले म पहनने
वाली उपा धयाँ दे ते ह, अपने लए मरने वाल क संतान को जो छोट -मोट चाक रयाँ दे कर
एहसान करते ह, अपने छलछलाते कोष से जो चंद स के उनक झोली म फक दे ते ह, वे
सब कुछ नह , केवल कु को ललचाने वाली ह याँ ही तो ह ता क अ धक से अ धक
सं या म कु े आपके लए ाण दे ने को ललचा जाएँ। म अपने न हे से कु े को आपसे र
ले जाना चाहता ।ँ उसने अपना उ े य पूरा कर दया है। आपने बाक युवक को भी दखा
दया है क मातृभू म तथा जातीय गौरव जैसे अमूत वषय के लए अपने ाण अ पत करना
कतना म हमामं डत हो सकता है। आपने उसका स मान कया, जा को मूख बनाया और
उ ह दखा दया क आपने अपने लए ाण दे ने वाले के लए कतना भ बंध कया था।
उसक कतनी वैभवशाली शवया ा नकाली। येक इस बात से स है क हमारे
दे श ने उन युवक को नह भुलाया, जो मातृभू म क र ा के लए शहीद ए ह। जो भी
शहीद आ है, उसे याद रखा जाएगा परंतु केवल अगले समय के भोजन तक। राजन, बंध
वाकई ब त आलीशान था। अब और ब त से युवक तु हारे लए ाण क आ त दे ने को
आगे आएँगे, तु हारे ारा फक गई ह य , दो ण क क त तथा सड़क के कनारे बने उस
पाषाण मारक को दे ख ललचाएँगे जस पर वा तव म ान मू याग करगे। मेरे पु ने
तु हारा काम कर दया है। अब उसे अपने घर जाने दो। म उसे उसक माँ के पास ले जाना
चाहता ँ।’ मने इनम से एक भी श द अपने मुख से नह उ चारा। य द मेरे भीतर इन श द
को अपने मुख से नकालने का साहस होता तो अनेक कंठ से भी ह मत जुटा कर, यही
वर नकलते और एक त व न बन जाते, तब धरती से राम तथा रावण का अ त व ही
समा त हो जाता। म अपने पु के शव के समीप गया और उसे आ लगन म ले लया। मने
उसे उठाना चाहा परंतु वह तो ब त पहले ही मुझसे ब त बड़ा हो गया था। दो सै नक ने उसे
उठाने म मुझे सहायता द । उसका शरीर अकड़ गया था और भार इतना बढ़ गया था क
उसके बूढ़े बाप के कंधे उठा नह सकते थे। हाथ से ख चे जाने वाला छकड़ा मेरी ओर
धकेल दया गया और मने बड़े ही आराम से अपने पु को उस पर रख दया। मेरे भुजा
क शराएँ फड़क उठ परंतु म उस भारी बोझ को घसीटते ए, नरंतर अपने घर क ओर
चलता रहा। उसक माँ उससे मलने के लए ती ा कर रही थी।

जब मने महल के मु य ार के बाहर क़दम रखा तो य का क ण वलाप सुनाई दया,


मेघनाद को उसके पता ारा मुखा न दे द गई थी। जब म शाही माग से अपने घर क ओर
जाने वाली गंद तथा काली सड़क क ओर मुड़ा, तब तक असुर का राजकुमार गाढ़े व
छ लेदार धुएँ के म य कह अलोप हो गया था। य ही इस द र असुर ने अपना दावा
जताया, उसी ण उसके म , उसके सखा, उसके सहायक तथा सौतेले भाई को भुला दया
गया। म अकेला ही अपने मृत पु का छकड़ा ख चते ए चलता रहा। सूय मानो अपने
त पश से हज़ार मु य से भी भयंकर हार कर रहा था और मेरे पोर-पोर से पसीना बहा
जा रहा था। मुझे अपना कोई पड़ोसी अथवा म दखाई नह दया। वे सब एक राजकुमार
के अं तम या कम का भ समारोह दे खने गए ए थे। य ही म घर के समीप प ँचा तो
कभी सुंदरी रह चुक , अपनी प नी क कुबड़ी आकृ त दे ख सकता था। वह बड़ी ता से
अपने पु क वापसी क ती ा कर रही थी और हमारी ओर दौड़ी आई परंतु छकड़े को
दे खते ही वह थम गई। एक ही झटके म उसक स ता का थान सदमे ने ले लया, पहले
उसके चेहरे पर अ वीकृ त के भाव उभरे और फर उसे नय त के इस ू र हार को अपनी
वीकृ त दे नी पड़ी। वह अ तकाय के शरीर पर गर पड़ी। उसे ज़ोर-ज़ोर से पीटने और
हलाने लगी। उसने ःख के मारे अपने बाल नोच लए। मने वलाप करती माँ और उसके
मृतक पु को उनके हाल पर छोड़ दया। मुझे तो ब त सी नयादारी नभानी थी। म अपने
पु का आलीशान अं तम सं कार करना चाहता था। सूय ढलने को था और उसके सं कार
के लए मुझे कसी कार के अनु ान क आव यकता नह थी। म केवल यही चाहता था
क सूय अ त होने से पूव सब कुछ नपट जाए। म इस संताप व पीड़ा से तंग आ गया था।
मेरा पु मर चुका था और यह संताप मेरी मृ युपयत दय पर कसी पाषाण शला क भाँ त
पड़ा रहेगा। मने उसे जलाने के लए लकड़ी खोजी परंतु मेरे घर म ब कुल लकड़ी नह थी।
हम तो घर म भोजन पकाए भी जाने कतना समय हो गया था। हम कभी-कभार पकड़े गए
जंगली चूह या मेरे माग म आवारा भटकते अभागे ख़रगोश व गलह रय के सहारे ही
जी वत थे। म कह सु र से आते भीड़ के ं दन को सुन सकता था। म सुन सकता था क
कोई अपने ककश वर म असुर युवराज मेघनाद क क त का बखान कर रहा था और लोग
रो-रो कर उसे दोहरा रहे थे। य ही वे नारे ज़ोर पकड़ने लगे, मेरे भीतर का रोष भी उबाल
खाने लगा। म हर चीज़ से तंग आ गया था, थक चुका था। म अपनी जा त, अपनी द र ता
अथवा अपने उस पु के अं तम सं कार के लए लकड़ी न मलने से टू ट चुका था जसने
बड़ी मूखता से राजकुमार के लए अपने ाण याग दए थे।

जब मने अपने नधन महल को सहारा दे ने वाले मु य तंभ पर कु हाड़ी का पहला वार
कया, तो उस समय मेरे म त क म रावण का मुख च कर काट रहा था। फर हर वार के
साथ, मने क पना क क म उन सभी महान य के शीश काट रहा था, ज ह मने दे खा
था अथवा जनके वषय म केवल सुना था। मेरी प नी ने रोना बंद कया और मुझे कोसते
ए दौड़ी। उसने कहा क म बौरा गया था। म अपने महल को टु कड़ म काटता रहा। अब
यह एक खेल बन गया था और म इसका पूरा आनंद ले रहा था। मने वभीषण, कुंभकण,
ह त, राम, ल मण, सीता, मंदोदरी, जंबूमाली, व ुत ज हा, कुबेर तथा व ण आ द सभी
के नाम पर एक-एक वार कया परंतु इससे पूव क म उनके शीश धड़ से अलग करने के
मनपसंद वार कर पाता, मेरी कु टया हरहरा कर नीचे आ गई।

म उस छकड़े क ओर भागा जसम म अपने य पु का शव ढो कर लाया था। म उसे ख च


कर कु टया के पास लाया और अ तकाय के वशाल शरीर को उन टु कड़ पर उलट दया।
फर म अपने पड़ोसी के घर क ओर लपका। वह हमेशा अपने मं दर म एक द पक जला
कर रखता था। मने धकेल कर दरवाज़ा खोला और उस कोने म गया, जहाँ वह तैल द पक
रखा रहता था। मने अपना मुंडु उतारा और उसे तैल म भगो लया। उस व ने तुरंत आग
पकड़ ली और फर म उस जलती मशाल को ले सीधा बाहर भागा। मेरी प नी उस ढे र म से
अपना कुछ सामान छाँटने का यास कर रही थी जसे कुछ ण पूव तक हम अपना घर
कहा करते थे। मने उसे पीछे धकेला और वह जलता कपड़ा ढे र पर फक दया। य ही
लपट धीमी ई तो मेरी ास भी थम सी गई परंतु फर एक भभाके से आग जल उठ , वह
उन सभी व तु को लील गई, जन पर कभी मेरा वा म व आ करता था। उन वकराल
लपट ने मेरे पु को भी नगल लया। अ तकाय अपने राजकुमार के पद च ह पर चला था।
वह भी अपने सौतेले भाई क तरह वीरग त को ा त आ था परंतु बेचारा लड़का चमड़ी के
ग़लत रंग के साथ ज मा और नगर के ग़लत घर म पला-बढ़ा। तो उसके लए जयजयकार
करने और उन नार क ँकार से आकाश व धरती को भी हला दे ने वाले मूख नह थे।
य प अ न ने कसी भी तरह का भेदभाव नह कया। इसक ुधा मेरे व राजा के पु के
लए एक समान थी। जब अ न बड़ी ललक से अपना भोजन हण कर रही थी तो म खड़ा
संतोष से ताकता रहा। गम अ ु क धाराएँ मेरे पचके गाल को जला रही थ । य ही
आ ख़री लपट शांत ई और भ म लंका क लाल धरती पर आकर पड़ी तो आकाश म
बादल गरजे और मूसलाधार वृ होने लगी। जब चंड वषा का वेग थमा तो वह अपने साथ
मेरे घर तथा पु के अवशेष भी बहा ले गई थी। मेरा ःख दमाग़ के कसी कोने म सु हो
कर जम चुके दद म बदल चुका था। जब मने अपने पु क चता को अ न द तो मेरी प नी
वह गर गई थी और तब से अब तक वह पड़ी थी। मुझे भूख लगने लगी थी। हो सकता है
क महल के वेश ार पर भोजन का वतरण हो रहा हो। ायः ऐसे अवसर पर वे द र
तथा आ यहीन को अ दान दया करते थे। म उठा तथा दे ह पर पड़ी पानी क बूँद को परे
झटक दया। हो सकता है क ज द करने से खाने को कुछ मल जाए और अगर क मत
अ छ नकली तो संभवतः अपनी प नी के लए थोड़ा भोजन ला सकूँगा। हो सकता है क
कोई मुझे थोड़ी ताड़ी भी पला दे । म महल क ओर चल दया।
46 एक असफल स ाट

रावण
श ु ब त नकट आ प ँचा था। म अंत को अपने समीप दे ख सकता था य प म इसे
वीकार नह करना चाहता था। कल ही तो अपने पु क चता को मुखा न द है। अब तो
कुछ बचा ही नह था, केवल राम से अंत तक यु करना ही शेष था, भले ही वह अंत मेरा हो
अथवा राम का! परंतु म कस लए यु कर रहा था? मेरा सा ा य समा त ाय था, मेरे पु
क मृ यु हो चुक थी, मेरी रानी क मान-मयादा को धूल म मला दया गया था। अब शेष था
ही या? यह स य है, मेरे पास यह सुंदर नगरी थी, जसे मने कड़े प र म व नयोजन से
तैयार करवाया था; वह वैभव था जसे ब त समय पूव दे व से जीता था; और मेरी पु ी, जो
मेरे ही श ु क प नी थी।

परंतु जब मुझसे ये सब छ ना जा रहा था, तो म शेष व तु से और अ धक मोह अनुभव


करने लगा था। य प, जस कार कोई ती लहर, समु के कनारे खड़ी च ान को त-
व त कर दे ती है, उसी कार म भी जजर होता जा रहा था। म भीतर-भीतर ही गल रहा
था। जी वत रहने क इ छा भी समा त सी होती जा रही थी। म जन व तु को आज तक
सँजोता आया और जनसे सदै व लाभ लेता रहा, आज जैसे वे मेरे लए अथहीन हो गई थ ।
राम उ र के एक अ ासं गक रा य का एक अप रप व राजकुमार भर था। वह लड़का मेरे
मेघनाद से केवल कुछ ही वष बड़ा रहा होगा। म एक स ाट था, एक श शाली स ाट,
संभवतः इ तपूव भारत ने ऐसा कोई स ाट दे खा तक नह था। अयो या तो एक गौण सा
रा य था, एक पछड़ा आ ाम रा य। य प, मेरा रा य इस तरह उसके पैर तले कुचला
कैसे गया?

या बाली क मृ यु इस वनाश का कारण बनी? या यह सब वभीषण के छल के कारण


आ? म अपने नज़ रए व बोध से कब भटक गया? असुर सा ा य ने अपने ही लोग के
बीच नरंतर चलने वाले संघष व यु के चलते, अपनी आ थक, सां कृ तक व तकनीक
े ता के बावजूद, दे व के आगे घुटने टे क दए थे। म हमारे इ तहास व अपने लोग से भली-
भाँ त प र चत था। मने बड़ी ढ़ता के साथ अपना शासन संभाला तथा इस बात का पूरा
यान रखा क मेरे पास श शाली पद पर केवल न ावान ही आसीन ह । म उन
सभी लोग पर नगरानी रखता, जो मेरे व वषवमन कर सकते थे। ऐसे ी-पु ष को
सदै व यान म रखता जो मेरे सहासन को पाने के लए चाल रच सकते थे। म भी कतना
मूख नकला!

मने ह त सरीखे लोग पर नज़र रखी; मने यह सु न त कया क कुंभकण सदै व अपनी
म दरा व भाँग क वकृत कुटे व म म न रहे; मने यह सु न त कया क क सरीखे ू र
कह ब त अ धक श के वामी न बन जाएँ। मने मूखतापूण प से यह व ास कया क
व ण जैसे द यु को ‘सात सागर का सेना य ’ तथा ‘असुर जलसेना का महान नायक’
जैसी भावी उपा धय से ख़रीदा जा सकता था। मने वयं अपनी बहन के प त व ुत ज हा
क ह या करवाई थी। परंतु म सीधे व नद ष दखने वाले ी-पु ष ारा ही छला गया जैसे
वभीषण, जो अपने आचार- वचार से कतना प व जान पड़ता था; जैसे जंबूमाली जो एक
ऐसा नौकरशाह दखता था, जो अपने लेखे-जोख के संसार म खोया रहता; लं कनी जैसी
ी, जो कभी सावज नक प से दे श तथा राजा के त अपनी न ा तथा नेह के दशन
से चूकती नह थी। मेरे पास श शाली म थे, परंतु जब उनक आव यकता आन पड़ी तो
म नपट अकेला था। मने सोचा क मेरा सा ा य लौह न मत था परंतु जब तूफ़ान आया तो
मने पाया क यह तो तनक से बना था, जसे बखरते दे र नह लगी। मने जस पर भी
व ास कया, उसी ने मेरे साथ छल कया। म तो अपनी बु मता पर इतना गव करता था,
तो म लोग को परखने म इतनी बु नयाद भूल कैसे कर बैठा? म सब कुछ नए सरे से आरंभ
करना चाहता ँ परंतु यह जीवन इतना छोटा है क इसम कुछ भी पुनः करने का अवसर नह
मलता। मुझे भी तो केवल एक ही अवसर दया गया था जसे मने दोन हाथ से लपक
लया था। मने तो एक महान सा ा य का गठन कया, परंतु अब समय बदल गया था और
जैसे मेरे आसपास क हर व तु चूर-चूर हो कर बखरती जा रही थी। मुझे इसके लए कोई
प ाताप नह था। म एक भरपूर जीवन जी चुका था। बस अब यह आ मदया का खेल ब त
आ। कुछ े कर दखाने का समय आ गया था। म जानता था क म असफल हो सकता
था, परंतु म अपनी जा के लए एक भ असफलता का ऋणी था। केवल वही लोग तो थे
ज ह ने मेरे साथ कोई छल-कपट नह कया था। मने उनके लए या कया, उ ह ने मुझे जो
नेह दया, मने उसका या तदान दया? मुझे ब त गव था क मने अपने असुर के लए
कतने महान तथा वशाल सा ा य का नमाण कया था, मने सोचा क मने उ ह चरवां छत
मयादा तथा वतं ता दान क थी, परंतु संभवतः यह समझना मेरी भूल थी। म भी एक
आततायी था, हो सकता है क थोड़ा नेही रहा होऊँ कतु म महाब ल नह था। मने अपने
कान और आँख खुले नह रखे। म अपने ही लोग क पीड़ा व क के लए अंधा और
बहरा बन गया था। जब म बड़ी व तु के लए भाग रहा था – बड़े नगर , भ दे वालय ,
चौड़े राजमाग , े बंदरगाह , वशालतम यु पोत , ापार म वृ , वसाय म बढ़ोतरी,
संसार के सरे रा के बीच या त अ जत करने तथा अपने दे श को संसार का सबसे धनी
दे श बनाने क तयो गता म शा मल था – तो उसी दौरान कुछ साद परंतु आधारभूत बात
भूल गया था। म अपने लोग , अपनी जा को भूल गया था। मने सोचा था क यह जगमगाते
नगर ही ग त ह। म उन लोग के वषय म भूल गया था, जो ना लय म अपनी ज़दगी बसर
करते ह। जब म उदारतापूवक भ भोज का आयोजन कर रहा था, तो म भूल गया क मेरी
अ धकतर जा के पास पेट भरने के लए अ तक नह था।

ह त ने कई बार इस ओर इं गत कया परंतु यह ब त ही नीरस वषय था। मुझे लगा था क


कह मेरी संपदा इ ह बात म न छ ज जाए। मने क पना क क मने अपनी जा को
सड़क पर व ोह करने तथा अपने वचार को कट करने क जो वतं ता द थी, वे इसे ही
ब त जानगे और संतु रहगे। मुझे गव था क म कम से कम सरे शासक क तरह तो नह
था, जो आतंक व दमन के बल पर अपनी जा को शोषण क च क म पीस दे ते थे और
ू र नरसंहार से भी बाज़ नह आते थे। मुझे गव था क असुर ने एक ऐसा तं वक सत कर
लया था जसके अनुसार राजा के पास केवल नाममा क ही श रहती य क
वा त वक श , गाँव ारा चुने गए य व पंचायत के पास ही रहती थी। मने इसी तं
को पूरे संसार के स मुख आदश नमूने के तौर पर तुत कया। य प, जन द र तथा
शो षत को मने उपे त कया, वही अंत तक मेरे साथ डटे रहे। वे जानते थे क उनके पास
ही खोने के लए सबसे बड़ी व तु थी – वह थी उनक आज़ाद , यह वही वतं ता थी जो
उ ह व ास दलाती थी क वे जीवन म कुछ बेहतर कर सकते थे। मने जस धनी तथा
म यम वग को पोसा था, वे या तो बड़ी धृ ता के साथ सरे प से जा मले अथवा एक
सुर त थान पर बैठे दे ख रहे थे क कौन से प क जीत होगी य क जो भी प जीतेगा,
वे जा कर उसी के तलवे चाटना ारंभ कर दगे। आज ही वह दन था जब सारे नणय ले
लए जाएँग।े या यह सब कसी अ ात श ारा मेरे भा य म पहले से ही नयत कर दया
गया था, जो मेरे व षड़यं रच रही थी? मेरी ासद यह हो सकती थी क म अब तक
नह जानता था क अंततः मुझसे या भूल ई थी। मने लोग को परखने के बारे म ग़ल तयाँ
क , परंतु हम इसे ही इतने बड़े सा ा य के पतन का एकमा कारण तो नह मान सकते।
यह सुनने म भले ही व च लगे, परंतु म अब इतना समझने के लए तो प रप व हो ही गया
ँ क कुछ घटनाएँ अँधाधुँध तरीक़े से घटती ह, और हम बेचारे मनु य कसी अंधड़ म उड़ते
तनक क तरह बखर जाते ह।

म यम वग कह रहा था क म एक ब त बड़ा पापी था, मुझे कोई अ धकार नह था क म


कसी सरे क प नी को अपने महल म ला कर रखता। अफ़वाह तो यह भी थ क
मने पहले भी कई य के साथ बला कार कया था और अब भी मेरे अंतःपुर म ब त सी
याँ बंद थ । वे मेरी सरकार को कह रहे थे और दावा कर रहे थे क मेरे अ धका रय
ने आम जनता का खून चूस कर अपने घर भर लए थे। म तो इस संसार का सबसे बड़ा मूख
ँ। मने बड़े-बड़े राजमाग बनवा कर, इन लोग को सुख-सु वधा द ता क इनके सुवण-मं डत
रथ, नधन क गराई ई झ प ड़य के अवशेष के सामने से नकल सक, वहाँ अपने रथ
दौड़ा सक, जहाँ उन द र के आवास आ करते थे। मने कृषक को उनक उपजाऊ
भू मय से खदे ड़ दया था ता क ये बात के छ ले बाँधने वाले गधे अपने बंगले और आमोद
भवन बनवा सक। मने टहलप पर रहने वाल को कभी वहाँ टकने नह दया य क वे
म यम-वग क आँख म काँटे क तरह खटकते थे। मने उन नधन को अपने नगर से र
खदे ड़ दया, जो आजी वका क तलाश म यहाँ अपने प रवार के साथ आए थे। वे अपने पूरे
प रवार के साथ धरती के इतने छोटे से टु कड़े पर रहते थे, जस पर एक धनी का रथ
खड़ा होता था। मने जल को खेत से अपने नगर क ओर मोड़ दया, ता क ये पेटू अपने घर
म फ वारे लगवा सक। मने ामीण इलाक़ को जल दे ने वाली न दय के ख अपने नगर क
ओर मुड़वा दए ता क ये लोग स दय नान कर सक। द र यास से तड़पते, ाण का याग
कर दे ते या झुँड के झुँड बना कर नगर क ओर आ जाते ता क उन सु वधाभो गय के लए
अनुचर , मा लय , रसोइय आ द के प म अपनी सेवाएँ दे सक।

मेरे हा थय ने छोट झ प ड़याँ ढहा द थ ता क वशाल य भवन बन सक, जहाँ से ये लोग


रेशम के व , क़ मती र न तथा सोने के आभूषण ख़रीद सकते थे। मेरे कोष भरपूर थे
य क म इस सारे ापार से कर-सं ह करता था और चूँ क म उनसे कर लेता था इस लए
वे मुझसे माँग करते क म और अ धक राजमाग बनवाऊँ। वे उलाहना दे ते क बंदरगाह पर
उनक वला सतापूण नाव के लए पया त थान नह थे; वे कुं ठत थे य क उनके पास
मनोरंजन के पया त वक प नह थे। वे च लाते क इस दे श म कोई काम नह करता था; वे
शकायत करते क सारा तं ही था और वे मुझसे आ ह करते क मुझे अपने शासन म
याय क थापना करनी चा हए। तो मने और अ धक सं या म द र क छत गरवा , और
अ धक बाँध बनवाए, और अ धक नधन कृषक को आ य वहीन कया और इस या म
अपने नगर को अव कर दया। मने भ दे वालय न मत करवाए, जहाँ पुरो हत सामा य
लोग को ठगते; मने अनेक थान पर पु प के पौधे लगवाए ता क जन लोग को भरपेट
भोजन तक नह मलता था, वे पु प क सुंदरता का आनंद ले सक; मने भचार के अ
को ो सा हत कया जहाँ म दरा व सुंदरी का अभाव नह था और इस तरह म म यम वग
का य बनता चला गया। म उनके तु तवाचन के मद म चूर हो गया था। वे उस वकास के
लए मेरी शंसा करते और म कमअ ल बेवकूफ़ यह समझा क म अपने दे श को आगे ले
जा रहा था। मने अपने नगर क चकाच ध दे खी और अंधकार के उन साय से आँख फेर
ल , जहाँ पीड़ा, गध तथा सड़न का सा ा य था। मने यह व ास कया क वह चकाच ध
ही सवा धक मह व रखती थी। और फर राम हमारे ार पर आ खड़ा आ और जैसे कुछ
ही ण म सब कुछ बदल गया। जब श ु ने ार खटखटाया तो म यम-वग को ओझल होते
दे र नह लगी। उ ह ने वयं को अपने घर के आरामदायक क म छपा लया और अपने
ह े -क े पु को रा य क नज़र से ओझल कर दया। दे श को उनक संतान क श ा का
सारा बंध अपने पर लेना पड़ा था और दे श ने यह उ मीद क थी क जब कभी उनक
आव यकता होगी तो वे अपने मान सक व शारी रक बल के साथ तुत ह गे परंतु कतने
खेद से कहना पड़ता है क उनम से कोई भी आगे नह आया। कृषक तथा टहलप य पर
रहने वाले द र ने दे शभ क ब लवेद पर अपने पु का ब लदान कया। वदे श से पढ़-
लख कर आए, सं कृतभाषी, पान चबाने वाले धनी व ान ने मुझे अपने छपने के थान
से ही परामश अव य दए परंतु उनम से कोई भी वा तव म सहायता करने आगे नह आया।
नधन ने उन टु कड़ का भी मोल चुकाया, जो मने उनका जीवन-र चूसने के एवज़ म
उनके आगे फके थे। जब मेरी राजधानी अ न क लपट म भ म ई तो आसपास के दे हाती
इलाक़ से सभी कसान, उसे नए सरे से बनाने के लए आ जुटे। उनम से कई तो ऐसे लुटेरे
भी थे, जो कुछ भी हाथ लगने पर छोड़ते नह थे पर उस बार मने अपने र क को इस बात
क अनदे खी करने को कहा और वे सभी अपने वचन से पीछे नह हटे ।

य द मुझे एक और अवसर मलता तो म इस संप वग को अव य सबक सखाता। म सै य


श ा को अ नवाय कर दे ता, फर भले ही वह कसी धनी ापारी का पु हो, पुरो हत हो
या फर कोई नधन भ ुक। म तकनीक तथा च क सा व ालय से श ा ा त करने
वाल के लए यह अ नवाय कर दे ता क वे कम से कम पाँच वष तक ामीण इलाक़ को
अपनी सेवाएँ दगे। म ऐसा करता… ले कन यह सब कतना मह व रखता था…।

म जो कुछ भी सोच रहा था, उन वचार को सोचने से लाभ भी या था, मुझे कभी जीवन म
सरा अवसर नह मलने वाला था। वे आदशवाद व थे – मेरे अपने न न म यमवग य
तर क इ छाएँ, मेरी युवाव था क बखरी क पना के चर व मृत टु कड़े! य द सरा
अवसर मलता भी तो स ा मुझे फर से कर दे ती। आदश हमेशा क तरह दम तोड़ते
और कह एकांत म दफ़ना दए जाते। स ची बु मता इसी बात म छपी थी क आदशवाद
केवल स ा ा त करने का साधन मा था। कल मेरी मृ यु हो सकती थी या फर राम मारा
जा सकता था, परंतु यह जगत उसी कार चलायमान रहेगा। शो षत शो षत ही रहगे और
नधन सदा नधन ही बने रहगे। नई ाँ तयाँ घट सकती ह; नई आदश धारणाएँ पनपग ;
नै तकता के कुछ नए मायने, पुराने नयम का थान ले लगे; नए संत महा मा ज म लगे; नए
राजा धरती पर शासन करगे; नए धम अंकु रत ह गे तथा आपस म संघष करगे और अनेक
नए आ व कार कए जाएँगे परंतु सब कुछ वैसा ही रहेगा। अपराध बोध क अनुभू त य
हो? मने वही कया, जो म कर सकता था। म इससे भी े दशन दे सकता था, परंतु ऐसा
कौन है जो नह दे सकता?

यु का वजेता सब कुछ ले जाएगा – क त, धन, स ा। वही स य कहलाएगा, य क जो


भी वजयी होता है, उसे ही स य माना जाता है। भाँड तथा क व वजेता का ही तु तवाचन
करगे। उसक क त का बखान करगे। जैसे-जैसे समय बीतेगा, जाने कतनी दं तकथाएँ बन
जाएँगी। वजेता ही गुण का उदाहरण बन जाएँगे, सभी मनु य म सव े कहलाएँग।े वह
भी सरे मनु य क भाँ त जीवन म अ छे तथा बुरे दोन कार के कम करेगा परंतु जैसे क
संसार क कृ त है, वजेता के भले काम का अ तशयो पूण वणन होगा और उसके बुरे
काम को मृ त पटल से सदा के लए मटा दया जाएगा। य द उसके कृ य समाज के
त कालीन नै तक मू य पर खरे न उतरे, तो उसे ई र व क उपा ध दे द जाएगी। भला
दे व व पर भी कोई च ह लगा सकता है? इस कार, मेरे दे श ने अनेक दे व को ज म
दया था। येक वजेता , भले ही उसने कसी भी उपाय से वजय ी य न पाई हो,
कोई न कोई दे वता अथवा अवतार बन चुका था। परा जत के लए सदै व इसके
वपरीत ही होता आया था।

य प कतनी व च बात थी, मुझे एहसास आ क मुझे इसम से कसी बात के लए कोई
चता नह थी। म व तु के इस म के म य, वयं अपनी हीनता व तु छता को अनुभव
कर सकता था और इसी ने मुझे आ म-क त बना दया था, हालाँ क मेरे लए भी यह
कौतूहल का वषय था। य द म जीवन के इस वशाल म के बीच कोई मह व नह रखता
था अथवा म एक मह वहीन ब मा था, तो केवल एक ही बात मेरे लए मायने रखती थी,
म वयं! मेरी मृ यु के साथ ही, मेरे लए तो सब कुछ अंत हो जाता। मेरी मृ यु के बाद मेरे
लोग का या होगा, यह मेरी सम या नह थी। म जानता था क मृ यु अं तम थान ब
होगी और उससे परे कुछ नह होगा। मेरे लए कोई आ मा, वग, मो , नक, दे वता अथवा
मृ यु के प ात जीवन ती ारत् नह था। म धरती, जल, वायु तथा अ न आ द म वलीन हो
जाऊँगा और सब कुछ वह थम जाएगा। य प, मुझे अवसर दया जाएगा तो म बड़े ही नेह
से इस धरती पर लौटना चा ँगा। भला कौन नह चाहेगा?

म उस बाग़ क ओर चल दया, जहाँ मेरी हठ पु ी अब भी बैठ सस कयाँ ले रही थी। म


अपनी पु ी को दे खना चाहता था। और फर य द समय क अनुम त हो तो संभवतः म कुछ
ण मंदोदरी के साथ भी बता सकता था। फर म राम से आमने-सामने क ट कर के लए
रणभू म क ओर थान कर जाऊँगा।
47 मृ यु क कामना


पछली रात, म जब तक राज ासाद के ार तक प ँचा, भोजन का वतरण समा त हो चुका
था। येक जानता था क नधन के लए जो भोजन भेजा जा रहा था, उसम से
केवल आधी मा ा ही उन तक प ँचती थी। कृषक से अनाज क ख़रीद से ले कर, भोजन के
अं तम वतरण तक, चार ओर लूटमार तथा कालाबाज़ारी का सा ा य था। कृषक इसके
बदले म, सावज नक य अ धकारी को मा ा व गुणव ा, दोन ही मामल म ठगते। वह
छोटे मुनीम को घूस दे ते जो खात म, रा य को मलने वाली रसद से कई गुना अ धक मा ा
दज करते। फर अ धकारी कुछ अनाज चुरा कर, काले बाज़ार म बेच दे ता। जब तक अनाज
महल के गोदाम म प ँचता, तब तक खात म दज मा ा तथा भौ तक प से रखे गए
अनाज क मा ा म ज़मीन-आसमान का अंतर आ चुका होता, ऐसे म नरी क को ववश
हो कर, गने दाम म काले बाज़ार से अनाज ख़रीदना पड़ता। वे भी खात म हेरा-फेरी करने
से बाज़ न आते और उनम दखाया जाता क कतना अनाज क ड़े खा गए थे, जसके
कारण पुनः अनाज ख़रीदना पड़ा। चूँ क इस कमी क पू त क अपे ा उनसे नह क जा
सकती थी इस लए दानी स जन क सं या तथा अनाज पाने वाले नधन क सं या म
फर से हेर-फेर होता ता क वे इस या म थोड़ा सा अनाज और गायब कर सक। सभी
अव था म घूस का ही राज चलता।

जो भी अनाज के इस काम म हाथ डालता, मालामाल हो जाता। ये ठग ह त सरीखे


आदशवाद मं य क आँख म धूल झ कते और उ ह ठगते। वह अपने ारा आरंभ क गई
क याणकारी योजना के वषय म सोच-सोच कर मु दत होता रहता। कुछ ऐसे भी थे
ज ह ने इस तं का पूरा लाभ उठाया तथा धनी बन बैठे, जैसे जंबूमाली। व ण जैसे धूत
सा ा य के अ धका रय ारा अवैध प से कमाए गए वण तथा नकद को उ री रा य म
ले जाता। यह एक कतु अंतहीन च था, जहाँ केवल वही लोग परा जत व असफल थे
जो ब त ईमानदार थे और सीधे-सादे तरीक़े से जीना चाहते थे। येक अपनी मता
के अनुसार सामने वाले को ठगता, उससे छल करता। और येक यह भी जानता था
क वहाँ हो या रहा था! परंतु चूँ क रा य को छल से अपनी कम उपज का ववरण दे ने वाले
कसान से ले कर, उसके खेत म यथासंभव छल करने वाले कम तक; मुनीम, ापारी,
सरकारी अ धकारी तथा व वध कार के मं ी तक एक ही थैली के चट् टे -ब े थे, इस लए
लोग के भीतर इन बात के लए कोई रोष नह था। वे तं म फैले ाचार का उपहास
करते और राजनेता के व लाप करते। राजनी त को सताना असुर के लए
मनोरंजन का मुख ोत बन गया था।
इस कार, मुझे खाने के लए कुछ न मल पाने क नराशा तो थी परंतु म व तुतः
आ यच कत नह था। मुझे तो इस बात से यादा तस ली मली थी क कम से कम वतरण
अ धकारी ने मुझसे तापूण वहार नह कया। उसने मुझे दफ़ा होने को कहा और
कान का दरवाज़ा बंद कर दया। जब भी मुझे उनक दया का पा बनना पड़ता तो इससे
मेरे अहं को ब त ठे स लगती, परंतु म ब त पहले ही यह भी सीख गया था क कोरे अहं से
मेरा पेट नह भर सकता था य क उसे खाया नह जा सकता। मने अपने य वट वृ के
तले ती ा करने का नणय लया। हो सकता है क कल म पं म सबसे आगे थान पा
सकूँ। इस कार मुझे कुछ भोजन मल जाएगा।

यु अपनी समा त से ब त र नह था और इसे समा त तो होना ही था, चाहे वजय ी


कसी भी प क य न हो। मने इस यु म ब त से साथी व दो त गँवा दए थे। मने अपने
प के लए जयजयकार क थी। जीवन क यह हा न खेदपूण थी परंतु इसका होना
अ नवाय भी था। या हम कसी योजन या उ े य के लए नह लड़ रहे थे? जब सर के
पु मारे जा रहे थे, तो उन शहीद के नाम पर जयजयकार करने वाल क भीड़ म म भी
शा मल था। जब मेरे पड़ोसी के घर मृ यु ने ार खटखटाया, तो म मन ही मन मु दत था क
मेरा प रवार सुर त है और मेरा पु व थ व सबल था। हाँ, यह भय तो नरंतर बना रहा क
कह म कसी दन अपने अनमोल पु को न गँवा बैठँ ू । य प, मने फर भी मूखतापूण
आशा क क ई र मुझे मेरे पु क मृ यु के दा ण ःख से बचा लगे। या म पहले ही ब त
ःख नह झेल चुका था? या म पहले ही अपनी अ प पूँजी ई र तथा उसके य के
साथ नह बाँट चुका था? मने अपनी चढ़ावे क रा श से, भले ही कम य नह थी, दे वालय
के कोष को भरने म अपनी भू मका नभाई थी। कुल मला कर कह सकते ह क मने ई र
को घूस द थी परंतु वे हमारे ई र थे और वे भी हमारी भाँ त थे। वे हमारी घूस व चढ़ावा तो
वीकार करते परंतु इस बात का कोई आ ासन नह था क वे हमारा कोई भला करगे।
जीवन र त का एक सल सला बन कर रह गया था – ई र को द गई र त; पुरो हत को
द गई र त; तु छ व सरकारी अ धका रय को द गई र त; राजा को; प रवार को; म
को, सभी को र त ही तो दे ता आया ँ। ज म से ले कर मृ यु तक, हमारी सं कृ त हम यही
तो श ण दे ती आई है क सर को र त कैसे द जाए अथवा उनसे अनु चत लाभ कैसे
उठाया जाए? अ तकाय का चेहरा मुझे दं श दे ने लगा।

म न त प से ब त ज़ोर से ही कराह रहा था, तभी कोई मेरे नकट आ गया। मेरी
वर त धुँधलाई आँख उस वशाल काली आकृ त को नह पहचान सक । म भयभीत हो
गया। य ही वह मुझ पर झुक तो मेरे पूरे शरीर म भय क लहर दौड़ गई। वह आकृ त
झुक और अपनी काली व मोट अंगु लयाँ मेरे नथुन के नीचे रख कर कुछ कहा। दो सै नक
हमारी ओर दौड़े। ‘ या वे मुझे बंद बनाने जा रहे थे?’ मेरा म त क नरंतर यही वचार
करने लगा क भला मुझसे कौन सा अपराध हो गया था?
“यह तो मर रहा है। इसे तो ब त ती वर है।” एक लहराती ई ेत दाढ़ वाला मुख मुझ
पर झुका आ था। मुझे थोड़ी राहत मली। यह तो वही पगला वै ा नक मय था। यह
भले ही सनक था परंतु पूरी तरह से हा नर हत था। “इसे ग के भीतर ले चलो।” मने उसे
कहते सुना।

“परंतु ीमान… यह तो कोई पय कड़ दखता है। या हम…” सै नक के वर म


कड़वाहट और बे खी दखाई द । “यह मर रहा है और इसे उपचार क आव यकता है। इसे
भीतर ले चलो। हो सकता है क बेचारा बूढ़ा भूखा रहा हो। ये र रं जत यु तो…। पता
नह लोग एक- सरे का वध य करते ह? श न का तारा डू ब रहा है और मंगल बल है।
काश म कोई यां क ने तैयार कर पाता जो मुझे ह को और अ धक प ता से दे खने का
अवसर दे ता… या इन सैकड़ ह -न व मनु य क नय त के म य आपस म कोई
संबंध है?… लाख ह-न ह… और हम इन ह के वशाल सागर म तैरते कण मा
ह…।”

म उसके वर को र जाता सुन सकता था य क वह पगला वै ा नक पुनः अपने ही रचे


संसार म खो गया था। म यह नह सुन सका क वह या बड़बड़ाता जा रहा था। दमाग़ म
उसक बात नह बैठ रही थ । भला म ये बात या जानू? ँ सै नक वह सकुचाए खड़े थे। यह
तो प था क वे मुझे पश ही नह करना चाहते थे परंतु एक व र मं ी के आदे श क
अवहेलना भी उनके वश म नह थी। संभवतः मय तो अब तक मेरे वषय म सब कुछ भूल
गया होगा परंतु बेचारे सै नक उसक बात न मानने का संकट मोल नह लेना चाहते थे।
चेतना के सागर म डू बते-उतरते, उनक धुँधली दे हाकृ तयाँ नाच रही थ । वे मुझे आधा उठा
कर, लगभग घसीटते ए ग क ओर ले चले। उ ह ने मुझे ार के पास पटका और इसके
प ात वे मु य नरी क के साथ बहस करने लगे। वह ब त ोध म था और कसी भी दशा
म, मुझे भीतर ले जाने क अनुम त नह दे रहा था। उसे मुझ जैसे भ ुक से कोई लेना-दे ना
नह था। मुझे वह कोने म पटक दया गया और मेरे भीतर इतनी भी श शेष नह थी क
म अपना सर उठा कर दे ख सकूँ। ब त बाद म, जब म छर मेरा र चूस कर मोटे हो गए
और क ट-पतंग ने मेरी चमड़ी को भेद कर रख दया तो मय अपने सैर-सपाटे से लौट
आया।

“ओह! ओह ब ढ़या… तुम इसे यहाँ ले आए? इसे मेरे घर के ांगण म ले जाओ। म इसक
ाणर ा का य न क ँ गा।” मय ने अपने लोग को आदे श दया और भीतर चला गया।
वै ा नक के जाने के बाद, ब त दे र तक वह ारपाल मुझ,े मं ी को और अपनी चाकरी को
कोसता रहा। फर इसके बाद उसने क न को आदे श दया क वे मुझे ागंण म ले जाएँ। म
इतना बल हो गया था क उ ह मुझे तकरीबन उठा कर ही ले जाना पड़ा। उ ह ने मुझे
ना रयल के बोरे क तरह शीतल, सु च कन व साफ़ ांगण म पटक दया। कुछ दे र बाद
वै ा नक अपने सहायक के साथ बाहर आया जसके हाथ म कोई ब त ही गधयु पेय
था। सहायक ने अपने हाथ से मेरे नथुने बंद कए और जब मेरा दम घुटने लगा तो उसने वह
कड़वा आसव मेरे कंठ के नीचे उतार दया। म दद से कराहा और ठने लगा, म भयभीत हो
उठा, ऐसा लगा क कह म मरने तो नह जा रहा। दो य ने मेरे ठते बदन को तब तक
संभाला, जब तक म अपनी सारी श गँवा कर, अचेत नह हो गया।

ने खुले तो सर म ती पीड़ा थी, मेरा सर चकरा रहा था और थकान अनुभव हो रही थी,
परंतु पछले दन से तबीयत म सुधार लगा। हो सकता है क मय को औष धय का भी
थोड़ा-ब त ान रहा हो। म धीरे से उठा तो पाया क मेरे समीप ही एक बतन म थोड़ा
भोजन तथा एक गलास म छाछ रखी थी। मने भोजन पर झप ा मारा और जतनी तेज़ी से
उसे नगल सकता था, नगल गया। मेरे अंग क खोई श लौट आई। म उस वृ को
ध यवाद दे कर, शी ा तशी अपने घर लौट जाना चाहता था परंतु वह तो कह दखाई नह
दे रहा था। मुझम इतना साहस नह था क भड़े ए, बड़े से ार को खटखटाता। ये ब त ही
मह वपूण थे और म इतना तु छ था क इन श शाली व समथ लोग का ार तक
खटखटाने क औकात नह रखता था। उस वृ को छोड़ो, मुझे अब इस महल से बाहर
नकलना है।

य ही म जाने लगा तो मने राजा रावण को अशोक वा टका क ओर जाते दे खा, जहाँ सीता
ने हठपूवक अपना नवास बना रखा था। कतनी व च सी बात थी, वह अकेला था और
ब त ग त से जा रहा था। म सोचने लगा क भला राजा के मन म या था और यही जानने
के लए म चुपचाप उसके पीछे चल दया। जब राजा अपनी पु ी के सामने मूक खड़ा था,
तब तक म वयं को मोगरे के झाड़ के पीछे छपा चुका था। म उस अतीत को मरण कर
सहर उठा जो रावण, सीता, वेदवती और मुझे एक सू म बाँधता था। यहाँ, मेरे सम , वही
न ही सी पोटली धरी थी, जसे वष पूव, मारने का काय मुझे ही स पा गया था। मृ तयाँ भी
कतनी व वध थ । पता व पु ी एक सरे को अ यंत घृणा तथा बैर के साथ ताक रहे थे।
सीता ने अपने पता के व को धूल म मला दया था और वह उसी के कारण एक संपूण
सा ा य के भ व य को क चड़ म लथपथ कर चुका था। जब वह आज से तीन दशक पूव,
मेरे गहरे काले हाथ म सुबक रही थी, तो मुझे तभी उसका वध कर दे ना चा हए था। उस
समय उसके नथुने भ च कर, उसे मौत के घाट उतार दे ना ब त सरल होता। इसक बजाय,
मुझे उस न ही ब ची पर दया आ गई थी। म भी कतना मूख था! मुझे उनके इन पंच से र
रहना चा हए था अथवा उनके आदे श का पालन करते ए क या धू ा क भाँ त
नःसंकोच वध कर दे ना च हए था।

“म अपने प त से ब त ेम करती ँ और तुम चाहे जो भी कहो, मुझे उसके ेम से वमुख


नह कर सकते।” सीता अपमानजनक श द म गरजी।

“म तु हारे राम का खून अपने सर नह लेना चाहता। लोग पहले से ही मुझ पर दोषारोपण
कर रहे ह क मने शूपणखा के प त को मरवा दया। तुम उसके साथ एक दासी क भाँ त
जीवन य तीत करना चाहती हो? दे व पु ष अपनी प नय से पशु क भाँ त आचरण
करते ह।”

“तुम दे व स यता व सं कृ त के वषय म या जानते हो? वहाँ य को दे वय क भाँ त


पूजा जाता है। हमारा संसार तु हारे संसार से कह अलग है। यहाँ य के पास नै तकता
नाम क कोई चीज़ नह है। वे सर उघाड़े यहाँ-वहाँ वचरती ह। ी-पु ष वतं भाव से
भट करते ह तथा तु हारे रा य म ववाह क प व ता क भी कोई र ा नह क जाती।
तु हारी याँ वाचाल ह। वे पु ष के साथ म दरापान व नाच करती ह। यह एक अस य
जगत है, जहाँ युव तयाँ अपने पता क पसंद के वर से ववाह करके, उनका आ ापालन
करने क अपे ा, अपनी पसंद के युवक से ववाह रचाती ह। तु हारी याँ ब त
आडंबर य ह परंतु इस कार दशाती ह मानो वे इस भुवन क सबसे बु मान ाणी ह ।
तुम लोग केवल आनंद व उपभोग को ही जीवन मानते हो। तु हारे पु ष म ैण गुण ह।
एक नर वानर ने इस पाप नगरी को जला कर राख कर दया और तु हारी श शाली सेना
उसका कुछ बगाड़ सक ? ज़रा दे खो, तु हारे यहाँ कैसी याँ होती ह। अपनी बहन को
दे खो, वह कतनी व छं द तथा अ ववेक है। अपनी काली, भ , गंद , मोट व बदसूरत
भतीजी जटा को दे खो… तुम चाहते हो क म यहाँ र ँ… अपने राम को छोड़ कर, यहाँ
र ँ…।” म मारे ोध के उबलने लगा। कुछ ही फ़ट क री पर खड़ी जटा, सुब कयाँ भरने
लगी।

जस दन से सीता को लंका लाया गया था। वह उस दन से उसक सखी व साथी के प म


अपना साथ दे ती आ रही थी। सीता के लए रावण अपने सा ा य तथा व का वनाश
करने जा रहा था। यह सीता ही थी जसके कारण अनेक बेचारे असुर को अपने
खल खलाते प रवार को याग कर यमलोक जाना पड़ा। म उस समय उसका दम घ ट कर,
समा त कर सकता था।

रावण ने गु से से अपना पाँव पटका और यान से खड् ग नकाल ली। उसने ु वर म


कहा, “तुम… तुम… मने तु हारे लए अपना सब कुछ दाँव पर लगा दया। मने अपने पु ,
अपना मान, अपनी नगरी… सब कुछ खो दया, ता क मेरी पु ी स रह सके। और आज
तुम मुझे यह यु र दे रही हो? मने तु हारे लए अपने हज़ार लोग को दाँव पर लगा
दया।” उसने अपनी तलवार उठा ली और म इस याशा से काँप उठा क अभी एक ण म
वह सीता का शीश उसके धड़ से वलग कर दे गा। वह अपने पता को अ वचल ताक रही थी
मानो उसे अपना शीश काटने क चुनौती दे रही हो। रावण क तलवार उसक गदन के
समीप आकर ठहर गई। फर पछले चार दशक से, नःसंकोच श ु के सर धड़ से अलग
कर दे ने वाली रावण क भुजा जैसे न ाण हो गई। “सीता… तुम मेरी पु ी हो…।” राजा
हौले से बोला और उसक चं हास लंका क लाल धरती को चूमने लगी।
यु र म एक खल खलाहट गूँज उठ , “पु ी! ऐसी पु ी जसे अपनी सु वधानुसार कभी
भी फका जा सकता है? एक ऐसी पु ी जसे तु हारी जा ने कभी नह चाहा। और कैसा
पता!” म यह दे ख कर व मत हो गया क रावण अपना सर झुकाए ल जत आ खड़ा
था। उसके लाल ने से ऐसे अ ु क धारा वा हत हो रही थी, जो दखाई नह दे त।े फर
धीरे-धीरे वह मुड़ा और अपने महल क ओर चल दया।

“म तु हारी मृ यु क कामना करती ँ! एक लंबी और पीड़ादायी मृ यु!” असुर का राजा


भारी क़दम से महल क ओर चला तो सीता च लाई। रावण मेरी ही आँख के सामने जैसे
अपनी आयु के दस वष गँवा बैठा था। बूढ़े राजा के लए मृ यु ती ा कर रही थी, जैसे क
उसक पु ी उसके लए चाहती थी, एक लंबी और पीड़ादायी मृ यु! म पता, पु ी तथा
दामाद के बीच चल रहे इस र रं जत पा रवा रक संघष का एक ह सा नह बनना चाहता
था। परंतु मेरे जैसे लोग के पास या कोई चुनाव हो सकता है? अथवा या कभी था?
48 एक व का अंत

रावण
म ब त ही नराश मनः थ त म रणभू म क ओर चल दया। मंदोदरी ब त भावुक हो गई
थी। वह मुझे जाने ही नह दे ना चाहती थी। उसने मुझसे कहा क मुझे राम को सीता स प
कर शां त क अपील करनी चा हए। शां त… यह श द तो कायर के लए बना है। ‘ याँ! ये
तो तक अथवा कारण को कभी नह समझग ।’ जब वह चीख़ते- च लाते ए रोने लगी,
अपने बाल नोचते ए छा तयाँ पीटने लगी तो मुझे सचमुच थोड़ी ता के साथ उसे अपने
से अलग करना पड़ा। यह सारा तमाशा, मेरे सै नक के आगे आ। यह सब ब त ही
ल जाजनक था। उसने मुझ पर दोषारोपण कया क मने अपने अहं क ब लवेद पर सब
कुछ कुबान कर दया था। म भी च लाया और ऐसा ताना दया क वह बेचारी संकु चत हो
उठ । वह अभी अपने पु से वयोग के सदमे से भी नह उबरी थी, मुझे उसके साथ इतनी
बे खी़ से पेश नह आना चा हए था। ‘परंतु म तो उसके साथ हमेशा इसी तरह वहार
करता आया था। केवल उसके साथ ही य , म तो अपने जीवन म आने वाली हर ी से
इसी तरह वहार करता आया था।’

मने ोध के आवेश म आकर, अपनी वीणा के दो टु कड़े कर दए। मने अपने संगीत से ेम
कया था और म नह चाहता था क मेरे जाने के बाद कोई भी नर वानर मेरी वीणा को हाथ
लगाए या उसे बजाने क चे ा करे। मने उन राग व धुन को ल पब करने का यास
कया था, जो मने वयं तैयार क थ । उ मीद करता ँ क वे मेरे तथा मेरे सा ा य के नाम
को जी वत रखग । मने ब च को द जाने वाली औष धय तथा खगोल व ान म कुछ
योग कए थे और अपनी खोज को ताड़ प पर अं कत कर दया था। मने उ ह मय के
पास भजवा दया। संभवतः वह बौराया आ उ ह कसी प म, योग म ला सके।
जब तक मने यु े म पहनी जाने वाली पोशाक धारण क , मंदोदरी ने वयं को क म
बंद कर लया था। मने उसे कई बार पुकारा कतु उसने ार नह खोला। अंततः, म उसे
कोसते ए, अपने रथ क ओर चल दया। तभी मुझे ार खुलने का वर सुनाई दया और
वह ब त ही क णा भरे वर म मेरा नाम पुकारते ए पीछे आने लगी। म पीछे नह मुड़ा।
मुझे उसका मुख पुनः दे खने म भय हो रहा था। मेरा सारा दं भ तथा झूठा आ म व ास वह
पघल जाता और म असुर का स ाट होने क अपे ा एक भली व दयालु म हला का
औसत, म यम आयु का, त द वाला व गंजा प त बन कर रह जाता। म जानता था क य द
मने मुड़ कर उसका चेहरा दे खा, तो मेरे सारे संक प वह ढह जाएँगे और म बड़ी सरलता से
उसक बात के जाल म फँस जाऊँगा। म छलाँग मार कर रथ म चढ़ा और सारथी को रथ
चलाने का आदे श दे दया।
जब ग के ार खुले और मेरी असुर सेना दे व क सेना से दो-दो हाथ करने चली, तो मने
अपने भीतर से उठ रहे वर के भाव को दबाने क पूरी चे ा क जो यह कह रहा था क
कतने जीवन थ हो गए थे या और या हो सकता था। म अपने पीछे उस ी को अकेला
छोड़ आया था जो पछले साढ़े तीन दशक से भी अ धक समय से मुझे और मेरी वल णता
को मौन भाव से ता ड़त करती आई थी; एक ी जसने अपने आवेग से आब मूख प त
ारा छे ड़े गए नरथक यु म अपनी संतान क ब ल चढ़ा द थी; एक ऐसी ी जो उस
से करने का साहस रखती थी, जससे संसार थर-थर काँपता था। मेरे ने म अु
उमड़ आए। मने अपनी प नी को इस संसार क कसी भी व तु से कह अ धक ेम कया
था। मुझे उसे अल वदा तो कहना ही चा हए था परंतु अब ब त दे र हो गई थी। राम मेरी
ती ा कर रहा था।

मने अपने आसपास दे खा तो वेद से लथपथ, न न तथा धूप म चमचमाते अ ेत शरीर


दखाई दए। उनम से आज कतने जी वत वा पस लौट पाएँगे? उनम से कतन क प नयाँ
आज सं या समय तक वधवा हो जाएँगी? उनम से कतनी बेचारी आ माएँ लंका क लाल
धरती को अपने र से और भी लाल कर दग ? आज कतने ब चे अनाथ ह गे? ये मूख
कसके लए यु कर रहे थे? इन नधन कमीन को मूख बनाना कतना सरल था। सु र
सागर तट पर, राम क सेना ती ारत् थी। ये नर वानर कसके लए यु रत थे? या वे
कसी राजकुमार और उसक प नी के लए लड़ रहे थे? उनम से कसी भी द र कमीने ने
राम क प नी को दे खा तक नह था और उनक असुर से कोई श ुता या बैर नह था। परंतु
वे आए, और मरने के लए तुत भी ए। उनम से अनेक भी अपने ब च को अनाथ कर
दगे या अपने माता- पता को बेसहारा छोड़ जाएँग।े

य ही हम मोड़ काट कर, तेज़ी से राम क सेना क ओर बढ़े तो वे च लाने लगे। मने अपने
हा थय को अ म मोच पर रखा था। यह एक जुआ था। हाथी व ास न करने यो य सीमा
तक कु यात थे। वे पलट कर, मेरे अपने ही लोग म भगदड़ मचा सकते थे। उ ह अपने पैर
तले र द सकते थे परंतु मेरे पास अ धक चुनाव भी तो नह था। मेरी सेना ब त कम रह गई
थी और उधर व ण क नौसेना मेरे ग पर बड़े-बड़े पाषाण से वार कर रही थी। मने अपने
अ नबाण वषक को ऊँचाई पर रखा था ता क वे राम क सेना तथा व ण के पोत से होने
वाले हमल से बचे रह सक। वे वहाँ से, बड़ी सरलता से अपने शकार पर नशाना लगा
सकते थे। उ ह ने वानर क सेना को हमसे र रखा और अनेक बेड़ व नौका को सागर
क अतल लहर के हवाले कर दया। जब मेरे हाथी गरजे तो म श ु प म फैले आतंक को
अनुभव कर सकता था। हा थय ने वानर क र ा पं छ - भ कर द और उ ह अपने
पैर तले कुचलने म दे र नह क । असुर क सेना ने धावा बोला और वानर को तीन ओर से
घेर लया गया। मुझे कसी अ म मोच से यु का नेतृ व कए ए ब त समय बीत गया था
और म यही वचार कर रहा था क कह म अपना बल तथा मता खो तो नह बैठा था।
परंतु राम क सेना को भयभीत दे ख मेरी शरा म र खौल उठा। अचानक ही म वह बूढ़ा
तथा अश राजा नह रह गया था जसने अपने जीवन के लगभग छह दशक दे ख लए थे,
म एक बार फर से सोलह वष य युवक हो गया था जसक शरा म र के थान पर
आवेग तथा मह वाकां ा दौड़ते थे। ये राम मेरे स मुख था ही या? ये कल का आया
सर फरा लड़का कुछ अधस य जनजा तय क टोली ले कर, धरती के सबसे श शाली
स ाट को चुनौती दे ने चला था? आज, म यह सु न त कर ँ गा क वह उन सभी दं भी मूख
के लए एक सबक बन जाए, जो यह सोचते ह क वे असुर स ाट से बैर मोल ले कर भी,
अपने घर को सुर त लौट सकते ह।

म आदे श दे ने लगा और मेरे हरकारे चार दशा म भगदड़ करने लगे। राम के सेनाप तय
ने एक वीरता कतु थता से पूण यु कया। य द म उसे खोज पाता तो एक ही तीर के
नशाने से उसका गला भेद कर, इस यु का यह अंत कर दे ता। मने अपने सारथी से कहा
क वह मुझे बा टोली क ओर ले जाए। तीर क मूसलाधार वषा हो रही थी। संकट ब त
था परंतु म अपने ही बल के मद म चूर था। मेरी शरा म खौलते ोध व उ साह के चलते,
अब उसे मुझसे कोई नह बचा सकता था। यह आ ख़री बार होगा, जब कोई दे व राजकुमार
कसी असुर स ाट को चुनौती दे ने का साहस करेगा। अचानक ही म पीछे से आ रही श ु
सेना से घर गया। राम ने हमारे लए जो जाल बछाया था, हम उसम उलझ गए थे। उधर
वभीषण नगर के सरे छोर से धावा बोलने आ रहा था। मने अपने हरकार को अ नबाण
बरसाने वाल के पास भेजा। य प उनके बाण हमारे अपने सै नक को भी लग सकते थे
परंतु अब हमारे पास कोई और उपाय नह था। धरती के एक ओर से वभीषण आ रहा था
और सागर क ओर से वानर ने घेरा डाला था। मने अपनी सेना को वभा जत कया और
एक दल को वभीषण को घेरने का आदे श दया। इससे पीछे से आने वाले दबाव से थोड़ी
राहत मली। म इस त य से प र चत था क मेरे पास अनुभवी सै य यो ा का अभाव हो
चला था। मने राम के बल को ब त कम आँक लया था। जब हनुमान मेरी नगरी को जला
कर भ म कर गया था, मुझे तभी इस यु को वानर क नगरी म ले जाना चा हए था। परंतु
हम इतने आ मसंतु रहे क ख़तरे को भी नह भाँप सके। य द हम पहले ऐसा करते तो
वानर को कुचल कर संभवतः राम को भी बंद बना सकते थे। उसक बजाय वह मेरे
सा ा य के व यु का नेतृ व कर रहा था और म उससे बचाव के लए संघषरत था।
आज तो म उसे समा त करके ही दम लूँगा।

दोन सेना ने पूरे साहस तथा ढ़ न य के साथ यु कया। येक ण म वीर तथा
शहीद क सं या म वृ हो रही थी। शी ही, लं कनी क असुर सेना ने पहाड़ी के ऊपर से
मेरी सेना पर धावा बोला दया। मने संकट को भाँप लया। उसके सै नक क कतार पर
कतार, पहाड़ी से मेरे सै नक पर वार कर रही थ । हम छह के मुकाबले एक क गनती म
थे। इसका मतलब था हम अपनी थ त को बनाए रखने के लए आव यक था क हमारा
एक सै नक छह को मार कर, अपने ाण का याग करे। इसका एक सरा उपाय यह था
क हम श ु के सेनाप त को मार द अथवा बंद बना ल परंतु म दे ख ही नह सकता था
क राम था कहाँ? हनुमान ही सेनाप त व कर रहा था और अ म मोच पर डटा था। मने राम
व ल मण को खोजना चाहा, परंतु उनका पता नह पा सका। यु अनवरत चलता रहा और
कसी भी ओर से वजय का कोई च ह नह दख रहा था।

दोपहर के लगभग तीन बजने को थे और दोन प म जान क ब त हा न हो चुक थी।


य प मेरे अ श त नाग रक भी अपने हाथ म कोई भी अ -श लए साथ चल दए थे
परंतु फर भी हमारी सं या घटती जा रही थी। वे सु श त वानर यो ा से मुकाबला
नह कर सकते थे परंतु म र से दे ख सकता था क मेरे नाग रक वानर सेना म उप व मचा
रहे थे। यह हमारा मनोबल बढ़ाने तथा श ु का मनोबल तोड़ने क से भी ब त अ छा
था य क इस कार वे हमारे सै नक क घटती सं या पर यान नह दे पा रहे थे। कतु
मुझे यह भी पूरा व ास था क यह थ त ब त दे र तक बनी रहने वाली नह थी। लं कनी
के सै नक पहले ही दो-तीन पहा ड़य को अपने वश म कर चुके थे और अब वे हमारी सेना
पर आग बरसा रहे थे। हमारे हा थय ने श ु क र ा पं तोड़ी और सेतु के कई अंश
तोड़ने म भी सफल रहे। मेरे उ साही दल ने व ण क अनेक नाव को अपने नयं ण म ले
लया था और हम सागर क ओर से भी एक नया म चा खोलने म सफल रहे। यह यु बड़े
ही संवेदनशील संतुलन पर टका था।

समय तेज़ी से बीतता जा रहा था। प म के आकाश म गहरे बादल दखने लगे और सागर
भी भयंकर होने लगा। व ण के यु पोत उन ती सागर क लहर पर डू बते- तरते दख रहे
थे। हाथी ाकुल हो रहे थे और म भयभीत था क कसी भी ण वहाँ क प र थ तयाँ बद
से बदतर हो सकती थ । मुझे कुछ न कुछ नाटक य व ःसाहसी तो करना ही था। ‘परंतु राम
व ल मण कहाँ थे?’ मेरे लए सबसे बेहतर अवसर यही होता क म दे व कुमार पर अचानक
हमला कर ँ , उ ह बंद बना लूँ अथवा जान से मार ँ । उनक तरह, म भी श ु क सेना क
नज़र से पूरी तरह छपा आ था। इसी छल व म को बनाए रखने के लए सात से अ धक
रथ रणभू म म वचर रहे थे, जन पर असुर क राजसी पताका फहरा रही थी ता क श ु मेरे
वा व तक रथ को पहचान न सके। म ब त नराश हो गया। मेरी आयु मुझे धोखा दे रही थी।
मुझे भी कुछ तीर लगे थे और र ाव ने मुझे नढ़ाल कर दया था।

य ही सागर म बजली कड़कने से रोशनी ई, मने उ ह दे ख लया। वे सेतु के नकट थे। वे


वानर से कह कर उसे पुनः तैयार करवा रहे थे। हनुमान ने वहाँ आग क बड़ी सी घेराबंद
कर रखी थी ता क हा थय को उनसे र रखा जा सके। य ही वायु क दशा बदली, आग
क द वार भी हली और मने उसी काश के म य, व ण के मुख यु पोत को सेतु क ओर
जाते दे खा। राम को मलने वाली सहायता को दे ख म आतं कत हो उठा। अ को नीचे
झुका दया गया था और यो ा र सी के सहारे फसल- फसल कर सेतु तक आ रहे थे। हमारे
लोग उन पर अपने बाण बरसा रहे थे परंतु श ु क सं या तेज़ी से बढ़ती ही जा रही थी।
मेरी पछली ओर से, वभीषण मेरे नाग रक को कुचलते ए, बड़ी ग त से आगे आ रहा था।
मेरा समय समा त होता जा रहा था। य द म पूरी तरह से घरने से पहले राम को नह मारता
तो सब कुछ समा त हो जाएगा।

मने अपने सबसे नपुण यो ा को एक कया और एक ती कायवाही करने वाले दल


का गठन कया। मने उ ह योजना बताई और उनके ने से छलकते भय को दे ख खीझ उठा।
इस योजना को या वत करने के लए असीम साहस व बल क आव यकता थी। परंतु
मने उ ह कहा क समय क यही माँग थी और उनक ओर से कसी भी कार क वीकृ त
मलने क ती ा कए बना ही अपने रथ से कूद कर बाहर आ गया। मेरे हाथ म मेरी य
चं हास थी। मने अपने य अ को खोला। मेरा सारथी अ ु बहाने लगा तो मने उसे गले से
लगा लया। वह कसी वृ क तरह रोते ए, मेरे पैर पर ही गर पड़ा तो मने उसे उपे त
कया और अपने अ पर सवार हो गया। मने अपनी चं हास को आकाश म ऊँचा उठाया
और गहरे काले आकाश क ओर दे ख कर गरजा, ‘हर-हर महादे व!’

मेरे आसपास हज़ार कंठ से समवेत वर म इसक त व न गूँज उठ । यहाँ-वहाँ बजली


कड़कने के वर सुनाई दे रहे थे और लहर बार-बार च ान से टकरा कर पछाड़ खा रही थ ।
अंधेरा होने को था और बड़ी-बड़ी बूँद के साथ वषा होने लगी। म नम धरती पर पड़े मृतक
सै नक के शव को पार करते ए, अ न क उस घेराबंद क ओर लपका, जहाँ मुझे वे दोन
दखाई दए थे। म नःसंकोच कटे अंग के साथ कराहते मनु य , मृतक , र कुंड तथा
मानव माँस के ल द को पार करते ए, त ग त से अ भगा रहा था। मेरे पीछे मेरा पूरा दल
आ रहा था। र मेरे कान म हथौड़े बरसा रहा था। म अपने दय क कँपकँपी अनुभव कर
सकता था। अ अपने मुख से झाग छोड़ रहा था पर मने उसे दौड़ाना जारी रखा। म अपनी
जाँघ अथवा कंध पर बरसने वाले तीर को पूरी तरह से उपे त करते ए, श ु प क
ओर चला जा रहा था। म आग क ऊ मा अनुभव कर सकता था और मेरा अ भी संकु चत
हो उठा परंतु मने उसे एक ठोकर मार कर और भी ग त पकड़ने पर ववश कर दया। वह
एक ही बड़ी छलाँग म राम क घेराबंद म जा प ँचा। मेरे भी पीछे ही थे और हम
दे खते ही दे खते भयभीत वानर के स मुख थे। मेरे बाल तथा अ क अयाल म आग लग
गई थी और म उलझन म था परंतु उस समय भी म उसके ने दे ख सकता था।

उस ण म भी मेरे मुख पर आ य के भाव थे। ‘वह इतना साँवला कैसे हो गया?’ वह


अपने चेहरे पर भय के भाव के साथ पीछे क ओर लड़खड़ा गया। य ही मने अपनी
तलवार उठा कर उसके सीने म भ कनी चाही, उसी ण जाने कहाँ से हनुमान लपक कर
आया और मेरी टाँग पकड़ ली। मने अपना संतुलन खो दया और अ से नीचे आ गरा। मने
उस नर वानर के मुख पर ख च कर लात दे मारी। वह एक गुराहट के साथ सागर म जा
गरा। म कसी तरह उठा और राम व ल मण क ओर बढ़ा।
वे भयभीत हो कर, मुझ पर अपने बाण बरसा रहे थे हम बड़ी त ग त से दे व कुमार क
ओर बढ़े । तभी आकाश से मूसलाधार वृ होने लगी। इस वषा के कारण सब कुछ फसलन
से भर गया और हमारे लए एक-एक क़दम रखना जानलेवा होने लगा। सेतु पर आ रही
वशाल लहर ने जाने कतने मनु य व वानर को लील लया था। तभी सेतु का एक ह सा
टू टा और राम अपने कुछ लोग के साथ, शेष सेना से बछु ड़ गया। वह बुरी तरह से फँस गया
था। बस मुझे कसी तरह उस तक प ँचना था। अब उसका अंत नकट था। एक नए जोश व
उमंग के साथ हम उसक ओर बढ़ने लगे।

वही ण था जसम मने महसूस कया क यु समा त हो चला था और मेरी वजय ई।


एक बार फर, अपने कड़े संक प व ढ़ न य के बल पर म रणभू म म पाँसा पलटने म
सफल रहा था। पहले भी कई बार, मने रणभू म म अपना ऐसा जौहर दखाया था जसने
असंभव सी दखने वाली वजय को हम स पने म दे र नह क थी। यह भी उनम से ही एक
रण था। कुछ ही ण म राम व ल मण मेरे भाई कुंभकण के पास सागर क अतल
गहराइय के बीच ह गे। म उनके मुखड़ पर पसरा भय दे ख सकता था और मने सोचा क
उनके भारी धनुष उनके हाथ से फसल रहे थे। भारी-भरकम लहर सेतु से टकराते ए
यो ा को खारे पानी से सराबोर कर रही थ । तूफ़ानी हवा के बीच, गहरे आकाश म
बारंबार बजली चमक रही थी। मूसलाधार वषा के कारण राम का नशाना सही तरह से नह
लग पा रहा था।

बाण बड़ी ग त से मेरे आसपास से नकल रहे थे परंतु अपने आवेग म मने इस ओर यान
तक नह दया क उनम से कोई अचानक मुझे लग भी सकता था। म श ु पर ू रतापूण वार
करते ए, अपने लए माग बनाता जा रहा था, य ही वषा का हार तेज़ आ तो हमारा
सेतु डोलने लगा। हमारे आसपास मृत वानर का जमघट लग गया था। बस कुछ और मनु य
क ब ल चढ़नी बाक थी और म बड़ी सरलता से अपनी चं हास को राम के र का वाद
चखा सकता था। इस वचार मा से ही मेरा मन मु दत हो उठा परंतु जब तक मुझे अपनी
घातक भूल का अनुभव आ, तब तक ब त दे र हो चुक थी। जब मने हनुमान ारा तैयार
क गई अ न घेराबंद को लाँघा तो मुझे पूरा व ास था क पीछे से मुझ पर वार करने के
लए कोई नह था। राम के त बैर व े ष के चलते, मने कुछ प र थ तय को परखने म
भारी भूल कर द थी। ती वेगवान वषा ने उस अ न को बुझा दया था और अब बड़ी ही
सरलता से मुझ पर पीछे से वार कया जा सकता था। म अपने भाई वभीषण के बारे म भूल
गया था, जो आ मण करते ए, मेरी ही ओर बढ़ा चला आ रहा था। उसे रोकने के लए वहाँ
कोई अ न नह थी। इस कार वह दबे पाँव मेरे पीछे तक आ प ँचा। जब उसक तलवार ने
मेरी पीठ म गहरा वार कया तो मुझे अपनी मूखता का भान आ। मने मुड़ कर, उस पर
अपनी तलवार से वार करना चाहा, परंतु वह नीचे झुक गया और म अपना संतुलन खो बैठा।
उसने मुझे ठोकर मारी और म सागर म लगभग गरते- गरते बचा। मने अपना संतुलन साध
लया परंतु उसके वार से ए घाव से नरंतर र बह रहा था। मेरे हाथ सु पड़ गए थे। मने
जो भारी यु कवच पहन रखा था, वह मुझे नीचे क ओर ख च रहा था। राम और ल मण
को एहसास आ क मुझ पर बाण क वषा के लए इससे बेहतर अवसर तो कोई हो ही
नह सकता था, परंतु मेरा कवच उन बाण से मेरी र ा करने म सफल रहा। वे मेरी वचा को
नह भेद सके। मेरे पास अब परा त होने के लए समय नह था। म इस खेल म जीतने ही
वाला था। मुझे बल होने से पहले राम तक प ँचना था। मने वभीषण को ठोकर मारी तो
वह समु म जा गरा। जब म अपनी तलवार हाथ म लए राम क ओर लपका तो वभीषण
कसी तरह सागर से नकल कर, सेतु पर आ गया। मेरा यान उस ओर नह था। मने अपना
पूरा यान राम पर क त कर रखा था। य ही म आगे को जाने लगा, वभीषण क तलवार
एक बार फर मेरी पीठ पर आकर पड़ी। तलवार मेरे शरीर से ज़रा सी री पर आकर लगी
परंतु उसने मेरे कवच के बंधन को काट दया, जनसे वह मेरे शरीर से कस कर बंधा था।
मने भी वाभा वक प से मुड़ कर ठोकर मारी। वह हरहराते, ठाठ मारते सागर म अलोप
हो गया।

जब मने अपना मुख राम क ओर कया तो मेरा कवच खुल कर गर गया और म श ु के


बाण के लए ब कुल तुत था। राम ने इस अवसर का लाभ उठाते ए, मेरे उदर पर
नशाना साधा। म हार नह मानना चाहता था परंतु शरीर से टपक रहे र के कारण मेरा
सर चकरा रहा था। मेरे क़दम लड़खड़ाने लगे और एक-एक क़दम यं णादायी हो उठा। जब
एक के बाद एक बाण, मेरी आँत पर वार कर रहे थे तो तब मेरे म त क म बार-बार आमने-
सामने होने वाले यु का ही वचार च कर काट रहा था। येक पीड़ादायी क़दम के साथ-
साथ, बाण का एक और दौर मेरी आँत को भेद दे ता। धीरे-धीरे म नीचे गर पड़ा और
अं तम बात मुझे यही याद रही क मुझे एक गहरी हरी लहर ने लील लया था। इसके बाद
मेरा संसार र हो गया।

जब मेरे ने खुले तो आसपास मृ यु से भी भयावह स ाटा छाया था। धरती ब त ठं ड़ी व


गहरी थी। कुछ लोग मेरे आसपास खड़े थे परंतु म उनके चेहरे नह दे ख सका। तभी एक
लंबी और गहरी आकृ त आकर मेरे समीप खड़ी हो गई। ‘राम…’ म उसे गदन से दबोच लेना
चाहता था परंतु धरती से हल भी नह सका। धरती मेरे शरीर पर अपना दावा जताने के लए
तुत थी। राम सं कृत म कुछ बुदबुदाया, संभवतः वग म कोई थान पाने के वषय म बोल
रहा था। म ज़ोर-ज़ोर से खल खला कर हँसना चाहता था। मने भी बनावट स मान म
शा मल होते ए, अपने दोन हाथ जोड़ दए। मृ यु का आ लगन करने से पूव मेरे मन म
केवल यही वचार शेष था क वह मेरे इस वीभ स उपहास को समझ नह सका था।
49 वजेता व उनका वहार


आज उसका अं तम सं कार है। यह दोपहर बाद का समय था और म भीड़ के म य खड़ा,
भीषण गम म उबल रहा था। हवा म चार ओर एक अजीब सी उदासी व आतंक छाया था।
वजेता प क सेनाएँ पछली रात नगर म वेश कर चुक थ । वानर ने नगर म लूट-खसोट
मचाने म कोई कसर नह छोड़ी। अ धकतर लोग अपना घर-बार याग कर वन म चले गए
थे परंतु कुछ ने बड़ी वीरता से अपने वा म व क व तु को बचाने के लए संघष कया।
अय य ने वानर सेना के आगे आ मसमपण कर दया परंतु वे लोग कसी को भी
बंद नही बना रहे थे। जन मूख ने उनसे दया क अपे ा क थी, उ ह बड़ी ही नदयता से
मार दया गया। रावण के भ तथा वला सतासंप महल को लगभग व त कर दया गया,
परंतु वभीषण ने बीच-बचाव कया और इस बात का बंध कया क ग म उप थत लोग
के साथ कोई बुरा वहार न हो। इस तरह एक बार फर कुलीन वग अपने धन, ाण तथा
मान क र ा करने म सफल रहा।

अगले दन, वानर उन सभी असुर को वन से पकड़ लाए जो अपने ाण क र ा के लए


वहाँ जा छपे थे। उ ह जबरन नगर म लाया गया। पछली रात, म सागर तट क ओर नकल
गया था ता क वहाँ घायल पड़े सै नक या मृतक क जेब से अपने लए कुछ माल नकाल
सकूँ। काम ख़तरनाक था परंतु पैसा कमाने का अ छा साधन था। वैसे भी उस समय वह
सबसे सुर त थान था। और जो भी हो, वे उस समय कसी असुर के वहाँ होने क अपे ा
तक नह कर सकते थे। मेरी तरह दो-तीन और वहाँ पड़े घायल व मृतक से ब मू य
व तुएँ व धन लूटने म लगे थे परंतु हम सबने आपस म एक सुर त री बनाए रखी।

तभी म अचानक स ाट से ही उलझ कर लड़खड़ा गया। अमाव या क रा के म म


काश म मने अपने राजा तथा वामी को पहचान लया। वह बुरी तरह से हाँफ़ते ए, पीड़ा
से छटपटा रहा था। सयार उसे जी वताव था म ही खा रहे थे। उसके बाजूबंद क चमक से
ही म उसक ओर आक षत आ था। मुझे पूरा व ास नह था परंतु य ही म नीचे दे खने
को झुका, तो उसके मुख से एक कराह सी नकली। ‘वह बलशाली पु ष वहाँ कैसे गरा पड़ा
था?’ यह अपने वंश तथा उन लोग के लए लड़ा था जो अपनी मयादा, अपनी
वतं ता, अपने मू य व स यता सब कुछ भुला बैठे थे। रावण ने असुर को उनक खोई ई
मयादा तथा आ म- व ास लौटाया, अपनी ाचीन सं कृ त के त गौरव व अ भमान का
भाव वक सत कया और हमारी स यता को क त के उ ुंग शखर तक ले गया। हाँ, हो
सकता है क वह एक आततायी रहा हो। उसने असुर के जातां क व समान प से
सबको एक मानने वाले इस समाज को न कर, आपस म लड़ने वाले एक यं म बदल दया
था। हाँ, वह ऐ य के म य म न रहा और जो उसके जी म आया, वही कया। उसने जस
समाज क रचना क थी। वह पूरी तरह से संपूण नह थी। हमम से अ धकतर नधन ही रहे।
य प हम जानते थे क कड़ा प र म व भा य हम धनी व श शाली बना सकते थे। वहाँ
दे व क भाँ त ा ण सरीखा कोई भी ज मजात सु वधाभोगी वग नह था। हमारी चूर-चूर
कर दे ने वाली द र ता तथा धनी व सु वधाजीवी वग के त उबलते ोध के बावजूद, हम
दे व रा य से एक क़दम आगे ही थे, कम से कम हम यहाँ मनु य के प म जीने क
वला सता तो ा त थी। हमम से अ धकतर नधन थे परंतु हमारी उस नधनता के बीच भी
थोड़ी मयादा शेष थी। परंतु जब म अपने गरे ए राजा पर झुका तो म इनम से कुछ नह
जानता था। ब त बाद म, इस घटना के ब त बाद म, मुझ कुछ बात के वषय म प प
से पता चला परंतु तब तक तो ब त दे र हो चुक थी।

बूढ़ा राजा मन ही मन कुछ बड़बड़ाया परंतु म समझ नह सका क वह कहना या चाहता


था। मने उसका म तक छु आ। वह तो बुरी तरह से तप रहा था। उसे वर था और दे ह काँप
रही थी। वह मर रहा था और अपने ने से यह सब दे खना सरल नह था। वह पुनः कुछ
बड़बड़ाया। म केवल यही समझ सका क वह मुझे अपने साथ ले चलने को कह रहा था।
बेचारा इंसान! म तो वयं रोने लगा। मने उसका सर अपने हाथ म लया और उसके सर
को अपने व थल से सटा दया। ‘म एक असली राजा को गले से लगा रहा था।’ मने उस
समय जो उ लास अनुभव कया उ ह ण म म उससे कह बैठा क म उसका तशोध
लूँगा। ‘महाराज! म आपका अधूरा काय पूरा क ँ गा, आप चता न कर व शां त से अपने
ाण का याग कर। म अपने वंश के लए ऐसा अव य क ँ गा।’ म वयं यक़ न नह कर
सका क म उस मरते ए से या कह रहा था। “मेरे उपाय भले ही अलग ह अथवा
आपके तर से ब त ही नीचे ह , परंतु फर भी…।”

रावण घरघराहट के साथ साँस लेने लगा। म अपना मुख उसके अधखाए कान के नकट ले
गया। सड़े ए माँस क गँध से मुझे मतली आने को ई परंतु म वयं को नयं ण म रखते
ए, उसके कान म फुसफुसाया क राम ने आपक जा त व आपके साथ जो भी कया,
उसके लए उसे छोड़ा नह जाएगा। मने जैसे ही यह कहा, ऐसा लगा मानो मुझे अपना
जीवन जीने का एक उ े य मल गया था। मेरे इस साधारण से जीवन का कुछ मोल तो हो
पाएगा। मने अपने राजा का माथा चूमा और आराम से उसका सर गीली धरती पर रख
दया। वह बड़ी पीड़ा के साथ क से साँस लेने लगा। म ब त दे र तक वह खड़ा, रावण को
ाण यागते दे खता रहा। जब पूव आकाश म पहली रोशनी दखने लगी और कौ क
काँव-काँव ने आने वाले दन का संकेत दया, तो बलशाली रावण बड़े ही गहरे क व यं णा
के बीच अपनी अं तम ास पूरी कर रहा था। मने आधे घंटे तक और ती ा क और फर
घुटन के बल बैठ कर, उसके शरीर से सारे आभूषण उतार लए। वह जहाँ भी जाएगा, उसे
वहाँ इनक कोई आव यकता नह होगी। यह एक अ छा दाँव था और मुझे स ता थी क
म अपने राजा से उलझ कर वहाँ गरा।

जब म लूट मचाने के बाद नगर क ओर चला तो उस मरणास से कहे गए श द क


थता व मूखता का भान होने लगा। ‘म कसी भी चीज़ का बंद नह था। यहाँ तक क
कसी मरणास को दए गए वचन से भी नह बँधा था।’ जब तक म नगर के बाहरी
छोर तक प ँचा, तब तक म अपने-आप को समझा चुका था क मने मरते ए रावण को जो
वचन दया था, उसे तोड़ने म कोई हा न नह थी। यह कोई अनु चत नणय नह था। म कोई
नायक नह था क राम के व तशोध लेने क मु हम छे ड़ दे ता। शी ही मुझे वानर
सै नक ारा पकड़ लया गया और वे मुझे नगर म घसीट ले गए ता क म वजय ा त के
उपल य म नकाली जा रही शोभा-या ा का सा ी बन सकूँ। सं या समय तक तो म
तशोध के वषय म पूरी तरह से भूल चुका था।

अनेक य को जबरन पकड़ कर, राजमाग के दोन ओर बैठाया गया था। वे बेचारे
तपते सूरज के नीचे कसमसा रहे थे। जो भी अपने थान से हलता-डु लता, वानर सै नक
बड़ी नदयता से उसे पीट दे त।े चार ओर भय का ऐसा कुहासा छाया था क उसने सूया त
के ब त बाद भी छँ टने से इंकार कर दया था। आ यजनक प से, दन पूरी तरह से साफ़
व हवादार था।

पछली रात क मूसलाधार वषा के प ात मानो सब कुछ तरोताज़ा दख रहा था। वृ का


हरा रंग दे खते ही बनता था और आकाश म ह के, कोमल व ईनुमा बादल यहाँ-वहाँ वचर
रहे थे। पूरा संसार एक अलग ही आभा से आलो कत था। अभी एक दन भी नह आ था
और ऐसा लगता था मानो रावण अथवा उसके असाधारण व का कभी अ त व ही न रहा
हो। मने रावण क मृत दे ह से उतारे गए आभूषण को अपने क ट व के नीचे धकेल
दया। म उन आभूषण के लए चुराए गए श द का योग नह करना चाहता था। इसके लए
दावा करना श द कह बेहतर था य क रावण के पास जो कुछ भी था, वह सब कुछ हमसे
छ न लया गया था – मुझसे और मेरे जैसे लोग से ह थया लया गया था, जो यहाँ बैठे अपने
अगले वामी के आने क ती ा कर रहे थे।

दोपहर तक, लोग मारे गम के बेसुध होने लगे। म य भारत क गम को झेलने के आद


वानर को भी यहाँ क उमस से भरी गम सहन नह हो रही थी। जसक वजह से वे और भी
चड़ चड़े व ोधी हो गए थे। मारे पसीन के बुरी हालत थी। अगर कोई इतना सा भी हलता
तो उसक शामत आ जाती। म एक कशोर के पास बैठा था जो समीप खड़े वानर को ब त
ही गहराई से ताक रहा था। म संकट को एक मील क री से भाँप सकता था। म जानता था
क उस युवक के म त क म या चल रहा था। मुझे यथासंभव शी ता से इस थान से बाहर
नकलना था परंतु म सर का यान अपनी ओर ख चे बना वहाँ से कैसे नकल सकता
था? इससे पूव क म वहाँ से नकलने क कसी योजना पर वचार कर पाता। उस युवक ने
अपने सोचे ए क़दम को उठाने का नणय ले लया। वह अपने थान से उछला और बड़े
आराम से खड़े सै नक क ओर भागा। वे भी आवाज़ सुन कर मुड़े परंतु कशोर के हाथ से
अपने मुख पर भारी-भरकम घूँस के वार से हत भ हो उठे । वे लड़खड़ा कर नीचे गर गए।
कशोर ने उनके भाले लए और उनके ही शरीर म नरंतर घ पने शु कर दए। यह संकेत
पाते ही अनेक युवक ने वानर सै नक पर धावा बोल दया परंतु मेरे जैसे अ धकतर मनु य,
कोई भी त या दए बना यह तमाशा दे खते रहे। ग से शी ही ब त से वानर सै नक
अपने सा थय क सहायता के लए आ प ँचे और उ ह ने कुछ ही ण म युवा व ो हय
का ाणांत कर दया।

जस लड़के ने यह उप व आरंभ कया था, वह टु कड़े-टु कड़े आ पड़ा था, उसके कटे अंग
भीड़ म व भ दशा म फक दए गए। उसक भुजाएँ मेरे समीप आकर गर और मने
उस गंद व तु को पैर क ठोकर से भयभीत पड़ोसी क ओर धकेल दया, जसे उसी ण
मतली आ गई और उसने वमन कर द । उस मृतक युवा का कुछ र मेरे चेहरे व कंध पर
भी आ गया था, मने उसे हाथ से प छा और फर अपने हाथ मैली धोती से प छ लए।

दोपहर ढलने तक, वानर अपने खेल से उकता गए और यहाँ-वहाँ घूमने लगे। कुछ असुर
तपती पहरी के कारण बेहोश हो गए थे और पानी के लए गड़ गड़ा रहे थे। म आलस के
मारे ऊँघ रहा था क अचानक चड के वर ने मुझे जगा दया। सु र कोने पर, ग के ार
खुले और एक जुलूस ने राजपथ पर वेश कया। सारी भीड़ सर उठा-उठा कर दे खने लगी
क वहाँ हो या रहा था? वह जुलूस ठाठ मारती भीड़ से होते ए, धीरे-धीरे आगे क ओर
आने लगा। म केवल यही दे ख सकता था क उ ह ने कसी व तु को एक लंबे तभ पर टाँग
रखा था और वह भीड़ के बीच ऊपर-नीचे उछाली जा रही थी। ग के कोने से एक ममभेद
वलाप का वर सुनाई दया और जुलूस के पीछे -पीछे आने लगा। य ही राम क वजय
या ा मेरे नकट से नकली, म यह दे ख कर आतं कत हो उठा क अंगद एक बाँस पर लटके
रावण के शीश को ऊपर-नीचे उछाल रहा था। राजसी व मनोहारी मुख मृ यु के कारण
भयंकर हो उठा था, उसक एक आँख गायब थी, गाल का एक ह सा चूहे कुतर गए थे और
नाक का अगला ह सा सयार ने अधखाया छोड़ दया था। अंगद के पीछे , क कंधा का
ू र व पय कड़ सा दखने वाला राजा सु ीव लड़खड़ाता आ रहा था, उससे अपनी भारी
गदा तक संभाले नह संभल रही थी। राजा के पीछे ब त से भ े व बदसूरत बाल वाले नर
वानर दरबारी अपने हाथ म अनगढ़ गदाएँ तथा भारी ल लए चले आ रहे थे। हरण क
छाल पहनने के अ य त उन लोग ने आज असुर के महल से चुराए गए रेशमी व धारण
कए ए थे ता क असुर क जा को लुभा सक। वे लोग उन व म ब त ही अटपटे दख
रहे थे परंतु उनके हाथ म वशाल पाषाण न मत गदाएँ थ इस लए कसी म इतना साहस
नह था क उनका उपहास कर पाता। इसके बाद असुर दखाई दए जो अपने नए वा मय
क वजय के उपल य म नकाली जा रही शोभा-या ा म चड तथा अ य वा यं बजा रहे
थे। उनके बाद राम, उसका भाई तथा वजयी मु ा म गव ली सीता दखाई द । वह रावण के
रथ म, अपने प त के साथ बैठ स ता से चहक रही थी।

राजसी रथ के नकट ही, वभीषण ल मण के आदे श पर जाने या- या कए जा रहा था।


राम अपने सर पर रावण का हीरक ज ड़त सुनहरा राजमुकुट पहने बैठा था। उसने अपना
हाथ इस तरह उठाया मानो हम आशीवाद दे रहा हो। मने यान दया क उसने अपनी प नी
व अपने बीच धनुष व बाण रखे ए थे। मने यह भी ल य कया क वह जानबूझ कर अपनी
प नी क ओर नह दे ख रहा था और सजग भाव से सतक था क कह उससे अनजाने म भी
पश न हो जाए।

यह सब ब त ही व च लगा परंतु ब त बाद म जब म इस नई सं कृ त म द त आ तो


यह सारी बात अ छ तरह से समझ आ गई। उस दन सं या समय, जो भी घटनाएँ घट ,
उ ह ने मेरी जानकारी म ब त वृ़ क । राम के रथ के पीछे कुछ पाल कयाँ थ जनम महल
क य को बैठाया गया था। उनम से एक म, मंदोदरी बैठ दखाई द । उसका आधा चेहरा
ओट म था और सर मुं डत था। उसने एक साद ेत साड़ी पहन रखी थी। एक खंभे पर
उछाले जा रहे रावण के शीश को दे खने से कह अ धक सदमा इस य को दे ख कर लगा।
सारी असुर जा अपनी सा ा ी को एक दे व वधवा के वेष म दे ख तं भत रह गई। वह
ब त ही मयादा तथा आ म- नयं ण के साथ वयं को संभाले बैठ थी और दोन ओर से
नकलती असुर जा धरती पर णाम करते ए, उसक दयनीय दशा पर वलाप कर रही
थी। वानर सै नक ने वलाप कर रहे असुर को पैर क ठोकर से मारा और उ ह ‘ ी राम
क जय’ बोलने के लए ववश कया जाने लगा। य प असुर ने इस बात के लए साफ़
इंकार कर दया। वे अपने बखरे ए सपन पर रोने क वला सता को छोड़ना नह चाहते
थे। परा त सपन के आगे भला टू ट ई ह य का मोल ही या था? म भी अपने अ ु
को वश म नह रख सका और अपने सा थय क तरह छाती पीट-पीट कर वलाप करने
लगा।

चड़ तथा ंग के वर भी असुर के ं दन व पीड़ा को दबा नह सके। यह एक ऐसे वंश का


ं दन था, जो अपने अ त व के लगभग वलु त होने के संताप को सह रहा था। अनेक वष
पूव, असुर ने नवीकरण का एक जगमगाता सपना दे खा था जो अब चूर-चूर हो गया था।
य ही ढलते सूरज ने उफनते सागर को ला लमा से रंगा, हमने अपने उन सपन को भी
तलांज ल दे द जसम एक ऐसे भुवन क क पना क गई थी, जहाँ कोई सीमाएँ नह थ
और सभी समान थे। कई युग तक, भारत के असुर इस संसार के लए एक ऐसे जगत को
लाने क आशा क करण को संजोए रहे, जसम दासता व जा त था का कोई काम नह
था, कोई भी अपने दय म धधकती अ न तथा व दे खने क मह वाकां ा के साथ
वयं अपनी नय त रच सकता था। वे व हज़ार वष पूव ही कह वलीन हो गए जब
सर वती तथा सधु नद के कनारे बसे हमारे नगर, दे व के बबर आ मण के शकार हो
गए। य प महाब ल तथा रावण सरीखे नायक ने इस व को पुनज वत करने का ब त
य न कया परंतु आज उसी नायक का कटा शीश, एक वानर के हाथ म थामे ए बाँस पर
उछल रहा था। यह शोभा-या ा सागर के नकट जा कर थम गई। सारी भीड़ सागर तट क
ओर लपक ता क यह दे ख सके क वहाँ हो या रहा था। जो असुर सै नक कुछ घंट पहले
तक वानर से लड़ रहे थे, वही अब श ु प म शा मल हो कर अपनी ही असुर जा को
नयं त करने लगे। अब वे नए शासन को अपनी सेवाएँ दे रहे थे ता क उ ह नयत समय पर
अपना वेतन, पदो त, भ े तथा संर ण मल सके। वे जनता के सेवक थे और अपने वामी
क आ ा पर, जनता पर क़हर बरसाने के लए त पर थे। आम असहाय लोग पर उनक
ला ठयाँ पूरे वेग से बरस रही थ । उ ह ने एक घेराबंद कर ली थी ता क आम जनता नेता
के समीप न जा सके। महान नेता के लए एक ऊँचा मंच तैयार कया गया था। हम सभी
को सागर तट पर बैठने का आदे श दया गया। हम मार-पीट कर, बुरी तरह से धकेलते ए,
भू म पर बैठने के लए ववश कर दया गया। जब राम के चाटु कार, उसके चाटु कार के भी
चाटु कार, यहाँ-वहाँ कोई न कोई सामान लाने के लए भगदड़ मचा चुके और अपने
अधीन थ पर आदे श क वषा कर चुके तो राम ने मंच पर अपना आसन हण कया।
उसक भव म गहरे बल दखाई दए परंतु य ही उसने भीड़ को दे ख कर हाथ हलाया तो
चेहरे क मु कान लौट आई। कुछ लोग ने हाथ हला कर यु र भी दया परंतु उसक भव
म फर से बल आ गए। शी ही हम सभी राम के मुख से नकले एक-एक श द पर
हष लास कट कर रहे थे, य प हम एक भी श द समझ नह आ रहा था य क वह
सं कृत म बोल रहा था।

कुछ ही दे र बाद वभीषण उठा व राम के कान म हौले से कुछ कहा। फर उसने राम के
भाषण का अनुवाद आरंभ कर दया। वह एक-एक वा य को हमारी भाषा म सुनाने लगा।
राम ने अपनी बात आरंभ करते ए कहा क हम स ता होनी चा हए क हम रावण सरीखे
आततायी, एक रा स के पंज से मु हो गए। उसका यह मानना था क बुराई पर सदै व
अ छाई क जीत होती है। यह बात ता कक थी और हमने करतल व न से उसके श द का
वागत कया। इसके बाद वभीषण के बोलने क बारी थी।

उसने कहा क सारी जा चार जा तय म बाँट द जाएगी और उ ह पेशे स पे जाएँग।े ई र


के मुख से नकले ा ण सव कृ जा त के माने जाएँगे। वे ान का चार- सार करते ए,
धरती पर ई र के त न ध कहलाएँगे और यह अ नवाय था क येक उनक बात
सुनेगा तथा आदे श का पालन करेगा। य, ज ह ई र के अंग से उ प होने का सौभा य
ा त आ है, वे ा ण के परामश के अनुसार, समाज पर शासन करगे। वै य, जो क
ई र क जाँघ से उ प ए ह, उ ह ापार तथा वा ण य संभालने का दा य व स पा
जाएगा तथा वे पहली दो जा तय के अधीन रहगे। श पी, छोटे भू- वामी, सामा य सै नक
तथा ई र के चरण से ज मे सभी शू , अ य तीन जा तय क सेवा करगे। यह सब ब त
ामक था परंतु हम सबने फर भी ता लयाँ बजाई। म वचार कर रहा था क अनाड़ी व
अध श त कसान तथा काली चमड़ी वाल का या होगा, जैसे क म – हम लोग तो कई
तरह के काम करके अपना जीवनयापन करते ह जैसे – सड़क क साफ़-सफ़ाई, व धोना
व माल क ढु लाई करना आ द। म यह जानने को उ सुक था क हम जैसे लोग ने दे व के
ई र के कस अंग से ज म पाया था। शी ही मुझे अपना उ र भी मल गया। वभीषण ने
घोषणा क क बाक अ य लोग, जो इन े णय म नह आते, उ ह अ पृ य अथवा अछू त
माना जाएगा। उसने हमारी दशा पर खेद भी कट कया परंतु हमसे यह भी कहा क हम
इसे एक ई रीय वरदान के प म वीकार कर। भाषण अनवरत चलता रहा और वे हम दे व
क क त तथा उनक जीवनशैली का बखान सुना-सुना कर पकाते रहे। वभीषण ने वेद के
वषय म ब त सी बात ऐसी कह जो उसके अपने मन क उपज थ , ऐसा लगा क राम
अपने म को टोकेगा परंतु वभीषण ने अपने आसपास के ा ण के कु हलाए मुख दे खे
तो अपने-आप शांत हो गया।

सभा के अंत म राम ने वभीषण का हाथ उठा कर घोषणा क , “असुर के स ाट क जय


हो!” सै नक ने थोड़ा रौ प दखाया तो हम सभी ता लयाँ बजाने लगे। वभीषण राम के
चरण म गर पड़ा। हम अपने नए राजा का यह प दे ख कर सदमे म थे। यही हमारी नय त
थी क हम एक ऐसे मे दं डहीन शासक के तले रह, जो कसी वदे शी के परामश पर अपना
रा य संचा लत करने वाला था।

वभीषण ने अपना भाषण जारी रखा। उसने दे व से माचायना क और इस उलाहने के


साथ अपनी बात समा त क क उसके पथ भाइय रावण तथा कुं भकण ने राम म छपे
दै वी त व को नह पहचाना था। य ही सूया त आ और लंका पर अंधकार का सा ा य
छाने लगा तो वभीषण ने कहा क वह अपने मृत भाई का अं तम सं कार दे व क वै दक
परंपरा के अनुसार करेगा। भीड़ म व ोह क लहर उठ परंतु नंगी तलवार वाले सै नक ने
उसे त ण दबा दया। कुछ ा ण मंच पर पधारे तो राम, सीता, ल मण तथा वभीषण
सभी उनके स मान म अपने थान से उठ खड़े ए। राम, ल मण तथा वभीषण ने ा ण
के चरण पश करते ए आशीवाद लए। परंतु जब सीता ने उनके चरण पश करने चाहे तो
वे घृणा से पीछे क ओर हट गए। सारी भीड़ म स ाटा छा गया। हमने भाँप लया क कुछ
तो नाटक य तथा सनसनीखेज़ घटने वाला था। उनम से एक ा ण ने राम के कान म कुछ
धीरे से कहा और अचानक ही राम का चेहरा याह पड़ गया। राम ने ल मण से कहा और
ल मण के चेहरे का रंग भी फ का पड़ गया। इन अटपटे ण के बीच, कसी ने भी कुछ
नह कहा। फर ल मण ने सीता का हाथ थामा और उसे मंच से जबरन नीचे ले जाने लगा।
उसने अपना हाथ छु ड़ाना चाहा परंतु उसके दे वर क पकड़ ब त मज़बूत थी। उसे मंच से
नीचे एक कोने म धकेल दया गया जहाँ वह चुपचाप खड़ी ल जा, ला न व अपमान का दं श
सह रही थी। उनम से एक ा ण आगे आया तथा सं कृत म बोला। फर वभीषण आगे
आया और उसने सं कृत म कहे गए वा य का भावानुवाद कया। वह इन श द को ब त ही
स तापूवक कट करते ए बोला, “मेरे दे शवा सय ! आपने दे खा क ये ा ण कतने
न प ह। मेरे वामी राम, इस भुवन के नरेश ह परंतु फर भी वे इन नयम से परे नह ह।
जैसा क हम सब जानते ह क उनक प नी सीता को उस रा स रावण ने बंद बना लया
था। यह हमारे लए ब त ःख क बात है क जस को म कभी अपना भाई मानता
था, उसी के कारण मेरे य वामी क स णी प नी को षत होना पड़ा। कृपया इसम कोई
संदेह न रख, सीता दे वी मेरे लए माता के समान ह परंतु जस कार व ान पं डत ने सबके
लए समान नयम क थापना क है, हम उनक इस व था पर गव होना चा हए। उ ह ने
अपने ववेक तथा बु के आधार पर नणय लया है क सीता दे वी को दे व क युग पुरानी
अपनी परंपरा के अनुसार अपनी शु ता तथा प व ता क परी ा दे नी होगी।” वभीषण
थोड़ा पानी नगलने के लए का। यह तो प था क उसे एक नई व था का दशन
करने म अपार हष का अनुभव हो रहा था।

सीता ने रोना बंद कर दया और ब कुल सहम कर शांत खड़ी थी। जब वह अपने प त को
ताकने लगी तो उसके मुख से घूँघट भी उतर गया। नःसंदेह वह अपनी माँ से ब त मलती
थी। भले ही वह दखने म माँ के समान थी परंतु वह अपनी भाव-भं गमा तथा ने म
धधकती अ न के साथ तो, पूरी तरह से रावण क ही पु ी दखाई दे ती थी। उसने अपने प त
को घूरा, जसके लए उसने इतनी ता से ती ा क थी। राम उससे नज़र न मला सका
और सरी ओर दे खने लगा। उसके हाथ काँप रहे थे परंतु उसके चेहरे पर चपकाई गई
कृ म मु कान ण भर के लए भी अलोप नह ई। वह अपने भाव को छपाने का
भरसक य न कर रहा था। वह वहाँ कसी ऐसे यो ा क तरह नह बैठा था जसने, संसार
के सबसे बलशाली राजा को परा त कर दया था, वह तो कोई भा य का मारा अभागा दख
रहा था।

थोड़ी री पर बैठ मंदोदरी, इस नए घटना म को दे ख तं भत दखी। उसने उठना चाहा


परंतु उसे ा ण के आदे श पर पुनः बैठा दया गया। वे च लाए क वधवा को यह
अ धकार नह होता क वे कसी को सूय के काश म दखाई द। वे पहले ही उसे दोषी ठहरा
चुके थे क वह अपने प त क अं तम या ा क सा ी थी। आज मंदोदरी का सूय के काश
म यह अं तम दन था। एक चता सजाई गई और रावण का सर उस तंभ से उतारा गया।
एक शीश वहीन शव को लाया गया, जसे रावण का शव माना जा रहा था, उसे मेरे चार
अ पृ य भाई उठा कर लाए।

सूया त हो चुका था और आकाश के प मी छोर पर गहरे रंग के बादल दख रहे थे। यह


वषा काल था और धरती अपने नान के लए तुत थी। वभीषण हाथ म एक जलती
मशाल लए अपने भाई क चता के समीप गया। उसने रावण के नकट ही एक और अ न
वेद सजाने का आदे श दया। उसने कहा क उसके लए सारी चंदन का लाई जाए य क
एक दै वीय उ े य के लए उसे तैयार कया जा रहा था। हम सब साँस रोक कर ती ा करते
रहे। शी ही एक और अ न वेद तैयार कर द गई। वशेष प से चुनी गई असुर याँ
सीता को घसीट कर उस अ न क ओर लाने लग , जो यह स करने जा रही थी क सीता
प व थी अथवा नह ?…हम तो समझ ही नह सके क वहाँ हो या रहा था? कसी ी क
प व ता क परख के लए दे व का यह कौन सा ाचीन स उपाय था? जब ा ण ने
मं ो चारण आरंभ कया और यहाँ-वहाँ जल का छड़काव करने लगे तो वभीषण ने अपने
भाई क चता क तीन बार द णा क । इसी या म जल क कुछ बूँद मुझ पर भी आ
गर । मने य ही उसक गंध का अनुमान लगाना चाहा तो पता चला क उसम से गध आ
रही थी। मेरा पड़ोसी मेरे कान म हौले से बोला, “यह गाय का मू तथा गोबर है। वे
शु करण के लए इसका योग करते ह।” हम अ पृ य को इस मल व मू से प व कया
जा रहा था।

वषा क न ही फुहार पड़ने लगी। शी ही आकाश बरसने को तैयार होगा। बजली कड़क
और और गहरे आकाश को चीरती चली गई। जब वभीषण अपने भाई क चता को
मुखा न दे ने लगा तो उसने बड़े ही नाटक य वर म घोषणा क , “यह एक आततायी,
पशाच व रा स का अंत है। उसका यह जीवन उन सभी के लए एक सबक होगा जो धम
क सव े स ा को नकारते ह, अयो या के महान रा य के भु ी रामचं , हमारे वामी,
धरती पर धम के मू तमान प ह। आज से बुराई तथा असुर के हीन सा ा य का पतन
होगा। आज के दन को सबसे अ धक प व दन माना जाना चा हए, जब भु ी राम,
व णु के अवतार, हम पर अपनी असीम दया वृ करगे। वह हम अपनी इस अनंत क णा
के मा यम से एक नई जीवनशैली क ओर ले जाएँगे। जब तक रावण का पापमयी शरीर
भ म म वलीन होगा, हमारे गहरे तज पर धम क एक नई सुबह का उदय होगा। एक
ऐसा धम, जसम येक को अपने लए उ चत थान का ान होगा; जहाँ व ा का
मान होगा; यो ा के बल क त ा होगी; तथा वा ण य व ापार के कौशल सराहे
जाएँग।े अब हम जीवन म सफल होने के लए कड़े संघष के बोझ तले नह दबना होगा;
और न ही हम अपने पड़ोसी से आगे नकलने क अंधी दौड़ म, बौराई त पधा का एक
ह सा बनगे। हम रावण के अधीन पनपे, असुर के समाज का याग करगे, जब मनु य
क यही वचारधारा थी क वह कड़े प र म तथा तभा के बल पर ही अपने लए स ता
अ जत कर सकता था। आज से हम सभी यह बात कभी व मृत नह करगे क हम नादान
तु छ ाणी ह और ई र क सव च स ा तथा श के सम हमारा प र म तथा गुण कोई
मोल नह रखते। उसक क णा तथा ेम से ही हमारी भौ तक व आ या मक सफलता
वा हत होती है। य द तुमने कसी अछू त के घर म ज म लया है तो तु ह उसके लए शोक
नह करना चा हए। तुम इस ज म म क का सामना इस लए करोगे य क तुम अपने
पछले ज म म कए गए अनु चत कम का फल भोग रहे हो। अपने कम के कारण ही तुमने
एक शू अथवा अ पृ य के प म ज म पाया है। अपने कत का पालन करो तथा पूरी
न ा से अपने वामी को सेवाएँ दो; अ धक मह वाकां ी मत बनो अथवा अपने व र को
मलने वाले मान-स मान तथा संपदा को दे ख कर ई या का अनुभव मत करो। तुम केवल
अपने वनय के सहारे ही यह सु न त कर सकते हो क असीम क णामयी तथा ववेक
भु तुम पर दया करगे और यह सु न त करगे क तुम अगले ज म म वण अनु म म,
इससे ऊपर के थान म ज म पाओ।

व णु हमारी सामा जक व था के संर क ह। भु ने हम वचन दया था क जब कभी इस


व था के त कोई भय उ प होगा तो वे वयं मनु य प म ज म लगे और धम क
थापना करगे। रावण तथा उसके ारा चा रत आदश, ब त ही ख़तरनाक थे जनसे इस
व था के त संकट उ प हो गया था। वह कहता था क उसने वण-संकर मूल का एक
कृषक लड़का होने पर भी अपनी वीरता, कड़े प र म, साहस तथा ब त थोड़े से लोग के
बल पर संसार के सबसे श शाली सा ा य को न मत कया था। हो सकता है क अनेक
उसक इस अ थायी वजय से चकाच ध भी ए ह परंतु मने ई र म अपना व ास
बनाए रखा। रावण ने जो कुछ भी अ जत कया, आज से वह सब मेरा है। या मने इसके
लए कुछ कया? या मने महान बु मता का आ य लया? या मने ह त, कुंभकण
तथा क जैसे क संग त क ? मने केवल इतना कया क ई र क संपूण व सव च
स ा के त अपना व ास कायम रखा। रावण मारा गया और आज उसके ारा अ जत
येक व तु पर मेरा अ धकार है।

इससे पूव, इस सामा जक व था को न - करने वाले एक और मूख ने यह मान लया


था क सभी मनु य समान थे, उसने भारत के प मी तट पर शासन कया था। आप सब भी
महाब ल को जानते ह गे, जसने मुजूरी से शासन कया तथा व णु क सामा जक व था
को चुनौती द । उस समय वह बलशाली स ाट एक छोटे से ा ण युवक वामन के हाथ
परा त आ, जो और कोई नह वयं व णु जी ही थे, वह व णु का ही अवतार था। रावण
को इससे सबक लेना चा हए था। मने उसे चेताया भी य क वह मेरा भाई था और म अपने
अ ज से नेह रखता था, परंतु वह ब त दं भी था और उसे कभी स परामश लेना पसंद नह
था; वह अपने जीवन म ही इतना त था क उसे मृ यु के त च तत होने का समय ही
नह था। उसने सोचा क उसक सेनाएँ उसक र ा कर लगी। उसने सोचा क उसने अपनी
असुर जा को ब त अ छा जीवन दया था इस लए वे उसक र ा करगे। उसने सोचा क
उसने अपने ारा न मत शव मं दर म महान वा तुकला का प रचय दया था अतः शव
उसक र ा करगे। परंतु जब वह समय आया तो रावण के पास कोई उ र नह था। उसक
र ा के लए उन नधन व आ त के अ त र और कोई नह था, जो उ चत अथवा
अनु चत का भेद तक नह जानते थे।

जब राम आए तो म उनके चरण म गर पड़ा य क मने भु को पहचान लया था। अ य


बु मान तथा ावान य ने ऐसे ही कया, भले ही वह व ण हो अथवा लं कनी या
फर जंबूमाली। और दे खो हम अपने इस वहार के लए या पुर कार मला है। सरकारी
अ धका रय , ापा रय , नगर र क , रावण क सेना तथा अ धकतर लोग को अपनी
मूखता का भान हो गया है और उ ह ने राम के नाम से चलाए जाने वाले इस शासन म मुझे
अपना सहयोग दे ने क वनती क है। मुझे पूरा व ास है क आप सब, जो आज तक रावण
अथवा महाब ल के मूखतापूण आदशवाद व म व ास रखते आए थे, अपने जीवन को
उस प म जीना आरंभ कर दगे, जैसा क हमारी मृ तय म दया गया है। उस सव च
स ा के त पूण आ मसमपण ारा ही मो क ा त क जा सकती है। महान मह ष मनु
ारा प रभा षत धम के नयम, शा त तथा द ह। ये नयम जीवन के येक पहलू को
अपने भीतर समा हत करते ह। ये धा मक नयम ज म से ले कर मृ यु तक तु हारा पथ
दशन करगे।

जो लोग ान का सही तरह से उपयोग नह करना जानते, य द उ ह ान क बाग़डोर स प


द जाए तो यह ब त संकटपूण थ त हो सकती है। असुर ने अब तक सभी को ान बाँटने
क भूल क है और यह वचार नह कया क व अ ानी उस ान को पा लगे तो कैसे
गंभीर प रणाम उ प हो सकते ह। हमने येक मनु य को एक समान मानने क भूल क
परंतु अब से सब कुछ ब कुल अलग होगा। हम इस मूखता को जारी नह रखगे। केवल
पहली तीन जा तय को ही श ा पाने का अ धकार होगा और वह भी पूरी तरह सी मत
होगा य क वे अपने-अपने पेशे के अनुसार ही श ा हण कर सकगे। अ य य क
मु इसी म है क वे पूण न ा व समपण भाव से अपने-अपने वा मय क सेवा कर तथा
अपने कम के प रणाम के त च तत न ह । भगवान व णु ने वयं इन नयम क थापना
क है। जो भी यह मानता है क वह इस नयम म प रवतन ला सकता है अथवा उसे
चुनौती दे सकता है, तो उसे इसके प रणाम वयं ही भुगतने ह गे।”

वभीषण एक ण के लए का और भीड़ को दे ख माथे पर बल डाले। हम सभी पाषाणवत


बैठे थे। फर उसने अपने ह ठ चाटते ए बात को आगे बढ़ाया, “यह धरती ब त भा यशाली
है य क महान भु व णु ने वयं यहाँ अवतार लया। मनु य नय त से इंकार करने लगे थे,
मनु य दे व क स ा को नकारने लगे थे। रावण एक वीर पु ष था परंतु वह दं भी तथा
अंहकारी था और उसने सोचा क वह व णु के समक हो सकता था। भु ने रावण ारा
फैलाए गए अनाचार तथा अधम पर रोक लगा द है। वणा म धम क शां तपूण व था क
पुनः थापना क गई है। अब ऐसा नह होगा क गंद ग लय तथा शौचालय को साफ़ करने
वाला मनु य भी वयं को सं कृत सीखने वाले तथा वेद का उ चारण करने वाले के
समक मानेगा। अब ताड़ी बनाने वाला वयं को रेशम बेचने वाले ापारी के समान नह
मानेगा। अब माट खोदने वाला वयं को लेखाकार के समक नह मानेगा। येक
का अपना थान है और वह अपना थान पहचानता है। मंदोदरी ने वयं आगे आकर यह
मसाल तुत क है क एक स णी वधवा ी का आचरण कैसा होना चा हए।

रानी के साथ जो कुछ भी घटा, वह भा यपूण था और हमारे भु राम ने इसके लए


उ रदायी को द ड भी दे दया है परंतु हमारे लए यह ब त ल जा क बात है क
इस घटना के बाद भी मेरे भाई रावण ने अपनी प नी को वीकार कर लया था। उसने भी
अ य असुर क भाँ त, कसी ी क प व ता व शु ता से जुड़े आचार- वचार का पालन
नह कया। जो कुछ भी घटा, वह उसके बाद भी अपनी प नी को वीकार कैसे कर सका?
परंतु वह कहाँ जानता था क उ चत अथवा अनु चत या है। यह यु य आरंभ आ?
या इस वनाश के पीछे कोई कारण था? वह भु राम क शरणाग त लेने के बाद, इस
वशाल सा ा य का उ रा धकारी बना रह सकता था। मुझे यह कहने म ल जा आती है क
वयं मेरी बहन शूपणखा ने इस यु का आरंभ कया। उसे भी पूरी तरह से दोष तो नह
दया जा सकता। वह हमारी ही स यता क उपज है, जो य को भचारी जीवन जीने
क वतं ता दे ती है। उसने सुंदर व पवान ल मण को लुभाने क चे ा क । कसी वधवा
ारा ेम का यह धृ दशन भला कोई पु ष कैसे सहन कर सकता है। उसने शूपणखा के
नाक व कान काट कर उसे उसके कए क सज़ा द ।

भु ने हमारी न र बहन के लए जो वधान नयत कया था, रावण ने उसे वीकारने क


बजाय, भु राम के व यु छे ड़ने का न य कर लया। इतना दं भ, इतना झूठा
अ भमान! दे खो, आज उसका या ह आ है? मने शूपणखा को हमारे दे श से न का सत
कर दया है। वह मेरी बहन है परंतु म भी एक मसाल कायम करना चाहता ँ तथा अपने
वामी के सामने यह स करना चाहता ँ क असुर ने अपने पुराने तौर-तरीक़ म बदलाव
लाने का नणय कर लया है। मेरे म व ण ने उसे सागर के उस पार बबर के दे श म
न का सत कर दया है। अब वह एक भ ुक तथा नरा त है तथा हाथ म भ ा पा थामे
दर-दर भटकती है। मुझे अपनी बहन के इस भा य पर खेद है परंतु वह इसी क अ धकारी
है। फर मेरे भाई ने भु राम क प नी का अपहरण कर लया। मने ये अफ़वाह सुनी थ क
सीता रावण क पु ी थी और रावण उसके अपहरण ारा उसक र ा करने का य न कर
रहा था। इससे अ धक अ व सनीय बात तो कोई हो ही नह सकती। कोई न न जा त का
असुर कसी दे व क या का पता कैसे हो सकता है? राम रावण क तरह नह ह। उनक य
प नी सीता, जसके लए उ ह ने इतना बड़ा यु कया और इस र रं जत यु म अपने व
अपने लोग के ाण को दाँव पर लगा दया, उसने भी पाप कया है। मुझे पूरा व ास है क
सीता एक दे व राजक या तथा भु राम क प नी होने के नाते पूरी तरह से प व ह। रावण
उनक प व ता अथवा शु ता को भंग करने का साहस नह कर पाया होगा परंतु भु राम
जानते ह क रावण तथा अ य असुर क वासनापूण न त प से उनक प नी क
प व दे ह पर पड़ी होगी। कौन प त यह सब सहन कर पाएगा? भु राम एक पु ष ह, वे मेरे
भाई क तरह नह ह जसने अपनी षत प नी को भी वीकार कर लया था, वे पूरे संसार
के सामने एक उदाहरण तुत करना चाहते ह और सबको अपनी प नी के च र क
प व ता तथा शु ता का माण दे ना चाहते ह। वे अपनी प नी क दे ह तथा आ मा से रावण
तथा अ य य के वासना मक वचार को हमेशा के लए जला कर भ म कर दे ना
चाहते ह।

यह ब त ही वत कर दे ने वाला गत मामला था, परंतु एक दे व राजा सारे संसार के


स मुख एक उदाहरण भी कायम करना चाहता है। दे व असुर क तरह नह ह। वे अ न तथा
जीवन क शु ता म व ास रखते ह। अ न सव च दे व है, जीवन तथा ऊजा दे ने वाली!
अ न सब कुछ शु कर दे ती है। सीता असुर के बीच रह , उनक दे ह पर असुर क
वासनापूण पड़ी और वे अपने प त से एक लंबे समय के लए र रह , इनके साथ ही
यह अफ़वाह भी चा रत रह क वह रावण क पु ी थी; अ न इन सभी क शु कर दे गी।
आप सभी के स मुख, सभी असुर तथा वानर के स मुख, सारे संसार के स मुख, सीता वह
सव च परी ा दग , जसके ारा दे व कसी ी क प व ता व शु ता क परख करते ह –
अ न परी ा। मेरे भाई क चता के समीप जल रही दै वी अ न यह नणय लेगी क माता
सीता कतनी प व ह। य द वे प व तथा शु तो अ न उनका बाल भी बाँका नह कर
सकेगी। य द वे षत तो यह दै वीय अ न उ ह भ म कर दे गी। सारी भीड़ म एक
आतं कत स ाटा छा गया। सारे सर एक साथ राम को दे खने के लए मुड़ गए, जो अपने
ऊँचे सहासन पर आसीन था। वह नीचे क ओर दे ख रहा था और म दे ख सकता था क वह
इस घटना म से बुरी तरह से थत तथा ःखी था। य प उसने फर भी खड़े हो कर यह
नह कहा, “बस ब त आ… मुझे अपनी प नी पर पूरा व ास है।” हनुमान ब त ही
तनाव त तथा घबराया आ दख रहा था जब क वभीषण स तापूवक अपने कत
का पालन कर रहा था। ल मण का चेहरा पीला पड़ गया था, उसने अपने चेहरे पर छाई
ता को यौ रय के पीछे छपाना चाहा, जो हमेशा उसके चेहरे पर दे खी जा सकती थ ।
मंदोदरी एक कोने म, सफ़ेद साड़ी से मुं डत सर को ढाँपे बैठ थी और उसक पूरी दे ह
अ नयं त सुब कय से काँप रही थी।

वायु म चार ओर तनाव ा त था और इसी वातावरण म और वृ करने के लए ही जैसे


आकाश म बजली भी गरजने लगी। म दे ख सकता था क तूफ़ान से घरे काले बादल बड़ी
तेज़ी से हमारे प क ओर आ रहे थे। अब सूरज म कोई तपन नह थी, वह घने काले
बादल के बीच एक पहले छोर सा दख रहा था। वायु के ती झ क ने ना रयल के वृ
को झुमा दया। और बड़ी-बड़ी लहर, सागर तट पर खड़ी च ान से पछाड़ खाने लग । जब
वे सीता को घसीट कर उस द अ न क ओर ले जाने लगे तो लोग उठ खड़े ए। पहले
उसने तरोध कया तथा अपने प त से बचाव क गुहार भी लगाई परंतु जब उसे यह
एहसास आ क वयं उसके प त, उसक प व ता के माण के लए यह अ न परी ा
चाहते थे, तो उसने एकदम ह थयार डाल दए तथा दयनीय से उ ह दे खा। राम ने आँख
फेर ल और सीधा दे खने लगा, वह अपनी प नी से परे, सभी सै नक से परे, हमसे भी परे,
तज पर थत कसी सु र ब को ताक रहा था। उसके ने म अ ु उमड़ आए। उसके
व यौ रयाँ चढ़ाए खड़े ल मण के समीप ही ा ण पुरो हत ने सं कृत म अपना मं ो चार
आरंभ कर दया था जसके शोर म भीड़ के उ साही वर, मंदोदरी तथा अ य य क
सुब कयाँ कह डू ब कर रह ग ।

वह सागर तट पर, असुर का नवद त राजा तथा राम का आ त भ , हाथ म जलती


मशाल थामे खड़ा था और उसके होठ पर संतु दायक मु कान खेल रही थी। उसके स मुख
असुर का श शाली स ाट अपनी चता पर मृत पड़ा था, जसक दे ह को पशु ने आधा
खा कर याग दया था और सर सड़े ए धड़ से वहीन था। उसके समीप ही वह अ न
अपनी हज़ार भुजा के साथ धधक रही थी, जो जानती थी क प व ता क परख कैसे
क जाती है?

असुर सै नक ने सीता को वभीषण के समीप छोड़ा तथा पीछे लौट गए। भीड़ क उ सुकता
सातव आसमान पर थी। उ ह ने आज से पहले ऐसा तमाशा कभी नह दे खा था। सूय उस
लाल सागर म वलीन हो चुका था जो बार-बार ऊपर-नीचे उछाल मार रहा था। आकाश म
गहरे काले तथा पहले बादल मँडरा रहे थे, ज ह ने बड़े ही तथा व च प वाले
सरीसृप जैसे आकार ले लए थे, और सूया त के रंग के वै व य को त ब बत करते ए
इतरा रहे थे। “इसके साथ ही म रावण के व बुराई से भरे सा ा य का अंत कर ँ गा।
इसके साथ ही म उस क धृ ता को दं डत क ँ गा जसने दे व को चुनौती दे ने का
साहस कया। इसके साथ ही, म एक रा स के छल से भरे जीवन व सा ा य का अंत कर
ँ गा, जसने हमारे संसार को लगभग न ही कर दया था। ी राम क जय हो…!”

वभीषण ने गजना करते ए अपने ाता क चता को मुखा न द , और तभी वषा आरंभ
हो गई। म रावण को राख म प रव तत होते दे खता रहा, जब एक गहन व असामा य वेदना ने
मुझे जकड़ लया। एक युग का अंत हो चुका था। वानर क ओर से एक वृहद वजयनाद
आ, जब क असुर के म तक ल जा से झुक गए। सीता अपने पता क जलती चता के
स मुख भावहीन मु ा म खड़ी थी, वह अपने ही ःख तथा कपट से भरे संसार म खोई थी।

“असुर के राजा के प म, म घोषणा करता ँ क यह दन तवष, भारत के येक ाम


म, वजय दवस के प म मनाया जाएगा। इस दन, येक ी, पु ष तथा बालक को यह
याद करना चा हए क कस कार भु व णु के अवतार, अयो या के ी राम चं ने रावण
नामक बुराई पर वजय ा त क थी। त वष इस दन, भारत के येक ाम, सड़क तथा
घर म रावण हज़ार-हज़ार मौत मारा जाएगा…।” वभीषण ने उ सा हत होते ए जलती
मशाल को आकाश क ओर उठा दया और कुछ असुर तथा वानर सै नक उसके साथ ँकार
भरने लगे।

आकाश म ु बजली कड़क और बूँदाबाँद होने लगी। चता से उठता मोटा काला धू
काँपते ए वायु म नए-नए प लेने लगा। “अब शु ता क परी ा होगी। हमारे आदरणीय
तथा य वामी राम क प नी सीता अ न परी ा दग ।” वभीषण ने घोषणा क । एक
असुर ने जलती चता म और घी डाल दया जससे वह मारे रोष के गने वेग से धधक उठ ।
लपट ऊँच उठ और वायु म कड़-कड़ क व न होने लगी। हम सभी बड़ी उ सुकता व भय
के बीच यह तमाशा दे ख रहे थे, सीता ने संकु चत होते ए उस धधकती ई अ न को दे खा,
जसम वेश कर, उसे अपने प त के स मुख अपनी प व ता क परी ा दे नी थी। उसने राम
क ओर दे खा और उसक नज़र से नज़र मलानी चाह परंतु यह दे वता तो अ य दे वता
क भाँ त ही था, जब भी इनक आव यकता सबसे अ धक होती है तो ये मनु य से मुँह फेर
लेते ह। वभीषण अधीर हो उठा और अ न म घी क अ धक मा ा डालने का आदे श दया।
सीता कुछ ण तक वह खड़ी रही। फर धीरे-धीरे वह धरती पर ढे र हो गई। भीड़ म एक
व च सा स ाटा छाया था। या वह इस परी ा से पीछे हट गई थी?

मने गु से से कहा, “यह कैसी मूखता है! भले ही वह प व न भी हो, तो भी धधकती अ न


म वेश ारा इसे कैसे मा णत कया जा सकता है? अ न कसी प व अथवा अप व या
गुणी या अवगुणी म भेद नह कर सकती।”

मेरे समीप बैठे पु ष ने गु से से कहा, “तो, तू अ ानी कसान, तू अ न के बारे म सब कुछ


जानता है? व ान ा ण ने इसके वषय म यही कहा है। हम उनक बात पर चह
लगाने वाले कौन होते ह?” य प कुछ लोग संदेह त थे परंतु अ धकतर ने उसक बात के
समथन म हामी भरी। इन मूख से वातालाप करते ए, वहाँ के कुछ य भी दे खने से छू ट
गए थे।

सीता उठ खड़ी ई। भीड़ ने दोबारा भाँप लया क कुछ नया घटने जा रहा था। फर वह
अक मात जलती अ न क ओर दौड़ी। या हमने सही सुना था या यह मेरी क पना थी? म
आज भी इस वषय म न त प से नह कह सकता। या उसने अ न म कूदने से पूव
च ला कर अपने पता को पुकार था, ‘ पता ी…’ सारी भीड़ म ऐसा स ाटा था क सुई भी
गरे तो पता चले परंतु उसी समय मानो आकाश रो दया और मूसलाधार पानी बरसने लगा।
वायु एक तूफ़ान म बदल गई थी और ना रयल के वृ बड़े ही वेग से झूमते ए दोहरे होने
लगे। लंबे प े इस तरह झूम रहे थे मानो कसी डू ब रहे क भुजाएँ ह और वह ाण
र ा के लए हाथ-पैर मार रहा हो। अ वाभा वक प से अंधकार सा हो चला था और बीच-
बीच म कड़कने वाली बजली के काश म सभी भू तया साय जैसे दख रहे थे। सारी भीड़
अपने मृतक राजा क चता क ओर बढ़ और शी ही अ नयं त हो गई। नगर र क ने
लोग को पीछे क ओर धकेलना चाहा और चार ओर अफ़रा-तफ़री मच गई। हमने दे खा क
हनुमान अ न वेद से सीता को राम क ओर ले जा रहा था। वह बेजान दख रही थी परंतु
मेरी अनुभवी आँख ने भाँप लया क वह जी वत थी। तो इस कार यह नणय हो गया क
वह पूरी तरह से प व थी। वह अ न परी ा म सफल रही।

मुझे वह समय याद आया, जब मने व य के वन म उसे अपने हाथ म थामा था, असुर
मं य ने मुझे जीवन पी न ही सी पोटली दफ़नाने के लए द थी। मेला समा त होते ही
भीड़ भी छँ ट गई य क मुख नायक ग म अलोप हो गए थे, उ ह भी तो रात को वजय
के उपल य म द जा रही दावत का आनंद लेना था। म वह खड़ा भीड़ म भीगता रहा और
जब लोग जा चुके तो म धीरे-धीरे रावण क चता क ओर बढ़ा। वषा तो अब भी हो रही थी
परंतु अब उसका वेग इतना अ धक नह था। चता क दशा शोचनीय थी। वह भ म तथा
क चड़ का ढे र बन चुक थी। उसम ह य के छोटे टु कड़े और अधजली खोपड़ी दखाई दे
रही थी। म वह खड़ा रहा, समझ नह आ रहा था क या क ँ । फर मने ठोकर मार कर
महान असुर स ाट के अवशेष को, सागर क उ ाल तरंग के हवाले कर दया। कुछ ही दे र
बाद, म घर लौटा तथा सो गया।
50 नए जीवन का अंकुर


रावण क मृ यु के बाद के माह, असुर के जीवन म कसी भयंकर अव ध से कम नह थे।
जा त अनु म के लए ब त म का वातावरण था और जा त से जुड़े अनेक संघष तथा
ववाद उ प हो जाते। येक प रवार ने वयं को अपने-आप उस जा त से जोड़ लया था,
जो उनके अनुसार आगे चल कर शखर तक आ सकती थी। य द यह चार वण के आधार
पर प वग करण होता, तो कसी क जा त के वषय म जानना इतना क ठन न
होता। यह तारत य या अनु म इतना क ठन न होता, इसके सुप रभा षत होने से, या तो
इसका पालन करता अथवा इसके वपरीत लड़ता। म नह जानता क जा त व
उपजा तय के वभाजन का यह काय कसी बु मता क उपज था या इससे और अ धक
म ही उ प आ। इसने हमारे समाज को लाख ह स म वभा जत कर दया था जसम
ा ण न त प से शखर पर थे। मुझे यह जानने म लगभग तीन माह लगे क म धोबी
जात से संबंध रखता था, जो क सुनार व बढ़ई आ द जा त से भी न न मानी जाती थी परंतु
यह घुम कड़ लोकगायक , लकड़हार व कु हार आ द से तो उ च ही थी। जब उ च जा त
के लोग कसी माग से जाने का नणय लेते तो मुझे वहाँ से नकलने क अनुम त नह थी।
परंतु य द कोई कु हार मेरे माग म आ जाता तो मुझे उसे ठोकर मार कर र करने का पूरा
अ धकार था य क उसने मेरे माग म आने का ःसाहस कया था। य द म कसी लकड़हारे
को पश कर लेता तो मेरी प व ता खं डत होती परंतु य द म कभी कसी बढ़ई को पश कर
लेता तो उसे अप व कर सकता था। सबसे नचले पायदान से संबंध रखने वाली कोई भी
जा त सड़क पर नह चल सकती थी, अ छे व धारण नह कर सकती थी, अ छे घर म
नह रह सकती थी और उसे दे वालय म वेश क अनुम त भी नह थी। यह सब शेष तीन
वण के लए ही आर त था। इस तं म सब कुछ नयत था और उ च जा त का
अपने से न न जा त के अपमान का पूरा अ धकार रखता था। मुझे अपने से उ च जा त से
मली कसी भी तरह यं णा या अपमान को सहना होगा य क मुझे अपने से न न जा त
को सताने का पूरा अ धकार था। और फर हतो सा हत असुर जा नधनता क मार से भी
दोहरी होती चली गई।

लगभग नौ माह प ात, द ण भारत तथा इसके प म भारी भ पड़ा। सारा ापार
ठ प पड़ गया था य क ा ण ने घो षत कर दया था क सागर का काला पानी लाँघने से
क जा त चली जाएगी। ापारी वग ने, हाल ही म ा त सु वधा को खोने के भय
से, सागर पार जाने से इंकार कर दया और शी ही चीन के ापा रय तथा पीले बाल वाले
बबर ने मसाल तथा प र कृत व तु के ापार को अपने नयं ण म ले लया। एक ऐसा
समय आया, जब खाने के लए भी कुछ शेष नह रहा। परंतु वभीषण के कर सं हकता उन
लोग के मुख से आ ख़री ास तक छ नने म संकोच नह करते थे, जनका सरकार के त
कुछ भी दाय था। केवल एक ही ऐसा था जो रसते बाँध तथा नहर का तं सही
करने के लए कोई चम कार कर सकता था और ामीण इलाक़ म कृ ष काय पुनः आरंभ
करवा सकता था परंतु पगला वै ा नक मय, अब लौह ंखला म जकड़ा एक बंद था,
जसे एक कारागार म डाल दया गया था। ा ण ने उसके सभी स ांत का उपहास
कया और घोषणा कर द क उसने जो कुछ भी ा त कया था, वह न त प से असुर
के काले जा के बल पर ा त कया गया होगा। नःसंदेह यह ब त ही बुरा समय था। मृ यु
के अ त र बचाव का कोई उपाय नह सूझता था। य द हम पूरे स ताह म एक बार पूरा
भोजन मल जाता तो हम वयं को भा यशाली मानते। केवल एक ही अ छ बात यह थी क
मने लकड़ी के ल तथा रावण क मृ यु के बाद होने वाले उप व के दौरान चुराए गए
सामान क मदद से एक छाजन वाला घर बना लया था। मने रावण क मृत दे ह से उतारे गए
आभूषण अपने घर के भीतर ही धरती म दबा दए थे। मुझे उ ह वहाँ से नकालने म भय का
अनुभव होता था। धोबी जात के कसी के पास इतनी संपदा होने क अपे ा नह क
जाती थी। वभीषण ने अपने शासन काल के पहले ही स ताह म, नचली जा तय क कसी
भी गत संपदा को छ नने का आदे श दे दया था परंतु मेरी तरह, ब त से लोग पहले ही
अपना धन तथा आभूषण कसी सुर त थान म गाड़ चुके थे। जब सब कुछ समा त होता
जान पड़ रहा था तो एक अफ़वाह के प म, आशा क न ही सी करण सामने आई। व ण
लोग को अवैध प से सु र पूव के दे श म प ँचा रहा था। व ण जैसे लोग को कोई भी
धम ंथ अथवा ा ण छू नह सकते थे अथवा उसे ब ह कृत नह कर सकते थे। भले ही
राम का शासन हो या रावण का अथवा कुबेर का, उसे धन कमाना आता था। वह केवल एक
ही दे वता क पूजा करता था – धन! पहले-पहल म इस वषय म संदेह त था परंतु जब
भूख क तड़प बढ़ती चली गई और मेरी ी क टोका-टाक असहनीय होने लगी, तो मने
भी एक दाँव आज़माने क सोची। य ही मने भी वास क इ छा कट क तो एक दलाल
मेरे लए यह बंध करने को राज़ी हो गया।

दलाल संभवतः मेरी ही आयु का अधेड़ पु ष था परंतु चूँ क उसने मेरी तरह नधनता व भूख
का सामना नह कया था, तो उसे म कोई बूढ़ा काका ही लगा होऊँगा। मुझे यह जान कर
ब त खीझ ई और मेरी प नी के लए यह कौतुक का वषय रहा क वह मुझे बार-बार
काका कह कर ही पुकारे जा रहा था। वह एक सरकारी अ धकारी था जसने कुबेर के
शासनकाल म अपना पद संभाला था और अब वह वभीषण के शासन म एक व र
अ धकारी था। उसने दावा कया क वह ब त ही उदार वचारधारा रखता था और जा त के
लए बने नयम के बारे म कोई ब त अ छ सोच नह रखता था। य प, वह अपनी प नी
क बात का मान रखने क खा तर मेरे घर म वेश नह करना चाहता था य क जा त
अनु म के अनुसार वह मुझसे थोड़े ऊँचे पद पर था। उसने कसी भी कार का जलपान
हण करने से भी इंकार कर दया य क उसक प नी कभी इस बात के लए हामी न दे ती
क वह कसी धोबी के घर कुछ खा-पी कर आए। म अंदर ही अंदर उबलने लगा पर मेरी
प नी शांत दखाई द । वैसे भी हमारे पास उसे खलाने के लए कुछ था ही नह , तो जा त
क शु ता बनाए रखने के आ ह ने हम थोड़ी ल जा व अपमान से बचा लया।

हम नद के समीप इमली के पुराने वृ तले मले। वह पेड़ क उभरी ई जड़ पर बैठा था


और फर भाड़े के लए ख चतान होने लगी। हाथापाई क नौबत आने ही लगी थी क प नी
मुझे एक कोने म ले गई और दमाग़ को शांत रखने के लए कहा।

म बेमन से घर लौटा और करीब आधे घंटे तक खोदने के बाद रावण के आभूषण नकाल
लए। म बड़े ही भारी मन से वे आभूषण ले कर उसके पास लौटा और काँपते हाथ से उ ह
उसके हाथ म रख दया। चाँद क रोशनी म जगमग करते आभूषण को दे ख उसक आँख
चमक उठ । नौकरशाह मेरी प नी से आम बात क चचा कर रहा था क कसी म यमवग य
प रवार के लए जीवन तीत करना कतना क ठन होता जा रहा था, महँगाई कस कदर
बढ़ गई थी, श ा पर भी कतना य होने लगा था आ द। उसने बात ही बात म पोटली के
वज़न को हाथ से तौला और इसके बाद तो उसक स ता दे खने यो य थी। सब कुछ तय
हो गया था। दो ही दन के भीतर, एक छोट ड गी हम, उस बड़े पोत पर ले जाएगी जो, गहरे
सागर म लंगर डाले खड़ा है। हम बस वहाँ तक प ँचना था और फर उसने पूरा आ ासन
दया क हम सु र पूव के लए पहले दज़ क या ा सुलभ हो जाएगी।

माला और म, नद के कनारे खड़े इमली के वृ तले, कसी ेमी- े मका क तरह हाथ म
हाथ लए खड़े, नद के वा हत होने क ममर व न सुन रहे थे तथा वायु के साथ वा हत
हो रही मोगरे क गंध को अनुभव कर रहे थे। संभवतः जीवन हम एक और अवसर दे ने जा
रहा था। कौन जाने?

पूरे दो स ताह तक ती ा करने के बाद ड गी नह आई और म मारे चता के अधमरा हो


गया। म दो बार पैदल चल कर उस कायालय तक भी गया, जसका पता उस मोटे अ धकारी
ने दे ते ए कहा था क वह वहाँ काम करता था परंतु दोन बार उससे भट नह हो सक । और
फर जब म लगभग मायूस हो चला था तो एक दन गहरी अंधकार से भरी रा म, कसी ने
दरवाज़े पर हौले से द तक द । मने एक और द तक क ती ा क । जब दोबारा आहट ई
तो मने ार खोला और द पक के मंद काश म एक अ धकारी का चेहरा दे खा। उसने खीस
नपोरते ए मुझे बाहर आने का संकेत कया। मने ार खोला तो उसने मेरे हाथ म एक
ताड़प थमा दया। वहाँ अंधकार म दो-तीन साए और भी दख रहे थे।

मने भीतर जा कर अपनी प नी को जगाया। जब उसने सुना क वग जाने के लए अनुम त


प आ गया था तो वह उमग उठ । उसने झट से हमारा सामान बाँध लया। भला साथ ले
जाने वाला सामान था ही कतना? उसने सब कुछ कपड़े क एक पोटली म रखा और मेरे
साथ बाहर आ गई। हम नद क ओर बढ़े , जहाँ एक ड गी हमारे लए ती ा कर रही थी।
ड गी म तीन अ य जोड़े तथा एक साधु उप थत था। हम चुपचाप ड गी म बैठ कर ती ा
करने लगे। करीब आधे घंटे बाद एक और दं प आ प ँचे और उस मोटे ने हाथ हला
कर हम सबको अ भवादन कया। ड गी धीरे-धीरे नद के मुहाने क ओर बढ़ चली। लंका,
वह भू म जसे मने अपनाया और अपने जीवन का अ धकांश भाग तीत कया था, वह
धीरे-धीरे हमारे ने से ओझल होती जा रही थी। म मृ तय के भार तले दबने लगा और
कंठ अव हो गया। म उन लोग क भीड़ के बावजूद कतना अकेला था, वे सब भी
अपने-अपने वचार तथा व म खोए थे।

कुछ री पर जाने के बाद एक वशाल पोत दखाई दया। धीरे-धीरे ड गी उस जहाज़ तक


जा प ँची। इसके एक छोर पर र सी क सीढ़ लहरा रही थी। हम सब एक-एक कर, उस पर
चढ़े । हम उस वशाल पोत क छत पर खड़े ती ा करने लगे क कोई आकर हम हमारे
पहली ेणी के क तक ले जाएगा। कुछ दे र बाद, एक कमचारी जैसा दखने वाला
हाथ म ताड़प लए आया। उसने सबके अनुम त प जाँचे और उनके अनुसार उ ह उनके
क म भेजा जाने लगा। म उस युवा जोड़े से बात कर रहा था और बात ही बात म पता
चला क वे नव ववा हत थे। बादाम जैसे ने वाली युवती थोड़ी शम ली थी और युवक भी
सुंदर व भोला-भाला था। उ ह ने ना रयल के कुछ वृ बेच कर इस या ा का बंध कया
था। उस युवती का नाम आरसी तथा युवक का नाम शव था। जब करानी हमारी ओर आया
तो हमने अपनी बातचीत वह रोक कर, बड़े ही आदर भाव से अपने अनुम त-प दखाए।
उसने भव चढ़ कर पूछा, “कौन जात हो तुम?”

“तु ह इस बात से या अंतर पड़ता है?” शव खीझ गया।

“तुम लोग काले रंग के अस य दख रहे हो। बेशक तुम नीच अछू त जात के होगे। म तु ह
साथ नह ले जा सकता। सरे उ च जा त के या ी आप कर सकते ह।”

“इस बात से तु हारा या मतलब है क तुम हम साथ नह ले जा सकते। हमने या ा के लए


पूरा भाड़ा दया है।” इससे पहले क शव अपनी मूखता या उ जड़पन म आकर, कुछ और
बकता, मने मामले को संभालना चाहा।

“म कुछ नह जानता। लगता है क कोई गड़बड़ ई है। जब तुम अपनी राजधानी के


कायालय म जा कर अज़ दोगे तो वहाँ से छह माह के भीतर ही तु हारा धन वा पस कर
दया जाएगा। मुझे मा करना परंतु म तु ह साथ नह ले जा सकता। तुम नीचे उतर सकते
हो य क ड गी अभी गई नह है अ यथा तु ह मजबूरन तैर कर वा पस जाना होगा।”

करानी अपने क म जाने के लए मुड़ा।


“मुझे अपने कंठ का हार दे ।” माला ने उलझन म खड़ी आरसी को कहा। आरसी ने बेमन से
अपनी आ ख़री बेशक मती चीज़ उतार कर माला के हाथ म स प द । माला ने उसे मेरे हाथ
म दे ते ए, हौले से कहा, “उसके पर म पड़ जाओ। कुछ भी करो पर हालात को संभाल
लो। हम वा पस नह जा सकते।”

मुझे कमचारी तक प ँचने के लए लगभग छलाँग लगानी पड़ी और म जा कर उसके पैर म


गर गया। “तुम या कर रहे हो?” उसने मुझे सरी लात से एक ज़बरद त ठोकर दे मारी।
“तूने मुझे छू कर अप व कर दया। तेरी इतनी मजाल! हट, हट पीछे … म कहता ँ, पीछे
हट, कमीने बूढ़े!”

परंतु मने उसके पैर नह छोड़े। म अपने सबसे दयनीय वर म च लाया, “ वामी, मेहरबानी
करके हम अपने पोत से न उतार। हम वा पस नह जा सकते। हम आपक छत क सफ़ाई
करगे, शौचालय क सफ़ाई कर दगे परंतु मेहरबानी करके हम साथ ले चल। हम यहाँ छोड़
कर न जाएँ। हम पर दया कर। आप हमारे भगवान ह। म आपके लए यह छोट सी भट
लाया ँ। दया कर वामी, दया कर…।” मने हार को ऊँचा उठाया ता क वह उसे आसानी से
दे ख सके। जब उसने उसे दे खा तो सारी शु ता व प व ता भूल गया और बड़ी फुत से उस
हार पर लपका। म उठ खड़ा आ और दोन हाथ छाती पर बाँध कर खड़ा हो गया, मेरी
दोन हथे लयाँ बगल म दबी थ और पीठ वनीत भाव से झुक ई थी। मेरे सा थय को भी
संकेत समझ आ गया और वे भी पूरे वनय के साथ उसी मु ा म नतम तक हो खड़े हो गए।

उसने एक बार फर से ताड़प म झाँका और हार को अपनी जेब के हवाले कया। फर हम


पर एहसान करते ए बोला, “सबसे नचले तल पर चले जाओ। म सह क नगरी म जाने
तक तु हारे भ े व बदसूरत चेहरे नह दे खना चाहता। रसोई के फ़श बुहारो, मैले व धोओ
और शौचालय क सफ़ाई करते ए, हमारे कुछ काम आओ। चलो, अब दफ़ा हो जाओ यहाँ
से!”

यह कहते ही उसने मुझे नचली सीढ़ क ओर धकेल दया, जो नचले तल क ओर जाती


थी। सावधान रहना, हमम से कसी क भी आँख के आगे मत पड़ना। बाक लोग भी मेरे
पीछे भीतर आ गए। सबसे नचले तल पर ब त अंधेरा व गंदगी थी और वहाँ रसोई से सड़े
याज व लहसुन क गंध आ रही थी।

व ण के जहाज़ पर काम करते-करते हमारी कमर लगभग दोहरी हो गई। हम लगातार बतन
माँजते, फ़श चमकाते, कपड़े धोते तथा मल से भरे पीपे समु म खाली करते रहते। हम
सूरज क रोशनी तक के भी दशन नह होते थे और इस कड़ी मेहनत व नचले तल क
उठापटक ने हम बुरी तरह से रोगी बना दया। अंततः, करीब एक माह क या ा के प ात,
हमने ऊपरी तल से लोग के हष लास का वर सुना। वे लोग धरती दखाई दे ने का ज
मना रहे थे। हम भी रग कर ऊपरी तल तक आ गए और सूरज क रोशनी ने आँख को बुरी
तरह से च धया दया। वह एक नद का मुहाना था और उसके दोन ओर घनी ह रयाली से
भरे वन दखाई दे रहे थे। जहाँ तक नज़र जाती थी, वृ के झुरमुट थे। जैसे ही जहाज़ ने
एक चौड़ी नद म वेश कया। एक लंबा, काला तथा वशाल मं दर दखाई दे ने लगा। हमने
कभी इतनी चौड़ी नद नह दे खी थी। उसे दे ख कर हमारी रग-रग म उमंग दौड़ने लगी। शी
ही जहाज़ एक बंदरगाह पर का, जहाँ सफ़ेद शरोव वाले व च से दखने वाले लोग
सामान चढ़ाने व उतारने लगे। कमचारी ने हम दे ख कर खीस नपोर और नीचे जा कर भीड़
का ह सा बन गया। कुछ दे र के म के बाद, हमने तय कया हम उसी जगह उतर जाएँग।े
वहाँ पहले से लोग क कतार बंधने लगी थ । मने पहले कुछ लोग से पूछा क या वह पूव
म सह नगरी थी। वे लोग मुझे खाली-खाली नज़र से ताकते रहे परंतु मुझे अपने जैसा काली
चमड़ी वाला एक मल गया और म साहस जुटा कर उससे बात करने लगा। वह दो
लंबे व गोरी चमड़ी वाल से बात कर रहा था इस लए म अपनी बारी आने क ती ा करने
लगा। फर मने उससे त मल भाषा म पूछा क या वह सह नगरी थी। उसने मुझे इस तरह
घूरा मानो म बौरा गया होऊँ और फर बोला, “ या तुम कमअ ल व ण के जहाज़ से यहाँ
तक आए हो।” हमने एक- सरे को दे खा और हमारे दय मारे भय के जड़ हो गए। “ य
वामी, आप ऐसा य पूछ रहे ह…?”

उस काली चमड़ी वाले ने अपने गोरे सा थय से सं कृत म कुछ कहा और वे सब


खल खलाने लगे। फर वह मेरी ओर मुड़ कर बोला, “तुम लोग कस जा त के हो?”

“धोबी, वामी!” मने उ र दया। य प मुझे यह प का पता नह था क शव तथा आरसी


कस जात के थे।

“अब समझ आया क तुम लोग इतने बेअ ल य हो? यह तो दे वी काली क नगरी है।
व ण ने तु हारे साथ भी वही कया है, जो वह पहले भी कई लोग के साथ कर चुका है।”

आरसी ने एक चीख़ मारी और वह बैठ कर अपनी छाती पीटने लगी। माला भी उसके
वलाप म शा मल हो गई। म अंदर ही अंदर नपुंसक ोध से उबलने लगा। आँख से अ ु
रोके नह के और म भी रोने वाली औरत के दल म शा मल हो गया। शव ल जत भाव से
उस के हाथ-पाँव जोड़ने लगा क वह हमारी सम या का कोई समाधान नकाल दे ।
उसने हम परे धकेलना चाहा परंतु शव अपने हठ पर अड़ा रहा। अंततः उस काली चमड़ी
वाले ने अपने म को वदा द । फर वह हमारी ओर मुड़ कर च लाया क हम रोना बंद
कर ता क वह कोई हल सुझा सके। अंत म उसने कहा, “दे खो म ! यह एक छोटा शहर है।
हो सकता है क तु ह यहाँ कोई काम मल जाए परंतु उ र-प म क ओर, इससे एक बड़ा
रा य थत है। वहाँ राजा राम का शासन है। वह नगर अब फल-फूल रहा है और तुम सरीखे
कु लय को वहाँ आराम से काम मल सकता है। मने सुना है क वहाँ मज री भी अ छ
मलती है। तुम वहाँ अपना भा य आज़मा सकते हो। सरयू नद के रा ते, चावल के बोर से
लद एक नाव अयो या जा रही है। उसका मा लक एक ापारी है, जो द ण से आया है।
म उससे बात क ँ गा और अगर तु हारी क मत अ छ ई, तो तु ह थोड़ा थान मल
सकता है। आज रात के लए, काली मं दर के पास एक जगह है, जहाँ वे नधन को
नःशु क भोजन दे ते ह। वहाँ भोजन करो और ातःकाल चावल घाट पर आ जाना। अब जो
हो गया, उसके लए आँसू मत बहाओ। संभवतः इसी म तुम लोग क कोई भलाई छपी
हो।” यह कह कर उसने काली मं दर क दशा म संकेत कर दया।

“और आगे वाले माग से मत जाना। उस माग से अछू त का वेश व जत है, पीछे वाली छोट
पगडंडी से जाना।” वह छोट सी नाव म सवार हो कर नद म जाते ए च लाया।

हमने वह रात काली के मं दर म काट , हम भूखे नह रहे। दे र रात, मं दर म ही पेट भरने का


जुगाड़ हो गया था। म सो नह सका य क पास के वन से चीत के वर सुनाई दे रहे थे
और म छर नरंतर कान म अपना संगीत बजा रहे थे। म अयो या के वषय म भी उ सुक
था। जब राम ने अपनी प नी तथा भाई के साथ अयो या के लए पु पक वमान म थान
कया था, उस बात को लगभग एक वष होने को था।

पौ फट तो हम धान क खेप से भरी नाव पर सवार हो कर, अयो या क ओर चल दए। हम


तीन दन बाद, राम के रा य म प ँचे। जब म करीब तीन दशक पूव, रावण क सेना के साथ
आया था तो वह थान कसी छोटे से ाम जैसा दखता था परंतु अब तो ब त कुछ बदल
गया था। य प उसक तुलना कोट या अपने समय म सव े रह चुक मुजूरी से तो नह
क जा सकती थी परंतु अब वहाँ समृ क झलक दखने लगी थी।

हम यहाँ-वहाँ भटकते रहे और मन म यही भय समाया था क कह भूल या असावधानीवश


जा त से जुड़ी कोई वजना न तोड़ बैठ या कसी ऐसे थान पर न चले जाएँ जो हमारी जा त
के लए न ष हो। सभी संकेत च ह सं कृत म थे और लोग जो भाषा बोल रहे थे, उसे
समझना हमारे वश के बाहर था। हम ब त ही ोध से धकेला गया और शी ही हम नगर
र क क नज़र म आ गए। हम थानीय कोतवाली म ले जाया गया, जहाँ उ ह ने हमसे
व भ कार से पूछताछ करनी चाही। राम के नगर र क भी रावण के नगर र क जैसे ही
तो थे। उ ह ने मुझे ला ठय से पीटा, शव को ठोकर से मारा, जब क याँ रोती- च लाती
रह ।

अंततः वे अपने साथ एक को लाए जो सड़क के सरी ओर अपनी कान चलाता था


और हमारी भाषा बोल सकता था। हमने उससे कहा क हम भूल से अयो या म आ गए थे
और उसने वा य का अनुवाद उ ह सुना दया। वे लोग हमारी मूखता पर हँसे और जब दल
खोल कर ठहाके लगा लए तो कान वाले से कहा गया क वह हमारी जा तय के वषय म
पूछ कर बताए। जब उ ह ने यह सुना क हम धोबी जात के थे तो उ ह ने उससे कहा क वह
हम वहाँ छोड़ आए, जहाँ हमारी जात- बरादरी वाले रहते थे। उस ने आनकानी क
य क शायद वह अपनी कान नह छोड़ना चाहता था परंतु जब उसे फटकार पड़ी तो एक
ण म जान गया क उसके लए या करना अ धक मह व रखता था।

धो बय क ब ती, उ र म सुु र, नद के कनारे थत थी। उस ने हम ब ती दखाई


और इससे पहले क हम उसका शु या अदा कर पाते, वह ओझल हो गया। ब ती भी
अपने-आप म कसी नगर से कम नह थी। वहाँ तो सभी जा तय के लोग दखाई दे रहे थे –
असुर, नाग, क र, गंधव, कोयले जैसे काले बबर, पीली वचा वाले चीनी, ठं डे दे श से पीले
बाल वाली बबर जा तयाँ तथा कई म त जा तयाँ। परंतु वे सभी एक ही जा त से संबंध
रखते थे। अब वे सभी धोबी थे। यहाँ उ र म जा त था ब त ही ाचीन तथा गूढ़ थी।
नचली जा त म ज मे के लए यह आव यक नह था क वह अपने माता- पता से ही
मलता-जुलता हो। हज़ार वष से यह वंश आपस म घुल- मल गए थे परंतु इसके बावजूद
अब भी वे सभी धोबी ही थे। एक तं वक सत कया जा चुका था तथा जा त का मु खया
ही यह तय करता क जा त के लए या सही था, इस कार वह जा त के लए कसी राजा
के समान होता। हम मु खया के पास ले जाया गया। उसने औपचा रक पूछताछ के बाद हम
नद के पास रहने के लए एक कु टया दे द । हमारी मा सक आय का दसवाँ ह सा जा त के
कोष म जाता था, जस पर न त प से उसी बूढ़े का क ज़ा था। हम शकायत नह कर
सके य क हम अपने सर पर छत तथा दो जून रोट क स त आव यकता थी। हमने
अपनी कु टया म क़दम रखे और अयो या म नए जीवन का ीगणेश कया।

दे व के दे श म कसी भी कार क जल नकासी व था या बंद ना लय का ावधान नह


था और हम नद के कनारे, खुले थान पर ही शौच से नवृ होना पड़ता। जस नद के
पास सभी मल-मू का याग करते तथा भस को नहलाया जाता, उसे प व माना जाता था
और पूरे नगर के लए पेयजल क व था उसी थान से क जाती थी, जहाँ हम नगर के
मैले व धोते थे। धीरे-धीरे हमारा जीवन अपनी लय व ताल पर चलने लगा। हमने सं कृत
सीख ली और शी ही अपने पड़ो सय से वातालाप करने म स म हो गए। जब तक हम
अपने थान पर टके थे और उससे अ धक कुछ बनने क मह वाकां ा नह पालते थे, तब
तक दे व क यह जा त- था हमारे लए ठ क थी। सरकार मु खया से अपना कर वसूलती
और वह अपने ह से के लए सौदे बाजी़ करता। कसी भी नगर र क अथवा सरकारी
अ धकारी ने कभी धो बय क ब ती म वेश नह कया था। कु हार तथा जुलाह के ाम
म भी ऐसा ही था।

पखवाड़े म एक बार, हम नगर के बाहर थत हाट म जाते और जो भी ज़ रत क चीज़


होती, उसे ले आते। जीवन ब त ही सादा व सरल था। इसम कसी भी तरह क अराजकता
तथा असुर के नगरीय जीवन क भाँ त त पधा नह थी। जा त था ू र थी और नचली
जा तय को अमानवीय प से अपमा नत कया जाता था, परंतु अपनी ही जात- बरादरी के
ाम के भीतर, व च कार क समानता का भाव था, संभा वत प से मु खया के प रवार
को अपवाद माना जा सकता था। ऊँची जा त के कोई भी ाम म क़दम ही नह रखते
थे। दे व क इस व था का सबसे बड़ा लाभ यही था क इसम कसी भी तरह क
तयो गता के लए कोई थान नह था। येक काय एक जा त को स पा गया था और एक
ही जा त के सभी सद य के लए काम तथा दो व त क रोट का जुगाड़ हो ही जाता था।

यह नगर आ म-संतु जा त ाम के मेल से बना था, जो अपनी यूनतम आव यकता के


लए पर पर मेलजोल रखते थे। असुर क भ कतु भौ तकवाद , आलीशान तथा ू र प
से त पधा मक नग रय क तुलना म राम का नगर एक सी मत जगत का ढाँचा तुत
करता था जसम जा त था ने ही आधार शला रखी थी। इसने येक को एक नयत
थान दे रखा था, जो क ज म के समय उसक जा त पर नभर करता था। इस तं म,
सपन के लए कोई अवसर नह था और मह वाकां ाएँ पालना कसी संकट से कम नह
था। हम वासी भी ब त शी इस स य को जान गए।

जीवन ब त ही आराम से बीतता गया और समय आने पर आरसी ने एक पु को ज म


दया। हमने शव के नाम पर उसका नाम शंबूक रखा। ब चा ब त तेज़ी से बड़ा होने लगा
और वह अपने समवय क से कह अ धक बु मान था। धीरे-धीरे, मुझे अपने इसी जीवन
म आनंद आने लगा। म उस बालक के साथ खेलता, उसे तैरना सखाता, उसे अपने साथ
न हे प य के शकार पर ले जाता, मानो मने अपनी युवाव था को एक बार फर से पा
लया था। मने कई वष से कड़ा प र म करना याग दया था और मेरे पु समान शव ने
यह अ तर भार भी अपने कंध पर ले लया। वह ब त ही प र मी तथा उ मी युवक था।
उसने चरौरी- वनती और घूस के ज रए महल के मैले व धोने का काम अपने हाथ म ले
लया था और यह हमारे लए भौ तक सफलता पाने का अनुम त प बन गया।

वह समृ बन सका और संभवतः यह उसके असुर वंश के अंतजात त पधा मक वभाव


के कारण आ होगा, जो क कोई भी अवसर सामने आते ही कट हो जाता था। हमने
अपने घर को बड़ा कर लया। हमारे पास गधे तो पहले से ही थे पर अब दो गौएँ भी रख ल ।
हम धीरे-धीरे जीवन म आगे बढ़ रहे थे। ायः शांत भाव से बहती नद ; न ध, मेघ से
आ छा दत आकाश; नद के पास तैरते बेड़ व नाव तथा मछली के लए जल म डु ब कयाँ
लगाते व य बगुल तथा राम चरैया को ताकने म ही अ धकतर समय बीतता।

कई बार शंबूक भी इन या ा म मेरा साथी बनता। वह मुझे दादा कहता था और कसी न


कसी बात के लए सताया करता। जब भी म उसक खल खलाहट सुनता तो मेरा दल गव
व स ता से भर जाता। मंने एक बार फर इस ख़ूबसूरत जीवन तथा अ त जगत को ेम
करना आरंभ कर दया था।
51 धम पी खड् ग


जब सब कुछ कसी सुंदर सपने क तरह घ टत होता चला जाए तो जीवन एक कभी न
समा त होने वाला आकषण लगने लगता है और उसी समय मनु य के म त क म
मूखतापूण वचार तथा ख़तरनाक मह वाकां ाएँ ज म लेते ह। शंबूक बु मान तथा सुंदर
था परंतु आरसी को केवल यही बात दे ख कर नह सोचना चा हए था क उसे एक धोबी से
कुछ अ धक बनना चा हए। जब एक बार कसी माँ के मन म यह बात बैठ जाती है क
उसक संतान वशेष है तो कोई भी उसे उन वचार से डगा नह सकता। वह चाहती थी क
उसका पु कोई मह वपूण अ धकारी, या संभवतः एक स क व अथवा एक महान
ापारी बने – कुछ भी बने, बस नीच जा त का धोबी बन कर न जए। मने उसे चेताया भी
क हम जैसे लोग को व दे खने का साहस नह संजोना चा हए। शव ने भी उसे समझाया
परंतु वह अपने हठ पर अड़ी रही। माला भी आरसी के साथ मल गई और वे दोन माँग
करने लग क शंबूक क श ा का बंध कया जाना चा हए। दोन म हला ने तक दया
क हमारे पास धन था और शंबूक म श ा हण करने क तभा थी, तो हम उसे नर र
य रहने द? परंतु वह ब चा आठ वष का हो चला था और श ा-द ा आरंभ करने के
लए ब त दे र हो चुक थी। य द वह कसी असुर नगरी म जी रहा होता तो वह अब तक
पढ़ने- लखने तथा ग णत आ द वषय म नपुण हो गया होता। वे दोन बार-बार ज़ोर दे ती
रह और अंततः मेरी आप य तथा वरोध के बावजूद, शव ने ह थयार डाल दए और
कोई उपाय करने लगा ता क पु को पाठशाला भेज सके। मुझे यह नणय पसंद नह आया
परंतु इस बात का पूरा व ास था क कोई भी धोबी क संतान को नह पढ़ाएगा, इस लए म
इस वषय म अ धक च तत नह था परंतु मने इस ओर तो यान ही नह दया था क पैसे के
बल पर कड़ी से कड़ी सामा जक वजना भी भंग क जा सकती है। शव को एक एकांतवासी
अ यापक मल गया, जो नद के उस ओर रहता था।

सरयू नद के सरी ओर, एक घना वन पड़ता था। वहाँ पशु-प य के अ त र कुछ


सं यासी रहते थे जो अपनी दे ह पर भ म मलने के अ त र कुछ नह करते थे, वे आभूषण
के थान पर नरमुंड तथा ह याँ धारण करते और कई बार घंट तक, क ठन योगमु ा म
खड़े रहते। यह तो प था क वे ई र क , अपनी अंतरा मा क अथवा ा ण क खोज म
थे। परंतु जो भी हो, वे ऐसे लोग थे जो दे व क कड़ी जा त था म व ास नह रखते थे
और अपने एकांतवास म म न रहते। साधारण लोग इस पंचमेल भीड़ को दे ख कर भयभीत
होते तथा म म वर म उनक रह यमयी श य के वषय म वातालाप करते। म उन
इलाक़ म कई बार जा चुका था और ायः उन लोग से बातचीत भी कया करता था। वे
आ यनजक प से जा त था के त उदासीन थे और म वहाँ उनक संग त म मलने वाली
वतं ता पाने के लए जाता। केवल वही ऐसे लोग थे ज ह ने कभी मुझसे मेरी जा त के
वषय म नह पूछा और उ ह मेरे साथ म दरापान या धू पान करने म भी कोई संकोच नह
होता था। वह मेरा गु त जगत था। शव ने ऐसे ही एक को खोज लया था जो जा तय
म व ास नह करता था। उसे नगर म मलने वाली म दरा तथा तंबाकू ब त भाते थे। मुझे
उसका यह शु क चुकाने के लए नयु कया गया और इसके बदले म वह शंबूक को पढ़ाने
लगा। मुझे भी उसक संग त और जड़ी-बू टयाँ भाने लगी थ । वह एक व ान पु ष था और
सं कृत, असुर, नाग, गंधव तथा क र क बो लय म स ह त था, उसे कुछ बबर जा तय
क बो लयाँ भी आती थ । उसे वेद , यो तष-शा तथा अ य कई व ान क भी
जानकारी थी। हम शंबूक के लए उससे े अ यापक मल ही नह सकता था। बस उसका
केवल एक ही आ ह था क उसे गु कह कर पुकारा जाए।

एक दन उसने म दरा के नशे म चूर हो कर, मुझे अपने जीवन क पछली घटना के
वषय म बताया। वह पाँच न दय क धरती से आया एक ा ण था, परंतु अपनी युवाव था
म ही अयो या आ गया था। उसने कई तरह के काम-धंधे कए और सरकारी अ धकारी बनने
ही वाला था, परंतु जा त- था से तंग आ गया, य प एक ा ण होने के नाते तो उसे
सु वधा मलती ही थी। जब राम ने अपने पता के दए वचन का मान रखने के लए,
सहासन का उ रा धकार यागा और वन म जाने का नणय लया तो वह उन दन अयो या
म ही था, वह युवा दे व राजकुमार तथा मु न जाबा ल क भट का भी सा ी था। ज ह ने राम
को समझाना चाहा क ई र, जीवन के प ात अ त व अथवा आ मा क कोई स ा नह थी
और एक को अपना भरपूर जीवन जीते ए, मृ युपयत आनंद का उपभोग करना
चा हए। परंतु धम न राम ने जाबा ल के सभी तक को मानने से इंकार कर दया और
अपनी प नी तथा अनुज के साथ वन के लए थान कर गया। य प गु जाबा ल से ब त
भा वत आ और उसने इसी अधीरता म आकर अपनी उ च तरीय सरकारी नौकरी को
याग दया। फर वह जाबा ल का श य बन गया। जब राम का पता दशरथ, अयो या का
राजा था तो वह सभी मत तथा सं दाय के त स ह णुता रखता था और जाबा ल को पूरे
दे श म कह भी मण करते ए, जा त था के व वषवमन करने क पूरी छू ट थी। परंतु
जब राम के छोटे भाई भरत ने, अपने अ ज राम के नाम पर अयो या क ग संभाली, तो
उसने ऐसे य का नगर म वेश व जत कर दया ता क ाचीन परंपराएँ तथा री त-
रवाज़ अ ु ण रह सक।

जाबा ल व उनके श य, सरयू नद के सरी ओर धकेले जा चुके थे और शी ही सरे मत


तथा धारणा को मानने वाले भी, नद के इस ओर आ य लेने लगे। जाबा ल नह रहे परंतु
उनक परंपराएँ जी वत रह और इसके साथ ही अ य संघषरत मत तथा मा यताएँ भी
पनपते रहे। जाबा ल क मृ यु के प ात उनके अनुया यय ने यह मु हम बना ली क वे
अ धक से अ धक लोग को सा र बनाएँगे, भले ही वे कसी भी जा त के य न ह परंतु
पछले कुछ वष म तं क लौह ंखला और भी मज़बूत हो गई थी और केवल कुछ लोग ही
इतना साहस संजो पाते थे क अ र ान ा त कर ल। जो लोग पढ़- लख गए थे, वे भारत
से नकल कर, पवत के उस पार चीन तथा सागर पार दे श म चले गए थे, जहाँ के
ज म के समय क जा त क नह ब क उसके गुण क क क जाती थी, उसक
वशेषता को ही सबसे मुख माना जाता था। शंबूक व फा रत ने के साथ यह सब
सुनता और म उसके ने म उभर आई उस व च सी चमक को दे ख कर ाकुल हो
उठता। बाद म, जब म उसे सरयू के काले जल पर नाव खेते ए, वा पस ले जाता तो वह
एक महान क व बनने के व के वषय म बात करता। वह चाहता था क सफल क व बने
और ोता को अपनी का - तभा से मं मु ध कर दे । वह ब चा जीवंतता तथा उसम
छपे आनंद से छलकता और म चुपचाप नाव खेता रहता। और फर एक रात, लाख तार
क सा ी के म य, भारत के दय पर अपनी शीतल लहर का पश दे ती सरयू तथा उसके
काले जल म त ब बत चाँदनी के बीच, शंबूक एक मीठा गान गाने लगा। उसने एक ऐसे
संसार के वषय म गीत गाया, जो वतं ता व आशा तथा आने वाले एक ऐसे कल क बात
करता था, जो आज तक कभी नह आया था। उसके गीत के वर नधन क कु टया से ले
कर महल क ाचीर के आसपास वलीन होते चले गए, जहाँ मनु य के वेश म दे वता रहा
करते थे। म धोबी घाट प ँचा तो अ धकतर घर क ब याँ बंद हो चुक थ । लड़का गहरी
न द म सो गया था। मने भारी दय से, नाव कनारे बाँधी और उसे अपने थके कांध पर उठा
कर घर ले गया।

य - य दन बीतते गए, शंबूक क तभा अ त प से वक सत होती चली गई। उसका


वर सधता गया और ोक संगीतमय होते गए। लोग घाट पर हमारी नाव के लौटने क
ती ा करते। इससे पूव क हमारी नाव घाट पर लगती, उसके वर उससे भी पूव वहाँ प ँच
जाते और ी-पु ष भीड़ लगाए उसक ती ा करते। काले गहरे जल क लहर पर नतन
करते वर को सुन सभी मं मु ध हो उठते। हर रात म घर लौटता तो सराहना करती भीड़ के
म य, उसक अंगु लयाँ मेरी झु रय से भरी कलाई से लपट रहत , कभी-कभी ोता संग
गाने लगते, कुछ ताली से साथ दे ते और कुछ उसके साथ मूक भाव से रोते। वह सं कृत म
गान करता परंतु उसके भाव सव ान थे और वे कसी के लए भी अनजाने नह थे। जसे भी
एक बार उसे सुनने का अवसर मल जाता, वह उसके साथ एक अनजानी डोर से बँध जाता।
वे गीत धम, जा त तथा री त- रवाज़ के गाढ़े क चड़ को भेद कर, सीधा मनु य के मम पर
हार करते और सभी मनु य के भीतर छपी अ छाई व मानवता को ो सा हत करते।

य - य उसक स बढ़ती गई, मेरे भय म भी वृ होने लगी। मने य न कया क


उसे अपनी जा त के उस ाम से बाहर न जाने ँ , म उसे समझाना चाहता था क बाहर एक
ू र संसार उस पर झपटने के लए ती ारत् था, एक ऐसा संसार जसम दे व ारा चुने गए
य का नवास था और वे अपनी े ता के व कोई भी चुनौती वीकार नह करते
थे। परंतु इस लड़के ने वतं ता का मीठा वाद चख लया था। अब उसे परंपरा क लौह
ं ला म जकड़ कर नीची जा त के बदबू से गंधाते ाम म नह रखा जा सकता था। वह

जीवन क उस अव था म आ गया था, जहाँ सब कुछ जगमग तथा उजला दखता था और
उसके आगे अनंत संभावना के साथ भ व य पसरा था। यही तो श ा हण करने का
सबसे बड़ा संकट था। यह ऐसे व को ज म दे ती है जनके पास इस वा त वक जगत म
टकने के लए अपने पाँव या कोई आसरा नह होता। मने उसे समझाना चाहा, मने कहा क
वेद के अनुसार, हम नीची जा त के लोग से केवल यही अपे ा क जाती थी क हम अपनी
जा त के लए नयत कत से अ धक कुछ न सीख। वैसे म वेद के वषय म ब त कुछ
जानता भी नह था, मुझे तो वही पता था जो मने ा ण पुरो हत के मुख से सुना था, जो
अकारण ही कुछ असंगत वा य का लाप करते रहते थे। उसने मुझे वेद क प ा या
करते ए आ य म डाल दया और उनके अथ भी समझाए। उसने मुझे चुनौती द क म उसे
एक ऐसा ोक दखा ँ , जो जा त था क हमायत करता हो।

मुझे परवाह नह थी क वेद जा त था के समथक थे अथवा नह परंतु मेरे लए तो यह एक


रह यो ाटन था। एक असुर होने के नाते, मुझे उन सभी व तु से घृणा करना सखाया
गया था, ज ह दे व प व मानते थे। शंबूक ने कहा क उसके गु ने सखाया था क वेद के
असली अथ के अनुसार वे कसी एक जा त अथवा पेशे क एकल संप नह थे। इनम उन
क वय के वचार का सं ह समा हत था, जो आज से हज़ार वष पूव जी वत थे तथा वे
व भ पेश से जुड़े थे जैसे मछु आरे, पुरो हत, लकड़हारे, कु हार, शकारी तथा और भी
अनेक! ऐसा तो ब त बाद म आ, जब कुछ वाथ लोग ने वेद को अपने साधन क पू त
के लए अपना लया और सर को नीचा दखाने के मा यम के प म योग म लाने लगे।
शंबूक ब त सयाना हो चला था। म जाबा ल के उस श य का वध कर दे ना चाहता था
जसने मेरे न हे शंबूक के म त क म ये सब वचार ठूँ स दए थे। य द उसके ारा कही गई
सभी बात स य भी होत , तो भी वे सभी ख़तरनाक स य थे और एकांत म भी उ ह अपने
मुख से उ च रत करना संकट से खाली नह था। और उस गु ने मेरे मासूम पौ को यह
सखाया था क वह उ ह सावज नक प से गा कर लोग को सुनाए। मने शंबूक के आगे
हाथ जोड़े क वह ऐसा न करे परंतु वह अपने हठ पर अड़ा रहा। मने ब चे के माता- पता
तथा अपनी प नी से भी वनती क , परंतु वे तो व नगरी म खोए थे, वे इस जगत म अपने
न हे क इस सफलता से इतने मु दत थे क उ ह इसके अ त र कुछ दखाई ही नह दे रहा
था।

वह ाम क सीमा से बाहर जा कर गायन करने लगा। वह वेद से वा य लेता और उनम


अपने तक तथा लोकगाथा का म ण मला कर, तुत करता। ी-पु ष न हे गायक
क वाणी सुनने के लए भीड़ लगा कर खड़े हो जाते। वे सड़क पर एक हो कर, उस पु प
वषा करते। शंबूक ब त व यात हो गया था। और फर एक दन वह घटना घट । वह तो
होना ही था, इस लए मुझे जान कर इतना सदमा नह लगा। वह बालक राजसी पथ पर
राजपुरो हत के दल से टकरा गया, जो कदा प नह चाहते थे क न न जा त के लोग उस
राजमाग को अप व कर। बालक ने उनक बात मानने से इंकार कया और वह त ण
उनक युग पुरानी ढ़य को चुनौती दे द । मुख पुरो हत ने आवेश म आकर सं कृत के
कुछ ोक उ त कए और उसे पूरा व ास था क उसका वर न न जा त के बालक
को भयभीत करने के लए पया त होगा। परंतु बालक का म त क तो अपने गु ारा दए
गए ान से ओत- ोत था, उसने उनके ारा वीकृत ा या को चुनौती दे ते ए, अपनी
ओर से भी ा या का सं करण तुत कर दया। जब मुझे और मेरे प रवार को यह सूचना
मली तो हम शी ता से घटना थल पर प ँच,े इस वाद- ववाद का आनंद लेने के लए ब त
सी भीड़ जमा थी। जब भी बालक सं कृत म कोई प गुनगुनाने के लए अपना मुख
खोलता तो जा हष लास से उसका वागत करती।

ऐसा लगता था मानो भीड़ ा ण ारा लगाई गई सारी वजनाएँ भूल गई थी जैसे क
सावज नक माग का उपयोग कसे करना चा हए और कब, कौन कसे पश कर सकता था
या नह कर सकता था, पर पर षत करना अथवा पश व से अप व होना तथा
जा त था से जुड़े अ य ज टल नयम आ द। वे आपस म ध कामु क करने लगे, एक- सरे
को अप व कया और शंबूक का गान सुनने के लए एक- सरे के पश व से भी
अप व होने के लए तुत हो गए। शंबूक ने जैसे अपने गु से सीखा था, उसने अनु ान
तथा ब ल था पर अपनी आप कट क और उसने जा त था व एक मनु य पर सरे
मनु य क े ता के वषय को भी चुनौती द , जो क मा ज म के समय मनु य क जा त
पर नभर करती थी। भीड़ ने जयजयकार के साथ उसे ो साहन दया। रा य के
राजपुरो हत का पारा सातव आसमान पर प ँचता जा रहा था य क बालक शंबूक नरंतर
उ ह चुनौ तयाँ दे रहा था और वह अपने गु के भी गु जाबा ल क भाँ त यायसंगत
ना तक तक दे ने क बजाय वेद तथा उप नषद के कथन को अपने समथन म तुत कर
रहा था। पहले वह वेद के ाक का पाठ करता और फर उसे ाकृत भाषा म अनुवाद
करते ए, सामा य जा को सुनाता ता क राह चलते लोग भी उनके अथ को जान सक।
भीड़ यह सब सुन कर आंन दत हो रही थी परंतु म हर बीतते ण के साथ असहज होता जा
रहा था। शंबूक ने वे सभी पूछे, जो हर राह चलता हमेशा से पूछना चाहता था,
परंतु कभी साहस नह बटोर पाया था। उसने स य क गुहार लगाई और म अपने बीते वष
के अनुभव से जानता था क स य के पथ पर चलने वाल के साथ या ह होता आया था।
मने बड़ी आशंका के साथ भीड़ के आसपास घेरा डालती सेना को दे खा। म भीड़ क
मनः थ त म आ रहे प रवतन को भाँप सकता था। धीरे-धीरे लोग के मुख से नकल रही
वाह-वाह तथा साधुवाद धीमे होते गए और अंत म वे ब कुल ही शांत हो गए। वायु म तनाव
क गंध थी परंतु बालक अपने आसपास के इस वातावरण से अनजान था। हज़ार नपुंसक
व कायर पु ष तथा य क भीड़ म उसका मधुर वर गूँज रहा था।

तभी एक रथ बड़ी ग त से आया और वहाँ आकर ठहरा, जहाँ शंबूक म न हो कर मीठे वर


म प गा रहा था। रथ से राजा राम उतरे। पुरो हत भाग कर उनके पास गया और उनके
कान म कुछ कहा। वे असहज हो उठे तथा अपनी गदन हलाई। ऐसा लगा मानो वे अपने
पुरो हत के आगे कोई वनती कर रहे थे परंतु वशालकाय धड़ वाला अ ेत मुख पुरो हत,
ु हो कर राजा से कोई माँग करने लगा। अपने पुरो हत क बात सुनते ही राजा के कंधे
ढलक गए। वे आगे बढ़े मानो शंबूक को उसक तं ा से जगा दे ना चाहते ह । भीड़ साँस रोक
कर ती ा कर रही थी परंतु वह मोटा पुरो हत वयं ही आगे आया और अपने राजा को उस
षत पश से बचा लया। शंबूक को भी कुछ आभास आ और वह अपनी तं ा से जाग
गया। वह अपने सामने का य दे ख अ भभूत हो उठा। फर जाने य बालक क लाई
फूट पड़ी। उसके रोने से मानो वह स मोहन खं डत हो गया। अब वह कोई महान क व या
गायक नह था जो अपने गायन से कसी को भी वत करने क मता रखता था। वह तो
चौदह साल का एक लड़का था, एक अ पृ य, एक अ ेत असुर, एक अ त वहीन ाणी!
उसने अपने राजा व संर क को दे ख कर, बड़े ही आदर-मान से णाम कया। राम ने एक
बार फर बड़ी असहाय से अपने पंडे-पुरो हत को दे खा, जो गु से से बालक क ओर
संकेत करते ए, चीख़- च ला रहे थे।

राजा ने अपना हाथ उठाते ए ा ण को शांत कया और बालक से दयालुतापूवक पूछा,


“पु ! तुम कौन हो?”

“म शंबूक ँ। शव का पु शंबूक।” बालक हौले से बोला

“तु हारी जा त या है?” पुरो हत ने पूछा।

“न तो मेरी कोई जा त है और न ही आपक ।” उस लड़के ने राजा क आँख म दे खते ए


कहा।

“ या यह स य है क तुम अछू त हो?” पुरो हत ने अपना वरोध जताया।

“न तो म अछू त ँ और न ही कोई अ य अछू त है।” बालक ने पुरो हत क उपे ा


करते ए, राम को दे ख कर उ र दया। राजा उससे नज़र चुराने लगा।

“ या तुम एक ना तक हो?” पुरो हत गरजा।

“म ई र क स ा म पूण व ास रखता ँ, जो हमम से येक के भीतर बसता है। म भी


ई र ँ और आप भी ई र ह।”

“एक शू को वेद का ान पाने क अनुम त कसने द ?” पुरो हत ने ोध से पूछा और राम


असहाय सा दखने लगा।
“ या पं छय को उड़ने के लए कसी से अनुम त लेनी होती है? या मछ लयाँ कसी के
कहने से जल म तैरती ह, मनु य के लए व ा हण करना उतना ही सहज है, जतना
प य के लए उड़ना या मछ लय के लए जल म तैरना!”

“ऐ दं भी मूख! या तू जानता है क हमारे रा य म जा त धम के नयम को भंग करने वाली


न न जा त के लए द ड का वधान है?” मुख राजपुरो हत शंबूक पर गरजा।

राम ने पुरो हत को दे खा, ऐसा लगा मानो उसके ने म कोई आ ह छपा हो। उसके मुख
पर वही भाव थे, जो उसक प नी क प व ता क जाँच के लए क गई अ न परी ा के
समय उसके मुख पर आ गए थे। वह जानता था क बालक जो भी कह रहा था, वह
अ र ः स य था और उसक आँख उस न हे लड़के के त असीम क णा के भाव को
छपा नह पा रही थ , जसके गीत आ मा को भी वत कर दे ने वाले वर म भीड़ के बीच
मुख रत हो रहे थे। उसने एक बार फर से पुरो हत के समूह को दे खा।

इस के उ र म शंबूक ने कसी अ ात उप नषद से लया गया सं कृत प गुनगुनाना


आरंभ कर दया जसम कहा गया था क मृ यु और कुछ नह केवल आ मा का पता कुछ
समय के लए अ थायी हो जाता था, और जस कार मनु य अपने जजर तथा पुराने व
को बदल कर नूतन व धारण करता है, उसी कार आ मा भी नया शरीर धारण करती है।
मुझे न त प से उस गु से बात करनी चा हए जसने मेरे न हे पौ को जाने या- या
बकवास सखा द थी। लोग इन साद बात को जाने कब सीखगे क मृ यु अंत थी और जब
आपक मृ यु होती है तो आपका शरीर गल कर, म म ही वलीन हो जाता है।

अब पुरो हत ने अपना वर ऊँचा करते ए, भीड़ को संबो धत कया। “यह शू , यह दं भी


अ पृ य… इसने जा त था से जुड़े सवा धक मह वपूण नयम को भंग करने का ःसाहस
कया है। इस शू ने न केवल अ र ान ा त करने का साहस कया ब क प व वेद का
ान पाने तक का ःसाहस कर बैठा। यह प व ंथ म लखी गई बात का ग़लत अथ तथा
ा या तुत कर रहा है। ऐसे दं भी सर फर के लए तो केवल एक ही वधान रचा गया
है।”

उसने राजा राम को कुछ इस कार दे खा मानो कहना चाहता हो क उसने सबसे सट क
स य को उजागर कर दया था और अब उ ह या वत करने का उ रदा य व सर के
कंध पर था। सारी भीड़ म मानो आतंक ाप गया। सपा हय ने नंगी तलवार तथा भाल
के साथ, भीड़ के आसपास अपना घेरा कस दया और कसी मूख क ती ा करने लगे जो
ज़रा सा भी हलने क ग़लती करता और…। एक कौए क काँव-काँव उस स ाटे म गूँज
उठ । म आस ण क क पना से काँप उठा। राम भी अपनी तलवार ख च चुका था।
शंबूक के ने म अ ु और अ ु से भीगे मुख के भाव कह रहे थे क वह अपने यास म
असफल रहा था। वह अपनी आयु से कह अ धक थका आ व प त दखा। म कसी ी
ारा धोए जा रहे गंदे व क धम-धम सुन सकता था जसने उस गम व तपते ए दन को
एक अजीब सी लय दे द थी। ऐसा लगता था मानो कसी ने शंबूक के जीवन क समा त के
लए उ ट गनती गननी आरंभ कर द थी। जब म चौदह बार कपड़े को पटके जाने का
वर सुन चुका, तो राम क श शाली तलवार एकदम नीचे आई और मेरे न हे पौ का सर
धड़ से अलग कर दया गया।

तमाशा ख़ म हो चला था। भीड़ छतराने लगी, कुछ घर को लौट गए तो कुछ उ सा हत हो


कर आपस म ब तयाने लगे। अ य अपने काम को इस तरह चल दए मानो कुछ आ ही न
हो। म उस थान क ओर चला जहाँ शंबूक का सर वहीन धड़ पड़ा था। राम का रथ तेज़ी
से नकला, जससे भीड़ दो ह स म बँट गई। उसके भीतर एक ऐसा बैठा था जो
दे वता बनते-बनते थक चुका था। उसने अपनी ही जा से अपना मुख छपा रखा था, मानो
उससे जो भी करवाया गया, उसके लए वह वयं को ल जत अनुभव कर रहा था। सै नक
ने ी-पु ष को कनारे क ओर धकेलना आरंभ कया ता क राम आराम से अपने महल म
लौट सके। म अपने ही ःख के सागर म नम न काँपते ए, रथ म बैठ कर ओझल होते
राजा को अपलक ताक रहा था।

म असहाय खड़ा दे ख रहा था और रथ धूल के उड़ते गुबार के बीच ओझल होने ही वाला था
क वह अचानक ही थम गया। सै नक शाही रथ क ओर भागे और वहाँ कोहराम सा छा
गया। म वयं को घसीट ले गया ता क पता लग सके क वहाँ हो या रहा था।

राम बुरी तरह से बफरी ई आरसी व माला के स मुख खड़ा था, उसके चेहरे पर
अपराधबोध तथा ोध के भाव प रल त थे। उन दोन य ने राजा का माग अव कर
दया था। माँ मारे ःख के अपने बाल नोच रही थी और उसके मुख से पशु के समान
ची कार नकल रही थी। माला ने इतने हसक तरीक़े से अपनी छाती पीट क म दे ख कर
स रह गया।

“तुमने मेरे न हे से पु के ाण य लए? तुम कस बात से भयभीत थे? तुम…।”

सै नक माग पर भागे ता क दे वता के पथ से उन वलाप करती य को हटाया जा सके


परंतु राम ने हाथ के संकेत से उ ह रोक दया। “माँ! तु हारे पु ने इस धरती के प व नयम
को भंग कया था और एक राजा होने के नाते मेरा कत बनता था क म धम क र ा
करता।” ये श द कहते-कहते राम का वर मानो काँप उठा।

आरसी ने वह प च से थूका और राजा को दे ख कर गरजी, “प व नयम… धम… एक न हे


से लड़के के ाण ले कर तु हारे धम क र ा होती है… अगर धम कसी बालक के मुख से
नकल कुछ सं कृत श द से भयभीत होता है, तो इस धरती के प व शासक होने के नाते,
सोच सको तो सोचो, तुम कस कार के धम क र ा कर रहे हो और तु ह नयं त करने
वाली डोर कसके हाथ म है…?”

राम अवाक् खड़ा रहा और सहायक पुरो हत उस छोटे कद क अ ेत ी को ताकने लगे,


जसने ऐसे पूछ लए थे, जनके वषय म कभी कसी ने वचार तक करने का साहस
नह कया था। मने वयं को आगे तक ले जाना चाहा परंतु इससे पूव क म वहाँ तक प ँच
पाता, सै नक उस ी को परे हटा चुके थे। जब उसे बाल से पकड़ कर सड़क पर घसीटा
जा रहा था तो आरसी ने एक असहाय माँ के प म राम को कोसना आरंभ कया, जसका
एकमा पु उसके हाथ मारा गया था, “राम! तु ह इसका मोल चुकाना होगा। तुम इसका
मोल चुकाओगे… मेरे श द को याद रखना… कभी नह … आज के बाद कभी भी नह …
तुम जान नह पाओगे क स ता कहते कसे ह। एक और धम भी है… ाकृ तक जगत का
नयम, वह कह अ धक बड़ा है… इन पुरो हत के मुख नकले वचन से कह अ धक बड़ा
है। वही धम तु हारे आगे भी आएगा…।”

वह च लाती रही परंतु उसके कोसने के वर धीमे और धीमे होते चले गए य क वे लोग
उसे घसीट कर ब त र तक ले गए थे। भीड़ इस य को आँख फाड़े, कसी तमाशे क
तरह दे ख रही थी। वे एक लंबे अरसे तक इस बारे म बात करगे। इससे पहले क म रथ के
समीप प ँच पाता, अ पर कोड़ा फटकारे जाने का वर सुनाई दया और रथ वहाँ से
नकल पड़ा ता क राजा को महल क सुर त ाचीर क बीच प ँचा सके। म शाही रथ के
नकलने से उठे धूल के गुबार के बीच खाँसता व हाँफता खड़ा रहा। म पूरी तरह से वेद से
लथपथ था और उस धम के भार तले दबा आ था, जो हम कुचलने के लए तैयार था। भीड़
छतराने लगी। म वह धूलयु लाल धरती पर गर कर, लंबे समय तक रोता रहा। म अपने
न हे पौ व उसके माता- पता के लए ं दन करता रहा, फर म अपने उस द क पु के
लए रोया, जसे मने गोद लया था परंतु राजा व दे व ने उसे अपनी क त म ी वृ के
लए मुझसे छ न लया था परतु इससे भी अ धक… म अपने त- व त दे श के लए रोया।
मने माट को दोन मु य म भ च लया और च लाया, “ऐ मेरी माँ! तुम भी मेरे साथ ं दन
करो, दे खो क तुम कैसे भाँ त- भाँ त के लोग को अपने पास शरण दे ती हो…।” तभी कसी
ने मेरी पस लय म ठोकर दे मारी। मने उठना चाहा तो एक और करारी ठोकर आकर पड़ी।
उसने मुझे ठोकर से एक खुली नाली म धकेल दया, “नशेड़ी भखारी, बेअ ल! अभी मेरा
रथ तुझे कुचल दे ता। जड़म त! तुझे आ मघात करने के लए या मेरा ही रथ मला था?
नीच जात का…।” यह तो कोई ापारी था जसे और अ धक धन कमाने के लए हाट-
बाज़ार जाने क ज द थी और म वहाँ पड़ा दे श के सुधार के लए बसूर रहा था। उसने मुझे
ठोकर मार कर वह प ँचा दया, जो सही मायन मेरा थान था… वह गंधाती नाली! म
अयो या क एक खुली नाली म पड़ा था, और अपने आसपास से नकलते संसार को दे ख
रहा था, जसके लए जैसे कुछ आ ही नह था। मने उ ह अपने न हे शंबूक क दे ह को भी
ले जाते दे खा, वे उसे अं तम सं कार के लए घाट पर ले जा रहे थे। लगभग आधी रात को
महल तथा मं य व दरबा रय के घर आमोद- मोद समा त आ तो म अपनी कु टया म
लौट आया। मने क पना क क शायद मेरा न हा शंबूक अपने होठ पर कोई गीत लए
भागा चला आएगा। परंतु म भूल गया था क वह तो धम क र ा के लए एक ऐसे थान पर
चला गया था, जसके वषय म म कुछ नह जानता था। संभवतः, अगले ज म म वह कसी
उ च जा त म ज म पाए ता क वह भी नचली जा त म ज मे लोग का उ पीड़न कर सके।
यह सोच कर ही मन को ब त सां वना मली।

मेरे भीतर घर म वेश करने का साहस नह था। म नद क ओर चला गया और वहाँ एक


टू टे पेड़ का सहारा ले कर लेटा रहा। जब म न द म ऊँघ रहा था तो सरयू नद के पार हवा के
वेग से वा हत वर को सुन सकता था। संभवतः शंबूक के गु कसी ऐसे भुवन के वषय
म गीत गा रहे थे, जसम कोई सीमाएँ न थ , एक आने वाला कल ऐसा भी था जसम कोई
यु नह था, एक ऐसा समाज था जसम कोई भेदभाव नह था और ऐसी ही कुछ अ य
मूखतापूण बात। जी म तो आया क काश कोई उस आदशवाद का गला ट प दे ता ता क
और मूख उसके इन सपन के मोह म आकर, अपने अनमोल ाण का उ सग न कर। इस
संसार के आदशवा दय से भी बचने का कोई उपाय नह था। वे चूह क तरह बढ़ते जा रहे
थे और पूरी नया म कसी महामारी क तरह फैल रहे थे। जब वे मरते तो अपने साथ और
भी नद ष के ाण क ब ल चढ़ा दे ते। धीरे-धीरे उस गाने का सुर तथा लय दोन ही ती
होते गए और मेरी खीझ बढ़ने लगी और जब समानता क इन मूखतापूण बात को सहना
मेरे वश के बाहर हो गया तो म अपनी कु टया क ओर लौट आया। मने मन क खोई शां त
पाने के लए उस न वड़ अंधकार को अपने गले से लगा लया।
52 आरंभ


म लगभग पूरे एक वष से अपनी या ा को जारी रखे ए था परंतु अब भी मुझे अपने
ज म थान पर प ँचने के लए कई मील क या ा करनी शेष थी। कई दशक पूव, मने एक
ऐसे युवक के साथ अपनी या ा का आरंभ कया था, जसने हम एक नए संसार क रचना
का वचन दया था। उसने हम आशाएँ द तथा हमारे व को एक नई उड़ान दे द । उसने
एक सा ा य का गठन कया और उसे गँवा भी दया। वह जा कर उन लोग म शा मल हो
गया, ज ह ने साहस कया, सब कुछ ा त कया और खो भी दया। मने उसक उपल धय
के लए अपनी युवाव था का ब लदान कर दया, म वा तव म इतना भोला था क रावण
सरीखे लोग ने मीठ बात के जाल म फँसा कर, मुझसे अपने ब त से काम नकलवाए।
मुझे मूख बनाया। ब त बाद म, जब म अपना भोलापन गँवा बैठा और संसार मुझे ब त से
सबक सखा चुका था, तो मेरा जो कुछ भी खो चुका था, उसे मने लंका क माट म ही दफ़न
कर दया और जो कुछ भी बचा था, उसे ही एक पोटली म बाँध कर एक नई या ा पर
नकल पड़ा। म एक ऐसे थान पर आ प ँचा, जहाँ म कसी भी दशा म नह आना चाहता
था परंतु मने नए सरे से अपने जीवन का ी-गणेश कया। दे व तथा उनक क पना के
अभाव म, इस धरती पर जीवन या था? दे व क भुजा ने मेरे तु छ जीवन को पकड़ा व
झकझोर कर रख दया, इसे दबाया, कुचला और तब तक कुचला, जब तक क इसम से र
क एक-एक बूँद नचुड़ नह गई।

शंबूक क मृ यु के बाद, अयो या म जीवन एक जीता-जागता नक बन गया था। शव ने


अपने ःख को म दरा म डु बो दया और हमारे प रवार वलग हो गए, जब प रवार के
पर पर बाँटे ए व टू ट कर बखरते ह तो ायः ऐसा ही होता है। म भी अ धकतर म दरा
के मद म चूर रहता और नत नए तमाशे रचा करता। म दरा के ये दौर, उस न हे बालक क
मृ यु के शोक म आरंभ होते पर इनका अंत अपने ही तरीक़े से होता। शव और म पी कर
नशे म चूर हो जाते और फर घर क बेचारी य पर अपनी कुंठा नकालते। हम अपनी
प नय को नदयता से पीटते और आसपास के पड़ोसी तमाशा दे खने व ताने मारने के लए
एक हो जाते। म दरापान के ऐसे ही एक मूखता से भरे दौर म, ऐसी घटना घट , जसने
इ तहास को बदल कर रख दया। जब म ब त पी लेता तो मेरा अतीत मुझे दं श दे ने लगता
और म जानता था क वहाँ रहने वाल को वे बात सुनने म बेहद रस आता था। म अपने त
ए सभी अपमान का तशोध लेना चाहता था। एक दन, म इतना नशे म नह था, जतना
दख रहा था और उस बूढ़ औरत ने अपने तमाशे दखाने शु कर दए, मने उसे ज़ोर से
लात दे मारी। मने चीख़-चीख़ कर उसका अतीत दोहराया ता क उसे सभी सुन सक। लंका
म, एक वे या के प म उसक जीवन-गाथा, उसके पछले ेमी, रावण ारा उसका
बला कार, मेरे पड़ोसी ये सब बात आँख फाड़े सुनते रहे। मने उसे बरामदे से बाहर नकाला
और सड़क पर धकेलते ए कहा, म न तो राम था और न ही कोई रावण क अप व हो
चुक प नी को भी अंगीकार कर लूँ य क म ऐसे उ च वग से संबंध नह रखता था जो
आपस म प नय क फेर-बदल करते ह। मने अपनी छाती ठ क कर कहा क म एक अ छे
म यमवग य प रवार से था, जो नै तकता व त ा को सवा धक मान दे ता है, इसके साथ ही
मने अपने आसपास से उठ रहे हँसी के वर को उपे त करते ए, अपनी चीख़- च ला रही
प नी को एक और ठोकर दे मारी। फर म दोबारा म दरापान के लए ताड़ी के अ े क ओर
चल दया।

दो घंटे बाद ही मुझे बंद बना लया गया। जब वे मुझे राजपथ से घसीट कर ले जा रहे थे तो
म भयभीत था। वे मुझे राम के स मुख ले गए, जो पूरी भ ता के साथ भारत के
राज सहासन पर आसीन था म नह जानता था क मने अनजाने म ही वेद के कौन से
नयम का उ लंघन कर दया था और मेरे लए कौन सा द ड ती ारत् था। मने ब त ही
आदर-मान से झुक कर णाम कया, नाक लगभग धरती को पश कर रही थी। उनम से
एक सै नक ने मुझे खड़े होने के लए कहा ता क राजा मुझसे वातालाप कर सके। राम ने
मुझे दे ख कर यौरी चढ़ाई और अपने एक मं ी को संकेत कया ता क वह मुझसे पूछताछ
कर सके। वही अ ेत ा ण मं ी आगे आया और उतनी ही री पर आकर खड़ा हो गया,
जतनी री उसे एक अ पृ य से बना कर रखनी चा हए थी। फर उसने मुझसे पूछा क मने
राजा राम के व या ट पणी क थी। मने प श द म कहा क मने तो राजा राम के
लए कुछ कहा ही नह था परंतु शी ही उनक ओर से इतना दबाव पड़ने लगा क मने
ह थयार डाल दए। मुझम इतना साहस नह था क राजा राम के दरबार म उसके सबसे बड़े
श ु रावण का नामो लेख क ँ अतः मने उ ह बताया, मने कहा था क म राम जतना
वशाल दय का वामी नह था क ऐसी प नी को वीकार क ँ जसक प व ता सं द ध
थी। यह एक ऐसा स य था जसे घुमा- फरा कर तुत कया गया, परंतु उन प र थ तय म
म इससे बेहतर कुछ नह कर सकता था। सारी सभा म स ाटा छा गया और लोग के चेहरे
ऐसे दखने लगे मानो वे कोई अ भयोग लगा रहे ह , राम का चेहरा ल जा से लाल हो उठा
था।

मेरे लए आ य क बात तो तब ई, जब मुझे कोई भी द ड दए बना छोड़ दया गया। म


राम के मं ीमंडल से बाहर नकला तो वे सब सर जोड़े गहन मं णा म इस कार लीन थे
मानो एक पय कड़ धोबी क ट पणी पर ही सारे संसार का भ व य नभर होगा। करीब
एक घंटे के बाद म वहाँ प ँचा, जहाँ रावण का पु पक वमान सहेजा गया था। वह थान
अब एक तीथ था और म बड़े ही कौतुक से प व लोग को उसके आगे आदर-मान से सर
झुकाते दे खने लगा। तभी एक रथ मेरे समीप से बड़ी त ग त से नकला। नराश व ःखी
दख रही सीता, पछली ओर बैठ थी और ु ल मण अ पर हसक प से कोड़े
बरसाता आ रथ चला रहा था। तब मने इस वषय म वचार नह कया और ताड़ी क
कान क ओर चल दया ता क थोड़ा गला तर हो सके। इसके ब त बाद म जब पड़ो सय
ने हम पर अ भयोग लगाया क हमारे कारण राजप रवार बखर गया था, तब मुझे पता चला
क म दरा के भाव म आकर मने जो ट पणी व आलोचना क थी, उसके कारण कैसी-
कैसी घटनाएँ घट चुक थ । पं डत ने यह नणय लया था क सीता प व नह थी और
उसने लंका म अपनी प व ता का माण दे ने के लए जो भी अ न परी ा द थी, वो
अयो या म वैध नह थी। उ ह ने राम को यह परामश दया क उसे अपने न कलंक जीवन
से इस लांछन को हमेशा के लए मटा दे ना चा हए और उसने नणय लया क वह अपनी
गभवती प नी को वन म भेज दे गा। राजा क प नी को सारे संदेह से ऊपर होना चा हए था
जो क सीता नह थी। उसके तक ने व च प म अपना काय कया। महल के परजी वय
ने दावा कया क राजा ने हमेशा अपनी जा का कहा माना था, जैसा क वह आरंभ से
करता आया था। हमारा जीवन दन-ब- दन क कर होता चला गया, पा रवा रक प र थतयाँ
इतनी बगड़ चुक थ क आशा क कोई करण नह दखती थी। हम अपनी जा त से
लगभग ब ह कृत कर दया गया था और हमारे पास मैले व धोने का जो काम था, वह
हमेशा के लए ठ प पड़ चुका था। हम मल कर जो कुछ भी कमाते, उसे ताड़ी पर उड़ा दे त।े
वे दोन याँ क पात व ायः रो गणी रहत । हम उनक कोई परवाह नह थी। इसी
कार दस वष बीत गए, जीवन और भी नराशाजनक होता चला गया।

तभी हमारे राजा को लगा क उसे संपूण भारत पर अपना एकछ सा ा य था पत करना
चा हए। उसके परामशदाता ने उसे अ मेध य रचाने का परामश दया, इसके अनुसार
एक अ को वचरण करने के लए छोड़ दया जाता था। जहाँ भी वह अ जाता, वह भू म
राजा क हो जाती। य द कसी को आप होती या कोई त ं द होता तो वह राम से यु
कर सकता था। य द वह परा जत होता तो उसे वह थान राम के लए छोड़ना होता।
आसपास के छोटे -मोटे रा य के साथ ब त से यु भी ए परंतु उ ह ने आ मसमपण कया
और राम अपनी सव े ता स करने म सफल रहा। जब उस अ ने पास के वन म वेश
कया तो महल क राजनी त के बीच हलचल मच गई। अ को वन म दो अ पायु जुड़वाँ
ाता ने रोक लया जो सीता के ही पु थे, ज ह उसने वनवास क अव ध म ज म दया
था। येक इसे जानता था और उसने दावा कया क वे बालक अजेय थे। यह
समाचार राजा तक भी प ँचा, जो स मन हो कर अपने पु से मलने आ प ँचा। राजा
को पता चला क उसक प नी ने दो जुड़वाँ कुमार को ज म दया था, राजप रवार का
पुन मलन आ परंतु यह सुखद अंत शी ही खद ासद म प रव तत हो गया। राम के
परामशदाता शांत कहाँ रहने वाले थे। उ ह ने घोषणा कर द क सीता अप व थी और
उसक शु ता संदेह के घेरे म थी य क उसने वनवास का यह समय मह ष बा मी क के
साथ एक ही छत के तले बताया था। मने मह ष बा मी क जैसा प व दय कह
नह दे खा था और यह पूणतया प था क वे उसे अपनी पु ी क तरह मानते थे परंतु उन
तथाक थत व ान के तक व व ता पर च ह लगाने का तो ही नह उ प होता
था। सरयू नद के तट पर, एक खड़ी च ान पर फर से अ न व लत क गई और लोग
झुँड के झुँड बना कर, यह दे खने आने लगे क सीता कस कार अ न वेश करके यह
मा णत करेगी क वह प व है।

म अपनी चर-प र चत ताड़ी क कान म बैठा था क मुझे पता चला क राजा को अपनी
वनवास कर रही प नी का पता- ठकाना मल गया है और उसने उसे अपनी प व ता क
परी ा दे ने के लए पुनः धधकती अ न म वेश करने को कहा है। मेरी एक गंजे बूढ़े से
अ छ -खासी झड़प हो गई, जसने राम का गुणगान कर-करके मुझे बुरी तरह से खझा दया
था। मने उस पर क झड़ी लगा द , ‘जब अयो या क संपूण जा यही चाहती थी क
राम वनवास न करे और अयो या का राज-काज संभाले, तब वह अपनी वमाता के वचन
का मान रखने के लए वन म य गया? या तब उसे अपनी जा क इ छा के वषय म
नह पता था? उसने छल व कपट से बाली का वध य कया? जब उसक गभवती प नी
का कोई दोष भी नह था तो उस नद ष ी को वन म भेजने का या औ च य था? वह उसे
बार-बार अ न म य धकेल रहा था? उसने शंबूक का वध य कया? शी ही हमारी
बहस दो प क आमने-सामने क लड़ाई म बदल गई। दोन ओर से कई लोग शा मल हो
गए जो हसक प से मार-पीट करने लगे और गु थमगु था हो गए। ताड़ी क कान के
पहरेदार ने हम सबको ठोकर मार कर बाहर खदे ड़ दया और मने अपने इस गु से को कोसा
जसके कारण मेरी ताड़ी क लत पूरी नह हो पाई थी। कुछ दे र बाद, मने फर से ताड़ी क
कान म वेश करना चाहा पर इस बार भी मुझे लात व घूँस का उपहार दे कर वा पस भेज
दया गया।

म नराश हो कर, उसी थान क ओर चल दया, जहाँ सीता के अ न- वेश क तैया रयाँ
ज़ोर -शोर से चल रही थ । यह तो कसी मेले का य लग रहा था। मठाई व खलौने बेचने
वाले, फेरी वाले, हाथ दे ख कर भ व य बाँचने वाले और इस चम कार को दे खने आए
उ साही ी-पु ष क ठे लम-पेल। मुझे उस थान क ओर धकेल दया गया, जहाँ सरे
नीची जा त वाल के बैठने क जगह थी और म भी उन तमाशबीन क पं म शा मल हो
गया। सूरज बुरी तरह से तप रहा था और लोग गम के मारे भुनभुना उठे । जब भी कोई शाही
रथ नकट से नकलता तो वे उमंग तथा उ साह म आकर चीख़ने- च लाने लगते। मेरे
म त क म बार-बार लंका के ही य नाच रहे थे, जहाँ ठ क यही य दोहराया गया था।
अंतर केवल इतना ही था क यहाँ उमस व बा रश क बजाय प म से चल रही धूल भरी
आँधी हम भू तया बना रही थी।

जब राजा का रथ उ थान पर आया तो सूय प मी तज म छपने क तैयारी म था।


वह ब त ही नराश दखा और धीरे-धीरे अपने लए बने ऊँचे मंच पर जाने लगा। चाटु कार
उस तक अपनी प ँच बनाने के लए एक- सरे पर गरे जा रहे थे परंतु उसने उन सबक
उपे ा कर द । एक वशाल अ न धधक रही थी जो अब लगभग दस फ़ट ऊँची हो चुक
थी। अनुचर उसम घी डाल-डाल कर पंखे से हवा कर रहे थे ता क उसे और अ धक
भड़काया जा सके। फर वे सीता को ले आए। उसके साथ ही दो दस वष य बालक भी थे।
संभवतः वे इस त य से अप र चत थे क वहाँ उनक माँ को जीते-जी अ न के सुपद करने
के लए लाया गया था।

ा ण पुरो हत ने हमेशा क तरह अपना लंबा व नीरस भाषण दे ना आरंभ कया परंतु
संभवतः उसे हम पर दया आ गई या उसने खीझी व चढ़ ई भीड़ क मनः थ त को भाँप
लया इस लए उसने शी ही यह सब समा त कर दया, जब क सामा यतः वह ऐसा नह
करता था। कुछ उ साही मह वाकां ी राजनी त ने राम के नाम क जयजयकार क और
भीड़ ने भी उसी उ साह व उमंग से यु र दया। सीता के मुख पर कोई भाव प रल त
नह थे, वह एक बार पुनः मूक रह कर ही अपमान का गरल पी रही थी। समय मानो जम सा
गया था।

फर सब कुछ बड़ी ती ता से घटा। सीता ने ज द से धधकती अ न क द णा क और


एक ण के लए वह खड़ी रही। फर उसने धीरे से अपने प त के मुख को दे खा। हम सभी
अपनी साँस रोके खड़े थे। तभी सीता क त परता ने सबको आ यच कत कर दया और वह
दे खते ही दे खते, अ न से र नद क ओर भागी और च ान के छोर से कह अलोप हो गई।
कुछ ण के सदमे से भरे स ाटे के बाद, कुछ लोग उसी ओर भागे, जहाँ जा कर सीता
अ य हो गई थी। राम इस सदमे से वह बेसुध हो कर ढे र हो गया।

म अपनी बूढ़ टाँग म यथासंभव श बटोर कर, वहाँ से भागा। म ध के दे ती भीड़ से


वपरीत दशा म भागा। म वलाप करती य के नकट से नकला। म उस माग से हो कर
भागा, जहाँ व क कान धड़ाधड़ बंद क जा रही थ और लोग कसी उप व क
आशंका से त थे। म उस बाज़ार से नकला, जहाँ लोग आरं भक सदमे क दशा से बाहर
आ गए थे और अपने घर के सुर त वातावरण म शी ा तशी लौट जाने के लए कायरत
थे। वे उस भूकंप के आगमन क संभावना से भयभीत थे, जो भारत म कसी वशाल वृ के
ढह जाने पर आता है। संभवतः म न ही असुर राजकुमारी को इस ू र व नदयी संसार के
पंज से छु ड़ाने म सफल रहा था। य ही म नगर क चारद वारी से बाहर आया तो म हवा म
उछलते ए, स ता से च लाना चाहता था। म अपने पुराने म व वामी रावण से यह
कहना चाहता था क मने अपना काम कर दया था। मने उसक कोई योजना नह बनाई थी,
मने उसके वषय म कोई वचार नह कया था परंतु मुझे यह मरण था क वष पूव मेरे ारा
म दरा के नशे म चूर हो कर क गई आलोचना मक ट पणी के बाद ही इन घटना क
ंखला आरंभ ई थी। भले ही मेरे इस तशोध म हसा का आकषण व चकाचध न रहे ह ,
परंतु फर भी यह कह अ धक भावी रहा था। मेरे वषय म कोई ंथ नह लखे जाएँग,े
कोई क व मेरे नाम से कसी महाका क रचना नह करेगा – म अपने लए ऐसी कोई
क त चाहता भी नह था। म सड़क पर नाचा और धूल म खूल लोटा। मने एक सोते ए
ान को ल तयाया जो र रयाते ए, एक कोने म जा बका। जब तक म घर प ँचा, तब तक
अपनी स ता के मद म चूर हो कर ब त थक चुका था। मने घर जाते ही अपनी बूढ़ प नी
को गले से लगा लया।

इसके बाद दं गे व उप व छड़ गए और आने वाले पं ह दन म जाने कतने लोग अकारण


ही मारे गए। वे लाख यास के बावजूद सीता क दे ह नह पा सके। यह मान लया गया था
क उसे सरयू के नीचे जमे क चड़ ने लील लया था। मने सोचा क असुर राजकुमारी के लए
यही बेहतर था क वह धरती माता क गोद म न त हो कर व ाम करती रहे। अब कोई
राजा जनक नह था जो सरयू से अपने पुर कार को नकाल लेता और इस कार नद ने
अपनी पु ी को अपने दय से लगाए रखा। म सोच रहा था क य द मने ह त के कहे
अनुसार, उसी समय न ही असुर राजकुमारी का वध कर दया होता तो घटना क यह
ंखला कतनी अलग होती। संभवतः मनु य क अपनी तो कोई इ छा होती ही नह और
घटनाएँ उसी तरह घटती ह, जैसा क नय त चाहती है, दे व इस वषय म उ चत ही कहते ह।
जो कुछ भी घटा, वही उ क नय त अथवा भा य रहा होगा। कौन जाने? हम
अपनी झ पड़ी से भी बाहर आने म भय हो रहा था और हम रात भर आतं कत हो कर लाल
आकाश को दे खते रहे। और फर यह सब उसी तरह समा त भी हो गया, जस कार आरंभ
आ था और हम यह जान कर दलासा मला क हम इन सबसे सुर त बच नकले थे।

राम अब पूरी तरह से बखर चुका था, अब उसके भीतर शासन करने क भी इ छा शेष नह
रही थी। उसके चाटु कार उसके नाम से शासन करने लगे और दन-ब- दन प र थ तयाँ और
भी नराशाजनक होती चली ग । राजा अपने क म बंद रहता, उपवास करता व दन-रात
पूजा-पाठ म डू बा रहता, संभवतः अपनी य सीता से मायाचना करता होगा। वडंबना तो
यह थी क वह सीता को संसार के सवा धक श शाली स ाट से छु ड़ा लाने म तो सफल
रहा परंतु धमपरायणता के आगे इतना श हीन था क चाह कर भी अपनी प नी क र ा
नह कर सका। म थोड़े रोष के साथ वीकार करता ँ क वह सही मायन म अपनी जा
क दे खेरख तथा परवाह करता था। जब तक उसक जा जा तय के अनुसार बने नयम
तथा कत का पालन करती थी तब तक सभी उसके शासन म शां तपूवक जीवन तीत
कर सकते थे। परंतु जस ण शंबूक सरीखा कोई अपनी नय त अपने हाथ म लेने
क धृ ता करता तो धम पी लंबी खड् ग उसका काम तमाम कर दे ती। जब संपूण तं ज म
के समय नयत जा त पर आधा रत भेदभाव तथा सु वधा पर टका था तो ऐसे म कोई
यायी व प पातर हत शासक बन भी कैसे सकता था? जब तक राम का थोड़ा-ब त
नयं ण रहा, तब तक व वध जा तय के बीच एक असहज सा सह-अ त व बना रहा,
य क उसने सभी को पूरा आदर-मान दे ने का आदे श दे रखा था। परंतु सीता क मृ यु के
प ात, राम वर तथा उदासीन हो गया और पुरो हत के धम न ा के जाल ने सारे रा य
को अपने नयं ण म ले लया। दमन च ग त से चला तथा जा तय के लए बने नयम और
भी कड़े होते चले गए। जब सब कुछ असहनीय हो गया तो प रवार एक-एक कर नगर से
बाहर जाने लगे। हम वह टके रहे, हमारा धंधा कुछ चल नकला था य क धोबी जा त के
ब त से प रवार पलायन कर चुके थे और तयो गता पहले जतनी नह रह गई थी। परंतु
अपनी आय म जरा सी वृ होते ही म और शव पुनः पूरे वेग से म दरा व ताड़ी के मद म
चूर रहने लगे जससे जीवन पहले से भी अ धक क कारी हो गया। एक दन, शव ने म दरा
के मद म चूर हो कर अपनी प नी को बुरी तरह से पीटा और वह दो दन बाद परलोक सधार
गई। उ ह ने शव को ले जा कर कारागार म डाल दया। इस कार हम राम के रा य से बाँधे
रखने वाला अं तम संबंध सू भी टू ट गया।

कुछ माह तक यहाँ-वहाँ भटकने के बाद, हमने भारी दय से यह नणय लया क उस नगर
को याग कर द ण क ओर चले जाएँग।े जब मने राम को नराश, परा त व एक गहन
र ता तथा उदासी के बीच घरा पाया तो उन ण म मुझे जो आनंदा तरेक आ, उसका
म वणन नह कर सकता। सब कुछ मानो अथहीन हो चला था। हमने अपनी सी मत संपदाएँ
एक पोटली म बाँध तथा या ा का शुभारंभ कया। हम घने वन तथा बंजर पड़ी थ धरती
से हो कर आगे बढ़े । हमारे साथ और भी कई प रवार द ण क ओर पलायन कर रहे थे। दो
बार डाकु ने हमला कया और जनके पास खोने के लए जो भी थोड़ा-ब त बचा था,
उ ह ने उसे भी खो दया। हम नमदा के कनारे थत स क पहा ड़य के समीप
का तवीराजुन क नगरी है म प ँचे और नगर को दे ख कर लगता था क अब तो वह ब त
वैभव-संप हो गया था। वृ राजा मारा जा चुका था, वह परशुराम के लड़ाकू दल के ह थे
चढ़ गया था। अब उसके पु का शासन चलता था। हम वहाँ एक वष तक रहे, चूँ क जा त
था इतनी कड़ी नह थी अतः हम करने के लए काम भी मल गया परंतु थानीय जा हम
वा सय के त रोष जताने लगी थी और शी ही लंबी ला ठय तथा छोटे दमाग़ वाले ठग
हम सभी नवागंतुक को अपना नशाना बनाने लगे।

एक बार फर, हमने अपनी या ा आरंभ क और गोकण प ँचे, यह वही नगरी थी जहाँ मय
ने रावण क इ छानुसार एक महान शव मं दर क रचना क थी, हम इतना थक चुके थे क
हलना भी संभव न था। हमने नगर से ब त र, एक वन म टकने का नणय लया, हम
जा त युत होने के कारण उस नगर म वेश का अ धकार नह था। फर हम कसी न कसी
तरह अपनी आजी वका चलाने लगे और जीवन पुनः एक लय म आ गया। जब माला वर
क चपेट म आकर, इस नया से वदा ई तो मेरे लए यह सब ब त ही अक मात तथा
अनपे त था, य प वह स र वष क हो चली थी। इससे मेरा दय बुरी तरह से टू ट गया।
ऐसा लगा मानो दय का कोई कोना पूरी तरह से र हो गया हो। मने उसे नद के कनारे
दफ़नाया और अपनी या ा आरंभ कर द ।

म गोकण के समीप ही था जब मने यह समाचार सुना क पुरो हत के कहने म आकर राम ने


ल मण के वध का आदे श दे दया था। छोटा राजकुमार पुरो हत ारा चलाए जा रहे ब त से
बेतुके व कड़े अ यास पर च ह लगाने लगा था। वह शासन के संचालन म च लेने
लगा व उसने पाया क ब त से नयम इतने अटपटे थे क वे जा के क का कारण बन रहे
थे। सारी अथ व था चरमरा रही थी य क सभी नपुण मानव म तथा कलाकार, सरे
नगर को थान कर रहे थे। पुरो हत व पंडे ल मण से अपना तशोध लेने के लए अवसर
क ती ा करने लगे। एक दन, जब राम ने वयं उ ह यह अवसर दे दया तो उनक
स ता का ठकाना न रहा। कुछ मु नय का दल राजन से नजी सा ा कार म त था।
राम ने ल मण को आदे श दया क वह कसी को भी क म वेश न करने दे य क उसने
मु नय के समूह को, एकांत म सा ा कार का वचन दया था। एक और मह ष ने भी बल
दया क उसे क म वेश करने दया जाए अ यथा वह राम के संपूण वंश को ाप दे दे गा।
ल मण ने भयभीत हो कर उसे भीतर जाने दया जससे मु नय का पहला समूह ो धत हो
उठा। उ ह ने व वध धम ंथ से लंबे-लंबे उ रण दे ने आरंभ कए और अंत म न कष यह
नकाला गया क राम इस महान अपराध के लए अपने छोटे भाई के वध का आदे श दे दे ।
इस कार महान यो ा तथा मेघनाद के ह यारे ल मण का अंत हो गया; उस के ाण
ले लए गए जो पूरे चौदह वष तक, वन म अपने बड़े भाई तथा उसक प नी क सेवा के
न म , अपनी प नी को अकेला छोड़ गया था; वह जसने बा यकाल से अपने भाई
क पूरी न ा से सेवा क थी। उसके सारे ब लदान, समपण तथा ेम एक ऐसे के
चरण म पड़ा था, जो अपने परामशदाता के नयं ण म था; एक ऐसा जो गहरे
ःख तथा मौन भाव के साथ सब कुछ सहन करता जा रहा था परंतु फर भी उसम इतना
साहस न था क उसके पुरो हत ारा ख ची गई सीमा रेखा को पार कर पाता।

जब म पय वनी नद पार कर रहा था तो एक साधु के मुख से राम के याण का समाचार


मला। राम ने अपने धम क खा तर, उन दो लोग के ाण का ब लदान कर दया था, ज ह
वह अपने जीवन म सबसे अ धक चाहता था। उसके जीवन म नराशा व अवसाद ने ऐसा
घेरा डाला क उसने सरयू के काले जल म अपने लए अनंत सां वना पा ली। यह एक राजा
के लए बड़ा ही अशोभनीय तथा मयादाहीन अंत था जसने इ तहास के सबसे रंगीन तथा
म हमामं डत को परा त कया था। राम आजीवन ंथ म लखे श द से ही बँधा रहा।
उसने एक अ स ता से भरा जीवन जीया और सब कुछ ब लदान कर दया, उसने धम के
नाम पर अपनी प नी, अपने भाई व यहाँ तक क अपनी अंतरा मा तक क ब ल चढ़ा द । म
आज भी उसके ने के उस असहाय भाव को भुला नह सकता, जब उसने मेरे नद ष व
न हे शंबूक पर अपनी नंगी तलवार से वार करने के लए हाथ उठाया था। उसक वह छ व,
उस से तो ब कुल ही वपरीत थी, जसे वह परा जत कर चुका था।

रावण एक ऐसा था जसने अपनी शत पर अपना जीवन तीत कया, वही कया
जो उसे सही लगा और ऋ षय -मु नय के लखे क कभी परवाह नह क ; एक ऐसा
जसने अपना जीवन भरपूर जीया और एक यो ा क मौत मरा। उनके जीवन, आदश ,
मू य व धम क प रभाषा क तरह, उनक मृ यु भी वरोधाभासी रह । य प अं तम
स य यही है क वे दोन ही अपनी जीवनगाथा के इस महान हसन म नायक थे। उन
दोन म से वजय ी कसे मली, केवल यही छोट सी बात नणय लेगी क उनम नायक
कौन था अथवा खलनायक कसे माना जाए?

य - य समय बीतता जाएगा, राम दे वता बनता जाएगा और रावण एक के प म


जाना जाएगा य क उनम से राम पुरो हत के हाथ का खलौना था और सरा कसी
च ान क भाँ त अ डग, अजेय तथा हठधम था। इस संसार के रावण उनके लए ख़तरनाक
ह जो ंथो को अपने वाथ के लए योग म लाना चाहते ह और सर पर वा म व जताते
ए, सबका शोषण करने क इ छा रखते ह। ऐसे ही शोषक संसार म आए राम का योग
करते ह, उ ह वे अपनी जीवनशैली के नमून के प म तुत करते ह, परंतु य - य समय
बीतता जाता है, यहाँ तक क राम व ल मण भी संकटपूण होते जाते ह, य क उनके भीतर
बसी मानवता व ोह करने लगती है। जब न हे बालक का सर काटते समय राम के हाथ
काँपे तो वह मंडली जानती थी क वह बाद म ख़तरनाक सा बत हो सकता था। केवल
उसे परा त करना ही एकमा हल था य क वे उसके श ु को तो पहले ही परा त कर
चुके थे। वे रावण से पूरी तरह से नराश हो चले थे; और कुछ समय के लए राम को भी
संभाल सकते थे; परंतु वभीषण, कुबेर तथा व ण सरीखे लोग के साथ सही मायन म
आनं दत रहते थे। वे राम क तरह सरल तथा धम य नह थे और न ही रावण क तरह
व ोही अथवा दं भी थे। वे इस संसार म कुछ भी करने म स म थे, वे धमाध क बोली लगा
सकते थे; लोग को मार सकते थे; संघष आंरभ कर सकते थे और धम व धम ंथ के नाम
पर कोई भी अमानवीय कृ य कर सकते थे। मुझे जैसे तु छ, अ ासं गक, मूक-ब धर तथा
नाकार ने इस सबक को उ रजी वता के आधारभूत साधन के प म मरण रखा। कभी-
कभी हम असंभव सपन के महल बनाने वाल क बात म भी बह जाते है, जैसे रावण,
महाब ल या फर शंबूक के गु जैसे लोग… ऐसे अमूत सपन के लए लड़ने वाल तथा
नेता का पालन करने वाले अनुया यय के प म, हमेशा हम मूख को ही मोल चुकाना
पड़ता था। परंतु कभी-कभी व दम नह तोड़ते और उ रजी वता भी मह व खो दे ती है।
रावण अथवा मेघनाद क भाँ त जी वत रहने तथा मरने म भले ही कतनी भी क त य न
हो, हो सकता है क धम जैसे अमूत वचार के लए सदै व समथन दे ने तथा राम क तरह सब
कुछ ब लदान कर दे ने म भी कोई संतु छपी हो। परंतु ऐसी क तयाँ तथा यश मेरे जैसे
य के लए ऐसी वला सताएँ थ , ज ह पालना हमारे वश म नह था।

म पूरे एक माह तक चलने के बाद, अपने ज म थान पर प ँचा। जब मने घाट म पहली
रेखा क तरह वा हत पूणा नद को दे खा, मेरा दय ब लय उछलने लगा। सारी मृ तयाँ
दौड़ कर गले आ लग और मारे भावुकता के कंठ अव हो गया। मने यथासंभव कुलाँच
भर व नद के समीप जा प ँचा। मने उसके शु नमल जल म छलाँग लगा द और कसी
ब ख क तरह तैरने लगा। ऐसा लगा मानो मेरी युवाव था लौट आई हो। म ब त दे र तक
तैरता रहा, म अवणनीय आनंद क ब त झीनी सी परत पर तैर रहा था। तभी मेरे माथे पर
पड़े एक तीखे प थर ने मुझे मेरे सपने से झकझोर कर जगा दया, “नीच जात! इस प व
जल को षत करने का साहस कैसे कया?”

य ही म सी ढ़य से ऊपर आया, तो दे खा क उ च जा त के कुछ लोग मुझे ही ताक रहे थे।


म अपने ाण बचा कर भागा, अब मुझे उस जल से भी र भागना पड़ा जो दे व का हो गया
था। बाद म मुझे पता चला क मेरा दे श, अब दे वता का अपना दे श हो गया था और अब
वहाँ मनु य के लए कोई थान नह रह गया था। परशुराम असुर क ओर से होने वाले
अं तम व ोह को भी दबाने म सफल रहा और वह सबसे अ धक क र तथा ू र जा त था
को था पत करने म भी सफल रहा, जसक कभी कसी ने क पना तक नह क थी।
परशुराम ारा रचे गए नक क तुलना म राम क अयो या कसी वग से कम न थी। दे व
येक पाषाण के पीछे से झाँकते; वे येक वृ से टँ गे थे, हर कोने म छपे थे और मनु य
का जीवन क कर बना दया था। परशुराम अपने साथ उ र से चसठ ा ण प रवार लाया
था। परा जत असुर के सं ात वग ने उनका अनुचर बनना वीकार कया और उनके लए
सर का दमन करने वाले ू र व सश साधन बन गए। मेरी ज मभू म एक ऐसा बौराया
थान बन गई थी जो जा त के समीकरण तथा वजना म उलझी थी। म दे व क इस भू म
से ब त र भाग जाना चाहता था, जैसा क और भी ब त से लोग कर रहे थे, वे सागर पार
कर, प म के जलते म थल क ओर जा रहे थे। परंतु म अब इतना वृ हो चला ँ क
और कोई या ा नह कर सकता। म यह ज मा था और चाहता ँ क मेरी मृ यु भी यह हो।
मेरी ज मभू म क धरती ब त वरदायी है और यह वचा के वण म भेदभाव नह करती।
ना रयल व कटहल, ख़रगोश व जंगली बेर और पूणा नद का शीतल जल, मेरी कुबड़ी और
थक बूढ़ दे ह को जी वत रखने के लए यह सब आव यकता से कह अ धक ह।

कभी-कभी, म पूणा नद क ऊपरी पहा ड़य पर थत, झरन के समीप चला जाता ँ और


वहाँ से च ान पर गरती नद को दे खा करता ँ। म नह जानता क य , परंतु इससे मुझे
ब त मान सक शां त मलती है। कभी-कभी यह सोचता ँ तो आ य होता है क म अपनी
युवाव था म इन आलीशान जल पात म कूदने का साहस कहाँ से जुटा लेता था। कभी-
कभी म झरन के ऊपर उभरी च ान पर पीठ के बल लेट जाता और वहाँ से व तृत आकाश
म तैरते न हे, ईनुमा बादल को ताकता। झरना का वर मेरे कान म भर जाता और साथ
ही तोत क ट-ट भी सुनाई दे ती। ा ड कस कार अनंत, शा त तथा बाधा से परे
दखाई दे ता है। कभी-कभी मुझे एहसास होता है क यह मनु य तथा उसक तु छ
ग त व धय से कह परे है और कभी-कभी ऐसा लगता है क कोई ब त ही वशालकाय ने
हम सबको ताक रहा है। मने ब त पहले, जीवन का अथ तलाशने क अपनी ज ासा याग
द है। हो सकता है क म एक मूख ही होऊँ य क मेरी चमड़ी का रंग भी काला है।

परंतु कुछ न त दवस म, वशेष प से वषा होने के प ात, जब कृ त ब वध रंग म


खलती है और घास भीनी गंध के साथ नकलती है, तो म नद के उस पार से आते मधुर
गीत के कुछ अंश सुन सकता ँ। वे उस व णम काल के वषय म गाते ह, जब इस धरती
पर स ाट महाब ल का शासन था, जब येक मनु य को एक समान माना जाता था, जब
चार ओर शां त का सा ा य था, कसी कार का छल या संघष नह होता था। मुझे कभी-
कभी इन गायक के सीधेपन पर हँसने का भी मन करता है। परंतु अ धकतर, आशा व
उदासी का एक म त सा भाव मेरे म त क को प रपू रत कर दे ता है। हो सकता है क नद
के पार, मेरे जैसे काली चमड़ी वाल के ही ाम ह । हो सकता है क वे ओणम मना रहे ह ,
उस वण युग क वापसी क ती ा कर रहे ह , उस राजा क ती ा कर रहे ह जो ब त
पहले इस संसार से वदा ले चुका है और जसे उ री स क कसी गुहा म दफ़ना दया
गया है। य प उनक इस आशा म एक मधुरता का आभास छपा है। मनु य के दय म
छपे उन असंभव व म भी श दातीत सुंदरता छपी है। कोई भी प व ंथ उ ह मटा नह
सकते, कोई भी वजनाएँ उ ह बाँध नह सकत और कोई भी ई र उ ह चुरा नह सकते। हो
सकता है क मनु य न रह परंतु ऐसी आशाएँ सदै व बनी रहती ह। म ब त वृ हो चला ँ
और कसी भी दन, उन लाख लोग क तरह अपने ाण का याग कर सकता ँ, जो इस
संसार म अपनी कोई भी पहचान छोड़े बना यूँ ही चल दे ते ह। हो सकता है, जैसा क
ा ण कहते ह, म बार-बार इस संसार म ज म लूँगा, य द ऐसा है तो यह अपने-आप म
सबसे बड़ी आशा है। येक मृ यु, जीवन पी संगीत रचना म एक अ थायी वराम है। इस
आनंददायक संसार म बार-बार लौट कर आने के वचार म ही अनंत स दय छपा है।
संभवतः, इस अ त जगत म मेरी वापसी के दौरान एक बार, कौन जाने, म यह भी पा
सकता ँ क उस मधुर संगीत के सभी श द स य हो गए ह।
आभार
‘असुर’ अनेक य क आभारी है। सबसे पहले, म अपने माता- पता वग य एल.
नीलकंठन तथा चे लमाल नीलकंठन के त अपना हा दक आभार कट करना चाहता ँ,
ज ह ने मेरे लए भारतीय महाका के जा ई जगत के ार खोल दए। म अपने दोन
भाइय लोकनाथन तथा राज न के त भी आभार कट करता ँ, ज ह ने मेरे माता- पता
तथा पड़ो सय के साथ, अनेक स मो हत कर दे ने वाली सं याएँ आयो जत क , जहाँ
भारतीय दशन, महाका तथा लोक-गाथा पर चचा तथा वचार- वमश होता था। एक
लेखक तथा के प म, मेरे वकास के लए, बहन चं का तथा उनके प त परमे रन
ने जो भू मका नभाई है, उसके त आभार कट कए बना कैसे रह सकता ँ? मेरी भांजी
द ा, भतीजी राखी व भांजे दलीप क ओर से मली अया चत, धृ व ायः शरारत से
भरी आलोचना ने मुझ,े अपनी का प नक उड़ान से बाहर आने म सहायता क , जनम म
अ धकतर खोया रहता। यह पु तक उन सभी गरमा-गरम चचा के अभाव म अपना
आकार नह ले सकती थी, ज ह म अ सर, अपने प चीस वष पुराने म संतोष भु के
साथ कया करता था और अब भी उनका पूरा आनंद उठाता ँ। म ल मी नायर को भी
ध यवाद दे ता ँ, ज ह ने मेरे पहले ा प म संशोधन कए, मेरे म व सहकम ेमजीत ने
अं तम ा प को पढ़ा व संशोधन कए, उ ह भी हा दक आभार! म राजीव काश को भी
ध यवाद दे ना चा ँगा, ज ह ने पूरे उप यास को धैयपूवक पढ़ा तथा मु ण क क मय व
ु टय क ओर संकेत कया।

म लीड टाट क पूरी ट म का आभारी ँ ज ह ने रावण तथा भ को अपनी बात कहने का


अवसर दया। लीड टाट क संपादक य नदे शक चं लेखा मै ा क ओर से जो ो साहन
ा त आ, वह वा तव म अ त था और म उ ह हा दक ध यवाद दे ता ँ। उनके सहयोग व
मागदशन के बना ‘असुर’ और कुछ नह , बस मेरे लैपटॉप म पड़े कुछ श द मा बन कर
रह जाती। एक नवो दत लेखक के उप यास म संशोधन व संपादन क पीड़ादायी या
से गुज़रने वाली ऐ या बाटन डसूजा, अपने धैय के लए पुर कार पाने क अ धकारी ह।
म इतने सुंदर आवरण च के लए म ा राय तथा च के लए पल एश स टू डयो के
सुबु व अशोक का आभारी ँ।

यह पु तक मेरी जीवनसं गनी अपणा के सहयोग, नेह तथा ो साहन के अभाव म पूरी नह
हो सकती थी। वे एक नेहमयी आ लगन क अ धकारी ह। और हमारे दो नटखट शैतान,
अन या तथा अ भनव, जो मेरे ारा लखी जा रही कहा नय क बजाय, मुझसे सुनी गई
कहा नय म अ धक च रखते ह, म अगली सौ रात तक, तुम दोन के लए सौ से अ धक
कहा नय का ऋणी ँ। अंत म, म भारत के उन अ ात कथावाचक के त भी आभार
कट करता ँ, ज ह ने पछले तीन हज़ार वष से, कथावाचन क इस परंपरा को जी वत
रखा है। म अपने दे श तथा इसके कभी समा त न होने वाले, धा मक पौरा णक गाथा के
अ य कोष का सबसे अ धक ऋणी ँ।

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