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॥श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः॥

॥ श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणमाहात्म्यम् ॥
हजारो साल पहले चक्रवर्ती दशरथ नामक राजा अयोध्या नगर एवं कोसल राष्ट्र पे शासन किया करते थे उनकी ३ रानीयों से उन्हे ४ दिव्य पुत्रों की प्राप्त
हुए थे I

ज्येष्ठ भ्राता राम और उनकी सुन्दर पत्नी सीता, अन्य अनुज भाइयों और उनकी पत्नियों के साथ, खुशी से रहते थे।

लेकिन, राजा दशरथ की पत्नियों में से एक माता कै कई श्रीराम से ईर्ष्या करती थी जिस कारण से उन्होंने महाराज दशरथ को अपना वचनपूर्ती की बात
स्मर्ण कराके राम के लिए 14 साल के लिए वनवास की मांग की एवं अपने पुत्र भरत चक्रवर्ती के लिए अयोध्यया के सिंहासन की मांग की I

असहाय राजा ने अपनी पत्नी द्वारा की गई किसी भी इच्छा को पूरा करने का वचन देने के लिए मजबूर होने के बाद राम को वन में निर्वासित कर दिया।
इसलिए, राम अपनी समर्पित पत्नी माता सीता और धर्मनिष्ठ अनुज, लक्ष्मण सहित वन हेतु प्रस्थान करते है

शूर्पणखा नाम से प्रसिद्ध एक राक्षसी ने एक बार वनगमन के दौरान जंगल मे एक कु टिया देखी तो उसकी दृष्टि २ सुन्दर कु मारो पर पड़ती हैं जो की श्री
राम व उनके अनुज लक्षमण जी थें I उसने श्रीराम से विवाह की इच्छा प्रगट की किन्तु श्रीराम ने सव्यं को विवाहित बता कर उसके विवाह के प्रस्ताव
को अस्विकार किया l किन्तु उन्होने अपने अनुज लक्षमण के समक्ष यह प्रस्ताव रखने को कहा, किन्तु लक्षमण जी भी उसके प्रस्ताव को अस्विकार करते
है I
क्रोधित शूर्पणखा अपने राक्षसी रुप को धारण कर लक्षमण जी पर आक्रमण करती है जिस कारण लक्षमण जी उसके नाक कान शस्त्र के प्रहार से काट देते
है l

रोते प्रलाप करते शूर्पणखा अपने भ्राता के समक्ष पहुची जोकी स्व्यं लंका पति रावण थें l

क्रोधित रावण बहन के अपमान का बदला लेने हेतु योजना तैयार करता है I राम और लक्षमण जी की स्वर्ण मृग के छलावे से आखेट कार्य हेतु सीता
माता से दूर कर दिया पाश्चात ऋषि रुप धारण कर छलावे से सीता माता का अपहरण कर लिया l

जब राम और लक्ष्मण लौटे तो सीता गायब थीं। जब वे दूर थे तब उन्हे कु छ अशुभ आभास हुआ था l अत: दोनो कु मारो ने शीघ्रता से सीता जी को
खोजने के लिए आस पास के स्थानो पर दौड लगाई I

वे बंदरों और भालुओं की एक सेना से मिले जो उनकी यात्रा में उनकी मदद करने के लिए तैयार हो गए। उनमें से एक हनुमान नामक वानर थें जिन्होंने
एक बार श्रीराम की सेवा करने का वचन दिया था।

हनुमान जी के पास पहाड़ों पर उड़ने, आकार बदलने और अलौकिक शक्ति थी, जिससे वह एक कदम में समुद्र को पार कर सकते थे। इसलिए, वे राम
जी के सबसे शक्तिशाली सहयोगी बन गए।

रावण के भव्य उद्यानों में से एक में कै द हनुमान जी को आखिरकार सीता जी मिल ही गईं।

सीता जी को हनुमान द्वारा आश्वासन दिया गया था कि श्रीराम उन्हे बचाने हेतु जल्द ही लंका पधारेगें l

हनुमान की वापसी यात्रा पर उन्हें रावण के सैनिकों ने गिरफ्तार कर लिया। रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया। तब हनुमान
अपनी शक्ति दिखाते हैं और उड़ जाते हैं। वह अपनी पूंछ में आग लगाकर पूरे लंका शहर में आग लगा देतें है।

वह सीता जी की निशानी के साथ श्रीराम के पास लौट आये, अब श्री राम ने बिना विलम्भ के लंका पर चढ़ाई करने का निर्णय लिया जिसमें बंदरों और
भालुओं की एक सेना भी शामिल थी जो श्रीलंका की ओर बढ़ रही थी। समुद्र पार करने के लिए एक पुल के निर्माण के माध्यम से l

युद्धं आरभ्यते

॥ रामायाणम् सम्पूर्णम् ॥

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