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Ram Lakshman IN HINDI
Ram Lakshman IN HINDI
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परशुराम लक्ष्मण संवाद के दोहे और चौपाइयाँ रामचरितमानस के बालकाण्ड से ली गई हैं। बालकाण्ड में
भगवान राम के जन्म से लेकर राम-सीता विवाह तक के प्रसंग आते हैं।
यह प्रसंग उस समय का हैं जब राजा जनक ने अपनी पुत्री माता सीता के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन
किया था। जिसमें दे श विदे श के सभी राजाओं को आमंत्रित किया गया। स्वयंवर की शर्त के अनस
ु ार जो भगवान
शिव का धनुष तोड़ेगा , माता सीता उसी को अपने पति के रूप में वरण करें गी।
भगवान राम ने शिव का धनुष तोड़ दिया।और माता सीता ने भगवान राम को अपना पति स्वीकार कर उन्हें
वरमाला पहनाई। लेकिन जब भगवान राम ने भगवान शिव का धनुष तोडा तो , उसके टूटने की आवाज तीनों
लोकों में सुनाई दी।
परशुराम जो भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। जब उन्होंने धनुष टूटने की आवाज सूनी तो वो बहुत क्रोधित
हुए। और तुरंत राजा जनक के दरबार में पहुँच गए। यह प्रसंग क्रोधित परशुराम और भगवान राम और उनके
भाई लक्ष्मण के बीच हुए संवाद का है ।
चौपाई 1.
नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥
अर्थ –
परशुराम को क्रोधित दे खकर राम कहते हैं कि हे नाथ !! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई सेवक/
दास होगा। आपकी क्या आज्ञा हैं। मुझे बताइए। यह सुनकर क्रोधित परशुराम नाराज होकर कहते हैं।
दोहा –
रे नप
ृ बालक कालबस बोलत तोहि न सँभार्।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार॥
अर्थ –
अरे राजकुमार ! तम
ु अपना मँह
ु संभाल कर क्यों नहीं बोलते हो , लगता है तम्
ु हारे सिर पर काल नाच रहा है ।
सारे संसार में प्रसिद्ध शिव का यह प्राचीन धनुष क्या तझ
ु े मामूली धनुही के समान लग रहा हैं।
चौपाई 2 .
लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु दे व सब धनुष समाना॥
का छति लाभु जन
ू धनु तोरें । दे खा राम नयन के भोरें ।।
अर्थ –
तब लक्ष्मण ने हँस कर कहा हे मुनिश्रेष्ठ ! मेरी समझ से तो सभी धनुष एक समान ही हैं। इस पुराने धनुष के
टूटने से क्या लाभ , क्या हानि । श्री राम ने तो इसे नया समझ कर उठाया था।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदे वन्ह दीन्ही॥
सहसबाहुभुज छे दनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
अर्थ –
मैंने अपनी भुजाओं के बल से इस पथ्
ृ वी को कई बार क्षत्रिय विहीन कर सारी भूमि ब्राह्मणों को दान कर दी हैं ।
मुझे भगवान शिव का वरदान भी प्राप्त है । मैंने सहस्रबाहु की भुजाओं को इसी फरसे से कटा था। इसीलिए हे
राजकुमार ! तम
ु मेरे इस फरसे को गौर से दे ख लो।
दोहा-
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥
अर्थ –
तुम अपने व्यवहार के कारण उस गति को पाओगे जिससे तुम्हारे माता पिता को असहनीय पीड़ा होगी। मेरे
फरसे की गर्जना सुनकर गर्भवती स्त्रियों का गर्भपात हो जाता है ।
चौपाई 3 .
बिहसि लखनु बोले मद
ृ ु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
पुनि पुनि मोहि दिखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥
अर्थ –
इस पर लक्ष्मणजी हँसकर अपनी मधरु बाणी से बोले हे मनि
ु वर ! आप अपने आप को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं
। इसीलिए मुझे बार-बार कुल्हाड़ी (फरसा) दिखा रहे हैं। ऐसा लग रहा हैं मानो आप फूँक मारकर ही पहाड़ को उड़ा
दे ना चाहते हों ।
भग
ृ ुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई॥
अर्थ –
जनेऊ से तो आप एक भग
ृ ुवंशी ब्राह्मण जान पड़ते हैं। इसलिए मैंने अब तक अपने क्रोध को काबू किया हुआ है ।
दे वता , ब्राह्मण , हरिजन और गाय , इन सब पर हमारे कुल के लोग अपनी वीरता नहीं दिखाते हैं।
दोहा –
जो बिलोकि अनुचित कहे उँ छमहु महामुनि धीर।
सनि
ु सरोष भग
ृ ब
ु ंसमनि बोले गिरा गंभीर।
अर्थ –
आपके धनुष बाण और कुठार (फरसे) को दे खकर अगर मैंने कुछ अनुचित कह दिया हो तो हे मुनिवर ! आप मुझे
क्षमा कीजिए। यह सन
ु कर भग
ृ व
ु ंशमणि परशरु ाम गंभीर बाणी में बोले। ..
चौपाई 4 .
कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु॥
भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरं कुसु अबुधु असंकू॥
ऐसा सन
ु कर परशरु ाम ने विश्वामित्र से कहा। हे विश्वामित्र ! यह बालक कुटिल और कुबद्धि
ु लगता है । और यह
काल के वश में होकर अपने ही कुल का घातक बन रहा है । यह सूर्यवंशी रुपी चंद्रमा में एक कलंक के समान है ।
यह बालक मूर्ख , उदं ण्ड , निडर है और इसे भविष्य का भान तक नहीं है ।
चौपाई 5.
तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा॥
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरे उ कर घोरा॥
अर्थ –
ऐसा लग रहा है मानो आप तो काल (यमराज) को आवाज लगाकर बार-बार मेरे लिए बुला रहे हो। लक्ष्मण के कटु
वचन को सुनकर परशुराम ने क्रोधित होकर अपना फरसा हाथ में ले लिया।
दोहा –
गाधिसूनू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहूँ न बूझ अबूझ॥
ऐसा सुनकर विश्वामित्र मन ही मन हँसे और सोचने लगे कि परशुरामजी आज तक सभी क्षत्रियों पर विजयी रहे ।
इसीलिए ये राम-लक्ष्मण को भी एक साधारण क्षत्रिय ही समझ रहे हैं। ये बालक (लक्ष्मण) फौलाद का बना हुआ ,
न कि गन्ने की खांड का। परशुराम जी अभी भी इनकी साहस , वीरता व क्षमता से अनभिज्ञ हैं।
चौपाई 6 .
कहे उ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा॥
माता पितहि उरिन भये नीकें। गरु रिनु रहा सोचु बड़ जी कें॥
तब लक्ष्मण ने परशुरामजी कहा , हे मुनिश्रेष्ठ ! आपके पराक्रम को कौन नहीं जानता। वह सारे संसार में प्रसिद्ध
है । आपने अपने माता पिता का ऋण तो चुका ही दिया हैं और अब अपने गुरु का ऋण चुकाने की सोच रहे हैं।
दोहा-
लखन उतर आहुति सरिस भग
ृ ुबरकोपु कृसानु।
बढ़त दे खि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥
अर्थ –
लक्ष्मण के उत्तरों ने , परशुरामजी के क्रोध रूपी अग्नि में आहुति का काम किया। जिससे उनका क्रोध अत्यधिक
बढ़ गया। जब श्री राम ने दे खा कि परशरु ाम का क्रोध अत्यधिक बढ़ चक
ु ा है । अग्नि को शांत करने के लिए जैसे
जल की आवश्यकता होती हैं। वैसे ही क्रोध रूपी अग्नि को शांत करने के लिए मीठे वचनों की आवश्यकता होती
हैं। श्रीराम ने भी वही किया। श्रीराम ने अपने मीठे वचनों से परशुराम का क्रोध शांत करने का प्रयास किया।
कहा जाता है कि गुरु कृपा से ही उन्हें राम भक्ति का मार्ग मिला। वो मानव मल्
ू यों के उपासक कवि थे। तल
ु सीदास राम भक्ति परम्परा के
अतल
ु नीय कवि है । सन 1623 में काशी में उनका निधन हो गया था।