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1/12/13 Main nastik kyon hoon, Bhagat Singh 1931

भगत सं
ह (1931)

म नाि तक य हू
?

यह लेख भगत सं ह नेजेल म रहतेहु
ए लखा था और यह 27 सत बर 1931 को
लाहौर केअखबार “ द पीपल “ म का शत हुआ । इस लेख म भगत संह नेई वर
क उपि थ त पर अने क तक पण
ू सवाल खड़ेकयेह और इस सं सार के नमाण ,
मनुय केज म , मनुय केमन म ई वर क क पना केसाथ साथ सं सार म
मनुय क द नता , उसकेशोषण , दु नया म या त अराजकता और और वगभे द
क ि थ तय का भी व ले षण कया है। यह भगत संह केलेखन केसबसेच चत
ह स म रहा है।

वत ता से नानी बाबा रणधीर संह 1930-31केबीच लाहौर केसे ल जेल म कै द


थे
। वेएक धा मक यि त थे िज ह यह जान कर बहुत क ट हुआ क भगत सं ह
का ई वर पर व वास नह ं है
। वेकसी तरह भगत सं ह क कालकोठर म पहु चने

म सफल हु ए और उ ह ई वर केअि त व पर यक न दलानेक को शश क ।
असफल होनेपर बाबा नेनाराज होकर कहा, “ स सेतुहारा दमाग खराब हो
गया हैऔर तुम अहं क ार बन गए हो जो क एक कालेपद केतरह तुहारेऔर
ई वर केबीच खड़ी है । इस ट पणी केजवाब म ह भगत सं ह नेयह ले
ख लखा।

एक नया न उठ खड़ा हुआ है। या म कसी अहं क ार केकारण सवशि तमान,


सव यापी तथा सव ानी ई वर केअि त व पर व वास नह ंकरता हू ? मे
ँ रेकुछ दो त
– शायद ऐसा कहकर म उन पर बहुत अ धकार नह ं जमा रहा हू
ँ– मे
रेसाथ अपनेथोड़े
सेस पक म इस न कष पर पहु च
ँनेके लयेउ सु क ह क म ई वर केअि त व को
नकार कर कुछ ज़ रत से यादा आगे जा रहा हूँऔर मे
रेघम ड नेकु छ हद तक मु झे
इस अ व वास के लयेउकसाया है । म ऐसी कोई शे खी नह ंबघारता क म मानवीय
कमज़ो रय सेबहु त ऊपर हू
। म एक मनुय हू
ँ , और इससेअ धक कु
ँ छ नह ं
। कोई भी
इससेअ धक होनेका दावा नह ंकर सकता। यह कमज़ोर मे रेअ दर भी है
। अहंक ार
भी मे
रे वभाव का अं
ग है
। अपनेकामरे
डो केबीच मु
झेनरंकु
श कहा जाता था। यहाँ
तक क मे रेदो त ी बटु
केवर कु
मार द त भी मुझेकभी-कभी ऐसा कहतेथे। कई
मौक पर वेछाचार कह मे र न दा भी क गयी। कु
छ दो त को शकायत है , और
ग भीर प सेहैक म अनचाहेह अपनेवचार, उन पर थोपता हूँऔर अपने ताव
को मनवा ले ता हू
। यह बात कु
ँ छ हद तक सह है
। इससेम इनकार नह ंकरता। इसे
अहंक ार कहा जा सकता है
। जहाँ
तक अ य च लत मत केमु क ाबलेहमारेअपनेमत
का सवाल है । मु
झेन चय ह अपनेमत पर गव है । लेकन यह यि तगत नह ंहै।
ऐसा हो सकता हैक यह केवल अपनेव वास के त यायो चत गव हो और इसको
घम ड नह ंकहा जा सकता। घम ड तो वयंके त अनु चत गव क अ धकता है ।
या यह अनु चत गव है
, जो मु
झेनाि तकता क ओर लेगया? अथवा इस वषय का
खब
ू सावधानी सेअ ययन करनेऔर उस पर खब ू वचार करनेकेबाद मनेई वर पर

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अ व वास कया?

म यह समझनेम पू र तरह सेअसफल रहा हू ँक अनुचत गव या वृथा भमान कस


तरह कसी यि त केई वर म व वास करनेकेरा तेम रोड़ा बन सकता है ? कसी
वा तव म महान यि त क महानता को म मा यता न दँ ू– यह तभी हो सकता है,
जब मुझेभी थोड़ा ऐसा यश ा त हो गया हो िजसकेया तो म यो य नह ंहू
ँया मे
रे
अ दर वेगु
ण नह ंह, जो इसके लयेआव यक ह। यहाँतक तो समझ म आता है

ले
कन यह कैसेहो सकता हैक एक यि त, जो ई वर म व वास रखता हो, सहसा
अपने यि तगत अहंक ार केकारण उसम व वास करना ब द कर दे
? दो ह रा ते
स भव ह। या तो मनुय अपनेको ई वर का त व वी समझनेलगेया वह वयं
को ह ई वर मानना शु कर दे
। इन दोनो ह अव थाओंम वह स चा नाि तक नह ं
बन सकता। पहल अव था म तो वह अपने त व वी केअि त व को नकारता ह
नह ंहै
। दस
ूर अव था म भी वह एक ऐसी चे
तना केअि त व को मानता है
, जो पद
केपीछेसे कृत क सभी ग त व धय का सं
चालन करती है
। म तो उस सवशि तमान
परम आ मा केअि त व सेह इनकार करता हू। यह अहं
ँ क ार नह ंहै
, िजसनेमु
झे
नाि तकता के स ा त को हण करनेके लये े
रत कया। म न तो एक त व वी
हू
, न ह एक अवतार और न ह वयंपरमा मा। इस अ भयोग को अ वीकार करनेके

लयेआइए त य पर गौर कर। मे रेइन दो त केअनु
सार, द ल बम के स और
लाहौर षडय के
स केदौरान मु
झेजो अनाव यक यश मला, शायद उस कारण म
वृ
था भमानी हो गया हू

मे
र ा नाि तकतावाद कोई अभी हाल क उ पि त नह ंहै
। मनेतो ई वर पर व वास
करना तब छोड़ दया था, जब म एक अ स नौजवान था। कम सेकम एक काले ज
का व याथ तो ऐसे कसी अनु चत अहंक ार को नह ंपाल-पोस सकता, जो उसे
नाि तकता क ओर लेजाये। य य प म कु
छ अ यापक का चहे ता था तथा कु
छ अ य
को म अ छा नह ं लगता था। पर म कभी भी बहु
त मे
हनती अथवा पढ़ाकू व याथ नह ं
रहा। अहं
क ार जै
सी भावना म फँ
सनेका कोई मौका ह न मल सका। म तो एक बहु

ल जालु वभाव का लड़का था, िजसक भ व य केबारेम कु छ नराशावाद कृत थी।
मे
रेबाबा, िजनके भाव म म बड़ा हु आ, एक ढ़वाद आय समाजी ह। एक आय
समाजी और कु छ भी हो, नाि तक नह ंहोता। अपनी ाथ मक श ा पू
र करनेकेबाद
मनेडी0 ए0 वी0 कू ल, लाहौर म वे श लया और पू रेएक साल उसकेछा ावास म
रहा। वहाँ
सुबह और शाम क ाथना केअ त र त म घ ट गाय ी मं जपा करता था।
उन दन म पू र ा भ त था। बाद म मनेअपनेपता केसाथ रहना शु कया। जहाँ
तक धा मक ढ़वा दता का न है, वह एक उदारवाद यि त ह। उ ह ंक श ा से
मुझे वत ता के ये य के लयेअपनेजीवन को सम पत करनेक े
र णा मल ।
क तुवेनाि तक नह ं ह। उनका ई वर म ढ़ व वास है । वेमु
झे त दन पूज ा- ाथना
के लये ो सा हत करतेरहतेथे । इस कार सेमे र ा पालन-पोषण हु
आ। असहयोग
आ दोलन के दन म रा य काले
ज म वे श लया। यहाँआकर ह मनेसार धा मक
सम याओं– यहाँ
तक क ई वर केअि त व केबारेम उदारतापव
ूक सोचना, वचारना
तथा उसक आलोचना करना शु कया। पर अभी भी म प का आि तक था। उस समय
तक म अपनेल बेबाल रखता था। य य प मुझेकभी-भी स ख या अ य धम क
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पौरा णकता और स ा त म व वास न हो सका था। क तुमे र ई वर केअि त व म


ढ़ न ठा थी। बाद म म ाि तकार पाट सेजु ड़ा। वहाँिजस पहलेनेता सेमेरा
स पक हु आ वेतो प का व वास न होतेहु ए भी ई वर केअि त व को नकारनेका
साहस ह नह ं कर सकतेथे । ई वर केबारेम मेरेहठ पव
ूक पछ ूतेरहनेपर वेकहते,
‘'जब इ छा हो, तब पू
ज ा कर लया करो।'’ यह नाि तकता है
, िजसम साहस का अभाव
है। दस
ूरेने
ता, िजनकेम स पक म आया, प के ालुआदरणीय कामरे ड शची नाथ
सा याल आजकल काकोर षडय के
स के सल सलेम आजीवन कारवास भोग रहेह।
उनक पुतक ‘ब द जीवन’ ई वर क म हमा का ज़ोर-शोर सेगान है
। उ ह नेउसम
ई वर केऊपर शं
सा केपुप रह या मक वे
दा त केकारण बरसायेह। 28 जनवर ,
1925 को पूरेभारत म जो ‘ द रवो यू शनर ’ ( ाि तकार ) पचा बाँ
टा गया था, वह
उ ह ंकेबौ क म का प रणाम है । उसम सवशि तमान और उसक ल ला एवंकाय
क शं सा क गयी है। मे
र ा ई वर के त अ व वास का भाव ाि तकार दल म भी
फुटत नह ंहुआ था। काकोर केसभी चार शह द नेअपनेअि तम दन भजन-
ाथना म गजुारेथे
। राम साद ‘ बि मल’ एक ढ़वाद आय समाजी थे । समाजवाद
तथा सा यवाद म अपनेवहृद अ ययन केबावज ूद राजे
न लाहड़ी उप नषद एवंगीता के
लोक केउ चारण क अपनी अ भलाषा को दबा न सके । मनेउन सब मेसफ एक ह
यि त को दे
खा, जो कभी ाथना नह ंकरता था और कहता था, ‘'दशन शा मनुय
क दुबलता अथवा ान केसी मत होनेकेकारण उ प न होता है । वह भी आजीवन
नवासन क सजा भोग रहा है । पर तुउसनेभी ई वर केअि त व को नकारनेक
कभी ह मत नह ं क।

इस समय तक म के वल एक रोमाि टक आदशवाद ाि तकार था। अब तक हम


दस
ूर का अनुसरण करतेथे । अब अपनेक ध पर िज़ मे दार उठानेका समय आया
था। यह मे
रे ाि तकार जीवन का एक नणायक ब दुथा। ‘अ ययन’ क पु क ार मे
रे
मन केग लयार म गँ ज
ू रह थी – वरो धय वारा रखेगयेतक का सामना करने
यो य बननेके लयेअ ययन करो। अपनेमत केप म तक दे नेके लयेस म होने
केवा तेपढ़ो। मनेपढ़ना शु कर दया। इससेमेरेपु
र ानेवचार व व वास अ त
ु प
सेप र कृ
त हुए। रोमां
स क जगह ग भीर वचार नेल ल । न और अ धक रह यवाद,
न ह अ ध व वास। यथाथवाद हमारा आधार बना। मु
झेव व ाि त केअने क आदश
केबारेम पढ़नेका खबू मौका मला। मनेअराजकतावाद ने
ता बाकुनन को पढ़ा, कु

सा यवाद के पता मा स को, क तुअ धक ले नन, ा क , व अ य लोग को पढ़ा,
जो अपनेदेश म सफलतापव ूक ाि त लायेथे
। येसभी नाि तक थे। बाद म मुझे
नरल ब वामी क पुतक ‘सहज ान’ मल । इसम रह यवाद नाि तकता थी। 1926
केअ त तक मु झेइस बात का व वास हो गया क एक सवशि तमान परम आ मा
क बात, िजसने मा ड का सृ ज न, द दशन और सं
चालन कया, एक कोर बकवास
है
। मनेअपनेइस अ व वास को द शत कया। मनेइस वषय पर अपनेदो त से
बहस क । म एक घो षत नाि तक हो चक
ुा था।

मई 1927 म म लाहौर म गर तार हुआ। रे


लवेपुलस हवालात म मु
झेएक मह ना
काटना पड़ा। पुलस अफ़सर नेमु झेबताया क म लखनऊ म था, जब वहाँकाकोर
दल का मुक दमा चल रहा था, क मनेउ ह छु
ड़ानेक कसी योजना पर बात क थी,
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क उनक सहम त पानेकेबाद हमनेकु


छ बम ा त कयेथे
, क 1927 म दशहरा के
अवसर पर उन बम म सेएक पर ण के लयेभीड़ पर फ का गया, क य द म
ाि तकार दल क ग त व धय पर काश डालनेवाला एक व त य देदँ ,ूतो मु
झे
गर तार नह ंकया जायेगा और इसके वपर त मु
झेअदालत म मु ख बर क तरह पेश
कयेबेगरै रहा कर दया जायेगा और इनाम दया जाये
गा। म इस ताव पर हँ
सा।
यह सब बे
क ार क बात थी। हम लोग क भाँत वचार रखनेवालेअपनी नद ष जनता
पर बम नह ं
फ का करते
। एक दन सुबह सी0 आई0 डी0 केव र ठ अधी क ी यू मन
नेकहा क य द मनेवैसा व त य नह ंदया, तो मु
झ पर काकोर केस सेस बि धत
व ोह छे
ड़नेकेषडय तथा दशहरा उप व म र ह याओं
ू के लयेमु
क दमा चलानेपर
बा य ह गेऔर क उनकेपास मु झे सजा दलानेव फाँसी पर लटकवानेके लयेउ चत
माण ह। उसी दन सेकु छ पुलस अफ़सर नेमु झेनयम सेदोनो समय ई वर क
तु त करनेके लयेफुसलाना शु कया। पर अब म एक नाि तक था। म वयंके
लयेयह बात तय करना चाहता था क या शाि त और आन द के दन म ह म
नाि तक होनेका द भ भरता हू
ँया ऐसेक ठन समय म भी म उन स ा त पर अ डग
रह सकता हू। बहु
ँ त सोचनेकेबाद मनेन चय कया क कसी भी तरह ई वर पर
व वास तथा ाथना म नह ंकर सकता। नह ं
, मनेएक ण के लयेभी नह ंक । यह
असल पर ण था और म सफल रहा। अब म एक प का अ व वासी था और तब से
लगातार हू
। इस पर ण पर खरा उतरना आसान काम न था। ‘ व वास’ क ट को

हलका कर देता है
। यहाँतक क उ ह सु खकर बना सकता है । ई वर म मनुय को
अ य धक सा वना देनेवाला एक आधार मल सकता है । उसके बना मनुय को अपने
ऊपर नभर करना पड़ता है । तू
फ़ ान और झं
झावात केबीच अपनेपाँ व पर खड़ा रहना
कोई ब च का खेल नह ंहै
। पर ा क इन घ ड़य म अहं क ार य द है
, तो भाप बन कर
उड़ जाता हैऔर मनुय अपनेव वास को ठु करानेका साहस नह ंकर पाता। य द ऐसा
करता है, तो इससेयह न कष नकलता हैक उसकेपास सफ़ अहं क ार नह ंवरन ्
कोई अ य शि त है । आज बलकु ल वैसी ह ि थ त है
। नणय का पू
र ा-पू
र ा पता है

एक स ताह केअ दर ह यह घो षत हो जाये गा क म अपना जीवन एक ये य पर
योछावर करनेजा रहा हू
। इस वचार केअ त र त और या सा वना हो सकती है
ँ ?
ई वर म व वास रखनेवाला ह द ूपुनज म पर राजा होनेक आशा कर सकता है ।
एक मुसलमान या ईसाई वग म या त समृ केआन द क तथा अपनेक ट और
ब लदान के लयेपुर कार क क पना कर सकता है। क तुम या आशा क ँ ? म
जानता हू
ँक िजस ण र सी का फ़ दा मे र गदन पर लगे
गा और मे
रेपैर केनीचेसे
त ता हटे
गा, वह पू
ण वराम होगा – वह अि तम ण होगा। म या मेर आ मा सब
वह ंसमा त हो जाये
गी। आगेकु
छ न रहेगा। एक छोट सी ज ू
झती हु
ई िज़ दगी, िजसक
कोई ऐसी गौरवशाल प रण त नह ंहै
, अपनेम वयंएक पु र कार होगी – य द मुझम
इस ि ट सेदे खनेका साहस हो। बना कसी वाथ केयहाँया यहाँकेबाद पु र कार
क इ छा के बना, मनेअनास त भाव सेअपनेजीवन को वत ता के ये य पर
सम पत कर दया है, य क म और कु छ कर ह नह ंसकता था। िजस दन हम इस
मनोवृ
ि त केबहु
त-सेपुष और म हलाएँमल जायगे , जो अपनेजीवन को मनुय क
से
वा और पी ड़त मानवता केउ ार केअ त र त कह ंसम पत कर ह नह ंसकते , उसी
दन मु ि त केयुग का शुभार भ होगा। वेशोषक , उ पीड़क और अ याचा रय को

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चन
ुौती दे
नेके लयेउ ेरत ह गे
। इस लयेनह ंक उ ह राजा बनना हैया कोई अ य
पु
र कार ा त करना हैयहाँया अगलेज म म या मृ योपरा त वग म। उ ह तो
मानवता क गदन सेदासता का जु आ उतार फ कनेऔर मु ि त एवंशाि त था पत
करनेके लयेइस माग को अपनाना होगा। या वेउस रा तेपर चलगेजो उनकेअपने
लयेख़तरनाक क तुउनक महान आ मा के लयेएक मा क पनीय रा ता है । या
इस महान येय के त उनकेगव को अहं क ार कहकर उसका गलत अथ लगाया
जाये
गा? कौन इस कार केघृ
णत वशेषण बोलनेका साहस करे
गा? या तो वह मू
ख है
या धत
ू। हम चा हए क उसे मा कर द, य क वह उस दय म उ वे लत उ च
वचार , भावनाओं
, आवेग तथा उनक गहराई को महससू नह ंकर सकता। उसका दय
मां
स केएक टु कड़ेक तरह मतृ है। उसक आँख पर अ य वाथ के े त क छाया
पड़नेसेवेकमज़ोर हो गयी ह। वयंपर भरोसा रखनेकेगु ण को सदैव अहं
क ार क
संा द जा सकती है। यह दु
खपूण और क ट द है
, पर चारा ह या है?

आलोचना और वत वचार एक ाि तकार केदोनो अ नवाय गु


ण ह। य क
हमारेपू
वज ने कसी परम आ मा के त व वास बना लया था। अतः कोई भी
यि त जो उस व वास को स यता या उस परम आ मा केअि त व को ह चनुौती दे
,
उसको वधम , व वासघाती कहा जाये
गा। य द उसकेतक इतनेअका य ह क उनका
ख डन वतक वारा नह ंहो सकता और उसक आ था इतनी बल हैक उसेई वर
के कोप सेहोनेवाल वपि तय का भय दखा कर दबाया नह ंजा सकता तो उसक
यह कह कर न दा क जाये गी क वह वृथा भमानी है
। यह मेर ा अहं
क ार नह ंथा, जो
मु
झेनाि तकता क ओर लेगया। मे रेतक का तर का सं तोष द स होता हैया नह ं
इसका नणय मे रेपाठक को करना है
, मु झेनह ं
। म जानता हूँक ई वर पर व वास
नेआज मे र ा जीवन आसान और मे र ा बोझ हलका कर दया होता। उस पर मे रे
अ व वास नेसारेवातावरण को अ य त शुक बना दया है । थोड़ा-सा रह यवाद इसे
क व वमय बना सकता है । क तुमेरेभा य को कसी उ माद का सहारा नह ंचा हए।
म यथाथवाद हू । म अ तः कृत पर ववे
ँ क क सहायता से वजय चाहता हू । इस

येय म म सदैव सफल नह ंहुआ हू। यास करना मनुय का कत य है
ँ । सफलता तो
संयोग तथा वातावरण पर नभर है। कोई भी मनुय, िजसम त नक भी ववे क शि त
है
, वह अपनेवातावरण को ता क क प सेसमझना चाहे गा। जहाँसीधा माण नह ंहै
,
वहाँदशन शा का मह व है
। जब हमारेपू
वज नेफु
रसत केसमय व व केरह य
को, इसकेभू त, वतमान एवंभ व य को, इसके य और कहाँसेको समझनेका
यास कया तो सीधे प रणाम केक ठन अभाव म हर यि त नेइन न को अपने
ढ़ं
ग सेहल कया। यह कारण हैक व भ न धा मक मत म हमको इतना अ तर
मलता है, जो कभी-कभी वै
मन य तथा झगड़ेका प लेले ता है। न केवल पू
व और
पि चम केदशन म मतभे द है
, बि क ये
क गोलाध केअपनेव भ न मत म आपस
म अ तर है। पू
व केधम म, इ लाम तथा ह द ूधम म ज़रा भी अनुपता नह ंहै ।
भारत म ह बौ तथा जै न धम उस ा मणवाद सेबहु त अलग है , िजसम वयं
आयसमाज व सनातन धम जै सेवरोधी मत पायेजातेह। पु
र ानेसमय का एक वत
वचारक चावाक है
। उसनेई वर को पु
र ानेसमय म ह चु नौती द थी। हर यि त अपने
को सह मानता है। दु
भा य क बात हैक बजाय पु र ाने वचारक केअनु भव तथा

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वचार को भ व य म अ ानता के व लड़ाई का आधार बनानेकेहम आल सय क


तरह, जो हम स हो चक ुेह, उनकेकथन म अ वचल एवंसं शयह न व वास क चीख
पुक ार करतेरहतेह और इस कार मानवता के वकास को जड़ बनानेकेदोषी ह।

सफ व वास और अ ध व वास ख़तरनाक है । यह मि त क को मू ढ़ और मनुय


को त यावाद बना दे
ता है
। जो मनुय अपनेको यथाथवाद होनेका दावा करता है
,
उसेसम त ाचीन ढ़गत व वास को चुनौती दे
नी होगी। च लत मत को तक क
कसौट पर कसना होगा। य द वेतक का हार न सह सके , तो टु
कड़े
- टु
कड़ेहोकर गर
पड़े
गा। तब नयेदशन क थापना के लयेउनको पू र ा धराशायी करके◌ेजगह साफ
करना और पुर ानेव वास क कु
छ बात का योग करकेपु
न नमाण करना। म ाचीन
व वासां
◌ेकेठोसपन पर न करनेकेस ब ध म आ व त हू
। मु
ँ झेपरू
ा व वास है
क एक चे तन परम आ मा का, जो कृत क ग त का द दशन एवंसं चालन करता है,
कोई अि त व नह ंहै। हम कृत म व वास करतेह और सम त ग तशील
आ दोलन का ये य मनुय वारा अपनी सेवा के लये कृत पर वजय ा त करना
मानतेह। इसको दशा दे
नेकेपीछेकोई चे
तन शि त नह ंहै
। यह हमारा दशन है
। हम
आि तक सेकु छ न करना चाहतेह।

य द आपका व वास हैक एक सवशि तमान, सव यापक और सव ानी ई वर है


,
िजसनेव व क रचना क , तो कृ पा करकेमुझेयह बताय क उसनेयह रचना य
क ? क ट और सं ताप सेपू
ण दुनया – असंय दु ख केशा वत अन त गठब धन से
सत! एक भी यि त तो पू
र तरह संतृ ट नह है। कृ
पया यह न कह क यह उसका
नयम है। य द वह कसी नयम सेबँ धा हैतो वह सवशि तमान नह ंहै
। वह भी
हमार ह तरह नयम का दास है। कृपा करकेयह भी न कह क यह उसका मनोरंजन
है
। नीरो नेबस एक रोम जलाया था। उसनेबहु
त थोड़ी संया म लोगां◌े
◌ंक ह या क
थी। उसनेतो बहुत थोड़ा दु
ख पै
दा कया, अपनेपूण मनोरं ज न के लये। और उसका
इ तहास म या थान है ? उसेइ तहासकार कस नाम सेबु लातेह? सभी वषैले
वशेषण उस पर बरसायेजातेह। प नेउसक न दा केवा य सेकालेपु तेह, भ सना
करतेह – नीरो एक दयह न, नदयी, दु ट। एक चंगे
ज खाँनेअपनेआन द के लये
कुछ हजार जान लेल ंऔर आज हम उसकेनाम सेघण ृा करतेह। तब कस कार
तु
म अपनेई वर को यायो चत ठहरातेहो? उस शा वत नीरो को, जो हर दन, हर
घ टेओर हर मनट असंय दु ख दे
ता रहा, और अभी भी देरहा है। फर तुम कैसे
उसकेदु
कम का प लेनेक सोचतेहो, जो चं गे
ज खाँसे येक ण अ धक है ? या
यह सब बाद म इन नद ष क ट सहनेवाल को पु र कार और गलती करनेवाल को
द ड दे
नेके लयेहो रहा है ? ठ क है
, ठ क है
। तुम कब तक उस यि त को उ चत
ठहरातेरहोगे
, जो हमारेशर र पर घाव करनेका साहस इस लयेकरता हैक बाद म
मु
लायम और आरामदायक मलहम लगाये गा? लै डएटर संथा के यव थापक कहाँतक
उ चत करतेथेक एक भू खेख़ ू
ंवार शे
र केसामनेमनुय को फ क दो क, य द वह
उससेजान बचा लेता है
, तो उसक खब ू दे
खभाल क जाये
गी? इस लयेम पू
छ ता हू
ँक
उस चेतन परम आ मा नेइस व व और उसम मनुय क रचना य क ? आन द
लूटनेके लये
? तब उसम और नीरो म या फक है ?

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तुम मु
सलमानो और ईसाइयो! तु
म तो पू
वज म म व वास नह ंकरते। तु
म तो
ह दु
ओं क तरह यह तक पे
श नह ंकर सकतेक य तः नद ष यि तय केक ट
उनकेपूवज म केकम का फल है । म तु
मसेपू
छ ता हू
ँक उस सवशि तशाल नेश द
वारा व व केउ पि त के लयेछः दन तक य प र म कया? और ये
क दन
वह य कहता हैक सब ठ क है ? बु
लाओ उसेआज। उसेपछला इ तहास दखाओ।
उसेआज क प रि थ तय का अ ययन करनेदो। हम दे खगेक या वह कहनेका
साहस करता हैक सब ठ क है
। कारावास क काल-कोठ रय सेले
क र झोप ड़य क
बि तय तक भूख सेतड़पतेलाख इ सान सेले क र उन शो षत मज़दरू सेलेक र जो
पँ

ूीवाद पशाच वारा खन
ू चसूनेक या को धै
यप व
ूक न साह सेदे ख रहेह तथा
उस मानवशि त क बबाद देख रहेह, िजसेदे
खकर कोई भी यि त, िजसेत नक भी
सहज ान है, भय सेसहर उठेगा, और अ धक उ पादन को ज़ रतम द लोग म बाँ टने
केबजाय समु म फ क दे ना बे
हतर समझनेसेले क र राजाआं
◌ेकेउन महल तक
िजनक नीं
व मानव क ह डय पर पड़ी है
- उसको यह सब दे
खनेदो और फर कहे–
सब कुछ ठ क है
! य और कहाँसे
? यह मेरा न है
। तु
म चप
ु हो। ठ क है
, तो म
आगे चलता हू

और तुम ह दुओ, तु
म कहतेहो क आज जो क ट भोग रहेह, येपू
वज म केपापी
ह और आज केउ पीड़क पछलेज म म साधु पुष थे
, अतः वेस ता का आन द लूट
रहेह। मु
झेयह मानना पड़ता हैक आपकेपू
वज बहु
त चालाक यि त थे। उ ह नेऐसे
स ा त गढ़े
, िजनम तक और अ व वास केसभी यास को वफल करनेक काफ़
ताकत है
। यायशा केअनुसार द ड को अपराधी पर पड़नेवालेअसर केआधार पर
केवल तीन कारण सेउ चत ठहराया जा सकता है। वेह – तकार, भय तथा सु
धार।
आज सभी ग तशील वचारक वारा तकार के स ा त क न दा क जाती है ।
भयभीत करनेके स ा त का भी अ त वह ंहै । सुधार करनेका स ा त ह के वल
आव यक हैऔर मानवता क ग त के लयेअ नवाय है । इसका ये य अपराधी को
यो य और शाि त य नाग रक के प म समाज को लौटाना है । क तुय द हम
मनुय को अपराधी मान भी ल, तो ई वर वारा उ ह दयेगयेद ड क या कृत
है
? तुम कहतेहो वह उ ह गाय, ब ल , पे
ड़, जड़ी-बूट या जानवर बनाकर पै
दा करता
है
। तुम ऐसे84 लाख द ड को गनातेहो। म पू छ ता हू
ँक मनुय पर इनका सु धारक
के प म या असर है ? तुम ऐसेकतनेयि तय सेमलेहो, जो यह कहतेह क वे
कसी पाप केकारण पूवज म म गधा के प म पै दा हु
ए थे
? एक भी नह ं
? अपने
पु
र ाण सेउदाहरण न दो। मे
रेपास तुहार पौरा णक कथाओंके लए कोई थान नह ं
है
। और फर या तुह पता हैक दु नया म सबसेबड़ा पाप गर ब होना है
। गर बी
एक अ भशाप है। यह एक द ड है
। म पू
छ ता हू
ँक द ड या क कहाँतक शं सा
कर, जो अ नवायतः मनुय को और अ धक अपराध करनेको बा य करे? या तुहारे
ई वर नेयह नह ंसोचा था या उसको भी येसार बात मानवता वारा अकथनीय क ट
केझे लनेक क मत पर अनु भव सेसीखनी थीं? तु
म या सोचतेहो, कसी गर ब या
अनपढ़ प रवार, जै
सेएक चमार या मे हतर केयहाँपै
दा होनेपर इ सान का या भा य
होगा? चँ
ूक वह गर ब है , इस लयेपढ़ाई नह ंकर सकता। वह अपनेसा थय से
तर कृ
त एवंप र य त रहता है
, जो ऊँ
ची जा त म पै
दा होनेकेकारण अपनेको ऊँ
चा

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समझतेह। उसका अ ान, उसक गर बी तथा उससेकया गया यवहार उसके दय को


समाज के त न ठु र बना दे
तेह। य द वह कोई पाप करता हैतो उसका फल कौन
भो◌े
गेगा? ई वर, वह वयंया समाज केमनीषी? और उन लोग केद ड केबारेम
या होगा, िज ह द भी ा मण नेजानबझ ू कर अ ानी बनायेरखा तथा िजनको
तुहार ान क प व पुतक – वे द केकुछ वा य सुन ले
नेकेकारण कान म पघले
सीसेक धारा सहन करनेक सजा भु गतनी पड़ती थी? य द वेकोई अपराध करतेह,
तो उसके लयेकौन िज़ मे
दार होगा? और उनका हार कौन सहे
गा? मे
रे य दो त !
येस ा त वशे षा धकार युत लोग केआ व कार ह। येअपनी ह थयाई हु
ई शि त,
पँ

ूी तथा उ चता को इन स ा त केआधार पर सह ठहरातेह। अपटान संलेयर ने
लखा था क मनुय को बस अमर व म व वास दला दो और उसकेबाद उसक सार
स पि त लूट लो। वह बगै
र बड़बड़ायेइस काय म तुहार सहायता करेगा। धम के
उपदे
शक तथा स ता के वा मय केगठब धन सेह जेल, फाँ
सी, कोड़ेऔर येस ा त
उपजतेह।

म पू
छ ता हू
ँतुहारा सवशि तशाल ई वर हर यि त को य नह ंउस समय रोकता
हैजब वह कोई पाप या अपराध कर रहा होता है
? यह तो वह बहु
त आसानी सेकर
सकता है । उसने य नह ंलड़ाकूराजाओंक लड़नेक उ ता को समा त कया और
इस कार व वयु वारा मानवता पर पड़नेवाल वपि तय सेउसेबचाया? उसने
अंेज केमि त क म भारत को मुत कर देनेक भावना य नह ंपैदा क ? वह य
नह ंपू
ज ीप तय के दय म यह परोपकार उ साह भर दे
ँ ता क वेउ पादन केसाधन
पर अपना यि तगत स पि त का अ धकार याग द और इस कार के वल स पणू
मक समु दाय, वरन सम त मानव समाज को पू ज ीवाद बे
ँ ड़य सेमुत कर? आप
समाजवाद क यावहा रकता पर तक करना चाहतेह। म इसेआपकेसवशि तमान पर
छोड़ दे
ता हू
ँक वह लाग ूकरे
। जहाँतक सामा य भलाई क बात है , लोग समाजवाद के
गु
ण को मानतेह। वेइसके यावहा रक न होनेका बहाना ले क र इसका वरोध करते
ह। परमा मा को आनेदो और वह चीज को सह तर केसेकर दे । अंे ज क हुकूमत
यहाँइस लयेनह ंहैक ई वर चाहता हैबि क इस लयेक उनकेपास ताकत हैऔर
हमम उनका वरोध करनेक ह मत नह ं । वेहमको अपने भुव म ई वर क मदद
सेनह ंरखेह, बि क ब दक ू, राइफल , बम और गो लय , पु
लस और से ना केसहारे।
यह हमार उदासीनता हैक वेसमाज के व सबसेन दनीय अपराध – एक रा
का दस
ूरेरा वारा अ याचार पू
ण शोषण – सफलतापूवक कर रहेह। कहाँहैई वर?
या वह मनुय जा त केइन क ट का मज़ा लेरहा है ? एक नीरो, एक चं
गेज , उसका
नाश हो!

या तु
म मुझसेपू छ तेहो क म इस व व क उ पि त तथा मानव क उ पि त क
या या कैसेकरता हू ? ठ क है
ँ , म तुह बताता हू। चा स डार वन नेइस वषय पर

कुछ काश डालनेक को शश क है । उसेपढ़ो। यह एक कृत क घटना है । वभ न
पदाथ के , नीहा रका केआकार म, आकि मक म ण सेपृवी बनी। कब? इ तहास
दे
खो। इसी कार क घटना सेज तुपै दा हु
ए और एक ल बेदौर म मानव। डा वन क
‘जीव क उ पि त’ पढ़ो। और तदु परा त सारा वकास मनुय वारा कृत केलगातार
वरोध और उस पर वजय ा त करनेक चे
टा सेहु
आ। यह इस घटना क स भवतः
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सबसेसूम या या है

तुहारा दस
ूरा तक यह हो सकता हैक य एक ब चा अ धा या लं
गड़ा पै
दा होता
है
? या यह उसकेपू वज म म कयेगयेकाय का फल नह ंहै
? जीव व ान वेताओं
नेइस सम या का वैा नक समाधान नकाल लया है । अव य ह तु म एक और
बचकाना न पछू सकतेहो। य द ई वर नह ंहै
, तो लोग उसम व वास य करने
लगे? मेर ा उ तर सूम तथा प ट है । िजस कार वे े त तथा दुट आ माओंम
व वास करनेलगे । अ तर केवल इतना हैक ई वर म व वास व व यापी हैऔर
दशन अ य त वक सत। इसक उ पि त का य े उन शोषक क तभा को है
, जो
परमा मा केअि त व का उपदे
श दे
क र लोग को अपने भुव म रखना चाहतेथेतथा
उनसेअपनी व श ट ि थ त का अ धकार एवंअनुमोदन चाहतेथे
। सभी धम, सम दाय,
प थ और ऐसी अ य संथाएँ अ त म नदयी और शोषक संथाओं, यि तय तथा वग
क समथक हो जाती ह। राजा के व हर व ोह हर धम म सदै
व ह पाप रहा है

मनुय क सीमाओंको पहचाननेपर, उसक दु बलता व दोष को समझनेकेबाद


पर ा क घ ड़य म मनुय को बहादु
र सेसामना करनेके लयेउ सा हत करने
, सभी
ख़तर को पुष व केसाथ झे लनेतथा स प नता एवंऐ वय म उसके व फोट को
बाँ
धनेके लयेई वर केका प नक अि त व क रचना हु
ई। अपने यि तगत नयम
तथा अ भभावक य उदारता सेपू ण ई वर क बढ़ा-चढ़ा कर क पना एवंच ण कया
गया। जब उसक उ ता तथा यि तगत नयम क चचा होती है , तो उसका उपयोग
एक भय दखानेवालेके प म कया जाता है । ता क कोई मनुय समाज के लये
ख़तरा न बन जाये। जब उसकेअ भभावक गु ण क या या होती ह,◌ैतो उसका
उपयोग एक पता, माता, भाई, बहन, दो त तथा सहायक क तरह कया जाता है। जब
मनुय अपनेसभी दो त वारा व वासघात तथा याग दे नेसेअ य त ले ष म हो,
तब उसेइस वचार सेसा वना मल सकती हे क एक सदा स चा दो त उसक
सहायता करनेको है, उसको सहारा दे
गा तथा वह सवशि तमान हैऔर कु छ भी कर
सकता है। वा तव म आ दम काल म यह समाज के लयेउपयोगी था। पीड़ा म पड़े
मनुय के लयेई वर क क पना उपयोगी होती है । समाज को इस व वास के व
लड़ना होगा। मनुय जब अपनेपै र पर खड़ा होनेका यास करता हैतथा यथाथवाद
बन जाता है
, तब उसे ा को एक ओर फ क दे ना चा हए और उन सभी क ट ,
परे
शा नय का पुष व केसाथ सामना करना चा हए, िजनम प रि थ तयाँउसेपटक
सकती ह। यह आज मे र ि थ त है
। यह मेर ा अहं
क ार नह ंहै
, मे
रेदो त! यह मे
रे
सोचनेका तर का है
, िजसनेमु
झेनाि तक बनाया है। ई वर म व वास और रोज़-ब-
रोज़ क ाथना को म मनुय के लयेसबसे वाथ और गरा हु आ काम मानता हू।

मनेउन नाि तक केबारेम पढ़ा हे , िज ह नेसभी वपदाओंका बहादु
र सेसामना
कया। अतः म भी एक पुष क भाँ
त फाँ सी केफ देक अि तम घड़ी तक सर ऊँ चा
कयेखड़ा रहना चाहता हू

हम देखना हैक म कै सेनभा पाता हू । मे


ँ रेएक दो त नेमुझे ाथना करनेको
कहा। जब मनेउसेनाि तक होनेक बात बतायी तो उसनेकहा, ‘'अपनेअि तम दन
म तुम व वास करनेलगोगे।'’ मनेकहा, ‘'नह ं
, यारेदो त, ऐसा नह ंहोगा। म इसे

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अपनेलयेअपमानजनक तथा ट होनेक बात समझाता हू । वाथ कारण सेम



ाथना नह ंक ँ
गा।'’ पाठक और दो त , या यह अहं
क ार है
? अगर हैतो म वीकार
करता हू

Date Written: 1931


Author: Bhagat Singh
Title: Why I Am An Atheist (Main nastik kyon hoon)
First Published: Baba Randhir Singh, a freedom fighter, was in Lahore
Central Jail in 1930-31. He was a God-fearing religious man. It pained
him to learn that Bhagat Singh was a non-believer. He somehow
managed to see Bhagat Singh in the condemned cell and tried to
convince him about the existence of God, but failed. Baba lost his
temper and said tauntingly: “You are giddy with fame and have
developed and ago which is standing like a black curtain between you
and the God.” It was in reply to that remark that Bhagat Singh wrote
this article. First appeared in The People, Lahore on September 27,
1931.

भगत सं

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