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द ली दरबार

(उप यास)
द ली दरबार

सय ास
Published by Hind Yugm and Westland Ltd 2016.

Copyright © Satya Vyas 2016


All rights reserved

Satya Vyas asserts the moral right to be identified as the author of this work. This
novel is entirely a work of fiction. The names, characters and incidents portrayed
in it are the product of the author’s imagination. Any resemblance to actual
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याद कर लेता ँ:

माँ को- ज ह ने अपने ह से का सं कार दया।


यंका को- जसने अपने ह से का व दया।
वनय और ान भैया को- ज ह ने अपने ह से क सीख द ।
गुंजन, अनुराग, अ खलेश, अजीत, रा ल जैसे दो त को-
ज ह ने अपने ह से के क से दए।
मनीष वंदेमातरम् को- ज ह ने मेरे क से को अपना ह सा ही
दया।
अगर न जोहरा-जबीन के दर मयाँ गुजरे
तो फर ये कैसे कटे जदगी, कहाँ गुजरे
- जगर मुरादाबाद
वषय-सूची

साहब
सा हल क तरफ क ती ले चल
बीबी
पया ऐसो जया म समाय गयो रे
भेद जया के खोले ना
भँवरा बड़ा नादान
कैसा अनाड़ी लागे रे
ओ र सया, मन ब सया
सुना है तेरी मह फल म रतजगा है
न जाओ संईयाँ, छु ड़ा के बइयाँ
सा कया आज मुझे न द नह आएगी
गुलाम
तु ह हो मेरा शृंगार ीतम
साहब

उस रोज दो घटनाएँ ई थ । दन म मुह ले वाल ने शु ला जी क ट वी पर रामायण दे खा


था और रात म महाभारत हो गया था। दन म सीता जी अपनी कु टया से गायब ई थ
और रात म गीता जी (शु ला जी क बेट ) अपनी ख टया से। सीता जी जब गायब ई थ
तो रावण के पु पक वमान पर नजर आ । गीता जी जब गायब तो पुजारी जी के
मचान पर नजर आ । रावण ने सीताहरण म बल योग कया था। पुजारी जी के बेटे
दे वद म ा ने गीतावरण म लव योग कया था। सीता जी को पु पक वमान पर जटायु
ने दे खा था और उ ह बचाने क भरपूर को शश क थी। गीताजी को पुजारी के मचान पर
जटाशंकर चाचा ने दे ख लया था और बात फैलाने म कोई कोताही नह क थी।
खैर, वो व कुछ सरा था। नादान के क यादान म दे र नह क जाती थी और
अफवाह उड़ने से पहले ववाह क खबर उड़ा द जाती थी। पकडआ लव अ सर अरज
मैरेज म त द ल कर दया जाता था। सो, पुजारी जी और शु ला जी ने भी मलकर दे वद
और गीता जी का ववाह करा दया और जैसा क होना था; रा ल म ा पैदा ए।
रा ल म ा कौन जी, रा ल म ा वह जनक यह कहानी है।
कहते ह क ब चे के भ व य म उसके ज म के साल के ह-न का ब त योगदान
होता है। रा ल म ा जस साल पैदा ए उस साल फ मी नया म यार, हमारी नया
म तकरार और आभासी नया म ऑ टकल फाइबर के तार तेजी से फैल रहे थे। जा हर
था क इसका असर रा ल म ा पर भी पड़ना था। पड़ा भी।
इधर रा ल म ा पैदा ए और उधर रा ल के पताजी क नौकरी क डाक आई थी।
दे वद म ा को गाँव-घर छोड़कर टाटानगर आने का सरकारी फरमान जारी आ था। वो
आ खरी दन था जस दन रा ल म ा के पता खुश ए थे। य क उसके बाद तो
रा ल म ा धरती पर आ चुके थे।
रा ल म ा पैदा ही ेम करने के लए ए ह; ऐसा उनका खुद का कहना है। राजीव
राय के बाद एकमा इंसान वही ह जो यार, इ क और मुह बत म ठ क-ठ क अंतर बता
सकते ह। उनके गुणसू का असर पहली बार छठ लास म प रल त आ था जब
उ ह ने लास ट चर को ‘आई लव यू’ कह दया था। जवाब म लास ट चर ने उनके गाल

े ‘ ई ’ े ो ॉ े
ख चते ए ‘आई लव यू टू ’ या कह दया, अगले दन वो कान म कॉ ासे टव प स
खोजते नजर आए।
सातव लास म पहली बार घर पर शकायत आई तो रा ल क माँ ने लड़क क माँ
को यह कहकर घर से खदे ड़ दया क आपके दमाग म कचरा है। रा ल तो अभी ‘ब चा’
है। हालाँ क पताजी उस दन ही समझ गए थे क पूरा ‘लु चा’ है।
आठव लास म उ ह ने ह का पेपर इस लए अधूरा छोड़ दया य क ‘भ ा’
के पेन क इंक ख म हो गई थी और उ ह ऐसी थ त म उसे अपना पेन न दे ना अनै तक
लगा था। यह और बात क ‘भ ा’ कभी जान ही नह पाई क साहब के पास सरी
कलम नह थी।
नव लास म नौ दफा उनके ारा डाइसे शन के लए पकड़ कर लाए गए मेढक के
मादा नकल आने पर उ ह लास से नकाल दया गया। वह आज तक समझ नह पाए
क उनक गलती या थी
दसव लास म जब इंटर कूल डबेट के लए राँची गए तो सामने मली पहली
लड़क से कहा, “Did it hurt when you fell from heaven ” बात का ऐसा
असर आ क लड़क डबेट भूलकर डु एट रटने लगी।
यारहव लास म मै स महज इस लए छोड़ दया य क बायोलॉजी वाले ूशन
सर क बेट ब त खूबसूरत थी और उससे भी खूबसूरत था उसका नाम। कसलय स हा।
साहब ूशन के दन म कस के लय म ऐसे डू बने-उतराने लगे क माट साब को भी
एहसास हो गया क ब च को जीव व ान कुछ यादा ही समझ आ रहा है। माट साब ने
ूशन पढ़ाना ही बंद कर दया। साहब को आज भी कसलय के पढ़ाई पूरी नह कर पाने
का अफसोस है।
बारहव लास म कूल म पहली दफा MMS ां त रा ल म ा ही लेकर आए थे।
वो तो बाद म पता चला क जस व डयो को वे अपना बता रहे ह वो द ली के कसी
कूल का है।
बी.एससी. फ ट इयर म आए तो जुड़वा बहन म से एक मनट बड़ी बहन स को
साध लया। स ने एक साल के रलेशन के बाद ऑरकुट रलेशन शप टे टस बदल कर
‘क मटे ड’ करने को कहा। इ ह ने फौरन बदल दया। स को र से। उस बेचारी को
रलेशन शप टे टस से कोई सम या नह थी।
या- या बताएँ सर
या, हम इतना सब कुछ कैसे जानते ह
अरे भाई लास टू से उसके साथ नथे ए ह हम। एक साथ पढ़ाई जोतते आए ह।
वो हीरा हम मोती। एक ही बच। समझे हम नह जानगे तो कौन जानेगा क हएगा तो
लास टू से लास फाइव क कहानी भी बता दगे। ं द समास समझते ह ना हाँ, बस
वही समझ ली जए। ं द समास का सजीव उदाहरण ह हम दोन । इनके पाप-पु य भरे
े े े े े ो ई ै ो
सारे कारनाम के ह सेदार रहे ह; इस लए जानते ह क उनम कुछ तो क र माई है। वो
लड़ कय के लए झगड़ते ह तो लड़ कयाँ उनके लए लड़ती ह। मेरी क वता और
इंटरनेट क स वता क ब खया उधेड़ने म मा हर ह। दो मनट म ‘गा लब ’ क शायरी
को ‘बा लग ’ क शायरी बना सकते ह।
उनके एकमा दो त हम ह और हमारे एकमा दो त वो। बाक , लड़ कय को वो
दो त नह मानते। उ ह ‘और ऊपर’ का दजा दे ते ह। इस ‘और ऊपर’ के दज के पीछे भी
कोई दोअथ रह य हो तो मुझे माफ कर। म कताबी क ड़ा ँ। रा ल म ा के लेवल का
आई यू मुझम नह ।
कहानी मेरी नह है तो मेरे बारे म जानना भी उतना ज री नह है; फर भी आप पूछ
रहे ह तो बता दे ता ँ। म मो हत सह। अपने यू- ो हेयर टाइल के चलते ‘झाड़ी’ भी
कहा जाता ँ। कैसा दखता ँ यह तो और भी ज री नह । हाँ, रा ल कैसा दखता है यह
बता ँ । य द आप पाठक ह तो रा ल आपके जैसा ही दखता है और य द आप पा ठका ह
तो रा ल आपके मो ट डजायरेबल मैन क तरह दखता है।
पढ़ते व कहानी का काल म जानना चूँ क ज री है इस लए बता ँ क कहानी
इसी सद के सरे दशक के पहले दो साल क है। वह व , जब तकनीक इंसान से यादा
माट होकर उसक हथे लय म आनी शु ही ई थी। नई तकनीक ने नई तरक ब को
ज म दे ना शु ही कया था।
एक सम या है। रा ल म ा क इतनी कहा नयाँ ह क समझ नह पा रहा क कहाँ
से शु कर ऐसा करते ह, कहानी पहली तुड़ाई से ही शु करते ह। ैजुएट होने के ठ क
पहले वाली वैलटाइन डे। रा ल म ा बड़े अरमान से मेरे घर आए।
***

“झाड़ी, एक कमरे का जुगाड़ कर दो भाई।” रा ल ने मुझसे कहा।


“मोबाइल म दे ख लो पं डत। अब या वीसीडी के च कर म पड़े हो।” मने उसक
बात का मतलब समझते ए कहा।
“ योरी नह है, ै टकल है झाड़ी। समझा करो ना यार ” रा ल ने अपना सर मेरी
गदन पर रखते ए कहा।
“ स रयसली कौन बे। जस ीत तो नह ” मने पूछा।
“भाभी बोलो झाड़ी। इ जत दो।” रा ल ने बनावट गु से से कहा।
“भक साला सच बोल ” मने फर पूछा; जसके जवाब म उसने बस ‘हाँ’ म सर
हला दया।
मने आ य से कहा, “जलील आदमी हो तुम पं डत वो ट् वे थ म है; ब ची है यार
वो।”
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“तो इसी को तो तु हारे उ म ‘कम सन’ कहते ह बेटा।” रा ल ने नाक के नीचे
तजनी फेरते ए कहा।
“अरे अभी उसको समझ नह है, तुमको तो है। उसको बोलो क पढ़ाई पर कंसं े ट
करे।” मने रा ल को समझाने क को शश क ।
“मकान दे ना है तो दो; ान मत दो इतनी भी नासमझ नह है। तु हारे जैसे तीन को
तीन बार घुमाकर चोट बाँध लेगी। कल वैलटाइन डे पर काम बनेगा। उसका भाई, मतलब
साला हमारा; समझ रहे हो ना कतना गोरा है यार ” कहते-कहते रा ल कुछ सोचने
लगा।
“बहन पर आओ।” मने रा ल को क पनालोक से बाहर नकाला।
“हाँ हाँ, कहने का मतलब है क उसका भाई कल कार स व सग कराने के लए राँची
जा रहा है। मेरे पास कल का पूरा दन है भाई। समझो ना ” रा ल ने चरौरी करते ए
कहा।
“वो कही है तुमसे ये बात ” मने च कते ए पूछा।
“नह बे, मुनाद आ था ” रा ल ने चढ़ते ए कहा। ले कन थोड़ी दे र बाद ही
बताया, “मैसेज आया था क मै स के ूशन के बहाने नकलेगी।”
“ या जा रे नया ” मुझे सदमा-सा लगा।
“हाँ, और यादा च को मत। आँख का टकली- बद बाहर आ जाएगा। तुमको
नया से या मतलब घर म बैठो। कताब खोलो और थम डायना म स से ही गरम
रहो।” रा ल ने एक साँस म कहा जससे मुझे हँसी आ गई।
“हमसे या चाहते हो ” मने सीधा मु े क बात क ।
“बताए तो। कमरे का जुगाड़ कर दो भाई। तुम चाहो तो कर दोगे।” रा ल ने मेरे
घुटन पर अपना सर रखकर नाटक करते ए कहा।
“अपना-अपना नसीब है भाई कुछ लोग जदगी भर सर क स टर सेट करते ह
और कुछ लोग जदगी भर सर का ब तर सेट करते ह।” मने ऊबासी लेते ए कहा।
“तु हारा ब तर हम सेट कर दगे झाड़ी। जा मन, चमेली, लली का फूल भी डाल
दगे भाई। फर तुम भी खूब लो टयाना।” रा ल क इस बात पर मुझे फर हँसी आ गई।
मगर मने हँसी दबा ली और कहा,
“ वशाल से कह के दे खो एकबार।”
“कौन ढ ला वशाल ” रा ल ने सोचते ए कहा।
“हाँ वही। अकेला है आजकल।” मने सीडीएस क गाइड खोलते ए कहा।
“मेरे कहने पर नह दे गा यार।” रा ल ने मुँह गराकर उदास ल ज म कहा।
“ य उसक भी गाय हाँके थे या ” मने शरारत से पूछा।

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“नह झाड़ी। तुम हमेशा हमको गलत समझता है भाई। हम तो बस इतना कहे थे क
तु हारा मदानगी वाला नट भगवान टाइट नह कए थे। बस तभी से बात नह करता है।”
रा ल ने ब त भोलेपन से कहा।
“भक साले ऐसी-तैसी कराते रहते हो; फर मदद भी चा हए। ठ क है। हम बात
करते ह।” मने हँसी पर काबू करते ए कहा।
“हाँ, ढ ला म भी लड़ कय के जैसा चमका के रखता है। खूब चोर-पु लस खेलगे।
सही रहेगा।” रा ल फर क पनालोक म था।
***

दो त से मलने के बहान म क बाइंड टडी सबसे कारगर बहाना होता है। हर


ज मेदार पता क तरह रा ल के पापा भी रा ल के घूमने- फरने पर पाबंद रखने क
को शश करते थे। मगर रा ल के पास इसका श तया इलाज था, क बाइंड टडी। रा ल
इसी बहाने आज भी अपने घर से नकला था। घर को रा ल के लए खाली छोड़कर
वशाल भी अपने घर से बाहर ही था; ले कन मुझे अपने घर म ही रहना था ता क रा ल के
घरवाले मुझे दे खकर रा ल के बारे म न पूछ द। म भी रा ल क कहा नय के इंतजार म ही
था, तभी घर के पछले दरवाजे पर द तक ई-
“झाड़ी झाड़ी दरवाजा खोल।”
पछले दरवाजे का रा ता मेरे कमरे म ही खुलता था। चूँ क पीछे के दरवाजे का
उपयोग आने-जाने के लए नह होता था; इस लए उधर से कसी का आना अचंभे क बात
थी।
“कौन ” मने नंगे बदन ही ज दबाजी म गोल गले के ट -शट म गदन घुसाते ए
कहा।
“हम ह झाड़ी। रा ल। ज द खोलो नह तो इ जत का झंडा लहर जाएगा।”
दरवाजे के पीछे से रा ल क हड़बड़ाती ई आवाज आई।
मने दरवाजा खोला। सामने रा ल खड़ा था।
“पं डत या आ बेटा कहाँ ढमला गए ” मने रा ल क हालत दे खते ए पूछा।
रा ल ने अपने कपड़े धूल म रगड़कर फाड़े थे या रा ल का ए सीडट आ था, कह पाना
मु कल था। कपड़े जहाँ-तहाँ से फट गए थे और वहाँ पसीने से सनी धूल चपक थी।
कह -कह घसीटे जाने से छलने का नशान भी दख रहा था।
“भसड़ हो गई भाई उसका भाई आ गया था। साला हमारा। समझ रहे हो ना ब त
मारा भाई गरा के दरी म से धूल नकाला है दो त।” रा ल ने ट ल के जग से गटागट
पानी पीते ए कहा।

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“मारा है मारा कहाँ है; तुमको तो धोया है पं डत। नचोड़ा भी है। बस टाँगना बाक
रह गया। तस लीब श रपेयर कया गया है तु ह।” मुझे उसक हालत समझते ही हँसी
आ गई।
“हँस लो, हँस लो झाड़ी। ले कन दे खना, हँसा आ घर ही बसेगा एक दन।” रा ल
ने पानी का जग रखते ए कहा। मुझे भी एहसास आ क इस थ त म मुझे हँसना नह
चा हए था। सो, मने बात संभालते ए कहा-
“लो, ट -शट पहनो पहले और बताओ आ या ”
“बताना या है झाड़ी। बाइक नकालो ज द ।” रा ल ने ट -शट पहनते ए कहा।
“बाइक ले कन य ” मने समझते ए भी अनजान बनने का नाटक कया। मुझे
यह अंदाजा हो गया था क रा ल जस ीत के भाई है पी से हसाब करने जाना चाहता है।
फर भी अपनी बाइक से जाने के याल से मने अंजान बनने का नाटक कया।
“बताते ह। पहले बाइक तो नकालो।” रा ल ने जद करते ए कहा।
“झाड़ी, अगले महीने फाइनल ए जाम है भाई।” मने आ खरी को शश क ।
“हाँ, तो दगे ना। दोन भाई दगे ए जाम। फलहाल बाइक नकाल। ज द कर। सब
नपटाकर मुझे घर भी जाना है।” रा ल ने कहा।
एक तो रा ल क जद के आगे मेरी चलती नह थी; सरे मुझे यह भी डर था क
कह है पी इसका पीछा करते ए मेरे घर तक न प ँच जाए। घर तक आ जाने के बाद के
महाभारत को संभाल पाना और मु कल होता; इस लए मने ज द से बाइक नकालने म
ही भलाई समझी। रा ल ने बाइक टाट क । म डरते ए ही सही, पीछे बैठा। रा ल ने
छोट -छोट ग लय म बाइक घुमाई। मुझे लगा क वो शायद है पी को ढूँ ढ़ रहा है। लड़ाई-
झगड़े से म शु से ही सुर त री बनाकर रखता था; इस लए मुझे आज यादा ही डर
लग रहा था।
“ यादा बवाल नह करना पं डत।” मने पीछे बैठे-बैठे ही रा ल से यादा झगड़ा न
बढ़ाने के बाबत कहा।
“अरे घबराओ मत, बस छु आएँगे।” कहते ए रा ल ने गाड़ी एक अजनबी गली म
घुसा ली। उस गली के आ खर म बजली के खंभे के ठ क सामने एक पान क कान थी।
रा ल ने बाइक को जैसे ही सरे गयर म डाला, मेरे दल क धड़कन आटा-च क क
मशीन क तरह भागने लग । मुझे लगा क ज र है पी का घर आ गया। म पीछे बैठे-बैठे
आसपास के लोग के मूड का अंदाजा लगा ही रहा था क रा ल ने बाइक को धीमा
कया। मुझे च मे के भीतर से फैलती अपनी आँख और आँख के भीतर से सकुड़ते अपने
दमाग म न जाने ऐसा य लगा क रा ल सामने वाली इले क पोल म ट कर मारने
वाला है। मेरे सोचते-सोचते और दे खते-दे खते रा ल ने सीधे बजली के खंभे म ट कर दे
मारी। बाइक लड़खड़ाई और हम दोन बाइक समेत बा ओर गरे। बाइक क पीड धीमी

ो े े ो ई े े े े ई
होने के कारण हम यादा चोट नह आई। पानवाले ने आकर बाइक हमारे ऊपर से हटाई
और कहा-
“अरे, जब संभाल म नह आ रहा तो य चलाते ह बाबू ”
रा ल पैर बचाते ए उठा। उसने मुझे भी ख चकर नकाला और फर बदन से धूल
झाड़ते ए पान वाले से कहा-
“चचा, पान फेरो। ान न फेरो। मीठा। गुलकंद बढ़ा के।”
पानवाले ने हकारत क नजर से रा ल को दे खा और पान लगाने लगा। रा ल ने
बाइक साइड कै रयर पर खड़ी क और हम दोन आधी झुक बाइक पर बैठ गए।
“ये या नाटक था पं डत। Is it a joke ” मने अचरज और गु से से पूछा।
“जोक नह झाड़ी ोक। मा टर ोक ” रा ल ने पान लेते ए कहा।
“मतलब ” मने जोर से पूछा।
“मतलब ये क अब इस तरह लुटे- पटे हालत म घर जाते तो पापा प पी दे दे ते। अब
तो सबूत ले लए ना क ए सीडट आ था। उसी म ये चोट लगी है। पापा अगर नह माने
तो इस पनवाड़ी के पास लाएँगे उनको।” रा ल ने कहा।
“जा रे अभागा और हम सोचे क तुम उसके भाई को डट दे ने के लए .” म अभी
बात पूरी भी नह कर पाया क रा ल ने हँसते ए कहा-
“ या बात करता है भाई साला है हमारा। साले को कोई मारता है या। ब त गोरा
है झाड़ी। या बताएँ यार मन खुश हो गया पटा के।” रा ल फर पुरानी तान पर था।
“अ छा एक बात बता। कुछ आ भी क फोकट म पटा के आए हो ” मने रा ल
को छे ड़ते ए पूछा।
“कहाँ झाड़ी अभी तो अ ांश से शु कर दे शांतर तक प ँचे ही थे क दरवाजे पर
भूकंप आ गया।” रा ल ने मुँह गराकर कहा। रा ल का मुँह दे खकर मुझे फर हँसी आ
गई। मने खुद को रोकते ए फर पूछा-
“अ छा, जब पॉट पर धरा गए तो जस ीत या बोली ”
“ या बोलेगी रोने लगी बेचारी। फर कहा क हम उसको मै स ूशन के बहाने
बरगला कर यहाँ ले आए थे।” रा ल ने सहानुभू त भरे अंदाज से कहा।
“भगवान बनाये रखे तुमको पं डत। माने लड़क हीटर पर बैठा के सकवा द । लात-
जूता करवा द ; फर भी बेचारी वही है। जीते रहो भाई ” मने तंज म कहा।
“जाने दो ना भाई। लड़क जात। बदनामी। सौ तरह क बात। हमारा या है ” रा ल
ने बाइक मेरे घर के सामने रोकते ए कहा।
“तु हारा या है हम बताएँ तु हारा या है तु हारा फाइनल ए जाम है साले ” मने
बाइक से उतरते ए कहा।

“ ँ ो े ी ो ी े े ो ो ी
“हाँ तो सलेबस ही तो क लीट कर रहे ह। अब दे खो, फ ज स तो बात ही
फ जकल रलेशन क करता है। के म दो लोग के बीच ही होती है। मै स आज पढ़ा
ही रहे थे और बायोलोजी तो है ही गंदा स जे ट। समझ रहे हो ना ” रा ल का सलेबस
सुनकर मुझे फर हँसी आ गई।
“चल, अब घर जा। अंकल-आंट परेशान हो रहे ह गे।” मने रा ल से कहा।
“बाय। और हाँ, मुझे पता है क उसके भाई को कैसे पता चला।” कहता आ रा ल
अपने घर क ओर नकल गया।
***

3rd ईयर क परी ाएँ ख म हो गई थ । म यमवग य प रवार के लड़क के भ व य


क असुर ा उ ह दो नाव क सवारी करवाती ही है। इस लए सीडीएस क तैयारी करने के
साथ-साथ मने एमबीए करने का भी तय कया था। रा ल ने बस मेरे साथ फॉम भर दया
था। चूँ क एमबीए क वेश परी ा भी हो गई थी, इस लए न द कुछ लंबी ही खच जा रही
थी। ऐसे ही एक दन सुबह-सुबह मोबाइल म लगातार कॉल आने लगे। सुबह-सुबह एक
कॉल से जागना सबसे खदाई होता है; और तब तो आपको जागना ही पड़ता है जब
कॉल करने वाले को चैन ही न हो। पहले तो कॉल मने न द क वजह से टाल द ले कन
लगातार सातव कॉल ने मेरी न द तोड़ द । कॉल वशाल क थी। मेरा उठने का तो मन
नह था; पर ऐसा इंसान जो घड़ी दे खकर 59 सेकड बात करता हो और 1 मनट 1 सेकड
पर कॉल कट जाने से मातमपुस करता हो, अगर सात-सात कॉल करे तो समझ म आता
है क ज र कोई ज री बात होगी। आठव बार म मने फोन उठा लया।
“हाँ वशाल, बोल भाई।” मने उन दे ही कहा।
“मो हत, मो हत मुझे बचा ले यार। सीन येट हो जाएगा।” वशाल ने आँसी
आवाज म कहा।
“ या आ ” उठकर बैठते ए मने पूछा। मगर मेरी बात का जवाब दे ने के बजाय
वशाल सुबकता रहा।
“बता भाई, आ या ” मने अबक थोड़ा चढ़कर पूछा।
वशाल ने कुछ नह कहा। सरी ओर से अब फूटकर रोने क आवाज आने लगी।
लगातार रोने क आवाज से म झुँझला गया-
“भाई, मुझे लगता है क जब तू रो लेगा; तब बोलेगा। ठ क है। पहले आँसू नकाल
ले फर आवाज नकाल लेना। म फोन रखता ँ।” मने कहा।
“नह , सुन तो।” वशाल ने अब ज दबाजी म कहा।
“हाँ बोल।” मने कहा।

“ े ै ी ो े े ी
“यार, रा ल घर के बाहर खड़ा है। तीन-चार लड़क को लेकर। यार, मेरी गल ड
वेट कर रही है। दोहा हॉ पटा लट का फॉम भरने जाना है। सीन हो जाएगा यार ” वशाल
ने एक साँस म कहा।
अब म बात समझ पा रहा था। दरअसल, रा ल को यह लग रहा था क जस ीत
वाली बात उसके भाई को वशाल ने ही बताई है। उसके ऐसा लगने के पीछे वा जब वजह
भी थी। यह बात केवल तीन लोग को पता थी। खुद रा ल को, मुझे और वशाल को। मने
बताया नह होगा; इतना रा ल को भरोसा था। इस लए उसे ऑड मैन आउट करने म
यादा तकलीफ नह ई।
“कुछ नह करेगा वो। तू नकल जा।” मने बात समझते ए कहा।
“नह यार, मने उसे कॉल कया था। सॉरी भी कहा। मगर वो कह रहा है क आज
इलाज कर के ही जाएगा।” वशाल ने आँसे ही कहा।
“इलाज। कैसा इलाज ” मने पूछा।
“पता नह यार। कह रहा है क मेरा दोहा म नह , अमरोहा म एडमीशन कराएगा।
हा मी यु नव सट । मुझे पढ़ाई क नह , दवाई क ज रत है और पता नह या या ”
वशाल ने फर एक साँस म कहा।
“अ छा वेट कर। म बात करता ँ।” कहकर मने फोन काट दया। मने फोन इस लए
भी काट दया क हा मी वाली बात पर मुझे हँसी आ गई थी। कुछ संयत होकर मने रा ल
को कॉल कया। रा ल ने दो-तीन रग के बाद ही फोन उठा लया।
“ या कर रहे हो पं डत ” मने सीधा ही पूछा।
“ फ म दे ख रहे ह।” रा ल ने ब त धीरे से कहा।
“कौन-सी फ म ” मने अब टे ढ़ा पूछा।
“नाचे ना गन गली गली।” रा ल ने फौरन कहा।
“अ छा। राय-चौक पर दन म ोजे टर लगा है या ” मने सवा लया लहजे म
कहा।
“तुमको कैसे पता ” रा ल ने आ य से पूछा। वशाल का घर दरअसल राय-चौक
पर ही था।
“सुनो पं डत, तु हारी ना गन ब त नाच चुक । अब उसको ‘दोहा’ जाना है। उसको
जाने दो।” मने कहा।
“उसका दोहन होगा पहले। हम मारगे झाड़ी उसको। उसक वजह से हमारा और
तु हारी भाभी का इंट ेशन होते-होते डफर शएशन हो गया उस दन।” रा ल ने गु से से
कहा।
“जाने दो। जस ीत को मै स फर कसी दन पढ़ा दे ना।” मने कहा।

“ ई ी ो े े े े ो” े
“नह भाई, बाबूजी को पता चल गया ये वाला केस। हम रेलगे इसको।” रा ल ने
तैश म कहा।
“अबे तुम जानते हो क वो ढ ला है। कुछ लचक गया तो मामला बगड़ जाएगा;
समझो बात।” मने कहा।
“अरे, ऐसे कैसे छोड़ द इसको ” रा ल ने आवाज गराकर कहा।
“ऐसे ही छोड़ दो। जतना चु मा दे दए हो उतना ही ब त है ढ ला के लए।” मने
कहा।
“ठ क है झाड़ी ले कन इसक गल ड को बता दे ते ह क इसका लस-माइनस दोन
यूज है इस लए एकबार हमसे कंपनीबाग म मल ले खुशबू लगा के।” रा ल ने हँसते ए
कहा।
“अ छा सुनो, 20 का रजरवशन ले लो द ली का।” मने कहा।
“ रज ट आ गया या ” रा ल ने आ य से पूछा।
“हाँ। AIPM म आ है दोन का। 26 को द ली म काउंसे लग है।” मने फर कहा।
“ शट यार भगवान से हमारी खुशी दे खी ही नह जाती। इतना भी नह सोचे क
र - स और मेरी स का या होगा ” कहते ए रा ल ने फोन रख दया।
***

अखबार के भीतरी प के एक कोने म सेले टे ड कडीडेट्स के रोल नंबर क खबर


आई थी। एक और खबर जो कसी अखबार म नह आई वो रा ल के घर म मी टग क
थी। एजडा मोह ले वाल क चुगली ने तय कर दया था। चूँ क कमरा दलवाने म मेरा
योगदान भी था इस लए मुझे भी दोषी माना गया। व ा मेरे पापा और रा ल के पताजी
थे। हम दोन बस आगे क ओर हाथ कए सर झुकाए खड़े थे। शु आत मेरे पापा ने ही
क।
“ या चाहते हो बेटा, बाप के कमर म पु लस र सी बाँध कर जेल ले जाए ”
“जेल। या बात कए भाई जी। मेरा तो बेल तक नह होगा। मु य आरोपी के बाप
ह हम तो ” रा ल के पापा ने तमतमाते ए कहा। मने जब बात क गंभीरता समझी तो
रा ल को कुहनी से मारकर इशारा कया।
“सॉरी पापा।” रा ल ने इशारा समझते ए धीरे से कहा।
“अब तक क परव रश का आपको जरा-सा भी याल है तो आइंदा से मुझे पापा
मत क हएगा।” रा ल के पापा ने गु से म कहा।
“ऐसा मत क हए म ा जी। ब चे ह। गलती हो गई। हमारे साहबजादे भी तो बराबर
के शरीक ह।” पापा ने मेरे बारे म कहा।

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“हम लख के दे ने को तैयार ह भाई जी। मो हत को कुछ पता भी नह होगा। यही
बरगला के ले गया होगा उसे भी।” रा ल के पापा ने मेरा प लेते ए कहा।
“आगे का कुछ सोचा है या ऐसे ही मुह ले म नाम ऊँचा करना है।” पापा ने अबक
मुझसे कहा।
“जी, MBA करना है।” मने कहा।
“और वो ऐसे ही आवारागद से होगा ” पापा ने फर सवाल दागा।
“नह । आज ही रज ट आया है। एआईपीएम म सेले शन हो गया है। द ली।” मने
अखबार क कतरन पापा के आगे करते ए कहा।
“और तुम रा ल। तुमने या सोचा है ” पापा ने अखबार क कतरन दे खते ए
रा ल से पूछा।
“उससे या पूछ रहे ह भाई जी, हम बता दे ते ह। ये चा स शोभराज बनेगा। सारा
वॉ लट है इसके अंदर। इसक शकायत करते-करते सपल रटायर हो गया। इतनी
बार शकायत आई है क इसके कॉलेज म इससे यादा अटडस तो मेरा होगा। हर रोज
एक नई शकायत आज तक हमको अपना नंबर भी बताया है पू छये इससे।” रा ल के
पापा ने तमतमाते ए कहा।
“64 ” रा ल ने धीरे से कहा।
“आपसे और उ मीद भी नह थी बेटा। ब त ला दए ह। अब आप भी कह द जए।
अगली योजना या है ” रा ल के पापा ने पूछा।
“मेरा भी रोल नंबर ठ क मो हत के नीचे है।” रा ल ने सर झुकाए ए ही जवाब
दया।
रा ल के पापा ने अखबार का कतरन लगभग छ नते ए च मा चढ़ाकर नीचे वाला
रोल नंबर दे खा। दो बार उसपर उँग लयाँ फराने के बाद अ व ास से पूछा-
“ये आपका ही रोल नंबर है ना ”
“जी।” रा ल ने फर धीरे से कहा।
“रोल नंबर मो हत के पीछे है। ज र नकल लगाई होगी इसने।” रा ल के पापा ने
फुसफुसाते ए कहा।
हम दोन क पेशी ख म हो चुक थी। रा ल को इतनी आग झेलने क आदत थी
य क इस आग को बुझाने का पानी 100 पये म मल जाता था। टे शन क पीछे वाली
गुड-शेड म रा ल ने रंगीन पानी के साथ अपने पापा को माफ कर दया और मने उतनी ही
दे र म चखने पर हाथ साफ कर दया।
हमारा द ली का ब तर बँध चुका था।
सा हल क तरफ क ती ले चल

छोटे शहर के छोटे सपन को व तार दे ते शहर का उनवान है, द ली। खानाबदोश के
मजमे का मैदान है, द ली। यहाँ खानाबदोश कई श ल म आते ह। मज र, मजबूर,
खरीददार, बीमार और सबसे यादा, बेरोजगार। मज र बहारी ए जो दहाड़ी क लालच
म द ली प ँचे और इसके मुहान पर ब तयाँ आबाद करते गए। मजबूर सख ए जो
बार-बार जतनी बबरता से उजड़े, बार-बार उतनी ही उवरता से उभरे। ज ह ने इसे
दलवाल का शहर बनाया। इसका दल बसाया। खरीददार पहाड़ी ए ज ह ने पहाड़ क
मु कल भरी जदगी से नजात तो चाही; मगर पहाड़ से र भी न जा सके। उ ह ने
द ली को अपना आ शयाना बनाया और बीमार तो सारा दे श ही रहा। दे श के कसी भी
कोने का जब कभी भी मज बढ़ा तो एक ही नारा गूँजा- चलो द ली। यक न मा नए द ली
ने बाजऔकात तीमारदारी भी क ।
ले कन हम यहाँ एक अलग ही न ल के खानाबदोश थे जो यह ठौर जमाने क
सोचकर आते ह। ऐसे खानाबदोश, टू डट् स कहलाते ह। टू डट् स, जो बेहतर जदगी क
तलाश म अपना शहर छोड़ते तो ह; मगर फर कभी अपने शहर लौट ही नह पाते। यह
शहर, द ली खुद चाहे जतनी भी दफा पामाल ई हो, खानाबदोश का वागत खुले दल
से ही करती रही है।
कॉलेज म एड् मीशन लेने के बाद हमने कॉलेज से थोड़ी र ल मीनगर म कराये का
कमरा तलाशना शु कया। हॉ टल न लेकर कसी तीस गज के घर क बरसाती लेने का
आइ डया भी रा ल का ही था। वतं ता, व छं दता और फर हॉ टल के लए जमा कए
जाने वाले एड् वांस को सुनकर मुझे रा ल का आइ डया अ छा ही लगा था। ल मीनगर म
जस सी नयर के यहाँ हम ठहरे थे, उनसे आगे वाली गली म ही एक घर क बालकनी म
‘Too late ’ का बोड दे खकर हम ठठक गए। पहले तो हँसी आई; मगर फर बाहर ही
राशन क कान पर पूछने से बात प क ई क यह मकान खाली है और न हताथ to-
let ही है। यह मकान मा लक के भाषा ान से हमारा पहला प रचय था।
घर के गेट पर ‘राधा नवास’ का माबल लगा आ था और उस माबल पर एक
लड़का काफ दे र से कोयले से रगड़कर कुछ लख रहा था। मने उसक त मयता दे खकर
उससे पूछा-
“ या कर रहे हो ”
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दख नह रहा, ‘राधा’ को ‘आधा’ कर रहा ँ। लड़के ने बड़े लगन से ‘र’ क पड़ी
लक र नीचे घुमाकर ‘अ’ बनाते ए कहा।
“ले कन य ” मने आ य से पूछा।
“चौधरी न बन भाई। आगे नकल। तू जानता नह इस शम को।” लड़के ने
त लीनता से कोयला रगड़ते ए कहा।
“तो बता दो भाई। हम भी जान ल।” रा ल ने पूछा।
“कल हमारी बॉल चली गई थी इसके छत पर। हमने कहा क अंकल आधी गेम रह
गई है लीज बॉल दे दो। इसने या कही पता है ” लड़के ने कहा।
“ या ” रा ल ने पूछा।
“कही बेटे, आधी गेम रह गई है तो आधी गद ले ले और कहकर गद आधी काटकर
बाहर फक द ।” लड़के ने राधा को आधा करते ए ही जवाब दया।
“ओह तो इस लए लए ‘राधा नवास’ को ‘आधा नवास’ कया जा रहा है।” हँसते
ए रा ल ने मेन गेट खोला।
“नह , इस लए य क बूढ़ा सचमुच आधा ही है। अब जा रहे हो तो खुद दे ख-समझ
लेना।” लड़के ने कहा।
हम तब तक सी ढ़याँ चढ़ते ए भीतर दा खल हो चुके थे। मकान मा लक ‘शमा जी’
से बात करनी ही थी; सो रा ल ने आगे होकर कॉल बेल दबाई। दरवाजा खोलने वाला
श स एक ठगने कद का आदमी था जो हम दे खते ही भड़क गया।
“तुम एक साल म कतनी दफा माता के नाम पर चंदा माँगते हो कौड़ी नह मलेगी।
दफा हो जाओ ” कहकर वो आदमी हमारे चेहरे पर दरवाजा बंद करने ही वाला था क
रा ल ने कहा-
“अंकल, हम तो कमरा दे खने आए थे।” रा ल के इतना कहते ही उस आदमी ने
दरवाजा खोल दया। पहले तो हम दोन को ऊपर से नीचे तक आँख से ही कैन कया
और फर कहा-
“छड़े हो ”
“नह अंकल, खड़े ह। मतलब, अभी थोड़ी ही दे र से।” रा ल ने तेजी से कहा। रा ल
को दरअसल उनक बात समझ नह आई।
“भले मानस मेरा मतबल है क पढ़न वा ते आये हो ” उ ह ने फर कहा।
“जी। जी हाँ अंकल।” अबक बार मने कहा।
“ये ले चाभी और ऊपर का कमरा दे ख ले। जब पसंद आए, जभी बात करते ह।”
उ ह ने दराज से नकालकर चाभी दे ते ए कहा। अब हम लगा क यह आदमी ही मकान-
मा लक है।

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“ठ क है अंकल।” कहकर मने चाभी ली और ऊपर चले आए। ताला चूँ क काफ
दन से बंद था इस लए उसे खोलने म खासी मश कत करनी पड़ी। कमरा ठ क-ठाक ही
था। मकान बनाते व जो एक दफा सफेद कराई गई होगी, आज भी उसी से काम चल
रहा था। पुराने करायेदार ने कुछ कैलडर के अलावा अंडे का छलका छोड़ रखा था।
कमरे के बाहर कमरे से ही लगा आ छोटा-सा बाथ म और उससे लगा ही कचेन था।
पापा होते तो यह दे खकर कमरा हर गज नह लेने दे ते। मगर यह झारखंड नह द ली थी
और उस से कमरा ठ क था। पसंद आने का एक और कारण था- खुली ई छत का
होना। हमने सुना था क द ली म धूप क मतवाल को मलती है और इस लहाज से हम
खुश क मत थे। हम कमरा दे खकर नीचे आए और मकान मा लक को बता दया। अब
मकान मा लक के पाले म गद थी। उ ह ने लगातार कई ‘एस’ सव कए-
“यह शरीफ का मुह ला है।”
“दस बजे गेट बंद हो जाती है।”
“रात म दो त नह ठहरगे।”
“बाइक रोड पर ही पाक करनी होगी।”
“सी ढ़य और छत क सफाई के चार सौ महीना अलग।”
“पेपर और केबल दलवीर से लेने ह गे।”
इतने नयम बताने पर भी जब हम राजी हो गए तो उ ह ने आगे क बात क -
“बेटे, कराया होगा सात हजार महीना, बजली मला के।”
“अंकल, कराया कुछ कम हो जाता तो ।” मने एक को शश क ।
“बेटे ऐसा है, म कोई स जी तो बेक नह रहा। जे कम कर के लगा ँ । पूरे मोह ले म
पता कर ले जे इससे कम म कह मले तो वह ले ले।” मकान मा लक ने बे खी से कहा।
य क हम शहर म नए थे; जगह-जगह दौड़ना संभव नह था और ोकर को दो महीने
का चाज दे पाना तो और भी अखर रहा था। इस लए हमारे पास इसी कमरे को ‘हाँ’ करने
के अलावा कोई चारा भी नह था।
“नह अंकल, कमरा हम पसंद है। हम कह और नह जाएँगे। बस यह बता द क
सात हजार फाइनल है ना। कोई पानी वगैरह का बल ” मने ही पूछा।
“जो तेरी सरधा हो दे दे ना बेटा। वैसे हमने तो ना द कभी सरकार को। बस ये यान
र खयो क सामने क तार पै कपड़े मत फैला दयो। वरना नकल लेगा ब नाथ को, बना
टकट।” उ ह ने छत के पास से गुजरे बजली के तार क तरफ इशारा करते ए कहा।
“ओके अंकल। और यहाँ कोई मंथली ट फन वाला मल जाएगा या अंकल ” मने
पूछा।
“ ट फन के खाने मत खाया कर। बीमारी का घर है वो। खाना बनाने को एक लड़का
रख ले। बतन भी कर दे गा। म भेज ँ गा छोटू को। पछले कराएदार के यहाँ काम करता

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था। पैसे हजार पए से यादा मत दयो।” उ ह ने कहा।
“जी अंकल, जैसा आप ठ क समझ। तो हम कल से श ट हो जाय अंकल ” मने
पूछा।
“ना बेटे। कल का तो ऐसा है क हम जा रहे ह रेवाड़ी। साले क मै रज शरोमणी
है।” उ ह ने कहा।
“ शरोमणी ” रा ल ठठक गया।
“ बहार से आए हो या बेटे। मै रज शरोमणी नह जानते ” उ ह ने ताव दे ते ए
कहा।
“ओ, मै रज सेरेमनी ” रा ल को समझते और बोलते हँसी भी आ गई।
“अंकल आप यह एडवांस, दो हजार रख ली जए। बाक हमलोग श ट होते ही दे
दगे।” मने भी अपनी हँसी दबाते ए बात का ख घुमा दया।
“हमलोग बेटे, पूरी गाम लेके बसने तो नह आ रहा ” उ ह ने आ य से कहा।
“नह अंकल। मेरा मतलब था- हम दोन ।” मने हँसकर बात संभालते ए कहा।
“हाँ तो ऐसा बोल ना। ठ क है बेटा। श नवार से आजा। और हाँ, मुझे अपना
आई.डी. या अ ेस ूफ दे दयो। पु लस वे र फकेशन के लए। पता नह कौन कस घर
को बटला हाउस बना दे । कहाँ के रहने वाले हो वैसे ” उ ह ने पूछा।
“अंकल, टाटा।” मने हथे लया रगड़ते ए कहा।
“ले, अब जाने क बात कब कही मने। टाटा कर रहा है। तू तो नाराज हो गया ”
उ ह ने बेशम हँसी हँसते ए कहा।
“नह अंकल। टाटा दरअसल झारखंड का एक शहर है। हम वह के रहने वाले ह।”
मने बताया।
“अब यह झारखंड ही कोण से दे श म है। यादा चालाक न क रयो बेटा। भतेरे
कराएदार को मोर बना चुका ँ।” उ ह ने अपना लहजा तीखा कया।
“नह -नह अंकल। आप गलत समझ रहे ह। आप अपना ई-मेल, अगर हो तो दे
द जए। म पापा को कहकर ए ेस- ूफ मेल करवा ँ गा।” रा ल ने बात संभाली।
“हाँ। जे ठ क बात कही तैने। लख ले। मेरी आई डी है- बड़ेबटु क@जीमेल.कॉम।”
उ ह ने अपनी ई-मेल आईडी बताई।
“अंकल, या आप पेल आउट कर दगे। नह तो मेल गलत चला जाएगा।” रा ल ने
कहा। उसे दरअसल आईडी जरा उलझाऊ लगी।
“ या पढ़ाई क है तमने और या आगे पढ़ोगे ” उ ह ने चढ़ कर कहा; लखो-
“badabuttock@gmail.com .”

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“Buttock ” रा ल के मुँह से अचानक ही नकल गया। मने भी गाल खुजलाने
के बहाने अपनी हँसी छु पाई।
“बेटा, तम अपने बाप के पैसे खराब कर रहे हो और कुछ नह । ‘बटु क’ को बटक
कहते हो। घर लौट जाओ। तम जैसे ब चे द ली म कलो के तेरह मलते ह।” उ ह यह
बात बुरी लग गई।
“सॉरी अंकल। ए ेस ूफ ज द ही मल जाएगा।” मने बहस पर वराम लगाते ए
कहा।
“उससे पहले कराया मल जाना चा हए।” उ ह ने कड़ी आवाज म कहा।
“ योर अंकल। आपको बारा कहने क ज रत नह पड़ेगी।” मने कहा।
“और नॉन वेज बलकुल नह बनाओगे। यह पं डत का मकान है।” उ ह ने कहा।
“ फर तो सरा कमरा दे खना पड़ेगा।” रा ल ने अब ऊबते ए कहा जसको मने भी
नह काटा। हम दोन थोड़ी दे र चुप रहे। बटु क शमा ने मामला हाथ से फसलता दे ख कहा-
“अ छा ठ क है। अंडा बना लेना। मगर कसी से क हयो नह । कॉलोनी म ब त
इ जत है तेरे अंकल क ।”
“ठ क है अंकल।” मने फर सर हलाया।
“और हाँ, क यूटर भले चला ले; इ ी चलाते दे ख लया तो नकाल ँ गा। हग-हग
मीटर भागे है इ ी से।” बटु क शमा ने हेठ दखाते ए एक और शत बता द ।
“जी अंकल।”
“फाइनल एस। गेम एंड। 6-0, 6-0, 6-1 .” रा ल ने बुदबुदाते ए कहा। जसे
सुनकर मने फर अपनी हँसी दबाई। इससे पहले क वो कोई और शत बता द, म रा ल के
साथ नीचे उतर गया। नीचे उतरते ए सी ढ़य म ही रा ल ने धीमे से कहा-
“बताओ तो साला आदमी है क ब ख है। बटु क को बटक कहता है और हमारी
पढ़ाई पर ही चढ़ाई कर दया।”
“और तुम साले ई-मेल य माँगे अब दो ए ेस ूफ। तेज बनने चले थे।” मने गु से
से रा ल से कहा।
“झाड़ी, हमको या पता था क बूढ़ा इतना टाइट है क ईमेल भी रखा होगा। हमारे
यहाँ तो इस उ म लोग क का साइज दे खने लगते ह। हम तो ये सोच के ईमेल माँगे क
उसका दे गा, जो पद के पीछे से झाँक रही थी।” रा ल ने कहा। रा ल ने दरअसल पद के
पीछे से दे ख रही मकान-मा लक क बेट को भी दे ख लया था।
“तु हारे जैसी ही औरत होती ह जो शाद क बात चलते ही न बू चाटने लगती ह।
कहाँ तक सपना दे ख लेता है पं डत ” मने रा ल को उलाहना दे ते ए कहा।
“सपना अरे सपना नह , अपना है वो। तुम उसक आँख म मेरे लए यार नह दे खे
झाड़ी। सही स नल आ रहा था। बस यहाँ क भाषा सीखनी पड़ेगी। हम-हम छोड़ के म-म
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म मयाना पड़ेगा। फर दे खो, कुछ ही दन म टावर पकड़ लेगा।” रा ल ने मेरी पीठ पर
धौल जमाते ए कहा।
“प र ध, अपणे बाइ कोप क आवाज कम कर छोरी।” गेट से नकलते व आती
बटु क शमा क आवाज ने नाम का काम तो आसान कर ही दया।
बीबी

कहते ह नाम के दसव अंश का असर के च र पर पड़ता है। गलत कहते ह। य द


ऐसा होता तो बीरबल बल के लए जाने जाते; बु के लए नह । रणकौशल का णेता
रणछोड़ न कहा जाता। जॉन वुडकॉक पॉ ल ट शयन न होकर लेबॉय होते। भगत सह
ना तक न होकर आ तक होते। करनैल सह खेत म ै टर के बजाय फौज म ऑडर
चलाते और मजा अस लाह खाँ ‘गा लब’ खुद शेर होते; शेर न पढ़ते।

और प र ध क कोई प र ध होती।
प र ध- बटु क शमा क इकलौती। इकलौती से यह संदेश न जाए क कोई लखप त
खानदान क नकचढ़ । इकलौती इस वजह से क प र ध के ज म के बाद ई र ने ही पूण
वराम लगा दया। ब चा और ब चेदानी दोन नकालनी पड़ी थी।
बटु क शमा मायूस ए ह ऐसा नह लगता; य क उन दन उ ह अ सर यह कहते
सुना जाता क बेटे-बेट म कोई फक नह है और एक दन यही बेट उनका नाम रोशन
करेगी।
और बेट ने पहली दफा नाम रोशन कया छठ लास म, जब उसने कूड़ा फकने को
लेकर ए माँ और पड़ोसन के झगड़े म पड़ोसन के सर पर गमला गरा दया। पड़ोसन
फूटा सर लए अ पताल भागी। झगड़ा तो नपट गया; मगर झमेला बढ़ गया। फौजदारी
ई। दारोगा जी ने आते ही पूछा, “ कसक का र तानी है ”
बटु क शमा त काल बचाव म आए। कहा, “का र तानी हम का र तानी य होने
लगे सर हम ह तानी ह। गाम-झटोला, तहसील- बयाना, जला- भरतपुर।” दारोगा ने
पागल से उलझने के बजाय एक हजार लेकर नकलने म ही अ लमंद समझी।
सातव लास म बीबी पर इं डयन आइडल बनने का ज सवार हो गया। सरा
कोई सपना ही नह । बटु क शमा भी बेट म ही अपने सपन का संसार दे ख रहे थे। वो तो
सपना तब टू टा जब फज ोड शन कंपनी वाला इ यावन हजार लेकर ‘इं डयन आइडल’
क जगह ‘इ डयट आइडल’ बनाकर चंपत हो गया। इ यावन हजार और सपन का संसार
दोन डू ब गए।

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बीबी आठव लास म थी जब शहादरा वाले फूफा जी घर आए। द ली म भी
धोती-कुता पहनने वाले फूफा जी। छोट ब चय को दे खते ही फूफा जी क टाँग म दद
शु हो जाता था। माँ घर पर नह थी, जब फूफा जी आए। आदतन उनक टाँग म दद
शु हो गया। बेट को दबाने के लए कहा। दद तलव से शु होकर ऊपर क ओर बढ़ता
ही गया। फूफा जी जरा ऊपर जरा ऊपर करते गए। ऐसे लोग से नपटना माँ ने खूब
सखाया था। बड़े भोलेपन से उसने मा लश का सुझाव दया। फूफा जी के रोएँ खड़े हो
गए। उ ह ने ताव तुरंत वीकार कर लया। बीबी कचेन म गई। सरस के तेल को खूब
खौलाया और ब त सँभलते-सँभलते सँड़सी से गम तेल क कटोरी पकड़े फूफा जी तक
प ँची। फूफा जी उ माद म आँख बंद कए पड़े थे। बीबी ने एक झटके से फूफा जी क
जाँघ पर कटोरी छोड़ द । फूफा जी बल बला उठे ।
बीबी ने दोन हाथ झटकते ए धीरे से माफ माँगी, “उ स सॉरी फूफा जी।”
नव लास म पहली दफा कोई लड़का पसंद आ गया। लासमेट था और बेट को
इमरान हाशमी क तरह लगता था। मगर उस खजूर ने इनके सामने ही इनक सहेली को
पोज कर दया।
बीबी घर आ । दरवाजा बंद कया। अपना प ा नकाला और झूल जाने क सोची;
मगर लाख को शश के बावजूद फंदे क गाँठ ही न बना सक । हारकर प ा और
आ मह या का वचार दोन फक दया।
हाँ, कमरे म लगे इमरान हाशमी के पो टस ज र फाड़ दए।
बटु क शमा भी खुश ए, “चलो, इस नामुराद से पीछा छू टा।”
दसव लास म इ ह ने कुछ नह कया, पढ़ाई के अलावा। इतना पढ़ ग क लास
म ही नह ; कूल म अ वल आ ग । बटु क शमा तीन महीने तक अखबार क कतरन लए
घूमते रहे।
यारहव म थ तब दाद के दे हांत पर बटु क शमा सप रवार गाँव गए। बीबी कसी
दन आम के बगीचे म आम खा रही थ क तभी मु खया जी के बेटे क मोटर साय कल
बगीचे म क गई। इ ह ने आम खाते-खाते उसे आँख मार द । आम और आँख का ऐसा
कॉ बीनेशन जमा क बेचारा आज तक इनके दए गलत नंबर पर रोज फोन ाई करता है।
छोट -मोट परेशा नय को वो अपने टू टे बाल के छ ले म बाँध कर उड़ा रही थ और
जदगी अ हड़पने के साथ बता रही थ क तभी बारहव लास म आ ग । असली
तूफान तो बीबी क जदगी म बारहव म ही आया।
बीबी का इमरान हाशमी लौट आया था। बीबी क सहेली ने ब त इधर-उधर क बात
क । समझाने, भड़काने, बरगलाने क ब त को शश क ; मगर तब न सहेली ने बीबी क
बात सुनी थी; न अब बीबी को सहेली क बात सुननी थी। बीबी का कमरा एक बार फर
इमरान हाशमी के पो टर से गुलजार हो गया।

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तूफान तब आया जब बारहव क परी ा से करीब तीन-चार महीने पहले बीबी और
वो लड़का इंटर कूल कॉ पट शन के लए आगरा गए। बीबी को डबेट म भाग लेना था
और लड़के को ामा म। कूल-बस तक तो सब ठ क था। मगर आगरा प ँचते ही कूल ने
लड़के और लड़ कय को हॉ टल तो एक ही दया पर अलग-अलग लोर पर ठहरा दया।
बीबी क उ मीद पर याही गर गई। कहाँ तो वह द ली से ही तैयारी कर के नकली थ ;
य क उनका इमरान ‘ड बो’ था और सारे ीकॉशन भी बीबी को ही लेने थे और कहाँ
यहाँ लोर ही अलग कर दया। खैर बीबी ने मन मसोस कर डबेट पर यान लगाया और
अ वल आ । कॉ पट शन ख म होने के बाद उ ह ने सबसे पहले अपने इमरान को फोन
कया-
“हेलो बेबी।” लड़के ने कहा।
“इतनी दे र कर द फोन उठाने म।” बीबी ने नाराजगी का नाटक कया।
“चैट कर तो रहा था।” लड़के ने कहा।
“ फर बात नह करेगा ” बीबी गु से म थ ।
“सॉरी बेबी। वो लैपटॉप बंद करने म दे र हो गई।” लड़के ने कहा।
“तो फोन उठाकर भी लैपटॉप बंद कर सकता था।” बीबी ने कहा।
“हाँ, मगर तबतक फोन का बल फजूल उठता ना।” लड़के का जवाब था।
“मतलब पैसा मुझसे यादा इ पॉट ट है ” बीबी का जवाब नह था।
“सॉरी बेबी।” लड़के ने एकबार फर ह थयार डाल दया।
“एक बार और बोल।” बीबी ने जद क ।
“बेबी।” लड़के ने कहा।
“नह । उसके पहले वाला।” बीबी कुछ और सुनना चाहती थी।
“सॉरी।” लड़के ने वो कह दया।
“हाँ। अब ठ क। अ छा ये बता, आज दन म फोन य नह कया ”
“ कया तो था। तेरा फोन नॉट रचेबल बता रहा था।” लड़के ने फौरन कहा।
“झूठ। म दन भर फोन अपने पास लेकर बैठ थी।” बीबी ने शोखी से कहा।
“जभी तो नॉट रचेबल था। तेरे पास तो हमेशा म रहता ँ। फोन तो अन रचेबल
होगा ही।” लड़के ने चौका मारा।
“वेरी फनी ” बीबी ने फर शोखी भरे गु से से कहा।
“सॉरी बेबी।” लड़का अपना काम पूरी त मयता से कर रहा था।
“अ छा पता है मुझे डबेट म ना, फ ट पो जशन मली है।” बीबी ने चहकते ए
कहा।
“ ेट ” लड़के ने खुशी जा हर करते ए कहा।
“ े े े ो ” ी ी े
“ या ेट मुझे लगा तुझे पता होगा।” बीबी ने फर उदास आवाज म कहा।
“सॉरी बेबी ” लड़के ने वही पहाड़ा हराया।
“मेरा ब चा। खाना खा लया ” बीबी का यार अब वा स य प ले रहा था।
“हाँ, खा लया।” लड़का भी पूरी तरह का प नक गोद म था।
“ या खाया मेरा बेबी ” बीबी पी माँ ने पूछा।
“इडली-सांभर।” ब चे ने जवाब दया।
“अ छा ” बीबी ने कहा।
“हाँ, यहाँ के कट न म या डे लसस इडली बनाते ह ” लड़के ने कहा।
“अ छा, म जो इतनी दफा तेरे लए ंच लाई उसक तो कभी तारीफ नह क तूने।”
वा स य भाव हवा हो चुका था। बीबी अब रौ पमथ।
“सॉरी बेबी ” लड़के ने ा फक दया था।
“Its ok You know I am missing you terribly ” बीबी क तनी
ए भंवे अब व ाम क मु ा म आ ग ।
“Me too baby .” लड़के ने सावधान क मु ा वाला जवाब दया।
“Don’t worry. I am going to give you a little surprise ” बीबी
अब लाइन पर आ ।
“And what is that ” लड़के ने पूछा।
“Keep missing and guessing. ” बीबी ने कहा और मोबाइल ड कनै ट
कर दया।
***

बीबी के और लड़के के कमरे के बीच एक लोर और 13 कमरे थे। रात म लड़के


और लड़ कय के खाने का समय अलग-अलग था। लड़क के खाने के बाद लड़ कय के
खाने का नयम टप सुपरवाइजर ने बनाया था।
बीबी जब रात के खाने के समय मेस म घुस तो उ ह ने अपने इमरान को खाकर
अपने कमरे क तरफ जाते ए दे खा। मेस म महज चेहरा दखाकर बीबी जो गायब तो
सीधे लड़के के कमरे म ही दख । दरवाजा खोलते ही लड़के क स गुम हो गई। बीबी ने
उसे बेड पर धकेला और कमरे का दरवाजा बंद कर दया। लड़के ने अपने बाप ज म म भी
ऐसी सर ाइज क क पना नह क थी। अब उसक प भी गुम हो गई। लड़का ट -शट
पहनने को उठा तो बीबी ने उसे फर ब तर पर धकेल दया। लड़का ब तर पर कुह नय
के बल लेटा रहा। उसके चेहरे के हवाई जहाज उड़ गए थे।

ी ी े ी े े े
बीबी कदम-कदम चलते ए शरारत भरी नजर से दे खते ए ब तर तक आ ग ।
उनके हाथ म हाथ भर क एक छड़ी भी थी। बीबी ट चर-ट चर खेलने के मूड म थ ।
“So, You didn’t complete your homework, you naughty
boy ” बीबी ने लरजती आवाज म कहा।
“Listen baby .” लड़के ने बीच म अपनी बात रखनी चाही।
“Call me teacher, you naughty boy .” बीबी ने फर से फँतासी भरी
आवाज म लड़के को कंधे पर छड़ी से मारते ए कहा।
“उई माँ ” लड़का ससकार उठा।
’उई माँ ’ मेरा इमरान ऐसे य बोल रहा है। बीबी ने सोचा। बीबी क फँतासी एक
पल के लए गायब हो गई; ले कन फर उ ह लगा क छड़ी जरा यादा ही जोर से चल
गई। बीबी छड़ी छोड़कर घड़ी दे खने लग । उ ह ने महसूस कया क फँतासी म समय
नकला जा रहा है। इस लए वो तेजी से ब तर पर कूद आ । बीबी ने जैसे ही अपनी
तजनी से लड़के के कान के पीछे सहलाया, लड़का अपने ह ठ काटने लगा। बीबी का सारा
उ माद काफूर होने लगा। पहले तो बीबी को लगा लड़का फ ट हड है और शरमा रहा है;
इस लए जब लड़के ने हचक दखाई तो बीबी ने ही पहल क ; मगर थोड़ी ही दे र म बीबी
ने दे खा क लड़का वैसी ससका रयाँ ले रहा है; जैसी बीबी को लेनी चा हए तो बीबी परे
हट ग ।
लड़के ने बीबी को हटता दे ख नजर से बुलावा दे ते ए कहा- “- Come on
Tiger .”
बीबी हैरान रह ग । अपने बखरे बाल को समेटा; जूड़ा बनाया और बाथ म क
तरफ बढ़ ग । बाथ म जाकर अपने चेहरे को दे खा। उ ह थोड़ी दे र पहले का उ माद याद
आया। याद करते ही उ ह उबकाई-सी आ गई। अब उनक समझ म आया उनके इमरान
के पु लंग म थोड़ा-सा लग भी है। वह थोड़ी र ग । जाकर माउथ-वाश कया और
फर लौट । लड़का चादर म समटा आ था।
“बाथ म जाकर े श हो ले।” बीबी ने कहा।
लड़के ने अनमनी-सी आवाज नकाली तो बीबी ने च लाकर कहा, “ज द कर।”
चादर म लपटा ही जब लड़का बाथ म क तरफ बढ़ा तो बीबी ने उसक चाल को
नहारा। अब उ ह एहसास हो गया क लड़के के गलास भर ी लग म च मच भर
पु लंग है। बीबी भावना मक प से टू ट पर अभी लड़के को तोड़ना बाक था। बीबी
छड़ी लेकर फर बाथ म म घुस ग । लड़के ने आगामी रोमांच के लए बाथ म खुला रख
छोड़ा था। बाथ म म ही बीबी ने उसे हड़काते ए पूछा,
“Are you Gay ”
“Mmm Well Not exactly But you can say. Yes. इमरान
हाशमी मुझे भी पसंद है।” लड़के ने अब पूरी नजाकत से कहा।
“ ो ो े े ” ी ी औ
“Fine . तो भचो तू मेरे साथ या कर रहा था ” बीबी का मजाज बबूल और
जुबान नीम ई जा रही थी।
“You know na ममा ये सब लाइक नह करत । So old fashioned.
उ ह ने कहा क लड़ कय से दो ती कर।” लड़के ने अपना खड़ा सुनाया।
“तेरी माँ क ” बीबी ने अपनी हद पार नह क । बस बीच क उँगली दखा द ।
लड़का चादर म समटा बैठा रहा। जाते-जाते भी बीबी फर लौट और उसे बना
गने छड़ी रसीद द । लड़का आउच-आउच करता रहा।
बीबी उसी रा ते वापस हॉ टल आ ग । घटना चूँ क परी ा से ठ क पहले ई थी।
इस लए बीबी का बालमन इसे बदा त नह कर पाया। उ ह ने बारहव क परी ा छोड़ द ।
अगले साल ाइवेट से परी ा द और जैसा क होता है, अ छे नंबर नह आए। बीबी
अपने दो त के सी नयर हो जाने के कारण कई दन तक अवसाद म रह । एक साल घर
से न नकलने के बाद कुछ सामा य । अब व भरने के लए होम साइंस से ैजुएशन
करती ह और ज म भरने के लए स वया लाथ क क वताएँ पढ़ती ह। बस म सरी
औरत तक के लए लेडीज सीट खाली और ऑटो वाल के शीशे सीधी कराती रहती ह।
मद जैसी कसी भी जात पर भरोसा नह करत ।
ले कन ऐसा तभी तक संभव है ना, जब तक बीबी, साहब से न मली ह । वैसे भी
कहते ह क ेम, पानी और यास क अपनी ही जद होती है और अपना ही रा ता।
उस दन भी जब हम कमरा लेने बटु क शमा के घर प ँचे थे तो सरे कमरे के झीने
पद के पीछे से प र ध रा ल म ा को बड़े गौर से सुन रही थी। रा ल म ा ने भी उसे
सुनते ए दे खा था। वे सी मल रही थी और रा ल म ा के श द म, “ वे सी
मल जाए तो टावर पकड़ ही लेता है।”
पया ऐसो जया म समाय गयो रे

आज हम बटु क शमा के छत पर बने एक कमरे, जसे द ली क भाषा म बरसाती कहते


ह, म श ट हो रहे थे। सामान तो कुछ खास नह था; बस कताब के ब से चढ़ाने म हम
थक गए थे। आ खरी बैग रखते ही रा ल ने कचेन म जाकर नल क ट ट म खाली
को ड- क क हरी बोतल का मुँह घुसेड़ दया। दे र तक सूँ-सूँ क आवाज के अलावा
कुछ बाहर नह आया। यास तेज थी। हमने सोचा क बटु क शमा के घर से दो बोतल पानी
माँग लाएँ। यही सोचकर हमने खाली को ड क क हरी बोतल उठाई और बेधड़क बटु क
शमा का दरवाजा खटखटा दया। दरवाजा प र ध ने ही खोला। मने दे खा क च मा लगाए
ए प र ध के हाथ म गा लब क शायरी क कताब थी। रा ल म ा ने ही दरवाजा
खटखटाया था; इस लए वो आगे खड़े थे और म उनके पीछे था। उस रोज पद के पीछे से
रा ल म ा ने जस प र ध का केवल अ स दे खा था, आज उसके नैन-न श दे ख रहे थे।
बाल इतने सीधे मानो इ ी कए ह । कपड़े इतने बरहम मानो घर म इ ी ही न हो। चेहरा
इतना गोल मानो नाक के क से या ली गई हो। चेहरे पर भाव इतने तरछे मानो कसी
बेशऊर ने कूची पकड़ी हो। ह ठ इतने भरे ए क थरकन तक महसूस हो जाए और आँख
इतनी खाली क सागर समा जाए।
रा ल म ा शायद इसी तरह के प-लाव य के और वशेषण सोचते रहते अगर
मने उ ह चकोट न काट होती। चकोट से रा ल म ा क तं ा टू ट । यान तो संभला;
मगर उनक जबान फसल गई। प र ध क आँख म दे खते ए ही उ ह ने नीमहोश आवाज
म कहा, “आँख म पानी ही नह है।”
“What ” प र ध ऐसी कसी भी थ त के लए तैयार नह थी। उसने अचंभे और
गु से से कहा।
“मेरा मतलब है, नल म पानी नह है। कल से सुबह ही भर लगे। आज अगर एक
बोतल पानी मल जाता तो ” रा ल म ा ने जैसे-तैसे बात संभाली। प र ध ने बोतल
हाथ से ली; दबी- पचक उस हरे रंग के बोतल को हकारत से दे खा और भीतर चली गई।
मने रा ल को आँख दखाई तो उसने कहा, “आँख म पानी वाली बात गलती से नकल
गई थी।” अभी हम इस पर बात कर ही रहे थे क प र ध ज से नई बोतल म पानी लए
आई। रा ल को पानी क बोतल दे ते ए उसने कहा,
“यहाँ पानी का TDS यादा है। पानी गम कर पीना होता है।”
“ ै े ो ी ी ी े ै”
“थक यू। वैसे हम तो ध भी गम ही पीते है।” रा ल म ा क जबान फर फसल
गई। जसके दोअथ होने के आभास होते ही मने उ ह फर चकोट काट ।
प र ध के चेहरे पर एक मु कान थरक गई जसे छु पाते ए उसने हमारे मुँह पर
दरवाजा बंद कर दया। हम भी अपने कमरे क ओर चल दए।
“आज ठ क से दे खे झाड़ी। चै सस ठ क है। साइड पैनल भी ब ढ़या है।” रा ल ने
सी ढ़याँ चढ़ते ए कहा।
“भोसड़ी के, लड़क दे ख रहे थे क गैरेज का मैटे रयल।” मने चढ़कर कहा।
“गैरेज का नह , ये तो मैरेज का मैट रयल है झाड़ी।” रा ल ने कुछ सोचते ए कहा।
“जहीन लड़क है। उसक तरफ दे खना भी मत।” मने रा ल को आगाह कया।
“तु ह कैसे पता जहीन है। मुझे तो लगा क महीन है।” रा ल ने बाल म हाथ फेरते
ए पूछा।
“ मजा गा लब पढ़ रही थी।” मने कहा।
“तो तुम साले कताब दे ख रहे थे ” रा ल ने आ य से कहा।
“हाँ, शबाब दे खने के लए तो तुम थे ना।” मने कहा।
“हाँ वो तो है। अ छा झाड़ी, ये फूफा जी लखते या थे। जरा व धवत बताओ ”
रा ल पानी पीते ए गा लब के बारे म पूछा।
“रहने दो। जहीन और जा हल म कुछ अंतर तो रहे।” मने पानी क बोतल मुँह से
लगाते ए कहा।
“अरे बता दो इ ेस करने के काम आएगा।” रा ल ने पानी ख म करते ए कहा।
“गो हाथ को जु बश नह आँखो म तो दम है
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे।” मने एक साँस म कहा।
“रहने दो झाड़ी। मेरे काम के नह ह फूफा जी। हम समझ गए। गंदे आदमी थे। हाथ
म जु बश खोज रहे ह। अब बुढ़ारी म हाथ से या करना है हमको प र ध चा हए। मीना
मेरे कस काम क और वैसे भी हम े ट ह; सागर म इंटरे ट लेते तो वशाल ढ ला ही या
बुरा था। वो तो बेचारा खुशबू भी लगाता था।” रा ल ने शायरी क ऐसी ब खया उधेड़ी क
म भी हँसे बना नह रह सका।
प र ध के हर कोण क ा या आज हो ही जाती क दरवाजे पर द तक ई। सामने
होने क वजह से दरवाजा रा ल ने ही खोला। बाहर प र ध ही खड़ी थी। उसके साथ एक
स ह-सोलह साल का लड़का भी था। प र ध को धूप क रौशनी म दे खकर रा ल के
सोलर ब ब जल गए। अभी वह आँख से मूरत तराश ही रहा था क प र ध ने टोक दया-
“ये छोटू है। पापा से तुमने शायद खाने-वाने क बात क थी। यही है। पापा ने कहा
है जो भी बात करनी हो लयर कर लेना। बाद म कलेश नह चा हए।” प र ध ने चेतावनी
भरे ल ज म कहा और जवाब का इंतजार करने लगी। रा ल प र ध के ह ठ क थरकन,
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उसके हाथ के इशारे और उसक आँख क वाचालता म ही खोया आ था। जब मने
रा ल को कोई जवाब दे ते नह दे खा तो मने ही कहा-
“नह जी। बात या करनी है। पैसे हमलोग आठ सौ पये दे पाएँगे।”
“हमलोग तुम दोन के अलावा और भी लोग रहगे या यहाँ। पापा को पता है ये
बात ” प र ध ने एक साथ कई सवाल कए।
“अरे नह । मेरे कहने का मतलब है हमदोन के खाने का आठ सौ पया दे पाएँगे।
मगर पहले ये खाना बना कर दखाए तो। य रा ल ” मने रा ल को बेसुध दे खकर ऊँची
आवाज म कहा।
“आं। हाँ-हाँ। बलकुल। चल गाजर का हलवा बना के दखा।” रा ल ने तं ा तोड़कर
जस मा लकाना अंदाज म कहा, प र ध क मु कुराहट छलक गई। छोटू कचेन क ओर
बढ़ गया। प र ध भी नीचे जाने के लए मुड़ गई। छोटू कुछ दे र तक तो कचेन म ड ब को
सहेजता रहा। थोड़ी साफ-सफाई भी क ; मगर जब उसे ढूँ ढ़ने पर भी गाजर नह मले तो
वह कचेन से परेशान-परेशान नकला और बोला-
“भैया गाजर कहाँ है ”
“गाजर तो बेटा, मु खया जी के खेत म है। आने म समय लगेगा तब तक ऐसा कर,
टडा बना ले।” रा ल ने मेरे हाथ पर हाथ मारते ए कहा।
***

छोटू चूँ क पहले भी यहाँ काम कर चुका था इस लए उसे काम करने और समझने म
कोई परेशानी नह ई। हमारे यहाँ काम करने म उसे वैसे भी द कत नह थी य क
अ सर हम या तो बाहर ही खा लेते थे या फर मैगी से ही काम चला लेते थे। उस दन भी
छोटू कचेन म ही था जब हमने प र ध क आवाज सुनी।
“छोटू , बैड मटन खेलेगा ” प र ध ने छत पर चढ़ते ए कहा।
“नह । मुझे बतन ज द कर राशन लाने जाना है।” छोटू ने सर उठाए बगैर ही कहा।
प र ध क आवाज जब कमरे तक आई तो आदत से मजबूर रा ल हाथ से बाल सहेजता
छत पर नकल आया।
“दो ही तो लोग ह। क ा खाते ह क घंटे भर से बतन ही कए जा रहा है ” प र ध
ने रैकेट से शटल को बार-बार उछालते ए कहा। जब कई बार तक शटल संभालने के बाद
आ खरकार शटल जमीन पर गरी तो वह रा ल के पास ही गरी। अब यह अनजाने म
आ या जानबूझकर यह तो बस प र ध जानती थी। रा ल ने एक प र चत मु कुराहट के
साथ शटल प र ध क ओर उछाल दया। प र ध ने सपाट चेहरे से शटल ली और छोटू से
कहा-
“छोटू , भजन सुनेगा ”
“ ो” ो े े े ो ी ी
“सुना दो।” छोटू ने अनमने से कहा। कहना तो रा ल भी यही चाहता था; मगर
सवाल उससे नह था इस लए वह चुप ही रहा। प र ध ने गुनगुनाना शु कया-
“राधे-राधे कहो चले आएँगे बहारी
राधे-राधे कहो चले आएँगे बहारी।”
पहली लाइन हराते- हराते प र ध को खुद हँसी आ गई। वह हँसते ए ही बोली-
“पापा ने भी घर का नाम ‘राधा नवास’ रख दया। सारे बहारी ही चले आते ह।”
रा ल ने अब उसक बात का मतलब समझा; ले कन बात उससे सीधी नह हो रही थी
इस लए उसने कुछ नह कहा।
प र ध क छे ड़ जारी रही।
“छोटू , ये पछले वाले ाइम म न टर भी बहारी थे या अटल बहारी बाजपेयी।
ले कन वो तो ब त समझदार थे।” वो तो ‘म’ को ‘हम’ नह बोलते थे। प र ध ने अबक
बार रा ल को तरछ नजर से दे खते ए कहा। रा ल ने भी दे खते ए दे ख लया; मगर
चुप ही रहा। प र ध अब बैड मटन छोड़कर छत के बाउं ी पर लग गमले म से प याँ
तोड़कर अपनी तजनी पर लपेट रही थी।
“छोटू , ये झारखंड भी तो बहार से ही बना है ना। सोच जरा वो कैसे होते ह गे
ज ह बहा रय ने भी बाहर कर दया।” प र ध ने एक अथपूण मु कान दबाते ए कहा।
“ गर गट।” रा ल ने बीच म अचानक ही कहा।
प र ध हालाँ क छे ड़ उसे ही रही थी; मगर रा ल का यूँ बोलना उसे अ छा नह लगा।
उसने रा ल क बात ख म होते ही फर छे ड़ते ए कहा-
“हमलोग ने तुमसे नह पूछा। वैसे बता रहे हो तो हमलोग मान लेते ह। गर गट जैसे
रंग बदलने वाले।”
उसके इतना कहते ही रा ल ने इधर-उधर दे खा और छत पर पड़ी एक छड़ीनुमा
लकड़ी उठा ली। रा ल लकड़ी उठाए ए प र ध क ओर बढ़ा। प र ध उसके चेहरे के भाव
को पढ़कर डर गई थी। आ खरकार उसने कुछ यादा कह भी दया था। ले कन वह वहाँ
से हल भी नह सकती थी। आ खर वो य वहाँ से हटे एक करायेदार क ह मत भी
उसे दे खनी थी। इस लए असहज होने के बावजूद वो वह खड़ी रही। रा ल उसके ठ क
पास प ँच गया। अपने ह ठ पर तजनी रखकर प र ध को चुप रहने का इशारा कया और
उसक गदन के बा ओर छड़ी लगा द । दरअसल, प र ध क गदन के ठ क पीछे गमले म
एक गर गट बैठा आ था जो पीछे होने के कारण प र ध को नह दख रहा था। रा ल ने
प र ध क गदन के ठ क पीछे लकड़ी लगाकर गर गट को बा ओर फक दया। गर गट
गरा और फर तेजी से छत क द वार के सहारे भाग गया। प र ध ने जब दे खा तो वो भी
म मी-म मी करती चार कदम पीछे हो गई। रा ल ने लकड़ी फक द । छत पर ही लगे नल
से हाथ धोए और कमरे क तरफ बढ़ा। प र ध उसके पीछे ही आगे बढ़ और कहा-

“ ो ” ई े
“सुनो Thank you ” प र ध क आवाज आई। जसका जवाब रा ल ने बस
मु कुरा कर दया और कमरे म घुसने लगा।
“And I am sorry also. ” प र ध ने फर कहा।
“Its ok .” कहकर रा ल कमरे म आ गया। प र ध भी आगे बढ़कर कमरे के
दरवाजे तक आ गई और दरवाजे का चौखट पकड़कर कहा-
“तु हारे पास सैमसंग का चाजर होगा या ” प र ध ने बात बढ़ाई।
“नह । मेरे पास तो पावर बक है। ँ या ” रा ल म ा ने उसक आँख म दे खते
ए कहा। प र ध ने एक पल रा ल को दे खा और कहा-
“Stupid Moron .” कहकर प र ध झ लाकर तेज कदम से उतर गई। रा ल
च कत होकर उसे जाता दे खता रहा।
“चली गई यार। गाली भी दे द । हम कुछ गलत कह दए थे या झाड़ी ” रा ल ने
बुझे मन से मुझसे पूछा।
“नह पं डत। जीते रहो। ठ क ही तो कहे; तु हारे पास पावर बक ही तो है।” कहते
ए म हँसते-हँसते ब तर से उलट गया।
***

अगली सुबह जैसे ही रा ल म ा आँख म चते छत पर नकले तो दे खा क उनके


जीवन क करण ‘Respect Girls ’ क ट -शट पहने सूरज क करण के साथ
अठखे लयाँ कर रही ह।
रा ल म ा क आँख क क चयाँ उड़ ग । वो फौरन भीतर गए और जवाब दे ता
ट -शट पहन लया। बाहर आए, दोन हाथ क उँग लय को फँसा कर आसमान क ओर
हाथ उठाकर अँगड़ाई ली। ट -शट मैसेज नुमायाँ हो गया। लखा था-
Let me in spect Girls.
रा ल म ा क अथपूण मु कुराहट दे खकर प र ध तमतमा गई। सीधा नीचे उतरी
और बग-बाजार प ँच कर ही क । शाम को जब वह छत पर टहलती नजर आई तो
मकसद टहलना कम और जवाब दे ना यादा था। जवाब ट -शट ही दे रहा था; जस पर
लखा था-
“Grow up Boy. ”
रा ल म ा बाहर नकले, ट -शट को नहारा और वा पस कमरे म घुस गए। प र ध
अपनी जीत पर खुश होकर नीचे उतर गई। अगली सुबह जब रा ल म ा ट ड म क क
थैली लए सी ढ़याँ चढ़ रहे थे तो बटु क शमा के साथ नीचे उतर रही प र ध ने सी ढ़य पर
ही वो ट -शट मैसेज दे खा जो रा ल ने सफेद वी-नेक ट -शट पर माकर से लखा था।
लखा था-
“ ो ”
“बड़ा हो गया। ब त बड़ा।”
बटु क क बेट समझ गई। पढ़ने क को शश तो बटु क शमा ने भी क ; ले कन फर
उ ह एहसास हो गया क उनके च मे का नंबर बदलने का व आ गया है।
उसी शाम रा ल म ा बेचैनी से अपने जवाब के इंतजार म छत पर टहल रहे थे।
प र ध अभी तक छत पर नह आई थी। शायद मैसेज ट -शट ढूँ ढ़ने म थोड़ी दे र हो गई थी;
आ खरकार ट -शट मल गई। ट शट पहने बटु क क लाडली छत पर आई। मैसेज अबक
दफा ब त छोटा था। पीले वाले माइली के साथ लखा था-
“LOLZ ”
बफ पघल रही थी। रा ल म ा इस पघलती बफ को दे खकर खुश ए। कमरे के
भीतर गए और सरी ट -शट भी खराब कर द । अबक बार मैसेज आ मीय था-
“हँस मत पगली यार हो जाएगा।”
बफ पघल गई थी। पगली वाकई हँस द थी। यार हो रहा था। पानी क बोतल के
आदान- दान का सल सला चल पड़ा था।
भेद जया के खोले ना

रा ल म ा का टॉवर सचमुच पकड़ रहा था। रा ल के कहने पर तो म यह बात ब कुल


ही न मानता; ले कन उस दन मुझे पहली दफा एहसास आ क कुछ पक रहा है। रा ल
नीचे टहलते ए मोबाइल पर घरवाल से बात कर रहा था और म सामने राशन क कान
से सामान ले रहा था। मने दे खा क प र ध कपड़े से भरी बा ट लेकर छत पर आई।
नचोड़े ए कपड़े को फर से नचोड़कर वह उ ह छत क अलगनी पर डालने लगी। कपड़े
डालते व ही उसने दे खा क रा ल नीचे टहल रहा है। वह मुझे नह दे ख पाई य क म
सामने के राशन कान क ओट म था। उसने तेजी से अपने हाथ क कंघी बनाई और
फर उनसे बाल बनाए। मने उसे एक ही कपड़े को दो-तीन दफा फैलाते ए भी दे खा।
दरअसल वह चाह रही थी क रा ल ऊपर क ओर दे खे। मगर रा ल अपनी ही परेशानी म
टहल रहा था और हम वैसे भी बटु क शमा ारा ‘अपने काम से काम रखने क ’ स त
हदायत थी। पहले तो थोड़ी दे र प र ध ने रा ल के ऊपर दे ख लेने का इंतजार कया। जब
रा ल ने छत क ओर नह दे खा तो अचानक ही प र ध ने धीरे से बटु क शमा क एक धुली
ई शट नीचे गरा द और बोली,
“सुनो।”
प र ध क आवाज इतनी धीमी थी क रा ल नह सुन पाया।
“ओए ” अबक बार आवाज थोड़ी तेज थी। रा ल फर भी नह सुन पाया।
“ओ नीचे वाले।” अबक बार प र ध जोर से च लाई। रा ल के साथ-साथ आने-
जाने वाले दो-तीन लोग ने भी ऊपर क ओर दे खा।
“जरा वो शट ऊपर फक दो।” प र ध ने रा ल को दे खते ए अनमने से कहा।
रा ल हड़बड़ा गया। उसने तेजी से जाकर शट उठाई और ऊपर क जा नब उछाल
दया। मगर शट ह क होने क वजह से फर नीचे गर गई। दो-तीन बार ऐसा करने के
बाद उसने हारकर ऊपर दे खा तो प र ध मु कुराते ए हथेली पर ठोढ़ टकाए रा ल को
एकटक दे ख रही थी। उसने अपनी हथे लय के इशारे से रा ल को पहले थमने का इशारा
कया। रा ल ककर उसे दे खने लगा। उसने फर हाथ के इशारे से शट म गाँठ लगाने को
कहा। फर बारा गाँठ लगाने का इशारा कया। जब शट बँधकर बॉलनुमा हो गई तो रा ल
ने ऊपर दे खा। प र ध ने अब उसे ऊपर फकने का इशारा कया। रा ल ने शट को ऊपर क

ी े ँ े ो े
तरफ उछाल दया। शट ठ क छत पर जा कर गरी। प र ध ने शट क गाँठे खोल उसे
झाड़ा और फर रा ल क ओर मु कुराहट के साथ बे-आवाज थक-यू उछाल दया।

प र ध अब अ सर ही कपड़े सुखाने छत पर आने लगी थी और कुछ दन म ही मने


दे खा क कपड़े बा ट म भरकर लाती तो प र ध है; मगर उ ह छत पर बँधे तार पर डालने
का काम रा ल कर रहा है। छत पर बैठकर मेरे साथ शतरंज खेलता रा ल, र खड़ी
प र ध क आँख के इशारे से चाल चलने लगा था। पौध म पानी तो प र ध डालती;
ले कन बा ट रा ल खसकाता। घर को ठं डा रखने के लए छत पर पाइप से पानी तो
प र ध डालती पर पाइप के मुँह को दबाकर कोन तक पानी प ँचाने का नर रा ल
सखाता। इधर रा ल म ा को पनीर खाने क तलब होती; उधर न जाने कैसे ध म न बू
गर जाता। म एक और कहानी का मूक गवाह बन रहा था। मगर मुझे इस बात का संतोष
था क चूँ क रा ल प र ध के साथ त है इस लए वह कसी और खुराफात म यान नह
लगाएगा। ले कन मेरा ये म उस दन गलत सा बत हो गया जस दन कॉलेज से घर
लौटते समय रा ल ने अचानक ही पूछ दया,
“कब तक रहना है झाड़ी यहाँ ”
“जब तक मार के नकाल न दए जाएँ।” मने सीधा कहा।
“मतलब ” रा ल ने जानकर अंजान बनते ए पूछा।
“मतलब तुम जो कब ी खेल रहे हो ना, कभी फोरम मॉल तो कभी सनेमा हॉल
वाला। लड़क बदल गई ना जस ीत क तरह, तो जान लो क पटा के ही नकलना है
यहाँ से भी।” मने एक साँस म कहा।
“नह झाड़ी। सब लड़क एक जैसी नह होती ह और ये तो ब कुल भी वैसी नह
है। इसको भरपेट यार क ज रत है। खया है बेचारी ” रा ल क नौटं क जारी थी।
“ खया खया है द ली म और तुम साले टॉयबॉय हो टाटानगर के। ऐसा-ऐसा
वड यूज करोगे तो पानी सरक जाएगा हमको।” मने हँसते ए कहा।
“हँस लो झाड़ी उस पर तो क मत भी हँस ही रही है।” रा ल ने दोन हाथ
मलाकर सर के पीछे त कया बनाते ए कहा।
“कौन-सा ख है तु हारी खया को ” मने हँसी पर काबू पाते ए पूछा।
“उसका वॉय ड ए जाम से ऐन पहले उसको धोखा दे दया था। बेचारी ए जाम
भी नह दे पाई।” रा ल ने उदासी से कहा।
“ये ख है ” मने आ य से कहा।
“हाँ झाड़ी। ब त बड़ा ख है तुम या जानो। तुमको तो लड़क लव लेटर दे गी तो
तुम साले आटा-च क का रसीद समझ कर फक दोगे। तुमको या पता लड़ कय का
ख। बेचारी एक दन शायरी भी सुनाई।” रा ल ने कहा।
“जय हो, जय हो या शायरी थी ” मने मौज लेते ए पूछा।
“ ी ी ै े ो ै े े ऐ ी ”
“फूफाजी का ही था। कैसे तो था-वफा क आस है बेवफा सनम से , ऐसा ही कुछ।”
रा ल ने याद करते ए कहा।
“हमको उनसे है वफा क उ मीद
जो नह जानते वफा या है।” मने बात समझते ए कहा।
“हाँ-हाँ यही। एकदम यही।” रा ल ने उछलकर बैठते ए कहा।
“तुमको तो समझ आया नह होगा ” मने पूछा।
“समझ के या करना था झाड़ी। वो अपना सुनाई, हम अपना सुना दए। लड़क
खुश हो गई।” रा ल ने कहा।
“तुम शायरी सुनाए या सुनाए बेटा ” मने अचरज से पूछा।
“हम कहे क
वो बेवफा है तो या, मत बुरा कहो उसको।
तुम मुझसे सेट हो जाओ, दफा करो उसको।” रा ल ने हँसी रोकते ए कहा।
“भाग साले, कसम से ” मने आ य के साथ हँसते ए कहा।
“हाँ तो और या। हमको जो आएगा वही तो सुनाएँगे।” रा ल ने हाथ का कड़ा
घुमाते ए जवाब दया।
“मरो साले।” मेरा हँसना जारी रहा।
“अ छा, छोड़ो ख-दद। मेरे सवाल का जवाब दो। कब तक रहना है यहाँ ” रा ल
ने फर पूछा।
“दो साल का एमबीए या मेरा सीडीएस जो पहले क लीट हो जाए; तब तक तो
रहना ही पड़ेगा।” मने कहा।
“ओके। तो फर दो महीने का रट तुम दो, दो महीने का हम।” रा ल ने कहा।
“और बाक आठ महीना ” मने पूछा।
“बाक आठ महीने का रट बटु क दे गा।” रा ल ने उठकर मेज पर उँग लयाँ चलाते
ए कहा।
“बटु क अपने ही मकान का कराया दे गा ” मने आ य से पूछा।
“हाँ झाड़ी, बटु क अपने ही मकान का कराया दे गा।” रा ल ने टे बल को तबला
बनाते ए कहा।
“ये सब खतरनाक आइ डया घर पर ही य नह छोड़ दया पं डत ये द ली है
भाई।” मने अपना डर जताया।
“जब से घर छोड़ दए तब से डर छोड़ दए झाड़ी।” रा ल ने इयरबड कान म डालते
ए बात पर वराम लगा दया।

***
***

रा ल मजाक नह कर रहा था। उसके जेहन म चलने वाली बात जबतक जमीन पर
नह आ जात या फर वो खुद ही नह बता दे ता, तबतक जानना नामुम कन था। कमरे,
लास, कॉलेज और क या के बीच भी उसका दमाग कह और दौड़ रहा था। कहाँ
यह पता मुझे उस रोज चला जस रोज हम सरे महीने का कराया दे ने बटु क शमा के घर
प ँचे। कॉलबेल बजाई। दरवाजा प र ध ने ही खोला। दरवाजा खोलकर वह साथ के लगे
सरे कमरे म चली गई। हम कमरे म दा खल ए। बटु क शमा लैपटॉप लए कुछ काम कर
रहे थे।
“नम ते अंकल।” मने कहा।
“नम ते। कराया लाए हो ” बटु क शमा अपने लैपटॉप से सर उठाए बगैरे बोले।
“जी अंकल।” रा ल उनके ठ क पीछे आलमारी म लगे आदमकद शीशे म प र ध
का अ स दे खते ए बोला। प र ध सरे कमरे से झाँक रही थी।
“7 तारीख कह के 10 तारीख को दे रहे हो ” बटु क शमा ने अपनी दाएँ हाथ क
तजनी से लैपटॉप के बटन दबाते ए कहा।
“सॉरी अंकल। इस बार पापा को पैसे भेजने म दे री हो गई।” मने आगे बढ़कर पैसा
दे ते ए कहा।
“तो एक काम कर। अपणे पापा से कह कर पूरे साल का कराया एक बार ही मँगवा
ले।” बटु क शमा ने नोट गनते ए कहा।
“ले कन ” मने अभी बात पूरी भी नह क थी क रा ल बोल पड़ा-
“अंकल ठ क ही तो कह रहे ह। बार-बार पापा को भी पैसे भेजने का झंझट रहेगा।
इस लए एकमु त कराया मँगवा लेते ह।” रा ल ने एकटक शीशे म दे खते ए कहा।
“जे बालक तुझसे समझदार है।” बटु क शमा ने रा ल के बारे म मुझसे कहा।
“ओके अंकल। तो हम पापा से कहकर तीन-चार महीने का रट एक ही बार मँगवा
लेते ह।” रा ल ने शीशे म दे खते ए ही कहा।
“हाँ।” बटु क शमा ने कहा।
“ठ क है अंकल। हम घर से एक बार ही तीन-चार महीने के पैसे मँगवा लेते ह।”
रा ल ने फर वही बात हराई।
“बताशे खाओगे बेटा ” बटु क शमा ने जब रा ल को एक ही बात हराते ए सुना
तो कहा।
“नह अंकल। थक यू।” मने ही जवाब म कहा।
“तो फर घर जाओ, ग णत के सवाल लगाओ। यहाँ खड़े होकर समय य बबाद
कर रहे हो ” बटु क शमा ने लैपटॉप से आँख उठाए बगैर कहा।
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“जी अंकल।” कहकर म रा ल को हाथ से ख चकर झटके से बाहर ले आया। रा ल
अभी भी शीशे म दे खने क नाकाम को शश कर रहा था। बाहर आते ही रा ल मुझ पर
बगड़ गया-
“ य ख च लए झाड़ी, यार अभी-अभी तो काम बनने वाला था।” रा ल ने झ लाते
ए कहा।
“इतनी बेइ जती कम थी या, साले लड़क ऐसे ताड़ रहे थे जैसे आज ही तलक
चढ़वा लोगे।” मने लगभग खीझते ए कहा।
“लड़क तुमको या लग रहा है क हम आईना म लड़क दे ख रहे थे ” रा ल ने
कहा।
“अब शीशे म बटु क का पीठ तो नहारोगे नह ।” मने भी गु से म ही कहा।
“ऐसा है झाड़ी क जब आप लूडो म 98 का साँप दे खते ह ना तो हम 21 क सीढ़
दे खते ह।” रा ल ने चलते-चलते ही कहा। बात करते हम छत पर प ँच गए। छोटू दरवाजे
के बाहर ही बैठा आ हमारा इंतजार कर रहा था। रा ल ने कचेन का ताला खोलते ए
उसे चाय बनाने को कहा और हम कमरे म गए।
“बताओ साले। या साँप-सीढ़ खेल रहे थे ” मने पूछा।
“बटु क का नेट ब कग आईडी- 83**21*9 और पासवड है p@ssw0rD .”
रा ल ने बैठते ए ब त ही धीरे से कहा।
“ या ” म च क पड़ा।
“हाँ झाड़ी।” रा ल ने कहा।
“तुमको कैसे पता ” मने भ चक होकर पूछा।
“शीशे के उलट बैठ के आईडी, पासवड डालोगे और फर दोष दोगे हैकस को ”
रा ल कमरे म ब तर पर लेटकर लैपटॉप खोलते ए कहा।
“हैकर हो तुम ऐसा फकोगे तो फकर कहलाओगे।” मुझे बात समझते ही हँसी आ
गई थी।
“छोड़ो भाई।” रा ल ने बात घुमाने क को शश क ।
“अ छा बताओ तो मेरा या पासवड है ” मने मजा कया लहजे म पूछा।
“छोड़ो ना झाड़ी। तुम पल जाओगे।” रा ल ने हँसते ए कहा।
“झूठ मूठ का भाव टाइट कर रहे हो।” मने कहा।
“ये ibu-hatela कौन है झाड़ी ” रा ल ने आँख मारते ए कहा। मेरा चेहरा जद
हो गया। मेरा पासवड ibu-hatela ही था।
“तुम साले मेरा पासवड कब झाँक लए ” मने गु से से कहा।

“ ँ े ी ो े ी ो े ो े े
“हम य झाँकगे। अभी दो दन पहले ही तो पासवड बदले हो। उसके पहले वाला
तो N@GR@J था।” रा ल ने दाढ़ खुजाते ए कहा।
“ ॉड हो साले तुम ” मने आ य से सर पर हाथ रखकर कहा।
“ले कन या फायदा। फज फकेशन करने कहाँ दए तुम बटु क का तो बस आईडी
और पासवड ही पता चल पाया। वे र फकेशन के व वन टाइम पासवड के लए तो ई-
मेल का भी पासवड चा हए।” रा ल ने नराश होते ए कहा।
“तो तुम सच म बटु क के अकाउंट से पैसा नकालने क सोच रहे हो या ” मने
कहा।
“धीरे बोलो। सफ सोच नह रहे ह; ब क नकालगे।” रा ल ने कहा।
“दाल-भात के कौर जतना आसान नह है। कैसे करोगे। कसके अकाउंट म
ांसफर करोगे ” मने पूछा।
“उसका इंतजाम है। पा लकाबाजार म है एक हवाला वाला। सतबीर। कुछ कमीशन
लेके कैश हवाला कर दे गा; पर पहले बटु क का पासवड तो पता चले।” रा ल ने अपना
लैपटॉप खोलते ए कहा।
“कैसे पता होगा वो ” अब म भी जुड़ता जा रहा था।
“पता चल जाएगा। बस झारखंड का कोई ए ेस ूफ मल जाए नेट पर। मल जा .
मल जा . मल गया ” रा ल ने नेट पर इमेजेज ढूँ ढ़ते ए खुशी से कहा।
“ या मल गया ” मने चाय रा ल क ओर बढ़ाते ए पूछा जो छोटू लेकर आया
था।
“एक-से-एक बेवकूफ आदमी ह नया म। दे खो तो, मेरे लए ए ेस ूफ भी छोड़ा
है नेट पर। अब इसको जरा फोटोशॉप कर द झाड़ी। हाँ, अब ठ क है।” रा ल ने बजली
क तेजी से उस फोटो म अपना नाम डाल दया। कुछ और ज री प रवतन कए।
“ये दे खो, ये गया मेल बटु क के बटक म।” रा ल ने चाय पीते ए ए कहा।
रा ल को लैपटॉप पर काम करता दे ख छोटू भी वह खड़ा हो गया। मने दे खा क
खाली कप के इंतजार म खड़ा वह बार-बार रा ल से कुछ कहना चाह रहा है; मगर उसके
बोल बाहर नह आ रहे ह। आ खरकार मने ही उससे कहा-
“ या बात है छोटू ”
“भइया जी। मुझे भी सखा दो ये कं यूटर।” छोटू ने खड़े-खड़े ही कहा।
“तू या करेगा सीख के ” रा ल ने पूछा।
“ टकट बनाऊँगा। मेरे दे श से लोग बाहर मुलुक काम करने जाते ह। तो गाम म ही
टकट बनाने का काम कर लूँगा। घर पर ही रहकर कमाई भी हो जाएगी।” छोटू ने कहा।
“तू पहले चाय बनाना सीख ले। तेरी चाय और े न क चाय म कोई अंतर ही नह
है।” रा ल ने झ लाकर चाय का कप एक तरफ रखते ए कहा। छोटू कप उठाकर बुझे
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मन से कमरे से बाहर चला गया। उसके जाते ही रा ल ने कहा-
“चलो तो झाड़ी, जरा बटु क शमा से मल आया जाए।”
“हम नह जाएँगे साले। फर बेइ जती होगी।” मने सीधा मना कया।
“नजीर सैन हो गए हो झाड़ी। बात-बात पर बेट भाग जाती है तु हारी। चलते हो
क नह ” रा ल ने हाथ ख चते ए कहा।
“चलो, ले कन अबक बेइ जती कया ना बूढ़ा तो ।” मने अभी आधा ही कहा था।
“तो नकाल के हाथ म दे दे ना उसके। अब चलो।” रा ल ने लैपटॉप बंद करते ए
कहा। उसक बात सुनकर मुझे हँसी आ गई।
“बटु आ नकाल के हाथ म पैसे दे ने क बात कर रहे ह झाड़ी। तुम हमेशा हमको
उ टा समझते हो यार।” रा ल ने गंभीर होने का अ भनय करते ए कहा।
इ ह बात के साथ हम बाहर नकले। बाहर नकलते ही मने दे खा क छोटू कप
साफ करते ए उदास खड़ा है। मुझे एहसास आ क वह रा ल क झड़क से उदास है।
म कचेन म गया और उससे कहा,
“तू घबरा मत। म सखा ँ गा तुझे कं यूटर।” मेरे इतना कहते ही छोटू खुश हो गया।
उसक पीठ पर धौल दे कर म कचेन से बाहर आ गया। म और रा ल सी ढ़य से उतरकर
अब बटु क शमा के दरवाजे पर थे।
रा ल ने पहले से ही खुले दरवाजे पर द तक द और हम अंदर घुस गए। अंदर घुसते
ही मने दे खा क बटु क शमा शीशे के पास से उठकर अब सोफा पर बैठ गए ह। मुझे थोड़ी
मायूसी ई। म अभी यह सोच ही रहा था क रा ल ने कहा,
“नम ते अंकल। रा ल क बात का जवाब न दे ते ए बटु क शमा ने अपनी प नी को
आवाज लगाई, “छोरे को एक बोतल पानी दे दे , ज तै नकाल के।” म झप गया; मगर
रा ल ने कहा-
“नो थ स अंकल। म तो बस ये बताने आया था क ऐ ेस ूफ आपको मेल कर
दया है।” आप लीज चेक कर ली जए।
“हाँ हाँ। एक मनट क।” कहकर बटु क शमा अपनी बा हाथ क तजनी से क -
पैड के बटन दबाने लगे। रा ल उनक उँग लय क हरकत को दे ख रहा था और म रा ल
के चेहरे पर उतरते-चढ़ते भाव को पढ़ने क को शश कर रहा था। इसी बीच बटु क शमा
बोल पड़े-
“हाँ, आ गई मेल। पु लस वे र फकशन करवाऊँगा दोन क । कोई केस-वेस तो ना
है ”
“नह अंकल। आप वे र फकेशन करा सकते ह।” रा ल ने कहा।
“ठ क है। जाते ए पानी क बोतल लेते जा।” उ ह ने फर यह इशारा कया क अब
हम नकल जाना चा हए। अब क बार हमदोन बना कुछ बोले नकल आए।
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“ठं ड पड़ गई। करा ली बेइ जती ” मने गु से म उबलते ए कहा।
“बेटा, पूरी जवानी बेबी-ओवर कए तब नह ई बेइ जती तु हारी। यहाँ सरे शहर
म पता समान आदमी पानी पला रहा है तो बेइ जती हो रही है तु हारी ” रा ल ने
उँग लय पर कुछ गनते ए कहा।
“गु सा इस बात पर आ रहा है क काम भी नह बना यार।” मने हाथ-पर-हाथ मारते
ए कहा।
“बन गया झाड़ी, काम भी बन गया।” रा ल ने मेरी बात का मतलब समझते ए
कहा।
“ या, मतलब पासवड मल गया मेल का ” मने अवाक् होकर पूछा।
“हाँ भाई। और इसका भी वही पासवड है- p@ssw0rD . पहले ही ाई करना
चा हए था। बु ा से दो ब चा तो आ नह , दो-दो पासवड कहाँ संभाल पाएगा ” रा ल ने
हँसते ए कहा।
“अवतार हो रा ल तुम ” मने सर खुजलाते ए कहा।
“I am obliged sir ” रा ल ने भी हँसते ए कहा।
“ले कन मला कैसे बे अबक बार तो शीशे के उलट बैठा भी नह था बटु क ” मने
त कया अपनी गोद म रखते ए सही सवाल पूछा।
“बैल है बूढ़ा। पूरा बैल। उसको पता नह क टाइ पग सीखे ए कसी भी आदमी के
पास बैठकर पासवड टाइप नह करना चा हए। उनको कौन-सा बटन कहाँ और कतनी
री पर है, सब याद हो जाता है और बटु क तो वैसे भी पागल है। एक-एक उँगली से बटन
ेस कर रहा था।” रा ल ने कहा।
“ग जब इसी तरह मेरा भी पासवड पता कए थे न ” मने पूछा।
“नह । वो अलग तरीका था। कभी और बताएँगे।” रा ल ने कहा।
“साले, पैदा तो बायोलो जकली ए थे क वो भी टे नोलो जकली।” मने फर
मजाक कया।
“छोट -छोट बात म माँ-बाप को बीच म लाना ठ क नह झाड़ी।” रा ल ने मु कुराते
ए कहा।
“अब या करोगे ” मने गाल पर हाथ फेरते ए पूछा।
“बताए तो, पा लका बाजार का एक चेला है। नये टाइप का हवाला करता है। बात
कर लए ह। कमीशन काट के पैसा दे दे गा। उसी को भेज रहे ह। लो, बे न फ सयरी ऐड हो
गया। कोड आया मेल म। मेल खोल लए। कोड भी डाल दए। 24 घंटे म ए ट वेट हो
जाएगा। हो गया 2 महीने के कराए का इंतजाम।” अब मेल डलीट कर दे ते ह। रा ल ने
तेजी ने लैपटाप पर उँग लयाँ फराते ए कहा।
“तुमको डर नह लगता है बेटा ” मने उसक बात अनसुनी करते ए कहा।
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“डर का तो ऐसा है झाड़ी क डर तो बचपन म ही पड़ोस वाली रंभा आंट नकाल
द थी जब हम उनके .” रा ल ने अभी आधा ही कहा था क मने टोक दया-
“बस-बस रहने दो। पचास बार सुन चुके ह तु हारा एडवचर वथ म ासी जवानी। वो
भी सब-टाइटल के साथ।” मने कहा।
“अ छा तो एक शायरी ही सुना दो।” रा ल ने लेटते ए कहा।
“सुनो साले, समझ म तो आना है नह ; फर भी सुनो-
ई मु त क गा लब मर गया पर याद आता है।
वो हर एक बात पर कहना क यूँ होता तो या होता।” मने गाकर सुनाया।
“बटु क क बेट से पूछगे झाड़ी। वही बता पाएगी, ले कन हमको लगता है क यूँ
होता तो श तया लड़का होता। अब कोई हाथी-घोड़ा तो हो नह जाता ” रा ल ने कमरे क
लाइट बंद करते ए शायरी क ब खया उधेड़ द ।
भँवरा बड़ा नादान

द ली नया शहर था। अलग भी था और आगे भी। बाहरी शहर से आए लड़क को यहाँ
अ य त होने म जो सम याएँ आती ह वो हम भी आ रही थ । शहर क भाषा, लहजा,
र तार, आ म व ास इ या द सभी म एक ती ण तेजी थी। छोटे शहर से होने के कारण
द ली के अनुकूल खुद को ढालने म व लग रहा था। म अपने सीडीएस को ाथ मकता
दे ने के कारण शहर को व नह दे पा रहा था। ऊपर से एमबीए क पढ़ाई भी खासी
तव जो माँग रही थी; ले कन रा ल खुद को इस शहर म मुझसे बेहतर ढाल रहा था।
कॉलेज म भी वो मेरे मुकाबले यादा आ म व ास से लबरेज रहता था। इसका एक
कारण तो उसका ब हमुखी वभाव था। सरा कारण उसक प र ध से दो ती थी। प र ध
से नजद कय क वजह से उसके बोलने म, उसके हावभाव म एक शहरीपन, एक
सकारा मक भाव साफ दखता था। रा ल का संबंध को लेकर खलंदड़ापन म दे खता
आया था। मगर इस बार य क शहर सरा था, इस लए मुझे उससे प र ध को लेकर
गंभीर होने क उ मीद थी। मेरी यह उ मीद भी उसी दन टू ट गई जस दन रा ल ने कहा,
“झाड़ी एक बात बक ”
“बको।” मने मैनेजे रयल इकोनो म स क कताब पलटते ए कहा।
“ यार क नशानी या होता है झाड़ी ” रा ल ने ओढ़ ई गंभीरता से पूछा।
“ या मतलब ” मने कताब बंद कर द ।
“यार, बटु क क बेट कह रही थी क उसको यार क नशानी चा हए।” बात ख म
कर रा ल ने हँसी दबाने के लए मुँह पर हाथ रख लया।
“अबे जलील इंसान। शम करो। यहाँ भी पंचायती शु कर दए ” मने गु साते ए
कहा।
“बताओ तो। नशानी उसको चा हए और जलील हम और यहाँ भी-वहाँ भी से या
मतलब इतने े वाद न बनो झाड़ी। यार तो कोने-कोने म फैलना चा हए।” रा ल ने
बेचारगी से कहा।
“उसको तो समझ नह है; ब ची है वो।” मने ब ची श द पर जोर दे ते ए कहा।
“हाँ और हम तो जैसे आलोक नाथ ह। दो बार ट् वे थ म पढ़ चुक है। हमसे यादा
ए सपी रयंस है उसको।” रा ल ने उँग लय से दो बनाते ए कहा।
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“तो ” मने त ख आवाज म कहा।
“तो या यार क नशानी दे ना मेरे यार का फज है।” रा ल ने अपने उप यास
क नया से एक लाइन उधार ले ली।
“अबे कुछ गड़बड़ हो गया तो बटु क शमा पूरे ल मीनगर से सोटवाएगा।” मने डरते
ए कहा।
“साले, तुमसे समझदार तो बटु क क बेट है। पता है या कही ” रा ल के पास
जवाब तैयार थे।
“ या ” मेरे पास सवाल तैयार थे।
“कही क I am on pills .” रा ल ने अथपूण मु कुराहट के साथ कहा।
“ या जा रे जमाना अब हम या कह। फर भी; दे ख लो झाड़ी।” मने समझते
ए भी लाचारी से कहा।
“तुम दे खने दे गा तब ना ” रा ल ने फर छू टती हँसी को दबाते ए शरारत से कहा।
“मतलब ” मने उसक बात समझते ए भी अंजान बनते ए कहा।
“मतलब तुमको दख नह रहा है क सबेरे से दो बार झाड मार दए म म।” रा ल
ने कमरे क सफाई क ओर इशारा करते ए कहा।
“यह पर। आज ही ” बात समझते ही मेरे कबूतर उड़ गए।
“हाँ तो और या। छोट -छोट बात पर होटल बुक कर ” रा ल ने ढठाई से कहा।
“अबे फँस जाएँगे पं डत।” मुझे अब सचमुच डर लग रहा था।
“कुछ नह होगा। अगर बटु क दे ख भी लया तो कह दगे क अंकल हम एक कमजोर
ल हे म थोड़े और कमजोर पड़ गए।” रा ल ने फर कोई बासी लाइन चेप द ।
“अभी थोड़ी दे र म छोटू आ जाएगा खाना बनाने।” मने मन-ही-मन खुश होते ए
कहा।
“नह आएगा। ब त दन से केट- केट कर रहा था। टकट करा दए ह आज
फरोजशाह कोटला म ूट बजाएगा।” रा ल ने शैतानी से कहा।
“और खाना ” मने गु से से कहा।
“कल क खचड़ी है न। गरम कर लगे दोन भाई।” रा ल ने फर थ पड़ के डर से
पीछे हटते ए और हँसते ए कहा। मुझे गु सा तो आ रहा था; मगर अभी तो खाने से
भारी मु कल सामने थी।
“अबे म कतना गंदा है सात दन से एक ही चादर बछा है ” मने आ खरी
को शश क ।
“उसक चता मत करो; चादर है मेरे पास। ये दे खो।” कहकर रा ल ने उ र रेलवे
लखी चादर दखाई।

“ े े े ो ी े े े ” े ँ
“ये या रेलवे क चादर भोसड़ी के, तुम े न से चादर उठा लाए ” मेरा मुँह आ य
से खुला रह गया।
“नह भाई, तौ लया भी है।” रा ल ने फर हँसते ए कहा।
“बेगैरत आदमी। मेरे बेड पे बछाना मत, कह दे ते ह।” मने अबक बार गु से से
कहा।
“ लीज झाड़ी, दोन बेड मलाने दो ना। लीज।” रा ल ने घुटन पर बैठकर मेरे पैर
पकड़ लए।
“मरो साले ” मने गु साते ए कहा।
“हम जानते ह। तुम दल का बुरा नह है झाड़ी। दो त के लए तुम बेड तो या, हेड
भी कुबान कर सकता है।” रा ल ने बेड ख चते ए कहा।
“इतना सब सोच लए हो तो मेरे बारे म भी सोच ही लए होगे। बता दो कहाँ जाएँ ”
मने बेचारगी म गु सा मलाते ए कहा।
“तुम कहाँ जाएगा यह बैठो। बाहर सीढ़ पर। नमक हलाली करो।” रा ल ने आरा-
म क छड़कते ए कहा।
“नमक हलाली ” मने च कते ए रा ल को दे खा।
“खच वाला ए सेल शीट दे खो। हर बार नमक हम ही खरीदे ह।” रा ल ने आईना
दे खते ए कहा।
“अ छा, अब समझा। ले कन जो तुम करवा रहे हो ना; उसे हलाली नह दलाली
कहते ह।” मने गु से म कहा।
“तो वही कर दो और सुनो, थोड़ी ए टवता दखाओ। ज द नकलो। उसके आने
के बाद बाहर से ताला लगा दे ना। कोई पूछे तो कहना क रा ल चाभी लेकर बाहर चला
गया है और तु हारे पास सरी चाभी नह है।” रा ल ने चादर ठ क करते ए कहा।
कुछ और कहने को बाक था भी नह । रा ल सबकुछ पहले ही तय कर चुका था।
दो ती क सबसे बड़ी क मत यही होती है क यह सही-गलत से परे होती है। मुझे चाहे-
अनचाहे सी ढ़य पर बैठना ही था और म बैठ गया। कताब म भी मन नह लग रहा था;
ऊपर से म खय ने भी परेशान कर रखा था। इस लए म मोबाइल म धीमी आवाज म ही
एफ.एम. सुनने लगा।
“Hey Ya ” यह आवाज इतनी धीरे आई क म ठ क से सुन भी नह पाया। पाँव
दबाकर प र ध के छत पर आने का पता मुझे उसके गुजर जाने के बाद हवा म घुली
बगनोट और ऑ कड क सुगंध से लगा।
“Hi ” मने न जाने कससे कहा। वो तो जाने कब क कमरे म दा खल हो चुक
थी। बस बाहर से ताला लगाना बाक था। मने धीरे से बाहर से ताला लगा दया। हालाँ क
भीतर से साँकल पहले ही लग चुक थी। म क और आ कड क मली-जुली मादक खुशबू

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अब हवा म थी। मुझे आकर सी ढ़य पर बैठ जाना था और म सी ढ़य पर बैठ गया था।
अभी बमु कल पाँच मनट ही बीते ह गे क नीचे से एक आवाज आई,
“मो हत, बेटा इले सट का मीटर दे ख कर बता। अंकल का फोन आया है।”
नीचे से आती आवाज से मेरी ह काँप गई। धड़कन आटा च क क मशीन क
तरह बाहर तक सुनाई दे ने लग । यह आंट क आवाज थी।
“मो हत।” उ ह ने फर आवाज लगाई। मने कोई जवाब नह दया।
“मो हत।” आवाज फर आई। म फर चुप रहा। मुझे लगा क आवाज नह पाकर
वो सोचगी क ऊपर कोई नह है और चुप हो जाएँगी; ले कन जब अचानक ही पायल क
आवाज ऊपर क ओर आने लगी तो म समझ गया क आंट ऊपर आ रही ह। मेरे पसीने
छू ट गए। म दरवाजे पर गया और जाकर फुसफुसाया-
“मुसीबत।”
“आनी नह चा हए।” भीतर से रा ल क आवाज आई।
या भसड़ है न लेना न दे ना और मुसीबत मुझे संभालनी है। म कुछ और सोच
पाता इससे पहले छत पर सूखने के लए फैलाई गई एक लाल चुनरी पर मेरी नजर गई।
दमाग को और कुछ न सूझा। झपटकर म वहाँ प ँचा और उस चुनरी को नीचे गरा दया।
फर तेजी से ऊपरी सी ढ़य पर आकर बैठ गया। तबतक आंट भी आ खरी सी ढ़य पर
आ चुक थ ।
“ले, बहरा हो रखा है या। कब से आवाज लगा रही ँ; बोलता य नह ” आंट ने
घुटन पर हाथ रखकर धीरे-धीरे सीढ़ याँ चढ़ते ए कहा।
“नह आंट । म तो बस आपके पास ही आ रहा था क सी ढ़य पर फसल गया।
नीचे एक लाल चुनरी गरी है। या आपक है ” मने अपने पाँव को हाथ से मा लश करते
ए कहा।
“हाय मेरी माता रानी क चुनरी माता रानी माफ कर माता रानी माफ कर बेटा,
ज द से जाकर उठा ला। ज द कर।” उ ह ने मुझसे कहा।
“आंट । म जा ही रहा था। ले कन फसल गया। धीरे-धीरे उतर पाऊँगा। तब तक
अगर कोई जानवर उस पर चढ़ गया तो ” मने कहा।
“अरे शुभ-शुभ बोल म ही जाती ँ। तू बस ऊपर से दे खता र हयो। माता रानी माफ
कर।” कहकर आंट लँगड़ाते ए भी तेजी से नीचे चली गई। म दौड़कर दरवाजे पर प ँचा
और कहा-
“2 मनट मोर।”
“10 मनट और।” भीतर से आवाज आई।
अजीब लोग ह मुसीबत दो मनट म तबाही ला सकती है और ये 10 मनट क
रहाई माँग रहे ह। खैर मुझे कम-से-कम तो पटना नह था। म झाँककर छत से नीचे
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दे खने लगा। आंट अभी तक प ँची नह थ । वह अब प ँची। उ ह ने कान पकड़ चुनरी से
तीन बार माफ माँगी और फर उसे उठाकर ऊपर आने लग । मने जब दे खा क वो ऊपर
आ रही ह तो उ ह अपनी मोच दखाने के लए सी ढ़य के सहारे नीचे उतरने लगा और
उनसे पहले उनके दरवाजे पर प ँच गया।
“जुग-जुग जए बेटा तू। जो आज तू नह होता तो माता रानी ने बस शाप दे दे ना
था।” आंट ने हाँफते ए कहा।
“अरे नह आंट । म तो आपको बताने ही आ रहा था क फसल गया और पैर म
मोच आ गई। आपके पास आयोडे स होगा या आंट ” मुझे टाइम बताने का इससे
बेहतर कोई और तरीका नह सूझा।
“दे खती ँ बेटा। तेरे अंकल मोच क एक दवा लाए तो थे। अब दे खती ँ कधर रखी
है। एक तो ये बूढ़े हो गए पर अपना सामान रखना नह आया।” आंट ने कहा और दवा
ढूँ ढ़ने लग ।
अभी आंट खुद से बात कर ही रही थ क प र ध को मने हाथ म सडल लए दबे
पाँव नीचे उतरते दे खा। वह एक लोर और नीचे उतर गई और फर सडल पहनकर पैर
पटकते ए ऊपर चढ़ने लगी; ता क यह लगे क वह नीचे से ही आ रही है। घर म घुसते ही
उसने मुझे अनदे खा करते ए ही अपनी माँ को आवाज द -
“ या ढूँ ढ़ रही है म मी ”
“आ गई तू। पापा क मोच वाली दवा कहाँ है मल नह रही। भइया के मोच आ
गई है।” आंट ने कहा।
“भइया ” मुझे करंट-सा लगा। फर भी म मुखौटे क तरह मुँह पर हँसी चपकाए
रहा।
“म दे दे ती ँ। सीधे हाथ वाली दराज म है।” कहकर प र ध एक ूब लेकर मेरे पास
आई और ूब दे ते ए धीमे से बोली- “थक यू।”
मेरे पास इस थक यू का कोई जवाब नह था। जवाब म म बस मु करा ही पाया।
“ ड् स ” प र ध ने दो ती का ताव रखा।
“ ड् स।” मने धीरे से उसका ताव वीकार कर लया। सरे कसी र ते क
गुंजाइश नह थी और भइया होने से तो यह बेहतर ऑफर ही था। म धीरे से उठा और
लँगड़ाने का नाटक करते ए कमरे से नकला। दरवाजे से बाहर नकलते ही तेजी से
सी ढ़याँ चढ़ते ए अपने कमरे म दा खल हो गया। कमरे म आरा-म क और ऑ कड क
मलीजुली मादक गंध ने मेरे गु से को और बढ़ा दया। रा ल अब भी नढाल पड़ा था। उसे
दे खकर मेरा गु सा पारे क तरह चढ़ गया। म उसक पीठ पर सवार होकर उसके हाथ को
पीछे मोड़कर उस पर घूसे बरसाने लगा।
“हाँ हाँ और मारो झाड़ी। और मारो।”

“ ो ी”
“थोड़ा इधर भी।”
“हाँ, यहाँ भी।”
“हम जलील इंसान है झाड़ी और मारो। सारा बदन टू ट रहा है। थोड़ा और दबा दो न
झाड़ी।” रा ल घूसे खाता रहा, हँसता रहा और बोलता रहा। जब उसे घूसे मार-मारकर
मेरा गु सा नकल गया तो म भी एक तरफ लुढ़क गया।
“कोई शायरी सुनाओ ना दो त।” रा ल ने धे मुँह लेटे ए ही कहा।
“सुनो साले,
इ क ने सीख ही ली व क तकसीम क अब
वो मुझे याद तो आता है मगर काम के बाद।” मने उसके कहते ही शेर सुना दया।
“जब काम हो गया तो फर याद य आता है झाड़ी ” रा ल ने शेर का पो टमॉटम
कर दया और फर हम दोन दे र तक बना कसी बात के हँसते रहे।
कैसा अनाड़ी लागे रे

बटु क शमा के पताजी भरतपुर से द ली आए थे पं डताई करने। पं डताई करते ए उ ह


यह बात समझ आ गई थी क दे श बदल रहा है। अब इसे पं डत क नह नौकर क
ज रत है। अब इसे शा क नह सेवक क ज रत है। सो बटु क शमा पं डताई क
जगह पढ़ाई के काम पर लगाए गए। पढ़ाई बटु क शमा के प ले नह पड़ी पर ये ज र
आ क बाप के डर से बटु क शमा दसव ख च ले गए। पताजी ने पोट् स कोटा पर चौथे
तर क नौकरी का जुगाड़ कया। इंटर ू म बटु क शमा से दो ही सवाल ए- “कौन-सा
खेल खेलते हो ” बटु क शमा ने कोई खेल खेला हो तब तो बताएँ। घबराहट म बटु क शमा
मुँह क गोलाइयाँ बना ही रहे थे क सवाल करने वाले ने मुँह क गोलाइय से अंदाज
लगाते ए खुद ही जवाब दया- “फुटबॉल ”
बटु क शमा को जैसे बह र र एकमु त मल ग । उ ह ने फौरन ही कहा- “जी सर,
फुटबॉल।”
सरा मे बर थोड़ा खडस था। उसने पहले मे बर और बटु क शमा के बीच के ‘शमा
कने शन’ को शायद भाँप लया था। इस लए उसने थोड़ा मु कल सवाल कया-
“ कस पोजीशन से खेलते हो ”
बटु क शमा का दल काम करना बंद कर दे ता; इससे पहले ही उनका दमाग काम
कर गया अबक बार उ ह ने झट से कहा -
“सर, गोलक पर ँ।” इंटर ूअर पोजीशन का हसाब लगाते रह गया। बटु क शमा ने
मैच जीत लया था।
इस कार बटु क शमा एक व व पो षत कॉलेज म चतुथ ेणी कमचारी नयु हो
गए। पताजी को दान क मली 50 गज जमीन पर उ ह ने लोन से मकान भी बनवाया
और अब द ली के होकर रह गए।
बटु क शमा। प के कॉ ेसी। पछले तीन चुनाव से वोट सफ इस लए नह दया
य क गाँधी प रवार का कोई धानमं ी पद का उ मीदवार नह है। कहते ह क अगली
बार वोट तभी दगे जब यंका कमान संभालेगी।
बटु क शमा पहले केवल प रवार वाल को ही कमरा कराये पर दे ते थे। मगर एक
दफा एक बंगाली प रवार को कमरा कराये पर या दया, पूरे मकान को पानी क
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क लत आने लगी। करायेदार क प नी खूब कपड़े धोती और छत पर फैला दे ती। बटु क
शमा ने जब मना कया तो जवाब मला, “आमी बाड़ीर भाड़ा द ची तो।”
बटु क शमा जवाब सुनकर स रह गए। घर आए और सो गए। अगली सुबह उठे
और माता रानी क पूजा करने के बाद सूयदे व को जल चढ़ाने छत पर प ँचे। करायेदारनी
ने ढाकायी तांत क साड़ी फैला रखी थी। बेशक मती बटु क शमा ने दोन हाथ से
अगरब ी पकड़ी और अधम का नाश हो, धम क वजय हो के उ चार के साथ ही
अगरब ी से साड़ी पर लगातार कई फायर कए। साड़ी चलनी हो गई। करायेदारनी ने
बाड़ी और साड़ी दोन छोड़ द । उसके बाद से बटु क शमा ने कान पकड़ लया और अब
सफ टू डट् स को ही कराये पर कमरा दे ते ह।
बाक कद-काठ और बात- वचार के हसाब से बटु क शमा द ली के अ य मकान
मा लक क तरह ही थे। बस दा हने कान से थोड़ा ऊँचा सुनते थे। नह -नह । ज म से
नह । वो तो आ यूँ क कसी गम दोपहर म केट दे खते ए बटु क शमा दयासलाई क
तीली से कान को आराम दे रहे थे। कान क खुजली ने जब ताल पकड़ ली तो बटु क शमा
तीली पर बेरहम हो गए और तेजी से कान कुरेदने लगे। बचपन से ही कबा ड़य के साथ
खेले गए खेल म उनके कान म अटका लोहे का बुरादा उ ह तंग करता आया था जसने
उनके कान म अपना थायी नवास बना लया था। बटु क शमा बचपन क यह बात
भूलकर कान को बेरहमी से रगड़े जा रहे थे। इस बेरहमी पर तीली और बुरादे दोन को
गु सा आ गया। ग मय के दन थे ही। तीली कान के भीतर बुरादे से रगड़ खाकर भ क से
जल गई। बटु क शमा कान लए बाथ म क तरफ भागे और जब नकले तो शम और
बेइ जती के डर से प नी तक को नह बता पाए। य क बकौल बटु क शमा, उनक
मोह ले म ब त इ जत थी। हँसते ए उ ह अपने इस ख और दद को पी जाना पड़ा।
***

ले कन बटु क शमा आज खी थे। वा तव म वो पछले तीन दन से खी थे और


यह पकड़ पाना कोई कैलकुलस का सवाल नह था। यह उनके उखड़े ए चेहरे पर छपा
था। सी ढ़याँ चढ़ते-उतरते जब मने यह दो तीन दफा नो टस कया तो उनका हाल पूछ
लया। जवाब बस यह मला क तबीयत ढ ली है।
बात इससे कुछ यादा गंभीर थी; ले कन इसका जवाब मुझे न उनसे मलना था, न
मला। जवाब तो मेरे कमरे म मेरा इंतजार कर रहा था। जब म छत पर प ँचा तो दे खा क
प र ध छत पर से पानी क टं क का वा व बंद कर अब नीचे जा रही है और रा ल कमरे म
धा लेटा हल रहा है। मुझे थोड़ा डर लगा। म फौरन ही उसे दे खने कमरे म घुसा तो दे खा
क दरअसल वह हल नह , हँस रहा था और इस बात का यान रखे ए था क हँसी क
आवाज बाहर टं क का वा व बंद करती प र ध के कान तक न प ँचे।
“ या आ बे। जान ब त नाराज नजर आई आज ” मने कमरे म घुसते ही पूछा।
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“जान के प पा क बग टाइम लंका लगी है।” रा ल ने कपड़ा मुँह म ठू स कर हँसी
रोकते ए कहा।
“अबे हँस लो खुल के। हँसी पर टे ट टै स नह है अभी।” मने रा ल को जबरद ती
हँसी रोकते ए दे ख कर कहा।
“नह झाड़ी। हँस के ही तो फँस गए यार।” रा ल ने कहा।
“ आ या ” मने पूछा।
“होना या है बटु क के कॉलेज का एनुअल ऑ डट चल रहा था। दो ऑ डटर आए
थे। उसम से एक ऑ डटर जदाखोर था। उसने बटु क के बॉस से रजनीगंधा और तुलसी
मँगवाई। बटु क आगे बढ़ के बोला क सर, हम लेकर आते ह।” रा ल ने हँसी रोकते ए
कहा।
“ फर ” मने उ सुकता से पूछा।
“ फर या दो घंटे तक ऑ डटर पान-मसाला जैसा मुँह बनाए रहा। दो घंटे बाद
बटु क हाँफते-डाँफते मुदा पर चढ़ाने वाला रजनीगंधा का फूल लेकर आया और कहा क
सर ब त ढूँ ढ़े ले कन तुलसी प ा नह मला। वैसे मुदा है कहाँ ” रा ल क दे र से दबी ई
हँसी फर फूट गई।
“बे साला, सच बोल ” मुझे अब भी व ास नह हो रहा था।
“भगवान कसम भाई ” रा ल ने कसम खाने के अंदाज म गला छू ते ए कहा।
“तुमको ससुर ले कन सब-का-सब नमूना मलता है पं डत।” मने भी अपनी हँसी पर
काबू पाते ए कहा।
“और हँस दए तो ससुर क बेट नाराज हो के चली गई। बताओ तो।” रा ल ने
कहा। बटु क शमा के बारे म धीमी आवाज म बात हो ही रही थ क बटु क शमा क
आवाज सुनाई द ।
“ या कर रहे ह बेटे जी ”
बटु क शमा क खराश भरी आवाज आई। वो पछले सालभर म आज पहली बार
हमारे कमरे तक आए थे। मुझे अब लग रहा था क सम या काफ गंभीर है।
“कुछ नह अंकल। आइये ना।” मने कहा। हालाँ क वो तब तक कमरे म आधा घुस
आए थे। रा ल उ ह दे खते ही थोड़ा और समटकर बैठ गया।
“May I shit here ” बटु क शमा ने कमरे म रखी इकलौती कुस क तरफ
इशारा करते ए पूछा।
“Shit ” रा ल उनक अं ेजी सुनकर दो कदम पीछे खसक गया। हालाँ क उसे
भी पता था क बटु क शमा अं ेजी का नुकसान करते रहते ह ले कन वह इस तरह अं ेजी
पर डकैती डाल दगे, इसका अंदाजा उसे भी नह था।
“हाँ हाँ अंकल, बै ठए ना।” मने हँसी दबाते ए कहा।
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“और पढ़ाई कैसी चल रही है आप लोग क ” बटु क शमा ने बात क शु आत क ।
“जी बेहतर। एक साल और।” फर आपको तकलीफ नह दगे। मने कहा।
“लो कर लो बात। बे े , हमने कभी आपसे कहा क हम आपके रहने से कोई pain
है। आपका घर है जब तक चाहे रहो। Stay Free .” बटु क शमा ने अपने हाथ से
अपनी जाँघ पर थप कया दे ते ए कहा। रा ल को अं ेजी पर फर हँसी आ गई।
“जी अंकल।” अबक दफा रा ल ने कहा।
बटु क शमा को इधर-उधर क बात करता दे ख, मने ही काम क बात छे ड़ द -
“अंकल, पछले दो-तीन दन से काफ परेशान नजर आ रहे ह। कोई बड़ी सम या
है या ”
बटु क शमा दरअसल इसी लए ऊपर आए थे। वो अपने मन क बात कसी से कहना
चाह रहे थे ले कन उ ह कोई उपयु आदमी मल नह रहा था। मेरे पूछते ही वो फूट पड़े
और कहने लगे-
“हाँ बेटे बड़ी तो है। इसी लए तो कोई तगड़ा लग खोज रहा ँ।”
“ लग ” रा ल फर सकते म आ गया। उसे सकते म आया दे ख बटु क शमा ने
समझाया- “ लग। लग मतलब जुगाड़। समझे ” बटु क शमा ने जो अथ समझाया वो
अनथ यादा था।
“जुगाड़ ” रा ल अबक कुस से गरने से बचा।
“रा ल, अंकल लक क बात कर रहे ह।” मने बात का मतलब समझते ए रा ल
को समझाया।
“हाँ हाँ वही। तू मुझे पहले दन से समझदार लगा था। जे तो अपणे बाप का पैसा
गला रहा है ” बटु क शमा ने रा ल के बारे म कहा।
“और अब तो ससुर का भी।” मने धीरे से कहा।
“कुछ कहा बेटे ” बटु क शमा ने मेरी फु फुसाहट सुनते ए कहा।
“नह अंकल ब क आप कुछ कह रहे थे।” मने बात बदल द ।
“हाँ बेटे। म बता रहा था क मेरे साहब ने मुझसे खु स खा रखी है और इसी लए
उसने मुझे स पड भी कर रखा है। अब रटायर होने म तीन-चार साल बाक ह। ऐसे समय
म कोरट-कचहरी का च कर लग जावे तो फर बुढ़ापे म द कत। फर PF वगैरह के पैसे
भी फँस जाँगे।” बटु क शमा ने परेशानी म सर मलते ए कहा।
“ओह हो ले कन अंकल आ या था ” मने पूछा।
“साहब के मजाज का कोई ठकाना नह बेटे। कब या करने को कह द। पहले
ब त कया है पर अब इस उ म इतना नह होता।” बटु क शमा ने पहेलीनुमा बात क ।
“मतलब ”

“ ो े े ै े ी े े े े े ो ॉ
“एक तो मेरे पास वैसे ही टे बल भर के काम पड़े ह। ऊपर से साहब ने लो जॉ स
क ल ट पकड़ा द ।”
“ लो जॉब ” रा ल सुनते ही कुस से गर पड़ा।
म उसे संभालने के बहाने उठा और उसक आड़ म ही अपनी हँसी छु पाई। म समझ
गया था क बटु क शमा ने फर कसी श द का मानमदन कर दया है।
“हाँ बेटे तुझे या लगता है तन वाह ऐसे ही उठाते ह हम पर अब नह होता बेटे
अब थक जाता ँ। अब ये सारे काम नए लोग को दे ने चा हए।” बटु क शमा ने हमसे हामी
क उ मीद करते ए कहा।
“हाँ अंकल बलकुल सही बात। फर आपने या कहा ” मने पूछा। रा ल अपनी
हँसी छु पाने के लए पानी क बोतल मुँह म लगाए बैठा रहा।
“कहना या था मना कर दया। उ ह ने ल खत म लो जॉब करने को कहा था।
हमने लखकर मना कर दया। इसी लए तो स पड कर दया साहब ने।” बटु क शमा ने
बेचारगी से कहा।
“ लो जॉब ल खत म ” रा ल ने फर आँख चौड़ी क ।
“हाँ और या म कोई झूठ कह रहा ँ और तू इतना च क य रहा है काम
ल खत म नह दगे तो कोई करेगा भला ” बटु क शमा ने कहा।
“अंकल या वो कागज आपके पास है ” मने पूछा।
“हाँ बेटे ये दे ख छाया पर त। चार-चार करवा रखी है मने। तुझे पढ़ के सुनाता ँ।”
कहकर बटु क शमा ने चार भाग म मुड़े एक कागज को खोलकर पढ़ना शु कया।
“ये सुन। लखा है-
काइंड अटशन
म टर शमा,
इन ए डशन टू योर असाइ ड वक यू आर हेअरबाई डायरे टे ड टू डू लो जॉ स
आ सो।”
बटु क शमा के इतना पढ़ते ही मेरा माथा ठनका। मने बटु क शमा को बीच म ही
टोकते ए कहा- “अंकल जरा मुझे यह कागज दखाएँ।”
“हाँ-हाँ ले। दे ख ले। जो एक भी लाइन गलत कही हो तो ” बटु क शमा ने कागज
बढ़ाते ए कहा।
कागज हाथ म लेते ही मेरा शक यक न म बदल गया। बटु क शमा पूरे अथ-का-अनथ
कर चुके थे। मने अपनी हँसी दर कनार करते ए कहा-
“अंकल ये ‘ लो जॉ स’ नह ‘ बलो जॉ स’ है।” मेरे इतना कहते कहते ही रा ल के
मुँह से फचाक क आवाज के साथ पानी बाहर आ गया। वह खाँसी का अ भनय करता
ज द से कमरे से बाहर भाग गया। बटु क शमा ने उसे दे खते ए मुझसे कहा-
“ ँ ँ ी े े े े ो
“हाँ-हाँ वही मगर अब बता इस उमर म इतना ेशर दे ते ह या हमने ना कर द तो
कहते ह कुछ दन घर पर बैठो। इतने साल मेहनत से काम करने का यह बदला मला है।”
“हाँ अंकल गलत तो कया है उ ह ने; ले कन हौसला र खए सब ठ क हो जाएगा।”
मने वही कहा जो बटु क शमा सुनना चाहते थे।
“कोई नह बेटे। बस तुझसे बात कर जी ह का हो गया। ये बात कसी से क हयो
नह । तू जानता है ना मोह ले म ब त इ जत है तेरे अंकल क ।” कहते ए बटु क शमा,
रा ल को घूरते ए नीचे उतर गए।
***

बटु क शमा नलं बत थे और इसी कारण रा ल म ा क ेम कहानी लं बत थी।


तकद र का रोना यह था क बटु क शमा स दय म स पड ए थे और सुबह-सुबह छत पर
धूप लेने चले आते थे। दन म सरपट गुजरती मे ो के ड बे गनते थे और रात म नयॉन
लाइट क रोशनी म बदलती द ली को कोसते ए पुरानी द ली को अ छा बताते थे।
दन म जो व प र ध के छत पर आने का होता था उसी व बटु क शमा ला टक
क कुस और अपने स पशन क मातमपुस लए छत पर प ँच जाते थे। मेरी सीडीएस
क परी ा अगले ह ते थी इस लए मने कॉलेज एक ह ते के लए छोड़ दया था। अब
य क म कॉलेज नह जा रहा था तो रा ल के कॉलेज जाने का कोई सवाल ही नह था।
वो मुझे जनरल अवेयरनेस के सवाल म मदद कर रहा था और यह काम हम अ सर छत
पर टहलते ए ही करते थे। उस दन भी रा ल मुझसे कुछ सवाल पूछ ही रहा था क
बटु क शमा ने अपना ान बखेरा,
“तेल लगाना के बारे म तु हारे या वचार ह ”
“जी ” रा ल ने आ य से पूछा।
“अरे, ये ही तो लेटे ट है आजकल। इसके बारे म बता ” बटु क शमा ने कहा।
“जी, लगाना चा हए। तेल लगाना ही चा हए और आजकल क स दय म तो ज री
भी है।” रा ल ने बटु क शमा क बात को मह व न दे ते ए कह दया।
“रा ल, अंकल तेलंगाना के बारे म पूछ रहे ह।” मने धीमे से ही मु कुराते ए कहा।
“तू पढ़ जा बेटे। जे इसके च कर म पड़ा तो बबाद हो जावेगा। यहाँ दे श क रेल
लगी है और जे है क तेल लगा रहा है।” बटु क शमा ने अखबार खोलते ए मुझसे कहा।
यह बात सुनते ही रा ल ह थे से उखड़ गया। रा ल और बटु क शमा के बीच ऐसी बात
रोजमरा क थ । रा ल ने भी कभी इसे गंभीरता से नह लया ले कन आज वो खीझ उठा।
वह कमरे म गया और वह से मुझे आवाज द -
“झाड़ी जरा भीतर आ।” जैसे ही म भीतर प ँचा रा ल ने गु से से कहा-
“तुम साले भा षया लगे हो बुढ़ौती के ”
“ े ो औ औ े ो
“अबे, हमको लगा क तुम समझ नह पाए और कह और तेल न लगा दो इस लए
ां लेट कर दए। अब इसम भी कुछ गलत है या ” मने हँसते ए ही कहा।
“ ां लेट करते हो क मीलेट करते हो साले। तेलंगाना को कोई तेल लगाना कहता
है या। ऊपर से तुम ां लेट कर रहे हो ” तेल लगाना कहते-कहते रा ल को भी हँसी आ
गई।
“चलो-चलो बाहर चलो। नह तो बूढ़ा समझेगा क उसी के बारे म खुसर-फुसर हो
रही है।” मने कहा।
“समझ के मेरा न कया लेगा एक तो साला जबसे स पड आ है तबसे ह कए
ए है ” रा ल ने तैश म कहा।
“बूढ़ा रट के लए भी टोक दे गा। आज पाँच तारीख हो गई।” मने याद करते ए
कहा।
“हम नह जाएँगे आज और टोकेगा तो बूढ़े को फक दगे छत से नीचे। तरबूज बन
जाएगा साला।” रा ल सचमुच ब त गु से म था।
“एक काम कर। अबक बार पैसा लाने छोटू को भेज दे ।” मने कहा।
“हाँ, ठ क रहेगा। एक बार दे ख लेगा तो हमारा टं टा ख म।” रा ल ने कहा और
कचेन क तरफ बढ़ा, जहाँ छोटू पहले ही तेजी से मटर के दाने छ ल रहा था।
“ या बात है। बड़ी तेजी लगा रखी है तूने ” रा ल ने कचेन से चीनी के ड बे म से
चीनी खाते ए कहा।
“हाँ भैया जी, आज इं डया-पा क तान मैच है ना।” छोटू ने तेजी से मटर छ लते ए
कहा।
“दे खनी है मैच ” रा ल ने पूछा।
“हाँ भैया जी।” छोटू ने कहा।
“अ छा, एक काम क रयो। घर चला जा। रा ते म पा लका बाजार म शव
इले ॉ न स वाले के पास मेरा एक कागज आया होगा, वो ले ले और कल लेता अइयो।”
रा ल ने फर चीनी फाँकते ए कहा।
“मतलब आज छु ” छोटू ने खुशी से कहा।
“हाँ छु ।” रा ल ने फर चीनी नकालते ए कहा।
“और खाना भइया जी ” छोटू ने मटर छोड़ते ए कहा।
“हम मैगी बना लगे ” रा ल ने कहा।
“ठ क है भैया जी।” कहते ए छोटू ने हाथ धोए और इससे पहले क रा ल का
वचार बदल जाए वो नकल गया। उसके जाते ही रा ल ने कचेन से बाहर नकलकर
कहा, “चलो एक काम तो आ। सुनो झाड़ी, अब तुम भी आगे क पढ़ाई बटु क के साथ
करो और हम केट के बहाने नीचे जाएँगे। ब त दन आ दे खे ए।” रा ल ने कहा।
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“ या केट ” मने पूछा।
“नह बे, केट कौन दे खेगा। हमको तो केट व सलेट दे खनी ह अपनी। दे खो, अभी
कैसे बुढ़ौती को क था लगाते ह।” रा ल ने आँख मारते ए कहा और हम दोन बाहर
नकल गए। बाहर नकलते ही रा ल ने बटु क शमा से कहा-
“अंकल, म ध लाने जा रहा ँ आपके लए भी कुछ लाऊँ या ”
“नीचे पूछता जईयो जे कुछ ज रत हो तो। वैसे भीमपाल से ध लया कर। जे
पैकेट के ध से जवानी खराब हो जावेगी।” बटु क शमा ने हँसते ए कहा। मुझे रा ल के
दमाग क दाद दे नी पड़ी। उसने पहले ही यह सोच लया था क बटु क शमा ऐसी ही कुछ
बात कहगे और वही आ।
ले कन पहले से सोची सारी बात हो ही जात तो इंसान, भगवान न हो जाता।
यार क सबसे खूबसूरत बात उसके साथ आने वाली परेशा नयाँ ह, अड़ंगे ह,
मु कल, मुसीबत ह। सब परेशा नयाँ कमोबेश एक होते ए भी ेम कहा नय म अलग-
अलग आती ह और यही कसी भी कहानी को अलहदा अनुभव दे ती ह। जतनी ज द
रा ल को प र ध से मलने क थी, उतनी ही ता प र ध को भी रही होगी। इस लए
उसने अपनी तरफ से यह सोचा क वह पापा को केट के बहाने नीचे बुला लेगी। इसी
बहाने खुद उसे छत पर जाने का थोड़ा समय तो मल जाएगा। यही सोच कर उसने नीचे से
ही छत क जा नब आवाज द ,
“पापा, केट आने को है। इं डया टॉस जीत गई।”
बटु क शमा ने जैसे ही यह सुना; वो उछल पड़े। उ ह ने खड़े होते ए कहा-
“बेटे आज तो इं डया-पा क तान मैच है। म तो भूल ही गया था। चला चल। साथ म
दे खते ह।”
“नह अंकल, मुझे पढ़ना है। आप दे ख ली जए।” मने जान छु ड़ानी चाही।
“अरे दो-तीन घंटे क तो बात है। आजकल ये बीस ओवर वाले मैच बड़े अ छे हो
गए ह। तू भी चल। सबेरे से पढ़ते-पढ़ते थक गया होगा।” बटु क शमा ने कहा।
सच कहते ह, बेकार आदमी के पास सबसे अ धक काम होता है। म उनके साथ
चलने और रा ल क बद क मती पर हाथ मलने के अलावा कुछ नह कर सकता था।
***

रा ल जब ध लेकर बटु क शमा के घर म बेधड़क घुसा तो मुझे फर हँसी आ गई।


एक हाथ म पॉलीबैग और सरे हाथ म च स लए घुसते ही उसके चेहरे क रंगत उड़ गई।
हम चाय दे ने आई प र ध ने भी चेहरे के भाव से ही अपना सर पीट लया। रा ल अभी
दोन हाथ म सामान लए खड़ा ही था क बटु क शमा ने आवाज द -
“अरे आजा आजा। तू भी बैठ। नहा के तो आया ह ना ”
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“सॉरी ” रा ल ने अचरज से कहा ही था क प र ध बीच म बोल पड़ी-
“Papa Please stop your nonsense superstitions ” प र ध ने
बीच म ही कहा। “ये पापा का टोटका है। उनके हसाब से बना नहाए केट दे खने पर
इं डया हार जाती है।” प र ध ने बटु क शमा क गलती ढकने क को शश क ।
“अंकल ड ट वरी। म नहाकर आया ँ और ये तो अड् वा स म कल से ही नहाकर
बैठा है।” रा ल ने छछला मजाक कया; जस पर बटु क शमा को तो या, मुझे भी हँसी
नह आई। रा ल यह कहकर खाली पड़ी उस कुस पर बैठने लगा जहाँ से कचेन म काम
करती प र ध साफ दखती।
“वहाँ नह , वहाँ 15 ओवर के बाद बैठना। अभी उस जगह बैठ।” कहकर बटु क
शमा ने रा ल को सोफा पर ठ क मेरे बगल म बैठने को कहा। उधर प र ध इशार म ही
अपने पता के हरकत से आ जज हो रही थी। बटु क शमा को न कोई फक पड़ना था; न
पड़ा। उनका बोलना जारी रहा।
“पा क तान से कोई स पैथी वगैरह तो नह है ” बटु क शमा ने फर गोली दागी।
“नह अंकल, कुछ खास नह ।” रा ल ने कहा।
“वैसे ये स पैथी रखने लायक ह भी नह । जया-उल-हक ने जतना बेड़ा गक कया
उतना कसी और ने नह कया।” बटु क शमा ने सोफा पर पसरते ए कहा।
“ले कन अंकल, मुझे लगता है इंजमाम-उल-हक यादा बेहतर लेयर था। उसने
यादा बेड़ा गक कया।” रा ल ने ान बघारा।
“ जया-उल-हक पा क तान का रे सडट था छोरे।” बटु क शमा ने एक हा या पद
रा ल पर डालते ए कहा। रा ल थोड़ा झप गया। उसने मेरी ओर मुँह कया और धीरे
से कहा-
“झाड़ी इंजमाम-उल-हक अफगा न तान से गरा था या वो पा क तान का
रे सडट नह था ” रा ल ने आ य से पूछा।
“बटु क रे सडट क नह , े सडट क बात कर रहा है।” मने ब त धीमी आवाज म
कहा। मेरे कहते ही रा ल हँसी और बेचारगी के बीच झूलता रहा। थोड़ी दे र बार संयत
होकर बोला-
“ये ससुर नह ; असुर है झाड़ी।”
“चुपचाप केट दे खो।” मने भी दबी जुबान से हँसी रोकते ए जवाब दया।
प र ध को केट म च नह थी। उसे रा ल म च थी और वह रा ल क च
जानती थी। कॉफ और कुक ज। वह उसी क तैया रय म लगी थी। हम दोन चुपचाप
बैठकर केट दे ख रहे थे। ओपेनस ज पर आ चुके थे और आते ही पा क तानी
ओपेनर ने एक अजीब शॉट खेला जसे दे खते ही मेरे मुँह से नकला-
“इनोव टव शॉट ”

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बटु क शमा भी कहाँ मानने वाले थे। केट के पुराने मरीज थे। उ ह ने झट से कहा,
“इनोवेशन तो गुंड पा व नाथ ने कया था। गुंड पा व नाथ का नाम भी सुना है ”
उ ह ने गदन घुमाकर रा ल क ओर दे खते ए पूछा।
“जी अंकल, साइं ट ट थे।” रा ल अबक बार कोई गलती नह करना चाहता था।
मेरे सर पकड़ने से पहले ही बटु क शमा ने सर पकड़ लया-
“बेटे, गुंड पा व नाथ और मोछगुंडम वशे रैया म अंतर है। पढ़ाई- लखाई भी
सलेबस म शा मल कर ले। तुझे तो कॉलेज जाते भी नह दे खता।” बटु क शमा ने कहा।
“वो या है न अंकल, मुझे घर पर ही इतना काम है क मेरा टाइम तो होमवक करने
म ही नकल जाता है।” रा ल ने कॉफ रखने आई प र ध को दे खते ए कहा। प र ध ने
रा ल को आँख से ही झड़क द । उसक ब लौरी आँख के बढ़ते पारे को दे खकर ही
रा ल समझ गया क अब उसे चुप हो जाना है और वह चुप हो गया। फर भी रा ल का
मन केट म लग नह रहा था। उसने कॉफ ख म क और अंततः मुझसे फुसफुसाते ए
कहा-
“बूढ़-मगज कुछ यादा ही चु मा दे रहा है झाड़ी।”
“लेते रहो।” मने हँसी दबाते ए कहा।
“कुछ करो ना बे।” रा ल ने आँख से भीख माँगी। अ सर जब रा ल के पास
उपाय क कमी हो जाती तो वो मेरे आगे ह थयार डाल दे ता था। मने भी इसक मजबूरी
समझते ए बटु क शमा का यान अपनी बात से बटाने क को शश क ।
“इसे पढ़ाई करने क या ज रत ह अंकल, ये तो व काट रहा है यहाँ।” मने
कहा।
“हाँ, बाप कह खेत काट रया होगा। जे बखत काट रया है।” बटु क शमा ने ठसक से
जवाब दया।
“नह अंकल, बस झारखंड म सरकार बनने क दे र है। इसके पापा के दो त समद
अली म न टर और इसके वारे यारे।” मने स चाई म थोड़ा मसाला मलाते ए कहा।
“ऐसे-ऐसे ब त दे खे बेटा, हमारी उ नकल गई। पढ़ाई का कोई सरा उपाय नह
है।”
“जी अंकल वो तो है ही।” मने दाल गलती न दे ख सरा उपाय ढूँ ढ़ा। मने रा ल को
दे खते ए कहा-
“भाई ध फट जाएगा। ऐसा कर, ये ले चाभी और ध तो उबाल ले।”
रा ल जैसे इसी मौके क तलाश म था। बेइ जती ब त हो चुक थी। उसने चाभी ली
और तेजी से छत क ओर चला गया।
थोड़ी ही दे र म प र ध ने बाल बाँधे, कपड़ से भरी बा ट उठाई और ‘म मी, म
कपड़े डालकर आई’ कहते ए छत क ओर चली गई।
***
***

व बीत रहा था। बटु क शमा का नलंबन कुछ और बढ़ गया था। सो, उनक
परेशानी भी जा हराना तौर पर और बढ़ गई थी। अखबार म व काटते ए उ ह इस बात
क जानकारी भी मली क झारखंड म सरकार बन चुक है। डू बता इंसान तनके म भी
सहारा खोजने लगता है। ऐसे म उ ह रा ल के पता के संबंध क याद आई होगी ऐसा
मुझे लगता है। इसी कारण एक दन उ ह ने छत पर यह बात छे ड़ द ,
“अ छा बेटे एक बात कहनी थी।”
“हाँ, अंकल क हए ना।” मने ह यूज पेपर से आ टकल काटते ए कहा।
“बेटे, वो म न टर समद अली तेरे गाम का ही है ना ” बटु क शमा ने कहा। दरअसल
उनके कहने का अथ े के एम.पी. से था।
“गाँव के नह अंकल। हमारे ए रया से ही आते ह।” मने कहा।
“और जे तू उस दन बता रया था क इसके पापा और जे नेता क जाण-पहचाण
है।” बटु क शमा ने रा ल क तरफ इशारा करते ए पहले कही बात याद दलाई।
“ सफ जान-पहचान दोन बैग-पाइपर ड ह।” रा ल ने तैश म कहा।
“बस, फर तो उससे कह के मेरी स पशन वा पस करवा दे बेटे। तेरी बड़ी मेहरबानी
हो जावगी।” बटु क शमा ने लगभग गड़ गड़ाते ए कहा।
“अरे अंकल ऐसा न कह। रा ल ज र अपने पापा से बात करेगा।” मने वही कहा
जो मुझे उस व सूझा।
“भाई, तू अंकल को वैसे ही कोई भरोसा मत दे दे । तू जानता नह समद को। बना
चालीसा पढ़वाए कोई फाइल नह हलती उसके टे बल से। और ये तो वैसे भी स पशन का
मामला है।” रा ल ने पतंग उड़ाते ए कहा।
“तो पढ़ दगे बेटा। हनुमान चालीसा या, महामृ युंजय जाप भी करा दगे; ऐसी या
बात ई। ये तो हमारा काम ही है।” काम बनता दे ख बटु क शमा पुल कत हो गए।
“अंकल आपने उसका नाम ठ क से नह सुना। समद अली। वो हनुमान चालीसा सुन
के या करगे। हनुमान चालीसा का मतलब है-चालीस हजार पए।” मने बात साफ क ।
“चालीस हजार चालीस हजार पये भला हम लोग के पास कहाँ से आएँगे बेटे
जी ” बटु क शमा ने ख से नपोर द ।
“कुछ-न-कुछ तो करना पड़ेगा अंकल। वना वो आदमी ऐसे नह मानेगा।” रा ल ने
पतंग पर यान लगाए ए ही कहा।
“हाँ, जरा यान से दे ख बेटे। कोई रा ता नकल आवे। लोगबाग भी पूछने लगे ह क
शमा या बात है, छु लंबी हो गई अबक बार। तू तो जानता ही है क कॉलोनी म कतनी

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इ जत है तेरे अंकल क ” कहते ए बटु क शमा नीचे उतर गए। उनके जाते ही रा ल ने
पतंग क फरक मुझे दे ते ए कहा-
“दे खे ना, अभी भी ससुर के अकाउंट म 13 लाख पया पड़ा आ है और बूढ़ा 40
हजार पया के लए दाँत चयार रहा है। जब क बात नौकरी क है।”
“तो तुमको भी या ज रत पड़ी थी बुढ़ौती को डराने क । अंकल के कहने पर
समद तो वैसे भी कर दे गा; फर पैसे क बात करने क या ज रत थी ” मने जैसे-तैसे
पतंग संभालते ए कहा।
“ य नह कर ये साला एक भी पैसा रट का छोड़ा था याद है ना क या कहा था
उस व ऊपर से साल भर का एडवांस चा हए। हमको अब यक न है ये साला प का
कसी व जले स केस म स पड आ है।” रा ल ने तजनी दखाते ए कहा।
“छोड़ो ये सब, और काम कराओ ससुर का। उसके गुड-बुक म आने का यही मौका
है।”
मने पतंग समेटना शु कर दया था।
“हम कुछ और सोच रहे ह झाड़ी।” रा ल ने कहा।
“हम जानते थे। बना कुछ सोचे तुम पैसे क बात कर ही नह सकता है। अब
बको ” मने कहा।
“बटु क ए जा मनेशन डपाटमे ट म है। सही बात ” रा ल ने कहा।
“सही बात।” मने हामी भरी।
“और पैसा वो दे गा नह । सही बात ” रा ल ने फर कहा।
“सही बात।” मने फर हामी भरी।
“तो पैसे के बदले अपनी यू नव सट से एक ड लोमा दे दे ।” रा ल ने चमकती आँख
से कहा।
“ कतना फज वाड़ा करेगा पं डत ” मने सर पकड़ते ए कहा।
“फज कहाँ से जब वो उसी डपाटमे ट म है। एड मशन से लेकर रज ट तक म
उसक दखल है तो ड लोमा फज कहाँ से आ बैक डेट म एं कर के ड लोमा दे दे ।”
रा ल ने पूरी बात कही।
“कौन-सा ड लोमा ” मने पूछा।
“हमको कौन-सा पता है तुम बोलो।” रा ल ने कहा।
“हमको नह चा हए फज ड लोमा। तुम अपना दे ख लो। वैसे भी मेरा सीडीएस का
ला ट एटे ट है। कह कसी फज वाड़े म आ गए तो गई लाइफ।” मने अपना प ला
झाड़ा।
“डरते ब त हो तुम झाड़ी और हमको भी डरा दे ते हो साले। ठ क है बात कर लगे
पापा से। अब छोड़ो ये सब और शायरी सुनाओ।” रा ल ने लेटते ए कहा।
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“तुम मुखा तब भी हो करीब भी हो
तुमको दे ख क तुमसे बात कर।”
मने कल ही पढ़ ई शायरी सुना द ।
“इसी लए कहते ह तुम पगलंठ हो। भाग जाएगी। प का भाग जाएगी। मतलब या
तो दे खोगे या फर बात करोगे। तीसरा काम सलेबस म है ही नह या ” कहते ए रा ल
ने कान म ईयर फोन लगा लया।
***

म का ‘ म ’ होना क मत क बात होती है मगर म का मं ी होना खुश क मती


क बात होती है। रा ल के पता दे व त म ा ऐसे ही खुश क मत थे। समद अली बचपन
के म थे और अब मं ी भी थे। मं ी जी के स चव के फोन से ही बटु क शमा के साहब क
पेशाब क गई और वह तभी आई, जब बटु क शमा बाइ जत ऑ फस आए। बटु क शमा
खुश ए और उसी शाम कॉनर वाली अ वाल वीट् स से डोडा बफ का पूरा ड बा लए
ए छत पर चढ़े । म छत पर रीज नग म सर खपा रहा था। मुझे कमरे म आने का इशारा
करते ए मेरे लाख मना करने के बावजूद वो कमरे म घुस गए।
वह गलत समय पर आए थे। आज ही नई वेबसाइट Naughty America क
खोज ई थी और खोजकता रा ल म ा पहले ही वी डयो म खोए थे। लैपटॉप का चाजर
खराब होने के कारण डे क टॉप पर फ म दे खी जा रही थी। डे कटॉप पर अमे रका, नॉट
आ जा रहा था और डे कटॉप से लगे पीकर पर ‘ले सी डाइनामाइट’ हॉट ई जा रही
थ । कमरे क चटकनी हालाँ क रा ल ने बंद क थी मगर फर घर भी तो आ खर बटु क
शमा का ही था। एक ही झटके से चटकनी अपने ू स हत बाहर आ गई और बटु क शमा
भीतर। रा ल म ा को साँप सूँघ कर गया। मेन वच र था। वह वहाँ तक प ँच नह
सकते थे। घबराहट और ज दबाजी म उ ह ने मॉ नटर का वच ऑफ कर दया। रा ल
म ा को चैन आया क बटु क शमा ने कुछ दे खा नह । रा ल म ा को अभी पूरी तरह चैन
आ पाता तब तक पीकर से ले सी डाइनामाइट क मदभरी ससका रयाँ आ । रा ल
म ा को जब तक याल आता क बंद सफ मॉ नटर आ है, क यूटर और पीकर चालू
है तब तक ले सी डाइनामाइट खेल ख म कर चुक थी। बटु क शमा कमरे से नकल चुके
थे। वह मुझे डोडा बफ क पैकेट थमाकर धीमे कदम से नीचे उतर गए।
ओ र सया, मन ब सया

ऐसा नह था क रा ल ने कॉलेज पर नजर नह गड़ाई थ । बस यह था क उसका कॉलेज


म मन ही नह लगता था। प र ध का साथ होने क वजह से वह लास भी कम आता था।
अगर वह लास आता भी तो अटडस लग जाने के बाद ऐसी हरकत करता जससे या तो
ोफेसर उसे बाहर नकाल द या फर वो खुद ही अटडस के बाद बाहर चला जाए। उसक
इन हरकत क वजह से मने उसके साथ बैठना तक बंद कर दया था और जब म साथ
नह होता तो उसका मन वैसे भी लास म नह लगता। वह कुछ बहाने बनाकर कमरे पर
भाग जाता। इधर जस व बटु क शमा का नलंबन लंबा ख च गया; उस व लास
करना रा ल क मजबूरी बन गई थी। कमरे पर कने से अ छा था क वो लास म व
बता लेता। प र ध से मल पाना मु कल हो गया था। इसी भटकाव ने रा ल को लास
आने पर मजबूर कर दया था।
आज यूँ तो कसी तरह उसे अ रधाम पर प र ध से मलना था; मगर म उसे ज री
गे ट ले चर का हवाला दे ते ए लास ले आया था। गे ट ले चर अटड करना सचमुच
ज री था। ऐसी सूचना पहले ही दे द गई थी। ऑगनाइजेशनल बहे वयर क लास के
लए जस गे ट ले चर को बुलाया गया था वो कोई 35 साल क खूबसूरत कंस टट थ ।
बड़ी ही मोहक मु कान के साथ उ ह ने अपना प रचय दया और यह भी बताया क यूँ तो
उ ह अटडस लेना व क फजूलखच लगता है मगर फर भी वो कॉलेज के नयमानुसार
अटडस लेने को मजबूर ह। लास क लड़ कय का रोल नंबर शु आत म था। लास म
15 लड़ कयाँ थ । लड़ कय म अं तम रोल नंबर 15 था जो म हका का था। म हका
रायजादा। पेड सीट या मैनेजमट कोटे से होने के कारण उसका एड मशन आधे सेमे टर
बीत जाने के बाद आ था; इसी कारण उसका रोल नंबर लड़ कय म सबसे आ खर म
था। उसके बाद का पहला रोल नंबर यानी 16 मेरा था और 17 रा ल का था।
ऑगनाइजेशनल बहे वयर के रोल नंबर क पुकार शु ईः
15 - “ ेजट मैम।” म हका ने कहा।
16 - “ ेजट मैम।” मने कहा।
17 - “आई लव यू मैम।” रा ल क धीमे से आवाज आई। यह सुनकर पूरी लास
हँस पड़ी। म हका क हँसी सबने कुछ दे र तक सुनी। ट चर चूँ क ऑगनाइजेशनल
बहे वयर पढ़ाने आई थ इस लए उ ह ने भी बस मु कुराते ए अटडस लेना जारी रखा।
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अटडस ख म होने के बाद जब उ ह ने पढ़ाने के लए सर उठाया तो दे खा क रा ल
मेरे कान म फुसफुसाते ए उनक साड़ी का दाम लगा रहा है। म हालाँ क उनक ओर
दे खते ए यह जताने क को शश कर रहा था क म बात नह कर रहा; ले कन फर भी
उ ह ने पूछ दया-
“आप लोग या बात कर रहे ह ”
“मैम, ये टं च क मी नग पूछ रहा है।” रा ल ने खड़े होकर बड़ी ढठाई से कहा।
अबक लास हँसना भूल कर सकते म आ गई। बस म हका क जबरन कती ई हँसी
सुनाई पड़ती रही।
“Can you please leave the class ” ऑगनाइजेशनल बहे वयर क
ट चर ने अब भी काफ शालीनता से कहा।
“बट मैम, मेरी बात तो सु नए। मुझे तो टं च क मी नग पता है। इसे नह पता, बाहर
तो इसे जाना चा हए।” रा ल ने मेरी तरफ इशारा करते ए कहा। रा ल क इस बात पर
अब मुझे भी हँसी आ गई मने आँख मलने के बहाने से अपना चेहरा छु पा लया।
“Just leave the class. ” ट चर अबक दफा अपना आपा खो बैठ ।
“OK Maam . ान का कोई मान ही नह है।” फुसफुसाते ए रा ल धीमे से
बाहर नकल गया। म समझ गया क अटडस बन जाने के बाद उसे लास म काट रहा
है। उसके बाहर जाते व भी मने गौर कया क म हका क नजर दरवाजे तक उसका
पीछा करती रह । रा ल ने भी आज इस बात को गौर कया और मेरे घर प ँचते ही मुझसे
पूछ पड़ा।
“झाड़ी, ये सारे लास क फ स रोल नंबर 15 ही भरी है या ”
“रोल नंबर 15 कौन बे ”
म जानते ए भी अनजान रहा।
“अब नाम तो तुम बताओगे। तु ह नॉथ पोल लगे हो उसके। सारे ोफेसर भी उसी
को दे खकर पढ़ाते ह। अरे वही, कल जसके साथ गोलग पा मुँह म ले रहे थे।” रा ल ने
ज दबाजी म कहा।
“म हका रायजादा ” मने पूछा।
“हाँ हाँ, वही। बताओ तो द ली म नाम से ही पैसा टपकता है। रायजादा,
सघा नया, अंसल, अहलावत, खुराना। और हमारे यहाँ झा, म ा, महतो, सह, राय,
स हा नाम से ही लगता है क आदमी साला पैदा ही सरकारी नौकरी के लए आ है।”
रा ल ने कहा।
“दे खना भी मत उसक तरफ। बाप उसका हाईवे अथॉ रट ज म कोई बड़ा तोप है।”
मने नसीहत द ।

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“ना ना। तुम गलत समझ रहे हो झाड़ी। हमको बाप से कौन-सा टडर लेना है। बेट
लेटर दे दे वही ब त है और अगर स नल ठ क पकड़ रहा है तो अगले सेमे टर तक वकेट
गरा दगे। तुमको या लगता है झाड़ी ” रा ल ने पूछा।
“और प र ध का या ” मने पूछा।
“वो तो म न टरी ऑफ होम अफेयस है ना झाड़ी। एक म न टरी ऑफ ए सटनल
अफेयस भी तो होता है ” रा ल ने हँसते ए बेशम से कहा।
“बुरे मरोगे एक दन जब नाश मनुज पर छाता है पहले ववेक मर जाता है।” मेरा
सीधा-सा जवाब था।
“ले कन झाड़ी, जब नाश मनुज पर छाता है तो मनुज को मरना चा हए ना ववेक
य मर जाता है भाई ” बुदबुदाते ए रा ल ने करवट बदल ली।
***

सेकड सेमे टर क परी ा कल से शु होने वाली थी। परी ा के अं तम ण क


घबराहट म म सबकुछ भूलता जा रहा था। पहले परी ा के व रा ल साथ होता था तो
एक संबल रहता था और हमदोन साथ मलकर ही पढ़ लेते थे; ले कन प र ध के बाद से
रा ल के पास पढ़ने के लए व नह था। परी ा के ठ क पहले वाले दन भी वो प र ध
के साथ बाहर ही था। म जैसे-तैसे अपना सलेबस पूरा कर अब सोने क तैयारी कर रहा
था क रा ल कमरे म दा खल आ।
“झाड़ी, कल कौन-सा पेपर है भाई” रा ल ने कमरे म घुसते ही पूछा।
“पं डत, जब तुमको ये नह मालूम है क कल पेपर कौन-सा है तो पेपर या दोगे
बे ” मने उसक ओर दे खकर जरा च लाते ए ही कहा।
“झाड़ी, राय नह पूछे ह; उपाय पूछे ह। उपाय बताओ।” रा ल ने कहा।
“तो उपाय ये है क चादर ओढ़ो और कल का पेपर छोड़ो।” मने उकता कर कहा।
“ये तो भागना आ ना पं डत, अनुपम खेर पता नह कस फ म म कहते थे क
को शश करने वाल क हार नह होती।” रा ल ने कहा।
“तो करो को शश। और सुबह से कहाँ गायब थे साले ध भी फट गया।” मने
गु साते ए कहा।
“अरे बटु क क बेट का ए जाम था ना। होम साइंस का ै टकल।” रा ल ने खाना
नकालते ए कहा।
“तो ” मने पूछा।
“तो भाई, उसको कुछ ज रत पड़ जाता तो और पड़ जाता या; पड़ गया ही था
गाजर का हलवा बना रही थी बेचारी। वहाँ भी ध फट गया था। वो तो हम वहाँ पर थे।
ज द से ले आए; नह तो फेल हो जाती।” रा ल ने चता जताते ए कहा।
“औ ो ॉ ओ े ै े े ो ॉ ” े े
“और तुम तो टॉप कर जाओगे कल मैनेजे रयल इकोनॉ म स म ” मने अब मु े क
बात बताई।
“कल मैनेजे रयल इकोनॉ म स का पेपर है ” रा ल के खाने का कौर मुँह म जाने
से पहले ही क गया
“नाह, होम साइंस ” मने चुहल क ।
“अबे झाड़ी, इ पोटट वे न बता दो बे। रात भर म रट लगे यार ” रा ल ने खाना
छोड़कर उठते ए म त क ।
“सेमे टर भर तो पढ़ा नह । अब रात भर म पढ़ के या न कयाएगा चलो सोने दो
हमको।” कहकर मने चादर तान ली।
“तुमसे पम शन लेकर यार कए थे झाड़ी। या इसी दन के लए क तुम मुँह
घुमाकर सो जाओ उधर बटु क क बेट भी होम साइंस म डॉ टरी कर रही है। उसको भी
टॉप करना है। पता नह द ली म एक साथ कतना आदमी टॉप करता है। ठ क नह
कया झाड़ी ”
रा ल का नाटक तब तक चालू रहा जब तक म सो नह गया। परी ा के पहले वाली
रात घबराहट और ता के कारण वैसे भी न द नह आती। तमाम रात करवट बदलने के
बाद जब रात के लगभग तीन बजे म बाथ म जाने के लए उठा तो ह का-ब का रह
गया। मने दे खा क लप क रोशनी म रा ल माइ ो कोप से भी न दे खे जा सकने वाली
लखावट म चट बना रहा है।
“ या कर रहा है बे ” मने आँख म चते ए पूछा।
“ये पास क आस है झाड़ी। जब दल और दो त दोन धोखा दे दे ते ह ना तो दमाग
ही साथ दे ता है।” रा ल ने बना सर उठाए ही लखते ए कहा।
“मरोगे साले ” मने कहा और फर सो गया।
सुबह ठ क पाँच बजे अलाम क आवाज से जब मेरी न द खुली तो मने दे खा क
रा ल तब भी जागकर फर बनाने म त लीन है।
“अभी पुराण ख म नह आ तु हारा ” मने ज हाई लेते ए कहा।
“बस भाई हो गया।” रा ल ने लखते ए ही कहा।
“फरबाजी कर लोगे। पहले का कोई ए पी रएंस तो है नह ” मने पूछा।
“हम या नह कर सकते ह झाड़ी ” रा ल ने पूरी त मयता से लखते ए ही कहा।
“हाँ, ये भी है। ले कन धरा गए तो याद रखना, हम तुमको नह पहचानते ह।” मने
पहले ही मसला साफ कर दया।
“जानते ह झाड़ी। वो तो उस दन मूलचंद वाले ै फक पर ही लयर हो गया था
जब तुम खाक दे ख के हमको 200 मीटर र ही उतार दए थे। बाद म पता चला क वो

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भी साला ै फक वाला नह था। होमगाड का जवान था।” रा ल ने अपना काम करते ए
कहा।
“हाँ तो आज भी कोई उ मीद मत रखना।” मने कहा और कताब खोलकर बैठ
गया।
***

परी ा ठ क आठ बजे शु होनी थी। मैनेजे रयल इकोनो म स समझ से बाहर का


वषय था। इस लए रा ते म दखने वाले हर प थर, मूरत, डीह इ या द को णाम करते हम
दोन कॉलेज प ँचे। कॉलेज प ँच कर म बाइक से उतरते ही अपने नोट् स लेकर उलटने-
पलटने लगा। रा ल भी गाड़ी पा कग म लगाकर मेरे पास आ गया। ठं ड के कारण अपने
दोन हाथ के बीच फूँक मारते ए उसने कहा-
“अब तो इ पोटट वे न बता दो झाड़ी।”
“तुमको या बताना है। पूरा एम. वी. शु ला तो तु हारी जेब म है।” मने मनेजे रयल
इकोनो म स क कताब के बारे म कहा।
“पूरा कताब नह लखना है झाड़ी, नह तो तुमसे थोड़ी ना पूछते। पाँच तो बता
दो।” रा ल ने हाथ जोड़ते ए कहा।
“चाटो मत ” कहकर मने खुद को नोट् स म उलझा लया।
“जाओ झाड़ी, ये ा हण तुमको शाप दे ता है क तुम डमांड एंड स लाई का ाफ
भूल जाओगे ” रा ल ने शाप दे ने क मु ा बनाकर कहा। परी ा से ठ क पहले कोई ऐसी
बात कह दे तो आप कतने भी तैयार य ना ह ; आ म व ास हल ही जाता है।
“इस शाप से मु क कोई यु महाराज।” मने डमांड एंड स लाई का ाफ
पलटते ए कहा।
“बस ए जा मनर से उठकर कहना क सर वे न नंबर फलाना गलत है। तुम शाप
मु हो जाओगे।” रा ल ने कहा।
“साले पूरा टाइम खा गए। चलो, लास म एंटर करने का बेल हो गया।” मने
गु साते ए कहा।
***

कमरे म घुसते ही रा ल अपना रोल नंबर ढूँ ढ़ कर बैठ गया और अपने पॉकेट से पुज
नकालकर डे क पर ब त ही महीन लखने लगा। लास के सारे लड़के-लड़ कयाँ उसे
अवाक् होकर दे ख रहे थे; मगर वो उन सबसे लापरवाह डे क पर लखने म लगा रहा। उसे
ऐसी अजीब हरकत करते दे ख जब मुझसे भी नह रहा गया तो मने कहा-

“ ै ँ े ”
“ या कर रहा है पं डत। सब हँस रहे ह यार ”
“तो हँसने दे ना भाई। ला ट मनट टशन री लव हो जाएगा सबका और तू भी नोट् स
दे ख ले। मुझे ड टब मत कर।” रा ल ने सर उठाए बगैर ही कहा।
रा ल क बात सही थी। म अपने री वजन म लग गया। लगभग पाँच मनट ही बीते
ह गे क रा ल फर को डे क पर जहाँ भी जगह मली; लखकर फा रग हो गया। दोन
हाथ क पाँच उँग लय को फँसाकर चटकाया और एक लंबी अँगड़ाई ली।
रा ल को अनदे खा कर मने नोट् स पर नजर गड़ा ; मगर तब तक दे र हो चुक थी।
ट चर आ चुके थे। कॉपी और सी ड वे न पेपर उ ह ने मेज पर रखा और अपनी घड़ी
दे खते ए बोले-
“Please leave your books, notebooks etc outside the
class. ”
उनके इतना कहते ही हम सब अपने-अपने नोट् स और बु स लास के बाहर रखने
लगे। तभी रा ल उठा और उसने ट चर से कहा-
“सर, मेरे डे क पर कुछ-कुछ लखा आ है। लीज मेरी डे क चज कर द जए।”
“जे टलमैन, डे क आपके रोल नंबर के मुता बक लगाया गया है। वह चज नह
कया जा सकता; वैसे भी साल भर आप लोग डे क ा फट ही तो करते ह। ज ट इ नोर
इट एंड सट डाउन। और हाँ, अगर कोई नोट् स है तो पहले वह बाहर रख आइए।”
इन व जलेटर ने कहा।
“नह सर। मेरे पास कुछ नह है।” रा ल ने कहा।
“OK. Sit down then. I have to distribute the paper .”
इं व जलेटर ने कहा।
“ओके सर।” रा ल ने बैठते ए मुझे आँख मारी। उसका काम हो गया था। वह
जानता था क ट चर डे क नह बदलगे। इस तरह डे क बदलने को कहकर वह इस बात
से भी न त हो गया क अगर परी ा दे ते व ट चर ने डे क पर लखा दे ख लया तो
या होगा मुझे उसके दमाग का कायल होना पड़ा।
परी ा शु हो गई थी। मुझे आठ सवाल म से बमु कल सफ चार ही आ रहे थे।
मने यह सोचकर लखना शु कया क शायद चार सवाल करते-करते पाँचवा याद आ
जाए। ए जा मनेशन हॉल म मनट क सुई सेकड क तरह चलने लगती है और इसका पता
तब लगता है जब आप सरी बेल के लगते-लगते भी तीसरे सवाल म अटके ह । सरी
बेल लगते ही कमरे म खलबली मच गई। म ज दबाजी म तीसरा सवाल नपटा रहा था
तभी रा ल क आवाज आई-
“Sir, can I attempt all eight questions ”

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रा ल क यह बात सुनकर ट चर समेत पूरी लास उसे दे खने लगी। कुछ के हँसने
क फुसफुसाती आवाज भी सुनाई द । म हका जो उसके ठ क तरछे बैठ थी; दे र तक
उसे दे खती रह गई।
“No. You have to attempt only five out of eight .” इन व जलेटर
ने प दे खते ए कहा।
“ले कन सर मेरे पास टाइम है और मुझे सब आता है। म सब बना दे ता ँ आप कोई
भी पाँच चेक कर ली जएगा।” रा ल जारी रहा।
“शटअप या तो अपनी कॉपी जमा करके बाहर जाइए या फर बैठकर आंसस
रीवाइज क जए।” ट चर ने डाँटते ए कहा।
“बताइये तो, मे रट क कोई े डट ही नह है।” फुसफुसाते ए रा ल अपनी सीट
पर बैठ गया। उसने मेरी ओर दे खते ए फर आँख मारी। मुझे पता था क रा ल ट चर से
भी मौज ले रहा है। ले कन रा ल को दे खते ही मुझे मेरे पाँचव सवाल का जवाब मल
गया। मने उठकर ट चर से कहा-
“Sir, I think question number 3 is wrong .” इससे पहले क ट चर
कुछ कहता रा ल ने टाँग अड़ाई, “सारे वे न सही ह।”
“आपसे कसी ने पूछा ” ट चर ने गु साते ए कहा।
“बट सर, मुझे सारे सवाल आते ह।” रा ल ने फर खचाई क ।
“Shut up and don’t disturb others .” ट चर ने रा ल से कहा और
फर मुझसे मुखा तब आ, “म कंसन ट चर को कॉल कर लेता ँ; वो आपका डाउट
लयर कर दगे।”
“ओके सर।” मने कहा और बैठ गया। म अभी लखने के लए कलम उठा ही रहा
था क रा ल क आवाज ने मेरा यान उधर ख च लया।
“Sir, may I go to toilet .” रा ल ने कहा।
“आप पेपर दे कर घर भी जा सकते ह।” ट चर ने खीझते ए कहा।
“नो सर। अभी री वजन बाक है।” रा ल ने कहा और टॉयलेट चला गया। टॉयलेट
से आते समय उसने बस मेरी आँख म दे खा। म समझ गया था क मेरे पाँचव सवाल का
जवाब रा ल टॉयलेट म छोड़ आया है। मने अगले दस मनट म चौथा सवाल पूरा कया
और ट चर से पर मशन लेकर टॉयलेट गया। रा ल ने टॉयलेट के लश टक पर जमी धूल
पर ही उँग लय से डमांड और स लाई कव के ाफ बनाकर उसे संकेत म समझा भी
दया था। यह सवाल वैसे तो ब त आसान था मगर परी ा के दबाव म आसान सवाल ही
छू ट जाते ह। आ खरी सवाल को बुरी तरह जेहन म रखते और संकेत को रटते ए जैसे ही
ए जा मनेशन हॉल म दा खल आ; म कुछ दे खकर भौचक रह गया। मने दे खा क रा ल
के ठ क पीछे बैठ म हका ने एक चट या तो नीचे गरा द थी या लखने के दौरान उससे
गर गई थी। कागज का वह टु कड़ा अब म हका से थोड़ी र और रा ल से थोड़ा नजद क
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था। यह बलकुल उसी जगह गरा था जहाँ इन व जलेटर च कर लगा रहे थे। पीछे मुड़ते
ही ट चर क नजर उस कागज पर गई। ट चर ने पहले तो उस कागज को दे खते ए
म हका क ओर दे खा; ले कन कागज रा ल से नजद क थी इस लए उसने रा ल से ही
पूछा-
“What is this ”
रा ल कागज दे खते ही सारी बात समझ गया। उसने एक पल को म हका क ओर
दे खा और फर कहा-
“दे खने से तो कागज लगता है सर। बट आप पूछ रहे ह तो द जए दे खकर बताऊँ।”
रा ल क बात पर सभी हँस पड़े।
ट चर ने गु से से तमतमाते ए कहा, “शटअप ए जाम म ची टग करते ए शम
नह आती।”
“सॉरी सर। बट, शम तो बचपन म रंभा आंट . ” रा ल ने फर कहानी शु कर
द थी।
“शट अप एंड गेट आउट ” ट चर ने अबक बार च लाते ए कहा। रा ल ने फर से
सॉरी कहा और आंसर शीट उनके टे बल पर रखकर बाहर नकल आया। मने बचे ए
समय म पाँचवा सवाल कया और फर तीसरा घंटा लगने पर ही बाहर आया। बाहर आते
ही मने रा ल को ढूँ ढ़ा जो अपने बाइक क सीट पर बैठा मेरा ही इंतजार कर रहा था। मने
जाते ही उसक पीठ पर धौल जमाते ए कहा-
“गजब याग करते हो पं डत ”
“ या हो गया भाई ” रा ल ने जानते ए भी कहा।
“तुम जानते नह हो या आ। कागज उसका था, म हका का।” मने कहा।
“जानते ह।” रा ल ने कहा।
“जानते ह मतलब साले अगर ए जाम ख म होने वाला नह होता न तो चाचा
नकाल दे ता तुमको। पूरा सेमे टर वे ट हो जाता।” मने कहा।
“वे ट नह ; इ वे ट कए ह भाई। वो दे खो चला आ रहा है मेरा इनवे टमट।” रा ल ने
म हका को आते दे खकर कहा। म हका को आते दे ख मेरे चेहरे का गु सा और जा हर हो
गया। मने अपने दोन हाथ पीछे बाँधे और म हका के ठ क उलट दे खने लगा।
“Hi guyz ” म हका ने आते ही कहा।
“Hello ” रा ल ने कहा। हालां क मने उसके ीट का जवाब नह दया।
“You are daring man. But cheating in exams are not good
no. By the way I am Mahika .” म हका ने अपना हाथ आगे बढ़ाते ए कहा।
“हेलो म हका, आई एम रा ल। लासेज नह करता ँ इस लए तुम मेरा नाम नह
जानती होगी और ये मुझसे जलता है इस लए इसने तु ह मेरा नाम नह बताया होगा।”
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रा ल ने मेरी ओर इशारा करते ए कहा।
“No, not like that. Infact I know you .” म हका ने कहा।
“Great तो फर कॉफ पीने चल ” रा ल ने सीधा कहा।
“Excuse me ” म हका ने चेहरे पर बखरे बाल को कान के पीछे करते ए
आ य से कहा।
“Just kidding Don’t worry . म दन म कॉफ नह पीता।” रा ल ने
मामला बगड़ता दे खकर कहा।
“और म रात म कॉफ नह पीती।” म हका ने शोखी से कहा।
“ फर तो जम जाएगी अपनी।” रा ल ने म हका क आँख म एकटक दे खते ए
कहा।
“These exams are so exhausting na ” म हका ने रा ल को दे खते
ए बात बदली।
“हाँ।” रा ल ने छोट -सी हामी भरी।
“अ छा हम सारे ड् स ए जा स के बाद एक छोट -सी पाट कर रहे ह। Why
don’t both of you join us ” म हका ने कसी छोट ब ची के से उ साह से
कहा।
“नह । मेरा तो टकट है घर जाने का।” मने जान छु ड़ाई।
“ओह And you Rahul तु ह भी कह जाना है ” म हका ने रा ल से पूछा।
“हाँ।” रा ल ने फौरन कहा।
“कहाँ ” म हका ने उदास आवाज म पूछा।
“जहाँ तुम ले चलो ” रा ल ने उसक तजनी म अपनी तजनी फँसाते ए कहा।
“दै ट्स लाइक अ मैन ओके, म हग आउट क फम होते ही तुझे बताती ँ।” म हका
ने रा ल से कहा।
“ओके एंड 9810 तक तो म जानता ँ आगे के नंबर भी पता कर लूँ या फर ”
रा ल ने इरादतन कहा।
“वेरी फनी ” म हका ने हँसते ए कहा और रा ल को अपना मोबाइल नंबर लखवा
दया।
“बाय म हका।” म हका को न जाते दे खकर मने ही कहा।
“बाय।” बुझे मन से म हका ने कहा और रा ल को अँगठ ू े और छोट उँगली के इशारे
से फोन करने का इशारा करते ए चली गई।
“इनवे टमट ठ क है ना मेरा झाड़ी ” रा ल ने चलते ए कहा।

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“गजब क मत पाए हो बेटा बताओ, लड़ कयाँ इशारा समझ के नंबर दे दे ती ह
तुमको। हम तो साला कोई सर वती पूजा का चंदा न दे ।” मने क मत को कोसा।
“झाड़ी, इसी बात पर कोई तड़पता आ शायरी सुना दो यार।” रा ल ने कहा।
“वो क ल भी करते ह तो चचा नह होता।
हम आह भी भरते ह तो हो जाते ह बदनाम।”
“हाँ, तो अब गलत तरीके से आह-ऊह भरोगे तो बदनामी तो होगा ही। वैसे भी आह
भरने का काम तु हारा थोड़े है। उसका है।” रा ल ने फर हँसते ए एक तीर से दो शकार
कए। म उसक बात पर खीझकर हँसने के सवा कुछ न कर सका।
सुना है तेरी मह फल म रतजगा है

परी ा ख म हो गई थी। द ली भी अब हम अपनाने लगी थी। अब हम मे ो, डीट सी,


छोले कु चे, राजमा चावल, जनपथ, लाजपतनगर, काके, करी स को अपना कहने म
खुशी महसूस होती थी। इस शहर ने कभी हम बाहर का एहसास नह कराया और अब हम
भी इसे अपनाने लगे थे। शहर हम अपनी ज रत के हसाब से ढाल रहा था और हम भी
कसी बदलाव को लेकर सशं कत नह थे। परी ा के दन म ही रा ल क म हका से
चै टग बढ़ गई थी। यह अ सर सलेबस से शु होकर रात को आउट ऑफ सलेबस हो
जाती थ । यह बात म इस लए भी जानता था य क प र ध को रा ल का मोबाइल चेक
करने क आदत थी, इस लए रा ल म हका से चैट और बात मेरे मोबाइल से करता था।
उस दन म हका ने हग आउट का लान क फम करने के लए कहा था; इस लए रा ल
उसके फोन का इंतजार ही कर रहा था-
“एक तो द ली म इतना क टमर केयर का कॉल आता है ना क मन करता है बटु क
क बेट और बा कय क बेट को लेकर हमालय पर चले जाएँ। ये कॉल भी दे खना वही
होगा।” कहते ए रा ल ने मोबाइल का हरा बटन दबा दया। अब क बार मोबाइल पीकर
पर नह था; इस लए म केवल रा ल क बात ही सुन पाया।
“हैलो ”
“हाँ कौन ”
“ यो त ”
“कौन यो त। यो त शाह ”
“अ छा, यो त झा।”
“जी। मेरी एक ड का नाम भी यो त था; मुझे लगा वही।”
“ या, े डट काड यो त अब तु ह या बताऊँ। पुरानी वाली यो त दो काड
टकाकर चली गई। अब फोन भी नह उठाती। तुमने अपना नाम या बताया यो त झा।
मतलब मै थल हो ”
“ ेट। म भी मै थल ँ।”
“अ छा तु हारी शाद हो गई ”

“ े े ै े ी ी ई”
“नह , ेट मेरा मतलब है, मेरी भी नह ई।”
“तु हारा कोई वॉय ड है ”
“ ेट मेरा भी नह है।”
“नह नह । आजकल लड़क के भी वॉय ड होते है ”
“हाँ हाँ दे दो। े डट काड दे दो।”
“ या, मेरा ऑ यूपेशन। वो या होता है यो त ”
“अ छा, ऑ युपेशन मतलब, या करता ँ। ऑटो चलाता ँ।”
“ या, ऑटो वाल को नह दोगी। य नह दोगी। या हमारी भावनाएँ नह ह या
हमम संभावनाएं नह ह हम यार नह कर सकते या हम े डट काड नह रख
सकते या हम इंसान नह ह ” रा ल के इतना कहते-कहते शायद फोन उधर से कट
गया। मुझे रा ल क बात सुनकर हँसी आ गई।
“ कससे कुंडली मला रहा था पं डत ” मने पूछा।
“बेचारी थी। े डट काड दे रही थी। टारगेट पूरा नह आ होगा बेचारी का।” रा ल
ने फोन नंबर सेव करते ए कहा।
“अबे, े डट काडवा लय को तो छोड़ दया करो।” मने अचरज से कहा।
“ य छोड़ द वो हमको छोड़ती है पता नह कहाँ से नंबर नकाली, ऑटो वाला
सुनी तो फोन रख द । बताओ तो यार यार क कोई इ जत ही नह है।” रा ल ने एक
साँस म कहा।
“म हका का फोन आया ” मने पूछा।
“कहाँ आया बे उसी च कर म तो बटु क क बेट से भी झूठ बोले, और फोन भी
नह आया।” रा ल अभी थोड़ी दे र तक चुप बैठा ही था क मेरे फोन पर एक मैसेज
आया। मने दे खा तो मैसेज एक अंजान नंबर से था। लखा था -
“Hi .itz me, Mahika. meet me in mehrauli @ 11 pm .” मने
रा ल को पढ़कर सुना दया।
रा ल ने मैसेज पढ़ा और फर कहा, “ले कन ये मैसेज अननोन नंबर से य कया
इसने ”
“फोन म बैलस नह होगा।” मने राय द ।
“बाप इनके तोप ह और मोबाइल म बैलस नह ज र सरी बात है। खैर, हमको
या तुम तो बस परमीशन दो झाड़ी।” रा ल ने कहा।
“जाओ। वैसे भी 11 बजे रात को कोई मदद के लए पुकारे तो ना नह कहना
चा हए। ले कन जाएगा कैसे तेरे पास पाट वयर है ” मने ज री बात बताई।
“पाट वयर क या ज रत ” रा ल ने पूछा।

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“अरे म , रात को यारह बजे नाइट लब जाओगे तो या ऐसे ही ऊँट क तरह
जाओगे ”
“है ना फॉमल। हाइट शट, लैक पै ट; और कैसे पता क नाइट लब जाना ही
जाना है। होटल नाइट मून भी तो हो सकता है। फॉमल ही ठ क रहेगा।” रा ल ने कहा।
“बनडम लगेगा वहाँ तुम ”
“जो भी लग। एक रात के लए कपड़ा तो नह खरीदगे। और वैसे भी या पता पाट
के लए नह बुलाई हो। शायद मेरी शाद का याल दल म आया हो। अपने प पा से प पी
दलवाना हो।” रा ल ने अपने अंदाज म कहा।
“हाँ, फर हनीमून पैकेज भी ड कस कर के आना।” मने मजाक उड़ाते ए कहा।
“बताओ तो एडवांस लान करना या बुरा है भाई। लो दे खो फर मैसेज आ गया।”
रा ल ने मोबाइल दे खते ए कहा।
“अब या ” मने पूछा।
“Address changed. Now come to Bhalotia Farm House . ये
लड़क ठ क नह है झाड़ी। हम बता रहे ह। प का फँसाएगी।” रा ल ने कहा।
“तो फँस जाओ। छे छड़ साले।” मने उसक बात का मतलब समझते ए कहा।
“अ छा झाड़ी, मेरे पॉकेट म से पाँच सौ पया नकाले हो या ” रा ल ने अपनी
ज स क पॉकेट चेक करते ए कहा।
“सीधे सीधे कहो न भोसड़ी वाले क पाँच सौ पया चा हए। इ जाम तो मत दो।”
मने हँसते ए रा ल क तरफ पाँच सौ पये का एक नोट बढ़ा दया।
“नह बे कल था। आज नह है ” रा ल ने कहा।
“मोमोज म घुस गया होगा। मैडम तो जान दे ती ह मोमोज पर।” मने प र ध के बारे
म कहा।
“चल, नकलते ह।” कहते ए रा ल कमरे से बाहर नकल गया।
***

रा ल जब फाम हाउस प ँचा तो रात के लगभग बारह बज चुके थे। रा ते क


जानकारी के अभाव और ै फक के कारण वो लेट हो गया था। जैसे ही वो भालो टया
फाम हाउस के पास प ँचा, एक गाड ने उसे रोक दया। उससे बना कोई जरह कए
रा ल ने सीधे म हका को फोन लगाया।
“मुझे यहाँ से आके ले चल।” रा ल ने बना हाय-हेलो के सीधे कहा।
“ आ या ” म हका ने पूछा।

“ े ँ े े ई े े े े े
“अरे यहाँ तेरे जा ड़या भाई खड़े ह। मुझसे नेम-नंबर पूछ रहे ह। यार तू इले सट
के बल भी भरती है या ” रा ल ने चढ़ाते ए कहा।
“Oh shut up and just say . Rivero .” म हका ने रा ल को बताया।
रा ल ने वैसा ही उस गाड को बताया। गाड ने रा ल से माफ माँगी और उसे फाम-हाउस
से उ ट तरफ थोड़ी र ले गया। वीराने म लगभग दस मनट चलने के बाद उसे
खंडहरनुमा ट भ े के पास प ँचते ही र से धीमे शोर और नयॉन लाइट क आती
रोशनी दखाई द । रा ल को शक आ क वो कसी नॉमल पाट म नह ; ब क रेव पाट
म है। पास आते ही उठते- गरते नयॉन लो स, चमकते- थरकते एलइडी ट -शट,
लाइटअप ट् वायज के साथ रेव डीजे यू जक से यह न त हो गया था क वो रेव पाट म
ही है। अभी उसक आँख कसी को ढूँ ढ़ ही रही थ क एक आवाज ने उसका पीछा
कया-
“Rivero You are late ” आवाज लगाने वाली म हका ही थी।
“ओ तेरी। जहर लग रही है तू ” रा ल अबक भाषायी सीमा लाँघ चुका था।
“और तू ये या फॉमल पहनकर आ गया ” म हका ने रा ल को दे खते ए पूछा।
“अब मुझे कोई सपना आएगा क तू पहले ही डेट पर सेट हो जाएगी। सीधा-साधा
बंदा बनकर आया था; तेरे बाप को इं ेस करना होगा ये सोचकर।” रा ल ने कहा।
“अ छा एक मट क।” कहकर म हका, रा ल के पास आकर उसके शट का
पहला बटन खोलने लगी।
“घणी बेसबर हो रही है। सबर कर ले।” रा ल ने बदमाशी से कहा।
“लु चापनी मत कर। आदमी बना रही ँ तुझे।” कहकर उसने रा ल क टग क ई
शट आधी बाहर ख च द ।
“बना दे । आज मुझे आदमी बना ही दे ।” रा ल ने आँख बंद कर फर शैतानी से
कहा।
“चल। सपने मत दे ख। आँख खोल ले। अब लग रहा है तू पाट ए नमल। अब चल
भीतर।” म हका रा ल का हाथ थामे पाट म शा मल हो गई। थोड़ी दे र म हका रेव धुन
पर थरकती रही। रा ल उसके साथ ही इस अलहदा माहौल म खुद को सामा य करने क
को शश करने लगा।
“और बता What’s your poison tonight ” म हका ने स के बारे म
पूछा।
“पैसे लगते ह ” रा ल ने कहा।
“नह रे ” म हका ने यार से कहा।
“तो पूछना या, जो पला दे ।” रा ल ने बेलौस कहा।
“ये ले।” म हका ने वोदका का एक छोटा शॉट दे ते ए कहा।
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“ क पाइ ड तो नह है ” रा ल ने हँसते ए पूछा।
“घबरा मत, तेरी इ जत नह लूटनी।” म हका ने एक शॉट म लास खाली करते ए
कहा।
“ या पता, जब तू रेव कर सकती है तो रेप भी कर सकती है।” रा ल ने कहा।
“ क मार, डील मत मार।” म हका ने आँख चढ़ाते ए कहा।
“कतई खतरनाक लग रही है अब तू। दन म ही ठ क लग रही थी।” रा ल ने शॉट
लगाते ए कहा।
“अ छा, एक बात बता। Do you have a girlfriend ”
“नह रे। पढ़ाई से व ही नह मलता।” कहते-कहते रा ल को भी हँसी आ गई।
“चल झूठा, मेको बी लव नह तेरी बात का।” म हका ने शोखी से कहा।
“पेग लगाने के बाद इंसान झूठ नह बोलता।” रा ल ने कहा।
“पेग से इंसान झूठ ही बोलता है। ‘ऐडम’ ले, फर सच बाहर नकलवाती ँ तुझसे।”
म हका ने ‘रेव टफ’ के बारे म कहा जो अ सर नशे के लए रेव पा टय म ली जाती है।
“नाह तू ले।” रा ल ने ‘एडम’ समझे बगैर ही कहा।
“अ छा, फ ट टाइम है तो ‘ कट ’ ले। You will feel like breeze .” म हका
ने हाथ से लहर बनाते ए कहा।
“सुन, दोन ीज फ ल करगे तो संभालेगा कौन आज तू फ ल कर ले; अगली दफा
म कर लूँगा।” रा ल ने रेव टफ को टालते ए कहा।
“तू संभालेगा मुझे ” म हका ने रा ल क आँख म दे खते ए कहा।
“ य शक है तुझे ” रा ल ने भी आँख म दे खते ए कहा।
“हाँ, You all are same. Look at him. Red t-shirt. He is my Ex.
वो भी संभालने क बात करता था। दे ख तो आज कसी और को संभाल रहा है।”
म हका रा ल पर गरते ए बोली।
“वो तो ल लत है रोल नंबर 34 .” रा ल ने कहा।
“Hmm, He was my buddy .” म हका ने कहा।
“तो जाने दे ना। वो कसी और को संभाल रहा है; तो तू भी तो कसी और पे गर
रही है। चल मार।” रा ल ने लड़खड़ाती म हका को संभालते ए कहा।
“सही बंदा है तू। टशन ही नह लेता।” कहते ए म हका, ‘ए सटे सी’ क पल अपनी
जुबान पर रखने ही वाली थी क एक अलाम ने सबको च का दया। रा ल तब तक इसे
यू जक ही समझता रहा। जब तक उसने पाट म मौजूद लोग को घबराकर भागते ए
नह दे खा। अभी वो म हका से कुछ पूछता तब तक उसने म हका को दोन हाथ से सर
पकड़ते ए दे खा।

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“Shit man ” म हका के मुँह से नकला।
“ या आ ” रा ल ने च ककर कहा।
“It’s a raid Narcotics raid I am finished .” म हका आंसी हो
गई।
“Shit yaar ” रा ल ने भी माजरा समझते ही परेशान होकर कहा।
“Please man Please do something ” म हका ने रोने के साथ-साथ
पैर पटकते ए कहा।
“दे ख, रोना बंद कर। अब जो होना है वो तो होना ही है। चुप मारकर खड़ी रह और
जो तू चुप होगी; जभी म कुछ सोच पाऊँगा।” रा ल ने कहा।
रा ल के कहने पर भी उसका रोना कम न आ। रा ल मगर सोचता रहा। भीड़ अब
भगदड़ का प ले चुक थी। सं या म चार या पाँच होने के कारण नारको ट स के लोग
को भी द कत आ रही थी। रा ल अगर अकेला होता तो उसे भागने म कोई द कत नह
थी। ले कन उसे यहाँ से म हका को भी बाहर नकालना था। अचानक उसने दे खा क
भागते लोग को दबोचते नारको ट स के लोग ने सफेद शट और काली पट पहनी ई ह।
कुछ सोचते ए उसने ज द ही अपनी शट टग क । साथ-ही-साथ भागती लड़ कय म से
दो को अपने दाएँ हाथ से दबोचा और बाएँ हाथ से म हका को दबोचकर उनके बीच ही
अपना सर छु पाते ए ऐसे नकला जैसे वो भी नारको ट स का ही आदमी हो। लड़ कय
क घबराहट ने रा ल का काम और आसान कर दया। वह बाहर नकला और
नारको ट स क गाड़ी के पास खड़ा हो गया। पहली लड़क को गाड़ी म डालने के साथ
ही उसने म हका से धीरे से कान म कहा -
“पल तरफ भाग।”
म हका उसके हाथ से छू टते ही उसी ओर भागी।
“ कत भाग री पी.ट . ऊषा थम जा। जंगल है, शेर आ जावगा।” सबको यह
समझते ए छोड़कर क वह उसके पीछे जा रहा है, रा ल भी उसके पीछे दौड़ा। बंद हो
चुक रोशनी और जंगल के अंधेरे के साथ-साथ क मत ने भी उनका साथ दया।
***

जंगल म थोड़ी र जाने के बाद रा ल ने म हका को लो रग से ढूँ ढ़ लया; जसक


चमक उसके उँग लय म दख रही थी। र से ही ‘इट् स मी’ कहकर रा ल ने सहमी ई
म हका को आ त कया। वह उसके पास जाकर नढाल होकर बैठा ही था क म हका
उससे लपट गई। डर और दौड़ से दोन क बढ़ ई धड़कन एक- सरे को पीछे छोड़ने पर
उता थ । हाई हील के साथ दौड़ने पर म हका के पाँव म मोच भी थी। वह थोड़ी दे र तक

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रा ल के कंधे पर सर टकाए जोर से रोती रही। रा ल ने भी उसे बना टोके रो लेने दया।
जब वह रो चुक तब संयत होकर दोन हथे लय के पछले भाग से आँख प छ और कहा-
“तुझे थ स बोल सकती ँ ”
“पैसे लगते ह ” रा ल ने उसक उँग लयो से लो रग उतारते ए कहा।
“नह रे।” म हका को रोते ए भी हँसी आ गई।
“तो बोल ना, पूछना या ” रा ल ने उसके हाई हील खोलते ए कहा।
“थक यू।” म हका ने मोच के दद से कराहते ए कहा।
“जी ह का हो गया ” रा ल ने उसक ए ड़य को सहलाते ए पूछा
“हाँ।” म हका ने भी हँसकर जवाब दया।
“तुझे पता है, म इ ी परेशान य थी ” म हका ने फर कहा।
“अब पु लस म जमा होना कोई मठाई बाँटने वाली बात तो है नह ।” रा ल ने मोच
क जगह पर धीमे से मा लश करते ए कहा।
“मुझे पु लस से कोई डर नह था। मुझे डर मी डया का था।” म हका ने कहा।
“मतलब ” रा ल ने आ य से पूछा।
“तू जानता है मेरे डैडी कौन ह ” म हका ने रा ल से पूछा और कुछ दे र तक रा ल
को भ चक दे खकर खुद ही जवाब दया, “मेवाड़ी लाल रायजादा ”
“अ छा अ छा, वो दे श भर के ‘मेवाड़- ेम’ वाले कु फय के ठे ले तेरे पापा के ही
ह ” रा ल ने चढ़ाते ए कहा।
“Shut up and listen. He is M.L. Raizada. Joint Secretory,
Highways Authorities .”
“मतलब जेनरल नॉलेज के वे न वाले एम. एल. रायजादा ” रा ल ने बनावट
आ य जताते ए कहा।
“यप वही। अगर म आज पकड़ी जाती तो मी डया, डैड के ायल म लग जाती।”
म हका ने कहा।
“मतलब मने तुझे बचा लया। है ना ” रा ल ने र से ही उसक एड़ी क मा लश
करते ए कहा।
“हाँ। तू बंदा अ छा है वैसे। मगर है थोड़ा उ लू। इ ी र य बैठा है कम टू मी।”
म हका ने ब च -सी शोखी से कहा।
“नाह। मुझे तेरी बात पर कोई भरोसा नह और या पता ये तू नह बोल रही हो। ये
तेरा ऐडम बोल रहा हो ” रा ल ने ए टै सी पल के बारे म कहा।
“अरे नह , दे ख तो वो तो हथेली म ही पघल गई।” म हका ने हथे लयाँ आगे कर
द।
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“ फर ठ क है।” रा ल ने झूठमूठ ही हथेली दे खते ए कहा।
“अ छा Have they caught Lalit ” म हका ने ल लत के बारे म पूछा।
“पता नह । पहले कहती तो लड़ कय क जगह उसे ही गदन से पकड़ लेता।”
रा ल ने मुसकुराते ए कहा। जवाब म म हका बस मु कुरा द ।
“एक बात क ँ ” म हका रा ल के पास आती ई बोली।
“बोल।” रा ल ने भी उसका सर अपने कंधे पर रखते ए कहा।
“तुझे यार कर सकती ँ ” म हका ने कहा।
“पैसे लगते ह ” रा ल ने भी शैतानी से पूछा।
“नह रे।” म हका ने छोट ब ची क तरह सर हलाया।
“तो कर ना। पूछना या ” रा ल ने नयॉन रग को मु य म भ चते ए कहा।
पेड़ के सूखे प े कुछ दे र शोर मचाकर चुप हो चुके थे। जुगनु और झ गुर के
अलावा वो सबसे छु प चुके थे। खो चुके थे।

अगले दन रा ल लगभग आठ बजे सुबह लौटा। आज म कुछ सबेरे ही उठ गया था।


दरवाजा खोला तो रा ल नढाल-सा दखा। भीतर घुसते ही उसने शट उतारी और मुझसे
कहा-
“आज कॉलेज नह जाएँगे झाड़ी, न द आ रही है।”
“कहाँ थे रात भर बे ” मने पूछा।
“ धान जी के दलान म। ेशर चला रहे थे।” रा ल ने शट उतारकर फकते ए
कहा।
“ ेशर रात भर चला या ” मने पूछा।
“नाह, पाँच सौ पया के डीजल म कतना चलेगा ” रा ल ने जूते खोलने क
को शश क जो नह खुले।
“तु हारी हालत दे खकर शेर याद आ रहा है पं डत।” मने श म पे ट लगाते ए
कहा।
“जब याद आ ही गया तो सुना ही दो।” रा ल ने अनमने से कहा।
“रात भर खेल नगाह ने अजब से खेले
रात भर मुझको मेरे यार ने सोने न दया।” मने श करते ए ही कहा।
“उसका यार टारजन होगा झाड़ी, यहाँ तो एक घंटे म ही ध-छु आरा क ज रत लग
रही है।” रा ल बुदबुदाया।
“अ छा सुन, जीडी का कॉल लेटर आ गया है। उसके बाद हम घर जाएँगे। ह ते भर
बाद आएँगे।” मने श करते ए ही अ प आवाज म कहा।

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“बन जाओ लॉड गवनर।” कहते ए रा ल ने करवट बदली और सो गया।
***

पूरे तीसरे सेमे टर म रा ल और म हका साथ दे खे जाते। लास म साथ बैठने से


लेकर मे ो म घर जाने तक दोन दे श नया से अंजान बने रहते। म बस उनके साथ-साथ
थोड़ी री बनाकर व काटता रहता था। व गुजरता ही जा रहा था। मेरे रटे न ए जाम
के रज ट भी आने वाले थे। परी ा तो हर बार क तरह अ छ ही ई थी मगर रज ट
आने का व ास अबक बार पहले से यादा था। ऐसे ही एक दन म रा ल और म हका
लास ख म कर मे ो से लौट रहे थे। हम लेडीज बोगी के ठ क बाद वाली बोगी म चढ़े थे।
चढ़ते ही रा ल और म हका ने अपने पसंद दा पॉट यानी वे ट यू स पर प ँच गए। सीट
हालाँ क खाली ही थी; ले कन उन दोन क पसंद दा जगह वही थी। इतनी खै रयत थी क
दोन लेडीज बोगी से ठ क लगे वे ट यू स पर नह ; ब क सरी छोर वाले वे ट यू स
पर थे। अभी म उ ह दे खकर सीट पर बैठने ही वाला था क मने प र ध को लेडीज बोगी म
लगभग दौड़कर चढ़ते ए दे खा। हाथ म ौसरी का कुछ सामान लए शायद वह पास के
ही बग बाजार से आ रही थी। दरवाजा बंद होने को ही था क प र ध लेडीज बोगी म चढ़
गई ओर पोल के सहारे पीठ टकाकर खड़ी हो गई। मेरे हाथ-पाँव फूल गए। जहाँ वह खड़ी
थी वहाँ से अगर वह पीछे घूम जाती तो रा ल उसे म हका के साथ सीधा ही दख जाता।
कान म लगे ईयर फोन क धुन पर थरकन क वजह से या फर मे ो के हलने के कारण,
मुझे ऐसा डर लगा आ था क प र ध अब पीछे मुड़ जाएगी। मुझे कुछ समझ नह आया।
म ज दबाजी म लेडीज बोगी से लगे वे ट यू स पर ही खड़ा हो गया। ता क वहाँ से अगर
प र ध मुड़े भी तो उसे रा ल न दखे। पहले तो मने लेडीज बोगी क तरफ ही चेहरा कया
आ था; ले कन जब उधर से कुछ आं टय के नाक-भ सकोड़ते चेहरे दखे तो मने
वापस चेहरा रा ल और म हका क ओर ही घुमा लया। दोन एक- सरे म ही मशगूल थे।
म हका का टॉप आ गया था। वो धीरे से बाय कहते ए मे ो से बाहर नकल गई। रा ल
अब बढ़कर मेरे तरफ आया। मने पहले आँख से ही उसे सीट पर बैठने का इशारा कया।
ऐसी थ त म रा ल बना कोई बहस कए मेरे बात मान लेता था। मेरे इशारे के ढं ग से उसे
भी लग गया क ज र कोई बात है। वह चुपचाप खाली सीट पर बैठ गया। उसके बैठते ही
म भी उसके पास वाली सीट पर बैठा और उबलते ए कहा -
“तुमको साले न डर लगता है न शम।”
“डर का तो ऐसा है झाड़ी क वो तो घर के साथ ही छू ट गया और शम तो रंभा आंट
नकलवा द थी बचपन म।” रा ल ने हाथ मलते फर कहानी हराई।
“बकवास मत करो। मे ो वे ट यू स पर या कर रहे थे साले ” मने सामने दे खते
ए ही पूछा।

“ े े ी े े े ँ े े े े े”
“ यार कर रहे थे झाड़ी। मेरे ह ठ के भँवरे उसके ह ठ के फूल खला रहे थे।” रा ल
ने फर कसी उप यास से लाइन उधार ले ली।
“बासी नॉवेल वाला डायलॉग मत मारो और वो कुछ बोली भी नह ” मने फर
कहा।
“बोली ना, फौरन बोली।” रा ल ने जवाब दया।
“ या बोली ” मने पूछा।
“बोली क this is no good .” रा ल ने कहा।
“ठ क बोली फर ” मने पूछा।
“ फर हम बोले, Sorry Let me try the good one .” रा ल ने फर
मु कुराते ए कहा।
“कमीने हो तुम।” मुझे हँसी आ गई थी।
“हाँ ना, यही बात वो भी कही कमीना है तू। मतलब हम ह। जब दो आदमी एक ही
बात कहे तो मानना चा हए।” रा ल ने कहा।
“कमीनापंथी घुस जाता आज तु हारा पता है, लेडीज बोगी म कौन है ” मने कहा।
“पापा तो लेडीज बोगी म ह गे नह और अपने बाप के अलावा कसी के बाप से
डरते नह ह हम।” रा ल ने लेडीज बोगी क ओर झाँकते ए कहा।
“झाँको मत साले, रेल दए जाओगे प र ध खड़ी है ठ क सामने।” मने रा ल को
ख चते ए कहा।
“ या ” रा ल पलभर के लए ह का-ब का हो गया
“हाँ।” मने कहा।
“वो यहाँ कैसे ” रा ल ने पूछा।
“हम या जान। बस ये जान लो क अब एक टे शन आगे उतरगे।” मने कहा।
“ य ” रा ल ने पूछा।
“ य मतलब साले अगर उसको शक आ भी होगा तो उतरते दे ख कर यक न हो
जाएगा।
उसको उतर जाने दो। हमलोग अगले मे ो से फर यह रटन हो लगे।” मने कहा।
“ठ क है झाड़ी, जैसा तुम कहो। वैसे मेरा तो मन था क यह वे ट यूल पर ”
कहते कहते रा ल क गया।
“हरमजदगी मत करो।” मने गु से से कहा।
“अरे वे ट यूल सही जगह है झाड़ी। द ली मे ो- आपक सेवा म। ब ढ़या सेवा
दे गी। बस खड़े रहना है। बाक काम मे ो कर दे गा।” रा ल ने बेलौस कहा।

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“चलो साले, उसी वे ट यूल म मुँह छु पाओ। प र ध उतरेगी अभी। दे ख ली तो मुँह
छु पाने लायक ही बना दे गी।” मने ज द से वे ट यूल क ओर बढ़ते ए कहा। मने दे खा
क प र ध उतरी और सीधी ए केलेटेस क ओर बढ़ गई।
“बच गए।” रा ल ने प र ध को जाते दे खकर कहा।
***

रा ल आज फर म हका के साथ नकला आ था। दरअसल म हका का सबेरे फोन


आया था और दोन म कोई तीखी बहस भी ई थी। उसके बाद रा ल लगभग बारह बजे
घर से नकल गया था। अमूमन बाहर जाते व वह मुझे बता कर ही जाता था; ले कन
आज शायद मूड खराब होने के कारण उसने मुझसे कुछ भी नह कहा और नकल गया।
लगभग दो बजे म कूकर से चावल नकालकर लेट म डाल ही रहा था क दरवाजे
क घंट बजी। म चावल उसी तरह छोड़ कर उठा और दरवाजा खोला। सामने प र ध थी।
उसके गीले जूड़े और तांबे के पा से मुझे लगा क वो तुलसी के पौधे म पानी दे ने के बहाने
ऊपर आई थी।
“मो हत, रा ल कहाँ है ” उसने बुझे मन से धीमे से पूछा।
“पता नह बताकर नह गया। य या आ ” मने जानबूझ कर पूछा।
“ही इज अवॉय डग मी नाउ ” प र ध ने आँख नीचे कए ए कहा।
“ऐसा नह है। तु ह य लगा ऐसा ” मने पूछा।
“दे खो ना, आज मूवी का कहा था और कहाँ गायब हो गया ” प र ध ने उदास
आवाज म कहा।
“अरे, उसके पापा वै णो दे वी होते ए लौट रहे ह; उ ह से मलने टे शन गया है। हाँ,
याद आया। कल मुझसे कह रहा था क तुमसे मलना था उसे आज।” मने समझाते ए
कहा।
“ले कन अभी तो तूने कहा क तुझे बता कर नह गया।” प र ध ने झूठ पकड़ लया
था।
“कहने का मतलब क कल ही बताया था तुझसे मलने का और पापा के आने का।
आज बताकर नह नकला।” मने जैसे-तैसे बात संभाली।
“और तेरा इंटर ू कब है ” प र ध ने अनमने से पूछा।
“अगले महीने।” मने कहा।
“ठ क है। रा ल तुझसे मेरे बारे म कुछ बात करता है ” प र ध ने पूछा।
“ले, बस तेरे बारे म ही तो बात करता है। दमाग पका दे ता है।” मने कहा।

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“झूठा रब ने बनाई जोड़ी। एक को सच बोलना नह आता; सरे को झूठ बोलना
नह आता।” कहते ए प र ध बुझे मन से नीचे उतर गई।
***

एमबीए का तीसरा सेमे टर बीतने को था। कपस और लेसमट जैसे श द कॉलेज


क फजा म तैरने लगे थे। कपस आने के कोई चांस अगर थे भी, तो हमारी लेसमट
का कोई चांस नह था। मेरी पहली चॉइस वैसे भी सीडीएस ही थी तो मुझे वैसे भी कोई
यादा उ मीद एमबीए से नह थी। रा ल से तो उ मीद ही बेमानी थी। प र ध अपने होम
साइंस के हे थ एंड हाइजीन के दो ह त के टू र पर ह रयाणा के कसी गाँव गई थी और
इन दन एक अजीब बात यह भी ई थी क म हका का फोन आना लगभग बंद हो गया
था। चैट पर भी रा ल को त मने नह दे खा था। चूँ क यह बात मुझे उतनी गंभीर नह
लगी; इस लए मने कभी रा ल से पूछा नह था। मगर कुछ था जो ठ क नह चल रहा था
और रा ल यह जान रहा था। लैपटॉप के काले न पर री-बूट करते कुछ न समझ आने
वाले सफेद ड जट् स को पढ़ने और उनपर बजली क तेज ग त से उँग लया चलाने के
अलावा आजकल वो कुछ भी नह करता था। छोटू जब चाय लेकर आया तब भी रा ल
अपने लैपटॉप क न पर चमकते उ ह सफेद अ र म खोया आ था। रा ल छोटू के
कान म इयरफोन दे खते ही समझ गया क आज ज र केट मैच है। उसने फौरन छोटू
से पूछा,
“ऐ टोनी ेग, आज इं डया क ट म म कोई चज है ”
“आज तो मैच ही नह हो पाएगी भैया जी।” छोटू ने भी टोनी ेग वाले आ म व ास
से चाय दे ते ए कहा।
“ य । रक प टग का पेट खराब है या ” रा ल ने कहा।
“नह भैया जी, मैच को च म है।” छोटू ने जवाब दया। “अ टू बर म को च म कोई
मैच कराता है या ” छोटू ने मुझे चाय दे ते ए जवाब दया।
“ जतनी अ छ तू बात बनाता है न; उतनी अ छ कभी चाय भी बना दया कर मेरे
रमीज राजा ” रा ल ने भरी चाय लौटाते ए बुरा-सा मुँह बनाया। छोटू ने कप लया और
बाहर चला गया। छोटू के बाहर जाते ही मने रा ल से कहा,
“परस घर जा रहे ह पं डत।”
“ठे कुआ और गु झया लए बना मत आना।” रा ल ने न पर से नजर हटाए बगैर
कहा।
“अंकल पूछ तो या- या कहगे ” मने रा ल से ही पूछा।
“कह दे ना, नौकरी ढूँ ढ़ने लगा है। भगवान मलकर रहगे।” रा ल ने कहा।
“यू मीन सरकारी ” मने अचरज से पूछा।
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“हाँ।” रा ल ने कहा।
“भाई ये php, SQL, dotNET पर जो थी सस छ ल रहे हो उसका एमबीए से
या रलेशन है; बताओगे ” मने बैठते ए पूछा।
“एमबीए से नह है; नौकरी से है। तुम लोड न लो। बाबू जी से कह दे ना बेटा एकदम
टनाटन है।” रा ल ने कहा।
“कर या रहे हो वैसे ” मने पूछा।
“Phising कहते ह इसको। समझते हो कुछ ” रा ल ने लैपटाप पर नजर गड़ाए
ही पूछा।
“नाह। क यूटर पर बैठकर मछली तु ह मार सकते हो। मारो।” मने कहा और
कताब म घुस गया।
“हाँ झाड़ी, मछली ही तो ढूँ ढ़ रहे ह।” रा ल ने अभी इतना ही कहा था क उसके
मोबाइल क घंट घनघना उठ ।
“ यो बेटा, मल गई मछली। इसी पर ाय करते ह।” कहते ए रा ल ने फोन रसीव
कर लया।
“पं डत लीज, पीकर पर मत करना। हम पढ़ रहे ह।” मने कहा। ले कन रा ल ने न
पहले मेरे सुनी थी, न अब उसे मेरे सुननी थी। उसने मोबाइल पीकर मोड पर कर ही
दया। फोन म हका का था।
“ओए तीन दन हो गए; ऑनलाइन य नह आई तू ” रा ल ने बना हाय-हेलो के
सीधा ही कहा।
“मेरा सेल बाथ म म गर गया था। न डेड हो गई। अब सरा लूँगी।” सरी
ओर से म हका ने कहा।
“तो अभी ” रा ल ने पूछा।
“लैपी से ऑनलाइन ँ।” म हका का जवाब आया।
“तभी म क ँ। बाथ म म फोन के साथ वैसे कर या रही थी तू ” रा ल ने उसे
छे ड़ा।
“अ छा, पन इंटडेड। मल तू। फर बताती ँ। यादा बात नह कर सकती। पापा
को ऑ फस के लए नकलना है।” म हका ने कहा।
“आज के दन भी बात नह कर सकती ” रा ल ने बेचारगी से कहा।
“ य । आज या पेशल है ” उसने पूछा।
“छोड़। रहने दे । दल तोड़ दया तूने।” रा ल ने कहा।
“टे ल मी ना, ज द ” उसने बेस ी से कहा।
“कुछ नह बस एक ई-काड भेजा है उसे दे ख ले।” रा ल ने कहा।

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“बस, इस लए इतने बतोले कर रहा था। खुल नह रहा। या ह इसम। Zip फाइल
है। दे ख, एक तो ये डकेड पुराने काड वाला तरीका मुझे पसंद ही नह ।” म हका क
आवाज म ऊब-सी थी।
“दे ख तो सही।” रा ल ने कहा
“ओ माय गॉड आज तेरा ब े है और तूने बताया भी नह ” म हका ने एक साँस म
इतनी सारी बात क ।
“तू बस कर। दल तोड़ दया तूने।” रा ल क नौटं क जारी रही।
“कोई ना, आज मल के तेरा दल जोड़ती ँ। कहाँ मलेगा बता ” म हका ने कहा।
“ लास के बाद सगड़ी चल ” रा ल ने कहा।
“ सगड़ी फै मली रे टोरट है। कह और चल ना।” म हका ने कहा।
“तो अंगीठ चल।” रा ल ने कसी रे टोरे ट बार का नाम सुझाया।
“OK. Done. After class .” कहकर म हका ने फोन रख दया। रा ल भी
फोन रखकर मेरे पास आकर बैठ गया।
“साल म कतनी बार अवतार लेते हो पं डत ” मने कताब बंद करते ए रा ल से
पूछा।
“मौगायी न करो। चलो तैयार हो जाओ। अंगीठ म बथ डे पाट है लास के बाद।”
“हमारे पास पैसा नह है।” मने पहले ही प ला झाड़ा।
“तुम भोसड़ी के, अंगीठ म पाट दे भी नह पाओगे। म हका दे रही है, चलो।”
“मतलब एक काड पर लड़क पाट दे दे ती है ना यार। हमको भी यार करा दो ना
पं डत ” मने कहा।
“और वो साला काड भी नह था।” रा ल ने हँसते ए कहा।
“तो या था ”
“ ीट ग काड के फॉमट म फ शग टू ल था। म हका के स टम म key-logger
डाल दए ह। अब वो जो भी टाइप करेगी यहाँ मेरे लैपटॉप म दखेगा।” रा ल ने ज हाई
लेते ए कहा।
“हरामी हो पं डत, कतन क ाइवेसी म चाभी घुसाओगे ”
“अरे चाभी नह घुसाएँगे, बस दे खना था क चमन म मेरे अलावा कोई और भी फूल
है या ” रा ल ने ट -शट पहनते ए कहा।
“तो या दखा ” मने पूछा।
“चमन म बहार है झाड़ी। दे खो, हमसे कही क फोन तीन दन से खराब है; ले कन
उसके फोन म कल रात तीन बजे तक बात ई है।” रा ल ने लैपटॉप दे खते ए कहा।

“ ो ो ै ोऐ े े ो ै े े ो” े े
“तो ठ क तो है। कह तो ऐसे रहे हो जैसे खुद साले गंगा नहाए हो।” मने तंज से
कहा।
“ ीच मत सुनाओ; पोए शायरी सुनाओ झाड़ी। ब त दन आ।” रा ल ने जूते
पहनते ए कहा। और मुझे लगा क वह सचमुच कुछ सुनना चाहता है मने गाना शु कर
दया-
“जाते जाते वो मुझे अ छ नशानी दे गया।”
जाते जाते वो मुझे अ छ नशानी दे गया।
अभी मने एक लाईन हराई ही थी क रा ल ने टोक दया-
“तो खेलाओ भाई। गाना य गा रहे हो ”
“ या मतलब ” मने पूछा।
“मतलब क जब नशानी मल ही गया है तो अब खेलाओ उसको। गाना गाने का
समय चला गया।” रा ल ने ठठाकर हँसते ए कहा।
“मरो साले। हमको लगा तुम इंसान बन रहे हो। ज दगी समझ रहे हो।” मने भी
हँसते ए ही कहा।
“चलो-चलो नहा लो। भोज-भात खाने चलना है बाहर।” रा ल ने फर अँगड़ाई लेते
ए कहा।
***

बैचलर का सबसे बड़ा सरदद होता है खाना बनाना। लैपटॉप पर फ म दे खते


व , इंटरनेट पर आँख सकते व क बबाद अनुभव नह होती; ले कन खाना बनाते
व इसका कु भाव सीधे पढ़ाई से जुड़ जाता है। जैसे खाना बनाकर जो व का
नुकसान हो रहा है उसी व म पढ़ा सवाल परी ा म आने वाला होता है।
रा ल वैसे ही बाहर खाने वाला था। इस लए सफ अपने लए खाना बनाने का
वचार मुझे समय क बबाद ही लगा और मने रा ल के साथ अंगीठ जाने का ताव
वीकार कर लया। दोन तैयार ए और दबे पाँव सी ढ़याँ उतरने लगे ता क प र ध को
पता न लगे। मगर यह संभव न था। रा ल के तार क छे ड़ का पता प र ध को लगे बगैर
रा ल सतार बजा ले यह असंभव था। अभी हम उतरने के म म दरवाजे के पास से उतरे
ही थे क उसने दरवाजा खोल दया। दरवाजा खोलते व रा ल ही सामने था; इस लए
उसने रा ल को ऊपर से नीचे तक नहारा फर अपनी आँख और उँग लय को सवाल के
इशारे म हलाते ए पूछा क हम कहाँ जा रहे ह जब उसने मुँह से नह कहा तो रा ल
समझ गया क बटु क शमा दोपहर का खाना खाने घर आए ए ह। रा ल ने फौरन जवाब
दया, “मंडी हाउस, ामा दे खने। तू भी चल ”

“ ी” े े ँ औ ँ े े े े
“शी ” प र ध ने नाक चढ़ाते ए बुरा-सा मुँह बनाया और मुँह के बेआवाज इशारे से
‘पापा’ कहा। जसका अथ था क पापा घर पर ह; जसका एक अथ यह भी था क अगर
नह होते तो ज र चलती।
“OK. Getting late. Bye. ” बाय का इशारा करते ए रा ल तेज कदम से
नीचे उतर गया। प र ध ने भी दरवाजा बंद कर लया था। मेरी साँस म साँस आई। यह
जानते ए भी क सारा रायता रा ल का फैलाया आ है और वो उसे साफ करना बेहतर
जानता है; मेरी जान हलक म अटक जाती थी।
“पूछ तो लए थे साले और अगर वो जाने के लए तैयार हो जाती तो या करते ”
मने सड़क पर आते ही पूछा।
“ये होता तो वो हो जाता; इसको ग णत म ॉबे ब लट कहते ह झाड़ी। और ग णत
क तेरहव तो हम बारहव म ही कर दए थे। इस लए टशन न लो; टै सी लो। चलगे दोन
भाई अंगीठ ।” रा ल ने घड़ी म व दे खते ए कहा।
द ली क भाषा म ‘गम बेहद सड़ी ई थी।’ पाँच मनट का इंतजार भी दमाग का
पारा 5 ड ी और बढ़ा दे रहा था। ठ क पाँच मनट के इंतजार के बाद एक टै सी वाला
का। हम दोन टै सी म बैठ गए।
“कहाँ ले लूँ सर ” कैब म बैठते ही ाइवर ने पूछा।
“ भतरामपुर।” रा ल ने तेजी से जवाब दया। गम ने उसका संतुलन बगाड़ दया
था। मने अपनी मु कुराहट छु पाते ए ाइवर को अंगीठ चलने को कहा।
***

अंगीठ । पूव द ली का मश र लाउंज। दन म भी इसके म म रोशनी भरे माहौल


म सब धुँधला और धूसर ही नजर आता है। कुछ तरतीब रोशनी क मदद से टे बल, काउच
और कु सयाँ दख जा रही थ और धीरे से सुनाई दे ती म क आवाज इस बात का भान दे
रही थी क पा म कोई जैज संगीत चल रहा है। कॉफ बीन क ताजगी भरी महक ने
अंगीठ के अ भजात होने का एहसास करा दया था। मुझे वहाँ हर कदम के साथ एक
अजीब-सी हच कचाहट हो रही थी जो रा ल के साथ बलकुल भी नह थी। उसे कम-से-
कम ऐसे माहौल का अनुभव मुझसे तो यादा ही था। जब आप छोटे शहर के पॉकेट म
रहते आए ह और पॉकेट भी छोटे शहर जैसे खच का ही आद हो तो आपका यान इन
रे तरा और ऐसी नया क तरफ नह जाता। आप बस द ली जैसे शहर म भी रात
दस से सुबह पाँच का व कताब म इस लए खपाते ह ता क फर तमाम उ सुबह 10
से शाम 5 का व फाइल म जाया कर सक। म य वग क नय त यही है।
अंगीठ म घुसते ही मैनेजर ने बताया क सबसे कोने वाली टे बल हमारे लए रजव
है। म हका अभी नह आई थी। दो चेयर लगी उस कोने वाली टे बल पर हम बैठ गए। बैठते

ी े ओ ई े े ो े े े ी
ही वेटर एक ओढ़ ई मु कान के साथ सामने आकर खड़ा हो गया। रा ल उसे दे खते ही
खीझ गया।
“Your order sir .” वेटर ने पेन और नोटपैड थामे ए पूछा।
“सतुई का ल सी रखे हो ”
“Sorry sir ” वेटर शायद समझ नह पाया।
“स ू। स ू। उसका ल सी रखे हो ” रा ल ने भँवे तानते ए कहा।
“No sir .” वेटर ने उसी मु कान के साथ जवाब दया।
“तो या रखे हो ”
“Here is the menu card sir .” वेटर ने क के और मेनकोस के दो मे यू
काड रा ल क ओर बढ़ाते ए कहा।
“दे खो, अब जब तु हारे पास सतुई क ल सी नह है तो हम दे खभाल के ऑडर
करना होगा।” रा ल ने गंभीर होकर कहा। मने सर पीट लया।
“Ok sir .” वेटर ने फर उसी मु कान के साथ कहा।
“हाँ। And make sure क कोई ड टब न कर। ऑडर के व म तु ह बुला
लूँगा और अलताफ राजा का गाना लगवा दो। म अलताफ राजा से ब त यार करता ँ।”
रा ल ने उसी गंभीरता से कहा। वेटर उसी ओढ़ ई मु कान के साथ वा पस होने को ही
था क मने उसका मूड ठ क करने के लए बात घुमाई,
“आज के मैच म टॉस कसने जीता ”
“रेनवाश हो गया सर।” बार टडर ने फर वही हँसी ओढ़ ली।
“ओह Thanks by the way ” कहकर मने बार टडर को चलता कया और
रा ल से कहा-
“उससे य मुँह लगे थे बे। कुछ मँगवा ही लेते। बेचारा मुँह लटका के गया।”
“दे खो झाड़ी, पाट है उसका। मतलब म हका का तो जा हर है बटु आ भी होगा
उसका। बजट भी होगा उसका। तो उसके बगैर कैसे शु कर द ” रा ल ने हाथ का कड़ा
घुमाते ए कहा।
“ये भी ठ क है। ब त अ छ सोच है तु हारी। तुम पापी होने के साथ-साथ दे वता भी
हो पं डत।”
अभी हम बात म उलझे ही थे क सामने से म हका आती दखाई द । उसके आने के
अंदाज से ही लग गया क वो यहाँ नय मत प से आती रही है। घुसने के साथ ही वह
टे बल क तरफ मुड़ी। रा ल के साथ मुझे भी दे खकर उसका मूड कुछ उखड़-सा गया;
फर भी कदम नापते वह टे बल तक आई और मुझे धीरे से हाय का इशारा कया। मेरे हाय
का जवाब दे ने से पहले ही वो रा ल क ओर बढ़ गई और उसके गले लगते ए उसके
कान म बथ डे ीट कया। मने मु कुराहट लास के पानी म दबा ली।
“ ो ँ े ” े े े ी े े ी ी
“सो, कब प ँचे ” उसने जब खड़े-खड़े ही कहा। तब मेरे यान म आया क तीसरी
कुस नह है। मने फौरन हाथ के इशारे से वेटर को चेयर लाने को कहा। उसने आते ही
कहा- “सर दस सीट इज रज ड़ फॉर टू पसन। यू मे श ट हयर।” उसने सरे टे बल क
तरफ इशारा कया। उसके इशारा करते ही हम तीन सरी वाली टे बल पर आकर बैठ गए।
मने म हका को रा ल के पास वाली कुस ऑफर क ; मगर वो र वाली कुस पर ही बैठ ।
मजबूरन मुझे रा ल के पास वाली कुस पर बैठना पड़ा। म हका कुछ पल हथे लय पर
ठोढ़ टकाए रा ल को दे खती रही; फर पूछा,
“So birthday boy. what is your poision today ”
“बडवाइजर।” रा ल ने सीधा ही कहा। रा ल के जवाब दे ने से मेरी समझ म आया
क सवाल क को लेकर था।
“And you Mohit ” म हका ने मुझसे पूछा।
“वो अंगठू ा पएगा।” रा ल ने ही जवाब दया।
“मतलब He doesn’t drink ” म हका ने आ य से पूछा।
“नह ऐसा भी नह वो कुछ और पीता है; यहाँ मु कल है। अभी यहाँ अंगठ ू ा ही
मँगवा लेते ह। थ स-अप।” रा ल के इस बात से मने अपनी हँसी फर पानी के गलास म
छु पा ली। म हका ने हाथ के इशारे से वेटर को बुलाया और कहा -
“Listen. A budviser, a corona and a coke and in main
course ” म हका ने इतना ही कहा था क रा ल ने टोक दया-
“Hang on इ ी ज द या है खाना, स के बाद मँगवाते ह।”
“नह रे। मुझे नकलना है, थोड़ी ज द है।” म हका ने कहा और वेटर को ऑडर पूरे
करने लगी-
“ ाइड चकेन व स, लेमन लब, कॉकटे ल नान एंड चकेन ट का मसाला।” वेटर
ऑडर लेकर चला गया। एक बो झल-सा वातावरण तारी रहा। बात औपचा रक ही होती
रह । थोड़ी ही दे र म स आ गए। टो ट के बाद भी जब दोन बात करने के बजाय एक-
सरे को दे खते ही रहे तो मने ही बात छे ड़ी-
“और म हका, एमबीए के बाद या लान है फदर टडीज या कुछ और ”
“अरे नह । पापा तो मुझे अपनी हाइवे अथॉ रट म ही सेटल करना चाहते ह। वो
चाहते है क म उनके रटायर होने से पहले-पहले वाइन कर लूँ; ले कन म कोलैराडो
कूल वॉइन करना चाहती ँ। डायरे शन एंड आल दै ट।” म हका ने कहा।
अब तक रा ल और म हका दोन अपनी-अपनी आधी बोतल खाली कर चुके थे।
बावजूद इसके मने यह महसूस कया क माहौल भारी-भारी हो रहा है। दोन लोग बात तो
कर रहे ह मगर वो कुछ और ही बात करना चाह रहे ह जो मेरे वहाँ होने क वजह से संभव
नह हो पा रही है। मुझे अचानक ही यह एहसास भी आ क म हका मेरी वजह से थोड़ी

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असहज है। उसने दो चेयर वाली टे बल भी बस अपने और रा ल के लए ही बुक क थी।
इस लहाज से म वहाँ ह ी ही था। मने तुरंत ही रा ल से कहा-
“यार तुमलोग बैठो, म अभी आया।” कहकर रा ल को कुछ कहने का मौका दे ने से
पहले ही म पीछे क तरफ नकल गया। पीछे जाने क कोई जगह तो थी नह । बस थोड़ी
दे र वाश म म बैठा रहा। जब मुझे यह लगा क अब तक शायद उनक अंतरंग बात ख म
हो गई ह गी तो म बाथ म से बाहर नकला; ले कन बाथ म से नकलते ही मुझे रा ल
क थोड़ी तेज आवाज सुनाई द ; इस लए म दरवाजे पर ही ठठक गया।
“और मुझे लगा तुम मेरे लए आई थी।” रा ल ने कहा।
“मुझे भी यही लगा था क तुम मेरे लए आओगे।” म हका ने धीमे से कहा।
“हाँ तो here I am ”
“ फर इस मॉडल को साथ लेकर य आए हो ” म हका ने शायद मेरे बारे म कहा।
“अरे He is my friend . ममेट है और आज मेरा बथ डे है। इसे कहाँ छोड़
कर आता ” रा ल ने लगभग लड़ते ए कहा।
“अरे तो ममेट है तो कमरे पर रहे। हनीमून पर भी साथ जाएगा या। तुमने बुला
लया और वो चला आया। Doesn’t he have common sense ” म हका ने
भी गु से म ही कहा।
“धीरे बोलो माही वो सुन सकता है।”
“दे खो अब भी तु ह उसी क चता है और जब तु ह अपने दो त के अलावा कसी
क चता ही नह तो its better we part away. ” कहते ए म हका ने उठने के
लए कुस ख ची। मुझे लगा क मेरी वजह से बात शायद बगड़ न जाए। म जैसे ही वहाँ
प ँचा; म हका बल बुकलेट म कुछ रखकर चली गई। मुझे यह थ त अजीब हो गई। मेरी
समझ म नह आया क म दौड़कर म हका क तरफ जाऊँ या फर रा ल से बात क ँ ।
ऐसी थ त म सोचते-सोचते ही म हका बाहर नकल गई। मने रा ल से पूछा,
“ या आ पं डत ”
“ ह शां त भाई।” रा ल ने चकेन व स ख चते ए आराम से कहा।
“कैसा ह शां त भाई ”
“हम कहे थे ना क आज भोज-भात खाने चलना है। यही था। इस रलेशन का
भोज-भात।” रा ल ने बयर के कसैलेपन से अजीब चेहरा बनाते ए कहा।
“मतलब ” मने आ य से पूछा।
“Actually she wants to get rid off this relation. उसका पुराना
ेम पछाड़ मारने लगा था। वो बहाने ढूँ ढ़ रही थी ता क उसे कोई ग ट न रहे। हम मौका
दए। वो भी मौका नह चूक । इस तरह सब राजी। सब खुश।” रा ल ने कहा।
“यार ऐसे कैसे ”
“ ँ ो ँ ो ोई ी” े ँ
“हाँ तो, बाँधकर रखना तो कोई यार नह आ न झाड़ी।” रा ल ने बयर क घूँट
भरते ए कहा।
“ले कन यार हम तो खाना भी नह खाए।” मने अपनी ही सम या सुनाई।
“तो खाओ भोसड़ी के ज द । बाथ म म हरमु नया बजा रहे थे ” रा ल ने
मु कुराहट भरी झड़क से कहा।
“अ छा पं डत एक बात क ँ ” मने खाते ए ही पूछा।
“उ चारो।” रा ल ने दोन हाथ पीछे कर के फैलते ए कहा।
“कह मेरी वजह से तो नह ”
“मतलब ”
“हम दरअसल सुन लए थे; वो हमको मॉडल कह रही थी।” मने आँख मारते ए
कहा।
“हाँ साले, बना लड़क जवानी जयान करने वाल को नमूना ही तो कहा जाता है।”
रा ल ने फगर बाउल म हाथ डालते ए कहा।
“मतलब वो नमूना बोली हमको ” मने आ य से आँख फाड़ते ए कहा।
“ना ना। तुम रेम ड् स द क लीट मैन हो। खाना खा लए ”
“हाँ।” मने ट यू पेपर से हाथ साफ करते ए कहा।
“दे खो तो कतना टप द है।”
“दो सौ ”
“एक प ी उठा लो।”
“ या ” मने आ य से कहा।
“हाँ, लौटते व टै सी का बंदोब त हो जाएगा बे।” कहते ए रा ल ने मुझको
ह का-ब का छोड़कर टप म से सौ पये का एक नोट उठा लया।
कहते ह माँगे के गा ड़य म पे ोल बस पे ोल-पंप जाने तक ही होता है। रा ल और
म हका क दो ती भी वैसी ही थी। रा ल अपनी आदत से मजबूर था और म हका भी
रा ल के साथ बस व काट रही थी। कारण कई थे। रा ल और म हका क सामा जक-
आ थक थ त म भी अंतर था। म हका रा ल क तरफ आक षत भी महज अकेलेपन क
वजह से ई थी य क उसने ल लत से ेकअप को बे-इ जती क तरह लया था। रा ल
पर वह हर व पूरा भाव चाहती थी। उसका पूरा समय चाहती थी उसका पूरा अवधान
चाहती थी जो क रा ल के मजाज के लहाज से असंभव था। इस लए ल लत के वापस
लौट आने से यह तो होना ही था जो आज आ।
न जाओ संईयाँ, छु ड़ा के बइयाँ

े के कारण नह होते; प रणाम होते ह पर ेम म प रणाम क चता तब तक नह होती



जब तक दे र न हो जाए। पंछ घर के छत , मे ो क सी ढ़य , कॉलेज के खुले मैदान म या
फर पाक के पेड़ के गद अपनी जदगी के नीड़ बनाने के सपने म खोए रहते ह और
प रणाम अपनी प रण त क ओर मंद ग त से चलता जाता है। यह प रण त सुखद होगी या
खद या क फर खद प रण त का सुखद प रणाम या फर इसका भी उ टा होगा यह
महज इस बात पर नभर होता है क ेम का प रमाण कतना है। है भी या नह ।
सीडीएस क परी ा के बाद म घर चला गया था। पहले पाँच-छह दन तो सब ठ क
रहा मगर उसके बाद रा ल के कॉल रोज ही आने लगे। वह जब भी कॉल करता ज द
आने को कहता। मुझे ऐसा लगा क उसका मन अकेले नह लग रहा होगा इस लए वो
कॉल कर रहा है। मुझे भी अब OIR टे ट और P&DT टे ट क चता सता रही थी। उसके
बाद इंटर ू और साइकोलो जकल टे ट क भी तैयारी करनी थी। इस लए म भी द ली
वापस आ गया।
सी ढ़याँ चढ़ते ही मुझे घर का माहौल कुछ अजीब लगा। सी ढ़य के नीचे लगे मोटर
पंप चलाने के लए उतरी प र ध ने मुझसे कुछ कहना चाहा; मगर अचानक क गई। उसने
मेरे ‘हेलो’ का जवाब भी नह दया और आँख साफ करते ए सी ढ़याँ चढ़ गई। म भी
परेशान आ। प र ध के चेहरे से जा हर था क सब कुछ ठ क नह है। मुझे लगा क ज र
रा ल से झगड़ा आ होगा। मगर जतना म प र ध को जान पाया था उस लहाज से
प र ध रा ल से झगड़ कर रोएगी नह । इसके उलट वह च लाकर अपनी बात मनवा लेने
वाल म से थी। म थके कदम से ऊपर चढ़ा। छोटू काम ख म कर नीचे उतर रहा था। मने
उसे सीढ़ म ही रोककर चाय बना के जाने के लए कहा। जस पर उसने बताया क रा ल
भैया ने आपके जाने के बाद से ध मँगवाया ही नह है। मुझे रा ल पर ब त गु सा आया।
म छोटू को जाने का कहकर कमरे म दा खल आ। रा ल ने मुझे दे खते ही हड़बड़ाहट म
ही खड़े होकर कहा-
“झाड़ी, भाई अ छा आ तू आ गया। ज द कर, घर खाली करना है।”
“ य या आ ” मने घबराकर पूछा।
“ आ नह झाड़ी, होने वाला है।”

“ े ै े ओ ” े ो ै े ो ी
“शां त से बैठ के बताओ या आ।” मने रा ल को बैठाते ए कहा। रा ल को भी
एहसास आ क वो मेरे कमरे म घुसते ही अपनी ॉ लम लेकर बैठ गया था। इस लए
उसने मेरा बैग पैक लेकर कनारे रख दया और फर बैठते ए कहा-
“यार, Paridhi is three week late ” रा ल ने फँसी ई आवाज म कहा।
“What ले कन वो तो .” मने ीकॉशन क बाबत पूछा।
“हाँ यार, ीकॉशन लेती थी ले कन माइ ेन क कोई दवा भी लेनी शु क थी। उसी
के साइड एफे ट क वजह से शायद ” रा ल ने कहा।
“Shit man ” मने सर पकड़ लया।
“गड़बड़ हो गई यार।” रा ल ने बुझी आवाज म कहा।
“प र ध या कह रही है ” मने पूछा।
“शाद करने को। पापा से बात करने को।” रा ल ने सीधा कहा।
“ फर ”
“मना कर दए।”
“ य , मना य कर दए ” मने गु से से पूछा।
“बस मना कर दए।” रा ल ने ढ ठाई से जवाब दया।
“मना कर दए। मना कर दए का या मतलब ” मने लगभग उबलते ए पूछा।
“तो या कर, शाद कर ” रा ल ने भी च लाते ए जवाब दया।
“नह , ले कन अभी कम-से-कम वादा तो करो। उसक भी हालत तो समझो।” मने
गु सा पीने क को शश करते ए कहा।
“अबे प चीस साल म कौन शाद करता है बे ” रा ल ने खीझते ए कहा।
“अब ” मने दोन हाथ को छाती पर बाँधते ए रा ल से पूछा।
“अब या, कमरा खाली करगे। और या ” रा ल ने ज दबाजी म फर वही रट
हराई। रा ल को ऐसा करता दे ख न जाने कैसे मेरा हाथ उसपर उठ गया। मने यह
जानकर नह कया था। मुझे उसक बात से खीझ थी और इतना समझाने के बावजूद;
इतनी गल तय के बावजूद वो भाग रहा है। मने च लाते ए कहा -
“भचो, समझ भी रहा है क तू कह या रहा है कमरा खाली करते ह कमरा खाली
करते ह। रटे जा रहा है यही सो युशन है और उस लड़क का या वो कहाँ भाग के
जाए लडी ए के प ट इसी दन से म डरता था। इसी दन के लए मना करता था। मगर
मेरी सुनता कौन है ” कहते ए म गु से से बैठ गया। रा ल ने भी कोई त या नह द ।
वह भी चुपचाप मेरे सामने ही बैठा रहा।
मने गु से म रा ल पर हाथ उठा तो दया था मगर फौरन ही मुझे अपनी गलती का
एहसास भी आ। अब म उससे नजरे नह मला पा रहा था। नजर इधर-उधर भटकने के

ौ े े े े ो ै ी ै
दौरान मने दे खा क कमरे के बाहर दो पैर क परछा खड़ी है। म समझ गया था क
प र ध दरवाजे के बाहर खड़ी हमारी बात सुन रही है। मने रा ल को चुप रहने का इशारा
कया। रा ल भी उसके पैर क परछा दे खकर समझ गया और अनमना हो गया। काफ
दे र तक जब कोई बात प र ध को सुनाई नह द तो वह दरवाजा खोलकर भीतर आ गई।
पछले एक ह ते म ही उसके चेहरे म काफ बदल आ गया था। तनाव, परेशानी, अपमान
और अंजाने डर ने उसक सेहत पर अपना बुरा असर छोड़ा था। ऊपर से रही-सही कसर
रा ल ने पूरी कर द थी। भीतर आते ही प र ध ने मुझे दे खकर एक उतरी ई मु कान द
और कहा -
“मो हत, तू जरा दो मनट बाहर जाएगा मुझे इससे कुछ बात करनी है।”
“तू कह नह जाएगा। इसे जो बात कहनी है तेरे सामने ही कहे। वैसे भी तुझसे कुछ
छु पा नह है।” रा ल ने मुझे कलाई से पकड़ते ए कहा। म असमंजस म पड़ा अभी कुछ
कह पाता तभी प र ध ने रा ल को अपलक दे खते ए कहा -
“तूने कुछ भी पसनल नह रखा ना ” कहते-कहते प र ध के आँसू बह नकले। उसे
रोता दे ख मने ही बात संभाली-
“अरे नह , इसक तो एवई बकने क आदत है। तुम बात करो म आता ँ और वैसे
भी ध है नह । मुझे चाय क यास लगी है।” कहकर मने उस बो झल माहौल को ह का
करने क को शश क और बाहर नकल गया। जानबूझकर म मैगजीन के टॉल पर गया
और टाइम बताने के लए कुछ कताब पलटने लगा। ब कट के दो पैकेट भी खरीदे और
जब ऐसा लगा क समय काफ हो गया है तो कमरे क ओर चल दया।

जब म ध लेकर ऊपर आया तो प र ध जा चुक थी। रा ल सर पकड़े बैठा आ


था।
“ या आ ” मने ध और ब कट रखते ए पूछा।
“वही। Blame game and all that ” रा ल ने लंबी साँस लेते ए कहा।
“कहा या उसने ” मने प र ध के बारे म पूछा।
“She is ready to abort .”
“तो फर ”
“सीलमपुर म कोई गाय नक है जो कर दे गी; पर वो मेल क पै नयन के बना केस
नह लेती है।”
“हाँ तो जा साथ म उसके। जाना ही चा हए वैसे भी।” मने चाय क केतली चढ़ाते
ए कहा।
“मुझसे नह होगा यार।”
“ या नह होगा ” मने डाँटते ए कहा।

“ ी ” े
“यही सब। Abortion and all that ” रा ल ने कहा।
“हरामी टाइप बात मत करो। दमाग गरम हो जाएगा फर गाली-वाली दे दगे। कहाँ
तो साले तुमको उस लड़क को सपोट दे ना चा हए और कहाँ भागने क सोच रहे हो ” मने
गु सा पीते ए कहा।
“उसी क गलती है। उसने ीकॉशन ही ठ क से नह लया।” रा ल ने भड़कते ए
कहा।
“ फर वही बात भोसड़ी के, वही य ले ीकॉशन। तुम य नह लोगे ीकॉशन ”
मने गु से म बदजुबानी क ।
“Because I trusted her . य क मुझे लगा वो ले रही है तो सब ठ क है।”
रा ल ने सर पकड़ते ए कहा।
“यही बात। बलकुल यही बात। तुम जतना उसको ट करते हो, उतना ही ट
उसको तुमपे होना चा हए ना और वो ले तो रही ही थी। अगर कसी कारण से ीकॉशन
फेल हो गया तो गलती उसके सर डाल दोगे ” म लगभग उबलती जुबान म कहा।
“करना या है झाड़ी बताओ, मेरा दमाग फट रहा है।” रा ल ने दोन हाथ से सर
पकड़कर पूछा।
“चाय पयो पहले और सुनो, सरा कोई ऑ शन नह है। अगर वो मटली रेडी है तो
उसे ले जाओ; but make sure that its her decision and not yours ”
मने कहा।
रा ल थोड़ी दे र सर झुकाए; अपनी दोन हथे लय म चेहरा छु पाए शांत बैठा रहा।
फर कुछ सोचकर अचानक ही बोल पड़ा-
“तू भी साथ चलेगा झाड़ी ”
“म म जाकर या क ँ गा ” अब मेरी हवाइयाँ गायब थ ।
“तू चलेगा तो संबल रहेगा यार।” रा ल ने लगभग गुजा रश करते ए कहा।
“पं डत कैसा लगेगा यार दो लड़क के साथ एक लड़क सोच जरा ”
“तू भीतर मत जाना। मोड़ पर ही क जाना कह । पर चल न यार।” रा ल ने फर
कहा। रा ल को ऐसी थ त म अकेले छोड़ दे ना मुझे उ चत नह लगा। मने थोड़ी दे र
सोचने के बाद कहा-
“ठ क है। चलूँगा, पर पहले प र ध को बता क तू चल रहा है।”
“कैसे पूछूँ भाई ” रा ल ने बचकाना सवाल कया।
“मैसेज कर दे क डेट ले ले; वो समझ जाएगी।” मने कहा।
“थ स झाड़ी। यार मेरा दमाग काम करना बंद कर दया था। दे ख ना, तुझसे ये भी
नह पूछ पाया क ए जाम कैसा रहा ” रा ल ने पेशानी पोछते ए कहा।
“लगता है एम.बी.ए पूरा नह हो पाएगा।” मने कहा।
“ ऐ ै ”
“ य । ऐसा य कह रहा है ”
“ य क उससे पहले सीडीएस म हो जाएगा।”
“ ेट यार ” कहते ए रा ल ने मुझे गले से लगा लया।
***

व के इस कतरे को म भूल जाना चाहता ँ। यह आ मा पर बोझ जैसा है अब


तक। बो झल, कातर और अ य भी। श द , वचार और दलील से आप लाख म
अपने गद बुन ल; मगर स चाई का बोझ आप महसूस करते ही ह। रा ल बेचैन था और
परेशान भी। ऐसी थ त क क पना, बना इस अजाब म पड़े क भी नह जा सकती।
रा ल ने रात के बाद क जदगी न कभी सोची थी और न कभी सोचने क ज रत आन
पड़ी थी। सारी वाचालता, चतुराई धरी रह जाती है। ऐसी थ त के लए कोई लड़का या
लड़क कभी तैयार नह होते। रा ल भी नह था। हाँ, मगर वो तैयारी कर ज र रहा था।
कल क तैयारी। कल जो ब त भारी गुजरने वाली थी। वो सैकड़ दफा फज स नेचर क
ै टस कर चुका था। गाय नक से वो या कहेगा इसक भी तैयारी उसने अपने हसाब से
कर ली थी। लौटते व कस रा ते आना है यह भी तय कर चुका था। कसी ने दे ख ही
लया तो या कहना है इसके बहाने भी उसने सोच रखे थे। रात बीती। तय व से दस
मनट पहले ही हम ल मीनगर मे ो टे शन पर आ गए। प र ध अभी नह आई थी। रा ल
कुछ यादा ही तनाव म था। उसके तनाव को कम करने के लए मने मजाक कया -
“फौ जय से या- या करवाओगे पं डत ”
“मतलब ” रा ल ने रा ते क ओर दे खते ए ही पूछा।
“मतलब क अब हमलोग बम भी गरवाएँ और ब चा भी गरवाएँ ” मने हँसते ए
कहा।
“घ टया मजाक है ये। तुमको नह जाना है मत जाओ। मगर ऐसा घ टया मजाक मत
करो।” रा ल ने नाराज होते ए कहा।
“सॉरी सर, अ छा लगा क तु ह बुरा लगा।” मने कहा। मुझे सचमुच यह बात अ छ
लगी क रा ल को इस बात क गंभीरता का एहसास है और उसे भी पता है क मजाक
घ टया भी होता है। रा ल क नजर रा ते पर थी क तभी प र ध आती दखी। उसक
ब लौरी आँख से हमेशा झाँकने वाली ब ली गायब थी। वह उदास तो नह पर शांत च
ज र थी। उसके मुका बल रा ल यादा परेशान था। हाथ म कुछ पेपस दबाए वो हम
तक प ँची और एक फ क -सी मु कान के साथ उसने फर रा ल को दे खा। आँख क
शकायत ने मुझे यह समझा दया क वह शकायत रा ल को मुझे साथ लेने के लए थ ।
मुझे लगा क प र ध इस बात के लए तैयार नह थी क ऐसी थ त म उन दोन के
अलावा भी कसी को साथ होना चा हए; मगर रा ल क जद जसके आगे मेरे कुछ
चलती नह थी। फर भी इस दफा बात समझकर मने कहा -
“ओ े ो ो ँ”
“ओके पं डत, तुम लोग चलो। म नकलता ँ।”
“नह मो हत, तू भी चल। तू रहेगा तो मुझे ढाढ़स रहेगा। वैसे भी अब या फक
पड़ता है ” प र ध ने मुझसे कहा।
“ये हाथ म या लया है ” मने ला टक फो डर दे खते ए प र ध से पूछा।
“रेगलु र चेक-अ स ह।” कहते ए उसने जैसे ही रपोट ठ क करने चाहे कुछ कागज
नीचे गर पड़े। रा ल जैसे ही कागज उठाने के लए बढ़ा, प र ध ने पाँच उँग लय के इशारे
से उसे मना कर दया। उसने खुद ही झुककर कागज समेटे और फो डर म रखते ए
पूछा- “चल ”
“हाँ।” मने कहा।
बना कुछ कहे रा ल, म और प र ध मे ो टे शन क तरफ बढ़ने लगे। म तीन क
मे ो टोकन लेने कतार म लग गया। दोन को कुछ समय दे ने का यह तरीका भी कारगर
होता नह दखा। कतार म खड़े ए ही मने दे खा क दोन लगभग आसपास खड़े तो ह
मगर रा ल कसी अपराधी क तरह नजर नीची कए ए है और प र ध कसी अजनबी
क तरह एकटक बाहर दे खे जा रही है। रा ल उससे आँख नह मला पा रहा था। उसने
अपनी नजर नीचे प र ध क उँग लय पर रखी थी। रा ल ने अपनी तजनी से प र ध क
तजनी छू ने क को शश क ; ले कन प र ध ने झटके से अपना हाथ ख च लया। रा ल ने
अपना हाथ हटा तो लया; मगर आँख इधर-उधर भटकने के म म मुझसे टकरा ग । मने
बारा उसे हाथ पकड़ने का इशारा कया। प र ध ने फर हाथ झटक दया। अबक बार
रा ल ने उससे कुछ कहा जसका प र ध ने जोर ही से जवाब दया। बात गंभीर हो गई।
आस-पास दो-चार लोग क गए। म मे ो टोकन ले चुका था। ले कन मेरे वहाँ प ँचने से
पहले ही एक लड़के ने रा ल को दे खते ए प र ध से पूछ ही दया-
“Is there any problem ”
“हाँ, ॉबलम है। इसक कूट लेकर पपीता लाने गया था। पंचर हो गई है। साट
दे गा ” कहते ए रा ल शट क बाँह चढ़ाकर लड़के क ओर बढ़ा ही था क म दौड़ता
आ वहाँ प ँच गया और उस लड़के को थोड़ा कनारे ले जाते ए कहा -
“नह , श मान। सब ठ क है। चकबंद का झगड़ा है; ले कन अंडर कं ोल है। आप
रॉकेट बन जाइए।” लड़का हम घूरता आ आगे बढ़ गया। मेरी इस बात से प र ध को भी
हँसी आ गई। हम आगे बढ़े । रा ल ने आगे बढ़कर मे ो क भीड़ से रा ता बनाया। भीतर
घुसते ही भीड़ ने दोन को एक कर दया। अजीब बात यह थी क पूरे रा ते रा ल प र ध
को, खास कर उसके पेट को सर से बचाने क को शश करता रहा। वह लोग को हाथ के
इशारे और ह के ध के से ही प र ध से र करता रहा। जब भीड़ बढ़ने लगी और यह
लगभग तय हो गया क प र ध को चोट लग ही जाएगी तो प र ध ने रा ल क ओर चेहरा
कर लया। हालाँ क उसने पुरजोर को शश क क वह रा ल से र ही खड़ी रहे; मगर मे ो
क भीड़ ने उसे बेबस कर दया। अगले ही टॉप पर चढ़ भीड़ ने उसे रा ल के ब कुल

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करीब कर दया। रा ल ने उसके हाथ से फो डर छ नते ए मुझे दे दया और प र ध को
ब कुल अपने नजद क ख च लया। फो डर दए जाने के व प र ध ने मुझे दे खा। मने
हाथ के इशारे से आ त कर दया क चता मत करो म संभाल कर रखूँगा। प र ध बना
कुछ बोले रा ल से लग कर खड़ी रही। रा ल भी अपने दोन हाथ से हडरेल को मजबूती
से थामे रहा। कुछ ही दे र बार हम सीलमपुर टे शन प ँच गए।
मे ो से नकल थोड़ी ही र पैदल चलने के बाद वह ली नक आ गया। घर के ही
ाउंड लोर म बना वह ली नक दे खने से ठ कठाक ही लग रहा था। म मोड़ के मुहाने पर
ही क गया। रा ल, प र ध के साथ ली नक तक गया और लगभग पाँच मनट म ही
लौट आया।
“ या आ। लौट आया ” उसके आते ही मने पूछा।
“वो गई भीतर। फर पाँच मनट म एक पेपर लेकर आई। कहा यहाँ साइन कर दो।
मने कर दया। फर कहा क दो घंटे लगगे। तुम बाहर ही वेट कर लो, मो हत के साथ।”
रा ल ने चेहरा गराए ए कहा।
“चल, तो ठ क ही है ना। वो ब त मजबूत लड़क है। तू बेकार म इतना डरा आ
था।” मने रा ल के कंधे पर हाथ रखते ए कहा।
“पता है झाड़ी। जब मने साइन कर दया ना, तब उसने थ स कहा।” रा ल ने
आँख के कोर को साफ करते ए कहा।
“जाने दे , उसका गु सा जायज भी तो है। इतना तो बनता है यार।” मने रा ल क
पीठ पर हाथ मारते ए कहा।
“माँ क ब त याद आ रही है झाड़ी।” रा ल ने भराई आवाज म कहा।
“तो बात कर ले। आंट कह भी कह रही थ क तू बात ही नह करता।” मने कहा।
“माँ लड़क क पं चग बैग होती है। उनका े स ब टर। दा पीकर उ ह द सय
े मकाएँ याद आ सकती ह; मगर आँसू पीते ए उ ह बस माँ ही याद आती है। माँ ने कभी
छड़ी उठाई भी होगी तो बस इस वजह से क पापा से कम मार पड़े। माँ, लड़क क
सहेली कभी नह होती। फर भी वो बना कहे परेशा नयाँ समझ लेती है। वो आवाज म
उ साह, खनक, ठहराव, लर जस और उदासी पहचान लेती है और महज हैलो कहने के
अंदाज से ही जान लेती है क आपक मनः थ त कैसी है।”
रा ल ने माँ को फोन लगाया।
“हैलो, ममा ”
“ “
“हाँ, ठ क ँ। कभी पढ़ाई क है जो अब क ँ गा ”
“ “
“आपक याद आ रही थी तो फोन कर लया।”
“ “
“ “
“ य , आपक याद नह आ सकती ”
“ “
“नह , पापा से बात नह करनी।”
“ “
“बस कहना था आई लव यू।” कहते-कहते रा ल क आवाज फर भरा गई।
“ “
“नह ममा, म ठ क ँ। हाँ मो हत साथ ही है।”
“ “
“अरे, उससे या बात करनी म कह रहा ँ ना क म ठ क ँ।”
“ “
“अ छा दे ता ँ।” कहते ए रा ल ने मोबाइल मेरी ओर बढ़ाया। पीकर पर हाथ
रखते ए उसने धीरे से कहा “ममा तुझसे बात करना चाहती ह।” मने फोन लया और
कहा, “आंट नम ते ”
“नम ते बेटा, रा ल ठ क तो है ना ”
“हाँ आंट , बलकुल ठ क है।” मने कहा।
“बेटा वो रो य रहा है ” रा ल क माँ क आवाज भी भरा गई।
“कुछ नह आंट ऐसे ही।”
“कह कोई लड़क -वड़क तो नह ”
“नह , आंट आप तो जानती ह। रा ल ऐसा लड़का नह है।”
“हाँ वो तो है, चंचल है ले कन ऐसा नह है मेरा बेटा। अ छा उसने कसी से उधार तो
नह लए ”
“नह आंट , ऐसा कुछ नह ।”
“बेटा पैसे क ज रत हो तो बता दे ना। अंकल से कहकर जतने चा हए ह गे
भजवा ँ गी।”
“जी आंट ।”
“ कसी से झगड़ा-वगड़ा तो नह आ ना उसका ”
“नह आंट ।”
“ फर वो रो य रहा है ” आंट ने अब खुद रोते ए पूछा।
दरअसल माँ को आप बना कारण बताए नह टाल सकते। झूठा ही सही पर उनक
चता शांत करने के लए कारण आपको ढूँ ढ़ने ही पड़ते ह। मने भी उस व एक कारण

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ढूँ ढ़ ही लया,
“आंट , म आपको बताना नह चाह रहा था ले कन आप परेशान हो रही ह इस लए
बता दे ता ँ। ाटे जक ला नग के पेपर म रा ल को मुझसे 5 नंबर कम आए ह। इस लए
उदास है।”
“बस, इतनी-सी बात है। उसे फोन दो म अभी कह दे ती ँ। अगली बार तुमसे भी
यादा मेहनत करेगा।” आंट ने कहा।
“जी आंट ।” कहते ए मने फोन रा ल को दे दया।
“हाँ ममा।”
“ “
“हाँ, इसी लए। हाँ पढँ गा।”
“ “
“हाँ, अब आप पापा मत बनो। म पढँ गा।”
“ “
“बाय, लव यू। बाय।” रा ल ने कहते ए फोन काट दया। घंटे भर का समय
लगभग बीत चुका था। धूप तेज होकर सर पर आ गई थी। रा ल लगातार ही ली नक के
दरवाजे क ओर ही नजर लगाए खड़ा था। मुझे अचानक ही खाने क ज रत महसूस ई।
मने रा ल से कहा,
“भाई कुछ खा लेते ह।”
“उसे आ जाने दे फर साथ म ही खाएँगे।” रा ल ने भ ह को मलते ए कहा।
“भाई वो अने थे सया के एफे ट म होगी। नकलकर भी खाने क पोजीशन म नह
होगी। समझा कर।” म भूख से बेहाल हो रहा था।
“उसे बेहोश करगे ” रा ल ने आ य से पूछा।
“नह बेटे, गुदगुद करगे। Don’t talk like a fool . अबॉशन है भाई। इसम
व लगता है।”
“और वो होश म ही नह आई तो ” रा ल ने खड़े होकर परेशानी से टहलते ए
पूछा।
“सवाल तो ऐसे पूछ रहा है जैसे क तूने फॉम म अपना असली नाम डाला है। चल
मार। चल खाना खा लेते ह।” मने कहा।
“यार झाड़ी, कतने ह ते बाद ब चे म जान आ जाती है ” रा ल ने उदास आवाज
म पूछा।
“पता नह पं डत। यार तू अब ये फालतू क बात कर करके मुझे ग ट फ ल मत
करवा।” मने खीझते ए कहा। मुझे भूख भी लगी थी और रा ल क इन बात से मुझे

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ला न भी होने लगी थी। दोन ही कारण से म खीझ गया। रा ल शायद यह बात समझ
गया। उसने कहा,
“यार झाड़ी, तू कुछ खा ले। म तो नह जा सकता। अगर इसी व उसे ज रत हो
गई या वो नकल आई और मुझे नह पाया तो ब त बुरा होगा।”
रा ल को इस तरह दे खकर मुझे अजीब लग रहा था। एक तरफ मुझे इस बात क
खुशी भी थी क उसे कसी क फ हो रही है। सरी तरफ मुझे यह भी डर था क कह
यह दखावा केवल णक न हो। मने आ खर कह ही दया-
“भाई, एक बात क ँ। एक दन म इतना चज दखाओगे ना तो हमको गु त रोग हो
जाएगा। प र ध ठ क है; तुम ही ओवर रए ट कर रहे हो।”
“ हॉटएवर मो हत। तू कुछ खा ले यार।” रा ल ने खीझते ए कहा। मुझे याद नह
कतने दन बाद रा ल ने मुझे नाम से पुकारा था। मतलब साफ था। वह परेशान था और
मेरी बात से बे-असर भी। शायद मेरी बात उसे परेशान ही कर रही थ । यही सोचकर म
कुछ खाने क तलाश म नकल पड़ा। आगे ही एक कान पर चकेन पैट ज और को ड
क क एक बोतल से मने अपनी भूख मटाई। एक पैट ज और एक पानी क बोतल
लेकर जैसे ही म रा ल के पास प ँचा; मने दे खा रा ल प र ध को लए आ रहा है। प र ध
दो घंटे म ह त क बीमार जैसी लग रही थी। वह नढाल तो नह थी पर अपना सर रा ल
के कंध पर रखे धीरे-धीरे ही बढ़ रही थी। रा ल का एक हाथ प र ध के पंजे से फँसा आ
था और सरा हाथ उसक पीठ को सहारा दए था।
म जैसे ही प ँचा; रा ल ने कहा, “मने कहा था ना ” रा ल मुझ पर ऐसे च लाया
जैसे सारी गलती मेरी हो।
“करना या है अब ” मने भी खीझकर कहा।
“एक टै सी बुला ले। मे ो म जाना ठ क नह रहेगा।” रा ल ने झट से कहा।
“भाई, थोड़ी दे र बैठकर मे ो से ही चलते ह।”
“तू दे ख नह रहा। ऐसी पोजीशन म कैसे खड़ी रहेगी मे ो म। तू टै सी बुला। ड ट
वरी। मने एट एम से पैसे नकाले ह।”
रा ल यह समझा क मुझे पैस क परेशानी है; ले कन मेरी परेशानी सरी थी और
प र ध रा ल के इतने नजद क थी क म जोर से बोल भी नह सकता था।
“टै सी बुला तो लूँ भाई; ले कन इसक आँख चढ़ ई ह। घर पे शक हो जाएगा।”
मने फुसफुसाते ए ही रा ल से कहा ले कन शायद नजद क होने के कारण प र ध ने सुन
लया।
“मूवी दे खने चल।” प र ध ने उन दे ही कहा।
“ या ” रा ल हत भ रह गया।

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“ऊँचा सुनता है या मने कहा मूवी चल ” प र ध ने ब त ही कमजोर आवाज म
कहा। पहले तो मुझे हँसी आई ले कन मुझे भी प र ध क बात जँच गई।
“ठ क ही तो कह रही है। थोड़ी दे र थयेटर म रहेगी तो अने थे सया का असर भी
जाता रहेगा।” मने कहा और हम एक पेड़ क छाया म क गए। थोड़ी ही दे र म एक
टै सी सामने आकर क गई।
“भाई EDM मॉल ले लयो।” रा ल ने कैब वाले को रोकते ए कहा। कैब म म
आगे बैठ गया। रा ल और प र ध पीछे वाली सीट पर बैठे। बैठते ही मने सामने वाली मरर
को इस तरह घुमा दया क ाईवर पीछे क ओर न दे ख पाए।
“कुछ खाने को है ” प र ध क आवाज आई। मने बना पीछे मुड़े ही पैट ज और
पानी क बोतल पीछे पकड़ा द । प र ध ने ट यू पेपर से पैट ज पकड़ा और जतनी बड़ी
बाइट ले सकती थी, ली। रा ल पानी क बोतल हाथ म लए उसे दे खता रहा। पैट ज खा
लेने के बाद रा ल ने ढ कन खोलकर पानी क बोतल पकड़ाते ए धीरे से पूछा -
“Was it painful ”
“Shut up and no more question about it .” प र ध ने कहा।
“मुझे माफ कर सकती है ” रा ल ने उसके बाल म अपनी उँग लयाँ फराते ए
कहा।
“ना।” कहते ए प र ध ने अपनी पेशानी से रा ल क पेशानी ढँ क ली।
“I am phir bhi sorry I am sorry to the n th time. ” रा ल ने
उसक अँगठू को दे खते ए धीरे से कहा।
“तू बोलता रह। जब नह बोलता ना; तब यादा बुरा लगता है।” प र ध ने लरजती
आवाज म कहा।
“आई लव यू प र ध शमा।” रा ल ने प र ध क पेशानी चूमते ए कहा।
“आई लव यू टू रा ल म ा।” कहते ए प र ध ने रा ल क उँग लयाँ चूम ल ।
यार अब आ जाता था।
सा कया आज मुझे न द नह आएगी

सुबह हमेशा एक जैसी ही होती है। एक रस, एक वण, एक प लए। जीवन म ब त कम


ही सुबह ऐसी होती है जो उ भर याद रहे। मेरे लए आज एक ऐसी ही सुबह थी। सबेरे
उठते ही पापा का फोन आया था और उ ह ने मुझे यह खबर द क मेरा सीडीएस म
फाइनल सेले शन हो गया है। दो दन से लैपटाप का चाजर खराब होने के कारण म
वेबसाइट चेक नह कर पाया था। कम लोग के सपने पूरे होते ह। म उनम से एक था
जनके पूरे ए थे। जो आम वॉइन करना चाहता था और एनडीए म सेले ट नह होने के
कारण भी मने हार नह मानी थी और बेमन से एमबीए म एडमीशन लेने के बाद भी
सीडीएस क तैयारी करता रहा। पापा का फोन रखकर म रा ल को ढूँ ढ़ने लगा। वो शायद
राशन लाने नीचे गया था। जैसे ही वह आया उसने मेरे कुछ कहने के पहले ही अपनी बात
छे ड़ द -
“झाड़ी, मेरे पापा का फोन तो नह आया था ”
“मेरे पापा का आया था। तु हारे पापा का तो नह । य या आ ”
“भसड़ हो गई भाई। पापा का फोन आया था सबेरे-सबेरे। हमको लगा क प र ध
का होगा।”
“ फर ” मुझे कुछ मजेदार घटना का हट मल गया था। मने दलच पी लेते ए
पूछा।
“ फर या, हम न द म ही बोल दए- हाय बेबी।” रा ल ने उदास वर म कहा।
“भ क साले ” म हँसते ए दोहरा हो गया था।
“सही भाई, रौला हो गया।” रा ल ने मुँह गराए ए ही कहा।
“अबे ये कोई रौला नह है। वो समझे ह गे क तू उ ह को कह रहा था।” मने हँसी
रोकते ए कहा।
“सुन तो, कांड आगे आ भाई।” रा ल ने उदासी से कहा।
“सुना।”
“बेबी सुनकर उनको शॉक मार दया। एकदम शंट हो गए। तो हमको लगा क प र ध
हाय बेबी के बाद वाली लाइन सुनना चाह रही है। हम न द म ही बोल दये, आई लव यू

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बेबी।” रा ल को भी बताते ए हँसी आ ही गई।
“भक साले, झूठ मत बोलो।” म हँस-हँस के ह कान आ जा रहा था।
“भगवान कसम झाड़ी। यार फर पापा बना कुछ बोले फोन रख दए। तब से
मजाज लहरा आ है। यार झाड़ी, तेरे पास अगर फोन आए तो कह दे ना क हम अ छे से
पढ़ रहे ह। नह तो लोड ले लगे वो।” रा ल ने कहा।
“कह दगे भाई, ले कन हमको पता है क अंकल का फोन य आया था।” मने
कहा।
“ य आया था बे ” रा ल ने अचरज से पूछा।
“तुमको ये बताने के लए क मेरा फाइनल सेले शन हो गया है।” मने मु कुराते ए
कहा।
“ या ” रा ल ने खुशी से आँख फाड़े ए कहा।
“हाँ भाई आ खरकार ”
“गले मल भाई, इतना ब ढ़या यूज दया है। आज तो पाट होगी। दा पएँगे
आज।”
“डन।”
“ओ, अब समझ म आया। पापा सबेरे हमको टोचन दे ने के लए फोन कए थे क
मो हत के पापा मठाई बँटवा रहे ह और तुम हमलोग से दोना चटवा रहे हो।” रा ल ने
सोचते ए ऐसा कहा क मुझे हँसी आ गई। हँसते ए ही मने कहा-
“चल पहले बटु क शमा को मठाई तो दे आएँ।”
“हाँ चलो, इसी बहाने यार का द दार तो होगा।” रा ल ने हँसते ए कहा। हम मठाई
खरीदकर बटु क शमा के दरवाजे पर थे। घंट रा ल ने बजाई।
“कौन ” भीतर से बटु क शमा क आवाज आई।
“जमाई रा ल।” रा ल ने तेजी से शैतानी भरा जवाब दया।
“कौन है ” अबक बार कड़क आवाज आई
“जी म रा ल।” रा ल ने तुरंत श द व थत कर दए। बटु क शमा ने दरवाजा
खोला और रा ल को दे खकर कुछ कहते तब तक मने मठाई का पैकेट आगे बढ़ा दया।
“जे कस खुशी म बेटे जी ” बटु क शमा ने पूछा।
“Uncle I have cracked CDS .”
“ ै ड सी डी ठ क कया बेटे। एकदम ब ढ़या कया जो सीडी तोड़ द तूने। जे
चकरी ही छोर को खराब कर रही है आज कल।” बटु क शमा ने मठाई खाते ए और
रा ल क तरफ इशार से दे खते ए कहा। म समझ गया क मेरी अं ेजी बटु क शमा के

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प ले नह पड़ी और वो उसे फ म क सीडी समझ रहे ह। हारकर मने सीधे ल ज म
कहा-
“अंकल मेरी नौकरी लग गई है।”
“सरकारी है ” बटु क शमा ने फौरन सवाल कया।
“जी अंकल।”
“अरे जे बड़ी खुशी क बात है। एक मठाई और खला। म तो पीछे ही जानता था के
तू ज र कुछ करेगा। मेरा कमरा है ही इतना भागशाली। तेरे पीछे जो लड़का करायेदार
था ना; वो भी सफाई वभाग म जमादार हो गया था, इसी कमरे से।” बटु क शमा ने ऐसी
तुलना क जससे मेरी सारी खुशी काफूर हो गई।
“ठ क है अंकल। हम चलते ह।” मने नकलने म ही भलाई समझी।
“रे थम तो। शबत तो पीता जा। प र ध रे छोरी, शबत बना ला ज द ।” बटु क शमा
ने कहा।
“नह अंकल, आज हम जरा बाहर जा रहे ह। शाम को आते ह।” मने कहा।
“ कस वभाग म नौकरी ई तेरी बेटे ” बटु क शमा ने पूछा।
“जी, आम म।” मने कहा।
“साहब वाली पो ट पर ” बटु क शमा ने फर पूछा।
“जी अंकल।”
“ब त अ छा बेटे। ब त ब ढ़या। बड़ी खुशी ई जे सुन के।” बटु क शमा ने मठाई
का पैकेट टे बल पर रखते ए कहा।
“जी अंकल।” कहकर म और रा ल कमरे से नकल गए। अभी हम नीचे प ँचे ही थे
क बटु क शमा ने पीछे से आवाज द ,
“बेटे, सुन जरा।”
“हाँ, अंकल बो लए।” मने कहा।
“जरा अपने पापा का फोन नंबर दे ना।” बटु क शमा ने कहा।
“जी अंकल। नोट क जए।” कहकर मने पापा का फोन नंबर बटु क शमा को
लखवा दया। पैदल चलते ए सगरेट क कान पर हम प ँच गए। सगरेट जलाते ए
रा ल ने बेतुका सवाल पूछा-
“ये सरकारी नौकरी या होता है झाड़ी ”
“जो मेरे बाप और तु हारे बाप करते ह।” मने भी सगरेट रा ल से लेते ए बेतुका
जवाब दया।
“मतलब उनके अलावा नया म कुछ नह ह।”

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“नह हमारी नया म तो नह । हम वह तक सोच पाते ह।” मने भी सफेद धुआँ
आकाश के हवाले करते ए कहा।
“ठ क कहते हो। पापा हमेशा माँ को सुनाते रहते ह- नौकरी हो तो सरकारी वना बेचो
तरकारी।” रा ल ने आधी जली सगरेट जमीन पर मसल द ।
***

म यवग य पता क कई वशेषता म से एक वशेषता है उनक सामा जक


नजर। यह नजर महज एक नौकरी से तौल ली जाती है। कल तक चौक-चौबार म बैठ कर
धू -छ ले उड़ाने वाला लड़का महज एक नौकरी के बाद इन पता को रात-रात भर
लालटे न क रोशनी म पढ़ने वाला दख जाता है। कल तक अपने बाप क मोटर बाइक पर
घूमने वाला आवारा इ ह अ सर को चग सटर के बाहर बाइक पर बैठ पढ़ता दखने लगता
है। कल तक इन नक म का नाम भी न जानने वाले ये पता अब गो तक क तलाश म
लग जाते ह। यह प रवतन या तो अपने बेट को स ता बताने के लए होता या बे टय का
र ता बनाने के लए।
इसके उलट लड़क के साथ एक सम या यह भी होती है क वह 16 क उ म ही
शाद के लए शारी रक प से तैयार भले ही ह ; 61 क उ तक मान सक प से तैयार
नह हो पाते। सुहागरात उनका सपना भले हो; शाद ः व ही होता है। दरअसल लड़के
बड़े नह होना चाहते। और यही डर उ ह हामी भरने से रोकता रहता है। मुझे लगता था क
रा ल के साथ भी यही सम या थी। उस दन रा ल को पहली बार मने च तत दे खा। अभी
म उससे कुछ पूछता उससे पहले ही उसने कहा -
“ जदगी एयर हो टे ज हो गई है झाड़ी, न चाहते ए भी हँसना पड़ता है।”
“ या हो गया है पं डत तु ह ” मैने पूछा।
“ यार हो गया है झाड़ी। ब त सरदद का काम है भाई।” रा ल ने कहा।
“चलो घर से घूम आते ह। जस ीत को दे खोगे तो सर दद कम हो जाएगा।
आजकल और ठ क लग रही है।” मने बा आँख दबाते ए कहा।
“नह झाड़ी। प र ध अकेली हो जाएगी यार। फर अकेले म रोएगी। रोती है तो टशन
हो जाता है भाई।” रा ल ने कान साफ करते ए कहा।
“प र ध हमको नह लगता क आज से पहले तुम उसका नाम लए हो। फर तो
तुमको हो गया है भाई। अब मामला गंभीर लग रहा है। आ या ” मने पूछा।
“बटु क शमा ने तेरे पापा का नंबर जो माँगा था ना ” रा ल ने कहा।
“हाँ तो ” मने आ य से पूछा।
“वो दरअसल प र ध से तेरे र ते क बात के लए माँगा था।” रा ल बात पूरी नह
कर पाया।
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“जा रे साला बटु क तो पूरा बटु क है। तुम भी कैसी बात लेकर परेशान हो ” मने
कहा।
“वो बात नह झाड़ी। हम जानते ह क तुम मना कर ही दोगे; ले कन यार जब उसके
दमाग म इसक शाद क बात आ ही गई है तो और कतने दन केगा छह महीने या
यादा-से- यादा साल भर। फर उसके बाद तो कह -न-कह कर ही दे गा।” रा ल ने
आँख के कोन को तजनी और अंगठ ू े से रगड़ते ए कहा।
“प र ध संभाल लेगी। तुम चता मत करो।”
“वो भी हम जानते ह झाड़ी; ले कन यह सब काम तो सरे कर रहे ह। हम या कर
रहे ह ” रा ल ने खुद से ही सवाल कया।
“और करना या चाहते हो तुम ”
“पता नह । बस उसक शाद म सलाद से छोटा भीम नह बनाना चाहते यार।”
रा ल ने कहा।
“हँसाओ मत साले, कुछ सोचो। शाद अगर करनी ही है तो तब तक कोई ाइवेट ही
पकड़ लो।”
“तुमको या लग रहा है क हम नौकरी के लए परेशान ह ”
“तो फर ”
“नौकरी तो बाल बढ़ाने से मल जाएगी झाड़ी, हम परेशान इस लए ह क साला 25
साल क उ म कोई शाद करता है या और फर इस बकलंठ ससुर से हम शाद क
बात कैसे करगे जसको हम गाँजा भर के सगरेट पलाए; जसको हम अपना 40 GB
का खजाना दखाए। उससे उसी क बेट के लए शाद क बात कैसे करगे ” रा ल ने
जोर दे ते ए कहा।
“तुम साले बटु क को पॉन कब दखाए ” मुझे हँसी आ गई थी।
“आया था एक दन। कहता है कतना बड़ा मोबाइल का न ठ क रहेगा। उसी
दन भर दए मोबाइल म।” रा ल ने हँसते ए कहा।
“जा रे अभागा ” मने सर पकड़ लया था। हँसते-हँसते मेरी आँख म पानी आ गए।
“और पता है, एक ह ते बाद या कहता है ” रा ल ने हँसी रोककर कहा।
“ या ” मने खाँसते ए पूछा।
“कहता है क ये हर फ म के ला ट सीन म नशाना सही य नह लगता है। इधर-
उधर भाग जाता है।” कहते-कहते रा ल को फर हँसी आ गई।
“भक साले, हँसाओ मत। उलट जाएँगे।” मने पेट पकड़ते ए कहा।
“अब बताओ ऐसे आदमी से उसी क बेट से शाद क बात कैसे कर ” रा ल ने
वा जब बात क ।

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“ठ क कह रहे हो राजा ले कन ये कोई ॉ लम नह है। तुम बात नह करोगे तो
प र ध बात कर लेगी। हम बात कर लगे। तुम नौकरी क सोचो।” मने कहा।
“नौकरी का या सोचना झाड़ी, वो तो बाल बढ़ाने से मल जाती है। तुम कोई शायरी
सुनाओ।” रा ल ने बे फ कहा।
अभी म इन बात का मजा ले ही रहा था क दरवाजे पर एक जोरदार धमक के साथ
प र ध अंदर घुसी।
“मो हत, चाभी ले और बाहर जा। और हाँ, आराम से अइयो।” प र ध ने मेरी ओर
बटु क शमा के कार क चाभी उछालते ए कहा।
“ये कौन-सा तरीका है लड़क के कमरे म घुसने का ” मने प र ध को छे ड़ते ए
कहा।
“तू जाता है या नह ” प र ध ने कमर पर हाथ रखकर भव टे ढ़ करते ए कहा।
“एक तो मुझसे तू-तड़ाक से बात ना कर। इ जत दे , म तो तेरा होने वाला प त ँ।”
मुझे उसे दे खते ही हँसी आ गई थी।
“शकल दे खी है अपनी।” प र ध ने हाथ को एक- सरे से बाँधते ए तन कर कहा।
“ य , तेरे इस चूरन से तो अ छा ही ँ और वैसे भी मेरे पास तेरे बाप का आशीवाद
है, अ छ सैलेरी है, प क नौकरी है। इसके पास या है हाँय ”
“इसके पास म ँ। और सुनना है कुछ ” प र ध ने तमतमाते ए कहा।
“एक तो तू इस कमरे का रट शेयर कया कर। आधे व तो यह बैठे रहती है।” मने
प र ध को फर छे ड़ा।
“तू जाने का या लेगा ” प र ध ने अबक धमक भरे लहजे म कहा।
“बस एक बार कह दे क तू मुझसे भी यार करती है।” मने तजनी म चाभी घुमाते
ए कहा।
“तुझसे भी मतलब, मजाक बना रखा है मेरा। एक तो म वैसे ही परेशान ँ और इसे
कोई फक भी नह पड़ता।” प र ध ने रा ल से र ब तर पर बैठते ए कहा।
“अब तू कलेश मत कर। म भी कोई कम परेशान नह ँ।” रा ल ने दोन हाथ के
बीच चेहरा छु पाते ए कहा।
“तू परेशान हो के भी या करेगा छत क ओर दे खेगा और खो जाएगा। ज हाई
लेगा और सो जाएगा।” प र ध ने रा ल क नकल करते ए कहा। उसके कहते-कहते ही
रा ल को ज हाई आ गई। प र ध का गु सा सातव आसमान पर चढ़ गया। गु से से भरी वो
भी त कये पर कुहनी टकाकर अपने हाथ से मुँह छपा कर बैठ गई। रा ल समझ गया
क अभी कुछ भी करना पलीते को आग दे ना है। वह चुप ही रहा। प र ध सुबकती रही।
“मेरे पास एक सो युशन है।” मने दोन को चुप दे खकर कहा।
“ या ” प र ध ने ब च -सा उ सा हत होकर पूछा।
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“तू मुझसे शाद कर ले।” दबाते-दबाते भी मेरी हँसी छू ट गई।
“साले तू ऐसे नह मानेगा।” कहती ई प र ध दनदनाती आई और मेरे बाल को
पकड़ कर मेरा सर झुकाते ए मुझ पर घूँस क बरसात कर द । मेरा हँसना जारी रहा।
बीच-बीच म रा ल ‘छोड़ दे यार’ बस यही कहता रहा।
मार खाते ए भी मने कहा-
“दे ख ले, सोच ले। तुझे मार खाने वाला प त सरा नह मलेगा।”
प र ध क और रोने लगी। मामला वाकई मजाक क हद से नकलकर गंभीर हो
रहा था।
“ ला दया ना ” कहते ए रा ल उठा और प र ध के बाएँ आकर बैठ गया। प र ध
उसके कंध के इंतजार म ही थी। उसके सीने से सटकर फर रोने लगी। रोत-रोते ही
अचानक उसे कुछ याद आया और दोन हाथ क हथे लय से आँख प छते ए रा ल से
बोली-
“तू कुछ करता य नह ”
“ या क ँ ” रा ल उसके बाल म उँग लयाँ फराता आ बोला।
“पापा से बात कर।” प र ध ने कहा।
“ या क ँ, ये क अंकल म रा ल म ा। आपको फ टर पेपर म तंबाकू रगड़कर
दे शी सगरेट पलाने वाला रा ल म ा आपक बेट से शाद करना चाहता है।” रा ल ने
खीझते ए कहा।
“पापा सगरेट पीते ह ” प र ध को अब सरी ही चता लग गई।
“नह मेरा ल मेरा मतलब मेरा ल पीते ह। ल ।” रा ल ने जैसे-तैसे बात
संभाल ली। मुझे फर हँसी आ गई।
“हँस य रहा है तू। बड़ी हँसी आ रही है तुझे। और तूने अकेले-अकेले कैसे फॉम
भर दया। इसे य नह बताया। तू जेलस है साले ” प र ध ने एक साँस म मुझसे कहा।
“बताया था। ला ट डे को फॉम भी लाया था। ए ा, मगर उस दन तुझे ब त जोर
क मोमोज लगी थी। लाजपत नगर जाना था भाई को।” मने गु साते ए कहा।
“हाँ हाँ। सारी गलती तो मेरी ही है।” प र ध ने भी अपनी हथे लय म अपना चेहरा
छु पाते ए कहा।
“चुप कर ले भाई। इतना बड़ा भी कोई इ यू नह है।” रा ल ने बीच म कहा।
“हाँ हाँ, तेरे लए तो बड़ी इ यू यही है क यार स चन को अभी चार साल और
खेलना चा हए और नेहरा को ला ट ओवर य नह दया ” प र ध ने झ लाते ए कहा।
“तू तस ली रख। म बात क ँ गा अंकल से। अगले महीने कै पस आने वाली है। हो
जाएगा कह -न-कही।” रा ल ने कहा। कै पस क बात से मुझे हँसी आ गई। मेरे हँसने के

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साथ ही रा ल को भी हँसी आ गई। दोन को हँसता दे ख प र ध तमतमा कर उठ और
झ लाहट के साथ बुदबुदाती, रोती बाहर नकल गई। रा ल ने सर पकड़ लया।
“ब त सम या है जदगी म झाड़ी।” रा ल ने कहा।
“ये तो तु हारा अपना बोया आ है। खाद-पानी दे ते व समझ नह आया था क
सम या उग आएगी।”
“अबे ये खाद पानी दे ने क ही उ है। अब प चीस साल क उ म कोई शाद क
सोचता है या ” रा ल ने कहा।
अभी मने इसके जवाब म मुँह खोला ही था क एक झटके से दरवाजा खुल गया।
दरवाजे के पीछे प र ध ही थी जो हमारी सारी बात सुन रही थी। उसने दरवाजा बंद कया;
भीतर आई और रा ल से कहा,
“लड़ कय क यही उ होती है माँ-बाप के नजर म शाद क । वो अपनी जगह ठ क
ह और म अपनी जगह। शाद तो मने तुझसे ही करनी है। कैसे करनी है ये सोचना तेरा
काम है।”
“तू जाएगी तब तो सोचेगा कोई।” मने हाथ जोड़ते ए कहा।
“जा रही ँ संसद बैठा लो अपनी। और हाँ ये खाद-पानी या है ” प र ध ने दोन
हाथ कमर पर रखते ए पूछा।
“कुछ नह , तू अब जा यहाँ से।” अबक रा ल ने कहा।
“जा रही ँ। ले कन सुन लो, अगर ऐसा वैसा कुछ आ ना तो दरवाजा बंद कर
आग ।” प र ध ने अभी इतना ही कहा था क मने डरकर बीच म ही टोक दया-
“अरे तू य आग लगाएगी गलती कसी और क और सजा तू य भुगतेगी ”
“तु हारे कमरे का दरवाजा बंद कर आग लगा ँ गी। जल के मरोगे सालो, समझे ”
प र ध ने कहा और अबक बार अंततः नीचे उतर गई।
***

अ छे दन बता कर नह आते। वह यूँ ही कसी सुबह धमक पड़ते ह। चौथे सेमे टर


क परी ाएँ भी ख म हो चुक थ । ाइवेट सं था क सबसे अ छ बात यह होती है क
वे अपने ब च को फ ट डवीजन दे ने म कोताही नह करत । ोजे ट के चालीस परसट
का वेटेज इ ह बुरे दन को दे खकर बनाए गए होते ह। पछले तीन सेमे टर के रज ट से
ही जा हर था क हम दोन के रज ट् स े डग स टम के हसाब से भी 7 तो हो ही
जाएँगे। मुझे रज ट क चता वैसे भी नह थी। म तो अपनी े नग के इंतजार म था। चता
तो रा ल को भी नह थी। उसे कभी चता ई ही नह या अगर ई भी तो उसने कभी
जा हर नह कया। बस एक अंतर यह ज र था क अब वह नय मत प से जॉब
ओपे नग पर यान रखने लगा था। ए सट, HT जॉ स और इ लॉइमट यूज वह नय मत
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प से दे खने लगा था और साथ-ही-साथ उसने बाल कटवाने भी बंद कर दए थे। मुझे
पहले ऐसा लगा क रा ल भी मेरी तरह यू- ो हेयर टाइल रखना चाहता है; मगर ऐसा
संभव न था। एक तो उसके बाल स क थे और सरे वो मेरे हेयर टाइल को घोसला कह
मजाक उड़ाता था इस लए वो खुद ऐसा करेगा इसक उ मीद कम ही थी। वैसे भी वह या
सोचकर ऐसा कर रहा है, जब तक वह खुद न बता दे तब तक समझ पाना कसी के बस
क बात नह थी। छत पर टहलता उस रोज म ऑडर कए ए प जा का इंतजार कर रहा
था जब रा ल दौड़ता आ मेरे पास आया।
“झाड़ी झाड़ी, साले ये दे ख।” रा ल ने बदहवासी से कहा।
“अब या ओपेन एयर शो दखाओगे। चलो भीतर। वही दे ख लगे तु हारी ले सी
लीजर को।” मने पॉन फ म समझते ए कहा।
“अबे ले सी लीजर नह ; मेरा यूचर है भाई।” रा ल ने तपाक से लैपटॉप मेरी
जाँघ पर रख दया।
“मतलब अबे लैपटॉप ब त गरम है बे ” मने उसे दे खते ए पूछा।
“मतलब ये, ये दे ख। मनेजमट े नी क वैके सी का ा ट ” रा ल ने कहा।
“ये पहेली म बात न अपनी कॉल सटर वाली रानी से करना। हमको सीधा-सीधा
बताओ।” मने खीझकर कहा। लैपटॉप क गरम बैटरी से मेरी जाँघ झुलस सी गई थी।
“हाईवे अथॉ रट म मनेजमट े नी क वैके सी आने वाली है।” रा ल ने चमकती
आँख से कहा।
“आने वाली है। मतलब अभी आई नह ” मने पूछा।
“नह ।” रा ल ने फर कहा।
“तो तुझे कैसे पता ” मने पूछा।
“वही तो बता रहा ँ। सुन, तुझे याद है। मने म हका के लैपटॉप म key-logger
सेट कर दया था।” रा ल ने समझाते ए क- ककर कहा।
“हाँ, तुमको उसक सु चता क चता लगी थी।” मने मजाक कया।
“भक साले, बात सुनो। वो लैपटॉप दरअसल उसके बाप का था और वो उस दन
उसी लैपटॉप से ऑनलाइन थी। हम तो उसी म key-logger डाल दए थे। कुछ दन
बाद ही पता लग गया क लैपटाप बूढ़ ह ी का है। साला बूढ़ा या तो केट का वी डयो
सच करता था या फर स क मता का फोटो। कुछ और काम ही नह करता था और
फर म हका के साथ मेरी ऐसी-तैसी भी हो गई थी। इस लए हम इस पर यान दे ना छोड़
दए थे; ले कन key-logger हटाए नह थे। आज म हका के पापा का पी.ए. उसको
एक लेटर मेल कया। उसम गलती दे खकर पहले तो उसको अं ेजी म यार कया; फर
उस ा ट को री-टाइप कर के भेजा क इसका ऐसा ट नकाल के कल हमको ऑ फस

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म दखाना जो री-टाइप कया है। वो तु हारे सामने है।” रा ल ने एकएक श द पर जोर दे ते
ए कहा।
“तो ये कौन-सा तु हारा वॉइ नग लेटर टाइप कर दया है पं डत क साँस और खाँस
दोन चलने लगी है तु हारी।” मने लैपटॉप दे खते ए कहा।
“ वॉइ नग लेटर ही है झाड़ी। यान से दे खो।” रा ल ने लेटर पर उँग लयाँ फराते
ए कहा।
“ स पल-सा जॉब ए लकेशन का ा ट है इसम या खास है इतना ” मने लेटर
को दे खते ए कहा।
“तुम बैल है। यान से दे खता तो तीन बात दखती।” रा ल ने कहा।
“कौन-कौन-सी ”
“याद करो उस दन म हका रे टोरट म बताई थी क उसके पापा रटायरमट से पहले
उसे हाईवे अथॉ रट म लेस कर दे ना चाहते ह और वैसे भी वो हमसे यह बात कई दफा
कही है। इस लए सफ दो सीट है और उसम से भी एक वुमेन के लए रज ड है। मतलब
साफ है क ये पो ट म हका के लए नकाली गई है।” रा ल ने कहा।
“बेवकूफ भरा इनफेरस है। फर भी आगे कहो; या कहना चाहते हो।” मने रा ल
से कहा।
“बात को समझो, वो सफ एक सीट, वो भी वुमेन के लए रज ड नह नकाल
सकता था इस लए दो सीट नकाला।” रा ल ने कहा।
“आगे कहो।” मने अनमने से कहा।
“ सरी बात, यान से दे खो। वैके सी का एड सफ दो यूज पेपर म दे ने को कहा है।
वो भी पे स फकली यूज पेपर का नाम मशन कर के। दे खो इसम से एक का तो नाम भी
लोग नह सुने ह गे तो सकुलेशन या खाक होगा ” रा ल ने उँगली रखकर पेपर का नाम
दखाते ए कहा।
“सरकारी नयम है। कम-से-कम दो पेपर म एड दे ना होता है।” मने कहा।
“तो कसी बड़े यूजपेपर म य नह बूढ़ा अपने पोजीशन का फायदा उठा रहा है
और कुछ नह । और दे खो फॉम भरने के लए दन भी केवल सात है। मतलब कम-से-कम
लड़के भर पाएँ।” रा ल ने कहा।
“ठ क तो है भाई, अंकल अपनी डॉटर के लए कर रहा है जुगाड़। तुझे या चुल
है ” मने सवाल कया।
“तीसरी बात तो सुनो, सबसे इ पोटट बात ये क जरा गौर से इस शयल-
वॉ ल फकेशन दे खो। उसम लखा है- एमबीए वथ ड लोमा इन साइबर से यो रट ज ”
“धत साला, ये कौन-सा कॉ बनेशन आ ” मने हाथ पर हाथ मारते ए कहा।

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“यही तो, यही तो मेन बात है। ये कोई नॉमल कॉ बनेशन तो है नह ब त
शा तराना तरीके से कया गया कॉ बनेशन है। एमबीए करने वाले साइबर से यो रट ज म
ड लोमा य लगे ” रा ल ने कहा।
“सही बात है।” मने हामी भरी।
“म हका के पास ये ड लोमा है। उसने मुझे बताया था क उसने कभी यूँ ही ये कोस
कर लया था। अ धकांश लोग तो इस वॉ ल फकेशन से शन म ही छँ ट जाएँगे। तो ये
योर रहा क वैकसी उसी के लए नकाली गई है।” रा ल ने कहा।
“हाँ, योर रहा। ले कन पं डत ये भी तो दे खो क जो लॉज सबको डबार कर रहा
है वही लॉज तुमको भी तो डबार करेगा। तु हारे पास ही ड लोमा इन साइबर
से यो रट ज कहाँ है ” मने वा जब सवाल कया।
“यही तो कमाल है झाड़ी। जसके पास ड लोमा नह होता उसके पास बटु क होता
है।”
“मतलब ” मने आ य से पूछा।
“तुमको याद है जब बटु क स पड आ था। तब समद अली क सफा रश से फर
वॉइन कया था ”
“हाँ याद है। उसी दन तो बटु क बाबू, डोडा बफ लए बना एडी गाड पहने सीधा
पवे लयन म घुस गए थे।” मने कहा।
“हाँ, वही वो सफा रश म नह लगा था झाड़ी।” रा ल ने थ पड़ के डर से मुझसे
र जाते ए कहा।
“तो फर तुम बटु क से पैसा लया था ” मने भ ह तानते ए पूछा।
“नह पैसा नह , उसके बदले, हम उससे साइबर से यो रट का ड लोमा लए थे।”
रा ल ने अब थ पड़ के डर से दोन हाथ से चेहरा छु पाते ए कहा।
“साले डायन भी सात घर छोड़ दे ती है। तुम अपने ससुर का ही हजामत कर दए ”
मुझे हँसी आ गई थी।
“मदद कर दो झाड़ी। मेरा भी घर बस जाएगा यार। मेरे बाबू भी शान से कहगे क
बेटा सरकारी नौकरी करता है।” रा ल ने फर नाटक शु कया।
“तो पढ़ाई कर।” मने कहा।
“पढ़ाई कर के या होगा झाड़ी नौकरी तो बाल बढ़ाने से मल जाती है यार।”
रा ल ने फर वही बात हराई।
“मरो साले।” मने कहा।
***

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रा ल को बचपन से जानने के कारण मुझे व ास था क वह जो भी कह रहा है
उसम कुछ बात ज र है। फर भी अगले दो महीने तक जब भी मुझे समय मलता म उसे
रीज नग बताता रहता। कॉलेज ख म हो ही गए थे और मेरी े नग के पेपर अभी तक आए
नह थे इस लए म भी ब कुल खाली था। इन दन प र ध ने भी छत पर आना कम कर
दया था। बस दोपहर म अगर वो चाय बनाती तो ला टक के कप म दो चाय रख जाती
थी। इ ह दन रा ल ब त सारी चीज ऑनलाइन ऑडर करने लगा था। पैकेट दे खने से
यह तो मालूम हो जाता क सामान चीन से मँगवाई गई है। ले कन मने उ ह कभी खोलकर
नह दे खा। एक दन यूँ ही जब म रा ल को रीज नग समझा रहा था, उसने कहा,
“झाड़ी पता है चीन, भारत का पड़ोसी य है ”
“ य ” मने सीधा ही कहा। रा ल से जरह करने से अ छा ह थयार डाल दे ना था।
“ य क हमको मैनेजर बनना है।” रा ल ने ठ क मेरे पास आते ए मेरे हाथ म एक
घड़ी बाँधते ए कहा।
“ये या है ” मने घड़ी क ओर दे खते ए पूछा।
“यही तो लेटे ट चाइ नज ह थयार है; जससे भाई लोग मे डकल और इंजी नय रग
ए जाम म से टग करते ह। इसको लूटूथ से टग कहते ह। अब हमारी से टग होगी।” रा ल
ने कहा।
“तभी हम कह क साले तुम पढ़ य नह रहे हो। और सुनो पं डत ये सब डरावना
चीज हमको मत दखाओ।” मने हाथ झटकते ए कहा।
“तुमको कुछ भी नह करना है। सब हम करगे। तुम बस घर म बैठना।” रा ल ने
कहा।
“तुमको ये सब कैसे पता चलता है बे ” मने पूछा।
“सुनो झाड़ी। हमलोग ब त खुश क मत व पर बड़े ए ह। जॉब के लहाज से यह
सबसे आसान व है। डे ल ड कं ज क दे खादे खी हमने हर चीज म इ फॉमशन
टे नोलोजी को अपना तो लया है। ले कन उसको यूज कर पाने क द ता हमम नह है
अभी। न ही लोग को ान है। बटु क शमा का ए जा पल तु हारे सामने है। आधे से
अ धक लोग बूढ़े ह जो न तो सीख पाएँगे; ना ही सीखना चाहते ह।” रा ल ने समझाते ए
कहा।
“ऐसे खतरे वाले काम सोचता य है भाई तू ” मने रा ल से कहा।
“दे खो झाड़ी, हम हक कत जानते ह और जमीनी हक कत यह है क हम ह
भुसकोल। पढ़ के हमसे कुछ नह उखड़ेगा ये तुम भी जानते हो। तो हमको अपने दमाग
से ही कुछ करना होगा।” रा ल ने कहा।
“और पकड़े गए तो ” मने पूछा।

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“ फर वही बात। ये आ तो वो हो जाएगा; इसको ग णत म ोबै ब लट कहते ह
झाड़ी। और ग णत क तेरहव तो हम बारहव म ही कर चुके ह।” रा ल ने फर मु कुराते
ए कहा। उसक इस अजीब मु कुराहट को म पहचानता था। जब उसे मुझसे कुछ काम
लेना हो जो गलत हो तो रा ल ऐसे ही मु कुराता था।
“ऐसे मु कुरा य रहा है हम कुछ नह करगे; समझ लो।” मने पहले ही प ला
झाड़ते ए कहा।
“हलवा ह झाड़ी। कोई खतरा नह है। इ फॉमशन टे नालजी के इन लूप हो स को
लोग अभी जानते ही नह ह। हम जानते ह। जब तक ये जानगे। हमारा व नकल चुका
होगा। अभी इन चीज को जानने और पकड़ने म इ हे चार-पाँच साल लगगे। तब तक तो
हम कंपनी के लोन से मकान भी बुक करवा चुके ह गे।” रा ल ने हँसते ए कहा।
“हम नह करगे। व ड कप शु होने वाला है स चन का ला ट व ड कप होगा। जब
से होश संभाले ह पढ़ाई क वजह से चैन से केट नह दे ख पाए ह। अभी मौका मला है
तो या चाहते हो साले क जेल म केट दे ख।” मने सीधा कहा।
“दो त के लए कर दो झाड़ी।” रा ल ने घुटन पर बैठते ए कहा।
“एकदम नह ” मने फर ढ़ता से कहा।
“दो ती के लए कर दो झाड़ी ” रा ल ने अब और मीठ आवाज म कहा।
‘एल न चाटो न साले कह दए नह करगे तो नह करगे।” मने कहा।
“प र ध के लए कर दो। मेरी शाद के लए कर दो।” रा ल ने कहा।
“उसी से य नह करवा लेते हो साले ”
“शाद करगे उससे। कुछ तो इ जत रहने दो उसक नजर म मेरी।”
“शाद करेगा ना ” मने फर पूछा।
“हाँ बे, उसी लए तो बाल बढ़ा रहे ह।” रा ल ने कहा।
“ठ क है। करना या होगा ” मने बुझे मन से ही पूछा।
“टाइम आने पर बताएँगे। अभी बस जब तक ए जाम डेट नह आता है तब तक
कुछ पढ़ा दो।”
***

ए जाम का दन भी आ गया। अलसुबह रा ल ने एक शट नकालकर पहन ली। वह


दरअसल एक लूटूथ ट ड शट थी; जसका पीकर ग के दाने के बराबर था। रा ल ने
वो पीकर अपने कान म ब कुल भीतर तक डाल दया। वह बार-बार बाल बढ़ाने क बात
इसी लए करता था ता क लंबे बाल से कान ढक जाएँ। लंबे बाल के कारण उसके कान
का दख पाना ही असंभव था; माइ ो पीकर तो कसी हालत म नह दखता। हालाँ क

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परी ा दे ने रा ल जा रहा था; फर भी डर मुझे लग रहा था। एक तो काम ही गलत था।
सरे मने ऐसा काम पहले कभी कया नह था।
“पं डत, या करवा रहे हो बे। हमको डर लग रहा है।” मने कहा।
“तुमको कुछ भी नह करना है। एक बार फर यान से सुनो। ए जाम ठ क दस बजे
शु होगा। तुम बस पाँच मनट बाद हमको फोन कर दे ना। ये जो घड़ी मेरे कलाई म है। ये
मोबाइल है। जो साइलट मोड पर रहेगा। दे खो, हम सब सेट कर दए ह पहले ही। ये जो
मोबाइल वॉच है ना; इसके कैमरा से कलाई टे ढ़ करके हम बस वे न पेपर का फोटो
ख च लगे। वो फोटो sugersync के ज रये डायरे ट मेरे मेल पर आ जाएगा। जो हम
लैपटाप म खोल के रखे ह। जब सारे पेपर तु हारे पास मेल म आ जाएँ तो तुम सॉ व कर
के हमको बता दे ना।” रा ल ने कहा।
“ले कन बताएँगे कैसे ” मने पूछा।
“ये दे खो। ये माइ ो पीकर है। जो भी तुम बताओगे वो सारा आ सर इस पीकर के
ज रये हमको सुनाई दे गा जो हम कान म डाल लए ह य क मेरा ये वॉच मोबाइल ऑन
रहेगा ही।”
“और अगर तुम फोटो नह ख च पाया तो ” मने रा ल क घड़ी को उलटते-पलटते
ए कहा।
“तो भाई, फर हम कोई फर तो बनाए नह ह। एक घड़ी ही तो पहनी है। कसी के
बाप को पता नह चलेगा क इसम मोबाइल है। अगर यादा डर लगे तो उतारकर पॉकेट
म रख लगे। और इं व जलेटर मेरी जु फ क लट उठाकर मेरी कान क बाली तो चेक
करगे नह । अभी उनको यह सब समझते दो-तीन साल लगगे। तब तक हम 20-25 सैलरी
उठा लए रहगे। समझा।” रा ल ने कहा।
“यहाँ फट के चबूतरा आ है साले। दमाग काम करना बंद कर चुका है; क समझ
म आएगा।” मने कहा।
“भाई ब त स पल है। एकदम म खन, एक बार और सुन। तुम हमको फोन करोगे।
हम कलाई टे ढ़ कर के वे न पेपर का फोटो ख च लगे। वो सक होकर मेरे मेल म आ
जाएगा। तुम हम आंसर बताओगे; जो मेरे कान म ठे ले गए माइ ो लूटूथ पीकर से सुनाई
दे गा। अब इससे आसान भी कुछ होगा या ” रा ल ने कहा।
“ फर भी, डर लग रहा है पं डत।” मने कहा।
“तो फर थोड़ा डर ही लो। साला डरना हमको चा हए। नौकरी, छोकरी सब दाँव पर
है और डर तुम रहे हो। चलो अब सो जाओ। कल का दन वैसे ही बो झल होगा।” रा ल ने
कहा और ब तर पर धा लेट गया।
***

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अगली सुबह न द ज द खुल गई; ले कन रा ल मुझसे पहले ही उठ गया था। मने
दे खा क उसने लैपटॉप पर व क प डया, व कमै पया, जेनेरल नॉलेज जैसे कई वेब पेज
खोल रखे ह। म जब नहाकर वापस आया तो रा ल कोई ऑनलाइन ड शनरी डाउनलोड
कर रहा था। उसे यादा उ सुक दे ख कर मने पूछ ही दया-
“इतनी तैयारी म तो वैसे भी नकल जाता पं डत ”
“ले कन मेरी वाली बात नह रहती ना झाड़ी।” रा ल ने ऑनलाइन ड शनरी
इ टाल करते ए कहा।
“हाँ और पता नह य पं डत; ले कन अब डर नह लग रहा है।” मने कहा।
“रात भर म कौन-सा शलाजीत पी लए बेटा।” रा ल ने लूटूथ ट ड ट शट
पहनते ए ए कहा।
“बे ट ऑफ लक पं डत।” मने रा ल से गले मलते ए कहा।
“आराम से झाड़ी।” रा ल ने मुझको खुद से र करते ए कहा-
“साले इसके कॉलर म ही लुटूथ ट ड है। कुछ हलडु ल गया ना, तो भर ए जाम
आयं-आयं करते रह जाएँगे।”
“और पीकर ” मने पूछा।
“ठे ल रहे ह, ये दे खो। ये कान के बूँदे मने अपने काले घने बाल क पीछे गुमट क
तरह छपे कान म घुसा लए।” रा ल ने अपने बाएँ कान म ग के दाने से भी छोटे उस
लूटूथ पीकर को छपाते ए कहा।
“सुनाई तो दे गा ना, इतना छोटा है ” मने माइ ो पीकर क साइज दे खते ए शंका
जा हर क ।
“तू बोलेगा तो ज र सुनाई दे गा बचा लयो भाई चलता ँ। गे टग लेट।” कहकर
रा ल एकबार फर मुझसे गले मलकर ए जा मनेशन सटर के लए नकल गया। म सजग
होकर लैपटॉप के ठ क सामने बैठ गया। एक-एक पल काटना भारी हो रहा था। म कतनी
दफा बाथ म दौड़ा मुझे याद भी नह ।
परी ा शु होने के ठ क पाँच मनट बाद मने भगवान का नाम लेकर रा ल को
फोन कया; ले कन तीन-चार बार रग होने के बाद फोन कट गया। म डर गया। मुझे यह
भय सताने लगा क कह रा ल फोन साइलट मोड म करना भूल तो नह गया और लास
म अचानक मोबाइल क आवाज क वजह से वो पकड़ा तो नह गया। अगर ऐसा आ तो
सारा खेल शु होने से पहले न सफ बगड़ जाएगा ब क रा ल को पु लस गर तार भी
कर सकती है। मेरी हथे लयाँ पल भर म पसीने से तर हो ग । धड़कन ध कनी हो ग । मेरे
दमाग म यह डर घर कर गया क रा ल कह फँस तो नह गया। अगर वो नह भी फँसा
होगा और इन व जलेटर उससे पूछताछ ही कर रहे ह गे और इसी बीच मने फर कॉल कर
द तो रा ल न त ही फँस जाएगा। अ छा यही रहे क रा ल परी ा म वही लखे जो
उसे आता है। यही सब सोचते ए मने रा ल को बारा काल न करने का न य कया।
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म अभी लैपटॉप छोड़कर उठने ही वाला था क रा ल के मेलबॉ स ने पग कया।
उस मेल के साथ अटै चमट भी थी। मेरे हाथ-पैर बफ हो गए। मने दे खा क रा ल के एक-
एक कर तीन मेल आए ह। मने उ ह खोला तो जड़वत रह गया। सुगर सक से आए ए वह
मेल वे न पेपर के फोटो ाफ ही थे। हालाँ क फोटो क वॉ लट ठ क नह थी और टे ढ़
भी थी; मगर फर भी सारे वे न साफ दख रहे थे। मेरे दे खते-दे खते ही तीन मेल और
आ गए।
मने सभी इमेज को डे कटॉप पर सेव कया और एक-एक कर वे न सॉ व करने
म लग गया। मेरी तैयारी के हसाब से सवाल सारे बचकाने ही थे। इस लए मुझे उ ह सॉ व
करने म यादा व नह लगा। फर भी जन सवाल म दो राय थी उसके लए मने नेट का
सहारा लया और सही जवाब ढूँ ढ़ लए। मने ज द -ज द म सारे सवाल हल कए उनके
आ सर के ऑ शन टक कए और फर रा ल को फोन कया। अबक दो रग के बाद ही
फोन रसीव हो गया।
“हैलो।” मने कहा। ले कन उधर से कुछ आवाज नह आई।
“हैलो पं डत, भोसड़ी के। कुछ तो बोलो ” मने खीझकर कहा। अबक बार भी कोई
आवाज नह आई। मुझे रा ल पर ब त गु सा आ रहा था। एक तो पहले फोन नह उठाया
और अब फोन उठाकर जवाब ही नह दे रहा। पता नह सुन भी पा रहा है या नह । म खुद
म सोच रहा था।
“हेलो हेलो। लगता है आवाज नह आ रही। काट के बारा करता ँ।” अभी म
इतना बुदबुदाया ही था क तभी सरी ओर से रा ल क आवाज सुनाई द -
“Sir This is examination hall and no one is supposed to
talk here. ”
रा ल क यह बात सुनते ही म खुश हो गया। यह दरअसल मेरे लए मैसेज था क
रा ल ए जा मनेशन हाल म है और वो मेरे हैलो का जवाब नह दे सकता। यह भी क वो
मुझे सुन पा रहा है और मुझे जवाब बताते जाने ह। साथ-ही-साथ मुझे उसके समझ क
दाद भी दे नी पड़ी। जैसे ही उसने सुना क म फोन काट रहा ँ उसने ट चर के बहाने से
मुझे इस बात का आभास दया क वो मुझे सुन रहा है। मुझे अपनी बेवकूफ पर झप भी
आई क म रा ल से हेलो का जवाब चाह रहा था जब क म जानता था क वो परी ा हाल
म बैठा है।
“ जयो पं डत, या तरक ब लगाए हो यार। हम तो फोन काटने वाले थे। भाई, पेपर
मल गया है। लगभग सब का जवाब मल गया है। सकल भरना शु करो और बायाँ हाथ
अपने गाल पर टकाकर बैठो। घड़ी और शट का कॉलर नजद क रहेगा तो आवाज क
लय रट रहेगी।” मने थोड़ी दे र पहले ही नेट पर पढ़ा ान बघारा।
“सुनो, जस सवाल का ऑ शन बता रहे ह उसके स कल म डॉट करते जाओ। बाद
म पूरा भर लेना।” कहते ए मने उसे सही ऑ शन बताने शु कए। अगले लगभग आधे
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घंटे म मने रा ल को 250 म से 220 मा स के आंसर बता दए। आते ए सारे जवाब
बता दे ने के बाद मने कहा-
“यार पं डत, पेज नंबर चार के ला ट का दो सवाल का फोटो ब त धुँधला आया है।
अब फर से भेजना तो पॉ सबल नह होगा। इनका कुछ कर सकता है या ”
मेरे इतना कहते ही रा ल ने इन व जलेटर से जरा जोर से ही कहा-
“सर, चं चूड़ क मट और टा सड के के मकल नेम वाले वे न के ऑ शंस गलत
ह।”
म यह सुनते ही समझ गया क यह सवाल इन व जलेटर के लए नह ब क मेरे लए
है। य क यही दोन सवाल पेज नंबर चार के अं तम दो सवाल थे।
“बवाल काट दए हो आज तो पं डत। कमाल कए हो। लो पहले आंसर लखो-
Chandrachur committee is associated with match fixing and
antacid base is Magnesium Hydroxide .” मने कहा।
“Thank you sir .” रा ल ने इन व जलेटर के बहाने शायद मुझे कहा।
“चलो, अब सारा का लख भर लए हो तो पेपर जमा कर के बैठो। हम अब फोन बंद
कर रहे ह। बाथ म जा रहे ह। साले घंटा भर से दबा के बैठे ह।” कहते ए मने मोबाइल
ड कने ट कर दया। इतनी सुबह उठने क आदत नह थी इस लए अब भी उबासी मुझे
घेर ही रही थी। मने लैपटॉप समेटा और सो गया।
दोपहर को जब रा ल घर आया तो दरवाजा खोलते ही उसने मुझे गले से लगा लया
और कहा -
“कहना तो नह चा हए; फर भी थक यू झाड़ी ”
“ य नह कहना चा हए। जो इ छा हो वो कहो। चाहो तो झुक भी जाओ।” मने
मजाक कया।
“पता है, यहाँ से तो भाषण झाड़ के गए। वहाँ जाते ही सूख गया।” रा ल ने कहा।
“ य , ऐसा या दे ख लया ” मने कहा।
“अरे पूरे लास म बस पाँच लड़के। इमै जन करो। एक हम, एक म हका बाक
और सफ तीन लड़के। सोचो बु ा या तरक ब लगाया था।” रा ल ने पानी पीते ए
कहा।
“म हका कुछ कही ” मने पूछा।
“नह , पहले दे ख के हैरान जैसा कुछ ई। फर अपने पेपस म लग गई।”
“और पहली दफा म फोन य नह उठाए थे साले हम डर गए क तुम धरा गए ”
“नह भाई, घबराहट और ज द म ीन क जगह रेड साइन वैप कर दए।” रा ल
ने हँसते ए कहा।
“अब ” मने पूछा।
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“अब तुम फौज क तैयारी करो; हम मौज क तैयारी करते ह।” रा ल ने शट उतारते
ए कहा।
“प र ध को बताए ” मने पूछा।
“नह भाई। वैसे ही इतना सपना दे ख चुक है। और जोड़ लेगी। रज ट आने पर
बताएँगे।” रा ल ने कहा।
“अबे इं डया-नीदरलड का मैच है बुधवार को; फरोजशाह कोटला म। चलेगा
दे खने ” मने रा ल से पूछा।
“इतने बेकार नह ह अभी। छोटू को लेके चले जाओ। आ दे गा।” रा ल ने सीधा ही
कहा।
“ आ नह ; टकट दे गा। वही तो साला कह से टकट का जुगाड़ कर के लाया है।
कह रहा है हमको कोई ज री काम आ गया आप चले जाइए। चलो ना व ड कप है
साले।” मने कहा।
“दे खो झाड़ी, मेरा व ड और मेरा कप दोन एक त ला नीचे रहता है। और उसको
बुधवार को अंसल लाजा जाना है।” रा ल ने प र ध क बाबत कहा और ब तर पर धा
लेट गया।
गुलाम?

जब रज ट घो षत आ तो जैसा क अपे त था रा ल म ा और म हका रायजादा का


नाम ही स सेसफुल कडीडेट्स म आया। इंटर ू के लए भी बस इ ह दो लोग को
बुलाया गया था; य क बाक के कडीडेट्स, ल खत परी ा के यूनतम अंक भी नह ला
पाए थे। रा ल म ा चय नत हो गए। अपने दमाग, अपने शॉट कट् स और अपने
शा तराना सोच क वजह से ही सही, रा ल म ा अब नौकरीशुदा थे। प र ध को इस
बाबत कुछ पता नह था। उसे बस ये पता था क उसे रा ल से शाद करनी है। कैसे करनी
है यह रा ल के ज मे था। हम चार ओर से खु शय से घरे ए थे। एक ह ते पहले ही
भारत केट व कप जीत चुका था। म यवग य ज रत के लहाज से हमारा भ व य
सुर त भी हो चुका था। व कप क जीत का खुमार तारी था। मगर हर खुशी क
मयाद तय है और हर खुमार को उतरना बदा है। हमारी भी खुशी उस व काफूर हो गई
जब हम छु य म घर जाने के लए सामान बाँध रहे थे और दरवाजा क कुंडी बजी।
रा ल ने झट से दरवाजा खोला तो दे खा क सामने बटु क शमा और प र ध खड़े थे दोन
के चेहरे पर याह उदासी थी।
“अंदर आइए अंकल।” रा ल ने बटु क शमा से कहा।
“बेटे, मेरे साथ पु लस थाने चलेगा ” बटु क शमा ने बना कसी लाग-लपेट के कहा।
“पु लस थाने, मेरा चेहरा जद हो गया ” चोर को हमेशा भय लगा ही रहता है।
“हाँ बेटे, एफआईआर करानी है।” बटु क शमा ने जोर दे कर कहा।
“एफआईआर, ये श द सुनकर ही म जड़वत हो गया।” मुझे कुछ न कहता दे ख
रा ल ने ही कहा -
“हाँ अंकल, ज र चलगे। य नह चलगे। मगर यह तो बताइए; या बात ई
आ खर ”
“पापा के अकाउंट से कसी ने पैसे नकाल लए ह।” अबक बार प र ध ने कहा।
“ या ” रा ल सचमुच च का। वह बात से यादा बात खुल जाने से च का। मेरा
चेहरा जद पड़ गया था। बटु क शमा के उ के अनुभव के हसाब से मेरे चेहरे से चोर पकड़
पाना कोई मु कल काम नह था; मगर चूँ क बटु क शमा पैसे के ख म मुरझाया चेहरा
नीचे कए ए थे इस लए वो मुझे दे ख नह पाए। और य क ऐसी थ तय म गरने का
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काम रा ल का था इस लए ऐसी थ त से उबरने का संयम भी उसी के पास था उसने
पहले खुद के चोर भाव पर काबू पाया और कहा -
“च लए अंकल, ले कन पु लस टे शन चलने से पहले हम आपके बक चलना होगा।”
“बक बक य ” मेरे मन का सवाल बटु क शमा ने ही पूछ दया।
“अंकल एफआईआर के लए हम कुछ डॉ युमट् स क ज रत तो पड़ेगी; वना
उसके बना पु लस एफआईआर दज ही नह करेगी। इस लए पहले बक जाना होगा जहाँ
से रलेटेड डॉ युमट् स नकालने ह गे और फर थाने चलगे।” रा ल ने कहा। मुझे लगा क
ऐसा कहकर रा ल खतरा कुछ दे र के लए टालने क को शश कर रहा है। उसे लगा होगा
क सीधा थाने जाने से पहले य द कुछ व मल जाए तो वह मामले को नपटा सके।
“ठ क है बेटा जी। बक चलते ह पहले।” बटु क शमा ने बुझे मन से कहा।
“अंकल आप नीचे चल, म कपड़े बदलकर अभी आया।” रा ल ने कहा।
“ज द आना बेटा जी।” कहकर बटु क शमा बाहर नकल गए। प र ध मगर भीतर
ही रही उसने आँसु से अपनी आँखे भरकर रा ल से कहा-
“पापा जी के साथ रहना। टू ट गए ह कल रात से ही।”
“हाँ, अब तू जा। मुझे कपड़े बदलने ह ” रा ल ने कहा।
“क ड़े पड़गे उसे जसने मेरे पापा के मेहनत के पैसे चुराए ह। कोढ़ होकर मरेगा वो
साला।” प र ध ने रोते ए कहा।
“तू जाएगी या म कपड़े उता ँ ” रा ल ने चढ़कर कहा।
“मौज आ रही है ना तुझे तुझे या पैसे तो मेरे पापा के गए ह ” सुबकते ए
प र ध कमरे से बाहर नकल गई। उसके जाते ही रा ल ध म क आवाज के साथ कुस पर
बैठ गया। म वैसे ही जड़वत खड़ा रहा। लड़ कयाँ कतनी आसानी से रो लेती ह लड़के
यह उतनी ही आसानी से कर पाते तो कतना बेहतर होता बटु क शमा खी होकर भी
नह रो पा रहे थे और म भयभीत होकर भी नह रो पा रहा था। रा ल था क बैठा आ
था; मगर उसके चेहरे पर आज भी परेशानी क जगह यास था। बच नकलने का यास।
“दे ख रहा है न, सात हजार पया के लए दामाद को जेल भजवाएगा बटु क ”
रा ल ने ज स पहनते ए कहा।
“अब या होगा पं डत ” मने रा ल के करीब जाकर पूछा।
“अबे फौजी हो; फौजी क तरह रहो। भौजी न बनो इतना न घबराओ। सब ठ क
होगा। पाथ नयम हम लगाए थे; हम ही उखाड़गे। तुम बस एक बात यान रखना। कसी से
भी ये मत कहना क हमारी जॉब हो गई है और पु लस वे र फकेशन प डग है। ठ क ”
रा ल ने कहा।
“ ँ ” मने हामी भरी और सर उठाकर रा ल को दे खा। मेरे सर उठाने से पहले ही
रा ल नीचे उतर गया था।
***
***

बटु क शमा का बक अकाउंट कनॉट लेस म था। रा ल उनके साथ ही बक म


दा खल आ और बटु क शमा को बैठाकर सीधे सबसे लंबी वाली कतार म लग गया। ऐसा
कर के वह कुछ समय जाया करना चाहता था। दो घंटे बाद जब लाइन ख म ई तो उसने
बटु क शमा को आकर बताया क दरअसल वो गलत लाइन म लग गया था। इस तरह के
केस के लए उ ह ांच मैनेजर से मलना होगा जो क लंच करने गए ह। तीन बजे तक
आएँगे। बटु क शमा थोड़े ख तो ए; ले कन रा ल क बात मान लेने के अलावा कोई
चारा भी नह था। लगभग तीन बजे के करीब रा ल, बटु क शमा को लेकर ांच मैनेजर के
कमरे म दा खल आ। बक मैनेजर ने ओढ़ ई हँसी के साथ बैठने को कहा। बैठकर जब
रा ल ने दे खा क बटु क शमा कुछ बोल ही नह रहे तो उसने ही कहा -
“सर ये म टर बटु क शमा ह। आपके बक म इनका अकाउंट है। अकाउंट नंबर ये
रहा। सर, इ ह लगता है क इनके अकाउंट से कसी ने पैसा व ॉ कया है।”
“आप कौन ” ांच मैनेजर ने रेनो ड् स पेन का ढ कन चबाते ए संशय से पूछा।
“जी, म इनका बेटा रा ल।” रा ल ने उसक आँख को पढ़ते ए बना एक पल क
दे री लगाए कहा। बटु क शमा ने भी उसक इस बात का वरोध नह कया।
“ओके। दे खए, आजकल इस तरह के ॉड केस ब त हो रहे ह। आपलोग को
अपनी आईडी और पासवड बदलते रहने चा हए।” बक मैनेजर ने अकाउंट नंबर अपने
टाफ को दे ते ए कहा।
“हम ठहरे पछली पीढ़ के आदमी गु ता जी, हम कहाँ यह सब समझ ” बटु क शमा
ने दोन हाथ क हथे लय को अपनी अ ानता जा हर करने के अंदाज म मोड़ते ए बक
मैनेजर से कहा। थोड़ी दे र तक कमरे म एक मुदा उदासी छाई रही। लगा क बक मैनेजर
बटु क शमा के पैसे के लए खुद को ही ज मेदार मान रहा है। कुछ दे र तक मैनेजर दोन
को साइबर ॉड के बाबत समझाता रहा। थोड़ी ही दे र म एक बक टाफ एक शीट लेकर
आया जो उसने बक मैनेजर को थमा दया। बक मैनेजर उसपर हाइलाइटर चलाते ए
बोला-
“जी, आपके अकाउंट से 5 अ ैल को अकाउंट नंबर 1601*****9 को पैसे ज मू
ा सफर ए ह।”
“ कतने ” रा ल ने जानते ए भी पूछा। यह अकाउंट नंबर उसी हवाला वाले का
था।
“उनचास हजार।” बक मैनेजर ने पैसे पर हाइलाइटर चलते ए कहा।
“उनचास हजार ” रा ल का मुँह खुला-का-खुला रहा गया।
“हाँ बेटे, पूरे उनचास हजार नकाले ह कसी ने।” बटु क शमा ने मुँह गराए ए ही
कहा।
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“दे खूँ जरा ” रा ल ने बक मैनेजर के हाथ से कागज लगभग छ नते ए कहा।
रा ल को लगा क बक मैनेजर ने गलत पढ़ लया है। मगर मैनेजर सही कह रहा था। पाँच
अ ैल को उनचास हजार पये उसी अकाउंट म ा सफर ए थे। रा ल के दमाग म कई
सवाल तैर गए। वह अब पसीने और पशोपेश म था। इधर बटु क शमा, बक मैनेजर से पैसे
वापस आने के उपाय पूछ रहे थे; उधर रा ल बार-बार उसी कागज को गौर से दे खे जा रहा
था। मगर गौर से दे खने पर भी पैसे को बदलना नह था। अंततः एक गहरी साँस लेकर वह
बोला -
“सर इसक एक कॉपी हम चा हए होगी। एफआईआर के लए।”
“हाँ हाँ, योर। ये आपक ही कॉपी है। और भी कसी तरह क मदद क ज रत हो
तो ज र बताइएगा।” बक मैनेजर ने कुस से उठकर हाथ बढ़ाते ए कहा। रा ल बाहर
नकल आया। बटु क शमा ने अ त र सहायता के आ ह के लए कमरे म ही के रहे।
रा ल ने बाहर नकलते ही मुझे फोन कया -
“झाड़ी, तूने पाँच तारीख को बटु क के अकाउंट से पैसे नकाले थे या ” रा ल ने
धीमी आवाज म पूछा।
“नह तो, मने तो आज तक नह नकाला। जब नकाला है तूने ही नकाला है।” मने
कहा।
“Holy shit ” रा ल ने परेशानी भरी नराशा से कहा।
“ या आ पं डत ” मने डरते ए पूछा।
“कुछ ब त बुरा। ब त ही बुरा। बटु क आ रहा है, बाद म बात करते ह।” कहते ए
रा ल ने फोन काट दया।
***

रा ल के फोन रखने के बाद म आशंका , :संभावना के भंवर म फँस गया।


कभी मुझे यह लगता क रा ल पकड़ा गया है और उसने सब कुछ बता दया है। हर बार
मुझे पु लस के जीप का सायरन सुनाई दे ने लगता। कभी मुझे यह भी लगता क प र ध
आकर मेरे चेहरे को घृणा के भाव से दे ख रही है। कभी मुझे भाग जाना सही उपाय लगता;
फर यह सोचकर क जाता क भागने से चोर के साथ-साथ भगोड़ा भी सा बत हो
जाऊँगा। मने इ ह शंका के बीच रा ल को दो बार फोन लगाया; मगर दोन बार उसका
फोन बजी आया। मुझे कुढ़न भी ई क ऐसी थ त म भी जाने कससे इतनी दे र बात
कर रहा है। इसी डर और शंका म डू बते-उबरते रात हो आई। रा ल और बटु क शमा का
कोई पता नह चला। मेरी आशंका इस ओर भी जाने लगी क कह रा ल को पु लस
टे शन म ही रोक तो नह लया। ले कन फर खुद इस बात क सां वना दे ता क अगर ऐसा
होता तो प र ध ऊपर आ गई होती। म कुछ और फजूल सोच पाता तब तक सी ढ़य पर
कसी के चढ़ने क आवाज सुनाई द । मने झाँककर दे खा तो रा ल था। बटु क शमा, घुटन
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पर हाथ दए धीरे-धीरे सी ढ़याँ चढ़ रहे थे। रा ल भी ऊपर आने के बजाय बटु क शमा के
घर म ही घुस गया। मुझे पहले तो उसपर ब त गु सा आया। मगर एक दलासा भी मली
क चलो आज तो सब कुछ ठ क है। म सी ढ़य पर ही खड़ा रहा और नीचे से आने वाली
आवाज सुनने क को शश करता रहा। एक बार मन आ क नीचे चला जाऊँ; मगर फर
यह सोचकर क गलती से भी कुछ गलत ना नकाल जाए, म ऊपर ही रहा। लगभग आधे
घंटे बाद रा ल ऊपर आया। आते ही उसने जूते खोले और नहाने चला गया। गम के
का तलाना कोप म नहाना एक आम बात थी; ले कन मुझे जानने क उ सुकता थी और
इस कारण म बेस हो रहा था। रा ल थोड़ी दे र म नहाकर बाहर आया। वह अभी तौ लये
से अपने हाथ प छ ही रहा था क मने उसे दरवाजे पर ही घेर लया।
“सब ठ क तो है न पं डत ” मने दरवाजे पर ही रा ल को रोकते ए पूछा।
“तुझे व ड कप फाइनल याद है ” रा ल ने मुझे दरवाजे से हटाकर कमरे के भीतर
घुसते ए कहा।
“पं डत, झाँट न जलाओ साले सबेरे से मेरी जान अटक ई है। ये केट वज
बाद म खेल लगे भाई।” मने झ लाते ए कहा।
“I am serious . जवाब तो दे ।” रा ल ने तौ लये से सर प छते ए कहा।
“हाँ, भाई पछले ह ते ही ह एट ई है। ये भी कोई भूलने क बात है।” मने
कहा।
“फाइनल म कुछ असामा य आ था ” रा ल ने फर सवाल कया।
“इं डया जीत गई यही सबसे अनयूजुअल था ” मने झुंझलाहट पर काबू पाते ए
कहा।
“नह , कुछ और भी था।” रा ल ने अबक शरीर प छते ए कहा।
“ या ”
“फाइनल म टॉस दो बार ई थी।” रा ल ने बैठते ए कहा।
“हाँ हाँ याद आया। ाउड के शोर क वजह से अ पायर पहली बार क कॉल सुन
ही नह पाए थे।” मने याद करते ए कहा।
“ बलकुल ठ क, एक बात और। पछले तीन-चार दन से तूने एक बात गौर क ”
रा ल ने कहा।
“ या ” मने अचरज से पूछा।
“छोटू काम पर नह आया है।” रा ल ने कहा।
“हाँ, केट का क ड़ा था। व ड कप जीत क खुशी म गरा पड़ा होगा कह । आ
जाएगा।” मने कहा।
“वो अब नह आएगा।” रा ल ने फर बात उलझाई।
“ या मतलब। य नह आएगा ” मने व मय से पूछा।
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“छोटू पंटर था।” रा ल ने कहा।
“मतलब, या बोल रहा है तू ” मेरी समझ म कुछ नह आया।
“मतलब वो केट म स ा लगाता था।” रा ल ने गंभीर होकर कहा।
“ या ” मुझे बजली-सा झटका लगा।
“हाँ भाई।” रा ल ने तौ लया कुस पर फकते ए कहा।
“अबे कोई गलतफहमी ई है। उससे कूकर क सीट तो लगती नह थी; केट म
स ा या लगाएगा। और जब हम नह पता तो इन सब चीज के बारे म उसे या पता
होगा ” मने अब भी अ व ास से कहा।
“वैसे ही नह कह रहा। शाम से पता करते-करते मेरी भी खोपड़ी घूमी ई है। बता
रहा ँ। चुपचाप सुन। बीच म मत टो कयो।” रा ल ने कहा।
“बोल।” मने गाल पर हाथ टकाते ए सुनना शु कया।
“दे ख, शा तर दमाग तो वो पहले से ही था, बस हम भाँप नह पाए। पहले वो जन
घर म काम करता रहा होगा वहाँ से ही उसे इंटरनेट चलाना आता था। वह हमारे यहाँ
काम करके भी कुछ पैसे कमा लेना चाहता था। इसके लए उसने टकट बनाने क बात
कही और हमने उसे गरीब जानकर लैपटॉप क ए सेस मुहैया करा द । वह कसी तरह
लैपटॉप तक प ँच चाहता था; ता क अगर वो कभी लैपटॉप चलाते पकड़ म भी आ जाए
तो हम यह समझ क वो टकट बना रहा होगा।” रा ल ने एक साँस म कहा।
“हाँ तो इससे या ूव आ। तू यह कहना चाहता है क मने उसक irctc अकाउंट
खोलकर गलती क ” मने झुँझलाते ए कहा।
“कहा था ना पूरी बात सुन। बीच म प पहरी मत बजाओ।” रा ल ने कहा।
“अ छा ठ क तो आगे चल।”
“शु -शु म तो वह लैपटॉप क ए सेस केवल कुछ टकट कराकर पैसे कमाने के
लए ही चाहता था; ले कन उस दन मुझसे गलती हो गई जस दन मने उसे पैसे लाने
पा लका बाजार भेज दया। पा लका बाजार का सतबीर कई धंधे करता है। जैसे हवाला,
मैच फ संग और ए योरस ॉड।” रा ल ने कहा।
“और तुझे यह सब पता था ” मुझसे रहा नह गया और मने टोका।
“नह भाई, आज ही पता चला।” रा ल ने आराम से ही जवाब दया।
“ फर ”
“म तो बस एक-दो दफा ही गया था, उसके बाद से तो छोटू ही जाता था। जब छोटू
उसके पास रेगल ु र जाने लगा तो उसे लगा क दरअसल यह हवाला छोटू ही करता है।”
रा ल ने एक साँस म कहा।
“अ छा फर ” मने पूछा।

“ े ै े े े ँ
“तुझे याद है, मने तुझे बताया था क म हका का बाप बे टग साइट् स खँगालता रहता
है।” रा ल ने याद दलाते ए कहा।
“हाँ, तूने बताया था। स क मता के फोटो भी।” मने याद करते ए कहा।
“हाँ, अब जबसे यह व ड कप शु आ तो उसके मेल पर बे टग ट स आते रहते
थे। key logger म सब कुछ पॉप-अप हो जाता है। इस कारण कसी दन इसे यह
ट स दख गई होगी। सतबीर के यहाँ रेगल ु र जाने के कारण इसे यह भी पता लग गया था
क सतबीर बे टग भी कराता है।” रा ल ने कहा।
“छोटू को इतना दमाग था ” मने आ य से पूछा।
“मुझसे और तुझसे यादा। चराकर चला गया लड़का। सुन तो ” रा ल ने कहा।
“हाँ बता।”
“व ड कप शु आ। इसी बीच छोटू एक दन पैसे लाने पा लका बाजार गया।
अगले दन इं डया-इं लड का मैच था। इसे इं डया-इं लड वाले मैच म मैच टाई होने क
टप मली थी और इसने मजाक-मजाक म ही 1000 पये लगा दए।” रा ल ने लैपटॉप
ऑन करते ए कहा।
“तुझे कैसे पता क इसे इं डया-इं लड वाले मैच क टप मली होगी ” मने वा जब
सवाल कया।
“मुझे पता था क तू ये ज र पूछेगा। दो बात ह। पहली ये क मेरी आज सतबीर से
बात ई तो सारी बात खुल । वो पहले तो मुझे ही छोटू समझ रहा था। मेरे भरोसा दलाने
पर उसने बताया क टाई जैसे अ न त रज ट पर कोई आदमी स ा नह लगाता। उस
दन छोटू ने जब टाई पर स ा लगाया तो सतबीर भी भौचक रह गया था। मैच टाई ही
आ। इस अ यूजुअल रज ट पर एक का यारह का रेट था। इसने यारह हजार पये
जीत लए। सरी बात, यह दे ख, 26 फरवरी 2011 क बे टग टप म सुबह-सुबह का
मैसेज है: Tomorrow’s match: India vs England, going to be a tie
.” रा ल ने म हका के पापा क ईमेल खोलकर मुझे दखाया।
“जीसस ले कन साले के पास बे टग म लगाने को एक हजार पये भी कहाँ से
आए ” मने सर पर हाथ रखते ए कहा।
“तेरी और मेरी जेब से। याद है मने तुझसे कई दफा कहा क पैसे रखे थे मगर अब
नह है। वो पैसे यही नकालता रहा होगा।” रा ल ने कुछ सोचते ए कहा।
“ ँ। हो सकता है।”
“कभी सही कभी गलत टप के कारण यह पैसे जीतता-हारता रहा। भारत वाले सेमी
फाइनल म इसे इं डया के कोर क टप मली। 260 रन। और इं डया ने ठ क उतने ही रन
बनाए। य क कोर पर जो स े लगते ह उसपर मा जन यादा नह होता। फर भी इसने
अब तक 25000 पये कमाए।”

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“तो या भाई ये सारे मैच फ स थे ” मने सवाल कया।
“नह ऐसा ज री भी नह है हजार बे टग साइट् स ह। तो लाख ट स भी ह।
उनम से एक का सही हो जाना तु का भी हो सकता है। अब कसका तु का लगा और
कसक क मत खुली यही तो स े बाजी है। यही तो गेम है।” रा ल ने कहा।
“ या भाई नौकर हजार कमा रहा था और हम साले चद चोर क तरह रट के
लए भी बटु क का बटु आ खँगालते रहे।” मने सर पकड़े ए ही कहा।
“वही तो, हम साला आइस-पाइस करते रह गए। वो ध पा मारकर चला गया
साला।” रा ल ने फ क हँसी हँसते ए कहा।
“ले कन इन बात म बटु क शमा का पैसा कहाँ गया ” मने अचानक ही पूछा।
“वही बता रहा ँ असली खेल तो फाइनल म आ।” रा ल ने कहा।
“टॉस वाला ” मने पूछा।
“हाँ, यह अपनी तरह का अलग ही स ा होता है; चूँ क ोबै ब लट दो ही होती है;
इस लए इसपर भी मा जन यादा नह होता। यह थोड़ा अलग भी होता है। यह कुछ
भरोसेमंद पंटस के लए ही होता है; सबके लए नह । इसे एक बंद कमरे म खेलते ह।
यान से सुनना। दे ख, टॉस फ संग म स का उछलते ही स ा लगाना होता है। छोटू ने
अबक इसी पर दाँव खेला था और वो भी ब त चालाक से। वह कमरे म भी इयरफोन
लगाकर बैठा था तूने अगर यान दया हो तो रे डयो पर इं सडस, ट वी से कुछ ण पहले
होता है। इस लए जब तक ट वी पर सरे लोग ने स का उछलते दे खा तब तक छोटू ने
भारत को टॉस जीतते सुनकर भारत पर स ा लगा दया। सब कुछ ठ क था ले कन
क मत ने गेम कर दया। अ पायर ीलंकन क तान क कॉल सुन ही नह पाए और टॉस
बारा करना पड़ा। बारा टॉस होने पर ीलंका टॉस जीत गई और ये साला एक लाख
हार गया।” रा ल ने क- ककर पूरी बात बताई।
“एक लाख भचो, एक लाख का स ा खेल गया। पैसे दे ता कहाँ से। सोचा तो
होता।” मने आ य से पूछा।
“सोच रखा था। उसने सब सोच रखा था। अ वल तो उसने हारने का सोचा ही नह
था। य क एक तो इस व ड कप म इं डया के टॉस जीतने का बेदाग रकॉड था। इं डया
बना टॉस हारे आगे बढ़ती आ रही थी। सरे, उसे अपने रे डयो वाली क पर पूरा व ास
था। फर भी अगर वो स ा हार जाता तो 25 हजार उसक से व स थी। 25 हजार उसने
पछले स े के जीते थे और 50000 बटु क शमा के अकाउंट से।” रा ल ने कहा।
“मतलब बटु क शमा के अकाउंट से 49000 पये नकाले गए ह ” मेरी आँख
फट क फट रह ग ।
“हाँ, तो ऐसे थोड़े ही छ रयाया है बूढ़ा।” रा ल ने मुसकुराते ए कहा।
“तूने बटु क को बताई ये बात ” मने रा ल से पूछा।

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“नह उड़ता तीर लेने का शौक नह है हमको।” रा ल ने कहा
“भचो इंटरनेशनल खलाड़ी था भाई ये तो ” मने उँग लयाँ चटकाते ए कहा।
“हाँ इतना शा तर क उसे पता था क हम जानकर भी यह बात कसी को नह बता
पाएँगे।” रा ल ने लैपटॉप बंद करते ए कहा।
“ य य नह बता पाएँगे ” मने कहा।
“दे ख, पु लस को तो बताने का सवाल ही नह है। पछला रकॉड खुल जाएगा और
हम झूल जाएँगे। बटु क को भी नह बता सकते। अगर बटु क के पास उसका पता होगा
और वो उस तक प ँच जाएगा तो भी हमारी लंका लग जाएगी। उसे यह भी मालूम था क
हमारी जॉइ नग बाक है तो हम कसी पु लस के लफड़े म नह फँसना चाहेगे। व और
क मत दोन उसके साथ थी।” रा ल ने लैपटॉप को उलटकर उसके ू खोलते ए
कहा।
“ले कन कब तक बचगे पं डत, आज नह तो कल बटु क थाने म रपोट तो ज र
कराएगा वो फँसा तो हम फंसे।” मने दोन हाथ से सर पकड़ते ए कहा।
“बटु क थाने म रपोट नह कराएगा।” रा ल ने अं तम ू नकालते ए ठोस
व ास से कहा।
“ य दामाद को 49000 का शगुन दे दया या बटु क ने ” मने मजाक म अपने
मन क बात मलाते ए कहा।
“ऐसा ही समझो।” रा ल ने अब लैपटॉप के भीतर से हाड ाइव के ू और
वॉइंट्स को खोलते ए कहा।
“समझाओ बे, छोटु आ दमाग क जुलूस नकाल दहीस है। कुछ समझने क श
नह है। बार-बार बाबूजी का डंडा और पु लस का हथकंडा दमाग म घूम रहा है। सब
ठ क तो है न ” मने दलासा के लए कहा।
“घबराओ मत झाड़ी, भगवान जबर वाला क्र ट लखे ह।” रा ल ने हाड ाइव
का सॉकेट हाथ म लेते ए कहा।
“ये या कर रहा है ” मने चढ़ते ए पूछा।
“ कया-धरा धो रहे ह।” रा ल ने हाड ाइव के मैगनेट को उखाड़ते ए कहा। म
समझ गया क रा ल लैपटॉप से हर तरह के सबूत मटा रहा है। म फर अपने पहले
सवाल क तरफ लौटा।
“खैर ये बताओ क बटु क पु लस म रपोट य नह करेगा ”
“सुन, हर इंसान क तरह बटु क को पैसा ब त यारा है। ले कन हर इंसान क तरह
ही बटु क को इ जत यादा यारी है।” रा ल ने हाड ाइव के लेटस पर हथौड़ा मारते ए
कहा।
“मतलब ” मने आ य से भव सकोड़ ।
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“मतलब ये क अभी मने तुझे बताया क सतबीर के ब त सारे धंध म एक धंधा
इ योरस ॉड का भी है। उसने LIC ॉड के लए मलते-जुलते नाम वाली एक कंपनी
का अकाउंट खोला है। उसी अकाउंट म हमारा पैसा भी हवाला के लए जाता था। मने पैसे
भेजते समय यह नाम तो पढ़ा था; ले कन मुझे बस अपने काम से मतलब था; इस लए
कभी इस पर यान नह दया। अब जब कल बटु क शमा के साथ बक से बाहर नकल रहा
था तो मने दे खा क पैसा इस अकाउंट म, जसका नाम लाइफ इ योरस को-ओपरे टव है,
म ांसफर आ है। अचानक ही मेरे दमाग काम कर गया। मने बटु क से पूछा क या
उनके पास इ योरस कंपनी से बोनस दे ने के लए फोन आया था। तो उ ह ने कहा क हाँ
आया था। मेरा तु का काम कर गया।” बताते-बताते रा ल ने सारा हाड ाइव चूर कर
दया।
“अ छा फर या आ ” मैने कौतूहल से पूछा।
“ फर मने पूछा क उ ह ने आपसे आपका आईडी और पासवड माँगा था। बटु क ने
फर कहा क हाँ माँगा था। मगर मने सफ आई डी द । पासवड दे ही रहा था क फोन
कट गया। इतना सुनते ही मेरी खुशी का ठकाना नह रहा। मने बटु क को व ास दला
दया क उसने आपका पासवड सुन के ही फोन काटा था। बटु क जब आना कानी करने
लगा तो अपनी बात को पु ता करने के लए म बटु क शमा को फर बक मैनेजर के पास
लेकर गया। मैनेजर ने मेरे झूठ को बटु क शमा के सामने कई ॉड केस दखाकर सच बना
दया। अंततः बटु क को भी व ास हो गया क उनका पैसा इ योरस ॉ डए उड़ा ले
गए।” रा ल ने समझाते ए बात ख म क ।
“भगवान हो साले तुम ” मने खुशी से रा ल को गले लगाते ए कहा। मेरा डर
काफूर हो चुका था; ले कन अभी आगे क कहानी जाननी थी; इस लए मने रा ल से कहा-
“आगे या आ ”
“बाहर नकलते ही अभी म कुछ और प पढ़ाता; उससे पहले ही बटु क शमा ने
कहा क बेटा पु लस म जाने पर इ जत क नीलामी लग जाएगी। सब सोचगे क कतना
जा हल आदमी है। उसपर से पु लस के पंगे म उनका खचा अलग। जैसा क बक मैनेजर
कह रहा है क पैसा मलना तो है नह । तो बेकार म अपनी इ जत क भ पटवाने से
बेहतर है क इ जत बचा ली जाए। तू तो जानता ही है क कॉलोनी म कतनी इ जत है
तेरे अंकल क ” कहते ए रा ल के चेहरे पर वजयी मु कान तैर गई।
“मतलब बटु क पु लस केस नह करेगा ” मने खुशी म त सवाल कया।
“नह बे नह करेगा ” रा ल ने हँसते ए कहा।
“तुम हरामी टाइप माट है पं डत ” मने रा ल को फर गले लगाते ए कहा।
“थक यू। चल इसी बात पे शायरी सुना।” कहते ए रा ल उठा और एक यूज पेपर
पर चूरा हो चुके हाड ाइव को लेकर बाथ म क ओर बढ़ गया।

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“ए गनी दे सीम-ओ-जर व -ए-बला। माल-ए- नया जान क खैरात है/” मने भी
बाथ म के दरवाजे पर खड़े होकर ही शेर सुना दया।
“ब त ब ढ़या ब त अ छा इसम बस ‘माल’ समझ म आया झाड़ी।” कहते ए
रा ल हँसा और उसने हाड ाइव का चूरा कमोड म डालकर लश कर दया।
तु ह हो मेरा शृंगार ीतम

उस रोज दो घटनाए ई थ दन म भूकंप आया था और रात म तूफान। धरती जब काँपी


तो लोग अफरा-तफरी म नीचे क तरफ भागे। रात म अचानक जब आँधी उठ तो प र ध
छत क तरफ भागी। दन म लोग को अपनी जान यादा यारी थी; रात म प र ध को
सुखाने के लए डाले ए कपड़े यादा यारे थे। दन भर भूकंप क वजह से नीचे खड़े-
खड़े माँ के पैर म जो दद आ तो उ ह बेसुध न द आ गई थी। बटु क शमा जो ेस शन
लए दवा ढूँ ढ़ रहे थे वो अब तक लौटे नह थे। जब तक प र ध छत पर प ँचती; तूफान के
कारण बजली जा चुक थी। उसके कपड़े समेटते-समेटते बा रश भी बड़ी-बड़ी बूँद के
साथ आ गई थी। प र ध ने सामने वाले कमरे को दे खा और उदास हो गई। उसे गु सा
आया क ऐसी थ त म भी उसक मदद करने कोई बाहर नह नकला। उसने जैसे-तैसे
सारे कपड़े उठाए; अपनी माँ क ही एक साड़ी से अपना सर और शरीर ढका और नीचे
उतरने के लए सी ढ़य क तरफ बढ़ने लगी।
ले कन उसके सी ढ़य तक प ँचते-प ँचते दरवाजा धीमी सी चरचराहट के साथ बंद
हो गया। प र ध सहम गई। फर उसे लगा क दरवाजा शायद आँधी क वजह से बंद हो
गया होगा; ले कन तभी दरवाजे के बंद होने के साथ-साथ उसे दरवाजे के पीछे एक साया
दखा। वो च लाने ही वाली थी क उस साये ने उसके मुँह पर कसकर हाथ रख दया।
कसमासाते ए ही प र ध जोर से दाँत काटने ही वाली थे क बजली चमक । बजली के
रोशनी म उसने उस चेहरे को दे खा।
वो रा ल था। उसे दे खते ही प र ध को कुछ राहत ई और उसने खुद को ढ ला छोड़
दया। रा ल ने जैसे ही उसके मुँह पर से अपने हाथ हटाए; गु साई ई प र ध ने उसे एक
थ पड़ जड़ दया -
“What is this अगर ये मजाक था तो तेरे इस मजाक ने मेरी जान ले लेनी
थी।” प र ध ने कहा और गरे ए कपड़े समेटने लगी। बा रश और तेज ई जा रही थी।
रा ल भी उसके साथ बैठ कर कपड़े समेटने लगा।
“Do you love me ” रा ल ने नीचे गरे कपड़े प र ध को पकड़ाते ए कहा।
“No ” प र ध ने गु से म ही सीधा जवाब दया।
“Do you trust me ” रा ल ने सारे कपड़े उठा चुक प र ध से पूछा।

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“भूत बन के डराने वाले पर कैसा ट। नो ” प र ध ने फर सी ढ़य क ओर जाते
ए कहा। रा ल ने जाती ई प र ध क कलाई पकड़ ली।
“Can you forgive me ” रा ल ने प र ध को अपनी ओर ख चते ए कहा।
अब रा ल और प र ध के बीच केवल सुखाए ए कपड़ का ग र ही था जो क भीग चुका
था।
“What are you Doing . मो हत दे ख लेगा ” प र ध ने ब त ही धीमे से
कहा।
“नह दे खेगा। उसे मने कफ सरप पला रखा है। अब बता।” रा ल ने प र ध के
बाएँ कान म फुसफुसाते ए कहा।
“दे ख, बाक छत पर भी लोग आ गए ह। कोई दे ख लेगा।” प र ध ने कलाई छु ड़ाते
ए धीमे से कहा।
“उनक बैन क मून First answer me Can you forgive me ”
रा ल ने फर कहा।
“No ” प र ध ने रा ल के कंधे पर अपने भीगे ए सर को टकाते ए कहा।
“अ छा The last one Can you live without me ” रा ल ने पूछा।
“No ” प र ध ने बना एक भी पल गँवाए कहा।
“पता है तूने सारे जवाब सही दए ह।” रा ल ने प र ध क ठोढ़ को उठाते ए
कहा।
“थक यू जी आपका केबीसी ख म हो गया हो तो अब म जाऊँ।” प र ध ने कहा।
“ क जा अपना ग ट तो ले जा। वो दे ख बाउं ी वाल पर रखा है।” रा ल ने
बाउं ी वाल पर रखे एक पैकेट क ओर इशारा करते ए कहा। प र ध ने ग ट को भीगते
ए दे खा और तेज कदम से उधर बढ़ ।
“झ ला कह का कुछ ले भी आया तो बाउं ी वाल पर रख छोड़ा। भीग गया होगा।
या है ये ” प र ध ने ग ट पैक खोलते ए कहा। वो दरअसल एक रग थी। प र ध ने
पहले उसे दे खा। फर रा ल को दे खा। रा ल के चेहरे पर उभरते भाव से उसे कुछ समझ
नह आया। उसने फर से रग क ओर दे खा। रग दे खते ही प र ध क ब लौरी आँख म
चमक ले सवाल तैर गए -
“Are you proposing ” प र ध ने खुशी म त आ य से पूछा।
“No, I am begging .” रा ल ने अपना बायाँ हाथ बढ़ाते ए कहा। प र ध
एक पल को खड़ी रह गई। चमकती ए बजली ने उसके आँसू नुमाया कर दए। वो
जड़वत हो गई।
“Will you marry me Paridhi Sharma ” रा ल ने बारा पूछा।

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“Yes Yes Yes I will Rahul Mishra .” कहते ए प र ध तेजी से आकर
रा ल से लपट गई। उसने अपने दोन आँख के आँसू तेजी से रा ल क भीगी कमीज म
ज ब कर दए।
“ या कर रही है बाक छत पर भी लोग आ गए ह। कोई दे ख लेगा ” रा ल ने
प र ध क बात दोहराई।
“उनक बैन क मून ” हँसते ए प र ध ने रा ल क बात हरा द । वह कुछ दे र वैसे
ही जड़वत रा ल के साथ भीगती रही। फर अचानक ही पूछ पड़ी-
“अ छा एक बात बता इतनी ए सप सव रग है। ये रग के पैसे कहाँ से आए ”
इसके जवाब म अभी रा ल कुछ कहता उससे पहले ही म कमरे से बाहर नकला और
कहा -
“वो मत बताना। और साले तेरा कफ सरप कसी काम का नह है न द ही नह
आई ”
रा ल से लपटे ए ही प र ध ने रा ल के सीने पर दो धौल जमा दए। दोन थोड़ी
दे र यूँ ही खड़े रहे फर प र ध ने ही कहा।
“पापा से बात कौन करेगा ”
“वही जसे एक बोतल कफ सरप पीकर भी न द नह आई।” रा ल ने प र ध क
पेशानी चूमते ए कहा।
“नौकरी लगवा द है तेरे हे क । आ, अब तो गले लग सकती है मुझसे भी ” मने
कहा।
“थक यू।” प र ध ने मुझसे गले लगते ए कहा।
***

इसे म संयोग नह मानता। ले कन अगर यह था भी, तो सुखद संयोग ही था क


रा ल का वॉइ नग लेटर और मेरा े नग लेटर एक साथ ही आया। बटु क शमा का कमरा
सचमुच हमारे लए खुश क मत सा बत आ था। म अपने ह से क मठाई पहले ही
खला चुका था। अगले दन यानी र ववार को रा ल को अपने ह से क मठाई खलानी
थी। मठाई भी उसने जानबूझकर डोडा बफ ही चुनी। हम मठाई लेकर नीचे उतरे और
रा ल ने कॉलबेल बजाई।
“कौन ” बटु क शमा क चर प र चत आवाज आई।
“जमाई रा ल।” रा ल ने चर-प र चत जवाब दया।
“कौन है ” अबक बार फर वही चर-प र चत कड़क आवाज आई।
“जी म रा ल।” रा ल ने फर श द व थत कर दए।

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दरवाजा खुला और खुलते ही रा ल ने मठाई का पैकेट हम दोन से पहले ही अंदर
कर दया।
“ये कस खुशी म बेटा जी ” बटु क शमा ने पूछा।
“अंकल, लड़के क नौकरी लग गई है।” मने रा ल के बारे म कहा।
“अ छा ” बटु क शमा ने कटा कया।
“आप तो लड़के को यूँ ही डराते रहते हो। आ बेटे इधर आ।” बटु क शमा क प नी ने
रा ल को बुलाया। संभवतः प र ध ने माँ को सब कुछ बता दया था। रा ल भी इस अजाब
से छु टकारा चाहता था। वो फौरन पाँव छू ने के बहाने आंट के पास चला गया और वह
बैठकर उनसे बात करने लगा।
“तेरी कसरत कब से शु हो रही है बेटे ” बटु क शमा ने मेरी े नग के बारे म पूछा।
“अगले महीने से शु हो जाएगी अंकल। फौज क नौकरी भी कोई नौकरी है ” मने
मुँह गराते ए कहा।
“ य है तो तू अफसर ही ना ” बटु क शमा ने सशं कत होकर पूछा।
“ ँ तो अंकल। ले कन फौज का तो आप जानते ही ह। घर से र, प रवार से र। हर
चार पाँच साल पर ांसफर। कोई लाइफ नह है।” मने कहा।
“वो तो सही है बेटा पर सरकारी नौकरी का मजा ही अलग है।” बटु क शमा ने
सां वना द ।
“नौकरी हो तो रा ल जैसी।” मने बात छे ड़ी।
“ य । जे कौन-सा लाड गवनर बन गया है ” बटु क शमा ने कहा।
“आजकल द ली म ही पो टं ग मलना उससे कम भी नह है अंकल। ये तो सारी
जदगी के लए द ली वाला हो गया समझो।” मने कहा।
“अ छा या इसक भी सरकारी नौकरी है ” बटु क शमा धीरे-धीरे लाइन पर आ
रहे थे।
“हाँ अंकल। या कमाल क नौकरी है द ली म ही वसंत वहार म कंपनी का
लैट। मतलब घर पर लड़क वाले तो सूटकेस लेकर दौड़ने लगे ह।” मने पानी मलाया।
“अ छा, ले कन लड़का ठ क है नह ये।” बटु क शमा ने कुछ सोचते ए कहा।
“ या बात कर रहे ह अंकल, ब त अ छे घर से है ये। म इसके फै मली को बचपन
से जानता ँ।” मने कहा।
“दे ख तेरे पे मुझे ब त भरोसा है। एक बात बता तू वारंट लेता है इसक ” बटु क
शमा ने कहा।
“वारंट अंकल म गारंट भी लेता ँ इसक । ले कन कस बात क गारंट अंकल ”
मने जैसे-तैसे हँसी दबाते ए कहा।

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“नह कुछ नह बस ये है बेटे क तुझसे अब या छु पाना। एक ही बेट है मेरी। जे
भी अगर द ली म ही बस जावे तो गंगा नान हो जाए।”
“म कुछ समझा नह अंकल।”
“साफ बात जे है बेटा क इस छोरे से मेरी छोरी के लगन का वचार कैसा है ” बटु क
शमा ने कहा।
“मतलब प र ध से ” मने अंजान बनते ए कहा।
“हाँ बेटा, एक ही बेट है मेरी। जो इस छोरे से लगन हो जाए तो आँख के सामने ही
रह जावेगी।” बटु क शमा ने कहा।
“ये तो ब त अ छ बात होगी अंकल; मगर आप पहले प र ध का मन भी जान ल।”
आजकल लड़ कय से पूछ लेना भी ठ क रहता है। मने अंजान बनते ए कहा।
“अरे उससे या पूछना जहाँ बाँध दगे वही खड़ी हो जावेगी। बचपन से ही ब त
सीधी है छोरी। तूने तो दे खा ही होगा इतने दन म ” बटु क शमा ने कहा।
“नह अंकल आजतक नह दे खा ” मने ब त ही भोलेपन से कहा।
“बता, इतनी सीधी छोरी है हमारी। तू तो बस लड़के के बारे म बता इसका कोई
च कर-व कर तो नह । तू ही बता सकता है। तू तो बैट्समैन है उसका ” बटु क शमा ने
फर अँ ेजी क क ल गलत जगह ठोक द ।
“नह अंकल। लड़का थोड़ा चंचल है; मगर और कोई ऐब बलकुल भी नह । आपने
तो दे खा होगा।” मने भी चुहल करते ए कहा।
“नह ऐसा कोई ऐब तो ना दखा।” बटु क शमा भी सारे एब पर पदा डाल गए।
“ऐब है ही नह । म जानता ँ। म तो बैट्समैन ँ उसका।” मने कहा।
“बेटा रा ल।” बटु क शमा ने कुछ दे र सोचने के बाद पहली बार रा ल को उसके
नाम से पुकारा।
“जी अंकल ” रा ल ने भी ब कुल दामादयु लहजे म कहा।
“अपने पापा का नंबर दे ना जरा ” बटु क शमा ने काम क बात क ।
“जी अंकल, ल खए।” कहते ए रा ल ने बटु क शमा को अपने पापा का नंबर
लखवा दया। बटु क शमा ने दो साल म पहली बार हम दोपहर के खाने पर बुलाया। हम
दोन खाने का वादा कर बाहर नकल गए।
“कौन से बैट्समैन का बात कर रहा था बे बटु क दे खो झाड़ी शाद हम कर रहे ह;
बै टग भी हम ही करगे।” रा ल ने बाहर नकलते ही हँसते ए कहा।
“पं डत, वो बटु क है। वो बैट्समैन नह ; बे टमैन क बात कर रहा था।” कहते ए
मने रा ल क आँख म दे खा। हम बटु क शमा के भाषा ान पर इतना हँस चुके थे क इस
दफा हम हँसी भी नह आई।

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आज रा त , ग लय , छोले कु चे वाल , मैगजीन सटरवाल , सी डी कॉनर वाल से
मलते- बछड़ते ए हम पैदल ही पांडवनगर के लाइ-ओवर पर चले जा रहे थे। र कह
कसी कु फ वाले के पीकर पर नुसरत फतेह अली खान आलाप लगा रहे थे -
“ हे का सेहरा सुहाना लगता है; हन का तो दल द वाना लगता है।”
***

आज रा ल म ा क शाद हो गई है। वदाई का व आ गया है। प र ध, बटु क


शमा से लपटकर खूब रो रही है। बटु क शमा अपनी बेट का हाथ, रा ल म ा के हाथ म
दे ते ए कह रहे ह- “बेटे हर अप-डाउन म इसका साथ दे ना।”
रा ल म ा परेशान ह क यह कस ‘अप-डाउन’ क बात कर रहे ह। मुझे छु पकर
हँसने के लए बारा तय के पीछे माकूल जगह मल गई है।

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