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गायत्री पंचकोशीय साधना

गायत्री महाविज्ञान
मानि शरीर में पांच कोश
मानि शरीर में पांच कोश (क्रमशः)
 अन्नमय कोश (Physical body)
 प्राणमय कोश (Etheric body)
 मनोमय कोश (Astral body)
 विज्ञानमय कोश (Cosmic body)
 आनंदमय कोश (Causal body)
आत्मा के पांच आिरण
अन्नमय कोश

प्राणमय कोश

मनोमय कोश

विज्ञानमय कोश

आनंदमय कोश
अन्नमय कोश का पररचय
 अन्न का सात्त्िक अर्थ है -पथ्
ृ िी का रस
 हाड़ मांस का शरीर अन्नमय कोश के अधीन၊ मत्ृ यु
के बाद भी अन्नम य कोश जीि के सार्
 अन्नमय कोश की त्थर्ती के अनस ु ार शरीर का
ढांचा၊ इसकी विकृतत से अनेक रोग၊
 अन्न के तीन कोश- थर्ल ू , सक्ष्
ू म, कारण၊
 थर्लू में थिाद और भार၊ पेट को बोझ एिं त्जह्िा को
थिाद का अनभ ु ि၊
 सक्ष्
ू म में प्रभाि एिं गुण၊ मादकता एिं उष्णता आदद
का अनभ ु ि।
 कारण में संथकार၊ यह अन्नमय कोश पर जमता है ।
अन्नमय कोश जागरण के लाभ
 तनरोग जीिन
 दीर्थ जीिन
 चचरयौिन
हामोन ग्रंचर्यां एिं षट्चक्र
अन्नमय कोश जागरण की विचध
 आसन
 उपिास
 तपथया
 तत्िशवु ि
आसन
 चार उपयोगी आसन
आसन (क्रमशः)
 चार प्रभािशाली आसन
आसन (क्रमशः)
 प्रज्ञायोग
1. ताड़ासन
ॐ भ:ू -- लाभ -- हृदय की दब
ु ल
थ ता, रक्तदोष और कोष्ठबिता दरू , मेरूदण्ड के ममथथर्लों के अिरोध
दरू , सही विकास।
2. पादहथतासन
ॐ भि
ु : - लाभ -- िायद
ु ोष दरू , इड़ा-वपंगला-सष
ु म्
ु ना को बल , पेट ि अमाशय दोष दरू , अततररक्त
चबी कम, रीढ़ को लचीलापन एिं रक्त संचार में तेजी होता है ।
3. िज्रासन
थि: -- लाभ -- भोजन पचाने में सहायक , िायद ु ोष , कब्ज, पेट का भारीपन दरू , अमाशय ि
गभाथशय के मांसपेशशयों को शत्क्त प्रदान , हातनथया से बचाि तर्ा गभाथशय ,अमाशय आदद में
रक्त ि थनायविक प्रभाि को बदल दे ता है।
4. उष्रासन
तत ् -- लाभ -- हृदय बलिान , मेरूदण्ड तर्ा इड़ा-वपंगला-सष
ु म्
ु ना को बल , पाचन , मलतनष्कासन
और प्रजनन प्रणाशलयों के शलए लाभप्रद , पीठ के ददथ ि झक ु ी हुई पीठ को ठीक करता है ।
5. योगमुद्रा
सवितःु -- लाभ -- िायद
ु ोष दरू , पाचन संथर्ान को तीव्र तर्ा जठरात्नन तेज,कोष्ठबिता कोदरू ,
मणणपरु चक्र को जागत ृ करताहै ।
6. अिथताड़ासन
. िरे ण्यं -- लाभ -- ताड़ासन िाला लाभ ।
7. शशांकासन
भगो -- लाभ -- उदररोग दरू , कूल्हों और गुदाथर्ान के मांसपेशशयों को सामान्य रखता है, सायदटका
के थनायओ
ु ं को शशचर्ल करता है , एड्रेनल ग्रंचर्के कायथको तनयशमत करता है , कब्ज दरू करताहै ।
8. भुजंगासन
दे िथय -- लाभ -- हृदय और मेरूदण्ड को बल दे ता है , िायद
ु ोष दरू , भख
ू को बढ़ाता है, कोष्ठबिता
और कब्ज का नाश , शलिर और गुदे के शलए लाभदायक है ।
9. ततयथकभज
ु ंगासन (बााँये)
धीमदह -- लाभ-- भज
ु ंगासन जैसा लाभ सार्ही पसशलयां , गदथ न ि नेत्रों को लाभ ।
10. ततयथकभुजग
ं ासन (दायें)
10. चधयो -- लाभ -- क्र० 9 की तरह
11. शशांकासन
योन: -- लाभ -- क्र० 7 की तरह ।
12. अिथताड़ासन
प्रचोदयात ् -- लाभ -- क्र० 6 की तरह ।
13. उत्कटासन
भ:ू -- लाभ -- वपण्डली मजबत
ू बनती है , शरीर संतशु लत रहता है ।
14. पादहथतासन
भि
ु : -- लाभ -- क्र० 2 की तरह ।
15. ताड़ासन
थि: -- लाभ -- क्र० 1 की तरह ।
उपिास के प्रकार ि लाभ
 पाचक- पेट के अपच, अजीणथ, कोष्ठबिता, को
पचाते हैं၊
 शोधक- रोगों को भख ू ा मार डालने के शलए၊
 शामक- कुविचारों, मानशसक विकारो,
दष्ु प्रिततयो, विकृत उपत्त्तकाओं का शमन၊
 आनस- ककसी विशेष प्रयोजन के शलए दै िी
शत्क्त को आकवषथत करने के शलए၊
 पावक- पापों के प्रायत्चचत के शलए।
उपत्त्यकाएं
 शरीर शाथत्री नाड़ी गुच्छक कहते हैं। िैज्ञातनकों के पास
कोई विशेष पररचय नहीं၊
 योगी लोग जानते हैं कक यह अन्नम य कोश की
बन्धन ग्रत्न्र्यां हैं। मत्ृ योपरान्त यह बन्धन खुल जाते
हैं।
 अन्नमय कोश के गण ु दोषों का प्रतीक हैं।
 शारीररक त्थर्तत को इच्छानक ु ू ल रखने में बाधक၊
 उपत्त्यकाओं की उलझन को सल ु झाने के शलए आहार
विहार का संयम एिं सात्त्िक रखना, ददनचयाथ ठीक
रखना, प्रकृतत के आदे शों पर चलना जरूरी है ।
 उपिास का उपत्त्यकाओं के संशोधन, पररमाजथन एिं
संतल ु न से बड़ा सम्बन्ध।
उपत्त्यकाओं के प्रकार
 उपत्त्यकाओं की लगभग 96 जाततयां जानी जा चक ु ी हैं।
 इन्धधका जातत की उपत्त्यकाएं चंचलता, अत्थर्रता,
उद्विननता का प्रतीक हैं।
 दीपपका जातत की उपत्त्यकाएं जोश, क्रोध, शारीररक
उष्णता, अचधक पाचन, गमी, खचु की आदद उत्पन्न करें गी।
 मोचचकाओं की अचधकता िाले व्यत्क्त के शरीर से पसीना
लार, कफ, पेशाब आदद मलों का तनष्कासन अचधक होगा।
 आप्याययनी जातत के गच् ु छक आलथय, अचधक तनद्रा,
अनत्ु साह, भारीपन अनभु ि कराते हैं।
 पषू ा कामिासना की ओर मन को बलात ् खींच ले जाते हैं।
 कपपला के कारण नम्रता, डर लगना, ददल की धड़कन, बुरे
थिपन, आशंका, मत्थतष्क की अत्थर्रता, नपंस ु कता, िीयथ
रोग आदद लक्षण पाए जाते हैं।
उपत्त्यकाओं के प्रकार
 घस
ू ापवि में संकोचन शत्क्त बहुत होती है । फोड़े दे र
से पकते हैं। कफ मत्ु चकल से तनकलता है ၊ मन
की बात कहने में णझझक।
 अमाया दृढ़ता, मजबत ू ी, कठोरता, गम्भीरता,
हठधमी के प्रतीक। कोई दिा काम नहीं करती,
थिेच्छा से रोगी या रोग मक् ु त होते हैं।
 उद्‌गीथ की अशभिवृ ि से सन्तान होना बन्द हो
जाती है ।
 अससता की अचधकता थत्री पुरुष में से त्जसमें
अचधक होगी िह अपने ही शलंग की सन्तान
उत्पन्न करने में सफल होगा ၊
उपिास विचध
 पाचक- भोजन तब तक छोड़ दे ना चादहए जब
तक कड़ाके की भख ू न लगे।
 शोधक- उबालकर ठण्डा पानी ही ऐसे उपिासों में
एक मात्र अिलम्बन၊ लगातार तब तक चलता
है जब तक रोगी खतरनाक त्थर्तत को पार कर
ले၊ विश्राम आिचयक।
 शामक- दध ू , छाछ, फलों का रस आदद पतले,
रसीले, हल्के पदार्ों के आधार पर चलते हैं၊इन
उपिासों में थिाध्याय, आत्मचचंतन मौन, जप,
ध्यान, पज
ू ा, प्रार्थना आदद आत्मशवु ि के उपचार
भी सार् में होने चादहए၊
उपिास विचध
आनस - सय ू थ की ककरणों द्िारा अभीष्ट दे िी शत्क्त
का आहिान करना၊ त्जसगण ु की आिचयकता है
उसी के अनरू ु प दै िी तत्िों को आकवषथत करने के
शलए सप्ताह में उसी ददन उपिास करना चादहए၊
ग्रह के अनरू
ु प लर्ु आहार, रं ग की िथतए ु ं िथत्र
आदद का जहां तक सम्भि हो अचधक प्रयोग करना
चादहए।
पावक उपिास प्रायत्चचत थिरूप ककए जाते हैं। जल
लेकर करने चादहए। अपराध के शलए शारीररक
कष्ट साध्य तततीक्षा एिं शभ ु कायथ के शलए दान
ताकक पाप की व्यर्ा पण् ु य शात्न्त के बराबर हो
सके।
उपिास में ध्यान रखने योनय बातें
 बबना प्यास भी जल बार बार पीयें।
 अचधक शारीररक श्रम न करें ।
 यदद तनराहार न रहा जाए तो अल्पमात्रा में
रसीले पदार्थ, दध
ू , फल आदद लें၊ शमठाई
हलआ ु आदद गररष्ठ पदार्थ से उपिास का
प्रयोजन शसि नहीं होता।
 उपिास तोड़ने के बाद हल्का शीघ्र पचने िाला
भोजन थिल्प मात्रा में ले।
 उपिास के ददन अचधकांश समय आत्मचचंतन,
थिाध्याय या उपासना में लगाएं।
तत्िशवु ि
 सत्ृ ष्ट पंचतत्िों से बनी है । िथतुओं का
पररितथन उत्पत्त्त, विकास तर्ा विनाश इन
तत्िों की मात्रा में पररितथन आने से होता है ।
 िषाथ, गमी, सदी का तत्ि पररितथन प्राणणयों में
अनेक प्रकार के सक्ष् ू म पररितथन कर दे ता है ।
 आयुिेद के अनुसार िात, वपत्त, कफ का
असंतुलन रोगों का कारण बताया है ।
 िायु की मात्रा में अन्तर आ जाने से गदठया,
लकिा, ददथ , अकड़न, हड़फूटन आदद रोग
उत्पन्न हो जाते हैं।
तत्िशवु ि
 जलतत्ि की गड़बड़ी से जलोदर, पेचचश, प्रमेह, थिपन
दोष, प्रदर, जक ु ाम खांसी आदद रोग पैदा होते हैं।
 अत्नन की मात्रा कम हो तो शीत, जकड़न, अपच,
शशचर्लता आदद रोग।
 मोटा पतला, लम्बा दठगना, रुपिान कुरूप, गोरा काला,
कोमल सदृ ु ढ़ पथ्ृ िी तत्ि की त्थर्ती से सम्बत्न्धत हैं।
 चतुरता मख ू त थ ा, सदाचार दरु ाचार, नीचता महानता,
तीव्र बवु ि, दरू दशशथता, णखन्नता प्रसन्नता, गण ु कमथ
थिभाि, इच्छा आकांक्षा भािना, आदशथ लक्ष्य आदद
बातें आकाश तत्ि की त्थर्तत पर तनभथर करती हैं।
जल तत्ि की शवु ि
 थनान का उद्देचय मैल छुड़ाने के सार् पानी में रहने िाली
विशशिा नामक विद्यत ु से शरीर को सतेज करना एिं
आक्सीजन जैसे उपयोगी तत्िों से शरीर को सींचना।
 सिेरे शौच जाने से पूिथ पानी पीना।
 पानी को र्ंट
ू र्ंूट कर धीरे धीरे पीना၊ भािना करना कक
इस अमत ृ तल्ु य जल में जो शीतलता, मधरु ता, शत्क्त भरी
है उसे खींच कर अपने शरीर में धारण कर रहे हैं।
 त्जन थर्ानों का पानी भारी, खारी, तेलीय, उर्ला, तालाबों
का हो िहां रहने से अन्नमय कोश में विकार पैदा होता है ।
 कभी कभी एनीमा द्िारा आंतों की सफाई कर लेनी
चादहए।
अत्नन तत्ि
सूयथ के प्रकाश के अचधक सम्पकथ में रहने का
प्रयत्न
 सिेरे की धप ू को शरीर पर लेने का प्रयत्न
 सय ू त
थ ाप से तपाए जल का उपयोग करना,
भीगे बदन पर धप ू लेना उपयोगी है ।
 रवििार को उपिास रखना सय ू थ की तेजत्थिता
एिं बलदातयनी शत्क्त का आहिान है ।
िायु तत्ि
प्रातःकाल तेज़ चाल से टहलना ।
 प्राणायाम से फेफड़ों का व्यायाम होता है और
शद्ु र् िायु से रक्त शवु ि होती है ।
 अत्नन तत्ि के संयोग से हिन िायु को शि ु
बनाता है । जो िथतु अत्नन में जलाई जाती हैं
िह नष्ट नहीं होती िरन ् सक्ष्ू म हो कर िायु
मण्डल में फैल जाती हैं।
 सांस मंह ु से नहीं सदा नाक से ही लेना
चादहए।
पथ्
ृ िी तत्ि
 शुि शमट्टी में विष तनिारण की अद्‌भुत शत्क्त होती है ।
 तपथिी लोग भशू म शयन, पहलिान लोग शमट्टी के अखाड़े
पसंद करते हैं၊
 साबुन के थर्ान पर मुल्तानी शमट्टी का उपयोग ककया जा
सकता है । मैल को दरू करती है विष को खींचती है त्िचा
को कोमल, ताजा, चमकीलाि प्रफुत्ल्लत कर दे गी।
 फोड़े फुन्सी दाद २िाज गदठया जहरीले जानिरों के काटने
सज ू न जख्म दख ु ती आंखें २क्तविकार आदद रोगों पर गीली
शमट्टी बांधने से आचचयथ जनक लाभ होता है ।
 पथ् ृ िी की सूक्ष्म शत्क्त लोगों के सूक्ष्म विचारों और गुणों
को सोखकर अपने अन्दर धारण कर लेती है । भूशमगत
प्रभाि से साधकों को लाभ उठाना चादहए। तीर्थ का
िातािरण साधक की सफलता में बड़ा लाभदायक होता है ।
आकाश तत्ि
 वपछले चार तत्िों की अपेक्षा अचधक सूक्ष्म होने से अचधक
शत्क्तशाली है । विचिव्यापी पोल में , शन्
ू या आकाश में एक शत्क्त
तत्ि भरा है त्जसे अंग्रेजी में ईर्र कहते हैं। शब्द ईर्र में तरं गों के
रूप में आते हैं।
 चार प्रकार की िाणणयां आकाश में तरं ग रुप में प्रिादहत होती हैं-
िैखरी, मध्यमा, पचयन्ती, परा।
◦ िैखरी-शब्द, मंह
ु से बोली कानों से सन
ु ी जाती है ।
◦ मध्यमा-भाि, सांकेततक भाषा
◦ पचयन्ती-विचार, मन से तनकलती है मन ही सुनता है ।
◦ परा-संकल्प, यह आकांक्षा, इच्छा,तनचचय, प्रेरणा, शाप, िरदान आदद
के रुप मे अन्तःकरण से तनकलती है ।
 आकाश में असंख्य प्रकृतत के असंख्य व्यत्क्तयों द्िारा असंख्य
प्रकार की थर्ल एिं सूक्ष्म शब्दािली प्रेवषत होती रहती है । मन
त्जस पर केत्न्द्रत होता है उसी तरह के विचार मत्थतष्क में आते हैं।
आकाश तत्ि
 जब भी कोई कुविचार मन में आए तो उसी क्षण
उसे मार भगाएं၊
 उत्तम बात सोचने थिाध्याय, मनन, आत्मचचंतन
परमार्थ और उपासनामयी मनोभशू म हमारा बहुत
कल्याण कर सकती है ၊
 संकल्प कभी नष्ट नहीं होते၊ हमारी मनोभशू म
अनक ु ू ल हो तो उन ददव्य आत्माओं का पर्
प्रदशथन एिं सहारा भी हमें अिचय प्राप्त होगा।
 परब्रह्म की ब्राह्मी प्रेरणाएं, ककरणें एिं तरं गे भी
आकाश द्िारा ही मानि अन्तःकरण को प्राप्त
होती हैं।
तपचचयाथ
 तप का अर्थ है – उष्णता, गतत, कक्रयाशीलता,
र्षथण, संर्षथ, तततीक्षा, कष्ट सहन करना၊
 ककसी िथतु को तनदोष, पवित्र, लाभदायक बनाना
होता है तो इसे तपाया जाता है ।
 ईचिर तपथिी पर प्रसन्न होता है ၊
धनी,सम्पन्न, थिथर्, विद्िान, प्रततभाशाली,
नेता, अचधकारी आदद के रूप में चमक वपछले तप
के ऊपर अिलत्म्बत है ।
 शरीर को झटका लगाने के शलए व्यायाम या
पररश्रम करना आिचयक है । आत्मा में
तेजत्थिता, सामथ्यथ एिं चैतन्यता उत्पन्न करने
के शलए तप करना होता है ।
यग
ु ानक
ु ू ल तप साधनाएं
 परोपकार, लोकसेिा, सत्कायथ के शलए दान, यज्ञीय
भािना से त्जया जाने िाला परमार्ी जीिन
प्रत्यक्ष तप है ।
 दस ू रों के लाभ के शलए अपने थिार्थ का बशलदान
तपथिी जीिन का प्रधान चचन्ह है ।
 कलयग ु में मनष्ु य शरीर में पथ्
ृ िी तत्ि की
प्रधानता है इसशलए अन्य यग ु ों में होने िाली
सधनएं आज नहीं हो सकतों।
 आज नेती, धौतत, ित्थत, न्योली, िज्रोली, कपाल
भातत आदद की साधना कदठन। कोई विरले ही
हठयोग में सफल हो पाते हैं।
यग
ु ानक
ु ू ल तप साधनाएं(क्रमशः)
 अथिाद तप
 उपिास
 तततीक्षा
 कषथण
 आत्म कल्प (गव्य कल्प)
 प्रदातव्य
 तनष्कासन
 ब्रह्मचयथ
 चान्द्रायण
 मौन
 अजथन
 साधना (गायत्री जप, गायत्री यज्ञ, परु चचरण, थत्रोत पाठ आदद)

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