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11/7/2020 Sanskrit Slokas on Human Nature Meaning in Hindi | भाव पर संकृत ोक

Sanskrit Slokas on Nature with Meaning in Hindi |


भाव पर संकृत ोक
By Viral Facts India - 21/01/2019

Sanskrit Slokas on Human Nature with Meaning in Hindi | भाव पर संकृत

ोक

िह दू स ता सबसे पुराणी स ता है , और सबसे ाचीन स ता होने के कारण जीवन का अनुभव भी

िह दुओं के पास अनंत है |

जीवन के इसी अनुभव को हमारे पूवजों ने वेदों और उपिनषदों म संकिलत िकया जो आज के स भ म भी

सटीक बेठता है |

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स भी है , स कभी 2 नहीं हो सकते स हमेशा से ही एक है | ऐसे ही कुछ सं ृ त ोक का संकलन

आज हमने िकया है , िजसम मनु के भाव और नेचर को अ पशुओं के ाभाव से तुलना करके

समझाया गया है |

आइये चचा करते ह

Sanskrit Slokas on Human Nature with Meaning in Hindi

भाव पर सं ृत ोक

अ ोहः सवभूतेषु कमणा मनसा िगरा।


अनु ह दानं च शीलमेति दु बुधाः ॥

िहं दी अथ:- िह दू शा ों के अनुसार कम से, मन से, और वचन से सभी ािणयों के ि ेम ार और

दान की हमेशा भावना रखना ही बु मान लोगों के अनुसार शील ( नेितक आचरण और वहार करने

वाले) पु ष का भाव ह|

न तेज ेज ी सृतमपरे षां सहते।


सत ो भावः कृित िनयत ादकृतकः ॥

िहं दी अथ:- शा ों म बताया गया है , कोई तेज ी और ािभमानी िकसी और के तेज को सहन

और बदा नहीं कर सकता ोंिक यह उसका कृित के ारा िदया गया ज जात ाभाव है |

यः भावो िह य ा स िन ं दु रित मः ।
ा यिद ि यते राजा स िकं ना ा ुपानहम् ॥

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िहं दी अथ:- िजसका जैसा ाभाव होता है उसे बदला नहीं जा सकता, ा िकसी कु े को राजा बना िदया

जाए तो ा वह जूता नहीं खाएगा|

ा ः सेवित काननं च गहनं िसंहो गृहां सेवते


हं सः सेवित पि नी कुसुिमतां गृधः शान थलीम् ।
साधुः सेवित साधुमेव सततं नीचोऽिप नीचं जनम्
या य कृितः भावजिनता केनािप न ते ॥

िहं दी अथ:- जैसे शेर धने जंगलों और गुफा म रहता है , हं स पानी म खले ए फूलों के साथ रहना पसंद

करता है | उसी कार साधू केवल साधू की संगती और दु और नीच पु ष केवल दु ों की संगती ही पसंद

करता है | ज और बचपन से िमला आ ाभाव बदलता नहीं है |

िन ो तं व ित को जलानाम् िविच भावं मृगपि णां च ।


माधुयिम ौ कटु तां च िन े भावतः सविमदं िह िस म् ॥

िहं दी अथ:- यह कृित यं म एक रह है , पानी को गहराई और ऊंचाई िकसने िसखाई, पशु पंि यों म

िविच ता िकसने िसखाई, ग े म मधुरता और नीम म कड़वा पर कहाँ से आया| यह सब ाभाव कृित के

ारा िदए गए ह, इनम कोई भी प रवतन नहीं िकया जा सकता है |

वचो िह स ं परमं िवभूषणम्


यथांगनायाः कृशता कटौ तथा।
ि ज िव ैव पुन था मा
शीलं िह सव नर भूषणम्॥

िहं दी अथ:- जैसे पतली कमर ी का और िव ा पंिडत का भूषण ह, वैसे ही स और मा परम् िवभूषण

ह। और शील तो सब मनु ों का भूषण है ।।

भावो न उपदे शेन श ते कतुम था ।


सुत मिप पानीयं पुनग ित शीतताम् ॥

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िहं दी अथ:- िह दू शा ों म कहा गया है , िकसी का भी ाभाव िसफ उपदे श दे कर नहीं बदला जा सकता

है , मनु का ाभाव िसफ उसके अनुभव के आधार पर ही बदलता है | जैसे पानी को खूब गम करने पर

वह गम तो हो जाता है , लेिकन कुछ समय बाद दु वारा से शीतल हो ही जाता है |

वचो िह स ं परमं िवभूषणम्


यथांगनायाः कृशता कटौ तथा।
ि ज िव ैव पुन था मा
शीलं िह सव नर भूषणम्॥

िहं दी अथ:- जैसे पतली कमर ी का और िव ा ा ण का भूषण है , वैसे स और मा परम् िवभूषण ह

शीलं र तु मेघावी ा ुिम ु ः सुख यम् ।


शंसां िव लाभं च े ग च मोदनम् ॥

िहं दी अथ:- िह दू शा ों म कहा गया है , िजसे शंसा, धन का लाभ और ग का आनंद, ये तीनों सुख की

इ ा रखने वाले बु मान को हमेशा शील (Character) का साथ नहीं छोड़ना चािहए|

काकः प वने रितं न कु ते हं सो न कूपोदके


मूखः प तसंगमे न रमते दासो न िसंहासने ।
कु ी स नसंगमे न रमते नीचं जनं सेवते
या य कृितः भावजिनता केनािप न ते ॥

िहं दी अथ:- कौया कभी प वन पर ेम नहीं रखता, हं स कुए का पानी नहीं हण करता, मुख कभी भी

पंिडत के समूहों म नहीं जाता, सेवक कभी िसंघासन पर बैठकर स ान नहीं पाता, बुरी ी स नों के

समूह म आनंद का अनुभव नहीं करती, जैसा िजसका ाभाव है उसे छोड़ना ब त मु ल है सावधान रहे |

वृ ं य ेन संर े मायाित याित च ।।


अ ीणो िव तः ीणो वृ त ु हतो हतः ||

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िहं दी अथ:- इस ोक के अनुसार धन आता जाता रहता है | धन से ीण होने वाल ीण नहीं है , पर

िजसका शील (Character) न हो जाए उसका सवनाश िनि त है , इसिलए हमेशा शील का र ण करना

चािहए|

परोपदे शकुशलाः े बहवो जनाः ।।


भावमितवत ः सह ेषु अिप दु लभाः ॥

िहं दी अथ:- इस संसार म दु सरे लोगों को उपदे श और सलाह दे ने वाले कुशल लोग ब त ह| लेिकन

उपदे शों के मुतािबक अपने जीवन को ढालने वाले ब त कम| शायद हजारों म एक

िकं कुलेन िवशालेन शीलमेवा कारणम् ।


कृमयः िकं न जाय े कुसुमेषु सुग षु ।

िहं दी अथ:- कहने का अथ है , ऐसा नहीं है उ कुल म िसफ शील (नेितक और सं ारी िवचारों वाले)

आ ा ही ज लेती ह| ा सुग त फूलों म कीड़े नहीं ज ते| यहाँ कहा गया है , महान आ ा का ज

िकसी भी कुल म हो सकता है |यह तो िसफ उसके िपछले ज का ताप और भु की इ ा|

नैम ं वपुषः तवा वसितः प ाकरे जायते


म ं यािह मनोरमां वद िगरं मौनं च स ादय
ध ं बक राजहं सपदवी ं ा ोिष िकं तैगुणैः
नीर ीरिवभागकमिनपुणा श ः कथं ल ते ॥

िहं दी अथ:- शा कहते ह, िसफ सुसंगती मा से सदगुण आपके भाव और जीवन म नहीं आते ह, यह

तो यं के ण िन य और धा पर िनभर है |

जैसे बगुले का शारीर िनमल है , कमल के समान है , मंद गित से चलता है , मधुर वाणी बोलता है और मौन

रहता है ,लेिकन ा उसम हं स की तरह दू ध म से पानी िनकालने की कला आती है |

निलकागतमिप कुिटलं न भवित सरलं शुनः पृ म् ।


त त् खलजन दयं बोिधतमिप नैव याित माधुयम् ॥

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िहं दी अथ:- जैसे कु े की पूंछ नली म रखने से सीधी नहीं हो जाती उसी कार समझाने बुझाने से दु

का दय प रवतन नहीं होता है

इ ुं िन ित त रो गृहपितं जारो सुशीलं खलः


सा ीम सती कुलीनमकुलो ज ात् जर ं युवा ।
िव ाव मन रो धनपितं नीच पो लम्
वै ेण हतः बु मबुधो कृ ं िनकृ ो जनः ॥

िहं दी अथ:- चोर हमेशा च की िनंदा करता है , िभचारी स न की िनंदा करता है , दु शील की

िनंदा करता है , कु ा ी पित ता ी की, नीच, कुलीन की, युवा वृ की, अनपढ़ िव ान् की, गरीब

धनवान की, कु प स प की, अ ानी ानी की और नीच मनु अ े मनु की िनंदा करता है

काके शौचं द् यूतकरे च स िप ा ः ीषु कामोपशा ः ।


ीबे धैय म पे त िच ा राजा िम ं केन ं ुतं वा ॥

िहं दी अथ:- कौए म पिव ता नहीं होती, जुआरी म स नहीं, सां प म मा नहीं, कायर म धेय, शराबी म

अ ा , ी म काम शां ित और राजा म िम ता का भाव नहीं होता|

न धमशा ं पठतीित कारण चािप वेदा यनं दु रा नः ।


भाव एवा तथाित र ते यथा कृ ा मधुरं गवां पयः ॥

िहं दी अथ:- ऐसा नहीं जो धम शा और वेद का अ न नहीं करता है , वह दु हो जाता है , दु तो

ाभाव से ही दु होता है िश ा से उसका कोई सरोकार नहीं| जैसे गाय का दू ध ाभाव से ही मधुर होता

है |

कृ ैव िविभ े गुणा एक व ुनः ।


वृ ाकः े दः क ै क ैिचत् वातरोग कृत् ॥

िहं दी अथ:- कृित ने एक ही व ु के अलग अलग गुण िदए ए ह. जहाँ बेगन एक के िलए कफ

का कारक है वही ँ दु सरे के िलए वायु रोग का कारण बनता है |

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काक गा ं यिद का न मािव र ं यिद च चुदे शे।


एकैकप े िथतं मणीनाम् तथािप काको न तु राजहं सः ॥

िहं दी अथ:- कौए की चाहे सोने की चौंच हो, पंखों पर मिण जड़ी ई हो, लेिकन तब भी कौया राजहं स नहीं

बन सकता है |

आशा करते ह ाभाव पर सं ृ त ोक ( Sanskrit slokas on human nature with meaning

in hindi) का ान आपके जीवन म िनि त ही सकारा क प रवतन लेके आएगा|

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