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2019
प्रत्र्ेक नाम के आवद में ‘ॐ’ तथा अन्त में स्वाहा लर्ाकर हवन करें –
1. ॐ ब्रह्मणे नमः 22. वार्वे नमः 43. सपागर् नम: 64. उग्रसेनार् नमः
2. अर्गमणे नमः 23. पूष्णे नमः 44. अवदतर्े नमः 65. डामरार् नमः
3. वववस्वते नमः 24. ववतथार् नमः 45. वदतर्े नमः 66. हेतक ु ार् नमः
4. वमत्रार् नमः 25. र्ृहक्षतार् नमः 46. चरक्र्ै नमः 67. महाकालार् नमः
5. पथ्ृ वीधरार् नमः 26. र्मार् नमः 47. ववदार्ै नम: 68. कालाप नमः
6. जर्ार् नमः 27. र्न्धवागर् नमः 48. पूतनार्ै नमः 69. वपवलवपच्छार् नमः
7. सववत्रे नमः 28. भर्ृां राजार् नमः 49. पापराक्षस्र्ै नमः 70. िेचरार् नमः
8. वबबध ु ावधपार् नमः 29. मृर्ार् नमः 50. स्कांदार् नमः 71. वत्रपारान्तकार् नमः
9. जर्ार् नमः 30. वपतभ्ृ र्ो नमः 51. अर्गम्णे नमः 72. अवग्नवैतालार् नमः
10. राजर्क्ष्मणे नमः 31. दौवाररकार् नमः 52. जृम्भकार् नमः 73. तलवावसने नमः
11. रुद्रार् नमः 32. सुग्रीवार् नमः 53. वपवलवपच्छार् नमः 74. ध्रुवार् नमः
12. अद्भर्ो नमः 33. पुष्पदांतार् नमः 54. इन्द्रार् नमः 75. करालार् नमः
13. आपवत्सार् नमः 34. वरुणार् नमः 55. अग्नर्े नमः 76. एकपदार् नमः
14. वशविने नमः 35. असुरार् नमः 56. र्मार् नमः 77. भीमरुपार् नमः
15. पजगन्र्ार् नमः 36. शेर्ार् नमः 57. वनर्गतर्े नमः 78. अवसवैतालार् नमः
16. जर्तां ार् नमः 37. पापार् नमः 58. वरुणार् नमः 79. शांकरार् नमः
17. कुवलशार् नमः 38. रोर्ार् नमः 59. वार्वे नमः 80. वास्तुपूरुर्ार् नमः
18. सर्ू ागर् नमः 39. अहर्े नमः 60. कुबेरार् नमः 81. अघोरार् नमः
19. सत्र्ार् नमः 40. मुख्र्ार् नमः 61. ईशानार् नमः
20. भृशार् नमः 41. भल्लाटार् नमः 62. ब्रह्मणे नमः
21. आकाशार् नम: 42. सोमार् नमः 63. अनां तार् नमः
उपर्गिु तथ्र्ों को देिते हएु हमे वकसी भी प्रकार का वनमागण कार्ग वास्तु के अनरू ु प ही करना
चावहए। अर्र वास्तुपुरुर् की इस औधेां मुांह लेटी हुई अवस्था के अनुसार भूिडां की लांबाई और चौडाई
को 9 बराबर भार्ों में बाांटा जाए तो इस भूिांड के 81 भार् बनते हैं वजन्हें वास्तुशास्त्र में पद कहा र्र्ा है
वजस पद पर जो देवता वास करते हैं उन्हीं के अनुकूल उस पद का प्रर्ोर् करने को कहा र्र्ा है। वास्तुशास्त्र
में इसे ही 81 पद वाला वास्तु पुरुर् मांडल कहा जाता है।
वनवास के वलए र्हृ वनमागण में 81 पद वाले वास्तु परुु र् मडां ल का ही ववन्र्ास और पज ू न वकर्ा
जाता है। समराांर्ण सूत्रधार के अनुसार वास्तु पुरुर् मडां ल में कुल 45 देवता वस्थत है। वजसमे मध्र् के 9
पदों पर ब्रह्मदेव स्वर्ां वस्थत हैं।
वास्तपु रुु र् के प्रत्र्ेक अर्ां -पद में वस्थत देवता के अनसु ार उनका सम्मान करते हएु उसी अनरू
ु प
भवन का वनमागण, ववन्र्ास एवां सांर्ोजन करने की अनुमवत शास्त्रों में दी र्र्ी है। ऐसे वनमागण के फलस्वरूप
वहाां वनवास करने वालों को सि ु , सौभाग्र्, आरोग्र्, प्रर्वत व प्रसन्नता की प्रावप्त होती है।