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ध्यान
सद्योजात-स्थापन
वामदे व स्थापन
उत्तरं विद्रम
ु प्रख्य विश्वस्थितिकरं विभुम,सविलासं त्रिनयनं वामदे वं प्रपूजयेत॥
अघोर स्थापन
तत्पुरुष स्थापन
ईशान स्थापन
आवाहन
आसन
पाद्य
ऊँ यामिषुडिग
ं रिशन्त हस्ते विभर्ष्यस्तवे।
शिवांगिरिशतडंकरु माहि गंगवहे सी: परु
ु षन्जगत।
तुभ्यं संप्रददे पाद्यं श्रीकैलास निवासिने।
ऊँ उमामहे श्वराभ्याम नम: पादयो: पाद्यं समर्पयामि॥
चरणों में जल अर्पित करें ।
अर्घ्य
आचमन
स्नान
पयस्नान (दध
ू से स्नान)
ऊँ पय: पथि
ृ व्याम्पयऽओषपीषु पर्योर्दिव्यसिक्षे पयोधा:॥
पयस्वती: प्रदिश: सन्तुमह्यम।
ऊँ उमामहे श्वराभ्याम नम: पय: स्नानं समर्पयामि।
ऊँ शद्ध
ु वाल:सर्वशद्ध
ु वालो मणिवालस्तेअश्विन:।
श्वेत: श्वेताक्षौ रुद्राय पशुपतये कर्णयामा अवलिप्ता रौद्रा नभो रूपा: पार्जन्या:।
ऊँ उमामहे श्वराभ्याम नम: शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि। शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
पय स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि॥
पहले दध
ू से फ़िर जल से स्नान करावें॥
दधि स्नान
घत
ृ स्नान
ऊँ घत
ृ ं मतिक्षेघत
ृ मस्य योनिर्धिते श्रितोघत
ृ स्य धाम।
अनष्वधमावह मदयस्व स्वाहाकृतं वष
ृ भवक्षिहव्यम।
ऊँ उमामहे श्वराभ्याम नम: घत
ृ स्नानम समर्पयामि। घत
ृ स्नानान्ते शद्ध
ु ोदक स्नानं समर्पयामि।
ऊँ शद्ध
ु वाल: सर्वशुद्धवालो मणिवालस्त अश्विन:। श्वेत: श्वेताक्षौरुणस्ते रुद्राय पह्सुपतये कर्णायामा अवलिप्ता
रौद्रा नभोरूपा: पार्जन्या:।
ऊँ उमामहे श्वराभ्याम नम: शद्ध
ु ोदक स्नानं समर्पयामि।
शुद्धोदक स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
पहले घी से फ़िर जल से स्नान करवायें।
मधुस्नान
शर्क रास्नान
पंचामत
ृ स्नान
गन्धोदक स्नान
शुद्धोदक स्नान
ऊँ शद्ध
ु वाल: सर्वशुद्धवालो मणिवालस्त अश्विन:। श्वेत: श्वेताक्षौरुणस्ते रुद्राय पह्सुपतये कर्णायामा अवलिप्ता
रौद्रा नभोरूपा: पार्जन्या:।
ऊँ उमामहे श्वराभ्याम नम: शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।
शद्ध
ु ोदक स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
घंटावदन करके जल से स्नान करवायें फ़िर आचमन करवायें।
वस्त्र
यज्ञोपवीत
सुगन्ध द्रव्य
भस्म
अग्निहोत्र समद
ु भत
ू ं विरजाहोमपाजितम,
गह
ृ ाण भस्म हे स्वामिन भक्तानां भूतिदाय॥
ऊँ उमामहे श्वराभ्याम नम: भस्मं समर्पयामि॥
भस्म अर्पित करें ।
गन्ध
ऊँ प्रमश्ु चधन्वनस्तवमुभयोरात्न्यौर्ज्याम,
याश्चते हस्तऽअंगषव: पराता भगवोवप।
ऊँ उमामहे श्वराभ्याम नम: गन्धं समर्पयामि॥
अक्षत
ऊँ अक्शन्नमीमदन्तछप्रियाऽअधषत।
अस्तोषतस्वभानति विप्रान्न विष्टुयामती योजान। विन्द्रतेहरी।
अक्सह्तान धवलान दे वसिद्धगन्धर्व पूजितम।
सुदन्रेश नमस्तुभ्यं गह
ृ ाण वरदो भव॥
ऊँ उमामहे श्वराभ्याम नम: अक्षतान समर्पयामि।
अक्षत चढावें।
पुष्प
बिल्वपत्र
अंगपूजा
अष्टपज
ू ा
ऊँ शर्वाय क्षितिमूर्तये नम:,ऊँ भवाय जलमूर्तये नम:,ऊँ रुद्राय अग्निमूर्तये नम:,ऊँ उग्राय वायुमूर्तये नम:,ऊँ
भीमाय आकाश मर्त
ू ये नम:,ऊँ ईशनाय सर्य
ू मर्त
ू ये नम:,ऊँ महादे वाय सोममर्त
ू ये नम:,ऊँ पशप
ु तये यजमान
मूर्तये नम:।
प्रत्येक बार गन्धाक्षतपुष्प बिल्वपत्र अर्पित करें ।
परिवार पूजा
ऊँ उमायै नम:,ऊँ शंकर प्रियाये नम:,ऊँ पार्वत्यै नम:,ऊँ काल्यै नम:, ऊँ कालिन्द्यै नम:,ऊँ कोटि दे व्यै
नम:,ऊँ पिश्वधारित्रै नम:,ऊँ गंगा दे व्यै नम:,नववितीन पूजयामि सर्वोपकरायै गन्धाक्षतपुष्पयाणि
समर्पयामि।
ऊँ गणपतये नम:,ऊँ कार्तिकेयाय नम:,ऊँ पष्ु पदन्ताय नम:,ऊँ कपर्दिने नम:.ऊँ भैरवाय नम:,ऊँ भूलपाधये
नम:,ऊँ चण्डेशाय नम:,ऊँ दण्डपाणये नम:, ऊँ नन्दीश्वराय नम:,ऊँ महाकालाय नम:,सर्वान गणाधिपान
पूजयामि सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।
ऊँ अघोराय नम:,ऊँ पशुपतये नम:,ऊँ शर्वाय नम:,ऊँ विरूपाक्षाय नम:,ऊँ विश्वरूष्ये नम:,ऊँ त्र्यम्बकाय
नम:,ऊँ कपर्दिने नम:,ऊँ भैरवाय नम:,ऊँ शूलपाणये नम:,ऊँ ईशनाय नम:,एकादश रुद्रान पूजयामि
सर्वोपचारार्थे गन्ध अक्षत पुष्पाणि समर्पयामि।
सौभाग्य द्रव्य
धूप
धूपबत्ती जलायें।
दीप
ऊँ परिते धन्वनो हे तिरस्मान्वण
ृ कतुविश्वत:। अथोयऽगंषि घ्रिस्त वारे ऽकअस्मन्निधेहितम।
साज्यं वर्ति युक्तं दीपं सर्वमंगलकारकम।
समर्पयामि श्येदं सोमसूर्याग्निलोचनम॥
नैवैद्य
ताम्बूल
दक्षिणा
ऊँ हरिण्यगर्भ: समवर्तमाग्रे भूतस्य जात: परिरे कऽआसीत।
सदाधार पथि
ृ वीन्द्यामुतेमाकस्मै दे वाय हविषा विधेम।
ऊँ उमामहे श्वराभ्याम नम:सांगता सिद्धयर्थ हिरण्यगर्भ दक्षिणां समर्पयामि।
नीराजंन
ध्यान करें
आरती
शिवपुकार
जै शिव ऊँकारा
मन भज शिव ऊँकारा
मन रट शिव ऊँकारा
हो शिव भूरी जटा वाला
हो शिव दीर्घ जटा वाला
हो शिव भाल चन्द्र वाला
हो शिव तीन नेत्र वाला
हो शिव ऊपर गंगाधारा
हो शिव बरसत जलधारा
हो शिव तीव्र नेत्र वाला
हो शिव गलबिच रुण्डमाला
हो शिव कम्बु ग्रीव वाला
हो शिव भस्मी अंग वाला
हो शिव फ़णिधर फ़णवाला
हो शिव वष
ृ भ स्कन्ध वाला
हो शिव ओढत मग
ृ छाला
हो शिव धारण मुण्डमाला
हो शिव भूत प्रेत वाला
हो शिव बेल चढन वाला
हो शिव पार्वती प्यारा
हो शिव भक्तन हितकारा
हो शिव दष्ु टदलन वाला
हो शिव पीवत भंग प्याला
हो शिव मस्त रहन वाला
हो शिव दर्शन दो भोला
हो शिव परसन हो भोला
हो शिव बरसो जलधारा
हो शिव काटो जम फ़ांसा
हो शिव मेटो जम त्रासा
हो शिव रहते मतवाला
हो शिव ऊपर जलधारा
हो शिव ईश्वर ऊँकारा
हो शिव बम बम भोला
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव भोले भोलेनाथ महादे व अर्धांगी धारा॥
ऊँ हर हर हर महादे व।
जल आरती
प्रदक्षिणा
ऊँ यज्ञेन यज्ञमयजन्त दे वास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन। तेह ना कं महिमान: सचन्त यत्र पूर्वे साध्या:
सन्ति दे वा:।
ऊँ राधाधिराजाय प्रसस्रसाहिने नमोवयं वेश्रणाय कुर्महे समे कामान कामकामा महम। कामेश्वरी वेश्रवणो
ददातु। कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम:।
ऊँ स्वास्ति साम्राज्यं भोज्य स्वराज्यं वैराज्यं परमेष्ठयं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायो स्वात
सार्वभौम:। सर्वायष
ु आन्तादा परार्धात। पथि
ृ व्ये समद्र
ु पर्यान्ताय एकराडिति तदप्येष श्लोकोऽभिगितो मरुत:
परिवेष्टारो मरुतस्यावसन्नगह
ृ े । अविक्षि तस्य कामप्रेविश्वेदेवा: सभासद इति:।
ऊँ उमामहे श्वराभ्याम नमं मन्त्र पुष्पान्जलि समर्पयामि।
नमस्कार
प्रार्थनापूर्वक क्षमायपन
विशेषार्ध्य
अर्ध्य पात्र में जल गन्ध अक्षत फ़ूल बिल्वपत्र आदि मंगल द्रव्य लेकर भगवान को अर्पित करें ।
समर्पण
शिव आरती में सबसे पहले शिव के चरणों का ध्यान करके चार बार आरती उतारें फ़िर नाभिकमल का
ध्यान करनेक दो बार आरती उतारें ,फ़िर मख
ु का स्मरण करते हुये एक बार आरती उतारें ,तथा सर्वांग की
सात बार आरती उतारें , इस प्रकार चौदह बार आरती उतारे । इसके बाद शंख या पात्र में जल लेकर घुमाते
हुये छोडें,और इस मंत्र को बोलें -
प्रदक्षिणा
ऊँ नम: शिवाये.
ऊँ साम्ब शिवाय नमः आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि कहते हुए आसन दें । आसन का अर्थ है कि भगवान
शिव को घर के पूजा घर में विराजने के लिए आसन दिया है ।
ऊँ साम्ब शिवाय नमः पादयो : पाद्यं समर्पयामि कहते हुए पैर धुलाएं।
आचमनी में जल, पुष्प, चावल लें। ऊँ साम्ब शिवाय नमः हस्तयोः अर्घं समर्पयामि कहते हुए हाथों को
धुलाएं।
आचमन (मख
ु शद्धि
ु करना)
ऊँ साम्ब शिवाय नमः आचमनीयम ् जलं समर्पयामि कहते हुए आचमन के लिए जल छोड़े। आचमन का
अर्थ होता है मुख शुद्धि करना।
पंचामत
ृ से स्नान कराना
ऊँ साम्ब शिवाय नमः गन्धं समर्पयामि। चंदन, अष्टगंध इत्यादि सुगंधित द्रव्यों को लगाएं।
ऊँ साम्ब शिवाय नमः पुष्पं समर्पयामि कहते हुए आक, धतुरा, चंपा के पुष्प चढ़ाएं।
ऊँ साम्ब शिवाय नमः बिल्वपत्रं समर्पयामि कहते हुए बिल्व पत्र अर्पित करें ।
ऊँ साम्ब शिवाय नमः अक्षताम ् समर्पयामि। कहते हुए 11 या 21 चावल अर्पित करें । अक्षत का अर्थ है
आखा। ध्यान रखें कि अक्षत टूटे हुए न हों।
धूप दिखाना
ऊँ साम्ब शिवाय नमः धूपम ् आघर्पयामि कहते हुए धूप दिखाएं। अपने हाथों से धूप पर से हाथ फिरा कर
शिव पर छाया करें ।
दीप दिखाना
ऊँ साम्ब शिवाय नमः दीपम ् दर्शयामि। कहते हुए दीपक दिखाएं। अपने हाथों से दीपक पर से हाथ फिरा
कर भगवान शिव पर छाया करें ।
आरती करें
ऊँ साम्ब शिवाय नमः आरार्तिक्यम ् समर्पयामि कहते हुए आरती अर्पित करें ।
भगवान शिव की परिक्रमा करें । शास्त्रों में भगवान शिव की आधी ही प्रदक्षिणा करने का उल्लेख किया
गया है । जलाधारी का लंधन नहीं किया जाता है । परिक्रमा करने के बाद भगवान शिव की मूर्ति के सामने
यह कहते हुए प्रदक्षिणा समर्पित करें ।
ऊँ साम्ब शिवाय नमः प्रदक्षिणा समर्पयामि।
ऊँ साम्ब शिवाय नमः पुष्पांजलि समर्पयामि कहते हुए हाथ में लिए पुष्पों को भगवान शिव को समर्पित
कर दें ।
फल समर्पित करना
ऊँ साम्ब शिवाय नमः मिष्ठान्न भोजनम ् समर्पयामि कहते हुए मीठा भोजन मिठाई अर्पित करें ।
पंचमेवा समर्पयामि
ऊँ साम्ब शिवाय नमः पंचमेवा भोजनम ् समर्पयामि कहते हुए पंचमेवा अर्पित करें ।
आचमन करना
ऊँ साम्ब शिवाय नमः नेवैद्यांति जलं आचमनम ् समर्पयामि कहते हुए आचमन के लिए जल छोड़े।
भगवान को नेवैद्य अर्पित करने के बाद मख
ु शद्धि
ु के लिए आचमन करवाया जाता है ।
ऊँ साम्ब शिवाय नमः तांबूल समर्पयामि कहते हुए पान अर्पित करें । भगवान को पान का भोग लगाएं।
क्षमा-प्रार्थना
- यदि किसी जातक की जन्मकंु डली में शुक्र और सूर्य की युति किसी भी भाव में हो तो जातक को दर्गा
ु
पूजन लाभदायक होगा ।
- सूर्य.शनि की युति कुण्डली के किसी भी भाव में होने पर जातक बादाम,नारियल बहते पानी में बहाए।
- यदि जातक की कुण्डली में बुध अशुभ या नीच राशि का हो तब जातक मंगल एवं राहू के उपाय करके
बुध के दश्ु प्रभाव को दरू करें ।
- सूर्य.केतु की युति होने पर सूर्य ग्रहण के समय तिल,नींबू,पका केला बहते पानी जैसे नदी में बहायें।
- चंद्र.शनि की युति होने पर भानि एवं केतु के उपाय लाभकारी होते है । चंद्रग्रहण के समय भानि की
वस्तुएं बहते पानी में बहाने से लाभ होता है ।
- कुण्डली में मंगल.राहू की युति होने पर मिट्टी के बर्तन में जौ भरकर बहते पानी जैसे नदी में बहाये तथा
मंगल का उपाय करें ।
- बुध.शनि की युति में जातक को भाराब मांस का सेवन नहीं करना चाहिए।
- बुध.राहू की युति हो तो जातक को कच्ची मिट्टी की सौ गोलियां बनाकर एक गोली प्रतिदिन धर्म स्थल
में पहुंचानी चाहिएं।
- गुरू.बुध की युति में खांड से भरा मिट्टी का बर्तन भूमि में दबाना चाहिए।
- चंद्र.राहु की युति हो, तब चंद्रग्रहण पर जौं, कोयला, सरसों आदि राहु की वस्तुएं बहते पानी में बहायें और
मंगल,गुरू का उपाय करें ।
- चंद्र.केतु की युति होने पर जातक बुध एवं केतु की वस्तुओं का दान करें । तीन केले प्रतिदिन ४८ दिन
तक मंदिर में दान करें ।
- मंगल. शनि की युति होने पर मंगल या भानि का उपाय करें साथ ही चंद्र का उपाय करें ।
- कुण्डली में सूर्य.बुध.शुक्र की युति होने पर जातक कान में स्वर्ण धारण करें तथा काला,सफेद कुत्ता पाले
। शुध्द चांदी का छल्ला भी धारण कर सकते है ।
- गरू
ु . शनि की यति
ु में , शराब,मांस,मदिरा का उपयोग न करे । शिव उपासना करें । चंद्र का उपाय करें ।
- गुरू.राहु की युति में अशुभता से बचने के लिए सोना धारण करें । चितकबरें कुत्ते की सेवा करें । जौं को
दध
ू से धोकर लगातार ४३ दिन तक बहते पानी में बहायें।
-शक्र
ु . शनि की यति
ु हो तो तांबे का पैसा बहते पानी में बहायें और दाम भाव में जो भी ग्रह बैठा हो
उसका उपाय करें ।
- सर्य
ू .बध
ु .राहु की यति
ु हो तो जातक चंद्रमा का उपाय करें ।
- चंद्र.मंगल.राहु की युति हो तो दध
ू में मीठा हलुआ बनाकर स्वयं खाये तथा दस
ु रों को खिलाएं।
- यदि शनि.राहु.शक्र
ु की यति
ु हो तो जातक रोटी के तीन टुकड़े करके एक गाय को एक कुत्ता और एक
कौएं को खिलाएं।
- गुरू.शनि.बुध की युति हो तो बुध की वस्तुएं जैसे हरा मूंग कुएं में गिराये तथा बुध को उच्च करें ।