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असुर
परा जत क गाथा
रावण व उसक जा क कहानी
आनंद नीलकंठन
Distribution Centres
Ahmedabad, Bengaluru, Kolkata, Chennai,
Hyderabad, Mumbai, New Delhi, Pune
ISBN 978-81-8322-435-2
Disclaimer
This is a work of pure fiction. All the characters depicted are fictitious and any resemblance to
real persons living or dead, is purely coincidental. The author has used iconic names, dates, and
events to aid story-telling. There is no intention to imply anything else. The content of this book
is the sole expression and opinion of its author and a work of his imagination and does not
claim scriptural authenticity. This work does not represent the views of the Publisher, nor
endorses them in any way. The publisher makes no representations or warranties as to the
completeness or accuracy of the information used in this work. Readers are requested to bear
in mind that this work is fiction and does not purport to any religious or spiritual instruction or
advocacy.
परा जत भ इस तरोताज़गी से भरपूर कथानक का नायक है, जसे लेखक ारा एक
अ भनव यास के प म दे खा जा रहा है, ज ह ने कसी सामा य जन क अपे ा, भ के
कोण से रामायण को नए सरे से तुत करने का साह सक क़दम उठाया है। यह सही
मायन म, रावण तथा उसक जा क स मो हत कर दे ने वाली कथा है।
–द ह
असुर सा ा य के एक सामा य नाग रक तथा परा जत असुर स ाट के कोण के
साथ-साथ, यह उप यास हमारे युग पुराने महाका को एक संपूण प से ताज़ा व नया
नज़ रया दे ता है। यह परा जत तथा अब तक मूक रहे लोग क कथा है। एक ब कुल ही
नवीन कोण।
– डेकन ॉ नकल
यह रामायण के एक असंभा नायक – रावण के कोण का आ मकथा मक
ववरण है। संभवतः पहली बार कोई उप यास रावण के कोण से लखा गया है। रावण
का दं भ हम सोचने पर ववश कर दे ता है।
– द यू इं डयन ए स ेस
इससे कोई अंतर नह पड़ता क आप पौरा णक गाथा म व ास रखने वाले ह
अथवा नह , असुर – परा जत क गाथा, एक पठनीय पु तक है य क इसका नया वषय
आपके म त क को आंदो लत करने क पया त मता रखता है। लेखक ने रामायण क
घटना को उ लेखनीय व ता कक प म तुत कया है। एक भावो पादक उप यास।
– आ टरनून वॉइस
लेखक ने अपनी वणना मक शैली म ब त ही सुंदर तरीके से रावण तथा राम के पा
को च त कया है। यह पु तक असुर तथा दे व के म य ए संघष का उ लेखनीय दशन
करती है। वतमान के े महाका कथानक म सव े तथा ब त ही क पनाशील!
– नट मरर
यह रावणायन है, रामायण का असुर सं करण।
– वव मैगज़ीन
एक तथा उसके लोग क कथा, ज ह ने ःसाहस कया। एक असुर महागाथा –
यह न त प से रावण क ओर से सुनाई जाने वाली पौरा णक कथा म एक ब कुल ही
नया मोड़ है।
– इं डया लाज़ा लटरेरी र ू
रावण, ‘भुलाया आ नायक’। हमारी बे ट सेलर सूची म एक रोमांचक मोड़ है, असुर।
– ॉसव ड ऑ फ़ शयल लॉग
य द आप पौरा णक गाथाएँ, इ तहास तथा चाण य मं , नागा रह य जैसी पु तक पढ़ना
पसंद करते ह, तो यह न त प से आपके लए ही है। एक बेहद सफल पु तक।
– लडमाक ऑ फ़ शयल लॉग
मेरे माता- पता
वग य ी एल. नीलकंठन व
चे लमाल नीलकंठन को सम पत,
ज ह ने मेरे लए भारतीय पौरा णक
गाथा से रचे
जा ई संसार के ार खोले!
लेखक के वषय म
मेरा ज म, केरल म कोचीन क बाहरी सीमा पर थत, एक छोटे से वल ण गाँव
पूनीतुरा म आ। वबानाड झील के पार, एरनाकुलम के पूव म थत इस गाँव को, कोचीन
के शाही प रवार का थान होने का गौरव ा त आ था। य प, यह अपने सैकड़ व च
दे वालय ; अपने शा ीय कलाकार तथा संगीत व ालय के लए अ धक स था। मुझे
आज भी मरण है, मेरी कतनी ही शाम, दे वालय से आते चड , क म म धुन तथा संगीत
व ालय क खुरदरी द वार को भेद कर आती बाँसुरी के सुर को सुनने म बीतती थ ।
य प खाड़ी से आए धन तथा तेज़ी से व तार कर रहे कोचीन नगर ने उस पुराने संसार के
आकषण के बचे-खुचे अवशेष को भी धो-प छ कर बहा दया है। पूरा गाँव एक आम व
साधारण उपनगरीय नक म बदल गया है, जसके त प पूरे भारत म दे खे जा सकते ह।
रावण
कल मेरा अं तम सं कार होगा। म नह जानता क वे मुझे कसी खुजली वाले कु े क तरह
दफ़ना दगे या मुझे कसी स ाट के लए उपयु अं तम सं कार का भागी माना जाएगा –
एक भूतपूव स ाट। परंतु इससे कोई अंतर भी नह पड़ता। म छ ना-झपट के कारण सयार
के मुख से नकल रही व न सुन सकता ँ। वे मेरे प रजन व म के शव को अपना आहार
बना रहे ह। अचानक ही पैर के ऊपर से कुछ सरसरा कर नकलने का आभास आ। ये या
था? मुझम तो सर उठा कर दे खने क श तक शेष नह रही। घूस… बड़े और काले बाल
वाले चूहे। जब मूख ने पर पर वनाश का काय पूण कर लया तो यु े पर इन घूस ने
अपना अ धकार जमा लया है। आज का दन उनके लए कसी उ सव से कम नह है, जो
क पछले यारह दन से चलता आ रहा है। सड़े ए माँस, पस, र , मू व शव से आती
सड़ांध और भी गहराती जा रही है। श ु प क और हमारी भी! परंतु कोई अंतर नह
पड़ता। कसी भी बात से अंतर नह पड़ता। म भी शी ही ाण याग ँ गा। यह क दायी
पीड़ा अब सहन नह होती। उसके ाणघातक तीर ने मेरे उदर पर गहरा वार कया है। म
मृ यु से भयभीत नह ँ। म कुछ समय से इसके वषय म वचार करता आ रहा ँ। पछले
कुछ दन म हज़ार जान ग ।
म एक बात नह समझ सका क जब म गरा था तो राम मेरे पास आकर य खड़ा हो गया
था। वह वहाँ इस कार खड़ा था मानो मुझे अपना आशीवाद दे रहा हो। उसने अपने भाई से
कहा क म इस जगत का सबसे व ान ाणी व एक महान राजा था और कोई भी मुझसे
शासन व ा क श ा ले सकता था। मने लगभग ज़ोर से ठहाका लगाया। मने तो इस
कार सुशासन चलाया क आज मेरा ही सा ा य मेरे आगे चूर-चूर आ पड़ा था। म अपने
सै नक क जली ई दे ह क गध अनुभव कर सकता था। कोट के जलने से उ प
ती ण गंध अब भी मेरी इं य म बसी है। म अब भी अपनी भुजा म मेघनाद के शीतल
और ाणहीन शव को अनुभव कर सकता था। म इन दो यो ा व उनक वानर सेना से
अपनी जा क र ा नह कर सका और वह कह रहा था क म एक महान शासक था? म
इस अ वधान को अव य ही सराह सकता था। म अपने श ु का उपहास करना चाहता
था; उन सब मूख का उपहास करना चाहता था ज ह ने मुझ पर व ास कया और आज
यु भू म म सर वहीन, अंग से र हत तथा नज व अव था म पड़े ह। म सभी मनु य के
लए समानता के उन आदश व का उपहास उड़ाना चाहता था जनके आधार पर मने
अपने सा ा य क आधार शला रखी थी। नःसंदेह यह सब उपहास यो य ही था परंतु कसी
स ाट के जीवन के अं तम ण न त प से ऐसे नह होने चा हए थे। मने कठोर प र म
कया और दे व व उनके ारा चुने गए मनु य के साथ यु कया। मुझे तो संदेह है क या
वग म उन लोग को थान मल पाता होगा, जो हँसते-हँसते ाण याग दे ते ह।
तभी अक मात् प से, जस तरह चूह और सयार क बन आई थी, उसी तरह वे शांत भी
हो गए। अंधकारपूण रा से भी अ धक अंधेरी छाया मुझ पर पड़ी। घुंघराले बाल वाले
काले से सर ने उस एकांत म टम टमा रहे तारे को मेरे ने से ओझल कर दया। या वह
मृ यु का दे व, काल था जो मुझे लेने आया था? मने अपनी आँख पूरी तरह से खोलने का
भरसक य न कया कतु सूखा र पलक पर जम गया था। या यह राम के अनुचर म से
कोई था जो मेरा शीश काटने आया था ता क उसे यु म व जत पुर कार क भां त दशाया
जा सके? म उसका चेहरा दे खना चाहता था। म अपने इन अं तम ण म अपलक व
अ वचल भाव से ताकना चाहता था। उस सर व घुंघराले बाल को दे खते ही अचानक मुझे
मेरे अतीत क याद आ गई। या म उसे जानता ? ँ वह झुका और मेरे चेहरे क ओर दे खा।
ओह! ये तो भ है। म , संभवतः एकमा जी वत म पर म यह नह जानता क उसे म
कह भी सकता ँ अथवा नह ? वह आरंभ म मेरा एक अनुचर, पैदल सै नक था। फर वह
जाने कहाँ खो गया। वह बार-बार मेरे जीवन म आता-जाता रहा और कई बार तो वष
दखाई नह दया। जब म कसी ां तकारी सेना क बजाय लुटेर के दल सरीखे दखने
वाले दल का मुख था तो भ क प ँच मेरे नजी डेरे तक थी। फर जब म छोटे से प का
राजा बना तो उसक प ँच मेरे नजी क तक थी। अंततः, जब म भारत पर शासन कर
रहा था तो उसक प ँच मेरे शयनक तक हो गई थी। इससे भी बड़ी बात यह थी क भ
क प ँच मेरे मन के अंधकारमय कोन तक भी थी; एक ऐसा ह सा जसे मने अपने
भाइय , अपनी प नी, अपनी े मका, अपनी जा व यहाँ तक क वयं से भी छपा रखा
था।
एक तरह क उदासी और खालीपन ने मुझे घेर लया। “महाराज! म आपके अधूरे काय को
पूरा क ँ गा। आप चता न कर। आप शां त से ाण याग। म अपनी जा त के लए ऐसा
क ँ गा। हो सकता है क मेरे तरीक़े भले ही अलग ह , वे आपके तरीक़ क तुलना म अधम
ही य न जान पड़। म भी तो कभी एक यो ा था, परंतु अब म वृ हो चला ँ। अब मुझे
सेनाएँ भयभीत कर दे ती ह। म यु से डरने लगा ँ। म अब एक बालक को भी चोट नह
प ँचा सकता। जो भी हो, मेरे अपने तरीक़े ब त ही घातक ह। म आपके लए तशोध
लूँगा, मेरे लए और हमारी अ भशा पत जा त के लए! राम ने हमारे साथ जो कया, उसके
लए उसे मा नह कया जाएगा। मेरा व ास कर व शां त से ाण याग।”
मने भ क अ धकांश बात सुनी ही नह । कतनी व च बात है, य प मुझे बड़ा ही सुकून
मला और म इस गधयु असुर से कह र, अपने बा यकाल म लौट गया। मेरे म त क
म हज़ार छ वयाँ नाचने लग । मेरे ारं भक संघष, नेह व प र याग क पीड़ा, वयोग,
सं ाम व यु , संगीत व कला क छ वयाँ; वे असंगत प से मेरे म त क म घूम रही थ ,
उनका कोई अथ नह था… ब कुल अथहीन… जैसे यह जीवन है।
रावण
मानसूनी हवाएँ उस छोट सी कु टया को हलोर दे ने म कोई कमी नह छोड़ रही थ , जो एक
पवत क खड़ी च ान पर सं द ध प से थत थी। बस हवा का एक और ध का और वह
नीचे ता से मुँह खोले, ती ारत् काली चंड धारा म जा गरती। तब हम मृ यु के हाथ
त होने वाले छोटे कण मा होते। वैसे तो यह सब कुछ यूँ ही समा त हो जाता तो कह
बेहतर था, परंतु यह तो अंत का आरंभ मा था। या मुझे इ तहास के प से यूँ ही मटाया
जा सकता था – बस यूँ ही? या म एक ऐसा अ भयान नह था, जो असफल हो चुका था?
यह बात म तब नह जानता था, परंतु मने तो कसी सरे क नय त को पूरा करने के लए
ज म लया था। मने ज म लया ता क कसी सरे को दे वता बनने का सौभा य मल
सके।
तीन भाई-बहन व लान मुख माँ के साथ, मने अपने सौतेले भाई के जगमगाते महल पर
डाली। यह सब ब त नकट था, परंतु उसके बावजूद मानो एक सरे ही संसार का अंश
था। म एक बार, अपनी नधन और गहरी काली रंगत वाली माँ क ओढ़नी म छप कर वहाँ
गया था। छोटे भाइय ने मेरी अँगुली थाम रखी थी और मेरी बहन माँ के कँधे पर, कसी गंदे-
पुराने चथड़े क तरह भूखी- यासी, बेसुध ल दे सी पड़ी थी। हम द र थे, अ यंत नधन।
हमारे पास केवल एक ही व तु चुर मा ा म थी, और वह थी हमारी नधनता, हमारी
द र ता, हमारी ुधा और हमारी ल जा!
मेरे भाइय को और मुझे कभी कोई ऐसी श ा नह मली, जसके वषय म बताया जा
सके। य द हम कसी ा ण के यहाँ नःशु क काय करने के लए भी तैयार हो जाते, तो भी
कोई हम श ा दे ने को तैयार नह था। हम अस य, काले व शरारती थे। हमने जाना था क
हम वणसंकर थे। हमारे पता एक व यात मह ष थे, परंतु हम इसका कोई लाभ नह मल
सका। वे अपनी व ा के संसार म इतना म न थे क उ ह अपनी संतान के वषय म वचार
करने क सुध ही नह थी। वे एक ा ण थे। मेरी माँ एक अ ात असुर वंश से थ । उ ह ने
इस संबंध को एक मु रह य के प म रखा। वे सं कृत वेद के वषय म पया त जानकारी
रखते थे, जसके लए ा ण का दावा था क उसम सारे संसार का ान समा हत था।
यह बात तब क है, जब मेरे पता मेरे सौतेले भाई कुबेर को अपना सारा धन दे चुके थे।
हमारे पास कुछ नह बचा था। इन प र थ तय म पलना-बढ़ना इतना सरल भी नह था,
एक नरंतर सु कर दे ने वाली पीड़ा का अनुभव, एक ऐसी पीड़ा, जो नरंतर ट स मारती
रहती है और धीरे-धीरे अपनी काली अँगु लयाँ क आ मा पर फैला दे ती है। य प
हमने सदाचार के पथ को कभी नह यागा। हम कभी अपने धम व न ा से पीछे नह हटे ।
सु श त व गौरवा वत वग जस याय भावना को समु चत मानता था, हमारी धारणाएँ
उससे अलग थ । हमने अपने लए सदाचार के नयम वयं बनाए और अ धकार को अपने
ही अनुसार प रभा षत कया। हमने सीखा था क स य को अपनी आव यकता के
अनुसार तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है। हमारा धम ब त साद बात पर नभर था: एक
को सदै व अपने दए वचन का पालन करना चा हए; उसे हमेशा अपने दल क बात कहनी-
सुननी चा हए और ऐसा कोई काय नह करना चा हए, जो उसे वयं अनु चत जान पड़े। भले
ही कोई असफल ही य न होने वाला हो, उसे कभी कसी के साथ छल-कपट नह करना
चा हए। को य को आदर-मान दे ना चा हए और कसी का अपमान नह करना
चा हए। य द कह कोई अ याय होता दखता, तो हम हर हाल म उसका तकार करते।
हमने कभी ाचीन असुर व दे व संत ारा द गई महान श ा को नह जाना। हम कसी
परंपरा का पालन नह करते थे। हम लगभग घ टया व दोगले आद मय क ेणी म गने
जाते थे।
मेरी माँ के आँसू जैसे मेरी आ मा को भेदते चले गए थे। वे चाहती थ क हम बाहर जाएँ
और संसार को जीत ल, हालाँ क वे हम सदा अपने पास भी दे खना चाहती थ । संभवतः
उ ह ने मेरी आँख म जलती चगा रयाँ दे ख ली थ इस लए तय कर लया था क मुझे नह
रोकग । जब मने पीछे मुड़ कर दे खा तो मुझे चीथड़ म लपट , कूबड़ के भार से दोहरी माँ
खड़ी दखाई द , जसक गोद म मेरी बदसूरत बहन टँ गी थी। वह हमारे लए सबसे सुंदर
शशु थी कतु जब मने अपनी माँ के ारा सखाई गई न प भावना के साथ उसे दे खा तो
मुझे न चाहने पर भी, अपने पता क कही बात का ही अनुमोदन करना पड़ा क उ ह ने मेरी
बहन से बदसूरत जीव, इस संसार म सरा नह दे खा था। म उनके ारा कही गई इस बात
के कारण उनसे घृणा करता था। म उनसे इस बात के लए और भी घृणा करता था क ये
बात स य थी।
मेरे सौतेले भाई के महल का ारपाल, सागर तट पर अपने म के साथ बैठा था। उ ह ने
हम तीन कशोर को बेड़े के साथ जूझते दे खा तो सभी ठहाके लगाने लगे, और हमारी मौत
के नाम अपने जाम भरे। यहाँ तक क उ ह ने भ े गाने गाते ए, मेरी माँ का अपमान भी
कया। म उनक गदन नापना चाहता था परंतु म अपनी माँ को वचन दे चुका था क जब
तक म इस संसार के तौर-तरीक़े नह सीख लेता और मुझम अपनी श को पूरी न प ता
व याय के साथ, योग म लाने क बु नह आ जाती, तब तक म हसा का योग नह
क ँ गा। मने सु र सागर के सरे छोर पर अपनी अ ुपू रत आँख टका द – वहाँ इस
नदयी जगत, मेरे अपने जगत तथा मेरे गु के लए, सफलता क आशाएँ थ ।
मने अपने भाइय के साथ स के सदाबहार घने वन के बीच अपनी या ा आरंभ क । हमने
वैभवशाली ासाद तथा बंदरगाह दे खे, हाथी दाँत, चंदन, मोर व वानर दे खे। हमने सु र ांत
म जा रहे रंगीन समु जहाज़ दे खे, जो वण, हीरे-जवाहरात, काली मच व मसाल से लदे
थे। हमने वे मं दर दे ख,े जनम नवास करने वाले इ दे व अपने भ से उनक आय का
एक अंश माँगते थे, जसे वे कड़े प र म से अ जत करते। हमने ई र के उन त न धय को
भी दे खा, जो उसके नाम पर लूटमार करते थे। नगर सूय के उ वल काश क तरह
चमचमाते थे और याँ इतनी रमणीय थ , जैसे वग म होती ह। मने उन जहाज़ को
क चत् गव, ई या व ोध के म त भाव के साथ दे खा, जन पर मेरे सौतले भाई कुबेर के
नाम क पताकाएँ लहरा रही थ । हम जस भी नगर म गए, वह कुबेर के त न धय का
कायालय दे खने को मला। वह प म थत, अपने महल से ही इतने बड़े वसाय का
नयं ण करता था। अ ारोही संदेशवाहक उसके ावसा यक साझेदार व ापार संघ के
पास मह वपूण प ले जाते। उसके वा म व म एक सौ तीस से अ धक समु जहाज़ थे,
जो यूनान, म व चीन जैसे दे श क या ा पर रहते। मुझे पूरा व ास था क य द हमने
कुबेर के भाई होने का संकेत दया होता, तो उसके उन असं य वणमं डत कायालय म बैठे
क न बंधक न त प से हमारा वागत करते। परंतु म ऐसा कभी नह करना चाहता
था। म अपने सौतेले भाई के इन कायालय म से, कसी एक म काम करते ए, बड़ी ही
सरलता से अपना पूरा जीवन तीत कर सकता था। इस तरह कम से कम, मेरे प रवार के
लए दन म एक समय के भोजन का बंध तो हो ही जाता परंतु म अपने भाई क उन
उदासीन आँख व वर को कैसे अनेदखा कर सकता था, जो उसने हम सोने के
स के दे कर, महल से वदा करते ए द थी। म उसके इतने बड़े, समृ वसाय म कसी
छोटे पद पर काय करने के थान पर मृ यु का वरण करना कह ेय कर समझता। हो
सकता है क यह झूठा अ भमान ही हो। संसार म अनेक ववेक व ानी स जन कह गए ह
क मनु य को संसार के साथ चलना हो तो उसे अपने जीवन के सी मत साधन से ही
ावहा रक तौर पर संतु रहना चा हए। परंतु म तो एक व दश था और म कसी भी
क़ मत पर इस संसार के साथ क़दम से क़दम मला कर चलने को तुत नह था। म तो इस
पर अपना वा म व चाहता था।
हमारे लोग इतने वनीत व कायर य थे? म हमेशा से ही इस वषय म वचार करता आया
ँ। ऐसा य होता है क केवल कुछ लोग ही पूरे संसार क स ा व संपदा पर नयं ण पा
लेते ह और शेष जन उनके सेवक बन कर रह जाते ह और यहाँ तक क इन वाथ दल क
सहायता के लए अपने ाण तक ब लदान कर दे ते ह ता क वे उनक व उनक संतान का
शोषण कर सक। या ये भय था? म नह जानता परंतु मने जहाँ भी दे खा, वहाँ दमन का
च ही चलता दखाई दया। धन, जा त, अनु ान, परंपराएँ, व ास व मा यताएँ; मानो सब
कुछ मल कर वनीत मानवता को कुचलने का षड़यं रच रहे ह । या जीने के लए इससे
बेहतर तरीक़ा नह हो सकता था? जस ण से मने इस ‘ य ’ के बारे म सोचना आरंभ
कया, तभी से मुझे गम दमाग़ वाला ोधी कहा जाने लगा। एक बार मेरे पता के ा ण
म ने मुझ पर यह आरोप लगाते ए, गाँव से बाहर नकालना चाहा क मुझ पर बुरी
आ मा का साया था, उ ह ने कहा क म एक रा स था – एक असुर, असुर! संभवतः
म अभी ब त छोटा और ढ ठ था और संसार के त मेरे कोण को अनुभव ारा समृ
होने म अभी समय था। सदै व शांत रहने वाले मेरे छोटे भाई वभीषण को छोड़ कर, म हमारे
शेष सभी लोग म एक सी ाकुलता दे ख सकता था। मेरा मानना था क वभीषण काफ़
हद तक जड़ बु का था परंतु जब हम बड़े हो रहे थे तो वह पूरे ाम क आँख का तारा
बना आ था। वह सदै व पु तक व ंथ म लखी बात का पालन करता और कभी कोई
नह करता था। कई बार मुझे ऐसा भी लगा क वह इस समाज के लए उपयु था और
आगे चल कर बड़ा नाम कमाने वाला था। और म उसे पसंद करता था। वह इतना छोटा और
नाजुक था क मुझे लगता था क उसे इस नदयी संसार से बचाना चा हए। मुझे सचमुच
थोड़े से आ म व ास क आव यकता थी। वैसे पारंप रक तौर पर दे खा जाए तो म बु मान
नह था।
जस कार वभीषण वेद का पाठ करके आनं दत होता था, म उस कार वेदपाठ नह कर
पाता था। जो भी हो, मुझे तो यही लगता था क वेद थ का छल-कपट थे और इस बात से
कोई अंतर नह पड़ता था क आप कस प म उनका पाठ करते ह। मेरे पता क भाँ त
कुछ आजी वकाहीन ा ण ने, हज़ार वष पूव उ ह रचा था। ा ण वयं को उपयोगी
बनाने क अपे ा, उ ह दे वता का पूजन करते, ज ह उ ह ने वषा, सूय, अ , गौ, धन
तथा अ य व तु के लए आ व कृत कया था। वे जन अ भश त थान से आए थे, वहाँ
संभवतः शीत का आ मण रहता होगा। अ यथा वे मढक क तरह टराते ए, अ न म
चय नत का के टु कड़े डाल कर दे वता के स मुख याचना य करते?
संभवतः म पूवा ही हो रहा था। मुझे यह नह मानना चा हए क जो य काय वे कर रहे थे,
वे य थ अथवा अनुपयोगी थे। वा तव म, यह धन अ जत करने व भौ तक सुख-सु वधाएँ
ा त करने का सव े साधन था। वे ा ण कोई मूख नह थे वे जानते थे क का के
टु कड़े जलाने के थ व अनुपयोगी काय को भी कस कार धरती को तं भत कर दे ने
वाली, वै ा नक खोज के प म तुत कया जा सकता था। उनका दावा था क उ ह ने
इस संसार को नयं त करने वाले बल को, अपने वश म कर लया था। और यह भी बड़ी
रोचक बात थी क बढ़ई, राज म ी व कसान आ द अ धकतर , जो वा तव म कोई
साथक काय कर रहे थे, वे सूय के ती ताप म टराते, इन बे द के स मुख वनय भाव से
झुके रहते। धधकती वाला के सामने उनके मुख से वेद धाराएँ बहत और दै व जाने वे
या- या मं जपते रहते। उनके पास तो मानो इस संसार म येक काय के लए कोई पूजा
या अनु ान नयत था। तु ह कु रोग हो अथवा सद -जुकाम, कोई न कोई ऐसा दे वता
अव य होता, जसे तु ह पूजा दे कर स करना पड़ता। य द तुम चाहते क तु हारी
खःदायी प नी, तु हारे कलहपूण पड़ोसी के साथ घर से भाग जाए तो नःसंदेह इसके लए
भी पूजा और वधान थे। गौ माता के गभ से बछड़े क कामना हो अथवा प नी के लए पु
क इ छा, ा ण आपक सहायता के लए तुत थे। वे केवल एक पूजा दे ते और बछड़े या
एक द पु के आगमन का माग श त हो जाता। आप सदा ा ण के प म रहगे तो
सोलह वष क आयु तक आते-आते आपके पु क गणना व के जाने-माने पं डत म क
जाने लगेगी। य द नह , तो संभवतः वह मेरी तरह उ व अस य होगा, जो ा ण अथवा
कसी भी कार के अनु ान को आदर-मान नह दे गा। मेरा यह मानना है क अब हमारे
बीच और भी अनेक रा स उप थत ह। संभवतः, यह ‘ य ’ नामक सं मण के सा रत
होने के कारण था। या ा ण ऐसी कोई पूजा अथवा अनु ान नह कर सकते थे क हमारे
पापपूण वचार से ओत- ोत म त क को शु व प व कया जा सके? मुझे समय पाते ही
इस मह वपूण त य पर चतन करना था।
रावण
असुर एक जा तहीन समाज से थे और उनके पास एक संपूण जातां क ढाँचा था, जहाँ
कसी नरेश क अपे ा, चुनी गई प रषद के हाथ म ही वा त वक श थी। वे एक घुमंतू
जा त से थे, जो अपने अ त व क र ा के लए शकार करते व लूटमार मचाते, परंतु
संभवतः दो हज़ार वष पूव, वे न दय के कनारे नगर तथा क बे बना कर नवास करने लगे।
कहा जाता है क असुर नगर क सड़क सुवणमं डत आ करती थ परंतु उ ह ने कतने
वशाल सा ा य क आधार शला रखी थी! यह प म म सधु से ले कर पूव म पु तथा
उ र म हमालय से ले कर, द ण म नमदा तक फैला था। यह बड़ी सरलता से, धरा का
त कालीन वशालतम सा ा य हो सकता था। जब म के राजा वयं को दफ़नाने के लए
महान मकबर के नमाण म त थे, तो असुर सा ा य क जातां क प रषद सड़क,
अ पताल, जल नकासी व था तथा वह सब कुछ तैयार करवाने म त थी, जो उनके
अनुसार जा के लए उपयोगी हो सकता था।
मेरी माँ का दावा था क वे एक मुख असुर वंश, हे त से संबंध रखती थ । कुछ लोग उनक
बात का व ास भी करते थे। जो भी हो, मुझे यह सोच कर गव का अनुभव होता क म
वा तव म, एक कुलीन जनजा त से संबंध रखता था। हालाँ क, असुर कभी य प से
धा मक नह रहे, परंतु हमारे भी अपने दे वता थे। उनम से शव सबसे मुख थे। हमने जाना
था क शव पुरातन काल के एक महान असुर राजा थे, उस समय असुर एक घुमंतू जा त
थी। मुझे यह सोच कर ब त ही अ छा लगता क वे ई र थे। वे मुझे गत प से य
थे। हो सकता है क यह करीब एक हज़ार वष पुरानी बात रही हो, जब म य ज बू प के
अ ारोही नृशंस व अस य कबील ने, मैदानी इलाक़ म बसे असुर नगर म लूटपाट मचाई
थी। दस राजा क एक प रषद ने श शाली असुर का नेतृ व कया और झेलम नद के
समीप, घुड़सवार नृशंस कबील से उनका सामना आ। लुटेर के दल के नेता का नाम इं
था, जसे अपने अ याचार के कारण ही पुर या ‘नगर का ह यारा’ कहा जाने लगा था।
हज़ार य को मौत के घाट उतारा गया; य क आयु क भी मयादा नह रखी गई
और वे सामू हक बला कार का शकार , ब च को जी वत ही अ न क लपट के हवाले
कर दया गया और अनाज के भंड़ार लूट लए गए। भ नगर व त हो गए। एक पूरी
स यता न हो गई थी और ग त का च मानो स दय पीछे चला गया था। असुर ने अपना
सब कुछ खो दया और वे अपनी ाण र ा के लए द ण क ओर आ गए। नागा पूव
पहा ड़य क ओर लौट गए और क र व य रा य का पूरी तरह से सफ़ाया हो गया। गंधव
एक घुमंतू जा त बन गए और शी ही इ तहास व पौरा णक ग लय म कह खो गए।
इस आ मण के दौरान, असुर स यता अपने चरमो कष पर थी, परंतु वे अपनी यु करने
क श खो बैठे थे। सं कृ त, संगीत, कला, वा तुकला ने मल कर ऐसा षड़यं रचा क
असुर सेना क श धू मल होती चली गई, जो वा तव म, और कुछ नह केवल एक
पहेली थी। रा ीय सुर ा के नाम पर, न तो भावी नेतृ व था और न ही ावसा यक आदे श,
न कोई रणनी त थी और न ही कोई योजना। इसम कोई आ य नह था क श शाली
असुर सेना इं के ओज वी नेतृ व तले चलने वाले, मु भर आ मणका रय के हाथ खदे ड़
द गई थी। नःसंदेह, असुर वंश क महानता या सव े ता का अ तशयो पूण वणन कया
जा सकता था। एक परा जत जा त ायः पराजय से उ प ल जा को ढाँपने के लए अपनी
सां कृ तक े ता का आ य लेती है। वजयी प को सदै व उन नृशंस के प म च त
कया जाता, ज ह ने छल-कपट व तं -मं के बल पर, सुसं कृत व सु वक सत स यता को
परा जत व न - कर दया हो।
असुर क दशा सवा धक शोचनीय थी। कभी व यात रह चुके नगर पर नधनता, रोग ,
महामारी व ख क भयंकर छाया छाई ई थी। अ तीय वा तुकला तथा कावेरीप नम व
मुजू़री जैसे बंदरगाह शहर म फल-फूल रहे वा ण य के अ त र , असुर क अ धकतर
जनसं या म लनता व द र ता के बीच जी रही थी, उनके पास कोई वा भमान या आशा क
करण शेष न थी। धन तो केवल कुछ ही लोग के पास सं चत था, जैसे मेरा सौतेला भाई
कुबेर। सेना का नेतृ व दे व , मूल कबील तथा वानर के साथ मूखतापूण यु म न आ
जा रहा था, परंतु इससे भी अ धक, वे कसी योजना या रणनी त के अभाव म, पर पर ही
लड़-लड़ कर न हो रहे थे।
हमने पूण नद को पार कया। आगे चार ओर र- र तक शांत व नजन, घना वन दखाई
दया, जसम भाँ त-भाँ त क लताएँ तथा बेल आ छा दत थ । हालाँ क म थोड़ा च तत था।
ये वन व भ असुर कबील से जुड़े गु र ला दल के छपने के थान बने ए थे। हमने आगे
बढ़ने का नणय लया पर अचानक सश लोग ने हम घेर लया। उ ह ने जस तरह हमारे
आसपास घेरा डाला था, म उनके कौशल को दे ख भा वत आ। बीस तने ए धनुष हमारी
ओर तीर बरसाने के लए तुत थे। मने अपनी के संकेत से कुंभकण को कने को
कहा। वह गँवार अपनी जीण-शीण यान म से, ज़ंग खाई तलवार को नकालने क चे ा कर
रहा था। म कोई कायर नह था, परंतु हम तीन का यु कौशल, धनुष-बाण से लैस उन
बीस य के सामने थ था। यह कसी भी तरह से अपनी वीरता दशाने का समय नह
था और म यह भी नह जानता था क वे का त वीराजुन के सपाही थे अथवा असुर के
गु र ला यो ा। उनका रंग गहरा काला था इस लए वे दे व तो कदा प नह हो सकते थे।
रावण
हम गुफा म खड़े थर-थर काँप रहे थे और कसी के आने क ती ा म थे। उसके भीतरी
ह स से बातचीत के वर तैर रहे थे। अचानक ही सारे वर ीण होते चले गए और एक
ममभेद चु पी छा गई। मेरा दल ब त बुरी तरह से धक-धक कर रहा था और मुझे यह दे ख
कर ब त श मदगी होने लगी क वभीषण रोने लगा था। छोटे भाई के लए मेरा दय वत
हो उठा। वह तो संसार के तौर-तरीक़ से ब कुल ही अन भ था। और फर एक गहरे और
गूँजने वाले वर म आदे श आया, “इनक आँख पर बँधी प याँ खोल द जाएँ।” जब
उ ह ने आदे श का पालन कया और हमने गुफा के वातावरण म अपनी आँख को अ य त
करने के लए आँख मच मचा , तो वशाल पाषाण सहासन पर एक वृ को आसीन
पाया। वह ब त ही लालसा से हम टकटक बाँधे दे ख रहा था। मने अपना सर ऊँचा उठाया
और उसे पलट कर दे खा। धीरे-धीरे, उसके चेहरे पर एक सौ य व मृ मु कान खेल उठ ।
मानो कसी ने जा क छड़ी से छू कर, एक कठोर व नीच दखने वाले को ऊजा व
जीवंतता से भरपूर म पांत रत कर दया हो। उसके चेहरे क सहजता का श द म
वणन नह कया जा सकता। उसक मु कान जाने कतनी स दय क बु मता व ववेक
बु का प रचय दे ती तीत हो रही थी। धीरे-धीरे, म भी उ ह पहचान गया, ये तो महाब ल
थे! असुर नरेश म सवा धक श शाली व महान स ाट मेरे स मुख उप थत थे। परंतु
अचानक ही मेरे म त क म उनके त अव ा व अपमान का भाव य तर आया?
महाब ल ने अनेक भ सै य अ भयान क कमान संभाली थी, अपने श ु का वनाश
कया था और एक महा प पर यायपूवक शासन चलाया था परंतु उ ह ने अपना सा ा य
केवल इस लए खो दया य क वे उस दए गए वचन के पालन से पीछे नह हटना चाहते थे,
जो उ ह ने एक द र दे व ा ण, वामन व णु को दया था। वह इस बलशाली स ाट से दान
क याचना करने आया था। जब महाब ल का शासन अपने शखर पर था, तो स ाट ने पूरे
भारत पर अपना आ धप य घो षत करने के लए राजसूय य का आयोजन कया। भारत
के सभी रा य तथा जा तय से संबं धत नरेश, सरदार, राजा व महाराजा, असुर क मुजूरी
राजधानी म एक त ए ता क नरेश के भी नरेश को अपनी ांज ल अ पत कर सक।
एक अनु ान के अनुसार महाराज ने वचन दया क ार पर आए याचक क येक इ छा
पूण क जाए। उसे खाली हाथ नह लौटाया जाएगा। इसी अवसर का लाभ उठा कर वामन
व णु, एक द र ा ण युवक के भेष म आ प ँचा। उसने असुर राजधानी म ा ण
श ण क क थापना हेतु तीन पग धरती दान म दे ने क याचना क । महाब ल अपने दए
गए वचन से पीछे नह हटना चाहते थे अतः उ ह ने यह अनुम त दे द क असुर राजधानी म
दे व ा ण अपने धम का उपदे श कर सकते थे। शी ही यह छोटा सा क एक वशाल धम
चारक सं था म प रव तत हो गया। वहाँ दन-रात कई कार के षड़यं रचे जाने लगे और
वह दरबार के त कूटयु य का क बन गया। अंततः, इससे पूव क असुर का सं ांत
वग यह समझ पाता क वे कस षड़यं का शकार ए ह, दे व ा ण अं तम असुर
सा ा य को अपने अधीन कर चुके थे। महाब ल को अधोलोक म न का सत कर दया गया
और उ ह ने पछले दो दशक म जो सा ा य खड़ा कया था, वह शी ही सैकड़ यु रत
छोटे रा य म वभा जत हो गया। परंतु महाब ल इस पौरा णक गाथा म जी वत रहे।
“हम पछले कुछ स ताह से तुम लोग का पीछा करते आ रहे ह। तुम इन े म या लेने
आए हो, जहाँ कोई पैर रखने का साहस तक नह करता? ये बड़ा ही क ठन समय है और
यह कोई ऐसा थान नह , जहाँ तुम सरीखे मूख यहाँ-वहाँ मँडराते फर।” वह गहरा वर
सारी गुहा म त व नत हो कर लौटा और म अपनी तं ा से जाग गया।
“जो भी हो, तुम इस संसार के लए कुछ उपयोगी तो हो ही सकते हो। ारंभ म, मने तु ह
उन थ व अनुपयोगी लोग म से ही एक समझा था, जो भुला दए गए व प र य असुर
जन समाज को ऐसे नकृ क ट के समान मानते ह, जो केवल क त पाने का व दे खते ह
और कुछ नह कर पाते। वे वा त वक अथवा का प नक जगत म ही वचरते ह और कसी
ऐसे चम कार के घटने क ती ा करते रहते ह, जो उनक व उनक जा त क र ा कर
सके। परंतु रावण म एक चगारी दे ख सकता ँ, भले ही वह अभी छोट सी है, परंतु वा तव
म वह एक चगारी ही है, य द उसे उ चत य मल जाए तो वह धधकती वाला म बदल
सकती है। म नह जानता क तुम हमारे दयनीय लोग के लए कोई वरदान बन कर आए हो
अथवा अ भशाप! ये वही लोग ह जो एक ववेकहीन श ु के क़दम तले र दे गए ह। रावण,
महाब ल के इस धाम म तु हारा वागत है। तुम जब तक जी चाहे, यहाँ रह सकते हो, परंतु
यहाँ आकर कुछ सीखना कह अ धक मह व रखता है। यहाँ मु मन के साथ आओ और
यह मरण रखो क यह थान तु ह ब त कुछ सखा सकता है।”
माँ क सुब कयाँ ायः मेरे मम म कह कसी थान पर ऐसा भेदत क म भी अपनी
पीड़ा , भ व य म आगत संघष , अतीत क बखरी आशा , अपने लोग तथा अपनी
जा त के लए वलाप करने लगता। उस दन मने अपनी असहाय अव था, कुंठा तथा इस
टू टे ए जीवन के लए दन कया। यहाँ तक क म हमारी काली चमड़ी के लए भी रोया।
मने हमारी अ ानता तथा अपने लोग क क पत क त से जुड़ी मीठ याद के लए भी
अ ु बहाए। ये अ ु न तो द र ता म हमारे नायक व के रंग को धो-प छ कर बहा सकते थे
और न ही हमारे मूख सा थय को कसी योजन अथवा ल य हेतु ाण का ब लदान करने
क ेरणा दे सकते थे। ये अ ु मेरे सौतेले भाई जैसे क नीचता को नह धो सकते थे,
जसने वयं को इस संसार के अभाव से कह परे, सुर त कर लया था। इसके बाद म
अपने लए रोया। फर हम एक घने आवरण क भाँ त घेरे ए अभे अंधकार के बीच, मेरे
दोन ओर से दो जोड़ी हाथ बाहर आए और मुझे अपने आ लगन म ले लया – वे मेरे दोन
भाइय के थके हाथ थे, एक – जसक मने आजीवन र ा करने का संक प लया था और
सरा – जो मेरे लए अपने ाण तक ब लदान कर सकता था।
धीरे-धीरे जैसे सब कुछ प होने लगा। एक वृ स ाट ारा यूँ ही बोया गया छोटा सा बीज
अंकु रत होने लगा। म जब यह वचार करने लगा क मेरा व वजय का व कसी द र
व आ यहीन बालक का दवा व नह था, तो मने दोन भाइय को अपने गले से लगा
लया। हो सकता है क आने वाला समय अपने साथ कुछ बेहतर लाने वाला था। आने वाला
दन, एक और नया दन और एक नया आरंभ।
5 दसमुख, दस मुख वाला
रावण
लहराती दाढ़ वाले वृ ने हम ातःकाल जगाया और सभी को क़दमताल कराते ए, उस
पहाड़ी झरने क ओर ले गए, जहाँ हम न य कम से नवृ होना था। वे उस समय काफ़
वाचाल जान पड़े मानो उ ह अचानक ही अनुभव आ हो क उ ह कोई कहानी सुनानी है
और हम उ साही ोता के प म सामने थे। “कृपया मुझे ा कह कर पुकार। यह
हमारी पा रवा रक उपा ध है। अ यापन हमारे र म है और हम ाचीन काल से ही गु
का थान हण करते आए ह। ान प रषद म चार गु थे और तवष, वे असुर सा ा य
के व वध भाग म फैली सैकड़ , हज़ार पाठशाला के लए पा म नधा रत करते।
हमने ही उस असुर जगत क रचना क , जसे आज हम जानते ह। मेरे प रवार ने वधान
बनाए और उ ह दे व क भाँ त पूजा जाता था। इसके अ त र शव का प रवार भी पूजा
जाता था, जो सधु नद के कनार पर थत महान सा ा य के काल से ही, खेत , संप
तथा पशु क र ा करते आए थे और समाज म अपने इसी काय के कारण पशुप त नाम
से जाने जाते थे। हमने एक स यता वक सत क ।”
वे हमारा यान अपनी ओर ख चने म सफल रहे। हम ा वंश के मूल प के वषय म कोई
वशेष ान नह था कतु हमारे सम , आलथी-पालथी लगाए बैठे वृ पु ष, इतनी ाचीन
बु मता के वाहक थे, यह हमारे लए आ य का वषय था। वे दखने म कह से भी महान
गु जैसे नह थे। वे कसी सादे , नाटे , गंजे व त द वाले क तरह दखते थे कतु
लहराती ेत दाढ़ तथा ने क उ वल यो त, उस ाचीन व जजर आवरण म छपी
तभा को छपा नह पाती थी।
हमारी श ा लगभग संपूण होने को थी। अं तम कुछ क ाएँ तो वयं महान असुर स ाट
लेने वाले थे। उ ह ने मन पर नयं ण तथा इं य पर वश करने के वषय म व तार से चचा
क।
“अगला आधारभूत भाव अ भमान है। अ भमान से ही अहंकार ज म लेता है। यह वशु
चतन तथा को न कर दे ता है। अहंकार के कारण तुम अपने श ु को अपने से
कमतर आँकने लगते हो और अपने वषय म अ धक ऊँची धारणा बना लेते हो। ई या एक
घृ णत भाव है, तथा इसे वश म करना, मुन य के लए चुनौतीपूण काय म से है। ई या के
वशीभूत होकर तुम सर के रा य, धन, प नी तथा स क कामना करने लगते हो। यही
भाव युग -युग से अनेक यु , र पात तथा अ ु का ज मदाता रहा है।”
“भय कोई भाव नह , एक रोग है। यह अपने नेता से अनुया यय म तथा इसके वपरीत
अपने अनुया यय से नेता तक जाता है। यु भू म म इसी भय के कारण जतनी मृ यु होती
ह, उतनी कसी सरे कारण से नह होत । एक यो ा को कस बात का भय होना चा हए?
मृ यु? परंतु यह तो अंत म येक के जीवन म आनी ही है। या तुम घाव से भयभीत
होते हो? या अ धक मह वपूण है? तु हारा र अथवा वजय का अमृत? वचार करो।
वचार करने से ये सभी संदेह तरो हत हो जाएँग।े ”
“आपने वाथपरता को एक आधारभूत भाव कहा है। परंतु इसी वशेषता अथवा गुण के बल
पर व के महान नगर का नमाण आ और यही मह वाकां ा का आधार भी है। सघन
प से क त अहं तथा इस संसार के ख़ज़ान को पा लेने क कामना रखे बना, या कोई
जीवन म सफल होगा? जब म कसी मनोहारी युवती, कसी आकषक थल, सुंदर गाँव,
चमचमाते हीरे अथवा एक समृ दे श को दे खता ,ँ तो मह वाकां ा मेरी आ मा म हलोर
लेने लगती है। म चाहता ँ क इस व क येक सुंदर व आकषक व तु मेरी हो, केवल
मेरी! आप मेरे इन आधारभूत वचार क ह या करने का यास कर सकते ह, परंतु
महाराज! मेरी धृ ता को मा कर और अपने दय क पूरी ईमानदारी के साथ मेरे का
उ र द, या आपने भी इसी वाथपरता के कारण इतना वशाल सा ा य नह खड़ा कया
था? आप कोई भ ुक नह बने, आपने इस पूरे व का स ाट बनने क इ छा रखी। य द
यह सब वाथपरता के आधारभूत भाव के कारण नह था, तो आपने यु भू म म हज़ार
नद ष के ाण क आ त य द ? आपने दे व के व अपनी श शाली सेना को
य खड़ा कया? आपका एक ही ल य था, आप अपने लए, अपने वंश अथवा अपनी
जा त के लए क त व नाम क चाह रखते थे। भले ही इसे कसी भी कोण से य न
दे ख, यहाँ ‘आप’ वशेष प से सबम मुख रत है। म वह सब पाना चाहता ँ, जो आपने
पाया और संभवतः उससे भी अ धक। म कसी नः वाथ व अ त व-हीन क भाँ त
ाण याग दे ने क अपे ा इस संसार म सबसे वाथ मनु य कहलाने का ख़तरा मोल लेने के
लए इ छु क ँ।”
“मुझे इस बात का खेद है क मेरी बात ने आपको नराश कया है, परंतु म एक मनु य क
भाँ त ही जी वत र ँगा व एक मनु य क भाँ त ही मरना चा ँगा। म कभी एक ई र नह
बनना चा ँगा। म ठ क उसी तरह जीउँगा, जस तरह मेरे भाव मुझे जी वत रखना चाहगे। म
भावी पी ढ़य के लए कोई अनुकरणीय आदश नह बनना चाहता। मेरा जीवन मुझसे ही
ारंभ होता है व मुझ पर ही समा त होगा। परंतु म अपने जीवन को भरपूर जीउँगा और उसी
तरह इस संसार से वदा लूँगा, जस तरह एक मनु य को जाना चा हए। तो म आपके ही दए
श द को उधार लेते ए कहना चाहता ँ, म दस चेहर वाला एक बनूँगा - म एक
दसमुख ँ।”
इसके बाद घना मौन पसर गया। ा नंगे पाँव खड़े, मुझे ही ताक रहे थे और सकुचाए ए
स ाट के आग उग़लते ने , मुझे नगलने को तुत थे। मुझे अचानक ही अपनी शरा म
ऊजा का वाह अनुभव आ। जब तक म यह लंबा भाषण दे ता रहा, तब तक तो मुझे भी
अपने जीवन के इस दशन पर पूरा व ास नह था। तब तक तो म यही वचार करता आ
रहा था क या म उस वृ पु ष के उस व ास को छल रहा था, जो उ ह ने मुझ पर कया
था? परंतु अक मात् ही मने पाया क म उ ह एक नई ही से दे ख रहा था। वे मेरे अनुमान
के अनुसार बड़ी ती ता से सकुचाते जा रहे थे। वे अब एक सकुचाए ए, परा जत व अधमृत
क भाँ त दख रहे थे, जो अपने वषय म बड़ी ही आंडबरयु धारणाएँ रखता आया
हो, मानो वह अब भी इस दे श पर शासन कर रहा हो। वे तो केवल एक पहाड़ी चूहे भर थे,
जो दे व सेना से छपते फर रहे थे और अपने ही घर के पछवाड़े बने आँगन म यु का
अ भनय कर रहे थे।
“यह मने या कर दया?” सनक बूढ़ा लगातार यही कहे जा रहा था। मने शी ही वयं को
उन दयनीय वर तथा वृ ारा मेरे स मुख रखे गए संसार से काट लया। म एक लंबे समय
तक इन सब बात को भुला कर ही जीता रहा, जब तक वह मेरे सपन म आकर मुझे सताने
नह लग । परंतु ये तो ब त बाद क बात ह, ब त बाद क …। अभी तो म वयं से भी आगे
रहकर दौड़ रहा ँ।
6 शैतान का आ मण
भ
म पछले कुछ वष से, मूख का यह यु लड़ता आ रहा ँ। पहले म महाब ल के अधीन,
छह वष तक यु रत रहा, फर मने अपना दल बनाने क चे ा क परंतु असफल रहा। फर
मने सुमाली के अधीन रह कर यु कया। म न तो कोई बड़ा यो ा था और न ही कोई ब त
बड़ा संगठनकता। नाटा, गदबदा और कोमल हाथ वाला, म तो एक सामा य ँ। जैसे
कोई स जी बेचने वाला, बैलगाड़ी चलाने वाला, बाज़ार म चलने वाला एक आम इंसान और
यहाँ तक क जैसे कोई धोबी। म तो कुछ भी नह ँ। मेरे पास पाषाण का भी र जमा दे ने
वाली नह है और न ही मेरी भव धनुषाकार ह। मेरी ना सका मुड़ी ई नह है और न ही
मेरे ह ठ एक ढ़ न य को दशाने वाली सीधी रेखा बनाते ह। न तो मेरे गाल उ त ह और न
ही चबुक म ग ा पड़ता है। पहले कभी जीवन म मेरा कोई और नाम रहा होगा, परंतु अब म
केवल भ के नाम से जाना जाता ँ।
मेरा जीवन भी कुछ इसी कार बीत जाता, उसम वराम च ह न होते; केवल एक पूण
वराम के अ त र ! परंतु दे व के आगमन ने मानो सब कुछ बदल दया। जब तक उ ह ने
आकर हम र दा नह , तब तक तो हम यह तक नह जानते थे क दरअसल वे थे कौन? म
आज भी उन दन को मरण करते ए भयभीत हो जाता ँ। हम ायः उन ापा रय के
मुख से, कह सु र चलने वाले यु क सुगबुगाहट सुनते, जो हमारे खेत से काली मच क
फसल लेने आते थे। वे बताते क कस कार दे व सेनाएँ, मुख दे व व णु के नेतृ व म एक
हो रही थ , और कस कार महाब ल यु के लए ज़ोर-शोर से तैया रय म जुटा था। हम
इन अफ़वाह क उपे ा कर दे ते। ये सब मह वहीन घटनाएँ थ , जो कह सु र थान पर
अय य के जीवन म घट रही थ । राजा-महाराजा यु करते और इन यु म अपनी
राजधा नय व जीवन को जीतते-हारते रहते। हम तो साधारण मनु य थे और राजनी त क
इस घनौनी नया से हमारा कोई लेन-दे न नह था। मेरा मानना था क महाब ल अजेय थे।
वे यायी माने जाते थे और अपनी जा के हत-अ हत को यान म रखते ए, शासन चलाने
का य न करते।
एक धूल भरी सं या को, जब हम अपने खेत से पूरे दन के काम के बाद लौट रहे थे, तो एक
घुड़सवार संदेशवाहक कट आ। वह एक लंबा था, उसका चेहरा चेचक के दाग से
भरा था और आँख म एक व च सा भाव दखाई दे रहा था। उसने हमसे कहा क हम
अपने शव तीथ को गरा द और व णु के स मुख आ मसमपण कर द। गाँव वाले उसके
साथ ब त अ छ तरह पेश आए, परंतु उसे इस चेतावनी के साथ लौटाया गया क उसे शव
के कोप को नमं ण नह दे ना चा हए। यहाँ तक क, वह संदेशवाहक लौटने से पहले, वयं
शव मं दर म गया और उनके आगे म तक टे का। हम सारा दन, दे व के वषय म ही बात
करते रहे।
तब मने अपने सोने के कमरे म खड़े कुछ अजनबी य को दे खा। मेरे पहले कुछ वचार
थे, जो क मुझे आज भी अ छ तरह याद ह; ‘हे भु! अब म इन लोग को या खलाऊँगा?
ये सब तो रात के भोजन के समय के बाद मेरे घर आए ह।’
मेरे आसपास, मेरा गाँव, मेरा जीवन, सब कुछ छतरा पड़ा था। मने खड़े होने क को शश
क और शायद उसी को शश म एक डाली टू ट गई। वह आवाज़ मेरे कान को ऐसे सुनाई द
मानो कह बजली गरजी हो। उन भू तया साय ने पीछे मुड़ कर दे खा। म बना हले वह बैठ
गया। मने सोचा, “वे जानते ह क म जी वत ँ और वे मुझे मारने जा रहे ह।”
रावण
हम सभी पछले चार माह से ऐसे ही चलते आ रहे थे और अब भूख और थकान से नढ़ाल
हो चुके थे। मने अनुभव कया क जब म हमेशा क तरह ातःकाल दया जाने वाला उपदे श
आरंभ करता तो अ धकतर यो ा बुरी तरह से ऊब जाते, “आज हम दस राजा के यु के
वषय म जानगे, जसके कारण असुर के सा ा य का पूण प से पतन आ तथा दे व का
आगमन आ। ारंभ म, बलशाली असुर स ाट के लए दे व छोटे -मोटे उप व से अ धक
मह व नह रखते थे। वे यदा-कदा सीमांत पर बसे नगर म धावा बोलते रहते। य प, इं के
आते ही, सब कुछ तेज़ी से बदलने लगा। इं के पास खोने के लए कुछ था ही नह । उसक
ू रता के क स ने उसे आगे बढ़ने म सहायता क । उसने हमालय के उ र-प म म अनेक
छोटे रा य को न कर दया और अनेक सुंदर नगर को अ न क लपट से राख कर दया।
वह येक परा जत नगर के नवा सय को जान से मार दे ता और सामू हक वशाल जलती
ई चता के स मुख, दे व घेरा बना कर नृ य व मं जाप करते।”
“जब दस राजा क असुर प रषद ने नणय लया क इन नृशंस ह यार को सबक सखाने
का समय आ गया था, तब तक इं वयं को अपने द धनुधर क सहायता से, गांधार के
पवत क अनुवर तथा हमा छा दत े णय म था पत कर चुका था। बलशाली असुर सेना,
कसी वशाल सेना अथवा सै य वशेष ता के अभाव म भी, अपनी सी मत सै य श के
बल पर दे व ह यार के छोटे से इलाक़े को कुचल सकती थी परंतु गांधार क संक ण घा टय
म, दस राजा के हा थय का कोई उपयोग न था। असुर नरेश गंगा तथा सधु नद के म य,
खुले व वशाल भू-खंड पर यु करने के अ य त थे। उनके हा थय क सेना, भारी-भरकम
गदा व तलवार चलाने वाले सै नक, रथ; जो ायः सामान ढोने के काम आते थे, अ -श
व मनु य के आवागमन के वाहन आ द खुले थान के लए कह अ धक उपयु थे।”
जब मने कुछ सै नक को अधीर होते दे खा, तो मने अपनी बात वह रोक द । मुझे उनके
लए खेद भी आ। अ धकतर सै नक अ श त व नधन थे। वे सामा य अव था म
कसान, कारीगर या फर ापारी होते, परंतु वे अपनी मातृभू म से खदे ड़ दए जाने के बाद,
कसी समय म महान रह चुके स ाट का साथ दे रहे थे, जो उ ह उनके पुराने सुर त संसार
म वा पस ले जाने का वचन दे चुका था। वे सब छले गए थे और उ ह ने एक बार फर अपनी
उ मीद, मुझ सरीखे बेघर युवा जाबांज़ पर लगा द थ , जो उ ह उनक खोई ई नया से
मलाने वाला था।
“इं ने, ारंभ म एक साम रक भूल कर द थी। उसने सर वती नद के तीर पर थत,
चारद वारी से घरी ा नगरी पर आ मण कर दया था, जो क महाराज मयु क
मुख बंदरगाह थी। वह कोई छोटा-मोटा जीव नह था, जसे आसानी से कुचला जा सकता
हो। उसने अपनी पूरी सेना ला कर सामने खड़ी कर द । 500 हाथी, गदा व भारी तलवार से
लैस 10,000 पैदल सै नक तथा बैल के रथ म सवार 500 धनुधारी, नगर क चारद वारी से
अचानक ही सामने कट हो गए। इं के पास केवल 600 धनुधारी अ ारो हय क छोट सी
सेना थी। उसने उनम से दो सौ सै नक को आगे वाले ार पर भेज दया और नगर म पछले
ार से वेश करने क चे ा क । मयु ने अपने नगर के चार ार खोल दए और उसक
श शाली सेना, वयं को वभा जत करते ए, हर मोच पर लोहा लेने के लए आ डट । इं
उसके इस साह सक क़दम को दे ख तं भत रह गया। दे व सेना ने कोन म छपे चूह क
भाँ त पूरे शौय के साथ यु कया परंतु असुर क सेना उनसे कह बड़ी थी। वैसे भी खुले
मैदान के कारण असुर को अपने तरीक़े से यु करने का भरपूर अवसर मल रहा था।
अ पर सवार दे व, बड़ी सरलता से उनका नशाना बन रहे थे। हा थय के हौद म सवार
यो ा, दे व सेना पर अपने भारी-भरकम भाल व ब छय से वार कर रहे थे और भारी तीर
क वषा से दे व सेना के कवच याज़ के छलक जैसे दखने लगे थे। इं ने लौटने का आदे श
भी दया परंतु उसने अपनी सेना को जस अ त- तता के बीच फँसा दया था, उससे बच
कर नकलना अब इतना सहज नह रहा था। उसक अ सी तशत से अ धक सेना न हो
चुक थी परंतु इं ने पूरी वीरता से यु कया और मयु को घायल करने म भी सफल
रहा।”
मने अपनी बात जारी रखी, “सही कहा, य द वह परा जत राजा यह मान लेता क जो हो
गया, सो हो गया और इसके बाद अपने रा य पर शासन करने लौट जाता तो संभवतः इं
का यह यु इ तहास के प पर एक सं त ट पणी भर होता। उस राजा ने ऐसा नह
कया य क इससे उसके अंहकार को ठे स लगी थी। मयु को केवल इसी त य से संतोष
नह आ क कम से कम उसक जा का वह ह तो नह आ, जो इं के हाथ पड़ने के
बाद सरे नगर के नवा सय का आ था। उसे इस बात से भी संतु नह थी क श ु प
के राजा के हाथ उसक गत पराजय के अ त र , उसक सेना तो यु भू म म दे व
सेना को पछाड़ने म कामयाब रही थी। इस घटना से उसक छ व धू मल ई थी। ाचीन
काल म असुर राजा के पास शासन करने का दै वीय अ धकार नह होता था। राजा एक
चुना गया नेता होता था, जो क नगर का सबसे यो य तथा एक महान यो ा होता।
और यही वा त वकता थी।”
“ मयु को अपने दरबार के गु तचर से यह सूचना मली क उसक जा के बीच उसक
लोक यता म कमी आ रही थी और संभवतः ऐसा भी लग रहा था क उसका पुनः चयन
नह हो पाएगा। उसे अपनी खोई ई त ा व मान-मयादा पाने के लए कुछ कठोर क़दम
उठाने क आव यकता थी। ऐसे वचार कसी भी नरेश के लए घातक स होते ह। यहाँ
कोई भी गत पराजय या वजय नह होनी चा हए। अगर आपक सेना क वजय ई
हो तो इस बात से कोई अंतर नह पड़ता क आपका बैरी आपसे अ छा तलवारबाज़ था,
परंतु असुर तो हमेशा से ही अपने अहंकार को सीने पर तमग क तरह लटकाते आए ह। इस
तरह उनका चतन, उनक सोच धुँधला जाती है और वे एक के बाद एक साम रक भूल करते
चले जाते ह।” ह त ने कहा और मने इस दौरान मटके से पानी पी लया।
म दे ख सकता था क सभी दशक व ोता बड़े मनोयोग से हमारी बात सुन रहे थे। मने
उ ल सत भाव से अपनी बात को आगे बढ़ाया, “राजा ने सभी दशा म अपने गु तचर
रवाना कर दए। उसे कसी तरह इं का पता लगा कर, उससे अपना तशोध लेना था।
मयु ने असुर राजा क आम प रषद भी बुलवाई। इसम भारत के सभी ह स से आए
राजा शा मल थे, जो एक समान पद व मयादा रखते थे। ये दस राजा वष म एक बार जल के
वतरण, कर- नधारण, रा य-कर, पथ-कर, बंदरगाह-कर पर पर पर वचार- वमश तथा
संगीतकार व कलाकार के आदान- दान के लए एक होते। जब तक कसी रा य क
सुर ा का सवाल नह आ जाता था तब तक कसी भी कार क आपातकाल बैठक नह
बुलाई जाती थी। ायः सभी रा य के पास अपनी सेनाएँ तैयार रहती थ परंतु तेज़ी से वृ
कर रहे, सां कृ तक वकास के कारण उनक यु कला बुरी तरह से भा वत ई थी। वे अब
पहले क भाँ त शूरवीर यो ा नह रहे थे। इस भू म म ही मानो कोई रह य छपा था। जब
भी महान व जत सेनाएँ अपने यु म सफल रहत और वशाल सधु-गंगा नद के मैदान
के बीच बस जात तो ऐसा जान पड़ता मानो वे अपने शौय को कह पीछे छोड़ कर, धीरे-
धीरे ैण होती जा रही ह । यह भू म उ ह महान बबर से शांत व सौ य जीव म बदल दे ती,
जो जीवन क बेहतरीन व तु के त च रखते ह । असुर से पूव भी, सभी महान
व जत सेना के साथ यही आ था, और अब तुम दे ख सकते हो क वतमान म उ र के
दे व रा य के साथ भी यही हो रहा है। और असुर जा त के साथ भी यही आ। परंतु, राजा
वयं को उन महान यो ा के वंशज के प म ही दे खना चाहते थे, जो पूरे दे श म फैले थे।
वे अपनी सै य श य के वषय म पूण प से आ त थे। उनक सेना केवल एक ऐसा
दं भी संगठन भर थी जसम संगीतकार , नत कय , जा गर व बाज़ीगर , कलाबाज़ , फूल
व े ता , रसोइय , ापा रय व पुरो हत का जमावड़ा था। हम उनक सेना के वषय
म जो सं याएँ सुनते ह, वे सब अस य ह। व तुतः दस हज़ार क सेना के बीच केवल कुछ ही
वा त वक यो ा होते थे। शेष सेना के साथ यु े म जाते और वयं ही उप व का
कारण बनते।”
मने मयु क सेना के थान माग क ओर संकेत कया, जो लगभग एक हज़ार वष पूव
स तापूवक अपने वनाश क ओर बढ़ती चली गई थी। सपाही मेरे ारा धरती पर ख चे
गए न शे को नहारने के लए एक साथ आगे झुक आए।
“ मयु अपनी सारी भूल के बावजूद एक वीर यो ा था और उसने अपनी बखरी सेना
का मनोबल बनाए रखने के लए उन च ान पर चढ़ना आरंभ कया, जहाँ दे व सेना के
धनुधर का एक बड़ा दल तैनात था। उसने बड़ी ही त परता व सट कता से कुछ तीर छोड़े
और कुछ दे व सै नक को मौत के घाट उतारने म सफल रहा। अपने राजा क ऐसी वीरता
दे ख, अ य असुर सै नक ने भी उसके पीछे आने का नणय ले लया परंतु उसक अ धकतर
सेना अलोप हो चुक थी। केवल वाराणसी का राजा ही उसके साथ था, जसने इस अ भयान
को, उ चत समय पर बंद करने का परामश दया था। उसके अ त र , प रषद के अ य पाँच
राजा व उनक सेनाएँ वहाँ से गायब हो चुके थे।”
“ मयु अगले कुछ ण तक लड़ता रहा परंतु इं ने अपनी तलवार के एक तेज़ वार से,
ब त ही मया दत ग त से अपने वप ी का गला चीर दया। उसने वजय के उ लास म
आकर जो व न उ चा रत क , उसने बाक बची असुर सेना को कं पत कर दया। इं ने
वप ी के कटे सर को तलवार क नोक पर उठा दया ता क बाक बचे वप ी भी उसे दे ख
सक। असुर सेना सब कुछ भुला कर अँधाधुँध भागी। इं ने कुछ हज़ार सै नक को तो
भागने का अवसर दया और फर शेष बचे ए सै नक को भा यवश उसके कोप का
भाजन बनना पड़ा। उस भा यपूण दन म असं य यो ा मारे गए। उस े से भली-भाँ त
प र चत दे व यो ा ने असंग ठत असुर सेना को पवत से बाहर नकलने के लए ववश
कर दया। जब असुर सेना, बड़े ही क सहने के बाद, मैदानी इलाक़े म प ँची तो उनक
सं या दो सौ रह गई थी। पवतीय सै नक ने उ ह बुरी तरह से खदे ड़ा। जो पाँच राजा
यु भू म से अपने सै नक ले कर लौट गए थे, य द वे चाहते तो लौट कर, सुसंग ठत प से
जवाबी हमला कर सकते थे। अ ारोही दे व यो ा खुले मैदान म थे, जहाँ असुर सेना के
भारी-भरकम अ -श उनको बुरी तरह से कुचल कर रख दे त।े यही कारण था क इं ने
अपनी सेना को साम रक से, एक सुर त री पर रखा, असुर के भारी बाण क वषा
के प ँच से भी परे! परंतु असुर इतने नकट थे क दे व सेना के ह के तीर क प ँच के भीतर
रहे। शी ही, दे व सेना क सं या म वृ हो गई, अनेक शकारी तथा असुर सेना के भगोड़े
भी उनके साथ शा मल हो गए, ये कुछ इस कार के लोग होते ह, जो सदै व वजयी प का
ही साथ दे ना चाहते ह। चार ओर यह समाचार सा रत हो गया क असुर सेना बुरी तरह से
परा जत रही और अब दे व सेना, उनक बची ई सेना का पीछा कर रही थी। जब असुर सेना
ने उ र क ओर कूच कया था, तो अनेक लुटेर के दल तथा व य जा तयाँ जो अपने छपने
के ठकान म जा बके थे, यह समाचार पाते ही, दे व सेना से आ मले।”
“सबसे पहले, ढोल पीटने वाल , नत कय तथा सेना के साथ घूमने वाले नाकारा दल के
लोग को दे व सेना क श का सामना करना पड़ा, वे लोग तो अपनी सेना के प रणाम से
अनजान, अपने घर क ओर लौट रहे थे। पहले उ ह असुर सेना के रोष को सहना पड़ा और
फर असुर का पीछा कर रहे दे व अ ारोही यो ा उन पर कसी महामारी क तरह टू ट पड़े।
भीड़ अ नयं त हो उठ और केवल कुछ सौ मूल यो ा के अ त र कोई भी इं के
आदे श का पालन नह कर रहा था। इन यो ा म अ धकतर तो वे व य जनजातीय
कबील के लोग तथा लुटेरे थे जो येक गाँव म लूटपाट मचाने के लए ठहर जाते। उ ह ने
अपनी राह म आने वाले घर पर क़हर बरपा दया, नगर म जी भर कर लूटपाट क , हज़ार
क सं या म आम जा को मौत के घाट उतार दया और म हला से सामू हक बला कार
कया। शी ही, परा जत असुर सेना के नगर म प ँचने से पूव ही, बड़े नगर के नाग रक म
भी भगदड़ मच गई। यह तो मानो एक कार का मानव आपदा थी और चार तरफ दं गे होने
लगे। पूरे दे श म एक कार क अ त- तता का सा ा य हो गया और मु भर बबर
अ याचा रय ने क़हर ढा दया।”
“असुर सेना ने भी इसी भगदड़ के बीच, दे व सेना के हाथ बंद बनने से पहले, नगर म
व वंस करना आरंभ कर दया। वह नगर को आग क लपट के हवाले करने लगी। छोटे
नगर म रहने वाले लोग ने वयं ही ह थयार उठा लए ता क वहाँ आतंक मचा रही असुर
सेना से लोहा ले सक। इस कार एक भयंकर गृहयु आरंभ हो गया।”
“जब कोई सा ा य बखर कर, छोटे -छोटे रा य व जागीर म बदल जाता है तो हम जान
लेना चा हए क एक नए सा ा य के नमाण का समय हो गया है। जब म य भारत म बाली
जैसे वणसंकर तथा स पवत े णय म कात वीराजुन जैसी आ दम जा तयाँ, दे व
सा ा य म से बड़े-बड़े रा य का नमाण करने म सफल हो जाएं तो हम जान लेना चा हए
क इ तहास का एक च पूरा होने को है। इं के पास बलशाली परंतु वभा जत असुर
सा ा य को परा जत करने के लए छोट सी सेना थी। म आशा करता ँ क आप सबने
उस भयंकर यु क घटना से कुछ सबक ले लए ह गे, जो हमारे अपने लोग के पतन का
कारण बनी। अब समय आ गया है क हम वप य को मुँह तोड़ ज़वाब द।”
रावण
म इस को तब से दे खता आ रहा ँ, जब से यह सुमाली के साथ आया है, हालाँ क
इसम ऐसी कोई ख़ा सयत नह क इस पर यान दया जाए। वह न न ेणी के उन सै नक
म से एक था, जो कसी भी सेना के लए अ नवाय तो होते ह, परंतु ायः उ ह बना कसी
आभार के भुला दया जाता है। वह सदा मेरे पास आने का य न करता रहता। वह सचमुच
कुछ कहना चाहता था। मने उसे पास बुला कर कहा क वह या चाहता था। मुझे कई
स ताह पूव ही ऐसा कर लेना चा हए था परंतु मने ही यह नणय भी लया था क सेना के
उ च अ धका रय व न न े णय के सै नक के बीच एक री बनी रहनी चा हए। पहले-
पहल, हम तीन भाई, सारे सेनाप तय के साथ मल कर म दरापान करते। पर अब म इस
तरह क यारी-दो ती के दशन से असहज अनुभव करने लगा था।
वह गहरे रंग का नाटा व गठ ला युवक मेरी ओर आया, बड़े ही आदर से झुक कर णाम
कया और खानपान क साम ी नकट ही रख द । म उसके चेहरे क ओर नह दे खना
चाहता था। मुझे भय था क कह मने उसके चेहरे को यादा यान से दे ख लया तो उसके
चेहरे पर छपे हेय तथा घृ णत भाव को पहचान लूँगा, ज ह वे अपनी अथहीन चाटु का रता
व अ य धक बचाव क वृ के साथ छपाए डोलते ह। वह कुछ दे र तक मेरे समीप ही
खड़ा रहा और जब मने उसक उप थ त को उपे त कया, तो वह मौन भाव से, क से
बाहर हो गया। म इस वषय म इतना च तत य था क वे मेरा आदर करते थे या नह ? मने
उस भ े से दखते इंसान को अपने दमाग़ से परे झटकने के बाद, सेना के संगठना मक ढाँचे
म अपना यान एका करना चाहा।
हम दस अ धका रय क प रषद के लए सहमत हो गए थे जसम मेरे मामा ह त, सुमाली,
मारीच, ज बूमाली, पूव लंका मोती प के सुयो य रा यपाल तथा हम तीन भाई स मलत
थे। उनम क भी शा मल था, जो क महाब ल के कुलीन र क वग का एकमा जी वत
ाणी था, जब वामन व णु ने स ाट पर आ मण कया था तो वह एक भ ुक के वेष म
वहाँ से बच नकला था। महाब ल क सेना का आपू त व वतरण मुख धु ा तथा
महाब ल क सेना का सेनाप त व धम भी हमारे साथ था। इसके अ त र अनेक
क न अ धकारी थे, ज ह छोट इकाईय के संचालन का काय भार स पा गया था। मेरे मौन
ने यह सु न त कर दया था क मुझे मुख सेनाप त के प म चुना जाए। जब मुझे इस
पद को मलने के बाद स ता व शां त का अनुभव आ, तभी मने जाना क म इस पद को
पाने के लए भीतर ही भीतर कतना था। मने ह त व व धम क ओर से थोड़ी सी
सुगबुगाहट अनुभव क परंतु वे तथा सरे लोग भी यह जानते थे क वे इस पद के उपयु
दावेदार नह थे। छह वष के प रणामहीन यु के बाद, सै य दल न सा हत थे इस लए वे
सब नराश हो चुके थे और उ ह ने इस सारी व था को भलेमानुष क तरह वीकार कर
लया।
जो भी हो, मेरे ारा क पत द ता, जसे मने इन दन सच मानना आरंभ कर दया था,
मेरे और उस गहरे रंग के नाट दे ह वाले युवक क बीच बाधा बनी खड़ी थी। म मत था
और इस वषय म सुमाली से चचा करना चाहता था। वह युवक कोई गु तचर भी तो हो
सकता था। वह कसी ग से एक-एक चीज़ व घटना को परख रहा था और मने उसे
ायः अपने लए ऐसे काम का चुनाव करते दे खा था, जससे वह हमारी प रषद चचा के
बीच आसपास बना रह सके।
“तुम या चाहते हो? या तु हारे पास करने के लए इससे कोई बेहतर उपाय है?” म अपनी
ही ता पर च कत था। वह वह खड़ा रहा। उसक आँख मेरी आँख से टकरा । म उससे
लंबाई म काफ़ बड़ा था पर वह मुझे समान भाव से दे ख रहा था। उसक आँख म न तो
कोई धमक थी और न ही कोई भय! मने ती ा क क कब वह अपनी नगाह नीची करेगा
और अपने पाँव क अँगु लय को एकटक ताकेगा परंतु मेरे सामने खड़े उस म तो
लेशमा भी घबराहट का च ह न था।
उसके भीतर कुछ ऐसा चल रहा था, जो बाहर आना चाहता था। वह एक ऐसा था जो
अपने भाव को नयं त कर सकता था और आसपास के माहौल म बखूबी घुल- मल
सकता था। वह घास म लेट कर कसी वषैले सप क तरह घात लगा सकता था ता क बना
कसी आहट या आवाज़ के, पूरी नदयता के साथ अपने श ु पर भयंकर ाणघातक वष
क वषा कर सके। उसक आँख चमक रही थ और वह मुझे टकटक बाँधे दे ख रहा था। म
अक मात् ही भयभीत हो उठा।
मेरे हाथ अपनी खड् ग क मूठ पर कसे थे ता क उस वषैले भुजंग के हरकत म आते ही
त काल यु र दे सकूँ। उसने बना कसी चेतावनी के, अचानक ही मेरे चरण म गर कर,
मुझे बुरी तरह से च का दया। म ो धत होने के साथ-साथ व ांत भी हो उठा। ोध इस
बात का था क उसने भी उसी असुर वहार का प रचय दया था जो बड़ी सरलता से कसी
का भी आ धप य वीकार कर लेते ह। सुकून इस बात का था क मुझे ऐसे आ दम बल से
संघषरत नह होना पड़ेगा। उस के वहार म एक अलग तरह का अप र कृत,
अनाड़ी व अनूठा सा भाव था। वह कृ त का मौ लक बल था, धरती का आ दम पु ! वह
एक साधारण मुन य था व यही त य उसे असाधारण बनाता था।
मने उसे अपने हाथ से उठाया और उसके चेहरे को ताका। उसक आँख लाल हो गई थ
और म दे ख सकता था क यह भावना का झूठा दशन नह था।
मेरा सुर ह का तीखा था हालां क मुझसे मेरा उ साह छपाए नह छप रहा था। असुर सेना
के सभी लोग मुझे अपने राजा के प म दे खना चाहते थे। प रषद यह सोच सकती थी क
अभी इतना बड़ा उ रदा य व लेने के लए मेरी आयु ब त कम थी परंतु मेरे सै नक मेरा
नेतृ व चाहते थे और मेरे लए यह बात ब त मह व रखती थी। म यह सोच कर ाकुल था
क म प रषद मुख के प म अपनी सेवाएँ दे ने क हामी दे चुका था। अब यह सुंदर युवक
मुझे एक राजा के प म संबो धत कर रहा था और केवल ‘ ीमान’ कह कर ही नह पुकार
रहा था, जैसे सै नक असुर सेना के व र अ धका रय को पुकारते ह। म मन ही मन मु दत
था परंतु मने ह त के चेहरे पर व मत भाव दे खा और उसे अपने दमाग़ म बैठा लया।
ह त आगे आया व मेरे कंधे पर अपना हाथ रख दया। “चलो प रषद क सभा बुलाएँ।”
उसके वर म बड़ी न ु र कठोरता थी परंतु मुझे भी कहाँ परवाह थी। मेरे कान म तो
सपा हय के खेमे से उठ रहे नारे त व नत हो रहे थे।, ‘महाराज रावण क जय हो!’
रावण
मने उ ह अपने मामा मारीच के साथ आते दे खा। मेरी बहन बड़ी हो चली थी; उसे सही
मायन म सुंदर तो नह कह सकते परंतु उसके भीतर बहती ऊजा को भी कोई उपे त नह
कर सकता था। म अपने मं य क प रषद के साथ सभा म उप थत था। य प अब यह
कोई लोकतां क संगठन नह रहा था पर म इस बात का यान रखता था क उनके मत भी
सुने जाएँ। यह एक पहेली थी और येक को यह भली-भाँ त व दत था क मेरी ही
बात अंत तक मानी जाएगी परंतु कसी भी वषय पर जब असुर को बहस व चचा का
वषय मल जाता था तो उ ह उसी से संतु हो जाती थी।
“आप लोग को माग म कसी कार क असु वधा तो नह ई?” ह त के पास भावुक
अ भवादन व बातचीत के लए समय नह था।
“इसने सुल णा का मो तय वाला हार उन समु लुटेर को दे दया। उसने उस संघ म सात
वष के कड़े प र म के बाद वह कंठहार बनवाया था।” मेरी माँ के सुर से नेह छलक रहा
था। मारीच मामा ने कंधे झटके मानो कहना चाहते ह क उन समु डाकु को मो तय
वाला हार का दया जाना कोई ब त बड़ी बात नह थी। मने उनके चरण पश कए और
उनके गले से लग गया।
“तो तुम राजा बन गए हो, ह म?” मामा ने मेरी पीठ पर कस कर धौल जमाया। म वहाँ
खड़ा कसी ऐसे बालक क तरह दाँत नपोरता रहा, जसने हाल ही म मौ खक परी ा म
अ छे अंक पाए ह ।
धन का दे वता तथा यायी कुबेर, अपने सहासन पर वराजमान था। वह अपनी शाही मुहर
से ताड़प पर ह ता र करने म त था व बीच-बीच म वा ण य, जहाज़ क दर , काली
मच के दाम , इलायची के भार के बराबर सुवण आ द के लए व वध अ न तता के
नदश भी दे ता जा रहा था, ज ह प के व भ बंदरगाह पर बैठे अ धका रय तक प ँचा
दया जाएगा और फर अरबी घोड़ पर सवार संदेशवाहक त ग त से उ र ले कर भी लौट
आएँगे। वहाँ अ य कई अपराधी भी थे, जो धन के दे वता कुबेर क ओर से दए जाने वाले
याय व ववेक क ती ा म थे कतु इस उ च तरीय वा ण य तथा ापार के व म,
बाक सब कुछ जैसे मह वहीन था।
परंतु उसक ग त व धयाँ कसी मकड़े क तरह वसप सी थ । “ओह ध य भाग हमारे, आज
यहाँ कौन पधारा है? मेरे य सौतेले भाई आए ह। आपने यहाँ आकर मेरा मान बढ़ा दया।
मुझे कह दया होता, म वयं ही आपको कुछ गौएँ दान कर दे ता। इसक बजाय तुमने चोरी
करने का वक प चुना। ख़ैर इसम तु हारा दोष भी या है? यह तो वाभा वक ही था। म
दे ख सकता ँ क तुम लोग अपनी माँ पर ही गए हो। तो तुम लोग या पसंद करोगे, तु हारी
भुजाएँ काट द जाएँ; नाक काट द जाए; या तु हारे गाल पर गम सलाख से दाग दया जाए
क तुम चोर हो? म अपने ऊपर यह आरोप नह लगा सकता क मने अपने संबं धय का
प लया है।”
“ ीमान, आपसे एक वनती करना चाहता ँ।” मारीच भरे दरबार के बीच हाथ जोड़ कर
खड़े हो गए और सैकड़ आँख उनक ओर ही घूम ग । मेरा मानना है क उ ह ने दे व दरबार
के व तृत नयम म से एक का उ लंघन कर दया था। ये अस य असुर! ये ब च क तरह
पेश आते ह। संभवतः यह दे व का ही उ रदा य व बनता है क वे हम स य बनाएँ। म अपने
मामा क करनी को भयभीत से दे खता रहा। म ब त ज़ोर से चीख़ कर बोलना चाहता
था, अपने य मामा को कुछ कहने से रोकना चाहता था और मुझे उस समय कसी भी
तरह के द ड का भय नह रहा था। वह मूख वृ कतनी बड़ी भूल करने जा रहा था। मेरे
मन म थोड़ी आशा भी जगी क शायद हम छोड़ दया जाए।
जैसे ही सबक नगाह मूख लड़के पर आ टक तो मने महसूस कया क शम के मारे मेरे
गाल दहकने लगे थे। म सोलह का हो चला था और अब भी मुझे एक बालक के प म
संबो धत कया जा रहा था। भले ही म यहाँ से छू ट भी जाऊँ परंतु आजीवन म मुझे इसी
बात के लए चढ़ाते रहगे। म अपनी कशोराव था क इसी उधेड़बुन म, दरबार म चल रही
कायवाही के कुछ वा य नह सुन सका और जब मुझे यह समझ आया क मामा कह या
रहे थे, तब तक थोड़ी दे र हो चुक थी।
“तेल फेरने क च क म छह वष” यह आदे श गरजने वाली बजली क तरह सामने आया
और म काँप कर रह गया। कुंभ को भी होश आने लगा था। म दे ख सकता था क मारीच भी
स रह गए थे। छोट सी चोरी के आरोप के लए तो यह द ड ब त बड़ा था। म उस वृ के
गाल से बहते आँसु क धारा दे ख सकता था। म उनक प नी व जुड़वाँ ब च के चेहरे
दे ख सकता था। म ही उनके लए इन प र थ तय का दोषी था। उनक आयु कतनी रही
होगी?
मने ब त ही गहरे सदमे के साथ यह सब सुना। यह याय था। पूरी तरह से ती तथा न प
याय। दरबार क अवमानना के आरोप म मेरे मामा क सज़ा म एक वष क अव ध बढ़ा द
गई थी। अब उ ह सात साल तक एक दास क तरह तेल क च क म काम करना था। मेरे
मामा अपनी पाँव क अंगु लय को घूर रहे थे। सै नक आगे आए व उ ह हथक ड़याँ पहना
द । फर उ ह बे ड़य म जकड़ कर, वहाँ से घसीट कर ले जाया जाने लगा। लोग हँसने लगे।
मेरे अपने ही लोग, असुर, वे सब अपने ही एक जा त भाई को, बना कसी दोष के जानवर
क तरह घसीट कर ले जाया जाता दे ख कर, खीस नपोर रहे थे। कसी ने सीट बजाई। हम
दरबार से बाहर घसीट कर, कोने म पटक दया गया। अब रा य को हमारी कोई आव यकता
नह रही थी। हमारी ह याँ टू ट चुक थ और भीतरी अंग त त थे इस लए हम माँस खा
कर बची ह य क तरह र फक दया गया था। हमारे माँस को रा य ने नोच खाया था।
तभी, मुझ पर एक प थर आकर पड़ा। शी ही जैसे प थर क मूसलाधार वषा होने लगी।
मेरे अपने लोग, मुझ पर प थर बरसा रहे थे य क मेरे कारण मेरे वृ मामा को इतने कड़े
प र म वाली सज़ा भुगतनी होगी। उनका नपुंसक ोध दो कशोर पर नकल रहा था तो
मुझे लगा क अब हमारा अंत आ चुका है। अब म अपने मामा को अपने हाथ जेल भेजने के
बाद, माथे पर चोर का ठ पा लए, अपने ही लोग ारा बरसाए गए प थर क मार से घायल
हो कर दम तोड़ने जा रहा था। एक मूख का कैसा अंत होने जा रहा था, जसने इस संसार
को जीतने व अपने जा त भाइय को मु कराने का व दे खा था।
अचानक ही जस तरह प थर क वषा आरंभ ई थी, उसी तरह थम भी गई। मने अपने
र से सने चेहरे से माँ को ज़ार-ज़ार रोते दे खा, जसने कुंभ को प थर क मार से बचाने के
लए अपनी बाँह म भर रखा था। भा यवश, अभी हमारे लोग, स यता क उस पराका ा
तक नह प ँचे थे, जहाँ वे कसी ी को अपने प थर क मार से घायल करते ए, मौत के
घाट उतार दे त।े म ई र को उसक उन कृपा के लए ध यवाद दे ना चा ँगा, जो उसने
समय-समय पर मेरे प रवार पर बरसा । धीरे-धीरे हम हमारी कु टया म ले जाया गया। मेरी
मामी बेसुध पड़ी थ और उनके जुड़ँवा ब चे गला फाड़-फाड़ कर रो रहे थे। हमारी भ
मोट पड़ो सन क जबान भले ही काली थी पर दल सोने का था, उसने उ ह शांत कराने क
को शश क । तभी मेरी नज़र वभीषण पर गई, जो एक कोने म बैठा सं कृत का कोई ंथ
पढ़ रहा था और हमारी ओर दे खने से भी क़तरा रहा था। म ोध से उबल पड़ा। तो सै नक
ने इसे मार कर कह दफ़न नह कया। वह अ छा और पढ़ाकू लड़का घर आकर सो गया,
जस समय वहाँ हमारी पटाई हो रही थी। और जब, हमारे मामा को ज़बरद ती घसीट कर
को के बैल क जगह बाँधा गया तो यह कमीना, यहाँ बैठा कसी मढक क तरह कोई
बे दा दे व ंथ टरा रहा था।
म एक लंबे समय के बाद अपने प रवार से मलने जा रहा था, उसके लए झुर दार गाल
वाले वृ क मु कान को ध यवाद दे ना होगा, उसके लए प नी ारा वष से कड़ी मेहनत से
कमाए गए कंठहार का दया जाना भी बड़ी बात न थी, वह तो केवल इतनी तस ली चाहता
था क उसक बहन सुर त प से अपने पु के पास प ँच जाए; न ही उसे आततायी क
तेल क च क म तल पीसने से कोई द कत थी, बस वह अपने भांज को कारागार से
मु दे खना चाहता था। उस बूढ़े ने अपने कुछ और दाँत गँवा दए थे परंतु पछली बार
ज़ंजीर म जैसा दे खा था, उससे तो कह व थ लग रहे थे। मानो वे हम सबसे कह अ धक
समय तक धरती पर टके रहने वाले थे। वे बयालीस वष के हो चले थे, परंतु अब भी वही
दयालु और मनमौजी वभाव बरकरार था। अपने समय म कभी राजा रह चुके मामा, आज
भी वही दयालु मामा थे, जो अपने नेह के पा के लए सदै व अपने ाण का याग करने
के लए त पर रहते थे। म सदै व इस बात को मरण रखूँगा।
10 मोती प का संकेत
रावण
मं ी प रषद बरगद के वृ तले एक हो चुक थी। मने सभा क अ य ता क , ह त ने
म य थ क भू मका नभाई और बहस गम होती चली गई। कसी क भी बात का कोई सार
नह नकल रहा था। येक कसी न कसी तरह लंका पर आ धप य चाहता था, परंतु
कसी के पास भी ऐसा करने के लए कोई ठोस उपाय न था।
“और तुम, मूख शरोम ण, केवल चार सौ सै नक क सहायता से लंका पर वजय पाने का
व दे ख रहे हो?” म चाहने पर भी अपने रोष को वश म नह रख सका।
भ ने मेरा रोष शांत होने क ती ा क व आगे बोला, “इन जहाज़ पर हर बार मोती व
हाथी दाँत के साथ बीस ले जाए जा सकते ह। इस तरह वे मु य भू म पर लौट कर
फर से ापार कर सकते ह। बाक लोग वहाँ के राजा से आ ह कर सकते ह क उ ह
तट य े म ापार संघ बनाने क आ ा द जाए, य द कोट ग के पूव ार के नकट,
जुलाह क गली के पास, इसे बनाने क अनुम त मल जाए तो और भी बेहतर होगा।”
“महाराज! म सबसे पहले लंका जाना चाहता ँ। इस तरह म आपके लए सहायक र ँगा।”
अचानक ही, म बुरी तरह से ाकुल हो उठा। मने उससे कहा क वह कह नह जा रहा था।
म उससे रात को व तार से बात करना चाहता था और फर वह सुबह रवाना हो सकता था।
म दे ख सकता था क वह यह सुन कर, कस तरह उलझन म पड़ गया था। उसने झुक कर
णाम कया और वहाँ से चला गया।
हमेशा क तरह, प रषद म अंतहीन वचार- वमश तथा चचाएँ चल परंतु अंततः म सब पर
अपनी इ छा थोपने म सफल रहा। मने अपने खेमे म लौटने से पूव, भ को बंद बनाने का
आदे श दे दया।
भ
मुझे इस थान से बाहर नकलना ही था। मुझे लंका प ँचना था। मने बाहर झाँका। यह एक
गहरी अंधेरी और स ाटे से भरी रात थी। मने रसोई के छोटे चाकू क सहायता से तंबू म एक
छे द कया और बाहर आ गया। पहरेदार का यान मेरी ओर नह था। म वहाँ से, इस उ मीद
म भागा क भागने से मेरे पैर क आहट, हवा के साथ मल जाएगी और कसी को पता नह
चलेगा परंतु तभी मेरे सर के ऊपर से एक तीर सनसनाता आ नकल गया। मने एक भी
ण वचार कए बना, नद म छलांग लगा द । जब मेरा शरीर उस बफ़ जैसे शीतल जल से
टकराया तो मुझे गहरा झटका सा लगा। वषा लोहे क सुईय क तरह चुभ रही थी। म पानी
के तेज़ वाह के बीच कसी न ाण प े क तरह बहता जा रहा था, पानी म डू बते-उतरते,
बस और गहराइय म धंसता चला जा रहा था। और फर, इससे पहले क म जान सकता,
अचानक ही म कह से गर रहा था, ब त नीचे, अंधेरी गहराइय म गरता जा रहा था। मेरे
आसपास शु जल का हरहराता और ग तमान तंभ था, जो मुझे नरंतर नीचे क ओर
धकेल रहा था और ऊपर नह आने दे रहा था।
और वह सराय वास के दौरान मने जाना क मेरे भीतर एक छपी तभा भी थी।
घटनावश ही यह त य मेरे आगे आ गया क म एक अ छा रसोइया था। अचानक एक दन
जब सराय का रसोइया बना कुछ कहे, कह गायब हो गया तो मने वयं को मेहमान के
लए भोजन पकाने क सेवा म नयु कर दया। कुछ ही समय म, मने अ छा नाम कमा
लया। वहाँ शाम को आने वाले, भ के हाथ से बनी, तली मछली का वाद अव य लेत।े वे
कहते क मेरे हाथ तैयार मछली के साथ ताड़ी ( थानीय म दरा) का वाद और भी बढ़
जाता था। शी ही मुझे अलग-अलग जहाज़ के क तान क ओर से भी नमं ण आने लगे।
मुझे कुबेर का कमचारी बने, लगभग एक माह होने को था। हमारे जलयान का कह कोई
अता-पता नह था। ायः, म बहाने से मसाल क मंडी क ओर नकल जाता ता क वहाँ से
दखते बंदरगाह पर नज़र डाल सकूँ क संभवतः भीड़ म कोई प र चत जलयान या चेहरा
दख जाए।
इससे पहले क वह कुछ कर सकता। मने उसके पाँव क अंगु लय पर अपने पाँव रखे और
उसे एक करारा ध का दया। वह लड़खड़ाया और पीठ के बल धड़ाम से गरा। हालाँ क
उसने उठने म दे र नह क पर म तब तक वहाँ से नकल चुका था। म खंजर क धार को सूय
क धूप म चमचमाता दे ख सकता था। भीड़ च लाने लगी। म भीड़ म से नकलने के लए
यथासंभव रा ता बनाता गया और इसी अफ़रातफ़री के बीच मने फल से लदे ठे ले पलट
दए, स र के ढे र को र दता चला गया और इसके लए वहाँ बैठे फेरी वाल क चीख़-
च लाहट भी सहनी पड़ी।
रावण मेरी ओर मुड़ा। उसके चेहरे पर म क छाया थी। तब अचानक ही वह मुझे पहचान
गया। मने दे खा क उसके सुंदर मुख पर घृणा के साए लहरा उठे थे। मने दे खा क हमारे
आसपास चार ओर से लोग आ रहे थे और हम घेरने क तैयारी म थे। सादे वेष म छपे
ारपाल हमारी ओर बढ़ रहे थे। व म ब कुल तैयार था और हम उसके हाथ म उन
न बु क तरह पड़ने वाले थे, ज ह नचोड़ कर पूरा रस नकाला जा सकता था। उसने हम
बुरी तरह से नचोड़ने का काम शु कर दया था।
“हट जाओ!” म अपने सुर म भरसक तेज़ी लाते ए च लाया। मने रावण के हाथ म थमी
तलवार क धार को चमचमाते ए दे खा और फर उसके बाद भीड़ म सैकड़ तलवार उठ
खड़ी । रावण के बच नकलने के लए संघष करने लगे तो बाज़ार म धूल के
बवंडर उठने लगे। म महाराज के अ के पास प ँच कर च लाया, “महाराज, मुझे ले चल।
मुझे अपने साथ ले चल महाराज।”
धड़ाम क आवाज़ के साथ दरवाज़ा खुला और म अंधेरे साय के बीच, दो क़दम पीछे हट
गया। केवल अंतव पहने, एक भारी-भरकम दे ह के को घर से बाहर धकेल दया
गया था। वह कुछ क़दम लड़खड़ाया, एक द पक तंभ से टकराया और नाली म धे मुँह
जा गरा। उसके पीछे अपश द क बौछार सी सुनाई पड़ी। वह टस से मस नह आ।
नःसंदेह यह उसका अपना घर तो नह था। कोई भी स य ी इस तरह के अपश द का
योग न करती। यह थान न त प से नाचघर म एक होगा या फर कसी का आमोद
भवन रहा होगा। इससे पहले क वह दरवाज़ा बंद कर पाती, म अंधेरे से बाहर नकला और
दरवाज़े क ओर क़दम बढ़ा दया। वह एक ण के लए भ च क रह गई। मने दे खा क
उसक आयु अ ारह या बीस के लगभग रही होगी, आँख ह क भूरी और काले घने लहराते
केश! वह कसी दे व क या क भाँ त गौर वण थी या फर कोई संकर जा त! उसने एक
रेशमी कंचुक पहनी थी, जो उसके व थल को छपाने के थान पर अनावृ कर रही थी व
ना भ से कुछ इंच नीचे रेशमी धोती कमर म ख सी गई थी। उसके व के बीच एक पतली
सुनहरी ज़ंजीर म हीरा झूल रहा था। इससे पहले क वह च लाती, म घर म चला गया और
उसके गले पर अपनी तलवार रखते ए, अपने बाएँ हाथ से दरवाज़ा बंद कर दया।
“मुझे अपने क म ले चलो।” मने कहा, य क म जानता था क उसके मादक शरीर ने मेरे
पौ ष को जागृत कर दया था। अगले कुछ स ताह तक, एक वे या का घर ही मेरा आ य
थल रहा। वह मेरे लए एक ऐसा कंधा बन गई थी जस पर मने अपने ःख व सपन का
सारा भार डाल दया था।
म उसे हौले-हौले मारने लगा, उसे पूरी यातना दे ते ए, समा त कया गया और सुबह होने
तक, म और माला फ़श पर बखरे, व म के टु कड़े सहेज रहे थे। हमने उन टु कड़ को एक
बोरे म भरा और चीनी डाल कर जला दया ता क शरीर का कोई नामो नशान बाक न रहे। म
बाहर गया और दो आवारा कु को मार लाया, उ ह भी जलती दे ह के बीच डाल दया गया।
इस तरह पड़ो सय के कौतूहल को भी शांत रखा जा सकता था।
जैसे ही म सुबेला क पहा ड़य पर चढ़ने लगा। मेरी आँख अ ु से धुँधला उठ । ऐसा जान
पड़ा मानो, श द कह गले म ही अटक गए ह , “महाराज, नगर अब आपका है, मने कुबेर
क सेना को समा त कर दया है…।” म अपने राजा को दे खते ही च लाया।
“इसे बंद बना लो।” यह वर सुनते ही मेरा कलेजा दहल उठा। जन सै नक को म पहले
दन से अपना मानता आया था। आज वही, मुझे चार ओर से घेर,े मेरा वध करने के लए
तुत थे।
रावण
मुझे इस बात का अनुभव होने म थोड़ा समय लगा क भ कोई व ास ोही नह अ पतु
एक म था। वह तो वही मु दाता था, जसक म जाने कब से ती ा म था। हम एक नए
उ साह के साथ, उन पवत ंखला से नीचे उतरे और भूखी सेना के दल, जतनी ग रमा के
साथ क़दमताल कर सकते थे, उ ह ने करने का यास कया। जैसे ही हम शाही सड़क के
पास प ँच,े तो हम दे ख सकते थे क सड़क के दोन ओर खड़े हज़ार लोग अपनी करतल
व न व जय-जयकार से हमारा अ भनंदन कर रहे थे। म मु दत था। ये वजय ी से जुड़े वही
ण थे, जनक मुझे याशा रही थी। अकूत धन-संपदा मेरे लए ती ारत् थी। म इस
रा य के महान संसाधन के बल पर एक वशाल सेना न मत कर सकता था और फर पूरे
उप-महा प पर अपना आ धप य था पत कर सकता था। इससे बड़ी बात यह थी क म
अपने सौतेले भाई कुबेर को सड़क पर ला सकता था, जसका वह सही मायन म अ धकारी
था, और फर अपने एक हाथ के संकेत मा से उसे भीख म सोने के कुछ टु कड़े दे सकता
था। म अपने पता के चेहरे को दे खते ए उनका उपहास कर सकता था। म ब त सी बात
कर सकता था। म तो राजा और स ाट था। रावण, लंका का स ाट, सुनने म अ छा लगता
है। रावण, भारत का स ाट, यह तो सुनने म और भी बेहतर लगता है। या म ब त अ धक
मह वाकां ी हो रहा था? नह , नह , म तो सदा से ही आ म व ासी रहा था। तभी अचानक,
मेरा मन ता से भर उठा। ये वजय ी तो खोखली थी। यह तो मुझे एक बदसूरत, गँवार,
अस य तथा अ श त कसान व ामीण तथा नीच सप जैसे ारा थाल म परोस कर,
उपहार म द गई थी।
य ही मने महल म वेश कया, ापारी राजा के स मुख, हाथ म भ ा का कटोरा थामे
एक नधन म हला और उसके चार ब च का च मेरी आँख के आगे नाच उठा। इस कभी
न भुलाए जा सकने वाले य तथा कुबेर के हाथ के संकेत ने मेरे पूरे शरीर को द ध कर
दया। पेट म अजीब सी उथल-पुथल होने लगी। मने गौशाला क ओर झाँका व मारीच को
कन खय से दे खा। उ ह ने भी उस ओर दे खा व मुझे दे ख कर मु कराए। मुझे उनक वह
मु कान बेहद यारी लगती है।
इस आपातकाल से नबटने के लए हमारी प रषद क सभा बुलाई गई। हमारे पास जवाबी
हमले के लए कोई सेना न थी। कुबेर अ धकतर नौसेना अपने साथ ही ले गया था। बाक
बचे लोग वषा भोजन के भाव म थे, कुछ लोग मर चुके थे और कुछ बुरी तरह से रोगी
हो गए थे। तो हमारे पास उस द यु राजा से यु करने के लए केवल तीन सौ य क
सेना ही शेष थी। मने बना कसी र पात के यह रा य ा त कया था और इसी बात ने मुझे
चता म डाल रखा था। म व ण से यु करना चाहता था; म कसी के साथ दो-दो हाथ
करना चाहता था। म इस बात को ब कुल भी नह पचा पा रहा था क म कोई वीरतापूण
कृ य कए बना, राजा के पद पर कैसे आसीन हो सकता ? ँ हमने एक सेना से कपट
करके, उसक रसती आँत क दया से रा य ा त कया है। ध कार है!
म व मय के साथ दे खता ही रह गया और मेरे आगे खड़े केश वहीन वृ ने, कसी वानर
क तरह, वा तुकला व अ भयां क क तकनीक बारी कय पर बकवास करना ारंभ कर
दया। और मने ल य कया क वे मुझे रावण कह कर संबो धत कर रहे थे। म अभी इस
मनः थ त म कतई नह था क कसी अनापे त गु से अ भयां क क आरं भक श ा
हण क ँ । जी म तो आ रहा था क उठूँ , उ ह उनक गदन से पकड़ कर, सर को झुकाऊँ
व उनक नाक ज़मीन पर रगड़ ँ परंतु इसक बजाय मने भरसक श ाचार बटोरते ए
कहा, “आपने यहाँ आकर मुझे जो सौभा य दान कया, उसके लए म आपका आभारी ँ।
क हए म आपके लए या कर सकता ँ?” मने आशा क क मेरा सुर मेरे भाव के अनुकूल
न हो और मने जो भी श द कहे वे एक आदरणीय वृ गु तथा वा तुकार के मान के
अनु प ही थे।
“म यहाँ से गुज़र रहा था इस लए सोचा क य न तुमसे कुछ वातालाप करता चलू।ँ ” पाँच
मनट बीत गए और म वह खड़ा रहा, जब क इस दौरान वे वृ स जन कुछ न त बात
को मन मन गुनगुनाते ए, वराम च ह स हत खेद व स ता के वर नकालते रहे। मने
उन सब घटना क क पना कर ली, जो उनके साथ घट हो सकती थ जैसे – कसी
वशालकाय तंभ का उनके म तक पर गरना, जैसे व णु का एक सह का मुखौटा लगाए
तंभ म से, अपने छपे ए थान से कट होना; जैसे मय का धरती पर गरना और उनके
बाक बचे दो दाँत का टू टना। फर अचानक ही मेरे म त क म एक वचार क धा। उ ह तो
मेरी माँ, बहन तथा अपनी धृ पु ी के साथ मु य भू म म होना चा हए था। वे यहाँ कैसे
प ँच गए? इससे भी अ धक मह वपूण वचार यह था क मेरी माँ और बहन कहाँ थे? या
वे व ण क ू रता का शकार हो गए थे? य द मेरी माँ को कुछ हो जाता तो म व ण को
जी वत ही गाड़ दे ता। फर चाहे हमारे आपसी समझौते, सं धयाँ, ह त क कूटनी तयाँ तथा
राजनी त के दाँव पच भले ही भाड़ म जाते।
“ शव! शव, मय भाई तुमने अभी तक इसे कुछ बताया नह ,” माँ का वर सुनते ही मेरे पेट
म मच रही खलबली अचानक ही शांत हो गई।
उनके पीछे ही मुझे अपनी बहन दमकती ई दखाई द । मने उनके साथ खड़ी एक हठ सी
दखती युवती पर भी नज़र मारी, उसक आँख नःसंकोच मेरी आँख का सामना कर रही
थ , मानो उसने ल जा करना सीखा ही न हो।
“ओह! व ण कतना भलामानस है। हमारी या ा कतनी सुखद व आनंददायक रही!” माँ ने
बेलाग भाव से कहा
“तो जंबूमाली कहाँ ह? इससे पहले क म कसी को आपको लवाने भेजता, आप वयं ही
य चली आ ?” मने पूछा
इतना कह कर, वे मंदोदरी को मेरे साथ छोड़ कर, सबके साथ बाहर चली ग । म वहाँ से
भागना चाहता था, क के वातायन से कूद कर ग़ायब हो जाना चाहता था। मंदोदरी! भला
यह भी कोई नाम आ?
“यह क ब त ही दशनीय है।” उसने कहा और मने मन ही मन सोचा क जैसा पता वैसी
पु ी। मने सी मत श द म उ र दया, “हाँ।” इसके बाद वह शांत हो गई और म मन ही मन
कुछ कहने के लए श द क तलाश करता रहा। काश! मुझे बोलने के लए कुछ श द तो
मल जाते। क का वातवरण ब त ही गहन और बो झल होता जा रहा था। मुझे अब तक
इस बात का प का यक़ न हो चुका था क ववाह करने का यह तरीक़ा तो ब कुल ही
अनु चत था।
वह मुड़ी, अपनी भुजाएँ मोड़ और मेरी आँख म सीधा दे खते ए बोली, “मेरे पता ने मुझसे
कहा क आप मेरे भावी प त ह तथा एक आ ाकारी पु ी होने के नाते, म उनके इस ताव
से सहमत ।ँ म दे व के सभी वेद का ान रखती ँ तथा मने दे व तथा असुर के इ तहास
का भी अ ययन कया है। मने अपने पता के अधीन वा तुकला तथा अ भयां क क श ा
भी हण क है। म क वताएँ लखती ँ तथा च कारी का भी शौक़ रखती ँ। मुझे शकार
खेलना ब त पंसद है और म एक कुशल नशानेबाज़ ।ँ ”
जस तरह अक मात् प से उसने गान आरंभ कया था, उसी तरह एक ही झटके म गान
रोक भी दया। हमारे बीच एक ाकुल सा मौन पसर गया। म नह जानता था क अब मुझे
या करना चा हए। या मुझे उसक शंसा करनी चा हए? उसका गान सुन कर करतल
व न से वागत करना चा हए? उसक पीठ थपथपा कर, उसक कोमल वचा क अनुभू त
लेनी चा हए? या केवल एक मु कराहट दे ना पया त होगा? या हो सकता है क मुझे इसके
बदले म एक गीत गाना चा हए? म बुरी तरह से चकराया आ था और इसी ती ा म था
क बाहर से कोई आए और मुझे इस ःखदायी थ त से उबार ले। पहले मुझे इस बात से
बड़ी खीझ होती थी क क के बाहर से नकल रहा कोई भी मूख, मुझसे ब तयाने के लए
सीधा अदं र घुसा चला आता था। अब म ब त ही अकुला कर ाथना कर रहा था क कोई
आए और मेरी र ा करे, फर भले ही वह मय ही य न हो।
“तो, अब तुम दोन म प रचय हो गया। अगले र ववार तु हारा ववाह है और मने
संदेशवाहक के हाथ उन संबं धय को यह संदेश भजवा दया है, जो अगले र ववार तक
यहाँ प ँच सकते ह। शेष संबं धय को हम बाद म सू चत कर दगे।” माँ क म वेश कर
चुक थ और अ भयां क महोदय वातायन के समीप थत अलंकृत तंभ को अपने हाथ
से टोह कर दे ख रहे थे। दहलीज़ पर खड़ी मेरी बहन, अपनी होने वाली भाभी को दे ख खीस
नपोर रही थी।
“परंतु माँ…।” इससे पूव क म अपनी बात पूरी कर पाता, अचानक ही कई क़दम क
आहट सुनाई दे ने लगी और क शांत हो गया। ह त ने जंबूमाली के साथ वेश कया और
उनके पीछे मारीच भी भीतर आ गए। म इस गत संग के बीच बाहरी य के
आगमन से हो गया परंतु इसके साथ ही मुझे बड़ा सुकून भी मला। माँ को दे खते ही
ह त ने दोन हाथ जोड़ कर णाम कया तथा उनके वा य के वषय म कुशल-मंगल
पूछने लगा। मारीच सीधा माँ के पास गए और आँख म एक चमक के साथ बोले, “तो बहन,
जोड़े मलाने का काम पूरा हो गया? और ज़रा दे खो तो, वह कैसे लजा रहा है!”
कुंभ और वभीषण क म दौड़े चले आए और कुंभ ने मुझे गले से लगा लया, उसक दो
दन क बढ़ दाढ़ मेरे चेहरे पर चुभ रही थी। उसके मुँह से ताड़ी क गध आ रही थी।
मेरी बहन ह ठ फुला कर बाहर नकल गई और माँ क छोड़ने से पहले आगे आई और मेरे
म तक पर एक चुंबन अं कत कर दया। जब मने दे खा क मंदोदरी के होठ के कोन पर
एक तरछ रेखा खच आई थी, तो म बुरी तरह से लाल पड़ गया। मय वह बने रहे मानो वे
कुछ दे र और वा तुकला का आनंद लेना चाहते ह परंतु मारीच जस दयालुता के साथ उ ह
वहाँ से बाहर ले कर गए, यह काय उनके अ त र कोई सरा कर ही नह सकता था। हम
लोग वहाँ छाई चु पी के बीच बैठे रहे, इतना समय बीत गया क इस बात का भय पैदा हो
गया क कह ह त पगला कर अ ील गीत न गाने लगे। तभी मारीच ने अपनी गदन
हलाते ए तथा आँख मटकाते ए क म वेश कया।
भ
उस दन, जब मुझे उसका घर मला, तब ब त रात हो चली थी। म उस समय तक म दरा के
नशे म चूर हो चुका था और रा ते म ताड़ी क तीन कान का फेरा लगाता आ आया था।
मने ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा भड़भड़ाया और बाहर से ही माला पर अपश द क बौछार करने
लगा। माला ने दरवाज़ा खोला व पानी से भरी बा ट मेरे सर पर उड़ेल द । शीतल जल ने
मुझे सु कर दया, फर वह मुझे कमर म बँधे व से ख चते ए, भीतर घसीट ले गई,
जससे पानी चू रहा थ। म जानता था क म उसके ेम म पड़ चुका था।
मने एक लंबे समय तक ती ा क थी क कोई आता और मुझे मेरे वामी के पास ले जाता।
दन बीतते गए, लोग एक- सरे से ब तयाने म म न, राजनी त और अपने भ व य क चचा
करते ए सड़क पर झुँड बनाए नकलते रहे। म भी उस भीड़ का ह सा बनना चाहता था
ता क सड़क पर चल रहे उन लोग क जानकारी लेते ए, उनक मनः थ त भाँप सकूँ।
परंतु म इस बात से डरता था क कह म बाहर चला गया, तो वह संदेशवाहक खाली हाथ
लौट जाएगा, जसे मेरे वामी मुझे लवाने के लए भेजगे। वह न त प से मुझे लेने आने
वाला था। मेरे वामी वयं मुझसे मलने आने वाले थे। वे मुझे अपने समीप बुला कर उन सब
बात के लए ध यवाद दे त,े जो पछले कुछ दन म घट थ । फर म कहता क यह सब तो
शव क कृपा का फल था। म तो उनक इस बाजी का अदना सा यादा भर था। म दन-रात
यही सपने दे खता रहा परंतु कोई नह आया, कोई भी तो नह ! म वह बैठ गया, मेरे चेहरे से
दो वेद धाराएँ बहते ए, छाती को भगो रही थ । य प म हलने का साहस नह कर
सका। मेरे स ाट मुझे पहले ही व मृत कर चुके थे। म इस बात पर व ास नह कर सका।
नह , वे त थे। वे अपने प रवार के सभी सद य के अपने-अपने काम पर लौटने क
ती ा म थे, इसके बाद वे न त तौर पर मुझे बुलाने वाले थे। परंतु साँझ ढलते-ढलते, म
इस वषय म इतना न त नह था। म वहाँ जाने और अपना चेहरा दखाने से भयभीत
अनुभव कर रहा था। म कौन था? एक नकृ जीव! मानो कोई छोटा सा क ट। जी म तो
आया क अपने ही चेहरे पर थूक ँ ।
शीत ॠतु का अंत नकट था, एक छोट सी घटना ने पूरे नगर म वशाल तर पर दं गे फैला
दए। कसी ने सोचा तक नह था क नरहंकारी तथा अनाड़ी महागु तथा अब शासन के
मुख अ भयंता मय, इन दं ग का कारण ह गे। जब उ ह ने अपने अ भयां क कौशल के
दशन क ठानी तो उ ह ने बुरी तरह से डसे गए, तनाव त तथा भूखे लोग क खती रग
पर हाथ रख दया। यह शीत ॠतु क एक सुहावनी सुबह थी, म सड़क पर हो रहे ह ले-
गु ले के वर को सुन कर न द से जगा। जब बाहरी शोर-शराबा सहनश से बाहर हो गया
तो मने ब तर से उठना चाहा। बाहर से एक अलग सी घराहट का वर आ रहा था। म
चड़ चड़ाहट व न द से बो झल आँख के साथ बाहर नकला, तो एक वमान म सवार मय
को दे खते ही मेरी जंभाई बीच म ही थम गई। वह तो एक उड़ने वाला यं था। यं आकाश म
कलाबा ज़याँ खा रहा था और दे ख कर लगता था क मय को ब त आनंद आ रहा था, इस
वजह से नीचे जो कोलाहल हो रहा था, वह तो वाभा वक ही था। सारी भीड़ उसे दे ख कर
आ य व भय के मारे चीख़- च ला रही थी।
इसके बाद लोग म हलचल व सुगबुगाहट होने लगी। लोग जाने कतनी अलग-अलग तरह
क बात कर रहे थे। तभी मने उसे दे खा – माला का ेमी! वह एक ाचीर पर खड़ा, कसी
को च ला कर कोई आदे श दे रहा था। म सुनना चाहता था क वह या कह रहा था
इस लए म भीड़ के म य राह बनाते ए आगे बढ़ा। धीरे-धीरे कोलाहल शांत हो गया और
वहाँ केवल ह क फुसफुसाहट, बुदबुदाहट और गहरी साँस भरने के सवा कोई श द नह
सुनाई दे रहा था। मानो वहाँ के वातावरण म एक व च सी याशा झूल रही हो। तब
अचानक ही मेरा श ु ो धत हो कर श द के व फोट करने लगा।
“यहाँ तु हारी संतान भूख से दम तोड़ रही ह और वहाँ महल म तमाशबीन उड़ने के सपने
दे ख रहे ह।” उसने अपनी बात वह समा त क और आसपास दे ख कर, वहाँ के वातावरण
का अनुमान लगाया। “इसने तो दे व क भी अव ा कर द है। यहाँ तक क इस तरह तो
दे वता भी नह उड़ते और यह राजा मूख वै ा नक के लए पानी क तरह पैसा बहा रहा है
ता क उड़ने वाले वमान व यं बनवा सके।” भीड़ ने समथन म अपना वर मलाया। “जब
तु हारी संतान भूख से दम तोड़ रही ह, खेत तु हारी संतान क लाश से पटे ह, जब तु हारे
पशु जल के अभाव म यासे दम तोड़ रहे ह तब तु हारा शासक तु हारे शव के ऊपर से
वमान म उड़ेगा और आकाश के ऊपर से तु हारे वनाश का यह य दे खेगा, य ?”
“वह कहता है क व ण के कारण तुम लोग का जीवन इतना दयनीय हो गया है। यह व ण
कौन है और लंका के नवा सय पर या अ धकार रखता है? वह एक द यु है। यह तु हारा
भा य नह , तु हारी बलता है क तु हारे पास रावण सरीखा कायर राजा है।”
“उसने द यु को हमसे सदै व र रखा। उसने तुम लोग को ठगा पर फर भी उसका ववेक
अभी मरा नह था। उसने तु ह झुकाया अव य था परंतु कभी तोड़ा नह ! अपनी संपूण
वला सता के बावजूद वह इतना तो छोड़ ही दे ता था क तुम लोग का पेट भर सके। इस
कायर रावण ने छल-कपट से यह रा य ा त कया है और अब तुम पर अपना पैशा चक
शासन थोप रहा है। वह तो ऐसा है क एक शशु के मुख से भी ध छ न लेगा। वह
तु हारा र पान करेगा। य द उसे लगेगा क उसे अपने वला सता व ऐ यपूण जीवनशैली के
लए कसी कार के आ थक अनुदान क आव यकता है तो वह तु हारी प नय तक को
बाज़ार म बेच दे गा। वह बल, ू र तथा सबसे बढ़कर एक कायर राजा है।”
रावण
“ व ोही को पूरे बल से कुचल दो। कसी भी ोही को छोड़ा नह जाएगा।” मने समु क
ओर दे खते ए, अपने लोग को नकवास दे ने का फ़रमान सुना दया। फर अपने-आप को
सां वना द , “म यह सब अपने लोग के क याण के लए ही तो कर रहा था।” अचानक ही
मेरे भीतर से वही कठोर वर गूँज उठा। ‘रावण, इ तहास का येक अ याचारी अपने-आप
से यही तो कहता आया है। काश म अपनी अंतरा मा से उठते इस वर को सदा के लए मौत
क न द सुला पाता।”
एक-एक कर, सभी क से बाहर चले गए। मने वयं को अकेला अनुभव कया, ब त ही
अकेला। म कह सु र से उठती धू रेखा दे ख सकता था, जो आकाश क ओर उठती जा रही
थी। हो सकता था क वहाँ कुछ मनु य जी वत ही जल रह ह । मेरी याय व सदाचार क
भावना भी जैसे उसी धुएँ म वलीन हो कर, मेरे महल के आसपास बखर गई थी। म जानता
था क एक राजा के प म अपने जीवन का नया आरंभ करने के प ात, ऐसी हा न के बारे
म वचार करने के लए तो अभी ब त समय था। मुझे तो अभी ब त र तक जाना था।
अभी तो असं य लोग को यातनाएँ दे नी थ , जाने कतने जीवन उजाड़ने थे, अपने-आप को
जाने कतनी और सफ़ाईयाँ दे नी थ और ब त से भयंकर काय करने शेष थे। अभी कसी
ऐसे नायक क भू मका नभाने के लए ब त समय पड़ा था, जो प ाताप क अ न म जल
रहा हो। या व ण के जहाज़ पर अब भी कसी न न तर के कमचारी का पद मेरे लए
र था?
“महाराज! ये तो म ँ!”
“कौन हो तुम?”
“भ !…”
एक छोटे से युवराज राम तथा उसके नर वानर के साथ ए इस यु ने, मेरे जीवन को न -
कर दया और वह सब थ हो गया, जो मने आज तक हा सल कया था, यह सब
मानव जा त के इ तहास म ब त ही ु व मह वहीन हो सकता था। म कब से इ तहास क
परवाह करने लगा? इ तहास मुझ से ही ारंभ होता है और मुझ पर ही समा त होता है।
शायद मेरे अंग को नोच-नोच कर खा रहा सयार यह जान कर आ यच कत हो सकता है
क वह इ तहास के ही एक अंग को नगल रहा है। यह सब या मायने रखता है, क मेरे
जैसा नधन , जसने एक साथ स ाट व मूख क भू मका नभाई और कभी-कभी
दोन भू मकाएँ एक साथ भी नभा या नभाना भूल गया; वह इस ू र व नमम भुवन म
या मह व रखता है, जो क उसके अ त व से भी ब त पहले से व मान है और मेरे धरती
म दफ़न हो जाने के बाद भी यूँ ही व मान रहेगा।
“तुम मेरे नजी अनुचर हो। कोई राजसी सहायक या कुछ और नह । बस एक नजी सेवक,
तुम वही करोगे, जो म करने के लए क ँगा।”
“महाराज! म एक ान क तरह आपक सेवा क ँ गा।”
“अब तुम जा सकते हो।” उसने नीचे तक झुक कर णाम कया और क से बाहर नकल
गया।
“कुछ नह , ब चा थोड़ी मौज़-म ती कर रहा है। कसी को भेज कर, उसका कज़ अदा
करवा द और ये ख़च मेरे नजी खाते म डालने को कह। मेरा मतलब है, हमने लंका पर
आ मण से पूव जो बटोरा था, उसम से जो भी बचा है। म नह चाहता क मेरे भाई क
म दरापान क आदत के लए रा य क ओर से कोई सहायता द जाए।”
“रावण! केवल यही बात नह है। वह नशे क व तु का सेवन भी करने लगा है। उसके
म का एक दल है जो भाँग से नशे क व तुएँ तैयार करते ह। वे सोम पौधे से अवलेह भी
बनाते ह। मुझे लगता है क उ ह ने कुंभ को अपने वश म कर लया है… मने अपने दो े
अ धका रय को उनके पीछे लगाया था ता क पता लग सके क वे करते या ह। उ ह ने वही
बताया जसक मुझे पछले दो दन से आशंका हो रही थी। रावण, वह मूख पूरे दन म
अ धकतर मद व मादक पदाथ के नशे म चूर रहता है।”
“रावण! मूखता से भरी बात मत करो। इस समय भी जतने लोग उ चपद थ ह, उनम से
अ धकतर, तु हारे संबंधी ही तो ह, जैसे म और ह त!”
“ये तो अलग बात है। आपके पास लंबा शास नक अनुभव है और आप एक बार रा य का
संचालन भी कर चुके ह। कुंभ और वभी तो अभी ब चे ह।”
“और तुम चाहते हो क वे हमेशा यूँ ही रह? या तुम नह चाहते क वे भी बड़े हो कर,
अपने पैर पर खड़े ह ? रावण, या तुम अपनी संतान के लए ये पद बचाना चाहते हो?
या तु ह भय है क कह तु हारे भाई ही, तु हारे शासन के लए चुनौती न बन जाएँ?”
“मेरे बेटे! तुम जस सहासन पर जा बैठे हो, वह ायः उसूल व स ांत को, सहांसना ढ़
स ाट के अनुसार ढालने क मता रखता है।”
“ येक मुझ पर ही यह लांछन य लगा रहा है क मुझे स ा ने कर दया है? भला मेरे
पास कौन सी स ा है? चूँ क इस लए क मेरे पास शासन करने के लए एक रा य है और
उसके आधे से अ धक मुझे मृत दे खना चाहते ह, इसका अथ यह तो नह क मुझे यह
स करना होगा क म वह अधम, नरंकुश व वे छाचारी असुर नह , जैसा वे मुझे बनाना
चाहते ह।” “परंतु मुझे अपने भाइय जैसे मूख के साथ स ा य बाँटनी चा हए?”
“ ह त क तरह बात के ल छे बनाना बंद कर। मने यहाँ आपको एक योजना पर वचार-
वमश के लए बुलवाया है। म आपका परामश चाहता ँ और मेरी इ छा है क कुंभ भी
हमारा साथ दे ।”
जब कुंभ भी आ गया, तो मने उ ह अपनी योजना से अवगत करवाया। वहाँ चार ओर मौन
पसर गया।
मने समु द यु के जहाज़ी बेड़े को दे खा। वहाँ आमोद- मोद समा त हो चुका था और
जहाज़ क ब याँ बुझा द ग थ । मने उ मीद क क सभी समु द यु म दरा के नशे म
चूर हो कर, धे मुँह पड़े ह गे। मुझे इस बात का प का पता नह था क द यु राजा व ण,
उनम से कस जहाज़ म हो सकता था। यह सबसे बड़ा कारक ही अभी मेरे लए एक रह य
बना आ था। मेरा शासन इसी पर नभर करता था। म जानता था क इस काम म ब त
ख़तरा था और अगर म समु द यु के हाथ पकड़ा जाता, तो लंका के ार उसके लूटमार
करने वाले झुँड के लए पूरी तरह से खुल जाते। म भी भयभीत था। यह एक ऐसा भय था,
जो शरीर को सु कर दे ता है, मानो शरीर को प ाघात हो गया हो। जो असहाय आ माएँ,
उस द यु राज के हाथ पड़ जाती थ , उनको वह कतनी भयंकर यातनाएँ दे ता था, ये क से
तो अब पौरा णक कथा क तरह कहे जाते थे। उसका भयंकर, कठोर व न ु र आचरण
उसे दे व के समक ले आया था। मने अपने दे शवा सय तथा सगे-संबं धय के त अपने
कत भाव को याद करते ए, इस भय पर काबू पाने का य न कया।
“महाराज! आपक जा, आपक सेवा म तुत है।” इस ाणी स हत बीस , मेरे एक
आदे श पर अपने ाण क आ त दे ने के लए तैयार खड़े थे। परंतु म वैसा अनुभव य
नह कर पा रहा था, जैसा क कसी यु म सेना का नेतृ व करते समय महसूस कया करता
था?
तेज़ वषा होने लगी और जहाज़ सागर क उ ाल तरंग म हचकोले खाने लगा। मेरे कुछ
सै नक पानी म जा पड़े परंतु कुछ मेरे साथ जहाज़ के छत वाले ह से म उप थत थे। वहाँ
हरहराती हवा के शोर के सवा चार ओर स ाटा पसरा आ था। हम वहाँ अपनी तलवार
थामे खड़े रहे। यह सब कतना हा या पद था। हम वहाँ पानी से पूरी तरह भीगे ए व
अधनँगे खड़े, अपनी आस मृ यु क ती ा कर रहे थे। वषा ने र के क़तर व बूँद को
धो-प छ कर बहा दया था। इसके साथ ही मेरे झूठे साहस क भी ध जयाँ उड़ गई थ । ‘हे
ई र! यह मने या कर दया था?’
आ ख़र वह दोगला व ण कहाँ था? काश! म उससे दो-दो हाथ कर पाता। सरे जहाज़ से
आए द यु हमारे जहाज़ क छत पर चढ़ने का यास करने लगे। मने उनम से एक को ठोकर
मारी और लहराते सागर म गरते दे खा। संभवतः व ण नचले क म था। मने एक ठोकर
मार कर दरवाज़ा खोला और सी ढ़य से ऊपर जाते ए, नचले क म छलाँग लगा द । वह
अलंकृत ार बंद था तथा उसक दरार से छन कर काश क करण बाहर आ रही थी।
जहाज़ क मुड़ी ई द वार पर भू तया साए लहरा रहे थे। छत पर हो रहे यु के ह के वर
यहाँ तक सुनाई दे रहे थे परंतु या व ण भीतर था? मने ार को ठोकर मार कर खोला और
अपनी तलवार लहरा द । वह क तो खाली था। मने अपनी तलवार को रेशमी पद के बीच
घुमाया।
मने उस द यु-राज का चेहरा दे खने क चे ा क जससे म इतनी घृणा करता था परंतु उसने
अपने लकड़ी के जूत से मेरे मुख पर ठोकर दे मारी। मेरी ना सका से र का फ वारा बह
नकला और वहाँ फ़श पर जमा होने लगा। मेरा भय वा पस लौट आया था। म तो जाल म
फँस चुका था! या मेरा यही अंत था? म अपनी कुंठा तथा ोध के कारण यु करने लगा
परंतु लगभग चालीस वष य व ण ने बड़ी ही सरलता से मेरे सभी घात तथा तघात को
नर त कर दया। मेरी लगभग बीस वष य ऊजा तथा जवानी का उस आ म व ास से
भरपूर अनुभवी के स मुख कोई मोल न था।
मारीच क ास उखड़ी जा रही थी परंतु वे अपनी बात कहने से पीछे नह हटे । “जब आज
ातःकाल तुमने हमारे साथ इस योजना पर चचा क तो म नरंतर इसी बारे म वचार करता
रहा। मने इसके वषय म जतना वचार कया, यह योजना उतनी ही वचारहीन व
मूखतापूण जान पड़ी। म तु हारे क म तु ह सावधान करने आया था क भूल कर भी ऐसी
थ क योजना को फलीभूत करने का य न मत करना पर तुम वहाँ से ओझल हो चुके थे।
तुम कहाँ जा सकते हो, इस बात का अनुमान लगाने के लए ह त जतना बु मान होने
क कोई आव यकता नह है। न त प से तुम दे र रात क सैर पर तो नह नकले थे। मने
इस कमअ ल को जगाया, फर कसी बौराए कु े क तरह भागा और यु का बगुल बजा
दया। म केवल कुछ सौ सै नक को ही एक कर सका। उनम से आधे तो म दरा के नशे म
धु थे। ये असुर भी बस…। फर हम तेज़ी से च पू चलाते ए, उस तमाशे को दे खने आ
प ँच,े जो तुम आधी रात को समु क छाती पर खेल रहे थे।”
मारीच मुझे घूरते रहे। फर कुछ ण सोचने के बाद बोले, “य द तुम समु द युराज को
सागर माता के ही हवाले कर दे ते तो बेहतर होता।”
मने उनके परामश को उपे त कर दया, परंतु य द म अपने जीवन के उस अ याय को पुनः
लख सकता, तो संभवतः उसी एक ण से आरंभ करता और मारीच व कुंभ से कहता क
वे व ण को उठा कर पानी म धकेलने म मेरी सहायता कर।
14 ववाह का शुभ मु त
रावण
हमारे लंका प ँचने से पूव ही यह समाचार कसी दावानल क भाँ त पूरी लंका म सा रत हो
गया था क लंका के महान श शाली राजा ने द यु स ाट व ण को पकड़ लया था।
समु द यु के क टव तार-तार कर दए गए, उन पर क चड़ व धूल फक गई, उन पर
थूका गया, उ ह नदयता से पीटा गया और फर उ ह उनके परा जत राजा का अनुकरण
करते ए, वीभ स जुलूस म चलने के लए ववश कया गया। सड़क पर हज़ार क सं या
म खड़े लोग, इस वजय का उ लास-पव मना रहे थे।
मने पीछे मुड़ कर दे खा, तो च लाने और ठहाके लगाने वाले सपाही भी अचानक शांत हो
गए, मने उ ह घूरा तो उन लोग ने भी अपने सर झुका लए। मने कुंभ को दे खा तो वह मेरी
ओर दे ख कर मु कराने लगा। मने उसक मु कराहट का यु र तो नह दया परंतु अचानक
मेरी मारीच क से जा टकराई। उ ह ने बड़ी उदासीनता से अपनी गदन हलाई।
‘उ ह ने मुझे झुक कर णाम य नह कया?’ म भीतर ही भीतर खौलने लगा। र से सने
चेहरे वाले व ण से नज़र मल तो वह मुझे दे ख कर दानवी हँसी हँसा। म उसक उस हँसी से
भयभीत हो उठा परंतु उससे भी कह अ धक म वयं से भयभीत था, ‘म कस तरह का
रा स बन रहा था? म अपनी ही जा से इस तरह वहार य कर रहा था? जब मारीच ने
मुझे आदर-मान नह दया तो मुझे उन पर ोध य आया?’ म चाहता था क दौड़ कर उ ह
अपने आ लगन म बाँध लूँ और उनसे मायाचना क ँ परंतु जाने कसी चीज़ ने मेरे क़दम
रोक लए। मने अपनी ग त बढ़ाई और महल के वेश ार से भीतर चला गया।
व तृत ांगण के सरे छोर पर खड़ा ह त, मेरी ती ा कर रहा था। उसके माथे पर
सलवट थ और चेहरे पर ह का सा रोष भी झलक रहा था। म ह त के आसपास नृ य
करते ए झूमना चाहता था। यह मूख मुझे नरंतर सावधान रहने क सलाह दे ता आ रहा था।
उसक सलाह उसे और उसके त दयल असुर को ही मुबारक ह । जब म उसके समीप
प ँचा, तो अपनी चाल धीमी कर, उसक आँख म झाँका।
“महाराज दरबार लग गया है।” ारपाल अपने पूरे ज़ोर के साथ च लाया। मुझे यह वर
सुन कर स ता ही ई और म उसके पास से नकल गया, ह त और सरे दरबारी मुझ पर
कस कार के क बौछार करने वाले थे और मुझे उनके या उ र दे ने चा हए, यही
वचार करते-करते म दरबार म प ँच गया।
“महाराज!” मने ल य कया क ह त का वर थोड़ा मंद था। “हम आपसे समु द युराज
व ण के वषय म कोई नणय करने क ाथना करते ह… आपको इस बारे म कोई नणय
करना होगा।”
व ण के होठ पर एक तरछ मु कान खेल गई। उसने मेरी तीखी नज़र से नज़र मलाते ए
कहा, “तो वह दन आ प ँचा, जब सभी सूअर ववाह बंधन म बँधगे।”
मं य क हँसी पघलते लावे क तरह मेरे कान से उतरती चली गई और मने व ण के मुख
पर ठोकर दे मारी। फर म भी उसके इस उपहास म शा मल हो गया और ठहाके लगाने
लगा। केवल ह त ही शांत रहा, उसके अ भजातीय चेहरे पर हँसी क एक भी रेखा नह
दखी।
“म वही क ँ गा जो मेरा जी चाहेगा। तुमने अपना मत दे दया है। अब अपना परामश अपने
पास रखो।” मने ह त को मुँहतोड़ उ र दया और यह बात यह समा त हो गई। या फर
शायद ऐसा मुझे लगा था। म अपने मं य स हत सभा से बाहर आ गया, जब क व ण को
धकेल कर ले जाया गया ता क उसका आधा सर मूँडा जा सके और सरी यं णाएँ व
ताड़ना द जा सक।
तभी मने दे खा क मेरे पता वहाँ एक वशाल कुस पर वराज चुके थे। मेरी माँ फ़श पर बैठ
उनके पैर क मा लश कर रही थ । मेरा भाई वभीषण भी बड़े ही आदर से उनके नकट
खड़ा था। ह त के अ त र मेरे सभी मं ी वह उप थत थे और इस तरह वनयपूवक खड़े
थे मानो कसी अ त थ स ाट के त अ भवादन कर रहे ह । शूपणखा अपने पता को
भा वत करने क पूरी चे ा कर रही थी, जब क वे उसक बात पर यान तक नह दे रहे थे।
“गव ले पता तथा महान उपल धकता क भट। आह! कैसा नाटक य य था।” कुंभकण
वह खड़ा खीस नपोर रहा था।
“मने यही नणय लया क उसम भाग न ही लू।ँ शायद म पा रवा रक गान क पं याँ भी
भूल गया ।ँ ” अब कुंभ ज़ोर-ज़ोर से हँस रहा था। उसके मुख से आती दे सी दा क गंध
मेरे नथुन से कसी व फोटक पदाथ क तरह टकराई।
यह हलचल सुन कर पा रवा रक पुन मलन समारोह भंग हो गया और वे सभी मेरे क म
दौड़े चले आए। कुंभ खाद के ढे र क तरह वह फ़श पर गरा पड़ा था। उसक नाक से र
टपक रहा था और वह पीड़ा से कराह रहा था। मारीच ने मुझे थाम लया और शूपणखा र
दे ख कर च लाने लगी। चटाक! मेरे कान जलने लगे और मने आ य से दे खा क माँ ने मुझे
तमाचा रसीद करते समय, मेरे कान के कुंडल से अपना हाथ काट लया था। उ ह ने मेरे
मं य , मेरे अनुचर के सामने – मुझ पर हाथ उठाया था और अब यह घटना कसी दावानल
क तरह पूरे दे श म फैलने वाली थी – एक राजा जो अपनी माँ के प लू के साए म जीता है।
एक राजा, जससे उसक माँ एक नादान बालक क तरह पेश आती है।
“पहले तुम मेरा नबटारा करो। म तु हारी पहली बं दनी ँ।” माँ पीछे से च लाई। “मेरे बाल
उतरवा दो और नव कर, गधे पर बैठा कर, पूरे नगर म घुमवाओ। तुम क य गए?
नीच अधम! बोलो।”
मने मारे शम के अपना सर झुका लया। अब मेरी माँ क चीख़- च लाहट कसी वातो माद
क सुब कय म बदल चुक थी। मेरे हाथ काँप रहे थे। म कसी क भी नज़र का सामना
नह कर सकता था। कसी ने मेरे कंध पर अपना हाथ रखा। “कैकसी! यह ब कुल नह
बदला। मुझे तो यह कहने म भी ल जा आती है क यह मेरा पु है। सोचा तो था इस अवसर
म शा मल हो कर इसक शोभा बढ़ाऊँगा। म अपने व ान म को भी साथ लाया था ता क
इस रा स का ववाह रचा सक और इस शैतान ने अपनी माँ पर हाथ उठाया और मेरे म
के ही स मुख अपने भाई को मार-मार कर लगभग अधमरा ही कर दया!”
मेरी नस म खून खौलने लगा। मने बरामदे के कठघरे को ज़ोर से जकड़ लया। जब हम
भूख से तड़प रहे थे तब ये तथाक थत ा ण महाशय कहाँ थे? तब ये कहाँ थे, जब मेरी माँ
भोजन व व के लए भ ा माँग रही थी? तब ये कहाँ थे, जब हम मानसूनी तूफ़ानी
हवा म झूमती उस जीण-शीण कु टया के बीच अकेले जूझने के लए छोड़ दया गया था?
मेरी माँ बोल , “म जा रही ।ँ तु हारे पता, दोन भाई, बहन और म, आज के बाद कभी
तु हारे घर म क़दम नह रखगे। हम तुमसे दोबारा मलना ही नह चाहते। और जब हम मर
तो हमारी मृ यु का शोक मनाने भी मत आना। स ा ने तु ह रा स बना दया है। तु ह…
तु ह… कभी शां त नह मलेगी…।”
“कुंभकण, कुंभ उठो! उठो पु !” परंतु माँ क सारी चीख़-पुकार भी कुंभ को उसक न द से
नह जगा सक । वह उठता भी कैसे, वह तो मद के नशे म चूर हो कर सोया था। म लगभग
मु कराया। “रावण! तूने इसका वध कर दया है। तुमने अपने ही भाई को मौत के घाट उतार
दया है। अपने ही छोटे भाई के ाण ले लए ह।”
“नह , नह … नह भैया! मेरा मतलब है…।” वभीषण बुरी तरह से हकलाने लगा। म उसके
इतना नकट चला गया था क उसके म तक पर मली प व भ म क गंध भी सूँघ सकता
था। वह वेद से लथपथ था।
मेरे पता न त प से कोई अ भशाप दे ना चाहते थे परंतु उसके भय से उ ह ने अपना मुँह
तक नह खोला। माँ ने बची-खुची मयादा समेट कर, प त का हाथ अपने काँपते हाथ म
थामा और अपने नाटक य अंदाज़ म घोषणा क , “म भले ही ाण याग ँ गी परंतु इस नक
म कभी क़दम नह रखूँगी। म तु ह और तु हारे भाई-बहन को अपनी मृ यु के शोक से भी
वं चत करती ।ँ तुम मेरा मरा मुँह तक नह दे ख पाओगे। तु ह अपने माता- पता के त
कए गए इस अपमान का बदला चुकाना होगा। म नह जानती क यह सब इसी संसार म
होगा या अगले ज म म, परंतु न त प से तु ह इसका बदला चुकाना ही होगा।”
वह मेरे महल से बाहर नकल ग और उनके साथ ही पता भी बाहर चले गए। क के एक
कोने से दबी सुब कय का वर सुनाई दे रहा था, मने दे खा क मेरी य बहन, दोन हाथ म
चेहरा थामे, सुब कयाँ भर-भर कर रो रही थी। वभीषण बड़े ही अटपटे तरीक़े से पास खड़ा
सब दे ख रहा था। म बहन के पास गया और उसके कंधे पर हाथ रख दया, वह मेरे व थल
से लपट कर ज़ार-ज़ार रोने लगी। उसने मुझे कस कर जकड़ रखा था। या म एक भाई के
प म असफल रहा? या मने उसके त कोई अ याय कया था? अचानक ही मेरे भीतर
से एक ही वर बार-बार उठने लगा। ‘मेरी य, य बहन, मने तुमसे या छ न लया है?’
भ
“ या वह जी वत रहेगा?” मेरे कान को एक गहरा वर सुनाई दया।
उसके पीछे एक साया लहराता दखाई दया, द पक के जलते काश म चेहरे का केवल
आधा भाग ही का शत था। मने शव को ध यवाद दया क मने अपना मुँह नह खोला था।
यह साया और कोई नह , ब क व ुत ज हा ही था। म जस तूफ़ान से बच कर नकला था,
उससे भी चंड वेग से ोध व घृणा ने मुझ पर हार कया। वह ा औरत तो उसके साथ
ही रह रही थी।
उसने मेरे कंध पर हाथ से चपत लगाई और गले से लगा लया परंतु इस या म उसका
यास यही रहा क हमारे शरीर का पश न हो। सभी एक समान हो सकते ह परंतु वे
इस सीमा तक भी समान नह होते। “हमारी श ण क ा म आओ। माला, इसके लए
व व भोजन आ द का अ छ तरह से बंध कर दे ना और इससे कहो क यह नान कर
ले।”
व ुत ज हा अपना रेशमी चोगा, जाते-जाते पीछे फहरा गया। उसका समक , भ , अपनी
उपप नी के साथ वह खड़ा रह गया।
“ या तुम करती हो?” माला ने एक आह भरी और बाहर चली गई। म उसके पीछे -पीछे
गया, मुझे व ो हय को दए जा रहे श ण के वषय म ब त ज ासा हो रही थी। मुझे
व ुत ज हा के समक माने जाने वाले एक बल असुर ारा नान के लए अंगोछा व कुछ
जड़ी-बू टयाँ द ग , वह बुरी तरह से फटे हाल थे और नंगे पाँव म छाले पड़े ए थे। म नान
के लए पास ही दख रहे, छोटे कुएँ क ओर बढ़ा। मने उस थान को भली-भाँ त रगड़ कर
मला परंतु समानता क वह गंध अभी छू ट नह थी। शी ही, म उसका भी अ य त हो गया।
एक दन, मने अपने अंतहीन कौतूहल को शांत करने का नणय लया और उसका पीछा
करने का मन बनाया। मने कुछ ण तक ती ा क और फर उसके पीछे चल दया। वह
एक ऊँची द वार पर चढ़ा और पल भर म ही अ य हो गया। म द वार के पास गया और
वहाँ टँ गी र सी का नरी ण कया, जसक सहायता से वह महल म गया था।।
जस ने मुझे गदन से दबोच रखा था, वह तो वभीषण था। पूरे महल के इतने क म
से, मुझे भी इसी प व पा प के क म आना था! उसने धीरे से गदन पर पकड़ ढ ली क
और म वह फ़श पर लुढ़क गया। वह हाथ म अपनी तलवार लए, मुझ पर सवार था।
ऐसा लगा क वह वयं मत था। उसक इसी वधा का लाभ उठा कर, मने अपनी वनती
जारी रखी। उसने ोध म अपने पाँव पटके। म रगते-रगते द वार क ओर सरका और एक
गद क तरह जा समटा। म अब भी बुरी तरह से काँप रहा था। उसका ोध ब त भयंकर
था। मुझे हमेशा से ही यह संदेह रहा था क वह एक ख़तरनाक था और उसका यह
शांत व मया दत प एक छलावा भर था, परंतु उस दन जब उसे तलवार हाथ म थामे,
ता से भरी चमक के साथ मुझे घूरते पाया तो मेरा संदेह व ास म बदल गया क वह न
केवल एक ख़तरनाक था अ पतु मेरे ारा दे खे गए सभी असुर म से सवा धक चतुर
व नमम भी था। महान ानी मं ी तथा सवा धक श शाली रावण जैसा राजा भी जस
बात पर संदेह तक नह कर सकता था, मूख शरोम ण भ उस त य को जानता था। एक
दन, य द कोई भी अवसर हाथ लगा, तो यह घ टया आदमी भू म के एक टु कड़े अथवा कुछ
वण मु ा के लए अपनी आ मा तक को बेच दे गा।
“यह बात आपक बहन से संबंध रखती है। वह कसी से एकांत म मल… कृपया मुझे
ठोकर से न मार…।”
उसने मुझे गदन से पकड़ कर, धरती से उठाया और बड़े ही ता से भरे सुर म बोला,
“सूअर के ब चे! तु हारा मेरी बहन से या लेना-दे ना है?”
ँ धे कंठ तथा खाँसी के दौरे के बीच कसी तरह मने पूरे संतोष के साथ कहा, “ व ोही राजा
दे श ोही व ुत ज हा, जसे आप लोग पछले कुछ माह से तलाश रहे ह, वह इस समय
आपक बहन के साथ है… वे दोन बगीचे म ह।” मने एक ं य के गहरे वार के साथ अपनी
बात ख़ म क । ‘जाओ उस कमीने असुर को पकड़ लो…।’
उसने मुझे नीचे पटक दया, परंतु म अनुभव कर सकता था क उसक सारी श कह चुक
गई थी। म वयं को यह कहने से भी रोक नह सका, ‘अभी तो उनका मलन काय म
समा त भी नह आ होगा…।’ उसने मुझे खा जाने वाली नज़र से घूरा और मने एक और
भारी-भरकम घूँसे क अपे ा क परंतु वह चुपचाप क से नकल गया। म भी उसके पीछे -
पीछे बाहर चल दया। मारीच सबसे नचले तल पर अपने प रवार के साथ सो रहे थे। हम
लकड़ी क सी ढ़य से नीचे उतरे। वह मारीच के क के बाहर एक ण के लए का और
फर हौले से ार खटखटा दया। ार एक ह क चरमराहट के साथ खुल गया। मारीच
अधन द आँख के साथ खड़े थे और साफ़ दख रहा था वे गहरी न द से जगाए जाने के
कारण झुँझलाए ए थे।
रावण
म अपने ब तर पर लेट कर करवट बदलता रहा। न ा मानो मुझे छल रही थी। बाहर उ ान
से कह कोलाहल के वर सुनाई दे रहे थे। म हौले से उठ कर खड़क के पास गया। यह बंद
थी। यहाँ तक क उमस से भरी गम रा म भी, मेरी प नी मुझे क क खड़ कय के पट
खोलने नह दे ती थी।
मारीच मेरे कान म बुदबुदाए, “हम एक संकट म ह।” मने वयं को यह समाचार सुनने के
लए तुत कर दया क कसी भयंकर दे व सेना ने हमारे रा य पर आ मण कर दया था
अथवा व ण ही हमसे ोह पर उतर आया था। मने तो कभी क पना तक नह क थी क
इस घटना का समाचार मेरी बहन से भी हो सकता था। मने तो कभी व म भी नह सोचा
था क इस धरती के सभी व बदजात के बीच, मेरी बहन को दय का बंधन बाँधने के
लए व ुत ज हा ही मलेगा। मने आ य, नराशा तथा ोध के मले-जुले भाव के साथ
अपनी बहन क इस भचारी कथा के व गक रोमांच को सुना। उसने वयं को एक क
म बंद कर लया था और बाहर नकलने से इंकार कर दया था। उस रात, मुझे केवल एक ही
शुभ समाचार मला था और वह यह था क मेरा सबसे बड़ा श ु तथा व ोही व ुत ज हा
पकड़ा गया था। और यह एक आ य था, संभवतः मेरे जीवन का सबसे बड़ा आ य क यह
काय मेरे भाई वभीषण के हाथ संप आ, संभवतः यह उसके जीवन का एकमा साथक
काय रहा था।
फर वह कसी वातो माद क भाँ त वहार करने लगी। वह दोन हाथ से अपना माथा
पीटने लगी, अपने बाल नोचने लगी और गला फाड़-फाड़ कर रोने लगी। दे खने वाला य
था। म दे ख सकता था क अनुचर व ारपाल बमु कल अपनी हँसी दबाने का य न कर
रहे थे। मेरा चेहरा पीला पड़ गया और कुछ समझ नह आ रहा था क इन प र थ तय को
वश म करने के लए या कया जाना चा हए। यह तो बड़े ही ल जाजनक ण थे।
शूपणखा मुझे तरह-तरह के अपश द कहने लगी और मुझे लगा क मुझे उसका भी सर
काट दे ना चा हए। मेरी बहन के मूखतापूण दन, चीख़ तथा ाप के अ त र पूरे महल म
चु पी पसरी ई थी। मने वयं को असहाय, ो धत, थका आ व मत पाया परंतु इससे
भी अ धक, मुझे इस बात का अपराधबोध सता रहा था क म एक अ छा भाई न बन सका,
अपने प रवार क सही तरह से दे ख-रेख न कर सका, अपने भाई-बहन को माता- पता से
वलग कर दया और कतनी ू रता से अपनी ही मह वाकां ा को पोसता रहा। म जानता
था क म भीतर ही भीतर बल हो रहा था।
मारीच, वभीषण तथा कुंभ को छोड़ कर, एक के बाद एक, मेरे सभी मं ी उठ कर चले गए।
म दोन हाथ म अपना सर थामे राज सहासन पर बैठा था। सर के भीतर, कह गहराई म
तीखा दद उभर आया था। मारीच मेरे नकट आए और मेरे कंधे थपथपा कर कहा क मुझे
वही नणय लेना चा हए, जो मेरा दल, मेरी अंतरा मा कहे। इसके बाद सब कुछ जैसे मेरे
वश से बाहर होता चला गया। वभीषण व कुंभ ने तक दया क हमारी बहन क स ता से
अ धक कुछ भी मह वपूण नह था। उ ह ने बल दया क य द हम अपनी ही बहन क
स ता का यान नह रख सके, तो रा य क स ता भी कोई मायने नह रखती। म इस
बात का वरोध करना चाहता था, म कहना चाहता था क रा य के साथ ग ारी करने वाले
को द ड अव य मलना चा हए, उसे केवल इस लए नह छोड़ा जा सकता क मेरी बहन
उससे ेम करती है। म, एक राजा के प म बुरा उदाहरण तुत नह कर सकता। मेरे पास
अनेक तक उप थत थे क व ुत ज हा को फाँसी पर य लटकाना चा हए परंतु मुझे यह
कहने म ल जा आती है क म चुप रहा। एक भी श द नह कह सका। मने उ ह पूरा अवसर
दया क वे मुझे इस बात के लए मना ल क शूपणखा व उसके ेमी का ववाह कर दया
जाना चा हए। तो इस कार, अपने याय के व , अपने मं य के परामश के व ,
उ चत, नै तक व ावहा रक बु के व जा कर मने अपनी बहन को श ु से ववाह क
अनुम त दे द । म अपने क म लौट आया, म पूरी तरह से टू ट चुका था। मने वभीषण को
यह काय स पा क वह मेरी बहन को यह समाचार सुना दे ।
17 अ पृ य राजा
भ
व ुत ज हा को रावण क बहन का प त बने छह माह होने को ह। मेरा जीवन, सदा क
भाँ त दयनीय ही रहा। म महल म अपना मुँह नह दखा सकता था य क व ुत ज हा
न त प से मुझे मौत के घाट उतार दे ता। म रावण के वषय म भी सु न त नह था।
अब चूँ क वे आपस म संबंधी बन चुके थे, म नह जानता था क वहाँ मेरी या थ त थी। म
कुछ दन तक घने वन म छपा रहा और जब भूख के कारण छपने के थान से बाहर आना
पड़ा तो म सड़क पर नकल आया। पहले कुछ स ताह तो इसी भय के साए म बीते क
कह म पकड़ा न जाऊँ। जब भी म कसी सपाही को दे खता अथवा सड़क पर राजा के
सै नक के रथ क गड़गड़ाहट सुनता तो कह छप जाता। धीरे-धीरे मेरा भय तरो हत हो
गया। म इतना नीच और छोटा था क राजा या उसके संबं धय को मेरे बारे म वचार
करने के लए समय नह था।
अगले अनेक स ताह तक, सड़क पर मारा-मारा फरने के बाद, मने माला के यहाँ ही शरण
ली। पहले-पहल वह मुझसे अ स रही और वह मुझसे कोई लेन-दे न नह रखना चाहती
थी। ां तका रय का पूरा दल बखर चुका था, मत आदशवाद मु य भू म म बसे ाम
म लौट गए थे और अवसरवा दय ने, जो क अ धक सं या म थे, रावण क सेना म अनेक
श शाली पद संभाल लए थे। माला लोग के लए उपहास क पा ा थी य क उसका
ेमी नायक उसे अ ेत व भ राजकुमारी के लए याग गया था।
धीरे-धीरे, मेरे म त क म एक योजना आकार लेने लगी। मुझे कसी कार रावण से भट
करनी थी। म एक भ ुक क भाँ त दखाई दे ता था। मने अपने हाथ से बाल सँवारे और
माथे पर भ म मल ली। फर म महल क ओर चल दया। जब म मु य वेश ार के समीप
प ँचा तो वहाँ लोग का भारी जमघट दखाई दया। मुझे इस हलचल के वषय म कौतूहल
हो रहा था। वहाँ अनेक मठाई तथा मूँगफली व े ता घूमते दखाई दए, चार ओर अफ़रा-
तफ़री का वातावरण था और कशोर का एक दल भीड़ म अपने लए थान बनाने क चे ा
म लगा था। मने एक लंबे, काले व गठे ए बदन वाले युवक से पूछा क वहाँ या हो रहा
था?
“ शव क सौगंध! तुम तो वाकई बेवकूफ हो, काका!” उसके सा थय ने चुटक ली। “हमारे
स ाट उ र भारत पर आ मण करने क योजना बना रहे ह। हम असुर को अपना
तशोध लेने का अवसर मलने वाला है। हम दे व को ऐसा सबक सखाएँगे क वे उसे
आजीवन नह भूलगे।”
रावण
धीरे-धीरे दवस का अवसान हो गया। भीषण गम थी, पूरा प ऐसा लग रहा था मानो
कसी भीगे कपड़े को गम पानी से धो दया गया हो। म बुरी तरह से तनाव त व घबराया
आ था। पछले कुछ स ताह से यु क तैया रयाँ आरंभ हो चुक थ । मेरे लए यह
अ भयान कसी तीथया ा से कम न था। घने वन के रा ते, हमालय के एक छोटे से दौरे के
अ त र , म कभी नमदा से आगे नह गया था और म सर वती तथा सधु नद के कनारे
बसे उन पौरा णक नगर के दशन के लए उ सुक था, जनका नमाण असुर स यता ने
अपने चरमो कष के दौरान कया था। भले ही अब उसम से ब त कुछ शेष नह रहा होगा।
सधु के उठते वार , हौले-हौले सूख रही सर वती, धाव तथा घेराबं दय ने उन नगर को
हमारी जा त व स यता के वशालतम क़ तान म बदल दया था।
परंतु फर एक दन, सब कुछ जैसे अचानक बदल गया। महल म एक यो तषी का आगमन
आ, जो मेरे पता का म होने का दावा करता था, उसने मेरी पु ी को दे खते ही, सबके
सामने घोषणा क क वह असुर के वनाश का कारण होगी। उस दन के बाद से, मेरे
प रवार के सभी सद य, महल के अनुचर व मेरे मं ी बड़ा ही व च वहार करने लगे। जब
मेरी पु ी मेरी या मेरी प नी मंदोदरी क भुजा म होती तो वे बड़ा आदर-मान तथा नेह
कट करते परंतु म उस ब ची के त उनक घृणा व भय को अनुभव कर सकता था। असुर
तो हमेशा से ही अंध व ासी रहे ह। मुझे अपनी पु ी को उनके बीच असुर त छोड़ कर,
अ भयान पर जाने म भी संकोच हो रहा था। वह अभी मु कल से कुछ स ताह क थी और
असुर कुछ भी कर सकते थे। मुझे अपनी पु ी के ाण का भय था। मंदोदरी को यह
मनवाना सहज न होगा क म पु ी को यु अ भयान म साथ ले जाऊँ, परंतु म कोई न कोई
माग नकाल ही लूँगा। नःसंदेह कसी नवजात शशु को यु के अ भयान म साथ ले जाना
हा या पद था परंतु यह इससे तो बेहतर ही होता क उसे यहाँ वष दे दया जाता या गला
दबा कर मार डाला जाता। म कुछ भी जान तक न पाता य क म उस समय अपने सा ा य
नमाण म म न रहता। य द वह मेरे साथ रहती तो म उसक नगरानी कर सकता था।
संभवतः म भ से कह सकता था क वह उसका यान रखे। परंतु या म उस पर भी व ास
कर सकता था?
भ
अलकापुरी का घेराव ब त ही भयंकर रहा, मने इससे अ धक र पात से भरा यु कभी
नह लड़ा था। जब तक हम कुबेर के रा य के समीप प ँच,े असुर सेना कई लाख क सं या
तक जा प ँची थी और हरहराती सेना, अनेक रा य का व वंस करते ए, अनेक गाँव को
आग क लपट के हवाले करते ए आगे बढ़ रही थी। तब तक, साठ से अ धक छोटे व बड़े
राजा तथा आ दवासी कबील के मु खया, रावण का आ धप य हण कर चुके थे और
वजयी सेना म भागीदारी कर ली थी। अनेक नगर म व णु क तमाएँ न कर द ग व
उ ह कुचल कर, उनके थान पर शव लग क थापना क गई। यह असुर के खोए ए
अ भमान क , नए सरे से ाण त ा थी। इसने पूरे दे श को आंदो लत कर दया, जो
दमनकारी दे व के व एक हो कर खड़ा हो गया। रावण ने कई बार तो मोच पर इतनी
वीरता से नेतृ व कया क वह काफ़ हद तक मूखता क ेणी म गना जा सकता था परंतु
असुर को तो हमेशा से ही ऐसे नेता से ेरणा मलती आई थी जो मृ यु के भय से भयभीत न
होता हो, सीना तान कर यम का सामना करने का साहस रखता हो।
अलकापुरी के पतन के बाद, बाक सब कुछ सामा य भाव से चलने लगा। हमने दे व रा य
को कुचल कर न - कर दया; व णु के मं दर म आग लगा द , जहाँ संभव हो सका,
शव लग क त ा क तथा यु से जुड़े सभी अनु ान जैसे बला कार तथा लूटमार आ द
का बड़ी ही न ा से पालन कया।
लंका व अलकापुरी के वैभव तथा वला सतापूण राज ासाद को दे खने के प ात इस जीण-
शीण व व त महल को दे खना कसी बड़े सदमे से कम न था। फ़श हमारे जूत तले चरमरा
रहे थे, तंभ को द मक चाट गई थी, पद म धूल भरी थी और छत म सुराख ए पड़े थे।
एक वृ व णु क तमा के आगे, आलथी-पालथी लगाए नतम तक था और मन ही मन
कुछ बुदबुदा रहा था। रावण ने कुछ ण तक ती ा क और फर उसने वृ का कंधा
थपथपाया। पहले कुछ ण तक तो कुछ नह घटा। फर धीरे-धीरे वह वृ अपने थान से
लड़खड़ाते ए उठा। रावण ने उसे हाथ का सहारा दे ना चाहा तो वह उसका हाथ परे झटक
कर ऐसे वर म च लाया, जो उसक आयु को भी झुठला रहा था, “अरे अ पृ य शू ! मुझे
अशु मत कर!” हम तो तं भत रह गए। एक श शाली स ाट, जो अब तक के लगभग
आधे प र चत जगत पर अपना आ धप य जमा चुका था, एक अश वृ के स मुख खड़ा
था, जो बड़ी ही नल जता से वयं को एक व त नगर का राजा कहता था। भयकातर होने
क अपे ा, वृ राजा, स ाट को आदे श दे रहा था क वह उसे पश कर अप व न करे।
मने अपने राजा को घूरा। वह ण भर के लए तो सकते म आ गया और मन ही मन कुछ
बड़बड़ाया जो सुनने म काफ़ हद तक यही लगा, ‘मेरे पता भी एक ा ण ह।’
रावण के ने म लाल डोरे झलक आए, उसने वृ को गदन से दबोच लया और अपनी
तलवार क नोक उसक गदन से सटा द । “म कसी ऐसे अश बूढ़े क ह या नह करना
चाहता, जो यु न कर सके। तुम आ मसमपण कर दो और म तु ह ाणदान दे ँ गा।”
“म एक शू के सम आ मसमपण नह क ँ गा।”
फर मानो संकेत पाते ही पूरी सेना, मृत राजा के छोटे से दे वालय पर टू ट पड़ी और उसे
गराने म दे र नह क । हम तमा के भीतर छपे मा ण य मले और तमा को मं डत करने
वाली मालाएँ ठोस सुवण क बनी थ , जनम हीरक जड़े थे। मृतक राजा ने यह कह कर
हमारा घोर अपमान कया था क हमारे पश मा से वह अप व हो जाएगा। इसी अपमान
को मरण करते ए, हमारा आ ोश गु णत हो उठा और हमने उनके मृत दे व व उनक
थूल प नय क तमा को लूटने म कोई कसर नह छोड़ी। परंतु भीतर ही भीतर, कह
कोई रा स अपने तीखे वषदं त से मुझ पर हार कए जा रहा था। हमारा स ाट, असुर
का मु दाता, दे व राजा के स मुख लगभग मा-याचना करते ए, यह बुदबुदाते ए सुना
गया था क उसका पता भी एक ा ण है।
18 असुर राजकुमारी
रावण
मने जीण-शीण राज ासाद को अपनी सेना के लए छोड़ दया ता क वे उसे लूट सक। जब
म नगर के बाज़ार से नकला तो लोग मुझे दे खते ही माग दे ने के लए, पीछे हटने लगे।
पहले-पहल, मने यही सोचा क संभवतः मुझे एक व जत नरेश के प म मान- त ा दे ने
के लए ही ऐसा वहार कया जा रहा है परंतु मुझे यह समझने म यादा दे र नह लगी क
यह सब इस लए हो रहा था य क म एक शू था। म उनके महान नगर को षत कर रहा
था। उसे अपनी उप थत से अप व कर रहा था। यहाँ तक क हम दे खना भी बुरा माना
जाता था। हम दे खने से ही सामने वाला अशु हो जाता। मने मैल-े कुचैले व म
लपटे ा ण को दे खा, जो हाथ म पकड़ी लाठ को ज़ोर-ज़ोर से ज़मीन पर पटक रहे थे
ता क शू को अपने साए से भी र रहने क चेतावनी दे सक। बाज़ार के सभी काय भी इस
कार कए जाते थे क कसी भी प म, य का पर पर पश न हो या वे एक- सरे
को अप व न कर सक। परंतु वे सड़क तथा माग पर पान के रस क पीक भी थूक रहे थे
और उ ह पर नःसंकोच चल भी रहे थे। लोग खुलेआम मल याग कर रहे थे परंतु इस वषय
म पूरी तरह से सतक थे क कह कसी शू से उनका पश न हो जाए। य द यह सब इतने
वरोधाभास से भरा तथा दयनीय न होता तो नःसंदेह यह एक हा या पद वषय था। य द म
इस मूखता से प रपूण था को न रोकता, तो जा त था क यह अ त पूरे भारत म फैल
जाती। और य द ऐसा हो जाता, तो हम अपनी वतं ता को सदा के लए वदा दे नी पड़ती।
एक दन, म गहरी झपक म था क अपने खेमे के बाहर हो रही हलचल से आँख खुल गई।
म बाहर नकला तो य दे ख कर भ च का रह गया। वहाँ चार-पाँच असुर खड़े, एक युवती
के साथ हाथापाई कर रहे थे। म गु से से आग हो उठा। बेशक जब आपने कड़े संघष के बाद
कोई यु जीता हो और आप कसी युवती को, वशेष प से कसी दे व युवती को अपने
लए पाना चाह रहे ह तो यह वीकाय था परंतु हर बात क एक सीमा होती है। मेरे
अंगर क कहाँ थे? तभी मने दे खा क वे भी युवती पर झपटने वाले असुर म स म लत थे।
कुछ ण के मौन के बाद, मने उसे अपनी ओर मोड़ने क चे ा क । “तु हारा नाम या है?”
मने उसी ण पूछा और पूछते ही मुझे अपनी मूखता का आभास हो गया। उसने हौले से
अपना मुख ऊपर उठाया, उसके काले घुँघराले बाल, माथे पर लट के नमूने बना रहे थे।
उसक आँख मानो मुझे भेदती चली ग और म भयभीत हो उठा। मेरे पूरे मे दं ड म
कँपकँपी सी दौड़ गई।
“ या तु ह कसी युवती का बला कार करने से पूव, उसका नाम व पता भी जानने क
आव यकता होती है?” उसने पूछा। मुझे कुछ समझ नह आया क उसे या उ र ँ । मेरे
मन के कसी कोने को यह बात इतनी हा या पद लगी क म खुल कर ठहाका लगाना
चाहता था परंतु फर म एक मूख क भाँ त उठ खड़ा आ, मेरे पास कोई श द नह थे, म
नह जानता था क मुझे इस अवसर पर या कहना चा हए। म खाँसा, हकलाया और वहाँ से
बाहर नकल आया।
“जब तुम मेरे साथ अपनी इ छा पू त कर लो, तो कृपया मुझे कुछ ण के लए जी वत छोड़
दे ना, म तु हारे राजा, महान असुर स ाट, रावण से भट करना चाहती ँ।” उसने इ ह श द
के साथ वह धरती पर थूक दया।
उसके भीतर से एक पशुवत् ची कार नकली और म बुरी तरह दहल गया। वह अपने-आप
को छु ड़ाने के लए संघष कर रही थी परंतु अंततः परा जत हो कर, सुब कयाँ भरने लगी। म
कुछ ही री पर खड़ा, उसे दे खता रहा। कुछ समय बाद, म उसके समीप आया, म उसे पश
करना चाहता था परंतु मेरे हाथ काँप रहे थे और मने सकुचाते ए, अपनी भुजा धीरे से
उसके कंधे पर रखी। वह ज़रा सा हली और मुझे गहन घृणा के भाव से दे खा। मने अपना
हाथ पीछे हटा लया।
“ या तुम जानते हो क एक दे व वधवा अपना जीवन कस कार तीत करती है?” उसने
र रयाते ए पूछा। म शांत रहा।” या तुम जानते हो क एक दे व वधवा के पास या
वक प होते ह… तुम जानोगे भी कैसे? तुम तो वजेता हो। तु ह कुछ लोग क जान से
भला या योजन होने लगा…?”
“तुम श शाली राजा हो, ँह!… जानते हो, म अपने प त क जलती चता म कूद कर दे वी
बन सकती थी… एक म हमामयी सती। तब वही लोग, जो मेरे जीवन म मुझसे कसी पशु से
अ धक पेश न आते, वही लोग मेरे नाम पर मं दर बनवाते और मेरा पूजन करते, मेरी जय-
जयकार करते।”
“तु हारा नाम या है?” मने उससे पूछा। म उसके समीप गया और उसे चबुक से थाम
लया। उसक आँख म अ ुधारा उमड़ पड़ी और वे चमकने लग । मने उनम अपना ही
त बब दे खा और वह इतना छोटा जान पड़ा क म अपनी ही नज़र म मह वहीन हो उठा।
वह ब त दे र तक, मेरे चेहरे को ताकती रही। अंततः उसके होठ के कोन पर एक मु कान
खेल उठ । म पघल उठा। “वेदवती।” उसके मुख से ये श द नकले और म त ण इस दे व
ा ण युवती से ेम करने लगा।
भ
जब ारपाल ने मुझे न ा से झकझोर कर जगाया तो म उसे और उसके पूवज को कोसने
लगा। मेरे मुख से दे सी शराब क बू आ रही थी इस लए मने एक बार और पानी से मुख
शु क और वयं को धानमं ी के खेमे क ओर घसीट ले गया। मुझे य नह बुलाया
गया था? ये पछले कुछ माह हमारी जा त के लए कसी अ भशाप से कम नह रहे थे। खेमे
के अ धकतर लोग इस अ भयान के त मत थे। हम नमदा नद के कनारे, घने वन म
खेमे लगाए बैठे थे, हम जंगली बेर व उन मूख जंगली वानर को मार कर अपना पेट भरते,
जो अपनी मूखतावश हमारे खेम के आसपास मंडराते रहते थे। हम ग़लत तरीक़े से बनी
गंद शराब पीते, और कसी मु हम पर जाने क अंतहीन ती ा करते।
ह त जैसे बु मान सर भड़ाए, फुसफसा कर बात करते। परंतु हमारे राजा रावण को तो
मनबहलाव का अ छा साधन मल गया था। वह अपने साथ अ भयान पर नकले सभी मूख
को भुला कर, एक हठ ा ण युवती को फुसलाने व उसका दल पघलाने क जी-तोड़
को शश म लगा था। उसने अपने मं य से भट करने से इंकार कर दया था, सेना का
नरी ण करना याग दया था, और यहाँ तक क अपने ेरणा पद ा यान दे ना भी भुला
बैठा था। वेदवती नद के समीप आलथी-पालथी लगा कर, यान रमाती अथवा असुर राजा
को बुरी तरह से कोसती, जसके कारण उसके सभी इ -संबंधी परलोक सधार गए थे।
राजा ेम म द वाने कसी कशोर क भाँ त उसके आसपास मँडराता, उसका यार पाने के
लए वनती करता रहता। यहाँ तक क वह उस न ही सी जान को भी भुला बैठा था, जसे
वह अपने साथ र ा के लए यु अ भयान म ले आया था, न ही ब ची भूख से अकुला कर
च लाने लगती परंतु फर भी वह अपनी ेम मूछा से नह जागता था। वह ा ण युवती
उसके सभी आकषण से अछू ती रही और इसी बात ने रावण को और भी कर दया
था। मुझे तो यह समझ नह आता था क वह उसे बलपूवक अपना य नह बना रहा था?
कुछ ही दन बाद, हमारे पास राजा कात वीराजुन का संदेशवाहक आया, उसका दावा था
क असुर राज रावण उनक क़ैद म था। सारी सेना को गरवी रखना पड़ा। पूरे तीन दन तक,
असुर प रषद, धानमं ी के खेमे म बंद रही। वे सब गहन वचार- वमश म म न थे। इस
दौरान खेमा दो भाग म वभा जत हो गया था। व ुत ज हा के अनुया यय ने अफ़वाह
फैला द थी क रावण तो पहले ही मारा जा चुका था। उनका तक था क लंका वा पस
लौटना ही कह बेहतर वक प था।
जब मने तंबू म वेश कया तो सभी महान ग े दार आसन म धँसे थे। मने ह का सा
झुक कर णाम कया और अपने मुँह पर हाथ रख लया। मेरी आँख धरती को ताक रही
थ , रीढ़ क ह ी झुक थी और म इसी को शश म था क उनसे नज़र न मलानी पड़। राजा
का सहासन र था परंतु ह त समीप ही आसीन था। वहाँ एक ाकुल कर दे ने वाली
शां त का सा ा य था।
“हो सकता है क यह तु ह नकृ जान पड़े परंतु जो भी हो, तु ह इसे नभाना ही होगा।”
मारीच मेरे समीप आए और सां वना से भरा हाथ मेरे कंधे पर रख दया।
मने अभी-अभी जो सुना था, उसे सुन कर मेरा बदन सहर उठा। मुझे भी वह युवती कभी
पसंद नह आई परंतु वह हमारे राजा क ेयसी थी।
“तुम उनके आगे गड़ गड़ाए होगे? है न? ख़ैर! तु ह भरपेट भोजन दया जा रहा है।” उसने
दाँत भ चे और बाहर चला गया।
हम पछले कुछ दन से, भोजन के नाम पर केवल कुछ च मच चावल तथा तरीयु द लया
ही दया जा रहा था। वह पेट भरने के लए कभी पया त नह होता था। परंतु दल के
मह वपूण य के लए तो कभी व तु का अभाव था ही नह , उनके लए सदै व
अतर ंजन उपल ध रहते। जब आप कुछ करते, जो उनक इ छापू त म सहायक
होता, तो वे यदा-कदा अपने मेज से आपके आगे रोट के कुछ कौर डाल दे त।े म ब त दे र
तक थाली को घूरता रहा। अचानक ही, पेट म भूख के बगूले से उठने लगे। मने भूख महसूस
क । मने धोती से हाथ प छे और बड़ी ही आकुलता से अपनी थाली पर टू ट पड़ा। फर मने
अपनी तस ली के लए थाली तक चाट डाली और एक ही घूँट म म दरा भी नगल गया।
इसके बाद धातु का गलास बाहर भनका दया। वह बाहर कह अंधकार म जा कर गरा
और ख के वर के साथ अपनी उप थ त दज क ।
जब मुझे गहरी न द से झकझोर कर जगाया गया, तो बाहर अभी अँधेरा ही था। मेरा सर
मारे दद के फटा जा रहा था, संभवत: यह म दरा का भाव रहा होगा। म बैलगाड़ी तैयार
कए जाने के वर को सुन सकता था। म बाहर गया और शीतल जल से अपना मुख धोया,
पूरा शरीर कँपकँपा रहा था, खुल कर अंगड़ाई लेने से बदन को थोड़ी राहत मली। म मारीच
क लंबी आकृ त को अपनी ओर आते दे ख सकता था।
म शांत व अ वचल खड़ा रहा। कह र, समय से पहले ही, मुग ने बाँग द । “म आशा करता
ँ क हम जो कर रहे ह, वह ब कुल अनु चत नह है… मुझे उस क या के लए ःख है…
और न:संदेह उस ा ण युवती के लए भी खेद है। भ ! बाक सब भुला दो और केवल
अपने कत पर यान दो। अपने दमाग़ पर कोई ज़ोर मत डालो। तुम सब कुछ हम पर
छोड़ दो।” और वह मुड़ कर लौट गया।
म कुछ ण तक वह झुका खड़ा रहा। बेशक म सादे दमाग़ वाला आदमी था परंतु मने
अपने हाथ को उन नद ष के र से सना पाया। म सीधा खड़ा हो कर भीतरी शां त व
श के लए ाथना क और अपने भीतर से उस भावना के कट होने क ती ा क , जो
मुझे े रत करने वाली थी क म तो केवल अपने कत का पालन कर रहा था। परंतु ती ा
के बाद भी अपने भीतर केवल आ म-दया का भाव ही मुख रत आ और उस भावना से
खीझ कर, म गाड़ीवान के थान पर बैठ कर, आने वाले ण क ती ा करने लगा।
जब वे उसे लाए तो पूव के एक छोर पर लाली दखने लगी थी। उसे बेहोशी क दवा सुँघा
कर बेसुध कया गया था। दो लोग उसे पीठ पर लाद कर लाए और मुझे दे ख कर आँख
मारी। वे उसे वह छोड़ कर लौट गए। कुछ दे र बाद मारीच ने क़दम रखा। उसने ब त ही
नज़ाकत से उस पोटली को थामा आ था जसम न ही सी ब ची थी। उसने हौले से उस
ब ची का माथा चूमा और उसे उस युवती के समीप रख दया। वह पीछे मुड़ा और मेरी
नज़र से नज़र चुराने का यास कया। मने दे खा क ब ची क जाँघ पर एक आँसू चू गया
था। वह हौले से हली और अपनी न ा के बीच कसी दे व त क तरह मु कराई और शां त
से पुनः सो गई।
मने बैल को झटके से एक कोड़ा फटकारा और बैलगाड़ी हचकोल के साथ चलने लगी जब
म उफनती ई नमदा के कनारे प ँचा, तब तक सूयदे व पूव दशा म पूरे भाव स हत उ दत
हो चुके थे। चार ओर र म आभा छाई थी। ातःकालीन सूय के काश ने बूँदाबाँद को भी
ह के सुनहरे रंग म रंग दया था। सु र तज पर एक वशाल इं धनुष दख रहा था और
मने उससे अपना मुँह मोड़ लया। बैलगाड़ी घने वन म, पगडंडी पर हचकोले खाती, दे व के
रा य क ओर बढ़ रही थी। मेरा शकार अब तक अपनी बेहोशी क न द म था। वन क
सुदंरता ने मुझे लुभाया और म कुछ समय के लए अपने गहरे वचार से मु पाने म सफल
रहा। मने अपने मुख पर आती सुखद शीतलहरी का आनंद लया, सुगं धत वायु ने मेरे गाल
को सहलाया और म तो यह भी भूल बैठा क मुझे या काय स पा गया था। म तो सचमुच
ब त ही सीधा और सरल दमाग़ वाला था, है न?
तभी मेरा ोध लौट आया। वह मेरी थी और म उसके साथ, जो जी म आए, कर सकता था।
मुझे ही तो उसे नपटाने का काम स पा गया था। हम यह कहानी चा रत करनी थी क म
उसे और छोट ब ची को, खेमे से कुछ ही मील क री पर थत, गाँव के वै के पास ले जा
रहा था य क उन दोन को ही जंगली बुखार हो गया था, परंतु दोन को ही मौत के मुँह म
जाने से नह बचाया जा सका। अब तक, म डेरे से कई मील र आ चुका था। अगर म उसके
साथ कुछ करता भी तो भला कौन जान लेता? संभवतः प रषद मेरे इस काय को भी सराहे।
म फर से आगे बढ़ा और अपने हाथ उसके व पर रख दए। मने उसके व से बँधा व
खोलने क चे ा क परंतु म अपनी उ ेजना के कारण यह काम कर नह पा रहा था। म
अपनी को शश म सफल होने ही वाला था क उसने अचानक अपनी आँख खोल और मुझे
कसी गाय क तरह एकटक घूरने लगी। म भयभीत हो उठा, उसे छोड़ा और पीछे छटक
गया। उसक आँख म आँसू छलछला उठे और उसक आँख से गरा आँसू, गाड़ी पर बछे
लाल रेशमी व को भगो गया। मने वयं को ल जत अनुभव कया और अपना मुख
सरी ओर फेर लया। फर उसके मुख से एक चीख़ नकली – एक ऐसी चीख़ जसम पीड़ा,
ःख व पूण प र याग के म त भाव थे। यह सुन कर आसपास के प ी च ँक उठे ।
म अपने साथ तेल का जो छोटा द पक लाया था, वह छलका और रेशमी चादर व उसके
व पर तेल के ध बे पड़ गए। मने उसे सीधा करना चाहा पर मारे भय के, मेरे हाथ
कँपकँपा रहे थे। वह गला फाड़ कर च लाई, “अस य असुर, तूने मुझे छू ने का साहस कैसे
कया? तेरी इतनी मजाल!” छोट ब ची जाग कर, ज़ार-ज़ार रोने लगी।
परंतु जैसे ही म जाने के लए मुड़ा, मेरा पाँव उलझा और म एक नचली ढलान म जा गरा।
ब ची मेरे हाथ से छू ट और सीधे क चड़ से भरे ग े म जा गरी, वह गला फाड़-फाड़ कर
च लाने लगी। यह दे ख कर तो म अधमरा ही हो गया क एक सपाही मेरी ओर मुड़ा और
उसने इस ओर संकेत करते ए, सरे सपा हय का यान भी इस ओर आक षत कया। वे
छानबीन के लए हमारी ओर आने लगे। म बरगद के एक बड़े वृ पर जा चढ़ा और यही
उ मीद रखी क उनक नज़र मुझ पर नह पड़ी होगी। म क मत वाला था क उन लोग ने
ऊपर क ओर नह दे खा। मने और सपा हय को इसी दशा म आते दे खा और फर सबको
चौकस रहने का संकेत भी दया गया। उ ह नद के समीप, अधजली अव था म मृतक युवती
भी मल गई थी। मने उनम से एक को मु य डेरे क ओर, भाग कर जाते दे खा। फर आपस
म कोलाहल का वर सुनाई दया, वे लोग क चड़ से लथपथ जोहड़ से ब ची को नकालने
क को शश कर रहे थे। हालाँ क वह गहरा नह था परंतु ब ची धीरे-धीरे डू ब रही थी। सै नक
जानते थे क जस ण वे उसम क़दम रखगे, वे भी उस दलदली जोहड़ म फँस जाएँग।े
तभी एक मह वपूण सा दखता आया, उसक पीठ झुक ई थी। सारे दल ने उसे
झुक कर णाम कया और उ सा हत वर म वातालाप करने लगे। उसने जोहड़ म झाँका
और अपने एक अनुचर को हल लाने का आदे श दया। उसने उस हल क सहायता से, ब ची
को सावधानीपूवक बाहर नकाल लया। उसने ब ची के दल क धड़कन को महसूस कया
और ब त सी चीज़ लाने का आदे श दया। उसके सपाही आदे श क पू त के लए यहाँ-वहाँ
छटक गए। कुछ ही ण बाद, ब ची रोने लगी और वे सब स हो उठे । मेरा दल चाहा
क वृ क झुरमुट से च ला कर, म भी स ता कट क ँ परंतु मने कसी तरह अपने-
आप को रोक लया।
रावण
म कसी को भी अपना मुँह दखाना नह चाहता था। मुझे बाज़ार म बक रहे कसी बैल क
तरह, सामान के साथ अदला-बदला गया था। मेरे लोग मुझे वह सब दे कर ख़रीद लाए थे,
हमने जो कुछ भी अ भयान म एक कया था। अपमान का यह चरण पूरा हो चुका था।
कात वीराजुन ने एक ही झटके म मेरी सारी सेना को न भावी कर दया था। हमारे पास
लंका वा पस ले जाने के लए कुछ नह बचा था। हम केवल नजी तलवार को छोड़ कर,
सारे श , अ , हा थय तथा सुवण का आ मसमपण करना पड़ा। और बदले म हम जो
मला, वह था मेरा ‘ नरथक जीवन’। म अपने ाण याग दे ना चाहता था परंतु इससे तो यह
सारा ब लदान ही थ हो जाता। इससे भी खेदजनक बात यह थी क म यु भी नह कर
सका था।
उ ह ने कुछ दन बाद, मुझे ज़ंजीर क क़ैद से आज़ाद कर दया था। मेरी ह मत जवाब दे
चुक थी परंतु मने बाहर चहलक़दमी कर रहे दरबान क पदचाप गनने के साथ वयं को
सजग बनाए रखा। मुझे न न ेणी के उन दरबान ारा पीटा गया। य द कात वीराजुन वयं
मेरी यं णा का जायज़ा लेने आया होता तो संभवतः मुझे इतना बुरा न लगता। मने उसे
सदमा प ँचाने के लए कहे जाने वाले कुछ श द का अ यास भी कर लया था। म उसे
दखाना चाहता था क म कसी भी कार क यं णा या पीड़ा सहन कर सकता था और
मेरी आ मा पर कभी वजय नह पाई जा सकती थी। परंतु वह नह आया और मुझे लगता है
क इसी बात ने मुझे सबसे अ धक ठे स प ँचाई थी। म उस अंधेरे क म कसी बालक क
भाँ त फूट-फूट कर रोया; मने अपनी खोई ई क त, वतं ता व मेरी मह वकां ा के
लए वलाप कया। कभी-कभी मुझे अपनी लंका तथा लगभग व मृत प नी का भी मरण
हो आता।
मारीच क आँख जाने कहाँ खोई थ । वे द वार पर एक ब पर नज़र गड़ाए, बोले, “शायद
कोई सै नक या कोई और…। म तु ह पूछ कर बता ँ गा परंतु पु , तु ह इन बात को याग
कर, अब आगे बढ़ना होगा…।”
“नह ! म च लाया। मुझे बताओ क उ ह वै के पास कौन ले गया था।” मने उ ह पकड़
कर झकझोर दया और म उनक आँख म लहराते भय के साय को पहचान सकता था
परंतु उनके ह ठ कस कर भचे थे और वे मेरी नज़र से नज़र मलाने से हच कचा रहे थे।
“ या यह काम भ का था?” म ज़ोर से च लाया य क यह नाम अपने मुख से लेते ही
मेरी रग-रग म ज़हर भर गया था।
मने उ ह लगभग ध का दे कर गरा ही दया और वहाँ से भागा। मेरे हाथ म नंगी तलवार थी
और म भ को पुकार रहा था। जब नीच भ आया, तो म मुड़ा और उसे अपने पीछे आने
का संकेत कया। जैसे ही म अपने खेमे म प ँचा, मने भ को गले से दबोच लया और
अपनी तलवार क धार से उतनी ज़ोर से दबाया क उसक गदन से र क एक बूँद
छलछला उठ । वह भयभीत हो उठा और जाने मन ही मन या बके जा रहा था।
वह सुब कयाँ भरते ए, मायाचना करने लगा। उसने मुझे बताया क वेदवती और मेरी पु ी
के साथ या आ था, और म वहाँ कसी तंभ क भाँ त खड़ा, उन बात को चुपचाप सुनता
रहा। मुझे भय था क वे मारी जा चुक थ , परंतु मने जो भी सुना, उसने मुझे गहरे खेद और
शोक के सागर म डु बो दया। म अपने पैर पर बसूर रहे अहमक को ठोकर मार कर, र
धकेल दे ना चाहता था, परंतु उसने मुझे कसी अजगर क तरह ज़ोर से जकड़ रखा था।
उसके मुख से नकल रहे असंब वर तथा बुड़बुड़ाहट के बावजूद, कुछ बात छन कर मेरे
म त क क तह तक जाने लग और मने उनका अथ नकालने क चे ा क । धीरे, ब त
धीरे, सब कुछ प होता चला गया। “मेरी पु ी अभी जी वत थी। उसे एक दयालु राजा ने
गोद ले लया था, एक दे व राजा, वह अब भी एक राजा क ही पु ी थी, अब वह एक दे व
राजकुमारी के प म पल रही थी।”
हमने लंका से वापसी के दौरान, अपने अपमान क ृंखला म एक और कड़ी जोड़ ली।
व य पहा ड़य क द णी तलहट म, श शाली वणसंकर बाली का राज था। वह
अपमानजनक तरीक़े से वानर-राज कहलाता था और उसक जा वानर कहलाती थी।
वानर क यह जा त, क कंधा म नवास करती थी और उ र के दे व सा ा य तथा द ण
के असुर रा य ; दोन के लए ही संकट का कारण बन गई थी। चूँ क उ ह ने वयं को म य
भारत के वन तक ही सी मत कर लया था इस लए, हम तट य माग पर चलते ए, उ र
दशा वाले अ भयान म, उनके संपक म नह आए थे।
बाली का छोटा भाई सु ीव, वानर-राज बाली का श ु था तथा हनुमान जैसे व यात यो ा
बाली को याग कर, सु ीव के प म चले गए थे, इस त य ने न त प से हमारे स ाट
को े रत कया होगा, जो पुनः अपनी खोई त ा पाने के लए जी-तोड़ य न कर रहा था।
रावण क दशा ब त ही शोचनीय थी। वह नरंतर इसी भय के साए म जी रहा था क ह त
या व ुत ज हा म से कोई, रा य पर अ धकार न जमा ले। वे लोग उसके क़ैद से छू टने से
पहले ही लंका लौट गए, यही त य बारंबार संदेह को ज म दे रहा था और उसने क कंधा
पर आ मण करने क योजना बना ली। उसे पूण आशा थी क यह अ भयान उसक खोई
ई त ा लौटाने म सहायक होगा।
रावण एक क़दम आगे बढ़ा व ह त से पूछा, “परंतु मेरे भाइय , मेरी प नी व बहन का या
आ, वे लोग कहाँ ह?”
रावण मारे ोध के काँपने लगा। मारीच ने सां वना से भरा हाथ राजा के कंधे पर रखा, पर
रावण ने ता से उसे परे झटक दया। “यु क तैयारी करो। हम इस ब पए को सबक
सखा दगे।” वह च लाया।
परंतु ह त के हाथ उठाते ही चार ओर मौन पसर गया। “महाराज! पहले हम राजकुमार
कुंभकण को मु कराना होगा। हम नह जानते क उन योग के बाद वे कसी दशा म
ह गे।”
फर रावण ने कुछ ण वचार करने के बाद ह त से पूछा, “हमारे छोटे भाई वभीषण का
या आ?”
“ ध कार है!” रावण ने घृणा तथा अवमानना के भाव से वह थूक दया और हमम से ब त
से लोग म कारी से, हन हनाते ए हँस दए।
20 दे शभ
रावण
हमने यम के नगर- ग पर क ज़ा जमा लया था और मेरे भाई कुंभकण क तलाश अभी
जारी थी। मेरे हज़ार घाव व खर च से र नकल रहा था और म बेसुध सा अपने अ पर
सवार था। मृत ायः मनु य तथा पशु क कराह तथा आह के अ त र वह थान
ब कुल ही नजन व शांत था। हम अब तक र क गध के अ य त हो चले थे अतः इससे
कोई अंतर नह पड़ता था। मने ह त और मारीच को दे खा और अपना अ उसी ओर बढ़ा
दया। मारीच ने दे ख कर मु कराहट द , परंतु ह त ने ह का सा झुक कर अ भवादन करने
के प ात खोजी दल को आदे श दे ने का काम जारी रखा। मारीच अचानक मुड़े और बोले,
“यह ह त का ही वचार था क हम ग पर प म दशा से आ मण कर। उसका एक
साथी पहले से ग म उप थत था, जसने हमारे लए ार खोल दए, और जैसे ही यु
आरंभ आ, हम प म क ओर बढ़ते चले गए। व तुतः ह त ने यु आरंभ होने से ब त
पहले ही, अपने अनेक य को प म दशा म तैनात कर दया था।”
“हम जीत गए रावण, हमारी वजय ई। य द तुमने इतनी वीरता से यह यु न लड़ा होता तो
संभवतः हम कभी न जीत पाते।” उ ह ने आव यकता से अ धक तेज़ सुर म यह बात कही
और हमारी पूरी सेना जयजयकार करने लगी। जल क लहर क भाँ त सै नक ने अपने
ह थयार ऊँचे कए और नारे लगाने लगे। ‘हर हर महादे व’, ‘ शव जी क जय हो’, महाराज
रावण क जय हो, असुर के महान स ाट क जय हो!’, ‘असुर क जय हो’!
मेरी ाकुलता और भी भड़क उठ । मने आदे श दया, “आप उसके वषय म बता द अ यथा
म वयं पता लगवा लूँगा।” मारीच बड़ी उदासी से अपनी गदन हलाते ए बोले, “रावण!
कभी-कभी तो तुम सचमुच मुझे आ य म डाल दे ते हो। जब ह त ने ग म पहला क़दम
रखा तो सबसे पहले उसक तलवार क धार ने उसी गु तचर के र का वाद चखा था।”
अपनी मु म भचे हीरक हार के साथ, म कसी मूख से कम नह लग रहा था। इससे पहले
क ह त मुड़ कर उसे मेरे हाथ म दे खता, म उसे र भनका दे ना चाहता था। म उसक हेय
व अपमानजनक मु कराहट का सामना न कर पाता। मने आसपास नज़र दौड़ाई तो एक
सपाही को दे खा, जो ग क द वार से पीठ टकाए बुरी तरह से हाँफ रहा था, उसक टाँग
खुली थ और कट नाक का र रं जत ह सा ब त ही भयंकर जान पड़ रहा था। उसके
शरीर के अनेक घाव से र रस रहा था और मेरे मन म अचानक ही उसके लए सहानुभू त
व दया क लहर उमड़ पड़ी। इस ने मेरे लए क उठाया था; उसने लगभग अपने
ाण क बाजी लगा द थी।
मेरा मन पघल गया। कुछ ण के लए वह बड़े ही अबूझ तरीक़े से पलक झपकाता रहा।
फर अचानक ही उसके चेहरे पर भय के साए लहरा उठे । उसने उठने क चे ा क परंतु वह
ढे र हो गया। फर वह रगता आ मेरी ओर बढ़ा। मने एक अजीब सी कुढ़न महसूस क । वह
कसी घायल कु े क तरह मेरी ओर रगता आ रहा था। मने अपने हाथ म थामे ए हीर के
हार को दे खा। वह हार उस जैसे भ ुक के लए नह बना था इस लए मने अपने कंठ से
मो तय क माला उतारी और उसे कुछ ण के लए प ाताप के साथ नहारा परंतु इससे
पहले क म उसे दे ने के वषय म अपने नणय पर दोबारा वचार कर पाता, मने उसे उस
झुक ई दे ह-आकृ त पर फक दया। वह उससे कुछ क़दम क री पर जा गरा। वह
कसी उ लू क तरह आँख फड़फड़ाने लगा, दरअसल वह समझ ही नह पाया क उसके
आगे या फका गया था। फर उसने उसे झप ा मार कर उठाया और कसी वानर क तरह
सूँघने लगा। ‘उस ने मेरे उपहार क अवहेलना क थी। उसका इतना ःसाहस?’ फर
उसके दमाग़ म जैसे हौले-हौले बात घुसी और उसने मुझे बड़ी भयभीत से दे खा।
पहले-पहल मुझे उसक आँख म अवेहलना तथा तर कार के भाव दखे जो अचानक ही
आभार तथा ध यवाद के भाव म बदल गए। वह बड़े ही अहोभाव से मुझे णाम करते ए
धरती पर झुका और उसे चूम लया।
मने वयं को भरसक शांत कया। वह भी कभी-कभार छोटे -मोटे पुर कार पाने का
अ धकारी था। मने वयं को स व संतु पाया य क मुझे लग रहा था क मने उसे
पुर कार दे ने का नणय ले कर अनु चत नह कया। बाद म जब दावत समा त हो गई और
सभी अपने-अपने व ाम क म लौट गए और म न द म डू बने-उतरने लगा तो उस समय
मुझे भ का आभार व कृत ता के भाव से भरा चेहरा याद नह आ रहा था। इसक बजाय,
मेरे उपहार को पहली बार पश करते समय उसके चेहरे पर तर कार के जो भाव तर आए
थे, वही मेरे म त क म च कर लगाते रहे। ाकुलता से करवट बदलते ए, मने वयं को
असुर के काले और भ े चेहर क याद से परे ले जाना चाहा ता क क त, मह वाकां ा
तथा अपनी नय त के सुवण-मं डत पथ के व णम व म उतर सकूँ।
भ
हम मु य प से लौट आए थे। रावण व ुत ज हा व उसके सा थय को समा त करने क
धमक दे चुका था, जो दे श म लूट-खसोट मचाने म त थे। व ुत ज हा इस धमक से
भयभीत आ और उसने रावण के आगे शां त का ताव रख दया। उसने लंका के द णी
भाग को छोड़ कर, बाक पूरे भारत पर रावण का आ धप य वीकार कया, जसे रावण
पहले ही व जत कर चुका था। लंका के द णी भाग को वह अपने लए चाहता था। रावण
अपने पूरे रा य को वा पस लेना चाहता था कतु यहाँ शूपणखा हमारे राजा क इ छा पू त म
बाधा बन गई। जब दोन प म दरा व सु वा ंजन के बीच आपसी समझौते पर वचार-
वमश कर रहे थे, तो सड़क पर लोग भोजन, जल, दवा के लए लड़ते ए दम तोड़ रहे
थे।
मने वयं को बड़ी क ठनाई से, ब तर से उठाया। अँगु लय क मदद से बाल सँवारे और
प रषद के खेमे क ओर चल दया। मने भीतर वेश कया और यथासंभव झुक कर णाम
कया।
“भ !” मुझे मारीच का दयापूण वर सुनाई दया। “एक बार पुनः पूरी असुर जा त तु हारा
मुँह जोह रही है। वे सब तुम पर ही नभर ह। तु हारे दे श और तु हारे महाराज को आज
तु हारी फर से आव यकता आन पड़ी है…।” वह जाने या- या बड़बड़ाता रहा। य द वे
मुझे केवल इतना ही बता दे ते क वे मुझसे कौन सा नीच व घनौना कृ य करवाना चाहते थे,
तो वह कह बेहतर होता। दे शभ व जा त के लए ेम क ये बड़ी-बड़ी बात सुन कर मेरा
दमाग़ ख़राब हो रहा था परंतु म अव ा के भय से एक भी श द मुख से नह नकाल सका।
म अपने अ य दे शवा सय व वशेष प से काली चमड़ी वाले, अ पबु , अ श त ,
करोड़ न नवग य तथा मासूम क भाँ त वन , शांत तथा शासक का आ ाकारी सेवक
दखने क कला म पारंगत हो चुका था, जब क वा तव म मेरे भीतर करोड़ व ोही ोध से
खौल रहे थे।
मुझे यह समझने म कुछ समय लगा क मुझे व ुत ज हा को समा त करने का नीच काय
स पा गया था। मेरा दल ब लय उछलने लगा। मने संभवतः प रषद के बारे म ब त ही
ज दबाजी म और खेपन के साथ धारणा बना ली थी। ये तो मेरे लए एक दे व- द
अवसर से कम नह था। मने नीचे झुक कर णाम कया और प रषद क ओर पीठ कए
बना, हौले-हौले चलते ए, क से बाहर हो गया।
मने अपने काम के लए ातःकाल से पूव कुछ घंटे चुने थे, जब अंधकार ब त घना होता है।
म सूय दय से तीन घंटे पूव ही अपने खेमे से नकला और पछले ार के पास ती ा करने
लगा। दो दरबान पहरे पर थे परंतु न ा म लीन थे। एक और सपाही पहरे पर था परंतु वह
युवक दरबान संभवतः कोई नया रंग ट था, वह अपने मा लक को स करने के लए
ऊजा व उमंग से भरपूर दखाई दे रहा था। म चोरी से उसके पास से नकला और ग के
पछले ार क चा बयाँ चुराने क को शश करने लगा, वे न ा म म न एक दरबान क धोती
के छोर से बँधी लटक रही थ । म अभी अंधेरे म हाथ से टटोलते ए चा बयाँ नकाल ही रहा
था क अचानक चा बय का गु छा झनझनाहट के साथ धरती पर गरा। म तो वह सु हो
गया। सोता आ दरबान हौले से कुनमुनाया परंतु उसक आँख नह खुली। म झट से वहाँ से
हला और ार के वशालकाय तंभ क परछाइय के पीछे जा छपा। वह दरबान लड़का
कुछ ही क़दम क री पर था, वह उसी अंधकार म आँख फाड़-फाड़ कर दे ख रहा था, जहाँ
म कुछ ही ण पहले अलोप आ था। ऐसा लग रहा था मानो वह वधा म हो क वयं ही
आगे आकर जाँच-पड़ताल क जाए या अपने व र को जगा कर इस शोर के बारे म सचेत
कया जाए। अंत म उसने वयं ही दे खने का नणय लया। हालाँ क उसे यह नणय लेने म
कुछ ही ण लगे ह गे परंतु मुझे लगा मानो उसने नणय लेने म घंट लगा दए ह । वह हौले
से मेरी ओर बढ़ा और आँख को घने अंधकार के बीच अ य त करने क चे ा करने लगा।
मेरे पास अपना जौहर दखाने के लए एक ण का सौवाँ अंश ही था। म अपनी कटार के
साथ उस पर झपटा और इससे पहले क वह कोई त या दे पाता, म अपनी तीखी कटार
उसक गदन क कोटर म उतार चुका था। वह बना कसी आहट के धरती पर जा गरा।
तभी मुझे कुछ क़दम क आहट सुनाई द । कुछ और सै नक छानबीन करने आ रहे थे। म
द वान क तरह बचने का माग खोजने लगा। दरवाज़ा खोलने के लए चा बय से हाथ
उलझने लगा। ‘ताला नह खुलेगा’ मेरे पसीने से लथपथ हाथ, भय के मारे थरा उठे । ‘वहाँ
सही चाबी कौन सी थी?’
“अरे! तुम कौन हो?” कोई च लाया। मेरी चाबी क तलाश और भी ती हो गई। एक तीर,
मेरे कान के पास से सरसराते ए नकला और लकड़ी के दरवाज़े म जा घुसा। म अब भी
उसके आने क व न कान म महसूस कर सकता था। अगला तीर, मेरे बाएँ कंधे के पास से
होते ए नकल गया। उसके पंख ने मुझे छु आ। म अपनी ओर आती पदचाप सुन सकता
था परंतु अंततः वह दरवाज़ा खुल ही गया। जैसे ही एक तलवार क धार ने, दरवाज़े क धातु
क कनारी से टकरा कर आवाज़ क , मने ग म क़दम रखा और धकेल कर दरवाज़ा बंद
कर दया। म एक बार फर से, उन चा बय से उलझने लगा। वे लोग दरवाज़ा खोलने क पूरी
को शश कर रहे थे परंतु मने अपना पूरा बल लगाते ए, दरवाज़े को बंद रखा और उसे ताला
लगाने म सफल रहा। फर म सर पर पाँव रख कर वहाँ से भागा।
“कोई आपके क म घुसा है, महारानी जी।” बाहर से कसी ने पुकारा। मेरा दल वेग से
धड़कने लगा। उसे यह बात समझने म कुछ समय लगा क या कहा गया था। फर वह
पलंग से उतरी और कुछ ण के संकोच के बाद ार क ओर बढ़ । मने सोचा, “आज तो म
गया!” सै नक भीतर घुसे चले आए और राजकुमारी को पीछे धकेल दया। तभी मेरे हाथ से
वह अगला खुल गई। दरवाज़ा खुलते ही, म अपनी पीठ के बल जा गरा। मने पैर से ही
दरवाज़े को बंद कया और उठ कर,उसे झट से बंद कर दया। य ही म मुड़ा तो मुझे
व ुत ज हा और माला दखाई दए। वह मेरी ेयसी के साथ वहाँ था! वे दोन मारे भय के
जड़ हो गए।
तभी मने शंख फूँकने का वर सुना। मने आ य से पीछे मुड़ कर दे खा। ग के वशाल चौड़े
ार से एक शोभाया ा भीतर वेश कर रही थी। रावण एक स ाट के प म हाथी पर
आसीन था और उसके पीछे हा थय , अ , रथ व पैदल सै नक के साथ सेना चली आ रही
थी। उनके साथ ही संगीत का दल भी था। वे सभी क़दमताल करते आगे बढ़ रहे थे। पूरी
शोभाया ा क भ ता दशनीय थी। पूरे जोश व उ लास के साथ चड पीटे जा रहे थे,
तुर हयाँ बजाई जा रही थ व झाँझ – मंजीरे खनक रहे थे। एक के बाद एक, व ुत ज हा के
न ावान सै नक ने अपने ह थयार डाल दए। जय शंकर! हर हर महादे व! रावण क जय
हो! वजय ी हमारी ई! अंतत हम वजयी रहे! म तो मं मु ध हो उठा। गव से सीना फूल
गया और म अपनी दे ह म बसी पीड़ा को भुला कर, शोभाया ा क ओर दौड़ा।
रावण
वह अपने आप से बाहर हो गई थी और व त क भाँ त वलाप कर रही थी। शूपणखा
मेरे चेहरे पर लपक और अपने हाथ से मेरे गाल फाड़ दए। जसने भी उसके पास जाने क
चे ा क , उसने उसी को काटना व खसोटना चाहा। उसके केश बखरे थे, चेहरा काला पड़
गया था, वह मुझे और लंका के सभी मं य को कोस रही थी, बीच-बीच म वह अपनी बँधी
मु य से छाती पीटने लगती। वह कसी शकारी ान क भाँ त व ुत ज हा के शव क
र ा कर रही थी। उसने पुजारी को भी आगे नह आने दया और वयं अपने प त के अं तम
सं कार क तैयारी करने लगी। उसने हम सभी को और वशेष प से मुझे कोसते ए,
अपने प त के शव को नए व धारण करवाए। म उसे सां वना नह दे ना चाहता था। यह
सच था क म उसके प त क मृ यु चाहता था और म ही उसके लए दोषी भी था परंतु उसने
वयं ही अपने लए यह नय त चुनी थी। जब उसने मेरा राज सहासन छ नना चाहा तो उसी
दन अपने मौत के परवाने पर द तख़त कर लए थे। उसने वयं ही अपने लए इस संकट
को नमं ण दया था।
और उसके पीछे , उससे भी तेज़ सुर म, मेरी माँ का वलाप जारी था। मने उनक इतनी
शी ता से आ प ँचने क अपे ा नह क थी। “र पपासु रा स! अब तेरी संतु हो
गई?” म इस अनपे त आ मण से पीला पड़ गया “तूने अपनी ही बहन को वधवा कर
दया। म श मदा ँ क मने तुझ जैसे रा स को नौ माह तक अपनी कोख़ म रखा!”
“मार दे ! मुझे भी मार दे ! मेरे बूढ़े शरीर को अपनी राजनी तक सफलता के लए पायदान
बना कर योग कर ले।” मेरी माँ ने अपना माथा व छा तयाँ पीटते ए कहा। फर वह
अचानक मेरी छाती पर दोह थड़ बरसाने लगी।
भले ही शूपणखा ने कतना भी कठोर अ भनय य न कया हो, उसक तुलना कुंभकण से
नह क जा सकती थी। जब से हम उसे बचा कर लाए थे, वह पूरी तरह से बदल गया था।
यम का बंद होने के बाद से, वह अ धकतर समय कसी पाषाण मू त क भाँ त जड़वत बना
रहता। वह दन के अ धकतर समय म सोता रहता और उठने पर उप व मचाता।
चेहरे पर पड़े एक करारे तमाचे ने मुझे मेरे अप रप व दाश नक चतन से बाहर ला पटका।
सारा क मेरी आँख के आगे नाच उठा और म लड़खड़ा कर गर गया। म कुछ ण के
लए जैसे ने हीन हो उठा और मेरा सर गोल-गोल घूमने लगा। मने उठने क चे ा क , और
तभी मेरे ो ण दे श म एक ज़ोरदार ठोकर आकर लगी। “कमीने ान…!” म कुंभकण क
च लाहट सुन सकता था और ऐसा लग रहा था मानो वे कसी गहरे कुएँ से नकल कर आ
रही हो। उठने क चे ा म सर एक बार फर से भ ा उठा पर ठोकर ने दोबारा लेटने पर
ववश कर दया। मेरी आँख सूज गई थ और ह ठ बुरी तरह कट गए थे। म कसी तरह खड़ा
आ, क म खड़े तंभ का सहारा लया ता क वयं को गरने से बचा सकूँ। धीरे-धीरे, सारा
य प हो गया।
मेरे चेहरे पर बढ़ता कालापन दे ख कर, मारीच कुंभकण को क से बाहर घसीट ले गए। म
उसे वह जान से मार दे ता पर जाने य , मुझ पर अपराधबोध हावी हो गया था। म ल जा व
अपराधबोध से त, वह सर झुकाए खड़ा रहा, मेरा पोर-पोर आ ोश से सुलग रहा था पर
म अपनी अँगुली तक नह हला सका। कुंभ मेरी मह वकां ा , मेरे अहंकार, मेरी
वाथपरता, लोग के त मेरे हेय भाव, मेरे अयो य अ भमान तथा मेरे वा त वक व क पत
दोष को चीख़-चीख़ कर गनाता रहा। उसने मुझे जी भर कर अपश द कहे और इ छा कट
क क मुझे अपने ाण याग दे ने चा हए थे।
मने आह भरी और अपने दाश नक भाई को उसक आनंददायी मूखता के बीच छोड़ कर,
अपने क म लौट आया। म म दरा पान करना चाहता था। जैसे ही मने वेश कया, तो
मंदोदरी को शै या पर बैठा पाया। वह चमचमाते रेशमी व तथा वण व हीरक आभूषण
से सुस जत थी मानो कोई चलता- फरता कोष हो। मुझे दे खते ही उसका चेहरा उ वल हो
उठा।
“औरत! तूने शराब कहाँ रखी है?” अपना ही वर मेरे कान को ककश जान पड़ा और म
सरी ओर दे खने लगा। म उसके दल को लगी ठे स को अनुभव कर सकता था इस लए
उसक ओर दे खना नह चाहता था। म आगे पड़ी कुस पर जा बैठा व छत को ताकने लगा।
वह कैसा महसूस कर रही थी? व ुत ज हा उससे कैसे पेश आया होगा? या उसने मुझे
याद कया? मेरे दमाग़ म सैकड़ सवाल च कर काट रहे थे, परंतु म एक भी श द नह
बोला। म अपने अ भयान के वषय म ड ग हाँकना चाहता था, उन सभी य के बारे म
बताना चाहता था, जो मने इस दौरान दे ख,े दे व क व च व आकषक भू म के वषय म
बताना चाहता था, ओझल हो चुक जा तय , कारागार म सही पीड़ा तथा वानर-राज बाली
के हाथ मली पराजय व यहाँ तक क उसे उस दे व ा ण क या के साथ ए चंड
आवेगयु ेम के वषय म भी बताना चाहता था – परंतु म चुपचाप बैठा छत को ही ताकता
रहा।
मंदोदरी ने मेरे लए म दरा उड़ेली और अपनी शै या के पास लौट गई। मने एक भी श द कहे
बना, सारी म दरा अपने भीतर उड़ेल ली और ाकुलता से, कुस के काठ पर अपनी
अँगु लयाँ ठकठकाने लगा। वह त ण लौट और मेरे लए सरा गलास भर दया। म
नरंतर पीता रहा। पूरे महल म एक व च सी चु पी छाई थी। यदा-कदा, कह से माँ अथवा
बहन के वलाप का वर सुनाई दे जाता। जब मने उन दयनीय वर को सुना, तो अपनी
भावना को म दरा म ही डु बो दे ने का नणय लया। फर उस क से वेदमं के वर
सुनाई दे ने लगे, जहाँ शव को रखा गया था। वे ा ण मेरे बहनोई क आ मा को तैयार कर
रहे थे ता क वह म खन, मधु, आ द से बनी न दय को पार करते ए, न व न दे व के वग
तक जा प ँच।े कुछ ारपाल ार तक आए व कहा क वे लोग व ुत ज हा के शव को
अं तम सं कार के लए शमशानभू म ले जा रहे थे और मेरी ती ा क जा रही थी क म
आकर मृतक को अपनी ओर से अं तम ांज ल अ पत क ँ ।
फर म अपनी प नी क ओर मुड़ा। वह मारे भय के थर-थर काँप रही थी। मने उसे कमर से
जकड़ा तो उसने आ यजनक बल के साथ मुझे पीछे धकेल दया, चूँ क म म दरा के नशे म
चूर था, म लड़खड़ा कर गर गया। “मेरी दे ह का पश मत करना।” उसने धीमे कतु ढ़ वर
म कहा। म वह फ़श पर, मूख क भाँ त बैठा पलक झपकाता रहा, म ऐसी भी ी ारा
ऐसे श दशन को दे ख त ध तथा उलझन म था। “तुम म दरा के नशे म चूर हो। मुझे
हाथ लगाने क चे ा भी मत करना।” वह अपना सर ऊँचा कए, वह खड़ी थी। मुझे चुनौती
दे रही थी। मुझे धमका रही थी क म उसे पश तक न क ँ ।
भ
मुझे पूरी तरह से संभलने म एक वष का समय लगा। जब असुर लूट-मार मचाने तथा पर पर
संघष करने म त थे तो मेरी कु टया पर ःख क काली छाया मँडरा रही थी। न केवल
मेरा मुह ला, ब क उन दन अ धकतर कान व घर, अ न क लपट म जल कर वाहा हो
गए थे, जब रावण तथा व ुत ज हा के म य स ा को पाने के लए वीभ स तांडव रचा जा
रहा था। कुछ दन तक मेरा मन कड़वाहट से भरा रहा। माला, उसी फूस क जीण कु टया म
लौट आई थी, जो मने, शाही माग के एक ओर, बरगद के वृ तले डाली थी। उससे पूव, म
उसके बारे म अपनी ओर से पता लगा चुका था और मने पाया क वह महल म काम करने
वाली एक तु छ दासी के अ त र कुछ नह थी। यह अफ़वाह भी सा रत हो चुक थ क
राजा ने उसे गभवती कया था और रावण ने उसे अपनी ूसरी रानी बना लया था। मुझे
ई या का अनुभव आ और दल को ठे स भी लगी। म उसक ह या कर दे ना चाहता था परंतु
अब वह पद म मुझसे कह ऊपर थी इस लए म ऐसा चाह कर भी नह कर सकता था।
माला ने भोजन व ना ता पकाने व उसे परोसने का दा य व संभाल लया। मने पाया क मेरे
पास एक और नर भी था। म थोड़ी सी धनरा श म ही या य के व धो दे ता। म जानता
था क कस पौधे या बीज से कपड़ को अ छ तरह धोया जा सकता है और म इस दशा म
लगातार योग करता रहता। य प एकाध बार कसी कपड़े का रंग भी चला गया था परंतु
मने शी ही, घोल का सही अनुपात बनाना सीख लया और लोग मुझे एक अ छे धोबी के
प म जानने लगे। मने अपने संर क भी बदल लए थे और म जन धनी ापा रय के
लए काम करता था, वे अपने महँग,े आया तत, चीन से आए रेशमी व , ब ढ़या छपाई के
सूती व तथा मूल भू म भारत के मलमल के लए, मुझ पर व ास करने लगे थे।
मने शारी रक प से, माला को कई बार महल जाने से रोकना चाहा, परंतु वह कसी कार
आँख बचा कर नकल ही जाती। जब वह लौटती तो म उसका जीना नक कर दे ता, पर वह
मेरी मार-कुटाई और ठोकर को अद य सहनश के साथ सहन कर जाती। अंततः, एक
दन उसने वीकार ही लया क रावण ने उसके साथ बलात् संभोग कया था और अ तकाय
राजा का ही पु था। परंतु उसने दावा कया क उस घटना के बाद, राजा ने उसे कभी नह
सताया और सदा घृ णत अवमानना व हेय से ही दे खा है। वह ायः रानी मंदोदरी के
बुलावे पर महल म जाती थी। रानी का अ तकाय के त नेह ही, माला को बार-बार महल
के ार पर ले जा कर खड़ा कर दे ता। जब भी नय मत प से महल का च कर लगा कर
आती, म कुछ भी सोचे-समझे बना उसे पीटता, इस तरह यह एक कार का द तूर सा बन
गया था। और हमारा ववाह, अगर इसे ववाह कह सकते ह, तो वह कसी कार जी वत
रहा।
ारंभ म, वभीषण को सभी पसंद करते थे। उसने गली-नु कड़ म बने, व मृत शव मं दर
तथा अ य दे व के मं दर को पुनः त त कया तथा मं दर के शासन के वषय म उसक
नी तय ने, अनेक शंसक को उसक ओर आक षत कया परंतु वह शी ही छोटे व णु
मं दर बनवाने लगा और उसने बड़े ही व च दे व री त- रवाज़ लागू करने आरंभ कर दए।
वह कुछ ा ण को भी साथ ले आया और धीर-धीरे, ये लोग जा त था क घृ णत व
नदनीय दे व परंपरा को भी लागू करने लगे। नःसंदेह, कुछ ऐसे मूख भी थे, ज ह ने
वभीषण के इन काम को सराहा और इन लोग ने त काल ा ण के कमकांड को अपना
लया। स ांत वग, पूरा दल बना कर, इनका साथ दे ने लगा और वे प व य ोपवीत धारण
करने लगे, जो ा ण को सदा पहनना होता था। वे येक उस को तर कृत से
दे खने लगे, जो कोई उपयोगी काम करता हो।
रावण
न ा मुझे छल रही थी। द का काला व भ ा चेहरा, मेरे मन म वीभ स आकार म तांडव
रच रहा था, कभी मुझे भयभीत करने लगता तो कभी मेरे आगे वनती करने लगता। म
अपनी चादर पर पड़ा करवट बदल रहा था। कल म मारीच को उसके पास भेजूँगा। संभवतः
कुछ सुवण मु ाएँ उसके मुख पर मार कर, म इस ला न से मु हो सकूँ। परंतु साथ ही म
इस पर ो धत व श मदा भी था। यह सब कुछ बलता के एक ण के भीतर आरंभ
आ। म इतना नीचे कैसे गर गया? मेरे आचरण के वषय म कोई सफ़ाई नह द जा सकती
थी। म इस बात को भुला कर, अपने जीवन म आगे बढ़ सकता था, परंतु शव क ओर से
मले इस उपहार का या? यह तो मेरी समझ से भी परे था क वासना से भरा एक कुकृ य,
एक संतान को ज म दे सकता था जब क म और मेरी प नी, अपने पु मेघनाद को एक भाई
दे ने के लए, बारह वष तक यास करने के बाद सफल ए थे। अ य कुमार का ज म
अनेक वष बाद आ परंतु तब तक मेघनाद के जीवन म उसका एक सौतेला भाई ज म ले
चुका था – अ तकाय। मंदोदरी जानती थी और उससे इतनी घृणा करती थी क वह उस
दासी और उसके पु से कुछ अ धक ही दयालुता से पेश आती। अंधकार के कुछ ण;
प नी, जा त और मेरे जीवन के लए मेरा ोध – बस अंधकार म ज मे इस जीव के लए
इ ह चीज क आव यकता पड़ी थी – अ तकाय, मेरी अवैध संतान! चाहता तो माँ व पु
को एक ही शाही आदे श से हमेशा के लए ओझल कर सकता था परंतु जाने कस बात ने
मुझे रोक लया – संभवतः मेरे भीतर कोई थोड़ी-ब त मानवता का अंश शेष रह गया होगा
या हो सकता है क खोए ए ेम अथवा एक दे व राजा ारा छल से ह थया ली गई असुर
राजकुमारी क मृ त म ऐसा आ हो। जो भी हो, काला तथा भ ा व लंबे दांत वाला
अ तकाय, मेरा ही तो पु था और म समझदार, ववेक व बु मान होता जा रहा था; आप
यह भी कह सकते ह क शायद म ऐसा मूख था क इतना जघ य कृ य नह कर सकता था।
जस कार मेरी पु ी दे व सा ा य म पल-बढ़ रही थी, उसी कार मेरे पाप से ज मा पु भी,
शी ता से बड़ा हो गया।
“ या तुमने कुछ खाया” मने अपने उसी सुर म पूछा, जो मेरी क पना म दया से भरपूर था।
उसने अपना सर हलाया। “जाओ, पाकशाला म जा कर, कुछ खा लो। म उ ह नदश भेज
ँ गा।”
दोन लड़के गला फाड़-फाड़ कर च लाने लगे। मने अ तकाय को कंध से पकड़ा और बुरी
तरह से झकझोर दया। मेघनाद ने अपने सौतेले भाई को मुझसे छु ड़ाना चाहा। वह न हे हाथ
से मुझसे जूझने लगा और तभी मंदोदरी वहाँ भागती ई आई, उसने अ तकाय को मेरे हाथ
से ख च लया।
“रावण तुम पगला गए हो? या तुम इस बालक क ह या करना चाहते हो?” वह च लाई
“तुम मेघ को इस गंदे बालक के साथ खेलने य दे ती हो?” मुझे अपने ही श द खोखले
जान पड़े।
मेरी प नी झपट । “रावण! यह तु हारा गंदा बालक है।” उसने अपने रोते ए, पु को बाँह
म उठाया और पाँव पटकते ए बाहर नकल गई। म तं भत रह गया। ‘उसने मुझसे इस
तरह बात क , उसका इतना साहस?’ वह तो मेरे समीप आने से भी भयभीत आ करती थी
परंतु जब से एक पु का ज म आ था, वह इस तरह से पेश आती थी मानो मेरी वा मनी
हो। अब वह मुझसे भयभीत नह होती थी। अब उसे अपना काम नकलवाने के लए मुझसे
ऊँचे सुर म बात करने, अपश द कहने या उलाहने दे ने म भी ल जा नह आती थी। म यदा-
कदा ो धत होने के अ त र , ायः वत हो जाया करता था। लोग कह सकते थे क म
उसका दास व हण कर चुका था। भले ही म चीख़- च ला कर, अपना रोब जमाने क चे ा
करता था परंतु अ धकतर तो वही बाजी मार ले जाती थी। वह मुझे वश म करने के लए,
उसके त मेरे नेह तथा मेरे पु को ही अपना अ बनाती और सच क ँ तो म इन बात से
स ही था।
मुझे यह पता लगाने म कुछ ण का समय लगा क वहाँ स ाटा छा गया था। मने आसपास
दे खा। अ तकाय और भ भी मुझे अकेला छोड़ कर, वहाँ से अलोप हो गए थे। मने बाहर जा
कर, नीचे झाँका। म एक झुक ई, काली सी आकृ त को, गंदे बालक का हाथ थामे,
पाकशाला क ओर जाते दे ख सकता था। तभी सागर क ओर से वायु का एक खुशनुमा
झ का आया और साथ ही उनके वातालाप के कुछ सुर भी तैर उठे । उनके हा य म लपटे ,
एक श द ने मेरे दय के मम थान पर तीखा हार कया। अ तकाय, जस पु को मने
कभी नह चाहा, उसने अपने मासूम से वर म, भ को अपना ‘बाबा’ कह कर पुकारा था।
म नह जानता क भ ने उसे ऐसा पुकारने के लए कहा था या बालक ने वयं ही कहा
होगा। परंतु इससे मेरे दल को ठे स लगी। फर मुझे यह सोच कर थोड़ी राहत मली क वह
गंदा लड़का, मुझसे और मेरे य पु मेघनाद से तो र रहेगा।
समय बीतता गया और वे दोन लड़के बड़े हो गए। मने ब त ही गव के साथ अपने पु
मेघनाद के नातक होने के उपल य म कए जा रहे काय म क घोषणा क । यह समारोह
ावण मास क पू णमा को मनाया जाने वाला था। मेरा नकटतम म बाली, राजक य
अ त थ के प म पधार रहा था। मेरी युवाव था क उस भूल के बाद, हमारी म ता म वृ
ई और म बाली का ब त बड़ा शंसक बन गया, मेरा व ास था क यही भाव बाली के
दय म भी थे। उसक प नी तारा और मेरी प नी क भी गहरी म ता थी। बाली और मेरे,
दोन के ही भाई उ ं ड व धृ थे और ायः हम दोन इस वषय म चचा कया करते। बाली
मेरी बहन पर नगरानी रखता था, जो उसके रा य क बाहरी सीमा के समीप जा बसी
थी। वह कहता था क वह एक दन सबके लए वनाश का कारण बनेगी य क वह ब त
ही आ मक त थी, परंतु मने यह सोच कर उसक बात को अनसुना कर दया क शूपणखा
इतनी मह वपूण नह थी क कसी भी कार का भाव उ प कर सके। उसे तो अपने लए
पु ष क आव यकता रहती थी और वह बना कसी भेदभाव के उ ह ा त करती रहती
थी। वह प रवर के नाम पर एक कलंक थी, परंतु जब तक वह, मेरी माँ अथवा मेरे धूत पता,
लंका से बाहर थे, म लोग क बात क परवाह नह करता था। बाली जब मेरे पु के नातक
समारोह के लए कोट आया तो उस समय वह क त के उ ुंग शखर पर था। उसका
अपना पु अंगद, मेघनाद से कुछ ही वष बड़ा था, वह भी साथ आया। वह दखने म थोड़ा
व ोही वभाव का कशोर लगता था परंतु कशोराव था म ऐसा कौन सा कशोर होता है
जो व ोही भाव नह रखता? मने अनुभव कया क मेरा म अपने पु के साथ कुछ
अ धक ही ता के साथ पेश आता था।
परंतु म वषयंतर कर रहा ँ। सयार ने भी मुझे अकेला छोड़ दया है। वे मेरे इस चंचल व
उ े जत म त क को खा कर, सभी वचार का एक ही बार म अंत य नह कर दे त? े
कतना कुछ है, जो मुझे याद करना होगा। हे शव! अब तो मुझे अपने धाम म बुला लो। य द
वा तव म तुम हो, तो मेरी वनती सुनो! वैसे तो म वयं भी यह सब ज द ही जान लूँगा क
तुम हो अथवा नह ! जाने कतनी छ वयाँ मेरे म त क म च कर काट रही ह, जाने
कतनी…! उनम से मेरे पु के नातक समारोह क झल कयाँ मुख ह। म मंदोदरी के मुख
पर आ मतु के भाव दे ख सकता ँ। म जानता था क उस दन उसके चेहरे पर यह उजास
इस लए नह थी क उसका पु सुंदर था, जब वह हमारे पास से अपना अ दौड़ाता नकला
तो उसके काले घने केश हवा म लहरा रहे थे और वह दशनीय जान पड़ रहा था, अथवा वह
कतनी त परता से अ ारोहण के दौरान ही, अपने धनुष-बाण से प य अथवा मछ लय
पर नशाना साध रहा था। दरअसल उसे अपने पु पर गव इस लए था य क वह उसक
सखी तारा के पु से कह अ धक े था। उसका पु मेरे अवैध पु से कह अ धक े
था। गव क अनुभू त तो मुझे भी थी परंतु मंदोदरी को तो दे ख कर लगता था मानो उसने
मातृ व क कोई दौड़ ही जीत ली हो। जाने ये माता- पता इतने तयोगी कब बन जाते ह?
अ तकाय अपने मोटे व काले ह ठ खोले खड़ा था, उसक काली घुँघराली लट हवा म लहरा
रही थ , वह सकारा मक प से व मत दखा। वह कसी मूख वृषभ क भाँ त दख रहा
था परंतु म उसके हाथ के तनाव को दे ख सकता था। क अपनी नंगी तलवार लए,
उसक ओर बढ़ा।
“उस… उस… उसने मेरे भाई… मेरा मतलब है… राजकुमार मेघनाद… क…का अपमान
कया।” अ तकाय हकलाया। सारी भीड़ म एक व च सी बुदबुदाहट फैल गई। मेघनाद के
मुख पर नेह व मनोरंजन के भाव थे।
“ऐ मूख…!” बाली ने गु से से दाँत पीसे परंतु अंगद कहाँ सुनने वाला था। उसने नाटक य
प से सभी सै नक व क को पीछे हटने का संकेत कया और उ ह ने आदे श के लए
मुझे दे खा। मने भी त काल हामी द और क के आदे श से सभी सै नक पीछे हट गए।
“उसने मुझे ठोकर मारी है और म अपना खोया आ मान, पुनः वा पस पाना चाहता ँ।”
अंगद ने अपने पता को दे ख ँकार भरी। फर उसने पूरी सभा म घोषणा क ,
“लंकावा सय ! अब तुम दे खना क हम वानर उन गध से कैसे पेश आते ह, जो अपने-आप
को सह समझने क भूल करते ह!” अ तकाय वहाँ मूख क भाँ त मुँह बाए खड़ा रहा,
उसक आँख कसी उलूक क तरह झपक रही थ । मेघनाद अपने अ से उतर कर,
अ तकाय के समीप आया। उसने उसका हाथ थामा, उसके कान म कुछ हौले से कहा और
फर हाथ थाम कर, उसे अखाड़े के म य म ले आया। जब मेरे पाप से उपजा पु , मेरे य
पु मेघनाद के साथ, वहाँ प ँचा तो जा ने भारी गजन के साथ उनका वागत कया।
राजकुमार के उस एक संकेत के कारण, अ तकाय उस दन अक मात् सबका य बन बैठा
था। मेघनाद ने अपनी तलवार ख च कर हवा म उछाल फक और अ तकाय ने जस कार
उसे हवा म ही लपका, उसे दे ख कर तो म सकते म आ गया। सचमुच लड़के म कुछ तो बात
थी। अब म बुरी तरह से प त था। म चाहता था क अ तकाय क पराजय हो ता क म अपने
दे श तथा बाली के साथ पुरानी म ता को जी वत रख सकूँ। परंतु कह भीतर ही भीतर, मेरा
पता सुलभ अ भमान भी ास ले रहा था, हौले से धड़क रहा था। म चाहता था क
अ तकाय को वजय ी मले। जो भी हो, वह था तो मेरा ही र !
अंगद भी आगे बढ़ा। मुझे चार ओर से अलग-अलग वर सुनाई दे ने लगे। तभी भीड़
च लाने लगी, ‘वानर का नाश हो; वानर नक म सड़; वानर क हाय-हाय!’ मने कन खय
से बाली को दे खा, उसके हाथ ने अपने सहासन को कस कर थामा आ था और यह पकड़
हर बीतते ण के साथ कड़ी होती जा रही थी। उसक वशाल भुजा के कड़े नायु
कँपकँपा रहे थे परंतु वह वयं न ल त मुख लए बैठा था। भीड़ ने वानर को अपश द
कहना आरंभ कर दया था, वे उ ह वणसंकर तथा नर-वानर कह कर पुकार रहे थे। कईय ने
तो वानर-राज के लए भी अपश द का योग कया। मने क को खोजना चाहा परंतु मुझे
यह दे ख कर ब त आ य आ क वह भी मेरी ओर पीठ कए, बड़े ही उ साह से ं यु
आरंभ होने क राह दे ख रहा था। वहाँ होने वाले कोलाहल से कान के पद फटने को आ रहे
थे। तभी उस कोलहाल के म य, तलवार क पहली टकराहट क खनक सुनाई द । और
फर उन दोन म यु आ – मेरे म का वशालकाय पु तथा मेरी दासी का पु । पहले
कुछ ण के भीतर, अंगद कई बार सफल रहा। वह अ तकाय से कह अ धक फुत ला व
त पर था। अ तकाय अभी पूरी तरह से यु र नह दे पा रहा था, लाख यास करने पर भी
वह अंगद को छू तक नह सका। म थोड़ा न त होने लगा परंतु मन उदास भी था। सारी
भीड़ शांत व तनाव त थी। म वायु म घुल रही ता क गंध को अनुभव कर सकता था।
म भाँप सकता था क बाली भी थोड़ा सहज हो चला था। तभी, उ मूल म एक तेज़ ठोकर
के साथ ही, अंगद ने अ तकाय को धूल चटा द , वह धे मुँह जा गरा। धड़ाम का एक वर
सुनाई दया। सारी भीड़ यह य दे ख अवाक् हो उठ । अंगद बड़ी ज़ोर से हँसा व गजना
क।
अ तकाय एक ढे र सा बना बेसुध था या कौन जाने, संभवतः ाण ही याग चुका था। अंगद
ने अपनी तलवार जा क ओर लहराई। वह चाहता तो अपनी तलवार के एक ही वार से
अ तकाय का वह ाणांत भी कर सकता था परंतु उसने ऐसा कुछ नह कया। उसके लए
यह सब ब त ही साधारण वहार होता। वह एक असुर पर वानर राजकुमार को मली
वजय के उन ण का रसा वादन कर रहा था और एक-एक ण का भरपूर रस लेना
चाहता था। म बाली के मुख के एक कोने म खच आई तरछ मु कान और चेहरे पर तर
आए, ह के से गव के भाव को भी दे ख सकता था। म उदास कतु न त था। एक खद
घटना होते-होते टल गई थी। पंरतु फर मने अपने पु क लंबी-चौड़ी आकृ त को अपने
अधमृत पड़े सौतेले भाई क ओर बढ़ते दे खा। अंगद अपने करतब बंद कर, मेरे पु को
कड़वाहट के साथ दे खने लगा। मने ाथना क कह अंगद उसे पर पर ं के लए चुनौती
न दे बैठे। मेरे पु को उसे वीकार करना ही पड़ता और इसके प रणाम चाहे जो भी होते,
हमारे लए भयंकर व वनाशकारी ही होने थे। जब म उस ओर दे ख रहा था तो मने ल य
कया क मेरा पूरा शरीर थरथर काँप रहा था। ‘बाली का मूख पु । म तो आज उसक ह या
कर दे ता। समझ नह आता क लोग अपनी संतान का सही तरह से पालन-पोषण य नही
करते?’
मेघनाद ने अ तकाय का सर अपनी गोद म रखा व उसके कान म हौले से कुछ कहा।
वातावरण म एक असहज सी चु पी छाई थी। समय मानो कह थम सा गया था। यह एक
गम व उमस से भरा दन था और उस दन सागर से आने वाली हवा भी थमी ई थी। कह
र, कोई बकरी रंभाई और फर उसके मेमने ने अपनी माँ क पुकार का उ र दया। मेरी
पीठ, अपने ही वेद से भीग चुक थी। अ तकाय के हलते ही भीड़ म ह क बुदबुदाहट
आरंभ हो गई। फर उसने, मेघनाद के एक कंधे पर हाथ रख कर, उठने क चे ा क । वह दो
बार लड़खड़ाया परंतु मेघनाद ने उसे मज़बूती से थामे रखा। फर उसने मेघनाद को भी पीछे
धकेल दया और दो लड़खड़ाते डग भरते ए, अंगद क ओर बढ़ा। उसने अपने-आप को
थर करते ए, ँकार भरी। यह कसी मनु य क ँकार नह लगती थी, उसक त व न
पूरे अखाड़े क णक चु पी के बीच गूँजी और फर कह खो गई। फर भीड़ ने हज़ार कंठ
से उससे कई गुना तेज़ वर म ँकार द । वह वर सुन कर म जड़ हो उठा।
सारा पाँसा जैसे ण भर म ही पलट गया। अ तकाय अपनी तलवार के साथ अपना नर
नह दखा सका था। उसका भारी शरीर, अंगद क भाँ त लचीला नह था इस लए उसने मात
खाई। परंतु अब भारी गदा के साथ, उसके शरीर का भार कसी लाभ से कम न था। अंगद
अब भी पूरे कौशल व ती ता के साथ अ तकाय पर हार कर रहा था परंतु अ तकाय ने
सट कता के साथ जतने भी हार कए, उ ह ने त ं को चोट अव य प ँचाई। अंगद का
नर यहाँ, भारी शरीर वाले अ तकाय के सामने फ का पड़ने लगा। नःसंदेह वह
तलवारबाज़ी म नपुण था परंतु गदा के साथ, जब तक ज़ोर से नशाने पर साध कर हार न
कया जाए, तब तक उसका कोई भाव नह होता। खा़सतौर पर जब सामने वाला
अ तकाय जैसा हो, जो भीड़ क जयजयकार के बीच और भी बलशाली होता जा रहा था।
अ तकाय ने अपनी गदा को पीठ के पीछे ले जाते ए, ऊँचा उठा दया। वह उसे ज़ोर से,
अंगद के मुख पर मारते ए, बुरी तरह से चेहरे को कुचल दे ता।
भीड़ वानर से दो-दो हाथ करने को तैयार थी और कुछ लोग सुर ा घेरा तोड़ कर आगे भी
नकल आए थे। मुझे लग रहा था क बाली अपने पु को दे खने से पहले, अ तकाय को वह
पटक कर समा त कर दे गा परंतु बाली ने तो अपने वहार से सबको आ यच कत कर
दया। वह मेरे पु को अपनी भुजा म लए चल दया – मेरा र से लथपथ, त- व त,
परा त, अ ेत व बदसूरत पु ! और भीड़ के बीच स ाटा छा गया। जो लोग बाली से लड़ने
के लए भागे चले आ रहे थे, वे वह थम गए और नज़ारा दे खने लगे। तारा सुब कयाँ भरने
लगी और मेरी प नी ने भी उसका साथ दया। परंतु तभी मेरी अपनी आँख म भी अ ु
छलक उठे । म उ ह छपाना चाहता था इस लए अपना मुख घुमा लया और सै नक को
चीख़-चीख़ कर आदे श दे ने लगा।
भीड़ छतरा गई परंतु उ ह मंद होते वर के बीच मने कुछ ऐसा सुना, जो आने वाले क़हर
का संकेत दे ता तीत हो रहा था। अंगद अपने पता के समीप से नकलते ए फुँफकारा,
“कायर! तुझसे तो म बाद म नपट लूँगा” बाली वह खड़ा सु र म ताकता रहा मानो उसने
कुछ सुना ही न हो। मने दे खा क तारा अपने प त को वशु घृणा के साथ ताक रही थी
और मुझे अपने य म के लए भय का अनुभव आ। उसी ण, म भयभीत हो गया क
म जस संसार को जानता था, वह बदल चुका था। हमारी पीढ़ व हमारे मू य को अंगद
जैसे घमंड़ी व असं कारी युवा को यह जगत स पना था। मुझे भय था क हम सरीखे
लोग का तो आने वाले समय म नामो नशान तक मटा दया जाएगा। हमारे मू य कह खोते
जा रहे थे और जीवन इतनी ती ग त से भागा जा रहा था क मेरे जैसा उसके साथ
दौड़ नह लगा सकता था। म ब त तेज़ी से वृ ाव था क ओर जा रहा था। मने धीरे से
अपनी प नी का हाथ थामा और रथ क ओर बढ़ गया। उस दन मेरी प नी ने भी मुझे मेरी
नया म अकेला छोड़ दया और म अपने ही अंधकार के भीतर एक क ड़े क तरह समट
कर रह गया। अगले दन, ातःकाल, बाली और तारा अपने घायल पु को साथ ले कर लौट
गए। और इसके बाद मने अपने म को फर कभी नह दे खा।
24 दे श ने अपने नायक को ध यवाद दया
भ
जब वे उसके खर च से भरी दे ह को, प य म बाँध कर, घर लाए तो पौ लगभग फटने को
थी। जब वे भीतर आए, तो वह हौले से कराहा। उ ह ने एक भी श द कहे बना, अ तकाय
को नीचे लेटा दया और वे एक भी श द कहे बना वहाँ से लौट गए। अ तकाय मेरी बाँह म
पला-बढ़ा था। जब वह तीन वष का आ था, तब से वह मुझे ही अपना पता मानता आया
था। ारंभ म उसने मुझे बाबा कह कर पुकारा तो म भयभीत हो उठा। वह एक राजकुमार
था, भले ही अवैध ही य न हो, और म तो वही था, जो म था। म उस पर च लाया था,
उसके आगे हाथ जोड़े थे और यहाँ तक क रोया भी था, वह मुझे अपना पता कह कर न
पुकारे, परंतु फर भी उसने अपनी टे क नह छोड़ी। य प, मन ही मन म चाहता था क
अ तकाय मुझे पता कह कर पुकारे। अब वह मेरा पु था। कोई भी राजा उस पर यह दावा
नह कर सकता था क वह उसका पु था। उसने मुझे इस धरती से सदा बाँधे रखा। हम
दोन मल कर कोट नगरी, वन तथा उसके आसपास थत अ वाही जल व पहा ड़य क
ख़ाक छानते। मने उसे अ चलाना सखाया। वह मेरी वनीत कु टया का राजकुमार था।
और वह मेरा अ भमान था, मेरा भ व य! जब उसका उपहास कया जाता; जब उसे जारज
पु के साथ कसी कु या के प ले क तरह घसीटा जाता तो मुझे पीड़ा होती! वह घमंडी
मेघनाद, उसे कौन नह जानता। परंतु अ तकाय अपने सौतेले भाई के त असीम नेह का
भाव रखता था। वह उसके त और मेरी प नी माला के त जो नेह भाव रखता था, उसे
दे ख कर मुझे ई या का अनुभव होता। मने उसे कई बार महल के भीतर जाने से रोका भी
परंतु ायः राजा अथवा उसके पु क ओर से बुलावा आता ही रहता। उ ह बेतुके काम के
लए कसी क आव यकता तो पड़ती ही थी। अ तकाय राजा तथा उसके पु के त कसी
ान क भाँ त वामीभ रखता था। वह सचमुच इतना सीधा, मासूम व सरल वभाव का
था। वह दे ह से भले ही बलशाली था परंतु उसका म त क बल था। वह ायः लोग क
सहायता करना चाहता पर चूँ क वह समाज के न न वग से था अतः उसक अ छाई को भी
सही अथ म न लया जाता।
य ही मने रसोई म वेश कया तो एक बड़ा सा काला मकड़ा तेज़ी से नकल कर भागा। म
कुछ ण तक उसे घूरता रहा परंतु शी ही यह एहसास हो गया क केवल दे खने भर से
मकड़ को जान से नह मारा जा सकता। म कसी तरह रगते ए चू हे के पास प ँचा और
वह पाँव पसार कर, कसी तरह बैठ गया। फर मने एक-एक कर, सभी बतन व ड ब के
ढ कन खोल कर दे खे। खाली। कुछ भी नह ! मेरा पेट मारे भूख के ठने लगा। एक कोने म
डोरी से एक बतन टँ गा था। शायद उसम दही हो। माला ने उसे चूह से बचाने के लए इतनी
ऊँचाई पर टाँगा होगा। या हो सकता है क उसम गुड़ या फर कोई सरा सु वा ंजन हो।
म उस तक कैसे प ँच सकता था? म तो खड़ा भी नह हो सकता था। फर म हँस दया।
सु वा ंजन और यहाँ? एक शू के घर म? संभवतः रावण के अहंकार का थोड़ा सा अंश
मुझे भी छू गया था। म भी बड़ा सपना दे ख रहा था।
‘ये माला कहाँ गई?’ मने र से आती एक गाड़ी का वर सुना, जो घर के बाहर आकर थम
गया। या राजा अब उसे रथ म घर वा पस भेजने लगा था? म रगते ए वेश ार क ओर
बढ़ा। बाहर से फुसफुसाहट के से वर सुनाई दए और फर कसी ने आधे भड़े ए ार को
खटखटाया। मने बड़ी शां त से ती ा क । एक आभूषण मं डत हाथ ने चरमराते ार को
खोल दया, जससे फ़श व द वार पर सूय क करण का जाल सा बछ गया। मेरा पु फर
से कराहा। गद भरी हवा चलने से, कोने म रखे व लहराए और पीछे खुली खड़क से
बाहर जा गरे। म बाहर से आ रही सूय क रोशनी के बीच ऊकडँ आ बैठा था। तभी मुझे
कुमार मेघनाद क लंबी आकृ त भीतर आती दखाई द । उसके साथ ही मारीच क भारी-
भरकम दे ह ने क़दम रखा। एक अछू त क कु टया म दो कुमार! म तो इस य पर व ास
नह कर सका। मने न चाहने पर भी उठने क चे ा क परंतु फर से ढे र हो गया। मारीच
मु कराते ए आगे आया और मुझे हौले से उठा कर, टू ट ई कुस पर बैठा दया। मने
वरोध कट करते ए, खड़े रहने का यास कया, पर उसने मुझे फर से कुस पर बैठने को
ववश कर दया। मेरे य ई र! म अपनी कु टया म इन लोग के त अपना आ त य धम
कैसे नभाऊँ? एक राजकुमार और वह भी मेरी कु टया म! म ो धत था क वे मेरी
नधनता, मेरी टू ट कुस , मेरे चीथड़े, मेरे ब तर क फट चादर, मेरी दरार से भरी द वार
और मेरी बल दे ह दे ख रहे थे। यह मेरा घर था और म अपने लए थोड़ी सी गोपनीयता
चाहता था ता क अपनी असफलता को उस नमम जगत क से छपा सकूँ, जसम इन
दोन जैसे जाने कतने धनी राजकुमार रहते थे। या ये लोग हमारे ःख को, बड़े ही लालसा
से ताकने आए थे। म एक उ लू क तरह बैठा रहा, नःश द सब कुछ ताकते ए…!
मने ब त ही नराशा के साथ वचार कया, ‘अगर अ तकाय के शरीर पर कोई पूँछ होती तो
वह न त प से, इस समय ज़ोर-ज़ोर से हल रही होती।’
म उठ खड़ा आ। मेरा सर चकरा गया परंतु भीतर कुंडली मार कर बैठे ोध ने मेरे बल व
जजर शरीर को एक नई श से प रपू रत कर दया। “बाहर नकल जाओ! बाहर नकलो,
कमीन !”
ऐसा लगा मानो मेरा कंठ शीतल हो गया हो। मने उस शीतल लौह धार को महसूस करते ही,
मेघनाद क चमकती आँख को घूरा और उसी ण मेरा सारा साहस हवा हो गया। म मारे
भय के थर-थर काँपने लगा। म धड़ाम से धरती पर जा गरा।
मने जो कुछ भी बका था, वह सब बबरता के साथ मेरे आगे नाचने लगा। भय तथा बेचारगी
के अ ु गाल से बहने लगे। मेरे लए तो सब कुछ समा त हो गया था। तलवार क धार का
दबाव बढ़ता गया और मने अपनी ही ीवा से नकलती र धार क उ णता को अनुभव
कया। नःसंदेह आज मुझे मेरी इस धृ ता के लए अपने ाण यागने ह गे।
“मेघनाद! इसे छोड़ दो। मुझे लगता है क यह म दरा के नशे म चूर है।” मने मारीच को
कहते सुना। धीरे-धीरे वह दबाव घटा और मेघनाद ने अपनी तलवार हटा ली। उसने अपने
हाथ से, तलवार पर लगे मेरे र को प छा व उसे यान म रख लया परंतु इस दौरान वह
लगातार मुझे ही घूरता रहा। म धरती से उठा और थर-थर काँपता, कुस पर ही ढे र हो गया।
“भ ! अब हम चलगे। अपनी सेहत संभालो और इतनी म दरा मत पीया करो। सच क ँ तो
तुम पागल होते जा रहे हो।” मारीच ने मु कराते ए कहा परंतु म दे ख सकता था क उसक
आँख म मु कराहट नह थी। म उन आँख म तर कार का भाव दे ख सकता था। मेघनाद
आगे गया और सुबकते अ तकाय को गले से लगा लया। फर राजकुमार तथा मं ी,
चमचमाती धूप म बाहर नकल गए। मने घोड़ को फटकारने और फर रथ के चलने का
वर सुना। म वह पड़ा रहा, दमाग़ जैसे सु हो गया था। फर मने बाहर कुछ लोग के
आपस म भड़ने का वर सुना। पहले तो कुछ समझ नह आया पर धीरे-धीरे यान आया क
वे लोग उन चाँद के स क के लए लड़ रहे थे, ज ह मने ही बाहर भनकाया था। वे तो मेरे
स के थे! मने उठना चाहा परंतु संतुलन बगड़ा और म मुख के बल गर पड़ा। फर म रग
कर बाहर गया और वहाँ भीड़ के बीच छलाँग लगा कर अपने लए जगह बना ली। मेरे
तकरीबन सभी स के वहाँ से गायब हो चुके थे। म रग-रग कर अपनी ओर से संघष करता
रहा। मने दो लड़क को कुचला व एक भ ुक को ठोकर मारी, बेशक मुझे भी बदले म यही
मला, परंतु म तो पीड़ा क सीमा से परे जा चुका था। वह मेरा पैसा था, मेरी गाढ़े खून-
पसीने क कमाई! अंततः म नाली के पास से एक मु धूल से सने स के चुनने म सफल
रहा। य प कई लोग ने उ ह भी झपटने का यास कया। मने उनक ठोकर व घूँस के
बीच भी अपनी संप को अपने से वलग नह होने दया। अंत म भखा रय व मेरे
पड़ो सय ने हार मान ली और वे पर पर कोसते ए, अपनी-अपनी राह चल दए। म नाली
के पास से उठा व अपने स के गने। वे इ क स थे। संभवतः वे मूल रा श का सौवाँ ह सा
थे। म उ ह ब त दे र तक एकटक दे खता रहा। म इससे पूव भी उन सभी अवसर को गँवा
चुका था, जो जीवन ने मेरे आगे रखे थे। संभवतः म इसी यो य था। खैर, कोने वाली ताड़ी
क कान तो अब भी खुली होगी। वहाँ ब त सी दे सी शराब मल सकती है। ओह! मुझे यही
तो चा हए! म वदा लेते सूरज के साथ, लड़खड़ाते क़दम से चल दया, मु म वे स के थे,
ज ह जान पर खेल कर वा पस पाया था। एक शराब का याला – बस, जीवन यही तो है।
25 पु ी का ववाह
रावण
मुझे ब त ही ाकुल कर दे ने वाले समाचार ा त हो रहे थे। म अपने ारा च त कए जा
रहे भ च पर अपना यान क त करना चाहता था परंतु जाने य , मेरा यान एका
ही नह हो सका। रंग तथा उनके ह के रंग का संयोजन, वैसा नह बन पा रहा था, जैसा म
चाहता था। समाचार ब त ही ाकुल कर दे ने वाला था और म यही वचार कर रहा था क
उसे कसके साथ बाँटा जा सकता था? परंतु यह तो एक ऐसा रह य था, जसे ब त ही गु त
प से पोसा गया था। मारीच, नह , यहाँ तक क वे भी नह ! वे इस न त संबंध को ले कर
ब त सहानुभू तपूण रवैया नह रखते थे और हो सकता है क वे मेरी बड़बड़ाहट और
आ म-दया से भरपूर बात न सुनना चाह।
मने वयं को शरीर तथा आ मा, दोन से ही वृ अनुभव कया। मने उसे अनेक वष पूव
दे खा था। तब वह सोलह अथवा स ह वष क रही होगी। यह एक ब त ही ख़तरनाक मु हम
थी, जो मेरे पु के नातक होने के तुरंत बाद घ टत ई। म अ तकाय से जस तरह पेश
आया था, उससे मेरा दय तार-तार हो उठा था और म प ाताप क अ न म जल रहा था,
जब मारीच आए और मुझे उससे, एक ही झटके म बाहर नकाल दया। उ ह ने पूरी नममता
के साथ खुले श द म कहा क मुझे इस बात के लए खेद मनाने क कोई आव यकता नह
थी। म ही तो था, जसने अपने पहली संतान को जा त से ब ह कृत कर दया था। म बुरी
तरह से झ ला उठा और उ ह मरण करवाया क उनके बु मान प रषद सद य ने ही यह
नणय लया था। उ ह ने उपालंभ दया क मने भी तो उसके बाद कुछ नह कया था। यह
सुन कर तो म व मय वमूढ़ हो उठा। मने बड़े ही घमंड का प रचय दे ते ए, उ ह क से
बाहर जाने को कहा और अपने ही खोल म समट गया। म अपनी प नी पर च लाया और
यहाँ तक क पु मेघनाद को भी क से बाहर धकेल दया। आधी रात को, अचानक ही
आँख खुली तो म ठं डे पसीने से लथपथ था। मने एक भूत दे खा था। य द यह बात कसी
और ने कही होती क उसने असुर के स ाट के राज ासाद के भीतर भूत दे खा है, तो
न त तौर पर मने उसक ख ली उड़ाई होती।
धीरे-धीरे, मने अपने हाथ-पैर हलाए और पलंग से उतर कर, अपनी खड़ाऊ तलाशने लगा।
म एक ण के लए कसी भी वचार तथा भाव के बना अडोल खड़ा रहा, मेरी र
थर भाव से पू णमा के उजास म खड़े, ना रयल वृ क प य पर टक थी। फर म
जानता था क मुझे या करना होगा। म क का ार खुला छोड़ कर, त काल बाहर नकल
आया। मने खराटे भर रहे दरबान को उपे त कया और ांगण से भागते ए, मारीच के
क तक जा प ँचा। मने दरवाज़े को तब तक भड़भड़ाना जारी रखा, जब तक उ ह ने उसे
खोल नह दया। जैसे ही उ ह ने मेरा चेहरा दे खा तो एक अपश द उनके होठ तक आकर ही
दम तोड़ गया।
“हम अभी जाना होगा… मुझे उससे अभी मलना है।” मने उनसे कहा
“ कसे?
“ कसे?”
“ या तुम म दरा के नशे म चूर हो?” मारीच ने मेरी पकड़ से वतं होने के लए संघष
कया।
मने अधैय से अपना पाँव पटका व उनसे पूछा, “बड़े वाले छाजन क कुँ जयाँ कसके पास
होती ह?”
“रावण अपने होश म आओ। तुम इस समय म थला जाना चाहते हो? म थला, दे व दे श के
म य म, और तुम चाहते हो क म तु हारे साथ, तु हारे सुर ारा न मत मृ यु जाल म उड़ान
भ ँ ? तुमने आ ख़री बार उस उड़नखटोले को कब उड़ाया था?”
“मुझे कुँ जयाँ दो और मय को जगा दो।” म लगभग अपने होशो-हवास खो बैठा था।
अंततः मने उसके नाम एक संदेश छु ड़वा दया क म एक स ताह म लौट आऊँगा। फर म
एक ण के लए सकुचाया और साथ ही मेरे अपराध-बोध ने मुझे यह भी मरण करवाया
क म उससे ेम करता था। तब तक मारीच लौट आए थे, उ ह ने अपने सामान व व के
साथ-साथ मेरे लए भी व , थोड़ा भोजन व म दरा तथा अ -श बाँध लए थे। उ ह ने
वह सारा सामान वमान के पछले ह से म फका और पूरी आशा के साथ पूछा, “रावण,
या तुम वा तव म जाना चाहते हो?”
हमारे नीचे लंका का य ओझल होता चला गया, वह उस सागर म एक हरे रंग के अ ु ब
के समान दखने लगी, जो रात क पहली चाँदनी म चमचमा रहा था। घने काले आकाश म
हज़ार तारे यहाँ-वहाँ बखरे थे, मानो दे वता अपने ओढ़ने के कंबल से बाहर झाँक रहे ह ।
हमारे आसपास बल व धुँधले बादल के टु कड़े तैर रहे थे। मेरे घने केश, फरफराती हवा म
लहरा रहे थे। मने क पना क क कसी अजनबी को म कतना भावशाली दख रहा
होऊँगा और यह सोचते ही मेरे चेहरे पर एक मु कान खेल गई। अब तक मारीच भी थोड़ा
सहज हो चले थे। जैसे ही हम सागर से बाहर आकर मु य भू म वाले े म आए तो मने
स ता से ँकार भरी और मारीच ने भी मेरा साथ दया। मने अपनी कशोराव था म गाए
जाने वाले उन भ े गीत को मरण करने का यास कया। और हम उ र क ओर, बबर के
दे श उड़ चले, हमारे होठ पर असुर के वे नटखट गीत थरक रहे थे – साठ वष य वृ तथा
चालीस वष य अधेड़ , ऐसे दो कशोर क तरह पेश आ रहे थे मानो उ ह इस जगत म
कोई चता ही न हो और वे घर के बुजग के साथ के बना, अपनी पहली मनोरंजक या ा पर
नकले ह ।
मने पाल समेट लए थे और हम बड़ी तेज़ी से आगे जा रहे थे। पंख क आव यकता तभी
पड़ती थी, जब नीचे उतरना हो। हमारे नीचे, भारत अपनी समृ तथा ःख के साथ पसरा
था। वहाँ कुहासे से भरे, घने वशाल वन थे, जो प म म लगभग सागर को छू ते थे, खुले
मैदान के बीच छोट पहा ड़याँ दखती थ । सागर से लौट जलरा शय के समीप ना रयल के
वृ हरी बने खड़े थे। केवल कुछ दे वालय थे, जो लंबाई म, उ ह भी मात करते थे। धरती के
कान से पहली न दयाँ झाँक रही थ और धान के हरे-भरे खेत पर, पहली चाँदनी खल
उठ थी, यह सब ब त ही मनोरम था। जब मेरी उस शु क ामीण इलाक़े पर पड़ी,
जसे मने समृ बनाने म कोई कसर नह छोड़ी थी, तो मेरा दय गव से फूल उठा। यह मेरा
भारत था, मेरा सा ा य, असुर क ाचीन भू म! म जानता था क कल रा तक म, उस
धरती के ऊपर से उड़ान भर रहा होऊँगा, जो घने वन , लता -प तथा म य भारत के
रेतीले ट ल से भरी है। यह न ष थल था, जो प व गंगा, यमुना व सर वती नद के
कनार व उससे भी परे थत बबर दे व रा य को मेरे रा य से अलग करता था। मुझे खेद
का अनुभव आ क मने भगवान शव के धाम तक अपने रा य का व तार य नह कया
था?
पूव दशा म लाली छा गई, बादल यूँ तैर रहे थे मानो लाल रंग से रंगी कपास, पूव तज
पर फैला द गई हो। प म म अब भी अंधकार का सा ा य था, जहाँ से अ त हो रहे बल
व धुँधले चं मा को दे खा जा सकता था। मारीच अपनी न ा म ही हले। मने उस को
दे खा, जो मेरे लए कसी भी सरे क तुलना म सवा धक न ावान रहा था। मने
उनके ेत केश , और केश से र हत होते सर व उनक थर बलशाली भुजा को दे खा
और मन ही मन उदास हो उठा। जीवन ब त तेज़ी से, हमारे नकट से गुज़र रहा था। एक
दन वे भी इस भुवन को याग कर चल दगे और म नपट अकेला रह जाऊँगा। वह इस समय
या कर रही होगी? वह कसक तरह दखती है? संभवतः अपनी माँ जैसी दखती होगी?
जैसे ही मुझे अपने वष पुराने व मृत ेम का मरण आ, तो भीतर से जैसे कुछ चटकने
का वर सुनाई दया। या सचमुच उसके आगे सारा सा ा य फ का था? संभवतः मंदोदरी
मेरे लए एक आदश जीवनसं गनी रही थी। वेदवती भी ऐसी ही सुयो य थी क वह मेरी प नी
अथवा रानी बन सकती थी। म उस समय अपनी पु ी का मुखड़ा दे खने के लए बुरी तरह से
तरस रहा था। मने उसके इलाक़े से आने वाले ववरण को कुछ समय से नह पढ़ा था परंतु
कुछ अ प सा मरण था क उसके ववाह के लए कुछ बंध कए जा रहे थे।
मने अपनी पु ी के वयंवर आरंभ होने तक, वहाँ प ँचने क आशा क । मुझे ब त
ाकुलता अनुभव हो रही थी। कौन सा अस य दे व मेरी पु ी से ववाह रचाने जा रहा था?
उसका जीवन कतना बदल जाएगा? जाने य , मुझे आशंका थी क उसका जीवन इतना
सरल नह होने वाला था। म इस बात को और अ धक प नह कर सकता परंतु ायः यह
भावना मेरे मन को कचोटती रहती थी। मुझे आज भी वेदवती क व त जैसी हँसी याद
थी। उसका अ भशाप नरंतर मुझे क चता रहता था। मेरी बेट ही असुर के वनाश तथा
मृ यु का कारण होगी, य द यह यो तषीय भ व यवाणी स य स ई तो या होगा? य द
अ न क लपट म घरी वेदवती के मुख से नकला ाप स य हो गया तो…? यह तो कोरी
बकवास थी। म जाने कौन से म म घरा था।
रावण
हम ातःकाल के आरं भक चरण म, म थला के समीप जा प ँच।े मने नगर से कुछ मील
क री पर, एक ऐसा वीरान व एकांत कोना खोज लया था, जहाँ कसी क नज़र नह जा
सकती थी। फर हमने पु पक को पौध व लता के झुरमुट म छपा दया और दे व के व
पहन कर बाहर आ गए। हम महल क ओर बढ़ने लगे। अनेक उसी दशा म जा रहे
थे। सैकड़ फेरी वाले अपनी व तुएँ बेच रहे थे। यहाँ-वहाँ आवारा घूम रही गौ तथा लोग
के कारण चार ओर अफ़रा-तफ़री सी मची थी। मने दे खा क सड़क संकरी थ और वहाँ
जल नकासी क कोई व था नह थी। घर भी ब त साधारण तथा अप र कृत थे और
महल दे ख कर लगता था मानो लंका के कसी म यमवग य कसान का वशाल घर हो। म
भा वत नह आ परंतु मने इससे अ धक क अपे ा भी नह क थी। सां कृ तक व
आ थक; दोन ही प म यह सब समा त ाय था जब क इसे उ र के े नगर म गना
जाता था। अ धकतर लोग के ह के भूरे रंग के बाल तथा ह का गौर वण था जब क कुछ
लोग अ ेत वण य भी थे। मुझे महल म अनेक अ ेत ी-पु ष दखे। संभवतः वे आने-जाने
के लए क ह सरे माग का योग करते ह गे। मने अनुमान लगाया क वे बेचारे, द लत
जन थे। अ छे व म सजे, ये गौर वण य लोग इन बेचार क उपे ा करते और ये
अधमानव अछू त बड़े ही धैय से ती ा करते क तथाक थत सं ांत व प व ी-पु ष के
जाने के बाद ही नकल। ये कस तरह के ाणी थे? या मेरे सा ा य म ऐसा कभी होता?
राजा जनक खड़े हो गए और सभी उसके मुख से नकलने वाले श द क याशा म झूलने
लगे। उसका वर, वशाल क म गूँज उठा। “बलशाली नरेश व युवराज ! आज का दन
ब त ही शुभ है। आज मेरी य पु ी सीता का वयंवर है। आप म से सवा धक श शाली,
वीर तथा नपुण ही, आज मेरी सुंदरी पु ी से ववाह रचा सकेगा।” वह एक ण के
लए का और मने यहाँ-वहाँ ताका। अनेक त दयु तथा म रयल से दख रहे राजा भी बड़ी
आस लगाए बैठे दखे। “इस तयो गता के नयम ब त ही सरल ह। यहाँ रखे इस भारी
धनुष को उठा कर, उसक यंचा चढ़ानी है। स जन ! यह कोई सरल काय नह है। यह
धनुष ‘ य बक’ कहलाता है और एक बार वयं भगवान शव ने इसका योग कया था। जो
भी इसे उठा कर, यंचा चढ़ाने म सफल होगा, वही मेरी पु ी सीता के वरण का अ धकारी
होगा।”
मुझे तो इतनी हँसी आई क उसे दबाते-दबाते गला ही ँ ध गया। ‘ये लोग शव के धनुष को
उठा भी कैसे सकते थे?’ शव का धनुष, भाड़ म जाए सब! संभवतः उ ह इस क पना से ही
रोमांच हो रहा होगा क कोई तो शव के धनुष को उठा कर, उसक यंचा चढ़ाने म सफल
होगा, आ दकालीन असुर नरेश तथा दे वता शव का धनुष! “नरेश तथा युवराज ! मेरी पु ी
सभा म उप थत है।’ जनक के वर को सुनते ही म अपनी उधेड़-बुन से बाहर आ गया। म
याशा म काँप रहा था। सारी सभा म गहरा स ाटा छाया था। तभी ब त सी घं टय वाला
ार खनखनाहट के वर के साथ खुला और एक आभूषण मं डता नारी आकृ त ने अपनी
दा सय के साथ वेश कया। मने मारीच का हाथ कस कर थाम लया। म अपने चेहरे क
माँसपे शय क ठन अनुभव कर सकता था और दय उछाल भर रहा था। वह सैकड़
पु ष के म य खड़ी, थर-थर काँप रही थी, इस दौरान अनेक वासना से भरे ने उसे लील रहे
थे – एक मूखतापूण तयो गता का पुर कार! एक दासी आगे आई और उसने हौले से सीता
का घूँघट उठा दया। सारी सभा अवाक् हो उठ । वह वहाँ खड़ी इतनी यारी और सुंदर दख
रही थी क म लगभग रो ही दया। वह अपनी माँ जैसी दखती थी पर उसका वण गहरा था,
मानो उसके वण म मधु मला दया गया हो। उसके केश काले व घने थे। वह मेरी पु ी थी,
असुर राजकुमारी!
म अपनी पु ी से आँख ही नह हटा पा रहा था। उसने बड़ी ही ग रमा से अपना सर उठाया
और उन लोग क भीड़ को नहारा, जो उसे आँख ही आँख मं पी रहे थे। उसने कसी भी
मुख पर, कुछ ण से अ धक अपनी नह टकाई। जब उसने मुझे घूरा तो मेरा दल
मानो धड़कना ही भूल गया। उसने मुझे एकटक घूरा और म भयभीत हो उठा। भीतर ही
भीतर मानो एक कचोट सी उठ । या वह अपराध-बोध था अथवा मेरा भय? म नह जानता
और फर मने त ण मुख घुमा लया। जब मने दोबारा उसक ओर दे खा तो वह एक
अ ारह वष के लगभग युवक को ताक रही थी। वह कोई राजकुमार नह था। वह साधारण
ेत प रधान म था परंतु उसके कंधे पर धनुष लटक रहा था और बाल क जटाएँ बाँधी गई
थ । वह ब त लंबा और गठ ले बदन का था और उसम कुछ तो ऐसा था, जो अनायास ही
अपनी ओर यान आक षत करता था। वह ब कुल शांत च व सहज दख रहा था।
उसक आयु के युवक के लहाज़ से तो उसक सहजता व आ मसंयम शंसनीय थे।
तयो गता आरंभ ई। एक के बाद एक, तयोगी आगे आते व भारी धनुष को उठाने क
चे ा करते और असफल हो कर लौट जाते। उनम से कुछ को दे खने के बाद मने पता लगा
लया क धनुष का भार, दोन ओर से अलग-अलग था। पहले उसे उठाने के सही तरीक़े के
वषय म वचार करना होगा, उसके बाद ही उसे उठाया जा सकता है। शी ही, सभी
नमं त अ त थय ने अपना हाथ आज़मा लया और नराश हो गए। क म एक ाकुल
कर दे ने वाली चु पी छाई थी परंतु मुझे ब त अ छा लग रहा था।
जैसा क मने वयं को वचन दया था, मने उस पर नकट से नगरानी रखी। मुझे यह जान
कर ब त ःख तथा व मय आ क राम ने रा य के त अपना उ रा धकार केवल
इस लए याग दया य क उसक वमाता अपने पु को अयो या का राजा बनाना चाहती
थी। उसक वमाता ने अपने प त से वचन भरवा लया क उसका बड़ा पु राम चौदह वष
के लए वनवास करेगा और उसके पु भरत को अयो या क राजग स पी जाएगी। मेरा
दामाद भी… कैसा मूख नकला, वह वे छा से रा य को यागने तथा वन म भटकने के
लए राजी हो गया। य प अयो या क जा यही चाहती थी क राम को ही राजा बनाया
जाए, उसने अपने मरणास पता क अं तम इ छा पूरी करने के लए जन सामा य क
इ छा क भी उपे ा कर द । मुझे राम के इस झूठे अ भमान तथा संसार के सामने अपनी
स य- न ा मा णत करने क त परता के कारण घृणा ई। म तो उसका तक कभी नह
समझ सका। और उसके पता को तो दे खो… भला वह ऐसा वचन कैसे दे सका? एक
राजा कभी ऐसा नह कर सकता। यह तो राजधम के व था। उ रा धकारी होने के नाते,
राम का दा य व बनता था क वह उस राजा के ख़लाफ़ खड़ा होता जसने ऐसा अ याय
कया था। उसे तो अपने पता को राजग से उतार कर, वयं राजा बन जाना चा हए था।
इसक बजाय उसने अपने सौतेले भाई के लए ग का याग कर दया। और उसका छोटा
भाई ल मण, वह भी उसके साथ वन म आ गया। और अब मेरी यारी पु ी भी उन दोन के
साथ वन म मारी-मारी फरती थी।
भ
म पचास के लगभग हो गया ँ, सर पर अब केश नह रहे, मेरे अंग तथा म त क क श
भी अब पहले जैसी नह रही। येक दन, बीते ए दन जैसा ही तीत होता है। म सुबह
होने पर उठता, दै नक चया पूरी करता, कुछ जलपान करता, जीवन म कह न कह दे खी
गई सुंदरी युव तय क क पना करता, आसपास क प र थ तय पर सर धुनता, शराब
पीता, नया के ताज़ा हालात को ले कर बसूरता, ोता को अपनी युवाव था क
वा त वक व का प नक कथाएँ सुना-सुना कर पकाता और दन के अंत म, अपने ब तर पर
जा कर ढे र हो जाता ता क अगले दन फर से उठ सकूँ। इसी तरह यह च चलता रहा।
रावण क ां त से हम जैसे लोग के हाथ कुछ नह आया था। संभवतः हम पहले से कुछ
बेहतर ए थे परंतु हम हमारे ही थान पर रखा गया था और शी ही यह भी सखा दया
गया था क हम कैसे पेश आना चा हए। उनके पास ब त से भ जन तथा संप थे।
पहले वे सु वधाभोगी लोग आते थे और फर हम जैसे लोग क बारी आती। जब तक हम
अपने थान पर टके ए थे, तब तक हम आराम से जी सकते थे परंतु हमम से भी
अ धकतर लोग उ च पद तक जा प ँचे थे, इसम उनका भा य था या म या फर उनक
चाटु का रता! म नह बता सकता। सेना म मेरे साथ रहे, अ धकतर साथी मेरी तरह नधन ही
रहे परंतु कुछ तो सचमुच ब त ही अहम पद तक जा प ँचे थे।
परंतु धनी व संप जा और भी धनी होती गई। वे पूरे संसार को अपनी संपदा तथा वैभव
के अ तशय दशन से चकाच ध कर दे त।े और कहा जाता था क रावण के राज म, असुर
सा ा य ने दन- नी-रात-चौगुनी ग त क । यह अ र ः स य था। सं ात वग ने ग त क
इस लए दे श ने भी ग त क । या इस बात से सचमुच कोई अंतर पड़ता है क ब सं यक
संघष करते रह अथवा कृषक अपने शोषक के चंगुल से बचने के लए आ मघात करते रह?
सड़क का सारा यातायात थम गया था। या पगला मय पुनः कोई आकाशीय करतब
दखाने के च कर म था? तभी सारी भीड़ के बीच एक चु पी सी छा गई। म रावण क गहन-
गंभीर आकृ त दे ख सकता था, जो पु पक वमान के कलपुज के साथ त था और उसे
वश म करने क चे ा कर रहा था य क वह वशालकाय लौह प ी हमारे सर पर मँडरा
रहा था। अ त हो रहे सूय क ला लमा के म य, मुझे एक ऐसा य दखा जसने मेरा सारा
नशा र कर दया, मने दे खा क वमान म एक युवती बैठ सर झुकाए रो रही थी। सूय का
काश इतना पया त था क उस ी का मुख दे खा जा सकता था। मेरी पूरी दे ह म सहरन
दौड़ गई। यह चेहरा तो मेरे ब त पुराने अतीत से जुड़ा लग रहा था। या वह मंदोदरी थी?
वह युवती दखने म युवाव था क मंदोदरी के समान दखी परंतु इसका वण उसक अपे ा
थोड़ा साँवला था। ‘अब राजा के दमाग़ म या चल रहा था?’ म नह जान सका, म बस
इतना जानता था क मेरे पूरे शरीर म एक व च सा भय ा त हो रहा था। मन ही मन म
जानता था क हम सभी कसी मुसीबत म पड़ने वाले थे, कोई संकट सामने आने वाला था –
ब त बड़ा संकट!
28 अल वदा मारीच
रावण
मारीच मारे जा चुके थे। व तुतः उनक नृशंस ह या क गई थी और इसके लए म उ रदायी
था। म उनके लए कुछ न कर सका। यह एक मूखतापूण व संकट से भरी ई योजना थी। म
कसी रोमांच य कशोर क भाँ त बड़ी ही नममता से इसे या वत कर बैठा और इसके
बदले म उ ह गँवाना पड़ा। उ ह ने तो मुझे ऐसा न करने का परामश दया था। म राम से
अपनी य पु ी को तो छु ड़ा लाया परंतु अपने य मामा ी मारीच का ब लदान करना
पड़ा। आज जब पलट कर वचार करता ँ तो समझ आता है क कुल मला कर पूरी योजना
ही मूखतापूण थी। हम उस अ भयान पर जाना ही नह चा हए था। जब मने पछली शाम
अपनी सभा म, व थल तथा ना सका र हत शूपणखा को च लाते दे खा तो त काल अपनी
त या दे बैठा। पूरी सभा सकते म आ गई थी। कुछ ण के लए तो हम समझ ही नह
पाए क दरअसल वह कहना या चाहती थी। उसके सारे श द बड़बड़ाहट मा लग रहे थे।
वह ब कुल ही व त क भाँ त लाप कर रही थी और गहरे सदमे म थी। लगभग आधे
घंटे बाद, हम उसक कुछ-कुछ बात समझ म आने लगी। जब म उसक बात समझा, तो पूरी
दे ह म मानो आग सी दौड़ने लगी। ‘उस नीच का इतना साहस क उसने मेरी बहन पर
हाथ उठाया?’ और वह बेचारी कतनी दयनीय दशा म थी। वह कभी सुंदरी नह रही, यहाँ
तक क अपनी युवाव था म भी सुंदर नह दखी परंतु तीस के उ राध म, अपनी कट
ना सका के साथ तो और भी भयंकर दख रही थी। वह लगातार बड़बड़ाती रही क कैसे
उसने एक सुंदरी युवती को वन म दो युवक के साथ वचरण करते दे खा और उस युवती से
केवल यही पूछा क या वह उसके असुर स ाट भाई से ववाह करना चाहेगी।
यह सुन कर, छोटा युवक उस पर लपका और उसने उसक जो दशा क थी, वह तो सबको
दखाई ही दे रही थी। मने उसके कंध पर हाथ रखते ए सां वना दे नी चाही परंतु वह बुरी
तरह से बफर उठ , मुझे कोसते ए, उलाहना दे ने लगी क उसका भाई ब कुल ही कायर
था और कसी रीढ़ वहीन ाणी क तरह न ाण था।
एक और वचार ने मुझे चता म डाल दया, ‘इन दो ख़तरनाक पु ष के साथ मेरी अपनी
पु ी कतनी सुर त थी?’ म सभा को जारी रखने क मनः थ त म नह था इस लए मने
सभा थ गत क और अपने नजी क म आ गया। मने मंदोदरी को बुलवा कर अपने नणय
से अगवत करवाया। यह सरल नह था। उसे मेरी योजना के वषय म सुन कर कोई स ता
नह ई परंतु मने उससे कहा क म अपनी पु ी को उन पु ष के साथ कभी नह छोड़
सकता था जो इतनी नममता से कसी ी के कान व नाक काट सकते थे। म अपनी पु ी
क सुर ा के लए थत था।
मने मारीच को अपनी योजना से अवगत करवाया। उ ह ने इसे उपयु नह माना और कहा
क म भावुक हो कर, बचकाना नणय ले रहा था। म बुरी तरह से ख सया गया और अपनी
नाराज़गी कट क । म उस वृ क आँख म पीड़ा व कचोट दे ख सकता था परंतु वे नरंतर
मुझसे तक- वतक करते रहे। म इतने ोध म था क मने अकेले ही उस अ भयान को पूरा
करने क ठान ली। अंततः, वे मेरी योजना के अनुसार चलने के लए सहमत हो गए और हम
आकाश माग से, मेरी पु ी क खोज म नकल पड़े। जब हमने उ र क ओर थान कया
तो मारीच ने एक बार पुनः मुझे फुसलाना चाहा। मने उ ह उपे त कर दया। वे बोले, “तुम
राम और उसके भाई का वध करके सीता को वा पस ला सकते हो और साथ ही उसे यह भी
बता दे ना क उसके ज म का स य या है।” परंतु म राम का वध नह करना चाहता था। मेरी
पु ी उसके त न ावान थी और म उसे कसी भी प म, ःख के सागर म नह डु बोना
चाहता था।
परंतु सब कुछ ारंभ से अनु चत होता चला गया। जब हम उस थान पर प ँच,े जहाँ राम
सीता व अपने अनुज के साथ रह रहा था तो उस समय ातःकाल क बेला थी। वन ब त ही
रमणीक जान पड़ रहा था य द वह कोई और अवसर होता तो मने अपनी सारी चताएँ भुला
द होत और हाथ म कूची थामे, ताड़प पर वन के वे य रह य उकेरता, जो कतनी
उदारता से मेरे आसपास बखरे थे। वृ पर धुँध का ह का सा आवरण आ छा दत था और
घास का एक – एक क़तरा, सूय क चमचमाती करण से सजी धूप म, जगमगा रहा था।
गड़गड़ करते नाले के समीप, ढलान पर ही फूस से बनी एक कु टया दखाई द । वहाँ अनेक
रंग क हज़ार तत लयाँ मँडरा रही थ । शीतल वायु म हौले-हौले झूल रहे वृ के झुरमुट से
छन कर आती सुनहरी रोशनी कभी दखने लगती तो कभी ओझल हो जाती। प ी व झ गुर,
मधुम खय क गुँजार तथा पतंग के वर, कुल मला कर वन के इस वातावरण को और
भी समृ बना रहे थे। हरण आल य से चर रहे थे और धूप म चमकते घास के कतरे को
संशय से नहारते ख़रगोश व गलह रयाँ हर आहट पर चौक े हो कर यहाँ-वहाँ ताकने
लगते। वह च ान पर मेरी पु ी सीता कसी वनदे वी के समान बैठ , अपने ही वचार म म न
दखाई द । उसके हाथ ना भ के पास बँधे थे, उसक टाँग क मुलायम व साँवली वचा पर
पानी कुछ बूँद अठखे लयाँ करती दख , जो संभवतः उस नाले से उड़ कर आ गई ह गी।
मारीच ने कंधे पर हाथ रखा तो मानो म एक स मोहन से जगा। तभी मुझे वह य दखाई
दे ना आरंभ आ, जो क वह वा तव म था। वह श ु का इलाक़ा था। श ु हमारे नकट ही हो
सकता था। य द मेरा सामना राम से होता तो मुझे उसे मारना पड़ता। मेरे गु तचर ने जो
सूचना द थी, उसके वपरीत सीता तो ब त स दख रही थी। ‘कायर कह के! उ ह ने
मुझे वही बताया, जो म सुनना चाहता था’ उ ह ने यही अनुमान लगाया होगा क म उस
युवती म च रखता था। अब म वातालाप के कुछ टु कड़े सुन पा रहा था और म भी वह
उसी दशा म ताकने लगा, जहाँ मारीच एकटक दे ख रहे थे। वन क ओर से नकल कर, दो
पु ष आते दखाई दए। वे शका रय जैसे दख रहे थे और म एक ही झटके म राम-ल मण
को पहचान गया। दोन भाई पहले से अ धक साँवले व बड़े हो गए थे। मुझे उ ह दे खे भी तो
लगभग चौदह वष होने जा रहे थे। मेरी आँख को वे भ े व कु प जान पड़े, य प अब भी
राम के चेहरे पर कुछ आंत रक आभा वराजमान थी। ‘दे व कुमार इतने साँवले य कर ए?
यहाँ तक क मेरा वण भी उनसे साफ़ था?’
जब उस दन, मेरे हाथ काँपे तो मुझे जान लेना चा हए था क मै जीवन म असफल रहा।
परंतु आज म अपने व अपनी जा के र म नात, यहाँ पड़ा ;ँ अपनी य संतान क
चता को मुखा न दे ने के प ात, वह सब भी गँवा बैठा ँ, जो मने वष के कड़े प र म से
पाया था; म जानता था क य द वही प र थ त मेरे सामने रही होती; राम व ल मण बड़ी
सरलता से नशाने पर होते और म वषबुझा तीर लए, वृ के पीछे छपा होता तो भी म उन
पर वार न करता अथवा कोई सरा भी न करता। यह तो कायर का काम था। संभवतः यही
कारण था क इस समय मृ यु मेरे सर पर तांडव रच रही थी, परंतु म कम से कम अपना
सर गव से ऊँचा रख कर तो मर सकूँगा। मुझे ऐसे के लए और कुछ नह बस केवल
ःख का अनुभव होता है जो अ छा व नेक कहलाने के लए इस तर तक नीचे गर गया।
‘राम, या यह सब पाने के लए इसे करना ज़ री था?’ तुमने जो भी र पात कया, वह
मेरे और तु हारे जाने के युग बाद भी तु ह और इस दे श को सताता रहेगा। तुम अनै तक
साधन से अ जत पु य व नेकनामी को अपने पास रखो और म अपने मनु य व को अपने
साथ रखते ए, कसी स चे यो ा क भाँ त अपने ाण का याग क ँ गा।
परंतु य द वह मेरे वैभव, मेरी संप ता, मेरे रा य तथा नेह को ठु करा दे तो या हो? वह
अपने प त के त जतना गहरा ेम तथा ा रखती थी, उसे जान कर मेरा मन भयभीत
था। मुझे भय था क कह म वष पूव क गई उस यो तषीय भ व यवाणी को आकार दे ने
क भू मका तो नह रच रहा था? मुझे उन सभी श द का भय सता रहा था, जो वेदवती ने
मृ यु के समय कहे थे। तब अचानक ही वे वचार जस कार मन म सध लगा रहे थे, उसी
कार अचानक गायब भी हो गए। म मन ही मन ाथना करते ए मुड़ा और पाया क वह तो
वहाँ से जा चुक थी। वह मेरे लए कु टया से भ ा लेने गई थी। वह मेरे पास आई और मेरे
हाथ का कटोरा दे खने लगी। परंतु मने उसे उसी ण अपनी ओर ख च लया, अपने हाथ से
उसक कमर के आसपास घेरा कसा व उसे अपने कंध पर उठा लया। फर म उस ओर
भागा, जहाँ हमने पु पक वमान को छपाया था। सीता ारंभ म तो इतना हत भ हो गई क
कसी भी कार क त या ही नह दे सक परंतु कुछ ही ण म संभलने के बाद, उसने
रोना तथा मुझसे हाथापाई करना आरंभ कर दया। उसने अपने हाथ से मेरा मुख न च
लया। म उन खर च से रसते र को महसूस कर सकता था। मुझे यह सब सोच कर
व च सी स ता का बोध आ क म इसी वहार का अ धकारी था य क मने उसका
याग कया था, एक अवै ा नक भ व यवाणी पर ऐसा व ास कया क अपनी ही पु ी से
भयभीत हो उठा और एक पता के प म, उसे कुछ नह दे सका।
मेरे हाथ क तलवार हवा म झूल रही थी और वह हम दोन म से कसी को भी चोट प ँचा
सकती थी, अगले ही ण वह वमान म गर गई। हवा का वेग तेज़ था और सीता वमान से
बाहर लटक रही थी। मने उसे एक ह के से झटके के साथ वा पस ख चा और वमान थोड़ा
और लड़खड़ा गया। यह सब कुछ ही ण म घटा। फर मने अपने एक हाथ को पु ी क
कमर पर कस लया और सरी टाँग से, नीचे गरी चं हास लपक । मने अपनी तलवार के
तीखे हार से प ी के टु कड़े-टु कड़े करने आरंभ कए। धरती ब त ज द नकट आ रही थी
और अब मुझे वृ क प याँ दखने लगी थ । मने प ी पर अपने कुछ अं तम वार कए
और अपनी पूरी श लगा द । वमान अब भी डावाँडोल हो रहा था। य द पाल ढ ले हो
जाते तो हम ाण से हाथ धोना पड़ता।
अंततः प ी, अथवा वह जो भी ाणी था, नीचे गर गया। हम उसके र से नहा गए थे। मने
आगे बढ़ कर, कल पुज को घुमाया ता क यं का संतुलन साधा जा सके। पंखे घूम नह रहे
थे। मने उ ह ब त आगे-पीछे धकेला परंतु शायद वे जाम हो गए थे। लंबे वृ इतने समीप
आ गए थे क उन पर मँडराते प य के वे झुँड भी दे खे जा सकते थे, जो अपनी ओर आते
एक वशालकाय लौह प ी को दे ख भयभीत हो उठे थे और यहाँ-वहाँ पर फड़फड़ाते उड़ रहे
थे। ‘बस यही अंत था’ मुझे लगा क म उस शंकु समान अव था म ही दम तोड़ने जा रहा
था और वह भी तब जब म अपनी पु ी को उसके घर वा पस ले जा रहा था। मेरा पूरा जीवन
ने के सामने क ध गया। म असहाय सा दे खता रहा। अचानक सीता के कंठ से नकली
ससक का वर सुन कर, म च का। नह , म उसे तो इस तरह मृ यु के मुख म समाने नह दे
सकता। वह तो अभी युवती है। उसने अभी जीवन म दे खा ही या है! या म उसे उसके
प त से बचा कर केवल इस लए लाया था क यहाँ बीच आकाश म उसे ाण यागते दे खूँ?
मने अपनी पूरी श के साथ वमान के कलपुज को हलाया-डु लाया और अचानक ही
वमान के पंख काम करने लगे। मने राहत क साँस लेते ए ने मूँदे परंतु आधे ही ण बाद
एक और आतंक का साया सर पर मँडरा रहा था। नह , अब ब त दे र हो चुक थी! वमान
के पंख वृ क प याँ कतर रहे थे। ‘ या हम बच पाएँगे? हे शव!’ फर धीरे-धीरे वमान
ऊपर क ओर जाने लगा। अब हम सबसे लंबे पेड़ से कुछ फ़ट क ऊँचाई पर थे। म अपनी
ओर से हर संभव को शश म लगा रहा और हम इस तरह करीब बीस फ़ट तक आ गए। जस
ण म मुझे लगा क शायद अब हम बच जाएँग,े उसी ण म हमारे आगे एक वशाल च ान
आ गई। हम अब सीधा उसम टकराने वाले थे। ‘ या हम उससे बचगे?’ मेरे पसीने छू ट रहे थे
और अँगु लयाँ खने लगी थ । अब वह भारी पाषाण केवल बीस फ़ट क री पर था और
उसे पार करने के लए हम अभी तीस फ़ट क ऊँचाई तक जाना था। पंखे ने उस च ान को
छु आ और जस एक ण म मुझे लगा क हम टकराने वाले थे, उसी ण पु पक ने ग त
पकड़ ली और हम उससे टकराते-टकराते बचे। म वमान क ऊँचाई बढ़ाता रहा और जब
हम सुर त ऊँचाई तक प ँचे तो मने पंखे मोड़ कर संभाले और पाल भी उतार दए। म
वमान म नढाल हो कर गर पड़ा। मेरी पु ी कसी पाषाण क तरह जड़ थी और मुझे उसके
लए खेद भी आ। तब मुझे मारीच क याद आई। म उ ह खो चुका था। पता व पु ी,
अपने-अपने ःख व हा न के मूक जगत म खोए बैठे थे, इतने समीप परंतु फर भी कतने
र! और हम लंका क ओर चल दए।
मेरी मामी अपने प त को खोज रही थ परंतु म अपनी नज़र चुराता रहा। वह भयंकर ण
आ प ँचा था और म नह जानता था क अब या कहना चा हए। म ब कुल सु पड़ गया
था। मारीच मर चुके थे। यह मेरे इस भा यपूण रोमांच का एक न न स य था। उस घने वन
के म य कह , वह वृ मृत पड़ा था। म उ ह उन दो नृशंस युवक क दया के आसरे छोड़
आया था। उस समय मने उनके बारे म, उनके नः वाथ नेह तथा उन ब लदान के बारे म
नह सोचा, जनके बल पर म वह बन सका, जो आज म था। मने उनक चीख़ सुनी थी परंतु
उसके बावजूद म उनका बचाव करने नह गया। मने सुना क राम के तीर ने न त प से
उनके बूढ़े शरीर को भेद दया था और यह भी जानता था क वे अपने जीवन के उन अं तम
ण म भी मेरे ही हत के वषय म वचार कर रहे ह गे परंतु म फर भी उनके पास नह
गया। जब वे चीख़ तो उनका वर राम के वर से इतना मलता-जुलता लगा था क सीता
उसे अपने प त का वर मान बैठ और उसने ल मण को अपने भाई क सहायता के लए
भेज दया। मने इस दौरान सीता को उठाया और मारीच के वषय म वचार तक कए बना,
लंका के लए रवाना हो गया। अभी तक तो वापसी क संघषपूण या ा तथा अपनी पु ी
सीता को लंका वा पस लाने के उछाह ने, मारीच क मृ यु के शोक को कह दबा रखा था
पंरतु जब मने अपनी मामी ी का मुख दे खा तो मुझ पर असफलता, ला न तथा अपनी
नरथकता के भाव हावी हो गए। मने उ ह आ लगन म बाँध लया और अपने ह ठ कस कर
भ च लए ता क अपने अ ु क धारा को वश म कर सकूँ। उ ह ने मेरी आँख म झाँका,
फर वह सब पढ़ लया जो प अ र म अं कत था और वे मेरी भुजा म ही अचेत हो
ग ।
उसने मेरे महल म वेश करना वीकार नह कया। उसने अशोक वृ के तले एक छायादार
कोने म अपना आवास बनाया, जहाँ मेघनाद बचपन म ायः खेला करता था। मेरी ओर से
उसे महल म रहने के लए मनाने क हर संभव को शश थ रही और मुझे हार कर, जटा
को उसक र ा व दे ख-रेख का भार स पना पड़ा। इसके बाद, मने वयं को अपने क म
बंद कर लया और अपने य म व परामशदाता मारीच क याद म फूट-फूट कर रोया;
इसके प ात मने उनक शोकसंत त वधवा तथा अपनी संदेह त प नी को बताया क मुझे
उ ह कन प र थ तय म श ु क दया के सहारे छोड़ कर आना पड़ा; और फर जब म
उनके पास से आया तो ला न व अपराधबोध के भँवर म गोते लगाने लगा, म अपने ही मामा
के ाण क र ा नह कर सका था।
रात बीतती रही और म अपने पलंग पर करवट बदलता रहा। यह एक उदासी से भरी
अमाव या क रात थी और म महसूस कर सकता था क मंदोदरी भी जाग रही थी। म उसके
समीप गया व उसे पश कया कतु वह ज़रा भी नह हली। मने उसक त या के लए
ती ा क ; म चाहता था क वह मुझे अंक म भर कहे क मने जो भी कया, उसम कुछ भी
अनु चत नह था परंतु वह ब कुल नह हली। धीरे-धीरे मने अपना हाथ हटाया और सरी
ओर मुख कर लया।
भ
उस दन मने एक बड़ा ही व च सा य दे खा तथा वचार करने लगा क या मुझे उस
वषय म रावण के उ चा धका रय को बताना चा हए? ब त दे र होती जा रही थी। म सारा
दन यहाँ-वहाँ मँडराता रहा था और धनी ापा रय के रथ क साफ़-सफ़ाई से जो चंद
स के हाथ आए थे, उ ह भी ताड़ी पर य कर चुका था। म भूखा था परंतु मुझे यह भी
पता था क घर पर भी खाने के लए कुछ नह मलने वाला था। दरअसल, लगभग पूरे छह
माह होने को थे, मुझे अ छा भोजन करना नसीब नह आ था।
महल क ओर जाने वाले सभी माग पर लोग का ताँता बँधा था। म महल के नकट प ँचा
तो पाया क वहाँ तो पहले से ही अ छ खासी भीड़ एक थी। लोग थान के लए आपस म
ध का-मु क कर रहे थे; कान को चीर दे ने वाला ककश कोलाहल सुनाई दे रहा था; बड़े ही
तेज़ तथा तीखे वर म चुनी ई गा लय व अपश द क बौछार जारी थी। भीड़ ठुँ सी ई
थी, सब ओर से ध के आ रहे थे और भगदड़ सी मची थी। लोग क दे ह पसीने से और पाँव
क चड़ से लथपथ थे; अपने फेफड़ म धूल के गुबार भरे, य ही भीड़ आगे को करीबन एक
इंच खसकती, पीछे से और लोग के आने से यादा ध के पड़ने लगते। नदयी सूय अपना
पूरा ताप उगल रहा था और हज़ार भूखे लोग क पसीने व दे ह से आती गध सहन कर
पाना क ठन होता जा रहा था। मने अपनी प नी क बा कलाई जकड़ी ई थी ता क उसे
ध क से बचा सकूँ परंतु भीड़ म शा मल हर ी क तरह वह भी पूरी तरह से कुचली जाती
रही, उसके पास यह सब सहन करने के सवा कोई उपाय नह था। वहाँ नःशु क सामान
मलने वाला था इस लए लोग ारा दबाया या कुचला जाना, छा तय पर हाथ मारना या
कमर म चकोट काटने जैसी बात से हम कोई अंतर नह पड़ता था। हम आगे क ओर
धकेले जाते रहे।
इसके बाद दोहपर के भोजन का बंध था। शाही माग के दोन ओर, क ची धरती पर ग े
खोदे गए थे और उनम केले के प े रखे गए थे। फर इन अ थायी पा म भात परोसा गया
और मुझे जैसे हज़ार लोग ने उसे वाद से खाया। जब हम खा रहे थे तो लंका के मं य
तथा मु य ाय प से आए कुछ मं य के रथ, हमारे माग पर धूल व क चड़ उड़ाते नकल
गए और हमारा भोजन धूल से अट गया। आसपास म खयाँ भनक रही थ और कुछ
आवारा कु े भी हमसे हमारी दावत का अंश छ नने के लए कतार म आ जुटे थे। सं या
समय, महल के अनुचर ारा ताज़ी ताड़ी से भरे लकड़ी के बड़े-बड़े गोल पा लुढ़काए गए
और फर से अँधाधुँध छ नाझपट आरंभ हो गई। अध रा तक, हम सभी ी व पु ष ताड़ी
पी कर बेसुध होने के कगार पर थे। अलग-अलग थान पर ई झड़प म चार लोग क मृ यु
ई परंतु हम अगले दन तक यह सब पता नह चला था। और न ही मुझे ऐसी कसी बात क
परवाह थी।
अगली सुबह से, भूख कसी संक पब साए क तरह हमारा पीछा करने लगी। कभी-
कभार, मुझे यहाँ-वहाँ के कोई काम जुट जाते तो हमारा पेट भरता परंतु कुल मला कर हम
भूख क चपेट म थे। हम ब कुल ही बेआसरा थे और यही सबसे बड़ा स य था। संभवतः
ा ण जो पछले ज म के कम क बात करते थे, उनम कोई न कोई स यता तो अव य रही
होगी। हम भी न त प से अपने पछले ज म के बुरे कम ही भोग रहे थे। ब त से लोग
नधन थे, तो पछले ज म म ब त से लोग पापी रहे ह गे।
परंतु सभी ऐसे नह थे। ापारी वग, नौकरशाह व सरकारी अ धकारी, कलाकार तथा
संगीत ; बाक सभी दन-ब- दन संप होते जा रहे थे। हमने दे खा क रात -रात ऊँचे भवन
खड़े हो जाते और लोग अपने चमचमाते रथ म बैठ कर, उन जगमगाती कान से भड़क ले
व व जूते लेने आते; उन लोग के भवन क छत प क थ और घर म बैठने के लए मेज
व कु सयाँ आ द थे; प म के सु र ांत से आए गलीचे व कालीन से घर क सजावट
होती; जो इतने महँगे होते थे क उस रा श से पूरा एक गाँव कई माह तक अपना पेट भर
सकता था; तेज वी तथा मेधावी बालक अपने गु के पास श ा हण करने जाते जो
केवल धनी तथा सं ांत प रवार से आए ब च को ही व ा का दान दे ते थे। वहाँ कई रंगमंच
भी थे परंतु हम सरीखे लोग वहाँ पास भी फटकते तो नगर र क हम बाहर कर दे ते।
“ ीमान!” मने पुकारा। वहाँ से कोई यु र नह आया। “ ीमान!” मने पुनः पुकारा। एक
सै नक ने अपना मुख ऊपर कया और उसके ने व फा रत हो उठे । मेरी टाँग काँप और म
संकु चत हो उठा। म कोई अपराधी नह था परंतु म नधन व भूखा था और यही सबसे बड़ा
अपराध था।
“ ीमान! मने तो आपसे कुछ भी अनु चत नह कहा।” मने अपनी ओर से थोड़ा सा साहस
व श ाचार दखाया।
मने अपने पर होने वाले अगले वार को बचाने का भरसक य न कया परंतु म बल था।
“ ीमान, ीमान! कृपया आप मेरी बात तो सुन। कोई राजा के महल म घुसा है।” मुख पर
ऐसा तमाचा आया क म चार खाने च रहा। फर अचानक वे थम गए। जब म उठा तो
पाया क कोतवाल खड़ा मुझे ही घूर रहा था। उसने मुझे बचे-खुचे बाल से ख च कर उठाया
तो म दद से तल मला उठा। फर उसने मुझे मेज़ क ओर धकेला, म भू म पर जा गरा। म
दे खा क उसक भारी-भरकम दे ह मेज़ पर पसरी थी। वह उसके भार तले चरमरा रहा था
और मने ाथना क काश वह मेज़ टू ट जाती।
“तू मुझे बता!” वह गरजा। म चुप रहा तो उसने एक तेज़ ठोकर दे मारी। फर मने अपना
राग अलापा। मने जो भी दे खा था, उसे बता दया। उसके माथे पर एक बल आकर ठहर
गया। वह कुछ चबाते ए, नरतर वचार करने लगा। फर उसने अपने सपाही से कहा,
“तुम जा कर महल ारपाल मुख को बता कर आओ।” फर कुछ सोच कर आगे कहा,
“इस आदमी को अंदर बंद करो। दे खो, कैसे नशे म धु है।”
रावण
बगीचे म हो रहे कोलाहल व चीख़-पुकार को सुन कर मेरी न द टू ट । लोग न े य यहाँ से
वहाँ दौड़ रहे थे। ारर क यहाँ-वहाँ भागते ए च ला रहे थे और एक- सरे को अपश द
कह रहे थे। महल म हज़ार मशाल जलने से रोशनी हो गई थी। मंदोदरी भी उठ बैठ और
मुझे सूचक नगाह से दे खने लगी। मने ार खोल कर दे खा क कुछ ारपाल बाहर, नीचे
बरामदे म झुक कर कुछ च ला रहे थे। म उनके पास प ँचा तो वे एकदम चौक े हो कर
खड़े हो गए।
म तो तं भत रह गया। मेरे महल के बाग़ म कोई नर-वानर चोरी से घुस गया। यह बात तो
मेरी क पना से भी परे थी। म अपनी पु ी सीता के वषय म वचार करने लगा। वह उस
अशोक के तले सुर त नह थी। य प मेरे ारपाल उसके लए पहरा दे ते थे परंतु मने
अचानक ही एक व च सी ाकुलता अनुभव क । लगभग चार माह पूव, मने बाली वध के
वषय म सुना था। नर-वानर के राजा को राम ने मार डाला था। अब वानर का राज, बाली
के कपट व भाई सु ीव के हाथ म था। मुझे यह जान कर ब त खेद आ क मेरे दामाद
ने, बाली पर कस तरह वार कया था। वह एक वृ के पीछे जा छपा और वह से बाली के
दय पर ती ण बाण से हार कया। यह जान कर तो मुझ और भी भयंकर ोध आया क
जब राम ऐसा कर रहा था तो बाली उस समय अपने भाई सु ीव के साथ एक नरथक ं
यु म ल त था।
“युवराज मेघनाद कहाँ ह?” मने उन लोग के बीच अपने य पु का मुख तलाशते ए
पूछा।
“सुर ा का आवरण तोड़ कर कोई भीतर कैसे आ गया?” मुख से ये श द नकलते ही मेरा
पारा सातव आसमान पर जा प ँचा। मने अपनी ही हथेली पर मु दे मारी और पूरी सभा म
स ाटा छा गया। “म अभी इसका उ र चाहता ँ।” म च लाया। जब यह गु सा अचानक
ही चता म बदलने लगा तो मने बेहतर अनुभव कया।
“वह उस समय प म दशा वाली द वार से, चोरी- छपे भीतर आ गया, जब हमारे हरी सो
रहे थे। उसने उनका वध कया और फर अशोक-वन जा प ँचा। उन ह रय के मृत शव
नाली म पड़े मले। उनके गले चीरे गए थे।” ह त ने हौले से कहा।
मने दे खा क ह त व जंबूमाली मेरा ताना सुनने के बाद, एक- सरे को आँख दखा रहे थे।
मेघनाद कहाँ था? मेरी चता बढ़ती जा रही थी। वह नर वानर कह भी छपा हो सकता था।
रा के घने अंधकार म, कसी भी वृ के पीछे से आया एक घातक बाण, मेरे पु का गला
चीर सकता था। यह एक ख़तरनाक खेल था। यह कोई नयम से लड़ा जाने वाला यु नह
था। पूरी सभा म एक व च सी ाकुलता छा गई। हम बाहर से आ रहे कोलाहल को सुन
सकते थे, लोग यहाँ-वहाँ भागते ए च ला रहे थे, तलवार के खनकने के वर आ रहे थे।
अचानक ही मने हष लास के कुछ वर सुने। सभी उस ओर दे खने लगे। वे कह रहे थे
‘रावण क जय हो… मेघनाद क जय हो!’ म उ सुकता के मारे खड़ा हो गया और सारी
सभा मेरे साथ उठ खड़ी ई। म चाहता था क भाग कर बाहर जाऊँ और दे खूँ क मेरा पु ,
मेरे लए या पुर कार ला रहा था परंतु म वह खड़ा रहा और स ता व याशा के साथ
अपने हाथ मलते ए, मन के उछाह को दबाने क भरसक चे ा क । जुलूस के आगे-आगे,
मेरे लंबे और गठ ले पु ने बड़े ही गव से सभा म वेश कया। उसने हाथ म बड़ी ढ़ता से
धनुष थामा आ था। सारी सभा ने ह षत हो कर जयजयकार क । असुर र क आसपास
नृ य करने लगे चड नगाड़ के सुर ज़ोर-ज़ोर से सुनाई दे ने लगे। म नीचे उतरा और अपने पु
को आ लगन म ले लया।
तभी मुझे उसके पीछे खड़ा एक लंबा, गठ ला व काला वानर दखाई दया। उसके हाथ व पैर
र सय से बँधे थे। उसक दे ह क माँसपे शयाँ फड़फड़ा रह थ । ‘मेरे पास भी युवाव था म
ऐसा ही सुडौल बदन आ करता था!’ मने अपनी त द पर हाथ फेरते ए सोचा।
वह लगभग मेघनाद जतना ही लंबा था। उसक पूरी दे ह पर काले बाल थे और काले
घुँघराले बाल, मुख के दोन ओर लहरा रहे थे। वह तो दखने म एक अजेय यो ा लगता था।
मुझे एक ही झटके म आभास आ क वह तो बाली से काफ़ मलता-जुलता था। मेरा म
बाली, जसक राम ने ह या कर द थी।
“परंतु पता ी!…” मने मेघनाद को एक ती ू-भंग से शांत करवा दया और र क धीरे-
धीरे हनुमान के बंधन खोलने लगा।
य ही वे र सयाँ खुल , हनुमान बोला, “म, मा त पु हनुमान, क कंधा नरेश वानर राज
सु ीव का मं ी तथा अयो या के राजकुमार रामचं जी का सेवक, महान श शाली स ाट
लंके र को अपने वामी भु रामचं क ओर से मै ीपूण परामश दे ना चाहता ँ। आपने
उनक ववा हता प नी तथा अयो या क रानी का अपहरण करके ब त अनु चत कया है
तथा उ ह अपने यहाँ बं दनी बना लया है। मेरे वामी आपसे वनती करते ह क आप पूरी
मान-मयादा स हत उनक प नी उ ह लौटा द और उनसे मायाचना कर ल। य द इस
परामश क उपे ा क गई तो मुझे पूरा अ धकार दया गया है क म अपने वामी क ओर
से, लंका व असुर के साथ यु आरंभ होने क घोषणा कर ँ । हम वचन दे ते ह क य द
ऐसा आ, तो हम असुर का दमन कर दगे, तु हारी पापमयी नग रय को धूल के हवाले कर
दगे तथा अपनी रानी को मु करा लगे।”
इसे प थर मार-मार कर, मौत के घाट उतार दया जाए!” म गरजा और मेरे साथ ही पूरी
सभा गरज उठ । वह अपने लए नयत दं ड सुनने के बाद भी वह अडोल खड़ा रहा मानो
उसे कोई अंतर ही न पड़ा हो।
“यह कह तो सही रहा है!” मने सोचा व वभीषण क ओर दे खा परंतु म अब भी वानर ारा
कए गए अपमान से अब भी भीतर ही भीतर उबल रहा था।
“इसके शरीर को दाग दया जाए।” वभीषण ने सादा श द म अपनी बात रखी। गम लोहे
क सलाख से कसी के शरीर को दागना, असुर का युग पुराना अ यास रहा था। यह ब त
ही पीड़ादायी तथा अपमानजनक दं ड था। शरीर पर थायी नशान पड़ जाते और वह
अपने शरीर पर इस अपराध व ला न के च ह को अपनी क तक साथ ले जाता। वह च ह
पूरे संसार म यह उ ोषणा करने के लए पया त था क उस ने कोई ब त बड़ा
अपराध कया था और उसके शरीर पर उसक असफलता तथा ला न के च ह को जबरन
बना दया गया था ता क पूरा संसार उसे दे ख कर ध कार सके। मने इस वषय म जतना
सोचा, मुझे यह वचार उतना ही पसंद आने लगा। यह वानर अपने वामी के पास लौटे गा तो
इसके शरीर पर रावण ारा दागने का नशान होगा… मुझे इसे कहाँ दगवाना चा हए?…
इसक चौड़ी छाती पर?… इसके गठ ले पेट पर…? या फर इसक चौड़ी पीठ पर?
“इसक पूँछ म आग लगा दो। इसे तब पता चलेगा जब उठते, चलते, बैठते या लेटते समय
नरंतर पीड़ा सालती रहेगी। इसे पता तो चले क एक असुर स ाट का अपमान करने का
या दं ड हो सकता है?” म अपनी सभा से उठ रहे हष लास के वर के बीच फूल उठा और
नराशा के साथ अपना सर हलाते ह त को पूरी तरह से उपे त कर दया।
मेरे र क क को बुलाने भागे। कोतवाल मुख अपने सहायक के साथ आया तथा णाम
कया। हनुमान तब भी न े खड़ा रहा। यह तो ब त ही कठोर वानर था। म ण- त ण
और भी ो धत होता जा रहा था। क के दागने के लए सीसा तथा धधकती अ न
ले कर तुत थे। तभी कुछ ऐसा घटा, जसके बारे म कसी ने वचार तक नह कया था।
नर वानर ने ब त ही आसानी से अपने पेट व टाँग के आसपास लपट र सयाँ तोड़ द और
ऐसी ठोकर मारी जससे मेघनाद के हाथ म पकड़ी तलवार र जा गरी। एक ण के लए
तो सभी त ध रह गए। वानर यो ा के लए यही ण पया त थे। उसने अपने र सय से
बँधे हाथ जलती अ न म झ क दए जससे उसके बंधन खुल गए। फर, उसने अपने हाथ
मु होते ही उस वशाल पा को उठा लया, जसम सीसे को पघलाया गया था और उसे
मुझ पर दे मारा। म तो सर झुका कर बच गया परंतु वह पा सहासन के पीछे लगे रेशमी
पद से, ज़ोर से टकराया और उनम आग लग गई। म एक ही झटके म वहाँ से भागा य क
पूरे मंच पर आग लग गई और वह धड़ाम से नीचे आ गरा। फर मेरी सारी सभा जलने लगी।
चार ओर कोहराम छा गया। हनुमान ने क को आग म धकेल दया। बेचारा कोतवाल
मुख बुरी तरह से जलने लगा, जब तक उसके उसे आग से नकालते व उसे
संभालते, तब तक हनुमान लकड़ी के कुछ जलते ए ल े ख च चुका था और उसने मेरे
महल म आग लगा द । र क भयभीत ख़रगोश क तरह भागने लगे। कुछ लोग मेरे बचे-
खुचे सहासन पर पानी डाल रहे थे। म व कोलहाल के इसी वातावरण के म य हनुमान
बच कर, नगरी क ओर नकल गया। उसने दोन हाथ म जलते ल े पकड़े ए थे। केवल
ह त म ही उस समय इतनी त काल बु बची थी क उसने अपनी कटार, उस आततायी
पर दे मारी परंतु वह नशाना चूका और कटार, सभा के ार से एक तेज़ व न के साथ टकरा
कर रह गई। मेघनाद भी त ण उसके पीछे भागा पर जलते तंभ के टु कड़े गरने से उसक
ग त भी मंद हो कर रह गई।
आग का सामना करने के लए करीब साठ हाथी लाए गए। तभी वह बड़ी सी काली आकृ त,
जो आग म कूद थी। उसने महल के पहले तल से छलाँग लगाई और बाग़ म आकर लुढ़क ।
मने दे खा क उसने अपनी पीठ पर मेरी रानी मंदोदरी को लादा आ था। हम उस क
ओर दौड़े। जब हम वहाँ प ँचे तो मने उसे एक ही झटके म पहचान लया। वह तो कोई और
नह , मेरा अवैध पु अ तकाय था। वह रानी को अपनी पीठ से उतारने के लए हाथ-पैर मार
रहा था। मने दे खा क उसका हाथ बुरी तरह जल गया था परंतु इससे पूव क म कुछ कह
सकता। अ तकाय फर से जलते ए महल म भाग गया।
मेरी रानी ने धीरे से आँख खोल । मने उसे अंक म भर लया। म अपने अ ु को वश म न
रख सका परंतु उसने मुझे पीछे धकेला तथा खड़े होने क चे ा क । “अ य! मेरा अ य
कहाँ है?” वह हौले से बोली। मने आसपास दे खा। मेरा छोटा पु कहाँ था? आठ वष य
अ य कुमार कहाँ था? म बदतर क क पना से भयभीत हो कर उठ खड़ा आ। मेरे पास
इतना साहस नह बचा था क म अपनी प नी का सामना कर पाता।
म इसका ही अ धकारी था, मेरी पु ी? म इसका अ धकारी था? मने तु हारे लए छोटे भाई
का ब लदान कर दया। म सब कुछ हार सकता ँ परंतु म तु हारे लए हमेशा खड़ा र ँगा।
एक बार तु ह यागा था पर अब ऐसा कभी नह होगा। जब तुम अपने पता के संर ण से
बाहर जाओगी, तु ह उसी ण समझ आ जाएगा क तु हारा प त कैसा है। परंतु बड़े खेद से
कहना पड़ता है, य पु ी! तब तक ब त दे र हो चुक होगी। म इन सभी बात को चीख़-
चीख़ कर सीता से कहना चाहता था परंतु अब मेरे भीतर श नह रही थी। म अकेला ही
चल दया। हाथ म न हे राजकुमार के शव को उठा रखा था और म गहरी रात के अंधकार म
चलता चला गया। संभवतः वहाँ मुझे कुछ सां वना मल सके, कोई ऐसा जो मेरे अ ु प छ
सके, जहाँ म वयं को अंधकार क गोद के हवाले कर सकूँ। म चलता गया, मेरा न हा मृतक
पु बड़ी शां त से मेरी भुजा म सो रहा था।
31 मेरे नगर को जलने दो
भ
पूरा नगर धू-धू कर जल रहा था। राजा के सपाही ओझल हो गए थे और कोतवाली के
बाहरी ह से म आग लगी थी। मेरे भाग नकलने का माग बंद था और आग कसी भी समय
मेरे कारागार क तक आ सकती थी। गाढ़ा व काला धुआँ भीतर घुस आया। म दम घुटने के
कारण बेतरह खाँसने लगा। म तो जाल म फँस गया था। मने उस आग म से नकल कर
भागना भी चाहा पर जैसे ही आग क गम लपट ने छु आ तो मेरी सारी ह मत वह टू ट गई।
ास लेना भी भर था। म नह जानता क या करना है। भले ही म बच गया था। परंतु इस
बार म पूरी तरह से न त नह था। नारंगी चीभ वाली आग क लपट, अपनी राह म आने
वाली हर व तु को लील गई थ । छत का एक ह सा ढह गया और नीला आकाश भीतर ही
घुस आया। धुआँ नकलने से वातावरण थोड़ा साफ़ दखने लगा।
“म अ तकाय ँ…।”
फर मने टु कड़े-टु कड़े कर, सारी बात के सरे जोड़ने क को शश क । पहले तो मुझे यह
जान कर तस ली ई क मेरा यह गँवार लड़का, कसी भी प म, छोटे राजकुमार क ह या
के मामले म ल त नह था ब क वह तो एक नायक था जसने रानी क ाण र ा क । तब
मेरा मन ता से भर उठा। ‘न तो राजा और न ही उसके आसपास, सदा पूँछ हलाते घूमते,
वे गौर वण चाटु कार, हम जैसे लोग के साह सक काय को य दगे, कभी हम अपनी
वीरता का ेय नह लेने दगे। हम जैसे साधारण य ारा कए गए नः वाथ काय के
लए, कभी कोई भाँड या क व शंसापूण तु तगान नह करेगा। अब छोड़ो भी भाँड को,
उनक परवाह भी कसे है?’
मने मेरे पु के साथ मगजमारी कर रही प नी को, उनके हाल पर छोड़ दया। बाहर, पूव
दशा म आकाश पर, सूयादय क ला लमा आ रही थी और उधर प म म आग क लपट ने
आकाश को र ाभ कर दया था। म अंगड़ाई लेता आ, नद क ओर चल दया और वचार
करने लगा क उस नर-वानर को हमारे नद ष ब च , ी व पु ष तथा सुंदर महल को आग
के हवाले करके या मला। नद के सरे छोर पर थत, मशान क ओर अं तम सं कार के
लए जुलूस नकलना आरंभ हो गया था। म उस या ा म शा मल लोग के चेहरे तो नह दे ख
सका परंतु म उनके अ ु स ने तथा मुख क क पना कर सकता था। य ही पहली
चता जली और गाढ़ा धुँआ आकाश म उठने लगा तो म वर भाव से दे खने लगा। फर म
अपने घर के क चे आँगन म जा कर बैठ गया और अपने जलते ए नगर पर छाए धुएँ के
बादल को दे खता रहा। इसके अ त र और कर भी या सकता था?
32 शां त का संदेशवाहक
रावण
ह त ने ही मुझे बाहर आकर, नगर पर एक नज़र डालने के लए ववश कया। मुझे उस
समय उस पर ब त ोध भी आया परंतु उसका आ ह जारी रहा। उसने कहा क एक राजा
के प म, मेरा कत बनता था क म अपनी जा क दे ख-रेख क ँ और यह जानूँ क वे
कन क तथा प र थ तय के बीच घरे थे ता क म त काल उनके क घटाने के लए कोई
य न कर सकूँ। म उस पर च लाया और यहाँ तक क उसे पद युत करने व धड़ से सर
अलग करने क धमक भी द परंतु वह अपनी बात पर अड़ा रहा और कुछ भी कहने क
बजाय, केवल कोमल वर म यही समझाता रहा क मुझे अपना कत नभाना चा हए।
अंततः उसने मुझे मना ही लया और मने उसे कोसते ए, साथ चलने क सहम त दे द ।
मने दे खा क मेरे कारण मेरे नाग रक कतने घोर क व यं णा सह रहे थे। म ह त के साथ
सादे वेष म था और कह से भी, कोई राजा नह दख रहा था। म भी तो उनक तरह एक
आम आदमी था जो इस संताप को झेल रहा था। घर म ःख का सा ा य था, सड़क पुराने
चीथड़ व टूू टे काठ-कबाड़ से भर थ । अलग-अलग कोन म कचर के ढे र जमा थे, ज ह
दे ख कर लगता था मानो मानव अवशेष का ढे र लगा हो। कई भवन ढह गए थे और टू ट
द वार काली पड़ गई थ । कई घर म तो खड़ कयाँ अथवा चौखट ही शेष रहे और पूरी क
पूरी छत उड़ गई थ । कुछ भवन म केवल तंभ ही शेष बचे, जो बलबलाते धुएँ के बीच खड़े
दख रहे थे। उ ह दे ख कर ऐसा लगता था मानो कोई संबंधी अपने य के अं तम सं कार के
समय, ःखी मन से आसपास खड़े ह । ी व पु ष कोन म खड़े थे, वे इस वनाश, हा न
तथा अक मात आई वपदा को दे ख कर जड़ हो गए थे। मुझे कई कोन से सुबकने क
आवाज़ सुनाई द और एक मोट द वार वाले घर से वलाप के वर भी सुनाई दए, जो
लगभग गरने के कगार पर था। पशु के अधजले कंकाल सड़क पर बखरे थे। यह सब
दे ख कर जी मतला रहा था। म अपने राजमहल म लौटना चाहता था ता क इस अमानवीय
यं णा व क के य से मुँह छपा सकूँ। मने भी अपना छोटा पु खोया था परंतु इन य
क तुलना म तो वह कुछ भी नह था।
“माँ…! मुझे मा कर दो… म… म। मानो कंठ म कुछ अटक गया और म कुछ न कह सका।
सैकड़ वर एक साथ उठे , “हर हर महादे व! श ु का नाश हो! नर-वानर का नाश हो!”
म अपने ग म जाते समय, अपनी शरा म खौल रही ऊजा को अनुभव कर सकता था।
अब म ह त से भयभीत नह था। म सड़क पर अपनी जा को दे ख सकता था। भीड़ म
जैसे कोई व ुत आवेग भर आया था। हज़ार खड् ग धूप म चमचमा रहे थे। मने अपने हाथ
हलाए और भीड़ म उमंग से भरी गजना सुनाई द ।
ह त मेरे पीछे खड़ा मु करा रहा था। म उसके कान म हौले से बोला, “चलो, लंका को नए
सरे से बनाएँ!” उसने मुझे झुक कर णाम कया और हमेशा क तरह भावी बंध क
व था करने नकल गया। नगर शासन व अ भयंता मं ी मय को बुलवाया गया और वे
कसी स बालक क तरह उमगते ए आ प ँचे मानो उ ह कोई ब त बड़ा खजाना स पा
जा रहा हो। चूँ क पूरा नगर बन कर वक सत हो गया था अतः उनके पास उसके शासन के
नीरस काय के सवा कोई काय नह बचा था। अब उ ह जले ए नगर को पुनः बनाने का
अवसर दया जा रहा था और वे उसे उसक खोई ई क त लौटाने के लए कृतसंक प थे।
मने दोन मं य को चचा म म न छोड़ दया।
महल अंधकार म खोया था और म अपने मृत पु तथा गत हा न क वा त वकता म
आ प ँचा। हज़ार नाग रक क आह व कराह तथा कभी समा त न होने वाली सामू हक
भावना से मुझे जो ऊजा ा त ई थी, महल के ार पर उसने मेरा साथ छोड़ दया? सब
कुछ जैसे एक छलावा दखने लगा था, यहाँ तक क सड़क पर उस म हला के त मेरा ःख
भी तो एक दखावा ही था। ‘ या म सही मायन म उनके त समानुभू त रखता था? या
वह उस गु साई भीड़ से बचने का एक साधन था, जो मुझे लील जाने को तैयार खड़ी थी?
या मने ही अपनी नजी मह वकां ा क पू त के लए अपने लोग को क व मौत के
हवाले नह कर दया था?’ मेरे म त क म इसी संदेह के क ड़े कुलबुलाने लगे और दमाग़
सु पड़ गया।
‘मने तो अपने लोग से यार कया था? या मने अपनी जा के लए एक शू य से इतने बड़े
सा ा य का नमाण नह कया था? और या मने ही उस शो षत व द लत समाज को
उनका खोया आ मस मान दे ने म सहायता नह क थी? म इस कार वचार य कर रहा
ँ? या मने ही लोभ तथा वाथ को मानवीय ग त के दो वशाल तंभ के प म
म हमामं डत नह कया था? परंतु फर य म वयं को दोषी पा रहा था? मुझे ऐसा य
लग रहा था क म ही अपनी जा के ःख व क का एकमा दोषी था?
“म सदा तु हारा साथ ँ गी। सीता को उसके प त के पास मत जाने दे ना। हम नह जानते क
वह उसके साथ कैसा वहार करेगा? चाहे जो भी हो, हम मल कर इन प र थ तय का
सामना करगे। वह हमारी पु ी है। रावण, म तु हारे मन को समझती ।ँ ” मने अपना सर
हलाया। य द मेरी पु ी ही मेरा संर ण नह चाहती तो मुझे उसके लए अपना सब कुछ य
ब लदान कर दे ना चा हए? तब तक मने उसे उसके बबर प त को स पने के बारे म वचार
नह कया था परंतु जब मंदोदरी ने यह वषय उठाया तो म भी यही वचार करने लगा क
य न उसे उसके प त को लौटा दया जाए और म पहले क भाँ त अपना जीवन तीत
क ँ ? अपनी पु ी क र ा के वाथ ल य क पू त के लए अपनी जा को क के गत म
ढकेलने का अ धकार मुझे कसने दया, म उनके साथ ऐसा वहार करने वाला कौन होता
ँ? भले ही म एक संपूण नरेश अथवा एक संपूण मनु य न रहा होऊँ परंतु म नह चाहता क
मुझे हमेशा उन माँ क बद आ के साथ जीना पड़े, ज ह ने अपनी मान-मयादा या
अपनी संतान गँवा द । बस ब त आ! म वभीषण को बुलाऊँगा और उसे क ँगा क राम
को सीता स प दे ।
ऐसा लगा मानो मंदोदरी ने मेरे मन क बात जान ली हो, वह बोली, “नह , रावण नह ! हम
जानते ह क दे व अपनी य से कैसे पेश आते ह। अब जब क वह हमारे बीच रह चुक है,
वे उसे अशु मानगे। हम पहले ही अपनी एक संतान खो चुके ह।” उसने मेरा कंधा कस कर
थाम लया। “अब म सरी संतान खोना नह चाहती।”
अपने पु के यौवन क धधकती वाला से थोड़ी ऊजा पाने के प ात, म उसके कंध के
साथ झुका सभा क ओर चल दया ता क अपने जीवन को नए सरे से आरंभ कया जा
सके। मने अपनी सुबकती प नी को ब त पीछे छोड़ दया और वायु के बीच तैरते उन वर
पर यान रमाया जो मेरे अपने लोग , असुर व मेरी जा के थे। वे कल ए एक नृशंस
आतंकवाद हमले के बाद, नए सरे से अपने नगर का नमाण कर रहे थे। आशा के अंकुर
पुनः फु टत होने लगे। मने पु को भी पीछे छोड़ दया तथा सभा म वेश कया। फर मने
सभा क कारवाई आरंभ क । और मन ही मन, म पुनः स ाट तथा इस धरती का सबसे
महान शासक बन गया। अभी तो ब त से यु म वजय ी को गले लगाना था।
ह त ु हो उठा परंतु जब मने एक बार नणय ले लया तो वह मौन भाव से, कुमार
वभीषण के थान के समु चत बंध करने म जुट गया। इस अ भयान पर भेजने के लए
सबसे श त टु क ड़य को चुना गया। मने दरबार क कायवाही समा त क व अपने क
म लौट गया। म बुरी तरह से थक चुका था और कुछ ही घंट पूव, अपने छोटे बेटे का अं तम
सं कार करने के प ात गहरी न द सोना चाहता था।
33 यु क सुगबुगाहट
भ
य ही घेराबंद आरंभ ई। बाज़ार से दै नक योग क आव यक व तुएँ गायब हो ग ।
व तु के दाम आकाश छू ने लगे। बुरा व आ गया था। परंतु मेरे जैसे लोग, अपने झु रय
से भरे हाथ तथा जजर व के साथ – अ य, अ ासं गक तथा मौन ही रहे, हम तो अ छे
व म भी यातनाएँ ही सहते आए थे। बुरे व म हम भूख से दम तोड़ने लगे। हम दबे
वर म, यु के वषय म चचाएँ करते। यु तो र, अनेक नई पी ढ़य ने तो कोई छोटा-
मोटा संघष तक नह दे खा था। यह तो स य है क कुछ मेघनाद के साथ उसके उ र के यु
अ भयान म गए थे परंतु वे यु तो सरे लोग के दे श म लड़े गए थे। जो लोग मारे गए,
बला कार या लूट के शकार ए, वे सरे दे श के हमारे जैसे भूख-े नंगे लोग थे। केवल उनका
वण तथा जा त अलग थे। परंतु अब यह यु तो अपने ार पर द तक दे रहा था। हवा म
चार ओर बड़ा ही, भयंकर शीत का कुहासा फैला था, जो कभी नह छँ टता।
हमारा राजा मूख था। अ यथा मूखता क और या प रभाषा द जा सकती है? राह चलते,
कसी भी साधारण से भी पूछो तो वह बता सकता था क राजकुमार वभीषण
कतना पाखंडी व था। केवल रावण सरीखा सीधा तथा नी त से अनजान राजा ही इस
मह वपूण अ भयान पर वभीषण व व ण को भेज सकता था। कुछ ही दन पूव, जा ने
एक भ सावज नक काय म म, वभीषण को वदाई द थी। हज़ार लोग असुर क
पताकाएँ लए, सागर तट पर एक ए थे। बयालीस यु पोत रवाना कए गए जनम सारी
शाही नौसेना तथा लगभग तीन चौथाई असुर सेना थी, वे लोग राम को पकड़ने तथा उसके
वानर को कुचलने के लए गए थे।
असुर अ छाई तथा बुराई के बीच होने वाली इस लड़ाई के लए तुत थे। क ने सड़क
पर पैदल तथा अ ारोही सेना को उतारा। लोग तनाव त हो उठे । सेना के जवान ने
लोग के साथ चीख़- च लाहट क व उ ह अकारण पीटा भी। फर खाड़ी के समीप रहने
वाले मछु आरे तथा ग के बाहर रहने वाले लोग अपने प ी तथा पशु ले कर आ प ँच।े लोग
सड़क कनारे रहने लगे। बंदरगाह के समीप रहने वाले असुर समाचार लाए – नर वानर
सागर के सरी ओर से एक पुल का नमाण कर रहे थे। यह सब कुछ ब त ही व च ,
आकषक तथा भयभीत कर दे ने वाला था। परंतु वह सेतु हमारे प क ओर धीरे-धीरे बढ़ता
आ रहा था। यह जैस-े जैसे बढ़ता गया, इसके भयभीत कर दे ने वाले भाव म भी वृ होती
गई। लोग मं दर के शखर पर, ऊँचे वृ पर अथवा पहाड़ीनुमा ऊँचे थान पर चढ़ कर,
दबे वर म चचा करते।
रात -रात कई थान पर असुर क यु कला ‘कला रप टु’ सखाने वाले क कुकरमु क
तरह उग आए। सड़क ी, पु ष, बूढ़े व जवान असुर से भरी रहत जो हाथ म तलवार,
धनुष-बाण, भाले तथा तरह-तरह के ह थयार लए, एक से सरे थान पर आते-जाते रहते।
रावण ने ही लोग को ो सा हत कया था क वे अपने अ -श ले कर, श ु के ख़लाफ़
रणभू म म उतरने क तैयारी कर ल। पहले हम असुर के लए जन मं दर के ार बंद रहते
थे, उ ह अब हमारे लए यु श वर म बदल दया गया। सं ांत ा ण वग ने अलगाव तथा
भेदभाव का नयम समाज पर थोप दया था, वह रात -रात कह अलोप हो गया, उनम से
अ धकतर तो लंका छोड़ कर, राम क सेना म जा मले थे। असुर का ाचीन समभाव एक
बार पुनः लौट आया था।
रावण
महल म अंधकार छाया था। ठहरी ई गुम हवा के बीच कुछ व च से वर तैर रहे थे, एक
प ा भी नह हल रहा था। म बरामदे म बैठा सागर क ओर ताक रहा था। मृ यु व पराजय
मुझे मुँह बाए दे ख रहे थे। मने अपने-आप को कोसा क मने, ब त समय पहले, उस रात
व ण को अपने हाथ से सागर क लहर के हवाले य नह कर दया था? म ब कुल सु
हो गया था। मने अ ु , प र म तथा मृ यु का मोल चुका कर जो जीवन बनाया था, वह
मेरी ही आँख के आगे मसला जा रहा था। महल के अनुचर ने घंट पहले जो मशाल व
द पक जलाए थे वे एक धीमी मौत मरते ए, फड़फड़ा रहे थे। महल के बगीच म, यहाँ-वहाँ
एक अटपटा सा काश तंभ चमकते ए, जी वत रहने के लए अं तम यु कर रहा था।
अचानक ही उसक आँख खुली और वह मुझे चेहरे पर नराशा तथा म के साथ दे खने
लगी। म एक पता के प म उसे मनाने आया था क वह हमारे साथ रहने चले परंतु य ही
म उसक ओर बढ़ा तो वह च लाने लगी। मेरी तं ा भंग हो गई और म नराश हो कर,
लड़खड़ाते ए, पीछे हट गया। उसने मुझे अपश द कहे, वलाप करने लगी और राम को
पुकारने लगी ता क वह आकर उसक र ा करे। असुर म हलाएँ एक ही झटके से उठ बैठ
और उलझन म पड़ ग । इससे पहले क उनक मुझ पर पड़ती, म एक ओर हो गया
और तेज़ी से अपने महल क ओर चल दया। मने वत दय के साथ अपने शयनक म
वेश कया तो मंदोदरी को शै या पर बैठा पाया। म उसका सामना नह कर सका।
“तुम कहाँ थे?” या उसके श द म एक तीखापन था? मने कंधे झटके और उसक ओर
पीठ करके लेट गया। हर चीज़ को मरण करते ए मन गु से व कड़वाहट से भर गया। ‘वह
मेरे जीवन म य आई?’ म अपने ब तर म करवट बदलता रहा परंतु इन वचार ने मेरा
पीछा नह छोड़ा। फर मने अपने कंधे पर एक उ णता से भरे हाथ का पश अनुभव कया
और म अपनी प नी को आ लगन म लेने के लए मुड़ गया।
फर जब पूव आकाश पीला पड़ने लगा तो म वेद से लथपथ हो कर, अक मात उठ बैठा।
म मय से यो तष तथा खगोल व ा का ान ा त करता रहा था। य - य म बड़ा होता
गया, इन व ा त मेरी हणशीलता म और भी वृ ई। जीवन कतना छोटा था और
जीवन म सीखने के लए कतना कुछ शेष था। म उन दन एक पु तक, सं हता क रचना
कर रहा था, जो यो तष व ा तथा शकुन वचार पर आधा रत थी। हो सकता है क उसके
कारण ही मने वह ः व दे खा हो, जसम मने दे खा क एक लंबा तथा गौरवण युवक मेरी
पु ी सीता को घसीट कर लए जा रहा था और उसने उसे धधकती अ न म फक दया। राम
एक ऊँचे मंच पर बैठा दखा और ब त ही ःखी लग रहा था। समीप ही कह , एक और
अ न धधक रही थी। अपनी पु ी क इस भयंकर नय त से अ धक भय मुझे उस भयावह
चेहरे को दे ख कर लगा, जसे अ न क ुधात लपट लील रही थ ; यह सब दे ख कर म एक
ही झटके से उठ बैठा, दल सीने म तेज़ी से धड़क रहा था। यह तो असुर स ाट का चेहरा
था। या यह एक अपशकुन था, आने वाली घटना का एक संकेत मा ?
जब म अंततः सभा म प ँचा तो प रषद के सद य घेरा बनाए खड़े थे, वे पाठशाला म पढ़ने
वाले छा क भाँ त ब तया रहे थे। य ही मने वेश कया तो एक स ाटा सा छा गया और
वे अपने-अपने थान पर जा बैठे।
मने कहा, “श ु हमारी गदन दबा रहा है। हम एक के बाद एक व ासघात का सामना कर
रहे ह। वभीषण…, जस भाई को मने अपनी भुजा म खलाया, अपने पु क तरह माना,
वह मुझे छोड़ कर, श ु से जा मला। व ण…, सप कह का, जसे मने भरोसा करके
अपनी जलसेना स पी, जसे अपना परम म जाना, वह भी दे व युवक का दास बन बैठा।
हमारी आधी सेना तथा संपूण जलसेना ने अपने प बदल लए। मने जस असुर सा ा य व
वंश क क त के लए अपना र , अपनी संतान, अपने व , अपना जीवन यौछावर कर
दया, उसने मुझे या दया?”
मेरे मं य के बीच एक कोलाहल सा होने लगा। तभी जंबूमाली बड़ी क ठनाई से खड़े हो
कर बोले, “महाराज! य द हम वषा ॠतु के आगमन तक पहा ड़य वाले ग म रह तो हम
राम क सेना को हरहराते सागर तथा नगर के बीच ही दबोच सकते ह। हम तब तक श ु प
को बल बनाने के लए गु र ला यु णाली का आ य ले सकते ह।”
चार दशा से एक बार फर ‘हर-हर महादे व तथा रावण क वजय हो!’ के नारे गूँज उठे ।
जा ने ब त ही उ साह से जयजयकार क । “य प ग त क इस राह पर बढ़ते ए, हमसे
कुछ भूल भी । हम स य न ा के उस पथ से वमुख हो गए जस पर हमारे नेता, अब तक
बड़े ही क के साथ चलते आए थे। हमने अपने वचार क शु ता तथा जीवन क सादगी
को खो दया। हम भी दे व क भाँ त यही मान बैठे क कुछ लोग वशेष सु वधा ा त होते ह।
संभवतः य द हम यो यता तथा गुण के आधार पर यह नणय लेते तो कह े होता।
परंतु बलशाली असुर सेना के हाथ परा जत होने के बावजूद दे व स यता, हौले-हौले
हमारे म त क म अपना थान बनाने लगी और उ ह वषा कर दया। उनक भाँ त हम
भी कुछ मनु य को दै वीय मानने लगे; हम भी यही मान बैठे क कुछ मनु य पूरी तरह से
प व थे और शेष प व व शु नह थे – यह सब कुछ उनके कम तथा मान सकता पर
नह अ पतु उनके ज म पर आधा रत था। आपके नेता के प म मुझे यह दे खना चा हए था
क कस कार जा तवाद के बुरे वचार ने हमारे समाज म भी डेरा डाल लया था। कतने
खेद से कहना पड़ता है क म अपनी ही क त क यश-पताका लहराने म म न रहा।” भीड़
ने समवेत वर म आह भरी।
“म वयं ही अपने मू य भूल गया था, तो मुझे समाज को दोष य दे ना चा हए? केवल कुछ
लोग ने ही हर कार के लाभ ह थया लए और आप जैसे सभी लोग को सड़ने के लए
अकेला छोड़ दया गया। म आप लोग के लए, एक नेता के प म असफल रहा ँ, मने
अपने भाई, व ास ोही वभीषण को यह अनुम त द क वह सु वधा के इस वचार को
केवल कुछ ही य तक सी मत रखता रहे। मुझे यह कहने म ल जा आती है क म
वयं को आप सबसे यही सोच कर े मानता रहा क म तो एक ा ण पता क संतान
था। म गु त प से अपने गौर वण पर गव अनुभव करता रहा और काली चमड़ी वाल को
बुरा व गंदा मानता रहा।”
“मेरे य असुर म !… सीता… सीता मेरी पु ी है।” लोग के बीच घना कोलाहल सुनाई
दया और मने उनके शांत होने क ती ा क । दोपहरी का सूरज बेरहमी से सर पर नाच
रहा था, वह मेरी ऊजा को सोखते ए, म त क को भोथरा बना रहा था। चेहरे से मानो वेद
क न दयाँ वा हत हो रही थ । हज़ार अ ेत, पसीने से लथपथ, ःख से थत हो उठे ।
भीड़ म ोध, उ साह व म का मला-जुला भाव था। म पीछे मुड़ कर अपने मं य का
सामना नह करना चाहता था, य प मुझे संदेह था क वे पहले से ही सीता के वषय म
जानते थे। मेरे पास अब उनका सामना करने का साहस शेष नह रहा था। कुछ ही ण पूव,
मने योजना बनाई थी क असुर स यता के भ व य पर चचा करके, अपनी असुर जा को
वश म कर लूँगा, अब वे वही श द कह मुँह बकाए बैठे थे। मने गोल कठघरे का सहारा
लया और ती ा करने लगा। म जानता था क भीड़ इस समय हसक व ख़तरनाक तरीक़े
से भी पेश आ सकती थी।
भ
मने अपनी पूरी श के साथ असुर राजकुमारी के लए जयजयकार क । म स था क
कम से कम एक शासक तो इतना ईमानदार नकला क उसने स य को अंगीकार कया।
इसके बाद भीड़ क मनोदशा ही बदल गई। कौन जाने? उस दन मने ही रावण क ाण-
र ा क ! म भी भीड़ के साथ वा पस चल दया परंतु इतना थक गया था क कु टया तक
लौटने क श ही नह रही। म सड़क के कनारे बनी पगड़ंडी पर, एक रेशमी व क
कान के आगे ही सो गया। वहाँ और भी ब त से लोग सोते दखे। जब से यु आरंभ होने
का अंदेशा होने लगा था, तब से नगर र क का दमन-च भी कुछ थम सा गया था। अब वे
नगर र ा के लए इतने त पर नह दखते थे अनायास, रा के घने अंधकार म, हाट-बाज़ार
म अ न-बाण क वषा होने लगी। एक तेज़ धमाके के साथ यु आरंभ हो चुका था।
बाज़ार-हाट अ न क चपेट म थे। व ण के अ न-बाणवषक, अपने उन जहाज़ से तीर
बरसा रहे थे, ज ह ने तट से कुछ ही री पर लंगर डाला आ था। तीर हवा म फुँफकारते
ए आते, व तु से टकराते; य को भेदते; फूस क छत पर गरते और उ ह दे खते
ही दे खते नगल जाते।
लोग यहाँ-वहाँ भागने लगे। पूरे आकाश म उनक चीख़ गूँज उठ । माँस के जलने क गध
उठने लगी। घर को ती ता से जल रही अ न क लपट नगल रही थ और गहरा काला
धुआँ गोल-गोल च कर काटते ए, आकाश म जा रहा था। ऐसा जान पड़ता था मानो हम
नक म आ गए ह । म पहली बार कसी यो ा क तरह नह अ पतु एक साधारण क
तरह यु का सामना कर रहा था। मने पाया क यु े क तुलना म एक आम आदमी क
भाँ त यु का सामना करने के लए मुझे कह अ धक साहस क आव यकता थी। वहाँ हम
कम से कम यह जानते तो थे क हमारे श ु कौन थे? यहाँ मृ यु व वध प म छल रही थी:
जैसे गरते ए तंभ, लुटेर के दल, दम घ ट दे ने वाला काला गहरा धुआ,ँ धधकती वालाएँ
तथा तीर क वषा। यहाँ हम बैठ कर ती ा करते थे क मौत हम कब अपने आ लगन म
लेगी?
श ु पहले नाग रक को ही अपना नशाना बना रहे थे। वे सबके बीच आतंक फैला कर, जा
का मनोबल तोड़ना चाहते थे और उसे बल बनाना चाहते थे। दन क रोशनी म वे सेतु पार
करते और अपनी पैदल व अ ारोही सेना के साथ आ मण कर दे ते। ‘हमारा राजा या कर
रहा था?’ वह अपने बड़े-बड़े दाव के बावजूद सुबेला क पहा ड़य म बसे ग म जा छपा
था। आप इन राजा का इतना सा भी व ास नह कर सकते। अब ये अ तकाय जाने कहाँ
चला गया? मेरे पेट म ह का सा भय कुलबुलाने लगा। म भी अँधाधुँध भाग रही भीड़ का
ह सा बन गया; कई बार गरा, कुचला गया और फर उठ कर भगा। सारे ी-पु ष
भयभीत चूह क भाँ त भागते फर रहे थे। मेरे आँसु क झड़ी बरसने को तैयार थी। मने
अपने को काश तंभ का सहारा दया और वहाँ खड़ा हाँफने लगा। आकाश काले धुएँ से
आ छा दत था।
राम का सेतु लगभग पूरा होने को था। जहाज़ से मनु य, हाथी व घोड़े उतारे जा चुके थे और
एक लंबी सपाकार पदा तक सेना, लंका क ओर चली आ रही थी। म दे व क पताकाएँ
फहराते ए दे ख सकता था, जन पर व णु का शंख अं कत था। म यह भी दे ख सकता था
क वह सेना, पहली बार इतनी वैभवसंप नगरी को दे ख उ सा हत ई जा रही थी।
य प मेरे भीतर कुछ धड़क रहा था। भय? आशा? तशोध क भावना? चता तथा इन
वचार क अथहीनता मेरे म त क को चकराने लगी। और इ ह अ नयं त भाव के
घटाटोप के म य कह , मने इस द वानगी से भरे जीवन क साथकता पर वचार करना चाहा।
बाद म, ब त बाद म मुझे इस स य क अनुभू त ई क जीवन का एकमा अथ यही था क
इसका कोई अथ नह था। य प, तब तक इन बात के लए ब त दे र हो गई थी। म महल
क ओर बढ़ने लगा। म सागर तट पर चल रहे घमासान यु से आ रही चीख़-पुकार सुन
सकता था। आकाश म धूल के गुबार मँडरा रहे थे। म पाँव उचका कर अ तकाय को दे खने
लगा। ‘मेरा पु कहाँ था। इससे पूव क वह वयं अपने ही ाण का मोल कर ले, मुझे उसे
खोज नकालना था।’
महल धूल के उठते गुबार के पीछे जा छपा था। ार बंद थे और ार र क पूरी मु तैद के
साथ तैनात थे। म का, अपनी साँस को उखड़ने से रोका और फर अपने मूख पु तथा उस
बेअ ल को कोसने लगा, जसके कारण यह यु आरंभ आ था। मने ाथना क क
अब यह सब शी ही समा त हो जाए। चाहे जैसे भी हो, बस यु समा त हो जाना चा हए।
सूरज मेरी पीठ पर जा प ँचा और मने अपनी अंगु लय क ओट से, आँख को धूप से
बचाना चाहा। मने महल के ांगण म झाँका क संभवतः कह से अ तकाय क झलक दख
जाए। ऐसा लगता था मानो महल वीरान पड़ा हो। फर धीरे-धीरे, जब मेरी आँख धूप क
चकाच ध झेलने के बाद, महल के अंधेरे कोने दे खने क अ य त तो मने दे खा लंबा व
गौरवण असुर स ाट एक छत पर अकेला खड़ा था। वह नरंतर एकटक सागर तट को दे ख
रहा था। यही वह था जसने अपने लए व अपनी जा के लए ऐसी यश वी नगरी
बसाई और वह वयं उसे अपनी ही आँख के आगे धूल-धूस रत होते दे ख रहा था। भले ही
उसके चेहरे पर क ण तथा उदासीन भाव थे परंतु वह अब भी गव से सीना ताने खड़ा था।
वह वायु म लहराती ेत दाढ़ के साथ दै वीय जान पड़ रहा था। मने अपने अहं को पीछे
रखते ए, उसे झुक कर णाम कया। वह मेरी ओर मुड़ा और हमारी आँख आपस म मल ।
उसने हामी भरी और मेरा दय आनंद से ब लय उछलने लगा। उसने अपने इस नधन
अनुचर को याद रखा, इस नधन व बेचारे भ को याद रखा, जो उस समय से उसका साथ
दे ता आ रहा था जब वह युवाव था म अपने रौ प से दे व को भी कं पत करने म सफल
रहा था। मने एक ार र क को अपनी ओर आते दे खा। स ाट अपनी छत क मुँडेर से
अलोप हो गया था। ार र क ने मुझे महल म वेश करने का आदे श दया। य ही मने
रावण के ग के वण ार से वेश कया तो म वह खड़ा, महल क सुंदरता का पान करने
लगा। मुझे बड़ी ता से एक ओर धकेल दया गया। इसके पूव क म कोई वरोध कट
कर पाता, एक रथ मेरे नकट से, ब त ती ग त से नकल गया। जब मने उसम पड़े शव को
दे खा तो अपश द क बौछार मुख म ही थम गई। एक नज व दे ह रथ म पड़ा था। सर
इतनी बुरी तरह कुचला गया था क पहचान होना क ठन था। य ही रथ मुड़ा तो मने उस
को पहचान लया। वह तो व धम था।
36 पु मोह
रावण
वजय ी के साथ हमारे दवस क समा त ई। क को व क मृ यु के प ात सेना क
कमान स प द गई थी। उसने, सुमाली तथा ह त के कुशल श -संचालन ने अपना जौहर
दखाया, उनक ड गय ने ही राम क सेना को ततर- बतर कर दया। राम क वानर-सेना
नृशंसता से कुचली गई। ह त व ण के जहाज़ी बेड़े से तीन यु पोत पर नयं ण पाने म
सफल रहा। ये सारी घटनाएँ आने वाले दन म ब त सी बात को प म कर सकती थ ।
अनेक य ने व को अपनी ांज ल अ पत क , जसे महल के मु य ार पर
अं तम दशन हेतु रखा गया था। जो लोग उसके जीते-जी, मारे भय के पास नह फटकते थे,
अब वही कतार बाँधे असुर सेुनाप त के दशन करने आ रहे थे। म इस के घमंडी
वभाव, उसक मनोवृ य तथा कसी क परवाह न करने वाली वृ से घृणा करता था।
उसने अ थर दशा पर वश पाने के लए, जो अ याचार कए थे, उ ह ने सदा के लए,
असुर ारा कए जाने वाले धम तथा क णा के दावे को समा त कर दया था। परंतु मने
व धम सरीखे लोग के कंध पर ही इतना बड़ा सा ा य तैयार कया था। उसके जैसे
य के अभाव म; जो क कसी के ाण लेने म ण भर का भी संकोच नह करते थे,
जो अपनी ू रता के लए जाने जाते थे…, य द वे न होते तो यह असुर सा ा य एक नधन,
वणसंकर तथा भूख से अधमरे असुर लड़के क आँख क एक चमक मा बन कर रह
जाता।
जब म अपने मं य तथा संबं धय के साथ बाहर आया तो, वहाँ खड़ी भीड़ दो ह स म बँट
गई। म अपना सर झुका कर, अपने धान सेनाप त के नज व शव के आगे खड़ा रहा। उस
थत कर दे ने वाले स ाटे के म य उसक प नी व पु ी क धीमी सुब कयाँ सुनी जा सकती
थ । म उस शव के हमशीतल पैर को पश करते समय, अपने हाथ के कंपन को वश म
नह रख सका। मने मा दायक औघड़ शव से ाथना क । मने उस क आ मा के
लए हाथ जोड़े जसने यथासंभव ू रतम अपराध कए थे ता क उसके अपने लोग, अपनी
खोई ई त ा पुनः अ जत कर सक।
आज ऐसी ही जा से भरी रात थी। म अपनी अंगु लय को वीणा पर दौड़ाना चाहता था।
जस कार कोई ेमी अपनी ेयसी क ओर बढ़ता है। उसी कार म आगे बढ़ा और वीणा
को, नेह से अपनी गोद म धर लया। फर म यु को भूल गया; राम और उसक वानर सेना
को भूल गया; म जी वत तथा मृतक को भूल गया और यहाँ तक क अपने-आप को भी
भूल गया। म एक ऐसा पंख बन गया, जो हवा के साथ कह उड़ता जा रहा था; बेपरवाह,
ल यहीन, भारहीन और कसी भी तरह क आस से परे! म न तो धरती से आब रहा
और न ही आकाश से। म उस समय केवल म था। मेरे प नी मंदोदरी ने क म वेश कर,
अपना यारा मुख मेरे कंधे पर टका दया था; मुझे तो उसक भी सुध नह थी। म नीचे बाग़
म चल रहे ज से भी अन भ था, जसे असुर अपनी अ थायी वजय के उपल य म मना
रहे थे। जब मेरी अंगु लय ने उन तार को चूमा तो म केवल उस व गक दै वीय सुर के
अ त व के त ही सजग था, जो मेरे आसपास वा हत था। मेरे लए उस समय मानो
उससे बढ़ कर, जीवन म कुछ था ही नह !
तभी मेरे पु ने दनदनाते ए क म वेश कया। म उसक दे ह से आती म दरा तथा घमंड
क गंध को अनुभव कर सकता था। एक साए क तरह, काली सी आकृ त ने उसके पीछे -
पीछे वेश कया। उसे दे खते ही, भ उसक ओर दौड़ा। अ तकाय ने वृ को बड़ी बे खी़
से पीछे धकेल दया। भ लड़खड़ाया और नीचे गर गया। मेरा मुख ोध व ला न से लाल
हो गया। कमीने, अ ेत व भ ा अ तकाय मेरे पु मेघनाद क बराबरी पर खड़ा था और वे
दोन स ाट के नजी क म उप व कर रहे थे।
मंदोदरी ने मुझसे कुछ कहना चाहा परंतु मने उसे हाथ के संकेत से चुप करवा दया। मने उसे
भी बाहर जाने का संकेत कया। म एकांत म रहना चाहता था। म अकेला खड़ा, उस व च
कतु सुंदर सी रात को दे ख रहा था। पु तो पु ही होते ह; भले ही उनका ज म राजमहल म
आ हो अथवा कसी नधन दासी क कु टया म! परंतु इस कार का घमंड तो न त प
से वनाश का सूचक था। अचानक ही एक चीख़ सुनाई द और इसके बाद महल के उस
बाग़ीचे म से हो-ह ला होने लगा, जहाँ कुछ दे र पहले ज मनाया जा रहा था। कुछ तो ब त
ही भयंकर घट गया था। मेरा दल तेज़ी से धड़कने लगा। म बाग़ क ओर भागा, उसी भगदड़
के बीच मुझे बुरी तरह से टू ट चुके भ के शरीर पर पाँव रख कर भागना पड़ा, जो मेरे नजी
क के फ़श पर मृत ाय पड़ा था।
37 मृ यु क पदचाप
भ
म थोड़ी दे र बाद उठा। दल ब त भारी हो रहा था। अब कसी भी व तु का औ च य ही या
रहा था? कुछ बचा ही नह था जससे आने वाले कल क कोई उ मीद रखी जा सकती। मेरा
पु हमेशा के लए कह खो चुका था। म जानता था क उसे कभी नह दे ख सकूँगा या फर
हो सकता है क उसका न ाण शव ही दे खने को मले। व च प से, मुझे असुर स ाट
के त समानुभू त होने लगी, कसी स ाट अथवा महान नेता के प म नह , जसने असुर
वंश के लए अपना जीवन तथा परा म यौछावर कर दया था परंतु यह ःख एक खयारे
पता क ओर से सरे खयारे पता के लए था। अपने शाही व तथा राजमुकुट उतारने
के प ात वह मेरी तरह एक सामा य ही तो था। अथवा म अपने-आप को मूख बना
रहा था? या श शाली व समथ लोग कसी सरे प म अ स ता व ःख का सामना
करते ह?
महल म चार ओर अभे चु पी का आवरण छाया था। सभा से आती म म रोशनी म, मने
बाग़ म लगे वृ तथा झा ड़य के त बब दे खे। कुछ न कुछ तो गु त प से चल ही रहा
था। मने ब त पहले ही नणय ले लया था क अब मह वपूण य के संग से मेरा
कसी भी कार से, कोई लेन-दे न नह होगा परंतु कौतूहल से कैसे पार पाया जा सकता है?
मने वातायन से भीतर झाँका तो स ाट को अपने सहासन पर सर झुकाए बैठे पाया, उसका
चेहरा मरणांतक प से पीला पड़ा आ था और उसके मं य ने धरती पर कुछ नज व
पड़ी दे ह के इद- गद डेरा डाल रखा था। म तनाव त हो उठा। मने ास रोक कर, कसी के
हलने क ती ा क ता क मुझे वहाँ का प य दखाई दे सके। “यह अ य है।”
स ाट ने हमशीतल वर म कहा। मं ी ाकुलता से पलटे ।
“जब म वहाँ प ँचा तो य ब त ही वीभ स था। हमारे लोग बड़ी ही नृशंसता से काटे जा
रहे थे। चार ओर घने अंधकार का साया था और यह पता नह चल पा रहा था क कौन
कसके प के य क ह या कर रहा था। म वहाँ से हट गया और ह रय को पुकारा।
य ही हम वहाँ प ँच,े मने दो गहरे साए दे खे। म न त प से तो नह कह सकता परंतु
दे ख कर तो यही लगा क वे दोन अंगद व उसका म थे। मने उ ह वश म करना चाहा,
अंगद पर अपनी कटार का नशाना भी साधा परंतु उसे चोट नह आई और इसी ामक
वातावरण का लाभ उठाते ए, वे दोन बच नकले। तभी महाराज भी वहाँ आ प ँचे।
संभवतः आप अंगद क चीख़ सुन कर ही सतक ए ह गे।” ह त ने कहा और उसके बाद
एक तनाव से भरी चु पी छा गई।
“यह अव य ही कसी भे दए का काम है। मुझे लगता है क हम असुर के काय करने क
शैली से परे हट रहे ह। आज हमारी जीत लगभग सु न त थी और जब हमने अपनी वजय
को पराजय के ू र पंज से छु ड़ा ही लया था क यह सब घट गया। हम तो दास बना दे ना
चा हए। मेरे दो व र मं य को, मेरे ही महल के बाग़ीच म नममता से मार डाला गया। हम
एक ऐसे श ु का सामना कर रहे ह, जसके पास कोई नै तकता नह , उसे न तो उ चत-
अनु चत का ान है और न ही वह धम के वषय म कुछ जानकारी रखता है। वे ब त ही ू र
ह तथा अपने ल य क ा त के लए कसी भी सीमा तक नीचे गर सकते ह। हम इस
समय दे श ो हय तथा गु तचर से घरे ह। मेरा भाई व ासघाती बन गया, मेरे म ने मेरे
साथ ोह कया, म तो यह वचार कर रहा ँ क उनके अ त र और कौन है जो दे व क
सहायता करेगा? सुमाली व मा यवान भले लोग थे। हो सकता है क वे यो ा न रहे ह परंतु
वे ऐसे अंत के अ धकारी भी नह थे। क! हमारा उ े य यही होना चा हए क हम श ु क
सेना को अ धक से अ धक हा न प ँचा सक। म नह चाहता क हम भी उनक तरह
आततायी बन कर आ मण करने पर उता हो जाएँ व न ालीन य को मौत के घाट
उतारने लग कतु हम उ ह पकड़ने के लए छल व कपट का आ य तो ले ही सकते ह। मेरे
पु को खोजो, य द उसक सुध लौट आई हो, तो उसे मेरे पास ले आओ। ह त, सुमाली
और मा यवान जो भी करते थे, अब उस काय को शां त थापना तक, तुम संभालोगे। हम
रणनी त बनानी होगी ता क उ ह उनके ही तरीक़े से सबक सखाया जा सके।” स ाट ने कड़े
व ढ़ श द म कहा।
पूव दशा केस रया रंग म रंगी थी और वृ पर प ी चहचहाने लगे थे। असुर स ाट जो भी
करने जा रहा था, उसे सुन कर म रोमां चत हो उठा परंतु साथ ही साथ एक अनजाना भय
भी सता रहा था। म स था क अंततः हम मोच से नेतृ व तो कर रहे ह। स ाट ने अपना
खोया शौय पुनः पा लया था और इस बार तो अनुभव भी उसके साथ था। यह एक र पात
से भरा नृशंस यु था और मेरे पु को कसी गु त योजना का अंश बनाया गया था। म नह
चाहता था क वह कसी भी प म, इस यु म शा मल हो परंतु पु तो पु ही होते ह। म
बुरी तरह से थक गया था। म घर गया और योजना बना रहे राजा तथा धावा बोल रहे
कुमार को ब त पीछे छोड़ आया। म चाहता था क जी भर कर म दरापान क ँ और कसी
ान क भाँ त सो जाऊँ!
38 कसके लए?
रावण
दो मं य क मृ यु मेरे लए कसी बड़े सदमे से कम नह थी। मने आज तक जतने भी यु
कए थे, यह उनम से सबसे ही व च था। पूरा महल गु तचर से भरा पड़ा था। ह यार को
बना कसी दं ड के मु कया जा रहा था। मने उ मीद क क आज हम राम का समूल नाश
कर दगे। मने सुना था क वानर उसे व णु का ही अवतार मानने लगे थे। मुझे यह जान कर
और भी सदमा लगा क साधारण असुर भी राम क द ता म व ास रखने लगे थे।
सीता अशोक वृ के तले बैठ कसी दे व त क भाँ त नद ष लग रही थी। उसके समीप ही
मेरी भतीजी जटा बैठ थी। मुझे उसे सीता के समीप दे ख कर स ता नह ई। म अपनी
पु ी से एकांत म वातालाप करना चाहता था। जटा का चेहरा-मोहरा, काफ़ हद तक,
अपने धूत पता कुंभ के समान था। कुंभ भचार के अपने ही संसार म म न था। ढ़
संक प तथा च र के अभाव म, उसक महती मह वाकां ाएँ ब त पहले दम तोड़ चुक
थ । वह ायः अपने क म, म दरा के नशे म चूर पड़ा रहता। उसने अपने लए अगाध क त
तथा नजी सा ा य क कामना क थी, परंतु उसके पास जीवन म कभी महान व तुएँ
अ जत करने क संक प श नह रही। संभवतः वह आजीवन मेरे ही साए तले पलता
रहा। म सदा उसका अ ज बना रहा और आपक सफलता का लाभ, आपके सगे भाई-
बहन से अ धक कोई और नह लेता। संभवतः म जो भी था, यह प प से मेरा भा य
बन गया। म उस आयु म था, जहाँ आकर कोई नह सोचता क कड़ा प र म, संक प तथा
मह वाकां ा ही कसी क नय त रचते ह। ब त समय पहले, मेरे भीतर बसने वाले ना तक
ने, बना कसी पूवसूचना के दम तोड़ दया था। मने इतना कुछ दे ख लया था और इस बात
पर व ास करने लगा था क मनु य वयं अपना भा य गढ़ता है और इसके सवा कुछ भी
मह व नह रखता, शेष सब नरथक है। इसके अ त र आज भी जब म वष पूव, उस
अंधेरी गुहा म वा त वक असुर स ाट महाब ल के साथ कए गए बचकाने तक- वतक को
मरण करता ँ तो सर ल जा से झुक जाता है। मने उस वृ को भा वत करने के लए
जस ता तथा मूखता के साथ अपना वह बे दा दशन बघारा था, उसे मरण कर होठ पर
मु कान नाच उठ । कुछ तो ऐसा था जो मनु य क मान सक मता तथा सामा य ान क
सीमा से परे था। ढ़ संक प, कड़ा प र म तथा गु ारा कहे गए वे सभी वचन तभी
भावी व उपयोगी होते ह जब आपको यह न त करना हो क सामने घट रही घटना के
लए कैसी त या दे नी है परंतु मने व तु के म को दे खा, दन और रात कस कार
बदलते थे और कस कार जी वत ाणी ज म लेत,े जीते तथा ाण का याग कर दे ते।
य प तब भी ब त सी चीज ऐसी थ जनक ा या केवल भा य अथवा नय त के
मा यम से ही संभव थी।
भ
म अपनी फूस क कु टया के बरामदे म बैठा था। मेरी प नी मेरे पास जो गम भाप उग़लता
भात व आम का अचार रख गई थी, वह ठं डा और लस लसा हो चला था। म खय क
धृ ता बढ़ती जा रही थी और वे अब कटोरे के कोन पर बैठ कर, लंबे समय तक भनकने
लगी थ । मेरे मन म ऐसी कोई इ छा पैदा नह हो रही थी क म उ ह वहाँ से उड़ाता। रसोई
से बतन क प र चत कतु अ प खनखन तथा पा को रखने का वर सुना जा सकता
था, जहाँ मेरी प नी रोज़मरा के काम म त थी। मेरे सर म ह का सा दद था – शायद
अभी कल क पी ई ताड़ी का असर ख़ म नह आ था। काम-धंधा मंदा ही था। जब अगले
दन तक जीने-मरने का भी पता न हो तो ऐसे म व धुलवाने क कसी को या पड़ी
होगी?
कुछ ही री पर बलशाली तथा अजेय ग जैसा महल दखाई दे ने लगा। इसके सुनहरे गुंबद
तथा शखर सूय के काश म चमचमा रहे थे। ‘ वण’ – स ाट अपनी छत क सजावट के
लए वण का योग करते ह और हम जैस को दो जून पेट भर रोट भी नह नसीब होती।’
हो सकता है क वह इसी दशा का अ धकारी रहा हो परंतु वह कम से कम ू र तो नह था
और उसने अपने लोग को ऊँचा उठाने का यास तो कया था। म उन लोग म से था,
जनका कोई अ त व नह होता, एक ऐसे दे श के करोड़ द र असुर म से एक, जो बड़ी
ही ती ता से ा ण का दे श बनता जा रहा था। यु के अंत म, म तो एक अ पृ य ही रहने
वाला था, इस धरती का बोझ और भार! म वह बैठ कर ती ा करने लगा क शायद कसी
अ धकारी क नज़र मुझ पर पड़े और वह मुझे पहचान कर महल के भीतर ले जाए। मुझे
दे खना था क मेरा पु वहाँ था या नह ।
रावण ने हाथ ऊँचा कया तो भीड़ च लाई। ‘हर-हर महादे व!’ चार ओर यह वर गूँज उठा
और येक असुर के ाण म मानो नवजीवन का संचार हो गया। मुझे उन लोग के नार के
बीच ही फुसफुसाहट से पता चला क मेघनाद ने दोन श ु राजकुमार का वध कर दया।
चड पीटे जा रहे थे और इसी शोरगुल के बीच वजयी सै नक पर पु पवषा हो रही थी। मेरे
दय से कोई भारी शला हट गई। हम सुर त थे। मेरा पु सुर त व वजयी था। अब
असुर जा तवाद क च क म नह पसगे।
रावण
अंततः यह गाथा समा त ई। मेरे पु ने हमारे सबसे बड़े श ु को परा त कर दया। मुझे
उस पर ब त ही गव का अनुभव हो रहा था परंतु इसके साथ ही म थत भी था। कुछ तो
अनु चत हो रहा था। वह अपने म अ तकाय के साथ मल कर, राम व ल मण को उनके
सेनाप तय से परे ले जाने म सफल रहा और दे व कुमार को आमने-सामने के भयंकर संघष
म आना पड़ा। ह त, कल ही अपनी आधी सेना को प क पूव दशा म ले गया था और
उसक सेना सारी रात पैदल या ा करके गई ता क दे व पर पीछे से धावा बोला जा सके। वह
हनुमान तथा सु ीव को अपने वा मय से परे ले जाने म सफल रहा और उ ह यही आभास
दलाया गया क असुर सेना वा पस लौट रही थी। वानर सेना उ सा हत हो कर असुर को
खदे ड़ने लगी और जब वे राम से पया त री पर आ गए तो असुर ने दोगुने वेग के साथ
वापसी क और भीषण सं ाम कया। मने अपने ग से यह सब दे खा तथा ह त के
सेनाप त व से भा वत हो उठा।
राम के पास केवल कुछ ही र क रह गए थे। वे भी मेघनाद तथा अ तकाय के हाथ मारे
गए। वे राम क त- व त सेना के बीच माग बनाते ए, वहाँ तक जा प ँच।े उनके पास
अ धक समय नह था इस लए मेघनाद ने आगे क योजना पर काम करना आरंभ कया। दे व
कुमार भी बाण के संधान म कुछ कम नह थे। उ ह ने मेरे पु तथा उसके सहायक को
अपने बाण से अनेक बार घाव दए। अ तकाय ने ही सुझाव दया क उ ह शी ा तशी दे व
कुमार के नकट जाना चा हए ता क उनके बाण क ती ण वषा से अपना बचाव कर सक।
मेघनाद व अ तकाय ने अपने रथ का याग कया और नंगी तलवार के बीच भागते ए,
आगे बढ़ने लगे। वे यु रत लोग के बीच आड़े- तरछे भागते ए, सीधे दे व कुमार के पास
जा प ँचे और धावा बोल दया। यह भी दे खने यो य य था क राम अपने बाण के संधान
म कतना चपल था। उसने कुछ ही ण म अपना धनुष लया व मेघनाद के कंधे पर एक
तीर मारने म सफल रहा। मेघनाद ने अपनी तलवार के एक तेज़ वार से राम का सामना
कया और इस दौरान अ तकाय छोटे दे व कुमार के साथ भीषण ं म ल त हो गया।
ल मण ने धनुष-बाण याग कर, तलवार नकाल ली। दे व तलवार अपने-आप म एक भयंकर
अ था। यह असुर क खड् ग क भाँ त मुड़ी ई, भारी तथा लौह न मत नह थी। दे व क
तलवार एक लंबी छु रीनुमा धार क तरह थी जसे एक कटार क तरह भी भ का जा सकता
था। मेघनाद राम को गरा दे ख, उसे मृतक जान, अ तकाय क सहायता करने को लपका
परंतु राम ने उसे टाँग से पकड़ कर ख चा व गरा दया। जस एक ण म, अ तकाय अपने
वामी क दशा दे खने के लए मुड़ा, उसी ण म ल मण क तलवार ने अ तकाय के शरीर
को घायल कर दया।
ल मण वेग से पलटा, उसने अपने दोन हाथ से तलवार को ऊँचा उठा लया और मेरे पु के
सीने पर वार करने के लए आगे बढ़ा, जो धरती पर धे मुँह पड़ा था। तभी अपने घुटन के
बल बैठे अ तकाय ने, मेघनाद को परे घसीट लया। ल मण क तलवार का नशाना असुर
राजकुमार से चूक गया और तलवार सीधे धरती म जा गड़ी। मेघनाद ने अपनी तलवार,
ल मण के उदर म गहराई तक भ क द । उसने दे खा क अनुज कुमार दद से तड़पा, धरती
पर गरा और फर शांत हो गया।
तब तक, वानर के एक वृ सेनाप त ने, असुर सेना के दल पर, उस पहाड़ी से धावा बोल
दया, जहाँ वह अभी तक छप कर बैठा था। वह बूढ़ा सेनाप त पहाड़ी से यह सारी लीला
दे ख रहा था और जब उसने ह त के दल को दे खा तो उसने अपने अ भयान क योजना
बदल द । वह ख़तरा भाँप कर, अपने य स हत राम क सहायता के लए भागा।
अ तकाय ने मेघनाद से लौटने का आ ह कया परंतु तब मेघनाद बेसुध हो गया था। य प
अ तकाय के शरीर से र क धाराएँ वा हत हो रही थ परंतु उसने फर भी मेघनाद को
अपने कंध पर उठा लया। वह लोग के बीच से रा ता बनाते ए रथ तक प ँचा तथा
मेघनाद को सुध म लाने का य न करने लगा।
य द मुझे अपनी युवाव था म ऐसा अवसर मला होता तो मने राम व ल मण के सर काट
दए होते और उ ह एक खंभे पर लटका दे ता ता क सरे लोग भी उ ह दे ख सक। जस ण
म आप मुख बनते ह, उसी ण यु समा त हो जाता है। इससे सरे यो ा का मनोबल
ीण हो जाता है। मने अपनी युवाव था के अनेक सै य अ भयान म ऐसा दे खा है। कई बार
ऐसा आ है क म गहरे संकट म पड़ जाता था और जान पर बन आती परंतु जस ण, म
श ु प के सेनाप त या मुख को अपनी चं हास का वाद चखा दे ता, उसी ण सारा यु
मेरे प म हो जाता। भले ही उस समय मेरे आसपास कतने भी श ु ह या म मौत के
कतना भी नकट य न होता। म उनके मुख का सर काटता, ऐसा य न करता क उसे
सब दे ख सक और उसी ण वह यु समा त हो जाता। मेघनाद ने कतनी बड़ी मूखता क
क उसने राम व ल मण का शरो छे दन नह कया। यह कतनी बड़ी साम रक भूल थी।
मेघनाद म अब भी वह बात नह थी जो अनुभवी तथा स ह त यो ा म पाई जाती है।
या उसम ू रता का अभाव था? वह लड़का इतना कोमल दय हो कर, तो एक अ छा
यो ा कभी नह बन सकता था। मने तो यह कुकृ य करने म एक ण का भी वलंब न
कया होता। य द मेरे थान पर बाली, राम, हनुमान, ह त, क अथवा महाब ल होते तो
संभवतः वे भी यही करते।
ह त मेरे नकट आया व झुक कर णाम कया। मने उसका हाथ जकड़ा और उसे छत क
मुँडेर पर एकांत म ले गया।
“हम उ ह दोषी नह ठहरा सकते। मेघनाद ब त ही कोमल दय तथा अनुभवहीन है। परंतु
हम उनक इस भूल क भारी क़ मत अदा करनी पड़ सकती है।” ह त ने मुझसे नज़र
चुराते ए कहा। म उसक बात म छपी कुंठा अनुभव कर सकता था। “उसे रोका जाना
चा हए था।” ह त के ने उस सु र थत प को एकटक ताक रहे थे, जहाँ जांबवन ने
अपने घायल नेता के साथ डेरा डाल रखा था। मने दे खा क वह कसी उलझन म था।
इससे पूव क म उसे रोक कर, कुछ कह पाता। वह अपना सर झुका कर नकल गया। ‘मेरे
भाई कुंभ के हाथ म सेना क कमान?’ यह बात कहनी सरल थी परंतु इसे अमल म लाना
उतना ही क ठन था। मेरा छोटा भाई जाने कतने दन से म दरा व मादक पदाथ के नशे म
चूर पड़ा था। दन-ब- दन म दरा व मादक पदाथ क आदत बढ़ती ही जाती थी और म उसे
अपनी आँख के आगे न हो कर, बखरते दे ख सकता था। कह ऐसा तो नह था क उसके
भीतर पनप रहे कसी व ोही क गंध को भाँप कर, मने उसे उन कु सन से र करने का
य न नह कया ता क वह मेरी राह क बाधा न बन सके? म नह जानता। और अब जब
हमारे पास अ छे सेनाप तय का अभाव हो रहा था तो ह त ने मुझे मेरे भाई का मरण
करवा दया था। मुझे महल के कसी अंधकार पूण कोने म छपे क से उसे खोज कर बाहर
नकालना था और उसे उसक स ता के काले कूप से नकाल कर अपने यु के लए
तैयार करना था। यह सब करना इतना सरल भी नह था, जतना दखाई दे रहा था।
41 मंदोदरी संग
भ
ये वही ण थे, जस समय उषाकाल से पूव का अंधकार इतना गाढ़ा व घना होता है क
आपको लगता है क वह आपक वचा से चपक गया है, उसी ण मने कुछ पदचाप सुन ।
मेरी पशुवत वृ याँ आयु के साथ धू मल नह ई थ । म दरा के नशे म चूर होने के
बावजूद, मेरे कान आस ख़तरे क आहट भाँप सकते थे। मने अपना सर नह उठाया कतु
कुछ तो था जो ब त हौले-हौले हल रहा था और यह ग त व ध न त प से कसी संकट
का सूचक थी। म कसी सरी आहट क ती ा म कान लगाए रहा। रात को जलाए गए
द पक जाने कब से बुझ चुके थे। आकाश म बादल छाए थे और एक उ लू के ककश वर के
अ त र कोई सरा वर सुनाई नह दे रहा था। म इस तरह कान लगाए सुनता रहा क
ास तक लेने म भय होने लगा। इस वषय म कोई संदेह नह रहा था क वे ब त से लोग
थे। म रात के उस अंधकार म भी उनक उप थ त को अनुभव कर सकता था। वे वृ पर
थे और धीरे-धीरे घात लगाते ए, सैकड़ खराट भरते, असुर सै नक क ओर बढ़ रहे थे।
मने धीरे से अपनी आँख खोल । म महल के ार पर असुर सै नक क धू मल आकृ तयाँ
दे ख सकता था। मने पहले तल के समीप वाली मुंडेर के पास खड़े वृ पर कुछ हलचल
सुनी और कई गहरी काली आकृ तयाँ बड़ी सरलता से कूद कर वहाँ आ ग । ये तो केवल
वानर ही हो सकते थे। मेरी पूरी रीढ क ह ी झनझना उठ । ‘वे लोग यहाँ य थे?’
करीब आधे घंटे बाद मुझे मेघनाद तथा अ तकाय का पता मला। मने अपने पु को ठोकर
मारी तो वह म दरा के नशे से जागा और उछल कर खड़ा हो गया। कोई भी आकर, बड़ी
सरलता से असुर राजकुमार तथा उसके अनुचर का वध कर सकता था। वाह! कैसी असुर
सुर ा! राजकुमार को शी ही सुध आ गई और जब तक मने उसे व तु थ त से अवगत
कराया, तब तक वह सजग हो गया था। वह उछला और यान से तलवार नकाल कर बाहर
क ओर लपका। मने राजकुमार के पीछे भागते ए, यह बताना जारी रखा क मने या- या
दे खा था। अ तकाय ने हम बाहरी ागंण के नकट दे खा तो वह भी भागा आया और मेघनाद
ग के वशालकाय घंटे क ओर लपका। उसने बड़ी फुत से सी ढ़याँ लाँघ । म बुरी तरह से
प त था इस लए उसके साथ वहाँ तक नह जा सका। अ तकाय मेरे पास से दनदनाता आ
नकल गया। उसे मेघनाद के पास प ँचने क ज द थी। शी ही पूरे ग म उस घंटे के वर
गूँज उठे । ‘मेरे दमाग़ म यह बात य नह आई?’
जब हम चोट से सैकड़ फ़ट नीचे, खुले थान पर प ँचे, तब सभी बुरी तरह से हाँफ रहे थे।
हम र से ही दे ख सकते थे क पहले से तलाश म नकले दल, एक थान पर एक होने लगे
थे। पूव आकाश म पौ फटने लगी थी और तारे म म होते जा रहे थे। अनेक मशाल बुझ
चुक थ । जब मेरे दल के युवक अपने म से मलने भागे तो म सु ताने के लए वह ठहर
गया। फर धीरे-धीरे पहाड़ी पर चढ़ना आरंभ कया। मने कसी तरह भीड़ को ठे ल कर अपने
लए जगह बनाई। वहाँ धरती पर महारानी मंदोदरी वव तथा अचेत पड़ी थ । रावण त ध
खड़ा मन ही मन रो रहा था। म आगे बढ़ा और अपने फटे -पुराने उ रीय से असुर स ा ी क
न न दे ह ढाँप द । धीरे-धीरे महारानी ने आँख खोल । रावण ने उसे बाँह म लया और कस
कर कंठ से लगा लया। महारानी ने ण भर के लए, उस भीड़ को दे खा जो उसे नरंतर
ताक रही थी और फर अचानक उसे अपनी न नता, अपनी ल जा, अपने साथ ए
बला कार का भान आ। उसने ची कार करते ए वयं को उस गधयु शॉल म छपाने
का असफल य न कया। वह लड़खड़ा कर उठ और वहाँ से भागना चाहा। रावण ने एक
झटके से उसक भुजा थाम ली और कस कर गले से लगा लया। वह रावण के कंधे म मुख
छपा कर ससक उठ । भीड़ बेमन से वहाँ से हट गई। कुछ लोग पानी लेने भागे, कुछ अपनी
रानी के लए व का बंध करने लगे तो कुछ लोग कामचलाऊ डोली बनाने लगे ता क
महारानी को महल वा पस ले जाया जा सके। म वह समीप खड़ा, नय त के इस फेर को
दे ख रहा था। वह बार-बार कह रही थी क वह इस ल जा के साथ जीना नह चाहती थी।
अंगद और उसके सा थय को जब यह पता चला क वे म से, सीता क बजाय असुर
महारानी को उठा लाए थे तो उन ने उसके साथ बलात् संभोग कया। मंदोदरी अब
रावण क प नी के प म जी वत नह रहना चाहती थी; वह अपने ाण का याग करने पर
उता थी। रावण केवल यही कहता रहा क वह उसक ववा हता प नी थी और वह वही
रहेगी। उसने इसके अ त र एक भी श द नह कहा। उसक नजी पीड़ा का सा ी बनने से
मुझे ला न होने लगी परंतु उस के लए मन ही मन सराहना का भाव भी उ प आ,
जो अपनी प नी के ःख म उसका सहभागी बना खड़ा था। एक शासक होने के नाते, उसके
साथ इससे बदतर तो कुछ हो ही नह सकता था, यहाँ तक क उसक अपनी मृ यु भी इससे
अ धक भयावह न होती। रानी को उन ने हमेशा के लए अप व कर दया था और
रावण के लए सबसे सरल चुनाव तो यही था क वह उसे कसी फटे चीथड़े क तरह याग दे
परंतु उसने अपने लए क ठन राह चुनी, उसने अपने उ ह क न के स मुख अपनी प नी
को अंगीकार कया जो उसके पीठ फेरते ही उसक प नी क कलंक गाथा को चूण चटकार
के साथ सुनाने लगगे। संभवतः ऐसे ही चुनाव म उसक महानता छपी थी और यही उसक
बलता भी थी। उस समय, मुझे थोड़ा संदेह था क अपनी बला कार क शकार प नी के
साथ उसके वहार को म पूरी तरह सराह पा रहा ँ अथवा नह ? ब त बाद म, इस घटना
के ब त बाद म, जब म इस गंभीर प र थ त क तुलना म कम गंभीर प र थ त म, एक
ारा अपनी चुनी गई प नी के त वहार का सा ी बना, तब म समझा क रावण
पर दे व वारोपण य नह हो सकता था। व तुतः वह सही मायन म एक मनु य था जसे
दे वता बनाया ही नह जा सकता था।
म वहाँ से चुपचाप खसक जाना चाहता था परंतु रावण ने मुझे वहाँ से जाते दे ख लया
“भ !” उसने पुकारा और मुझे उसे मुड़ कर दे खना पड़ा। म दे ख सकता था क उसे इस
बात पर ोध व ल जा आ रही थी क म उसके इन नजी ण का सा ी बना। उसने मुझे
दे खे बना कहा, “मेघनाद कहाँ है?” म नह जानता था परंतु कसी और ने उ र दया क
राजकुमार मेघनाद तथा अ तकाय अंगद व उसके सा थय क खोज म नकले थे।
जब हम महल के नकट प ँचे तो मने पाया क मने अपने जस शॉल से रानी को ढाँपा था,
वह वहाँ पड़ा रा ते क धूल फाँक रहा था। उसक दशा इतनी बुरी थी क पहचान म भी नह
आ रहा था। वह तो पहले से भी यादा मैला-कुचैला हो कर चीथड़े म बदल गया था। बेशक
इतने सै नक के पैर तले कुचलने के बाद हो भी या सकता था। पहले तो मने सोचा क
उसे ठोकर मार कर खुली नाली म फक ँ परंतु दोबारा सोचने पर ऐसा लगा क मुझे उसे
संभाल लेना चा हए। हो सकता है क वह वन चीथड़ा राजा-रा नय के उ े य क पू त
करने के बाद उ े यहीन हो चुका हो परंतु मुझे जैसे द र के लए यह अब भी उपयोगी हो
सकता था। संभवतः म उसे ठ क करने के बाद काम म ला सकता था। मेरे पास उसके
अ त र कोई और कपड़ा था भी नह , अतः मुझे तो उसी से काम चलाना था। हो सकता
था क अ छ तरह धोने पर, उसम बसी अंगद तथा रावण क गंध नकल जाती।
42 आदशवाद का अंत
रावण
सूया त के समय ह त का नज व शव महल म लाया गया। जब म अपनी प नी के साथ,
अपने गत नक से नकल कर बाहर आया, जहाँ म छपा बैठा था तो वह सभा क के
शीतल फ़श पर न े पड़ा था। पूरा शरीर नीला पड़ गया था और वह अपनी आयु से कह
बड़ा दख रहा था। लगता था मानो एक सा ा य क चता , नयोजन व षड़यं , हठ
मह वाकां ा , वयं ओढ़ गई स य न ा के आवरण तथा धम के त अ डग रहने क
असंभव सी इ छा व रंग से र हत सादे जीवन ने उसे त- व त कर दया हो। मने अपने
सबसे अ छे म तथा सबसे बदतर श ु के लए आँख से टपकने को तैयार अ ु को वह
दबा दया। म उसके नज व शरीर क ओर झुका। कुछ अ ु मेरे वावहा रक व कड़े
आ मसंयम के बाँध को तोड़ते ए बह नकले व फ़श पर आड़े- तरछे नमूने रचने लगे। ‘कौन
था यह ?’ ब त समय पहले क बात है, म उससे भयभीत रहा करता था। मुझे पूरा
व ास था क वह मेरा राज सहासन छ न लेना चाहता था। उसम वह सब था जो म कभी
बनना चाहता था पर चाह कर भी बन नह सका। उसम वह सब था, जो म कभी नह बनना
चाहता था परंतु बन भी सकता था। वह उस संयम अथवा वजना के प म सदै व सामने रहा
जसने मेरे भीतर बसे पशु को कभी बाहर नह आने दया। वह सदै व मेरी अंतरा मा के प
म काय करता रहा।
मेरे दरबारी शांत खड़े थे। जंबूमाली ब त ःखी था। ह त उसका बालसखा रहा था। वे
दोन चतन म, एक ही पीढ़ से संबंध रखते थे। जब पुराने म इस संसार से वदा लेते ह,
तो वे आपके जीवन से भी कुछ न कुछ साथ ले जाते ह। म उस खी दय वृ को गले से
लगाना चाहता था परंतु मुझम कसी से भी नज़र मलाने का साहस नह था। मुझे
ावहा रक बन कर दखाना था। सूया त से पूव ह त का अं तम सं कार कया जाना
आव यक था। म ह त के शव को अपनी भुजा म भर कर कहना चाहता था क मने
आज तक उसके सवा कसी को इतना आदर नह दया था और न ही कसी से इतना नेह
रखा था। म उसे यह भी कहना चाहता था क वह सदा मुझे अपने परामश तथा धम के पथ
से जुड़े उपदे श से खझाए रखता था। अचानक ही मेरे भीतर से उसके लए घृणा का भाव
उभर आया। ‘तुम मेरा सहासन पाना चाहते थे और तुम मुझसे कह बेहतर राजा होते,
य क तुम मुझसे कह बेहतर मनु य थे।’ य द वह राजा होता और म उसके धानमं ी के
पद पर होता, तो म कैसे पेश आता? म तो ऐसी कोई क पना तक नह कर सकता य क म
ऐसी थ त म कभी ब त समय तक न रह पाता। म अपने वामी से पीछा छु ड़ा कर उस
थान तक प ँच जाता, जो वा तव म मेरे लए बना था। ‘इस मनु य के पास मेरे साथ ऐसा
ब त कुछ करने के अनेक अवसर थे। वह मुझे वष दे सकता था, अ भयान के दौरान, मेरे
क म मेरी न ाव था म मेरा वध कर सकता था, वह सैकड़ उपाय से मुझे इस संसार से
वदा लेने पर ववश कर सकता था।’ परंतु मेरे भीतर का वाथ व े षी भी ऐसा नह सोच
सकता था क ह त ऐसा कभी करता। मने उस पर व ास कया था। वह अपने धम तथा
स ांत से इस कदर बँधा था क राजा का पद पाने के लए इतने न न तर तक गरने के
बारे म क पना तक नह कर सकता था। वह कसी र रं जत सहासन क तुलना म अपनी
आ मा को कह मू यवान मानता था।
“मुझे ब त खेद है।” मने कहा, परंतु मुझे अपने ही श द जैसे खोखले व नरथक जान पड़े।
वह ब कुल नह हली, वह अडोल खड़ी रही। म ाकुल हो उठा। म इन मृ यु के शोक
समारोह म कभी सहज नह रह पाता। इ ह दे ख कर मुझे अपनी न रता का मरण हो
आता है। म सुन सकता था क प रवार के पु ष एक वशाल आ वृ को काट रहे थे ता क
ह त क चता सजाई जा सके। हमारे असुर म यह परंपरा रही है क जब कसी बालक
का ज म होता तो उसके नाम से एक आम का वृ रोपा जाता। वह वृ बालक के साथ ही
बड़ा होता और येक जी वत ाणी को अपनी सेवाएँ दे ते ए, इस संसार को एक बेहतर
थान बनाने क चे ा करता। ब चे से भी यही अपे ा क जाती क वह भी बड़ा हो कर,
इसी कार समाज को अपनी सेवाएँ दे गा। और जब अं तम या ा का समय आता तो वह
वृ उस के नाम पर अं तम ब लदान दे ते ए, अपने बालसखा के साथ चता क
अ न म जल कर भ म हो जाता। अंततः सब समा त हो गया था। ह त और उसके वे सभी
स ांत, जनके लए वह सदै व आवाज़ उठाता रहा, वे सभी उसके साथ भ मीभूत हो गए
थे। वह आकारहीन धू धीरे-धीरे पतली वायु म वलीन होता चला गया। मेरे आसपास खड़े
लोग से छलक रही पीड़ा व संताप से मुझे ई या अनुभव हो रही थी परंतु वे सब धीरे-धीरे
छतरा गए, और अपने ही संसार म म न होने लौट गए। अंधकार होने लगा था और चार
ओर से क ट-पतंग का वर सुनाई दे ने लगा था। मेरे सहायक बाहर मेरी ती ा म थे ता क
हम महल म वा पस लौट सक। म अपनी तं ा से जगा। मेरा दय ब त भारी हो रहा था और
म उस स ः वधवा से सां वना के दो श द कहना चाहता था। संभवतः ह त के पु व पु ी
को भी थोड़ा दलासा दे सकता। ‘म भी कस तरह का नेता था?’ म तो यह तक नह जानता
था क मेरे धानमं ी क कतनी संतान थ । मेरे युवाव था के वे आदश वचार कहाँ गए?
उन सभी वचार का या आ, जनके अनुसार म सबको एक प रवार के सू म परोना
चाहता था, एक स दय व दयालु नेता बनना चाहता था? मेरा धानमं ी अपने प रवार को
कस दयनीय दशा म छोड़ गया था। वे तो अब कृषक मा थे, घोर द र कृषक! जब उनके
घर का वामी, दे श का धानमं ी था तो उस सादगी म भी एक आकषण था। हो सकता है
क यह भी कोई राजनी तक दाँव पच ही रहा हो परंतु अब वे नधन के अ त र और कुछ
नह रह गए थे और मेरा कत बनता था क म उनक सहायता क ँ ।
म ह त के पु को बुलावा भेजने ही वाला था क वह वयं आ गया और मेरे आगे
न तापूवक शीश झुकाया। उसने संकु चत होते ए, रेशमी व क एक पोटली मेरे पैर म
धर द और फर से शीश झुकाया। मेरे एक अंगर क ने मुझे दे खा। मेरी वीकृ त पा कर,
उसने पोटली को मेरे आगे खोला। म ु हो उठा। उस पोटली म एक सुवण बाजूबंद था
जस पर असुर का च ह अं कत था, एक सुवण ज़ंजीर थी जसम सुवणमं डत बघनखा
था। इनके अ त र कुछ रेशमी पोशाक करीने से सहेज कर रखी गई थ । वे ह त क
गत उपयोग क व तुएँ थ , यही वह सामान था जो उसने एक धानमं ी के प म,
मेरे दरबार से लेना गवारा कया था।
लं कनी। उसने हमारे साथ छल कया। परंतु मुझे पहले से ही उससे ऐसे ही वहार क
अपे ा थी। य द असुर म छल तथा कपट क वृ न रहे तो उ ह असुर कौन कहे? अभी
कुछ समय पूव ही तो मने ह त से कहा था क वह क याकुमारी क उस धूत र का से
मल कर, हनुमान को रोकने का काय करे। ‘एक दन म यह या से या हो गया था? कल
तो हम एक महान वजय के इतना नकट थे। अब तो जैसे पाँसा ही पलट गया था।’ मुझे
सारे समाचार मल रहे थे परंतु उनसे जो त वीर उभर रही थी वह ब त ही ज टल दख रही
थी। ह त बुरे मौसम क चपेट म आ गया और जब तक वह लं कनी के पास प ँचा तब
तक वह सौदे बाज़ी कर हनुमान से हाथ मला चुक थी। लं कनी को राम का प ले कर
ब त लाभ हो रहा था, उसने ह त को यह व ास दला दया क हनुमान को अभी
ाय प प ँचने म समय लगेगा इस लए उसे थोड़ा व ाम कर लेना चा हए। ह त के
भोजन म न द क दवा मलाई गई थी और जब वह नशे से भरी न द म था तो उसी दौरान
लं कनी ने उसका वध कर दया। तब तक हनुमान अपने साथ वह औष धयु पौधा ले
आया था जससे राम व ल मण के ाण क र ा क जानी थी। म नह जानता था क राम
व ल मण के ाण क र ा ई अथवा नह परंतु लं कनी ने मेरे धानमं ी के शव को मुझ
तक प ँचाने का काय अव य कर दया था। मने नणय लया क एक बार राम से नपट लूँ
उसके बाद लं कनी से कुछ ासं गक सवाल पूछूँगा। म यु से बुरी तरह से थक चुका था
परंतु अब इसे रोकने क श भी मुझम नह रही थी। यह सब अपने-आप ही चलायमान था
और उ चत समय आने पर वयं ही बंद होगा। इस वशालकाय वाहन म बैठे लोग इसे वयं
नह रोक सकते। यह अपने माग म आने वाली येक व तु को न कर दे ता है जैसे – घमंड,
श , जीवन, आदर तथा सब कुछ!
मेरे आगे खड़े सै नक ने झुक कर णाम कया, “महाराज! राजकुमार कुंभकण जाग गए ह
और आपसे भट करना चाहते ह।” मने वीकृ तसूचक सर हलाया और कुंभ भीतर आ
गया। य ही मने उसका मुख दे खा तो म जान गया क म मुसीबत म पड़ने वाला था।
43 कुंभकण का आ मण
भ
कसी चम कारी वानर औष ध से राम तथा ल मण के ाण क र ा हो गई। हमारे दय म
आशा क जो न ही सी करण जागी थी, उसे बुझते दे र नह लगी। जब ग के ार खुले और
असुर सेना फर से क़दमताल करते ए, राम और उसके नर-वानर से दो-दो हाथ करने के
लए रणभू म क ओर चली तो म चुपचाप ताकता रहा, दे ह म इतना बल भी नह था क म
खड़ा हो पाता। सै नक टु क ड़य के म य, एक लंबे से हाथी पर राजकुमार कुंभकण
वराजमान था। यह दल कुछ व च ही था। अ धकतर सै नक के पास धनुष-बाण अथवा
तलवार नह थ । आगे वाली पं य के पास बाँस के लंबे तंभ थे, जो आगे से नुक ले थे।
इसके बाद कुंभकण था जो रणभू म म उतारे जाने वाले हा थय के दल का नेतृ व कर रहा
था। इस बार सेना म रथ नह थे। लंका के मुलायम, सफ़ेद व रेतीले सागर तट पर वे कोई
खास कारगर नह थे। कुंभकण ने एक ही दन म, असुर क र ा पं य क बलता भाँप
ली थी। असुर उसी कार यु करते आ रहे थे, जस कार वे मु य ाय प पर लड़ा करते
थे।
उसने अपने हाथ म प थर क एक गदा थाम रखी थी, जो उसके लहाज़ से ब त बड़ी थी।
तभी उन आकृ तय को पहचान कर म भयभीत हो उठा। सफ़ेद अ पर राजकुमार मेघनाद
सवार था और अ तकाय पूरी न ा के साथ काले अ पर उसके पीछे आ रहा था। गदा
तथा असुर क चमकती काली दे ह के समु के बीच, वे दोन खड़े ए तो उनके आभूषण
सूय के काश म जगमग कर उठे । ‘वे तो बड़ी सरलता से वानर के नशाने पर आ सकते
थे। ये छोकरे भी कतने मूख ह।’ मने वयं को राजकुमार तथा अपने पु क ओर ले जाने
क चे ा क परंतु भीड़ के रेले ने सरी ओर धकेल दया।
कुंभकण ने हमारी सेना को सागर के समीप प ँचने से पहले ही रोक दया। ब त ही तेज़ी से
आदे श दए गए परंतु वहाँ चार ओर म का वातावरण उ प हो गया। सेना य आदे श दे
रहे थे। लोग के बीच अफ़रा-तफ़री मची थी और इसी हड़बड़ी के बीच काफ़ समय न
आ। अंततः सेना धनुषाकार म खड़ी हो गई, अब वे लोग खाली मैदान म आने क बजाय
वृ क आड़ म थे। असुर ने ती ा करना आरंभ कया। वह खड़े हाथी भी अपनी सूँड म
भारी-भरकम ल े दबाए ती ारत् थे। म दे ख सकता था क अपने अ पर सवार
राजकुमार मेघनाद ब त ाकुल हो उठा था और वह दनदनाता आ राजकुमार कुंभकण के
पास जा प ँचा। वामीभ ान अ तकाय भी उसके साथ ही था।
अचानक ही असुर सेना के बीच मचने वाली खलबली शांत हो गई। दोन राजकुमार आपस
म बहस कर रहे थे। कुंभकण का रोष बढ़ता जा रहा था परंतु मेघनाद अपने काका पर
च लाता ही रहा। अ तकाय भी कुंभकण को अपश द कहने क मु हम म शा मल हो गया।
मेघनाद उसी समय ह ला बोलना चाहता था परंतु कुंभकण के पास एक योजना थी जो क
मेघनाद को ब कुल रास नह आ रही थी। उसने कुंभकण को एक कायर और बूढ़ ी
कहा और कुंभकण ने मेघनाद तथा अ तकाय को बंद बनाने का आदे श दे दया। सेनाप त
का आदे श भला कौन टाल सकता था? प र थ तयाँ वकट हो चली थ । कुंभकण के लोग
ने मेघनाद तथा अ तकाय को घेर कर, तलवार ख च ल । मेघनाद के लोग भी अपने नेता क
ओर से लड़ाई के मैदान म आ डटे और शी ही पूरी सेना पर पर यु करने लगी। असुर को
परा जत होने के लए भला दे व क सहायता क या आव यकता थी। म इस नक से बाहर
नकलना चाहता था।
अंगद एक बौराए हाथी क चपेट म आ गया जसने उसे र पटक दया। घमंडी वानर कुमार,
धड़ाम से वानर सेना के बीच जा पड़ा, वह अपने ही लोग के पैर तले कुचला जाता परंतु वह
कसी तरह वहाँ से खड़ा होने म सफल रहा और यु म शा मल एक अ ारोही से उसका
अ ले कर, उस पर सवार हो गया। मुझे यह दे ख कर ब त ही नराशा ई क वह कायर
अपनी जान बचाने के लए खेमे क ओर भाग गया था और उसने जस अ ारोही का अ
लया था, वह बेचारा वहाँ एड़ लगाते अ के म य कुचल कर मारा गया।
हाथी इतने बगड़ गए क वे अपने महावत क सुनने को तैयार नह थे। मेघनाद व अ तकाय
के अनेक अ नबाण नशाने पर जा कर लगे तथा कई वानर भी परलोक सधारे, परंतु जब
असुर आकाश म रचे जा रहे इस तमाशे को दे खने म त ए तो उनके ारा कए जा रहे
आ मण म अचानक ही मंद आ गई। तभी अचानक वह क़हर बरपा। यं क व न म
एकदम प रवतन आया और वह उड़ने वाला यं लड़खड़ाने लगा, उसके पंख क ग त धीमी
हो गई और वह सेतु के नकट पानी म कसी पाषाण क तरह जा गरा। यह पहले तो पानी
म डू ब गया और फर तैर कर सतह पर आ गया। मेरा दल तो वह डू ब गया ‘मेरा पु
अ तकाय!’ म आगे क ओर भागा पर अपने से श शाली लोग ारा रोक दया गया जो
इस तमाशे को दे खने के लए मुझसे भी अ धक आ ही थे।
म अपनी जान बचा कर भागा और ताड़ के पेड़ पर चढ़ गया। वहाँ नीचे, दोन प के यो ा
आपस म यु करने क अपे ा बौराए पशु से लड़ रहे थे। एक ज़ोर क गड़गड़ाहट के
साथ पुल टू ट गया। मेघनाद, अ तकाय तथा कुंभकण उस ओर रह गए थे, जहाँ उनके व
हज़ार श ु तैयार खड़े थे। वानर सेना अपनी ओर आने वाले कुछ हा थय का वध करने म
सफल रही। कुंभकण ने कसी तरह अपनी गदा को नकाल लया और वह अब उसे मेघनाद
व अ तकाय तथा हनुमान के नर वानर के बीच लए खड़ा था।
इस तरह जब केवल एक उस संकरे सेतु पर, इतनी वशाल वानर सेना संभाल रहा था
तो यह दे ख कर जांबवन अपने सै नक पर च लाया क वे नाव म बैठ तथा कुंभकण को
पीछे से घेर ल परंतु कुछ असुर क म त लौट आई थी और उ ह ने जांबवन क नाव को
कुंभकण के समीप जाने से रोकने क चे ा क । सागर म एक बार फर भीषण रण छड़ गया
था। म दे ख सकता था क व ण के यु पोत भी लौट आए थे। वहाँ से कुछ ड गयाँ खोली
ग जो बड़ी ग त से कनार क ओर आ रही थ । ‘हम कतनी दे र तक सब संभाल सकगे?’
कतनी ज द सारा खेल पलट गया था और यह सब उस मूख मेघनाद तथा उसके दखावे
क वृ का कया-धरा था।
अंततः जांबवन साम रक थ त पाने म सफल रहा और इस बार भी राम ने कोई चूक नह
क थी।
असुर बड़े ही भय तथा आतंक के बीच अपने सेनाप त को मरता दे खते रहे और वानर सेना
आगे क ओर भागी ता क पु पक वमान म बैठे राजकुमार मेघनाद तथा उसके सहायक को
भी यमलोक प ँचा दे । मेरा सर चकराने लगा। या म अपने पु के वध का सा ी बनने जा
रहा था? या मेरे आगे उसके टु कड़े-टु कड़े कर दए जाएँग?े तभी हनुमान हला और वानर
सेना आ यच कत हो उठ , उ ह ने तो यह मान लया था उनका सेनाप त भी यु म मारा
गया। हनुमान क दे ह म जीवन का संचार होने लगा तो वे वह ठठक गए। वह लड़खड़ाया,
ह का सा झूमा और फर वयं को पु पक वमान के सहारे साध लया। तभी उस यं के पंख
ग त करने लगे। उसने घबरा कर छलाँग लगा द और इससे पूव क वानर यह जान पाते क
यह सब हो या रहा था, पंखे बड़ी ती ग त से घूमने लगे। जांबवन ने यं को ऊपर उड़ते
दे खा तो उसने उसे रोकने के लए आदे श दे ना आरंभ कर दया। वानर सनसनाते तीर ,
आपस म टकराती गदा के म य भागे तथा अपने-आप को चोट प ँचाते ए उस यं को
रोकना चाहा जो बड़ी ग त से ऊपर उठने लगा था। कुछ वीर ने अ तम साहस का प रचय
दे ना चाहा पर गोल घूमते पंख क चपेट म आकर टु कड़े-टु कड़े हो गए।
रावण
म मंदोदरी से ब त ो धत था। म अपने पु का नामो नशान मटा दे ना चाहता था। मूख!
समझ नह आ रहा था क उस जड़म त के साथ या क ँ ? कभी-कभी वह अचूक परा म
व शौय दशाता; वय क क भाँ त वचार तथा वहार करते ए स चे नेतृ व के गुण का
दशन करता; और कई बार ऐसे पेश आता मानो उससे बड़ा गधा कोई और हो ही नह !
मुझे जो भी सूचनाएँ मल रही थ , वे पूणतया प थ । यह इस मूख क मूखता का ही
प रणाम था क हमने यु म अपने एक े सेनाप त को खो दया। कुंभ क मृ यु पर मुझे
ह त व मारीच क मृ यु से भी अ धक शोक आ।
“लड़क को छोड़ दो! लड़क को छोड़ दो। जब दे खो, तब यही रट लगाए रहती हो। जाने ये
मूख बड़ा कब होगा? कह इस संग त ने ही तो इसे इतने मोटे दमाग़ वाला नह बना दया
है?” मने अ तकाय को घूरा, शायद उसे मेरी बात सुन कर बुरा लगा था।
“रावण! मुझे ऐसी बात कहने पर ववश मत करो, जनके लए मुझे बाद म प ाताप हो।
या तुम सचमुच यही चाहते हो क म तु ह मरण करवाऊँ क यह यु य कर आरंभ
आ? या तुम मेरे मुख से यह सुनना चाहते हो क तु हारी हठध मता तथा दं भ के कारण
ही सारा असुर वंश वनाश के कगार पर आ खड़ा आ है। कृपया मेरी ज ा को ऐसी बात
कहने के लए ववश मत करो।”
वह केवल मुझे घूरती रही, “रावण! बेहतर तो यही होगा क तुम इस समय जा कर व ाम
करो।” म कुछ दे र तो वहाँ ककत वमूढ़ सा खड़ा रहा और फर वहाँ से चला आया। मने
वयं को अकेला, अपमा नत, कुं ठत व आवेश त पाया। मेरे साथ ही इतनी भयंकर घटनाएँ
य घटती ह? म अपने जीवन म इतना खी तथा अभागा य था? मुझे ही हर चीज़ के
लए संघष य करना पड़ता था? मेरे लारे पु ने जो भूल क थ , म ऐसी भूल कदा प न
करता। वह एक दन उस वशालतम सा ा य का उ रा धकारी होगा, जसे संसार ने इससे
पूव दे खा तक नह था।
कुंभ, मेरे भाई! तुझे तो मने ब त समय पूव ही याग दया था। मने तुझे कभी पतन के गत म
जाने से नह रोका। हो सकता है क मने तुझे अ य प से ो सा हत ही कया हो
य क तेरी यह दशा मेरे लए भी अनुकूल थी। म तुझसे भयभीत था। म तेरे म त क म
च कर काटती मह वाकां ा को पढ़ सकता था और तेरे भीतर पनप रहे ई या भाव को
अनुभव कर सकता था। तू भी राजा बनना चाहता था। तुझे कहाँ पता था क यह राज,
कसी काँट के ताज से कम नह होता या यह स ा कस कार, को करते ए,
उसक आ मा का य कर दे ती है। तुमने अपनी मह वाकां ाएँ म दरा व अफ़ म म डु बो द
परंतु स ा क जो अफ़ म म ले रहा था, वह तेरे ारा लए गए कसी भी मादक पदाथ से
कह अ धक श शाली थी। तू नरंतर वषपान करते ए, अपनी लत पूरी करता रहा और
मने मनमाने अ याचार से यह अभाव पूरा कया। तू कसी वशाल क तरह था, जो
अपने ही अ ान के नशे म चूर था और म एक छोटा था, जो अपनी स ा के साथ
दन-रात जागता था। तेरी मह वाकां ा अप र कृत व भावनाएँ पारदश थ । तू मुझे भयभीत
करता था य क मुझे तुझसे अ धक अपने राज सहासन से ेम था। म तो स ा व श को
अपने-आप से भी अ धक चाहता था। म डरता था क एक दन जब तू अपनी तं ा से
जागेगा तो मेरी पीठ पीछे , सहासन पाने के लए षड़यं रचने लगेगा। जब तू म दरा पी कर
बेसुध होता, तो म न त हो जाता। य प मने तुझ पर पूरी नगरानी रखी, मने हमेशा यान
रखा क तू म दरापान कर, बेसुध हो, सोता रहा करे। कुंभ, तू उन य म से था, ज ह ने
मेरी न ा भंग क । परंतु जब मुझे व ासघात का उपहार मला तो यह तु हारी ओर से नह
था। यह उस छोटे भाई से मला, जससे हम सभी हा दक नेह रखते थे। हम कैसे उसक
टाँग ख चते, उसक पीठ पीछे उसक हँसी उड़ाते और उस असुर छोकरे के बारे म रोचक
क से गढ़-गढ़ कर सुनाते जो ा ण बनने का हर संभव य न कया करता था। अब वह
सारा उपहास हम पर आ पड़ा है। हम ही एक मज़ाक बन कर रह गए ह। श ु ार तक आ
प ँचे और हमारा ही छोटा भाई, मशाल लए, उनका नेतृ व कर रहा है। वह हमारे सभी व
को ः व म बदलने के लए तुत है। मेरी भूल भाई, यह मेरी भूल है। मुझे मा करो, म
तु ह ही ख़तरनाक मान कर, तु हारी नगरानी करता रहा और इस आ तीन के साँप पर
चैकसी रखना भूल गया। कुंभ! तुम हमेशा से सही कहते थे। मुझे याद है, तुमने ब त पहले,
वभीषण के वभाव के इस ल ण व उसक न ा पर संदेह कट कया था। परंतु म ही
अनाड़ी था और मने सोचा क तुम जानबूझ कर कसी षड़यं क भू मका बाँध रहे थे। मुझे
लगा क तुम मुझे छोटे भाई से लड़वा कर, वमुख करना चाहते थे ता क स ा तक आने के
लए तु हारे माग का हर काँटा साफ़ हो जाए। परंतु जब मुझे कसी क आव यकता पड़ी,
इस असुर जा त को अपनी र ा के लए कसी के सहारे क आव यकता पड़ी तो उस समय
तुम ही हमारे काम आए। हमने तु हारी ही सहायता ली। तुमने पूरे साहस के साथ मुझे मेरी
मूखता का भान तो कराया परंतु अनाव यक परामश दे ने क चे ा नह क । अब मुझे
एहसास आ क तुम सही मायन म या थे, परंतु अब इन बात के लए ब त वलंब हो
गया है। अब तो यु भी हाथ से नकला जा रहा है। शी ही क ठनाईय से अ जत यह
स यता, सभी य के लए समानता के आदश, सुंदर नग रयाँ व महल, भ दे वालय
तथा राजसी राजमाग, वे बंदरगाह, जहाँ ापा रय के पोत हमारे सबसे े मसाल तथा
व के लए ती ा करते ह, हमारी कला तथा रंगमंच; यह सब कुछ हमारे श ु के पैर
तले कुचला जाएगा। तुम सौभा यशाली हो। तुम यहाँ नह होगे, जब असुर के व , पलक
झपकते ही कह वलीन हो जाएँग।े तुम यहाँ नह होगे, जब सब ा ण का म त क होगा;
दे व यो ा अंग ह गे तथा कुबेर जैसे धूत, हमारे इस भ समाज का धड़ ह गे। एक ऐसा
समाज, जसे हमारा छोटा भाई हमारी लाश पर खड़ा करना चाहता है। भाई, तुम न र
दे हधा रय के भा य के साए से ब त र चले गए हो। हो सकता है क म भी ब त शी
तु हारे पीछे ही आ जाऊँ। मेरा एकमा भय यही है क जब हमारी भट होगी, तो या म
तु हारी आँख म आँख डाल कर दे ख सकूँगा?
मंदोदरी आकर, मेरे समीप खड़ी हो गई। उसके पश से मेरे वचार क ंखला टू ट ,
“रावण! हमारे ब चे का दल बुरी तरह से आहत आ है। उसे लगता है क आज उसक
भूल के कारण ही उसके काका के ाण गए। यह सारा दोष उसी का था।”
“ये उसका दोष था। रणभू म लोग को भा वत करने के लए, ःसाहस दखाने का थान
नह होता। कुंभ क मृ यु हमारे लए एक अपूरणीय त है और म ल जत ँ क मेरा पु
इस हा न का मूल कारण बना। म नह चाहता क अब वह पुनः रणभू म म वेश करे। असुर
अब और ऐसी भूल सहन नह कर सकते।”
मेरा पारा फर से सातव आसमान पर जा प ँचा। “कभी संग त दे खी है उसक ? उसे अपने
साथ उस काले-कूलटे नौकर को ले कर घूमने क या आव यकता है…?” मने मंदोदरी से
नज़र बचाते ए अपनी बात पूरी क ।
“तु ह या लगता है क मेरा कोई अपना गौरव या मान-स मान नह है? तुम चाहती हो क
म अपने सबसे े यो ा, भाई, म व मं ी गँवाने के बाद, राम के चरण म अपना सर
रख ँ ? तुम चाहती हो क असुर का स ाट, एक तु छ रा य के राजकुमार तथा छोटे -मोटे
साह सक कृ य कर दखाने वाले यो ा के आगे, रहम क भीख माँगे?”
“मंदोदरी! तुम यह भूल रही हो क यह वही राजकुमार है जसने मेरी बहन का अपमान कर,
उसका अंग-भंग कया था। या तुम कह रही हो क मुझे उसे उस अपमान को भी भुला दे ना
चा हए?”
म वहाँ ब त दे र खड़ा रहा। अपनी ही पु ी से बात करने का साहस संजो रहा था। तभी मने
ब त ही हौले से, न सुनाई दे ने वाले वर म कहा, “पु ी…!”
“काका ी!…।” तभी मेरा यान जटा क ओर गया। म इस समय उसका सामना नह
करना चाहता था। उसने भी न त प से अपने पता के बारे म सुना होगा। “काका ी!
या आज मेरे पता ने एक वीर असुर यो ा क भाँ त यु कया?”
“पु ी जटा! मुझे मा करना…।” मेरे पास उससे कहने के लए कोई और श द नह थे।
“मने अपनी माँ से सुना है क मेरे पता सदा ही एक महान यो ा रहे थे। म दरा के वश म
आने से पूव, वे आपसे भी कह े यो ा थे। परंतु, जब म बड़ी हो रही थी तो इस दौरान वे
अपने-आप को पूरी तरह न कर चुके थे। एक पय कड़ क बेट के प म कारा जाना,
मेरे लए यह सब इतना आसान नह था। काश! वे भी मेरी स खय के पता क भाँ त
एक आम और सीधे-साधे इंसान होते। म उनसे घृणा करती थी। परंतु अब, जब…।”
“मेघनाद कहाँ है?” मने उससे पूछा य प म जानता था क मुझे या उ र मलने वाला
था। उसने पूजा क क ओर संकेत कर दया, जहाँ मेरा पु ायः नृ यरत शव क मू त
नटराज के स मुख म तक नवाया करता था। मेरे मन म आस क एक करण सी जागी।
“मेघनाद! मेघनाद पु ! मेरे पु !” मन म कह ह क सी आशा थी क वह अभी खीस
नपोरते ए बाहर आ जाएगा। मने काँपते हाथ से क का ार खोला। वहाँ मेरे पु का
नज व शव पड़ा था। म वह धरती पर गर गया, म अपने ने को भरसक उस भयावह य
से परे रखना चाह रहा था य प फर भी मेरी बार-बार वह जा रही थी। मेघनाद का
कटा शीश शव के चरण म रखा था और बाक शरीर कुछ क़दम क री पर था। उसक
पीठ म चार तीर छदे ए थे। साफ़ दख रहा था क मेरा पु मरने से पहले यह तक नह
जान सका क वहाँ हो या रहा था। उस पर पीछे से वार कया गया था। जब उसके ाण
नह रहे तो उ ह ने उसका सर धड़ से अलग कर दया।
“वह ल मण ग म घुस आया था। वे करीब चालीस थे। कोई नह जानता क वे लोग
कहाँ से आए और उ ह ने ग म कैसे वेश कया या वे कैसे जानते थे क युवराज यहाँ पूजा
कर रहे थे।” वृ सुब कयाँ भरे जा रहा था “जब युवराज यहाँ आए तो उनका मनोबल बुरी
तरह से बखरा आ था। उ ह ने मुझे बताया क यु म उनक पराजय ई और वे ही अपने
काका ी क मृ यु के उ रदायी भी थे। वे पूजा करना चाहते थे… परंतु… दे खए कैसे…
वे…।”
वह भी मारा गया। शायद बाहर कह पड़ा होगा। सभी मारे गए। उ ह ने मुझे छोड़ दया
शायद मेरे बुढ़ापे पर दया आ गई होगी।”
“यही था… यही था… इसने खोले थे… ार… मने राजकुमार को बचाने क ब त
चे ा क … मुझे मा कर… म नह बचा सका… मने य न कया… ब त य न कया…
ल मण यहाँ आया था… यही जंबूमाली उसे यहाँ लाया… म बाहर था और… मने सब
दे खा… राजकुमार अकेला रहना चाहता था… तभी म बाहर गया… वहाँ ार के पास था…
जब म लौटा… मने उसे दे खा… वह मेघनाद के शरीर के पास… म लड़ा… पर वे बच कर
भाग नकले… मने को शश क … को शश क …।” उसके ाण पखे उड़ने को तैयार थे।
मने उसे उठाना चाहा परंतु उसक वशालकाय दे ह को हलाना सहज नह था। धीरे-धीरे,
मेरा अवैध पु मेरी आँख के आगे दम तोड़ रहा था और उसने दम तोड़ दया। मने उसे हौले
से नीचे रख दया। म ब त ज़ोर से रोना चाहता था परंतु म उठ खड़ा आ। बूढ़ा जंबूमाली
कोने म बैठा कसी डरपोक चूहे क तरह काँप रहा था। म उसके पास गया और टाँग के
बीच ठोकर दे मारी। वह च लाया और मेरे पाँव पकड़ लए। “दया… दया… महाराज!” वह
घ घयाने लगा। मने अपनी कटार नकाली और उसके टु कड़े-टु कड़े कर दए। धीरे-धीरे, मने
पूरा रस लेते ए यह काय संप कया। अब तो मेरे पास समय ही समय शेष था। मने उसके
ने से आरंभ कया और फर नीचे के बाक अंग को अपना नशाना बनाया। इस काय म
मुझे ब त ही आनंद आया। उसक चीख़ मेरे कान को कसी मधुर संगीत से कम नह लग
रही थ ।
45 शहीद का अं तम सं कार
भ
जब मने वह समाचार सुना, जसका मुझे सबसे अ धक भय था तो म महल क ओर भागा।
ातःकाल का समय था। सब कुछ अंततः समा त हो गया था। मेरा पु , मेरा मूख पु भी
राजकुमार मेघनाद के साथ मारा गया था। म जानता था क एक न एक दन तो ऐसा होना
ही था। और म इस वषय म कुछ नह कर सका था। एक पता का अपने पु के त नेह,
सदै व एकतरफ़ा होता है। जब म वहाँ प ँचा तो म ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा, अपनी छाती पीट
और सड़क पर लोटने लगा। म अपने-आप को संभाल नह सका। जो भी कोई मुझे सुनता,
म उसे यह बताना चाहता था क मेरे पु ने राजकुमार के लए अपने ाण क आ त दे द
थी परंतु कसी ने भी सुनने क परवाह नह क । वे सभी राजकुमार क मृ यु का शोक मनाने
जा रहे थे। वे उस भ अं तम सं कार का एक ह सा बनना चाहते थे। सड़क के दोन ओर
भारी भीड़ जमा थी। म यही सोच रहा था क आज कोई यु य नह था। यह तो मानो
दै नक चया का एक अंग बन गया था इस लए यु के बना नकला आ दन, बड़ा ही
नरथक सा लगा। उ ह ने मुझे महल क ओर नह जाने दया। मने उनसे वनती क और घूस
दे ने का यास कया परंतु आज तो वे पहले से भी अ धक अ श ता व ता से पेश आए।
उ ह ने मुझे पीछे धकेल दया। “मेरा पु मारा गया है। मेरे पु ने राजकुमार के लए अपने
ाण याग दए ह। मेरा पु !”
जूलूस म सबसे आगे, रावण सर झुकाए बैठा था। उसक गोद म मेघनाद था। मौन अ ु
तथा वेद क धाराएँ राजा के य पु के म तक को चूम रही थ । राजकुमार का चेहरा
र रं जत था और भयावह दख रहा था। मृ यु ने उसक सारी सुदंरता तथा यौवन सोख
लया था। जब वे मेरे नकट आए, मेरा दल ज़ोर से धड़कने लगा। ‘मेरा पु , मेरा अ तकाय
कहाँ था?’ शव को नकट आता दे ख लोग जैसे बौरा गए। मने आगे आना चाहा पर लोग
क भीड़ ने मुझे पीछे धकेल दया। मने दे खा क राजसी रथ के पीछे ब त सी बैलगा ड़याँ
भी आ रही थ जनम ब त से साधारण सै नक के शव के ढे र लगे थे। हो सकता था क
अ तकाय उनके बीच पड़ा हो।
तभी मुझे दखाई दया क महल का एक ार धीरे-धीरे बंद हो रहा था और भीड़ को वहाँ से
पीछे रखने का य न कया जा रहा था। वहाँ भीतर दो चताएँ सजाई जा रही थ । एक पर
मेघनाद का न ाण शव रखा था और नःसंदेह सरी चता पर मेरे अ तकाय का भारी-
भरकम नज व शरीर पड़ा था। म बंद हो रहे दरवाज़ क तरफ भागा। र क पसीने से
लथपथ थे और भीड़ से जूझते-जूझते प त हो चुके थे। मने उस थोड़े से खाली थान से
भीतर झाँकना चाहा तो मुझे बड़ी बे खी से पीछे धकेल दया गया। मने अपनी राह म आने
वाले र क के मुख पर घूँसा दे मारा और अपनी ही ताकत पर आ यच कत हो उठा। लंबा
सा र क, एक बूढ़े के हाथ का घूँसा खा कर, क चड़ म जा गरा। इससे पहले क उसके
साथी कुछ समझ पाते। म भाग कर वहाँ से आगे नकल गया। मेरे पीछे खड़े कुछ सरे
लोग ने भी अपनी क मत आज़माने क सोची। इससे यह तो लाभ हो ही गया क वे लोग
आपस म ही उलझने म त हो गए और म चता के समीप जाने म सफल रहा।
मने दे खा क मेरा पु राजा ारा तैयार करवाई गई चंदन क चता पर शां तपूवक पड़ा था।
उसके शरीर पर सैकड़ घाव थे और चेहरे से यौवन क आब जाती रही थी। ऐसा लगता था
मानो कोई बदसूरत रा स मरा पड़ा हो। परंतु फर भी वह मेरा पु था, मेरे जीवन का
एकमा उ े य। कोई भी स ाट उस पर अपना दावा नह कर सकता था। वे जीते-जी तो
मुझे उससे र कर चुके थे परंतु अब मेरे मृत पु को भी मुझसे र रखा जा रहा था। उसक
भी एक माँ थी, जो एक छोट सी कु टया म उसक ती ा कर रही थी। कोई भी रावण मुझे
एक पु को उसक माँ के पास ले जाने से नह रोक सकता था। राजा वह खड़ा था और
चेहरे पर गहन ःख व पीड़ा के भाव थे। रानी धरती पर पड़ी थी। उसके केश खुले थे और
वह हौले-हौले सुबक रही थी। महल के चाटु कार, वलाप के ती सुर के लए आपस म
तयो गता कर रहे थे। वे दखाना चाहते थे क उ ह राजकुमार क मृ यु का कतना ःख
था और इस तरह उ ह ने वहाँ उप व मचा रखा था। कुछ लोग चंदन क लकड़ी सज़ा रहे थे
जो कुछ ही ण म मेरे पु तथा राजकुमार को लील जाती। उसे महल म कभी अपने यो य
थान नह मला। वह जब तक जी वत रहा, उसने कभी मेरी एक नह मानी। वह तो महल
का एक ान था। कम से कम, वह मृ यु के समय तो यह दावा कर ही सकता था क वह भी
एक मनु य था। म राजा के समीप गया और धृ क भाँ त खड़ा हो गया। मने उसे झुक कर
णाम तक नह कया। ‘अगर यह इस धृ ता के लए मेरा शीश धड़ से अलग करवाना चाहे
तो बड़ी स ता से करवा सकता है।’
“म अपना पु वा पस चाहता ँ।” मने कहा कतु वह मुझे अपलक ताकता रहा। ऐसा लगा
क उसने सुना तक नह ।
म बुरी तरह से सस कयाँ लेने लगा। उसने मेरे कंधे पर हाथ धरा परंतु म उसका हाथ झटक
कर च लाया। ‘मुझे मेरा पु वा पस दो।’
रानी अपने ःख के सागर से उबरी और हमारे पास आई। उसने एक-एक श द ऐसे कहा
मानो उसे बोलने से ममातक पीड़ा हो रही हो। “रावण! इसे इसका पु दे दो। इसे उसका
शव ले जाने दो।”
जब मने अपने नधन महल को सहारा दे ने वाले मु य तंभ पर कु हाड़ी का पहला वार
कया, तो उस समय मेरे म त क म रावण का मुख च कर काट रहा था। फर हर वार के
साथ, मने क पना क क म उन सभी महान य के शीश काट रहा था, ज ह मने दे खा
था अथवा जनके वषय म केवल सुना था। मेरी प नी ने रोना बंद कया और मुझे कोसते
ए दौड़ी। उसने कहा क म बौरा गया था। म अपने महल को टु कड़ म काटता रहा। अब
यह एक खेल बन गया था और म इसका पूरा आनंद ले रहा था। मने वभीषण, कुंभकण,
ह त, राम, ल मण, सीता, मंदोदरी, जंबूमाली, व ुत ज हा, कुबेर तथा व ण आ द सभी
के नाम पर एक-एक वार कया परंतु इससे पूव क म उनके शीश धड़ से अलग करने के
मनपसंद वार कर पाता, मेरी कु टया हरहरा कर नीचे आ गई।
रावण
श ु ब त नकट आ प ँचा था। म अंत को अपने समीप दे ख सकता था य प म इसे
वीकार नह करना चाहता था। कल ही तो अपने पु क चता को मुखा न द है। अब तो
कुछ बचा ही नह था, केवल राम से अंत तक यु करना ही शेष था, भले ही वह अंत मेरा हो
अथवा राम का! परंतु म कस लए यु कर रहा था? मेरा सा ा य समा त ाय था, मेरे पु
क मृ यु हो चुक थी, मेरी रानी क मान-मयादा को धूल म मला दया गया था। अब शेष था
ही या? यह स य है, मेरे पास यह सुंदर नगरी थी, जसे मने कड़े प र म व नयोजन से
तैयार करवाया था; वह वैभव था जसे ब त समय पूव दे व से जीता था; और मेरी पु ी, जो
मेरे ही श ु क प नी थी।
मने ह त सरीखे लोग पर नज़र रखी; मने यह सु न त कया क कुंभकण सदै व अपनी
म दरा व भाँग क वकृत कुटे व म म न रहे; मने यह सु न त कया क क सरीखे ू र
कह ब त अ धक श के वामी न बन जाएँ। मने मूखतापूण प से यह व ास कया क
व ण जैसे द यु को ‘सात सागर का सेना य ’ तथा ‘असुर जलसेना का महान नायक’
जैसी भावी उपा धय से ख़रीदा जा सकता था। मने वयं अपनी बहन के प त व ुत ज हा
क ह या करवाई थी। परंतु म सीधे व नद ष दखने वाले ी-पु ष ारा ही छला गया जैसे
वभीषण, जो अपने आचार- वचार से कतना प व जान पड़ता था; जैसे जंबूमाली जो एक
ऐसा नौकरशाह दखता था, जो अपने लेखे-जोख के संसार म खोया रहता; लं कनी जैसी
ी, जो कभी सावज नक प से दे श तथा राजा के त अपनी न ा तथा नेह के दशन
से चूकती नह थी। मेरे पास श शाली म थे, परंतु जब उनक आव यकता आन पड़ी तो
म नपट अकेला था। मने सोचा क मेरा सा ा य लौह न मत था परंतु जब तूफ़ान आया तो
मने पाया क यह तो तनक से बना था, जसे बखरते दे र नह लगी। मने जस पर भी
व ास कया, उसी ने मेरे साथ छल कया। म तो अपनी बु मता पर इतना गव करता था,
तो म लोग को परखने म इतनी बु नयाद भूल कैसे कर बैठा? म सब कुछ नए सरे से आरंभ
करना चाहता ँ परंतु यह जीवन इतना छोटा है क इसम कुछ भी पुनः करने का अवसर नह
मलता। मुझे भी तो केवल एक ही अवसर दया गया था जसे मने दोन हाथ से लपक
लया था। मने तो एक महान सा ा य का गठन कया, परंतु अब समय बदल गया था और
जैसे मेरे आसपास क हर व तु चूर-चूर हो कर बखरती जा रही थी। मुझे इसके लए कोई
प ाताप नह था। म एक भरपूर जीवन जी चुका था। बस अब यह आ मदया का खेल ब त
आ। कुछ े कर दखाने का समय आ गया था। म जानता था क म असफल हो सकता
था, परंतु म अपनी जा के लए एक भ असफलता का ऋणी था। केवल वही लोग तो थे
ज ह ने मेरे साथ कोई छल-कपट नह कया था। मने उनके लए या कया, उ ह ने मुझे जो
नेह दया, मने उसका या तदान दया? मुझे ब त गव था क मने अपने असुर के लए
कतने महान तथा वशाल सा ा य का नमाण कया था, मने सोचा क मने उ ह चरवां छत
मयादा तथा वतं ता दान क थी, परंतु संभवतः यह समझना मेरी भूल थी। म भी एक
आततायी था, हो सकता है क थोड़ा नेही रहा होऊँ कतु म महाब ल नह था। मने अपने
कान और आँख खुले नह रखे। म अपने ही लोग क पीड़ा व क के लए अंधा और
बहरा बन गया था। जब म बड़ी व तु के लए भाग रहा था – बड़े नगर , भ दे वालय ,
चौड़े राजमाग , े बंदरगाह , वशालतम यु पोत , ापार म वृ , वसाय म बढ़ोतरी,
संसार के सरे रा के बीच या त अ जत करने तथा अपने दे श को संसार का सबसे धनी
दे श बनाने क तयो गता म शा मल था – तो उसी दौरान कुछ साद परंतु आधारभूत बात
भूल गया था। म अपने लोग , अपनी जा को भूल गया था। मने सोचा था क यह जगमगाते
नगर ही ग त ह। म उन लोग के वषय म भूल गया था, जो ना लय म अपनी ज़दगी बसर
करते ह। जब म उदारतापूवक भ भोज का आयोजन कर रहा था, तो म भूल गया क मेरी
अ धकतर जा के पास पेट भरने के लए अ तक नह था।
म जो कुछ भी सोच रहा था, उन वचार को सोचने से लाभ भी या था, मुझे कभी जीवन म
सरा अवसर नह मलने वाला था। वे आदशवाद व थे – मेरे अपने न न म यमवग य
तर क इ छाएँ, मेरी युवाव था क बखरी क पना के चर व मृत टु कड़े! य द सरा
अवसर मलता भी तो स ा मुझे फर से कर दे ती। आदश हमेशा क तरह दम तोड़ते
और कह एकांत म दफ़ना दए जाते। स ची बु मता इसी बात म छपी थी क आदशवाद
केवल स ा ा त करने का साधन मा था। कल मेरी मृ यु हो सकती थी या फर राम मारा
जा सकता था, परंतु यह जगत उसी कार चलायमान रहेगा। शो षत शो षत ही रहगे और
नधन सदा नधन ही बने रहगे। नई ाँ तयाँ घट सकती ह; नई आदश धारणाएँ पनपग ;
नै तकता के कुछ नए मायने, पुराने नयम का थान ले लगे; नए संत महा मा ज म लगे; नए
राजा धरती पर शासन करगे; नए धम अंकु रत ह गे तथा आपस म संघष करगे और अनेक
नए आ व कार कए जाएँगे परंतु सब कुछ वैसा ही रहेगा। अपराध बोध क अनुभू त य
हो? मने वही कया, जो म कर सकता था। म इससे भी े दशन दे सकता था, परंतु ऐसा
कौन है जो नह दे सकता?
य प कतनी व च बात थी, मुझे एहसास आ क मुझे इसम से कसी बात के लए कोई
चता नह थी। म व तु के इस म के म य, वयं अपनी हीनता व तु छता को अनुभव
कर सकता था और इसी ने मुझे आ म-क त बना दया था, हालाँ क मेरे लए भी यह
कौतूहल का वषय था। य द म जीवन के इस वशाल म के बीच कोई मह व नह रखता
था अथवा म एक मह वहीन ब मा था, तो केवल एक ही बात मेरे लए मायने रखती थी,
म वयं! मेरी मृ यु के साथ ही, मेरे लए तो सब कुछ अंत हो जाता। मेरी मृ यु के बाद मेरे
लोग का या होगा, यह मेरी सम या नह थी। म जानता था क मृ यु अं तम थान ब
होगी और उससे परे कुछ नह होगा। मेरे लए कोई आ मा, वग, मो , नक, दे वता अथवा
मृ यु के प ात जीवन ती ारत् नह था। म धरती, जल, वायु तथा अ न आ द म वलीन हो
जाऊँगा और सब कुछ वह थम जाएगा। य प, मुझे अवसर दया जाएगा तो म बड़े ही नेह
से इस धरती पर लौटना चा ँगा। भला कौन नह चाहेगा?
भ
पछली रात, म जब तक राज ासाद के ार तक प ँचा, भोजन का वतरण समा त हो चुका
था। येक जानता था क नधन के लए जो भोजन भेजा जा रहा था, उसम से
केवल आधी मा ा ही उन तक प ँचती थी। कृषक से अनाज क ख़रीद से ले कर, भोजन के
अं तम वतरण तक, चार ओर लूटमार तथा कालाबाज़ारी का सा ा य था। कृषक इसके
बदले म, सावज नक य अ धकारी को मा ा व गुणव ा, दोन ही मामल म ठगते। वह
छोटे मुनीम को घूस दे ते जो खात म, रा य को मलने वाली रसद से कई गुना अ धक मा ा
दज करते। फर अ धकारी कुछ अनाज चुरा कर, काले बाज़ार म बेच दे ता। जब तक अनाज
महल के गोदाम म प ँचता, तब तक खात म दज मा ा तथा भौ तक प से रखे गए
अनाज क मा ा म ज़मीन-आसमान का अंतर आ चुका होता, ऐसे म नरी क को ववश
हो कर, गने दाम म काले बाज़ार से अनाज ख़रीदना पड़ता। वे भी खात म हेरा-फेरी करने
से बाज़ न आते और उनम दखाया जाता क कतना अनाज क ड़े खा गए थे, जसके
कारण पुनः अनाज ख़रीदना पड़ा। चूँ क इस कमी क पू त क अपे ा उनसे नह क जा
सकती थी इस लए दानी स जन क सं या तथा अनाज पाने वाले नधन क सं या म
फर से हेर-फेर होता ता क वे इस या म थोड़ा सा अनाज और गायब कर सक। सभी
अव था म घूस का ही राज चलता।
म न त प से ब त ज़ोर से ही कराह रहा था, तभी कोई मेरे नकट आ गया। मेरी
वर त धुँधलाई आँख उस वशाल काली आकृ त को नह पहचान सक । म भयभीत हो
गया। य ही वह मुझ पर झुक तो मेरे पूरे शरीर म भय क लहर दौड़ गई। वह आकृ त
झुक और अपनी काली व मोट अंगु लयाँ मेरे नथुन के नीचे रख कर कुछ कहा। दो सै नक
हमारी ओर दौड़े। ‘ या वे मुझे बंद बनाने जा रहे थे?’ मेरा म त क नरंतर यही वचार
करने लगा क भला मुझसे कौन सा अपराध हो गया था?
“यह तो मर रहा है। इसे तो ब त ती वर है।” एक लहराती ई ेत दाढ़ वाला मुख मुझ
पर झुका आ था। मुझे थोड़ी राहत मली। यह तो वही पगला वै ा नक मय था। यह
भले ही सनक था परंतु पूरी तरह से हा नर हत था। “इसे ग के भीतर ले चलो।” मने उसे
कहते सुना।
“ओह! ओह ब ढ़या… तुम इसे यहाँ ले आए? इसे मेरे घर के ांगण म ले जाओ। म इसक
ाणर ा का य न क ँ गा।” मय ने अपने लोग को आदे श दया और भीतर चला गया।
वै ा नक के जाने के बाद, ब त दे र तक वह ारपाल मुझ,े मं ी को और अपनी चाकरी को
कोसता रहा। फर इसके बाद उसने क न को आदे श दया क वे मुझे ागंण म ले जाएँ। म
इतना बल हो गया था क उ ह मुझे तकरीबन उठा कर ही ले जाना पड़ा। उ ह ने मुझे
ना रयल के बोरे क तरह शीतल, सु च कन व साफ़ ांगण म पटक दया। कुछ दे र बाद
वै ा नक अपने सहायक के साथ बाहर आया जसके हाथ म कोई ब त ही गधयु पेय
था। सहायक ने अपने हाथ से मेरे नथुने बंद कए और जब मेरा दम घुटने लगा तो उसने वह
कड़वा आसव मेरे कंठ के नीचे उतार दया। म दद से कराहा और ठने लगा, म भयभीत हो
उठा, ऐसा लगा क कह म मरने तो नह जा रहा। दो य ने मेरे ठते बदन को तब तक
संभाला, जब तक म अपनी सारी श गँवा कर, अचेत नह हो गया।
ने खुले तो सर म ती पीड़ा थी, मेरा सर चकरा रहा था और थकान अनुभव हो रही थी,
परंतु पछले दन से तबीयत म सुधार लगा। हो सकता है क मय को औष धय का भी
थोड़ा-ब त ान रहा हो। म धीरे से उठा तो पाया क मेरे समीप ही एक बतन म थोड़ा
भोजन तथा एक गलास म छाछ रखी थी। मने भोजन पर झप ा मारा और जतनी तेज़ी से
उसे नगल सकता था, नगल गया। मेरे अंग क खोई श लौट आई। म उस वृ को
ध यवाद दे कर, शी ा तशी अपने घर लौट जाना चाहता था परंतु वह तो कह दखाई नह
दे रहा था। मुझम इतना साहस नह था क भड़े ए, बड़े से ार को खटखटाता। ये ब त ही
मह वपूण थे और म इतना तु छ था क इन श शाली व समथ लोग का ार तक
खटखटाने क औकात नह रखता था। उस वृ को छोड़ो, मुझे अब इस महल से बाहर
नकलना है।
य ही म जाने लगा तो मने राजा रावण को अशोक वा टका क ओर जाते दे खा, जहाँ सीता
ने हठपूवक अपना नवास बना रखा था। कतनी व च सी बात थी, वह अकेला था और
ब त ग त से जा रहा था। म सोचने लगा क भला राजा के मन म या था और यही जानने
के लए म चुपचाप उसके पीछे चल दया। जब राजा अपनी पु ी के सामने मूक खड़ा था,
तब तक म वयं को मोगरे के झाड़ के पीछे छपा चुका था। म उस अतीत को मरण कर
सहर उठा जो रावण, सीता, वेदवती और मुझे एक सू म बाँधता था। यहाँ, मेरे सम , वही
न ही सी पोटली धरी थी, जसे वष पूव, मारने का काय मुझे ही स पा गया था। मृ तयाँ भी
कतनी व वध थ । पता व पु ी एक सरे को अ यंत घृणा तथा बैर के साथ ताक रहे थे।
सीता ने अपने पता के व को धूल म मला दया था और वह उसी के कारण एक संपूण
सा ा य के भ व य को क चड़ म लथपथ कर चुका था। जब वह आज से तीन दशक पूव,
मेरे गहरे काले हाथ म सुबक रही थी, तो मुझे तभी उसका वध कर दे ना चा हए था। उस
समय उसके नथुने भ च कर, उसे मौत के घाट उतार दे ना ब त सरल होता। इसक बजाय,
मुझे उस न ही ब ची पर दया आ गई थी। म भी कतना मूख था! मुझे उनके इन पंच से र
रहना चा हए था अथवा उनके आदे श का पालन करते ए क या धू ा क भाँ त
नःसंकोच वध कर दे ना च हए था।
“म तु हारे राम का खून अपने सर नह लेना चाहता। लोग पहले से ही मुझ पर दोषारोपण
कर रहे ह क मने शूपणखा के प त को मरवा दया। तुम उसके साथ एक दासी क भाँ त
जीवन य तीत करना चाहती हो? दे व पु ष अपनी प नय से पशु क भाँ त आचरण
करते ह।”
रावण
म ब त ही नराश मनः थ त म रणभू म क ओर चल दया। मंदोदरी ब त भावुक हो गई
थी। वह मुझे जाने ही नह दे ना चाहती थी। उसने मुझसे कहा क मुझे राम को सीता स प
कर शां त क अपील करनी चा हए। शां त… यह श द तो कायर के लए बना है। ‘ याँ! ये
तो तक अथवा कारण को कभी नह समझग ।’ जब वह चीख़ते- च लाते ए रोने लगी,
अपने बाल नोचते ए छा तयाँ पीटने लगी तो मुझे सचमुच थोड़ी ता के साथ उसे अपने
से अलग करना पड़ा। यह सारा तमाशा, मेरे सै नक के आगे आ। यह सब ब त ही
ल जाजनक था। उसने मुझ पर दोषारोपण कया क मने अपने अहं क ब लवेद पर सब
कुछ कुबान कर दया था। म भी च लाया और ऐसा ताना दया क वह बेचारी संकु चत हो
उठ । वह अभी अपने पु से वयोग के सदमे से भी नह उबरी थी, मुझे उसके साथ इतनी
बे खी़ से पेश नह आना चा हए था। ‘परंतु म तो उसके साथ हमेशा इसी तरह वहार
करता आया था। केवल उसके साथ ही य , म तो अपने जीवन म आने वाली हर ी से
इसी तरह वहार करता आया था।’
मने ोध के आवेश म आकर, अपनी वीणा के दो टु कड़े कर दए। मने अपने संगीत से ेम
कया था और म नह चाहता था क मेरे जाने के बाद कोई भी नर वानर मेरी वीणा को हाथ
लगाए या उसे बजाने क चे ा करे। मने उन राग व धुन को ल पब करने का यास
कया था, जो मने वयं तैयार क थ । उ मीद करता ँ क वे मेरे तथा मेरे सा ा य के नाम
को जी वत रखग । मने ब च को द जाने वाली औष धय तथा खगोल व ान म कुछ
योग कए थे और अपनी खोज को ताड़ प पर अं कत कर दया था। मने उ ह मय के
पास भजवा दया। संभवतः वह बौराया आ उ ह कसी प म, योग म ला सके।
जब तक मने यु े म पहनी जाने वाली पोशाक धारण क , मंदोदरी ने वयं को क म
बंद कर लया था। मने उसे कई बार पुकारा कतु उसने ार नह खोला। अंततः, म उसे
कोसते ए, अपने रथ क ओर चल दया। तभी मुझे ार खुलने का वर सुनाई दया और
वह ब त ही क णा भरे वर म मेरा नाम पुकारते ए पीछे आने लगी। म पीछे नह मुड़ा।
मुझे उसका मुख पुनः दे खने म भय हो रहा था। मेरा सारा दं भ तथा झूठा आ म व ास वह
पघल जाता और म असुर का स ाट होने क अपे ा एक भली व दयालु म हला का
औसत, म यम आयु का, त द वाला व गंजा प त बन कर रह जाता। म जानता था क य द
मने मुड़ कर उसका चेहरा दे खा, तो मेरे सारे संक प वह ढह जाएँगे और म बड़ी सरलता से
उसक बात के जाल म फँस जाऊँगा। म छलाँग मार कर रथ म चढ़ा और सारथी को रथ
चलाने का आदे श दे दया।
जब ग के ार खुले और मेरी असुर सेना दे व क सेना से दो-दो हाथ करने चली, तो मने
अपने भीतर से उठ रहे वर के भाव को दबाने क पूरी चे ा क जो यह कह रहा था क
कतने जीवन थ हो गए थे या और या हो सकता था। म अपने पीछे उस ी को अकेला
छोड़ आया था जो पछले साढ़े तीन दशक से भी अ धक समय से मुझे और मेरी वल णता
को मौन भाव से ता ड़त करती आई थी; एक ी जसने अपने आवेग से आब मूख प त
ारा छे ड़े गए नरथक यु म अपनी संतान क ब ल चढ़ा द थी; एक ऐसी ी जो उस
से करने का साहस रखती थी, जससे संसार थर-थर काँपता था। मेरे ने म अु
उमड़ आए। मने अपनी प नी को इस संसार क कसी भी व तु से कह अ धक ेम कया
था। मुझे उसे अल वदा तो कहना ही चा हए था परंतु अब ब त दे र हो गई थी। राम मेरी
ती ा कर रहा था।
य ही हम मोड़ काट कर, तेज़ी से राम क सेना क ओर बढ़े तो वे च लाने लगे। मने अपने
हा थय को अ म मोच पर रखा था। यह एक जुआ था। हाथी व ास न करने यो य सीमा
तक कु यात थे। वे पलट कर, मेरे अपने ही लोग म भगदड़ मचा सकते थे। उ ह अपने पैर
तले र द सकते थे परंतु मेरे पास अ धक चुनाव भी तो नह था। मेरी सेना ब त कम रह गई
थी और उधर व ण क नौसेना मेरे ग पर बड़े-बड़े पाषाण से वार कर रही थी। मने अपने
अ नबाण वषक को ऊँचाई पर रखा था ता क वे राम क सेना तथा व ण के पोत से होने
वाले हमल से बचे रह सक। वे वहाँ से, बड़ी सरलता से अपने शकार पर नशाना लगा
सकते थे। उ ह ने वानर क सेना को हमसे र रखा और अनेक बेड़ व नौका को सागर
क अतल लहर के हवाले कर दया। जब मेरे हाथी गरजे तो म श ु प म फैले आतंक को
अनुभव कर सकता था। हा थय ने वानर क र ा पं छ - भ कर द और उ ह अपने
पैर तले कुचलने म दे र नह क । असुर क सेना ने धावा बोला और वानर को तीन ओर से
घेर लया गया। मुझे कसी अ म मोच से यु का नेतृ व कए ए ब त समय बीत गया था
और म यही वचार कर रहा था क कह म अपना बल तथा मता खो तो नह बैठा था।
परंतु राम क सेना को भयभीत दे ख मेरी शरा म र खौल उठा। अचानक ही म वह बूढ़ा
तथा अश राजा नह रह गया था जसने अपने जीवन के लगभग छह दशक दे ख लए थे,
म एक बार फर से सोलह वष य युवक हो गया था जसक शरा म र के थान पर
आवेग तथा मह वाकां ा दौड़ते थे। ये राम मेरे स मुख था ही या? ये कल का आया
सर फरा लड़का कुछ अधस य जनजा तय क टोली ले कर, धरती के सबसे श शाली
स ाट को चुनौती दे ने चला था? आज, म यह सु न त कर ँ गा क वह उन सभी दं भी मूख
के लए एक सबक बन जाए, जो यह सोचते ह क वे असुर स ाट से बैर मोल ले कर भी,
अपने घर को सुर त लौट सकते ह।
म आदे श दे ने लगा और मेरे हरकारे चार दशा म भगदड़ करने लगे। राम के सेनाप तय
ने एक वीरता कतु थता से पूण यु कया। य द म उसे खोज पाता तो एक ही तीर के
नशाने से उसका गला भेद कर, इस यु का यह अंत कर दे ता। मने अपने सारथी से कहा
क वह मुझे बा टोली क ओर ले जाए। तीर क मूसलाधार वषा हो रही थी। संकट ब त
था परंतु म अपने ही बल के मद म चूर था। मेरी शरा म खौलते ोध व उ साह के चलते,
अब उसे मुझसे कोई नह बचा सकता था। यह आ ख़री बार होगा, जब कोई दे व राजकुमार
कसी असुर स ाट को चुनौती दे ने का साहस करेगा। अचानक ही म पीछे से आ रही श ु
सेना से घर गया। राम ने हमारे लए जो जाल बछाया था, हम उसम उलझ गए थे। उधर
वभीषण नगर के सरे छोर से धावा बोलने आ रहा था। मने अपने हरकार को अ नबाण
बरसाने वाल के पास भेजा। य प उनके बाण हमारे अपने सै नक को भी लग सकते थे
परंतु अब हमारे पास कोई और उपाय नह था। धरती के एक ओर से वभीषण आ रहा था
और सागर क ओर से वानर ने घेरा डाला था। मने अपनी सेना को वभा जत कया और
एक दल को वभीषण को घेरने का आदे श दया। इससे पीछे से आने वाले दबाव से थोड़ी
राहत मली। म इस त य से प र चत था क मेरे पास अनुभवी सै य यो ा का अभाव हो
चला था। मने राम के बल को ब त कम आँक लया था। जब हनुमान मेरी नगरी को जला
कर भ म कर गया था, मुझे तभी इस यु को वानर क नगरी म ले जाना चा हए था। परंतु
हम इतने आ मसंतु रहे क ख़तरे को भी नह भाँप सके। य द हम पहले ऐसा करते तो
वानर को कुचल कर संभवतः राम को भी बंद बना सकते थे। उसक बजाय वह मेरे
सा ा य के व यु का नेतृ व कर रहा था और म उससे बचाव के लए संघषरत था।
आज तो म उसे समा त करके ही दम लूँगा।
दोन सेना ने पूरे साहस तथा ढ़ न य के साथ यु कया। येक ण म वीर तथा
शहीद क सं या म वृ हो रही थी। शी ही, लं कनी क असुर सेना ने पहाड़ी के ऊपर से
मेरी सेना पर धावा बोला दया। मने संकट को भाँप लया। उसके सै नक क कतार पर
कतार, पहाड़ी से मेरे सै नक पर वार कर रही थ । हम छह के मुकाबले एक क गनती म
थे। इसका मतलब था हम अपनी थ त को बनाए रखने के लए आव यक था क हमारा
एक सै नक छह को मार कर, अपने ाण का याग करे। इसका एक सरा उपाय यह था
क हम श ु के सेनाप त को मार द अथवा बंद बना ल परंतु म दे ख ही नह सकता था
क राम था कहाँ? हनुमान ही सेनाप त व कर रहा था और अ म मोच पर डटा था। मने राम
व ल मण को खोजना चाहा, परंतु उनका पता नह पा सका। यु अनवरत चलता रहा और
कसी भी ओर से वजय का कोई च ह नह दख रहा था।
समय तेज़ी से बीतता जा रहा था। प म के आकाश म गहरे बादल दखने लगे और सागर
भी भयंकर होने लगा। व ण के यु पोत उन ती सागर क लहर पर डू बते- तरते दख रहे
थे। हाथी ाकुल हो रहे थे और म भयभीत था क कसी भी ण वहाँ क प र थ तयाँ बद
से बदतर हो सकती थ । मुझे कुछ न कुछ नाटक य व ःसाहसी तो करना ही था। ‘परंतु राम
व ल मण कहाँ थे?’ मेरे लए सबसे बेहतर अवसर यही होता क म दे व कुमार पर अचानक
हमला कर ँ , उ ह बंद बना लूँ अथवा जान से मार ँ । उनक तरह, म भी श ु क सेना क
नज़र से पूरी तरह छपा आ था। इसी छल व म को बनाए रखने के लए सात से अ धक
रथ रणभू म म वचर रहे थे, जन पर असुर क राजसी पताका फहरा रही थी ता क श ु मेरे
वा व तक रथ को पहचान न सके। म ब त नराश हो गया। मेरी आयु मुझे धोखा दे रही थी।
मुझे भी कुछ तीर लगे थे और र ाव ने मुझे नढ़ाल कर दया था।
बाण बड़ी ग त से मेरे आसपास से नकल रहे थे परंतु अपने आवेग म मने इस ओर यान
तक नह दया क उनम से कोई अचानक मुझे लग भी सकता था। म श ु पर ू रतापूण वार
करते ए, अपने लए माग बनाता जा रहा था, य ही वषा का हार तेज़ आ तो हमारा
सेतु डोलने लगा। हमारे आसपास मृत वानर का जमघट लग गया था। बस कुछ और मनु य
क ब ल चढ़नी बाक थी और म बड़ी सरलता से अपनी चं हास को राम के र का वाद
चखा सकता था। इस वचार मा से ही मेरा मन मु दत हो उठा परंतु जब तक मुझे अपनी
घातक भूल का अनुभव आ, तब तक ब त दे र हो चुक थी। जब मने हनुमान ारा तैयार
क गई अ न घेराबंद को लाँघा तो मुझे पूरा व ास था क पीछे से मुझ पर वार करने के
लए कोई नह था। राम के त बैर व े ष के चलते, मने कुछ प र थ तय को परखने म
भारी भूल कर द थी। ती वेगवान वषा ने उस अ न को बुझा दया था और अब बड़ी ही
सरलता से मुझ पर पीछे से वार कया जा सकता था। म अपने भाई वभीषण के बारे म भूल
गया था, जो आ मण करते ए, मेरी ही ओर बढ़ा चला आ रहा था। उसे रोकने के लए वहाँ
कोई अ न नह थी। इस कार वह दबे पाँव मेरे पीछे तक आ प ँचा। जब उसक तलवार ने
मेरी पीठ म गहरा वार कया तो मुझे अपनी मूखता का भान आ। मने मुड़ कर, उस पर
अपनी तलवार से वार करना चाहा, परंतु वह नीचे झुक गया और म अपना संतुलन खो बैठा।
उसने मुझे ठोकर मारी और म सागर म लगभग गरते- गरते बचा। मने अपना संतुलन साध
लया परंतु उसके वार से ए घाव से नरंतर र बह रहा था। मेरे हाथ सु पड़ गए थे। मने
जो भारी यु कवच पहन रखा था, वह मुझे नीचे क ओर ख च रहा था। राम और ल मण
को एहसास आ क मुझ पर बाण क वषा के लए इससे बेहतर अवसर तो कोई हो ही
नह सकता था, परंतु मेरा कवच उन बाण से मेरी र ा करने म सफल रहा। वे मेरी वचा को
नह भेद सके। मेरे पास अब परा त होने के लए समय नह था। म इस खेल म जीतने ही
वाला था। मुझे बल होने से पहले राम तक प ँचना था। मने वभीषण को ठोकर मारी तो
वह समु म जा गरा। जब म अपनी तलवार हाथ म लए राम क ओर लपका तो वभीषण
कसी तरह सागर से नकल कर, सेतु पर आ गया। मेरा यान उस ओर नह था। मने अपना
पूरा यान राम पर क त कर रखा था। य ही म आगे को जाने लगा, वभीषण क तलवार
एक बार फर मेरी पीठ पर आकर पड़ी। तलवार मेरे शरीर से ज़रा सी री पर आकर लगी
परंतु उसने मेरे कवच के बंधन को काट दया, जनसे वह मेरे शरीर से कस कर बंधा था।
मने भी वाभा वक प से मुड़ कर ठोकर मारी। वह हरहराते, ठाठ मारते सागर म अलोप
हो गया।
भ
आज उसका अं तम सं कार है। यह दोपहर बाद का समय था और म भीड़ के म य खड़ा,
भीषण गम म उबल रहा था। हवा म चार ओर एक अजीब सी उदासी व आतंक छाया था।
वजेता प क सेनाएँ पछली रात नगर म वेश कर चुक थ । वानर ने नगर म लूट-खसोट
मचाने म कोई कसर नह छोड़ी। अ धकतर लोग अपना घर-बार याग कर वन म चले गए
थे परंतु कुछ ने बड़ी वीरता से अपने वा म व क व तु को बचाने के लए संघष कया।
अय य ने वानर सेना के आगे आ मसमपण कर दया परंतु वे लोग कसी को भी
बंद नही बना रहे थे। जन मूख ने उनसे दया क अपे ा क थी, उ ह बड़ी ही नदयता से
मार दया गया। रावण के भ तथा वला सतासंप महल को लगभग व त कर दया गया,
परंतु वभीषण ने बीच-बचाव कया और इस बात का बंध कया क ग म उप थत लोग
के साथ कोई बुरा वहार न हो। इस तरह एक बार फर कुलीन वग अपने धन, ाण तथा
मान क र ा करने म सफल रहा।
रावण घरघराहट के साथ साँस लेने लगा। म अपना मुख उसके अधखाए कान के नकट ले
गया। सड़े ए माँस क गँध से मुझे मतली आने को ई परंतु म वयं को नयं ण म रखते
ए, उसके कान म फुसफुसाया क राम ने आपक जा त व आपके साथ जो भी कया,
उसके लए उसे छोड़ा नह जाएगा। मने जैसे ही यह कहा, ऐसा लगा मानो मुझे अपना
जीवन जीने का एक उ े य मल गया था। मेरे इस साधारण से जीवन का कुछ मोल तो हो
पाएगा। मने अपने राजा का माथा चूमा और आराम से उसका सर गीली धरती पर रख
दया। वह बड़ी पीड़ा के साथ क से साँस लेने लगा। म ब त दे र तक वह खड़ा, रावण को
ाण यागते दे खता रहा। जब पूव आकाश म पहली रोशनी दखने लगी और कौ क
काँव-काँव ने आने वाले दन का संकेत दया, तो बलशाली रावण बड़े ही गहरे क व यं णा
के बीच अपनी अं तम ास पूरी कर रहा था। मने आधे घंटे तक और ती ा क और फर
घुटन के बल बैठ कर, उसके शरीर से सारे आभूषण उतार लए। वह जहाँ भी जाएगा, उसे
वहाँ इनक कोई आव यकता नह होगी। यह एक अ छा दाँव था और मुझे स ता थी क
म अपने राजा से उलझ कर वहाँ गरा।
अनेक य को जबरन पकड़ कर, राजमाग के दोन ओर बैठाया गया था। वे बेचारे
तपते सूरज के नीचे कसमसा रहे थे। जो भी अपने थान से हलता-डु लता, वानर सै नक
बड़ी नदयता से उसे पीट दे त।े चार ओर भय का ऐसा कुहासा छाया था क उसने सूया त
के ब त बाद भी छँ टने से इंकार कर दया था। आ यजनक प से, दन पूरी तरह से साफ़
व हवादार था।
जस लड़के ने यह उप व आरंभ कया था, वह टु कड़े-टु कड़े आ पड़ा था, उसके कटे अंग
भीड़ म व भ दशा म फक दए गए। उसक भुजाएँ मेरे समीप आकर गर और मने
उस गंद व तु को पैर क ठोकर से भयभीत पड़ोसी क ओर धकेल दया, जसे उसी ण
मतली आ गई और उसने वमन कर द । उस मृतक युवा का कुछ र मेरे चेहरे व कंध पर
भी आ गया था, मने उसे हाथ से प छा और फर अपने हाथ मैली धोती से प छ लए।
दोपहर ढलने तक, वानर अपने खेल से उकता गए और यहाँ-वहाँ घूमने लगे। कुछ असुर
तपती पहरी के कारण बेहोश हो गए थे और पानी के लए गड़ गड़ा रहे थे। म आलस के
मारे ऊँघ रहा था क अचानक चड के वर ने मुझे जगा दया। सु र कोने पर, ग के ार
खुले और एक जुलूस ने राजपथ पर वेश कया। सारी भीड़ सर उठा-उठा कर दे खने लगी
क वहाँ हो या रहा था? वह जुलूस ठाठ मारती भीड़ से होते ए, धीरे-धीरे आगे क ओर
आने लगा। म केवल यही दे ख सकता था क उ ह ने कसी व तु को एक लंबे तभ पर टाँग
रखा था और वह भीड़ के बीच ऊपर-नीचे उछाली जा रही थी। ग के कोने से एक ममभेद
वलाप का वर सुनाई दया और जुलूस के पीछे -पीछे आने लगा। य ही राम क वजय
या ा मेरे नकट से नकली, म यह दे ख कर आतं कत हो उठा क अंगद एक बाँस पर लटके
रावण के शीश को ऊपर-नीचे उछाल रहा था। राजसी व मनोहारी मुख मृ यु के कारण
भयंकर हो उठा था, उसक एक आँख गायब थी, गाल का एक ह सा चूहे कुतर गए थे और
नाक का अगला ह सा सयार ने अधखाया छोड़ दया था। अंगद के पीछे , क कंधा का
ू र व पय कड़ सा दखने वाला राजा सु ीव लड़खड़ाता आ रहा था, उससे अपनी भारी
गदा तक संभाले नह संभल रही थी। राजा के पीछे ब त से भ े व बदसूरत बाल वाले नर
वानर दरबारी अपने हाथ म अनगढ़ गदाएँ तथा भारी ल लए चले आ रहे थे। हरण क
छाल पहनने के अ य त उन लोग ने आज असुर के महल से चुराए गए रेशमी व धारण
कए ए थे ता क असुर क जा को लुभा सक। वे लोग उन व म ब त ही अटपटे दख
रहे थे परंतु उनके हाथ म वशाल पाषाण न मत गदाएँ थ इस लए कसी म इतना साहस
नह था क उनका उपहास कर पाता। इसके बाद असुर दखाई दए जो अपने नए वा मय
क वजय के उपल य म नकाली जा रही शोभा-या ा म चड तथा अ य वा यं बजा रहे
थे। उनके बाद राम, उसका भाई तथा वजयी मु ा म गव ली सीता दखाई द । वह रावण के
रथ म, अपने प त के साथ बैठ स ता से चहक रही थी।
कुछ ही दे र बाद वभीषण उठा व राम के कान म हौले से कुछ कहा। फर उसने राम के
भाषण का अनुवाद आरंभ कर दया। वह एक-एक वा य को हमारी भाषा म सुनाने लगा।
राम ने अपनी बात आरंभ करते ए कहा क हम स ता होनी चा हए क हम रावण सरीखे
आततायी, एक रा स के पंज से मु हो गए। उसका यह मानना था क बुराई पर सदै व
अ छाई क जीत होती है। यह बात ता कक थी और हमने करतल व न से उसके श द का
वागत कया। इसके बाद वभीषण के बोलने क बारी थी।
सीता ने रोना बंद कर दया और ब कुल सहम कर शांत खड़ी थी। जब वह अपने प त को
ताकने लगी तो उसके मुख से घूँघट भी उतर गया। नःसंदेह वह अपनी माँ से ब त मलती
थी। भले ही वह दखने म माँ के समान थी परंतु वह अपनी भाव-भं गमा तथा ने म
धधकती अ न के साथ तो, पूरी तरह से रावण क ही पु ी दखाई दे ती थी। उसने अपने प त
को घूरा, जसके लए उसने इतनी ता से ती ा क थी। राम उससे नज़र न मला सका
और सरी ओर दे खने लगा। उसके हाथ काँप रहे थे परंतु उसके चेहरे पर चपकाई गई
कृ म मु कान ण भर के लए भी अलोप नह ई। वह अपने भाव को छपाने का
भरसक य न कर रहा था। वह वहाँ कसी ऐसे यो ा क तरह नह बैठा था जसने, संसार
के सबसे बलशाली राजा को परा त कर दया था, वह तो कोई भा य का मारा अभागा दख
रहा था।
वषा क न ही फुहार पड़ने लगी। शी ही आकाश बरसने को तैयार होगा। बजली कड़क
और और गहरे आकाश को चीरती चली गई। जब वभीषण अपने भाई क चता को
मुखा न दे ने लगा तो उसने बड़े ही नाटक य वर म घोषणा क , “यह एक आततायी,
पशाच व रा स का अंत है। उसका यह जीवन उन सभी के लए एक सबक होगा जो धम
क सव े स ा को नकारते ह, अयो या के महान रा य के भु ी रामचं , हमारे वामी,
धरती पर धम के मू तमान प ह। आज से बुराई तथा असुर के हीन सा ा य का पतन
होगा। आज के दन को सबसे अ धक प व दन माना जाना चा हए, जब भु ी राम,
व णु के अवतार, हम पर अपनी असीम दया वृ करगे। वह हम अपनी इस अनंत क णा
के मा यम से एक नई जीवनशैली क ओर ले जाएँगे। जब तक रावण का पापमयी शरीर
भ म म वलीन होगा, हमारे गहरे तज पर धम क एक नई सुबह का उदय होगा। एक
ऐसा धम, जसम येक को अपने लए उ चत थान का ान होगा; जहाँ व ा का
मान होगा; यो ा के बल क त ा होगी; तथा वा ण य व ापार के कौशल सराहे
जाएँग।े अब हम जीवन म सफल होने के लए कड़े संघष के बोझ तले नह दबना होगा;
और न ही हम अपने पड़ोसी से आगे नकलने क अंधी दौड़ म, बौराई त पधा का एक
ह सा बनगे। हम रावण के अधीन पनपे, असुर के समाज का याग करगे, जब मनु य
क यही वचारधारा थी क वह कड़े प र म तथा तभा के बल पर ही अपने लए स ता
अ जत कर सकता था। आज से हम सभी यह बात कभी व मृत नह करगे क हम नादान
तु छ ाणी ह और ई र क सव च स ा तथा श के सम हमारा प र म तथा गुण कोई
मोल नह रखते। उसक क णा तथा ेम से ही हमारी भौ तक व आ या मक सफलता
वा हत होती है। य द तुमने कसी अछू त के घर म ज म लया है तो तु ह उसके लए शोक
नह करना चा हए। तुम इस ज म म क का सामना इस लए करोगे य क तुम अपने
पछले ज म म कए गए अनु चत कम का फल भोग रहे हो। अपने कम के कारण ही तुमने
एक शू अथवा अ पृ य के प म ज म पाया है। अपने कत का पालन करो तथा पूरी
न ा से अपने वामी को सेवाएँ दो; अ धक मह वाकां ी मत बनो अथवा अपने व र को
मलने वाले मान-स मान तथा संपदा को दे ख कर ई या का अनुभव मत करो। तुम केवल
अपने वनय के सहारे ही यह सु न त कर सकते हो क असीम क णामयी तथा ववेक
भु तुम पर दया करगे और यह सु न त करगे क तुम अगले ज म म वण अनु म म,
इससे ऊपर के थान म ज म पाओ।
असुर सै नक ने सीता को वभीषण के समीप छोड़ा तथा पीछे लौट गए। भीड़ क उ सुकता
सातव आसमान पर थी। उ ह ने आज से पहले ऐसा तमाशा कभी नह दे खा था। सूय उस
लाल सागर म वलीन हो चुका था जो बार-बार ऊपर-नीचे उछाल मार रहा था। आकाश म
गहरे काले तथा पहले बादल मँडरा रहे थे, ज ह ने बड़े ही तथा व च प वाले
सरीसृप जैसे आकार ले लए थे, और सूया त के रंग के वै व य को त ब बत करते ए
इतरा रहे थे। “इसके साथ ही म रावण के व बुराई से भरे सा ा य का अंत कर ँ गा।
इसके साथ ही म उस क धृ ता को दं डत क ँ गा जसने दे व को चुनौती दे ने का
साहस कया। इसके साथ ही, म एक रा स के छल से भरे जीवन व सा ा य का अंत कर
ँ गा, जसने हमारे संसार को लगभग न ही कर दया था। ी राम क जय हो…!”
वभीषण ने गजना करते ए अपने ाता क चता को मुखा न द , और तभी वषा आरंभ
हो गई। म रावण को राख म प रव तत होते दे खता रहा, जब एक गहन व असामा य वेदना ने
मुझे जकड़ लया। एक युग का अंत हो चुका था। वानर क ओर से एक वृहद वजयनाद
आ, जब क असुर के म तक ल जा से झुक गए। सीता अपने पता क जलती चता के
स मुख भावहीन मु ा म खड़ी थी, वह अपने ही ःख तथा कपट से भरे संसार म खोई थी।
आकाश म ु बजली कड़क और बूँदाबाँद होने लगी। चता से उठता मोटा काला धू
काँपते ए वायु म नए-नए प लेने लगा। “अब शु ता क परी ा होगी। हमारे आदरणीय
तथा य वामी राम क प नी सीता अ न परी ा दग ।” वभीषण ने घोषणा क । एक
असुर ने जलती चता म और घी डाल दया जससे वह मारे रोष के गने वेग से धधक उठ ।
लपट ऊँच उठ और वायु म कड़-कड़ क व न होने लगी। हम सभी बड़ी उ सुकता व भय
के बीच यह तमाशा दे ख रहे थे, सीता ने संकु चत होते ए उस धधकती ई अ न को दे खा,
जसम वेश कर, उसे अपने प त के स मुख अपनी प व ता क परी ा दे नी थी। उसने राम
क ओर दे खा और उसक नज़र से नज़र मलानी चाह परंतु यह दे वता तो अ य दे वता
क भाँ त ही था, जब भी इनक आव यकता सबसे अ धक होती है तो ये मनु य से मुँह फेर
लेते ह। वभीषण अधीर हो उठा और अ न म घी क अ धक मा ा डालने का आदे श दया।
सीता कुछ ण तक वह खड़ी रही। फर धीरे-धीरे वह धरती पर ढे र हो गई। भीड़ म एक
व च सा स ाटा छाया था। या वह इस परी ा से पीछे हट गई थी?
सीता उठ खड़ी ई। भीड़ ने दोबारा भाँप लया क कुछ नया घटने जा रहा था। फर वह
अक मात जलती अ न क ओर दौड़ी। या हमने सही सुना था या यह मेरी क पना थी? म
आज भी इस वषय म न त प से नह कह सकता। या उसने अ न म कूदने से पूव
च ला कर अपने पता को पुकार था, ‘ पता ी…’ सारी भीड़ म ऐसा स ाटा था क सुई भी
गरे तो पता चले परंतु उसी समय मानो आकाश रो दया और मूसलाधार पानी बरसने लगा।
वायु एक तूफ़ान म बदल गई थी और ना रयल के वृ बड़े ही वेग से झूमते ए दोहरे होने
लगे। लंबे प े इस तरह झूम रहे थे मानो कसी डू ब रहे क भुजाएँ ह और वह ाण
र ा के लए हाथ-पैर मार रहा हो। अ वाभा वक प से अंधकार सा हो चला था और बीच-
बीच म कड़कने वाली बजली के काश म सभी भू तया साय जैसे दख रहे थे। सारी भीड़
अपने मृतक राजा क चता क ओर बढ़ और शी ही अ नयं त हो गई। नगर र क ने
लोग को पीछे क ओर धकेलना चाहा और चार ओर अफ़रा-तफ़री मच गई। हमने दे खा क
हनुमान अ न वेद से सीता को राम क ओर ले जा रहा था। वह बेजान दख रही थी परंतु
मेरी अनुभवी आँख ने भाँप लया क वह जी वत थी। तो इस कार यह नणय हो गया क
वह पूरी तरह से प व थी। वह अ न परी ा म सफल रही।
मुझे वह समय याद आया, जब मने व य के वन म उसे अपने हाथ म थामा था, असुर
मं य ने मुझे जीवन पी न ही सी पोटली दफ़नाने के लए द थी। मेला समा त होते ही
भीड़ भी छँ ट गई य क मुख नायक ग म अलोप हो गए थे, उ ह भी तो रात को वजय
के उपल य म द जा रही दावत का आनंद लेना था। म वह खड़ा भीड़ म भीगता रहा और
जब लोग जा चुके तो म धीरे-धीरे रावण क चता क ओर बढ़ा। वषा तो अब भी हो रही थी
परंतु अब उसका वेग इतना अ धक नह था। चता क दशा शोचनीय थी। वह भ म तथा
क चड़ का ढे र बन चुक थी। उसम ह य के छोटे टु कड़े और अधजली खोपड़ी दखाई दे
रही थी। म वह खड़ा रहा, समझ नह आ रहा था क या क ँ । फर मने ठोकर मार कर
महान असुर स ाट के अवशेष को, सागर क उ ाल तरंग के हवाले कर दया। कुछ ही दे र
बाद, म घर लौटा तथा सो गया।
50 नए जीवन का अंकुर
भ
रावण क मृ यु के बाद के माह, असुर के जीवन म कसी भयंकर अव ध से कम नह थे।
जा त अनु म के लए ब त म का वातावरण था और जा त से जुड़े अनेक संघष तथा
ववाद उ प हो जाते। येक प रवार ने वयं को अपने-आप उस जा त से जोड़ लया था,
जो उनके अनुसार आगे चल कर शखर तक आ सकती थी। य द यह चार वण के आधार
पर प वग करण होता, तो कसी क जा त के वषय म जानना इतना क ठन न
होता। यह तारत य या अनु म इतना क ठन न होता, इसके सुप रभा षत होने से, या तो
इसका पालन करता अथवा इसके वपरीत लड़ता। म नह जानता क जा त व
उपजा तय के वभाजन का यह काय कसी बु मता क उपज था या इससे और अ धक
म ही उ प आ। इसने हमारे समाज को लाख ह स म वभा जत कर दया था जसम
ा ण न त प से शखर पर थे। मुझे यह जानने म लगभग तीन माह लगे क म धोबी
जात से संबंध रखता था, जो क सुनार व बढ़ई आ द जा त से भी न न मानी जाती थी परंतु
यह घुम कड़ लोकगायक , लकड़हार व कु हार आ द से तो उ च ही थी। जब उ च जा त
के लोग कसी माग से जाने का नणय लेते तो मुझे वहाँ से नकलने क अनुम त नह थी।
परंतु य द कोई कु हार मेरे माग म आ जाता तो मुझे उसे ठोकर मार कर र करने का पूरा
अ धकार था य क उसने मेरे माग म आने का ःसाहस कया था। य द म कसी लकड़हारे
को पश कर लेता तो मेरी प व ता खं डत होती परंतु य द म कभी कसी बढ़ई को पश कर
लेता तो उसे अप व कर सकता था। सबसे नचले पायदान से संबंध रखने वाली कोई भी
जा त सड़क पर नह चल सकती थी, अ छे व धारण नह कर सकती थी, अ छे घर म
नह रह सकती थी और उसे दे वालय म वेश क अनुम त भी नह थी। यह सब शेष तीन
वण के लए ही आर त था। इस तं म सब कुछ नयत था और उ च जा त का
अपने से न न जा त के अपमान का पूरा अ धकार रखता था। मुझे अपने से उ च जा त से
मली कसी भी तरह यं णा या अपमान को सहना होगा य क मुझे अपने से न न जा त
को सताने का पूरा अ धकार था। और फर हतो सा हत असुर जा नधनता क मार से भी
दोहरी होती चली गई।
लगभग नौ माह प ात, द ण भारत तथा इसके प म भारी भ पड़ा। सारा ापार
ठ प पड़ गया था य क ा ण ने घो षत कर दया था क सागर का काला पानी लाँघने से
क जा त चली जाएगी। ापारी वग ने, हाल ही म ा त सु वधा को खोने के भय
से, सागर पार जाने से इंकार कर दया और शी ही चीन के ापा रय तथा पीले बाल वाले
बबर ने मसाल तथा प र कृत व तु के ापार को अपने नयं ण म ले लया। एक ऐसा
समय आया, जब खाने के लए भी कुछ शेष नह रहा। परंतु वभीषण के कर सं हकता उन
लोग के मुख से आ ख़री ास तक छ नने म संकोच नह करते थे, जनका सरकार के त
कुछ भी दाय था। केवल एक ही ऐसा था जो रसते बाँध तथा नहर का तं सही
करने के लए कोई चम कार कर सकता था और ामीण इलाक़ म कृ ष काय पुनः आरंभ
करवा सकता था परंतु पगला वै ा नक मय, अब लौह ंखला म जकड़ा एक बंद था,
जसे एक कारागार म डाल दया गया था। ा ण ने उसके सभी स ांत का उपहास
कया और घोषणा कर द क उसने जो कुछ भी ा त कया था, वह न त प से असुर
के काले जा के बल पर ा त कया गया होगा। नःसंदेह यह ब त ही बुरा समय था। मृ यु
के अ त र बचाव का कोई उपाय नह सूझता था। य द हम पूरे स ताह म एक बार पूरा
भोजन मल जाता तो हम वयं को भा यशाली मानते। केवल एक ही अ छ बात यह थी क
मने लकड़ी के ल तथा रावण क मृ यु के बाद होने वाले उप व के दौरान चुराए गए
सामान क मदद से एक छाजन वाला घर बना लया था। मने रावण क मृत दे ह से उतारे गए
आभूषण अपने घर के भीतर ही धरती म दबा दए थे। मुझे उ ह वहाँ से नकालने म भय का
अनुभव होता था। धोबी जात के कसी के पास इतनी संपदा होने क अपे ा नह क
जाती थी। वभीषण ने अपने शासन काल के पहले ही स ताह म, नचली जा तय क कसी
भी गत संपदा को छ नने का आदे श दे दया था परंतु मेरी तरह, ब त से लोग पहले ही
अपना धन तथा आभूषण कसी सुर त थान म गाड़ चुके थे। जब सब कुछ समा त होता
जान पड़ रहा था तो एक अफ़वाह के प म, आशा क न ही सी करण सामने आई। व ण
लोग को अवैध प से सु र पूव के दे श म प ँचा रहा था। व ण जैसे लोग को कोई भी
धम ंथ अथवा ा ण छू नह सकते थे अथवा उसे ब ह कृत नह कर सकते थे। भले ही
राम का शासन हो या रावण का अथवा कुबेर का, उसे धन कमाना आता था। वह केवल एक
ही दे वता क पूजा करता था – धन! पहले-पहल म इस वषय म संदेह त था परंतु जब
भूख क तड़प बढ़ती चली गई और मेरी ी क टोका-टाक असहनीय होने लगी, तो मने
भी एक दाँव आज़माने क सोची। य ही मने भी वास क इ छा कट क तो एक दलाल
मेरे लए यह बंध करने को राज़ी हो गया।
दलाल संभवतः मेरी ही आयु का अधेड़ पु ष था परंतु चूँ क उसने मेरी तरह नधनता व भूख
का सामना नह कया था, तो उसे म कोई बूढ़ा काका ही लगा होऊँगा। मुझे यह जान कर
ब त खीझ ई और मेरी प नी के लए यह कौतुक का वषय रहा क वह मुझे बार-बार
काका कह कर ही पुकारे जा रहा था। वह एक सरकारी अ धकारी था जसने कुबेर के
शासनकाल म अपना पद संभाला था और अब वह वभीषण के शासन म एक व र
अ धकारी था। उसने दावा कया क वह ब त ही उदार वचारधारा रखता था और जा त के
लए बने नयम के बारे म कोई ब त अ छ सोच नह रखता था। य प, वह अपनी प नी
क बात का मान रखने क खा तर मेरे घर म वेश नह करना चाहता था य क जा त
अनु म के अनुसार वह मुझसे थोड़े ऊँचे पद पर था। उसने कसी भी कार का जलपान
हण करने से भी इंकार कर दया य क उसक प नी कभी इस बात के लए हामी न दे ती
क वह कसी धोबी के घर कुछ खा-पी कर आए। म अंदर ही अंदर उबलने लगा पर मेरी
प नी शांत दखाई द । वैसे भी हमारे पास उसे खलाने के लए कुछ था ही नह , तो जा त
क शु ता बनाए रखने के आ ह ने हम थोड़ी ल जा व अपमान से बचा लया।
म बेमन से घर लौटा और करीब आधे घंटे तक खोदने के बाद रावण के आभूषण नकाल
लए। म बड़े ही भारी मन से वे आभूषण ले कर उसके पास लौटा और काँपते हाथ से उ ह
उसके हाथ म रख दया। चाँद क रोशनी म जगमग करते आभूषण को दे ख उसक आँख
चमक उठ । नौकरशाह मेरी प नी से आम बात क चचा कर रहा था क कसी म यमवग य
प रवार के लए जीवन तीत करना कतना क ठन होता जा रहा था, महँगाई कस कदर
बढ़ गई थी, श ा पर भी कतना य होने लगा था आ द। उसने बात ही बात म पोटली के
वज़न को हाथ से तौला और इसके बाद तो उसक स ता दे खने यो य थी। सब कुछ तय
हो गया था। दो ही दन के भीतर, एक छोट ड गी हम, उस बड़े पोत पर ले जाएगी जो, गहरे
सागर म लंगर डाले खड़ा है। हम बस वहाँ तक प ँचना था और फर उसने पूरा आ ासन
दया क हम सु र पूव के लए पहले दज़ क या ा सुलभ हो जाएगी।
माला और म, नद के कनारे खड़े इमली के वृ तले, कसी ेमी- े मका क तरह हाथ म
हाथ लए खड़े, नद के वा हत होने क ममर व न सुन रहे थे तथा वायु के साथ वा हत
हो रही मोगरे क गंध को अनुभव कर रहे थे। संभवतः जीवन हम एक और अवसर दे ने जा
रहा था। कौन जाने?
“तुम लोग काले रंग के अस य दख रहे हो। बेशक तुम नीच अछू त जात के होगे। म तु ह
साथ नह ले जा सकता। सरे उ च जा त के या ी आप कर सकते ह।”
परंतु मने उसके पैर नह छोड़े। म अपने सबसे दयनीय वर म च लाया, “ वामी, मेहरबानी
करके हम अपने पोत से न उतार। हम वा पस नह जा सकते। हम आपक छत क सफ़ाई
करगे, शौचालय क सफ़ाई कर दगे परंतु मेहरबानी करके हम साथ ले चल। हम यहाँ छोड़
कर न जाएँ। हम पर दया कर। आप हमारे भगवान ह। म आपके लए यह छोट सी भट
लाया ँ। दया कर वामी, दया कर…।” मने हार को ऊँचा उठाया ता क वह उसे आसानी से
दे ख सके। जब उसने उसे दे खा तो सारी शु ता व प व ता भूल गया और बड़ी फुत से उस
हार पर लपका। म उठ खड़ा आ और दोन हाथ छाती पर बाँध कर खड़ा हो गया, मेरी
दोन हथे लयाँ बगल म दबी थ और पीठ वनीत भाव से झुक ई थी। मेरे सा थय को भी
संकेत समझ आ गया और वे भी पूरे वनय के साथ उसी मु ा म नतम तक हो खड़े हो गए।
व ण के जहाज़ पर काम करते-करते हमारी कमर लगभग दोहरी हो गई। हम लगातार बतन
माँजते, फ़श चमकाते, कपड़े धोते तथा मल से भरे पीपे समु म खाली करते रहते। हम
सूरज क रोशनी तक के भी दशन नह होते थे और इस कड़ी मेहनत व नचले तल क
उठापटक ने हम बुरी तरह से रोगी बना दया। अंततः, करीब एक माह क या ा के प ात,
हमने ऊपरी तल से लोग के हष लास का वर सुना। वे लोग धरती दखाई दे ने का ज
मना रहे थे। हम भी रग कर ऊपरी तल तक आ गए और सूरज क रोशनी ने आँख को बुरी
तरह से च धया दया। वह एक नद का मुहाना था और उसके दोन ओर घनी ह रयाली से
भरे वन दखाई दे रहे थे। जहाँ तक नज़र जाती थी, वृ के झुरमुट थे। जैसे ही जहाज़ ने
एक चौड़ी नद म वेश कया। एक लंबा, काला तथा वशाल मं दर दखाई दे ने लगा। हमने
कभी इतनी चौड़ी नद नह दे खी थी। उसे दे ख कर हमारी रग-रग म उमंग दौड़ने लगी। शी
ही जहाज़ एक बंदरगाह पर का, जहाँ सफ़ेद शरोव वाले व च से दखने वाले लोग
सामान चढ़ाने व उतारने लगे। कमचारी ने हम दे ख कर खीस नपोर और नीचे जा कर भीड़
का ह सा बन गया। कुछ दे र के म के बाद, हमने तय कया हम उसी जगह उतर जाएँग।े
वहाँ पहले से लोग क कतार बंधने लगी थ । मने पहले कुछ लोग से पूछा क या वह पूव
म सह नगरी थी। वे लोग मुझे खाली-खाली नज़र से ताकते रहे परंतु मुझे अपने जैसा काली
चमड़ी वाला एक मल गया और म साहस जुटा कर उससे बात करने लगा। वह दो
लंबे व गोरी चमड़ी वाल से बात कर रहा था इस लए म अपनी बारी आने क ती ा करने
लगा। फर मने उससे त मल भाषा म पूछा क या वह सह नगरी थी। उसने मुझे इस तरह
घूरा मानो म बौरा गया होऊँ और फर बोला, “ या तुम कमअ ल व ण के जहाज़ से यहाँ
तक आए हो।” हमने एक- सरे को दे खा और हमारे दय मारे भय के जड़ हो गए। “ य
वामी, आप ऐसा य पूछ रहे ह…?”
“अब समझ आया क तुम लोग इतने बेअ ल य हो? यह तो दे वी काली क नगरी है।
व ण ने तु हारे साथ भी वही कया है, जो वह पहले भी कई लोग के साथ कर चुका है।”
आरसी ने एक चीख़ मारी और वह बैठ कर अपनी छाती पीटने लगी। माला भी उसके
वलाप म शा मल हो गई। म अंदर ही अंदर नपुंसक ोध से उबलने लगा। आँख से अ ु
रोके नह के और म भी रोने वाली औरत के दल म शा मल हो गया। शव ल जत भाव से
उस के हाथ-पाँव जोड़ने लगा क वह हमारी सम या का कोई समाधान नकाल दे ।
उसने हम परे धकेलना चाहा परंतु शव अपने हठ पर अड़ा रहा। अंततः उस काली चमड़ी
वाले ने अपने म को वदा द । फर वह हमारी ओर मुड़ कर च लाया क हम रोना बंद
कर ता क वह कोई हल सुझा सके। अंत म उसने कहा, “दे खो म ! यह एक छोटा शहर है।
हो सकता है क तु ह यहाँ कोई काम मल जाए परंतु उ र-प म क ओर, इससे एक बड़ा
रा य थत है। वहाँ राजा राम का शासन है। वह नगर अब फल-फूल रहा है और तुम सरीखे
कु लय को वहाँ आराम से काम मल सकता है। मने सुना है क वहाँ मज री भी अ छ
मलती है। तुम वहाँ अपना भा य आज़मा सकते हो। सरयू नद के रा ते, चावल के बोर से
लद एक नाव अयो या जा रही है। उसका मा लक एक ापारी है, जो द ण से आया है।
म उससे बात क ँ गा और अगर तु हारी क मत अ छ ई, तो तु ह थोड़ा थान मल
सकता है। आज रात के लए, काली मं दर के पास एक जगह है, जहाँ वे नधन को
नःशु क भोजन दे ते ह। वहाँ भोजन करो और ातःकाल चावल घाट पर आ जाना। अब जो
हो गया, उसके लए आँसू मत बहाओ। संभवतः इसी म तुम लोग क कोई भलाई छपी
हो।” यह कह कर उसने काली मं दर क दशा म संकेत कर दया।
“और आगे वाले माग से मत जाना। उस माग से अछू त का वेश व जत है, पीछे वाली छोट
पगडंडी से जाना।” वह छोट सी नाव म सवार हो कर नद म जाते ए च लाया।
भ
जब सब कुछ कसी सुंदर सपने क तरह घ टत होता चला जाए तो जीवन एक कभी न
समा त होने वाला आकषण लगने लगता है और उसी समय मनु य के म त क म
मूखतापूण वचार तथा ख़तरनाक मह वाकां ाएँ ज म लेते ह। शंबूक बु मान तथा सुंदर
था परंतु आरसी को केवल यही बात दे ख कर नह सोचना चा हए था क उसे एक धोबी से
कुछ अ धक बनना चा हए। जब एक बार कसी माँ के मन म यह बात बैठ जाती है क
उसक संतान वशेष है तो कोई भी उसे उन वचार से डगा नह सकता। वह चाहती थी क
उसका पु कोई मह वपूण अ धकारी, या संभवतः एक स क व अथवा एक महान
ापारी बने – कुछ भी बने, बस नीच जा त का धोबी बन कर न जए। मने उसे चेताया भी
क हम जैसे लोग को व दे खने का साहस नह संजोना चा हए। शव ने भी उसे समझाया
परंतु वह अपने हठ पर अड़ी रही। माला भी आरसी के साथ मल गई और वे दोन माँग
करने लग क शंबूक क श ा का बंध कया जाना चा हए। दोन म हला ने तक दया
क हमारे पास धन था और शंबूक म श ा हण करने क तभा थी, तो हम उसे नर र
य रहने द? परंतु वह ब चा आठ वष का हो चला था और श ा-द ा आरंभ करने के
लए ब त दे र हो चुक थी। य द वह कसी असुर नगरी म जी रहा होता तो वह अब तक
पढ़ने- लखने तथा ग णत आ द वषय म नपुण हो गया होता। वे दोन बार-बार ज़ोर दे ती
रह और अंततः मेरी आप य तथा वरोध के बावजूद, शव ने ह थयार डाल दए और
कोई उपाय करने लगा ता क पु को पाठशाला भेज सके। मुझे यह नणय पसंद नह आया
परंतु इस बात का पूरा व ास था क कोई भी धोबी क संतान को नह पढ़ाएगा, इस लए म
इस वषय म अ धक च तत नह था परंतु मने इस ओर तो यान ही नह दया था क पैसे के
बल पर कड़ी से कड़ी सामा जक वजना भी भंग क जा सकती है। शव को एक एकांतवासी
अ यापक मल गया, जो नद के उस ओर रहता था।
एक दन उसने म दरा के नशे म चूर हो कर, मुझे अपने जीवन क पछली घटना के
वषय म बताया। वह पाँच न दय क धरती से आया एक ा ण था, परंतु अपनी युवाव था
म ही अयो या आ गया था। उसने कई तरह के काम-धंधे कए और सरकारी अ धकारी बनने
ही वाला था, परंतु जा त- था से तंग आ गया, य प एक ा ण होने के नाते तो उसे
सु वधा मलती ही थी। जब राम ने अपने पता के दए वचन का मान रखने के लए,
सहासन का उ रा धकार यागा और वन म जाने का नणय लया तो वह उन दन अयो या
म ही था, वह युवा दे व राजकुमार तथा मु न जाबा ल क भट का भी सा ी था। ज ह ने राम
को समझाना चाहा क ई र, जीवन के प ात अ त व अथवा आ मा क कोई स ा नह थी
और एक को अपना भरपूर जीवन जीते ए, मृ युपयत आनंद का उपभोग करना
चा हए। परंतु धम न राम ने जाबा ल के सभी तक को मानने से इंकार कर दया और
अपनी प नी तथा अनुज के साथ वन के लए थान कर गया। य प गु जाबा ल से ब त
भा वत आ और उसने इसी अधीरता म आकर अपनी उ च तरीय सरकारी नौकरी को
याग दया। फर वह जाबा ल का श य बन गया। जब राम का पता दशरथ, अयो या का
राजा था तो वह सभी मत तथा सं दाय के त स ह णुता रखता था और जाबा ल को पूरे
दे श म कह भी मण करते ए, जा त था के व वषवमन करने क पूरी छू ट थी। परंतु
जब राम के छोटे भाई भरत ने, अपने अ ज राम के नाम पर अयो या क ग संभाली, तो
उसने ऐसे य का नगर म वेश व जत कर दया ता क ाचीन परंपराएँ तथा री त-
रवाज़ अ ु ण रह सक।
ऐसा लगता था मानो भीड़ ा ण ारा लगाई गई सारी वजनाएँ भूल गई थी जैसे क
सावज नक माग का उपयोग कसे करना चा हए और कब, कौन कसे पश कर सकता था
या नह कर सकता था, पर पर षत करना अथवा पश व से अप व होना तथा
जा त था से जुड़े अ य ज टल नयम आ द। वे आपस म ध कामु क करने लगे, एक- सरे
को अप व कया और शंबूक का गान सुनने के लए एक- सरे के पश व से भी
अप व होने के लए तुत हो गए। शंबूक ने जैसे अपने गु से सीखा था, उसने अनु ान
तथा ब ल था पर अपनी आप कट क और उसने जा त था व एक मनु य पर सरे
मनु य क े ता के वषय को भी चुनौती द , जो क मा ज म के समय मनु य क जा त
पर नभर करती थी। भीड़ ने जयजयकार के साथ उसे ो साहन दया। रा य के
राजपुरो हत का पारा सातव आसमान पर प ँचता जा रहा था य क बालक शंबूक नरंतर
उ ह चुनौ तयाँ दे रहा था और वह अपने गु के भी गु जाबा ल क भाँ त यायसंगत
ना तक तक दे ने क बजाय वेद तथा उप नषद के कथन को अपने समथन म तुत कर
रहा था। पहले वह वेद के ाक का पाठ करता और फर उसे ाकृत भाषा म अनुवाद
करते ए, सामा य जा को सुनाता ता क राह चलते लोग भी उनके अथ को जान सक।
भीड़ यह सब सुन कर आंन दत हो रही थी परंतु म हर बीतते ण के साथ असहज होता जा
रहा था। शंबूक ने वे सभी पूछे, जो हर राह चलता हमेशा से पूछना चाहता था,
परंतु कभी साहस नह बटोर पाया था। उसने स य क गुहार लगाई और म अपने बीते वष
के अनुभव से जानता था क स य के पथ पर चलने वाल के साथ या ह होता आया था।
मने बड़ी आशंका के साथ भीड़ के आसपास घेरा डालती सेना को दे खा। म भीड़ क
मनः थ त म आ रहे प रवतन को भाँप सकता था। धीरे-धीरे लोग के मुख से नकल रही
वाह-वाह तथा साधुवाद धीमे होते गए और अंत म वे ब कुल ही शांत हो गए। वायु म तनाव
क गंध थी परंतु बालक अपने आसपास के इस वातावरण से अनजान था। हज़ार नपुंसक
व कायर पु ष तथा य क भीड़ म उसका मधुर वर गूँज रहा था।
राम ने पुरो हत को दे खा, ऐसा लगा मानो उसके ने म कोई आ ह छपा हो। उसके मुख
पर वही भाव थे, जो उसक प नी क प व ता क जाँच के लए क गई अ न परी ा के
समय उसके मुख पर आ गए थे। वह जानता था क बालक जो भी कह रहा था, वह
अ र ः स य था और उसक आँख उस न हे लड़के के त असीम क णा के भाव को
छपा नह पा रही थ , जसके गीत आ मा को भी वत कर दे ने वाले वर म भीड़ के बीच
मुख रत हो रहे थे। उसने एक बार फर से पुरो हत के समूह को दे खा।
उसने राजा राम को कुछ इस कार दे खा मानो कहना चाहता हो क उसने सबसे सट क
स य को उजागर कर दया था और अब उ ह या वत करने का उ रदा य व सर के
कंध पर था। सारी भीड़ म मानो आतंक ाप गया। सपा हय ने नंगी तलवार तथा भाल
के साथ, भीड़ के आसपास अपना घेरा कस दया और कसी मूख क ती ा करने लगे जो
ज़रा सा भी हलने क ग़लती करता और…। एक कौए क काँव-काँव उस स ाटे म गूँज
उठ । म आस ण क क पना से काँप उठा। राम भी अपनी तलवार ख च चुका था।
शंबूक के ने म अ ु और अ ु से भीगे मुख के भाव कह रहे थे क वह अपने यास म
असफल रहा था। वह अपनी आयु से कह अ धक थका आ व प त दखा। म कसी ी
ारा धोए जा रहे गंदे व क धम-धम सुन सकता था जसने उस गम व तपते ए दन को
एक अजीब सी लय दे द थी। ऐसा लगता था मानो कसी ने शंबूक के जीवन क समा त के
लए उ ट गनती गननी आरंभ कर द थी। जब म चौदह बार कपड़े को पटके जाने का
वर सुन चुका, तो राम क श शाली तलवार एकदम नीचे आई और मेरे न हे पौ का सर
धड़ से अलग कर दया गया।
म असहाय खड़ा दे ख रहा था और रथ धूल के उड़ते गुबार के बीच ओझल होने ही वाला था
क वह अचानक ही थम गया। सै नक शाही रथ क ओर भागे और वहाँ कोहराम सा छा
गया। म वयं को घसीट ले गया ता क पता लग सके क वहाँ हो या रहा था।
राम बुरी तरह से बफरी ई आरसी व माला के स मुख खड़ा था, उसके चेहरे पर
अपराधबोध तथा ोध के भाव प रल त थे। उन दोन य ने राजा का माग अव कर
दया था। माँ मारे ःख के अपने बाल नोच रही थी और उसके मुख से पशु के समान
ची कार नकल रही थी। माला ने इतने हसक तरीक़े से अपनी छाती पीट क म दे ख कर
स रह गया।
वह च लाती रही परंतु उसके कोसने के वर धीमे और धीमे होते चले गए य क वे लोग
उसे घसीट कर ब त र तक ले गए थे। भीड़ इस य को आँख फाड़े, कसी तमाशे क
तरह दे ख रही थी। वे एक लंबे अरसे तक इस बारे म बात करगे। इससे पहले क म रथ के
समीप प ँच पाता, अ पर कोड़ा फटकारे जाने का वर सुनाई दया और रथ वहाँ से
नकल पड़ा ता क राजा को महल क सुर त ाचीर क बीच प ँचा सके। म शाही रथ के
नकलने से उठे धूल के गुबार के बीच खाँसता व हाँफता खड़ा रहा। म पूरी तरह से वेद से
लथपथ था और उस धम के भार तले दबा आ था, जो हम कुचलने के लए तैयार था। भीड़
छतराने लगी। म वह धूलयु लाल धरती पर गर कर, लंबे समय तक रोता रहा। म अपने
न हे पौ व उसके माता- पता के लए ं दन करता रहा, फर म अपने उस द क पु के
लए रोया, जसे मने गोद लया था परंतु राजा व दे व ने उसे अपनी क त म ी वृ के
लए मुझसे छ न लया था परतु इससे भी अ धक… म अपने त- व त दे श के लए रोया।
मने माट को दोन मु य म भ च लया और च लाया, “ऐ मेरी माँ! तुम भी मेरे साथ ं दन
करो, दे खो क तुम कैसे भाँ त- भाँ त के लोग को अपने पास शरण दे ती हो…।” तभी कसी
ने मेरी पस लय म ठोकर दे मारी। मने उठना चाहा तो एक और करारी ठोकर आकर पड़ी।
उसने मुझे ठोकर से एक खुली नाली म धकेल दया, “नशेड़ी भखारी, बेअ ल! अभी मेरा
रथ तुझे कुचल दे ता। जड़म त! तुझे आ मघात करने के लए या मेरा ही रथ मला था?
नीच जात का…।” यह तो कोई ापारी था जसे और अ धक धन कमाने के लए हाट-
बाज़ार जाने क ज द थी और म वहाँ पड़ा दे श के सुधार के लए बसूर रहा था। उसने मुझे
ठोकर मार कर वह प ँचा दया, जो सही मायन मेरा थान था… वह गंधाती नाली! म
अयो या क एक खुली नाली म पड़ा था, और अपने आसपास से नकलते संसार को दे ख
रहा था, जसके लए जैसे कुछ आ ही नह था। मने उ ह अपने न हे शंबूक क दे ह को भी
ले जाते दे खा, वे उसे अं तम सं कार के लए घाट पर ले जा रहे थे। लगभग आधी रात को
महल तथा मं य व दरबा रय के घर आमोद- मोद समा त आ तो म अपनी कु टया म
लौट आया। मने क पना क क शायद मेरा न हा शंबूक अपने होठ पर कोई गीत लए
भागा चला आएगा। परंतु म भूल गया था क वह तो धम क र ा के लए एक ऐसे थान पर
चला गया था, जसके वषय म म कुछ नह जानता था। संभवतः, अगले ज म म वह कसी
उ च जा त म ज म पाए ता क वह भी नचली जा त म ज मे लोग का उ पीड़न कर सके।
यह सोच कर ही मन को ब त सां वना मली।
भ
म लगभग पूरे एक वष से अपनी या ा को जारी रखे ए था परंतु अब भी मुझे अपने
ज म थान पर प ँचने के लए कई मील क या ा करनी शेष थी। कई दशक पूव, मने एक
ऐसे युवक के साथ अपनी या ा का आरंभ कया था, जसने हम एक नए संसार क रचना
का वचन दया था। उसने हम आशाएँ द तथा हमारे व को एक नई उड़ान दे द । उसने
एक सा ा य का गठन कया और उसे गँवा भी दया। वह जा कर उन लोग म शा मल हो
गया, ज ह ने साहस कया, सब कुछ ा त कया और खो भी दया। मने उसक उपल धय
के लए अपनी युवाव था का ब लदान कर दया, म वा तव म इतना भोला था क रावण
सरीखे लोग ने मीठ बात के जाल म फँसा कर, मुझसे अपने ब त से काम नकलवाए।
मुझे मूख बनाया। ब त बाद म, जब म अपना भोलापन गँवा बैठा और संसार मुझे ब त से
सबक सखा चुका था, तो मेरा जो कुछ भी खो चुका था, उसे मने लंका क माट म ही दफ़न
कर दया और जो कुछ भी बचा था, उसे ही एक पोटली म बाँध कर एक नई या ा पर
नकल पड़ा। म एक ऐसे थान पर आ प ँचा, जहाँ म कसी भी दशा म नह आना चाहता
था परंतु मने नए सरे से अपने जीवन का ी-गणेश कया। दे व तथा उनक क पना के
अभाव म, इस धरती पर जीवन या था? दे व क भुजा ने मेरे तु छ जीवन को पकड़ा व
झकझोर कर रख दया, इसे दबाया, कुचला और तब तक कुचला, जब तक क इसम से र
क एक-एक बूँद नचुड़ नह गई।
दो घंटे बाद ही मुझे बंद बना लया गया। जब वे मुझे राजपथ से घसीट कर ले जा रहे थे तो
म भयभीत था। वे मुझे राम के स मुख ले गए, जो पूरी भ ता के साथ भारत के
राज सहासन पर आसीन था म नह जानता था क मने अनजाने म ही वेद के कौन से
नयम का उ लंघन कर दया था और मेरे लए कौन सा द ड ती ारत् था। मने ब त ही
आदर-मान से झुक कर णाम कया, नाक लगभग धरती को पश कर रही थी। उनम से
एक सै नक ने मुझे खड़े होने के लए कहा ता क राजा मुझसे वातालाप कर सके। राम ने
मुझे दे ख कर यौरी चढ़ाई और अपने एक मं ी को संकेत कया ता क वह मुझसे पूछताछ
कर सके। वही अ ेत ा ण मं ी आगे आया और उतनी ही री पर आकर खड़ा हो गया,
जतनी री उसे एक अ पृ य से बना कर रखनी चा हए थी। फर उसने मुझसे पूछा क मने
राजा राम के व या ट पणी क थी। मने प श द म कहा क मने तो राजा राम के
लए कुछ कहा ही नह था परंतु शी ही उनक ओर से इतना दबाव पड़ने लगा क मने
ह थयार डाल दए। मुझम इतना साहस नह था क राजा राम के दरबार म उसके सबसे बड़े
श ु रावण का नामो लेख क ँ अतः मने उ ह बताया, मने कहा था क म राम जतना
वशाल दय का वामी नह था क ऐसी प नी को वीकार क ँ जसक प व ता सं द ध
थी। यह एक ऐसा स य था जसे घुमा- फरा कर तुत कया गया, परंतु उन प र थ तय म
म इससे बेहतर कुछ नह कर सकता था। सारी सभा म स ाटा छा गया और लोग के चेहरे
ऐसे दखने लगे मानो वे कोई अ भयोग लगा रहे ह , राम का चेहरा ल जा से लाल हो उठा
था।
तभी हमारे राजा को लगा क उसे संपूण भारत पर अपना एकछ सा ा य था पत करना
चा हए। उसके परामशदाता ने उसे अ मेध य रचाने का परामश दया, इसके अनुसार
एक अ को वचरण करने के लए छोड़ दया जाता था। जहाँ भी वह अ जाता, वह भू म
राजा क हो जाती। य द कसी को आप होती या कोई त ं द होता तो वह राम से यु
कर सकता था। य द वह परा जत होता तो उसे वह थान राम के लए छोड़ना होता।
आसपास के छोटे -मोटे रा य के साथ ब त से यु भी ए परंतु उ ह ने आ मसमपण कया
और राम अपनी सव े ता स करने म सफल रहा। जब उस अ ने पास के वन म वेश
कया तो महल क राजनी त के बीच हलचल मच गई। अ को वन म दो अ पायु जुड़वाँ
ाता ने रोक लया जो सीता के ही पु थे, ज ह उसने वनवास क अव ध म ज म दया
था। येक इसे जानता था और उसने दावा कया क वे बालक अजेय थे। यह
समाचार राजा तक भी प ँचा, जो स मन हो कर अपने पु से मलने आ प ँचा। राजा
को पता चला क उसक प नी ने दो जुड़वाँ कुमार को ज म दया था, राजप रवार का
पुन मलन आ परंतु यह सुखद अंत शी ही खद ासद म प रव तत हो गया। राम के
परामशदाता शांत कहाँ रहने वाले थे। उ ह ने घोषणा कर द क सीता अप व थी और
उसक शु ता संदेह के घेरे म थी य क उसने वनवास का यह समय मह ष बा मी क के
साथ एक ही छत के तले बताया था। मने मह ष बा मी क जैसा प व दय कह
नह दे खा था और यह पूणतया प था क वे उसे अपनी पु ी क तरह मानते थे परंतु उन
तथाक थत व ान के तक व व ता पर च ह लगाने का तो ही नह उ प होता
था। सरयू नद के तट पर, एक खड़ी च ान पर फर से अ न व लत क गई और लोग
झुँड के झुँड बना कर, यह दे खने आने लगे क सीता कस कार अ न वेश करके यह
मा णत करेगी क वह प व है।
म अपनी चर-प र चत ताड़ी क कान म बैठा था क मुझे पता चला क राजा को अपनी
वनवास कर रही प नी का पता- ठकाना मल गया है और उसने उसे अपनी प व ता क
परी ा दे ने के लए पुनः धधकती अ न म वेश करने को कहा है। मेरी एक गंजे बूढ़े से
अ छ -खासी झड़प हो गई, जसने राम का गुणगान कर-करके मुझे बुरी तरह से खझा दया
था। मने उस पर क झड़ी लगा द , ‘जब अयो या क संपूण जा यही चाहती थी क
राम वनवास न करे और अयो या का राज-काज संभाले, तब वह अपनी वमाता के वचन
का मान रखने के लए वन म य गया? या तब उसे अपनी जा क इ छा के वषय म
नह पता था? उसने छल व कपट से बाली का वध य कया? जब उसक गभवती प नी
का कोई दोष भी नह था तो उस नद ष ी को वन म भेजने का या औ च य था? वह उसे
बार-बार अ न म य धकेल रहा था? उसने शंबूक का वध य कया? शी ही हमारी
बहस दो प क आमने-सामने क लड़ाई म बदल गई। दोन ओर से कई लोग शा मल हो
गए जो हसक प से मार-पीट करने लगे और गु थमगु था हो गए। ताड़ी क कान के
पहरेदार ने हम सबको ठोकर मार कर बाहर खदे ड़ दया और मने अपने इस गु से को कोसा
जसके कारण मेरी ताड़ी क लत पूरी नह हो पाई थी। कुछ दे र बाद, मने फर से ताड़ी क
कान म वेश करना चाहा पर इस बार भी मुझे लात व घूँस का उपहार दे कर वा पस भेज
दया गया।
म नराश हो कर, उसी थान क ओर चल दया, जहाँ सीता के अ न- वेश क तैया रयाँ
ज़ोर -शोर से चल रही थ । यह तो कसी मेले का य लग रहा था। मठाई व खलौने बेचने
वाले, फेरी वाले, हाथ दे ख कर भ व य बाँचने वाले और इस चम कार को दे खने आए
उ साही ी-पु ष क ठे लम-पेल। मुझे उस थान क ओर धकेल दया गया, जहाँ सरे
नीची जा त वाल के बैठने क जगह थी और म भी उन तमाशबीन क पं म शा मल हो
गया। सूरज बुरी तरह से तप रहा था और लोग गम के मारे भुनभुना उठे । जब भी कोई शाही
रथ नकट से नकलता तो वे उमंग तथा उ साह म आकर चीख़ने- च लाने लगते। मेरे
म त क म बार-बार लंका के ही य नाच रहे थे, जहाँ ठ क यही य दोहराया गया था।
अंतर केवल इतना ही था क यहाँ उमस व बा रश क बजाय प म से चल रही धूल भरी
आँधी हम भू तया बना रही थी।
ा ण पुरो हत ने हमेशा क तरह अपना लंबा व नीरस भाषण दे ना आरंभ कया परंतु
संभवतः उसे हम पर दया आ गई या उसने खीझी व चढ़ ई भीड़ क मनः थ त को भाँप
लया इस लए उसने शी ही यह सब समा त कर दया, जब क सामा यतः वह ऐसा नह
करता था। कुछ उ साही मह वाकां ी राजनी त ने राम के नाम क जयजयकार क और
भीड़ ने भी उसी उ साह व उमंग से यु र दया। सीता के मुख पर कोई भाव प रल त
नह थे, वह एक बार पुनः मूक रह कर ही अपमान का गरल पी रही थी। समय मानो जम सा
गया था।
राम अब पूरी तरह से बखर चुका था, अब उसके भीतर शासन करने क भी इ छा शेष नह
रही थी। उसके चाटु कार उसके नाम से शासन करने लगे और दन-ब- दन प र थ तयाँ और
भी नराशाजनक होती चली ग । राजा अपने क म बंद रहता, उपवास करता व दन-रात
पूजा-पाठ म डू बा रहता, संभवतः अपनी य सीता से मायाचना करता होगा। वडंबना तो
यह थी क वह सीता को संसार के सवा धक श शाली स ाट से छु ड़ा लाने म तो सफल
रहा परंतु धमपरायणता के आगे इतना श हीन था क चाह कर भी अपनी प नी क र ा
नह कर सका। म थोड़े रोष के साथ वीकार करता ँ क वह सही मायन म अपनी जा
क दे खेरख तथा परवाह करता था। जब तक उसक जा जा तय के अनुसार बने नयम
तथा कत का पालन करती थी तब तक सभी उसके शासन म शां तपूवक जीवन तीत
कर सकते थे। परंतु जस ण शंबूक सरीखा कोई अपनी नय त अपने हाथ म लेने
क धृ ता करता तो धम पी लंबी खड् ग उसका काम तमाम कर दे ती। जब संपूण तं ज म
के समय नयत जा त पर आधा रत भेदभाव तथा सु वधा पर टका था तो ऐसे म कोई
यायी व प पातर हत शासक बन भी कैसे सकता था? जब तक राम का थोड़ा-ब त
नयं ण रहा, तब तक व वध जा तय के बीच एक असहज सा सह-अ त व बना रहा,
य क उसने सभी को पूरा आदर-मान दे ने का आदे श दे रखा था। परंतु सीता क मृ यु के
प ात, राम वर तथा उदासीन हो गया और पुरो हत के धम न ा के जाल ने सारे रा य
को अपने नयं ण म ले लया। दमन च ग त से चला तथा जा तय के लए बने नयम और
भी कड़े होते चले गए। जब सब कुछ असहनीय हो गया तो प रवार एक-एक कर नगर से
बाहर जाने लगे। हम वह टके रहे, हमारा धंधा कुछ चल नकला था य क धोबी जा त के
ब त से प रवार पलायन कर चुके थे और तयो गता पहले जतनी नह रह गई थी। परंतु
अपनी आय म जरा सी वृ होते ही म और शव पुनः पूरे वेग से म दरा व ताड़ी के मद म
चूर रहने लगे जससे जीवन पहले से भी अ धक क कारी हो गया। एक दन, शव ने म दरा
के मद म चूर हो कर अपनी प नी को बुरी तरह से पीटा और वह दो दन बाद परलोक सधार
गई। उ ह ने शव को ले जा कर कारागार म डाल दया। इस कार हम राम के रा य से बाँधे
रखने वाला अं तम संबंध सू भी टू ट गया।
कुछ माह तक यहाँ-वहाँ भटकने के बाद, हमने भारी दय से यह नणय लया क उस नगर
को याग कर द ण क ओर चले जाएँग।े जब मने राम को नराश, परा त व एक गहन
र ता तथा उदासी के बीच घरा पाया तो उन ण म मुझे जो आनंदा तरेक आ, उसका
म वणन नह कर सकता। सब कुछ मानो अथहीन हो चला था। हमने अपनी सी मत संपदाएँ
एक पोटली म बाँध तथा या ा का शुभारंभ कया। हम घने वन तथा बंजर पड़ी थ धरती
से हो कर आगे बढ़े । हमारे साथ और भी कई प रवार द ण क ओर पलायन कर रहे थे। दो
बार डाकु ने हमला कया और जनके पास खोने के लए जो भी थोड़ा-ब त बचा था,
उ ह ने उसे भी खो दया। हम नमदा के कनारे थत स क पहा ड़य के समीप
का तवीराजुन क नगरी है म प ँचे और नगर को दे ख कर लगता था क अब तो वह ब त
वैभव-संप हो गया था। वृ राजा मारा जा चुका था, वह परशुराम के लड़ाकू दल के ह थे
चढ़ गया था। अब उसके पु का शासन चलता था। हम वहाँ एक वष तक रहे, चूँ क जा त
था इतनी कड़ी नह थी अतः हम करने के लए काम भी मल गया परंतु थानीय जा हम
वा सय के त रोष जताने लगी थी और शी ही लंबी ला ठय तथा छोटे दमाग़ वाले ठग
हम सभी नवागंतुक को अपना नशाना बनाने लगे।
एक बार फर, हमने अपनी या ा आरंभ क और गोकण प ँचे, यह वही नगरी थी जहाँ मय
ने रावण क इ छानुसार एक महान शव मं दर क रचना क थी, हम इतना थक चुके थे क
हलना भी संभव न था। हमने नगर से ब त र, एक वन म टकने का नणय लया, हम
जा त युत होने के कारण उस नगर म वेश का अ धकार नह था। फर हम कसी न कसी
तरह अपनी आजी वका चलाने लगे और जीवन पुनः एक लय म आ गया। जब माला वर
क चपेट म आकर, इस नया से वदा ई तो मेरे लए यह सब ब त ही अक मात तथा
अनपे त था, य प वह स र वष क हो चली थी। इससे मेरा दय बुरी तरह से टू ट गया।
ऐसा लगा मानो दय का कोई कोना पूरी तरह से र हो गया हो। मने उसे नद के कनारे
दफ़नाया और अपनी या ा आरंभ कर द ।
रावण एक ऐसा था जसने अपनी शत पर अपना जीवन तीत कया, वही कया
जो उसे सही लगा और ऋ षय -मु नय के लखे क कभी परवाह नह क ; एक ऐसा
जसने अपना जीवन भरपूर जीया और एक यो ा क मौत मरा। उनके जीवन, आदश ,
मू य व धम क प रभाषा क तरह, उनक मृ यु भी वरोधाभासी रह । य प अं तम
स य यही है क वे दोन ही अपनी जीवनगाथा के इस महान हसन म नायक थे। उन
दोन म से वजय ी कसे मली, केवल यही छोट सी बात नणय लेगी क उनम नायक
कौन था अथवा खलनायक कसे माना जाए?
म पूरे एक माह तक चलने के बाद, अपने ज म थान पर प ँचा। जब मने घाट म पहली
रेखा क तरह वा हत पूणा नद को दे खा, मेरा दय ब लय उछलने लगा। सारी मृ तयाँ
दौड़ कर गले आ लग और मारे भावुकता के कंठ अव हो गया। मने यथासंभव कुलाँच
भर व नद के समीप जा प ँचा। मने उसके शु नमल जल म छलाँग लगा द और कसी
ब ख क तरह तैरने लगा। ऐसा लगा मानो मेरी युवाव था लौट आई हो। म ब त दे र तक
तैरता रहा, म अवणनीय आनंद क ब त झीनी सी परत पर तैर रहा था। तभी मेरे माथे पर
पड़े एक तीखे प थर ने मुझे मेरे सपने से झकझोर कर जगा दया, “नीच जात! इस प व
जल को षत करने का साहस कैसे कया?”
यह पु तक मेरी जीवनसं गनी अपणा के सहयोग, नेह तथा ो साहन के अभाव म पूरी नह
हो सकती थी। वे एक नेहमयी आ लगन क अ धकारी ह। और हमारे दो नटखट शैतान,
अन या तथा अ भनव, जो मेरे ारा लखी जा रही कहा नय क बजाय, मुझसे सुनी गई
कहा नय म अ धक च रखते ह, म अगली सौ रात तक, तुम दोन के लए सौ से अ धक
कहा नय का ऋणी ँ। अंत म, म भारत के उन अ ात कथावाचक के त भी आभार
कट करता ँ, ज ह ने पछले तीन हज़ार वष से, कथावाचन क इस परंपरा को जी वत
रखा है। म अपने दे श तथा इसके कभी समा त न होने वाले, धा मक पौरा णक गाथा के
अ य कोष का सबसे अ धक ऋणी ँ।