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Mahabharat
Mahabharat
महाभारत
eISBN: 978-93-9008-814-0
© काशकाधीन
काशक डायमंड पॉकेट बु स ( ा.) ल.
X-30 ओखला इंड टयल ए रया, फेज-II
नई िद ी- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
सं करण : 2020
Mahabharat
By - Priyadarshi Prakash
बड़े होने पर ने हीन धृतरा ने रा य छोटे भाई पांडु को स प िदया। पांडु का िववाह मा ी
और कु ती से हआ जनसे यु धि र, भीम, अजुन, नकु ल और सहदेव का ज म हआ। धृतरा
का िववाह गांधारी से हआ, जससे उ ह एक सौ पु और एक पु ी हई जो कौरव कहलाए।
धृतरा पांडु के िनधन के बाद अपने ये पु दयु धन को राजा बनाने के लए तमाम तरह
के षडयं म फंसते चले गए। इस सा जश क चरम थित महाभारत के यु म देखने को
िमली जसम कौरव क हार हई।
इस आयवत परं तु राजा शांतनु का राज था। वे परं तु तेज वी और वीर थे। उ ह िशकार का
बहत शौक था। जब भी अवसर िमलता, वे आखेट के लए राजधानी ह तनापुर से जंगल क
ओर िनकल पड़ते।
राजा शांतनु युवती के पास गए और अपना प रचय देकर भाव-िव लता म बोले, ‘‘हे परम
सुंदरी! या तुम मेरी प नी बनोगी?’’
‘‘मुझे शी बताओ, तु हारी शत ं या ह?’’ राजा शांतनु बोले, ‘‘तु ह पाने के लए मुझे
तु हारी येक शत वीकार है।’’
‘‘तो राजन! यान से मेरी बात सुिनए।’’ युवती बोली, ‘‘िववाह उपरांत जब म आपक
प नी बन जाऊं, तब आप यह जानने का कभी यास नह करगे िक म कौन ह?
ं म कु छ भी
ं ी। मेरे िकसी भी काय-कलाप म आप कोई भी ह त ेप नह
करने को पूरी कार वतं रहग
करगे। यही मेरी शत ं ह। जब तक आप इन शत ं परं तु अिडग रहगे, म प नी के प म आपके
राजा शांतनु ने उसक सभी शत ं मान ल । इस कार दोन का िववाह संप हो गया।
राजा बहत ममािहत हए। उ ह समझ म नह आया िक रानी ने ऐसा य िकया। वे उससे
कु छ पूछ भी नह सकते थे, य िक उ ह ने उसे पहले ही वचन िदया हआ था। उ ह ने दय
परं तु प थर रख लया। सोचा, अगली संतान होने तक सब ठीक हो जाएगा।
लेिकन दसरी
ू संतान होने पर परं तु रानी ने उसे भी नदी म बहा िदया। शत ऐसी थी िक राजा
िववश थे। उधर रानी एक के बाद दसरी
ू संतान उ प होते ही उसे नदी म वािहत कर देती।
ऐसा करते हए प नी के चेहरे परं तु न दःु ख होता और न ही खेद, ब क हर संतान को नदी म
वािहत कर देने के प चात् उसके मुख पर संतोष क झलक देखने को िमलती और
मु कराहट खल जाती।
इस कार रानी ने अपने सात नवजात िशशुओं को नदी म बहा िदया। राजा शांतनु का दय
रोता था, लेिकन उ ह डर था िक अगर रानी से इस िनदयता के बारे म कु छ भी कहा तो वह
उ ह छोड़कर चली जाएगी।
रानी ने आंख उठाकर शांतनु क ओर देखा, िफर गंभीर वर म बोली, ‘‘ठीक है, आप
जैसा चाहते ह, वैसा ही होगा। इस आठव ब चे को म नदी म नह बहाऊंगी, परं तु अब म
आपके साथ नह रह सकती, य िक आपने वचन भंग िकया है।’’
रानी ने उ र िदया, ‘‘हे राजन! स चाई यह है िक म गंगा ह।ं महिष विश के आदेशानुसार
मने यह मानव शरीर धारण िकया है, य िक मुझे आठ पु को ज म देना था। जब तुमने मेरे
सामने िववाह का ताव रखा तो मने त काल वीकार कर लया। मेरी ि म तु ह उन आठ
पु को ज म देने के यो य थे। ये आठ िशशु कोई और नह , ब क आठ वसु ह। उ ह ने
िपछले ज म म एक पाप िकया था, इस लए उ ह पृ वी पर मानव योिन म उ प होने का शाप
िमला था।
‘‘वे एक बार अपनी प नय सिहत महिष विश के आ म के आस-पास घूम रहे थे, तभी
आठव वसु क प नी क ि विश क कामधेनु गाय नंिदनी क ओर चली गई। बस, उसने
हठ पकड़ ली िक उसे यह गाय चािहए। बहत समझाने पर भी जब वह नह मानी तो आठ
वसुओं ने वह गाय चुरा ली। बाद म जब महिष विश को पता चला तो वे बहत ो धत हए।
उ ह ने आठ वसुओं को पृ वी पर ज म लेने का शाप दे िदया। अब वसु घबराए, उ ह ने अपनी
करनी क मा मांगी। महिष विश को उन पर दया आ गई, इस लए उ ह ने कहा, ‘अब म
शाप दे चुका ह,ं उसे वापस नह ले सकता। हां, शाप का भाव अव य कम कर सकता ह।ं ’
यह कहकर उ ह ने सात वसुओं को तो पृ वी पर ज म लेते ही अपना शरीर याग देने का वर
गंगा ने कहा, ‘‘अ छा! अब म जा रही हं और अपने साथ आठवां पु भी ले जा रही ह।ं
समय आने पर इसे आपको स प दग
ं ू ी।’’
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एक बार शांतनु िशकार खेलते हए िफर नदी िकनारे उसी जगह पहच
ं गए, जहां उ ह प नी
के प म गंगा िमली थी। तभी उ ह ने देखा िक एक युवक धनुष क डोर तानकर बाण से
िनशाना साध रहा है। सारे बाण सनसनाते हए गंगा क धारा पर लग रहे थे, जससे नदी क
लहर का माग अव हो गया था। ऐसे िवल ण तीरं दाज को देखकर शांतनु आ चयचिकत
हो गए। युवक अ यंत तेज वी और उ च कु ल का तीत हो रहा था। शांतनु सोच रहे थे,
‘‘कौन है यह युवक? िकसी राजकु ल का तो नह ।’’
तभी उनके सामने गंगा कट हो गई।ं बोल , ‘‘राजन! जसे देखकर आप आ चयचिकत हो
रहे ह, वह आपका ही पु है। मने बड़े य न से पाल-पोसकर इसे बड़ा िकया है। इसे महिष
विश ने संपूण वेद क िश ा दी है, इसक तीरं दाजी का जवाब नह , अ -संचालन म यह
राजा शांतनु ने देव त को अपने साथ लया और स तापूवक महल लौट आए। अब वंश
को आगे बढ़ाने वाला उनका पु देव त उ ह िमल चुका था।
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वन म उ ह एक िहरण िदखाई िदया। वे उसका पीछा करते हए बहत दरू तक िनकल गए।
सामने यमुना नदी बह रही थी। चार ओर मनोरम जंगल फैला हआ था। वह उ ह एक परम
सुंदर युवती िदखाई दी। उसके शरीर से बड़ी मनभावनी सुगध
ं िनकल रही थी, जससे सारे
वातावरण म भीनी-भीनी सुगध
ं फैल गई थी। शांतनु उसक सुंदरता देखकर मु ध हो गए।
उ ह ने समीप आकर युवती से पूछा, ‘‘हे सुंदरी! तुम कौन हो? यहां या कर रही हो?’’
सुंदरी ने उ र िदया, ‘‘म केवट पु ी स यवती ह।ं याि य को नदी पार करवाने म िपताजी
क सहायता करती ह।ं ’’
राजा शांतनु बोले, ‘‘म यहां का राजा ह।ं या तुम मेरी रानी बनना वीकार करोगी?’’
केवट पु ी लजाकर बोली, ‘‘आप जैसा पित पाना तो सौभा य क बात है, पर इसके लए
तो आपको मेरे िपताजी से अनुमित लेनी पड़ेगी।’’
राजा शांतनु केवटराज से िमले और उससे कहा, ‘‘म आपक पु ी से िववाह करना चाहता
ह।ं कृपया अनुमित देकर कृताथ क जए।’’
केवटराज का ऐसा उ र सुनकर राजा शांतनु िनराश होकर वापस लौट गए, लेिकन मन-
ाण म स यवती क सुंदरता और सुगध
ं हमेशा के लए बस गई थी। वे उसे भुला न सके।
इसका प रणाम यह हआ िक न उनका राजकाय म मन लगता था और न ही खाने-पीने म।
रात-िदन स यवती क सलोनी सूरत उनक आंख के आगे छाए रहती।
कु छ सोचकर राजा शांतनु बोले, ‘‘बेटे! तु ह मेरी एकमा संतान हो। म तो भिव य के बारे
म सोच-सोचकर िचंितत हं िक हमारे रा य का या होगा? अगर तु ह कु छ हो गया तो हमारे
वंश का या होगा? तुम यो ा हो, हमेशा अ -श से खेलते रहते हो। यु का मैदान ही
देव त अपने िपता को उदास नह देखना चाहते थे। वे सीधे केवटराज के यहां पहच
ं े और
बोले, ‘‘म राजा शांतनु का पु ह।ं म रा य के उ रा धकार से वयं को वंिचत करता ह।ं अब
आप अपनी पु ी का िववाह राजा से करा द।’’
िकंतु केवटराज ने भी दरू क सोची, बोला, ‘‘आपक बात ठीक है, पर आपक संतान अगर
रा य पर अपना अ धकार जताना चाहे तो मेरी पु ी क संतान का या होगा?’’
देव त ने आगे बढ़कर स यवती से कहा, ‘‘राजा महल म आपके िवयोग म अधीर हो रहे
ह। आप इसी समय मेरे साथ महल च लए। आज से आप मेरी माता ह।’’
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जब िविच वीय बड़ा हो गया तो भी म को उसके िववाह क िचंता सताने लगी। आ खर वंश
भी तो आगे बढ़ाना था।
तभी भी म को सूचना िमली िक काशी नरे श अपनी तीन पुि य के वयंवर का आयोजन
करने वाले ह। सोचा, िविच वीय के लए य न काशी नरे श क पुि य म से िकसी का
चुनाव िकया जाए।
काशी नरे श क तीन पुि यां थ ‒ अंबा, अंिबका व अंबा लका। तीन राजकु मा रयां परम
सुंद रयां थ ।
वयंवर के िदन राजदरबार म देश-िवदेश के अनेक राजकु मार पधारे थे। सभी जानने को
उ सुक थे िक आ खर राजकु मा रयां िकसे अपना जीवनसाथी चुनती ह।
भी म वृ हो चले थे। चार ओर उनका प रहास उड़ाया जाने लगा, ‘‘बड़े अपने को
चारी बताते थे। अब देखो, बुढ़ापे म वयंवर म शािमल होने पहच
ं गए।’’
जब तीन राजकु मा रयां हाथ म वरमालाएं लेकर अपना-अपना जीवनसाथी चुनने को आगे
बढ़ तो वे भी भी म को देखकर यं य से मु करा पड़ ।
भी म क वीरता से भला कौन अनिभ था। काशी नरे श, उप थत राजकु मार अथवा अ य
लोग भी म का ितरोध करते िक तब तक भी म सबको एक ओर हटाकर आगे बढ़े और तीन
राजकु मा रय को रथ म िबठाकर राजमहल से िनकल पड़े।
सब देखते ही रह गए।
वयंवर म सोम देश के राजा शा व भी आए थे। राजकु मारी अंबा से उनका बड़ा मधुर
संबध
ं था। भी म को इस कार तीन राजकु मा रय का अपहरण करके ले जाते देखकर उनसे
रहा नह गया। उ ह ने अंबा को पाने के लए भी म का पीछा िकया।
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वे अपने सौतेले भाई िविच वीय का िववाह तीन राजकु मा रय के साथ करना चाहते थे।
जब उ ह ने िववाह का िदन िन चत िकया तो बड़ी राजकु मारी अंबा ने भी म से कहा, ‘‘म
आपके भाई के साथ िववाह नह कर सकती। म राजा शा व को पसंद करती ह,ं उनके अलावा
म िकसी अ य को अपने पित के प म वीकार नह कर सकती। आप समझदार ह, आप
वयं ही िवचार क जए, जस युवती ने िकसी यि को पहले ही वर लया हो, या उसे
िकसी अ य यि के प े बांधना उिचत है?’’
सोम राजा शा व उसे अचानक देखकर चिकत रह गए। पूछा, ‘‘अरे ! तुम यहां कैसे? तु ह
तो भी म अपने साथ ले गए थे।’’
वह भी म के पास पहच
ं कर बोली, ‘‘आपके कारण शा व ने मुझे अपनाने से मना कर िदया,
अब म या क ं ?’’
भी म को सचमुच दःु ख हआ। सोचा, य न इसे भी िविच वीय क प नी बना िदया जाए,
लेिकन उ ह ने जैसे ही यह ताव िविच वीय के सामने रखा, उसने कहा, ‘‘नह भैया! म उस
नारी से कैसे िववाह कर सकता ह,ं जसने पहले ही िकसी और को अपने दय म बसा रखा
हो।’’
अब भी म करे तो या कर?
अंबा एक बार िफर शा व के पास गई, परं तु उसका कोई प रणाम नह िनकला। शा व
अपनी जद पर अड़े रहे।
भगवान काितकेय ने उसे कमल पु प क माला देते हए कहा, ‘‘लो यह माला रख लो,
इसके पु प कभी मुरझाएंगे नह । यह माला जसके गले म होगी, वही भी म का नाश करे गा।’’
अंबा वह माला लेकर अपने अिभयान पर िनकल पड़ी। उसने अनेक वीर राजाओं का
आ ान िकया, िकंतु भी म क वीरता का यह भाव था िक कोई भी माला गले म डालकर
भी म से लड़ने का साहस नह कर सका। अंबा चार ओर से िनराश हो गई। उसने माला को
राजा ुपद के महल के एक ार पर टांग िदया और वयं रोती-कलपती िकसी नए उपाय क
अतः अंबा परशुराम से िमली। परशुराम त काल अंबा क सहायता को तैयार हो गए। वे
भी म के पास पहच
ं े और यु के लए ललकारा। भी म और परशुराम म भयंकर यु हआ।
दोन वीर थे। कई िदन तक यु चलता रहा। बराबर क ट कर थी, इस लए न कोई हार रहा
था, न कोई जीत रहा था। परशुराम के लए अ धक िदन तक यु म िटके रहना असंभव था,
इस लए उ ह ने हार मान ली और अंबा से कहा, ‘‘उिचत यही है िक तुम भी म से सं ध कर
लो। वे तु हारा िहत करगे।’’
अंबा भी म के सामने घुटने कैसे टेक सकती थी? भी म ने उसका जीवन न िकया था, वह
भी भी म को जीिवत नह छोड़ेगी। उसने एक बार िफर तप या क । उसने घोर तप या करके
भगवान शंकर को स िकया। भगवान शंकर ने अंबा को वर िदया, ‘‘इस ज म म तो नह ,
अगले ज म म तुम अव य भी म से बदला ले सकोगी।’’
भगवान शंकर तो यह वर देकर अंतधान हो गए, लेिकन अंबा को चैन कहां? उससे अगले
ज म के लए वाभािवक मृ यु क ती ा भी नह क गई। उसने अपने हाथ अपनी िचता
सजाई और उसम आग लगाकर वयं को अि के हवाले कर िदया। ाण-पखे उड़ते ही
अंबा ने राजा द ु द क प नी के गभ से नया ज म लया। अगले ज म म वह राजा ुपद क
पु ी के प म उ प हई। वह अंबा को अपनी वह माला भी िमल गई, जो भगवान काितकेय
ने उसे दी थी। उसने वह माला अपने गले म डाल ली।
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उधर अंिबका और अंबा लका का िववाह िविच वीय के साथ हो चुका था। िविच वीय दोन
प नय सिहत सुख से जीवन-यापन कर रहे थे।
‘‘व स! अब तुम पर ही सब कु छ िनभर करता है। म तु हारी माता ह।ं म तु ह अनुमित देती
हं िक दोन बहओं को तुम अपनाओ और वंश को आगे बढ़ाओ।’’
वे बोले, ‘म सब कु छ जानता ह,ं तुम बदबू क िचंता मत करो, म उसे त काल दरू कर
दग
ं ू ा।’ इतना कहकर ऋिष पराशर ने अपने ताप से मेरे शरीर को दगु ध िवहीन बना िदया।
यही नह , ब क उनक कृपा से मेरा संपूण शरीर अ यंत लुभावनी खुशबू से सराबोर हो गया।
यह चम कार देखकर म ऋिष से बहत भािवत हो गई। उनक इस कृपा का बदला चुकाने के
लए मने उनके आगे समपण कर िदया। जब म गभवती हई तो ऋिष ने मुझे एकांत ीप म
पहच
ं ा िदया और बोले, ‘तुम इस ीप पर रहकर अपने पु को ज म दो। पु -ज म के बाद तुम
िफर कुं वारी मानी जाओगी।’
स यवती व तुतः एक गंधव क पु ी थी। एक िदन गंधव नदी के ऊपर से उड़ता जा रहा था,
तभी उसका वीय नीचे टपका, जो नदी म तैरती एक मछली के मुंह म जा िगरा। इस कार
मछली ने स यवती को ज म िदया, जसे बाद म केवटराज ने पाल-पोसकर बड़ा िकया। मछली
के गभ से उ प होने के कारण उसके शरीर म मछली क गंध या थी।
स यवती बोली, ‘‘पु ! हमारे वंश पर संकट आ पड़ा है। अब तु ह उस संकट से कु -वंश
को उबार सकते हो।’’
‘‘घर म दो-दो बहएं ह, परं तु रा य उ रा धकार से वंिचत है। िविच वीय िनःसंतान ही मर
गया और उसक प नयां युवाव था म ही वैध य भोग रही ह। तुम िविच वीय के बड़े भाई हो,
शा म लखा है िक मृत भाई क िवधवाओं को दसरा
ू भाई चाहे तो सौभा य दान कर
सकता है। इस लए तुम अंिबका व अंबा लका को अपनाओ और उ ह संतान का सुख दो,
जससे कु -वंश का दीपक सदैव जगमगाता रहे।’’
यास से अपनी माता का दःु ख देखा नह गया। उ ह ने उसी ण अपनी वीकृित दे दी, परं तु
कहा, ‘‘िफलहाल मेरी ऐसी थित नह है िक म अंिबका और अंबा लका के सामने जा सकूं ।
म अपना वेश बदल लूं, तब उनसे िमलूंगा।’’
‘‘नह पु !’’ स यवती बोली, ‘‘पहले ही काफ देर हो चुक है, अब और िवलंब करने क
आव यकता नह । तुम इसी प म बहओं से िमलो।’’
‘‘ठीक है माता!, जैसा तुम चाहती हो वैसा ही होगा, लेिकन मेरी एक बात सुनो‒दोन बहओं
ने मेरे कु प मुख पर यान िदए िबना मुझे सहयोग िदया तो उनसे गुणवान व पवान संतान
उप होगी।’’ यास ने कहा, ‘‘तुम दोन बहओं को तैयार करो, म इसी समय उनसे
िमलूंगा।’’
अंिबका जानती थी िक वंश को बचाने का एकमा यही उपाय है, इस लए उसने द ु हन-सा
ंगार िकया और शयनक म पहच
ं कर यास क ती ा करने लगी।
थोड़ी देर के बाद यास शयनक से बाहर िनकले और स यवती से बोले, ‘‘अंिबका एक
सुंदर बालक को ज म देगी। वही इस रा य का उ रा धकारी होगा, िकंतु वह बालक ज म से
अंधा होगा, य िक अंिबका ने सहवास के समय अपनी आंख बंद कर ली थ ।’’
स यवती ने यास से कहा, ‘‘पु ! तुम एक बार अंबा लका से भी िमल लो।’’
अंबा लका भी शयनक म सोलह ंगार िकए बैठी थी, लेिकन उसने भी जैसे ही यास के
दशन िकए, डर के मारे पीली पड़ गई।
स यवती अंिबका से िमली और कहा, ‘‘पु ी! यह तो बहत बुरा हआ। उिचत यही है िक तुम
एक बार िफर यास का संसग ा करो। यान रहे, इस बार तु ह यास को स कर देना
है, तािक जो पु ज म ले, वह हर ि से उ म हो।’’
अंिबका मान तो गई, परं तु उसके मन से भय अभी गया नह था। पुनः यास के संसग म
जाने क क पना मा से वह सहर उठी। उसने अपनी एक दासी से अनुरोध िकया, ‘‘सखी!
तु ह इस यास से बचाओ, अ यथा म तो मर जाऊंगी।’’
उधर स यवती ने यास से एक बार िफर अंिबका से िमल लेने का अनुरोध िकया। यास
इस बार अंिबका के कमरे म पहच
ं े तो दासी ने यास को पूरा सहयोग दान िकया। यास
संतु हो गए, इस लए आगे चलकर दासी को जो पु उ प हआ, वह िवकारहीन और
ानवान हआ।
चूंिक धृतरा अंधे थे, इस लए उ ह ने रा या धकार अपने छोटे भाई पांडु को स प िदया था।
पांडु का िववाह दो क याओं से हआ था‒एक का नाम था मा ी व दसरी
ू का नाम कुं ती।
कुं ती राजा शूरसेन क पु ी थी, जो ीकृ ण के िपतामह थे। कुं ती का शैशवकाल कुं ितभोज
के यहां बीता था। कुं ितभोज राजा शूरसेन के फुफेरे भाई थे और िनःसंतान थे, इस लए राजा
शूरसेन ने अपनी पहली संतान क या पृथा कुं ितभोज को स प दी थी। यही क या पृथा आगे
चलकर कुं ती के नाम से जानी गई।
एक बार क बात है। कुं ितभोज के यहां ऋिष दवु ासा का आगमन हआ। कुं ती ने उनक
िवशेष सेवा क । इससे ऋिष दवु ासा अ यंत स हए। उ ह ने कुं ती को एक मं सखाया और
बोले, ‘‘तुम जस देवता का मरण करके यह मं जपोगी, वह देवता तु हारे पास पहच
ं जाएगा
और तु ह तेज वी व तप वी पु -र न का फल देगा।’’
ऋिष दवु ासा तो यह वरदान देकर चले गए, परं तु कुं ती क बाल बुि मचलने लगी। सोचा,
य न इस मं का ताप देखा जाए। बस, यह सोचते ही उसक ि एकाएक आकाश क
ओर उठ गई, जहां सूय तेजी से चमक रहा था। कुं ती ने मं का जाप करके सूय को याद
िकया। पलक झपकते ही सूय कुं ती के सामने उप थत थे। कुं ती ने तो हा य-प रहास म सूय
को बुलाया था। एकाएक उ ह अपने सामने पाकर कुं ती भयभीत हो गई, िकंतु ऋिष दवु ासा का
वरदान िवफल कैसे जाता, इस लए सूय ने कहा, ‘‘कुं ती! डरो मत, म तु ह पु का फल देता
ह।ं यह पु अ यंत तेज वी व तप वी होगा। ज म से ही वह कुं डल व कवच धारण करके
उ प होगा। यही कुं डल व कवच उसे सदैव िवपदाओं से बचाए रखगे।’’
यथासमय कुं ती ने एक परम तेज वी िशशु को ज म िदया, जो कुं डल व कवच धारण िकए
हए था। समाज के भय से कुं ती ने िशशु के ज म लेते ही उसे नदी म बहा िदया।
यह िशशु नदी म नहा रहे अ धरथ को ा हआ, जो कु राज का रथचालक (सारथी) था।
अ धरथ िनःसंतान था, इस लए िशशु को पाकर उसके हष का िठकाना न रहा। उसने िशशु का
नाम वसुसेन रखा और बड़े लाड़- यार से उसका पालन-पोषण करने लगा। यही िशशु वसुसेन
बड़ा होकर कण के नाम से िव यात हआ।
उधर जब कुं ती िववाह यो य हई तो वयंवर का आयोजन िकया गया। वयंवर म राजकु मार
पांडु भी पधारे थे। कुं ती ने वरमाला उ ह के गले म डालकर उ ह अपना आरा य देव मान
तीसरे राजकु मार िवदरु का िववाह राजा देवक क पवती क या पारशवी से संप हआ।
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उसी शाल वन म रहता था‒िहरण का एक जोड़ा। यह िहरण दंपित व तुतः ऋिष पित-प नी
थे। एक बार जब वे शाल वन म काम-के ल म म थे, तभी पांडु िशकार खेलने के उ े य से
वहां पहच
ं गए। सामने जोड़े को देखकर उनका मन िशकार के लए मचल उठा। उ ह ने धनुष
संभाला और एक बाण छोड़ िदया, जो सीधे िहरण को जा लगा। िहरण उस समय भाव-िवभोर
था, बाण लगते ही धरती पर िगरकर छटपटाने लगा। उसने मरते-मरते पांडु को शाप िदया‒
जब कुं ती को पित के दःु ख का कारण मालूम हआ तो उसे त काल ऋिष दवु ासा का वरदान
याद हो आया। वह अभी ऋिष ारा दान िकया गया मं भूली नह थी।
इस पर कुं ती ने अपनी पूरी कहानी सुना दी और यह भी बता िदया िक िकस कार खेल-
खेल म सूयदेव से उसने सौभा य ा िकया था।
यम ने वरदान देकर कहा, ‘‘एवम तु! कुं ती! तु हारा यह पु मानव म े , ईमानदार,
स यि य और वीर होगा। यह यु धि र कहलाएगा अथात् यु का िवजेता।’’
कुं ती तो तीन-तीन पु क माता बन चुक थी, जबिक मा ी अभी तक िनःसंतान थी। कुं ती
तीन पु से ही संतु हो गई थी। वह आगे अब कोई संतान नह चाहती थी, जबिक पांडु और
पु के इ छु क थे। उधर मा ी क भी इ छा थी िक वह भी माता बने। इस लए वह कुं ती से
िमली और बोली, ‘‘कुं ती बहन! मेरी कोख सूनी रहेगी? मुझे भी माता बनने का सौभा य ा
करने दो।’’
सच था, माता बने िबना हर नारी अधूरी होती है। मा ी क मनो यथा कुं ती से सही नह गई,
इस लए उसने मा ी के लए भी मं के बल पर अ वनी कु मार को बुलाया। अ वनी से उसे
दो जुड़वां पु -र न ा हए‒ नकु ल और सहदेव। ये पांच भाई पांडव कहलाए।
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इं अपने पु अजुन को हर संकट से बचाकर रखना चाहते थे। अजुन को सबसे यादा डर
कण से ही था, य िक सूय ने उसे जीवनर क कुं डल और कवच दे रखे थे। इं िकसी भी
कार ये कुं डल और कवच ा कर लेना चाहते थे।
‘‘जो मांगूग
ं ा िमलेगा?’’ इं ने पूछा।
परशुराम ोध से बोले, ‘‘यह तुमने ठीक नह िकया। गु से झूठ बोलकर तुमने पाप िकया
है। तुमने जस ा क िव ा पाने के लए यह छल-बल िकया है, उसी ा को उस
समय चलाना भूल जाओगे, जब तु ह उसक परम आव यकता होगी।’’
□□
एक िदन पांडु मा ी के साथ वन- मण के लए िनकले थे। चार ओर बसंती बयार बह रही
थी और डाल-डाल पर फूल खले थे। ऐसे वातावरण का पांडु पर बड़ा उ े जत भाव हआ। वे
िहरण के अिभशाप को भूल गए और ेम करने को उनका दय मचलने लगा। उ ह ने मा ी को
अपने आ लंगन म भर लया।
मा ी को इससे बहत दःु ख हआ। उसने अपने दोन पु ‒ नकु ल और सहदेव को कुं ती के
ज मे छोड़ िदया और वयं पित के साथ ही िचता म मृ यु का वरण िकया।
□□
खेल-कू द के दौरान भीमसेन अपनी शरारत से बाज नह आता था। वह शरीर से सबसे
बलवान था। इस लए जब भी अवसर िमलता, कौरव ाताओं से छे ड़खानी अव य करता।
िवशेषकर दयु धन को परे शान करने म भीम को बड़ा आनंद आता। कभी तो वह उसे
जानबूझकर भूिम पर पटक देता या कभी वृ पर चढ़ता तो वृ को बुरी कार िहलाकर उसे
नीचे िगरा देता।
एक िदन राजकु मार नौका िवहार के लए िनकले। नदी तट पर खाना खाते समय दयु धन ने
भीम के खाने म िवष िमला िदया। िवष के भाव से वह बेहोश हो गया। जब खा-पीकर सभी
आगे बढ़ गए तो दयु धन ने चुपके से बेहोश भीम को नदी म िगरा िदया।
ोणाचाय बहत यो य गु थे। उ ह ने राजकु मार को पहला पाठ सखाने से पूव कहा था,
‘‘राजकु मारो! मेरी बात सुनो, मुझे वचन दो िक जब तुम लोग क िश ा पूण हो जाए तो मेरी
एक इ छा पूण करोगे।’’
सभी मौन, लेिकन अजुन से मौन नह रहा गया। वह उ साह से बोला, ‘‘म आपक इ छा
अव य पूण क ं गा।’’
अजुन के उ र से ोणाचाय बड़े स हए। वैसे तो वे सबसे एक समान यवहार करते थे,
लेिकन अजुन के ऊपर उनका िवशेष अनुराग रहने लगा।
□□
‘‘कैसी बात करते हो, िम !’’ ुपद ने उ र िदया, ‘‘भला शैशव काल क िम ता कोई
भुला पाता है। सुनो, जब म पांचाल देश का राजा बनूग
ं ा, तब तु ह िकसी भी समय मेरी
सहायता क आव यकता पड़े तो िनःसंकोच मेरे पास चले आना। म तु हारी हरसंभव सहायता
क ं गा।’’
ोण ने बड़ी िवन ता से कहा, ‘‘दे खए! म पांचाल नरे श से िमलना चाहता ह।ं ुपद मेरा
बचपन का िम है।’’
‘‘बचपन का िम है!’’ ारपाल यं य से बोले, ‘‘जाओ भइया, जाओ! यहां तु हारी भांित
अनेक लोग िम बनकर आते ह।’’
दरबार म ुपद ऊंचे संहासन पर गव से बैठा था। चार ओर दरबारी खड़े थे। उनके बीच
ोण राजा के सामने ऐसे खड़े थे, जैसे कोई दीन-हीन िभखारी हो।
ुपद उ ह अनिभ क कार घूरकर देख रहा था, िफर पूछा, ‘‘ या म जान सकता हं िक
तुम कौन हो और यहां या करने आए हो?’’
अंितम यास करते हए ोण बोले, ‘‘ ुपद! याद करो, तुमने आ म छोड़ते समय मुझसे या
कहा था। या बचपन क िम ता इतनी शी भूल गए?’’
ोण ने सुना और मौन रहे। वे समझ गए िक ुपद राजा बनकर अहं से सारी स दयता भुला
बैठा है। ऐसे ाणी से सहयोग क आशा रखना यथ था। वे चुपचाप जाने को उ त हए।
ुपद बोला, ‘‘ठहरो ा ण! तुम हमारे यहां याचक बनकर आए हो, हम तु ह ऐसे नह जाने
दगे। हमसे िम ता क उ मीद मत रखो, िकंतु तु ह कु छ भट अव य िमलेगी।’’
इतना कहकर ुपद ने एक दरबारी को कु छ आदेश िदया, िफर ोण से कहा, ‘‘याद रखो,
थाई िम ता नाम क कोई व तु नह होती। यह तु हारा बचपना है। कभी थितय ने हम एक-
दसरे
ू के समीप ला िदया था, िकंतु उस समीपता के र ते को हमेशा कायम नह रखा जा
सकता, य िक थितयां बदल चुक ह। समय बड़ा बलवान है।’’
□□
एक िदन क बात है। सभी राजकु मार आखेट के लए वन म गए। बहत दरू िनकल जाने के
बाद उ ह ने देखा िक वन म एक युवक धनुष-बाण का अ यास कर रहा है। राजकु मार के
साथ था‒ एक कु ा। उसने जैसे ही वन म एक अनिभ युवक को देखा, वह भ कने लगा।
सभी राजकु मार चिकत रह गए। वे दौड़े-दौड़े उसके पास गए। अजुन ने पूछा, ‘‘तुम कौन
हो?’’
ह तनापुर वापस आकर उसने गु देव से भट क और बोला, ‘‘यह कैसा याय है गु देव!
आपने तो कहा था िक आप मा राजपु को ही िश य बनाएंग,े िफर एक िनषाद पु को िश य
बनाने का या अथ है?’’
‘‘म ठीक ही कह रहा हं आचाय!’’ अजुन बोला, ‘‘म उसे अभी-अभी वन म देखकर आ
रहा ह।ं ऐसा पटु तीरं दाज मने आज तक नह देखा। आप तो कहते थे िक म ही आपका ि य
िश य ह,ं िफर िनषाद पु पर इतना ेम य ? उसने वयं बताया है िक आप ही उसके गु
ह।’’
ोणाचाय कु छ सोचकर बोले, ‘चलो, मुझे भी िदखाओ, कौन है वह तीरं दाज, जो मेरा िश य
होने का दावा करता है।’’
‘‘गु देव!’’ एकल य ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘जब आपका साि य पाने से म वंिचत रहा
तो वन म आकर आपक ितमा बनाई और उसी के सामने तीरं दाजी का अ यास करने
इतना जिटल आदेश सुनकर एकल य तिनक भी िवच लत नह हआ, ‘‘जो आ ा।’’ यह
कहकर अपने उसने दािहने हाथ का अंगूठा काटकर गु देव के चरण म रख िदया।
□□
ोणाचाय ने इस कार एक-एक करके सभी राजकु मार से यही न पूछा। सभी ने िचिड़या
के अलावा अनेक व तुओं के नाम िगनाए। अब ोणाचाय ने अजुन को बुलाया और पूछा, ‘‘हे
अजुन! तु ह वृ म या िदखाई दे रहा है?’’
इतना सुनना था िक अजुन ने कमान पर तीर चढ़ाया और ख चकर तीर छोड़ िदया। तीर
एक झटके से िचिड़या के सर पर जा लगा और सर का िह सा कटकर धरती पर आ िगरा।
एक बार ोणाचाय नदी म नहा रहे थे। एकाएक एक मगरमछ ने ोणाचाय क जांघ मुंह म
पकड़ ली। ोणाचाय छटपटाने लगे। गु के ाण िवपदा म देखकर अजुन ने एक के बाद एक
पांच तीर से मगरम छ को मार डाला और ोणाचाय क ाणर ा क ।
□□
अजुन यु -कला के येक े म वीण था। भीम भारी गदा उठाकर िकसी भी हमलावर
को धराशायी कर सकता था। इस िव ा म दयु धन भी कम नह था। यु धि र रथ-यु क था।
ोणाचाय ने महाराज धृतरा को सूचना दी, ‘‘राजन! मने सभी राजकु मार को यु -कला
एवं श -िव ा म पूण वीण कर िदया है। अब म उनक कलाओं का सावजिनक दशन
करना चाहता ह,ं तािक उनक यो यता का माण िमल सके।’’
□□
एक बहत बड़े मैदान म समारोह का आयोजन िकया गया था। मैदान के चार ओर दशक
के बैठने क यव था क गई थी। दर-द
ू रू से लोग उ साह से राजकु मार का दशन देखने आए
थे। आम जनता के अलावा िविभ देश से मह वपूण लोग भी पहच
ं े थे। सारा समारोह- थल
लोग के शोर-शराबे से गूज
ं रहा था।
सामने एक ऊंचे आसन पर राजा धृतरा , रानी गांधारी, मं ीगण व दरबारी बैठे थे। धृतरा
क बगल म ही बैठा था‒संजय। वही धृतरा को आंख देखा हाल सुनाया करता था, य िक
ज मजात अंधे होने के कारण धृतरा वयं तो कु छ देख नह पाते थे।
िफर एक-एक करके राजकु मार आगे बढ़ते और जनसमूह को अपने-अपने ि य ह थयार
का कौशल िदखाते। येक कौशल से उप थत जनसमुदाय स ता से झूम उठता।
संजय येक घटना का िववरण िव तार से धृतरा को सुना रहा था। पांडव क क ित से
धृतरा को स ता तो हो रही थी, लेिकन अपने पु का गुणगान न सुनकर य थत भी थे।
सभी लोग ने च ककर युवक क ओर देखा। वह तेज वी था, वीरता उसके शरीर से फूटी
पड़ रही थी, शरीर पर कवच और कान म कुं डल झूल रहे थे। वह सूय पु कण था। आज से
पहले उसे िकसी ने नह देखा था। वह भी िविभ अ म पारं गत होकर इस बहचिचत
आयोजन को देखने आया था। अजुन ने जो भी दशन िकया था, उसका कण क ि म कोई
मह व नह था, य िक ये सारे दशन तो उसके बाएं हाथ के खेल थे।
‘‘अरे , देखो तो कौन है? कैसा वीर है? कहां से आया है?’’
दयु धन ने कण से कहा, ‘‘बंधु! हम तु हारी इ छा का आदर करते ह। तुम हमारे साथ रहो,
हम अपना ही मानो, हम हर थित म तु हारी इ छा पूण करगे।’’
दयु धन बोला, ‘‘हां-हां, य नह । आगे बढ़ो नौजवान! हमारी शुभकामनाएं तु हारे साथ
ह।’’
अजुन अब तक चुपचाप खड़ा था, िकंतु अब उससे सहा नह गया। वह बोला, ‘‘जो बहारी
लोग िबन बुलाए और अनामंि त पहच
ं कर अपनी शेखी बघारते ह, उनके साथ कैसा यवहार
करना चािहए, यह म भलीभांित जानता ह।ं तु ह भी म अ छा सबक दग
ं ू ा।’’
अजुन के भाई उसे घेरकर खड़े हो गए थे और शेष कौरव अपने बड़े भाई दयु धन के आस
पास जमा हो गए थे।
कृपाचाय ने कण से कहा, ‘‘हे वीर युवक! तुम जानते हो िक अजुन राजा का पु है, अब
तुम भी अपने कु ल के बारे म बताओ िक तुम कौन हो, िकस वंश से तु हारा संबध
ं है, तभी
अजुन से तु हारा ं यु हो सकता है। हमारी परं परा है िक ं यु तभी संभव है, जब दोन
प के वीर का संबध
ं राजकु ल से हो।’’
कण ने अपने पालक िपता सारथी के चरण छु ए, धमिपता ने उसे आशीवाद िदया। कण आगे
बढ़ा।
तभी भीम ने यं य से कहा, ‘‘अरे ! यह कैसा राजा है, जो मामूली सारथी के पांव छू रहा है।
सारथी भी कैसा? जो यु के रथ का संचालन नह करता, ब क भाड़े का रथ चलाता है।
भले ही आज से यह अंग देश का राजा बन गया, पर यह स चाई तो िछप नह सकती िक यह
एक मामूली सारथी का पु है। जाओ भैया! यु का मैदान तु हारे जैस के लए नह है, तुम तो
जाकर घोड़े क लगाम पकड़ो।’’
जनसमूह म खलबली मच गई। कई लोग को दयु धन क घोषणा पसंद नह आई, िकंतु भीड़
म कु छ लोग ऐसे भी थे, जो कण क वीरता का आदर करते थे। लोग क उ सुक ि मैदान
के बीचोबीच िटक हई थी। अब ं यु को टालना किठन तीत हो रहा था।
तभी सूरज सरकता हआ अ त हो गया। चार ओर शाम का अंधरे ा फैल गया। त कालीन
यु का िनयम था िक सूया त के बाद यु नह हो सकता, इस लए कृपाचाय ने समारोह के
□□
‘‘हे राजकु मारो! तु ह याद है िक िश ा आरं भ करने से पहले मने तुमसे एक वचन लया
था।’’
‘‘हां याद है।’’ अजुन बोला, ‘‘आपने कहा था िक िश ा समाि के प चात् हम आपक
एक इ छा पूण कर।’’
‘‘आज वह िदन आ गया है जब तुम मेरी इ छा पूण करो। इस िदन क म बड़ी उ सुकता से
ती ा कर रहा था।’’
‘‘गु देव! हम तैयार ह।’’ राजकु मार ने कहा, ‘‘आप आदेश द, हम या करना है?’’
राजकु मार के लए यह कोई किठन काय नह था। वे त काल तैयार हो गए। वे बोले,
‘‘गु देव! हम पल भर म पांचाल सेना को न करके ुपद को आपके सामने खड़ा कर दगे।
हम आशीवाद दी जए।’’
राजकु मार अपने-अपने अ लेकर पांचाल क ओर थान कर गए। सभी उ साह म थे।
आज पहली बार उ ह अपने अ -श को खुलकर योग करने का अवसर िमला था।
दयु धन अपने साथ कण को भी ले गया था।
पांचाल पहच
ं कर उ ह ने सचमुच कु शलता से वीरता का दशन िकया। उनके आ मण को
रोकना पांचाल क सेना के लए किठन था। शी ही पांचाल नरे श को राजकु मार ने अपने
हाथ म ले लया। ुपद परा जत हो चुका था। उसने राजकु मार के सामने आ मसमपण कर
िदया। राजकु मार राजा ुपद को बंदी बनाकर अगले कु छ िदन म ही ह तनापुर ले गए।
ुपद को बंदी अव था म गु के आगे खड़ा कर राजकु मार बोले, ‘‘ली जए! आपका बंदी
उप थत है।’’
ोणाचाय ने ऊपर से नीचे तक एक बार ुपद क ओर देखा, िफर बोले, ‘‘राजन! तु ह याद
है, एक बार जब म तु हारा िम बनकर एक याचक के प म तु हारे पास पहच
ं ा था, तब
तुमने या कहा था? तुमने कहा था, एक राजा भला एक याचक का िम कैसे बन सकता है
और आज तुम मेरे सामने एक याचक के प म खड़े हो।’’
ोणाचाय बोले, ‘‘पांचाल को मेरे आदेश से मेरे िश य राजकु मार ने न िकया है। म चाहं
तो तु ह भी पल भर म समा कर सकता ह,ं परं तु म ऐसा नह क ं गा।’’
‘‘अंततः तुम मेरे बचपन के साथी हो। म तो मा तु ह सबक सखाना चाहता था। तुमने
कहा था िक तु हारी िम ता केवल राजा से ही हो सकती है, अतएव म तु हारे रा य का आधा
िह सा अपने अ धकार म लेता हं और शेष आधा तु ह स पता ह।ं लो, अब म भी राजा हो गया।
अब तो तु ह मेरी िम ता से कोई िगला नह ।’’
ुपद परा जत राजा था, इस लए चुपचाप सुनने के अलावा उसके पास और कोई चारा नह
था, लेिकन मन-ही-मन वह ताव खा रहा था। सोचा, यहां से फुसत पाते ही म ोण को इस
करनी का मजा अव य चखाऊंगा।
इस कार ुपद को आधा रा य वापस देकर तथा वयं आधे रा य का वामी बनकर
गु देव ने राजकु मार से िवदा ली और पांचाल चले गए।
□□
ुपद का येक पल इसी िचंता म यतीत होता था िक ोणाचाय को िकस कार िवन
िकया जाए।
गु देव ोणाचाय के चले जाने के बाद कौरव-पांडव राजकु मार का मनमुटाव मशः बढ़ता
ही जा रहा था। दयु धन पांडव से अ यंत जलता था, य िक पांडव ाता न केवल अ धक वीर
थे, ब क जा म लोकि य भी थे।
इधर धृतरा भी िचंितत थे। वे सोचते थे, उनके बाद कौरव ाताओं का या होगा, या
पांडव उ ह सुख से रहने दगे?
□□
अब धृतरा को अपने पु क िचंता हई। वे सोचने लगे, एक िदन पांडव राजा बन जाएंगे
और अपने सुकाय ं से जन-जन का दय जीत लगे, तब मेरे पु का या होगा? कह ऐसा तो
नह होगा िक एक िदन बलशाली होकर वे मेरे पु को उनके अ धकार से ही वंिचत कर द।
पु भले ही िनक मे ह , परं तु कौन-सा िपता उनका अिहत सोचेगा!
‘‘िकंतु...।’’
‘‘पु ! जो तुम उिचत समझो वही करो।’’ धृतरा ने लाचारी से कहा। दरअसल, धृतरा
खुलेआम अपने भतीज के िव कोई कदम उठाना नह चाहते थे। पांडव क कायकु शलता
से भािवत थे, परं तु यह अव य चाहते थे िक उनके पु के भिव य पर भी कोई आंच नह
आनी चािहए।
□□
‘‘राजन! आपने मुझ पर जो भरोसा रखा है, उसे ाण-पण से िनभाने का यास कर रहा
ह।ं ’’
‘‘ह।ं ’’ धृतरा ने कहा, ‘‘मने सुना है िक तुम आजकल बहत य त रहते हो, हमेशा राज-
काज म म । स य तो यह है िक म तु हारे जैसा सहायक पाकर बहत स ह।ं काश! म भी
तु ह कोई सहयोग दे पाता। खैर, म सोचता हं िक अब तु ह कु छ िदन के लए िव ाम करना
चािहए। इतनी य तता भी िकस काम क ! उिचत यह है िक तुम अपनी माता और भाइय
सिहत राजधानी से दरू िकसी रमणीक थान पर चले जाओ और िन चंत होकर मण करो।
अब सोचना यह है िक तु ह कहां भेजना चािहए।’’
□□
िवदरु को दयु धन क कू ट योजनाओं का पूरा ान था। पांडव को िवदा करते समय िवदरु ने
उ ह कू ट भाषा म सावधान कर िदया, ‘‘सुनो यु धि र! श ुओं से हमेशा सावधान रहना
चािहए। जो श ुओं को पहले ही पहचान लेता है, वह कभी मात नह खाता। कु छ ह थयार ऐसे
भी होते ह जो लोहे के नह होते, परं तु जनका वार घातक होता है। ऐसे ह थयार से हमेशा
□□
िशवराि के अवसर पर पांडव को सचमुच बड़ा आनंद आया। आम जनता के साथ िमल-
जुलकर पांडव ने उ सव म भाग लया और खूब आनंद िकया।
सचमुच दयु धन क यही योजना थी। पुरोचन के इस भवन म वह पांडव को मारकर हमेशा
के लए िन चंत हो जाना चाहता था।
यु धि र जानते थे िक िवदरु उनके शुभिचंतक ह। अतः पूछा, ‘‘कैसे आना हआ? चाचा
िवदरु ने तु ह य भेजा है?’’
‘‘म सुरंग खोदने म मािहर ह।ं अि लकड़ी और सन को शी ता से पकड़ लेती है, िकंतु
सुरंग म नह पहच
ं सकती।’’ आगंतुक बोला, ‘‘दयु धन ने पुरोचन को आदेश िदया है िक माह
के कृ ण प म वह इस महल को म य राि म उस समय आग लगा दे, जब आप लोग गहरी
न द म सोए हए ह ।’’
‘‘आप घबराइए मत।’’ आगंतुक बोला, ‘‘म इसी बीच महल के िकसी सुरि त कोने म
सुरंग बना दग
ं ू ा, तािक महल म आग लगते ही आप सकु शल बाहर िनकल जाएं।’’
कुं ती ने उस िदन वारणावत िनवा सय को भवन म खाने क दावत दी। लोग स तापूवक
भवन म पहच
ं े और पांडव के साथ िमल-जुलकर भोज का आनंद उठाया।
म य राि से पहले ही भोजन समा हो गया। पांडव ने अित थय को िवदा िकया और वयं
भी आपस म िनणय कर लया िक अब उ ह शी -अितशी भवन को याग देना चािहए।
आधी रात को एक-एक कर चार भाई माता कुं ती सिहत उस गु सुरंग से बाहर िनकल
गए। केवल भीम महल म रह गया, य िक उसे ही भवन म आग लगानी थी। पुरोचन अपने
कमरे म गहरी न द म सोया हआ था। भीम ने पहले उसी के कमरे म आग लगाई, जो शी ही
पूरे भवन म फैलने लगी। इसी बीच भीम भी सुरंग के माग से बाहर िनकल चुका था।
□□
□□
भीम बोला, ‘‘म तु हारे भाई से नह डरता। तु हारा भाई या तुम हम हाथ भी नह लगा
सकते।’’
अगले ही पल वे दोन दो पवत क कार आपस म टकरा गए। दोन बलशाली थे। उनक
मुठभेड़ से धरती डोल उठी और वातावरण म धूल का गुबार उठने लगा। रा स जोर-जोर से
चीखकर भीम को पछाड़ने का यास कर रहा था।
िहिडंबा बोली, ‘‘यह मेरा भाई िहडंब रा स है, जो आप लोग को खाने के लए यहां आया
है।’’
कुं ती बोली, ‘‘यह तो अनाचार है। तुम अपने भाई को रोकती य नह ?’’
‘‘म आप लोग को बचाना चाहती ह,ं परं तु भीम ने मेरा ताव ठु करा िदया।’’
इतना कहकर भीम ने िहडंब को दोन हाथ से पकड़कर ऊपर उठाया और जोर से धरती पर
पटक िदया। धरती पर िगरते ही िहडंब ने दम तोड़ िदया।
भीम को यह बात अ छी नह लगी। उसने ो धत होते हए कहा, ‘‘सुंदरी! हमारे पीछे जाने
क आव यकता नह , अ यथा मुझे िववश होकर तु हारे साथ भी वही यवहार करना पड़ेगा जो
तु हारे भाई के साथ िकया है।’’
िहिडंबा क आंख भर आई।ं वह कुं ती से याचना करती हई बोली, ‘‘हे माता! आप ही भीम
को समझाइए, म उनके िबना जी नह सकती। कृपया उ ह आदेश दी जए िक वे मेरे साथ
िववाह कर ल।’’
कुं ती असमंजस म पड़ गई। यु धि र पास ही खड़े थे। उ ह िहिडंबा पर दया आ गई। बोले,
‘‘भीम! तु ह ऐसी नारी का ेम नह ठु कराना चािहए, जो मन- ाण से तु ह अपनाना चाहती
है।’’
□□
पांडव ने अपना भेष बदल लया था, तािक उ ह कोई पहचान न सके।
उ ह पता नह था िक इस भटकन का अंत कहां होगा। बस, वे नदी, नाले, पहाड़ और जंगल
पार करते हए िनरं तर आगे बढ़ते जा रहे थे। ह तनापुर पीछे छू टता जा रहा था और आगे
कुं ती अपने पु को इस कार दीन-हीन थित म देखकर मन-ही-मन रोती थी। एक िदन
उससे रहा नह गया तो अपने पु से पूछा, ‘‘अंततः इस कार कब तक भटकते रहोगे
यु धि र?’’
यु धि र क बात सच िनकली।
□□
एक िदन क बात है, जस ा ण के घर म पांडव रहते थे, वहां शोक छाया हआ था।
प रवार का येक सद य रो रहा था। शोक करने क विन सुनकर पांडव अपनी माता के
साथ त काल ा ण के पास पहच
ं े और पूछा, ‘‘ या क है भाई! इतना य रो रहे हो?’’
‘‘जो आ ा माताजी!’’
भीम जाने को जैसे ही मुड़ा, यु धि र ने उसे रोककर माता से कहा, ‘‘माता! भीम को मत
भेजो। हम भीम क आव यकता है। भीम को हम िवपदा म नह डाल सकते। अजुन क भी हम
‘‘म तु हारी भावनाओं का आदर करती हं यु धि र!’’ कुं ती बोली, ‘‘परं तु मेरा िनणय सही
है, तुम भीम को रा स के पास जाने दो, वह िवजयी होकर ही लौटेगा।’’
भीम ने उसे पास आते देखा तो बोला, ‘‘बस-बस! वह खड़े रहो। अब देखो, म कैसे खाता
ह।ं ’’ यह कहकर भीम वयं ही दोन हाथ से अ उठाकर खाने लगा।
बकासुर पहले ही भूख से बेहाल था, ऊपर से भीम क यह हरकत देखकर उसका शरीर
ोध से थर-थर कांपने लगा। वह चीखकर बोला, ‘‘कौन हो तुम? मेरा खाना खाने का तु ह
या अ धकार है?’’
भीम बोला, ‘‘बैल बेचारे कह घास चर रहे ह गे। मुझे दःु ख है िक आज तु ह कु छ भी खाने
को नह िमलेगा और सुनो! मुझे चुपचाप खाने दो, खाने के समय मुझे तु हारा चीखना-
िच ाना या मारपीट करना तिनक भी पसंद नह ।’’
बकासुर के ोध क सीमा नह रही। उसने आगे बढ़कर भीम पर दो-चार और घातक वार
िकए, परं तु भीम ने िफर भी उसक ओर देखा तक नह और चुपचाप खाता रहा। अपने हार
का भीम पर कोई असर न देखकर उसने भीम को ख चकर गाड़ी से हटाना चाहा, लेिकन भीम
को वह तिनक-सा भी िहला तक नह पाया। भूख और थकावट से बकासुर बेहाल हो गया। वह
दांत भ चकर बोला, ‘‘म कहता ह,ं भाग जाओ यहां से, अ यथा म तु ह खा जाऊंगा।’’
भीम बोला, ‘‘हां, तुम अब तक उन बेचारे ािणय को खाते ही रहे हो, जो तु हारे लए
खाना लाते थे, िकंतु अब तुम ऐसा कभी नह कर सकोगे।’’
वयंवर- थल अित िवशाल था। थल के बीचोबीच एक मंच पर भारी धनुष खड़ा हआ था।
वह पर एक बड़ी-सी कड़ाही म तेल भरा हआ था और पास म एक यं पर एक नकली मछली
तेजी से घूमती हई लटक रही थी। सभा थल के दोन ओर देश-िवदेश के नामी नरे श,
राजकु मार अपनी िक मत आजमाने बैठे थे। चार ओर ऊंची-ऊंची दीघाएं बनी थ , जन पर
दशकगण बैठे हए आज के भ य समारोह के शु होने क आतुरता से ती ा कर रहे थे।
वयंवर क शोभा िनहारने ीकृ ण भी ा रका से पधारे थे। पांडव ा ण-वेश म दशक-
दीघा म वहां बैठे थे, जहां ा ण समुदाय बैठा था। चार ओर शोर गूज
ं रहा था।
थोड़ी देर म ही ौपदी अपने िपता ुपद एवं भाई धृ ु न के साथ समारोह- थल पर आ
पहच
ं ी। एक ऊंचे आसन पर राजा सिहत भाई-बहन बैठ गए। सभा म स ाटा छा गया। सभी
‘‘हे स मािनत आगंतुको! आपका वागत है। जैसा िक आप जानते ह, आज राजकु मारी
ौपदी का वयंवर है। राजकु मारी उसी वीर पु ष का वरण करे गी, जो तेल क कड़ाही म
मछली क परछाई क ओर देखते हए इस धनुष से तीर चलाकर यं पर लटके ल य को पांच
बार भेद देगा। अब आप लोग एक-एक कर आगे बिढ़ए और अपनी धनुिव ा का प रचय
दी जए। सफल धनुधारी ही राजकु मारी ौपदी का पित बनने का सौभा य ा करे गा।’’
इतना कहकर धृ ु न बैठ गया। सभा म िफर शांित छा गई। सबक ि सभा थल के
बीचोबीच तेल क कड़ाही, धनुष तथा ऊंचाई पर लटके मछली के िनशान क ओर उठ गई।ं
सभी क उ सुकता यह जानने क िक कौन वीर िनशाने को तीर से भेदकर ौपदी को ा
कर पाता है।
दयु धन के साथ-साथ अ य अनेक राजा व राजकु मार भी असफल होकर सर झुकाए बैठे
थे, तभी कण अपनी जगह से उठा और धनुष क ओर बढ़ा।
कण सधे पग से आगे बढ़ा और पलक झपकते ही धनुष उठा लया। जब उसने तेल म
ल य क परछाई क ओर ि गड़ाकर धनुष क यंचा ख ची, तभी सभा थल म ौपदी का
वर गूज
ं उठा, ‘‘म सारथी-पु का वरण नह कर सकती।’’
पास ही बैठे दयु धन ने कहा, ‘‘तुम वापस य लौट आए? तुमने ल य का भेदन य नह
िकया? ौपदी को बोलने का कोई अ धकार नह । या तुम जानते नह िक वयंवर का िनयम
है, क या कोई िवरोध कट नह कर सकती। जो भी शत पूरी करे गा, उसे ही क या वरे गी।’’
इस कार सम त राजकु मार व नरे श असफल होकर बैठ गए। यह देखकर पांडव का
ि य र खौलने लगा। भाइय के कहने पर अजुन अपनी जगह से उठा और धनुष उठाने
आगे बढ़ गया।
अजुन तो े धनुधारी था ही। उसने धनुष को यूं उठा लया, जैसे वह कोई खलौना हो।
िफर तेल क कड़ाही म देखते हए उसने िनशाने क ओर तीर भेदने शु कर िदए। एक-एक
करके उसके पांच तीर ठीक मछली पर जा लगे।
राजकु मार चीखे, ‘‘यह धोखा है। हम ि य को यहां बुलाकर राजा ुपद ने हमारा अपमान
िकया है। हम ि य-क या को ा ण क प नी नह बनने दगे। हम ौपदी को इस ा ण के
चंगुल से बचाकर ले जाएंग,े राजा ुपद को मार डालगे।’’
सभामंडप म हंगामा मच गया। सम त राजकु मार एकजुट होकर अजुन क ओर बढ़े, िकंतु
अजुन क रग म भी ि यर बह रहा था, वह अपनी प नी क सुर ा के लए तैयार हो
गया। उसने बढ़ते हए राजकु मार को ललकारा। अगले ही पल अजुन के शेष भाई भी मैदान म
कू द पड़े। वयंवर- थल यु का मैदान बन गया। पांडव एक-एक राजकु मार को अ छा सबक
सखाने लगे। भीम ने अपने दोन हाथ म वृ क दो मोटे तने थाम लए और उनको गदा क
भांित िहलाता हआ राजकु मार पर भीषण वार करने लगा। अजुन ने भी तीर के वार से
राजकु मार को लहहलान कर िदया। राजकु मार म खलबली मच गई। पांच पांडव वीरता से
लड़ते व सबको पछाड़ते ौपदी को वयंवर- थल से सुरि त ले आए। अजुन अपनी नववधु व
भाइय के साथ कु हार क ब ती क ओर चल पड़ा।
ौपदी ने आगे बढ़कर कुं ती के चरण पश िकए। कुं ती ने उसे दय से लगाकर कहा,
‘‘अजुन! मुझे हष है िक आज तुम पांचाल क राजकु मारी को जीत लाए हो। इतनी सुंदर
पु वधु पाकर तो म िनहाल हो गई। चलो, अंदर चलो। आओ पु ी! तुम भी अंदर आओ।’’
कुं ती कैसे सह सकती थी िक उसके वचन को मान लया जाए। सब अंदर आ गए तो कुं ती
धीरे से बोली, ‘‘पु ो! मने जो कु छ कहा था, वह अनिभ ता म कहा था। मुझे या पता िक तुम
लोग या ा करके आए हो। मने तो समझा था िक ितिदन क कार िभ ा लेकर आए हो,
इस लए मेरी बात पर यान मत देना। अजुन! तु हारी प नी पर केवल तु हारा ही अ धकार
रहेगा।’’
अजुन बोला, ‘‘माता का वचन मेरे लए अंितम आदेश है। ाता ी! तुम हम सबसे बड़े हो,
धमपरायण हो, यायि य हो, तु ह मुझे माता के आदेश का पालन करने से रोक रहे हो, यह
तो अनथ है। ाता ी! उिचत तो यही है िक अब तु ह िनणय करो, हम या करना चािहए?
ौपदी से कैसा यवहार करना चािहए?’’
‘‘इसम या किठनाई है।’’ ीकृ ण बोले, ‘‘भला वीर राजपु ष के िच िछप सकते ह। मने
तो तुम लोग को वयंवर म ही पहचान लया था।’’
‘‘अ छा!’’ ुपद स ता से बोले, ‘‘यह तो बहत ही शुभ समाचार है। अब म ोणाचाय के
अपमान का बदला बड़ी सुगमता से ले सकूं गा। शी ता से पांडव को संदेश भेजो िक िववाह
का िव धवत सं कार पूण करने को यहां पहच
ं जाएं।’’
□□
उनक यह िच देखकर पांचाल नरे श को उनक वा तिवकता जानने का बहाना िमल गया।
जब पांच भाई राजमहल घूमकर ुपद के पास पहच
ं े तो पांचाल नरे श ने यु धि र से कहा,
‘‘आप लोग क अ -श म असीम िच देखकर म शंका म पड़ गया ह।ं ा ण को
अ -श म कोई िच नह हो सकती, यह तो ि य का ही शौक है। आप तो कभी झूठ
नह बोलते, सच बताइए आप कौन ह?’’
‘‘ओह! दयु धन क ऐसी द ु ता। यह तो सरासर अ याय है। अ छा, अब भूल जाइए अपने
दख
ु द अतीत को।’’ पांचाल नरे श बोले, ‘‘मुझे स ता है िक ौपदी ने ि य वंशी अजुन का
ही वरण िकया। अजुन क वीरता से भला कौन अप रिचत है! अब आप लोग घबराइए नह ,
कौरव मेरे भी श ु ह। उ ह ने मेरा आधा रा य छीना है। हम अब िमलकर उनके अ याय का
मुकाबला करगे।’’
कु छ देर तक इधर-उधर क बात होने के बाद ुपद बोले, ‘‘अब हम ौपदी और अजुन का
शी िववाह कर देना चािहए, तािक हम लोग एक-दसरे
ू के िनकटतम संबध
ं ी बनकर श ुओं
का नाश करने को त पर हो जाएं।’’
‘‘म जो कु छ कहग
ं ा, उसे सुनकर आपको िविच तो लगेगा, लेिकन हम िववश ह।’’
‘‘हां, पांचाल नरे श! ौपदी हम पांच क प नी बनेगी। हम जब भी कोई व तु िमली है, उसे
हमने हमेशा आपस म बांटा है। इस बार भी ऐसा ही होगा।’’
यु धि र वयं इस त य को महसूस कर रहे थे, िफर भी बोले, ‘‘आपक बात उिचत है,
परं तु म िववश ह.ं ..।’’
ुपद बोले, ‘‘महिष! बड़ी िवकट सम या है। आप ही हम कोई माग िदखा सकते ह। भला
एक क या पांच पु ष को वर सकती है?’’
‘‘ओह!’’ महिष यास मु कराकर बोले, ‘‘तुम शायद ौपदी के बारे म िचंितत हो, िकंतु
ार ध यही है और तुम इसे रोक नह सकते। ौपदी के भा य म पांच पु ष का ही सुख लखा
है।’’
महिष बोले, ‘‘इसक लंबी कहानी है। सुनो, म तु ह बताता हं िक ौपदी को यह सौभा य
कैसे ा हआ। िपछले ज म म ौपदी का नाम नलयनी था। वह अ यंत सती सा वी ी थी।
उसक िगनती भारत क पांच आदश ना रय म होती थी। उसका िववाह एक महिष से हआ था,
जनका नाम मौ ग य था। वे न केवल शरीर से जजर व कृशकाय थे, ब क कोढ़ी व रोगी भी
थे, िकंतु नलयनी ने अपने पित से कभी घृणा नह क और हमेशा तन-मन से उनक सेवा
करते हए वयं को ध य अनुभव करती थी। पित जस हाल म रखता, वह उसी हाल म स
रहती थी। नलयनी युवा थी और सुंदर भी थी, िफर भी अपनी इ छाओं का दमन करके उसने
वष ं तक पित क िनः वाथ भाव से सेवा-सु ुषा क । एक िदन अचानक उसका पित व थ,
सुंदर और बलवान यि के प म प रवितत होकर बोला, ‘नलयनी! म तु हारी सेवा से बहत
स हआ ह।ं दरअसल, म न कोढ़ी था, न बीमार था और न ही बूढ़ा-कृशकाय। मुझे तो
देवताओं ने तु हारी परी ा लेने के लए भेजा था। तुम इस परी ा म पूणतः सफल रही हो।
नलयनी स होकर बोली, ‘मुझे तुम िमल गए, यही बहत है।’
नलयनी भावावेश म बोली, ‘मुझे पित चािहए‒ पित, पित, पित, पित...।’
हां, कौरव अव य ु ध थे। पांडव को मृत जानकर वे अब तक िन चंत थे, लेिकन पांडव
न केवल जीिवत थे, अिपतु पांचाल के श ु नरे श के संबध
ं ी भी बन गए थे।
‘‘नह महाराज! आप गलत समझे, ौपदी ने अजुन को वरा है।’’ िवदरु ने बताया।
दयु धन को िपता क यह बात जंची नह । उसने एकांत पाते ही धृतरा से बात क , ‘‘आप
कैसे िपता ह? आपको अपने पु के श ुओं क िवजय पर स ता हो रही है। आपको पता
नह , पांचाल नरे श ुपद हमारा श ु है।’’
‘‘अब हम पांडव से सतक रहना चािहए।’’ दयु धन बोला, ‘‘उिचत तो यही है िक पांडव
को िकसी कार पुनः समा कर देना चािहए। वरना वे पांचाल नरे श के साथ िमलकर हमारा
जीवन दभर
ू कर दगे। काश! हमने पांचाल पर आ मण करते समय ुपद को भी मृ यु के घाट
उतार िदया होता। गु ोणाचाय के कारण हम उसे जीिवत छोड़ देना पड़ा। तब तो पांडव ने भी
उन पर हमला िकया था, पर अब वे उसके दामाद बन गए ह और उसका सारा गु सा हम पर
ही उतरे गा। वह हम परा जत करके अपने अपमान का बदला अव य लेगा।’’
‘‘पांडव को यहां बुलाकर चालाक से मार देना चािहए। उ ह िवष देकर हमेशा के लए माग
से हटा देना चािहए।’’
धृतरा मन-ही-मन कांप उठे , परं तु खुलकर िवरोध नह कर सके। बोले, ‘‘पु ! जो कु छ
करो, सोच-समझकर करो। पहले भी एक बार तुमने उ ह न करने का यास िकया था, िकंतु
उसका कोई फल नह िनकला। उिचत यही है िक बुजुग ं से िवचार-िवमश कर लो। भी म,
िवदरु और गु ोणाचाय से िमलो, वे तु हारा उिचत माग िनदशन करगे।’’
उसी समय भी म, िवदरु व गु ोणाचाय को बुलाया गया। धृतरा ने उनसे कहा, ‘‘पांडव
एक वष से ह तनापुर से बाहर रह रहे ह, अब उनके साथ ौपदी भी है। कृपया बताइए िक हम
भी म ने पलक झपकते ही सारा मामला समझ लया। बोले, ‘‘सुनो दयु धन! पांडव कोई
पराये नह ह, वे भी हमारे ही कु ल के योित फंज ह। उ ह ने आज तक जो कु छ िकया है,
धमानुसार िकया है, जा म उनका मान है, उनक वीरता व बुि का िव व म मान िकया जाता
है, आज वे ौपदी जैसी सुंदर व सुशील क या के पित ह। हम तो उन पर गव करना चािहए।
उिचत यही है िक हम दय खोलकर उनका व नववधु का वागत कर। वे एक वष से
राजधानी से बाहर भटक रहे ह। अब हम यायपूवक उनका अ धकार उ ह स पना चािहए।
उनका भी इस रा य पर उतना ही अ धकार है, जतना कौरव का। पांडु ने ही अपने बाहबल से
इस रा य का िव तार िकया था।’’
‘‘कैसी श ुता?’’ भी म बोले, ‘‘जो थोड़ी-बहत कटु ता है, उसे िम ता म बदलते देर ही
िकतनी लगेगी। हम यथाशी पांडव को यहां बुलाकर यु धि र को उनका अ धकार स प देना
चािहए। यही यायसंगत है।’’
िवदरु बोले, ‘‘भी म ठीक कहते ह। हमने पांडव को पहले ही कम क नह िदए ह, लेिकन
वे हमेशा संकट से उबरकर खरे उतरे ह। हम अब अपनी भूल वीकार कर उनके साथ
समानता का यवहार करना चािहए। पहले ही हमारी बहत बदनामी हो चुक है।’’
□□
कण उसक दिु वधा समझता था। इस लए बोला, ‘‘दयु धन! इतना िचंितत होने क
आव यकता नह । हम वृ क बात पर इतना यान देने क आव यकता नह , िवदरु तो
आरं भ से ही पांडव के शुभिचंतक रहे ह और भी म भी मन-ही-मन उ ह चाहते ह। शेष बचे
ोणाचाय तो उनक बात का या? वे या जान राजनीित कैसे क जाती है, उ ह तो मा
अ -श चलाना आता है। राजनीित म चालाक से काम लेना चािहए। उिचत तो यही है िक
‘‘तु हारा िवचार उिचत है कण!’’ दयु धन बोला, ‘‘तु हारे जैसे वीर हमारे साथ ह, इस लए
मुझे भरोसा है िक हम एक िदन पांडव को अव य मात दगे।’’
□□
पांचाल नरे श ुपद ने उनका दय से वागत िकया। पांडव भी उनका आगमन सुनकर उनसे
िमलने आए। ुपद ने पूछा, ‘‘कैसे आना हआ महा मा िवदरु ! ह तनापुर म सब कु शल तो
है?’’
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□□
‘‘इसम कैसी िचंता मुिनवर?’’ यु धि र बोले, ‘‘हम भाई पांच शरीर एक आ मा ह। हमम
िकसी बात को लेकर कोई कलह होने क संभावना नह ।’’
यु धि र मु कराकर बोले, ‘‘आप िन चंत रह मुिनवर! हमारे साथ ऐसा कभी नह होगा।’’
‘‘ठीक है।’’ नारद मुिन कु छ सोचकर बोले, ‘‘ऐसा करो िक ौपदी को एक वष तक बारी-
बारी से पांच भाइय के पास रहना होगा। ऐसे समय कोई दसरा
ू भाई ौपदी को देखेगा भी नह ।
नारदजी तो यह िनयम बनाकर चले गए, लेिकन एक समय ऐसा आया िक इस कठोर िनयम
क सजा अजुन को भुगतनी पड़ी।
सच तो यह था िक पांच भाई आरं भ से ही बड़े िनयम व संयम से रहते थे। ौपदी के कारण
कभी उनम कोई कलह नह हई थी। एक बार ऐसा हआ िक ौपदी यु धि र के साथ अपना
समय िबता रही थी, तभी एक गरीब ा ण अजुन से िमला और हाथ जोड़कर िनवेदन िकया,
‘‘महाराज! एक चोर मेरी गाएं चुराकर ले गया है, मुझे मेरी गाएं िदलवा द, अ यथा म तो
बरबाद हो जाऊंगा। गाय के सवा मेरा और कु छ नह ।’’
अजुन ने चोर से गाएं छु ड़ाकर गरीब ा ण को वापस लौटा द । तभी अजुन को याद आया
िक वह यु धि र के क म अना धकार वेश कर गया था, जो िनतांत आप जनक था। वह
उसी समय यु धि र के पास पहच
ं ा और बोला, ‘‘ ाता ी! मुझसे अपराध हो गया है, अतः म
बारह वष ं के लए वन म जा रहा ह।ं ’’
यु धि र बोले, ‘‘कैसा अपराध अजुन? तुम तो मेरे छोटे भाई हो, इस लए क म घुस
आना अपराध नह । हां, अगर बड़ा भाई छोटे भाई के क म अनायास घुस जाए तो यह जघ य
अपराध है। इस लए तुम िन चंत रहो और बारह वष के लए वन जाने क कोई आव यकता
नह ।’’
‘‘आप कु छ भी किहए, ाता ी! मुझसे िनयम भंग हआ है। यिद हम ही अपने िनयम का
पालन ठीक से नह करगे तो सामा य जन का या होगा। आप मुझे रोके नह , मुझे धम का
पालन करने द।’’
अजुन वन म गंगा िकनारे एक कु िटया बनाकर रहने लगा। चार ओर बड़ा ही मनोहारी
वातावरण था। अजुन के िदन बड़े आराम से यतीत हो रहे थे।
एक िदन क बात है। अजुन गंगा म नहा रहा था। बस, अवसर पाकर उलूपी वहां पहच
ं ी
और अजुन को ख चकर अपने साथ नागलोक ले गई।
उलूपी बोली, ‘‘म नागलोक क क या ह।ं म तु ह पसंद करती हं और तुमसे िववाह करना
चाहती ह।ं ’’
अजुन से उलूपी का दय दख
ु ाया नह गया, इस लए उसने उलूपी से िववाह कर लया।
उलूपी के बाद अजुन ने िच ांगदा से भी िववाह िकया। िच ांगदा मिणपुर के राजा िच वाहन
क पु ी थी। िच ांगदा क सुंदरता से अजुन बहत भािवत हो गया था और उससे िववाह करने
क इ छा याग नह सका था। इस िववाह से अजुन को व ुवाहन नामक पु -र न क ाि हई
थी। िच वाहन का अपना कोई पु नह था, इस लए व ुवाहन को ही मिणपुर का भावी राजा
घोिषत िकया गया।
अजुन को ीकृ ण का यह सुझाव पसंद आ गया। बस िफर या था, अजुन अपने भाई
यु धि र क सहायता से सुभ ा का अपहरण करके इं थ पहच
ं गया। इं थ म यथािव ध
उन दोन का िववाह कर िदया गया।
□□
ीकृ ण इं थ म ही थे।
एक िदन अजुन यमुना के िकनारे ीकृ ण के साथ मण कर रहा था, तभी एक तेज वी
ा ण उन दोन के पास आ खड़ा हआ। उसके सारे शरीर से तेज क िकरण फुिटत हो रही
थ।
‘‘आप या खाएंग?
े या साम ी तुत क जाए?’’
अजुन बोला, ‘‘अि देव! म आपक कैसे सहायता क ं ? मेरे पास इस समय ऐसा धनुष
नह है, जससे म देवराज इं क वषा को ऊपर ही रोक सकूं ।’’
‘‘बस, इतनी-सी बात है।’’ अि देव ने कहा, ‘‘म तु ह अभी एक शि शाली धनुष देता ह,ं
जसे तु हारे जैसा वीण धनुधारी ही चला सकता है।’’
इतना कहकर अि देव ने अजुन को सोमराज का ‘गांडीव’ नामक धनुष दे िदया, साथ ही
ीकृ ण का सुदशन च भी िदया। सुदशन च क िवशेषता थी िक उससे जस पर वार करो,
वह िन चत प से मारा जाता था और िफर सुदशन च अपना काम पूरा कर वापस धारण
करने वाले के पास पहच
ं जाता था।
मय तो अजुन क कृपा से इतना अिभभूत हो उठा िक उसने अजुन से कहा, ‘‘हे वीर पु ष!
म आपका बहत कृत ह।ं कृपया मुझे सेवा का अवसर देकर अनु हीत कर।’’
कु छ सोचकर अजुन बोला, ‘‘यह बात है तो इं थ म जहां हमारी नई-नई राजधानी बनी
है, वहां तुम हमारे लए एक ऐसा भवन बनाओ, जैसा संसार म अब तक न बना हो।’’
‘‘यह तो मेरे बाएं हाथ का खेल है। म ऐसा भवन बनाऊंगा, जसे देखकर लोग के िव मय
का िठकाना नह रहेगा।’’
एक िदन नारद मुिन पांडव का नया नगर देखने पधारे । नगर क प-स जा देखकर वे
अ यंत स हए। िवशेषकर मय ने जो सभागार का िवशाल भवन बनाया था, उसक सुंदरता
देखकर तो वे िव मत ही रह गए।
नारद ने पांडव से कहा, ‘‘सचमुच! तुम लोग क कमठता शंसा यो य है। इतने अ प
समय म बंजर भूिम म इतनी भ य राजधानी का िनमाण कर लेना तुम लोग क यो यता का ही
माण है और तु हारा यह सभागार इसक तो जतनी शंसा क जाए कम है। म तो तीन
लोक म घूम चुका ह,ं िकंतु ऐसा सभागार न तो गंधव ं के यहां देखा और न अ सराओं के
यहां। य व रा स के सभागार तो इसके सामने एकदम हेय ह। अब तो एक ही काय रह
गया है, जसे पूण कर तुम लोग अपनी यश-पताका िदग-िदगांतर तक फैला सकते हो।’’
नारदजी इतना कहकर चले गए, िकंतु उनक बात पांडव के मन म घर कर गई। उ ह ने
िन चय कर लया िक वे राजसूय य अव य करगे। िफर या था, वे य क तैया रय म
लग गए। चार िदशाओं के रा या य को इं थ आकर राजसूय य म भाग लेने के लए
आमंि त िकया गया।
एक िदन वह नयनािभराम भवन क सुंदरता देखने के लए इधर-उधर घूम रहा था। मन-ही-
मन पांडव क गित देखकर वह जला-भुना जा रहा था। उसने पांडव को न करने के
अनेक यास िकए थे, िकंतु सदैव असफल रहा था और अब पांडव अपने म एवं यो यता से
भ य राजधानी के मा लक बन बैठे थे। पांडव के स मुख दयु धन वयं को अ यंत दीन-हीन
अनुभव कर रहा था और उ ह िवन करने क मन-ही-मन अनेक योजनाएं बना रहा था।
‘‘म तो पांडव क ह ती िमटाकर ही संतु होऊंगा।’’ दयु धन ने दांत भ चकर कहा, ‘‘तुम
देख रहे थे न िक राजे-महाराजे िकस कार पांडव का गुणगान कर रहे थे। िव व के सम त
भाग से राजा बड़े-बड़े उपहार लेकर इं थ पहच
ं े थे। सोचने क बात यह है िक अगर सभी
बड़े-बड़े राजा उनके प म हो गए तो हमारा या होगा? हम तो एकदम अकेले पड़ जाएंग।े
मामा! यिद शी ही पांडव के िवनाश का कोई उपाय नह सोचा गया तो उनका वैभव और
यश देखते-ही-देखते बढ़ जाएगा।’’
‘‘तुम उनका कु छ नह िबगाड़ सकते। पांच भाई वीर ह और उनके पास देवताओं के िद य
अ -श ह। यु म उनसे िवजय पाना एकदम किठन है।’’
‘‘िनराश मत हो दयु धन!’’ कु छ सोचकर शकु िन बोला, ‘‘उनसे अगर जीतना ही चाहते हो
तो चालाक से काम लेना होगा। पांडव को नीचा िदखाने का एक ही उपाय है िक उन पर धोखे
से वार िकया जाए।’’
दयु धन को शकु िन क योजना पसंद आ गई। बोला, ‘‘ठीक है, आप िकसी कार िपता ी
को राजी क जए िक वे पांडव को आमंि त कर, म तो उनसे बात भी नह करना चाहता।’’
□□
‘‘िकंतु या?’’
दयु धन ने मुंह बनाकर कहा, ‘‘तो या वहां से लौटकर म खुिशयां मनाता? पांडव ने इन
थोड़े से िदन म ही जो गित क है, उसे देखकर म कैसे स रह सकता ह,ं अंततः वे हमारे
श ु ह।’’
‘‘यह तु हारा वहम है दयु धन!’’ धृतरा बोले, ‘‘उिचत यही है िक तुम लोग िमल-जुलकर
रहो।’’
‘‘यह उपदेश आप अपने पास र खए।’’ दयु धन बोला, ‘‘मुझे तब तक चैन नह पड़ेगा, जब
तक ह तनापुर म भी पांडव जैसा सभागार न बनवा लूं। आप तुरंत कारीगर को आदेश
दी जए िक ह तनापुर म ऐसा भवन बनाएं, जसक दीवार को देखकर ार का म हो, फश
को देखकर लोग समझ िक सरोवर है और सरोवर देखकर लगे िक फश है, तािक लोग धोखे
से िगर जाएं। अंततः हम उनसे िकस बात म कम ह। हम अपने श ुओं से बढ़-चढ़कर रहना
चािहए। िफर हम भी उस सभागार म पांडव को आमंि त करगे।’’
□□
यु धि र बोले, ‘‘यह तो बहत ही िचंता क बात है। राजा होने के नाते मेरा कत य है िक
इन तेरह वष ं को शांितमय बनाए रखने का यास क ं , इस लए आज से म ित ा करता हं
िक म िकसी के साथ भी कटु वचन नह बोलूंगा, य िक कटु वचन से ही िवप उ प होती
है।’’
िवदरु बोले, ‘‘तुम लोग को महाराज धृतरा ने आमंि त िकया है। ह तनापुर म एक भ य
भवन का िनमाण िकया गया है। वहां अनेक राजाओं-राजकु मार को िनमंि त िकया गया है,
तािक सभी भवन क भ यता देख और वहां आनंद मनाएं। तुम लोग भी अपने भाइय , प नी व
माता के साथ वहां पहच
ं ो। उस नए भवन म तुम जुआ भी खेलोगे।’’
□□
दसरे
ू िदन सुबह होते ही पांडव को नए भवन म जुआ खेलने के लए बुलवाया गया।
ह तनापुर के नए सभागार म सारे अित थ पधार चुके थे। सभी सभागार क शोभा क मु
कंठ से शंसा कर रहे थे। अित थय म राज-रजवाड़ के अलावा कई गणमा य यि
स म लत थे। एक ओर दयु धन अपने भाइय व मामा शकु िन के साथ बैठा था तो दसरी
ू ओर
यु धि र अपने भाइय के साथ।
धृतरा ने जुए का खेल आरं भ करने क अनुमित दी। संजय पास बैठा उ ह आंख देखा
हाल सुना रहा था। िवदरु व भी म क आंख म िचंता छाई हई थी।
हारा हआ जुआरी यह सहन नह कर सका। बोला, ‘‘नह , खेल जारी रहेगा। मेरे पास अभी
बहत कु छ है। लो, म रा य क भूिम दांव पर लगाता ह।ं ’’
यु धि र पल भर के लए सोच म पड़ गए।
धृतरा को वयं यही अनुभव हो रहा था, िकंतु दयु धन को िवदरु क बात पसंद नह आई।
वे बुरा-सा मुंह बनाकर बोले, ‘‘िवदरु तो ऐसा कहगे ही। वे तो पांडव के आरं भ से ही प पाती
रहे ह। उनसे अगर पांडव क हार देखी नह जाती तो वे शौक से यहां से जा सकते ह।’’
‘‘यही ठीक है। अगर मेरा सुझाव तुम लोग को पसंद नह तो म जा रहा ह।ं ’’ िवदरु अपने
आसन से उठकर बोले, ‘‘िकंतु याद रहे इस जुए का प रणाम अ छा नह िनकलेगा।’’
शकु िन धीरे -धीरे बोला, ‘‘एक व तु और रह गई। ौपदी! चाहो तो उसे भी दांव पर लगा दो,
शायद भा य इस बार तु हारा ही साथ दे।’’
सभागार म अजीब-सा शोर मच गया। वहां बैठे लोग को जुए के ये दांव-पच पसंद नह
आए। िवशेषकर ौपदी को बाजी पर लगा देना तो कोई भी सह न सका, परं तु िकसी को िवरोध
करने का अ धकार नह था। िवदरु और भी म के सर झुक गए थे। कौरव के मुख पर िवजय
दयु धन ने शकु िन को अपनी बांह म भर लया। वह चीखकर बोला, ‘‘वाह मामा! तु हारा
जवाब नह , जुआ खेलने म तु हारा कोई मुकाबला नह कर सकता। अब पांडव का सब कु छ
हमारा है, पांडव भी हमारे ह। हमारे दास। ौपदी भी हमारी दासी है।’’
‘‘आपका दःु ख म समझ रहा ह।ं ’’ दयु धन ने कहा, ‘‘ठीक है, आप मत जाइए। म अभी
उसे बुलवाता हं और झाडू लगाने का आदेश देता ह।ं ’’
यह कहकर दयु धन ने एक सेवक को ौपदी के पास भेजा िक वह उसे बुला लाए। सेवक
ौपदी के पास पहच
ं ा और आंख झुकाकर जुए का समाचार सुनाकर सभागार चलने का
सेवक चुपचाप वापस लौट आया और दयु धन के सामने ौपदी का न दोहरा िदया।
दयु धन ोध से बोला, ‘‘उससे कहो िक पहले यहां आए, िफर उसे अपने न का उ र
िमल जाएगा, जाओ।’’
ौपदी बोली, ‘‘पहले मुझे उ र दो िक यु धि र ने मुझे कब दांव पर लगाया था‒ वयं हारने
से पहले या बाद म?’’
‘‘मतलब है!’’ ौपदी बोली, ‘‘अगर यु धि र ने वयं को हारने के बाद मुझे दांव पर
लगाया है तो म नह चलूंगी। हारा हआ यि मुझे कैसे दांव पर लगा सकता है?’’
‘‘यह िनरथक बात बंद करो। अब तुम हमारी दासी हो। चुपचाप मेरे साथ चलो।’’
‘‘म कु छ नह जानता, तुम हमारी दासी हो। तु ह मेरे साथ चलना ही होगा।’’ यह कहते हए
दःु शासन ौपदी को घसीटते हए सभागार म ले आया।
ौपदी उन सबके बीच लाज और क णा क साकार ितमा बनी खड़ी थी। बाल िबखरे हए
थे और आंख से आंसू बह रहे थे। सबको शांत देखकर वह ु ध वर म बोली, ‘‘एक नारी
पर खुलेआम अ याचार हो रहा है और आप लोग शांत बैठे ह। या िववेक और मानवता
संसार से िवलु हो गई है? मेरे पांच-पांच पित ह और वे भी चुपचाप मेरा अपमान सह रहे ह।
या हो गया है आप सब लोग को?’’
इस पर भी म बोले, ‘‘पांचाली! तु हारा न उिचत है, परं तु उससे अब थित म कोई अंतर
पड़ने वाला नह । यह सही है िक यु धि र ने पहले वयं हारकर तु ह दांव पर लगाया था,
िकंतु प नी पर तो हर थित म पित का ही अ धकार रहता है, चाहे वह वयं को हार चुका हो
या न हार चुका हो। अतएव यु धि र को तु ह दांव पर लगाने का पूरा अ धकार था।’’
‘‘आप ठीक कहते ह, परं तु पांडव को यहां बुलाकर उ ह धोखे से परा जत िकया गया है।
शकु िन ने जुए म बेईमानी क है। धृतरा पु क भलाई के लए शांत ह और कौरव हमारा
नाश करने पर तुले ह। यहां इतने सारे बुि मान लोग बैठे ह, या कोई भी हम याय नह िदला
सकता?’’ ौपदी का ममभेदी वर सभागार म गूज
ं उठा। आंख से अिवरल आंसू बह रहे थे।
भीम से यह देखा नह गया। वह यु धि र पर िबफर पड़ा, ‘‘यह कैसा जुआ खेला ाता ी?
तुमने सब कु छ गंवा िदया। धन-संप , रा य के नाग रक, हमारी सम त सेिवकाएं-सेवक, हम
सबको और प नी को भी। मेरा तो जी चाहता है िक तु हारे इन हाथ को ही जला दं ू या मुझे
आदेश दो िक इन अ याचा रय को अपने िकए का मजा चखा द।ं ू ’’
पांडव ने अपने व उतारकर साधारण व पहन लए। ौपदी सभागार म चुपचाप खड़ी
अपने भा य को रो रही थी। दयु धन ने उसे घूरकर देखते हए कहा, ‘‘तुम भी अपने व बदल
‘‘दःु शासन! देखते या हो।’’ दयु धन बोला, ‘‘ ौपदी क साड़ी उतार दो।’’
दःु शासन से ौपदी का यह इनकार सहा नह गया। वह लपककर ौपदी के पास पहच
ं ा और
उसक साड़ी ख चने लगा।
ौपदी लाज और अपमान से दोहरी हो गई। वह सुबकती हई बोली, ‘‘मेरे चार ओर बड़े-
बड़े वीर और वृ बैठे ह, पित बैठे ह, िकंतु आज एक नारी को बचाने वाला कोई नह । उफ!
म या क ं ? हे भगवान! तू ही मेरी र ा कर।’’
दःु शासन पर उसके शोक का कोई भाव नह हआ। वह साड़ी को ख चने लगा, िकंतु ौपदी
क पुकार भगवान ने सुन ली थी। ौपदी क आंख ल जा से बंद हो चुक थ , िकंतु दःु शासन
साड़ी ख चते-ख चते थक गया। वह पूरी साड़ी ौपदी के शरीर से उतार नह सका। साड़ी क
लंबाई लगातार बढ़ती ही जा रही थी। सभागार म सािड़य के ढेर लग गए, दःु शासन साड़ी
उतारते-उतारते पसीने से लथपथ हो गया, िकंतु ौपदी अब तक साड़ी से लपटी हई थी। उसक
बंद आंख के सामने भगवान ीकृ ण का प उभर आया था, जो मु कराते हए उसे सां वना
दान कर रहे थे।
कौरव उसक बात सुनकर हंस पड़े। दयु धन ने ौपदी को गोद म आकर बैठने का इशारा
िकया। भीम ोध से कांपता हआ बोला, ‘‘दयु धन! यह याद रखना िक एक िदन तु हारी जांघ
को अपनी गदा से टु कड़े-टु कड़े कर दग
ं ू ा। यह मेरा ण है।’’
िवदरु चुपचाप यह सब देख रहे थे। उनसे सहा नह गया। वे बोले, ‘‘अब बंद करो यह सब
नाटक कौरवो! तुम लोग भले ही पांडव का बुरा चाहो, िकंतु भगवान के कोप से डरो।’’
पांडव कु छ नह बोले। उ ह ने व पहने, ौपदी को साथ लया व सबसे िवदा लेकर अपने
रथ म बैठकर इं थ क ओर चल पड़े।
पांडव के जाते ही दयु धन, कण व शकु िन आिद के चेहरे लटक गए। धृतरा का िनणय
उ ह पसंद नह आया। उ ह ने छल-कपट से पांडव का सव व ा कर लया था, िकंतु
धृतरा ने पलक झपकते सब कु छ उ ह वापस कर िदया। जीती हई बाजी हाथ से िनकल चुक
थी।
धृतरा ने तो वैमन य को समा करने के लए पांडव को सस मान वापस भेज िदया था,
िकंतु दयु धन क बात से वे िफर िचंितत हो गए। वे धीरे से बोले, ‘‘तो अब या करना
चािहए?’’
‘‘उपाय है राजन!’’
‘‘यही िक उ ह पहच
ं ने से पहले ही पुनः ह तनापुर जुआ खेलने के लए बुलाया जाए। इस
बार हम उ ह बच िनकलने का कोई अवसर नह दगे।
‘‘इं थ पहच
ं कर शायद न आएं, िफलहाल वे हमारे रा य क सीमा म ही ह गे, इस लए
आपके आदेश का उ ंघन करने का साहस नह कर सकगे। आप शी ता से संदेशवाहक को
उस ओर भेज द।’’
‘‘िकंतु...।’’
‘‘इस िकंतु क िचंता मत क जए। सारी थित हम संभाल लगे। शकु िन मामा के रहते वे
हमसे जुए म जीत नह सकते ह।’’
धृतरा ने उसी समय एक संदेशवाहक को पांडव के पीछे दौड़ा िदया। दयु धन के मुख पर
कु िटल मु कान छा गई। माता गांधारी को यह सब पसंद नह आया। वह धृतरा से बोली,
‘‘यह अ याय है राजन! संदेश वाहक को वापस बुला ली जए। आपके पु जो चाहते ह, उससे
हमारा भला नह होगा। या आप भूल गए िक दयु धन के उ प होने पर अपशकु न हए थे।
दयु धन ही हमारे वंश के नाश का कारण बनेगा। िवदरु ने उसके उ प होते ही कह िदया था
िक इस ब चे को फक दो।’’
ह तनापुर म जुए क सारी तैयारी क जा चुक थी। बस, पांडव क ती ा थी। पांडव के
बैठ जाने पर उनके दसरी
ू ओर शकु िन बैठा।
‘‘कैसा वचन?’’
यह कहकर शकु िन ने बाजी चलाई और अगले पल ही चीख पड़ा, ‘‘म जीत गया।’’
कौरव अपनी िवजय पर स हो गए। दःु शासन पांडव का अपमान करने का यह अवसर
गंवाना नह चाहता था। वह बोला, ‘‘ओ ौपदी! तुम भी कैसे पितय के बीच फंस गई, जो
तु हारी र ा भी नह कर सके, ब क जुए के दांव पर भी लगा िदया। अ छा तो यह है िक इ ह
छोड़कर हमम से िकसी को पित चुन लो, कम-से-कम तु ह जुए म दांव पर तो नह लगाएंग।े ’’
िवदरु ने उ ह आशीवाद देते हए कहा, ‘‘व स! जाओ, भगवान तुम लोग क सहायता
करगे। माता कुं ती को मेरे घर छोड़ जाओ, उनसे वनवास का क सहा नह जाएगा। जब तक
तुम लोग वापस नह आओगे, तब तक म उनक देखभाल क ं गा।’’
पांडव ने िवदरु क आ ा िशरोधाय कर ली। माता कुं ती को िवदरु के यहां छोड़कर वे भरे
दय से ह तनापुर से िवदा हो गए।
□□
‘‘हे भगवान!’’ धृतरा घबरा गए, ‘‘यह सब तो नाश के संकेत ह। अरे कोई दौड़ो, पांडव
को वापस बुला लाओ। म उ ह िफर सब कु छ लौटाकर इं थ भेज दग
ं ू ा। म नह चाहता िक
कोई अनथ हो। कौरव-पांडव िमल-जुलकर रह, यही मेरी इ छा है।’’
दसरे
ू िदन सवेरे यु धि र से रहा नह गया तो उ ह ने जाजन से कहा, ‘‘आप लोग हमारे
साथ य क उठा रहे ह। कृपया वापस चले जाइए। सामने भयंकर वन है, वहां आप लोग
का जाना ठीक नह है। अपनी दगु ित का कारण हम वयं ही ह, हम ही इसका फल भोगने
दो।’’
□□
कु छ िदन बाद दोपहर का समय था। पांडव वन म आराम कर रहे थे, तभी दरू से रथ के
आने का वर सुनाई िदया। पांडव ने च ककर देखा‒रथ पर उनके नेही चाचा िवदरु चले आ
रहे थे।
‘‘सुनो! धृतरा तुम लोग के वन-गमन से बहत परे शान रहने लगे थे। तुम लोग के जाने
के बाद मने उ ह बताया था, जैसे कु छ अशुभ घटने वाला है। उ ह ने कई रात जगकर िबताई
थ । इस लए उ ह ने एक िदन मुझे अपने पास बुलाया और कहा िक िवदरु ! जो कु छ हआ,
उसम मेरी कोई ज मेदारी नह , िफर भी म इन घटनाओं से अ यंत िचंितत ह।ं अब कु छ ऐसा
उपाय बताओ, जससे भिव य म कोई अनहोनी घटना न घटे। मने धृतरा से प कहा िक
पांडव के साथ जो कु छ हआ है, वह सवथा अ याय है। बेहतर यही है िक पांडव को वापस
बुलाकर स मानपूवक उनका रा य स प िदया जाए। भिव य म अनहोनी न होने का एक ही
उपाय है िक दयु धन को घर से िनकाल द। मेरी यह बात सुनकर तो धृतरा अ यंत नाराज हो
गए। सच तो यह है िक संतान- ेम के कारण वे अ छे -भले का ान भुला बैठे ह। वे ुध
होकर बोले, ‘मुझे पहले ही पता था िक तुम पांडव का प लोगे, पर म यह नह जानता था
‘‘महा मा िवदरु !’’ यु धि र बोले, ‘‘हम तो आपक सलाह क सदैव आव यकता है। आप
स तापूवक हमारे साथ रिहए।’’
यह सुनकर िवदरु से रहा नह गया। वे पांडव से िवदा लेकर उसी पल ह तनापुर लौट गए।
धृतरा िवदरु को अपने पास दबु ारा पाकर बहत स हए, लेिकन दयु धन व उसके
सा थय को िवदरु का वापस आना पसंद नह था। िवदरु हमेशा पांडव का प लेते थे, यह बात
कौरव को खलती थी। उ ह यह भी डर था िक िवदरु यहां रहकर पांडव के िहत म जासूसी न
कर।
‘‘हम पांडव क जगह तो जानते ही ह।’’ कण बोला, ‘‘हम इसी समय चलकर पांडव को
कु चल देना चािहए।’’
दयु धन ने महिष मै ेय के सुझाव पर अपना मुंह िबगाड़ लया और ु ध-सा हो अपनी जांघ
पर मु का मारा। महिष मै ेय को दयु धन क यह बे खी ची नह , बोले, ‘‘ जन जांघ पर
आज तुम मु के बरसा रहे हो, एक िदन भीम इन जांघ के टु कड़े-टु कड़े कर देगा।’’
दयु धन तो महिष मै ेय क बात पर हंसकर रह गया, िकंतु धृतरा मन-ही-मन घबरा गए।
बोले, ‘‘महिष मेरे पु को ऐसा शाप मत दी जए।’’
□□
पांडव ह तनापुर क घटनाओं से अनिभ वन म अपना समय यतीत कर रहे थे। अंततः वे
राजवंश के थे और इं थ के शासक थे, इस लए उनके अनेक िम व शुभिचंतक राजा उनसे
िमलने वन म यदा-कदा आते रहते थे। कोई भी िम राजा पांडव क वतमान थित से स
नह था। वे कहते थे, ‘‘कौरव क धूतता कौन नह जानता, उनक बात मानकर वन म रहना
िनरथक है। इं थ जाकर अपना राज-पाट संभा लए।’’
‘‘आप धमराज ह। आपसे तो यही उ मीद है। शत भले ही अनुिचत हो, आप िनभाएंगे
अव य।’’ िम कहते, ‘‘अगर हमसे िकसी सहायता क आव यकता हो तो िनःसंकोच
ीकृ ण को पांडव के वनवास का समाचार िमल चुका था। वे भी ैतवन आकर पांडव से
िमले। बोले, ‘‘जो कु छ हआ, सुनकर बहत दःु ख हआ। म अगर अवसर पर उप थत होता तो
यह अ याय कभी नह होने देता, िकंतु म ा रका से बाहर चला गया था। खैर, शी ही समय
आने वाला है जब इस अ याय का बदला तुम लोग सफलतापूवक चुकाओगे।’’
पांच भाई ीकृ ण क सां वना से आ व त हए। पास ही ौपदी बैठी थी। सहानुभूित के दो
बोल सुनकर उसक आंख से आंसू बह िनकले। वह आतनाद करती हई बोली, ‘‘मुझे देखो,
कैसी अभािगनी हं म। मेरे पांच-पांच वीर पित ह, जनक वीरता के िव व म चच ह, िफर भी
वे कौरव क अनीित के िव कु छ न कर सके और कौरव ने भरी सभा म मेरा अपमान
िकया। दःु शासन ने मुझे व हीन करना चाहा। म रोई-चीखी-िच ाई, पर सभा म िकसी ने
मेरी सहायता नह क । बस एक तु ह थे, जो मेरी सहायता को आए। उस समय न अजुन का
गांडीव उठ सका और न भीम क गदा!’’
ीकृ ण बोले, ‘‘रो मत पांचाली। कौरव ने जो कु छ िकया है, उसका दंड वे अव य भोगगे।
दयु धन व कण आिद द ु का नाश होगा और यु धि र को अपना खोया स मान िफर ा
होगा।’’
एक िदन शाम के समय पांच भाई ौपदी के साथ बैठे थे। वे अपने अतीत, वतमान व
भिव य के बारे म िवचार-िवमश कर रहे थे।
भीम वयं बदला लेने को आतुर था। उसने ौपदी का समथन करते हए कहा, ‘‘ ौपदी स य
कह रही है भैया! अंततः हम कब तक चुपचाप अ याय सहते रहगे, तेरह वष ं तक ती ा
करना यथ है और इन तेरह वष ं म कौन जएगा और कौन मरे गा, कौन जानता है।’’
महिष यास बोले, ‘‘व स! इतने िचंितत य हो? या कौरव के प से आशंिकत हो। यह
ठीक है िक उनके साथ बड़े-बड़े यो ा ह, िकंतु तुम लोग डरो मत। एक िदन अजुन अपने
श ुओं का नाश करने म समथ होगा। सुनो यु धि र! मेरे पास ुित- मृित नामक मं है, जो म
तु ह सखा दग
ं ू ा। तुम यह मं अजुन को सखा देना। इस मं के मा यम से अजुन को देवताओं
से िद य अ क ाि होगी, जनका कोई मुकाबला नह कर सकेगा। अब िचंता छोड़ो और
स हो जाओ।’’
एक िदन शुभ मुहत म यु धि र ने अजुन को ुित- मृित मं िदया। अजुन मं लेकर सीधा
कैलाश पवत क ओर रवाना हो गया। कैलाश पवत पर अजुन ने देवताओं क तुित क ।
अजुन पांच महीन तक एकांत भाव से मं जाप करता रहा।
वहां अजुन को रहते हए अनेक वष यतीत हो गए। अजुन को भाइय से िबछु ड़े काफ
समय हो गया था। उसे िचंता थी िक जाने उसके िवलंब से भाई िकतने परे शान ह । उसने इं से
कहा, ‘‘अब मुझे वापस लौट जाना चािहए।’’
□□
एक िदन भीम ने कहा, ‘‘अजुन इतने वष ं से कैलाश पवत पर एकांत वास कर रहा है, वह
हम लोग के लए इतना क उठा रहा है, म तो जा रहा हं अजुन को लेने।’’
तभी उ ह महिष लोमश एवं महिष वृहद व से यह शुभ समाचार िमला िक अजुन अमरावती
म इं के साि य म सकु शल है। घोर तप या से अजुन थक गया था, इं उसे िव ाम हेतु
अपने साथ ले गए ह। अजुन ने इं से न केवल अ -श क िश ा हण क है, ब क
कण का कवच भेदने का रह य भी सीखने के यास म लगे हए ह।
नारद मुिन क बात ौपदी एवं चार भाइय को भा गई। वे महिष लोमश के साथ तीथाटन
पर िनकल गए। अनेक पिव थान का दशन िकया तथा अनेक पावन निदय म नान िकया।
सबसे पहले वे पूव क ओर गए, गोदावरी के िकनारे नैिमषार य म वास िकया, िफर गंगा-
यमुना के तीर पर गए। वे सुदरू दि ण क ओर भी गए। सच तो यह था िक जतने पिव तीथ,
निदयां व पवत ंखलाएं थ , उन सभी थान पर उ ह ने देवताओं का आशीवाद ा िकया। वे
भाष तीथ जाकर ीकृ ण से िमले। नारद ने जैसा कहा था, उनका आधा समय बीता और
उनके बेचन
ै मन को करार भी िमला। अजुन क जुदाई का शोक जाता रहा। बारह वष देखते-
ही-देखते बीत गए।
चार भाई व ौपदी अजुन क सफलता से अित स हए। लगा िक वे अपने श ुओं के
अ याय का अब ितशोध ले सकगे। उ ह मा सोच-समझकर योजना बनाने क आव यकता
थी। उ ह एक वष अब अ ातवास म यतीत करना था, उसके बाद अपना अ धकार वापस लेने
के लए कौरव से लड़ना था।
‘‘हां मामा! आपक योजना तो आनंददायक है।’’ दयु धन बोला, ‘‘हम इसी समय चलकर
उ ह अपनी शानो-शौकत िदखाकर िचढ़ाना चािहए, पर महाराज धृतरा से अनुमित पाना बहत
किठन है।’’
‘‘वह कैसे?’’
‘‘वह ऐसे िक तुम हो ह तनापुर के वैभवशाली राजकु मार और वे दर-दर के िभखारी। बस,
पहच
ं जाओ राजसी ठाठ-बाट से उनके पास और उनक वतमान दशा पर खुलकर हंसो।’’
यह बात दयु धन व कण आिद को पसंद आ गई। धृतरा से बाहर जाने क अनुमित िमलना
सहज नह था, इस लए एक बहाना बनाने का अवसर उ ह िमल ही गया।
‘‘हम उनसे या लेना-देना।’’ दयु धन बोला, ‘‘हम तो बस गणना करके सीधे लौट
आएंग।े ’’
बेचारा संदेशवाहक चुपचाप दयु धन के पास लौट आया। िच सेन क गु ताखी से दयु धन
बड़ा ो धत हआ और अपना लाव-ल कर लेकर गंधव सेना पर आ मण कर िदया। दोन
प म जमकर यु हआ। गंधव ं से ट कर भारी पड़ी। कौरव के अनेक सैिनक मारे गए।
गंधव ं ने दयु धन को बंदी बना लया। व तुतः गंधव ं को इं ने जान-बूझकर भेजा था, तािक
दयु धन ने जो इरादा बनाया था, उसे िवफल िकया जा सके और सबक सखाया जा सके।
दयु धन को बंदी बनाए जाने क सूचना पांडव को िमली तो यु धि र बहत िचंितत हए।
उ ह ने त काल भीम व अजुन को गंधव ं क कैद से दयु धन को छु ड़ाने का आदेश िदया। भीम
तो दयु धन क ददु शा से स था, िकंतु बड़े भाई का कहना था, ‘‘कु छ भी हो, वह हमारा खून
है और उसक र ा करना हमारा कत य है।’’ आदेश मानकर वह अजुन के साथ चुपचाप
चला गया। उन दोन ने गंधव ं से दयु धन को वतं करा िदया। िच सेन ने दयु धन को वतं
करते हए कहा, ‘‘पांडवो! तुम लोग मेरे िम हो इस लए म सहन नह कर सकता था िक
दयु धन अपना ऐ वय िदखाकर तुम लोग का अपमान करने के मनहस इरादे म सफल हो
जाए, पर तुम लोग क बात मानकर म इसे छोड़ता ह।ं ले जाओ इसे।’’
□□
दयु धन स होकर बोला, ‘‘तो देर िकस बात क है, अपनी चतुरंिगणी सेना लेकर िनकल
पड़ो िद वजय को।’’
□□
चार भाई यु धि र के साथ िहरण के पीछे भाग चले, िकंतु िहरण क तेजी का मुकाबला
करना सरल नह था। वह एक पल को िदखाई देता तो दसरे
ू पल ही कु लांच मारकर गायब हो
जाता।
िहरण के पीछे दौड़ते-दौड़ते पांच भाई बुरी कार थक गए। शरीर से पसीना छू टने लगा था
और यास से गला सूख रहा था। नकु ल से नह रहा गया। वह बोला, ‘‘हमारी वीरता के भले
जब जलाशय आ गया तो नकु ल पानी भरने को नीचे झुका। तभी कह से गंभीर वर गूज
ं ा,
‘‘नकु ल! इस जलाशय पर मेरा अ धकार है अगर तुम मेरे न का सही-सही उ र दोगे, तभी
म पानी लेने क तु ह वीकृित दान क ं गा।’’
नकु ल ने चार ओर ि दौड़ाई, पर उसे बोलने वाला िदखाई नह िदया। नकु ल को बहत
यास लगी थी इस लए वह बोला, ‘‘पहले मुझे पानी पीने दो, िफर म तु हारे न का उ र
दग
ं ू ा।’’
इतना कहकर नकु ल ने जलाशय से अंजु ल भरी और पानी पी गया। पानी पीने के अगले
ण नकु ल क चेतना लु हो गई और वह जलाशय के िकनारे बेहोश हो गया।
उधर चार भाई नकु ल क ती ा कर रहे थे। बहत देर के बाद भी नकु ल वापस नह लौटा
तो यु धि र ने सहदेव को उसक खोज म भेजा। वह भी जब जलाशय के िनकट पहच
ं ा तो
अपनी यास बुझाने क इ छा को दबा न सका। अ य गंभीर वर ने उसे भी चेतावनी दी,
इसके बावजूद उसने पानी पी लया और बेहोश हो गया।
भीम व अजुन भी भाइय व पानी क खोज म गए, िकंतु उनक भी वही दशा हई, जो नकु ल
और सहदेव क हई थी।
यु धि र ने उ र िदया, ‘‘इस समय म अपने भाइय क दशा एवं अपनी यास से अ यंत
याकु ल ह।ं इस लए आप जैसा चाहगे, वैसा ही क ं गा। न पूिछए।’’
‘‘माता।’’
‘‘ वग से ऊंचा कौन?’’
‘‘िपता।’’
‘‘हवा से भी तेज?’’
‘‘मन।’’
‘‘मछली।’’
‘‘घास।’’
‘‘धनी कौन?’’
‘‘लालच से मु ाणी।’’
‘‘सुखी कौन?’’
‘‘िचंता से मु ाणी।’’
‘‘गव से मु ाणी।’’
‘‘प नी।’’
‘‘िव ा।’’
‘‘दान-पु य।’’
य ने कहा, ‘‘हे धमवीर! तु हारे उ र से म स हआ। तु हारे सामने तु हारे चार भाई
मृत पड़े ह। अब यह बताओ िक तुम िकसे जीिवत देखना चाहते हो? जसक ओर इशारा कर
दोगे, म उसी को पुनज िवत कर दग
ं ू ा।’’
‘‘यह या? नकु ल तो तु हारा सौतेला भाई है। तुम अपने सगे भाई भीम या अजुन को य
नह जीिवत देखना चाहते?’’
यु धि र का यह याग एवं ातृ- नेह देखकर य बड़ा भािवत हआ। बोला, ‘‘यु धि र!
सचमुच तुम ध य हो। लो, म तु हारे चार भाइय को जीिवत कर देता ह।ं ’’
‘‘तथा तु।’’
पांच भाई धमदेव के सामने नत सर हो गए। धमदेव उ ह आशीवाद देकर अंतधान हो गए।
पांडव का अ ातवास आरं भ हो गया था, अतएव वे रात को सबक िनगाह से बचकर लु
हो गए थे।
एक गु थान पर पहच
ं कर पांडव ने अपनी अगली योजना पर िवचार-िवमश िकया।
कु छ देर तक सोचने के बाद यु धि र ने कहा, ‘‘हम वेश बदलकर रहना चािहए। हम यहां
से म य देश चलते ह। वहां के राजा िवराट वृ ह, उनके पास जाकर हम काम पाने का
यास करगे। मुझे िव वास है िक हम लोग पर दया करके वे हम अपने यहां अव य नौकरी
दगे।’’
भीम बोला, ‘‘घबराओ मत भैया! मेरा शरीर भारी-भरकम है तो म वयं को रसोइया बना
लूंगा। रसोइए तो होते ही -पु ह। म िवराट से कहग
ं ा िक उसे म बहत वािद यंजन
बनाकर खलाऊंगा बस, मेरी नौकरी प क । म अपना नाम ‘ब भ’ रख लूंगा। म वहां अपनी
शि का दशन करके राजा को स रखूंगा। ठीक है न?’’
‘‘हां एकदम ठीक है।’’ यु धि र िफर अजुन क ओर देखकर बोले, ‘‘और तु हारा या
िवचार है?’’
‘‘मुझे तो नारी का प धारण करना पड़ेगा, तािक िकसी को मेरे लड़ाकू होने का संदेह ही
नह रहे। मेरी बांह म धनुष के िनशान ह, ज ह म चूिड़य म िछपा लूंगा। म राजा िवराट से
अंतःपुर क नौकरी ा कर लूंगा और वहां क मिहलाओं के बीच रहकर उ ह कथा-
कहािनयां सुनाकर उनका मनोरं जन क ं गा। मेरा नाम रहेगा‒‘वृह ला’।’’ अजुन ने उ र
िदया।
‘‘और म महाराज के अ तबल का रखवाला बन जाऊंगा।’’ नकु ल बोला, ‘‘म अपना नाम
‘ ं थक’ रख लूंगा और वहां घोड़ क देखभाल क ं गा। म राजा से कहग
ं ा िक इं थ के
नरे श यु धि र के पास भी म अ तबल म काम कर चुका ह।ं य भी घोड़ को साधने म मेरा
कोई जवाब नह ।’’
‘‘म राजा िवराट क गौशाला म नौकरी कर लूंगा और गाय व बैल क सेवा क ं गा। मेरा
पश होते ही गाएं पहले से अ धक दधू दगी।’’ सहदेव ने कहा।
यु धि र ने धीरे से कहा, ‘‘तुमने अपने बारे म या सोचा है ौपदी? तुमने तो कभी कोई
काम नह िकया, िफर भला राजा िवराट के यहां कौन-सा काम मांगोगी?’’
ौपदी ढ़ वर म बोली, ‘‘आप मेरी िचंता न कर, म भी अपना कत य िनभाऊंगी। मुझे याद
आता है िक इं थ म मेरे पास एक दासी काम करती थी सैरं ी। म सैरं ी बनकर राजा िवराट
से िमलूंगी और नौकरी क याचना क ं गी। वे मुझे अव य अपने यहां काम पर रख लगे और
म भी अंतःपुर म राजकु मा रय व अ य मिहलाओं क सेवा-टहल क ं गी। इस कार वहां म
सुरि त भी रहग
ं ी।’’
पांच भाइय के सामने ौपदी का यह सुझाव मानने के अलावा और कोई चारा नह था।
उ ह ने अपने कु ल पुरोिहत से आशीवाद ा िकया और म य देश क ओर चल पड़े।
□□
पांच भाई व ौपदी बड़ी लगन से िवराट के महल म काम कर रहे थे। उनक यो यता से
सब बड़े स थे‒िबना िकसी क िनगाह म पड़े उ ह ने कई महीने दरबार म िनिव न यतीत
कर िदए। पांडव स थे िक शी ही अ ातवास का उनका यह वष भी आराम से यतीत हो
जाएगा, िफर वे अपने रा य इं थ लौटने के यो य बन जाएंग।े
अ ातवास म अब कु छ ही िदन शेष रह गए थे। ौपदी व पांच भाई एक-एक िदन िगनते
हए इं थ लौटने क ती ा कर रहे थे, तभी पांडव िफर किठनाई म िघर गए।
एक िदन क चक ने अपनी बहन से कहा, ‘‘सुदे णा! तिनक सैरं ी को मेरे पास भेज देना,
कु छ िवशेष काय है।’’
पहले तो ौपदी झझक , िफर रानी के आदेश को मानकर चुपचाप क चक के पास चली
गई। क चक ने देखते ही ौपदी को बांह म भर लेना चाहा। ौपदी क चक का यह यवहार
देखकर िव मत रह गई। उसने क चक को एक ओर धकेल िदया और बोली, ‘‘तु ह एक
बेसहारा नारी पर अ याचार करते लाज नह आई? म तु हारी इन हरकत का वह मजा
चखाऊंगी िक जीवन भर याद रखोगे।’’
उ र म क चक अ हास कर उठा।
भीम का कसरती शरीर ौपदी क बात सुनकर ोध से एकदम दहु रा हो गया। वह बोला,
‘‘तुम िचंता न करो पांचाली! म क चक को इस करनी का आनंद चखाऊंगा। बस, तु ह थोड़ी
सहायता करनी पड़ेगी।’’
‘‘कैसी सहायता?’’
‘‘तुम क चक को आधी रात के समय एकांत म नृ यशाला म बुलाओ, शेष काय म िनपटा
दग
ं ू ा।’’
ौपदी ने भीम क बात मान ली। बाद म जब क चक उससे दबु ारा िमला तो ौपदी ने उससे
स यवहार िकया। ौपदी का बदला प देखकर क चक क बांछ खल गई।ं बोला, ‘‘तो
तुमने मेरा णय िनवेदन वीकार कर लया?’’
‘‘हां!’’ ौपदी ने कहा, ‘‘िदन म इस कार खुलेआम िमलना-जुलना ठीक नह । कोई देख
लेगा तो या कहेगा। ऐसा करो, आज आधी रात को नृ यशाला म िमलना, वह बात करगे।’’
दसरे
ू िदन जब क चक क लाश िमली तो उसे कोई पहचान भी नह सका। सारे म य नगर
म तहलका मच गया।
‘‘रा स ने नह ।’’ ौपदी ने आगे बढ़कर ऐलान िकया, ‘‘इसे मेरे गंधव पित ने मारा है।
इसने मुझ पर कु ि डाली थी। मुझ पर जो कोई नीयत िबगाड़ेगा, उसक यही दशा होगी।’’
क चक के अंितम सं कार से िनपटकर राजा िवराट व रानी सुदे णा महल लौटे तो सैरं ी का
डर उनके मन म समाया हआ था।
सुदे णा ने ौपदी को बुलाकर कहा, ‘‘सैरं ी! हम तु हारी सेवा से भर गए। अब तुम हमारे
यहां से चली जाओ, तु हारे कारण मेरे भाई को जान से हाथ धोना पड़ा, कल हो सकता है िक
िकसी और को मरना पड़े। तु हारे गंधव पित का कोई िठकाना नह , वह कब िकसको संसार से
उठा दे। बेहतर यही है िक तुम महल से चली जाओ।’’
ौपदी भला कहां जाती! अ ातवास म कु छ ही िदन शेष रह गए थे। वह बोली, ‘‘महारानी!
ु ध न ह , क चक का मन पापी था, भला मेरा गंधव पित उसक करतूत को कैसे अनदेखा
‘‘मा तेरह िदन!’’ रानी सुदे णा ने आ चय से पूछा, ‘‘मा तेरह िदन ही य ?’’
कु छ सोचकर सुदे णा बोली, ‘‘ठीक है म तु ह तेरह िदन महल म रहने क अनुमित देती ह,ं
िकंतु अपने गंधव पित को महल से दरू ही रखना।’’
□□
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राजा िवराट को सूचना िमली तो वे अ यंत घबरा गए। क चक जैसा सेनापित खोकर तो वे
एकदम िन पाय हो गए थे। अब वे कौरव और ि गत क सेना का कैसे मुकाबला करगे?
िवराट का एक पु राजकु मार उ र था, जो यु -कला से सवथा अनिभ था। राजकु मार उ र
के अलावा राजा क एक पु ी राजकु मारी उ रा थी।
राजा िवराट िचंता से िघरे अपने क म बैठे थे। पास ही कंक बैठा था। कंक से राजा क
िचंता देखी नह गई, वह बोला, ‘‘महाराज! क चक नह है तो या हआ, अगर आप धैय खो
दगे तो काम कैसे चलेगा। आप चाह तो अभी भी बड़ी आसानी से श ुओं का मुकाबला िकया
जा सकता है।’’
‘‘वह कैसे?’’
‘‘दे खए! आपके महल म एक रसोइया काम करता है, ब भ। उसे आप मा साधारण
रसोइया ही मत सम झए, वह जतने बिढ़या यंजन बना सकता है, उतनी ही खूबी से द ु मन
को पछाड़ भी सकता है। िफर आपके अ तबल म एक ं थक नामक पशु पालक भी है, वह
भी एक यो ा ही है। गोशाला म िनयु तंितपाल नामक नया वाला भी एक लड़का है। अगर
आप आदेश द तो ये लोग श ुओं का बहादरु ी से मुकाबला कर सकते ह और महाराज! अगर
आपने मुझे भी अनुमित दी तो म भी दो-चार हाथ िदखा सकता ह।ं ’’
कंक ने कहा, ‘‘दरअसल, हम कभी पांडव के यहां भी काम कर चुके ह। भला पांडव क
वीरता से कौन अनिभ है। हम पांडव से शौिकया थोड़ी-बहत यु -कला सीख चुके ह।
महाराज! आप अवसर द तो हम अपनी यु -कला का प रचय दे सकते ह।’’
□□
इस लए भीम धनुष और बाण लेकर ही सुशमा के पीछे दौड़ा। धनुष-बाण चलाने का भीम
को कोई िवशेष अ यास नह था, लेिकन उसने इस कु शलता से सुशमा पर धावा बोल िदया िक
सुशमा वतं हो गया तो यु धि र ने उससे कहा, ‘‘आप अपने देश जा सकते ह। बस,
यान रहे िक भिव य म म य देश क ओर आंख कभी न उठाएं।’’
दसरी
ू ओर सुशमा क हार से बेखबर कौरव म य देश का पशु-धन लूटने को आगे बढ़े।
उ ह ने देश भर का पशु-धन एक िकया और गाय-बैल हांक ले चले। देश क र ा करने को
कोई उप थत नह था, य िक राजा िवराट तो सुशमा से लड़ने िनकल गए थे और उनके साथ
भीम व यु धि र भी जा चुके थे।
दसरे
ू मोच पर जो आ मण हआ था, उससे वह डर तो बहत गया था, िकंतु ना रय के
सामने अपनी कायरता क पोल नह खोलना चाहता था, इस लए तेज वर म बोला, ‘‘श ु क
िह मत कैसे हई हमारे पशु-धन को लूटने क । ठीक है, म उनका मुकाबला क ं गा। लाओ, मेरे
ह थयार लाओ, कवच लाओ!’’ िफर कु छ सोचकर बोला, ‘‘पर जाऊं कैसे? मेरा रथ कौन
चलाएगा। काश! मेरे पास कोई द सारथी होता, िफर म श ु-सेना म धड़धड़ाता घुस पड़ता।
वह पर अजुन वृह ला के वेश म खड़ा था। वह राजकु मार उ र क बड़ी-बड़ी बात सुनकर
मन-ही-मन मु करा रहा था। वह जानता था िक कौरव से लड़ने का साहस इस लड़के म नह
हो सकता, लेिकन वह वयं हर हालत म म य देश क र ा करना चाहता था। उसने चुपके
से ौपदी के कान म कहा, ‘‘यह लड़का तो बात बनाने म ही समय यतीत कर देगा और
कौरव पशु-धन लेकर भाग िनकलगे। तुम जाकर राजकु मार उ र को िव वास िदलाओ िक
वृह ला को रथ चलाने का खूब अ यास है। यह भी कह देना िक अजुन के रथ को कई बार
चलाया है और एक बार खांडव वन म जब आग लग गई थी, तब रथ को तेज गित से भगाकर
अजुन क जान बचाई थी। अगर यह तु हारी बात मान गया तो शायद कौरव को मात दी जा
सके।’’
ौपदी ने उसी समय जाकर राजकु मार उ र से यह सब कह िदया। अब राजकु मार इनकार
कैसे करता? इस लए उसने वृह ला को बुलाकर कहा, ‘‘हऽं ऽऽ। तो तुम उ म सारथी भी हो।
बहत खूब! तो देर िकस बात क है? शी ता से मुझे यु भूिम म ले चलो। म कौरव को
अ छा सबक सखाऊंगा और अपना पशु-धन भी वापस लाऊंगा।’’
वृह ला ने पहले तो बड़ी आनाकानी क और कहा, ‘‘म भला या रथ चला सकूं गी। म तो
लड़िकय को गाना और नृ य सखाती ह।ं यु भूिम म रथ चलाना मेरे वश का नह ।’’
‘‘झूठ मत बोलो वृह ला!’’ राजकु मार उ र बोला, ‘‘मुझे सैरं ी ने तु हारे बारे म सब कु छ
बता िदया है। अब बहाने बनाने से काम नह चलेगा, तु ह मेरे साथ चलना ही पड़ेगा। त काल
यु क पोशाक पहनो और म भी तैयार होता ह।ं ’’
वृह ला य सजने लगी, जैसे यु भूिम म जाने से बुरी कार डर रही हो। उसने कवच आिद
भी उ टे-सीधे धारण कर लए, तािक कोई उसक अस लयत न भांप सके। वृह ला क
हड़बड़ी और घबराहट से वहां खड़ी मिहलाएं खूब हंस रह थ और वृह ला का उपहास उड़ा
रही थ ।
थोड़ी देर म ही राजकु मार उ र तथा वृह ला तैयार होकर बाहर िनकले और रथ म सवार
होकर यु भूिम क ओर चल पड़े। वृह ला को डर था िक राजकु मार उ र जैसा अनाड़ी
लड़का यु कैसे लड़ सकेगा, इस लए वह उसे बार-बार समझाती थी िक यु म कैसे यवहार
करना चािहए। राजकु मार उ र ने ऊंची हांकते हए कहा, ‘‘घबराओ मत वृह ला! बस, तुम
केवल होिशयारी से रथ का संचालन करो। तुम तो अजुन क सारथी रह चुक हो, इस लए
डरने क आव यकता नह । बस, एक बार म यु भूिम म पहच
ं जाऊं, िफर देखना म कैसे
कौरव को परा त करता हं और उ ह बंदी बनाकर राजधानी लाता ह।ं जब महाराज िवराट को
मेरी वीरता का पता चलेगा तो िकतना स ह गे अपने पु क सफलता पर।’’
वृह ला को समझते देर न लगी िक राजकु मार उ र डर गया है। यहां तक आकर
राजकु मार उ र ने पग पीछे ख च लए तो म य देश क र ा करना किठन हो जाएगा,
राजकु मार उ र का सारा शरीर पसीने से भीग गया। वह बोला, ‘‘नह -नह , तुम यह रथ
रोक दो। सुनो, अचानक मेरी तबीयत खराब हो गई है। म शायद कौरव के साथ न लड़ सकूं ।
बेहतर यही है िक तुम रथ को राजधानी वापस ले चलो। तु ह तो पता है िक साथ म हम सेना
भी नह लाए ह। सारी सेना राजा िवराट सुशमा से मुकाबला करने को लेकर चले गए ह।’’
‘‘हंसने दो मिहलाओं को। पशु-धन क िचंता छोड़ो। बस, यहां से भाग चलो। कौरव को
जीत लेने दो मेरा देश, मुझे नह लड़ना इनके साथ। रथ मोड़ दो।’’
िकंतु वृह ला ने उसक बात पर यान नह िदया और वह रथ तेजी से आगे बढ़ाती रही।
राजकु मार उ र ने जब देखा िक वृह ला रथ को कौरव क सेना के बीच ले जाकर ही मानेगी
तो उसने आंख बंद करके रथ से छलांग लगा दी और राजधानी क ओर दौड़ पड़ा।
राजकु मार उ र क जान-म-जान आई, पर जब-जब उसक आंख के सामने कौरव सेना
के वीर क ध जाते, वह बुरी कार कांप उठता, ‘‘इस लड़के को भरोसा नह ।’’ अजुन ने
सोचा, ‘‘म अकेले ही कौरव का मुकाबला क ं गा।’’ इसके लए आव यकता थी िद या
क और िद या क गठरी रखी हई थी एक वृ क डाल पर। वृह ला ने अपना रथ उस
वृ क ओर दौड़ा िदया।
राजकु मार उ र िववश होकर वृ पर चढ़ा और गठरी नीचे उतार दी। वृह ला ने त काल
गठरी खोली और िद या िनकाल लए। उसने गांडीव को अपने कंधे पर लटका लया और
कहा, ‘‘यह गांडीव ऐसा ह थयार है िक इसके सामने श ुओं के बड़े-बड़े अ फ के पड़
अजुन ने वीकार कर लया। उसने अपने लहराते बाल क चोटी बांध ली और ह थयार से
लैस होकर रथ म जम गया।
वृह ला ने स होकर अपना शंक फंू का, जसक गंभीर विन से सारा वातावरण गूज
ं
उठा। शंख क तेज विन से राजकु मार घबरा गया और डर के मारे कांपने लगा।
अजुन के शंख क विन एक बार िफर िदग्-िदगंत तक फैल गई। राजकु मार उ र एक बार
िफर कांप उठा, पर उसने घोड़ क लगाम से अपनी पकड़ ढीली नह होने दी।
दयु धन स होकर बोला, ‘‘अगर वह लड़ने आ रहा है तो हमने बाजी जीत ली। वे लोग
वनवास के बाद एक वष के अ ातवास के लए वचनब थे। अभी उनके अ ातवास का
समय पूरा नह हआ है। अगर वह हमसे लड़ने आया तो पहचान लया जाएगा और पांडव को
पुनः वनवास के लए िनकलना पड़ेगा। हम कोई जान-बूझकर तो पांडव को खोजने आए नह
थे। हम तो पता भी नह था िक पांडव म य देश म रहते ह। हम तो ि गत नरे श क सहायता
करने आए ह और उसक लूटी हई गाय को वापस लेने आए ह। अब हम लड़ने क या
आव यकता, पांडव ने तो कट होकर बाजी गंवा दी। आपका िवचार या है िपतामह?’’
कु छ देर तक शांित छाई रही, िफर अजुन ने ही अपनी ओर से पहल क । उसने धनुष से तीर
छोड़े, कु छ तो ोणाचाय के कान के पास से िनकल गए और कु छ उनके चरण म जा िगरे ।
ोणाचाय स होकर बोले, ‘‘िकतना महान धनुधारी है अजुन! उसने कु छ तीर से मेरे कान
म संवाद पहच
ं ाया है और कु छ तीर से मेरे चरण म अपना णाम भेजा है।’’
इतना कहकर ोणाचाय ने तीर चलाकर अजुन को यु आरं भ करने क अनुमित दान कर
दी। अजुन ने तीर चलाकर ोणाचाय के तीर के वार को बचा लया। दोन ओर से अ का
आदान- दान आरं भ हो गया।
वापसी म अजुन ने अपने ह थयार पुनः उसी वृ पर िछपा िदए, जहां पहले रखे थे।
महल के िनकट आने पर अजुन से राजकु मार उ र ने कहा, ‘‘हे पाथ! मा कर दी जए,
मुझे पता नह था िक वीर पांडव ने ौपदी के साथ बदले हए वेश म हमारे महल म ही आ य
लया है।’’
‘‘सुनो राजकु मार! यान रहे हमारी अस लयत िकसी पर कट मत करना। सबको यही
बताना िक यु तु ह ने अकेले जीता है।’’
□□
पास ही यु धि र खड़ा था। वह बोला, ‘‘हां, जसके रथ का सारथी वृह ला हो, वह भला
सफल कैसे नह होगा!’’
‘‘व स!’’ राजा िवराट ने उ र िदया, ‘‘कंक को मने ही दंड िदया है। इसे सबक सखाना
आव यक था।’’
राजा िवराट ने उसक बात का कोई उ र नह िदया। उ ह ने पु से पूछा, ‘‘हां, राजकु मार!
बताओ, तुमने यु कैसे जीता?’’
□□
थोड़ी देर के प चात् राजा िवराट ने राजदरबार म वेश िकया। कंक को राज संहासन पर
बैठा देखकर उ ह आ चय हआ‒आ चय से अ धक ोध। वे कोई अपश द बोलते, तभी
अजुन अपने आसन से उठा और बोला, ‘‘महाराज! न ह । संहासन पर आसीन यि
संहासन के सवथा यो य ह। वे इं थ के नरे श धमराज यु धि र ह।’’
त काल िववाह क तैया रयां शु हो गई।ं ारका से ीकृ ण वर अिभम यु एवं बलराम,
सा यिक आिद यादव वीर के साथ म य देश आ पहच
ं े। िववाह-समारोह म स म लत होने
ुपद भी अपने पु धृ ु न के साथ पधारे । बदले क आग म जल रही िशखंडी भी आई।
इसके अलावा यु धि र के अनेक िम नरे श भी पहच
ं े, जनम का सराज व िशिवराज भी
अपनी एक-एक अ ौिहणी सेना लेकर आए थे।
□□
पांडव के सभी िम नरे श ने वादा िकया िक ऐसे किठन समय म वे पांडव को हर कार
का सहयोग देने को तैयार ह।
ीकृ ण ने सबको संबो धत करते हए कहा, ‘‘पांडव के साथ जो अ याय हआ है, उसके
बारे म आप सब भली-भांित प रिचत ह। जुए म धोखे से यु धि र को हराकर उनका सारा
वैभव लूट लया गया और पांडव अपना वचन पूरा करते हए िपछले तेरह वष ं से दर-दर क
ठोकर खा रहे ह। अब उ ह ने अपना वचन सफलतापूवक पूरा कर लया है तो उ ह अपना
राज-पाट और वैभव वापस िमलना चािहए। इसके बाद ही हम कोई अगला कदम उठा सकते
ह। मेरा िवचार है िक पहले हम कौरव के पास अपना दतू भेजना चािहए। इस समय सारे रा य
‘‘मुझे नह लगता िक दयु धन पांडव का अनुरोध वीकार करे गा।’’ बलराम का िवचार था,
‘‘कौरव ने हमेशा पांडव का अिहत चाहा है और थित सवथा उनके प म है, वे पांडव को
रा य म घुसने भी नह दगे।’’
अंततः यही तय िकया गया िक पहले िकसी सुयो य दतू को कौरव के पास भेजना चािहए।
□□
दयु धन भी मौन नह था। पांडव क येक गितिव ध पर उसक ि थी। उसने भी अपने
प के राजाओं से संभािवत यु के लए तैयार रहने को कह िदया था। तभी दयु धन को पता
उस समय ीकृ ण अपने शयनक म सो रहे थे। दयु धन ने पहले शयनक म वेश
िकया। ीकृ ण को िन ाम देखकर उसने चुपचाप बैठ जाना उिचत समझा। दयु धन ने अपने
लए उिचत आसन क खोज म इधर-उधर ि डाली। ीकृ ण के सरहाने के पास एक
आसन पड़ा था, वह उसी पर बैठ गया। अजुन आया तो उसने ीकृ ण के चरण म ही बैठना
उिचत समझा, इस लए वह पायताने बैठ गया।
थोड़ी देर म ीकृ ण क न द खुली। आंख खुलते ही उनक ि सामने बैठे अजुन पर गई।
अजुन ने उनका अिभवादन िकया।
अजुन के बोलने से पूव ही दयु धन बोला, ‘‘ ीकृ ण! पहले म आया ह,ं इस लए पहले
मुझसे बात करना ही उिचत है। कौरव व पांडव दोन के साथ आपको बराबरी का यवहार
करना चािहए, अजुन से प पात ठीक नह ।’’
‘‘अ छा! तो पहले आप आए ह।’’ ीकृ ण बोले, ‘‘पर म या क ं , मुझे पहले िदखाई तो
अजुन ही िदया। खैर! आप बताइए कैसे आगमन हआ?’’
‘‘एवम तु।’’ ीकृ ण मु कराकर बोले, ‘‘और तुम या चाहते हो दयु धन?’’
□□
पांडव क दसरी
ू माता मा ी के िपता श य बहत ही शि शाली नरे श थे। उनके कान म भी
संभािवत यु क भनक पहच
ं चुक थी। जािहर था िक वे पांडव का िहत चाहते थे, इस लए
एक िदन वे अपने कु छ िव व त सा थय और सेना के साथ यु धि र से िवचार-िवमश करने
िनकल पड़े।
तीर तरकश से िनकल चुका था। श य ने कहा, ‘‘बोलो! तुम मुझसे या चाहते हो?’’
‘‘म चाहता हं िक जब यु हो, तब आपक सेना मेरे अधीन रहे।’’ दयु धन ने कहा, ‘‘बस,
इसके अलावा म और कु छ नह चाहता।’’
अपना आसन हण करने के प चात् दतू बोला, ‘‘म पांडव क ओर से कहने आया हं िक
हम यु नह चाहते। बस, हम तो यह चाहते ह िक रा य म हमारा जो अ धकार है, वह हम
सस मान िदया जाए। अगर आप लोग यु करने म उतावले ही ह तो हम भी अपने कदम पीछे
नह हटाएंग।े त संभािवत यु के लए हमने भी पूरी तैयारी कर ली है। सात अ ौिहणी सेना तो
लड़ने के लए एकदम त पर है, इसके अलावा अनेक िम नरे श क सैकड़ अ ौिहणी सेनाएं
आदेश िमलने क ती ा म ह। आपका या उ र है?’’
‘‘ठहरो दत!’’
ू भी म बीच म ही बोले, ‘‘कण! भला इसी म है िक शांित से काम लो। यह
मत भूलो िक अजुन अकेले कई लोग का मुकाबला कर सकता है। यु से िकसी का भला
कण मन मसोसकर रह गया।
संहासन पर मौन बैठे धृतरा सब कु छ सुन रहे थे। बात बढ़ते देखकर वे थोड़ा कसमसाए।
अंितम िनणय उ ह ही करना था, लेिकन िफलहाल कु छ उ र देना उनके वश म नह था। वे
ू तुमने जो संदेश पहच
दतू से बोले, ‘‘सुनो दत! ं ाया, उस पर हम िवचार करने दो। शी ही मेरा
सारथी उ र लेकर पांडव से िमलेगा, अब तुम जा सकते हो।’’
धृतरा ने संजय को अपने पास बुलवाया। कु छ देर िवचार-िवमश होता रहा। धृतरा समझ
नह पा रहे थे िक पांडव के पास या संदेश भेज? िफर वे संजय से बोले, ‘‘संजय! तुम
पांडव से जाकर िमलो। मेरा िवचार है िक दोन प म शांित ही रहे। बस, कु छ ऐसा यवहार
करना िक यह उ ेजना समा हो जाए।’’
‘‘हे धमराज!’’ संजय बोला, ‘‘मुझे महाराज धृतरा ने आपके पास भेजा है। वे चाहते ह
िक यु के जो बादल मंडराने लगे ह, उ ह साफ कर िदया जाए। वे कौरव-पांडव म शांित
चाहते ह। यु म िवनाश के अलावा िकसी को कु छ ा नह होगा।’’
‘‘आपक मांग उिचत है।’’ संजय बोले, ‘‘लेिकन मेरा सुझाव है िक यु का िवचार याग
द। यु से िकसी का भला नह होगा। अगर यु करके ही आपको रा य ा करना था तो
तेरह वष ं तक दर-दर भटकने क या आव यकता थी। उिचत यही है िक दयु धन ने आपका
भाग देने से इनकार कर िदया तो इतने बड़े संसार म कह भी जाकर बाहबल से अपना रा य
थािपत क जए।’’
वह ीकृ ण बैठे थे। उनसे रहा नह गया। बोले, ‘‘संजय! आज तो तु हारे मुंह से धम क
बात सुनकर आ चय होता है, बुजुग ं क दहु ाई देते हैरत होती है, यह िकसी से िछपा नह है
िक पांडव ने अब तक धैय का ही प रचय िदया है। तुम जन बुजुग ं क दहु ाई देते हो, उ ह ने
अब तक कौन-सा आदश थािपत िकया है। जब ौपदी को भरे दरबार म िनव करके
अपमािनत िकया जा रहा था, तब इन बुजुग ं के हाथ-पांव य फूल गए थे, य नह िकसी ने
आगे बढ़कर दयु धन या दःु शासन को इस कु कृ य से दरू िकया? िफर भी पांडव अपनी ओर
से कोई पहल नह करगे। संजय! तुम जाकर राजा धृतरा से कह दो िक पांडव को इं थ
दे द, उनका उ र आने के बाद ही कोई िनणय होगा।’’
□□
‘‘उ ह हर हालत म अपना रा य चािहए। वे आपक शांित क िनरथक योजना म आने वाले
नह ।’’
संजय ने आिद से अंत तक सारी बात धृतरा को सुना द । धृतरा िचंता म पड़ गए।
उनका िवचार था िक पांडव अपने रा य क मांग छोड़ दगे और शांित का रा ता अपनाएंग,े पर
अब या िकया जाए। दयु धन कभी भी पांडव को उनका अ धकार नह स पेगा और वे पु का
िवरोध नह कर सकगे।
उ ह ने उसी समय िवदरु को बुलवाया। महा मा िवदरु उ ह हमेशा संकट के समय उिचत
सलाह देते थे। यह अलग बात है िक धृतरा उस पर पूरी कार अमल नह कर पाते थे।
िवदरु बोले, ‘‘आप मौन य ह? अगर आपने मेरा सुझाव नह माना तो इस यु को टालना
असंभव हो जाएगा और यह तय है िक यु म अ यायी को ही मृ यु का वरण करना पड़ता है।
कह ऐसा न हो िक यु के अंत म अपने पु क मृ यु क सूचना पाकर आप खून के आंसू
रोएं। अंततः पांडव को उनका अ धकार देने म आपको आप या है?’’
िवदरु को हैरानी हई। स चाई जानते हए भी धृतरा उिचत िनणय नह कर पा रहे थे।
वे रात भर धृतरा को समझाते रहे और धृतरा चुपचाप उनक बात को सुनते रहे।
□□
धृतरा ने बोलना आरं भ िकया, ‘‘संजय पांडव से िमलकर आया है। संजय क बात से
प तीत होता है िक पांडव ने बड़े तर पर यु क तैया रयां कर रखी ह। वे अपना
रा या धकार ा करने को किटब ह। रात को िवदरु ने भी बताया िक हम उनका िह सा
उ ह स प देना चािहए। इस लए मेरा िवचार है िक पांडव को इं थ लौटाकर इस िववाद को
हमेशा के लए समा कर देना चािहए।’’
पु क बात सुनकर धृतरा बुरा मान गए। ु ध होकर बोले, ‘‘अब इस दयु धन को कौन
समझाए। यह मूख पांडव क वीरता को कम करके आंक रहा है। या इसे यह भी नह मालूम
िक उनके पास िद या ह, अजुन के पास गांडीव है। पांडव केवल अपना अ धकार ही तो मांग
रहे ह। म तो चाहता हं िक इं थ देकर इस यु का खतरा टाल िदया जाए और चचेरे भाई
शांित और स मान के साथ रह।’’
भी म ने तेज वर म कहा, ‘‘इतना अहंकार मत करो कण! यही अहंकार मानव का सबसे
बड़ा श ु है, एक बार पहले भी तुम म य देश म अजुन के हाथ मात खा चुके हो और अगर
‘‘हऽं ऽऽ। तो आप समझते ह िक म केवल बात बना रहा ह।ं ’’ कण बोला, ‘‘ली जए! आज
म ण करता हं िक मरते दम तक लडू ंगा और हे भी म िपतामह! जब तक आप जीिवत ह, म
अपने ह थयार को पश भी नह क ं गा। आप यु भूिम म अपना वार आजमाकर शांत हो
चुके ह गे, तब मेरा काम आरं भ होगा।’’
यु क आशंका उ रो र बढ़ गई थी।
□□
ऐसा ही िकया गया। ीकृ ण जस माग से आ रहे थे, वहां सारी सुिवधाएं जुटाई गई,ं साथ ही
ह तनापुर को अ छी कार सजा िदया गया।
िवदरु ने धृतरा को सुझाव िदया, ‘‘महाराज! ीकृ ण चाह तो सब कु छ ठीक हो सकता है।
वे वृक थल तक पहच
ं चुके ह, यहां आए तो आप उनसे कौरव और पांडव क भलाई का
उपाय पूछ।’’
□□
ीकृ ण सबसे पहले महल म जाकर धृतरा से िमले। धृतरा ने उ ह नेह से आ लंगन म
बांध लया।
‘‘िचंता मत करो।’’ ीकृ ण बोले, ‘‘समय आ रहा है, जब तुम अपनी आंख से देखोगी िक
तु हारे पु पृ वी के मा लक ह गे और उनके श ुओं का नामो-िनशान तक िमट जाएगा।’’
ीकृ ण दयु धन से िमले तो दयु धन ने कहा, ‘‘ह तनापुर म आपका वागत है। कृपया
आज का भोजन मेरे साथ क जए।’’
ीकृ ण उसे वह छोड़कर िवदरु के घर गए और वहां भोजन िकया। िवदरु ने कहा, ‘‘मूख
दयु धन सोचता है िक वह अपने दल
ु य म सफल हो जाएगा। वह िकसी क बात मानता ही
नह । बस, कण व शकु िन क बात म आकर िवशाल सेना एक कर ली है और लड़ने को
किटब है। ऐसी हालत म आप यहां शांित का ताव लेकर आए ह, कौन सुनेगा आपक
बात? बेहतर यही है िक इस द ु से दरू रह।’’
□□
अगले िदन राजदरबार म सभा बुलाई गई। धृतरा सिहत सभी अपने-अपने आसन पर बैठे
थे। भी म, ोण आिद बुजुग ं के अलावा स मािनत ऋिष-मुिन भी पधारे थे।
ीकृ ण ने सभी को संबो धत िकया, ‘‘म यहां शांित का अंितम यास करने आया ह।ं
पांडव ने मुझे सं ध का ताव तुत करने को भेजा है। मेरी राय है िक याय क मांग यही
है, पांडव को रा य स प िदया जाए और यु के खतरे को टाल िदया जाए। अगर ऐसा नह
िकया गया तो कु वंश न हो जाएगा।’’
ीकृ ण बोले, ‘‘दयु धन! यह िवचार मन से िनकाल दो िक तुम यु म जीत जाओगे। अगर
िबना लड़े तुम कोई िनणय नह करना चाहते तो बेहतर यही है िक अपने िकसी परमवीर से
अजुन को लड़ा दो, उ ह क हार-जीत से िनणय हो जाएगा। यथ ही वृहद यु का आयोजन
करने क या तुक? सबसे अ छी बात तो यह है िक पांडव को चुपचाप उनका अ धकार दे
दो और िमल-जुलकर रहो।’’
सभी को ीकृ ण का समथन करते देखकर दःु शासन घबरा गया। वह धीरे से अपने भाई
दयु धन के कान म बोला, ‘‘भैया! यहां तो उ टी गंगा बह रही है। अगर तुमने ीकृ ण क बात
नह मानी और पांडव से सं ध थािपत नह क तो ोण, भी म और िपता ी आिद सब िमलकर
हम पांडव को स प दगे।’’
दयु धन का पूरा शरीर गु से से कांपने लगा। उसने एक बार तीखी ि से सबको देखा और
एक झटके से उठकर सभागार से चला गया। उसके साथ-साथ कण, शकु िन व दःु शासन आिद
भी चले गए। स मानीय दतू से िबना बात िकए बीच सभा म उठ जाने का सबने बुरा माना।
ीकृ ण ने धृतरा से कहा, ‘‘दयु धन क उ ंडता असहनीय है। बेहतर यही है िक उसे
रा या धकार से वंिचत कर दी जए व पांडव से सं ध थािपत क जए। यही एक उपाय है,
जससे कु वंश क र ा क जा सकती है।’’
□□
दसरे
ू क म कण, शकु िन, दःु शासन आिद दयु धन क ती ा कर रहे थे। दयु धन ने वापस
आकर बताया िक पूरा वातावरण उनके िव है, अब या िकया जाए? उ ह ने गंभीरता से
इस िवषय पर िवचार-िवमश िकया और अंततः िनणय िकया िक ीकृ ण को बंदी बना लेना
चािहए। दयु धन बोला, ‘‘ ीकृ ण को हम बंदी बना लगे तो पांडव क िह मत टू ट जाएगी। िफर
हम बड़ी आसानी से पांडव का नाश कर दगे। मुझे परवाह नह िक महाराज धृतरा या अ य
कोई इस हरकत से स होता है या ।’’
ीकृ ण ने धृतरा से कहा, ‘‘मुझे सूचना िमली है िक आपका पु दयु धन मुझे बंदी बनाने
क योजना बना रहा है। ठीक है, अगर ऐसा करना चाहता है तो मुझे बंदी बनाने आए। िफर म
भी िदखा दग
ं ू ा िक कौन िकसको बंदी बना सकता है। मुझे अपनी शि पर पूरा भरोसा है,
लेिकन म आप लोग क उप थित म अपनी शि का दशन करने नह आया ह।ं कृपया
दयु धन को समझा दी जए िक यह हरकत महंगी पड़ेगी।’’
तभी दयु धन अपने सा थय के साथ िफर सभागार म आया। धृतरा ने अपने पु को खूब
डांटा, लेिकन दयु धन पर इसका कोई असर नह हआ। इस पर ीकृ ण ने अपना िवराट प
िदखाया, जससे सारे सभागार म स ाटा छा गया।
ीकृ ण अपने आसन से उठकर बोले, ‘‘अब मेरा यहां रहना यथ है, म प देख रहा हं
िक आपका अपने पु पर ही अ धकार नह है। आप लोग पांडव से सं ध नह करना चाहते तो
वे भी यु के लए तैयार ह। म चला।’’
कण बोला, ‘‘म आपक बात नह मान सकता। म कुं ती को अपनी माता कैसे मान सकता
ह,ं जसने मुझे ज म देते ही नदी म फक िदया था। मुझे मा क जए।’’
□□
कुं ती क आंख से आंसू िनकल आए। वह सुबकती हई बोली, ‘‘भा य के आगे कौन या
कर सकता है? मेरे चार पु को छोड़ देने के लए बहत-बहत ध यवाद। यु के मैदान म इस
वचन को याद रखना। मेरी शुभकामनाएं।’’
पांडव ने उ ह िशिवर म घेर लया। ीकृ ण ने आिद से अंत तक कौरव क सभा का संपूण
वृ ांत सुना िदया।
थोड़ी देर तक उनम िवचार-िवमश हआ। अनेक नाम सुझाए गए, पर कोई िकसी नाम पर
एकमत न हआ। अंत म ीकृ ण ने कहा, ‘‘मेरा िवचार है िक सेनापित के लए धृ ुन
उपयु रहेगा।’’
□□
उपल य नगर से चलने से पहले यु धि र ने ौपदी क सुर ा का पूरा बंध कर िदया था,
िफर िन चत िदन सेना यु े के लए रवाना हो गई। कु े जैसे समतल मैदान म पहच
ं कर
यु धि र ने तंबू गाड़ िदए। ीकृ ण सिहत पांडव के सम त सहयोगी नरे श यु े म तैनात
थे। पास ही िहर वती नदी बह रही थी।
अजुन बोला, ‘‘भैया! शोक यथ है। अगर कौरव थोड़े भी समझदार होते तो यह नौबत नह
आती। यह मत भूलो िक उ ह ने ीकृ ण का अंितम शांित यास भी ठु करा िदया। िफर हम तो
माता कुं ती का भी आदेश िमल चुका है िक हम अपना ि य धम िनभाकर रा य हा सल
कर।’’
हालांिक यु धि र मन-ही-मन दख
ु ी थे, िफर भी कौरव क कु िटलता याद आते ही वे यु
के लए तुत हो गए।
□□
भी म िपतामह ने कहा, ‘‘मुझे सेनापित बनने म कोई आप नह , िकंतु मेरे सेनापित रहते
कण यु म भाग नह ले सकता।’’
दयु धन को यह योजना पसंद आ गई। त काल उलूक को बुलाया गया और उसे समझा-
बुझाकर पांडव क ओर भेज िदया।
‘‘म दयु धन का संदेश आप लोग के लए लाया ह।ं ’’ उलूक बोला, ‘‘अब आप लोग गु से
को भूलकर मेरी बात सुिनए।’’
‘‘और सुनो।’’ अजुन ने भी टोका, ‘‘उसे घमंड है िक सारे बुजुग एवं गु जन उनक ओर ह,
िकंतु याद रहे उ ह देखकर हमारे ह थयार नह झुकगे। भी म जैसा परम सेनापित पाकर दयु धन
को अ धक उलझने क आव यकता नह , उनक मृ यु भी मेरे हाथ लखी है।’’
□□
पांडव ने तो उलूक क सारी अपमानजनक बात परम धैय से सुन ली थ , लेिकन उलूक ने
जब पांडव का संदेश दयु धन को सुनाया तो दयु धन का ोध से बुरा हाल हो गया। वह
आवेश म कांपता हआ अपने सेना नायक से बोला, ‘‘जाओ, यु क तैयारी करो। कल सुबह
होते ही हम पांडव पर आ मण कर दगे।’’
दसरे
ू िदन जैसे ही नया सूय उदय हआ, दोन सेनाएं आमने-सामने डट गई।ं दोन सेनाओं के
आगे मह वपूण यो ा पूरे साजो-सामान के साथ स थे। एक ओर खड़ी थी कौरव क यारह
अ ौिहणी सेना तो दसरी
ू ओर खड़ी थी पांडव क सात औ िहणी सेना।
पांडव क सेना भले ही कम थी, पर उनके हौसले बुलदं थे। इसके अलावा यु धि र ने जो
मोचबंदी क थी, यु -कला के िहसाब से अि तीय थी। दरू से कौरव को ऐसा लग रहा था िक
पांडव के साथ मु ी भर सैिनक ही लड़ने आए ह, लेिकन गु देव ोणाचाय से पांडव क
कु शल मोचाबंदी िछपी न रह सक । उ ह ने मन-ही-मन यु धि र क शंसा क । पांडव क
सेना ने कौरव को चार ओर से घेर रखा था।
अजुन अपने रथ म सवार आगे बढ़ता जा रहा था। उसके रथ के सारथी थे वयं ीकृ ण।
भी म के शंख के उ र म ीकृ ण ने अपना पांचज य शंख बजाया तो अजुन ने देवद नामक
शंख। इन दोन शंख क गगनभेदी विन सैिनक के कान म पहच
ं ी तो कु छ पल के लए उनके
कान सु हो गए।
अजुन क आंख खुल गई।ं हां, यह संसार असार है और जो कोई आया है, वह अपना-
अपना कत य िनभाकर चला जाएगा। ये र ते-नाते सब िनरथक ह। बस, उसने उठा लया
अपना धनुष-बाण और बोला, ‘‘हे भु! आज मने एक नए ही दशन को आ मसात िकया। अब
म मोह-माया को यागकर यु के लए तुत ह।ं ’’
□□
ह तनापुर के महल म धृतरा िचंतातुर बैठे थे। पास ही संजय बैठा उ ह यु भूिम क
नवीनतम गितिव धय से अवगत कराता जा रहा था।
धृतरा मन-ही-मन दख
ु ी थे। एक ही प रवार के लोग आज यु के मैदान म श ु बनकर
एक-दसरे
ू से मुकाबला करने को डट गए थे। उनके दःु ख का कोई अंत नह था।
ऐसे ही अवसर पर महिष यास ने वहां वेश िकया। धृतरा को शोकम देखकर महिष
यास बोले, ‘‘अब इतना िचंितत होने से या लाभ? पहले ही अगर आपने सतकता व
बुि मानी से काम लया होता तो यह नौबत नह आती। जो कु छ हो रहा है, वह सब आपक
कमजो रय के कारण ही हो रहा है। आज अगर एक ही प रवार के लोग यु करने को आतुर
ह तो सब आपक अनीित व अधम का प रणाम है, पर यह सब तो हमेशा से होता आया है।
कोई भी काल के वाह को रोक नह सकता। इस लए आप शोक न कर। हां, अगर आप
अंितम बार अपने आ मीय वजन को अपनी आंख से देखना चाहते ह तो म आपको िद य
ि दान कर सकता ह।ं ’’
‘‘एवम तु।’’ इतना कहकर महिष यास ने संजय क ओर देखकर कहा, ‘‘संजय! म तु ह
िद य- ि दान करता ह।ं तुम यह बैठे-बैठे यु भूिम का सारा हाल प देख सकोगे। िफर
यह आंख देखा हाल तुम धृतरा को भी सुनाते जाना।’’
□□
यु भूिम म अजुन ने दबु ारा धनुष-बाण उठा लए थे और ीकृ ण ने रथ आगे बढ़ा िदया था।
दोन सेनाएं आमने-सामने खड़ी अंितम आदेश क ती ा कर रही थ । तभी अजुन सिहत
सभी पांडव ने देखा िक यु धि र अचानक अपने रथ से नीचे कू द पड़े ह। अपने ह थयार रथ म
ही छोड़ िदए और पैदल धीरे -धीरे चलते हए कौरव क ओर बढ़े।
यु धि र बोले, ‘‘इस समय आपके माग िनदशन क अ यंत आव यकता है। हम उपदेश
दी जए।’’
आते समय वे बोले, ‘‘अगर कौरव क सेना म हमारा कोई शुभिचंतम हो तो हमारी ओर आ
जाए।’’
□□
पहले िदन सु ढ़ यूह रचना के साथ पांडव आगे बढ़े। भीमसेन ने मतवाले हाथी क कार
गरजते हए द ु मन पर धावा बोल िदया।
उधर भी म िपतामह अपनी सेना के साथ श ु-सेना पर िबजली क कार टू ट पड़े। दोन
सेनाओं म भीषण िभड़ंत हई। चार ओर भयंकर यु िछड़ गया।
राजकु मार उ र भी पांडव के प म था। वह हाथी पर सवार था। उसने अपने हाथी को
आगे बढ़ाया और श य के रथ के घोड़ को कु चल िदया। श य के ोध क सीमा नह रही।
उसने लौह-शि का िनशाना साधकर राजकु मार उ र पर वार कर िदया। राजकु मार उ र इस
वार से बच न सका और यु भूिम म वीरगित को ा हआ।
दसरी
ू ओर भी म िपमामह के तेज बाण से पांडव क सेना म खलबली मच गई थी। भी म
िपतामह के बाण पांडव सैिनक को धराशायी करते जा रहे थे।
दसरे
ू िदन सूय दय के साथ यु आरं भ हआ। दोन ओर क सेनाएं नए उ साह के साथ यु
म िपल पड़ ।
अजुन अपने रथ पर ीकृ ण के साथ बैठा था। अपने सैिनक को धड़ाधड़ िगरते देखकर वह
भी िचंितत था। ीकृ ण बोले, ‘‘अजुन! अगर भी म िपतामह का यह क र मा जारी रहा तो
हमारी सेना बेमौत मारी जाएगी। म रथ को भी म के समीप ले जाता ह।ं तुम अवसर पाते ही
भी म को रोको।’’
दोन महार थय क िभड़ंत देखने के लए सेना म उ सुकता छा गई। कई कौरव वीर लड़ना
भूलकर भी म और अजुन क ओर देखने लगे।
अपनी सेना क यह दशा देखीतो सेनापित भी म िपतामह ने िफर से मोचा संभाल लया। वे
अजुन को छोड़कर भीम क ओर बढ़ चले। सा यिक ने भी म को आगे बढ़ते देखा तो अपना
तीसरे िदन भी कौरव क अपार ित हई। शु क देश का नरे श अपने साथ जतने सैिनक
लाया था, वे सब काम आ गए। कु ल िमलाकर उस िदन कौरव के लगभग दस हजार रथ
िवन हो गए और सात सौ हाथी मारे गए।
□□
अजुन ितिदन क कार श ु-संहार म लगा था, तभी उसने देखा िक उसका पु अिभम यु
कौरव यो ाओं से िघर गया है। अिभम यु के चार ओर अ व थामा व श य आिद अनुभवी
यो ा अ ताने खड़े थे। अजुन ने अपना रथ उस ओर मोड़ िदया और धृ ु न के साथ
िमलकर अिभम यु क र ा म संल हो गया। दयु धन ने यह देखा तो वह भी अपने भाइय के
साथ श य व अ व थामा क सहायता को आ पहच
ं े। भीम ने भी अपने पु घटो कच के साथ
अिभम यु क सहायता क ।
उस िदन भीम ने धृतरा के आठ पु को मौत के घाट उतार िदया। दयु धन ने बड़ी वीरता
से जवाबी आ मण िकया, यहां तक भीम पर वार िकए, पर भीम का पु घटो कच मौत
बनकर कौरव पर टू ट पड़ा था। उसने कौरव क बहत बड़ी फौज को ने तनाबूद कर िदया।
भी म ने यह आलम देखा तो दयु धन से बोले, ‘‘इस रा स से लड़ना बहत किठन है। हमारी
सेना थक चुक है। यु िवराम क घोषणा कर दो।’’
□□
भी म के रहते पांडव का जीतना असंभव हो गया था। भी म के बाण क तेज मार के आगे
पांडव का कोई जोर नह चल रहा था। हालांिक अजुन लगभग हर रोज रथ को भी म के पास
ले जाता और भी म को अपनी ओर आकिषत करके कु छ देर के लए यु का पासा पलट देता
था, िकंतु भी म क उप थित पांडव सेना के लए िचंता का मुख िवषय थी।
अजुन ने िशखंडी को अपने पास बुलाया। यह िशखंडी वही था, जसने भी म को मारने का
ण िकया था। अजुन ने अपने रथ के आगे िशखंडी को िबठा िदया और रथ को भी म क ओर
बढ़ा िदया। भी म को ात था िक उनक मृ यु आ चुक है। िशखंडी को अजुन के रथ म आते
देख उ ह ने तय कर लया िक उस पर बाण नह चलाएंग,े य िक वह उनक ि म नारी थी
और नारी पर वार करना भी म के स ांत के िव था।
‘‘व स अजुन!’’ भी म धीरे से बोले, ‘‘ यास से गला सूख रहा है, तिनक पानी तो
िपलाओ।’’
अजुन ने उसी समय धरती पर एक तीर छोड़ा, वहां से पानी क बौछार िनकल पड़ी। वह
पानी क बौछार सीधे भी म के मुंह म जा िगरी। पानी पीकर भी म ने अपनी यास बुझाई। यह
पानी क धारा गंगा क थी, जो अंितम समय म अपने पु क यास बुझाने आई थी।
‘‘सुनो कण!’’ भी म बोले, ‘‘पांडव से इस कदर घृणा मत करो। तुम सारथी-पु नह , सूय-
पु हो, पांडव के भाई हो, जाओ और उनसे िम ता का हाथ िमलाकर इस यु का अंत कर
दो।’’
कण को यह ताव पसंद नह आया। बोला, ‘‘जब सभी लोग मेरी हंसी उड़ा रहे थे, तब
दयु धन ने मुझे स मान िदया था। भला म दयु धन का साथ इस संकट-बेला म कैसे छोड़ द।ं ू म
वचनब हं और अपना वचन अव य िनभाऊंगा, ब क अगर आप मुझे यु म भाग लेने देते
तो म अजुन को आपका वध नह करने देता।’’
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सुशमा से अजुन लड़ने चला तो उसने यु धि र से कहा, ‘‘मुझे पता चला है िक दयु धन
आपको जीिवत पकड़ना चाहता है। म तो ि गत नरे श से लड़ने जा रहा ह,ं आप अपनी सुर ा
का यान र खएगा। म स य जत को आपक सहायता के लए छोड़े जाता ह।ं हां, स य जत
जब लड़ते-लड़ते मर जाए तो आप त काल यु भूिम छोड़कर चले जाएं।’’
अजुन को अपने बीच पाकर पांडव म िफर नया जोश आ गया। वे नए उ साह से कौरव से
लड़ने लगे।
□□
अिभम यु बोला, ‘‘च यूह के अंदर तो म भी जा सकता ह,ं िकंतु बाहर िनकलने का भेद
मुझे मालूम नह ।’’
यु धि र ने कहा, ‘‘तो िफर तु ह च यूह म वेश करो और इसे तोड़ दो। तु हारी र ा के
लए कई वीर यहां तुत ह।’’
च यूह म कौरव के सम त वीर मौजूद थे। अिभम यु को अंदर आते देखते ही दयु धन ने
अिभम यु पर आ मण कर िदया, लेिकन अिभम यु ने वीरता से दयु धन का मुकाबला िकया।
अिभम यु क वीरता देखकर दयु धन चिकत रह गया। दयु धन के लए जब अिभम यु के वार
सहना मु कल हो गया तो कृपाचाय, कण, अ व थामा, श य व कृतवमा आिद ने आकर
द ु ाेधन क सहायता क , लेिकन अिभम यु से लोहा लेते समय सारे वीर के पसीने छू ट गए।
अिभम यु ने अपने वार से इन वीर को नचा डाला। दःु शासन क तो यह हालत थी िक उसके
शरीर म अिभम यु के अनेक तीर चुभ चुके थे, जब उससे सहा नह गया तो वह मैदान छोड़कर
भाग गया।
□□
अपने िशिवर म पांडव अिभम यु क मृ यु से बहत संत थे। यु धि र को िवशेष दःु ख था,
य िक उसी ने अिभम यु को भेजा था।
अजुन ने कहा, ‘‘म जय थ को नह छोडू ंगा। उसक मृ यु मेरे ही हाथ होगी। कल सूया त
से पहले म उसे यमपुरी पहच
ं ा दग
ं ू ा।’’
□□
तभी सूय को बादल ने ढक लया। अजुन ने समझा िक सूया त हो गया। उसने चैन क
सांस ली। वह िनडर होकर अपने गु थान से िनकल आया। जैसे ही अजुन ने देखा, अपना
तीर चला िदया। तीर िनशाने पर लगा। जय थ आह भरकर धरती पर जा िगरा।
सूय िफर बादल के पीछे से िनकल आया और चार ओर तेज काश फैल गया। व तुतः
ीकृ ण ने ही अपने च से सूय को िछपाकर सूया त का म उ प िकया था, तािक जय थ
मारा जा सके।
कण ने भी भीम को कम ित नह पहच
ं ाई। उसने भीम के ह थयार व धनुष-बाण को तोड़
िदया, उसके रथ को भी ित पहच
ं ाई। कण को भारी पड़ते देखकर भीम को मोच से भागकर
जगह-जगह अपनी र ा करनी पड़ी। भीम के हाथ म जो लगा, उसे उठाकर वह कण पर
फकता रहा।
कण ने कहा, ‘‘तुम कैसे ि य हो, जो भागकर अपनी जान बचाते हो। तु ह तो जंगल म
जाकर पशुओं को घास चरानी चािहए।’’
□□
यु का म जारी था। हर मोच पर घोर मार-काट मची थी। ोणाचाय अपना सेनापित व
बखूबी िनभा रहे थे। जहां उनक ज रत पड़ती, उधर ही पहच
ं जाते। जहां देखो, ोण के अ
क आवाज सुनाई पड़ती।
ीकृ ण गु ोणाचाय क चपलता से िचंितत थे, बोले, ‘‘ ोणाचाय के जीिवत रहते हमारा
यु जीतना किठन हो जाएगा। ये तो िबजली क गित से हर मोच पर पहच
ं जाते ह। इनक
वीरता का तो यह आलम है िक ये लगातार रात-िदन िबना थके लड़ सकते ह और जब तक
हमारी सेना को िवन नह कर दगे, तब तक इनके तरकश से तीर िनकलते ही रहगे। हम हर
हालत म ोणाचाय क शि को न करना चािहए। इ ह अपने पु अ व थामा पर बड़ा गव
है। अ व थामा को अभी मारना तो असंभव है, लेिकन अगर िकसी कार ोणाचाय के कान
तक यह भनक पहच
ं जाए िक उनका यारा पु मारा गया तो उनक सारी शि िनर त हो
जाएगी और वे बुरी कार टू ट जाएंग।े बस, ऐसे मौके पर ोणाचाय पर काबू पाया जा सकता
है।’’
उस समय ोणाचाय ऐसा शि शाली बाण छोड़ने जा रहे थे, जसका नाम ा था। इस
बाण क िवशेषता यह थी िक वह पांडव क सम त सेना न कर देता, लेिकन तभी भीम क
अ व थामा को मारने क उ ोषणा सुनी तो उ ह ने ा का हाथ नीचे झुका लया।
यु धि र पास पहच
ं चुका था। ोणाचाय ने कहा, ‘‘यु धि र! तुम कभी झूठ नह बोलते।
सच-सच बताओ, या अ व थामा मारा गया?’’
□□
यह कहकर उसने दःु शासन क लाश के बहते हए खून को अंज ल से भरा और पी गया।
भीम का यह िवकराल प देखकर दयु धन तो स रह ही गया, बाक लोग भी स ाटे म आ
गए।
ीकृ ण बोले, ‘‘इन बात को रहने दो। तुम लोग ने कभी िकसी के िव वास के साथ याय
िकया है? तुम लोग हमेशा अ याय करते रहे हो या भूल गए वह िदन, जब खुलेआम ौपदी
का अपमान हो रहा था, जब पांडव को देश से िनकाल िदया गया और िनह थे अिभम यु का
कई-कई लोग ने िमलकर वध कर डाला। तब कहां था तु हारा याय?’’ इतना कहकर उ ह ने
अजुन को आदेश िदया, ‘‘अजुन! चलाओ अपना तीर और कण को ख म कर डालो।’’
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अ व थामा बोला, ‘‘िचंता मत करो, तुमने मुझे उ रदािय व स पा है, उसका पालन क ं गा
और पांडव का नामो-िनशान िमटाकर ही दम लूग
ं ा।’’
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दयु धन को अपने बचने क कोई उ मीद नह थी। इस लए एक िदन उसने अपना गदा उठाया
और एक झील के िकनारे जा पहच
ं ा। मं के बल से पानी म रा ता बनाया और तल म जाकर
िछपकर बैठ गया।
दयु धन बोला, ‘‘म िछपने के लए यहां नह बैठा ह।ं यह मत भूलो िक मेरा शरीर अब तक
बदले क आग से द ध हो रहा है, म तो यहां ठं डक पाने को बैठा ह।ं तुम लोग ने मेरे सभी
आ मीय - वजन को मार डाला। अब म िकसके लए लडू ं या जीऊं? मुझे राज-पाट नह
चािहए। सब कु छ तुम लोग ले लो। उफ! इसी रा य को पाने के लए तुम लोग ने इतना
नरसंहार िकया।’’
भीम गदा लेकर दयु धन के सामने जाकर खड़ा हो गया। दोन गदा चलाने म िनपुण थे,
इस लए उनक गदा एक-दसरे
ू से टकरा गई। वार-पर-वार होने लगे, भीम दयु धन के वार बचा
लेता तो दयु धन भीम के। जैसे ही उनक गदाएं हवा म टकरात भयंकर िचंगारी फूट पड़त ।
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उसी रात अ व थामा ने पांडव के िशिवर म जाकर तबाही मचा डाली। न सफ उसने ौपदी
के पांच पु को सोते हए मार डाला, ब क पांडव क बची-खुची सेना को भी सोए-सोए ही
मार डाला। इस नरसंहार म कृपाचाय व कृतवमा ने भी उसका सहयोग िकया, हालांिक
कृपाचाय इस नरसंहार के खलाफ थे। इसक सूचना मरणो मुख दयु धन को देकर तीन लु
हो गए। दयु धन यह संवाद पाकर मर गया।
अ व थामा गंगा के िकनारे यासा म म िछपा हआ था। भीमसेन ने उसे देखते ही ललकारा।
दोन म घोर सं ाम िछड़ गया। िफर अ व थामा अपनी पराजय वीकार करके जंगल क ओर
िनकल गया।
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यु समा हो गया।
ीकृ ण पास खड़े थे। वे धृतरा के मनोभाव को समझ रहे थे। भीम ने ही उनके ि य पु
दयु धन का वध िकया था, जसे धृतरा कभी भी भुला नह सकते थे। इस लए ीकृ ण ने भीम
क जगह एक लौह ितमा धृतरा के सामने खड़ी कर दी।
धृतरा मन-ही-मन शिमदा हए। थित संभालते हए बोले, ‘‘मुझे खुशी है िक भीम का
अिहत नह हआ। ीकृ ण! सच तो यह है िक मेरे शोक ने मुझे पागल बना िदया था। मुझे
खुशी है िक तु हारे कौशल से भीम क जान बच गई।’’
एक िदन उनके पास नारद एवं महिष यास के अलावा अनेक ऋिष-मुिन िमलने आए।
नारद मुिन यु धि र से बोले, ‘‘तुमने इतना बड़ा यु जीता, चार ओर तु हारा नाम फैल
गया, तुम खुश हो न इस िवजय से? अब तो कोई शोक नह रहा?’’
अजुन बोला, ‘‘इतना खून बहाकर और वीर क ब ल चढ़ाकर अब तुम जंगल म जाकर
तप करना चाहते हो, यह नह होगा। यह राजपाट तु ह संभालना है। यह तु हारा कत य है िक
राजा बनकर जा क भलाई के काम करो, यही ि य धम है।’’
अंत म महिष यास ने कहा, ‘‘तु ह िन चत प से राजा बनकर राजपाट संभालना चािहए।
यही एकमा रा ता है तु हारे लए। राजा बनकर ि य धम का पालन करो और िनरथक
िवचार से अपने िदमाग को मत थकाओ। इसके अलावा और कोई चारा नह , खुशी-खुशी राज
करो।’’
कौरव क सेना से जो युय ु सु नामक सैिनक पांडव क सेना म आ िमला था, वह जीिवत
था। यु धि र ने युय ु सु को धृतरा क देखभाल म लगा िदया। कृपाचाय भी धृतरा के पास
ही रहने लगा।
ीकृ ण बोले, ‘‘मुझे लगता है, उ रायण के आते ही भी म अपनी जान दे दगे। वे ान के
िवराट सागर ह। उनक मृ यु से पहले तुम उनसे िमल लो और ान ा कर लो।’’
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