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गौमाता
पंचगव्य चचचित्सा
(गौबर, गौमू त्र आधाररत दवाईयााँ बनाने िी चवचध एवं रोग चनदान)
संग्रहिताग : -
रोचबन चसराना
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गौरिा पर राजीव भाई द्वारा हस्तचलखित दो र्ब्द
18,19,20 दिसम्बर, 2000 को राजस्थान प्रिे श के साां चोर दजले के पथमेडा गााँ व में एक गौरक्षा सम्मे लन हुआ,
दजसमें लगभग 50 हजार स्त्री, पुरुष और बच्चें शादमल हुए। ये सभी लोग गौरक्षा दवषय पर अपनी दचन्ताओां को
लेकर आये थे, और उनके समाधान के दलए कुछ रास्ता दनकालना चाहते थे। सम्मेलन में आने वाले लोगो की
मान्यता में गाय का क्या स्थान हैं , उसको समझने के दलए एक घटना महत्व की हैं , हुआ यह दक इसी सम्मेलन
में एक मदहला जो दक राजस्थानी घांघट प्रथा कर पालन करती हुई मांच पर खडे होकर बोली दक “कुछ दिन पवव
मेरी गाय बीमार हुई और मरने की स्स्थदत में पहुाँ च गयी। जब दकसी भी िवा से ठीक नही हुई तो मैने मान दलया
दक अब उस गाय की मृत्यु दनदिदत हैं । दिर मैंने उस गाय को भगवतगीता का पाठ सुनाना शुरु दकया। जब पाठ
परा हुआ, उसके बाि रामचररत मानस का सुन्दरकाां ड सु नाया। सुन्दरकाां ड सुनने के बाि ही उस गाय की मृत्यु
हुई” । उस मदहला ने अपने ससुर की मृत्यु के समय भी यही भगवतगीता और रामचररतमानस के पाठ पढ़ने
की दिया िोहराई थी। यादन उस मदहला के दलए अपने ससुर की मृत्यु और अपनी गाय की मृत्यु में कोई अन्तर
नहीां था। इसी तरह की अन्य सैकडो घटनाएां साधारण भारतीय लोगोां के जीवन में घदटत होती रहती हैं । दजससे
यह पता चलता हैं दक सामान्य लोगो के मन में गाय का स्थान क्या हैं ? यही स्स्थदत अन्य पशुओां के बारे में भी हैं ,
कुछ थोडा बहुत अन्तर के साथ।
साधारण भारतीय लोगो के मन में यह मान्यता कहााँ से आयी हैं ? प्रकृदत में दमलने वाले पशुओां के प्रदत
इतनी सम्मान की भावना कैसे बनी हैं ? इसका उत्तर खोजें तो दमलेगा, भारतीय सांस्कृदत की उस मान्यता मे
दजसमें पुनवजन्म की बात कही गयी हैं । यह भारतीय मान्यता ही हैं , जो पुनवजन्म में दवश्वास रखती हैं । कहा जाता
हैं दक 84 लाख योदनयाां होती हैं । मनुष्य जब मरता हैं तो इन्ीां में से दकसी योदन में जन्म पाता हैं , अपने कमविल
के दसद्धान्त के अनुसार । इन्ी 84 लाख योदनयोां में गाय, बैल, बकरी, कुत्ता, भैंस आदि-आदि तमाम जीव हैं ।
माना यह जाता हैं दक ये सभी जीव बराबर हैं । कोई ऊाँचा या नीचा नहीां हैं । सभी जीवोां में आत्मा होती हैं और
आत्मा सभी की समान होती हैं । भारतीय मान्यता में सभी जीवोां को जीने का अदधकार हैं । मनुष्य को जीवोां के
समकक्ष ही माना गया हैं । यदि कोई मनुष्य मरता हैं तो हो सकता हैं दक कमविल के दसद्धान्त के अनुसार उसे
गाय की योदन में जन्म दमले या दकसी अन्य योदन में। अथाव त् आज जो आत्मा मनुष्य में हैं । वही आत्मा गाय में
प्रवेश कर जाये गी। चांदक आत्मा की बराबरी हैं । अतः गाय और मनुष्य िोनोां ही सहोिर हैं , बराबर हैं । ऊांचे या
नीचे नहीां हैं । जीव-जन्तु और मनुष्योां से दमलकर ही परी प्रकदत बनी हैं । इसदलए िोनोां एक िसरे पर दनभवर हैं
और एक िसरे के सहयोगी हैं । इसदलए प्रकृदत के सांसाधनोां पर भी िोनोां का ही अदधकार हैं । इन्ीां मान्यताओां
के कारण जीव-जन्तुओां के प्रदत िया प्रे म करुणा की भावना साधारण भारतीय लोगोां के मन में हैं । यदि पशु भख
से मरते होां तो उनकी दचन्ता समाज के लोगोां को होती हैं और उसके दलए व्यवस्था करना, उन्ें अपना धमव लगता
हैं और उसके दलए भारतीय समाज में व्यवस्थाएां करना, उन्ें अपना धमव लगता हैं और उसके दलए भारतीय
समाज में व्यवस्थाएां की जाती हैं । जैसे हमारी भारतीय कृदष पद्धदत में जो भी अनाज पैिा दकये जाते हैं , उनमें
मनुष्य, पशुओां तथा अन्य जीव जन्तुओां की खाने की जरुरतोां को परा करने का ध्यान रखकर ही िसलें बोई
जाती हैं । लगभग सभी भारतीय िसलोां से अनाज दजतना दनकलता हैं , तकरीबन उतना ही चारा भी दनकलता
हैं ।
इसी तरह की िसलें बोने की परम्परा हमारे िे श में रही हैं , दजनसे मनुष्योां के साथ पशुओां की जीवन-
यापन भी होता रहे । इसदलए भारतीय समाज में पशु -पालन की एक लम्बी परम्परा हैं , जो कृदष कमव के साथ –
साथ हजारोां वषों से चली आयी हैं । आज के भारतीय समाज में कई तरह की दगरावट आने के बावजि यह
परम्परा कायम हैं । हालाां दक यह दगरावट दपछले कई सौ वषों से लगातार आती जा रही हैं । अां ग्रेजोां के भारत में
आने के बाि से यह दगरावट बहुत अदधक आयी हैं और बहुत तेजी से आयी हैं । अांग्रेजोां के भारत आने के पहले
तक भारतीय समाज में अच्छी खेती और पशुपालन की व्यवस्था थी। दसिव खेती और पशुपालन ही नहीां बस्ि
अन्य व्यवस्थाएां जैसे –उद्योग, दशक्षा, स्वास्थ्य, न्यायतांत्र, प्रशासन तांत्र आदि भी ठीक-ठाक चलते ही थे। अांग्रेजोां
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ने आकर इन सभी व्यवस्थाओां को जड-मल से उखाडने की कोदशश की और उसमें वे कािी हि तक सिल
भी रहें । - राजीव िीदक्षत जी
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गाय और गोमूत्र िी पररभाषा
गोमूत्र िे बारे में सामान्य जानिारी
प्रश्न 1 – गौमूत्र चिस गाय िा लेना चाचहए?
उत्तर – जो वन में दवचरण करके, व्यायाम करके इच्छानुसार घास का सेवन करे , स्वच्छ पानी दपये, स्वस्थ हो,
उस गौ का गौमत्र औषदधगुणवाला होता हैं ।
उत्तर – दकसी भी आयु की बच्ची, जवान, बढ़ी गौ का गौमत्र औषदध प्रयोग में काम में लाना चादहए।
प्रश्न 3 – क्या बैल, छोटा बच्चा या बुद्ध बैल िा भी गौमूत्र औषचध उपयोग में आता हैं?
उत्तर – नर जादत का मत्र अदधक तीक्ष्ण होता हैं , पर औषदध उपयोदगता में कम नहीां हैं , क्योदक प्रजादत तो एक
ही हैं । बैलोां का मत्र साँ घने से ही बांध्या (बााँ झ) को सन्तान प्राप्त होती हैं । कहा हैं –
अथग – उत्तम लक्षण वाले उन बैलोां की भी मुझे पहचान हैं , दजनके मत्र को साँघ लेने मात्र से बांध्या स्त्री गभव धारण
करने योग्य हो जाती हैं ।
उत्तर – गौमत्र को तााँ बे या पीतल के पात्रा में न रखें। दमट्टी, कााँ च, चीनी दमट्टी का पात्र हो एवां स्टील का पात्र भी
उपयोगी हैं ।
उत्तर – गौमत्र आजीवन दचर गुणकारी होता हैं । धल न दगरे , ठीक तरह से ढाँ का हुआ हो, गुणोां में कभी खराब
नहीां होती हैं । रां ग कुछ लाल, काला तााँ बा व लोहा के कारण हो जाता हैं । गौमत्र में गांगा ने वास दकया हैं । गांगाजल
भी कभी खराब नहीां होता हैं । पदवत्र ही रहता हैं । दकसी प्रकार के हादनकारण कीटाणु नहीां होते हैं ।
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आधुचनि रसायन र्ास्त्र िे अनुसार गौमूत्र िे रासायचनि तत्ों िा रोगों
पर प्रभाव चववरण
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रोग क्यों होते हैं?
1. दवदभन्न जीवाणुओां के दकसी प्रकार से शरीर में दवदभन्न अांगोां पर आिमण करने के करण
2. शरीर की रोग प्रदतरोधक शस्ि की कमी के कारण
3. िोषो (दत्रिोष) के दवषम हो जाने के कारण
4. आरोग्यिायक तत्वोां (जीांस) की दकसी प्रकार की कमी के कारण।
5. कुछ खदनज तत्वोां की कमी के कारण।
6. मानदसक दवषाि के कारण
7. दकसी भी औषदध के अदत प्रयोग के कारण
8. दवि् युत तरां गोां की कमी के कारण
9. वृद्धापकाल में उपरोि दकन्ी के कारण
10. आहार में पौदिक तत्वोां की कमी के कारण
11. आत्मा की आवाज के दवरुद्ध काम करने के कारण
12. पववजन्मोां के पापोां के कारण।
13. भतोां के शरीर में प्रवेश से भतादभष्यांग रोग हो जाते हैं ।
14. माता दपदत के वांश परम्परा से भी रोग होते हैं ।
15. दवषोां के द्वारा रोग होते हैं ।
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12. शास्त्रोां में पणव कमवज व्यादधयााँ भी कही गयी हैं जो हमें भुगतनी पडती हैं । गौमत्र में गांगा ने दनवास दकया
हैं । गांगा पाप नादशनी हैं , अतएव गौमत्र पान से पवव जन्म के पाप क्षय होकर, इस प्रकार के रोग नि हो
जाते हैं ।
13. शास्त्रोां के अनुसार भतोां के शरीर प्रवेश के कारण होने वाले रोगोां पर गौमत्र इसदलए प्रभाव करता हैं दक
भतोां के अदधपदत भगवान शांकर हैं । शां कर के शीश पर गांगा हैं । गौमत्र में गांगा हैं , अतएवगौमत्र पान से
भतगण अपने अदधपदत के मस्तक पर गांगा के िशवन कर, शान्त हो जाते हैं । और इस शरीर को नहीां
सताते हैं । इस तरह भतादभष्यांगता रोग नहीां होता हैं ।
14. जो रोगी वांश परम्परा से रोगी हो, रोग के पहले ही गौमत्र कुछ समय पान करने से रोगी के शरीर में
इतनी दवरोधी शस्ि हो जाती हैं दक रोग नि हो जाते हैं ।
15. दवषोां के द्वारा रोग होने के कारणोां पर गौमत्र दवषनाशक होने के चमत्कार के कारण ही रोग नाश करता
हैं । बडी-बडी दवषैली औषदधयााँ गौमत्र से शुद्ध होती हैं । गौमत्र, मानव शरीर की रोग प्रदतरोधनी शस्ि
को बढ़ाकर, रोगोां को नाश करने की क्षमता िे ता हैं । Immunity Power िे ता हैं । दनदववष होते हुए यह
दवषनाशक हैं । Anti-Toxic हैं ।
पंचगव्य
गौ दू ध, गौ दही, गौ घी(घृ त) गौमू त्र और गोमय, से बनने वाले िुछ स्वास्थ्यरिि योग एवं बनाने िी
चवचधयां -
(गौमयउबटन)
पंचगव्य घृत
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❖गौमूत्र अिग
(मेदोहर अिग – रसतंत्रसार व चसद्ध प्रयोग)
घटि –
1. गौमत्र 1 लीटर
2. केसर 0.6 ग्राम
चनमागण चवचध – कााँ च के आसवन यांत्र में गौमत्र को भरकर उसका ½ लीटर अकव खीांच लें। अकव
दनकलने के मुहाँ पर केसर को पतले कपडे की दशदथल पोटली में बााँ धकर रखें दजससे अकव में केसर
दमदित हो जाये । केसर का प्रयोग लाभिायक हैं लेदकन अदनवायव नहीां।
गुणधमग – यह अकव सभी बीमाररयोां में उपयुि हैं । दवशेषतः कोलेस्टरॉल को कम करने और वजन को
घटाने के उपयोग में आता हैं । गौमत्र घनवटी के साथ लेने से अदधक लाभ होता हैं ।
मात्रा – 10 से 20 दम.ली. दिन में िो बार 3 -4 गुणे पानी के साथ या गौमत्र से 1/3 मात्रा में।
चवर्ेष – यदि कोई शराबी शराब छोडने का इच्छु क हो तो केवल 15 दिन सांयम रखकर इस अकव का
सेवन करें 16 वें दिन शराब की जगह अकव का सेवन करने की ही इच्छा होगी। मात्रा 25 से 40
दमली(दबना पानी दमलाये) जब भी शराब की तलब हो। कम से कम 6 महीने तक इसका सेवन करें
दजससे शराब के िु ष्प्रभावोां का नाश होकर शरीर स्वस्थ होगा।
❖ गौमूत्र घनवटी
(भाव प्रिार् चनघु ण्ट – मूत्रवगगः)
घटिः गौमूत्र
चनमागण चवचधः – गौमत्र को अदि को औटाकर उसका घन बनाया जाता हैं । घन से आधे -आधे ग्राम की
या िे शी चने के आकार की गोदलयााँ बनाई जाती हैं । नमी से बचाने के दलए गोबर की राख तथा शुद्ध
गैरीक(गेरू) को अनुमान से दमलाकर उसमें गोदलयोां को दलपटाकर प्लास्स्टक की दडब्बी में रख िे ना
चादहए।
गुणधमगः यह घनवटी पवोि सभी बीमाररयोां में उपयु ि हैं । इसे गौमत्र अकव के साथ लेने से अदधक
लाभ होता हैं ।
मात्रा – 1 से 2 गोली दिन में िो बार। छोटे बच्चे को न िें ।
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9. गाय का घी
चनमागण चवचध – सववप्रथम तीन दिन तक हरडे को गौमत्र में दभगाइये। हर दिन ताजा गौमत्र लें। हरडे को धप में
सुखाने के बाि उसे धीमी आाँ च पर एरण्डी के तेल में भदनए। जब दसक जाये, गौमत्र की दचपदचपाहट दमट जाए
तब उतार लें।
10 ग्राम गाय के घी में 10 ग्राम हीांग आाँ च में भन लें। अब भनी हुई हरडे और हीांग में उपरोि सामग्री
डालकर कट पीसकर छलनी से छान लें। अब इस छने हुए चणव को अच्छी तरह खरल में घोटें । बारीक से बारीक
रगडने से ही गुणकारी होगा।
गुणधमग – पाचन शस्ि को सुदृढ़ बनाता हैं , भोजन में रुदच जगाता हैं , कब्ज, गैस, उिर रोगोां में अत्यांत
लाभिायक, वात और कि का नाश करता हैं । पेट में गडबडी होने पर दसर में ििव हो तो लाभ होता हैं । आजकल
रासायदनक खाि व कीटनाशकोां के कारण भोजन दवषैला हो गया हैं । इस चणव को भोजन के साथ सब्जी, िालोां
में डालकर खाने या दनत्य सलाि में लेने से इसका दवषैलापन कािी घट जाता हैं । इसदलए दबना रोग के भी दनत्य
सेवन करना अत्यांत लाभिायक हैं ।
चनमागण चवचध – कलईिार कढ़ाई में 1 लीटर गौमत्र में 50 ग्राम हररतकी चणव दमलाकर औटाइये। जब गाढ़ा हो
जाए तब उसे चल्हे से उतारकर अपने आप ठां डा होने िे ना चादहए। दिर करछु ल की मिि से खुरच कर ½ -
½ ग्राम की गोदलयााँ बनानी चादहए। नमी से बचाने के दलए गोबर की राख तथा शुद्ध गैरीक को अनुमान से
दमलाकर उसमें गोदलयोां को दलपटाकर प्लास्स्टक की दडब्बी में रखें।
❖ गौमूत्रासव
घटिः
1. दचत्रक की जड 100 ग्राम
2. सोांठ 100 ग्राम
3. पीपर 100 ग्राम
4. मरीच चणव 100 ग्राम
5. गौमत्र 4 लीटर
6. शहि या गुड 1 दकलो
7. गौघृत आवश्यकतानुसार
8. धायटी पुष्प 100 ग्राम
चनमागण चवचध –
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पहली चवचध – गौमत्र को पहले उबालें वनस्पदत घटकोां का चणव गौमत्र में दमलाइये दिर उसमें शहि अच्छी तरह
से दमलाकर घृत दसद्ध दमट्टी के पात्र या Wooden Wax में छोडकर धायटी पुष्प सां धान दवदध से सांधान करें और
15-20 दिनोां के बाि जब दकण्वन की दिया हो जाए तब छानकर बोतल में भर िें ।
दू सरी चवचध – गौमत्र को पहले उबाल लें तादक इसकी अमोदनया गैस दनकल जाए और गांध नि हो जाये। बतवन
दमट्टी का हो। दिर छानकर गुड को गलाकर पुनः गमव करें । एक बार पुनः गुड सदहत छानें। आजकल गुड बनाते
समय रसायनोां का उपयोग दकया जाता हैं , ऐसा गुड काम में ना लें, यह सां धान 15 तक रहना चदहए। दिर दबना
दहलाये ऊपर से आसव दनथार लें तादक इसका गाढ़ा भाग यररया तलछट में नीचे रह जाये और गौमत्र आसव
पतला व पारिशवक बनें।
गुणधमग – पााँ चन शस्ि को सुदृढ़ बनाता हैं , भोजन में रूदच जगाता हैं , यकृत को बल िे ता हैं , उिर रोगोां का
नाश करता हैं । सााँ स की तकलीि, खााँ सी, िमा में दवशे ष लाभिायक, कुष्ठ रोग में भी लाभिायक। दजतना पुराना
आसव होगा उतना ही अदधक गुणकारी होगा।
मात्रा – गौमत्र से आधी मात्रा, िोनोां समय भोजन के बाि पानी के साथ।
चवर्ेष – मधुमेह के रोगी पहली दवदध से बना आसव ही लें, िसरी दवदध से बना आसव नहीां।
❖ बालपाल रस
घटिः
चनमागण चवचध – घटक 1 से 3 तक बारीक पीसकर गौमत्र में डालकर आसवन यांत्र से अकव दनकालकर
उसमें शक्कर डालें। ठां डा होने के बाि खाने का रां ग और नीांब का सत डालकर बोतल भरें ।
गुणधमग – बालक के अपचन, अिरा, पेट के कीटाणु(कृदम), िध िेंकना, उल्टी, िध का पााँ चन न होन, रोग
प्रदतरोधक शस्ि की कमी, ग्रोथ िेक्टर की कमी, िााँ त दनकलने के समय के कि, मानदसक िु बवलता,
अदवकदसत मस्स्तष्क व अन्य बाल रोगोां से बचाव व दचदकत्सा होती हैं । यकृत व िेिडोां के रोगोां से भी रक्ष
होती हैं । दनत्य िे ते रहने से बालक स्वस्थ रहता हैं ।
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❖ नारी संजीवनी
घटिः
1. शतावरी 250 ग्राम
2. अश्वगांधा 250 ग्राम
3. अशोक 250 ग्राम
4. गौमत्र 20 लीटर
5. शक्कर आवश्यकतानुसार
6. खाने का पीला रां ग 1 ग्राम
7. नीांब का सत 5 ग्राम
चनमागण चवचध – घटक 1 से 3 तक बारीक कट पीसकर गौमत्र में डालकर आसवन यांत्र से अकव
दनकालकर उसमें शक्कर डालें। ठां डा होने के बाि खाने का रां ग और नीांब का सत डालकर बोतल भरें ।
गुणधमग – मदहलाओां के मादसक धमव की दकसी भी प्रकार की गडबडी, श्वेत प्रिर, रि प्रिर तथा इनके
द्वारा होने वाली सब प्रकार की कमजोरी, पेट में गैस बनना, हथेली पैर के तलवे जलना, दिमागी गमी,
िोध आना, नीांि कम आना, मुहााँ से आदि रोग ठीक होते हैं । हमेश लेते रहने से मदहलाओां के स्वास्थ्य व
सुन्दरता की रक्ष होती हैं ।
चनमागण चवचध – सभी घटक बारीक कट पीसकर छानकर गौमत्र में डालकर आसवन यांत्र द्वारा ½ भाग
अकव दनकालें। अकव को छानकर कााँ च की बोतल में भरकर बोतल को हवाबांि करना चादहए।
गुणधमग – यकृत व गुिे की बीमाररयोां में दवशेष लाभिायक। मत्र दवरे चक, शरीर में आई सजन को िर करता
हैं । पुननववादि वटी के साथ लेने पर परा लाभ दमलता हैं ।
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❖ गौमूत्र पुननगवाचद घटी
घटिः
1. पुननववा 100 ग्राम
2. गोखरू की जड 50 ग्राम
3. उपलसरी की जड(साररवा) 50 ग्राम
4. नीम के पत्ते 25 ग्राम
5. गुलबेल (गुडची) 25 ग्राम
6. िारूहल्दी 25 ग्राम
7. िवाव 25 ग्राम
8. कांकोल 10 ग्राम
9. गौमत्र 1/2 लीटर
चनमागण चवचध – सभी घटक बारीक कट पीसकर कपडछान कर गौमत्र के साथ कढ़ाई में डालकर मांिादि
में औटाकर गाढ़ा बनने िें । दिर अपने आप ठां डा होने पर ½ - ½ ग्राम की गोदलयााँ बनायें। नमी से बचाने
के दलए गोबर की राख तथा शुद्ध गैरीक को अनुमान से दमलाकर उसमें गोदलयोां को दलपटाकर प्लास्स्टक
की दडब्बी में रख िें ।
गुणधमग - यकृत व गुिे की बीमाररयोां में दवशेष लाभिायक। मत्र दवरे चक, शरीर में आई सजन को िर करता
हैं , पुननववादि अकव के साथ लेने पर परा लाभ दमलता हैं ।
चनमागण चवचध – सभी घटक बारीक कट पीसकर छानकर गौमत्र में डालकर आसवन यांत्र द्वारा ½ भाग
अकव दनकालें। अकव को छानकर कााँ च की बोतल में भरकर बोतल को हवाबांि करना चादहए।
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❖ गौमूत्र मधुमेहारी वटी
घटिः
चनमागण चवचध – सभी घटक बारीक कट पीसकर कपडछान कर गौमत्र के साथ कढ़ाई में डालकर मांिादि
में औटाकर गाढ़ा बनने िें । दिर अपने आप ठां डा होने पर ½ - ½ ग्राम की गोदलयााँ बनायें। नमी से बचाने
के दलए गोबर की राख तथा शुद्ध गैरीक को अनुमान से दमलाकर उसमें गोदलयोां को दलपटाकर प्लास्स्टक
की दडब्बी में रख िे ना चादहए।
❖ गौतक्रासव
घटिः
चनमागण चवचध – गाय के मठ् टे में बराबर मात्रा में पानी दमलाकर, उसमें बाकी तीनोां चीजें अच्छी तरह
दमलाकर रख िें । दिर दकसी दमट्टी के बतवन या काां च के मतव बान में भर कर मुाँह बांि रखकर सां धान करें ।
चौथे दिन इसे छानकर बोतलोां में भरें । दनथार कर छानना चादहए तादक राई के दछलके और हल्दी कम आ
सके। बाि में बोतलोां में भी हल्दी जम जाने के बाि दनथारते रहें ।
गुणधमग – अशव (बवासीर ) के दलए हर सरत में लाभकारी। पेट के सब रोग, भख न लगना, अन्न न पचना,
गैस, अजीणव ठीक होते हैं । यह पााँ चक हैं । यकृत, प्लीहा को लाभ पहुाँ चाता हैं ।
मात्रा – छोटे चार चम्मच भोजन के बाि पानी दमलाकर िो बार पीने से िायिा होता हैं । सब ऋतु में सबके
दलए बराबर मात्रा में रोजाना लेना स्वास्थ्यरक्षक हैं । आयुवधवक पेय हैं , स्वादिि हैं । दनरापि, सरल योग हैं ।
गैस नाशक हैं ।
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❖ गौ तक्राररष्ट
घटिः
चनमागण चवचध – उपरोि प्रमाण में सभी घटक लेकर उनका चणव बनाकर एक पात्र में डाल उसमें ति
डाल िें और पात्र का मुख बांिकर, 1 माह बाि छानकर रख लें।
गुणधमग – उत्तम िीपक, पााँ चक, रूदचवधवक, यकृत, उत्तेजक, मल को बाां धनेवाला, शोथ, गुल्म, अशव, कृदम,
प्रमेह, सांग्रहणी, अदतसार और उिर रोगोां को नि करता हैं ।
मात्राः - 10-15 दमली दिन में िो बार भोजन के बाि पानी के साथ ।
❖ पंचगव्य घृत
घटिः
चनमागण चवचध – सबको एक कढ़ाई में डालकर आग पर चढ़ावें। मांि मांि आाँ च िें । दसिव घी ही पकने के
बाि शेष रहे , तब ठण्डा करके छान ले।
मात्रा – 5 से 10 दमली लीटर दिन में िो बार भोजन के पवव तथा िो-िो बाँि नाक में रात को सोते समय या
तकलीि के समय
गुण – पुरानी सिी, सायनस, दमगी, दिमाग की कमजोरी, पागलपन, पाण्डु , शोथ, भांयकर
कामला(Jaundice), बवासीर, गुल्म, ग्रह बाधा, दवषमज्वर, बुस्द्ध मन्दता, याद्दाश्त की कमी पर लाभकारी हैं ।
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❖ चत्रफलाचद घृत
घटिः
चनमागण चवचध – दत्रिला 750 ग्राम का 8 गुणा जल में क्वाथ करें । अिमाां श जल शेष रहने पर छानकर
उपयोग में लें। यह क्वाथ और घटक से 7 आपस में दमला िें । अब घटक 8 से 17 को इनमें डाल िें । अब
इसे घी में पकायें और तुरांत उतारकर छान लें।
गुणधमग – नेत्र रोग, रतौांधी(रात में न दिखना), मोदतयादबन्द, नेत्र की लाली, अांधता, मांिदृदि, वातज, दपत्तज,
किज नेत्र रोग, शारीररक बल, पााँ चन शस्ि और शारीररक काां दत को बढ़ाता हैं । मस्स्तष्क की दनबवलता को
िर करता हैं , जीणव कब्ज से मुस्ि दिलाता हैं ।
मात्रा – 5-10 ग्राम दिन में िो बार, सुबह-रादत्र को िध के साथ या िोपहर और रादत्र को भोजन के प्रारां भ में
प्रथम ग्रास के साथ।
❖ अष्टमंगल घृत
घटिः
1. बच 10 ग्राम
2. कुठ 10 ग्राम
3. ब्राह्मी 10 ग्राम
4. सिेि सरसोां 10 ग्राम
5. अनांतमल 10 ग्राम
6. सेंधा नमक 10 ग्राम
7. पीपल 10 ग्राम
8. गोघृत 280 ग्राम
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9. जल 12 लीटर
चनमागण चवचध – सभी औषदधयोां को समभाग लेकर कि करें , बाि में कि के चार गुणा जल दमलाकर यथा
दवदध घृत दसद्ध करें ।
गुणधमग – यह घृत बालकोां को रोज चटाने से उनकी बुस्द्ध बढ़कर धारणशस्ि तीव्र होती हैं एवां बालक स्वस्थ
और पुि बनता हैं ।
मात्रा – 1-1 ग्राम सुबह और शाम दमिी में या भोजन के पहले ग्रास में दमलाकर दिन में िो बार सेवन करें ।
❖ ब्राह्मी घृत
घटिः
चनमागण चवचध - ब्राह्मी का स्वरस 4 दकलो और गोघृत 2 दकलो लें। घटक 3 से 12 को जल में पीसकर कि
करें । दिर सबको 8 लीटर जल में दमला मांिादि पर पकाकर घृत दसद्ध करें ।
गुणधमग – यह घृत उन्माि, कुष्ठ, अपस्मार, मगज की दनबवलता और मांिादि को िर करता हैं । मलावरोध का
नाश करता हैं ।
❖ अजुगन घृत
घटिः
16
तत्पिात इसमें 16 दकलो जल दमलाकर क्वाथ करें । 4 दकलो जल शेष रहने पर उतारकर छान लें। बाि में
अजुवन की छाल 100 ग्राम लेकर उसका कि बनाये । दिर उपरोि क्वाथ, घृत और कि को दमलाकर
घृतपाक दवदध से घृ तपाक कर लें। घृत दसद्ध हो जाने पर छानकर सुरदक्षत भर लें।
मात्रा – 2.5 से 5 ग्राम दमिी के साथ चटाकर ऊपर से गमव गाय का िध दपलायें।
❖ जात्याचद घृ त
घटिः
चनमागण चवचध – घटक 1 से 12 तक सभी 1-1 तोला पानी में घोटकर लुगिी बना लें।
दिर लुगिी से चार गुणा घी और 16 गुणा जल दमलाकर मांि आाँ च पर पकाकर घृ त दसद्ध करें । घृत पक जाने
पर छन लें, दिर मोम और नीले थोथे का िला 1-1 तोला दमलाकर मलहम जैसा घृत बना लें।
गुणधमग – पुराना नाडी व्रण (नासर), गांभीर व्रण या िोडा और सभी घावोां में उपयु ि।
1. सरसोां का ते ल 1 लीटर
2. गौमत्र 500 दमली
3. आां बा हल्दी 50 ग्राम
4. लहसुन/सोन 50 ग्राम
5. दनगुवडी पत्र 50 ग्राम
17
6. कपर 10 ग्राम
7. अजवायन सत 10 ग्राम
चनमागण चवचध – सरसोां का तेल कढ़ाई में डालकर उसे मांिादि पर रख सभी घटक दमला िें , जब केवल ते ल शेष
रहे तो ठां डा होने पर बोतल में भर लें।
❖ गोपाल नस्य
घटिः
दिर आक का िध डालकर खब खरल करें । सख जाने पर िध डालते रहें और लगातार खरल करते रहें ।
बाि में अच्छी तरह सखा लें। इस सखे गोबर से आधा भाग काली दमचव का चणव दमलाकर दिर खब रगडें ।
तत्पिात कपडे से छानकर शीशी में भरकर रखें।
गुणधमग – दमगी, दिमाग में कीडे , नाक का पीनस, दहस्टीररया, बेहोशी, सायनस, दसर ििव आदि में एक नली
में इस नस्य को रखकर िोनोां सुरोां में िाँ के।
❖ गौमय मलहम
घटिः
चनमागण चवचध – पहले नीला थोथा पीसकर दिर छोटी सी कढ़ाई में मांि आाँ च पर भन लें। रां ग सिेि होने पर
उतार लें। दिर सभी चीजोां को बारीक रगडकर पेटरोदलयम जे ली में दमलाकर खरल में दिर से खब रगडें । बाि
में शीदशयोां भर लें। कभी कोमल स्थान पर लगाने से जलन हो तो थोडा घी दमलाकर हिा करें ।
मात्रा – त्वचा रोग पर गौमत्र से वह स्थान धोकर दिन में िो-तीन बार मलहम लगायें
सावधानी – आाँ खोां में न लगने पायें।
18
गौमय दादनार्ि बट्टी
घटिः
चनमागण चवचध – ताजे गोबर में छने हुए नीम के पत्तोां के काढ़े को दमलाकर मोटी चलनी से एक बार पुनः छानें।
इसमें घटक 2-3 के कपडछन चणव को अच्छी तरह से दमलाकर सााँ चे या डाई में िबाकर दटदकया बना लें। और
धप में सखा िें ।
चनमागण चवचध –
1. घटक 2,3,4 का कपडछन चणव बनाकर रख लें। इसे ताजे गोबर में अच्छी तरह दमलाकर सखा लें।
सखने पर इसका पुनः कपडछन चणव बनाकर भर लें।
2. िसरी दवदध में गोबर के साथ-साथ िध का भी दमिण कर िें ।
गुणधमग –
चेहरे की चमक बढ़ाता हैं , मुाँहासोां से छु टकारा दिलाता हैं , त्वचा पर पडे काले िागोां को दमटाता हैं , पसीने
की िु गवध का नाश करता हैं , त्वचा को पोषण िे ता हैं , खाज-खुजली दमटाता हैं , त्वचा में दछपे कीटाणुओां का
नाश करता हैं , बालोां की रूसी से छु टकारा दिलाता हैं , रि चाप को सामान्य करने में मिि करता हैं , जोडो
के ििव में लगाकर धप में बैठने या सेक िे ने पर आराम पहुाँ चाता हैं । तेज बुखार में दसरििव या तेज जुकाम
होने पर ललाट पर मोटा लेप लगायें, दमनटोां में आराम दमलेगा, 2-3 घांटोां में बुखार भी उतर जायेगा।
उपयोग चवचध – िध, िही, छाछ या पानी के साथ प्रयोग करें । रूखी त्वचा वाले िध या िही के साथ, तैलीय
त्वचावाले पानी के साथ और बालोां में छाछ के साथ प्रयोग करें ।
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❖ अंगराग बट्टी(गौमय साबुन)
घटिः
चनमागण चवचध – ताजे गोबर में छने हुए नीम के पत्तोां के काढ़े को दमलाकर मोटी चलनी से एक बार पुनः
छानें। इसमें घटक 2,3 और 4 कपडछन चणव को अच्छी तरह से दमलाकर सााँ चे या डाई में िबाकर दटदकया
बना लें। और धप में सखा िें ।
गुणधमग – चेहरे की चमक बढ़ाता हैं , मुाँहासोां से छु टकारा दिलाता हैं , त्वचा पर पडे काले िागोां को दमटाता
हैं , पसीने की िु गवध का नाश करता हैं , त्वचा को पोषण िे ता हैं , खाज-खुजली दमटाता हैं , त्वचा में दछपे
कीटाणुओां का नाश करता हैं ।
चवर्ेष – शरीर पर लगाने से पहले आधे – एक दमनट के दलए बट्टी को पानी से नम कर िें ।
❖ गौमय दं तमंजन
घटिः
चनमागण चवचध – गोबर के कणडोां को पहले साि-सुथरी जगह या कढ़ाई में रखकर जलायें । जब धुाँआ
दनकलना बांि हो जाए तो एक साि तगारी से ढाँ क िें और उसकी आसपास की हवा बांि करने के दलए टाट
का कपडा दकनारोां पर िबा िें । लगभग आधे घांटे के बाि खोलकर काला मजबत कोयला दनकाल लें। कच्चा
कांडा या जली सिेि राख काम में नहीां लें। बडी मात्रा में बनाना हो तो जमीन में गड्ढा खोिकर ईांट सीमेंट से
प्लास्टर कर उसमें कोयला बनाया जा सकता हैं । ऊपर से दकसी बडे लोहे के बतवन से ढककर हवा बांि की
जा सकती हैं । इस तरह बने कोयले को खरल में बारीक करके सती कपडे में रगडकर छानकर सक्ष्म चणव
बना लें।
अब सें धा नमक के बारीक चरे को 300 ग्राम पानी में दमलाकर अच्छी तरह घोल लें। इसे कोयले
के चरे पर धीरे -धीरे दछडककर अच्छी तरह दमलाते जायें। इसे तीन-चार घांटे तक ऐसे ही पडा रहने िें ,
दजससे सम मात्रा में नमी िैल जाए। इसी समय कपर और अजवायन के सत को एक शीशी में दमलाकर
एक घांटे रखें। यह अपने आप घुकर तेल बन जायेगा और लौांग को खरल में एकिम बारीक कर लें। अांत में
नीलदगरी के तेल और कपर अजवायन के सत के तेल व लौांग के चणव को गोबर कोयले के चणव पर दछडककर
अच्छी तरह दमलायें और तुांरत पैक कर िें ।
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गुणधमग – िााँ त का ििव , िााँ त से खन आना, मुाँह की िु गवन्ध, िााँ तोां में कीडा लगना, िााँ तोां का मै, िााँ तोां की
कमजोरी आदि में अत्यांत लाभिायक।
मात्रा – आवश्यकतानुसार
❖ गौमय नवग्रह धू प
घटिः
चनमागण चवचध – सबसे पहले घटक 5 से 13 में घी को अच्छी तरह दमलायें। अब इसमें लकडी का बुरािा और
ताजे गोबर को डालकर अच्छी तरह दमला लें। इसमें मैिा लकडी दमलाकर उां गली के आकार की नली (प्लास्स्टक,
पीतल या एल्युमीदनयम) में डालें और इसी आकार की लकडी से धक्का िे कर दनकालें। बत्ती को धप में सखा
लें।
गुणधमग – गोबर में लक्ष्मी का वास हैं । अतः प्रदतदिन गोबर को जलाने से िररद्रय का नाश होता हैं । आक-सयव,
पलाश-चन्द्र, खैर-मांगल, अपामागव-बुध, पीपल-गुरू, गुलर-शुि, शमी-शदन, िवाव -राहू और िभव -केत ग्रहोां की
सदमधा हैं । इसका धप करने से नवग्रहोां की शाां दत होती हैं । अतः प्रदतदिन गौमय नवग्रह सदमधा को सुबह-शाम
प्रज्जवदलत करना चादहए।
इसके धुएाँ से मच्छर व कीट भाग जाते हैं । इसकी भस्म घाव और िोडें -िुन्सी के ऊपर बहुत ही अच्छी
औषदध हैं । कटी हुई त्वचा पर इस भस्म को लगाने से खन रूकता हैं और घाव जल्दी भरता हैं । इसकी भस्म को
शहि के साथ चाटने से खााँ सी में आराम दमलता हैं ।
इस अध्याय में जगह-जगह चनमागण चवचध में क्वाथ, र्ोधन, िल्क, स्वरस र्ब्दों िा
प्रयोग चिया गया हैं । इनिा अथग नीचे स्पष्ट चिया गया हैं ।
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1 तोला क्वाथ की औषदध को जौकट (मोटा चणव) करके दमट्टी के पात्र अथवा कलईिार बतवन में सोलह गुणे पानी
में मांि अदि पर पकावें। जब चौथाई पानी शेष रहे , तब कपडे से छान लें। क्वाथ बनाते समय बतवन का मुाँह खुला
रहना चादहए। ढक िे ने से क्वाथ भारी हो जाता हैं , ऐसी शास्त्राज्ञा हैं । क्वाथ दमट्टी के कोरे बतवन में बनाना चादहए।
गौमत्र सेवन के दलए जो गाय रखी जाती हैं वह दनरोगी और युवा होनी चादहए। जांगल क्षेत्र और चट्टानें
जहााँ गायोां को प्राकृदतक वनस्पदत खाद्य रूप में दमल सकें, वहााँ गायोां क मत्र अदधक अच्छा हैं । गौमत्र को स्वच्छ
वस्त्र से छानकर सु बह में खाली पेट पीना चादहए। गौमत्र पान के एक घां टे तक कुछ खाना नहीां चादहए। स्तन
पान करने वाले बच्चोां को गौमत्र िे ते समय माता को भी गौमत्र िे ना चादहए। मादसक धमव के िौरान स्स्त्रयोां को
गौमत्र पान से शास्न्त और शस्ि दमलती हैं । सामान्यतः युवा व्यस्ि एक छटााँ क से एक पाव मात्रा में गौमत्र सेवन
कर सकते हैं ।
गौमत्र का उपयोग दवदभन्न रोगोां में कैसे हो सकती हैं वह हम िमशः िे रहे हैं ।
1. कब्ज के रोगी को उिरशुस्द्ध के दलए गौमत्र को अदधक बार कपडे से छानकर पीना चादहए।
2. गौमत्र में हरडे चणव दभगोकर धीमी आाँ च से गरम करना चादहए। जलीय भाग जल जाने पर इसका चणव
उपयोग में दलया जाता हैं । गौमत्र का सीधा सीधा सेवन जो नहीां कर सकता हैं उसे इस हरडे का सेवन
करने से गौमत्र का लाभ दमल सकता हैं ।
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3. जीणवज्वर, पाण्डु , सजन आदि में दकरातदति(दचरायता) के पानी में गौमत्र दमलाकर, सात दिन सुबह
और शाम पीना चादहए।
4. खााँ सी, िमा, जुकाम आदि दवकारोां में गौमत्र सीधा ही प्रयोग में लाने से तुरांत ही कि दनकलकर दवकार
शमन होता हैं ।
5. पाण्डु रोग में हर रोज सुबह खाली पेट ताजा और स्वच्छ गौमत्र कपडे से छानकर दनयदमत पीने से 1 माह
में अवश्य लाभ होता हैं ।
6. बच्चोां को खोखली खााँ सी होने पर गौमत्र क छानकर उसमें हल्दी का चणव दमलाकर दपलाना चादहए।
7. उिर के दकसी भी रोग में गौमत्र पान से लाभ होता हैं ।
8. जलोिर में रोगी केवल गौिध सेवन करें और साथ साथ गौमत्र में शहि दमलाकर दनयदमत पीना चादहए।
9. चरक के मतानुसार लोहे के बारीक चणव को गौमत्र में दभगोकर इसको िध के साथ सेवन करने से
पाण्डु रोग में जल्दी लाभ होता हैं । सेवन से पहले खब छानना जरूरी हैं ।
10. शरीर की सजन में केवल िध पीकर साथ में गौमत्र का सेवन करना चादहए।
11. गौमत्र में नमक और शक्कर समान भग में दमलाकर से वन करने से उिर रोग शमन होता हैं ।
12. गौमत्र में सैं धव नमक और राई का चणव दमलाकर पीने से उिररोग दमटता हैं ।
13. आाँ खोां की जलन, कब्ज, शरीर में सुस्ती और अरुदच में गौमत्र में शक्कर दमलाकर लेना चदहए।
14. खाज, िुस्न्सयााँ , दवचदचवक में गौमत्र में आां बाहल्दी चणव दमलाकर पीना चादहए।
15. प्रसदत के बाि सुवा रोग में स्त्री को गौमत्र दपलाने से अच्छा लाभ होता हैं ।
16. चमव रोगोां में हरताल, बाकुची तथा मालकाां गनी को गौमत्र में दमलाकर सोगठी बनाकर इसे िदषत त्वचा
पर लगाना चादहए।
17. सिेि कुष्ठ में बाकुची तथा मालकाां गनी को गौमत्र में दमलाकर सोगठी बनाकर इसे िदषत त्वचा पर
लगाना चादहए।
18. सिेि कुष्ठ में बावची के बीज को गौमत्र में अच्छी तरह पीसकर लेप करना चादहए।
19. शरीर में खुजली होने पर गौमत्र से मादलश और स्नान करना चादहए।
20. कृष्णजीरक को गौमत्र में पीसकर इसका शरीर पर मादलश और गौमत्र स्नान करने से चमव रोग दमटते
हैं ।
21. ईांट को खब तपाकर गौमत्र में इसे बुझाकर, कपडे में लपेटकर यकृत और प्लीहा(दतल्ली) की सजन पर
सेंक करने से लाभ होता हैं ।
22. कृदम रोग में डीकामाली का चणव गौमत्र के साथ िे ना चादहए।
23. सुवणव, लोह वस्तनाभ, कुचला आदि का शोधन करने के दलए और भस्म बनाने के दलए औषध दनमाव ण
में गौमत्र का उपयोग होता हैं । वह दवषैले द्रव्योां का दवषप्रभाव नि करता हैं । दशलाजीत की शुस्द्ध भी
गौमत्र से होती हैं ।
24. चमवरोगोां में उपयोगी महामररच्यादि तेल और पांचगव्य घृ त बनाने में गौमत्र उपयोग में लाया जाता हैं ।
25. हाथी पााँ व (िाइलेररया) रोग में गौमत्र सुबह में खाली पे ट लेने से यह रोग दमट जाता हैं ।
26. गौमत्र का क्षर उिर वेिना में, मत्ररोध में तथा वायु व अनुलोमन करने के दलए दिया जाता हैं ।
27. गौमत्र दसर में अच्छी तरह मलकर थोडी िे र तक लगे रखना चादहए। सखने के बाि धोने से बाल सुन्दर
होते हैं ।
28. कामला रोग में गौमत्र अतीव उपयोगी हैं ।
29. गौमत्र में पुराना गुड और हल्दी चणव दमलाकर पीने से िाि, कुष्ठरोग और हाथी पााँ व में लाभ होता हैं ।
30. गौमत्र के साथ एरां ड ते ल एक मास तक पीने से सांदधवात और अन्य वातदवकार नि होते हैं ।
31. बच्चोां को उिर वेिना तथा पेट िलने पर एक चम्मच गौमत्र में थोडा नमक दमलाकर दपलाना चादहए।
32. बच्चोां को सखा रोग होने पर एक मास तक, सुबह और शाम गौमत्र में केसर दमलाकर दपलाना चादहए।
33. शरीर में खाज-खुजली हो तो गौमत्र में नीम के पत्ते पीसकर लगाना चादहए।
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34. गौमत्र के दनयदमत सेवन से शरीर में स्फदतव रहती हैं , भख बढ़ती हैं और रि का िबाव स्वाभादवक होने
लगता हैं ।
35. क्षय रोग में गोबर और गौमत्र की गांध से क्षय के जांतु का नाश होने से अच्छा लाभ होता हैं ।
36. Ring-Worm िाि पर, धतरे के पत्ते गौमत्र में पीसकर गौमत्र में ही उबालें। गाढ़ा होने पर लगावें।
37. टाइिायड की िवाएां खाने से अक्सर दसर या दकसी स्थान के बाल उड जाते हैं । तो इसके इलाह हे तु
गौमत्र में तम्बाक को खब पीसकर डाल िे । 10 दिन बाि पेस्ट टाइप बन जाने पर अच्छ रगड कर बाल
झडे स्थान पर लगाने से बाल दिर आ जाते हैं । दसर में भी लग सकते हैं ।
दकसी भी औषदध की सिलता उसकी गुणवत्ता पर आधाररत होती हैं । पांचगव्य दचदकत्सा में गाय से ही
प्राप्त चीजोां का मुख्यतः उपयोग होता हैं , अतएव गाय कैसी हो यह दिर से िोहराया जा रहा हैं ।
1. गाय िे शी नस्ल की हो अथाव त् दजसके ककि हो। जसी, रे ड डे न, होलस्टाइन फ्रीदजयन आदि नहीां।
2. गाय स्वस्थ व सश्कत होां।
3. गााँ व में घमकर प्लास्स्टक या कडा-कचरा खानेवाली न हो।
4. गााँ व जांगल या गोचर में चरने जाती हो तथा हमेशा रसायनयुि चारा खाती हो।
5. गाय सेवा से प्रसन्न हो।
एलोपैथी की जड औषदधयोां की तरह पांचगव्य जड नहीां हैं , वह प्राणवान व चैतन्य हैं , उसमें िे वताओां का
वास हैं । इसदलए उन्ें ग्रहण करते समय उनकी दिव्यता का स्मरण कर ग्रहण करें । जैसे गौमत्र लेते
समय यह दवचार करें दक इसमें गांगा का वास हैं अथाव त् यह सृदि पालक भगवान दवष्णु का चरणमृत हैं
यह शीघ्र प्रसन्न होने वाले भगवान दशव के जट से दनकली अमृत की धारा हैं । गाय में 33 कोदट िे वता हैं
इसदलए गौमत्र तो 33 कोदट तीथों का जल हैं । ऐसे बार – बार नमस्कार शरणागदत भाव से गौमत्र ग्रहण
करने पर इसका प्रभव भी दिव्य ही होता हैं । इसे सामान्य औषदध मानने पर इसका प्रभाव भी सामान्य
होता हैं । अदवश्वास या घृणा भाव से लेने पर इसका पररणाम होता भी हैं और नहीां भी होता।
आगे दवदभन्न रोगोां का उपचार बताया जा रहा हैं । जब भी आप पांचगव्य का सेवन करें ,
तब अपनी प्रकृदत, ऋतु और अवस्था का ध्यान अवश्य रखें।
1. िध – िध वात िोष बढ़ा सकता हैं , अतएव वात से पीदडत व्यस्ि गमव िध में िो चम्मच घी डालकर
और िेंट कर पीयें घी वातनाशक होने से िध को सु पााँ चय बना िे ता हैं । दजनकी पााँ चन शस्ि बहुत
कमजोर हो उन्ें िध में आधा पानी दमला लेन चादहए, लेदकन घी की मात्रा कम नहीां करनी चादहए।
2. िही – िही दपत्त िोष बढ़ा सकता हैं , चाां िी के प्याले में जमा ताजा िही लेने से दपत्त का शमन हो जाता
हैं । दपत्त िोष से पीदडत व्यस्ि को िही की जगह छाछ का सेवन करना चादहए क्योांदक छाछ दपत्त
नाशक हैं ।
3. घी – घी कि िोष बढ़ा सकता हैं , गमव आहार के साथ घी लेने से कि की प्रधानता कम हो जाती हैं ।
घी के ऊपर गमव पानी अमृत और ठां डा पानी दवष के समान हैं ।
4. गौमत्र – गौमत्र कुछ दपत्त को बढ़ाता हैं , लेदकन दवरे चन के गुण के कारण पक्वाशय और छोटी आाँ तोां में
सांदचत दपत्त को िस्त के माध्यम से दनकालकर राहत भी िे ता हैं । दपत्त िोष से पीदडत व्यस्ि को गौमत्र
सेवन के दिनोां में घी का भी सेवन करना चादहए। गौमत्र को बार-बार छानने से भी इसका दवरे चन गुण
बढ़कर दपत्त का नाश करता हैं ।
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एक बात को यहााँ दिर से िोहराना आवश्यक हैं दक इस पुस्तक में जहााँ कहीां भी घी शब्द आया
हैं , उसे िे शी गाय के िही को मथकर दनकाले गये मक्खन को तपकर बनाया गया घी ही समझे। आजकल
यांत्र से िध से िीम दनकाल जाता हैं , दिर उसे गमव कर घी बनाया जाता हैं । यह वास्तव में घी नही बटर
ऑइल हैं । इसके गुणधमव दबिुल अलग हैं और यह औषदध के लायक नहीां हैं । आजकल बाजार में
शुद्ध गा के घी के नाम पर भी बटर ऑइल ही दबक रहा हैं । िे शी गाय का घी इससे 2 से 3 गुणा महां गा
हैं । और जैसे – जैसे इसका औषधीय महत्व पता चलता जायेगा यह मांहगा ही होता जाये गा इसे सस्ता
रखने का एक ही उपाय हैं दक गौरक्षण व गौसांवधवन दकया जायें और उसके गोबर-गौमत्र का भी परा-
परा उपयोग दकया जाए।
आगे जहााँ कहीां नस्य घृत(नाक में घी डालना) की बात आयेगी। वहााँ दनम्न दवदध से ही
नाक में घी डालना हैं ।
लेटकर या कुसी पर बैठे होां तो दसर को पीछे की ओर झुकाकर एक-एक नासदछद्र में
िो-िो बाँि घी डालें। 5 दमनट इसी तरह रहें । मौन रखें। घी को खीचें नहीां, सामान्य श्वास लेते रहें । घी का
तापमान हमेशा शरीर के तापमान से अदधक होना चादहए। घी को सीधे अदि पर गमव ना करें , घी के पात्र
को तेज गमव पानी में रखकर गमव करें ।
इसी प्रकार से आगे जहााँ कही भी िध में घी लेने की बात आये उसे दनम्न दवदध से ही लें।
तेज गमव िध में चम्मच घी डालकर िो दगलासोां में खब उथल-पुथल करें । इससे िध में झाग हो
जायेंगे। गमव-गमव िध-घी का ही सेवन करें ।
गौ दचदकत्सा के समय माां साहार, शराब, तांबाक, दसगरे ट, गुटखा आदि व्यसन पणवतः वदजवत हैं ।
दकसी भी उपचार पद्धदत के साथ आप पांचगव्य दचदकत्सा ले सकते हैं । इसका दकसी भी पद्धदत से दवरोध नहीां
हैं , बस्ि गौमत्र अकव तो अन्य औषदधयोां की शस्ि को बढ़ा िे ता हैं । लाभ होने पर आप पहले से चल रही
दचदकत्सा बांि भी कर सकते हैं । आयुवेि दचदकत्सा, होम्योपैथी दचदकत्सा, एक्यप्रेशर, चुांबक दचदकत्सा, योग
दचदकत्सा आदि पांचगव्य दचदकत्सा के साथ लें तो गांभीर रोगोां में भी बहुत जल्दी लाभ होता हैं ।
ऋतु – ग्रीष्म ऋतु में अल्प मात्रा में गौमत्र का सेवन करना चादहए। ग्रीष्म ऋतु से शीत ऋतु में 5 से 10 गुणा
अदधक मात्रा में गौमत्र का सेवन दकया जा सकता हैं ।
प्रिृचत – वात प्रकृदत के व्यस्ियोां को सामान्य मात्रा में, कि प्रकृदत के व्यस्ियोां को अदधक मात्रा में और
दपत्त प्रकृदत के व्यस्ियोां को कम मात्रा में गौमत्र का सेवन करना चादहए।
अवस्था – एक वषव तक के बच्चोां को ग्रीष्म ऋतु में महीने 3 बाँि और तेज सदिव योां में महीने 15 बाँि तक दिया
जा सकता हैं । उिाहरण के दलए 4 महीने के बच्चोां को गदमवयोां में 4 * 3=12 बाँि और सदिव योां में 4 * 15 = 60
बाँि तक दिया जा सकता हैं । वैसे िध पीते बच्चोां की माताओां को गौमत्र िे ने से अदधक लाभ होता हैं । उनका
मात्रा वयस्क के अनुसार होनी चादहए।
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यहााँ सामान्य मात्रा का वणव न दकया जा रहा हैं दजसे अपनी प्रकृदत और ऋतु के अनुसार कम अदधक मात्रा में
दलया जा सकता हैं ।
दपत्त प्रधान (गमव) प्रकृदत के व्यस्ियोां को खाली पेट गौमत्र का सेवन नहीां करना चादहए।
गौमत्र सेवन प्राां रभ के 5-6 दिन तक िो से अदधक बार भी शौच के दलए जाना पड सकता हैं , जो बहुत ही
लाभिायक हैं , दिर यह सामान्य हो जायेगा। यदि िस्त अदधक होां तो मात्रा आधी कर िें बाि में पणव मात्रा ले
सकते हैं ।
पथ्य – अिरक + सेंधा नमक + नीांब का रस बनाकर तैयार रखें। प्रदतदिन भोजन के पवव या साथ सेवन करें ।
स्वादिि चटदनयााँ , पापड, छौांकी हुई सब्जी।
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❖ अचतसार (दस्त, Diarrhea)
1. मामली अदतसार में अल्प मात्रा में ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती
कपडे को आठ परत कर छानकर पीयें।
2. गौमत्र अकव का सेवन करें , दजससे आाँ तोां का अच्छी तरह शोधन हो जाए।
3. अदधक िस्त लगने पर 25 दमली गौमत्र + 25 दमली िध का सेवन करें ।
मामली िस्त होने पर चावल में ताजा िही व सेंधा नमक डालकर लें। अदधक िस्त होने पर
आधा लीटर पानी एक-एक दमनट में एक-एक चम्मच के माध्यम से लें।
धीरे -धीरे पानी की मात्रा बढ़ाते जायें। जब पानी पचने लगें, तब माँग का पानी, मीठे िलोां का रस आदि
लें। ठोस आहार सबसे पहले माँग चावल की स्खचडी में िो चम्मच घी डालकर िें ।
छाछ या गौ तिाररि का से वन करें ।
अपथ्य – सामान्य भोजन, सामान्य पानी
पथ्य – हिा भोजन, उबला हुआ पानी ठां डाकर पीयें। िलोां का रस (अनार का रस अदधक गुणकारी)
चवर्ेष – मामली अदतसार से छोटी आाँ तोां की सिाई व बढ़े हुए दपत्त का शमन होता हैं ।
❖ िब्ज (Constipation)
1. कब्ज की गांभीरता के अनु सार कुछ अदधक मात्रा में ऋतु , प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय
के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत(दवसक) कर छानकर पीयें।
2. गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या हरीतकी वटी का सेवन करें ।
3. भोजन के बाि गौमत्र हरडे चणव गमव पानी से लें।
4. रादत्र को सोते समय गमव िध में दत्रिलादि घृत िेंटकर लें।
अपथ्य – आाँ तोां में दचपकनेवाला आहार जैसे (आल, चावल, मावे की दमठाई, केला, बेसन, मैिा और
पााँ चन शस्ि को क्षीण करने वाले आहार जैसे तली चीजें, चाय – कॉिी। परे दिन बैठे रहना।
पथ्य – रे शेयुि पिाथव जैसे दछलके सदहत खाये जाने वाले िल – सब्जी- िाल, चोकर युि आटा,
िदलया, पपीता
चवर्ेष –
1. गौमत्र दजतनी अदधक बार छानकर लेंगें उतना ही िायिा करे गा।
2. गाय के घी का प्रदतदिन 25 से 30 ग्राम की मात्रा में से वन करने से आाँ तोां में दचकनाई रहती हैं ,
दजससे मल आाँ तोां में दचपक नहीां पाता तथा सरलता से मलत्याग होता हैं ।
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अपथ्य – खटाई, तली चीजें, मावा, मैिा, बेसन, दमचव, गररष्ठ, भोजन
पथ्य – िध, छाछ, मेथी, जामुन, परवल, कुलथी, शहि, पपीता गेहूाँ, दमिी युि जौ का सत्त, सेंधा नमक।
चवर्ेष – थोडा- थोडा खाये, 2-3 घांटे से खाये। अदधक िे र तक पेट को खाली न रखें।
रात को सोते समय नादभ पर िो-तीन बाँि घी लगाकर अनादमक उां गली से मांथन करें ।
अपथ्य – दफ्रज की ठां डी चीजें, ठां डा िध, दमचव, तेल, खटाई, खमीर वाले आहार, मैिा, बेसन, मावे की
दमठाई, चाय-कॉिी, भखा रहना।
2.रात को सोते समय नादभ पर िो-तीन बाँि घी लगाकर अनादमक उां गली से मांथन करें ।
पथ्य – कडवी, तीखी, कसैली चीजें, सभी मसाले हीांग, हल्दी, मेथी, दबना बीज की लाल दमचव।
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5. दत्रिलादि घृत का प्रयोग करें ।
6. प्रदतदिन दछलके सदहत कच्ची लौकी का एक दगलास रस दनकालकर 5 काली दमचव + 5 तुलसी
के पत्ते + पौिीने के पत्ते घोटकर दमलायें। स्वाि के अनुसार अिरक व सेंधा नमक दमलाकर
पीयें।
अपथ्य – तली चीजें, बेसन, मैिा, दमठाई, गररष्ठ आहार, भोजन में अदनयदमतता, भोजन कर तुरन्त सोना,
बाजार का खाना, दफ्रज की चीजें।
❖ गैस
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें।
2. गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन करें ।
3. प्रदतदिन भोजन के साथ या बाि में गौमत्र हरडे चणव का सेवन करें ।
4. िध में अिरक या सोांठ उबालकर घी डालकर पीयें।
5. गैस से पीदडत अांग पर गौमय वातनाशक ते ल लगाकर गमव कपडे से ढककर रखें।
अपथ्य – दफ्रज की ठां डी चीजें, आल, प्याज, गोभी, मैिा, बेसन, बासी भोजन, खमीरवाली चीजें, भैंस का
घी, ररिाइण्ड ते ल, मैथुन।
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1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें।
2. गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन करें ।
3. नादभ के िादहनी ओर चार अांगुल पर गोबर को गौमत्र से नरमकर उसकी पुस्ल्टस बााँ ध से क
करते रहें ।
4. ििव बांि होने के बाि छाछ में सेंधा नमक दमलाकर भोजन के साथ लें।
अपथ्य – सभी िालें, िध, िही, आल, चावल, केला, तली चीजें मना हैं । भख लगने पर ही भोजन करें ।
चवर्ेष – तुरन्त आराम हो जाने के बाि भी एक – िो मास गौमत्र का सेवन करने से आन्त्र पुच्छ शोथ
समल नि हो जाता हैं ।
पथ्य – जमीकांि दवशेष लाभ पहुाँ चाता हैं । गाय की छाछ, िदलया, सेंधा नमक, पपीता, लौकी, दमिी,
ब्रह्मचयव।
चवर्ेष –
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पथ्य – िदलया, पपीता, दमिी
❖ प्रवाचहिा (Dysentery)
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें।
2. गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन करें । दजससे ऐांठन,
मरोड व बार-बार का िस्त बांि हो जायेगा। जीवाणु नि होकर मल बांध जायेगा।
3. प्रदतदिन छाछ या गौतिाररि का सेवन करें ।
अपथ्य – मीठा, लाल दमचव, गमव मसाले, िध
पथ्य – िाना मेथी की सब्जी, सुपााँ चय भोजन, सब प्रकार की िालें, िल, पपीता, लौकी
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❖ यिृत वृखद्ध
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
2. छाछ या गौतिाररि या गौतिासव का प्रदतदिन से वन करें ।
3. प्रदतदिन दछलके सदहत कच्ची लौकी
अपथ्य – खटाई, तेल या घी में तला हुआ, गमव मसाले, चावल, िही, आल िालें, गाररष्ठ आहार, मैथुन,
तेज धप, अदि के सामने न रहें ।
पथ्य – िध (िीका), हरी सस्ब्जयााँ , परवल, सहे जना गेहूाँ, पपीता, हिा भोजन, ब्रह्मचयव, टहलना, घमना
लाभकारी हैं । अन्न दबिुल त्यागकर गाय का िध उबालकर पीते रहने से अदत शीघ्र लाभ होता हैं ।
चवर्ेष – रोग नि हो जाने पर भी कुछ मास गौमत्र का सेवन करने से रि स्वस्थ होता हैं ।
❖ िंठ रोग
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
2. 2 दिन में तीन बार गौमत्र को थोडा गमव कर गरारे करें ।
अपथ्य – मीठे -खट्टे आहार, िध
पथ्य – पतला िदलया, िाल या सब्जी का सप, सें धा नमक, हिा गमवजल
चवर्ेष – कांठ में अदधक कि होने पर गोबर-गौमत्र का गमव लेप लगाकर चौडे पत्ते से ढक मिलर से
बााँ धकर रखें।
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❖ संग्रहणी
1. इस रोग में भोजन का पणव पााँ चन हुए दबना ही वह मल के साथ दनकलने लगता हैं । जठरादि के
दवकृत होने से यह रोग होता हैं ।
2. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
3. छाछ + सें धा नमक या गौतिाररि का प्रदतदिन सेवन करें ।
अपथ्य – सभी मसाले, सस्ब्जयााँ , िाले, तेल या घी की तली चीजें।
चवर्ेष – इस रोग को ठीक होने में िो – तीन महीने का समय लगेगा, रोग के ठीक होने पर भी िो –
तीन महीने गौमत्र का सेवन करते रहें ।
नादभ पर 2-3 बाँि घी लगाकर अनादमका उां गली से हिा मांथन करें ।
❖ तृ षा (प्यास न चमटना)
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें । जब तक िस्त साि न आये, गौमत्र की मात्रा बढ़ाते रहें । तादक वायु की तीव्रता के कारण
बढ़ रही प्यास नि हो जाये। गौमत्र में पयाव प्त मात्रा में दवटादमन बी हैं , इसदलए तृस्प्त होती हैं ।
2. िध के साथ घी लें। भोजन में भी अच्छी मात्रा में घी का सेवन करें ।
अपथ्य – रूखा आहार, तली हुई चीजें, बिव का पानी
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चवर्ेष – सरसोां या दतल का तेल मुाँह में भर 5-10 दमनट तक कुल्ला करें ।
पथ्य – नीांब + सेंधा नमक + काला नमक चसना। अजवायन, अनार, मौसन्बी, सौांि, मुनक्का, आाँ वला।
❖ आधमान (अफारा)
1. गौमत्र हरडे चणव को गमव पानी के साथ लें।
2. पेट पर गौमय वातनाशक ते ल लगायें।
3. गौतिासव का सेवन करें ।
अपथ्य - समस्त अन्न, िही, चावल
❖ चहचिी (Hiccough)
दहचकी अदधक आती हो, तो उसका एक ही उपाय है , घी पीयें और उसके ऊपर गमव पानी पीयें या गमव
िध में घी डालकर पीयें ।
❖ चसरोचसस ऑफ द लीवर
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
2. छाछ या गौतिाररि का सेवन करें ।
अपथ्य – खटाई, तली चीजें, गमव मसालें, आल, बैंगन
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❖ हे पेटायचटस बी
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
2. प्रदतदिन दछलके सदहत कच्ची लौांकी का एक दगलास रस दनकाल 5 काली दमचव + 5 तुलसी के
पत्तें + 5 पौिीने के पत्ते घोांटकर दमलायें।
3. 31 पत्ती श्यामा तुलसी का रस एवां उतना ही शहि दमलाक सेवन करें ।
अपथ्य – खटाई, तली चीजें।
❖ टां चसल्स
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
2. 1 ग्राम दिटकरी (गमव तवे पर िली हुई) एक दगलास गुनगुने पानी में डालकर गरारे करें ।
3. नाक में गाय के घी की िो-िो बाँिे डालें।
अपथ्य – खट्टा, तला, दफ्रज का ठां डा, दमचव, मसाले।
पथ्य – घी का हलवा, िदलया, चावल, जौ का पानी, माँग, सहे जना, करे ला।
पथ्य – गेहूाँ, हरी सस्ब्जयााँ , सुपााँ चय भोजन, गमव पानी, तुलसी, काली दमचव
चवर्ेष – 1. गौमय धप की भस्म को शहि के साथ दिन में 3-4 बार चाटे ।
❖ सदी – जुिाम
1. गौमत्र / गौमत्रासव का प्रदतदिन सेवन करें ।
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2. नाक से गौमत्र खीचें, तीव्र जलन होगी, लेदकन नासा गुहा का सांिमण नि हो जाये गा और श्लेष्मा
बाहर दनकलकर तुरन्त आराम दमलेगा।
3. नाक में घी डालें। (गौमत्र खीचतें हैं तो उसके आधे घांटे बाि)
4. गौमत्र में सें धा नमक दमलाकर थोडा गमव कर गरारे करें ।
5. गोमय िां तमांजन करें । सुबह िां तमांजन करते समय उां गदलयोां से जीभ को रगडे , ऐसा करते समय
वमन हो जाए तो भी अच्छा ही हैं क्योांदक इससे नासा गुहा से लेकर पेट तक जमा कि बाहर
दनकल जायेगा।
6. िध में पानी + तु लसी + हल्दी + अिरक + िालचीनी को डालकर काढ़ा बनाकर पीयें।
अपथ्य – खट्टा, तली चीजें, िही, केला, ठां डा पानी, चावल, आल
पथ्य – गेहूाँ, हरी सस्ब्जयााँ , सुपााँ चय भोजन, गमव पानी, खजर, कुम्हडा।
चवर्ेष – शारीररक िम की कमी के कारण पसीना नहीां दनकलता, दजससे सिी – जु काम के माध्यम से
शरीर की गांिगी दनकलती हैं । शारीररक पररिम कर पसीना दनकालते रहने से सिी जुकाम नहीां होता
हैं ।
बुखार के साथ जु काम के कारण नाक बांि व तेज दसर ििव हो तो ललाट पर अांगराग चणव का मोटा लेप
लगायें – िो दमनट में नाक खुल जायेगी, 10 दमनट में दसरििव गायब हो जायेगा, और घांटे भर में बुखार
की तीव्रता कम हो जायेगी।
❖ सायनस
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
2. प्रदतदिन नाक में घी डालें।
3. सुबह नाक से ताजा गौमत्र खीचें।
अपथ्य – अचार, इमली आदि तेज खटाई। तली चीजें, आल केला, िही पथ्यः मेथी, चना, लौकी, अनार।
❖ दमा (Asthma)
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्रासव का सेवन करें ।
2. 100 ग्राम कच्चे जमीकांि को 50 ग्राम पुराने िे शी गुड के साथ कटकर प्रदतदिन सुबह सेवन
करें ।
3. नाक में घी डालें। इससे एलजी से होनेवाला िमें का आिमण नहीां होगा।
अपथ्य – दफ्रज की ठां डी-चीजें, तली चीजे, अदधक घी, िध, िध से बने पिाथव िही, कच्ची छाछ उडि
की िाल, दिन में सोना, तेज हवा, गुड-शक्कर वाले पिाथव, मैथुन।
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पथ्य – रूखे अन्न, चना, गेहूाँ, ज्वार, पत्तीवाली सस्ब्जयााँ , कुम्हडा, मुनक्का, िालें, लौांग, इलाइची, खजर,
तुलसी, काली दमचव, सोांठ, सास्त्वक दवचार।
चवर्ेष –
क्षय रोग अदधकतः भय, शोक, िोध, काम दवचार जै से मनोदवकार के कारण होता हैं । पांचगव्य
सास्त्वक होने कारण उससे शरीर के साथ – साथ मन भी स्वस्थ होता हैं ।
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
2. गाये के िध में 1-1 चम्मच पांचगव्य घृ त डालकर दिन में तीन बार लें।
3. नाक में भी पांचगव्य घृत की िो-िो बाँिें डालें।
4. प्रदतदिन आधा ग्राम िली हुई दिटकरी (गमव तवे पर िुलाएाँ ) आधा ग्राम दमिी के साथ सेवन
करें ।
5. कच्चे लहसुन की कली का सेवन करें ।
अपथ्य – खटाई, तली चीजें, हीांग, गमव मसाले, िही, मावे की दमठाईयााँ , िम, दचांता, िोध, मैथुन।
पथ्य – गाय का िध, शहि, पपीता, सुपााँ चय भोजन, हरी सस्ब्जयााँ , मुनक्का, िल, ब्रह्मचयव (भगवान
का स्मरण, सास्त्वक दवचार)
चवर्ेष – गौशाला में सोने से और उसके गोबर – गौमत्र की गांध िेिडोां में पहुाँ चने से क्षय रोग के
बैक्टीररया से बहुत जल्दी मुस्ि दमलती हैं । दनत्य खाली पेट गौमाता को बडे िद्धा भाव से सीांग से
पाँछ तक सहलाना चादहए, (थकान महसस न हो तो 15-20 दमनट तक) इससे रोगी को रोग से लडने
की शस्ि दमलती हैं । मन सास्त्वक हो जाता हैं ।
िेिडोां की दझल्ली में पानी भरने से यह रोग होता हैं । गौमत्र स्वेिल (पसीना दनकालने वाला) हैं ,
गौमत्र से पसीने व मत्र के मागव से जल दनकल जाता हैं , दजससे िेिडे रूक्ष होकर स्वस्थ हो जाते
हैं । अन्य कोई सांिमण हो तो वह भी नि हो जाता हैं ।
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
अपथ्य – ठां डी हवा, नम हवा, दफ्रज की चीजें, चावल, घी, तेल, िही, ठां डे िल
पथ्य – िध – शहि, मांग, चना, गेहूाँ, गमव पानी।
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❖ चनमोचनया
2. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
3. नाक में िो-िो बाँि गाय का घी डालें।
4. पैर के तलवोां पर सरसो के तेल की मादलश करें ।
अपथ्य – खटाई, तली चीजें , ठां डी चीजे।
पथ्य – चोकर, लौांक, तुलसी + काली दमचव, सौांठ, खजर।
अपथ्य – खटाई, तली चीजें, नमक, ररिाइन्ड ते ल, आल, कडा उपवास, रादत्र में भोजन।
पथ्य – िध, छाछ, आां वला, सांतरा, लहसुन, घी, तवे पर भनकर भरा बनाया नमक, सेंधा नमक, हरी पत्ते वाली
सस्ब्जयााँ ।
चवर्ेष – उपचार 1,2,3 लगातार छः महीने तक करने से रिचाप सामान्य हो जाता हैं ।
पथ्य – पालक, मेथी के पत्ते, बथुआ, खजर, अांजीर, मुनक्का, गन्न, काला गुड, बाजरा, चना।
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❖ िोले स्टॉल (Cholesterol)
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर छानकर
पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन करें ।
2. छाछ में एक चम्मच मीठे नीम की पत्ती (कडी पत्ता) की चटनी डालकर उसका सेवन करें ।
3. प्रदतदिन दछलके सदहत कच्ची लौकी एक दगलास रस दनकाल 5 काली दमचव + 5 तु लसी के पत्ते + पौिीने
के पत्ते घोांटकर दमलायें। स्वाि के अनुसार अिरक व सें धा नमक दमलाकर पीयें ।
4. घाणी के तेल का सेवन करें ।
अपथ्य – ररिाइन्ड तेल, गाय के घी के अलावा अन्य सभी घी
पथ्य – लहसुन, गेहूाँ के ज्वारे , साग-सब्जी, िल, सलाि, दिलटडव ते ल, दबना बीज की लाल दमचव।
अच्छे कोलेस्टरॉल से मस्स्तष्क स्वस्थ रहता हैं । शरीर की नसोां, जोडोां में लचीलापन रहता हैं । खराब कोलेस्टरॉल
रिवादहदनयोां में जमकर रुकावट पैिा करता हैं ।
गाय का घी कोलेस्टरॉल को बढ़ाता हैं । घाणी का तेल (दतल माँगिली और सरसोां का तेल) खराब कोलेस्टरॉल को
कम करता हैं । सोयाबीन, सयवमखी, पाम तेल िोनोां प्रकार के कोलेस्टरॉल को कम कर शरीर को नुकसान पहुाँ चाते
हैं ।
❖ ज्ञानेखियों िे रोग
नाक के रोगोां का श्वसन सांस्थान के रोगोां में वणवन आ चु का हैं ।
❖ आाँ ि आना
1. आाँ ख आने पर एकिम ताजा गोबर (जो जमीन पर 15-20 दमनट से अदधक न पडा हो) बांि आाँ ख पर
रखकर हिी पट्टी बााँ धकर लेट जायें। तीन घांटे में आाँ खें ठीक हो जायेगी। रात को सोते समय लगायें
और रात भर रहने िें तो सु बह तक लाली भी दमट जाये गी।
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2. आाँ ख को बार-बार गौमत्र से धोयें।
3. आाँ ख में कच्चे िध की बाँिें टपकायें और उस पर िध में भीगा रूई का िाहा रख िें ।
4. नामक में घी डालें।
अपथ्य – खटाई, टी.वी., कम्प्प्यटर, लेटकर पढ़ना।
पथ्य – दसर में तेल की मादलश
चवर्ेष – तकलीि तुरन्त ठीक होने पर भी कम से कम 15 दिन उपरोि उपचार करें ।
❖ िमजोर दृचष्ट
1. रात को सोते समय नाक में िो-िो बाँि घी डालें।
2. प्रदतदिन िोनोां समय दत्रिलादि घृत का सेवन करें ।
3. रात को सोते समय पैर के तलवोां पर घी लगाकर कााँ से के बतवन से तब तक रगडे , जब तक
तलवे काले न हो जायें।
4. दिन में तीन बार िो – िो बाँि गौमत्र की डालें, साथ ही शहि नीांब, गुलाब जल आदि की बाँि भी
डालें।
5. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
6. प्रदतदिन छाछ या गौ तिाररि या गौ तिासव का सेवन करें ।
7. िध में मुनक्का या काली दमचव औटाकर पीयें।
अपथ्य – खटाई, तली चीजें, मैिा, बेसन, गमव मसाले, टी.वी., कम्प्प्यटर, िे र तक जागना, सयोिय के बाि
उठना।
पथ्य – पालक, गाजर, आाँ वल, हरा धदनया, बािाम (दभगाकर दघस कर लेने पर ही उपयोगी), सुबह-
सुबह हरी घास पर नांगे पैर चलना।
चवर्ेष – 1. कब्ज न होने िें ।
2.चश्मा उतरने के बाि भी तीन महीने तक उपरोि उपचार करें ।
❖ मोचतयाचबं द (Cataract)
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
2. रात को सोते समय नाक में िो – िो बाँि घी डालें।
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3. दत्रिलादि घृत का सु बह- शाम सेवन करें ।
4. गौमत्र को ताां बे के पात्र में उबालकर ठां डाकर छान लें। प्रदतदिन 4 बार इसकी िो – िो बाँिें
डालें।
5. शहि की एक – एक बाँि आाँ ख में डालें।
6. सिेि प्याज के रस की एक – एक बाँि आाँ ख में डालें।
7. गुलाब जल की िो – िो बाँिें आाँ ख में डालें।
अपथ्य – खटाई, तली चीजें, धप, गमव मसालें, िोध, शोक।
पथ्य – गाजर, आाँ वला, शहि, जौ, करे ला, पपीता, बािाम (दभगाकर दघस कर लेने पर ही उपयोगी)
चवर्ेष – उपरोि उपचार से तीन महीने में मोदतयादबांि कट जायेगा और चश्मा लगा हो तो उसके नांबर
भी कम हो जायेंगे।
प्रदतदिन छाछ पीने वालोां को मोदतयादबांि ही नहीां होता।
❖ िान बहना
1. नाक में गाय का घी डालें।
2. िध में हल्दी उबालकर घी डालकर पीयें।
3. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर छानकर
पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन करें ।
4. गौमत्र से गरारे करें ।
5. मुाँह खोलकर कान में गौमय तेल की 2-4 बाँिें डालें।
6. गौमय ते ल बनाने की दवदध – दतल के तेल में गोबर का रस डालकर मांि आाँ च पर पकायें, जब केवल
तेल ही बचे, तब छानकर शीशी में भर लें।
अपथ्य – खटाई, तली चीजें, गुड, दमचव, गमव मसाले, तेज हवा, िही छाछ।
❖ िान िा ददग
1. कान का ििव लांबे समय से हो तो ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती
कपडे को आठ परत कर छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी
वटी का सेवन करें ।
2. नाक में गाय का घी डालें।
3. मुाँह खोलकर कान में सरसोां या दतल के तेल की िो-चार बाँिे डालें।
4. कान के बाहर वातनाशक तेल लगायें।
5. कान को ढककर रखें और पांखे आदि की तेज हवा से बचें।
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अपथ्य – गैस करने वाले आहार जैसे आल, गोभी, प्याज, दफ्रज की चीजें, बासी भोजन, मैिा, बेसन।
पथ्य – लहसुन
❖ तु तलाना
1. प्रायः तुतलना उम्र बढ़ने के साथ-साथ ठीक हो जाता हैं ।
2. यदि मस्स्तष्क की कमजोरी के कारण तुतलाना होता हैं तो ब्रह्मी घृत को नाक में डालें तथ सु बह – शाम
गमव िध में डालकर पीयें।
3. वाकेस्न्द्रय (जीभ) की कमजोरी के कारण तुतलाना होता हैं तो सामान्य गाय का घी नाक में डाले और
सुबह-शाम गमव िध में डालकर पीयें।
4. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर छानकर
पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन करें ।
5. सुबह गौमय िां तमांजन करें इससे न केवल जीभ कांठ ही साि होगा बस्ि नाक, आाँ ख, कान आदि की
वादहदनयााँ भी साि हो जाती हैं ।
6. दिन में 4-5 बार जीभ पर काली दमचव रखकर चसना।
अपथ्य – चााँ कलेट, सुपारी, अदधक मीठा
चवर्ेष – बच्चे से तुतलाकर बात न करें , तादक वह सही उच्चारण सुने और सही उच्चारण करने का प्रयत्न करें ।
❖ हिलाना (Stammer)
1. तुतलाने वाले उपचार करें ।
अपथ्य – भय, जल्दबाजी, िोध
चवर्ेष –
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❖ सूिी िु जली
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर छानकर
पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन करें ।
2. गौमत्र और दतल के तेल की बस्स्त (एदनमा) लें।
3. घी का अदधकादधक सेवन करें , रात को सोते समय िध में घी डालकर पीयें।
4. नाक में घी डालें।
5. दत्रिलादि घृत का सेवन करें ।
6. सरसोां या दतल के तेल की परे शरीर पर मादलश करें ।
7. ताजे गोबर से स्नान करें या अांगराग चणव + कच्चा िध या िही से स्नान करें । इन्ें 15-20 दमनट शरीर
पर लगा रहने िें । साबुन का प्रयोग दबिुल ना करें ।
अपथ्य – दफ्रज की चीजें, ते ज खटाई, आल, गोभी, प्याज, बासी भोजन, मैिा, बेसन, कच्चा नमक, रूखा चीजें।
पांखे की तेज हवा, पाउडर।
पथ्य – दस्नग्ध आहार, मीठा, तुलसी + शहि, लहसुन, करे ला, नाररयल, नीब
ां ।
अपथ्य – खटाई, तेल, दमचव, गुड, आल, बैंगन, चाय-कॉिी, मावा, कॉस्मेदटक िीम, गीले चड्डी-बदनयान, तांग
कपडे , दजन्स।
❖ पु राना घाव
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर छानकर
पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन करें ।
2. घाव को गौमत्र से धोयें।
3. घाव पर जात्यादि घृत लगायें ।
4. साबुन का प्रयोग ना करें ।
5. िध में हल्दी उबालकर घी डालकर पीयें।
अपथ्य – खटाई, तली चीजें, गुड, अदधक मीठा, खमीर वाली चीजें, आल, प्याज, िही छाछ।
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पथ्य – सुपााँ चय एवां सािा भोजन, घी।
❖ फोडे – फुन्सी
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
2. िोडे पर ताजा गोबर बााँ ध िें । िोडे को शीघ्र पकाकर परा मवाि खीांच लेगा।
3. दत्रिलादि घृत का सेवन करें ।
अपथ्य – खटाई, िही, छाछ, तली चीजें, दमचव, गुड, आम
❖ त्चा िा फटना
1. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
2. िध में घी डालकर पीयें । घी का प्रयोग अदधक करें ।
3. नाक में घी डालें।
4. केवल जहााँ त्वचा िटी हैं वहााँ ही नही बस्ि परे शरीर पर दतल या सरसोां का (गदमवयोां में नाररयल
का) ते ल लगायें, हिी मादलश करें ।
5. साबुन का प्रयोग ना करें । अांगराग चणव + कच्चा िध या िही से स्नान करें ।
अपथ्य – रूखा आहार, बासी भोजन, आल, प्याज।
चवर्ेष – त्वचा का िटना, वात को बढ़ने के कारण होता हैं , अतः केवल िटी हुई जगह का उपचार न
करे , परे शरीर का उपचार करना चादहए।
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❖ त्चा िी एलजी
1. त्वचा को परा पोषण न दमलने से या त्वचा के दकसी दवजातीय तत्व के सांपकव में रहने से उसमें
दकसी दवशेष चीज (धप, धल, हवा, पानी) के प्रदत दवकषव ण (एलजी) पैिा हो जाती हैं ।
2. ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को आठ परत कर
छानकर पीयें। या गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन
करें ।
3. िध में हल्दी उबालकर घी डालकर पीयें।
4. ताजे गोबर से या अां गराग चणव या अां गराग बट्टी से स्नान करें । साबुन का प्रयोग दबिुल ना करें ।
5. तेज पांखे की हवा से पसीने को न रोकें।
6. सुबह की धप का सेवन करें ।
पथ्य – नीांब, तुलसी + शहि, आाँ वला, पपीता, करे ला, नीम
चवर्ेष – त्वचा की एलजी दकसी भीतरी बीमारी का सां केत हो सकते हैं । अतः भीतरी बीमारी पर भी
ध्यान िें ।
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❖ मूत्र संस्थान िे रोग
वृक्क चविार
(गु दे िे रोग)
1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को
आठ परत कर छानकर पीयें। या पुननववादि अकव और पुननववादि वटी का सेवन करें ।
2. अांगराग से स्नान करें ।
3. वृक्क के सभी रोगोां में शरीर से खब पसीना दनकलने िें , दजससे रि साि होता रहे और गुिो
पर जोर ना पडे ।
4. पैरोां के तलवोां पर घी लगाकर कााँ से के बतवन से तब तक रगड जब तक तलवे काले न हो जाए।
5. नाक में घी डालें। नादभ पर घी लगाकर अनादमका उां गली से उल्टा-सीधा मांथन करें ।
6. गाय का िध समान मात्रा में पानी दमलाकर उबाले। ठां डा कर दमिी दमलाकर जौ के िदलये के
साथ लें।
अपथ्य – खटाई, तली चीजें, दफ्रज की चीजें, टमाटर, आल, चावल, िही, केला, उडि की िाल, कच्चा
नमक, चावल, पांखे की तेज हवा।
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6. मेथी भीगाकर सुबह उसका सेवन करें ।
अपथ्य – रात को िे र से भोजन करना, गैस करने वाली चीजें, जैसे आल, नये चावल, प्याज, मैिा, दफ्रज
की चीजें, ररिाइण्ड ते ल खटाई, अदधक मीठा।
पथ्य – घाणी का तेल (न दमले तो दिल्टडव तेल), शाम के भोजन में तरल पिाथव अदधक ना लें। ब्रह्मचयव
का पालन।
चवर्ेष – जो बच्चे रादत्र में दबस्तर पर पेशाब करते होां, उन्ें भी यही उपचार िें ।
बहुमत्र मधुमेह का एक प्रमुख लक्षण हैं यदि मधुमेह हो तो मधुमेह का उपचार करें ।
चवर्ेष – मत्र सां स्थान में दकसी भी प्रकार का व्रण या सां िमण हो तो उसमें गौमत्र अत्यन्त लाभकारी हैं ।
अपथ्य – दपत्त बढानेवाले पिाथव जैसे – तली चीजें, गमव मसालें, आल, बैंगन, लहसुन, खटाई, दफ्रज की
चीजें।
पथ्य – पपीता
चवर्ेष – शरीर से पसीना दनकलता हो तो उसे तेज पां खा चलाकर रोके नहीां।
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❖ यौन समस्याएाँ (Sex Problems)
स्वप्नदोष / र्ीघ्र पतन / प्रमेह
1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को
आठ परत कर छानकर पीयें।
2. मेिोहर अकव (केसर युि गौमत्र अकव) और गौमत्र हररतकी वटी का सेवन करें ।
3. िध में हल्दी उबालकर और घी डालकर पीयें।
4. छाछ या तिाररि या तिासव का सेवन करें ।
5. पैर के तलवोां पर घी लगाकर कााँ से के बतवन से तब तक रगडे जब तक तलवे काले न हो जाये।
अपथ्य – अश्लील दवचार, ग्लादन, गमव मसाले, तली चीजें, खटाई, गैस करने वाली चीजें जैसे – दफ्रज की
चीजें, आल, प्याज, मैिा, खमीरवाली चीजें, रादत्र को िे री से भोजन करना, चाय – कॉिी, लहसुन/दकसी
भी प्रकार का व्यसन, अदधक स्त्री-सांग।
चवर्ेष –
चवर्ेष –
1. कामुक दवचारोां से शस्ि नि होने से सांभोग की शस्ि क्षीण हो जाती हैं । अतः कामुक दवचारोां
से बचे।
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2. सांभोग के बाि उपरोि गमव िध का सेवन करने से शस्ि क्षीण नहीां होती।
3. सांभोग के बाि पानी कभी ना पीयें।
4. कब्ज न होने िें ।
5. तनाव, दचांता, भय, िोध, आदि के साथ सांभोग में प्रवृत्त न होां।
पथ्य – ब्रह्मचयव, हिा सास्त्वक भोजन, जौ, सभी िालें, चावल, दमिी, मेथी, काली चमव, हिा व्यायाम।
अपथ्य – तली चीजें, बेसन, मैिा, भोजन में अदनदमयतता, भोजन कर तुरन्त सोना, बाजार का खाना,
बासी भोजन, दफ्रज की चीजें , खमीरवाला आहार, आल, बैंगन, प्याज।
पथ्य – पौदिक आहार, घाणी का ते ल, िध, िही, घी सखे मेवे, पके िल, रसायन मुि अनाज, सस्ब्जयााँ
गेहूाँ के ज्वारे , हल्दी, अन्नास, अनार, पालक, मेथी, पपीता।
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2. गौमत्र अकव, गौमत्र घनवटी या गौमत्रासव या गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन करें ।
3. दत्रिलादि घृत में एक चुटकी सेंधा नमक डालकर सेवन करें ।
4. छाछ या तिाररि या तिासव का सेवन करें ।
अपथ्य – खटाई, तली चीजें।
❖ स्त्री रोग
अचनयचमत माचसि धमग / माचसि धमग िम होना
1. दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृदत और अवस्था के अनुसार िे शी गाय के गौमत्र को सती कपडे को
आठ परत कर छानकर पीयें। या नारी सांजीवनी और गौमत्र हरीतकी वटी का सेवन करें ।
2. काली दमचव 20 ग्राम, गुड 10 ग्राम 300 दमली पानी में उबालें। एक चौथाई पानी रह जाने पर
छानकर पीयें।
3. मादसक धमव के समय गाँि को घी में तलकर िुला लें। अब घी में अजवायन को तले। उसमें गुड
िुला हुआ गाँि डालकर पाक बनाकर खायें।
4. प्रदतदिन िध में कालीदमचव उबालकर घी डालकर पीयें ।
5. मादसक धमव के दिनोां में पैर के तलवे पर सरसोां का ते ल रगडें ।
अपथ्य – खटाई, कब्ज करने वाले आहार जैसे मैिा, बेसन, आल, गैस करने वाले आहार जैसे दफ्रज की
चीजें बासी भोजन, रात को िे र से खाना, गोभी, खमीर वाली चीजें ।
चवर्ेष –
• यह वात रोग हैं अतः रूखे ठां डे आहार – दवहार से बचें।
• कब्ज दबिुल ना होने िें ।
• भोजन के बाि गमव पानी अवश्य पीयें।
• शरीर को ढक कर रखें, तेज हवा न लगने िें ।
अपथ्य – सभी गमव आहार जैसे – तली चीजें, गमव मसाले, दमचव, लहसुन, प्याज, चाय-कॉिी, बैंगन, गुड,
आल, दफ्रज की चीजें।
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चवर्ेष – यह दपत्त प्रधान रोग हैं । अतः मादसक धमव के पााँ च दिन पहले अदधक मात्रा में गौमत्र का सेवन
करें , दजससे िस्त लगकर दपत्त कम हो जायें । सात दिन पहले से पथ्य – अपथ्य का दवशेष ध्यान रखें।
अपथ्य – खटाई, दमचव, गमव मसाले, तली चीजें, िोध, ईष्याव , भय, शोक, मन में गााँ ठ बााँ धना।
चवर्ेष – सभी मदहलाओां के गभाव शय में गााँ ठे बनती और खत्म होती रहती हैं । गााँ ठ का आकार बढ़ता
रहे या वह ििव करें , तभी उपचार करने की आवश्यकता होती हैं ।
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अपथ्य – दफ्रज की ठां डी चीजें, बासी भोजन, आल, प्याज, मैिा, बे सन, खमीर वाली चीजें, अचार,
ररिाइण्ड तेल
पथ्य – अजवायन, मेथी, सौांठ, दतल, िे शी गुड, बाजरा, खाने का गाँि दतल का ते ल।
❖ गभागवस्था (Pregnancy)
1. स्त्री की प्रकृदत व ऋतु के अनुसार गौमत्र की जो मात्रा होती हैं , उससे आधी मात्रा में गौमत्र या
गौमत्र अकव और घनवटी का सेवन करना चादहए।
2. प्रदतदिन चाां िी के प्याले में िही जमाकर ताजे िही का से वन करना चादहए। इससे बच्चा मेधावी
व स्वस्थ होता हैं – मांिबुस्द्ध अथवा दवकलाां ग नहीां होता।
3. छाछ या गौतिासव या गौतिाररि का सेवन करें ।
4. दत्रिलादि घृत का सेवन करें ।
5. गभववती माता को िध का खब पीना चादहए। िध को लोहे की कढ़ाई में खब औटाकर और
काली दमचव डालकर लेने से शरीर में रि की कमी नहीां होती।
6. खट्टा खाने की इच्छो हो तो आां वला, नीांब, कोकम, छाछ, टमाटर का सेवन करें । अचार, इमली,
कैरी और राई की खटाई का सेवन ना करें ।
7. शरीर में खन की कमी हो तो खन की कमी वाले उपचार करें ।
8. शरीर में कैस्शशयम की कमी हो तो पान की िु कान से एक रुपये के चना लाकर उसे एक लीटर
पानी डालकर खब दहलायें। 6-7 घांटे बाि जब चना तली में बैठ जाये, तब पानी को दनथार लें।
यह पानी दिन में िो बार िो-िो चम्मच लेते रहें ।
9. आटा पीसने की हाथ की चक्की चलाने से गभाव शय क्षेत्र की तथा स्तनोां की मासपेदशयााँ लचीली
व बलशाली होती हैं । शरीर में सजन नहीां आती व प्रसव सामान्य होता हैं । घट्टी न हो तो इसी
प्रकार का व्यायाम करें ।
10. साबुन का प्रयोग ना करें , अां गराग चणव या अांगराग बट्टी से स्नान करें ।
अपथ्य – सभी तामसीक चीजें – लहसुन, प्याज, चाय-कॉिी, भैंस का िध, िही, घी, बासी भोजन सभी
प्रकार के व्यसन। िोध, ईष्याव , भय, लालच। टी.वी. के कायविाम व दवज्ञापन बहुत ही तामसीक हैं । टी.वी
से दनकलने वाली प्रकाश की दकरणे ही नहीां तरां गे भी बहुत नुकसान करती हैं । टी.वी. पर केवल कुछ
सांस्कारप्रि कायव िम ही थोडी िे र िे खें।
सभी दपत्त िोष बढ़ाने वाली चीजें – आल, बैंगन, िही, गमव मसालें, दमचव, तली चीजें, तेज खटाई,
पपीता। इनसे गभवपात होने का खतरा रहता हैं ।
सभी वात िोष बढ़ाने वाली चीजें – पांखे की तेज हवा, दफ्रज का पानी, मैिा, बेसन, रात को जागना। इनसे
सजन आती हैं और प्रसव वे िना अदधक होती हैं ।
सभी कि िोष बढ़ाने वाली चीजें – अदधक मीठा, अदधक घी, तेल, आलस्य दिन में अदधक सोना। इनसे
बच्चे का मोटापा बढ़ता हैं और प्रसव में समस्या होती हैं ।
पथ्य – प्रसन्न रहना, हिे व्यायाम करना या िम करना, सुबह की दकरणोां का सेवन करना, अच्छी
पुस्तके पढ़ना, कला के सौन्दयव का पान करना।
चवर्ेष – एक मदतवकार पत्थर की मदतव को गढ़ते समय एक-एक छे नी सांभालकर चलाता हैं । मााँ का तो
चैतन्य मदतव को गढ़ना हैं , ईश्वर की तरह सृदि करनी हैं , मााँ दजतनी ही कुशल होगी पुत्र भी उतना ही िेष्ठ
होगा।
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❖पंचामृत
पांचामृत का अथव है 'पाां च अमृत'। िध, िही, घी, शहि, शकर को दमलाकर पांचामृत बनाया जाता है ।
पाां चोां प्रकार के दमिण से बनने वाला पांचामृत कई रोगोां में लाभिायक और मन को शाां दत प्रिान करने
वाला होता है । इसका एक आध्यास्त्मक पहल भी है । वह यह दक पांचामृत आत्मोन्नदत के 5 प्रतीक हैं ।
जैसे-
➢ िध- िध पांचामृत का प्रथम भाग है । यह शुभ्रता का प्रतीक है अथाव त हमारा जीवन िध की तरह
दनष्कलांक होना चादहए।
➢ िही- िही का गुण है दक यह िसरोां को अपने जैसा बनाता है । िही चढ़ाने का अथव यही है दक
पहले हम दनष्कलांक हो सि् गुण अपनाएां और िसरोां को भी अपने जैसा बनाएां ।
➢ घी- घी दस्नग्धता और स्नेह का प्रतीक है । सभी से हमारे स्नेहयुि सांबांध हो, यही भावना है ।
➢ शहि- शहि मीठा होने के साथ ही शस्िशाली भी होता है । दनबवल व्यस्ि जीवन में कुछ नहीां
कर सकता, तन और मन से शस्िशाली व्यस्ि ही सिलता पा सकता है ।
➢ शकर- शकर का गुण है दमठास, शकर चढ़ाने का अथव है जीवन में दमठास घोलें। मीठा बोलना
सभी को अच्छा लगता है और इससे मधुर व्यवहार बनता है ।
➢ उपरोि गुणोां से हमारे जीवन में सिलता हमारे किम चमती है ।
पंचामृत िे लाभ :
• पांचामृत का सेवन करने से शरीर पुि और रोगमुि रहता है । पांचामृत से दजस तरह हम भगवान को
स्नान कराते हैं ऐसा ही खुि स्नान करने से शरीर की काां दत बढ़ती है । पांचामृत उसी मात्रा में सेवन करना
चादहए दजस मात्रा में दकया जाता है । उससे ज्यािा नहीां।
• इसमें तु लसी का एक पत्ता डालकर इसका दनयदमत से वन करते रहने से आजीवन दकसी भी प्रकार का
रोग और शोक नहीां होता। कैंसर, हाटव अटै क, डायदबदटज, कब्ज और ब्लड प्रेशर जैसी रोगोां से बचा जा
सकता है । पांचामृत के और भी कई लाभ होते हैं ।
पंचगव्य िा नुस्खा
5 दकलो गाय का ताजा गोबर, 3 लीटर गाय का मत्र, 2 लीटर गाय का िध, आधा दकलोग्राम गाय का घी, 2
लीटर गाय के िध से बनाया गया िही, 3 लीटर गन्ने का रस, 3 लीटर ताड या अांगर का रस। जब इन
सबको आप दमलाएां गे, तो 20 लीटर पांचगव्य बनेगा।
इसको बनाने के दलए दमट्टी का बना हुआ बडे मुाँह के आकार का मटका, कांिीट का बना टैं क या
प्लास्स्टक का कैन लें। यह याि रहे दक आपने जो बतवन दलए हैं , वह दकसी धातु के न होां। अब सबसे पहले
ताजे गोबर और घी को उस बतवन में डालें और लगभग तीन दिनोां तक दिन में िो बार उन्ें दमलाते रहें । 18
दिन बाि इस दमिण को दकसी अांधेरी जगह में रखें और दकसी जाली स ढक िें , तादक उसमें मस्क्खयाां न
जाएां । यदि आपके पास गन्ने का रस नहीां हैं , तब 500 ग्राम गुड को 3 लीटर पानी में दमला लें। यदि ताड
का रस नहीां हैं , तब 2 लीटर पानी में दमला लें। यदि ताड का रस नहीां हैं , तब 2 लीटर ताजे नाररयल का
53
पानी 10 दिनोां के दलए एक बांि प्लास्स्टक के बतवन में रखे। खराब होने के बाि यह ताड के रस का रूप ले
लेगा। इस पांचगव्य दमिण को छह महीनोां तक रखा जा सकता हैं और जब यह पतला होने लगे , तब इसमें
पानी दमलाकर तरल पिाथव का रूप िे सकते हैं । इस पां चगव्य दमिण में पौधोां के दवकास के दलए जरुरी
पोषक तत्व शादमल होते हैं और इन तत्वोां को वैज्ञादनक प्रयोगशालाओां और िे शभर के दकसानोां द्वारा
प्रामादणत दकया जा चुका हैं । अब तीन लीटर पांचगव्य दमिण को 100 लीटर पानी में दमलाएां और इसे
छानकर सभी िसलोां पर दछडके। इसका उपयोग दडरप या प्रवाह दसांचाई के रूप में भी दकया जा सकता
हैं । जब आप बीजोरोपण कर रहे हैं , तो उससे 20 से 30 दमनट पहले बीजोां को इस दमिण में दभगोां सकते
हैं । अब बीजारोपण के 20 दिन बाि इस दमिण को दछडकें और िल दनकलने से पहले के चरण में 15-
15 दिनोां के अां तर में भी दछडक सकते हैं । जब िलोां के दनकलने का समय हो जाए, तब 10-10 दिनोां के
अांतर में और जब िली का पररपक्व अवस्था आ जाए, तब एक बार इसे दछडके। इसका उपोयग कुछ
िलोां, िलोां और सस्ब्जयोां पर भी दकया जा सकता हैं । जैसे दक आम, नीांब, अमरूि, केला आदि। हल्दी
और सस्ब्जयोां में इसके उपयोग से उपज में चमत्काररक वृस्द्ध िे खने को दमली हैं । साथ ही सस्ब्जयााँ और
िल लांबे समय तक ताजा बने रहते हैं ।
स्वाद बेचमसाल
इस दवदध से स्वाि भी अच्छा बनता हैं । धान में उपयोग करें तो बादलयाां अच्छी बनती हैं और कुटाई के
िौरान चावल कम टटते हैं । पांचगव्य का प्रयोग गन्ना, सरसोां मांगिली, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, गेहूाँ,
सरजमुखी और नाररयल आदि की िसलोां में भी दकया गया हैं । इन सभी में पांचगव्य ने िसलोां की वृस्द्ध
और कीट अवरोधक का काम दकया हैं । आप इसे अपने बाग-बगीचोां और घर के बाहर लगे पेडोां में भी
उपयोग कर सकते हैं ।
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