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पाठ – 7 सौहार्दं प्रकृते: शोभा (प्रेम प्रकृतत की सन्

ु र्दरता है ।)

पाठ की हहन्र्दी –

वन का दृश्य है , पास में ही एक नर्दी बह रही है ।

शेर सख
ु पव
ू क
व आराम कर रहा है , तभी एक बंर्दर आकर उसके पूँछ
ू को
घम
ु ा र्दे ता है । क्रोधित शेर उसे मारना चाहता है , परं तु बंर्दर कूर्दकर पेड़
पर चढ़ जाता , तभी अचानक ही वक्ष
ृ से र्दस
ू रा बंर्दर शेर के कान को
खींचकर फिर से वक्ष
ृ पर चढ़ जाता है । इसी प्रकार बंर्दर बार-बार शेर को
परे शान करते हैं। क्रोधित शेर इिर-उिर र्दौड़ता है, गरजता है परं तु कुछ
भी करने में असमर्व रहता है। बंर्दर हं सते हैं और पेड़ पर बैठे हुए अनेक
प्रकार के पक्षी भी शेर की ऐसी अवस्र्ा को र्दे खकर प्रसन्नता से ममधित
आवाज करते हैं।

नींर्द भंग हो जाने के र्दख


ु से जंगल का राजा होने पर भी तच्
ु छ जीवों से
अपनी ऐसी अवस्र्ा से परे शान होकर सभी जानवरों को र्दे खकर पछ
ू ता है

शेर - (क्रोि से गरजता हुआ) अरे मैं जंगल का राजा हूं। क्या आप सब
को डर नहीं लगता है? मझ
ु े क्यों इस प्रकार से आप सब परे शान कर
रहे हैं?

एक बन्र्दर – क्योंफक तुम जंगल का राजा बनने के योग्य नहीं हो । राजा


तो रक्षक होता है परं तु तुम तो भक्षक हो । तुम अपनी रक्षा करने में
समर्व नहीं हो तो हमारी रक्षा कैसे करोगे?
र्दस
ू रा बन्र्दर – क्या पंचतंत्र की इस उक्क्त को नहीं सुना –

जो र्दस
ू रों के द्वारा सताए गए और शारीररक रूप से पीडडत गए
जानवरों की रक्षा नहीं करता है, वह तनस्सन्र्दे ह ही शरीर िारण फकए हुए
यमराज के समान होता है।

कौआ – हाूँ, तम
ु सत्य कह रहे हो। वास्तव में मैं जंगल का राजा बनने
के योग्य हूूँ।

कयोल - (हंसते हुए) तम


ु वनराज बनने के योग्य कैसे हो? जहाूँ कही भी
कॉव – कॉव की ककवश आवाज से वातावरण को र्दषू ित करते हो। न रूप
है न ही आवाज है। काले रं ग के शुद्ि और अशुद्ि सब खाते हो ।
तुम्हें जंगल का राजा कैसे मान लें।

कौआ – अरे ! अरे ! तम


ु क्या कह रही हो? अगर मैं काले रं ग का हूूँ तो
क्या तम
ु गोरी हो? क्या तम
ु भल
ू गई हो फक मेरी सत्यवाहर्दता तो लोगों
के मलए उर्दाहरण के स्वरूप है – झूठ बोलोगे तो कौआ काटे गा। हमारी
मेहनत और एकता तो संसार में प्रमसद्ि है । और कौवे जैसी इच्छा रखने
वाला षवद्यार्ी ही आर्दशव छात्र माना जाता है ।

कोयल – अधिक आत्मप्रशंसा मत करो। क्या तम


ु भल
ू गए हो फक –

कौवा काला होता है , कोयल भी काली होती है तो कौवे और कोयल में


अंतर क्या है? वसन्त ऋतु आने पर कौवा कौवा होता है और कोयल
कोयल होती है।
कौवा – अरे र्दस
ू रों के सहारे जीने वाली! अगर मैं तुम्हारे बच्चे का पालन
न करूूँ तो कोयल कहाूँ से आएूँगी ? इसमलए मैं ही र्दयालु पक्षक्षयों का
राजा कौवा हूूँ।

गजः – पास से आते हुए, अरे ! सबकी बातों को सन


ु ता हुआ मैं यहाूँ आया
हूूँ। मैं षवशाल शरीर वाला, बलशाली और पराक्रमी हूूँ। शेर हो या कोई
र्दस
ू रा जानवर, जंगल के जानवरों को परे शान करने वाले जानवरों को मैं
अपनी संड़
ू से पटककर मार डालूँ ग
ू ा। क्या कोई है ऐसा पराक्रमी?
इसमलए मैं ही जंगल का राजा बनने के योग्य हूूँ।

बन्र्दर – अरे ! क्या ऐसा है? ( जल्र्दी ही हार्ी की पूूँछ को भी घूमाकर


पेड पर चढ़ जाता है।)

(हार्ी उस वक्ष
ृ को ही अपनी सूँड
ू से घम
ु ाना चाहता है परन्तु बन्र्दर तो
कूर्दकर र्दस
ू रे वक्ष
ृ पर चढ़ जाता है। इस प्रकार हार्ी को एक पेड़ से
र्दस
ू रे पेड़ की ओर र्दौड़ता हुआ र्दे खकर शेर भी हूँसता है और कहता है ।)

शेर – हे हार्ी, मुझे भी इन बंर्दरों ने ऐसे ही परे शान फकया र्ा।

बन्र्दर – इसमलए ही तो मैं कह रहा हूूँ फक मैं ही राजा बनने के योग्य


हूूँ। षवशाल शरीर वाले, पराक्रमी और भयंकर शेर हो या हार्ी हमारी
जातत सबको पराक्जत करने में समर्व है। इसमलए जंगल के जानवरों की
रक्षा के मलए हमसब समर्व हैं। ( यह सन
ु कर नर्दी के बीच में बैठा एक
बगल
ु ा कहता है।)
बगल
ु ा - अरे ! मेरे अलावा और राजा कैसे बन सकता है ? मैं तो ठं डे
पानी में बहुत समय तक बबना हहले ध्यान मग्न होकर क्स्र्तप्रज्ञ के
समान बैठकर सबकी रक्षा के उपायों को सोचूँग
ू ा और योजना बनाकर
अपनी सभा में अलग-अलग पर्दों पर बैठे हुए जानवरों के सार् ममलकर
रक्षा के उपायों को फक्रयाक्न्वत करूंगा इसमलए मैं ही जंगल का राजा
बनने के योग्य हूूँ I

मोर - (वक्ष
ृ के ऊपर से जोर से हूँसते हुए) अधिक आत्मप्रशंसा मत करो।
क्या तम
ु नहीं जानते फक –

अगर राजा अच्छा न हो तो प्रजा भी वैसी ही हो जाती है । जैसे समद्र


ु में
बबना नाषवक के नौका डूब जाती है ।

तुम्हारे ध्यान की अवस्र्ा को कौन नहीं जानता है ।‘क्स्र्तप्रज्ञ’ के बहाने


से बेचारी मछमलयों को िोखे से पकड़कर क्रूरता से खाते हो। तम्
ु हें
धिक्कार है। तम्
ु हारे कारण सारा पक्षीकुल ही अपमातनत हो गया है ।

बन्र्दर – ( घमंड से ) इसमलए तो मैं कहता हूूँ फक मैं ही राजा बनने के


योग्य हूूँ I जल्र्दी से आप सब मेरे राज्य – अमभिेक की तैयारी कीक्जए।

मोर – अरे बन्र्दर! चप


ु हो जाओ। तम
ु जंगल का राजा बनने के योग्य
कैसे हो? र्दे खो र्दे खो मेरे मसर पर राजमक
ु ु ट के समान चोटी बनाकर
षविाता ने ही मुझे पक्षक्षयों का राजा बनाया है । इसमलए जंगल में रहने
वाले आप सब मुझे वनराज के रूप में र्दे खने के मलए तैयार हो जाओ।
क्या कोई अब भी कोई षविाता के तनणवय को बर्दल सकता है ?
कौवा - (व्यंग्य के सार्) अरे साूँप खाने वाले! नत्ृ य के अततररक्त और
तुम्हारी क्या षवशेिता है क्जसके कारण हम तुम्हें जंगल का राजा मान
लें।

मोर – क्योंफक मेरा नत्ृ य तो प्रकृतत की पज


ू ा है ।मेरे पंखों की अद्भत

संर्द
ु रता को तो र्दे खो । (पंखे को िैलाकर नाचने की मद्र
ु ा में खड़े होकर)
तीनों लोकों में मेरे जैसा सुंर्दर कोई भी नहीं है । जंगल के जानवरों पर
आक्रमण करने वालों को तो मैं अपनी सुंर्दरता से और नत्ृ य से आकषिवत
करके जंगल से बाहर कर र्दं ग
ू ा । इसमलए मैं ही जंगल का राजा बनने
के योग्य हूं।

(उसी समय बाघ और चीता भी नर्दी के जल को पीने के मलए वहां आए


और इन सब की लड़ाई को सुनकर बोले । )

बाघ और चीता – क्या जंगल के राजा पर्द के मलए एक अच्छा पात्र चन



रहे हो? इसके मलए तो हम र्दोनों योग्य हैं।सववसम्मतत से क्जस फकसी का
भी चयन कर लो।

शेर – तुम चुप हो जाओ, तम


ु र्दोनों भी मेरे जैसे ही भक्षक हो न की
रक्षक । ये जंगल के जानवर भक्षक को रक्षक पर्द के योग्य नहीं मानते
हैं, इसमलए षवचार और षवमशव चल रहा है ।

बगुला – शेर ने बबल्कुल सही कहा। वास्तव में शेर ने बहुत विों तक
शासन फकया, अब तो कोई पक्षी ही राजा बने ऐसा हमें तनश्चय करना
चाहहए । इसमें संशय की कोई आवश्यकता नहीं है ।
सभी पक्षी - ( जोर से ) हाूँ हाूँ, कोई पक्षी ही राजा होगा।

परन्त कोई भी पक्षी अपने अलावा फकसी र्दस


ू रे को इस पर्द के योग्य
नहीं मानते हैं तो तनणवय कैसे होगा। तब उन सब ने गहरी नींर्द में सोए
हुए उल्लू को र्दे खकर षवचार फकया फक यह आत्मप्रशंसा से रहहत, पर्द के
लालच से मक्
ु त उल्लू ही हमारा राजा बनेगा। इस प्रकार सब आपस में
आर्दे श करते है फक राजा के अमभिेक से सम्बक्न्ित सामान लाया जाए )
सभी पक्षी तैयारी के मलए जाना चाहते हैं तभी अचानक ही -

कौवा – (जोर से हूँसते हुए) यह परू ी तरह से अनधु चत है फक मोर, हं स,


कोयल, चकवा, तोता और सारस आहर्द पक्षक्षयों के होते हुए भी हर्दन के
अंि,े भंयकर मुख वाले के अमभिेक के मलए तैयारी कर रहे हो। पूरे हर्दन
सोने वाला यह हमारी रक्षा कैसे करे गा । वास्तव में –

भयानक स्वभाव वाले, अतत क्रोिी, तनर्दव यी और अषप्रय बोलने वाले उल्लू
को राजा बनाकर हम क्या सिलता प्राप्त कर लेंगे |

तभी प्रकृततमाता प्रवेश करती हैं-

(प्रेम से ) अरे अरे प्राणणयों! तुम सब मेरे बच्चे हो। क्यों आपस में लड़ाई
कर रहे हो? वास्तव में सभी जीव एक -र्दस
ू रे पर आधित होते हैं। हमेशा
यार्द रखो –

जो र्दे ता है, लेता है , गुप्त बातें बताता है और पूछता है , खाता है और


णखलाता है । यह 6 प्रकार के प्रेम के लक्षण बताए गए हैं।

सभी जानवर एक आवाज में कहते हैं-


माूँ! आप अच्छी बातें कह रही हैं परं तु हम सब आपको नहीं जानते
हैं।आपका पररचय क्या है?

प्रकृतत माता – मैं प्रकृतत आप सब की माता हूं । तुम सब मेरे षप्रय हो।
सबका समय – समय पर मेरे मलए महत्व है , इसमलए बेकार में लड़ाई
करके अपने समय को बबावर्द मत करो अषपतु ममलकर प्रसन्नता पव
ू क

रहो और अपने रसमय बनाओ। इसमलए कहा गया है -

प्रजा के सुख में ही राजा का सुख होता है और प्रजा के हहत में ही राजा
का हहत होता है। राजा को केवल अपने हहत के बारे में नहीं सोचना
चाहहए अषपतु प्रजा के षप्रय और हहत के बारे में सोचना चाहहए।

और भी कहा गया है -

गहरे पानी में रहने वाली रोहहत मछली कभी घमंड नहीं करती है , जबफक
अंगठ
ू े भर पानी में रहने शिरी मछली िुर्दकती रहती है ।

इसमलए आप सब भी शिरी मछली की तरह एक एक के गण


ु ों की चचाव
को छोड़कर ममलकर प्रकृतत की सुन्र्दरता के मलए और वन की रक्षा के
मलए प्रयास कीक्जए ।

सभी प्रकृतत माता को प्रणाम करते है और दृढ संकल्प के सार् गाते हैं-

आपस में लड़ाई करने से प्राणणयों की हातन होती है । जबफक एक – र्दस


ू रे
के सहयोग से ही लाभ प्राप्त होता है ।।

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