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Bhai Behan Xii
Bhai Behan Xii
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अपने ववचारों को श्रीराम के माध्यम िे व्यक्त वकर्ा है । िाहब और इि प्रकार कुल वमलाकर हम दे खते हैं वक िुं दररर्ा का
िुं दररर्ा के खखलौनों को दे खकर श्री राम िुं दररर्ा को बुखिमान और चररि एक प्रभावशाली चररि है । वजििे हमें बहुत कुछ िीखने को
िाहब को बे वकूर् बताता है । वह िाहब को िमझाते हुए कहता है वक वमलता है ।
उिके जैिे लोगों के कारण ही हमारे दे श के कारीगर भु खमरी के 3. साहब का चररि हचिण कीहजए ।
वशकार हैं एवं ववदे शी कारीगर िुखी एवम िं पन्न है । आज हमारे दे श में उत्तर: राजेंद्र बाला घोष द्वारा रवचत ‘भाई-बहन’ शीषयक कहानी का
छोटी बडी िभी चीजें ववदे शों िे मंगाई जाती हैं । इिके वलए दे श के प्रमुख पाि िाहब है । उिका वास्तववक नाम हररराम वमाय है । वकंतु
लाखों रुपए ववदे श चले जाते हैं । आज दे शवािी अपनी ही करनी के शरीर का रं ग गोरा होने के कारण िभी उिे िाहब कह कर पुकारते
कारण दीन िे दीन और अधम िे अधम होते जा रहे हैं । जब तक हैं । िाहब बाबू जर्राम दाि की दू िरी िं तान है । उिकी उम्र 11
दे शवािीर्ो का ध्यान इि वदशा में आकवषयत नही ं होगा तब तक दे श वषय है । िाहब के चररि की वनम्नवलखखत ववशेषताएं हैं :-
की खथथवत में िु धार नही ं हो िकता। 1. चंचल स्वभाि:- 11 वषीर् िाहब स्वभाव िे चंचल है । अपने वपता
‘भाई-बहन’ कहानी आज भी प्रािं वगक है । दे श के आजाद और छोटी बहन के िाथ मेले में जाते िमर् वह अपनी चं चलता का
हुए कई दशक बीत चुके हैं , वर्र भी हमारे दे श के नौजवान ववदे शों के प्रदशयन करता है । वह हर बात में अपनी छोटी बहन को नीचा वदखाने
गु लाम हैं । ऐिे लोग ववदे शी वस्तु ओं और ववदे शी भाषा के प्रर्ोग में बडा का प्रर्ाि करता है ।
गवय महिू ि करते हैं । वे स्वदे शी वस्तु ओं की आलोचना करते हैं और 2. अहं कारी स्वभाि :- िाहब चंचल तो है वकंतु उिमें अहं कार की
ववदे शी वस्तु ओं को अपनाने में अपने आप को िौभाग्यशाली िमझते झलक भी वदखाई पडती है । शार्द उिका र्ह अहं कार उिके नाम
हैं । वहं दी बोलने वाला उनके वलए अनपढ़ और अंग्रेजी बोलने वाला बहुत के कारण उत्पन्न हुआ है । मेले में जाते िमर् वह िुं दररर्ा के िामने
वशवित हो जाता है । जब तक हमारे दे श के लोगों की ऐिी मानविकता अपने अहं कार का प्रदशयन करता है क्ोंवक उिके पाि िुं दररर्ां की
पररववतय त नही ं होगी तब तक र्ह कहानी प्रािं वगक रहे गी। अपेिा अवधक पैिे हैं और िुं दररर्ा को नीचा वदखाते हुए कहता है
2. संदररया का चररि हचिण कीहजए । वक उिके पाि बहुत िे पैिे हैं , वजनिे वह ढे र िारी चीजें खरीदे गा।
उत्तर: राजेंद्र बाला घोष द्वारा रवचत ‘भाई-बहन’ शीषयक कहानी स्वदे शी 3. अिव्ययी बालक:- िाहब वर्जूलखची करने वाला बालक है ।
और दे श प्रेम की भावना को जगाने वाली एक उत्कृष्ट रचना है । इि वह पैिों को कोई महत्व नही ं दे ता। मेले में वह पााँ च आने खचय करके
कहानी में िुं दररर्ा बाबू जर्रामदाि की तीिरी िं तान है । प्रस्तु त जमयनी में वनवमयत एक खखलौना खरीदता है । वह एक ऐिी चीज पर
कहानी की प्रमुख पाि िुं दररर्ा ही है । उिकी उम्र माि 6 र्ा 7 वषय है । अपने पैिे खचय करता है जो दो वदन में टू ट कर बे कार हो जाएगी।
उिका वास्तववक नाम िुं दर दे ई है वकंतु प्यार िे िब उिे िुं दररर्ा कह 4. िररितानिील चररि:- िाहब का चररि पररवतय नशील है । अपने
कर पुकारते हैं । िं तोष की भावना िे ओतप्रोत िुं दररर्ां में एक आदशय बडे भाई श्री राम के उपदे शों को िु नकर उि पर गहरा प्रभाव पडता
बावलका के िभी गुण ववद्यमान है । िुं दररर्ा के चररि की वनम्नवलखखत है । उि वदन के बाद िे वह ववदे शी वस्तु ओं िे घृणा करने लगता है ।
ववशेषताएं हैं - वह हमेशा के वलए अपने दे श में बनी वस्तु ओं को अपना लेता है ।
1. सरल स्वभाि:- िुं दररर्ा एक िरल स्वभाव की बावलका है । उिे 5. दे िभि :- बडा होने पर िाहब के अंदर दे शभखक्त की भावना
िां िाररक छल कपट के बारे में कुछ नही ं पता वह माि एक आने पैिे भर जाती है । वह वकालत पढ़ कर शहर का नामी वकील बनता है
लेकर मेला दे खने जाती है । उिे ववश्वाि है वक वह एक आने पैिे में ही तथा हमेशा दे श वहत में ही कार्य करता है । वह अपने खचय िे “मात्तृ
अपनी िारी मनचाही वस्तु एं खरीद लेगी। लेखखका वलखती हैं “ एक भं डार” नामक एक दु कान खुलवाता है वजिमें केवल स्वदे शी वस्तु एं
आने िूंजी ले कर संदर मे ला दे िने चली थी। उसी के भरोसे जो ही वबकती है ।
चीजें दे िती थी उसी िर टू ट िडती थी। उसके इस भोले िन िर कुल वमलाकर िाहब का पररवतय नशील चररि हमें प्रभाववत
साहब बे चारे को बडी हं सी आती थी।“ करता है । वजििे हम कार्ी िारी अच्छाइर्ां िीख िकते है ।
2. आज्ञाकारी बाहलका:- िं स्कार र्ु क्त होने के िाथ-िाथ िुं दररर्ा 4. ‘भाई-बहन’ कहानी की समीक्षा कीहजए ।
एक आज्ञाकारी बावलका भी थी वह अपने िे बडों की आज्ञा का पालन उत्तर: राजेंद्र बाला घोष ‘बं ग मवहला’द्वारा रवचत ‘भाई-बहन’ शीषय क
करते थी। उिकी मां उििे कहा करती थी वक भै र्ा िे छोटी होने के कहानी दे शप्रेम और स्वदे श की भावना को जागृ त करने वाली एक
कारण उिे हर चीज में भै र्ा िे कम वहस्सा लेना चावहए। मां के द्वारा कहानी है । र्ह कहानी 1908 में “बाल प्रभाकर” नामक पविका में
कही गई बात िुं दररर्ां हमेशा अपने मन में रखती थी और कम लेकर प्रकावशत हुई। प्रस्तु त कहानी के माध्यम िे लेखखका ने बालकों का
ही खुश रहती थी। ध्यान स्वदे शी वस्तु ओं की ओर आकृष्ट वकर्ा है । प्रस्तु त कहानी की
3. संतोषी स्वभाि:- िुं दररर्ा में िं तोष की भावना कूट-कूट कर भरी िमीिा वनम्न प्रकार िे की जा िकती है :-
है । वह अपने वतय मान िे हमेशा िं तुष्ट रहती है । शार्द वह र्ह बात 1. िीषा क:- कहानी का शीषयक आकषयक ,िं विि और
जानती है वक जगत में वही िु खी है वजिका मन वश में है । वनज अवथथा कोतू हलविय क होना चावहए । िाहब और िुं दररर्ा भाई-बहन है ।
में िं तुष्ट रहना और उिी के अनुरूप कार्य करना ही बु खिमानी का कहानी का िं पूणय कथानक इन्ीं दो पािों पर केंवद्रत है । अतः शीषयक
काम है । उपर्ु क्त एवं कथावस्तु के अनुकूल है ।
4. भोला स्वभाि :- िुं दररर्ा मािू म और भोले स्वभाव की बावलका है । 2. िाि एिं चररि हचिण:- कहानी में मुख्यतः चार पाि हैं -बाबू
िाहब उििे कहता है वक वह चार पैिे मैं चार ही चीजें खरीद िकती जर्राम दाि, श्री राम ,हरी राम और िुं दर दई। कहानी में रामदीन
है वकंतु उिके पाि बहुत पैिे हैं वजनिे वह ढ़े र िारी चीजें खरीद िकता वबिाती के नाम का भी उल्लेख हुआ है वकंतु वह गौण पाि है । श्री
है । इि पर िुं दररर्ा बडे भोलेपन िे अपने भाई के मुंह की तरर् ताकती राम, हरी राम और िुं दर दे ई कथानक के ववकाि में िहार्क हैं । श्री
हुई कहती है , “तो क्ा उिमें िे थोडा मुझे भी न दोगे भईर्ा ?” राम का चररि कार्ी प्रभावशाली है जो स्वदे श प्रेम की भावना को
5. आदिा गृहहणी :- 11 वषय की आर्ु में िुं दररर्ा का वववाह एक जागृ त करता है ।
जमीद ं ार पररवार में हो जाता है । आगे चलकर वह घर की मालवकन 3. कथानक या कथािस्त:- कहानी का कथानक िं विि वकंतु
बनती है । उिका पवत एक दे श वहतै षी िज्जन व्यखक्त है । िुं दररर्ा अपने रोचक है । िाहब और िुं दररर्ा अपने वपता बाबू जर्राम दाि जी के
पवत के िभी अच्छे कामों में उिका िहर्ोग करती है । िाथ नाटी इमली का भरत वमलाप दे खने जाते हैं । िुं दररर्ा की अपेिा
िाहब के पाि अवधक पैिे हैं । मे ले में िुं दररर्ा एक पैिा खचय कर
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एक वमट्टी का खखलौना खरीदती है वकंतु िाहब जमयनी में वनवमयत एक 2.“उन्हें हदन भर में नमक रोटी भी बडी मखिल से हमलती है । “
रे लगाडी खरीदता है । दोनों की इन वस्तु ओं को दे खकर बडे भाई श्री संदभा:-
राम िुं दररर्ा को बु खिमान और िाहब को बे वकूर् बताते हैं । वह िाहब प्रसंग:- िाहब और िुं दररर्ा अपने वपता बाबू जर्राम दाि जी के
िे कहते हैं वक उनके जैिे लोगों के कारण ही दे श की ढे र िारी धन िाथ मेला दे खने जाते हैं । मे ले में िुं दररर्ा एक पैिा खचय करके
रावश प्रवतवषय ववदे श चली जाती है । अपने दे श के कारीगर वदन-प्रवतवदन स्वदे श वनवमयत वमट्टी का खखलौना खरीदती है जबवक िाहब पााँ च आने
गरीब होते जा रहे हैं । श्री राम के उपदे श का िाहब पर गहरा प्रभाव खचय करके जमयनी में वनवमयत एक रे लगाडी खरीदता है । दोनों के
पडता है । वह आगे चलकर शहर का नामी वकील बनता है और खखलौनों को दे खकर श्रीराम िुं दररर्ा को बुखिमान एवं िाहब को
दे शवहत में कार्य करता है । 11 वषय की आर्ु में िुं दररर्ा का वववाह एक बे वकूर् बताते हैं ।
जमीद ं ार पररवार में हो जाता है । वह घर की मालवकन बनती है और व्याख्या: श्री राम अपने अनु ज िाहब िे कहते हैं वक उिने खखलौना
अपने पवत के दे श वहतै षी कामों में िहार्ता करती है । रामदीन वबिाती की दु कान िे खरीदा है वकंतु उिके पााँ च आने
4. कथोिकथन :- ‘भाई-बहन’ शीषयक कहानी का कथोप कथन जमयनी के कारीगर के पाि पहुंच गए। हम ववदे शों में बनी वस्तु एं
िं विि है । कथोपकथन िे पािों के चररि एवं उनकी मानविकता का खरीदना पिं द करते हैं । र्ही कारण है वक ववदे शों के कारीगर िुखी
पता चलता है । िाहब और िुं दररर्ा के बीच का र्ह कथोपकथन दे खने एवं िं पन्न हैं वकंतु हमारे दे श के कारीगर नमक रोटी भी बडी मुखिल
र्ोग्य है । जब िुं दर दि -बारह चीजों का नाम लेकर कहने लगी, “मै िे खा पाते हैं । श्रीराम अपने छोटे भाई को िमझाते हैं , र्वद उिने
र्ह मोल लूाँगी” ”वह मोल लूाँगी” तब िाहब ने कहा - वाह जी! तु म्हारे उिी पां च आने िे दे श के वकिी कारीगर का खखलौना ख़रीदा होता
पाि तो तीन चार पैिे कुल है , तुम इतनी चीजें कैिे ले िकती हो ? मेरे तो उि पैिे िे उि कारीगर का वदन भर का भोजन हो जाता।
पाि बहुत िे पैिे हैं ,मैं िब कुछ खरीद लूंगा ; केला, नारं गी ,अमरूद, 3.”हनज अिस्था में संतष्ट रहना और उसी के अनसार चलना
रे ऊडी,नानखताई ,वगै रह। बखद्धमानों का काम है ।“
5. दे ि, काल और िातािरण:- ‘भाई-बहन’ कहानी में शहर के मेले संदभा:-
का वातावरण दशाय र्ा गर्ा है । शहर के लोगों उत्साहपूवयक नाटी इमली प्रसंग: िाहब और िुं दररर्ाअपने वपता के िाथ मेला दे खने जाते हैं ।
का भरत वमलाप दे खने जाते हैं । उनके िाथ बच्चे भी हैं । र्ह बहुत िाहब के पाि अवधक पैिा है वकंतु िुं दररर्ा के पाि माि एक आने
उत्सावहत हैं । जगह-जगह दु कानें लगी हैं और मनचाही वस्तु ओं को दे ख की पूंजी है । इिके बावजूद भी िुं दररर्ा खुश है क्ोंवक उिके मन
कर बच्चे दु कानों की तरर् दौड पडते हैं । में अपने भाई के प्रवत दु भाय वना नही ं है ।
6. उद्दे श्य:- प्रस्तु त कहानी के माध्यम िे लेखखका ने ववदे शी वस्तु ओं व्याख्या: िुं दररर्ा के हृदर् में िंतोष की भावना कूट-कूट कर भरी
के बवहष्कार एवं स्वदे शी वस्तु ओं को अपनाने की िलाह दी है । बालकों है । उिके िं तोषी स्वभाव के ववषर् में बताते हुए लेखखका कहती हैं
में स्वदे शी वस्तु ओं के प्रवत आकषयण उत्पन्न करना ही लेखखका का प्रमुख वक वजिके पाि िं तोष धन है वही िबिे िु खी प्राणी है । वजिका मन
उद्दे श्य है । लेखखका को अपने उद्दे श्य में पूणय िर्लता भी प्राि हुई है । उिके वश में है वही िारे िु खों का स्वामी है । िुं दररर्ा का मन भी
7. भाषा िैली:- कहानी की भाषा िरल, िु बोध एवं खडी बोली है । उिके वश में था इिीवलए उिे इि बात का कोई दु ख नही ं था वक
कहानी में शब्ों को बडे ही िु िखज्जत ढं ग िे प्रस्तु त वकर्ा गर्ा है , जो िाहब के पाि उििे अवधक पै िे थे। वह वनज व्यवथथा िे िं तुष्ट थी
पाठक के मन को मोह लेता है । और उिी के अनुरूप कार्य करती थी । भाई को अवधक पैिे वदए
कुल वमलाकर कहानी की िमीिा करने िे पता चलता है वक जाने पर ना तो वह कभी रूठती थी और ना ही कभी अपने माता-
कहानी में कहानी कला के िभी तत्व मौजूद हैं जो कहानी को एक वपता िे वशकार्त करती थी
िर्ल कहानी बनाते हैं । 4. “ हजसके हृदय में संतोष है , उसी ने सबकछ भर िाया।“
सप्रसं ग व्याख्या:- 5. “इसमें दू सरों का दोष नही ं है , हम सब अिनी करनी से दीन
1.“हम लोगों में यह एक भारी दोष है हक हजतना कहते हैं उसका से दीन, गरीब से गरीब अधम से अधम होते जा रहे हैं ।“
चौथाई भी नही ं कर सकते हैं ।“ 6. “जो दू सरे हकसी को नीचा हदिाना चाहता है , िह िहले आि
संदभा:- प्रस्तु त पंखक्त हमारी पाठ्य पुखस्तका ‘हहन्दी िाठ-संचयन’ के ही ं नीचा दे िता है ।“ [HS 2018]
‘भाई-बहन’ शीषयक पाठ िे अवतररत है । इिकी रचवर्ता राजेंद्रबला
घोष ‘बं ग महहला’ हैं ।
नोट:- अन्य प्रश्ों की चचाा कक्षा में
प्रसंग:- िाहब और िुं दररर्ा अपने वपता बाबू जर्राम दाि जी के िाथ होगी।
मेला दे खने जाते हैं । मे ले में िुं दररर्ा एक पैिा खचय करके स्वदे श वनवमयत
वमट्टी का खखलौना खरीदती है जबवक िाहब पााँ च आने खचय करके
जमयनी में वनवमयत एक रे लगाडी खरीदता है । दोनों के खखलौनों को
दे खकर श्रीराम िुं दररर्ा को बु खिमान एवं िाहब को बे वकूर् बताते हैं ।
व्याख्या:- श्री राम अपने छोटे भाई िाहब को िमझाते हुए कहते हैं वक
आज हमारा दे श वकिी भी िे ि में आत्मवनभय र नही ं है । आज हम िु ई-
डोरा , वदर्ािलाई आवद छोटी िे छोटी वस्तु ओं के वलए भी ववदे शों पर
वनभय र है । इन चीजों के वलए प्रवतवषय लाखों रुपए ववदे श चले जाते हैं।
हम दे शी वस्तु ओं के थथान पर ववदे शी वस्तु ओं का उपर्ोग करके
महानता का अनुभव करते हैं । आज अपने दीन-हीन दशा के वलए हम
स्वर्ं वजम्मेदार हैं । हमारी कथनी और करनी में बहुत अंतर है । इिीवलए
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हम दीन िे दीन और अधम िे अधम होते जा रहे हैं । लोग दे श वहत की visit for other notes
बातें तो करते हैं वकंतु दे शवहत के वलए कोई काम नही ं करते । र्वद myqpaper.in
उनमें िे कुछ लोग ही दे श वहत के वलए कार्य करते तो हमारी खथथवत
कुछ और होती।