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class 10 hindi kshitij parsuram laxman


samvad tulsidas ncert exercise
solution
7-9 minutes

क ा १० िहं दी ि ितज

परशुराम ल ण संवाद (अ ास)

परशुराम के ोध करने पर ल ण ने धनु ष के टू ट जाने के िलए कौन-कौन से


तक िदए?
उ र: परशु राम के ोध करने पर ल ण ने धनुष के टू ट जाने के िलए कई तक
िदए। उ ोंने कहा िक वह तो बड़ा ही पु राना धनु ष था जो ीराम के छूने से ही टू ट
गया। उ ोंने कहा िक बचपन म खे ल खे ल म उ ोंने कई धनुष तोड़े थे इसिलए
एक टू टे धनुष के िलए इतना ोध करना उिचत नहीं है ।

परशुराम के ोध करने पर राम और ल ण की जो िति याएँ ईं उनके


आधार पर दोनों के भाव की िवशेषताएँ अपने श ों म िल खए।
उ र: इस संग म ल ण ने परशुराम का घोर िवरोध िकया है लेिकन अिधकतर
ं के अं दाज म। इससे लगता है िक ल ण बड़े ही उ भाव के ह।
वहीं दू सरी ओर, राम ने बड़ी शाँ त मु ा म इस वातालाप को होते ए दे खा है ।
इससे पता चलता है िक राम शाँ त भाव के ह। जहाँ पर ल ण ोध का
जवाब ोध से दे ते ह, वही ं पर राम ोध का जवाब भी मं द मुसकान से दे ते ह।

ल ण और परशु राम के सं वाद का जो अं श आपको सबसे अ ा लगा उसे अपने


श ों म संवाद शैली म िल खए।

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उ र: : ल ण हँ सकर और थोड़े ार से कहते ह, “म जानता ँ िक आप एक


महान यो ा ह। लेिकन मुझे बार बार आप ऐसे कु ाड़ी िदखा रहे ह जैसे िक
आप िकसी पहाड़ को फूँक मारकर उड़ा दे ना चाहते ह। म कोई कु ड़े की
बितया नहीं ँ जो तजनी अं गुली िदखाने से ही कु ला जाती है । मने तो कोई भी
बात ऐसी नही ं कही िजसम अिभमान िदखता हो। िफर भी आप िबना बात के ही
कु ाड़ी की तरह अपनी जु बान चला रहे ह। आपके जनेऊ को दे खकर लगता है
िक आप एक ा ण ह इसिलए मने अपने गु े पर काबू िकया आ है । हमारे
कुल की परं परा है िक हम दे वता, पृ ी, ह रजन और गाय पर वार नही ं करते ह।
इनके वध करके हम थ ही पाप के भागी नही ं बनना चाहते ह। आपके वचन ही
इतने कड़वे ह िक आपने थ ही धनु ष बान और कु ाड़ी को उठाया आ है ।“

इसपर िव ािम कहते ह, “हे मुिनवर, यिद इस बालक ने कुछ अनाप शनाप बोल
िदया है तो कृपया कर के इसे मा कर दीिजए।“
ऐसा सुनकर परशुराम ने िव ािम से कहा, “यह बालक मं दबु लगता है और
काल के वश म होकर अपने ही कुल का नाश करने वाला है । इसकी थित उसी
तरह से है जै से सूयवंशी होने पर भी चं मा म कलं क है । यह िनपट बालक
िनरं कुश है , अबोध है और इसे भिव का भान तक नही ं है । यह तो ण भर म
काल के गाल म समा जायेगा, िफर आप मुझे दोष मत दीिजएगा।“
इसपर ल ण ने कहा, “हे मु िन आप तो अपने यश का गान करते अघा नहीं रहे
ह। आप तो अपनी बड़ाई करने म मािहर ह। यिद िफर भी सं तोष नहीं आ हो तो
िफर से कुछ किहए। म अपनी झ ाहट को पूरी तरह िनयं ि त करने की कोिशश
क ँ गा। वीरों को अधै य शोभा नही ं दे ता और उनके मुँह से अपश अ े नही ं
लगते। जो वीर होते ह वे थ म अपनी बड़ाई नहीं करते ब अपनी करनी से
अपनी वीरता को िस करते ह। वे तो कायर होते ह जो यु म श ु के सामने आ
जाने पर अपना झूठा गुणगान करते ह।“

परशुराम ने अपने िवषय म सभा म ा- ा कहा, िन प ां श के आधार पर


िल खए:
बाल चारी अित कोही। िब िबिदत ि यकुल ोही॥
भु जबल भूिम भू प िबनु की ी। िबपु ल बार मिहदे व दी ी॥

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सहसबा भुज छे दिनहारा। परसु िबलोकु महीपकुमारा॥


मातु िपतिह जिन सोचबस करिस महीसिकसोर।
गभ के अभक दलन परसु मोर अित घोर॥
उ र:म बाल चारी ँ और सारा सं सार मुझे ि य कुल के िवनाशक के प
म जानता है । मने अपने भु जबल से इस पृ ी को कई बार ि यों से िवहीन कर
िदया था और मुझे भगवान िशव का वरदान ा है । मने सह बा को बुरी तरह
से मारा था। मे रे फरसे को गौर से दे ख लो। तु म तो अपने वहार से उस गित को
प ँ च जाओगे िजससे तु ारे माता िपता को असहनीय पीड़ा होगी। मेरे फरसे की
गजना सुनकर ही गभवती यों का गभपात हो जाता है ।

ल ण ने वीर यो ा की ा- ा िवशेषताएँ बताई?


उ र: ल ण के अनुसार वीरों की िवशेषताएँ ह; धैय, मृदुभाषी, कमवीर और
यु के मै दान म चुपचाप अपना काम करने वाले।

साहस और श के साथ िवन ता हो तो बे हतर है । इस कथन पर अपने िवचार


िल खए।
उ र: यह सही कहा गया है िक साहस और श के साथ िवन ता हो तो बेहतर
है । एक िवन ही संकट के समय म भी अपना आपा नहीं खोता है । जो
िवन नहीं होते ह वे मानिसक प से शी िवचिलत हो जाने के कारण अपना
धैय खो बै ठते ह और गलितयाँ करने लगते ह। इससे उनका नु कसान ही होता है ।

भाव कीिजए;
िबहिस लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥
पुिन पुिन मोिह दे खाव कुठा । चहत उड़ावन फूँिक फा ॥
उ र: इसपर ल ण हँ सकर और थोड़े ार से कहते ह िक म जानता ँ िक
आप एक महान यो ा ह। लेिकन मु झे बार बार आप ऐसे कु ाड़ी िदखा रहे ह
जै से िक आप िकसी पहाड़ को फूँक मारकर उड़ा दे ना चाहते ह। ऐसा कहकर
ल ण एक ओर तो परशुराम का गु ा बढ़ा रहे ह और शायद दू सरी ओर उनकी
आँ खों पर से परदा हटाना चाह रहे ह।

इहाँ कु ड़बितया कोई नाहीं। जे तरजनी दे ख म र जाहीं॥


दे ख कुठा सरासन बाना। म कछु कहा सिहत अिभमाना॥

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उ र: म कोई कु ड़े की बितया नही ं ँ जो तजनी अं गुली िदखाने से ही कु ला


जाती है । मने तो कोई भी बात ऐसी नहीं कही िजसम अिभमान िदखता हो। िफर
भी आप िबना बात के ही कु ाड़ी की तरह अपनी जुबान चला रहे ह। इस चौपाई
मल ण ने कटा का योग करते ए परशुराम को यह बताने की कोिशश की
है के वे ल ण को कमजोर समझने की गलती नहीं कर।

गािधसूनु कह दय हिस मु िनिह ह रयरे सूझ।


अयमय खाँ ड़ न ऊखमय अज ँ न बू झ अबू झ॥
उ र: ऐसा सु नकर िव ािम मन ही मन हँ से और सोच रहे थे िक इन मुिन को
सबकुछ मजाक लगता है । यह बालक फौलाद का बना आ और ये िकसी अबोध
की तरह इसे ग े का बना आ समझ रहे ह। िव ािम को परशु राम की
अनिभ ता पर तरस आ रहा है । परशु राम को शायद राम और ल ण के ताप
के बारे म नहीं पता है ।

पाठ के आधार पर तु लसी के भाषा सौंदय पर दस पं याँ िल खए।


उ र: तु लसीदास भ काल के किव माने जाते ह। इस काल के अ किवयों की
तरह ही तुलसीदास ने भी आम बोलचाल की भाषा का योग िकया। यह रचना
अवधी म िलखी गई है जो गं गा के मै दान के एक बड़े िह े म बोली जाती है । यह
कहने म अितशयो नहीं होगी िक रामच रतमानस के िलखे जाने के बाद ही
रामायण समकालीन भारत के अिधकाँ श लोगों को सही ढ़ं ग से समझ आई होगी।
तु लसीदास ने चौपाइयों और दोहों का योग िकया है िज आसानी से संगीतब
िकया जा सकता है । ये चौपाइयाँ आसानी से िकसी की भी जु बान पर चढ़ सकती
ह। तुलसीदास ने इस रचना म ं का भरपू र योग िकया है । साथ म उ ोंने
रौ रस और क णा रस का भी योग िकया है ।

इस पूरे सं ग म ं का अनूठा सौंदय है । उदाहरण के साथ कीिजए।


उ र: इस पूरे संग म ल ण िठठोली करने पर ही उता ह। परशु राम से
उनकी बातचीत मजाक से ही शु होती है जब वे कहते ह िक परशुराम के ही
िकसी दास ने धनुष तोड़ा होगा इसिलए ोिधत होने की कोई ज रत नहीं है ।
इसके बाद बार बार ल ण ने परशुराम को िचढ़ाने का यास िकया है ।

िन िल खत पं यों म यु अलं कार को पहचान कर िल खए।

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बालकु बोिल बधौं निह तोही।


उ र: इस पं म ‘ब’ वण का बार बार योग आ है ; इसिलए यह अनु ास
अलं कार है ।

कोिट कुिलस सम बचनु तु ारा।


उ र: इस पं म ‘क’ वण का बार बार योग आ है , इसिलए यह अनु ास
अलं कार है । परशुराम के वचनों की व से तु लना की गई है इसिलए यहाँ पर
उपमा अलंकार का भी योग आ है ।

तु तौं कालु हाँ क जनु लावा।


बार बार मोिह लािग बोलावा॥
उ र: कालु हाँ क जनु लावा म उ े ा अलं कार का योग आ है । ‘बार बार’ म
पुन अलं कार का योग आ है ।

लखन उतर आ ित स रस भृ गुबरकोपु कृसानु ।


बढ़त दे ख जल सम बचन बोले रघु कुलभानु ॥
उ र: ‘आ ित स रस’ और ‘जल सम’ म उपमा अलं कार का योग आ है ।
‘रघु कुलभानु’ म पक अलं कार का योग आ है ।

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