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अपनी बात
कग-मेकर चाण य
पहला अ याय
सरा अ याय
तीसरा अ याय
चौथा अ याय
पाँचवाँ अ याय
छठा अ याय
सातवाँ अ याय
आठवाँ अ याय
नौवाँ अ याय
दसवाँ अ याय
यारहवाँ अ याय
बारहवाँ अ याय
तेरहवाँ अ याय
चौदहवाँ अ याय
पं हवाँ अ याय
सोलहवाँ अ याय
स हवाँ अ याय
अपनी बात
-महेश शमा
कग-मेकर चाण य
श ा
चाण य के पता चणक मु न एक श क थे, इस लए श ा का मह व वे अ तरह से
समझते थे। अपने पु को उ ह ने अ श ा दान क । कम उ म जब ब े बोलना भी
ठ क से शु नह कर पाते ह, चाण य ने वेद का अ ययन आरंभ कर दया था। अ पकाल
म ही वेद म पारंगत होकर चाण य का झुकाव राजनी त क ओर आ। ज द ही वे
राजनी त क बारी कय को समझने लगे। वे समझ गए क वरो धय के खेमे म अपने
आदमी कैसे शा मल कए जाते ह और मन क जासूसी कैसे क जाती है। इसके
अलावा उ ह ने अथशा एवं ह शा का भी गहन अ ययन कया और बाद म उ ह ने
'चाण य नी त', 'नी तशा ' एवं 'अथशा ' जैसे महान् कालजयी ंथ क रचना क ।
पाट लपु म
पाट लपु (वतमान नाम पटना) का इ तहास राजनी तक प से ब त मह वपूण रहा है।
द ली क तरह यह भी कई बार बसा और उजड़ा है। चीन के सु स या ी फा ान ने
399 ई-पू- पाट लपु क या क थी और इसे एक संप एवं ाकृ तक संसाधन से भरपूर
नगर कहा था। उसी समय एक अ य चीनी या ी े नसांग ने इसका वणन रोड़े , प र और
वंसावशेष के नगर के प म कया था। शशु नवंशी ने गंगा के द णी कनारे पर इस
शहर क ापना क । समय-समय पर इसके नाम बदलते रहे। इसे पु पपुर, पु पनगर,
कुसुमपुर, पाट लपु और अब पटना कहा जाता है।
चाण य क शपथ
चं गु त से भट
वह चाण य के नकट प ँचा और उनसे आदरपूवक बात करने लगा। चाण य ने उसक
पा रवा रक पृ भू म के बारे म बात करते ए पूछा, ''तुम कौन हो? कुछ च तत दखाई
पड़ते हो?''
युवक चं गु त ने आदरपूवक आगे झुकते ए कहा, '' ीमान, आपका अनुमान ठ क है। म
ब त मुसीबत म ँ। ले कन अपनी परेशानी बताकर म आपको परेशान नह करना
चाहता।''
चाण य ने उसे दलासा दे ते ए कहा, ''तुम न संकोच अपनी परेशानी मुझे बता सकते हो।
य द मेरे वश म आ तो म तु हारी सहायता अव य क ँ गा।''
''म राजा सवाथ स का पौ ँ। उनक दो प नयाँ थ —सुनंदा दे वी एवं मुरा दे वी। सुनंदा
के नौ पु ए, जो नवनंद कहलाए। मुरा के एक पु था, जो मेरे पता थे। नवनंद ने बार-
बार मेरे पता को जान से मारने क को शश क । हम सौ से अ धक भाई थे। ई यावश
नवनंद हम सभी क जान लेने पर तुले ए थे। कसी तरह से म बचा रहा; पर मेरा पूरा
जीवन बरबाद हो गया है। म नंद से तशोध लेना चाहता ँ, जो इस समय दे श पर शासन
कर रहे ह।''
चं गु त म नेतृ वकता के ज मजात गुण थे। बालक म भी सब उसे अपना नेता मानते थे।
बालक के राजा के प म वह अपना दरबार लगाता था और याय करता था। साहस और
सूझ-बूझ के गुण बचपन से ही उसम दखाई दे ने लगे थे। जब चाण य पाट लपु क
ग लय से गुजर रहे थे तो उ ह ने एक सहासननुमा ऊँची च ान पर चं गु त को राजसी
अंदाज म बैठे दे खा था। उसके सामने बालक का समूह फ रयाद बनकर फ रयाद कर रहा
था। चं गु त का भावान् मुखमंडल और बु म ापूण संभाषण सुनकर चाण य ब त
भा वत ए थे।
सकंदर का आ मण
अपने सेनानायक क कमजोरी के चलते सकंदर क ताकत भी घटने लगी थी। सकंदर के
रहते ही नकोसर नामक उसका एक वीर सेनानायक मारा गया। बाद म फ लप नामक एक
अ य सेनानायक, जसे जय समझा जाता था, उसक मौत ने सकंदर को बुरी तरह
तोड़कर रख दया। बेबीलोन म सकंदर क मृ यु के बाद उसके सभी सेनानायक या तो मारे
गए या खदे ड़ दए गए। 321 ई-पू- म सकंदर के सै य अ धका रय ने उसके सा ा य को
आपस म बाँट लया। यह तय आ क सधु के पूव म उनका शासना धकार समा त आ।
इस कार उ ह ने वयं वीकार कर लया क भारत के उस ह से पर अब उनका अ धकार
नह रहा।
नंद क पराजय
नंद पर आ मण से पहले चाण य ने एक सु ढ़ रणनी त तैयार क । चाण य ने शु म
आ मण क नी त को शहर के म य भाग पर आजमाकर दे खा। ले कन उ ह बार-बार
पराजय का सामना करना पड़ा। अपनी रणनी त को बदलते ए चं गु त और चाण य ने
इस बार मगध सा ा य क सीमा पर आ मण कया। ले कन इस बार भी उ ह नराशा
हाथ लगी।
तीखे नाखून वाले हसक पशु, बड़े स गवाले पशु, ती वेगवाली न दयाँ, श धारी ,
याँ तथा राजकुल से संबं धत व ास के यो य नह होते—अथात् ये कभी भी
व ासघात कर सकते ह। इस लए मनु य को इन पर व ास करने से बचना चा हए।
जस कार बाहर से सुंदर दखाई दे नेवाले फल अ धकतर मीठे नह होते, उसी कार मीठे
वचन बोलनेवाले लोग भी घातक और अ व सनीय होते ह। मुख पर शंसा तथा पीठ पीछे
नदा करनेवाले मनु य म ता के यो य नह होते। ऐसे मनु य वष मले ध के समान होते
ह। इस लए ऐसे लोग से सदै व सतक रह और अ तशी उनका याग कर द।
कसी अभी काय पर चतन-मनन करते समय या उसे काया वत करने से पूव वाणी ारा
उसे कट कर दे ने से काय के पूण होने म संदेह उ प हो जाता है। इस लए यान रख, जब
तक काय-योजना पूरी तरह से सफल न हो जाए तब तक उसका उ लेख कसी से न कर।
य प अ ान क दायक होता है तथा इसके कारण मनु य उपहास का पा बन जाता है,
यौवन भी असी मत क दान करनेवाला है। ले कन चाण य क म कसी सरे पर
आ त होकर जीना सबसे अ धक क दायक होता है। ऐसा पशु-तु य हो जाता है।
उसे सरे के अनुसार सम त कम करने पड़ते ह। अतः उ चत यही है क मनु य
सबल होकर जीवन तीत कर।
चूँ क मूख और अ ानी मनु य उपहास का पा बनकर रह जाता है। ानवान् मनु य म
उनक त हंस के बीच कौए जैसी होती है। वह न तो अपने वचार कट करने म स म
होता है और न ही सर के ानयु वचार को वीकार करने यो य। यही कारण है क
चाण य ने उन माता- पता को अपनी संतान का घोर श ु कहा है, जो उ ह अ श ा
नह दलवाते।
मनु य के जीवन म कुछ ऐसे ःख होते ह, ज ह भुलाना असंभव होता है। प नी- वयोग,
वजन ारा कया गया अपमान, ऋण, वामी क चाकरी तथा मूख से यु ान म
द र तायु जीवन-यापन करना—ये क मनु य के शरीर को अ व कर उसे मृ यु क
ओर धकेलते ह।
चाण य कहते ह क जस कार ती वेग से बहनेवाली नद के कनारे त वृ शी ही
न हो जाते ह, उसी कार सरे के साथ रहने वाली ी तथा सुयो य मं ी से हीन राजा
का अ तशी नाश हो जाता है।
संसार म कोई भी ऐसा मनु य नह है, जसके कुल या वंश म कोई दोष अथवा अवगुण न
हो। य द गहनता से परी ण कया जाए तो येक के कुल म कोई-न-कोई दोष
अव य नकल आएगा। इसी कार संसार म ऐसा कोई नह है, जो नीरोगी या सुख-
संपदा से प रपूण हो। अथात् ःख, क , पीड़ा एवं बीमारी कभी-न-कभी अव य मनु य को
जकड़ती है। इसके भाव से कोई भी बच नह सकता। सुख- ःख एवं उतार-चढ़ाव येक
मनु य के जीवन म आते-जाते ह। ले कन मनु य को असहाय होने के ान पर
साहसपूवक इनका सामना करना चा हए।
मनु य का आचार- वचार ही उसके कुल का प रचायक होता है। वा ालाप से उसके दे श
वशेष का, वहार से उसके नेहभाव एवं मान-स मान का तथा उसके शरीर से भोजन
का ान होता है। अ य श द म, मनु य का व उसके संपूण कृ त व का दपण होता
है। केवल मनु य के व को दे खकर ही बु मान उसके गुण-दोष का अनुमान
लगा सकता है।
धम, अथ, काम और मो -ये चार जीवन के मह वपूण अंग कहे गए ह। चाण य के
अनुसार, जो मनु य इनम से कसी एक भी गुण को नह अपनाता, उसका जीवन नरथक
है। इन गुण से र हत मनु य का जीवन मृ यु-तु य है—अथात् वह मृ यु के लए ज म लेता
है तथा पुनज म के लए ही मृ यु को ा त होता है। इस लए मनु य को अपना अमू य
जीवन थ के भोग- वलास म न नह करना चा हए। इसक अपे ा अ े गुण को
हण कर पु य ा त करना चा हए।
चाण य के अनुसार, जस रा य म मूख को आदर-स मान न मलता हो, जो चुर धन-
धा य से प रपूण हो, जस घर म प त-प नी म पर र ववाद न होता हो, वहाँ सा ात्
ल मी का वास होता है। उस ान पर कभी कसी व तु का अभाव नह होता। घर के सभी
ाणी सुख और आनंद के साथ जीवनयापन करते ह।
चौथा अ याय
बुरे एवं बदनाम गाँव म नवास करना, कुलहीन क सेवा करना, ोधी प नी, मूख पु तथा
वधवा क या—इन छह कारण को चाण य ने शरीर को ःख पी अ न से त त
करनेवाला माना है। इस लए वे कहते ह क स न पु ष को इनका यथासंभव उपाय कर
लेना चा हए।
जो बाँझ गाय ध नह दे ती, उसे घर म रखने का कोई लाभ नह है। इसी कार जो पु
व ार हत और माता- पता का आ ाकारी न हो, ऐसे पु को याग दे ना ही उ चत है,
अ यथा प रवार को अनेक क भोगने पड़ते ह।
जस कार संतान के बना घर सूना-सूना लगता है, उसी कार म एवं सगे-संबं धय के
बना मनु य को एकाक पन का अनुभव होता है। ले कन मूख, नधन एवं द र मनु य सदै व
वाथ- स म लगे रहते ह, इस लए उनके दय म कसी के लए भी ेम, ममता या
क णा का भाव नह होता। यही कारण है क उनके लए सारा संसार ही र होता है,
य क कोई भी उनके नकट आने से बचता है।
चाण य के अनुसार, अ यास के बना व ान् भी शा का यथो चत वणन नह कर पाता
और लोग के बीच उपहास का पा बन जाता है। ऐसी त म अपमान मृ यु से अ धक
क द होता है। इस लए जो व ान् नरंतर अ यास नह करता, उसके लए शा भी
वष के समान हो जाते ह। इसी कार जस क पाचन-श ीण है—अथात् जो
भोजन को ठ क से नह पचा सकते, उनके लए ब ढ़या-से-ब ढ़या भो य पदाथ भी वष-
तु य ह। चूँ क सभा एवं गो य म द र का सदै व अपमान होता है, इस लए ऐसे ान
उसके लए वष के समान ह। वृ के लए युवा प नी वष क भाँ त होती है। ऐसी त
म युवती का आचरण वृ के लए अ यंत क दायक और अपमान त होता है।
मनु य-जीवन म काम, मोह और ोध जैसे वकार का उ लेख करते ए चाण य कहते ह
क काम मनु य का सबसे बल श ु है। यह एक ऐसा असा य रोग है, जसके वशीभूत
होकर मनु य बु - ववेक गँवा दे ता है, साथ ही उसका शरीर शी ता से नबलता क ओर
अ सर हो जाता है। मोह श ु के समान मनु य का नाश कर दे ता है। पु -मोह के वशीभूत
होकर ही महाभारत जैसा वनाशकारी यु आ। इसी कार ोध भयंकर अ न के समान
है, जो अपनी लपट से मनु य को बार-बार ता ड़त करता है। इसके भाव से मनु य का
मन-म त क ण- त ण जलता रहता है। इन वकार के नाश हेतु चाण य ने ान को
सव म साधन कहा है। उनके अनुसार, केवल ान ारा ही इन वकार को शांत करके
सुख क ा त संभव है।
जस कार 'गीता' म भगवान् ीकृ ण ने अजुन को कम का उपदे श दया है, उसी कार
इस ोक ारा चाण य पी कृ ण ने भी मानव पी अजुन को कम का ान दान
कया। वे कहते ह क येक मनु य को अपने कम का फल वयं ही भोगना पड़ता है।
अ ा या बुरा-वह जो भी कम करता है, उसी के अनुसार उसे फल ा त होता है। कम ही
उसे माया के बंधन म जकड़े रहते ह। इसके फल व प वह बार-बार व भ यो नय के
मा यम से संसार म ज म लेता है। य प मनु य कम करने के लए वतं है, तथा प वह
उसका इ त फल नह ा त कर सकता है। मनु य का काय केवल कम करना है ले कन
कम के अनुसार उसका फल ई र ही दान करता है। इस लए मनु य को मो क ा त
हेतु वयं ही यास करने चा हए।
पुराण म कहा गया है क मनु य को जससे भी कोई श ा या गुण मले, उसे ेमपूवक
वीकार करना चा हए। इस कथन को चाण य ने भी वीकारा है। उपयु ोक ारा
उ ह ने मनु य को संबो धत करते ए कहा है क ई र ने जगत् के सभी ा णय को एक-
न-एक गुण अव य दान कया है। इस लए मूख या पशु से ा त होनेवाले गुण को भी
हण करने म कसी कार का संकोच या ल ा अनुभव नह होनी चा हए। इसी संदभ म
वे आगे कहते ह क मनु य को सह और बगुले से एक-एक, गधे से तीन, मुग से चार, कौए
से पाँच तथा कु े से छह गुण हण करने चा हए।
चाण य क म सह एक ऐसे मह वपूण गुण से संप है, जसे मनु य को हण करना
चा हए। वे कहते ह क मनु य जस काय क ज मेदारी ले, उसे पूरी लगन और ह मत के
साथ संप करे। कसी भी काय क ज मेदारी लेने से पूव मनु य को उसके गुण-दोष को
भली-भाँ त समझ लेना चा हए। इसके बाद पूरी बु म ा और लगन के साथ उसे पूरा
करने का यास करना चा हए। इसी से उसे यश और मान-स मान ा त होता है। इसके
वपरीत, जो मनु य हाथ म लये गए काय को पूरा करने म आल य दखाते ह या सर को
मत करते ह, उन पर पुनः कोई भी व ास नह करता।
बगुले म एका ता और धैय का गुण होता है। उपयु ोक ारा चाण य ने इसी गुण को
हण करने क बात कही है। वे कहते ह क जस कार बगुला एका च होकर धैयपूवक
अपने शकार पर टकाए रखता है तथा उस समय अपने म त क से सम त वचार
को नकाल दे ता है, उसी कार ववेकशील और बु मान को चा हए क वह अपनी
इं य को नयं त कर एका च होकर अपने काय को संप करे। इससे उसक
सफलता शत- तशत न त हो जाएगी।
चाण य मुग से चार मह वपूण गुण को हण करने पर जोर दे ते ह। यथा समय जागना,
यु के लए सदै व त पर रहना, बंधु-बांधव को उनका उ चत ह सा दे ना तथा मैथुन ारा
प नी को संतु करना-मुग म इन चार बात का समावेश होता है। बु मान और
ववेकशील मनु य को चा हए क वह इ ह अपने जीवन म उतार। जस कार मुगा न य
ातःकाल उठकर अपने काय म लग जाता है, उसी कार मनु य को भी ातःकाल ज द
उठकर दै नक काय म जुट जाना चा हए। इससे एक ओर जहाँ उसका वा य उ म
रहेगा, वह सरी ओर उसके काय समयानुसार नबटते जाएँगे। मुग म सदै व श ु से
लड़ने क वृ होती है। इस लए मनु य को भी पूरे साहस के साथ श ु का सामना
करने के लए तैयार रहना चा हए। मल-बाँटकर खाना मुग का एक अ य गुण है। वह
येक व तु को बाँटकर खाता है। इस गुण के आधार पर मनु य को भी सबका ह सा
समय पर बाँट दे ना चा हए। मैथुन-सुख क कमी या असंतु ही ी को भचार क ओर
धकेलती है। इस लए मनु य को मुग क तरह अपनी प नी को मैथुन-सुख से संतु रखना
चा हए। इससे वह हमेशा सदाचा रणी बनी रहती है।
चाण य ने कौए को पाँच गुण से यु बताया है। छपकर मैथुन करना, ता एवं ढठाई,
सं ह क वृ , आल य न करना तथा कभी कसी पर व ास न करना-ये पाँच गुण कौए
म व मान होते ह, ज ह मनु य को हण करना चा हए। जस कार कौआ छपकर
मैथुन करता है, उसी कार मनु य को भी मैथुन या छपकर करनी चा हए। इसी म
उसक मयादा और स मान सुर त रहता है। श ु का तकार करने के लए मनु य को
कौए से ता और ढठाई का सबक लेना चा हए। इससे वह श ु का पूणतः दमन कर
दे गा। सं ह क वृ कौए का एक अ य गुण है, जसे अपनाकर मनु य वप काल का
ढ़ता और साहस के साथ सामना कर सकता है। जस कार कौआ आल य से कोस र
रहता है, उसी कार मनु य को भी आल य का याग करके अपनी काय- स म जुट
जाना चा हए। इससे उस काय म सफलता न त हो जाती है। कसी पर व ास न करना
कौए का सबसे मह वपूण गुण है। इसे अपनाने से मनु य पूरी तरह से सुर त हो जाता है।
फर कोई भी उसका अ हत नह कर सकता।
वतमान समय सीधे एवं सरल लोग के लए अ यंत ःखदायक है। कोई भी चतुर
अपने वाथ हेतु उ ह सरलता से ठग लेता है। ऐसी त म चाण य का उपयु ोक
अ यंत सट क है। इस ोक ारा उ ह ने सरल एवं स न मनु य को परामश दे ते ए
कहा है क कभी-कभी मनु य के लए उसक अ य धक सरलता, सादगी और सीधा
वभाव अ भशाप बन जाता है। उनक स नता का लाभ वाथ और मनु य उठाते
ह। इसके लए वे उनका अ हत करने से भी नह चूकते। इसका उदाहरण दे ते ए वे कहते
ह क वन म टे ढ़े-मेढ़े वृ को कोई नह छू ता। इसके वपरीत सीधे खड़े वृ काट दए जाते
ह। अतः मनु य को इतना स न भी नह होना चा हए क कोई भी उसे ठग ले।
चाण य ने पूरी ढ़ता से इस बात को वीकार कया है क माता- पता के गुण-अवगुण एवं
आचरण का भाव उनक संतान पर अव य पड़ता है। वे कहते ह क य प द पक अँधेरे
का नाश कर दे ता है, तथा प उसके काजल से का लमा उ प होती है। इसी कार मनु य
जस कार के अ का भ ण करता है, उसक संतान वैसी ही होती है। इसे और
करते ए चाण य कहते ह क य द मनु य बेईमान, च र हीन और वृ का है तो
उसक संतान भी उसके अवगुण से यु होगी। इसके वपरीत स न मनु य क संतान
उसी के समान बु मान, सरल, ईमानदार और सहनशील होगी। इस लए मनु य को सदै व
स ण को ही हण करना चा हए।
य प चाण य ने दान करने पर वशेष जोर दया है, तथा प उनके मतानुसार दान हर
कसी को नह दे ना चा हए। इस संदभ म वे कहते ह क जस कार समु का जल हण
कर मेघ उसे समृ दायक वषा के प म खेत पर बरसाते ह तथा वही जल कई गुना
होकर पुनः समु म जा मलता है, उसी कार दान का वा त वक अ धकारी वही है
जो सहनशीलता, व ा, ईमानदारी, स नता आ द गुण से संप हो। ऐसे यो य
को दया गया दान सह गुना होकर वापस मलता है। इसके वपरीत जो आल य
से प रपूण, , सर से ई या करनेवाला, भचारी तथा पाप-कम म ल त हो, उसे
कभी दान न द, अ यथा ऐसे कुपा को दया गया दान मह वहीन हो जाएगा।
जल हण करने के वषय म चाण य कहते ह क शरीर का मह वपूण भाग पेट है। इसी
ान से वा य या अ व ता का उदय होता है। इस लए मनु य को चा हए क अपनी
पाचन- णाली को पूरी तरह से ठ क रखे। य द अपच क शकायत हो जाए तो ऐसी त
म जल औष ध का काय करता है। अतः भरपूर जल का सेवन कर। परंतु यान रहे, जल
का सेवन भोजन से पूव कर अथवा अ पच जाने के बाद। य द भोजन के एकदम बाद जल
का सेवन कया जाए तो वह वष के समान भावशाली होकर शरीर को शनैः-शनैः न कर
दे ता है।
ईख, तल, ु , ी, वण, धरती, चंदन, दही और पान का जतना भी मदन कया जाए,
उतनी ही उनके गुण म वृ होती है। अथात् ईख (ग े) एवं तल को जतना पेरा जाएगा,
उसम उतनी ही अ धक मा म रस और तेल नकलेगा। ु एवं ी को श त करने के
लए जतनी कठोरता क जाए, उतनी ही तेजी से वे इस ओर अ सर होते ह। वण को
अ य धक तपाने से उसक चमक और शु ता म बढ़ोतरी होती है। धरती को अ तरह
जोतने से भरपूर फसल होती है। इसी कार चंदन, दही और पान को भली-भाँ त रगड़ने से
उनके गुण बढ़ते जाते ह।
जस कार मलयाचल पवत पर उगनेवाले बाँस चंदन वृ से घरे होने के बाद भी उनके
समान सुगं धत नह होते, उनम चंदन-वृ के गुण उ प नह होते, उसी कार व ान के
बीच घरे रहनेवाला मूख भी ानवान् नह हो सकता। इसे करते ए चाण य
कहते ह क जस म सोचने-समझने क श न हो, जो हण करने का इ ु क न
हो, उसे अनेक यास करने के बाद भी ानवान् नह बनाया जा सकता। ऐसे लोग को
दया गया उपदे श थ जाता है। इसके लए मनु य क ज ासा का होना आव यक है।
शू के वषय म चाण य कहते ह क लाख, तेल, नील, कपड़े रँगने के रंग, शहद, घी,
म दरा और मांस आ द का ापार करनेवाला शू कहलाता है। उनके अनुसार य द ा ण,
य या वै य कुल म जनमा भी यह काय करे तो उसे शू वण का मानना चा हए।
दान क म हमा बताते ए चाण य कहते ह क दया गया दान कभी थ नह जाता है।
अ पतु जतना दान दया जाता है, उससे दस गुना अ धक होकर वह को पुनः ा त
हो जाता है। इस लए मनु य को ःख और क से त ा ण को यथाश दान-
द णा दे कर संतु करना चा हए। ऐसा करने से उसका दान उसके लए धन- ा त के माग
श त करता है।
लोक- वहार के संदभ म चाण य कहते ह क मनु य को लोक- वहार म नपुण होना
चा हए। इससे वह सदै व सुखी रहता है। लोक- वहार के अंतगत सेवक से उदारता-यु
वहार, सगे-संबं धय से ेमयु वहार तथा के त कठोरता का वहार
स म लत होता है। इसके अ त र स न एवं व ान के त नेह तथा न ता का भाव,
श ु के सम साहसयु वहार, गु जन के त धीरता और सौ यता का भाव तथा
य के त वाक्-चातुय का भाव भी लोक- वहार का ह सा ही गना जाता है। इसका
अनुपालन करनेवाला ही समाज म सुखपूवक जीवन तीत करता है।
इस ोक ारा चाण य ने नीच एवं वाथ मनु य का वणन कया है। वे कहते ह क जो
दाना द से वमुख रहते ह, वेद के वण को मह वहीन मानते ह, जनक म संत-
महा मा के दशन नरथक ह, ज ह ने कभी भी तीथ-या का सुख नह भोगा, जनके
पेट पाप क कमाई से भरे ए ह, ज ह ने अ भमान और अहंकार के आवरण से खुद को
ढक रखा है, वे मनु य नीच, और वाथ कहे जाते ह। वे केवल अपने लए ही जीते ह,
सर से उ ह कुछ लेना-दे ना नह होता। इन मनु य को संबो धत करते ए चाण य कहते
ह क ऐसे मनु य का जीवन थ है। य द कहा जाए तो ये पृ वी पर बोझ के समान
ह। ऐसे जीवन से तो मृ यु भली है। इस लए जतना शी हो सके, इ ह शरीर याग दे ना
चा हए, अ यथा जी वत रहकर ये पृ वी पर पाप और अवगुण का सार करगे।
चाण य ने ऐसे घर को मशान-तु य माना है, जसम ा ण का मान-स मान न होता हो,
जहाँ नवास करनेवाले मनु य दान-द णा से वमुख रहते ह , जहाँ वेद के पठन और
वण क री त न हो, य -हवना द कम से जो ान र हो। वे कहते ह क ऐसे घर म
सदै व अ ानता, द र ता, रोग, ःख एवं क का वास होता है। ऐसे घर म नवास
करनेवाले मनु य मुद के समान होते ह। इस लए गृह जीवन के सुख के लए मनु य
को पूजा-अचना, दान-द णा तथा ा ण-स कार से संबं धत कम करते रहने चा हए।
चाण य ने ऐसे मनु य को संत-स न कहा है, जो पर- य को माता के समान समझते
ह, जनक म पराया धन म है तथा जो सभी य को अपने समान ही समझते
ह। अथात् च र वान्, सहनशील, संतोष, परोपकार तथा स दयता के गुण से यु
ही स न कहलाते ह।
उपयु ोक ारा पछली बात को याद करके बार-बार ःखी होने या नराशा कट
करनेवाले मनु य को परामश दे ते ए चाण य कहते ह क बीता आ समय लौटकर नह
आता, उसम घ टत घटना को बदला नह जा सकता। इस लए उसे बार-बार याद करने
से कोई लाभ नह होता। अतः मनु य को उसे भूल जाना चा हए। इसी कार भ व य म
या घ टत होनेवाला है, मनु य इससे भी पूणतः अन भ होता है। इस लए उसका चतन
भी थ है। मनु य को केवल अपने वतमान पर यान क त करना चा हए। य द वह
वतमान को सुधार लेगा तो उसका भ व य अपने आप ही उ वल हो जाएगा।
चाण य यह वीकारते ह क युग के अंत म सुमे पवत अपना ान छोड़ दे गा, सात समु
अपनी मयादाएँ तोड़कर संपूण पृ वी को डु बो दगे। ले कन उनका यह व ास है क ऐसी
वकट त म भी महापु ष एवं संतजन अपनी त ा व संक प पर अ डग रहगे। ऐसे
स न पु ष व सनीय होते ह। इ ह य के कारण पृ वी अभी तक लय से बची
ई है।
चौदहवाँ अ याय
मनु य जैसा कम करता है, उसी के अनु प उसे अ े या बुरे फल क ा त होती है।
व ध का यह वधान कोई बदल नह सकता। मनु य-जीवन म आनेवाले ःख, शोक,
चताएँ, बंधन तथा संकट पाप-कम के ही फल ह। इसके वपरीत ःख व लेशर हत
सुखमय जीवन स कम से ा त होता है। इस लए मनु य को े कम करने चा हए।
मधुर वाणी का मह व बताते ए चाण य कहते ह क जस कार सपेरा बीन ारा मीठ
तान छे ड़कर सप को वश म कर लेता है, शकारी मृग को वश म कर लेता है, उसी कार
मनु य मधुर वचन बोलकर कसी को भी अपने वश म कर सकता है। मीठ वाणी ारा वह
श ु को भी जीत लेता है और उसके सम त मनोरथ स हो जाते ह।
चाण य ने इस ोक ारा कुछ ऐसे ा णय का उ लेख कया है, जनसे वहार करते
समय मनु य को सदा सावधान रहना चा हए। वे कहते ह क अ न, जल, ी, मूख ,
साँप और राजप रवार-ये मनु य के लए उपयोगी तो ह ही, ले कन असावधान रहने पर
उसके लए वनाशकारी भी बन जाते ह। इस लए इनके साथ सोच- वचार कर वहार
करना चा हए।
चाण य ऐसे मनु य के जीवन को साथक मानते ह जो दया, ेम, परोपकार, सहनशीलता
आ द गुण से प रपूण है। व तुतः उनक म ऐसे मनु य ही जीवन जीने के वा त वक
पा होते ह। इन गुण के अभाव म मनु य-जीवन नरथक है। इस लए उपयु गुण को
हण करना चा हए, जससे मनु य का जीवन सफल हो सके।
उपयु ोक ारा चाण य पर नदा के वषय म अपने वचार करते ए कहते ह क
पर नदा सम त कम म अ यंत नीच और बुरा कम है। य द मनु य इस कम को याग दे तो
वह संपूण संसार को अपने वश म कर सकता है। अथात् नदा को यागने से सम त सुख
मनु य के अनुकूल हो जाते ह।
जन मनु य म आ म-क याण क भावना अ यंत बलवती है, उनका मागदशन करते ए
चाण य कहते ह क मनु य को जन क संग त यागकर स न पु ष क संग त हण
करनी चा हए। इसके भाव से वषय-वासनाएँ तथा अप व वचार का नाश हो जाता है
और मनु य स माग क ओर अ सर होता है। अथात् मोह-माया एवं वषय-वासना का
याग करके मनु य को ई र-भ और परमाथ म डू ब जाना चा हए। इसी म उसका
क याण न हत है।
पं हवाँ अ याय
ा ण को भरपेट भोजन करवाने के बाद जो शेष रहे, चाण य ने उसे ही े भोजन कहा
है। इसी कार सर से कया जानेवाला ेम ही उनक म स ा ेम है। पाप से र
रहनेवाले मनु य को ही वे बु मान मानते ह तथा पाप, अस य एवं नीच कम से बचानेवाला
धम ही स ा धम है।
मधुर वचन मन को ह षत करनेवाले तथा परम सुखदायक होते ह। मधुर वचन बोलकर
मनु य श ु को भी अपना बना सकता है। उपयु ोक ारा चाण य ने भी इसके
मह व को वीकार कया है। वे कहते ह क मनु य को सदै व मीठे वचन बोलने चा हए। मृ
वाणी सबको स और आनं दत कर दे ती है। मीठा बोलने के लए कुछ य नह करना
पड़ता। इस लए कड़वे वचन यागकर मीठ बोली अपनाएँ। संसार पर वजय ा त करने
का यह अचूक मं है।
संसार के सभी जीव क तरह मनु य भी उदर-पोषण, भय, न ा, संभोग तथा संतानो प
क याएँ करता है। य द इस से दे खा जाए तो पशु और मनु य म शारी रक
संरचना के अ त र कोई वशेष अंतर नह होता। ले कन केवल आचरण ही मनु य को
पशु से े स करता है। इसम भी धमाचारण अ यंत मह वपूण है। जो धम-कम और
नै तक गुण से यु है, वा तव म वही मनु य कहलाने का अ धकारी है। इसके वपरीत
इनसे र मनु य पशु-तु य होता है।
कभी-कभी अनेक अवगुण पर एक गुण भी भारी पड़ जाता है। केवल एक गुण के कारण
ही अवगुणी होते ए भी मनु य समाज म मान-स मान ा त कर लेता है। इस संदभ म
चाण य केतक (केवड़े ) का उदाहरण दे ते ह। वे कहते ह क केतक के वृ पर सप नवास
करते ह, उसक संरचना टे ढ़ -मेढ़ होती है तथा क चड़ ही उसका नवास- ान है ले कन
फर भी वह अपनी सुगंध से सम त मनु य को वशीभूत कर लेती है। केवल एक यही गुण
उसके सम त अवगुण को छपा लेता है, इसी कार भले ही मनु य जन क संग त
करता हो भयानक एवं कु प हो या नीच कुल म जनमा हो ले कन य द उसम बु - ववेक
का गुण है तो वह अवगुण से यु होते ए भी व ान क सभा म स मा नत होता है।
Published by
Prabhat Prakashan
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ISBN 978-93-5048-904-8
Chanakya Neeti
by Granth Akademi
Edition
First, 2014