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पाठ 2- राम-लक्ष्मण-परशरु ाम संवाद

पृष्ठ संख्या: 14

प्रश्न अभ्यास

1. परशरु ाम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनषु के टूट जाने के ललए कौन-कौन से तकक लिए?

उत्तर

परशरु ाम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनषु के टूट जाने पर लनम्नलललित तकक लिए -
1. हमें तो यह असाधारण लशव धनु ष साधारण धनषु की भााँलत लगा।
2. श्री राम को तो ये धनषु , नए धनषु के समान लगा।
3. श्री राम ने इसे तोडा नहीं बस उनके छूते ही धनषु स्वत: टूट गया।
4. इस धनषु को तोडते हुए उन्होंने लकसी लाभ व हालन के लवषय में नहीं सोचा था।
5. उन्होंने ऐसे अनेक धनषु ों को बालपन में याँू ही तोड लिया था। इसललए यही सोचकर उनसे यह कायक हो गया।

2. परशरु ाम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रलतलक्रयाएाँ हुई ं उनके आधार पर िोनों के स्वभाव की लवशेषताएाँ अपने
शब्िों में लललिए।

उत्तर

परशरु ाम के क्रोध करने पर श्री राम ने धीरज से काम ललया। उन्होंने नम्रता पणू क वचनों का सहारा लेकर परशरु ाम के क्रोध को शांत
करने का प्रयास लकया। परशरु ाम जी क्रोधी स्वभाव के थे। श्री राम उनके क्रोध पर शीतल जल के समान शब्िों व आचरण का
आश्रय ले रहे थे। यही कारण था लक उन्होंने स्वयं को उनका सेवक बताया व उनसे अपने ललए आज्ञा करने का लनवेिन लकया।
उनकी भाषा अत्यंत कोमल व मीठी थी और परशरु ाम के क्रोलधत होने पर भी वह अपनी कोमलता को नहीं छोडते थे। इसके
लवपरीत लक्ष्मण परशरु ाम की भााँलत ही क्रोधी स्वभाव के हैं। लनडरता तो जैसे उनके स्वभाव में कूट-कूट कर भरी थी। इसललए
परशरु ाम का फरसा व क्रोध उनमें भय उत्पन्न नहीं कर पाता। लक्ष्मण परशरु ाम जी के साथ व्यग्ं यपणू क वचनों का सहारा लेकर अपनी
बात को उनके समक्ष प्रस्ततु करते हैं। तलनक भी इस बात की परवाह लकए लबना लक परशरु ाम कहीं और क्रोलधत न हो जाएाँ। वे
परशरु ाम के क्रोध को न्यायपणू क नहीं मानते। इसललए परशरु ाम के अन्याय के लवरोध में िडे हो जाते हैं। जहााँ राम लवनम्र, धैयकवान,
मृिभु ाषी व बलु िमान व्यलि हैं वहीं िसू री ओर लक्ष्मण लनडर, साहसी, क्रोधी तथा अन्याय लवरोधी स्वभाव के हैं। ये िोनों गणु इन्हें
अपने-अपने स्थान पर उच्च स्थान प्राप्त करवाते हैं।

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3. लक्ष्मण और परशरु ाम के संवाि का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्िों में संवाि शैली में लललिए।
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उत्तर

लक्ष्मण - हे मलु न! बचपन में हमने िेल-िेल में ऐसे बहुत से धनषु तोडे हैं तब तो आप कभी क्रोलधत नहीं हुए थे। लफर इस धनषु
के टूटने पर इतना क्रोध क्यों कर रहे हैं?
परशरु ाम - अरे , राजपत्रु ! तू काल के वश में आकर ऐसा बोल रहा है। यह लशव जी का धनषु है।

4. परशरु ाम ने अपने लवषय में सभा में क्या-क्या कहा, लनम्न पद्ाश
ं के आधार पर लललिए -
बाल ब्रह्मचारी अलत कोही। लबस्वलबलित क्षलत्रयकुल द्रोही||
भजु बल भलू म भपू लबनु कीन्ही। लबपल
ु बार मलहिेवन्ह िीन्ही||
सहसबाहुभजु छे िलनहारा। परसु लबलोकु महीपकुमारा||
मातु लपतलह जलन सोचबस करलस महीसलकसोर।
गभकन्ह के अभकक िलन परसु मोर अलत घोर||

उत्तर

परशरु ाम ने अपने लवषय में ये कहा लक वे बाल ब्रह्मचारी हैं और क्रोधी स्वभाव के हैं। समस्त लवश्व में क्षलत्रय कुल के लवद्रोही के रुप
में लवख्यात हैं। वे आगे, बढे अलभमान से अपने लवषय में बताते हुए कहते हैं लक उन्होंने अनेकों बार पृथ्वी को क्षलत्रयों से लवहीन
कर इस पृथ्वी को ब्राह्मणों को िान में लिया है और अपने हाथ में धारण इस फरसे से सहस्त्रबाहु के बाहों को काट डाला है। इसललए
हे नरे श पत्रु ! मेरे इस फरसे को भली भााँलत िेि ले।राजकुमार! तू क्यों अपने माता-लपता को सोचने पर लववश कर रहा है। मेरे इस
फरसे की भयानकता गभक में पल रहे लशशओ ु ं को भी नष्ट कर िेती है।

5. लक्ष्मण ने वीर योिा की क्या-क्या लवशेषताएाँ बताई?

उत्तर

लक्ष्मण ने वीर योिा की लनम्नलललित लवशेषताएाँ बताई है -


1. वीर परुु ष स्वयं अपनी वीरता का बिान नहीं करते अलपतु वीरता पणू क कायक स्वयं वीरों का बिान करते हैं।
2. वीर परुु ष स्वयं पर कभी अलभमान नहीं करते। वीरता का व्रत धारण करने वाले वीर परुु ष धैयकवान और क्षोभरलहत होते हैं।
3. वीर परुु ष लकसी के लवरुि गलत शब्िों का प्रयोग नहीं करते। अथाकत् िसू रों को सिैव समान रुप से आिर व सम्मान िेते हैं।
4. वीर परुु ष िीन-हीन, ब्राह्मण व गायों, िबु कल व्यलियों पर अपनी वीरता का प्रिशकन नहीं करते हैं। उनसे हारना व उनको मारना
वीर परुु षों के ललए वीरता का प्रिशकन न होकर पाप का भागीिार होना है।
5. वीर परुु षों को चालहए लक अन्याय के लवरुि हमेशा लनडर भाव से िडे रहे।
6. लकसी के ललकारने पर वीर परुु ष कभी पीछे किम नहीं रिते अथाकत् वह यह नहीं िेिते लक उनके आगे कौन है वह लनडरता
पवू कक उसका जवाब िेते हैं।
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6. साहस और शलि के साथ लवनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने लवचार लललिए।

उत्तर

साहस और शलि ये िो गणु एक व्यलि को वीर बनाते हैं। यलि लकसी व्यलि में साहस लवद्मान है तो शलि स्वयं ही उसके
आचरण में आ जाएगी परन्तु जहााँ तक एक व्यलि को वीर बनाने में सहायक गणु होते हैं वहीं िसू री ओर इनकी अलधकता एक
व्यलि को अलभमानी व उद्दडं बना िेती है। कारणवश या अकारण ही वे इनका प्रयोग करने लगते हैं। परन्तु यलि लवन्रमता इन गणु ों
के साथ आकर लमल जाती है तो वह उस व्यलि को श्रेष्ठतम वीर की श्रेणी में ला िेती है जो साहस और शलि में अहक ं ार का
समावेश करती है। लवनम्रता उसमें सिाचार व मधरु ता भर िेती है,वह लकसी भी लस्थलत को सरलता पवू कक शांत कर सकती है। जहााँ
परशरु ाम जी साहस व शलि का सगं म है। वहीं राम लवनम्रता, साहस व शलि का सगं म है। उनकी लवनम्रता के आगे परशरु ाम जी के
अहक ं ार को भी नतमस्तक होना पडा नहीं तो लक्ष्मण जी के द्वारा परशरु ाम जी को शांत करना सम्भव नहीं था।

7. भाव स्पष्ट कीलजए -

(क) लबहलस लिनु बोले मृिु बानी। अहो मनु ीसु महाभट मानी||
पलु न पलु न मोलह िेिाव कुठारू। चहत उडावन फाँू लक पहारू||

उत्तर

प्रसगं - प्रस्तुत पंलियााँ तुलसीिास द्वारा रलचत रामचररतमानस से ली गई हैं। उि पंलियों में लक्ष्मण जी द्वारा परशरु ाम जी के बोले
हुए अपशब्िों का प्रलतउत्तर लिया गया है।

भाव - भाव यह है लक लक्ष्मण जी मस्ु कराते हुए मधरु वाणी में परशरु ाम पर व्यग्ं य कसते हुए कहते हैं लक हे मलु न आप अपने
अलभमान के वश में हैं। मैं इस संसार का श्रेष्ठ योिा ह।ाँ आप मझु े बार-बार अपना फरसा लििाकर डरा रहे हैं। आपको िेिकर तो
ऐसा लगता है मानो फाँू क से पहाड उडाने का प्रयास कर रहे हों। अथाकत् लजस तरह एक फाँू क से पहाड नहीं उड सकता उसी प्रकार
मझु े बालक समझने की भल ू मत लकलजए लक मैं आपके इस फरसे को िेिकर डर जाऊाँगा।

(ि) इहााँ कुम्हडबलतया कोउ नाहीं। जे तरजनी िेलि मरर जाहीं||


िेलि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सलहत अलभमाना||

उत्तर

प्रसगं - प्रस्ततु पलं ियााँ तल


ु सीिास द्वारा रलचत रामचररतमानस से ली गई हैं। उि पलं ियों में लक्ष्मण जी द्वारा परशरु ाम जी के बोले
हुए अपशब्िों का प्रलतउत्तर लिया गया है।

भाव - भाव यह है लक लक्ष्मण जी अपनी वीरता और अलभमान का पररचय िेते हुए कहते हैं लक हम भी कोई कुम्हडबलतया नहीं है
जो लकसी की भी तजकनी िेिकर मरु झा जाएाँ। मैंने फरसे और धनषु -बाण को अच्छी तरह से िेि ललया है। इसललए ये सब आपसे
अलभमान सलहत कह रहा ह।ाँ अथाकत् हम कोमल पष्ु पों की भााँलत नहीं हैं जो ज़रा से छूने मात्र से ही मरु झा जाते हैं। हम बालक
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अवश्य हैं परन्तु फरसे और धनषु -बाण हमने भी बहुत िेिे हैं इसललए हमें नािान बालक समझने का प्रयास न करें ।

(ग) गालधसू नु कह हृिय हलस मलु नलह हररयरे सझू ।


अयमय िााँड न ऊिमय अजहुाँ न बझू अबझू ||

उत्तर

प्रसगं - प्रस्ततु पलं ियााँ तल


ु सीिास द्वारा रलचत रामचररतमानस से ली गई हैं। उि पलं ियााँ में परशरु ाम जी द्वारा बोले गए वचनों को
सनु कर लवश्वालमत्र मन ही मन परशरु ाम जी की बलु ि और समझ पर तरस िाते हैं।

भाव - भाव यह है लक लवश्वालमत्र अपने हृिय में मस्ु कुराते हुए परशरु ाम की बलु ि पर तरस िाते हुए मन ही मन कहते हैं लक गलध-
पत्रु अथाकत् परशरु ाम जी को चारों ओर हरा ही हरा लििाई िे रहा है तभी तो वह िशरथ पत्रु ों को (राम व लक्ष्मण) साधारण क्षलत्रय
बालकों की तरह ही ले रहे हैं। लजन्हें ये गन्ने की िााँड समझ रहे हैं वे तो लोहे से बनी तलवार (िडग) की भााँलत हैं। अथाकत् वे
भगवान लवष्णु के रुप राम व लक्ष्मण को साधारण मानव बालकों की भााँलत ले रहे हैं। वे ये नहीं जानते लक लजन्हें वह गन्ने की िााँड
की तरह कमज़ोर समझ रहे हैं पल भर में वे इनको अपने फरसे से काट डालेंगे। यह नहीं जानते लक ये लोहे से बनी तलवार की
भााँलत हैं। इस समय परशरु ाम की लस्थलत सावन के अंधे की भााँलत हो गई है। लजन्हें चारों ओर हरा ही हरा लििाई िे रहा है अथाकत्
उनकी समझ अभी क्रोध व अहक ं ार के वश में है।

8. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंियक पर िस पंलियााँ लललिए।

उत्तर

तुलसीिास द्वारा लललित रामचररतमानस अवधी भाषा में ललिी गई है। यह काव्यांश रामचररतमानस के बालकांड से ली गई है।
इसमें अवधी भाषा का शि ु रुप में प्रयोग िेिने को लमलता है। तल
ु सीिास ने इसमें िोहा, छंि, चौपाई का बहुत ही सिंु र प्रयोग
लकया है। लजसके कारण काव्य के सौंियक तथा आनिं में वृलि हुई है और भाषा में लयबिता बनी रही है। तल ु सीिास जी ने
अलंकारो के सटीक प्रयोग से इसकी भाषा को और भी संिु र व संगीतात्मक बना लिया है। इसकी भाषा में अनप्रु ास अलंकार, रुपक
अलंकार, उत्प्रेक्षा अलंकार, व पनु रुलि अलंकार की अलधकता लमलती है। इस काव्यााँश की भाषा में व्यंग्यात्मकता का संिु र
संयोजन हुआ है।

9. इस परू े प्रसंग में व्यंग्य का अनठू ा सौंियक है। उिाहरण के साथ स्पष्ट कीलजए।

उत्तर

तल
ु सीिास द्वारा रलचत परशरु ाम - लक्ष्मण सवं ाि मल
ू रूप से व्यग्ं य काव्य है। उिाहरण के ललए -
(1) बहु धनहु ी तोरी लररकाई।ं
कबहुाँ न अलस ररसकीलन्ह गोसाई||ं
लक्ष्मण जी परशरु ाम जी से धनषु को तोडने का व्यंग्य करते हुए कहते हैं लक हमने अपने बालपन में ऐसे अनेकों धनषु तोडे हैं तब
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हम पर कभी क्रोध नहीं लकया।

(2) मातु लपतलह जलन सोचबस करलस महीसलकसोर। गभकन्ह के अभकक िलन परसु मोर अलत घोर॥ परशरु ाम जी क्रोलधत होकर
लक्ष्मण से कहते है। अरे राजा के बालक! तू अपने माता-लपता को सोच के वश न कर। मेरा फरसा बडा भयानक है, यह गभों के
बच्चों का भी नाश करने वाला है॥

(3) गालधसू नु कह हृिय हलस मलु नलह हररयरे सझू । अयमय िााँड न ऊिमय अजहुाँ न बझू अबझू ||
यहााँ लवश्वालमत्र जी परशरु ाम की बलु ि पर मन ही मन व्यग्ं य कसते हैं और मन ही मन कहते हैं लक परशरु ाम जी राम, लक्ष्मणको
साधारण बालक समझ रहे हैं। उन्हें तो चारों ओर हरा ही हरा सझू रहा है जो लोहे की तलवार को गन्ने की िााँड से तल ु ना कर रहे
हैं। इस समयपरशरु ाम की लस्थलत सावन के अधं े की भााँलत हो गई है। लजन्हें चारों ओर हरा ही हरा लििाई िे रहा है अथाकत् उनकी
समझ अभी क्रोध व अहक ं ार के वश में है।

10. लनम्नलललित पलं ियों में प्रयि


ु अलंकार पहचान कर लललिए -

(क) बालकु बोलल बधौं नलह तोही।

अनप्रु ास अलंकार - उि पंलि में 'ब' वणक की एक से अलधक बार आवृलत्त हुई है।

(ि) कोलट कुललस सम बचनु तुम्हारा।

1. अनप्रु ास अलंकार - उि पलं ि में 'क' वणक की एक से अलधक बार आवृलत्त हुई है।
2. उपमा अलंकार - कोलट कुललस सम बचनु में उपमा अलंकार है। क्योंलक परशरु ाम जी के एक-एक वचनों को वज्र के समान
बताया गया है।

(ग) तुम्ह तौ कालु हााँक जनु लावा।


बार बार मोलह लालग बोलावा||

1. उत्प्रेक्षा अलंकार - 'काल हााँक जनु लावा' में उत्प्रेक्षा अलंकार है। यहााँ जनु उत्प्रेक्षा का वाचक शब्ि है।
2. पनु रुलि प्रकाश अलंकार - 'बार-बार' में पनु रुलि प्रकाश अलंकार है। क्योंलक बार शब्ि की िो बार आवृलत्त हुई पर अथक
लभन्नता नहीं है।

(घ)लिन उतर आहुलत सररस भृगबु रकोपु कृ सान।ु


बढत िेलि जल सम बचन बोले रघक ु ु लभान|ु |

1. उपमा अलंकार
(i) उतर आहुलत सररस भृगबु रकोपु कृ सानु में उपमा अलंकार है।
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(ii) जल सम बचन में भी उपमा अलंकार है क्योंलक भगवान राम के मधरु वचन जल के समान कायक रहे हैं।
2. रुपक अलंकार - रघक
ु ु लभानु में रुपक अलंकार है यहााँ श्री राम को रघक
ु ु ल का सयू क कहा गया है। श्री राम के गणु ों की समानता
सयू क से की गई है।

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