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Rama Navami Drama
Rama Navami Drama
एक दिन भगवान राम, उनकी पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण पंचवटी नामक एक सद
ंु र स्थान की ओर जाते
समय एक बड़े पेड़ पर बैठे एक विशाल जीव को दे खते हैं।
लक्ष्मण ने उसे राक्षस समझ लिया।
एक समय पंचवटी में बारिश नाम का एक राक्षस स्वर्ण हिरण का रूप धारण करता है । सीता दे वी वनों से पष्ु प चन
ु
रही होती है तभी उनकी नजर उसे सद
ंु र स्वर्णिम हिरण पर जाती है ।
सीता — हे प्रिय स्वामी राम, लक्ष्मण वह हिरण कितना सद ंु र है कृपया मेरे लिए उसे ले आए मैं उसे अपने पास
रखग ंू ी
लक्ष्मण— प्रभु राम हमें सावधान रहना चाहिए मैं आज तक ऐसा विचित्र हिरण कभी नहीं दे खा है हो ना हो या कोई
असरु है ।
राम — डरो मत लक्ष्मण अगर सीता को यह हिरण पसंद है तो यह इस रख सकती है और अगर यह कोई असरु
होगा तो मैं इसका अभी मैं इसका वध कर दं ग ू ा।
जब तक मैं हिरण को पकड़ने जाता हूं तम ु सीता की रक्षा करना और इसे अकेला मत छोड़ना।
इसके पश्चात प्रभु राम उस स्वर्णिम हिरण के पीछे दौड़ते हैं कुछ क्षण बाद भगवान राम ने हिरण को तीर मारा
लेकिन वह आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि वह हिरण कहराते हुए राम की आवाज में चिल्लाकर कहा .....
मारीच — हे लक्षमण! सीते! मेरी रक्षा करो कृपया कोई मेरी मदद करो .....सीते.... लक्ष्मण .....मझ
ु े बचाओ कोई
मेरी मदद करो कृपया कोई मेरी मदद करो।
सीता — लक्ष्मण तम् ु हें प्रभु राम की पक ु ारने की आवाज आ रही है तरु ं त जो वह कोई खतरे में है । जो उनकी रक्षा
करो।
लक्षमण — हे माता प्रभु राम इस परू े सष्टि ृ में कोई भी जानवर कोई भी मनष्ु य कोई भी प्राणी को परास्त कर
सकते हैं। यह पकु ार किसी असरु का छलावा है ।
सीता — लक्ष्मण तम् ु हें प्रभु राम के लिए कोई चिंता नहीं तम ु उन्हें ऐसे ही मरता छोड़ सकते हो। तमु इतने साल से
उनकी सेवा सिर्फ इसलिए कर रहे थे ताकि तम् ु हें ऐसा अवसर मिलते ही तम ु मझ
ु े अपना सको।
लक्ष्मण — हे माँता, ये शब्द बहुत क्रूर हैं और मैं बस, ये मेरे दिल को लाल गर्म आग की तरह जला रहा है ।
ठीक है माता अगर आप यही इच्छा है तो मैं आप क्या-क्या का पालन करूंगा और प्रभु राम की खोज में जाऊंगा,
उनकी आज्ञा का उल्लंघन करके। किंतु मझ ु े आपकी रक्षा की चिंता है हे माता मैं आपके चारों ओर एक रे खा खींच
रहा हूं कृपा करके इस रे खा से बाहर ना आएगा।
रावण — ॐ नमः शिवाय नमो नमः ... ॐ नमः शिवाय नमो नमः।
सीता — हे ब्राह्मण आपका हमारे आश्रम में स्वागत है । आपको इस जंगल में विचरण करते हुए अवश्य ही भख
ू
और प्यास लगी होगी कृपया आप प्रतीक्षा करें मैं आपके लिए कुछ फल लेकर आता हूं।
रावण— हे दे वी आपका धन्यवाद भगवान आपका भला करें ।
सीता अपनी कुटिया में जाकर उस साधु के लिए कुछ फल लाती हैं।
जटायु और रावण के बीच यद् ु ध चलता है । जटायु अपना परू ा प्रयास करते की सीता दे वी की रक्षा करे किंतु दष्ु ट
रावण जटायु के पंख काट दे ता है और जटायु लहू लह ु ान होते हुए धरती पर गिर जाते हैं। जटायु बहुत असहनीय
पीड़ा में थे। मानो अभी उनके प्राण निकल जाए। किंतु जटायु इतनी पीड़ा में होने के बाद भी अपने प्राणों को रोक के
रखे थे ताकि जब भी श्री राम आए वह दे वी सीता के बारे में उन्हे बता सके कि वह दष्ु ट रावण उनका अपहरण
करके ले गया है ।
जटायु जानते थे कि वह रावण को परास्त नहीं कर सकते हैं किंतु वह बहुत बद् ु धिमान थे उन्हें पता था कि दिन का
शभ ु और अशभ ु समय कौन सा होता है । वह भले ही रावण को परास्त न कर सके किंतु वह इतने योग्य थे कि रावण
को कुछ क्षण और रोक सके जिसे जो शभ ु नक्षत्र है वह पनु र्वसु नक्षत्र में बदल जाए। जिस समय रावण दे वी सीता
का अपहरण करके ले जा रहा था वह ऐसा नक्षत्र था कि उस नक्षत्र में किया गया कोई भी कार्य अवश्य सफल होता
है इसीलिए जटायु रावण को अपने यद् ु ध में उलझा के रखे थे कि वह शभ ु नक्षत्र बीत जाए और वह नक्षत्र के बीत
जाने के बाद पन ु र्वसु नक्षत्र आएगा जिसमे किया गया कार्य कभी सफल नही होगा ।
(Last scene)
राम — लक्ष्मण तम ु ने सीता को अकेला छोड़ मैंने तम्
ु हें ऐसा करने से मना किया था।
लक्ष्मण — मैं सीता माता को अकेला नहीं छोड़ना चाहता था किंतु मझ ु े यह करना पड़ा मैं असहाय हो गया था मझ
ु े
क्षमा करें प्रभ।ु
राम — सीते सीते ! तम ु कहां हो
जब राम और लक्ष्मण दे वी सीता की खोज कर रहे थे तभी उन्होंने किसी के कहराने की आवाज सन
ु ी जब वह पास
जाकर दे खें तो तो उन्होंने जटायु को घायल अवस्था में पड़े हुए थे।
प्रभु राम लक्ष्मण के साथ स्वयं ही जटायु का दाह संस्कार करते हैं।
जटायु का यह महान त्याग हमें एक बहुत ही अच्छी सी प्रदान करता है कि भगवान हमारा आशय और प्रयास दे खते
हैं ना ही कि हमारा परिणाम। अगर हमारा परिणाम सही ना निकले किंतु हमारा प्रयास शद्
ु ध हो फिर भी भगवान
हम पर कृपा करते हैं।
राम — लक्ष्मण जटायु मेरे पिता समान है , इसीलिए यह हमारा कर्तव्य है कि हम इनके दाह संस्कार करें ।
हे जटायू आपके इस महान त्याग के लिए आपको मेरे धाम में एक उच्च स्थान प्राप्त होगा।