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Sahayak Vachan Kaksha4 1990
Sahayak Vachan Kaksha4 1990
सब बराबर हों
सबमें भाईचारा हो
सब सम्रद्ध हों
सबको न्याय मिले
ऐसा भारत हम बनायेंगे।
सहायक वाचन _
कक्षा ४
| लेखक - मंडल
डॉ. के. जी . रस्तोगी श्री जी . के. चरटुर्वेदी
डॉ. पी . के. खन्ना श्री माधव जाउलकर
संपादक - मंडल
दे
पाठ * पृष्ठ
गत जीनता आज ४३
गति गाल रहना जीत ४ प्
अध्याय ३
फूल - पौधे
तलेगाएज ठा. पी के खत्नो
सुंदर पक्षी
९, हमारे परिचित पक्षी
च्चो ! अभी तुम मीठी नींद में सोए हुए हो कि मुर्गा बाँग देने लगता है-
कुकड़् कूं। कहता है सवेरा होने वाला है। बाँग सुनकर लोग आलस छोड़
उठने लगते हैं। इतने में सवेरा हो जाता है। उजाला होते ही पक्षी पंख
फड़फड़ाकर जाग उठते हैं और चहचहाने लगते हें। लगता है चहचहाकर
वे दिन का स्वागत कर रहें हैं। सूरज निकलने के बाद तुम भले ही विस्तर
में पड़े रहो, पर किसी पक्षी का अपने घोंसले में पड़ा रहना प्रायः असंभव
हो]
मुँडेर पर धूप फैली कि कौआ आकर काँव-काँव करने लगता है। गौरैया
आँगन में फुदकने लगती है। गुरसलें भी आकर ताक-झाँक करने लगती हें।
इसी समय आसमान में पक्षियों की एक टेढ़ी पंक्ति सर्र से उड़ती निकल
जाती है। तुम दादी से पूछते हो तो वे बताती हैं कि ये गंगा नहाकर आ रहे
हें।
पाठशाला से घर लौटने पर यदि तुम्हारा पालतू तोता गंगाराम प्रसन्नता
से टें-टें करने लगे और कहने लगे-भैया आए, तो तुम्हारा मन प्रसन्नता से
नाच उठेगा न ! वसंत ऋतु में जब आम पर बोर आ जाता है, तब आम की टहनी
पर मीठे स्वर में कूकती कोयल को कुह-कुह की तान किसका मन नहीं मोह
लेती ? कबूतर को गुटर-गूँ कितनी प्यारी लगती है ? नाचता हुआ मोर कितना
२ सहायक वाचन - ४
सुंदर लगता है? और तो और, आँगन में फुदकती हुई चिड़ियाँ भी हमारे
मन को आकर्षित कर लेती हें।
बड़ा विचित्र है यह पक्षी जगत ! गोौरेया थोड़ी दूर तक ही उड़ पाती
है तो हज़ारों मील दूर तक उड़ने वाले पक्षी भी हैं। जब संसार के उत्तरी
प्रदेशों में कड़ाके की सर्दी पड़ती है तो वहाँ के कुछ पक्षी हज़ारों मील की
यात्रा करके गर्म देशों में आ जाते हैं। कुछ पक्षी कम ऊँचाई पर उड़ते हें तो
कुछ ऐसे भी हैं जो आकाझ में काफी ऊँचाई तक उड़ते हैं। चील और गिद्ध
|
ऐसे ही पक्षी हैं। इनकी दृष्टि भी बहुत तेज़ होती हे। ऊँचाई पर उड़ते-
उड़ते नीचे जमीन पर अपने भोजन की तलाश करते रहते हें। कुछ पक्षी
ऐसे भी हें जिन्हें केवल अंधकार ही अच्छा लगता है। उल्लू को तो तुम सब
जानते ही हो ।
रहने-सहने के विषय में भी पक्षियों की अपनी-अपनी पसंद हैं। कोई
बस्ती से दूर खंडहर में रहना पसंद करता है तो कोई बस्ती के सुरक्षित मकानों
में। कोई पेड़ की ऊँची टहनी पर बसेरा करता-है तो कोई पत्तियों के झुरमुट
में। बया का घोंसला तो तुमने देखा ही होगा। पेड़ की मज़बूत टहनी में
लटकाकर हवा में झूलने वाला घोंसला बनाती है यह चिड़िया। दर्जिन
चिड़िया कुशल दर्जी की तरह पत्तों को मोड़कर घास के धागों से सी लेती
है। यही उसका घोंसला है। गिदूध, चील आदि बड़े पक्षी पेड़ों की ऊँची
टहनी पर बसेरा करना पसंद करते है। हंस, चकवा, बतख आदि ऐसे पक्षी है
जो जल में सुविधापूर्वक तैर सकते हैं। बगुला ऐसा पक्षी है जिसे भोजन की
सुविधा के लिए ताल-तलैया के समीप रहना पसंद है। पर इतना अवश्य हे
कि सब अपनी सुरक्षा की दृष्टि से ही बसेरे का स्थान चुनते हें।
डील-डोल भी सभी पक्षियों का एक-सा नहीं होता। भोजन भी इनका भिन्न
हमारे परिचित पक्षी ३
होता, कुछ दाना-दुनका चुगते हैं, कुछ कीड़े-मकोड़े खाते हें। कुछ
फलाहारी हैं तो कुछ मांसाहारी। किसीको चोंच छोटी होती हे तो किसी की
लंबी; किसी की सीधी तो किसी की मुड़ी हुई, नुकीली। रंग-रूप भी इनका
भिन्न-भिन्न होता है। हंस व बगुला सफेद होते हैं तो कोआ व कोयल काले।
कोई एक रंग का है तो कोई रंग-बिरंगा।
रंग-रूप डील-डौल, आकार-प्रकार, भोजन, स्वभाव आदि में भिन्न होते
हुए भी सभी पक्षी एक बात में समान हैं कि ये उड़ते हैं। सारा आकाश इनका
है, जिधर जी चाहा उड़ गए। सभी अपने-अपने ग़त्रुओं को जानते-पहचानते
हैं, उनसे सतर्करहते हैं। तुमने देखा होगा कि बिल्ली को देखते ही गौरैया
चीं-चीं करने लगती है, कौए काँव-काँव करके उसके पीछे पड़ जाते हें।
कोई साहसी कौआ तो उसे ठुँगा मारकर फुर्ती से उड़ जाता है, मानों बता देना
चाहता हो कि हम भी कम नहीं हें।
पक्षियों का अपना समाज होता है। बहुत से पक्षी तो झुंड बनाकर रहते हैं।
शत्रु पर मिलकर आक्रमण करते है, मिल-जुलकर खाते है, मिल-जुलकर
रहते हैं। तुमने देखा होगा कि खाने की सामग्री को देखते ही कौआ
काँव-काँव करने लगता है। सुनकर सब उस पर आ जुटते हैं। उन्हें
अकेले-अकेले खाना पसंद नहीं। परंतु उल्लू जैसे कुछ पक्षी अकेले ही रहना
पसंद करते हैं। अपनी-अपनी सुविधा और समझ ही तो हे।
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_ 4५%] सहायक वाचन - ४
अभ्यास
कौए का रंगहोताकालहै,ा यहहोतातो है,तुम गरद न जानतभूरीे औरहो। लचीली होती है। कौआ४
कित ना चौकन््ना सभी
कौआ भारत में सभी जगह मिलता है, परंतु स्थान-भेद से मनुष्यों की
भाँति इसके रंग-रूप में भी काफी अंतर पाया जाता हेै। उत्तर के पहाड़ी
प्रदेशों में पाए जाने वाले कोए मध्यप्रदेश तथा दक्षिण में पाए जाने वाले
कौओं से भिन्न हें।
रंग-रूए, डील-डौल में भिन्न होते हुए भी स्वभाव सबका प्रायः एक-सा
होता है। ये मेलजुल कर रहते हैं, मिल बाँठकर खाते हैं तथा सब मिलकर
ही अपने शत्रु पर आक्रमण करते हैं। इनमें बड़ी एकता होती है। कभी किसी
कौऐ के बच्चे को पकड़ तो लो, सारे कोए काँव-काँव करके इकट्टे हो
एँगे और बुरी तरह पीछे पड़ जाएँगे। बिल्ली को देखकर तो ये उसके
पीछे ऐसे पड़ते हैं कि वह बेचारी छिपकर ही जान बचाती है। कोई-कोई
साहसी कौआ तो उसके टुँगा मारने में भी नहीं चूकता।
कौआ सर्वभक्षी है। रोटी, भात, मांस, मछली- जो कुछ भी मिले सब चट
कर जाता है। चूहा, छिपकली, गिरगिट, मेंढक, कीड़े-मकोड़े सब कुछ
रख लेते हें। खुद गदगा खाकर आसपास क वाताबरण का सफाइ करक यह
५
गरैया और कौए के अलावा पंडुक भी परे र्घाउसा है। इसे
या गेंडकी भी कहते लिया प्राय: सारे देश पे म लती है।
पंडक बनावट में कबूतर जेसी होती है। रंग इसका भरा, कुछ
कत्थई-सा होता है। आँखों की पुतलियाँ काली होती है जो इसके रंग के रा |
और भी खिल उठती हैं । रंगों का यह मेल इसकी सुंदरता में चार-चॉढ 8 ॥
टैता है।
का सूचक है। सर्दियों में धूप निकलने पर ही इसे वालते सुना गया ह
जब दिन जरा गरमा जाते हैँ ओर बड़े होने लगते हें तो दीवारों ओर पेड
की छाया में गला फुलाकर कू-कू करती हुई पंडुओं की जी डी वह ॥ 0
रे
कबूतर :
क्रवृतर से तुम सभी परिचित होगे। यह भी घरेलू चिड़िया यह
पालतू चिड़िया भी है। इसे. पालकर सिखाया भी जा सकता है।
१० सहायक वाचन -> ४
गुरसल :
एक और घरेलू चिड़िया है गुरसल। भिन्न-भिन्न स्थानों पर इसे
भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। कहीं इसे गुलगुचिया कहते हैं, कहीं
गिलगिलिया, कहीं जंगली मैना। इसका रंग धूसर-भूरा, चोंच पीली, आँखे
बड़ी और चंचल होती है; डील-डौल में कौए से आधी, पर बहादुरी में उससे
सवाई होती है।
अनाज, रोटी, भात के अलावा गुरसल कीड़े-मकोड़े भी खा जाती है।
झींगुर, झिल्ली, मकड़ी, पतंगे, टिड्डे इसके प्रिय भोजन है। किसान खेत
में हल चलाता है तो यह उसके पीछे-पीछे चलकर मिट्टी में से निकलते हुए
कीड़े-मकोड़े खाती रहती है। किसान जब खेत में पानी देता है तो मिट्टी
तथा ढेलों में छिपे कीड़े-मकोड़े बाहर आ जाते हैं। बस, गुरसल की मौज
हे।
गुरसल बहुत फुर्तीली, चंचल, चौकन्नी, बहादुर और गर्म मिजाज़
चिड़िया है। ज़रा कौआ इसके घोंसले के पास फटक तो जाए, यह अकेली
ही उससे भिड़ने को तैयार हो जाएगी। बिल्ली को देखते ही शोर मचा देती
है। घरों की मुँडेर पर बैठकर रसोईघर में ताक-झाँक की और जो मिला, बड़ी
सतर्कता से उठाकर भाग खड़ी होती हे। बोली इसकी कौए-सी कर्कश तो नहीं
१२ सहायक वाचन - ४
आनंद आता है। वह आँख बंदकर आराम से खड़ी रहती है। यह बड़े प्यार , |
से उसके शरीर पर से कीड़ों को खाती रहती है। भैंस आराम से पैर फैलाकर ।
लेट जाती है। तब यह उसके खुरों और थनों में छिपे कौड़ों की सफाई कर
देती है। कहावत प्रसिद्ध है कि खुशामद से तो गुरसल भैंस को भी लिटा
देती है।
मुर्गी :
मुर्गी-मुर्गा भी पालतू घरेलू चिड़ियाँ हैं। मुर्गा भोर होने से बहुत पहले
ही जाग जाता है तथा 'कुकड़ूँ-कूं' बाँग देकर बस्ती भर को भोर होने की सूचना
दे देता है।
मुर्गा साधारणतया सफेद, लाल और काले रंग का होता है। सिर पर
शानदार लाल कलंगी होती है। चलता है तो लगता है, कोई पहलवान अकड़
कर चल रहा है। वैसे होता भी यह बहादुर है। मुर्गियाँ और उसके चूजे
बेखटके दाना-दुनका ओर कीड़े-मकोड़े चुगते रहते हैं तथा मुर्गा उनकी
रखवाली करता रहता है। खुटका होते ही उन्हें सावधान कर देता है तथा स्वयं
ताल ठोककर शत्रु का सामना करने खड़ा हो जाता है। चोंच और पंजों का
झपट्टा मारकर यह विपक्षी को भागने पर मजबूर कर देता है।
घरेलू और पालतू पक्षी ४ श्र
मुर्गा लड़ाकू पक्षी .है। दो मुर्गे जब लड़ते हे तो बड़े दाँव-पेच के
साथ लड़ते हैं। लड़ते समय चोंच-पंजों का प्रयोग करते हैं। कुछ लोग
इन्हें केवल इसी शौक के लिए पालते हैं।-वे अपने पटठों को तगड़ी खुराक
खिलाते हैं और शर्त बद-बदकर लड़ाते हें। वैसे लोग मुर्गी-मुर्गा को अंडों
के लिए ही पालते हें।
ज्क्र
कठफोड़वा :
कठफोड़वा को तो तुमने देखा ही होगा। पक्षी तो यह छोटा-सा ही होता है
परंतु इसकी चोंच लंबी और मजबूत होती है। इसका सिर ललौहाँ होता है और
उस पर लाल कलंगी-सी होती है। इसका पेट और छाती चितकबरी होती हे।
पीठ पर सुनहरी धारियाँ होती हैं तथा दुम काली होती है।
कठफोड़वा का प्रमुख भोजन है-पेड़ों की छाल और घास में छिपे
कीड़े-मकोड़े। पेड़ों की छाल में छिपे कोड़ों को निकालने के लिए यह
उसमें छेद कर देता है। बस्तियों में छप्परों के बाँस में या कूड़े के ढेर में
छिपे कीड़ों की तलाश में लगा रहता हे।
स्वभाव, भोजन आदि के विषय में ज्ञात करो। ये पक्षी हमारे रात-दिन के
साथी है।
अभ्यास
ड० 4 -
कु
(५) गुरसल के स्वभाव का वर्णन करो।
(६) “हाँ या ना! में उत्तर दो :--
(क) गौरौया भारत में सभी जगह मिलती है।
(ख) मादा पंडुक के गले में काली कंठी होती है।
(ग) मुर्गा लड़ने वाला पक्षी नहीं है।
(घ) पक्षी हमारे रात-दिन के साथी हैं।
तोता तो तुम सबने देखा ही होगा। यह सुंदर पक्षी है। यह मनुष्य की बोली
सुंदर और अनोखे पक्षी १५
को हू-ब-ह् नकल कर सकता हे। इसकी कई जातियाँ हैं पर एक विज्ेष
जाति
का तोता सब जगह मिलता हे। इसके शरीर का रंग हरा, चोंच का
रंग लाल
उसे का रंग कुछ पीलापन लिए हुए और ठोड़ी पर काला
निशान होता है
थानों किसी ने डिठोना लगा दिया हो। नर के गले में ललोही कठी होगा हे
इसको चोंच नुकीली होती है।
मोर :
यों तो ग्रायः सभी पक्षी सुंदर और मोहक लगते हैं, पर अपने जरीर के
आकर्षक और चमकीले रंगों के कारण मोर बहुत ही सुंदर लगता है। लगता हे
कि किसी कुशल चित्रकार ने बड़ी कुशलता के साथ इसे सजाया है।
सुंदरता के कारण मोरकोराष्ट्रीय पक्षी माना गया है। यह प्रायः सारे देश
में पाया जाता है। प्राचीन इतिहास में भी इसका उल्लेख मिलता है। इसका
सुडौल अंग, चमकीले नीले पर नीली मखमली गरदन, सिर पर नीली
१६ सहायक वाचन - ४
चमकती कलँगी और नीलम और फिरोजा जडी लंबी भारी पूँछ, भोली और
कजरारी आँखे - थी संदरता देखने योग्य है। वर्षा ऋतु में जब काले- काले
बीटला 385 47 340 आसमान में छा जाते ४ तो उन्हें देखकर यह प्त्त्न
हो उठता है। पुरविया बयार इसको मस्त बना देती है। बादल गड़गड़ाये
कि इसने कूकना शुरु किया। तब यह थिरक-थिरक कर नाचने लगता हे
नाचते समय यह अपने पंखों को ऊपर उठाकर फैला लेता है ।पंखों के सिरों
पर बने चँदौवे चमक उठते हें। बाएँ से दाएँ, दाएँ से बाएँ मोर नाचता ही
की
रहता है। मोर को नाचता देख मोरनियाँ उसके इर्द-गिर्द आ खड़ी होती हें
मानो मोर का उत्साह बढ़ा रही हों।
किसी अन्य नर-मादा पक्षी में इतना अंतर नहीं होता जितना मोर और
मोरनी में। मोरनी मोर से छोटी तो होती ही है, उसका रंग भी मोर जैसा नहीं
होता। न उसके लंबी पछ होती है और न उसके चमकीले पंख होते हैं। वह
नाचती भी नहीं है। मोरनी अपने बच्चों का लालन-पालन बड़े प्यार से करती
0
654
बलयुल
चहकते फिरना बहुत पसंद है। विशेष कर, गर्मियों में प्रातःकाल जब
फुलवारियों में अपेक्षाकृत तरावट होती है, कलियाँ चटक रही होती हैं, बुलवुलें
आर फूलों का रस पीती हैं, छोटे छोटे भुनगों, कीट ६+गों का कलेवा करती
और मौज में आकर चहकती हैं। लगता है कोई मीठे स्वर से सीटी बजा रहा हो।
९
वस, तब इन्हें सुनते रहो, पर यंदि तुपने इनकी ओर देख लिया तो फुर्र से
।
$।
ड़ जाएगी।
थ्प
(३
जो लोग बुलबुल
पहले तक लोग
कंधे पर बैठ जाएगी, अंगूठे पर बैठ जाएगी। कुछ समय
वुलबुल को तगड़ी
बुलवुलों को लड़ाने के लिए भी पालते थे। लड़ाकू
बनती थी ।
खुराक दी जाती थी ॥तब इनकी दिलेरी, फुर्ती और झपट देखते ही
कोयल ४
कोयल चालाकी में कौए के भी कान काटती है। वह चुपके से अपने अंडों
को कोए के घोंसले में रख देती है। कोए को क्या पता कि ये अंडे उसके
नहीं हैं। कौआ-कौवी इन पराये अंडों को बड़े प्यार से सेते हैं। जब अंडों
से बच्चे निकलते हैं तो नरम-नरम खाना खिलाकर उन्हें पालते हैं-पर
बच्चे आखिर हैं तो कोयल के ही न ! पंख निकलते ही कोयल के
स्वर को पहचानकर अपने वर्ग में मिल जाते हें।
- बया :
यों तो प्रत्येक पक्षी में कोई न कोई विशेषता पाई जाती है, पर एक पक्षी
ऐसा है, जो ऐसा अनोखा घोंसला बनाता है, जिसे देखकर तुम आइचर्य
चकित रह जाओगे। यह हे एक नन््हा-सा पक्षी बया। बया कद में गोरेया जेसा
होता है। नर और मादा के रंग-रूप में काफी भिन्नता होती है। वर्षाकाल में नर
का रंग बदल जाता है। वैसे इसका रंग पीला तथा कुछ-कुछ भूरा होता है तथा
जशरौर पर काली धारियाँ भी होती हें।
बया कारीगर पक्षी है। बबूल, बेरी अथवा ताड़ के पेड़ों में लगे हुए
बया के घोंसले तुमने अवश्य देखे होंगे। तेज से तेज हवा में भी ये सुरक्षित
सुंदर और अनोखे पक्षी १९
लटके रहते हैं। एक ही पेड़ पर कई बया अपने घोंसले बना लेते हैं। ये
इसके
आपस में खूब लड़ते-झाड़ते हैं। बया बुद्धिमान पक्षी है, यह तो
घोंसले को देखने से पता चलता है। पालतू बया तरह-तरह के करतब सीख
लेता है तथा अपने मालिक से बड़ी जल्दी हिल-मिल जाता है।
बया अपना घोंसला परिश्रमपूर्वक बड़ी कुशलता के साथ बनाता है।
पहले नर सरपत या काँस आदि को चीर-चीरकर लंबे-लंबे रेशे तैयार कर
लेता है। फिर इन्हें प्रायः किसी बबूल, खेजड़ा, बेरी या ताड़ जैसे कँंटीले
वृक्ष की मज़बूत टहनी में बाँधता है। फिर वह ऐसे बहुत-से रेशे ला-लाकर
घोंसले का बाहरी ढाँचा तैयार करता है। ढाँचा तैयार होने पर कोई मादा उसे
देखकर नर के साथ जोड़ा बनाने को तैयार हो जाती है। फिर दोनों मिलकर
घोंसला बनाते हैं। लगता है किसी जुलाहे ने बारीक तारों को कुशलता से
बुनकर इसे तैयार किया हो। इस घोंसले का दरवाजा नीचे की ओर होता है।
कुछ आगे चलकर इसमें एक गोल कोठरी-सी होती है इसी में मादा अपने
अंडे देती है। तेज़ हवा में घोंसला उलट न जाए इसलिए वज़न के लिए
उसमें मिट्टी डाल दी जाती हे। यह इस पक्षी की बुद्धिमानी, परिश्रम, लगन
और दूरदर्शिता का जीता-जागता प्रमाण है।
दर्जिन £
ल्ऑि-+++++5
गया। उसने पत्तों को सीने में जालों के धागों का ही प्रयोग कर डाला।
दर्जिन
के घोंसले का मुँह प्रायः ऊपर को ही होता है। परंतु यह आवश्यक नहीं। यह
पत्तों की बनावट, हवा, रोशनी का रुख आदि कई बातों पर निर्भर है कि
मुँह
किधर रखा जाए ।
देखा तुमने, केसे-केसे पक्षी हें हमारे देज्ञ में। तुम्हारी बोली की नकल
करने बाला तोता, सुरीला गीत गाने वाली कोयल और बुलबुल, मनोहर नृत्य
"करने वाला मोर, कारीगरी में जुलाहे और दर्जी को भी मात करने वाली बया
और दर्जिन, सभी तो अद्भुत पक्षी हें।
शिकारी पक्षी ञ
अभ्यास
(१) सही अथवा गलत लिखो :--
(क) मोर साँप को भी खा जाता है।
(ख) तोता घोंसला नहीं बनाता।
(ग) कोयल अगस्त से फरवरी तक खूब गाती है।
(घ) दर्जिन चिड़िया अपना घोंसला सीकर तैयार करती है।
मोर को राष्ट्रीय पक्षी क्यों माना गया है ?
मोर का भोजन क्या है ?
मोर-मोरनी की बनावट पें क्या अंतर होता है ?
बया अपना घोंसला किस प्रकार बनाती है ?
इन पक्षियों के रूप, रंग और उनकी आदतों पर पाँच-पाँच वाक्य
लिखो :--
बुलबुल, कोयल, बया, दर्जिन।
४. शिकारी पक्षी
कुछ पक्षी केवल शाकाहारी होते हैं, कुछ केवल मांसाहारी और कुछ दोनों।
केवल मांसाहारी पक्षियों को अपना शिकार भी जुटाना पड़ता है और मरे हुए
ढोरों के मांस पर भी गुजारा करना पड़ता हे ।इन पक्षियों की डील-डौल,
वनावट-विशेषतया चोंच भी, अन्य पक्षियों से भिन्न होती है। इनके
पंख
मजबूत होते हैं ताकि ऊँचे उड़ सकें और देर तथा दूर तक उ ड़ सकें। चोंच
२२ सहायक वाचन - ४
सभी की नुकीली होती है और गर्दन लचीली । इनमें उल्लू, चील, गिदूध बाज
प्रसिद्ध हें ।
उल्लू :
हो सकता है तुमने उल्लू देखा न हो, पर उसका नाम ज़रूर सुना होगा।
बहुत से बच्चों ने रात के सन्नाटे में उसकी चीखती आवाज़ भी जरूर सुनी
होगी । यह निशाचर पक्षी हे, केवल रात को ही बाहर निकलता हे, दिन में ....
किसी एकांत वृक्ष के या एकांत खंडहर की दीवार के किसी कोटर में या वृक्षों
के झुरमुट में छिपा पड़ा रहता है ।
स्थान-भेद से उल्लू कई जाति के होते है। आमतौर पर इसके पंख
बादामी रंग के होते हें तथा उन पर सफेद छीटे पड़े होते हैं। आँखों पीली,
बड़ी, गोल और चमकीली होती हैं तथा बगल में न होकर हमारी आँखों की
तरह सामने होती हैं। गर्दन इसकी बहुत लचीली होती है, जिससे यह आसानी
से सिर को पीछे की ओर घुमा सकता है। इसका सिर बिल्ली की तरह गोल
होता है। इसके पंजे बड़े मज़बूत और नुकीले होते हैं। चोंच भी मज़बूत
और नुकीली होती है ।
उल्लू स्वभाव से एकांतप्रिय है। यह किसी से मिलना-जुलना पसंद
नहीं करता। यदि तुम इसे कहीं बेठा देख भी लो तो इसे तुमसे कोई सरोकार
नहीं। इसकी ओर देखेंगे तो यह दूसरी ओर मुँह कर लेगा। ज्यादा छे ड़खानी
की तो तुम्हें भयंकर दृष्टि से देखता उड़कर चल देगा ।
उल्लू शिकारी पक्षी है। चूहे, गिरगिट, छिपकली, छछूँदर, मेंढक
आदि का तो यह काल है। वृक्षों पप आराम से निवास करते पक्षियों पर भी
हमला कर देता है। कभी खरगोश आदि के छोटे-छोटे बच्चों को भी नुकीले
पंजों में दाबकर उड़ जाता है। साँप का तो यह जानी दुहुमन है। रात में इसे
शिकारी पक्षी २३
शिकार को भी खूब सुविधा रहती है। जैसे ही अँधेरे में इसने डिकार की
आहट पाई कि यह धीरे से उड़ता हुआ उसके पास जा पहुँचता
है और
शंपट्टा मारकर उसे दबोच लेता है।
चूहों, साँपों का नाश करके उल्लू हमारी कितनी सहायता करता है। फिर
भी हम इसे अशुभ पक्षी पानते हैं, यह उचित बात नहीं।
चील है
चील से तो तुम सभी परिचित हों । इन्हें आकाश में मँडराते देखने में
तड़ा पज़ा आता है। कभी पंखों को तेज़ी से मारती आकाश की छँदाइयों
में
खो जाती हैं तो कभी पंख मारना बंद करके नीचे की ओर झपटती
हैं। कभी एक
ही जगह पंख मारती हुईं हेलीकॉप्टर की तरह उसी स्थान पर खड़ी रहती
हैं।
लगता है कोई कुशल हवाबाज़ अपने करतब दिखा रहा हो। चील उड़ती
तो
आसमान में अवश्य है परंतु उसकी नज़र रहती है धरती पर। जहाँ उसने
खाने
की कोई चीज देखी कि उसने उस पर झपटूटा मारा। चूहा, मछली, गिरगिट,
में ढक, छछूदर, साँप इसके प्रिय भोजन हें।
साधारणतया चील दो रंगों की होती है। इसके पंख बड़े
मज़बूत होते
हैं। उड़ते समय पंख फैल जाते हैं तो उनके सिरों पर उंगली जैसी
झिल्लियाँ साफ दिखाई देती हैं। इससे चील को हवा में तैरने
में बड़ी मदद
मिलती है। चील के पंजे नुकीले होते हैं, चोंच भी नुकीली
होती है। शिकार
को यह पंजों में पकड़ती है।
चील अपना घोंसला किसी ऊँचे स्थान पर बनाती है। गाँवों में तो बस्ती के
पास के ही किसी ऊँचे पेड़ पर घोंसला बना लेती है। परंतु शहरों
में बीच
बस्ती के किसी पेड़ को घोंसले के लिए चुन लेती है क्योंकि वहाँ उसे
२४ सहायक वाचन - ४
मछली और गोइत के टुकड़े तथा अन्य खादूय पदार्थ सुगमता से मिल जाते
|
गिद्ध :
बच्चों ! गिदध तो तुमने देखा ही होगा। यह बहुत बड़ा पक्षी होता है,
इससे बड़ा और ऊँचा या तो सारस होता है या फिर शुतुरमुर्ग । यह लगभग
आधा मीटर का होता है। इसका रंग साधारणतया मटमैला, काला या भूरा, गर्दन
लंबी, चोंच कठोर, नुकीली और मजबूत और डेैने बड़े होते हैं। यह
गिद्ध
शिकारी पक्षी २५
ऊँचे-ऊँचे वृक्षों पर घोंसला-बनाता है और आसपास के स्थान को बीट से गंदा
कर देता है। एकांत ऊजड़ खंडहर भी इसे प्रिय
गिदूध बहुत निडर और ढीठ होता है। यह बहुत ऊँचाई तक और देर तक
उड़ सकता है। टॉष्टि इसकी बहुत पैनी होती है! ऊपर उड़ता हआ परे
जानवर को देखते ही नीचे उतर आता है और अपने साथियों के साथ
मिलजुलकर उसे चट कर जाता है। रेगिस्तान में काफिलों के साथ कई
दिनों तक उड़ता रहेगा क्योंकि इसे पता रहता है कि काफिले का अमुक
ऊंट ज्यादा दिन नहीं चल सकता |
बस्तियों के मरे ढोरों को चटकर गंदगी दूर करने में गिदूध से बढ़कर
कऔर कोई
ा सहायक नहीं ।यदि
क यह न हो तो ा
इनकी सफाई की समस्या
खड़ी हो जाए । स्वयं गंदगी खाकर हमारे वातावरण वी सफाई के लिए हमें
रिदूध का बहुत कृतज्ञ होना चाहिए ।
बाज :
शिकारी पक्षियों में बाज का जवाब नहीं । बाज कोए से कुछ बड़ा
तेज-तर्राट, जोशीला, जवाँमर्द, फुर्तीला और खूँखार पक्षी होता है। इसका.
रंग
भूरा और चिकत्तेदार होता है। आँखें काली और तेज, पंख म॑ जबूत और
धारदार, चोंच नुकोली और कठोर तथा पंजे भी नुकीले और मजबूत होते हैं।
लगता है कि कसे बदन का कोई पहलवान हो । ये कई किस्म के होते है
और कई नामों से जाने जाते हें।
वाज विशुद्ध शिकारी पक्षी है। गौरैया, बुलबुल जैसे पक्षियों से लेकर
कबूतर, तीतर तोता, बटेर जैसे पक्षियों को अपने नुकीले पंजों में दाबकर
उड़ जाता है। बेचारा पक्षी चीं-चीं करता रह जाता है। चूहे,
छिपकली भी
र्६ सहायक वाचन -> ४
५. जल के पक्षी
कुछ पक्षी केवल थलचर हैं और कुछ थलचर और जलचर दोनों। जलचर
पक्षी थल पर भी चलते हैं और भोजन की सुविधा के लिए जल में भी तैरते
है तथा आकाञ में तो यह उड़ते ही हैं। हमारे देश में नाना प्रकार के जलचर
पक्षी मिलते हैं। इनमें प्रमुख हैं बतख, बगुला, सारस और हंस ।
बतख :;
काली और सफेद भी होती हैं। इसकी गर्दन लंबी होती है ताकि ज़मीन पर पानी
में झुककर भोजन की तलाश कर सके। चोंच इसकी चौड़ी, चिपटी और कठोर
होती है। बतख को जल प्रिय है। इसके पंख चिकने होते हें ताकि पानी में
तैरने पर पानी न तो भिगा सके और न ही उन पर टिक सके। पैरों की
उँगुलियाँ एक पतली झिल्ली से मिली हुई होती हैं जिससे इसे तैरने में
पर्याप्त सुविधा होती है। जल में रहने वाले घोंघे, झींगे, कीड़े, मछलियाँ
इसके प्रिय भोजन हैं। पालतू बतख उबले झींगे, रोटी, चना, मटर और पालक
जैसी पत्तेदार सब्जियाँ भी खा लेती हे।
जीत प्रदेशों की जंगली बतखें शीत ऋतु प्रारंभ होते ही गर्म स्थानों की
ओर चल देती हैं। ये रातभर उड़ती रहती हैं। दिन में किसी सरोवर या
जलाशय के किनारे विश्राम करती। हमारे देश में भी झुंड की झुंड बतखें आ
जाती हैं। उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं मध्यप्रदेश की झीलें सर्दियों में इन
बतखों के कोलाहल से गूँज उठती हैं। आसपास गेहूँ, जी, धान के खेत,
स्वच्छ पानी में तैरसे के मजे, समशीतोष्ण मौसम-बतख को ओर भला क्या
चाहिए !
बगुला :
वगुला ऐसा जल-पक्षी है, जिसे जल में तैरने से कोई सरोकार नहीं। इसे
तो जल-जीवों से सरोकार है इसलिए रात में किसी पेड़ पर अपनी
भाई-विरादरी के साथ रहता है, दिन में जलाशय के किनारे धूनी रमा लेता
है। मछली इसका प्रिय भोजन है पर वह मिलती बड़ी तपस्या के वाद है। यह
छिछले जल में घंटों एक ही मुद्रा में खड़ा रहेगा। ज्योंही कोई मछली दिखाई
दी कि इसने गप से चोंच में गपकी। इसके लिए प्रकृति ने इसे लंबी टाँगें
तो दी है पर साथ ही गर्दन और चोंच भी लंबी दी है। मछली के अलावा यह
मेंढक और केंकड़े को भी नहीं छो ड़ता।
बगुला
साधारण बगुला सफेद और स्लेटी रंग का होता है। पैर और चोंच पीलापन
लिए हुए होते हैं।इसके पंजों में छोटी-छोटी अँगुलियाँ होती हैं। यह इनसे
कभी-कभी अपने सिर में कंघी कर लिया करता है। यह प्रायः आधा मीटर
लंबा होता है। '
_बगुले के स्वभाव की विशेषता है इसका असीम धैर्य। यह एक ही स्थान
पर मछली की प्रतीक्षा करते-करते थकता नहीं। बक-ध्यान प्रसिद्ध है। इससे
लगृता है यह शांत प्रकृति का पक्षी होगा। परंतु रात में बंगुले जिस पेड़ पर
बसेरा करते है वहाँ ऐसा शोर करते हैं कि इनको सारी भगताई की पोल खुल.
जाती है। लगता है ये जरा-जरा-स्री बात पर रात भर लड़ते-झगड़ते रहते:
हैं| सुबह होते ही ये विभिन्न जलाशयों की ओर उड़ जाते हैं। रात को
साथ रहते हैं पर भोजन को तलाश अकेले-अकेले करते हें।.
३० सहायक वाचन - ४
सारस :
सारस बगुले से: बड़ा; भारी और लंबा होता है। इसका कद लगभग
डेढ़ मीटर होता है। बगुले, की तरह यह भी जलचारी पक्षी नहीं है, केवल
भोजन आदि की सुविधा के लिए जलाञयों, नदियों, झीलों के किनारे »
दिखाई देता है।
सासस प्रायः स्लेटी रंग का होता है। इसकी टाँगें, गर्दन, चोंच लंबी होती
है। दूर र यह सफेद दिखाई देता है। सारस को मौसम का यथेष्ट ज्ञान होता
सारस
जल के पक्षी ३१
हे। उसी के अनुसार मादा अंडा देने का स्थान चुनी है। नर और मादा में बहुत
प्रेम होता है। ये एक दूसरे के बिना नहीं रहते और दुर्भाग्य से एक का
शिकार कर लिया जाए तो दूसरा वहीं खड़ा-खड़ा विलाप करने लगता
है। यदि सारस को पाल लिया जाय तो यह बड़ा सतर्क पहरेदार सिद्ध हो
सकता हे ।
सारस जलाशयों के किनारे मिलने वाले कौड़े-मकोड़े खाता रहता
है। इनके अतिरिक्त खेत में बोए गए बीजों को भी खा जाता है। सारस निडर
तथा ढीठ पक्षी है। पास जाकर ही इसे उड़ाया जा सकता है। उड़ते समय
कर्कश आवाज में चीखता है। पहले आगे की ओर दौड़ता है फिर पंखों को
खोलकर धीरे-धीरे ऊँचा उड़ता है । यह ज्यादा ऊँचाई तक नहीं उड़ता ।
टिट॒हरी :
इसे सुरखाव भी कहते हें। यह बड़ा कुशल तैराक पक्षी है। इसका रंग
भूरा और चमकीला होता है। दूर से काला-सा धब्बा तैरता हुआ दिखाई देता
शा
है। पीठ का पिछला भाग और दुम तो काली होती ही हैं, चोंच भी काली. होती
है। गर्दन लंबी और लचीली होती हैं। इससे पानी में डुबकी लगाकर मछली,
घोंधे आदि को पकड़ने में इसे सुगमता होती है। इसके पंख बड़े मुलायम
और चिकने होते हैं, तभी पानी में डूबने पर भी भीगते नहीं।
चकवा पानी कः पक्षी है। हाँ, उड़ता यह खूब है। बरसात के बाद जब
तालाब पानी से भरे रहते हें तब झुंड-के झुंड चकवा-चकवी उनमें तैरते रहते
हें। नर और मादा मे बड़ा प्रेम होता है। कहते हैं रात मे नर और मादा एक
दूसरे से अलग दूर किनारों पर चले जाते हें, परंतु इसमें कितनी सचाई हे,
_ यह अभी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता ।
शिकारी इसके परों और गोइत के लिए इसका शिकार करते हेैं। बहुत
आसान है इसका शिकार। छरेंदार बंदूक से छर्रे छूटते ही जान बचाने के
लिए उड़ जाते हें पर उनमें से कोई बेचारे घायल हो जाने पर दूर जाकर
प्राण तोड़ देते हैं। तब शिकारी को आसानी से पता चल जाता है कि किसे
छर्रा लगा है।
हंस :
जल के पक्षियों का राजा है हंस। हंस बहुत प्राचीन एवं प्रसिद्ध पक्षी हे।
गर्मियों में यह हिमालय की झीलों में बिहार करता है तो सर्दियों में यह
जल के पक्षी ३३
दक्षिण की झीलों में आ जाता हे।
हंस का रंग सफेद और गर्दन पाव मीटर से थोड़ी लंबी होती हे। पैरों का
और चोंच का रंग पीला होता है। इसके पंख मुलायम, चिकने और मजबूत
होते हैं। यह जितना कुशल तैराक है उतना ही कुशल उड़ाकू भी। एक ही
छड़ान में सैकड़ों मील उड़ सकना इसके लिए साधारण बात हे।
हंस बहुत सुंदर पक्षी है। पानी में तेरता हुआ यह बड़ा लुभावना लगता हे।
इसे कमल बहुत प्रिय है। पानी में तैरता हुआ यह कमल बीजों को खाता रहता
हे।
बतंख, बगुला, सारस,हंस आदि के. अलावा और भी जल-पक्षी होते हें।
जलाशय ही इन सबको आहार देते हैं, इसलिए इन्हें उनके पास रहने-बसने में
सुविधा होती है। जल-कींटों को खाकर ये जल को दूषित होने से बचाते
हैं। इसके लिए हम इन पक्षियों के कृतज्ञ हें।
अभ्यास
(१) ज॑लचर पक्षी किसे कहते हें?
(२) बतख क्या-क्या खाती है ?
(३) बगुले की कोई पाँच विशेषताएँ लिखो ।
(४) सारस की बनावट लिखो ।
(५) सारस और बगुले की बनावट और स्वभाव में कया अंतर है ?
' (६) जल के पक्षियों का राजा किसे माना जाता है ?
३४ सहायक वाचन -> ४
६. अन्य पक्षी
पिछले अध्यायों में तुबने कुछ परिचित पक्षियों के बारे में पढ़ा । इनके
अतिरिक्त और भी पक्षी हैं जिन्हें तुम जानते होगे अथबा जिनका तुणने नाम
सुना होगा । आओ, इनमें से कुछ के बारे में पढ़ें,
पप्ीहा :
बर्षा ऋतु में 'पौड-पौड' कौ आवाज करते हुए जिस चिड़िया को तुमने
बोलते सुना होगा, वह है पपीहा । कहते हें कि इसके गले में एक छेद होता
है। इसलिए यह नदी या सरोवर के पानी से अपनी प्यास नहीं बुझा पाता।
इसकी प्यास स्वाति नक्षत्र में बरसने वाले वर्षा जल से बुझती है, परंतु यह
बात कहाँ तक सच है, यह जानना कठिन है। हाँ, इतनी बात अवश्य है कि इसे
केवल वर्षा ऋतु में ही बोलते सुना गया है ।
पपीहे का कद कोयल से कुछ कम होता है। दुम इसकी लंबी होती हे।
इसकी लंबाई लगभग एक फुट की होती हे। रंग इसका होता है सफेद और पंख
अन्य पक्षी उप
होते हैं काले। दुम के आसपास सफेद काली धारियाँ होती हैं। आंखें भूरे रंग
की होती हैं। मद
कोयल की भाँति पपीहा भी गायक पक्षी है। कोयल बसंत में गाती है तो यह
वर्षा ऋतु में। कोयल की भाँति पपीहा भी मस्त जीव है तथा अपने अंडों को
स्वयं न सेकर चरखी पक्षी के घोंसले में रख आता है। इसे इसकी बुद्धिमानी
कहें या धूर्तता कि अंडे देने के बाद उन्हें सेने का कष्ट नहीं उठाता ।
हक
तीतर बड़ा लड़ाकू होता है। लोग इन्हें लड़ने के लिए पालते हैं। जब
ये लड़ाकू तीतर अखाड़े में उतरते हैं तो इनके दाँव-पेंच देखने योग्य होते
हैं। उछल-उछलकर, झपट-झपटकर एक-दूसरे को दबोचने की पूरी कोशिश
करते हैं। हट-हटकर पैरों से, चोंच से एक-दूसरे पर वार करते हैं। एक
बार जिसका दम उखड़ा कि वह अखाड़ा छोड़कर भाग *खड़ा होता है।
विजयी तीतर उसका पीछा करता है।
चकोर : कः
तीतर की तरह चकोर भी अधिक दूर नहीं उड़ सकंता । हाँ, धरती पर
बड़ी तेजी से चंलता हे। अंडे भी धरती पंर-किसी सुरक्षित झाड़ी की
आड़ में या पत्थरों की दरारों में देता है। अंडों की सुरक्षा के लिए उनके चारों
ओर घास-फूस डाल देता है ।
नीलकंठ :
नीलकंठ क््ज् द् ही नीलकंठ है। सिर और कंठ इसका भूरा एवं कत्थई
होता है। परंतु पंख बेहद नीले और चमकीले होते हैं। इसका दर्शन शुभ माना
जाता है, विशेषकर दशहरे के दिन । नीलकंठ देखने में तो सुंदर पक्षी है,
परंतु है यह गर्म मिजाज और झगड़ालू। बोलता है तो लगता है कर्कश
आंवाज में झगड़ रहा हो । कीड़े-मकोड़ों के लिए छीना-झपटी में ये
ँ
रद : सहायक वाचन - ४
आपस में लड़ते-झगड़ते भी खूब हैं ।
बैठा रहता
साधारणतया यह पेड़ों की टहनियों पर या बिजली के तारों पर
है। लगता है कि कोई शांत स्वभाव का पक्षी बैठा है परंतु निगाहें इसको चारों
ओर दौड़ती रहती हैं। जहाँ कोई कीड़ा दिखाई दिया फिर देखिए इसकी
फुर्ती। बिजली की तरह उस पर टूट पड़ता है और उसे खाकर नए शिकार
& क्
की तलाश में फिर वहीं आ बैठता है ।
वनमुर्ग :
सिर पर कलँगी, गले के दोनों ओर लटकती थैलियाँ, गोलाकार और
सुडौल लंबे पंख, लाल अथवा चमकीला नारंगी रंग-यह है वनमुर्ग का रूप
काँटे
जो इस देश के प्रायः सभी भागों में पाया जाता है। नर के पाँव पर उभरे
होते हैं। विपक्षी से लड़ने में ये कॉँटे इसकी बड़ी मदद करते हैं।
वनमुर्ग छोटे-छोटे झुंडों में दिखाई देते हैं। एक-एक नर की अनेक पादाएँ
होती हैं। इसे स्वतंत्र जीवन प्रिय है। यही कारण हे कि अगर इसे पालतू बना
जंगल
लिया जाए और इसकी खुब आवभगत की जाए तो भी यह मौका पाकर
की ओर दौड़ेगा और एक बार गया सो गया ।
वनमुर्ग पहाड़ों का पक्षी है। पहाड़ों में ऐसी जगह जहाँ पानी की सुविधा
हो और वृक्ष भी हों, वनमुर्ग को बहुत पसंद है। खतरे का आभास पाते ही यह
भी
उड़कर पेड़ पर जा बैठता है। यह स्वभावतः एकांतग्रिय पक्षी है। अंडे
ऐसी जगह देता है जहाँ किसी के पहुँचने की संभावना न हो।
अन्य पक्षी हर
पक्षी तो सारे संसार में मिलते हें। सारा आकाश इनका हे। जहाँ
दाने-पानी की सुविधा हो,जलवायु अनुकूल हो, खतरा कम हो, ये वहीं जा
बसते हैं। ठंडे देल्ञों में कुछ पक्षी तो वर्ष भर वहीं बने रहते हें, परंतु कुछ ऐसे
हैं जो वहाँ की भीषण सर्दी सहन नहीं कर सकते। इसलिए सर्दियाँ शुरू होते
ही गर्म स्थानों की ओर चल देते हैं। भारत इनका प्रिय प्रवांस-स्थान है। यहाँ
की सर्दियों में भी मौसम अच्छा रहता है। चमकीली धूप 7 ऋलती हे।
छटाने-पानी को भी सुविधा है तथा शिकार का खतरा भी अपेक्ष कृत कम हे।
इसलिए सर्दियों में शीत प्रदेशों के हजारों-लाखों पक्षी यहाँ आ :आते हैं। तब
उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, उड़ीम और दक्षिण
भारंत,की झीलें इन पक्षियों का अस्थायी निवास बन जाती हैं। यह ज्ञात करने
के लिए कि यह झुंड गत वर्ष आया था, उनके पैरों में छलल्ले डाल दिए जाते
है। सर्दियाँ बिताने के बाद ये अपने स्थायी निवास की ओर चले जाते हें।
अगली बार जब ये आते हैं तो इन्हें पहचान लिया जाता है।
पक्षियों का निरीक्षण : |
कक
पक्षियों के बारे में पुस्तकों तथा पत्र-पत्रिकाओं से जानकारी तो बहुत
प्राप्त हो सकती है किन्तु उनका नियमित रूप से निरीक्षण करने का आनंद
और ही है। तुम्हारे घर की फुलवारी में, आसपास पेड़ों पर, पार्को में बस्ती
से बाहर उदयानों में तो ये निहिचत रूप से मिलते ही हैं। इन्हें देखने का
सबसे अच्छा समय प्रातःकाल या संध्याकाल का है। दोपहरी में ये विश्राम
करते हैं। प्रातःकाल अपने आहार की खोज पें निकलते हैं। कुछ
बाग-बगीचों में फूलों को नरम-नरम पंखुड़ियों में छिपे भुनगों का कलेवा
करते हैं, फूलों की नरम-नरम पंखुड़ियों को कुतर-कुतर कर खाते हैं, फ़ूलों
का रसपान करते हैं, छोटे-छोटे फल खाते हैं। कभी अकेले, कभी झुंड में,
कभी जोड़े में ये अपना आहार जुटाने में लग जाते हैं। इनका दिशाज्ञान
बहुत अद्भुत है। कहीं हों, अपनी जानी-पहचानी जगह पर आने में इन्हें
दिज्ञा-भ्रम नहीं होता ।
बड़ी जिम्मेदारी से उन्हें सेते हैं। बच्चों को चुगाते हैं। उन्हें उड़ना
सिखाकर अपना कर्त्तव्य पालन करते हैं। ये सारी बातें बारीकी से देखने को
हें।
पक्षियों का अपना-अपना स्वभाव होता है। कोई अपने समाज में रहना
पसंद करता है तो कोई अकेला। कोई झगड़ालू है तो कोई शांत प्रकृति का।
बिल्ली , कुत्ते आदि अपने शत्रुओं को देखकर वे कितने सावधान हो
जाते हैं, यह देखने वाली चीज है। उनसे मित्रता करने का प्रयत्न करोगे तो
तुम्हें पता चलेगा कि वे इस विषय में भी कितने सावधान हैं।
पक्षियों का निरीक्षण करके तुम भी उनका नाम, उनका भोजन, उनका अंडे
देने का समय, अंडों की संख्या तथा रंग और उनके स्वभाव को विशेषताओं
को अंकित कर सकते हो। तुम देखोगे कि थोड़ा प्रयत्त करने से तुम्हें
कितनी बहुमूल्य जानकारी व पक्षियों से मित्रता का आनंद प्राप्त हो सकता
हे।
अभ्यात्त
है
४४ सहायक वाचन - ४
अधिकतर मछलियाँ अंडे देती हैं, लेकिन कुछ मछलियाँ बच्चे भी देती
हैं। रोहू मछली एक बार में लाखों अंडे देती है। कुछ मछलियाँ साल में एकः
बार ही अंडे देती हैं ओर कुछ अनेक बार | इसके लिए मछलियाँ पानी में
दूर-दूर तक की यात्रा करती हैं। कुछ तो हजारों मील तक जाती हें।- कुछ
मछलियाँ तो समुद्र से नदियों में जाती हैं, जेसे हिलसा मछली।
मछलियाँ समूहचारी हैं। ये झुंड बनाकर रहती हैं। समुद्री मछलियों के
एक-एक झुंड में हजारों मछलियाँ होती हैं। ये समूह अपने स्थान बदलते
रहते हैं और जहाँ इनका भोजन होता है, वहीं पहुँच जाते हैं।
इन मछलियों में और जलः में रहने वाले अन्य जीवों में अपने ञात्रु से .
बचाव के भी बड़े विचित्र तरीके होते हैं। कुछ जीव तो शत्रु की टोह पाते
ही शरीर से नीली स्याही-सी छोड़ते हैं और जब तक पानी साफ हो, वह
दु्मन से दूर भाग जाते हैं। सकुची मछली दुहमन के पास आने पर दारीर से
बिजली का झटका (करेंट) मार कर अपना.बचाव करती है। कुछ जीव अपने
वातावरण से अपना रंग इस॑ तरह मिला लेते हैं कि दुश्मन पास आकर भी
इन्हें पहचान नहीं पाता। एक प्रकार के केंकड़े महाशय तो घोंघे . की खोल में
ही रहते हैं । बड़े विचित्र तरीके हैं इनके: बचाव के।
पानी में, चाहे तालाब हो या नदी, झील हो या समुद्र, सभी जगह अनेक
जीव मिलते हैं। भिन्न-भिन्न जगहों के जीवों के रूप भी भिन्न-भिन्न होते
| . हैं। पानी के. इन जीवों का मानव समाज से गहरा संबंध है। बहुत से जल के
जीवों को मानव समाज आहार के रूप में उपयोग करता है। आओ, हम तुम्हें
नदी और समुद्र में रहने वाले कुंछ जीव जंतुओं के बारे में मंनोरंजक बातें
. बताएँं। !
नदियों ओर तालाबों में रहने वाले जीव-जंतु हा
अभ्यास
(१) कोन-सी मछली
एक बार में लाखों अंडे देती है ?
(२) सिद्ध करों कि मछलियाँ समूहचारी हें।
(३) जल में रहने वाले जीवों में अपने शत्रु से बचाव के क्या
तरीके हैं ?
(४) हाँ या नहींमें उत्तरदो : -- ;
(कं) कछए मांसाहारी होते हें।
(ख)- रोह मछली मांसाहारी होती है।
(ग). हवेल मछली बिजली का झटका मारती है।
(घ) हिलसा मछली सागर में अंडे देती हे।
न
जिसको फटकारकर यह दुह्ममनों पर हमला करता हे। तैरने में भी पूँछ इसके
काम आती है।
मगर का मुख्य भोजन मछली और जल के जीव हैं। यह मौका पाने पर
आदमियों और जानवरों पर हमला करने में भी नहीं चूकता और उन्हें
पकड़कर साबूत निगल जाता है। |
वर्षाकाल शुरू होने पर मादा मगर अंडे देती है। पानी के किनारे लंबी
सुरंग जैसे बिल खोदकर मादा बीस या अधिक अंडे देती हे। अंडे
करीब-करीब चालीस दिन में फूट जाते हें, जिनमें से बच्चे निकलते हं।
घड़ियाल :
मगर के इन भाइयों को लंबी थूथनी के कारण अलग से ही पहचाना जा
सकता है। ये उत्तर भारत की सभी प्रमुख नदियों, जैसे गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र,
तथा इनकी सहायक नदियों में मिलते हें। इनका सँकरा जबड़ा मछलियों को
पकड़ने के लिए बहुत उपयुक्त है किन्तु पतला गला होने के कारण ये
समूचा आदमी अथवा जानवर नहीं निगल सकते। ये उन्हें पकड़कर अपनी
दुम से मारते हैं।
घड़ियाल के शरीर के ऊपर और नीचे चौखुटे या शल्क होते हें। ये
आपस में जुड़े होते हैं। पीठ के सेहरों के नीचे हडिडियाँ होती हैं, जिनसे
इनकी पीठ बहुत कड़ी और मजबूत रहती है। इनकी आँखों पर पारदर्शक
झिल्ली होती है। यह पानी में अपने आप सरककर आँखों पर आ जाती हे।
मगर को भाँति ये भी वर्षाकालके प्रारंभ में अंडे देते हें।
घड़ियाल के चमड़े से भी सुंदर जूते, सूटकेस, जाकिट आदि बनाए
जाते हैं।
कछुआ :
कछुए तो तुमने देखे होंगे। इनकी बहुत-सी जातियाँ हमारे देश में
मिलती हैं। नदी व॑ तालों के अलावा कछए. संमुद्र में भी मिलते हैं। नदियों
और तालाबों में रहनेवाले कछओं की अँगुलियों की बनावट बतखों की तरह
जालपाद होती है। समुद्री कछुओं के पैरों कौ बनावट मछलियों के पंखों की
तरह पतवार जैसी होती है।
कछुओं की पीठ का हिस्स बड़ी हड्डी के समान कड़े आवरण से
८ सहायक वाचन - ४
ढका रहता है। ये इतने मजबूत होते हैं कि इन पर तलवार, लाठी या बरछी
का जल्दी असर नहीं होता । पुराने जमाने में इनसे ढालें बनाई जाती थीं।
इनकी गर्दन लंबी और लचीली होती हे। जरूरत पड़ने पर ये गर्दन को खोल
के भीतर कर सकते हें। मुँह में दाँतों के स्थान पर कड़ी हड्डी की प्लेट-सी
होती है। इसी से ये मांस काट सकते हें। इनके पैर छोटे परंतु मजबूत होते
हैं। ये घिसट-घिसटकर चलते हें। तुमने कछुए और खरगोश की दौड़ की ७
कहानी तो सुनी होगी। कछुओं की दुम बहुत छोटी होती है।
कछए अंडे देते हैं। ये मेंढक-पछलियों को भाँति पानी में अंडे नहीं »
देते। मादा पानी के किनारे बालू में अंडे देकर उन्हें बालू से ही ढँक देती है।
मीठे पानी के कछुए प्रायः मांस-भक्षी होते हैं। कुछ कछए
मेंढक-मछलियों और कौड़े-मकोड़ों के अतिरिक्त मुरदे का पांस भी खाते
है। कभी-कभी ये आदमियों को भी काट लेते हैं। काटते ऐसे हें, जैसे
किसी तेज धार वाले चाकू से काठ हो। स्थल पर रहने वाले कछए प्रायः
शाकाहारी होते हैं। कहीं-कहीं आदमी कछओं को खाते भी हें।
समुद्री कछए बहुत भारी-भरकम होते हैं। कुछ तो कई-कई क्विटलों
तक के होते हैं। इनका भोजन मुख्यतः काई और जलके पौधे हें।
अन्य जीव
जोंक:
पानी के जीवों में जोंक का नाम तो तुमने सुना ही होगा। जोंकें शरीर से
चिपट जाती हैं और खून चूस लेती हैं। आदमियों के शरीर से गंदा खुन चूसने
. के काम के लिए पहले इनका उपयोग किया जाता था। ये साधारणतया चार
से दस सेंटीमीटर लंबी होती हैं, लेकिन खुन चूस-चुसकर मोटी और लबी हो.
.... जाती हें। इनके शरोर में हडिडयाँ नहीं होती .।
नदियों और तालाबों में रहने वाले जीव-जंतु ४९
पनिहा साँप :
तुमने शायद पनिहा साँप भी देखा हो। यह बहुत ही सीधा-सादा साँप है।
यह औसतन तीन चौथाई मीटर से एक मीटर लंबा होता है। यह जहरीला नहीं
होता। पानी में आसानी से साँस लेने के लिए इसके नथुनों के छेद ऊपर को
ओर रहते हैं। इसका प्रमुख भोजन मेंढक और मछलियाँ हैं। यह अन्य साँपों
की तरह अंडे नहीं देता, यह बच्चे जनता है ।
अभ्यास
रोह:
इसके शरीर पर छिलके या खपटे होते हैं। यह नदी की एक जानी-मानी
मछली है, जिसे लोग बड़ी ही स्वादिष्ट मछली -मानते हैं। यह तेजी से
बढ़ने वाली मछली है और एक साल की उम्र में ही डेढ़ किलो की हो जाती
है। ये मछलियाँ तालाबों में भी रह लेती हैं और अब सभी नदियों, झीलों और
तालाबों में पाई जाती हैं। इनका शरीर लाली लिए भूरा-सा और बगल व नीचे
की ओर चाँदी जेसे रंग का होता हे।
पढ़ीन :
ज्ोभा की मछलियाँ:
इसकी लंबी दुम के नीचे दो तेज काँटे होते . हैं। उनका रंग ऊपर गाढ़ा
सस्लेटी और नीचे सफेद होता है। इसकां मुख्य भोजन मछलियाँ, घोंघे और '
कछए आदि हैं। सकुची की एक बहिन के -गरीर में बिजली पैदा करने की
शक्ति होती है और यह अपने शत्रु को बिजली का धक्का देकर अपना बचाव
- करती है।
बाम :. «
यह देखने में साँप जैसी होती है। इसके दोनों गलफड़ों का.शिगाफ कटा
होता है। इसके शरीर पर खपटे नहीं होते। बाम प्रायः तीन फीट तक लंबी होती
है। इसी जांवन-लीला- बड़ी विचित्र है। यह अटलांटिक सागर में अंडे देती
है। अंडे देने के बाद मादा मर जाती है। उनसे निकले छोटे-छोटे बच्चे
लाखों की संख्या में प्रतिदिन ३-४ मील चलते हुए जब लगभग तीन हजार
मील की यात्रा कर लेते हें तब इनके ञारीर में परिवर्तन होता हे। ये इस समय
मीठे पानी में नदियों के मुँहाने से होकर नदियों के भीतर चले जाते हैं और
वहाँ जीवन के कुछ साल बिताते हैं। पाँच साल बाद यह रंग बदलते हैं और
फिर वापस नदियों से समुद्र की यात्रा करते हैं तथा .एक दिन फिर उसी
जगह पहुँच जाते हैं, जहाँ ये. पैदा हुए थे।
: - अभ्यास
कहते हें। परंतु इनका मछलियों से कोई संबंध नहीं होता। तारा मछली को
प्रकृति ने बहुत सुंदर-सी पोशाक दी है। ये लाल-पीली और बैंगनी रंग की
: होती हैं तथा देखने में पाँच पंखुड़ी वाले खिले फूल-सी जान पड़ती हैं। ये
पंखुड़ियाँ ही इनकी भुजाएँ हैं। ये किसी भी कड़ी चीज को पकड़ सकती
: हैं। उल्टी हो जाने पर ये अपनी एक ही भुजा को सिकोड़कर सीधी हो जाती
हें।
ये दिन में तो आराम से पानी के भीतर डूबी हुई चट्टानों पर विश्राम
_ करती हैं, लेकिन रात होते ही अपने भोजन की खोज में जुट जाती हें। ये
सर्वभक्षी जीव हें। परंतु सीपें इनका प्रिय भोजन हैं। सीप को देखते ही ये उस
पर सवार हो जाती हैं और अपनी भुजाओं से सीप को खोल लेती हैं। सीप का
ढककन खुल जाने पर ये उसमें अपना पेट डालकर उसका नरम शरीर खा लेती
हैं। चीरकर दो कर देने पर भी तारा मछली मरती नहीं है, बल्कि इसके दोनों
टुकड़े अलग-अलग दो स्वतंत्र तारा मछलियाँ बन जाते हें।
हवेल :
यदि जमीन पर रहने वाले प्राणियों में सबसे बड़ा जानवर हाथी है, तो
पानी का सबसे बड़ा जानवर हवेल है। यह हवेल पच्चीस मीटर तक लंबी
होती है। इनमें कुछ मांसाहारी होती हैं तो कुछ शाकाहारी। सबसे बड़ी हवेल
शाकाहारी है। ये बच्चे जनती हैं और उन्हें छाती से दूध पिलाती हैं। जानते
हो, इनका बच्चा भी लगभग तीन मीटर लंबा होता है-हमारे फौजी जवान से
दुगुना। ये पानी की सतह पर आकर साँस लेती हैं। उस समय इनके नथुने से
पानी की धार-सी निकलती है। इतने बड़े जीव की आँखें बहुत छोटी-छोटी
होती हैं। हवेल पचास-साठ के झुंड बनाकर रहती हैं।
तेल व मांस के लिए हवबेल का अंधाधुंध शिकार करने 'के कारण संसार
सागर में रहने वाले विचित्र जीव-जंतु ५५
में इनकी संख्या बहुत कम रह गई है। अतएवं अब इनके शिकार पर कड़ी
पाबदियाँ लगा दी गई हैं। :
सूँस :
जल में रहने वाले जीवों में यह बहुत ही चतुर जीव है। यह
थोड़ी-थोड़ी देर बाद हवा में साँस लेने के लिए निकलता है और गोलाई
में घूमकर पानी में चला जाता है। यह करीब ८ फीट का कलछोहा जीव हे।
इसके गोल सिर के आगे लंबी थूथनी होती है। यह प्रमुखतः मछली खाता है।
यों तो प्रान समुद्र का निवासी है किन्तु इसके कुछ भाईबंद नदियों में भी
पाए जाते हैं। इसके दस जोड़े पेर होते हैं। इनको सभी आदतें झींगों को तरह
ही होती हैं। ये गहराई में रहते हैं। इनका मांस भी स्वादिष्ट माना जाता है, जो
पकाने पर गुलाबी रंग का हो जाता है।
7. ईद सहायक वाचन - ४
केंकड़े:ः
फूल-पोधे
१. फूलदार पोधे
सुंदरता किसे प्यारी नहों लगती ? और यदि सुंदरता के साथ सुगंध और
ताजगी भी मिल जाए तो सोने में सुहागा वाली कहाबत सिद्ध हो जाती हे।
फूलों में ये गुण मिलते हैं। जिन पौधों पर फूल खिलते- हैं उन्हें फूलदार
पौधे कहते. हैं। कुछ पौधे सुंदर तो होते हैं पर उनमें फूल नहीं खिलते जैसे
गमलों में लगे फर्न और बरसात में अपने आप उगने वाला कुकुरमुत्ता ।
मनुष्य आदिकाल से फूलों के लिए पौधे उगाता आया है। पूजा-पाठ,
घर की सजावट, जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी कार्य-क्रम बिना फूलों के
संपन्न नहीं होते। केसर, लौंग, गुलाब, गोभी आदि भी तो फूल या उसके
गुच्छे ही हैं। कुछ फूल अपनी सुगंध तथा कुछ अपनी सुदंरता के लिए
प्रसिद्ध हैं। कुछ ऐसे फूल भी होते हैं, जिनमें न तो सुंदरता होती है और न
गंध, पर वे होते हें बड़े उपयोगी, जैसे गेहूँ, दाल; चना, तिलहन आदि के
फूल बीजों के लिए पैदा किए जाते हैं। फूलों से हमें स्वादिष्ट फल,
उपयोगी बीज एवं खादूय पदार्थ प्राप्त होते हें।
कुछ फूलदार पौधे अपने आप, बिना मनुष्य के प्रयत्नों के उगते रहते
हैं। इन्हें जंगली पौधे कहते हैं। कुछ फूलदार पौधे केवल सुगंधित फूलों के
लिए उगाए जाते हैं तथा कुछ सुंदर फूलों के लिए । आओ, अब हम कुछ
उपयोगी फूलदार पौधों की जानकारी प्राप्त करें।
७
शफ सहायक वाचन - ४
मोतिया भी मोगरे की तरह होते हैं पर इनके फूल मोगरे की अपेक्षा छोटे
होते हैं। इनके फूलों में पंखुड़ियों कौ संख्या दस होती है जब कि मोगरे के
फूलों में बीस से तीस पंखुड़्ियाँ पाई जा सकती हैं। मोगरे * कौ अपेक्षा इसको
पत्तियाँ भी छोटी ब कम होती हैं।
-बास्तव में मोगरा, चमेली, मोतिया, बेला आदि पौधे एक ही कुल के
होते हैं। इनमें अत्याधिक समानता पाई जाती है, जैखे मोगरे की तरह दिखाई
पड़ने वाला पौधा रायबेला है। इसके फूल छोटे और देखने में सितारों जैसे
लगते हैं। इनमें पंखुड़ियों की संख्या लगभग पाँच होती है। इसी प्रकार देशी
बेला भी देखने में रायबेला की तरह ही होता है। इसके फूलों और पत्तियों का
आकार रायबेला से छोटा होता है।
फूलदार पौधे ५९
चमेली : ४!
चमेली के छोटे-छोटे सफेद फूल तुमने गर्मी, जाड़ों में अवश्य देखे
होंगे। इनकी मधुर व भीनी सुगंध को भूलना कठिन है। चमेली के पौधे के तने
पर पहीन-महीन रोएँ होते हैं। इन्हें भी कलमों की सहायता से लगाया जा
सकता हे।
रात को रानी
. मीठी सुगंध और रात*में खिलने के कारण इसे बगीचों में उगाया जाता
है। पौधा झाड़ी के रूप में खूब जगह घेरकर बढ़ता है और यदि काटा-छाँटा
न जाए तो ३ से ४ मीटर की ऊँचाई तक पहुँच जाता है। फूल बड़े-बड़े
गुच्छों के रूप में मिलते हें तथा आकार में छोटे व सफेद रंग के होते हें।
इसकी सुगंध रात के समय बगीचों में एक प्यारा-सा वातावरण बना देती है।
इन्हें भी कलमों की सहायता से उगाया जा सकता हे।
गुलाब:
गुलाब से कौन परिचित नहीं है ? इसे फूलों का राजा माना जाता हेै।
ऐसे फूल बहुत कम होते हैं जो गुलाब की तरह सुंदरता और सुगंध दोनों गुणों
के साथ खिलते हों। गुलाब के पौधे अपने सुंदर और सुगंधित फूलों के
लिए ही अधिक प्रसिद्ध हें।
गुलाब विश्वविख्यात पौधा है। उसे प्राचीन काल से ही मनुष्य उगाता
रहा है। रोम, चीन, मिश्र, यूरोप ओर भारत के प्राचीनतम ग्रंथों में गुलाब के
फूलों का वर्णन मिलता है। गुलाब रोजा नामक पौधे की कई किस्मों का
भारतीय नाम है। गुलाब परिवार बहुत बड़ा है। जंगली गुलाब संसार के ठंडे
प्रदेशों और भारत के पहाड़ी प्रदेशों में पाया जाता है। इसके तनों पर काँटे
६० सहायक बाचन -
होते हैं। हरे व चिकने तनों पर भूरे रंग के व घुमावदार काँटे भी देखने में
अच्छे लगते हैं।
गुलाब मुख्यतः तोन वर्गों में बाँटे जा सकते है :--
कऋलमें लगाना :
ब इस विध ि से पैद ा कि ए जा सकते हैं। पर कलमों
सभी प्रकार के गु ला
की वृद ्धि बह ुत धीम ी होत ी है और इनमें फूलों की
द्वारा उगाए गए पौधों मा स में पौध े की कि सी पकी शाखा को काकरट
तं बर
# संख्या भी कम होती है। सिऔर ऊपर का नर्म भाग काटकर अलग-अलग
लेते हैं। इसकी पत्तियों छह -छ ह इंच के टुकड़े काट
वाल े चाक ू से
देते हैं। अब काफी तेज़ धार कलम कहते हैं। कलमों को गमलों में इस
ही
लिए जाते हैं। इन टुकड़ों कोएक-तिहाई भाग मिट्टी में रहे और बाकी मिट्टी
प्रकार लगाते हैं कि इनका खाद, बल, और मिट्टी
। गम लो ं की मिं ट॒ट ी में गो बर की
के ऊपर इन गमलों में पानी देकर
इत्हें
सत ्य चा हि ए। अब
बराबर-बराबर मिलाकर बन ाकर रख दिया जाता है। कुछ
सप्ताहों के
किसी छायादार जगह में गड्ढे प्र ारं भ हो जाती हैं। पौधे अच्छी
पत् तिय ाँ नि कल नी
बाद कलमों से जड़ें और यारियों में लगा दिया जाता हे ।
ें क्
तरह से तैयार हो जाने पर इन्ह
सतहें लगाना :
विधि बहुत प्रचलित है।
नि हो गा कि कुछ टहनियाँ यदि भूमि ानपरे
वालों ने यह दे खा
बागवानी करने ें निकल आती हैं। अतः सतह
ें लग
ती हें तो उनमें जड़
कुछ दिनों पड़ी रह ६२
, (लाब को उन्नत किसमें तैयार करने की विधियाँ
६३
के लिए इसी सिद्धांत का उपयोग किया
जात
चार से छह इंच लंबा भाग छह इंच गहर ा है। कुछ टहनियों के बीच का
ी मिट॒टी में दबा दिया जाता है। टहनी
का पिछला भाग अपने मुख्य पौधे
के ऊपर निकला रहता है। से लगा रहता है तथा अगला भाग
कुछ सप्ताहों बाद मिट॒टी जमीन
सावधानीपूर्वक हटाकर
देखना चाहिए कि दबे हुए भाग से जड़ें निकल
कप
अभ्यास
गुलाब की तरह हमारे देश में गेंदे की कई किसमें प्रचलित हैं। इनमें
पीले फूलवाले को गेंदा व कत्थई फूलों वाले को गेंदी कहते हैं। गेंदे के
फूल वास्तव में फूलों का समूह होते हैं। पीले गेंदे का तना हरा व गेंदी का
तना कत्थई रंग का होता है। गेंदे के पौधे बीजों से पैदा किए जाते हैं ।
'साधारणतया ये एक मीटर तक ऊँचे होते हैं।
सुंदर फूलदार पौधे ६७
पौधे में फूल की कलियाँ नवंबर और दिसंबर माह में निकलनी प्रारंभ हो
जाती हैं। यदि बड़े आकार के फूल खिलाना हो, तो दो या तीन कलियों को
छोड़कर अन्य सभी कलियों को तोड़ देना चाहिए। यदि बड़े फूलों का
मोह न हो तो मुख्य तने का ऊपरी भाग काट देना चाहिए । इसके
परिणामस्वरूप ज्ञाखाओं की संख्या बढ़ जाती हे और पौधे सघन हो जाते
(कद सहायक वाचन - ४
अभ्यास
इसे पलाश भी कहते हैं। इसके पत्ते तीन के समूह में होते हैं। तना
खुरदरा व गहरे मटमैले रंग का होता है। इसकी वृद्धि की गति अत्यंत
धीमी रहती है। फिर भी झाड़ियों से बढ़कर इनमें से कुछ वृक्षों का रूप
ग्रहण कर लेते हैं। इनके फूल जोगिया रंग के व बड़े आकार के होते हैं।
इनकी पंखुड़ियों को पानी में उबालने पर केसरिया रंग प्राप्त होता हे।
अमलतास :
मार्च और अप्रैल तथा बाद के कुछ महीनों में इसके छायादार वृक्षों में
लटकते हुए पीले रंग के फूलों को लड़ियों के बड़े-बड़े .गुच्छे बड़े
. बागवानी ! ७१
मनमोहक लगते हैं। इसकी पत्तियाँ सघन व बड़ी होती हैं, इसलिए सड़कों
| के किनारे छायादार वृक्ष के रूप में भी इन्हें लगाया जाता है। इसके फल
! लंबे, गहरे, भूरे या कॉले रंग के होते हैं तथा कई रोगों के उपचार के काम
* आते हैं।'अमलतास को बीज दूवारा उगाया जा सकता हे। ।
_ गुलसितारा (लेंटाना कैमेरा) :
इस पौधे के. वृद्धि की गति इतनी तेज़ होती है कि कभी-कभी इसको
बाढ़ रोकना कठिन हो जाता है। इसके फूल गुच्छों के रूप में खिलते हें।
कलियों व अध-खिले फूलों का रंग पीला तथा पूर्णरूप से खिले फूलों का
रंग गहरा लाल हो जाता है। पौधे की ऊँचाई डेढ़ से ढाई मीटर तक हो
सकती है। इसकी शञाखाएँ ज़मीन के पास से ही निकलती हैं। तनों में
छोटे-छोटे काँटे होते हैं! इसीलिए इन्हें बाड़ के रूप में भी लगाया जा
सकता है। इनकी एक पहचान यह भी है कि पूरे पौधे से एक विशेष प्रकार
को गंध निकलती है। इसकी भी कई किसमें पाई जाती हैं। इनमें पीले,
जोगिया, लाल और सफेद फूलोंवाली किसमें अधिक प्रचलित हें। इन्हें
कलमों और बीजों, दोनों प्रकार से उगाया जा सकता है ।
अभ्यास
(१) जंगली फूलदार पौधों में कौन-कौन-से पौधे प्रमुख हैं ?
(२) टेसूके फूलों का क्या उपयोग है ?
(३) अमलतास के पौधों का संक्षेप में वर्णन करो ।
(४) गुल सितारा को विशेषताएँ लिखो।..
छर सहायक वाचन - ४
५ बांगवानी
है। बागवानी करते
बागवानी एक अच्छी मनोरंजक व लाभदायक कला
समय यह पता ही नहीं चलता कि समय कैसे - बीत गया। इसके लिए धैर्य,
े हैं
लगन और परिश्रम की आवश्यकता होती है। जब बगीचे में फूल खिलत
तो बागवानी करने वाले की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहता।
बनानी
बागवानी प्रारंभ करने के पहले बगीचे की उत्तम रूपरेखा
चाहिए-कहाँ क्यारियाँ बनानी हैं, कहाँ गुलाब लगाना है, कहाँ घास लगानी हे
आदि। आमतौर से मौसमी फूलों की क्यारियाँ घास के मैदान (लॉन) के चारों
ओर लगाई जाती हैं। लॉन और क्यारियों की योजना चाहे जो भी हो, पर
चौकोर, तिकोने, गोलाकार लॉन बड़े अच्छे लगते हैं। आजकल पथरीली
ज़मीनों पर जापानी पद्धति के उद्यान लगाने का चलन बढ़ता जा रहा है।
हमारे प्रदेश की राजधानी भोपाल का 'किलोल पार्क” बहुत कुछ जापानी
पद्धति से बना है।
कुछ पौधे धूप में उगते हैं तथा कुछ छाया में । इसलिए बगीचों में पौधे
लगाने से पहले उनके बारे में जानकारी प्राप्त कर लेना आवश्यक है ।
गुलाब को धूप चाहिए तो “मनी प्लांट' को छाया। पौधों को बीज बोकर, कलमें
लगाकर, कली लगाकर, सतह लगाकर पैदा किया जा सकता हे । यह सभी .
| विधियाँ गुलाब के साथ बतलाई जा चुकी हें। थोड़े-हेर-फेर के साथ सभी
धों के लिए यही विधियाँ अपनाई जा सकती हैं।
(१) बागवानी प्रारंभ करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
(२) पथरीली ज़मीनों पर उद्यान केसे लगाए जाते हैं ?
(३) बगीचे की मिट्टी की देख-रेख के लिए हमें क्या करना चाहिए?
(४) रोगी पौधों का उपचार किस प्रकार करना चाहिए ?
४
।
बाल कहानियाँ
(इस संकलन में तोता-रटंत, सिंह और खरगोश तथा वफादार नेवला-तीन
कहानियाँ पंचतंत्र से ली गई हें। पंचतंत्र संस्कृत साहित्य का प्रमुझ्ध
कथासंग्रह है। इसका अर्थ होता है, वह पुस्तक, जिसके पाँच तंत्र (भाग) हों।
पंचतंत्र में पाँच तंत्र हें - (१) मित्र भेद, (२) मित्र संप्राप्ति, (३)
काकोलकीय, (४) लब्ध प्रकाश तथा (५) अपरीक्षित कारक।
कि
कहता-“शिकारी जंगल में आता है, जाल फैलाता है, दाने का लोभ दिखाता
8....त.>>>>44-444354#099«.»
3 (>> ०)
0५ २४॥। गम फसना नह। चाहए।
>>.
वह बराबर रटता रहा, “शिकारी जंगल में आता है, जाल फैलात। “ दाने का
लोभ दिखाता है। जाल में फँसना नहीं चाहिए।” फल यह हुआ कि सभी साक्षु
तोतों ने इसे सीख लिया। अब सब तोते दिन-रात यही रटते रहते।
कुछ महीने बीत गए। एक दिन साधु घूमता-घूमता उधर पहुँच गया,
7 गर दोतों काझुंड था।खाण पा यह पह देख और सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ कि
सभी तोतों ने उस पाठ को याद कर लिया है। अब वे सावधान रहेंगे। शिकारी
के जाल में नहीं फँसेंगे।
कुछ महीने और बीत गए। एक दिन साधु जंगल में घूम रहा था। उसने |
देखा एक शिकारी जाल को अपने कंधे पर डाले हुए जा रहा था | उस जाल
में अनेक तोते फँसे थे। ओर यें तोते जाल के भीतर अब भी रट रहे थे-
“जिकारी जंगल में आता है, जाल फैलाता है, दाने का लोभ दिखाता है। जाल
में फँसना नहीं चाहिए।”
तोते की मूर्खता पर साधु को आइचर्य भी हुआ और दुःख भी। वह सोचने
लगा-जो लोग अच्छी-अच्छी बातें बार-बार कहते रहते हें, किन्तु उनके
अनुसार आचरण नहीं करते, उनका, यही अंत होता है। केवल “तोता रटंत”
व्यर्थ है ।
सिंह और खरगोश ७७
अभ्यास
(१) साधु को तोते के संबंध में क्या चिन्ता थी ?
(२) साधु ने तोते को कया सिखाया ?
(३) तोतों को जाल में फँसे देखकर साधु को आइचर्य और दुःख
क्यों हुआ ?
(४) इस कहानी से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है ?
२. सिंह ओर खरगोश
किसी वन में एक सिंह रहता था। उसे अपने बल का बड़ा घमंड था।
वह रोज ही बहुत से जानवरों को मारता था | एक-दो जानवरों को खाता, बाकी
वैसे ही मारकर फेंक देता था। इस विनाश को देखकर वन के पशुओं ने सोचा
कि यही दशा रही तो वह दिन दूर नहीं जब इस बन में हम जानवरों का
नाम-निशान ही मिट जाएगा। उन्होंने आपस में मिलकर यह तय किया कि
वे सिंह के पास जाकर उससे प्रार्थना करेंगे कि वह इस प्रकार उन्हें न मारे।
उनमें से एक जानवर प्रतिदिन दोपहर को उसके पास भोजन के समय पहुँच
जाया करेगा ।
से चीख निकल गई-“हाय राम ! खून ! तूने मेरे बच्चे को मार डाला,पापी !”
वह चीखी और बिना कुछ विचार किए सामान से लदा टोकरा नेवले पर पूरी
हि
अभ्यास
इनमें कल्पना की ऊँची उड़ान होती है, जिससे सुनने वालों का मन बहलाव
ं में ही
तो होता ही है साथ ही उन्हें शिक्षा भी मिलती है। लोक-कथाए क्षेत्रीय भाषाओ
कही जाती हैं। इनसे लोक-जीवन के आचार-विचार का परिचय प्राप्त होता हे।]
८5५
८ सहायक वाचन - ४
बढ़िया खाना सामने देख सूरज तो माँ को भूल गया और जल्दी खाने
लगा, पर चाँद नहीं भूली । उसने चुपचाप दोने में खाना रखकर उसे चादर से
ढक लिया ।
भूख से व्याकुल बूढ़ी माँ दरवाजें पर बेठी थी | सूरज के हाथ में खाली
दोना देखकर वह रो पड़ी और बेटे को शाप दे बैठी-“जा, तू दुनियाँ में सदा «
जलता रहेगा और दूसरों को भी जलाएगा ।”
तभी पीछे से चाँद चादर में दोना छुपाए भागी-भागी आई। बूड़ी माँ खुशीरि
'से गद्गद् हो गई और उसने बेटी को दुआ दी-“ दुनियाँ में तू हमेशा ठंडक
फेलाएगी ।”
बाद में दोनों भाई-बहिन बड़े हो गए और उनके अपने-अपने बच्चे भी
हुए। एक दिन बातों-बातों में दोनों ने शर्त लगाई, “देखें, कौन जल्दी अपने
बच्चों को खाता हे ?” सूरज गट-गट करके अपने बच्चों को निगलने लगा,
पर चाँद अपने बच्चों को गाल में छुपा-छुपाकर रखने लगी।
तभी से सूरज अकेला उगता है और चाँद अपने ढेर सारे बच्चा का फोऊ
3. >> अचखयो
गो तो गज
। (१) भोज में जाते हुए चाँद और सूरज से _बुढ़िया ने क्या कहा ?
(२) बुढ़िया ने सूरज को शाप क्यों दिया ?
(३) बुढ़िया ने चाँद को क्या दुआ दी ?
(४) चाँद ने अपने भाई सूरज को क्या कहकर धिक्कारा ?
(५) केसे सिद्ध करोगे कि चाँद और सूरज एक दूसरे को
कक गक्ल नहीं देखते।
५. चुरकी-मुरको
एक गाँव में चुरकी और मुरकी नाम की दो बहनें रहती थीं। उनका एक भाई
_ था, जो दूसरे गाँव में रहता था । चुरकी बहुत नम्र और सेवाभाव रखनेवाली
थी, जबकि मुरकी बड़ी घमंडिन थी ।
फिर उसे बेर का वृक्ष मिला। पेड़ के नीचे पके, मीठे बेरों का ढेर
लगा था। कुछ बेर उसने अपने आँचल में बाँधे और पेड़ को शीश नवाकर
आगे बढ़ोी।
गाँव की मेंड पर खेत में ही भाई से उसकी भेंट हो गई। भाई प्रेम से
मिला। फिर घर पहुँचकर भाभी से मिली। भाभी का व्यवहार भी ठीक ही
रहा। दूसरे दिन उसने भैया-भाभी से बिदा माँगी। भाभी ने बिदाई कर दी
९० सहायक वाचन - ४
पर भेंट में कुछ नहीं दिया। खेत में भाई से मिली। भाई ने चने का साग
तोड़ने को कहा । थोड़ा-सा साग लेकर वह चल पड़ी। वह मन ही मन
बहुत दुखी हुई कि भैया-भाभी ने चुरकी को तो कितनी सारी बिदाई दी थी,
मुझे कुछ नहीं दिया।
लौटते समय रास्ते में पुनः मिट्टी का टीला पड़ा। जैसे ही वह टीले के
पास पहुँची तो वहाँ तीन-चार काले सर्प निकले और मुरकी की ओर बढ़ें।
घबराकर वह भागी। भागते-भागते वह गोठान तक पहुँची। वहाँ आराम करने
के
के लिए थोड़ी देर रुकी तो वहाँ की सुरही गाएँ उसे मारने के लिए दोड़ीं।
बेचारी मुरकी वहाँ से भी जान बचाकर भागी। किसी तरह गिरते-पड़ते वह
हुआ था।
बेर के पेड़ के पास पहुँची तो वहाँ बेर के काँटों का जाल बिछा गए।
काँटों से मुरकी के हाथ पैर छिद गए। उसमें उलझकर उसके वस््र फट
लाखा - महल कर
६. लाखा-महल
(आदिवासियों में महाभारत की कथा बहुत लोकप्रिय है। परंतु यह कथा महर्षि
वेटव्यास दवारा लिखे महाभारत की कथा से कुछ भिन्न है। लाक्षा-गृह की कथा
महाभारत में भो हे. किंतु आदिवासियों में यह क्रथा जिस रूप में प्रचलित है, वह
पढ़िए)
ही : सहायक वाचन - ४
। कोतमा बोली, “बेटा ! वे कँवरा इक्कीस भाई हैं, एक-एक मुट्ठी माटी
लाएँगे तो पहाड़ जैसा हाथी बना डालेंगे और तुम पाँच भाई हो, कितनी
माटी ढो सकोगे।
_कैवरन की महतारी बड़े हाथी की पूजा करेगी और मैं छोटे हाथी की
पूजा करूंगी। नहीं बेटा, नहीं, यह अपमान मुझसे सहा न जाएगा। मैं वहाँ नहीं
जाऊंगी।”
भीमसैन गुस्सा होकर बोला, “माता ! मैं इंद्रासन से ज़िंदा हाथी भौरानंद
मँगवा देता है। तूरो मत, खुश हो जा।”
भीमसेन ने इंद्र को चिट्ठी लिखी, “तुरंत ही भौरानंद हाथी भेजो।” बाण
में बाँधकर चिट्ठी भेज-दी गई।
बीच में नदी पड़ी। यहाँ से पंडवा, वहाँ से कंवरा। नदी के बीच में कँवरों
का मिट्टी का हाथी गल-गलकर बहने लगा। कँवरों की माता बीच धार में
बहने लगी। उस समय माता कोतमाने गंधरनिन की बाँह पकड़कर अपने
हाथी के ऊपर बैठा लिया। कँवरा बहुत ही शर्मिंदा हुए।
5
पंडवः अपनी नगसे-में पहुँचे। उन्हें लाखा-महल में ठहराया गया। १]
आव-भगठ की गई। ख़ाना-पीना चला। कँवरों ने फिर चालाकी की। वह यह
कि पंडबों के लिए जो भोजन परोसा जाना था, वह ज़हर भरा था और कंदवरों
को जो भोजन परोसा जाना था वह सादा था। पंडवा बेचारे क्या जानें ? खूब
भरपेट खाते रहे।
आधी रात को कँवरों ने लाखा-महल में आग लगा दी। महल जलने लगा।
भीतर पंडव! बेखबर सो रहे हें। बाहर महल जल रहा है। जब लाख पिघली
और गर्म-गर्म जलती हुई बूँदें पंडवन के शरीर पर पड़ीं, उस समय सब जाग
पड़ें। अप को महल में बँधा देखकर माता कोतमा रोने लगी। उस समय
भीम बोला “मातां सोच-फिकर मत कर. मैं निकाले के चलता हूँ।”
था। उसमें जली हुई हडिड॒याँ देखकर कँवरे बहुत ही प्रसन्न हुए। उन्होंने
डर है। उन्होंने पंडवों
सोचा, पंडवा बैरी तो जल-भुज गए, अब किसी का क्या
लाख बकरियाँ, मानत
की सारी संपत्ति नीलाम कर दी। नौ लाख गाएँ, सात
नीलाम कर दिया।
की चौसठ जोगनी, बैठत की घोड़ी, बाँचत की पोथी, सब
लिया। पीतल के पत्र में
बिराट नगर के राजा सिंगरामसिंह ने यह सब ले
वीरान हो गए। ।
लिखा-पढ़ी हो गई। महल अटारी, बाग, बगीचा सब
अभ्यास
?
(१) महालक्ष्मी पूजन का निमंत्रण पाकर माता कोतमा क्यों रोने लगीं
(२) भौरानंद हाथी भेजने के विषय में इंद्र ने क्या जवाब दिया ?
केसे लाया
(३) कजली वन से भौरानंद हाथी माता कोतमा के सामने
गया ?
७. बालक चंद्रगुप्त
पाटलिपुत्र के पिपली कानन के मौर्य सेनापति का एक-ट्टा-फूटा घर
था। महापद्मनंद के अत्याचार से मगध काँप रहा था। मौर्य सेनापति के बंदी
हो जाने के कारण उनके कुटुंब का जीवन किसी प्रकार कष्ट में बीत रहा था।
एक बालक उसी घर के सामने खेल रहा था। कई लड़के उसकी प्रजा
बने थे और वह था राजा । उन्हीं लड़कों में से वह किसी को घोड़ा किसी
को हाथी बनाकर चढ़ता और दंड तथा पुरस्कार आदि देने का राजा के समान
अभिनयं कर रहा था ।
उसी ओर से एक ब्राह्मण जा रहे थे। उनका नाम था “चाणक्य! वे
बड़े बुद्धिमान थे। उन्होंने उस बालक की राजक्रीड़ा बड़े ध्यान से
देखी। उनके मन में कुतृहल भी हुआ और कुछ विनोद भी सूझा । उन्होंने
ठीक-ठीक ब्राह्मण की तरह उस बालक के पास जाकर याचना की, “राजन,
मुझे दूध पीने के लिए गऊ चाहिए।”
बालक चंद्रगुप्त ९७
2340 5.3. कै
श्द सहायक वाचन - ४
अपनी माता के साथ बालक वह लीला देख रहा था। वह भला कब मानने
वाला था ? उसने कहा, “मैं निकाल दूँगा।” सब लोग हँस पड़े। बालक की
ढिठाई भी कम न थी। राजा नंद को भी आइचर्य हुआ। नंद ने कहा, “यह कौन
हे 2?
(१) बांलक चंद्रगुप्त अन्य लड़कों के साथ कया खेल खेल रहा था ?
(२) चाणक्य ने बालक चंद्रगुप्त से क्या याचना की ?
(३) चाणक्य ने चंद्रगुप्त की माँ को क्या सलाह दी ?
(४) बालक चंद्रगुप्त ने मोम के शेर को पिंजड़े के बाहर कैसे
निकाला ?
(५) बालक की बुद्धिमानी पर प्रसन्न होकर नंद ने क्या किया ?
(६) के आधार पर चंद्रगुप्त के गुणों को अपने शब्दों में
|
८. गुरुदक्षिणा
एक थे ऋषि । गंगा तट पर उनका आश्रम था; मीलों लंबा-चोड़ा । बहुत
से शिष्य आश्रम में रहते थे। अनेक गठएँ थी । हरिणों के झुंड आश्रम में
चौकड़ी मारते; उछलते-कूदते फिरते थे। |
ऋषि के ठिष्यों में तीन प्रमुख शिष्य थे। तीनों ही अख्न-शस््र बिदया में
निपुण थे। बोलचाल में मीठे, स्वभाव में विनम्र, धरती को तरह सहनशील,
सागर की तरह गंभीर और सिंह के समान बलशाली ।
वह पुराना ज़माना था। उस समय आश्रम की गद्दी का अधिकारी होना
१०० सहायक वाचन - ४
ऋषि सोचते रहे, सोचते रहे। आखिर एक दिन उन्होंने तीनों को अपने
पास बुलाया ओर कहा, “प्रियवर, तुम तीनों ही मुझे प्रिय हो । मैंने जी-जान
से तुए्हें पढ़ाया-लिखाया और अख्र-शस्र चलाने की शिक्षा दी। मुझे
जो-जो विद्यायें आती थीं तुम्हें सब सिखा दीं। अब केवल गुरु-मंत
्र सिखाना
बाकी है। गुरु-मंत्र किसी एक को ही बताऊँगा। जिसे गुरु-मंत्र बताऊँग
ा,
वही मेरी गदुदी का अधिकारी होगा। मैं तुम तीनों की परीक्षा लेना चाहता
हा
गुरूदक्षिणा ५४३४५
ऋषि की बात सुनकर तीनों ने सिर झुका लिया। वे. बोले, “गुरुदेव,
ऐसा कौनसा काम है, जो हम आपके लिए नहीं कर सकते।”
गेश्ा
ऋषि मुसकराकर बोले, “यह मैं जानता हूँ। फिर भी परीक्षा परीक्षा है। तुम
तीनों तीन अलग-अलग दिशाओं में जाओ और अपने श्रम से कमाकर मेरे
लिए कोई अद्भुत भेंट लाओ। जिसकी भेंट सबसे अधिक सुंदर और
मूल्यवान होगी, वही गद्दी का अधिकारी होगा। ध्यान रहे, एक वर्ष में वापस
आना भी जरूरी है।”
ऋषि की आज्ञा पाकर तीनों शिष्य चल पड़े। वे मन ही मन योजनाएँ
बनाते चले जा रहे थे। उनमें से एक किसी राजा के पास जा पहुँचा। दरबार
में जाकर उसने नौकरी करने की इच्छा प्रकट की। राजा तो ऋषि को जानते
ही थे। उनका ढिष्य कितना योग्य होगा, यह जानते हुए भी उन्हें देर नहीं
लगी। राजा ने उसे तुरंत अपने पास रख लिया।
दूसरा शिष्य समुद्र पर पहुँचा। वह मछुआरों की बस्ती में गया और उनसे
गोता लगाने की विदूया सीखने लगा। कुछ ही दिनों में बह भी कुशल
गोताखोर बन गया ।
तीसरा शिष्य चलता-चलता एक गाँव में पहुँचा। गाँव उजाड़ था । घर
थे, जानवर थे, बच्चे थे, महिलाएँ थीं, मगर आदमी एक भी नहीं था। उसे
बड़ा आश्चर्य हुआ। मालूम पड़ा कि यहाँ भयंकर अकाल पड़ा है। कई
वर्षों से वर्षा नहीं हुई है। सभी लोग सहायता के लिए राजा के पास गए हैं।
बह भी अकेला कया करता ? चल पड़ा अपने रास्ते पर । मगर उसे
ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ा । सामने से गाँववालों को भीड़ आ रही थी। वे
उदास थे और राजा को बुरा-भला कह रहे थे।
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१०२ सहायक वाचन - ४
ऋषि के शिष्य की बात सुनकर सारे लोग सोच में पड़ गए वे बोलें,
“भैया, तुम तो चमत्कारी लगते हो। हम गँवार क्या जानें। चलों, तुम ही हमारे
- दुखों को दूर कर दो।”
.. “कुएँ-कुएँ तो गाँव में हैं, मगर सारे सूखे पड़ेः हैं। उनमें पानी नहीं, तो
नए कुओ में कहाँ से आ जाएगा ?”-गाँववाले बोले।
“पानी कभी नहीं सूखता। बादल न बरसें, न सही। मगर धरती के अंदर
बहुत पानी है। कुओं को और गहरा करो। पानी मिलेगा।”
एक दिन ढूँढते-ढूँढते किसी गाँव में देवता मिल गए। धूल से सने
१०४ सहायक वाचन - ४
पसीने से लथपथ गाँववालों के साथ काम में जुटे थे।
राजा चकित रह गया; वह देवता केसे हों सकता था ? वह तो एक
साधारण किसान जैसा था। सिर पर न मुकुट था, न गले में स्वर्ण के फूलों
की माला। राजा आगे नहीं बढ़ा। चुपच्चाप खड़ा देखता रहा। मगर ऋषि
चिल्लाए-“बेटा सुबंधु, तुम यहाँ ? मैं तुम्हें ही दूँढ़ता फिर रहा था।” कहते
हुए ऋषि ने धूल-धूसरित सुबंधु को बाहों में भर लिया। “क्या मुझे दक्षिणा
देने की बात तुम भूल गए हो ?” ऋषि ने कहा।
“नहीं गुरुजी, भूल कैसे जाता ? मगर अभी काम अधूरा है। इन सारे
लोगों के आँसुओं को पोंछना था। आप ही ने तो बताया था-“मनुष्य की सेवा
से बढ़कर महान् धर्म कोई नहीं है।”
राजा देखते रह गए। ऋषि की आँखें भी नम हो गई। ऋषि ने भरे गले
से कहा- बेटा, तुमने ठीक ही कहा। तुम्हें सचमुच अब मेरे पास आने की
जरुरत नहीं। तुमने इतने लोगों की भलाई करके मेरी दक्षिणा चुका दी है। जो
दूसरों के आँसू लेकर उन्हें मुस्कराहट दे दे- वह सचमुच देवता है। तुम देवता
से कम नहीं हो।” राजा का सिर सुबंधु के आगे झुक गया।
अभ्यास
(६) तीसरा शिष्य देवता के रूप में किस प्रकार प्रसिदूध हुआ ?
(७) सुबंधु नामक तीसरे शिष्य ने किस प्रकार गुरुदक्षिणा दी ?
साथ लेकर आए थे। भरपेट खाना खाया ओर बिस्तरों पर लेट सुस्ताने लगे।
सोने का हमारा कोई इरादा था नहीं। हम चाँदनी रात में शिकार खेलने का
नि३ुचय कर चुके थे।
बातें हो ही रही थी कि कहीं दूर से नाचने-गाने की आवाज सुनाई पड़ी।
हम समझ गए, यहाँ पास हीं में कोई बस्ती है। उसी में बस्तर के आदिवासी
नाच-गा रहे हैं। मैंने कहा, “क्यों न यह सब देखां जाए ?” मेरी बात सुनकर
बूढ़ा * रीदार बोला, “नहीं साब, जान का खतरा हे। रास्ता ऊबड़-खाबड़
है। दिन ऊँपने से पहले वहाँ पहुँच जाते तो ठीक था।”
चौक ? की बात मेरे .गले बहीं उतरी। हम तीनों.के ही पास ब्रंदूकें थीं। मैं.
थोड़ा-बहुत. नाड़ी था, किन्तु बन-विभाग के अधिकारी और ब्रिगेडियर
साहब-मानें. हुए शिकारी थे।मैंने उत्साह से - कहा; “अरे छोड़ो भी। हंस -
सोने: थोड़े ही. "ए हैं। चेत का महीना है। मुझे -लगता है आज यहाँ माटी का -
त्योहार मनाया जा ग़् है। सभी लोग चौपाल पर इकट्ठे होकर नाच गा रहे: हैं।”
चौकीदांर बोला, “आपने ठीक ही कहा साब चैत मास में नई फ़सल के
लिए हल चलाने से पहले यह त्योहार होता है।” $ 220
मेरी बात से दोनों साथी सहमत थे। हमने बंदूकें उठाई और जीप की ओरः
बढ़े। हमारा निरचय चौकीदार भाँप गया। उसने अपने लड़के. की हमारे
साथ भेजते हुए कहा, “साब, नहीं मानते तो हिड़मा को अपने साथ ले
जाइए। यह रास्ता बताता चलेगा।” ह
हमने हिड़मा को अपने साथ ले लिया। पहाड़ियाँ पार करते हुए
आगे बढ़ने लगे। हिड़मा ने .कहा, “साब, आप लोग बंदूकें भर लें। इस
जंगल में जंगली भेंसे बहुत हैं। बहुत खतरनाक होता है जंगली भैंसा। ताकत पे
शेर से भी ज्यादा।”
जंगली भैंसे से भिड़ंत १०७
है ड़मा को बात सुनकर ब्रिगेडियर साहब जीप रोककर बंदूक भरने
लगे। मुझे हँसी आ रही थी। मैं सोच रहा था-“भैंसे तो लाठियों से भगाए
जाते हैं।” ।
मुझे. मुस्कराता देखकर ब्रिगेडियर साहब बोले, “क्या सोच रहे हो ?
बस्तर के जंगली भैंसे बड़े खतरनाक होते हें। हिड़मा ठीक ही कह रहा
है।” मेरी भी सिद्टी-पिट्टी गुम होने लगी। मैंने बंदूक भरी और सँभलकर बैठ
गया।
चलते-चलते काफी देर हो गई। गाँव का अभी कोई नामे-निशान नजर
नहीं:आ रहा था। हम ऊँचाई से ढालू रास्ते की ओर जा रहे औै। अचानक
हिड़मा मे ब्रिगेडियंरं साहब को टोका, “सोॉब, जीप रोक दें।” “क्यों क्या
बात है ?”-हमने पूछा। “साब, उधर देखिए। वह रास्ते के 'किनारे की
झाड़ी-के पास ही जंगली भैंसा खड़ा है।”-बह फुसफुसाया ।
जंगली भैंसे का नाम सुनकर मुझे फुरफुरी-आ गई। मगर में तनकर बोला
“ठीक है। हम तीन हैं। वह अकेला कया कर लेगा हमारा ?”
ब्रिगेंडियर साहब॑ कुछ नहीं बोले। वन-चिभाग के अधिकारी भी स्थिति
का जायजा लेने लगे। फिर जीप कुछ और आगे बढ़ी ब्रिगेडियर साहब ने
जीप की हेडलाइट भैंसे के ऊपर फेंकी। रोशनी में मैंने देखा तो चौंक उठा।
दानव जैसा काला शरीर, चमकती हुई आँखें, कटार जैसे दो पैने सींग। हमें
देखकर वह अगले. पैरों से ज़मीन खोदने लगा। इससे साफ था कि वह
लड़ने . को तैयार था।
ब्रिगेंडियर साहब बोले- “मैं जीप आगे नहीं बढाऊँगा। जीप का दंजन
स्टार्ट रहेगा। आप दोनों नीचे उत्रें और जीप के अगल-बगल होकर भैंसे को
निशाना बनाए।”
श्ठ्व सहायक वाचन - ४
हम जीप से कूद तो गए मगर हिम्मत जवाब देने लगी थी। भैंसा कुछ देर
रुककर फिर जीप के पीछे लपका। मेरे तो होश-हवास गायब हो गए थे।
फिर गोली छोड़ी। मगर घबराहट में बेकार गई। भैंसा जीप के बिल्कुल पास
था। ब्रिगेडियर साहब गोली चलाने के लिए तेयार थे। तभी हिड़मा
#? चिल्लाया- “साब, रुकिए, गोली मत चलाइए। यह आपका पीछा नहीं
छोड़ेगा,” कहता हुआ हिड़मा भैंसे के आगे आ गया।
उसने अपनी कमीज उतारकर हाथों में ले ली थी। वह उसे
हिला-हिलाकर भैंसे को चुनौती देने लगा। साथ ही अजीब-अजीब बोलियाँ
भी बोलता जा रहा था।
महर्षि विज्ववामित्र मार्ग में अनेक कथाएँ सुनाते हुए चल रहे थे।
चलते-चलते उन्हें गौतम ऋषि का उजड़ा हुआ आश्रम दिखाई दिया। राम
के प्रश्न करने पर विश्ववामित्र ने
बताया, “यह महर्षि गौतम का आश्रम है।
गौतम एक धर्मात्मा ऋषि थे। उनकी पत्नी का नाम अहिल्या था। एक द्नि
जब गौतम बाहर गए थे, इंद्र गौतम का रूप धारण कर उनके आश्रम में आ
गया। अहिल्या उसे पहचान नहीं पाई। सदा की भाँति वह पति को सेवा में
लग गई। इसी बीच गौतम ऋषि आश्रम में आ गए। यह देखकर इंद्र चुपचाप
भागने लगा। गौतम ने उसे देख लिया। उन्होंने इंद्र को शाप दिया।
अहिल्या बेचारी भय से काँप रही थी। ऋषि को उस पर भी क्रोध आया।
उन्होंने उससे कहा, इस आश्रम में अब तू अकेली ही रह। भूख, प्यास, वर्षा,
धूप सहन करते हुए अकेली पत्थर की तरह पड़ी रह।” अहिल्या ऋषि के
चरणों में गिर पड़ी और बोली, 'स्वामिन् इसमें मेरा कोई दोष नहीं। जे
निरपराधिनी हूँ। मुझे क्षमा कीजिए।” गौतम ऋषि उसकी विनय से जब
शांत हुए तब उन्होंने कहा, मैंने जों कुछ कहा . . «>> 5०४ जब
श्रीराम इस मार्ग से जाएँगे तब वे ही तुझे श्ञाप-मुक्त करेंगे। विश्वामित्र ने
कहा, “बेटा राम, इस कुटिया में जाकर देखो। वह स््री पत्थर के समान यहा
पड़ी है। उसका उद्धार करो।” श्रीराम ने गुरु के आदेश के अनुसार अहिल्या
को पवित्र किया और उसे गौतम ऋषि के सुपुर्द कर दिया।
रामायण - कथा २
दूसरे दिन धनुर्यज्ञ था। पूजा के बाद जनक ने अपनी पु.) सीता को
यज्ञ-स्थल में बुलाया और घोषणा की, “उपस्थित राजागण र,ने। जो राजा
भगवान शंकर के धनुष को उठाकर उसपर डोरी चढ़ा देगा, 'सका विवाह
राजकुमारी सीता के साथ किया जाएगा।” घोषणा सुनंकर अनेक राजा घमंड के
साथ एक-एक करके उठते थे, धनुष के पास जाते थे लेकिन उसे तिलभर
भी नहीं उठा पाते थे। जब सभी राजा थक गए तो राजा जनक को बड़ी
निराशा हुई। उन्होंने राजाओं से कहा, “मुझे नहीं मालूम था कि पृथ्वी पर
अब कोई दीर नहीं रहा है। नहीं तो मैं क्यों ऐसा प्रण करता ? आप लोग अब
अपने-अपने घर लोट जाइए।” तब महर्षि विज्वामित्र की आज्ञा पाकर राम.
धनुष पर डोरी चढ़ाने के लिए तैयार हुए। राम को जाते हुए देखकर अनेक
राजाओं ने उनकी हँसी उड़ाई। राजा जनक को भी विश्वास न था कि यह
सुकुमार राजकुमार धनुष तोड़ सकेगा। राम धीरे-धीरे धनुष के समीप पहुँचे।
उन्होंने . एकदम धनुष उठा लिया और उसपर डोरी चढ़ाकर भयंकर ध्वनि
की। धन्ष एक झटके में ही टुट गया। चारों ओर हर्षध्वनि होने लगी। राजा -
जनक की प्रसन्नता का ठिकाना ही न रहा। सखियाँ सीताजी को साथ लिए
राम की ओर आईं। सीता ने राम को जयमाला पहनाई। नगाड़े बज उठे।
जय-जयकार से सभा-मडप गूँज उठा ।
२२६ सहायक वाचन - ४
जिस समय सभा-मंडप में हर्ष और उल्लास छाया हुआ था, उसी समय
महर्षि परशुराम वहाँ आ गए। परशुराम बड़े पराक्रमी योद्धा और क्रोधी
स्वभाव के ऋषि थे। क्षत्रियों से उनका बैर था। उन्होंने कई-क्षत्रिय राजाओं
को युद्ध में हराया था। राम-लक्ष्मण ने परशुरामजी के चरण स्पर्श किए।
राजा जनक ने धनुष-यज्ञ के आयोजन की बात उन्हें बताई। परशुराम शंकर के
धनुष का बड़ा सम्मान करते थे। धनुष टूटने की बात सुनकर वे बड़े
क्रोधित हुए। राम ने उनका क्रोध ज्ञांत करने का बहुत ग्रयत्न किया किन्तु
लक्ष्मण के व्यंग्यों से वे बार-बार भड़क उठते थे। अंत में राम के शील पर
वे मुग्ध हो गए और दोनों राजकुमारों को आशीर्वाद देकर वन को चले गए।
जाकर ईइवर की पूजा-पाठ करें। उन्होंने अपने मंत्रियों से सलाह ली। सभी
ने. प्रसन्नता के साथ अपनी सहमति दे दी। राम के राज्याभिषेक को तिथि
निडिचत की गई। समय कम था। अतः न तो इस कार्यक्रम की सूचना महाराजा
जनक के पास भेजी जा सकी और न भरत के पास ही। सारा नगर राज्याभिषेक
की तैयारियों में लगा था। चारों ओर उल्लास था।
उधर कैकेयी के महल में कुछ दूसरा ही षडयंत्र रचा जा रहा था। कैकेयी
की मंथरा नाम की एक दासी थी। जब से उसने राम के राज्याभिषेक की बात
सुनी थी, वह उदास रहती थीं। रानी केैकेयी ने इसका कारण पूछा। मंथरा ने
कहा, “कल राम का अभिषेक होगा। मैं तो तुम्हारी दशा विचार कर दुखी हो
रही हूँ। कौशल्या जब राज-माता बन जाएगी तो तुम रानी से सेविका बन
जाओगी।” पहले तो कैकेयी को अपनी दासी की बातें बड़ी बुरी लगीं, लेकिन
उसके कपटपूर्ण बचनों ने जादू का सा काम किया। वह कैकेयी जो राम को
अपने पुत्र भरत से भी ज्यादा चाहती थी वह राम की दुश्मन बन गई। मंथरा ने
उसे याद दिलाया, “राजा ने तुम्हें दो वरदान देने के लिए कहा था। एक वर
से भरत को राजगद्दी और दूसरे से राम को चौदह वर्ष का बनवास माँग
लेना।” केकेयी मंथरा की बातों में आ गई। वह बुरा वेष बनाकर अपने महल में
जा लेटी।
रात को राजा दशरथ कैकेयी के महल में पहुँचे। कैकेयी को बुरी दशा में
देखकर उन्होंने नाराजी का कारण पूछा। उन्होंने कहा, “तुम जो कहोगी वही मैं
करूँगा। अपना क्रोध छोड़ दो।” कैकेयी बोली, “आपने मुझे दो वरदान देने
को कहे थे। आज मैं उन बरों को माँगती हूँ। प्रथम वर यह है कि भरत को
श्श्द सहायक वाचन - ४
राजगद्दी दी जाय। दुसरा वर यह हे कि राम चौदह वर्ष तक वन में रहें तथा
तपस्वी का जीवन व्यतीत करें।” कैकेयी की कठोर बातों को सुनकर राजा
मूच्छित होकर गिर पड़े। होश आने पर उन्होंने रानी से प्रार्थना की, “में
शीघ्र ही भरत को बुलाकर राजगद्दी दे दूँगा, लेकिन राम ने कया अपराध
किया है, जो उन्हें वनवास देने को कहती हो। यह वरदान न माँगो।” रानी
कैकेयी ने कहा, “अगर आपने अपनी प्रतिज्ञा का पालन न किया तो में आपके
सम्मुख ही प्राण छोड़ दूँगी। सारे संसार में आपकी बदनामी होगी।” राजा के
बार-बार प्रार्थना करने पर भी कैकेयी के ऊपर कोई प्रभाव नहीं हुआ।
होगी कि मेरे भाई भरत को राज्य मिले। मैं आज ही वन जाने को तैयार हूँ।” .
राम वहाँ से माता कौशल्या के महल में पहुँचे। उन्होंने माँ को प्रणाम
रहा है।
किया माँ ने आशीर्वाद देते हुए कहा, “बेटा, अभिषेक का समय हो
बड़े
यह भगवान् का प्रसाद खा लो, तब पिताजी के पास जाना।” राम ने
धेर्यपूर्वक कहा, “माँ, पिताजी ने मुझे चौदह वर्ष के लिए वन का राज्य दिया
है। मुझे इसी समय अयोध्या छोड़कर वन जाना है। मैं आपसे विदा लेने
आया हूँ। आप मुझे आशीर्वाद दीजिए।” पुत्र की बात सुनकर माँ स्तब्ध रह
गईं। उनके मुख से शब्द नहीं निकले। बड़ी कठिनाई से वे अपने
आपको सँभाल पाईं। राम माँ से बोले, “माँ, पिताजी का आदेश मुझे मानना
ही होगा। मुझे खुशी-खुशी वन जाने की आज्ञा दो। पितांजी इस समय दुखी
हो रहे हैं। आप उनकी देख-रेख करें। वनवास से लौटकर मैं आपकी फिर
सेवा करूँगा |” राम ने माँ के पैर पकड़ लिए। माँ ने सिसकियाँ भरते हुए
उन्हें जाने की आज्ञा दे दो। लक्ष्मण और सीता ने भी जिद करके राम के साथ
वन जाने की अनुमति ले ली। तीनों मे माता कौशल्या और सुमित्रा के चरणों
में प्रणाम किया और गुरु व राजा दशरथ को प्रणाम कर वन को चल पड़े।
१२० सहायक वाचन - ४
उधर सुमंत दुखी मन से राम से विदा होकर अयोध्या आए। लोग देख न
लें इस भय से वे सूर्य डूबने के बाद नगर में घुसे। वे सीधे राजमहल में
राजा दशरथ से मिलने गए। राजा दशरथ सुमंत को देखकर फूट-फूटकर रोने
लगे। सुमंत ने राम के गंगा तट तक पहुँचने का सारा हाल उन्हें बताया। सब
कुछ सुनकर राजा अत्यंत व्याकुल हो उठे। रोते-रोते वे बोले, “सुमंत, अपने
प्यारे पुत्रों को बनवास देकर अब एक भी क्षण जीने की मुझे इच्छा नहीं है।”
इस प्रकार बिलख-बिलखकर राम का नाम रटते हुए राजा दद्वरथ ने प्राण
त्याग दिए।
उसी समय वरिष्ठ आ गए। उन्होंने भरत को समझाते हुए कहा, बेटा
भरत, शोक त्यागो भाग्य बड़ा बलवान है। पिताके क्रियाकर्म की तैयारी
करो।” तब भरत ने धैर्य धारण करके गुरु की आज्ञा से पिता का श्रादूधकर्म
किया। चौदहवें दिन राज-सभा बैठी। गुरु वशिष्ठ और मंत्रियों ने भरत से
अनुरोध किया कि वे राजा होना स्वीकार करें। भरत ने निश्चय किया कि
मैं वन जाकर राम को अयोध्या वापस लौटने के लिए प्रार्थना करूंगा। भरत का
निर्णय सबको ठीक लगा। बहुत से अयोध्यावासी वन जाने को तैयार हुए।
सारा राज-परिवार भी भरत के साथ जाने को तैयार हुआ। केकेयी का स्वभाव
भी अब बदल गया था। वह भी वन जाने को तैयार थी। दूसरे ही दिन भरत
सबके साथ वन को चल दिए। राम जिस मार्ग से वन को गए थे भरत भी
उसी से चले। जब वे लोग गंगा के किनारे पहुँचे तो निषादराज के मन में
संदेह हुआ। बाद में यह जानकर कि भरत राम को मनाने. जाःस्हे हे
निषादराज ने भरत का स्वागत किया। निषादराज को साथ लेकर भरत
चित्रकूट के लिए रवाना हुए।
दूसरे दिन चित्रकूट में सभा बैठी। गुरु वरिष्ठ की आज्ञा से भरत ने
के
अपने आने का प्रयोजन कहा। गुरु वशिष्ठ और माताओं ने भी भरत
कथन का समर्थन किया। कैकेयी ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए सम से
बोले,
वापस अयोध्या लौट चलने का आग्रह किया। राम सबकी बातें सुनकर
पालन
“आपने धैर्य और न्याय के अनुकूल बातें कहीं हैं। पिता के आदेशों का
अपनी प्रतिज्ञा पालन करते हुए शरीर
करना ही पुत्र का धर्म है। पिता ने
का पालन
छोड़ दिया। अब हम दोनों का यही कर्त्तव्य है कि हम उनके वचनों
तात, आपके
करें।” उन्होंने सबको समझाया। निराश होकर भरत ने कहा-
इन्हें स्पर्श कीजिए।
बिना मैं आश्रयहीन रहँगा। मैं ये खड़ाऊँ लाया हूँ, आप
यदि आप अवधि
ये खड़ाऊं ही राज-काज में हमारा पथ-प्रदर्शन करेंगे।
चिता में अपने
समाप्त होने के दूसरे ही दिन अयोध्या न पहुँचे, तो में जलती
आपको भस्म कर दूँगा।”
से राम,
राम ने भरत को कंठ से लगा लिया। भरत अत्यंत दुखी मन
्या आ गए। भरत ने अयोध्या
लक्ष्मण और सीता से विदा होकर वापस अयोध
राज्य-सिंहासन पर राम कौ
से बाहर नंदि गाँव में एक कुटी बनाई और
लेकर वे राज-काज करने लगे। वे
पादुकाएँ स्थापित कराई। उन्हीं की आज्ञा
तपस्वी की तरह ही रहते थे।
दुखी हैं। राम ने राक्षस्रों का नाश करने की प्रतिज्ञा की। दंडक वन में राम ने
विभिन्न मुनियों के आश्रमों में कहीं दस मास, कहीं आठ मास, कहीं छह मास
रहते हुए दस वर्ष व्यतीत किए। अंत में अगस्त्य मुनि ने उन्हें पंचवटी नामक
स्थान बताया, जहाँ जाकर उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की और सुखपूर्वक
रहने लगे।
एक दिन राम, लक्ष्मण और सीता अपनी कुटी के सामने बैठे थे। उसी
समय रावण को बहिन जूर्पणखा बन में घूमती हुई उधर ही आ निकली। राम के
रूप को देखकर वह मोहित हो गई। उसने एक सुंदर सनी का रूप धारण किया
और सामने आकर बोली, “तुम इतने कोमल, सुंदर पुरुष होकर इस जंगल में
क्यों घूम रहे हो ?” इस स्त्री को छोड़कर तुम मेरे साथ चलो॥ मैं अपना राज्य
तुम्हें सौंप दूंगी।” राम ने शूर्पणखा की बातें सुनकर कहा, “मैं तो विवाहित हूँ,
मेरा भाई यहाँ अकेला है। अगर तुम चाहो, तो उसके साथ विवाह कर सकती
हो।” शूर्पणखा ने लक्ष्मण के पास जाकर वही प्रसताव रखा। लक्ष्मण ने कहा,
“तुमने विवाह का प्रस्ताव पहले मेरे बड़े भाई के सामने रखा था,
इसलिए मेरे लिए तो तुम पूज्य हो गई हो। अब तो तुम उन्हीं के साथ विवाह
कर सकती हो।” ज्ूर्पणखा क्रोधित होकर सीता जी को मारने दौड़ी। राम का
आदेश पाकर लक्ष्मण ने उस दुष्टा स्नी के नाक-कान काट लिए।
रावण उसकी बातें सुनकर बहुत क्रोधित हुआ। मारीच ने देखा कि मृत्यु
: दोनों प्रकार से निडिचित है। अतः राम के हाथों मरना ही अच्छा है। यह
निरचंय ऊरके उसमे अपना रूप मृग का बना लिया। उस्रकः जार बड़ा
लुभावना था। वह राम की कुटी के सामने चरने लगा। सीता उसे देखकर राम
से बोली, “इस मृग को पकड़ लीजिए।” राम मृग को पकड़ने के लिए
चल दिए! उन्होंने लक्ष्मण को सतर्क रहने का आदेश दिया। राम उस
स्वर्ण-प॒ण के पीछे दौड़ते हुए टूर निकल गए। वे उसे पकड़ नहीं पाए।
रामायण-कथा «* १२७
तब क्रोधित होकर उन्होंने एक तेज़ बाण से उसे मार डाला। मरते समय
मृग चिललाया- “हाय लक्ष्मण मुझे बचाओ ।” सीता ने यह शब्द सुन लिए।
उन्होंने समझा कि राम किसी मुसीबत में हैं। उन्होंने लक्ष्मण को तुरंत राम की
सहायता करने के लिए भेजना चाहा। लक्ष्मण जाना नहीं चाहते थे, किन्तु
सीता के कठोर वचन सुनकर उन्हें जाना ही पड़ा। उन्होंने जाते-जाते कुटी के
पास सीता की रक्षा के लिए एक रेखा खींच दी और उनसे कहा कि इस रेखा के
बाहर न जाएं।
रे //(/ ] न
रावण सीता को लिए जा रहा था। मार्ग में एक पहाड़ी पर वानरों का राजा
सुग्रीव अपने मंत्रियों के साथ बैठा था। सीता ने 'हे राम, हे लक्ष्मण' कहकर
अपने कुछ बस्र और गहने ऊपर से फेंक दिए। रावण ने सीता को ले
जाकर अज्ञोक-वाटिका में रखा। अनेक राक्षसनियाँ उनकी रखवाली करती
थी। उसने अनेक प्रकार से सीता को अपनी बनाने का प्रयास किया; किन्तु
सीता ने कभी उसकी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा।
राम मृग को मारकर जब वापस लौट रहे थे, तो लक्ष्मण उन्हें बीच में ही
मिल गए। लक्ष्मण को देखकर राम घबरा गए। बोले, “सीता को अकेली
किसी संकट में
छोड़कर तुम कैसे चले आए ? मुझे लग रहा है कि सीता
पड़ गई हैं।” लक्ष्मण ने उत्तर दिया, “तात, देवी सीता ने जब मुझे दुर्वचन
कहें तो विवञ्ञ होकर मुझे आना पड़ा।” राम और लक्ष्मण जल्दी-जल्दी
अपनी कुटी पर आए कुटी सूनी थी। दौनों बड़े व्याकुल हुएं। चारों ओर खोज
की किन्तु मौता का पता न लगा। खोजते-खोजते वे बड़ी दूर निकल गए।
तभी उन्हें घायल जटायु दिखाई पड़ा वह राम का नाम रट रहां था। उसने
बतलाया कि लंका का राजा रावण सीता का हरण करके ले गया है। उसी ने
मेरी यह दशा की है। यह समाचार सुनाने के बाद जटायु के प्राण-प्खेरू उड़
गए। अब वे जटायु के बताए अनुसार दक्षिण दिशा को ओर बढ़ चले।
वह विलाप कर रही थी। मुझे देखकर उसने अपने .वस्त्र और आभूषण फेंके
थे।” सुग्रीव ने सीता के आभूषण और वस्त्र राम को दिखाए। राम उन्हें देखकर
बहुत दुखी हुए। सुग्रीव ने उन्हें सांत्वना देकर सीता की खोज का आइवासन
दिया। राम ने सुग्रीव से पूछा, “मित्र, तुम इस निर्जन स्थान में क्यों रहते
हो 2” सुग्रीव ने बताया कि बालि मेरा भाई है। उसने मेरा राज्य और स्त्री सब
कुछ छीन लिया है। इस पर्वत पर ज्ञाप के कारण वह नहीं आता है, इसलिए मैं
यहाँ रहता हूँ। राम ने दूसरे ही दिन बालि का वध कर दिया और
किष्किंधा का राज्य सुग्रीव को दे दिया। सुग्रीव ने सीता को खोज में चारों
ओर वानरों को भेजा। चलते समय राम ने हनुमान को बुलाया और कहा-“बीर
हनुमान, यह अंगूठी अपने साथ ले जाओ। यदि सीता का पता लगे तो उन्हें
दिखा देना। वे अपनी सारी बातें तुमसे कह देंगी।” राम के चरणों में प्रणाम
करके हनुमान अपने दल के ज्ञाच चले। सनुद्र के किनारे पहुँचकर उत्हें पत्ता
लगा कि सीताजी लंका में हैं। हनुपान ने छलाँग लगाकर समुद्र पार किया
और लंका में पहुँच गए। सहसा वे एक महल में घुसे। वहाँ उन्हें राम धुन
सुनाई दी। हनुमान ने सोचा, “लंका में राक्षसों के बीच यह कौन सज्जन पुरुष
है, इसी से मित्रता करूँगा। यही सहायता कर सकेगा।” यह विचार कर वे
महल में घुस गए। वह महल रांवण के छोटे भाई रामभकत विभीषण का था।
हनुमान ने अपना परिचय उसे दिया। विभीषण ग्रसन्न हो गया। उसने अपनी
दुर्दशा की कहानी हनुमान को सुनाई, सीता देवी व अशोक वाटिका का पता
बताया। हनुमान छलाँग लगाकर पहरेदारों की दृष्टि बचाकर सीता को ढूँढने
लगे। एक वृक्ष के नीचे उन्होंने अत्यंत दुर्बल किन्तु तेजवती स्री को देखा वह
राम-राम का जाप कर रही थी। हनुमान ने समझ लिया कि वे हो सीता हैं।
उसी वृक्ष की शाखा पर चढ़कर वे बैठ गए। रात बीती। सुबह होते
ही रावण
*. संहायक वाचन “- ४
पा
करने का पुनः प्रस्ताव किया। सीता
वहाँ आ धमका। उसने सीता से विवाह
। तब वह तलवार उठाकर उन्हें
ने रावण की बात का कोई उत्तर नहीं दिया
पारने के लिए दौड़ा। कुछ शाला की निया
आल वर वहाँ से चला गया कि यदि एक महीने में मेरा
उसने विभीषण को अनेक कटु शब्द कहे और उसे मारने दौड़ा। विभीषण
अपने कुछ मंत्रियों के साथ राम की सेना में जा पहुँचा। राम ने उसका उचित
सत्कार किया और लंका का भावी राजा कहकर उसका राजतिलक कर टिया।
अब समुद्र के पार जाने का उपाय खोजा जाने लगा। राम की सेना में नल
और नील नाम के दो वानर थे। वे पुल बनाने के काम में बड़े चतुर थे। उन्हें
कि
ही यह काम सौंपा गया। वानरों की टोली-की-टोली पत्थर जुटाने लगी। नल
और नील उन्हें जमाने लगे। पुल बनाने का काम रात-दिन चला। छह दिन में
विद्ञाल पुल तैयार हो गया। सारे सैनिक सागर के पार पहुँच गए।
प्राणखखेरु उड़ गए। राक्षसों की सेना में भगदड़ मच गई। वानर सेना
हर्षध्वनि करने लगी। देवता ग्रसन्न हुए। उन्होंने राम की स्तुति की ।
युद्ध का अंत हो गया। राम ने लंका का राज्य विभीषण को सौंप दिया।
हनुमान ने अज्ञोक-वाटिका में जाकर राम की विजय का समाचार सीता को
सुनाया। वे राम से मिलने के लिए व्याकुल थीं। विभीषण सीता को एक
सुंदर पालकी में बैठाकर राम के पास लाया। इस प्रकार सीता ओर राम का
फिर से मिलन हुआ। वनवास की अवधि समाप्त होने पर राम अयोध्या लौट
आए भरत तथा अयोध्यादासी राम से मिलकर प्रसन्न हुए।
रामायण-कथा « शैरेर.
राम का राज्याभिषेक हुआ। सीता के साथ राम सिंहासन पर बेठे।
गुरूजनों ने उन्हें तिलक किया। राम राजा बन गए। वे अपने भाइयों और
प्रजा को सहमति लेकर राज कार्य करते थे। राम अपने को प्रजा का सेवक
मानते थे। उनके शासनकाल में प्रजा सब प्रकार से सुखी थी। धन-धान्य की
पे कोई कमी नहीं थी। चारों ओर खुद्नहाली दिखाई देती थी।
9 रामायण की यह कथा पहले संस्कृत में वाल्मीकि ने लिखी थी। फिर
बाद में अवधी बोली में तुलसीदास ने लिखी। तुलसीदास की रामायण भारतवर्ष
में सबसे अधिक लोकप्रिय पुस्तक है। वास्तव में राम का चरित्र एक आदर्श
पुरुष का चरित्र है और सीता का एक आदर्श स्त्री का। राम के चरित्र में *
सरलता, उदारता और बुद्धिमानी भरी हुई है। वे एक आदर्श मर्यादा पुरुष
राजा माने जाते थे। राम को इसीलिए मर्यादा पुरुषोत्तम कहां जाता है ।
| अभ्यास-
४१) दशरथ कहाँ के राजा थे. ?
(२) दशरथ को कौनसी चिन्ता व्याकुल किए रहती थी ?
(३) उनकी चिन्ता कैसे दूर हुई ?
(४) विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण को अपने साथ बन क्यों ले गए ?
(५) विद्वामित्र का यज्ञ बिना किसी बाधा के कैसे पूरा हुआ ?
(६) राम का विवाह सीता के साथ केसे हुआ ?
(७) दशरथ ने राम को राज-काज सौंपने का क्यों निरचय किया ?
(८) राम को वनवास क्यों मिला ?
(९) भरत ने राजसिंहासन क्यों नहीं स्वीकार किया ?
(१०) चित्रकूट में राम-भरत के मिलन का संक्षेप में वर्णन करो।
श्शे६ सहायक वाचन - ४
._ राष्ट्रमीत की रचना गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाक्र ने की थी। इसमें संपूर्ण देश के लिए
मंगल- है ड्राप्ट्रगीत और राष्ट्रध्वज का सम्मान करना हमारा कर्त्तव्य है । जब राष्ट्रगीत
है छाप ३ ४
गाया जाय या उसकी धुन बजाई जाय अथवा राष्ट्रध्वज फहराया जाय, तब हमें सावधान की स्थिति में
खड़े होकर देन सम्मात देना चाहिए |)
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