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SANSKRIT PORTFOLIO 2022-23 (TERM I)

RAJHANS VIDYALAYA

BY,
SIDDHANT JAIN
STD - IX C, ROLL NO. –
27, KABIR HOUSE
LIST OF CONTENTS

Sr. No. Topic

पाठ 1 भारतीवसन्तगीततिः

पाठ 2 स्वर्णकाकिः

पाठ 3 गोदोहनम्

पाठ 5 सक्ति
ू मौक्तिकम्

पाठ 6 भ्रान्तो बालिः

पाठ 7 तसकतासेत¸िः

पाठ 8

पाठ 9 पर्ाणवरर्म्
पाठ 10 वाडमनिः प्रार्स्वरूपम ्

ACTIVITIES

PROJECT

CBSE PERFORMA
ACKNOWLEDGEMENTS

I would like to express my special thanks of gratitude to my Sanskrit teacher Mrs. Geeta Rawat
as well as our principal Mrs. Kala Gangadharan who gave me the golden opportunity to prepare
this wonderful portfolio on the Sanskrit chapters we were taught as part of our curriculum. This
exercise helped me to understand the chapters well & also helped me prepare for the exams. I
am thankful to all of them.
शेमष
ु ी भाग 1

भारतीवसन्तगीतिः
हिंदी के प्रसिद्ध छायावादी कवि पं० जानकी वल्लभ शास्त्री, संस्कृत के भी श्रेष्ठ कवि हैं। इनका एक गीत संग्रह
‘काकली’ नाम से प्रसिद्ध है । प्रस्तत
ु पाठ इसी संग्रह से लिया गया है । सरस्वती दे वी की वंदना करते हुए कवि कहता है
कि हे सरस्वती! अपनी वीणा का वादन करो ताकि मधरु मंजरियों से पीत पंक्तिवाले आम के कोयल का कूजन तथा
वायु का मंद-मंद चलना वसन्त ऋतु में मोहक हो जाएँ। साथ-साथ काले भँवरा का गज ंु ार और नदियों का जल मोहक हो
उठे । यह गीत स्वाधीनता संग्राम की पष्ृ ठभमि
ू में लिखा गया है । यह गीत जन-जन के हृदय में नवीन चेतना का संचार
करता है । इससे सामान्य लोगों में स्वाधीनता की भावना जागती है
स्वर्णकाकः

प्रस्ततु पाठ पद्मशास्त्री जी द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम ्’ नामक कथा संग्रह से लिया गया है । इस कथा
में सनु हरे पंखों वाले एक कौए के माध्यम से लोभ और उसके दष्ु परिणाम का वर्णन किया गया है । साथ में
त्याग और उसके लाभ के बारे में बताया गया है । कथा का सार इस प्रकार है

किसी गाँव में एक बढ़ि


ु या रहती थी। उसने एक दिन थाली में चावल रखकर अपनी पत्र
ु ी से कहा-पत्र
ु ी, पंछियों
से इसकी रक्षा करना। उसी समय एक विचित्र कौआ वहाँ आकर चावल खाने लगा। उस कन्या ने कौवे को
मना किया तो उसने उसे एक पीपल के वक्षृ के पास आने के लिए कहा। कौवे ने उस लड़की की ईमानदारी से
प्रसन्न होकर उसे हीरे -जवाहरात दिए।

उसी गाँव में एक लालची बढ़िु या भी रहती थी। वह सारे रहस्य जान गई। उसने ईर्ष्या वश उसी प्रकार का नाटक किया।
उसकी बेटी घमंडी थी। कौवे के कहने पर उसने स्वर्णमय सोपान की माँग की। उस लड़की की हीन इच्छा को जानकर
कौवे ने उसके सामने तीन पेटियाँ रख दीं। लोभ से भरी हुई उस लड़की ने सबसे बड़ी पेटी उठा ली। ज्यों ही उसने उसे
खोला, त्योंही उसमें से काला साँप निकला। उस दिन से उस लड़की ने लालच का त्याग कर दिया
गोदोहनम्
यह नाटयांश कृष्णचंद्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित ‘चतर्म्य
ु हम ्’ पस्
ु तक से सम्पादित करके लिया गया है ।
इस नाटक में ऐसे व्यक्ति की कथा है जो धनी और सख ु ी होने की इच्छा से प्रेरित होकर एक महीने के लिए
गाय का दध ू निकालना बंद कर दे ता है ताकि गाय के शरीर में इकट्ठा पर्याप्त दध ू एक ही बार में बेचकर
सम्पत्ति कमाने में समर्थ हो सके।

परन्तु मास के अन्त में जब वह दध ू दहु ने का प्रयत्न करता है तब वह दध ू की बंद


ू भी प्राप्त नहीं कर पाता है ।
दध ू प्राप्त करने के स्थान पर वह गाय के प्रहारों द्वारा खनू से लथपथ हो जाता है और जान जाता है कि
प्रतिदिन का कार्य यदि मास भर के लिए इकट्ठा किया जाता है तब लाभ के स्थान पर हानि ही होती है ।
सक्ति
ू मौक्तिकम ्
नीति-ग्रंथों की दृष्टि से संस्कृत साहित्य काफी समद् ृ ध है । इन ग्रंथों में सरल और सारगर्भित भाषा में नैतिक
शिक्षाएँ दी गई हैं। इनके द्वारा मनष्ु य अपना जीवन सफल और समद् ृ ध बना सकता है । ऐसे ही मल्
ू यवान
कुछ सभ ु ाषित इस पाठ में सं कलित हैं , जिनका सार इस प्रकार है

● मनष्ु य को अपने आचरण की रक्षा करनी चाहिए। धन नश्वर है । वह कभी आता है तो कभी चला
● जैसा व्यवहार स्वयं को अच्छा न लगे, वैसा व्यवहार दस ू रों के साथ नहीं करना चाहिए।
● मीठे बोल सभी को प्रिय लगते हैं। अतः मीठा बोलना चाहिए। मनष्ु य को बोलने में कंजस ू ी नहीं करनी
चाहिए।
महापरु ु ष अपने लिए कुछ नहीं करते हैं। वे सदा परोपकार करते रहते हैं। कारण कि महापरु ु षों का
पथ्ृ वी पर आगमन परोपकार के लिए ही होता है ।
● मनष् ु य को गुणों के लिए यत्न करना चाहिए। गुणों के द्वारा वह महान बनता है । . सज्जन लोगों की
मित्रता स्थायी होती है , जबकि दर्ज
ु न लोगों की मित्रता अस्थायी।
● हं स तालाब की शोभा होते हैं। यदि किसी तालाब में हं स नहीं हैं तो यह उस तालाब के लिए हानिकर है ।
● गुणज्ञ व्यक्ति को पाकर गुण गुण बन जाते हैं, परं तु निर्गुण को प्राप्त करके वे ही गुण दोष बन जाते हैं

s
पाठ 5 - सक्ति
ू मौक्तिकम ् :

नीतत-ग्रिंथोिं की दृति से सिंस्कृ त सातहत्य काफी समद् ृ ध है । इन ग्रिंथोिं में सरल और सारगतभणत भाषा
में नैततक तशक्षाएँ दी गई हैं। इनके द्वारा मन र्ष् अपना जीवन सफल और समद् ृ ध बना सकता है । ऐसे ही
मल्ू यवान क छ स भातषत इस पाठ में सिंकतलत हैं, तजनका सार इस प्रकार है • मन र्ष् को अपने आचरर्
की रक्षा करनी चातहए। धन नश्वर है । वह कभी आता है तो कभी चला • जैसा व्यवहार स्वर्िं को अच्छा न
लगे, वैसा व्यवहार दस ू रोिं के साथ नहीिं करना चातहए। • मीठे बोल सभी को तप्रर् लगते हैं। अतिः मीठा
बोलना चातहए। मन र्ष् को बोलने में किंजस ू ी नहीिं करनी चातहए। महाप रुष अपने तलए क छ नहीिं करते
हैं। वे सदा परोपकार करते रहते हैं। कारर् तक महाप रुषोिं का पथ् ृ वी पर आगमन परोपकार के तलए ही होता
है । • मन र्ष् को ग र्ोिं के तलए र्त्न करना चातहए। ग र्ोिं के द्वारा वह महान बनता है । . सज्जन लोगोिं
की तमत्रता स ्थार्ी होती है , जबतक द जणन लोगोिं की तमत्रता अस्थार्ी। • हिंस तालाब की शोभा होते
हैं। र्तद तकसी तालाब में हिंस नहीिं हैं तो र्ह उस तालाब के तलए हातनकर है । • ग र्ज्ञ व्यक्ति को पाकर ग र्
ग र् बन जाते हैं, परिंत तनग णर् को प्राप्त करके वे ही ग र् दोष बन जाते हैं।
पाठ 6 - भ्रान्तो बालिः

नामक ग्रिंथ से तलर्ा गर्ा है । इस पाठ में एक ऐसे बालक की कहानी कही गई है , तजसका मन अध्यर्न की
अपेक्षा खेल-कूद में क छ ज ्ादा ही लगता है । खेलने के तलए वह पश -पतक्षर्ोिं तक का आह्वान करता है ,
लेतकन कोई भी उसके साथ खेलने को तैरा् र नहीिं होता। इसका अन भव हम इस प्रकार कर सकते हैं उस
बालक को रास्ते में एक भौिंरा तमला। बालक ने उसे खेलने के तलए ब लार्ा। परिंत उसने कहा तक मैं शहद
एकत्र करने में व्यस्त हँ। तब उसे एक तचतड़र्ा तदखाई दी। वह अपना घोिंसला बनाने में व्यस्त थी। अतिः
उसने भी बालक के साथ खेलने से मना कर तदर्ा। तब वह एक क िे के पास जाकर उसे अपने साथ खेलने
के तलए कहने लगा। क िे ने कहा तक मैं अपने स ् वामी के कार्ण को पलभर के तलए भी नहीिं छोड़
सकता। इससे बालक तनराश होता है । उसे बोध होता है तक इस सिंसार में हर प्रार्ी अपने-अपने कार्ण में
व्यस्त है । एक वही है जो तनरुद्दे श्य इधर-उधर घम
ू ता रहता है । इसके बाद वह तनश्चर् करता है तक वह
अपना समर् व्यथण नहीिं गँवाएगा, बक्ति अध्यर्न करे गा।
पाठ 10 - वाडमनिः प्रार्स्वरूपम ्

यह पाठ छान्दोग्योपनिषद् के छठे अध्याय के पाँचवें खण्ड से उद्धत


ृ है । इसमें एक
रोचक विवरण प्रस्तत
ु किया गया है । | श्वेतकेतु आचार्य आरुणि से प्रश्न करता है कि
मन क्या है ? आचार्य उसे बताते हैं कि खाए गए अन्न का जो सर्वाधिक लघु अंश
होता है , वह मन है । श्वेतकेतु पन
ु ः प्रश्न करता है कि प्राण क्या है ? आचार्य उसे
बताते हैं कि पान किए। जल का जो सर्वाधिक लघु अंश होता है , वह प्राण है ।
श्वेतकेतु तीसरा प्रश्न करता है कि वाणी क्या है ? आचार्य उसे बताते हैं कि खाए गए
तेज का सर्वाधिक लघु अंश वाणी है । आचार्य श्वेतकेतु को दृष्टान्त के द्वारा समझाते
हैं कि जिस प्रकार दही को मथने पर घी निकलता है , उसी प्रकार खाए गए अन्न का
जो लघत
ु म अंश ऊपर आ जाता है , वही मन है । इसी प्रकार वे प्राण और वाणी का
रहस्य भी बताते हैं। अन्त में आचार्य कामना करते हैं कि हम दोनों का पढ़ा हुआ
ज्ञान तेजस्वी हो ।
पत्र लेखन:
चित्र लेखन:
संधि:
गिनती:

प्रत्यय:
अपठित गद्यांश:
ACTIVITIES
1) International Yoga Day
2) Debate Competition
MULTIPLE ASSESMENT
CBSE PERFORMA

END

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