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चं कांता संत त

लेखक - दे वक नंदन ख ी

संकलन – मोद कु मार ब नोई

खंड 1 lo g s po t .in

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पहला भाग
बयान -1

नौगढ़ के राजा सु र सं ह के लड़के वीर सं ह क शाद वजयगढ़ केमहाराज जय सं ह


क लड़क चं कांता के साथ हो गई। बारात वाले दन तेज सं ह क आ खर द लगी के सबब
चु नार के महाराज शवद त को मशालची बनना पड़ा। बहु त क यह राय हु ई क महाराज
शवद त का दल अभी तक साफ नह ं हु आ इस लए अब इनको कैद ह म रखना मु ना सब है
मगर महाराज सु र सं ह ने इस बात कोनापसंद करके कहा, क ''महाराज शवद त को हम
छोड़ चु के ह, इस व त जो तेज सं ह से उनक लड़ाई हो गई यह हमारे साथ वैर रखने का
सबू त नह ं हो सकता। आ खर महाराज शवद त य ह, जब तेज सं ह उनक सू रत बना
बेइ जती करने पर उता हो गए तो यह दे खकर भी वह कैसे बदा त कर सकते थे? म यह
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भी नह ं कह सकता क महाराज शवद त का दल हम लोग क तरफ से ब कुल साफ हो
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य क उनका अगर दल साफ ह हो जाता तो इस बात को छपकर दे खने के लए
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आने क ज रत या थी तो भी यह समझकर क तेज lसंo ह के साथ इनक यह लड़ाई हमार
दु मनी के सबब नह ं कह जा सकती, हम फर इनको s b
. छोड़ दे ते ह। अगर अब भी ये हमारे
साथ दु मनी करगे तो या हज है, ये भी मद i 4uह और हम भी मद ह, दे खा जायेगा।''
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महाराज शवद त फर छूटकर/न मालू म कहां चले गए। वीर सं ह क शाद होने के बाद
महाराज सु र सं ह और p
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t t जय सं ह क राय से चपला क शाद तेज सं ह कसाथे और चंपा क
शाद दे वी सं ह के h
साथ क गई। चंपा दू र के नाते म चपला क ब हन होती थी।

बाक सब ऐयार क शाद हो चु क थी। उन लोग क घर-गृ ह थी चु नार ह मथी, अदल-बदल


करने क ज रत न पड़ी य क शाद होने के थोड़े ह दन बाद बड़े धू मधाम के साथ कुं अर
वीर सं ह चु नार क ग ी पर बैठाए गए और कुं अर छोड़ राजा कहलाने लगे। तेज सं ह उनके
राजद वान मु करर हु ए और इस लएसब ऐयार को भी चु नार म ह रहना पड़ा।

सु र सं ह अपने लड़के को आंख के सामने से हटाना नह ं चाहते थे, लाचार नौगढ़ क


ग ी फतह सं ह के सु पु द कर वे भी चु नार ह रहने लगे, मगर रा य का काम ब कुल
वीर सं ह के िज मे था, हां कभी-कभी राय दे दे ते थे। तेज सं ह के साथ जीत सं ह भी बड़ी
आजाद के साथ चु नार म रहने लगे। महाराज सु र सं ह और जीत सं ह म बहु त मु ह बत थी
और वह मु ह बत दन- दन बढ़ती गई। असल म जीत सं ह इसी लायक थे क उनक िजतनी
कदर क जाती थोड़ी थी। शाद के दो बरस बाद चं कांता को लड़का पैदा हु आ। उसी साल
चपला और चंपा को भी एक-एक लड़का पैदा हु आ। इसके तीन बरस बाद चं कांता ने दू सरे
लड़के का मु ख दे खा। चं कांता के बड़े लड़के का नाम इं जीत सं ह, छोटे का नाम आनंद सं ह,
चपला के लड़के का नाम भैरो सं ह और चंपा के लड़के का नाम तारा सं हरखा गया।

जब ये चार लड़के कुछ बड़े और बातचीत करने लायक हु ए तब इनके लखने-पढ़ने और


ताल म का इंतजाम कया गया और राजा सु र सं ह ने इन चार लड़क को जीत सं ह क
शा गद और हफाजत म छोड़ दया।

भैरो सं ह और तारा सं ह ऐयार के फन म बड़े तेज और चालाक नकले। इनक ऐयार का


इि तहान बराबर लया जाता था। जीत सं ह का हु म था क भैरो सं ह औरतारा सं ह कुल
ऐयार को बि क अपने बाप तक को धोखा दे ने क को शश कर और इसी तरह प नालाल
वगैरह ऐयार भी उन दोन लड़क को भु लावा दया कर। धीरे -धीरे ये दोन लड़के इतने तेज
और चालाक हो गये क प नालाल वगैरह क ऐयार इनके सामने दब गई।

भैरो सं ह और तारा सं ह, इन दोन म चालाक


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यादे कौन था इसके कहने क कोई ज रत नह ,ं
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आगे मौका पड़ने पर आप ह मालू म हो जायेगा, हां, इतना कह दे नoा ज र है क भैरो सं ह को
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इं जीत सं ह के साथ और तारा सं ह को आनंद सं ह केसाथgsयादे मु ह बत थी। चार लड़के
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हो शयार हु ए अथात इं जीत सं ह, भैरो सं ह और तारा सं ह क उ अ ारह वष क और
आनंद सं ह क उ पं ह वष क हु । इतने दन
4usतक चु नार रा य म बराबर शां त रह बि क
पछल तकल फ और महाराज शवद त d
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क शैतानी एक व न क तरह सभी के दल म रह
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गई।
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इं जीत सं ह को शकार tpका बहु त शौक था, जहां तक बन पड़ता वे रोज शकार खेला करते।
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एक दन कसी बनरखे ने हािजर होकर बयान कया क इन दन फलाने जंगल क शोभा
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खू ब बढ़ -चढ़ है और शकार के जानवर भी इतने आये हु ए ह क अगर वहां मह ना भर


टककर शकार खेला जाए तो भी न घटे और कोई दन खाल न जाए। यह सु न दोन भाई
बहु त खु श हु ए। अपने बाप राजा वीर सं ह से शकार खेलने क इजाजत मांगी और कहा क
''हम लोग का इरादा आठ दन तक जंगल म रहकर शकार खेलने का है।'' इसके जवाब म
राजा वीर सं ह ने कहा क ''इतने दन तक जंगल म रहकर शकार खेलने का हु म म नह ं
दे सकता - अपने दादा से पू छो, अगर वे हु म द तो कोई हज नह ं।''

यह सु नकर इं जीत सं ह और आनंद सं ह ने अपने दादा महाराज सु र सं ह के पास जाकर


अपना मतलब अज कया। उ ह ने खु शी से मंजू र कया और हु म दया क शकारगाह म
इन दोन के लए खेमा खड़ा कया जाय और जब तक ये शकारगाह म रह पांच सौ फौज
बराबर इनके साथ रहे ।
1. जंगल क हफाजत के लए जो नौकर रहते ह उनको बनरखे कहते ह। शकार खेलने का काम बनरख का ह है । ये लोग
जंगल म घू म-घू मकर और शकार जानवर के पैर के नशान देख और उसी अंदाज पर जाकर पता लगाते ह क शेर इ या द
कोई शकार जानवर इस जंगल म है या नह ,ं अगर है तो कहां है। बनरख का काम है क अपनी आंख से देख आंव तब
खबर कर क फलानी जगह पर शेर, चीता या भालू है ।

शकार खेलने का हु म पा इं जीत सं ह और आनंद सं ह बहु त खु श हु ए और अपने


दोन ऐयार
भैरो सं ह और तारा सं ह को साथ ले मय पांच सौ फौज के चु नार सेरवाना हु ए।

चु नार से पांच कोस द ण एक घने और भयानक जंगल म पहु ंचकर उ ह ने डेरा डाला। दन
थोड़ा बाक रह गया इस लए यह राय ठहर क आज आराम कर, कल सबेरे शकार का
बंदोब त कया जाय मगर बनरख को शेर का पता लगाने के लए आज ह कह दया
जायगा। भसा1 बांधने क ज रत नह ं, शेर का शकार पैदल ह कया जायगा।

दू सरे दन सबेरे बनरख ने हािजर होकर उनसे अज कया क इस जंगल म शेर तो ह मगर
रात हो जाने के सबब हम लोग उ ह अपनी आंख से न दे ख सके, अगर आज के दन शकार
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न खेला जाय तो हम लोग दे खकर उनका पता दे सकगे। o t
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आज के दन भी शकार खेलना बंद कया गया। पहरlo भर दन बाक रहे इं जीत सं ह और
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आनंद सं ह घोड़ पर सवार हो अपने दोन ऐयार s
4 u को साथ ले घू मने और दलबहलाने के लए
डेरे से बाहर नकले और टहलते हु ए दू रi तक चले गए।दू सरे जब मचान बांधकर शेर का
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शकार कया चाहते ह या एक जंh i
गल से दू सरे जंगल म अपने सु बीते के लए उसे ले जाया
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चाहते ह तब इसी तरह भसे
p :/बांधकर हटाते जाते ह। इनको शकार लोग 'मर ' भी कहते ह।
tt बांधा जाता है। भसा बांधने के दो कारण ह।एक तो शकार को अटकाने के लए अथात जब
hभसा
1. खास शेर के शकार म
बनरखा आकर खबर दे क फलाने जंगल म शेर है उस व त या कई दन तक अगर शकार खेलने वाले को कसी कारण
शकार खेलने क फुरसत न हु ई और शेर को अटकाना चाहा तो भसा बांधने काहु म दया जाता है । बनरखे भसा ले जाते
ह और िजस जगह शेर का पता लगता है, उसके पास ह कसी भयानक और सायेदार जंगल या नाले म मबजू त खू ंटा गाड़कर
भसे को बांध दे ते ह। जब शेर भसे क बू पाता है तो वह ं आता हैऔर भसे को खाकर उसी जंगल म कई दन तक म त
और बे फ पड़ा रहता है । इस तरक ब से दो-चार भसा देकर मह न शेर को अटका लया जाता है । शेर को जब तक खाने के
लए मलता है वह दू सरे जंगल म नह ं जाता। शेर का पेट अगरएक दफे खू ब भर जाए तो उसे सात-आठ दन तक खाने
क परवाह नह ं रहती। खु ले भसे को शेर ज द नह ं मार सकता।

ये लोग धीरे -धीरे टहलते और बात करते जा रहे थे क बा तरफ से शेर के गजने क आवाज
आई िजसे सु नते ह चार अटक गये और घू मकर उस तरफ दे खने लगे िजधर से आवाज आई
थी।

लगभग दो सौ गज क दू र पर एक साधु शेर पर सवार जाता दखाई पड़ा िजसक लंबी-लंबी


और घनी जटाएं पीछे क तरफ लटक रह थीं - एक हाथ म शू ल, दू सरे म शंख लए हु ए
था। इसक सवार का शेर बहु त बड़ा था और उसके गदन के बाल जमीन तक लटक रहे थे।

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इसके आठ-दस हाथ पीछे एक शेर और जा रहा था िजसक पीठ पर आदमी के बदले बोझ
लदा हु आ नजर आया, शायद यह असबाब उ ह ं शेर-सवार महा मा का हो।

शाम हो जाने के सबब साधु क सू रत साफ मालू म न पड़ी तो भी उसे दे ख इन चार को बड़ा
ह ता जु ब हु आ और कई तरह क बात सोचने लगे।

इं - इस तरह शेर पर सवार होकर घू मना मु ि कल है।

आनंद - कोई अ छे महा मा मालू म होते ह।

भैरो - पीछे वाले शेर को दे खए िजस पर असबाब लदा हु आ है, कस तरह भेड़ क तरह सर
नीचा कये जा रहा है।

तारा - शेर को बस म कर लया है।


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इं - जी चाहता है उनके पास चलकर दशन कर। o t
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आनंद - अ छ बात है , च लए पास से दे ख, कैसा शेर है।l
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तारा - बना पास गए महा मा और पाख डी म भेद न मालू म होगा।
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भैरो - शाम तो हो गई है , खैर /
च लए आगे से बढ़कर रोक।
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ht रोकने से बु रा न मान!
आनंद - आगे से चलकर

भैरो - हम ऐयार का पेशा ह ऐसा है क पहले तो उनका साधु होना ह व वास नह ं करते!

इं - आप लोग क या बात है िजनक मू ंछ हमेशा ह मु ंड़ी रहती है, खैर च लए तो सह ।

भैरो - च लए।

चार आदमी आगे चलकर बाबाजी के सामने गए जो शेर पर सवार जा रहे थे। इन लोग को
अपने पास आते दे खकर बाबाजी क गए। पहले तो इं जीत सं ह और आनंद सं ह के घोड़े शेर
को दे खकर अड़े मगर फर ललकारने से आगे बढ़े । थोड़ी दू र जाकर दोन भाई घोड़ के ऊपर
से उतर पड़े, भैरो सं ह और तारा सं ह नेदोन घोड़ को पेड़ से बांध दया, इसके बाद पैदल ह
चार आदमी महा मा के पास पहु ंचे।

बाबाजी - (दू र से ह ) आओ राजकुमार इं जीत सं ह और आनंद सं ह - कहो कुशल तो है!

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इं - ( णाम करके) आपक कृ पा से सब मंगल है।

बाबा - (भैरो सं ह और तारा सं ह क तरफ दे खकर) कहो भैरो और तारा, अ छे हो

दोन - (हाथ जोड़कर) आपक दया से!

बाबा - राजकुमार, म खु द तु म लोग के पास जाने को था य क तु मने शेरका शकार करने


के लए इस जंगल म डेरा डाला है। म गरनार जा रहा हू,ं घू मता- फरता इस जंगल म भी आ
पहु ंचा। यह जंगल अ छा मालू म होता है इस लएदो-तीन दन तक यहां रहने का वचार है,
कोई अ छ जगह दे खकर धू नी लगाऊंगा। मेरे साथ सवार और असबाब लादने के कई शेर ह,
इस लए कहता हू ं क धोखे म मेरे कसी शेर को मत मारना नह ं तो मु ि कल होगी, सैकड़
शेर पहु ंचकर तु हारे ल कर म हलचल मचा डालगे और बहु त क जान जायगी। तु म तापी
राजा सु र संह1 के लड़के हो इस लए तु ह पहले ह से समझा दे ना मु ना सब है िजससे कसी
तरह का दु ख न हो।
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- महाराज म कैसे जानू ंगा क यह आपका शेर है ऐसा ह है तो शकार न खेलू ंगा।
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बाबा - नह ं, तु म शकार खेलो, मगर मेरे शेर को मत मारो!

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इं - मगर यह कैसे मालू म होगा क n d शेर आपका है
फलाना
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/ बु लाता हू ं पहचान लो।
बाबा - दे खो म अपने शेर :को
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बाबाजी ने शंख बजाया। भार शंख क आवाज चार तरफ जंगल म गू ंज गई और हर तरफ
से गु राहट क आवाज आने लगी। थोड़ी ह दे र म इधर-उधर से दौड़ते हु ए पांच शेर और आ
पहु ंचे। ये चार दलावर और बहादु र थे, अगर कोई दू सरा होता तो डर से उसक जान नकल
जाती। इं जीत सं ह और आनंद सं ह के घोड़े शेर कोदे खकर उछलने-कूदने लगे मगर रे शम क
मजबू त बागडोर से बंधे हु ए थे इससे भाग न सके। इन शेर ने आकर बड़ी ऊधम मचाई -
इं जीत सं ह वगैरह को दे ख गरजने-कूदने और उछलने लगे, मगर बाबाजी के डांटते ह सब ठं डे
हो सर नीचा कर भेड़-बकर क तरह खड़े हो गए।

बाबा - दे खो इन शेर को पहचान लो, अभी दो-चार और ह, मालू म होता है उ ह ने शंख क


आवाज नह ं सु नी। खैर अभी तो म इसी जंगल म हू, ं उन बाक शेर को भी दखला दू ं गा -
कल भर शकार और बंद रखो।

भैरो - फर आपसे मु लाकात कहां होगी आपक धू नी कस जगह लगेगी

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बाबा - मु झे तो यह जगह आनंद क मालू म होती है, कल इसी जगह आना मु लाकात होगी।

बाबाजी शेर से नीचे उतर पड़े और िजतने शेर उस जगह आए थे वे सब बाबाजी के चार
तरफ घू मने तथा मु ह बत से उनके बदन को चाटने और सू ंघने लगे। ये चार आदमी थोड़ी दे र
तक वहां और अटकने के बाद बाबाजी से वदा हो खेमे म आये।

जब स नाटा हु आ तो भैरो सं ह ने इं जीत सं ह से कहा


, ''मेरे दमाग म इस समय बहु त - सी
बात घू म रह ह। म चाहता हू ं क हम लोग चार आदमी एकजगह बैठ कुमेट कर कुछ
राय प क कर।''

इं जीत सं ह ने कहा, ''अ छा, आनंद और तारा को भी इसी जगह बु लाओ।''

1. साधु महाराज भू ल गए, वीर सं ह क जगह सु र सं ह का नाम ले बैठे।

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भैरो सं ह गये और आनंद सं ह तथा तारा सं ह को उसी जगह बु ला लाए। उस व त सवाय इन
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चार के उस खेमे म और कोई न रहा। भैरो सं ह ने अपने दल का
s po हाल कहा िजसे सभी ने
बड़े गौर से सु ना, इसके बाद पहर भर तक कुमेट करके g
l o न चय कर लया क या करना
चा हए।
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यह कुमेट कैसी हु ई, भैरो सं ह का या d i4 हु आ और उ ह ने या न चय कया तथा रात
इरादा
भर ये लोग या करते रहे इसके h in क कोई ज रत नह ं, समय पर सब खु ल जायगा।
कहने
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सबेरा होते ह चार आदमीtp खेमे के बाहर हु ए और अपनी फौज के सरदार कंचन सं हको बु ला
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कुछ समझा, बाबाजी क तरफ रवाना हु ए। जब ल कर से दू र नकल गए, आनंद सं ह, भैरो सं ह
और तारा सं ह तो तेजी के साथ चु नार क तरफ रवाना हु ए और इं जीत सं ह अकेले बाबाजी से
मलने गये।

बाबाजी शेर के बीच धू नी रमाये बैठे थे। दो शेर उनके चार तरफ घू म-घू मकर पहरा दे रहे
थे। इं जीत सं ह ने पहु ंचकर णाम कया और बाबाजी नेआशीवाद दे कर बैठने के लए कहा।

इं जीत सं ह ने ब न बत कल के आज दो शेर और यादे दे खे। थोड़ी दे र चु प रहने के बाद


बातचीत होने लगी।

बाबा - कहो इं जीत सं ह, तु हारे भाई और ऐयार कहां रह गए, वे नह ं आए

इं - हमारे छोटे भाई आनंद सं ह को बु खार आ गया, इस सबब से वह नह ं आ सका। उसी क


हफाजत म दोन ऐयार को छोड़ म अकेला आपके दशन को आया हू ं।

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बाबा - अ छा या हज है, आज शाम तक वह अ छे हो जायंगे, कहो आजकल तु हारे रा य
म कुशल तो है

इं - आपक कृ पा से सब आनंद है।

बाबा - बेचारे वीर सं ह ने भी बड़ा क ट पाया। खैर जो हो दु नया मउनका नाम रह जायगा।
इस हजार वष के अंदर कोई ऐसा राजा नह ं हु आ िजसने त ल म तोड़ा हो। एक और
त ल म है, असल म वह भार और तार फ के लायक है।

इं - पताजी तो कहते ह क वह त ल म तेरे हाथ से टू टे गा।

बाबा - हां ऐसा ह होगा, वह ज र तु हारे हाथ से फतह होगा इसम कोई संदेह नह ं।

इं - दे ख कब तक ऐसा होता है, उसक ताल का तो पता ह नह ं लगता।

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बाबा - ई वर चाहे गा तो एक ह दो दन म तु म उस त ल म कोoतोड़ने म हाथ लगा दोगे,
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उस त ल म क ताल म हू,ं कई पु त से हम लोग उस g तsल म के दारोगा होते चले आए
b lथेo, जब मेरे पता का दे हांत होने लगा
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ह। मेरे परदादा, दादा और बाप उसी त ल म के दारोगा
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4u दारोगा मु करर कर दया। अब व त आ
तब उ ह ने उसक ताल मेरे सु पु द कर मु झे उसका
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गया है क म उसक ताल तु हारे हवाले
i nd क ं य क वह त ल म तु हारे नाम पर बांधा
गया है और सवाय तु हारे कोई / h
दूसरा उसका मा लक नह ं बन सकता।
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इं - तो अब दे र या
ht है।
बाबा - कुछ नह ,ं कल से तु म उसके तोड़ने म हाथ लगा दो, मगर एक बात तु हारे फायदे क
हम कहते ह।

इं - वह या

बाबा - तु म उसके तोड़ने म अपने भाई आनंद को भी शर क कर लो, ऐसा करने से दौलत भी
दू नी मलेगी और नाम भी दोन भाइय का दु नया म हमेशा के लए बना रहे गा।

इं - उसक तो त बयत ह ठ क नह !ं

बाबा - या हज है ! तु म अभी जाकर िजस तरह बने उसे मेरे पास ले आओ, म बात क बात
म उसको चंगा कर दू ं गा। आज ह तु म लोग मेरे साथ चलो िजससे कल त ल म टू टने म
हाथ लग जाय, नह ं तो साल भर फर मौका न मलेगा।

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इं - बाबाजी, असल तो यह है क म अपने भाई क बढ़ती नह ं चाहता, मु झे यह मंजू र नह ं
क मेरे साथ उसका भी नाम हो।

बाबा - नह ं-नह ,ं तु ह ऐसा न सोचना चा हए, दु नया म भाई से बढ़ के कोई र न नह ं है।

इं - जी हां, दु नया म भाई से बढ़ के र न नह ं तो भाई से बढ़ के कोई दु मन भी नह ं, यह


बात मेरे दल म ऐसी बैठ गई है क उसके हटाने के लए मा भी आकर समझाव-बु झाव
तो भी कुछ नतीजा न नकलेगा।

बाबा - बना उसको साथ लये तु म त ल म नह ं तोड़ सकते।

इं - (हाथ जोड़कर) बस तो जाने द िजये, माफ क िजये, मु झे त ल म तोड़ने क ज रत


नह 1ं

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बाबा - या तु ह इतनी िजद है
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इं - म कह जो चु का क g
मा भी मेर राय पलट नह ं सकते।
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बाबा - खैर तब तु ह ं चलो, मगर इसी व त चलना
4us होगा।
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इं - हां, हां, म तैयार हू,ं अभी च लए।
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बाबाजी उसी समय उठ p :
t t खड़े हु ए। अपनी गठड़ी-मु टड़ी बांध एक शेर पर लाद दया तथा दू सरे
पर आप सवार होhगए। इसके बाद एक शेर क तरफ दे खकर कहा, ''ब चा गंगाराम, यहां तो
आओ!'' वह शेर तु रंत इनके पास आया। बाबाजी ने इं जीत सं हसे कहा, ''तु म इस पर सवार हो
लो।'' इं जीत सं ह कूदकर सवार हो गये और बाबाजी के साथ-साथ द ण का रा ता लया।
बाबाजी के साथी शेर भी कोई आगे, कोई पीछे , कोई बाय, कोई दा हने हो बाबाजी के साथ
जाने लगे।

सब शेर तो पीछे रह गये मगर दो शेर िजन पर बाबाजी और इं जीत सं ह सवार थे आगे
नकल गये। दोपहर तक ये दोन चलते गये। जब दन ढलने लगा बाबाजी ने इं जीत सं ह से
कहा, ''यहां ठहरकर कुछ खा-पी लेना चा हए।'' इसके जवाब म कुमार बोले, ''बाबाजी, खाने-पीने
क कोई ज रत नह ं। आप महा मा ह ठहरे , मु झे कोई भू ख नह ं लगी है, फर अटकने क
या ज रत है िजस काम म पड़े उसम सु ती करना ठ क नह !ं ''

बाबाजी ने कहा, ''शाबाश! तु म बड़े बहादु र हो, अगर तु हारा दल इतना मजबू त न होता तो
त ल म तु हारे ह हाथ से टू टे गा, ऐसा बड़े लोग न कह जाते, खैर चलो।''

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कुछ दन बाक रहा जब ये दोन एक पहाड़ी के नीचे पहु ंचे। बाबाजी ने शंख बजाया, थोड़ी ह
दे र म चार तरफ से सैकड़ पहाड़ी लु टेरे हाथ म बरछे लये आते दखाई पड़े और ऐसे ह
बीस-पचीस आद मय को साथ लए पू रब तरफ से आता हु आ राजा शवद त नजर पड़ा िजसे
दे खते ह इं जीत सं ह ने ऊंची आवाज म कहा, ''इनको म पहचान गया, यह महाराज शवद त
ह। इनक त वीर मेरे कमरे म लटक हु ई है। दादाजी ने इनक त वीर मु झे दखाकर कहा था
क हमारे सबसे भार दु मन ह महाराज शवद त ह। ओफ ओह, हक कत म बाबाजी ऐयार ह
नकले, जो सोचा था वह हु आ! खैर या हज है, इं जीत सं ह को गर तार कर लेना जरा टे ढ़
खीर है!!''

शवद त - (पास पहु ंचकर) मेरा आधा कलेजा तो ठं डा हु आ, मगर अफसोस तु म दोन भाई
हाथ न आये।

इं - जी इस भरोसे न र हयेगा क इं जीत सं ह को फंसा लया। उनक तरफ बु र नगाह से


दे खना भी काम रखता है! .in
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ंथकता - भला इसम भी कोई शक है!!
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इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शवद त का भी बयान करना मु ना सब मालू म होता है।
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t तरह से कुं अर वीर सं ह के मु का बले महार माननी पड़ी। लाचार
महाराज शवद त कोtहर
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उसने शहर छोड़ दया और अपने कई पु राने खैर वाह के साथ चु नार के दि खन क तरफ
रवाना हु आ।

चुनार से थोड़ा ह दू र दि खन म लंबा-चौड़ा जंगल है। यह वं य के पहाड़ी जंगल का


सल सला राब सगंज, सरगु जा और सं गरौल होता हु आ सैकड़ कोस तक चला गया है िजसम
बड़े-बड़े पहाड़, घा टयां, दर और खोह पड़ते ह। बीच म दो-दो चार-चार कोस के फासले पर गांव
भी आबाद ह। कह -ं कह ं पहाड़ पर पु राने जमाने के टू टे-फूटे आल शान कले अभी तक दखाई
पड़ते ह। चु नार से आठ-दस कोस द ण अहरौरा के पास पहाड़ पर पु राने जमाने के एक बबाद
कले का नशान आज भी दे खने से च त का भाव बदल जाता है। गौर करने से यह मालू म
होता है क जब यह कला दु त होगा तो तीन कोस से यादे लंबी-चौड़ी जमीन इसने घेर
होगी, आ खर म यह कला काशी के मशहू र राजा चेत सं ह के अ धकार म था। इ ह ं जंगल म
अपनी रानी और कई खैर वाह को मय उनक औरत और बाल-ब च के साथ लए घू मते-
फरते महाराज शवद त ने चु नार से लगभग पचास कोस दू र जाकर एक हर-भर सु हावनी
पहाड़ी के ऊपर के एक पु राने टू टे हु ए मजबू त कले म डेरा डाला और उसका नाम शवद तगढ़

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रखा िजसम उस व त भी कई कमरे और दालान रहने लायक थे। यह छोट पहाड़ी अपने चार
तरफ के ऊंचे पहाड़ के बीच म इस तरह छपी और दबी हु ई थी क यकायक कसी का यहां
पहु ंचना और कु छ पता लगाना मु ि कल था।

इस व त महाराज शवद त के साथ सफ बीस आदमी थे िजनम तीन मु सलमान ऐयार थे


जो शायद नािज़म और अहमद के र तेदार म से थे और यह समझकर महाराज शवद त के
साथ हो गये थे क इनके साथ मले रहने से कभी न कभी राजा वीर सं ह से बदला लेने का
मौका मल ह जायगा, दू सरे सवाय शवद त के और कोई इस लायक नजर भी न आता था
जो इन बेईमान को ऐयार के लए अपने साथ रखता। नीचे लखे नाम से तीन ऐयार पु कारे
जाते थे - बाकरअल , खु दाब श और यारअल । इन सब ऐयार और सा थय ने पये-पैसे से
भी जहां तक बन पड़ा महाराज शवद त क मदद क ।

राजा वीर सं ह क तरफ से शवद त का दल साफ न हु आ मगर मौका न मलनेके सबब

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मु त तक उसे चु पचाप बैठे रहना पड़ा। अपनी चालाक और हो शयार से वह पहाड़ी भील और
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खबार इ या द जा त के आद मय का राजा बन बैठा और उनसे
s poमालगु जार म ग ला, घी,
शहद और बहु त-सी जंगल चीज वसू ल करने और उ ह ं लोग
l og के मारफत शहर म भेजवा और
बकवाकर पया बटोरने लगा। उ ह ं लोग को हो शयार
s .b करके थोड़ी-बहु त फौज भी उसने बना
u हो गए और खु द शहर म जाकर ग ला
4शयार
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ल । धीरे -धीरे वे पहाड़ी जा त के लोग भी हो
वगैरह बेच पये इक ा करने लगे। i ndत भी अ छ तरह आबाद हो गया।
शवद
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इधर बाकरअल वगैरह ऐयार p :/ने भी अपने कुछ सा थय को जो चु नार से इनके साथ आए थे
ऐयार के फन म h
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खूtब हो शयार कया। इस बीच म एक लड़का और उसके बाद लड़क भी
महाराज शवद त के घर पैदा हु ई। मौका पाकर अपने बहु त-से आद मय और ऐयार को साथ
ले वह शवद तगढ़ के बाहर नकला और राजा वीर सं ह से बदला लेने क फ म कई
मह ने तक घू मता रहा। बस महाराज शवद त का इतना ह मु तसर हाल लखकर इस बयान
को समा त करते ह और फर इं जीत सं ह के क से को छे ड़ते ह।

इं जीत सं ह के गर तार होने के बाद उन बनावट शेर ने भी अपनी हालत बदल और


असल सू रत के ऐयार बन बैठे िजनम यारअल , बाकरअल और खु दाब श मु खया थे।
महाराज शवद त बहु त ह खु श हु आ और समझा क अब मेरा जमाना फरा, ई वर चाहे गा
तो म फर चु नार क ग ी पाऊंगा और अपने दु मन से पू राबदला लू ंगा।

इं जीत सं ह को कैद कर वह शवद तगढ़ को ले गया। सभ को ता जु ब हु आ ककुं अर


इं जीत सं ह ने गर तार होते समय कुछ उ पात न मचाया, कसी पर गु सा न नकाला, कसी
पर हरबा न उठाया, यहां तक क आंख म रं ज-अफसोस या ोध भी जा हर न होने दया।
हक कत म यह ता जु ब क बात थी भी क बहादु र वीर सं ह का शेर दल लड़का ऐसी हालत

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म चु प रह जाय और बना हु जत कए बेड़ी प हर ले, मगर नह ,ं इसका कोई सबब ज र है
जो आगे चलकर मालू म होगा।

बयान -3

चु नारगढ़ कले के अंदर एक कमरे म महाराज सु र सं ह, वीर सं ह, जीत सं ह, तेज सं ह, दे वी सं ह,


इं जीत सं ह और आनंद सं ह बैठे हु ए कुछ बातकर रहे ह।

जीत - भैरो ने बड़ी हो शयार का काम कया क अपने को इं जीत सं ह क सू रत बना


शवद त के ऐयार के हाथ फंसाया।

सु र - शवद त के ऐयार ने चालाक तो क थी मगर...

वीर - बाबाजी शेर पर सवार हो स बने तो ले कन अपना काम स t .iनnकर सके।


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इं - मगर जैसे हो भैरो सं ह को अब बहु त ज द छुड़ानाoचा हए।
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जीत - कुमार, घबराओ मत, तु हारे दो त को u
i 4 कसी तरह क तकल फ नह ं हो सकती, ले कन
अभी उसका शवद त के यहां फंसे ह रहना
i nd मु ना सब है। वह बेवकूफ नह ं है, बना मदद के
आप ह छूटकर आ सकता है/ ,h तस पर प नालाल, रामनारायण, चु नीलाल, ब नाथ और
यो तषीजी उसक मददpको
/
: भेजे ह गये ह, दे खो तो या होता है! इतने दन तक चु पचाप
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बैठे रहकर शवद तhtने फर अपनी खराबी कराने पर कमर बांधी है।
दे वी - कुमार के साथ जो फौज शकारगाह म गई है उसके लए अब या हु म होता है

जीत - अभी शकारगाह से डेरा उठाना मु ना सब नह ं। (तेज सं ह क तरफ दे खकर) य तेज

तेज - (हाथ जोड़कर) जी हां, शकारगाह म डेरा कायम रहने से हम लोग बड़ी खू बसू रती और
द लगी से अपना काम नकाल सकगे।

सु र - कोई ऐयार शवद तगढ़ से लौटे तो कुछ हाल-चाल मालू म हो।

तेज - कल तो नह ं मगर परस तक कोई न कोई ज र आयेगा।

पहर भर से यादे दे र तक बातचीत होती रह । कुल बात को खोलना हम मु ना सब नह ं


समझते बि क आ खर बात का पता तो हम भी न लगा जो मज लस उठने के बाद जीत सं ह
ने अकेले म तेज सं ह को समझाई थी। खैर जाने द िजए, जो होगा दे खा जायगा, ज द या है।

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गंगा के कनारे ऊंची बारहदर म इं जीत सं ह और आनंद सं ह दोन भाई बैठे जल क कै फयत
दे ख रहे ह। बरसात का मौसम है, गंगा खू ब बढ़ हु ई ह, कले के नीचे जल पहु ंचा है, छोट -छोट
लहर द वार म ट कर मार रह ह, अ त होते हु ए सू य क ला लमा जल म पड़कर लहर क
शोभा दू नी बढ़ा रह है। स नाटे का आलम है, इस बारहदर म सवाय इन दोन भाइय के
कोई तीसरा दखाई नह ं दे ता।

इं - अभी जल कुछ और बढ़े गा।

आनंद - जी हां, परसाल तो गंगा आज से कह ं यादे बढ़ हु ई थीं जब दादाजी ने हम लोग


को तैरकर पार जाने के लए कहा था।

इं - उस दन भी खू ब ह द लगी हु ई, भैरो सं ह सभ म तेज रहा, ब नाथ ने कतना ह


चाहा क उसके आगे नकल जाय मगर न हो सका।

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आनंद - हम दोन भी कोस भर तक उस क ती के साथ ह गए जो हम लोग क
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के लए संग गई थी। s p
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इं s .
- बस वह तो हम लोग का आ खर इि तहान रहा, फर जब से जल म तैरने क नौबत
ह कहां आई। i 4u
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आनंद - कल तो मने दादाजी / h i
से कहा था क आजकल गंगाजी खू ब बढ़ हु ई ह तैरने को जी
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चाहता है।
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इं - तब या बोले

आनंद - कहने लगे क बस अब तु म लोग का तैरना मु ना सब नह ं है, हंसी होगी। तैरना भी


एक इ म है िजसम तु म लोग हो शयार हो चु के, अब या ज रत है ऐसा ह जी चाहे तो
क ती पर सवार होकर जाओ सैर करो।

इंद - उ ह ने बहु त ठ क कहा, चलो क ती पर थोड़ी दू र घू म आय।

बातचीत हो ह रह थी क चोबदार ने आकर अज कया, ''एक बहु त बू ढ़ा जौहर हािजर है,


दशन कया चाहता है।''

आनंद - यह कौन-सा व त है

चोबदार - (हाथ जोड़कर) ताबेदार ने तो चाहा था क इस समय उसे बदा करे मगर यह
खयाल करके ऐसा करने का हौसला न पड़ा क एक तो लड़कपन ह से वह इस दरबार का

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नमक वार है और महाराज क भी उस पर नगाह रहती है, दू सरे अ सी वष का बु ढा है,
तीसरे कहता है क अभी इस शहर म पहु ंचा हू, ं महाराज का दशन कर चु का हू,ं सरकार के भी
दशन हो जायं तब आराम से सराय म डेरा डालू ं और हमेशा से उसका यह द तू र भी है।

इं - अगर ऐसा है तो उसे आने ह दे ना मु ना सब है।

आनंद - अब आज क ती पर सैर करने का रं ग नजर नह ं आता।

इं - या हज है, कल सह ।

चोबदार सलाम करके चला गया और थोड़ी दे र म सौदागर को लेकर हािजर हु आ। हक कत म


वह सौदागर बहु त ह बु ढा था, रे यासत और शराफत उसके चेहरे से बरसती थी। आते ह
सलाम करके उसने दोन भाइय को दो अंगू ठयां द ं और कबू ल होने के बाद इशारा पाकर
जमीन पर बैठ गया।
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इस बु ढे जौहर क इ जत क गई, मजाज का हाल तथा सफर क कै फयत पू छने के बाद
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डेरे पर जाकर आराम करने और कल फर हािजर होने का
l o हु म हु आ। सौदागरसलाम करके
चला गया। s .b
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सौदागर ने जो दो अंगू ठयां दोन भाइय
i nd को नजर क थीं उनम आनंद सं ह क अंगू ठ पर
नहायत खु शरं ग मा नक जड़ा / हुh
आ था और इं जीत सं ह क अंगू ठ पर सफ एक छोट -सी
त वीर थी िजसे एक दफp
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े :नगाह भरकर इं जीत सं ह ने दे खा और कुछ सोच चु प हो रहे ।
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एकांत होने पर रात को शमादान क रोशनी म फर उस अंगू ठ को दे खा िजसम नगीने क
जगह एक कम सन हसीन औरत क त वीर जड़ी हु ई थी। चाहे यह त वीर कतनी ह छोट
य न हो मगर मु स वर ने गजब क सफाई इसम खच क थी। इसे दे खते-दे खते एक मरतबे
तो इं जीत सं ह क यह हालत हो गई क अपने को और उस औरत क त वीर को भू ल गए,
मालू म हु आ क वयं वह नाजनीन इनके सामने बैठ है और यह उससे कुछ कहा चाहते ह
मगर उसके हु न के आब म आकर चु प रह जाते ह। यकायक यह च क पड़े और अपनी
बेवकूफ पर अफसोस करने लगे, ले कन इससे या होता है उस त वीर ने तो एक ह सायत
म इनके लड़कपन को धू ल म मला दया और नौजवानी क द वानी सू रत इनके सामने खड़ी
कर द । थोड़ी दे र पहले सवार , शकार, कसरत वगैरह के पेचीले कायदे दमाग म घू म रहे थे,
अब ये एक दू सर ह उलझन म फंस गये और दमाग कसी अ वतीय र न के मलने क
फ म गोते खाने लगा। महाराज शवद त क तरफ से अब या ऐयार होती है, भैरो सं ह
य कर और कब कैद से छूटते ह, दे ख ब नाथ वगैरह शवद तगढ़ म जाकर या करते ह,
अब शकार खेलने क नौबत कब तक आती है, एक ह तीर म शेर को गरा दे ने का मौका

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कब मलता है, क ती पर सवार हो द रया क सैर करने कब जाना चा हए इ या द खयाल
को भू ल गए। अब तो यह फ पैदा हु ई क सौदागर को यह अंगठू य कर हाथ लगी यह
त वीर खयाल है या असल म कसी ऐसे क है जो इस दु नया म मौजू द है या सौदागर
उसका पता- ठकाना जानता होगा खू बसू रती क इतनी ह ह है या और भी कुछ है नजाकत,
सु डौल और सफाई वगैरह का खजाना यह है या कोई और इसक मोह बत के द रया म
हमारा बेड़ा य कर पार होगा

कुं अर इं जीत सं ह ने आज बहाना करना भी सीख लया और घड़ी ह भर मउ ताद हो गए,


पेट फूला है भोजन न करगे, सर म दद है, कसी का बोलना बु रा मालू म होता है, स नाटा हो
तो शायद नींद आए, इ या द बहान से उ ह ने अपनी जान बचाई और तमाम रात चारपाई पर
करवट बदल-बदलकर इस फ म काट क सबेरा हो तो सौदागर को बु लाकर कुछ पू छ।

सबेरे उठते ह जौहर को हािजर करने का हु म दया, मगर घंटे भर के बाद चोबदार ने वापस
आकर अज कया क सराय म सौदागर का पता नह ं लगता। .in
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इं - उसने अपना डेरा कहां पर बतलाया था
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चोब - ताबेदार को तो उसक जु बानी यह मालू s
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4uम हु आ था क सराय म उतरे ग,ा मगर वहां

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द रया त करने से मालू म हु आ क यहां कोई i सौदागर नह ं आया।
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इं - कसी दू सर जगह उतरा /
: / हो, पता लगाओ।
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''बहु त खू ब'' कहकरhचोबदार तो चला गया मगर इं जीत सं ह कुछ तर दु म पड़ गये। सर
नीचा करके सोच रहे थे क कसी के पैर क आहट ने च का दया, सर उठाकर दे खा तो
कुं अर आनंद सं ह।

आनंद - नान का तो समय हो गया।

इं - हां, आज कुछ दे र हो गई।

आनंद - तबीयत कुछ सु त मालू म होती है

इं - रातभर सर म दद था।

आनंद - अब कैसा है

इं - अब तो ठ क है।

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आनंद - कल कुछ झलक-सी मालू म पड़ी थी क उस अंगू ठ म कोई त वीर जड़ी हु ई है तो
उस जौहर ने नजर क थी।

इं - हां थी तो।

आनंद - कैसी त वीर है

इं - न मालू म वह अंगू ठ कहां रख द क मलती ह नह ं। मने भी सोचा था क दन को


अ छ तरह दे खू ंगा मगर...

ंथकता - सच है, इसक गवाह तो म भी दू ं ग!ा

अगर भेद खु ल जाने का डर न होता तो कुं अर इं जीत सं ह सवा ''ओफ'' करने और लंबी-लंबी
सांस लेने के कोई दू सरा काम न करते मगर या कर, लाचार से सभी मामू ल काम और
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अपने दादा के साथ बैठकर भोजन भी करना पड़ा, हां शाम को इनक बेचैनी बहु त बढ़ गई
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जब सु ना क तमाम शहर छान डालने पर भी उस जौहर का कह ं पता न लगा और यह भी
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मालू म हु आ क उस जौहर ने ब कुल झू ठ कहा था कo महाराज का दशन कर आया हू,ं अब
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कुमार के दशन हो जायं तब आराम से सराय मsडे.रb ा डालू,ं वह वा तव म महाराज सु र सं ह
और वीर सं ह से नह ं मला था। i 4u
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तीसरे दन इनको बहु त ह उदास / hदे ख आनंद सं ह ने क ती पर सवार होकर गंगाजीक सैर
करने और दल बहलाने p
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के : लए िजद क , लाचार उनक बात माननी ह पड़ी।
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एक छोट -सी खू बसू रत और तेज जाने वाल क ती पर सवार हो इं जीत सं ह ने चाहा क
कसी को साथ न ले जायं सफ दोन भाई ह सवार ह और खेकर द रया क सैर कर।
कसक मजाल थी जो इनक बात काटता, मगर एक पु राने खदमतगार ने िजसने क
वीर सं ह को गोद म खलाया था और अब इन दोन के साथ रहता था ऐसा करने से रोका
और जब दोन भाइय ने न माना तो वह खु द क ती पर सवार हो गया। पु राना नौकर होने
के खयाल से दोन भाई कुछ न बोले, लाचार साथ ले जाना ह पड़ा।

आनंद - क ती को धारा म ले जाकर बहाव पर छोड़ द िजए - फर खेकर ले आवगे।

इं - अ छ बात है।

सफ दो घंटे दन बाक था जब दोन भाई क ती पर सवार हो द रया क सैर करने को गए


य क लौटते समय चांदनी रात का भी आनंद लेना मंजू र था।

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चु नार से दो कोस पि चम गंगा के कनारे पर एक छोटा-सा जंगल था। जब क ती उसके
पास पहु ंची, वंशी क और साथ ह गाने क बार क सु र ल आवाज इन लोग के कान म पड़ी।
संगीत एक ऐसी चीज है क हर एक के दल को, चाहे वह कैसा ह नासमझ य न हो,
अपनी तरफ खच लेती है, यहां तक क जानवर भी इसके वश म होकर अपने को भू ल जाता
है। दो-तीन दन से कुं अर इं जीत सं ह का दलचु ट ला हो रहा था, द रया क बहार दे खना तो
दूर रहा इ ह अपने तनोबदन क भी सु ध न थी। ये तो अपनी यार त वीर क धु न म सर
झु काए बैठे कुछ सोच रहे थे, इनके हसाब से चार तरफ स नाटा था, मगर इस सु र ल आवाज
ने इनक गदन घु मा द और उस तरफ दे खने को मजबू र कया िजधर से वह आ रह थी।

कनारे क तरफ दे खने से यह तो मालू म न हु आ क वंशी बजाने या गाने वाला कौनहै मगर
इस बात का अंदाजा ज र मल गया क वे लोग बहु त दू र नह ं ह िजनकेगाने क आवाज
सु नने वाल पर जादू का-सा असर कर रह है।

इं जीत - आहा, या सु र ल आवाज है! .i n


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आनंद - दू सर आवाज आई। बे शक कई औरत मलकर गा-बजा रह ह।
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sता जु ब
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इंद - ( क ती का मु ंह कनारे क तरफ फेरकर) है क इन लोग ने गाने-बजाने और
दल बहलाने के लए ऐसी जगह पसंद क !i जरा दे खना चा हए।
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आनंद - या हज है च लए। /
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बू ढ़े खदमतगार नेh कनारे क ती लगाने और उतरने के लए मना कया और बहु तसमझाया
मगर इन दोन ने न माना, क ती कनारे लगाई और उतरकर उस तरफ चले िजधर से
आवाज आ रह थी। जंगल म थोड़ी ह दू र जाकर दस-पं ह नौजवान औरत का झु ंड नजर
पड़ा जो रं ग- बरं गी पोशाक और क मती जेवर से अपने हु न को दू ना कए ऊंचे पेड़ से
लटकते हु ए एक झू ले को झु ला रह थीं। कोई वंशी कोई मृ दं गी बजाती, कोई हाथ से ताल दे -
दे कर गा रह थी। उस हं डोले पर सफ एक ह औरत गंगा क तरफ ख कए बैठ थी। ऐसा
मालू म होता था मानो प रयां सा ात ् कसी दे वक या को झु ल-झु
ा ला और गा-बजाकर इस लए
स न कर रह ह क खू बसू रती बढ़ने और नौजवानी के ि थर रहने का वरदान पाव। मगर
नह ,ं उनके भी दल क दल ह म रह और कुं अर इं जीत सं ह तथा आनंद सं ह को आतेदे ख
हं डोले पर बैठ हु ई नाजनीन को अकेल छोड़ न जाने य भाग ह जानापड़ा।

आनंद - भैया, यह सब तो भाग गयीं!

इं - हां, म इस हं डोले के पास जाता हू ं, तु म दे खो ये औरत कधर गयीं

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आनंद - बहु त अ छा।

चाहे जो हो मगर कुं अर इं जीत सं ह ने उसे पहचान ह लया जो हं डोले परअकेल रह गई


थी। भला यह य न पहचानते जौहर क नजर द हु ई अंगू ठ पर उसक त वीर दे ख चु के
थे, इनके दल म उसक त वीर खु द गई थी, अब तो मु ंहमांगी मु राद पाई, िजसके लए अपने
को मटाना मंजू र था, उसे बना प र म पाया, फर या चा हए!

आनंद सं ह पता लगाने के लए उन औरत के पीछे गए मगर वे ऐसी भागीं क झलक तक


दखाई न द , लाचार आधे घंटे तक हैरान होकर फर उस हं डोले के पास पहु ंचे। हं डोले पर
बैठ हु ई औरत को कौन कहे अपने भाई को भी वहां न पाया। घबड़ाकर इधर-उधर ढू ं ढ़ने और
पु कारने लगे, यहां तक क रात हो गई और यह सोचकर क ती के पास पहु ंचे क शायद वहां
चले गये ह , ले कन वहां भी सवाय उस बू ढ़े खदमतगार के कसी दू सरे को न दे खा। जी
बेचैन हो गया, खदमतगार को सब हाल बताकर बोले, ''जब तक अपने यारे भाई का पता न
लगा लू ंगा घर न जाऊंगा, तू जाकर यहां का हाल सभ को खबर कर दे ।'' .in
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खदमतगार ने हर तरह से आनंद सं ह को समझाया और घर चलने के लए कहा मगर कुछ
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फायदा न नकला। लाचार उसने क ती उसी जगह छोड़ी और पैदल रोता-कलपता कले क
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तरफ रवाना हु आ
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य क यहां जो कुछ हो चु का था उसका हाल राजावीर सं ह से कहना भी
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उसने आव यक समझा।

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ht बयान -4

खदमतगार ने कले म पहु ंचकर और यह सु नकर क इस समय दोन राजा एक ह जगहबैठे


ह कुं अर इं जीत सं ह के गायब होने का हाल और सबब जो कुं अर आनंद सं ह क जु बानी सु ना
था महाराज सु र सं ह और वीर सं ह के पासहािजर होकर अज कया। इस खबर के सु नते ह
उन दोन के कलेजे म चोट-सी लगी। थोड़ी दे र तक घबड़ाहट के सबब कुछ सोच न सके क
या करना चा हए। रात भी एक पहर से यादे जा चु क थी। आ खर जीत सं ह, तेज सं ह और
दे वी सं ह को बु लाकर खदमतगार क जु बानी जो कुछ सु ना था कहा और पू छा क अब या
करना चा हए।

तेज सं ह - उस जंगल म इतनी औरत का इक े होकर गाना-बजाना और इस तरह धोखा दे ना


बेसबब नह ं है।

सु र - जब से शवद त के उभरने क खबर सु नी है एक खुटका-सा बना रहता है , म समझता


हू ं यह भी उसी क शैतानी है।

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वीर - दोन लड़के ऐसे कमजोर तो नह ं ह क िजसका जी चाहे पकड़ ले।

सु र - ठ क है मगर आनंद का भी वहां रह जाना बु रा ह हु आ।

तेज - बेचारा खदमतगार जबद ती साथ हो गया था नह ं तो पता भी न लगता क दोन


कहां चले गये। खैर उनके बारे म जो कुछ सोचना है सो चए मगर मु झे ज द इजाजत द िजये
क हजार सपा हय को साथ लेकर वहां जाऊं और इसी व त उस छोटे से जंगल को चार
तरफ से घेर लू,ं फर जो कुछ होगा दे खा जाएगा।

सु र - (जीत सं ह से) या राय है

जीत - तेज ठ क कहता है , इसे अभी जाना चा हए।

हु म पाते ह तेज सं ह द वानखाने के ऊपर बु ज पर चढ़ गए जहां बड़ा-सा न कारा और उसके


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पास ह एक भार चोब इस लए रखा हु आ था क व त-बेव त जब कोई ज रत आ पड़े और
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फौज को तु रंत तैयार करना हो तो इस न कारे पर चोब मार जाय। इसक आवाज भी नराले
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ढं ग क थी जो कसी न कारे क आवाज से मलती न o थी और इसे बजाने के लए तेज सं ह
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ने कई इशारे भी मु करर कए हु ए थे। s .b
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तेज सं ह ने चोब उठाकर जोर से एक दफ
i ndे न कारे पर मारा िजसक आवाज तमाम शहर म
बि क दू र-दू र तक गू ंज गई। / h इसका सबब कसी शहर वाले क समझ म न आया हो
चाहे
मगर सेनाप त समझ गया p :/क इसी व त हजार फौजी सपा हय क ज रत है िजसका
इंतजाम उसने बहु h
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त ज द कया।

तेज सं ह अपने सामान से तैयार हो कले के बाहर नकले और हजार सपाह तथा बहु त से
मशाल चय को साथ ले उस छोटे से जंगल क तरफ रवाना होकर बहु त ज द ह वहां जा
पहु ंचे।

थोड़ी-थोड़ी दू र पर पहरा मु करर करके चार तरफ से उस जंगल को घेर लया।इं जीत सं ह तो
गायब हो ह चु के थे, आनंद सं ह के मलने क बहु त तरक ब क गई मगर उनका भी पता न
लगा। तर ुद म रात बताई, सबेरा होते ह तेज सं ह ने हु म दया क एक तरफ से इस जंगल
को तेजी के साथ काटना शु करो िजसम दन भर म तमाम जंगल साफ हो जाय।

उसी समय महाराज सु रे द सं ह और जीत सं ह भी वहां आ पहु ंचे। जंगल का काटनाइ ह ने भी


पसंद कया और बोले क ''बहु त अ छा होगा अगर हम लोग इस जंगल से एकदम ह
नि चंत हो जाय।''

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इस छोटे जंगल को काटते दे र ह कतनी लगनी थी, तस पर महाराज क मु तैद के सबब
यहां कोई भी ऐसा नजर नह ं आता था जो पेड़ क कटाई म न लगा हो। दोपहर होते-होते
जंगल कट के साफ हो गया मगर कसी का कुछ पता न लगा यहां तक क इं जीत सं ह क
तरह आनंद सं ह के भी गायब हो जाने का न चय करना पड़ा। हां, इस जंगल के अंत म एक
कम सन नौजवान हसीन और बेशक मती गहने-कपड़े से सजी हु ई औरत क लाश पाई गई
िजसके सर का पता न था।

यह लाश महाराज सु र सं ह के पास लाई गई। सभ क परे शानी और बढ़ गई औरतरह-तरह


के खयाल पैदा होने लगे। लाचार उस लाश को साथ ले शहर क तरफ लौटे । जीत सं ह ने
कहा, ''हम लोग जाते ह, तारा सं ह को भेज सब ऐयार को जो शवद त क फ म गए हु ए ह
बु लवाकर इं जीत सं ह और आनंद सं ह क तलाशम भेजगे, मगर तु म इसी व त उनक खोज
म जहां तु हारा दल गवाह दे जाओ।''

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तेज संह अपने सामान से तैयार ह थे, उसी व त सलाम कर एक तरफ को रवाना हो गए,
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और महाराज p
माल से आंख को प छते हु ए चु नार क तरफ बदा हु ए।
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उदास और पोत क जु दाई से दु खी महाराज सु र सं ह घर पहु ंचे। दोनलड़क के गायब होने
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का हाल चं कांता ने भी सु ना। वह बेचार दु नया के दु ख-सु ख को अ छ तरह समझ चु क थी
i
इस लए कलेजा मसोसकर रह गई, जा हर
i nd म रोना- च लाना उसने पसंद न कया, मगर ऐसा
करने से उसके नाजु क दल पर और
/ h भी सदमा पहु ंचा, घड़ी भर म ह उसक सू रत बदल गई।
चपला और चंपा को चं p
/
कां:ता से कतनी मु ह बत थी इसको आप लोग खू ब जानते ह लखने
t
क कोई ज रत नह htं। दोन लड़क के गायब होने का गम इन दोन को चं कांता से यादे
हु आ और दोन ने न चय कर लया क मौका पाकर इं जीत सं ह और आनंद सं ह का पता
लगाने क को शश करगी।

महाराज सु र सं ह के आने क खबर पाकर वीर संह मलने के लए उनके पास गए। दे वी सं ह
भी वहां मौजू द थे। वीर सं ह के सामने ह महाराज ने सबहाल दे वी सं ह से कहकर पू छा क
''अब या करना चा हए'

दे वी - म पहले उस लाश को दे खना चाहता हू ं जो उस जंगल म पाई गई थी।

सु र - हां तु म उसे ज र दे खो।

जीत - (चोबदार से) उस लाश को जो जंगल म पाई गई थी इसी जगह लाने के लए कहो।

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''बहु त अ छा'', कहकर चोबदार बाहर चला गया मगर थोड़ी ह दे र म वापस आकर बोला,
''महाराज के साथ आते-आते न मालू म वह लाश कहां गु म हो गई। कई आदमी उसक खोज
म परे शान ह मगर पता नह ं लगता!''

वीर - अब फर हम लोग को हो शयार से रहने का जमाना आ गया। जब हजार आद मय


के बीच से लाश गु म हो गई तो मालू म होता है अभी बहु त कुछउप व होने वाला है।

जीत - मने तो समझा था क अब जो कुछ थोड़ी-सी उ रह गई है आराम से कटे गी मगर


नह ,ं ऐसी उ मीद कसी को कुछ भी न रखनी चा हए।

सु र - खैर जो होगा दे खा जायगा, इस समय या करना मु ना सब है इसे सोचो।

जीत - मेरा वचार था क तारा सं ह को ब नाथ वगैरह के पास भेजते िजससे वे लोग
भैरो सं ह को छुड़ाकर और कसी कारवाई म न फंस और सीधे चले आव, मगर ऐसा करने को
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भी जी नह ं चाहता। आज भर आप और स t
कर, अ छ तरह सोचकर कल म अपनी राय
o
दू ं गा। s p
o g
b l
s .
i 4u- 5
d बयान

h in
// चु नीलाल और जग नाथ यो तषी भैरो सं ह ऐयार को
पं डत ब नाथ, प नालाल, रामनारायण,
:
छुड़ाने के लए शवद तगढ़
t tp क तरफ गए। हु म के मु ता बककंचन सं ह सेनाप त ने शेर वाले
h स भेजकर पता लगा लया था क भैरो सं ह ऐयार शवद तगढ़ कले के
बाबाजी के पीछे जासू
अंदर पहु ंचाए गए ह, इस लए इन ऐयार को पता लगाने क ज रत न पड़ी, सीधे शवद तगढ़
पहु ंचे और अपनी-अपनी सू रत बदलकर शहर म घू मने लगे। पांच ने एक-दू सरे का साथ छोड़
दया, मगर यह ठ क कर लया था क सब लोग घू म- फरकर फलानी जगह इक े हो जायगे।

दन-भर घू म- फरकर भैरो सं ह का पता लगाने के बाद कुछ ऐयार शहर के बाहर एक पहाड़ी
पर इक े हु ए और रात भर सलाह करके राय कायम करने म काट, दू सरे दन ये लोग फर
सू रत बदल-बदलकर शवद तगढ़ म पहु ंचे। रामनारायण और चु नीलाल ने अपनी सू रत उसी
जगह के चोबदार क -सी बनाई और वहां पहु ंचे जहां भैरो सं ह कैद थे। कई दन तक कैद
रहने के सबब उ ह ने अपने को जा हर कर दया था और असल सू रत म एक कोठर के
अंदर िजसके तीन तरफ लोहे का जंगला लगा हु आ था बंद थे। उसी कोठर के बगल म उसी
तरह क कोठर और थी िजसम ग ी लगाए बू ढ़ा दारोगा बैठा था और कई सपाह नंगी
तलवार लए घू म-घू मकर पहरा दे रहे थे। रामनारायण और चु नीलाल उस कोठर के दरवाजे
पर जाकर खड़े हु ए और बू ढ़े दारोगा से बातचीत करने लगे।

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राम - आपको महाराज ने याद कया है।

बूढ़ा - य या काम है भीतर आओ, बैठो, चलते ह।

रामनारायण और चु नीलाल कोठर के अंदर गए और बोले -

राम - मालू म नह ं य बु लाया है मगर ताक द क है क ज द बु ला लाओ।

बू ढ़ा - अभी घंटे भर भी नह ं हु आ जब कसी ने आके कहा था क महाराज खु द आने वाले


ह, या वह बात झू ठ थी

राम - हां महाराज आने वाले थे मगर अब न आवगे।

बू ढ़ा - अ छा आप दोन आदमी इसी जगह बैठ और कैद क हफाजत कर, म जाता हू ं।

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राम - बहु त अ छा।
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रामनारायण और चु नीलाल को कोठर के अंदर बैठाकर o
b l बू ढ़ा दारोगा बाहर आया और चालाक
. ''बंदगी! म दोन को पहचान गया क
से झट उस कोठर का दरवाजा बंद करके बाहर सेsबोला,
ऐयार हो। क हये अब हमारे कैद म आप फ i 4u
ं से या नह ं मने भी या मजे म पता लगा लया।
पू छा क अभी तो मालू म हु आ था in
d
कमहाराज खु द आने वाले ह, आपने भी झट कबू ल कर
h
/ थे मगर अब न आवगे'। यह न समझे क म धोखा दे ता
लया और कहा क 'हां आने/वाले
:
t tpकरते हो खैर आप लोग भी अब इसी कैदखाने क हवा खाइये और
हू ं। इसी अ ल पर ऐयार
h
जान ल िजए क म बाकरअल ऐयार आप लोग को मजा चखाने के लए इस जगह बैठाया
गया हू ं।''

बू ढ़े क बात सु न रामनारायण और चु नीलाल चु प हो गए बि क शमाकर सर नीचा कर


लया। बू ढ़ा दारोगा वहां से रवाना हु आ और शवद त के पास पहु ंचकरदोन ऐयार के
गर तार करने का हाल कहा। महाराज ने खु श होकर बाकरअल को इनाम दया और खु शी-
खु शी खु द रामनारायण और चु नीलाल को दे खने आये।

ब नाथ, प नालाल और यो तषीजी को भी मालू म हो गया क हमारे सा थय म से दो ऐयार


पकड़े गए। अब तो एक क जगह तीन आद मय के छुड़ाने क फ करनी पड़ी।

कुछ रात गए ये तीन ऐयार घू म- फरकर शहर से बाहर क तरफ जा रहे थे क पीछे से एक
आदमी काले कपड़े से अपना तमाम बदन छपाये लपकता हु आ उनके पास आया और लपेटा

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हु आ एक छोटा-सा कागज उनके सामने फक और अपने साथ आने के लये हाथ से इशारा
करके तेजी से आगे बढ़ा।

ब नाथ ने उस पु ज को उठाकर सड़क के कनारे एक ब नये क दु कान पर जलतेहु ए चराग


क रोशनी म पढ़ा, सफ इतना ह लखा था - ''भैरो सं ह''। ब नाथ समझ गए क भैरो सं ह
कसी तरक ब से नकल भागा और यह जा रहा है। ब नाथ ने भैरो सं ह के हाथ का लखा
भी पहचाना।

भैरो सं ह पु जा फककर इन तीन को हाथ के इशारे से बु ला गया था और दस-बारह कदम


आगे बढ़कर अब इन लोग के आने क राह दे ख रहा था।

ब नाथ वगैरह खु श होकर आगे बढ़े और उस जगह पहु ंचे जहां भैरो सं ह कालेकपड़े से बदन
को छपाये सड़क के कनारे आड़ दे खकर खड़ा था। बातचीत करने का मौका न था, आगे-आगे

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भैरो सं ह और पीछे-पीछे ब नाथ, प नालाल और यो तषीजी तेजी से कदम बढ़ाते शहर के
बाहर हो गये। o t
g sp
loउतार दया। इन तीन ने चं मा क
रात अंधेर थी। मैदान म जाकर भैरो सं ह ने काला कपड़ा
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रोशनी म भैरो सं ह को पहचाना - खु श होकर बारs
.
4uलगे।
-बार से तीन ने उसे गले लगाया और तब
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एक प थर क च ान पर बैठकर बातचीत करने

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ब - भैरो सं ह, इस व त तु ह/
: / दे खकर तबीयत बहु त ह खु श हु ई
!

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भैरो - म तो कसीhतरह छूट आया मगर रामनारायण और चु नीलाल बेढब जा फंसे ह।

यो तषी - उन दोन ने भी या ह धोखा खाया!

भैरो - म उनके छुड़ाने क भी फ कर रहा हू ं।

प ना - वह या

भैरो - सो सब कहने-सु नने का मौका तो रात-भर है मगर इस समय मु झे भू ख बड़े जोर से


लगी है, कुछ हो तो खलाओ।

ब - दो-चार पेड़े ह, जी चाहे तो खा लो।

भैरो - इन दो-चार पेड़ से या होगा खैर पानी का तो बंदोब त होना चा हए।

ब - फर या करना चा हए!

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भैरो - (हाथ से इशारा करके) यह दे खो शहर के कनारे जो चराग जल रहा है अभी दे खते
आये ह क वह हलवाई क दु कान है और वह ताजी पू रयां बना रहा है, बि क पानी भी उसी
हलवाई से मल जायगा।

प ना - अ छा म जाता हू ं।

भैरो - हम लोग भी साथ चलते ह, सभ का इक ा ह रहना ठ क है, कह ं ऐसा न हो क आप


फंस जायं और हम लोग राह ह दे खते रह।

प ना - फंसना या खलवाड़ हो गया!

भैरो - खैर हज ह या है अगर हम लोग साथ ह चल तीन आदमी कनारे खड़े हो जायगे,
एक आदमी आगे बढ़कर सौदा ले लेगा।

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ब - हां-हां, यह ठ क होगा, चलो हम लोग साथ चल।
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चार ऐयार एक साथ वहां से रवाना हु ए और उस हलवाई के पास पहु ंचे िजसक अकेल दु कान
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.
शहर के कनारे पर थी। ब नाथ, यो तषीजी और भैरो सं ह कुछ इधर खड़े रहे और प नालाल
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सौदा खर दने दु कान पर गये। जाने के पहले ह भैरो सं ह ने कहा, '' म ी के बतन म पानी भी
i
नाdनह ं तो पीछे
दे ने का इकरार हलवाई से पहले कर लेn हु जत करे गा।''
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/
प नालाल हलवाई क दु कान
p :/पर गए और दो सेर पू र तथा सेर भर मठाई मांगी। हलवाई ने
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ht चा हए या नह 'ं
खु द पू छा क 'पानी भी

प ना - हां-हां, पानी ज र दे ना होगा।

हलवाई - कोई बतन है

प ना - बतन तो है मगर छोटा है, तु ह ं कसी म ी के ठ लए म जल दे दो।

हलवाई - एक घड़ा जल के लए आठ आने और दे ने पड़गे।

प ना - इतना अंधेर - खैर हम दगे।

पू र , मठाई और एक घड़ा जल लेकर चार ऐयार वहां से चले मगर यह खबर कसी को भी न
थी क कुछ दू र पीछे दो आदमी साथ लये छपता हु आ हलवाई भी आ रहा है।मैदान म एक
बड़े प थर क च ान पर बैठ चार ने भोजन कया, जल पया और हाथ-मु ंह धो नि चंत हो
धीरे -धीरे आपस म बातचीत करने लगे। आधा घंटा भी न बीता होगा क चार बेहोश होकर

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च ान पर लेट गये और दोन आद मय को साथ लये हलवाई इनक खोपड़ी पर आ मौजू द
हु आ।

हलवाई के साथ आये दोन आद मय ने ब नाथ, यो तषीजी और प नालाल क मु क कस


डाल ं और कु छ सु ंघा भैरो सं ह को होश म लाकर बोले, ''वाह जी अजायब सं ह - आपक चालाक
तो खू ब काम कर गई! अब तो शवद तगढ़ म आए हु ए पांच नालायक हमारे हाथ फंसे।
महाराज से सबसे यादे इनाम पाने का काम तो आप ह ने कया!''

बयान -6

बहु त-सी तकल फ उठाकर महाराज सु र सं ह और वीर सं ह तथा इ ह ं क बदौलत चं कांता,


चपला, चंपा, तेज सं ह और दे वी सं ह वगैरह ने थोड़े दनखू ब सु ख लू टा मगर अब वह जमाना

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न रहा। सच है , सु ख और दु ख का पहरा बदलता रहता है। खु शी के दन बात क बात म
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नकल गये कुछ मालू म न पड़ा, यहां तक क मु झे भी कोई बात p उनoलोग क लखने लायक
न मल , ले कन अब उन लोग से मु सीबत क घड़ी काटे o
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नहgं कटती। कौन जानता था क
गया-गु जरा शवद त फर बला क तरह नकल आवे.गb
l
s ा कसे खबर थी क बेचार चं कांता
u कर दए जाएंगे कौन साफ कह सकता
क गोद से पले-पलाए दोन होनहार लड़के य4अलग
i
था क इन लोग क वंशावल और राinयdम िजतनी तर क होगी, यकायक उतनी ह यादे
आफत आ पड़गी खैर खु शी के /
h
दन तो उ ह ने काटे, अब मु सीबत क घड़ी कौन झेले हां बेचारे
p
जग नाथ यो तषी ने tइतना
:/ज र कह दया था क वीर सं ह के रा य और वंश क बहु त
कुछ तर क होगी,h
t
मगर मु सीबत को लए हु ए। खैर आगे जोकुछ होगा दे खा जाएगा पर इस
समय तो सबके सब तर ुद म पड़े ह। दे खए अपने एकांत के कमरे म महाराज सु र सं ह
कैसी चं ता म बैठे ह और बा तरफ ग ी का कोना दबाए राजा वीर सं ह अपने सामने बैठे
हु ए जीत सं ह क सू रत कस बेचैनी से दे ख रहे ह। दोन बाप-बेटा अथात दे वी सं ह और
तारा सं ह अपने पास ऊपर के दज पर बैठे हु ए बु जु ग और गु के समान जीत सं ह क तरफ
झु के हु ए इस उ मीद म बैठे ह क दे ख अब आ खरहु म या होता है। सवाय इन लोग के
इस कमरे म और कोई भी नह ं है, एकदम स नाटा छाया हु आ है। न मालू म इसके पहले
या- या बात हो चु क ह मगर इस व त तो महाराज सु र सं ह ने इस स नाटे को सफ
इतना ह कह के तोड़ा, ''खैर चंपा और चपला क भी बात मान लेनी चा हए।''

जीत - जो मज , मगर दे वी सं ह के लए या हु म होता है

सु र - और तो कु छ नह ं सफ इतना ह खयाल है क चु नार क हफाजत ऐसे व त य कर


होगी

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जीत - म समझता हू ं क यहां क हफाजत के लए तारा बहु त है और फर व त पड़ने पर
इस बु ढ़ौती म भी म कुछ कर गु ज ं गा।

सु र - (कुछ मु कराकर और उ मीद भर नगाह से जीत सं ह क तरफ दे खकर) खैर, जो


मु ना सब समझो।

जीत - (दे वी सं ह से) ल िजए साहब, अब आपको भी पु रानी कसर नकालने का मौका दया
जाता है , दे ख आप या करते ह। ई वर इस मु तैद को पू रा कर।

इतना सुनते ह दे वी सं ह उठ खड़े हु ए और सलाम कर कमरे के बाहर चले गए।

बयान -7

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अपने भाई इं जीत सं ह क जु दाई से याकुल हो उसी समय आनंद सं ह उस जंगलके बाहर
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हु ए और मैदान म खड़े हो इधर - उधर नगाह दौड़ाने लगे। पि चम क तरफ दो औरत घोड़
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loउस तरफ बढ़े और उन दोन के
पर सवार धीरे -धीरे जाती हु ई दखाई पड़ीं। ये तेजी के साथ
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s .चले गए मगर उ मीद पू र न हु ई
पास पहु ंचने क उ मीद म दो कोस तक पीछा कए
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य क पहाड़ी के नीचे पहु ं चकर वे दोन कi4
n d ं और अपने पीछे आते हु ए आनंद सं ह क तरफ
दे ख घोड़ को एकदम तेज कर पहाड़ी i
h के बगल म घु सती हु ई गायब हो ग ।
/
खू ब खल हु ई चांदनीtp
:/
रात होने के सबब से आनंद सं ह को ये दोन औरत दखाईपड़ीं और
t
इ ह ने इतनी ह h मत भी क , पर पहाड़ी के पास पहु ंचते ह उन दोन के भाग जाने से इनको
बड़ा ह रं ज हु आ। खड़े होकर सोचने लगे क अब या करना चा हए। इनको है रान और
सोचते हु ए छोड़कर नदयी चं मा ने भी धीरे -धीरे अपने घर का रा ता लया और अपने
दु मन को जाते दे ख मौका पाकर अंधेरे ने चार तरफ हु कूमत जमाई। आनंद सं ह और भी
दु खी हु ए। या कर कहांजाय कससे पू छ क इं जीत सं ह को कौन ले गया

दू र से एक रोशनी दखाई पड़ी। गौर करने से मालू म हु आ क कसी झ पड़ी के आगे आग


जल रह है। आनंद सं ह उसी तरफ चले और थोड़ी ह दे र म कुट के पास पहु ंचकर दे खा क
प त क बनाई हु ई हर झ पड़ी के आगे आठ-दस आदमी जमीन पर फश बछाये बैठे ह जो
क दाढ़ और प हरावे से साफ मु सलमान मालू म पड़ते ह। बीच म दो मोमी शमादान जल रहे
ह। एक आदमी फारसी के शेर पढ़कर सु ना रहा है , और सब 'वाह-वाह' क धु न लड़ा रहे ह। एक
तरफ आग जल रह है और दो-तीन आदमी कुछ खाने क चीज पका रहे ह। आनंद सं ह फश
के पास जाकर खड़े हो गए।

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आनंद सं ह को दे खते ह सबके सब उठ खड़े हु ए और बड़ी इ जत से उनको फश परबैठाया।
उस आदमी ने जो फारसी के शेर पढ़-पढ़कर सु ना रहा था खड़े हो अपनी रं गील भाषा म कहा,
''खु दा का शु है क शाहजादे चु नार ने इस मज लस म पहु ंचकर हम लोग क इ जत को
फ के ह तु म1 तक पहु ंचाया। इस जंगल बयाबान म हम लोग या खा तर कर सकते ह
सवाय इसके क इनके कदम को अपनी आंख पर जगह द और इ व इलायची क पेशकश
कर!!''

केवल इतना ह कहकर इ दान और इलायची क ड बी उनके आगे ले गया। पढ़े - लखे भले
आद मय क खा तर ज र समझकर आनंद सं ह ने इ सू ंघा और इलायची ले ल , इसके बाद
इनसे इजाजत लेकर वह फर फारसी क वता पढ़ने लगा। दू सरे आद मय ने दो-एक त कए
इनके अगल-बगल म रख दए।

इ क वच खु शबू ने इनको म त कर दया, इनक पलक भार हो ग और बेहोशी ने धीरे -

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धीरे अपना असर जमाकर इनको फश पर सु ला दया। दूसरे दन दोपहर को आंख खु लने पर
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इ ह ने अपने को एक दू सरे ह मकान म मसहर पर पड़ा पाया। p o उठ बैठे और इधर-
घबराकर
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उधर दे खने लगे।
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पांच कम सन और खू बसू रत औरत सामने खड़ी
i 4uहु ई दखाई द ं िजनम से एकसदार क तरह
पर कुछ आगे बढ़ हु ई थी। उसके हु d
i n न और अदा को दे ख आनंद सं ह दं ग हो गये। उसक
बड़ी-बड़ी आंख और बांक चतवन
/ h ने उ ह आपे से बाहर कर दया, उसक जरा-सी हंसी ने
इनके दल पर बजल p :/और आगे बढ़ हाथ जोड़ इस कहने ने तो और भी सतम ढाया
गराई,
t
क - '' या आप मुhझtसे खफा ह'
आनंद सं ह भाई क जु दाई, रात क बात, ऐयार के धोखे म पड़ना, सब-कुछ ब कुल भू ल गए
और उसक मु ह बत म चू र हो बोले - ''तु हार -सी पर जमाल से, और रं ज!!''

वह औरत पलंग पर बैठ गई और आनंद सं ह के गले म हाथ डाल के बोल, ''खु दा क कसम
खाकर कहती हू ं क साल भर से आपके इ क ने मु झे बेकार कर दया! सवाय आपके यान
के खाने-पीने क ब कुल सु ध न रह , मगर मौका न मलने से लाचार थी।''

आनंद - (च ककर) ह! या तु म मु सलमान हो जो खु दा क कसम खाती हो

औरत - (हंसकर) हां, या मु सलमान बु रे होते ह

आनंद सं ह यह कहकर उठ खड़े हु ए - ''अफसोस! अगर तु म मु सलमान न होतीं तो म तु ह जी


जान से यार करता, मगर एक औरत के लए अपना मजहब नह ं बगाड़ सकता।''

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औरत - (हाथ थामकर) दे खो बेमु रौवती मत करो! म सच कहती हू ं क अब तु हार जु दाई
मु झसे न सह जायेगी!''

आनंद - म भी सच कहता हू ं क मु झसे कसी तरह क उ मीद मत रखना।

औरत - (भ सकोड़कर) या यह बात दल से कहते हो?

आनंद - हां, बि क कसम खाकर!

औरत - पछताओगे और मु झ-सी चाहने वाल कभी न पाओगे।

आनंद - (अपना हाथ छु ड़ाकर) लानत है ऐसी चाहत पर!

औरत - तो तु म यहां से चले जाओगे

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आनंद - ज र!
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औरत - मु म कन नह ं।
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आनंद - या मजाल क तु म मु झको रोको!
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औरत - ऐसा खयाल भी न करना। hin
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p :/
h ttहै!'' कहकर आनंद सं ह उस कमरे के बाहर हु ए और उसीकमरे
''दे ख मु झे कौन रोकता क एक
खड़क जो द वार म लगी हु ई थी खोल वे औरत वहां से नकल ग ।

आनंद सं ह इस उ मीद म चार तरफ घू मने लगे क कह ं रा ता मले तो बाहर हो जायं


मगर उनक उ मीद कसी तरह पू र न हु ई।

यह मकान बहु त लंबा-चौड़ा न था। सवाय इस कमरे और एक सहन के और कोई जगह


इसम न थी। चार तरफ ऊंची-ऊंची द वार के सवाय बाहर जाने के लए कह ं कोई दरवाजा
न था। हर तरह से लाचार और दु खी हो फर उसी पलंग पर आ लेटे और सोचने लगे -

''अब या करना चा हए! इस क ब त से कस तरह जान बचे यह तो हो ह नह ं सकता क


म इसे चाहू ं या यार क ं । राम-राम, मु सलमा नन से और इ क! यह तो सपने म भी नह ं
होने का। तब फर या क ं लाचार है, जब कसी तरह छु ी न दे खू ंगा तो इस खंजर से जो
मेर कमर म है, अपनी जान दे दू ं गा।''

कमर से खंजर नकालना चाहा, दे खा तो कमर खाल है। फर सोचने लगे -

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''गजब हो गया! इस हरामजाद ने तो मु झे कसी लायक न रखा। अगर कोई दु मन आ जाय
तो म या कर सकूं गा बेहया अगर मेरे पास आ जावे तो गला दबाकर मार डालू ं। नह ,ं नह ं,
वीरपु होकर ी पर हाथ उठाना! यह मु झसे न होगा, तब या भू ख-े यासे जान दे दे नी
पड़ेगी मु सलमा नन के घर म अ न-जल कैसे हण क ं गा! हां ठ क है, एक सू रत नकल
सकती है। (द वार क तरफ दे खकर) इसी खड़क से वे लोग बाहर नकल गई ह। अबक
अगर यह खड़क खु ले और वह कमरे म आवे तो म जबद ती इसी राह से बाहर हो जाऊंगा।''

भू ख-े यासे दन गु जर गया, अंधेरा हु आ चाहता था क वह छोट-सी खड़क खु ल और चार


औरत को साथ लए वह पशाची आ मौजू द हु ई। एक औरत हाथ म रोशनी, दू सर पानी,
तीसर तरह-तरह क मठाइय से भरा चांद का थाल उठाए हु ए और चौथी पान का जड़ाऊ
ड बा लए साथ मौजू द थी।

आनंद सं ह पलंग से उठ खड़े हु ए और बाहर नकल जाने क उ मीद म उस खड़क के अंदर


घु से। उन औरत ने इ ह ब कुल न रोका .i n
य क वे जानती थीं क सफ इस खड़क ह के
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पार चले जाने से उनका काम न चलेगा।
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खड़क के पार तो हो गए मगर आगे अंधेरा था। इस छोट -सी कोठर म चार तरफ घू मे
s
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मगर रा ता न मला, हां एक तरफ बंद दरवाजा मालू म हु आ जो कसी तरह खु ल न सकता
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था, लाचार फर उसी कमरे म लौट आए।d
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//पहले ह कह चु क हू ं क आप मु झसे अलग नह ं होसकते।
उस औरत ने हंसकर कहा,:''म
खु दा ने मेरे ह लएtt
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आपको पैदा कया है। अफसोस क आप मेर तरफ खयाल नह ं करते
h
और मु त म अपनी जान गंवाते ह! बै ठए, खाइए, पीिजए, आनंद क िजए; कस सोच म पड़े
ह!''

आनंद - म तेरा छुआ खाऊं

औरत - य या हज है खु दा सबका है, उसी ने हमको भी पैदा कया, आपको भी पैदा कया,
जब एक ह बाप के सब लड़के ह तो आपस म छूत कैसी!

आनंद - ( चढ़कर) खु दा ने हाथी भी पैदा कया, गदहा भी पैदा कया, कु ता भी पैदा कया,
सू अर भी पैदा कया, मु गा भी पैदा कया - जब एक ह बाप के सब लड़के ह तो परहे ज काहे
का!

औरत - खैर खु शी आपक , न मा नएगा पछताइएगा, अफसोस क िजएगा और आ खर झख


मारकर फर वह क िजएगा जो म कहती हू ं। भू ख-े यासे जान दे ना मु ि कल बात है - लो म
जाती हू ं।

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खाने - पीने का सामान और रोशनी वह ं छोड़ चार ल डय उस खड़क के अंदर घु स ग ।
आनंद सं ह ने चाहा क जब वह शैतान खड़क के अंदर जाय तो म भी जबद ती साथ हो लू ं
- या तो पार ह हो जाऊंगा या इसे भी न जाने दू ं गा, मगर उनका यह ढं ग भी न लगा।

वह मदमाती औरत खड़क म अंदर क तरफ पैर लटकाकर बैठ गई और इनसे बात करने
लगी।

औरत - अ छा आप मु झसे शाद न कर इसी तरह मु ह बत रख।

आनंद - कभी नह ं चाहे जो हो!

औरत - (हाथ का इशारा करके) अ छा उस औरत से शाद करगे जो आपके पीछे खड़ी है वह
तो हं द ु आनी है!

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''मेरे पीछे दू सर औरत कहां से आई!'' ता जु ब से पीछे फर आनंद सं ह ने दे खा। उस नालायक
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को मौका मला, खड़क के अंदर हो झट कवाड़ बंद कर दया।
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आनंद सं ह पू रा धोखा खा गए, हर तरह से ह मत टू ट गई - लाचार फर उसी पलंग पर लेट
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गये। भू ख से आंख नकल आती थीं, खाने-पीने का सामान मौजू द था मगर वह जहर से भी
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कई दज बढ़कर था, दल म समझ लया
i nd क अब जान गई। कभी उठते, कभी बैठते, कभी
दालान के बाहर नकलकर टहलते / h, आधी रात जाते-जाते भू ख क कमजोर ने उ ह चलने-
/ग पर आकर लेट गये और ई वर को याद करने लगे।
:पलं
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फरने लायक न रखा, फर
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यकायक बाहर धमाके क आवाज आई, जैसे कोई कमरे क छत पर से कूदा हो। आनंद सं ह
उठ बैठे और दरवाजे क तरफ दे खने लगे।

सामने से एक आदमी आता दखाई पड़ा िजसक उ लगभग चाल स वष क होगी।


सपा हयाना पोशाक प हरे , ललाट म पु ड लगाये, कमर म नीमचा खंजर और ऊपर से कमंद
लपेटे, बगल म मु सा फर का झोला, हाथ म दू ध से भरा लोटा लए आनंद सं ह के सामने आ
खड़ा हु आ और बोला -

''अफसोस, आप राजकुमार होकर वह काम करना चाहते ह जो ऐयार -जासू स या अदने


सपा हय के करने लायक ह ! नतीजा यह नकला क इस चा डा लन के यहां फंसना पड़ा।
इस मकान म आए आपको कै दन हु ए! घबराइये मत, म आपका दो त हू ं, दु मन नह ं!''

इस सपाह को दे ख आनंद सं ह ता जु ब म आ गए और सोचने लगे क यह कौन है जो ऐसे


व त म मेर मदद को पहु ंचा। खैर जो भी हो, बेशक यह हमारा खैर वाह है, बद वाह नह ं।

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आनंद - जहां तक खयाल करता हू ं यहां आये दू सरा दन है।

सपाह - कुछ अ न-जल तो न कया होगा!

आनंद - कुछ नह ं।

सपाह - हाय! राजा वीर सं ह के यारे लड़के क यह दशा!! ल िजए म आपको खाने-पीने के
लए दे ता हू ं!

आनंद - पहले मु झे मालू म होना चा हए क आपक जा त उ तम है और मु झे धोखा दे कर


अधम करने क नीयत नह ं है।

सपाह - (दांत के नीचे जु बान दबाकर) राम-राम, ऐसा व न म भी खयाल न क िजएगा क


म धोखा देकर आपको अजा त क ं गा। मने पहले ह सोचा था क आप शक करगे इसी लए
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ऐसी चीज लाया हू ं िजनके खाने-पीने से आप उ
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न कर। पलंग से पर उ ठए, बाहर आइए।
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आनंद सं ह उसके साथ बाहर गए। सपाह ने लोटा जमीन पर रख दया और झोले म से कुछ
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मेवा नकाल उनके हाथ म दे कर बोला, ''ल िजए, इसे खाइये और (लोटे क तरफ इशारा करके)
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यह दू ध है पीिजए।''
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आनंद सं ह क जान म जान आ गई, यास और भू ख से दम नकला जाता था, ऐसे समय म
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:/ या थोड़ी खु शी क बात है मेवा खाया, दू ध पया, जी ठकाने
थोड़े मेवे और दू ध मल जाना
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हु आ, इसके बाद उसttसपाह को ध यवाद दे कर बोले, ''अब मु झे कसी तरह इस मकान के
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बाहर क िजए।''

सपाह - म आपको इस मकान के बाहर ले चलू ंगा मगर इसक मजदू र भी तो मु झे मलनी
चा हए।

आनंद - जो क हए दू ं गा।

सपाह - आपके पास या है जो मु झे दगे

आनंद - इस व त भी हजार पये का माल मेरे बदन पर है।

सपाह - म यह सब-कुछ नह ं चाहता।

आनंद - फर

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सपाह - उसी क ब त के बदन पर जो कुछ जेवर ह मु झे द िजए और एक हजार अशफ ।

आनंद - यह कैसे हो सकेगा वह तो यहां मौजू द नह ं है और हजार अशफ भी कहां से आव

सपाह - उसी से लेकर द िजए।

आनंद - या वह मेरे कहने से दे गी?

सपाह - (हंसकर) वह तो आपके लए जान दे ने को तैयार है, इतनी रकम क या बसात


है।

आनंद - तो या आप मु झे यहां से न छुड़ावगे!

सपाह - नह ,ं मगर आप कोई चं ता न कर, आपका कोई कुछ बगाड़ नह ं सकता, कल जब

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वह रांड़ आवे तो उससे क हए क तु मसे मु ह बत तब क ं गा जब अपने बदन का कुल जेवर
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और एक हजार अशफ यहां रख दो, उसके दू सरे दन आओ तो जो
s po कहोगी म मानू ंगा। तु रंत
अशफ मंगा दे गी और कुल जेवर भी उतार दे गी। नालायक
o g बड़ी मालदार है, उसे कम न
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सम झये।
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आनंद - खैर जो कहोगे क ं गा।
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सपाह - जब तक आप यह / न/करगे म आपको इस कैद से न छुड़ाऊंगा। आप यह न सो चये
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क उसे धोखा दे कर या t जबद ती उस राह से चले जायंगे िजधर से वह आती-जाती है। यह
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कभी नह ं हो सकेगा, उसके आने-जाने के लए कई रा ते ह।

आनंद - अगर वह तीन-चार दन न आवे तब?

सपाह - या हज है, म आपक बराबर ह सु ध लेता रहू ंगा और खाने-पीने को पहु ंचाया
क ं गा।

आनंद - अ छा ऐसा ह सह ।

वह सपाह कमंद लगाकर छत पर चढ़ा और द वार फांद मकान के बाहर हो गया।

थोड़ी रात बच गई थी जो आनंद सं ह ने इसी सोच- वचार म काट क यह कौन है जो ऐसे


व त म मेर मदद को पहु ंचा। इसे लालच बहु त है, कोई ऐयार मालू म पड़ता है। ऐयार का
िजतना यादे खच होता है उतना ह लालच भी करते ह। खैर कोई हो, अब तो जो कुछ उसने
कहा है करना ह पड़ेगा।

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रात बीत गई, सबेरा हु आ। वह औरत फर उ ह ं चार ल डय को लए आ पहु ंची। दे खा क
आनंद सं ह पलंग पर पड़े ह और खाने-पीने का सामान य -का- य उसी जगह रखा है जहां
वह रख गई थी।

औरत - आप य िजद करके भू ख-े यासे अपनी जान दे ते ह!

आनंद - इसी तरह मर जाऊंगा मगर तु मसे मु ह बत न क ं गा, हां अगर एक बात मेर मानो
तो तु हारा कहा क ं ।

औरत - (खु श होकर और उनके पास बैठकर) जो कहो म करने को तैयार हू ं मगर मु झसे
िजद न करो।

आनंद - अपने बदन पर से कुल जेवर उतार दो और एक हजार अशफ मंगा दो।

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औरत - (आनंद सं ह के गले म हाथ डालकर) बस इतने ह के लए। लो म अभी दे ती हू!!ं
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एक हजार अशफ लाने के लए उसने दो ल डय को कहा और अपने बदन से कुल जेवर
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उतार दए। थोड़ी ह दे र म वे दोन ल डयां अश फय का तोड़ा लए आ मौजू द हु ।
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i 4u नह ं
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औरत - ल िजये, अब आप खु श हु ए! अब तो उ
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आनंद - नह ं, मगर एक दन/क/ और मोहलत मांगता हू!ं कल इसी व त तु म आओ, बस म
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तु हारा हो जाऊंगा। tp
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औरत - अब यह ढकोसला या नकाला आज भी भू ख-े यासे काटोगे तो तु हार या दशा
होगी!

आनंद - इसक फ न करो, मु झे कई दन तक भू खे- यासे रहने क आदत है।

औरत - लाचार, खैर यह भी सह , ठह रये म आती हू ं।

इतना कहकर आनंद सं ह को उसी जगह छोड़ चार ल डय को साथ ले वह कमरे के बाहर
चल गई। घंटा भर बीतने पर भी वह न लौट तो आनंद सं ह उठे और कमरे के बाहर जा उसे
ढू ं ढ़ने लगे मगर कह ं पता न लगा। बाहर क द वार म छोट -छोट दो आलमा रयां लगी हु ई
दखाई द ं। अंदाज कर लया क शायद उस खड़क क तरह यह भी बाहर जाने का कोई
रा ता हो और इधर ह से वे लोग नकल गई ह ।

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सोच और फ म तमाम दन बताया, पहर रात जाते-जाते कल क तरह वह सपाह फर
पहु ंचा और मेवा-दू ध आनंद सं ह को दया।

आनंद - ल िजए आपक फमाइश तैयार है।

सपाह - तो बस अब आप भी इस मकान के बाहर च लए। एक रोज के क ट म इतनी


रकम हाथ आई या बु रा हु आ।

सब - कुछ सामान अपने क जे म करने के बाद सपाह कमरे के बाहर नकला और सहन म
पहु ंच कमंद के ज रये से आनंद सं ह को मकान के बाहर नकालने के बादआप भी बाहर हो
गया। मैदान क हवा लगने से आनंद सं ह का जी ठकाने हु आ। समझे क अब जान बची।
बाहर से दे खने पर मालू म हु आ क यह मकान एक पहाड़ी के अंदर है , कार गर ने प थर
तोड़कर इसे तैयार कया है। इस मकान के अगल-बगल म कई सु रंग भी दखाई पड़ीं।

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आनंद सं ह को लये हु ए वह सपाह कुछ दू र चला गया जहां कसे t
-कसाये दो घोड़े पेड़ से बंधे
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थे। बोला, ''ल िजये, एक पर आप सवार होइये , दू सरे पर म चढ़ता हू ं, च लए आपको घर तक
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पहु ंचा आऊं।''
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आनंद - चु नार यहां से कतनी दू र और कस तरफ है
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सपाह - चु नार यहां से बीस / h i
कोस है च लये म आपके साथ चलता हू, ं इन घोड़ म इतनी
ताकत है क सबेरा होतेp
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: हम लोग को चु नार पहु ंचा द।आप घर च लये, इं जीत सं ह के
-होते
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लए कुछ फ नhक िजये, उनका पता भी बहु त ज द लग जायगा, आपके ऐयार लोग उनक
खोज म नकले हु ए ह।

आनंद - ये घोड़े कहां से लाये?

सपाह - कह ं से चु रा लाए, इसका कौन ठकाना है।

आनंद - खैर यह तो बताओ तु म कौन हो और तु हारा नाम या है।

सपाह - यह म नह ं बता सकता और न आपको इसके बारे म कुछ पू छना मु ना सब ह है!

आनंद - खैर अगर कहने म कुछ हज हो तो...

आनंद सं ह अपना पू रा मतलब कहने भी न पाये थे क कोई च काने वाल चीज इ ह नजर
आई। याह कपड़ा प हरे हु ए कसी को अपनी तरफ आते दे खा। सपाह और आनंद सं ह दोन

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एक पेड़ क आड़ म हो गये, और वह आदमी इनके पास ह से कुछ बड़बड़ाता हु आ नकल
गया िजसे यह गु मान भी न था क इस जगह पर कोई छपा हु आ मु झे दे ख रहा है।

उसक बड़बड़ाहट इन दोन ने सु नी, वह कहता जाता था - ''अब मेरा कलेजा ठ डा हु आ, अब


म घर जाकर बेशक सु ख क नींद सोऊंगी और उस हरामजादे क लाश को गीदड़ और कौवे
कल दन भर म खा जायंगे िजसने मु झे औरत जानकर दबाना चाहा था और यह न समझा
था क इस औरत का दल हजार मद से भी बढ़कर है!''

आनंद सं ह और सपाह दोन उसक तरफ टकटक लगाये दे खते रहे िजसक बकवाद से
मालू म हो गया था क कोई औरत है, वह दे खते-दे खते नजर से गायब हो गई।

सपाह - बेशक इसने कोई खू न कया है।

आनंद - और वह भी इसी जगह कह ं पास म, खोजने से ज र पता लगेगा।


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दोन आदमी इधर-उधर ढू ं ढ़ने लगे, बहु त तकल फ करने क नौबत न आई और दस ह कदम
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पर एक तड़पती हु ई लाश पर इन दोन क नजर पड़ी। o g
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सपाह ने अपने बगल से एक थैल
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नकाल और चकमक प थर से आग झाड़ मोमब ती
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जलाकर उस तड़पती लाश को दे खा। मालू
i nd म हु आ क कसी ने कटार या खंजर इसकेकलेजे
के पार कर दया है, खू न बराबर/ h
बह रहा है, ज मी पैर पटकता और बोलने क को शश करता
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है मगर बोला नह ं जाता।
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सपाह ने अपनी थैल से एक छोट बोतल नकाल िजसम कसी तरह का अक भरा हु आ
था। उसम से थोड़ा अक ज मी के मु ंह म डाला। गले के नीचे उतरते ह उसम कुछ बोलने
क ताकत आई और बहु त ह धीमी आवाज म उसने नीचे लखे हु एकई टू टे -फूटे श द अपने
मु ंह से नकालने के साथ ह दम तोड़ दया।

''अफ...सोस, यह खू बसू रत पशाची...तेज सं ह...क ...जान...मेर तरह...उसके फंदे म हाय!


...इं जीत सं ह को...!!''

उस बेचारे मरने वाले के मु ंह से नकले हु ए ये दो-चार श द कैसे ह बेजोड़ य न ह मगर


इन दोन सुनने वाल के दल को तड़पा दे ने के लए काफ थे। आनंद सं ह से यादे उस
सपाह को बेचैनी हु ई जो अपने म बहु त कुछ करगु जरने क कु वत रखता था और जानता
था क इस व त अगर कोई हाथ कुं अर इं जीत सं ह और तेज सं ह क मदद को बढ़ सकता है
तो वह सफ मेरा ह हाथ है।

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सपाह - कुमार, अब आप घर जाइए। इन टू ट -फूट बेजोड़ मगर मतलब से भर बात को जो
इस मरने वाले के मु ंह से अनायास नकल पड़ा है सु नकर न चय हो गया क आपके बड़े
भाई और ऐयार के सरताज तेज सं ह कसी आफत म, जो बहु त ज द तबाह कर दे ने क
कु वत रखती है, फंस गये ह। ऐसी हालत म म जो बहु त कुछ कर गु जरने का हौसला रखता
हू ं कसी तरह नह ं अटक सकता और मेरा मतलब तभी स होगा जब उस औरत को खोज
नकालू ंगा जो अभी यह आफत कर गई और आगे कई तरह के फसाद करने वाल है।

आनंद - तु हारा कहना बहु त सह है मगर या तु म कह सकते हो क ऐसी खबर पाकर म


चु पचाप घर चले जाना पसंद क ं गा और जान से यादे यार क मदद से जी चु राऊंगा

सपाह - (कुछ सोचकर) अ छा तो यादे बात करने का मौका नह ं है, च लए। हां सु नये तो,
आपके पास कोई हरबा तो है नह ं, काम पड़ने पर या कर सकगे मेरे पास एक खंजर और
एक नीमचा है, दोन म जो चाह एक आप ले ल।

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आनंद - बस नीमचा मेरे हवाले क िजए और च लये। o t
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आनंद सं ह ने नीमचा अपनी कमर म लगाया और सपाह
b lo के साथ पैदल ह उस तरफ को
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बढ़ते चले िजधर वह खू नी औरत बकती हु ई चल sगई थी।
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ये दोन ठ क उसी पगड डी के रा तेin
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को पकड़े हु ए थे िजस पर वह औरत गई थी। थोड़ी दू र
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पर सांस रोककर इधर-उधर क/आहट लेते, जब कुछ मालू म न होता तो फर तेजी के साथ
बढ़ते चले जाते थे। tp
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कोस भर के बाद पहाड़ी उतरने क नौबत पहु ंची, वहां ये दोन फर के और चार तरफ दे खने
लगे। छोट -सी घंट बजने क आवाज आई। घंट कसी खोह या ग ढे के अंदर बजाई गई थी
जो वहां से बहु त कर ब था जहां ये दोन बहादु रखड़े हो इधर-उधर दे ख रहे थे।

ये दोन उसी तरफ मु ड़े िजधर से घंट क आवाज आई थी। फर आवाज आई, अब तो ये


दोन उस खोह के मु ंह पर पहु ंच गये जो पहाड़ी क कुछ ढाल उतरकर पगडंडीरा ते से बा
तरफ हटकर थी और िजसके अंदर से घंट क आवाज आई थी। बेधड़क दोन आदमी खोह के
अंदर घु स गये। अब फर एक बार घंट बजने क आवाज आई और साथ ह एक रोशनी
चमकती हु ई दखाई द िजसक वजह से उस खोह का रा ता साफ मालू म होने लगा, बि क
उन दोन ने दे खा क कुछ दू र आगे एक औरत खड़ी है जो रोशनी होते ह बा तरफ हटकर
कसी दू सरे ग ढे म उतर गई। िजसका रा ता बहु त छोटा बि क एक ह आदमी के जाने
लायक था। इन दोन को व वास हो गया क वह औरत है िजसक खोज म हम लोग इधर
आये ह।

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रोशनी गायब हो गई मगर अंदाज से टटोलते हु ए ये दोन भी उस ग ढे के मु ंह पर पहु ंच गये
िजसम वह औरत उतर गई थी। उस पर एक प थर अटकाया हु आ था ले कन उस अनगढ़
प थर के अगल-बगल छोटे -छोटे ऐसे कई सु राख थे िजनके ज रये से ग ढे के अंदर का हाल
ये दोन बखू बी दे ख सकते थे।

दोन उसी जगह बैठ गये और सु राख क राह से अंदर का हाल दे खने लगे। भीतर रोशनी
बखू बी थी। सामने क तरफ च ान पर बैठ वह औरत दखाई पड़ी िजसने अभी तक अपने
मु ंह से नकाब नह ं उतार थी और थकावट के सबब लंबी सांस ले रह थी। उसके पास ह एक
कम सन खू बसू रत ह शी छोकर बड़ा-सा छुरा हाथ म लए खड़ी थी। दू सर तरफ एक बदसू रत
ह शी कुदाल से जमीन खोद रहा था, बीच म छत के सहारे एक उ ट लाश लटक रह थी, एक
तरफ कोने म जल से भरा हु आ म ी का घड़ा, एक लोटा और कुछ खाने का सामान पड़ा हु आ
था। उस ग ढे म इतना ह कुछ था जो लख चु के ह।

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कुछ दे र बाद उस औरत ने अपने मु ंह से नकाब उतार । अहा, या खू बसू रत गु लाब-सा चेहरा है
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मगर गु से से आंख ऐसी सु ख और भयानक हो रह ह कदे खनेpसे oडर मालू म पड़ता है। वह
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औरत उठ खड़ी हु ई और अपने पास वाल छोकर के हाथ
l ogसे छुरा ले उस लटकती हु ई लाश
के पास पहु ंची और दो अंगु ल गहर एक लक रउसक.b
s पीठ पर खींची।

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हाय-हाय, ऐसी हसीन और इतनी संग दलd! इतनी बेदद ! अभी-अभी एक खू न कये चल आती
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है और यहां पहु ंचकर फर अपनेhरा सीपन का नमू ना दखला रह है! वह लाश कसक है
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का: खैर वाह या हमारे उप यास का पा न हो!
कह ं यह भी कोई चु नार p
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पीठ पर ज म खाते ह लाश फड़क । अब मालू म हु आ क वह मु दा नह ं है कोईजीता आदमी
तकल फ दे ने के लए लटकाया गया है। ज म खाकर लटका हु आ वह आदमी तड़पा और आह
भरकर बोला -

''हाय, मु झे य तकल फ दे ती हो, म कुछ नह ं जानता!''

औरत - नह ं तु झे बताना ह होगा तू खू ब जानता है। (पीठ पर फर गहर छुर चलाकर)


बता, बता।

उ टा आदमी - हाय, मु झे एक ह दफे य नह ं मार डालती म कसी का हाल या जानू, ं


मु झे इं जीत से या वा ता।

औरत - ( फर छुर से काटकर) म खू ब जानती हू, ं तू बड़ा पाजी है, तु झे सब-कुछ मालू म है।
बता नह ं तो गो त काट-काटकर जमीन पर गरा दू ंगी।

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उ टा आदमी - हाय, इं जीत सं ह क बदौलत मेर यह दशा!

अभी तक कुं अर आनंद सं ह और वह सपाह छपे- छपे सब - कुछ दे ख रहे थे, मगर जब उस
उ टे हु ए आदमी के मु ंह से यह नकला क 'हाय इं जीत सं ह क बदौलत मेर यह दशा!' तब
मारे गु से के उनक आंख म खू न उतर आया। प थर हटा दोन आदमी बेधड़क अंदर चले
गए और उस बेदद छुर चलाने वाल औरत के सामने पहु ंच आनंद सं ह ने ललकारा -
''खबरदार! रख दे छुरा हाथ से!!''

औरत - (च ककर) ह, तु म यहां य चले आये खैर अगर आ ह गए हो तो चु पचाप खड़े होकर
तमाशा दे खो। यह न समझो क तु हारे धमकाने से म डर जाऊंगी। ( सपाह क तरफ
दे खकर) तु हार आंख म या धू ल पड़ गई है अपने हा कमको नह ं पहचानते

सपाह - (खू ब गौर से दे खकर) हां ठ क है , तु हार सभी बात अनोखी होती ह।

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औरत - अ छा तो आप दोन आदमी यहां से जाइये और मेरे काम म हज न डा लए।
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सपाह - (आनंद सं ह से) च लए, इ ह छोड़ द िजए। जो चाहे
l o सो कर आपका या!
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आनंद - (कमर से नीमचा नकालकर) वाह, याuकहना है! म बना इस आदमी के छुड़ाए कब
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टलने वाला हू ं!
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औरत - (हंसकर) मु ंह धो र:/
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बहादु र वीर सं ह h
के बहादु र लड़के आनंद सं ह को ऐसीबात के सु नने क आदत कहां वह दो-
चार आद मय को समझते ह या थे 'मु ंह धो र खए' इतना सु नते ह जोश चढ़ आया।
उछलकर एक हाथ नीचमे का लगाया िजससे वह र सी कट गई जो उस आदमी के पैर से
बंधी हु ई थी और िजसके सहारे वह लटक रहा था, साथ ह फुत से उस आदमी को स हाला
और जोर से जमीन पर गरने न दया।

अब तो वह सपाह भी आनंद सं ह का दु मन बन बैठा और ललकारकर बोला, ''यह या


लड़कपन है!''

हम ऊपर लख चु के ह क इस सु रंग म दो औरत और एक ह शी गु लाम ह। अबवह सपाह


भी उनके साथ मल गया और चार ने आनंद सं ह को पकड़ लया, मगर वाह रे आनंद सं ह,
एक झटका दया क चार दू र जा गरे । इतने म बाहर से आवाज आई -

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''आनंद सं ह, खबरदार! जो कया सो ठ क कया अब आगे कुछ होसला मत करना नह ं तो
सजा पाओगे!''

आनंद सं ह ने घबराकर बाहर क तरफ दे खा तो एक यो गनी नजर पड़ी जो जटा बढ़ाए भ म


रमाये गे आ व प हरे दा हने हाथ म शू ल और बाएं हाथ म आग से भरा धधकता हु आ
ख पर िजसम कोई खु शबू दार चीज जल रह थी और बहु त धु आं नकल रहा था, लए हु ए आ
मौजू द हु ई।

ता जु ब म आकर सभी उसक सू रत दे खने लगे। थोड़ी दे र म उस ख पर से नकला हु आ


धु आं सु रंग क कोठर म भर गया और उसके असर से िजतने वहां थे सभी बेहोश होकर
जमीन पर गर पड़े। बस अकेल वह यो गनी होश म रह िजसने सभ को बेहोश दे ख कोने
म पड़े हु ए घड़े से जल नकाल ख पर क आग बु झाद ।

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बयान -8
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अब थोड़ा-सा हाल शवद तगढ़ का भी लख दे ना मु ना सब मालू म होता है। यह हम पहले
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लख चु के ह क महाराज शवद त को एक लड़का और एक लड़क भी हु ई थी।इस समय
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लड़के क उ िजसका नाम भीमसेन है d
i n अठारह वष क हो गई थी, पर लड़क कशोर क उ
अभी पं ह वष से यादे न होगी।hइस समय बेचार कशोर शवद तगढ़ म मौजू द नह ं है
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य क महाराज शवद त ने:/
ttpय क यह बहु त पेचीद बात है, खु लते-खु लते खु ल जाएगी।
रं ज होकर उसे उसके न नहाल भेज दया है। रं ज होने का कारण
हम यहां पर नह ं h
लखते

भीमसेन शवद तगढ़ म मौजू द है। उसे सपाह गर का बहु त शौक है, बदन म ताकत भी
अ छ है। तलवार, खंजर, नेजा, तीर, गदा इ या द चलाने म हो शयार और राज-काज के मामले
म भी तेज है मगर अपने पता महाराज शवद त क चाल को पसंद नह ं करता, पर फर भी
महाराज शवद त को उससे बहु त ह यादा ेम है ।

एक दन भीमसेन मामू ल तौर पर बीस हमजो लय को साथ ले घोड़े पर सवार होकर शकार
खेलने के लए शवद तगढ़ के बाहर नकला और एक ऐसे जंगल म गया िजसम बनैले सू अर
बहु त रहते थे। उसका इरादा भी यह था क घोड़ा दौड़ाकर बरछे से सू अर को मारे ।

जंगल म घू मने- फरने लगे। एक ताकतवर और मजबू त सू अर भीमसेन क बगल से होता हु आ


पू रब क तरफ भागा। भीमसेन ने भी उसके पीछे घोड़ा दौड़ाया, मगर वह बहु त तेजी के साथ
भागा जा रहा था। इस लए बहु त दू र नकल गया, उसके संगी - साथी सब पीछे छूट गये।
यकायक भीमसेन ने दे खा क सामने क तरफ िजधर सू अर भागा जाता है एक औरत घोड़े

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पर सवार हाथ म बरछ लए इस ताक म खड़ी है क सू अर पास आवे तो बरछ से मार ले।
जब सू अर ऐसे ठकाने पहु ंचा जहां से वह औरत इतनी दू र रह गई िजतनी दू र उसकेपीछे
भीमसेन था, वह बा तरफ को मु ड़ा और पहले से यादा तेजी के साथ भागा। भीमसेन और
वह औरत दोन ह ने उसके पीछे घोड़ा फका मगर भीमसेन से पहले उस औरत ने पहु ंचकर
बरछ मार िजसके लगते ह वह सू अर गरा।

अपना शकार एक औरत के हाथ से मरते दे ख भीमसेन को ोध चढ़ आया और आंख लाल


हो ग । ललकारकर औरत से बोला - ''तू ने मेरे शकार पर य बरछ चलाई!''
औरत - या शकार पर तु हारा नाम खु दा हु आ था

भीम - य नह !ं मेरा जंगल, मेरा शकार, इतनी दे र से म इसके पीछे चला आ रहा हू!ं

औरत - वाह रे तेरा जंगल और वाह रे तेरा शकार! तीन कोस से दौड़े चले आते ह, एक सू अर
न मारा गया! शम तो आती नह ं उ टे लाल आंख कर मदानगी दखा रहे ह!!
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भीम - s p
या कहू ं, तेर खू बसू रती पर रहम आता है, औरत समझकर छोड़ दे ता हू ं नह ं तो ज र
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मजा चखा दे ता।
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औरत - म भी छोकरा समझकर छोड़ दे ती हू ं नह ं तो दोन कान पकड़कर उखाड़ लेत!ी
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भीम - (दांत पीसकर) बस अब / सहा नह ं जाता। जु बान स हाल!
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ht तो अपने हाथ से अपना मु ंह पीट! यहां
औरत - नह ं सहा जाता तो जु बान हमेशा य ह
चलती रह है और चलती रहे गी!

इस औरत क खू बसू रती, सवार का ढं ग, बदन क सु डौलता और फुत यहां तक चढ़ - बढ़ थी


क आदमी घंट दे खा करे और जी न भरे मगर इसक जल -कट बात ने भीमसेन को आपे
से बाहर कर दया। आंख के आगे अंधेरा छा गया, बना कुछ सोचे- वचारे उस औरत पर
बरछ का वार कया। औरत ने बड़ी फुत से बछ को ढाल पर रोका और हंसकर कहा, ''और
जो कुछ हौसला रखता हो ला!''

घंटे भर तक दोन म बरछ क लड़ाई हु ई। इस समय अगर कोई इस फन का उ ताद होता


तो उस औरत क फुत दे ख बेशक खु श हो जाता और 'वाह-वाह' या 'शाबाश' कहे बना न
रहता। आ खर उस औरत क बरछ िजसका फल जहर से बु झाया हु आ था भीमसेन क जांघ
म लगा िजसके लगते ह तमाम बदन म जहर फैल गया और वह बदहवास होकर जमीन पर
गर पड़ा।

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बयान -9

भीमसेन के सा थय ने बहु त खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-
आते लौट आये और उसी समय महाराज शवद त के पास जाकर अज कया क आज शकार
खेलने के लए कुमार जंगल म गये थे, एक बनैले सू अर के पीछे घोड़ा फकते हु ए न मालू म
कहां चले गये, बहु त तलाश कया मगर पता न लगा।

अपने लड़के के गायब होने का हाल सु न महाराज शवद त बहु त घबरा गये। थोड़ी दे र तक तो
उन लोग पर खफा होते रहे जो भीमसेन के साथ थे, आ खर कई जासू स को बु लाकर भीमसेन
का पता लगाने के लए चार तरफ रवाना कया और ऐयार को भी हर तरह क ताक द क ,
मगर तीन दन बीत जाने पर भी भीमसेन का पता न लगा।

एक दन लड़के क जु दाई से .in


याकुल हो अपने कमरे म अकेले बैठे तरह-तरह क बात सोच
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रहे थे क एक खास खदमतगार ने वहां पहु ंच अपने पैर क धमक
s po से उ ह च का दया। जब
वे उस खदमतगार क तरफ दे खने लगे तो उसने एक o g दखाकर कहा - ''चोबदार ने
लफाफा
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b चोबदार क जु बानी मालू म हु आ क
यह लफाफा हु जू र को दे ने के लए मु झे स पा है।.उसी
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u चोबदार ने उसे रोकना चाहा था मगर वह
कोई ऊपर आदमी यह लफाफा दे कर चला 4
i गया,
फुत से नकल गया।'' i nd
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महाराज शवद त ने वह लफाफा
p :/ लेकर खोला। अपने लड़के भीमसेन के हाथ का लेख पहचान
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htचीठ पढ़ लेने से तर ुद क नशानी उनके चेहरे पर झलकने लगी। चीठ
बहु त खु श हु ए, मगर
का मतलब यह था :

''यह जानकर आपको बहु त रं ज होगा क मु झे एक औरत ने बहादु र से गर तार कर लया,


मगर या क ं लाचार हू ं, इसका हाल हािजर होने पर अज क ं गा। इस समय मेर छु ी तभी
हो सकती है जब आप वीर सं ह के कुल ऐयार को जो आपके यहां कैद ह छोड़ द और वे
खु शी-राजी से अपने घर पहु ंच जाएं। मेरा पता लगाना यथ है, म बहु त ह बेढब जगह कैद
कया गया हू ं।

आपका आ ाकार पु -

भीम।''

चीठ पढ़कर महाराज शवद त क अजब हालत हो गई। सोचने लगे, '' या भीम एक औरत ने
पकड़ लया वह बड़ा हो शयार-ताकतवर और श चलाने म नपु ण था। नह ं, नह ,ं उस औरत

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ने ज र कोई धोखा दया होगा! पर अब तो उन ऐयार को छोड़ना ह पड़ेगा जो मेर कैद म
ह! हाय, कस मु ि कल से ये ऐयार गर तार हु ए थे और अब या सहज ह म छूटे जाते ह,
खैर लाचार है या कर।''

बहु त दे र तक सोच- वचार कर महाराज शवद त ने बाकरअल ऐयार को बु लाकर कहा,


''वीर सं ह के ऐयार को छोड़ दो, जब तक वे अपने घर नह ं पहु ं चते हमारा लड़का एक औरत
क कैद से नह ं छूटता।''

बाकर - (ता जु ब से) यह या बात हु जू र ने कह मेर समझ म कुछ नह ं आया!

शवद त - भीमसेन को एक औरत ने गर तार कर लया है। वह कहती है क जब तक


वीर सं ह के ऐयार न छोड़ दये जायगे तु म भी घर न जाने पाओगे।

बाकर - यह कैसे मालू म हु आ


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शवद त - (चीठ p
दखाकर) यह दे खो खास भीमसेन के हाथ का लखा हु आ है, इस चीठ पर
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कसी तरह का शक नह ं हो सकता। o g
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बाकर - (पढ़कर) ठ क है , इतने दन तक कुमार का पता न लगना ह कहे दे ता था क उ ह
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कसी ने धोखा दे कर फंसा लया, अब यह
i ndभी मालू म हो गया क औरत ने मद के कान काटे
ह। / h
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शवद त - ता जु ब हैt, tएक औरत ने बहादु र से भीम को कैसे गर तार कर लया! खैर, इसका
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खु लासा हाल तभी मालू म होगा जब भीम से मु लाकात होगी और जबतक वीर सं ह के ऐयार
चु नार नह ं पहु ंच जाते भीम क सू रत दे खने को तरसतेरहगे। तु म जाके उन ऐयार को अभी
छोड़ दो, मगर यह मत कहना क तु म लोग फलानी वजह से छोड़े जाते हो बि क यह कहना
क हमसे और वीर सं ह से सु लह हो गई, तु म ज द चु नार जाओ। ऐसा कहने से वे कह ं न
ककर सीधे चु नार चले जाएंगे।

बाकरअल महाराज शवद त के पास से उठा और वहां पहु ं चा जहां ब नाथ वगैरह ऐयार कैद
थे। सभ को कैदखाने से बाहर कया और कहा - ''अब आप लोग से हमसे कोई दु मनी नह ं,
आप लोग अपने घर जाइए, य क हमारे महाराज से और राजा वीर सं ह से सु लह हो गई।''

ब नाथ - बहु त अ छ बात है, बड़ी खु शी का मौका है, पर अगर आपका कहना ठ क है तो
हमार ऐयार के बटु ए और खंजर भी दे द िजए।

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बाकर - हां, हां, ल िजए, इसम या उ है , अभी मंगाए दे ता हू ं बि क म खु द जाकर ले आता
हू ं।

दो - तीन ऐयार को साथ ले इन ऐयार के बटु ए वगैरह लेने के लए बाकरअल अपने मकान
क तरफ भागा, इधर पं डत ब नाथ और प नालाल वगैरह नराला पाकर आपस म बात करने
लगे।

प ना - य यारो, यह या मामला है जो आज हम लोग छोड़े जाते ह

राम - सु लह वाल बात तो हमार तबीयत म नह ं बैठती।

चु नी - अजी कैसी सु लह और कहां मेल! ज र कोई दू सरा ह मामला है।

यो तषी - बेशक शवद त लाचार होकर हम लोग को छोड़ रहा है।


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ब - य साहब भैरो सं ह, आप इस बारे म या सोचते ह o t
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भैरो - सोचगे या असल बात जो है म समझ गया।
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ब - भला क हये तो सह या समझे! i 4u
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भैरो - इसम शक नह ं क हमारे
/ / सा थय म से कसी ने यहां के कसी मु ढ को पकड़ लया
है और इनको कहला भेp ज:ा है क जब तक हमारे ऐयार चु नार न पहु ं च जायगे उसको न
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छोड़गे, बस इसी सेhये बात बनाई जा रह ह, िजससे हम लोग ज द चु नार पहु ंच।

ब - शाबाश, बहु त ठ क सोचा, इसम कोई शक नह ं। म समझता हू ं क शवद त क जो ,


लड़का या लड़क पकड़ी गई है तभी वह इतना कर रहा है, नह ं तो दू सरे क वह परवाह करने
वाला नह ं है, तस पर हम लोग के मु काबले म।

भैरो - बस-बस, यह बात है और अब हम लोग सीधे चु नार य जाने लगे जब तक कुछ


द णा न ले ल।

ब - दे खो तो या द लगी मचाता हू ं।

भैरो - (हंसकर) म तो शवद त से साफ कहू ंगा क मेरे पैर म दद है, तीन मह ने म भी
चु नार नह ं पहुचं सकता, घोड़े पर सवार होना मु ि कल है, बैल क सवार से कसम खा चु का
हू ं, पालक पर घायल, बीमार या अमीर लोग चढ़ते ह, बस बना हाथी के मेरा काम नह ं चलता,

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सो भी बना हौदे के चढ़ने क आदत नह ं। तेज सं ह द वान का लड़का बना चांद -सोने के हौदे
पर चढ़ नह ं सकता!

चु नी - भाई, बाकर ने मु झे बेढब छकाया है। म तो जब तक बाकर क आधा माशे नाक न


ले लू ंगा यहां से टलने वाला नह ं चाहे जान रहे या जाय।

चु नीलाल क बात सु नकर सभी हंस पड़े और दे र तक इसी तरह क बातचीत करते रहे , तब
तक बाकरअल भी इन लोग के बटु ए और खंजर लए हु ए आ पहु ंचा।

बाकर - लो साहबो, ये आपके बटु ए और खंजर हािजर ह।

ब - य यार, कुछ चु राया तो नह ं! और तो खैर बस, मु झे अपनी अश फय का धोखा है , हम


लोग के बटु ए म खू ब मजेदार चमकती हु ईअश फयां थीं।

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बाकर - अब लगे झू ठ-मू ठ का बखेड़ा मचाने।
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राम - (मु ंह बनाकर) ह, सच कहना! इन बात से तो मालू म होता है, अश फयां डकार गये!
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(प नालाल वगैरह क तरफ दे खकर) लो भाइयो, अपनी चीज दे ख लो!
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प ना - दे ख d
या हम लोग जब चु नार से चले थे तो सौ-सौ अश फयां सभ को खच के लए
मल थीं। वे सब hin
य -क - य बटु ए म मौजू द थीं।
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भैरो - भई मेरे पास तोt अश फयां नह ं थीं, हां एक छोट -सी पु टर
h t जवा हरात क ज र थी सो
गायब है, अब क हए इतनी बड़ी रकम कैसे छोड़कर चु नार जाय।

ब - अ छ द लगी है! दोन राज म सु लह हो गई और इस खु शी म लु ट गए हम लोग!


चलो एक दफे महाराज शवद त से अज कर, अगर सु नगे तो बेहतर है नह ं तो इसी जगह
अपना गला काटकर रख जायगे, धन-दौलत लु टाकर चु नार जाना हम मंजू र नह !ं

बाकर अल हैरान क इन लोग ने अजब ऊधम मचा रखा है, कोई कहता है मेर अश फयां
गायब ह, कोई कहता है मेर जवा हरात क गठर गु म हो गई, कोई कहता है हम लु ट गये, अब
या कया जाय हम तो इस फ म ह क िजस तरह हो ये लोग ज द चु नार पहु ंच िजससे
भीमसेन क जान बचे, मगर ये लोग तो खमीर आटे क तरह फैले ह जाते ह। खैर एक दफे
इनको धमक दे नी चा हए।

बाकर - दे खो तु म लोग बदमाशी करोगे तो फर कैद कर लए जाओगे!

ब - जी हां! म भी यह सोच रहा हू ं।

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प ना - ठ क है , ज र कैद कर लए जायगे, य क अपनी जमा मांग रहे ह। चु पचाप चले
जाय तो बेहतर है, िजससे बखू बी रकम पचा जाओ और कोई सु नने न पावे!

भैरो - यह धमक तो आप अपने घर म खच क िजयेगा, भलमनसी इसी म है क हम लोग


क जमा बाएं हाथ से रख द िजए, और नह ं तो च लए राजा साहब के पास, जो कुछ होगा,
उ ह ं के सामने नपट लगे।

बाकर - अ छ बात है , च लए।

सब - च लए, च लए!!

यह मसखर का झु ंड बाकरअल के साथ महाराज शवद त के पास पहु ंचा।

बाकर - महाराज, दे खए ये लोग झगड़ा मचाते ह।


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भैरो - जी हां, कोई अपनी जमा मांगे तो क हए, झगड़ा मचाते ह! o t
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शव - या मामला है
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भैरो - महाराज, मु झसे सु नए, जब हमारे सरकार से और आपसे सु लह हो गई और हम लोग
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छोड़ दये गए तो हम लोग क वे चीज भी मल जानी चा हय जो कैद होते समय ज त कर
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ल गई थीं। / /
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शव - य नह ं h
मलगी!

भैरो - ई वर आपको सलामत रखे , या इंसाफ कया है! आगे सु नए, जब हम लोग ने अपनी
चीज मयां बाकर से मांगीं तो बस बटु आ और खंजर तो दे दया मगर बटु ए म जो कुछ
रकम थी गायब कर गए। दो-दो, चार-चार अश फयां और दस-दस, बीस-बीस पये तो छोड़
दये बाक अपने क म गाड़ आये! अब इंसाफ आपके हाथ है!

शव - (बाकर से) य जी, यह या मामला है!

बाकर - महाराज, ये सब झू ठे ह।

भैरो - जी हां, हम सबके सब झू ठे ह और आप अकेले स चे ह

शव - (भैरो से) खैर जाने दो, तु म लोग का जो कुछ गया है हमसे लेकर अपने घर जाओ,
हम बाकर से समझ लगे।

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भैरो - महाराज सौ-सौ अश फयां तो इन लोग क गई ह। और एक गठर जवा हरात क मेर
गई है। अब बहु त बखेड़ा कौन करे बस एक हजार अश फयां मंगवा द िजए हम लोग अपने
घर का रा ता ल, रकम तो यादे गई है मगर आपका या कसू र।

बाकर - यारो गजब मत करो!

भैरो - हां साहब हम लोग गजब करते ह, खैर ल िजए अब एक पैसा न मांगगे, जी म समझ
लगे खैरात कया, अब चु नार भी न जायगे। (उठना चाहता है )

शव - अजी घबराते य हो, जो कुछ तु मने कहा है हम दे ते ह। (बाकर से) या तु हार


शामत आयी है!

महाराज शवद त ने बाकर अल को ऐसी डांट बताई क बेचारा चु पके से दू र जा खड़ा हु आ।


हजार अश फयां मंगवाकर भैरो सं ह के आगे रख द ग , ये लोग अपने बटु ओं म रख उठ खड़े
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हु ए, यह भी न पू छा t
क तु हारा कौन कैद हो गया िजसके लए इतना सह रहे हो, हां
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शवद तगढ़ के बाहर होते-होते इन लोग ने पता लगा ह s p
लया क भीमसेन कसी ऐयार के
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पंजे म पड़ गया है।
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शवद तगढ़ के बाहर हो सीधे चु नार का रा ता कया। दू सरे दन शाम को जब चु नार पं ह
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कोस बाक रह गया सामने से एक सवार घोड़ा फकता हु आ इसी तरफ आता दखाई पड़ा।
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// क शवद त का लड़का भीमसेनहै।
पास आने पर भैरो सं ह ने पहचाना
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h के पास पहु ंचकर घोड़ा रोका और हंसकर भैरो सं ह क
भीमसेन ने इन ऐयार तरफ दे खा िजसे
वह बखू बी पहचानता था।

भैरो - य साहब, आपको छु ी मल (अपने सा थय क तरफ दे खकर) महाराज शवद त के


पु कुमार भीमसेन यह ह।

भीम - आप ह लोग क रहाई पर मेर छु ी बद थी, आप लोग चले आये तो म य रोका


जाता

भैरो - हमारे कस साथी ने आपको गर तार कया

भीम - सो मु झे मालू म नह ं, शकार खेलते समय घोड़े पर सवार एक औरत ने पहु ंचकर नेजे
से मु झे ज मी कया, जब म बेहोश हो गया, मु क बांध एक खोह म ले गई और इलाज करके
आराम कया, आगे का हाल आप जानते ह, मु झे यह न मालू म हु आ क वह औरत कौन थी
मगर इसम शक नह ं क थी वह औरत ह ।

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भैरो - खैर अब आप अपने घर जाइये , मगर दे खए, आपके पता ने यथ हम लोग से वैर
बांध रखा है। जब वे राजकुमार वीर सं ह के कैद हो गये थे उस व त हमारे महाराज
सु र सं ह ने उ ह बहु त तरह से समझाकर कहा क आप हमलोग से वैर छोड़ चु नार म रह,
हम चु नार क ग ी आपको फेर दे ते ह। उस समय तो हजरत को फक र सू झी थी, योगा यास
क धु न म ाण क जगह बु को मा ड म चढ़ा ले गये थे ले कन अब फर गु दगु द
मालू म होने लगी। खैर हम या, उनक क मत म ज म-भर दु ख ह भोगना बदा है तो कोई
या करे , इतना भी नह ं सोचते क जब चु नार के मा लक थे तब तो कुं अर वीर सं ह से जीते
नह ,ं अब न मालू म या कर लगे!

भीम - म सच कहता हू ं क उनक बात मु झे पसंद नह ं मगर या क ं, पता के व होना


धम नह ं।

भैरो - ई वर करे इसी तरह आपक धम म बु बनी रहे, अ छा जाइये।

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भीमसेन ने अपने घर का रा ता लया और हमारे चोखे ऐयार ने चुoनार क सड़क नापी।
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n म ले चलते ह िजसम कुं अर आनंद सं हको बेहोश
अब हम अपने पाठक को फर उसी h iखोह
छोड़ आये ह अथवा िजस खोह : //म जान बचाने वाले सपाह के साथ पहु ंचकर उ ह ने एक
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औरत को छु रे से लाश
p दे खा था और यो गनी ने पहु ंचकर सभ को बेहोश कर दया
tकाटते
था।
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थोड़ी दे र के बाद आनंद सं ह को छोड़ यो गनी बाक सभ को कुछ सु ंघाकर होश म लाई।
बेहोश आनंद सं ह उठाकर एक कनारे रख दए गए और फर वह काम अथात लटकते हु ए
आदमी को छूरे से काट-काटकर पू छना क 'इं जीत सं ह के बारे म जो कुछ जानता है बता'
जार हु आ। सपाह ने भी उन लोग का साथ दया। मगर वह आदमी भी कतना िज ी था!
बदन के टु कड़े-टु कड़े हो गए मगर जब तक होश म रहा यह कहता गया क हम कुछ नह ं
जानते। ह शी ने पहले ह से क खोद रखी थी, दम नकल जाने पर वह आदमी उसी म गाड़
दया गया।

इस काम से छु ी पा यो गनी ने सपाह क तरफ दे खकर कहा, ''बाहर जंगल से लकड़ी काट
काम चलाने लायक एक छोट -सी डोल बना लो, उस पर आनंद सं ह को रख तु म और ह शी
मलकर उठा ले जाओ, चु नार के कले के पास इनको रख दे ना िजससे होश आने पर घर

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पहु ंच जायं, तकल फ न हो, बि क होश म लाने क तरक ब करके तु म इनसे अलग होना और
जहां जी चाहे चले जाना, हम लोग से अगर मलने क ज रत हो तो इसी जगह आना।''

सपाह - मेर भी यह राय थी, आनंद सं ह को तकल फ य होने लगी, या मु झको इसका
खयाल नह !ं

यो गनी - य नह ,ं बि क मु झसे यादे होगा। अ छा तु म जाओ, िजस तरह बने इस काम


को कर लो, हम लोग अब अपने काम पर जाती ह। (दू सर औरत क तरफ दे खकर िजसने
छुर से उस लाश को काटा था) चलो बहन चल, इस छोकर को इसी जगह छोड़ दो मजे म
रहे गी, फर बू झा जायगा।

इन दोन औरत का अभी बहु त कुछ हाल हम लखना है इस लए जब तक इन दोन का


असल भेद और नाम न मालू म हो जाये तब तक पाठक के समझने के लए कोई फज नाम
ज र रख दे ना चा हए। एक का नाम तो यो गनी रख ह
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दया गया, दू सर का वनचर समझ
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ल िजए। यो गनी और वनचर दोन खोह के बाहर नकल ं और कुछ
p o दि खन झु कते हु ए पू रब
का रा ता लया। इस समय रात बीत चु क थी और सु बहgकs सफेद के साथ लु पलु पाते हु ए
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दो-चार तारे आसमान पर दखाई दे रहे थे।
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पहर दन चढ़े तक ये दोन बराबर चलतीi4
n d ग , जब धू प कुछ कड़ी हु ई जंगल म एक जगह
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बेल के पेड़ क घनी छांह दे खकरh टक ग िजसके पास पानी का झरना बह रहा था। दोन

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ने कमर से बटु आ खोला और//कुछ मेवा नकालकर खाने तथा पानी पीने के बाद जमीन पर
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नरम-नरम प ते बछाकर tpसो रह ं।
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ये दोन तमाम रात क जागी हु ई थीं, लेटते ह नींद आ गई। दोपहर तक खू ब सो । जब पहर
दन बाक रहा उठ बैठ ं और च मे के पानी से हाथ-मु ंह धो फर चल पड़ीं। इस तरह मौके-
मौके पर टकती हु ई ये दोन कई दन तक बराबर चलती गई। एक दन आधी रात तक
बराबर चले जाने के बाद एक तालाब के कनारे पहु ंचीं जो बगल वाल पहाड़ी के नीचे सटा
हु आ था।

इस लंब-े चौड़े संगीन और नहायत खू बसू रत तालाब के चार तरफ प थर क सी ढ़यां और


छोट -छोट बारहद रयां इस तौर पर बनी हु ई थीं जो ब कुल जल के कनारे ह पड़ती थीं।
तालाब के ऊपर भी चार तरफ प थर का फश और बैठने के लए हर एक तरफ सं हासन क
तरह चार-चार चबू तरे नहायत खू बसू रत मौजू द थे।ता जु ब क बात यह थी क इस तालाब
के बीच का जाट लकड़ी क जगह पीतल का इतना मोटा बना हु आ था क दोन तरफ दो
आदमी खड़े होकर हाथ नह ं मला सकते थे। जाट के ऊपर लोहे का एक बदसू रत आदमी का
चेहरा बैठाया हु आ था।

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तालाब के ऊपर चार तरफ बड़े-बड़े सायेदार दर त ऐसे घने लगे हु ए थे क सभ क डा लयां
आपस म गु ंथ रह थीं। दोन उस तालाब पर खड़े होकर उसक शोभा दे खने लगीं। थोड़ी दे र
बाद दोन एक चबू तरे पर बैठ गई मगर मु ंहतालाब ह क तरफ कये हु ए थीं।

यकायक जाट के पास का पानी खलबलाया और एक आदमी तैरता हु आ जल के ऊपर दखाई


दया। इन दोन क टकटक उसी तरफ बंध गई। वह आदमी कनारे आया और ऊपर क
सीढ़ पर खड़ा हो चार तरफ दे खने लगा। अब मालू म हो गया क वह औरत है। यो गनी और
वनचर ने चबू तरे के नीचे होकर अपने को छपा लया मगर उस औरत क तरफ बराबर
दे खती रह ं।

उस औरत क उ बहु त कम मालू म होती थी जो अभी-अभी तालाब से बाहर हो इधर-उधर


स नाटा दे ख हवा म अपनी धोती सु खा रह थी। थोड़ी ह दे र म साड़ी सू ख गयी िजसे
पहनकर उसने एक तरफ का रा ता लया।

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मालू म होता है यो गनी और वनचर इसी क ताक म बैठ थीं यoक जैसे ह वह औरत वहां
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से चल खड़ी हु ई वैसे ह ये दोन उस पर लपक ं और जबदgती गर तार कर लेना चाहा, मगर
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वह कम सन औरत इन दोन को अपनी तरफ आतेbदेlख और इन दोन के मु काबले अपनी
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जीत न समझकर लौट पड़ी और फु त के साथ
i 4u दर त म से एक पर चढ़ गई जो उस
उन
तालाब के चार तरफ लगे हु ए थे। योdगनी और वनचर दोन उस दर त के नीचे पहु ंचीं,
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यो गनी खड़ी रह और वनचर उसेhपकड़ने के लये ऊपर चढ़ ।
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हम ऊपर लख आयेttह क यह दर त इतने पास-पास लगे हु ए थे क सभ क डा लयां
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आपस म गु ंथ रह थीं। वनचर को पेड़ पर चढ़ते दे ख वह जलचर ऊपर ह ऊपर दू सरे पेड़
पर कूद गई यह दे ख यो गनी ने उसके आगे वाले तीसरे पेड़ को जा घेरा, िजससे वह बीच ह
म फंसी रह जाय और आगे न जाने पावे। मगर वह चालाक भी न लगी। जब उस औरत ने
अपने बगल वाले पेड़ को दु मन से घरा हु आपाया, पेड़ के नीचे उतर आई और तालाब क
सी ढ़य को तै करते हु ए ध म से जल म कूद पड़ी। यो गनी और वनचर भी साथ ह पेड़ से
उतर ं और उसके पीछे जाकर इन दोन ने भी अपने को जल म डाल दया।

बयान - 11

सू य भगवान अ त होने के लए ज द कर रहे ह, शाम क ठं डी हवा अपनी चाल दखा रह


है। आसमान साफ है य क अभी-अभी पानी बरस चु का है और पछुआ हवा ने ई के पहल
क तरह जमे हु ए बादल को तू म-तू मकर उड़ा दया है। अ त होते हु ए सू य क लालमा ने
आसमान पर अपना दखल जमा लया है और नकले हु ए इं धनु ष पर क शोभा और उसके

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रं गदार जौहर को अ छ तरह उभाड़ रखा है। बाग क र वश पर िजन पर कुदरती भ ती
अभी घंटा भर हु आ छड़काव कर गया है, घू म-घू मकर दे खने से धु ले-धु लाये रं ग- बरं गे प त
क कै फयत और उन सफेद क लय क बहार दल और िजगर को या ह ताकत दे रह है
िजनके एक तरफ का रं ग तो असल मगर दू सरा ह सा अ त होते हु ए सू य क ला लमा पड़ने
से ठ क सु नहला हो रहा है। उस तरफ से आये हु ए खु शबू के झपेटे कहे दे ते ह क अभीतक
तो आप टांत ह म अनहोनी समझकर कहा-सु ना करते थे मगर आज 'सोने और सु गंध'
वाल कहावत दे खए अपनी आंख के सामने मौजू द ये अध खल क लयां सच कए दे ती ह।
चमेल क ट य म नाजु क-नाजु क सफेद फूल तो खले हु ए हईह मगर कह -ं कह ं पि तय म
से छनकर आई हु ई सू य क आ खर करण धोखेम डालती ह। यह समझकर क आज इ ह ं
सफेद चमे लय म जद चमेल भी खल हु ई है शौक भरा हाथ बना बढ़े नह ं रहता। सामने
क बनाई हु ई स जी िजसक दू ब सावधानी से काटकर मा लय ने स ज मखमल फश का
नमू ना दखला दया है, आंख को या ह तरावट दे रह है! दे खये उसी के चार तरफ सजे

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हु ए गमल म खु शरं ग प त वाले छोटे-छोटे जंगल पौधे अपने हु न और जमाल के घमंड म
कैसे ऐंठे जाते ह। हर एक र वश और या रय के कनारे गु लमहदoके पेड़ ठ क प टन क
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कतार क तरह खड़े दखाई दे ते ह, य क छुटपने ह से उनकsफैल हु ई डा लयां काटकर
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मा लय ने मनमानी सू रत बना डाल ह। कहने ह कोbसूlरजमु खी का फूल सू य क तरफ घू मा
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रहता है मगर नह ं यहां तो दे खये सामने सू रजमु
4u के कतने ह पेड़ लगे ह िजनकेबड़े-बड़े
ख ी
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फूल अ त होते हु ए दवाकर क तरफ पीठ
i nd कए हसरत भर नगाह सेदे खती हु ई उस हसीन
नाजनीन को अलौ कक प क छटा
/ h दे रहे ह जो उस बाग म बीच बीच बने हु ए कमरे क
छत पर खड़ी उसी तरफ दे ख
p :/रह है िजधर सू य भगवान अ त होते दख रहे ह। उधर ह से
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बाग म आने का रा htता है, मालू म होता है वह कसी आने वाले क राह दे ख रह है, तभी तो
सू य क करण को सहकर भी एकटक उधर ह यान लगाये है।

इस कम सन पर जमाल का चेहरा पसीने से भर गया मगर कसी आने वाले क सू रत न द ख


पड़ी। घबराकर बाय हाथ अथात दि खन तरफ मु ड़ी और उस बनावट छोटे-से पहाड़ को
दे खकर दल बहलाना चाहा िजसम रं ग- बरं गे खु शनु मा प त वाले करोटन, कौ लयस, बरबीना,
बगू नया, मौस इ या द पहाड़ पर के छोटे -छोटे पौधे बहु त ह कार गर से लगाये हु ए थे, और
बीच म मौके-मौके से घु मा- फराकर पेड़ को तर पहु ंचाने और पहाड़ी क खू बसू रती को बढ़ाने
के लए नहर काट हु ई थी। ऊपर ढांचा खड़ा करके नहायत खू बसूरत रे शमी जाल इस लए
डाला हु आ था क हर तरह क बो लय से दल खु श करने वाल उन रं ग- बरं गी नाजु क
च ड़य के उड़ जाने का खौफ न रहे जो उनके अंदर छोड़ी हु ई ह और इस समय शाम होते
दे ख अपने घ सल म जो प त के गु छ म बनाए ह जा बैठने के लए उतावल हो रह ह।

हाय इस पहाड़ी क खू बसू रती से भी उसका परे शान और कसी क जु दाई म याकुल दल न
बहला, लाचार छत के ऊपर क तरफ खड़ी हो उन तरह-तरह के न श वाल या रय को दे ख

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अपने घबड़ाये हु ए दल को फुसलाना चाहा, िजनम नीले, पीले, हरे , लाल, चौरं गे नाजु क मौसमी
फूल के छोटे -छोटे त ते सजाये हु ए थे िजनके दे खने से बेशक मती गल चे का गु मान हो रहा
था और उसी के बीच म एक च करदार फ वारा छूट रहा था िजसके बार क धार का जाल
दू र-दू र तक फैल रहा था। रं ग- बरं गी तत लयां उड़-उड़कर उन रं गीन फूल पर इस तरह बैठती
थीं क फूल म और उनम ब कुल फक नह ं मालू म पड़ता था जब तक क वे फर से उड़कर
कसी दू सरे फूल के गु छ पर न जा बैठतीं।

इन फूल और फ वार के छ ंट ने भी उसके मन क कल न खलाई, लाचार वह पू रब तरफ


आई और अपनी उन स खय क कारवाई दे खने लगी जो चु न-चु नकर खु शबू दार फूल के
गजर और गु छ को बनाने म अपने नाजु क हाथ को तकल फ दे रह थीं। कोई अंगू र क
ट य म घु सकर लाल पके हु ए अंगू र क ताक म थी, कोई पके हु ए आम तोड़ने क धु न म
उन पेड़ क डा लय तक ल घे पहु ंचा रह थी िजनके नीचे चार तरफ ग ढे खु दवा कर
इस लए जल से भरवा दये गये थे क पेड़ से गरे हु ए आम टु ट ले न होने पाव।
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अब सू य क ला लमा ब कुल जाती रह और धीरे-धीरे अंधेरा p o लगा। वह बेचार कसी
होने
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तरह अपने दल को न बहला सक बि क अंधेरे म बाग
l ogके चार तरफ के बड़े-बड़े पेड़ क
सू रत डरावनी मालूम होने लगी, दल क धड़कन बढ़ती
s .b ह गई, लाचार वह छत से नीचे उतर
आई और एक सजे-सजाये कमरे म चल गई।
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इस कमरे क सजावट मु तसर हhथी, एक झाड़ और दस-बारह हां डयां छत से लटक रह थीं,
: /म/ मोमबि तयां जल रह थीं, जमीन पर फश बछा हु आ था और
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चार तरफ दु शाखी द वारगीर
एक तरफ ग ी लगी t
h ई थी िजसके आगे दो फश झाड़ अपनी चमक-दमक दखा रहे थे।
उनके बगल ह म एक मसहर थी िजस पर थोड़े-से खु शबू दार फूल और दो-तीन गजरे दखाई
दे रहे थे। अ छे -अ छे कपड़ और गहन से दमागदार बनी हु ई दस-बारह कम सन छोक रयां
भी इधर-उधर घू म-घूमकर ताख (आल ) पर रखे हु ए गु लद त म फूल के गु छे सजा रह
थीं।

वह नाजनीन िजसका नाम कशोर था कमरे म आई मगर ग ी पर न बैठकर मसहर पर जा


लेट और आंचल से मु ंह ढांप न मालू म या सोचने लगी। उ ह ं छोक रय म से एक पंखा
झलने लगी, बाक अपने मा लक को उदास दे खकर सु त खड़ी हो गयीं मगर नगाह सभी क
मसहर क तरफ ह थीं।

थोड़ी दे र तक इस कमरे म स नाटा रहा, इसके बाद कसी आने वाले क आहट मालू म हु ई।
सभी क नगाह सदर दरवाजे क तरफ घू म गयी। कशोर ने भी मु ंह फेरा और उसी तरफ
दे खने लगी। एक नौजवान लड़का सपा हयाना ठाठ से कमरे म पहु ंचा िजसे दे खते ह कशोर
घबड़ाकर उठ बैठ और बोल -

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''कमला, म कब से राह दे ख रह हू!ं तने इतने दन य लगाये'

पाठक समझ गये ह गे क यह सपा हयाना ठाठ से आने वाला नौजवान लड़का असल म मद
नह ं है बि क कमला के नाम से पु कार जाने वाल कोई ऐयारा है।

कमला - यह सोच के म चल आई क तु म घबड़ा रह ह गी नह ं तो दो दन का काम और


था।

कशोर - या अभी पू रा हाल मालू म नह ं हु आ

कमला - नह ं।

कशोर - चु नार म तो हलचल खू ब मची होगी!

कमला - इसका
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या पू छना है! मु झे भी जो कुछ थोड़ा-बहु त हाल मला वह चु नार ह म।
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कशोर - अ छा या मालू म हु आ s p
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कमला - बू ढ़े सौदागर क सू रत बना जब म तु sहार त वीर जड़ी अंगू ठ देआई उसी समय
से उनक सू रत-श ल, बातचीत और चाल-ढाल i 4u
म फक पड़ गया, दू सरे दन मेर (सौदागर क )
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बहु त खोज क गई।
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कशोर - इसम कोई शक
t tp नह ं क मेर आह ने अपना असर कया! हां फर या हु आ
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कमला - उसके दू सरे या तीसरे दन उ ह उदास दे ख आनंद सं ह क ती पर हवा खलाने ले
गये, साथ म एक बू ढ़ा नौकर भी था। बहाव क तरफ कोस-डेढ़ कोस जाने के बाद कनारे के
जंगल से गाने-बजाने क आवाज आई, उ ह ने क ती कनारे लगाई और उतरकर दे खने लगे।
वहां तु हार सू रत बना माधवी ने पहले ह जाल फैला रखा था, यहां तक क उसने अपना
मतलब साध लया और न मालू म कस ढं ग से उ ह लेकर गायब हो गई। उस बू ढ़े नौकर क
जु बानी जो उनके साथ गया था मालू म हु आ क माधवी के साथ कई औरत भी थीं जो इन
दोन भाइय को दे खते ह भागीं। आनंद सं ह उन औरत के पीछे लपके ले कन वे भु लावा दे कर
नकल गयीं और आनंद सं ह ने लौटकर आने पर अपने भाई को भी न पाया, तब गंगा कनारे
पहु ंच ड गी पर बैठे हु ए खदमतगार से सब हाल कहा।

कशोर - यह कैसे मालू म हु आ क माधवी ने मेर सू रत बनाकर धोखा दया

कमला - लौटते समय जब म उस जंगल के कुछ इधर नकल आई जो अब ब कुल साफ हो


गया है, तो जमीन पर पड़ी हु ई एक जड़ाऊ 'कंकनी' नजर आई। उठाकर दे खा म उस कंकनी को

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खू ब पहचानती थी, कई दफे माधवी के हाथ म दे ख चु क थी, बस मु झे पू रा यक न हो गया क
यह काम इसी का है। आ खर उसके घर पहु ंची और उसक हमजो लय क बातचीत से
न चय कर लया।

कशोर - दे खो रांड़ ने मेरे ह साथ दगाबाजी क ।

कमला - कैसी कुछ!

कशोर - तो इं जीत सं ह अब उसी के घर म ह गे!

कमला - नह ं, अगर वहां होते तो या म इस तरह खाल लौट आती

कशोर - फर उ ह कहां रखा है?

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कमला - इसका पता नह ं लगा, मने चाहा था क खोज लगाऊं मगर तु हार तरफ खयाल
करके दौड़ी आई। o t
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कशोर - (ऊंची सांस लेकर) हाय, उस शैतान क ब ची ने मेरा यान उनके दल से नकाल
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दया होगा!!

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इतना कह कशोर रोने लगी, यहां तक क हचक बंध गई। कमला ने उसे बहु त समझाया
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और कसम खाकर कहा क/म/ अ न उसी दन खाऊंगी िजस दन इं जीत सं ह को तु हारे
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पास ला बैठाऊंगी।

पाठक इस बात को जानने क इ छा रखते ह गे क यह कशोर कौन है इसका नाम हम


पहले लख आये ह और अब फर कहे दे ते ह क यह महाराज शवद त क लड़क है , मगर
यह कसी दू सरे मौके से मालू म होगा क कशोर शवद तगढ़ के बाहर य कर द गई या
बाप का घर छोड़ अपने न नहाल म य दखाई दे ती है।

थोड़ी दे र स नाटा रहने के बाद फर कशोर और कमला म बातचीत होने लगी।

कशोर - कमला, तू अकेल या कर सकेगी

कमला - म तो वह कर सकूं गी जो चपला और चंपा के कये भी न हो सकेगा।

कशोर - तो या आज तू फर जायगी

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कमला - हां ज र जाऊंगी, मगर दो-एक बात का फैसला आज ह तु मसे कर लू ंगी, नह ं तो
पीछे बदनामी दे ने को तैयार होओगी।

कशोर - ब हन, ऐसी या बात है , जो म तु झी पर बदनामी दे ने पर उता हो जाऊंगी एक तू


ह तो मेर दु ख-सु ख क साथी है।

कमला - यह सब सच है, मगर आपस का मामला बहु त टे ढ़ा होता है।

कशोर - खैर कुछ कह तो सह

कमला - कुं अर इं जीत सं ह को तु म चाहती हो, इसी सबब से उनके कुटु ं ब भर क भलाई तु म
अपना धम समझती हो, मगर तु हारे पता से और उस घराने से पू रा वैर बंध रहा है , ता जु ब
नह ं क तु हार और इं जीत सं ह क भलाई करते-करते मेरे सबब से तु हारे पता को
तकल फ पहु ंचे, अगर ऐसा हु आ तो बेशक तु ह रं ज होगा
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कशोर - इन बात को न सोच, मने तो उसी दन अपने घर को इ तीफा दे दया िजस दन
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पता ने मु झे नकाल बाहर कया, अगर न नहाल म मेरo ा ठकाना न होता या मेरे नाना का
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उनको खौफ न होता तो शायद वे उसी दन मु झे s बै.कb
ु ं ठ पहु ंचादे ते। अब मु झे उस घर से र ती
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भर मु ह बत नह ं है। पर ब हन, तू ने यह iबड़ा काम कया क उस दु टा को वहां से नकाल
लाई और मेरे हवाले कया। जब म iगम
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n क मार घबड़ा जाती हू ं तभी उस पर दल का बु खार
नकालती हू ं िजससे कुछढाढ़स /
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: / हो जाता है।
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कमला - मु झे तो h
अभी तक उसके ऊपर गु सा नकालने का मौका ह न मला, कहो तो आज
चलते-चलते म भी कुछ बु खार नकाल लू ं

कशोर - या हज है, जा ले आ।

कमला कमरे के बाहर चल गई। उसके पीछे आधे घंटे तक कशोर को चु पचाप कुछ सोचने
का मौका मला। उसक सहे लयां वहां मौजू द थीं मगर कसी को बोलने का हौसला नह ं पड़ा।

आधे घंटे बाद कमला एक कैद औरत को लए हु ए फर उस कमरे म दा खल हु ई।

इस औरत क उ तीस वष से कम न होगी, चेहरे -मोहरे और रं गत से दु त थी, कह सकते


ह क अगर इसे अ छे कपड़े और गहने प हराये जाय तो बेशक हसीन क पंि त म बैठाने
लायक हो, पर न मालू म इसक ऐसी दु दशा य कर रखी है और कस कसू र पर कैद बना
डाला है!

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इस औरत को दे खते ह कशोर का चेहरा लाल हो गया और मारे गु से के तमाम बदन थर-
थर कांपने लगा। कमला ने उसक यह दशा दे ख अपने काम म ज द क और उन सहे लय
म से जो उस कमरे म मौजू द सब-कुछ दे ख रह थीं एक क तरफ कुछ इशारा करके हाथ
बढ़ाया। वह दू सरे कमरे म चल गई और एक बत लाकर उसने कमला के हाथ म दे दया।

कई औरत ने मलकर उस कैद औरत के हाथ-पैर एक साथ ह मजबू त बांधे और उसे गद


क तरह लु ढ़का दया।

यहां तक तो कशोर चु पचाप दे खती रह मगर जब कमला कमर कसकर खड़ी हो गई तो


कशोर का कोमल कलेजा दहल गया और इसके आगे जो कुछ होने वाला था दे खने क ताब
न लाकर वह दो सहे लय को साथ ले कमरे के बाहर नकल बाग क र वश पर टहलने
लगी।

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कशोर चाहे बाहर चल गई मगर कमरे के अंदर से आती हु ई च लाने क आवाज बराबर
उसके कान म पड़ती रह । थोड़ी दे र बाद कमला कशोर के पास पहु
p o ंचीजो अभी तक बाग म
टहल रह थी। g s
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कशोर - कहो, उसने कुछ बताया या नह ?ं

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कमला - कुछ नह ,ं खैर कहां जाती iहैn
, आज नह ं कल, कल नह ं परस , आ खर बतावेगी ह ।
अब मु झे खसत करो य क /
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p :/ बहु त कुछ काम करना है!

कशोर - अ छा h
tt
जा, म भी अब घर जाती हू ं नह ं तो नानी इसी जगह पहु ंचकररं ज होने
लगगी। (कमला के गले मलकर) दे ख अब म तेरे ह भरोसे पर जी रह हू ं।

कमला - जब तक दम म दम है तब तक तेरे काम से बाहर नह ं हू ं।

कमला वहां से रवाना हु ई। उसके जाने के बाद कशोर भी अपनी स खय को साथ ले वहां से
चल और थोड़ी ह दू र पर एक बड़ी हवेल के अंदर जा पहु ंची।

बयान - 12

अब हम आपको एक दू सर सरजमीन म ले चलकर एक दू सरे ह रमणीक थान क सैरकरा


तथा इसके साथ-ह -साथ बड़े-बड़े ता जु ब के खेल और अ ु त बात को दखाकर अपने क से
का सल सला दु त कया चाहते ह। मगर यहां एक ज र बात लख दे ने क इ छा होती है
िजसके जानने से आगे चलकर आपको कुछ यादे आनंद मलेगा।

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इस जगह बहु त-सी अ ु त बात को पढ़कर आप ऐसा न समझ ल क यह त ल म हैऔर
इसम ऐसी बात हु आ ह करती ह, बि क उसे दु त और होने वाल समझकर खू ब गौर कर
य क अभी यह पहला ह भाग है। इस संत त के चार भाग म तो हम त ल म का नाम
भी न लगे, आगे चलकर दे खा जायगा।

आप यान कर ल क एक अ छे रमणीक थान म पहु ंचकर सैर कर रहे ह। यह जमीन भी


लगभग हजार गज के चौड़ी और इतनी ह लंबी होगी, चार तरफ क चार खू बसू रत पहा ड़य
से घर हु ई है। बीच क स जी और गु लबू ट क बहार दे खने ह लायक है। इस कुदरती बगीचे
म जंगल फूल के पेड़ यादे दखाई दे ते ह, उ ह ं म मले-जु ले गु लाब के पौधे भी बेशु मार ह
और कोई भी ऐसा नह ं िजसम सु ंदर क लयां और फूल न दखाई दे ते ह । बीच म बड़े-बड़े
तीन झरने भी खू बसू रती से बह रहे ह। बरसात का मौसम है, चार तरफ से पहाड़ पर से
गरता हु आ जल इन झरन म जोश मार रहा है। पू रब तरफ पहाड़ी के नीचेपहु ंचकर ये तीन
झरने एक हो गए ह और अंदाज से यादे आया हु आ जल ग ढे म गरकर न मालू म कहां
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नकल जाता है। यहां क आबोहवा ऐसी उ तम है क अगर वष का बीमार भी आवे तो दो
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दन म तंद ु त हो जाय और यहां क सैर से कभी जी न घबड़ाए। s p
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बीच बीच म एक आल शान इमारत बनी हु ई है, मगर चाहे उसम हर तरह क सफाई य न

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हो फर भी कसी पु राने जमाने क मालू म होती है। उसी इमारत के सामने एक छोट -सी
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खू बसू रत बावल बनी हु ई है िजसके चार तरफ क जमीन कुछ यादाखू बसू रत मालू म पड़ती

// हु ए ह।
है और फूल-प ते भी मौके से लगाए
:
t tpउदास नह ं है, इसम
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यह इमारत सु नसान और पं ह-बीस नौजवान खू बसू रत औरत का डेरा है।
दे खए इस शाम के सु हावने समय म वे सब घर से नकलकर चार तरफ मैदान म घू म-
घू मकर िजंदगी का मजा ले रह ह। सभी खु श, सभी क म तानी चाल, सभी फूल को तोड़-
तोड़कर आपस म गदबाजी कर रह ह। हमारे नौजवान नायक कुं अर इं जीत सं ह भी एक
हसीन नाजनीन के हाथ म हाथ दये बावल के पू रब क तरफ टहल रहे ह, बात-बात म हंसी-
द लगी हो रह है , द न-दु नया क सु ध भू ले हु ए ह।

ल िजए वे दोन थककर बावल के कनारे एक खू बसू रत संगममर क च ान पर बैठ गये और


बातचीत होने लगी -

इं - माधवी, मेरा शक कसी तरह नह ं जाता। या सचमु च तु म वह हो जो उस दन गंगा


कनारे जंगल म झूला झू ल रह थीं

माधवी - आप रोज मु झसे यह सवाल करते ह और म कसम खाकर इसका जवाब दे चु क


हू ं, मगर अफसोस क मेर बात पर व वास नह ं करते।

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इं - (अंगू ठ क तरफ दे खकर) इस त वीर से कु छ फक मालू म होता है।

माधवी - यह दोष मु स वर1 का है।

इं - खैर जो हो फर भी तु मने मु झे अपने वश म कर रखा है।

माधवी - जी हां ठ क है , मु झसे मलने का उ योग तो आप ह ने कया था।

इं - अगर म उ योग न करता तो या तु म मु झे जबद ती ले आतीं

माधवी - खैर जाने द िजए, म कबू ल करती हू ं क आपने मेरे ऊपर अहसान कया, बस!

इं - (हंसकर) बे शक तु हारे ऊपर अहसान कया क दल और जान तु हारे हवाले कये।

माधवी - (शमाकर और सर नीचा करके) बस रहने द िजए, यादा सफाई न द िजए!


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- अ छा इन बात को छोड़ो और अपने वादे को याद करो आज कौन दन है बस आज
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तु हारा पू रा हाल सु ने बना न मानू ंगा चाहे जो हो, मगरoदे खो फर उन भार कसम क याद
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दलाता हू ं जो म कई दफे तु ह दे चु क,ा मु झसे झूsठ कभी न बोलना नह ं तो अफसोस करोगी।
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माधवी - (कुछ दे र तक सोचकर) अ n छाdआज भर मु झे और माफ क िजए, आपसे बढ़कर म
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h, आप ह क शपथ खाकर कहती हू ं क कल जो पू छगे सब
दु नया म कसी को नह ं समझती
/ /
ठ क-ठ क कह दू ं गी, कुछpन: छपाऊंगी। (आसमान क तरफ दे खकर) अब समय हो गया, मु झे
tt
दो घंटे क फुरसतhद िजए।

इं - (लंबी सांस लेकर) खैर कल ह सह , जाओ मगर दो घंटे से यादा न लगाना।

1. च कार।

माधवी उठ और मकान के अंदर चल गई। उसके जाने के बाद इं जीत सं ह अकेले रह गये
और सोचने लगे क यह माधवी कौन है इसका कोई बड़ा बु जु ग भी है या नह !ं यह अपना
हाल य छपाती है! सु बह-शाम दो-दो तीन-तीन घंटे के लए कहां और कससे मलने जाती
है इसम तो कोई शक नह ं क यह मु झसे मु ह बत करती है मगर ता जु ब है क मु झे यहां
य कैद कर रखा है 1 चाहे यह सरजमीन कैसी ह सु ंदर और दल लु भाने वाल य न हो,
फर भी मेर तबीयत यहां से उचाट हो रह है। या कर, कोई तरक ब नह ं सू झती, बाहर का
कोई रा ता नह ं दखाई दे ता, यह तो मु म कन ह नह ं क पहाड़ चढ़कर कोई पार हो जाये,
और यह भी दल नह ं कबू ल करता क इसे कसी तरह रं ज क ं और अपना मतलब नकालू,ं
य क म अपनी जान इस पर यौछावर कर चु का हू ं।

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ऐसी-ऐसी बहु त-सी बात को सोचते इनका जी बेचैन हो गया, घबड़ाकर उठ खड़े हु ए और इधर-
उधर टहलकर दल बहलाने लगे। च मे का जल नहायत साफ था, बीच क छोट -छोट
खु शरं ग कंक रयां और तेजी के साथ दौड़ती हु ई मछ लयां साफ दखाई पड़ती थीं, इसी क
कै फयत दे खते कनारे - कनारे जाकर दू र नकल गए और वहां पहु ंचे जहां तीन च म का
संगम हो गया था और अंदाज से यादा आया हु आ जल पहाड़ी के नीचे एक ग ढे म गर
रहा था।

एक बार क आवाज इनके कान म आई। सर उठाकर पहाड़ क तरफ दे खने लगे। ऊपर पं ह-
बीस गज क दू र पर एक औरत दखाई पड़ी िजसे अब तक इ ह ने इस हाते के अंदर कभी
नह ं दे खा था। उस औरत ने हाथ के इशारे से ठहरने के लए कहा तथा ढोक क आड़ म
जहां तक बन पड़ा अपने को छपाती हु ई नीचे उतर आयी और आड़ दे कर इं जीत सं ह के
पास इस तरह खड़ी हो गयी िजससे उन नौजवान छोक रय म से कोई इसे दे खने न पावे जो
यहां क रहने वा लयां चार तरफ घू मकर चु हलबाजी म दल बहला रह ह और िजनका कुछ
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हाल हम ऊपर लख आये ह।
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उस औरत ने एक लपेटा हु आ कागज इं जीत सं ह के हाथ g
o म दया। इ ह ने कुछपू छना चाहा
मगर उसने यह कहकर कुमार का मु ंह बंद कर .दया
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b क ''बस जो कुछ है इसी चीठ से
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i 4uनह ं चाहती और न यहां ठहरने का मौका है,
आपको मालू म हो जायगा, म जु बानी कुछ कहा
य क कोई दे ख लेगा तो हम-आपin d ऐसी आफत म फंस जायगे क िजससे छुटकारा
दोन
/
मु ि कल होगा। म उसी क ल डी
h
: / हू ं िजसने यहचीठ आपके पास भेजी है।''
उसक बात का इं h ttसंpह या जवाब दगे इसका इंतजार न करके वह औरत पहाड़ी पर चढ़
जीत
गई और चाल स-पचास हाथ जा एक ग ढे म घु सकर न मालू म कहां लोप हो गई।
इं जीत सं ह ता जु ब म आकर खड़े आधी घड़ी तक उस तरफ दे खते रहे मगर फर वह नजर
न आई। लाचार इ ह ने कागज खोला और बड़े गौर से पढ़ने लगे, यह लखा था :

''हाय, मने त वीर बनकर अपने को आपके हाथ म स पा, मगर आपने मेर कुछ भी खबर न
ल , बि क एक दू सर ह औरत के फंदे म फंस गये िजसने मेर सू रत बना आपको पू रा धोखा
दया। सच है, वह पर जमाल जब आपके बगल म बैठ है तो फर मेर सु ध य आने लगी!

आपको मेर ह कसम है, पढ़ने के बाद इस चीठ के इतने टु कड़े कर डा लये क एक अ र
भी दु त न बचने पावे।

आपक दासी - कशोर ।''

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इस चीठ के पढ़ते ह कुमार के कलेजे म एक धड़कन-सी पैदा हु ई। घबराकर एक च ान पर
बैठ गये और सोचने लगे - ''मने पहले ह कहा था क इस त वीर से उसक सू रत नह ं
मलती। चाहे यह कतनी ह हसीन और खू बसू रत य न हो मगर मने तो अपने को उसी के
हाथ बेच डाला है िजसक त वीर खु श क मती से अब तक मेरे हाथ म मौजू द है। तब या
करना चा हए यकायक इससे तमाशा करना भी मु ना सब नह ं। अगर यह इसी जगह मु झे
छोड़कर चल जाय और अपनी सहे लय को भी लेती जाय तो म या क ं गा घबड़ाकर सवाय
ाण दे दे ने के और या कर सकता हू ं, य क यहां से नकलने का रा ता मालू म नह ं। यह
भी नह ं हो सकता क इन दोन पहा ड़य पर चढ़कर पार हो जाऊं, य क सवाय ऊंची सीधी
च ान के चढ़ने लायक रा ता कह ं भी नह ं मालू म पड़ता। खैर जो हो, आज म ज र उसके
दल म कुछ खु टका पैदा क ं गा। नह ं-नह ,ं आज भर और चु प रहना चा हए, कल उसने अपना
हाल कहने का वादा कया ह है, आ खर कुछ-न-कुछ झू ठ ज र कहे गी, बस उसी समय
टोकूं गा। एक बात और है। (कुछ ककर) अ छा दे खा जायेगा। यह औरत जो मु झे चीठ दे

t . in
गई है यहां कस तरह पहु ंची (पहाड़ी क तरफ दे खकर) िजतनी दू र ऊंचे उसे मने देखा था वहां
तक तो चढ़ जाने का रा ता मालू म होता है , शायद इतनी दू र तक o लोग क आमदर त होती
होगी। खैर ऊपर चलकर दे खू ं तो सह क बाहर नकल जाने g
p
केs लए कोई सु रंग तो नह ं है।''

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इं जीत सं ह उस पहाड़ी पर वहां तक चढ़ गये जहां s . वह औरत नजर पड़ी थी। ढू ं ढ़ने से एक
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सु रग
ं ऐसी नजर आई िजसम आदमी बखू ब i ी घु स सकता था। उ ह व वास हो गया क इसी
राह से वह आई थी और बेशक हम iभी ndइसी राह से बाहर हो जायगे। खु शी-खु शी उस सु रंग म
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घु से। दस-बारह कदम अंधेरे /म/गये ह गे क पैर के नीचे जल मालू म पड़ा। य - य आगे
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जाते थे जल यादे जानt पड़ता था, मगर यह भी हौसला कये बराबर चले ह गये। जब गले
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बराबर जल म जा पहु ंचे और मालू म हु आ क आगे ऊपर च ान जल के साथ मल हु ई ,है
तैरकर भी कोई नह ं जा सकता और रा ता ब कु ल नीचे क तरफ झु कता अथात ढलवां ह
मलता जाता है तो लाचार होकर लौट आए मगर इ ह व वास हो गया क वह औरत ज र
इसी राह से आई थी य क उसे गीले कपड़े प हरे इ ह ने दे खा भी था।

वे औरत जो पहाड़ी के बीच वाले दलच प मैदान म घू म रह थीं इं जीत सं ह को कह ं न दे ख


घबरा ग और दौड़ती हु ई उस हवेल के अंदर पहु ंचीं िजसका िज हम ऊपर कर आये ह।
तमाम मकान छान डाला, जब पता न लगा तो उ ह ं म से एक बोल , ''बस अब सु रंग के पास
चलना चा हए ज र उसी जगह ह गे।'' आ खर वे सब औरत वहां जा पहु ंची जहां सु रंग के बाहर
नकलकर गीले कपड़े प हरे इं जीत सं ह खड़े कुछ सोच रहे थे।

इं जीत सं ह को सोच - वचार करते और सु रंग म आते - जाते दो घंटे लग गये। रात हो गई
थी, चं मा पहले ह से नकले हु ए थे िजसक चांदनी ने दलच प जमीन म फैलकर अजीब
समां जमा रखा था। दो घंटे बीत जाने पर माधवी भी लौट आयी थी मगर उस मकान म या

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उसके चार तरफ अपनी कसी ल डी या सहेल को न दे ख घबरा गई और उस समय तो
उसका कलेजा और भी दहलने लगा जब उसने दे खा क अभी तक घर म चराग तक नह ं
जला। उसने भी इधर-उधर ढू ं ढ़ना नापसंद कया और सीधे उसी सु रंग के पास पहु ंची। अपनी
सब स खय और ल डय को भी वहां पाया और यह भी दे खा क इं जीत सं ह गीले कपड़े
प हरे सु रंग के मु हाने से नीचे क तरफ आ रहे ह।

ोध से भर माधवी ने अपनी स खय क तरफ दे खकर धीरे से कहा, ''लानत है तु म लोग क


गफलत पर! इस लए तु म हरामखो रन को मने यहां रखा था!'' गु सा यादा चढ़ आया था
और ह ठ कांप रहे थे इससे कुछ और यादे न कह सक , फर भी इं जीत सं ह के नीचे आने
तक बड़ी को शश से माधवी ने अपने गु से को पचाया और बनावट तौर पर हंसकर
इं जीत सं ह से पू छा, '' या आप उस नहर के अंदर गये थे'

इं - हां।

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माधवी - भला यह कौन-सी नादानी थी! न मालू म इसके अंदर कतने
p o क ड़े-मकोड़े और ब छू
ह गे। हम लोग को तो डर के मारे कभी यहां खड़े होने का g भीsहौसला नह ं पड़ता।
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s . आ पहु ंच,े जी म आया क दे ख यह गु फा
4तोu पानी म भीगकर लौटना पड़ा।
इं - घू मते- फरते च मे का तमाशा दे खते यहां तक
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कतनी दू र तक चल गई है। जब अंदर गया

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माधवी - खैर च लए कपड़े बद /
p :/ लए।

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कुं अर इं जीत सं हhका खयाल और भी मजबू त हो गया। वह सोचने लगे क इस सु रंगम
ज र कोई भेद है, तभी तो ये सब घबड़ाई हु ई यहां आ जमा हु ।

इं जीत सं ह आज तमाम रात सोच- वचार म पड़े रहे । इनके रं ग-ढं ग से माधवी का भी माथा
ठनका और वह भी रात-भर चार तरफ दौड़ती रह ।

बयान - 13

दू सरे दन खा-पीकर नि चंत होने के बाद दोपहर को जब दोन एकांत म बैठे तो इं जीत सं ह
ने माधवी से कहा -

''अब मु झसे स नह ं हो सकता, आज तु हारा ठ क-ठ क हाल सु ने बना कभी न मानू ंगा और
इससे बढ़कर नि चंती का समय भी दू सरा न मलेगा।''

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माधवी - जी हां, आज म ज र अपना हाल कहू ंगी।

इं - तो बस कह चलो, अब दे र काहे क है पहले यह बताओ क तु हारे मां-बाप कहां ह और


यह सरजमीन कस इलाके म है िजसके अंदर म बेहोश करके लाया गया

माधवी - यह इलाका गयाजी का है, यहां के राजा क म लड़क हू,ं इस समय म खु द मा लक


हू ं, मां-बाप को मरे पांच वष हो गये।

इं - ओह-ओह, तो म गयाजी के इलाके म आ पहु ं च!ा (कुछ सोचकर) तो तु म मेरे लए चु नार


गई थीं

माधवी - जी हां, म चु नार गई थी और यह अंगू ठ जो आपके हाथ म है सौदागर क माफत


मने ह आपके पास भेजी थी।

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इं - हां ठ क है , तो मालू म पड़ता है, कशोर भी तु हारा ह नाम है।
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कशोर के नाम ने माधवी को च का दया और घबराहट म डाल
o g दया, मालू म हु आ जैसे
उसक छाती म कसी ने बड़ी जोर से मु का मारा.b
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हो। फौरन उसका खयाल उस सु रंग पर
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गया िजसके अंदर से गीले कपड़े प हरे हु ए इंuजीत सं ह नकले थे।वह सोचने लगी, ''इनका
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उस सु रंग के अंदर जाना बेसबब नह ं d
i n था, या तो कोई मेरा दु मन आ पहु ंचा था या मेर
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/ इसी व त से इं जीत सं ह का खौफ भी उसके कलेजे म
स खय म से कसी ने भांडा फोड़ा।''
/
:घबराई क कसी तरह अपने को स हाल न सक , बहाना करके
बैठ गया और वह इतना
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उनके पास से उठ hखड़ी हु ई और बाहर दालान म जाकर टहलने लगी।

इं जीत सं ह भी चेहरे के चढ़ाव-उतार से उसके च त का भाव समझ गये और बहाना करके


बाहर जाती समय उसे रोकना मु ना सब न समझकर चु प रहे ।

आधे घंटे तक माधवी उस दालान म टहलती रह , जब उसका जी कुछ ठकाने हु आ तब उसने


टहलना बंद कया और एक दू सरे कमरे म चल गई िजसम उसक दो स खय का डेरा था
िज ह वह जान से यादा मानती थी और िजनका बहु त कुछ भरोसा भी रखती थी। ये दोन
स खयां भी िजनका नाम ल लता और तलो तमा था उसे बहु त चाहती थीं और ऐयार व या
को भी अ छ तरह जानती थीं।

माधवी को कुसमय आते दे ख उसक दोन स खयां जो इस व त पलंग पर लेट हु ईकुछ बात
कर रह थीं, घबराकर उठ बैठ ं और तलो तमा ने आगे बढ़कर पू छा, ''ब हन, या है जो इस
व त यहां आई हो तु हारे चेहरे पर तर ुद क नशानी पायी जाती है।''

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माधवी - या कहू ं ब हन, इस समय वह बात हु ई िजसक कभी उ मीद न थी!

ल लता - सो या, कुछ कहो तो!

माधवी - चलो बैठो कहती हू ं, इसी लए तो आई हू ं।

बैठने के बाद कुछ दे र तक तो माधवी चु प रह , इसके बाद इं जीत सं ह से जो कुछ बातचीत


हु ई थी कहकर बोल, ''इसम कोई शक नह ं क कशोर का कोई दू त यहां आ पहु ंचा और उसी
ने यह सब भेद खोला है। म तो उसी समय खटक थी जब उनको गीले कपड़े प हरे सु रंग के
मु ंह पर दे खा था। बड़ी ह मु ि कल हु ई, म इनको यहां से बाहर अपने महल म भी नह ं ले जा
सकती, य क वह चा डाल सु नेगा तो पू र दु ग त कर डालेग,ा और म उस पर कसी तरह का
दबाव भी नह ं डाल सकती य क रा य का काम ब कुल उसी के हाथ म है, जब चाहे चौपट
कर डाले! जब रा य ह न ट हु आ तो फर यह सु ख कहां अभी तक तो इं जीत सं ह काहाल
उसे ब कुल नह ं मालू म है मगर अब या होगा सो नह ं कह सकती!''
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माधवी घंटे भर तक अपनी चालाक स खय से राय मलाती रह , आ खर जो कुछ करना था
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o इं जीत सं हको छोड़ आई थी।
उसे न चय कर वहां से उठ और उस कमरे म पहु ंची lिजसम
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जब तक माधवी अपनी स खय के साथ बैiठ4 बातचीत करती रह तब तक हमारे इं जीत सं ह
i nd के साथ उ ह कैसा बताव करना चा हए और कस
भी अपने यान म डू बे रहे । अब माधवी
/ hचा हए सो सब उ ह ने सोच लया और उसी ढं ग पर चलने
:/
चालाक से अपना प ला छुड़ाना
लगे। t p
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जब माधवी इं जीत सं ह के पास आई तो उ ह ने पू छ,ा '' य एकदम घबराकर कहां चल गई
थीं'

माधवी - न मालू म य जी मचला गया था, इसी लए दौड़ी चल गई। कुछ गरमी भी मालू म
होने लगी, जाकर एक कै क तब होश ठकाने हु ए।

इं - अब तबीयत कैसी है

माधवी - अब तो अ छ है।

इसके बाद इं जीत सं ह ने कुछ छे ड़-छाड़ न क और हंसी-खु शी म दन बता दया, य क जो


कुछ करना था वह तो दल म था जा हर म तकरार कर माधवी के दल म शक पैदा करना
मु ना सब न समझा।

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माधवी का तो मालू म ह था क वह शाम को चराग जले बाद इं जीत सं ह सेपू छकर दो घंटे
के लए न मालू म कस राह से कह ं जाया करती थी, आज भी अपने व त पर उसने जाने का
इरादा कया और इं जीत सं ह से छु ी मांगी।

इं - न मालू म य तु मसे कुछ ऐसी मोह बत हो गई है क एक पल को भी आंख के


सामने से दू र जाने दे ने को जी नह ं चाहता, मु झे उ मीद है क तु म मेर बात मान लोगी और
कह ं जाने का इरादा न करोगी।

माधवी - (खु श होकर) शु है क आपको मेरा इतना यान है , अगर ऐसी मज है तो म


बहु त ज द लौट आऊंगी।

इं - आज तो नह ं जाने दगे। अहा, दे खो कैसी घटा उठ आ रह है, वाह इस समय भी


तु हारे जी म कुछ रस नह ं पैदा होता!

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इस समय इं जीत सं ह ने दो-एक बात िजस ढं ग से माधवी से क ं इसके पहले नह ं क थीं
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इस लए उसके जी क कल sp
खल जाती थी, मगर वह ऐसे फेर म पड़ी हु ई थी क जी ह
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जानता होगा, न तो इं जीत सं ह को नाखु श करना चाहती
b lo थी और न अपने नत के काम म
ह बाधा डालने क ताकत रखती थी। आ खर कुs
.
4uहंसी-खु शी म दल बहलाया। आज चारपाई पर
छ सोच- वचारकर इस समय इं जीत सं ह का
हु म मानना ह उसने मु ना सब समझा और
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h उनको अपनेजाल म फंसाने के लए उसने या- या
लेटे हु ए इं जीत सं ह के पास रहकर
/
काम कए इसे हम अपनी:/सीधी-साद लेखनी से लखना पसंद नह ं करते, हमारे मनचले
पाठक बना समझे भी t tनpरहगे। माधवी को इस बात का ब कुल खयाल न था क शाद होने
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पर ह कसी से हंसना-बोलना मु ना सब है। वह जी का आ जाना ह शाद समझती थी। चाहे
वह अभी तक कुं आर ह य न हो मगर मेरा जी नह ं चाहता क म उसे कुं आर लखू, ं
य क उसक चाल-चलन ठ क न थी। यह सभी कोई जानते ह क खराब चाल-चलन रहने
का नतीजा बहु त बु रा होता है मगर माधवी के दल म इसका गु मान भी न था।

इं जीत सं ह के रोकने से माधवी अपने नयम तौर पर जहां वह रोज जाती थी आज न गई


मगर इस सबब से आज उसका जी बेचैन था। आधी रात के बाद जब इं जीत सं ह गहर नींद
म सो रहे थे वह अपनी चारपाई से उठ और जहां रोज जाती थी चल गई, हां आने म उसे
आज बहु त दे र लगी। इसी बीच म इं जीत सं ह क आंखखु ल और माधवी का पलंग खाल
दे ख उ ह न चय हो गया क आज भी वह अपने रोज के ठकाने पर ज र गई।

वह कौन-सी ऐसी जगह है जहां बना गये माधवी का जी नह ं मानता और ऐसा करने से वह
एक दन भी अपने को य नह ं रोक सकती इसी सोच- वचार म इं जीत सं ह को फर नींद

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न आई और वह बराबर जागते ह रह गये। जब माधवी आई तब वह जाग रहे थे मगर इस
तरह खु राटे लेने लगे क माधवी को उनके जागते रहने का जरा भी गु मान न हु आ।

इसी सोच- वचार और दाव-घात म कई दन बीत गये और इं जीत सं ह ने उसका शाम का


जाना बलकुल रोक दया। वह अब भी आधी रात को बराबर जाया करती और सु बह होने के
पहले ह लौट आती।

एक दन रात को इं जीत सं ह खू ब हो शयार रहे और कसी तरह अपनी आंख मनींद को न


आने दया, एक बार क कपड़े से मुहं ढं के चारपाई पर लेटे धीरे -धीरे खु राटे लेते रहे ।

आधी रात के बाद माधवी अपने पलंग पर से उठ और धीरे -धीरे इं जीत सं ह के पास आकर
कुछ दे र तक दे खती रह । जब उसे न चय हो गया क वह सो रहे ह तब उसने अपने आंचल
के साथ बंधी ताल से एक अलमार खोल और उसम से एक लंबी चाभी नकाल फर

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इं जीत सं ह के पास आई तथा कुछ दे र तक खड़ी रहकर, वह सो रहे ह इस बात का न चय
कर लया। इसके बाद उसने वह शमादान गु ल कर दया जो एकoतरफ खू बसू रत चौक के
ऊपर जल रहा था। g sp
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s . थे। जब उसने शमादान गु ल कया और
4u
माधवी क यह सब कारवाई इं जीत सं ह दे ख रहे
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d से उठ खड़े हु ए और दबे कदम तथा अपने को
कमरे के बाहर जाने लगी वह अपनी चारपाई
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iरवाना हु ए।
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हर तरह से छपाये हु ए उसके पीछे

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tp नकल माधवी एक दू सर कोठर के पास पहु ंची और उसीचाभी से
सोने वाले कमरे से बाहर
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जो उसने अलमार hम से नकाल थी उस कोठर का ताला खोला मगर अंदर जाकर फर बंद
कर लया। कुं अर इं जीत सं ह इससे यादे कुछ न दे ख सके और अफसोस करते हु ए उसी
कमरे क तरफ लौटे िजसम उनका पलंग था।

अभी कमरे के दरवाजे तक पहु ंचे भी न थे क पीछे से कसी ने उनके मोढ़े पर हाथ रखा। वे
च के और पीछे फरकर दे खने लगे। एक औरत नजर पड़ी मगर उसे कसी तरह पहचान न
सके। उस औरत ने हाथ के इशारे से उ ह मैदान क तरफ चलने के लए कहा और
इं जीत सं ह भी बेखटके उसके पीछे मैदान म दू र तक चले गये। वहऔरत एक जगह खड़ी हो
गई और बोल , '' या तु म मु झे पहचान सकते हो' इसके जवाब म इं जीत सं ह ने कहा, ''नह ,ं
तु हार -सी काल औरत तो आज तक मने दे खी ह नह !ं ''

समय अ छा था, आसमान पर बादल के टु कड़े इधर-उधर घू म रहे थे, चं मा नकला हु आ था


जो कभी-कभी बादल म छप जाता और थोड़ी ह दे र म फर साफ दखाई दे ता था। वह
औरत बहु त ह काल थी और उसके कपड़े भी गीले थे। इं जीत सं ह उसे पहचान न सके, तब
उसने अपना बाजू खोला और एक ज म का दाग उ ह दखाकर फर पू छा, '' या अब भी तु म
मु झे नह ं पहचान सकते'

इं - (खु श होकर) या म तु ह चाची कहकर पु कार सकता हू ं

औरत - हां, बेशक पु कार सकते हो।

इं - अब मेर जान बची, अब म समझा क यहां से नकल भागू ंगा।

औरत - अब तो तु म यहां से बखू बी नकल जा सकते हो य क िजस राह से माधवी जाती है


वह तु मने दे ख ह लया है और उस जगह को भी बखू बी जान गये होगे जहां वह ताल रखती
है, मगर खाल नकल भागने म मजा नह ं है। म चाहती हू ं क इसके साथ ह कुछ फायदा भी
हो। आ खर मेरा यहां आना ह कस काम का होगा और उस मेहनत का नतीजा भी या
नकलेगा जो तु हारा पता लगाने के लए हम लोग ने क है सवाय इसके तु म यह भी
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य कर जान सकते हो क माधवी कहां जाती है या या करती है

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- हां बेशक, इस तरह तो सवाय भागने के और कोई फायदा नह ं हो सकता फर जो
हु म करो म तैयार हू ं।

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मालू म होगा और हमारा काम / h i h
औरत - जब माधवी उस राह से बाहरdजाय तो उसके पीछे
in हो जाने से उसका सब हाल

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भी नकलेगा।

इं - मगर यह कैसे tहो सकेगा वह तो कोठर के अंदर जाते ह

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.a ताला बंद कर लेती है।

औरत - हां सो ठ क है , मगर तु मने दे खा होगा क उस दरवाजे के बीच बीच म ताला जड़ा है

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िजसे खोलकर वह अंदर गई और फर उसी ताले को भीतर से बंद कर दया।

इं - मने अ छ तरह खयाल नह ं कया।

औरत - म बखू बी दे ख चु क हू, ं उस ताले म बाहर-भीतर दोन तरफ से ताल लगती है।

इं - खैर इससे मतलब

औरत - मतलब यह है क अगर इसी तरह क एक ताल हमारे पास भी हो तो उसके पीछे
जाने का अ छा मौका मले।

इं - अगर ऐसा हो तो या बात!


औरत - यह कोई बड़ी बात नह ं, जहां वह ताल रखती है वह जगह तो तु ह मालू म ह होगी

इं - हां मालू म है।

औरत - बस तो मु झे वह जगह बता दो और तु म आराम करो, म कल आकर उस ताल का


सांचा ले जाऊंगी और परस उसी तरह क दू सर ताल बना लाऊंगी।

जहां ताल रहती थी उस जगह का पता पू छकर वह काल औरत चल गई और इं जीत सं ह


अपने पलंग पर जाकर सो रहे ।

बयान - 14

इं जीत सं ह ने दू सरे दन पु नः नयत समय पर माधवी को जाने न दया, आधी रात तक


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हंसी- द लगी ह म काट , इसके बाद दोन अपने-अपने पलंग पर सो रहे । कुमार को तो
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खु टका लगा ह हु आ था क आज वह काल औरत आवेगी इस लएउ ह नींद न आई, बार क
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चादर म मु ंह ढांके पड़े रहे, मगर माधवी थोड़ी ह दे र म lसोoगई।
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वह काल औरत भी अपने मौके पर आ पहु i 4ंची।u पहले तो उसने दरवाजे पर खड़े होकर झांका,
d और दरवाजा धीरे से बंद कर लया। इं जीत सं ह
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जब स नाटा मालू म हु आ अंदर चल
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उठ बैठे। उससे अपने मु ंह पर/उं गल रख चु प रहने का इशारा कया और माधवी के पास
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पहु ंचकर उसे दे खा, मालूtमpहु आ क वह अ छ तरह सो रह है।
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काल औरत ने अपने बटु ए म से बेहोशी क बु कनी नकाल और धीरे से माधवी को सु ंघा
दया। थोड़ी दे र तक खड़ी रहने के बाद माधवी क न ज दे खी, जब व वास हो गया क वह
बेहोश हो गई तब उसके आंचल से ताल खोल ल और अलमार म से सु रंग (िजस राह से
माधवी आती-जाती थी) क ताल नकाल मोम पर उसका सांचा लया और फर उसी तरह
ताल अलमार म रख ताला बंद कर अलमार क ताल पु नः माधवी के आंचल म बांध
इं जीत सं ह के पास आकर बोल, ''म सांचा ले चु क , अब जाती हू ं, कल दू सर ताल बनाकर
लाऊंगी, तु म माधवी को रातभर इसी तरह बेहोश पड़ी रहने दो। आज वह अपने ठकाने न जा
सक इसी लए सबेरे दे खना कैसा घबड़ाती है।''

सु बह को कुछ दन चढ़े माधवी क आंख खु ल, घबराकर उठ बैठ । उसने अपने दल का भाव


बहु त कुछ छपाया मगर उसके चेहरे पर बदहवासी बनी रह िजससे इं जीत सं ह समझ गये
क रात इसक आंख न खु ल और रोज क जगह पर न जा सक इसका इसे बहु त रं ज है।
दू सरे दन आधी रात बीतने पर इं जीत सं ह को सोतासमझ माधवी अपने पलंग पर से उठ ,
शमादान बु झाकर अलमार म से ताल नकाल और कमरे के बाहर हो उसी कोठर के पास
पहु ंची, ताला खोल अंदर गई और भीतर से ताला बंद कर लया। इं जीत सं ह भी छपे हु ए
माधवी के साथ-ह -साथ कमरे के बाहर नकले थे, जब वह कोठर के अंदर चल गई तो यह
इधर-उधर दे खने लगे, उस काल औरत को भी पास ह मौजू द पाया।

माधवी के जाने के आधी घड़ी बाद काल औरत ने उसी नई ताल से कोठर का दरवाजा
खोला जो बमू िजब सांचे के आज वह बनाकर लाई थी। इं जीत सं ह को साथ ले अंदर जाकर
फर वह ताला बंद कर दया। भीतर ब कुल अंधेरा था इस लए काल औरत को अपने बटु ए
से सामान नकाल मोमब ती जलानी पड़ी िजससे मालू म हु आ क इस छोट -सी कोठर म
केवल बीस-पचीस सी ढ़यां नीचे उतरने के लए बनी ह, अगर बना रोशनी कये ये दोन आगे
बढ़ते तो बेशक नीचे गरकर अपने सर, मु ंह या पैर से हाथ धोते।

दोन नीचे उतरे , वहां एक बंद दरवाजा और मला, वह भी उसी ताल से खु ल गया। अब एक

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बहु त लंबी सु रंग म दू र तक जाने क नौबत पहु ंची। गौर करने से साफ मालू म होता था क
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यह सु रंग पहाड़ी के नीचे - नीचे तैयार क गई है, य क चार p o सवाय प थर के ट-
तरफ
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चू ना-लकड़ी दखाई नह ं पड़ती थी। यह सु रंग अंदाज म दो
l ogसौ गज लंबी होगी। इसे तै करने
के बाद फर बंद दरवाजा मला। उसे खोलने पर यहां.b
s भी ऊपर चढ़ने के लए वैसी ह सी ढ़यां
u थीं। काल औरत समझ गई क अब यह
मल ं जैसी शु म पहल कोठर खोलने पर4मल
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सु रंग खतम हो गई और इस कोठर in काdदरवाजा खु लने से हम लोग ज र कसी मकान या
कमरे म पहु ंचगे, इस लए उसने /
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कोठर को अ छ तरह दे ख-भालकर मोमब ती गु ल कर द ।
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हम ऊपर लख आये htह और फर याद दलाते ह क सु रंग म िजतने दरवाजे ह सभी म इसी
क म के ताले लगे ह िजनम बाहर-भीतर दोन तरफ से चाभी लगती है, इस हसाब से ताला
लगाने का सू राख इस पार से उस पार तक ठहरा, अगर दरवाजे के उस तरफ अंधेरा न हो तो
उस सू राख म आंख लगाकर उधर क चीज बखू बीदे खने म आ सकती है।

जब काल औरत मोमब ती गु ल कर चु क तो उसी ताल के सु राख से आती हु ई एकबार क


रोशनी कोठर के अंदर मालू म पड़ी। उस ऐयारा ने सू राख म आंख लगाकर दे खा। एक बहु त
बड़ा आल शान कमरा बड़े तक लु फ से सजा हु आ नजर पड़ा, उसी कमरे म बेशक मती मसहर
पर एक अधेड़ आदमी के पास बैठ कुछ बातचीत और हंसी- द लगी करती हु ई माधवी भी
दखाई पड़ी। अब व वास हो गया क इसी से मलने के लए माधवी रोज आया करती है।
इस मद म कसी तरह क खू बसू रती न थी तस पर भी माधवी न मालू म इसक कस खू बी
पर जी जान से मर रह थी और यहां आने म अगर इं जीत सं ह व न डालते थे तो य
इतना परे शान हो जाती थी।
उस काल औरत ने इं जीत सं ह को भी उधर का हाल दे खने के लए कहा। कुमार बहु त दे र
तक दे खते रहे । उन दोन म या बातचीत हो रह थी सो तो मालू म न हु आ मगर उनके हाव-
भाव म मु ह बत क नशानी पाई जाती थी। थोड़ी दे र के बाद दोन पलंग पर सो रहे । उसी
समय कुं अर इं जीत सं ह ने चाहा क ताला खोलकरउस कमरे म पहु ंच और दोन नालायक
को कुछ सजा द मगर काल औरत ने ऐसा करने से उ ह रोका और कहा, ''खबरदार, ऐसा
इरादा भी न करना, नह ं तो हमारा बना-बनाया खेल बगड़ जायगा और बड़े-बड़े हौसल के
पहाड़ म ी म मल जायगे, बस इस समय सवाय वापस चलने के और कुछ मु ना सब नह ं
है।''

काल औरत ने जो कुछ कहा लाचार इं जीत सं ह को मानना और वहां से लौटना ह पड़ा।
उसी तरह ताला खोलते और बंद करते बराबर चले आये और उस कमरे के दरवाजे पर पहु ंचे
िजसम इं जीत सं ह सोया करते थे। कमरे म अंदर न जाकर काल औरत इं जीत सं ह को
मैदान म ले गई और नहर के कनारे एक प थर क च ान पर बैठने के बाद दोन म य
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बातचीत होने लगी -
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इं - तु मने उस कमरे म जाने से यथ ह मु झे रोक दया।
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औरत - ऐसा करने से या फायदा होता! यहuकोई गर ब कंगाल का घर नह ं है बि क ऐसे
क अमलदार है िजसके यहां हजार बहादु d i4र और एक से एक लड़ाके मौजू द ह, या बना
h inनह ं। तु हारा यह सोचना भी ठ क नह ं है क िजस राह
//से तु म भी इससरजमीन के बाहर हो जाओगे य क वह राह
गर तार हु ए तु म नकल जाते! कभी
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tp-जाने लायक है, तु म उससे कसी तरह नह ं जा सकते, फर जान-
से म आती-जाती हू ं उसी राह
सफ हमीं लोग क hे t
आने
बू झकर अपने को आफत म फंसाना कौन बु मानी थी।

इं - या िजस राह से तुम आती-जाती हो उससे म नह ं जा सकता?

औरत - कभी नह ,ं इसका खयाल भी न करना।

इं - सो य

औरत - इसका सबब भी ज द ह मालू म हो जाएगा।

इं - खैर तो अब या करना चा हए

औरत - अब तु ह स करके दस-पं ह दन और इसी जगह रहना मु ना सब है।

इं - अब म कस तरह उस बदकारा के साथ रह सकूं गा।


औरत - िजस तरह भी हो सके!

इं - खैर फर इसके बाद या होगा

औरत - इसके बाद यह होगा क तु म सहज ह म न सफ इस खोह के बाहर ह हो जाओगे


बि क एकदम से यहां का रा य भी तु हारे क जे म आ जाएगा।

इं - या यह कोई राजा था िजसके पास माधवी बैठ थी।

औरत - नह ं, यह रा य माधवी का है , और वह उसका द वान था।

इं - माधवी तो अपने रा य का कुछ भी नह ं दे खती।

औरत - अगर वह इस लायक होती तो द वान क खु शामद य करती।

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इं - इस हसाब से तो द वान ह को राजा कहना चा हए।
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औरत - बेशक!
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इं - खैर, अब तु म या करोगी
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औरत - इसके बताने क अभी कोई ज रत नह ं, दस-बारह दन बाद म तु मसे मलू ंगी और
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जो कुछ इतने दन म कर सकूं गी उसका हाल कहू ंग,ी बस अब म जाती हू ं, दल को िजस
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तरह हो सके स
ht और माधवी
हालो पर कसी तरह यह मत जा हर होने दो क उसका भेद
तुम पर खु ल गया या तु म उससे कुछ रं ज हो, इसके बाद दे खना क इतना बड़ा रा य कैसे
सहज ह म हाथ लगता है िजसका मलना हजार सर कटने पर भी मु ि कल है।

इं - खैर यह तमाशा भी ज र ह दे खने लायक होगा।

औरत - अगर बन पड़ा तो इस वादे के बीच म एक-दो दफे आकर तु हार सु ध ले जाऊंगी।

इं - जहां तक हो सके ज र आना।

इसके बाद वह काल औरत चल गई और इं जीत सं ह अपने कमरे म आकर सो रहे ।

पाठक समझते ह गे क इस काल औरत या इं जीत सं ह ने जो कुछ कया या कहा-सु ना


कसी को मालू म नह ं हु आ, मगर नह ,ं वह भेद उसी व त खु ल गया और काल औरत के
काम म बाधा डालने वाला भी कोई पैदा हो गया बि क उसने उसी व त से छपे- छपे अपनी
कारवाई भी शु कर द िजसका हाल माधवी को मालू म न हो सका।
बयान - 15

अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस रा य का और साथ ह इस माधवी का भी लख दे ना


ज र है।

कशोर क मां अथात शवद त क रानी दो ब हन थीं। एक िजसका नाम कलावती था


शवद त के साथ याह थी और दू सर मायावती गया के राजा चं द त से याह थी। इसी
मायावती क लड़क यह माधवी थी िजसका हाल हम ऊपर लख आये ह।

माधवी को दो वष क छोड़कर उसक मां मर गई थी, मगर माधवी का बाप चं द त हो शयार


होने पर माधवी को ग ी दे कर मरा था। अब आप समझ गये ह गे क माधवी और कशोर
दोन आपस म मौसेर ब हन थीं।

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माधवी का बाप चं द त बहु त ह शौक न और ऐयाश आदमी था। अपनी रानी को जान से
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sह म रहा करता था जो गया से
यादा मानता था, खास राजधानी गयाजी छोड़कर ायः राजगृ
दो मंिजल पर एक बड़ा भार मशहू र तीथ है। यह bदलच
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lo प और खु शनु मा पहाड़ी उसे कुछ
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iिजसम
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ऐसी भायी क साल म दस मह ने इसी जगहuरहा करता। एक आल शान मकान भी बनवा
लया। यह खु शनु मा और दलच प जमीन

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पर पहले ह क बनी हु ई थी मगर
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i h कुमार इं जीत सं ह बेबस पड़े ह कुदरती तौर
h इसम आने-जाने का रा ता और यह मकान चं द त ह ने
बनवाया था।
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माधवी के मां-बाप दोन ह शौक न थे। माधवी को अ छ श ा दे ने का उन लोग को जरा
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यान न था। वह दन-रात लाड़- यार ह म पला करती थी और एक खू बसू रत और चंचल

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दाई क गोद म रहकर अ छ बात के बदले हाव-भाव ह सीखने म खु श रहती थी, इसी सबब
से इसका मजाज लड़कपन ह से खराब हो रहा था। ब च क ताल म पर य द उनके मां-बाप
यान न दे सक तो मु ना सब है क उ ह कसी यादे उ वाल और नेकचलन दाई क गोद
म दे द, मगर माधवी के मां-बाप को इसका कुछ भी खयाल न था और आ खर इसका नतीजा
बहु त ह बु रा नकला।

माधवी के समय म इस रा य म तीन आदमी मु खया थे, बि क य कहना चा हए क इस


रा य का आनंद ये ह तीन ले रहे थे और तीन दो त एक दल हो रहे थे। इनम से एक तो
द वान अि नद त था, दू सरा कुबेर सं ह सेनाप त, और तीसरा धम सं ह जो शहर क कोतवाल
करता था।
अब हम अपने क से क तरफ झु कते ह और उस तालाब पर पहु ंचते ह िजसम एकनौजवान
औरत को पकड़ने के लए यो गनी और वनचर कू द थीं। आज इस तालाब पर हम अपने कई
ऐयार को दे खते ह जो आपस म बातचीत और सलाह करके कोई भार आफत मचाने क
तरक ब जमा रहे ह।

पं डत ब नाथ, भैरो सं ह और तारा सं ह तालाब के ऊपर प थर के चबू तरे पर बैठे य बातचीत


कर रहे ह -

भैरो - कुमार को वहां से नकाल ले आना तो कोई बड़ी बात नह ं है।

तारा - मगर उ ह भी तो कुछ सजा दे नी चा हए िजनक बदौलत कुमार इतने दन से


तकल फ उठा रहे ह।

भैरो - ज र, बना सजा दए जी कब मानेगा!


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ब - जहां तक हम समझते ह कल वाल राय बहु त अ छ है।
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भैरो - उससे बढ़कर कोई राय नह ं हो सकती, ये लोग भी या कहगे क कसी से काम पड़ा
था!
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- यहां तो बस ल लता और तलो तमा ह शैतानी क जड़ ह, सु नते ह उनक ऐयार भी
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बहु त बढ़-चढ़ है।
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तारा - पहले उ ह ं दोन क खबर ल जाएगी।

भैरो - नह ं-नह ं इसक कोई ज रत नह ं। उ ह गर तार कये बना ह हमारा काम चल


जायगा, यथ कई दन बबाद करने का मौका नह ं है।

तारा - हां यह ठ क है , हम उनक इतनी ज रत भी नह ं है, और या ठकाना जब तक हम


लोग अपना काम कर तब तक वे चाची के फंदे म आ फंस।

भैरो - बेशक ऐसा ह होगा, य क उ ह ने कहा भी था क तु म लोग इस काम को करो तब


तक बन पड़ेगा तो म ल लता और तलो तमा को भी फांस लू ंगी।

ब - खैर जो होगा दे खा जाएगा, अब हम लोग अपने काम म य दे र कर रहे ह।

भैरो - दे र क ज रत या है , उ ठए, हां, पहले अपना-अपना शकार बांट ल िजए।


ब - द वान साहब को मेरे लए छो ड़ये।

भैरो - हां, आपका वजन बराबर है , अ छा म सेनाप त क खबर लू ंगा।

तारा - तो वह चा डाल कोतवाल मेरे बांटे पड़ा! खैर यह सह ।

भैरो - अ छा अब यहां से चलो।

ये तीन ऐयार वहां से उठे ह थे क दा हनी तरफ से छ ंक क आवाज आई।

ब - ध तेरे क , या तेरे छ ंकने का कोई दू सरा समय न था

तारा - या आप छ ंक से डर गये

ब - म छ ंक से नह ं डरा मगर छ ंकने वाले से जी खटकता है।


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भैरो - हमारे काम म व न पड़ता दखाई दे ता है।
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- इस दु ट को पकड़ना चा हए, बेशक यह चु पके-चु पके हमार बात सु नता रहा।
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तारा - छ ंक नह ं बदमाशी है! d
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ब नाथ ने इधर-उधर बहु त ढू ंढ़ा मगर छ ंकने वाले का पता न लगा।
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लाचार तर ुद ह h
म तीन वहां से रवाना हु ए।

दू सरा भाग

बयान -1

घंटा भर दन बाक है। कशोर अपने उसी बाग म िजसका कुछ हाल पीछे लख चु के ह
कमरे क छत पर सात-आठ स खय के बीच म उदास त कए के सहारे बैठ आसमान क
तरफ दे ख रह है। सु गं धत हवा के झ के उसे खु श कया चाहते ह मगर वह अपनी धु न म
ऐसी उलझी हु ई है क द न-दु नया क खबर नह ं है। आसमान पर पि चम क तरफ ला लमा
छाई है। याम रं ग के बादल ऊपर क तरफ उठ रहे ह, िजनम तरह-तरह क सू रत बात क
बात म पैदा होती और दे खते-दे खते बदलकर मट जाती ह। अभी यह बादल का टु कड़ा खंड
पवत क तरह दखाई दे ता था, अभी उसके ऊपर शेर क मू रत नजर आने लगी, ल िजए, शेर
क गदन इतनी बढ़ क साफ ऊंट क श ल बन गई और लमहे -भर म हाथी का प धर सू ंड
दखाने लगी, उसी के पीछे हाथ म बंद ू क लए एक सपाह क श ल नजर आई ले कन वह
बंद ू क छोड़ने के पहले खु द ह धु आं होकर फैल गया।

बादल क यह ऐयार इस समय न मालू म कतने आदमी दे ख-दे खकर खु श होते ह गे। मगर
कशोर के दल क धड़कन इसे दे ख-दे खकर बढ़ती ह जाती है। कभी तो उसका सर पहाड़-सा
भार हो जाता है , कभी माधवी बा घन क सू रत यान म आती है, कभी बाकरअल शु तु रमु हार
क बदमाशी याद आती है, कभी हाथ म बंद ू क लए हरदम जान लेने को तैयार बाप क याद
तड़पा दे ती है।

कमला को गए कई दन हु ए, आज तक वह लौटकर नह ं आई। इस सोच ने कशोर को और


भी दु खी कर रखा है। धीरे-धीरे शाम हो गई, स खयां सब पास बैठ ह रह ं मगर सवाय ठं डी-
ठं डी सांस लेने के कशोर ने कसी से बातचीत न क और वे सब भी दम न मार सक ं।

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कुछ रात जाते-जाते बादल अ छ तरह से घर आये, आंधी भी चलने
p o लगी। कशोर छत पर
से नीचे उतर आई और कमरे के अंदर मसहर पर जा लेटg ।sथोड़ी ह दे र बाद कमरे के सदर
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दरवाजे का पदा हटा और कमला अपनी असल सू रतbमl आती दखाई पड़ी।
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कमला के न आने से कशोर उदास हो रहi4थी, उसे दे खते ह पलंग पर से उठ , आगे बढ़कर
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कमला को गले लगा लया और h i
ग ी पर अपने पास ला बैठाया, कुशल-मंगल पू छने के बाद
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बातचीत होने लगी -
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कशोर - कहो ब हन, तु मने इतने दन म या- या काम कया उनसे मु लाकात भी हु ई या
नह ं

कमला - मु लाकात य न होती आ खर म गई थी कस लए।

कशोर - कुछ मेरा हालचाल भी पू छते थे।

कमला - तु हारे लए तो जान दे ने को तैयार ह या हाल-चाल भी न पू छगे बस दो ह एक


दन म तु मसे मु लाकात हु आ चाहती है।

कशोर - (खु श होकर) हां! तु ह मेर ह कसम, मु झसे झू ठ न बोलना!

कमला - या तु ह व वास है क म तु मसे झू ठ बोलू ंगी


कशोर - नह -ं नह ,ं म ऐसा नह ं समझती हू,ं ले कन इस खयाल से कहती हू ं क कह ं
द लगी न सू झी हो।

कमला - ऐसा कभी मत सोचना।

कशोर - खैर यह कहो, माधवी क कैद से उ ह छु ी मल या नह ं और अगर मल तो


य कर!

कमला - इं जीत सं ह को माधवी ने उसी पहाड़ी के बीच वाले मकान म रखा था िजसम
पारसाल मु झे और तु ह दोन क आंख म प ी बांधकर ले गई थी।

कशोर - बड़े बेढब ठकाने छपा रखा था।

कमला - मगर वहां भी उनके ऐयार लोग पहु ंच गये!


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कशोर - भला वे लोग य न पहु ंचगे, हां तब या हु आ o t
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कमला - ( कशोर क स खय और ल डय क तरफ दे ख के) तु म लोग जाओ, अपना काम
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करो।

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कशोर - हां, अभी काम नह ं है, फर बुलावगे तो आना।
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स खय और ल डय के चले जाने पर कमला ने दे र तक बातचीत करने के बाद कहा -
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‘‘माधवी का और अि नद त द वान का हाल भी चालाक से इं जीत सं ह ने जान लया,
आजकल उनके कई ऐयार वहां पहु ंचे हु ए ह, ता जु ब नह ं क दस-पांच दन म वे लोग उस
रा य ह को गारत कर डाल।’’

कशोर - मगर तु म तो कहती हो क इं जीत सं ह वहां से छूट गये!

कमला - हां, इं जीत सं ह तो वहां से छूट गये मगर उनके ऐयार ने अभी तक माधवी का
पीछा नह ं छोड़ा, इं जीत सं ह के छुड़ाने का बंदोब त तो उनके ऐयार ह ने कया था मगर
आ खर म मेरे ह हाथ से उ ह छु ी मल । म उ ह चु नार पहु ंचाकर तब यहां आई हू ं और जो
कुछ मेर जु बानी उ ह ने तु ह कहला भेजा है उसे कहना तथा उनक बात मानना ह
मु ना सब समझती हू ं।

कशोर - उ ह ने या कहा है
कमला - य तो वे मेरे सामने बहु त कुछ बक गये मगर असल मतलब उनका यह है क
तु म चु पचाप चु नार उनके पास बहु त ज द पहु ंच जाओ।

कशोर - (दे र तक सोचकर) म तो अभी चु नार जाने को तैयार हू ं मगर इसम बड़ी हंसाई
होगी।

कमला - अगर तु म हंसाई का खयाल करोगी तो बस हो चु का, य क तु हारे मां-बाप


इं जीत सं ह के पू रे दु मन हो रहे ह, जो तु म चाहती हो उसे वे खु शी से कभी मंजू र न करगे।
आ खर जब तु म अपने मन क करोगी तभी लोग हंसगे, ऐसा ह है तो इं जीत सं ह का यान
दल से दू र करो या फर बदनामी कबू ल करो।

कशोर - तु म सच कहती हो, एक-न-एक दन बदनामी होनी ह है य क इं जीत सं ह को म


कसी तरह भू ल नह ं सकती। आ खर तु हार या राय है

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कमला - सखी, म तो यह कहू ंगी क अगर तु म इं जीत सं ह को नह ं भू ल सकतींतो उनसे
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मलने के लए इससे बढ़कर कोई दू सरा मौका तु ह न मलेगा। चु नारम जाकर बैठ रहोगी
तो कोई भी तु हारा कुछ lo d i
बगाड़ न सकेगा, आज कौन ऐसा है जो महाराज वीर सं ह से
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मु काबला करने का साहस रखता हो तु हारे पताsअगर ऐसा करते ह तो यह उनक भू ल है।
4तेuजी से आसमान पर चमक रहा है और उनसे
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दु मनी का दावा करना अपने कोh
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आज सु र सं ह के खानदान का सतारा बड़ी
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म ी म मला दे ना है।

कशोर - ठ क है , मगरtp
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इस तरह वहां चले जाने से इं जीत सं ह के बड़े लोग कब खु श ह गे
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कमला - नह ,ं नह ,ं ऐसा मत सोचो, य क तु हार और इं जीत सं ह क मु ह बत का हाल वहां

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कसी से छपा नह ं है। सभी लोग जानते ह क इं जीत सं ह तु हारे बना जी नह ं सकते, फर
उन लोग को इं जीत सं ह से कतनी मु ह बत है यह तु म खु द जानती हो, अ तु ऐसी दशा म
वे लोग तु हारे जाने से कब नाखु श हो सकते ह दू सरे, दु मन क लड़क अपने घर म आ
जाने से वे लोग अपनी जीत समझगे। मु झे महारानी चं कांता ने खु द कहा था क िजस तरह
बने तु म समझा-बु झाकर कशोर को ले आओ, बि क उ ह ने अपनी खास सवार का रथ और
कई ल डी गु लाम भी मेरे साथ भेजे ह!

कशोर - (च ककर) या उन लोग को अपने साथ लाई हो!

कमला - हां, जब महारानी चं कांता क इतनी मु ह बत तु म पर दे खी तभी तो म भी वहां


चलने के लए राय दे ती हू ं।
कशोर - अगर ऐसा है तो म कसी तरह क नह ं सकती, अभी तु हारे साथ चल चलू ंगी,
मगर दे खो सखी, तु ह बराबर मेरे साथ रहना पड़ेगा।

कमला - भला म कभी तु हारा साथ छोड़ सकती हू! ं

कशोर - अ छा तो यहां कसी से कुछ कहना-सु नना तो है नह ?ं

कमला - कसी से कुछ कहने क ज रत नह ं। बि क तु हार इन स खय और ल डय को


भी कुछ पता न लगना चा हए िजनको मने इस समय यहां से हटा दया है।

कशोर - वह रथ कहां खड़ा है ?

कमला - इसी बगल वाल आम क बार म रथ और चु नार से आये हु ए ल डी-गु लाम सब


मौजू द ह।
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कशोर - खैर चलो, दे खा जायगा, राम मा लक है। o t
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कशोर को साथ ले कमला चु पके से कमरे के बाहर नकल और पेड़ म छपती हु ई बाग से
नकलकर बहु त ज द उस आम क बार म जाuपहु
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s ंची िजसम रथ औरल डी-गु लाम के मौजू द
रहने का पता दया था। वहां कशोर नेdकई
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i ल डी-गु लाम और उस रथ को भी मौजू द पाया
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िजसम बहु त तेज चलने वाले ऊंचे in रंग के नागौर बैल क जोड़ी जु ती हु ई थी। कशोर
काले
और कमला दोन सवार हु ई:/
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और रथ तेजी के साथ रवाना हु आ।
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इधर घ टा भर बीत जाने पर भी जब कशोर ने अपनी स खय और ल डय को आवाज न
द तब वे लाचार होकर बना बु लाये उस कमरे म पहु ंचीं िजसम कमलाऔर कशोर को छोड़
गयी थीं मगर वहां दोन म से कसी को भी मौजू द न पाया। घबराकर इधर-उधर ढू ं ढ़ने लगीं,
कह ं पता न चला। तमाम बाग छान डाला पर कसी क सू रत दखाई न पड़ी। सभ म
खलबल मच गई मगर या हो सकता था!

आधी रात तक कोलाहल मचा रहा। उस समय कमला भी वहां आ मौजू द हु ई। सभ ने उसे
चार तरफ से घेर लया और पू छा, ‘‘हमार कशोर कहां है?’

कमला - यह या मामला है जो तु म लोग इस तरह घबड़ा रह हो या कशोर कह ं चल


ग ?

एक - चल नह ं गई तो कहां ह! तु म उ ह कहां छोड़ आयीं?


कमला - या कशोर को म अपने साथ ले गई थी जो मु झसे पू छती हो वह कब से गायब
ह?

एक - पहर भर से तो हम लोग ढू ं ढ़ रह ह! तु म दोन इसी कमरे म बात कर रह थीं। हम


लोग को हट जाने के लए कहा, फर न मालू म या हु आ, कहां चल गयीं।

कमला - बस-बस, अब म समझ गयी, तु म लोग ने धोखा खाया, म तो अभी चल ह आती


हू ं। हाय, यह या हु आ! बे शक दु मन अपना काम कर गए और हम लोग को आफत म डाल
गए। हाय, अब म या क ं , कहां जाऊं, कससे पू छूं क मेर यार कशोर को कौन ले गया।

बयान -2

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कशोर खु शी-खु शी रथ पर सवार हु ई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ
थी, इं जीत सं ह के वषय म तरह-तरह क बात कहकर उसका दलoबहलाती जाती थी।
कशोर भी बड़े ेम से उन बात को सु नने म ल न हो रह g sp
थी। कभी सोचती क जब
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l , या कहू ंगी अगर वे पू छ बैठगे क
इं जीत सं ह के सामने जाऊंगी तो कस तरह खड़ी होऊ
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us,ं वे ऐसा कभी न पू छगे य क मु झ पर
तु ह कसने बु लाया तो या जवाब दू ं गी? नह ं-नह
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ेम रखते ह। मगर उनके घर क औरत d
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मु झे दे खकर अपने दल म या कहगी। वे ज र
hinहै। इसे अपनी इ जत और त ठा का कुछ भी यान
समझगी क कशोर बड़ी बेहया औरत
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नह ं है। हाय, उस समय तो:/
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मेर बड़ी ह दु ग त होगी, िजंदगी जंजाल हो जायगी, कसी को मु ंह
न दखा सकूं गी! ht

ऐसी ह बात को सोचती, कभी खु शी होती कभी इस तरह बेसमझे-बू झे चल पड़ने पर अफसोस
करती थी। कृ ण प क स तमी थी, अंधेरे ह म रथ के बैल बराबर दौड़े जा रहे थे। चार
तरफ से घेरकर चलने वाले सवार के घोड़ क टाप क बढ़ती हु ई आवाज दू र-दू र तक फेल
रह थी। कशोर ने पू छा, ‘‘ या कमला, या ल डयां भी घोड़ ह पर सवार होकर साथ-साथ
चल रह ह’ िजसके जवाब म कमला सफ ‘‘जी हां,’’ कहकर चु प हो रह ।

अब रा ता खराब और पथर ला आने लगा, प हय के नीचे प थर के छोटे -छोटे ढोक के पड़ने


से रथ उछलने लगा, िजसक धमक से कशोर के नाजु क बदन म दद पैदा हु आ।

कशोर - ओफओह, अब तो बड़ी तकल फ होने लगी।

कमला - थोड़ी दू र तक रा ता खराब है, आगे हम अ छ सड़क पर जा पहु ंचगे।


कशोर - मालू म होता है हम लोग सीधी और साफ सड़क छोड़ कसी दू सर ह तरफ से जा
रहे ह।

कमला - जी नह ं।

कशोर - नह ं या ज र ऐसा ह है।

कमला - अगर ऐसा भी हो तो या बु रा हु आ हम लोग क खोज म जो नकल वे पा तो न


सकगे।

कशोर - (कुछ सोचकर) खैर जो कया अ छा कया, मगर रथ का पदा तो उठा जरा हवा
लगे और इधर-उधर क कै फयत दे खने म आवे, रात का तो समय है।

लाचार होकर कमला ने रथ का पदा उठा दया और कशोर ता जु ब भर नगाह से दोन


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तरफ दे खने लगी।
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अब तक तो रात अंधेर थी, मगर अब वधाता ने कशोर को यह बताने के लए क दे ख तू
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कस बला म फंसी हु ई है, तेरे रथ को चार तरफ से घेरकर चलने वाले सवार कौन ह, तू कस
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राह से जा रह है , यह पहाड़ी जंगल कैसा भयानक है-आसमान पर माहताबी जलाई। चं मा
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नकल आया और धीरे -धीरे ऊंचा होने
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लगा िजसक
रोशनी म कशोर ने कुल सामान दे ख
लए और एकदम च क उठ । / चार
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h तरफ क भयानक पहाड़ी और जंगल ने उसका कलेजा
दहला दया। उसने उन p :/ क तरफ अ छ तरह दे खा जो रथ घेरे हु ए साथ-साथ जा रहे
सवार
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ht गई क इन सवार म, जैसा क कहा गया था, कोई भी औरत नह ं सब
थे। वह बखू बी समझ
मद ह। उसे न चय हो गया क वह आफत म फंस गई है और घबराहट म नीचे लखे कई
श द उसक जु बान से नकल पड़े -

‘‘चु नार तो पू रब है, म दि खन तरफ य जा रह हू ं इन सवार म तो एक भी ल डी नजर


नह ं आती। बेशक मु झे धोखा दया गया। म न चय कह सकती हू ं क मेर यार कमला
कोई दू सर ह है, अफसोस!’’

रथ म बैठ हु ई कमला कशोर के मु ंह से इन बात को सु नकर हो शयार हो गयीऔर झट


रथ से नीचे कूद पड़ी, साथ ह रथवान ने भी बैल को रोका और सवार ने बहु त पास आकर
रथ को घेर लया।

कमला ने च लाकर कुछ कहा िजसे कशोर ब कुल न समझ सक , हां एक सवार घोड़े से
नीचे उतर पड़ा और कमला उसी घोड़े पर सवार हो तेजी के साथ पीछे क तरफ लौट गई।

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अब कशोर को अपने धोखा खाने और आफत म फंस जाने का पू रा व वास हो गया और
वह एकदम च लाकर बेहोश हो गई।

बयान -3

सु बह का सु हावना समय भी बड़ा ह मजेदार होता है। जबद त भी परले सरे का है। या
मजाल क इसक अमलदार म कोई धू म तो मचावे, इसके आने क खबर दो घंटे पहले ह से
हो जाती है। वह दे खए आसमान के जगमगाते हु ए तारे कतनी बेचैनी और उदासी के साथ
हसरत भर नगाह से जमीन क तरफ दे ख रहे ह िजनक सूरत और चलाचल क बेचैनी
दे ख बाग क सु ंदर क लय ने भी मु कराना शु कर दया, अगर यह हालत रह तो सु बह
होते तक ज र खल खलाकर हंस पड़गी।

ल िजए अब दू सरा ह रं ग बदला। .in


कृ त क न मालू म कस ताकत ने आसमान क याह
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को धो डाला और इसक हु कूमत क रात बीतते देख उदास तार p o
को भी वदा होने का हु म
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सु ना दया। इधर बेचैन तार क घबराहट दे ख अपने
l o हु न और जमाल पर भू ल हु ई
s .bडी हवा ने खू ब ह आड़े हाथ लया और
खल खलाकर हंसने वाल क लय को सु बह क ठं डी-ठं

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मारे थपेड़ के उनके उस बनाव को बगाड़ना 4uशु कर दया जो दो ह घंटे पहले कृ त क
कसी ल डी ने दु त कर दया था।in
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मो तय से यादे आबदार :ओस/ क बू ंद को बगड़ते और हंसती हु ई क लय काशृ ंगार मटते
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दे ख उनक तरफदारhtखु शबू से न रहा गया, झट फूल से अलग हो सु बह क ठं डी हवा से
उलझ पड़ी और इधर-उधर फैल धू म मचाना शु कर दया। अपनी फ रयाद सु नाने के लए
उन नौजवान के दमाग म घु स-घु सकर उ ह उठाने क फ करने लगी जो रातभर जाग-
जागकर इस समय खू बसू रत पलंग ड़य पर सु तपड़ रहे थे। जब उ ह ने कुछ न सु ना और
करवट बदलकर रह गए तो मा लय को जा घेरा। ये झट उठ बैठे और कमर कसकर उस
जगह पहु ंचे जहां फूल और उमंग भरे हवा के झपेट से कहा-सु नी हो रह थी। क ब त छोटे
लोग का यह दमाग कहां क ऐस का फैसला कर, बस फूल को तोड़-तोड़कर चगे र भरने
लगे। चलो छु ी हु ई, न रहे बांस न बजे बांसु र । या अ छा झगड़ा मटाया है! इसके बदले म
वे बड़े-बड़े दर त खु श हो हवा क मदद से झु क-झु ककर मा लय को सलाम करने लगे
िजनक टह नय म एक भी फूल दखाई नह ं दे ता था। ऐसा य न कर उनम था ह या जो
दू सर को महक दे ते, अपनी सू रत सभ को भाती है और अपना-सा होते दे ख सभी खु श होते
ह।

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ल िजए उन पर जमाल ने भी पलंग का पीछा छोड़ा और उठते ह आईने के मु का बल हो बैठ ं
िजनके बनाव को चाहने वाल ने रात भर म बथोरकर रख दया था। झटपट अपनी स बु ल
जु फ को सु लझा, माहताबी चेहर को गु लाबजल से साफ कर, अलबेल चाल से अठखे लयां
करती, च पई दु प ा संभालती, र वश पर घू मने और फूल के मु का बले म क- ककर पू छने
लगीं क ‘क हये आप अ छे या हम’ जब जवाब न पाया हाथ बढ़ा तोड़ लया और बा लय म
झु मक क जगह रख आगे बढ़ ं। गु लाब क पटर तक पहु ंची थीं, कांट ने आंचल पकड़ा और
इशारे से कहा, ‘‘जरा ठहर जाइए, आपके इस तरह लापरवाह जाने से उलझन होती है , और नह ं
तो चार आंख ह करते और आंसू प छते जाइए!’’

जाने द िजए ये सब घमंडी ह। हम तो कुछ उन लोग क कुलबु लाहट भल मालू महोती है जो


सु बह होने के दो घंटे पहले ह उठ, हाथ-मु ंह धो, ज र काम से छु ी पा बगल म धोती दबा
गंगाजी क तरफ लपके जाते ह और वहां पहु ंच नान कर, भ म या चंदन लगा, पटर पर बैठ
सं या करते-करते सु बह के सु हावने समय का आनंद प तत-पावनी
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तरं ग से ले रहे ह। इधर गु ती म घु सी उं ग लय ने ेमानंद म म tन.iमनराज क आ ा से
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ीगंगाजी क पापना शनी

ग रजाप त का नाम ले एक दाना पीछे हटाया और उधर तरनता s . c


poरनी भगवती जा नवी क
लहर त त ह से छू-छूकर दस-बीस ज म का पाप lबहा
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ogले गयीं। सु गं धत हवा के झपेटे
.b, अभी भगवान सू यदे व के दशन दे र म
कहते फरते ह - ‘‘जरा ठहर जाइए, अघा न उठाइये
ह गे, तब तक आप कमल के फूल को खोलकर i i
s n
4u इस तरह पर ीगंगाजी को चढ़ाइये क लड़ी
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टू टने न पावे, फर दे खये दे वता उसे iखुn
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द-ब-खु द मालाकार बना दे ते ह या नह ं!!’’

ये सब तो स पु ष कt े p
:/
p n
काम ह जो यहां भी आनंद ले रहे ह और वहां भी मजा लू टगे। आप
ht उन दो दलजल क सू रत दे खये जो रात भर जागते और इधर-उधर
a
w .
जरा मेरे साथ चलकर
दौड़ते रहे ह और सु बह के सु हावने समय म एक पहाड़ क चोट पर चढ़ चार तरफ दे खते हु ए

w w
सोच रहे ह क कधर जायं, या कर चाहे वे कतने ह बेचैन य न ह मगर पहाड़ से
ट कर खाते हु ए सु बह क ठं डी-ठं डी हवा के झ क के डपटने और हलाकर जताने से उन
छोटे -छोटे जंगल फूल के पौध क तरफ नजर डाल ह दे ते ह जो दू र तक कतार बांधे म ती
से झू म रहे ह, उन या रय क तरफ ताक ह दे ते ह िजनके फूल ओस के बोझ से तंग हो
टह नयां छोड़ प थर के ढोक का सहारा ले रहे ह, उन साखू और शीशम के प त क
घनघनाहट सु न ह लेते ह जो दि खन से आती हु ई सु गं धत हवा कोरोके, रहे -सहे जहर को
चू स, गु णकार बना उन तक आने का हु म दे ते ह।

इन दो आद मय म से एक तो लगभग बीस वष क उ का बहादु र सपाह है जो ढाल-


तलवार के इलावे हाथ म तीर-कमान लए बड़ी मु तैद से खड़ा हे, मगर दू सरे के बारे म हम
कुछ नह ं कह सकते क वह कौन या कस दज और इ जत का आदमी है। उसक उ चाहे
पचास से यादे य न हो मगर अभी तक उसके चेहरे पर बल का नाम- नशान नह ं है ,

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जवान क तरह खू बसू रत चेहरा दमक रहा है, बेशक मत पोशाक और हरब क तरफ खयाल
करने से तो यह कहने को जी चाहता है क कसी फौज का सेनाप त है, मगर नह ,ं इसका
रोआबदार और गंभीर चेहरा इशारा करता है क यह कोई बहु त ह ऊंचे दज का है जो कुछ
दे र से खड़ा एकटक वायु कोण क तरफ दे ख रहा है।

सू य क करण के साथ ह साथ लाल वद के बेशु मार फौजी आदमी उ तर से दि खन क


तरफ जाते दखाई पड़े िजससे इस बहादु र का चेहरा जोश म आकर और भी दमक उठा और
यह धीरे से बोला, ‘‘लो हमार फौज भी आ पहु ंची!’’

थोड़ी ह दे र म वह फौज इस पहाड़ी के नीचे आकर क गई िजस पर ये दोन खड़े थे और


एक आदमी पहाड़ के ऊपर चढ़ता हु आ दखाई दया जो बहु त ज द इन दोन के पास
पहु ंचकर खड़ा हो गया।

इस नये आये हु ए आदमी क उ


in
भी पचास से कम न होगी। इसके सर और मू ंछ केबाल
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चौथाई सफेद हो चु के थे। कद के साथ-साथ खू बसू रत चेहरा भी oकुछ लंबा था। इसका रं ग
सफ गोरा ह न था बि क अभी तक रग म दौड़ती हु ई g सुs
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ख इसके गाल पर अ छ तरह
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उभड़ रह थी, बड़ी-बड़ी याह और जोश भर आंख म
. गु लाबी डो रयां बहु त भल मालू म होती
थीं। इसक पोशाक यादे क मत क या कामदार
4usन थी, मगर कम दाम क भी न थी। उ दे
और मोटे याह मखमल क इतनी चु d
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त थी क उसके अंग क सु डौल कपड़े के ऊपर से
जा हर हो रह थी। कमर म सफ h
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एक खंजर और लपेटा हु आ कमंद दखाई दे ता था, बगल म
सु ख मखमल का एक बटुp आ: भी लटक रहा था।
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पाठक को यादे दे र तक हे रानी म न डालकर साफ-साफ कह दे ना ह पसंद करते ह क यह
तेज सं ह ह और इनके पहले पहु ंचे हु ए दोन आद मय म एक राजावीर सं ह और दू सरे उनके
लड़के कुं अर आनंद सं ह ह, िजनके लए हम ऊपर बहु त कुछ फजू ल बक जाना पड़ा।

राजा वीर सं ह और तेज सं ह कुछ दे र तक सलाह करते रहे, इसके बाद तीन बहादु र पहाड़ी के
नीचे उतर अपनी फौज म मल गये और दल खु श करने के सवाय बहादु र को जोश म भर
दे ने वाले बाजे क आवाज के ताल पर एक साथ कदम रखती हु ई वह फौज दि खन क
तरफ रवाना हु ई।

बयान -4

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हम ऊपर लख आये ह क माधवी के यहां तीन आदमी अथात द वान अि नद त, कुबेर सं ह
सेनाप त और धम संह कोतवाल मु खया थे और तीन मलकर माधवी के रा य का आनंद
लेते थे।

इन तीन म अि नद त का दन बहु त मजे से कटता था य क एक तो वह द वान के मतबे


पर था, दू सरे माधवी जैसी खू बसू रत औरत उसे मल थी।कुबेर सं ह और धम सं ह इसके दल
दो त थे, मगर कभी जब उन दोन को माधवी का यान आ जाता तो च त क वृ ि त बदल
जाती और जी म कहते क ‘अफसोस, माधवी मु झे न मल !’

पहले इन दोन को यह खबर न थी क माधवी कैसी है। बहु त कहने-सु नने से एक दन


द वान साहब ने इन दोन को माधवी को दे खने का मौका दया था। उसी दन से इन दोन
ह के जी म माधवी क सू रत चु भ गई थी और उसके बारे म बहु त कुछसोचा करते थे।

t . in
आज हम आधी रात के समय द वान अि नद त को अपने सु नसान कमरे म अकेले चारपाई
पर लेटे कसी सोच म डू बे हु ए दे खते ह। न मालू म वह या सोचoरहाहै या फ म पड़ा है,
हां एक दफे उसके मुहं से यह आवाज ज र नकल - ‘‘कुg छs
p
समझ म नह ं आता! इसम तो
कोई संदेह नह ं क उसने अपना दल खु श करने का b loसामान वहां पैदा कर लया है। तो
s . कोई
म बे फ
4u सलाह ले लू ं।’’ यह कहने के साथ ह वह
य बैठा हू ं खैर पहले अपने दो त से
i
तो
चारपाई से उठ बैठा और कमरे म धीरे -d
i n धीरे टहलने लगा, आ खर उसने खू ंट से लटकती हु ई
अपनी तलवार उतार ल और मकान
/ h के नीचे उतर आया।
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दरवाजे पर बहु त से tt
h सपाह पहरा दे रहे थे। द वान साहब को कह ं जाने के लए तैयार दे ख
ये लोग भी साथ चलने को तैयार हु ए, मगर द वान साहब के मना करने से उन लोग को
लाचार हो उसी जगह अपने काम पर मु तैद रहना पड़ा।

अकेले द वान साहब वहां से रवाना हु ए और बहु त ज द कुबेर सं ह सेनाप त कमकान


े पर जा
पहु ंचे जो इनके यहां से थोड़ी ह दू र पर एक सु ंदर सजे हु ए मकानम बड़े ठाठ के साथ रहता
था।

द वान साहब को व वास था क इस समय सेनाप त अपने ऐशमहल म आनंद से सोता होगा,
वहां से बु लवाना पड़ेगा, मगर नह ं दरवाजे पर पहु ं चते ह पहरे वाल से पू छने पर मालू म हु आ
क सेनाप त साहब अभी तक अपने कमरे म बैठे ह, बि क कोतवाल साहब भी इस समय
उ ह ं के पास ह।

अि नद त यह सोचता हु आ ऊपर चढ़ गया क आधी रात के समय कोतवाल यहां य आया


है और ये दोन इस समय या सलाह- वचार कर रहे ह। कमरे म पहु ंचते ह दे खा क सफ

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वे ह दोन एक ग ी पर त कये के सहारे लेटे हु ए कुछ बात कर रहे ह जो यकायक द वान
साहब को अंदर पैर रखते दे ख उठ खड़े हु ए और सलाम करने के बाद सेनाप त साहब ने
ता जु ब म आकर पू छा -

‘‘यह आधी रात के समय आप घर से य नकले?’

द वान - ऐसा ह मौका आ पड़ा, लाचार सलाह करने के लए आप दोन से मलने क ज रत


हु ई।

कोत - आइए बै ठए, कुशल तो है

द वान - हां कुशल ह कुशल है, मगर कई खु टक ने जी बेचैन कर रखा है।

सेनाप त - सो या कुछ क हए भी तो।

t .in
द वान - हां कहता हू ं, इसी लए तो आया हू ं, मगर पहले (कोतवाल o
s p क तरफ दे खकर) आप तो
क हए इस समय यहां कैसे पहु ंच?े
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s .कb व च कहानी ने ऐसा उलझा रखा था
u
कोत - म तो यहां बहु त दे र से हू, ं सेनाप त साहब
क बस या कहू ं, हां आप अपना हाल कdहए, i4जी बेचैन हो रहा है।
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द वान - मेरा कोई नया हाल/नह /ं है, केवल माधवी के वषय म कुछ सोचने- वचारने आया हू ं।
:
t tp
सेनाप त - माधवीh के वषय म कस नये सोच ने आपको आ घेरा कुछ तकरार क नौबत तो
नह ं आई!

द वान - तकरार क नौबत आई तो नह ं मगर आना चाहती है।

सेनाप त - सो य?

द वान - उसके रं ग-ढं ग आजकल बेढब नजर आते ह, तभी तो दे खए इस समय म यहां हू ं,
नह ं तो पहर रात के बाद या कोई मेर सू रत दे ख सकता था।

कोत - इधर तो कई दन आप अपने मकान ह पर रहे ह।

द वान - हां, इन दन वह अपने महल म कम आती है, उसी गु त पहाड़ी म रहती है , कभी-
कभी आधी रात के बाद आती है और मु झे उसक राह दे खनी पड़ती है।

कोत - वहां उसका जी कैसे लगता है?

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द वान - यह तो ता जु ब है, म सोचता हू ं क कोई मद वहां ज र है य क वह कभी अकेले
रहने वाल नह ं।

कोत - पता लगाना चा हए।

द वान - पता लगाने के उ योग म म कई दन से लगा हू ं मगर कुछ हो न सका। िजस


दरवाजे को खोलकर वह आती-जाती है उसक ताल भी इस लए बनवाई क धोखे म वहां तक
जा पहु ंच,ू ं मगर काम न चला, य क जाती समय अंदर से वह न मालू म ताले म या कर
जाती है क चाबी नह ं लगती है।

कोत - तो दरवाजा तोड़ के वहां पहु ंचना चा हए।

द वान - ऐसा करने से बड़ा फसाद मचेगा।

.in
कोत - फसाद करके कोई
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या कर लेगा! रा य तो हम तीन क मु ी म है।
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इतने ह म बाहर कसी आदमी के पैर क चाप मालू म हु ई। तीन दे र तक उसीतरफ दे खते
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रहे मगर कोई न आया। कोतवाल यह कहता हु आ क ‘कह ं कोई छप के बात सु नता न हो’
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4u
उठा और कमरे के बाहर जाकर इधर-उधर दे खने लगा, मगर कसी का पता न चला, लाचार
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nd नह ं है, खाल धोखा हु आ।’’
फर कमरे म चला आया और बोला, ‘‘कोई
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इस जगह व तार से यह :/लखने क कोई ज रत नह ं क इन तीन म या- या बातचीत
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ht ने कौन-सी सलाह प क क , हां इतना कहना
होती रह या इन लोग ज र है क बात ह
बात म इन तीन ने रात बता द और सबेरा होते ह अपने-अपने घर का रा ता लया।

दू सरे दन पहर रात जाते-जाते कोतवाल साहब के घर म एक व च बात हु ई। वे अपने कमरे


म बैठे कचहर के कुछ ज र कागज को दे ख रहे थे क इतने ह म शोरगु ल क आवाज
उनके कान म आई। गौर करने से मालू म हु आ क बाहर दरवाजे पर लड़ाई हो रह है।
कोतवाल साहब के सामने जो मोमी शमादान जल रहा था उसी के पास एक घंट पड़ी हु ई थी,
उठाकर बजाते ह एक खदमतगार दौड़ा-दौड़ा सामने आया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
कोतवाल साहब ने कहा, ‘‘द रया त करो, बाहर कैसा कोलाहल मचा हु आ है’

खदमतगार दौड़ा बाहर गया और तु रंत लौटकर बोला, ‘‘न मालू म कहां से दो आदमी आपस
म लड़ते हु ए आये ह, फ रयाद करने के लए बेधड़क भीतर घु से आते थे। पहरे वाल ने रोका
तो उ ह ं से झगड़ा करने लगे।’’

कोत - उन दोन क सू रत-श त कैसी है ?

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खद - दोन भले आदमी मालू म पड़ते ह, अभी मू ंछ नह ं नकल ह, बड़े ह खू बसू रत ह, मगर
खू न से तर-बतर हो रहे ह।

कोत - अ छा कहो, उन दोन को हमारे सामने हािजर कर।

हु म पाते ह खदमतगार फर बाहर गया और थोड़ी दे र म कई सपाह उन दोन को लए


हु ए कोतवाल के सामने हािजर हु ए। नौकर क बात ब कुल सच नकल । वेदोन कम उ
और बहु त खू बसू रत थे, बदन पर लबास भी बेशक मती था, कोई हरबा उनके पास न था मगर
खू न से उन दोन का कपड़ा तर हो रहा था।

कोत - तु म लोग आपस म य लड़ते हो और हमारे आद मय से फसाद करने पर उता


य हु ए?

एक - (सलाम करके) हम दोन भले आदमी ह, सरकार


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सपा हय ने बदजु बानी क , लाचार
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गु सा तो चढ़ा ह हु आ था, बगड़ गई।

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कोत - अ छा इसका फैसला पीछे होता रहे गा, पहले तु म यह कहो
d i क आपस म य

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खू नखराबी कर बैठे और तु म दोन का मकान कहां

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पीछे लड़ाई हो रह है िजसका / hi i h
दू सरा - हम दोन आपक रै यत ह औरdगयाजी म रहते ह, दोन सगे भाई ह, एक औरत के
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कहना हम लोग पसंद नह
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फैसला आपसे चाहते ह, बाक हाल इतने आद मय के सामने
ं :करते।
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कोतवाल साहब ने सफ उन दोन को वहां रहने दया बाक सभ को वहां से हटा दया,

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नराला होने पर फर उन दोन से लड़ाई का सबब पू छा।

एक - हम दोन भाई सरकार से कोई मौजा ठ का लेने के लए यहां आ रहे थे। यहां से तीन
कोस पर पहाड़ी है, कुछ दन रहते ह हम दोन वहां पहु ंचे और थोड़ा सु ताने क नीयत से
उतर पड़े, घोड़ को चरने के लए छोड़ दया और एक पेड़ के नीचे प थर क च ान पर बैठ
बातचीत करने लगे...

दू सरा - ( सर हलाकर) नह ,ं कभी नह ं।

पहला - सरकार, इसे हु म द िजये क चु प रहे, म कह लू ं तो जो कुछ इसके जी म आये कहे ।

कोत - (दू सरे को डांटकर) बेशक ऐसा ह करना होगा!

दू सरा - बहु त अ छा।

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पहला - थोड़ी ह दे र बैठे थे क पास ह कसी औरत के रोने क बार क आवाज आई िजसके
सु नने से कलेजा पानी हो गया।

दू सरा - ठ क, बहु त ठ क।

कोत - (लाल आंख करके) य जी, तु म फर बोलते हो

दू सरा - अ छा अब न बोलू ंगा!

पहला - हम दोन उठकर उसके पास गए। आह, ऐसी खू बसू रत औरत जो आज तक कसी ने
न दे खी होगी, बि क म जोर दे कर कहता हू ं क दु नया म ऐसी खू बसू रत कोईदू सर न होगी।
वह अपने सामने एक त वीर को जो चौखटे म जड़ी हु ई थी, रखे बैठ थी और उसे दे ख फूट-
फूटकर रो रह थी।

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कोत - वह त वीर कसक थी, तु म पहचानते हो
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पहला - जी हां पहचानता हू ं, मेर त वीर थी।
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s थी! म इस समय बैठा उस त वीर से
दू सरा - झू ठ, झू ठ, कभी नह ,ं बेशक वह त वीरuआपक
आपक सू रत मलान कर गया, ब कुलdआपसे
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i मलती है, इसम कोई शक नह !ं आप इसके
हाथ म गंगाजल दे कर पू छये कसक h inत वीर थी?
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कोत - (ता जु ब म आकर)
t tp या मेर त वीर थी?
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दू सरा - बेशक आपक त वीर थी, आप इससे कसम दे कर पू छये तो सह ।

कोत - (पहले से) य जी, तु हारा भाई या कहता है

पहला - जी ई ई...

कोत - (जोर से) कहो साफ-साफ, सोचते या हो?

पहला - जी बात तो यह ठ क है , आप ह क त वीर थी।

कोत - फर झू ठ य बोले?

पहला - बस यह एक बात झू ठ मु ंह से नकल गई, अब कोई बात झू ठ न कहू ंग,ा माफ


क िजये।

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कोतवाल बेचारा ता जु ब म आकर सोचने लगा क उस औरत को मु झसे य कर मु ह बत हो
गई िजसक खू बसू रती क ये लोग इतनी तार फ कर रहे ह थोड़ी दे र बाद फर पू छा -

कोत - हां तो आगे या हु आ

पहला - (अपने भाई क तरफ इशारा करके) बस यह उस पर आ शक हो गया और उसे तंग


करने लगा।

दू सरा - यह तो उस पर आ शक होकर उसे छे ड़ने लगा।

पहला - जी नह ं, उसने मु झे कबू ल कर लया और मु झसे शाद करने पर राजी हो गई बि क


उसने यह भी कहा क म दो दन तक यहां रहकर तु हारा आसरा दे खू ंगी, अगर तु म पालक
लेकर आओगे तो तु हारे साथ चल चलू ंगी।

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दू सरा - जी नह ,ं यह बड़ा भार झू ठा है, जब यह उसक खु शामद करने लगा तब उसने कहा
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क म उसी के लए जान दे ने को तैयार हू ं िजसक त वीर मेरे सामने है। जब इसने उसक
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बात न सु नी तो उसने अपनी तलवार से इसे ज मी कया
l o और मु झसे बोल क तु म जाकर
मेरे दो त को जहां हो ढू ं ढ़ नकालो और कह दो s b तु हारे लए बबाद हो गई अब भी तो
क.म
सु ध लो, जब मने इसे मना कया तो यह iमु4
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झसे झगड़ पड़ा। असल म यह लड़ाई का सबब
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पहला - जी नह ं, यह संदp े स:
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ा उसने मु झे दया य क यह उसे दु ःख दे रहा था।
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दू सरा - नह ,ं यह झू ठ बोलता है।

पहला - नह ,ं यह झू ठा है, म ठ क-ठ क कहता हू ं।

कोत - अ छा, मु झे उस औरत के पास ले चलो, म खुद उससे पू छ लू ंगा क कौन झू ठा और


कौन स चा है।

पहला - या अभी तक वह उसी जगह होगी?

दू सरा - ज र वहां होगी, यह बहाना करता है य क वहां जाने से यह झू ठा सा बत हो


जाएगा।

पहला - (अपने भाई क तरफ दे खकर) झू ठा तू सा बत होगा। अफसोस तो इतना ह है क


अब मु झे वहां का रा ता भी याद नह ं।

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दू सरा - (पहले क तरफ दे खकर) आप रा ता भू ल गये तो या हु आ मु झे तो यादहै , म ज र
आपको वहां ले चलकर झू ठा सा बत क ं गा! (कोतवाल साहब क तरफ दे खकर) च लए म
आपको वहां ले चलता हू ं।

कोत - चलो।

कोतवाल साहब तो खु द बेचैन हो रहे थे और चाहते थे क जहां तक हो वहां ज द पहु ंचकर


दे खना चा हए क वह औरत कैसी है जो मु झ पर आ शक हो त वीर सामने रख याद कया
करती है। एक प तौल भर -भराई कमर म रख उन दोन भाइय को साथ ले मकान के नीचे
उतरे । उनको बाहर जाने के लए मु तैद दे ख कई सपाह साथ चलने को तैयार हुए। उ ह ने
अपनी सवार का घोड़ा मंगवाया और उस पर सवार हो सफ अदल के दो सपाह साथ ले
उन दोन भाइय के पीछे -पीछे रवाना हु ए। दो घंटे बराबर चलते जाने के बाद एक छोट-सी
पहाड़ी के नीचे पहु ं च वे दोन भाई के और कोतवाल साहब को घोड़े से उतरने के लए कहा।

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कोत - या घोड़ा आगे नह ं जा सकता? o t
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पहला - घोड़ा आगे जा सकता है मगर म दू सर ह lबातo सोचकर आपको उतरने के लए
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कहता हू ं।
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कोत - वह या? i nd
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पहला - िजस औरत के p :/आप आये ह वह इसी जगह है, दो ह कदम आगे बढ़ने से आप
पास
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ht ह, मगर म चाहता हू ं क सवाय आपके ये दोन यादे उसे दे खने न
उसे बखू बी दे ख सकते
पाएं। इसके लए म कसी तरह जोर नह ं दे सकता मगर इतना ज र कहू ंगा क आप आगे
बढ़ झांककर उसे दे ख ल फर अगर जी चाहे तो इन दोन को भी साथ ले जाएं, य क वह
अपने को गया क रानी बताती है।

कोत - (ता जु ब से) अपने को गया क रानी बताती है।

दू सरा - जी हां।

अब तो कोतवाल साहब के दल म कोई दू सरा ह शक पैदा हु आ। वह तरह-तरह क बात


सोचने लगे। ‘‘गया क रानी तो हमार माधवी है, यह दू सर कहां से पैदा हु ई या वह माधवी
तो नह ं है नह ं, नह ,ं वह भला यहां य आने लगी! उससे मु झसे या संबंध वह तो द वान
साहब क हो रह है। मगर वह आई भी हो तो कोई ता जु ब नह ,ं य क एक दन हम तीन
दो त एक साथ महल म बैठे थे और रानी माधवी वहां पहु ंच गई थी, मु झे खू ब याद है क
उस दन उसने मेर तरफ बेढब तरह से दे खा था और द वान साहब क आंख बचा घड़ी-घड़ी

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दे खती थी, शायद उसी दन से मु झ पर आ शक हो गई हो! हाय वह अनोखी चतवन कभी न
भू लेगी। अहा, अगर यहां वह हो, और मु झे व वास हो क मु झसे ेम रखती है तो या बात
है! म ह राजा हो जाऊं और द वान साहब को तो बात क बात म खपा डालू ंगा! मगर ऐसी
क मत कहां खैर जो हो इनक बात मान जरा झांककर दे खना तो ज र चा हए, शायद ई वर
ने दन फेरा ह हो!’’ ऐसी-ऐसी बहु त-सी बात सोचते- वचारते कोतवाल साहब घोड़े से उतर पड़े
और उन दोन भाइय के कहे मु ता बक आगे बढ़े ।

यहां से पहा ड़य का सल सला बहु त दू र तक चला गया था। िजस जगह कोतवाल साहब खड़े
थे वहां दो पहा ड़यां इस तरह आपस म मल हु ई थीं क बीच म कोस तक लंबी दरार
मालू म पड़ती थी िजसके बीच म बहता हु अ पानी का च माऔर दोन तरफ छोटे -छोटे दर त
बहु त भले मालू म पड़ते थे। इधर-उधर बहु त-सी कंदराओं पर नगाह पड़ने से यह व वास
होता था क ऋ षय और तपि वय के ेमी अगर यहां आव तो अव य उनके दशन से अपना
ज म कृ ताथ कर सकगे।
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दरार के कोने पर पहु ंचकर दोन भाइय ने कोतवाल साहब को
s poबा तरफ झांकने के लए
कहा। कोतवाल साहब ने झांककर दे खा, साथ ह एकदम o चg
क पड़े और मारे खु शी के भरे हु ए
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गले से च लाकर बोले, ‘‘अहा, मेर क मत जागी! बे शक यह रानी माधवी ह तो है!’’

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/ h बयान - 5
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कमला को व वासhहो ttगया क कशोर को कोई धोखा दे कर ले भागा। वह उस बाग म बहु त
दे र तक न ठहर , ऐयार के सामान से दु त थी ह, एक लालटे न हाथ म लेकर वहां से चल
पड़ी और बाग से बाहर हो चार तरफ घू म-घू मकर कसी ऐसे नशान को ढू ं ढ़ने लगी िजससे
यह मालू म हो क कशोर कस सवार पर यहां से गई है, मगर जब तक वह उस आम क
बार म न पहु ंची तब तक सवाय पैर के च न के और कसी तरह का कोई नशान जमीन
पर दखाई न पड़ा।

बरसात का दन था और जमीन अ छ तरह नम हो गई थी इस लए आम क बार म घू म-


घू मकर कमला ने मालू म कर लया क कशोर यहां से रथ पर सवार होकर गई है और
उसके साथ म कई सवार भी ह य क रथ के प हय का दोहरा नशान और बैल के खु र
जमीन पर साफ मालू म पड़ते थे, इसी तरह घोड़ के टाप के नशान भी अ छ तरह दखाई
दे ते थे।

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कमला कई कदम उस नशान क तरफ चल गई िजधर रथ गया था और बहु त ज द मालू म
कर लया क कशोर को ले जाने वाले कस तरफ गये ह। इसके बाद वह पीछे लौट और
सीधे अ तबल म पहु ंच एक तेज घोड़े पर बहु त ज द चारजामा कसने का हु मदया।

कमला का हु म ऐसा न था क कोई उससे इंकार करता। घोड़ा बहु त ज द कसकरतैयार


कया गया और कमला उस पर सवार हो तेजी के साथ उस तरफ रवाना हु ई िजधर रथ पर
सवार होकर कशोर के जाने का व वास हो गया था।

पांच कोस बराबर चले जाने के बाद कमला एक चौराहे पर पहु ंची जहां से बाएं तरफ का
रा ता चु नार को गया था, दा हने तरफ क सड़क र वां होते हु ए गयाजी तक पहु ंची थी, तथा
सामने का रा ता एक भयानक जंगल म होता हु आ कई तरफ को फूट गया था।

इस चौमु हानी पर पहु ंचकर कमला


कशोर को ले गये ह गे तो इसी बा
क और सोचने लगी क कधर जाऊं अगर चु नारवाले

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तरफ से गये ह गे, और कशोर क दु मन माधवी ने
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उसे फंसाया होगा तो रथ दा हनी तरफ से गयाजी को गया होगा, सामने क सड़क से रथ ले
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sका रा ता बहु त ह खराब और
जाने वाला तो कोई खयाल म नह ं आता य क यह जंगल
पथर ला है।
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चं मा नकल आया था और रोशनी अ छi4तरह फैल चु क थी। कमला घोड़े से नीचे उतर
गयी और दा हनी तरफ जमीन पर
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h रथ के प हये का दाग ढू ं ढ़ने लगी मगर कुछ मालू म न
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/ सोचने लगी क कधर जाऊं, या क ं ।
हु आ, लाचार घोड़े पर सवार :हो

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हम पहले लख आये ह क रथ पर जाते-जाते जब कशोर ने जान लया क वह धोखे म
डाल गई है तब उसके मु ंह से कई श द ऐसे नकले िज ह सु न नकल कमला हो शयार हो

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गई और रथ के नीचे कूद एक घोड़े पर सवार हो पीछे क तरफ लौट गई।

लौट हु ई नकल कमला ठ क उसी समय घोड़ा दौड़ाती हु ई उस चौराहे पर पहु ंचिजस
ी समय
असल कमला वहां पहु ंचकर सोच रह थी क कधर जाऊं, या क ं असल कमला ने सामने
से तेजी के साथ आते हु ए सवार को दे ख घोड़ा रोकने के लए ललकारा मगर वह य कने
लगी थी, हां उसे असल कमला के दा हनी तरफ वाल राह पर जाने के लए घू मना था
इस लए अपने घोड़े क तेजी उसे कम करनी ह पड़ी।

जब असल कमला ने दे खा क सामने से आया हु आ सवार उसके ललकारने से भी कसीतरह


नह ं कता और दा हनी सड़क से नकल जाना चाहता है तो झट कमर से दु नाल प तौल
नकालकर उसने घोड़े पर वार कया। गोल लगते ह घोड़ा नकल कमला को लए जमीन पर

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गरा, मगर घोड़े के गरते ह वह बहु त ह ज द स हलकर उठ खड़ी हु ई और उसने भी कमर
से दु नाल प तौल नकाल असल कमला पर गोल चलाई।

असल कमला तो पहले ह स हल हु ई थी, गोल क मार से बच गई, फर दू सर गोल आई


पर वह भी न लगी। लाचार नकल कमला ने अपनी प तौल फर भरने का इरादा कया
मगर असल कमला ने उसे वह मौका न दया। दोन गोल बेकार जाते दे ख वह समझ गयी
क उसक प तौल खाल हो गयी है, हाथ म प तौल लए वह झट उसके क ले पर पहु ंच
गई और ललकारकर बोल , ‘‘खबरदार जो प तौल भरने का इरादा कया है , दे ख मेर प तौल
म दू सर गोल अभी मौजू द है!’’ नकल कमला भी यह सोचकर चु पचाप खड़ी रह गई क अब
वह अपने दु मन का कुछ नह ं बगाड़ सकती य क प तौल क दोन गो लयां बबाद हो
चु क थीं और घोड़ा उसका मर चु का था।

प तौल के अलावा दोन क कमर म खंजर भी था मगर उसक ज रत न पड़ी। असल


कमला ने ललकारकर पू छा, ‘‘सच बता तू कौन है?’ .in
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नकल कमला को जान दे दे ना कबू ल था मगर अपने मु ंह से यह बताना मंजू र न था क वह
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कौन है। असल कमला ने यह दे ख अपने घोड़े का ऐसा चपेटा दया क वह कसी तरह
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स हल न सक और जमीन पर गर पड़ी। जब तक वह हो शयार होकर उठना चाहे तब तक
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nd पर सवार दखाई दे ने लगी।
असल कमला झट घोड़े से कूद उसक छाती
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असल कमला ने जबद ती:/ उसक नाक म बेहोशी क दवा ठू ं स द और जब वह बेहोश हो
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गयी तो उसक छातीtपर
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h से उतरकर अलग खड़ी हो गई।
असल कमला जब उसक छाती पर सवार हु ई तो उसे अपनी ह सू रत का पाया, इस लए
समझ गई क यह कोई ऐयार या ऐयारा है, सवाय इसके कशोर क स खय क जु बानी
उसने मालू म कर ह लया था क कोई उसी क सू रत बना कशोर को ले गया है, अब उसे
व वास हो गया क कशोर को इसी ने धोखा दया है।

थोड़ी दे र बाद कमला ने बटु ए म से पानी भर छोट -सी बोतल नकाल और नकल कमला
का मु ंह धोकर साफ कया, इसके बाद चकमक से आग नकाल ब ती जलाकर पहचानना चाहा
क वह कौन है मगर बना ऐसा कए वह केवल चं मा क मदद से पहचान ल गयी क
माधवी क सखी ल लता है, य क कमला उसे अ छ तरह जानती थी और वष से साथ
रहने के सवाय बराबर मला-जु ला भी करती थी।

कमला को व वास तो हो ह गया क कशोर को धोखा दे कर ले जाने वाल यह ल लता है


मगर इस बात का ता जु ब बना ह रहा क वह सामने से लौटकर आती हु ई य दखाई पड़ी!

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कमला यह भी जानती थी क चाहे जान चल जाय मगर ल लता असल भेद कभी न
बतावेगी, इस लए उसक जु बानी पता लगाने का उ योग करना उसने यथ समझा और अपने
साथ ल लता को घोड़े पर लादकर घर क तरफ पलट पड़ी।

रात ब कुल बीत चु क थी बि क कुछ दन नकल आया था जब ल लता को लादे हु एकमला


घर पहु ंची। यहां कशोर के गायब होने से बड़ा ह हाहाकार मचा हु आ था।उसक खोज म
कई आदमी चार तरफ जा चु के थे। कशोर का नाना रणधीर सं ह भार जमींदार होने के
सवाय बड़ा ह दमागदार और जबद त आदमी था। उसने यह समझ रखा था क शवद त
के दु मन वीर सं ह क तरफ से यह कारवाई क गई है। मगर जब ल लता को लए हु ए
कमला पहु ंची और उसक जु बानी सब हाल मालू म हु आतब माधवी क बदमाशी पर बहु त
बगड़ा। वह माधवी क चाल-चलन पर पहले ह से रं ज था मगर कुछ जोर न चलने से लाचार
था। आज गु से के मारे इस बात का ब कुल यान न रहा क माधवी एक भार रा य क
मा लक है और जबद त फौज रखती है उसने कमला के मु ंह से सब हाल सु नते ह तलवार
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हाथ म ले कसम खा ल क ‘िजस तरह हो सकेगा अपने हाथ से माधवी का सर काट
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कलेजा ठं डा क ं गा।’ s p
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ल लता एक अंधेर कोठर म कैद क गई और रणधीर सं ह क आ ा पा कमला अपने बड़े

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भाई हरनाम सं ह को साथ ले कशोर क मदद को पैदल ह रवाना हु ई।
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कमला आज भी उसी कल वाले रा ते पर रवाना हु ई और दोपहर होते - होते उसी चौराहे पर

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पहु ंची जहां कल ल लता मल थी। वे दोन बेधड़क सामने वाल सड़कपर चले।
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चौराहे के आगे लगभग तीन कोस चले जाने के बाद खराब और पथर ल राह मल िजसे दे ख
हरनाम सं ह ने कहा, ‘‘इस राह से रथ ले जाने म ज र तकल फ हु ई होगी।’’

कमला - बेशक ऐसा ह हु आ होगा, और मु झे तो अभी तक न चय ह नह ं हु आ क कशोर


इसी राह से गई है।

हरनाम - मगर म तो यह समझता हू ं क रथ इसी राह से गया और कशोर का साथ छोड़


कोई दू सर कारवाई करने के लए ल लता लौट थी।

कमला - शायद ऐसा ह हो।

और थोड़ी दूर जाने के बाद पैर क एक पाजेब जमीन पर पड़ी हु ई दखाई द । हरनाम सं ह ने
उसे दे खते ह उठा लया और कहा, ‘‘बेशक कशोर इसी राह से गई है, इस पाजेब को म खू ब
पहचानता हू ं।’’

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कमला - अब तो मु झे भी न चय हो गया क कशोर इधर ह से गयी है।

हरनाम - हां, जब उसे मालू म हो गया क उसने धोखा खाया और दु मन के फंदे म पड़ गई


तब उसने यह पाजेब चु पके से जमीन पर फक द ।

कमला - इस लए क वह जानती थी क उसक खोज म बहु त से आदमी नकलगे और इधर


आकर इस पाजेब को दे खगे तो जान जायगे क कशोर इधर ह गयी है।

हरनाम - म खयाल करता हू ं क आगे चलकर कशोर क फक हु ई और भी कोई चीज हम


लोग ज र दे खगे।

कमला - बेशक ऐसा ह होगा।

कुछ आगे जाकर दू सर पाजेब और उससे थोड़ी दू र पर कशोर के और कई गहने इनलोग


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ने पाये। अब कमला को कशोर के इसी राह से जाने का पू रा व वास हो गया और वे दोन
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बेधड़क कदम बढ़ाते हु ए राजगृ ह क तरफ रवाना हु ए।
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बयान
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कुं अर इं जीत सं ह अभी तक उस
/ / रमणीक थान म वराज रहे ह। जी कतना ह बेचैन य
न हो मगर उ ह लाचार p : के साथ दन काटना ह पड़ता है। खैर जो होगा दे खा जायगा
माधवी
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t दन बाक रहने पर भी कुं अर इं जीत सं ह कमरे के अंदर सु नहले
मगर इस समय दोhपहर
पाव क चारपाई पर आराम कर रहे ह और एक ल डी धीरे -धीरे पंखा झल रह है। हम ठ क
नह ं कह सकते क उ ह नींद दबाये हु ए है या जान-बू झकर ह ठयाये पड़े ह और अपनी
बद क मती के जाल को सु लझाने क तरक ब सोच रहे ह। खैर इ ह इसी तरह पड़े रहने
द िजए और आप जरा तलो तमा के कमरे म चलकर दे खए क वह माधवी के साथ कस
तरह क बातचीत कर रह है। माधवी का हंसता हु आ चेहरा कहे दे ता है क ब न बत और
दन के आज वह खु श है, मगर तलो तमा के चेहरे से कसी तरह क खु शी नह ं मालू म
होती।

माधवी ने तलो तमा का हाथ पकड़कर कहा, ‘‘सखी, आज तु झे उतना खु श नह ं पाती हू ं


िजतना म खु द हू ं।’’

तलो - तु हारा खु श होना बहु त ठ क है।

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माधवी - तो या तु ह इस बात क खु शी नह ं है क कशोर मेरे फंदे म फंस गई और एक
कैद क तरह मेरे यहां तहखाने म बंद है!

तलो - इस बात क तो मु झे भी खु शी है।

माधवी - तो रं ज कस बात का है हां समझ गई, अभी तक ल लता के लौटकर न आने का


बेशक तु ह दु ख होगा।

तलो - ठ क है , म ल लता के बारे म भी बहु त कु छ सोच रह हू ं। मु झे तो व वास हो गया है


क उसे कमला ने पकड़ लया।

माधवी - तो उसे छुड़ाने क फ करनी चा हए।

तलो - मु झे इतनी फु रसत नह ं है क उसे छुड़ाने के लए जाऊं य क मेरे हाथ-पैर कसी


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दू सरे ह तर ुद ने बेकार कर दए ह िजसक तु ह जरा भी खबर नह ,ं अगर खबर होती तो
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आज तु ह भी अपनी ह तरह उदास पाती।
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तलो तमा क इस बात ने माधवी को च का दया और वह घबड़ाकर तलो तमा का मु ंह
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दे खने लगी।
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तलो - मु ंह hin
या दे खती है, म झू ठ नह ं कहती। तू तो अपने ऐश-आराम म ऐसी म त हो रह
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है क द न दु नया क खबर नह ं। तू जानती ह नह ं क दो ह चार दन म तु झ पर कैसी
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आफत आने वाल हैt t
h । या तु झे व वास हो गया क कशोर तेर कैद म रह जायगी, कुछ
बाहर क भी खबर है क या हो रहा है या बदनामी ह उठाने के लए तू गया का रा य
कर रह है म पचास दफे तु झे समझा चु क क अपनी चाल-चलन को दु त कर मगर तू ने
एक न सु नी, लाचार तु झे तेर मज पर छोड़ दया और ेम के सबब तेरा हु म मानती आई
मगर अब मेरे स हाले नह ं स हलता।

माधवी - तलो तमा, आज तु झे या हो गया है जो इतना कूद रह है! ऐसी कौन-सी आफत
आ गई है िजसने तु झे बदहवास कर दया है या तू नह ं जानती क द वान साहब इस रा य
का इंतजाम कैसी अ छ तरह कर रहे ह और से नाप त तथा कोतवाल अपने काम म कतने
हो शयार ह या इन लोग के रहते हमारे रा य म कोई व न डाल सकता है?

तलो - यह ज र ठ क है क इन तीन के रहते कोई इस रा य म व न नह ं डाल सकता,


ले कन तु झे तो इ ह ं तीन क खबर नह !ं कोतवाल साहब जह नु म म चले ह गये, द वान
साहब और सेनाप त साहब भी आजकल म जाया चाहते ह बि क चले भी गए ह तो ता जु ब
नह ं।

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माधवी - यह तू या कह रह है!

तलो - जी हां, म बहु त ठ क कहती हू ं। बना प र म ह यह रा य वीरे े सं ह का हु आ


चाहता है। इसी लए कहती थी क इं जीत सं ह को अपने यहां मत फंसा, उनके एक-एक ऐयार
आफत के परकाले ह। म कई दन से उन लोग क कारवाई दे ख रह हू ं। उन लोग को
छे ड़ना ऐसा है जैसा आ तशबाजी क चरखी म आग लगा दे ना।

माधवी - या वीर सं ह को पता लग गया क उनका लड़का यहां कैद है?

तलो - पता नह ं लगा तो इसी तरह उनके ऐयार सब यहां पहु ंचकर ऊधम मचा रहे ह?

माधवी - तो तू ने मु झे खबर य न क?

तलो - या खबर करती, तु झे इस खबर को सु नने क छु ी भी है!


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माधवी - तलो तमा, ऐसी जल -कट बात का कहना छोड़ दे और मु झे ठ क-ठ क बता क
sकूद रह हू ं। म खू ब जानती हू ं
या हुआ और या हो रहा है सच पू छ तो म तेरे ह भरोसे
क सवाय तेरे मेर र ा करने वाला कोई नह ं। मु .bझे
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lवoवास था क इन चार पहा ड़य के
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बीच म जब तक म हू ं मु झ पर कसी तरहक u
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4 आफत न आवेगी, मगर अब तेर बात से यह
उ मीद ब कुल जाती रह ।

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तलो - ठ क है , तु झे अब ऐसा
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:/ भरोसा न रखना चा हए। इसम कोई शक नह ं क म तेरे लए
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जान दे ने को तैयार हूtं,tमगर तू ह बता क वीर सं ह के ऐयार के सामने म या कर सकती
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हू ं, एक बेचार ल लता मेर मददगार थी, सो वह भी कशोर को फंसाने म आप पकड़ी गई, अब
अकेल म
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या - या क ं ।

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माधवी - तू सब-कुछ कर सकती है ह मत मत हार, हां यह तो बता क वीर सं ह के ऐयार
यहां य कर आये और अब या कर रहे ह।

तलो - अ छा सु न, म सब-कुछ कहती हू ं, यह तो म नह ं जानती क पहले-पहल यहां कौन


आया, हां जब से चपला आई है तब से म थोड़ा-बहु त हाल जानती हू ं।

माधवी - (च ककर) या चपला यहां पहु ंच गयी?

तलो - हां पहु ंच गयी, उसने यहां पहु ंचकर उस सु रंग क दू सर ताल भी तैयारकर ल िजस
राह से तू आती-जाती है और िजसम मने कशोर को कैद कर रखा है। एक दन रात को जब
तू इं जीत सं ह को सोता छोड़ द वान साहब से मलने के लए गयी तो वह चपला भी

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इं जीत सं ह को साथ ले, अपनी ताल से सु रंग का ताला खोल तेरे पीछे -पीछे चल गयी और
छपकर तेर और द वान साहब क कै फयत इन दोन ने दे ख ल , यह न समझ क
इं जीत सं ह बेचारे सीधे-सादे ह और तेरा हाल नह ं जानते, वे सब-कुछ जान गये।

माधवी - (कुछ दे र तक सोच म डू बी रहने के बाद) तू ने चपला को कैसे दे खा?

तलो - मेरा बि क ल लता का भी कायदा है क रात को तीन-चार दफे उठकर इधर-उधर


घू मा करती ह। उस समय म अपने दालान म खंभे क आड़ म खड़ी इधर-उधर दे ख रह थी
जब चपला ओैर इं जीत सं ह तेरा हाल दे खकर सु रंग से लौटे थे। इसके बाद वे दोन बहु त दे र
तक नहर के कनारे खड़े बातचीत करते रहे , बस उसी समय से म हो शयार हो गई और
अपनी कारवाई करने लगी।

माधवी - इसके बाद भी कुछ हु आ?

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तलो - हां बहु त कुछ हु आ, सु नो म कहती हू ं। दू सरे दन म ल लता को साथले उस तालाब
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पर पहु ंची, दे खा क वीर सं ह के कई ऐयार वहां बैठे बातचीत कर रहे ह। मने छपकर उनक
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बातचीत सु नी। मालू म हु आ क वे लोग द वान साहब,
b loसेनाप त और कोतवाल साहब को
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गर तार कया चाहते ह। मु झे उस समय एक दsलगी सू झी। जब वे लोग राय प क करके
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वहां से जाने लगे, मने वहां से कुछ दू र हटकर छ ंक मार और दू र भाग गई।
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माधवी - (मु कराकर) वे लोग /
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: / घबड़ा गये ह गे!
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तलो - बेशक घबड़ायेh ह गे, उसी समय गाल -गु तार करने लगे, मगर हम दोन ने वहां
ठहरना पसंद नह ं कया।

माधवी - फर या हु आ?

तलो - मने तो सोचा था क वे लोग मेर छ ंक से डरकर अपनी कारवाई रोकगे मगर ऐसा न
हु आ। दो ह दन क मेहनत म उन लोग ने कोतवाल को गर तार कर लया, भैरो सं ह और
तारा सं ह ने उ ह बु रा धोखा दया।

इसके बाद तलो तमा ने कोतवाल साहब के गर तार होने का पू रा हाल जैसा हम ऊपर लख
आये ह माधवी से कहा, साथ ह उसने यह भी कह दया क द वान साहब को भी गु मान हो
गया क तू ने कसी मद को यहां लाकर रखा है और उसके साथ आनंद कर रह है।

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तलो तमा क जु बानी सब हाल सु नकर माधवी सोच-सागर म गोते लगाने लगी और आधे
घंटे तक उसे तनोबदन क सु ध न रह , इसके बाद उसने अपने को स हाला और फर
तलो तमा से बातचीत करना आरं भ कया।

माधवी - खैर जो हु आ सो हु आ, यह बता क अब या करना चा हए।

तलो - मु ना सब तो यह है क इं जीत सं ह और कशोर को छोड़ दो, तब फर तु हारा कोई


कुछ नह ं बगाड़ेगा।

माधवी - ( तलो तमा के पैर पर गरकर और रोकर) ऐसा न कहो, अगर मु झ पर तु हारा
स चा ेम है तो ऐसा करने के लए िजद न करो, अगर मेरा सर चाहो तो काट लो मगर
इं जीत सं ह को छोड़ने के लए मत कहो।

तलो - अफसोस क इन बात क खबर द वान साहब को भी नह ं कर सकती, बड़ी मु ि कल


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है, अ छा म उ योग करती हू ं मगर न चय नह ं कह सकती क
o tयाहोगा।
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माधवी - तु म चाहोगी तो सब काम हो जायेगा। o g
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तलो - पहले तो मु झे ल लता को छुड़ाना मु ना सब है।
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माधवी - अव य। hin
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तलो - हां, एक काम tइसके भी पहले करना चा हए, नह ं तो कशोर दो ह
ht दन म यहां से
गायब हो जायेगी और ता जु ब नह ं क धड़धड़ाते हु ए वीर सं हके कई ऐयार यहां पहु ंच जाएं
और मनमानी धू म मचाव।

माधवी - शायद तु हारा मतलब उस पानी वाल सु रंग को बंद कर दे ने से हो

तलो - हां।

माधवी - म भी यह मु ना सब समझती हू ं। म सोचती हू ं क ज र कोई ऐयार उस रोज उस


पानी वाल सु रंग क राह से यहां आया था िजसक दे खा-दे खी इं जीत सं ह उस सु रंग म घु से
थे, मगर बेचारे पानी म आगे न जा सके और लौट आये। तु म ज र उस सु रंग को अ छ
तरह बंद करा दो िजससे कोई ऐयार उस राह से आने-जाने न पावे। तु म लोग के लए वह
रा ता है ह िजधर से म आती हू ं। हां एक बात और है तु म अपने पता को मेर मदद के
लए य नह ं ले आतीं, उनसे और मेरे पता से बड़ी दो ती थी मगर अफसोस आजकल वे
मु झसे बहु तरं ज ह।

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तलो - म कल उनके पास गई थी पर वे कसी तरह नह ं मानते, तु मसे बहु त यादे रं ज ह,
मु झ पर बहु त बगड़ते थे, अगर म तु रंत न चल आती तो बेइ जती के साथ नकलवा दे त,े म
उनके पास कभी न जाऊंगी।

माधवी - खैर जो कुछ क मत म है भोगू ंगी। अ छा अब तो सभ क आमदर त इसी सु रंग


से होगी, तो कशोर को वहां से नकाल कसी दू सर जगह रखना चा हए।

तलो - उस सु रंग से बढ़कर कौन-सी ऐसी जगह है जहां उसे रखोगी, द वान साहब का भी तो
डर है !

थोड़ी दे र तक इन दोन म बातचीत होती रह इसके बाद इं जीत सं ह के सोकर उठने क


खबर आई। शाम भी हो चु क थी, माधवी उठकर उनके पास गई और तलो तमा पानी वाल
सु रंग को बंद करने क फ म लगी।

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पाठक, इस जगह मामला बड़ा गोलमाल हो गया। t
तलो तमा ने चालाक से वीर सं ह के
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ऐयार क कारवाई दे ख ल । माधवी और तलो तमा क बातचीत से आप यह भी जान गये
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ह गे क बेचार कशोर उसी सु रंग म कैद क गई िजसक
b loताल चपला ने बनाई थी या िजस
s . के पीछे जाकर यह मालू म कर लया
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सु रंग क राह चपला और कुं अर इं जीत सं ह नेमाधवी
था क वह कहां जाती है। उस सु रंग क iदू4
n d सर ताल तो मौजू द ह थी, कशोर को छुड़ाना
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चपला के लए कोई बड़ी बात नhथी, अगर तलो तमा हो शयार होकर उस आने-जाने वाल

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राह अथात पानी वाल सु रंग /को/ िजसम इं जीत सं ह गये थे और आगे जलमय दे खकर लौट
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आये थे प थर के ढोक tसेp मजबू ती के साथ बंद न कर दे ती। कुं अर इं जीत सं ह को मालू म हो
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ह गया था क हमारे ऐयार लोग इसी राह से आया-जाया करते ह, अब उ ह ने अपनी आंख
से यह भी दे ख लया क यह सु रंग बखू बी बंद कर द गई। उनक नाउ मीद हर तरह से
बढ़ने लगी, उ ह ने समझ लया क अब चपला से मु लाकात न होगी और बाहर हमारे छुड़ाने
के लए या - या तरक ब हो रह है इसका पता भी ब कुल न लगेगा। सु रंग क नई ताल
जो चपला ने बनाई थी वह उसी के पास थी, तो भी इं जीत सं ह ने ह मत न हार । उ ह ने
जी म ठान लया क अब जबद ती से काम लया जायेगा, िजतनी औरत यहां मौजू द ह सभ
क मु क बांध नहर के कनारे डाल दगे और सु रंग क असल ताल माधवी के पास से लेकर
सु रंग क राह माधवी के महल म पहु ंचकर खू न खराबी मचावगे। आ खर य को इससे
बढ़कर लड़ने - भड़ने और जान दे ने का कौन-सा समय हाथ लगेगा। मगर ऐसा करने के लए
सबसे पहले सु रंग क ताल अपने क जे म कर लेना मु ना सब है, नह ं तो मु झे बगड़ा हु आ
दे ख जब तक म दो-चार औरत क मु क बांधू ंगा सब सु रंग क राह भाग जायगी, फर मेरा
मतलब जैसा म चाहता हू ं स न होगा।

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इं जीत सं ह ने सु रंग क ताल लेने क बहु त को शश क मगर न ले सके य क अब वह
ताल उस जगह से, जहां पहले रहती थी, हटाकर कसी दू सर जगह रख द गई थी।

बयान -7

आपस म लड़ने वाले दोन भाइय के साथ जाकर सु बह क सफेद नकलने के साथ ह
कोतवाल ने माधवी क सू रत दे खी और यह समझकर क द वान साहब को छोड़ महारानी अब
मु झसे ेम रखा चाहती है बहु त खु श हु आ। कोतवाल साहब के गु मानम भी न था क ऐयार
के फेर म पड़े ह। उनको इं जीत सं ह के कैद होने और वीर संह के ऐयार के यहां पहु ंचने क
खबर ह न थी। वह तो िजस तरह हमेशा रयाया लोग के घर अकेले पहु ंचकर तहक कात
कया करते थे उसी तरह आज भी सफ दो अदल के सपा हय को साथ ले इन दोन ऐयार
के फेर म पड़ घर से नकल पड़े थे।
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कोतवाल साहब ने जब माधवी को पहचाना तो अपने सपा हय p oको उसके सामने ले जाना
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मु ना सब न समझा और अकेले ह माधवी के oंचे। दे खा
पास पहु
l क हक कत म उ ह ं क
त वीर सामने रखे माधवी उदास बैठ है।
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कोतवाल साहब के दे खते ह माधवी उठdखड़ी हु ई और मु ह बत भर नगाह से उनक तरफ
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दे खकर बोल -

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‘‘दे खो म तु हारे लएttकतनी बेचैन हो रह हू ं पर तु ह जरा भी खबर नह!’’

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कोत - अगर मु झे यकायक इस तरह अपनी क मत के जागने क खबर होती तो या म
लापरवाह बैठा रहता कभी नह ं, म तो आप ह दन - रात आपसे मलने क उ मीद म अपना
खू न सु खा रहा था।

माधवी - (हाथ का इशारा करके) दे खो ये दोन आदमी बड़े ह बदमाश ह, इनको यहां से चले
जाने के लए कहो तो फर हमसे - तु मसे बात ह गी।

इतना सु नते ह कोतवाल साहब ने उन दोन भाइय क तरफ जो हक कत म भैरो सं ह और


तारा सं ह थे कड़ी नगाह से दे खा और कहा, ‘‘तु म दोन अभी-अभी यहां से भाग जाओ नह ं तो
बोट -बोट काटकर रख दू ं गा।’’

भैरो सं ह और तारा सं ह वहां से चलते बने। इधर चपला जो माधवी क सू रत बनीहु ई थी


कोतवाल को बात म फंसाये हु ए वहां से दू र एक गु फा के मु हाने परले गई और बैठकर
बातचीत करने लगी।

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चपला माधवी क सू रत तो बनी मगर उसक और माधवी क उ म बहु त कुछ फक था।
कोतवाल भी बड़ा धू त और चालाक था। सू य क चमक म जब उसने माधवी क सू रत अ छ
तरह दे खी और बात म भी कुछ फक पाया फौरन उसे खु टका पैदा हु आ और वह बड़े गौर से
उसे सर से पैर तक दे ख अपनी नगाह के तराजू म तोलने और जांचने लगा। चपला समझ
गई क अब कोतवाल को शक पैदा हो गया, दे र करना मु ना सब न जान उसने जफ ल (सीट )
बजाई। उसी समय गु फा के अंदर से दे वी सं ह नकल आये और कोतवाल साहब से तलवार रख
दे ने के लए कहा।

कोतवाल ने भी जो सपाह और शेर दल आदमी था बना लड़े- भड़े अपने को कैद बना दे ना
पसंद न कया और यान से तलवार नकाल दे वी सं ह पर हमला कया। थोड़ी ह दे र म
दे वी सं ह ने उसे अपने खंजर से ज मी कया और जमीन पर पटक उसक मु क बांध डाल ं।

पहु ंचे जहां कोतवाल के साथी दोन सपाह खड़े अपने मा लक के लौट.आने o m
कोतवाल साहब का हु म पा भैरो सं ह और तारा सं ह जब उनके सामने से चले गयेतो वहां
in क राह दे ख रहे
थे। इन दोन ऐयार ने उन सपा हय को अपनी मु क बंधवानेpक
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oे लए कहा मगर उ ह ने
इन दोन को साधारण समझ मंजू र न कया और लड़ने-oभड़ने
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g को तैयार हो गये। उन दोन
क मौत आ चु क थी, आ खर भैरो संह और तारा सं.हbके हाथ से मारे गये, मगर उसी समय
बार क आवाज म कसी ने इन दोन ऐयार 4
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कोuपु कारकर कहा, ‘‘भैरो सं ह और तारा सं ह, अगर
मेर िजंदगी है तो बना इसका बदलाin
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लए न छोड़ू ंगी!’’
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ख:
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भैरो सं ह ने उस तरफ देp
ये दोन उसके पीछे a t p
ा िजधर से आवाज आई थी। एक लड़का भागता हु आ दखाईपड़ा।
htदौड़े मगर पा न सके य क उस पहाड़ी क छोट -छोट कंदराओं और
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खोह म न मालू म कहां छप उसने इन दोन के हाथ से अपने को बचा लया।

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पाठक समझ गये ह गे क इन दोन ऐयार को पु कारकर चताने वाल वह तलो तमा है
िजसने बात करते-करते माधवी से इन दोन ऐयार के हाथ कोतवाल के फंस जाने का
समाचार कहा था।

बयान –8

इस जगह उस तालाब का हाल लखते ह, िजसका िज कई दफे ऊपर-पीछे आ चु का है,


िजसम एक औरत को गर तार करने के लए यो गनी और वनचर कूद थीं, या िजसके
कनारे बैठ हमारे ऐयार ने माधवी के द वान, कोतवाल और सेनाप त को पकड़ने के लए राय
प क क थी।

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यह तालाब उस रमणीक थान म पहु ंचाने का रा ता था िजसम कुं अरइं जीत सं ह कैद ह।
इसका दू सरा मु हाना वह पानी वाल सु रंग थी िजसमकुं अर इं जीत सं ह घु से थे और कुछ दू र
जाकर जलमयी दे ख लौट आये थे या िजसको तलो तमा ने अब प थर के ढोक से बंद कर
दया है।

िजस पहाड़ी के नीचे यह तालाब था उसी पहाड़ी क दू सर तरफ वह गु त थान था िजसम


इं जीत सं ह कैद थे। इस राह से हर एक का आना मु ि कल था, हां ऐयार लोग अलब ता आ
सकते थे, िजसका दम खू ब सधा हु आ था, और तैरना बखू बी जानते थे, पर इस तालाब क राह
से वहां तक पहु ंचने के लए कार गर ने एक सु बीता भी कया था। उसी सु रंग से इस तालाब
क जाट (लाट) तक भीतर-भीतर एक मजबू त जंजीर लगी हु ई थी िजसे थामकर यहां तक
पहु ंचने म बड़ा ह सु बीताहोता था।

कोतवाल साहब को गर तार करने के बाद कई दफे चपला ने चाहा क इस तालाब क राह

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इं जीत सं ह के पास पहु ंचकर इधर के हाल-चाल क खबर करे मगर ऐसा न कर सक य क

poको न चय हो गया क
तलो तमा ने सु रंग का मु ंह बंद कर दया था। अब हमारे ऐयार
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दु मन संभल बैठा और उसको हम लोग क खबर हो गई।
l ogइधर कोतवाल साहब के गर तार
होने से और उनके सपा हय क लाश मलने पर शहर
s .b म हलचल मच रह थी। द वान साहब
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वगैरह इस खोज से परे शान हो रहे थे क हम 4uलोग का दु मन ऐसा कौन आ पहु ंचा िजसने
कोतवाल साहब को गायब कर दया।in
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कई रोज के बाद एक p
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दन: आधी रात के समय भैरो सं ह, तारा सं ह, पं डत ब नाथ, दे वी सं ह
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और चपला इस तालाबht पर बैठे आपस म सलाह कर रहे थे और सोच रहे थे क अब कुं अर
इं जीत सं ह के पास कस तरह पहु ं चना चा हए और उनके छु ड़ाने क या तरक ब करनी
चा हए।

चपला - अफसोस, मने जो ताल तैयार क थी वह अपने साथ लेती आई, नह ं तो इं जीत सं ह
उस ताल से ज र कुछ-न-कुछ काम नकालते। अब हम लोग का वहां तक पहु ंचना बहु त
मु ि कल हो गया।

ब - इस पहाड़ी के उस पार ह तो इं जीत सं ह ह! चाहे वह पहाड़ी कैसी ह बेढब य न हो


मगर हम लोग उस पार पहु ंचने के लए चढ़ने-उतरने क जगह बना ह सकते ह।

भैरो - मगर यह काम कई दन का है।

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तारा - सबसे पहले इस बात क नगरानी करनी चा हए क माधवी ने जहां इं जीत सं ह को
कैद कर रखा है वहां कोई ऐसा मद न पहु ंचने पावे जो उ ह सता सके, औरत य द पांच सौ
भी ह गी तो कुछ कर न सकगी।

दे वी - कुं अर इं जीत सं ह ऐसे बोदे नह ं ह क यकायक कसी के फंदे म आ जाव, मगर फर


भी हम लोग को हो शयार रहना चा हए, आजकल म उन तक पहु ंचने का मौका न मलेगा तो
हम इस घर को उजाड़ कर डालगे और द वान साहब वगैरह को जह नु म म मला दगे।

भैरो सं ह - अगर कुमार को यह मालू म हो गया क हम लोग के आने-जाने का रा ता बंद कर


दया गया तो वे चु प बैठे न रहगे, कुछ-न-कुछ फसाद ज र मचावगे।

तारा - बेशक।

इसी तरह क बहु त - सी बात वे लोग कर रहे थे क तालाब के उस पार जल म उतरता हु आ


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एक आदमी दखाई पड़ा। ये लोग टकटक बांध उसी तरफ दे खने लगे। वह आदमी जल म
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कूदा और जाट के पास पहु ंचकर गोता मार गया, िजसे दे ख भैरो सं ह ने कहा, ‘‘बेशक यह ऐसार
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है जो माधवी के पास जाना चाहता है।’’
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चपला - मगर यह माधवी का ऐयार नह ं है , अगर माधवी क तरफ का होता तो रा ता बंद
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होने का हाल इसे मालू म होता।
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भैरो - ठ क है। p :
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तारा - अगर माधवी क तरफ का नह ं तो हमारे कुमार का प पाती होगा।

दे वी - वह लौटे तो अपने पास बु लाना चा हए।

थोड़ी ह दे र बाद वह आदमी जाट के पास आकर नकला और जाट थाम जरा सु ताने लगा,
कुछ दे र बाद कनारे पर चला आया और तालाब के ऊपर वाले च तरे पर बैठ सोचने लगा।

भैरो सं ह अपने ठकाने से उठे और धीरे-धीरे उस आदमी क तरफ चले। जब उसने अपने पास
कसी को आते दे खा तो उठ खड़ा हु आ, साथ ह भैरो सं ह ने आवाज द, ‘‘डरो मत, जहां तक
म समझता हू ं तु म भी उसी क मदद कया चाहते हो िजसकेछुड़ाने क फ म हम लोग
ह।’’

भैरो सं ह के इतना कहते ह उस आदमी ने खु शी भर आवाज से कहा, ‘‘वाह-वाह-वाह, आप भी


यहां पहु ंच गये! सच पू छो तो यह सब फसाद तु हारा ह खड़ा कया हु आ है!

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भैरो - िजस तरह मेर आवाज तू ने पहचान ल उसी तरह तेर मु ह बत ने मु झे भी कह दया
क तू कमला है।

कमला - बस-बस, रहने द िजये, आप लोग बड़े मु ह बती ह, इसे म खू ब जानती हू ं।

भैरो - जानती ह हो तो यादे या कहू ं

कमला - कहने का मु ंह भी तो हो

भैरो - कमला, म तो यह चाहता हू ं क तु हारे पास बैठा बात ह करतारहू ं मगर इस समय
मौका नह ं है य क (हाथ का इशारा करके) पं डत ब नाथ, दे वी सं ह, तारा सं ह और मेर मां
वह ं बैठ हु ई ह। तु मको तालाब म जातेऔर नाकाम लौटते हम लोग ने दे ख लया और इसी
से हम लोग ने मालू म कर लया क तु म माधवी क तरफदार नह ं हो, अगर होतीं तो सु रंग
के बंद कए जाने का हाल तु ह ज र मालू म होता।
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कमला - या तु ह सु रंग बंद करने का मालू म है
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भैरो - हां, हम जानते ह।
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कमला - फर अब या करना चा हए d
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भैरो - तु म वहां चल चलो / / हम लोग
जहां के संगी-साथी ह, उसी जगह मल-जु ल के सलाह
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करगे।
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भैरो सं ह कमला को लए हु ए अपनी मां चपला के पास पहु ंचे और पु कारकर कहा
, ‘‘मां, यह
कमला है, इसका नाम तो तु मने सु ना ह होगा।’’

‘‘हां-हां, म इसे बखू बी जानती हू ं।’’ यह कह चपला ने उठाकर कमला को गले लगा लया और
कहा, ‘‘बेट , अ छ तरह तो है म तेर बड़ाई बहु त दन सेसु न रह हू,ं भैरो ने तेर बड़ी तार फ
क थी, मेरे पास बैठ और कह कशोर कैसी है’

कमला - (बैठकर) कशोर का हाल या पू छती ह वह तो माधवी क कैद म पड़ी है, ल लता
कुं अर इं जीत सं ह के नाम का धोखा दे कर उसे ले आई।

भैरो - (च ककर) ह, या यहां तक नौबत पहु ंच गई

कमला - जी हां, म वहां मौजू द न थी नह ं तो ऐसा न होने पाता!

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भैरो - खु लासा हाल कहो या हु आ

कमला ने सब हाल कशोर के धोखा खाने और ल लता को पकड़ लेने का सु नाकर कहा, ‘‘यह
बखेड़ा (भैरो सं ह क तरफ इशारा करके) इ ह ं का मचाया हु आ है, न ये इं जीत सं ह बनकर
शवद तगढ़ जाते न बेचार कशोर क यह दशा होती।’’

चपला - हां म सु न चुक हू ं। इसी कसू र पर बेचार को शवद त ने अपने यहां से नकाल
दया। खैर तू ने यह बड़ा काम कया क ल लता को पकड़ लया, अब हम लोग अपना काम
स कर लगे।

कमला - आप लोग ने या कया और अब यहां या करने का इरादा है।

चपला ने भी अपना और इं जीत सं ह का सब हाल कह सु नाया। थोड़ी दे र तक बातचीत होती


रह । सु बह क सफेद नकलना ह चाहती थी क ये लोग यहां से उठ खड़े हु ए और एक
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पहाड़ी क तरफ चले गये।
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बयान - s
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कुं अर इं जीत सं ह अब जबद ती करने
h inपर उता हु ए और इस ताक म लगे कमाधवी सु रंग
का ताला खोले और द वान से /
: / मलने के लए महल म जाय तो म अपना रंग दखाऊं।
तलो तमा के हो शयारtकर
t p दे ने से माधवी भी चेत गई थी और द वान साहब के पास आना-
जाना उसने ब कुh ल बंद कर दया था, मगर जब से पानी वाल सु रंग बंद क गई तब से
तलो तमा इसी दू सर सु रंग क राह आने-जाने लगी और इस सु रंग क ताल जो माधवी के
पास रहती थी अपने पास रखने लगी। पानी वाल सु रंग के बंद होते ह इं जीत सं ह जान गये
क अब इन औरत क आमदर त इसी सु रंग से होगी, मगर माधवी ह क ताक म लगे रहने
से कई दन तक उनका मतलब स न हु आ।

अब कुं अर इं जीत सं ह उस दालान म यादे टहलने लगे िजसम सु रंग के दरवाजे वाल कोठर
थी। एक दन आधी रात के समय माधवी का पलंग खाल दे ख इं जीत सं ह ने जाना क वह
बेशक द वान से मलने गई है। वह भी पलंग से उठ खड़े हु ए और खू ंट से लटकती हु ई एक
तलवार उतारने के बाद जलते शमादान को बु झा उसी दालान म पहु ंचे जहां उस समय
ब कुल अंधेरा था और उसी सु रंग वाले दरवाजे के बगल म छपकर बैठ रहे । जब पहर भर
रात बाक रह उस सु रंग का दरवाजा भीतर से खु ला और एक औरत ने इस तरफ नकलकर
फर ताला बंद करना चाहा मगर इं जीत सं ह ने फुत से उसक कलाई पकड़ ताल छ न ल
और कोठर के अंदर जा भीतर से ताला बंद कर लया।

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वह औरत माधवी थी िजसके हाथ से इं जीत सं ह ने ताल छ नी थी। वह अंधेरे म इं जीत सं ह
को पहचान न सक , हां उसके च लाने से कुमार जान गए क वह माधवी है।

इं जीत सं ह एक दफे उस सु रंग म जा ह चु के थे, उसके रा ते और सी ढ़य को वे बखू बी


जानते थे, इस लए अंधेरे म उनको बहु त तकल फ न हु ई और वे अंदाज से टटोलते हु ए
तहखाने क सी ढ़यां उतर गये। नीचे पहु ंच के जब उ ह ने दू सरा दरवाजा खोला तो उ ह सु रंग
के अंदर कुछ दू र पर रोशनी मालू म हु ई िजसे दे ख उ ह ता जु ब हु आ और बहु त धी
रे -धीरे
बढ़ने लगे। जब उस रोशनी के पास पहु ंचे, एक औरत पर नजर पड़ी जो हथकड़ी और बे ड़ी के
सबब उठने-बैठने से ब कुल लाचार थी। चराग क रोशनी म इं जीत सं ह ने उसको और
उसने इनको अ छ तरह दे खा और दोन ह च क पड़े।

ऊपर िज आ जाने से पाठक समझ ह गये ह गे क यह कशोर ह है जो तकल फ के


सबब बहु त ह कमजोर और सु त हो रह थी। इं जीत सं ह के दल म उसक त वीर मौजू द
थी और इं जीत सं ह उसक आंख म पु तल क तरह डेरा जमाये हु ए.iथेn o m
। एक ने दू सरे को
बखू बी पहचान लया और ता जु ब मल हु ई खु शी के सबबदे र तक
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poएक-दू सरे क सू रत दे खते
रहे । इसके बाद इं जीत सं ह ने उसक हथकड़ी और बेड़o
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ldी खोल i
g डाल और बड़े ेम से हाथ
पकड़कर कहा, ‘‘ कशोर ! तू यहां कैसे आ गई!’’

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कशोर - (इं जीत सं ह के पैर पर गरकर)
बद क मती मु झे यहां ले आई मगर
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nd अभी तक तो म यह सोचती थी क मेर
h नह ं अब मुझे कहना पड़ा क मेर खु श क मती ने मु झे
यहां पहु ंचाया और ल लता
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:ने/ मेरे साथ बड़ी नेक क जो मु झे लेकर आई, नह ं तो न मालू म
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कब तक तु हार सू hरtत...
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इससे

w w यादे बेचार कशोर कुछ कह न सक और जोर-जोर से रोने लगी। इं जीत सं ह भी


बराबर रो रहे थे। आ खर उ ह ने कशोर को उठाया और दोन हाथ से उसक कलाई पकड़े
हु ए बोले -

‘‘हाय, मु झे कब उ मीद थी क म तु ह यहां दे खू ंगा। मेर िजंदगी मआज क खु शी याद


रखने लायक होगी। अफसोस, दु मन ने तु ह बड़ा ह क ट दया!’’

कशोर - बस अब मु झे कसी तरह क आरजू नह ं है। म ई वर से यह मांगती थी क एक


दन तु ह अपने पास दे ख लू ं सो मु राद आज पू र हो गई, अब चाहे माधवी मु झे मार भी डाले
तो म खु शी से मरने को तैयार हू ं।

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इं - जब तक मेरे दम म दम है कसक मजाल है जो तु ह दु ख दे! अब तो कसी तरह इस
सु रंग क ताल मेरे हाथ म लग गई िजससे हम दोन को न चय समझना चा हए क इस
कैद से छु ी मल गई। अगर िजंदगी है तो म माधवी से समझ लू ंगा, वह जाती कहां है!

इन दोन को यकायक इस तरह के मलाप से कतनी खु शी हु ई यह ये ह जानतेह गे। द न-


दु नया क सु ध भू ल गये। यह याद ह नह ं रहा क हम कहां जाने वाले थे, कहां ह, या कर
रहे ह और या करना चा हए, मगर यह खु शी बहु त ह थोड़ी दे र के लए थी, य क इसी
समय हाथ म मोमब ती लए एक औरत उसी तरफ से आती हु ई दखाई द िजधर
इं जीत सं ह जाने वाले थे और िजसको दे ख ये दोन ह च क पड़े।

वह औरत इं जीत सं ह के पास पहु ंची और बदन का दाग दखला बहु त ज द स कर दया
क वह चपला है।

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चपला - इं जीत! ह, तु म यहां कैसे आये!! (चार तरफ दे खकर) मालू म होता है बेचार कशोर
को तु मने इसी जगह पाया।
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- हां इसी जगह कैद थी मगर म नह ं जानता था। म तो माधवी के हाथ से जबद ती
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ताल छ न इस सु रंग म चला आया और उसे च sलाता ह छोड़ आया।
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ndराह से वहां गई थी।
चपला - माधवी तो अभी इसी सु रंग iक
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इं - हां और म दरवाजेpक:े पास छपा खड़ा था। जैसे ह वह ताला खोल अंदर पहु ंची वैसे ह
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मने पकड़ लया औरhtताल छ न इधर आ भीतर से ताला बंद कर दया।
चपला - तु मने बहु त बु रा कया, इतनी ज द कर जाना मु ना सब न था। अब तु म दो रोज भी
माधवी के पास नह ं गु जार सकते, य क वह बड़ी ह बदकार और चा डा लन क तरह बेदद
है, अब वह तु ह पावे तो कसी-न- कसी तरह धोखा दे बना जान लए कभी न छोड़े।

इं - आ खर म ऐसा न करता तो या करता उधर िजस राह से तु म आयी थीं अथात पानी
वाल सु रंग का मु हाना मेरे दे खते-दे खते ब कुल बंद कर दया गया िजससे मु झे मालू म हो
गया क तु हारे आने-जाने क खबर उस शैतान क ब ची को लग गई और तु हारे मलने
या कसी तरह क मदद पहु ंचने क उ मीद ब कुल जाती रह पर नामद क तरह म अपने
को कब तक बनाये रहता, और अब मु झे माधवी के पास लौट जाने क ज रत ह या है

चपला - बेशक हम लोग क खबर माधवी को लग गई, मगर तु म ब कुल नह ं जानते क


तलो तमा ने कतना फसाद मचा रखा है और इस महल क तरफ कतनी मजबू ती कर रखी

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है। तु म कसी तरह इधर से नह ं नकल सकते। अफसोस, अब हम लोग भार खतरे म पड़
गये!

इं - रात का तो समय है , लड़- भड़कर नकल जायगे।

चपला - तु म दलावर हो, तु हारा ऐसा खयाल करना बहु त मु ना सब है मगर ( कशोर क
तरफ इशारा करके) इस बेचार क या दशा होगी इसके सवाय अब सबेरा हु आ ह चाहता
है।

इं - फर या कया जाय

चपला - (कुछ सोचकर) या तु म जानते हो इस समय तलो तमा कहां है

इं - जहां तक म खयाल करता हू ं इस खोह के बाहर है।

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चपला - यह और मु ि कल है, वह बड़ी चालाक है, इस समय भीoज र कसी धु न म लगी
होगी, वह हम लोग का यान दम-भर के लये भी नह ं भु लg sp
ाती।
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s . और भी कोई मौजू द है या अकेल तु म
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इं - इस समय हमार मदद के लए इस महल म
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hडत ब नाथ तो महल के बाहर इधर-उधर लु के- छपे मौजू द
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चपला - दे वी सं ह, भैरो सं ह और पं
ह, मगर सू रत बदले हु t
h tए कमला इस सु रंग के मु हाने पर अथातबाहर वाले कमरे म खड़ी है, म
उसे अपनी हफाजत के लए वहां छोड़ आई हू ं।

कशोर - (च ककर) कमला कौन

चपला - तु हार सखी!

कशोर - वह यहां कैसे आई

चपला - इसका हाल तो बहु त लंबा-चौड़ा है इस समय कहने का मौका नह ,ं मु तसर यह है


क तु मको धोखा दे ने वाल ल लता को उसने पकड़ लया और खु द तु मको छुड़ाने के लए
आई है , यहां हम लोग से भी मु लाकात हो गई। (इं जीत सं ह क तरफ दे खकर) बस अब यहां
ठहरकर अपने को इस सु रंग के अंदर ह फंसाकर मार डालना मु ना सब नह ं।

इं - बेशक यहां ठहरना ठ क न होगा, चले चलो, जो होगा दे खा जायेगा।

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तीन वहां से चल पड़े और सु रंग के दू सरे मु हाने अथात उस कमरे मपहु ंचे िजसम माधवी को
द वान साहब के साथ बैठे हु ए इं जीत सं ह ने दे खाथा। वहां इस समय सू रत बदले हु ए कमला
मौजू द थी और रोशनी बखू बी हो रह थी। इन तीन को दे खते ह कमला च क पड़ी और
कशोर को गले लगा लया मगर तु रंत ह अलग होकर चपला से बोल , ‘‘सु बह क सफेद
नकल आई यह बहु त बु रा हु आ।’’

चपला - जो हो, अब कर ह या सकते ह!

कमला - खैर जो होगा दे खा जायेगा, ज द नीचे उतरो।

इस खु शनु मा और आल शान मकान के चार तरफ बाग था िजसके चार तरफ चहारद वा रयां
बनी हु ई थीं। बाग के पू रब तरफ बहु त बड़ा फाटक था जहांबार -बार से बीस आदमी नंगी
तलवार लए घू म-घू मकर पहरा दे ते थे। चपला और कमला कमंद के सहारे बाग क पछल

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द वार लांघकर यहां पहु ंची थीं और इस समयभी ये चार उसी तरह नकल जाना चाहते थे।
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हम यह कहना भू ल गये क बाग के चार कोन म चार गु म टयां बनी हु ई थींिजनम सौ
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सपा हय का डेरा था और आजकल तलो तमा के हु l o
म से वे सभी
हरदम तैयार रहते थे।
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तलो तमा ने उन लोग को यह भी कह रखा थाsक िजस समय म अपने बनाये हु ए बम के
i 4uआवाज तु म लोग सु नो, फौरन हाथ म नंगी
गोले को जमीन पर पटकूं और उसक भार
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तलवार लए बाग के चार तरफ h i
फैल जाओ, िजस आदमी को आते-जाते दे खो तु रंत गर तार
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कर लो।
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चार आदमी सु रंग का दरवाजा खु ला छोड़ नीचे उतरे और कमरे के बाहर हो बाग क पछल
द वार क तरफ जैसे ह चले क तलो तमा पर नजर पड़ी। चपला यह खयाल करके क अब
बहु त ह बु रा हु आ, तलो तमा क तरफ लपक और उसे पकड़ना चाहा मगर वह शैतान लोमड़ी
क तरह च कर मार नकल ह गई और एक कनारे पहु ंच मसाले से भरा हु आ एक गद
जमीन पर पटका िजसक भार आवाज चार तरफ गू ंज गई और उसके कहे मु ता बक
सपा हय ने हो शयार होकर चार तरफ से बाग को घेर लया।

तलो तमा के भागकर नकल जाते ह चार आदमी िजनके आगे-आगे हाथ म नंगी तलवार
लए इं जीत सं ह थे बाग क पछल द वार क तरफ न जाकर सदर फाटक क तरफ लपके
मगर वहां पहु ंचते ह पहरे वाले सपा हय से रोके गये और मार-काट शु हो गई।
इं जीत सं ह ने तलवार तथा चपला और कमला ने खंजर चलाने म अ छ बहादु र दखाई।

हमारे ऐयार लोग भी बाग के बाहर चार तरफ लु के- छपे खड़े थे, तलो तमा के चलाये हु ए
गोले क आवाज सु नकर और कसी भार फसाद का होना खयाल कर फाटक पर आ जु टे और

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खंजर नकाल माधवी के सपा हय पर टू ट पड़े। बात क बात म माधवी के बहु त से
सपा हय क लाश जमीन पर दखाई दे ने लगीं और बहु त बहादु र के साथ लड़ते- भड़ते हमारे
बहादु र लोग कशोर को लए नकल ह गये।

ऐयार लोग तो दौड़ने-भागने म तेज होते ह ह, इन लोग का भाग जाना कोई आ चय न था,
मगर गोद म कशोर को उठाये इं जीत सं ह उन लोग के बराबर म कब दौड़ सकते थे और
ऐयार लोग भी ऐसी अव था म उनका साथ कैसे छोड़ सकते थे! लाचार जैसे बना उन दोन
को भी साथ लए हु ए मैदान का रा ता लया। इस समय पू रब क तरफ सू य क ला लमा
अ छ तरह फैल चु क थी।

माधवी के द वान अि नद त का मकान इस बाग से बहु त दू र न था और वह बड़ेसबेरे उठा


करता था। तलो तमा के चलाये हु ए गोले क आवाज उसके कान म पहु ंच ह चु क थी, बाग
के दरवाजे पर लड़ाई होने क खबर भी उसे उसी समय मल गई। वह शैतान का ब चा बहु त
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दलेर और लड़ाका था, फौरन ढाल-तलवार ले मकान के नीचे उतर आया और अपने यहां
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रहने वाले कई सपा हय को साथ ले बाग के दरवाजे पर पहु ंचा।pदेo
खा क बहु त से सपा हय
क लाश जमीन पर पड़ी हु ई ह और दु मन का पता नह ं o है।g
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बाग के चार तरफ फैले हु ए सपाह भी फाटक
i 4u पर जु टे थे और गनती म एक सौसे यादे
थे। अि नद त ने सभी को ललकारा और
i nd साथ ले इं जीत सं ह का पीछा कया। थोड़ी ह दू र
उन लोग को पा लया और चार h
/ तरफ से घेर मार-काट शु कर द ।

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अि नद त क नगाहttकशोर पर जा पड़ी। अब या पूछना था सब तरफ का खयाल छोड़
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इं जीत सं ह के ऊपर टू ट पड़ा। बहु त से आद मय से लड़ते हु एइं जीत सं ह कशोर को
स हाल न सके और उसे छोड़ तलवार चलाने लग,◌े अि नद त को मौका मला, इं जीत सं ह
के हाथ से ज मी होने पर भी उसने दम न लया और कशोर को गोद म उठा ले भागा।
यह दे ख इं जीत सं ह क आंख म खू न उतर आया। इतनी भीड़ को काटकर उसका पीछा तो
न कर सके मगर अपने ऐयार को ललकारकर इस तरह क लड़ाई क क उन सौ म से आधे
बेदम होकर जमीन पर गर पड़े और बाक अपने सरदार को चला गया दे ख जान बचा भाग
गये। इं जीत सं ह भी बहु त से ज म के लगने से बेहोश होकर जमीन पर गर पड़े। चपला
और भैरो सं ह वगैरह बहु त ह बेदम हो रहे थे तो भी वे लोग बेहोश इं जीत सं ह को उठा वहां
से नकल गये और फर कसी क नगाह पर न चढ़े ।

बयान - 10

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ज मी इं जीत सं ह को लए हु ए उनके ऐयार लोग वहां से दू र नकल गये और बेचार कशोर
को दु ट अि नद त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल दे ख तलो तमा वहां से चलती
बनी और बाग के अंदर कमरे म पहु ंची। दे खा क सु रंगका दरवाजा खु ला हु आ है और ताल
भी उसी जगह जमीन पर पड़ी है। उसने ताल उठा ल और सु रंग के अंदर जा कवाड़ बंद
करती हु ई माधवी के पास पहु ंची। माधवीक अव था इस समय बहु त ह खराब हो रह थी।
द वान साहब पर बलकुल भेद खु ल गया होगा यह समझ मारे डर के वह घबड़ा गई और उसे
न चय हो गया क अब कसी तरह कुशल नह ं है य क बहु त दन क लापरवाह म
द वान साहब ने तमाम रयाया और फौज को अपने क जे म कर लया था। तलो तमा ने
वहां पहु ंचते ह माधवी से कहा -

तलो - अब या सोच रह है और य रोती है मने पहले ह कहा था क इन बखेड़ म मत


फंस, इसका नतीजा अ छा न होगा! वीर सं ह के ऐयार लोग बला क तरह िजसके पीछे पड़ते

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ह उसका स यानाश कर डालते ह, परं तु तू ने मेर बात न मानी, अब यह दन दे खने क नौबत
पहु ंची।
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sह जबद ती मेरे हाथ से
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माधवी - वीर सं ह का कोई ऐयार यहां नह ं आया, इं जीतg
dसं i ताल
छ नकर चले गये, म कुछ न कर सक ।

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तलो - आ खर तू उनका कर ह या सकती

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माधवी - अब उन लोग का:/या हाल है

तलो - वे लोग h
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लड़ते- भड़ते तु हारे सैकड़ आद मय को यमलोक पहु ंचाते नकल गये।

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कशोर को अपने द वान साहब उठा ले गये। जब उनके हाथ कशोर लग गई तब उ ह
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लड़ने- भड़ने क ज रत ह या थी कशोर क सू रत दे खकर तो आसमान क
नीचे उतर आती है फर द वान साहब
च ड़या भी
या चीज ह अब वह दु ट इस धु न म होगा क तु ह
मार पू र तरह से राजा बन जाये और कशोर को रानी बनाये, तु म उसका कर ह या सकती
हो!

माधवी - हाय, मेरे बु रे कम ने मु झे म ी म मला दया! अब मेर क मत म रा य नह ं है ,


अब तो मालू म होता है क म भखमं गन क तरह मार -मार फ ं गी।

तलो - हां अगर कसी तरह यहां से जान बचाकर नकल जाओगी तो भीख मांगकर भी जान
बचा लोगी नह ं तो बस यह भी उ मीद नह ं है।

माधवी - या द वान साहब मु झसे इस तरह क बेमु र वती करगे

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तलो - अगर तुझे उन पर भरोसा है तो रह और दे ख क या होता है, पर म तो अब एक
पल टकने वाल नह ं।

माधवी - अगर कशोर उसके हाथ न पड़ गई होती तो मु झे कसी तरह क उ मीद होती
और कोई बहाना भी कर सकती थी मगर अब तो...

इतना कहकर माधवी बेतरह रोने लगी, यहां तक क हचक बंध ग और वह तलो तमा के
पैर पर गरकर बोल -

‘‘ तलो तमा, म कसम खाती हू ं क आज से तेरे हु म के खलाफ कोई काम न क ं गी।’’

तलो - अगर ऐसा है तो म भी कसम खाकर कहती हू ं क तु झे फर उसी दज परपहु ंचाऊंगी


और वीर सं ह के ऐयार और द वान साहब से भी ऐसा बदला लू ंगी क वे भी याद करगे।

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माधवी - बेशक म तु हारा हु म मानू ंगी और जो कहोगी सो क ं गी।
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तलो - अ छा तो आज रात को यहां से नकल चलना और जहां तक जमा पू ंजी अपने साथ
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चलते बने ले लेना चा हए!
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माधवी - बहु त अ छा, म तैयार हू,ं जब चाहो चलो, मगर यह तो कहो क मेर इन सखी-
सहे लय क या दशा होगी hin
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तलो - बु र क संगतtकरने से जो फल सब भोगते ह सो ये भी भोगगी। म इनका कहां तक
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खयाल क ं गी जब अपने पर आ बनती है तो कोई कसी क खबर नह ं लेता।

द वान अि नद त कशोर को लेकर भागे तो सीधे अपने घर म आ घु से। ये कशोर क सू रत


पर ऐसे मो हत हु ए क तनोबदन क सु ध जाती रह । सपा हय ने इं जीत सं ह और उनके
ऐयार को गर तार कया या नह ं अथवा उनक बदौलत सभ क या दशा हु ई इसक
परवाह तो उ ह जरा न रह , असल तो यह है क इं जीत सं ह को वे पहचानते भी न थे।

बेचार कशोर क या दशा थी और वह कस तरह रो-रोकर अपने सर के बाल नोच रह थी


इसके बारे म इतना ह कहना बहु त है क अगर दो दन तक उसक यह दशा रह तो कसी
तरह जीती न बचेगी और ‘हा इं जीत सं ह, हा इं जीत सं ह’ कहते ाण छोड़ दे गी।

द वान साहब के घर म उनक जो और कशोर ह के बराबर क एक कुं आर लड़क थी


िजसका नाम का मनी था और वह िजतनी खू बसू रत थी उतनी ह वभाव क भी अ छ थी।
द वान साहब क ी का भी वभाव और चाल-चलन अ छा था, मगर वह बेचार अपने प त

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के दु ट वभाव बु रे यवहार से बराबर दु खी रहा करती थीऔर डर के मारे कभी कसी बात
म कुछ रोक-टोक न करती, तस पर भी आठ-दस दन पीछे वह अि नद त के हाथ से ज र
मार खाया करती।

बेचार कशोर को अपनी जो और लड़क के हवाले कर हफाजत करने के अ त र त


समझाने-बु झाने क भी ताक द कर द वान साहब बाहर चले आये और अपने द वानखाने म
बैठ सोचने लगे क कशोर को कस तरह राजी करना चा हए। यह औरत कौन और कसक
लड़क है, िजन लोग के साथ यह थी वे लोग कौन थे, और यहां आकर धू म-फसाद मचाने क
उ ह या ज रत थी चाल-ढाल और पोशाक से तो वे ऐयार मालू म पड़ते थे मगर यहां उन
लोग के आने का या सबब था इसी सब सोच- वचार म अि नद त को आज नान तक
करने क नौबत न आई। दन भर इधर-उधर घू मते तथा लाश को ठकाने पहु ंचाते और
तहक कात करते बीत गया मगर कसी तरह इस बखेड़े का ठ क पता न लगा, हां महल के
पहरे वाल ने इतना कहा क दो-तीन दन से तलो तमा हम लोग पर स त ताक द रखती
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थी और हु म दे गई थी क ‘जब मेरे चलाये बम के गोले क आवाज तु म लोग सु नो तो
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फौरन मु तैद हो जाओ और िजसको आते दे खो गर तार कर लो।’ s p
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अब द वान साहब का शक माधवी और तलो तमा के ऊपर हु आ और दे र तक सोचने- वचारने

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के बाद उ ह ने न चय कर लया क इस बखेड़े का हाल बेशक ये दोन पहले ह से जानती
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थीं मगर यह भेद मु झसे छपाये रखने का कोई वशेष कारण अव य है।
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चराग जलने के बाद अि नद त अपने घर पहु ंचा। कशोर के पास न जाकर नराले म अपनी
ी को बु लाकर htt पू छा, ‘‘उस
उसने औरत क जु बानी कुछ हाल-चाल तु ह मालू म हुआ या
नह ’ं

अि नद त क ी ने कहा, ‘‘हां, उसका हाल मालू म हो गया। वह महाराज शवद त क लड़क


है और उसका नाम कशोर रानी है। राजा वीर सं ह के लड़के इं जीत सं ह पर माधवी मो हत
हो गई थी और उनको अपने यहां कसी तरह से फंसा लाकर खोह म रख छोड़ा था।
इं जीत सं ह का ेम कशोर पर था इस लए उसने ल लता को भेजकर धोखा दे कशोर को
भी अपने फंदे म फंसा लया था। वह कई दन से यहां कैद थी और वीर सं ह के ऐयार लोग
भी कई दन से इसी शहर म टके हु ए थे। कसी तरह मौका मलने पर इं जीत सं ह कशोर
को ले खोह से बाहर नकल आये और यहां तक नौबत आ पहु ंची।’’

राजा वीर सं ह और उनके ऐयार का नाम सु न मारे डर के अि नद त कांप उठा, बदन के


र गटे खड़े हो गए, घबराया हु आ बाहर नकल आया और अपने द वानखाने म पहु ंच मसनद के
ऊपर गर भू खा- यासा आधी रात तक यह सोचता रह गया क अब या करना चा हए।

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अि नद त समझ गया क कोतवाल साहब को ज र वीर सं ह के ऐयार ने पकड़ लया है
और अब कशोर को अपने यहां रखने से कसी तरह जान न बचेगी, तस पर भी वह कशोर
को छोड़ना नह ं चाहता था और सोचते- वचारते जब उसका जी ठकाने आता तब यह कहता
क ‘चाहे जो हो, कशोर को कभी न छोड़ू ंगा!’

कशोर को अपने यहां रखकर सलामत रहने क सवाय इसके उसे कोई तरक ब न सू झी क
वह माधवी को मार डाले और वयं राजा हो बैठे। आ खर इसी सलाह को उसने ठ क समझा
और अपने घर से नकल माधवी से मलने के लए महल क तरफ रवाना हु आ, मगर वहां
पहु ंचकर ब कुल बात मामू ल के खलाफ दे ख और भी ता जु ब म हो गया।उसे उ मीद थी
क खोह का दरवाजा बंद होगा मगर नह ं, खोह का दरवाजा खु ला हु आ था और माधवी क
कुल स खयां जो खोह के अंदर रहती थीं, महल म ऊपर-नीचे चार तरफ फैल हु ई थीं और
रोती हु ई इधर-उधर माधवी को खोज रह थीं।

रात आधी से .in


यादा जा चु क थी, बाक रात भी द वान साहब ने माधवी क स खय का
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इजहार लेने म बता द और दन-रात पू रा अखंड त कये रहे
s p।oदे खना चा हए इसका फल
उ ह या मलता है
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शु से लेकर माधवी के भाग जाने तक का u
i 4 हाल उसक स खय ने द वान साहब को कह
nd माधवी अपने पास रखती थी इस लए हम लोग
सु नाया। आ खर म कहा, ‘‘सु रंग क ताल
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लाचार थीं, यह सब हाल आपसे कह h न सक ं।’’
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अि नद त दांत पीसकर
h tt रह गया। आ खर यह न चय कया क कल दशहरा ( वजयदशमी)
है, ग ी पर खु द बैठ राजा बन और कशोर को रानी बना नजर लूगा ं फर जो होगा दे खा
जायगा। सु बह को वह जब अपने घर पहु ंचा और जैसे ह पलंग पर जाकरलेटना चाहा वैसे ह
त कए के पास एक तह कये हु ए कागज पर उसक नजर पड़ी। खोलकर दे खा तो उसी क
त वीर मालू म पड़ी, छाती पर चढ़ा हु आ एक भयानक सू रत का आदमी उसके गले पर खंजर
फेर रहा था। इसे दे खते ह वह च क पड़ा। डर और चं ता ने उसे ऐसा पटका क बु खार चढ़
आया मगर थोड़ी ह दे र म चंगा हो घर के बाहर नकल फर तहक कात करने लगा।

बयान - 11

हम ऊपर के बयान म सु बह का य लखकर कह आये ह क राजा वीर सं ह, कुं अर


आनंद सं ह और तेज सं ह सेना स हत कसी तरफ को जा रहे ह। पाठक तो समझ ह गये ह गे
क इ ह ने ज र कसी तरफ चढ़ाई क है और बे शक ऐसा ह है भी। राजा वीर सं ह ने
यकायक माधवी के गयाजी पर धावा कर दया िजसका लेना इस समय उ ह ने बहु त ह

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सहज समझ रखा था, य क माधवी के चाल-चलन क खबर बखू बी लग गई थी। वे जानते
थे क राजकाज पर यान न दे दन-रात ऐश म डू बे रहने वाले राजा का रा य कतना
कमजोर हो जाता है। रै यत को ऐसे राजा से कतनी नफरत हो जाती है और कसी दू सरे नेक
धमा मा के आ पहु ंचने के लए वे लोग कतनी म नत मानते रहते ह।

वीर संह का खयाल बहु त ह ठ क था। गया पर दखल करने म उनको जरा भी तकल फ न
हु ई, कसी ने उनका मु काबला न कया। एक तो उनका चढ़ा-बढ़ा ताप ह ऐसा था क कोई
मु काबला करने का साहस भी नह ं कर सकता था, दू सरे बे दल रयाया और फौज तो चाहती
ह थी क वीर सं ह के ऐसा कोई यहां का भी राजा हो। चाहे दन-रात ऐश म डू बे और शराब
के नशे म चू र रहने वाले मा लक को कुछ भी खबर न हो पर बड़े जमींदार और
राजकमचा रय को माधवी और कुं अर इं जीत सं ह के खं चा खं ची क खबर लग चु क थी और
उ ह मालू म हो चु का था क आजकल वीर सं ह के ऐयार लोग राजगृ ह ह म वराज रहे ह।

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राजा वीर सं ह ने बेरोक-टोक शहर म पहु ंचकर अपना दखल जमा लया और अपने नाम क
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मु नाद करवा द । वहां के दो-एक कमचार जो द वान अि नद p तo
के दो त और खैर वाह थे
रं ग-कुरं ग दे खकर भाग गये, बाक फौजी अफसर और o रै यg
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त ने उनक अमलदार खु शी से
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कबू ल कर ल , िजसका हाल राजा वीर सं ह को इसी
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u के साथ नजर गु जार ं।
4ारकबाद
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दरबार म बेखौफ और हंसते हु ए पहु ंचकर मु ब

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वजयदशमी के एक दन पहले h
/ / गया का रा य राजा वीर सं ह के क जे म आ गया और
वजयदशमी को अथात p दू स:रे दन ातःकाल उनके लड़के आनंद सं ह कोयहां क ग ी पर बैठे
हु ए लोग ने दे खh tt नजर द ं। अपने छोटे लड़के कुं अर आनंद सं ह को गया क ग ी दे
ा तथा
दू सरे ह दन राजा वीर सं ह चु नारलौट आने वाले थे मगर उनके रवाना होने के पहले ह
ऐयार लोग ज मी और बेहोश कुं अर इं जीत सं ह को लए हु ए गयाजी पहु ंच गये िज ह दे ख
राजा वीर सं ह को अपना इरादा छोड़ दे ना पड़ा और बहु त दन से बछुड़े हु ए यारे लड़के को
आज इस अव था म पाकर अपने तन-बदन क सु ध भु ला दे नी पड़ी।

राजा वीर सं ह के मौजू द होने पर भी गयाजी का बड़ा भार राजभवन सू ना हो रहा था य क


उसम रहने वाले माधवी और द वान अि नद त के र तेदार लोग भाग गये थे और हु म के
मु ता बक कसी ने भी उनको भागते समय नह ं रोका था। इस समय राजा वीरे सं ह, उनके
दोन लड़क और ऐयार के सवाय सफ थोड़े से ह फौजी अफसर का डेरा इस महल म पड़ा
हु आ है। ऐयार म सफ भैरो सं ह और तारा सं ह यहां मौजू द ह, बाक के कुल ऐयार चु नार लौटा
दये गये थे। शहर के इंतजाम म सबके पहले यह कया गया क चीठ या अरजी डालने के
लए एक बगल छे द करके दो बड़े-बड़े संद ू क राजभवन के फाटक के दोन तरफ लटका दये
गये और मु नाद करवा द गई क िजसको अपना सु ख-दु ख अज करना हो दरबार म हािजर

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होकर अज कया कर और जो कसी कारण से हािजर न हो सके वह अज लखकर इ ह ं
संद ू क म डाल दया कर। हु म था क बार-बार से ये संद ू क दन-रात म छह मतबे कुं अर
आनंद सं ह के सामने खोले जाया कर। इस इंतजाम से गयाजी क रयाया बहु त स न थी।

रात पहर भर से यादा जा चु क है। एक सजे हु ए कमरे म, िजसम रोशनी अ छ तरह हो


रह है , छोट -सी खू बसू रत मसहर पर ज मी कुं अर इं जीत सं हलेटे हु ए हलक दु लाई गदन
तक ओढ़े ह। आज कई दन पर उ ह होश आया है, इससे अचंभे म आकर इस नये कमरे म
चार तरफ नगाह दौड़ाकर अ छ तरह दे ख रहे ह। बगल म बाय हाथ का ढासना पलंगड़ी पर
दए हु ए उनके पता राजा वीर सं ह बैठे उनका मु ंह दे ख रहे ह और कुछ पायताने क तरफ
हटकर पाट पकड़े कुं अर आनंद सं ह बैठे बड़े भाई क तरफ दे ख रहे ह। पायताने क तरफ
पलंगड़ी के नीचे भैरो सं ह और तारा सं ह धीरे-धीरे तलवा झंस रहे ह। कुं अर आनंद सं ह के बगल
म दे वी सं ह बैठे ह। उनके अलावा वै य, जराह और बहु त से सपाह नंगी तलवार लए पहरा दे
रहे ह।
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थोड़ी दे र तक कमरे म स नाटा रहा, इसके बाद कुं अर इं जीत सं ह ने अपने पता क तरफ
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दे खकर पू छा -
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इं - यह कौन-सी जगह है यह कसका मकान है
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वीर - यह चं द त क राजधानीhगयाजी
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in है। ई वर क कृ पा से आज यह हमारे क जे म आ
गयी है। मकान भी चं द त:/
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थे जब तु म यहां पहु t
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ह के रहने का है। हम लोग इस शहर म अपना दखल जमा चु के

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. aाये गये।

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यह सु न इं जीत सं ह चु प हो रहे और कुछ सोचने लगे, साथ ह इसके राजगृ ह म द वान
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अि नद त के साथ होने वाल लड़ाई का समां उनक आंख के आगे घू म गया और कशोर
को याद कर अफसोस करने लगे। इनके बेहोश होने के बाद या हु आ और कशोर पर या
बीती इसको जानने के लए दल बेचैन था मगर पता का लहाज कर भैरो सं ह से कुछ पू छ
न सके सफ ऊंची सांस लेकर रह गये मगर दे वी सं ह उनके जी का भाव समझ गये और
बना पू छे ह कुछ कहने का मौका समझकर बोले, ‘‘राजगृ ह म लड़ाई के समय िजतने आदमी
आपके साथ थे ई वर क कृ पा से सब बच गये और अपने ठकाने पर ह, केवल आप ह को
इतना क ट भोगना पड़ा।’’

दे वी सं ह के इतना कहने से इं जीत सं ह क बेचैनी ब कुल ह जाती तो नह रह


ं मगर कुछ
कम ज र हो गयी। इतने म दल बहलाने का कुछ ठकाना समझकर दे वी सं ह पु नः बोल उठे
-

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दे वी - अिजय वाला संद ू क हािजर है, उसके दे खने का समय भी हो गया है।

इं - कैसा संद ू क?

आनंद - यहां महल के फाटक पर दो संद ू क इस लये रख दए गए ह क जो लोग दरबार म


हािजर होकर अपना दु ख-सु ख न कह सक वे लोग अज लखकर इस संद ू क म डाल दया
कर।

इं - बहु त मु ना सब है, इससे रै यत के दल का हाल अ छ तरह मालू म हो सकता है। इस


तरह के कई संद ू क शहर म इधर-उधर भी रखवा दे ना चा हए य क बहु त से आदमी खौफ से
फाटक तक आते भी हचकगे।

आनंद - बहु त खू ब, कल इसका इंतजाम हो जायगा।

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वीर - हमने यहां क ग ी पर आनंद सं ह को बैठा दया है।
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- बड़ी खु शी क बात है, यहां का इंतजाम ये बहु त ह अ छ तरह कर सकगे
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तीथ का मु काम है और इनका पु राण से बड़ा े म.b
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है और उ ह अ छ तरह समझते भी ह।
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(दे वी सं ह क तरफ दे खकर) हां साहब, वह संद ू क मंगवाइये जरा दल तो बहले।
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हाथ भर का चौखू टा संद ू क हािजर कया गया और उसे खोलकर ब कुल अिजयांिजनसे वह
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संद ू क भरा था बाहर नकाल गयीं। पढ़ने से मालू म हु आ क यहां क रयाया नये राजा क
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अमलदार से t
बहु त tस
h न है और मु बारकबाद दे रह है, हां एक अज उसम ऐसी भी नकल
िजसके पढ़ने से सभ को तर ुद ने आ घेरा और सोचने लगे क अब या करना चा हए।
पाठक क दलच पी के लए हम उस अज क नकल नीचे लखे दे ते ह - ‘‘हम लोग मु त
से मनाते थे क यहां क ग ी पर हु जू र को या हु जू र के खानदान म से कसी कोबैठा दे ख।
ई वर ने आज हम लोग क आरजू पू र क और क ब त माधवी और अि नद त का बु रा
साया हम लोग के सर से हटाया। चाहे उन दोन दु ट का खौफ अभी हम लोग को बना
हो, मगर फर भी हु जू र के भरोसे पर हम लोग बना मु बारकबाद दए औरखु शी मनाये नह ं
रह सकते। वह डर इस बात का नह ं है क यहां फर उन दु ट क अमलदार होगी तो क ट
भोगना पड़ेगा। राम-राम, ऐसा तो कभी हो ह नह ं सकता, हम लोग को यह गु मान तो व न
म भी नह ं हो सकता। वह डर ब कुल दू सरा ह है, जो हम लोग नीचे अज करते ह। आशा है
क बहु त ज द उससे हम लोग क रहाई होगी, नह ं तो मह ने भर म यहां क चौथाई रयाया
यमलोक म पहु ंच जायगी। मगर नह ं, हु जू र के नामी और अपनी आप नजीर रखने वाले ऐयार
के हाथ से वे बेईमान हरामजादे कब बच सकते ह िजनके डर से हम लोग को पू र नींद सोना
नसीब नह ं होता।

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कुछ दन से द वान अि नद त क तरफ से थोड़े बदमाश इस काम के लए मु करर कर दए
ह क अगर कोई आदमी अि नद त के खलाफ नजर आवे तो बेधड़क उसका सर चोर से
रात के समय काट डाल, या द वान साहब को जब पये क ज रत हो तो िजस अमीर या
जमींदार के घर म चाहे डाका डाल द या चोर करके कंगाल बना द। इसक फ रयाद कह ं
सु नी नह ं जाती, इसी वजह से और भी बाहर चोर को अपना घर भरने और हम लोग को
सताने का मौका मलता है। हम लोग ने अभी उन दु ट क सू रत नह ं दे खी और नह ं जानते
क वे लोग कौन ह, या कहां रहते ह िजनके खौफ से दन-रात हम लोग कांपा करते ह।’’

इस अज के नीचे कई मशहू र और नामी रईस और जमींदार के द तखत थे। यह अज उसी


समय दे वी सं ह के हवाले कर द गई और दे वी सं ह ने वादा कया क एकमह ने के अंदर इन
दु ट को िजंदा या मरे हु ए हु जू र म हािजर करगे।

इसके बाद जराह ने कुं अर इं जीत सं ह के ज म को खोला और दू सर प ी बदल , क वराज ने

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दवा खलाई और हु म पाकर सब अपने-अपने ठकाने चले गए। दे वी सं ह उसी समय वदा हो
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न मालू म कहां चले गए और राजा वीर सं ह भीवहां से हटकर अपने कमरे म चले गए।
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इस कमरे के दोन तरफ छोट -छोट दो कोठ रयां थीं। एक म सं या-पू जा का सामान दु त
था। और दू सर म खाल फश पर एक मसहर
i 4uबछ हु ई थी जो उसमसहर से कुछ छोट थी
िजस पर कुं अर इं जीत सं ह आराम कर d
i n रहे थे। कोठर सेवह मसहर बाहर नकाल गई और
कुं अर आनंद सं ह के सोने के लएhकुं अरइं जीत सं ह क मसहर के पास बछाई गई। भैरो सं ह
: //रय के नीचे अपना ब तर जमाया। सवाय इन चार के उस
tp
और तारा सं ह ने भी दोन मसह
कमरे म और कोईhनt रहा। इन लोग ने रात-भर आराम से काट और सबेरा होने पर आंख
खु लते ह व च तमाशा दे खा।

सु बह के पहले ह दोन ऐयार क आंख खु ल ं और हैरतभर नगाह से चार तरफ दे खने लगे,
इसके बाद कुं अर इं जीत सं ह और आनंद सं ह भी जागे और फूल क खु शबू जो इस कमरे म
बहु त दे र पहले से ह भर रह थी लेने तथा दोन ऐयार क तरह ता जु ब से चार तरफ
दे खने लगे।

आनंद - खु शबू दार फूल के गजरे और गु लद ते इस कमरे म कसने सजाए ह

इं - ता जु ब है, हमारे आदमी बना हु म पाए ऐसा कब कर सकते ह

भैरो - हम दोन आदमी घंटे भर के पहले से उठकर इस पर गौर कर रहे ह मगर कुछ समझ
म नह ं आता क या मामला है।

आनंद - गु लद ते भी बहु त खू बसू रत और बेशकमती मालू म पड़ते ह।

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तारा - (एक गु लद ता उठाकर ओैर पास लाकर) दे खए इस सोने के गु लद ते पर या उ दा
मीने का काम कया हु आ है! बेशक कसी बहु त बड़े शौक न का बनवाया हु आ है, इसी ढं ग के
सब गु लद ते ह।

भेरो - हां एक बात ता जु ब क और भी है जो मने अभी तक आपसे नह ं कह ।

इं - वह या?

भैरो - (हाथ का इशारा करके) ये दोन दरवाजे सफ घु माकर मने खु ले छोड़ दए थे मगर
सु बह को और दरवाज क तरह इ ह भी बंद पाया।

तारा - (आनंद सं ह क तरफ दे खकर) शायद रात को आप उठे ह

आनंद - नह ं।

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इसी तरह दे र तक ये लोग ता जु ब भर बात करते रहे मगर अकल
s po ने कुछ गवाह न द क
या मामला है। राजा वीर सं ह भी आ पहु ंच, े उनके साथ और
o g भी कई मु सा हब लोग आ जमे।
सभी इस आ चय क बात को सु नकर सोचने और .गौर
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b करने लगे। कई बु ज दल को भू त- ेत
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और पशाच का यान आया मगर महाराज और
i 4u दोन कुमार के खौफ से कुछ बोल न सके,
य क ये लोग ऐसे डरपोक और इस खयाल
i nd के आदमी न थे और न ऐसे आद मय को अपने
साथ रखना ह पसंद करते थे। /h

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ht गु लद त को कसी ने न छे ड़ा और वे य -के- य जहां के तहां लगे
इन फूल के गजर और
रह गये। रईस क हािजर और शहर के इंतजाम म दन बीत गया और रात को फर कल ह
क तरह दोन भाई मसहर पर सो रहे, दोन ऐयार भी मसहर के बगल म जमीन पर लेट
गये, मगर आपस म मल-जु लकर बार -बार से जागते रहने का वचार दोन ने ह कर लया
था और अपने बीच म एक लंबी छड़ी इस लए रख ल थी क अगर रात को कसी समय
कोई ऐयार कुछ दे खे तो बना मु ंह से बोले लकड़ी के इशारे से दू सरे को जगा दे । इं जीत सं ह
और आनंद सं ह ने भी कह रखा था क अगर घर म कसी को दे खना तो चु पके से हम जगा
दे ना िजससे हम लोग भी दे ख ल क कौन है और कहां से आता है।

आधी रात से कुछ यादे जा चुक है। कुं अर इं जीत सं ह और आनंद सं ह गहर नींद म बेसु ध
पड़े ह। पहरे के मु ता बक लेट-े लेटे तारा सं ह दरवाजे क तरफ दे ख रहे ह। यकायक पू रब तरफ
वाल कोठर म कुछ खटका हु आ। तारा सं हजरा-सा घू म गए और पड़े-पड़े ह उस कोठर क
तरफ दे खने लगे। बार क चादर पहले ह से दोन ऐयार के मु ंह पर पड़ी हु ई थी और रोशनी
अ छ तरह हो रह थी।

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कोठर का दरवाजा धीरे -धीरे खु लने लगा। तारा सं ह ने लकड़ी के इशारे से भैरो सं ह को उठा
दया जो बड़ी हो शयार से घू मकर कोठर क तरफ दे खने लगे। कोठर के दरवाजे का एक
प ला अब अ छ तरह खु ल गया और एक नहायत हसीन और कम सन औरत कवाड़ पर
हाथ रखे खड़ी दोन मसह रय क तरफ दे खती नजर पड़ी। भैरो सं ह और तारा सं ह ने मसहर
के पांव पर हाथ का इशारा दे कर दोन भाइय को भी जगा दया।

इं जीत सं ह का ख तो पहले ह उस कोठर क तरफ था मगर आनंद सं ह उस तरफपीठ


कए सो रहे थे। जब उनक आंख खु ल ं तो अपने सामने क तरफ जहां तक दे ख सकते थे
कुछ भी न दे खा, लाचार धीरे से उनको करवट बदलनी पड़ी और तब मालू म हु आ क इस
कमरे म या आ चय क बात दखाई दे रह है।

अब कोठर का दू सरा प ला भी खु ल गया और वह हसीन औरत सर से पैर तक अ छ तरह


इन चार को दखाई दे ने लगी य क उसके तमाम बदन पर बखू बी रोशनी पड़ रह थी। वह
औरत नख शख से ऐसी दु .in
त थी क उसक तरफ चार क टकटक बंध गई। बेशक मती
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सफेद साड़ी और जड़ाऊ जेवर से वह बहु त ह भल मालू मpहोo रह थी। जेवर म सफ
खु शरं ग मा नक जड़ा हु आ था िजसक सु ख उसके गोरे o रं गg
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पर पड़कर उसके हु न को ह से
यादा रौनक दे रह थी। उसक पे शानी (माथे) पर.b
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usहरबे क चोट खाई है। यह दो अंगु ल का
एक दाग था िजसके दे खने से व वास
होता था क बेशक इसने कभी तलवार या 4कसी
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दाग भी उसक खू बसू रती को बढ़ाने iकnे लए जेवर ह हो रहा था। उसे दे ख ये चार आदमी
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यह सोचते ह गे क इससे बढ़कर
: // खू बसू रत रंभा और उवशी अ सरा भी न ह गी। कुं अर
इं जीत सं ह तो कशोरtp पर मो हत हो रहे थे, उसक त वीर इनके दल म खं च रह थी, उन
पर चाहे उसके हु h
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न ने यादा असर न कया हो मगर आनंद सं ह क या हालत हो गई यह
वे ह जानते ह गे। बहु त बचाते रहने पर भी ठं डी सांस उनसे न क सक ं िजससे हम भी कह
सकते ह क उनके दल ने उनक ठं डी सांस के साथ ह बाहर नकलकर कह दया क अब
तु हारे क जे म नह ं है।

कुं अर आनंद सं ह अपने को संभाल न सक,े उठ बैठे और उधर ह दे खने लगे िजधर वह औरत
कवाड़ का प ला थामे खड़ी थी। उनक यह हालत दे ख तीन आद मय को व वास हो गया
क वह भाग जायगी, मगर नह ं, वह इनको उठकर बैठते दे ख जरा भी न हचक , य -क - य
खड़ी रह , बि क इनक तरफ दे ख उसने जरा-सा हंस दया, िजससे ये और भी बेचैन हो गए।

कुं अर आनंद सं ह यह सोचकर क उस कोठर म कसी दू सर तरफ नकल जाने के लएदू सरा
दरवाजा नह ं है मसहर पर से उठ खड़े हु ए और उस औरत क तरफ चले। इनको अपनी
तरफ आते दे ख वह औरत कोठर म चल गई और फुत से उसका दरवाजा भीतर से बंद कर
लया।

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कुं अर इं जीत सं ह क तबीयत चाहे दु त हो गई हो मगर कमजोर अभी तक मौजू द है,
बि क सब ज म भी अभी तक कुछ गीले ह, इस लए अभी घू मने- फरने लायक नह ं हु ए। उस
पर जमाल को भीतर से कवाड़ बंद कर लेते दे ख सब उठ खड़े हु ए, कुं अर इं जीत सं ह भी
त कए का सहारा लेकर बैठ गए और बोले, ‘‘इस कोठर म कसी तरफ नकल जाने का रा ता
तो नह ं है।’’

भैरो - जी नह ं।

आनंद - ( कवाड़ म ध का दे कर) इसे खोलना चा हए।

तारा - मु ि कल तो कुछ नह ं, (इं जीत सं ह क तरफ दे खकर) या हु म होता है

इं - जब इस कोठर म दू सर तरफ नकल जाने का रा ता ह नह ं तो ज द य करते हो

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.inके पासजाकर बैठ
इं जीत सं ह के इतना कहते ह आनंद सं ह वहां से हटे और अपने भाई
गए। भैरो सं ह और तारा सं ह भी पास आकर बैठ गएऔर य बातचीत
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po होने लगी -
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इं - (भैरो सं ह और तारा सं ह क तरफ दे खकर) तु.मb
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म से कोई जागता भी रहा या दोन सो
गए थे
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भैरो - नह ं, सो या जाएंगे हम h
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लोग बार -बार से बराबर जागते और मह न चादर से मु ंह
ढांके दरवाजे क तरफ दे खते
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:/रहे।
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इं - तो या इसी दरवाजे म से इस औरत को आते दे खा था?

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आनंद - बेशक इसी तरफ से आई होगी।
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तारा - जी नह ं, यह तो ता जु ब है क कमरे के दरवाजे य -के- य भड़के रह गये और
यकायक कोठर का दरवाजा खु ला और वह नजर आई।

इं - यह तो अ छ तरह मालू म है न क उस कोठर म और कोई दरवाजा नह ं है।

भेरो - जी हां, अ छ तरह जानते ह, और कोई दरवाजा नह ं है।

तारा - या कह, कोई सु ने तो यह कहे क चु ड़ैल थी!

आनंद - राम, राम! यह भी कोई बात है!

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इं - खैर जो हो, मेर राय यह है क पताजी के आने तक कोठर का दरवाजा न खोला
जाय।

आनंद - जो हु म, मगर म तो यह चाहता था क पताजी के आने तक दरवाजा खोलकर सब


कुछ द रया त कर लया जाता।

इं - खैर खोलो।

हु म पाते ह कुं अर आनंद सं ह उठ खड़े हु ए, खू ंट से लटकती हु ई एक भु जाल उतार ल और


उस दरवाजे के पास जा एक-एक हाथ दोन कुलाब पर मारा िजससे कुलाबे कट गए।
तारा सं ह ने दोन प ले उतार अलग रख दए। भैरो सं ह ने एक बलता हु आ शमादान उठा
लया और चार आदमी उस कोठर के अंदर गए मगर वहां एक चू हे का ब चा भी नजर न
आया।

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इस कोठर म तीन तरफ मजबू त द वार थीं और एक तरफ वह दरवाजा था िजसका कुलाबा
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काट के ये लोग अंदर आए थे, हां, सामने क तरफ वाल अथात बचल द वार म काठ क
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एक अलमार जड़ी हु ई थी। इन लोग का यान उस lअलमार o पर गया और सोचने लगे क
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.काम दे ती हो और इसी राह से वह औरत
शायद यह अलमार इस ढं ग क हो जो दरवाजे का
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आई हो, मगर उन लोग का यह खयालi4
n d भी तु रंत जाता रहा और व वास हो गया क
अलमार कसी तरह दरवाजा नहh i
ं हो सकती और न इस राह से वह औरत आई ह होगी,
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य क उस अलमार म भै
p :र/ो सं ह ने अपने हाथ से कुछ ज र असबाब रखकर ताला लगा
tt य का य बंद था। यह कब हो सकता है क कोई ताला खोलकर
दया था जो अभी तक
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इस अलमार के अंदर घु स गया हो और बाहर का ताला जैसा-का-तैसा दु त कर दया हो!
ले कन तब फर या हु आ यह औरत य कर आई और कस राह से चल गई उन लोग ने
लाख सर धु ना और गौर कया मगर कुछ समझ म न आया।

ता जु ब भर बात ह म रात बीत गई। सु बह को जब राजा वीर सं ह अपनेलड़के को दे खने


के लए उस कमरे म आए तो जराह-वै य तथा और मु सा हब लोग भी उनके साथ थे।
वीर सं ह ने इं जीत सं ह से तबीयत का हाल पू छा।उ ह ने कहा, ‘‘अब तबीयत अ छ है मगर
एक ज र बात अज कया चाहता हू ंिजसके लए तख लया (एकांत) हो जाना बेहतर होगा।’’

वीर सं ह ने भैरो सं ह क तरफ दे खा। उसने तख लया हो जाने म महाराज क रजामंद


जानकर सभी को हट जाने का इशारा कया। बात क बात म स नाटा हो गया और सफ
वह पांच आदमी उस कमरे म रह गए।

वीर - कहो या बात है

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इं - आज रात एक अजीब बात दे खने म आई।

वीर - वह या?

इं - (तारा सं ह क तरफ दे खकर) तारा सं ह, तु ह ं सब हाल कह जाओ य क उस समय


तु ह ं जागते थे, हम लोग तो पीछे जगाए गए थे।

तारा - बहु त खू ब।

तारा सं ह ने रात का पू रा-पू रा हाल राजा वीर सं ह से कह सु नाया िजसेसु नकर उ ह ने बहु त
ता जु ब कया और घंट तक गौर म डू बे रहने के बाद बोले, ‘‘खैर यह बात कसी और को न
मालू म हो नह ं तो मु सा हब और अहलकार म खलबल पैदा हो जायगी और सैकड़ तरह क
ग प उड़ने लगगी। दे खो तो या होता है और कब तक पता नह ं लगता, आज हम भी इसी
कमरे म सोएंगे।’’
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एक दन
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या कई दन तक राजा वीर सं ह उस कमरे म सोए मगर कुछ मालू म न हु आ
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और न फर कोई बात ह दे खने म आई, आ खर उ हoने हु म दया क उस कोठर का
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दरवाजा नया कुलाबा लगाकर फर उसी तरह बंद s .bदया जाय।
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/ h बयान - 12
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आज पांच दन केh ttदे वी सं ह लौटकर आये ह। िजस कमरे का हाल हम ऊपर लखआए ह
बाद
उसी म राजा वीर सं ह, उनके दोन लड़के, भैरो सं ह, तारा सं ह और कई सरदार लोग बैठे ह।
इं जीत सं ह क तबीयत अब बहु त अ छ है और वेचलने- फरने लायक हो गये ह। दे वी सं ह
को बहु त ज द लौट आते दे खकर सभ को व वास हो गया क िजस काम पर मु तैद कए
गए थे उसे कर चु के मगर ता जु ब इस बात का था क वे अकेले य आये!

वीर - कहो दे वी सं ह, खु श तो हो

दे वी - खु शी तो मेर खर द हु ई है! (और लोग क तरफ दे खकर) अ छा अब आप लोग


जाइये बहु त वलंब हो गया।

दरबा रय और खु शाम दय के चले जाने के बाद वीर सं ह ने दे वी सं ह से पू छा-

वीर - कहो उस अज म जो कुछ लखा था सच था या झू ठ?

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दे वी - उसम जो कुछ लखा था बहु त ठ क था। ई वर क कृ पा से शी ह उनदु ट का पता
लग गया, मगर या कह ऐसी ता जु ब क बात दे खने म आ क अभी तक बु चकरा रह
है।

वीर - (हंसकर) उधर तु म ता जु ब क बात दे खो इधर हम लोग अ ु त बात दे ख।

दे वी - सो या?

वीर - पहले तु म अपना हाल कह लो तो यहां का सु नो!

दे वी - बहु त अ छा, फर सु नए! राम शला पहाड़ी के नीचे मने एक कागज अपने हाथ से
लखकर चपका दया िजसम यह लखा था -

‘‘हम खू ब जानते ह क जो अि नद त के व होता है उसका तु म लोग सर काट लेते हो,


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िजसका घर चाहते हो लू ट लेते हो। म डंके क चोट से कहता हू ं क अि नद त का दु मन
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मु झसे बढ़कर कोई न होगा और गयाजी म मु झसे बढ़कर मालदार भी कोई नह ं है , तस पर
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मजा यह है क म अकेला हू,ं अब दे खना चा हए तु म लोगo या कर लेते हो’
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आनंद - अ छा तब या हु आ?
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दे वी - उन दु ट का पता लगाने h
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केi उपाय तो मने और भी कई कए थे मगर काम इसी से
/ सभी उस कागज को पढ़ते थे और चले जाते थे। म उस
/वाले
चला। उस राह से आने-जाने:
tp प थर क च ान क आड़ म छपा हु आहरदम उसक तरफ दे खा
पहाड़ी के कुछ ऊपर tजाकर
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करता था। एक दफे दो आदमी एक साथ वहां आये और उसे पढ़ मू ंछ पर ताव दे ते शहर क
तरफ चले गये। शाम को वे दोन लौटे और फर उस कागज को पढ़ सर हलाते बराबर क
पहाड़ी क ओर चले गये। मने सोचा क इनका पीछा ज र करना चा हए य क कागज के
पढ़ने का असर सबसे यादा इ ह ं दोन पर हु आ। आ खर मने उनका पीछा कया और जो
सोचा था वह ठ क नकला। वे लोग पं ह-बीस आदमी ह और ह े -क े और मु स डे ह। उसी
झु ंड म मने एक औरत को भी दे खा। अहा, ऐसी खू बसू रत औरत तो मने आज तक नह ं दे खी।
पहले मने सोचा क वह इन लोग म से कसी क लड़क होगी य क उसक अव था बहु त
कम थी, मगर नह ,ं उनके हाव-भाव और उसक हु कूमत भर बातचीत से मालू म हु आ क वह
उन सभ क मा लक है, पर सच तो यह है क मेरा जी इस बात पर भी नह ं जमता। उसक
चाल-ढाल, उसक पोशाक और उसके जड़ाऊ क मती गहन पर िजसम सफ खु शरं ग मा नक ह
जड़े हु ए थे यान दे ने से दल क कुछ व च हालत हो जाती है।

मा नक के जड़ाऊ जेवर का नाम सु नते ह कुं अर आनंद सं ह च क पड़े, इं जीत सं ह और


तारा सं ह का भी चेहरा बदल गया और उस औरत का वशेष हाल जानने के लए घबड़ाने

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लगे, य क उस रात को इन चार ने इस कमरे म या य क हए कोठर म िजस औरत क
झलक दे खी थी वह भी मा नक के जड़ाऊ जेवर से ह अपने को सजाये हु ए थी। आ खर
आनंद सं ह से न रहा गया, दे वी सं ह को बात कहते-कहते रोककर पू छा -

आनंद - उस औरत का नख शख जरा अ छ तरह कह जाइए।

दे वी - सो या?

वीर - (लड़क क तरफ दे खकर) तु म लोग को ता जु ब कस बात का है, तु म लोग के चेहरे


पर हैरानी य छा गई है ?

भैरो - जी, वह औरत भी िजसे हम लोग ने दे खा था ऐसे ह गहने पहने हु ए थी जैसा


चाचाजी कह रहे ह।

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वीर - ह
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भैरो - जी हां।
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दे वी - तु म लोग ने कैसी औरत दे खी थी

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- सो पीछे सु नना, पहले जो ये पू छते ह उसका जवाब दे लो।
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दे वी - नख शख सु न के
t t या क िजयेगा, सबसे यादा प का नशान तो यह है क उसके
ललाट म दो-ढाई h
अंगु ल का एक आड़ा दाग है, मालू म होता है शायद उसने कभी तलवार क
चोट खाई है!

आनंद - बस बस बस!

इं - बेशक वह औरत है।

तारा - कोई शक नह ं क वह है।

भैरो - अव य वह है !

वीर - मगर आ चय है, कहां उन दु ट का संग और कहां हम लोग के साथ आपस का


बताव।

भैरो - हम लोग तो उसे दु मन नह ं समझते।

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दे वी - अब हम न बोलगे जब तक यहां का खु लासा हाल न सु न लगे, न मालू म आप लोग
या कह रहे ह

वीर - खैर यह सह , अपने लड़के से पू छए क यहां या हु आ।

तारा - जी हां सु नए म अज करता हू ं।

तारा सं ह ने यहां का ब कुल हाल अ छ तरह कहा। फूल तो फक दए गए थेमगर गु लद ते


अभी तक मौजू द थे, वे भी दखाये। दे वी सं ह हैरान थे क यह या मामला है, दे र तक सोचने
के बाद बोले, ‘‘मु झे तो व वास नह ं होता क यहां वह औरत आई होगी िजसे मने वहां दे खा
है!’’

वीर - यह शक भी मटा ह डालना चा हए।

दे वी - उन लोग का जमाव वहां रोज ह होता है जहां म दे ख आया हू,.ं आज o m


in तारा या भैरो को
अपने साथ ले चलू ंगा, ये खु द ह दे ख ल क वह औरत है या दू स
s pर o।
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वीर - ठ क है , आज ऐसा ह करना, हां अब तु म अपना


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.b हाल और आगे कहो।
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दे वी - मु झे यह भी मालू म हु आ क उन
कायम कया है और बातचीत से h
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d ट ने हमेशे के लए अपना डेरा उसीपहाड़ी म
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i भी जान गया क लू ट और चोर का माल भी वे लोग
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उसी ठकाने कह ं रखते ह।:/
था आपसे कहने के tलए p n
मने अभी बहु त खोज उन लोग क नह ं क , जो कुछ मालू म हु आ
tpचला आया। अब उन लोग को गर तार करना कुछ मु ि कल नह ं
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है, हु म हो तो थोड़े से आदमी अपने साथ ले जाऊं और आज ह उन लोग को उस औरत के

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स हत गर तार कर लाऊं।

वीर
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- आज तो तु म भैरो या तारा को अपने साथ ले जाओ, फर कल उन लोग क
गर तार क फ क जायगी।

आ खर भैरो सं ह को अपने साथ लेकर दे वी सं ह बराबर के पहाड़ पर गए जो गयाजीसे तीन-


चार कोस क दू र पर होगा। घू मघु मौवा और पेचल
ी पगडं डय को तै करते हु ए पहर रात
जाते-जाते ये दोन उस खोह के पास पहु ंचे िजसम बदमाश डाकू लोग रहते थे। उस खोह के
पास ह एक और छोट -सी गु फा थी िजसम मु ि कल से दो आदमी बैठ सकते थे। इस गु फा म
एक बार क दरार ऐसी पड़ी हु ई थी िजससे ये दोन ऐयार उस लंबी-चौड़ी गु फा का हाल बखू बी
दे ख सकते थे िजसम वे डाकू लोग रहते थे। इस समय वे सब के सब वहां मौजू द भी थे,
बि क वह औरत भी सरदार के तौर पर छोट -सी ग ी लगाए वहां मौजू द थी। ये दोन ऐयार

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उस दरार से उन लोग क बातचीत तो नह ं सु न सकते थे मगर सू रत-श ल, भाव और इशारे
अ छ तरह दे ख सकते थे।

इन लोग ने इस समय वहां पं ह डाकुओं को बैठे हु ए पाया और उस औरत को दे खकर


भैरो सं ह ने पहचान लया क वह वह औरत है जो कुं अर इं जीत सं ह केकमरे म आई थी।
आज वह वैसी पोशाक या जेवर को प हरे हु ए न थी, तो भी सू रत-श ल म कसी तरह का
फक न था।

इन दोन ऐयार के पहु ंचने के बाद दो घंटे तक वे डाकू आपस म कुछ बातचीतकरते रहे , इस
बीच म कई डाकुओं ने दो-तीन दफे हाथ जोड़कर उस औरत से कुछ कहा िजसके जवाब म
उसने सर हला दया िजससे मालू म हु आ क मंजू र नह ं कया। इतने ह म एक दू सर हसीन
कम सन और फुत ल औरत लपकती हु ई वहां आ मौजू द हु ई। उसके हांफने और दम फूलने से
मालू म होता था क वह बहु त दू र सेदौड़ती हु ई आ रह है।

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उस नई आई औरत ने न मालू म उस सरदार औरत के कान म o झु ककर या कहा िजसके
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सु नते ह उसक हालत बदल गई। बड़ी-बड़ी आंख सु ख होgगs, खू बसू रत चेहरा तमतमा उठा
और तु रंत उस नई औरत को साथ ले उस खोह के b loचल गई। वे डाकू उन दोन औरत
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बाहर
का मु ंह दे खते ह रह गये मगर कुछ कहने क uह मत न पड़ी।
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जब दो घंटे तक दोन औरत म h
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से iकोई न लौट तो डाकू लोग भी उठ खड़े हु एऔर खोह के
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बाहर नकल गये। उन लोग:/के इशारे और आकृ त से मालू म होता था क वे दोन औरत के
यकायक इस तरह चले t tpजाने से ता जु ब कर रहे ह। यह हालत दे खकर दे वी सं ह भी वहां से
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चल पड़े और सु बह होते-होते राजमहल म आ पहु ंचे।

बयान - 13

कुं अर इं जीत सं ह तो कशोर पर जी-जान से आ शक हो चु के थे। इस बीमार क हालत म


भी उसक याद इ ह सता रह थी और यह जानने के लए बेचैन हो रहे थे क उस पर या
बीती, वह कस अव था म कहां है और अब उसक सू रत कब कस तरह दे खनी नसीब होगी।
जब तक वे अ छ तरह दु त नह ं हो जाते, न तो खु द कह ं जाने के लए हु म ले सकते थे
और न कसी बहाने से अपने ेमी साथी ऐयार भैरो सं ह को ह कह ं भेज सकते थे। इस
बीमार क हालत म समय पाकर उ ह ने भैरो सं ह से सब हाल मालू म कर लया था। यह
सु नकर क कशोर को द वान अि नद त उठा ले गया बहु त ह परे शान थे मगर यह खबर
उ ह कुछ-कुछ ढाढ़स दे ती थी क चपला, चंपा और पं डत ब नाथ उसके छुड़ाने क फ म
लगे हु ए ह और राजा वीर सं ह को भी यह धु न जी से लगी हु ई है क िजसतरह बने

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शवद त क लड़क कशोर क शाद अपने लड़के के साथ करके शवद त को नीचा दखाव
और श म दा कर।

कुं अर आनंद सं ह ने भी अब इ क के मैदान म पैर रखा, मगर इनक हालत अजब गोमगो म
पड़ी हु ई है। जब उस औरत का यान आता जी बेचैन हो जाता था मगर जब दे वी सं ह क
बात को याद करते क वह डाकुओं के एक गरोह क सरदार है तो कलेजे म अजीब तरह का
दद पैदा होता था और थोड़ी दे र के लए च त का भाव बदल जाता था, ले कन साथ ह इसके
सोचने लगते थे क नह ,ं अगर वह हम लोग क दु मन होती तो मेर तरफ दे खकर ेम भाव
से कभी न हंसती और फूल के गु लद ते और गजरे सजाने के लए जब उस कमरे म आई
थी तो हम लोग को नींद म गा फल पाकर ज र मार डालती। पर फर हम लोग क दु मन
अगर नह ं है तो उन डाकुओं का साथ कैसा!

ऐसे-ऐसे सोच- वचार ने उनक अव था खराब कर रखी थी। कुं अर इं जीत सं ह, भैरो सं ह और

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तारा सं ह को उनके जी का पता कुछ-कुछ लग चु का था मगर जब तक उसक इ जत-आब
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और जात-पांत क खबर के साथ-साथ यह भी मालू म न हो जाय p oक वह दो त है या दु मन,
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o थे।
तब तक कुछ कहना-सु नना या समझाना मु ना सब नह ं समझते
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4u तरह वह औरत इस घर म आपहु ंची कह ं
राजा वीर सं ह को अब यह चं ता हु ई क िजस
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डाकू लोग भी आकर लड़क को दु ख d
i nन द और फसाद न मचाव। उ ह ने पहरे वगैरह का
अ छ तरह इंतजाम कया और h
/ यह सोच क कुं अर इं जीत सं ह अभी तंद ु त नह ं हु ए ह
/ तरह लड़ भड़ नह ं सकते, इनको अकेले छोड़ना मु ना सब नह ,ं
कमजोर बनी हु ई है औरp :कसी
अपने सोने का इंतhtt भी उसी कमरे म कया और साथ ह एक नया तथा व च तमाशा
जाम
दे खा।

हम ऊपर लख आये ह क इस कमरे के दोन तरफ दो कोठ रयां ह, एक म सं या-पू जा का


सामान है और दू सर वह वच कोठर है िजसम से वह औरत पैदा हु ई थी। सं या-पू जा
वाल कोठर म बाहर से ताला बंद कर दया गया और दू सर कोठर का कुलाबा वगैरह दु त
करके बना बाहर ताला लगाये उसी तरह छोड़ दया गया जैसे पहले था, बि क राजा वीर सं ह
ने उसी दरवाजे पर अपना पलंग बछवाया और सार रात जागते रह गए।

आधी रात बीत गई मगर कुछ दे खने म न आया, तब वीर सं ह अपने ब तरे पर से उठे और
कमरे म इधर-उधर घू मने लगे। घंटे भर बाद उस कोठर म से कुछ खटके क आवाज आई,
वीर सं ह ने फौरन तलवार उठा ल और तारा सं ह को उठाने के लए चले मगर खटके क
आवाज पर तारा सं ह पहले ह से सचेत हो गये थे, अब हाथ म खंजर ले वीर सं ह के साथ
टहलने लगे।

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आधी घड़ी के बाद जंजीर खटकने क आवाज इस तरह पर हु ई िजससे साफ मालू म होगया
क कसी ने इस कोठर का दरवाजा भीतर से बंद कर लया। थोड़ी ह दे र के बाद पैर क
धमाधमी क आवाज भीतर से आने लगी, मानो चार-पांच आदमी भीतर उछल-कूद रहे ह।
वीर सं ह कोठर के दरवाजे के पास गये और हाथ का ध का दे कर कवाड़ खोलना चाहा मगर
भीतर से बंद रहने के कारण दरवाजा न खु ला, लाचार उसी जगह खड़े हो भीतर क आहट पर
गौर करने लगे।

अब पैर क धमाधमी क आवाज बढ़ने लगी और धीरे -धीरे इतनी यादा हु ई क कुं अर
इं जीत सं ह और आनंद सं ह भी उठे और कोठर के पास जाकर खड़े हो गये। फर दरवाजा
खोलने क को शश क गई पर न खु ला। भीतर ज द-ज द पैर उठाने और पटकने क आवाज
से सभ को न चय हो गया क अंदर लड़ाई हो रह है। थोड़ी ह दे र के बाद तलवार क
झनझनाहट भी सु नाई दे ने लगी। अब भीतर लड़ाई होने से कसी तरह का शक न रहा।
आनंद सं ह ने चाहा क दरवाजे का कुलाबा तोड़ा जाय मगर वीर सं ह क मज न पाकर सब
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चु पचाप खड़े आहट सु नते रहे ।
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यकायक धमधमाहट क आवाज बढ़ और तब स नाटा हो g
o गया। घड़ी भर तक ये लोग बाहर
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खड़े रहे मगर कुछ मालू म न हु आ और न फर कसी
s .b तरह क आहट या आवाज ह सु नाई
द । रात सफ दो घंटे बि क इससे भी कम 4 u रह गई थी। पहरे वाले टहलकर अ छ तरह
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से पहरा दे रहे ह या नह ं यह दे खनेnकdे लए तारा सं ह बाहर गए और सभ को अपने काम
पर मु तैद पाकर लौट आए। इतने / hह म कमरे का दरवाजा खु ला और भैरो सं ह को साथ लए
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दे वी सं ह आते दखाई पड़े ।
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ये दोन ऐयार सलाम करने के बाद वीर सं ह के पास बैठ गये मगर यह दे खकर क यहां
अभी तक ये लोग जाग रहे ह ता जु ब करने लगे।

दे वी - आप लोग इस समय तक जाग रहे ह।

वीर - हां, यहां कुछ ऐसा ह मामला हु आ िजससे नि चंत हो सो न सके।

दे वी - सो या?

वीर - खैर तु ह यह भी मालू म हो जायगा, पहले अपना हाल तो कहो। (भैरो सं ह क तरफ
दे खकर) तु मने उस औरत को पहचाना?

भैरो - जी हां, बेशक वह औरत है जो यहां आई थी, बि क वहां एक और औरत दखाई द ।

वीर - यहां से जाकर तु मने या कया और या- या दे खा सो खु लासा कह जाओ।

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भैरो सं ह ने जो कुछ दे खा था कहने के बाद यहां का हाल पू छा। वीर सं हने भी यहां क कुल
कै फयत कह सु नाई और बोले, ‘‘हम यह राह दे ख रहे थे क सबेरा हो जाये और तु म लोग
भी आ जाओ तो इस कोठर को खोल और दे ख क या है, कह ं से कसी के आने-जाने का
पता लगता है या नह ं।’’

कोठर खोल गई। एक हाथ म रोशनी दू सरे म नंगी तलवार लेकर पहले दे वी सं ह कोठर के
अंदर घु से और तु रंत ह बोल उठे - ‘‘वाह-वाह, यहां तो खू न-खराबा मच चु का है!’’ अब राजा
वीर सं ह, दोन कुमार और उनके दोन ऐयार भी कोठर के अंदर गये और ता जु ब भर
नगाह से चार तरफ दे खने लगे।

इस कोठर म जो फश बछा हु आ था वह इस तरह से समट गया था जैसे कई आद मय के


बेअि तयार उछल-कूद करने या लड़ने से इक ा हो गया हो, ऊपर से वह खू न से तर भी हो
रहा था। चार तरफ द वार पर भी खू न के छ ंटे और लड़ती समय हाथ बहककर बैठ जाने

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वाल तलवार के नशान दखाई दे रहे थे। बीच म एक लाश पड़ी हु ई थी मगर बे सर क,
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कुछ समझ म नह ं आता था क यह लाश कसक है। कपड़ p मo सफ एक लंगोटा उसक
कमर म था। तमाम बदन नंगा िजसम अंदाज से यादाoतेg
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ल लगा हु आ था। दा हने हाथ म
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तलवार थी मगर वह हाथ भी कटा हु आ सफ जरा .-bसा चमड़ा लगा हु आ था, वह भी इतना
कम क अगर कोई खचे तो अलग हो जाय।4 u यादा परे शान और बेचैन करने वाल एक
i सबसे
चीज और दखाई द । i nd
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:/ कलाई िजसम फौलाद कटार अभी तक मौजू द थी, दखाई पड़ी।
दा हने हाथ क कट हु ईpएक
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htउस हाथ को उठा लया और सभ क नगाह भी गौर के साथ उस पर
आनंद सं ह ने फौररन
पड़ने लगी। यह कलाई कसी नाजु क, हसीन और कम सन औरत क थी। हाथ म ह रे का
जड़ाऊ कड़ा और जमीन पर मा नक क दो-तीन बार क जड़ाऊ चू ड़यां भी मौजदू थीं, शायद
कलाई कटकर गरते समय ये चू ड़यां हाथ से अलग हो जमीन पर फैल गई ह ।

इस कलाई के दे खने से सभ को रं ज हु आ और झट उस औरत क तरफ खयाल दौड़ गया


िजसे इस कोठर म से नकलते सभ ने दे खा था। चाहे उस औरत के सबब से ये कैसे ह
हैरान य न ह , मगर उसक सू रत ने सभ को अपने ऊपर मेहरबान बना लया था, खास
करके कुं अर आनंद सं ह के दल म तो वह उनके जान और माल क मा लक ह होकर बैठ गई
थी, इस लए सबसे यादे दु ख छोटे कुं अर साहब को हु आ।यह सोचकर क बेशक यह उसी
औरत क कलाई है कुं अर आनंद सं ह क आंख म जल भरआया और कलेजे म एक क म
का दद पैदा हु आ, मगर इस समय कुछ कहने या अपने दल का हाल जा हर करने का मौका
न समझ उ ह ने बड़ी को शश से अपने को स हाला और चु पचाप सभ का मु ंह दे खने लगे।

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पाठक, अभी इस औरत के बारे म बहु त कुछ लखना है इस लए जब तक यह मालू म नहो
जाय क यह औरत कौन है तब तक अपने और आपके सु बीते के लए हम इसका नाम
‘ क नर ’ रख दे ते ह।

राजा वीर सं ह और उनके ऐयार ने इन सब अ ु त बात को जो इधर कई दन म हो चु क


थीं छपाने के लए बहु त को शश क मगर हो न सका। कई तरह पर रं ग बदलकर यह बात
तमाम शहर म फैल गई। कोई कहता था ‘महाराज के मकान म दे व और प रय ने डेरा डाला
है!’ कोई कहता था ‘गयाजी के भू त- ेत इ ह सता रहे ह!’ कोई कहता था ‘द वान अि नद त
के तरफदार बदमाश और डाकुओं ने यह फसाद मचाया है!’ इ या द बहु त तरह क बात शहर
वाले आपस म कहने लगे मगर उस समय बात का ढं ग ह ब कुल बदल गया जब राजा
वीर सं ह के हु म से दे वी सं ह ने उस सर कट लाश को जो कोठर म से नकल थी
उठवाकर सदर चौक म रखवा दया और उसके पास एक मु नाद वाले को यह कहकर पु कारने
के लए बैठा दया क - ‘‘अि नद त के तरफदार डाकू लोग जो शहर के रईस और अमीर
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.inएक डाकू मारा गया
को सताया करते थे ऐयार के हाथ गर तार होकर मारे जाने लगे, आज
है िजसक लाश यह है।’’ s po
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सू य भगवान के अ त होने म /
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बयान

टहलने वाले हमारे कुं अर


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अभी घंटे भर क दे र है, फर भी मौसम के मु ता बक बाग म

t जीत सं ह और आनंद सं ह को ठं डीहवा सहरावनदार मालू म हो रह


इं

. a hरत फूल खले हु ए हिजनको दे खने म हर एक क तबीयत उमंग पर आ


है। रं ग- बरं गे खू बसू

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सकती है मगर इन दोन के दल क कल कसी तरह भी खलने म नह ं आती। बाग म
िजतनी चीज दल खु श करने वाल ह वे सभी इस समय इन दोन को बु र मालू म होती ह।
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बहु त दे र से ये दोन भाई बाग म टहल रहे ह मगर ऐसी नौबत न आई क एक दू सरे से बात
करे या हंसे य क दोन के दल चु ट ले हो रहे ह, दोन ह अपनी-अपनी धु न म डू बे हु ए ह,
दोन ह को अपने-अपने माशू क क खोज है, दोन ह सोच रहे ह क ‘हाय या ह आनंद
होता अगर इस समय वह मौजू द होता िजसे जी यार करता है या िजसके बना दु नया क
संपि त तु छ मालू म होती है!’ दल बहलाने का बहु त कुछ उ योग कया मगर न हो सका,
लाचार दोन भाई उस बारहदर म पहु ंचे जो बाग के दि खन तरफ महल के साथ सट हु ई है
और जहां इस समय राजा वीर सं ह अपने मु सा हब के साथ जी बहलाने क बात कर रहे थे।
दे वी सं ह भी उनके पास बैठे हु ए थे जो कभी-न-कभी लड़कपन क बात याद दलाने के साथ
ह गु त द लगी भी करते जाते थे और जवाब भी पाते थे। दोन लड़के भी वहां जा पहु ंचे
मगर इनके बैठते ह मज लस का रं ग बदल गया और बात ने पलटा खाकर दू सरा ह ढं ग

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पकड़ा जैसा क अ सर हंसी- द लगी करते हु ए बड़ के बीच म समझदार लड़क के आ बैठने
से हो जाता है।

वीर - अब तो चु नार जाने को जी चाहता है मगर...

दे वी - यहां आपक ज रत भी अब या है?

वीर - ठ क है , यहां मेर ज रत नह ं, ले कन यहां क अ ु त बात दे खकर वचार होता है क


मेरे चले जाने से कोई बखेड़ा न मचे और लड़क को तकल फ न हो।

इं - (हाथ जोड़कर) इसक चं ता आप न कर, हम लोग जब इतनी छोट -छोट बात से अपने
को स हाल न सकगे तो आगे या करगे!

वीर - तो या तु हारा इरादा भी यहां रहने का है?


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इं - य द आ ा हो! o t
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वीर - (कुछ सोचकर) य दे वी सं ह!
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दे वी - या हज है, रहने द िजए। i 4u
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वीर - और तु म। /
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आपके साथt चलू ंगा, यहां भैरो और तारा रहगे, वे दोन
दे वी - म
h हो शयार ह, कुछ हज नह ं है!

भैरो - (हाथ जोड़कर) यहां क अ ु त बात हम लोग का कुछ बगाड़ नह ं सकतीं।

तारा - (हाथ जोड़कर) सरकार क मज नह ं पाई, नह ं तो ऐसी-ऐसी ल लाओं क तो म एक ह


दन म काया पलट कर दे ने क ह मत रखता हू ं।

भैरो - अगर मज हो तो इन अ ु त बात का आज ह नपटारा कर दया जाय।

वीर - (मु कुराकर) नह ं ऐसी कोई ज रत नह ं, हम तु म लोग के हौसले पर पू रा भरोसा है।


(दे वी सं ह क तरफ दे खकर) खैर तो आज दन भी अ छा है।

दे वी - बहु त खू ब! (एक मु सा हब क तरफ दे खकर) आप जरा तकल फ कर।

मु सा - बहु त अ छा, म जाता हू ं।

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कुं अर इं जीत सं ह और आनंद सं ह यह चाहते थे कसी तरह वीर सं ह चु नारजायं य क
उनके रहते ये दोन अपने मतलब क कारवाई नह ं कर सकते थे। इस बात को वीर सं ह भी
समझते थे मगर इसके सवाय भी न मालू म या सोचकर वे इस समय चु नार जा रहे ह या
गयाजी क सरहद छोड़कर या मतलब नकाला चाहते ह।

राजा वीर सं ह का वचार कोई जान नह ं सकता था। वे कसी से यह नह ं कह सकते क हम


दो घंटे के बाद या करगे। कोई यह नह ं कह सकता था क महाराज आज यहां तो ह मगर
कल कहां रहगे , या महाराज फलाना काम य और कस इरादे से कर रहे ह। पहले दल ह
दल म अपना इरादा मजबू त कर लेते थे, िजसे कोई बदल नह ं सकता था, मगर अपने बाप
क इ जत बहु त करते थे और उनके मु काबले म अपने ढ़ वचार को भी हु म के मु ता बक
बदल दे ने म बु रा नह ं समझते थे, बि क उसे कत य और धम मानते थे।

दो घड़ी रात जाते-जाते वीर सं ह ने चु नार क तरफ कूच कर दया और दे वी सं ह को साथ

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लेते गए। अब कुंअर इं जीत सं ह और आनंद सं ह खु दमु तार होगये, मगर साथ ह इसके
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राजा हो गए तो या अपनी खु दमु तार के सामने आनंद सं ह p o बड़े भाई के हु म क
अपने
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नाकदर नह ं कर सकते थे और यहां तो दोन ह के इरादे
l og दू सरे ह िजसम एक दू सरे का
बाधक नह ं हो सकता था।
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nd भाई एक ह कमरे म रहा करते थे, मगर अब दोन
कुं अर इं जीत सं ह बीमार थे इस लए दोन
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ने अपने-अपने लए अलग-अलग h
/ दो कमरे मु करर कए। िजस कमरे म वह व च कोठर थी
और िजसका हाल ऊपरpलखा :/ गया है आनंद सं ह ने अपने लए रखा। उससे कुछ दू र पर
इं जीत सं ह का दूh ttकमरा था।
सरा

बयान - 15

आधी रात से यादे जा चु क है। गयाजी म हर मु ह ले के चौक दार ‘जागते र हयो, हो शयार
र हयो’ कह-कहकर इधर से उधर घू म रहे ह।

रात अंधेर है , चार तरफ अंधेरा छाया हु आ है। यहां का मु य थान व णु-पादु का है, उसके
चार तरफ क आबाद बहु त घनी है मगर इस समय हम गु ंजान आबाद म न जाकर उस
मु तसर आबाद क तरफ चलते ह जो शहर के उ तर म राम शला पहाड़ी के नीचे आबाद है
और जहां के कुल मकान क चे और खपड़े क छावनी के ह। इसी आबाद म से दो आदमी
याह क बल ओढ़े बाहर नकले और फलगू नद क तरफ रवाना हु ए।

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राम शला पहाड़ी से पू रब फलगू नद के बीच बीच म एक बड़ा भयानक ऊंचा ट ला है। उस
ट ले पर कसी महा मा क समा ध है और उसी जगह प थर क मजबू त बनी हु ई कुट म
एक साधु भी रहते ह। उस समा ध और कुट के चार तरफ बेर, मकोइचे, घो इ या द जंगल
पेड़ से बड़ा ह गुज
ं ान हो रहा है और वहां जमीन पर पड़ी हु ई ह डय क यह कै फयत है
क बना उन पर पैर रखे कोई आदमी समा ध या उस कुट तक जा ह नह ं सकता। छोट -
बड़ी, साबु त और टू ट सैकड़ तरह क खोप ड़यां इधर से उधर लु ढ़क रह ह। न मालू म कब
और य कर इतनी ह डयां चार तरफ जमा हो ग । इस आबाद से नकले हु ए दोन आदमी
इसी ट ले क तरफ जा रहे ह।

कोई साधारण आदमी ऐसी अंधेर रात म उस ट ले क तरफ जाने का साहस कभी नह ं कर
सकता, मगर ये दोन बना कसी तरह क रोशनी साथ लए अंधेरे म ह ह डय पर पैर
रखते और कंट ल झा ड़य म घुसते चले जा रहे ह। आ खर ये दोन कुट के पास जा पहु ंचे
और दरवाजे पर खड़े होकर एक ने ताल बजाई।
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भीतर से - कौन है?
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एक : कवाड़ खोलो।
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भीतर से - य कवाड़ खोल?
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एक - काम है।
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htहम यथ
भीतर से - तु म लोग तंग करते हो।

साधु ने उठकर कवाड़ खोला और वे दोन अंदर जाकर एक तरफ बैठ गये। भीतर धू नी के
जलने से कुट अ छ तरह गम हो रह थी इस लए उन दोन ने कंबल उतारकर रख दया।
अब मालू म हु आ क ये दोन औरत ह और साथ ह इसके यह भी दे खने म आया क एक
औरत क दा हनी कलाई कट है िजस पर वह कपड़ा लपेटे हु ए है। एक औरत तो चु पचाप
बैठ रह मगर बाबाजी से वह दू सर औरत िजसक कलाई कट हु ई थी य बातचीत करने
लगी -

औरत - क हये आपने कुछ सोचा?

बाबाजी - जो काम मेरे कए हो ह नह ं सकता उसके लए म या सोचू ं।

औरत - बेशक आपके कए वह काम हो सकता है, य क वह आपको गु के समान मानती


है।

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साधु - गु के समान मानती है तो या मेरे कहने से वह अपनी जान दे दे गी तु म लोग भी
या अंधेर करती हो!

औरत - इसम जान दे ने क या ज रत है!

साधु - तो तु म या चाहती हो?

औरत - बस इतना ह क वह उस मकान को छोड़ दे ।

साधु - उस बेचार ने कसी को दु ख तो दया नह ,ं फर उसके पीछे य पड़ी हो

औरत - या उसने मु झे और मेरे आद मय को धोखा नह ं दया?

साधु - तु म अपना रा य दू सरे को दे कर आप भाग ग अब तो वह मा लक है, इस लए वे


लोग उसी के नौकर गने जायगे।
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औरत - म अपना रा य फर अपने क जे म कया चाहती हू ं। s p
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साधु - जो तु मसे हो सके करो पर म कसी तरह .
s क मदद नह ं दे सकता। तु मलड़कपन से
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i4लेकर यहां आया करते थे, कभी म कसी के भले-
मु झे जानती हो, तु हारे पता तु मको गोद म
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बु रे का साथी नह ं हु आ।
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औरत - जो हो मगर आपको
t tp वह काम करना ह पड़ेगा जो म कहती हू ं और याद र खये क
अगर आप इनकारhकरगे तो इसका नतीजा अ छा न होगा, म साधु और महा मा समझकर
छोड़ न दू ं गी।

साधु - (कुछ दे र सोचने के बाद) अ छा आज भर तु म मु झे और मोहलत दो, कल इसी समय


यहां आना।

औरत - खैर एक दन और सह ।

ये दोन औरत वहां से उठकर रवाना हु । न मालू म कब से एक आदमी कुट के पीछे छपा
हु आ था जो इस समय नजर बचाकर उन दोन के पीछे-पीछे तब तक चलता ह गया जब
तक वे दोन आबाद म पहु ंचकर अपने मकान के अंदर न घु स ग । जब उनदोन औरत ने
मकान के अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लया जो खु ला छोड़ गई थीं, तब वह आदमी वहां से
लौटा और फर उसी कुट म पहु ंचा िजसका हाल ऊपर लख चु के ह। कुट का दरवाजा खु ला
हु आ था और साधु बेचारे उसी तरह बैठे कुछसोच रहे थे। वह आदमी कुट के अंदर बेधड़क
चला गया और दं डवत करके एक कनारे बैठ गया।

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साधु - क हए दे वी सं हजी, आप आ गए?

दे वी - (हाथ जोड़कर) जी महाराज, म तभी से यहां हू ं जब वे दोन यहां आई भी न थीं, अब


उन दोन को उनके घर पहु ंचाकर लौटा आ रहा हू ं।

साधु - हां!

दे वी - जी हां, आपने बड़ी कृ पा क जो उसका हाल मु झे बता दया, कई दन से हम हैरान हो


रहे थे। या कहू ं आपक आ ा न हु ई, नह ं तो म इसी जगह से उन दोन को अपने क जे म
कर लेता।

साधु - नह ं भैया, ऐसा करने से यह हमारे गु क कु टया बदनाम होती, अब तु मने उसका घर
दे ख ह लया है सब काम बना लोगे। वीर सं ह बड़े तापी और धमा मा राजा ह, ऐसे को
कभी कोई सता नह ं सकता। दे खा, इस दु टा माधवी ने अपने चाल-चलन को कैसा खराब
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कया और

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जा को कतना दु ख दया, आ खर उसी क सजा भोग रह है ! अ छा अब ई वर
तु हारा क याण कर। वीर सं ह से मेरा आशीवाद कहना। अहा, कैसा भ त धमा मा और नी त
पर चलने वाला राजा है!
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दे वी - अ छा तो मु झे आ ा है न! i 4u
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साधु - हां जाओ, मगर दे खो म/तु ह पहले भी कह चु का हू ं और अब भी कहताहू ं क माधवी
को जान से मत मारना p
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:/बेचार का मनी पर दया करना। म उसे अपनी पु ी ह मानता
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हू ं। वीर सं ह से h
कह दे ना क वे का मनी को अपनीलड़क समझ और आनंद सं ह के साथ

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उसका संबंध करने म कुछ सोच- वचार न कर,
खड़ा होने लायक नह ं है।
या हु आ अगर उसका बाप आपके सामने

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दे वी - (हाथ जोड़कर) बहु त अ छा कह दू ं ग,ा राजा वीर सं ह कदा प आपक आ ा न टालगे
मगर फर एक दफे म आपक सेवा म आऊंगा।

साधु - नह ं अब मु झसे मु लाकात न होगी, म आज ह इस कुट को छोड़ दू ं गा। हां, ई वर


चाहे गा तो म एक दन वयं तु म लोग से मलू ंगा ।

दे वी - जैसी आ ा।

साधु - हां, बस अब जाओ, यहां मत अटको।

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पाठक सोचते ह गे क दे वी सं ह तो वीर सं ह के साथ चु नार चले गये थे, यहां कैसे आ पहु ंच!े
मगर नह ,ं लोग के जानने म वीर सं ह, दे वी सं ह को अपने साथ ले गये थे परं तु वा तव म
ऐसा न था। राजा वीर सं ह क गु त नी त साधारण नह ं।

बयान - 16

राजा वीर सं ह के चु नार चले जाने के बाद दोन भाइय को अपनी-अपनी फ पैदा हु ई।
ु ं अर आनंद सं ह क नर क फ म पड़े और कुं अर इं जीत सं ह को राजगृ ह क फ पैदा
हु ई। राजगृ ह को फतह कर लेना उनके लए एक अदना काम था मगर इस वचार से क
कशोर वहां फंसी हु ई है, हम सताने के लए अि नद त उसे तकल फ न दे , धावा करने का
ज द साहस नह ं कर सकते थे। िजस समय वह आजाद हु ए अथात वीर सं ह के मौजू द रहने
का खयाल जाता रहा, उसी समय से कशोर क मु ह बत ने जोर बांधा और तर ुद के साथ
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मल हु ई बेचैनी बढ़ने लगी। आ खर अपने म t
भैरो सं ह से बोले, ‘‘अब म बना राजगृ ह गए
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नह ं रह सकता। िजस जगह हमारे दे खते-दे खते बेचार
g spकशोर हम लोग से छ न ल गई उस
जगह अथात उस अमलदार को बना तहस-नहस कये lऔर o कशोर को पाये मेरा जी ठकाने
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न होगा और न मु झे दु नया क कोई चीज भल मालू
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. म होगी।
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भैरो - आपका कहना ठ क है मगर आप ndअकेले वहां या करगे?
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इं - दु ट अि नद त केp:
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लये म अकेला ह बहु त हू ं।
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भैरो - दु ट अि नद त के लए आप अकेले बहु त ह। मगर शहर भर के लये नह ं।

इं - शहर भर से मु झे कोई मतलब नह ं।

भैरो - आ खर शहर वाले उसक तरफदार करगे या नह !ं

इं - इसका अंदाजा तो गयाजी पर क जा करने से ह तु ह मालू म हो गया होगा।

भैरो - ठ क है मगर अपनी तरफ से मजबू ती रखना मु ना सब है।

इं - अ छा तो म आनंद को समझा दू ं गा क फलाने दन एक सरदार को थोड़ी फौज दे कर


हमार मदद के लए भेज दे ना।

भैरो - यह हो सकता है , मगर उ तम तो यह था क दो-चार दन और ठहर जाते तब तक म


राजगृ ह से घू म आता।

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इं - नह ं अब इस क म क नसीहत सु नने लायक म नह ं रहा।

भैरो - (कुछ सोचकर) खैर जैसी आपक मज ।

शाम के व त दोन भाई घोड़ पर सवार हो अपने दोन ऐयार और बहु त से मु साहब और
सरदार को साथ ले घू मने और हवा खाने के लए महल के बाहर नकले। कायदे के मु ता बक
सरदार और मु साहब लोग अपने-अपने घोड़े उन दोन भाइय के घोड़ से लगभग प चीस
कदम पीछे लए जाते थे, जब इं जीत सं ह या आनंद सं ह घू मकर उनक तरफ दे खते तब ये
लोग झट आगे बढ़ जाते और बात सु नकर पीछे हट जाते, हां दोन ऐयार घोड़ क रकाब थामे
पैदल साथ जा रहे थे। जब ये दोन भाई घू मने के लए बाहर नकलते तब शहर के मद-औरत
बि क छोटे -छोटे ब चे भी इनको दे खकर खु श होते थे। िजसके मु ंह से सु नये यह आवाज
नकलती थी, ‘‘ई वर ने हम लोग क सु न ल जो ऐसे राजकुमार के चरण यहां आये और
उस खु दगज नमकहराम बेईमान का साया हमारे सर से हटा।’’

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जब घूमते हु ए ये दोन भाई शहर से बाहर हु ए इं जीत सं ह ने आनं
p o द सं ह सेकहा, ‘‘म कसी
काम के लए भैरो सं ह को साथ लेकर राजगृ ह जाता हू, g s से ठ क आठव दन अथात
ं आज
o को भेज दे ना।’’
lमदद
र ववार को कसी सरदार के साथ थोड़ी-सी फौज हमार
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आनंद - (थोड़ी दे र चु प रहने के बाद) जो हुi4म, मगर...
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इं - तु म कसी तरह क चं त/
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p :/ ा मत करो, म अपने को हर तरह से स भाले रहू ंगा।

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आनंद - ठ क है लेhकन...

इं - गयाजी पहु ंचने से ह तु ह मालू म हो गया होगा क माधवी क रयाया हमारे खलाफ
न होगी।

आनंद - ई वर करे ऐसा ह हो, परं त.ु ..

इं - जब तक तु हार फौज वहां न पहु ंच जायगी हम लोग को जो कुछ करना होगा


छपकर करगे।

आनंद - ऐसा करने पर भी...

इं - खैर जो कुछ तु ह कहना हो साफ-साफ कहो!

आनंद - आपका अकेले जाना मु ना सब नह ,ं दु मन के घर म जाकर अपने को स हाले रहना


भी क ठन है, राजा क मौजू दगी म रयाया को हर तरह उसका डर बना ह रहता है , आप

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दु मन के घर म कसी तरह नि चंत नह ं रह सकते और आपके इस तरह चले जाने के बाद
मेरा जी यहां कभी नह ं लग सकता।

राजगृ ह जाने पर कुं अर इं जीत सं ह कैसे ह मु तैद य न ह ले कनछोटे भाई क आ खर


बात ने उ ह हर तरह से मजबू र कर दया। कुं अर इं जीत सं ह बड़े ह समझदार और बु मान
थे, मगर मु ह बत का भू त जब कसी के सर पर सवार होता है तो वह पहले उसक बु क
ह म ी पल द करता है।

छोटे भाई क बात सु न इं जीत सं ह ने भैरो सं ह क तरफ दे खा।

भैरो - म भी यह चाहता था क आप दो-चार रोज यह ं और स कर और तब तक मु झे


राजगृ ह से घू म आने द।

आनंद - (भैरो सं ह क तरफ दे खकर) वादा कर जाओ क तु म कब लौटोगे?


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भैरो - चार दन के अंदर ह म यहां पहु ंच जाऊंगा।
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आनंद - (भैरो क तरफ दे खकर इं जीत सं ह से) य द आ ा हो जाय तो ये इधर ह से चले
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जाय, घर जाने क ज रत ह या?
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भैरो - म तैयार हू ं। hin
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htt सामान
इं - घर जाकर अपना तो इ ह दु त करना ह होगा, हां, मु झसे चाहे इसी समय
वदा हो जाय।

बयान - 17

भैरो सं ह को राजगृ ह गये आज तीसरा दन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालू म नह ं
हु आ, इसी सोच म आधी रात के समय अपने कमरे म पलंग पर लेटे हु ए कुं अर इं जीत सं ह
को नींद नह ं आ रह है। कशोर क खयाल त वीर उनक आंख के सामने आ-आकर गायब
हो जाती है। इससे उ ह और भी दु ख होता है, घबराकर लंबी सांस ले उठ बैठते ह। कभी भी
जब बेचैनी बहु त बढ़ जाती है तो पलंग को छोड़ कमरे म टहलने लगते ह।

इसी हालत म इं जीत सं ह कमरे के अंदर टहल रहे थे, इतने म पहरे के एक सपाह ने अंदर
क तरफ झांककर दे खा और इनको टहलते दे ख हट गया, थोड़ी दे र बाद वह दरवाजे के पास
इस उ मीद म आकर खड़ा हो गया क कुमार उसक तरफ दे खकर पू छ तो वह कुछ कहे

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मगर कुमार तो अपने यान म डू बे हु ए ह, उ ह खबर ह या है क कोई उनक तरफ झांक
रहा है या इस उ मीद म खड़ा है क वे उसक तरफ दे ख और कुछ पू छ। आ खर उस सपाह
ने जान-बू झकर कवाड़ का एक प ला इस ढं ग से खोला क कुछ आवाज हु ई, साथ ह कुमार
ने घू मकर उसक तरफ दे खा और इशारे से पू छा क या है।

राजा सु र सं ह, वीर सं ह, इं जीत सं ह और आनंद सं ह का बराबर येहु म था क मौका न होने


पर चाहे कसी क इि तला न क जाय मगर जब कोई ऐयार आवे और कहे क म ऐयार हू ं
और इसी समय मलना चाहता हू ं तो चाहे कैसा ह बेमौका य न हो हम तक उसक
इि तला ज र पहु ंचनी चा हए। अपने घर के ऐयार के लए तो कोई रोक-टोक थी नह ,ं चाहे
वह कुसमय म भी महल म घु स जाय या जहां चाहे वहां पहु ंचे, महल म उनक खा तर और
उनका लहाज ठ क उतना ह कया जाता था, िजतना पं ह वष के लड़के का कया जाता और
इसी का ठ क नमू ना ऐयार लोग दखलाते थे।

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सपाह ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘एक ऐयार हािजर हु आ है और इसी समय कुछ अज कया
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o लाओ।’’ थोड़ी दे र बाद
चाहता है !’’ कुमार ने कहा, ‘‘रोशनी तेज कर दो और उसे अभीpयहां
चु त याह मखमल क पोशाक प हरे कमर म खंजरog
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लटकाये, हाथ म कमंद लए एक
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खू बसू रत लड़का कमरे म आ मौजू द हु आ।
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इं जीत सं ह ने गौर से उसक ओर दे खd
i n ा, साथ ह उनके चेहरे क रंगत बदल गई, जो अभी
/ h हु आ दखाई दे ने लगा।
उदास मालू म होता था खु शी से दमकता

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इं - म तु ह पहचानttगया।
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लड़का - य न पहचानगे जब क आपके यहां एक से एक बढ़कर ऐयार ह और दन-रात
उनका संग है, मगर इस समय मने भी अपनी सू रत अ छ तरह नह ं बदल है।

इं - कमला, पहले यह कहो क कशोर कहां और कस हालत म ह, और उ ह अि नद त के


हाथ से छु ी मल या नह ं।

कमला - अि नद त को अब उनक कोई खबर नह ं है।

इं - इधर आओ और हमारे पास बैठो, खु लासा कहो क या हु आ, म तो इस लायक नह ं क


अपना मु ंह उ ह दखाऊं य क मेरे कए कुछ भी न हो सका।

कमला - (बैठकर) आप ऐसा खयाल न कर, आपने बहु त कुछ कया, अपनी जान दे ने को तैयार
हो गये और मह न दु ख झेला। अपने ऐयार लोग अभी तक राजगृ ह म इसमु तैद से काम

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कर रहे ह क अगर उ ह यह मालू म हो जाता क कशोर वहां नह ं है तो उस रा य का
नाम- नशान मटा दे ते।

इं - मने भी यह सोच के उस तरफ जोर नह ं दया क कह ं अि नद त के हाथ पड़ी हु ई


बेचार कशोर पर कुछ आफत न आवे, हां तो अब कशोर वहां नह ं है।

कमला - नह !ं

इं - कहां ह और कसके क जे म ह?

कमला - इस समय वह खु दमु तार ह, सवाय ल जा के उ ह और कसी का डर नह ं।

इं - ज द बताओ वह कहां ह मेरा जी घबड़ा रहा है।

कमला - वह इसी शहर म ह मगर अभी आपसे मलना नह ं चाहतीं।


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- (आंख म आंसू भरकर) बस तो मु झे मालू म हो गया क उ ह मेर तरफ से रं ज है, मेरे
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कए कुछ न हो सका इसका उ ह दु ख है।
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कमला - नह ं-नह ,ं ऐसा भू ल के भी न सो चए।4u
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इं - तो फर म उनसे य नह
/ /ं मल सकता?
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ht मल य नह ं सकते, मगर इस समय...
कमला - (कुछ सोचकर)

इं - या तु मको मु झ पर दया नह ं आती! अफसोस, तु म ब कुल नह ं जानतीं क तु हार


बात सु नकर इस समय मेर दशा कैसी हो रह है । जब तु म खु द कह रह हो क वह वतं
ह, कसी के दबाव म नह ं ह और इसी शहर म ह तो मु झसे न मलने का कारण ह या है
बस यह न क म उस लायक नह ं समझा जाता।

कमला - फर आप उसी खयाल को मजबू त करते ह! खैर तो फर च लए म आपको ले चलती


हू ं, जो होगा दे खा जायेगा, मगर अपने साथ कसी ऐयार को लेते च लए। भैरो संह तो यहां ह
नह ,ं आपने उ ह राजगृ ह भेज दया है।

इं - या हज है तारा सं ह को साथ लए चलता हू, ं मगर भैरो सं ह के जाने क खबर तु ह


य कर मल ?

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कमला - म बखू बी जानती हू, ं बि क उनसे मलकर मने कह भी दया है क कशोर राजगृ ह
म नह ं है तु म बेखौफ अपना काम करना।

इं - अगर तु मने उससे ऐसा कह दया है तो राजगृ ह म बड़ा ह बखेड़ा मचावेग!ा

कमला - मचाना ह चा हए।

कुं अर इं जीत सं ह ने उसी समय तारा सं ह को बु लाया और उ ह साथ ले कपड़ेपहन कमला के


साथ कशोर से मलने क खु शी म लंब-े लंबे कदम बढ़ाते रवाना हु ए।

शहर ह शहर बहु त-सी ग लय म घु माती हु ई इन दोन को साथ लए कमला बहु तदू र चल
गई और व णु पादु का मं दर के पास ह एक मकान के मोड़ पर पहु ंचकरखड़ी हो गई।

इं - य या हु आ क य ग?

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कमला - इस मकान के दरवाजे के सामने ह एक भार जमींदार o
s p क बैठक है। वहां दन-रात
पहरा पड़ता है। इधर से आप लोग का जाना और यह जा g हर करना क आज इस मकान म
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दो आदमी नये घु से ह मु ना सब नह ं।
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तारा - तो फर या करना चा हए।
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कमला - म दरवाजे क राह / से/जाती हू ं। आप लोग पीछे क तरफ जाइये और कमंद लगाकर
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मकान के अंदर पहु ं चये

इं - या हज है, ऐसा ह होगा, तु म दरवाजे क राह से जाओ।

कमला - मगर एक बात और सु न ल िजए। जब म इस मकान म पहु ंचकर छत पर सेझांकू


तभी आप कमंद फ कए, य क बना मेर मदद के कमंद अड़ न सकेगी।

बयान - 18

मकान के अंदर कमला, इं जीत सं ह और तारा सं ह के पहु ंचने के पहले ह हमअपने पाठक
को इस मकान म ले चलकर यहां क कै फयत दखाते ह।

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इस मकान के अंदर छोट -छोट न मालू म कतनी कोठ रयां ह पर हम उनसे कोई मतलब
नह ,ं हम तो उस दालान के पास जाकर खड़े होते ह िजसके दोन तरफ दो कोठ रयां और
सामने लंबा-चौड़ा सहन है। इस दालान म कसी तरह क कोई सजावट नह ,ं सफ एक दर
बछ हु ई है और खू ं टय पर कुछ कपड़े लटक रहे ह। आधी रात का समय होने पर भी
दालान म चराग क रोशनी नह ं है। यह दालान ऊपर के दज म है, इसके ऊपर कोई इमारत
नह ं। सामने का सहन ब कुल खु ला हु आ है , चं मा क फैल हु ई सफेद चांदनी सहन से
घु सती हु ई धीरे-धीरे दालान म आ रह है , िजसक रोशनी उस दालान क हर चीज को
दखलाने के लए काफ है। एक तरफ क कोठर तो बंद है मगर दू सर बगल वाल कोठर
का दरवाजा खु ला हु आ है।यह कोठर बहु त बड़ी नह ं है और इसके भीतर सफेद फश पर दो
औरत बैठ हु ई धीरे -धीरे कुछ बात कर रह ह।

हमारे पाठक इन दोन को बखू बी पहचानते ह इनम से एक तो कशोर और दू सर वह


क नर है िजस पर कुं अर आनंद सं ह र झे हु ए ह, जो कई दफे आनंद सं ह के कमरे म कोठर
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के अंदर से नकल अपने t
चतवन से उ ह घायल कर चु क है और साथ-साथ आप भी
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आ शक हो चु क है। s p
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कशोर - ब हन, तु मने जो कुछ नेक मेरे साथ क है उसे म कसी तरह भू ल नह ं सकती।

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मु झसे यह कभी न होगा क तु ह ऐसी हालत म छोड़ इं जीत सं ह के पास चल जाऊं।
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क नर - फर
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या कया जाय, कस तरह उ मीद हो क मु झे कोई पू छेगा।

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कशोर - कमला ने tमुtझसे कसम खाकर कहा है क आनंद सं ह क नर क चाह म डू बे ह।
इसे भी
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जाने दो, आ खर तु हारा अहसान कुछ उनके ऊपर है या नह ं इतने बदमाश को जो
वहां फसाद मचा रहे थे सवाय तु हारे कौन मार सकता था!

क नर - खैर जो होगा दे खा जायेगा, अब तो यह सोचना चा हए क हम लोग कहां जायं


और या कर?

कशोर - कमला आ जाय तो उससे राय मलाकर जो मु ना सब मालू म हो कया जाय। ओह,
यहां बैठे-बैठे जी घबड़ा गया, चलो बाहर चल, चांदनी खू ब नकल हु ई है।

दोन औरत कोठर के बाहर नकल ं और सहन म आकर टहलने लगीं। मौसम के मु ता बक
कुछ सद पड़ रह थी इस लए दोन यादे दे र तक सहन म टहल न सक ,ं दालान म आकर
दर पर बैठ ग और बातचीत करने लगीं।

इस मकान के बगल म एक छोटा-सा नजरबाग था मगर उसक हालत ऐसी खराब हो रह थी


क उसे नजरबाग क जगह खंडहर या जंगल ह कहना मु ना सब है। नजरबाग म जाने के

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लए इस मकान म एक रा ता था, बाक चार तरफ उसके ऊंची-ऊंची द वार थीं, इस मकान म
बना भीतर वाले क मदद के कोई कमंद लगाकर चढ़ नह ं सकता था य क इसक ऊपर
क द वार इस खू बी से बनी हु ई थीं क कसीतरह कमंद अड़ नह ं सकती थी। हां अगर कोई
चाहे तो कमंद के ज रए उस नजरबाग म ज र जा सकता था, मगर इस मकान म आने के
लए वहां से भी वह द कत होती।

थोड़ी दे र क नर और कशोर बात करती रह ,ं इसके बाद नीचे से कवाड़ खटखटाने क


आवाज आई। कशोर ने कहा, ‘‘लो ब हन कमला भी आ पहु ंची।’’

क नर - खटखटाने क आवाज से तो मालू म होता है क कमला ह है, मगर तो भी खड़क


से झांककर मामू ल सवाल कर लेना मु ना सब है।

कशोर - ऐसा ज र करना चा हए य क हम लोग को धोखा दे ने के लए दु मन लोग


पचास रं ग लाया करते ह।
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‘‘तु म ठहरो म कुछ पू छती हू!’’ sp
ं इतना कहकर कशोर ने दरवाजे क तरफ वाल खड़क म से
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झांककर पू छा, ‘‘ गनती पू र हु ई’ इसके जवाब म loकहा, ‘‘हां पचासी तक।’’
कसी ने
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कशोर - अ छा म नीचे आकर दरवाजा खोलती हू ं ।
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दरवाजा खोलने के लए खु शी-खु
/ /शी कशोर नीचे उतर मगर चौखट के पास पहु ंचनेके पहले
: एक मोटे और क ावर आदमी को खड़ा दे ख डर के मारे च ला
ह नीचे के अंधेरे दालानpम
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उठ तथा उस समय ht तो एक चीख मारकर ब कुल ह बेहोश हो गई जब वह शैतान इस
बेचार क तरफ झपटा और हाथ तथा कमर पकड़कर बेदद के साथ एक तरफ खींच ले गया।

कशोर के च लाने क आवाज सु नते ह हाथ म नंगी तलवार लए क नर बड़बड़ाती हु ई


नीचे पहु ंची मगर चार तरफ घू म-घू मकर दे खने पर भी उसने कसी को न पाया बि क
कशोर का भी पता न लगा।

क नर दरवाजा तो खोलना भू ल गई और कशोर को न पाने से घबड़ाकर इधर-उधर ढू ं ढ़ने


लगी। उस भयानक अंधेरे म दालान और कोठ रय म घू मती हु ई क नर को इस बात का
जरा भी खौफ न मालू म हु आ क कशोर क तरह कह ं मु झ पर आफत न आजाय।

बेचार कशोर चीख मारकर बेहोश हो गई मगर जब वह होश म आई तो उसने अपने को


मौत के पंजे म गर तार पाया। उसने दे खा क झा ड़य के बीच म जबद ती जमीन पर
गराई हु ई है, एक आदमी नकाब से अपनी सू रत छपाये उसक छाती पर सवार है और खंजर
उसके कलेजे के पार कया ह चाहता है।

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(दू सरा भाग समा त)

तीसरा भाग

बयान -1

पाठक समझ ह गये ह गे क राम शला के सामने फलगू नद के बीच म भयानक ट ले के


ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरत गई थीं वे माधवी और उसक सखी
तलो तमा थीं। बाबाजी ने उन दोन से वादा कया था क तु हार बात का जवाब कल दगे
इस लए दू सरे दन वे दोन आधी रात के समय फर बाबाजी के पास ग । कवाड़ खटखटाते
ह अंदर से बाबाजी ने दरवाजा खोल दया और उन दोन को बु लाकर अपने पास बैठाया।

बाबा - कहो माधवी अ छ हो!


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माधवी - अ छ या रहू ंगी, अपने कये को पछताती हू ं! s p
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बाबा - अब भी अपने को स हालो तो म वादा करता हू ं
s . क राजा वीर सं ह से कहकर
तु हारा रा य तु ह दलवा दू ं गा।
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माधवी - अजी अब भीख मांगने क इ छा नह ं होती, अब तो जहां तक बन पड़ेगा अपने
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दु मन को मार के ह कलेजा ठं डा क ं गी और चाहे इसके लए मेर जान भी जाय तो कोई
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परवाह नह !ं ht
बाबा - अगर यह खयाल है तो तु ह अपने द वान अि नद त से बदला लेना चा हए, वीर सं ह
के लड़क ने तु हारा कुछ नह ं बगाड़ा!

माधवी - आपका कहना ठ क है मगर मने जो कुछ सोच रखा है वह क ं गी। म अपना इरादा
कसी तरह बदल नह ं सकती और इसम आपको हर तरह से मेर मदद करनी ह होगी।

बाबा - खैर, िजस तरह बनेगा म तु हार मदद क ं गा मगर यह तो बताओ क सवाय मेरे
इस समय और भी कोई तु हारा मददगार है या नह ं।

माधवी - कल तक तो मेरा मददगार कोई भी न था मगर आज मेरे कई मददगार पहु ंच गये


ह और अब मेरा काम ज र हो जायेगा इसम शक नह ं है।

बाबा - कौन मददगार पहु ंच गया है?

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माधवी - मेरा भाई भीमसेन।

बाबा - शवद त का लड़का भीमसेन!

माधवी - जी हां।

बाबा - तब तो तु हारा काम ज र हो जायेगा।

माधवी - तो भी आपको मेर मदद करनी ह होगी।

बाबा - म ज र मदद क ं गा, जो कुछ कहो म तैयार हू!ं

माधवी - कल भीमसेन उस मकान म जाने का उ योग करे गा िजसम कशोर रहती है। उसने
मौका पाते ह अपनी ब हन कशोर को मार डालने क कसम खाई है। अगर कल वह उस
मकान के अंदर कसी तरह जा सका तो ज र ह
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कशोर को मार डालेगा। फर मु झे कसी
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तरह का तर ुद न रहे गा और न आपसे मदद लेने क ह ज o
s p रत पड़ेगी ले कन वह उस
मकान के अंदर न जा सका तो िजस तरह हो आपको ऐसीgकोई तरक ब करनी पड़ेगी िजससे
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कशोर उस मकान को छोड़ दे ।
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बाबा - भरसक तो मेर मदद क ज रतdहi न पड़ेगी।
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माधवी - ऐसा न क हए! अगर
: //उस मकान म कमंद लगाने क जगह होती तब तो कोई बात
ह न थी, अब तक म t
t p काम नकाल लए होती।
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बाबा - हां, यह तो म भी जानता हू ं क तु हारे पता ने उस मकान के बनवाने म बड़ी
कार गर खच क है, मगर तो भी भीमसेन ने उसके अंदर जाने क कोई तरक ब सोची ह
होगी।

माधवी - जी हां, दे खना चा हए कल या होता है।

बाबा - अ छा, अब तु म परस मु झसे ज र मलना, अगर तु हारा काम हो गया तो ठ क ह है


नह ं तो चौथे दन म सहज म ह तु हारा काम कर दू ं गा।

''बहु त अ छा'' कहकर माधवी वहां से उठ और अपनी सखी तलो तमा को साथ लये अपने
डेरे पर चल आई।

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माधवी के चले जाने पर थोड़ी दे र तक बाबाजी कुछ सोचते रहे, इसके बाद कुट के बाहर
नकले और दो-चार दफे जोर से ताल बजाई। यकायक इधर-उधर पेड़ क आड़ म से चार-
पांच आदमी नकलकर बाबाजी के पास आये और एक ने बढ़कर पू छा, ''क हये या हाल है '

बाबाजी ने कहा, ''आज अब तु म लोग क कोई ज रत नह ं है जहां चाहो चले जाओ, मगर
कल एक घंटे जाते-जाते तु म लोग यहां ज र जु ट जाओ!''

एक - य खैर तो है , म बना कुछ हाल सु ने जाने वाला नह ं!

बाबा - अ छा तो फर सु न लो क कल या होगा और हम लोग या करगे।

सभ को लेकर बाबाजी कुट के अंदर गये, कवाड़ बंद कर न मालू म या बातचीत करने
लगे।

अब हम उसी मकान म पहु ंचते ह िजसम कशोर और क नर


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इं जीत सं ह को लेकर कमला गई है। po
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कशोर के च लाने क आवाज सु नकर क नर हाथ म तलवार लए बहु त ज दनीचे उतर
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गई। कमला ने कवाड़ खटखटाया है, दरवाजा खोलना चा हए इसका खयाल तो जाता रहा और
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इधर-उधर कशोर को ढू ं ढ़ने लगी मगरdइसे ढू ं ढ़ने म उसने यादा दे र न लगाई, दो ह चार
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दफे दालान और कोठ रय म घू/ h
मकर वह लौट और सदर दरवाजा खोलकर कमला को मकान
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के अंदर कर लया।
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दरवाजा खु लने म दे र हु ई इसी से कमला समझ गई क भीतर कुछ गोलमाल हु आ है।अंदर
आते ह उसने पू छा, '' य या हु आ' िजसके जवाब म बदहवास क नर केवल इतना ह कह
सक , ''दरवाजा खोलने के लए कशोर नीचे उतर मगर न मालू म च लाकर कहां गायब हो
गई।''

कमला ने इस बात का कुछ जवाब न दया। उसने सबके पहले छत पर जाकर कुं अर
इं जीत सं ह को कमंद लगाने म मदद क । जब वे और तारा सं ह ऊपर चढ़ आये तो उन दोन
को भी साथ ले वह नीचे आंगन म उतर आई और क नर क तरह ह सं ेप म कशोर के
गायब हो जाने का हाल कहकर इधर-उधर ढू ं ढ़ने लगी।

ये सब बात थोड़ी ह दे र म हो ग और अंधेरा होने पर भी बात क बात म कमला ने नीचे


क कुल कोठ रय म कशोर को ढू ं ढ़ डाला, परे शान और बदहवास इं जीत सं ह उसके साथ
घू मते रहे ।

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ढू ं ढ़ते-ढू ं ढ़ते कमला जब उस कोठर म पहु ंची िजसक पीठ खंडहर क तरफ पड़ती थी तो
यकायक चांदना मालू म पड़ा। भीतर घु सी, ओैर तु रंत न चय हो गया क खंडहर क तरफ से
कोई द वार म सध लगाकर इस मकान के अंदर घु सा और यह आफत मचा गया। उस
खु लासा सध क राह से ये चार आदमी भी बाहर खंडहर म नकल गये और वहां एक व च
तमाशा दे खा।

बयान -2

शवद तगढ़ म महाराज शवद त बैठा हु आ बे फ का हलु आ नह ं उड़ाता। सचपू छये तो


तमाम जमाने क फ ने उसको आ घेरा है। वह दन-रात सोचा ह करता है और उसके
ऐयार और जासू स का दन दौड़ते ह बीतता है। चु नार, गयाजी और राजगृ ह का हाल तो उसे
र ती-र ती मालू म है य क इन तीन जगह क खबर पहु ंचाने के लए उसने पू रा बंदोब त
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कया हु आ है। आज यह खबर पाकर क गयाजी का रा य राजा वीर सं ह के क जे म आ
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गया, माधवी राज ह छोड़कर भाग गई, और कशोर द वान अि नद त के हाथ फंसी हु ई है,
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शवद त घबड़ा उठा और तरह-तरह क बात सोचने म इतना
b lo ल न हो गया क तनोबदन क
सु ध जाती रह । कशोर के ऊपर इसे इतना गु साsआया . क अगर वह यहां मौजू द होती तो
अपने हाथ से टु कड़े-टु कड़े कर डालता। इस iसमय4u भी वह ण करके उठ खड़ा हु आ क 'जब
i nं गाdअ न न खाऊंगा' और सीधा महल म चला गया,
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तक कशोर के मरने क खबर न पाऊ
हु म दे ता गया क भीमसेन/को
: हमारे पास भेज दो।
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राजा शवद त महल h म जाकर अपनी रानी कलावती के पास बैठ गया। उसके चेहरे क उदासी
और परे शानी का सबब जानने के लए कलावती ने बहु त कुछ उ योग कया मगर जब तक
उसका लड़का भीमसेन महल म न गया उसने कलावती क बात का कु छ भी जवाब न दया।
मां-बाप के पास पहु ंचते ह भीमसेन ने णाम कया और पू छा, '' या आ ा होती है '

शव - कशोर के बारे म जो कुछ खबर आज पहु ं ची तु मने भी सु नी होगी!

भीम - जी हां।

शव - अफसोस, फर भी तु ह अपना मु ंह दखाते शम नह ं आती! न मालू म तु हार बहादु र


कस दन काम आयेगी और तु म कस दन अपने को इस लायक बनाओगे क म तु ह
अपना लड़का समझू!ं !

भीम - मु झे जो आ ा हो तैयार हू ं।

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शव - मु झे उ मीद नह ं क तु म मेर बात मानोगे।

भीम - म य ोपवीत हाथ म लेकर कसम खाता हू ं क जब तक जान बाक है उस काम के


करने क पू र को शश क ं गा िजसके लए आप आ ा दगे!

शव - मेरा पहला हु म है क कशोर का सर काटकर मेरे पास लाओ।

भीम - (कुछ सोच और ऊंची सांस लेकर) बहु त अ छा, ऐसा ह होगा। और या हु म होता है

शव - इसके बाद वीर सं ह या उनके लड़क म से जब तक कसी को मार न लो यहां मत


आओ। यह न समझना क यह काम म तु हारे ह सु पदु करता हू ं। नह ,ं म खु द आज इस
शवद तगढ़ को छोड़ू ंगा और अपना कलेजा ठं डा करने के लए पू रा उ योग क ं गा। वीर सं ह
का चढ़ता ताप दे खकर मु झे न चय हो गया क लड़कर उ ह कसी कार नह ं जीत सकता
इस लए आज से म उनके साथ लड़ने का खयाल छोड़ दे ता हू ं और उस ढं ग पर चलता हू ं
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िजसे ठग, चोर या डाकू लोग पसंद करते ह।
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भीम - अि तयार आपको है जो चाह कर। मु झे आ ा हो
l oतो इसी समय चला जाऊं और जो
कुछ हु म हु आ है उसे पू रा करने का उ योग कs!ं .b

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शव - अ छा जाओ मगर यह कहो क
i ndअपने साथ कस- कस को ले जाते हो
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भीम - कसी को नह ं।
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शव - तब तु म कुछ न कर सकोगे। दो-तीन ऐयार और दस-बीस लड़क को अपने साथ ज र
लेते जाओ।

भीम - आपके यहां ऐसा कौन ऐयार है जो वीर सं ह के ऐयार का मु काबला करे और ऐसा
कौन बहादु र है जो उन लोग के सामने तलवार उठा सके!

शव - तु हारा कहना ठ क है मगर तु हारे साथ गये हु ए ऐयार क कारवाई तब तक बहु त


अ छ होगी जब तक दु मन को यह न मालू म हो जाय क शवद तगढ़ का कोई आया है!
सवाय इसके म बहादु र नाहर सं ह को तु हारे साथ भेजता हूिजसका
ं मु काबला करने वाला
वीर सं ह क तरफ कोई नह ं है।

भीम - बेशक नाहर सं ह ऐसा ह है मगर मु ि कल तो यह है क नाहर सं ह िजतनाबहादु र है


उससे यादा इस बात को दे खता है क अपने कौल का स चा रहे । उसका कहना है क 'िजस

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दन कोई बहादु र वं व-यु म मु झे जीत लेगा उसी दन म उसका हो जाऊंगा।' ई वर न करे
कह ं ऐसी नौबत पहु ंची तो वह उसी दन से हम लोग का दु मन हो जायगा।

शव - यह सब तु हारा खयाल है, वं व-यु म उसे वहां कोई जीतने वाला नह ं है।

भीम - अ छा जो आ ा।

शव - (खड़े होकर) चलो म इसी व त चलकर तु हारे जाने का बंदोब त कर दे ता हू ं।

शवद त और भीमसेन के बाहर चले जाने के बाद रानी कलावती ने जो बहु त दे र से इन


लोग क बात सु न-सु नकर गरम-गरम आंसू गरा रह थी सर उठाया और लंबी सांस लेकर
कहा, ''हाय, अब तो जमाने का उलट-फेर ह दू सरा हु आ चाहता है। बेचार कशोर का या
कसू र वह आप से आप तो चल ह नह ं गई उसने अपने आप तो कोई ऐसा काम कया ह
नह ं िजससे उसक इ जत म फक आवे! हाय, कस कलेजे से भीमसेन अपनी ब हन को मारने
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का इरादा करे गा! मेर िजंदगी अब t
यथ है य क बेचार लड़क तो अब मार ह जायेगी,
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भीमसेन भी वीर सं ह से दु मनी करके अपनी जान नह ं बचा सकता, दू सरे उस लड़के का
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भरोसा ह या जो अपने हाथ से अपनी ब हन का सरlo काटे । अगर इन सब बात को भू ल
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जाऊं और यह सोचकर बैठ रहू ं क मेरा सव s
4 u व तो प त है मु झे लड़क-े लड़ कय से या
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मतलब, तो भी नह ं बनता, य क वे भी डाकi ू -वृ ि त लया चाहते ह। इस अव था म वे कसी
कार का सु ख नह ं पा सकते। फरhin
जीते जी अपने प त को दु ख भोगते म कैसे दे खू ंगी हाय!
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वीर सं ह! वह वीर सं ह :है/िजसक बदौलत मेर जान बची थी, न मालू म बु दफरोश क
बदौलत मेर या दुt दt
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शा होती! वह वीर सं ह है िजसने कृ पा कर मु झे अपने प त के पास
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खोह म भजवा दया था! वह वीर सं ह है िजसने हम लोग का कसू र एकदम माफ कर दया
था और चु नार क ग ी लौटा दे ने को भी तैयार था। कस- कस बात क तरफ दे खू ं वीर सं ह
के बराबर धमा मा तो कोई दु नया म न होगा! फर कसको दोष दू ं, अपने प त को नह ं कभी
नह ,ं यह मेरे कए न होगा! यह सब दोष तो मेरे कम ह का है। फर जब भा य ह बु रे ह
तो ऐसे भा य को लेकर दु नया म य रहू ं अपनी छु ी तो आप ह कर लेती हू ं फर मेरे
पीछे या जाने या होगा इसक खबर ह कसे है!''

रानी कलावती पागल क तरह बहु त दे र तक न जाने या- या सोचती रह , आ खर उठ खड़ी


हु ई और ताल का गु छा उठाकर अपना एक संद ू क खोला। न मालू म उसम से या नकालकर
उसने अपने मु ंह म रख लया और पास ह पड़ी हु ई सोने क सु राह म से जल नकालकर
पीने के बाद कलम-दवात और कागज लेकर कुछ लखने बैठ गई। लेख समा त होते-होते तक
उसक स खयां भी आ पहु ंचीं। कलावती ने लखे हु ए कागज को लपेटकर अपनी एक सखी के
हाथ म दया और कहा, ''जब महाराज मु झे पू छ तो यह कागज उनके हाथ म दे दे ना। बस

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अब तु म लोग जाओ अपना काम करो, म इस समय सोना चाहती हू,ं जब तक म खु द न उठू ं
खबरदार, मु झको कभी मत उठाना!''

हु म पाते ह उसक ल डयां वहां से हट ग और रानी कलावती ने पलंग पर लेटकर आंचल


से मु ंह ढांप लया।

दो ह पहर के बाद मालू म हो गया क रानी कलावती सो गई, आज के लए नह ं बि क वह


हमेशा के लए सो गई, अब वह कसी के जगाये नह ं जाग सकती।

शाम के व त जब महाराज शवद त फर महल म आये तो महारानी का लखा कागज उनके


हाथ म दया गया। पढ़ते ह शवद त दौड़ा हु आ उस कमरे म गया िजसम कलावती सोई हु ई
थी। मु ंह पर से कपड़ा हटाया, न ज दे खी, और तु रंत लौटकर बाहर चला गया।

अब तो उसक स खय और ल डय को भी मालूम हो गया क रानी कलावती हमेशा के लए


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सो ग । न मालू म बेचार ने कन- कन बात को सोचकर जान दे दे ना ह मु ना सब समझा।
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उसक यार स खयां िज ह वह जान से sp
यादे मानती थी पलंग के चार तरफ जमा हो ग
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और उसक आ खर सू रत दे खने लगीं। भीमसेन चार घंlटoे पहले ह मु हम पर रवाना हो चु का
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था। उसे अपनी यार मां के मरने क कुछ खबर
4 us ह नह ं और यह सोचकर क वह उदास
और सु त होकर अपना काम न कर सक
d iे गा, शवद त ने भी कलावती के मरने क खबर
उसके कान तक पहु ंचने न द । hi
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बयान -3

ऐयार और थोड़े से लड़क के सवाय नाहर सं ह को साथ लए हु ए भीमसेन राजगृ ह क तरफ


रवाना हु आ। उसका साथी नाहर सं ह बेशक लड़ाई के फन म बहु तह जबद त था। उसे
व वास था क कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मु झसे जीत नह ं सकता। भीमसेन भी अपने
को ताकतवर और हो शयार लगाता था मगर जब से लोभवश नाहर सं ह ने उसक नौकर कर
ल और आजमाइश के तौर पर दो-चार दफे नाहर सं ह और भीमसेन से नकल लड़ाई हु ई तब
से भीमसेन को मालू म हो गया क नाहर सं ह केसामने वह एक ब चे के बराबर है। नाहर सं ह
लड़ाई के फन म िजतना हो शयार और ताकतवर था उतना ह नेक और ईमानदार भी था
और उसका यह ण करना बहु त ह मु ना सब था क उसे िजस दन जो कोई जीतेगा वह
उसी दन से उसक ताबेदार कबू ल कर लेगा।

ये लोग पहले राजगृ ह म पहु ंचे और एक गु त खोह म डेरा डालने के बादभीमसेन ने ऐयार
को वहां का हाल मालू म करने के लए मु तैद कया। दो ह दन क को शश म ऐयार ने

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कुल हाल वहां का मालू म कर लया और भीमसेन ने जब यह सु ना क माधवी वहां मौजू द
नह ं है तब बना छे ड़छाड़ मचाए गयाजी क तरफ कूच कया।

इस समय राजगृ ह को अपने क जे म कर लेना भीमसेन के लए कोई बड़ी बात न थी, मगर
इस खयाल से क गयाजी म राजा वीर सं ह क अमलदार हो गई है राजगृह दखल करने से
कोई फायदा न होगा और वीर सं ह के मु काबले म लड़कर भी जीतना बहु त ह मु ि कल है
उसने राजगृ ह का खयाल छोड़ दया। सवाय इसके जा हर होकर वह कसी तरह कशोर को
अपने क जे म कर भी नह ं सकता था, उसे लु क- छपकर पहले कशोर ह पर सफाई का हाथ
दखाना मंजू र था।

गयाजी के पास पहु ंचते ह एक गु त और भयानक पहाड़ी म उन लोग ने डेरा डाला और


खबर लेने के लए ऐयार को रवाना कया। िजस तरह भीमसेन के ऐयार लोग घू म-घू मकर
टोह लया करते थे उसी तरह माधवी क सखी तलो तमा भी अपना काम साधने के लए

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भेष बदलकर चार तरफ घू मा करती थी। इि तफाक से भीमसेन के ऐयार क मु लाकात
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तलो तमा से हो गई और बहु त ज द माधवी क खबर भीमसेp नoको तथा भीमसेन क खबर
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माधवी को लग गई।
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भीमसेन के साथ िजतने लड़के थे उन सभ कोuखोह म ह छोड़ सफ भीमसेन और नाहर सं ह
को माधवी ने उस मकान म बु ला लया d
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िजसका हाल हम ऊपर लख चु के ह।

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आज कशोर के घर म घु:स/ कर आफत मचाने वाले ये ह भीमसेन और नाहर सं ह ह। अपने
ऐयार क मदद से t tpमकान के बगल वाले खंडहर म घु सकर भीमसेन ने उस मकान म
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सध लगाई और उस सध क राह नाहर सं ह ने अंदर जाकर जो कुछ कयापाठक को मालू म
ह है।

नाहर सं ह मकान के अंदर घु सकर उसी सध क राह कशोर को लेकर बाहर नकलआया और
उस बेचार को जमीन पर गराकर मा लक के हु म के मु ता बक उसे मारडालने पर मु तैद
हु आ। मगर एक बेकसू र औरत पर इस तरह जु म करने का इरादाकरते ह उस जवांमद का
कलेजा दहल गया। वह कशोर को जमीन पर रख दू र जा खड़ा हु आ और भीमसेन से जो मु ंह
पर नकाब डाले उस जगह मौजू द था बोला, ''ल िजए, इसके आगे जो कुछ करना है आप ह
क िजए। मेर ह मत नह ं पड़ती! मगर म आपको भी...!''

हाथ म खंजर लेकर भीमसेन फौरन बेचार कशोर क छाती पर जो उस समय डर के मारे
बेहोश थी जा चढ़ा, साथ ह इसके कशोर क बेहोशी भी जाती रह और उसने अपने को मौत
के पंजे म फंसा हु आ पाया जैसे क हम ऊपर लख आये ह।

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भीमसेन ने खंजर उठाकर य ह कशोर को मारना चाहा, पीछे से कसी ने उसक कलाई
थाम ल और खंजर लये उसके मजबू त हाथ को बेबस कर दया। भीमसेन ने फरकर दे खा
तो एक साधु क सू रत नजर पड़ी। वह कशोर को छोड़ उठ खड़ा हु आ औरउसी खंजर से
उसने साधु पर वार कया।

यह साधु वह है जो राम शला पहाड़ी के सामने फलगू नद के बीच म भयानकट ले पर रहता


था िजसके पास मदद के लए माधवी और तलो तमा का जाना और उ ह ं के पास दे वी सं ह
का पहु ंचना भी हम लख आये ह। इस समय साधु इस बात पर मु तैद दखाई दे ता है क
िजस तरह बने इन दु ट के हाथ से बेचार कशोर को बचावे।

चांदनी रात म दू र खड़ा नाहर सं ह यह तमाशा दे खता रहा मगर भीमसेन को साधुसे जबद त
समझकर मदद के लए पास न आया। भीमसेन के चलाए हु ए खंजर ने साधु का कुछ भी
नु कसान न कया और उसने खंजर का वार बचाकर फुत से भीमसेन के पीछे जा उसक टांग

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पकड़कर इस ढं ग से खींची क भीमसेन कसी तरह स हल न सका और ध म से जमीन पर
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गर पड़ा। उसके गरते ह साधु हट गया और बोला, ''उठ खड़ा हो और फर आकर लड़!''
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गु से म भरा हु आ भीमसेन उठ खड़ा हु आ और खंजर जमीन पर फक साधु से लपटगया
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य क वह कु ती के फन म अपने को बहु त हो शयार समझता था, मगर साधु से कुछ पेश न
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nd सु त कर दया और कहा, ''जा म तु झे छोड़ दे ता हू, ं
गई। थोड़ी ह दे र म साधु ने भीमसेन को
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अगर अपनी िजंदगी चाहता है तो h
/ अभी यहां से भाग जा।''

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t का मु ंह दे खता रह गया, कुछ जवाब न दे सका। जमीन पर पड़ी
भीमसेन हैरान होकरtसाधु
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हु ई बेचार कशोर यह कै फयत दे ख रह थी मगर डर के मारे न तो उससे उठा जाता था
और न वह च ला ह सकती थी।

भीमसेन को इस तरह बेदम दे खकर नाहर सं ह से न रहा गया। वह झपटकर साधु के पास
आया और ललकारकर बोला, ''अगर बहादु र का दावा रखता है तो इधर आ। म समझ गया
क तू साधु नह ं बि क म कार है।''

साधु महाशय नाहर सं ह से भी उलझने को तैयार हो गये मगर ऐसी नौबत न आई य क


उसी समय ढू ं ढ़ते हु ए सध क राह से कुं अर इं जीत सं ह औरतारा सं ह भी खंडहर म आ पहु ं चे
और उनके पीछे -पीछे क नर और कमला भी आ मौजू द हु । कुं अर इं जीत सं ह को दे खते ह
वे साधु राम तो हट गये और खंडहर क द वार फांद न मालू म कहां चले गये। उधर एक पेड़
के पास गड़े हु ए अपने नेजे को नाहर सं ह ने उखाड़ लया और उसी से इं जीत सं ह का
मु काबला कया। उधर तारा सं ह ने उछलकर एक लात भीमसेन को ऐसी लगाई क वह कसी
तरह स हल न सका, तु रंत जमीन पर लोट गया। भीमसेन एक लात खाकर जमीन पर लोट

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जाने वाला न था मगर साधु के साथ लड़कर वह बदहवास और सु त हो रहा था इस लए
तारा सं ह क लात से स हल न सका। तारा सं ह ने भीमसेन क मु क बांध ल ं और उसे एक
कनारे रख के नाहर सं ह क लड़ाई का तमाशा दे खने लगा।

आधे घंटे तक नाहर सं ह और इं जीत सं ह के बीच लड़ाई होती रह ।इं जीत सं ह क तलवार ने
नाहर सं ह के नेजे को टु कड़े कर दया और नाहर सं हक ढाल पर बैठकर कुं अर इं जीत सं ह
क तलवार क जे से अलग हो गई। थोड़ी दे र के लए दोन बहादु र ठहर गए। कुं अर
इं जीत सं ह क बहादु र दे खनाहर सं ह बहु त खु श हु आ और बोला-

नाहर - शाबाश! तु हारे ऐसा बहादु र मने आज तक नह ं दे खा।

इं - ई वर क सृ ि ट म एक से एक बढ़के पड़े ह, तु हारे या हमारे ऐस क बात ह या है।

नाहर - आपका कहना बहु त ठ क है, मेरा ण या है आप जानते ह


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इं - कह जाइए, अगर नह ं जानता हू ं तो अब मालू म हो जायेगा।
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नाहर - मने .
ण कया है क जो कोई लड़कर मु झे जीतेगा म उसक ताबेदार कबू ल क ं गा।
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इं - तु हारे ऐसे बहादु र का यह d
ण बेमु ना सब नह ं है। फर आइए कु ती से नपटारा कर
लया जाय। hin
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नाहर - बहु त अ छा आइए!

दोन म कु ती होने लगी। थोड़ी ह दे र म कुं अर इं जीत सं ह ने नाहर सं ह को जमीन पर दे


मारा और पू छा, ''कहो अब या इरादा है '

नाहर - म ताबेदार कबू ल करता हू ं।

इं जीत सं ह उसक छाती पर से उठ खड़े हु ए और इधर-उधर दे खने लगे। चार तरफ स नाटा
था। कशोर , क नर या कमला का कह ं पता नह ं, भीमसेन और उसके सा थय का भी (अगर
कोई वहां हो) नाम- नशान नह ,ं यहां तक क अपने ऐयार तारा सं ह क सू रत भी उ ह दखाई
न द।

इं - यह या! चार तरफ स नाटा य छा गया

नाहर - ता जु ब है! इसके पहले तो यहां कई आदमी थे, न मालू म वे सब कहां गए

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इं - तु म कौन हो और तु हारे साथ कौन था

नाहर - म आपका ताबेदार हू ं, मेरे साथ शवद त सं ह का लड़का भीमसेन और इसके पहले म
उसका नौकर था, आशा है क आप भी अपना प रचय मु झे दगे।

इं - मेरा नाम इं जीत सं ह है।

नाहर - ह!!

नाम सु नते ह नाहर सं ह उनके पैर पर गर पड़ा और बोला, ''म ई वर को ध यवाद दे ता हू ं


क उसने मु झे आपक ताबेदार म स पा! य द कसी दू सरे क ताबेदार कबू ल करनी पड़ती तो
मु झे बड़ा दु ख होता!''

नाहर सं ह ने स चे दल से कुमार क ताबेदार कबू ल क । इसके बाद बड़ी दे र तक दोन


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बहादु र चार तरफ घू म-घू मकर उन लोग को ढू ं ढ़ते रहे मगर कसी का पता न लगा, हां एक
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पेड़ के नीचे भीमसेन दखाई पड़ा िजसके हाथ-पैर कमंद से मजबू त बंधे हु ए थे। भीमसेन ने
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पु कारकर कहा, '' य नाहर सं ह! या मेर मदद न करोगे' o
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नाहर - अब म तु हारा ताबेदार नह ं हू ं।
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इं - (भीमसेन से) तु ह कसने h iा?n
बांध
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भीम - म पहचानता तो
t tpनह ं मगर इतना कह सकता हू ं क आपके साथी ने।
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इं - और वह बाबाजी कहां चले गये?

भीम - या मालू म?

इतने म ह खंडहर क द वार फांदकर आते हु ए तारा सं ह भी दखाई पड़े।इं जीत सं ह घबड़ाए
हु ए उनक तरफ बढ़े और पू छ,ा ''तु म कहां चले गये थे'

तारा - िजस समय हम लोग यहां आये थे एक बाबाजी भी इस जगह मौजू द थे मगर न
मालू म कहां चले गये! म एक आदमी क मु क बांध रहा था क उसी समय (हाथ का इशारा
करके) उस झाड़ी म छपे कई आदमी बाहर नकले और कशोर को जबद ती उठाकर उसी
तरफ ले चले। उन लोग को जाते दे ख क नर और कमला भी उसी तरफ लपक ।ं मने यह
सोचकर क कह ं ऐसा न हो क आपको लड़ाई के समय धोखा दे कर वह आदमी पीछे से आप
पर वार करे झटपट उसक मु क बांधी और फर म भी उसी तरफ लपका िजधर वे लोग गये

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थे। वहां कोने म खु ल हु ई खड़क नजर आई, म यह सोच उस खड़क के बाहर गया क
बेशक इसी राह से वे लोग नकल गये ह गे।

इं - फर कुछ पता लगा

तारा - कुछ भी नह ,ं न मालू म वे लोग कधर गायब हो गये! म आपको लड़ते हु ए छोड़ गया
था इस लए तु रंत लौट आया। अब आप घर च लए, आपको पहु ं चाकर म उन लोग को खोज
नकालू ंगा। (नाहर सं ह क तरफ इशारा करके) इनसे या नपटारा हु आ

इं - इ ह ने मेर ताबेदार कबू ल कर ल ।

तारा - सो तो ठ क है , मगर दु मन का...

नाहर - आप इन सब बात को न सो चये, ई वर चाहे गा तो आप मु झे बेईमान कभी न पावगे!


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तारा - ई वर ऐसा ह करे ! o t
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रात क अंधेर
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ब कुल जाती रह और अ छ तरह सबेरा हो गया, मु ह ले के कई आदमी उस
खड़क क राह खंडहर म चले आये और अपनेuराजा
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s को वहां पा हैरान हो दे खने लगे। कुं अर
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i साथ भीमसेनको लए हु ए महल म पहु ंचे और
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इं जीत सं ह, तारा सं ह और नाहर सं ह अपने
n द सं ह सेकहा।
इं जीत सं ह ने सब हाल अपने भाई h iआनं
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आज रात क वारदात tनेpदोन कुमार को हद से यादे तर ुद म डाल दया। क नर और
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कशोर के इस तरह मलकर भी पु नः गायब हो जाने से दोन ह पहले से यादा उदास हु ए
और सोचने लगे क अब या करना चा हए।

बयान -4

आधी रात का समय है और स नाटे क हवा चल रह है। ब लौर क तरह खू बी पैदा करने
वाल चांदनी आ शक मजाज को सदा ह भल मालू म होती है ले कन आज सद ने उ ह भी
प त कर दया, यह ह मत नह ं पड़ती क जरा मैदान म नकल और इस चांदनी क बहार
ल मगर घर म बैठे दरवाजे क तरफ दे खा करने और उसांस लेने से होता ह या है।
मदानगी कोई और ह चीज है , इ क कसी दू सर ह व तु का नाम है, तो भी इ क के मारे हु ए
माशू क क ना गन-सी जु फ से अपने को डसाना ह जवांमद समझते ह और दलबर क
तरछ नगाह से अपने कलेजे को छलनी बनाने म बहादु र मानते ह। मगर वे लोग जो स चे
बहादु र ह घर बैठे 'ओफ' करना पसंद नह ं करते और समय पड़ने पर तलवार को ह अपना

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माशू क मानते ह। दे खये इस सद और ऐसे भयानक थान म भी एक स चे बहादु र को
कसी पेड़ क आड़ म बैठ जाना भी बु रा मालू म होता है।

अब रात पहर भर से भी कम बाक है। एक पहाड़ी के ऊपर िजसक ऊंचाई बहु त यादे नह ं
तो इतनी कम भी नह ं है क बना दम लए एक ह दौड़ म कोई ऊपर चढ़ जाये, एक आदमी
मु ंह पर नकाब डाले काले कपड़े से तमाम बदन को छपाये इधर-उधर टहल रहा है। चार
तरफ स नाटा है , कोई उसे पहचानने वाला यहां मौजू द नह ,ं शायद इसी खयाल से उसने नकाब
उलट द और कुछ दे र के लए खड़े होकर मैदान क तरफ दे खने लगा।

इस पहाड़ी के बगल म एक दू सर पहाड़ी है िजसक जड़ इस पहाड़ी से मल हु ईहै। मालू म


होता है क एक पहाड़ी के दो टु कड़े हो गए ह। बीच म डाकुओं और लु टेर के आने-जाने
लायक रा ता है िजसे भयानक दरा कहना मु ना सब जान पड़ता है। इस आदमी क नगाह
घड़ी-घड़ी उस दर क तरफ दौड़ती और स नाटा पाकर मैदान क तरफ घू म जाती है िजससे

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मालू म होता है क उसक आंख कसी ऐसे को ढू ं ढ़ रह ह िजसके आने क इस समय पू र
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उ मीद है।
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टहलते - टहलते उसे बहु त दे र हो गई, पू रब तरफ आसमान पर कुछ-कुछ सफेद फैलने लगी
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िजसे दे ख यह कुछ घबड़ाया-सा हो गया और दस कदम आगे बढ़कर मैदान क तरफ दे खने
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nd उठा, ''आ पहु ंच!''े
लगा, साथ ह इसके च का और धीरे से बोल
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उस आदमी ने धीरे से सीट:/बजाई। इधर-उधर च ान क आड़ म छपे हु ए दस-बारह आदमी
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नकल आये िज ह देtखt वह हु कूमत के तौर पर बोला, ''दे खो वे लोग आ पहु ंच,े अब बहु त ज द
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नीचे उतर चलना चा हए।''

बात के अंदाज से मालू म हो गया क वह आदमी जो बहु त दे र से पहाड़ी के ऊपरटहल रहा


था उन सभ का सरदार है। अब उसने अपने चेहरे पर नकाब डाल ल और अपने सा थय को
लेकर तेजी के साथ पहाड़ी के नीचे उतर आने वाल का मु हाना रोक लया।

कपड़े म लपेट हु ई एक लाश उठाए और उसे चार तरफ से घेरे हु ए कई आदमी उसदर म
घु से। वे लोग कदम बढ़ाये जा रहे थे। उ ह व न म भी यह गु मान न था क हम लोग के
काम म बाधा डालने वाला इस पहाड़ के बीच म से कोई नकल आएगा।

जब लाश उठाए हु ए वे लोग उस दर के बीच म घु से बि क उन लोग ने जबआधा दरा तै


कर लया, तब यकायक चार तरफ से छपे हु ए कई आदमी उन लोग पर टू ट पड़े और हर
तरह से उ ह लाचार कर दया। वे लोग कसी तरह भी लाश को न ले जा सके और तीन-चार

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आद मय के घायल होने तथा एक के मर जाने पर उसी जगह उस लाश को छोड़ आ खर
सभ को भाग ह जाना पड़ा।

दु मन के भाग जाने पर उस सरदार ने जो पहले ह से उस पहाड़ी पर मौजू द था िजसका


िज हम कर आये ह, अपने सा थय को पु कारकर कहा, ''पीछा करने क कोई ज रत नह ं
हमारा मतलब नकल गया, मगर यह दे ख लेना चा हए क यह कशोर ह है या नह ं!''

एक ने बटु ए म से मोमब ती नकालकर जलाई और उस लाश के मु ंह पर से कपड़ा हटाकर


दे खने के बाद कहा, '' कशोर ह तो है।'' सरदार ने कशोर क न ज पर हाथ रखा और कहा -

सरदार - ओफ! इसे बहु त तेज बेहोशी द गई है , दे खो तु म भी दे ख लो!

एक - (न ज दे खकर) बेशक बहु त यादे बेहोशी द गई है, ऐसी हालत म अ सर जान नकल
जाती है!
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दू सरा - इसे कुछ कम करना चा हए।
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सरदार ने अपने बटु ए म से एक ड बया नकाल तथा खोलकर कशोर को सु ंघाने के बाद
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फर न ज पर हाथ रखा और कहा, ''बस इससे
i 4u यादे बेहोशी कम करने से यह होश म आ
जायेगी। चलो उठाओ, अब यहां ठहरनाnमुd
ना सब नह ं है।''
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कशोर को उठाकर वे लोग:/
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उसी दर क राह घू मते हु ए पहाड़ी के पार हो गयेऔर न मालू म
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कस तरफ चले गये।ttइनके जाने के बाद उसी जगह जहां पर लड़ाई हु ई थी छपा हु आ एक
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आदमी बाहर नकला और चार तरफ दे खने लगा। जब वहां कसी को मौजू द न पाया तो धीरे
से बोल उठा -

''मेरा पहले ह से यहां पहु ं चना कैसा मु ना सब हु आ! म उन लोग को खू ब पहचानता हू ं जो


लड़- भड़कर बेचार कशोर को ले गये! खैर, या मु जायका है, मु झसे भागकर ये लोग कहां
जायगे। मेरे लए तो दोन ह बराबर ह, वे ले जाते तब भी उतनी ह मेहनत करनी पड़ती, और
ये लोग ले गये ह तब भी उतनी ह मेहनत करनी पड़ेगी। खैर ह र इ छा, अब बाबाजी को
ढू ं ढ़ना चा हए। उ ह ने भी इसी जगह मलने का वादा कया था।''

इतना कह वह आदमी चार तरफ घू मने और बाबाजी को ढू ं ढ़ने लगा। इस समय इस आदमी
को य द माधवी दे खती तो तु रंत पहचान लेती य क यह वह साधु है जो राम शला पहाड़ी के
सामने ट ले पर रहता था, िजसके पास माधवी गई थी, या िजसने भीमसेन के हाथ से उस
समय कशोर क जान बचाई थी जब खंडहर के बीच म वह उसक छाती पर सवार हो खंजर
उसके कलेजे के पार कया ह चाहता था।

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साफ सबेरा हो चु का था बि क पू रब तरफ सू य क ला लमा ने चौथाई आसमान परअपना
दखल जमा लया था। वह साधु इधर-उधर घू मता - फरता एक जगह अटक गया और सोचने
लगा क कधर जाय या या करे इतने ह म सामने से इसी क सू रत-श ल के दू सरे बाबाजी
आते हु ए दखाई पड़े। दे खते ह यह उनक तरफ बढ़ा और बोला, ''म बड़ी दे र से आपको
ढू ं ढ़ता रहा हू ं य क इसी जगह मलने का आपनेवादा कया था।''

अभी आए हु ए बाबाजी ने कहा, ''म भी वादा पू रा करने के लए आ पहु ंचा। (हंसकर) बहु त
अ छे ! य द इस समय कोई दे खे तो अव य बावला हो जाय और कहे क एक ह रं ग और
सू रत-श ल के दो बाबाजी कहां से पैदा हो गये अ छा हमारे पीछे -पीछे चले आओ।''

दोन बाबाजी ने एक तरफ का रा ता लया और दे खते-दे खते न मालू म कधर गायब हो गये
या कसी खोह म जा छपे।

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कशोर क जब आंख खु ल तो उसने अपने को एक सु ंदर मसहर पर लेटे हु ए पायाऔर
उ दा कपड़ और जेवर से सजी हु ई कई औरत भी उसे दखाई पड़ीं
p o। पहलेतो कशोर ने यह
समझा क वे सब अ छे अमीर और सरदार क लड़ कयांgहsमगर थोड़ी ह दे र बाद उनक
बातचीत और कायदे से मालूम हो गया क ल डयांbह। loअपनी बेबसी और बद क मती पर
रोती हु ई कशोर को यह जानने क बड़ी उ कंu
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ठा हु ई क कस महाराजा धराज के मकान म
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iशौकत
आ फंसी हू ं िजसक ल डयां इस शान और
n d क दखाई पड़ती ह।
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कशोर को होश म आते :दे/ख उनम क दो-तीन ल डयां न मालू म कहां चल ग मगर
कशोर ने समझ लया t tpक मेरे होश म आने क कसी को खबर करने गई ह।
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ता जु ब-भर नगाह से कशोर चार तरफ दे खने लगी। वाह-वाह, या सु ंदर कमरा बना हु आ
है। चार तरफ द वार पर मीनाकार का काम कया हु आ है, छत म सु नहर बेल और बीच-
बीच म जड़ाऊ फूल को दे खकर अ ल दं ग होती है, न मालू म इसक तैयार म कतने पये
खच हो गये ह गे! छत से लटकती हु ई ब लोर हां डय क परइय म मा नक क लोलक
लटक रह ह, जड़ाऊ डार पर बेशक मती द वारगीर अपनी बहार दखा रह ह, दरवाज क
महराब पर बेल और उस पर बैठ हु ई छोट-छोट खू बसू रत च ड़य के बनाने म कार गर ने
जो कुछ मेहनत क होगी उसका जानना बहु त ह मु ि कल है। उन अंगू र मकह ं पके अंगू र
क जगह मा नक और क चे क जगह प ना काम म लाया गया था। अलावा इन सब बात
के उस कमरे म कुल सजावट का हाल अगर लखा जाय तो हमारा असल मतलब ब कुल
छूट जायेगा और मु तसर लखावट के वादे म फक पड़ जायगा, अ तु इस बारे म हम कुछ
नह ं लखते।

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इस मकान को दे ख कशोर दं ग हो गई। उसक हालत को लखना बहु त ह मु ि कल है।
िजधर उसक नगाह जाती उधर ह क हो रहती थी, पर उस जगह क सजावट कशोर
अ छ तरह दे खने भी न पाई थी क पहले क -सी और कई ल डयां वहां आ मौजू द हु और
बोल ,ं ''महाराज को साथ लए रानी सा हबा आ रह ह!''

महाराज को साथ लए रानी सा हबा उस कमरे म आ पहु ंचीं। बेचार कशोर को भला या
मालू म क ये दोन कौन ह या कहां के राजा ह तो भी इन दोन क सू रत-श ल दे खते ह
कशोर आब म आ गई। महाराज क उ लगभग पचास वष क होगी। लंबा कद, गोल
चेहरा, बड़ी-बड़ी आंख, चौड़ी पेशानी, ऊपर को उठ हु ई मू ंछ, बहादु र चेहरे पर बरस रह थी।
रानी सा हबा क उ भी लगभग पतीस वष के होगी फर भी उनके बदन क बनावट और
खू बसू रती नौजवान पर जमाल क आंख नीची करती थी। उनक बड़ी-बड़ी रतनार आंख म
अब भी वह बात थी जो उनक जवानी म होगी। उनके अंग क लु नाई म कसी तरह का
फक नह ं आया था। इस समय एक क मती धानी पोशाक उनक खू बसू रती को बढ़ा रह थी
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और जड़ाऊ जेवर से उनका बदन भरा हु आ था मगर दे खने वाला यह कहे गा क उ ह जेवर
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क कोई ज रत नह ं, यह तो हु न ह के बोझ से दबी जाती ह। s p
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उन दोन के
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आब ने कशोर को पलंग पर पड़े रहने न दया। वह उठ खड़ी हु ई और उनक

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तरफ दे खने लगी। रानी सा हबा चाहे कैसी ह खू बसू रत य न ह और उ ह अपनी खू बसू रती
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पर चाहे कतना ह घमंड in
य न हो, मगर कशोर क सू रत दे खते ह वे दं ग हो ग
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और
इनक शेखी हवा हो गई। इस /समय वह हर तरह से सु त और उदास थी, कसी तरह क
p :/थी, तो भी महारानी के जी ने गवाह दे द क इससे बढ़कर
सजावट उसके बदन पर
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खू बसू रत दु नया म कोई न होगा। कशोर उनक खू बसू रती के आब म आकर पलंग के नीचे
नह ं उतर थी बि क इ जत के लहाज से और यह सोचकर क जब इस कमरे क इतनी
बड़ी सजावट है तो उनके खास कमरे क या नौबत होगी और वह कतने बड़े रा य और
दौलत क मा लक ह गी, उठ खड़ी हु ई थी।

राजा और रानी दोन ने यार क नगाह से कशोर क तरफ दे खा और राजा ने आगे बढ़कर
कशोर क पीठ पर हाथ फेरकर कहा, ''बेशक यह मेर ह पतोहू होने के लायक है।''

इस आ खर श द ने कशोर के साथ वह काम कया जो नमक ज म के साथ, आग फूस क


झ ड़ड़ी के साथ, तीर कलेजे के साथ, शराब धम के साथ, लालच ईमान के साथ और बजल
गरकर तनोबदन के साथ करती है।

बयान -5

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कुं अर इं जीत सं ह नाहर सं ह और तारा सं ह को साथ लए घर आये और अपने छोटेभाई से
सब हाल कहा। वे भी सु नकर बहु त उदास हु ए और सोचने लगे क अब या करना चा हए।
दोन कुमार बड़े ह तर ुद म पड़े। अगर तारा सं ह को पता लगाने के लए भेज तो गया म
कोई ऐयार न रह जायगा और यह बात अगर उनके पता सु न तो बहु त रं ज ह, िजसका
खयाल उ ह सबसे यादा था। दो पहर दन चढ़े तक दोन भाई बड़े ह तर ुद म पड़े रहे ,
दोपहर बाद उनका तर ुद कुछ कम हु आ जब पं डत ब नाथ, भैरो सं ह और जग नाथ यो तषी
वहां आ मौजू द हु ए। तीन के वहां पहु ंचने से दोन कुमार बहु त खु श हु ए और समझा क अब
हमारा काम अटका न रहे गा।

कुं अर इं जीत सं ह आनंद सं ह, तारा सं ह, पं डत ब नाथ, भैरो सं ह और यो तषीजी ये सब बाग


क बारहदर म एकांत समझकर चले गये और बातचीत करने लगे।

आनंद - ल िजए साहब अब तो दु मन लोग यहां भी बहु त से हो गये।

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यो तषी - कोई हज नह ं।

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- भैरो सं ह, पहले तु म अपना हाल कहो, यहां से जाने के बाद
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भैरो - मु झे तो रा ते म ह मालू म हो गया था क कशोर वहां नह ं है।

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/ म हु आ था।
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इं - यह सब हाल मु झे भी मालू

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ht आपके पास भी आया होगा िजसने मु झे खबर द
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भैरो - ठ क है , वह आदमी थी।

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- खैर तब या हु आ

भैरो - फर भी म वहां चला गया (ब नाथ और यो तषीजी क तरफ इशारा करके) और इन


लोग के साथ मलकर काम करने लगा। ये लोग दो सौ बहादु र के साथ वहां पहले से मौजू द
थे। आ खर यह हु आ क द वान अि नद त और दो-तीन उसके साथी गर तार करके चु नार
भेज दये गये। माधवी का पता नह ं क वह कहां गई, वहां क रयाया सब अि नद त से रं ज
थी इस लए राजगृ ह अपने क जे म कर लेना हम लोग को बहु त ह सहज हु आ। अब उ ह ं
दो सौ आद मय के साथ प नालाल को वहां छोड़ आया हू ं।

ब - आप यहां का हाल भी क हये। सु ना है यहां बड़े-बड़े बेढब मामले हो गये ह!

इं - यहां का हाल भैरो सं ह क जबानी आपने सु ना ह होगा, इसके बाद आज रात को एक


अजीब बात हो गई है।

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तारा सं ह ने रात भर का कुल हाल उन लोग से कहा िजसे सु न वे लोग बहु त ह तर ुद म
पड़ गये।

इन लोग क बातचीत हो रह थी क एक चोबदार ने आकर अज कया क ''अखंडनाथ


बाबाजी बाहर खड़े ह और यहां आना चाहते ह।'' अखंडनाथ नाम सु न ये लोग सोचने लगे क
कौन ह और कहां से आये ह। आ खर इं जीत सं ह ने उ ह अपने पास बु लाया और सू रत दे खते
ह पहचान लया।

पाठक, ये अखंडनाथ बाबाजी वह ह जो राम शला के सामने फलगू के बीच भयानक ट ले पर


रहते थे, िजनके पास माधवी जाती थी, तथा िज ह ने उस समय कशोर क जान बचाई थी
जब खंडहर म उसक छाती पर सवार हो भीमसेन खंजर उसके कलेजे म भ का ह चाहता था
और िजसका कुल हाल इसी भाग के तीसरे बयान म हम लख आये ह। इन बाबाजी को
तारा सं ह भी पहचानते थे य क कल रात यह भी इं जीत सं ह के साथ ह थे।

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इं जीत सं ह ने उठकर बाबाजी को णाम कया। इनको उठते दे ख o और सब लोग भी उठ खड़े
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हु ए। कुमार ने अपने पास बाबाजी को बैठाया और ऐयार gकs तरफ दे ख के कहा, ''इ ह ं का
हाल म कह चु का हू, ं इ ह ने ह उस खंडहर म कशोरbक loजान बचाई थी।''
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बाबा - जान बचाने वाला तो ई वर है म i4
n d या कर सकता हू ं। खैर, यह तो क हये उस मामले
के बाद क भी आपको खबर है क i
h या हु आ!
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इं जीत - कुछ भी नहt,ं p
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हम लोग इस समय इसी सोच- वचार म पड़े ह।
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बाबा - अ छा तो फर मु झसे सु नये। दो औरत और जो उस मकान म थीं उनका हाल तो
मु झे मालू म नह ं क कशोर क खोज म कहां ग , मगर कशोर का हाल म खू ब जानता हू ं।

बाबाजी क बात ने सभ का दल अपनी तरफ खींच लया और सब लोग एका होकर


उनक बात सु नने लगे। बाबाजी ने य कहना शु कया -

''नाहर सं ह से जब कुमार लड़ रहे थे उस समय भीमसेन के सा थय को जो उसी जगह छपे


हु ए थे मौका मला और वे लोग कशोर को लेकर शवद तगढ़ क तरफभागे, मगर ले न जा
सके य क रा ते ह म रोहतासगढ़1 के राजा के ऐयार लोग छपे हु ए थे िजन लोग ने
लड़कर कशोर को छ न लया और रोहतासगढ़ ले गये। कशोर क खू बसू रती का हाल
सु नकर रोहतासगढ़ के राजा ने इरादा कर लया क अपने लड़के के साथ उसे याहे गा और
बहु त दन से उसके ऐयार लोग कशोर क धु न म लगे हु ए भी थे। अब मौका पाकर वे लोग
अपना काम कर गये। अगर आप लोग ज द उसके छुड़ाने क फ न करगे तो बेचार के
बचने क उ मीद जाती रहे गी। लड़- भड़कर रोहतासगढ़ के कले को फतह करना बहु त मु ि कल

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है, चाहे फौज और दौलत म आप लोग बढ़ के य न ह मगर पहाड़ के ऊपर के उस
आल शान कले के अंदर घु सना बड़ा ह क ठन है मगर फर भी चाहे जो हो आप लोग
ह मत न हार। कशोर का खयाल चाहे न भी हो मगर यह सोचकर क आपके समीप का
यह मजबू त कला आप ह के

1.रोहतासगढ़ बहार के इलाके म मशहू र है। यह कला पहाड़ के ऊपर है । उस जमाने म इस कले क लंबाई-चौड़ाई लगभग
दस कोस क होगी। बड़े-बड़े राजा लोग भी इसको फतह करने का हौसला नह ं कर सकते थे। आजकल यह इमारत ब कु ल
टू ट-फूट गई है तो भी देखने यो य है।

यो य है , ज र मेहनत करनी चा हए। ई वर आपको वजय दे गा और जहां तक हो सकेगा म


आपक मदद क ं गा।''

बाबाजी क जु बानी सब हाल सु नकर कुं अर इं जीत सं ह बहु त स न हु ए। एक


तो कशोर का
पता लगने क खु शी दू सरे रोहतासगढ़ के राजा से बड़ी भार लड़ाई लड़कर जवानी का हौसला
नकालने और मशहू र कले पर अपना दखल जमाने क खु शी से ग गद हो गये और जोश .i n
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भर आवाज म बाबाजी से बोले -
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इं जीत सं ह - बड़े-बड़े वीर क आ माएं b l
वग से झांककर दे खगी क रोहतासगढ़ क लड़ाई
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कैसी होती है और कस तरह हम लोग उस कले को फतह करते ह। रोहतासगढ़ का हाल हम
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nd लगे ऐसा इरादा नह ं कर सकते थे।
बखू बी जानते ह, मगर बना कोई सबब हाथ
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बाबा - अ छा एक लोटा जल
p :/मंगाइये।
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तु रंत जल आया। बाबाजी ने अपनी दाढ़ नोचकर फक द और मु ंह धो डाला। अब तो सभ
ने पहचान लया क ये दे वी सं ह ह।

पाठक, राम शला पहाड़ी के सामने भयानक ट ले पर रहने वाले बाबाजी से दे वी सं ह का मलना
आप भू ले न ह गे और आपको यह भी याद होगा क दे वी सं ह सेबाबाजी ने कहा था क 'कल
इस थान को हम छोड़ दगे।' बस बाबाजी के जाने के बाद दे वी सं ह ह उनक सू रत म उस
ग ी पर जा वराजे और जो कुछ काम कया आप जानते ह ह। उस दन बाबाजी क सू रत
म दे वी सं ह ह थे िजस दन माधवी ने मलकर कहा था क 'हमार मदद के लए भीमसेन
आ गया है।' असल बाबाजी भी उस पहाड़ी पर दे वी सं ह से मल चु के ह जहां हमने लखा है
क एक ह सू रत के दो बाबाजी इक े हु ए ह और उ ह ं बाबाजी क जु बानी रोहतासगढ़ का
मामला दे वी सं ह ने सु ना था।

दे वी सं ह ने अपना ब कुल हाल दोन कुमार से कहा और आ खर म बोले, ''अब रोहतासगढ़


पर हम ज र चढ़ाई करगे।''

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इं - बहु त अ छ बात है, हम लोग का हौसला भी तभी दखाई दे गा! हां यह तो क हए
नाहर सं ह से कैसा बताव कया जाय

दे वी - कौन नाहर सं ह

इं - उस खंडहर म जो मु झसे लड़ा था बड़ा ह बहादु र है। उसने ण कर रखा था क जो


मु झे जीतेगा उसी का म ताबेदार हो जाऊंगा। अब उसने भीमसेन का साथ छोड़ दया और हम
लोग के साथ रहने को तैयार है।

दे वी - ऐसे बहादु र पर ज र मेहरबानी करनी चा हए मगर आज हम उसे आजमावगे। आज से


उसके लए एक मकान दे द और हर तरह के आराम का बंदोब त कर द।

इं - बहु त अ छा।

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कुं अर इं जीत सं ह ने उसी समय नाहर सं ह को अपने पास बु लाया और बड़ीमेहरबानी के साथ
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पेश आये। एक मकान दे कर अपने सेनाप त क पदवी उसे द और भीमसेन को कैद म रखने
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का हु म दया। o g
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अपने ऊपर कुमार क इतनी मेहरबानी दे ख नाहर सं ह बहु तस न हु आ। कुछ दे रतक बात
करता रहा, तब सलाम करके अपने ठकाने
i nd चला गया और सेनाप त के काम को ईमानदार के
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साथ पू रा करने का उ योग करने hलगा।
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आधी रात जा चु क tहैt
h । चार तरफ स नाटा छाया हु आ है। ग लय और सड़क परचौक दार
के ''जागते र हयो, हो शयार र हयो'' पु कारने क आवाज आ रह है। नाहर सं ह अपने मकान म
पलंग पर लेटा हु आ कोई कताब दे ख रहा है और सरहाने शमादान जल रहा है।

नाहर सं ह के हाथ म ु त मृ त या पु राण क कोई पु तक नह ं है, उसके हाथ म त वीर क


एक कताब है िजसके प ने वह उलटता है और एक-एक त वीर को दे र तक बड़े गौर से
दे खता है। इन त वीर म बड़े-बड़े राजाओं और बहादु र क मशहू र लड़ाइय का न शा दखाया
गया है और पहलवान क बहादु र और दलावर क दलावर का खाका उतरा हु आ है िजसे
दे ख-दे खकर नाहर सं ह क रग जोश मारती ह और वह चाहता है क ऐसी लड़ाइय म हम भी
कभी हौसला नकालने का मौका मले।

त वीर दे खते-दे खते बहु त दे र हो गई और नाहर सं ह क नींद भर आंख भीबंद होने लगीं।
आ खर उसने कताब बंद करके एक तरफ रख द और थोड़ी ह दे र बाद गहर नींद म सो
गया।

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इस मकान के कसी कोने म एक आदमी न मालू म कब का छपा हु आ था जो नाहर सं हको
सोता जानकर उस कमरे म चला आया और पलंग के पास खड़ा हो उसे गौर से दे खने लगा।
इस आदमी को हम नह ं पहचानते य क यह मु ंह पर नकाब डाले हु ए है। थोड़ी दे र बाद
अपनी जेब से उसने एक पु ड़या नकाल और एक चु टक बु कनी नाहर सं ह क नाक के पास
ले गया। सांस के साथ धू रा दमाग म पहु ंचा और वहछ ंक मारकर बेहोश हो गया।

उस आदमी ने अपनी कमर से एक र सी खोल और नाहर सं ह के हाथ-पैर मजबू ती से


बांधकर उसे हो शयार करने के बाद तलवार खच मु ंह पर से नकाब हटा सामने खड़ा हो गया।
होश म आते ह नाहर सं ह ने अपने को बेबस और हाथ म नंगी तलवार लए महाराज
शवद त को सामने मौजू द पाया।

शव - य नाहर सं ह, एक नाजु क समय म हमारे लड़के का साथ छोड़ देना और उसे दु मन


के हाथ म फंसा दे ना या तु ह मु ना सब था

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नाहर - जब तक बहादु र इं जीत सं ह ने मु झ पर फतह नह ं पाईoतब तक म बराबरतु हारे
लड़के का साथ दे ता रहा, जब कुमार ने मु झे जीत लया था g sतोpअपने कौल के मु ता बक मने
उनक ताबेदार कबू ल कर ल । मेरे कौल को तु म भी b lo ह थे।
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शव - जो कुछ तु मने कया है उसक सजाi4
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दे ने के लए इस समय म मौजू द हू ं।

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नाहर - खैर ई वर क जो मज /
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शव - अब भी अगरhtतु म हमारा साथ दे ना मंजू र करो तो छोड़ सकता हू ं।
नाहर - यह नह ं हो सकता। ऐसे बहादु र का साथ छोड़ तु हारे ऐसे बेईमान का संग करना
मु झे मंजू र नह ं।

शव - (डपटकर और तलवार उठाकर) या तु ह अपनी जान दे ना मंजू र है?

नाहर - खु शी से मंजू र है मगर मा लक का संग छोड़ना कबू ल नह ं है!

शव - दे खो फर तु ह समझाता हू,ं सोचो और मेरा साथ दो!

नाहर - बस, बहु त बकवाद करने क ज रत नह ं, जो कुछ तु म कर सको कर लो। म ऐसी


बात नह ं सु नना चाहता।

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शवद त ने बहु त समझाया और डराया-धमकाया मगर बहादु र नाहर सं ह क नीयत नबदल ।
आ खर लाचार होकर शवद त ने अपने हाथ से तलवार दू र फक द और नाहर सं ह क पीठ
ठ ककर बोला -

''शाबाश बहादु र! तु हारे ऐसे जवांमद का दल अगर ऐसा न होगा तो कसका होगा म
शवद त नह ं हू ं, कुमार का ऐयार दे वी सं ह हू, ं तु ह आजमाने के लए आया था!''

इतना कहकर उ ह ने नाहर सं ह क मु क खोल द ं और वहां से फौरन चले गये। दे वी सं ह ने


यह हाल दोन कुमार से कहकर नाहर सं ह क तार फ क मगर बहादु र नाहर सं ह ने अपनी
िजंदगी भर इस आजमाने का हाल कसी से न कहा।

दू सरे दन दे वी सं ह चु नार चले गये और कह गए क रोहतासगढ़ क चढ़ाई का बंदोब त


करके म बहु त ज द आऊंगा।

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यह जानकर क कशोर को रोहतासगढ़ वाले ले गये ह कुं अर इं जीत सं ह क बेचैनी हद से
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यादे बढ़ गई। दम भर के लए भी आराम करना मु ि कल हो गया, दो ह पहर म सू रत बदल
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गई। कसी का बु लाना या कुछ पू छना उ ह जहर-सा मालू म पड़ने लगा। इनक ऐसी हालत
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. लगा।
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दे ख भैरो सं ह से न रहा गया, नराले म बैठे उ ह समझाने
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इं - तु हारे समझाने से मेर हालतinकसी तरह बदल नह ं सकती और
h तरह कम नह ं हो सकता।
कशोर क जान का

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खतरा जो मु झे लगा हु आ है कसी
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भैरो - कशोर कोh अगर शवद तगढ़ वाले ले जाते तो बेशक उसक जान का खतरा था,
य क शवद त रं ज के मारे बना उसक जान लये न रहता, मगर अब तो वह रोहतासगढ़

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के राजा के क जे म है और वह अपने लड़के से उसक शाद
कशोर क जान का दु मन वह य कर हो सकेगा
कया चाहता है , ऐसी हालत म

इं - मगर जबद ती कशोर क शाद कर द गई तब या होगा

भैरो - हां, अगर ऐसा हो तो ज र रं ज होगा, खैर आप चं ता न क रये, ई वर चाहे गा तो पांच


ह सात दन म कुल बखेड़ा तय कर दे ता हू ं।

इं - या कशोर को वहां से ले आओगे

भैरो - रोहतासगढ़ के कले म घु सकर कशोर को नकाल लाना तो दो-तीन दन का काम


नह ,ं इसके अ त र त या रोहतासगढ़ का कला ऐयार से खाल होगा

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इं - फर तु म पांच-सात दन म या करोगे

भैरो - कोई ऐसा काम ज र क ं गा िजससे कशोर क शाद क जाय।

इं - वह या

भैरो - िजस तरह बनेगा वहां के राजकुमार क याण सं ह को पकड़ लाऊंगा, जब हम लोग का
फैसला हो जायेगा तब छोड़ दू ं गा।

इं - हां अगर ऐसा करो तो या बात है!

भैरो - आप चं ता न क िजए। म अभी यहां से रवाना होता हू,ं आप कसी से मेरे जाने का
हाल न क हएगा।

इं - या अकेले जाओगे
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भैरो - जी हां। s p
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इं - वाह! कह ं फंस जाओ तो म तु हार राह ह .
s दे खता रह जाऊं, कोई खबर दे ने वाला भी
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नह ं।
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भैरो - ऐसी उ मीद न र खए। /
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कुं अर इं जीत सं ह सेtवादा करके भैरो सं ह रोहतासगढ़ क तरफ रवाना हु ए, मगर भैरो सं ह का
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अकेले रोहतासगढ़ जाना इं जीत सं ह को न भाया। उस समय तो भैरो सं ह क िजद से चु प हो
रहे मगर उसके बाद कुमार ने सब हाल पं डत ब नाथ से कहकर दो त क मदद के लए
जाने का हु म दया। हु म पाते ह पं डत ब नाथ भी रोहतासगढ़ रवाना हु ए और रा ते म
ह भैरो सं ह से जा मले।

दो रोज चलकर ये दोन आदमी रोहतासगढ़1 पहु ंचे और पहाड़ के ऊपर चढ़ कले म दा खल
हु ए। यह बहु त बड़ा कला पहाड़ पर नहायत खू बी का बनाहु आ था और इसी के अंदर शहर
भी बसा था जो बड़े-बड़े सौदागर , महाजन , यापा रय और जौह रय के कारबार से अपनी
चमक-दमक दखा रहा था। इस शहर क खू बी और सजावट का हाल इस जगह लखने क
कोई ज रत नह ं मालू म होती और इतना समय भी नह ं है, हां मौके पर दो-चार दफे पढ़कर
इसक खू बी का हाल पाठक मालू म कर लगे।

1. राजा शव साद सतारे हंद ने अपनी कताब जान-जहांनु मा म लखा है - ''आरे से कर ब पचह तर मील के दि खन-पि चम
को झु कता हु आ हजार फ ट ऊंचे पहाड़ केऊपर का एक बड़ा ह मजबू त कला ''रोहतासगढ़'' िजसका असल नाम ''रोहता म'' है
दस मील मु र बा क बसअत म सोन नद के बाएं कनारे पर उजाड़ पड़ा हु आ है । उसम जाने के वा ते सफ एक ह रा ता

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दो कोस क चौड़ाई का तंग-सा बना है बाक सब तरफ वह पहाड़, जंगल और न दय से ऐसा घरा हु आ है क कसी तौर से
वहां आदमी का गु जर नह ं हो सकता। उस कले के अंदर दो मं दर अगले जमानेके अभी मौजू द ह बाक सब इमारत महल,
बाग, तालाब वगैरह िजनका अब सफ नशान भर रह गया है मु सलमान बादशाह के बनाये हु ए ह।''

( ंथकता) - मगर अकबर के जमाने म जो '' बहार'' का हाल लखा गया है उससे मालू म होता
है क यह मु काम मु सलमान क अमलदार के पहले से बना हु आहै।

इस कले के अंदर एक छोटा कला और भी था िजसम महाराज और उनके आपस वाले रहा
करते थे और लोग म वह महल के नाम से मशहू र था।

इस पहाड़ पर छोटे झरने और तालाब बहु त ह। ऊपर जाने के लए केवल एक ह राहहै और


वह भी बहु त बार क है। उसके चार तरफ घना जंगल इस ढं ग का है क जरा भी आदमी कूदा
और राह भू लकर कई दन तक भटकने क नौबत आई। दु मन का और कसी तरह से इस
पहाड़ पर चढ़ना बहु त ह मु ि कल है और वह बार क राह भी इस लायक नह ं क पांच-सात
आदमी से .in
यादा एक साथ चढ़ सक। भेष बदले हु ए हमारे दोन ऐयार रोहतासगढ़ पहु ंचे और
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वहां क रं गत दे खकर समझ गये क इस कले को फतह करने मpबहु o त मु ि कल पड़गी।
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भैरो सं ह और पं डत ब नाथ मथु रया चौबे बने हु एbरोहतासगढ़ म घू मने औरएक-एक चीज
को अ छ तरह दे खने लगे। दोपहर के समय u एकs. शवालय पर पहु ंचे जो बहु त ह खू बसू रत
और बड़ा बना हु आ था, सभामंडल इतना d
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बड़ा था क सौ-डेढ़ सौ आदमी अ छ तरह उसम बैठ
सकते थे। उसके चार तरफ खु लh
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/ ा-सा सहन था िजस पर कई ा मण और पु जार बैठे धू प
सक रहे थे। उ ह ं लोग क:े /
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पास जाकर हमारे दोन ऐयार खड़े हो गये और गरजकर बोले -
''जै जमु ना मैया कh!''t

पु जा रय ने हमारे दोन चौब को खा तदार से बैठाया और बातचीत करने लगे।

एक पु जार - क हये चौबेजी, कब आना हु आ

ब - बस अभी चले ह तो आते ह महाराज! पहाड़ पर चढ़ते-चढ़ते थक गये, गला सू ख गया,


कृ पा करके सल-लु ढ़या दो तो भंग छने और च त ठकाने हो।

पु जार - ल िजये, सल-लु ढ़या ल िजये, मसाला ल िजये, चीनी ल िजये, खू ब भंग छा नये।

भैरो - भंग मसाला तो हमारे साथ है, आप ा मण का य नु कसान कर।

पु जार - नह ,ं नह ,ं हमारा कुछ नह ं है, यहां सब चीज महाराज के हु म से मौजू द रहती ह,


ा मण परदे शी जो कोई आवे सभी को दे ने का हु म है।

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ब - वाह-वाह, तब या बात है! लाइये फर महाराज क जयजयकार मनाव!

पु जार ने इन दोन को सब सामान दया और इन दोन ने भंग बनाई, आप भी पी और


पु जा रय को भी पलाई। दोन ऐयार ने बातचीत और मसखरे पन से वहां के पु जा रय को
अपने बस म कर लया। बड़े पुजार बहु त स न हु ए और बोले, ''चौबेजी महाराज, बड़े भा य
से आप लोग के दशन हु ए ह। आप लोग दो-चार रोज यहां ज र र हये! इसी जगह आपको
महाराजकुमार से भी मलावगे और आप लोग को बहु त कु छ दलावगे। महाराजकुमार बहु त
ह हंसमु ख, नेक और बु मान ह। आप उ ह दे ख बहु त स न ह गे!''

ब - बहु त खू ब महाराज, आप लोग क इतनी कृ पा है तो हम ज र रहगे और आपके


महाराजकुमार से भी मलगे। वे यहां कब आते ह

पु जार - ातः और सायंकाल दोन समय यहां आते ह और इसी मं दर म सं या-पू जा करते
ह।
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भैरो - तो आज भी उनके दशन ह गे s p
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पु जार - अव य। s .
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यह मं दर कले क द वार के पास हdथा। इसके पीछे क तरफ एक छोट -सी लोहे क
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खड़क थी िजसक राह ये लोग h
/ कले के बाहर जंगल म जा सकते थे। पु जार के हु म से
भंग पीने के बाद दोन p
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: उसी राह से जंगल म गए और मैदान होकर लौट आये, पु जार
ऐयार
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लोग भी उसी राह hसे जंगल मैदान गये।

सं या समय महाराजकुमार भी वहां आये और मं दर के अंदर दरवाजा बंद करके घंटे भर से


यादे दे र तक सं या-पू जा करते रहे । उस समय केवल एक बड़ा पु जार उस मं दर म तब तक
मौजू द रहा जब तक महाराजकुमार न य नेम करते रहे । दोन ऐयार ने भी महाराजकुमार को
अ छ तरह दे खा मगर पु जार को कह दया था क आज महाराजकुमार को यह मत कहना
क यहां दो चौबे आये ह, कल सायंकाल को हम लोग का सामना कराना।

दोन ऐयार ने रात भर उसी मं दर म गु जारा कया और अपने मसखरे पन से पु जार महाशय
को बहु त ह स न कया, साथ ह इसके उ ह इस बात का भी व वास दलाया क इस
पहाड़ के नीचे एक बड़े भार महा मा आये हु ए ह, आपको उनसे ज र मलावगे, हम लोग पर
उनक बड़ी कृ पा रहती है।

सबेरे उठकर इन दोन ने फर भंग घोटकर पी और सभ को पलाने के बाद उसी खड़क क


राह मैदान गये। दोन ऐयार तो अपनी धु न म थे, महाराजकुमार को यहां से उड़ाने क फ -

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सोच म रहे थे तथा उसी खड़क क राह नकल जाने का उ ह ने मौका तजवीजा था, इस लए
मैदान जाते समय इस जंगल को दोन आदमी अ छ तरह दे खने लगे क इधर से सीधी
सड़क पर नकल जाने का य कर हम लोग को मौका मल सकता है। इस काम म उ ह ने
दन भर बता दया और रा ता अ छ तरह समझ-बू झकर शाम होते-होते मं दर म लौट
आये।

पु जार - क हये चौबेजी महाराज! आप लोग कहां चले गये थे

ब - अजी महाराज, कुछ न पू छो! जरा आगे या बढ़ गये बस जह नु म म मल गये। ऐसा


रा ता भू ले क बस हमारा ह जी जानता है।

भैरो - ई वर क ह कृ पा से इस समय लौट आये नह ं तो कोई उ मीद यहां पहु ंचने क न


थी।

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पु जार - राम-राम, यह जंगल बड़ा ह भयानक है , कई दफे तो हम लोग इसम भू ल गये ह और
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दो-दो दन तक भटकते ह रह गये ह, आप बेचारे तो नये ठहरे । आइये, बै ठये, कुछ जलपान
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क िजये।
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भैरो - अजी कहां का खाना कैसा पीना! होश तो ठकाने ह नह ं ह, बस भंग पीकर खू ब
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सोवगे। घू मते-घू मते ऐसे थके क तमाम बदन चू र-चू र हो गया। कृ पा नधान, आज भी हम
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क इि तला कुमार से ना/क िजएगा, हम
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लोग लोग मलाने लायक नह ं ह, इस समय तो खू ब
गहर छनेगी!! t p
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पु जार - खैर ऐसा ह सह ! (हंसकर) आइये , बै ठये तो।

दोन ऐयार ने भंग पी और बाक लोग को भी पलाई। इसके बाद कुछ दे र आराम करके
बाजार म घू मने- फरने के लए गये और अ छ तरह दे ख-भालकर लौट आये। सोते समय
फर उ ह ं महा मा का िज पु जार से करने लगे िजनसे मलाने का वादा कर चु के थे और
यहां तक उनक तार फ क क पु जार जी उनसे मलने के लए ज द करने लगे और बोले,
''यह तो क हये , कल आप उनके दशन करावगे या नह 'ं

ब - ज र, बस कुमार यहां से सं या-पू जा करके लौट जायं तो चले च लये, मगर अकेले
आप ह च लए, नह ं तो महा मा बड़ा बगड़गे क इतने आद मय को य ले आए। वह ज द
कसी से मलने वाले नह ं ह।

पु जार - हम या गरज पड़ी है जो कसी को साथ ले जाय, अकेले आपके साथ चलगे।

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भैरो - बस तभी तो ठ क होगा।

दू सरे दन जब महाराजकुमार सं या-पू जा करके लौट गए तो ब नाथ और भैरो सं ह पु जार को


साथ ले वहां से रवाना हु ए और पहाड़ के नीचे उतरने के बाद बोले, ''बस अब यह ं बू ट छान
ल तब आगे चल इसी लए लु टया लेता आया हू ं।

पु जार - या हज है, बू ट छान ल िजए।

ब - आपके ह से क भी बनाऊं न

पु जार - इस दोपहर के समय या बू ट पलाइएगा! हम तो इतनी आदत न थी, आप ह


लोग के सबब दो दन से खू ब पीने म आती है।

ब - या हज है, थोड़ा-सा पी ल िजएगा।


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पु जार - जैसी आपक मज ।
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हमारे बहादु र ऐयार ने एक प थर क च ान पर भंग घ टकर पी और नजर बचा थोड़ी-सी
s. ह दे र म पु जार जी महाराज तो चीं बोल
बेहोशी क दवा मला पु जार को भी पलाई। u
थोड़ी
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i4 ऐयार उ ह उठाकर ले गए और एक झाड़ी म
गए और गहर बेहोशी म म त हो गए।dदोन
छपा आए। h in i h
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ब - अब या करना tचा
h t pहए
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भैरो - आप यहां र हए म उसी तरक ब से कुमार को उठा लाता हू ं।

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- अ छ बात है , म अपने हाथ से इस पु जार क सू रत तु ह बनाता हू ं।

भैरो - बनाइए।

पु जार क सू रत बना ब नाथ को उसी जगह छोड़ भैरो सं ह लौटे । सं या होने के पहले ह
मं दर म पहु ंचे। लोग ने पू छ,ा ''क हये पु जार जी महा मा से मु लाकात हु ई या नह ं और अकेले
य लौटे , चौबेजी कहां रह गए'

नकल पु जार ने कहा - ''महा मा से मु लाकात हु ई। वाह या बात है, महा मा या वह तो पू रे


स ह। दोन चौब को बहु त मानते ह। उ ह तो आने न दया मगर म चला आया। अब
चौबेजी कल आवगे।''

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समय पर महाराजकुमार भी आ पहु ंचे और सं या करने के लए मं दर के अंदर घु से। मामू ल
तौर पर पु जार के बदले म नकल पु जार अथात भैरो सं ह मं दरके अंदर रहे और कुमार के
अंदर आने पर भीतर से कवाड़ बंद कर लया। सं या करने के समय महाराजकुमार के साथ
मं दर के अंदर घु सकर पु जार या- या करते थे यह दोन ऐयार ने उनसे बात -बात म पहले
ह द रया त कर लया था। पु जार जी मं दर के अंदर बैठे कुछ वशेष काम नह ं करते थे,
केवल पू जा का सामान कुमार के आगे जमा कर दे ते और एक कनारे बैठे रहते थे। चलती
समय साद म माला कुमार को दे ते थे और वे उसे सू ंघ आंख से लगा उसी जगह रख चले
जाते थे। आज इन सब काम को हमारे ऐयार पु जार जी ने ह पू रा कया।

इस मं दर म चार तरफ चार दरवाजे थे। आगे क तरफ तो कई आदमी और पहरे वाले बैठे
रहते थे बा तरफ के दरवाजे पर होम करने का कुं ड बना हु आ था, दा हने दरवाजे पर फूल
के कई गमले रखे हु ए थे, और पछला दरवाजा ब कुल स नाटा पड़ता था।

मं दर के अंदर दरवाजा बंद करके कुमार सं या करने लगे। .in


ाणायाम के समय मौका जानकर
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नकल पु जार ने आशीवाद म दे ने वाल फूल क माला म बेp o का धू रा मलाया। जब
होशी
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g गले से नकाल सू ंघा और माथे
कुमार चलने लगे, पु जार ने माला गले म डाल , कुमार नेoउसे
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से लगाकर उसी जगह रख दया।
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माला सू ंघने के साथ ह कुमार का सर
i nd घू मा और वे बेहोश होकर जमीन पर गर पड़े।
भैरो सं ह ने झटपट उनक गठर h
/ / बांधी और पछले दरवाजे क राह बाहर नकल आये , इसके
बाद उसी छोट खड़क p क : राह कले के बाहर हो जंगल का रा ता लया और दो ह घंटे म
उस जगह जा पहु h
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ंचे tजहां पं डत ब नाथ को छोड़ गये थे। वे दोन कुमार क याण सं ह को ले
गयाजी क तरफ रवाना हु ए।

बयान -6

इ क भी या बु र बला है! हाय, इस दु ट ने िजसका पीछा कया उसे खराब करके छोड़ दया
और उसके लए दु नया भर के अ छे पदाथ बेकाम और बु रे बना दये। छटक हु ई चांदनी
उसके बदन म चनगा रयां पैदा करती है, शाम क ठं डी हवा उसे लू-सी लगती है, खु शनु मा
फूल को दे खने से उसके कलेजे म कांटे चु भते ह, बाग क र वश पर टहलने से पैर म छाले
पड़ते ह, नरम बछावन पर पड़े रहने से ह डयां टू टती ह, और वह करवट बदलकर भी कसी
तरह आराम नह ं ले सकता!

खाना-पीना हराम हो जाता है , मसर क डल जहर मालू म होती है, गम खाते-खाते पेट भर
जाता है , यास बु झाने के लए आंसू क बू ंद बहु त हो जाती ह, हजार दु ख भोगने पर भी कसी

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क जु फ म उलझी हु ई जान को नकल भागने का मौका हाथ नह ं लगता! दो त क
नसीहत िजगर के टु कड़े-टु कड़े करती ह, जु दाई क आग म कलेजा भु जा जाता है, बदन का
खू न पानी हो जाता है और इसी से उसक भू ख- यास दोन ह जाती रहती ह। िजसक सू रत
उसक आंख म छुपी रहती है , दरोद वार म वह दखाई दे ता है, व न म भी इठलाता हु आ
वह नजर आता है। उसक सु नी हु ई बात रात- दन कान म गू ंजा काती ह, हंसी के समय
दखाई दये हु ए मो तय-से दांत गले का हार बन बैठते ह, भुलाए नह ं भू लते, जादू भर
चतवन क याद दल को उचाट कर दे ती है, गले म हाथ डालकर ल हु ई अंगड़ाई बदन को
दबाए दे ती है, उसक याद म एक तरफ झु के हु ए कभीसीधे भी नह ं होने पाते।

वे दन-रात आंख बंद कर हु न के बाग म टहला करते ह। ठं डी सांसआंधी का काम दे ती ह।


सू खे प ते उड़ाया करते ह और धीरे-धीरे आप भी ऐसे सू ख जाते ह क सांस के साथ उड़ जाने
क ह मत बांधते ह, मु ह बत का गु चाबु क लए हरदम पीछे मौजू द रहता है, बु दबु दाते हु ए
अपने चेले को कह ं ठहरने नह ं दे ता और न माशू क के नाम के सवाय कोई दू सरा श द मु ंह
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से नकालने दे ता है।
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आदमी का या हवा तक ऐस से द लगी करती है, कवाड़ g
o खटखटा माशू क के आने क याद
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दला- दला चु ट कयां लेती है, और कभी कान म झु क .b
कर कहती है क म उस गल से आई हू ं
िजसम तेरा यारा रहता है!
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बाग म टहलने के समय हवा के h
/ चपेट म पड़ी हु ई पेड़ क टह नयां हल- हलकर अपने पास
बु लाती ह और जब वह p :/जाता है हंसी के दो फूल गराकर चु प हो जाती ह िजससे उसका
पास
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दल और भी बेचैन htहो जाता है और वह दोन हाथ से कलेजा थामकर बैठ जाता है। उसके
यारे र तेदार यह हालत दे ख अफसोस करते ह और उसक नम अंगु लय को हाथ म लेकर
पू छते ह क या अपनी जु फ संवारने के लए ये नाखू न बढ़ा रखे ह

बेचैनी इतनी बढ़ जाती है क आधे घंटे तक के लए भी यान एक तरफ नह ं जमता और न


एक जगह थोड़ी दे र तक आराम के साथ बैठने क मोहलत मलती है। आंख म छपी रहने
वाल नींद भी न मालू म कहां चल जाती है और अपनी जगह टकटक को जो दम-दम म
तरह-तरह क त वीर बनाने और बगाड़ने वाल है, छोड़ जाती है।

यह हमारे कुं अर इं जीत सं ह और उनक यार कशोर क हालत है, इस समय दोन एक-
दू सरे से दू र पड़े ह मगर मु ह बत का भू त रं ग- बरं गी सू रत बना दोन क आंख म नाचा
करता है और बढ़ती हु ई उदासी और बेचैनी को कसी तरह कम नह ं होने दे ता।

रोहतासगढ़ महल म रहने वाल िजतनी औरत ह सभी के कशोर क खा तरदार का यान
रहने पर भी कशोर क उदासी कसी तरह कम नह ं होती। य य प उसे यहां कसी तरह क

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भी तकल फ नह ं थी मगर कलेजे को टु कड़े-टु कड़े करने वाल बात एक सायत के लए भी
उसके दल से नह ं भू लती थी जो उसने यहां आने के साथ ह पीठ पर हाथ फेरते हु ए
महाराज के मु ंह से सु नी थी, अथात - ''यह तो मेर पतोहू होने लायक है!''

य तो ऊंचे दज क औरत के िजद करने से लाचार होकर जनाने नजरबाग म कशोर को


टहलना ह पड़ता था मगर वहां क कोई चीज उस बेचार के जी को ढाढ़स नह ं दे सकती थी।
खले हु ए गु लाब के फूल पर नजर पड़ते ह वह मु झा जाती, न गस क तरफ दे खते ह उसक
शम ल आंख पलक क चलमन म छप जातीं, सर के पास पहु ंचते ह वह गम के बोझ से
झु क जाती और खु शनु मा फूल से लद हु ई पेचील लताय उसके सामने पड़कर कुं अर
इं जीत सं ह क सु ंबल जु फ क याद दलातीं िजसम उलझी हु ई उसक जान को जीते जी
छूटने क उ मीद न थी।

र वश को वह यार क जु दाई का मैदान समझती, छोटे -छोटे रं गीन फूल से भरे हु ए पेड़ क

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या रय को वह घना जंगल जानती और गू ंजते हु ए भ र क आवाज उसके कान म झ ल
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क झनकार मालू म होती जो जंगल म बना मौसम पर यान p o बारह मह ने बोला और
दये
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इि तफाक से आ पड़े हु ए नाजु क-बदन के कलेज को दहलाया
l og करती है।
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4uबसू रत पि तय को दे खते ह वह कांप जाती,
नम हवा के झ क से हलती हु ई रं ग- बरं गी खू
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nd और बहते हु ए बनावट झरने के पास पहु ंचते ह
सु ंदर और साफ मोती-सर खे जल से भरे
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उसका दल डू ब जाता, छूटते हु ए h
/ / फ वारे पर नजर पड़ते ह कलेजा मु ंह को आता और आंख
से टपाटप आंसू क बू ंदp:गरने लगतीं िज ह दे ख तरह-तरह क बो लय से दल खु श करने
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वाल बाग क नाजुhकt च ड़य से चु प न रहा जाता और वे बोल उठतीं - ''हाय-हाय! इस
बेचार का दल कसी क जु दाई म खू न हो गया और वह खू न पानी होकर आंख क राह
नकला जाता है।''

उन कुछ जवान, नाजु क और चंचल औरत को जो कशोर के साथ रहने पर मु तैद क गई


थीं उसक हालत पर अफसोस आता मगर लाचार थीं य क उ ह अपनी जान बहु त यार
थी।

रात के समय जब कशोर अपने को अकेल पाती, तरह-तरह क बात सोचा करती। कभी तो
वह नकल भागने क तरक ब सोचती मगर अनहोनी जान उधर से खयाल को लौटाकर अपने
यारे इं जीत सं ह क तरफ यान लगाती और कहती क या वे मेर मदद न करगे और
मु झे यहां से न छुड़ावगे नह ं, ज र छुड़ावगे, मगर कब जब उ ह यह खबर होगी क कशोर
फलानी जगह कैद है। हाय-हाय! कह ं ऐसा न हो क खबर होते-होते तक मु झे यह दु नया
छोड़ दे नी पड़े और दल के अरमान दल ह म ले जाने पड़। नह ,ं अगर मेरे साथ जबद ती
क जायगी तो ज र ऐसा क ं गी और सवाय उसके िजसके ऊपर योछावर हो चु क हू, ं दू सरे

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क न कहलाऊंगी, ऐसी नौबत आने के पहले ह शर र छोड़ उनसे जा मलू ंगी, कोई ताकत ऐसी
नह ं जो ऐसा करने से मु झे रोक सके। हे ई वर! या तू उन आफत के परकाले ऐयार को
यहां का रा ता न बतावेगा जो कुमार के लए जान तक दे दे ने को हरदम मु तैद रहते ह

एक रात वह इसी सोच- वचार म पड़ी थी क सबे रा हो गया और कमरे के बाहर से एक ऐसी
आवाज उसके कान म आई क वह च क पड़ी। उसके फैले हु ए खयाल इक े हो गये, साथ ह
कुछ-कुछ खु शी उसके चेहरे पर झलकने लगी। वह आवाज यह थी -

''यह काम बेशक वीर सं ह के ऐयार का है।''

कशोर उठ खड़ी हु ई और कमरे के बाहर नकलने पर घंटे ह भर म उसे मालू महो गया क
कुं अर क याण सं ह को वीर सं ह के ऐयार लोग ले भागे।

अब कशोर को अपने छूटने क कुछ-कुछ उ मीद हु ई और वह दन भर इसी खयाल म डू बी


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रहने लगी क दे ख इसके आगे या होता है।
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बयान - s
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आधी रात से यादे जा चु क है, कशोर
h in अपने कमरे म मसहर पर लेट हुई न मालू म या-
// हु ई आंख ज र इस बात क खबरदे ती ह क उसके दल
या सोच रह है , हां उसक डबडबाई
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म कसी तरह का वं tवpमचा हु आ है। उसक आंख मनींद ब कुल नह ं है, घड़ी-घड़ी करवट
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बदलती और लंबी h सांस लेकर रह जाती है।

यकायक कमरे के बाहर से कोई तड़पा दे ने वाल आवाज उसके कान म आई िजसके सु नते ह
यह बेचैन हो गई, कसी तरह लेट रह न सक , पलंग से नीचे उतर पड़ी और दरवाजा खोल
बाहर इधर-उधर दे खने लगी। वह आवाज कसी के ससककर रोने क थी।

कमरे के बाहर आठ दर का दालान था जहां एक खंभे के सहारे खड़ी बलख- बलखकर रोती
हु ई एक कम सन औरत को कशोर ने दे खा। खंभे और उस औरत पर चांदनी अ छ तरह पड़
रह थी। पास जाने से मालू म हु आ क सद से कांप रह है य क कोई भार कपड़ा उसके
बदन पर न था िजससे सद का बचाव होता।

कशोर का दल तो पहले ह से ज मी हो रहा था, वह इस तरह से बलख- बलख कसी को


रोते कब दे ख सकती थी! जाते ह उस औरत का हाथ थाम लया और पू छा -

''तु म पर या आफत आई है जो इस तरह बलख- बलखकर रो रह हो'

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औरत - हाय, मेरे ऊपर वह आफत आई है जो कसी तरह टल नह ं सकती!

कशोर उसे अपने कमरे म ले आई और अपने पास फश पर बैठाकर बातचीत करने लगी।
इस औरत क उ अठारह वष से यादे न होगी। यह हर तरह से खू बसू रत और नाजु क थी,
इसके बदन म जो कुछ जेवर था उसके दे खने से साफ मालू म होता था क यह ज र कसी
बड़े खानदान क लड़क है।

कशोर - म उ मीद करती हू ं क अपने दल का हाल साफ-साफ मु झसे कहोगी और मु झे


ब हन समझकर कुछ न छपाओगी।

औरत - ब हन, म ज र अपना हाल तु मसे कहू ंगी य क तु म भी उसी बला म फंसी हो
िजसम म।

कशोर - (च ककर) या मेर ह तरह से तु म पर भी जु म कया गया है


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औरत - बेशक।
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कशोर - (लंबी सांस लेकर) हे ई वर! मने तो कसी के साथ बु राई नह ं क थी, फर य
यह दु ख भोग रह हू!!ं
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औरत - मगर म अब इस जगह ठहर नह ं सकती!
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य याt कसी तरह का खौफ मालू म होता है
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कशोर - सो

औरत - नह ं - नह ं, डर कसी बात का नह ं है , पर इस समय मु झे कसी क मदद से नकल


भागने क उ मीद है, इसी लए अपने कमरे से नकल यहां तक आई थी।

कशोर - या कोई तरक ब नकाल गई है

औरत - हां, और अगर चाहो तो तु म भी मेरे साथ यहां से भाग सकती हो। इसी रा य का
एक जबद त आदमी आज हमार मदद करे गा।

यह सु नकर कशोर बहु त ह खु श हु ई। वह औरत कौन ,है उसका नाम या है, उस पर या


दु ख पड़ा है यह सब पू छना तो ब कुल भू ल गई और नकल भागने क खु शीम उस औरत
का हाथ अपने दोन हाथ म लेकर ेम से उसक तरफ दे ख पू छने लगी, '' या तु हार मदद
से मेरा भी छुटकारा यहां से हो सकता है'

औरत - ज र हो सकता है मगर अब दे र न करनी चा हए।

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इसके जवाब म कशोर कुछ कहा ह चाहती थी क सामने का दरवाजा खु ला और एक हसीन
औरत अंदर आती हु ई दखाई पड़ी। इसक अव था लगभग बीस वष के होगी, सफेद गेहू ं का-
सा रं ग, कद न लंबा न नाटा, बदन साफ और सु डौल, नमक न चेहरा, रस भर आंख, नाक म
एक ह रे क क ल के अलावे दो-चार मामू ल गहने प हरे हु ए थी, तो भी वह इस लायक थी क
ऊंचे दज के खू बसू रती क पंि त म बैठ सके। इसे दे खते ह वह औरत जो कशोर के पास
बैठ थी च क और उसक तरफ दे खकर बोल , ''लाल , इस समय तु हारा यहां आना मु झे
ता जु ब म डालता है!''

लाल - ले कन यह सु नकर तु ह और भी ता जु ब होगा क म तु हारे पंजे से बेचार कशोर


क जान बचाने के लए आई हू ं।

इतना सु नते ह उस औरत का रं ग-ढं ग ब कुल बदल गया। उसके चेहरे पर जो अभी तक
उदासी छाई हु ई थी ब कुल जाती रह ओैर तमतमाहट आ मौजू द हु ई
, उसक आंख भी जो
डबडबाती हु ई थीं खु क हो ग और उनम गु से क सु ख .i n
दखाई दे नलगी,
े वह इस नगाह से
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लाल को दे खने लगी जैसे उस पर कसी तरह क हु कूमतरखती हो।
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लाल को कशोर भी पहचानती थी, य क यह उन हसीन म से थी जो कशोर का दल
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बहलाने और उसक
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हफाजत करने के लए तैनात क गई थीं।
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हु कूमत भर hin
नगाह से कई सायत तक लाल क तरफ दे खने के बाद वह औरत फर बोल
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''लाल , या तू आज पागल हो गई है जो मेरे सामने इस तरह से बेअदब होकर बोलती है'

लाल - तू कौन है जो तेरे साथ अदब का बताव क ं

औरत - (खड़ी होकर) तू नह ं जानती क म कौन हू ं

लाल - कुं दन, म तु झे खू ब जानती हू, ं मगर तू यह नह ं जानती क तेर नकेल मेरे हाथ म है
िजससे तू मेरा कुछ नह ं कर सकती और न अपनी बेईमानी का जाल ह बेचार कशोर पर
फैला सकती है!

इतना सु नते ह वह औरत िजसका नाम कुं दन था लाल हो गई और अपने जोश को कसी
तरह स हाल न सक , छुरा जो कमर म छपाये हु ए थी हाथ म ले लया और मारने के लए
लाल क तरफ झपट । मगर लाल ने झट अपने बगल से एक नारं गी नकालकर उसे दखाई
और पू छा, '' या तू भू ल गई क इसम कै फांक ह'

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नारं गी दे खने के साथ ह और लाल के मु ंह से नकले हु ए श द को सु नते ह उसका जोश
जाता रहा और घबराहट से उसका रं ग ब कुल उड़ गया और वह एक चीख मारकर जमीन
पर गर पड़ी।

बयान -8

रोहतासगढ़ कले के सामने पहाड़ी से कुछ दू र हटकर वीर सं ह का ल करपड़ा हु आ है। चार
तरफ फौजी आदमी अपने -अपने काम म लगे हु ए दखाई दे ते ह। कुछ फौज आ चु क और
बराबर चल ह आती है। बीच म राजा वीर सं ह का कारचोबी खेमा शान-शौकत के साथ खड़ा
है, उसके दोन बगल कुं अर इं जीत सं हऔर आनंद सं ह का खेमा है, सामने और पीछे क तरफ
दु प ी बड़े-बड़े सरदार और बहादु र का डेरा पड़ा है। बाजार लगने क तैया रयां हो रह ह,
लड़ाई का सामान इतना इक ा हो रहा है क दे खने से दु मन का कलेजा दहल जाय।
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डेरा खड़ा होने के दू सरे दन कुं अर इं जीत सं ह, आनंद सं ह, तेज pसंo
ह, दे वी सं ह, पं डत ब नाथ,
भैरो सं ह, तारा सं ह, जग नाथ यो तषीजी, फतह सं ह (पु रo
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ाने gसेनाप त जो नौगढ़ म थे) और
नाहर सं ह इ या द को साथ लये राजा वीर सं ह भी.आ
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b पहु ंचे और सब लोग अपने-अपने खेमे
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म उतरे । प नालाल गयाजी म ओैर रामनारायण
i 4u तथा चु नीलाल चु नारगढ़ म रखे गये। इस
लड़ाई के लए सेनाप त क पदवी नाहर i ndसं ह को द गई। तीसरे दन और भी फौज आ जाने
पर पांच झंड,े पचास हजार फौज / hका नशान खड़ा कया गया। बहादु र के चेहर पर खु शी
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मालू म होती थी, सब इसी
t t फ म थे क जहां तक हो लड़ाई ज द छड़ जाये और बेशक
एक ह दो दन म hलड़ाई छड़ जाने क उ मीद थी मगर वीर सं ह के ल कर पर यकायक
ऐसी आफत आ पड़ी क कुछ दन तक लड़ाई क रह । इस आफत के आने का कसी को
व न म भी गु मान न था िजसका हाल हम आगे चलकर लखगे।

राजा दि वजय सं ह का प लेकर उनका एक ऐयार वीरे ि सं ह के पास आया।वीर सं ह ने


प लेकर मु ंशी को पढ़ने के लये दया, उसम जो कुछ लखा था उसका सं ेप यह है -

''हमारे - आपके बीच कभी क दु मनी नह ं, तो भी न मालू म आपस म लड़ने या बगाड़ पैदा
करने का इरादा आपने य कया खैर इसका सबब जो कुछ हो हम नह ं कह सकते मगर
इतना याद रखना चा हए क पचास वष लड़कर भी यह कला आप हमसे नह ं ले सकते।
अगर हम चु पचाप बैठे रह तो भी आप हमारा कुछ नह ं कर सकते, फर भी हम आपसे लड़गे
और मैदान म नकलकर बहादु र दखायगे। अगर आपको अपनी बहादु र या जवांमद का
घमंड है तो फौज क जान य लेते ह, एक पर एक लड़ के फैसला कर ल िजये। बहादु र क
कारवाई दे खने के बाद हमसे और आपसे वं व-यु हो जाये, आप हम पर फतह पाइये तो

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यह रा य आपका हो जाय, नह ं तो आप हमारे मातहत समझे जाय। अफसोस, इस समय
हमारा लड़का मौजू द नह ं है, अगर होता तो आपके दोन लड़क से वह अकेला ह भड़ जाता।''

इस प के जवाब म जो कुछ राजा वीर संह ने लखा हम उसका भी सं ेप नीचे लख दे ते


ह -

''आप हमारे रा य म घु सकर कशोर को ले गये या यह आपक जबद ती नह ं है या इसे


लड़ाई क बु नयाद कायम करना नह ं कह सकते हां, अगर आप कशोर को इ जत के साथ
हमारे पास भेज द तो हम बे शक अपने घर लौट जायगे। नह ं तो याद रहे हम इस कले क
एक-एक ट उखाड़कर फक दगे िजसक मजबू ती पर घमंड करते ह। हम लोग आपसे वं व-
यु करने के लए भी तैयार ह, िजसका जी चाहे एक पर एक लड़के हौसला नकाल ले।
आपका लड़का मेरे यहां कैद है, य द आप कशोर को हमारे पास भेज द तो हम उसे छोड़ने
के लए तैयार ह।''

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इस प के जवाब म रोहतासगढ़ के कले से तोप क एक आवाजoआई। अब लड़ाई म कसी
तरह का शक न रहा। दोन तरफ के ऐयार अपनी-अपनी कारवाई g sp दखाने पर मु तैद हो गये
b lo मालू म होगा।
और उन लोग ने जो कुछ कया उसका हाल आगे चलकर
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i 4रयu पर चढ़ हु ई बहु त-सी औरत उस तरफ दे ख
रोहतासगढ़ कले के अंदर राजमहल क अटा
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रह ह िजधर वीर सं ह का ल कर i
h पड़ा हु आ है। कुं अर क याण सं हके गर तार हो जाने से
कशोर को एक तरह नि :चं/
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त-सी हो गई थी य क यादे डर उसे अपनी शाद उसके साथ
हो जाने का था, अपनेtt
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h मरने क उसे जरा भी परवाह न थी। हां, कुं अर इं जीत सं ह क याद वह
एक सायत के लए भी नह ं भु ला सकती थी िजनक त वीर उसके कलेजे म खं ची हु ई थी।
वीर सं ह क चढ़ाई का हाल सु न, उसे बड़ी खु शी हु ई और वह भी अपनी अटार पर चढ़कर
हसरत भर नगाह से उस तरफ दे खने लगी िजधर वीर सं ह क फौज पड़ी हु ई थी।चाहे यहां
से बहु त दू र हो तो भी कशोर क नगाह वहां तक पहु ंच और भीड़म घु स-घु सकर कसी को
ढू ं ढ़ नकालने क को शश कर रह थीं। इस समय कशोर के साथ ह लाल थी िजसने आज
कई दन हु ए कशोर के कमरे म कुं दन को नारंगी दखाकर डरा दया था।

लाल कशोर क नगहबानी पर रखी गई थी तो भी वह कशोर पर मेहरबानी रखती थी।


कशोर ने नारं गी वाले भेद को जानने क कई दफे को शश क मगर पता न लगा। उस दन
के बाद कई दफे कुं दन से भी मु लाकात हु ई मगर पू छने पर उसने ऐसी कोईबात न कह
िजससे कशोर का शक दू र हो जाय। न य एक घर म रहने पर भी लाल और कुं दन म
फर कसी तरह क दु मनी न दखाई पड़ी। इस बात ने कशोर के ता जु ब को और भी बढ़ा
रखा था।

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इस समय कशोर के साथ सवाय लाल के दू सर कोई और औरत न थी। ये दोन वीर सं ह
के ल कर क तरफ बड़े गौर से दे ख रह थीं क यकायक कशोर को फर वह नारं गी वाल
बात याद आई और थोड़ी दे र तक सोचने के बाद वह लाल से पू छने लगी।

कशोर - लाल , उस दन क बात जब म याद करती हू,ं उस पर वचार करती हू ं तो कुं दन


क दगाबाजी साफ झलक जाती है। कुं दन अगर स ची होती तो तु ह मारने के लए न
झपटती या हक कत म अगर वह उस समय यहां से भाग जाने वाल होती तो उसके काम म
व न पड़ जाने से उसे रं ज होता, सो उसके बदले म वह खु श दखाई दे ती है।

लाल - नह ं, वह एकदम से झू ठ भी नह ं है।

कशोर - या उसक बात का कोई ह सा सच भी था?

लाल - ज र था।
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कशोर - वह या?
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लाल - यह .
क वह भी इस कले म उसी काम के लए लाई गई है िजस काम के लए
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आप लाई गई ह।
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कशोर - यानी तु हारे राजकुमार से याहने के लए!
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लाल - हां।

कशोर - अ छा उसक और कौन-सी बात सच थी

लाल - इन सब बात को पू छकर या करोगी, इस भेद के खु लने से बहु त बड़ी बु राई पैदा
होगी।

कशोर - नह -ं नह ं, मेर यार लाल , मेर जु बान से वह बात कोई दू सरा कभी नह ं सु न
सकता और म उ मीद करती हू ं क तु म मु झसे उसका हाल साफ-साफ कह दोगी। उस दन से
मु झे व वास हो गया है क तु म मेर ददशरक हो, अ तु अगर मेरा खयाल ठ क है तो तु म
उसका हाल मु झे ज र बता दो िजससे म हरदम हो शयार रहू ं।

लाल - अब वह तु हारे साथ बु राई कभी न करे गी।

कशोर - तो भी मेहरबानी करके...

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लाल - खैर बता दे ती हू ं, मगर खबरदार, इसका िज कसी दू सरे के सामने कभी मत करना!

कशोर - ऐसा म कदा प नह ं कर सकती और तु म खु द ह जानती हो क इस महल म


सवाय तु हारे कोई भी ऐसा नह ं है क िजससे म दो बात करती होऊं।

लाल - अ छा तो सवाय उस बात के जो म ऊपर कह चु क हू ं बाक कुल बातउसक झू ठ


थीं। वह इस मकान से भागना नह ं चाहती थी, वह तो हमारे कुमार के साथ याह होने क
उ मीद म खु श है, मगर िजस दन से तु म आई हो, उस दन से वह फ म पड़ गई है
य क वह खू बसू रती और इ जत म तु मको अपने सेबहु त बढ़ के समझती है और हक कत
म ऐसा ह है। उसे यह खयाल सता रहा है क राजकुमार से पहले कशोर क शाद हो लेगी
तब मेर होगी और ऐसी अव था म कशोर बड़ी रानी कहलावेगी और उसी के लड़के ग ी के
मा लक समझे जायगे, इसी से वह इस फ म थी क तु ह मार डाले मगर कसी ऐसे
ठकाने पर ले जाकर िजससे उस पर कोई शक न कर सके।

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कशोर - छः- छः!

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लाल - मगर अब वह तु हारे साथ बु राई नह ं कर सकती।
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कशोर - और वह नारं गी वाला भेद i
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लाल - वह म नह ं कह सकती।

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तु हार खु शामद कया करती
t p n तु म उसी से य नह ं पू छतीं, अब तो वह हरदम

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कशोर - म उससे पू छ चु क हू ं।
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लाल - उसने या कहा

कशोर - उसने कहा क लाल ने नारं गी दखाकर यह नसीहत क क दे खो इसम कई फांक


ह, मगर एक साथ रहने और छलके से ढं के रहने के कारण एक ह गनी जाती है , कोई कह
नह ं सकता क इसम कै फांक ह, इसी तरह हम लोग को भी रहना चा हए।

लाल - ठ क तो कहा।

कशोर - वाह-वाह! तु मने तो उसी का साथ दया, एकदम छोकर बनाकर भु लावा दे ने लगीं!

लाल - (हंसकर) खैर घबराओ मत सब मालू म हो जायगा।

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इतने म सी ढ़य पर कसी के चढ़ने क आहट मालू म हु ई और दोन उस तरफ दे खने लगीं।
कुं दन ने पहु ंचकर दोन को सलाम कया और हंस-ी हंसी म लाल क तरफ दे खकर बोल , ''एक
आदमी तु ह खोजता हु आ आया है, वह कहता है क लाल ने मेर कताब चु राई है, वह
कताब जो कसी के खू न से लखी गई है।''

कुं दन के इन श द म न मालू म या भेद भरा हु आ था क सु नने ह से लाल का रं ग उड़


गया। खौफ के मारे उसके तमाम बदन म कंपकंपी पैदा हो गई और मालू म होता था क
कसी ने उसके बदन का खू न खींच लया है। थोड़ी दे र तक वह अपने हवास म न रह अंत
म हाथ जोड़ के उसने कुं दन से कहा -

लाल - कुं दन, मु झसे बड़ी भू ल हु ई, मु झ पर रहम खा, म तमाम उ तेर ल डी बनकर रहू ंग!ी

कुं दन - या गु लामी क द तावेज मेरे आंचल पर लख दे गी

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कुं दन के इस दू सरे जु मले ने लाल को एकदम ह बदहवास कर दया। अबक दफे वहअपने
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को कसी तरह न स हाल सक , उसका सर घू मने लगा और वह च कर खाकर जमीन पर
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गर पड़ी।
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लाल का यह हाल दे ख कुं दन चु पचाप वहां से चल गई, मगर उसक सू रत से मालू म होता था
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क वह अपनी कारवाई पर खु श है या उसने लाल के ऊपर अपनी हु कूमत पैदा कर ल है।
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उसका मु ंह
// कहे दे ता
सकोड़कर सर हलाना
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था क वह लाल पर कुछ और भी जु म कया
चाहती है।
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बेचार कशोर का अजब हाल था। नारं गी वाला भेद जानने के लये वह पहले ह परे शान थी,
अब इस दू सरे भेद ने और भी कलेजा ऐंठ दया। उसने बड़ी मु ि कल से अपने को स हाला
और लाल को उसी तरह छोड़ छत के नीचे उतर आई तथा अपने कमरे से एक गलास जल
लाकर लाल के मु ंह पर छ ंटा दया। थोड़ी दे र म लाल होश म आई और बना कुछ बात
कये रोती हु ई अपने रहने क जगह म चल गई और कशोर भी अपने कमरे क तरफ
रवाना हु ई।

िजस कमरे म कशोर रहती थी वह एक खु शनु मा बाग के बीच बीच म था। इस बाग के चार
कोन म छोट -छोट चार इमारत और भी थीं, एक म वे कुल औरत रहती थीं जो कशोर क
हफाजत के लए मु करर क गई थीं। उन औरत क अफसर लाल थी। दू सरे मकान म दो-
तीन ल डय के साथ लाल रहती थी। तीसरा मकान अमीराना ठाठ से रहने के लए कुं दन
को मला हु आ था, चौथे मकान म जो सबसे छोटा था ताला बंद था मगर बार -बार से कई

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औरत नंगी तलवार लये उसके दरवाजे पर पहरा दया करती थीं। यह बाग जनाने महल म
था और कसी गैर का यहां आना या यहां से कसी का नकल भागना मु ि कल था।

बयान -9

आधी रात का समय है, चार तरफ स नाटा छाया हु आ है, राजा वीर सं ह के ल कर म पहरा
दे ने वाल के सवाय सभी आराम क नींद सोये हु ए ह, हां थोड़े से फौजी आद मय का सोना
कुछ व च ढं ग का है िज ह न तो जागा ह कह सकते ह और न सोने वाल म ह गन
सकते ह, य क ये लोग जो गनती म एक हजार से यादा न ह गे लड़ाई क पोशाक प हरे
और उ दे हरबे बदन पर लगाये लेटे हु ए ह। जाड़े का मौसम है मगर कोई ऐसा कपड़ा जो
बखू बी सद को दू र कर सके ओढ़े हु ए नह ं ह, इस लए तेज हवा के साथ मल हु ई सद उ ह
नीद म म त होने नह ं दे ती।
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राजा वीर सं ह के खेमे क चौकसी फतह सं ह कर रहे ह, खु द तो
s poदरवाजे के आगे एक चौक
पर बैठे हु ए ह मगर मातहत के सपाह खेमे के चार o g नंगी तलवार लए घू म रहे ह।
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कुं अर इं जीत सं ह के खेमे क चौकसी कंचन सं.हbऔर आनंद सं ह के खेमे क हफाजत
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नाहर सं ह सपा हय के साथ कर रहे ह।
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जब आधी रात से यादे जा चु क h
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//े पास आ खड़ा हो गया। यह आदमी लंबे कद का और मजबू त
, एक आदमी कुं अर इं जीत सं ह के खेमे केदरवाजे पर आया
और कंचन सं ह को सलाम :करक
t tpमु ंड़ासा बांधे और ऊपर से एक का मीर याह चौगा डाले हु ए था।
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मालू म होता था, सर पर

कंचन - तु म कौन हो और य आये हो

आदमी - म रोहतासगढ़ कले का रहने वाला हू ं और कशोर जी का संदेशा लेकर आया हू ं।

कंचन - या संदेशा है

आदमी - हु म है क कुमार के सवाय और कसी से न कहू ं।

कंचन - कुमार तो इस समय सोये हु ए ह!

आदमी - अगर आप मेरा आना ज र समझते हो तो मु झे खेमे के अंदर ले च लए या कुमार


को उठाकर खबर कर द िजये।

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कंचन - (कुछ सोचकर) बेशक ऐसी हालत म कुमार को जगाना ह पड़ेगा, कहो, तु हारा नाम
या है

आदमी - म अपना नाम नह ं बता सकता मगर कु मार मु झे अ छ तरह जानते ह, आप अपने
साथ मु झे खेमे के अंदर ले च लए, आंख खु लते ह मु झे पहचान लगे, आपको कुछ कहने क
ज रत न पड़ेगी!

कंचन सं ह उस आदमी को लेकर खेमे के अंदर घु स,ा आगे-आगे कंचन सं ह और पीछे -पीछे वह
आदमी। जब दोन खेमे के म य म पहु ंचे तो उस आदमी ने अपने कपड़े के अंदर से एक
भु जाल नकालकर धोखे म पड़े हु ए बेचारे कंचन सं ह क गरदन पर पीछे से इस जोर से मार
क खट से सर कटकर दू र जा गरा, बेचारे के मु ंह से कोई आवाज तक न नकल पाई। इसके
बाद वह भुजाल प छ अपनी कमर म रखी और नींद म म त सोए हु ए कुं अर इं जीत सं ह के
पास आकर खड़ा हो गया, कमर से एक शीशी नकाल और बहु त स हलकर कुमार क नाक

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से लगाई। इस शीशी म तेज बेहोशी क दवा थी। कुमार के बेहोश हो जाने के बाद उसने
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अपनी कमर से एक लोई खोल और उसम उनक गठर बांध दरवाजे
s po पर परदे के पास आकर
दे खने लगा क आगे क तरफ स नाटा है या नह ं।
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इस समय पहरे वाले ग त लगाते हु ए खेमे कu
i 4 े पीछे क तरफ नकल गये थे। आगे स नाटा
पाकर उसने कुमार क गठर उठाई औरdखेमे के बाहर हो अपने को बचाता हु आ ल कर से
नकल गया। ल कर से कुछ दू र h
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/बैठ/ा था, गठर खोलकर कुमार को उसी पर लेटा दया और खु द
पर एक रथ खड़ा था िजसम दो मजबू तमु क रं ग के घोड़े
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जु ते हु ए थे, कोचवान तैय ार
भी सवार हो रथ हां कt
h का हु म दया।
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रथ थोड़ी ह दू र गया था क सारथी को मालू म हो गया क पीछे कोई सवार आ रहा है।
उसने घबड़ाकर अंदर बैठे हु ए आदमी से कहा क कोई सवार बराबर रथ के साथ चला आ रहा
है।

रथ और तेज कया गया मगर सवार ने पीछा न छोड़ा। सु बह होते-होते रथ बहु त दू र नकल
गया और ऐसी जगह पहु ंचा जहां सड़क के दोन तरफ घना जंगल था। तब वह सवार घोड़ा
बढ़ाकर रथ के बराबर आया और बोला, ''बस अब रथ रोक लो!''

सारथी - तु म कौन हो जो तु हारे कहने से रथ रोका जाय!

सवार - हम तु हारे बाप ह! बस खबरदार, अब रथ आगे न बढ़ने पावे!!

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इस सवार के हाथ म एक बरछ थी। जब सारथी ने उसक बात न सु नी तो लाचार हो उसने
बरछ मार । चोट खाकर सारथी जमीन पर गर पड़ा। रथ के घोड़े भड़ककर और तेजी के साथ
भागे और प हया सारथी के ऊपर से होकर नकल गया।

सवार ने घोड़े को बरछ मार , एक घोड़ा ज मी होकर गर पड़ा, दू सरा घोड़ा भी क गया। वह
आदमी जो रथ के अंदर बैठा था कूदकर तलवार खींचकर सवार के सामने आ खड़ा हु आ। बात
क बात म सवार ने उसे भी बेजान कर दया और घोड़े के नीचे उतर पड़ा। यह सवार
नकाबपोश था।

बरछ गाड़कर सवार ने घोड़े को उसके साथ बांध दया और बड़ी हो शयार से कुं अर
इं जीत सं ह को रथ से नीचे उतारा। सड़क के दोन तरफ घना जंगल था। कुमार को उठाकर
जंगल म ले गया और एक सलाई के पेड़ के नीचे रख लौट आया और अपने घोड़े पर सवार
हो फर उसी जगह पहु ंचने के बाद कुमार के पास बैठ उनको होश म लाने क फ करने
लगा। .i n
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सु बह क ठं डी हवा लगने पर कुमार होश म आये और घबड़ाकर उठ बैठे। सवार तलवार खींच
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सामने खड़ा हो गया। कुमार भी संभलकर खड़े हो गये और बोले -
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कुमार - या तु म हम यहां लाये हो?
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// लये जाता था, मने छुड़ाया है।
सवार - नह ,ं कोई दू सरा ह आपको
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कुमार - (चार तरफh दे खकर) जब तु मने मु झे दु मन के हाथ से छुड़ाया है तो वयं तलवार
लेकर सामने य खड़े हो गये?

सवार - आपक बहादु र और दलावर क बहु त कुछ तार फ सु नी है, लड़ने का हौसला रखता
हू ं।

कुमार - मेरे पास कोई हरबा न होने पर भी लड़ने को तैयार हू ं, वार करो!

सवार - जो आदमी रथ पर सवार करके आपको लए जाता था उसक ढाल-तलवार म ले


आया हू ं, (हाथ का इशारा करके) वह दे खए, आपके बगल म मौजू द है, उठा ल िजए और
मु काबला क िजए। म खाल हाथ आपसे लड़ना नह ं चाहता।

कुं अर इं जीत सं ह ढाल-तलवार उठा पतरे के साथ उस नकाबपोश सवार के मु का बले म खड़े
हो गए। थोड़ी दे र तक लड़ाई होती रह । कुमार को मालू म हो गया क यह दु मनी के तौर पर
नह ं लड़ता। ललकार के बोले, ''तु म लड़ते हो या खलवाड़ करते हो'

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सवार - कोई दु मनी तो आपसे है नह ं!

कुमार - फर लड़ने को तैयार य हु ए?

सवार - इस लए क आपके बदन म जरा फुत आये, बहु त दे र तक बेहोश पड़े रहने से रग म
सु ती आ गई होगी। अगर आपसे दु मनी रहती तो आपको दु मनके हाथ से ह य बचाते

कुमार - तो या तु म हमारे दो त हो?

सवार - म यह भी नह ं कह सकता।

कुमार - ज र तु म हमारे दो त हो अगर दु मन के हाथ से हम बचाया।

सवार - या इस बारे म आपको कोई शक है क मने आपक जान बचाई!

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कुमार - ज र शक है। म कैसे व वास कर सकता हू ं क तु म मु झे यहां लाए हो या कोई

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दू सरा।

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सवार - इसके लए म तीन सबू त दू ं गा।
मार डालता।
एक तोsअगर
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i n मन होता तो बे होशी म आपको

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hसे ह? i h
कुमार - बेशक और दो सबू त कौन

सवार - जरा ठह रए, t


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h म अभी आता हू ं तो ये दोन सबू त भी दे ता हू ं।

इतना कह वह नकाबपोश सवार झट अपने घोड़े पर सवार हु आ और वहां पहु ंचा जहांवह रथ

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था िजस पर कुमार लाए गए थे। एक घोड़ा मरा हु आ पड़ा था, दू सरा बागडोर से बंधा अलग
खड़ा था, उस ऐयार क लाश भी उसी जगह पड़ी हु ई थी जो कुमार कोबेहोश करके उठा लाया
था। पीछे क तरफ थोड़ी दू र पर सारथी क लाश थी।

वह नकाबपोश सवार अपने घोड़े से उतर पड़ा और जोर लगाकर कसी तरह उस रथ को उलट
दया जो अभी तक खड़ा था। फर सोचने लगा क अब या करना चा हए उसक नगाह
सारथी क लाश पर पड़ी, वहां गया और उस लाश को घसीट लाकर रथ के पास रख दया
और फर कुछ सोचकर धीरे से बोला, ''अब कुमार नह ं समझ सकते क उनका ल कर कधर
है और वे कस तरफ से लाए गए, उ ह धोखे म डालकर अपनी और उनक क मत का
अंदाजा लेना चा हए।'' इसके बाद वह सवार फर अपने घोड़े पर चढ़ा और वहां पहु ंचा जहां
कुमार उसक राह दे ख रहे थे।

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कुमार - तु म कहां गए थे

सवार - एक आदमी क खोज म गया था मगर वह नह ं मला।

कुमार - खैर तु म अपनी सचाई के लए और सबू त दे ने वाले थे!

सवार घोड़े पर से उतर पड़ा और कुमार से बोला, ''आप घोड़े पर सवार हो ल िजए और मेरे
साथ च लए।'' मगर कुमार ने मंजू र न कया। सवार ने भी घोड़े क लगाम थामी और पैदल
कुमार को लए हु ए उस रथ के पास पहु ंचा और सब हाल कहकर बोला, ''दे खए इसी रथ पर
आप लाए गए, यह बदमाश आपको लाया है, और यह दू सरा सारथी है। म इि तफाक से
आपके पास मलने के लए जा रहा था जो आपके काम आया। अब उस रथ का एक घोड़ा
जो बचा हु आ है उसी पर आप सवार होकर ल कर म चले जाइए!''

कुमार - बेशक तु मने मेर जान बचाई, इसका अहसान कभी न भू लू ंगा।
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सवार - या इसका अहसान आप मानते ह!
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कुमार - ज र।
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सवार - तो आप कुछ दे कर इस अहसान का बोझ अपने ऊपर से उतार द िजए।
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कुमार - बड़ी खु शी के साथ /म/
ऐसा करने को तैयार हू, ं जो कहो दू ं ।
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सवार - इस समयhतो म आपसे कुछ नह ं ले सकता, मगर आप वादा कर तो ज रत पड़ने
पर आपसे कुछ मांगू ं और मदद लू!ं

कुमार - म वादा करता हू ं क जो कुछ मांगोगे दू ं ग,ाजब चाहे ले लो।

सवार - दे खए फर बदल न जाइएगा।

कुमार - कभी नह ,ं यह य का धम नह ं।

सवार - अ छा अब एक सबू त और दे ता हू ं क बना आपको कसी तरह का क ट दये अपने


घर चला जाता हू ं।

कुमार - तु म अपने चेहरे पर से नकाब तो हटाओ िजससे तु मको पहचान रखू ं।

सवार - यह बात तो ज र है।

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इतना कहकर सवार ने चेहरे पर से नकाब उलट द और कुमार को हैरत म डाल दया
य क वह एक हसीन और नौजवान औरत थी।

बेशक सवाय कशोर के ऐसी हसीन औरत कुमार ने कभी नह ं दे खी थी। उसने अपनी तरछ
चतवन से कुमार के दल का शकार कर लया और उनक बंधी हु ई टकटक क तरफ कुछ
खयाल न कर उ ह उसी तरह छोड़ सड़क से नीचे उतर जंगल का रा ता लया।

उसके चले जाने के बाद थोड़ी दे र तक तो कुमार उसी तरफ दे खते रहे िजधर वह घोड़े पर
सवार होकर गई थी, इसके बाद रथ और सड़क क तरफ दे खा फर उस घोड़े के पास गये जो
रथ के दोन घोड़ म से जीता मौजू द था। उसक पीठ पर जो कुछ असबाब था खोल दया
सफ लगाम रहने द और नंगी पीठ पर सवार हो उसी तरफ का रा ता लया िजधर वह
नकाबपोश औरत उनके दे खते-दे खते चल गई थी।

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भू ख-े यासे दोपहर तक घोड़ा दौड़ाते चले गये मगर उस औरत का पता न लगा क कधर गई
और या हु ई। भू ख और यास से परे शान हो गये और इस फ
p oम पड़े क कह ं ठं डा पानी
मले तो यास बु झाव मगर इस जंगल म कह ं कसी सोतेg याsझरने का पता न लगा, लाचार
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वह आगे बढ़ते ह गये और शाम होते तक एक ऐसे
s . मै दान से पहु ंचे िजसके चार तरफ तो
घना जंगल था मगर बीच म सु ंदर साफ जल मuलहराता हु आ एक अनू ठा तालाब था।
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hinको दे ख बड़े ह वि मत हु ए और एकटक उसक तरफ
कुं अर इं जीत सं ह उस व च तालाब
//बीच एक खू बसू रत छोटा-सा मकान बना हु आ था िजसके चार
दे खने लगे। इस तालाब के :बीच
तरफ सहन था और tचार tp कोन म चार औरत तीर-कमान चढ़ाये मु तैद थीं, मालू म होता था
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क ये अभी तीर छोड़ा ह चाहती ह। मकान क छत पर एक छोटे -से चबू तरे पर भी एक
औरत दखाई पड़ी िजसका सर नीचे और पैर आसमान क तरफ थे। बड़ी दे र तक दे खने के
बाद मालू म हु आ क ये औरत जानदार नह ह
ं बि क बनावट ह िज ह पु तल कहना मु ना सब
है। एक छोट -सी ड गी भी उसी चबू तरे के साथ र सी के सहारे बंधी हु ई थी िजससे मालूम
होता था क इस मकान म ज र कोई रहता है िजसके आने-जाने के लए यह ड गी मौजू द
है।

कुमार घोड़े क लगाम एक प थर से अटकाकर तालाब के नीचे उतरे, हाथ-मु ंह धो जल पया


और कुछ सु ताने के बाद फर उसी मकान क तरफ दे खने लगे य क कुमार का इरादा
हु आ क तैरकर उस मकान तक जायं और दे ख क उसम या है।

सू य अ त होते-होते एक औरत उस मकान के अंदर से नकल और सहन पर खड़ी हो कुमार


क तरफ दे खने लगी, इसके बाद हाथ के इशारे से कहा क यहां से चले जाओ। कुमार ने उस

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औरत को साफ पहचान लया क यह वह नकाबपोश सवार है िजसने कुमार को रथ पर ले
जाते हु ए ऐयार के हाथ से बचाया था।

बयान - 10

कुछ रात जा चु क है। रोहतासगढ़ कले के अंदर अपने मकान म बैसठ हु ईबेचार कशोर न
मालू म कस यान म डू बी हु ई है और या सोच रह है। कोईदू सर औरत उसके पास नह ं
है। आ खर कसी के पैर क आहट पा अपने खयाल म डू बी हु ई कशोर ने सर उठाया और
दरवाजे क तरफ दे खने लगी। लाल ने पहु ंचकरसलाम कया और कहा, ''माफ क िजयेगा, म
बना हु म के इस कमरे म आई हू ं।''

कशोर - मने ल डय को हु म दे रखा है क इस कमरे म कोई न आने पावे मगर साथ ह


इसके यह भी कह दया था क लाल आने का इरादा करे तो उसे मत रोकना। .in
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लाल - बेशक आपने मेरे ऊपर बड़ी मेहरबानी क ।
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कशोर - मगर न मालू म तु म मेरे ऊपर दया यs नह ं करतीं! आओ बैठो।
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लाल - (बैठकर) आप ऐसा न कह, मin
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जी-जान से आपके काम आने को तैयार हू ं।
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कशोर - ये सब बनावटp:
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बात करती हो। अगर ऐसा ह होता तो अपना और कुं दन वाला भेद
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htनारंगी वाले भेद से तो म पहले ह हैरान हो रह थी मगर जब से कुं दन
मु झसे य छपातीं
ने अपनी बात का असर तु म पर डाला है तब से मेर घबराहट और भी बढ़ गई है।

लाल - बेशक आपको बहु त कुछ ता जु ब हु आ होगा। म क


सम खाकर कह सकती हू ं क
कुं दन ने उस समय जो मु झे कहा था या कुं दन क िजन बात को सु नकर म डर गईथी वह
उसे पहले से मालू म न थीं, अगर मालू म होतीं तो िजस समय मने नारं गी दखाकर उसे
धमकाया था उसी समय वह मु झसे बदला ले लेती। अब मु झे व वास होगया क इस मकान
म कोई बाहर का आदमी ज र आया है िजसने हमारे भेद से कुं दन को हो शयार कर दया।
अफसोस, अब मेर जान मु त म जाया चाहती है य क कुं दन बड़ी ह बे रहम और बदकार
औरत है।

कशोर - तु हार बात मेर घबड़ाहट को बढ़ा रह ह, कृ पा करके कुछ कहो तो सह , या भेद
है

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लाल - म ब कुल हाल आपसे कहू ंगी और आपक चं ता दू र क ं गी मगर आज रातभर आप
मु झे और माफ क िजये और इस समय एक काम म मेर मदद क िजए।

कशोर - वह या

लाल - यह तो मु झे व वास हो ह गया क अब मेर जान कसी तरह नह ं बच सकती, तो


भी अपने बचने के लए म कोई-न-कोई उ योग ज र क ं गी। म चाहती हू ं क अपने मरने के
पहले ह कुं दन को इस दु नया से उठा दू ं मगर एक ऐसीअंड़स म पड़ गई हू ं क ऐसा करने
का इरादा भी नह ं कर सकती, हां कुं दन का कुछ वशेष हाल जानना चाहती हू ं और इसके बाद
बाग के उस कोने वाले मकान म घु सा चाहती हू ं िजसम हरदम ताला बंद रहता है और
दरवाजे पर नंगी तलवार लए दो औरत बार -बार से पहरा दया करती ह। इ ह ं दोन काम
म म आपसे मदद लया चाहती हू ं।

कशोर - उस मकान म या है, तु ह कुछ मालू म है


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लाल - हां, कुछ मालू म है और बाक भेद जानना चाहती हू।ं मु झे व वास है क अगर आप
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भी मेरे साथ उस मकान के अंदर चलगी और हम दोन
b lo आदमी कसी तरह बचकर नकल
.
आवगे तो फर आपको भी इस कैद से छु ी मलsजायगी, मगर उसके अंदर जाना और बचकर
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नकल आना यह मु ि कल है।

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कशोर - यह और ता जु ब क /बात तु मने कह, खैर ऐसी िजंदगी से म मरना उ तम समझती
p :/करो और िजस तरह क मदद मु झसे लयाचाहती हो लो।
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हू ं। जो कुछ तु ह करना हो
ht
लाल - (एक छोट -सी त वीर कमर से नकाल और कशोर के हाथ म दे कर) थोड़ी दे र बाद
मामू ल तौर पर कुं दन ज र आपके पास आवेगी, उस समय यह त वीर ऐसे ढं ग से उसे
दखाइए िजससे उसे यह न मालू म हो क आप जान-बू झकर दखा रह ह, फर उसके चेहरे
क जैसी रं गत हो या जो कुछ वह कहे मु झसे क हए। इस समय तो यह एक काम है।

कशोर - यह काम म बखू बी कर सकूं गी।

कशोर ने लाल के हाथ से त वीर लेकर पहले खु द दे खी। इस त वीर म एक खोह क हालत
दखाई गई थी िजसम एक आदमी उलटा लटक रहा था और एक औरत हाथ म छुरा लए
उसके बदन म घाव लगा रह थी, पास म एक कम सन औरत खड़ी थी और कोने क तरफ
क खोद जा रह थी।

पाठक, यह त वीर ठ क उस समय क थी िजसका हाल हम पहले भाग के आठव बयान म


लख आये ह, मगर यह हाल कशोर को अभी तक मालू म नह ं हु आ था। कशोर उस त वीर

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को दे खकर बहु त ह हैरान हु ई और उसके बारे म लाल से कुछ पू छनाचाहा। मगर लाल
त वीर दे ने के बाद वहां न ठहर , तु रंत बाहर चल गई।

लाल के जाने के थोड़ी ह दे र बाद कुं दन आ पहु ं ची मगर उस समय कशोर उस त वीर को
दे खने म अपने को यहां तक भू ल हु ई थी क कुं दन का आना उसे तबमालू म हु आ जब उसने
पास आकर कुछ दे र तक खड़े रहकर पू छा, ''कहो ब हन, या दे ख रह हो'

कशोर - (च ककर) ह! तु म यहां कब से खड़ी हो

कुं दन - कुछ दे र से। इस त वीर म कौन-सी ऐसी बात है िजसे तु म बड़े गौर से दे ख रह हो।

कशोर - तु मने इस त वीर को दे खा है

द है। आप लाल से कह द िजएगा क म इस त वीर को दे खकर नह.ं iडर o m


कुं दन - सैकड़ दफे। म समझती हू ं क यह त वीर तु ह लाल ने खासमु झे दखाने के लए
n सकती। म बना
बदला लए कभी न छोडू ंगी य क िजस दन पहले-पहल रात p
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कोo आपसे मु लाकात हु ई थी
उस दन यहां से मेरे नकल जाने का सामान ब कुल ठo
l कg i
था, इसी लाल ने मेरे उ योग को
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.bखैर दे खा जायगा। म आपके मलने से
म ी कर दया और मेरे मददगार को भी फंसा s
स न थी मगर अफसोस, उसने झू ठ बातi4 iu
दया,
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गढ़कर आपका दल भी मेर तरफ से फेर दया।
तो भी म आपके साथ बु राई न कin
आपको हो शयार कर दू ं गी, मानने/
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ं गी और जहां तक हो सकेगा उसक चालबािजय से

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p n-न-मानने का आपको अि तयार है।

htम कुछ नह ं आता क या हो रहा है। हे ई वर, मने या अपराध कया


कशोर - मेर समझ a
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था क चार तरफ से संकट ने आकर घेर लया! हाय, म ब कुल नह ं जान सकती क कौन

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मेरा दो त हे और कौन दु मन!
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इतना कह कशोर रोने लगी, उसने अपने को बहु त संभालना चाहा मगर न हो सका,
हच कय ने उसका गला दबा दया। कुं दन कशोर के पास बैठ गई और उसका हाथ अपने
दोन हाथ म दबाकर बोल -

'' यार कशोर , यह समझना तो बहु त मु ि कल है क यहां आपका दो त कौन है। बात
बनाकर दो ती सा बत करना भू ल है तसम दु मन के घर म, हां, यह म ज र सा बत कर
दू ं गी क लाल आपसे दु मनी रखती है। लाल ने आपसे ज र कहाहोगा क आपक तरह म
भी कुमार के साथ याह करने के लए लाई गई हू ं मगर नह ,ं यह बात ब कुल झू ठ है।
असल तो यह है क लाल मु झको ब कुल नह ं जानती और न म जानती हू,ं क लाल कौन
है मगर आजकल लाल िजस फ म पड़ी है उससे म समझती हू ं क वह आपके साथ
दु मनी कर रह है। ता जु ब नह ं क वह आपको एक दन उस मकान म ले जाय िजसका

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ताला बराबर बंद रहता है और िजसके दरवाजे पर नंगी तलवार का पहरा पड़ा रहता है य क
आजकल वह वहां पहरा दे ने वाल औरत से दो ती बढ़ा रह है और ताला खोलने के लए
एक ताल तैयार कर रह है। उसक दु मनी का अंत उसी दन होगा िजस दन वह आपको
उस मकान के अंदर कर दे गी, फर आपक जान कसी तरह नह ं बच सकती। उसका ऐसा
करना केवल आप ह के साथ दु मनी करना नह ं बि क यहां के राजा और इस रा य के साथ
भी दु मनी करना है। बेशक वह आपको उस मकान के अंदर भेजेगी और आप उस चौखट के
अंदर पैर भी न रखगी।''

कशोर - उस मकान के अंदर या है?

कुं दन - सो म नह ं जानती।

कशोर - यहां का कोई आदमी जानता है?

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कुं दन - कोई नह ं, बि क जहां तक म खयाल करती हू,ं यहां का राजा भी उसके अंदर का हाल
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नह ं जानता। s p
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कशोर - या मकान कभी खोला नह ं जाता? s .
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कुंदन - मेरे सामने तो कभी खोला नह
i nं dगया।
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कशोर - फर कैसे कह सकती
p :/ हो क उसके अंदरन जाकर कोई बच नह ं सकता?
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कुं दन - इसका जानना तो कोई मु ि कल नह ं है। पहले तो यह सो चए क वहां हरदम ताला
बंद रहता है , अगर कोई चोर से भीतर गया भी तो नकलने का मौका मु ि कल से मलेगा,
फर हम लोग को उसके अंदर जाकर फायदा ह या होगा आपने दे खा होगा, उस दरवाजे के
ऊपर लखा है क - 'इसके अंदर जो जायगा उसका सर आपसे आप कटकर गर पड़ेगा'! जो
हो मगर यह सब होते हु ए भी लाल आपको उस मकान के अंदर ज र भेजना चाहे गी।

कशोर - खैर, इस त वीर का हाल अगर तु म जानती हो तो कहो।

कुं दन - कहती हू ं सु न-ो जब कुं अर इं जीत सं ह को धोखा दे कर माधवी ले गई तो उनके छोटे


भाई आनंद सं ह उनक खोज म नकले। एक मु सलमानी ने उ ह धोखा दे कर गर तार कर
लया और उनके साथ शाद करनी चाह मगर उ ह ने मंजू र न कया और तीन दन भू खे
उसके यहां कैद रह गये। आ खर उ ह ं के ऐयार दे वी सं ह ने उस कैद से उनको छुड़ाया मगर
उ ह अभी तक मालू म नह ं है क उ ह दे वी सं ह ने छुड़ाया था।

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इसके बाद उस त वीर के बारे म जो कुछ आनंद सं ह ने दे खा - सु ना था कुं दन ने वहां तक
कह सु नाया जब आनंद सं ह बेहोश करके उस खोह के बाहर नकाल दये गये बि क घर पहु ंचा
दये गये।

कशोर - यह सब हाल तु ह कैसे मालू म हु आ

कुं दन - मु झसे दे वी सं ह ने कहा था।

कशोर - दे वी सं ह से तु मसे या संबंध

कुं दन - जान-पहचान है। आपने इस त वीर के बारे म लाल से कुछ सु ना है या नह ं

कशोर - कुछ नह ं।

कुं दन - पू छये, दे ख
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या कहती है! अ छा, अब म जाती हू,ं फर मलू ंगी। n
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कशोर - जरा ठहरो तो। s p
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कुं दन - अब मत रोको, बेमौका हो जायगा। म फर .
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कुं दन चल गई मगर कशोर पहले सेnभी यादे सोच म पड़ गई। कभी तो उसका दल लाल
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क तरफ झु कता और उसको अपने
/ / दु ख का साथी समझती, कभी सोचते-सोचते लाल क बात
म शक पड़ जाने पर कp : ह को स ची समझती। उसका दल दोन तरफ के खं चाव म
t ु दं न
htथा, वह ठ क न चय नह ं कर सकती थी क अपना हमदद लाल को
पड़कर बेबस हो रहा
बनावे या कुं दन को य क लाल और कुं दन दोन अपने असल भेद को कशोर से छपा
रह थीं।

उस दन लाल ने फर मलकर कशोर से पू छा, ''उस त वीर को दे खकर कुं दन क या दशा


हु ई' िजसके जवाब म कशोर ने कहा, ''कुं दन ने उस त वीर क तरफ यान भी न दया और
मेरे खु द पू छने पर कहा, म नह ं जानती यह त वीर कैसी है और न इसे कभी मने पहले दे खा
ह था।''

यह सु नकर लाल का चेहरा कुछ उदास हो गया और वह कशोर के पास से उठकर चल


गई। कशोर ने कहा, ''भला तु म ह बताती जाओ क यह त वीर कैसी है' मगर लाल ने
इसका कुछ जवाब न दया और चल गई।

इस बात को कई दन बीत गये। ल कर से कुं अर इं जीत सं ह के गायब होने का हाल भी


चार तरफ फैल गया िजसे सु न धीरे-धीरे कशोर क उदासी और भी यादे बढ़ गई।

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एक दन रात को अपनी पलंगड़ी पर लेट हु ई कशोर तरह-तरह क बात सोच रह थी, लाल
और कुं दन के बारे म भी गौर कर रह थी। यकायक वह उठ बैठ और धीरे -से आप ह बोल ,
'अब मु झे खु द कुछ करना चा हए, इस तरह पड़े रहने से काम नह ं चलता। मगर अफसोस, मेरे
पास कोई हरबा भी तो नह ं है।'

कशोर पलंग के नीचे उतर और कमरे म इधर-उधर टहलने लगी, आ खर कमरे के बाहर
नकल । दे खा क पहरे दार ल डयां गहर नींद म सो रह ह। आधी रात से यादे जा चु क
थी, चार तरफ अंधेरा छाया हु आ था। धीरे-धीरे कदम बढ़ाती हु ई कुं दन के मकान क तरफ
बढ़ । जब पास पहु ंची तो दे खा क एक आदमी काले कपड़े पहने उसी तरफ लपका हु आ जा
रहा है बि क उस कमरे के दालान म पहु ंच गया िजसम कुंदन रहती है। कशोर एक पेड़ क
आड़ म खड़ी हो गई, शायद इस लए क वह आदमी लौटकर चला जाय तो आगे बढ़ू ं ।

थोड़ी दे र बाद कुं दन भी उसी आदमी के साथ बाहर नकल और धीरे-धीरे बाग के उस तरफ

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रवाना हु ई िजधर घने दर त लगे हु ए थे। जब दोन उस पेड़ के पासपहु ंचे िजसक आड़ म
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कशोर छपी हु ई थी तब वह आदमी का और धीरे से बोला -
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आदमी - अब तु म जाओ, यादे दू र तक पहु ंचाने क कोई ज रत नह ं।
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कुं दन - फर भी म कहे दे ती हू ं क अब पांच-सात दन 'नारं गी' क कोई ज रत नह ं।

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आदमी - खैर, मगर कशोर पर/दया बनाये रखना।
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htक कोई ज रत नह ं।
कुं दन - इसके कहने

वह आदमी पेड़ के झु ंड क तरफ चला गया और कुं दन लौटकर अपने कमरे म चल गई।
कशोर भी फर वहां न ठहर और अपने कमरे म आकर पलंग पर लेट रह य क उन दोन
क बात ने िजसे कशोर ने अ छ तरह सु ना था उसे परे शान कर दया और वह तरह-तरह
क बात सोचने लगी, मगर अपने दल का हाल कससे कहे इस लायक वहां कोई भी न था।

पहले तो कशोर ब न बत कुं दन के लाल को स ची और नेक समझती थी मगर अब वह


बात न रह । कशोर उस आदमी के मु ंह से नकल हु ई उस बात को फर याद करने लगी
क ' कशोर पर दया बनाये रखना।'

वह आदमी कौन था इस बाग म आना और यहां से नकलकर जाना तो बड़ा ह मु ि कल है,


फर वह य कर आया! उस आदमी क आवाज पहचानी हु ई-सी मालू म होती है, बेशक म
उससे कई दफे बात कर चु क हू, ं मगर कब और कहां, सो याद नह ं पड़ता और न उसक सू रत
का यान बनता है। कुं दन ने कहा था, 'पांच-सात दन तक नारं गी क कोई ज रत नह ं।' इससे

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मालू म होता है क नारं गी वाल बात कुछ उस आदमी से संबंध रखती है और लाल उस भेद
को जानती है। इस समय तो यह न चय हो गया क कुं दन मेर खैर वाह है और लाल
मु झसे दु मनी कया चाहती है मगर इसका भी व वास नह ं होता। कुछ भेद खु ला मगर
इससे तो और भी उलझन हो गई। खैर को शश क ं गी तो कुछ और भी पता लगेगा मगर
अबक लाल का हाल मालू म करना चा हए।

थोड़ी दे र तक इन सब बात को कशोर सोचती रह , आ खर फर अपने पलंग से उठ और


कमरे के बाहर आई। उसक हफाजत करने वाल ल डयां उसी तरह गहर नींद म सो रह
थीं। जरा ककर बाग के उस कोने क तरफ बढ़ िजधर लाल का मकान था। पेड़ क आड़
म अपने को छपाती और क- ककर चार तरफ क आहट लेती हु ई चल जाती थी, जब
लाल के मकान के पास पहु ंची तो धीरे-धीरे कसी क बातचीत क आहट पा एक अंगू र क
झाड़ी म क रह और कान लगाकर सु नने लगी, केवल इतना ह सु ना, ''आप बे फ र हये,
जब तक म जीती हू ं कुं दन कशोर का कुछ बगाड़ नह ं सकती ओैर न उसे कोई दू सरा ले जा
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सकता है। कशोर इं जीत सं ह क है और बेशक उन तक पहु ंचाई जायेगी।''
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कशोर ने पहचान लया क यह लाल क आवाज है। o g
लाल ने यह बात बहु त धीरे से कह
थी मगर कशोर बहु त पास पहु ंच चु क थी इस लए.b
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s बखू बी सु नकर पहचान सक कलाल क
आवाज है मगर यह न मालू म हु आ क दू स
i 4राuआदमी कौन है। लाल अपने कमरेके पास ह
d अपने कमरे म घु स गई और उसी जगह से एक
nचढ़
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थी बात कहकर तु रंत दो-चार सी ढ़यां
hम छपता हु आ बाग के पछल तरफ िजधर दरवाजे म
आदमी नकलकर पेड़ क आड़ /
p :/मकान था चला गया, मगर उसी समय जोर-जोर से ''चोर-चोर'' क
बराबर ताला बंद रहने tवाला
आवाज आई। कशोर ht ने आवाज को भी पहचानकर मालू म कर लया क कुं दन है जो उस
आदमी को फंसाया चाहती है। कशोर फौरन लपकती हु ई अपने कमरे म चल आई और चोर-
चोर क आवाज बढ़ती ह गई।

कशोर अपने कमरे म आकर पलंग पर लेट रह और उन बात पर गौर करने लगी जो अभी
दो-तीन घंटे के हे र-फेर म दे ख-सु न चु क थी। वह मन ह मन म कहने लगी, 'कुं दन क तरफ
भी गई और लाल क तरफ भी गई िजससे मालू म हो गया क वे दोन ह एक-एक आदमी
से जान-पहचान रखती ह जो बहु त छपकर इस मकान म आता है। कुं दन के साथ जो आदमी
मलने आया था उसक जु बानी जो कुछ मने सु ना उससे जाना जाता था क कुं दन मु झसे
दु मनी नह ं रखती बि क मेहरबानी का बताव कया चाहती है , इसके बाद जब लाल क तरफ
गई तो वहां क बातचीत से मालू म हु आ क लाल स चे दल से मेर मददगार है और कुं दन
शायद दु मनी क नगाह से मु झे दे खती है। हां ठ क है, अब समझी बेशक ऐसा ह होगा।
नह -ं नह ं मु झे कुं दन क बात पर व वास न करना चा हए! अ छा दे खा जायेगा। कुं दन ने
बेमौके चोर-चोर का शोर मचाया, कह ं ऐसा न हो क बेचार लाल पर कोई आफत आवे।'

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इ ह ं सब बात को सोचती हु ई कशोर ने बची हु ई थोड़ी-सी रात जागकर ह बता द और
सु बह क सफेद फैलने के साथ ह अपने कमरे के बाहर नकल य क रात क बात का
पता लगाने के लए उसका जी बेचैन हो रहा था।

कशोर जैसे ह दालान म पहु ंची, सामने से कुं दन को आते हु ए दे खा। कुं दनने पास आकर
सलाम कया और कहा, ''रात का कुछ हाल मालू म है या नह ं'

कशोर - सब-कुछ मालू म है! तु ह ं ने तो गु ल मचाया था!

कुं दन - (ता जु ब से) यह कैसी बात कहती हो

कशोर - तु हार आवाज साफ मालू म होती थी।

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कुं दन - म तो चोर-चोर का गु ल सु नकर वहां पहु ंची थी और उ ह ं क तरह खु द भी च लाने
लगी थी।

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कशोर - (हंसकर) शायद ऐसा ह हो।

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कुं दन - या इसम आपको कोई शक है
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कशोर - बेशक। लो यह लाल भी आ
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कुं दन - (कुछ घबड़ाकर) p
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t जो कुछ कया उ ह ने कया।
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इतने म लाल भी आकर खड़ी हो गई और कुं दन क तरफ दे खकर बोल , ''आपका वार खाल
गया।''
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कुं दन - (घबड़ाकर) मने या...

लाल - बस रहने द िजये, आपने मेर कारवाई कम दे खी होगी मगर दो घंटे पहले म आपक
पू र कारवाई मालू म कर चु क थी।

कुं दन - (बदहवास होकर) आप तो कसम खा...

लाल - हां-हां, मु झे खू ब याद है, म उसे नह ं भू लती।

कशोर - जो हो, मु झे अब पांच-सात दन तक नारं गी क कोई ज रत नह ं।

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कशोर क इस बात ने लाल और कुं दन दोन को च का दया। लाल के चेहरे पर कुछ हंसी
थी मगर कुं दन के चेहरे का रं ग ब कुल ह उड़ गया था य क उसे व वास हो गया क
कशोर ने भी रात क कुल बात सु न ल ं। कुं दन क घबराहट और परे शानी यहां तक बढ़ गई
क कसी तरह अपने को स हाल न सक और बना कुछ कहे वहां से उठकर अपने कमरे क
तरफ चल गई। अब लाल और कशोर म बातचीत होने लगी -

लाल - मालू म होता है तु मने भी रात भर ऐयार क!

कशोर - हां, म कुं दन क तरफ छपकर गई थी।

लाल - तब तो तु ह मालू म हो गया होगा क कुं दन तु ह धोखा दया चाहती है।

कशोर - पहले तो यह साफ नह ं जान पड़ता था मगर जब तु हार तरफ गई और तु मको


कसी से बात करते सु ना तो व वास हो गया क इस महल म केवल तु ह ं से म कुछ भलाई
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क उ मीद कर सकती हू ं।
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लाल - ठ क है , कुं दन क कुल बात तु मने नह ं सु न,ींoया मु झसे भी...( ककर) खैर जाने
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द िजये। हां, अब वह समय आ गया क तु म और s .हम दोन यहां से नकल जाय। या तु म
मु झ पर व वास रखती हो i 4u
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कशोर - बेशक, तु मसे मु झे नेक hक उ मीद है, मगर कुं दन बहु त बगड़ी हु ई मालू म होती है।
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लाल - वह मेरा कुछtt
h नह ं कर सकती।
कशोर - अगर तु हारा हाल कसी से कह दे तो

लाल - अपनी जु बान से वह नह ं कह सकती, य क वह मेरे पंजे म उतना ह फंसी हु ई है


िजतना म उसके पंजे म।

कशोर - अफसोस! इतनी मेहरबानी रहने पर भी तु म वह भेद मु झसे नह ं कहतीं

लाल - घबड़ाओ मत, धीरे -धीरे सब-कुछ मालू म हो जाएगा।

बयान - 11

इसके बाद लाल ने दबी जु बान से कशोर को कुछ समझाया और दो घंटे म फर मलने का
वादा करके वहां से चल गयी।

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हम ऊपर कई दफे लख आये ह क उस बाग म िजसम कशोर रहती थी एक तरफ ऐसी
इमारत है िजसके दरवाजे पर बराबर ताला बंद रहता है और नंगी तलवार का पहरा पड़ा
करता है।

आधी रात का समय है। चार तरफ अंधेरा छाया हु आ है। तेज हवा चलने के कारण बड़े-बड़े
पेड़ के प ते लड़खड़ाकर स नाटे को तोड़ रहे ह। इसी समय हाथ म कमंद लए हु ए लाल
अपने को हर तरफ से बचाती और चार तरफ गौर से दे खती हु ई उसी मकान के पछवाड़े क
तरफ जा रह है। जब द वार के पास पहु ंची कमंद लगाकर छत के ऊपर चढ़ गई। छत के
ऊपर चार तरफ तीन-तीन हाथ ऊंची द वार थी। लाल ने बड़ी हो शयार से छत फोड़कर एक
इतना बड़ा सू राख कया िजसम आदमी बखू बी उतर जा सके और खु द कमंद के सहारे उसके
अंदर उतर गई।

दो घंटे के बाद एक छोट -सी संद ू कड़ी लए हु ए लाल नकल और कमंद के सहारे छत के

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नीचे उतर एक तरफ को रवाना हु ई। पू रब तरफ वाल बारहदर म आई जहां सेमहल म जाने
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poबहु त बड़ा और आल शान
का रा ता था, फाटक के अंदर घु सकर महल म पहु ंची। यह महल
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था। दो सौ ल डय और स खय के साथ महारानी सा g इसी म रहा करती थीं। कई
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दालान और दरवाज को पार करती हु ई लाल ने एक
s .bकोठर के दरवाजे पर पहु ंचकर धीरे से
कुं डा खटखटाया।
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एक बु ढ़या ने उठकर कवाड़ खोला h और लाल को अंदर करके फर बंद कर दया। उस
बु ढ़या क उ लगभग p
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अ:सी वष क होगी, नेक और रहम दल उसके चेहरे पर झलक रह
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थी। सफ छोट -सी htकोठर , थोड़ा-सा ज र सामान और मामू ल चारपाई पर यान दे ने से
मालू म होता था क बु ढ़या लाचार से अपनी िजंदगी बता रह है। लाल ने दोन पैर छूकर
णाम कया ओैर उस बु ढ़या ने पीठ पर हाथ फेरकर बैठने के लए कहा।

लाल - (संद ू क आगे रखकर) यह है

बु ढ़या - या ले आ हां ठ क है, बेशक यह है, अब आगे जो कुछ क िजयो बहु त स हलकर!
ऐसा न हो क आ खर समय म मु झे कलंक लगे।

लाल - जहां तक हो सकेगा बड़ी हो शयार से काम क ं गी, आप आशीवाद द िजए क मेरा
उ योग सफल हो।

बु ढ़या - ई वर तु झे इस नेक का बदला दे, वहां कुछ डर तो नह ं मालू म हु आ

लाल - दल कड़ा करके इसे ले आई, नह ं तो मने जो कुछ दे खा, जीते जी भू लने यो य नह ,ं
अभी तो फर एक दफे दे खना नसीब होगा। ओफ! अभी तक कलेजा कांपता है।

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बु ढ़या - (मु कराकर) बेशक वहां ता जु ब के सामान इक े ह मगर डरने क कोई बात नह ,ं
जा ई वर तेर मदद करे ।

लाल ने उस संद ू कड़ी को उठा लया और अपने खास घर म आकर संद ू कड़ी को हफाजत से
रख पलंग पर जा लेट रह । सबेरे उठकर कशोर के कमरे म गई।

कशोर - मु झे रात भर तु हारा खयाल बना रहा और घड़ी-घड़ी उठकर बाहर जाती थी क
कह ं से गु ल-शोर क आवाज तो नह ं आती।

लाल - ई वर क दया से मेरे काम म कसी तरह का व न नह ं पड़ा।

कशोर - आओ मेरे पास बैठो, अब तो तु ह उ मीद हो गई होगी क मेर जान बच जायगी


और यहां से जा सकूं गी।

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लाल - बेशक अब मु झे पू र उ मीद हो गई।
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कशोर - संद ू कड़ी मल
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लाल - हां, यह सोचकर क दन को कसी तरह
4 usमौका न मलेगा उसी समय म बू ढ़ दाद को
भी दखा आई, उ ह ने पहचानकर कहाdक i बेशक यह संदू कड़ी है। उसी रंग क वहां कई
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संद ू क ड़यां थीं मगर वह खास नशानinजो बू ढ़ दाद ने बतायाथा दे खकर म उसी एक को ले
आई! : //
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कशोर - म भी उस संद ू कड़ी को दे खना चाहती हू ं।

लाल - बेशक म तु ह अपने यहां ले चलकर वह संद ू कड़ी दखा सकती हू ं मगरउसके दे खने
से तु ह कसी तरह का फायदा नह ं होगा। बि क तु हारे वहां चलने से कुं दन को खु टका हो
जायगा और यह सोचेगी क कशोर लाल के यहां य गई। उस संद ू कड़ी म भी कोई ऐसी
बात नह ं है जो दे खने लायक हो, उसे मामू ल एक छोटा-सा ड बा समझना चा हए िजसम
कह ं ताल लगाने क जगह नह ं है और मजबू त भी इतनी है क कसी तरह टू ट नह ं सकती।

कशोर - फर वह य कर खु ल सकेगी और उसके अंदर से वह चाभी य कर नकलेगी


िजसक हम लोग को ज रत है

लाल - रे ती से रे तकर उसम सु राख कया जायगा।

कशोर - दे र लगेगी!

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लाल - हां, दो दन म यह काम होगा य क सवाय रात के दन को मौका नह ं मल
सकता।

कशोर - मु झे तो एक घड़ी सौ-सौ वष के समान बीतती है।

लाल - खैर जहां इतने दन बीते वहां दो दन और सह ।

थोड़ी दे र तक बातचीत होती रह । इसके बाद लाल उठकर अपने मकान म चल गई और


मामू ल काम क फ म लगी।

इसके तीसरे दन आधी रात के समय लाल अपने मकान से बाहर नकल और कशोर के
मकान म आई। वे ल डयां जो कशोर के यहां पहरे पर मु करर थीं गहर नींद म पड़ी खु राटे
ले रह थीं मगर कशोर क आंख म नींद का नाम- नशान नह ,ं वह पलंग पर लेट दरवाजे
क तरफ दे ख रह थी। उसी समय हाथ म एक छोट -सी गठर लए लाल ने कमरे के अंदर
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पैर रखा िजसे दे खते ह कशोर उठ खड़ी हु ई, बड़ी मु ह बत के साथ हाथ पकड़ लाल को
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अपने पास बैठाया। s p
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कशोर - ओफ! ये दो दन बड़ी क ठनता से बीते, दन-रात डर लगा ह रहता था।

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लाल - य
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कशोर - इस लए क कोई उस छत पर जाकर दे ख न ले क कसी ने सध लगाई है।
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लाल - ऊंह, कौन उस पर जाता है और कौन दे खता है! लो अब दे र करना मु ना सब नह ं।

कशोर - म तैयार हू,ं कुछ लेने क ज रत तो नह ं है

लाल - ज रत क सब चीज मेरे पास ह, तु म बस चल चलो।

लाल और कशोर वहां से रवाना हु और पेड़ क आड़ म छपती हु ई उस मकान के


पछवाड़े पहु ंचीं िजसक छत म लाल ने सध लगाई थी। कमंद लगाकरदोन ऊपर चढ़ ,ं कमंद
खींच लया और उसी कमंद के सहारे सध क राह दोन मकान के अंदर उतर ग । वहां क
अजीब बात को दे ख कशोर क अजब हालत हो गई मगर तु रंत ह उसका यान दू सर
तरफ जा पड़ा। कशोर और लाल जैसे ह उस मकान के अंदर उतर ं वैसे ह बाहर से कसी
के ललकारने क आवाज आई, साथ ह फुत से कई कमंद लगा दस-पं ह आदमी छत पर चढ़
आये और ''धरो-धरो, जाने न पावे, जाने न पावे!'' क आवाज लगी।

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बयान - 12

कुं अर इं जीत सं ह तालाब के कनारे खड़े उस व च इमारत और हसीन औरत क तरफ दे ख


रहे ह। उनका इरादा हु आ क तैरकर उस मकान म चले जायं जो इसतालाब के बीच बीच म
बना हु आ है, मगर उस नौजवान औरत ने इ ह हाथ के इशारे से मना कया बि क वहां से
भाग जाने के लए कहा, उसका इशारा समझ ये के मगर जी न माना, फर तालाब म उतरे ।

उस नाजनीन को व वास हो गया क कुमार बना यहां आये न मानगे, तब उसने इशारे से
ठहरने के लए कहा और यह भी कहा क क ती लेकर म आती हू ं। उस औरत ने क ती
खोल और उस पर सवार हो अजीब तरह से घु माती- फराती तालाब के पछले कोने क तरफ
ले गई और कुमार को भी उसी तरफ आने का इशारा कया। कुमार उस तरफ गये और खु शी-
खु शी उस औरत के साथ क ती पर सवार हु ए। वह क ती को उसी तरह घु माती- फराती
मकान के पास ले गई। दोन आदमी उतरकर अंदर गये।

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उस छोटे से मकान क सजावट कुमार ने बहु त पसंद क । वहां सभी चीज ज रत क मौजू द
थीं। बीच का बड़ा कमरा अ छ तरह से सजा हु आ था, बेशकs
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g मती शीशे लगे हु ए थे, का मीर
l मगर ऊंची संगममर क चौ कय
गल चे िजसम तरह-तरह के फूल-बू टे बने हु ए थे, छोटb-छोट
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पर सजावट के सामान और गु लद ते लगाये u
4 iहु ए n
s थे, गाने-बजाने का सामान भी मौजू द था,
i ने अ छ कार गर खच क थी। उस कमरे के
द वार पर क त वीर को बनाने म मु स
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d वर
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बगल म एक और छोटा-सा कमराhसजा हु आ था िजसम सोने के लए एक मसहर बछ हु ई
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हु ई थी। बीच म एक
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थी, उसके बगल म एक कोठर
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नहाने क थी िजसक जमीन सफेद और याह प थर से बनी

htछोटा-सा हौज बना हु आ था, िजसम एक तरफ से तालाब का जल आता


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था ओर दू सर तरफ से नकल जाता था, इसके अलावे और भी तीन-चार कोठ रयां ज र

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काम के लए मौजू द थीं, मगर उस मकान म सवाय उस औरत के और कोई दू सर औरत न
थी, न कोई नौकर या मजदू रनी ह नजर आती थी।

उस मकान को दे ख और उसम सवाय उस नौजवान नाजनीन के और कसी को न पा कुमार


को बड़ा ता जु ब हु आ। वह मकान इस यो य था क बना पांच-चार आद मय के उसक
सफाई या वहां के सामान क दु ती हो नह ं सकती थी।

थके-मांदे और धू प खाये हु ए कुं अर इं जीत सं ह को वह जगह बहु त ह भलमालू म हु ई और


उस हसीन औरत के अलौ कक प क छटा म ऐसे मो हत हु ए क पीछे क सु ध ब कुल ह
जाती रह । बड़े नाज और अंदाज से उस औरत ने कुमार को कमरे म ले जाकर ग ी पर
बैठाया और आप उनके सामने बैठ गई।

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कुमार - तु मने जो कुछ एहसान मु झ पर कया है म कसी तरह उसका बदला नह ं चु का
सकता।

औरत - ठ क है , मगर उ मीद करती हू ं क आप कोई काम ऐसा भी न करगे जो मेर


बदनामी का सबब हो।

कुमार - नह ं-नह ,ं मु झसे ऐसी उ मीद न करना, ले कन या सबब है जो तु मने ऐसा कहा

औरत - इस मकान म जहां म अकेल रहती हू ं आपका इस तरह आना और दे र तक रहना


बेशक मेर बदनामी का सबब होगा।

कुमार - (कुछ सोचकर) तु म इतनी खू बसू रत य हु अफसोस! तु हार एक-एक अदा मु झे


अपनी तरफ खींचती है। (कुछ अटककर) जो हो मु झे अब यहां से चला ह जाना चा हए। अगर
ऐसा ह था तो मु झे क ती पर चढ़ाकर यहां य ला
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औरत - मने तो पहले ह आपको चले जाने का इशारा कया मगर जब आप जल म तैरकर
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o झकर उस आदमी को कसी तरह
यहां आने लगे तो लाचार मु झे ऐसा करना पड़ा। म जान-बू
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आफत म फंसा नह ं सकती हू ं िजसक जान खुs द.b
एक जा लम ऐयार के हाथ से बचाई हो।
आप यह न समझ क कोई आदमी इस तालाब i 4uम तैरकर यहां तक आ सकता है, य क इस
तालाब म चार तरफ जाल फके हु एin
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ह, अगर कोई आदमी यहां तैरकर आने का इरादा करे गा
/ hजान बबाद करे गा। यह सबब था क मु झे आपके लए
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तो बेशक जाल म फंसकर अपनी
क ती ले जानी पड़ी। tp
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कुमार - बेशक, तब इसके लए भी म ध यवाद दू ं गा। माफ करना म यह नह जानता
ं था क
मेरे यहां आने से तु हारा नु कसान होगा, अब म जाता हू ं मगर कृ पा करके अपना नाम तो
बता दो िजससे मु झे याद रहे क फलानी औरत ने बड़े व त पर मेर मदद क थी।

औरत - (हंसकर) म अपना नाम नह ं कया चाहती और न इस धू प म आपको यहां से जाने


के लए कहती हू ं बि क म उ मीद करती हू ं क आप मेर मेहमानी कबू लकरगे।

कुमार - वाह-वाह! कभी तो आप मु झे मेहमान बनाती ह और कभी यहां से नकल जाने के


लए हु म लगाती ह, आप लोग जो चाहे कर।

औरत - (हंसकर) खैर ये सब बात पीछे होती रहगी, अब आप यहां से उठ और कुछ भोजन
कर य क म जानती हू ं क आपने अभी तक कु छ भोजन नह ं कया।

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कुमार - अभी तो नान-सं या भी नह ं कया। ले कन मु झे ता जु ब है क यहां तु हारे पास
कोई ल डी दखाई नह ं दे ती।

औरत - आप इसके लए चं ता न कर, आपक ल डी म मौजू द हू ं। आप जरा बैठ, म सब


सामान ठ क करके अभी आती हू ं।

इतना कह बना कुमार क मज पाये वह औरत वहां से उठ और बगल के एक कमरे म


चल गई। उसके जाने के बाद कुमार कमरे म टहलने और एक-एक चीज को गौर से दे खने
लगे। यकायक एक गु लद ते के नीचे दबे हु ए कागज के टु कड़े पर उनक नजरपड़ी। मु ना सब
न था क उस पु ज को उठाकर पढ़ते मगर लाचार थे, उस पु ज के कई अ र जो गु लद ते के
नीचे दबने से रह गये थे साफ दखाई पड़ते थे और उ ह ं अ र ने कुमार को पु जा
नकालकर पढ़ने के लए मजबू र कया। वे अ र ये थे - '' कशोर ''

लाचार कुमार ने उस पु ज को नकालकर पढ़ा, यह लखा था -


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''आपके कहे मु ता बक कुल कारवाई अ छ तरह हो रह है। लाल और कुं दन म खू ब घात चल
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रह ह। कशोर ने भी पू रा धोखा खाया। कशोर काlo आ शक भी यहां मौजू द है और उसे
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कशोर से बहु त कुछ उ मीद है। मने भी इनाम sपानेलायक काम कया है। इस समय लाल
i 4uदन म खु लासा हाल लखू ंगी।
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कुछ अजब ह रं ग लाया चाहती है, खैर दो-तीन

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आपक ल डी - तारा।''
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कुमार ने उस पु जhको झटपट पढ़कर उसी तरह रख दया और ग ी पर आकर बैठ गये। सोच
और तर ुत ने चार तरफ से आकर उ ह घेर लया। इस पु ज ने तो उनके दल का भाव ह
बदल दया। इस समय उनक सू रत दे खकर उनका हाल कोई स चा दो त भी नह ं मालू म कर
सकता था, हां कुछ दे र सोचने के बाद इतना तो कुमार ने लंबी सांस के साथ खु लकर कहा,
''खैर कहां जाती है क ब त! म बना कुछ काम कये टलने वाला नह ं।''

इतने ह म वह औरत भी आ गई और बोल , ''उ ठये, सब सामान दु त है।'' कुमार उसके


साथ नहाने वाल कोठर म गए िजसम हौज बना हु आ था।

धोती, गमछा और पू जा का सब सामान वहां मौजू द था, कुमार ने नान और सं या कया। वह


औरत एक चांद क रकाबी म कुछ मेवा और खोए क चीज इनके सामने रखकर चल गई
और दू सर दफे पीने के लए जल भी लाकर रख गई। उसी समय कुमार ने सु ना क बगल के
कमरे म दो औरत बात कर रह ह। उ ह ता जु ब हु आ क ये दू सर औरत कहां से आ !
कुमार भोजन करके उठे , हाथ-मु ंह धोकर कोठर से बाहर नकलना चाहते थे क सामने का

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दरवाजा खु ला और दो औरत नजर पड़ीं िज ह दे खते ह कुमार च क पड़े और बोले - ''ह! ये
दोन यहां कहां से आ ग !!''

बयान - 13

आधी रात के समय सु नसान मैदान म दो कम सन औरत आपस म कुछ बात करती चल जा
रह ह। राह म छोटे -छोटे ट ले पड़ते ह िज ह तकल फ के साथ लांघने और दम फूलने पर
कभी ठहरकर फर चलने से मालू म होता है क इन दोन को इसी समय कसी खास जगह
पर पहु ंचने या कसी से मलने क यादे ज रत है। हमारे पाठक इन दोन औरत को बखू बी
पहचानते ह इस लए इनक सू रत-श ल के बारे म कुछ लखने क ज रत नह ,ं य क इन
दोन म से एक तो क नर है और दू सर कमला।

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क नर - कमला, दे खो क मत का हे र-फेर इसे कहते ह। एक हसाब से गयाजी म हम लोग
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अपना काम पू रा कर चु के थे मगर अफसोस!
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कमला - जहां तक हो सका तु मने कशोर क मदद जी-जान से क , बेशक कशोर ज म-भर
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याद रखेगी और तु ह तो अपनी बहन मानेगी। खैर कोई चं ता नह, ं हम लोग को ह मत न
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हारनी चा हए और न कसी समय ई वर
i nd को भू लना चा हए। मु झे घड़ी-घड़ी बेचारे आनंद सं ह
क याद आती है। तु म पर उनकhस ची मु ह बत है मगर तु हारा कुछ हाल न जानने से न
/
मालू म उनके दल म या-:/
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tतो
या बात ह गी, हां अगर वे जानते क िजसको उनका दल यार
h बेशक वे खु श होते।
करता है वह फलानी है

क नर - (ऊंची सांस लेकर) जो ई वर क मज !!

कमला - दे खो वह उस पु राने मकान क द वार दखाई दे ने लगी।

क नर - हां ठ क है , अब आ पहु ंचे।

इतने ह म वे दोन एक ऐसे टू टे -फूटे मकान के पास पहु ंचीं िजसक चौड़ी-चौड़ी द वार और
बड़े-बड़े फाटक कहे दे ते थे क कसी जमाने म यह इ जत रखता होगा। चाहे इस समय यह
इमारत कैसी ह खराब हालत म य न हो तो भी इसम छोट -छोट कोठ रय के अलावे कई
बड़े दालान और कमरे अभी तक मौजू द ह।

ये दोन उस मकान के अंदर चल ग । बीच म चू न-े म ी- ट का ढे र लगा हु आ था िजसके


बगल म घू मती हु ई दोन एक दालान म पहु ंचीं। इस दालान मएक तरफ एक कोठर थी
िजसम जाकर कमला ने मोमब ती जलाई और चार तरफ दे खने लगी। बगल म एक अलमार

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द वार के साथ जु ड़ी हु ई थी िजसम प ला खींचने के लए दो मु े लगे थे। कमला ने ब ती
क नर के हाथ म दे कर दोन हाथ से दोन मु को तीन-चार दफे घु माया, तु रंत प ला खु ल
गया और भीतर एक छोट -सी कोठर नजर आई। दोन उस कोठर के अंदर चल ग और
उन प ल को फर बंद कर लया। उन प ल म भीतर क तरफ भी उसी तरह खोलने और
बंद करने के लए दो मु े लगे हु ए थे।

इस कोठर म तहखाना था िजसम उतर जाने के लए छोट -छोट सी ढ़यां बनी हु ई थीं। वे
दोन नीचे उतर ग और वहां एक आदमी को बैठे दे खा िजसके सामने मोमब ती जल रह थी
और वह कुछ लख रहा था।

इस आदमी क उ लगभग साठ वष के होगी। सर और मू ंछ के बाल आधे से यादे सफेद


हो रहे थे, तो भी उसके बदन म कसी तरह क कमजोर नह ं मालू म होती थी। उसके हाथ-पैर
गठ ले और मजबू त थे तथा चौड़ी छाती उसक बहादु र को जा हर कर रह थी। चाहे उसका
रं ग सांवला .in
य न हो मगर चेहरा खू बसू रत और रोबीला था। बड़ी-बड़ी आंख म जवानी क
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चमक मौजू द थी, चु त मजई उसके बदन पर बहु त भल मालू मpहोतीo थी, सर नंगा था मगर
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पास ह जमीन पर एक सफेद मु ंड़ासा रखा हु आ था िजसक
l ogे दे खने से मालू म होता था क
b े बाय हाथ म पंखा था िजसके ज रये
गरमी मालू म होने पर उसने उतारकर रख दया है। .उसक
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i 4u क नमी बदन म मालू म होती थी।
वह गरमी दू र कर रहा था मगर अभी तक पसीने

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एक तरफ ठ करे म थोड़ी-सी आग
/ h थी िजसम कोई खु शबहार चीज जल रह थी िजससे वह
तहखाना अ छ तरह सुp ग:
/
ं धत हो रहा था। कमला और क नर के पैर क आहट पा वह
पहले ह से सी ढ़यht
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क तरफ यान लगाये था, और इन दोन को दे खते ह उसने कहा, ''तु म
दोन आ ग '

कमला - जी हां।

आदमी - ( क नर क तरफ इशारा करके) इ ह ं का नाम का मनी है

कमला - जी हां।

आदमी - का मनी! आओ बेट , तु म मेरे पास बैठो। म िजस तरह कमला को समझता हू ं उसी
तरह तु ह भी मानता हू ं।

का मनी - बेशक कमला क तरह म भी आपको अपना सगा चाचा मानती हू ं।

आदमी - तु म कसी तरह क चं ता मत करो। जहां तक होगा म तु हार मददक ं गा।


(कमला क तरफ दे खकर ) तु झे कुछ रोहतासगढ़ क खबर भी मालू म है?

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कमला - कल म वहां गई थी मगर अ छ तरह मालू म न कर सक । आपसे यहां मलने का
वादा कया था इस लए ज द लौट आई।

आदमी - अभी पहर भर हु आ म खु द रोहतासगढ़ से चला आता हू ं।

कमला - तो बेशक आपको बहु त कु छ हाल वहां का मला होगा।

आदमी - मु झसे यादे वहां का हाल कोई नह ं मालू म कर सकता। प चीस वष तक ईमानदार
और नेकनामी के साथ वहां के राजा क नौकर कर चु का हू ं। चाहे आज दि वजय सं ह हमारे
दु मन हो गये ह। फर भी म कोई काम ऐसा न क ं गािजससे उस रा य का नु कसान हो, हां
तु हारे सबब से कशोर क मदद ज र क ं गा।

कमला - दि वजय सं ह नाहक ह आपसे रं ज हो गये।

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.inती अपने यहां रखा
आदमी - नह ं, नह ,ं उ ह ने अनथ नह ं कया। जब वे कशोर को जबद
चाहते ह और जानते ह क शेर सं ह ऐयार क भतीजी कमला कशोर
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po के यहां नौकर है और
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ऐयार के फन म तेज है, वह कशोर के छुड़ाने के लए
खैb
परहे ज करना बहु त मु ना सब था चाहे म कैसा हs.
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ogदाव-घात करे गी, तो उ ह मु झसे
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र वाह और नेक य न समझा जाऊं।
4u हाय! एक वह जमाना था क रणधीर सं ह
उ ह ने कैद करने का इरादा बेजा नह ं iकया।i
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( कशोर का नाना) और दि वजय संiहnम दो ती थी, म दि वजय के यहां नौकर था और मेरा
छोटा भाई तु हारा बाप (ई वर/उसे बैकु ठ दे ) रणधीर सं ह के यहां रहता था। आज दे खा
कतना उलट-फेर हो गया
t p :है/
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t । म बेकसू र कैद होने के डर से भाग तो आया मगर लोग ज र
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कहगे क शेर सं ह hने धोखा दया।

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कमला - जब आप दल से रोहतासगढ़ क बु राई नह ं करते तो लोग के कहने से या होता
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है, वे लोग आपक बु राई य कर दखा सकते ह।

शेर - हां ठ क है खैर इन बात को जाने दो, हां कुं दन बेचार को लाल ने खू ब ह छकाया,
अगर म लाल का एक भेद न जानता होता और कुं दन को न कह दे ता तो लाल कुं दन को
ज र बबाद कर दे ती। कुं दन ने भी भू ल क, अगर वह अपना स चा हाल लाल को कह दे ती
तो बेशक दोन म दो ती हो जाती।

कमला - कुछ कुंअर इं जीत सं ह का भी हाल मालू म हु आ?

शेर - हां मालू म है, उ ह उसी चु ड़ैल ने फंसा रखा है जो अजायबघर म रहती है।

कमला - कौन-सा अजायबघर?

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शेर - वह जो तालाब के बीच म बना है और िजसे जड़बु नयाद से खोदकर फक दे ने का मने
इरादा कया है , यहां से थोड़ी ह दूर तो है।

कमला - जी हां मालू म हु आ, उसके बारे म बड़ी-बड़ी व च बात सु नने म आती ह।

शेर - बेशक वहां क सभी बात ता जु ब से भर ह। अफसोस, न मालू म कतने खू बसू रत


नौजवान बेचारे बेदद के साथ मारे गये ह गे!

इतने ह म छत के ऊपर कसी के पैर क आहट मालू म हु ई। तीन का यान सी ढ़य पर


गया।

कमला - कोई आता है।

शेर - हम तो यहां कसी के आने क उ मीद न थी, जरा हो शयार हो जाओ।


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कमला - म हो शयार हू,ं दे खए वह आया! o t
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एक लंबे कद का आदमी सीढ़ से नीचे उतरा और शेर सं ह के सामने आकर खड़ा हो गया।
.
उसक उ चाहे जो भी हो मगर बदन क कमजोर
4 us , दु बलेपन और चेहरे क उदासी ने उसे
पचास वष से भी यादे उ का बना रखा d i था। उसके खू बसू रत चेहरे पर उदासी और रंज के
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ख i म आंसु ओं क तर साफ मालू म होती थी, उसक हसरत
नशान पाये जाते थे, बड़ी-बड़ी आंh
भर नगाह उसके दल क :/
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हालत दखा रह थीं क रं ज, गम, फ , तर ुद और नाउ मीद ने
उसके बदन म खू न t औरtpमांस का नाम नह ं छोड़ा केवल ह डी ह बच गई ह। उसके कपड़े भी
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बहु त पु राने और फटे हु ए थे।

इस आदमी क सू रत से भलमनसी और सू धापन झलकता था मगर शेर सं ह उसक सू रत


दे खते ह कांप गया। खौफ और ता जु ब ने उसका गला दबा दया। वह एकदम ऐसा घबड़ा
गया जैसे कोई खू नी ज लाद क सू रत दे खकर घबड़ा जाता है। शेर सं ह ने उसक तरफ
दे खकर कहा, ''अहा हा...आप...ह! आइ...ए...!'' मगर ये श द घबराहट के मारे ब कुल ह उखड़े-
पु खड़े शेर सं ह के मु ंह से नकले।

उस आदमी ने कमला क तरफ इशारा करते हु ए कहा, '' या यह लड़क ?''

शेर - हां... आप... (कमला और का मनी क तरफ दे खकर) तु म दोन जरा ऊपर चल जाओ,
ये बड़े नेक आदमी ह, मु झसे मलने आये ह, म इनसे कुछ बात कया चाहता हू ं।

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कमला और का मनी दोन तहखाने से नकलकर ऊपर चल आ । उस आदमी के आने और
अपने चाचा को व च अव था म दे खने से कमला घबड़ा गई। उसके जी म तरह-तरह क
बात पैदा होने लगीं। ऐसे कमजोर, लाचार और गर ब आदमी को दे खकर उसका ऐयार के फन
म बड़ा ह तेज और शेर दल चाचा इस तरह य घबड़ा गया और इतना य डरा, वह इसी
सोच म परे शान थी। बेचार का मनी भी हैरान और डर हु ई थी यहां तक क घंटे भर बीत
जाने पर भी उन दोन म कोई बातचीत न हु ई। घंटे भर बाद वह आदमी तहखाने से
नकलकर ऊपर चला आया और का मनी क तरफ दे खकर बोला, ''अब तु म लोग नीचे जाओ,
म जाता हू ं।'' इतना कहता हु आ उसी तरह कवाड़ खोलकर चला गया िजस तरह का मनी को
साथ लये हु ए कमला इस मकान म आई थी।

कमला और का मनी तहखाने के नीचे जा शेर सं ह के सामने बैठ ग । शेर सं ह केचेहरे से


अभी तक घबड़ाहट और परे शानी गई नह ं थी। बड़ी मु ि कल से थोड़ी दे र म उसने होश-हवास
दु त कये और कमला क तरफ दे खकर कहा -
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शेर - अ छा अब हम लोग को या करना चा हए?
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कमला - जो हु म हो सो कया जाय। यह आदमी कौन था िजसे दे ख आप...?
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शेर - था एक आदमी, उसका हाल जानने का उ योग न करो और न उसका खयाल ह करो
बि क उसे ब कुल भू ल जाओ। hin
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उस आदमी के बारे म कमला बहु त कुछ जानना चाहती थी मगर अपने चाचा के मु ंहसे साफ
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जवाब पाकर दम न मार सक और दल क दल म रखने पर लाचार हु ई।

शेर - कमला, तू रोहतासगढ़ जा और दो-तीन दन म लौटकर वहां का जो कुछ हाल हो मु झसे


कह। कशोर से मलकर उसे ढाढ़स द िजयो और क हयो क घबड़ाये नह ं। उसी रा ते से
कले के अंदर बि क उस बाग म िजसम कशोर रहती है चल जाइयो िजस राह का हाल
मने तु मसे कहा था, उस राह से आना-जाना कभी कसी को मालू म न होगा।

कमला - बहु त अ छा, मगर का मनी के लए या हु म होता है

शेर - म इसे ले जाता हू,ं अपने एक दो त के सु पु द कर दू ं गा। वहां यहबड़े आराम से रहे गी।
जब सब तरफ से फसाद मट जायगा म इसे ले आऊंगा, तब यह भी अपनी मु राद को पहु ंच
जायगी।

कमला - जो मज !

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तीन आदमी तहखाने के बाहर नकले और जैसा ऊपर लखा जा चु का है उसी तरह कोठ रय
और दालान म से होते हु ए इस मकान के बाहर नकल आये।

शेर - कमला, ले अब तू जा और का मनी क तरफ से बे फ रह। मु झसे मलने के लए यह


ठकाना मु ना सब है।

कमला - अ छा म जाती हू ं मगर यह तो कह द िजये क उस आदमी से मु झे कहां तक


हो शयार रहना चा हए जो आपसे मलने आया था

शेर - (कड़ी आवाज म) एक दफे तो कह दया क उसका यान भु ला दे, उससे हो शयार रहने
क ज रत नह ं और न वह तु झे कभी दखाई दे गा।

बयान - 14
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रोहतासगढ़ कले के चार तरफ घना जंगल है िजसम साखू, शीशम, तदू, आसन और सलई
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इ या द के बड़े-बड़े पेड़ क घनी छाया से एक तरह को lअं oधकार-सा हो रहा है। रात क तो
बात ह दू सर है वहां दन को भी रा ते या पगडंs
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4u तक पहु ंचने का बहु त कम मौका मलता
डी का पता लगाना मु ि कल था य क सू य
क सु नहर करण को प त म से छनकर iजमीन
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था। कह ं-कह ं छोटे -छोटे पेड़ क बदौलत i
h जंगल इतना घना हो रहा था क उसम भू ले
आद मय को मु ि कल से छ:
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/ मलता था। ऐसे मौके पर उसम हजार आदमी इस तरह
ु टकारा
छप सकते थे क हजार
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tt सर पटकने और खोजने पर भी उनका पता लगाना असंभव था।
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दन को तो इस जंगल म अंधकार रहता ह था मगर हम रात का हाल लखते ह िजस समय
उसक अंधेर और वहां के स नाटे का आलम भू ल-े भटके मु सा फर को मौत का समाचार दे ता
था और वहां क जमीन के लए अमाव या और पू णमा क रात एक समान थी।

कले के दा हने तरफ वाले जंगल म आधी रात के समय हम तीन आद मय को जो याह
चौगे और नकाब से अपने को छपाये हु ए थे घू मते दे ख रहे ह। न मालू मये कसक खोज
और कस जमीन क तलाश म हैरान हो रहे ह! इनम से एक कुं अर आनंद सं ह, दू सरे भैरो सं ह
और तीसरे तारा सं ह ह। ये तीन आदमी दे र तक घू मने के बाद छोट -सी चारद वार के पास
पहु ंचे िजसके चार तरफ क द वार पांच हाथ से यादे ऊंची न थी और वहां के पेड़ भी कम
घने और गु ंजान थे, कह -ं कह ं चं मा क रोशनी भी जमीन पर पड़ती थी।

आनंद - शायद यह चारद वार है!

भैरो - बेशक यह है , दे खए फाटक पर ह डय का ढे र लगा हु आ है।

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तारा - खैर भीतर च लए, दे खा जायगा।

भैरो - जरा ठह रये , प त क खड़खड़ाहट से मालू म होता है क कोई आदमी इसी तरफ आ
रहा है !

आनंद - (कान लगाकर) हां ठ क तो है , हम लोग को जरा छपकर दे खना चा हए क वह


कौन है और इधर य आता है।

उस आने वाले क तरफ यान लगाये हु ए तीन आदमी पेड़ क आड़ म छप रहे और थोड़ी
ह दे र म सफेद कपड़े प हरे एक औरत को आते हु ए उन लोग ने दे खा। वह औरत पहले तो
फाटक पर क , तब कान लगाकर चार तरफ क आहट लेने के बाद फाटक के अंदर घु स
गई। भैरो सं ह ने आनंद सं ह से कहा, ''आप दोन इसी जगह ठह रये , म उस औरत के पीछे
जाकर दे खता हू ं क वह कहां जाती है।'' इस बात को दोन ने मंजू र कया और भैरो सं ह छपते
हु ए उस औरत के पीछे रवाना हु ए।
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ऐसे घने जंगल म भी उस चारद वार के अंदर पेड़, झाड़ी या जंगल का न होना ता जु ब क
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बात थी। भैरो सं ह ने वहां क जमीन बहु त साफ-सु थर oपाई, हां छोटे जंगल
बेर के दस-बीस
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पेड़ वहां ज र थे जो कसी तरह का नु कसान नsपहु ंचासकते थे और न उनक आड़ म कोई
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आदमी छप ह सकता था, मगर मरे हु एi4
n d जानवर और ह डय क बहु तायत से वह जगह
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बड़ी ह भयानक हो रह थी। उसhचारद वार के अंदर बहु त-सी क बनी हु ई थीं िजनम कई
क ची तथा कई ट-चू ने और : /प/थर क भी थीं और बीच म एक सबसे बड़ी क संगममर क
बनी हु ई थी। t tp
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भैरो सं ह ने फाटक के अंदर पैर रखते ह उस औरत को िजसके पीछे गए थे बीच वाल
संगममर क बड़ी क पर खड़े और चार तरफ दे खते पाया, मगर थोड़ी दे र म वह दे खते-दे खते
कह ं गायब हो गई। भैरो सं ह ने उस क के पास जाकर उसे ढू ं ढ़ा मगर पता नह ं लगा, दू सर
क के चार तरफ और इधर-उधर भी खोजा मगर कोई नशान न मला। लाचार वे
आनंद सं ह और तारा सं ह के पास लौट आयेऔर बोले -

भैरो - वह औरत वहां ह चल गई जहां हम लोग जाया चाहते ह।

आनंद - हां!

भैरो - जी हां।

आनंद - फर अब या राय है

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भैरो - उसे जाने द िजये, च लये हम लोग भी चल। अगर वह रा ते म मल ह जायगी तो
या हज है एक औरत हम लोग का कुछ नु कसान नह ं कर सकती।

ये तीन आदमी उस चारद वार के अंदर गए और बीच वाल संगममर क बड़ी क पर


पहु ंचकर खड़े हो गए। भैरो सं ह ने उस क क जमीन को अ छ तरह टटोलना शु कया।
थोड़ी ह दे र म एक खटके क आवाज आई और एक छोटा-सा प थर का टु कड़ा जो शायद
कमानी के जोर पर लगा हु आ था दरवाजे क तरह खु लकर अलग हो गया। ये तीन आदमी
उसके अंदर घु से और उस प थर के टु कड़े को उसी तरह बंद कर आगे बढ़े । अब ये तीन
आदमी एक सु रग
ं म थे जो बहु त ह तंग और लंबी थी। भैरो सं ह ने अपने बटु ए म से एक
मोमब ती नकालकर जलाई और चार तरफ अ छ तरह नगाह करने के बाद आगे बढ़े ।
थोड़ी ह दे र म यह सु रंग ख म हो गई और ये तीन एक भार दालान म पहु ंचे। इस दालान
क छत बहु त ऊंची थी और इसम क ड़य के सहारे कई जंजीर लटक रह थीं। इस दालान के
दू सर तरफ एक और दरवाजा था िजसम से होकर ये तीन एक कोठर म पहु ंचे। इस कोठर
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n हु ई थीं।ये तीन
.iबनी
के नीचे एक तहखाना था िजसम उतरने के लए संगममर क सी ढ़यां
नीचे उतर गये। अब एक बड़े भार घंटे के बजने क आवाज s pतीन
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o के कान म पड़ी िजसे
सु न ये कुछ दे र के लए क गये। मालू म हु आ क lइस
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ogतहखानेवाल कोठर के बगल म
b को वहां और भी कई आद मय के
.तीन
कोई और मकान है िजसम घंटा बज रहा है। इन
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मौजू द होने का गु मान हु आ।

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hनकल जाने के लए एक दरवाजा था िजसके पास पहु ंचकर
इस तहखाने म भी दू सर तरफ
भैरो सं ह ने मोमब ती tबुp
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झा द और धीरे से दरवाजा खोल उस तरफ झांका। एक बड़ी संगीन
ahtिजसके खंभे संगममर के थे। इस बारहदर म दो मशाल जल रहे थे
बारहदर नजर पड़ी

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िजनक रोशनी से वहां क हर एक चीज साफ मालू म होती थी और इसी से वहां दस-पं ह

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आदमी भी दखाई पड़े िजनम रि सय से मु क बंधी हु ई तीन औरत भी थीं। भैरो सं ह ने
पहचाना क इन तीन औरत म एक कशोर है िजसके दोन हाथ पीठ क तरफ कसकर बंधे
हु ए ह और वह नीचे सर कए रो रह है। उसके पास वाल दोन औरत क भी वह दशा थी
मगर उ ह भैरो सं ह, आनंद सं ह या तारा सं ह नह ं पहचानते थे। उन तीन के पीछे नंगीतलवार
लए तीन आदमी भी खड़े थे िजनक सू रत और पोशाक से मालू म होता था क वे ज लाद ह।

उस बारहदर के बीच बीच चांद के सं हासान पर याह प थर क एक मू रत इतनी बड़ी बैठ


हु ई थी क आदमी पास म खड़ा होकर भी उस बैठ हु ई मू रत के सर पर हाथ नह ं रख
सकता था। उस मू रत क सू रत-श ल के बारे म इतना ह लखना काफ है क उसे आप कोई
रा स समझ िजसक तरफ आंख उठाकर दे खने से डर मालू म होता था।

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भैरो सं ह, तारा सं ह और आनंद सं ह उसी जगह खड़े होकर दे खने लगे क उस दालान म या हो
रहा है। अब घंटे क आवाज बड़े जोर से आ रह थी मगर यह नह ं मालू म होता था क वह
कहां बज रहा है।

उन तीन औरत को िजनम कशोर भी थी छः आद मय ने अ छ तरह मजबू ती से पकड़ा


और बार -बार से उस याह मू रत के पास ले गए जहां उसके पैर पर जबद ती सर रखवाकर
पीछे हटे और फर उसी के सामने खड़ा कर दया।

इसके बाद दो आदमी एक औरत को लेकर आगे बढ़े िजसे हमारे तीन आद मय म से कोई
भी नह ं पहचानता था, उस औरत के पीछे जो ज लाद नंगी तलवार लए खड़ा था वह भी
आगे बढ़ा। दोन आद मय ने उस औरत को याह मू रत के ऊपर इस जोर से ढकेल दया क
बेचार बेतहाशा गर पड़ी, साथ ह ज लाद ने एक हाथ तलवार का ऐसा मारा क सर कटकर
दू र जा पड़ा और धड़ तड़पने लगा। इस हाल को दे ख वे दोन औरत िजनम बेचार कशोर भी
थी, बड़े जोर से च ला और बदहवास होकर जमीन पर गर पड़ीं। .in
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इस कै फयत को दे खकर हमारे दोन ऐयार और कुं अर आनंद सं ह क अजब हालत हो गई।
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गु से के मारे थर-थर कांपने लगे। थोड़ी दे र बाद उन लोग ने कशोर को उठाया और उस
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मू रत के पास ले चले। उसके साथ ह दू सरा ज लाद भी आगे बढ़ा। अब ये तीन कसी तरह

nd दोन ऐयार को ललकारा - ''मारो इन जा लम को!


बदा त न कर सके। कुं अर आनंद सं ह ने
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ये थोड़े से आदमी ह या चीज!'' h
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तीन आदमी खंजर t tp आगे बढ़ना ह चाहते थे क पीछे से कई आद मय ने आकर इन
नकाल
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लोग को भी पकड़ लया और ''यह ह, यह ह, पहले इ ह ं क ब ल दे नी चा हए!'' कहकर
च लाने लगे।

(तीसरा भाग समा त)

चौथा भाग

बयान -1

अब हम अपने क से को फर उसी जगह से शु करते ह जब रोहतासगढ़ कले के अंदर


लाल को साथ लेकर कशोर सध क राह उस अजायबघर म घु सी िजसका ताला हमेशा बंद
रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। हम पहले लख आए ह क जब लाल
और कशोर उस मकान के अंदर घु सीं उसी समय कई आदमी उस छत पर चढ़ गये और

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''धरो, पकड़ो, न जाने पावे!'' क आवाज लगाने लगे। लाल और कशोर ने भी यह आवाज
सु नी। कशोर तो डर मगर लाल ने उसी समय उसे धीरज दया और कहा, ''तु म डरो मत, ये
लोग हमारा कुछ भी नह ं कर सकते।''

लाल और कशोर छत क राह जब नीचे उतर ं तो एक छोट -सी कोठर म पहु ंचीं जो
ब कुल खाल थी। उसके तीन तरफ द वार म तीन दरवाजे थे, एक दरवाजा तो सदर था
िजसके आगे बाहर क तरफ पहरा पड़ा करता था, दू सरा दरवाजा खु ला हु आ थाऔर मालू म
होता था कसी दालान या कमरे म जाने का रा ता है। लाल ने ज द म केवल इतना ह
कहा क 'ताल लेने के लए इसी राह से एक मकान म म गई थी' और तीसर तरफ एक
छोटा-सा दरवाजा था िजसका ताला कवाड़ के प ले ह म जड़ा हु आ था। लाल ने वह ताल
जो इस अजायबघर म से ले गई थी लगाकर उस दरवाजे को खोला, दोन उसके अंदर घु सीं,
लाल ने फर उस ताल से मजबू त दरवाजे को अंदर क तरफ से बंद कर लया, ताला इस
ढं ग से जड़ा हु आ था क वह ताल बाहर और भीतर दोन तरफ लग सकती थी।1 लाल ने
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यह काम बड़ी फुत से कया, यहां तक क उसके अंदर चले जाने के बाद तब टू ट हु ई छत
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क राह वे लोग जो लाल और कशोर को पकड़ने के लए आ रहे थे नीचे इस कोठर म उतर
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सके। भीतर से ताला बंद करके लाल ने कहा, ''अब हम
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ह है क कसी दू सर राह से कोई आकर हम लोग s . को तंग न करे, पर जहां तक म जानती
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हू ं और जो कु छ मने सु ना है उससे तो i4
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1. इस मकान म जहां-जहां लाल ने ताला/ h उसी ताल और इसी ढंग से खोला।
खोला

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व वास है क इस अजायबघर म आने के लए और कोई राह नह ं है।''

लाल और कशोर अब एक ऐसे घर म पहु ंचीं िजसक छत बहु त ह नीची थी, यहां तक क
हाथ उठाने से छत छूने म आती थी। यह घर ब कुल अंधेरा था। लाल ने अपनी गठर
खोल और सामान नकालकर मोमब ती जलाई। मालू म हु आ क यह एक कोठर है िजसके
चार तरफ क द वार प थर क बनी हु ई तथा बहु त ह चकनी और मजबू तहै। लाल खोजने
लगी क इस मकान से कसी दू सरे मकान म जाने के लए रा ता या दरवाजा है या नह ं।

जमीन म एक दरवाजा बना हु आ दखा िजसे लाल ने खोला और हाथ म मोमब ती लए


नीचे उतर । लगभग बीस-पचीस सी ढ़यां उतरकर दोन एक सु रंग म पहु ंचींजो बहु त दू र तक
चल गई थी। ये दोन लगभग तीन सौ कदम के गई ह गी क यह आवाज दोन के कान म
पहु ंची -

''हाय, एक ह दफे मार डाल, य दु ख दे ता है।''

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यह आवाज सु नकर कशोर कांप गई और उसने ककर लाल से पू छा, ''ब हन, यह आवाज
कैसी है आवाज बार क है और कसी औरत क मालू म होती है।''

लाल - मु झे मालू म नह ं क यह आवाज कैसी है और न इसके बारे म बू ढ़ मांजी ने मु झे


कुछ कहा ह था।

कशोर - मालू म पड़ता है क कसी औरत को कोई दु ख दे रहा है, कह ं ऐसा न हो क वह


हम लोग को भी सतावे, हम दोन का हाथ खाल है, एक छुरा तक पास म नह ं।

लाल - म अपने साथ दो छुरे लाई हू,ं एक अपने वा ते और एक तेरे वा ते। (कमर से एक
छुरा नकालकर और कशोर के हाथ म दे कर) ले एक तू रख। मु झे खू बयाद है, एक दफे तू ने
कहा था क म यहां रहने क ब न बत मौत पसंद करती हू ं, फर य डरती है दे ख म तेरे
साथ जान दे ने को तैयार हू ं।

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कशोर - बेशक मने ऐसा कहा था और अब भी कहती हू ं, चलो बढ़ो अब कोई हज नह ,ं छुरा
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हाथ म है और ई वर मा लक है। s p
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दोन s .
फर आगे बढ़ ,ं बीस-पचीस कदम और जाकर सु रंग खतम हु ई और दोन एकदालान म

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पहु ंचीं। यहां एक चराग जल रहा था, कम-से-कम सेर भर तेल उसम होगा, रोशनी चार तरफ
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फैल हु ई थी और यहां क हर एक चीज साफ दखाई दे रह थी। इस दालान के बीच बीच
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एक खंभा था और उसके साथ /
: / एक हसीन, नौजवान और खू बसू रत औरत िजसक उ बीस वष
से यादे न होगी बंधीtp
हु ई थी, उसके पास ह छोट -सी प थर क चौक पर साफ और ह क
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पोशाक प हरे एक h
बु ढा बैठा हु आ छुरे से कोई चीज काट रहा था, इसका मु ंह उसी तरफ था
िजधर लाल और कशोर खड़ी वहां क कै फयत दे ख रह थीं। उस बू ढ़े के सामने भी एक
चराग जल रहा था िजससे उसक सू रत साफ-साफ मालू म होती थी। उस बु ढे क उ
लगभग स तर वष के होगी, उसक सफेद दाढ़ ना भ तक पहु ंचती थी और दाढ़ तथा मू ंछ ने
उसके चेहरे का यादा भाग छपा रखा था।

उस दालान क ऐसी अव था दे खकर कशोर और लाल दोन हचक ं और उ ह ने चाहा क


पीछे क तरफ मु ड़ चल मगर पीछे फरकर कहां जाएं इस वचार ने उनके पैर उसी जगह
जमा दये। उन दोन के पैर क आहट इस बु ढे ने भी पाई, सर उठाकर उन दोन क तरफ
दे खा और कहा - ''वाह-वाह, लाल और कशोर भी आ ग । आओ-आओ, म बहु त दे र से राह
दे ख रहा था।''

बयान -2

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कंचन सं ह के मारे जाने और कुं अर इं जीत सं ह के गायब हो जाने से ल करम बड़ी हलचल
मच गई। पता लगाने के लए चार तरफ जासू स भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल
गये और फसाद मटाने के लए दलोजान से को शश करने लगे। राजा वीर सं ह से इजाजत
लेकर तेज सं ह भी रवाना हु ए और भेष बदलकररोहतासगढ़ कले के अंदर चले गये। कले के
सदर दरवाजे पर पहरे का पू रा इंतजाम था मगर तेज सं ह क फक र सू रत पर कसी ने शक
न कया।

साधू क सू रत बने हु ए तेज सं ह सात दन तक रोहतासगढ़ कले के अंदर घू मतेरहे । इस बीच


म उ ह ने हर एक मोह ला, बाजार, गल , रा ता, दे वल, धमशाला इ या द को अ छ तरह दे ख
और समझ लया, कई बार दरबार म भी जाकर राजा दि वजय सं ह और उसके द वान तथा
ऐयार क चाल और बातचीत के ढं ग पर यान दया और यह भी मालू म कया क राजा
दि वजय सं ह कस- कस को चाहता है, कस- कस क खा तर करता है , और कस- कस को
अपना व वासपा समझता है। इन सात दन के बीच म तेज सं ह को कई बार चोबदार और
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औरत बनने क ज रत पड़ी और अ छे -अ छे घर म घु सकर वहां क कै फयत और हालत
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को भी दे ख-सु न आये। एक दफे तेज सं ह उस sp
शवालय म भी गये िजसम भैरो सं ह और
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ब नाथ ने ऐयार क थी या जहां से कुं अर क याण सं हlo को पकड़ ले गये थे।
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तेज सं ह ने उस शवालय के रहने वाल तथा
i 4uपु जा रय क अजब हालत दे खी। जब से कुं अर
क याण सं ह गर तार हु ए थे तब सेin उनdलोग के दल म ऐसा डर समागया था क वे बात-
बात म च कते और डरते थे, रात / hम एक प ती के खड़कने से भी कसी ऐयार के आने का
गु मान होता था, साधू- tा p
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मण क सू रत से उ ह घृ णा हो गई थी, कसी सं यासी, ा मण, साधू
को दे खा और चट h
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बोल उठे क ऐयार है , कसी मजदू र को भी अगर मं दर के आगे खड़ा पाते
तो चट उसे ऐयार समझ लेते और जब तक गदन म हाथ दे हाते के बाहर न कर दे ते चैन न
लेत!े इि तफाक से आज तेज सं ह भी साधू क सू रत बने शवालय म जा डटे ।पु जा रय ने
दे खते ह गु ल करना शु कया क 'ऐयार है , ऐयार है, धरो, पकड़ो, जाने न पाए!' बेचारे तेज सं ह
बड़ा घबराए और ता जु ब करने लगे क इन लोग को कैसे मालू म हो गया क हम ऐयार ह
य क तेज सं ह को इस बात का गु मान भी न था क यहां के रहने वाले कु ते, ब ल को भी
ऐयार समझते ह, मगर यकायक वहां से भाग नकलना भी मु ना सब न समझाकर के और
बोले -

तेज - तु म कैसे जानते हो क हम ऐयार ह

एक पु जार - अजी हम खू ब जानते ह क सवाय ऐयार के कोई दू सरा हमारे सामने आ नह ं


सकता है! अजी तु ह ं लोग तो हमारे कुं अर साहब को पकड़ ले गये हो या कोई दू सरा बस-
बस यहां से चले जाओ, नह ं तो कान पकड़ के खा जाएंगे।

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'बस - बस, यहां से चले जाओ' इ या द सु नते ह तेज सं ह समझ गये क ये लोग बेवकूफ ह,
अगर हमारे ऐयार होने का इ ह व वास होता तो ये लोग 'चले जाओ' कभी न कहते बि क
हम गर तार करने का उ योग करते, बस इ ह भैरो सं ह और ब नाथ डरा गये और कुछ
नह ं।

तेज सं ह खड़े सोच ह रहे थे क इतने म एक लंगड़ा भखमंगा हाथ म ठ करा लये लाठ
टे कता वहां आ पहु ंचा और पु जार जी क जयजयकार करने लगा। सू रत दे खते ह पु जार
च ला उठा और बोला, ''लो दे खो, एक दू सरा ऐयार भी आ पहु ंचा, अबक शैतान लंगड़ा बनकर
आया है , जानता नह ं क हम लोग बना पहचाने नह ं रहगे , भाग नह ं तो सर तोड़ डालू ंगा।''

अब तेज सं ह को पू रा व वास हो गया क ये लोग सड़ी हो गये ह, िजसे दे खते ह उसे ह


ऐयार समझ लेते ह। तेज सं ह वहां से लौटे और सोचते हु ए खड़क क राह1 द वार के पार हो
जंगल म चले गए क अब यहां के ऐयार से मलना चा हए और दे खना चा हए क वे कैसे ह
और ऐयार के फन म कतने तेज ह। .in o m
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िजsह यहां वाले 'अ डा' कहा करते
इस कले के अंदर गांजा पलाने वाल क कई दु कान थीं g

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थे। चराग जलने के बाद ह से गंजेड़ी लोग वहां जमाb d i
loहोते िज ह अ डे का मा लक गांजा
बनाकर पलाता और उनसे एवज म पैसे वसू लu
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करता। वहां तरह-तरह क ग प उड़ा करती थीं
iल4ा लोग को मालू म हो जाया करता था।
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िजनसे शहर भर का हाल झू ठ-सच मला-जु
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/ह/जंगल से लौटे , लकड़हार के साथ-साथ बैरागी के भेष म कले
शाम होने के पहले ह तेज:सं n
के अंदर दा खल हु एtऔर
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tp सीधे अ डे पर चले गये जहां गंजेड़ी दम पर दम लगाकर धु एं का
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गु बार बांध रहे थे। यहां तेज सं ह का बहु त कुछ काम नकला
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1. रोहतासगढ़ कले क बड़ी चारद वार म चार तरफ छोट - छोट बहु त - सी खड़ कयां थीं िजनम लोहे के मजबू त दरवाजे
लगे रहते थे और दो सपाह बराबर प हरा दया करते थे। फक र, मोहताज और गर ब रयाया अ सर उन खड़ कय (छोटे
दरवाज ) क राह जंगल म से सू खी लक ड़यां चु नने या जंगल फल तोड़नेया ज र काम के लए बाहर जाया करते थे, मगर
चराग जलते हु ए ये खड़ कयां बंद कर द जाती थीं।

और उ ह मालू म हो गया क महाराज के यहां केवल दो ऐयार ह, एक का नाम रामानंद, दू सरे


का नाम गो वं द सं ह है। गो वं द सं ह तो कुं अर क याण सं ह को
छुड़ाने के लए चु नार गया हु आ
है, बाक रामानंद यहां मौजूद है। दू सरे दन तेज सं ह ने दरबार म जाकर रामानंद को अ छ
तरह दे ख लया और न चय कर लया क आज रात को इसी के साथ ऐयार करगे य क
रामानंद का ढांचा तेज सं ह से बहु त कुछ मलता था और यह भी जाना गया था क महाराज
सबसे यादा रामानंद को मानते ह और अपना व वासपा समझते ह।

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आधी रात के समय तेज सं ह स नाटा दे ख रामानंद के मकान म कमंद लगाकर चढ़ गये।
दे खा क धु र ऊपर वाले बंगले म रामानंद मसहर के ऊपर पड़ा खराटे ले रहा है , दरवाजे पर
पद क जगह पर जाल लटक रहा है िजसम छोट -छोट घं टयां बंधी हु ई ह। पहले तो तेज सं ह
ने उसे एक मामू ल पदा समझा मगर ये तो बड़े ह चालाक और हो शयार थे, यकायक पद पर
हाथ डालना मु ना सब न समझकर उसे गौर से दे खने लगे। जब मालू म हु आ क नालायक ने
इस जालदार पद म बहु त-सी घं टया लटका रखी ह तो समझ गए क यह बड़ा ह बेवकूफ है,
समझता है क इन घं टय के लटकाने से हम बचे रहगे। इस घर म जब कोई पदा हटाकर
आवेगा तो घं टय क आवाज से हमार आंख खु ल जायगी, मगर यह नह ं समझता क ऐयार
लोग बु रे होते ह।

तेज सं ह ने अपने बटु ए म से कची नकाल और बहु त स हालकर पद सेएक-एक करके घंट
काटने लगे। थोड़ी ह दे र म सब घं टय को काट के कनारे कर दया और पदा हटाकर अंदर
चले गए। रामानंद अभी तक खराटे ले रहा था। तेज सं ह ने बेहोशी क दवा उसके नाक के
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आगे क , हलका धू रा सांस लेते ह दमाग म चढ़ गया, रामानंद को एक छ ंक आई िजससे
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मालू म हु आ क अब इसे घंट तक होश म न आने दे गी। s p
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तेज सं ह ने बटु ए म से एक अ तु रा नकालकर रामानंद क दाढ़ और मू ंछमू ंड़ ल और उसके

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बाल हफाजत से अपने बटु ए म रखकर उसी रं ग क दू सर दाढ़ और मू ंछ उसके लगा द जो
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उ ह ने दन ह म कले के बाहर जंगल म तैयार क थी। तेज सं ह इतने ह काम के लए
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रामानंद के मकार पर गए थे/ और इसे पू रा कर कमंद के सहारे नीचे उतर आए तथा
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धमशाला क तरफ रवाना
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तेज सं ह जब बैरागी साधू के भेष म रोहतासगढ़ कले के अंदर आए थे तो उ ह ने धमशाला1
के पास एक बैठक वाले के मकान म छोट -सी कोठर कराये पर ले ल थी और उसी म
रहकर अपना काम करते थे। उस कोठर का एक दरवाजा सड़क क तरफ था िजसम ताला
लगाकर उसक ताल ये अपने पास रखते थे, इस लए उस कोठर म आने-जाने के लए उनको
दन और रात एक समान था।

रामानंद के मकान से जब तेज सं ह अपना काम करके उतरे उस व त पहर भर रात बाक
थी। धमशाला के पास अपनी कोठर म गए और सबेरा होने के पहले ह अपनी सू रत रामानंद
क -सी बना और वह दाढ़ और मू ंछ जो मू ंड लाये थे दु तकरके खु द लगा कोठर से बाहर
नकले और शहर म ग त लगाने लगे, सबेरा होते तक राजमहल क तरफ रवाना हु ए और
इि तला कराकर महाराज के पास पहु ंचे।

हम ऊपर लख आए ह क रोहतासगढ़ म रामानंद और गो वं द सं ह केवल दो ह ऐयार थे। इन


दोन के बारे म इतना लख दे ना ज र है क इन दोन म से गो वं द सं ह तो ऐयार के फन

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म बहु त ह तेज और हो शयार था और वह दन-रात वह काम कया करता था। रामानंद भी
ऐयार का फन अ छ तरह जानता था मगर उसे अपनी दाढ़ और मू ंछ बहु त यार थी
इस लए वह ऐयार के वे ह काम करता था िजसम दाढ़ और मू ंछ मु ंड़ाने क ज रत न पड़े
और इस लए महाराज ने भी उसे द वान का काम दे रखा था। इसम भी कोई शक नह ं क
रामानंद बहु त ह खु श दल, मसखरा और बु मान था और उसने अपनी तदबीर से महाराज
का दल अपनी मु ी म कर लया था।

रामानंद क सू रत बने हु ए तेज सं ह महाराज के पास पहु ंच


, मामू
े ल से बहु तपहले रामानंद को
आते दे ख महाराज ने समझा क कोई नई खबर लाया है।

महाराज - आज तु म बहु त सबेरे आये! या कोई नई खबर है ?

रामा - (खांसकर) महाराज, हमारे यहां कल तीन मेहमान आये ह।

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महा - कौन-कौन?
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रामा - एक तो खांसी िजसने मु झे बहु त ह तंग कर oरखा है, दू सरे कुं अर आनंद सं ह, तीसरे
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उनके चार ऐयार जो आज ह कल म कशोर कोsयहां .bसे नकाल ले जाने का दावा रखते ह।
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महा - (हंसकर) मेहमान तो बड़े नाजु क d
i n ह। इनक खा तर का भी कोई इंतजाम कया गया है
या नह ं / h
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t म आया हू ं। कल दरबार म उनके ऐयार मौजू द थे।सबके पहले
रामा - इसी लए तो tसरकार
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कशोर का बंदोब त करना चा हए, उनक हफाजत म कसी तरह क कमी न होनी चा हए।

महा - जहां तक म समझता हू ं वे लोग कशोर को तो कसी तरह नह ं ले जा सकते, हां


वीर सं ह के ऐयार को िजस तरह भी हो सके गर तार करना चा हए।

रामा - वीर सं ह के ऐयार तो अब मेरे पंजे से बच नह ं सकते, वे लोग सू रत बदलकर दरबार


म ज र आयगे, और ई वर चाहे तो आज ह कसी को गर तार क ं गा मगर वे लोग बड़े ह
धू त और चालबाज ह, ायः कैदखाने से भी नकल जाया करते ह।

महा - खैर हमारे तहखाने से नकल जायगे तो समझगे क चालाक और धू त ह।

महाराज क इतनी ह बातचीत से तेज सं ह को मालू म हो गया क यहां कोई तहखाना हे


िजसम कैद लोग रखे जाते ह, अब उ ह यह फ हु ई क जहां तक हो सके इस तहखाने का

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ठ क-ठ क हाल मालू म करना चा हए। यह सोच तेज सं ह ने अपनी ल छे दार बातचीत से
महाराज को ऐसा उलझाया क मामू ल समय से भी आधे घंटे क

1. रोहतासगढ़ म एक ह धमशाला थी।

दे र हो गई। ऐसा करने से तेज सं ह का अ भ ाय यह था क दे र होने से असल रामानंद


अव य महाराज के पास आवेगा और मु झे दे ख च केगा, उसी समय म अपना काम नकाल
लू ंगा िजसके लए उसक दाढ़ -मू ंछ लाया हू, ं और आ खर तेज सं ह का सोचना ठ क भी
नकला।

तेज सं ह रामानंद क सू रत म िजस समय महाराज के पास आये थे उस समय योढ़ पर


िजतने सपाह पहरा दे रहे थे सब बदल गए और दू सरे सपाह अपनी बार के अनु सार योढ़
के पहरे पर मु तैद हु ए जो इस बात से ब कुल ह बेखबर थे क रामानंद महाराज से मलने
के लए महल म गये ह।
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ठ क समय पर दरबार लग गया। बड़े-बड़े ओहदे दार, नायब, द वान, तहसीलदार, मु ंशी, मु स ी
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इ या द और मु साहब लोग दरबार म आकर जमा हो गये
l o। असल रामानंद अपनी द वान क
ग ी पर आकर बैठ गया मगर अपनी दाढ़ क तरफ s .bसे ब कुल ह बेखबर था। उसे तेज सं ह
4uजानने के लए वह बड़ी उलझन म पड़ा हु आ
का मामला कुछ भी मालू म न था, तो भी iयह
था क उस दरवाजे के जाल दार iपद ndम क घं टयां कसने काट डाल थीं। घर भर के
आद मय से उसने पू छा और/पता/hलगाया मगर पता न लगा, इससे उसके दल म शक हु आ
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क इस मकान म ज t रp
ht कोई ऐयार आया मगर उसने आकर या कया सो नह ं जाना जाता,
हां मेरे इस खयाल को उसने ज र म टयामेट कर दया क घं टयां लगे हु ए जाल दार पद के
अंदर मेरे कमरे म चु पके से कोई नह ं आ सकता, उसने बता दया क य आ सकता है।
बेशक मेर भू ल थी क उस पद पर इतना भरोसा रखता था, पर तो या खाल यह बताने के
लये वह ऐयार आया था।

इ ह ं सब बात को सोचता हु आ रामानंद अपने ज र काम से छु ी पा दरबार कपड़े पहन


बन-ठनकर दरबार क ओर रवाना हु आ। बेशक आज उसे कुछ दे र हो गई थी और वह सोच
रहा था क महाराज दरबार म ज र आ गये ह गे, मगर वहां पहु ंचकर उसने ग ी खाल दे खी
और पू छने से मालू म हु आ क अभी तक महाराज केआने क कोई खबर नह ं। रामानंद या
सभी दरबार ता जु ब कर रहे थे क आज महाराज को दे र य हु ई।

रामानंद को महाराज बहु त मानते थे, यह उनका मु ंहलगा था, इसी लए सभ ने वहां जाकर हाल
मालू म करने के लए इसको ह कहा। रामानंद खु द भी घबराया हु आ था और महाराज का

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हाल मालू म कया चाहता था, अ तु थोड़ी दे र बैठकर वहां से रवाना हु आ और योढ़ पर
पहु ंचकर इि तला करवाई।

रामानंद पी तेज सं ह बैठे महाराज से बात कर रहे थे क एक खदमतगार आया और हाथ


जोड़कर सामने खड़ा हो गया। उसक सू रत से मालू म होता था क वह घबराया हु आ है और
कुछ कहना चाहता है मगर आवाज मु ंह से नह ं नकलती। तेज सं ह समझगये क अब कुछ
गु ल लखा चाहता है, आ खर खदमतगार क तरफ दे खकर बोले -

तेज - य या कहना चाहता है

खद - म ता जु ब के साथ यह इि तला करते डरता हू ं क द वान साहब (रामानंद) योढ़ पर


हािजर ह।

महा - रामानंद!
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खद - जी हां।
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महा - (तेज सं ह क तरफ दे खकर) यह .
या मामला है
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तेज - (मु कुराकर) महाराज, बस अब काम नकला ह चाहता है। म जो कुछ अज कर चु का
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वह बात है। कोई ऐयार मेर सू रत बना आया है और आपको धोखा दया चाहता है, ल िजये
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इस क ब त को तो म अभी गर तार करता हू ं फर दे खा जायगा। सरकार उसे हािजर होने
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का हु म द
ht म या तमाशा
फर दे ख करता हू ं। मु झे जरा छप जाने द, वह आकर बैठ जाय
तो म उसका पदा खोलू ं।

महा - तु हारा कहना ठ क है, बेशक कोई ऐयार है , अ छा तु म छप जाओ, म उसे बु लाता हू ं।

तेज - बहु त खू ब, म छप जाता हू,ं मगर ऐसा है क सरकार उसक दाढ़ -मू ंछ पर खू ब यान
द, म यकायक पद से नकलकर उसक दाढ़ उखाड़ लू ंगा य क नकल दाढ़ जरा ह -सा
झटका चाहती है।

महा - (हंसकर) अ छा-अ छा, ( खदमतगार क तरफ दे खकर) दे ख उससे और कुछ मत


क हयो, केवल हािजर होने का हु म सु ना दे ।

तेज सं ह दू सरे कमरे म जाकर छप रहे और असल रामानंद धीरे-धीरे वहां पहु ंचे जहां महाराज
वराज रहे थे। रामानंद को ता जु ब था क आज महाराज ने दे र य लगाई, इससे उसका
चेहरा भी कुछ उदास-सा हो रहा था। दाढ़ तो वह थी जो तेज सं ह ने लगा द थी। तेज सं ह ने

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दाढ़ बनाते समय जान-बू झकर कुछ फक डाल दया था, िजस पर रामानंद ने तो कुछ यान
न दया मगर वह फक अब महाराज क आंख म खटकने लगा। िजस नगाह से कोई कसी
बह पये को दे खता है उसी नगाह से बना कुछ बोले-चाले महाराज अपने द वान साहब को
दे खने लगे। रामानंद यह दे खकर और भी उदास हु आ क इस समय महाराज क नगाह म
अंतर य पड़ गया है।

तर ुद और ता जु ब के सबब रामानंद के चेहरे का रं ग जैस-े जैसे बदलता गया तैसे-तैसे उसके


ऐयार होने का शक भी महाराज के दल म बैठ गया। कई सायत बीतने पर भी न तो
रामानंद ह कुछ पू छ सका और न महाराज ह ने उसे बैठने का हु म दया। तेज सं ह ने
अपने लए यह मौका बहु त अ छा समझा, झट बाहर नकल आये और हंसते हु ए एक फश
सलाम उ ह ने रामानंद को कया। ता जु ब और डर से रामानंद के चेहरे का रं ग उड़ गया और
वह एकटक तेज सं ह क तरफ दे खने लगा।

ऐयार भी क ठन है। इस फन म सबसे भार ह सा जीवट का है। जो.iऐयार o m


n िजतना डरपोक
होगा उतना ह ज द फंसेगा। तेज सं ह को दे खए, कस जीवट का
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poऐयार है क दु मन के घर
म घु सकर भी जरा नह ं डरता और दन दोपहर स चे को
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झू ठा बना रहा है ! ऐसे समय अगर
.bआ जाय तो ता जु ब नह ं क वह खु द
जरा भी उसके चेहरे पर खौफ या तर ुद क नशानी
फंस जाय।
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तेज सं ह ने रामानंद को बात करने
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hक भी मोहलत न द, हंसकर उसक तरफ दे खा और कहा,
'' य बे! या महाराज p
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दि :वजय सं ह के दरबार को तने ऐसा-वैसा समझ रखा है! या तू यहां
भी ऐयार से कामhtनकालना चाहता है यहां तेर कार गर न लगेगी, दे ख तेर गदहे क -सी
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मु टाई म पचकाता हू ं।''

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तेज सं ह ने फुत से रामानंद क दाढ़ पर हाथ डाल दया और महाराज को दखाकर एक
झटका दया। झटका तो जोर से दया मगर इस ढं ग से क महाराज को बहु त ह का झटका
मालू म हो। रामानंद क नकल दाढ़ अलग हो गई।

इस तमाशे ने रामानंद को पागल-सा बना दया। उसके दल म तरह-तरह क बात पैदा होने
लगीं। यह समझकर क यह ऐयार मु झ स चे को झू ठा कया चाहता है उसे ोध चढ़ आया
और वह खंजर नकालकर तेज सं ह पर झपटा, पर तेज सं ह वार बचा गए। महाराज को
रामानंद पर और भी शक बैठ गया। उ ह ने उठकर रामानंद क कलाई िजसम खंजर लए था
मजबू ती से पकड़ ल और एक घू ंसा उसके मु ंह पर दया।ताकतवर महाराज के हाथ का घू ंसा
खाते ह रामानंद का सर घू म गया और वह जमीन पर बैठ गया। तेज सं ह ने जेब से बेहोशी
क दवा नकाल और जबद ती रामानंद को सु ंघा द ।

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महा - य इसे बेहोश य कर दया?

तेज - महाराज, गु से म आया हु आ और अपने को फंसा जान यह ऐयार न मालू मकैसी-कैसी


बेहू द बात बकता, इस लए इसे बेहोश कर दया। कैदखाने म ले जाने के बाद फर दे खा
जायगा।

महा - खैर यह भी अ छा ह कया, अब मु झसे ताल लो और तहखाने म ले जाकर इसे


दारोगा के सु पु द करो।

महाराज क बात सु न तेज सं ह घबराये और सोचने लगे क अब बु र हु ई। महाराज सेतहखाने


क ताल लेकर कहां जाऊं म या जानू ं तहखाना कहां है और दारोगा कौन है! बड़ी मु ि कल
हुई! अगर जरा भी नाह ं-नु कर करता हू ं तो उ ट आंत गले पड़ती ह। आ खर कुछ सोच-
वचारकर तेज सं ह ने कहा -

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तेज - महाराज भी साथ चल तो ठ क है।
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महा - य? o g
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तेज - दारोगा साहब इस ऐयार को और मु झे दे खकर घबरायगे और उ ह न जाने या- या
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शक पैदा हो। यह पाजी अगर होश म आ
i nd जायेगा तो ज र कुछ बात बनावेगा, आप रहगे तो
दारोगा को कसी तरह का शक/ नhहोगा।

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ht चलो हम भी चलते ह।
महा - (हंसकर) अ छा

तेज - हां महाराज, फर मु झे पीठ पर यह भार लाश लादे ताला खोलने और बंद करने म भी
मु ि कल होगी।

महाराज ने अपने कलमदान म से ताल नकाल और खदमतगार से एक लालटे न मंगवाकर


साथ ले ल । तेज सं ह ने रामानंद क गठर बांध पीठ पर लाद । तेज सं हको साथ लए हु ए
महाराज अपने सोने वाले कमरे म गये और द वार म जड़ी हु ई एक अलमार का ताला खोला।
तेज सं ह ने दे खा क द वार पोल है और उस जगह से नीचे उतरने का एक रा ता है। रामानंद
क गठर लए हु ए महाराज के पीछे-पीछे तेज सं ह नीचे उतरे, एक दालान म पहु ंचने के बाद
छोट -सी कोठर म जाकर दरवाजा खोला और बहु त बड़ी बारहदर म पहु ंचे। तेज सं ह ने दे खा
क बारहदर के बीच बीच म छोट -सी ग ी लगाए एक बू ढ़ा बैठा कुछ लख रहा है जो महाराज
को दे खते ह उठ खड़ा हु आ और हाथ जोड़कर सामने आया।

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महा - दारोगा साहब, दे खए आज रामानंद ने दु मन के एक ऐयार को फांसा है, इसे अपनी
हफाजत म र खए।

तेज - (पीठ से गठर उतार और उसे खोलकर) ल िजए, इसे स हा लए, अब आप जा नए।

दारोगा - (ता जु ब से) या यह द वान साहब क सू रत बनाकर आया था

तेज - जी हां, इसने मु झी को फजू ल समझा।

महा - (हंसकर) खैर चलो, अब दारोगा साहब इसका बंदोब त कर लगे।

तेज - महाराज, य द आ ा हो तो म ठहर जाऊं और इस नालायक को होश म लाकर अपने


मतलब क बात का कुछ पता लगाऊं, सरकार को भी अटकने के लए म कहता परं तु दरबार
का समय ब कुल नकल जाने और दरबार न करने से रयाया के दल म तरह-तरह के शक
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पैदा ह गे और आजकल ऐसा न होना चा हए।
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महा - तु म ठ क कहते हो, अ छा म जाता हू,ं अपनी ताल साथ लए जाता हू ं और ताला बंद
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करता जाता हू ं, तुम दू सर राह से दारोगा के साथ आना। (दारोगा क तरफ दे खकर) आप भी
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आइएगा और अपना रोजनामचा लेते आइएगा।
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तेज सं ह को उसी जगह छोड़ महाराज चले गए। रामानंद पी तेज सं ह को लएदारोगा साहब
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अपनी ग ी पर आये और अपनी जगह तेज सं ह को बैठाकर आप नीचे बैठे। तेज सं ह ने आधे
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घंटे तक दारोगा t बात
को tअपनी म खू ब ह उलझाया इसके बाद यह कहते हु ए उठे, ''अ छा
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अब इस ऐयार को होश म लाकर मालू म करना चा हए क यह कौन है '' और ऐयार के पास
आए। अपनी जेब म हाथ डाल लखलखे क ड बया खोजने लगे, आ खर बोले, ''ओफओह,
लखलखे क ड बया तो द वानखाने म ह भू ल आये, अब या कया जाय।'

दारोगा - मेरे पास लखलखे क ड बया है, हु म हो तो लाऊं

तेज - लाइए मगर आपके लखलखे से यह होश म न आयेगा य क जो बेहोशी क दवा इसे
द गई वह मने नये ढं ग से बनाई है और उसके लए लखलखे का नु खा भी दू सरा है, खैर
लाइये तो सह शायद काम चल जाय।

''बहु त अ छा'' कहकर दारोगा साहब लखलखा लेने चले गये, इधर नराला पाकर तेज सं ह ने
दू सर ड बया जेब से नकाल िजसम लाल रं ग क कोई बु कनी थी, एक चु टक रामानंद के
नाक म सांस के साथ चढ़ा द और नि चंत होकर बैठे। अब सवा तेज सं ह के दू सरे का

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बनाया लखलखा उसे कब होश म ला सकता है, हां दो-एक रोज तक पड़े रहने पर वह आप से
आप चाहे भले ह होश म आ जाए।

दमभर म दारोगा साहब लखलखे क ड बया ले आ पहु ं च,े तेज सं ह ने कहा, ''बस आप ह
सु ंघाइये और दे खये इस लखलखे से कुछ काम नकलता है या नह ं।''

दारोगा साहब ने लखलखे क ड बया बेहोश रामानंद के नाक से लगाई पर या असर होना
था, लाचार तेज सं ह का मु ंह दे खने लगे।

तेज - य यथ मेहनत करते ह, म पहले ह कह चु का हू ं क लखलखे सेकाम नह ं चलेगा।


च लये महाराज के पास चल, इसे य ह रहने द िजये, अपना लखलखा लेकर फर लौटगे तो
काम चलेगा।

दारोगा - जैसी मज , इस लखलखे से तो काम नह ं चलता।


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दारोगा साहब ने रोजनामचे क
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कताब बगल म दाबी और ता लय का झ बा और लालटे न
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हाथ म लेकर रवाना हु ए। एक कोठर म घु सकर दारोगाoसाहब ने दू सरादरवाजा खोला, ऊपर
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चढ़ने के लए सी ढ़यां नजर आ । ये दोन ऊपर s .bगये और दो-तीन कोठ रय से घु सते हु ए
चढ़
4े uबादइनका सर छत से अड़ा। दारोगा ने एक
एक सु रंग म पहु ंचे। दू र तक चले जाने iक
सु राख म ताल लगाई और खटका iदबाया,nd एक प थर का टु कड़ा अलग हो गया और ये दोन
बाहर नकले। यहां तेज सं ह ने /
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p :/ अपने को एक क तान म पाया।
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ht भाग के चौदहव बयान म हम इस क तान का हाल लख चु के ह।
इस संत त के तीसरे
इसी राह से कुं अर आनंद सं ह, भैरो सं ह और तारा सं ह उस तहखाने मगये थे। इस समय हम
जो हाल लख रहे ह वह कुं अर आनंद सं ह के तहखाने म जाने के पहले का है, सल सला
मलाने के लए फर पीछे क तरफ लौटना पड़ा। तहखाने के हर एक दरवाजे म पहले ताला
लगा रहता था मगर जब से तेज सं ह ने इसे अपने क जे म कर लया (िजसका हाल आगे
चलकर मालू म होगा) तब से ताला लगाना बंद हो गया, केवल खटक पर ह कारवाई रह गई।

तेज सं ह ने चार तरफ नगाह दौड़ाकर दे खा और मालू म कया क इस जंगल म जासू सी


करते हु ए कई दफे आ चु के ह और इस क तान म भी पहु ंच चु के हमगर जानते नह ं थे
क यह क तान या है और कस मतलब से बना हु आ है। अब तेज सं ह ने सोच लया क
हमारा काम चल गया, दारोगा साहब को इसी जगह फंसाना चा हए जाने न पाव।

तेज - दारोगा साहब, हक कत म तु म बड़े ह जू तीखोर हो।

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दारोगा - (ता जु ब से तेज सं ह का मु ंह दे ख क)े मने या कसू र कया है जो आप गाल दे रहे
ह ऐसा तो कभी नह ं हु आ था!

तेज - फर मेरे सामने गु राता है! कान पकड़ के उखाड़ लू ंगा!

दारोगा - आज तक महाराज ने भी कभी मेर ऐसी बेइ जती नह ं क थी।

तेज सं ह ने दारोगा को एक लात ऐसी मार क बेचारा ध म से जमीन पर गर पड़ा। तेज सं ह


उसक छाती पर चढ़ बैठे और बे होशी क दवा जबद ती नाक म ठू ं स द । बेचारा दारोगा बे होश
हो गया। तेज सं ह ने दारोगा क कमर से और अपनी कमर से भी चादर खोल और उसी म
दारोगा क गठर बांध ताल का गु छा और रोजनामचे क कताब भी उसी म रख पीठ पर
लाद तेजी के साथ अपने ल कर क तरफ रवाना हु ए तथा दोपहर दन चढ़ते-चढ़ते राजा
वीर सं ह के खेमे म जा पहु ंचे। पहले तो रामानंद क सूरत दे ख वीर सं ह च के मगर जब बंधे
हु ए इशारे से तेज सं ह ने अपने को जा हर कया तो वे बहु त ह खु श हु ए।
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बयान - 3 .bl

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तेज सं ह के लौट आने से राजा वीर
d i त खु श हु ए और उस समय तो उनकखु शी और
सं ह बहु
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भी h
यादे हो गई जब तेज सं ह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कारवाई करने का खु लासा हाल
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कहा। रामानंद क :/
गर तार का हाल सु नकर हंसते-हंसते लोट गये मगर साथ ह इसके क
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कुं अर इं जीत सं ह काttपता रोहतासगढ़ म नह ं लगताबि क मालू म होता है क रोहतासगढ़ म
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नह ं ह, राजा वीर सं ह उदास हो गये। तेज सं ह ने उ ह हर तरह से समझाया और दलासा
दया। थोड़ी दे र बाद तेज सं ह ने अपने दल क वे सब बात कह ं जो वे कया चाहते थे,
वीर सं ह ने उनक राय बहु त पसंद क और बोले -

वीर - तु हार कौन-सी ऐसी तरक ब है िजसे म पसंद नह ं कर सकता! हां यह कहो क इस
समय अपने साथ कस ऐयार को ले जाओगे

तेज - मु झे तो इस समय कई ऐयार क ज रत थी मगर यहां केवल चार मौजू द ह और


बाक सब कुं अर इं जीत सं ह का पता लगाने गये ह, खैर कोई हज नह !ं पं डत ब नाथ को तो
इसी ल कर म रहने द िजए, उ ह कसी दू सर जगह भेजना म मु ना सब नह ं समझता य क
यहां बड़े ह चालाक और पु राने ऐयार का काम है , बाक यो तषीजी, भेर और तारा को म
अपने साथ ले जाऊंगा।

वीर - अ छ बात है , इन तीन से तु हारा काम बखू बी चलेगा।

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तेज - जी नह ं, म तीन ऐयार को अपने साथ नह ं रखा चाहता बि क भैर और तारा को तो
वहां का रा ता दखाकर वापस कर दू ं गा, इसके बाद वे दोन थोड़े से लड़क को मेरे पास
पहु ंचाकर फर आपको या कुं अर आनंद सं ह को लेकरमेरे पास आवगे, तब वह सब कारवाई क
जायगी जो म आपसे कह चु का हू ं।

वीर - और यह दारोगा वाल कताब जो तु म ले आये हो या होगी

तेज - इसे फर अपने साथ ले जाऊंगा और मौका मलने पर शु से आ खर तक पढ़


जाऊंगा, यह तो एक चीज हाथ लगी है।

वीर - बेशक उ दा चीज है , ( कताब तेज सं ह के हाथ से लेकर) रोहतासगढ़ तहखाने का कुल
हाल इससे तु ह मालू म हो जायगा बि क इसके अलावे वहां का और भी बहु त कुछ भेद
मालू म होगा।

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तेज - जी हां, इसम दारोगा ने रोज-रोज का हाल लखा है, म समझता हू ं वहां ऐसी-ऐसी और
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भी कई कताब ह गी जो इसके पहले के और दारोगाओं के हाथ से लखी गई ह गी।

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. का भी पता लगता है।
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वीर - ज र ह गी, और इससे उस तहखाने के खजाने

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तेज - ल िजए अब यह खजाना भी हमींdलोग का हु आ चाहता है! अब हम यहां दे र न करके
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/, य क दि वजय सं ह मु झे और दारोगा को अपने पास बु ला
बहु त ज द वहां पहु ंचना चा हए
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: फर तहखाने म आवेगा और कसी को न दे खेगा तो सब काम
गया था, दे र हो जाने परpवह
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ह चौपट हो जायगा। hta
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वीर

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- ठ क है , अब तु म जाओ दे र मत करो।

कुछ जलपान करने के बाद यो तषीजी, भैरो सं ह और तारा सं ह को साथ लए हु एतेज सं ह


वहां से रोहतासगढ़ क तरफ रवाना हु ए और दो घंटे दन रहते ह तहखानेम जा पहु ंचे। अभी
तक तेज सं ह रामानंद क सू रत म थे। तहखाने का रा ता दखाने के बाद भैरो सं ह और
तारा सं ह को तो वापस कया और यो तषीजी को अपने पास रखा। अब क दफे तहखाने से
बाहर नकलने वाले दरवाजे म तेज सं ह ने ताला नह ं लगाया, उ ह केवल खटक पर बंद रहने
दया।

दारोगा वाले रोजनामचे के पढ़ने से तेज सं ह को बहु त-सी बात मालू म हो ग िज ह यहां
लखने क कोई ज रत नह ं, समय-समय पर आप ह मालू म हो जायगा, हां उनम से एक
बात यहां लख दे ना ज र है। िजस दालान म दारोगा रहता था उसम एक खंभे के साथ लोहे
क एक तार बंधी हु ई थी िजसका दू सरा सरा छत म सू राख करके ऊपर क तरफ नकाल

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दया गया था। तेज सं ह को कताब के पढ़ने से मालू म हु आ क इस तार को खींचने या
हलाने से वह घंटा बोलेगा जो खास दि वजय सं ह के द वानखाने म लगा हु आ है य क उस
तार का दू सरा सरा उसी घंटे से बंधा है। जब कसी तरह क मदद क ज रत पड़ती थी तब
दारोगा उस तार को छे ड़ता था। उस दालान क बगल क एक कोठर के अंदर भी एक बड़ा-सा
घंटा लटकता था िजसके साथ बंधी हु ई लोहे क तार का दू सरा ह सा महाराज केद वानखाने
म था। महाराज भी जब तहखाने वाल को हो शयार कया चाहते थे या और कोई ज रत
पड़ती थी तो ऊपर लखी र त से वह तहखाने वाला घंटा भी बजाया जाता और यह काम
केवल महाराज का था य क तहखाने का हाल बहु त गु त था, तहखाना कैसा है और उसके
अंदर या होता है यह हाल सवाय खास-खास आठ-दस आद मय के और कसी को भी
मालू म न था, इसके भेद मं क तरह गु त रखे जाते थे।

हम ऊपर लख आये ह क असल रामानंद को ऐयार समझकर महाराज दि वजय सं ह


तहखाने म ले आए और लौटकर जाते समय नकल रामानंद अथात तेज सं ह और दारोगा को
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कहते गये क तु म दोन फुरसत पाकर हमारे पास आना।
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महाराज के हु म क तामील न हो सक य क दारोगा o g
को कैद कर तेज सं ह अपनेल कर म
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ले गये और यादा ह सा दन का उधर ह बीत गया
s .b था जैसा क हम ऊपर लख आये ह।
जब तेज सं ह लौटकर तहखाने म आये तो 4यो u तषीजी को बहु त-सी बात समझा और उ ह
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nd सामने क कोठ रय म से खटके क आवाज आई।
दारोगा बनाकर ग ी पर बैठाया, उसी iसमय
तेज सं ह समझ गये क महाराज / hआ रहे ह, यो तषीजी को तो लटा दया और कहा क ''तु म
p :/बातचीत क ं गा।'' थोड़ी दे र म महाराज उस तहखाने म उसी राह
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हाय-हाय करो, म महाराज से
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से आ पहु ंचे िजस राह से तेज सं ह को साथ लाए थे।

महा - (तेज सं ह क तरफ दे खकर) रामानंद, तु म दोन को हम अपने पास आने के लए हु म


दे गये थे, य नह ं आये, और इस दारोगा को या हु आ जो हाय-हाय कर रहा है

तेज - महाराज, इ ह ं के सबब से तो आना नह ं हु आ। यकायक बेचारे के पेट म दद पैदा हो


गई, बहु त-सी तरक ब करने के बाद अब कुछ आराम हु आ है।

महा - (दारोगा के हाल पर अफसोस करने के बाद) उस ऐयार का कुछ हाल मालू म हु आ

तेज - जी नह ,ं उसने कुछ भी नह ं बताया, खैर या हज है, दो-एक दन म पता लग ह


जायगा, ऐयार लोग िज ी तो होते ह ह।

थोड़ी दे र बाद महाराज दि वजय वहां से चले गये। महाराज के जाने के बाद तेज सं ह भी
तहखाने से बाहर हु ए और महाराज के पास गये। दो घंटे तक हािजर दे कर शहर म ग त

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करने के बहाने से बदा हु ए। पहर रात से कुछ यादा गई थी क तेज सं ह फर महाराज के
पास गये और बोले -

तेज - मु झे ज द लौट आते दे ख महाराज ता जु ब करते ह गे मगर एक ज र खबर दे ने के


लए आना पड़ा।

महा - वह या

तेज - मु झे पता लगा है क मेर गर तार के लए कई ऐयार आये हु ए ह, महाराज हो शयार


रह। अगर रात भर म उनके हाथ से बच गया तो कल ज र कोई तरक ब क ं गा, य द फंस
गया तो खैर।

महा - तो आज रात भर तु म यह ं य नह ं रहते

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या उन लोग के खौफ से बना कुछ कारवाई कये अपने को छपाऊं यह नह ं हो
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सकता।
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महा - शाबाश, ऐसा ह मु ना सब है, खैर जाओ जो होगा दे खा जायगा।
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तेज सं ह घर क तरफ लौटे, रामानंद के घर क तरफ नह ं बि क अपने ल कर क तरफ।
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उ ह ने इस बहाने अपनी जान बचाई और चलते हु ए। सबेरे जब दरबार म रामानंद न आए,
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महाराज को व वास हो गया क वीर सं ह के ऐयार ने उ ह फंसा लया।
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बयान -4

अपनी कारवाई पू र करने के बाद तेज सं ह ने सोचा क अब असल रामानंद कोतहखाने से


ऐसी खू बसू रती के साथ नकाल लेना चा हए िजससे महाराज को कसी तरह का शक न हो
और यह गु मान भी न हो क तहखाने म वीर सं ह के ऐयार लोग घु से ह या तहखाने का हाल
कसी दू सरे को मालू म हो गया है, यह काम तभी हो सकता है जब कोई ताजा मु दा हाथ लगे।

रोहतासगढ़ से चलकर तेज सं ह अपने ल कर म पहु ंचे और सब हाल वीर सं हसे कहने के
बाद कई जासू स को इस काम के लए रवाना कया क अगर कह ं कोई ताजा मु दा जो सड़
न गया हो या फूल न गया हो मले तो उठा लाव और ल कर के पास ह कह ं रखकर हम
इि तला द। इि तफाक से ल कर से दो-तीन कोस क दू र पर नद के कनारे एक लावा रस
भखमंगा उसी दन मरा था िजसे जासू स लोग शाम होते-होते उठा लाये और ल कर से कुछ

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दू र रख तेज सं ह को खबर क ।भैरो सं ह को साथ लेकर तेज सं ह मु द के पास गये और अपनी
कारवाई करने लगे।

तेज सं ह ने उस मु द को ठ क रामानंद क सू रत का बनाया और भैरो सं ह क मदद1 से उठाकर


रोहतासगढ़ तहखाने के अंदर ले गये और तहखाने के दारोगा ( यो तषीजी) के सु पु द कर और
उसके बारे म बहु त-सी बात समझा-बु झाकर असल रामानंद को अपने ल कर म उठा लाये।

तेज सं ह के जाने के बाद हमारे नए दारोगा साहब ने खंभे से बंधे हु ए उस तारको खींचा
िजसके सबब से दि वजय सं ह के द वानखाने वाला घंटा बोलता था। उस समय दो घंटे रात
जा चु क थी, महाराज अपने कई मु साहब को साथ लए द वानखाने म बैठे दु मन पर फतह
पाने के लए बहु त-सी तरक ब सोच रहे थे, यकायक घंटे क आवाज सु नकर च के और समझ
गये क तहखाने म हमार ज रत है। दि वजय सं ह उसी समय उठ खड़े हु ए और उन
ज लाद को बुलाने का हु म दया जो ज रत पड़ने पर तहखाने म जाया करते थे और जान

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के खौफ या नमकहलाल के सबब से वहां का हाल कसी दू सरे से कभी नह ं कहते थे। n
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महाराज दू सरे कमरे म गए, जब तक कपड़े बदलकर तैयार ह ज लाद लोग भी हािजर हु ए। ये
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ज लाद बड़े ह मजबू त, ताकतवर और क ावर थे।
s . याह रं ग, मू ंछ चढ़ हु ई, पोशाक म केवल

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जां घया, मजई और कंटोप प हरे , हाथ म भार तेगा लए बड़े ह भयंकर मालू म होते थे।
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महाराज ने केवल चार ज लाद को साथd लया और उसी मालू मी रा ते से तहखाने म उतर
h iचैnत य हो गया और सामने हाथ जोड़कर बोला, ''लाचार
गए। महाराज को आते दे ख दारोगा
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महाराज को तकल फ दे नp :/
ी पड़ी!''
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1. मु दा अ सर ऐंठ जाया करता है इस लए गठर म बांध नह ं सकते, लाचार हो दो आदमी मलकर उठा ले गये।

महा - या मामला है

दारोगा - वह ऐयार मर गया िजसे द वान रामानंदजी ने गर तार कया था।

महा - (च ककर) ह, मर गया!

दारोगा - जी हां, मर गया, न मालू म कैसी जहर ल बेहोशी द गई थी क िजसका असर यहां
तक हु आ।

महा - यह बहु त ह बु रा हु आ, दु मन समझेगा क दि वजय सं ह ने जान-बू झकर हमारे ऐयार


को मार डाला जो कायदे के बाहर क बात है। दु मन को अब हमसे िज हो जायगी और वे
भी कायदे के खलाफ बेहोशी क जगह जहर का बताव करने लगगे तो हमारा बड़ा नु कसान
होगा और बहु त आदमी जान से मारे जायगे।

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दारोगा - लाचार है , फर या कया जाय भू ल तो द वान साहब क है।

महा - (कुछ जोश म आकर) रामानंद तो पू रा उज ड है! झक मारने के लए उसने अपने को


ऐयार मशहू र कर रखा है, तभी तो वीर सं ह का एक अदना ऐयार आया और उसे पकड़कर ले
गया, चलो छु ी हु ई!

महाराज क बात सु नकर मन-ह -मन यो तषीजी हंसते और कहते थे क दे खो कतना


हो शयार और बहादु र राजा या जरा-सी बात म बेवकूफ बना है। वाह रे तेज सं ह, तू जो चाहे
कर सकता है।

महाराज ने रामानंद क लाश को खु द दे खा और दू सर जगह ले जाकर जमीन म गाड़ दे ने के


लए ज लाद को हु म दया। ज लाद ने उसी तहखाने म एक जगह जहां मु द गाड़े जाते थे
ले जाकर उस लाश को दबा दया, महाराज अफसोस करते हु ए तहखाने के बाहर नकल आए
और इस सोच म पड़े क दे ख वीर सं ह के ऐयार लोग इसका
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या बदला लेते ह।
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बयान - 5 .bl

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ऊपर लखी वारदात के तीसरे दन दारोगा iसाहब अपनी ग ी पर बैठे रोजनामचा दे ख रहे थे
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और उस तहखाने क पु रानी बात h i
पढ़-पढ़कर ता जु ब कर रहे थे क यकायक पीछे क कोठर
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/ उठ खड़े हु ए और पीछे क तरफ दे खने लगे। फर
म खटके क आवाज आई। :घबड़ाकर
आवाज आई। यो तषीजी
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tt दरवाजा खोलकर अंदर गये, मालू म हु आ क उस कोठर के दू सरे
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दरवाजे से कोई भागा जाता है। कोठर म ब कुल अंधेरा था, यो तषीजी कुछ आगे बढ़े ह थे
क जमीन पर पड़ी हु ई एक लाश उनके पैर म अड़ी िजसक ठोकर खा वे गर पड़े मगर फर
स हलकर आगे बढ़े ले कन ता जु ब करते थे क यह लाश कसक है। मालू म होता है यहां
कोई खू न हु आ है, और ता जु ब नह ं क वह भागने ह वाला खू नी हो!

वह आदमी आगे-आगे सु रंग म भागा जाता था और पीछे-पीछे यो तषीजी हाथ म खंजर लए


दौड़े जा रहे थे मगर उसे कसी तरह पकड़ न सके। यकायक सु रंग के मु हाने पर रोशनी
मालू म हु ई। यो तषीजी समझे क अब वह बाहर नकल गया। दम भरम ये भी वहां पहु ंचे
और सु रंग के बाहर नकल चार तरफ दे खने लगे। यो तषीजी क पहल नगाह िजस पर
पड़ी वह पं डत ब नाथ थे, दे खा क एक औरत को पकड़े हु ए ब नाथ खड़े ह और दन आधी
घड़ी से कम बाक है।

ब - दारोगा साहब, दे खये आपके यहां चोर घु से और आपको खबर भी न हो!

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यो - अगर खबर न होती तो पीछे -पीछे दौड़ा हु आ यहां तक य आता!

ब - फर भी आपके हाथ से तो चोर नकल ह गया था, अगर इस समय हम न पहु ंच पाते
तो आप इसे न पा सकते।

यो - हां बेशक, इसे म मानता हू ं। या आप पहचानते ह क यह कौन है याद आता है क


इस औरत को मने कभी दे खा है।

ब - ज र दे खा होगा, खैर इसे तहखाने म ले चलो फर दे खा जायगा। इसका तहखाने से


खाल हाथ नकलना मु झे ता जु ब म डालता है।

यो - यह खाल हाथ नह ं बि क हाथ साफ करके आई है। इसके पीछे आती समय एक लाश
मेरे पैर म अड़ी थी मगर पीछा करने क धु न म म कुछ जांच न कर सका।

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पं डत ब नाथ और यो तषीजी उस औरत को गर तार कए हु ए तहखाने
दालान या बारहदर म िजसम दारोगा साहब क ग ी लगी रहती
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poथी पहु ंचे। उस औरत को
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खंभे के साथ बांध दया और हाथ म लालटे न ले उस लाश
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ogको दे खने गये जो यो तषीजी के
पैर म अड़ी थी। ब नाथ ने दे खते ह उस लाश को
है!'' i 4u
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पहचान लया और बोले, ''यह तो माधवी

यो - यह यहां य कर आई! /
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h क नाक पर हाथ रखकर) अभी दम है, मर नह ं। यह
दे खए इसके पेट म ज p
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(माधवी
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म :लगा है। ज म भार नह ं है, बच सकती है।
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- (न ज दे खकर) हां बच सकती है , खैर इसके ज म पर प ी बांधकर इसी तरह छोड़ दो,
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फर बू झा जायगा। हां थोड़ा-सा अक इसके मु ंह म डाल दे ना चा हए।

ब नाथ ने माधवी के ज म पर प ी बांधी और थोड़ा-सा अक भी उसके मु ंह म डालकर उसे


वहां से उठा दू सर कोठर म ले गए। इस तहखाने म कई जगह से रोशनी और हवा पहु ंचा
करती थी, कार गर ने इसके लए अ छ तरक ब क थी। ब नाथ और यो तषीजी माधवी
को उठाकर एक ऐसी कोठर म ले गये जहां बादाकश क राह से ठं डी-ठं डी हवा आ रह थी
और उसे उसी जगह छोड़ आप बारहदर म आए जहां उस औरत को िजसने माधवी को घायल
कया था खंभे के साथ बांधा था। ब नाथ ने धीरे से यो तषीजी से कहा क ''आज कुं अर
आनंद सं ह और उनके थोड़ी ह दे र बाद म बीस-पचीस आद मय को साथ लेकर यहां आऊंगा।
अब म जाता हू ं, वहां बहु त कुछ काम है, केवल इतना ह कहने के लए आया था। मेरे जाने के
बाद तु म इस औरत से पू छताछ लेना क यह कौन है, मगर एक बात का खौफ है।''

यो - वह या है

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ब - यह औरत हम लोग को पहचान गई है, कह ं ऐसा न हो क तु म महाराज को बु लाओ
और वे आ जाएं तो यह कह उठे क दारोगा साहब तो राजा वीर सं ह के ऐयार ह!

यो - ज र ऐसा होगा, इसका भी बंदोब त कर लेना चा हए।

ब - खैर कोई हज नह ,ं मेरे पास मसाला तैयार है। (बटु ए म से एक ड बया नकालकर और
यो तषीजी के हाथ म दे कर) इसे आप रख जब मौका हो तो इसम से थोड़ी-सी दवा इसक
जबान पर जबद ती मल द िजएगा, बात क बात म जु बान ऐंठ जायगी फर यह साफ तौर
पर कुछ भी न कह सकेगी। तब जो आपके जी म आवे महाराज को समझा द।

ब नाथ वहां से चले गये। उनके जाने के बाद उस औरत को डरा-धमका और कुछ मार-
पीटकर यो तषीजी ने उसका हाल मालू म करना चाहा मगर कुछ न हो सका, पहर क
मेहनत बबाद गई। आ खर उस औरत ने यो तषीजी से कहा, '' यो तषीजी, म आपको अ छ

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तरह से जानती हू ं। आप यह न सम झए क माधवी को मने मारा है, उसको घायल करने
वाला कोई दू सरा ह था, खैर इन सब बात से कोई मतलब नह ं oय क अब तो माधवी भी
आपके क जे म नह ं रह ।'' g sp
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यो - माधवी मेरे क जे म से कहां जा सकती है s
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औरत - जहां जा सकती थी वहां गई,in
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जहां आप रख आये थे वहां जाकर दे खये है या नह ं।
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औरत क बात सु नकर pयो :/तषीजी बहु त घबड़ाए और उठ खड़े हु ए, वहां गए जहां माधवी को
tt
छोड़ आए थे। उसhऔरत क बात सच नकल । माधवी का वहां पता भी न था। हाथ म
लालटे न ले घंट यो तषीजी इधर-उधर खोजते रहे मगर कुछ फायदा न हु आ, आ खर लौटकर
फर उस औरत के पास आये और बोले, ''तेर बात ठ क नकल मगर अब म तेर जान लये
बना नह ं रहता, और अगर सच-सच अपना हाल बता दे तो छोड़ दू ं ।''

यो तषीजी ने हजार सर पटका मगर उस औरत ने कुछ भी न कहा। इसी औरत के


च लाने या बोलने क आवाज कशोर और लाल ने इस तहखाने म आकर सु नी थी िजसका
हाल इस भाग के पहले बयान म लख आये ह य क इसी समय लाल और कशोर भी वहां
आ पहु ंची थीं।

यो तषीजी ने कशोर को पहचाना, कशोर के साथ लाल का नाम लेकर भी पु कारा, मगर
अभी यह नह ं मालू म हु आ क लाल को यो तषीजी य कर और कब से जानते थे, हां
कशोर और लाल को इस बात का ता जु ब था क दारोगा ने उ ह य कर पहचान लया
य क यो तषीजी दारोगा के भेष म थे।

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यो तषीजी ने कशोर और लाल को अपने पास बु लाकर कुछ बात करना चाहा मगर मौका
न मला। उसी समय घंटे के बजने क आवाज आई और यो तषीजी समझ गये क महाराज
आ रहे ह। मगर इस समय महाराज य आते ह! शायद इस वजह से क लाल और कशोर
इस तहखाने म घु स आई ह और इसका हाल महाराज को मालू म होगया है।

ज द के मारे यो तषीजी सफ दो काम कर सके, एक तो कशोर और लाल क तरफ


दे खकर बोले, ''अफसोस, अगर आधी घड़ी क भी मोहलत मलती तो तु ह यहां से नकाल ले
जाता, य क यह सब बखेड़ा तु हारे ह लए हो रहा है।'' दू सरे उस औरत क जु बान पर
मसाला लगा सके िजससे वह महाराज के सामने कुछ कह न सके। इतने ह म मशाल चय
और कई ज लाद को लेकर महाराज आ पहु ंचे और यो तषीजी क तरफ दे खकर बोले, ''इस
तहखाने म कशोर और लाल आई ह, तु मने दे खा है'

दारोगा - (खड़े होकर) जी अभी तक तो यहां नह ं पहु ंचीं।

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राजा - खोजो कहां ह, यह औरत कौन है o t
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दारोगा - मालू म नह ं कौन है और य आई है मने इसी
b loतहखाने म इसे गर तार कया है,
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पू छने से कुछ नह ं बताती।
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राजा - खैर कशोर और लाल के iसाथ nd इसे भी भू तनाथ पर चढ़ा दे ना (ब ल दे ना) चा हए
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य क यहां का बंधा कायदा है/क लखे आदमी के सवा दू सरा जो इस तहखाने को दे ख ले
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उसे तु रंत ब ल दे दे ना tचा
:/
हए।
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सब लोग कशोर और लाल को खोजने लगे। इस समय यो तषीजी घबड़ाये और ई वर से
ाथना करने लगे क कुं अर आनंद सं ह और हमारे ऐयार लोग ज द यहां आविजससे कशोर
क जान बचे।

कशोर और लाल कह ं दू र न थीं, तु रंत गर तार कर ल ग और उनक मु क बंध गयीं।


इसके बाद उस औरत से महाराज ने कुछ पू छा िजसक जुबान पर यो तषीजी ने दवा मल द
थी, पर उसने महाराज क बात का कु छ भी जवाब न दया। आ खर खंभे से खोलकर उसक
भी मु क बांध द ग और तीन औरत एक दरवाजे क राह दू सर संगीन बारहदर म पहु ंचाई
गयीं िजसम सं हासन के ऊपर याह प थर क वह भयानक मू रत बैठ हु ई थी िजसका हाल
इस संत त के तीसरे भाग के आ खर बयान म हम लख आये ह। इसी समय आनंद सं ह,
भैरो सं ह और तारा सं हवहां पहु ंचे और उ ह ने अपनी आंख से उस औरत के मारे जाने का
य दे खा िजसक जु बान पर दवा लगा द गई थी। जब कशोर को मारने क बार आई तब
कुं अर आनंद सं ह और दोन ऐयार से न रहा गया और उ ह ने खंजर नकालकर उस झु ंडपर

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टू ट पड़ने का इरादा कया मगर न हो सका य क पीछे से कई आद मय ने आकर इन तीन
को पकड़ लया।

बयान -6

अब हम अपने क से के सल सले को मोड़कर दू सर तरफ झु कते ह और पाठक को


पु यधाम काशी म ले चलकर सं या के साथ गंगा के कनारे बैठ हु ई एक नौजवान औरत क
अव था पर यान दलाते ह।

सू य भगवान अ त हो चु के ह, चार तरफ अंधेर घर आती है। गंगाजी शांत भाव से धीरे -धीरे
बह रह ह। आसमान पर छोटे -छोटे बादल के टु कड़े पू रब क तरफ से चले आकर पि चम क
तरफ इक े हो रहे ह। गंगा के कनारे ह पर एक नौजवान औरत िजसक उ पं ह वष से
यादे न होगी हथेल पर गाल रखे जल क तरफ दे खती न मालू म
t .याinसोच रह है। इसम
कोई शक नह ं क यह औरत नख शख से दु त और खू बसू रत p है oमगर रं ग इसका सांवला है,
तो भी इसक खू बसू रती और नजाकत म कसी तरह का o बg
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ा नह ं लगता। थोड़ी-थोड़ी दे र पर
यह औरत सर उठाकर चार तरफ दे खती और फर.b
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s उसी तरह हथेल पर गाल रखकर कुछ
सोचने लग जाती है।
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इसके सामने ह गंगाजी म एक छोटा-सा बजड़ा खड़ा है िजस पर चार-पांच आदमी दखाई दे
:/ और दो-चार हरबे भी मौजू द ह।
रहे ह और कुछ सफर काpसामान
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थोड़ी दे र म अंधेरा हो जाने पर वह औरत उठ , साथ ह बजड़े पर से दो सपाह उतर आए
और उसे सहारा दे कर बजड़े पर ले गये। वह छत पर जा बैठ और कनारे क तरफ इस तरह
दे खने लगी जैसे कसी के आने क राह दे ख रह हो। बेशक ऐसा ह था, य क उसी समय
हाथ म गठर लटकाये एक आदमी आया िजसे दे खते ह दो म लाह कनारे पर उतर आये,
एक ने उसके हाथ से गठर लेकर बजड़े क छत पर पहु ंचा दया और दू सरे ने उस आदमी को
हाथ का ह का सहारा दे कर बजड़े पर चढ़ा दया। वह भी छत पर उस औरत के सामने खड़ा
हो गया और तब इशारे से पू छा क 'अब या हु म होता है' िजसके जवाब म इशारे ह से
उस औरत ने गंगा के उस पार क तरफ चलने को कहा। उस आदमी ने जो अभी आया था
मां झय को पु कारकर कहा क बजड़ा उस पार ले चलो, इसके बाद अभी आए हु ए आदमी और
उस औरत म दो-चार बात इशारे म हु िजसे हम कुछ नह ं समझे, हां इतना मालू म हो गया
क यह औरत गू ंगी और बहर है, मु ंह से कुछ नह ं बोल सकती और न कान से कुछ सु न
सकती है।

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बजड़ा कनारे से खोला गया और पार क तरफ चला, चार मांझी डांड़ लगाने लगे। वह औरत
छत से उतरकर नीचे चल गई और मद भी अपनी गठर जो लाया था लेकर छत से नीचे
उतर आया। बजड़े म नीचे दो कोठ रयां थीं, एक म सु ंदर सफेद फश बछा हु आ था और दू सर
म एक चारपाई बछ और कुछ असबाब पड़ा हु आ था। यह औरत हाथ से कुछ इशारा करके
फश पर बैठ गई और मद ने एक प टया लकड़ी क और छोट -सी टु कड़ी ख ड़ये क उसके
सामने रख द और आप भी बैठ गया और दोन म बातचीत होने लगी मगर उसी लकड़ी क
प टया पर ख ड़या से लखकर। अब उन दोन म जो बातचीत हु ई हम नीचे लखते ह परं तु
पाठक समझ रख क कुल बातचीत लखकर हु ई।

पहले उस औरत ने गठर खोल और दे खने लगी क उसम या है। पीतल का एक कलमदान
नकला िजसे उस औरत ने खोला। पांच-सात ची ठयां और पु ज नकले िज ह पढ़कर उसी
तरह रख दया और दू सर चीज दे खने लगी। दो-चार तरह के माल और कुछ पु राने स के
दे खने के बाद ट न का एक बड़ा-सा ड बा खोला िजसके अंदर कोई ता जु ब क चीज थी।
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ड बा खोलने के बाद पहले कुछ कपड़ा हटाया जो बेठन क तौर पर लगा हु आ था, इसके बाद
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झांककर उस चीज को दे खा जो उस ड बे के अंदर थी। s p
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न मालू म उस ड बे म
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या चीज थी क िजसे दे खते ह उस औरत क अव था ब कुल

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बदल गई। झांक के दे खते ह वह हचक और पीछे क तरफ हट गई, पसीने से तर हो गई
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और बदन कांपने लगा, चेहरे पर हवाई उड़ने लगी और आंख बंद हो ग । उस आदमी ने फुत
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से बेठन का कपड़ा डाल दया /
: / और उस ड बे को उसी तरह बंद कर उस औरत के सामने से
p के बाहर से एक आवाज आई, ''नानकजी!''
हटा लया। उसी समयtबजड़े
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नानक साद उसी आदमी का नाम था जो गठर लाया था। उसका कद न लंबा और न बहु त
नाटा था। बदन मोटा, रं ग गोरा और ऊपर के दांत कुछ खु ड़बु ड़े से थे। आवाज सु नते ह वह
आदमी उठा और बाहर आया, म लाह ने डांड़ लगाना बंद कर दया था, और तीन सपाह
मु तैद दरवाजे पर खड़े थे।

नानक - (एक सपाह से) या है?

सपाह - (पार क तरफ इशारा करके) मु झे मालू म होता है क उस पार बहु त सेआदमी खड़े
ह। दे खए कभी-कभी बादल हट जाने से जब चं मा क रोशनी पड़ती है तो साफ मालू म होता
है क वे लोग भी बहाव क तरफ हटे ह जाते ह िजधर हमारा बजड़ा जा रहा है।

नानक - (गौर से दे खकर) हां ठ क तो है।

सपाह - या ठकाना शायद हमारे दु मन ह ह ।

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नानक - कोई ता जु ब नह ,ं अ छा तु म नाव को बहाव क तरफ जाने दो, पार मत चलो।

इतना कहकर नानक साद अंदर गया, तब तक औरत के भी हवास ठ क हो गये थे और वह


उस ट न के ड बे क तरफ जो इस समय बंद था बड़े गौर से दे ख रह थी। नानक को
दे खकर उसने इशारे से पू छा, '' या है ?''

इसके जवाब म नानक ने लकड़ी क प टया पर ख ड़या से लखकर दखाया क ''पार क


तरफ बहु त-से आदमी दखाई पड़ते ह, कौन ठकाना शायद हमारे दु मन ह ।''

औरत - ( लखकर) बजड़े को बहाव क तरफ जाने दो। सपा हय को कहो बंद ू क लेकर तैयार
रह, अगर कोई जल म तैरकर यहां आता हु आ दखाई पड़े तो बे शक गोल मार द।

नानक - बहु त अ छा।

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.inगया। उस औरत ने
नानक फर बाहर आया और सपा हय को हु म सु नाकर भीतर चला
अपने आंचल से एक ताल खोलकर नानक के हाथ म द और इशारे
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po से कहा क इस ट न के
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ड बे को हमारे संद ू क म रख दो।
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नानक ने वैसा ह कया, दू सर कोठर म िजसम
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4u पलंग बछा हु आ था और कुछअसबाब और
और उसी तरह ताला बंद कर / hi i h
संद ू क रखा हु आ था गया और उसी तालd से एक संद ू क खोलकर वह ट न का ड बा रख दया
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आवाज आई।
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ताल उस औरत के हवाले क । उसी समय बाहर से बंद ू क क

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नानक ने तु रंत बाहर आकर पू छा, '' या है?''
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सपाह - दे खये कई आदमी तैरकर इधर आ रहे ह।

दू सरा - मगर बंद ू क क आवाज पाकर अब लौट चले।

नानक फर अंदर गया और बाहर का हाल प टया पर लखकर औरत को समझाया। वह भी


उठ खड़ी हु ई और बाहर आकर पार क तरफ दे खने लगी। घंटा भर य ह गु जर गया और अब
वे आदमी जो पार दखाई दे रहे थे या तैरकर इस बजड़े क तरफ आ रहे थे कह ं चले गये,
दखाई नह ं दे ते। नानक साद को साथ आने का इशारा करके वह औरत फर बजड़े के अंदर
चल गई और पीछे नानक भी गया। उस गठर म और जो-जो चीज थीं वह गू ंगी औरत
दे खने लगी। तीन-चार बेशक मती मदाने कपड़ के सवाय और उस गठर म कुछ भी न था।
गठर बांधकर एक कनारे रख द गई और प टया पर लख- लखकर दोन म बातचीत होने
लगी।

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औरत - कलमदान म जो ची ठयां ह वे तु मने कहां से पाई

नानक - उसी कलमदान म थीं।

औरत - और वह कलमदान कहां पर था

नानक - उसक चारपाई के नीचे पड़ा हु आ था, घर म स नाटा था और कोई दखाई न पड़ा,
जो कुछ ज द म पाया ले आया।

औरत - खैर कोई हज नह ,ं हम केवल उस ट न के ड बे से मतलब था। यह कलमदान मल


गया तो इन चीठ -पु ज से भी बहु त काम चलेगा।

इसके अलावे और कई बात हु िजसके लखने क यहां कोई ज रत नह ं। पहर रात से यादे
जा चु क थी जब वह औरत वहां से उठ और शमादान जो जल रहा था बु झा अपनी चारपाई
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पर जाकर लेट रह । नानक भी एक कनारे फश पर सो रहा और रात भर नाव बेखटके चल
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गई, कोई बात ऐसी नह ं हु ई जो लखने यो य हो।
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जब थोड़ी रात बाक रह वह औरत अपनी चारपाई से उठ और खड़क से बाहर झांककर
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दे खने लगी। इस समय आसमान
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ब कुल साफ था, चं मा के साथ ह
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साथ तारे भी

nd दो-तीन खड़ कय क राह इस बजड़े के अंदर भी


समयानु सार अपनी चमक दखा रहे थे और
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चांदनी आ रह थी। बि क िजस / h
चारपाई पर वह औरत सोई हु ई थी चं मा क रोशनी अ छ
/
: धीरे से चारपाई के नीचे उतर और उस संदू क को खोला िजसम
तरह पड़ रह थी। वह औरत
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नानक का लाया हुh
आ ट न का ड बा रखवा दया था। ड बा उसम से नकालकर चारपाई पर
रखा और संद ू क बंद करने के बाद दू सरा संद ू क खोलकर उसम से एक मोमब ती नकाल और
चारपाई पर आकर बैठ रह । मोमब ती म से मोम लेकर उसने ट न के ड बे क दरार को
अ छ तरह बंद कया और हर एक जोड़ म मोम लगाया िजससे हवा तक भी उसके अंदर न
जा सके। इस काम के बाद वह खड़क के बाहर गदन नकालकर बैठ और कनारे क तरफ
दे खने लगी। दो मांझी धीरे -धीरे डांड़ खे रहे थे, जब वे थक जाते तो दू सरे दो को उठाकर उसी
काम पर लगा दे ते और आप आराम करते।

सबेरा होते-होते वह नाव एक ऐसी जगह पहु ंची जहां कनारे पर कुछ आबाद थी, बि क गंगा
के कनारे ह एक ऊंचा शवालय भी था और उतरकर गंगाजी म नान करने के लए सी ढ़यां
भी बनी हु ई थीं। औरत ने उस मु काम को अ छ तरह दे खाऔर जब वह बजड़ा उस शवालय
के ठ क सामने पहु ंचा तब उसने ट न का ड बा िजसम कोई अ ु त व तु थी और िजसके
सु राख को उसने अ छ तरह मोम से बंद कर दया था जल म फक दया और फर अपनी

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चारपाई पर लेट रह । यह हाल कसी दू सरे को मालू म न हु आ। थोड़ी ह दे र म वह आबाद
पीछे रह गई और बजड़ा दू र नकल गया।

जब अ छ तरह सबेरा हु आ और सू य क ला लमा नकल आई तो उस औरत के हु म के


मु ता बक बजड़ा एक जंगल के कनारे पहु ंचा। उस औरत ने कनारे- कनारे चलने का हु म
दया। यह कनारा इसी पार का था िजस तरफ काशी पड़ती है या िजस ह से से बजड़ा
खोलकर सफर शु कया गया था।

बजड़ा कनारे - कनारे जाने लगा और वह औरत कनारे के दर त को बड़े गौर से दे खने लगी।
जंगल गु ंजान और रमणीक था, सु बह के सु हावने समय म तरह-तरह के प ी बोल रहे थे, हवा
के झपेट के साथ जंगल फूल क मीठ खु शबू आ रह थी। वह औरत एक खड़क म सर
रखे जंगल क शोभा दे ख रह थी। यकायक उसक नगाह कसी चीज पर पड़ी िजसे दे खते ह
वह च क और बाहर आकर बजड़ा रोकने और कनारे लगाने का इशारा करने लगी।

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बजड़ा कनारे लगाया गया और वह गू ंगी औरत अपने सपा हय को
p oकुछ इशारा करके नानक
को साथ लेकर नीचे उतर । g s
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घंटे भर तक वह जंगल म घू मती रह , इसी बीच sम उसने अपने ज र काम और नहाने -धोने
से छु ी पा ल और तब बजड़े म आकर कiु छ 4uभोजन करने के बाद उसने अपनी मदानी सू रत
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बनाई। चु त पायजामा, घु टने के h i
ऊपर तक का चपकन, कमरबंद, सर से बड़ा-सा मु ंड़ासा बांधा
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/ एक छोट -सी प तौल िजसम गोल भर हु ई थी कमर म
और ढाल-तलवार-खंजर के :अलावे
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ht -बा द भी पास रख बजड़े से उतरने के लए तैयार हु ई।
छपा और थोड़ी-सी गोल

नानक ने उसक ऐसी अव था दे खी तो सामने अड़कर खड़ा हो गया और इशारे से पू छा क


अब हम या कर इसके जवाब म उस औरत ने प टया और ख ड़या मांगी और लख- लखकर
दोन म बातचीत होने लगी।

औरत - तु म इसी बजड़े पर अपने ठकाने चले जाओ। म तु मसे आ मलू ंगी।

नानक - म कसी तरह तु ह अकेला नह ं छोड़ सकता, तु म खू ब जानती हो क तु हारे लए


मने कतनी तकल फ उठाई ह और नीच से नीच काम करने को तैयार रहा हू ं।

औरत - तु हारा कहना ठ क है मगर मु झ गू ंगी के साथ तु हार िजंदगी खु शी सेनह ं बीत
सकती, हां, तु हार मु ह बत के बदले म तु ह अमीर कये दे ती हू ं िजसके ज रये तु म खू बसू रत
से खू बसू रत औरत ढू ं ढ़कर शाद कर सकते हो।

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नानक - अफसोस, आज तु म इस तरह क नसीहत करने पर उता हु ई और मेर स ची
मु ह बत का कुछ खयाल न कया। मु झे धन-दौलत क परवाह नह ं और न मु झे तु हारे गू ंगी
होने का रं ज है बस म इस बारे म यादे बातचीत नह ं करना चाहता, या तो मु झे कबू ल करो
या साफ जवाब दो ता क म इसी जगह तु हारे सामने अपनी जान दे कर हमेशा के लए छु ी
पाऊं। म लोग के मु ंह से यह नह ं सु ना चाहता क 'रामभोल के साथ तु हार मु ह बत स ची
न थी और तु म कुछ न कर सके।'

रामभोल - (गू ंगी औरत) अभी म अपने काम से नि चंत नह ं हु ई, जब आदमी बे फ होता
है तो शाद - याह और हंसी-खु शी क बात सू झती ह, मगर इसम शक नह ं क तु हार मु ह बत
स ची है और म तु हार क करती हू ं।

नानक - जब तक तु म अपने काम से छु ी नह ं पातीं मु झे अपने साथ रखो, म हर काम म


तु हार मदद क ं गा और जान तक दे दे ने को तैयार रहू ंगा।

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रामभोल - खैर म इस बात को मंजू र करती हू, ं सपा हय को समझा
p o दो क बजड़े को ले
जाएं और इसम जो कुछ चीज ह अपनी हफाजत म रख, gयsक वह लोहे का ड बा भी जो
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तु म कल लाये थे म इसी नाव म छोड़े जाती हू ं।
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4u सपा हय को बहु त कुछसमझाने-बु झाने के
नानक साद खु शी के मारे ऐंठ गये। बाहर iआकर
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बाद आप भी हर तरह से लैसhहो बदन पर हरबे लगा साथ चलने को तैयार हो गए।
रामभोल और नानक बजड़े:/
/
के नीचे उतरे । इशारा पाकर मां झय ने बजड़ा खोल दया और
वह फर बहाव क तरफ t tpजाने लगा।
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नानक को साथ लए हु ए रामभोल जंगल म घु सी। थोड़ी ह दू र जाकर वह एक ऐसीजगह
पहु ंची जहां बहु त-सी पगडं डयां थीं, खड़ी होकर चार तरफ दे खने लगी। उसक नगाह एक कटे
हु ए साखू के पेड़ पर पड़ी िजसके प ते सू खकर गर चु के थे। वह उस पेड़ के पास जाकर खड़ी
हो गई और इस तरह चार तरफ दे खने लगी जैसे कोई नशान ढू ं ढ़ती हो। उस जगह क
जमीन बहु त पथर ल और ऊंची-नीची थी। लगभग पचास गज क दू र पर एक प थर का ढे र
नजर आया जो आदमी के हाथ का बनाया हु आ मालू म होता था। वह उस प थर के ढे र के
पास गई और दम लेने या सु ताने के लए बैठ गई। नानक ने अपना कमरबंद खोला और
एक प थर क च ान झाड़कर उसे बछा दया, रामभोल उसी पर जा बैठ और नानक को
अपने पास बैठने का इशारा कया।

ये दोन आदमी अभी सु ताये भी न थे क सामने से एक सवार सुख पोशाक प हरे इ ह ं


दोन क तरफ आता हु आ दखाई पड़ा। पास आने पर मालू म हु आ क यहएक नौजवान
औरत है जो बड़े ठाठ के साथ हरबे लगाये मद क तरह घोड़े पर बैठ बहादु र का नमू ना

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दखा रह है। वह रामभोल के पास आकर खड़ी हो गई और उस पर एक भेद वाल नजर
डालकर हंसी। रामभोल ने भी उसक हंसी का जवाब मु कराकर दया और कन खय से
नानक क तरफ इशारा कया। उस औरत ने रामभोल को अपने पास बु लाया और जब वह
घोड़े के पास जाकर खड़ी हो गई तो आप घोड़े से नीचे उतर पड़ी। कमर से एक छोटा-सा
बटु आ खोलकर एक चीठ और एक अंगू ठ नकाल िजस पर एक सु ख नगीना जड़ा हु आ था
और रामभोल के हाथ म रख दया।

रामभोल का चेहरा गवाह दे रहा था क वह इस अंगू ठ को पाकर हद से यादे खु श हु ई है।


रामभोल ने इ जत दे ने के ढं ग पर उस अंगू ठ को सर से लगाया और इसके बाद अपनी
अंगु ल म पहन लया, चीठ कमर म ख सकर फुत से उस घोड़े पर सवार हो गई और दे खते
ह दे खते जंगल म घु सकर नजर से गायब हो गई।

नानक साद यह तमाशा दे ख भ चक-सा रह गया, कुछ करते-धरते बन न पड़ा। न मु ंह से कोई

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आवाज नकल और न हाथ के इशारे ह से कुछ पू छ सका, पू छता भी तो कससे रामभोल ने
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तो नजर उठा के उसक तरफ दे खा तक नह ं। नानक ब कुल p नहoं जानता था क यह सु ख
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पोशाक वाल औरत कौन है , जो यकायक यहां आ पहु
l ogंची और िजसने इशारे बाजी करके
रामभोल को अपने घोड़े पर सवार कर भगा दया।.b
s वह औरत नानक के पास आई और हंस
के बोल -
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औरत - वह औरत जो तेरे साथ h
/ / थी मेरे घोड़े पर सवार होकर चल गई, कोई हज नह ,ं मगर
तू उदास य हो गया p या: तु झसे और उससे कोई र तेदार थी?
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नानक - र तेदार थी तो नह ं मगर होने वाल थी, तु मने सब चौपट कर दया।

औरत - (मु कराकर) या उससे शाद करने क धु न समाई थी?

नानक - बेशक ऐसा ह था। वह मेर हो चु क थी, तु म नह ं जानती क मने उसके लए कैसी-
कैसी तकल फ उठा । अपने बाप-दादे क जमींदार चौपट क और उसक गु लामी करने पर
तैयार हु आ।

औरत - (बैठकर) कसक गु लामी?

नानक - उसी रामभोल क जो तु हारे घोड़े पर सवार होकर चल गई।

औरत - (च ककर) या नाम लया, जरा फर तो कहो।

नानक - रामभोल ।

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औरत - (हंसकर) बहु त ठ क, तू मेर सखी अथात उस औरत को कब से जानता है?

नानक - (कुछ चढ़कर और मु ंह बनाकर) उसे म लड़कपन से जानता हू ं मगर तु ह सवाय


आज के कभी नह ं दे खा, वह तु हार सखी य कर हो सकती है?

औरत - तू झू ठा, बेवकूफ और उ लू बि क उ लू का इ है! तू मेर सखी को या जाने, जब


तू मु झे नह ं जानता तो उसे य कर पहचान सकता है।

उस औरत क बात ने नानक को आपे से बाहर कर दया। वह एकदम चढ़ गया और गु से


म आकर यान से तलवार नकालकर बोला -

नानक - क ब त औरत, मु झे बेवकूफ बताती है! जल -कट बात कहती है और मेर आंख म
धू ल डाला चाहती है! अभी तेरा सर काट के फक दे ता हू ं!!

औरत - (हंसकर) शाबाश, य न हो, आप जवांमद जो ठहरे ! (नानक के.iमुn o m


बजाकर) चेत ऐंठा सं ह, जरा होश क दवा कर!
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ंह के पास चु ट कयां

अब नानक साद बदा त न कर सका और यह कहकर


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.b क 'ले अपने कये का फल भोग!'
उसने तलवार का वार उस औरत पर कया। औरत
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4u ने फुत से अपने को बचा लया और हाथ
बढ़ा नानक क कलाई पकड़ जोर से ऐसा

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nd झटका दया क तलवार उसके हाथ से नकलकर
hम आकर उसका मु ंह दे खने लगा। औरत ने हंसकर नानक
दू र जा गर और नानक आ चय
से कहा, ''बस इसी जवांमp
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द: पर मेर सखी से याह करने का इरादा था! बस जा और हजड़
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म मलकर नाच कर!''ht
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इतना कहकर औरत हट गई और पि चम क तरफ रवाना हु ई। नानक का
नह ं हु आ था। उसने अपनी तलवार जो दू र पड़ी हु ई थी उठाकर
ोध अभी शांत
यान म रख ल और कुछ
सोचता और दांत पीसता हु आ उस औरत के पीछे चला। वह औरत इस बात से भी हो शयार
थी क नानक पीछे से आकर धोखे म तलवार न मारे , वह कन खय से पीछे क तरफ दे खती
जाती थी।

थोड़ी दू र जाने के बाद वह औरत एक कुएं पर पहु ं ची िजसका संगीन चबू तरा एकपु स से कम
ऊंचा न था। चार तरफ चढ़ने के लए सी ढ़यां बनी हु ई थीं। कुआं बहु त बड़ा और खू बसू रत
था। वह औरत कुएं पर चल गई और बैठकर धीरे -धीरे कुछ गाने लगी।

समय दोपहर का था, धू प खू ब नकल थी, मगर इस जगह कुएं के चार तरफ घने पेड़ क
ऐसी छाया थी और ठं डी-ठं डी हवा आ रह थी क नानक क तबीयत खु श हो गई, ोध, रं ज
और बदला लेने का यान ब कुल ह जाता रहा, तस पर उस औरत क सु र ल आवाज ने

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और भी रं ग जमाया। वह उस औरत के सामने जाकर बैठ गया और उसका मु ंह दे खने लगा।
दो ह तीन तान लेकर वह औरत चु प हो गई और नानक से बोल -

औरत - अब तू मेरे पीछे-पीछे य घू म रहा है जहां तेरा जी चाहे जा और अपना काम कर,
यथ समय य न ट करता है अब तु झे तेर रामभोल कसी तरह नह ं मल सकती, उसका
यान अपने दल से दू र कर दे ।

नानक - रामभोल झख मारे गी और मेरे पास आवेगी, वह मेरे क जे म है। उसक एक ऐसी
चीज मेरे पास है िजसे वह जीते जी कभी नह ं छोड़ सकती।

औरत - (हंसकर) इसम कोई शक नह ं क तू पागल है, तेर बात सु नने से हंसी आती है, खैर
तू जाने, तेरा काम जाने मु झे इससे या मतलब!

इतना कहकर उस औरत ने कुएं म झांका और पु कारकर कहा, ''कूपदे व, मु झे यास लगी है,
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जरा पानी तो पलाना।''
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औरत क बात सु नकर नानक घबराया और जी म सोचने लगा क यह अजब औरत है। कुएं
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पर हु कूमत चलाती है क मु झे पानी पला। यह s . मु झे पागल कहती है मगर मइसी को
औरत
पागल समझता हू ं, भला कुआं इसे य कर iपानी4u पलावेगा जो हो, मगर यह औरत खू बसू रत है
और इसका गाना भी बहु त ह उ दाin है।
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नानक इन बात को सोच p :ह/ रहा था क कोई चीज दे खकर च क पड़ा बि क घबड़ाकर उठ
खड़ा हु आ और कांh
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पते हु ए तथा डर हु ई सू रत से कुएं क तरफ दे खने लगा। वहएक हाथ था
जो चांद के कटोरे म साफ और ठं डा जल लए हु ए कुएं के अंदर से नकला और इसी को
दे खकर नानक घबरा गया था।

वह हाथ कनारे आया, उस औरत ने कटोरा ले लया और जल पीने के बाद कटोरा उसी हाथ
पर रख दया, हाथ कुएं के अंदर चला गया और वह औरत फर उसी तरह गाने लगी। नानक
ने अपने जी म कहा, ''नह -ं नह ,ं यह औरत पागल नह ं बि क म ह पागल हू ं, य क इसे अभी
तक न पहचान सका। बेशक यह कोई गंधव या अ सरा है , नह ं-नह ं दे वनी है जो प बदलकर
आई है तभी तो इसके बदन म इतनी ताकत है क मेर कलाई पकड़ और झटका दे कर इसने
तलवार गरा द । मगर रामभोल से इसका प रचय कहां हु आ'

गाते-गाते यकायक वह औरत उठ खड़ी हु ई और बड़े जोर से च लाकर उसी कुएं म कूद
पड़ी।

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बयान -7

लाल पोशाक वाल औरत क अ ु त बात ने नानक को हैरान कर दया। वह घबड़ाकरचार


तरफ दे खने लगा और डर के मारे उसक अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न
सका और ज द -ज द कदम बढ़ाता हु आ इस उ मीद म गंगाजी क तरफ रवाना हु आ क
अगर हो सके तो कनारे - कनारे चलकर उस बजड़े तक पहु ंच जाय मगर यह भी न हो सका
य क उस जंगल म बहु त-सी पगडं डयां थीं िजन पर चलकर वह रा ता भू ल गया और कसी
दू सर ह तरफ जाने लगा।

नानक लगभग आधा कोस के गया होगा क यास के मारे बेचैन हो गया। वह जल खोजने
लगा मगर उस जंगल म कोई च मा या सोता ऐसा न मला िजससे यास बु झाता। आ खर
घू मते-घू मते उसे प ते क एक झ पड़ी नजर पड़ी िजसे वह कसी फक र क कु टया समझकर
उसी तरफ चल पड़ा मगर पहु ंचने पर मालू म हु आ क उसनेधोखा खाया। उस जगह कई पेड़

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ऐसे थे िजनक डा लयां झु ककर और आपस म मलकर ऐसी हो रह थीं क दू र से झ पड़ी
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मालू म पड़ती थी, तो भी नानक के लए वह जगह बहु त उ तम थी
s po, य क उ ह ं पेड़ म से
उसे एक च मा साफ पानी का बहता हु आ दखाई पड़ा िजसक
l og े दोन तरफ खु शनु मा सायेदार
पेड़ लगे हु ए थे िज ह ने एक तौर पर उस च मे को
s .bभी अपने साये के नीचे कर रखा था।
नानक खु शी-खु शी च मे के कनारे पहु ंचा और
i 4uहाथ-मु ंह धोने के बाद जल पीकर आराम करने
के लए बैठ गया।
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थोड़ी दे र च मे के कनारे बै:ठ/
t p े रहने के बाद दू र से कोई चीज पानी म बहकर इसी तरफ आती
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हु ई नानक ने दे खh पास आने पर मालू म हु आ क कोई कपड़ा है। वहजल म उतर गया और
कपड़े को खींच लाकर गौर से दे खने लगा य क वह वह कपड़ा था जो बजड़े से उतरते
समय रामभोल ने अपनी कमर म लपेटा था।

नानक ता जु ब म आकर दे र तक उस कपड़े को दे खता और तरह-तरह क बात सोचता रहा।


रामभोल उसके दे खते-दे खते घोड़े पर सवार हो चल गयी थी, फर उसे य कर व वास हो
सकता था क यह कपड़ा रामभोल का है। तो भी उसने कई दफे अपनी आंख मल ं और उस
कपड़े को दे खा, आ खर व वास करना ह पड़ा क यह रामभोल क चादर है। रामभोल से
मलने क उ मीद म वह च मे के कनारे - कनारे रवाना हु आ य क उसे इस बात का गु मान
हु आ क घोड़े पर सवार होकर चले जाने के बाद रामभोल ज र कह ं पर इसी च मे के
कनारे पहु ंची होगी और कसी सबब से यह कपड़ा जल म गर पड़ा होगा।

नानक च मे के कनारे - कनारे कोस भर के लगभग चला गया और च मे के दोन तरफ उसी
तरह सायेदार पे ड़ मलते गये, यहां तक क दू र से उसे एक छोटे से मकान क सफेद नजर

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आई। वह यह सोचकर खु श हु आ क शायद इसी मकान म रामभोल से मु लाकात होगी, कदम
बढ़ाता हु आ तेजी के साथ जाने लगा और थोड़ी दे र म उसमकान के पास जा पहु ंचा।

वह मकान च मे के बीच बीच म पु ल के तौर पर बना हु आ था। च मा बहु तचौड़ा न था,


उसक चौड़ाई बीस-पचीस हाथ से यादे न होगी। च मे के दोन पार क जमीन इस मकान
के नीचे आ गई थी और बीच म पानी बह जाने के लए नहर क चौड़ाई के बराबर पु ल क
तरह का एक दर बना हु आ था िजसके ऊपर छोटा-सा एक मंिजला मकान नहायत खू बसू रत
बना हु आ था। नानक इस मकान को दे खकर बहु त ह खु शहु आ और सोचने लगा क यह
ज र कसी मनचले शौक न का बनवाया हु आ होगा। यहां से इस च मे और चार तरफ के
जंगल क बहार खू ब ह नजर आती है। इस मकान के अंदर चलकर दे खना चा हए, खाल है
या कोई रहता है। नानक उस मकान के सामने क तरफ गया। उसक कुस बहु त ऊंची थी,
पं ह सी ढ़यां चढ़ने के बाद दरवाजे पर पहु ंचा। दरवाजा खु ला हु आ था, बेधड़क अंदर घु स गया।

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इस मकान के चार कोन म चार कोठ रयां और चार तरफ चार दालान बरामदे क तौर पर
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थे िजसके आगे कमर बराबर ऊंचा जंगला लगा हु आ था अथात p हरoएक दालान के दोन बगल
कोठ रयां पड़ती थीं और बीच बीच म एक भार कमरा o था।
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g इस मकान म कसी तरह क
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सजावट न थी मगर साफ था।
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दरवाजे के अंदर पैर रखते ह बीच वाले
i nd कमरे म बैठे हु ए एक साधू पर नानकक नगाह
पड़ी। वह मृ गछाला पर बैठा हु आhथा। उसक उ अ सी वष से भी यादे होगी, उसके बाल
: /, /लंबे-लंबे सर के बाल सू खे और खु ले रहने के सबब खू ब फैले
ई क तरह सफेद हो रहे
t p
tतक
थे
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हु ए थे, और दाढ़ ना भ लटक रह थी। कमर म मू ंज क र सी के सहारे कोपीन थी, और
कोई कपड़ा उसके बदन पर न था, गले म जनेऊ पड़ा हु आ था और उसके दमकते हु ए चेहरे
पर बु जु ग और तपोबल क नशानी पाई जाती थी। िजस समय नानक क नगाह उस साधू
पर पड़ी वह प ासन म बैठा हु आ यान म था, आंख बंद थीं और हाथ जंघे पर पड़े हु ए थे।
नानक उसके सामने जाकर दे र तक खड़ा रहा मगर उसे कुछ खबर न हु ई। नानक ने सर
उठाकर चार तरफ अ छ तरह दे खा मगर सवाय बड़ी-बड़ी दो त वीर के िजन पर पदा पड़ा
हु आ था और साधू के पीछे क तरफ द वार के साथ लगी हु ई थीं औरकुछ कह ं दखाई न
पड़ा।

नानक को ता जु ब हु आ और वह सोचने लगा क इस मकान म कसी तरह का सामान नह ं


है फर महा मा का गु जर य कर चलता होगा और वे दोन त वीर कैसी ह िजनका रहना इस
मकान म ज र समझा गया! इसी फ म वह चार तरफ घू मने और दे खने लगा। उसने हर
एक दालान और कोठर क सैर क मगर कह ं एक तनका भी नजर न आया, हां, एक कोठर
म वह न जा सका िजसका दरवाजा बंद था मगर जा हर म कोई ताला या जंजीर उस दरवाजे

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म दखाई न दया, मालू म नह ं वह य कर बंद था। घू मता- फरता नानक बगल के दालान म
आया और बरामदे म झांककर नीचे क बहार दे खने लगा और इसी म उसने घंटा भर बता
दया।

घू म- फरकर पु नः बाबाजी के पास गया मगर उ ह उसी तरह आंख बंद कए बैठा पाया।
लाचार इस उ मीद म एक कनारे बैठ गया क आ खर कभी तो आंख खु लेगी। शाम होते-होते
बगल क कोठर म से िजसका दरवाजा बंद था और िजसके अंदर नानक न जा सका था शंख
बजने क आवाज आई। नानक को बड़ा ह ता जु ब हु आ मगर उस आवाज ने साधू का यान
तोड़ दया। आंख खु लते ह नानक पर उसक नजर पड़ी।

साधू - तू कौन है और यहां य कर आया है

नानक - म मु सा फर हू, ं आफत का मारा भटकता हु आ इधर आ नकला। यहां आपके दशन
हु ए, दल म बहु त कुछ उ मीद पैदा हु ई।
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साधू - मनु य से कसी तरह क उ मीद न रखनी चा हए, खैर यह बता, तेरा मकान कहां है
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और इस जंगल म, जहां आकर वापस जाना मु ि कल है, lकo ै से आया
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4 usऔरत के साथ जो मेरे मकान के बगल ह
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नानक - म काशी का रहने वाला हू,ं कायवश एक
म रहा करती थी यहां आना हु आ, iइसn जंगल म उस औरत का साथ छूट गया और ऐसी
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व च बात दे खने म आ िजनक
: //े डर से अभी तक मेरा कलेजा कांप रहा है।
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साधू - ठ क है, तेh
रा क सा बहु त बड़ा मालू म होता है िजसके सु नने क अभीमु झे फुरसत
नह ं है , जरा ठहर म एक काम से छु ी पा लू ं तो तु झसे बातक ं । घबराइयो नह ं म ठ क एक
घंटे म आऊंगा।

इतना कहकर साधू वहां से चला गया। दरवाजे क आवाज और अंदाज से नानक को मालू म
हु आ क साधू उसी कोठर म गया िजसका दरवाजा बंद था और िजसके अंदर नानक न जा
सका था। लाचार नानक बैठा रहा मगर इस बात से क साधू को आने म घंटे भर क दे र
लगेगी वह घबराया और सोचने लगा क तब तक या करना चा हए। यकायक उसका यान
उन दोन त वीर पर गया जो द वार के साथ लगी हु ई थीं। जी म आया क इस समय यहां
स नाटा है, साधू महाशय भी नह ं ह, जरा पदा उठाकर दे ख तो यह त वीर कसक ह। नह -ं
नह ,ं कह ं ऐसा न हो क साधू आ जायं, अगर दे ख लगे तो रं ज ह गे, िजस त वीर पर पदा
पड़ा हो उसे बना आ ा कभी न दे खना चा हए। ले कन अगर दे ख ह लगे तो या होगा साधू
तो आप ह कह गए ह क हम घंटे भर म आवगे, फर डर कसका है

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नानक एक त वीर के पास गया और डरते-डरते पदा उठाया। त वीर पर नगाह पड़ते ह वह
खौफ से च ला उठा, हाथ से पदा गर पड़ा, हांफता हु आ पीछे हटा और अपनी जगह पर
आकर बैठ गया, यह ह मत न पड़ी क दू सर त वीर दे खे।

वह त वीर दो औरत और एक मद क थी, नानक उन तीन को पहचानता था। एक औरत थी


रामभोल और दू सर वह थी िजसके घोड़े पर सवार होकर रामभोल चल गई थी और जो
नानक के दे खते-दे खते कुएं म कूद पड़ी थी, तीसर त वीर नानक के पता क थी। उस त वीर
का भाव यह था क नानक का पता जमीन पर पड़ा हु आ था, दू सर औरत उसके सर के
बाल पकड़े हु ए थी, रामभोल उसक छाती पर सवार, गले पर छुर फेर रह थी।

इस त वीर को दे खकर नानक क अजब हालत हो गई। वह एकदम घबरा उठा और बीती हु ई
बात उसक आंख के सामने इस तरह मालू म होने लगीं जैसे आज हु ई ह। अपनेबाप क
हालत याद कर उसक आंख डबडबा आ
रहा। आ खर म उसने एक लंबी सांस ल और सर उठाकर कहा, ''ओफ! o m
और कुछ दे र तक सर नीचा कए कुछ सोचता

.in या मेरा बाप इन


औरत के हाथ से मारा गया नह ं, कभी नह ,ं ऐसा नह ं हो सकता,
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poमगर इस त वीर म ऐसी
अव था य दखाई गई है बेशक दू सर तरफ वाल त o
ldवीर i
g भी कुछ ऐसे ह ढं ग क होगी
.b है, यहां बैठना मु ि कल है!'' इतना
कहकर नानक उठ खड़ा हु आ और बाहर बरामदे
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और उसका भी संबंध कुछ मु झ ह से होगा! जी घबड़ाता
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4uम जाकर टहलने लगा। सू य ब कुल अ त हो
गये, शाम के पहले अंधेर चार तरफiफ
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nै लdगई और धीरे -धीरे अंधकार का नमू ना दखाने लगी,
hऔर नानक सोचने लगा क यहां रोशनी का कोई सामान
इस मकान म भी अंधेरा हो गया
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दखाई नह ं पड़ता, याtबाबाजीp n
:/ अंधेरे म ह रहते ह। ऐसा सु ंदर साफ मकान मगर बालने के
hं tऔर सवाय एक मृ गछाला के िजस पर बाबाजी बैठते ह एक चटाई तक
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लए द या तक नह

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नजर नह ं आती। शायद इसका सबब यह हो क यहां क जमीन बहु त साफ, चकनी और
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धोई हु ई है।
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इस तरह के सोच- वचार म नानक को दो घंटे बीत गए। यकायक उसे याद आया क बाबाजी
एक घंटा का वादा करके गये थे, अब वह अपने ठकाने आ गये ह गे और वहां मु झे न दे ख न
मालू म या सोचते ह गे। बना उनसे मले और बातचीत कए यहां का कुछ हाल न मालू म
होगा, चल दे ख तो सह वे आ गये या नह ं।

नानक उठकर उस कमरे म गया िजसम बाबाजी से मु लाकात हु ई थी, मगर वहां सवाय
अंधकार के और कुछ दखाई न पड़ा, थोड़ी दे र तक उसने आंख फाड़-फाड़कर अ छ तरह दे खा
मगर कुछ मालू म न हु आ, लाचार उसने पु कारा - ''बाबाजी!'' मगर कुछ जवाब न मला, उसने
और दो दफे पु कारा मगर कुछ फल न हु आ। आ खर टटोलताहु आ बाबाजी के मृ गछाले तक

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गया मगर उसे खाल पाकर लौट आया और बाहर बरामदे म िजसके नीचे च मा बह रहा था
आकर बैठ रहा।

घंटे भर तक चु पचाप सोच- वचार म बैठे रहने के बाद बाबाजी से मलने क उ मीद म वह
फर उठा और उस कमरे क तरफ चला। अबक उसने कमरे का दरवाजा भीतर से बंद पाया,
ता जु ब और खौफ से कांपता हु आ फर लौटा और बरामदे मअपने ठकाने आकर बैठ रहा।
इसी फेर म पहर भर से यादे रात गु जर गई और चार तरफ से जंगल म बोलते हु ए द र दे
जानवर क आवाज आने लगीं िजनके खौफ से वह इस लायक न रहा क मकान के नीचे
उतरे बि क बरामदे म रहना भी उसने नापसंद कया और बगल वाल कोठर म घु सकर
कवाड़ बंद करके सो रहा। नानक आज दन भर भू खा रहा और इस समय भी उसे खाने को
कुछ न मला, फर नींद य आने लगी थी, इसके अ त र त उसने दन भर म ता जु ब पैदा
करने वाल कई तरह क बात दे खी और सु नी थीं, जो अभी तक उसक आंख के सामने घू म
रह थीं और नींद क बाधक हो रह थीं। आधी रात बीतने पर उसने और भी ता जु ब क बात
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दे खीं।
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रात आधी से कुछ यादे जा चु क थी जब नानक के कान g
o म दो आद मय के बातचीत क
आवाज आई। वह गौर से सु नने लगा य क जो .क
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bु छ बातचीत हो रह थी उसे वह अ छ
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तरह सु न और समझ सकता था। नीचे लखी
i 4uबात उसने सु नीं। आवाज बार क होने से नानक
ने समझा क वे दोन औरत ह - in
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एक - नानक ने इ क कोp:द लगी समझ लया।
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एक - इस क ब त को सू झी या जो अपना घर-बार छोड़कर इस तरह एक औरत के पीछे
नकल पड़ा।

दू सरा - यह तो उसी से पू छना चा हए।

एक - बाबाजी ने उससे मलना मु ना सब न समझा, मालू म नह ं इसका या सबब है।

दू सरा - जो हो मगर नानक आदमी बहु त ह हो शयार और चालाक है, ता जु ब नह ं क उसने


जो कुछ इरादा कर रखा है उसे पू रा करे !

एक - यह जरा मु ि कल है, मु झे उ मीद नह ं क रानी इसे छोड़ द य क वह इसके खू न क


यासी हो रह ह, हां अगर यह उस बजड़े पर पहु ं चकर वह ड बा अपने क जे म कर लेगा तो
फर इसका कोई कुछ न कर सकेगा।

दू सरा - (हंसकर िजसक आवाज नानक ने अ छ तरह सु नी) यह तो हो नह ं सकता।

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एक - खैर इन बात से अपने को या मतलब हम ल डय को इतनी अ ल कहां क इन
बात पर बहस कर।

दू सरा - या ल डी होने से अ ल म ब ा लग जाता है

एक - नह ं, मगर असल बात क ल डय को खबर ह कब होती है!

दू सरा - मु झे तो खबर है।

एक - सो या

दू सरा - यह क दम-भर म नानक गर तार कर लया जायगा। बस अब बातचीत करना


मु ना सब नह ,ं ह रहर आता ह होगा।

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इसके बाद फर नानक ने कुछ न सु ना मगर इन बात ने उसे परे शान कर दया, डर के मारे
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कांपता हु आ उठ बैठा और चु पचाप यहां से भाग चलने पर मुoतैद हु आ।धीरे से कवाड़
खोलकर कोठर के बाहर आया, चार तरफ स नाटा था। इसgमकान sp से बाहर नकलकर जंगल
o मकान म रहकर उसने बचाव क
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म भालू-चीते या शेर के मलने का डर ज र था मगर
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कोई सू रत न समझी य क उन दोन औरत u
i 4 क बात ने उसे हर तरह से नराश कर दया
था। हां, बजड़े पर पहु ंच उस ड बे पर कdजा कर लेने के खयाल ने उसे बेबस कर दया था
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और जहां तक ज द हो सके बजड़े
/ / तक पहु ंचना उसने अपने लए उ तम समझा।
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ht हु आ सदर दरवाजे पर आया और सीढ़ के नीचे उतरना ह चाहता था
नानक बरामदे से होता
क दू सरे दालान म से झपटते हु ए कई आद मय ने आकर उसे गर तार कर लया। उन
आद मय ने जबद ती नानक क आंख चादर से बांध द ं और कहा, ''िजधर हम ले चल
चु पचाप चला चल नह ं तो तेरे लए अ छा न होगा।'' लाचार नानक को ऐसा ह करना पड़ा।

नानक क आंख बंद थीं और हर तरह से लाचार था तो भी वह रा ते क चलाई पर खू ब


यान दये हु ए था। आधे घंटे तक वह बराबर चला, प त क खड़खड़ाहट और जमीन क नमी
से उसने जाना क वह जंगल ह जंगल जा रहा है। इसके बाद एक योढ़ लांघने क नौबत
आई और उसे मालू म हु आ क वह कसी फाटक के अंदर जाकर प थर पर या कसी प क
जमीन पर चल रहा है। वहां से कई दफे बा और दा हनी तरफ घू मना पड़ा। बहु त दे र बाद
फर एक फाटक लांघने क नौबत आई और फर उसने अपने को क ची जमीन पर चलते
पाया। कोस भर जाने के बाद फर एक चौखट लांघकर प क जमीन पर चलने लगा। यहां
पर नानक को व वास हो गया क रा ते का भु लावा दे ने के लए हम बेफायदे घु माये जा रहे
ह, ता जु ब नह ं क यह वह जगह हो जहां पहले आ चु के ह।

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थोड़ी दू र जाने के बाद नानक सीढ़ पर चढ़ाया गया, बीस-पचीस सी ढ़यां चढ़ने के बाद फर
नीचे उतरने क नौबत आई और सी ढ़यां खतम होने के बाद उसक आंख खोल द ग ।

नानक ने अपने को एक व च थान म पाया। उसक पीठ क तरफ एक ऊंची द वार और


सी ढ़यां थीं, सामने क तरफ खु शनु मा बाग था िजसके चार तरफ ऊंची द वार थीं और उसम
रोशनी बखू बी हो रह थी। फल के कलमी पेड़ म लगी शीशे क छोट -छोट कंद ल म
मोमबि तयां जल रह थीं और बहु त-से आदमी भी घू मते- फरते दखाई दे रहे थे। बाग के
बीच बीच म एक आल शान बंगला था, नानक वहां पहु ंचाया गया और उसने आसमान क
तरफ दे खकर मालू म कया क अब रात बहु त थोड़ी रह गई है।

य य प नानक बहु त हो शयार, चालाक, बहादु र और ढ ठ था मगर इस समय बहु त ह घबड़ाया


हु आ था। उसके यादे घबड़ाने का सबब यह था क उसके हरबे छ न लये गए थे और वह
इस लायक न रह गया क दु मन के हमला करने पर उनका मु काबला करे या कसी तरह

.in
अपने को बचा सके। हां हाथ-पैर खु ले रहने के सबब नानक इस खयाल से भी बे फ न था
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क अगर कसी तरह भागने का मौका मले तो भाग जाय।
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बाहर ह से मालू म हु आ क इस मकान म रोशनी बखू बी हो रह है, बाहर के सहन म कई
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द वारगीर जल रह थीं और चोबदार हाथ म सोने का आसा लये नौकर अदा कर रहे थे।
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उ ह ं के पास नानक खड़ा कर दया गया
i nd और वे आदमी जो उसे गर तार कर लाए थे और
गनती म आठ थे मकान के अंदh
/ र चले गये मगर चोबदार से यह कहते गए क इस आदमी

p :/ म खबर करने जाते ह। नानक को आधे घंटे तक वहां खड़ा


से हो शयार रहना, हम सरकार
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रहना पड़ा। ht
जब वे लोग जो इसे गर तार कर लाये थे और खबर करने के लए अंदर गये थे लौटे तो
नानक क तरफ दे खकर बोले, ''इि तला कर द गई, अब तू अंदर चला जा।''

नानक - मु झे या मालू म है क कहां जाना होगा और रा ता कौन है

एक - यह मकान तु झे आप ह रा ता बतावेगा, पू छने क ज रत नह !ं

लाचार नानक ने चौखट के अंदर पैर रखा और अपने को तीन दर के एक दालान म पाया,
फरकर पीछे क तरफ दे खा तो वह दरवाजा बंद हो गया था िजस राह से दालान म आया
था। उसने सोचा क वह इसी जगह म कैद हो गया और अब नह ं नकल सकता, यह सब
कारवाई केवल इसी के लए थी। मगर नह ,ं उसका वचार ठ क न था, य क तु रंत ह उसके
सामने का दरवाजा खु ला और उधर रोशनी मालू म होने लगी। डरता हु आ नानक आगे बढ़ा

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और चौखट के अंदर पैर रखा ह था क दो नौजवान औरत पर नजर पड़ी जो साफ और
सु थर पोशाक प हरे हु ए थीं, दोन ने नानक के दोन हाथ पकड़ लये और ले चल ं।

नानक डरा हु आ था मगर उसने अपने दल को काबू म रखा, तो भी उसका कलेजा उछल रहा
था और दल म तरह-तरह क बात पैदा हो रह थीं। कभी तो वह अपनी िजंदगी से नाउ मीद
हो जाता, कभी यह सोचकर क मने कोई कसू र नह ं कया ढाढ़स होती, और कभी सोचता जो
कुछ होना है वह तो होवेगा ह मगर कसी तरह उन बात का पता तो लगे िजनके जाने बना
जी बेचैन हो रहा है। कल से जो-जो बात ता जु ब क दे खने म आई ह जब तक उसका असल
भेद नह ं खु लता मेरे हवास दु त नह ं होते।

वे दोन औरत उसे कई दालान और कोठ रय म घु माती- फराती एक बारहदर म ले ग


िजसम नानक ने कुछ अजब ह तरह का समां दे खा। यह बारहदर अ छ तरह से सजी हुई
थी और यहां रोशनी भी बखू बी हो रह थी। दरबार का ब कुल सामान यहां मौजू द था। बीच
म जड़ाऊ सं हासन पर एक नौजवान औरत द .in
णी ढं ग क बेशक मती पोशाक प हरे सर से
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पैर तक जड़ाऊ जेवर से लद हु ई बैठ थी। उसक खू बसू रती के p बारेo म इतना ह कहना बहु त
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है क अपनी िजंदगी म नानक ने ऐसी खू बसू रत औरत कभी
l ogनह ं दे खी थी। उसे इस बात का
व वास होना मु ि कल हो गया क यह औरत इस लोक
s .b क रहने वाल है। उसके दा हने तरफ
सोने क चौक पर मृ गछाला बछाए हु ए वह
i 4uसाधू बैठा था िजसे नानक ने शाम को नहर
वाले कमरे म दे खा था। साधू के बादin d बीस जड़ाऊ कु सयां और थीं िजन पर एक से
गोलाकार
एक बढ़कर खू बसू रत औरत /
h
द णी ढं ग क पोशाक पहरे ढाल-तलवार लगाये बैठ थीं।
p :/ छोटे सं हासन पर रामभोल को उ ह ं लोग क -सी पोशाक
सं हासन के बा तरफ
t t जड़ाऊ
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प हरे ढाल-तलवार लगाये बैठे दे ख नानक के ता जु ब क कोई ह न रह , मगर साथ ह इसके
यह व वास भी हो गया क अब उसक जान कसी तरह नह ं जाती। रामभोल के बगल म
जड़ाऊ कुस पर वह औरत बैठ थी िजसने नानक के सामने से रामभोल को भगा दया था,
उसके बाद बीस जड़ाऊ कु सय पर बीस नौजवान औरत उसी ठाठ से बैठ हु ई थीं जैसी
संहासन के दा हने तरफ थीं।

सामने क तरफ बीस औरत ढाल-तलवार लगाये जड़ाऊ आसा हाथ म लये अदब से सर
झु काये इशारे पर हु म बजाने के लए तैयार दु प ी खड़ी थीं िजनके बीचम नानक को ले
जाकर खड़ा कर दया गया।

इस दरबार को दे खकर नानक क आंख म चकाच ध-सी आ गई। वह एकदम घबड़ा उठा और
अपने चार तरफ दे खने लगा। इस बारहदर क िजस चीज पर भी उसक नजर पड़ती उसे
लासानी1 पाता। नानक एक बड़े अमीर बाप का लड़का था और बड़े-बड़े राजदरबार को दे ख
चु का था मगर उसक आंख ने यहां जैसी चीज दे खीं वैसी व न म भी न दे खी थीं। आल

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(ताक ) पर जो गु लद ते सजाए हु ए थे वे ब कुल बनावट थे और उनम फूल-पि तय क
जगह बेशक मती जवा हरात काम म लाये गये थे। केवल इन गु लद त ह को दे खकर नानक
ता जु ब करता था क इतनी दौलत इन लोग के पास कहां से आई! इसके अ त र त और
िजतनी चीज सजावट क मौजू द थीं सभी इस यो य थीं क िजनका मलना मनु य को बहु त
ह क ठन समझना चा हए। उन औरत क पोशाक और जेवर का अंदाज करना तो ताकत से
बाहर था।

सब तरफ से घू म- फरकर नानक क आंख रामभोल क तरफ जाकर अटक ग और एकदम


उसक सू रत दे खने लगा।

उस औरत ने जो बड़े रोब के साथ जड़ाऊ सं हासन पर बैठ हु ई थी एक नजर सर से पैर


तक नानक को दे खा और फर रामभोल क तरफ आंख फेर ं। रामभोल तु रंत अपनी जगह से
उठ खड़ी हु ई और सामने क तरफ हटकर सं हासन के बगल म खड़ी होहाथ जोड़कर बोल ,
''य द आ ा हो तो हु म के मु ता बक कारवाई क जाय' इसके जवाब .मinउस o m
औरत ने िजसे
महारानी कहना उ चत है बड़े ग र के साथ सर हलाया अथातpमना
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o कया और उस दू सर
क तरफ दे खा जो रामभोल के बगल म थी।
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यह बात नानक के लए बड़े ता जु ब क थी। u
i i s n
4 आज उसके कान ने एक ऐसी आवाज सु नी जो
कभी सु नी न थी और न सु नने क उ d

/
रामभोल उसके पड़ोस म रहती थी,
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n मीद थी। एक तो यह ता जु ब क बात थी क जो
hिजसे नानक लड़कपन से जानता था और सवाय उस दन
के िजस दन बजड़े पर p
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सवार n
:/हो सफर म नकल िजसे कभी अपना घर छोड़ते नह ं दे खा था
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और न कभी िजसक htे मां-बाप ने उसे अपनी आंख से दू र कया था, आज इस जगह ऐसी
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अव था और ऊंचे दज पर दखाई द । दू सरे जो रामभोल ज म से गू ंगी थी, िजसके बाप-मां ने

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कभी उसे बोलते नह ं सु ना, आज इस तरह उसके मु ंह से मीठ आवाज नकल रह है! इस
आवाज ने नानक के दल के साथ या काम कया इसे वह जानता होगा। इस बात को
नानक य कर समझ सकता था क िजस रामभोल ने कभी घर से बाहर पैर नह ं नकाला
वह इन लोग म आपस के तौर पर य पाई जाती है और ये सब औरत कौन ह!

नानक को इन सब बात को अ छ तरह सोचने का मौका न मला। वह दू सर औरत जो


रामभोल के बगल म कुस पर बैठ हु ई थी और िजसको नानक ने पहले भी दे खा था, इशारा
पाते ह उठ खड़ी हु ई और कु छ आगे बढ़ नानक से बातचीत करने लगी।

औरत - नानक साद, इसके कहने क तो ज रत नह ं क तु म मु ज रम बनाकर यहां लाये गये


हो और तु ह कसी तरह क सजा द जायगी।

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नानक - हां, बेशक म मु ज रम बनाकर लाया गया हू ं मगर असल म मु ज रम नह ं हू ं और न
मने कोई कसू र ह कया है।

औरत - तु हारा कसू र यह है क तु मने वह बड़ी त वीर जो बाबाजी के कमरे म थी और


िजस पर पदा पड़ा हु आ था बना आ ा के दे खी। या तु म यह नह ंजानते क िजस त वीर
पर पदा पड़ा हो उसे बना आ ा के दे खना न चा ह।

नानक - (कुछ सोचकर) बे शक यह कसू र तो हु आ।

औरत - हमारे यहां का कानू न यह है क जो ऐसा कसू र करे उसका सर काट लया जाय।

नानक - अगर ऐसा कानू न है तो इसे जु म कहना चा हए!

1. अनु पम

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औरत - जो हो मगर अब तु म कसी तरह बच नह ं सकते।
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loकबू ल करता हू ं य द आप मु झे कुछ
नानक - खैर, म मरने से नह ं डरता और खु शी से मरना
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सवाल का जवाब दे द! s .
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औरत - तु म मरने से तो कसी तरह
i ndइनकार कर नह ं सकते मगर मेहरबानी करके तु हारे
एक सवाल का जवाब मल सकता / h है, एक से यादे सवाल तु म नह ं कर सकते, पू छो या
p :/
पू छते हो।
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नानक - (कुछ दे र सोचकर) खैर जब एक ह सवाल का जवाब मल सकता है तो म यह
पू छता हू ं क (रामभोल क तरफ इशारा करके) यह यहां य कर आ और यहां इ ह इतनी
बड़ी इ जत य कर मल

औरत - ये तो दो सवाल हु ए! अ छा इनम से एक सवाल का जवाब यह दया जाता है क


िजसके बारे म तु म पूछते हो वह हमार महारानी क छोट बहन ह और यह सबब है क
उनके बगल म सं हासन के ऊपर बैठ ह।

नानक - मु झे य कर व वास हो क तु म सच कहती हो?

औरत - म धम क कसम खाकर कहती हू ं क यह बात झू ठ नह ं है, मानने-न-मानने का


तु ह अि तयार है!

नानक - खैर अगर ऐसा है तो म कसी कार मरना पसंद नह ं करता।

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औरत - (हंसकर) मरना न पसंद करने से या तु हार जान छोड़ द जायगी।

नानक - बेशक ऐसा ह है, जब तक म मरना मंजू र न क ं गा तु म लोग मु झे मार नह ं


सकतीं।

औरत - यह तो हम लोग जानते ह क तु म एक भार कुदरत रखते हो और उसके सबब से


बड़े-बड़े काम कर सकते हो मगर इस जगह तु हारे कये कुछ नह ं हो सकता, हां एक बात
अगर तु म कबू ल करो तो तु हार जान छोड़ द जायगी बि क इनाम केतौर पर जो मांगोगे
सो दया जायगा।

नानक - वह या।

औरत - कुं अर इं जीत सं ह और आनंद सं ह क जान तु हारे क जे म है , वह महारानी के क जे


म दे दो।
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नानक - ( ोध के मारे लाल आंख नकाल के) क ब त, खबरदार! फर ऐसी बात जु बान पर
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न लाइयो! म नह ं जानता था क ऐसी खू बसू रत मंडल o कुं अरइं जीत सं ह और आनंद सं ह क
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दु मन नकलेगी। तु झ जैसी हजार को म उन s पर.b
यौछावर करता हू ं! बस मालू म हो गया

i 4u ताकत है जो मु झे मारे या मेरे साथ कसी


क तु म लोग खेल क कठपु त लयां हो। कसक
तरह क जबद ती करे ! i nd
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उस औरत का चेहरा नानकp :/क यह बात सु नकर ोध के मारे लाल हो गया बि क और
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औरत भी जो वहांhtमौजू द थीं नानक क दबंगता दे ख ोध के मारे कांपने लगीं, मगर
महारानी के चेहरे पर ोध क नशानी न थी।

औरत - (तलवार खींचकर) बेशक अब तु म मारे जाओगे। बीस-बीस मद क ताकत (कु सय


क तरफ इशारा करके) इन एक-एक औरत म और मु झम है। यह न समझना क तु हारे
हाथ-पैर खु ले ह तो कुछ कर सकोगे। या भू ल गये क मने तु हारे हाथ से तलवार गरा द
थी

नानक - इतनी ह ताकत अगर तु म लोग म है तो दोन कुमार क जान मु झसे य मांगती
हो, खु द जाकर उन दोन का सर य नह ं काट लातीं

औरत - कोई खास सबब है क हम लोग अपने हाथ से इस काम को नह ं करते, कर भी


सकते ह मगर दे र होगी, इस लए तु मसे कहते ह। अब भी मंजू र करो नह ं तो म जान लए
बना न छोड़ू ंगी।

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नानक - (रामभोल क तरफ इशारा करके) उस औरत क जान िजसे तु म महारानी क ब हन
बताती हो मेरे क जे म है जरा इसका भी खयाल करना।

इतना सु नते ह रामभोल अपनी जगह से उठ और बोल , ''यह कभी न समझना क वह


ड बा िजसे तु म लाये थे म बजड़े म छोड़ आई और वह तु हारे या तु हारे सपा हय के
क जे म है , मने उसे गंगाजी म फक दया था और अब मंगा लया, (हाथ का इशारा करके)
दे खो, उस कोने म छत से लटक रहा है।''

नानक ने घू मकर दे खा और छत से उस ड बे को लटकता पाया। यह दे ख वह एकदम घबड़ा


गया, उसके होश-हवास जाते रहे , उसके मु ंह से एक चीख क आवाज नकल और वह बदहवास
होकर जमीन पर गर पड़ा।

आधी घड़ी तक नानक बेहोश पड़ा रहा, इसके बाद होश म आया मगर उसम खड़े होने क

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ताकत न थी। वह बैठा-बैठा इस तरह सोचने लगा जैसे क अब वह िजंदगी से ब कुल ह
नाउ मीद हो चु का हो। वह औरत नंगी तलवार लए अभी तक उसक
p oे पास खड़ी थी। एकाएक
नानक को कोई बात याद आई िजससे उसक हालत ब क gु लs ह बदल गई, गई हु ई ताकत
b lo यथ सोच म पड़ा हू ं' उठ खड़ा हु आ
s.
बदन म फर लौट आई और वह यह कहता हु आ क 'म
तथा उस औरत से फर बातचीत करने लगा। u
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iसकता।
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नानक - नह ,ं नह ं, म कभी नह ं मर

: //
औरत - अब तु ह बचाने
t tpवाला कौन है
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नानक - (रामभोल क तरफ दे ख के) उस कोठर क ताल िजसम कसी के खू न से लखी
हु ई पु तक रखी है।

इतना सु नते ह रामभोल च क , उसका चेहरा उतर गया, सर घू मने लगा, और वह यह कहती
हु ई सं हासन क बगल पर झु क गई, ''आह, गजब हो गया! भू ल हु ई, वह ताल तो उसी जगह
छूट गई! क ब त तेरा बु रा हो, मु झे जबद ती अ...प...ने...हा...थ!''

केवल रामभोल ह क ऐसी दशा नह ं हु ई बि क वहां िजतनी औरत थीं सभ का चेहरा पीला
पड़ गया, खू न क लाल जाती रह और सब-क -सब एकटक नानक क तरफ दे खने लगीं। अब
नानक को भी व वास हो गया क उसक जान बच गई और जो कु छ उसने सोचा था ठ क
नकला, कुछ दे र ठहरकर नानक फर बोला -

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नानक - उस कताब को म पढ़ भी चु का हू ं बि क एक दो त को भी इस काम म अपना
साथी बना चु का हू ं। य द तीन दन के अंदर म उससे न मलू ंगा तो वहज र कोई काम शु
कर दे गा।

नानक क इस बात ने सभ क बेचैनी और बढ़ा द । महारानी ने आंख म आंसू भरकर अपने


बगल म बैठे बाबाजी क तरफ इस ढं ग से दे खा जैसे वह अपनी िजंदगी से नराश हो चु क
हो। बाबाजी ने इशारे से उसे ढाढ़स दया और नानक क तरफ दे खकर कहा -

बाबा - शाबाश बेटे, तु मने खू ब काम कया! म तु मसे बहु त स न हू, ंचेला बनाने के लए म
भी कसी ऐसे चतु र को ढू ं ढ़ रहा था!

इतना कहकर बाबाजी उठे और नानक का हाथ पकड़कर दूसर तरफ ले चले। बाबाजी का हाथ
इतना कड़ा था क नानक क कलाई दद करने लगी, उसे मालू म हु आ मानो लोहे के हाथ ने

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उसक कलाई पकड़ी हो जो कसी तरह नम या ढ ला नह ं हो सकता। साफ सबेरा हो चु का था
बि क सू य क ला लमा ने बाग के खु शनु मा पेड़ के ऊपर वाल
p oटह नय पर अपना दखल
जमा लया था जब बाबाजी नानक को लए एक कोठर g के s
दरवाजे पर पहु ंचे िजसम ताला
b lo जो उनक कमर म थी और उस
s.
लगा हु आ था। बाबाजी ने दू सरे हाथ से एक ताल नकाल
कोठर का ताला खोलकर उसके अंदर ढकेल u दया और फर दरवाजा बंद करके ताला लगा
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दया।
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चाहे दन नकल चु का हो : //उस कोठर के अंदर नानक को रात ह का समां नजर आया।
मगर
t tpसू राख भी ऐसा नह ं था िजससे कसी तरह क रोशनी पहु ंचती।
ब कुल अंधेरा था, कोई
h
नानक को यह भी नह ं मालू म हो सकता था क यह कोठर कतनी बड़ी है, हां उस कोठर
क प थर क जमीन इतनी सद थी क घंटे ह भर म नानक के हाथ-पैर बेकार हो गये। घंटे
भर बाद नानक को चार तरफ क द वार दखाई दे ने लगी। मालू म हु आ क द वार म से
कसी तरह क चमक नकल रह है और वह चमक धीरे -धीरे बढ़ रह है , यहां तक क थोड़ी
दे र म वहां अ छ तरह उजाला हो गया और उस जगह क हर एक चीज साफ दखाई दे ने
लगी।

यह कोठर बहु त बड़ी न थी, इसके चार कोन म ह डय के ढे र लगे थे, चार तरफ द वार म
पु रसे भर ऊंचे चार मोखे (छे द) थे जो बहु त बड़े न थे मगर इस लायक थे क आदमी का
सर उसके अंदर जा सके। नानक ने दे खा क उसके सामने क तरफ वाले मोखे म कोई चीज
चमकती हु ई दखाई दे रह है। बहु त गौरकरने पर थोड़ी दे र बाद मालू म हु आ क बड़ी-बड़ी दो
आंख ह जो उसी क तरफ दे ख रह ह।

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उस अंधेर कोठर म धीरे -धीरे चमक पैदा होने और उजाला हो जाने ह से नानक डरा था, अब
उन आंख ने और भी डरा दया। धीरे -धीरे नानक का डर बढ़ता ह गया य क उसने कलेजा
दहलाने वाल और भी कई बात यहां पाई।

हम ऊपर लख आये ह क उस कोठर क जमीन प थर क थी। धीरे -धीरे यह जमीन गम


होने लगी िजससे नानक के बदन म हरारत पहु ंची और वह सद िजसके सबब से वह लाचार
हो गया था जाती रह । आ खर वहां क जमीन यहां तक गम हु ई क नानक को अपनी जगह
से उठना पड़ा मगर कहां जाता! उस कोठर क तमाम जमीन एक-सी गरम हो रह थी, वह
िजधर जाता उधर ह पैर जलता था। नानक का यान फर मोखे क तरफ गया िजसम
चमकती हु ई आंख दखाई द थीं, य क इस समय उसी मोखे म से एक हाथ नकलकर
नानक क तरफ बढ़ रहा था। नानक दु बककर एक कोने म हो रहा िजससे वह हाथ उस तक
न पहु ंचे मगर हाथ बढ़ता ह गया, यहां तक क उसने नानक क कलाई पकड़ ल ।

न मालू म वह हाथ कैसा था िजसने नानक क कलाई मजबू ती से थाम o m


.inल । बदन के साथ
छूते ह एक तरह क झु नझु नी पैदा हु ई और बात-क -बात म इतनी
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poबढ़ क नानक अपने को
कसी तरह स हाल न सका और न उस हाथ से अपने oको
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g छुड़ा ह सका, यहां तक क वह
बेहोश होकर अपने आपको ब कुल भू ल गया।

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जब नानक होश म आया उसने अपने आपको

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के साथ बजड़े से उतरा था। बगल
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nd गंगा के कनारे उसी जगह पाया जहां रामभोल
h म प के केले का एक पौधा भी दे खा। दन बहु त कम
बाक था और सू य भगवान
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अ ताचल क तरफ जा रहे थे।
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w .
w w बयान -8

अब हम फर उस महारानी के दरबार का हाल लखते ह जहां से नानक नकाला जाकर गंगा


के कनारे पहु ंचाया गया था।

नानक को कोठर म ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दू सर ह तरफ


रवाना हु ए और एक बारहदर म पहु ंचे जहां कई आदमी बैठे हु ए कुछ काम कररहे थे।
बाबाजी को दे खते ह वे लोग उठ खड़े हु ए। बाबाजी ने उन लोग क तरफ दे खकर कहा,
''नानक को म ठकाने पहु ंचा आया हू, ं बड़ा भार ऐयार नकला, हम लोग उसका कुछ न कर
सके। खैर उसे गंगा कनारे उसी जगह पहु ंचा दो जहां बजड़े से उतरा था, उसके लये कुछ
खाने क चीज भी वहां रख दे ना।'' इतना कहकर बाबाजी वहां से लौटे और महारानी के पास
पहु ंचे। इस समय महारानी का दरबार उस ढं ग का न था और न भीड़भाड़ ह थी। सं हासन
और कु सय का नाम- नशान न था। केवल फश बछा हु आ था िजस पर महारानी, रामभोल

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और वह औरत िजसके घोड़े पर सवार हो रामभोल नानक से जु दा हु ई थी, बैठ आपस म कुछ
बात कर रह थीं। बाबाजी ने पहु ंचते ह कहा, ''म नह ं समझता था क नानक इतना बड़ा धू त
और चालाक नकलेगा। धनप त ने कहा था क वह बहु त सीधा हे, सहज ह म काम नकल
जायगा, यथ इतना आडंबर करना पड़ा!''

पाठक याद रख, धनप त उसी औरत का नाम था िजसके घोड़े पर सवार होकर रामभोल
नानक के सामने से भागी थी। ता जु ब नह ं क धनप त के नाम से बार क खयाल वाले
पाठक च क और सोच क ऐसी औरत का नाम धनप त य हु आ! यह सोचने क बात है
और आगे चलकर यह नाम कुछ रं ग लावेगा।

धनप त - खैर जो होना था सो हो चु का, इतना तो मालू म हु आ क हम लोग नानक के पंजे


म फंस गये। अब कोई ऐसी तरक ब करनी चा हए िजससे जान बचे और नानक के हाथ से
छुटकारा मले।

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बाबाजी - म तो फर भी नसीहत क ं गा क आप लोग इस फेर मoन पड़। कुं अर इं जीत सं ह
और आनंद सं ह बड़े तापी ह, उ ह अपने आधीन करना औरgउनक spे ह से क चीज छ न लेना
b loने कैसा धोखा खाया। ई वर न करे
क ठन है, सहज नह ं। दे खा, पहल ह सीढ़ म आप लोग
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य द नानक मर जाय या उसे कोई मार डाले और
i 4u कताब उसी के क जे म रह जाय और
वह
पता न लगे तो या आप लोग के बचनेdक कोई सू रत नकल सकती है
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रामभोल - बेशक कभी नह:ं,/
/
हम लोग बु र मौत मारे जायगे!
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बाबाजी - म बेशकhजोर दे ता और ऐसा कभी होने न दे ता मगर सवाय समझाने के और कुछ
नह ं कर सकता।

महारानी - (बाबाजी क तरफ दे खकर) एक दफे और उ योग क ं गी। अगर काम न चलेगा
तो फर जो आप कहगे वह कया जाएगा।

बाबाजी - मज तु हार , म कुछ कह नह ं सकता।

महारानी - (धनप त और रामभोल क तरफ दे खकर) सवाय तु म दोन के इस काम के


लायक और कोई भी नह ं है।

धनप त - म जान लड़ाने से कब बाज आने वाल हू ं।

रामभोल - जो हु म होगा क ं गी ह ।

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महारानी - तु म दोन जाओ और जो कुछ करते बने करो!

रामभोल - काम बांट द िजए।

महारानी - (धनप त क तरफ दे ख के) नानक के क जे से कताब नकाल लेना तु हारा काम
और (रामभोल क तरफ दे ख के) कशोर को गर तार कर लाना तु हारा काम ।

बाबाजी - मगर दो बात का यान रखना, नह ं तो जीती न बचोगी!

दोन - वह या

बाबाजी - एक तो कुं अर इं जीत सं ह या आनंद सं ह को हाथ न लगाना, दू सरे ऐसे काम करना
िजससे नानक को तु म दोन का पता न लगे, नह ं तो वह बना जान लए कभी न छोड़ेगा
और तु म लोग के कए कुछ न होगा। (रामभोल क तरफ दे ख के) यह न समझना क अब
.in
वह तु हारा मु ला हजा करे गा, अब उसे असल हाल मालू म हो गया, हम लोग को जड़-बु नयाद
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से खोदकर फक दे ने का उ योग करे गा।
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महारानी - ठ क है , इसम कोई शक नह ं। मगर ये दोन चालाक ह, अपने को बचावगीं। (दोन
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क तरफ दे खकर) खैर तु म लोग जाओ, दे खो ई वर
i 4u या करता है। खू ब हो शयार और अपने
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को बचाए रहना।
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/ /
दोन - कोई हज नह !ं
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बयान -9

अब हम रोहतासगढ़ क तरफ चलते ह और तहखाने म बेबस पड़ी हु ई बेचार कशोर और


कुं अर आनंद सं ह इ या द क सु ध लेते ह। िजस समय कुं अरआनंद सं ह, भैरो सं ह और तारा सं ह
तहखाने के अंदर गर तार हो गए और राजा दि वजय सं ह के सामने लाए गये तो राजा के
आद मय ने उन तीन का प रचय दया िजसे सु न राजा हैरान रह गया और सोचने लगा क
ये तीन यहां य कर आ पहु ंचे। कशोर भी उसी जगह खड़ी थी। उसने सु ना क ये लोग
फलाने ह तो वह घबड़ा गई, उसे व वास हो गया क अब इनक जान नह ं बचती। इस समय
वह मन-ह -मन ई वर से ाथना करने लगी क िजस तरह हो सके इनक जान बचाए, इनके
बदले म मेर जान जाय तो कोई हज नह ं परं तु म अपनी आंख से इ ह मरते नह ं दे खना
चाहती। इसम कोई शक नह ं क ये मु झी को छुड़ाने आये थे नह ं तो इ ह या मतलब था
क इतना क ट उठाते।

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िजतने आदमी तहखाने के अंदर मौजू द थे सभी जानते थे क इस समय तहखाने के अंदर
कुं अर आनंद सं ह का मददगार कोई भी नह ं है परं तु हमारे पाठक महाशय जानते ह क पं डत
जग नाथ यो तषी जो इस समय दारोगा बने यहां मौजू द ह कुं अर आनंद सं ह क मदद ज र
करगे, मगर एक आदमी के कए होता ह या है तो भी यो तषीजी ने ह मत न हार और
वह राजा से बातचीत करने लगे। यो तषीजी जानते थे क मेरे अकेले के कए ऐसे मौके पर
कुछ नह ं हो सकता और वहां क कताब पढ़ने से उ ह यह भी मालू म हो गया था क इस
तहखाने के कायदे के मु ता बक ये ज र मारे जाएंग,े फर भी यो तषीजी को इनके बचने क
उ मीद कुछ-कुछ ज र थी य क पं डत ब नाथ कह गये थे क 'आज इस तहखाने म
कुं अर आनंद सं ह आवगे'। अब यो तषीजी सवाए इसके और कुछ नह ं कर सकते क राजा
को बात म लगाकर दे र कर िजससे पं डत ब नाथ वगैरह आ जाएं और आ खर उ ह ने ऐसा
ह कया। यो तषीजी अथात दारोगा साहब राजा के सामने गये और बोले -

दारोगा - मु झे इस बात क बड़ी खु शी है क आप से आप कुं वर आनंद सं ह हम लोग के


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क जे म आ गये।
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राजा - ( सर से पैर तक यो तषीजी को अ छ तरह दे ख g
oकर) ता जु ब है क आप ऐसा कहते
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ह मालू म होता है क आज आपक अ ल चरने चल.b
s गई है! छ !

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nd या महाराज!
दारोगा - (घबड़ाकर और हाथ जोड़कर) सो
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:/आप पू छते ह सो या आप ह क हए, आनंद सं ह आप से आप
राजा - (रं ज होकर) फर भी
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यहां आ फंसे तो यtt
h आप खु श हु ए?
दारोगा - म यह सोचकर खु श हु आ क जब इनक गर तार का हाल राजावीर सं ह सु नगे
तो ज र कहला भेजगे क आनंद सं ह को छोड़ द िजए, इसके बदले म हम कुं अर क याण सं ह
को छोड़ दगे।

राजा - अब मु झे मालू म हो गया क तु हार अ ल सचमु च चरने गई है या तु म वह दारोगा


नह ं हो, कोई दू सरे हो।

दारोगा - (कांपकर) शायद आप इस लए कहते ह क मने जो कुछ अज कया इस तहखाने


के कायदे के खलाफ कया।

राजा - हां, अब तु म राह पर आये! बेशक ऐसा ह है। मु झे इनके यहां आ फंसने का रं ज है।
अब म अपनी और अपने लड़के क िज दगी से भी नाउ मीद हो गया। बेशक अब यह
रोहतासगढ़ उजाड़ हो गया। म कसी तरह कायदे के खलाफ नह ं कर सकता, चाहे जो हो,
आनंद सं ह को अव य मारना पड़ेगा और इसका नतीजा बहु त ह बु रा होगा। मु झे इस बात का

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भी व वास है क कुं अर आनंद सं ह पहले-पहल यहां नह ं आये बि क इनके कई ऐयार इसके
पहले भी ज र यहां आकर सब हाल दे ख गये ह गे। कई दन से यहां के मामले म जो
व च ता दखाई पड़ती है यह सब उसी का नतीजा है। सच तो यह है क इस समय क बात
सु नकर मु झे आप पर भी शक हो गया है। यहां का दारोगा इस तरह आनंद सं ह के आ फंसने
से कभी न कहता क म खु श हू ं। यह ज र समझता क कायदे के मु ता बक इ ह मारना
पड़ेगा, इसके बदले म क याण सं ह मारा जायेगा, और इसके अ त र त वीर सं ह के ऐयार लोग
ऐयार के कायदे को तलांज ल दे कर बेहोशी क दवा के बदले जहर का बताव करगे और एक
ह स ताह म रोहतासगढ़ को चौपट कर डालगे। इस तहखाने के दारोगा को ज र इस बात का
रं ज होता।

राजा क बात सु नकर यो तषीजी क आंख खु ल ग । उ ह ने मन म अपनी भूल कबू ल क


और गदन नीची करके सोचने लगे। उसी समय राजा ने पु कारकर अपने आद मय से कहा,
''इस नकल दारोगा को भी गर तार कर लो और अ छ तरह आजमाओ क यहां का दारोगा
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हे या वीर सं ह का कोई ऐयार!''
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बात क बात म दारोगा साहब क मु क बांध ल ग g
oऔर राजा
ने दो आद मय को गरम
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पानी लाने का हु म दया। नौकर ने यह समझकर
s .b क वहां पानी गरम करने म दे र होगी,
ऊपर द वानखाने म हरदम गरम पानी मौजू4 दu
d i रहता है वहां से लाना उ तम होगा, महाराज से
आ ा चाह । महाराज ने इसको पस iदnकरके ऊपर द वानखाने से पानी लाने का हु म दया।
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दो नौकर गरम पानी लानेp :क/े लए दौड़े मगर तु र त लौट आकर बोले, ''ऊपर का रा ता तो
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बंद हो गया।'' ht
महा - सो या! रा ता कैसे बंद हो सकता हे

नौकर - या जाने ऐसा य हु आ

महा - ऐसा कभी नह ं हो सकता! (ताल दखाकर) दे खो यह ताल मेरे पास मौजू द है, इस
ताल के बना कोई य कर उन दरवाज को बंद कर सकता है

नौकर - जो हो, म कुछ नह ं अज कर सकता, सरकार खु द चलकर दे ख ल।

राजा ने वयं जाकर दे खा तो ऊपर जाने का रा ता बंद पाया। ता जु ब हु आ औरसोचने लगा


क दरवाजा कसने बंद कया, ताल तो मेरे पास थी! आ खर दरवाजा खोलने के लए ताल
लगाई मगर ताला न खु ला। आज तक इसी ताल से बराबर इस तहखाने म आने-जाने का
दरवाजा खोला जाता था, ले कन इस समय ताल कुछ काम नह ं करती। यह अनोखी बात जो
राजा दि वजय सं ह के यान म कभी न आई थी आज यकायक पैदा हो गई। राजा के

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ता जु ब का कोई ह न रहा। उस तहखाने म और भी बहु त से दरवाजे उसी ताल से खु ला
करते थे। राजा ने ताल ठ क-पीटकर एक दू सरे दरवाजे म लगाई, मगर वह भी न खु ला। राजा
क आंख म आंसू भर आए और यकायक उसके मु ंह से यह आवाज नकल , ''अब इस
तहखाने क और हम लोग क उ पू र हो गई।''

राजा दि वजय सं ह घबड़ाया हु आ चार तरफ घू मता और घड़ी-घड़ी दरवाज म ताल लगाता
था - इतने ह म उस काले रं ग क भयानक मू त के मु ंह म सेिजसके सामने एक औरत क
बल द जा चु क थी एक तरह क आवाज नकलने लगी। यह भी एक नई बात थी।
दि वजय सं ह और िजतने आदमी वहां थे सब डर गये तथा उसी तरफ दे खने लगे। कांपता
हु आ राजा उस मू त के पास जाकर खड़ा हो गया ओैर गौर सेसु नने लगा क या आवाज
आती है। थोड़ी दे र तक वह आवाज समझ म न आई, इसके बाद यह सु नाई पड़ा - ''तेर ताल
केवल बारह नंबर क कोठर को खोल सकेगी। जहां तक ज द हो सके कशोर को उसम बंद
कर दे नह ं तो सभ क जान मु त म जाएगी!''
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यह नई अ ु त और अनोखी बात को दे ख-सु नकर राजा का कलेजा दहलने लगा मगर उसक
s कभी ऐसी बात न हु ई थी।
समझ म कुछ न आया क यह मू रत य कर बोल , आज
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सैकड़ आदमी इसके सामने ब ल चढ़ गए ले कन. ऐसी नौबत न आई थी। अब राजा को

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व वास हो गया क इस मू रत म कोई करामात4 n
usज र है तभी तो बड़े लोग ने ब ल का बंध
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कया है। य य प राजा ऐसी बात iका
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n व वास कम रखता था परंतु आज उसे डर ने दबा
// समय न ट न कया और उसी ताल से बारह नंबर वाल
लया, उसने सोच- वचार म यादे
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कोठर खोलकर कशोरtp
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को उसके अंदर बंद कर दया।

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राजा दि वजय सं ह ने अभी इस काम से छु ी न पाई थी क बहु त से आद मय को साथ

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लेकर पं डत ब नाथ उस तहखने म आ पहु ं चे। कुं अर आनंद सं ह औरतारा सं ह को बेबस
पाकर झपट पड़े और बहु त ज द उनके हाथ-पैर खोल दए। महाराज के आद मय ने इनका
मु काबला कया, पं डत ब नाथ के साथ जो आदमी आये थे वे लोग भी भड़ गये। जब
आनंद सं ह, भैरो सं ह और तारा सं ह छूटे तो लड़ाई गहर हो गई, इन लोग के सामने ठहरने
वाला कौन था केवल चार ऐयार ह उतने लोग के लए काफ थे। कई मारे गये, कई ज मी
होकर गर पड़े, राजा दि वजय सं ह को गर तार कर लया गया, वीर सं ह क तरफ का कोई
न मरा। इन सब काम से छु ी पाने के बाद कशोर क खोज क गई।

इस तहखाने म जो कुछ आ चय क बात हु ई थीं सभ ने दे ख-ी सु नी थीं। लाल और


यो तषीजी ने सब हाल आनंद सं ह और ऐयार लोग को बताया और कहा क कशोर बारह
नंबर क कोठर म बंद कर द गई है।

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पं डत ब नाथ ने दि वजय सं ह क कमर से ताल नकाल ल और बारह नंबर क कोठर
खोल मगर कशोर को उसम न पाया। चराग लेकर अ छ तरह ढू ं ढ़ा परं तु कशोर न
दखाई पड़ी, न मालू म जमीन म समा गई या द वार खा गई! इस बात का आ चय सभ को
हु आ क बंद कोठर म से कशोर कहां गायब हो गई। हां एक कागज का पु जा उस कोठर म
ज र मला िजसे भैरो सं ह ने उठा लया और पढ़कर सभ को सु नाया। यह लखा था -

''धनप त रन मचायो सा यो काम।

भोल भ ल मु ड़ ऐह य द य ह ठाम।।''

इस बरवै का मतलब कसी क समझ म न आया, ले कन इतना व वास हो गया क अब इस


जगह कशोर का मलना क ठन है। उधर लाल इस बरवै को सु नते ह खल खलाकर हंस
पड़ी ले कन जब लोग ने हंसने का सबब पू छा तो कुछ जवाब न दया बि क सर नीचा

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करके चु प हो रह , जब ऐयार ने बहु त जोर दया तो बोल, ''मेरे हंसने का कोई खास सबब
नह ं है। बड़ी मेहनत करके कशोर को मने यहां से छुड़ाया था।
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( कशेर के छु ड़ाने के लए
जो-जो काम उसने कये थे सब कहने के बाद) म सोचे हुg एsथी क इस काम के बदले म
राजा वीर सं ह से कुछ इनाम पाऊंगी, ले कन कुछ b
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न lहु आ, मेर मेहनत चौपट हो गई, मेरे
दे खते ह दे खते कशोर इस कोठर म बंद हो u
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गई थी। जब आप लोग ने कोठर खोल तो
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iअपनी
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मु झे उ मीद थी क उसे दे खू ंगी और वहd जु बान से मेरे प र म का हाल कहे गी परं तु
कुछ नह ं। ई वर क भी या व h
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/ च ग त है, वह या करता है सो कुछ समझ म नह ं आता!
यह सोचकर म हंसी थीpऔर :/कोई बात नह ं है।''
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लाल क बात का और सभ को चाहे व वास हो गया हो ले कन हमारे ऐयार के दल म
उसक बात न बैठ ं। दे खा चा हए अब वे लोग लाल के साथ या सलू क करते ह।

पं डत ब नाथ क राय हु ई क अब इस तहखाने म ठहरना मु ना सब नह, ं जब यहां क अजब


बात से खु द यहां का राजा परे शान हो गया तो हम लोग क या बात है, यह भी उ मीद
नह ं है क इस समय कशोर का पता लगे, अ तु जहां तक ज द हो सके यहां से चले चलना
ह मु ना सब है।

िजतने आदमी मर गये थे उसी तहखाने म ग ढा खोदकर गाड़ दये गये, बाक बचे हु ए चार-
पांच आद मय को राजा दि वजय सं ह स हत कै दय को तरह साथ लया और सभ का मु ंह
चादर से बांध दया। यो तषीजी ने भी ताल का झ बा स हाला, रोजनामचा हाथ म लया,
और सभ के साथ तहखाने से बाहर हु ए। अबक दफे तहखाने से बाहर नकलते हु ए िजतने
दरवाजे थे सभ म यो तषीजी ताला लगाते गए िजससे उसके अंदर कोई आने न पावे।

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तहखाने से बाहर नकलने पर लाल ने कुं अर आनंद सं ह से कहा, ''मु झे अफसोस के साथ
कहना पड़ता है क मेर मेहनत बबाद हो गई और कशोर से मलने क आशा न रह । अब
य द आप आ ा द तो म अपने घर जाऊं य क कशोर ह क तरह म भी इस कले म
कैद क गई थी।''

आनंद - तु हारा मकान कहां है

लाल - मथु राजी।

भैरो - (आनंद सं ह से) इसम कोई शक नह ं क लाल का क सा भी बहु त बड़ा और दलच प


होगा, इ ह हमारे महाराज के पास अव य ले चलना चा हए।

ब - ज र ऐसा होना चा हए नह ं तो महाराज रं ज ह गे।

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ऐयार का मतलब कुं अर आनंद सं ह समझ गए और इसी जगह से लाल को बदा होने क n
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आ ा उ ह ने न द । लाचार लाल को कुं अर साहब के साथ जाना ह पड़ा और ये लोग बना
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कसी तरह क तकल फ पाए राजा वीर सं ह के ल करoम पहु ंच गयेजहां लाल इ जत के
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साथ एक खेमे म रखी गई।

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: // बयान - 10

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hे समय राजा वीर सं ह अपने खेमे म बैठे रोहतासगढ़के बारे म बातचीत
दू सरे दन सं या क
करने लगे। पं डत ब नाथ, भैरो सं ह, तारा सं ह, यो तषीजी, कुं अर आनंद सं ह और तेज सं ह
उनके पास बैठे हु ए थे। अपने-अपने तौर पर सभ ने रोहतासगढ़ के तहखाने का हाल कह
सु नाया और अ त म वीर सं ह से बातचीत होने लगी।

वीर - रोहतासगढ़ के बारे म अब या करना चा हए

तेज - इसम तो कोई शक नह ं क रोहतासगढ़ के मा लक आप हो चु के। जब राजा और


द वान दोन आपके क जे म आ गये तो अब कस बात क कसर रह गई हां अब यह सोचना
है क राजा दि वजय सं ह के साथ या सलू क करना चा हए

वीर - और कशोर के लए या बंदोब त करना चा हए

तेज - जी हां यह दो बात ह। कशोर के बारे म तो म अभी कुछ कह नह ं सकता, बाक


राजा दि वजय सं ह के बारे म पहले आपक राय सु नना चाहताहू ं।

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वीर - मेर राय तो यह हे क य द वह स चे दल से ताबेदार कबू ल करे तो रोहतासगढ़
पर खराज (मालगु जार ) मु करर करके उसे छोड़ दे ना चा हए।

तेज - मेर भी यह राय है।

भैरो - य द वह इस समय कबू ल करने के बाद पीछे बेईमानी पर कमर बांधे तो

तेज - ऐसी उ मीद नह ं है। जहां तक मने सु ना है वह ईमानदार, स चा और बहादु र जाना


गया है, ई वर न करे य द उसक नीयत कुछ दन बाद बदल भी जाए तो हम लोग को
इसक परवाह न करनी चा हए।

वीर - इसका वचार कहां तक कया जाएगा! (तारा सं ह क तरफ दे खकर) तु म जाओ
दि वजय सं ह को ले आओ, मगर मेरे सामने हथकड़ी-बेड़ी के साथ मत लाना।

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'जो हु म' कहकर तारा सं ह दि वजय सं ह को लाने के लए चले गये और थोड़ीह दे र म उ ह
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अपने साथ लेकर हािजर हु ए, तब तक इधर-उधर क बात होती रह ं। दि वजय सं ह ने अदब
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के साथ राजा वीर सं ह को सलाम कया और हाथ जोड़कर
l o सामने खड़ा हो गया।
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वीर - क हये, अब या इरादा है
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दि वजय - यह क ज म भर आपक i
h े साथ रहू ं और ताबेदार क ं ।
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वीर - नीयत म कसीt तरह का फक तो नह ं है
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दि वजय - आप जैसे तापी राजा के साथ खु टाई रखने वाला पू रा क ब त है। वह पू रा
बेवकूफ है जो कसी तरह पर आपसे जीतने क उ मीद रखे। इसम कोई शक नह ं क आपके
एक ऐयार दस-दस रा य गारत कर दे ने क साम य रखते ह। मु झे इस रोहतासगढ़ कले क
मजबू ती पर बड़ा भरोसा था, मगर अब न चय हो गया क वह मेर भू ल थी। आप िजस
रा य को चाह बना लड़े फतह कर सकते ह। मेर तो अ ल नह ं काम करती, कुछ समझ म
नह ं आता क या हु आ और आपके ऐयार ने या तमाशा कर दया। सैकड़ वष से िजस
तहखाने का हाल एक भेद के तौर पर छपा चला आता था, बि क सच तो यह है क जहां का
ठ क-ठ क हाल अभी तक मु झे भी मालू म न हु आ उसी तहखाने पर बात क बात म आपके
ऐयार ने क जा कर लया, यह करामात नह ं तो या है! बेशक ई वर क आप पर कृ पा है
और यह सब स चे दल से उपासना का ताप है। आपसे दु मनी रखना अपने हाथ से अपना
सर काटना है।

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दि वजय सं ह क बात सु नकर राजा वीर सं ह मु कराए और उनक तरफ दे खने लगे।
दि वजय सं ह ने िजस ढं ग से ऊपर लखी बात कह ं उसम सचाई क बू आती थी। वीर सं ह
बहु त खु श हु ए और दि वजय सं ह को अपने पास बैठाकर बोले-

वीर - सु नो दि वजय सं ह, हम तु ह छोड़ दे ते ह और रोहतासगढ़ क ग ी पर अपनी तरफ


से तु ह बैठाते ह मगर इस शत पर क तु म हमेशा अपने को हमारा मातहत समझो और
खराज क तौर पर कुछ मालगु जार दया करो।

दि वजय - म तो अपने को आपका ताबेदार समझ चु का अब या समझू ंगा, बाक रह


रोहतासगढ़ क ग ी, सो मु झे म जू र नह ं। इसके लए आप कोई दू सरा नायबमु करर क िजए
और मु झे अपने साथ रहने का हु म क िजये।

वीर - तु मसे बढ़कर और कोई नायब रोहतासगढ़ के लए मु झे दखाई नह ं दे ता।

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दि वजय - (हाथ जोड़कर) बस मु झ पर कृ पा क िजये, अब रा य का जंजाल म नह ं उठा
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सकता। s p
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आधे घंटे तक यह s .
हु जत रह । वीर सं ह अपने हाथ से रोहतासगढ़ क ग ी पर

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दि वजय सं ह को बैठाना चाहते थे और दि वजय सं ह इ कार करते थे, ले कन आ खर लाचार
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होकर दि वजय सं ह को वीर सं ह का हु म मंजू र करनापड़ा, मगर साथ ह इसके उ ह ने
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: // करा लया क मह ने
वीर सं ह से इस बात का इकरार भर तक आपको मेरा मेहमान बनना
p रोहतासगढ़ म रहना पड़ेगा।
पड़ेगा और इतने दन tतक
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वीर सं ह ने इस बात को खु शी से मंजू र कर लया, य क रोहतासगढ़ के तहखाने का हाल
उ ह बहु त कु छ मालू म करना था। वीर सं ह और तेज सं ह को व वास हो गया था क वह
तहखाना ज र कोई त ल म है।

राजा दि वजय सं ह ने हाथ जोड़कर तेज सं ह क तरफ दे खा और कहा, ''कृ पा कर मु झे समझा


द िजये क आप और आपके मातहत ऐयार लोग ने रोहतासगढ़ म या कया, अभी तक मेर
अ ल हैरान है।''

तेज सं ह ने सब बात खु लासे तौर पर कह सु नायी। द वान रामानंद का हाल सु न दि वजय सं ह


खू ब हंसे बि क उ ह अपनी बेवकूफ पर भी हंसी आई और बोले, ''आप लोग से कोई बात
दू र नह ं है।'' इसके बाद द वान रामानंद भी उसी जगह बु लवाये गये और दि वजय सं ह के
हवाले कये गए और दि वजय सं ह के लड़के कुं अर क याण सं ह को लाने के लए भी कई
आदमी चु नारगढ़ रवाना कए गए।

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इन सब काम से छु ी पाकर लाल के बारे म बातचीत होने लगी। तेज सं ह ने दि वजय सं ह
से पू छा क लाल कौन है और आपके यहां कब से है इसके जवाब म दि वजय सं ह ने कहा
क लाल को हम बखू बी नह ं जानते। मह ने भर से यादा न हु आ होगा क चार-पांच दन के
आगे-पीछे लाल और कुं दन दो नौजवान औरत मे रे यहां पहु ं चीं। उनक चालढाल और पोशाक
से मु झे मालू म हु आ क कसी इ जतदारघराने क लड़ कयां ह। पू छने पर उन दोन ने अपने
को इ जतदार घराने क लड़क जा हर भी कया और कहा क म अपनी मु सीबत के दो-तीन
मह ने आपके यहां काटना चाहती हू ं। रहम खाकर मने उन दोन को इ जत के साथ अपने
यहां रखा, बस इसके सवाय और म कुछ नह ं जानता।

तेज - बेशक इसम कोई भेद है, वे दोन साधारण औरत नह ं ह।

यो तषी - एक ता जु ब क बात म सु नाता हू ं।

तेज - वह या?
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यो तषी - आपको याद होगा
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क तहखाने का हाल कहते समय मने कहा था क जब

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तहखाने म कशोर और लाल को मने दे खा तो दोन का नाम लेकर पु कारा िजससे उन दोन
को आ चय हु आ।
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तेज - हां-हां, मु झे याद है, म यह पू छने ह वाला था क लाल को आपने कैसे पहचाना?

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यो तषी - बस यह वह ता जु ब क बात है जो अब म आपसे कहता हू ं।
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तेज - क हए, ज द क हए।
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यो तषी - एक दफे रोहतासगढ़ के तहखाने म बैठे-बैठे मेर तबीयत घबड़ाई तो म कोठ रय
को खोल-खोलकर दे खने लगा। उस ताल के झ बे म जो मेरे हाथ लगा था एक ताल सबसे
बड़ी है जो तहखाने क सब कोठ रय म लगती है मगर बाक बहु त-सी ता लय का पता मु झे
अभी तक नह ं लगा क कहां क ह।

तेज - खैर तब या हु आ

यो तषी - सब कोठ रय म अंधेरा था, चराग ले जाकर म कहां तक दे खता, मगर एक


कोठर म द वार के साथ चमकती हु ई कोई चीज दखाई द । य य प कोठर म बहु त अंधेरा
था तो भी अ छ तरह मालू म हो गया क यह कोई त वीर है। उस पर ऐसा मसाला लगा
हु आ था क अंधेरे म भी वह त वीर साफ मालू म होती थी, आंख, कान, नाक बि क बाल तक
मालू म होते थे। त वीर के नीचे 'लाल ' ऐसा लखा हु आ था। म बड़ी दे र तक ता जु ब से उस

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त वीर को दे खता रहा, आ खर कोठर बंद करके अपने ठकाने चला आया, उसके बाद जब
कशोर के साथ मने लाल को दे खा तो साफ पहचान लया क वह त वीर इसी क है। मने
तो सोचा था क लाल उसी जगह क रहने वाल है। इसी लए उसक त वीर वहां पाई गई,
मगर इस समय महाराज दि वजय सं ह क जु बानी उसका हाल सु नकर ता जु ब होता है, लाल
अगर वहां क रहने वाल नह ं तो उसक त वीर वहां कैसे पहु ंची।

दि वजय - मने अभी तक वह त वीर नह ं दे खी, ता जु ब है!

वीर - अभी या जब म आपको साथ लेकर अ छ तरह उस तहखाने क छानबीन क ं गा


तो बहु त-सी बात ता जु ब क दखाई पड़गी।

दि वजय - ई वर करे ज द ऐसा मौका आये, अब तो आपको बहु त ज द रोहतासगढ़ चलना


चा हए।

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वीर - (तेज सं ह क तरफ दे खकर) इं जीत सं ह के बारे म t
या बंदोब त हो रहा है
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o ह इस समय तक रोहतासगढ़ क
तेज - म बे फ नह ं हू,ं जासू स लोग चार तरफ भेजे गये
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कारवाई म फंसा हु आ था, अब वयं उनक खोज s b ं गा, कुछ पता लगा भी है।
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वीर - हां! या पता लगा है
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तेज - इसका हाल कल कहू:ंग /ा आज भर और स क िजये।
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राजा वीर सं ह अपने दोन लड़क को बहु त चाहते थे, इं जीत सं ह के गायब होने का रं ज उ ह
बहु त था, मगर वह अपने च त के भाव को भी खू ब ह छपाते थे और समय का यान उ ह
बहु त रहता था। तेज सं ह का भरोसा उ हबहु त था और उ ह मानते भी बहु त थे, िजस काम
से उ ह तेज सं ह रोकते थे उसका नाम फर वह जु बान पर तब तक न लाते थे जब तक
तेज सं ह वयं उसका िज न छे ड़ते, यह सबब था क इस समय वे तेज सं ह के सामने
इं जीत सं ह के बारे म कुछ न बोले।

दू सरे दन महाराज दि वजय सं ह सेना स हत तेज सं ह को रोहतासगढ़ कले मले गये। कुं अर
आनंद सं ह के नाम का डंका बजाया गया। यह मौका ऐसा था क खु शी के जलसे होते मगर
कुं अर इं जीत सं ह के खयाल से कसी तरह क खु शी न क गई।

राजा दि वजय सं ह के बताव और खा तरदार से राजा वीर सं ह और उनकेसाथी लोग बहु त


स न हु ए। दू सरे दन द वानखाने म थोड़े आद मय क कमेट इस लए क गई क अब या
करना चा हए। इस कमेट म केवल नीचे लखे बहादु र और ऐयार लोग इक े थे - राजा

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वीर सं ह, कुं अर आनंद सं ह, तेज सं ह, दे वी सं ह, पं डत ब नाथ, यो तषीजी, महाराज
दि वजय सं ह और रामानंद। इनके अ त र त एक और आदमी मु ंह पर नकाब डाले मौजू द था
िजसे तेज सं ह अपने साथ लाये थे और उसे अपनी जमानत पर कमेट म शर क कया था।

वीर - (तेज सं ह क तरफ दे खकर) इस नकाबपोश आदमी के सामने िजसे तु म अपने साथ
लाये हो हम लोग भेद क बात कर सकते ह

तेज - हां-हां, कोई हज क बात नह ं है।

वीर - अ छा तो अब हम लोग को एक तो कशोर का पता लगाने का, दू सरे यहां के


तहखाने से जो बहु त-सी बात जानने और वचारने लायक ह उनके मालू म करने का, तीसरे
इं जीत सं ह के खोजने का बंदोब त सबसे पहले करना चा हए। (तेज सं ह क तरफ दे खकर)
तु मने कहा था क इं जीत सं ह का कुछ हाल मालू म होचु का है।

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तेज - जी हां बेशक मने कहा था और उसका खु लासा हाल इस समय आपको मालू म हु आ
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चाहता है , मगर इसके पहले म दो-चार बात राजा साहब से ( दि वजय सं ह क तरफ इशारा
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loमामले म बातचीत क ं गा।
करके) पू छा चाहता हू ं जो बहु त ज र ह, इसके बाद अपने
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वीर - कोई हज नह ं। i 4u
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दि व - हां-हां पू छये। / h
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तेज - आपके यहां शेt t
h र सं ह नाम का कोई ऐयार था?
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दि व - हां था, बेचारा बहु त ह नेक, ईमानदार, मेहनती आदमी था और ऐयार के फन म पू रा


ओ ताद था, रामानंद और गो वं द सं ह उसी के चेले ह। उसकेभाग जाने का मु झे बहु त ह रं ज
है। आज के दो-तीन दन पहले दू सरे तरह का रं ज था मगर आज और तरह का अफसोस है।

तेज - दो तरह के रं ज और अफसोस का मतलब मेर समझ म नह ं आया, कृ पा करके साफ-


साफ क हये।

दि व - पहले उसके भाग जाने का अफसोस ोध के साथ था मगर आज इस बात का


अफसोस है क िजन बात को सोचकर वह भागा वे बहु त ठ क थीं, उसक तरफ से मेरा रं ज
होना अनु चत था, य द इस समय वह होता तो बड़ी खु शी से आपके काम म मदद करता।

तेज - उससे आप य रं ज हु ए थे और वह य भाग गया था

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दि व - इसका सबब यह था क जब मने कशोर को अपने क जे म कर लया तो उसने
मु झे बहु त कुछ समझाया और कहा क 'आप ऐसा काम न क िजए बि क कशोर को राजा
वीर सं ह के यहां भेज द िजए।' यह बात मने मंजू र न क बि क उससे रं ज होकर मने इरादा
कर लया क उसे कैद कर लू ं। असल बात यह है क मु झसे और रणधीर सं ह से दो ती थी,
शेर सं ह मेरे यहां रहता था और उसका छोटा भाई गदाधर सं ह िजसक लड़क कमला है, आप
उसे जानते ह गे!...

तेज - हां-हां, हम सब कोई उसे अ छ तरह जानते ह।

दि व - खैर तो गदाधर सं ह रणधीर सं ह के यहां रहता था। गदाधर सं ह को मरेबहु त दन हो


गये, इसी बीच म मु झसे और रणधीर सं ह से भी कुछ बगड़ गई, इधर जब मने रणधीर सं ह क
न तनी कशोर को अपने लड़के के साथ याहने का बंदोब त कया तो शेर सं ह को बहु त बु रा

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1. शेर सं ह कमला का चाचा, िजसका हाल इस संत त के तीसरे भाग के तेहरव बयान म लखा गया है।

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मालू म हु आ। मेर तबीयत भी शेर सं ह से फर गई। मने सोचा क शेर सं ह क भतीजी कमला
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हमारे यहां से कशोर को नकाल ले जाने का ज र उ o
l योग करे गी और इस काम म अपने
चाचा शेर सं ह से मदद लेगी। यह बात मेरे दल sम.b
बैठ गई और मने शेर सं ह को कैद करने
का वचार कया। उसे मेरा इरादा मालूम होi4
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गया और वह चु पचाप न मालू म कहां भाग गया।
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तेज - अब आप या सोचते ह!/उसकाh कोई कसू र था या नह ं
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ht ब कुल बेकसू र था बि क मेर ह भू ल थी िजसके लए आज म
दि व - नह ,ं नह ं, वह
अफसोस करता हू ं, ई वर करे उसका पता लग जाय तो म उससे अपना कसू र माफ कराऊं।

तेज - आप मु झे कुछ इनाम द तो म शेर सं ह का पता लगा दू! ं

दि व - आप जो मांगगे म दू ं गा और इसके अ त र त आपका भार अहसान मु झ पर होगा।

तेज - बस म यह इनाम चाहता हू ं क य द शेर सं ह को ढू ं ढ़कर ले आऊं तो उसेआप हमारे


राजा वीर सं ह के हवाले कर द! हम उसे अपना साथी बनाना चाहते ह।

द व - म खु शी से इस बात को मंजू र करता हू, ं वादा करने क या ज रत है जब क म


वयं राजा वीर सं ह का ताबेदार हू ं।

इसके बाद तेज सं ह ने उस नकाबपोश क तरफ दे खा जो उनके पास बैठा हु आ था औरिजसे


वह अपने साथ इस कमेट म लाये थे। नकाबपोश ने अपने मु ंह पर से नकाब उतारकर फक
दया और यह कहता हु आ राजा दि वजय सं ह के पैर पर गर पड़ा क 'आप मेरा कसू र माफ

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कर।' राजा दि वजय सं ह ने शेर सं ह को पहचाना, बड़ी खु शी से उठाकर गले लगा लया और
कहा, ''नह -ं नह ं, तु हारा कोई कसू र नह ं बि क मेरा कसू र है जो म तु मसे मा कराया चाहता
हू ं।''

शेर सं ह तेज सं ह के पास जा बैठे। तेज सं ह ने कहा, ''सु नो शेर सं ह, अब तु म हमारे हो चु के हो!''

शेर - बेशक म आपका हो चु का हू, ं जब आपने महाराज से वचन ले लया तो अब या उ


हो सकता है

राजा वीर सं ह ता जुब से ये बात सु न रहे थे, अंत म तेज सं ह क तरफ दे खकर बोले,
''तु हार मु लाकात शेर सं ह से कैसे हु ई
'

तेज - शेर सं ह ने मु झसे वयं मलकर सब हाल कहा, असल तो यह है क हम लोग पर भी


शेर सं ह ने भार अहसान कया है।
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वीर - वह या
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तेज - कुं अर इं जीत सं ह का पता लगाया है और अपने कई आदमी उनक हफाजत के लए

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तैनात कर चु के ह, इस बात का भी न चय दला दया है क कुं अर इं जीत सं ह को कसी
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तरह क तकल फ न होने पावेगी।
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वीर :
- (खु श होकर और शेर सं ह क तरफ दे खकर) हां! कहां पता लगा और कस हालत म
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शेर - वह सब हाल जो कुछ मु झे मालू म था म द वान साहब (तेज सं ह) से कह चु का हू ं वह
आपसे कह दगे, आप उसके जानने क ज द न कर। म इस समय यहां िजस काम के लए
आया था मेरा वह काम हो चु का अब म यहां ठहरना मु ना सब नह ं समझता। आप लोग
अपने मतलब क बातचीत कर य क मदद के लए म बहु त ज द कुं अर इं जीत सं ह के
पास पहु ंचा चाहता हू ं। हां य द आप कृ पा करकेअपना एक ऐयार मेरे साथ कर द तो उ तम
हो और काम भी शी हो जाय।

वीर - (खु श होकर) अ छ बात है , आप जाइये और मेरे िजस ऐयार को चाह लेते जाइये।

शेर - अगर आप मेर मज पर छोड़ते ह तो दे वी सं ह को अपने साथ के लए मांगता हू ं।

तेज - हां आप खु शी से उ ह ले जायं। (दे वी सं ह क तरफ दे खकर) आप तैयार क िजए।

दे वी - म हरदम तैयार रहता हू ं। (शेर सं ह से) च लए अब इन लोग का पीछा छो ड़ए।

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दे वी सं ह को साथ लेकर शेर सं ह रवाना हु ए और इधरइन लोग म वचार होने लगा क अब
या करना चा हए। घंटे भर म यह न चय हु आ क लाल से कुछ वशेष पू छने क ज रत
नह ं है य क वह अपना हाल ठ क-ठ क कभी न कहे गी, हां उसे हफाजत म रखना चा हए
और तहखाने को अ छ तरह दे खना और वहां का हाल मालू म करना चा हए।

बयान - 11

अब तो कुं दन का हाल ज र ह लखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लए


उ कं ठत हो रहे ह गे। हमने कुं दन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग म छोड़ा है िजसम
कशोर रहती थी। कुं दन इस फ म लगी रहती थी क कशोर कसी तरह लाल के क जे
म न पड़ जाय।

िजस समय कशोर को लेकर सध क राह लाल उस घर म उतर िजसम o m


.inतहखाने का रा ता
था और यह हाल कुं दन को मालू म हु आ तो वह बहु त घबड़ाई। p
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महल
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o भर म इसबात का गु ल
मचा दया और सोच म पड़ी क, अब या करना चा हएoहम
और लाल के जाने के बाद 'धरो पकड़ो' क आवाज.b
l d i
g पहले लख आये ह क कशोर
मकान म उतर गये िजसम लाल और कशोर
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4uगई थीं। n
लगाते हु ए कई आदमी सध क राह उसी

उ ह ं लोग म मलकर कुं दन भी h


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एक छोट -सी गठर कमर के साथ बांध उस मकान के अंदर
चल गई और यह हाल घबड़ाहट
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:/ और गु ल-शोर म कसी को मालू म न हु आ। उसमकान के
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tेरtा था। लाल ने दू सर कोठर म जाकर दरवाजा बंद कर लया इस लये
अंदर भी ब कुल h
अंध
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लाचार होकर पीछा करने वाल को लौटना पड़ा और उन लोग ने इस बात क इि तला
महाराज से क , मगर कुं दन उस मकान से न लौट बि क कसी कोने म छप रह ।
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हम पहले लख आये ह और अब भी लखते ह क उस मकान के अंदर तीन दरवाजे थे, एक
तो वह सदर दरवाजा था िजसके बाहर पहरा पड़ा करता था, दू सरा खु ला पड़ा था, तीसरे दरवाजे
को खोलकर कशोर को साथ लये लाल गई थी।

जो दरवाजा खु ला था उसके अंदर एक दालान था, इसी दालान तक लाल और कशोर को


खोजकर पीछा करने वाले लौट गये थे य क कह ं आगे जाने का रा ता उन लोग को न
मला था। जब वे लोग मकान के बाहर नकल गये तो कुं दन ने अपनी कमर से गठर खोल
और उसम से सामान नकालकर मोमब ती जलाने के बाद चार तरफ दे खने लगी।

यह एक छोटा-सा दालान था मगर चार तरफ से बंद था। इस दालान क द वार म तरह-तरह
क भयानक त वीर बनी हु ई थीं मगर कुं दन ने उन पर कुछ यान न दया। दालान के

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बीच बीच म ब ते- ब ते भर के यारह ड बे लोहे के रखे हु ए थे और हर एक ड बे पर
आदमी क खोपड़ी रखी हु ई थी। कुं दन उ ह ं ड ब को गौर से दे खने लगी। ये ड बे गोलाकार
एक चौक पर सजाए हु ए थे, एक ड बे पर आधी खोपड़ी थी और बाक ड ब पर पू र -पू र ।
कुं दन इस बात को दे खकर ता जु ब कर रह थी क इनम से एक खोपड़ी जमीन पर य पड़ी
हु ई है, और क तरह उसके नीचे ड बा नह ं है कुं दन ने उस ड बे से िजस पर आधी खोपड़ी
रखी हु ई थी गनना शु कया। मालू म हु आ क सातव नंबर कखोपड़ी के नीचे ड बा नह ं
है। यकायक कुं दन के मु ंह से नकला, ''ओफओह, बेशक इसके नीचे का ड बा लाल ले गई
य क ताल वाला ड बा नह ं था, मगर यह हाल उसे य कर मालू म हु आ'

कुं दन ने फर गनना शु कया और टू ट हु ई खोपड़ी से पांचव नंबर पर क गई, खोपड़ी


उठाकर नीचे रख द और ड बे को उठा लया, तब अ छ तरह गौर से दे खकर जोर से जमीन
पर पटका। ड बे के चार टु कड़े हो गए, मानो चार जगह से जोड़ लगाया हु आ हो। उसके अंदर
से एक ताल नकल िजसे दे ख कुं दन हंसी और खु श होकर आप ह आप बोल , ''दे खो तो
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लाल को म कैसा छकाती हू ं।''
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कुं दन ने उस ताल से काम लेना शु कया। उसी दालान g
o म द वार के साथ एकअलमार थी
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िजसे कुं दन ने उसी ताल से खोला। नीचे उतरने क.े bलए सी ढ़यां नजर आ और वह बेखौफ
नीचे उतर गई। एक कोठर म पहु ंच जहां4एक usछोटे सं हासन केऊपर हाथ-भर लंबी और
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इससे कुछ कम चौड़ी तांबे क एक i पnी रखी हु ई थी। कुं दन ने उसे उठाकर अ छ तरह दे खा,
मालू म हु आ क कुछ लखा हु /
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: / आ है, अ र खु दे हु ए थे और उन पर कसी तरह का चकना या
तेल मला हु आ था िजसक
t tpे सबब से प टया अभी तक जंग लगने से बची हु ई थी। कुं दन ने
उस लेख को बड़े h गौर से पढ़ा और हंसकर चार तरफ दे खने लगी। उस कोठर क द वार म
दो तरफ दो दरवाजे थे और एक प ला जमीन म था। उसने एक दरवाजा खोला, ऊपर चढ़ने
के लए सी ढ़यां मल ,ं वह बेखौफ ऊपर चढ़ गई और एक ऐसी तंग कोठर म पहु ंची िजसम
चार-पांच आदमी से यादे के बैठने क जगह न थी, मगर इस कोठर के चार तरफ क
द वार म छोटे -छोटे कई छे द थे, जलती हु ई ब ती बु झाकर उन छे द म से एक छे द म आंख
लगाकर कुं दन ने दे खा।

कुं दन ने अपने को ऐसी जगह पाया जहां से वह भयानक मू त िजसके आगे एक औरत ब ल
द जा चु क थी और िजसका हाल पीछे लख आये ह साफ दखाई दे ती थी। थोड़ी दे र म
कुं दन ने महाराज दि वजय सं ह, तहखाने के दारोगा, लाल , कशोर और बहु त से आद मय को
वहां दे खा। उसके दे खते ह दे खते एक औरत उस मू रत के सामने ब ल द गई और कुं अर
आनंद संह ऐयार स हत पकड़े गये। इस तहखाने म से कशोर और कुं अर आनंद सं ह का भी
कुछ हाल हम ऊपर लख आये ह वह सब कुं दन ने दे खा था। आ खर म कुं दन नीचे उतर
आई और उस प ले को जो जमीन म था उसी ताल से खोलकर तहखाने म उतरने के बाद

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ब ती बालकर दे खने लगी। छत क तरफ नगाह करने से मालू म हु आ क वह सं हासन पर
बैठ हु ई भयानक मू त जो कभीतर क तरफ से ब कुल ( सं हासन स हत) पोल थी, उसके
सर के ऊपर है।

कुं दन फर ऊपर आई और द वार म लगे हु ए एक दू सरे दरवाजे को खोलकर एक सु रंगम


पहु ंची। कई कदम जाने के बाद एक छोट खड़क मल , उसी ताल से कुं दन ने उस खड़क
को भी खोला। अब वह उस रा ते म पहु ंच गई जो द वानखाने और तहखाने म आने -जाने के
लए था और िजस राह से महाराज आते थे, तहखाने से द वानखाने म जाने तक िजतने
दरवाजे थे सभी को कुं दन ने अपनी ताल से बंद कर दया, ताले के अलावे उन दरवाज म
एक-एक खटका और भी था उसे भी कुं दन ने चढ़ा दया। इस काम से छु ी पाने के बाद फर
वहां पहु ंची जहां से भयानक मू त और आदमी सब दखाई दे रहे थे। कुं दन ने अपनी आंख से
राजा दि वजय सं ह क घबराहट दे खी जो दरवाजा बंद हो जाने से उ ह हु ई थी।

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मौका दे खकर कुं दन वहां से उतर और उस तहखाने म जो उस भयानक मू त केनीचे था
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पहु ंची। थोड़ी दे र तक कु छ बकने के बाद कुं दन ने ह वे श द p o जोउस भयानक मू त के
कहे
मु ंह से नकले हु ए राजा दि वजय सं ह या और लोग नेo सु g
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ने थे और उनके मु ता बक कशोर
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बारह नंबर क कोठर म बंद कर द गई थी।
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कुं दन वहां से नकलकर यह दे खने के d
i n लए क राजा कशोर को उस कोठर म बंद करता है
या नह ं। फर उस छत पर पहु ंचh
/ / ी जहां से सब लोग दखाई पड़ते थे। जब कुं दन ने दे खा क
कशोर उस कोठर म p बंद: कर द गई तो वह नीचे तहखाने म उतर । उसी जगह से एक
रा ता था जो उसhकोठर tt के ठ क नीचे पहु ंचता था िजसम कशोर बंद क गई थी। वहां क
छत इतनी नीची थी क कुं दन को बैठ कर जाना पड़ा। छत म एक पच लगा हु आ था िजसके
घु माने से एक प थर क च ान हट गई और आंचल से मु ंह ढांपे कुं दन कशोर के सामने जा
खड़ी हु ई।

बेचार कशोर तरह-तरह क आफत से आप ह बदहवास हो रह थी, अंधेरे म ब ती लए


यकायक कुं दन को नकलते हु ए दे ख घबड़ा गई। उसने घबड़ाहट म कुं दनको ब कुल नह ं
पहचाना बि क उसे भू त, ेत या कोई आसेब समझकर डर गई और एक चीख मारकर बेहोश
हो गई।

कुं दन ने अपनी कमर से कोई दवा नकालकर कशोर को सु ंघाई िजससे वह अ छ तरह
बेहोश हो गई, इसके बाद अपनी छोट गठर म से सामान नकालकर वह बरवा अथात
'धनप त रं ग मचायो सा यो काम'...इ या द लखकर कोठर म एक तरफ रख दया और
अपनी कमर से एक चादर खोल जो महल से ले ती आई थी, उसी म कशोर क गठर बांधी

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और नीचे घसीट ले गई। िजस तरह पच को घु माकर प थर क च ान हटाई थी उसी तरह
रा ता बंद कर दया।

यह सु रंग कोठर के नीचे खतम नह ं हु ई थी बि क दू र तक चल गई थी। आगे सेचौड़ी और


ऊंची होती गई थी। कशोर को लए हु ए कुं दन उस सु रंग म चलने लगी।लगभग सौ कदम
जाने के बाद एक दरवाजा मला िजसे कुं दन ने उसी ताल से खोला, आगे फर उसी सु रंग म
चलना पड़ा। आधी घड़ी के बाद सु रंग का अंत हु आ औरकुं दन ने अपने को एक खोह के मु ंह
पर पाया।

इस जगह पहु ंचकर कुं दन ने सीट बजाई। थोड़ी दे र म पांच आदमी आ मौजू द हु ए औरएक
ने बढ़कर पू छा, ''कौन है धनप तजी!''

कुं दन - हां रामा, तु म लोग को यहां बहु त दु ख भोगना और कई दन तक अटकना पड़ा।

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रामा - जब हमारे मा लक ह इतने दन तक अपने को बला म डाले हु ए थे जहां से जान
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बचाना मु ि कल था तो फर हम लोग क s p
या बात है, हम लोग तो खु ले मैदान म थे।
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कुं दन - लो कशोर तो हाथ लग गई, अब इसे ले चलो और जहां तक ज द हो सके भागो।

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nd हु ए। पाठक तो समझ ह गये ह गे क कशोर
वे लोग कशोर को लेकर वहां से रवाना
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धनप त के काबू म पड़ गई। कौन hधनप त वह धनप त िजसे नानक और रामभोल के बयान
म आप लोग जान चु केpह। :/मेरे इस लखने से पाठक महाशय च कगे और उनका ता जु ब
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घटे गा नह ं बि कhबढ़ जायगा, इसके साथ ह साथ पाठक को नानक क वह बात क 'वह
कताब भी जो कसी के खू न से लखी गई है...' भी याद आयेगी िजसके सबब से नानक ने
अपनी जान बचाई थी। पाठक इस बात को भी ज र सोचगे क कुं दन अगर असल म
धनप त थी तो लाल ज र रामभोल होगी, य क धनप त को कसी के 'खू न से लखी हु ई
कताब' का भेद मालू म था और यह भेद रामभोल को भी मालू म था। जब धनप त ने
रोहतासगढ़ महल म लाल के सामने उस कताब का िज कया तो लाल कांप गई िजससे
मालूम होता है क वह रामभोल ह होगी। कसी के खू न से लखी हु ई कताब का नाम
सु नकर अगर लाल डर गई तो धनप त भी ज र समझ गई होगी क यह रामभोल है, फर
धनप त (कुं दन) लाल से मल य न गई य क वे दोन तो एक ह के तु य थीं ऐसी
अव था म तो इस बात का शक होता है क लाल रामभोल न थी। फर तहखाने म धनप त
के लखे हु ए बरवै को सु नकर लाल य हंसी इ या द बात को सोचकर पाठक क चं ता
अव य बढ़े गी, या कया जाय, लाचार है।

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बयान - 12

दू सरे दन दो पहर दन चढ़े बाद कशोर क बेहोशी दू र हु ई। उसने अपने को एकगहन वन


के पेड़ क झु रमु ट म जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुं दन औरकई आद मय को
दे खा। बेचार कशोर इन थोड़े ह दन म तरह-तरह क मु सीबत म पड़ चु क थी। िजस
सायत से वह घर से नकल आज तक एक पल के लए भी सु खी न हु ई, मानो सु ख तो
उसके ह से ह म न था। इस समय भी उसने अपने को बु र अव था म पाया। य य प
कुं दन उसके सामने बैठ थी परं तु उसे उसक तरफ से कसी तरह क भलाई क आशा न थी।
इसके अ त र त वहां और भी कई आद मय को दे ख तथा अपने को बेहोशी क अव था से
चैत य होते पा उसे व वास हो गया क कुं दन ने उसके साथ दगा कया। रात क बात वह
व न क तरह याद करने लगी और इस समय भी वह इस बात का न चय न कर सक क
उसके साथ कैसा बताव कया जायगा। थोड़ी दे र तक वह अपनी मु सीबत को सोचती और
ई वर से अपनी मौत मांगती रह । आ खर उस समय उसे कुछ होश आया जब धनप त
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(कुं दन) ने उसे पु कारकर कहा, '' कशोर , तू घबरा मत तेरे साथ कोई बु राई न क जायगी।''
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कशोर - मेर समझ म नह ं आता क तु म
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या कह रह हो। जो कुछ तु मने कया उससे
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बढ़कर और बु राई या हो सकती है
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धन - तेर जान न मार जायगी बि क d
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i n जहां तू रहे गी हर तरह से आराम मलेगा।

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कशोर - या इं जीत सं ह:भी / वहां दखाई दगे
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धन - हां, अगर तू h
चाहे गी।

कशोर - (च ककर) ह, या कहा अगर म चाहू ंगी

धन - हां, यह बात है।

कशोर - कैसे

धन - एक चीठ इं जीत सं ह के नाम जो कुछ म कहू ं लख दे!

कशोर - उसम या लखना पड़ेगा

धन - केवल इतना ह लखना पड़ेगा, ''अगर आप मु झे चाहते ह तो बना कुछ वचार कए


इस आदमी के साथ मेरे पास चले आइये और जो कुछ यह मांगे दे द िजए, नह ं तो मु झसे
मलने क आशा छो ड़ए!''

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कशोर - (कुछ दे र तक सोचने के बाद) म समझ गई क तु हार नीयत या है। नह ,ं ऐसा
कभी नह ं हो सकता, म ऐसी चीठ लखकर यारे इं जीत सं ह को आफत म नह ं फंसा
सकती।

धन - तब तू कसी तरह छूट भी नह ं सकती।

कशोर - जो हो।

धन - बि क तेर जान भी चल जायगी।

कशोर - बला से, इं जीत सं ह के नाम पर म जान दे ने को तैयार हू ं। इतनासु नते ह धनप त
(कुं दन) का चेहरा मारे गु से के लाल हो गया, अपने सा थय क तरफ दे खकर बोल , ''अब म
इसे नह ं छोड़ सकती, लाचार हू ं। इसके हाथ-पैर बांधो और मु झे तलवार दो!'' हु म पाते ह
उसके सा थय ने बड़ी बेहरमी से कशोर के हाथ-पैर बांध दए। धनप त तलवार लेकर
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कशोर का सर काटने के लए जैसे ह आगे बढ़ उसके एक साथी ने कहा, ''नह ,ं इस तरह
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मारना मु ना सब न होगा, हम लोग बात क बात म सू खी लक ड़यां बटोरकर ढे र करते ह, इसे
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o के झ क म इसक राख का भी
उसी पर रख के फूं क दो, जलकर भ म हो जायगी और lहवा
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पता न लगेगा।''
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इस राय को धनप त ने पसंद कया i ndऔर ऐसा ह करने के लए हु म दया। संग दल
हरामखोर ने थोड़ी दे र म जं/
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गल से चु नकर सू खी लक ड़य का ढे र लगा दया। हाथ-पैर
बांधकर बेबस क हु ईtp कशोर उस पर रख द गई। धनप त के सा थय ने एक छोटा-सा
मशाल जलाया और htउसे धनप त ने अपने हाथ म लया। मु ंह बंद कए हु ए कशोर यह सब

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बात दे ख-सु न और सह रह थी। िजस समय धनप त मशाल
कशोर ने ऊंचे
लए चता के पास पहु ंची
वर म कहा - ''हे अि नदे व, तु म सा ी रहना! म कुं अर इं जीत सं ह क
मु ह बत म खु शी-खु शी अपनी जान दे ती हू ं। म खू ब जानती हू ं क तु हार आंच यारे क
जु दाई क आंच से बढ़कर नह ं है। जान नकलने म मु झे कुछ भी क ट न होगा। यारे
इं जीत! दे खना मेरे लए दु खी न होना, बि क मु झे ब कुल ह भू ल जाना!!''

हाय! ेम से भर बेचार कशोर क दल को टु कड़े-टु कड़े कर दे ने वाल इन बात से भी


संग दल का दल नरम न हु आ और हरामजाद कुं दन ने, नह -ं नह ं धनप त ने, चता म मशाल
रख ह द ।

(चौथा भाग समा त)

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