You are on page 1of 4

हरे कृष्णा आज हम एक नाटक प्रस्तत

ु करने जा रहे हैं जिसका शीर्षक है जटायु का त्याग।


राजा दशरथ राज्य पर शासन करने के लिए बहुत बढ़
ू े हो गए थे, इसलिए सभी नागरिक भगवान राम का राजा
बनने और राज्य पर शासन करने के लिए स्वागत करते हैं शिवाय उसे दष्ु ट कुबड़ी मंथरा के।
उसने महाराजा दशरथ की प्रिय रानी कैकई के मन में जहर घोल दिया। कैकई ने भगवान राम को 14 वर्ष तक
वनवास पर रहने के लिए मजबरू किया। नागरिक अपने प्रिय राम को खोने से दख ु ी थे। दशरथ इतने दःु खी हुए कि
उनकी मत्ृ यु हो गई।

एक दिन भगवान राम, उनकी पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण पंचवटी नामक एक सद
ंु र स्थान की ओर जाते
समय एक बड़े पेड़ पर बैठे एक विशाल जीव को दे खते हैं।
लक्ष्मण ने उसे राक्षस समझ लिया।

सीता — हे स्वामी उधर दे खे इतना विशाल पंछी।


राम — दे खने में कोई है विशाल गिद्ध लगता है , जैसे की गिद्धों का राजा हो।
लक्ष्मण — हे प्रभु हमने आज तक इतना विशाल गिद्ध कभी नहीं दे खा है लगता है यह कोई असरु है ।
मझ ु े आज्ञा दीजिए मैं एक ही तीर में इसका वध कर दं ग ू ा।
राम — मेरे प्रिय लक्ष्मण हमें धीरता से कार्य करना चाहिए यह बद् ु धिमानी नहीं है कि हम किसी पर आक्रमण कर
दे मात्र यह मानकर कि वह हमारा दश्ु मन है । चलो हम पता लगते हैं कि आखिर विशाल गिद्ध है कौन
राम — ही महान पक्षी कृपा करके हमें यह बताएं कि आपहै कौन। मैं महाराष्ट्र दशरथ नंदन राम हूं, यह मेरी पत्नी
सीता है और वह मेरा छोटा भाई लक्ष्मण है । कृपया हमारा प्रणाम स्वीकार करें । कृपा करके हमें अपने बारे में
बताएं।
जटायु — मेरे प्यारे पत्र
ु , मैं तम्
ु हारे स्वर्गीय पिता दशरथ का समवयस्क मित्र हूँ। पज् ू य कश्यप मनि
ु के दो पत्रु हैं
गरुड़ और अरुण, मैं अरुण का पत्र ु ूह ं , मे रा नाम जटाय ु है ।
कृपया मझ ु े आपकी सहायता करने की अनम ु ति दें जब आप जंगल में रह रहे हों तो आप पंचवटी में रहें और मैं
अभयारण्य की तरह पास के पेड़ों पर निवास करके आपकी रक्षा करूंगा।
राम — प्रिय जटायु आपके दयालु प्रस्ताव के लिए धन्यवाद, मैं आपके साथ एक लंबी और स्थायी दोस्ती की आशा
करता हूं, हमारे साथ आइए।

एक समय पंचवटी में बारिश नाम का एक राक्षस स्वर्ण हिरण का रूप धारण करता है । सीता दे वी वनों से पष्ु प चन

रही होती है तभी उनकी नजर उसे सद
ंु र स्वर्णिम हिरण पर जाती है ।

सीता — हे प्रिय स्वामी राम, लक्ष्मण वह हिरण कितना सद ंु र है कृपया मेरे लिए उसे ले आए मैं उसे अपने पास
रखग ंू ी
लक्ष्मण— प्रभु राम हमें सावधान रहना चाहिए मैं आज तक ऐसा विचित्र हिरण कभी नहीं दे खा है हो ना हो या कोई
असरु है ।
राम — डरो मत लक्ष्मण अगर सीता को यह हिरण पसंद है तो यह इस रख सकती है और अगर यह कोई असरु
होगा तो मैं इसका अभी मैं इसका वध कर दं ग ू ा।
जब तक मैं हिरण को पकड़ने जाता हूं तम ु सीता की रक्षा करना और इसे अकेला मत छोड़ना।

इसके पश्चात प्रभु राम उस स्वर्णिम हिरण के पीछे दौड़ते हैं कुछ क्षण बाद भगवान राम ने हिरण को तीर मारा
लेकिन वह आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि वह हिरण कहराते हुए राम की आवाज में चिल्लाकर कहा .....

मारीच — हे लक्षमण! सीते! मेरी रक्षा करो कृपया कोई मेरी मदद करो .....सीते.... लक्ष्मण .....मझ
ु े बचाओ कोई
मेरी मदद करो कृपया कोई मेरी मदद करो।
सीता — लक्ष्मण तम् ु हें प्रभु राम की पक ु ारने की आवाज आ रही है तरु ं त जो वह कोई खतरे में है । जो उनकी रक्षा
करो।
लक्षमण — हे माता प्रभु राम इस परू े सष्टि ृ में कोई भी जानवर कोई भी मनष्ु य कोई भी प्राणी को परास्त कर
सकते हैं। यह पकु ार किसी असरु का छलावा है ।
सीता — लक्ष्मण तम् ु हें प्रभु राम के लिए कोई चिंता नहीं तम ु उन्हें ऐसे ही मरता छोड़ सकते हो। तमु इतने साल से
उनकी सेवा सिर्फ इसलिए कर रहे थे ताकि तम् ु हें ऐसा अवसर मिलते ही तम ु मझ
ु े अपना सको।
लक्ष्मण — हे माँता, ये शब्द बहुत क्रूर हैं और मैं बस, ये मेरे दिल को लाल गर्म आग की तरह जला रहा है ।
ठीक है माता अगर आप यही इच्छा है तो मैं आप क्या-क्या का पालन करूंगा और प्रभु राम की खोज में जाऊंगा,
उनकी आज्ञा का उल्लंघन करके। किंतु मझ ु े आपकी रक्षा की चिंता है हे माता मैं आपके चारों ओर एक रे खा खींच
रहा हूं कृपा करके इस रे खा से बाहर ना आएगा।

यह वह क्षण था जिसका दष्ु ट रावण इंतजार कर रहा था, वह खद


ु को एक पवित्र व्यक्ति का भेष बनाकर पवित्र
भजन गाते हुए सीता के सामने आया, जबकि उसका दिल बरु ी इच्छाओं से भरा हुआ था।

रावण — ॐ नमः शिवाय नमो नमः ... ॐ नमः शिवाय नमो नमः।
सीता — हे ब्राह्मण आपका हमारे आश्रम में स्वागत है । आपको इस जंगल में विचरण करते हुए अवश्य ही भख

और प्यास लगी होगी कृपया आप प्रतीक्षा करें मैं आपके लिए कुछ फल लेकर आता हूं।
रावण— हे दे वी आपका धन्यवाद भगवान आपका भला करें ।

सीता अपनी कुटिया में जाकर उस साधु के लिए कुछ फल लाती हैं।

सीता — हे ब्राह्मण कृपया इसे स्वीकार करें


रावण — (लगता है सीता की सरु क्षा के लिए किसी ने यह रे खा खींचा है अगर सीता का अपहरण करना है तो सीता
को बाहर लाना होगा) हे दे वी अगर आप चाहती हैं कि मैं इस फल का स्वीकार करूं तो आपको इस रे खा से बाहर
आकर दे ना होगा।
सीता — हे ब्राह्मण मझ ु े क्षमा करें किंतु मझ
ु े इसके अनमु ति नहीं मिली है मझु े इस रे खा के भीतर ही रहने को कहा
गया है ।
रावण — अगर तम ु इस रे खा के बाहर आकर मझ ु े फल नहीं दिया तो मैं इसको स्वीकार नहीं करूंगा और एक भख ू े
ब्राह्मण के श्राप से तम्
ु हारा परू ा परिवार नष्ट हो जाएगा।

सीता डर जाती है इसलिए वह रे खा पार करके उसे ब्राह्मण को फल दे ने के लिए आती है ।


जैसे ही सीता उस रे खा को पार करती है रावण अपने असली रूप में आ जाता है ।
रावण — हहहहाह!!!! हे सद ंु री स्त्री तम
ु इस खतरनाक वन में क्या कर रही हो तम् ु हें तो महलों में होना चाहिए तम ु
इतनी सद ंु र हो कि तम्ु हारे पास हजारों दासियां होना चाहिए तम ु इस सरल से हे सद ंु री स्त्री तम
ु इस खतरनाक वन
में क्या कर रही हो तम् ु हें तो महलों में होना चाहिए तम ु इतनी सद ंु र हो कि तम्ु हारे पास हजारों दासियां होनी चाहिए
। तम्ु हें तो अलग-अलग अलं क ारों से अपने आप को स स
ु ज्जित करना चाहिए तमु इतना सरल सा वस्त्र क्यों पहनी
हो और इस वैन में क्या कर रही हो चलो तम ु मेरे साथ चलो मेरे महल में वहां पर मैं तम् ु हें संसार की सारी खशि
ु यां
दं ग
ू ा।
चलो मेरे साथ मैं तम् ु हें अपने महल में ले चलग ंू ा मैं रावण हूं मझु े कोई नहीं परास्त कर सकता।
सीता — रावण मझ ु े छोड़ दो मझ ु े जाने प्रभु राम के आने से पहले तम ु यहां से चले जाओ अन्यथा वह तम् ु हारा तम्
ु हें
अवश्य ही मत्ृ यु प्रदान केरें गे कर दें गे अगर हिम्मत है तो मेरा अपहरण उनके समक्ष करके दिखाओ। जब उनको
पता चलेगा कि मेरा अपहरण तम ु ने क्या है तो वह तम् ु हारे साथ-साथ तम् ु हारी परू े साम्राज्य का सर्वनाश कर दें गे।
रावण — हाहाहाहा! मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता मझ ु े कोई परास्त नहीं कर सकता चलो मेरे साथ मेरे पष्ु पक
विमान में चलो। अब तम ु मेरे साथ मेरे महान साम्राज्य लंका में चलोगे तम ु वहां की रानी बनोगी। मैं अपनी पत्नी
को तम् ु हारी दासी बनाऊ ं गा।
सीता — प्रभु राम लक्ष्मण मेरी सहायता करो लक्ष्मण मझ ु े क्षमा कर दो कि मैंने तम्
ु हें इतना क्रूर शब्द बोला मझु े
क्षमा कर दो मझ ु े बचाओ मेरी रक्षा करो।
जटाय— ु सीता मेरी पत्र ु ी , तम ु इसे नहीं ले जा सकते।
सीता — हे जटायु कृपया मेरी रक्षा करें यह दस ू रा वन मेरा हरण करके ले जा रहा है कृपया मझ ु े बचाए।
जटायु — है सीता तम ु भयभीत न हो जब तक मैं जीवित हूं या दष्ु ट आवर्त में कहीं नहीं ले जा सकता।
रावण तम् ु हें बहुत बद्ु धिमान और वीर माना जाता है यह किस तरह का व्यवहार है कि तम ु एक चोर की तरह किसी
की पत्नी का अपहरण करके ले जा सकते हो। व्यवहार तम् ु हारे लिए एक महान संकट उत्पन्न करे गा और तम् ु हारे
परू े साम्राज्य को नष्ट कर दे गा।
रावण — जटायु तम ु यहां से चले जाओ मेरे रस्ते में बाधा मत उत्पन्न करो शांति से यहां से चले जाओ। जो और
किसी वक्ष ृ पर बैठकर आराम करो तम ु क्या मझ ु े लड़ोगे।
जटायु — रावण, भले में वद् ृ धि हो च क
ु ा हू ं ले कि न तमु जैसे पापियों को निपटने के लिए मैं काफी हूं और सीता मेरी
पत्र
ु ी के समान है ।

जटायु और रावण के बीच यद् ु ध चलता है । जटायु अपना परू ा प्रयास करते की सीता दे वी की रक्षा करे किंतु दष्ु ट
रावण जटायु के पंख काट दे ता है और जटायु लहू लह ु ान होते हुए धरती पर गिर जाते हैं। जटायु बहुत असहनीय
पीड़ा में थे। मानो अभी उनके प्राण निकल जाए। किंतु जटायु इतनी पीड़ा में होने के बाद भी अपने प्राणों को रोक के
रखे थे ताकि जब भी श्री राम आए वह दे वी सीता के बारे में उन्हे बता सके कि वह दष्ु ट रावण उनका अपहरण
करके ले गया है ।
जटायु जानते थे कि वह रावण को परास्त नहीं कर सकते हैं किंतु वह बहुत बद् ु धिमान थे उन्हें पता था कि दिन का
शभ ु और अशभ ु समय कौन सा होता है । वह भले ही रावण को परास्त न कर सके किंतु वह इतने योग्य थे कि रावण
को कुछ क्षण और रोक सके जिसे जो शभ ु नक्षत्र है वह पनु र्वसु नक्षत्र में बदल जाए। जिस समय रावण दे वी सीता
का अपहरण करके ले जा रहा था वह ऐसा नक्षत्र था कि उस नक्षत्र में किया गया कोई भी कार्य अवश्य सफल होता
है इसीलिए जटायु रावण को अपने यद् ु ध में उलझा के रखे थे कि वह शभ ु नक्षत्र बीत जाए और वह नक्षत्र के बीत
जाने के बाद पन ु र्वसु नक्षत्र आएगा जिसमे किया गया कार्य कभी सफल नही होगा ।

सीता — रावण तम्


ु हें शर्म आनी चाहिए कि तम
ु ने एक बढ़
ू े और महान जटायु जैसे पक्षी का हत्या कर दिया।

(Last scene)
राम — लक्ष्मण तम ु ने सीता को अकेला छोड़ मैंने तम्
ु हें ऐसा करने से मना किया था।
लक्ष्मण — मैं सीता माता को अकेला नहीं छोड़ना चाहता था किंतु मझ ु े यह करना पड़ा मैं असहाय हो गया था मझ
ु े
क्षमा करें प्रभ।ु
राम — सीते सीते ! तम ु कहां हो

जब राम और लक्ष्मण दे वी सीता की खोज कर रहे थे तभी उन्होंने किसी के कहराने की आवाज सन
ु ी जब वह पास
जाकर दे खें तो तो उन्होंने जटायु को घायल अवस्था में पड़े हुए थे।

जटायु — हे प्रभु दष्ु ट रावण जो लंका का राजा है आया और पत्र


ु सीता का अपहरण करके ले गया मैंने पत्र
ु ी सीता को

बचाने का परू ा प्रयास किया कितु मैं पत्र
ु ी सीता को बचा नही पाया। अंततः रावण मझ
ु े पराजित कर दिया। वह पत्र
ु ी
सीता का अपहरण करके दक्षिण की ओर ले गया जहां पर उसका साम्राज्य लंका है ।

प्रभु राम लक्ष्मण के साथ स्वयं ही जटायु का दाह संस्कार करते हैं।
जटायु का यह महान त्याग हमें एक बहुत ही अच्छी सी प्रदान करता है कि भगवान हमारा आशय और प्रयास दे खते
हैं ना ही कि हमारा परिणाम। अगर हमारा परिणाम सही ना निकले किंतु हमारा प्रयास शद्
ु ध हो फिर भी भगवान
हम पर कृपा करते हैं।

राम — लक्ष्मण जटायु मेरे पिता समान है , इसीलिए यह हमारा कर्तव्य है कि हम इनके दाह संस्कार करें ।
हे जटायू आपके इस महान त्याग के लिए आपको मेरे धाम में एक उच्च स्थान प्राप्त होगा।

प्रभु राम लक्ष्मण हनम


ु ान सग्र
ु ीव और अंगद की मदद से सीता माता की खोज कर लेते हैं और उसे दष्ु ट रावण को
परास्त कर विभीषण को लंका का राजा बनाते हैं।

You might also like