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भध्यप्रदेश पाठयपुम्तक निगम


यह पृ थ्वी हमारी हे
यह आकाश हमारा हे
ये नदियाँ, वन, पर्वत हमारे हें
ये वृक्ष, चिड़ियाँ और हवा हमारी हे

खान-पान रहन- सहन


आचार-विचार अलग- अलग हो
पर हम सब भारतीय हें
और एक हें

सब बराबर हों
सबमें भाईचारा हो
सब सम्रद्ध हों
सबको न्याय मिले
ऐसा भारत हम बनायेंगे।
सहायक वाचन _
कक्षा ४

| लेखक - मंडल
डॉ. के. जी . रस्तोगी श्री जी . के. चरटुर्वेदी
डॉ. पी . के. खन्‍ना श्री माधव जाउलकर

संपादक - मंडल

डॉ. पी. डी. भटनागर _


डॉ. विनय मोहन शर्मा
अस्तावना
बालकों को भाषा तथा गणित की शिक्षा देने के साथ ऐसे विषयों का भी ज्ञान
देना चाहिए जो उन्हें प्राकृतिक एवं सामाजिक वातावरण से परिचित कराएँ तथा
जीवन की विभिन्‍न परिस्थितियों के साथ सामंजस्य स्थापित करने की क्षमताएं,
कौशल एवं प्रवृत्तियाँ विकसित करने के अवसर प्रदान करें। इसीलिए पाठ्यपुस्तक
निगम ने कक्षा ४ के लिए सहायक वाचन की इस पुस्तक का निर्माण कराया है।
प&' और मनुष्य का संबंध आदिम काल से चला आ रहा है। प्रस्तुत पुस्तक में
कई सुंदर अनोखे, घरेलू एवं पालतू पक्षियों का वर्णन है, जेसे - गौरेया, कौआ,
कबूतर, त.गा, कोयल, बुलवुल, चील, उल्लू, बतख, बगुला, सारस, हंस, चकवा,
पपीहा, नील्‍कंठ आदि। स्वावलंबन, आत्मविश्वास, स्वतंत्रता श्रेम आदि नैतिक
गुणों की शिक्षा इन पक्षियों के माध्यम से दी गई है। इस पुस्तक में जल के परिचित
जीव जंतुओं के अंतर्गत विभिन्‍न जातियों की मछलियाँ, मगर, घड़ियाल, कछआ
केंकड़े आदि की जानकारी हे। कार्यानुभव का समावेश स्वावलंबन एवं
जीवकोपार्जन के लिए आवश्यक क्षमताओं के विकास के लिए किया जाता है।
बागवानी के साथ ही गुलाब मोंगरा, रातरानी आदि सुगंधित व सुंदर फूलों का एवं
अन्य खूबसूरत फूलों का वर्णन है। शिक्षाप्रद एवं मनोरंजक कहानियों का चयन भी
पुस्तक में हे। इन सभी पक्षियों, जलजीवों और जंतुओं एवं पुष्पों के विश्लेषण द्वारा
लेखकों ने एक अच्छे सामाजिक बनाने में छात्रों को सहायता की है।
इस पुस्तक को अंतिम स्वरूप प्रदान करने में हमें लेखकों तथा संपादकों के
अतिरिक्त हिन्दी विषय विशेषज्ञ समिति के सर्दस्यों का भी मूल्यवान सहयोग
ग्राप्त हुआ है। में इन सबका आभारी हूं।
- भोपाल : १९९० प्रबंध संचालक

७ मध्य प्रदेश पाठ्यपुस्तक निगम

मुद्रक :- पोरवाल फाईन आर्ट ऑफसेट वर्क्स प्रा. लिमिटेड, भोपाल


दवारा मध्यप्रदेश पाठ्यपुस्तक निगम के लिए मुद्रित ।
विषय-सूची _
अध्याय १
सुंदर पक्षी
लेखक : डॉ. के. जी. रस्तोगी

दे
पाठ * पृष्ठ

हमारो॥परितिता पक्षी 0४३ हा ता का १


मंगल गलत ली । कि 0 आय ६
सटे पक्षी 00० ।0,80 ॥75 0५३४० १७
शिकारी ली ३४८ २०४७ हो. ५ ५५४४7
आन २१
जलन के पी 0 28 8088 00४ ४५0१३ ९ ५ 7, २७
अन्य पक्षों 270 कम
सह आता 2११६ ३४
अध्याय २
जल के जीव-जंतु
लेखक : श्री जी . के. चतुर्वेदी

गत जीनता आज ४३
गति गाल रहना जीत ४ प्‌
अध्याय ३

फूल - पौधे
तलेगाएज ठा. पी के खत्नो

क्रम पाठ पृष्ठ


यम 00008. ०० १८००० ५७
२. गुलाब की उन्नत किसमें तैयार करने की विधियाँ ........ ६२
मा लता ६५
4५ लग लग 2000८ 0 0) ७०
पल गला मन 9१
अध्याय ४
बाल कहानियाँ
संकलनकर्त्ता : श्री माधव जाउलकर

१. तोता - रटंत श्री रामेश्वरदयाल दुबे .......


२, सिंह और खरगोश श्री अनंत मराल शास्त्री .......
३. वफादार नेवला खकातिता व
४. सूरज और चाँद की दुश्मनी सुश्री मेहरुन्निसा परवेज .....
५. चुरकी - मुरकी कतित 0) 08220 2200: ५
६. लाखा महल डॉ. ठा.भा. नायक .........-*-
७. बालक चंद्रगुप्त श्री. जयशंकर (प्रसाद ........
८. गुरुदक्षिणा श्रीक्षरा जरा तक 22720
९, जंगली भैंसे से भिड़ंत श्री हेमेन्द्रनाथ .......-----*--
५०. रामायण - कथा राय नि
अध्याय १

सुंदर पक्षी
९, हमारे परिचित पक्षी
च्चो ! अभी तुम मीठी नींद में सोए हुए हो कि मुर्गा बाँग देने लगता है-
कुकड़्‌ कूं। कहता है सवेरा होने वाला है। बाँग सुनकर लोग आलस छोड़
उठने लगते हैं। इतने में सवेरा हो जाता है। उजाला होते ही पक्षी पंख
फड़फड़ाकर जाग उठते हैं और चहचहाने लगते हें। लगता है चहचहाकर
वे दिन का स्वागत कर रहें हैं। सूरज निकलने के बाद तुम भले ही विस्तर
में पड़े रहो, पर किसी पक्षी का अपने घोंसले में पड़ा रहना प्रायः असंभव
हो]
मुँडेर पर धूप फैली कि कौआ आकर काँव-काँव करने लगता है। गौरैया
आँगन में फुदकने लगती है। गुरसलें भी आकर ताक-झाँक करने लगती हें।
इसी समय आसमान में पक्षियों की एक टेढ़ी पंक्ति सर्र से उड़ती निकल
जाती है। तुम दादी से पूछते हो तो वे बताती हैं कि ये गंगा नहाकर आ रहे
हें।
पाठशाला से घर लौटने पर यदि तुम्हारा पालतू तोता गंगाराम प्रसन्नता
से टें-टें करने लगे और कहने लगे-भैया आए, तो तुम्हारा मन प्रसन्नता से
नाच उठेगा न ! वसंत ऋतु में जब आम पर बोर आ जाता है, तब आम की टहनी
पर मीठे स्वर में कूकती कोयल को कुह-कुह की तान किसका मन नहीं मोह
लेती ? कबूतर को गुटर-गूँ कितनी प्यारी लगती है ? नाचता हुआ मोर कितना
२ सहायक वाचन - ४
सुंदर लगता है? और तो और, आँगन में फुदकती हुई चिड़ियाँ भी हमारे
मन को आकर्षित कर लेती हें।
बड़ा विचित्र है यह पक्षी जगत ! गोौरेया थोड़ी दूर तक ही उड़ पाती
है तो हज़ारों मील दूर तक उड़ने वाले पक्षी भी हैं। जब संसार के उत्तरी
प्रदेशों में कड़ाके की सर्दी पड़ती है तो वहाँ के कुछ पक्षी हज़ारों मील की
यात्रा करके गर्म देशों में आ जाते हैं। कुछ पक्षी कम ऊँचाई पर उड़ते हें तो
कुछ ऐसे भी हैं जो आकाझ में काफी ऊँचाई तक उड़ते हैं। चील और गिद्ध
|
ऐसे ही पक्षी हैं। इनकी दृष्टि भी बहुत तेज़ होती हे। ऊँचाई पर उड़ते-
उड़ते नीचे जमीन पर अपने भोजन की तलाश करते रहते हें। कुछ पक्षी
ऐसे भी हें जिन्हें केवल अंधकार ही अच्छा लगता है। उल्लू को तो तुम सब
जानते ही हो ।
रहने-सहने के विषय में भी पक्षियों की अपनी-अपनी पसंद हैं। कोई
बस्ती से दूर खंडहर में रहना पसंद करता है तो कोई बस्ती के सुरक्षित मकानों
में। कोई पेड़ की ऊँची टहनी पर बसेरा करता-है तो कोई पत्तियों के झुरमुट
में। बया का घोंसला तो तुमने देखा ही होगा। पेड़ की मज़बूत टहनी में
लटकाकर हवा में झूलने वाला घोंसला बनाती है यह चिड़िया। दर्जिन
चिड़िया कुशल दर्जी की तरह पत्तों को मोड़कर घास के धागों से सी लेती
है। यही उसका घोंसला है। गिदूध, चील आदि बड़े पक्षी पेड़ों की ऊँची
टहनी पर बसेरा करना पसंद करते है। हंस, चकवा, बतख आदि ऐसे पक्षी है
जो जल में सुविधापूर्वक तैर सकते हैं। बगुला ऐसा पक्षी है जिसे भोजन की
सुविधा के लिए ताल-तलैया के समीप रहना पसंद है। पर इतना अवश्य हे
कि सब अपनी सुरक्षा की दृष्टि से ही बसेरे का स्थान चुनते हें।
डील-डोल भी सभी पक्षियों का एक-सा नहीं होता। भोजन भी इनका भिन्‍न
हमारे परिचित पक्षी ३
होता, कुछ दाना-दुनका चुगते हैं, कुछ कीड़े-मकोड़े खाते हें। कुछ
फलाहारी हैं तो कुछ मांसाहारी। किसीको चोंच छोटी होती हे तो किसी की
लंबी; किसी की सीधी तो किसी की मुड़ी हुई, नुकीली। रंग-रूप भी इनका
भिन्‍न-भिन्‍न होता है। हंस व बगुला सफेद होते हैं तो कोआ व कोयल काले।
कोई एक रंग का है तो कोई रंग-बिरंगा।
रंग-रूप डील-डौल, आकार-प्रकार, भोजन, स्वभाव आदि में भिन्‍न होते
हुए भी सभी पक्षी एक बात में समान हैं कि ये उड़ते हैं। सारा आकाश इनका
है, जिधर जी चाहा उड़ गए। सभी अपने-अपने ग़त्रुओं को जानते-पहचानते
हैं, उनसे सतर्करहते हैं। तुमने देखा होगा कि बिल्ली को देखते ही गौरैया
चीं-चीं करने लगती है, कौए काँव-काँव करके उसके पीछे पड़ जाते हें।
कोई साहसी कौआ तो उसे ठुँगा मारकर फुर्ती से उड़ जाता है, मानों बता देना
चाहता हो कि हम भी कम नहीं हें।

पक्षियों का अपना समाज होता है। बहुत से पक्षी तो झुंड बनाकर रहते हैं।
शत्रु पर मिलकर आक्रमण करते है, मिल-जुलकर खाते है, मिल-जुलकर
रहते हैं। तुमने देखा होगा कि खाने की सामग्री को देखते ही कौआ
काँव-काँव करने लगता है। सुनकर सब उस पर आ जुटते हैं। उन्हें
अकेले-अकेले खाना पसंद नहीं। परंतु उल्लू जैसे कुछ पक्षी अकेले ही रहना
पसंद करते हैं। अपनी-अपनी सुविधा और समझ ही तो हे।

पक्षी और मनुष्य का संबंध अनादिकाल से चला आ रहा है। हमारे


देवी-देवताओं से भी इनका निकट का संबंध है। गरूड़ विष्णु भगवान का
वाहन है, मोर स्वामी कार्तिकय का। हंस-वाहिनी सरस्वती और
उलूक-वाहिनी लक्ष्मी के चित्र तो तुमने भी देखे होंगे। प्रसिदूध हे कि

वििकि#3७......... 52 23 068 «5607४ 30% 2०/७०/6884 4 + +0/ि+ ४ श॑िक:। 2८ मं +29०02220 6. ६ ०५४ व 8 वीक अं
_ 4५%] सहायक वाचन - ४

दमयंती ने हंस के द्वारा राजा नल के पास संदेश भिजवाया था। तोता और


मैना पालने का रिवाज भी बहुंत पुराना है। लोग शौक के लिए बुलबुल, तीतर
और बटेर भी पालते हैं। पालतू कबूतर अच्छे संदेशवाहक सिद्ध हुए हैं।
मुर्गा-मुर्गी पालना तो एक आम बात हो गई है। मोर भी आसानी से पालतू बन
जाता है। यह बात दूसरी हे कि वह नाचेगा तब, जब उसकी इच्छा होगी। उसे
तुम्हारी मित्रता स्वीकार है, दासता नहीं।
पक्षियों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। सबसे प्रमुख बात जो पक्षियों
से सीखी जा सकती है, वह है स्वावलंबन एवं आत्मविश्वास की भावना। पक्षी
संचय में विज्वास नहीं करते। वे तो नित्य कुआँ खोदकर पानी पीने वाले
जीव हैं। दूसरी बात जो पक्षियों से सीखी जा सकती है वह है स्वतंत्रता- प्रेम।
पक्षी दासता को सहज स्वीकार नहीं करते। सभी जाति के पक्षियों को
पकड़कर पालतू नहीं बनाया जा सकता। दूसरे हम जिन पक्षियों को
पकड़कर पिंजरे में बंद कर लेते हैं, वे भी दासता का डटकर विरोध करते
५७ २४५७०.-०००० ००००६-७४००००३२८-७२.०००-०नक>-मडण्के+कवम

हैं। तीसरी बात जो पक्षियों से सीखी जा सकती हे वह है परिश्रम की भावना।


क्या तुमने कभी किसी पक्षी को सूरज निकलने के बाद आलस्य में पड़े
देखा है ? इधर-उधर उजाला फेला कि पक्षी पंख फड़फड़ाकर रात की
सुस्ती दूर करके अपना-अपना वसेरा छोड़ उड़ जाते हैं। चौथी बात हम
उनसे यह सीख सकते हें कि हर हालत में प्रसन्न रहें। उन्हें भोजन जुटाने में
परिश्रम करना पड़ता है, भाग-दौड़ करनी पड़ती है। पर क्या इसी में दिन
गुजार दिया जाए ? खा-पीकर किसी पेड़ की डाली पर बैठकर मस्ती से
चहचहाने में जो मजा है उसे क्‍यों छोड़ा जाए। जीवन में आनंद के लिए भी
तो समय होना चाहिए। 5

इनके अतिरिक्त, पक्षियों में और बहुत से गुण हैं। जरा-सा भुजंग


हमारे परिचित पक्षी प्र
अपने से सवाए, ड्योढ़े आकार के पक्षी के सामने ताल ठोंककर खड़ा हो
जाता है। मुर्गा भी बहुत साहसी होता है। उसकी उपस्थिति में मुर्गियाँ बेखटके
दाना-दुनका चुगती रहती हैं। बटेर और तीतर भी विपक्षी से आसानी से हार-
नहीं मानते। सहयोग और सहकारिता का पाठ पढ़ना हो तो कौओं को देखिए।
वे मिल-जुलकर रहते हैं, मिल-जुलकर खाते हैं। शत्रु पर आक्रमण भी
मिल-जुलकर करते हें।
पक्षी सदा सावधान रहते हैं। उनका एक ञात्रु तो है नहीं, अनेक हें जैसे-
कुत्ता, बिल्ली, नेवला आदि। बाज, उल्लू जेसे शिकारी पक्षी भी उनकी जान
के ग्राहक हैं। छोटे-छोटे नटखट बच्चे गुलेल उठाए उनके पीछे पड़े रहते
हैं। अब यदि वे सावधान न रहें तो कैसे काम चले। “काक चेष्टा' तो प्रसिद्ध
है ही, वह सदा चौकन्ना रहता है। एकाग्रचित्तता सीखनी हो तो बगुले से
सीखे। घंटों एंक पैर पर एक हीमुद्रा में खड़े रहना साधारण बात नहीं।

सोचो तो, पक्षियों के बिना यह जगत केसा लगता-सूना-सूना और बीरान।


इनके कलरव के बिना यह विस्तृत आकाश काट खाने को दौड़ता। वृक्षों के
झुरमुट शांत खड़े रहते। सवेरा तब भी होता पर उसकी सूचना कौन देता ?
जानते हो इस प्रकार ये पक्षी हमारा कितना उपकार करते हें।
आओ, मानव-समाज के इन अभिन्‍न मित्रों के विषय में और अधिक
जानकारी प्राप्त करें।

अभ्यास

(१) काले ओर सफेद रंग के दो-दो पक्षियों के नाम लिखो।


(२) पक्षी जगत को लेखक ने विचित्र क्यों कहा हैं ?
(३) किस बात में सारे पक्षी समान होते हें?
सहायक वाचन - ४

(७४) पक्षियों से हमें कौन-कौन-सी रिक्षाएँ मिलती है?



पक्षी और मनुष्य का आदिकाल से संबंध लेखक ने किस प्रका
बताया है ?
(६) बया, तोता और मुर्गे के संबंध में दो-दो वाक्य लिखो।
(७) नीचे के वाक्यों में खाली स्थान भरो :--
(00000 07% चिड़िया कुशल दर्जी की तरह पत्तों को क्ष

मोडकर घास के धागों से घोंसला बनाती है।


(9 ४ 28७४ ॥॥३ ६.४६ अकेले रहना पसंद करता हे।
(ग) लोग शौक के लिए ................. पालते हैं।

२. घरेलू ओर पालतू पक्षी


भोजन तथा निवास की सुविधा के लिए कुछ चिड़ियाँ बस्ती में या
उसके आसपास रहना पसंद करती हैं। इनमें सबसे अधिक परिचित
चिड़िया है गौरेया ।
गौरेया :
चिड़िया कहते ही शायद जिस पक्षी का चित्र हमारी आँखों के सामने
आता है, वह है गौरैया। गौरौया घरों में ही रहती है; वहीं घोंसला बनाती है, अंडे
देती है और दिन भर आँगन में, दालान में, रसोईघर में फुदकती रहती है।
दाल, दलिया, अनाज, आटा, कीड़े-मकोड़े- कुछ-न-कुछ दिन-भर चुगती
ही फिरती है। गौरैया बड़ी भुक्कड़ होती है। फसल के दिनों में ज्वार
बाजरा, गेहँ, चना जौ आदि के गदराते ही ये झुंड की झुंड खेतों में जा
“पं 7! जेंधारा किसान उड़ाते-उड़ाते- थर्क जाता है। पर सोचता हे
घरेलू और पालतू पक्षी ७
कितना खा जाएँगी ? और फसलों को खराब करने वाले कीड़ों को नष्ट
करने की सेवा के फलस्वरूप थोड़ा-सा अन्न खा भी लें तो कया हरज हे।
गौरैया भारत में सब जगह मिलती है। नर का रंग कुछ ललौहाँ और मादा
का कुछ भूरा होता है। चोंच दोनों की भूरे रंग की होती है। अंडे देने से पहले
नर और मादा दोनों को मिलकर सुरक्षित स्थान में घोंसला बनाते तो तुमने
देखा ही होगा। उस समय इनकी तत्परता और परिश्रम देखते . बनता है।
मादा एक बार में पाँच-छह तक अंडे देती है। अंडों से निकलते ही बच्चे
भूख से चिचियाने लगते हैं। तब अपना खाना-पीना भूलकर नर और मादा
उनके लिए नरम-नरम खादूय की तलाश में दिन भर भटकते हते हें। बच्चे
सयाने हो जाते हैं तो नर और मादा मिलकर उन्हें उड़ना सिख् ते हें।
गौरैया को धूलि-स्नान बहुद प्रिय है। जी चाहने पर पानी में भी स्नान
करने में इसे आनंद आता है। देखने में छोटी भले ही हो गौरैया
लड़ने-झगड़ने में खूब तेज़ होती है। और नहीं तों घोंसला बनाने के स्थान
को लेकर ही ये झगड़ने लगती हें। छीना-झपटी इसका स्वभाव हे। रोटी
पकाती गृहिणी के आटे को चोंच में भर कर फुर्र से उड़ जाता है। डरपोक
होते हुए भी बहुत ढीठ होती है यह ।
गौरेया स्थानीय पक्षी है। अपने निवास से दूर जाना इसे पसंद नहीं। लंबी
उड़ान इसके बस की नहीं। ननन्‍्हा-सा पेट भरने लायक घरटरों में कुछ-न-कुछ
मिल ही जाता है, तो फिर दूसरी जगह क्यों जाए।
कोआ :

गौरैया जैसा ही परिचित घरेलू पक्षी है कौआ। दिन निकलते ही यह


घरों को मुँडेरों पर आ बैठता है और खाने. की चीजों की तलाश में ताक-झाँक
४! सहायक वाचन - ४
करने लगता है। मौका लगते ही उसे झपटकर उठा ले भागता है।

कौए का रंगहोताकालहै,ा यहहोतातो है,तुम गरद न जानतभूरीे औरहो। लचीली होती है। कौआ४
कित ना चौकन्‍्ना सभी
कौआ भारत में सभी जगह मिलता है, परंतु स्थान-भेद से मनुष्यों की
भाँति इसके रंग-रूप में भी काफी अंतर पाया जाता हेै। उत्तर के पहाड़ी
प्रदेशों में पाए जाने वाले कोए मध्यप्रदेश तथा दक्षिण में पाए जाने वाले
कौओं से भिन्‍न हें।
रंग-रूए, डील-डौल में भिन्‍न होते हुए भी स्वभाव सबका प्रायः एक-सा
होता है। ये मेलजुल कर रहते हैं, मिल बाँठकर खाते हैं तथा सब मिलकर
ही अपने शत्रु पर आक्रमण करते हैं। इनमें बड़ी एकता होती है। कभी किसी
कौऐ के बच्चे को पकड़ तो लो, सारे कोए काँव-काँव करके इकट्टे हो
एँगे और बुरी तरह पीछे पड़ जाएँगे। बिल्ली को देखकर तो ये उसके
पीछे ऐसे पड़ते हैं कि वह बेचारी छिपकर ही जान बचाती है। कोई-कोई
साहसी कौआ तो उसके टुँगा मारने में भी नहीं चूकता।
कौआ सर्वभक्षी है। रोटी, भात, मांस, मछली- जो कुछ भी मिले सब चट
कर जाता है। चूहा, छिपकली, गिरगिट, मेंढक, कीड़े-मकोड़े सब कुछ
रख लेते हें। खुद गदगा खाकर आसपास क वाताबरण का सफाइ करक यह

हम पर बहुत उपकार करता है। इस दृष्टि से यह सफाई का दरोगा हे।


नरम-नरमस दूधिए भुटटों का तो यह बहुत ही शौकीन है। अपनी मजबूत चोंच
से भुट्टे को बड़ी सफाई से तोड़कर ले भागता है। किसान बेचारा कहाँ
तक रखवाली करे। छोटे-छोटे बच्चों के हाथ से रोटी छीनकर भागते हुए तो
इसे तुमने देखा होगा।,
घरेलू और पालतू पश्नी
पंडुक ४


गरैया और कौए के अलावा पंडुक भी परे र्घाउसा है। इसे
या गेंडकी भी कहते लिया प्राय: सारे देश पे म लती है।

पंडक बनावट में कबूतर जेसी होती है। रंग इसका भरा, कुछ
कत्थई-सा होता है। आँखों की पुतलियाँ काली होती है जो इसके रंग के रा |
और भी खिल उठती हैं । रंगों का यह मेल इसकी सुंदरता में चार-चॉढ 8 ॥
टैता है।

पंडुक बड़ी मस्त चिड़िया है। दाना-दुनका चुगना और मजे से वा-फ


छह
करके गाना - इसके सरल स्वभाव की विशेषता है। बस्ती में पेट न भरे तो
आसपास खेतों में भी चली जाती है।
पंडुक साल भर अंडे देती है। इसका घोंसला बहुत फूहड़ ढंग का बन
होता
(ः है। साधारणतया यह बबूल, खेजड़े के पेड़ों पर सूखी लर्काड़वां
इकट॒ठी करके घोंसला बना लेती है। ऐसा लगता है किसी ने मचान बनाया हो।

पंडक बहत भौली-भाली चिड़िया है। यह जोड़ा बनाकर रहती है। ३


77
| । को गर्मी की ऋत विशेष पसंद है। इसका बोलना गर्मियाँ शुरू
0
ह् नै
५३७५

का सूचक है। सर्दियों में धूप निकलने पर ही इसे वालते सुना गया ह
जब दिन जरा गरमा जाते हैँ ओर बड़े होने लगते हें तो दीवारों ओर पेड
की छाया में गला फुलाकर कू-कू करती हुई पंडुओं की जी डी वह ॥ 0

रे
कबूतर :
क्रवृतर से तुम सभी परिचित होगे। यह भी घरेलू चिड़िया यह
पालतू चिड़िया भी है। इसे. पालकर सिखाया भी जा सकता है।
१० सहायक वाचन -> ४

कबूतर कई रंगों के होते हे- सफेद, चितकबरे, भूरे, ललौंहे। परंतु


इनका रंग अधिकतर स्लेटी अथवा सुर्मई होता है। डील-डौल में ये पंडुक से
कुछ बड़े होते हैं। सलेटी रंग के कबृतरों को प्रायः कम ही पाला जाता हे;
अधिकतर लोग रंगबिरंगे कबूतरों को ही पालते हैं। यह शायद सुंदरता के
कारण है या स्‍्लेटी रंग के कबूतरों की आजाद प्रकृति के कारण।
जो लोग कबूतरों को पालते हें वे उनके लिए दड़बे बना लेते हैं। लोग
इन्हें उड़ाने के शौक के लिए ही पालते हैं। कबूतर को हाथ में पकड़कर
हवा में उछाल दो। फिर तो वह आसमान में घंटों उड़ता रहता है। अड्डे की
ओर आने लगता है तो सीटियाँ बजाकर लोग उसे फिर उड़ा देते हैं। लोग
देखते रहते हैं कि उनका कबूतर कितना ऊँचा और कितनी देर तक उड़ता
है।
कबूतर बड़ा विश्वसनीय संदेशवाहक है। उसके गले में या पंजे में
चिट्ठी बाँधकर उस स्थान की ओर उड़ा दिया जाता है जहाँ संदेश भेजना होता
हे।

स्थल पर कबूतर को दुश्मन है बिल्ली और आकाश में बाज।पर यह दोनों


से चौकन्‍्ना रहता है। कबूतर घोंसला नहीं बनाता। रात होने पर मकानों के
छज्जों के नीचे बने कंगूरों में, मकान की कड़ियों पर पड़े गर्डरों पर या
रोशनदान जैसे अन्य सुरक्षित स्थानों पर रात गुजार देता है। तुमने देखा होगा
कि कस्बों की मंडियों में जहाँ अनाज पड़ा रहता है; सैकड़ों-हजारों कबूतर
बेखटके दाना चुगते रहते हैं। दानी लोग भी इनके लिए बाजरा, ज्वार डाल
देते हें।

पंडुक को तरह कबूतर भी भोला-भाला व शांत स्वभाव का पक्षी है।


घरेलू और पालतू पक्षी ँ ११

दाना-दुनका चुगकर नर तो गुटर-गूँ, गुटर-गूँ करता गाता-नाचता रहता है।


मादा बड़ी शान से कभी यहाँ तो कभी वहाँ फुदकती-उड़ती रहती है। नर भी
उसके पीछे-पीछे जा पहुँचता है और गुटर-गूँका गाना शुरू कर देता है, नर
और मादा में बहुत प्रेम होता हे। कबूतर का जोड़ा प्रसिद्ध है।

गुरसल :
एक और घरेलू चिड़िया है गुरसल। भिन्‍न-भिन्‍न स्थानों पर इसे
भिन्‍न-भिन्‍न नामों से पुकारा जाता है। कहीं इसे गुलगुचिया कहते हैं, कहीं
गिलगिलिया, कहीं जंगली मैना। इसका रंग धूसर-भूरा, चोंच पीली, आँखे
बड़ी और चंचल होती है; डील-डौल में कौए से आधी, पर बहादुरी में उससे
सवाई होती है।
अनाज, रोटी, भात के अलावा गुरसल कीड़े-मकोड़े भी खा जाती है।
झींगुर, झिल्ली, मकड़ी, पतंगे, टिड्डे इसके प्रिय भोजन है। किसान खेत
में हल चलाता है तो यह उसके पीछे-पीछे चलकर मिट्टी में से निकलते हुए
कीड़े-मकोड़े खाती रहती है। किसान जब खेत में पानी देता है तो मिट्टी
तथा ढेलों में छिपे कीड़े-मकोड़े बाहर आ जाते हैं। बस, गुरसल की मौज
हे।
गुरसल बहुत फुर्तीली, चंचल, चौकन्नी, बहादुर और गर्म मिजाज़
चिड़िया है। ज़रा कौआ इसके घोंसले के पास फटक तो जाए, यह अकेली
ही उससे भिड़ने को तैयार हो जाएगी। बिल्ली को देखते ही शोर मचा देती
है। घरों की मुँडेर पर बैठकर रसोईघर में ताक-झाँक की और जो मिला, बड़ी
सतर्कता से उठाकर भाग खड़ी होती हे। बोली इसकी कौए-सी कर्कश तो नहीं
१२ सहायक वाचन - ४

है पर कोयल-सी मीठी बोली भी नहीं है। यह आपस में खूब लड़ती-झगड़ती


है।
गुरसल बहुत स्वार्थी चिड़िया है। अपने स्वार्थ के लिए खुशामद
करने से भी नहीं चूकती। गाँवों में यह भैंसों के सींगों पर, पूँछ की जड़ में
और बालों में छिपे कीड़े खाने के लिए जा बैठती है। इससे भैंस को बहुत रा

आनंद आता है। वह आँख बंदकर आराम से खड़ी रहती है। यह बड़े प्यार , |
से उसके शरीर पर से कीड़ों को खाती रहती है। भैंस आराम से पैर फैलाकर ।
लेट जाती है। तब यह उसके खुरों और थनों में छिपे कौड़ों की सफाई कर
देती है। कहावत प्रसिद्ध है कि खुशामद से तो गुरसल भैंस को भी लिटा
देती है।
मुर्गी :
मुर्गी-मुर्गा भी पालतू घरेलू चिड़ियाँ हैं। मुर्गा भोर होने से बहुत पहले
ही जाग जाता है तथा 'कुकड़ूँ-कूं' बाँग देकर बस्ती भर को भोर होने की सूचना
दे देता है।
मुर्गा साधारणतया सफेद, लाल और काले रंग का होता है। सिर पर
शानदार लाल कलंगी होती है। चलता है तो लगता है, कोई पहलवान अकड़
कर चल रहा है। वैसे होता भी यह बहादुर है। मुर्गियाँ और उसके चूजे
बेखटके दाना-दुनका ओर कीड़े-मकोड़े चुगते रहते हैं तथा मुर्गा उनकी
रखवाली करता रहता है। खुटका होते ही उन्हें सावधान कर देता है तथा स्वयं
ताल ठोककर शत्रु का सामना करने खड़ा हो जाता है। चोंच और पंजों का
झपट्टा मारकर यह विपक्षी को भागने पर मजबूर कर देता है।
घरेलू और पालतू पक्षी ४ श्र
मुर्गा लड़ाकू पक्षी .है। दो मुर्गे जब लड़ते हे तो बड़े दाँव-पेच के
साथ लड़ते हैं। लड़ते समय चोंच-पंजों का प्रयोग करते हैं। कुछ लोग
इन्हें केवल इसी शौक के लिए पालते हैं।-वे अपने पटठों को तगड़ी खुराक
खिलाते हैं और शर्त बद-बदकर लड़ाते हें। वैसे लोग मुर्गी-मुर्गा को अंडों
के लिए ही पालते हें।
ज्क्र

कठफोड़वा :
कठफोड़वा को तो तुमने देखा ही होगा। पक्षी तो यह छोटा-सा ही होता है
परंतु इसकी चोंच लंबी और मजबूत होती है। इसका सिर ललौहाँ होता है और
उस पर लाल कलंगी-सी होती है। इसका पेट और छाती चितकबरी होती हे।
पीठ पर सुनहरी धारियाँ होती हैं तथा दुम काली होती है।
कठफोड़वा का प्रमुख भोजन है-पेड़ों की छाल और घास में छिपे
कीड़े-मकोड़े। पेड़ों की छाल में छिपे कोड़ों को निकालने के लिए यह
उसमें छेद कर देता है। बस्तियों में छप्परों के बाँस में या कूड़े के ढेर में
छिपे कीड़ों की तलाश में लगा रहता हे।

कठफोड़वा चंचल स्वभाव का पक्षी है। नर और मादा दोनों भोजन की


तलाश में इधर उधर उड़ते रहते हैं। जरा-सा खुटका होते ही फुर्र से उड़
हें। अमल

इन पक्षियों के अलावा तुम्हें घरों के आसपास घूमती हुई और भी अनेक


चिड़ियाँ मिलेंगी। कुछ ऐसी हैं जो विशेष मौसम में दिखाई पड़ती हैं और
कुछ दिन के विशेष समय में। उन सबको ध्यान से देखो। उनके रंग-रूप,
श्ष सहायक वाचन - ४

स्वभाव, भोजन आदि के विषय में ज्ञात करो। ये पक्षी हमारे रात-दिन के
साथी है।
अभ्यास

(१) गोरैया का स्वभाव केसा होता है ?


(२) कौए को सफाई का दरोगा क्‍यों कहा जाता है ?
(३) कबूतर की बनावट कैसी होती है ?
(४) संदेश भेजने के लिए किस पक्षी का उपयोग किया जाता है ?

ड० 4 -
कु
(५) गुरसल के स्वभाव का वर्णन करो।
(६) “हाँ या ना! में उत्तर दो :--
(क) गौरौया भारत में सभी जगह मिलती है।
(ख) मादा पंडुक के गले में काली कंठी होती है।
(ग) मुर्गा लड़ने वाला पक्षी नहीं है।
(घ) पक्षी हमारे रात-दिन के साथी हैं।

३. सुंदर ओर अनोखे पक्षी


पिछले पाठ में तुम गौरैया, कौआ, कबूतर आदि घरेलू चिड़ियों के
बारे में पढ़ चुके हो। अब तुम्हारा परिचय हम ऐसी चिड़ियों से
करवाएँगे जिन्हें तुम उनकी सुंदरता के कारण या उनके किसी अन्य गुण के
कारण प्यार करते हो और पालते भी हो। इनमें तोता, मोर, मैना, बुलबुल,
तीतर, बटेर मुख्य हैं।
तोता :

तोता तो तुम सबने देखा ही होगा। यह सुंदर पक्षी है। यह मनुष्य की बोली
सुंदर और अनोखे पक्षी १५
को हू-ब-ह्‌ नकल कर सकता हे। इसकी कई जातियाँ हैं पर एक विज्ेष
जाति
का तोता सब जगह मिलता हे। इसके शरीर का रंग हरा, चोंच का
रंग लाल
उसे का रंग कुछ पीलापन लिए हुए और ठोड़ी पर काला
निशान होता है
थानों किसी ने डिठोना लगा दिया हो। नर के गले में ललोही कठी होगा हे
इसको चोंच नुकीली होती है।

तोता जंगल में, नदी-सरोवरों के तट पर, विज्ञाल बड़ पीपल, शीशम


अमल के वृक्षों पर निवास करता है। यह घोंसला नहीं बनाता। पेड़ के तने मे
नना कोटर ही इसका निवास स्थान है। तोती कोटर में ही अंडे देती है।
बस्तियों में रहने वाले तोते दीवारों में सुराख बनाकर रहते है।
तोता ज्ञाकाहारी पक्षी है। गूदेदार फल इसे विशेष प्रिय है। तभी अन्य
पक्षियों की अपेक्षा तोते बागों में सबसे अधिक नुकसान करते हैं। यह ज्वार,
वाजरे और मकके के भुट्टों का भी शौकीन होता है पालतू तोता भींगे चने या
चने को दाल, गाजर, शलजम आदि सब्जी बड़े शौक से खाता है, मूँगफली
भी इसे प्रिय है।

मोर :

यों तो ग्रायः सभी पक्षी सुंदर और मोहक लगते हैं, पर अपने जरीर के
आकर्षक और चमकीले रंगों के कारण मोर बहुत ही सुंदर लगता है। लगता हे
कि किसी कुशल चित्रकार ने बड़ी कुशलता के साथ इसे सजाया है।

सुंदरता के कारण मोरकोराष्ट्रीय पक्षी माना गया है। यह प्रायः सारे देश
में पाया जाता है। प्राचीन इतिहास में भी इसका उल्लेख मिलता है। इसका
सुडौल अंग, चमकीले नीले पर नीली मखमली गरदन, सिर पर नीली
१६ सहायक वाचन - ४
चमकती कलँगी और नीलम और फिरोजा जडी लंबी भारी पूँछ, भोली और
कजरारी आँखे - थी संदरता देखने योग्य है। वर्षा ऋतु में जब काले- काले
बीटला 385 47 340 आसमान में छा जाते ४ तो उन्हें देखकर यह प्त्त्न
हो उठता है। पुरविया बयार इसको मस्त बना देती है। बादल गड़गड़ाये
कि इसने कूकना शुरु किया। तब यह थिरक-थिरक कर नाचने लगता हे
नाचते समय यह अपने पंखों को ऊपर उठाकर फैला लेता है ।पंखों के सिरों
पर बने चँदौवे चमक उठते हें। बाएँ से दाएँ, दाएँ से बाएँ मोर नाचता ही

की
रहता है। मोर को नाचता देख मोरनियाँ उसके इर्द-गिर्द आ खड़ी होती हें
मानो मोर का उत्साह बढ़ा रही हों।

किसी अन्य नर-मादा पक्षी में इतना अंतर नहीं होता जितना मोर और
मोरनी में। मोरनी मोर से छोटी तो होती ही है, उसका रंग भी मोर जैसा नहीं
होता। न उसके लंबी पछ होती है और न उसके चमकीले पंख होते हैं। वह
नाचती भी नहीं है। मोरनी अपने बच्चों का लालन-पालन बड़े प्यार से करती
0
654

मोर दाना-दुनका तो चुगता ही है, कीड़े-पकोड़े भी खाता है। साँप का


ह दुह्मन है। साँप के अलावा छिपकली, चूहे, गिरगिटको भी नहीं
<त ठता। इस दृष्टि से यह किसानों का परम मित्र है। आमतौर से यह गाँवों
लि न जे वि व
+ ॥ लाशवा क कनारे बड़े पेडों पर रहता हैे। रात में ककिर्सा अजनबा। का

| 7 पाकर या खटका होते ही ककने लगता है।

बलयुल

बुलवुल एक छोटी-सी चिड़िया है, बहुत चंचल, बहुत आकर्षक । रंग


इसका भरा,पँछ पर लाल धब्बा, सिर पर छोटी-सी काली कलंगी और कद
लंगभंग एक वजिउुत-गौरोवा से कुछ बड़ी | बुलबुल को फुलवारियों में
सुंदर और अनोखे पक्षी १७

चहकते फिरना बहुत पसंद है। विशेष कर, गर्मियों में प्रातःकाल जब
फुलवारियों में अपेक्षाकृत तरावट होती है, कलियाँ चटक रही होती हैं, बुलवुलें
आर फूलों का रस पीती हैं, छोटे छोटे भुनगों, कीट ६+गों का कलेवा करती
और मौज में आकर चहकती हैं। लगता है कोई मीठे स्वर से सीटी बजा रहा हो।

वस, तब इन्हें सुनते रहो, पर यंदि तुपने इनकी ओर देख लिया तो फुर्र से

$।

ड़ जाएगी।
थ्प

पाजते हैं, उनसे यह बहुत हिल जाती है। यद उनके


[२ उलट

(३

जो लोग बुलबुल
पहले तक लोग
कंधे पर बैठ जाएगी, अंगूठे पर बैठ जाएगी। कुछ समय
वुलबुल को तगड़ी
बुलवुलों को लड़ाने के लिए भी पालते थे। लड़ाकू
बनती थी ।
खुराक दी जाती थी ॥तब इनकी दिलेरी, फुर्ती और झपट देखते ही
कोयल ४

बुलबुल की तरह ही एक संगीत-प्रिय चिड़िया है कोयल। नर का रंग


काला होता है। मादा के शरीर पर काफी घनी सफेद चित्तियाँ और धारियाँ
होती हैं। दोनों की आँखे लाल और चमकीली होती हैं! डील-डौल में यह कोए
छोटी होती है।

बागों में जब आप में वौर आता है तव तमने कोयल को कूकते अबवठय


सना होगा। केसी लगती है उसकी कुह-कुह् की सुरोली तान ? तुष उसको
नकल करने लगो तो वह और भी तेज स्वर में कुहू-कुह करने लगती है।
कभी-कभी चिढ़कर दूर उड़ जाती है। कोयल मार्च से लेकर जून-जुलाई
तक खूब गाती है। वर्षा और जीत ऋतु में इसे कभी कूकते नहीं सुना गया।
जीत ऋतु में यह गर्म स्थानों की ओर चली जाती हे
८ सहायक वाचन - ४

कोयल चालाकी में कौए के भी कान काटती है। वह चुपके से अपने अंडों
को कोए के घोंसले में रख देती है। कोए को क्‍या पता कि ये अंडे उसके
नहीं हैं। कौआ-कौवी इन पराये अंडों को बड़े प्यार से सेते हैं। जब अंडों
से बच्चे निकलते हैं तो नरम-नरम खाना खिलाकर उन्हें पालते हैं-पर
बच्चे आखिर हैं तो कोयल के ही न ! पंख निकलते ही कोयल के
स्वर को पहचानकर अपने वर्ग में मिल जाते हें।

कोयल बागों की चिड़िया है, हरियाली की चिड़िया है। फलों के


अतिरिक्त छोटे-छोटे कीड़े भी बड़े चाव से खाती है । बागों में,
जंगलों में न फलों की कमी न कीड़े-मकोड़ों की। पेट भरा कि पत्तों के
झुरमुट में बैठकर मजे से गाती है । लजीली ऐसी होती है कि जाकर
इसे देखने की चेष्टा करोगे तो यह तुम्हे देखते ही उड़ जायगी।

- बया :

यों तो प्रत्येक पक्षी में कोई न कोई विशेषता पाई जाती है, पर एक पक्षी
ऐसा है, जो ऐसा अनोखा घोंसला बनाता है, जिसे देखकर तुम आइचर्य
चकित रह जाओगे। यह हे एक नन्‍्हा-सा पक्षी बया। बया कद में गोरेया जेसा
होता है। नर और मादा के रंग-रूप में काफी भिन्‍नता होती है। वर्षाकाल में नर
का रंग बदल जाता है। वैसे इसका रंग पीला तथा कुछ-कुछ भूरा होता है तथा
जशरौर पर काली धारियाँ भी होती हें।

बया कारीगर पक्षी है। बबूल, बेरी अथवा ताड़ के पेड़ों में लगे हुए
बया के घोंसले तुमने अवश्य देखे होंगे। तेज से तेज हवा में भी ये सुरक्षित
सुंदर और अनोखे पक्षी १९
लटके रहते हैं। एक ही पेड़ पर कई बया अपने घोंसले बना लेते हैं। ये
इसके
आपस में खूब लड़ते-झाड़ते हैं। बया बुद्धिमान पक्षी है, यह तो
घोंसले को देखने से पता चलता है। पालतू बया तरह-तरह के करतब सीख
लेता है तथा अपने मालिक से बड़ी जल्दी हिल-मिल जाता है।
बया अपना घोंसला परिश्रमपूर्वक बड़ी कुशलता के साथ बनाता है।
पहले नर सरपत या काँस आदि को चीर-चीरकर लंबे-लंबे रेशे तैयार कर
लेता है। फिर इन्हें प्रायः किसी बबूल, खेजड़ा, बेरी या ताड़ जैसे कँंटीले
वृक्ष की मज़बूत टहनी में बाँधता है। फिर वह ऐसे बहुत-से रेशे ला-लाकर
घोंसले का बाहरी ढाँचा तैयार करता है। ढाँचा तैयार होने पर कोई मादा उसे
देखकर नर के साथ जोड़ा बनाने को तैयार हो जाती है। फिर दोनों मिलकर
घोंसला बनाते हैं। लगता है किसी जुलाहे ने बारीक तारों को कुशलता से
बुनकर इसे तैयार किया हो। इस घोंसले का दरवाजा नीचे की ओर होता है।
कुछ आगे चलकर इसमें एक गोल कोठरी-सी होती है इसी में मादा अपने
अंडे देती है। तेज़ हवा में घोंसला उलट न जाए इसलिए वज़न के लिए
उसमें मिट्टी डाल दी जाती हे। यह इस पक्षी की बुद्धिमानी, परिश्रम, लगन
और दूरदर्शिता का जीता-जागता प्रमाण है।

दर्जिन £

बया जैसी ही एक दूसरी कारीगर चिड़िया हे, दर्जिन | बया अपना


घोंसला बुनकर तैयार करता है तो दर्जिन सीकर। इसके लिए यह ऐसा पेड़
चुनती है, जिसके पत्ते चौड़े हों तथा उन्हें आसानी से सीकर घोंसला तैयार
किया जा सके। तुम्हें आइचर्य होगा कि यह पत्तों को आपस में सी कैसे लेती
२० सहायक नाचन - &
है। यही तो इसकी बुद्धिमानी है। लो, हम बताते हें।

कुछ सीने के लिए सुई-धागे की आवश्यकता होती है। तो सुई का काम


तो यह चोंच से लेती है और धागे का काम सरपत के पतले-पतले तारों से।
कभी-कभी सेमल और आकड़े की रुई से बने धागों का प्रयोग भी करती है।
एक वाग में मकड़ी के जालों की बहुतायत थी
। सों दर्जिन को तो मजा ही आ

ल्ऑि-+++++5
गया। उसने पत्तों को सीने में जालों के धागों का ही प्रयोग कर डाला।
दर्जिन
के घोंसले का मुँह प्रायः ऊपर को ही होता है। परंतु यह आवश्यक नहीं। यह
पत्तों की बनावट, हवा, रोशनी का रुख आदि कई बातों पर निर्भर है कि
मुँह
किधर रखा जाए ।

दर्जिन गोरैया से छोटी होती है । आम तौर पर यह कीट पतंगे ही खाती


है। अतः दिन-भर उनके पीछे ही फिरती रहती है। इधर-उधर फुदकते रहने
के कारण इसे फुदकी भी कहते हैं। इसकी चोंच सीधी और लंबी होती है। पीठ
जैतुनी हरे रंग की होती है। गीचे का अंग सफेद होता है। यह बहुत चंचल
अकृति की चिड़िया है। दिन भर इधर-उधर फुदकती और चहकती रहती
है। चहकती-चहकती जोश में आ जाती है तो अपनी पूँछ ऊपर उठा लेती है।
लगता है लड़ने को तैयार है ।

देखा तुमने, केसे-केसे पक्षी हें हमारे देज्ञ में। तुम्हारी बोली की नकल
करने बाला तोता, सुरीला गीत गाने वाली कोयल और बुलबुल, मनोहर नृत्य
"करने वाला मोर, कारीगरी में जुलाहे और दर्जी को भी मात करने वाली बया
और दर्जिन, सभी तो अद्भुत पक्षी हें।
शिकारी पक्षी ञ
अभ्यास
(१) सही अथवा गलत लिखो :--
(क) मोर साँप को भी खा जाता है।
(ख) तोता घोंसला नहीं बनाता।
(ग) कोयल अगस्त से फरवरी तक खूब गाती है।
(घ) दर्जिन चिड़िया अपना घोंसला सीकर तैयार करती है।
मोर को राष्ट्रीय पक्षी क्‍यों माना गया है ?
मोर का भोजन क्या है ?
मोर-मोरनी की बनावट पें क्‍या अंतर होता है ?
बया अपना घोंसला किस प्रकार बनाती है ?
इन पक्षियों के रूप, रंग और उनकी आदतों पर पाँच-पाँच वाक्य
लिखो :--
बुलबुल, कोयल, बया, दर्जिन।

४. शिकारी पक्षी
कुछ पक्षी केवल शाकाहारी होते हैं, कुछ केवल मांसाहारी और कुछ दोनों।
केवल मांसाहारी पक्षियों को अपना शिकार भी जुटाना पड़ता है और मरे हुए
ढोरों के मांस पर भी गुजारा करना पड़ता हे ।इन पक्षियों की डील-डौल,
वनावट-विशेषतया चोंच भी, अन्य पक्षियों से भिन्‍न होती है। इनके
पंख
मजबूत होते हैं ताकि ऊँचे उड़ सकें और देर तथा दूर तक उ ड़ सकें। चोंच
२२ सहायक वाचन - ४
सभी की नुकीली होती है और गर्दन लचीली । इनमें उल्लू, चील, गिदूध बाज
प्रसिद्ध हें ।
उल्लू :
हो सकता है तुमने उल्लू देखा न हो, पर उसका नाम ज़रूर सुना होगा।
बहुत से बच्चों ने रात के सन्‍नाटे में उसकी चीखती आवाज़ भी जरूर सुनी
होगी । यह निशाचर पक्षी हे, केवल रात को ही बाहर निकलता हे, दिन में ....
किसी एकांत वृक्ष के या एकांत खंडहर की दीवार के किसी कोटर में या वृक्षों
के झुरमुट में छिपा पड़ा रहता है ।
स्थान-भेद से उल्लू कई जाति के होते है। आमतौर पर इसके पंख
बादामी रंग के होते हें तथा उन पर सफेद छीटे पड़े होते हैं। आँखों पीली,
बड़ी, गोल और चमकीली होती हैं तथा बगल में न होकर हमारी आँखों की
तरह सामने होती हैं। गर्दन इसकी बहुत लचीली होती है, जिससे यह आसानी
से सिर को पीछे की ओर घुमा सकता है। इसका सिर बिल्ली की तरह गोल
होता है। इसके पंजे बड़े मज़बूत और नुकीले होते हैं। चोंच भी मज़बूत
और नुकीली होती है ।
उल्लू स्वभाव से एकांतप्रिय है। यह किसी से मिलना-जुलना पसंद
नहीं करता। यदि तुम इसे कहीं बेठा देख भी लो तो इसे तुमसे कोई सरोकार
नहीं। इसकी ओर देखेंगे तो यह दूसरी ओर मुँह कर लेगा। ज्यादा छे ड़खानी
की तो तुम्हें भयंकर दृष्टि से देखता उड़कर चल देगा ।
उल्लू शिकारी पक्षी है। चूहे, गिरगिट, छिपकली, छछूँदर, मेंढक
आदि का तो यह काल है। वृक्षों पप आराम से निवास करते पक्षियों पर भी
हमला कर देता है। कभी खरगोश आदि के छोटे-छोटे बच्चों को भी नुकीले
पंजों में दाबकर उड़ जाता है। साँप का तो यह जानी दुहुमन है। रात में इसे
शिकारी पक्षी २३
शिकार को भी खूब सुविधा रहती है। जैसे ही अँधेरे में इसने डिकार की
आहट पाई कि यह धीरे से उड़ता हुआ उसके पास जा पहुँचता
है और
शंपट्टा मारकर उसे दबोच लेता है।
चूहों, साँपों का नाश करके उल्लू हमारी कितनी सहायता करता है। फिर
भी हम इसे अशुभ पक्षी पानते हैं, यह उचित बात नहीं।

चील है

चील से तो तुम सभी परिचित हों । इन्हें आकाश में मँडराते देखने में
तड़ा पज़ा आता है। कभी पंखों को तेज़ी से मारती आकाश की छँदाइयों
में
खो जाती हैं तो कभी पंख मारना बंद करके नीचे की ओर झपटती
हैं। कभी एक
ही जगह पंख मारती हुईं हेलीकॉप्टर की तरह उसी स्थान पर खड़ी रहती
हैं।
लगता है कोई कुशल हवाबाज़ अपने करतब दिखा रहा हो। चील उड़ती
तो
आसमान में अवश्य है परंतु उसकी नज़र रहती है धरती पर। जहाँ उसने
खाने
की कोई चीज देखी कि उसने उस पर झपटूटा मारा। चूहा, मछली, गिरगिट,
में ढक, छछूदर, साँप इसके प्रिय भोजन हें।
साधारणतया चील दो रंगों की होती है। इसके पंख बड़े
मज़बूत होते
हैं। उड़ते समय पंख फैल जाते हैं तो उनके सिरों पर उंगली जैसी
झिल्लियाँ साफ दिखाई देती हैं। इससे चील को हवा में तैरने
में बड़ी मदद
मिलती है। चील के पंजे नुकीले होते हैं, चोंच भी नुकीली
होती है। शिकार
को यह पंजों में पकड़ती है।
चील अपना घोंसला किसी ऊँचे स्थान पर बनाती है। गाँवों में तो बस्ती के
पास के ही किसी ऊँचे पेड़ पर घोंसला बना लेती है। परंतु शहरों
में बीच
बस्ती के किसी पेड़ को घोंसले के लिए चुन लेती है क्योंकि वहाँ उसे
२४ सहायक वाचन - ४
मछली और गोइत के टुकड़े तथा अन्य खादूय पदार्थ सुगमता से मिल जाते
|

गिद्ध :
बच्चों ! गिदध तो तुमने देखा ही होगा। यह बहुत बड़ा पक्षी होता है,
इससे बड़ा और ऊँचा या तो सारस होता है या फिर शुतुरमुर्ग । यह लगभग
आधा मीटर का होता है। इसका रंग साधारणतया मटमैला, काला या भूरा, गर्दन
लंबी, चोंच कठोर, नुकीली और मजबूत और डेैने बड़े होते हैं। यह

गिद्ध
शिकारी पक्षी २५
ऊँचे-ऊँचे वृक्षों पर घोंसला-बनाता है और आसपास के स्थान को बीट से गंदा
कर देता है। एकांत ऊजड़ खंडहर भी इसे प्रिय
गिदूध बहुत निडर और ढीठ होता है। यह बहुत ऊँचाई तक और देर तक
उड़ सकता है। टॉष्टि इसकी बहुत पैनी होती है! ऊपर उड़ता हआ परे
जानवर को देखते ही नीचे उतर आता है और अपने साथियों के साथ
मिलजुलकर उसे चट कर जाता है। रेगिस्तान में काफिलों के साथ कई
दिनों तक उड़ता रहेगा क्योंकि इसे पता रहता है कि काफिले का अमुक
ऊंट ज्यादा दिन नहीं चल सकता |
बस्तियों के मरे ढोरों को चटकर गंदगी दूर करने में गिदूध से बढ़कर
कऔर कोई
ा सहायक नहीं ।यदि
क यह न हो तो ा
इनकी सफाई की समस्या
खड़ी हो जाए । स्वयं गंदगी खाकर हमारे वातावरण वी सफाई के लिए हमें
रिदूध का बहुत कृतज्ञ होना चाहिए ।
बाज :

शिकारी पक्षियों में बाज का जवाब नहीं । बाज कोए से कुछ बड़ा
तेज-तर्राट, जोशीला, जवाँमर्द, फुर्तीला और खूँखार पक्षी होता है। इसका.
रंग
भूरा और चिकत्तेदार होता है। आँखें काली और तेज, पंख म॑ जबूत और
धारदार, चोंच नुकोली और कठोर तथा पंजे भी नुकीले और मजबूत होते हैं।
लगता है कि कसे बदन का कोई पहलवान हो । ये कई किस्म के होते है
और कई नामों से जाने जाते हें।
वाज विशुद्ध शिकारी पक्षी है। गौरैया, बुलबुल जैसे पक्षियों से लेकर
कबूतर, तीतर तोता, बटेर जैसे पक्षियों को अपने नुकीले पंजों में दाबकर
उड़ जाता है। बेचारा पक्षी चीं-चीं करता रह जाता है। चूहे,
छिपकली भी
र्६ सहायक वाचन -> ४

इससे नहीं बच पाते। इसके अलावा छोटे-छोटे मेमनों पर भी यह हाथ साफ


कर देता हे।
पहले शिकार के शौकीन बाज को पालते थे। पालतू बाज हाथ पर बैठ
जाता था। उसके सिर को एक कपड़े से ढक देते थे। फिर उसे
चिहि टिखाकर छोड़ दिया जाता था। बस फिर तो वह आनन-फानन
से उसे दवोचकर शिकारी के पास ले आता था। बदले में उसे कुछ
मांस-खंड मिल जाते थे। अब शिकार का यह श्ञौक तो प्रायः समाप्त हो गया
है पर बाज का शिकारी स्वभाव तो बना हुआ हे ही ।
बाज साहसी एवं पुरुषार्थी पक्षी है। फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले
पक्षियों और चूहों का सफाया कर यह हमारे ऊपर कितना उपकार करता है।
ऐसे और भी कई छिकारी पक्षी हैं। इनकी निर्दय शिकार प्रवृत्ति
देखकर हमें इनसे घृणा नहीं करनी चाहिए। हमें तो इनका कृतज्ञ होना चाहिए
कि ये गंदगी दूर करके या फसलों के शत्रुओं का सफाया करके अपना पेट तो
भरते ही हैं, साथ-साथ मानव समाज की सेवा भी करते हैं।
अभ्यास
(१) उल्लू को निश्ञाचर पक्षी क्‍यों कहा जाता है ?
(२) उल्लूके स्वभाव का वर्णन करो | ै
(३) चील की कोई तीन विद्ेषताएँ लिखो ।
(४) सही या गलत लिखो :--
(क) गिद्ध बहुत डरपोक होता है।
(ख) हमारे वातावरण कौ सफाई के लिए हमें गिद्ध का बहुत
कृतज्ञ होना चाहिए ।
जल के पक्षी २७

(ग) शिकार के शौकीन चील को पालते हें ।


(घ) बाज एक शाकाहारी पक्षी है ।
(ड़) चील अपना घोंसला खंडहरों में बनाती है ।
(च) बाज फसलों को नुकसान पहुँचाता हे ।
"जा ्यलबकबकानलणाफ

(छ) चील रेगिस्तान में काफिलों के साथ उड़ती है ।


(ज) उल्लू एकांतप्रिय होता हे ।

५. जल के पक्षी
कुछ पक्षी केवल थलचर हैं और कुछ थलचर और जलचर दोनों। जलचर
पक्षी थल पर भी चलते हैं और भोजन की सुविधा के लिए जल में भी तैरते
है तथा आकाञ में तो यह उड़ते ही हैं। हमारे देश में नाना प्रकार के जलचर
पक्षी मिलते हैं। इनमें प्रमुख हैं बतख, बगुला, सारस और हंस ।
बतख :;

वतखें कई प्रकार की होती हैं। इन्हें लोग गोइत और अंडों के लिए भी


पालते हैं। पालतू बतखें गली-बाजार में कूड़े-कचरे में भोजन खोजती हद
निर्भयता से घूमती रहती हें। न उन्हें शरारती बच्चों का डर, न कृत्ते-बिल्ली
का। और अगर भूले से किसी ने उन्हें छेड़ भी दिया तो उसे मजा भी
चखा देती हैं। पर फिर भी उन पर कुत्ते-बिल्ली का दाँव चल ही जाता है।
साधारणतया बतख सफेद रंग की होती हैं। कुछ बतखें भूरी और कुछ
ड्द सहायक वाचन - ४४

काली और सफेद भी होती हैं। इसकी गर्दन लंबी होती है ताकि ज़मीन पर पानी
में झुककर भोजन की तलाश कर सके। चोंच इसकी चौड़ी, चिपटी और कठोर
होती है। बतख को जल प्रिय है। इसके पंख चिकने होते हें ताकि पानी में
तैरने पर पानी न तो भिगा सके और न ही उन पर टिक सके। पैरों की
उँगुलियाँ एक पतली झिल्ली से मिली हुई होती हैं जिससे इसे तैरने में
पर्याप्त सुविधा होती है। जल में रहने वाले घोंघे, झींगे, कीड़े, मछलियाँ
इसके प्रिय भोजन हैं। पालतू बतख उबले झींगे, रोटी, चना, मटर और पालक
जैसी पत्तेदार सब्जियाँ भी खा लेती हे।
जीत प्रदेशों की जंगली बतखें शीत ऋतु प्रारंभ होते ही गर्म स्थानों की
ओर चल देती हैं। ये रातभर उड़ती रहती हैं। दिन में किसी सरोवर या
जलाशय के किनारे विश्राम करती। हमारे देश में भी झुंड की झुंड बतखें आ
जाती हैं। उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं मध्यप्रदेश की झीलें सर्दियों में इन
बतखों के कोलाहल से गूँज उठती हैं। आसपास गेहूँ, जी, धान के खेत,
स्वच्छ पानी में तैरसे के मजे, समशीतोष्ण मौसम-बतख को ओर भला क्या
चाहिए !
बगुला :
वगुला ऐसा जल-पक्षी है, जिसे जल में तैरने से कोई सरोकार नहीं। इसे
तो जल-जीवों से सरोकार है इसलिए रात में किसी पेड़ पर अपनी
भाई-विरादरी के साथ रहता है, दिन में जलाशय के किनारे धूनी रमा लेता
है। मछली इसका प्रिय भोजन है पर वह मिलती बड़ी तपस्या के वाद है। यह
छिछले जल में घंटों एक ही मुद्रा में खड़ा रहेगा। ज्योंही कोई मछली दिखाई
दी कि इसने गप से चोंच में गपकी। इसके लिए प्रकृति ने इसे लंबी टाँगें
तो दी है पर साथ ही गर्दन और चोंच भी लंबी दी है। मछली के अलावा यह
मेंढक और केंकड़े को भी नहीं छो ड़ता।
बगुला

साधारण बगुला सफेद और स्लेटी रंग का होता है। पैर और चोंच पीलापन
लिए हुए होते हैं।इसके पंजों में छोटी-छोटी अँगुलियाँ होती हैं। यह इनसे
कभी-कभी अपने सिर में कंघी कर लिया करता है। यह प्रायः आधा मीटर
लंबा होता है। '
_बगुले के स्वभाव की विशेषता है इसका असीम धैर्य। यह एक ही स्थान
पर मछली की प्रतीक्षा करते-करते थकता नहीं। बक-ध्यान प्रसिद्ध है। इससे
लगृता है यह शांत प्रकृति का पक्षी होगा। परंतु रात में बंगुले जिस पेड़ पर
बसेरा करते है वहाँ ऐसा शोर करते हैं कि इनको सारी भगताई की पोल खुल.
जाती है। लगता है ये जरा-जरा-स्री बात पर रात भर लड़ते-झगड़ते रहते:
हैं| सुबह होते ही ये विभिन्‍न जलाशयों की ओर उड़ जाते हैं। रात को
साथ रहते हैं पर भोजन को तलाश अकेले-अकेले करते हें।.
३० सहायक वाचन - ४

सारस :

सारस बगुले से: बड़ा; भारी और लंबा होता है। इसका कद लगभग
डेढ़ मीटर होता है। बगुले, की तरह यह भी जलचारी पक्षी नहीं है, केवल
भोजन आदि की सुविधा के लिए जलाञयों, नदियों, झीलों के किनारे »
दिखाई देता है।
सासस प्रायः स्लेटी रंग का होता है। इसकी टाँगें, गर्दन, चोंच लंबी होती
है। दूर र यह सफेद दिखाई देता है। सारस को मौसम का यथेष्ट ज्ञान होता

सारस
जल के पक्षी ३१

हे। उसी के अनुसार मादा अंडा देने का स्थान चुनी है। नर और मादा में बहुत
प्रेम होता है। ये एक दूसरे के बिना नहीं रहते और दुर्भाग्य से एक का
शिकार कर लिया जाए तो दूसरा वहीं खड़ा-खड़ा विलाप करने लगता
है। यदि सारस को पाल लिया जाय तो यह बड़ा सतर्क पहरेदार सिद्ध हो
सकता हे ।
सारस जलाशयों के किनारे मिलने वाले कौड़े-मकोड़े खाता रहता
है। इनके अतिरिक्त खेत में बोए गए बीजों को भी खा जाता है। सारस निडर
तथा ढीठ पक्षी है। पास जाकर ही इसे उड़ाया जा सकता है। उड़ते समय
कर्कश आवाज में चीखता है। पहले आगे की ओर दौड़ता है फिर पंखों को
खोलकर धीरे-धीरे ऊँचा उड़ता है । यह ज्यादा ऊँचाई तक नहीं उड़ता ।
टिट॒हरी :

टिट॒हरी भी जल के निकट रहने बाला षक्षी तो है किन्तु बगुले और


सारस कौ भाँति यह भी जल में नहीं तैरता । इसका जल से केबल इतना हो
संबंध है कि इसे उसके किनारे जल-जीबों का भोजन उपहार-स्वरूण प्राप्त
होता रहता है ।
टिट॒हरी का कद लगभग एक-तिहाई मीटर होता है। टाँगें पतली और लंबी
होती हैं। रंग भूरा होता है। यह खुली बंजर भूमि में किसी गड्ढे में चारों तरफ
कुछ कंकड़ बिछा कर अंडे देती है।
टिट॒हरी का भोजन है उथले जल में पाए जाने वाले कीड़े-मकोड़े,
घोंघे, मेंढक आदि। इनकी तलाश में यह पानी की सतह से लगभग काफी दूर
तक उड़ती चली जाती है।
टिट॒हरी बड़े शककी स्वभाव की चिड़िया है। अपने आसपास इसे
रा सहायक वबाचन - ४

दूसरे की उपस्थिति पसंद नहीं। संयोगवश् यदि कहीं आप इसके अंडों के


पास से निकल जाएँ तो टि-ट्-टि, टि-ट््‌-टी करती हुई शोर मचा देगी।
जब तक आप वहाँ से दूर न चले जाएँ आपका पीछा करती ही रहेगी ।
चकका :

इसे सुरखाव भी कहते हें। यह बड़ा कुशल तैराक पक्षी है। इसका रंग
भूरा और चमकीला होता है। दूर से काला-सा धब्बा तैरता हुआ दिखाई देता
शा
है। पीठ का पिछला भाग और दुम तो काली होती ही हैं, चोंच भी काली. होती
है। गर्दन लंबी और लचीली होती हैं। इससे पानी में डुबकी लगाकर मछली,
घोंधे आदि को पकड़ने में इसे सुगमता होती है। इसके पंख बड़े मुलायम
और चिकने होते हैं, तभी पानी में डूबने पर भी भीगते नहीं।
चकवा पानी कः पक्षी है। हाँ, उड़ता यह खूब है। बरसात के बाद जब
तालाब पानी से भरे रहते हें तब झुंड-के झुंड चकवा-चकवी उनमें तैरते रहते
हें। नर और मादा मे बड़ा प्रेम होता है। कहते हैं रात मे नर और मादा एक
दूसरे से अलग दूर किनारों पर चले जाते हें, परंतु इसमें कितनी सचाई हे,
_ यह अभी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता ।
शिकारी इसके परों और गोइत के लिए इसका शिकार करते हेैं। बहुत
आसान है इसका शिकार। छरेंदार बंदूक से छर्रे छूटते ही जान बचाने के
लिए उड़ जाते हें पर उनमें से कोई बेचारे घायल हो जाने पर दूर जाकर
प्राण तोड़ देते हैं। तब शिकारी को आसानी से पता चल जाता है कि किसे
छर्रा लगा है।
हंस :
जल के पक्षियों का राजा है हंस। हंस बहुत प्राचीन एवं प्रसिद्ध पक्षी हे।
गर्मियों में यह हिमालय की झीलों में बिहार करता है तो सर्दियों में यह
जल के पक्षी ३३
दक्षिण की झीलों में आ जाता हे।
हंस का रंग सफेद और गर्दन पाव मीटर से थोड़ी लंबी होती हे। पैरों का
और चोंच का रंग पीला होता है। इसके पंख मुलायम, चिकने और मजबूत
होते हैं। यह जितना कुशल तैराक है उतना ही कुशल उड़ाकू भी। एक ही
छड़ान में सैकड़ों मील उड़ सकना इसके लिए साधारण बात हे।
हंस बहुत सुंदर पक्षी है। पानी में तेरता हुआ यह बड़ा लुभावना लगता हे।
इसे कमल बहुत प्रिय है। पानी में तैरता हुआ यह कमल बीजों को खाता रहता
हे।
बतंख, बगुला, सारस,हंस आदि के. अलावा और भी जल-पक्षी होते हें।
जलाशय ही इन सबको आहार देते हैं, इसलिए इन्हें उनके पास रहने-बसने में
सुविधा होती है। जल-कींटों को खाकर ये जल को दूषित होने से बचाते
हैं। इसके लिए हम इन पक्षियों के कृतज्ञ हें।

अभ्यास
(१) ज॑लचर पक्षी किसे कहते हें?
(२) बतख क्या-क्या खाती है ?
(३) बगुले की कोई पाँच विशेषताएँ लिखो ।
(४) सारस की बनावट लिखो ।
(५) सारस और बगुले की बनावट और स्वभाव में कया अंतर है ?
' (६) जल के पक्षियों का राजा किसे माना जाता है ?
३४ सहायक वाचन -> ४

(७) सही या गलत लिखो :--


(क) टिटहरी का रंग मटमैला होता है ।
(ख) चकवा का शिकार बहुत कठिन होता हे ।
(ग) हंस कुशल तैराक तथा कुशल उड़ाकृ दोनों ही है । 9
(घ) जल के पक्षी जल को दूषित होने से बचाते हें।
(डर) बतख को लोग अंडों के लिए पालते हैं । दे
(च) बगुला जल में तैरता है ।

६. अन्य पक्षी
पिछले अध्यायों में तुबने कुछ परिचित पक्षियों के बारे में पढ़ा । इनके
अतिरिक्त और भी पक्षी हैं जिन्हें तुम जानते होगे अथबा जिनका तुणने नाम
सुना होगा । आओ, इनमें से कुछ के बारे में पढ़ें,
पप्ीहा :
बर्षा ऋतु में 'पौड-पौड' कौ आवाज करते हुए जिस चिड़िया को तुमने
बोलते सुना होगा, वह है पपीहा । कहते हें कि इसके गले में एक छेद होता
है। इसलिए यह नदी या सरोवर के पानी से अपनी प्यास नहीं बुझा पाता।
इसकी प्यास स्वाति नक्षत्र में बरसने वाले वर्षा जल से बुझती है, परंतु यह
बात कहाँ तक सच है, यह जानना कठिन है। हाँ, इतनी बात अवश्य है कि इसे
केवल वर्षा ऋतु में ही बोलते सुना गया है ।
पपीहे का कद कोयल से कुछ कम होता है। दुम इसकी लंबी होती हे।
इसकी लंबाई लगभग एक फुट की होती हे। रंग इसका होता है सफेद और पंख
अन्य पक्षी उप

होते हैं काले। दुम के आसपास सफेद काली धारियाँ होती हैं। आंखें भूरे रंग
की होती हैं। मद
कोयल की भाँति पपीहा भी गायक पक्षी है। कोयल बसंत में गाती है तो यह
वर्षा ऋतु में। कोयल की भाँति पपीहा भी मस्त जीव है तथा अपने अंडों को
स्वयं न सेकर चरखी पक्षी के घोंसले में रख आता है। इसे इसकी बुद्धिमानी
कहें या धूर्तता कि अंडे देने के बाद उन्हें सेने का कष्ट नहीं उठाता ।
हक

पपीहा बागों का पक्षी है। बागों के छोटे-छोटे फल ओर कीट-पतंगे इसका


आहार हैें। !
जुयामा :

जैसा कि नाम से स्पष्ट है, हयामा काले-भूरे रंग की एक चिड़िया


है। नर की पूँछ कहीं-कहीं से सफेद होती है। यह कद में बुलबुल से कुछ
बड़ी होती, परंतु इसकी पूँछ लंबी होती है।
हुयामा गाने वाली चिड़ियों में सर्वश्रेष्ठ हे। इसके गले में बड़ी
मिठास है। यह सीटी देती है, सीटी दूवारा ही तरह-तरह के स्वर निकालती
रहती है। इसके स्वरों में उतार-चढ़ाव है, लय-तान है। जब यह एक बार गाना
झुरू करती है तो गाती ही रहती है।
ञयामा को लोग पालते भी हैं । पालतू इयामा भी खूब गाती है। लोग
पालतू इयामा को घी में भुना हुआ सत्तू देते -है। परंतु इसका प्रिय भोजन तो
कीट-पतंगे हैं। इसके पालने वाले उनका भी प्रबन्ध करते है। हयामा की
तरह कोयल, दामा और चंडूल भी गाने वाली चिड़ियाँ हैं। दामा का स्पर भी
मीठा होता है। परंतु इयामा का कोई जवाब नहीं । यह तो संगीत-साम्राज्ञी है ।
ञ् सहायक वाचन - ४
तीतर :

“सुभान तेरी कुदरत, धनिया मे थी अदरक' जरा बोलकर देखिए। यह तीतर


की आवाज की धुन है। यह उड़ता तो है परंतु थोड़ी दूर तक ही और वह भी
ऊँचा नहीं। पकड़ने वाले इसे बार-बार उड़ाते हैं। जब यह थक जाता हे
तब पाँवों पर दौड़ता झाड़ी में छिप जाता है। लगता है इसके शरीर के भार
की तुलना में इसके पंख कमजोर होते हें । ४

तीतर दो तरह का होता है। एक काला, दूसरा चितकबरा | चितकबरे


तीतर का रंग भूरा-बादामी होता है और उस पर सफेद-सफेद धारियाँ पड़ी
रहती हैं। नर और मादा होते तो एक से ही हें परंतु नर कुछ भारी और तेज
होता है तथा उसके पंजों के ऊपर एक काँटा भी होता है। लड़ते समय यह
इस काँटे का भरपूर प्रयोग करता है ।

तीतर बड़ा लड़ाकू होता है। लोग इन्हें लड़ने के लिए पालते हैं। जब
ये लड़ाकू तीतर अखाड़े में उतरते हैं तो इनके दाँव-पेंच देखने योग्य होते
हैं। उछल-उछलकर, झपट-झपटकर एक-दूसरे को दबोचने की पूरी कोशिश
करते हैं। हट-हटकर पैरों से, चोंच से एक-दूसरे पर वार करते हैं। एक
बार जिसका दम उखड़ा कि वह अखाड़ा छोड़कर भाग *खड़ा होता है।
विजयी तीतर उसका पीछा करता है।

तीतर का प्रमुख भोजन है दीमक। इस दृष्टि से तीतर ने हमारे जंगलों


की जितनी रक्षा की हे, उतनी हम असंख्य द्रव्य खर्च करके भी नहीं कर सकते
थे। इसके लिए हम इस पक्षी के कृतज्ञ हें।
अन्य पक्षी ३७

चकोर : कः

तीतर जैसे कद और आकार-प्रकार का पक्षी हे चकोर। है यह उसी जाति


का परंतु रंग में और स्वभाव में उससे भिन्‍न | इसका रंग भूरा जरूर होता है
: “पर थोड़ा सलेटी होता है। चेहरे पर, आँखों से लेकर गले तक काला गंडा
होता हे जिससे यह बहुत सुंदर दिखाई देता है।
श्छ

तीतर की तरह चकोर भी अधिक दूर नहीं उड़ सकंता । हाँ, धरती पर
बड़ी तेजी से चंलता हे। अंडे भी धरती पंर-किसी सुरक्षित झाड़ी की
आड़ में या पत्थरों की दरारों में देता है। अंडों की सुरक्षा के लिए उनके चारों
ओर घास-फूस डाल देता है ।

चकोर ठंडे-से-ठंडे और गर्म-से-गर्म स्थानों में भी मिलता है। बड़


पीपल, गूलर आदि वृक्षों के जमीन पर गिरे फलों के अलावा कीट-पतंगे
इसके प्रमुख भोजन हें ।

नीलकंठ :

नीलकंठ क््ज्‌ द् ही नीलकंठ है। सिर और कंठ इसका भूरा एवं कत्थई
होता है। परंतु पंख बेहद नीले और चमकीले होते हैं। इसका दर्शन शुभ माना
जाता है, विशेषकर दशहरे के दिन । नीलकंठ देखने में तो सुंदर पक्षी है,
परंतु है यह गर्म मिजाज और झगड़ालू। बोलता है तो लगता है कर्कश
आंवाज में झगड़ रहा हो । कीड़े-मकोड़ों के लिए छीना-झपटी में ये

रद : सहायक वाचन - ४
आपस में लड़ते-झगड़ते भी खूब हैं ।

बैठा रहता
साधारणतया यह पेड़ों की टहनियों पर या बिजली के तारों पर
है। लगता है कि कोई शांत स्वभाव का पक्षी बैठा है परंतु निगाहें इसको चारों
ओर दौड़ती रहती हैं। जहाँ कोई कीड़ा दिखाई दिया फिर देखिए इसकी
फुर्ती। बिजली की तरह उस पर टूट पड़ता है और उसे खाकर नए शिकार
& क्‍
की तलाश में फिर वहीं आ बैठता है ।

वनमुर्ग :
सिर पर कलँगी, गले के दोनों ओर लटकती थैलियाँ, गोलाकार और
सुडौल लंबे पंख, लाल अथवा चमकीला नारंगी रंग-यह है वनमुर्ग का रूप
काँटे
जो इस देश के प्रायः सभी भागों में पाया जाता है। नर के पाँव पर उभरे
होते हैं। विपक्षी से लड़ने में ये कॉँटे इसकी बड़ी मदद करते हैं।
वनमुर्ग छोटे-छोटे झुंडों में दिखाई देते हैं। एक-एक नर की अनेक पादाएँ
होती हैं। इसे स्वतंत्र जीवन प्रिय है। यही कारण हे कि अगर इसे पालतू बना
जंगल
लिया जाए और इसकी खुब आवभगत की जाए तो भी यह मौका पाकर
की ओर दौड़ेगा और एक बार गया सो गया ।

वनमुर्ग पहाड़ों का पक्षी है। पहाड़ों में ऐसी जगह जहाँ पानी की सुविधा
हो और वृक्ष भी हों, वनमुर्ग को बहुत पसंद है। खतरे का आभास पाते ही यह
भी
उड़कर पेड़ पर जा बैठता है। यह स्वभावतः एकांतग्रिय पक्षी है। अंडे
ऐसी जगह देता है जहाँ किसी के पहुँचने की संभावना न हो।
अन्य पक्षी हर
पक्षी तो सारे संसार में मिलते हें। सारा आकाश इनका हे। जहाँ
दाने-पानी की सुविधा हो,जलवायु अनुकूल हो, खतरा कम हो, ये वहीं जा
बसते हैं। ठंडे देल्ञों में कुछ पक्षी तो वर्ष भर वहीं बने रहते हें, परंतु कुछ ऐसे
हैं जो वहाँ की भीषण सर्दी सहन नहीं कर सकते। इसलिए सर्दियाँ शुरू होते
ही गर्म स्थानों की ओर चल देते हैं। भारत इनका प्रिय प्रवांस-स्थान है। यहाँ
की सर्दियों में भी मौसम अच्छा रहता है। चमकीली धूप 7 ऋलती हे।
छटाने-पानी को भी सुविधा है तथा शिकार का खतरा भी अपेक्ष कृत कम हे।
इसलिए सर्दियों में शीत प्रदेशों के हजारों-लाखों पक्षी यहाँ आ :आते हैं। तब
उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, उड़ीम और दक्षिण
भारंत,की झीलें इन पक्षियों का अस्थायी निवास बन जाती हैं। यह ज्ञात करने
के लिए कि यह झुंड गत वर्ष आया था, उनके पैरों में छलल्‍ले डाल दिए जाते
है। सर्दियाँ बिताने के बाद ये अपने स्थायी निवास की ओर चले जाते हें।
अगली बार जब ये आते हैं तो इन्हें पहचान लिया जाता है।

हिमाचल के जीत स्थानों के पक्षी भी शीतकाल में दक्षिण की ओर आ


जाते हैं। गर्मियाँ शुरू होते ही अपने शीतल निवास की ओर चले जाते हें।
शरद्‌ ऋतु के आगमन पर तो यहाँ बहुत से ऐसे पक्षी आ जाते हैं जो गर्मियों
* में दिखाई नहीं देते। रामचरित-मानस में कहा गया हे-जानि शरद ऋतु खंजन
आए ।

कुछ अन्य देशों की सर्वाधिक परिचित चिड़ियाँ हैं-क्रौसबिल,


रैबिन, नाइटिंगेल, स्काईलार्क, मार्टिन, कुक्कू और टर्नस्टोन। इनमें से कुछ -
तो भारत में भी मिलती हैं। केवल नाम का अंतर है और स्थान-भेद से इनका
ड० सहायक वाचन - ४

रंग-रूप तथा आकार-प्रकार भी भिन्‍न है।

इनका नामकरण प्रायः इनके गुण-स्वभाव के आधार पर कर लिया गया


है, जैसे कैंची-सी चोंच को क्रौसबिल, पत्थरों को पलटकर उनके नीचे छिपे
कीड़ों को खाने वाला टर्नस्टोन आदि । ३

पक्षियों का निरीक्षण : |
कक
पक्षियों के बारे में पुस्तकों तथा पत्र-पत्रिकाओं से जानकारी तो बहुत
प्राप्त हो सकती है किन्तु उनका नियमित रूप से निरीक्षण करने का आनंद
और ही है। तुम्हारे घर की फुलवारी में, आसपास पेड़ों पर, पार्को में बस्ती
से बाहर उदयानों में तो ये निहिचत रूप से मिलते ही हैं। इन्हें देखने का
सबसे अच्छा समय प्रातःकाल या संध्याकाल का है। दोपहरी में ये विश्राम
करते हैं। प्रातःकाल अपने आहार की खोज पें निकलते हैं। कुछ
बाग-बगीचों में फूलों को नरम-नरम पंखुड़ियों में छिपे भुनगों का कलेवा
करते हैं, फूलों की नरम-नरम पंखुड़ियों को कुतर-कुतर कर खाते हैं, फ़ूलों
का रसपान करते हैं, छोटे-छोटे फल खाते हैं। कभी अकेले, कभी झुंड में,
कभी जोड़े में ये अपना आहार जुटाने में लग जाते हैं। इनका दिशाज्ञान
बहुत अद्भुत है। कहीं हों, अपनी जानी-पहचानी जगह पर आने में इन्हें
दिज्ञा-भ्रम नहीं होता ।

पक्षियों को घोंसला बनाते देखो, कितनी तत्परता व लगन से एक-एक


पत्ता व एक-एक तिनका वीनकर ये अपना घोंसला बनाते हैं। उस समय तुष
देखोगे कि ये अपना खाना-पीना भी भूल जाते हैं। अंडों का समय आता है तो
अन्य पक्षी है

बड़ी जिम्मेदारी से उन्हें सेते हैं। बच्चों को चुगाते हैं। उन्हें उड़ना
सिखाकर अपना कर्त्तव्य पालन करते हैं। ये सारी बातें बारीकी से देखने को
हें।

पक्षियों का अपना-अपना स्वभाव होता है। कोई अपने समाज में रहना
पसंद करता है तो कोई अकेला। कोई झगड़ालू है तो कोई शांत प्रकृति का।
बिल्ली , कुत्ते आदि अपने शत्रुओं को देखकर वे कितने सावधान हो
जाते हैं, यह देखने वाली चीज है। उनसे मित्रता करने का प्रयत्न करोगे तो
तुम्हें पता चलेगा कि वे इस विषय में भी कितने सावधान हैं।

पक्षियों का निरीक्षण करके तुम भी उनका नाम, उनका भोजन, उनका अंडे
देने का समय, अंडों की संख्या तथा रंग और उनके स्वभाव को विशेषताओं
को अंकित कर सकते हो। तुम देखोगे कि थोड़ा प्रयत्त करने से तुम्हें
कितनी बहुमूल्य जानकारी व पक्षियों से मित्रता का आनंद प्राप्त हो सकता
हे।
अभ्यात्त

(१) तुम कैसे कह सकते हो कि पपीहा गायक पक्षी है ?


(२) गाने वाली चिड़ियों में इयामा सर्वश्रेष्ठ क्यों मानी जाती है ?
(३) तीव्र को पकड़ने वाले कैसे पकड़ते हें?
(४) चकोर के स्वभाव की कोई तीन विशेषताएँ लिखो ।
(५) सर्दियों में हजारों-लाखों पक्षी भारत में क्‍यों आ जाते जा
(६) नीचे लिखे पक्षियों के नामकरण के आधार लिखो :-
* . क्रौसबिल, म्काईलार्क, टर्नेस्टोन।
४२ सहायक वाचन - ४

(७) पक्षियों का निरीक्षण करके हमें उनकी कया विशेषताएं पता


लगती हे ? "५
(८) खाली स्थान भरों :--
(क) पपीहा की प्यास ........... के वर्षा जल से बुझती है ।
(रत पीठ । 0 ऋतु में गाता हे |
(ग) गाने
बाली चिड़ियों में............ सर्वश्रेष्ठ है ।
डा ने ता इलोग। 00 पालते हें ।
(ड) तीतर का. प्रमुख भोजन.............: है ।
ही 000 008, पहाड़ों का पक्षी है ।
(छ)॥ दही दिन. ४.४० ३१३५ देखना शुभ माना जाता है ।
जल के जीव-जंतु
१. हमारे परिच्चित जीव-जंतु
बच्चो ! वर्षा आई और घर के आसपास पानी बहने लगा। बहते पानी में
छोटी-छोटी मछलियों को देखकर तुम्हारा मन प्रसन्‍न हो उठता है। मछलियों
की अनेक किसमें तुमने देखी होंगी। इन मछलियों के अनेक रूप-रंग होते हैं
और इनके कौतुकी विचरण में तुम्हारा मन रम जाता है।
अरे ! यह क्या मछलियों को देख रहे थे कि कछआ महाशय आ गए।
इनकी छोटी सिकुड़ने-बढ़नेवाली गर्दन और हाथ-पैर देखों । तुम्हें देखा
और डरकर हाथ, पैर, सिर सब अंदर कर लिए। जरा डर हटा कि अपनी
टिमटिमाती आँखों से इन्होंने इधर-उधर देखा ओर चलने लगे। जरा खटका
लगा कि फिर खोल के अंदर । इनको देखते-देखते मन नहीं अघाता । यह
मांसाहारी होते हें तथा अंडे देते हें ।
मछलियाँ मांसाहारी भी हैं और शाकाहारी भी। मछलियाँ कुछ सेंटीमीटर
से लेकर मीटरों लंबी व बड़ी होती हैं। हवेल तो ३०-३५ मीटर तक लंबी
और बजन में टनों तक की होती है। पानी में अपना भोजन ग्रहण करने के लिए
इनके मुँह की बनावट भी अलग-अलग होती है। कुछ तो अपने शिकार को
समूचा ही निगल जाती हैं। जानी पहचानी रोह मछली शाकाहारी होती है और
पढ़ीन॑ मांसाहारी ।

है
४४ सहायक वाचन - ४
अधिकतर मछलियाँ अंडे देती हैं, लेकिन कुछ मछलियाँ बच्चे भी देती
हैं। रोहू मछली एक बार में लाखों अंडे देती है। कुछ मछलियाँ साल में एकः
बार ही अंडे देती हैं ओर कुछ अनेक बार | इसके लिए मछलियाँ पानी में
दूर-दूर तक की यात्रा करती हैं। कुछ तो हजारों मील तक जाती हें।- कुछ
मछलियाँ तो समुद्र से नदियों में जाती हैं, जेसे हिलसा मछली।
मछलियाँ समूहचारी हैं। ये झुंड बनाकर रहती हैं। समुद्री मछलियों के
एक-एक झुंड में हजारों मछलियाँ होती हैं। ये समूह अपने स्थान बदलते
रहते हैं और जहाँ इनका भोजन होता है, वहीं पहुँच जाते हैं।

इन मछलियों में और जलः में रहने वाले अन्य जीवों में अपने ञात्रु से .
बचाव के भी बड़े विचित्र तरीके होते हैं। कुछ जीव तो शत्रु की टोह पाते
ही शरीर से नीली स्याही-सी छोड़ते हैं और जब तक पानी साफ हो, वह
दु्मन से दूर भाग जाते हैं। सकुची मछली दुहमन के पास आने पर दारीर से
बिजली का झटका (करेंट) मार कर अपना.बचाव करती है। कुछ जीव अपने
वातावरण से अपना रंग इस॑ तरह मिला लेते हैं कि दुश्मन पास आकर भी
इन्हें पहचान नहीं पाता। एक प्रकार के केंकड़े महाशय तो घोंघे . की खोल में
ही रहते हैं । बड़े विचित्र तरीके हैं इनके: बचाव के।

पानी में, चाहे तालाब हो या नदी, झील हो या समुद्र, सभी जगह अनेक
जीव मिलते हैं। भिन्‍न-भिन्‍न जगहों के जीवों के रूप भी भिन्‍न-भिन्‍न होते
| . हैं। पानी के. इन जीवों का मानव समाज से गहरा संबंध है। बहुत से जल के
जीवों को मानव समाज आहार के रूप में उपयोग करता है। आओ, हम तुम्हें
नदी और समुद्र में रहने वाले कुंछ जीव जंतुओं के बारे में मंनोरंजक बातें
. बताएँं। !
नदियों ओर तालाबों में रहने वाले जीव-जंतु हा
अभ्यास
(१) कोन-सी मछली
एक बार में लाखों अंडे देती है ?
(२) सिद्ध करों कि मछलियाँ समूहचारी हें।
(३) जल में रहने वाले जीवों में अपने शत्रु से बचाव के क्या
तरीके हैं ?
(४) हाँ या नहींमें उत्तरदो : -- ;
(कं) कछए मांसाहारी होते हें।
(ख)- रोह मछली मांसाहारी होती है।
(ग). हवेल मछली बिजली का झटका मारती है।
(घ) हिलसा मछली सागर में अंडे देती हे।

२. नदियों ओर तालाबों में


रहने वाले जीव-जंतु
मगर: | द
मगर साधारणतया २३ से & मीटर लंबे होते हैं, परंतु कभी - कभी
इनसे भी बड़े मगर पाए जाते हैं। इनकी खाल इतनी कड़ी होती है कि
: बंदूक को गोली भी आसानी से असर नहीं करती। परंतु पेट की खाल उतनी ही
मुलायम होती हे। तुम यह देखोगे कि ऐसा पानी के सभी जानवरों में होता है।
. मंगरः का रंग ऊपर जैतूनी होता है, जिस पर कभी-कभी चित्तियाँ भी रहती
हैं। पेट मटमैले रंग का होता है। इसकी पूँछ लंबी और आरी की तरह होती हे
४६ सहायक वाचन - ४४

जिसको फटकारकर यह दुह्ममनों पर हमला करता हे। तैरने में भी पूँछ इसके
काम आती है।
मगर का मुख्य भोजन मछली और जल के जीव हैं। यह मौका पाने पर
आदमियों और जानवरों पर हमला करने में भी नहीं चूकता और उन्हें
पकड़कर साबूत निगल जाता है। |
वर्षाकाल शुरू होने पर मादा मगर अंडे देती है। पानी के किनारे लंबी
सुरंग जैसे बिल खोदकर मादा बीस या अधिक अंडे देती हे। अंडे
करीब-करीब चालीस दिन में फूट जाते हें, जिनमें से बच्चे निकलते हं।

मगर का चमड़ा बड़ा कड़ा व उपयोगी होता है। चमड़े को पकाकर


अच्छे खूबसूरत सूटकेस, जाकिट, जूते आदि उपयोगी सामग्री बनाई जाती
हैं। मगर सारे भारतवर्ष की नदियों, दलदलों और तालाबों में रहते हैं। इन्हें
कीचड़ बहुत पसंद है |ये अक्सर नदियों के गहरे गडढों में रहते हैं।
नदियों बीए तालाबों में रहने वाले जीव-जंतु ४७

घड़ियाल :
मगर के इन भाइयों को लंबी थूथनी के कारण अलग से ही पहचाना जा
सकता है। ये उत्तर भारत की सभी प्रमुख नदियों, जैसे गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र,
तथा इनकी सहायक नदियों में मिलते हें। इनका सँकरा जबड़ा मछलियों को
पकड़ने के लिए बहुत उपयुक्त है किन्तु पतला गला होने के कारण ये
समूचा आदमी अथवा जानवर नहीं निगल सकते। ये उन्हें पकड़कर अपनी
दुम से मारते हैं।
घड़ियाल के शरीर के ऊपर और नीचे चौखुटे या शल्क होते हें। ये
आपस में जुड़े होते हैं। पीठ के सेहरों के नीचे हडिडियाँ होती हैं, जिनसे
इनकी पीठ बहुत कड़ी और मजबूत रहती है। इनकी आँखों पर पारदर्शक
झिल्ली होती है। यह पानी में अपने आप सरककर आँखों पर आ जाती हे।
मगर को भाँति ये भी वर्षाकालके प्रारंभ में अंडे देते हें।
घड़ियाल के चमड़े से भी सुंदर जूते, सूटकेस, जाकिट आदि बनाए
जाते हैं।
कछुआ :

कछुए तो तुमने देखे होंगे। इनकी बहुत-सी जातियाँ हमारे देश में
मिलती हैं। नदी व॑ तालों के अलावा कछए. संमुद्र में भी मिलते हैं। नदियों
और तालाबों में रहनेवाले कछओं की अँगुलियों की बनावट बतखों की तरह
जालपाद होती है। समुद्री कछुओं के पैरों कौ बनावट मछलियों के पंखों की
तरह पतवार जैसी होती है।
कछुओं की पीठ का हिस्स बड़ी हड्डी के समान कड़े आवरण से
८ सहायक वाचन - ४

ढका रहता है। ये इतने मजबूत होते हैं कि इन पर तलवार, लाठी या बरछी
का जल्दी असर नहीं होता । पुराने जमाने में इनसे ढालें बनाई जाती थीं।
इनकी गर्दन लंबी और लचीली होती हे। जरूरत पड़ने पर ये गर्दन को खोल
के भीतर कर सकते हें। मुँह में दाँतों के स्थान पर कड़ी हड्डी की प्लेट-सी
होती है। इसी से ये मांस काट सकते हें। इनके पैर छोटे परंतु मजबूत होते
हैं। ये घिसट-घिसटकर चलते हें। तुमने कछुए और खरगोश की दौड़ की ७
कहानी तो सुनी होगी। कछुओं की दुम बहुत छोटी होती है।
कछए अंडे देते हैं। ये मेंढक-पछलियों को भाँति पानी में अंडे नहीं »
देते। मादा पानी के किनारे बालू में अंडे देकर उन्हें बालू से ही ढँक देती है।
मीठे पानी के कछुए प्रायः मांस-भक्षी होते हैं। कुछ कछए
मेंढक-मछलियों और कौड़े-मकोड़ों के अतिरिक्त मुरदे का पांस भी खाते
है। कभी-कभी ये आदमियों को भी काट लेते हैं। काटते ऐसे हें, जैसे
किसी तेज धार वाले चाकू से काठ हो। स्थल पर रहने वाले कछए प्रायः
शाकाहारी होते हैं। कहीं-कहीं आदमी कछओं को खाते भी हें।
समुद्री कछए बहुत भारी-भरकम होते हैं। कुछ तो कई-कई क्विटलों
तक के होते हैं। इनका भोजन मुख्यतः काई और जलके पौधे हें।

अन्य जीव
जोंक:

पानी के जीवों में जोंक का नाम तो तुमने सुना ही होगा। जोंकें शरीर से
चिपट जाती हैं और खून चूस लेती हैं। आदमियों के शरीर से गंदा खुन चूसने
. के काम के लिए पहले इनका उपयोग किया जाता था। ये साधारणतया चार
से दस सेंटीमीटर लंबी होती हैं, लेकिन खुन चूस-चुसकर मोटी और लबी हो.
.... जाती हें। इनके शरोर में हडिडयाँ नहीं होती .।
नदियों और तालाबों में रहने वाले जीव-जंतु ४९
पनिहा साँप :
तुमने शायद पनिहा साँप भी देखा हो। यह बहुत ही सीधा-सादा साँप है।
यह औसतन तीन चौथाई मीटर से एक मीटर लंबा होता है। यह जहरीला नहीं
होता। पानी में आसानी से साँस लेने के लिए इसके नथुनों के छेद ऊपर को
ओर रहते हैं। इसका प्रमुख भोजन मेंढक और मछलियाँ हैं। यह अन्य साँपों
की तरह अंडे नहीं देता, यह बच्चे जनता है ।
अभ्यास

(१) मगर के शरीर की रचना का वर्णन करो ।


(२) मगर के चमड़े से कौन-कोन सी चीजें बनती हें ?
(३) घड़ियाल अपना शिकार केसे करता हे ?
(४) कछए की पीठ की क्या विशेषता है ?
(५) रिक्त स्थानों की पूर्ति करो :--
(क) कछओं की .................. का हिस्सा बड़ी हड्डी के समान
कड़े आवरण से ढँका रहता है।
बा टाल कक कली में अंडा देती हे।
(ग)४ घडियाली की आज पर झिल्ली होती है।
(घ) जोंक शरीर से चिपट जाती है और ............... .................
चूस लेती हे।
(ड) पनिहा साँप अन्य साँपों की तरह अंडे नहीं देता, यह .......
है कम जनता ताह।है
(च) घड़ियाल शिकार को पकड़कर अपनी.......... से मारता हे।
३. मछलियाँ
नदी की मछलियों को देखने पर तुम्हें पता लगेगा कि कुछ मछलियों के
शरीर पर कड़े खपटे होते हैं तथा कुछ का शरीर चिकना होता है। आओ
तुम्हारा परिचय ऐसी मछलियों से कराएं ।

रोह:
इसके शरीर पर छिलके या खपटे होते हैं। यह नदी की एक जानी-मानी
मछली है, जिसे लोग बड़ी ही स्वादिष्ट मछली -मानते हैं। यह तेजी से
बढ़ने वाली मछली है और एक साल की उम्र में ही डेढ़ किलो की हो जाती
है। ये मछलियाँ तालाबों में भी रह लेती हैं और अब सभी नदियों, झीलों और
तालाबों में पाई जाती हैं। इनका शरीर लाली लिए भूरा-सा और बगल व नीचे
की ओर चाँदी जेसे रंग का होता हे।
पढ़ीन :

पढ़ीन भी बहुत प्रसिदूध मछली है। यह हमारे यहाँ की प्रायः सभी


नदियों और ताल-तलैयों में पाई जाती है। इसका मुँह बहुत चौड़ा होता है तथा
यह मांसाहारी होती है। अपने मुँह और लंबे शरीर के कारण यह अन्य सब
_ मछलियों से अलग ही पहचानी जा सकती है। इसके शरीर में काँटे भी कम
होते हैं। पढ़ीन पाँच से छह फीट तक लंबी होती है तथा अपने साथ रहने
वाली छोटी मछलियों को खाती है। इसे मीठे पानी की शार्क कहते हैं। इसका
- रंग स्‍्लेटी होता हे।
मछलियाँ *, ४३१३

ज्ोभा की मछलियाँ:

घर की सजावट के लिए काँच के बर्तनों में छोटी-छोटी लुभावनी रंगीन


पछलियाँ पाली जाती हें।
समुद्री मछलियाँ
समुद्र का पानी खारा होता है तथा बहुत गहरा भी होता है। सागर में ऊपर
से नीचे गहराइयों तक भाँति-भाँति की मछलियाँ पाई जाती हैं। समुद्री
मछलियों में कुछ मुख्य मछलियाँ निम्नलिखित हें :
शार्क:

तुमने शार्क का नाम तो सुना होगा। यह बहुत ही खतरनाक होती है और


बिना छेड़े ही आक्रमण करती है। शार्क छह मीटर तक लंबी होती है। यह
छोटी मछलियों, कछओं, केंकड़ों आदि को खाती है। खून की गंध से शार्क
बहुत जल्दी आकर्षित होती है, इसलिए यह कहा जाता है कि जब भी शरीर
पर कोई घाव हो, समुद्र में नहीं घुसना चाहिए। शार्क की कुछ बहिनें शाकाहारी
भी होती हैं। इनके जिगर के तेल में विटामिन बहुत होते हैं जो दवाई के काम
आते हें। ये बच्चे देती हैं। हमारे देश के समुद्री किनारों पर पाई जाने वाली
एक प्रकार की शार्क का सिर बिलकुल हथौड़ा जैसा होता है। उसे
हथौड़ासिरी कहते हें।
सकुची मछली :
यह चौड़ी, चपटी, गोल, थालनुमा होती है तथा चपटा शरीर देखकर इसे
कोई मछली नहीं कह सकता। इसके शरीर में कोड़े जैसी दुम रहती हे।
सकुची का मूँह नीचे की ओर होता है, जिसमें दाँतों को कई पंक्तियाँ होती हैं।
२ " सहायक वाचन - ४

इसकी लंबी दुम के नीचे दो तेज काँटे होते . हैं। उनका रंग ऊपर गाढ़ा
सस्‍लेटी और नीचे सफेद होता है। इसकां मुख्य भोजन मछलियाँ, घोंघे और '
कछए आदि हैं। सकुची की एक बहिन के -गरीर में बिजली पैदा करने की
शक्ति होती है और यह अपने शत्रु को बिजली का धक्का देकर अपना बचाव
- करती है।
बाम :. «
यह देखने में साँप जैसी होती है। इसके दोनों गलफड़ों का.शिगाफ कटा
होता है। इसके शरीर पर खपटे नहीं होते। बाम प्रायः तीन फीट तक लंबी होती
है। इसी जांवन-लीला- बड़ी विचित्र है। यह अटलांटिक सागर में अंडे देती
है। अंडे देने के बाद मादा मर जाती है। उनसे निकले छोटे-छोटे बच्चे
लाखों की संख्या में प्रतिदिन ३-४ मील चलते हुए जब लगभग तीन हजार
मील की यात्रा कर लेते हें तब इनके ञारीर में परिवर्तन होता हे। ये इस समय
मीठे पानी में नदियों के मुँहाने से होकर नदियों के भीतर चले जाते हैं और
वहाँ जीवन के कुछ साल बिताते हैं। पाँच साल बाद यह रंग बदलते हैं और
फिर वापस नदियों से समुद्र की यात्रा करते हैं तथा .एक दिन फिर उसी
जगह पहुँच जाते हैं, जहाँ ये. पैदा हुए थे।
: - अभ्यास

५0३) रोह मछली की विशेषताएँ लिखो ।


- (२) पढ़ीन मछली. अन्य मछलियों से अलग किस विशेषता के - .
कारण पहचानी जा सकती हैं ?
(३) ज्ञार्कमछली का स्वभाव कैसा होता हैं ? |
._ (४) सकुची मछली की शारीरिक रचना का वर्णन करो ।
- (५) बाम की जीवन-लीला संक्षेप में लिखों ।
(६) रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए शब्दों में से चुनकर करो :--
सागर में रहने वाले विचित्र जीव-जंतु १३

(छिलके, शार्क, नीचे)


(का रहा परा होते हें।
व पट न की मठ पानी की कहते हैं।
ग) सकी का माह 8 की ओर होता हे ।

४. सागर में रहने वाले विचित्र जीव-जंतु


मछलियों के बाद अब तुम्हें ऐसे समुद्री जीवों से परिचित कराएँगे जो
विचित्र तथा कौतुकी होते हें।
अष्टबाहु :
इनके नाम से ही इनके रूप का अनुमान लग जाता है। ये आठ
बाहुओंवाले जीव हैं। अपनी इन बाहों से ये शिकार पकड़ते हैं। वैसे तो
प्रायः ये आठ से दस फीट तक के होते हैं, लेकिन कभी-कभी चालीस से
पचास फीट तक लंबे अष्टबाहु भी पाए जाते हैं। ये समुद्र तट के निकट
अधिक रहते हैं। ये बहुत ही फुर्तीले ,और बलवान जीव हैं। इनका मुख्य
भोजन केंकड़े हैं। ये अपने शिकार को पकड़ते ही उसके शरीर में एक
विष भर देते हें, जिससे शिकार का शंरीर सुन्‍्न हो जाता है। इस प्रकार ये.
बड़े-बड़े जीवों को भी अपनी बाहों से जकड़कर विष दूवारा मार देते. हें।
तारा मछली :

आकाश के तारे तो तुमने देखे ही हैं। अब सपुद्र में रहनेवाली तारा


मछली के संबंध में कुछ जान लो । ये पानी में रहती हैं इसलिए इन्हें पछली
श्ड सहायक वाचन - ४

कहते हें। परंतु इनका मछलियों से कोई संबंध नहीं होता। तारा मछली को
प्रकृति ने बहुत सुंदर-सी पोशाक दी है। ये लाल-पीली और बैंगनी रंग की
: होती हैं तथा देखने में पाँच पंखुड़ी वाले खिले फूल-सी जान पड़ती हैं। ये
पंखुड़ियाँ ही इनकी भुजाएँ हैं। ये किसी भी कड़ी चीज को पकड़ सकती
: हैं। उल्टी हो जाने पर ये अपनी एक ही भुजा को सिकोड़कर सीधी हो जाती
हें।
ये दिन में तो आराम से पानी के भीतर डूबी हुई चट्टानों पर विश्राम
_ करती हैं, लेकिन रात होते ही अपने भोजन की खोज में जुट जाती हें। ये
सर्वभक्षी जीव हें। परंतु सीपें इनका प्रिय भोजन हैं। सीप को देखते ही ये उस
पर सवार हो जाती हैं और अपनी भुजाओं से सीप को खोल लेती हैं। सीप का
ढककन खुल जाने पर ये उसमें अपना पेट डालकर उसका नरम शरीर खा लेती
हैं। चीरकर दो कर देने पर भी तारा मछली मरती नहीं है, बल्कि इसके दोनों
टुकड़े अलग-अलग दो स्वतंत्र तारा मछलियाँ बन जाते हें।

हवेल :

यदि जमीन पर रहने वाले प्राणियों में सबसे बड़ा जानवर हाथी है, तो
पानी का सबसे बड़ा जानवर हवेल है। यह हवेल पच्चीस मीटर तक लंबी
होती है। इनमें कुछ मांसाहारी होती हैं तो कुछ शाकाहारी। सबसे बड़ी हवेल
शाकाहारी है। ये बच्चे जनती हैं और उन्हें छाती से दूध पिलाती हैं। जानते
हो, इनका बच्चा भी लगभग तीन मीटर लंबा होता है-हमारे फौजी जवान से
दुगुना। ये पानी की सतह पर आकर साँस लेती हैं। उस समय इनके नथुने से
पानी की धार-सी निकलती है। इतने बड़े जीव की आँखें बहुत छोटी-छोटी
होती हैं। हवेल पचास-साठ के झुंड बनाकर रहती हैं।
तेल व मांस के लिए हवबेल का अंधाधुंध शिकार करने 'के कारण संसार
सागर में रहने वाले विचित्र जीव-जंतु ५५
में इनकी संख्या बहुत कम रह गई है। अतएवं अब इनके शिकार पर कड़ी
पाबदियाँ लगा दी गई हैं। :
सूँस :
जल में रहने वाले जीवों में यह बहुत ही चतुर जीव है। यह
थोड़ी-थोड़ी देर बाद हवा में साँस लेने के लिए निकलता है और गोलाई
में घूमकर पानी में चला जाता है। यह करीब ८ फीट का कलछोहा जीव हे।
इसके गोल सिर के आगे लंबी थूथनी होती है। यह प्रमुखतः मछली खाता है।

समुद्री झींगा (लॉन्स्टर) :


इसका डारीर कड़े आवरण से ढँका रहता है। शरीर के पिछले हिस्से
पर पंखी जैसी दुम होती है, जिसको इधर-उधर चलाकर झौंगा पानी में तैरता है।
इसकी आँखे बड़ी और जखूछें बहुत ही लंबी होती हैं। यह तैरता तो आसानी से
है ही, साथ ही पंद्रह ले बीस फीट तक की ऊँची उछाल भी लगा सकता है।

समुद्री झींगे का मुख्य भोजन पानी के कीड़े-मकोड़े और मयाँबेगी हें। '


बिदेशों में लोग इन्हें बड़े स्बाद से खाते हैं।
प्रचिगंट (प्रान) :

यों तो प्रान समुद्र का निवासी है किन्तु इसके कुछ भाईबंद नदियों में भी
पाए जाते हैं। इसके दस जोड़े पेर होते हैं। इनको सभी आदतें झींगों को तरह
ही होती हैं। ये गहराई में रहते हैं। इनका मांस भी स्वादिष्ट माना जाता है, जो
पकाने पर गुलाबी रंग का हो जाता है।
7. ईद सहायक वाचन - ४

केंकड़े:ः

केंकड़े समुद्र तट के बहुत परिचित जीव हैं। ये समुद्र के किनारे


कम गहराई में, पानी में डूबी हुई चट॒टानों के आसपास रहना ज्यादा पसंद करते
हैं। इनके चिमटा जैसे हाथ बहुत मजबूत होते हैं, जिनसे कछए, घोंधे और
(सीपियों) की कड़ी खोल को ये आसानी से तोड़ देते हैं। जानते हो, खाने
के मामले के अलावा भी यह आपस्र में लड़ बेठते हैं। उस समय यह इतने
खूंखार हो जाते हैं कि हारे हुए केंकड़े को जीता हुआ केंकड़ा खा जाता
हैं। इनमें एक जाति का केंकड़ा अपनी रक्षा के लिए मरे हुए शंख का
आवरण पहन लेता हे और उसी में रहता है। केंकड़े की कुछ जातियाँ खाने
के काम भी आती हैं।
अभ्यास:
(१) अष्टबाहु के बारे में तुम क्‍या जानते हों ?
(२) पानी का सबसे बड़ा जानवर कौन हे ?
(३) सही या गलत लिखो :--
(क) केंकड़े के हाथ बहुत मजबूत होते हें।
(ख) सूँस पानी के अंदर साँस लेता है।
(ग) प्रचिगंट के दस जोड़े पैर होते हें।
(घ) तारा मछली को चीरकर दो कर देने पर भी वह नहीं मरती।
(ड़) हवेल की आँखें बहुत बड़ी होती हें।
(च) तारा मछली दिन में शिकार करती हे।
(छ) तेल के लिए सूँस का शिकार किया जाता है।
(ज) समुद्री झींगा समूह पंद्रह-बीस फीट तक भी उछाल लगा
सकता है।
अध्याय ३

फूल-पोधे
१. फूलदार पोधे
सुंदरता किसे प्यारी नहों लगती ? और यदि सुंदरता के साथ सुगंध और
ताजगी भी मिल जाए तो सोने में सुहागा वाली कहाबत सिद्ध हो जाती हे।
फूलों में ये गुण मिलते हैं। जिन पौधों पर फूल खिलते- हैं उन्हें फूलदार
पौधे कहते. हैं। कुछ पौधे सुंदर तो होते हैं पर उनमें फूल नहीं खिलते जैसे
गमलों में लगे फर्न और बरसात में अपने आप उगने वाला कुकुरमुत्ता ।
मनुष्य आदिकाल से फूलों के लिए पौधे उगाता आया है। पूजा-पाठ,
घर की सजावट, जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी कार्य-क्रम बिना फूलों के
संपन्‍न नहीं होते। केसर, लौंग, गुलाब, गोभी आदि भी तो फूल या उसके
गुच्छे ही हैं। कुछ फूल अपनी सुगंध तथा कुछ अपनी सुदंरता के लिए
प्रसिद्ध हैं। कुछ ऐसे फूल भी होते हैं, जिनमें न तो सुंदरता होती है और न
गंध, पर वे होते हें बड़े उपयोगी, जैसे गेहूँ, दाल; चना, तिलहन आदि के
फूल बीजों के लिए पैदा किए जाते हैं। फूलों से हमें स्वादिष्ट फल,
उपयोगी बीज एवं खादूय पदार्थ प्राप्त होते हें।
कुछ फूलदार पौधे अपने आप, बिना मनुष्य के प्रयत्नों के उगते रहते
हैं। इन्हें जंगली पौधे कहते हैं। कुछ फूलदार पौधे केवल सुगंधित फूलों के
लिए उगाए जाते हैं तथा कुछ सुंदर फूलों के लिए । आओ, अब हम कुछ
उपयोगी फूलदार पौधों की जानकारी प्राप्त करें।

शफ सहायक वाचन - ४

सुगंधित देशी फूल :


भारत के लोग सुगंध के बड़े प्रेमी होते हैं। इसलिए वे बगीचों में
सुगंधित फूल पैदा करने वाले पौधे खूब उगाते हैं। इनमें मोगरा, मोतिया
चमेल?, रात की रानी एवं गुलाब प्रमुख हें।
मोगश* :

गर्मियों में मोगरे की सुगंध वातावरण को महक से भर देती है। इस पौधे


को धूप बहुत पसंद है। इसे अधिक पानौ की आवश्यकता नहीं पड़ती बल्कि
इसके फूलों पर फनी गिरने से उनका रंग काला पड़ जाता है। इसलिए
पानौ सावधानीपूर्बक ही देना चाहिए। इसकी पत्तियाँ चौड़ी तथा फूल दोहरे
होते हैं। इसको सफेद कलियाँ बड़ी खुंदर होती हैं तथा फूल उतने ही
सुमंधयुक्त । मोगरा को -कलमें लगाकर उमाया जा सकता है । ,
मोतिया :

मोतिया भी मोगरे की तरह होते हैं पर इनके फूल मोगरे की अपेक्षा छोटे
होते हैं। इनके फूलों में पंखुड़ियों कौ संख्या दस होती है जब कि मोगरे के
फूलों में बीस से तीस पंखुड़्ियाँ पाई जा सकती हैं। मोगरे * कौ अपेक्षा इसको
पत्तियाँ भी छोटी ब कम होती हैं।
-बास्तव में मोगरा, चमेली, मोतिया, बेला आदि पौधे एक ही कुल के
होते हैं। इनमें अत्याधिक समानता पाई जाती है, जैखे मोगरे की तरह दिखाई
पड़ने वाला पौधा रायबेला है। इसके फूल छोटे और देखने में सितारों जैसे
लगते हैं। इनमें पंखुड़ियों की संख्या लगभग पाँच होती है। इसी प्रकार देशी
बेला भी देखने में रायबेला की तरह ही होता है। इसके फूलों और पत्तियों का
आकार रायबेला से छोटा होता है।
फूलदार पौधे ५९

चमेली : ४!

चमेली के छोटे-छोटे सफेद फूल तुमने गर्मी, जाड़ों में अवश्य देखे
होंगे। इनकी मधुर व भीनी सुगंध को भूलना कठिन है। चमेली के पौधे के तने
पर पहीन-महीन रोएँ होते हैं। इन्हें भी कलमों की सहायता से लगाया जा
सकता हे।

रात को रानी
. मीठी सुगंध और रात*में खिलने के कारण इसे बगीचों में उगाया जाता
है। पौधा झाड़ी के रूप में खूब जगह घेरकर बढ़ता है और यदि काटा-छाँटा
न जाए तो ३ से ४ मीटर की ऊँचाई तक पहुँच जाता है। फूल बड़े-बड़े
गुच्छों के रूप में मिलते हें तथा आकार में छोटे व सफेद रंग के होते हें।
इसकी सुगंध रात के समय बगीचों में एक प्यारा-सा वातावरण बना देती है।
इन्हें भी कलमों की सहायता से उगाया जा सकता हे।

गुलाब:
गुलाब से कौन परिचित नहीं है ? इसे फूलों का राजा माना जाता हेै।
ऐसे फूल बहुत कम होते हैं जो गुलाब की तरह सुंदरता और सुगंध दोनों गुणों
के साथ खिलते हों। गुलाब के पौधे अपने सुंदर और सुगंधित फूलों के
लिए ही अधिक प्रसिद्ध हें।
गुलाब विश्वविख्यात पौधा है। उसे प्राचीन काल से ही मनुष्य उगाता
रहा है। रोम, चीन, मिश्र, यूरोप ओर भारत के प्राचीनतम ग्रंथों में गुलाब के
फूलों का वर्णन मिलता है। गुलाब रोजा नामक पौधे की कई किस्मों का
भारतीय नाम है। गुलाब परिवार बहुत बड़ा है। जंगली गुलाब संसार के ठंडे
प्रदेशों और भारत के पहाड़ी प्रदेशों में पाया जाता है। इसके तनों पर काँटे
६० सहायक बाचन -

होते हैं। हरे व चिकने तनों पर भूरे रंग के व घुमावदार काँटे भी देखने में
अच्छे लगते हैं।
गुलाब मुख्यतः तोन वर्गों में बाँटे जा सकते है :--

जंगली गुलाब - इनकी वृद्धि तो काफी तेजी से होती है. किन्तु


फूल साल में एक बार ही खिलते हैं ।
_२. देशी गुलाब - इनके फूंल अधिक दिनों तक खिलते रहते हैं।
: साथ ही जंगली गुलाब की अपेक्षा इनके फूल अधिक टिकाऊ और सुंदर होते
हैं ।
३. नए संकर गुलाब - इनके फूल अधिक बड़े, सुगठित और सुंदर
होते हैं। यद्यपि फूलों की संख्या कम होती है किन्तु एक बार का खिला
फूल लगभग पंद्रह दिनों तक डाल पर लगा रहता है। आजकल संकर गुलाबों
का ही चलन बढ़ गया है ।
कुछ सुंदर संकर गुलाबों का वर्णन नीचे दिया जा रहा हे। जब भी अवसर
: मिले, बगीचों में जाकर इन्हें पहचानने का प्रयत्न करना :--
गिनी - इसके फूल गहरे मखमली लाल रंग के होते हें। पंखुड़ियों पर
काले रंग की आभा भी रहती है। फूलों का आकार बड़ा होता है तथा वे
पूर्णरूप से खिलते हें।
पीस - इसके फूल बहुत बड़े, पूरे खिलने वाले तथा प्याले की शकल के
होते हें। फूलों का रंग लालिमायुक्त पीले रंग का होता है। प्रत्येक डाल पर
ग्यारह या बारह फूल तक खिल सकते हें।
विगों - इसके फूल सुंदर, पूर्णरूप से सफेद और सुगठित होते हैं। इसकी
कलियाँ भी सजाबट के काम आती हैं । जाड़ों और गर्मियों में इसमें बहुतायत
फूलदार पौधे
६१
से फूल खिलते हैं।

सुरैया गुलाब - इसके फूल
जोगिया लाल रंग के होते
में तीस पंखुड़ियाँ होती हैं। पौध हैं तथा प्रत्येक फूल
े लंबे, पत्तियाँ चमकदार
होती हैं । फूल भी अधिक संख्या तथा जाखाएँ घनी
यह एक अच्छा पौधा है ।
में खि लत े हैं। समूहों में लगाने के लिए
गाजार्ड - इसके तने सीधे
का रंग हल्का लाल होत व पत्तियाँ कांसे के रंग को
ा है। जो बाद में गह होती हैं। पंखुड़ियों
सफेद धारियाँ होती है। फूल रा हो जाता है । पंखुड़
का आकार भी बड़ा होता ियों पर
है ।
बेटिना - इसके प्रत्येक फू
ल में पेंतीस पंखुड़ियाँ होती
#हर को ओर तो खिल जाती हैं, जो कि फूल के
नारंगी रंग का होता
ह ै , पर केन् द्र में नही ं खिलतीं । यह लालिमायुक्
हे पंखुड़ियों पर गहरी धारियाँ होती हैं


ऐसे सुंदर-सुंदर गुलाबों को उगाने
होगा। अगले के लिए तुम्हारा दिल भी मचल उठा
पाठ में हम तुम्हें इन्हें उगाने
की विधियाँ बताएँगे।
अभ्यास
(१) फूलदार पौधे किन्हें कहते हैं?
(२) पाँच सुगंधित देशी फूलों के नाम
लिखो।
(३) मोगरे के फूल के लिए कितनी धूप
पड़ती है 2 और पानी की आवश्यकता
(४) रात की रानी को क्यों उगाया जाता है?
(५)! गुलाब मुख्यतः कितने वर्गों में बाँदा जाता है
2
(६) संकर गुलाब की विभिन्‍न किस्मों के
नाम लिखो |
ी उन ्‍ नत कि स् मे ं ते या र क र न े
२. गुलाब क
की विधियाँ
पुराने
गली गुल ाब के पौध े बीज ों दूव ारा पैदा किए जा सकते हें, पर
- “जं जा सकते। इनके लिए
गुलाब व संकर गुलाल बीजों द्वारा पैदा नहीं किए
:-+
प्रयोग में लाई जांती हैं
निम्नलिखित विधियाँ

कऋलमें लगाना :
ब इस विध ि से पैद ा कि ए जा सकते हैं। पर कलमों
सभी प्रकार के गु ला
की वृद ्धि बह ुत धीम ी होत ी है और इनमें फूलों की
द्वारा उगाए गए पौधों मा स में पौध े की कि सी पकी शाखा को काकरट
तं बर
# संख्या भी कम होती है। सिऔर ऊपर का नर्म भाग काटकर अलग-अलग
लेते हैं। इसकी पत्तियों छह -छ ह इंच के टुकड़े काट
वाल े चाक ू से
देते हैं। अब काफी तेज़ धार कलम कहते हैं। कलमों को गमलों में इस
ही
लिए जाते हैं। इन टुकड़ों कोएक-तिहाई भाग मिट्टी में रहे और बाकी मिट्टी
प्रकार लगाते हैं कि इनका खाद, बल, और मिट्टी
। गम लो ं की मिं ट॒ट ी में गो बर की
के ऊपर इन गमलों में पानी देकर
इत्हें
सत ्य चा हि ए। अब
बराबर-बराबर मिलाकर बन ाकर रख दिया जाता है। कुछ
सप्ताहों के
किसी छायादार जगह में गड्ढे प्र ारं भ हो जाती हैं। पौधे अच्छी
पत् तिय ाँ नि कल नी
बाद कलमों से जड़ें और यारियों में लगा दिया जाता हे ।
ें क्
तरह से तैयार हो जाने पर इन्ह
सतहें लगाना :
विधि बहुत प्रचलित है।
नि हो गा कि कुछ टहनियाँ यदि भूमि ानपरे
वालों ने यह दे खा
बागवानी करने ें निकल आती हैं। अतः सतह
ें लग
ती हें तो उनमें जड़
कुछ दिनों पड़ी रह ६२
, (लाब को उन्नत किसमें तैयार करने की विधियाँ
६३
के लिए इसी सिद्धांत का उपयोग किया
जात
चार से छह इंच लंबा भाग छह इंच गहर ा है। कुछ टहनियों के बीच का
ी मिट॒टी में दबा दिया जाता है। टहनी
का पिछला भाग अपने मुख्य पौधे
के ऊपर निकला रहता है। से लगा रहता है तथा अगला भाग
कुछ सप्ताहों बाद मिट॒टी जमीन
सावधानीपूर्वक हटाकर
देखना चाहिए कि दबे हुए भाग से जड़ें निकल
कप

ीं या नहीं । यदि जहडें


निकल चुकी हों तो मुख्य पौधे के पास से इस
शाखा को काटकर अलग कर
दिया जाता है। इस ग्रकार नया पौधा तैयार हो जाता है ।
कलियाँ लगाना :
कलियाँ लगाने की विधि अपनाकर थोड़े
समय में ही कई किस्मों के
गुलाब पैदा किए जा सकते हैं। इस विधि
दूवारा उत्पन्न पौधों की वृद्धि
तेज़ गति से होती है तथा इनके फूल बड़े आका
र व अधिक संख्या में
पैदा होते हैं | संकर गुलाब के पौधे बड़े कमज
़ोर होते है, इसलिये
अच्छा यही होता है कि जंगली गुलाब के पौधे पर
संकर गुलाब की कलियाँ
लगाई जाएँ ताकि जंगली गुलाब के रस
द्वारा इन्हें अधिक शक्ति मिलती
रहे।कली लगाने का सबसे उपयुक्त समय अक्तूबर से जनवरी
माह का
होता है। इसके लिए पहले कलमें लगाकर देशी
या जंगली गुलाब पैदा कर
लिए जाते हैं । जिस टहनी पर कली लगानी हो वह
कम-से-कम एक पेंसिल
को मुटाई की अवश्य हो । इस शाखा की पत्त
ियाँ और काँटे निकाल देने
चाह
िए । अब एक तेज़ चाकू से उस जगह लंबा चीरा लगाना
चाहिए जहाँ
कि जंगली गुलाब की कली हो । चीरा
इस प्रकार लगाना चाहिए कि केवल
ऊपर का छिलका ही कटे । अंदर के
सफेद भाग को कम हानि पहुंचे। इसी
प्रकार
का चीरा लगाकर संकर गुलाब की कली
को सावधानीपूर्वक निकालकर
जंगली गुलाब के कटेवाले हिस्से में लगा देना चाहिए। कली लगाने के
४ //
सहायक वाचन.-
६४
वह अपने
वन लगाम ते कली को बाँध देना चाहिए ताकि
बढ़कर श्ञाखा का रूप ले
स्थान से हिल न सके। कुछ दिनों बाद कली
ेंगे, जिनकी कली लगाई गई
लेती है। इस शाखा पर उसी प्रकार के फूल खिल
हे।
:
गुलाब के पौधों की परिचर्या
नए पोधे लगाना आसान है पर उनसे सुंदर फूल प्राप्त करना कठिन । नए
चाहिए | समय-समय
लगे पौधों की क्यारियों में भरपूर गोबर को खाद रहनी
चाहिए । प्रत्येक पस्लाल
पर गोड़ाई करके मिट्टी को भुरभुरी बनाते रहना
चाहिए ।
अक्तूबर या नवंबर मास में पुरानी व लंबी टहनियों को काट देना
उनमें
इससे एक लाभ यह भी होता है कि नई टहनियाँ पैदा होती हैं तथा
अधिक मात्रा में फूल होते हैं। कुछ रासायनिक खाद, जैसे यूरिया
सुपरफासफेट, ग्रोमोर, अमोनियम सल्फेट भी डालते रहना चाहिए | यदि
दवाओं का
कोई रोग लग जाए तो विशेषज्ञ की सलाह लेकर कीटनाशक
;
छिड़काव भी करना चाहिए ।

अभ्यास

(१) कलम किसे कहते हें ?


(२) कलम लगाने की विधि लिखो ।
(३) थोड़े समय में ही कई किस्मों के गुलाब पैदा करने को
. कौन-सी विधि है?
(४) गुलाब की उन्नत किस्म तैयार करने के लिए कोन-सी
विधि सर्वोत्तम है 2...
सुंदर फूलदार पौधे सा
(५) गुलाब से सुंदर फूल प्राप्त करने के लिए हमें कौन-कौन-सी
सावधानियाँ बरतनी चाहिए ?
(६) खाली स्थान भरो :--
(क) कली लगाने का सबसे उपयुक्त समय........... होता है।
जा
(ख) पौधों पर रोग लग जाए तो........ दवाएँ छिड़कनी चाहिए।
(ग) है लाब की लंबी टहनियों को प्रत्येक साल....... के बाद काट
हक) ना चाहिए। >

३. सुंदर फूलदार पोधे


गुलाब के फूल तो सुगंधित और सुंदर होते हैं किन्तु अनेक अन्य सुंदर
फूलों में सुगंध नहीं होती। सूर्यमुखी का सुंदर बड़ा फूल तो तुम सबने देखा
होगा। वह कितना मनमोहक होता हे। यह बीज से उगाया जाता है। आओ,
ऐसे ही कुछ खूबसूरत फूलों के बारे में पढ़ें ।
गेंदा :

गुलाब की तरह हमारे देश में गेंदे की कई किसमें प्रचलित हैं। इनमें
पीले फूलवाले को गेंदा व कत्थई फूलों वाले को गेंदी कहते हैं। गेंदे के
फूल वास्तव में फूलों का समूह होते हैं। पीले गेंदे का तना हरा व गेंदी का
तना कत्थई रंग का होता है। गेंदे के पौधे बीजों से पैदा किए जाते हैं ।
'साधारणतया ये एक मीटर तक ऊँचे होते हैं।
सुंदर फूलदार पौधे ६७

सेवंती (क्राइसें थेमस) :


जाड़े के मौसम में सेवंती के फूलों से बगीचों में बहार आ जाती है।
इसके फूल गेंदे की तरह ही होते हें पर आकार में बड़े ब कई रंगों के होते
«» है। इसकी पत्तियाँ भी अधिक चोड़ी होती हैं। सेवंती में लाल, सफेद, पीले,
भ्रोे व नारंगी फूल खिलते हें। इस पौधे में एक विशेष बात यह होती है कि
# रंसको कुछ शाखाएँ जमीन के अंदर-ही-अंदर बढ़कर फिर जमीन फोड़कर
बाहर निकल आती हैं। इन शाखाओं को 'सकर' या “अंत : भुस्तारी' कहते हें।
इस प्रकार की प्रत्येक शाखा अर्थात्‌ 'सकर' दूवारा नए पौधे पैदा किए जा
सकते हैं। सेवंती के पौधों से फूल प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक
इनकी देखभाल करनी पड़ती है। फरवरी माह के प्रथम सप्ताह में पौधों का
ऊपरी भाग काट देना चाहिए इससे अंतः भुस्तारियों की संख्या में वृद्धि हो
जाती है। गमलों को छायादार स्थानों में रखकर सप्ताह में कम-से-कम तीन बार
पानी देते रहने से पौधे जीवित रहते हें तथा अंतः भुस्तारियों का निर्माण
करते रहते हैं। पौधे को तेज़ धूप और वर्षा से बचाना चाहिए | अगस्त में
अंतः भुस्तारियों को अलग कर, बड़े गमलों में एक भाग मिट॒टी, थोड़ा
हड्डी का चूर्ण, एक भाग बालू, चार भाग गोबर की खाद और चौथाई भाग
लकड़ी का कोयला मिलाकर लगाना चाहिए |

पौधे में फूल की कलियाँ नवंबर और दिसंबर माह में निकलनी प्रारंभ हो
जाती हैं। यदि बड़े आकार के फूल खिलाना हो, तो दो या तीन कलियों को
छोड़कर अन्य सभी कलियों को तोड़ देना चाहिए। यदि बड़े फूलों का
मोह न हो तो मुख्य तने का ऊपरी भाग काट देना चाहिए । इसके
परिणामस्वरूप ज्ञाखाओं की संख्या बढ़ जाती हे और पौधे सघन हो जाते
(कद सहायक वाचन - ४

हैं। प्रत्येक शाखा में कई कलियाँ निकल आती हैं ।


। सेवंती की किस्मों को सात समूह में विभकत किया गया है। इन सातों
:. किस्मों में से दो किस्में-एक गेंद की तरह गोल व बड़े फूलोंवाली, दूसरी
: अत्यंत छोटे और बटन की आकारवाली अत्यंत लोकग्रिय हैं। इसकी अन्य _
* किसमें होती तो सुंदर हैं पप अधिक प्रचलित नहीं हैं ।
: बगानविलास (बागेनवेलिया) ; पक

5 यह एक सुदृढ़ तनोंवाली.लता का नाम है। अतः इसे ऊपर चढ़ने के


- लिए सहारे की आवश्यकता होती है। इसके तनों पर लंबे -काँटे रहते हें।
पत्त्तियाँ चौड़ी व फूल गुच्छों में उगते हैं | वैसे तो इसके फूल छोटे व
साधारण होते हें परंतु प्रत्येक फूल रंगीन पत्तियों की तरह के तीन सहपत्रों से
घिरा रहता है। इन रंगीन सहपत्रों से ही इसके फूलों के गुच्छे सुंदर दिखाई
पड़ते हैं। बगानविलास की कई किसमें प्रचलित हैं। इनमें लाल, सफेद,
सिंदूरी व एक ही डाल में दो रंगों के फूलवाली किसमें बहुत लोकप्रिय हें।
बगानविलास में एक विशेषता यह है कि इसे अधिक पानी की आवश्यकता
नहीं होती। इसीलिए गर्मी के मौसम में भी यह फूलों से लदी रहती हे। इसे
अधिक खाद को आवश्यकता भी नहीं होती। कलमें तथा कलियाँ लगाकर
इन्हें सरलता से उगाया जा सकता हे ।
लालपत्ता (पोएनसेटिया) :
इसे यह नाम इसके एक विशेष गुण के कारण मिला है । जाड़े के
मौसम में इसके कुछ पत्ते (सहपत्र) लाल सुर्ख हो जाते हैं। इन सहपत्रों से
छोटे-छोटे लाल फूलों के गुच्छे घिरे रहते हैं। इसके फूल तो सुंदर नहीं होते...
सुंदर फूलदार पौधे... ६९
पर इन सहपत्रों के कारण पौधों की सुंदरता बहुत बढ़ जाती है। इसकी पत्तियाँ ह
चौड़ी तथा तना हलका मटमैला, पीला व हरा होता है। पौधा तीन मीटर तक की
लंबाई प्राप्त कर लेता है। इसकी पत्तियाँ या शाखाओं को काटने पर सफ़ेद
दूध जैसा पदार्थ निकलता है। वर्षा ऋतु में इसंकी सभी पुरानी शाखाओं को
: काट देना चाहिए. क्योंकि इनपर फूल नहीं खिलते। फूल केवल नई शाखाओं
पर ही खिलते हैं। पौधे कलमों की सहायता से ही पैदा किए जाते हैं।
इसकी किस्मों में लाल सुर्ख, गुलाबी व पीले - सहपत्रोंवाले पौधे. बहुत
अचलित हें। | 07 ४
गुड़हल :
.. इसके सुंदर फूल और लुभावनी गहरी हरी पत्तियों के कारण इन्हें “चीनी
गुलाब' भी कहते हैं। इसकी पंखुड़ियों से जूते की पालिश भी बनाई जाती
हैं, इसलिए इसका नाम “शू फ्लावर' भी है। तने भूरे रंग के, पत्तियाँ
अंडाकार तथा किनारे पर आरी की तरह कटी हुई होती हैं। फूल सदा पत्तियाँ
के कक्ष में ही खिलते हें। फूलों में पाँच पंखुड़ियाँ होती हैं। इनके केन्द्र में
एक झुमका-सा लटका रहता है जो कि फूलों की शोभा दुगुनी कर देता है ।

गुलाब के फूलों को भाँति ही इसकी भी गहरे लाल फूलों से लेकर हलके


पीले रंग के फूलोंवाली अनेक किसमें ग्राप्त की जा चुकी हैं। पाँच
पँखुड़ियोंवाली किस्मों को दुहरी किसमें कहते हें। इन्हें भी समय-समय पर
काटते-छाँटते रहना चाहिए। कुछ 'किस्में तो वर्ष-भर फूल देती हैं। इन्हें भी
कलमों दूबारा पैदा किया जा सकता हे ।
७० सहायक वाचन - ४

अभ्यास

(१) गेंदा और गेंदी में क्या अंतर होता है ?


(२) सेवंती के पौथे की कया विशेषता है ?
(३) सेवंती की अधिकांश कलियों को क्‍यों तोड़ दिया जाता है ?
(४) बगानविलास की कोई चार विशेषताएँ लिखो ।
(५) पोएनसेटिया को लालपत्ता क्यों कहा जाता है ?
(६) गुड़हल के फूल की बनावट लिखों ।

४. जंगली फूलदार पोधे


कुछ फूलदार पौधे अपने आप खिलते व फलते-फूलते रहते हैं।
प्रे-के-पूरे. जंगल इन पौधों से ढँके रहते हैं। इनमें टेसू, अमलतास और
गुलसितारा प्रमुख हें।
टेसू:

इसे पलाश भी कहते हैं। इसके पत्ते तीन के समूह में होते हैं। तना
खुरदरा व गहरे मटमैले रंग का होता है। इसकी वृद्धि की गति अत्यंत
धीमी रहती है। फिर भी झाड़ियों से बढ़कर इनमें से कुछ वृक्षों का रूप
ग्रहण कर लेते हैं। इनके फूल जोगिया रंग के व बड़े आकार के होते हैं।
इनकी पंखुड़ियों को पानी में उबालने पर केसरिया रंग प्राप्त होता हे।
अमलतास :

मार्च और अप्रैल तथा बाद के कुछ महीनों में इसके छायादार वृक्षों में
लटकते हुए पीले रंग के फूलों को लड़ियों के बड़े-बड़े .गुच्छे बड़े
. बागवानी ! ७१
मनमोहक लगते हैं। इसकी पत्तियाँ सघन व बड़ी होती हैं, इसलिए सड़कों
| के किनारे छायादार वृक्ष के रूप में भी इन्हें लगाया जाता है। इसके फल
! लंबे, गहरे, भूरे या कॉले रंग के होते हैं तथा कई रोगों के उपचार के काम
* आते हैं।'अमलतास को बीज दूवारा उगाया जा सकता हे। ।
_ गुलसितारा (लेंटाना कैमेरा) :
इस पौधे के. वृद्धि की गति इतनी तेज़ होती है कि कभी-कभी इसको
बाढ़ रोकना कठिन हो जाता है। इसके फूल गुच्छों के रूप में खिलते हें।
कलियों व अध-खिले फूलों का रंग पीला तथा पूर्णरूप से खिले फूलों का
रंग गहरा लाल हो जाता है। पौधे की ऊँचाई डेढ़ से ढाई मीटर तक हो
सकती है। इसकी शञाखाएँ ज़मीन के पास से ही निकलती हैं। तनों में
छोटे-छोटे काँटे होते हैं! इसीलिए इन्हें बाड़ के रूप में भी लगाया जा
सकता है। इनकी एक पहचान यह भी है कि पूरे पौधे से एक विशेष प्रकार
को गंध निकलती है। इसकी भी कई किसमें पाई जाती हैं। इनमें पीले,
जोगिया, लाल और सफेद फूलोंवाली किसमें अधिक प्रचलित हें। इन्हें
कलमों और बीजों, दोनों प्रकार से उगाया जा सकता है ।
अभ्यास
(१) जंगली फूलदार पौधों में कौन-कौन-से पौधे प्रमुख हैं ?
(२) टेसूके फूलों का क्या उपयोग है ?
(३) अमलतास के पौधों का संक्षेप में वर्णन करो ।
(४) गुल सितारा को विशेषताएँ लिखो।..
छर सहायक वाचन - ४

५ बांगवानी
है। बागवानी करते
बागवानी एक अच्छी मनोरंजक व लाभदायक कला
समय यह पता ही नहीं चलता कि समय कैसे - बीत गया। इसके लिए धैर्य,
े हैं
लगन और परिश्रम की आवश्यकता होती है। जब बगीचे में फूल खिलत
तो बागवानी करने वाले की प्रसन्‍नता का ठिकाना नहीं रहता।
बनानी
बागवानी प्रारंभ करने के पहले बगीचे की उत्तम रूपरेखा
चाहिए-कहाँ क्यारियाँ बनानी हैं, कहाँ गुलाब लगाना है, कहाँ घास लगानी हे
आदि। आमतौर से मौसमी फूलों की क्यारियाँ घास के मैदान (लॉन) के चारों
ओर लगाई जाती हैं। लॉन और क्यारियों की योजना चाहे जो भी हो, पर
चौकोर, तिकोने, गोलाकार लॉन बड़े अच्छे लगते हैं। आजकल पथरीली
ज़मीनों पर जापानी पद्धति के उद्यान लगाने का चलन बढ़ता जा रहा है।
हमारे प्रदेश की राजधानी भोपाल का 'किलोल पार्क” बहुत कुछ जापानी
पद्धति से बना है।

मिट्टी बगीचे का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। अतः इसकी देख-भाल भी


पौधों की देख-भाल से कम आवश्यक नहीं है। बगीचे की मिट्टी भुरभुरी,
खादयुक्त और उपजाऊ होनी चाहिए। आजकल गोबर की खाद के साथ-साथ
रासायनिक खादों का उपयोग भी किया जाता है। इनमें यूरिया, अमोनियम
सल्फेट, ग्रामोर प्रमुख हैं। यूरिया का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए
क्योंकि आवश्यकता से अधिक यूरिया पौधे को नष्ट कर देता है। मिट्टी
में पानी इतना ही देना चाहिए, जिससे कि मिट्टी गीली हो जाए। मिट्टी
पर पानी भरा नहीं रहना-चाहिएं। इससे पौधों की जड़ों को पहुँचने वाली हवा
रुक जाती है और जड़ों को हानि पहुँचती है। समय-समय पर मिट्टी की
बागवानी ७३.
गुड़ाई करते रहना चाहिए ।

कुछ पौधे धूप में उगते हैं तथा कुछ छाया में । इसलिए बगीचों में पौधे
लगाने से पहले उनके बारे में जानकारी प्राप्त कर लेना आवश्यक है ।
गुलाब को धूप चाहिए तो “मनी प्लांट' को छाया। पौधों को बीज बोकर, कलमें
लगाकर, कली लगाकर, सतह लगाकर पैदा किया जा सकता हे । यह सभी .
| विधियाँ गुलाब के साथ बतलाई जा चुकी हें। थोड़े-हेर-फेर के साथ सभी
धों के लिए यही विधियाँ अपनाई जा सकती हैं।

कभी-कभी पौधों की खूब सेवा-टहल करने, के बाद भी उनमें वृद्धि नहीं


होती। यह बहुधा उनमें कौड़े या रोगों के लग जाने के कारण हो सकता है।
रोगी पौधों को तो देखने से ही पता चल जाता है। इनपर रोग-नाशक व
| कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करना पड़ता है। आजकल डी.डी.टी.,
स्परगान, सेमेसान आदि कीटनाशी दवाएँ उपलब्ध हैं। छोटे बच्चों को इनका
उपयोग नहीं करना चाहिए क्‍योंकि ये विषेले रसायनों दूवारा बनती हें।
जरा-सी असावधानी पालतू जानवरों और मनुष्यों के लिए घातक हो सकती हे।
अभ्यास

(१) बागवानी प्रारंभ करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
(२) पथरीली ज़मीनों पर उद्यान केसे लगाए जाते हैं ?
(३) बगीचे की मिट्टी की देख-रेख के लिए हमें क्या करना चाहिए?
(४) रोगी पौधों का उपचार किस प्रकार करना चाहिए ?



बाल कहानियाँ
(इस संकलन में तोता-रटंत, सिंह और खरगोश तथा वफादार नेवला-तीन
कहानियाँ पंचतंत्र से ली गई हें। पंचतंत्र संस्कृत साहित्य का प्रमुझ्ध
कथासंग्रह है। इसका अर्थ होता है, वह पुस्तक, जिसके पाँच तंत्र (भाग) हों।
पंचतंत्र में पाँच तंत्र हें - (१) मित्र भेद, (२) मित्र संप्राप्ति, (३)
काकोलकीय, (४) लब्ध प्रकाश तथा (५) अपरीक्षित कारक।

पंचतंत्र की रचना ३०० ईसवी के लगभग आचार्य विष्णुशर्मा ने को थी।


महिलारोपष्य के महाराज अमर शक्ति के तीन राजकुमार थे, जो अविनीत तथा
मूर्ख थे। महाराज ने इन तीनों की शिक्षा का भार आचार्य विष्णुशर्मा को सौंपा
था। आचार्यजी ने छोटी-छोटी कहानियों के दूवारा नित्य काम आनेवाले
धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक तथ्यों को बड़े ही सुंदर ढंग से
राजकुमारों को समझाया था।
सारे संसार के मानवों की भावनाएँ एक-सी होती हैं। दया, शक्ति और
ईमानदारी के प्रति सबमें आकर्षण होता है तथा मूर्खता, कमजोरी और झूठ के |
प्रति घृणा होती है। पंचतंत्र की कहानियों में मानव-व्यवहार के इन्हीं प्रसंगों
पर प्रकाश डाला गया है। यही कारण है कि संसार के देशों ने अपनी-अपनी
भाषाओं में इन कथाओं को अनूदित कर लिया है और वहाँ के लोग आज भी
बड़े चाव से इन कथाओं को पढ़ते हैं। क्‍
क्‍
9४
१, तोता-रटंत ._ एंचत॑कोंत्र
कथाएँ
:क्षकाड ॥ ऊद/ह ८

कि

चित्र ६. तोते को उपदेश देते हुए साधु


एक था साथधु। जंगल में वह रहता था। अपने लिए उसने एक झोपड़ी
बना ली थी। ध्यानमग्न होकर वह प्रभु का स्मरण किया करता था। एक दिन
जब उसने आँखें खोलीं, तो देखा उसकी झोंपड़ी पर एक तोता बैठा-बैठा काँप
रहा था। साधु को दया आईं। वह समझ गया कि किसी शिकारी से घबराकर
वह वहाँ आया है। साधु ने उस पर प्यार से हाथ फेरा, उसे फल खाने को
दिया। तोते को प्यार भी मिला, फल भी मिला। वह साधु के पास ही रहने
लगा। किन्तु साधु को चिन्ता थी कि तोता जब फिर जंगल में जाएगा तो उसे
शिकारी जाल में पकड़ लेगा। साधु ने सोचा-इसे सिखा देना चाहिए। तोते
में रटने कौ आदत तो होती ही है। साधु ने उसे सिखाया-“शिकारी जंगल में
आता है, जाल फैलाता है, दाने का लोभ दिखाता है। जाल
में फँसना नहीं
चाहिए।” तोते ने इन वाक्यों को ज्यों का त्यों रट लिया। वह अपनी बोली
में

७६ सहायक बाचन >> ४

कहता-“शिकारी जंगल में आता है, जाल फैलाता है, दाने का लोभ दिखाता

8....त.>>>>44-444354#099«.»
3 (>> ०)
0५ २४॥। गम फसना नह। चाहए।

साधु ने जब देखा कि तोते ने पूरा पाठ रट लिया है तो वह बहुत खुश


आ। उसने सोचा-“अब कोई चिन्ता नहीं। तोता सदा सावधान रहेगा। साध
जे तोते को जंगल में जाने दिया। तोता अपने साथियों के बीच में पहुंचा&

>>.
वह बराबर रटता रहा, “शिकारी जंगल में आता है, जाल फैलात। “ दाने का
लोभ दिखाता है। जाल में फँसना नहीं चाहिए।” फल यह हुआ कि सभी साक्षु
तोतों ने इसे सीख लिया। अब सब तोते दिन-रात यही रटते रहते।
कुछ महीने बीत गए। एक दिन साधु घूमता-घूमता उधर पहुँच गया,
7 गर दोतों काझुंड था।खाण पा यह पह देख और सुनकर बड़ा प्रसन्‍न हुआ कि
सभी तोतों ने उस पाठ को याद कर लिया है। अब वे सावधान रहेंगे। शिकारी
के जाल में नहीं फँसेंगे।
कुछ महीने और बीत गए। एक दिन साधु जंगल में घूम रहा था। उसने |
देखा एक शिकारी जाल को अपने कंधे पर डाले हुए जा रहा था | उस जाल
में अनेक तोते फँसे थे। ओर यें तोते जाल के भीतर अब भी रट रहे थे-
“जिकारी जंगल में आता है, जाल फैलाता है, दाने का लोभ दिखाता है। जाल
में फँसना नहीं चाहिए।”
तोते की मूर्खता पर साधु को आइचर्य भी हुआ और दुःख भी। वह सोचने
लगा-जो लोग अच्छी-अच्छी बातें बार-बार कहते रहते हें, किन्तु उनके
अनुसार आचरण नहीं करते, उनका, यही अंत होता है। केवल “तोता रटंत”
व्यर्थ है ।
सिंह और खरगोश ७७
अभ्यास
(१) साधु को तोते के संबंध में क्या चिन्ता थी ?
(२) साधु ने तोते को कया सिखाया ?
(३) तोतों को जाल में फँसे देखकर साधु को आइचर्य और दुःख
क्यों हुआ ?
(४) इस कहानी से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है ?

२. सिंह ओर खरगोश
किसी वन में एक सिंह रहता था। उसे अपने बल का बड़ा घमंड था।
वह रोज ही बहुत से जानवरों को मारता था | एक-दो जानवरों को खाता, बाकी
वैसे ही मारकर फेंक देता था। इस विनाश को देखकर वन के पशुओं ने सोचा
कि यही दशा रही तो वह दिन दूर नहीं जब इस बन में हम जानवरों का
नाम-निशान ही मिट जाएगा। उन्होंने आपस में मिलकर यह तय किया कि
वे सिंह के पास जाकर उससे प्रार्थना करेंगे कि वह इस प्रकार उन्हें न मारे।
उनमें से एक जानवर प्रतिदिन दोपहर को उसके पास भोजन के समय पहुँच
जाया करेगा ।

दूसरें ही दिन सभी जानवर जिनमें हरिण, सूअर, नीलगाय, खरगोश और


दूसरे जानवर शामिल थे, झुंड बनाकर सिंह की गुफा के सामने जाकर
इकट्ठे हो गए। सिंह गुफा के बाहर निकला और उसने गरजकर पूछा-
“तुम
लोग यहाँ किसलिए आए हो ?” जानवरों के नेता ने आँखों में आँसू
भरकर
७८ सहायक वाचन - ४

बड़ी ही नम्रता से कहा “महाराज, इस वन में हम सब पशु आपको प्रजा हें।


आपकी कृपा पर ही हम जीवित हैं। हमारी आपसे श्रा्थना है कि हम लोगो में
से एक पशु बारी-बारी से आपके भोजन के लिए प्रतिदिन आपकी सेवा में
उपस्थित हो जाया करेगा। इससे आपको भी असुविधा नहीं होगी और हम
जानवरों का वंश भी चलता रहेगा। ”

सिंह को जानवरों की बात जँच गई। उसने सोचा कि मुझे भी अब भोजन


की खोज में इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा। समय पर घर बैठे अपना आहार
मिल जाया करेगा। उसने जानवरों से कहा-“मुझे तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार
है, पर यह शर्त है कि एक दिन भी यदि मेरे आहार के लिए पशु नहीं पहुँचा
तो मैं तुम सबको एक दिन में ही मार डालूँगा।”
जानवर अपनी प्रार्थना स्वीकार होने पर वापस लौट गए। वे बारी-बारी से
किसी न किसी जाति के पशु को दोपहर में भोजन के समय सिंह के पास
भेजने लगे। उस प्रकार जो भी पशु जाता उसको मारकर सिंह अपना आहार
पूरा करता।
इस तरह बहुत दिन बीत गए। वन के पशु निराशा में पड़े हुए दुखी
जीवन बिताने लगे। किसी का जीवन सुरक्षित नहीं था। जब जिसकी बारी
आती, प्रतिज्ञा के अनुसार उसे सिंह का आहार बनना पड़ता। एक दिन
एक खरगोश की बारी आई। वह नियम में बंधा सिंह की गुफा की ओर चल
पड़ा। रास्ते में उसने सोचा कि जब मरना ही हे, तो घबराहट में जल्दी-जल्दी
जाने से क्‍या लाभ । बहुत होगा सिंह क्रोधित हो जाएगा और वहाँ पहुंचते
ही मुझे मार डालेगा। यह सोचकर वह धीरे धीरे चलने लगा। चलते-चलते
उसके मन में विचार आया कि इस सिंह को मारने का कोई उपाय निकालना
चाहिए । इतने में ही रास्ते में उसे एक बड़ा-सा वृक्ष दिखाई दिया।
सिंह और खरगोश ७९
खरगोश ने सोचा कि इस वृक्ष की छाया में थोड़ी देर आराम क्‍यों न कर लू?
पास ही एक पक्का कुआँ भी था।-यह जानने के लिए कि कुएँ में पानी है या
नहीं, उसने झाँककर देखा तो उसे पानी में अपनी परछाई देखते ही उसके मन
में सिंह को मारने का उपाय भी सूझ गया।

धीरे-धीरे चलने से खरगोश को देर हो गई थी। उधर सिंह भूख के


मारे क्रोध से आग बबूला हो रहा था। खरगोश को देखते ही वह गरज उठा
* ओर बोला-“तेरी इतनी मजाल कि तू देर करके यहाँ आया ? तुझे मालूम नहीं
कि में चाहूँ तो जंगल के सारे जानवरों को एक दिन में ही मारकर उनका
नाम-निश्ञान मिटा दूँ।”
खरगोश बड़ी नम्रता से प्रणाम करके बोला-“महाराज का क्रोध उचित
है। मुझे : तो क्या इस जंगल के किसी भी जानवर को स्वप्न में भी यह साहस
नही हो सकता कि वह श्रीमान को अप्रसन्‍्न करे।”
सिंह का क्रोध खरगोश की नम्रता से कुछ कम हुआ । वह बोला- “फिर
मेरे राज्य में. ऐसा कौन है, जिसने तुझे समय पर आने से रोका ?”

खरगोश और नम्रता दिखाते हुए बोला- “वनराज, हम पाँच खरगोश


आपको सेवा में समय से पहले ही चल पड़े थे। परंतु मार्ग में एक दूसरे
सिंह ने हमें रोक लिया और मारना चाहा। बहुत विनय करने पर उसने
हममें से चार खरगोशों को तो अपने पास रोक लिया, केवल मुझे आपके
पास आने दिया है। वह कहता है कि इस जंगल का असली राजा मैं हूँ। तुम
लोग मेरी प्रजा हो। तुम मेरी आज्ञा मानो, आगे से अब एक पशु प्रतिदिन
मेरे आहार के लिए मेरे पास आएगा; अन्यथा मैं सारे पशुओं को मार
डालूगा।”
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बे ठ सहायक वाचन - ४

यह सुनकर सिंह को बहुत अधिक क्रोध आया पर वह कुछ बोला नहीं।


उसने केवल इतना ही कहा, “मुझे उस सिंह के पास ले चल।” आगे-आगे
खरगोश और पीछे-पीछे सिंह, दोनों उस कुएँ की ओर चल पड़े।
कुएँ के पास पहुँचकर खरगोश ने कहा-“महाराज, वहं सिंह इसी वृक्ष
की छाया में बेठा था हो सकता है, आपको देखकर वह डर गया हों और यहीं
कहीं छिप गया हो।” इतना कहकर खरगोश उछलता हुआ आसपास की कुछ
झाड़ियों को देखते हुए धीए-से कुएँ की जगत पर चढ़ गया। कुएँ के
भीतर झाँककर उसने देखा और सिंह के पास लौटकर बोला-“महाराज,
आपको देखकर वह सिंह इस कुएँ में जा छिपा है। मेरा अनुमान यही था ।
महाराज स्वयं उस कायर को चलकर देखें।”
रू

५०००७ ७०००९०००५-६४-०००« के ««-
कक
मा

कुएँ में छलाँग लगाते हुए सिंह


सिंह और खरगोश . ८१
क्रोध में भरा हुआ सिंह कुएँ पर गया । भीतर झाँकते ही उसे अपनी
परछाई दिखाई दी । क्रोध में होने से उसने समझा कि सचमुच दूसरा सिंह
कुएँ में छिपा हुआ है। अपनी परछाई को देखकर वह ज़ोर से गरजा | दूसरे
ही क्षण सिंह कौ गरज की प्रतिध्वनि हुई। सिंह ने समझा कि वह सिंह
मुझे ही देखकर गरज रहा है। वह तत्काल कुएँ में कूद पड़ा ।
देखते-ही-देखते वह पानी में डूबकर मर गया।
यह दृश्य देखकर खरगोश तेज़ी से वन में लौटा और उसने सारे
पशुओं को यह घटना कह सुनाई। पशुओं ने उसकी बुद्धि की बहुत प्रशंसा
की और वे उसका बहुत आदर करने लगे। ;
इसीलिए कहा है-जिसके पास बुद्धि है, वही बलवान है।
अभ्यास
(१) वन के पशुओं ने आपस में मिलकर क्या तय किया ?
(२) सिंह ने जानवरों की बात किस ज्ञार्त पर मानी ?
(३) खरगोश ने सिंह को पारने का कया उपाय सोचा ?
(४) सिंह के क्रोधित होने पर खरगोश ने कया उत्तर दिया ?
(५) खरगोश का उत्तर सुनकर सिंह ने कया किया ?
_. (६) सिंह कुएँ में क्यों कूद पड़ा ?
३. वफादार नेवला
किसी गाँव में एक किसान रहता था। उसकी एक औरत थी और एक
बच्चा था। एक श्ञाम किसान घर आया, तो साथ में एक नेवले का बच्चा भी
ले आया। '

किसान ने अपनी घरवाली को बताया कि नेवले के साथ बच्चा खेलेगा।


बच्चे और नेवले में धीरे-धीरे दोस्ती हो गई। चार-छह महीने में बच्चा तो
बहुत नहीं बढ़ा पर नेवला अच्छा-खासा बढ़ गया। वह बड़ा प्यारा दिखने
लगा। उसकी पूँछ लंबी और झबरीली थी।
एक दिन किसान की घरवाली एक बड़ा टोकरा लेकर हाट-बाजार के
लिए निकली। बच्चा पालने में सो रहा था। जाते समय उसने किसान से
कहा-“बच्चा अकेला सोया है। जरा ध्यान रखना । मुझे इस नेवले से डर
लगता हे।”
किसान बोला-“इसमें डर की कया बात है। नेवला बच्चा जैसा ही प्यारा
हे ।

उस दिन किसान को कुछ काम नहीं था । वह भी घूमने चला गया।


दोस्तों से गप्प मारने में रम गया।
कुछ समय बीतने पर किसान की घरवाली सामान से भरा टोकरा लिए
* घर आई। नेवला उसे दरवाज़े पर ही बैठा दिखा । उसे देखते ही नेवला
उसके पास दौड़कर आया | मगर यह कया ? नेवले के पंजों और मुँह पर
ताजा लाल-लाल खून लगा था।किसान की औरत ने यह देखा तो उसके मुँह
१ ८२
वफादार नेवला ८३

से चीख निकल गई-“हाय राम ! खून ! तूने मेरे बच्चे को मार डाला,पापी !”
वह चीखी और बिना कुछ विचार किए सामान से लदा टोकरा नेवले पर पूरी

हि

चित्र ८. किसान की स्नी और नेवला

ताकत से दे मारा | वह धड़कते दिल से झपटकर बच्चे के पालने की


ओर दोौड़ी ।
पर बच्चा तो पालने में लेटा, गहरी नींद में पड़ा था | किन्तु उसके
पालने के पास खून से सना हुआ एक साँप मरा हुआ पड़ा था । मरे हुए
साँप को देखते ही उसने घटना का अंदाज लगा लिया । अब उसकी समझ में
यह भी आ गया कि नेवले के मुँह ओर पंजों में खन क्यों लगा था।

वह नेवले को पुकारती हुई बाहर की ओर दौड़ी और चिल्ला उठी-


: “हाय ! मैंने यह क्‍या कर डाला ?” उसने
वहाँ जाकर देखा तो नेबला निर्जीव
पड़। था। किसान को घरवाली रोने-बिलखने लगी।
वह कलपती हुई बोली-
दंड सहायक वाचन - ४

“हे भगवान ! नेवले ने तो साँप को मारकर मेरे बच्चे की रक्षा की ओर मैंने


यह क्या पाप कर दिया”?

भारी-भरकम टोकरे के भार से नेवले का कचूमर निकल गया था | वह


मर चुका था । किसान की घरवाली को अपने किए पर बहुत दुःख हुआ |,
-उसने देखा कि उसके अविचार से वह वफादार नेवला मर चुका था | ठीक
ही कहा है-“बिना बिचारे जो करे सो पाछे पछताय।” , दे

अभ्यास

(१) किसान नेवले के बच्चे को अपने घर क्यों लाया था ?


(२) नेवले की क्‍या विशेषता थी ?
(३) घर से जाते समय किसान की स्त्री ने अपने पति से क्या
कहा था ?

(४) किसान की औरत ने नेवले पर टोकरा क्यों पटक दिया. ?


हर) किसान की स््री को अपने किए पर दुःख क्यों हुआ २
(६) इस कहानी से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है ?
लोक-कथाएँ
[इस संकलन में सूरज और चाँद की दुश्मनी, चुरकी-मुरकी और लाखा-महल,
तीन लोक-कथाएँ दी जा रही हैं। लोक-कथाएँ अलिखित साहित्य कहलाती हें। ये
कथाएँ कब लिखी गई; इनके लिखने वाले कौन थे, यह पता नहीं हे घिरता मठ
« दादी, नानी आदि वृद्धजन अपने पूर्वजों से सुनी-सुनाई इन मम
बच्चों को सुनाते और उनका मनोरंजन करते रहते हें।

इनमें कल्पना की ऊँची उड़ान होती है, जिससे सुनने वालों का मन बहलाव
ं में ही
तो होता ही है साथ ही उन्हें शिक्षा भी मिलती है। लोक-कथाए क्षेत्रीय भाषाओ
कही जाती हैं। इनसे लोक-जीवन के आचार-विचार का परिचय प्राप्त होता हे।]

४. सूरज और चाँद की दुश्मनी


एक बुढ़िया के दो बच्चे थे-लड़की का नाम चाँद था और लड़के
का नाम सूरज । ये लोग बहुत ही गरीबी में दिन काट रहे थे। उन्हीं दिनों .
। बस्तर में अकाल पड़ा ओर लोग दाने-दाने को तरसने लगे। बेचारा बढ़िया '
भी अपने दोनों बच्चों के साथ भूख की शिकार हुई ।
अपने दोनों
उन्हीं दिनों गाँव में माँझी के घर भोज हुआ । बूढ़ी माँ ने
बच्चों को वहाँ भेजा ओर दोना हाथ में देते हुए कहा “मेरे लिए भी दोने में
लेकर आना |”

८5५
८ सहायक वाचन - ४

बढ़िया खाना सामने देख सूरज तो माँ को भूल गया और जल्दी खाने
लगा, पर चाँद नहीं भूली । उसने चुपचाप दोने में खाना रखकर उसे चादर से
ढक लिया ।
भूख से व्याकुल बूढ़ी माँ दरवाजें पर बेठी थी | सूरज के हाथ में खाली
दोना देखकर वह रो पड़ी और बेटे को शाप दे बैठी-“जा, तू दुनियाँ में सदा «
जलता रहेगा और दूसरों को भी जलाएगा ।”
तभी पीछे से चाँद चादर में दोना छुपाए भागी-भागी आई। बूड़ी माँ खुशीरि
'से गद्गद्‌ हो गई और उसने बेटी को दुआ दी-“ दुनियाँ में तू हमेशा ठंडक
फेलाएगी ।”
बाद में दोनों भाई-बहिन बड़े हो गए और उनके अपने-अपने बच्चे भी
हुए। एक दिन बातों-बातों में दोनों ने शर्त लगाई, “देखें, कौन जल्दी अपने
बच्चों को खाता हे ?” सूरज गट-गट करके अपने बच्चों को निगलने लगा,
पर चाँद अपने बच्चों को गाल में छुपा-छुपाकर रखने लगी।

जब सूरज ने अपने सारे बच्चों को खा लिया, तब चाँद ने गाल में


छपाए अपने बच्चों को बाहर निकाल दिया और भाई से बोली, “धिक्कार है
भाई, मै तो तेरी परीक्षा ले रही थी। तूने सच में अपने नन्‍्हे-मुन्‍्ने बच्चों को
खा लिया ? तुझ-सा पापी दूसरा नहीं होगा। जा, आज से तू मैरी परछाई न
देखना, न मैं तेरी परछाई देखूँगी ।”

तभी से सूरज अकेला उगता है और चाँद अपने ढेर सारे बच्चा का फोऊ
3. >> अचखयो
गो तो गज

लिए आती है, जो आसमान पर आँख-मिचौनी खेलते रहते हैं। तब से दोनों


ने एक-दूसरे की शक्ल भी नहीं देखी ।
चुरकी-मुरकी प्छ
अभ्यास

। (१) भोज में जाते हुए चाँद और सूरज से _बुढ़िया ने क्या कहा ?
(२) बुढ़िया ने सूरज को शाप क्‍यों दिया ?
(३) बुढ़िया ने चाँद को क्‍या दुआ दी ?
(४) चाँद ने अपने भाई सूरज को क्या कहकर धिक्कारा ?
(५) केसे सिद्ध करोगे कि चाँद और सूरज एक दूसरे को
कक गक्‍ल नहीं देखते।

५. चुरकी-मुरको
एक गाँव में चुरकी और मुरकी नाम की दो बहनें रहती थीं। उनका एक भाई
_ था, जो दूसरे गाँव में रहता था । चुरकी बहुत नम्र और सेवाभाव रखनेवाली
थी, जबकि मुरकी बड़ी घमंडिन थी ।

एक दिन चुरकी का मन अपने भाई से मिलने का हुआ | उसने अपने


बच्चे मुरकी की देखभाल में रख दिए और भाई के गाँव की ओर निकल
पा ;

चलते-चलते उसे एक बेर का पेड़ मिला । बेर के पेड़ ने चुरको को


पुकारा और पूछा; “कहाँ जा रही हो ?” चुरकी बोली, “भैया के पास।” पेड़
बोला, “मेरा एक काम कर दो। जहाँ तक मेरी छाया पड़ती हे, उतनी जगह को
झाड़-बुहारकर लीप-पोंत दो। जबे तुम लोटोगी तो मैं मीठे-मीठे बेर वहाँ
टपका दूँगा। तुम अपने बच्चों के लिए ले जाना ।” चुरकी ने यह काम कर
का: सहायक वाचन - ४
दिया और आगे बढ़ी ।
चलते-चलते उसे एक गोठान मिला जिसमें सुरही गायें थी । एक गाय
: ने चुरको से पूछा, “कहाँ जा रही हो ?” चुरकी बोली, “भैया के पास।” गाय
ने कहा, “हमारे इस गोठान को साफ कर दो । लीप-पोत दो। वापिस आते
समय एक दोहनी लेती आना। उसे हम दूध से भर देंगी | वह तुम अपने
बच्चों के लिए ले जाना।” चुरकी ने चुटकी बजाते यह कर दियाःऔर आगे
बढ़ी । ४ ह
के
आगे चल कर उसे एक मिट्टी का टीला मिला। उसमें से आवाज
आई, “क्यों बहन ! कहाँ जा रही हो ?” चुरकी को बड़ा अचरज हुआ कि
यह किसकी आवाज हे। वह बोली, “मैं भैया के पास जा रही हूँ, पर तुम कौन
हो ? यहाँ तो कोई भी दिखाई नहीं देता।” टीला बोला, मैं मिट्टी का टीला
बोल रहा हूँ। तुम मेरे आसपास की जमीन साफ-सुथरी कर दो। वापसी में मैं
तुम्हारी मजदूरी चुकता कर दूँगा।” चुरकी ने फौरन सब कर दिया और आगे
बढ़ी।
अब वह अपने भैया के गाँव पहुँच गई। भैया उसे गाँव की मेंड पर खेत
में ही मिल गया । वह उससे बड़े प्रेम से मिला। उसने सुख-दुख को बातें
की। अपने साथ लाया हुआ कलेवा उसे खिलाया। पर जब भाभी से मिलने
घर पहुँची, तो उसका व्यवहार उसके साथ रूखा रहा। पर खैर ! चुरको ने
दूसरे दिन भाभी-भैया से बिदा ली। उसने भाभी से एक दोहनी माँग लो
थी। भैया ने उससे चने का साग तोड़ने के लिए कहा। उसने तोड़
लिया। उसी को लेकर वह घर की ओर चल पड़ी।
वापस आते हुए सबसे पहले उसे मिट्टी का टीला मिला, जिस पर
रूपयों का ढेर लगा था। यह उसकी मजदूरी थी। उसने रुपए बटोर कर अपनी
चुरकी - मुरकी 5९
टोकरी में रख लिए और चने के साग से ढक दिए। थोड़ी देर बाद गोठान
आ गया। वहाँ गाय ने उसकी दोहनी दूध से भर दी। गायों को प्रणाम कर वह
आगे चल पड़ी। स्लः

फिर उसे बेर का वृक्ष मिला। पेड़ के नीचे पके, मीठे बेरों का ढेर
लगा था। कुछ बेर उसने अपने आँचल में बाँधे और पेड़ को शीश नवाकर
आगे बढ़ोी।

घर पहुँचने पर मुरकी ने उसके पास जब इतनी चीजें देखीं तो उसने


समझा कि ये सब भैया ने उसे बिदाई के रूप में दी होंगी। उसे लालच हो
आया। उसने सोचा कि उसे भी भैया के यहाँ जाना चाहिए। दूसरे दिन वह
भी अपने भाई के घर के लिए निकल पड़ी॥।

चलते-चलते उसे भी पहले बेर का वृक्ष मिला। पेड़ ने उससे बही


बात कही, जो चुरकी से कही थी, परंतु मुरकी घमंडिन थी। उसने साफ मना
कर दिया और आगे बढ़ गई।

आगे बढ़ने पर उसे गोठानःमिला। वहाँ की गायों ने भी उससे सफाई


कर देने के लिए कहा। वह उनपर चिढ़ गई। मना करके वह आगे बढ़
गई। आगे उसे मिटटी का टीला मिला। टीले ने भी उससे वही बात कही,
जो चुरकी से कही थी। मुरकी चिढ़ गई। उसने कहा, “क्या में गरीब हूँ.
जो मजदूरी लूँगी ? मुझे मेरे भाई से बहुत रुपए मिल जाएँगे।” इस प्रकार
सबका अपमान करके वह आगे बढ़ी ।

गाँव की मेंड पर खेत में ही भाई से उसकी भेंट हो गई। भाई प्रेम से
मिला। फिर घर पहुँचकर भाभी से मिली। भाभी का व्यवहार भी ठीक ही
रहा। दूसरे दिन उसने भैया-भाभी से बिदा माँगी। भाभी ने बिदाई कर दी
९० सहायक वाचन - ४
पर भेंट में कुछ नहीं दिया। खेत में भाई से मिली। भाई ने चने का साग
तोड़ने को कहा । थोड़ा-सा साग लेकर वह चल पड़ी। वह मन ही मन
बहुत दुखी हुई कि भैया-भाभी ने चुरकी को तो कितनी सारी बिदाई दी थी,
मुझे कुछ नहीं दिया।
लौटते समय रास्ते में पुनः मिट्टी का टीला पड़ा। जैसे ही वह टीले के
पास पहुँची तो वहाँ तीन-चार काले सर्प निकले और मुरकी की ओर बढ़ें।
घबराकर वह भागी। भागते-भागते वह गोठान तक पहुँची। वहाँ आराम करने
के
के लिए थोड़ी देर रुकी तो वहाँ की सुरही गाएँ उसे मारने के लिए दोड़ीं।
बेचारी मुरकी वहाँ से भी जान बचाकर भागी। किसी तरह गिरते-पड़ते वह
हुआ था।
बेर के पेड़ के पास पहुँची तो वहाँ बेर के काँटों का जाल बिछा गए।
काँटों से मुरकी के हाथ पैर छिद गए। उसमें उलझकर उसके वस््र फट
लाखा - महल कर

वह इस तरह घायल होकर थकी .माँदी किसी तरह चुरकी के घर तक


पहुँची। चुरकी को उसकी हालत देखकर बहुत कष्ट हुआ उसने सहानुभूति
के साथ उसकी दयनीय दशा का कारण पूछा। मुरकी ने भैया- भाभी के पक्षपात
और उनकी कंजूसी का दुखड़ा रोया। तब चुरको ने उसे बताया कि भैया ने
तो उसे कुछ नहीं दिया था। उसने यह भी पूछा, “रास्ते में तुमसे किसी ने
कुछ करने को कहा था क्‍या ?” इसपर मुरकी ने उसे सारी बातें बताई।
चुरकी सब कुछ समझ गई। वह बोली, “बहन ! तुमको बहुत घमंड था।
छ इसलिए यह हालत हुई। संसार में घमंड किसी का भी नहीं टिकता। घमंड ही
आदमी को नीचे गिराता है।”-
अभ्यास

(१) चुरकी और मुरकी के स्वभाव में क्या अंतर था ? '*


(२) भाई के घर जाते हुए मुरकी से बेर के पेड़.ने क्मध्कहा ?
(३) चुरकी ने गोठान और टीले के कौन-से कार्य किए?
(४) चुरकी अपने साथ क्या-क्या सामान लाई ? का
_
(५) मृरकी को चुरकी के समान वस्तुएँ क्‍यों नहीं मिली?
|

(६) चुरकी ने मुरकी को क्या शिक्षा दी ?

६. लाखा-महल
(आदिवासियों में महाभारत की कथा बहुत लोकप्रिय है। परंतु यह कथा महर्षि
वेटव्यास दवारा लिखे महाभारत की कथा से कुछ भिन्‍न है। लाक्षा-गृह की कथा
महाभारत में भो हे. किंतु आदिवासियों में यह क्रथा जिस रूप में प्रचलित है, वह
पढ़िए)
ही : सहायक वाचन - ४

महालक्ष्मी पूजन का त्योहार आया । कँवरों (कौरवों) ने सोचा कि लाख


का महल बनवाया जाए पंडवों (पांडवों) को बुलाया जाए। लाख के महल में
ठहराया जाए और महल में आग लगाकर पंडबों को जला दिया जाए।सूझ
अच्छी थी ।सबने काम प्रारंभ कर दिया । लाख का महल बनाया गया और
पंडवों को महालक्ष्मी पूजन का निमंत्रण भेज दिया गया।
यह निमंत्रण जब माता कोतमा (कुंती) के पास पहुँचा, तो वह रोने लगी
यह देखकर भीम बोला, “;० तू क्यों रोती है 77

। कोतमा बोली, “बेटा ! वे कँवरा इक्कीस भाई हैं, एक-एक मुट्ठी माटी
लाएँगे तो पहाड़ जैसा हाथी बना डालेंगे और तुम पाँच भाई हो, कितनी
माटी ढो सकोगे।
_कैवरन की महतारी बड़े हाथी की पूजा करेगी और मैं छोटे हाथी की
पूजा करूंगी। नहीं बेटा, नहीं, यह अपमान मुझसे सहा न जाएगा। मैं वहाँ नहीं
जाऊंगी।”
भीमसैन गुस्सा होकर बोला, “माता ! मैं इंद्रासन से ज़िंदा हाथी भौरानंद
मँगवा देता है। तूरो मत, खुश हो जा।”
भीमसेन ने इंद्र को चिट्ठी लिखी, “तुरंत ही भौरानंद हाथी भेजो।” बाण
में बाँधकर चिट्ठी भेज-दी गई।

ने, अग् नि बाण म ् ल े ं पहल े झाड़-झंडूखा जला दिए, बाद में


अर्जुन
अब हाथी उसी रास्ते से कजली
खरपा-बाण से छीलकर रास्ता बना दिया।
बन में उत्तर आया।

ने अर्ज ुन से कहा , “भै या | हाथ ी तो आ गया है। कजली बनमें हैं।


भीम मे चला। कजली वन पहुंचा
लाखा - महल ९३

परंतु पहाड़ जैसा हाथी का डील-डौल देखकर डर गया, वह लौट आया।


हाथी नहीं ला सका। ह नल
अब भीमसेन तैयार हुए। उन्होंने गजा-डाँग काँधे पर रखा, बुसटेन ठेंगा
हाथ में लिया और चल दिए कजली वन। वहाँ पहुँचकर हाथी की सूंड
पकड़ी और उसे पकड़ लाए। लाकर उसे माता कोतमा के सामने खड़ा
कर दिया।

चित्र १०. कजली वन में अर्जुन +

अब हाथी का श्रृंगार किया गया। माता कोतमा ने भी अपना श्रृंगार


किया। चोली पहनी, रंगी ओढ़नी ओढ़ी, माथे पर चंदन का टीका लगाया,
' पैरों में खड़ाऊं पहनी और हाथी पर सवार ,हो गई। अपनी बहिन गंधरनिन
(गांधारी) के यहाँ लक्ष्मी-पूजा करने के लिए माता कोतमा चल दीं। साथ में
पाँच पुत्र पांडब भी चले।
कँवरों जे एक-एक मुट्ठी माटी लाकर मिट॒टी का हाथी बनाया। उन्होंने
उस.पर अपनी माता को बेठाया और हाथी को काँधे पर उठाकर ले चले।
९४ है सहायक वाचन - ४

बीच में नदी पड़ी। यहाँ से पंडवा, वहाँ से कंवरा। नदी के बीच में कँवरों
का मिट्टी का हाथी गल-गलकर बहने लगा। कँवरों की माता बीच धार में
बहने लगी। उस समय माता कोतमाने गंधरनिन की बाँह पकड़कर अपने
हाथी के ऊपर बैठा लिया। कँवरा बहुत ही शर्मिंदा हुए।

5
पंडवः अपनी नगसे-में पहुँचे। उन्हें लाखा-महल में ठहराया गया। १]
आव-भगठ की गई। ख़ाना-पीना चला। कँवरों ने फिर चालाकी की। वह यह
कि पंडबों के लिए जो भोजन परोसा जाना था, वह ज़हर भरा था और कंदवरों
को जो भोजन परोसा जाना था वह सादा था। पंडवा बेचारे क्‍या जानें ? खूब
भरपेट खाते रहे।

खाने-पीने के पहुचात विश्राम की बारी आई। सब लोग लाखा-महल में


आ गए। जैसे-जैसे समय बीतता चला, ज़हर शरीर में भिद चला, उससे
मतौना-सा (मतली) आने लगा। सब पंडवा बेखबर सो गए।

आधी रात को कँवरों ने लाखा-महल में आग लगा दी। महल जलने लगा।
भीतर पंडव! बेखबर सो रहे हें। बाहर महल जल रहा है। जब लाख पिघली
और गर्म-गर्म जलती हुई बूँदें पंडवन के शरीर पर पड़ीं, उस समय सब जाग
पड़ें। अप को महल में बँधा देखकर माता कोतमा रोने लगी। उस समय
भीम बोला “मातां सोच-फिकर मत कर. मैं निकाले के चलता हूँ।”

भीम ने जयमंगल दूँरी में अपनी माता और भाइयों को भरा और बसरेन


ठेंगा को अड़ाकर जब धरती में लात मारी, उस समय धरती फूट गई। भीमसेन
सबको लेकर पाताल लोक में निकल गया। लाख-महल में मरे हुए जानवरों
की हडिडिय भीम डाल आया। सवेरा हुआ। लाख-महल जलकर राख हो गया
लाखा - महल 92

था। उसमें जली हुई हडिड॒याँ देखकर कँवरे बहुत ही प्रसन्‍न हुए। उन्होंने
डर है। उन्होंने पंडवों
सोचा, पंडवा बैरी तो जल-भुज गए, अब किसी का क्या
लाख बकरियाँ, मानत
की सारी संपत्ति नीलाम कर दी। नौ लाख गाएँ, सात
नीलाम कर दिया।
की चौसठ जोगनी, बैठत की घोड़ी, बाँचत की पोथी, सब
लिया। पीतल के पत्र में
बिराट नगर के राजा सिंगरामसिंह ने यह सब ले
वीरान हो गए। ।
लिखा-पढ़ी हो गई। महल अटारी, बाग, बगीचा सब
अभ्यास
?
(१) महालक्ष्मी पूजन का निमंत्रण पाकर माता कोतमा क्‍यों रोने लगीं
(२) भौरानंद हाथी भेजने के विषय में इंद्र ने क्या जवाब दिया ?
केसे लाया
(३) कजली वन से भौरानंद हाथी माता कोतमा के सामने
गया ?

(४) केँवरा क्‍यों शर्मिंदा हुए ?


(५) लाखा-महल में पंडवों के साथ क्या घटना घटी ?
(६) लाखा-महल से पंडवा कैसे बाहर निकले ?
(है) सही या गलत लिखो :--
(क) कजली वन से भौरानंद हाथी को अर्जुन लाया।
(ख) गंधरनिन अपनी बहन कोतमा के यहाँ पूजा करने गई।
(गं) राजा सिंगरामसिंह ने पंडवों की संपत्ति नीलाम में ले ली ।
(घ) माता कोतमा के पाँच बेटे थे।
बाल कथाएँ

७. बालक चंद्रगुप्त
पाटलिपुत्र के पिपली कानन के मौर्य सेनापति का एक-ट्टा-फूटा घर
था। महापद्मनंद के अत्याचार से मगध काँप रहा था। मौर्य सेनापति के बंदी
हो जाने के कारण उनके कुटुंब का जीवन किसी प्रकार कष्ट में बीत रहा था।
एक बालक उसी घर के सामने खेल रहा था। कई लड़के उसकी प्रजा
बने थे और वह था राजा । उन्हीं लड़कों में से वह किसी को घोड़ा किसी
को हाथी बनाकर चढ़ता और दंड तथा पुरस्कार आदि देने का राजा के समान
अभिनयं कर रहा था ।
उसी ओर से एक ब्राह्मण जा रहे थे। उनका नाम था “चाणक्य! वे
बड़े बुद्धिमान थे। उन्होंने उस बालक की राजक्रीड़ा बड़े ध्यान से
देखी। उनके मन में कुतृहल भी हुआ और कुछ विनोद भी सूझा । उन्होंने
ठीक-ठीक ब्राह्मण की तरह उस बालक के पास जाकर याचना की, “राजन,
मुझे दूध पीने के लिए गऊ चाहिए।”
बालक चंद्रगुप्त ९७

बालक ने राजा के समान उदारता का अभिनय करते हुए, सामने चरती


हुई गायों को दिखाकर कहा-“इनमें से जितनी इच्छा हो, तुम ले लो।”

ब्राह्मण ने हँसकर कहा, “राजन, ये गायें जिसकी हैं, वह मारने लगे


तो 00:

बालक ने गर्व के साथ छाती फुलाकर कहा-“किसका साहस हे, जो मेरे


शासन को न माने ? जब में राजा हूँ, तब मेरी आज्ञा अवश्य मानी जाएगी।”
ब्राह्मण ने आइचर्य से पूछा, “राजनू, आपका शुभ नाम कया है ?”
तब तक उसको माँ वहाँ आ गई और ब्राह्मण से हाथ जोड़कर बोली,
“महाराज, यह बड़ा ढीठ लड़का है। इसके किसी अपराध पर ध्यान न
दीजिएगा। ”
6

चाणक्य ने कहा-“कोई चिन्ता नहीं, यह बड़ा होनहार बालक है। उन्नति


के लिए तुम इसे किसी प्रकार राजकुल में भेजा करो।”
उसकी माँ रोने लगी और बोली-“हम लोगों पर राजकौप ४ और हमारे
पति राजा की आज्ञा से बंदी किए गए हैं।”

ब्राह्मण ने कहा, “बालक का कुछ नहीं बिगड़ेगा। तुप इसे अवद्य


राजकुल में ले जाओ।”

इतना कहकर बालक को आरश्ीवाद देकर वह चला गया।


उसकी माँ बहुत
डरते-डरत े एक दिन अपने चंचल और साहसी लड़के
को लेकर राज-सभा
: में पहुँची।
नंद एक निष्ठुर, मूर्ख और निर्दयी राजा था । उसकी राजसभा बड़े-बड़े

2340 5.3. कै
श्द सहायक वाचन - ४

चापलूस मूर्खो से भरी रहती थी।


पहले राजा लोग एक-दूसरे के बल, बुद्धि और वैभव की परीक्षा लिया
करते थे और इसके लिए वे तरह-तरह उपाय रचते थे ।
उसी समय, जब बालक माँ के साथ राज-सभा में पहुँचा, किसी राजा के
यहाँ से नंद की राज-सभा की बुद्धि का अनुमान करने के लिए, लोहे के
पिजड़े में मोम का सिंह बनाकर भेजा गया था और उसके साथ यह
कहलाया गया था कि पिंजडे को खोले बिना सिंह को निकाल लीजिए । था

सारी राज-सभा इस पर विचार करने लगी। पर उन चापलूस, मू्खा को


कह उपाय नहीं सूझा ।

अपनी माता के साथ बालक वह लीला देख रहा था। वह भला कब मानने
वाला था ? उसने कहा, “मैं निकाल दूँगा।” सब लोग हँस पड़े। बालक की
ढिठाई भी कम न थी। राजा नंद को भी आइचर्य हुआ। नंद ने कहा, “यह कौन
हे 2?

मालूम हुआ कि राजबंदी मौर्य-सेनापति का यह लड़का है। फिर क्‍या


था । नंद को मूर्खता की अग्नि में एक और आहुति पड़ी । ब्रुद्ध होकर
बोला, “यदि तू इसे न निकाल सकेगा, तो तू भी इस पिंजड़े में बंद कर
दिया जाएगा।”
उसकी माता ने देखा कि यह कहाँ से विपत्ति आई । परंतु बालक
बिना डरे; आगे बढ़ा ओर पिंजड़े . के पास जाकर उसने उसको
भली-भाँति देखा। फिर लोहे की छड़ों को गर्म करके उस सिंह कों गलाकर
पिंजड़े को खाली कर दिया।
सब लोग चकित रह गए। राजा ने पूछा, “तुम्हारा नाम क्‍या है ?” उसने
*चंद्रगुप्त। ”
गुरुदक्षिणा ९९ -
राजा ने प्रसन्‍न होकर उसे तक्षशिलां के विश्वविद्यालय में पढने के
लिए भेजा । आगे चलकर यही बालक: ब्राह्मण “चाणक्य” की सहायता से
चक्रवर्ती सम्राट “चंद्रगुप्त मौर्य” हुआ ।
अभ्यास

(१) बांलक चंद्रगुप्त अन्य लड़कों के साथ कया खेल खेल रहा था ?
(२) चाणक्य ने बालक चंद्रगुप्त से क्या याचना की ?
(३) चाणक्य ने चंद्रगुप्त की माँ को क्या सलाह दी ?
(४) बालक चंद्रगुप्त ने मोम के शेर को पिंजड़े के बाहर कैसे
निकाला ?
(५) बालक की बुद्धिमानी पर प्रसन्‍न होकर नंद ने क्या किया ?
(६) के आधार पर चंद्रगुप्त के गुणों को अपने शब्दों में
|

८. गुरुदक्षिणा
एक थे ऋषि । गंगा तट पर उनका आश्रम था; मीलों लंबा-चोड़ा । बहुत
से शिष्य आश्रम में रहते थे। अनेक गठएँ थी । हरिणों के झुंड आश्रम में
चौकड़ी मारते; उछलते-कूदते फिरते थे। |
ऋषि के ठिष्यों में तीन प्रमुख शिष्य थे। तीनों ही अख्न-शस््र बिदया में
निपुण थे। बोलचाल में मीठे, स्वभाव में विनम्र, धरती को तरह सहनशील,
सागर की तरह गंभीर और सिंह के समान बलशाली ।
वह पुराना ज़माना था। उस समय आश्रम की गद्दी का अधिकारी होना
१०० सहायक वाचन - ४

ऐसा ही था, जैसे किसी राज्य-सिंहासन पर बैठ जाना । राजा स्वयं


ऋषि-म॒नियों के आगे सिर झकाते- थे।
. ऋषि अपने तीनों शिष्यों से बहुत प्रसन्न थे। उन्हें बे पग्राणों के समान
प्रिय थे। मगर एक समस्या थी । ऋषि काफी बूढ़े थे। वे चाहते थे कि

बन।एँ किसे ? यह समस्या भी छोटी नहीं थी। तीनों हो एक से एक बढ़कर


आज्ञाकारी थे, योग्य थे और सच्चे अर्थों में मुखिया बनने के अधिकारी
थे।

ऋषि सोचते रहे, सोचते रहे। आखिर एक दिन उन्होंने तीनों को अपने
पास बुलाया ओर कहा, “प्रियवर, तुम तीनों ही मुझे प्रिय हो । मैंने जी-जान
से तुए्हें पढ़ाया-लिखाया और अख्र-शस्र चलाने की शिक्षा दी। मुझे
जो-जो विद्यायें आती थीं तुम्हें सब सिखा दीं। अब केवल गुरु-मंत
्र सिखाना
बाकी है। गुरु-मंत्र किसी एक को ही बताऊँगा। जिसे गुरु-मंत्र बताऊँग
ा,
वही मेरी गदुदी का अधिकारी होगा। मैं तुम तीनों की परीक्षा लेना चाहता
हा
गुरूदक्षिणा ५४३४५

ऋषि की बात सुनकर तीनों ने सिर झुका लिया। वे. बोले, “गुरुदेव,
ऐसा कौनसा काम है, जो हम आपके लिए नहीं कर सकते।”
गेश्ा

ऋषि मुसकराकर बोले, “यह मैं जानता हूँ। फिर भी परीक्षा परीक्षा है। तुम
तीनों तीन अलग-अलग दिशाओं में जाओ और अपने श्रम से कमाकर मेरे
लिए कोई अद्भुत भेंट लाओ। जिसकी भेंट सबसे अधिक सुंदर और
मूल्यवान होगी, वही गद्दी का अधिकारी होगा। ध्यान रहे, एक वर्ष में वापस
आना भी जरूरी है।”
ऋषि की आज्ञा पाकर तीनों शिष्य चल पड़े। वे मन ही मन योजनाएँ
बनाते चले जा रहे थे। उनमें से एक किसी राजा के पास जा पहुँचा। दरबार
में जाकर उसने नौकरी करने की इच्छा प्रकट की। राजा तो ऋषि को जानते
ही थे। उनका ढिष्य कितना योग्य होगा, यह जानते हुए भी उन्हें देर नहीं
लगी। राजा ने उसे तुरंत अपने पास रख लिया।
दूसरा शिष्य समुद्र पर पहुँचा। वह मछुआरों की बस्ती में गया और उनसे
गोता लगाने की विदूया सीखने लगा। कुछ ही दिनों में बह भी कुशल
गोताखोर बन गया ।
तीसरा शिष्य चलता-चलता एक गाँव में पहुँचा। गाँव उजाड़ था । घर
थे, जानवर थे, बच्चे थे, महिलाएँ थीं, मगर आदमी एक भी नहीं था। उसे
बड़ा आश्चर्य हुआ। मालूम पड़ा कि यहाँ भयंकर अकाल पड़ा है। कई
वर्षों से वर्षा नहीं हुई है। सभी लोग सहायता के लिए राजा के पास गए हैं।
बह भी अकेला कया करता ? चल पड़ा अपने रास्ते पर । मगर उसे
ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ा । सामने से गाँववालों को भीड़ आ रही थी। वे
उदास थे और राजा को बुरा-भला कह रहे थे।

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१०२ सहायक वाचन - ४

यह देखकर ऋषि के शिष्य को हँसी आ गई। एक राहगीर को हँसता देख॑


गाँववालों को बुरा लगा। वे बोले-“आप हँसे क्‍यों ?” “हँसी तो मुझे तुम्हारी
मूर्खता पर आई।” “हमारी मूर्खता पर अकाल ने हमें तबाह कर दिया है। भूखों
मरने की नौबत आ गई हे। हम सहायता के लिए राजा के पास गए थे। उसने
भी हमारी सहायता नहीं की। आप हमें मूर्ख बता रहे हैं ?”
“हाँ, मैं ठीक ही कह रहा हूँ। तुम सैकड़ों आदमी मिलकर कुछ नहीं कर
सकते, तो राजा अकेला क्‍या कर लेगा ? आदमी सहायता करने के लिए पैदा
. हुआ हे। सहायता माँगना अपाहिजों का काम है।”

ऋषि के शिष्य की बात सुनकर सारे लोग सोच में पड़ गए वे बोलें,
“भैया, तुम तो चमत्कारी लगते हो। हम गँवार क्या जानें। चलों, तुम ही हमारे
- दुखों को दूर कर दो।”

2, मैं ही क्‍्यों-तुम स्वयं हाथ उठाओ ।कदम बढ़ाओ।


हिम्मत से क्या नहीं हो सकता । उठाओ फाल-कुदाल । कुएँ खोदो । प्यासी
धरती की प्यास बुझाओ ।” शिष्य बोला ।

.. “कुएँ-कुएँ तो गाँव में हैं, मगर सारे सूखे पड़ेः हैं। उनमें पानी नहीं, तो
नए कुओ में कहाँ से आ जाएगा ?”-गाँववाले बोले।

“पानी कभी नहीं सूखता। बादल न बरसें, न सही। मगर धरती के अंदर
बहुत पानी है। कुओं को और गहरा करो। पानी मिलेगा।”

गाँववालों की समझ में बात आ गई। दूसरे दिन से गाँव-वाले कुएँ


खोदने में जुट गए। श्रम के मोती पसीना बनकर गिरे तो भगवान की आँखें भी
गुरूदक्षिणा १०३
भींग गई। कुओं से जश्ीतल जलधारा फूट पड़ी। सूखी धरती हरियाली की
चूनर ओढ़कर फिर से मुसकराने लगी ।
एक गाँव की हालत सुधरी । फिर दूसरे की सुधरी । श्रम और साहस का
काफिला आगे बढ़ा । ऋषि का शिष्य गाँव-गाँव जाता। अकाल से लोगों
को लड़ना सिखाता। दूर-दूर तक उसका नाम फैल गया। सभी उसे आदमी के
रूप में देवता! समझने लगे। राजा के कानों तक भी यह बात पहँची।
ऋषि अपने डिष्यों का इंतजार कर रहे थे। एक दिन पहला डछिष्य
हुँचा। उसके साथ हाथी-घोड़े थे। उसने सिर झुकाकर कहा, “गुरुदेव !
देखिए, राजा ने मेरी योग्यता से प्रसन्‍न होकर मुझे हाथी-घोड़े भेट में
दिए हैं।” ऋषि मुसकराए और चुप रहे। दूसरे दिन दूसरा शिष्य आया।
उसने समुद्र से. बहुत सारे बहुमूल्य मोती इकटठे किए थे। ऋषि ने
मोतियों को पोटली ले ली और एक ओर रख दी । कहा कुछ नहीं ।
पूरा वर्ष बीत गया। तीसरा शिष्य नहीं लौटा। दोनों शिष्यों को लेकर वे
. उसकी खोज में निकल पड़े। राजद्रबारों में गए, मगर पता नहीं चला। नगरों
में ढूंढा, किसी ने कुछ नहीं बताया। रास्ते में शाही पालकी जा रही थी। ऋषि
को देखकर पालकी रुक गई। राजा नीचे उत्तरे। । ऋषि को प्रणाम किया।
ऋषि ने राजा से कहा-“राजनू, आपकी प्रजा बहुत सुखी है। चारों ओर
लहलहाती फसल खड़ी है। आप भाग्यवान हैं।”
“नहीं ऋषिवर, यह प्रताप मेरा नहीं। देवता का है। मेरे राज्य में एक
देवता ने जन्म लिया है। मैं देवता के दर्शन करने जा रहा हूँ।” देवता के पैदा
होने को बात सुनकर ऋषि भी चकराए। वह भी राजा के साथ चल पड़े।

एक दिन ढूँढते-ढूँढते किसी गाँव में देवता मिल गए। धूल से सने
१०४ सहायक वाचन - ४
पसीने से लथपथ गाँववालों के साथ काम में जुटे थे।
राजा चकित रह गया; वह देवता केसे हों सकता था ? वह तो एक
साधारण किसान जैसा था। सिर पर न मुकुट था, न गले में स्वर्ण के फूलों
की माला। राजा आगे नहीं बढ़ा। चुपच्चाप खड़ा देखता रहा। मगर ऋषि
चिल्लाए-“बेटा सुबंधु, तुम यहाँ ? मैं तुम्हें ही दूँढ़ता फिर रहा था।” कहते
हुए ऋषि ने धूल-धूसरित सुबंधु को बाहों में भर लिया। “क्या मुझे दक्षिणा
देने की बात तुम भूल गए हो ?” ऋषि ने कहा।

“नहीं गुरुजी, भूल कैसे जाता ? मगर अभी काम अधूरा है। इन सारे
लोगों के आँसुओं को पोंछना था। आप ही ने तो बताया था-“मनुष्य की सेवा
से बढ़कर महान्‌ धर्म कोई नहीं है।”
राजा देखते रह गए। ऋषि की आँखें भी नम हो गई। ऋषि ने भरे गले
से कहा- बेटा, तुमने ठीक ही कहा। तुम्हें सचमुच अब मेरे पास आने की
जरुरत नहीं। तुमने इतने लोगों की भलाई करके मेरी दक्षिणा चुका दी है। जो
दूसरों के आँसू लेकर उन्हें मुस्कराहट दे दे- वह सचमुच देवता है। तुम देवता
से कम नहीं हो।” राजा का सिर सुबंधु के आगे झुक गया।

अभ्यास

(१) ऋषि के तीनों शिष्यों का स्वभाव कैसा था ?


(२) ऋषि के सामने कोन-सी समस्या थी ?
-आज्ञा दी ?
(३) परीक्षा लेने के लिए ऋषि ने तीनों शिष्यों को क्या
?
(४) तीनों शिष्यों ने अलग-अलग क्या-क्या काम तलाश किया
(५) तीसरे शिष्य ने निराश गाँव वालों को क्या सलाह दी ?
जंगली भैंसे से भिड़ंत १०२

(६) तीसरा शिष्य देवता के रूप में किस प्रकार प्रसिदूध हुआ ?
(७) सुबंधु नामक तीसरे शिष्य ने किस प्रकार गुरुदक्षिणा दी ?

९. जंगली भेंसे से भिड़ंत


चैत की तपती दोपहर ढलने लगी थी। बस्तर के घने जंगलों में होपहर भी
ज्ञाम जैसी लगती है। धूप पेड़ों के झुरमुटों में से कहीं कहीं ही झाँक पाती है। _
वहाँ की धरती पर उतरने में ज्ञायद डरती हे। नदी-नालों की कलकल।
उछल-कूद करते हरिणों के
झुंड। सब कुछ मिलाकर यह
जंगल किसी देव की पमायानागरी
जैसा मालूम होता है।
में अपने मित्र ब्रिगेडियर :
वर्मा के साथ यहाँ घूमने आया
था। हमारे साथ वन-विभाग के
एक अधिकारी भी थे। जीप पर
हम सवार थे। श्ञाम होते-होते
. हमने सौ मील का सफर पूरा कर
लिया था। थक गए थे तो आराम चित्र १३ - जंगली भेंसा
की सूझी। डाक बंगला पास ही
था। हम वहाँ जा पहुँचे। जीप की आवाज सुन बूढ़ा चौकीदार टिमटिमाती
लालटेन लेकर दौड़ा हुआ आया।
कुछ ही देर में हम डाक बँगले में थे। भूख जोरों से लगी थी। खाना हम

बिल 3 २2०23.» ५०० २३ 63 0 मविमिवीकि


नी अमल ्मेआफिस... 3 32 8 | 8 0 2.8 कक 332०. अवीकन> कं... 3 आ ५ + बे 29428. 3० अर 3. मिकि ४ केक कह: कक >०4-म आओ फनी 3 ००...
१०६, सहायक वाचन >> ४

साथ लेकर आए थे। भरपेट खाना खाया ओर बिस्तरों पर लेट सुस्ताने लगे।
सोने का हमारा कोई इरादा था नहीं। हम चाँदनी रात में शिकार खेलने का
नि३ुचय कर चुके थे।
बातें हो ही रही थी कि कहीं दूर से नाचने-गाने की आवाज सुनाई पड़ी।
हम समझ गए, यहाँ पास हीं में कोई बस्ती है। उसी में बस्तर के आदिवासी
नाच-गा रहे हैं। मैंने कहा, “क्यों न यह सब देखां जाए ?” मेरी बात सुनकर
बूढ़ा * रीदार बोला, “नहीं साब, जान का खतरा हे। रास्ता ऊबड़-खाबड़
है। दिन ऊँपने से पहले वहाँ पहुँच जाते तो ठीक था।”
चौक ? की बात मेरे .गले बहीं उतरी। हम तीनों.के ही पास ब्रंदूकें थीं। मैं.
थोड़ा-बहुत. नाड़ी था, किन्तु बन-विभाग के अधिकारी और ब्रिगेडियर
साहब-मानें. हुए शिकारी थे।मैंने उत्साह से - कहा; “अरे छोड़ो भी। हंस -
सोने: थोड़े ही. "ए हैं। चेत का महीना है। मुझे -लगता है आज यहाँ माटी का -
त्योहार मनाया जा ग़् है। सभी लोग चौपाल पर इकट्ठे होकर नाच गा रहे: हैं।”
चौकीदांर बोला, “आपने ठीक ही कहा साब चैत मास में नई फ़सल के
लिए हल चलाने से पहले यह त्योहार होता है।” $ 220

मेरी बात से दोनों साथी सहमत थे। हमने बंदूकें उठाई और जीप की ओरः
बढ़े। हमारा निरचय चौकीदार भाँप गया। उसने अपने लड़के. की हमारे
साथ भेजते हुए कहा, “साब, नहीं मानते तो हिड़मा को अपने साथ ले
जाइए। यह रास्ता बताता चलेगा।” ह
हमने हिड़मा को अपने साथ ले लिया। पहाड़ियाँ पार करते हुए
आगे बढ़ने लगे। हिड़मा ने .कहा, “साब, आप लोग बंदूकें भर लें। इस
जंगल में जंगली भेंसे बहुत हैं। बहुत खतरनाक होता है जंगली भैंसा। ताकत पे
शेर से भी ज्यादा।”
जंगली भैंसे से भिड़ंत १०७
है ड़मा को बात सुनकर ब्रिगेडियर साहब जीप रोककर बंदूक भरने
लगे। मुझे हँसी आ रही थी। मैं सोच रहा था-“भैंसे तो लाठियों से भगाए
जाते हैं।” ।
मुझे. मुस्कराता देखकर ब्रिगेडियर साहब बोले, “क्या सोच रहे हो ?
बस्तर के जंगली भैंसे बड़े खतरनाक होते हें। हिड़मा ठीक ही कह रहा
है।” मेरी भी सिद्टी-पिट्टी गुम होने लगी। मैंने बंदूक भरी और सँभलकर बैठ
गया।
चलते-चलते काफी देर हो गई। गाँव का अभी कोई नामे-निशान नजर
नहीं:आ रहा था। हम ऊँचाई से ढालू रास्ते की ओर जा रहे औै। अचानक
हिड़मा मे ब्रिगेडियंरं साहब को टोका, “सोॉब, जीप रोक दें।” “क्यों क्‍या
बात है ?”-हमने पूछा। “साब, उधर देखिए। वह रास्ते के 'किनारे की
झाड़ी-के पास ही जंगली भैंसा खड़ा है।”-बह फुसफुसाया ।
जंगली भैंसे का नाम सुनकर मुझे फुरफुरी-आ गई। मगर में तनकर बोला
“ठीक है। हम तीन हैं। वह अकेला कया कर लेगा हमारा ?”
ब्रिगेंडियर साहब॑ कुछ नहीं बोले। वन-चिभाग के अधिकारी भी स्थिति
का जायजा लेने लगे। फिर जीप कुछ और आगे बढ़ी ब्रिगेडियर साहब ने
जीप की हेडलाइट भैंसे के ऊपर फेंकी। रोशनी में मैंने देखा तो चौंक उठा।
दानव जैसा काला शरीर, चमकती हुई आँखें, कटार जैसे दो पैने सींग। हमें
देखकर वह अगले. पैरों से ज़मीन खोदने लगा। इससे साफ था कि वह
लड़ने . को तैयार था।
ब्रिगेंडियर साहब बोले- “मैं जीप आगे नहीं बढाऊँगा। जीप का दंजन
स्टार्ट रहेगा। आप दोनों नीचे उत्रें और जीप के अगल-बगल होकर भैंसे को
निशाना बनाए।”
श्ठ्व सहायक वाचन - ४

“नहीं साब। मेरी मानिए। इसे मत छेड़िए। यह सीधा जीप पर हमला


करेगा। गोली इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। मरते-मरते भी यह आप
लोग की... ” कहता हुआ हिड़मा रुक गया। _
मानी हम गाज वेग तुम चुप बेठा# ७ ०५०६: मैंने शिकारीपन के
नशे में कहा।
ब्रिगेडियर साहब का इशारा पाते ही में नीचे कूद पड़ा। नीचे उतरकर

हेडलाइट की रोशनी में मैंने भैंसे की गर्दन को निशाना बनाया और धड़कते
दिल से बंदूक का घोड़ा दबा दिया। दनादन दो गोलियाँ चलाई। मैं कूदकर
फिर जीप में बैठ गया। तभी ब्रिगेडियर साहब चिल्लाए, सावधान ! निशाना
चूक गया।”
मुझे काटो तो खून नहीं। गोलियों को आवाज सुनकर भैंसे ने क्रोध से
हमारी ओर देखा। उसके नथुने क्रोध से फुफकार उठे।
“साब, जीप पीछे हटाइए। खतरा-खतरा साब, जल्दी कीजिए”- कहता
हुआ हिड़मा जीप से नीचे कूद पड़ा। मैंने उसे रोका भी किन्तु उसमें
गजब- की फुर्ती थी।
भैंसा जीप की हेडलाइट से बच रहा था। शायद उसकी आँखे चौंधियाँ
गई थीं। वह तेजी से पलटा और जीप के पीछे आ गया। कुछ गज की दूरी थी।
, इस बार वन-विभाग के अधिकारी ने गोली, दाग दी। मगर निशाना फिर चूक
गया। भेंसा क्रोध से पागल हो उठा।
दूसरी बार गोली ने उसके शरीर को छुआ। खून बह चला। तार उसने
परवाह न की। हम सँभल ही रहे थे कि उसने पहले ही जीप में एक टक्कर
समय पर
_ मारी। टक्कर से जीप आगे भागी। ढलान था ही। हम घबराए। ठीक
जंगली भेैंसे से भिड़ंत १०९
ब्रेक नहीं लगता तो जीप या तो किसी पहाड़ी से टकरा जाती या किसी खड्ड
में होती। ब्रिगेडियर साहब चिल्लाए, “जल्दी कूदो।”

हम जीप से कूद तो गए मगर हिम्मत जवाब देने लगी थी। भैंसा कुछ देर
रुककर फिर जीप के पीछे लपका। मेरे तो होश-हवास गायब हो गए थे।
फिर गोली छोड़ी। मगर घबराहट में बेकार गई। भैंसा जीप के बिल्कुल पास
था। ब्रिगेडियर साहब गोली चलाने के लिए तेयार थे। तभी हिड़मा
#? चिल्लाया- “साब, रुकिए, गोली मत चलाइए। यह आपका पीछा नहीं
छोड़ेगा,” कहता हुआ हिड़मा भैंसे के आगे आ गया।
उसने अपनी कमीज उतारकर हाथों में ले ली थी। वह उसे
हिला-हिलाकर भैंसे को चुनौती देने लगा। साथ ही अजीब-अजीब बोलियाँ
भी बोलता जा रहा था।

यह दृश्य देखकर हम सन्‍नाटे में आ गए। चौदह वर्ष का हिड़मा हमें


बचाने के लिए मौत से खेल रहा था।
हिड़मा डटा ही रहा। भैंसा कुछ देर तक तो उसे घूरता रहा। फिर क्रोध
में आकर उसकी ओर लपका। हम बच गए, जीप बच गई। आगे-आगे
हिड़मा और पीछे-पीछे भैंसा। सामने एक बड़ा पेड़ था। हिड़मा दम
लेने के लिए उसकी ओट में हो गया; भैंसा तो जेसे पागल हो गया था। उसने
पेड़ के तने में एक साथ कई टक्‍्करें मारीं। इतना बड़ा पेड़ चर्र करके टूट
गया। हिड़मा तेजी से आगे बढ़ा।
ब्रिगेडियर साहब जीप॑ से नीचे उतर आए। वह हमें दुत्कारते हुए बोले-
“कमाल कर दिया तुमने। एक बच्चा हमें बचाने के लिए दैत्य से जूझ रहा
है। तुम तमाशा देख रहे हो।”
० सहायक वाचन +- ४

यह कहकर ब्रिगेडियर साहब भेंसे के पीछे भागे। इस समय हिड़मा


पहाड़ी के ऊपर था। भैंसा अभी ऊपर नहीं पहुँचा था। ब्रिगेडियर साहब
रास्ता काटकर तेज़ी से आगे बढे। फिर एक पेड़ की ओट में होकर
गोलियाँ चला दीं। गोलियाँ भैंसे के मस्तिष्क को भेट्‌ गईं। खून का फव्वारा
छूट पड़ा। इसी बीच ब्रिगेडियर साहब ने दो गोलियों से. भैंसे को गर्दन
तोड़ दी। वह वहीं ढेर हो -गया। ह पु
हम भागते-भागते पहुँचे। ब्रिगेडियर साहब ने हिड़मा को गले. लगा &
लिया। उसके सिर पर हाथ फेरते . हुए बोले, “शाबाश बेटे, तुम्हारी बहादुरी
देखकर तो हम <दंग रह “गए। अगर तुम न होते, >तो भैंसा हमारा और जीप का
कचूमर निकालकर ही छोड़ता।” . । ।

हिड़मा को मैं आज़ भी भूल नहीं पाया हूँ।


अभ्यास

(६) बस्तर के घने जंगलों की-विशेषताएँ लिखो।


(२) चोकीदार ने लेखक से रात के समय जाने से .क़्यों मना
किया था 2?
(३) चौकीदार ने हिड़मा को सांथ ले जानें” के लिये क्‍यों कहा ?
(४) जंगली भैंसे से मुकाबला करने के लिए ब्रिंगेडियंर साहब ने
किस प्रकार की मोचबंदी की ?
(५) भेंसे ने किस प्रकार जीप पर आंक्रमण किया ?
(६) हिड़मा ने- किस ज्रकार भैंसे का मुकाबला किया ?
(७) इस कहानी के आधार पर जंगली भैंसे की विशेषताएं लिखो।
रामायण-कथा
कई हज़ार वर्ष पहले की बात है। उस समय त्रेतायुग था। सरयू नदी के
«. गिरे अयोध्या नगरी थी। वहाँ सूर्यवंश के प्रसिद्ध राजा दशरथु राज्य _
करते थे। वे वीर, साहसी, धर्मात्मा और अपनी प्रतिज्ञा पर अटल रहने वाले
<. )। उनकी तीन रानियाँ थीं -कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी। तीनों रानियों के
कोई संतान नहीं थी। इस कारण राजा बहुत दुखी रहते थे। एक दिन वे अपने
कुलगुरु वशिष्ठ के घर पहुँचे +और उनसे प्रार्थना की-“गुरुदेव, मैं बूढ़ा
होता जा रहा हूँ। मेरे कोई संतान नहीं हे। मेरे बाद इस राज्य का क्या होगा ?
यह चिन्ता व्याकुल किए रहती है। आप कोई ऐसा उपाय बताएँ जिससे मुझे
संतान प्राप्त हों। ” - |
गुरु:वहिष्ठ ने -उत्त्तर दिया- “राजन्‌ , चिन्ता न करें। मैं आपके लिए -
यज्ञ कराऊँगा, जिससे आपके शीखघ्र ही पुत्र होंगे।” यज्ञ हुआ 'और तीनों
रानियों को खीर का प्रसाद दिया गया। समय आने पर सबसे -बड़ी रानी -
कोशल्या नें. राम को, कैकेयी ने: भरत को और सुमित्रा ने लक्ष्मण और .
शंत्रुध्न को जन्म दिया। राजा दशरंथ के: आनंद की सीमा न रही। चारों बालक
. धीरे-धीरे * बड़े होने _लगे। यथा समय उनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ और वे
गुरु के घर पढ़ने जाने लंगें। सब माई. तीग्र बुद्धि के थे। उन्होंने थोड़े
ही समय में सारी विद्याएँ सीख लीं।.उन्हें तलवार चलाना, तीर चलाना घोड़े
पर चढ़ना भी सिखाया गया। वैसे तो चारों भाई बुद्धि और बीरता में समान
' थे, किन्तु राम सभी बातों में अपने अन्य भाइयों से बढ़े-चढ़े थे। उनकी
«कीर्ति दूर-दूर तक फैलने .लगी।
पर
२ और सहायक वाचन - ४

एक दिन जब सजा दशरथ मंत्रियों के साथ राज-सभा में बैठे थे तभी


महर्षि विश्वामित्र वहाँ आ पहुँचे। राजा ने महर्षि का स्वागत किया और
श्रदूधापूर्वक उनसे पूछा, “महर्षि, आपके आगमन से में कृतार्थ हो गया।
किस हेतु आपका शुभागमन हुआ है ? कृपा कर बताइए-मैं आपके आदेश
का पालन करूंगा।” महर्षि विद्ववामित्र ने कहा-“राजनू, कुछ दिनों से
हमारे आश्रम में राक्षसों ने उत्पात मचा रखा है। वे यज्ञ को नष्ट कर देते हें,
आश्रमवासियों को परेशान करते हैं। आप कुछ दिनों के लिए राम और
लक्ष्मण को हमारे साथ भेज दें, उनकी सहायता से मैं यज्ञ पूरा कर सकूँगा।”
महर्षि विश्ववामित्र की बात सुनकर राजा बहुत ही चिन्तित हुए। अपने
आपको सँभालकर उन्होंने कहा-“भगवन्‌ ये अभी बालकही हें। राक्षसों से ये
कैसे लड़ पाएँगे। में यज्ञ की रक्षा के लिए अपनी सेना भेज देता हूँ।” महर्षि
विश्वामित्र राजा दशरथ की बात सुनकर बोले, “राजन्‌ यदि आप अपने दिए
हुए वचनों का पालन नहीं करना चाहते, तो कोई बात नहीं। मुझे आपकी सेना
की कोई आवश्यकता नहीं।” राजा दशरथ समझ गए कि महर्षि विश्वामित्र
नाराज हो गए हैं। गुरु वद्िष्ठ के परामर्श से राजा दशरथ ने राम और
लक्ष्मण को महर्षि के साथ वन में भेज दिया।
राम और लक्ष्मण महर्षि विज्व्वामित्र के साथ वन में चले जा रहे थे।
महर्षि दोनों राज-पुत्रों को रोचक कथाएँ सुना रहे थे। उस बन में एक राक्षसी
ताड़का रहती थी। वह बड़ी भयंकर थी। उसने आस-पास के अ्रदेज्ञों को
नष्ट कर दिया था। राम ने मुन्नि की आज्ञा से ताड़का का वध किया। शाम
की अद्भुत वीरता देखकर विद्ववामित्र बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्होंने दोनों.
राजकुमारों को तरह-तरह के अख्न-शसत्र दिए और उनके प्रयोग करने की
विधि भी समझाई।
रामायण - कथा पा ११३

«चित्र १४. ताडका-वध

विद्वामित्र राज-पुत्रों के साथ अपने आश्रम पर पहुँच गए। दोनों


राजकुमारों को एक छोटी-सी कुटिया में ठहराया गया। दूसरे दिन प्रातःकाल
राम-लक्ष्मण ने गुरु के चरणों में प्रणाम किया और कहा, “भगवन्‌ अब आप
लोग निद्चिंचत होकर यज्ञ करें। इस आश्रम की हम रक्षा करेंगे।”
विश्वामित्रजी ने अपना यज्ञ आरंभ किया। मुनिगण मंत्र पढ़ने लगे।:
संध्या समय जब यज्ञ समाप्त होने वाला था उसी समय मारीच और सुबाहु के _
साथ राक्षस्ों का एक बड़ा समूह यज्ञ विध्वंस करने के लिए आता दिखाई
पड़ा। राम ने एक बाण मारीच को मारा। आँधी की भाँति वह बाण मारीच को
पोलों दूर उड़ा कर ले गया। दूसरे बाण से उन्होंने सुबाहु को मार डाला।
, लक्ष्मण ने भी अनेक बाण चलाकर कई राक्षसों को मारा। शेष राक्षस अपनी
जान बच्ताकर भागे! इस प्रकार विद्वामित्र कः यज्ञ बिना किसी बाधा के पूरा:
आ।
(२४
११४ सहायक वाचन -

दूसरे दिन विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को बताया “वत्स, मेरा ब्रत पूरा


गया है। अब मैं हिमालय पर्वत को जाऊँगा। मैं स्थाई रूप से वहीं रहता
हूँ। रास्ते में मैं राजा जनक का यज्ञ देखना चाहता हूँ। तुम दोनों भी मेरे .साथ
चलो।” दोनों राज-पुत्रों ने गुरु के आदेश को मानकर चलने की तैयारी की।

महर्षि विज्ववामित्र मार्ग में अनेक कथाएँ सुनाते हुए चल रहे थे।
चलते-चलते उन्हें गौतम ऋषि का उजड़ा हुआ आश्रम दिखाई दिया। राम
के प्रश्न करने पर विश्ववामित्र ने
बताया, “यह महर्षि गौतम का आश्रम है।
गौतम एक धर्मात्मा ऋषि थे। उनकी पत्नी का नाम अहिल्या था। एक द्नि
जब गौतम बाहर गए थे, इंद्र गौतम का रूप धारण कर उनके आश्रम में आ
गया। अहिल्या उसे पहचान नहीं पाई। सदा की भाँति वह पति को सेवा में
लग गई। इसी बीच गौतम ऋषि आश्रम में आ गए। यह देखकर इंद्र चुपचाप
भागने लगा। गौतम ने उसे देख लिया। उन्होंने इंद्र को शाप दिया।
अहिल्या बेचारी भय से काँप रही थी। ऋषि को उस पर भी क्रोध आया।
उन्होंने उससे कहा, इस आश्रम में अब तू अकेली ही रह। भूख, प्यास, वर्षा,
धूप सहन करते हुए अकेली पत्थर की तरह पड़ी रह।” अहिल्या ऋषि के
चरणों में गिर पड़ी और बोली, 'स्वामिन्‌ इसमें मेरा कोई दोष नहीं। जे
निरपराधिनी हूँ। मुझे क्षमा कीजिए।” गौतम ऋषि उसकी विनय से जब
शांत हुए तब उन्होंने कहा, मैंने जों कुछ कहा . . «>> 5०४ जब
श्रीराम इस मार्ग से जाएँगे तब वे ही तुझे श्ञाप-मुक्त करेंगे। विश्वामित्र ने
कहा, “बेटा राम, इस कुटिया में जाकर देखो। वह स््री पत्थर के समान यहा
पड़ी है। उसका उद्धार करो।” श्रीराम ने गुरु के आदेश के अनुसार अहिल्या
को पवित्र किया और उसे गौतम ऋषि के सुपुर्द कर दिया।
रामायण - कथा २

अगले दिन महर्षि विश्वामित्र राम-लक्षमण के साथ जनकपुरी पहुँचे।


राजा जनक ने आकर उनका स्वागत किया। राम-लक्ष्मंण को देखकर वे बहुत
ग्रसन्‍न हुए। एक दिन जब राम-लक्ष्मण जनकजी का बगीचा देखने गए तो
वहाँ उन्हें सीताजी दिखाई पड़ीं। सीता गे भी राम को देखा। दोनों एक-दूसरे
को देखकर प्रसन्न हुए।

दूसरे दिन धनुर्यज्ञ था। पूजा के बाद जनक ने अपनी पु.) सीता को
यज्ञ-स्थल में बुलाया और घोषणा की, “उपस्थित राजागण र,ने। जो राजा
भगवान शंकर के धनुष को उठाकर उसपर डोरी चढ़ा देगा, 'सका विवाह
राजकुमारी सीता के साथ किया जाएगा।” घोषणा सुनंकर अनेक राजा घमंड के
साथ एक-एक करके उठते थे, धनुष के पास जाते थे लेकिन उसे तिलभर
भी नहीं उठा पाते थे। जब सभी राजा थक गए तो राजा जनक को बड़ी
निराशा हुई। उन्होंने राजाओं से कहा, “मुझे नहीं मालूम था कि पृथ्वी पर
अब कोई दीर नहीं रहा है। नहीं तो मैं क्‍यों ऐसा प्रण करता ? आप लोग अब
अपने-अपने घर लोट जाइए।” तब महर्षि विज्वामित्र की आज्ञा पाकर राम.
धनुष पर डोरी चढ़ाने के लिए तैयार हुए। राम को जाते हुए देखकर अनेक
राजाओं ने उनकी हँसी उड़ाई। राजा जनक को भी विश्वास न था कि यह
सुकुमार राजकुमार धनुष तोड़ सकेगा। राम धीरे-धीरे धनुष के समीप पहुँचे।
उन्होंने . एकदम धनुष उठा लिया और उसपर डोरी चढ़ाकर भयंकर ध्वनि
की। धन्‌ष एक झटके में ही टुट गया। चारों ओर हर्षध्वनि होने लगी। राजा -
जनक की प्रसन्नता का ठिकाना ही न रहा। सखियाँ सीताजी को साथ लिए
राम की ओर आईं। सीता ने राम को जयमाला पहनाई। नगाड़े बज उठे।
जय-जयकार से सभा-मडप गूँज उठा ।
२२६ सहायक वाचन - ४

जनक ने दशरथ को सूचना देकर आमंत्रित किया. और उनसे बारात


लेकर आने कौ प्रार्थना की। बड़े उत्साह से राम के साथ सीता का तथा
लक्ष्मण के साथ उर्मिला का, भरत के साथ मांडवी का और शत्रुध्न के साथ
श्रुतकीर्ति का विवाह हुआ।

जिस समय सभा-मंडप में हर्ष और उल्लास छाया हुआ था, उसी समय
महर्षि परशुराम वहाँ आ गए। परशुराम बड़े पराक्रमी योद्धा और क्रोधी
स्वभाव के ऋषि थे। क्षत्रियों से उनका बैर था। उन्होंने कई-क्षत्रिय राजाओं
को युद्ध में हराया था। राम-लक्ष्मण ने परशुरामजी के चरण स्पर्श किए।
राजा जनक ने धनुष-यज्ञ के आयोजन की बात उन्हें बताई। परशुराम शंकर के
धनुष का बड़ा सम्मान करते थे। धनुष टूटने की बात सुनकर वे बड़े
क्रोधित हुए। राम ने उनका क्रोध ज्ञांत करने का बहुत ग्रयत्न किया किन्तु
लक्ष्मण के व्यंग्यों से वे बार-बार भड़क उठते थे। अंत में राम के शील पर
वे मुग्ध हो गए और दोनों राजकुमारों को आशीर्वाद देकर वन को चले गए।

राम के विवाह के बाद सभी अयोध्यावासी प्रसन्‍न थे। चारों भाई,


माता-पिता और गुरुजनों की सेवा करते, उनकी आज्ञा का पालन करते थे।
कुछ समय के बाद भरत के मामा, युधाजित अपने भानजे भरत को लेने
अयोध्या आए। महाराजा दशरथ ने भरत और शत्रुघन दोनों को उनके साथ-भेज
दिया। दोनों छोटे भाइयों के चले जाने से माता-पिता की सेवा का काम
राम-लक्ष्मण के ऊपर अधिक आ पड़ा। राजा दशरथ भी अब वृद्ध हो गए
थे। इधर राम अपने शील और चरित्र के कारण लोकप्रिय हो गए थे।
इसलिए राजा दशरथ ने विचार किया कि राजकाज राम को सौंपकर बन में
रामायण - कथा ११७

जाकर ईइवर की पूजा-पाठ करें। उन्होंने अपने मंत्रियों से सलाह ली। सभी
ने. प्रसन्‍नता के साथ अपनी सहमति दे दी। राम के राज्याभिषेक को तिथि
निडिचत की गई। समय कम था। अतः न तो इस कार्यक्रम की सूचना महाराजा
जनक के पास भेजी जा सकी और न भरत के पास ही। सारा नगर राज्याभिषेक
की तैयारियों में लगा था। चारों ओर उल्लास था।

उधर कैकेयी के महल में कुछ दूसरा ही षडयंत्र रचा जा रहा था। कैकेयी
की मंथरा नाम की एक दासी थी। जब से उसने राम के राज्याभिषेक की बात
सुनी थी, वह उदास रहती थीं। रानी केैकेयी ने इसका कारण पूछा। मंथरा ने
कहा, “कल राम का अभिषेक होगा। मैं तो तुम्हारी दशा विचार कर दुखी हो
रही हूँ। कौशल्या जब राज-माता बन जाएगी तो तुम रानी से सेविका बन
जाओगी।” पहले तो कैकेयी को अपनी दासी की बातें बड़ी बुरी लगीं, लेकिन
उसके कपटपूर्ण बचनों ने जादू का सा काम किया। वह कैकेयी जो राम को
अपने पुत्र भरत से भी ज्यादा चाहती थी वह राम की दुश्मन बन गई। मंथरा ने
उसे याद दिलाया, “राजा ने तुम्हें दो वरदान देने के लिए कहा था। एक वर
से भरत को राजगद्दी और दूसरे से राम को चौदह वर्ष का बनवास माँग
लेना।” केकेयी मंथरा की बातों में आ गई। वह बुरा वेष बनाकर अपने महल में
जा लेटी।

रात को राजा दशरथ कैकेयी के महल में पहुँचे। कैकेयी को बुरी दशा में
देखकर उन्होंने नाराजी का कारण पूछा। उन्होंने कहा, “तुम जो कहोगी वही मैं
करूँगा। अपना क्रोध छोड़ दो।” कैकेयी बोली, “आपने मुझे दो वरदान देने
को कहे थे। आज मैं उन बरों को माँगती हूँ। प्रथम वर यह है कि भरत को
श्श्द सहायक वाचन - ४
राजगद्‌दी दी जाय। दुसरा वर यह हे कि राम चौदह वर्ष तक वन में रहें तथा
तपस्वी का जीवन व्यतीत करें।” कैकेयी की कठोर बातों को सुनकर राजा
मूच्छित होकर गिर पड़े। होश आने पर उन्होंने रानी से प्रार्थना की, “में
शीघ्र ही भरत को बुलाकर राजगद्दी दे दूँगा, लेकिन राम ने कया अपराध
किया है, जो उन्हें वनवास देने को कहती हो। यह वरदान न माँगो।” रानी
कैकेयी ने कहा, “अगर आपने अपनी प्रतिज्ञा का पालन न किया तो में आपके
सम्मुख ही प्राण छोड़ दूँगी। सारे संसार में आपकी बदनामी होगी।” राजा के
बार-बार प्रार्थना करने पर भी कैकेयी के ऊपर कोई प्रभाव नहीं हुआ।

: धीरे-धीरे रात्रि बीती। अयोध्यावासी राम के अभिषेक की तैयारियों में


लगने के लिए राजमहल के सामने इकट्टे होने. लगे। गुरु वहिष्ठ ने मंत्री
सुमंत को राजा के पास भेजा। सुमंत ने जाकर राजा को राजमहल में बेहोश
देखा। उन्होंने रानी से इसका कारण पूछा रानी ने कहा, “राजा को रातभर नींद
नहीं आई। राम-राम रटते हुए रात काटी है। तुम.जाओ और शीघ्र राम को बुला
लाओ।” सुमंत शीघ्र ही राम को लेकर महल में आ गए। राम को देखते ही
राजा दशरथ, “हाय-राम” कहकर बेहोश हो गए। राम ने चिन्तित होकर माता
से राजा की इस द्शा का कारण पूछा। रानी ने कहा, “राम, यदि तुम राजा के
सत्य की रक्षा करने का वचन दो तो मैं तुम्हें कारण बता सकती हूँ।” राम ने
कहा, “माँ, पिता के लिए मैं अपने प्राण भी दे सकता हूँ। मैं प्रतिज्ञा करता
हूँ कि में पिताजी की प्रत्येक आज्ञा का पालन करँगा।” रानी कैकेयी ने अपने
दो वरदान माँगने की सारी कहानी राम को बताई। माँ के वचन सुनकर राम
किंचित मुसकराए और बोलें, “माँ, इस छोटे- से कारण के लिए पिताजी
इतने दुखी हो रहे हैं, यह मेरी समझ में नहीं आ रहा। इससे बडी बात क्‍या
रामायण - कथा. ११९

होगी कि मेरे भाई भरत को राज्य मिले। मैं आज ही वन जाने को तैयार हूँ।” .

दूर हो गई थी। राम ने उनके चरण छुए और


अब तक राजा की मूर्च्छा
उन्हें ढाढस बंँधाते हुए कहा, /तात, आप दुखी न हों। समय बीतते देर नहीं
लगती। चौदह वर्ष बीतने पर मैं फिर आपकी सेवा में आ जाऊँगा। मेरी ओर से
आप निरिचन्त रहें। माँ से अनुमति लेकर मैं फिर वापस आता हूँ।” इतना
कहकर राम वहाँ से चल दिए।

राम वहाँ से माता कौशल्या के महल में पहुँचे। उन्होंने माँ को प्रणाम
रहा है।
किया माँ ने आशीर्वाद देते हुए कहा, “बेटा, अभिषेक का समय हो
बड़े
यह भगवान्‌ का प्रसाद खा लो, तब पिताजी के पास जाना।” राम ने
धेर्यपूर्वक कहा, “माँ, पिताजी ने मुझे चौदह वर्ष के लिए वन का राज्य दिया
है। मुझे इसी समय अयोध्या छोड़कर वन जाना है। मैं आपसे विदा लेने
आया हूँ। आप मुझे आशीर्वाद दीजिए।” पुत्र की बात सुनकर माँ स्तब्ध रह
गईं। उनके मुख से शब्द नहीं निकले। बड़ी कठिनाई से वे अपने
आपको सँभाल पाईं। राम माँ से बोले, “माँ, पिताजी का आदेश मुझे मानना
ही होगा। मुझे खुशी-खुशी वन जाने की आज्ञा दो। पितांजी इस समय दुखी
हो रहे हैं। आप उनकी देख-रेख करें। वनवास से लौटकर मैं आपकी फिर
सेवा करूँगा |” राम ने माँ के पैर पकड़ लिए। माँ ने सिसकियाँ भरते हुए
उन्हें जाने की आज्ञा दे दो। लक्ष्मण और सीता ने भी जिद करके राम के साथ
वन जाने की अनुमति ले ली। तीनों मे माता कौशल्या और सुमित्रा के चरणों
में प्रणाम किया और गुरु व राजा दशरथ को प्रणाम कर वन को चल पड़े।
१२० सहायक वाचन - ४

राजा पागल की तरह उनके पीछे दौड़े, लेकिन गिर पड़े और


मूच्छित हो गए। राजमहल के बाहर सारी अयोध्या
इकट्ठी थी। सभी बिलाप
कर रहे थे। राम ने सबको समझाया। उन्होंने कहा “जीवन में कर्त्तग्य का
अधिक महत्त्व है। मुझे पिता की आज्ञा का पालन
करने दीजिए। आप सब
ऐसा कार्य करें जिससे मेरे माता-पिता दुखी न हों। भरत
भी मेरे समान ही
आपको प्यारे हैं। उन्हें आप पूरी-पूरी सहायता दीजिए। अब आप लोग
अपने-अपने घर लौट जाइए।” राजा दशरथ की आज्ञा से
सुमंत रथ लेकर आ
गए। राम, लक्ष्मण और सीता रथ पर चढ़ गए और वन की
ओर चले। प्रजा
पागलों को तरह रथ के पीछे-पीछे दौड़ने लगी। रथ के
आँखों से ओझल हो
जाने पर सब रुक गए।

सुमंत के साथ रथ पर राम, लक्ष्मण और सीता गंगा के किनारे


तक
आए। निषाद गुह वहाँ का राजा था। वह अपने मंत्रियों और भाई-बंधुओं
के
साथ राम के दर्शन के लिए आ गया। वह रात्रि वहीं कटी। सुबह
राम ने
सुमंत को वापस अयोध्या भेज दिया। राम, लक्ष्मण, सीता तीनों
गुह की नाव से
गंगा के पार उतरे। धीरे-धीरे चलते हुए वे भरद्‌वाज के आश्रम
में आए।
मुनि ने कहा, “राम मेरा यह आश्रम सभी प्रकार से सुंदर है। तुम
वनवास की
अवधि यहीं रहकर काटो।” राम ने विनीत भाव से कहा, “मुनि
वर, यह
आश्रम अयोध्या के बिल्कुल पास है। यहाँ आए दिन अयोध्यावासी
आते
रहेंगे। इस कारण मैं यहाँ नहीं रहँगा। आप कोई दूसरा निर्जन स्थान
बता
दीजिए।” भरदूवाज मुनि ने चित्रकूट में रहने के लिए कहा। मुनि को
अनुमति लेकर राम, लक्ष्मण और सीता चित्रकूट की ओर चले। गाँवों के
अनेक नरनारी उन्हें देखने दौड़ आते थे। उन तीनों के दर्शन करके वे अपने
रामायण - कथा रो
भाग्य को सराहना करते थे। इस प्रकार हरे-भरे खेतों, जंगलों, पर्वतों को
पारकर वे चित्रकूट पहुँचे। -उनके रहने के लिए वनवासियों ने कुटियाँ
तेयार कर दी थीं। अनेक ऋषि-मुनि भी आसपास रहते थे। वे सब इन तीनों
पर संतान के समान प्रेम करते थे। ये तिनों भी उनका माता-पिता के समान
आदर करते थे।

उधर सुमंत दुखी मन से राम से विदा होकर अयोध्या आए। लोग देख न
लें इस भय से वे सूर्य डूबने के बाद नगर में घुसे। वे सीधे राजमहल में
राजा दशरथ से मिलने गए। राजा दशरथ सुमंत को देखकर फूट-फूटकर रोने
लगे। सुमंत ने राम के गंगा तट तक पहुँचने का सारा हाल उन्हें बताया। सब
कुछ सुनकर राजा अत्यंत व्याकुल हो उठे। रोते-रोते वे बोले, “सुमंत, अपने
प्यारे पुत्रों को बनवास देकर अब एक भी क्षण जीने की मुझे इच्छा नहीं है।”
इस प्रकार बिलख-बिलखकर राम का नाम रटते हुए राजा दद्वरथ ने प्राण
त्याग दिए।

सुबह वहिष्ठ ने भरत को बुलाने के लिए दूतों को भेजा। राजा का मृत


दइरीर तेल भरी नाघ में रख दिया गया। दूत भरत को साथ लेकर दस दिनों में
अयोध्या वापस लौटे। भरत ने अयोध्या को जो दशा देखी उससे वे बड़े
दुखी हुए। किसी अनिष्ट की आशंका से उनका मन बैठने लगा। गजमहलल
में पहुँचकर वे सीधे कैकेयी के महल में पहुँचे। कैकेयी भरत को देखकर उठ
दौड़ी। भरत, शत्रुघ्न ने माँ के चरण छुए। कैकेयी ने उन्हें आशीर्वाद दिया।
भरत ने माँ से पूछा, “माँ, पिताजी कहाँ हैं ?” कैकेयी ने बनावटी दुख प्रकट
करते हुए कहा, “बेटा, तुम्हारे पिताजी नहीं रहे।” यह सुनकर भरत और
२ सहायक वाचन - ४

जत्रुघ्न को बड़ा दुख हुआ। पिता को मृत्यु का कारण पूछने पर कैकेयी ने


आदि से अंत तक सारीं कथा बताई। इससे भरत को और भी दुख हुआ।
कैकेयी का तिरस्कार करते हुए भरत, शत्रुघ्न के साथ कौशल्या के पास गए।
कोशल्या ने भरत को हृदय से लगाया। _

उसी समय वरिष्ठ आ गए। उन्होंने भरत को समझाते हुए कहा, बेटा
भरत, शोक त्यागो भाग्य बड़ा बलवान है। पिताके क्रियाकर्म की तैयारी
करो।” तब भरत ने धैर्य धारण करके गुरु की आज्ञा से पिता का श्रादूधकर्म
किया। चौदहवें दिन राज-सभा बैठी। गुरु वशिष्ठ और मंत्रियों ने भरत से
अनुरोध किया कि वे राजा होना स्वीकार करें। भरत ने निश्चय किया कि
मैं वन जाकर राम को अयोध्या वापस लौटने के लिए प्रार्थना करूंगा। भरत का
निर्णय सबको ठीक लगा। बहुत से अयोध्यावासी वन जाने को तैयार हुए।
सारा राज-परिवार भी भरत के साथ जाने को तैयार हुआ। केकेयी का स्वभाव
भी अब बदल गया था। वह भी वन जाने को तैयार थी। दूसरे ही दिन भरत
सबके साथ वन को चल दिए। राम जिस मार्ग से वन को गए थे भरत भी
उसी से चले। जब वे लोग गंगा के किनारे पहुँचे तो निषादराज के मन में
संदेह हुआ। बाद में यह जानकर कि भरत राम को मनाने. जाःस्हे हे
निषादराज ने भरत का स्वागत किया। निषादराज को साथ लेकर भरत
चित्रकूट के लिए रवाना हुए।

जब यह जनसमूह चित्रकूट के निकट पहुँचा तो वन-वासियों ने राम को


जाकर खबर दी कि भरत सेना के साथ आ रहे हैं। लक्ष्मण यह सुनकर क्रोध
कि
से आगबबूला हो गए। उन्होंने कहा, भरत शायद यह सोचकर आया है
जंगल में राम अकेले हैं। उन पर सहज में विजय प्राप्त कर ली जाएगी। आज
मैं उसे मजा चखाऊंगा।” राम ने अपने भाई के क्रोध को शांत करते हुए
रामायण - कथा _ १२३
कहा, लक्ष्मण, भरत के स्वभाव को तो तुम भी जानते हो। राज्य के लोभ से
वह कभी अधर्म के मार्ग पर नहीं चल सकता। हो सकता है कि पिताजी और
भरत हमें अयोध्या लौटा ले जाने के लिए आ रहे हैं।”राम का कथन सुनकर
लक्ष्मण लजा गए। चित्रकूट पहुँचकर भरत, राम से विनय भाव से मिले।
राम, कैकेयी तथा अन्य पाताओं एवं गुरुजनों से मिले। गुरु वशिष्ठ ने जब
महाराजा दशरथ की मृत्यु का समाचार सुनाया तो राम, लक्ष्मण, सीता अत्यंत
शा
श्र्ड सहायक वाचन -> ४

दूसरे दिन चित्रकूट में सभा बैठी। गुरु वरिष्ठ की आज्ञा से भरत ने
के
अपने आने का प्रयोजन कहा। गुरु वशिष्ठ और माताओं ने भी भरत
कथन का समर्थन किया। कैकेयी ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए सम से
बोले,
वापस अयोध्या लौट चलने का आग्रह किया। राम सबकी बातें सुनकर
पालन
“आपने धैर्य और न्याय के अनुकूल बातें कहीं हैं। पिता के आदेशों का
अपनी प्रतिज्ञा पालन करते हुए शरीर
करना ही पुत्र का धर्म है। पिता ने
का पालन
छोड़ दिया। अब हम दोनों का यही कर्त्तव्य है कि हम उनके वचनों
तात, आपके
करें।” उन्होंने सबको समझाया। निराश होकर भरत ने कहा-
इन्हें स्पर्श कीजिए।
बिना मैं आश्रयहीन रहँगा। मैं ये खड़ाऊँ लाया हूँ, आप
यदि आप अवधि
ये खड़ाऊं ही राज-काज में हमारा पथ-प्रदर्शन करेंगे।
चिता में अपने
समाप्त होने के दूसरे ही दिन अयोध्या न पहुँचे, तो में जलती
आपको भस्म कर दूँगा।”

से राम,
राम ने भरत को कंठ से लगा लिया। भरत अत्यंत दुखी मन
्या आ गए। भरत ने अयोध्या
लक्ष्मण और सीता से विदा होकर वापस अयोध
राज्य-सिंहासन पर राम कौ
से बाहर नंदि गाँव में एक कुटी बनाई और
लेकर वे राज-काज करने लगे। वे
पादुकाएँ स्थापित कराई। उन्हीं की आज्ञा
तपस्वी की तरह ही रहते थे।

बड़ी संख्या में उनके दर्शन


उधर श्रीराम ने देखा कि लोग ग्रतिदिन
के लिए चित् रकूट आने लगे हैं। इससे मुनियों कौ तपस्या में विघ्न
करने
ओर
पड़ता है। यह सोचकर वे मुनियों को आज्ञा लेकर दंडकाराण्य की
वे सब राक्षसों के अत्याचार से
चले। मार्ग में मुनियों ने राम को बताया कि
रामायण - कथा १२१४,

दुखी हैं। राम ने राक्षस्रों का नाश करने की प्रतिज्ञा की। दंडक वन में राम ने
विभिन्‍न मुनियों के आश्रमों में कहीं दस मास, कहीं आठ मास, कहीं छह मास
रहते हुए दस वर्ष व्यतीत किए। अंत में अगस्त्य मुनि ने उन्हें पंचवटी नामक
स्थान बताया, जहाँ जाकर उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की और सुखपूर्वक
रहने लगे।

एक दिन राम, लक्ष्मण और सीता अपनी कुटी के सामने बैठे थे। उसी
समय रावण को बहिन जूर्पणखा बन में घूमती हुई उधर ही आ निकली। राम के
रूप को देखकर वह मोहित हो गई। उसने एक सुंदर सनी का रूप धारण किया
और सामने आकर बोली, “तुम इतने कोमल, सुंदर पुरुष होकर इस जंगल में
क्यों घूम रहे हो ?” इस स्त्री को छोड़कर तुम मेरे साथ चलो॥ मैं अपना राज्य
तुम्हें सौंप दूंगी।” राम ने शूर्पणखा की बातें सुनकर कहा, “मैं तो विवाहित हूँ,
मेरा भाई यहाँ अकेला है। अगर तुम चाहो, तो उसके साथ विवाह कर सकती
हो।” शूर्पणखा ने लक्ष्मण के पास जाकर वही प्रसताव रखा। लक्ष्मण ने कहा,
“तुमने विवाह का प्रस्ताव पहले मेरे बड़े भाई के सामने रखा था,
इसलिए मेरे लिए तो तुम पूज्य हो गई हो। अब तो तुम उन्हीं के साथ विवाह
कर सकती हो।” ज्ूर्पणखा क्रोधित होकर सीता जी को मारने दौड़ी। राम का
आदेश पाकर लक्ष्मण ने उस दुष्टा स्नी के नाक-कान काट लिए।

रक्त से लथपथ शूर्पणखा अपने भाई खर-दूषण के पास पहुँची। अपनी


बहिन कौ दुर्दशा देखकर खर-दूषण सेना लेकर राम-लक्ष्मण के ऊपर चढ़
दौड़े। राम ने सीता को तो लक्ष्मण के साथ एक पर्वत-गुफा में भेज दिया और
स्वयं राक्षसों से लड़ने के लिए तैयार हो गए। अकेले राम ने खर-दूषण
और त्रिशिरा को उनकी सेना के सहित मार डाला। बचे-खुचे राक्षस अपनी
श्र्६ सहायक वाचन - ४

जान बचाकर भाग गए।

खर-दूषण की मृत्यु का संवाद लेकर ज्ञूर्पणखा लंका में रावण के पास


पहुँची। वह रोते-रोते बोली, “भैया, तुम यहाँ मौज कर रहे हो। तुम्हें खबर
नहीं कि अत्रु ने तुम्हारे भाइयों को मार डाला।” उसने अपने अपमान और
खर-दूषण के नाश की घटना बतलाई। रावण ने बहिन को सांत्वना दी। वह
एकांत में विचार करने लगा- “यदि राम कोई साधारण राजा हैं, तो मैं उसकी
स्त्री का हरण कर लाऊँगा और अगर स्वयं भगवान्‌ ने ही. राम के रूप में
अवतार लिया है, तो उनके बाण से मरकर मुक्ति पाऊँगा।” ऐसा निडइचय
करके वह मारीच के पास पहुँचा! उसने मारीच से कहा-“मारीच ! अयोध्या के
राजा दशरथ के पुत्र राम ने खर-दूषण को मार डाला है। मेरी बहिन शूर्पणखा
का उन्होंने अपमान किया है। मुझे उनसे बंदला लेना है। तुम स्वर्ण-मृग का
रूप धारण करो और उनकी कुटी के सामने जाओ। सीता उस सुंदर मृग को
पकड़ने के लिए राम-लक्ष्मण से कहेगी। तब तुम दोनों को दूर ले जाना। मै
इसी बीच सीता का हरण कर लँगा।” मारीच.राप के बल को जानता था। उसने
राम की शक्ति का वर्णन किया और आप-बीती घटना बतलाई।

रावण उसकी बातें सुनकर बहुत क्रोधित हुआ। मारीच ने देखा कि मृत्यु
: दोनों प्रकार से निडिचित है। अतः राम के हाथों मरना ही अच्छा है। यह
निरचंय ऊरके उसमे अपना रूप मृग का बना लिया। उस्रकः जार बड़ा

लुभावना था। वह राम की कुटी के सामने चरने लगा। सीता उसे देखकर राम
से बोली, “इस मृग को पकड़ लीजिए।” राम मृग को पकड़ने के लिए
चल दिए! उन्होंने लक्ष्मण को सतर्क रहने का आदेश दिया। राम उस
स्वर्ण-प॒ण के पीछे दौड़ते हुए टूर निकल गए। वे उसे पकड़ नहीं पाए।
रामायण-कथा «* १२७

तब क्रोधित होकर उन्होंने एक तेज़ बाण से उसे मार डाला। मरते समय
मृग चिललाया- “हाय लक्ष्मण मुझे बचाओ ।” सीता ने यह शब्द सुन लिए।
उन्होंने समझा कि राम किसी मुसीबत में हैं। उन्होंने लक्ष्मण को तुरंत राम की
सहायता करने के लिए भेजना चाहा। लक्ष्मण जाना नहीं चाहते थे, किन्तु
सीता के कठोर वचन सुनकर उन्हें जाना ही पड़ा। उन्होंने जाते-जाते कुटी के
पास सीता की रक्षा के लिए एक रेखा खींच दी और उनसे कहा कि इस रेखा के
बाहर न जाएं।

राम की कुटी के पास ही रावण पेड़ों की ओट में छपा था। लक्ष्मण के


चले जाने पर वह ब्राह्मण के वेश में निकला और भिक्षा माँगने लगा। सीता
जब उसे भिक्षा देने आई तो उसने दूढ़तापूर्वक उन्हें पकड़ लिया और रथ
पर बैठाकर आकाझन-मार्ग से लंका की ओर ले चला। गीधराज जटायु ने सीता
को छुड़ाने के लिए रावण से युद्ध किया पर वह घायल होकर गिर गया।

रे //(/ ] न

चित्र १६. सीता-हरण


१२८ सहायक वाचन - ४

रावण सीता को लिए जा रहा था। मार्ग में एक पहाड़ी पर वानरों का राजा
सुग्रीव अपने मंत्रियों के साथ बैठा था। सीता ने 'हे राम, हे लक्ष्मण' कहकर
अपने कुछ बस्र और गहने ऊपर से फेंक दिए। रावण ने सीता को ले
जाकर अज्ञोक-वाटिका में रखा। अनेक राक्षसनियाँ उनकी रखवाली करती
थी। उसने अनेक प्रकार से सीता को अपनी बनाने का प्रयास किया; किन्तु
सीता ने कभी उसकी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा।

राम मृग को मारकर जब वापस लौट रहे थे, तो लक्ष्मण उन्हें बीच में ही
मिल गए। लक्ष्मण को देखकर राम घबरा गए। बोले, “सीता को अकेली
किसी संकट में
छोड़कर तुम कैसे चले आए ? मुझे लग रहा है कि सीता
पड़ गई हैं।” लक्ष्मण ने उत्तर दिया, “तात, देवी सीता ने जब मुझे दुर्वचन
कहें तो विवञ्ञ होकर मुझे आना पड़ा।” राम और लक्ष्मण जल्दी-जल्दी
अपनी कुटी पर आए कुटी सूनी थी। दौनों बड़े व्याकुल हुएं। चारों ओर खोज
की किन्तु मौता का पता न लगा। खोजते-खोजते वे बड़ी दूर निकल गए।
तभी उन्हें घायल जटायु दिखाई पड़ा वह राम का नाम रट रहां था। उसने
बतलाया कि लंका का राजा रावण सीता का हरण करके ले गया है। उसी ने
मेरी यह दशा की है। यह समाचार सुनाने के बाद जटायु के प्राण-प्खेरू उड़
गए। अब वे जटायु के बताए अनुसार दक्षिण दिशा को ओर बढ़ चले।

राम ऋष्यमूक पर पहुँचे। यहाँ सुग्रीव हनुमान के साथ रहता था।


राम-लक्ष्मण को देखकर उसने उनका भेद लेने के लिए हनुमान को भेजा।
हनुमान दोनों को अपने साथ ले आए और सुग्रीव से उनकी मित्रता झगई।
राम ने अपने बनवास्त तथा सीता-हरण का हाल बताया। सुग्रीद + कहा-
“भगवान, एक दिन एक स्त्री को कोई राक्षस आकाश मार्ग से ले जा रहा था।
रामायण-कथा आर

वह विलाप कर रही थी। मुझे देखकर उसने अपने .वस्त्र और आभूषण फेंके
थे।” सुग्रीव ने सीता के आभूषण और वस्त्र राम को दिखाए। राम उन्हें देखकर
बहुत दुखी हुए। सुग्रीव ने उन्हें सांत्वना देकर सीता की खोज का आइवासन
दिया। राम ने सुग्रीव से पूछा, “मित्र, तुम इस निर्जन स्थान में क्‍यों रहते
हो 2” सुग्रीव ने बताया कि बालि मेरा भाई है। उसने मेरा राज्य और स्त्री सब
कुछ छीन लिया है। इस पर्वत पर ज्ञाप के कारण वह नहीं आता है, इसलिए मैं
यहाँ रहता हूँ। राम ने दूसरे ही दिन बालि का वध कर दिया और
किष्किंधा का राज्य सुग्रीव को दे दिया। सुग्रीव ने सीता को खोज में चारों
ओर वानरों को भेजा। चलते समय राम ने हनुमान को बुलाया और कहा-“बीर
हनुमान, यह अंगूठी अपने साथ ले जाओ। यदि सीता का पता लगे तो उन्हें
दिखा देना। वे अपनी सारी बातें तुमसे कह देंगी।” राम के चरणों में प्रणाम
करके हनुमान अपने दल के ज्ञाच चले। सनुद्र के किनारे पहुँचकर उत्हें पत्ता
लगा कि सीताजी लंका में हैं। हनुपान ने छलाँग लगाकर समुद्र पार किया
और लंका में पहुँच गए। सहसा वे एक महल में घुसे। वहाँ उन्हें राम धुन
सुनाई दी। हनुमान ने सोचा, “लंका में राक्षसों के बीच यह कौन सज्जन पुरुष
है, इसी से मित्रता करूँगा। यही सहायता कर सकेगा।” यह विचार कर वे
महल में घुस गए। वह महल रांवण के छोटे भाई रामभकत विभीषण का था।
हनुमान ने अपना परिचय उसे दिया। विभीषण ग्रसन्‍न हो गया। उसने अपनी
दुर्दशा की कहानी हनुमान को सुनाई, सीता देवी व अशोक वाटिका का पता
बताया। हनुमान छलाँग लगाकर पहरेदारों की दृष्टि बचाकर सीता को ढूँढने
लगे। एक वृक्ष के नीचे उन्होंने अत्यंत दुर्बल किन्तु तेजवती स्री को देखा वह
राम-राम का जाप कर रही थी। हनुमान ने समझ लिया कि वे हो सीता हैं।
उसी वृक्ष की शाखा पर चढ़कर वे बैठ गए। रात बीती। सुबह होते
ही रावण
*. संहायक वाचन “- ४
पा
करने का पुनः प्रस्ताव किया। सीता
वहाँ आ धमका। उसने सीता से विवाह
। तब वह तलवार उठाकर उन्हें
ने रावण की बात का कोई उत्तर नहीं दिया
पारने के लिए दौड़ा। कुछ शाला की निया
आल वर वहाँ से चला गया कि यदि एक महीने में मेरा

कहना न माना तो मैं तलवार से तेरे टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा। रावण के


जाने पर राक्षसनियाँ भी धीरे-धीरे सीता के पास से चली गई। अब
चले
सीताजी अकेली रह गईं। हनुमान ने उनसे मिलने का यही उचित अवसर

समझा। सीता के सामने प्रगट होकर उन्होंने - गत की अंगूठी दिखाई और


चय दिय ा। _राम का समा चार पाक र सीता बड़ी. प्रसन्‍न हुईं। सीता -
_ अपना परि
बीती सुन ाई। अंत में अप ना चूड ़ाम ंणि देते हुए सीता: ने रोते-रोते
ने भी आप
ुमा न, राम से कह देन ा-क ि यदि एक दाद में मुझे उन्होंने मुक्त नहीं *
कहा, “हन ा को सांत्वना . ३
ा न करें।” हनुमान हि सीत
किया तो मेरे जीवित बचने की आश
दी।
बे । |
बीच -वह ाँ पर बहु त से राक ्षस और राक्षेसनियाँ इकटठे . हो गए।
इसी
पकड ़ने का प्रय त्न करन े लंग े। _हन ुस्तान ने बहुत से राक्षसों को ..
. हनुमान को
उन्हीं में से था।
मार डाला। रावण-पुत्र अक्षयकुमार भी

राव ण के दूसर े पुत्र मेघ नाथ ने बहु त से राक्षसों की सहायता से


अंत में रावण को
दरबार में ले आया। हनुमान मे
हनुमान को पकड़ा और उसे
मैं राम का दूत हूँ। तुम् हारे सैन िकों ने मेरे साथ मारपीट की थी।
बताया कि
की पत्नी को अपने यहाँ केद कर रखा
इसलिए मैंने भी उन्हें मारा। तुमने राम
नी कु शल चाह ो तो उन्ह ें सम् मान पूर्वक भेज दो; अन्यथा पछताओगे।
है। अप
रामायण-कथा १३१
हनुमान का बात सुनकर रावण आग-बबूला हो गया। वह बोला, “इस बकवासी
वानर को पूंछ जलाकर इसे छोड़ दो। हम देख लेंगे इसके स्वामी को।”
हनुमान की पूंछ में आग लगा दी गई। सब राक्षस तालियाँ पीटने लगे। हनुमान
भी क्रोधित होकर इधर से उधर कूदने लगे। इसी समय भयंकर हवा चलने
लगी। हनुमान की पूँछ में लगी आग धीरे-धीरे कई घरों को जलाने लगी।
स्ज््का्

कुहराम मच गया। बढ़ते-बढ़ते आग ने सारी लंका को घेर लिया। हनुमान


का काम तो हों ही गया था। वे. वापस जाने के लिए फिर समुद्र में कूद पड़े
और उसे पारकर अपने साथियों से आ मिले। उनके साथी उनकी उत्सुकता
से प्रतीक्षा कर रहे थे। हनुमान को देखकर सब प्रसन्‍न हों गए। किनारे पर
पहुंचकर सबने उन्हें घेर लिया हनुमान ने सारी कथा अपने साथियों को
सुनाई।

अत्यंत उत्साह के साथ यह दल राम के पास पहुँचा। हनुमान ने सीता का


संदेश राम को सुनाया। सुनकर राप बहुत दुखी हुए। आपस में विचार करके
नि३चय हुआ कि शीघ्र ही वानर सेना के साथ लंका की ओर कूच किया
जाए। दूसरे दिन शुभ मुहूर्त में वानरों की असंख्य सेना ने लंका की ओर कूच
'किया। चलते-चलते वानर सेना*समुद्र-तट पर आ पहुँची। रावण के गुप्तचरों
ने इसकौ सूचना उसे दी। उसने अपने मंत्रियों एवं हितैषियों से सलाह
ली। वहाँ सभी तो उसके चांपलूस थे। सबने युद्ध करने की बात कहीं।
विभीषण ने कहा, “भैया, राम की सेना का एक छोटा-सा बंदर आकर
लंकापुरी को तहस-नहस कर गया। उनकी सेना की शक्ति का अंदाज आप
इसी से लगाएँ। मेरी बात मानिए, राम से
शत्रुता न कीजिए। सीता को
सम्मानपूर्वक लौटा दीजिए।” विभीषण के वचन रावण को अपमानजनक लगे।
१३२ सहायक वाचन - ४

उसने विभीषण को अनेक कटु शब्द कहे और उसे मारने दौड़ा। विभीषण
अपने कुछ मंत्रियों के साथ राम की सेना में जा पहुँचा। राम ने उसका उचित
सत्कार किया और लंका का भावी राजा कहकर उसका राजतिलक कर टिया।

अब समुद्र के पार जाने का उपाय खोजा जाने लगा। राम की सेना में नल
और नील नाम के दो वानर थे। वे पुल बनाने के काम में बड़े चतुर थे। उन्हें

कि
ही यह काम सौंपा गया। वानरों की टोली-की-टोली पत्थर जुटाने लगी। नल
और नील उन्हें जमाने लगे। पुल बनाने का काम रात-दिन चला। छह दिन में
विद्ञाल पुल तैयार हो गया। सारे सैनिक सागर के पार पहुँच गए।

गुप्तचरों ने सागर पर पुल बाँधने की बात रावण को बतलाई। यह


समाचार: पाकर वह घबड़ा गया। उसने एक चाल चली। उसने राम का एक
बनावटी रूप बनाया और उसे लेकर सीता के पास गया और बोला, “सीता,
राम को मैंने मार डाला है, यह उनका सिर देख लो। लक्ष्मण अयोध्या को भाग
गया है। अब भी तू मेरी बात मानकर मेरी रानी बनने को तैयार है अथवा नहीं ?”
बनवा दे। मैं तेरा
सीता ने दुखी होकर कहा, “रावण तू मेरे लिए एक चिता
बड़ा उपकार मानूगी।” रावण तो वहाँ से चला आया, लेकिन विभीषण की
लंका में
पत्नी सरमा ने सीता को बताया, “देवी, राम की सेना समुद्र पार करके
आ गई है। आप सोच न करें। रावण कुछ दिन का ही मेहमान है।” इससे सीता
को कुछ ढाढ़स बँधा।

थे कि अगर समझाने-बुझाने से ही रावण सही रास्ते पर


राम चाहते
उन्होंने अंगद को दूत बनाकर
आ जाए तो क्यों बेकार में रक्तपात हो। इसलिए
रामायण-कथा १३३

भेजा। ज्ञांति स्थापित करने. का अंगद का प्रयत्न असफल हुआ। वह नहीं


माना। विवश्ञ होकर राम को युद्ध छेड़ना पड़ा।

वानर सेना ने लंका एर आक्रमण कर दिया। कई दिनों तक बराबर युद्ध


होता रहा। राक्षसों की सेना का भारी नाश होने लगा। यह देखकर रावण अपने
भाई कुंभकरण के पास पहुँचा। कुंभकरण एक वर्ष में छह महीने सोता थ।। वह
उन दिनों सो रहा था! बड़ी कठिनाई से उसे जगाया गया। उसे जब युद्ध
की बात मालूम पड़ी तो पहले तो उसने रावण को ही भला-बुरा कहा,
लेकिन बाद में वह राम से लड़ने को तैयार हुआ। राम ने अपने तेज बाणों
से कुंभकरण को मार डाला। कुंभकरण की मृत्यु का समाचार पाकर रावण
बहुत दुखी हुआ। तब मेघनाथ ने उसे समझाते हुए कहा, “पिताजी आप
शोक छोड़िए। मैं कल राम-लक्ष्मण में से एक का वध जरूर कर दूँगा।” पुत्र
के बचनों से रावण के मन को सांत्वना मिली।

दूसरे दिन मेघनाथ ने भीषण युद्ध किया। उसने ब्रह्मासत्न चलाकर


लक्ष्मण को मूच्छित कर दिया। जब राम ने लक्ष्मण को मूच्छित अवस्था में
देखा तो वे बड़े दुखी हुए। विभीषण ने उन्हें सांत्वना देते हुए बैदूयराज
सुषेण को बुलवाया। सुषेण ने एक दवाई बताई, जिसे लेने हनुमान गए।
सुबह होते-होते हनुमान संजीवनी बूटी लेकर लौट आए। इससे लक्ष्मण की
मूर्च्छा दूर हो गई। स्वस्थ होकर लक्ष्मण ने दूसरे दिन मेघनाथ का वध कर
डाला। अपने पुत्र की मृत्यु को देखकर रावण बहुत विकल हुआ। अब उसने
स्वयं ही भीषण युद्ध करके राम-लक्ष्मण को मारने का निहचय किया। राम
और रावण का युद्ध हुआ जो कई दिनों तक चला। राम के बाणों से घायल
होकर भी रावण मरता नहीं था। अंत में राम ने ब्रह्माख चलाया। यह बाण
लगते ही रावण कटे हुए वृक्ष की तरह पृथ्वी पर गिर पड़ा । उसके
१३४ सहायक वाचन - ४

! « चित्र १७. राम-रावण युद्ध । |

प्राणखखेरु उड़ गए। राक्षसों की सेना में भगदड़ मच गई। वानर सेना
हर्षध्वनि करने लगी। देवता ग्रसन्‍न हुए। उन्होंने राम की स्तुति की ।
युद्ध का अंत हो गया। राम ने लंका का राज्य विभीषण को सौंप दिया।
हनुमान ने अज्ञोक-वाटिका में जाकर राम की विजय का समाचार सीता को
सुनाया। वे राम से मिलने के लिए व्याकुल थीं। विभीषण सीता को एक
सुंदर पालकी में बैठाकर राम के पास लाया। इस प्रकार सीता ओर राम का
फिर से मिलन हुआ। वनवास की अवधि समाप्त होने पर राम अयोध्या लौट
आए भरत तथा अयोध्यादासी राम से मिलकर प्रसन्न हुए।
रामायण-कथा « शैरेर.
राम का राज्याभिषेक हुआ। सीता के साथ राम सिंहासन पर बेठे।
गुरूजनों ने उन्हें तिलक किया। राम राजा बन गए। वे अपने भाइयों और
प्रजा को सहमति लेकर राज कार्य करते थे। राम अपने को प्रजा का सेवक
मानते थे। उनके शासनकाल में प्रजा सब प्रकार से सुखी थी। धन-धान्य की
पे कोई कमी नहीं थी। चारों ओर खुद्नहाली दिखाई देती थी।
9 रामायण की यह कथा पहले संस्कृत में वाल्मीकि ने लिखी थी। फिर
बाद में अवधी बोली में तुलसीदास ने लिखी। तुलसीदास की रामायण भारतवर्ष
में सबसे अधिक लोकप्रिय पुस्तक है। वास्तव में राम का चरित्र एक आदर्श
पुरुष का चरित्र है और सीता का एक आदर्श स्त्री का। राम के चरित्र में *
सरलता, उदारता और बुद्धिमानी भरी हुई है। वे एक आदर्श मर्यादा पुरुष
राजा माने जाते थे। राम को इसीलिए मर्यादा पुरुषोत्तम कहां जाता है ।

| अभ्यास-
४१) दशरथ कहाँ के राजा थे. ?
(२) दशरथ को कौनसी चिन्ता व्याकुल किए रहती थी ?
(३) उनकी चिन्ता कैसे दूर हुई ?
(४) विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण को अपने साथ बन क्‍यों ले गए ?
(५) विद्वामित्र का यज्ञ बिना किसी बाधा के कैसे पूरा हुआ ?
(६) राम का विवाह सीता के साथ केसे हुआ ?
(७) दशरथ ने राम को राज-काज सौंपने का क्‍यों निरचय किया ?
(८) राम को वनवास क्यों मिला ?
(९) भरत ने राजसिंहासन क्‍यों नहीं स्वीकार किया ?
(१०) चित्रकूट में राम-भरत के मिलन का संक्षेप में वर्णन करो।
श्शे६ सहायक वाचन - ४

(११) राम ने चित्रकूट क्‍यों छोड़ा ?


(१२) रावण ने सीता का हरण क्‍यों और कैसे किया 2
(१३) राम-रावण युद्ध का संक्षेप में वर्णन करो।
७१७४) सही या गलत लिखो :--
(के) परशुराम ज्ञांत स्वभाव के ऋषि थे।
(ख) माँ कौशल्या ने राम को वन जाने से रोक दिया।
(ग) चित्रकूट में भरत के आने की बांत सुनकर लक्ष्मण
आनंदित हो गए।'
(घ) अकेले राम ने खर-दूषण और ज़िशिरा को उनकी
समस्त सेना के साथ मार डाला। -
(ड) रावण-पुत्र अक्षयकुमार ने हनुमान को अज्ञोक वा
में बंदी बना लिया। ट्कि
(च) नल और नील ने छह दिन में समुद्र पर विशाल
तैयार कर दिया। पुल
रावण रेको मारकर, राम ने लंका के राज्य को अयोयोर
राज्य में मिला लिया। ताके
राष्ट्रगीत
जनगणमन-अधिनायक जय हे,
भारत-भाग्य-विधाता !
| पंजाब, सिंधु,गुजरात, मराठा,
द्राविड़, उत्कल, बंग,
विंध्य, हिमाचल, यपुना, गंगा,
उच्छल जलधि-तरंगं !
तव शुभ नामे जागे,
तव शुभ आशिष माँगे,
गाहे तव जयगाथा।
जनगण मंगलदायक जय हे,
भारत-भाग्य-विधाता।
जय हे! जय हे! जय हे!
जय जय जय, जय हे!
(हर देश का अपना एक विशिष्ट झंडा और राष्ट्रगीत होता है। 'तिरगा झंडा” भारत वर्ष का
“द्रध्वज है और "जनगणमन' राष्ट्रगीत । राष्ट्रध्वज में ऊपर की पट्‌ठी केसरिया रंग की और नीचे
की हरे रंग की होती है। बीच की सफेद पट्टी के बीचों बीच २४ शलाकाओं
का नीले रंग में
गोल-चऋ होता है। केंसरिया रंग त्याग का, सफेद शांति का और हरा रंग प्रकृति
की संदरता का
प्रतीक है । चक्र का स्वरूप अशोक की सारनाथ-स्थित सिहमुद्रा में अंकित चक्र की भांति है
। यह चक्र
पा और सब धर्मों का प्रतीक है ।

._ राष्ट्रमीत की रचना गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाक्र ने की थी। इसमें संपूर्ण देश के लिए
मंगल- है ड्राप्ट्रगीत और राष्ट्रध्वज का सम्मान करना हमारा कर्त्तव्य है । जब राष्ट्रगीत
है छाप ३ ४
गाया जाय या उसकी धुन बजाई जाय अथवा राष्ट्रध्वज फहराया जाय, तब हमें सावधान की स्थिति में
खड़े होकर देन सम्मात देना चाहिए |)

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