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महाभारत

eISBN: 978-93-9008-814-0
© काशकाधीन
काशक डायमंड पॉकेट बु स ( ा.) ल.
X-30 ओखला इंड टयल ए रया, फेज-II
नई िद ी- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
सं करण : 2020
Mahabharat
By - Priyadarshi Prakash

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स य क अस य पर और याय क अ याय पर िवजय क ऐितहा सक गाथा आज भी
'महाभारत क कथा' के प म लोकि य है। यह राजनीित, शौय, वीरता और ब लदान
क कहानी हम बचपन से सुनते आ रहे ह। धुरंधर िनशानेबाज अजुन, दानवीर कण, धम
के पयाय यु धि र, िपतामह भी म, हमारे जीवन म हमेशा ेरणा ोत रहगे। इसके
अलावा यु े म भगवान ीकृ ण ारा अजुन को दी गयी िश ा सव प र है। अपने
बेहद रोमांचक संग के कारण 'महाभारत' िव व म सवा धक पढ़ी जाने वाली पु तक
म शािमल है।
ापर युग म कौरव तथा पांडव के बीच हए संघष क रोमांचक कहानी को बड़ी ही
सरल भाषा म 'महाभारत' म तुत िकया गया है, जो हर वग के पाठक के लए
पठनीय है।

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काशक य

अस य पर स य क और पाप पर पु य क जीत पर आधा रत महाभारत क कथा भारतीय


धम, स यता और सं कृित क अपूव गाथा है। इस कथा को महिष वेद यास ने भगवान
ीगणेश को सुनाया था। ापर युग के अंत म इस आयावत पर शांतनु का राज था। वे परम
तेज वी और वीर थे। एक बार िशकार खेलते हए अ यंत पवती युवती, स यवती से
मुलाकात हई। वे उस पर इतना मोिहत हए िक उसे अपनी रानी बनाने का ताव िदया।
स यवती ने सशत उनका ताव वीकार कर लया। इस शत पी अिभशाप के कारण ही
देव त भी म का ज म हआ। भी म सम त वेद के ाता और परम् धनुधर थे। भी म ने अपने
िपता क इ छा का मान रखते हए राजा नह बनने क ित ा ली, जससे शांतनु का केवट
पु ी स यवती से िववाह हो सका। स यवती के पोते धृतरा , पांडु और िवदरु थे।

बड़े होने पर ने हीन धृतरा ने रा य छोटे भाई पांडु को स प िदया। पांडु का िववाह मा ी
और कु ती से हआ जनसे यु धि र, भीम, अजुन, नकु ल और सहदेव का ज म हआ। धृतरा
का िववाह गांधारी से हआ, जससे उ ह एक सौ पु और एक पु ी हई जो कौरव कहलाए।
धृतरा पांडु के िनधन के बाद अपने ये पु दयु धन को राजा बनाने के लए तमाम तरह
के षडयं म फंसते चले गए। इस सा जश क चरम थित महाभारत के यु म देखने को
िमली जसम कौरव क हार हई।

इस कथा म शौय, वीरता, ान और ब लदान के ऐसे-ऐसे करण पढ़ने को िमलते ह जो


अक पनीय कहे जा सकते थे। भगवान ीकृ ण ने यु के मैदान म धनुधारी अजुन को दी ा
दी, जससे वे अपने ही प रजन से यु कर सके। महाभारत के च र हमारे जीवन म अिमट
छाप छोड़ते ह। ये हम ेम, स य, याय और क सहन करते हए अपने धम के ित जाग क
रखते ह। भारतीय जनमानस म महाभारत का भाव वेद-पुराण सरीखा है। अनेक लेखक ने

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इस कथा को अपने तरीके से लख । िफ म और धारावािहक बन और इसको लेकर अभी
िकतनी ही और रचनाएं देखने को िमलेगा, कोई नह कह सकता। यह सच है िक जब भी कोई
महाभारत क पु तक उठाता है तो वो वह इसके स मोहन से बच नह पाता। हमारी युवा पीढ़ी
के लए यह अनुभव और िश ा का अभूतपूव खजाना है। यही कारण है िक हर माता-िपता
अपने ब च को महाभारत पढ़ने और उससे िश ा लेना ज री बताते ह।

– नरे कु मार वमा

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महाभारत

ाचीनकाल क बात है। ापर के अंत म...

इस आयवत परं तु राजा शांतनु का राज था। वे परं तु तेज वी और वीर थे। उ ह िशकार का
बहत शौक था। जब भी अवसर िमलता, वे आखेट के लए राजधानी ह तनापुर से जंगल क
ओर िनकल पड़ते।

एक बार क बात है।

राजा शांतनु िशकार खेलते हए गंगा नदी के िकनारे जा पहच


ं े। गंगा के िकनारे ही उ ह नजर
आई‒ एक अ यंत पवती युवती। उसे देखते ही राजा अपनी सुध-बुध खो बैठे। युवती उ ह भा
गई और अगले पल ही वे उसे यार करने लगे।

राजा शांतनु युवती के पास गए और अपना प रचय देकर भाव-िव लता म बोले, ‘‘हे परम
सुंदरी! या तुम मेरी प नी बनोगी?’’

युवती वयं भी राजा शांतनु के भ य यि व से भािवत हो चुक थी। वह बोली, ‘‘राजन!


मुझे वीकार है, िकंतु मेरा हाथ थामने से पहले मेरी कु छ शत ं आपको माननी ह गी।’’

‘‘मुझे शी बताओ, तु हारी शत ं या ह?’’ राजा शांतनु बोले, ‘‘तु ह पाने के लए मुझे
तु हारी येक शत वीकार है।’’

‘‘तो राजन! यान से मेरी बात सुिनए।’’ युवती बोली, ‘‘िववाह उपरांत जब म आपक
प नी बन जाऊं, तब आप यह जानने का कभी यास नह करगे िक म कौन ह?
ं म कु छ भी
ं ी। मेरे िकसी भी काय-कलाप म आप कोई भी ह त ेप नह
करने को पूरी कार वतं रहग
करगे। यही मेरी शत ं ह। जब तक आप इन शत ं परं तु अिडग रहगे, म प नी के प म आपके

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साथ रहग
ं ी, जैसे ही आपने मेरी राह म कोई बाधा उ प क , म आपको छोड़कर चली
जाऊंगी।’’

राजा शांतनु ने उसक सभी शत ं मान ल । इस कार दोन का िववाह संप हो गया।

कु छ समय प चात् राजा शांतुन क वह रानी गभवती हई।

राजा स थे िक उनके घर म पहली संतान उ प होने जा रही है। उस समय राजा के


आ चय का िठकाना नह रहा, जब प नी ने पहली संतान उ प होते ही उसे नदी म िवस जत
कर िदया।

राजा बहत ममािहत हए। उ ह समझ म नह आया िक रानी ने ऐसा य िकया। वे उससे
कु छ पूछ भी नह सकते थे, य िक उ ह ने उसे पहले ही वचन िदया हआ था। उ ह ने दय
परं तु प थर रख लया। सोचा, अगली संतान होने तक सब ठीक हो जाएगा।

लेिकन दसरी
ू संतान होने पर परं तु रानी ने उसे भी नदी म बहा िदया। शत ऐसी थी िक राजा
िववश थे। उधर रानी एक के बाद दसरी
ू संतान उ प होते ही उसे नदी म वािहत कर देती।
ऐसा करते हए प नी के चेहरे परं तु न दःु ख होता और न ही खेद, ब क हर संतान को नदी म
वािहत कर देने के प चात् उसके मुख पर संतोष क झलक देखने को िमलती और
मु कराहट खल जाती।

इस कार रानी ने अपने सात नवजात िशशुओं को नदी म बहा िदया। राजा शांतनु का दय
रोता था, लेिकन उ ह डर था िक अगर रानी से इस िनदयता के बारे म कु छ भी कहा तो वह
उ ह छोड़कर चली जाएगी।

समयानुसार रानी िफर गभवती हई।

आठव ब चे के ज म लेते ही रानी उसे भी नदी म बहाने के लए तैयार हो गई। अब तो


शांतनु के धैय का बांध टू ट गया। वे सारी शत ं भूल गए और रानी का रा ता रोककर बोले,

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‘‘तुम कैसी माता हो, जो अपने ही नवजात िशशुओं को नदी म बहा देती हो? अब मुझसे सहन
नह होता, तु ह अपनी यह आदत बदलनी ही पड़ेगी।’’

रानी ने आंख उठाकर शांतनु क ओर देखा, िफर गंभीर वर म बोली, ‘‘ठीक है, आप
जैसा चाहते ह, वैसा ही होगा। इस आठव ब चे को म नदी म नह बहाऊंगी, परं तु अब म
आपके साथ नह रह सकती, य िक आपने वचन भंग िकया है।’’

राजा शांतनु समझ गए िक अब वे रानी को रोक नह सकते, लेिकन वे सारा रह य जानना


चाहते थे। इस लए बोले, ‘‘जाने से पहले यह तो बता दो िक तुम हो कौन और अपने ही
नवजात िशशुओं को इतनी िनममता से नदी म य बहा देती हो?’’

रानी ने उ र िदया, ‘‘हे राजन! स चाई यह है िक म गंगा ह।ं महिष विश के आदेशानुसार
मने यह मानव शरीर धारण िकया है, य िक मुझे आठ पु को ज म देना था। जब तुमने मेरे
सामने िववाह का ताव रखा तो मने त काल वीकार कर लया। मेरी ि म तु ह उन आठ
पु को ज म देने के यो य थे। ये आठ िशशु कोई और नह , ब क आठ वसु ह। उ ह ने
िपछले ज म म एक पाप िकया था, इस लए उ ह पृ वी पर मानव योिन म उ प होने का शाप
िमला था।

‘‘वे एक बार अपनी प नय सिहत महिष विश के आ म के आस-पास घूम रहे थे, तभी
आठव वसु क प नी क ि विश क कामधेनु गाय नंिदनी क ओर चली गई। बस, उसने
हठ पकड़ ली िक उसे यह गाय चािहए। बहत समझाने पर भी जब वह नह मानी तो आठ
वसुओं ने वह गाय चुरा ली। बाद म जब महिष विश को पता चला तो वे बहत ो धत हए।
उ ह ने आठ वसुओं को पृ वी पर ज म लेने का शाप दे िदया। अब वसु घबराए, उ ह ने अपनी
करनी क मा मांगी। महिष विश को उन पर दया आ गई, इस लए उ ह ने कहा, ‘अब म
शाप दे चुका ह,ं उसे वापस नह ले सकता। हां, शाप का भाव अव य कम कर सकता ह।ं ’
यह कहकर उ ह ने सात वसुओं को तो पृ वी पर ज म लेते ही अपना शरीर याग देने का वर

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िदया, पर आठव वसु को, जसने नंिदनी चुराई थी, लंबे समय तक पृ वी पर ही रहने का शाप
पूववत् रखा, िकंतु साथ ही यह वर भी िदया िक उसका नाम संसार म अमर रहेगा। मेरे हाथ म
जो जीिवत पु है, यह वही आठवां वसु है। महिष विश ने इस काम के लए मुझसे अनुरोध
िकया था और मने उनक बात मान ली थी।’’

शांतनु चिकत हो गंगा क बात सुनते रहे। उनसे कु छ कहते नह बना।

गंगा ने कहा, ‘‘अ छा! अब म जा रही हं और अपने साथ आठवां पु भी ले जा रही ह।ं
समय आने पर इसे आपको स प दग
ं ू ी।’’

शांतनु होश म आ गए। पूछा, ‘‘पर कब? कहां?’’

इस पर गंगा ने कोई उ र नह िदया। अगले पल ही वह पु सिहत नदी म अंतधान हो गई।ं

राजा शांतनु हाथ मलकर रह गए।

□□

धीरे -धीरे समय बीतने लगा।

एक बार शांतनु िशकार खेलते हए िफर नदी िकनारे उसी जगह पहच
ं गए, जहां उ ह प नी
के प म गंगा िमली थी। तभी उ ह ने देखा िक एक युवक धनुष क डोर तानकर बाण से
िनशाना साध रहा है। सारे बाण सनसनाते हए गंगा क धारा पर लग रहे थे, जससे नदी क
लहर का माग अव हो गया था। ऐसे िवल ण तीरं दाज को देखकर शांतनु आ चयचिकत
हो गए। युवक अ यंत तेज वी और उ च कु ल का तीत हो रहा था। शांतनु सोच रहे थे,
‘‘कौन है यह युवक? िकसी राजकु ल का तो नह ।’’

तभी उनके सामने गंगा कट हो गई।ं बोल , ‘‘राजन! जसे देखकर आप आ चयचिकत हो
रहे ह, वह आपका ही पु है। मने बड़े य न से पाल-पोसकर इसे बड़ा िकया है। इसे महिष
विश ने संपूण वेद क िश ा दी है, इसक तीरं दाजी का जवाब नह , अ -संचालन म यह

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पटु है। इसके अलावा इसक बौि क और आ मक शि असीम है। इसका नाम देव त है।
अब आप इसे अपने साथ ले जा सकते ह।’’

इतना कहकर गंगा िफर अंतधान हो गई।ं

राजा शांतनु ने देव त को अपने साथ लया और स तापूवक महल लौट आए। अब वंश
को आगे बढ़ाने वाला उनका पु देव त उ ह िमल चुका था।

□□

लगभग चार वष उपरांत।

राजा शांतनु पुनः िशकार के लए िनकले।

वन म उ ह एक िहरण िदखाई िदया। वे उसका पीछा करते हए बहत दरू तक िनकल गए।

सामने यमुना नदी बह रही थी। चार ओर मनोरम जंगल फैला हआ था। वह उ ह एक परम
सुंदर युवती िदखाई दी। उसके शरीर से बड़ी मनभावनी सुगध
ं िनकल रही थी, जससे सारे
वातावरण म भीनी-भीनी सुगध
ं फैल गई थी। शांतनु उसक सुंदरता देखकर मु ध हो गए।

उ ह ने समीप आकर युवती से पूछा, ‘‘हे सुंदरी! तुम कौन हो? यहां या कर रही हो?’’

सुंदरी ने उ र िदया, ‘‘म केवट पु ी स यवती ह।ं याि य को नदी पार करवाने म िपताजी
क सहायता करती ह।ं ’’

राजा शांतनु बोले, ‘‘म यहां का राजा ह।ं या तुम मेरी रानी बनना वीकार करोगी?’’

केवट पु ी लजाकर बोली, ‘‘आप जैसा पित पाना तो सौभा य क बात है, पर इसके लए
तो आपको मेरे िपताजी से अनुमित लेनी पड़ेगी।’’

राजा शांतनु केवटराज से िमले और उससे कहा, ‘‘म आपक पु ी से िववाह करना चाहता
ह।ं कृपया अनुमित देकर कृताथ क जए।’’

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भला केवटराज को या आप हो सकती थी, िकंतु उसने दिु नया देख रखी थी, इस लए
बोला, ‘‘अपनी बेटी स यवती का हाथ तु ह स पकर मुझे स ता होगी, लेिकन...!’’

‘‘लेिकन या...?’’ राजा ने उ सुकता से पूछा।

‘‘अगर स यवती से उ प होने वाला पु ही रा य का उ रा धकारी बने तो आप मेरी पु ी


से िववाह कर सकते ह।’’ केवट ने कहा, ‘‘यही मेरी शत है राजन! वीकार है...?’’

भला यह शत राजा कैसे वीकार कर सकते थे! देव त उनका ये पु था और हर


कार से यो य था। परं परा से उनके बाद देव त को ही रा य का उ रा धकारी बनना था।
अतः उ ह ने उ र िदया, ‘‘केवटराज! यह शत तो अ यायपूण है। देव त को उसके अ धकार
से युत करना उिचत नह ।’’

‘‘तो राजन! म भी िववश ह।ं ’’

केवटराज का ऐसा उ र सुनकर राजा शांतनु िनराश होकर वापस लौट गए, लेिकन मन-
ाण म स यवती क सुंदरता और सुगध
ं हमेशा के लए बस गई थी। वे उसे भुला न सके।
इसका प रणाम यह हआ िक न उनका राजकाय म मन लगता था और न ही खाने-पीने म।
रात-िदन स यवती क सलोनी सूरत उनक आंख के आगे छाए रहती।

देव त से िपता क यह उदासी और पीड़ा िछपी न रह सक । उसने एक िदन िपता से पूछा,


‘‘राजन! आपको या क है। इन िदन आपक उदासी बढ़ती ही जा रही है।’’

राजा शांतनु भला या उ र देते? कैसे कहते िक वे स यवती के िवरह क अि म जल


रहे ह। स यवती के िबना वे जी नह सकते।

कु छ सोचकर राजा शांतनु बोले, ‘‘बेटे! तु ह मेरी एकमा संतान हो। म तो भिव य के बारे
म सोच-सोचकर िचंितत हं िक हमारे रा य का या होगा? अगर तु ह कु छ हो गया तो हमारे
वंश का या होगा? तुम यो ा हो, हमेशा अ -श से खेलते रहते हो। यु का मैदान ही

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तु हारा जीवन है। ऐसी हालत म रा य के ित िचंितत होना वाभािवक ही है। िव ान ने सच
ही कहा है िक एक पु का होना अथवा न होना, दोन बराबर है। काश! मेरी और भी संतान
होती!’’

देव त यह सुनकर अवाक् रह गए। िपता के कथन से उ ह शंका हई तो उ ह ने स चाई


जानने का यास िकया। वे मंि य से िमले और राजा क िचंता का वा तिवक कारण जानना
चाहा। एक मं ी ने बताया, ‘‘युवराज! राजा एक केवटराज क पु ी से िववाह करना चाहते ह,
िकंतु केवटराज क शत है िक उनक पु ी क संतान ही रा य क उ रा धकारी बने, जो राजा
को वीकार नह ।’’

देव त अपने िपता को उदास नह देखना चाहते थे। वे सीधे केवटराज के यहां पहच
ं े और
बोले, ‘‘म राजा शांतनु का पु ह।ं म रा य के उ रा धकार से वयं को वंिचत करता ह।ं अब
आप अपनी पु ी का िववाह राजा से करा द।’’

िकंतु केवटराज ने भी दरू क सोची, बोला, ‘‘आपक बात ठीक है, पर आपक संतान अगर
रा य पर अपना अ धकार जताना चाहे तो मेरी पु ी क संतान का या होगा?’’

‘‘आपका भय उिचत ही है।’’ देव त ने मु कु राकर कहा, ‘‘इसका एक ही उपाय है िक म


िववाह ही न क ं । म ित ा करता ह,ं आज से आजीवन चारी रहग
ं ा। अब तो आपको
कोई आप नह ।’’

केवटराज देव त क ित ा से बड़ा भािवत हआ। एक नवयुवक ऐसी िवकट ित ा करे ,


यह िनःसंदेह रोमांचकारी बात थी। िववाह के लए उसने त काल अपनी वीकृित दे दी। बोला,
‘‘युवराज तुम ध य हो। ले जाओ मेरी पु ी को, वह आज से शांतनु क हो गई।’’

देव त ने आगे बढ़कर स यवती से कहा, ‘‘राजा महल म आपके िवयोग म अधीर हो रहे
ह। आप इसी समय मेरे साथ महल च लए। आज से आप मेरी माता ह।’’

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देव त स यवती को साथ लेकर महल क ओर रवाना हो गए।

देव त ने चय क कठोर ित ा आजीवन िनभाई। ऐसी भीषण ित ा के कारण उनका


नाम ‘भी म’ हो गया। वग के देवता भी उनक इस भीषण ित ा के आगे नतम तक हो गए
थे।

□□

राजा शांतनु स यवती को पाकर बड़े स हए।

समयानुसार स यवती को राजा से दो पु हए। पु का नाम था‒ िच ांगद और िविच वीय।


िच ांगद बड़ा था, अतः शांतनु के बाद रा य का उ रा धकारी वही बना, लेिकन एक गंधव
राजा से यु करते हए िच ांगद मारा गया। उसक कोई संतान नह थी, इस लए िच ांगद के
बाद राजग ी पर उसके भाई िविच वीय को िबठाया गया। िविच वीय तब छोटा ही था, अकेले
राज चलाना उसके वश का नह था। इस लए जब तक वह वय क न हो गया, तब तक भी म
ने राज-काज का संचालन िकया।

जब िविच वीय बड़ा हो गया तो भी म को उसके िववाह क िचंता सताने लगी। आ खर वंश
भी तो आगे बढ़ाना था।

तभी भी म को सूचना िमली िक काशी नरे श अपनी तीन पुि य के वयंवर का आयोजन
करने वाले ह। सोचा, िविच वीय के लए य न काशी नरे श क पुि य म से िकसी का
चुनाव िकया जाए।

यह सोचकर वे काशी के लए रवाना हो गए।

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(दो)

काशी नरे श क तीन पुि यां थ ‒ अंबा, अंिबका व अंबा लका। तीन राजकु मा रयां परम
सुंद रयां थ ।

वयंवर के िदन राजदरबार म देश-िवदेश के अनेक राजकु मार पधारे थे। सभी जानने को
उ सुक थे िक आ खर राजकु मा रयां िकसे अपना जीवनसाथी चुनती ह।

तभी राज दरबार म भी म ने वेश िकया। वे आए थे िविच वीय के लए राजकु मारी का


चयन करने, िकंतु वहां उप थत राजकु मार ने सोचा िक शायद वे वयं अपने लए वयंवर म
शािमल होने आए ह।

भी म वृ हो चले थे। चार ओर उनका प रहास उड़ाया जाने लगा, ‘‘बड़े अपने को
चारी बताते थे। अब देखो, बुढ़ापे म वयंवर म शािमल होने पहच
ं गए।’’

भी म शांत थे, लेिकन मन-ही-मन ु ध भी।

जब तीन राजकु मा रयां हाथ म वरमालाएं लेकर अपना-अपना जीवनसाथी चुनने को आगे
बढ़ तो वे भी भी म को देखकर यं य से मु करा पड़ ।

अब भी म से सहन न हो सका। वे उठकर बोले, ‘‘इन सुंद रय को वही अपनी प नी बना


सकता है, जसम बाहबल हो। म इन तीन राजकु मा रय को यहां से ले जा रहा ह,ं जसम
शि हो, वह यु करके इ ह मुझसे ा कर ले।’’

सारे राजदरबार म स ाटा छा गया।

भी म क वीरता से भला कौन अनिभ था। काशी नरे श, उप थत राजकु मार अथवा अ य
लोग भी म का ितरोध करते िक तब तक भी म सबको एक ओर हटाकर आगे बढ़े और तीन
राजकु मा रय को रथ म िबठाकर राजमहल से िनकल पड़े।

सब देखते ही रह गए।

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भी म का रथ ह तनापुर क ओर दौड़ पड़ा।

वयंवर म सोम देश के राजा शा व भी आए थे। राजकु मारी अंबा से उनका बड़ा मधुर
संबध
ं था। भी म को इस कार तीन राजकु मा रय का अपहरण करके ले जाते देखकर उनसे
रहा नह गया। उ ह ने अंबा को पाने के लए भी म का पीछा िकया।

भी म से यु म जीतना सहज नह था। राजा शा व भी म के हाथ बुरी कार परा जत हए।


तीन राजकु मा रय के कहने पर भी म ने शा व को जीिवत छोड़ िदया। शा व अपनी जान
बचाकर अपने देश वापस चले गए।

□□

भी म तीन राजकु मा रय को ह तनापुर ले आए।

वे अपने सौतेले भाई िविच वीय का िववाह तीन राजकु मा रय के साथ करना चाहते थे।
जब उ ह ने िववाह का िदन िन चत िकया तो बड़ी राजकु मारी अंबा ने भी म से कहा, ‘‘म
आपके भाई के साथ िववाह नह कर सकती। म राजा शा व को पसंद करती ह,ं उनके अलावा
म िकसी अ य को अपने पित के प म वीकार नह कर सकती। आप समझदार ह, आप
वयं ही िवचार क जए, जस युवती ने िकसी यि को पहले ही वर लया हो, या उसे
िकसी अ य यि के प े बांधना उिचत है?’’

भी म को अंबा क बात जंच गई। यह सच था िक िववाहोपरांत अंबा कभी भी दय से


िविच वीय को अपना नह सकेगी, य िक वह शा व को ही अपना आरा य देव मान चुक है।
इस लए उ ह ने अंबा क बात मानकर उसे शा व के पास वापस जाने क अनुमित दे दी।

अंबा स तापूवक सोम देश पहच


ं ी।

सोम राजा शा व उसे अचानक देखकर चिकत रह गए। पूछा, ‘‘अरे ! तुम यहां कैसे? तु ह
तो भी म अपने साथ ले गए थे।’’

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अंबा ने बताया, ‘‘हां, िकंतु मने जब उ ह बताया िक म सोमराज को ही पित प म वीकार
कर चुक हं तो भी म ने मुझे छोड़ िदया। मेरी दोन बहन का िववाह िविच वीय के साथ हो
गया है। अब हम दोन को भी िववाह के पिव बंधन म बंध जाना चािहए।’’

शा व धीरे से बोले, ‘‘अंबा! अब प र थितयां बदल चुक ह। तु ह भरे दरबार से भी म


बलपूवक उठाकर ले गए थे। म उस युवती से कैसे िववाह कर सकता ह,ं जसका अपहरण हो
चुका हो।’’

अंबा जैसे आसमान से िगरी। कहां तो वह शा व से िमलने को याकु ल थी और कहां शा व


ने िमलते ही उसे ठु करा िदया। अंबा बोली, ‘‘सोमराज! यह या कह रहे ह आप, भी म ने
सादर मुझे आपके पास भेज िदया है।’’

‘‘तुम वापस भी म के पास ही जाओ।’’ शा व ने दो टू क उ र िदया। ‘‘वे ही सोचगे तु हारे


भिव य के बारे म।’’

अंबा ने शा व को मनाने का बहत यास िकया, पर शा व ने उसे प नी के प म अपनाने


से मना कर िदया। बेचारी अंबा के लए अब ह तनापुर लौट जाने के अलावा कोई और
िवक प नह रहा।

वह भी म के पास पहच
ं कर बोली, ‘‘आपके कारण शा व ने मुझे अपनाने से मना कर िदया,
अब म या क ं ?’’

भी म को सचमुच दःु ख हआ। सोचा, य न इसे भी िविच वीय क प नी बना िदया जाए,
लेिकन उ ह ने जैसे ही यह ताव िविच वीय के सामने रखा, उसने कहा, ‘‘नह भैया! म उस
नारी से कैसे िववाह कर सकता ह,ं जसने पहले ही िकसी और को अपने दय म बसा रखा
हो।’’

अब भी म करे तो या कर?

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अंबा क थित यह थी िक न वह उधर क रही और न इधर क । उसने भी म से कहा,
‘‘यह सब आपक करनी का ही फल है। अब आप ही मुझसे िववाह क जए।

‘‘म?’’ भी म च कर बोले, ‘‘पर म तो चारी हं और आजीवन चय पालन करने को


वचनब ह।ं तुम एक बार िफर शा व के पास जाओ, वे अव य तु ह अपना लगे।’’

अंबा एक बार िफर शा व के पास गई, परं तु उसका कोई प रणाम नह िनकला। शा व
अपनी जद पर अड़े रहे।

अंबा लगभग छह वष ं तक भी म और शा व के बीच दौड़ती रही। यही नह , वह भी म से


बदला लेने के लए अ य राजाओं के पास भी गई, पर कह से भी उसे सहायता नह िमली।

अब अंबा ने भी तय कर लया िक उसके जीवन को जस भी म ने बरबाद कर िदया है,


उसका नाश करके ही दम लेगी। जब कोई भी राजा भी म के िव उसक सहायता करने को
तैयार नह हआ तो वह एकांत म घोर तप या म लीन हो गई। भगवान काितकेय उसक तप या
से स हए। उ ह ने अंबा को दशन िदया और बोले, ‘‘आंख खोलो अंबा! म तु हारी तप या
से स हआ। बोलो, या चाहती हो?’’

‘‘भी म का नाश।’’ अंबा बोली, ‘‘भी म क वीरता से सब भयभीत ह। कोई भी मेरी


सहायता नह करना चाहता।’’

भगवान काितकेय ने उसे कमल पु प क माला देते हए कहा, ‘‘लो यह माला रख लो,
इसके पु प कभी मुरझाएंगे नह । यह माला जसके गले म होगी, वही भी म का नाश करे गा।’’

अंबा वह माला लेकर अपने अिभयान पर िनकल पड़ी। उसने अनेक वीर राजाओं का
आ ान िकया, िकंतु भी म क वीरता का यह भाव था िक कोई भी माला गले म डालकर
भी म से लड़ने का साहस नह कर सका। अंबा चार ओर से िनराश हो गई। उसने माला को
राजा ुपद के महल के एक ार पर टांग िदया और वयं रोती-कलपती िकसी नए उपाय क

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खोज म चल पड़ी। भी म से बदला लेने क जो जद उसने ठान ली थी, वह िदनोिदन बढ़ती ही
जा रही थी।

राजा ुपद ने अंबा से कहा था, ‘‘तुम परशुराम से िमलो। वे ि य के बल श ु ह। वे


तु हारी सहायता अव य करगे।’’

अतः अंबा परशुराम से िमली। परशुराम त काल अंबा क सहायता को तैयार हो गए। वे
भी म के पास पहच
ं े और यु के लए ललकारा। भी म और परशुराम म भयंकर यु हआ।
दोन वीर थे। कई िदन तक यु चलता रहा। बराबर क ट कर थी, इस लए न कोई हार रहा
था, न कोई जीत रहा था। परशुराम के लए अ धक िदन तक यु म िटके रहना असंभव था,
इस लए उ ह ने हार मान ली और अंबा से कहा, ‘‘उिचत यही है िक तुम भी म से सं ध कर
लो। वे तु हारा िहत करगे।’’

अंबा भी म के सामने घुटने कैसे टेक सकती थी? भी म ने उसका जीवन न िकया था, वह
भी भी म को जीिवत नह छोड़ेगी। उसने एक बार िफर तप या क । उसने घोर तप या करके
भगवान शंकर को स िकया। भगवान शंकर ने अंबा को वर िदया, ‘‘इस ज म म तो नह ,
अगले ज म म तुम अव य भी म से बदला ले सकोगी।’’

भगवान शंकर तो यह वर देकर अंतधान हो गए, लेिकन अंबा को चैन कहां? उससे अगले
ज म के लए वाभािवक मृ यु क ती ा भी नह क गई। उसने अपने हाथ अपनी िचता
सजाई और उसम आग लगाकर वयं को अि के हवाले कर िदया। ाण-पखे उड़ते ही
अंबा ने राजा द ु द क प नी के गभ से नया ज म लया। अगले ज म म वह राजा ुपद क
पु ी के प म उ प हई। वह अंबा को अपनी वह माला भी िमल गई, जो भगवान काितकेय
ने उसे दी थी। उसने वह माला अपने गले म डाल ली।

राजा ुपद माला क मिहमा जानते थे। भिव य म कह यथ म भी म से टकराना न पड़े, इस


डर से राजा ुपद ने अपनी पु ी को ही घर से िनकाल िदया।

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इस ज म म भी अंबा भूली नह थी िक उसे भी म से बदला लेना है। घर से िनकाले जाने पर
उसने िफर तप या क । वह जानती थी िक नारी प म भी म से टकराना असंभव है, वह पु ष
प पाना चाहती थी। घोर तप या के बाद अंततः उसे पु ष प िमल गया।

अंबा का यही पु ष प िशखंडी के नाम से स हआ। िशखंडी ने महाभारत यु म अजुन


का रथ चलाया था। उस समय भी म ने उसे पहचान लया था। वे चाहते तो उसे उसी ण
समा कर सकते थे, पर एक नारी पर वार करना भी म के िववेक के अनुकूल नह था। इसी
िशखंडी को आगे खड़ा करके अजुन ने भी म िपतामह पर बाण के वार िकए थे और िवजय
पाई थी। यु भूिम म जब भी म घायल होकर िगर पड़े थे, तब अंबा क बदले क आग शांत हो
सक थी।

□□

उधर अंिबका और अंबा लका का िववाह िविच वीय के साथ हो चुका था। िविच वीय दोन
प नय सिहत सुख से जीवन-यापन कर रहे थे।

लेिकन अ धक भोग-िवलास का प रणाम यह िनकला िक िविच वीय अ व थ हो गए। उसने


अंिबका और अंबा लका के साथ लगभग सात वष ं तक जीवन-यापन िकया, िफर य रोग से
पीिड़त होकर िनःसंतान ही मर गए।

अब रा य का कोई उ रा धकारी नह रहा था।

इसका सबसे अ धक दःु ख स यवती को था। उसके दोन पु िनःसंतान मर गए थे।


िविच वीय क दोन प नयां युवाव था म िवधवा हो गई थ । अब वंश आगे कैसे बढ़ेगा? भी म
ने तो कभी भी िववाह न करने क ित ा कर रखी थी, परं तु वंश के लए भी या वे अपनी
ित ा तोड़गे नह ?

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स यवती ने एक िदन भी म से कहा, ‘‘पु ! जो कभी सोचा भी नह था, वही हआ। अब
रा य के उ रा धकारी का या होगा? हमारे वंश का या होगा? हां, अगर तुम अपनी
वीकृित दान करो तो एक रा ता िनकाला जा सकता है।’’

‘‘कैसा रा ता माता?’’ भी म ने पूछा।

‘‘तु हारे भाई क प नयां युवाव था म ही िवधवा हो गई ह। शा म िवधान है िक


िवधवाओं का दसरा
ू िववाह हो सकता है। इससे इन क याओं का जीवन संवर जाएगा और
हमारा वंश भी आगे बढ़ेगा।’’

‘‘तो मुझे आ ा दी जए िक म या क ं ?’’

‘‘व स! अब तुम पर ही सब कु छ िनभर करता है। म तु हारी माता ह।ं म तु ह अनुमित देती
हं िक दोन बहओं को तुम अपनाओ और वंश को आगे बढ़ाओ।’’

भी म त काल बोले, ‘‘नह माता! ऐसा नह हो सकता। म अपनी ित ा भंग नह कर


सकता। उिचत यही है िक आप कोई और उपाय सोच।’’

स यवती कु छ ण तक शांत रही। िफर कु छ सोचकर उसने भी म से कहा, ‘‘पु ! मने


आज तक एक बात सबसे िछपा रखी थी, िकंतु हमारे वंश पर जो संकट आया है, उसे देखते
हए आज म यह रह य तुमको बता रही ह।ं सुनो! तु हारे िपता से िववाह करने से पूव म अपने
िपताजी के साथ याि य को नदी पार करवाती थी। एक िदन क बात है िक मेरी नाव म ऋिष
पराशर सवार हए। म जब उ ह नदी के उस पार ले जा रही थी तब एकाएक वे मेरी ओर
आकिषत हो गए। उ ह ने भावावेश म मेरे सामने अपने ेम का दशन िकया। म अ यंत
भयभीत हो गई। सचमुच, म दो कारण से भयभीत हो गई थी‒ एक तो यह िक अगर मने ऋिष
को कु िपत कर िदया तो वे मुझे कोई भयानक शाप दे सकते ह, दसरा
ू यह िक अगर िपता को
पता चल गया िक मने कोई दरु ाचार िकया है तो वे मुझसे नाराज हो जाएंग।े अब म या

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करती, तब मने ऋिष से कहा, ‘हे ऋिषवर! अपना इरादा बदल दी जए। म म य माता क पु ी
ह,ं इस लए मेरे शरीर से सदैव मछली क दगु ध िनकलती है।’ ऋिष इस पर भी नह माने।

वे बोले, ‘म सब कु छ जानता ह,ं तुम बदबू क िचंता मत करो, म उसे त काल दरू कर
दग
ं ू ा।’ इतना कहकर ऋिष पराशर ने अपने ताप से मेरे शरीर को दगु ध िवहीन बना िदया।
यही नह , ब क उनक कृपा से मेरा संपूण शरीर अ यंत लुभावनी खुशबू से सराबोर हो गया।
यह चम कार देखकर म ऋिष से बहत भािवत हो गई। उनक इस कृपा का बदला चुकाने के
लए मने उनके आगे समपण कर िदया। जब म गभवती हई तो ऋिष ने मुझे एकांत ीप म
पहच
ं ा िदया और बोले, ‘तुम इस ीप पर रहकर अपने पु को ज म दो। पु -ज म के बाद तुम
िफर कुं वारी मानी जाओगी।’

ीप पर मने एक पु को ज म िदया, जसका नाम यास है। एक कार से वह भी तु हारा


भाई ही है। वह अ यंत िव ान एवं शा ाता है। जब म उससे अलग हई तो उसने वचन िदया
था, ‘माता! जब कभी तुम मेरी आव यकता अनुभव करो, मुझे याद कर लेना। याद करते ही
म उप थत हो जाऊंगा।’ वही मेरा सबसे बड़ा पु है। अगर तुम मान जाओ तो म उसे ही
बुलवा लूं। इस संकट क बेला म एक वही हमारी सहायता कर सकता है। बोलो, अब तु हारा
या िवचार है?’’

स यवती व तुतः एक गंधव क पु ी थी। एक िदन गंधव नदी के ऊपर से उड़ता जा रहा था,
तभी उसका वीय नीचे टपका, जो नदी म तैरती एक मछली के मुंह म जा िगरा। इस कार
मछली ने स यवती को ज म िदया, जसे बाद म केवटराज ने पाल-पोसकर बड़ा िकया। मछली
के गभ से उ प होने के कारण उसके शरीर म मछली क गंध या थी।

भी म भला या उ र देते। यह तो अ छा ही था िक यास कोई और नह , एक कार से


उनके भाई ही थे, वह भी िव ान और शा ाता। वे धीरे से बोले, ‘‘अगर आप उिचत
समझती ह तो यास को बुला ली जए।’’

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स यवती क सारी िचंताएं पल भर म दरू हो गई।ं उसने एका मन से अपने ये पु का
मरण िकया, यास पलक झपकते ही सामने उप थत हो गए।

यास बोले, ‘‘कहो माता! कैसे याद िकया?’’

स यवती बोली, ‘‘पु ! हमारे वंश पर संकट आ पड़ा है। अब तु ह उस संकट से कु -वंश
को उबार सकते हो।’’

‘‘आदेश द माता! म सब कु छ करने के लए तैयार ह।ं ’’

‘‘घर म दो-दो बहएं ह, परं तु रा य उ रा धकार से वंिचत है। िविच वीय िनःसंतान ही मर
गया और उसक प नयां युवाव था म ही वैध य भोग रही ह। तुम िविच वीय के बड़े भाई हो,
शा म लखा है िक मृत भाई क िवधवाओं को दसरा
ू भाई चाहे तो सौभा य दान कर
सकता है। इस लए तुम अंिबका व अंबा लका को अपनाओ और उ ह संतान का सुख दो,
जससे कु -वंश का दीपक सदैव जगमगाता रहे।’’

यास से अपनी माता का दःु ख देखा नह गया। उ ह ने उसी ण अपनी वीकृित दे दी, परं तु
कहा, ‘‘िफलहाल मेरी ऐसी थित नह है िक म अंिबका और अंबा लका के सामने जा सकूं ।
म अपना वेश बदल लूं, तब उनसे िमलूंगा।’’

‘‘नह पु !’’ स यवती बोली, ‘‘पहले ही काफ देर हो चुक है, अब और िवलंब करने क
आव यकता नह । तुम इसी प म बहओं से िमलो।’’

‘‘ठीक है माता!, जैसा तुम चाहती हो वैसा ही होगा, लेिकन मेरी एक बात सुनो‒दोन बहओं
ने मेरे कु प मुख पर यान िदए िबना मुझे सहयोग िदया तो उनसे गुणवान व पवान संतान
उप होगी।’’ यास ने कहा, ‘‘तुम दोन बहओं को तैयार करो, म इसी समय उनसे
िमलूंगा।’’

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तब स यवती अपनी बड़ी बह अंिबका के पास गई और आदेश िदया, ‘‘शी ता से सोलह
ंगार करके शयनक म पहच
ं ो, िविच वीय का भाई यास तु ह संतान दान करे गा। शा
म इसका िवधान है...।’’

अंिबका जानती थी िक वंश को बचाने का एकमा यही उपाय है, इस लए उसने द ु हन-सा
ंगार िकया और शयनक म पहच
ं कर यास क ती ा करने लगी।

थोड़ी देर म यास ने वहां वेश िकया।

अंिबका ने उ सुकता से ि उठाकर उनक ओर देखा तो दंग रह गई। यास न सफ कु प


थे, ब क उनके कपड़े भी मैले-कु चैले थे, दाढ़ी और केश बड़े-बड़े थे, लग रहा था जैसे कई
िदन से उ ह ने नान भी न िकया हो।

यास समीप पहच


ं े तो अंिबका ने आंख बंद कर ल ।

थोड़ी देर के बाद यास शयनक से बाहर िनकले और स यवती से बोले, ‘‘अंिबका एक
सुंदर बालक को ज म देगी। वही इस रा य का उ रा धकारी होगा, िकंतु वह बालक ज म से
अंधा होगा, य िक अंिबका ने सहवास के समय अपनी आंख बंद कर ली थ ।’’

ज मांध बालक! स यवती धक से रह गई।

स यवती ने यास से कहा, ‘‘पु ! तुम एक बार अंबा लका से भी िमल लो।’’

माता के अनुरोध पर यास अंबा लका के पास भी गए।

अंबा लका भी शयनक म सोलह ंगार िकए बैठी थी, लेिकन उसने भी जैसे ही यास के
दशन िकए, डर के मारे पीली पड़ गई।

बाहर िनकलकर यास ने माता को बताया, ‘‘अंबा लका को जो पु उ प होगा, वह वीर


तो होगा, िकंतु उसके शरीर का वण पीला होगा।’’

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एक अंधा और एक पीला! बेचारी स यवती एक ओर जहां इस बात से स थी िक बहएं
पु वती ह गी, वह उसे यह भी दःु ख था िक दोन पु िवकार-यु ह गे। वह तो एक ऐसा पु
चाहती थी, जो सवगुण संप हो।

स यवती अंिबका से िमली और कहा, ‘‘पु ी! यह तो बहत बुरा हआ। उिचत यही है िक तुम
एक बार िफर यास का संसग ा करो। यान रहे, इस बार तु ह यास को स कर देना
है, तािक जो पु ज म ले, वह हर ि से उ म हो।’’

अंिबका मान तो गई, परं तु उसके मन से भय अभी गया नह था। पुनः यास के संसग म
जाने क क पना मा से वह सहर उठी। उसने अपनी एक दासी से अनुरोध िकया, ‘‘सखी!
तु ह इस यास से बचाओ, अ यथा म तो मर जाऊंगी।’’

‘‘मुझे या करना है?’’ दासी ने पूछा।

‘‘तुम मेरे व पहनकर यास को स कर दो, बस।’’

दासी मान गई और अंिबका के व पहनकर वह शयनक म पहच


ं गई।

उधर स यवती ने यास से एक बार िफर अंिबका से िमल लेने का अनुरोध िकया। यास
इस बार अंिबका के कमरे म पहच
ं े तो दासी ने यास को पूरा सहयोग दान िकया। यास
संतु हो गए, इस लए आगे चलकर दासी को जो पु उ प हआ, वह िवकारहीन और
ानवान हआ।

समयानुसार अंिबका ने जस पु को ज म िदया, वह अंधा था, उसका नाम धृतरा पड़ा।


उसके बाद अंबा लका ने पीले वण के पु ज म िदया, जसका नाम पांडु था। दासी का
िवकारहीन पु िवदरु कहलाया। वह सचमुच सवगुण संप था।

तीन बालक महल म पलने लगे‒सगे भाइय क तरह।

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तीन क िश ा-दी ा एक साथ आरं भ हई। शा के अलावा अ -श का भी उ ह ान
कराया गया। भी म क देखरे ख म तीन बालक बल, बुि एवं ान के े म धीरे -धीरे
िवक सत होने लगे।

जब तीन बड़े हए तो धृतरा बलशाली स हए, पांडु क धनुिव ा का मुकाबला करने


वाला कोई नह रहा और िवदरु धम, राजनीित व याय म अि तीय िनकले।

ऐसे कु शल राजकु मार को पाकर महा मा भी म क स ता का िठकाना नह रहा। अब


राजकु मार िववाह यो य हो गए थे, इस लए भी म उनके लए वधुओं क खोज म लग गए।

धृतरा के लए उ ह ने गांधार देश के राजा सुबल क क या गांधारी को पसंद कर लया।


जब गांधारी का धृतरा से िववाह हो गया तो पित के अंधे होने के कारण गांधारी ने भी
आजीवन अपनी आंख पर प ी बांधे रखने का ण िकया। जब पित ही दिु नया क बहार देखने
से वंिचत थे तो भला गांधारी को या अ धकार था िक वह खुली आंख के साथ रहे। वह बहत
ही सुशील, धमपरायण व गुणवती थी।

चूंिक धृतरा अंधे थे, इस लए उ ह ने रा या धकार अपने छोटे भाई पांडु को स प िदया था।
पांडु का िववाह दो क याओं से हआ था‒एक का नाम था मा ी व दसरी
ू का नाम कुं ती।

कुं ती राजा शूरसेन क पु ी थी, जो ीकृ ण के िपतामह थे। कुं ती का शैशवकाल कुं ितभोज
के यहां बीता था। कुं ितभोज राजा शूरसेन के फुफेरे भाई थे और िनःसंतान थे, इस लए राजा
शूरसेन ने अपनी पहली संतान क या पृथा कुं ितभोज को स प दी थी। यही क या पृथा आगे
चलकर कुं ती के नाम से जानी गई।

एक बार क बात है। कुं ितभोज के यहां ऋिष दवु ासा का आगमन हआ। कुं ती ने उनक
िवशेष सेवा क । इससे ऋिष दवु ासा अ यंत स हए। उ ह ने कुं ती को एक मं सखाया और
बोले, ‘‘तुम जस देवता का मरण करके यह मं जपोगी, वह देवता तु हारे पास पहच
ं जाएगा
और तु ह तेज वी व तप वी पु -र न का फल देगा।’’

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ऋिष दवु ासा ने कुं ती को यह मं िव ा िनरथक ही नह दी थी। वे जानते थे िक भिव य म
कुं ती को इस मं क आव यकता पड़ेगी।

ऋिष दवु ासा तो यह वरदान देकर चले गए, परं तु कुं ती क बाल बुि मचलने लगी। सोचा,
य न इस मं का ताप देखा जाए। बस, यह सोचते ही उसक ि एकाएक आकाश क
ओर उठ गई, जहां सूय तेजी से चमक रहा था। कुं ती ने मं का जाप करके सूय को याद
िकया। पलक झपकते ही सूय कुं ती के सामने उप थत थे। कुं ती ने तो हा य-प रहास म सूय
को बुलाया था। एकाएक उ ह अपने सामने पाकर कुं ती भयभीत हो गई, िकंतु ऋिष दवु ासा का
वरदान िवफल कैसे जाता, इस लए सूय ने कहा, ‘‘कुं ती! डरो मत, म तु ह पु का फल देता
ह।ं यह पु अ यंत तेज वी व तप वी होगा। ज म से ही वह कुं डल व कवच धारण करके
उ प होगा। यही कुं डल व कवच उसे सदैव िवपदाओं से बचाए रखगे।’’

‘‘ओह! िकंतु एक कुं वारी क या पु को ज म देगी तो संसार या सोचेगा?’’

‘‘घबराओ मत, इस पु के ज म से तु हारा कौमाय भंग नह होगा।’’

यह कहकर सूय अंतधान हो गए।

यथासमय कुं ती ने एक परम तेज वी िशशु को ज म िदया, जो कुं डल व कवच धारण िकए
हए था। समाज के भय से कुं ती ने िशशु के ज म लेते ही उसे नदी म बहा िदया।

यह िशशु नदी म नहा रहे अ धरथ को ा हआ, जो कु राज का रथचालक (सारथी) था।
अ धरथ िनःसंतान था, इस लए िशशु को पाकर उसके हष का िठकाना न रहा। उसने िशशु का
नाम वसुसेन रखा और बड़े लाड़- यार से उसका पालन-पोषण करने लगा। यही िशशु वसुसेन
बड़ा होकर कण के नाम से िव यात हआ।

उधर जब कुं ती िववाह यो य हई तो वयंवर का आयोजन िकया गया। वयंवर म राजकु मार
पांडु भी पधारे थे। कुं ती ने वरमाला उ ह के गले म डालकर उ ह अपना आरा य देव मान

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लया। पांडु ने कुं ती के अलावा म देश के राजा श य क बहन मा ी से भी िववाह िकया।

तीसरे राजकु मार िवदरु का िववाह राजा देवक क पवती क या पारशवी से संप हआ।

□□

एक अ छे शासक के प म पांडु का बड़ा आदर था। चूंिक धृतरा ज म से अंधे थे,


इस लए पांडु को ही राजग ी पर िबठाया गया था। पांडु ने राजा बनते ही अपनी यो यता का
प रचय िदया। वे यायि य और जा व सल थे। इसके अलावा उ ह ने अनेक पड़ोसी रा य को
अपने सा ा य म िमला लया। कई वष ं तक लगातार अथक प र म के बाद पांडु आराम
करने के लए िहमालय के शाल वन क ओर िनकल गए।

उसी शाल वन म रहता था‒िहरण का एक जोड़ा। यह िहरण दंपित व तुतः ऋिष पित-प नी
थे। एक बार जब वे शाल वन म काम-के ल म म थे, तभी पांडु िशकार खेलने के उ े य से
वहां पहच
ं गए। सामने जोड़े को देखकर उनका मन िशकार के लए मचल उठा। उ ह ने धनुष
संभाला और एक बाण छोड़ िदया, जो सीधे िहरण को जा लगा। िहरण उस समय भाव-िवभोर
था, बाण लगते ही धरती पर िगरकर छटपटाने लगा। उसने मरते-मरते पांडु को शाप िदया‒

‘‘यह तुमने अ छा नह िकया। अब तुम भी उसी पल मर जाओगे, जस पल प नी के साथ


सहवास करोगे।’’

पांडु के प चाताप का अंत नह रहा। इस अिभशाप के बोझ तले अब वे कैसे जएंग!े वे


अ यंत िनराश और उदास हो गए। जीने क लालसा जाती रही। उ ह एक ही िचंता थी, अब
वंश क वृि कैसी होगी? दो-दो प नयां होते हए भी वे िनःसंतान मर जाएंग।े

जब कुं ती को पित के दःु ख का कारण मालूम हआ तो उसे त काल ऋिष दवु ासा का वरदान
याद हो आया। वह अभी ऋिष ारा दान िकया गया मं भूली नह थी।

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वह पांडु से बोली, ‘‘इतना िनराश होने क आव यकता नह । देव! मुझे ऋिष दवु ासा ने ऐसे
मं से अिभिष कर िदया है िक म मनचाहा पु ा कर सकती ह।ं ’’

‘‘वह कैसे?’’ पांडु ने च ककर पूछा।

इस पर कुं ती ने अपनी पूरी कहानी सुना दी और यह भी बता िदया िक िकस कार खेल-
खेल म सूयदेव से उसने सौभा य ा िकया था।

पांडु के हष का िठकाना न रहा। वे भाव-िव ल होकर बोले, ‘‘भगवान का कोिट-कोिट


ध यवाद है िक हम िनःसंतान नह रहगे। हमारा वंश भी आगे बढ़ेगा। कुं ती! मेरी अ छी भाया!
तुम िवलंब मत करो, शी ही िपता बनने का सुख दो। सबसे पहले तुम मं से मृ यु के देव
यम का आ ान करो, वे याय व स य के तीक ह। उनके ारा द पु हमारे वंश का नाम
गौरवा वत करे गा।’’

उसी िदन कुं ती ने पु ाि क तैया रयां शु कर द । अपने क म जाकर उसने यम देव


का मरण करते हए मं उ चा रत िकया। अगले पल ही यमदेव कुं ती के सामने उप थत हो
गए। कुं ती ने हाथ जोड़कर उनसे अपनी इ छा कट कर दी।

यम ने वरदान देकर कहा, ‘‘एवम तु! कुं ती! तु हारा यह पु मानव म े , ईमानदार,
स यि य और वीर होगा। यह यु धि र कहलाएगा अथात् यु का िवजेता।’’

समयानुसार कुं ती को जो पहला पु उ प हआ, वह सचमुच इ ह गुण से प रपूण था।

ू बार कुं ती ने वायु का आ ान िकया, य िक पांडु दसरा


दसरी ू पु ऐसा चाहते थे, जो ि य
कु ल क संतान क कार शारी रक प से अ यंत वीर एवं ब ल हो। वायु ने कुं ती को ऐसा
ही पु दान िकया। इस बालक क शारी रक मता का इसी से पता चलता है िक जब माता
के साथ लेटे-लेटे बचपन म उसने करवट बदली तो ह का-सा भूकंप आ गया था। वह भीम
कहलाया।

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दसरे
ू पु क ाि के बाद पांडु ने कुं ती से कहा, ‘‘अब हम ऐसा पु िमले जो अ -श
संचालन म अि तीय हो, कोई भी उसक वीरता का मुकाबला न कर सके।’’

इस लए कुं ती ने इस बार देवा धदेव इं क तुित क । इं ने कट होकर कुं ती क


मनोकामना पूण क । जब कुं ती ने तीसरे पु को ज म िदया तो आकाशवाणी हई, ‘‘यह ऐसा
पु है जसक शि , वीरता, बुि म ा और अ -संचालन के ान का कोई मुकाबला नह
कर सकेगा। यह कु वंश का नाम रोशन करे गा।’’

माता-िपता ने अपने इस पु का नाम अजुन रखा। इं ने अजुन को जो वीरता का अि तीय


गुण दान िकया था, वह इस लए िक सूयदेव के पु कण के पास अजेय कवच और कुं डल थे।
इं अपने पु को येक िवपदा से बचाकर रखना चाहते थे।

कुं ती तो तीन-तीन पु क माता बन चुक थी, जबिक मा ी अभी तक िनःसंतान थी। कुं ती
तीन पु से ही संतु हो गई थी। वह आगे अब कोई संतान नह चाहती थी, जबिक पांडु और
पु के इ छु क थे। उधर मा ी क भी इ छा थी िक वह भी माता बने। इस लए वह कुं ती से
िमली और बोली, ‘‘कुं ती बहन! मेरी कोख सूनी रहेगी? मुझे भी माता बनने का सौभा य ा
करने दो।’’

सच था, माता बने िबना हर नारी अधूरी होती है। मा ी क मनो यथा कुं ती से सही नह गई,
इस लए उसने मा ी के लए भी मं के बल पर अ वनी कु मार को बुलाया। अ वनी से उसे
दो जुड़वां पु -र न ा हए‒ नकु ल और सहदेव। ये पांच भाई पांडव कहलाए।

उधर धृतरा और गांधारी को पूरे सौ पु ा हए। इन पु के अलावा उनक 13 पुि यां


भी थ । ये सौ पु कौरव कहलाए। इनके सबसे बड़े पु का नाम था‒ दयु धन।

□□

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घटनाओं ने कु छ ऐसा मोड़ लया िक कुं ती-पु कण दयु धन का घिन िम बन गया था।
दयु धन ने उसे अंगदेश का राजा घोिषत कर िदया।

इं अपने पु अजुन को हर संकट से बचाकर रखना चाहते थे। अजुन को सबसे यादा डर
कण से ही था, य िक सूय ने उसे जीवनर क कुं डल और कवच दे रखे थे। इं िकसी भी
कार ये कुं डल और कवच ा कर लेना चाहते थे।

कण महादानी था। वह कभी भी अपने महल के ार से िकसी याचक को खाली हाथ नह


भेजता था।

एक िदन इं बूढ़े ा ण का वेश धरकर कण के पास पहच


ं गए। कण ने उसे देखते ही
पहचान लया िक यह और कोई नह , वयं देवा धदेव इं ह।

कण ने अनिभ होकर पूछा, ‘‘आओ, ा णदेव! कैसे क िकया?’’

‘‘जो मांगूग
ं ा िमलेगा?’’ इं ने पूछा।

‘‘अव य, आदेश दी जए...।’’

‘‘तु हारे ये कुं डल-कवच बड़े अ छे ह, इ ह मुझे दे दो।’’

कण ने तिनक भी िवलंब नह िकया, त काल कवच-कुं डल उतारकर बूढ़े ा ण को स प


िदए।

इं कण क दानवीरता से अवाक् रह गए।

इं स तापूवक बोले, ‘‘ध य हो कण! म तु हारी दानवीरता से बहत स हआ। म इं ह,ं


मुझसे कोई कोई वर मांगो।’’

कण भला या मांगता! िफर भी इं के बार-बार अनुरोध करने पर कण बोला, ‘‘म तो


ि य ह,ं अतः मुझे आप अपना ‘शि ’ नामक अमोघ अ दान क जए, जससे कोई भी
श ु यु म मेरा मुकाबला न कर सके।’’

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‘‘एवम तु!’’ इतना कहकर इं ने अपना अमोघ अ कण को दे तो िदया, साथ ही यह भी
कहा, ‘‘कण! इस अ का उपयोग तुम मा एक बार ही कर सकोगे। इस लए इसका तभी
योग करना, जब इसक िवशेष आव यकता अनुभव हो। इसके बाद यह अ मेरे पास वापस
लौट आएगा। इसक शि अपार है। जस पर भी इसका वार करोगे, वह अव य मारा
जाएगा।’’

कण अमोघ अ पाकर स हो गया, पर िव ध क िवडंबना! महाभारत के यु म ऐसा


हआ िक वह उसका गलत उपयोग कर बैठा और परशुराम से ा अ य शि शाली अ को
चलाने क िव ध ही भूल गया।

कण क इ छा थी िक वह परशुराम से भी यु िव ा सीखे। वह परशुराम से ा क


िव ा सीखना चाहता था, लेिकन किठनाई यह थी िक परशुराम को ि य से घृणा थी, वे तो
ि य का समूल नाश करना चाहते थे। हां, ा ण को वे अव य अपना िश य बनाते थे।
इस लए कण भी ा ण का वेश धारण कर परशुराम के पास गया और उनका िश य व ा
िकया।

एक िदन क बात है िक परशुराम कण क जांघ पर सर रखकर सो रहे थे। वे गहरी न द म


थे, तभी कण क जांघ पर एक काला भंवरा आकर बैठ गया और जांघ म छे द करने लगा।
इससे कण को अ यंत पीड़ा होने लगी, लेिकन वह तिनक भी नह िहला। उसे डर था िक अगर
िहलने-डु लने क चे ा क अथवा भंवरे को उड़ाने का यास िकया तो परशुराम क न द भंग
हो जाएगी। भंवरा कण क जांघ को कु तरता हआ अंदर घुसता जा रहा था। इससे र बहने
लगा था।

तभी परशुराम क न द भंग हो गई। कण क जांघ से बहता हआ र देखा तो वे च क पड़े।


कण क जांघ म काला भंवरा ग ा बना रहा था और कण अिवचल बैठा था। वे त काल समझ
गए िक कण ा ण नह हो सकता।

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उ ह ने पूछा, ‘‘सच बताओ, तुम कौन हो? तुम ा ण नह हो सकते, य िक ा ण इतनी
पीड़ा नह सह सकता। या तुम ि य हो?’’

कण झूठ कैसे बोलता! उसे वीकार करना पड़ा िक वह ि य है।

परशुराम ोध से बोले, ‘‘यह तुमने ठीक नह िकया। गु से झूठ बोलकर तुमने पाप िकया
है। तुमने जस ा क िव ा पाने के लए यह छल-बल िकया है, उसी ा को उस
समय चलाना भूल जाओगे, जब तु ह उसक परम आव यकता होगी।’’

हआ भी ऐसा ही। महाभारत के यु म वह ा क िव ा भूल गया और अजुन के तीर


से मारा गया।

□□

पांडु का आकिम क अंत बहत दख


ु द था‒ठीक कामातुर िहरण क भांित।

वसंत का मौसम था।

एक िदन पांडु मा ी के साथ वन- मण के लए िनकले थे। चार ओर बसंती बयार बह रही
थी और डाल-डाल पर फूल खले थे। ऐसे वातावरण का पांडु पर बड़ा उ े जत भाव हआ। वे
िहरण के अिभशाप को भूल गए और ेम करने को उनका दय मचलने लगा। उ ह ने मा ी को
अपने आ लंगन म भर लया।

सहवास के दौरान पांडु क मृ यु हो गई।

मा ी को इससे बहत दःु ख हआ। उसने अपने दोन पु ‒ नकु ल और सहदेव को कुं ती के
ज मे छोड़ िदया और वयं पित के साथ ही िचता म मृ यु का वरण िकया।

□□

धृतरा क प नी गांधारी ने जब दयु धन को ज म िदया, तब भारी अपशकु न के ल ण


िदखाई िदए थे। भिव यव ाओं ने धृतरा एवं गांधारी को चेतावनी दी िक बचपन म ही उसे

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याग द, अ यथा आगे चलकर िवनाश हो सकता है, लेिकन धृतरा व गांधारी अपने पु का
मोह याग न सके और आजीवन साथ रखा।

जब स यवती को पता चला िक दयु धन से वंश पर कोई िवनाश का भय आ सकता है, तब


वह अपनी बहओं‒ अंिबका व अंबा लका के साथ महल यागकर वन गमन कर गई।ं वह
तप या करते हए वे तीन मृ यु को ा हई।ं

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(तीन)

पांडु और मा ी क मृ यु के प चात् कुं ती पांच पु ‒ यु धि र, भीम, अजुन, नकु ल व


सहदेव के साथ शाल-वन से वापस ह तनापुर आ गई।

धृतरा ने अपने सौ पु के साथ इन पांच भतीज को भी समान प से नेह िदया। सभी


भाई िबना िकसी भेदभाव के राजमहल म पलने लगे।

कु छ बड़े होने पर राजकु मार क उिचत िश ा-दी ा का बंध िकया गया। भी म क


देखभाल म वे शा और अ क िव धवत िश ा हण करने लगे।

खेल-कू द के दौरान भीमसेन अपनी शरारत से बाज नह आता था। वह शरीर से सबसे
बलवान था। इस लए जब भी अवसर िमलता, कौरव ाताओं से छे ड़खानी अव य करता।
िवशेषकर दयु धन को परे शान करने म भीम को बड़ा आनंद आता। कभी तो वह उसे
जानबूझकर भूिम पर पटक देता या कभी वृ पर चढ़ता तो वृ को बुरी कार िहलाकर उसे
नीचे िगरा देता।

दयु धन भीम क इन ि याओं से मन-ही-मन ो धत हो गया था। वैसे भी उसे पांडु पु से


कोई लगाव नह था। अब उनका बल देखकर वह सदैव भयभीत रहता था िक कह वे उनसे
आगे न बढ़ जाएं या कह ऐसा न हो िक एक िदन वे रा य को छीनने का यास कर। उसने
तय कर लया िक वह भीम को अव य मजा चखाएगा।

एक िदन राजकु मार नौका िवहार के लए िनकले। नदी तट पर खाना खाते समय दयु धन ने
भीम के खाने म िवष िमला िदया। िवष के भाव से वह बेहोश हो गया। जब खा-पीकर सभी
आगे बढ़ गए तो दयु धन ने चुपके से बेहोश भीम को नदी म िगरा िदया।

भीम बेहोशी क हालत म नागलोक जा पहच


ं ा, जहां सांप उसे घेरकर काटने लगे। िवष ही
िवष को मारता है। सांप के काटने का प रणाम यह िनकला िक भीम का िवष उतर गया। होश
म आते ही उसने आसपास िवचरते हए सप ं का नाश करना आरं भ कर िदया।

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भीम का यह साहस देखकर सप घबराए। वे अपने रजा वासुिक के पास पहच
ं े। तब वासुिक
वयं भीम से िमले। उ ह ने भीम को देखते ही पहचान लया। भीम के नाना कुं ितभोज वासुिक
के संबध
ं ी (धेवते) थे। उ ह ने भीम को एक ऐसी औष ध दी, जससे भीम िवष के भाव से तो
सवथा मु हो ही गया, साथ ही उसम अपार शि भी आ गई।

इस कार भीम पहले से अ धक शि शाली होकर ह तनापुर लौटा। वह दयु धन क धूतता


भांप चुका था। उसने अपने भाइय को दयु धन से सावधान कर िदया।

भी म राजकु मार को हर कार से द करना चाहते थे, इस लए उ ह ने राजकु मार को


उिचत िश ा-दी ा के लए एक गु क िनयुि कर दी। उनका नाम था ोणाचाय।

ोणाचाय ा ण थे। यह िव ध क िवडंबना थी िक उ ह ि य-कम अपनाना पड़ा और यु


कला म पारं गत होना पड़ा। व तुतः उ ह अपने अपमान का ितशोध लेना था और वह भी
उससे, जो कभी उनका बाल िम था। वे धृतरा एवं पांडु के पु को शा और अ क
िव धवत िश ा देने लगे। राजकु मार के साथ-साथ ोणाचाय अपने पु अ व थामा को भी
िश ा देते थे।

ोणाचाय बहत यो य गु थे। उ ह ने राजकु मार को पहला पाठ सखाने से पूव कहा था,
‘‘राजकु मारो! मेरी बात सुनो, मुझे वचन दो िक जब तुम लोग क िश ा पूण हो जाए तो मेरी
एक इ छा पूण करोगे।’’

सभी मौन, लेिकन अजुन से मौन नह रहा गया। वह उ साह से बोला, ‘‘म आपक इ छा
अव य पूण क ं गा।’’

अजुन के उ र से ोणाचाय बड़े स हए। वैसे तो वे सबसे एक समान यवहार करते थे,
लेिकन अजुन के ऊपर उनका िवशेष अनुराग रहने लगा।

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दयु धन से गु का यह प पात िछपा नह रहा। वह देख कर रहा था िक गु अजुन को
अित र लगन से सखाते ह। पु अ व थामा के ित भी गु का िवशेष झुकाव था।

ोणाचाय अपने पु को अलग से सबसे िछपाकर भी यु ा यास कराते थे, तािक वह


राजकु मार से अ -संचालन म पीछे न रह जाए। अजुन को जब यह पता चला तो वह भी
सबक नजर से बचकर यह सब सीखता। इसका प रणाम यह हआ िक अजुन अितशी
अ -श म पारं गत होने लगा। िनशाने पर तीर मारना, तलवारबाजी के घातक दांव-पच व
घुड़सवारी म अजुन सभी राजकु मार से आगे िनकल गया।

□□

ोणाचाय अपनी युवाव था म अि वेश आ म म िश ा हण करते थे। आ म म उनके


साथ पांचाल नरे श पृ का पु ुपद भी अ ययन करता था। ोण एवं ुपद म गहरी िम ता
थी।

िश ा समाि के बाद जब वे एक-दसरे


ू से िवदा हए तो ोण ने कहा, ‘‘बंधु! मुझे भुला तो
नह दोगे?’’

‘‘कैसी बात करते हो, िम !’’ ुपद ने उ र िदया, ‘‘भला शैशव काल क िम ता कोई
भुला पाता है। सुनो, जब म पांचाल देश का राजा बनूग
ं ा, तब तु ह िकसी भी समय मेरी
सहायता क आव यकता पड़े तो िनःसंकोच मेरे पास चले आना। म तु हारी हरसंभव सहायता
क ं गा।’’

यह कहकर ुपद तो पांचाल चला गया और कालांतर म िपता क मृ यु के प चात् पांचाल


देश का राजा भी बन गया, िकंतु इधर ोण के िदन संकट म बीत रहे थे।

ोण का िववाह महिष शर ान क पु ी कृपी से हआ था।

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महिष शद ान तप वी थे और उ ह ने अपनी तप या िनिव न पूरी करने के लए अपने पु
कृप व पु ी कृपी को छोटी आयु म ही वन म छोड़ िदया था, जनका पालन शांतनु ने िकया था।
न हे कृप व कृपी को शांतनु का एक सेवक वन से उठा लाया था। बाद म जब महिष शर ान
को पता चला िक उनक संतान शांतनु के यहां पल रही ह तो उ ह ने वहां जाकर अपनी संतान
को श -संचालन और यु -कला सखाई। बाद म कृपी का िववाह ोण से संप करा िदया।

िववाहोपरांत ोण क थित नह सुधरी। कृपी से उ ह अ व थामा नामक पु -र न क ाि


हई थी, परं तु वे भली-भांित उसका लालन-पालन नह कर पाते थे। दसरे
ू ब च को तो दधू
िमलता था, िकंतु जब उनका पु भूख से िबलखता था तो वे िववश हो उसे आटा घोलकर
िपला देते थे। इस दयनीय थित से उनका िदल रोता था, िकंतु लाचारी म हाथ मलने के सवा
कोई चारा नह था।

ऐसे अवसर पर एक िदन उ ह अपने बचपन के िम और सहपाठी ुपद क याद आ गई, जो


आजकल पांचाल का राजा बना हआ था। ुपद ने िवदा होते समय जो कु छ कहा था, उसे याद
कर उ ह तिनक भी संदेह नह रहा िक अगर उससे सहायता क याचना क जाए तो वह
इनकार नह करे गा। ोण को अ धक कु छ नह चािहए था, वे तो अपने पु अ व थामा के लए
एक गाय चाहते थे।

बस, वे पांचाल के लए चल पड़े।

ुपद के महल के पास पहच


ं कर जैसे ही उ ह ने अंदर वेश करना चाहा, ारपाल ने उ ह
रोक िदया। बोले, ‘‘कौन हो भाई! कैसे अंदर घुसे जा रहे हो?’’

ोण ने बड़ी िवन ता से कहा, ‘‘दे खए! म पांचाल नरे श से िमलना चाहता ह।ं ुपद मेरा
बचपन का िम है।’’

‘‘बचपन का िम है!’’ ारपाल यं य से बोले, ‘‘जाओ भइया, जाओ! यहां तु हारी भांित
अनेक लोग िम बनकर आते ह।’’

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ोण ने कहा, ‘‘बस, आप ुपद से जाकर मा यह किहए िक उसका सहपाठी ोण आया है।
अगर वह मुझसे िमलना चाहेगा तो बुला लेगा, अ यथा म वापस चला जाऊंगा।’’

‘‘अ छा! तुम यह ठहरो, हम उ ह तु हारे आने क सूचना देते ह।’’

इतना कहकर एक ारपाल महल के अंदर चला गया।

ोण महल के मु य ार पर उ सुकता से ारपाल के वापस आने क ती ा करने लगा।


वहां खड़े-खड़े ोण को शाम हो गई, तब जाकर ारपाल ने आकर कहा, ‘‘जाओ, तु ह राजा
ने अंदर बुलाया है।’’

ोण ने दो र क से िघरकर महल म वेश िकया, जैसे वे कारागार के बंदी ह ।

दरबार म ुपद ऊंचे संहासन पर गव से बैठा था। चार ओर दरबारी खड़े थे। उनके बीच
ोण राजा के सामने ऐसे खड़े थे, जैसे कोई दीन-हीन िभखारी हो।

ुपद उ ह अनिभ क कार घूरकर देख रहा था, िफर पूछा, ‘‘ या म जान सकता हं िक
तुम कौन हो और यहां या करने आए हो?’’

ोण तो एकदम आसमान से िगरे । उ ह ऐसे न क आशा नह थी। वे धीरे से बोले, ‘‘ या


तुम मुझे भूल गए? म ोण ह,ं तु हारा बचपन का िम ।’’

ुपद ने घृणा से ोण क ओर देखा और मुंह िबगाड़कर बोला, ‘‘ या बकते हो? म तु हारा


िम ? तुम होश म हो िक नह ।’’

ोण अपमान से जड़ हो गए। सभी लोग ने म आ चय और यं य भरकर ोण क ओर


देख रहे थे। ोण यहां आकर पछता रहे थे।

अंितम यास करते हए ोण बोले, ‘‘ ुपद! याद करो, तुमने आ म छोड़ते समय मुझसे या
कहा था। या बचपन क िम ता इतनी शी भूल गए?’’

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ुपद ने उ र िदया, ‘‘सुनो ा ण! िम ता बराबर वाल से होती है। म पांचाल नरे श हं और
तुम हो याचक ा ण। भला हमारी-तु हारी कैसी िम ता!’’

ोण ने सुना और मौन रहे। वे समझ गए िक ुपद राजा बनकर अहं से सारी स दयता भुला
बैठा है। ऐसे ाणी से सहयोग क आशा रखना यथ था। वे चुपचाप जाने को उ त हए।

ुपद बोला, ‘‘ठहरो ा ण! तुम हमारे यहां याचक बनकर आए हो, हम तु ह ऐसे नह जाने
दगे। हमसे िम ता क उ मीद मत रखो, िकंतु तु ह कु छ भट अव य िमलेगी।’’

इतना कहकर ुपद ने एक दरबारी को कु छ आदेश िदया, िफर ोण से कहा, ‘‘याद रखो,
थाई िम ता नाम क कोई व तु नह होती। यह तु हारा बचपना है। कभी थितय ने हम एक-
दसरे
ू के समीप ला िदया था, िकंतु उस समीपता के र ते को हमेशा कायम नह रखा जा
सकता, य िक थितयां बदल चुक ह। समय बड़ा बलवान है।’’

मनु य ऊंचा पद पाकर इतना िन ु र हो सकता है, ोण को िव वास नह हो रहा था। इस


थित म ोण यह बताना भी भूल गए िक वे य आए ह, न उ ह गाय मांगने का मरण रहा
और न ही उ ह ने अपने पु अ व थामा का वणन िकया। ोण िव वास नह कर पा रहे थे िक
सामने ऊंचे संहापन पर बैठा यि वही है, जसके साथ वे बचपन म एक ही आ म म पढ़ते
थे और वन म खेला करते थे।

तभी एक दरबारी ोण के लए भट लेकर आ पहच


ं ा। ोण का पूरा शरीर ोध से कांप रहा
था। उ ह ने भट को ठोकर मारकर ती वर म कहा, ‘‘ ुपद! म जा रहा ह,ं िकंतु याद रखना
िक एक िदन ऐसा अव य आएगा, जब म आज के अपमान का बदला लूंगा। सचमुच समय
बड़ा बलवान होता है।’’

यह कहकर ोण महल से िनकल आए थे।

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इसके बाद ोणाचाय जीिवका के लए कई जगह भटके। इसी दौरान उनक भट भी म
िपतामह से हई और उ ह ने राजकु मार को श ा चालन सखाने का भार उनको स प िदया।

वे अभी तक ुपद के अपमान को भूले नह थे। बस, उ ह ती ा थी तो अवसर क ।

□□

राजकु मार को, िवशेष प से अजुन को यु -कला म सुयो य बनाने के लए ोण िकसी


को भी आगे नह बढ़ने देना चाहते थे। इसका प रणाम यह हआ िक एक िनधन युवक, जो
अ यंत मेधावी था, को भी ोण ने अपना िश य नह बनाया। अगर उसे िश य बनाते तो वह
आगे चलकर सब राजकु मार से आगे बढ़ सकता था। ोण ने एक ि म ही यह भांप लया
िक युवक कु शा बुि है।

वह युवक भी कम नह िनकला। ोण से िनराश होकर उसने ऐसा चम कार कर िदखाया िक


बाद म वयं ोण भी आ चयचिकत हए िबना नह रह सके।

वह युवक और कोई नह , िनषाद पु एकल य था।

एक िदन क बात है। सभी राजकु मार आखेट के लए वन म गए। बहत दरू िनकल जाने के
बाद उ ह ने देखा िक वन म एक युवक धनुष-बाण का अ यास कर रहा है। राजकु मार के
साथ था‒ एक कु ा। उसने जैसे ही वन म एक अनिभ युवक को देखा, वह भ कने लगा।

कु े के भ कने से एकल य क साधना म िव न हआ। उसने धनुष-बाण कु े क ओर िकया


और एक के बाद एक लगातार सात बाण छोड़ िदए, जो सरसराते हए कु े के मुंह म जाकर
िबंध गए। इससे कु े का भ कना बंद हो गया। आ चय क बात यह थी िक कु े के मुंह से र
क एक भी बूदं नह टपक थी।

सभी राजकु मार चिकत रह गए। वे दौड़े-दौड़े उसके पास गए। अजुन ने पूछा, ‘‘तुम कौन
हो?’’

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‘‘म िनषाद पु एकल य ह।ं ’’

‘‘तुम तीर तो खूब चला लेते हो, कौन ह तु हारे गु ?’’

‘‘म ोणाचाय का िश य ह।ं ’’

एकल य का यह उ र सुनकर अजुन का दय बैठ गया। भला इस वनवासी युवक को गु


ोणाचाय ने अपना िश य कैसे बना लया? और अगर बना भी लया तो तीरं दाजी म स ह त
कैसे कर िदया, जबिक एकमा अजुन ही उनका ि य िश य था।

ह तनापुर वापस आकर उसने गु देव से भट क और बोला, ‘‘यह कैसा याय है गु देव!
आपने तो कहा था िक आप मा राजपु को ही िश य बनाएंग,े िफर एक िनषाद पु को िश य
बनाने का या अथ है?’’

‘‘िनषाद पु ? मेरा िश य?’’ ोणाचाय ने आ चय से पूछा, ‘‘यह या कह रहे हो पाथ!’’

‘‘म ठीक ही कह रहा हं आचाय!’’ अजुन बोला, ‘‘म उसे अभी-अभी वन म देखकर आ
रहा ह।ं ऐसा पटु तीरं दाज मने आज तक नह देखा। आप तो कहते थे िक म ही आपका ि य
िश य ह,ं िफर िनषाद पु पर इतना ेम य ? उसने वयं बताया है िक आप ही उसके गु
ह।’’

ोणाचाय कु छ सोचकर बोले, ‘चलो, मुझे भी िदखाओ, कौन है वह तीरं दाज, जो मेरा िश य
होने का दावा करता है।’’

अजुन गु देव को साथ लेकर वन म पहच


ं ा।

ोणाचाय को देखते ही एकल य उनके चरण म िगर पड़ा।

ोणाचाय बोले, ‘‘उठो एकल य! यह बताओ िक तुमने मेरा िश यत व कैसे हण िकया?’’

‘‘गु देव!’’ एकल य ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘जब आपका साि य पाने से म वंिचत रहा
तो वन म आकर आपक ितमा बनाई और उसी के सामने तीरं दाजी का अ यास करने

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लगा।’’

ोणाचाय सोच म पड़ गए, जो युवक मा गु क ितमा से ेरणा पाकर इतनी सफल


धनुिव ा सीख सकता है, वह आगे चलकर उ च तरीय धनुधर बन सकता है। या पता िक
वह अजुन और अ व थामा से भी दो पग आगे बढ़ जाए। ऐसा ोणाचाय चाहते नह थे। इससे
उनक साख को आंच पहच
ं सकती थी। उ ह ने िनणय कर लया िक एकल य को तीरं दाजी म
एकदम िवफल कर दगे। तीरं दाजी अंगूठे के बल पर चलती है, इस लए ोणाचाय कु छ
सोचकर बोले, ‘‘तुमने मुझे अपना गु माना है, परं तु दि णा तो कु छ दी नह ।’’

‘‘आ ा क जए गु देव!’’ एकल य नतम तक होकर बोला, ‘‘मेरे ाण भी तुत ह।’’

‘‘मुझे तुम अपने दािहने हाथ का अंगूठा दि णा म दे दो।’’

इतना जिटल आदेश सुनकर एकल य तिनक भी िवच लत नह हआ, ‘‘जो आ ा।’’ यह
कहकर अपने उसने दािहने हाथ का अंगूठा काटकर गु देव के चरण म रख िदया।

इस कार अजुन का माग श त करके ोणाचाय वापस चले आए।

एकल य भी धुन का प का था। दािहने हाथ के िन य हो जाने के बाद उसने पांव के


अंगूठे से धनुष िव ा का अ यास जारी रखा।

□□

सम त राजकु मार क िश ा ठीक-ठाक चल रही थी। ोणाचाय मन लगाकर प र म कर


रहे थे। एक िदन ोणाचाय ने सोचा, ‘‘तिनक इनक परी ा लेनी चािहए, तािक पता चले िक
इन राजकु मार ने या कु छ सीखा है।’’

ोणाचाय परी ा क तैयारी म लग गए।

उ ह ने एक वृ पर नकली िचिड़या िबठा दी, जसका मा सर ही िदखाई दे रहा था। सब


राजकु मार को बुलाकर उ ह ने उनसे कहा, ‘‘तुम सब वृ क ओर यान से देखो।’’

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सबक ि वृ क ओर उठ गई।

ोणचाय ने दयु धन से पूछा, ‘‘तु ह वृ म या िदखाई दे रहा है?’’

दयु धन बोला, ‘‘वृ , प े, डा लयां...।’’

ोणाचाय ने अ य राजकु मार को बुलाकर पूछा, ‘‘तु ह या िदखाई दे रहा है?’’

‘‘आकाश...बादल...।’’ राजकु मार ने उ र िदया।

ोणाचाय ने इस कार एक-एक करके सभी राजकु मार से यही न पूछा। सभी ने िचिड़या
के अलावा अनेक व तुओं के नाम िगनाए। अब ोणाचाय ने अजुन को बुलाया और पूछा, ‘‘हे
अजुन! तु ह वृ म या िदखाई दे रहा है?’’

अजुन ने वृ क ओर देखा और बोला, ‘‘एक िचिड़या!’’

‘‘िकतना अंश िदखाई दे रहा है?’’

‘‘मा उसका सर।’’

‘‘ह,ं उस पर तीर से वार करो।’’

इतना सुनना था िक अजुन ने कमान पर तीर चढ़ाया और ख चकर तीर छोड़ िदया। तीर
एक झटके से िचिड़या के सर पर जा लगा और सर का िह सा कटकर धरती पर आ िगरा।

अजुन परी ा म उ ीण हो चुका था। ोण ने हिषत होकर अजुन को अपने आ लंगन म ले


लया। वे बोले, ‘‘यही है वा तिवक यु क क पहचान। जो अपने ल य को त काल पहचान
लेता है, वह कभी परा जत नह होता।’’

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(चार)

अजुन क अचूक िनशानेबाजी का शी ही एक और उदाहरण ोणाचाय को ा हआ।

एक बार ोणाचाय नदी म नहा रहे थे। एकाएक एक मगरमछ ने ोणाचाय क जांघ मुंह म
पकड़ ली। ोणाचाय छटपटाने लगे। गु के ाण िवपदा म देखकर अजुन ने एक के बाद एक
पांच तीर से मगरम छ को मार डाला और ोणाचाय क ाणर ा क ।

ोणाचाय अजुन क इस बहादरु ी से बहत स हए। उ ह ने कहा, ‘‘व स अजुन! तुमने


आज मेरी जान बचाई है, इस लए म स तापूवक तु ह एक िवशेष अ दे रहा ह।ं ’’ िफर उस
अ को चलाने क िव ध समझाते हए वे बोले, ‘‘ यान रहे िक यह अ अ यंत भयंकर है।
जब तुम पर िकसी घातक ा से हमला िकया जाए, तब इस अ का योग करना। िकसी
छोटे अ के िव इसका योग व जत है, य िक सारे जगत म आग लग जाने का भय है।
इस अ के रहते तुमसे कोई नह जीत सकता।’’

□□

कौरव पु ने भी पांडव क तरह एक ही गु से यु -कला एवं श चालन क िव ा


सीखी थी, िकंतु दयु धन एवं उसके भाइय ने इन िश ाओं म कोई िवशेष िच नह िदखाई थी।
हालांिक वे भी वीर थे, परं तु पांडव के तर के नह , य िक उनका अ धकांश समय ई या एवं
ेष म ही यतीत होता था। पांडव उनके चचेरे भाई थे, लेिकन उनक वीरता से उ ह कभी भी
स ता नह होती थी। पांडव क शंसा से उनका दय जलता था। िवशेषकर अजुन क
लोकि यता से दयु धन कभी भी स नह रहा।

अजुन यु -कला के येक े म वीण था। भीम भारी गदा उठाकर िकसी भी हमलावर
को धराशायी कर सकता था। इस िव ा म दयु धन भी कम नह था। यु धि र रथ-यु क था।

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नकु ल-सहदेव क तलवारबाजी का जवाब नह था। गु -पु अ व थामा अनेक अ -श को
कु शलता से चला लेता था।

जब कौरव-पांडव राजकु मार क िश ा संप हो गई तो ोणाचाय ने संतोष क सांस ली।


अब बारी थी अपने िश य क समवेत परी ा क ।

ोणाचाय ने महाराज धृतरा को सूचना दी, ‘‘राजन! मने सभी राजकु मार को यु -कला
एवं श -िव ा म पूण वीण कर िदया है। अब म उनक कलाओं का सावजिनक दशन
करना चाहता ह,ं तािक उनक यो यता का माण िमल सके।’’

धृतरा ने स ता से कहा, ‘‘ठीक है, शी ही एक समारोह का आयोजन िकया जाए। इस


अवसर पर आम जनता भी दशन- थल पर आकर राजकु मार का दशन देख सकती है।’’

धृतरा के आदेशानुसार समारोह क तैया रयां शु हो गई।ं

□□

परी ण का िनधा रत िदन आ पहच


ं ा।

एक बहत बड़े मैदान म समारोह का आयोजन िकया गया था। मैदान के चार ओर दशक
के बैठने क यव था क गई थी। दर-द
ू रू से लोग उ साह से राजकु मार का दशन देखने आए
थे। आम जनता के अलावा िविभ देश से मह वपूण लोग भी पहच
ं े थे। सारा समारोह- थल
लोग के शोर-शराबे से गूज
ं रहा था।

सामने एक ऊंचे आसन पर राजा धृतरा , रानी गांधारी, मं ीगण व दरबारी बैठे थे। धृतरा
क बगल म ही बैठा था‒संजय। वही धृतरा को आंख देखा हाल सुनाया करता था, य िक
ज मजात अंधे होने के कारण धृतरा वयं तो कु छ देख नह पाते थे।

लोग के गननभेदी नार के बीच यु धि र ने घोड़े पर सवार होकर परी ा- थल म वेश


िकया, उनके पीछे शेष राजकु मार भी आ पहच
ं े। पुरोिहत के मंगलाचरण के प चात् समारोह

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क कारवाई आरं भ क गई।

िफर एक-एक करके राजकु मार आगे बढ़ते और जनसमूह को अपने-अपने ि य ह थयार
का कौशल िदखाते। येक कौशल से उप थत जनसमुदाय स ता से झूम उठता।

येक राजकु मार का दशन अि तीय था।

गु ोणाचाय अपने िश य के दशन से पूणतः संतु थे। उ ह ने सभी राजकु मार को े


दशन क बधाई दी।

दयु धन इन दशन से स नह था। उसने प देखा था िक पांडव के दशन पर जनता


अ धक स होती थी। भीम से दयु धन क ई या िछपी नह रह सक । वह दयु धन को िचढ़ाने
के लए उसके सामने गदा नचाने लगा। दयु धन के ोध का पारावार न रहा। भीम को इस
धृ ता का आनंद चखाने के लए उसने भी अपनी गदा उठा ली। लगा, जैसे दो उ म हाथी
एक-दसरे
ू से िभड़ने के लए आमने-सामने खड़े हो गए ह । दयु धन का शरीर उ ेजना से कांप
रहा था। चेहरा गु से से लाल हो गया था।

अ व थामा ने िबगड़ती थित को संभाला! अगर वह उन दोन के बीच म पड़कर बीच-


बचाव नह करता तो िन चत था िक वे दोन लड़ पड़ते। अ व थामा ने अपने िपता ोणाचाय
को बुलाया। ोणाचाय ने भीम और दयु धन को शांत िकया।

संजय येक घटना का िववरण िव तार से धृतरा को सुना रहा था। पांडव क क ित से
धृतरा को स ता तो हो रही थी, लेिकन अपने पु का गुणगान न सुनकर य थत भी थे।

इस संपूण दशन म अजुन क यु -कला अि तीय थी। हर अ को वह बखूबी चलाना


जानता था। बाण के चलाने म वह इतना द था िक कभी अपने बाण से अि व लत
कर देता तो कभी पानी बरसा देता। रथ पर उसक यु -कला बेजोड़ थी तो पैदल अ -
संचालन म वह लाजवाब था।

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उसका रण कौशल देखकर तो गु ोणाचाय के ने म स ता के आंसू छलक आए थे।

जब सारा सभा थल अजुन क वाहवाही के शोर से गूज


ं रहा था, तभी एक युवक उठकर
गरजा‒

‘‘म अजुन को चुनौती देता ह।ं ’’

एकाएक सभा थल म स ाटा छा गया।

सभी लोग ने च ककर युवक क ओर देखा। वह तेज वी था, वीरता उसके शरीर से फूटी
पड़ रही थी, शरीर पर कवच और कान म कुं डल झूल रहे थे। वह सूय पु कण था। आज से
पहले उसे िकसी ने नह देखा था। वह भी िविभ अ म पारं गत होकर इस बहचिचत
आयोजन को देखने आया था। अजुन ने जो भी दशन िकया था, उसका कण क ि म कोई
मह व नह था, य िक ये सारे दशन तो उसके बाएं हाथ के खेल थे।

कुं ती भी वहां उप थत थी। उसने अपने इस पु को पहली ि म ही पहचान लया। उसका


दय हाहाकार कर उठा!

लोग इस तेज वी युवक को देखकर कानाफूसी करने लगे‒

‘‘अरे , देखो तो कौन है? कैसा वीर है? कहां से आया है?’’

कण ने कमर पर हाथ रखकर उस िदशा क ओर देखा, जहां राजा धृतरा के साथ


मह वपूण लोग बैठे थे। उसने गु ोणाचाय क ओर ि जमाकर कहा‒

‘‘अजुन के दशन पर इतना स होने क आव यकता नह । यह सब तो म भी कर


सकता ह,ं ब क इससे भी अ धक कर सकता ह।ं अगर आप आ ा द तो म भी इसी समय
अपनी यु -कला का यहां दशन कर सकता ह।ं ’’

ण भर के लए कोई कु छ नह बोला। गु ोणाचाय आ चय से उस अनिभ युवक को


देख रहे थे, जो सचमुच वीरता क ितमूित तीत हो रहा था।, परं तु वे यु -कला के दशन

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क अनुमित कैसे देते? अगर वह सचमुच अजुन से े सािबत हआ तो...?

कण क ललकार सुनकर कोई और स हआ हो या न हआ हो, दयु धन क स ता का


कोई अंत नह रहा। सचमुच, यह युवक अगर अजुन से े सािबत हो जाए तो आनंद आ
जाए, िफर तो अजुन क हेकड़ी धरी-क -धरी रह जाएगी। वह ऐसा ही तो कोई वीर चाहता था,
जो पांडव का मुकाबला कर सके।

दयु धन ने कण से कहा, ‘‘बंधु! हम तु हारी इ छा का आदर करते ह। तुम हमारे साथ रहो,
हम अपना ही मानो, हम हर थित म तु हारी इ छा पूण करगे।’’

कण बोला, ‘‘मुझे आपक िम ता पाकर स ता है। बस, मेरी एक ही छोटी-सी इ छा है िक


मुझे भी यु -कला का कौशल िदखाने का अवसर िमलना चािहए। म अजुन से ं यु करना
चाहता ह।ं ’’

दयु धन बोला, ‘‘हां-हां, य नह । आगे बढ़ो नौजवान! हमारी शुभकामनाएं तु हारे साथ
ह।’’

अजुन अब तक चुपचाप खड़ा था, िकंतु अब उससे सहा नह गया। वह बोला, ‘‘जो बहारी
लोग िबन बुलाए और अनामंि त पहच
ं कर अपनी शेखी बघारते ह, उनके साथ कैसा यवहार
करना चािहए, यह म भलीभांित जानता ह।ं तु ह भी म अ छा सबक दग
ं ू ा।’’

कण ने उ र िदया, ‘‘इसम िबन बुलाए का कोई न नह उठता। यहां सावजिनक दशन


हो रहा है, यह सावजिनक थल है, यहां कोई भी अपनी कला दिशत कर सकता है। जैसे
आप लोग को अपनी कला िदखाने का अ धकार ा है, वैसे ही मुझे भी। सच तो यह है िक
एक स चा वीर ऐसी बात म अपना समय बरबाद नह करता। स चे वीर क तो यही एक
िनशानी है िक चुनौती का डटकर मुकाबला करे । अगर तुम अ -श म िनपुण हो तो आओ
दो-दो हाथ हो जाए। हमारे अ -श एक-एक से िभड़कर वयं ही िनणय कर लगे िक स चा
वीर कौन है?’’

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दशन- थल पर िविच -सा य उप थत हो गया। सभी उ सुक, उ े जत व शंिकत थे‒न
जाने या होने वाला है?

पांडव और कौरव म जो एक-दसरे


ू के ित मनमुटाव था, वह कण के आने से प कट
हो गया।

अजुन के भाई उसे घेरकर खड़े हो गए थे और शेष कौरव अपने बड़े भाई दयु धन के आस
पास जमा हो गए थे।

गु ोणाचाय क समझ म नह आ रहा था िक वे या कर। भी म एवं िवदरु भी


िकंक यिवमूढ़ थे। कुं ती क दशा दयनीय थी। कण उसका पु था, जसे उसने बचपन म ही
नदी म बहा िदया था। वष ं बाद उसे देखकर उसके ने भर आए थे। यह कैसी िवडंबना थी िक
अपने भाई अजुन से ही वह ं यु करने को उ त था। कुं ती अपनी हालत पर काबू नह पा
सक और मू छत हो गई। िवदरु ने आगे बढ़कर कुं ती को संभाला लया। िवदरु को कण क
वा तिवकता का ान था।

थित िव फोटक थी। वातावरण म उ ेजना या हो गई थी। ऐसे गंभीर ण म कृपाचाय


ने बड़ी बुि म ा से काम लया। वे भी यु -कला म िन णात थे तथा उ ह ने कौरव बंधुओं को
अनेक िवल ण दांव सखाए थे।

कृपाचाय ने कण से कहा, ‘‘हे वीर युवक! तुम जानते हो िक अजुन राजा का पु है, अब
तुम भी अपने कु ल के बारे म बताओ िक तुम कौन हो, िकस वंश से तु हारा संबध
ं है, तभी
अजुन से तु हारा ं यु हो सकता है। हमारी परं परा है िक ं यु तभी संभव है, जब दोन
प के वीर का संबध
ं राजकु ल से हो।’’

कण का दय बैठ गया। उसे एक सारथी ने पाल-पोसकर बड़ा िकया था। वह िकस कु ल से


था, यह अ ात था। कृपाचाय क शत ने उसे िनराश कर िदया। हां, वह िकसी देश का राजा
होता तो बात बन सकती थी।

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दयु धन िकसी भी कार अजुन को नीचा िदखाना चाहता था, इस लए उसने सावजिनक
घोषणा क , ‘‘आज से म कण को अंग देश का राजा घोिषत करता ह।ं अब तो कण को कोई
ं यु से नह रोक सकता।’’

सचमुच अब ं यु को टालना मु कल था। दयु धन ने अपना अ धकृत अंग देश कण को


समिपत कर िदया था। अब वह भी राजा था। िफर भला राजकु मार अजुन से ट कर लेने से
उसे कौन रोक सकता था।

कण ने अपने पालक िपता सारथी के चरण छु ए, धमिपता ने उसे आशीवाद िदया। कण आगे
बढ़ा।

तभी भीम ने यं य से कहा, ‘‘अरे ! यह कैसा राजा है, जो मामूली सारथी के पांव छू रहा है।
सारथी भी कैसा? जो यु के रथ का संचालन नह करता, ब क भाड़े का रथ चलाता है।
भले ही आज से यह अंग देश का राजा बन गया, पर यह स चाई तो िछप नह सकती िक यह
एक मामूली सारथी का पु है। जाओ भैया! यु का मैदान तु हारे जैस के लए नह है, तुम तो
जाकर घोड़े क लगाम पकड़ो।’’

‘‘भीम!’’ दयु धन का तेज वर गूज


ं ा, ‘‘अभी तु ह पता चल जाएगा िक कण घोड़े क
लगाम पकड़ने म ही द नह , इ ह हाथ से बाण क अचूक िनशानेबाजी भी कर सकता है।
वह तुम पांच भाइय से अकेला ही लड़ सकता है। वह रथ पर सवार होकर आगे बढ़ रहा है,
जसम िह मत हो, इसे रोके...।’’

जनसमूह म खलबली मच गई। कई लोग को दयु धन क घोषणा पसंद नह आई, िकंतु भीड़
म कु छ लोग ऐसे भी थे, जो कण क वीरता का आदर करते थे। लोग क उ सुक ि मैदान
के बीचोबीच िटक हई थी। अब ं यु को टालना किठन तीत हो रहा था।

तभी सूरज सरकता हआ अ त हो गया। चार ओर शाम का अंधरे ा फैल गया। त कालीन
यु का िनयम था िक सूया त के बाद यु नह हो सकता, इस लए कृपाचाय ने समारोह के

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समापन क घोषणा कर दी। अजुन और कण का संभािवत ं यु अपने आप टल गया। लोग
ने चैन क सांस ली।

सबने अपनी-अपनी राह पकड़ी।

दयु धन कण का हाथ अपने हाथ म पकड़ उसे अपने साथ ले गया।

□□

राजकु मार का िश ा-स समा हो चुका था।

गु ोणाचाय अपने ितशोध क ित ा भूले नह थे। उ ह ने अपने िश य को एक बार


अपने पास बुलाया और कहा‒

‘‘हे राजकु मारो! तु ह याद है िक िश ा आरं भ करने से पहले मने तुमसे एक वचन लया
था।’’

‘‘हां याद है।’’ अजुन बोला, ‘‘आपने कहा था िक िश ा समाि के प चात् हम आपक
एक इ छा पूण कर।’’

‘‘आज वह िदन आ गया है जब तुम मेरी इ छा पूण करो। इस िदन क म बड़ी उ सुकता से
ती ा कर रहा था।’’

‘‘गु देव! हम तैयार ह।’’ राजकु मार ने कहा, ‘‘आप आदेश द, हम या करना है?’’

गु देव ण भर मौन रहे। एकाएक उनके ने के सम पांचाल देश का राजदरबार क ध


गया, जहां वष ं पहले राजा ुपद ने उनका अपमान िकया था। वे आज तक उस अपमान को
भूले नह थे। समय बीतने के साथ ुपद से अपमान का बदला लेने क आग उनके मन म
बढ़ती चली गई थी। अब वे उसी ुपद को सबक सखाना चाहते थे। उ ह ने राजकु मार को
यु -कला म िवशारद बना िदया था। उनक वीरता के आगे ुपद क पराजय िन चत थी।

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गु देव ोणाचाय ने ुपद के अस य आचरण क कहानी सुनाकर कहा, ‘‘वीरो! वष ं पहले
ुपद ने मेरा जो अपमान िकया था, आज तुम लोग उसका बदला चुकाकर मेरे दय को शांित
दान करो। तुम लोग िव व के े वीर हो, इस लए त काल पांचाल जाकर ुपद को
परा जत करो और उसे बंदी बनाकर मेरे सामने तुत करो। यही मेरी इ छा है, जसे तु ह पूण
करना है।’’

राजकु मार के लए यह कोई किठन काय नह था। वे त काल तैयार हो गए। वे बोले,
‘‘गु देव! हम पल भर म पांचाल सेना को न करके ुपद को आपके सामने खड़ा कर दगे।
हम आशीवाद दी जए।’’

गु देव ने उ ह आशीवाद िदया, ‘‘जाओ और अपने अिभयान म सफल होकर शी लौटो।’’

राजकु मार अपने-अपने अ लेकर पांचाल क ओर थान कर गए। सभी उ साह म थे।
आज पहली बार उ ह अपने अ -श को खुलकर योग करने का अवसर िमला था।
दयु धन अपने साथ कण को भी ले गया था।

पांचाल पहच
ं कर उ ह ने सचमुच कु शलता से वीरता का दशन िकया। उनके आ मण को
रोकना पांचाल क सेना के लए किठन था। शी ही पांचाल नरे श को राजकु मार ने अपने
हाथ म ले लया। ुपद परा जत हो चुका था। उसने राजकु मार के सामने आ मसमपण कर
िदया। राजकु मार राजा ुपद को बंदी बनाकर अगले कु छ िदन म ही ह तनापुर ले गए।

ुपद को बंदी अव था म गु के आगे खड़ा कर राजकु मार बोले, ‘‘ली जए! आपका बंदी
उप थत है।’’

ोणाचाय ने ऊपर से नीचे तक एक बार ुपद क ओर देखा, िफर बोले, ‘‘राजन! तु ह याद
है, एक बार जब म तु हारा िम बनकर एक याचक के प म तु हारे पास पहच
ं ा था, तब
तुमने या कहा था? तुमने कहा था, एक राजा भला एक याचक का िम कैसे बन सकता है
और आज तुम मेरे सामने एक याचक के प म खड़े हो।’’

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ुपद शांत रहे। वह या उ र देते।

ोणाचाय बोले, ‘‘पांचाल को मेरे आदेश से मेरे िश य राजकु मार ने न िकया है। म चाहं
तो तु ह भी पल भर म समा कर सकता ह,ं परं तु म ऐसा नह क ं गा।’’

ुपद मौन रहे।

‘‘अंततः तुम मेरे बचपन के साथी हो। म तो मा तु ह सबक सखाना चाहता था। तुमने
कहा था िक तु हारी िम ता केवल राजा से ही हो सकती है, अतएव म तु हारे रा य का आधा
िह सा अपने अ धकार म लेता हं और शेष आधा तु ह स पता ह।ं लो, अब म भी राजा हो गया।
अब तो तु ह मेरी िम ता से कोई िगला नह ।’’

ुपद परा जत राजा था, इस लए चुपचाप सुनने के अलावा उसके पास और कोई चारा नह
था, लेिकन मन-ही-मन वह ताव खा रहा था। सोचा, यहां से फुसत पाते ही म ोण को इस
करनी का मजा अव य चखाऊंगा।

इस कार ुपद को आधा रा य वापस देकर तथा वयं आधे रा य का वामी बनकर
गु देव ने राजकु मार से िवदा ली और पांचाल चले गए।

□□

ुपद का येक पल इसी िचंता म यतीत होता था िक ोणाचाय को िकस कार िवन
िकया जाए।

उ ह ने तप या क और याज व उपयाज नाम के ऋिषय के सहयोग से पु ेि य का


आयोजन िकया। कालांतर म उ ह एक पु क ाि हई, जसका नाम था धृ ु न। इस पु ने
ुपद क इ छा पूण क और जब महायु अपने चरम पर था, तब धृ ु न ने ही ोणाचाय को
मारा था।

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ुपद क एक पु ी थी‒कृ णा। उसे पांचाल और ौपदी भी कहा जाता है। आगे चलकर इसी
ौपदी का िववाह अजुन से हआ था। ुपद अजुन को दामाद बनाकर अपना िहतैषी बनाए
रखना चाहता था।

गु देव ोणाचाय के चले जाने के बाद कौरव-पांडव राजकु मार का मनमुटाव मशः बढ़ता
ही जा रहा था। दयु धन पांडव से अ यंत जलता था, य िक पांडव ाता न केवल अ धक वीर
थे, ब क जा म लोकि य भी थे।

इधर धृतरा भी िचंितत थे। वे सोचते थे, उनके बाद कौरव ाताओं का या होगा, या
पांडव उ ह सुख से रहने दगे?

पांडव क लोकि यता एवं वीरता धृतरा से भी िछपी नह थी।

□□

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(पांच)

कु छ भी हो, पांडव क वीरता तथा यो यता से धृतरा िवमुख नह रह सके। पु के ित


वाभािवक झुकाव के बावजूद उ ह भतीज से भी कम नेह नह था, इस लए उ ह ने अपने
प चात् राजपाट अ ज यु धि र को स प देने क घोषणा कर दी।

यु धि र और उनके भाइय ने इस घोषणा का यथोिचत स मान िकया। उ ह ने एक साथ


िमलकर न केवल अपने सा ा य का िव तार िकया, ब क अपनी वीरता तथा यो यता के बल
पर जन-जन से अपार लोकि यता भी ा क । जा पांडव को ही अपना जननायक मानती
थी। यु धि र ने जाजन क भलाई के लए अनेक नए कदम उठाए थे। वे उनक मांग पर
सहानुभूितपूवक िवचार करते थे। अपनी सेना का भी पूरा-पूरा यान रखते थे। समय-समय पर
वे सेना के बड़े-बड़े अ धका रय से िमलते और सेना क गितिव धय का वयं िनरी ण करते
थे।

धृतरा को अंततः अपनी घोषणा से अ स ता होने लगी। न केवल उ ह अपने पु से


तािड़त होना पड़ा, ब क यह दःु ख भी हआ िक अपने पु के लए उ ह ने कु छ नह िकया।
पांडव क लोकि यता तो िदनोिदन बढ़ती जा रही थी, परं तु उनके पु क चचा कह नह होती
थी। राजा के गु चर उ ह ितिदन बताया करते थे िक पांडव क क ित से सारी जा उ सािहत
है और यु धि र को भावी राजा के प म पाकर स है। यु धि र राजकाज म इतने द थे
िक अपने ताऊ धृतरा को िकसी मामले म परे शान करना उिचत नह समझते थे।

अब धृतरा को अपने पु क िचंता हई। वे सोचने लगे, एक िदन पांडव राजा बन जाएंगे
और अपने सुकाय ं से जन-जन का दय जीत लगे, तब मेरे पु का या होगा? कह ऐसा तो
नह होगा िक एक िदन बलशाली होकर वे मेरे पु को उनके अ धकार से ही वंिचत कर द।
पु भले ही िनक मे ह , परं तु कौन-सा िपता उनका अिहत सोचेगा!

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ऐसे अवसर पर उ ह अपने मं ी किणक क याद आई। वह राजनीित के दांव-पेच से भली-
भांित प रिचत था। धृतरा ने उसे बुलाया और अपने मन क शंका कह सुनाई। उसने कहा,
‘‘राजन! आपक शंका उिचत है। राजनीित म चौकस रहना अित आव यक है। स य तो यह
है िक अपने ित ं ी को कभी भी कमतर नह समझना चािहए। सांप, आग, रोग आिद से जस
कार मानव को सतक रहना चािहए, वैसे ही अपने श ु से भी। हम पांडव क एक-एक
गितिव ध पर िनगाह रखनी चािहए और जब उिचत अवसर िमले, उ ह काबू म करना चािहए,
अ यथा कौरव ाताओं का भिव य चौपट हो जाएगा।’’

धृतरा को किणक क बात उिचत ही लगी।

दयु धन भी इन गितिव धय से अनिभ नह था। एक िदन वह अपने िपता से एकांत म िमला


और बोला, ‘‘िपता ी! आपने यु धि र को भावी राजा घोिषत करके अ छा नह िकया। अब
तो जा म पांडव क लोकि यता और बढ़ गई है। हर कोई यु धि र को ही राजा के पम
मानता है। अब हमारा या होगा? पांडव के राजग ी पर बैठते ही हम राजकाज से बेदखल हो
जाएंग।े ’’

धृतरा या उ र देते? उ ह अपने पु के भिव य क तो िचंता थी, िकंतु यह िचंता भी थी


िक अगर उ ह ने पांडव को रा या धकार से एकाएक वंिचत कर िदया तो जा या सोचेगी?
जा का रोष सहना आसान नह था। वे बोले, ‘‘पु ! तु ह कोई उपाय बताओ, म या
क ं ?’’

दयु धन बोला, ‘‘िपता ी! आप जा क िचंता मत क जए। जा का या है, हम उ ह धन-


दौलत और उपहार का लालच देकर अपनी ओर िमला लगे, िफर वे हमारा िवरोध नह करगे।
धीरे -धीरे जा हमारे प म हो जाएगी, तब हम पांडव को राजग ी से बड़े आराम से दरू कर
दगे।’’

‘‘यह सब इतना आसान नह है।’’

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‘‘यह आप मुझ पर छोड़ दी जए।’’ दयु धन बोला, ‘‘बस, इस बीच िकसी कार पांडव को
थोड़े समय के लए राजधानी से दरू कर देना चािहए, िफर हम जनता को धीरे -धीरे अपनी मु ी
म कर लगे।’’

‘‘िकंतु...।’’

‘‘िकंतु-परं तु का च कर छोिड़ए। अगर पांडव राजा बन गए तो याद र खए, हमारा अ त व


समा हो जाएगा। हमारी संतान भी दसर
ू के टु कड़ पर पलेगी। जब तक आप जीिवत ह, तब
तक तो पांडव मौन रहगे और आपके ने मूंदते ही आपक संतान का नामोिनशान िमट
जाएगा।’’

‘‘पु ! जो तुम उिचत समझो वही करो।’’ धृतरा ने लाचारी से कहा। दरअसल, धृतरा
खुलेआम अपने भतीज के िव कोई कदम उठाना नह चाहते थे। पांडव क कायकु शलता
से भािवत थे, परं तु यह अव य चाहते थे िक उनके पु के भिव य पर भी कोई आंच नह
आनी चािहए।

दयु धन िपता का अंत समझता था। वह जानता था िक वे अपने भतीज के िव कोई


काय नह करगे, इस लए उसने वयं ही पांडव को अपने माग से हटाने का िनणय कर लया।
उसने मन-ही-मन एक योजना बनाई और िपता से बोला, ‘‘आप िकसी कार पांडव को
राजधानी से कु छ िदन के लए बाहर भेज दी जए। उिचत हो िक उ ह वारणावत भेज दी जए।
वह नगर राजधानी से बहत दरू भी है।’’

धृतरा ने यह बात वीकार कर ली।

□□

यु धि र इस दरु िभसं ध से अनिभ अपने राजकाज म य त थे। धृतरा ने उन पर जो


महान उ रदािय व स प रखा था, उसे वे पूरी त परता से िनभा रहे थे। यु धि र ायः य त

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रहते थे, इस लए धृतरा से बहत ही कम िमल पाते थे।

धृतरा ने एकाध िदन के बाद यु धि र को अपने पास बुलवाया।

यु धि र उनके दरबार म पहच


ं े। चार ओर दयु धन के सखाए-पढ़ाए दरबारी बैठे थे।

यु धि र राजा को अिभवादन करके अपने आसन पर बैठे तो धृतरा ने पूछा, ‘‘कहो


युवराज! काम-काज कैसे चल रहा है?’’

‘‘राजन! आपने मुझ पर जो भरोसा रखा है, उसे ाण-पण से िनभाने का यास कर रहा
ह।ं ’’

‘‘ह।ं ’’ धृतरा ने कहा, ‘‘मने सुना है िक तुम आजकल बहत य त रहते हो, हमेशा राज-
काज म म । स य तो यह है िक म तु हारे जैसा सहायक पाकर बहत स ह।ं काश! म भी
तु ह कोई सहयोग दे पाता। खैर, म सोचता हं िक अब तु ह कु छ िदन के लए िव ाम करना
चािहए। इतनी य तता भी िकस काम क ! उिचत यह है िक तुम अपनी माता और भाइय
सिहत राजधानी से दरू िकसी रमणीक थान पर चले जाओ और िन चंत होकर मण करो।
अब सोचना यह है िक तु ह कहां भेजना चािहए।’’

यह कह धृतरा िवचार म खो गए।

इस पर अ य दरबा रय ने कई नगर के नाम सुझाए। इन नाम म सबने वारणावत क एक


वर से शंसा क । तब धृतरा ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम वारणावत जाकर ही िव ाम करो।
वहां तु ह बड़ा आनंद आएगा। शी ही िशवराि का पव भी आने वाला है। इस अवसर पर
वारणावत क शोभा तो बस देखने लायक ही होती है। वहां तु हारे थके हए िदमाग को शांित
भी िमलेगी। िफर भावी राजा के लए देश- मण भी अित आव यक है। अपनी जनता से
िमलने का इससे बिढ़या अवसर और कौन-सा हो सकता है? तुम वारणावत म जब तक चाहो,
रहो और अपनी जा से करीबी संबध
ं बनाओ।’’

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यु धि र राजा क इस अचानक सहानुभूित से अवाक् थे। उ ह समझ म नह आ रहा था िक
अचानक उ ह राजधानी से दरू भाइय व माता सिहत एकांत म िव ाम के लए भेजने क
आव यकता य आ पड़ी। उ ह ने ने उठाकर दरबार म बैठे दयु धन क ओर देखा। दयु धन
ने भी चेहरे क कु िटलता िछपाकर कहा, ‘‘िपताजी ठीक कह रहे ह यु धि र! तु ह िव ाम क
अित आव यकता है। तुम शी -से-शी वारणावत थान करो।’’

यु धि र को दाल म कु छ काला िदखाई देने लगा, परं तु वे शांत रहे। उ ह ने चुपचाप


धृतरा का सुझाव वीकार कर लया।

दयु धन क स ता का िठकाना नह रहा। अब वह बड़ी आसानी से पांडव को अपने माग


से हटा सकता था।

□□

शुभ मुहत म पांडव ने राजधानी से िवदा ली और वारणावत क ओर चल पड़े। राजधानी


क जा तो उ ह छोड़ना ही नह चाहती थी, इस लए लोग का एक बहत बड़ा समूह उ ह सीमा
तक छोड़ने चल पड़ा। कई यि पांडव को इस कार राजधानी से बाहर भेजने पर शंिकत
थे, िकंतु यु धि र ने यह कहकर उनक शंका दरू कर दी, ‘‘राजा के यवहार पर शंका करना
उिचत नह , वे तो सचमुच हमारा भला ही चाहते ह।’’

पांडव के साथ कु छ दरू तक भी म, ोण, िवदरु आिद वृ जन भी गए। भी म व ोण तो उ ह


आशीवाद देकर शी ही राजधानी क ओर लौट पड़े, िकंतु िवदरु उनके साथ राजधानी क
सीमा तक गए।

िवदरु को दयु धन क कू ट योजनाओं का पूरा ान था। पांडव को िवदा करते समय िवदरु ने
उ ह कू ट भाषा म सावधान कर िदया, ‘‘सुनो यु धि र! श ुओं से हमेशा सावधान रहना
चािहए। जो श ुओं को पहले ही पहचान लेता है, वह कभी मात नह खाता। कु छ ह थयार ऐसे
भी होते ह जो लोहे के नह होते, परं तु जनका वार घातक होता है। ऐसे ह थयार से हमेशा

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सावधान रहना चािहए। अि जंगल को खाक कर सकती है, िकंतु िबल म नह घुस सकती।
अब तुम लोग जाओ और मेरी बात का यान रखना।’’

यु धि र कु छ पल तक कु छ सोचते रहे, िफर बोले, ‘‘हमारा मागदशन करने के लए


बहत-बहत ध यवाद। आप िन चंत रह, हम पूरी कार सतक रहगे।’’

□□

पांडव अपनी माता कुं ती के साथ वारणावत पहच


ं े तो वहां उनका भ य वागत िकया गया।
जनता ने उ ह सर-आंख पर िबठा लया। घर-घर से उनके लए वािद यंजन बनकर आ
गए। बड़े आ ह से लोग उ ह अपने घर ले गए और स मान िदया।

िशवराि के अवसर पर पांडव को सचमुच बड़ा आनंद आया। आम जनता के साथ िमल-
जुलकर पांडव ने उ सव म भाग लया और खूब आनंद िकया।

उधर दयु धन ने अपने िव व त पुरोचन को वारणावत भेज िदया। वारणावत पहच


ं कर
पुरोचन को या करना है, यह सब दयु धन ने उसे समझा िदया था।

पुरोचन भवन-िनमाण क कला का महान ाता था। उसने वारणावत म पहच


ं ते ही यथाशी
एक भ य भवन का िनमाण िकया। इस भवन क सुंदरता का जवाब नह था। दरू से देखते ही
भवन क भ यता अपनी ओर आकिषत कर लेती थी। भवन सभी सुख-सुिवधाओं से प रपूण
था। खाने-पीने क िवपुल साम ी वहां िव मान थी। सभी कमरे बहमू य स जा से सजे हए थे।
फश पर क मती कालीन िबछे थे और िब तर इतने मुलायम और साफ-सुथरे थे िक देखते ही
सोने को मन ललचा उठे । भवन का नाम रखा गया‒‘िशवम’। िशवम यानी क याणकारी। जस
भवन म िवनाशकारी योजना ि या वत होने वाली थी, उसका िकतना सुंदर नाम रखा था
दयु धन ने!

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भवन बन जाने के बाद पुरोचन पांडव से िमला और उनसे नए भवन म कु छ िदन रहने का
आ ह िकया। यु धि र को भवन इतना भाया िक त काल उसक बात मान ली और माता व
भाइय सिहत उस नए भवन म रहने को पहच
ं गए।

भवन के अंदर पग रखते ही यु धि र का माथा ठनका। भवन क दीवार से लाख, तेल,


सन आिद क दगु ध िनकल रही थी। यु धि र समझ गए िक यहां उनक मृ यु क पूरी तैयारी
क गई है। तभी उ ह िवदरु का संदेश भी याद आ गया। अब वे समझे िक िवदरु क बात का
या अथ था। उ ह ने माता कुं ती एवं भाइय को सतक कर िदया। वे बोले, ‘‘श ु हम इस भवन
म जलाकर मार देना चाहता है, पर हम डरने क कोई आव यकता नह । बस, सावधान
अव य रहना है। मुख पर हम घबराहट का ऐसा कोई भाव नह लाना चािहए, जससे श ु
सतक हो जाए। अगर उ ह पता चल गया िक हम उनक चाल जान गए ह तो वे कोई और पग
उठा सकते ह।’’

सचमुच दयु धन क यही योजना थी। पुरोचन के इस भवन म वह पांडव को मारकर हमेशा
के लए िन चंत हो जाना चाहता था।

पांडव हंसी-खुशी नए भवन म बस गए।

कु छ िदन के बाद पांडव से िमलने एक आगंतुक आया। वह बोला, ‘‘राजकु मारो! म


ह तनापुर से आया ह।ं महा मा िवदरु ने मुझे भेजा है।’’

यु धि र जानते थे िक िवदरु उनके शुभिचंतक ह। अतः पूछा, ‘‘कैसे आना हआ? चाचा
िवदरु ने तु ह य भेजा है?’’

‘‘म सुरंग खोदने म मािहर ह।ं अि लकड़ी और सन को शी ता से पकड़ लेती है, िकंतु
सुरंग म नह पहच
ं सकती।’’ आगंतुक बोला, ‘‘दयु धन ने पुरोचन को आदेश िदया है िक माह
के कृ ण प म वह इस महल को म य राि म उस समय आग लगा दे, जब आप लोग गहरी
न द म सोए हए ह ।’’

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‘‘ओह!’’ यु धि र दयु धन क इस चाल पर आह भरकर रह गए।

‘‘आप घबराइए मत।’’ आगंतुक बोला, ‘‘म इसी बीच महल के िकसी सुरि त कोने म
सुरंग बना दग
ं ू ा, तािक महल म आग लगते ही आप सकु शल बाहर िनकल जाएं।’’

इतना कहकर आगंतुक महल के एक गु भाग म पहच


ं गया और सुरंग खोदने के काम म
लग गया। यह काम इतनी सावधानी से िकया गया िक पुरोचन को तिनक भी पता न चल
सका।

सुरंग बनकर तैयार हो गई। अब पांडव को ती ा करने क आव यकता नह थी। वे


पुरोचन से पहले ही अपना कारनामा करना चाहते थे।

कुं ती ने उस िदन वारणावत िनवा सय को भवन म खाने क दावत दी। लोग स तापूवक
भवन म पहच
ं े और पांडव के साथ िमल-जुलकर भोज का आनंद उठाया।

म य राि से पहले ही भोजन समा हो गया। पांडव ने अित थय को िवदा िकया और वयं
भी आपस म िनणय कर लया िक अब उ ह शी -अितशी भवन को याग देना चािहए।

आधी रात को एक-एक कर चार भाई माता कुं ती सिहत उस गु सुरंग से बाहर िनकल
गए। केवल भीम महल म रह गया, य िक उसे ही भवन म आग लगानी थी। पुरोचन अपने
कमरे म गहरी न द म सोया हआ था। भीम ने पहले उसी के कमरे म आग लगाई, जो शी ही
पूरे भवन म फैलने लगी। इसी बीच भीम भी सुरंग के माग से बाहर िनकल चुका था।

आग क लपट आकाश म ऊपर तक उठ रही थ । वारणावत के िनवासी पलक झपकते ही


जाग गए। भवन को आग म बुरी कार जलता देखकर लोग म हड़कंप मच गया। भवन म
पांडव अपनी माता सिहत रहते थे। उनके इस दख
ु द अंत से वारणावत क जनता का दय भर
आया।

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यह समाचार चार ओर फैल गया िक पांच पांडव अपनी माता कुं ती सिहत भवन म जलकर
मर गए। अगले िदन भवन म एक मिहला एवं उसके पांच युवा पु क लाश भी िमल गई।ं
दरअसल, यह मिहला अपने पांच पु के साथ राि भोज म आई थी और इतना खा-पी लया
था िक नशे क धु म भवन म ही सो गई थी।

दयु धन को अि कांड क सूचना िमली तो उसे सुखद आ चय हआ िक िकतनी आसानी से


उसक योजना सफल हो गई। वह स था िक उसके श ु उसक राह से हट गए। ऊपरी मन
से उसने शोक कट िकया और पूरे देश म चचेरे भाइय क अकाल मृ यु का शोक मनाने का
िनदश जारी कर िदया।

□□

िकंतु पांडव जीिवत थे।

वे सुरंग से िनकलकर एक नदी के िकनारे जा पहच


ं े थे। नदी के तट पर पहले से ही नाव
तैयार थी, जस पर िवदरु का भेजा हआ नािवक उनक ती ा कर रहा था।

नािवक ने पांडव को नाव पर िबठाया और नदी के पार पहच


ं ा िदया। नदी क दसरी
ू ओर
भयावह वन था। पांडव ने उसी वन क राह पकड़ी। जब तक संकट पूरी कार टल नह
जाता, वे ह तनापुर से दरू िकसी एकांत म रहना चाहते थे।

□□

वन म भटकते हए पांडव बहत दरू िनकल आए।

चलते-चलते वे थककर चूर हो गए थे। भीम क शारी रक थित तिनक सु ढ़ थी, इस लए


वह भाइय का धैय बंधाता और अपने कंध पर िबठाकर आगे ले जाता।

एक जगह जब सभी भाई िनढाल हो गए तो वे एक वृ के नीचे आराम करने बैठ गए।

भीम बोला, ‘‘आप लोग िव ाम क जए, म कह आसपास से पानी लाता ह।ं ’’

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थोड़ी देर बाद जब भीम लौटकर आया तो देखा िक चार भाई माता सिहत गहरी न द म सो
गए ह। अपनी माता व भाइय के लए भीम का दय भर आया। आज वे वन म भटक रहे थे
और भूिम पर सोने को िववश थे, जबिक उनक जगह महल म थी। कैसा था िव ध का िवधान!

भीम ने उ ह आराम से सोने िदया और वयं पहरा देने लगा।

उस वन म िहडंब नाम का एक रा स रहता था, जो मानवभ ी था। वन म मानव गंध पाकर


उसके नथुने फड़क उठे । वह अपनी बहन िहिडंबा से बोला, ‘‘देखो! वन म कु छ मानव आए ह,
तुम उ ह पकड़कर यहां लाओ। आज जमकर भोजन करगे।’’

िहिडंबा पांडव को लाने चल पड़ी।

एक वृ के नीचे एक ी और चार मानव सोए हए थे और एक सु ढ़ काठी का सुदशन


पु ष उनक पहरे दारी कर रहा था। िहिडंबा एकटक भीम को देखती रह गई। भीम पहली ि
म ही उसे भा गया। वह अपने भाई का आदेश भूल गई और सुंदर युवती का प धारण कर
भीम के पास जाकर बोली, ‘‘सुनो! म िहिडंबा ह।ं मेरे भाई ने मुझे तुम लोग को पकड़कर लाने
को भेजा है, य िक वह तुम लोग को खाना चाहता है, िकंतु म तुमसे ेम करने लगी ह।ं अगर
तुम मुझसे िववाह कर लो तो तु ह अपने भाई से बचा सकती ह।ं ’’

भीम बोला, ‘‘म तु हारे भाई से नह डरता। तु हारा भाई या तुम हम हाथ भी नह लगा
सकते।’’

‘‘मूख मत बनो मानव!’’ िहिडंबा बोली, ‘‘कह ऐसा न हो िक िहडंब यह चला आए और


तुम लोग के ाण संकट म पड़ जाएं। इससे अ छा तो यही है िक तुम मेरी बात मान लो।’’

िकंतु भीम को िहिडंबा क बात वीकार नह थी।

िहडंब ने कु छ देर तक बहन क ती ा क , िफर देर होते देखकर वह वयं मानव क


खोज म चल पड़ा।

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भीम ने उस िवशालकाय रा स को अपनी ओर आते देखा तो वह उसका मुकाबला करने
को तैयार हो गया।

अगले ही पल वे दोन दो पवत क कार आपस म टकरा गए। दोन बलशाली थे। उनक
मुठभेड़ से धरती डोल उठी और वातावरण म धूल का गुबार उठने लगा। रा स जोर-जोर से
चीखकर भीम को पछाड़ने का यास कर रहा था।

रा स क गजना और उठापटक क विन सुनकर शेष भाइय और माता क न द उचट गई।


पास ही एक सुंदर युवती को देखकर कुं ती ने उससे पूछा, ‘‘तुम कौन हो? मेरे पु से य लड़
रहे हो?’’

िहिडंबा बोली, ‘‘यह मेरा भाई िहडंब रा स है, जो आप लोग को खाने के लए यहां आया
है।’’

कुं ती बोली, ‘‘यह तो अनाचार है। तुम अपने भाई को रोकती य नह ?’’

‘‘म आप लोग को बचाना चाहती ह,ं परं तु भीम ने मेरा ताव ठु करा िदया।’’

‘‘ ताव? कैसा ताव?’’

‘‘मने उससे कहा था िक वह मेरे साथ िववाह कर ले तो म आप लोग को िहडंब से बचाकर


आकाशमाग से िनरापद जगह ले जाऊंगी।’’ िहिडंबा बोली, ‘‘परं तु भीम ने मेरी बात नह मानी
और तब तक मेरा भाई आ पहच
ं ा।’’

यु धि र, अजुन, नकु ल व सहदेव िहिडंबा क बात सुनकर तैश म आ गए। वे रा स से


लड़ने दौड़ते हए भीम के पास पहच
ं े।

भीम बोला, ‘‘आप लोग बीच म मत पिड़ए। इस रा स के लए तो म अकेला ही बहत ह।ं ’’

इतना कहकर भीम ने िहडंब को दोन हाथ से पकड़कर ऊपर उठाया और जोर से धरती पर
पटक िदया। धरती पर िगरते ही िहडंब ने दम तोड़ िदया।

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भीम ने एक ि िहडंब पर डाली, िफर अपनी माता और भाइय के साथ आगे बढ़ चला।
उसने िहिडंबा से बात तक नह क ।

िहिडंबा भीम के िबना नह रह सकती थी। वह भी उसके पीछे -पीछे चल पड़ी।

भीम को यह बात अ छी नह लगी। उसने ो धत होते हए कहा, ‘‘सुंदरी! हमारे पीछे जाने
क आव यकता नह , अ यथा मुझे िववश होकर तु हारे साथ भी वही यवहार करना पड़ेगा जो
तु हारे भाई के साथ िकया है।’’

िहिडंबा क आंख भर आई।ं वह कुं ती से याचना करती हई बोली, ‘‘हे माता! आप ही भीम
को समझाइए, म उनके िबना जी नह सकती। कृपया उ ह आदेश दी जए िक वे मेरे साथ
िववाह कर ल।’’

कुं ती असमंजस म पड़ गई। यु धि र पास ही खड़े थे। उ ह िहिडंबा पर दया आ गई। बोले,
‘‘भीम! तु ह ऐसी नारी का ेम नह ठु कराना चािहए, जो मन- ाण से तु ह अपनाना चाहती
है।’’

बड़े भाई के आ ह पर भीम ने अंततः िहिडंबा से िववाह कर लया। इस िववाह से कालांतर


म वे घटो कच नामक वीर पु के िपता बने।

वीर घटो कच ने सदैव संकट म िपता क सहायता क और बाद म यु काल म भी


मह वपूण योगदान िदया।

□□

पांडव का वन-वन भटकना जारी था।

पांडव ने अपना भेष बदल लया था, तािक उ ह कोई पहचान न सके।

उ ह पता नह था िक इस भटकन का अंत कहां होगा। बस, वे नदी, नाले, पहाड़ और जंगल
पार करते हए िनरं तर आगे बढ़ते जा रहे थे। ह तनापुर पीछे छू टता जा रहा था और आगे

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अंतहीन पथ था। माग म म य पांचाल, वीचक, ि गत आिद कई देश पड़े, िकंतु वे कह भी
अ धक समय के लए नह ठहरे ।

कुं ती अपने पु को इस कार दीन-हीन थित म देखकर मन-ही-मन रोती थी। एक िदन
उससे रहा नह गया तो अपने पु से पूछा, ‘‘अंततः इस कार कब तक भटकते रहोगे
यु धि र?’’

यु धि र ने उ र िदया, ‘‘घबराओ मत माता! भले ही िफलहाल हमारे सामने कोई मं जल न


हो, िकंतु मुझे िव वास है िक अनुकूल अवसर आते ही हम माग िमल जाएगा।’’

इतना कहकर यु धि र अनिभ िदशा क ओर बढ़ चले और माता व भाई उनके पीछे चल


पड़े।

यु धि र क बात सच िनकली।

एक िदन जब वे शाम को एक सरोवर के िकनारे लेटे हए िव ाम कर रहे थे, तभी उिचत


मागिनदश देने वाला उनके पास पहच
ं गया। वह कोई और नह महिष यास थे, जो व तुतः
उनके दादा ही थे। यास उ ह इस हालत म देखकर हैरान रह गए, बोले, ‘‘यह म या देख रहा
ह?
ं अपना राजपाट छोड़कर यहां य भटक रहे हो?’’

इस पर पांडव ने उ ह आिद से अंत तक सारी कथा कह सुनाई। सुनकर यास अ यंत दख


ु ी
हए। बोले, ‘‘ ार ध को कौन टाल सकता है। यिद धैयपूवक थितय का सामना करोगे तो
सारी िवप य पर िवजय पा लोगे। अब तुम एकच नगरी चले जाओ। वह सुरि त जगह है।
वहां तुम ा ण के वेश म रहो। समय क ती ा करो। एक िदन ऐसा आएगा, जब तु हारे
स ांत क िवजय होगी और खोया हआ वैभव तु ह वापस िमल जाएगा।’’

पांडव महिष यास का आशीवाद पाकर एकच नदी क ओर चल पड़े।

□□

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एकच म उ ह ने एक ा ण के घर म आ य लया। वे वयं भी ा ण के वेश म थे।
पांच भाई िदन भर नगर म िभ ाटन करते और शाम को सारी साम ी माता के सामने रख
देते। माता िभ ा क साम ी को दो भाग म बांट देती। एक भाग भीम को स प देती, दसरा
ू भाग
शेष चार भाइय के आगे परोस देती।

एक िदन क बात है, जस ा ण के घर म पांडव रहते थे, वहां शोक छाया हआ था।
प रवार का येक सद य रो रहा था। शोक करने क विन सुनकर पांडव अपनी माता के
साथ त काल ा ण के पास पहच
ं े और पूछा, ‘‘ या क है भाई! इतना य रो रहे हो?’’

ा ण ने आंसू प छते हए कहा, ‘‘हमारे दख


ु का कोई अंत नह । हमारा नगर एक भयानक
रा स के अ याचार से पीिड़त है। यह रा स नगर क सीमा पर रहता है। उसका आदेश है िक
ितिदन शाम को गाड़ी भर अ व दो बैल लेकर नगर के एक प रवार का एक सद य बारी-
बारी उसके पास पहच
ं े, तभी वह हम यहां रहने देगा। इस लए ितिदन िकसी-न-िकसी प रवार
का एक सद य एक गाड़ी म अ भरकर व दो बैल लेकर उसके पास पहच
ं ता है। रा स क
भूख इतनी बल होती है िक वह सारा अ व दो बैल खाने के बाद प रवार के सद य को भी
खा जाता है। हम उस रा स का कु छ भी नह िबगाड़ सकते, य िक वह अ यंत बलशाली है।
आज हमारे प रवार क बारी है। हमारे प रवार से एक सद य रा स क भोजन साम ी लेकर
जाएगा और वापस लौटकर नह आएगा। बस, इसी का रोना है।’’

सुनकर पांडव त ध रह गए। पांच भाइय क मुि यां ोध म तन गई।ं कुं ती ने ा ण को


सां वना दी और भीम से बोली, ‘‘भीम! आज रा स के लए भोजन क साम ी लेकर तुम
जाओ।’’

‘‘जो आ ा माताजी!’’

भीम जाने को जैसे ही मुड़ा, यु धि र ने उसे रोककर माता से कहा, ‘‘माता! भीम को मत
भेजो। हम भीम क आव यकता है। भीम को हम िवपदा म नह डाल सकते। अजुन क भी हम

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आव यकता है, उसे भी रा स के पास भेजना उिचत नह और नकु ल व सहदेव हमारे छोटे
भाई ह, उ ह भेजना अ याय है। रा स के पास मेरा जाना ही ठीक रहेगा। म अगर वापस नह
भी लौटा तो भीम व अजुन श ुओं से ट कर लेने को काफ ह।’’

‘‘म तु हारी भावनाओं का आदर करती हं यु धि र!’’ कुं ती बोली, ‘‘परं तु मेरा िनणय सही
है, तुम भीम को रा स के पास जाने दो, वह िवजयी होकर ही लौटेगा।’’

भीम ने एक गाड़ी म अ भरा और उसम दो बैल को जोतकर नगर क सीमा क ओर चल


पड़ा। उस रा स का नाम था बकासुर। वह भूखा- यासा अपने भोजन क ती ा म ही बैठा
था। भीम जान-बूझकर देर से पहच
ं ा।

भीम ने बैल को िछपा िदया और चीखकर रा स को पुकारा, ‘‘ओ बक! आ जाओ, म


तु हारे लए खाना लाया ह।ं ’’

बकासुर भागा-भागा बाहर िनकला।

भीम ने उसे पास आते देखा तो बोला, ‘‘बस-बस! वह खड़े रहो। अब देखो, म कैसे खाता
ह।ं ’’ यह कहकर भीम वयं ही दोन हाथ से अ उठाकर खाने लगा।

बकासुर पहले ही भूख से बेहाल था, ऊपर से भीम क यह हरकत देखकर उसका शरीर
ोध से थर-थर कांपने लगा। वह चीखकर बोला, ‘‘कौन हो तुम? मेरा खाना खाने का तु ह
या अ धकार है?’’

भीम ने कोई उ र नह िदया, वह चुपचाप अ खाता रहा। बकासुर का ोध बढ़ता ही चला


गया। भीम यही तो चाहता था िक वह ोध से बेकाबू हो जाए, य िक भूख और ोध म
अ छे -अ छ क बुि हो जाती है। वह भीम के पास पहच
ं ा और उसक पीठ पर दो-चार
जबरद त वार कर िदए, परं तु इन वार का भीम पर कोई असर नह हआ। वह िबना बकासुर
क ओर देखे मजे से खाता रहा।

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बकासुर चीखकर बोला, ‘‘यह मेरा खाना है, तुम इसे नह खा सकते। मेरे बैल कहां ह?’’

भीम बोला, ‘‘बैल बेचारे कह घास चर रहे ह गे। मुझे दःु ख है िक आज तु ह कु छ भी खाने
को नह िमलेगा और सुनो! मुझे चुपचाप खाने दो, खाने के समय मुझे तु हारा चीखना-
िच ाना या मारपीट करना तिनक भी पसंद नह ।’’

बकासुर के ोध क सीमा नह रही। उसने आगे बढ़कर भीम पर दो-चार और घातक वार
िकए, परं तु भीम ने िफर भी उसक ओर देखा तक नह और चुपचाप खाता रहा। अपने हार
का भीम पर कोई असर न देखकर उसने भीम को ख चकर गाड़ी से हटाना चाहा, लेिकन भीम
को वह तिनक-सा भी िहला तक नह पाया। भूख और थकावट से बकासुर बेहाल हो गया। वह
दांत भ चकर बोला, ‘‘म कहता ह,ं भाग जाओ यहां से, अ यथा म तु ह खा जाऊंगा।’’

भीम बोला, ‘‘हां, तुम अब तक उन बेचारे ािणय को खाते ही रहे हो, जो तु हारे लए
खाना लाते थे, िकंतु अब तुम ऐसा कभी नह कर सकोगे।’’

बकासुर भूख से याकु ल था और भीम से हाथापाई करते-करते थक भी गया था। ोध व


मायूसी से उसका मान सक संतुलन िबगड़ गया। वह चीखकर जैसे ही आगे बढ़ा, भीम ने उसे
अपने दोन हाथ म उठाकर भूिम पर पटक िदया। बकासुर के ाण-पखे उड़ गए।

भीम ने लाश क टांग पकड़ और घसीटते हए नगर के ार पर पटक द ।

नगर म जब बकासुर क मृ यु का समाचार पहच


ं ा तो लोग क स ता का िठकाना नह
रहा। चार ओर आनंद और उ साह का वातावरण छा गया। लोग ने भीम का भ य वागत
िकया। सभी सोच रहे थे‒भीम म अव य कोई अलौिकक शि है। जो काम ि य का है, उसे
एक ा ण ने कर िदखाया।

पांडव थोड़ा घबराए। उ ह डर था िक कह उनक वा तिवकता का भेद न खुल जाए। उ ह ने


त काल एकच नगरी छोड़ देने का िनणय कर लया, परं तु कहां जाएं? अंततः कब तक

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लोग क िनगाह से बचते हए भटकते रहगे?

एक िदन वहां एक तप वी घूमता हआ आ पहच


ं ा। उससे पता चला िक पांचाल देश का राजा
ुपद अपनी क या ौपदी का वयंवर कर रहा है। वयंवर म देश-िवदेश के राजकु मार भाग
लेने पहच
ं रहे ह।

यह समाचार पांडव को िमला तो उ ह ने सोचा‒उ ह भी वयंवर म भाग लेना चािहए, अंततः


वे भी तो राजकु मार ह। इस लए उ ह ने नगरवा सय से िवदा ली और पांचाल क ओर चल
पड़े।

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(छह)

पांचाल म वयंवर क तैया रयां जोर-शोर से क गई थ । देश-िवदेश से लोग वयंवर क


शोभा देखने आए हए थे। पांचल नई नवेली द ु हन क कार सजाया गया था।

पांडव बदले हए वेश म पांचाल पहच


ं े और कु हार क ब ती म आ य लया। एक कु हार
ने उ ह ा ण जानकर अपने घर म स मान से रहने को जगह दी। यहां भी वे िभ ाटन ारा ही
अपना गुजर-बसर करते थे।

वयंवर का िनयत समय आ गया।

उस िदन पांचाल क शोभा देखने लायक थी। दर-द


ू रू से नरे श व राजकु मार ौपदी को ा
करने आ पहच
ं े। सारा नगर उ ास व आनंद से ओत- ोत था। पांडव सुबह ही अपने घर से
िनकले और वयंवर- थल क ओर चल पड़े।

वयंवर- थल अित िवशाल था। थल के बीचोबीच एक मंच पर भारी धनुष खड़ा हआ था।
वह पर एक बड़ी-सी कड़ाही म तेल भरा हआ था और पास म एक यं पर एक नकली मछली
तेजी से घूमती हई लटक रही थी। सभा थल के दोन ओर देश-िवदेश के नामी नरे श,
राजकु मार अपनी िक मत आजमाने बैठे थे। चार ओर ऊंची-ऊंची दीघाएं बनी थ , जन पर
दशकगण बैठे हए आज के भ य समारोह के शु होने क आतुरता से ती ा कर रहे थे।

ौपदी के वरण क इ छा से कौरव राजकु मार भी पहच


ं े थे। दयु धन अपने भाइय व कण के
साथ राजकु मार के बीच बैठा था।

वयंवर क शोभा िनहारने ीकृ ण भी ा रका से पधारे थे। पांडव ा ण-वेश म दशक-
दीघा म वहां बैठे थे, जहां ा ण समुदाय बैठा था। चार ओर शोर गूज
ं रहा था।

थोड़ी देर म ही ौपदी अपने िपता ुपद एवं भाई धृ ु न के साथ समारोह- थल पर आ
पहच
ं ी। एक ऊंचे आसन पर राजा सिहत भाई-बहन बैठ गए। सभा म स ाटा छा गया। सभी

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ौपदी क ओर िनहार रहे थे। ौपदी क सुंदरता व ंगार देखकर अिभलाषी राजकु मार के
दय क धड़कन तेज हो गई।ं ौपदी िबना िकसी क ओर देखे चुपचाप भाई क बगल म बैठी
रही। उसक अि तीय सुंदरता से सभी अिभभूत थे।

समारोह आरं भ होने से पहले यथािव ध पुरोिहत ने य िकया। त प चात् धृ ु न ने अपने


आसन से उठकर सभा को संबो धत िकया‒

‘‘हे स मािनत आगंतुको! आपका वागत है। जैसा िक आप जानते ह, आज राजकु मारी
ौपदी का वयंवर है। राजकु मारी उसी वीर पु ष का वरण करे गी, जो तेल क कड़ाही म
मछली क परछाई क ओर देखते हए इस धनुष से तीर चलाकर यं पर लटके ल य को पांच
बार भेद देगा। अब आप लोग एक-एक कर आगे बिढ़ए और अपनी धनुिव ा का प रचय
दी जए। सफल धनुधारी ही राजकु मारी ौपदी का पित बनने का सौभा य ा करे गा।’’

इतना कहकर धृ ु न बैठ गया। सभा म िफर शांित छा गई। सबक ि सभा थल के
बीचोबीच तेल क कड़ाही, धनुष तथा ऊंचाई पर लटके मछली के िनशान क ओर उठ गई।ं
सभी क उ सुकता यह जानने क िक कौन वीर िनशाने को तीर से भेदकर ौपदी को ा
कर पाता है।

उप थत राजकु मार ने लापरवाही से इन व तुओं को देखा और मूंछ पर ताव देकर ौपदी


क ओर िनहारने लगे। उनके िवचार से ये बहत ही मामूली शत ं थ । अब एक-एक राजकु मार
उठने लगे और सभा थल के बीचोबीच पहच
ं ने लगे।

धनुष को हाथ लगाते ही राजकु मार को पता चल गया िक जस शत को उ ह ने आसान


समझा था, वह आसान नह थी। ल य को भेदना तो दरू क बात थी, वे धनुष तक न उठा
सके। कु छ राजकु मार तो धनुष को उठाने का यास करते-करते पसीने से तर-बतर हो गए,
कु छ तिनक-सा उठा सके तो असहाय भार से हांफने लगे और कु छ तो ऐसे थे, जो धनुष उठाने
के च कर म धड़ाम से नीचे िगर पड़े।

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येक राजकु मार क असफलता से सभा थल म बैठे लोग जोर से हंस पड़ते थे। वातावरण
म तेज हंसी क लहर दौड़ जाती थी। इस हंसी म असफल राजकु मार भी शािमल थे। ौपदी
मंद-मंद मु कराती हई अपनी जगह पर चुपचाप बैठी थी।

दयु धन के साथ-साथ अ य अनेक राजा व राजकु मार भी असफल होकर सर झुकाए बैठे
थे, तभी कण अपनी जगह से उठा और धनुष क ओर बढ़ा।

कण को देखकर चार ओर कोलाहल मच गया। लोग कहने लगे, ‘‘अरे ! यह तो कण है-


सारथी पु । भला ि य क या इसका वरण कैसे करे गी?’’

कण सधे पग से आगे बढ़ा और पलक झपकते ही धनुष उठा लया। जब उसने तेल म
ल य क परछाई क ओर ि गड़ाकर धनुष क यंचा ख ची, तभी सभा थल म ौपदी का
वर गूज
ं उठा, ‘‘म सारथी-पु का वरण नह कर सकती।’’

यह सुनते ही कण ल जा से अिभभूत हो गया। उसने चुपचाप धनुष अपनी जगह रख िदया


और सर झुकाकर वापस लौट आया। अपमान और ल जा के मारे वह आंख नह उठा पा रहा
था।

पास ही बैठे दयु धन ने कहा, ‘‘तुम वापस य लौट आए? तुमने ल य का भेदन य नह
िकया? ौपदी को बोलने का कोई अ धकार नह । या तुम जानते नह िक वयंवर का िनयम
है, क या कोई िवरोध कट नह कर सकती। जो भी शत पूरी करे गा, उसे ही क या वरे गी।’’

कण खसयानी-सी हंसी के साथ बोला, ‘‘मुझे ौपदी पसंद नह ।’’

इस कार सम त राजकु मार व नरे श असफल होकर बैठ गए। यह देखकर पांडव का
ि य र खौलने लगा। भाइय के कहने पर अजुन अपनी जगह से उठा और धनुष उठाने
आगे बढ़ गया।

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एक तेज वी ा ण युवक को धनुष उठाने को बढ़ते देखकर सभा म िफर कोलाहल मच
गया। लोग सोच रहे थे, जो काय ि य से नह हो सका, वह भला ा ण से कैसे हो
सकेगा? राजकु मार िन चंत थे िक यह ा ण या खाकर धनुष उठा सकेगा। हां, ीकृ ण ने
उसे पहली ि म ही पहचान लया था। उ ह ने अपने भाई बलराम से कहा, ‘‘अरे ! यह तो
अजुन है। इसका अथ है िक पांडव जीिवत ह, जलकर नह मरे ।’’

अजुन तो े धनुधारी था ही। उसने धनुष को यूं उठा लया, जैसे वह कोई खलौना हो।
िफर तेल क कड़ाही म देखते हए उसने िनशाने क ओर तीर भेदने शु कर िदए। एक-एक
करके उसके पांच तीर ठीक मछली पर जा लगे।

अब तो सभा थल म हष और उ साह छा गया। वातावरण ता लय क गड़गड़ाहट से गूज



उठा। लोग अजुन क वीरता क शंसा करने लगे, परं तु ीय राजकु मार व नरे श को यह
बात अ छी नह लगी। उ ह ने खड़े होकर िवरोध िकया, ‘‘यह अ याय है, वयंवर म केवल
ि य वीर ही भाग ले सकते ह, एक ा ण राजकु मारी का पित नह बन सकता।’’

ुपद ने िकसी क एक नह सुनी। वे बोले, ‘‘आप लोग जानते ह िक वयंवर म जात-पांत


व ऊंच-नीच का भेदभाव िकए िबना कोई भी भाग ले सकता है और िफर ि य राजवंश को
भी यहां पूरा-पूरा अवसर िदया गया था। दःु ख क बात है िक उनम से कोई भी अपनी वीरता
का दशन नह कर सका। अब अगर ा ण युवक ने अपनी यो यता का प रचय िदया है तो
उसका िवरोध करना उिचत नह । ...जाओ पु ी ौपदी! ा ण युवक का वरण करो।’’

ौपदी तो पहले ही इस तेज वी ा ण पर मु ध थी और उसक वीरता देखकर मन-ही-मन


उसका वरण कर चुक थी। वह धीरे -धीरे आगे बढ़ी और वरमाला अजुन के गले म डाल दी।

सभा थल हष ास के गगनभेदी नार से गूज


ं उठा। पांडव क स ता का िठकाना नह
था, िकंतु परा जत राजकु मार का ोध सर पर चढ़कर बोलने लगा था। एक तो पहले ही वे
अपनी हार से िनराश हो चले थे, अब एक ा ण को ौपदी जैसी सुंदर क या का वर बनते

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देखकर अपमान से उनका बुरा हाल हो गया था। वे बोले, ‘‘राजा ुपद! अगर आपने इस
अ याय को नह रोका तो िववश होकर हम कोई कठोर कदम उठाना पड़ेगा। ि य-क या को
ा ण के हवाले करना धम के िव है।’’

राजा ुपद ने कोई उ र नह िदया। उ ह ने वर-वधु को आशीवाद िदया। अजुन ौपदी का


हाथ अपने हाथ म लेकर भाइय क ओर बढ़ने लगा।

राजकु मार चीखे, ‘‘यह धोखा है। हम ि य को यहां बुलाकर राजा ुपद ने हमारा अपमान
िकया है। हम ि य-क या को ा ण क प नी नह बनने दगे। हम ौपदी को इस ा ण के
चंगुल से बचाकर ले जाएंग,े राजा ुपद को मार डालगे।’’

सभामंडप म हंगामा मच गया। सम त राजकु मार एकजुट होकर अजुन क ओर बढ़े, िकंतु
अजुन क रग म भी ि यर बह रहा था, वह अपनी प नी क सुर ा के लए तैयार हो
गया। उसने बढ़ते हए राजकु मार को ललकारा। अगले ही पल अजुन के शेष भाई भी मैदान म
कू द पड़े। वयंवर- थल यु का मैदान बन गया। पांडव एक-एक राजकु मार को अ छा सबक
सखाने लगे। भीम ने अपने दोन हाथ म वृ क दो मोटे तने थाम लए और उनको गदा क
भांित िहलाता हआ राजकु मार पर भीषण वार करने लगा। अजुन ने भी तीर के वार से
राजकु मार को लहहलान कर िदया। राजकु मार म खलबली मच गई। पांच पांडव वीरता से
लड़ते व सबको पछाड़ते ौपदी को वयंवर- थल से सुरि त ले आए। अजुन अपनी नववधु व
भाइय के साथ कु हार क ब ती क ओर चल पड़ा।

कुं ती घर म अकेली थी।

पु सुबह से िभ ाटन के लए घर से िनकले थे और अब शाम होने वाली थी, लेिकन वे


अभी तक लौटे नह थे। कुं ती याकु लता से पु क ही ती ा कर रही थी।

तभी घर के बाहर पांच भाई पहच


ं गए। घर का ार बंद था। भीम ने एक ि ौपदी क
ओर देखा और िफर माता को च काने के लए बाहर से ही पुकारकर बोला, ‘‘माता...माता!

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शी ता से आओ, देखो आज हम िश ा म िकतनी सुंदर व तु िमली है।’’

कुं ती पु का आगमन जानकर स हो गई। उसे तीत हआ, सचमुच उ ह आज िभ ा म


कोई उ म पदाथ िमला है। वह अंदर से बोली, ‘‘व स! जो कु छ िमला है, उसे तुम पांच भाई
आपस म बांट लो।’’

‘‘अरे माता! यह या कह डाला!’’ भीम आ चय और दःु ख से बोला।

‘‘ओह माता!’’ अजुन का दय तेजी से धड़क उठा।

कुं ती पु क घबराहट भरी विन सुनकर च क । वह भागी-भागी पु के पास पहच


ं ी। वह
अजुन के साथ एक अ यंत पसी युवती को देखकर िठठक गई। युवती सोलह ंगार से
प रपूण थी और राजकु मारी तीत हो रही थी। कुं ती को समझते देर नह लगी िक व तु थित
या है। वह मन-ही-मन पछताई, ‘‘हाय! मने या कह िदया!’’

ौपदी ने आगे बढ़कर कुं ती के चरण पश िकए। कुं ती ने उसे दय से लगाकर कहा,
‘‘अजुन! मुझे हष है िक आज तुम पांचाल क राजकु मारी को जीत लाए हो। इतनी सुंदर
पु वधु पाकर तो म िनहाल हो गई। चलो, अंदर चलो। आओ पु ी! तुम भी अंदर आओ।’’

बेचारी ौपदी के म त क म भांित-भांित के बुरे िवचार आ रहे थे। कहां तो वह अजुन को


अपना पित मानकर आई थी और कहां अब वह पांच भाइय क प नी बनने को बा य थी। उसे
िव वास था िक वे लोग अपनी माता का वचन नह टालगे।

कुं ती कैसे सह सकती थी िक उसके वचन को मान लया जाए। सब अंदर आ गए तो कुं ती
धीरे से बोली, ‘‘पु ो! मने जो कु छ कहा था, वह अनिभ ता म कहा था। मुझे या पता िक तुम
लोग या ा करके आए हो। मने तो समझा था िक ितिदन क कार िभ ा लेकर आए हो,
इस लए मेरी बात पर यान मत देना। अजुन! तु हारी प नी पर केवल तु हारा ही अ धकार
रहेगा।’’

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अजुन बोला, ‘‘नह माता! म तु हारे वचन का अनादर नह कर सकता। अब तो ौपदी हम
पांच भाइय क ही प नी बनेगी।’’

‘‘ऐसा मत कहो पु !’’ कुं ती ससककर बोली, ‘‘यह उिचत नह है।’’

यु धि र भी माता का समथन करते हए बोले, ‘‘माता ठीक कर रही है अजुन! ौपदी को


तुमने जीता है और उसने तु हार ही वरण िकया है। वह तु हारी प नी है। नारी एक ही पु ष क
प नी बनती है। एक से अ धक पु ष क प नी बनना अनुिचत है। ऐसी नारी प नी नह
कहलाती नगरवधु कहलाती है, यह तो पाप है।’’

अजुन बोला, ‘‘माता का वचन मेरे लए अंितम आदेश है। ाता ी! तुम हम सबसे बड़े हो,
धमपरायण हो, यायि य हो, तु ह मुझे माता के आदेश का पालन करने से रोक रहे हो, यह
तो अनथ है। ाता ी! उिचत तो यही है िक अब तु ह िनणय करो, हम या करना चािहए?
ौपदी से कैसा यवहार करना चािहए?’’

यु धि र भी माता के आदेश का उ ंघन करने का साहस न कर सके। इस लए अजुन क


बात सुनकर उ ह ने िववशता म िनणय िकया, ‘‘ठीक है, आज से ौपदी हम पांच भाइय क
प नी हई।’’

तभी वहां ीकृ ण अपने भाई बलराम के साथ आ पहच


ं े। ीकृ ण बोले, ‘‘ ौपदी जैसी
सुशील प नी पाने क बधाई हो अजुन!’’

ीकृ ण को अपने बीच पाकर पांडव क स ता क सीमा नह रही। यु धि र ने पूछा,


‘‘ ीकृ ण! हम तो ा ण वेश म रहते ह, परं तु आपने हम कैसे पहचान लया?’’

‘‘इसम या किठनाई है।’’ ीकृ ण बोले, ‘‘भला वीर राजपु ष के िच िछप सकते ह। मने
तो तुम लोग को वयंवर म ही पहचान लया था।’’

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पांडव ने ीकृ ण का हािदक वागत िकया। कु छ देर तक ीकृ ण पांडव के साथ रहे, िफर
उ ह आशीवाद देकर वापस लौट गए।

ौपदी का भाई धृ ु न भी ा ण का पता-िठकाना मालूम करने उनका पीछा करता हआ


कु हार क ब ती म आ पहच
ं ा था। उसने ीकृ ण व पांडव क बात िछपकर सुन ली थ । इस
बातचीत से जब पता चला िक वे वा तिवक ा ण नह , ब क ि य राजकु मार पांडव ह तो
वह स हो गया िक उसक बहन राजकु ल म याही है। वह वहां अ धक देर तक नह का।
वह उ टे पांव राजमहल पहच
ं ा और राजा ुपद को सूचना दी, ‘‘िपताजी! हम ज ह ा ण
समझ रहे थे, वे वा तव म ह तनापुर के राजकु मार ह। ौपदी ने व तुतः पांडु-पु अजुन का
वरण िकया है।’’

‘‘अ छा!’’ ुपद स ता से बोले, ‘‘यह तो बहत ही शुभ समाचार है। अब म ोणाचाय के
अपमान का बदला बड़ी सुगमता से ले सकूं गा। शी ता से पांडव को संदेश भेजो िक िववाह
का िव धवत सं कार पूण करने को यहां पहच
ं जाएं।’’

‘‘ऐसा ही होगा िपताजी!’’ धृ ु न बोला।

□□

पांडव को पांचाल नरे श ुपद का संदेश िमला िक वे यथाशी राजमहल पहच


ं , तािक
िव धवत् िववाह आिद के बारे म िवचार-िवमश िकया जाए।

पांडव पांचाल नरे श के आमं ण पर राजमहल पहच


ं े। पांच भाइय के साथ माता कुं ती एवं
ौपदी भी थी। ुपद ने उनका उ साह से वागत िकया। ुपद ने उन पर यह कट नह होने
िदया िक वे उनक वा तिवकता से प रिचत हो चुके ह। पांचाल नरे श ने िवशेष भोज का
आयोजन िकया और पांडव का खूब स मान िकया।

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बाद म पांच भाइय ने राजमहल क सैर क । उ ह ने राजमहल क येक व तु म खूब िच
ली। िवशेषकर उ ह ने श ागार म सबसे अ धक समय िबताया। श ागार म एक-से-एक
अ धक अ -श रखे थे। वे वयं यो ा थे, इस लए एक-एक अ उठाकर वे उसका भली-
भांित िनरी ण करते और एक-दसरे
ू को उनक खूिबय के बारे म बताते।

उनक यह िच देखकर पांचाल नरे श को उनक वा तिवकता जानने का बहाना िमल गया।
जब पांच भाई राजमहल घूमकर ुपद के पास पहच
ं े तो पांचाल नरे श ने यु धि र से कहा,
‘‘आप लोग क अ -श म असीम िच देखकर म शंका म पड़ गया ह।ं ा ण को
अ -श म कोई िच नह हो सकती, यह तो ि य का ही शौक है। आप तो कभी झूठ
नह बोलते, सच बताइए आप कौन ह?’’

अब यु धि र से अपनी वा तिवकता िछपाई न जा सक । उ ह ने धीरे से कहा, ‘‘पांचाल


नरे श! आपक शंका सही है। हम ा ण नह , पांडु-पु ह। वा तव म हम अपने चचेरे भाई
कौरव के ष ं का िशकार होकर दर-दर भटक रहे ह। वे हमारे ाण के श ु ह। उ ह ने हम
वारणावत म लाख के घर म जलाकर मारना चाहा था, िकंतु भा य से हम बच गए। िपछले एक
वष से हम कौरव से बचते हए ा ण वेश म नगर-नगर घूम रहे ह।’’

‘‘ओह! दयु धन क ऐसी द ु ता। यह तो सरासर अ याय है। अ छा, अब भूल जाइए अपने
दख
ु द अतीत को।’’ पांचाल नरे श बोले, ‘‘मुझे स ता है िक ौपदी ने ि य वंशी अजुन का
ही वरण िकया। अजुन क वीरता से भला कौन अप रिचत है! अब आप लोग घबराइए नह ,
कौरव मेरे भी श ु ह। उ ह ने मेरा आधा रा य छीना है। हम अब िमलकर उनके अ याय का
मुकाबला करगे।’’

कु छ देर तक इधर-उधर क बात होने के बाद ुपद बोले, ‘‘अब हम ौपदी और अजुन का
शी िववाह कर देना चािहए, तािक हम लोग एक-दसरे
ू के िनकटतम संबध
ं ी बनकर श ुओं
का नाश करने को त पर हो जाएं।’’

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एक पल तक शांत रहकर यु धि र बोले, ‘‘आपक बात सही है, हम वयं चाहते ह िक
यह शुभ काय शी संप हो जाए, लेिकन इस िववाह म केवल अजुन ही भाग नह लेगा।’’

‘‘ या मतलब? म समझा नह ।’’ ुपद ने आ चय से कहा।

‘‘म जो कु छ कहग
ं ा, उसे सुनकर आपको िविच तो लगेगा, लेिकन हम िववश ह।’’

‘‘कैसी िववशता? आप िव तार से तो बताइए।’’

‘‘ ौपदी से हम पांच भाई िववाह करगे।’’

‘‘ या?’’ ुपद तो जैसे आसमान से िगरे ।

‘‘हां, पांचाल नरे श! ौपदी हम पांच क प नी बनेगी। हम जब भी कोई व तु िमली है, उसे
हमने हमेशा आपस म बांटा है। इस बार भी ऐसा ही होगा।’’

‘‘परं तु यह तो अधम है।’’ ुपद तेज वर म बोले।

यु धि र ने दो टू क उ र िदया, ‘‘हमारे लए यही धम है।’’

ुपद बड़े असमंजस म पड़ गए। उ ह ने तो सोचा भी नह था िक एक िदन उनक पु ी को


पांच-पांच पितय का वरण करना पड़ेगा। वे तो स थे िक ौपदी को अजुन जैसा वीर ि य
राजकु मार पित के प म िमला है, लेिकन यु धि र क बात सुनकर ुपद गहरी सोच म डू ब
गए। वे धीरे -धीरे बोले, ‘‘यु धि र! तुम तो धमि य यि हो। तु ह सोचो, भला यह कहां
तक उिचत है। आज तक ऐसा नह सुना िक एक नारी ने पांच-पांच पु ष से िववाह िकया हो।
अगर ौपदी पांच यि य क प नी बनी तो संसार या कहेगा?’’

यु धि र वयं इस त य को महसूस कर रहे थे, िफर भी बोले, ‘‘आपक बात उिचत है,
परं तु म िववश ह.ं ..।’’

‘‘उिचत होगा िक एक बार आप लोग इस िवषय पर िफर से िवचार कर ल...।’’

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‘‘हमने अ छी कार िवचार कर लया है। यही हमारा अंितम िनणय है।’’

‘‘ओहो!’’ ुपद ने सर पर हाथ रखकर कहा, ‘‘हे भगवान! अब या होगा?’’

तभी वहां महिष यास पहच


ं गए। उप थत लोग ने उठकर महिष यास का वागत िकया।
ुपद ने स मान के साथ उ ह आसन पर िबठाया। महिष ने पूछा, ‘‘बड़े िचंितत िदखाई दे रहे हो
ुपद! या बात है?’’

ुपद बोले, ‘‘महिष! बड़ी िवकट सम या है। आप ही हम कोई माग िदखा सकते ह। भला
एक क या पांच पु ष को वर सकती है?’’

‘‘ओह!’’ महिष यास मु कराकर बोले, ‘‘तुम शायद ौपदी के बारे म िचंितत हो, िकंतु
ार ध यही है और तुम इसे रोक नह सकते। ौपदी के भा य म पांच पु ष का ही सुख लखा
है।’’

‘‘यह कैसा भा य है महिष?’’

महिष बोले, ‘‘इसक लंबी कहानी है। सुनो, म तु ह बताता हं िक ौपदी को यह सौभा य
कैसे ा हआ। िपछले ज म म ौपदी का नाम नलयनी था। वह अ यंत सती सा वी ी थी।
उसक िगनती भारत क पांच आदश ना रय म होती थी। उसका िववाह एक महिष से हआ था,
जनका नाम मौ ग य था। वे न केवल शरीर से जजर व कृशकाय थे, ब क कोढ़ी व रोगी भी
थे, िकंतु नलयनी ने अपने पित से कभी घृणा नह क और हमेशा तन-मन से उनक सेवा
करते हए वयं को ध य अनुभव करती थी। पित जस हाल म रखता, वह उसी हाल म स
रहती थी। नलयनी युवा थी और सुंदर भी थी, िफर भी अपनी इ छाओं का दमन करके उसने
वष ं तक पित क िनः वाथ भाव से सेवा-सु ुषा क । एक िदन अचानक उसका पित व थ,
सुंदर और बलवान यि के प म प रवितत होकर बोला, ‘नलयनी! म तु हारी सेवा से बहत
स हआ ह।ं दरअसल, म न कोढ़ी था, न बीमार था और न ही बूढ़ा-कृशकाय। मुझे तो
देवताओं ने तु हारी परी ा लेने के लए भेजा था। तुम इस परी ा म पूणतः सफल रही हो।

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सचमुच तुमने स कर िदया िक वा तिवक अथ ं म अ ािगनी या होती है। तु हारी जैसी
प नी पाकर म अ यंत उपकृत हआ। मांगो, तु ह या चािहए?’

नलयनी स होकर बोली, ‘मुझे तुम िमल गए, यही बहत है।’

उस िदन के प चात् वे पित-प नी के प म सुखपूवक जीवन यतीत करने लगे। नलयनी


ने जो अब तक न पाया था, वही सुख भोग रही थी। वे वष ं तक एक-दसरे
ू को ेम करते हए
रहने लगे। िफर ऐसा समय आया िक मौ ग य म वैरा य उ प हो गया। वे संसार और घर-
गृह थी क मोहमाया से िनकलकर तप करने के लए याकु ल हो उठे । इस लए एक िदन
उ ह ने नलयनी को याग देने का िनणय कर लया। जब नलयनी को पता चला तो वह
याकु ल हो गई। उसने पित को बहत समझाया, परं तु उसने नलयनी क एक न सुनी और घर-
संसार छोड़कर तप या करने चले गए। नलयनी पर तो जैसे पहाड़ टू ट पड़ा। वह और कु छ नह
मा अपना पित चाहती थी, इस लए उसने भी तप से भगवान शंकर को मनाने का यास शु
कर िदया। उसके घोर तप से भगवान शंकर को दया आ गई और वह नलयनी के सामने
उप थत हो गए। वे बोले, ‘‘उठो नलयनी! म तु हारे तप से स हआ, बोलो या चािहए?’

नलयनी भावावेश म बोली, ‘मुझे पित चािहए‒ पित, पित, पित, पित...।’

‘तथा तु!’ भगवान शंकर ने कहा, ‘तु ह पांच पित ही िमलगे।’

‘पांच पित!’ नलयनी च क , ‘म पांच पितय का या क ं गी?’

‘ य , तु ह ने तो पांच बार पित मांग,े इस लए अब तुम पांच पितय क प नी ही बनोगी।’

नलयनी मौन रह गई। वह जानती थी िक अब कु छ नह हो सकता य िक भगवान ने जो


कु छ कह िदया, वह होकर ही रहेगा। इस लए अगले ज म म नलयनी ने तु हारे यहां ौपदी के
प म ज म लया और िपछले ज म के वचन के अनुसार उसे पांच वर ही िमले। यह सब

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भगवान का रचा ार ध है और इसे कोई नह टाल सकता। इस लए तुम भी इसे भगवान क
मज मानकर चुपचाप वीकार कर लो।’’

महिष यास क बात सुनकर ुपद से कु छ बोला नह गया। लाचार होकर उ ह यु धि र क


बात मान लेनी पड़ी।

पांच भाइय का िव ध के अनुसार ौपदी से िववाह हआ।

ौपदी यु धि र, भीम, अजुन, नकु ल व सहदेव क प नी बन गई। आचार संिहता बनाई गई


िक ौपदी येक पित के साथ एक-एक वष रहेगी। जस वष वह एक भाई के पास रहेगी, उस
वष शेष चार भाई ौपदी के बारे म सोचगे भी नह । यही नह , यह िनयम भी बनाया गया िक
अगर कोई भूल से भी उस भाई के क म पहच
ं जाएगा, जसम वह ौपदी के साथ रह रहा
होगा तो उसे बारह वष ं के लए घर से िनकाल िदया जाएगा और पिव निदय म नहाकर
ाय चत करना पड़ेगा। (यह आचार संिहता नारद के सुझाव पर बनी थी, जसका उ ेख
आगे िकया गया है।)

ौपदी बारी-बारी से पांच पितय क सेवा म संल हो गई।

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(सात)

जब से पांडव ह तनापुर से िनकले थे, तब से एकमा िवदरु ही थे, जो उनक कु शलता के


ित िचंितत रहते थे। उ ह पांडव क गितिव धय का बराबर समाचार िमलता रहता था।
पांचाल म जो कु छ हआ था, िवदरु जान चुके थे। उ ह स ता थी िक ौपदी जैसी सुंदर व
सुशील क या उनके वंश क वधु बन गई है।

हां, कौरव अव य ु ध थे। पांडव को मृत जानकर वे अब तक िन चंत थे, लेिकन पांडव
न केवल जीिवत थे, अिपतु पांचाल के श ु नरे श के संबध
ं ी भी बन गए थे।

दयु धन को पुरोचन पर गु सा आ रहा था, जस पर पांडव को जलाकर मार डालने क


ज मेदारी थी। पुरोचन वयं तो पांच अ ात नगर िनवा सय के साथ जल मरा िकंतु पांडव
िपछले एक वष से जीिवत थे।

एक िदन िवदरु ने यह सूचना धृतरा को दी, ‘‘यह िकतनी स ता क बात है िक ौपदी


जैसी सुशील क या हमारी वधु बनकर आ रही है।’’

धृतरा बोले, ‘‘तो या ौपदी ने दयु धन को वर लया? वाह! यह तो सचमुच अ यंत हष


क बात है।’’

‘‘नह महाराज! आप गलत समझे, ौपदी ने अजुन को वरा है।’’ िवदरु ने बताया।

धृतरा थोड़ा िनराश हए, िफर भी उ ह ने ऊपरी स ता य करते हए कहा, ‘‘तो या


हआ? पांडव भी तो हमारे कु ल के ही दीपक ह। ौपदी हमारे वंश म ही तो बह बनकर आ रही
है। उनके वागत क भरपूर तैया रयां क जाएं।’’

दयु धन को िपता क यह बात जंची नह । उसने एकांत पाते ही धृतरा से बात क , ‘‘आप
कैसे िपता ह? आपको अपने पु के श ुओं क िवजय पर स ता हो रही है। आपको पता
नह , पांचाल नरे श ुपद हमारा श ु है।’’

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धृतरा अपने पु से अप रिमत नेह करते थे, लेिकन पांडु-पु से भी उ ह कम नेह नह
था। हां, हर दौड़ म अपने पु को पांडव से िपछड़ते देखकर वे दख
ु ी अव य थे। वे ज मजात
अंधे थे, उ ह अपने पु के सहारे का ही भरोसा था। इस लए दयु धन क नाराजगी महसूस
करते हए बोले, ‘‘नह पु ! ऐसी बात नह । मुझे स ची स ता तो तभी हा सल होती, जब
तु ह ौपदी को जीतकर लाते। यह तो मने िवदरु के सामने ऐसे ही कह िदया था। तुम तो
जानते हो िक िवदरु पांडव का प पाती है। उसके सामने अगर ऐसा नह कहता तो न जाने वह
पांडव के कान म या कु छ फंू क डालता।’’

‘‘अब हम पांडव से सतक रहना चािहए।’’ दयु धन बोला, ‘‘उिचत तो यही है िक पांडव
को िकसी कार पुनः समा कर देना चािहए। वरना वे पांचाल नरे श के साथ िमलकर हमारा
जीवन दभर
ू कर दगे। काश! हमने पांचाल पर आ मण करते समय ुपद को भी मृ यु के घाट
उतार िदया होता। गु ोणाचाय के कारण हम उसे जीिवत छोड़ देना पड़ा। तब तो पांडव ने भी
उन पर हमला िकया था, पर अब वे उसके दामाद बन गए ह और उसका सारा गु सा हम पर
ही उतरे गा। वह हम परा जत करके अपने अपमान का बदला अव य लेगा।’’

धृतरा लाचार थे। वे धीरे से बोले, ‘‘तुम या करना चाहते हो?’’

‘‘पांडव को यहां बुलाकर चालाक से मार देना चािहए। उ ह िवष देकर हमेशा के लए माग
से हटा देना चािहए।’’

धृतरा मन-ही-मन कांप उठे , परं तु खुलकर िवरोध नह कर सके। बोले, ‘‘पु ! जो कु छ
करो, सोच-समझकर करो। पहले भी एक बार तुमने उ ह न करने का यास िकया था, िकंतु
उसका कोई फल नह िनकला। उिचत यही है िक बुजुग ं से िवचार-िवमश कर लो। भी म,
िवदरु और गु ोणाचाय से िमलो, वे तु हारा उिचत माग िनदशन करगे।’’

उसी समय भी म, िवदरु व गु ोणाचाय को बुलाया गया। धृतरा ने उनसे कहा, ‘‘पांडव
एक वष से ह तनापुर से बाहर रह रहे ह, अब उनके साथ ौपदी भी है। कृपया बताइए िक हम

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या करना चािहए।’’

दयु धन बोला, ‘‘कोई भी िवचार करने से पहले यह त य मत भू लएगा िक वे हमारे श ु के


दामाद ह।’’

भी म ने पलक झपकते ही सारा मामला समझ लया। बोले, ‘‘सुनो दयु धन! पांडव कोई
पराये नह ह, वे भी हमारे ही कु ल के योित फंज ह। उ ह ने आज तक जो कु छ िकया है,
धमानुसार िकया है, जा म उनका मान है, उनक वीरता व बुि का िव व म मान िकया जाता
है, आज वे ौपदी जैसी सुंदर व सुशील क या के पित ह। हम तो उन पर गव करना चािहए।
उिचत यही है िक हम दय खोलकर उनका व नववधु का वागत कर। वे एक वष से
राजधानी से बाहर भटक रहे ह। अब हम यायपूवक उनका अ धकार उ ह स पना चािहए।
उनका भी इस रा य पर उतना ही अ धकार है, जतना कौरव का। पांडु ने ही अपने बाहबल से
इस रा य का िव तार िकया था।’’

दयु धन अपना ोध िछपाकर बोला, ‘‘आप कहना या चाहते ह? या हम अपने श ुओं


को वयं ही यहां आमंि त कर?’’

‘‘कैसी श ुता?’’ भी म बोले, ‘‘जो थोड़ी-बहत कटु ता है, उसे िम ता म बदलते देर ही
िकतनी लगेगी। हम यथाशी पांडव को यहां बुलाकर यु धि र को उनका अ धकार स प देना
चािहए। यही यायसंगत है।’’

िवदरु बोले, ‘‘भी म ठीक कहते ह। हमने पांडव को पहले ही कम क नह िदए ह, लेिकन
वे हमेशा संकट से उबरकर खरे उतरे ह। हम अब अपनी भूल वीकार कर उनके साथ
समानता का यवहार करना चािहए। पहले ही हमारी बहत बदनामी हो चुक है।’’

‘‘और आपका या कहना है गु देव?’’ दयु धन ने आशा से ोणाचाय क ओर देखते हए


पूछा।

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ोणाचाय सारी थितय से भली-भांित प रिचत थे। वे जानते थे िक चचेरे भाइय म संघष
हआ तो मामला गंभीर हो जाएगा। पांडव क वीरता से भला कौन अप रिचत था। इसके
अलावा ारकाधीश ीकृ ण पांडव के सहायक थे। वे आव यकता पड़ने पर पांडव क
सहायता कर सकते थे, िफर पांचाल नरे श का सहयोग तो ा था ही। इस लए उ ह ने भी
दयु धन से वही कहा, जो भी म व िवदरु ने कहा था। साथ ही चेतावनी भी दी, ‘‘िपछली भूल से
कु छ सीखो। संघष के पथ से कु छ ा नह होगा, पांडव के साथ िमल जुलकर ही रहो।’’

इस बातचीत का प रणाम यह िनकला िक दयु धन क बोलती बंद हो गई। वह मन


मसोसकर रह गया। वह धृतरा , भी म आिद क बात से असहमित कट नह कर सकता था।
बोला, ‘‘ठीक है, अगर आप लोग का यही िवचार है तो पांडव को नववधु के साथ ह तनापुर
लाने का बंध िकया जाए। िवदरु जी! आप ही पांचाल जाइए और पांडव को स मानपूवक
ह तनापुर ले आइए। पांचाल नरे श को हमारी हािदक शुभकामनाएं भी दे द। पांडव के आने
पर हम आपस म िमलकर यह िनणय करगे िक भिव य म कौरव-पांडव शांित व स ाव के
साथ कैसे रह।’’

िवदरु ढेर सारी शुभकामनाएं व उपहार लेकर पांचाल क ओर रवाना हो गए।

□□

दयु धन क रात क न द व िदन का चैन जाता रहा था। पांडव को वह िकसी भी अव था म


ह तनापुर म सहन नह कर सकता था।

कण उसक दिु वधा समझता था। इस लए बोला, ‘‘दयु धन! इतना िचंितत होने क
आव यकता नह । हम वृ क बात पर इतना यान देने क आव यकता नह , िवदरु तो
आरं भ से ही पांडव के शुभिचंतक रहे ह और भी म भी मन-ही-मन उ ह चाहते ह। शेष बचे
ोणाचाय तो उनक बात का या? वे या जान राजनीित कैसे क जाती है, उ ह तो मा
अ -श चलाना आता है। राजनीित म चालाक से काम लेना चािहए। उिचत तो यही है िक

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पांडव अथवा पांचाल नरे श कोई पग उठाएं, उसके पहले ही हम उन पर हमला आ मण कर
देना चािहए।’’

‘‘तु हारा िवचार उिचत है कण!’’ दयु धन बोला, ‘‘तु हारे जैसे वीर हमारे साथ ह, इस लए
मुझे भरोसा है िक हम एक िदन पांडव को अव य मात दगे।’’

□□

िवदरु असीम शुभकामनाओं और मू यवान सौगात के साथ पांचाल पहच


ं े।

पांचाल नरे श ुपद ने उनका दय से वागत िकया। पांडव भी उनका आगमन सुनकर उनसे
िमलने आए। ुपद ने पूछा, ‘‘कैसे आना हआ महा मा िवदरु ! ह तनापुर म सब कु शल तो
है?’’

‘‘पांचाल नरे श! म महाराज धृतरा व उनके पु क ओर से शुभकामनाएं व उपहार लेकर


आया ह।ं अब तो हम लोग िनकट के संबध
ं ी बन गए ह, इस लए पुरानी श ुता भूल जाइए। म
पांडव व पु वधु को ह तनापुर ले जाने आया ह।ं ’’

ुपद ने ने उठाकर यु धि र क ओर देखा। यु धि र से कु छ बोला नह गया। वे भूले नह


थे िक उनके साथ कौरव ने कैसा यवहार िकया था। यह तो िवदरु ही थे, जनक कृपा से वे
मौत के मुंह म जाने से बच गए थे। अब वही िवदरु उ ह ह तनापुर ले जाने के लए आए थे।
यु धि र के अलावा अ य चार भाई एकाएक सोच नह पाए िक उ ह या करना अथवा कहना
चािहए।

ुपद बोले, ‘‘यह तो हष क बात है िक आप पांडव को लेने आए ह। अंततः ौपदी तथा


पांडव का वा तिवक घर तो ह तनापुर ही है। मेरी ओर से तो कोई आप नह । पांडव जैसा
उिचत समझ, वैसा कर।’’

िवदरु ने पूछा, ‘‘ या िवचार है व स! कब चलना चाहते हो?’’

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यु धि र इस िवषय पर भली-भांित सोच लेना चाहते थे, इस लए उ ह ने उ र िदया, ‘‘अभी
तो ह तनापुर चलना संभव नह । अभी तो हम पांचाल नरे श के अित थ ह। जैसा वे कहगे,
वैसा ही करगे। हम थोड़ा सोचने का समय द।’’

िवदरु ने कोई हठ नह क । वे जानते थे िक पांडव एक बार कौरव ारा छले जा चुके ह,


इस लए अब वे अपना हर पग फंू क-फंू ककर रखना चाहते ह।

उन िदन पांचाल म ीकृ ण भी आए हए थे और उ ह ने राजमहल म डेरा डाल रखा था।


पांडव ने उनसे इस िवषय म सलाह मांगी तो वे बोले, ‘‘अपना अ धकार गंवाना उिचत नह ।
मेरा तो िवचार है िक आप लोग को ह तनापुर तुरंत जाना चािहए। म भी साथ चलूंगा।’’

भला पांडव को अब या आप हो सकती थी। वे ुपद से िवदा लेकर िवदरु व ीकृ ण के


साथ ह तनापुर क ओर चल पड़े।

धृतरा ने उनके पहच


ं ने पर उनका भ य वागत िकया। अपनी कु लवधु को आशीवाद
िदया।

कु छ िदन शांित के साथ बीते।

एक िदन धृतरा ने यु धि र को बुलाकर कहा, ‘‘व स! अब समय आ गया है िक म


जीते-जी अपना कत य िनभा द।ं ू म नह चाहता िक मेरे प चात् तुम चचेरे भाइय म िकसी
कार का कलह हो। तुम लोग का इस रा य पर बराबर का अ धकार है, इस लए म रा य को
दो बराबर-बराबर भाग म िवभ करता हं और खांडव थ तुम लोग को स पता ह।ं तुम लोग
उस देश म बस जाओ। तु हारे चचेरे भाई ह तनापुर म ही रहगे। बोलो, मेरा यह िनणय तु ह
वीकार है?’’

यु धि र एक पल मौन रहे। वे भली-भांित जानते थे िक कौरव से रा या धकार पाना कोई


सहज नह , इस लए धृतरा का यह िनणय मान लेना ही बुि म ा थी। वे बोले, ‘‘अगर

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आपका यही िनणय है तो हम सहष वीकार है।’’

□□

इस कार पांडव के िह से खांडव थ आ गया।

यु धि र अपने भाइय व माता तथा प नी के साथ खांडव थ आ गए। वह ऊबड़-खाबड़


भूिम और जंगल था। दर-द
ू रू तक कोई आबादी नह थी। िफर भी पांडव को संतोष था िक रहने
को कोई जगह तो िमल गई। कौरव क श ुता तो ऐसी थी िक वे उ ह ह तनापुर से तो खदेड़
ही देते, रा य क भूिम पर पांव भी रखने नह देते।

पांडव उ मी थे। उ ह ने तय कर लया िक खांडव थ को वे रहने यो य बना दगे। उ ह


ह तनापुर के कारीगर पर कोई िव वास नह था, या पता िक कौरव पुरोचन जैसे कारीगर
को भेज दे और वे ऐसे भवन बनाएं िक एक िदन पांडव उन भवन म ही जलकर समा हो
जाएं। इस लए ीकृ ण के सहयोग से ारका के अ छे -अ छे कारीगर को खांडव थ
बुलवाया गया, िफर भूिम-पूजन के बाद नए सरे से नए नगर का िनमाण आरं भ हो गया।

देखते-ही-देखते खांडव थ जैसे िनजन े क कायापलट हो गई। पांडव के लए सुंदर


महल के अलावा भ य िकला भी बनाया गया। नगर म चार ओर बाग-बगीचे, पूजा- थल,
इमारत, चौड़ी सड़क व बड़े-बड़े बाजार बन गए। नगर क शोभा तो बस देखते ही बनती थी।
कोई क पना भी नह कर सकता था िक यह भूिम कभी बंजर थी। इस नए नगर का नाम दर-

दरू फैल गया। पांडव क यो यता व वीरता से सभी प रिचत थे ही तो प रणाम यह हआ िक
देश-िवदेश के लोग बसने के लए खांडव थ म आ गए। सामा य नाग रक के अलावा बड़े-
बड़े यापा रय ने खांडव थ को अपना लया। जो देश अब तक ऊबड़-खाबड़ पड़ा था, वहां
रौनक छा गई। ीकृ ण के आशीवाद से यु धि र ने नए रा य का कायभार संभाल लया। नए
रा य का नाम खांडव थ से बदलकर इं थ रखा गया।

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ीकृ ण अपना काय िनपटाकर ा रका चले गए और जाते-जाते कह गए, ‘‘बंधुओ! कभी
भी कोई िवप आए तो मेरे पास िनःसंकोच पहच
ं जाना।’’

□□

नए नगर क चचा नारद के कान म पड़ी तो वे इं थ क शोभा देखने पहच


ं गए।

यु धि र ने उनका यथायो य वागत िकया। नारद नगर क रौनक व पांडव का यश


देखकर बड़े स हए। उ ह ने यु धि र से कहा, ‘‘और सब तो ठीक है, परं तु एक ही मिहला
को पांच भाइय ने अपनी प नी बना लया है, यह अव य ही िचंता का िवषय है।’’

‘‘इसम कैसी िचंता मुिनवर?’’ यु धि र बोले, ‘‘हम भाई पांच शरीर एक आ मा ह। हमम
िकसी बात को लेकर कोई कलह होने क संभावना नह ।’’

‘‘धमवीर! तुम लोग क कार एक-दसरे


ू को ाणपण से ेम करने वाले दो भाई थे,
जनका नाम था सुंदर और उपसुंदर। एक बार ऐसा हआ िक वे तलो मा नामक एक अ सरा
के दीवाने हो गए। कोई भी उसके िबना रह नह सकता था। उनक ित ंि ता इतनी बढ़ गई िक
एक िदन आपस म लड़ पड़े। यु से भला िकसका भला हआ है, इस लए वे एक-दसरे
ू से
लड़-झगड़कर िमट गए। अब मुझे भय है िक कह तुम पांच भाई भी एक नारी को लेकर
आपस म लड़-झगड़कर िमट न जाओ।’’

यु धि र मु कराकर बोले, ‘‘आप िन चंत रह मुिनवर! हमारे साथ ऐसा कभी नह होगा।’’

‘‘िफर भी मेरी मानो तो कोई ऐसा िनयम बना लो िक एक-दसरे


ू से टकराने क थित ही न
आए।’’

‘‘आप ही कोई िनयम बना दी जए।’’

‘‘ठीक है।’’ नारद मुिन कु छ सोचकर बोले, ‘‘ऐसा करो िक ौपदी को एक वष तक बारी-
बारी से पांच भाइय के पास रहना होगा। ऐसे समय कोई दसरा
ू भाई ौपदी को देखेगा भी नह ।

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अगर इस िनयम को िकसी ने भंग िकया तो उसे बारह वष तक रा य से िन का सत होना
पड़ेगा।’’

‘‘आपक आ ा सर-आंख पर, ऐसा ही होगा।’’

नारदजी तो यह िनयम बनाकर चले गए, लेिकन एक समय ऐसा आया िक इस कठोर िनयम
क सजा अजुन को भुगतनी पड़ी।

सच तो यह था िक पांच भाई आरं भ से ही बड़े िनयम व संयम से रहते थे। ौपदी के कारण
कभी उनम कोई कलह नह हई थी। एक बार ऐसा हआ िक ौपदी यु धि र के साथ अपना
समय िबता रही थी, तभी एक गरीब ा ण अजुन से िमला और हाथ जोड़कर िनवेदन िकया,
‘‘महाराज! एक चोर मेरी गाएं चुराकर ले गया है, मुझे मेरी गाएं िदलवा द, अ यथा म तो
बरबाद हो जाऊंगा। गाय के सवा मेरा और कु छ नह ।’’

अजुन ने चोर से गाएं छु ड़ाकर गरीब ा ण को वापस लौटा द । तभी अजुन को याद आया
िक वह यु धि र के क म अना धकार वेश कर गया था, जो िनतांत आप जनक था। वह
उसी समय यु धि र के पास पहच
ं ा और बोला, ‘‘ ाता ी! मुझसे अपराध हो गया है, अतः म
बारह वष ं के लए वन म जा रहा ह।ं ’’

यु धि र बोले, ‘‘कैसा अपराध अजुन? तुम तो मेरे छोटे भाई हो, इस लए क म घुस
आना अपराध नह । हां, अगर बड़ा भाई छोटे भाई के क म अनायास घुस जाए तो यह जघ य
अपराध है। इस लए तुम िन चंत रहो और बारह वष के लए वन जाने क कोई आव यकता
नह ।’’

‘‘आप कु छ भी किहए, ाता ी! मुझसे िनयम भंग हआ है। यिद हम ही अपने िनयम का
पालन ठीक से नह करगे तो सामा य जन का या होगा। आप मुझे रोके नह , मुझे धम का
पालन करने द।’’

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िववश होकर यु धि र को अजुन क बात मान लेनी पड़ी। अजुन इं थ यागकर बारह
वष ं के लए वन चला गया।

अजुन वन म गंगा िकनारे एक कु िटया बनाकर रहने लगा। चार ओर बड़ा ही मनोहारी
वातावरण था। अजुन के िदन बड़े आराम से यतीत हो रहे थे।

वह रहती थी सप सुंदरी उलूपी, जो कौर य सप क पु ी थी। वह अजुन क सुंदरता पर


मोिहत हो गई थी।

एक िदन क बात है। अजुन गंगा म नहा रहा था। बस, अवसर पाकर उलूपी वहां पहच
ं ी
और अजुन को ख चकर अपने साथ नागलोक ले गई।

अजुन ने आ चय से उलूपी से पूछा, ‘‘तुम कौन हो? मुझे यहां य ले आई हो?’’

उलूपी बोली, ‘‘म नागलोक क क या ह।ं म तु ह पसंद करती हं और तुमसे िववाह करना
चाहती ह।ं ’’

‘‘िववाह!’’ अजुन घबराकर बोला, ‘‘परं तु म तो पहले से ही िववािहत ह।ं ’’

‘‘म कु छ नह जानती। अगर आपने मेरी िवनती अ वीकार कर दी तो म आ मह या कर


लूंगी।’’

अजुन से उलूपी का दय दख
ु ाया नह गया, इस लए उसने उलूपी से िववाह कर लया।

उलूपी के बाद अजुन ने िच ांगदा से भी िववाह िकया। िच ांगदा मिणपुर के राजा िच वाहन
क पु ी थी। िच ांगदा क सुंदरता से अजुन बहत भािवत हो गया था और उससे िववाह करने
क इ छा याग नह सका था। इस िववाह से अजुन को व ुवाहन नामक पु -र न क ाि हई
थी। िच वाहन का अपना कोई पु नह था, इस लए व ुवाहन को ही मिणपुर का भावी राजा
घोिषत िकया गया।

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इन दो िववाह के प चात् अजुन ने इन बारह वष ं म एक तीसरा िववाह िकया था। तीसरा
िववाह सुभ ा से हआ था, जो ीकृ ण क बहन थी।

अजुन घूमते-घूमते िन कासन के अंितम वष ारका पहच


ं ा तो ीकृ ण ने उसका अपने यहां
भ य वागत िकया। वह एक उ सव म अजुन ने सुभ ा को देख लया था और उस पर मोिहत
हो गया था। उसने ीकृ ण से सुभ ा का िववाह करने क इ छा कट क ।

ीकृ ण ने कहा, ‘‘मुझे या आप हो सकती है, िकंतु उसके दय म या है, कौन कह


सकता है। हो सकता है वयंवर म सुभ ा तु हारी बजाय िकसी और को वर ले। अतः उिचत
यही है िक तुम बलपूवक सुभ ा को ले जाओ।’’

अजुन को ीकृ ण का यह सुझाव पसंद आ गया। बस िफर या था, अजुन अपने भाई
यु धि र क सहायता से सुभ ा का अपहरण करके इं थ पहच
ं गया। इं थ म यथािव ध
उन दोन का िववाह कर िदया गया।

सुभ ा से अजुन को अिभम यु नामक पु -र न क ाि हई। उधर ौपदी भी पांच पु क


माता बनी। यु धि र से उसे ातिवं नामक पु उ प हआ था और भीम से ुतसोम, अजुन
से ुतकमा, नकु ल से शतानीक और सहदेव से ुतासन।

□□

ीकृ ण इं थ म ही थे।

एक िदन अजुन यमुना के िकनारे ीकृ ण के साथ मण कर रहा था, तभी एक तेज वी
ा ण उन दोन के पास आ खड़ा हआ। उसके सारे शरीर से तेज क िकरण फुिटत हो रही
थ।

ीकृ ण व अजुन ने ा ण का अिभवादन िकया और पूछा, ‘‘हे ा ण देव! आप कौन ह?


हम आपक या सेवा कर सकते ह?’’

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‘‘म अि ह।ं मुझे बड़ी भूख लगी है। कृपया मेरी ुधा शांत क जए।’’ ा ण ने उ र
िदया।

‘‘आप या खाएंग?
े या साम ी तुत क जाए?’’

‘‘मेरी इ छा है िक म खांडव वन को जलाकर उसम रह रहे जानवर को खाऊं, लेिकन


बहत यास करने के बावजूद म खांडव वन को जला नह पा रहा ह,ं य िक इं बार-बार
पानी बरसा देता है। वह नह चाहता िक म खांडव वन को जलाऊं, य िक वहां त क नाग का
िनवास है। अब तो आप ही खांडव वन को जलाकर मेरी भूख शांत कर सकते ह।’’

अजुन बोला, ‘‘अि देव! म आपक कैसे सहायता क ं ? मेरे पास इस समय ऐसा धनुष
नह है, जससे म देवराज इं क वषा को ऊपर ही रोक सकूं ।’’

‘‘बस, इतनी-सी बात है।’’ अि देव ने कहा, ‘‘म तु ह अभी एक शि शाली धनुष देता ह,ं
जसे तु हारे जैसा वीण धनुधारी ही चला सकता है।’’

इतना कहकर अि देव ने अजुन को सोमराज का ‘गांडीव’ नामक धनुष दे िदया, साथ ही
ीकृ ण का सुदशन च भी िदया। सुदशन च क िवशेषता थी िक उससे जस पर वार करो,
वह िन चत प से मारा जाता था और िफर सुदशन च अपना काम पूरा कर वापस धारण
करने वाले के पास पहच
ं जाता था।

अजुन ने गांडीव पाकर अि देव से कहा, ‘‘अब आप खांडव वन को व लत क जए,


म उसे बुझने नह दग
ं ू ा।’’

अि देव ने देखते-ही-देखते खांडव वन को जला िदया। इं ने पुनः पानी बरसाया, िकंतु इस


बार अजुन ने अगिणत तीर चलाकर खांडव वन के ऊपर आवरण-सा तान िदया, जनसे पानी
क एक बूदं भी वन पर न िगर सक । वन म चार ओर अि फैल गई और अि देव जंगल

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के जीव को खाने लगे। त क नाग उन िदन वन म नह था, इस लए वह बच गया। त क का
पु अ वसेन भी आग से बच िनकला।

वन म ही ‘मय’ नामक एक रा स रहता था। मय बहत ही उ चकोिट का भवन िनमाता था।


उसने जब देखा िक वह इस चंड आग से बच न सकेगा तो उसने अजुन से ाणर ा क भीख
मांगी। अजुन को उस पर दया आ गई और मय को वन से सुर ापूवक बाहर िनकाल िदया।

इस कांड से अजुन को गांडीव जैसा शि शाली धनुष तो िमला ही, साथ ही इं ने भी कई


िद य अ अजुन को दान िकए।

मय तो अजुन क कृपा से इतना अिभभूत हो उठा िक उसने अजुन से कहा, ‘‘हे वीर पु ष!
म आपका बहत कृत ह।ं कृपया मुझे सेवा का अवसर देकर अनु हीत कर।’’

‘‘तुम या काय कर सकते हो?’’

‘‘म बहत अ छा वा तुकार ह।ं भवन-िनमाण म मेरा कोई मुकाबला नह ।’’

कु छ सोचकर अजुन बोला, ‘‘यह बात है तो इं थ म जहां हमारी नई-नई राजधानी बनी
है, वहां तुम हमारे लए एक ऐसा भवन बनाओ, जैसा संसार म अब तक न बना हो।’’

‘‘यह तो मेरे बाएं हाथ का खेल है। म ऐसा भवन बनाऊंगा, जसे देखकर लोग के िव मय
का िठकाना नह रहेगा।’’

यह कहकर मय मैनाक पवत क ओर चल पड़ा। मैनाक पवत पर भवन-िनमाण क


उ चकोिट क साम ी उपल ध थी। वह पर मय जाित के रा स के अ ुत महल बने हए थे।
मय ने वहां से भवन िनमाण क साम ी ली और चल पड़ा इं थ को।

मय ने जैसा कहा था, वैसा ही भवन बनाया। इं थ मय के कला मक हाथ से सजकर


अि तीय बन गया। पांडव तो ऐसा भ य और मनोहारी भवन देखकर िव मत रह गए। मय का
प र म साथक हो गया।

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अब इं थ का या कहना।

इं थ क सुंदरता, भ यता तथा वैभव क चचा दर-द


ू रू तक फैल गई। यु धि र के कु शल
नेतृ व म पांडव का नया रा य िदनोिदन गित के नए सोपान तय करता जा रहा था।

एक िदन नारद मुिन पांडव का नया नगर देखने पधारे । नगर क प-स जा देखकर वे
अ यंत स हए। िवशेषकर मय ने जो सभागार का िवशाल भवन बनाया था, उसक सुंदरता
देखकर तो वे िव मत ही रह गए।

नारद ने पांडव से कहा, ‘‘सचमुच! तुम लोग क कमठता शंसा यो य है। इतने अ प
समय म बंजर भूिम म इतनी भ य राजधानी का िनमाण कर लेना तुम लोग क यो यता का ही
माण है और तु हारा यह सभागार इसक तो जतनी शंसा क जाए कम है। म तो तीन
लोक म घूम चुका ह,ं िकंतु ऐसा सभागार न तो गंधव ं के यहां देखा और न अ सराओं के
यहां। य व रा स के सभागार तो इसके सामने एकदम हेय ह। अब तो एक ही काय रह
गया है, जसे पूण कर तुम लोग अपनी यश-पताका िदग-िदगांतर तक फैला सकते हो।’’

यु धि र ने उ सुकता से पूछा, ‘‘ऐसा कौन-सा काय है मुिनवर! हम शी बताइए।’’

‘‘बस, अब तुम लोग राजसूय य करो। य म िव व के सम त देश के नरे श को


आमंि त करो। उ ह अपने अधीन कर लो, िफर तुम लोग का स मान अ ु ण रहेगा।’’

नारदजी इतना कहकर चले गए, िकंतु उनक बात पांडव के मन म घर कर गई। उ ह ने
िन चय कर लया िक वे राजसूय य अव य करगे। िफर या था, वे य क तैया रय म
लग गए। चार िदशाओं के रा या य को इं थ आकर राजसूय य म भाग लेने के लए
आमंि त िकया गया।

इं थ को द ु हन क कार िवशेष प से सजा िदया गया। राजसूय य के महान पव क


सूचना चार ओर फैल गई।

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□□

राजसूय के अवसर पर सभी िनमंि त राजे-महाराजे भाग लेने इं थ पहच


ं े। ह तनापुर से
कौरव भी पधारे थे। ीकृ ण को िवशेष प से बुलाया गया था। इं थ का वैभव देखकर
सभी आ चयचिकत रह गए। बड़ी-बड़ी इमारत , चौड़ी सड़क , भ य बाग-बगीच , रमणीक
सरोवर व कला मक भवन ने सभी का मन मोह लया। मय ारा िनिमत िवशाल सभागार क
िविश कारीगरी देखकर तो लोग के िव मय का िठकाना ही नह रहा। पांडव क क ित क
सभी िदल खोलकर शंसा करने लगे।

बस, अगर कोई पांडव क क ित से ई या के मारे जल-भुन गए थे तो वे थे कौरव।


िवशेषकर दयु धन का तो रोयां-रोयां सुलग रहा था पांडव का वैभव देखकर। दयु धन के साथ
कौरव का मामा शकु िन भी आया था।

राजसूय य से पांडव के यश म चार चांद लग गए।

य के दौरान ही मगध के राजा जरासंध का भी वध हआ, जो अ यंत अ याचारी था।


जरासंध क पु ी का िववाह ीकृ ण के मामा कंस के साथ हआ था। उसके अ याचार क
थित यह थी िक उसने अनेक राजाओं को बंदी बनाककर उनका रा य ह थया लया था।
ीकृ ण िकसी भी कार उसका अंत चाहते थे, इस लए उ ह ने यु धि र से कहा, ‘‘बंधु!
तु हारा राजसूय य तब तक सफल नह हो सकता, जब तक जरासंध जैसे अ याचारी राजा
का अंत न हो जाए।’’

यु धि र ने ीकृ ण का आदेश िशरोधाय कर लया और भीम को जरासंध का वध करने के


लए भेज िदया। भीम ने जरासंध को यु म परा जत कर िदया और उसे चीरकर मार डाला।

राजसूय य संप हो गया।

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सभी राजे-महाराजे पांडव का गुण गाते हए अपने-अपने देश क ओर लौट गए। हां, दयु धन
इं थ क भ यता से इतना भािवत हआ िक वहां वह कु छ िदन के लए और क गया।

एक िदन वह नयनािभराम भवन क सुंदरता देखने के लए इधर-उधर घूम रहा था। मन-ही-
मन पांडव क गित देखकर वह जला-भुना जा रहा था। उसने पांडव को न करने के
अनेक यास िकए थे, िकंतु सदैव असफल रहा था और अब पांडव अपने म एवं यो यता से
भ य राजधानी के मा लक बन बैठे थे। पांडव के स मुख दयु धन वयं को अ यंत दीन-हीन
अनुभव कर रहा था और उ ह िवन करने क मन-ही-मन अनेक योजनाएं बना रहा था।

यही सब सोचता-िवचारता दयु धन उस सभागार म पहच


ं ा, जसक कारीगरी का जवाब नह
था। ऐसी रमणीक साज-स जा देखकर दयु धन के ने फटे-के-फटे रह गए। तभी सभागार के
एक ओर उसे तालाब िदखाई िदया, जसम कमल का यारा-सा पु प खला हआ था। दयु धन
उस पु प को तोड़ने का लोभ संवरण न कर सका। उसने आगे बढ़कर जैसे ही कमल का पु प
तोड़ना चाहा, उसका हाथ फश से जा टकराया। तब उसे पता चला िक जस कमल के पु प को
वह तालाब म उगा हआ समझ रहा था, वह तो भवन िनमाण क कारीगरी का उ च नमूना था।
व तुतः वह फश इतना पारदश था िक िनकट से भी तालाब क भांित नजर आ रहा था।
कमल का पु प फश को सजाने के लए उकेरा गया था।

दयु धन अभी संभला भी नह था िक चार ओर से हंसी क लहर गूज


ं गई। दयु धन क
मूखता पर सभागार के दास-दासी हंस रहे थे। दयु धन ोध एवं झप से ज दी-ज दी आगे
बढ़ा। सामने क दीवार म एक ार देखकर उसने अपना पग बढ़ाया, परं तु ार पार करने के
बजाय वह दीवार से टकराकर रह गया। जसे उसने ार समझा था, वह तो दीवार पर अनोखी
सजावट थी। दयु धन क इस अनिभ ता पर भी आसपास खड़े लोग ठहाका मारकर हंस पड़े।
दयु धन बुरी कार झपकर रह गया। अब तो उसक यह हालत हो गई िक सामने एक
वा तिवक ार को देखकर भी उसे पार नह कर सका िक कह वह भी दीवार न हो।

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सबसे दख
ु द दगु ित तो तब हई, जब उसने फश पर एक और भ य सरोवर देखा। सोचा यह
भी पहले वाले सरोवर क भांित पारदश फश होगा और वह िन चंत होकर आगे बढ़ा। िफर
हआ यह िक वह धड़ाम से सरोवर म जा िगरा। इस बार जसे उसने फश समझ लया था, वह
सरोवर ही िनकला। उसके सारे व गीले हो गए और वह झ ाकर बाहर िनकला।

इस बार तो सारा सभागार ठहाक से गूज


ं उठा। दास-दा सय के अलावा पांडव और उनक
प नी भी खूब हंसी। भीम ने कहा, ‘‘ओहो दयु धन! तु हारे तो सारे व गीले हो गए। सहदेव
इ ह सूखे व ला दो।’’

सहदेव अगले पल ही सूखे व ले आया और मु कराते हए दयु धन को स प िदए।

इस अपमान से तो दयु धन आगबबूला हो गया। पु ष क हंसी तो सहन क जा सकती थी,


िकंतु ौपदी क हंसी ने जले पर नमक िछड़क िदया था। वह र का घूटं पीकर रह गया।
सोचा िक एक िदन इस अपमान का बदला अव य लूंगा।

इस अपमान के बाद उससे इं थ म एक पल भी न रहा गया। तन-मन म ई या व अपमान


से आग दहक रही थी। उसने उसी समय पांडव से िवदा ली और मामा शकु िन के साथ
ह तनापुर के लए रवाना हो गया।

दयु धन को सबसे गहरा रोष तो इस बात का था िक वह पांडव को अब तक मात नह दे


सका था। उसने जतनी बार पांडव को न करना चाहा, पांडव नई शि के साथ उ कष पर
पहच
ं गए थे। उसने पांडव को जान-बूझकर खांडव थ जैसा िनकृ े िदया था, िकंतु वहां
भी उ ह ने इं थ जैसा भ य नगर खड़ा कर िदया, जहां के िव मयकारी सभागार म उसका
अपमान हआ था।

माग म वह शकु िन से एक श द भी न बोला। गुम-सुम-सा वह पांडव को समा करने क


योजनाओं म ल रहा। शकु िन से रहा नह गया तो उसने पूछा, ‘‘ या बात है दयु धन! जब
से इं थ से िनकले हो िवचार म खोए हए हो? सब ठीक तो है?’’

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‘‘मामा! जले पर नमक मत िछड़को।’’ दयु धन ने झ ाकर कहा, ‘‘तुम अ छी कार
जानते हो िक इं थ म हम अपमािनत करने के लए बुलाया गया था। पांडव अपना वैभव
िदखाकर हम जलाना चाहते थे।’’

‘‘यह तो पांडव के म का फल है। चाहो तो अपने म से तुम भी ह तनापुर को भ य बना


सकते हो।’’

‘‘म तो पांडव क ह ती िमटाकर ही संतु होऊंगा।’’ दयु धन ने दांत भ चकर कहा, ‘‘तुम
देख रहे थे न िक राजे-महाराजे िकस कार पांडव का गुणगान कर रहे थे। िव व के सम त
भाग से राजा बड़े-बड़े उपहार लेकर इं थ पहच
ं े थे। सोचने क बात यह है िक अगर सभी
बड़े-बड़े राजा उनके प म हो गए तो हमारा या होगा? हम तो एकदम अकेले पड़ जाएंग।े
मामा! यिद शी ही पांडव के िवनाश का कोई उपाय नह सोचा गया तो उनका वैभव और
यश देखते-ही-देखते बढ़ जाएगा।’’

‘‘यह सब सोचने से या लाभ दयु धन! उन पर भगवान क कृपा है।’’

‘‘आप कु छ भी किहए, जब तक म उ ह नीचा नह िदखाऊंगा, तब तक मुझे शांित नह


िमलेगी।’’

‘‘तुम उनका कु छ नह िबगाड़ सकते। पांच भाई वीर ह और उनके पास देवताओं के िद य
अ -श ह। यु म उनसे िवजय पाना एकदम किठन है।’’

‘‘तो आप ही कोई उपाय बताइए मामा! अ यथा म जीिवत नह रहग


ं ा। इस अपमान के
प चात् तो मेरी जीिवत रहने क इ छा ही नह रही है।’’

‘‘िनराश मत हो दयु धन!’’ कु छ सोचकर शकु िन बोला, ‘‘उनसे अगर जीतना ही चाहते हो
तो चालाक से काम लेना होगा। पांडव को नीचा िदखाने का एक ही उपाय है िक उन पर धोखे
से वार िकया जाए।’’

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‘‘कु छ भी क जए मामा! िकंतु उनका वैभव अव य समा क जए।’’ दयु धन बोला,
‘‘उफ! म कैसे बताऊं आपको िक वे िकस कार हंस रहे थे मुझ पर। ौपदी क हंसी तो मेरे
कान को अब तक लावे क कार जला रही है।’’

‘‘ह।ं ’’ शकु नी बोला, ‘‘एक योजना है मेरे म त क म। तुम तो जानते हो िक यु धि र को


जुए के खेल का बड़ा शौक है, जबिक जुए म वह एकदम अनाड़ी है। बस, िकसी कार उसे
ह तनापुर बुलवाओ, िफर देखना म देखते-ही-देखते उसक या हालत बनाता ह।ं ’’

दयु धन को शकु िन क योजना पसंद आ गई। बोला, ‘‘ठीक है, आप िकसी कार िपता ी
को राजी क जए िक वे पांडव को आमंि त कर, म तो उनसे बात भी नह करना चाहता।’’

‘‘यही होगा। अब स हो जाओ। ह तनापुर पहच


ं ते ही म तु हारी सारी िचंताओं को दरू
कर दग
ं ू ा।’’

□□

शकु िन अवसर िमलते ही धृृतरा से िमला। शकु िन के म त क म पूरी योजना बन चुक


थी।

धृतरा ने उससे पूछा, ‘‘कहो शकु िन! इं थ का या हाल है?’’

‘‘पांडव ने तो कमाल ही कर िदया महाराज! उ ह ने इं थ को बहत ही खूबसूरत बनाया


है।’’

‘‘और राजसूय य कैसा रहा?’’

‘‘बहत ही सफल, दर-द


ू रू के नरे श इं थ पहच
ं े थे। बड़ी रौनक थी वहां, िकंतु...।’’

‘‘िकंतु या?’’

‘‘दयु धन स नह है।’’ शकु िन ने धीरे से कहा, ‘‘वह जब से इं थ से लौटा है, तब से


ख है, चेहरा पीला पड़ गया है और शरीर मुरझा गया है। ने से न द गायब हो गई है।

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खाना-पीना छोड़ िदया है। मुझे तो लगता है िक उसका म त क दःु ख से बो झल है।’’

धृतरा घबरा गए। बोले, ‘‘ य ?’’

‘‘कु छ कह नह सकता महाराज! कृपया आप दयु धन को बुलाकर पूछ िक या बात है?’’

थोड़ी देर बाद ही दयु धन उनके सामने उप थत हो गया।

धृतरा बोले, ‘‘मने सुना है इं थ से लौटकर तुम अ व थ हो गए हो? या बात है?’’

दयु धन ने मुंह बनाकर कहा, ‘‘तो या वहां से लौटकर म खुिशयां मनाता? पांडव ने इन
थोड़े से िदन म ही जो गित क है, उसे देखकर म कैसे स रह सकता ह,ं अंततः वे हमारे
श ु ह।’’

‘‘यह तु हारा वहम है दयु धन!’’ धृतरा बोले, ‘‘उिचत यही है िक तुम लोग िमल-जुलकर
रहो।’’

‘‘यह उपदेश आप अपने पास र खए।’’ दयु धन बोला, ‘‘मुझे तब तक चैन नह पड़ेगा, जब
तक ह तनापुर म भी पांडव जैसा सभागार न बनवा लूं। आप तुरंत कारीगर को आदेश
दी जए िक ह तनापुर म ऐसा भवन बनाएं, जसक दीवार को देखकर ार का म हो, फश
को देखकर लोग समझ िक सरोवर है और सरोवर देखकर लगे िक फश है, तािक लोग धोखे
से िगर जाएं। अंततः हम उनसे िकस बात म कम ह। हम अपने श ुओं से बढ़-चढ़कर रहना
चािहए। िफर हम भी उस सभागार म पांडव को आमंि त करगे।’’

धृतरा मना न कर सके। उ ह ने ऐसा ही सभागार बनाने का आदेश दे िदया। हजार


कारीगर रात-िदन लगकर सभागार को बनाने लगे।

जब सभागार बन गया तो धृृतरा ने िवदरु से कहा, ‘‘इं थ जाकर पांडव को ले


लाओ।’’

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िवदरु जाना नह चाहते थे, य िक उ ह पता था िक यहां पांडव के िव दयु धन ने ष ं
रचा है। जुए के खेल क भनक उनके कान म भी पड़ चुक थी, िकंतु धृतरा क बात टालना
भी उिचत नह था, इस लए वे इं थ को रवाना हो गए।

□□

इं थ म महिष यास पधारे हए थे। उ ह ने यु धि र को राजसूय य क सफलता पर


बधाई दी और बोले, ‘‘भिव य म म कु छ अशांित देख रहा ह।ं अगले तेरह वष िवप पूण ह,
इस लए सतक रहने क आव यकता है।’’

यु धि र बोले, ‘‘यह तो बहत ही िचंता क बात है। राजा होने के नाते मेरा कत य है िक
इन तेरह वष ं को शांितमय बनाए रखने का यास क ं , इस लए आज से म ित ा करता हं
िक म िकसी के साथ भी कटु वचन नह बोलूंगा, य िक कटु वचन से ही िवप उ प होती
है।’’

थोड़े िदन के बाद ही िवदरु इं थ पहच


ं े।

यु धि र ने उनका वागत िकया।

िवदरु बोले, ‘‘तुम लोग को महाराज धृतरा ने आमंि त िकया है। ह तनापुर म एक भ य
भवन का िनमाण िकया गया है। वहां अनेक राजाओं-राजकु मार को िनमंि त िकया गया है,
तािक सभी भवन क भ यता देख और वहां आनंद मनाएं। तुम लोग भी अपने भाइय , प नी व
माता के साथ वहां पहच
ं ो। उस नए भवन म तुम जुआ भी खेलोगे।’’

यु धि र को आ चय हआ िक अचानक ह तनापुर से यह यौता कैसे पहच


ं गया। उ ह कु छ
संदेह तो हआ, िकंतु वयं िवदरु उ ह बुलाने आए थे, इस लए उ ह ने जाना वीकार कर लया।

िवदरु ने कहा, ‘‘मुझे जो सूचना तुम तक पहच


ं ाने का आदेश िदया गया था, वह मने पहच
ं ा
दी, िकंतु मुझे यह आयोजन िनरथक महसूस हो रहा था। इस लए तुम चाहो तो महाराज का

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िनमं ण अ वीकार भी कर सकते हो।’’

यु धि र कु छ पल तक शांत रहे। उ ह महिष यास क चेतावनी अभी तक याद थी। वे


जानते थे िक भिव य म जो कु छ घटने वाला है, उसे रोका नह जा सकता। वहां जाकर जुआ
खेलना हािनकारक हो सकता है, इसका भी डर था, िफर भी वे बोले, ‘‘महाराज धृतरा ने
आपके हाथ िनमं ण भेजा है, इस लए वहां न जाना अभ ता होगी। हम अव य ह तनापुर
चलगे।’’

□□

ह तनापुर म पांडव का पूव आयो जत वागत िकया गया।

पांडव अपने सगे-संबं धय के बीच पहच


ं कर बड़े स थे। वे महाराज धृतरा सिहत सबसे
नेह से िमले।

पहला िदन तो उनका सबसे िमलने-िमलाने व खाने-पीने म यतीत हो गया। रात को उ ह


आरामदायक िब तर पर सुलाया गया।

दसरे
ू िदन सुबह होते ही पांडव को नए भवन म जुआ खेलने के लए बुलवाया गया।

ह तनापुर के नए सभागार म सारे अित थ पधार चुके थे। सभी सभागार क शोभा क मु
कंठ से शंसा कर रहे थे। अित थय म राज-रजवाड़ के अलावा कई गणमा य यि
स म लत थे। एक ओर दयु धन अपने भाइय व मामा शकु िन के साथ बैठा था तो दसरी
ू ओर
यु धि र अपने भाइय के साथ।

धृतरा ने जुए का खेल आरं भ करने क अनुमित दी। संजय पास बैठा उ ह आंख देखा
हाल सुना रहा था। िवदरु व भी म क आंख म िचंता छाई हई थी।

यु धि र जुए के शौक न अव य थे, िकंतु आज उनका िदल बैठा जा रहा था। उ ह ने


कौरव से कहा, ‘‘वैसे जुआ खेलना भले ही अनुिचत न हो, लेिकन इसके खेलने म तभी

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आनंद आता है, जब कोई बेईमानी नह क जाए।’’

‘‘ या कहते ह राजन!’’ शकु िन बोला, ‘‘आप तो वयं इस खेल म कु शल ह। भला कु शल


खलािड़य के साथ कोई या बेईमानी कर सकता है! अगर आपको हम लोग क नीयत पर
संदेह है तो जुआ खेलने क आव यकता नह ।’’

‘‘नह , जब हमने िनमं ण वीकार कर लया है तो िबना खेले हम यहां से नह जाएंग।े ’’


यु धि र बोले, ‘‘हम िकसके साथ जुआ खेलना है?’’

दयु धन बोला, ‘‘शकु िन मामा के साथ। वे ही हमारी ओर से आप लोग के साथ खेलगे।’’

यह खेल के िनयम के िव था, लेिकन यु धि र ने दयु धन क बात चुपचाप वीकार कर


ली।

यु धि र जुआ खेल क भावना से खेलने आए थे, जबिक शकु िन पहले ही यह िनणय


करके आया था िक िकसी भी कार पांडव को मात देनी है। यु धि र ने आरं भ म जो दांव
लगाए, शकु िन ने उन पर चुटिकय म अपना अ धकार जमा लया। इस हार से यु धि र ने नए
उ साह से दांव लगाया। हारी हई हर बाजी के साथ वे अपना िववेक खोते जा रहे थे। इसका
प रणाम यह िनकलता था िक शकु िन उ ह आसानी से मात देता जा रहा था। वह यु धि र को
बौखलाने के लए हर नई बाजी खेलने के साथ स ता से बोल पड़ता था, ‘‘यह दांव तो म ही
जीतूंगा।’’ और सचमुच जीत भी जाता था।

यु धि र वण मु ाएं, आभूषण आिद हार गए तो उ ह ने हाथी-घोड़ व गाय-भस को दांव


पर लगा िदया। शकु िन ने उन पर भी अपना अ धकार जमा लया। यु धि र ने अपना सब कु छ
दांव पर लगा िदया। सब कु छ धीरे -धीरे शकु िन ह थयाता चला गया। सारी सभा म स ाटा छा
गया था। यु धि र के मुख पर हवाइयां उड़ रही थ । वे गहरे िवचार म खोए हए थे।

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शकु िन उ ह शांत देखकर बोला, ‘‘ या हआ राजन! हाथ कैसे ख च लए? ओहो! लगता
है अब आपके पास दांव पर लगाने को कु छ नह रहा। या खेल बंद कर िदया जाए?’’

हारा हआ जुआरी यह सहन नह कर सका। बोला, ‘‘नह , खेल जारी रहेगा। मेरे पास अभी
बहत कु छ है। लो, म रा य क भूिम दांव पर लगाता ह।ं ’’

यह बाजी भी शकु िन के हाथ लगी। बोला, ‘‘अब?’’

‘‘मेरे सैिनक, मेरी जा, मेरे सेवक-सेिवकाएं।’’

शकु िन ने यह सब भी जीत लया। िफर पूछा, ‘‘अब या लगाते हो?’’

यु धि र पल भर के लए सोच म पड़ गए।

धृतरा अपने पु क जीत से स थे, िकंतु उ ह यह सब अ छा नह लग रहा था। िवदरु


ने धीरे से उनसे कहा, ‘‘यह खेल अब रोक दी जए, कह ऐसा न हो िक इसका अंत हमारे वंश
के नाश के साथ हो। मुझे लगता है इससे हमारा भला नह होगा।’’

धृतरा को वयं यही अनुभव हो रहा था, िकंतु दयु धन को िवदरु क बात पसंद नह आई।
वे बुरा-सा मुंह बनाकर बोले, ‘‘िवदरु तो ऐसा कहगे ही। वे तो पांडव के आरं भ से ही प पाती
रहे ह। उनसे अगर पांडव क हार देखी नह जाती तो वे शौक से यहां से जा सकते ह।’’

‘‘यही ठीक है। अगर मेरा सुझाव तुम लोग को पसंद नह तो म जा रहा ह।ं ’’ िवदरु अपने
आसन से उठकर बोले, ‘‘िकंतु याद रहे इस जुए का प रणाम अ छा नह िनकलेगा।’’

इतना कहकर िवदरु आगे कु छ नह बोले, िकंतु धृतरा अपने पु क इ छा के िव कोई


आचरण नह करना चाहते थे, इस लए उ ह ने खेल जारी रहने का आदेश िदया। िवदरु मन
मारकर िफर बैठ गए।

यु धि र के पास अब दांव पर लगाने को कु छ नह रह गया। एकाएक उनक ि पास बैठे


नकु ल पर चली गई, बोले, ‘‘लो, म अपने भाई को दांव पर लगाता ह।ं ’’

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अगले पल ही नकु ल को शकु िन ने जीत लया। नकु ल सर झुकाकर शकु िन क बगल म
जा बैठा।

यु धि र ने सहदेव को भी दांव पर लगा िदया और शकु िन ने उसे भी अपनी संप बना


लया। िफर बोला, ‘‘वाह राजन! आपक बुि का भी जवाब नह । अपने सौतेले भाइय को तो
दांव पर लगा िदया परं तु...।’’

यु धि र आवेश म आकर बोले, ‘‘शकु िन! हम भाइय म फूट डालने क आव यकता


नह । लो, म अपने वीर भाई अजुन को दांव पर लगाता ह।ं ’’

‘‘वाह-वाह! आप ध य ह। मुझे मा कर दी जए, मने अनिभ ता म ही ऐसा कह िदया।’’


बाजी चलकर शकु िन बोला, ‘‘ली जए, अजुन को भी मने जीत लया।’’

अजुन भी चुपचाप उठकर शकु िन के पास जा बैठा।

िफर यु धि र ने न केवल इनको, ब क भीम व वयं को भी दांव पर लगा िदया और बाजी


हारकर शकु िन के बन गए। शकु िन के चेहरे पर कु िटल मु कान थी। यु धि र का सर नीचे
झुक गया था। शायद वे सोच रहे थे िक उनके पास कु छ और होता तो उसे भी बाजी पर लगा
देते, शायद इस बार हमारी जीत होती।

शकु िन धीरे -धीरे बोला, ‘‘एक व तु और रह गई। ौपदी! चाहो तो उसे भी दांव पर लगा दो,
शायद भा य इस बार तु हारा ही साथ दे।’’

यु धि र ने जीत क आशा म ौपदी को भी दांव पर लगा िदया। शकु िन क चाल के आगे


ौपदी भी न बच सक । अगले पल ही ौपदी पर कौरव का अ धकार हो गया था।

सभागार म अजीब-सा शोर मच गया। वहां बैठे लोग को जुए के ये दांव-पच पसंद नह
आए। िवशेषकर ौपदी को बाजी पर लगा देना तो कोई भी सह न सका, परं तु िकसी को िवरोध
करने का अ धकार नह था। िवदरु और भी म के सर झुक गए थे। कौरव के मुख पर िवजय

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क मु कराहट थी। कण और दयु धन मन-ही-मन फूले नह समा रहे थे। संजय मौन था,
धृतरा इस शोर म समझ नह सके िक या हआ? या उनके पु ने पांडव पर अ धकार
जमा लया। वे बोले, ‘‘ या बात है संजय? तुम शांत य हो गए‒ या ब च ने ौपदी भी
जीत ली?’’

‘‘जी राजन!’’ संजय के मुख से धीरे से िनकला।

‘‘ओह!’’ धृतरा स थे िक चलो दयु धन ने कह तो िवजय ा क।

दयु धन ने शकु िन को अपनी बांह म भर लया। वह चीखकर बोला, ‘‘वाह मामा! तु हारा
जवाब नह , जुआ खेलने म तु हारा कोई मुकाबला नह कर सकता। अब पांडव का सब कु छ
हमारा है, पांडव भी हमारे ह। हमारे दास। ौपदी भी हमारी दासी है।’’

िवदरु यह सब सह नह सके और बोले, ‘‘दयु धन! इतना बढ़-चढ़कर मत बोलो िक बाद म


ऊपर भी न उठ सको। तुमने जो कु छ िकया है, वह ठीक नह िकया। एक िदन तु ह पछताना
पड़ेगा। तुमने शेर को छे ड़ा है।’’

दयु धन बोला, ‘‘इन बात म कु छ नह रखा। अब आप कृपया ौपदी को जाकर यह सूचना


द िक पांडव उसे हार चुके ह, वह हमारी दासी बन चुक है। जाइए, उसे सभागार म बुला
लाइए।’’

‘‘मुझसे धम के िव आचरण नह िकया जाएगा।’’ िवदरु बोले, ‘‘तुम मानवता से िगर


चुके हो।’’

‘‘आपका दःु ख म समझ रहा ह।ं ’’ दयु धन ने कहा, ‘‘ठीक है, आप मत जाइए। म अभी
उसे बुलवाता हं और झाडू लगाने का आदेश देता ह।ं ’’

यह कहकर दयु धन ने एक सेवक को ौपदी के पास भेजा िक वह उसे बुला लाए। सेवक
ौपदी के पास पहच
ं ा और आंख झुकाकर जुए का समाचार सुनाकर सभागार चलने का

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िनवेदन िकया। ौपदी तो जैसे आसमान से िगरी, िफर संभलकर बोली, ‘‘जाओ, पहले यह
पूछकर आओ िक यु धि र पहले वयं हारे थे या पहले मुझे दांव पर लगाया था।’’

सेवक चुपचाप वापस लौट आया और दयु धन के सामने ौपदी का न दोहरा िदया।

दयु धन ोध से बोला, ‘‘उससे कहो िक पहले यहां आए, िफर उसे अपने न का उ र
िमल जाएगा, जाओ।’’

सेवक सर झुकाए खड़ा रहा। उसक िह मत नह हई िक वह पुनः उस सती के पास जाए।


दयु धन उसे चुपचाप खड़ा देखकर एकदम आपे से बाहर हो गया। वह अपने भाई दःु शासन से
बोला, ‘‘तु ह जाओ ौपदी के पास। यह सेवक शायद पांडव से डर रहा है, परं तु पांडव हमारे
दास ह, वे हमारा कु छ नह कर सकते। जाओ, शी ता से ौपदी को यहां ले आओ। उसे बता
देना िक वह हमारी दासी है और अगर उसने आने से मना कर िदया तो उसका प रणाम बुरा
होगा।’’

दःु शासन एक पल भी वहां न का और तेज-तेज पग रखता हआ ौपदी के पास पहच


ं ा।
ौपदी ने आंख उठाकर दसरी
ू ओर देखा। पूछा, ‘‘ य आए हो?’’

‘‘तु ह यु धि र जुए म हार चुके ह, चलो।’’

ौपदी बोली, ‘‘पहले मुझे उ र दो िक यु धि र ने मुझे कब दांव पर लगाया था‒ वयं हारने
से पहले या बाद म?’’

‘‘तु ह या मतलब इस बात से?’’

‘‘मतलब है!’’ ौपदी बोली, ‘‘अगर यु धि र ने वयं को हारने के बाद मुझे दांव पर
लगाया है तो म नह चलूंगी। हारा हआ यि मुझे कैसे दांव पर लगा सकता है?’’

‘‘यह िनरथक बात बंद करो। अब तुम हमारी दासी हो। चुपचाप मेरे साथ चलो।’’

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ौपदी को िहलते न देखकर दःु शासन आगे बढ़ा। जैसे ही दःु शासन ने उसका हाथ पकड़ना
चाहा, वह तेज वर म बोली, ‘‘खबरदार! मुझे हाथ मत लगाना। म रज वला ह,ं साथ नह
चल सकती।’’

दःु शासन पर इन बात का कोई भाव न पड़ा। वह ौपदी के िनकट पहच


ं ा, परं तु ौपदी
िछटककर दरू खड़ी हो गई। वह गांधारी के पास जाकर आ य लेना चाहती थी, िकंतु दःु शासन
उसक चाल समझ गया। दःु शासन ोध से आग-बबूला हो गया। उसने ौपदी को बाल से
ख च लया और उसे घसीटते हए सभागार क ओर ले जाने लगा। ौपदी अपनी िववशता पर
रो पड़ी। वह ससकती हई बोली, ‘‘दःु शासन! यह अनथ मत करो, मेरे शरीर पर पूरे व भी
नह ।’’

‘‘म कु छ नह जानता, तुम हमारी दासी हो। तु ह मेरे साथ चलना ही होगा।’’ यह कहते हए
दःु शासन ौपदी को घसीटते हए सभागार म ले आया।

सभागार म बैठे लोग दःु शासन के इस कृ य से बड़े ममाहत हए। पांडव क तो ल जा के


मारे पहले ही ि झुक हई थी। हां, दयु धन अपने भाइय व कण के साथ स था। भी म,
िवदरु एवं अ य वृृ लाचार से बैठे थे।

ौपदी उन सबके बीच लाज और क णा क साकार ितमा बनी खड़ी थी। बाल िबखरे हए
थे और आंख से आंसू बह रहे थे। सबको शांत देखकर वह ु ध वर म बोली, ‘‘एक नारी
पर खुलेआम अ याचार हो रहा है और आप लोग शांत बैठे ह। या िववेक और मानवता
संसार से िवलु हो गई है? मेरे पांच-पांच पित ह और वे भी चुपचाप मेरा अपमान सह रहे ह।
या हो गया है आप सब लोग को?’’

सभागार म कोई भी ौपदी को उ र नह दे सका। हां, कौरव म अव य हंसी क लहर दौड़


गई। कण वयंवर म हए अपने अपमान को अभी भूला नह था, वह ौपदी को दासी के पम
देखकर खूब स हआ। दयु धन, दःु शासन और शकु िन अपनी सफलता पर फूले नह समा

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रहे थे। हां, दयु धन का एक भाई िवकण इस अ याचार से अव य अ स था। वह बोला,
‘‘सुिनए भ जनो! ौपदी ने जो न पूछा था, उसका अब तक उसे उ र नह िमला। पहले उसे
न का उ र दी जए, तभी यह िनणय हो सकेगा िक वह दासी है िक नह ।’’

इस पर भी म बोले, ‘‘पांचाली! तु हारा न उिचत है, परं तु उससे अब थित म कोई अंतर
पड़ने वाला नह । यह सही है िक यु धि र ने पहले वयं हारकर तु ह दांव पर लगाया था,
िकंतु प नी पर तो हर थित म पित का ही अ धकार रहता है, चाहे वह वयं को हार चुका हो
या न हार चुका हो। अतएव यु धि र को तु ह दांव पर लगाने का पूरा अ धकार था।’’

‘‘आप ठीक कहते ह, परं तु पांडव को यहां बुलाकर उ ह धोखे से परा जत िकया गया है।
शकु िन ने जुए म बेईमानी क है। धृतरा पु क भलाई के लए शांत ह और कौरव हमारा
नाश करने पर तुले ह। यहां इतने सारे बुि मान लोग बैठे ह, या कोई भी हम याय नह िदला
सकता?’’ ौपदी का ममभेदी वर सभागार म गूज
ं उठा। आंख से अिवरल आंसू बह रहे थे।

भीम से यह देखा नह गया। वह यु धि र पर िबफर पड़ा, ‘‘यह कैसा जुआ खेला ाता ी?
तुमने सब कु छ गंवा िदया। धन-संप , रा य के नाग रक, हमारी सम त सेिवकाएं-सेवक, हम
सबको और प नी को भी। मेरा तो जी चाहता है िक तु हारे इन हाथ को ही जला दं ू या मुझे
आदेश दो िक इन अ याचा रय को अपने िकए का मजा चखा द।ं ू ’’

यु धि र से कु छ बोला नह गया। अजुन ने धीरे से कहा, ‘‘भीम! शांत हो जाओ, ोध


करने का कोई लाभ नह । अगर हम ऐसी बात करगे तो श ुओं को ही लाभ होगा।’’

कण बोला, ‘‘अब शोक करने का लाभ नह । यु धि र ने होशो-हवास म ौपदी को दांव


पर लगाया है, अब वह कौरव क दासी है। पांडव हमारे दास ह। उिचत यही है िक पांडव
अपने राजसी व उतार द।’’,

पांडव ने अपने व उतारकर साधारण व पहन लए। ौपदी सभागार म चुपचाप खड़ी
अपने भा य को रो रही थी। दयु धन ने उसे घूरकर देखते हए कहा, ‘‘तुम भी अपने व बदल

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लो।’’

‘‘नह ।’’ ौपदी चीखकर दो कदम पीछे हट गई।

‘‘दःु शासन! देखते या हो।’’ दयु धन बोला, ‘‘ ौपदी क साड़ी उतार दो।’’

दःु शासन से ौपदी का यह इनकार सहा नह गया। वह लपककर ौपदी के पास पहच
ं ा और
उसक साड़ी ख चने लगा।

ौपदी लाज और अपमान से दोहरी हो गई। वह सुबकती हई बोली, ‘‘मेरे चार ओर बड़े-
बड़े वीर और वृ बैठे ह, पित बैठे ह, िकंतु आज एक नारी को बचाने वाला कोई नह । उफ!
म या क ं ? हे भगवान! तू ही मेरी र ा कर।’’

दःु शासन पर उसके शोक का कोई भाव नह हआ। वह साड़ी को ख चने लगा, िकंतु ौपदी
क पुकार भगवान ने सुन ली थी। ौपदी क आंख ल जा से बंद हो चुक थ , िकंतु दःु शासन
साड़ी ख चते-ख चते थक गया। वह पूरी साड़ी ौपदी के शरीर से उतार नह सका। साड़ी क
लंबाई लगातार बढ़ती ही जा रही थी। सभागार म सािड़य के ढेर लग गए, दःु शासन साड़ी
उतारते-उतारते पसीने से लथपथ हो गया, िकंतु ौपदी अब तक साड़ी से लपटी हई थी। उसक
बंद आंख के सामने भगवान ीकृ ण का प उभर आया था, जो मु कराते हए उसे सां वना
दान कर रहे थे।

सभागार म उप थत लोग इस चम कार को देखकर चिकत रह गए थे। दःु शासन थक-


हारकर बैठ गया था, िकंतु कौरव क अब भी आंख नह खुली थ । वे पांडव को अपमािनत
करने का यह अवसर हाथ से गंवाना नह चाहते थे।

दयु धन बोला, ‘‘अगर पांडव ाता आज से यह वचन द िक वे यु धि र के िनदश का


पालन करगे तो हम अभी ौपदी को छोड़ दगे।’’

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पांडव मौन रहे। भीम दांत पीसकर बोला, ‘‘तुम लोग आज मनमानी कर लो, िकंतु एक िदन
म इसका आनंद अव य चखाऊंगा। अगर यु धि र मुझे अभी यह िनदश द िक तुम लोग का
नाश कर डालूं तो म अव य पालन क ं गा।’’

कौरव उसक बात सुनकर हंस पड़े। दयु धन ने ौपदी को गोद म आकर बैठने का इशारा
िकया। भीम ोध से कांपता हआ बोला, ‘‘दयु धन! यह याद रखना िक एक िदन तु हारी जांघ
को अपनी गदा से टु कड़े-टु कड़े कर दग
ं ू ा। यह मेरा ण है।’’

िवदरु चुपचाप यह सब देख रहे थे। उनसे सहा नह गया। वे बोले, ‘‘अब बंद करो यह सब
नाटक कौरवो! तुम लोग भले ही पांडव का बुरा चाहो, िकंतु भगवान के कोप से डरो।’’

धृतरा अपने पु के प पाती थे, िकंतु उ ह भी यह अित पसंद नह आई। उ ह ने ौपदी से


कहा, ‘‘यह सही है िक पांडव यहां सब कु छ हार चुके ह, िफर भी तुम जो चाहो, मुझसे मांग
लो।’’

ौपदी ने क ण ि से धृतरा क ओर देखा और िफर बोली, ‘‘म तो केवल यही चाहती


हं िक यु धि र को मु कर िदया जाए।’’

‘‘ वीकार है। और या चािहए?’’

‘‘उनके शेष भाइय को भी मु कर दी जए।’’

‘‘यह भी वीकार है।’’ धृतरा बोले, ‘‘और या चाहती हो?’’

‘‘बस, मुझे और कु छ नह चािहए।’’ ौपदी क आंख से स ता के आंसू छलक आए।

धृतरा को मन-ही-मन लग रहा था िक आज क घटना से कह उनके पु का अनथ न हो


जाए। सभागार म जो चम कार हआ था, उसे संजय के मुंह से सुन चुके थे। उ ह पांडव क
शि व अपने पु क हीनता का ान था, इस लए बोले, ‘‘यु धि र! मने ौपदी के दोन
अनुरोध तो वीकार कर लए, अब म तु ह जुए म हारा सब कु छ वापस करता ह।ं यहां जो

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कु छ हआ, उसे भूल जाओ। कौरव ाताओं के लए मन म कोई दभु ावना मत लाओ। अंततः
तुम दोन एक ही वंश के हो, िमल-जुलकर रहो। अब तुम सीधे इं थ जाओ और पहले क
कार राज करो।’’

पांडव कु छ नह बोले। उ ह ने व पहने, ौपदी को साथ लया व सबसे िवदा लेकर अपने
रथ म बैठकर इं थ क ओर चल पड़े।

पांडव के जाते ही दयु धन, कण व शकु िन आिद के चेहरे लटक गए। धृतरा का िनणय
उ ह पसंद नह आया। उ ह ने छल-कपट से पांडव का सव व ा कर लया था, िकंतु
धृतरा ने पलक झपकते सब कु छ उ ह वापस कर िदया। जीती हई बाजी हाथ से िनकल चुक
थी।

दयु धन हाथ मलता हआ धृतरा से बोला, ‘‘यह आपने या िकया? आप अ छी कार


जानते ह िक पांडव हमारे श ु ह। हाथ म आए श ुओं को छोड़ देना कहां क बुि म ा है। अब
वे यहां से अपमािनत होकर गए ह, वे अव य इसका बदला लेने का यास करगे। मुझे तो
लगता है, वे अवसर पाते ही अव य हमारा अिहत करगे। सांप का फन कु चलने से पहले ही
सांप को छोड़कर आपने अ छा नह िकया।’’

धृतरा ने तो वैमन य को समा करने के लए पांडव को सस मान वापस भेज िदया था,
िकंतु दयु धन क बात से वे िफर िचंितत हो गए। वे धीरे से बोले, ‘‘तो अब या करना
चािहए?’’

दयु धन सोच म पड़ गया। उसने शकु िन व कण से कु छ देर तक िवचार-िवमश िकया। अंत


म कण ने कहा, ‘‘हम कु छ-न-कु छ अव य करना चािहए, अ यथा वे लोग हमारा नाश कर
डालगे।’’

दयु धन बोला, ‘‘कण सच कहता है। वे इं थ पहच


ं ते ही अपनी सेना एक करगे और
ह तनापुर पर आ मण कर दगे। पांडव अपने अपमान का बदला अव य लगे। भीम तो यह

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पर चीख रहा था िक वह हम सबको मारकर ही दम लेगा।’’

धृतरा डर गए। उ ह न अपने पु क यो यता पर भरोसा था, न अपनी सेना क कु शलता


पर। वे बोले, ‘‘पांडव के आ मण करने से पहले ही हम कोई उपाय सोचना चािहए।

तभी शकु िन ने दयु धन के कान म फुसफुसाकर कु छ कहा।

‘‘उपाय है राजन!’’

दयु धन ने पूछा, ‘‘ या?’’

‘‘यही िक उ ह पहच
ं ने से पहले ही पुनः ह तनापुर जुआ खेलने के लए बुलाया जाए। इस
बार हम उ ह बच िनकलने का कोई अवसर नह दगे।

‘‘िकंतु इस अपमान के बाद या वे पुनः आएंग?


े ’’

‘‘इं थ पहच
ं कर शायद न आएं, िफलहाल वे हमारे रा य क सीमा म ही ह गे, इस लए
आपके आदेश का उ ंघन करने का साहस नह कर सकगे। आप शी ता से संदेशवाहक को
उस ओर भेज द।’’

‘‘िकंतु...।’’

‘‘इस िकंतु क िचंता मत क जए। सारी थित हम संभाल लगे। शकु िन मामा के रहते वे
हमसे जुए म जीत नह सकते ह।’’

धृतरा ने उसी समय एक संदेशवाहक को पांडव के पीछे दौड़ा िदया। दयु धन के मुख पर
कु िटल मु कान छा गई। माता गांधारी को यह सब पसंद नह आया। वह धृतरा से बोली,
‘‘यह अ याय है राजन! संदेश वाहक को वापस बुला ली जए। आपके पु जो चाहते ह, उससे
हमारा भला नह होगा। या आप भूल गए िक दयु धन के उ प होने पर अपशकु न हए थे।
दयु धन ही हमारे वंश के नाश का कारण बनेगा। िवदरु ने उसके उ प होते ही कह िदया था
िक इस ब चे को फक दो।’’

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धृतरा िववश से बोले, ‘‘म अपने पु को अ स नह कर सकता और िफर अगर हमारे
वंश का नाश होना ही है तो िव ध के इस िवधान को कोई कैसे टाल सकता है। एक बार और
होने दो जुए का खेल।’’

उधर पांडव बीच रा ते म ही थे िक संदेशवाहक उनके पास जा पहच


ं ा। वह यु धि र से
बोला, ‘‘राजन! मुझे महाराज धृतरा ने भेजा है। उ ह ने कहा है िक आप लोग इसी समय
ह तनापुर लौट चल और जुए का खेल पुनः खेल।’’

पांडव यह आदेश सुनकर आ चयचिकत रह गए। यु धि र क समझ म नह आया िक वे


या कर। उ ह ने एक बार ौपदी एवं भाइय क ओर देखा। वे यु धि र का िनणय जानने के
लए उ सुक थे। जुआ सवनाश क जड़ है, लेिकन यु धि र को आशा थी िक शायद इस बार
उनका दांव जम जाए। यु धि र धीरे से बोले, ‘‘न जाने भगवान क या इ छा है। हम
ह तनापुर वापस चलना ही चािहए और पुनः जुआ खेलना चािहए। अंततः एक राजा का
आदेश हम कैसे टाल सकते ह।’’

इस लए वे उसी पल ह तनापुर वापस लौट चले।

ह तनापुर म जुए क सारी तैयारी क जा चुक थी। बस, पांडव क ती ा थी। पांडव के
बैठ जाने पर उनके दसरी
ू ओर शकु िन बैठा।

शकु िन बोला, ‘‘यु धि र! महाराज धृतरा ने तुम लोग को हारा हआ सम त रा य लौटा


िदया, हम इस बारे म कु छ नह कहना महाराज को ऐसा करने का पूरा अ धकार है। अब हम
पुनः जुआ खेल रहे ह। इस बार जुए म कु छ भी दांव पर लगाने क आव यकता नह । बस,
एक वचन है, जसका हारने वाले को पालन करना होगा।’’

‘‘कैसा वचन?’’

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‘‘जो बाजी हारे गा, वह बारह वष के लए वन म सामा य जन क भांित रहेगा और तेरहवां
वष अ ातवास म यतीत करना होगा। अ ातवास म यह शत है िक अगर हारा हआ पहचाना
गया तो उसे तेरह वष के लए िफर िन का सत जीवन यतीत करना पड़ेगा। अगर म हार गया
तो कौरव यह वचन पालन करगे और अगर तुम हार गए तो तुम लोग इस वचन का पालन
करोगे। बोलो, वीकार है!’’

‘‘ वीकार है।’’ यु धि र ने त काल उ र िदया।

‘‘तो लो, बाजी संभालो।’’

यह कहकर शकु िन ने बाजी चलाई और अगले पल ही चीख पड़ा, ‘‘म जीत गया।’’

यु धि र ने िनराशा से देखा‒पासे पलट चुके थे, जीत शकु िन क हई थी। इस लए वे


वचनानुसार राज-पाट छोड़कर वन-गमन को िववश हो गए।

कौरव अपनी िवजय पर स हो गए। दःु शासन पांडव का अपमान करने का यह अवसर
गंवाना नह चाहता था। वह बोला, ‘‘ओ ौपदी! तुम भी कैसे पितय के बीच फंस गई, जो
तु हारी र ा भी नह कर सके, ब क जुए के दांव पर भी लगा िदया। अ छा तो यह है िक इ ह
छोड़कर हमम से िकसी को पित चुन लो, कम-से-कम तु ह जुए म दांव पर तो नह लगाएंग।े ’’

भीम ोध से िबफर पड़ा, ‘‘दःु शासन! एक िदन तु ह इस द ु ता का आनंद अव य


चखाऊंगा। तु हारी छाती तीर से बेध दग
ं ू ा।’’

‘‘हो-हो-हो!’’ दःु शासन हंस पड़ा। दयु धन ने भी अपनी यं योि य से पांडव का दय


िवदीण कर िदया।

पांच भाई उनक चाल पर ु ध हो गए। उ ह ने मन-ही-मन तय कर लया िक वे इस


अपमान का बदला अव य लगे।

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अब उनसे ह तनापुर म एक पल के लए भी का नह गया, उ ह ने सामा य जन क तरह
व धारण िकए और गु जन से िवदा ली।

िवदरु ने उ ह आशीवाद देते हए कहा, ‘‘व स! जाओ, भगवान तुम लोग क सहायता
करगे। माता कुं ती को मेरे घर छोड़ जाओ, उनसे वनवास का क सहा नह जाएगा। जब तक
तुम लोग वापस नह आओगे, तब तक म उनक देखभाल क ं गा।’’

पांडव ने िवदरु क आ ा िशरोधाय कर ली। माता कुं ती को िवदरु के यहां छोड़कर वे भरे
दय से ह तनापुर से िवदा हो गए।

□□

धृतरा मन-ही-मन अनुभव कर रहे थे िक पांडव के साथ अ छा नह हआ, िकंतु वे िववश


थे। िवदरु पांडव को िवदा कर जब आए तो धृतरा ने उ सुकता से पूछा, ‘‘पांडव चले गए?
जाते समय कैसी अव था थी उनक ?’’

िवदरु ने उ र िदया, ‘‘महाराज! यु धि र ने ह तनापुर से जाते समय सर झुका लया और


आंख के आगे व का आवरण डाल लया, य िक उ ह भय था िक खुली आंख से उ ह ने
कह भी देख लया तो आग लग जाएगी। भीमसेन बार-बार अपनी मुि यां कस रहे थे, जैसे वे
मुि हार से श ुओं क छाती फाड़ने को याकु ल हो रहे ह । अजुन चुपचाप धूल के बवंडर
उड़ाता चल रहा था, मानो अपने धनुष से ऐसे ही वह तीर का बवंडर उड़ाना चाहता हो।
ौपदी‒वह सबसे पीछे चल रही थी और उसक आंख से लगातार आंसू बह रहे थे, जैसे वह
बताना चाहती हो िक एक िदन कौरव क िवधवा प नयां भी इसी कार जोर-जोर से रोएंगी।
नकु ल और सहदेव ने अपने मुख पर क चड़ पोत लया था, तािक उ ह पहचाना न जाए।’’

‘‘हे भगवान!’’ धृतरा घबरा गए, ‘‘यह सब तो नाश के संकेत ह। अरे कोई दौड़ो, पांडव
को वापस बुला लाओ। म उ ह िफर सब कु छ लौटाकर इं थ भेज दग
ं ू ा। म नह चाहता िक
कोई अनथ हो। कौरव-पांडव िमल-जुलकर रह, यही मेरी इ छा है।’’

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पास ही संजय बैठा था। बोला, ‘‘महाराज! अब शोक करने से या लाभ? सभागार म
लोग ने इतना समझाया, तब तो आपने िकसी क बात पर यान नह िदया और अब याकु ल
हो रहे ह। अब तो उस िदन क ती ा क जए, जब इस अ याय का फल भोगने का अवसर
आएगा।’’

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(आठ)

पांडव जब ह तनापुर से िनकले तो नगर म दयु धन से जा बहत ख थी। बहत बड़ी


सं या म लोग पांडव के पीछे -पीछे चल पड़े।

चलते-चलते गंगा नदी का िकनारा आ पहच


ं ा। रात को पांडव ने वहां एक वृ के नीचे रात
िबताई। ये नगरवासी भी वह सोए।

दसरे
ू िदन सवेरे यु धि र से रहा नह गया तो उ ह ने जाजन से कहा, ‘‘आप लोग हमारे
साथ य क उठा रहे ह। कृपया वापस चले जाइए। सामने भयंकर वन है, वहां आप लोग
का जाना ठीक नह है। अपनी दगु ित का कारण हम वयं ही ह, हम ही इसका फल भोगने
दो।’’

पांडव को छोड़कर कोई जाना नह चाहता था, िफर भी कु छ लोग यु धि र के कहने पर


वापस चले गए, लेिकन कु छ ा ण ऐसे थे, जो पांडव को छोड़कर नह जा सके। जब पांडव
आगे बढ़े तो वे भी उनके साथ चल पड़े।

यु धि र बोले, ‘‘हे ा णो! आपका नेह पाकर हम ध य हए, िकंतु हम नह चाहते िक


आप अकारण हमारे साथ क भोग। वन म रहने-सोने क तो असुिवधा है ही, खाने-पीने का
भी बहत क है। मेरे भाई इतने टू ट गए ह िक वे न आपके लए कोई िशकार कर सकगे और
न ही फल-फूल जुटा सकगे। उिचत यही है िक अब आप लोग ह तनापुर चले जाएं।’’

ा ण बोले, ‘‘धमराज! हम वापस जाने को मत कहो। हम अपने खाने-पीने क यव था


वयं कर लगे, आप लोग को कोई परे शानी नह होने दगे। बस, हम तो आपका साि य
चािहए।’’

यु धि र से आगे कु छ कहा नह गया। जा का नेह व सहानुभूित पाकर उनका दय भर


आया। यु धि र क शोक मु ा देखकर साथ आए लोग भी ममाहत हो गए। वह पर खड़ा
सैिनक, जो बुि जीवी था, उसने यु धि र से कहा, ‘‘राजन! दःु ख-सुख तो मानव के साथ

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रात-िदन लगे ही रहते ह। कमजोर लोग तो दख
ु से टू ट जाते ह, िकंतु आप जैसा धैयवान
यि इन दख
ु से कभी टू ट नह सकता।’’

यु धि र बोले, ‘‘म अपने दख


ु से दख
ु ी नह ह,ं म अकेला होता तो सारे क हंसते-हंसते
झेल लेता। बस, दःु ख है तो अपने भाइय व ौपदी का, जो मेरे कारण दःु ख भोग रहे ह। मुझे
तो उनका भी दःु ख है, जो मेरे साथ इस वन तक चले आए ह। काश! म इनका अित थ-स कार
कर पाता, इ ह खला-िपता पाता।’’

पांडव के साथ उनका कु ल-पुरोिहत धौ य भी आया था। यु धि र क यह बात सुनकर


उसने सुझाव िदया, ‘‘राजन! आप यथ ही िचंता कर रहे ह। भगवान सूय के रहते भला कौन
भूखा रह सकता है। यह कौन नह जानता िक सूयदेव क कृपा से ही अ उपजता है और जीव
अपना पेट भरता है। इस लए सूयदेव क तुित क जए, वही आपक सहायता करगे। म
आपको सूयदेव क उपासना के मं बताता ह,ं आप उपासना आरं भ कर दी जए।’’

िफर या था, यु धि र नहा-धोकर शु तन-मन से सूयदेव क तुित म लीन हो गए।


उ ह ने कु ल-पुरोिहत धौ य के बताए गए ढंग से सूयदेव का एक सौ आठ बार नामो चार िकया
और नदी म घुटन पानी म खड़े रहकर उपवास रखा। भगवान सूय उनक तुित से स हए।
उ ह ने कट होकर कहा, ‘‘धमवीर! तु हारी मनोकामना स होगी। लो, यह अ यपा , इसम
से तु ह मनचाही भो य साम ी ा होती रहेगी। जब तक ौपदी दसर
ू को बांटकर वयं खा
नह लेगी, तब तक अ यपा क भो य साम ी समा नह होगी।

यु ध र का सारा मन ताप जाता रहा। अब ितिदन ौपदी अ यपा लेकर सामने आए


जन समुदाय को भोजन कराती, पितय को खलाती और िफर आप खाती।

□□

एक िदन पांडव ने गंगा नदी पार क और चलते-चलते ैत वन नामक वन म जा पहच


ं े।
वहां के िनवा सय ने पांडव का वागत िकया। पांडव उनका यार और आदर पाकर बहत

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स हए। यु धि र अपने भाइय व प नी के साथ कु छ िदन के लए वह रह गए।

कु छ िदन बाद दोपहर का समय था। पांडव वन म आराम कर रहे थे, तभी दरू से रथ के
आने का वर सुनाई िदया। पांडव ने च ककर देखा‒रथ पर उनके नेही चाचा िवदरु चले आ
रहे थे।

यु धि र क समझ म नह आया िक एकाएक िवदरु वन म उनक ओर य आ रहे ह? वे


अपने भाइय क ओर देखकर बोले, ‘‘कह ऐसा तो नह िक िवदरु एक बार िफर जुए के खेल
म भाग लेने के लए आमंि त करने आ रहे ह । अंततः कौरव चाहते या ह? अब शकु िन हम
पर कौन-सा दांव चलना चाहता है? या वे ह थयार, ज ह वह जुए म हमसे अब तक पा नह
सका है।’’

तब तक रथ समीप आ चुका था। िवदरु रथ से उतरकर िनकट आए। वे बोले, ‘‘यु धि र!


धृतरा ने मुझे भी ह तनापुर से िनकाल िदया।’’

‘‘िनकाल िदया?’’ यु धि र च के, ‘‘यह या कहते ह आप! यह सब कैसे हआ?’’

‘‘सुनो! धृतरा तुम लोग के वन-गमन से बहत परे शान रहने लगे थे। तुम लोग के जाने
के बाद मने उ ह बताया था, जैसे कु छ अशुभ घटने वाला है। उ ह ने कई रात जगकर िबताई
थ । इस लए उ ह ने एक िदन मुझे अपने पास बुलाया और कहा िक िवदरु ! जो कु छ हआ,
उसम मेरी कोई ज मेदारी नह , िफर भी म इन घटनाओं से अ यंत िचंितत ह।ं अब कु छ ऐसा
उपाय बताओ, जससे भिव य म कोई अनहोनी घटना न घटे। मने धृतरा से प कहा िक
पांडव के साथ जो कु छ हआ है, वह सवथा अ याय है। बेहतर यही है िक पांडव को वापस
बुलाकर स मानपूवक उनका रा य स प िदया जाए। भिव य म अनहोनी न होने का एक ही
उपाय है िक दयु धन को घर से िनकाल द। मेरी यह बात सुनकर तो धृतरा अ यंत नाराज हो
गए। सच तो यह है िक संतान- ेम के कारण वे अ छे -भले का ान भुला बैठे ह। वे ुध
होकर बोले, ‘मुझे पहले ही पता था िक तुम पांडव का प लोगे, पर म यह नह जानता था

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िक मेरे पु से तु ह इतनी घृणा है। दयु धन को घर से िनकालने क सलाह देते हए तु ह तिनक
भी अफसोस नह हआ। अ छा तो यही है िक तु ह हमारे यहां से चले जाओ। जहां तु हारी
इ छा हो, उधर ही िनकल जाओ। मुझे तु हारी सलाह क अब कोई आव यकता नह ।’ बस,
यह सुनते ही म ह तनापुर से िनकल पड़ा। सच तो यह है िक धृतरा भी उस बीमार यि
क कार ह, जो या ध म कड़वी दवाएं लेने से जी चुराता है। उ ह भला मेरी सही सलाह कैसे
पसंद आएगी?’’

‘‘महा मा िवदरु !’’ यु धि र बोले, ‘‘हम तो आपक सलाह क सदैव आव यकता है। आप
स तापूवक हमारे साथ रिहए।’’

िवदरु वह रह गए। िवदरु का साथ पाकर पांडव क स ता का िठकाना नह रहा, लेिकन


िवदरु का साथ अ धक िदन तक पांडव क िक मत म नह रहा।

हआ यह िक िवदरु के ह तनापुर से िनकल जाने के बाद धृतरा क बेचन


ै ी अ धक बढ़
गई। उ ह रात-िदन एक ही शोक सताता था िक िवदरु को घर से िनकालकर अ छा नह िकया।
आ म लािन के अलावा मन म यह शंका भी थी िक कह ऐसा न हो िक िवदरु पांडव के साथ
रह और पांडव उनक सलाह से लाभ उठाकर हमारे िव कोई ष ं रच डाल। एक िदन तो
ऐसा हआ िक सभागार म उि ता के मारे धृतरा बेहोश होकर िगर पड़े। िफर जब होश म
आए तो एक ही बात बार-बार दोहराते थे, मने िवदरु को कटु वचन कहकर अ छा नह िकया।
म जीिवत नह रह सकता। या िवदरु मुझे माफ कर देगा? म िवदरु के िबना नह रह सकता।
िवदरु कहां है? या पता वह जीिवत भी है या नह । िफर उ ह ने अपने सारथी संजय को
बुलाया और िनदश िदया, ‘‘संजय! इसी समय तुम िवदरु क खोज म चले जाओ। िमलते ही
उनको बताओ िक उनके िबना मेरी या हालत हो गई है। उ ह िकसी भी कार वापस लाओ।
संजय! अब मेरा जीवन तु हारे हाथ म है।’’

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संजय तो यह सुनते ही महल से िनकले और रथ पर सवार होकर िवदरु क खोज म िनकल
गए। ैतवन म पांडव के साथ िवदरु को पाकर वे बोले, ‘‘महा मा! आप शी ह तनापुर
च लए, महाराज क थित अ यंत शोचनीय है। वे आपको महल से िनकालकर पछता रहे ह।
अगर आप नह चले तो वे इस दःु ख को सह नह सकगे और जान दे दगे।’’

यह सुनकर िवदरु से रहा नह गया। वे पांडव से िवदा लेकर उसी पल ह तनापुर लौट गए।

धृतरा िवदरु को अपने पास दबु ारा पाकर बहत स हए, लेिकन दयु धन व उसके
सा थय को िवदरु का वापस आना पसंद नह था। िवदरु हमेशा पांडव का प लेते थे, यह बात
कौरव को खलती थी। उ ह यह भी डर था िक िवदरु यहां रहकर पांडव के िहत म जासूसी न
कर।

कण ने दयु धन से कहा, ‘‘पांडव को इस कार छोड़ देना ठीक नह , अ यथा तेरह वष ं म


तो उनक बदला लेने क योजना ऐसी भ य बन जाएगी िक हम मुकाबला भी नह कर सकगे।
िफर या िठकाना, कह महाराज धृतरा का दय ही बदल जाए और वे पांडव को बुलाकर
उ ह रा य स प द।’’

‘‘तो?’’ दयु धन ने पूछा।

‘‘हम पांडव क जगह तो जानते ही ह।’’ कण बोला, ‘‘हम इसी समय चलकर पांडव को
कु चल देना चािहए।’’

कौरव ैतवन जाने क तैया रय म य त हो गए।

महिष यास ऐसे अवसर पर ह तनापुर पहच


ं े। उ ह ने धृतरा से कहा, ‘‘राजन! भिव य म
जो अनथ होने वाला है, उसका मुझे ान है। इस लए म आपको सुझाव देता हं िक अपने पु
को अनुिचत माग पर न बढ़ने द। बेहतर यही है िक वे पांडव से िमल-जुलकर रह, वरना तेरह
वष ं के बाद अनथ हो जाएगा। वंश का िवनाश िन चत है।’’

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धृतरा बोले, ‘‘मुझे तो कु छ समझ म नह आ रहा है, आप ही मेरे पु को परामश द।’’

महिष मै ेय ने दयु धन क ओर देखकर कहा, ‘‘उिचत ही है िक पांडव के साथ िम तापूवक


रहो। पांडव को इस रा य से बाहर कर देना ठीक नह । मने ैतवन म पांडव को रहते देखा
है। या राजकु मार का प नी के साथ इस कार वन-वन भटकना ठीक है?’’

दयु धन ने महिष मै ेय के सुझाव पर अपना मुंह िबगाड़ लया और ु ध-सा हो अपनी जांघ
पर मु का मारा। महिष मै ेय को दयु धन क यह बे खी ची नह , बोले, ‘‘ जन जांघ पर
आज तुम मु के बरसा रहे हो, एक िदन भीम इन जांघ के टु कड़े-टु कड़े कर देगा।’’

दयु धन तो महिष मै ेय क बात पर हंसकर रह गया, िकंतु धृतरा मन-ही-मन घबरा गए।
बोले, ‘‘महिष मेरे पु को ऐसा शाप मत दी जए।’’

‘‘अगर तु हारे पु ने पांडव से िम वत यवहार नह िकया तो उनका िवनाश िन चत


है।’’

इतना कहकर महिष मै ेय चले गए।

□□

पांडव ह तनापुर क घटनाओं से अनिभ वन म अपना समय यतीत कर रहे थे। अंततः वे
राजवंश के थे और इं थ के शासक थे, इस लए उनके अनेक िम व शुभिचंतक राजा उनसे
िमलने वन म यदा-कदा आते रहते थे। कोई भी िम राजा पांडव क वतमान थित से स
नह था। वे कहते थे, ‘‘कौरव क धूतता कौन नह जानता, उनक बात मानकर वन म रहना
िनरथक है। इं थ जाकर अपना राज-पाट संभा लए।’’

‘‘हम शत को भंग करने का अ धकार नह ।’’ यु धि र उ र देते।

‘‘आप धमराज ह। आपसे तो यही उ मीद है। शत भले ही अनुिचत हो, आप िनभाएंगे
अव य।’’ िम कहते, ‘‘अगर हमसे िकसी सहायता क आव यकता हो तो िनःसंकोच

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किहएगा।’’

‘‘अभी नह ।’’ यु धि र का उ र होता, ‘‘तेरह वष ं के बाद अव य आपका सहयोग


चािहए।’’

ीकृ ण को पांडव के वनवास का समाचार िमल चुका था। वे भी ैतवन आकर पांडव से
िमले। बोले, ‘‘जो कु छ हआ, सुनकर बहत दःु ख हआ। म अगर अवसर पर उप थत होता तो
यह अ याय कभी नह होने देता, िकंतु म ा रका से बाहर चला गया था। खैर, शी ही समय
आने वाला है जब इस अ याय का बदला तुम लोग सफलतापूवक चुकाओगे।’’

पांच भाई ीकृ ण क सां वना से आ व त हए। पास ही ौपदी बैठी थी। सहानुभूित के दो
बोल सुनकर उसक आंख से आंसू बह िनकले। वह आतनाद करती हई बोली, ‘‘मुझे देखो,
कैसी अभािगनी हं म। मेरे पांच-पांच वीर पित ह, जनक वीरता के िव व म चच ह, िफर भी
वे कौरव क अनीित के िव कु छ न कर सके और कौरव ने भरी सभा म मेरा अपमान
िकया। दःु शासन ने मुझे व हीन करना चाहा। म रोई-चीखी-िच ाई, पर सभा म िकसी ने
मेरी सहायता नह क । बस एक तु ह थे, जो मेरी सहायता को आए। उस समय न अजुन का
गांडीव उठ सका और न भीम क गदा!’’

ीकृ ण बोले, ‘‘रो मत पांचाली। कौरव ने जो कु छ िकया है, उसका दंड वे अव य भोगगे।
दयु धन व कण आिद द ु का नाश होगा और यु धि र को अपना खोया स मान िफर ा
होगा।’’

ीकृ ण क सां वना से पांडव को नई शि ा हई। ीकृ ण के चले जाने के बाद वे नए


उ साह से अपना समय यतीत करने लगे।

एक िदन शाम के समय पांच भाई ौपदी के साथ बैठे थे। वे अपने अतीत, वतमान व
भिव य के बारे म िवचार-िवमश कर रहे थे।

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ौपदी अपना अपमान याद कर-करके िबफर उठती थी। एकाएक बोली, ‘‘कौरव क
बेरहमी का अंत नह । सभागार म हमारी ददु शा देख-देखकर कैसे हिषत हो रहे थे। हमारे
वनवास जाने से सारा नगर शोकाकु ल था, िकंतु दयु धन, दःु शासन, शकु िन और कण आिद
कैसे मु करा रहे थे। मुझे तो आ चय हो रहा है िक आप पांच वीर शांित से कैसे यह सारा
अ याय सह रहे ह, यह तो ि य धम नह है। श ुओं को मा करना कायरता है।’’

‘‘नह पांचाली! मा कायरता नह , वीर क शोभा है।’’ यु धि र ने कहा, ‘‘हम ोध म


आकर कोई काम नह करना चािहए। इससे तो बना-बनाया खेल िबगड़ जाएगा।’’

‘‘कैसे िबगड़ जाएगा?’’ ौपदी बोली, ‘‘हम अपनी और रा य क र ा करने का पूरा


अ धकार है।’’

‘‘हां, यह स य है, पर हम अवसर क ती ा करनी पड़ेगी। िबना सोचे-समझे कु छ भी


करना उिचत नह ।’’

‘‘समय क ती ा म चुपचाप बैठे रहने से कु छ हा सल नह होगा।’’ ौपदी बोली, ‘‘अपना


गौरव ा करने के लए हम अभी से यास शु कर देना चािहए।’’

भीम वयं बदला लेने को आतुर था। उसने ौपदी का समथन करते हए कहा, ‘‘ ौपदी स य
कह रही है भैया! अंततः हम कब तक चुपचाप अ याय सहते रहगे, तेरह वष ं तक ती ा
करना यथ है और इन तेरह वष ं म कौन जएगा और कौन मरे गा, कौन जानता है।’’

यु धि र बोले, ‘‘हम जब तक पूरी कार तैयार नह हो जाते, तब तक कौरव क िवशाल


सेना के साथ मुकाबला करना किठन है। यह मत भूलो िक कण का कवच उसका कभी अिहत
नह होने देगा, दयु धन क वीरता को भी कम मत आंको। िफर उनके साथ गु ोणाचाय व
भी म भी तो ह।’’

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सचमुच थित िवकट थी। पांच भाइय के सामने कोई माग नह था, सवाय अवसर क
ती ा करने के। वे गंभीरतापूवक अपनी वतमान थित म खोए हए थे िक महिष यास वहां
आ पहच
ं े। उ ह देखकर पांडव क िचंता दरू हई। उ ह ने सस मान महिष यास को आसन
िदया।

महिष यास बोले, ‘‘व स! इतने िचंितत य हो? या कौरव के प से आशंिकत हो। यह
ठीक है िक उनके साथ बड़े-बड़े यो ा ह, िकंतु तुम लोग डरो मत। एक िदन अजुन अपने
श ुओं का नाश करने म समथ होगा। सुनो यु धि र! मेरे पास ुित- मृित नामक मं है, जो म
तु ह सखा दग
ं ू ा। तुम यह मं अजुन को सखा देना। इस मं के मा यम से अजुन को देवताओं
से िद य अ क ाि होगी, जनका कोई मुकाबला नह कर सकेगा। अब िचंता छोड़ो और
स हो जाओ।’’

महिष यास ने वह मं यु धि र के कान म फंू क िदया। िफर बोले, ‘‘अ छा व स! अब म


जा रहा ह,ं तुम लोग भी ैतवन से िनकल जाओ। पास ही का यक वन है, वहां रहो। वह तुम
लोग को आनंद क ाि होगी।’’

इतना कहकर महिष यास चले गए।

पांडव ने ैतवन छोड़ िदया और का यक वन म आ गए। का यक वन सचमुच रमणीक


थान था।

एक िदन शुभ मुहत म यु धि र ने अजुन को ुित- मृित मं िदया। अजुन मं लेकर सीधा
कैलाश पवत क ओर रवाना हो गया। कैलाश पवत पर अजुन ने देवताओं क तुित क ।
अजुन पांच महीन तक एकांत भाव से मं जाप करता रहा।

देवता स हए और एक-एक कर अजुन को दशन िदए व िद या देकर संतु िकया।


सबसे पहले शंकर आए और पाशुपत नामक अ िदया। िफर यम ने वाण िदया। कु बेर ने भी
दशन देकर अजुन को यु ा का वरदान िदया।

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अजुन क तुित सफल हई। िद या ा कर वह का यक वन चल पड़ा। माग म इं से
मुलाकात हई, जो उसक ती ा कर रहे थे। अजुन था भी इं का ही पु । इं अजुन को अपने
साथ इं पुरी ले गए। इं ने भी अजुन को अनेक िद या के प रचालन क िश ा दी।

वहां अजुन को रहते हए अनेक वष यतीत हो गए। अजुन को भाइय से िबछु ड़े काफ
समय हो गया था। उसे िचंता थी िक जाने उसके िवलंब से भाई िकतने परे शान ह । उसने इं से
कहा, ‘‘अब मुझे वापस लौट जाना चािहए।’’

‘‘तुम भाइय के लए िचंितत मत हो।’’ इं ने कहा, ‘‘म आज ही महिष लोमश को तु हारे


भाइय के पास भेज देता ह,ं वे उ ह तु हारी कु शलता का समाचार देकर आ व त कर दगे।’’

□□

का यक वन म अजुन क जुदाई से सचमुच उसके भाई व प नी ौपदी अ यंत िचंितत और


उदास हो गए थे।

एक िदन भीम ने कहा, ‘‘अजुन इतने वष ं से कैलाश पवत पर एकांत वास कर रहा है, वह
हम लोग के लए इतना क उठा रहा है, म तो जा रहा हं अजुन को लेने।’’

यु धि र ने नेह से कहा, ‘‘भाई! उतावले मत हो। अजुन को अपनी तप या पूरी कर लेने


दो, वह हमारे भले के लए ही तो गया है। तेरह वष यतीत होने म समय ही िकतना लगता है,
िफर तुम कौरव से िगन-िगनकर बदले लेना।’’

तभी उ ह महिष लोमश एवं महिष वृहद व से यह शुभ समाचार िमला िक अजुन अमरावती
म इं के साि य म सकु शल है। घोर तप या से अजुन थक गया था, इं उसे िव ाम हेतु
अपने साथ ले गए ह। अजुन ने इं से न केवल अ -श क िश ा हण क है, ब क
कण का कवच भेदने का रह य भी सीखने के यास म लगे हए ह।

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भाई अजुन क कु शलता व अ -श म पारं गत होने क सूचना से चार भाइय के हष का
पारावार न रहा।

इसी अवसर पर का यक वन म महिष नारद आकर पांडव से िमले। उ ह ने पांडव को


सुझाव िदया, ‘‘यहां से तुम लोग तीथाटन के लए िनकल जाओ, समय अ छा बीतेगा और मन
भी लगा रहेगा।’’

नारद मुिन क बात ौपदी एवं चार भाइय को भा गई। वे महिष लोमश के साथ तीथाटन
पर िनकल गए। अनेक पिव थान का दशन िकया तथा अनेक पावन निदय म नान िकया।
सबसे पहले वे पूव क ओर गए, गोदावरी के िकनारे नैिमषार य म वास िकया, िफर गंगा-
यमुना के तीर पर गए। वे सुदरू दि ण क ओर भी गए। सच तो यह था िक जतने पिव तीथ,
निदयां व पवत ंखलाएं थ , उन सभी थान पर उ ह ने देवताओं का आशीवाद ा िकया। वे
भाष तीथ जाकर ीकृ ण से िमले। नारद ने जैसा कहा था, उनका आधा समय बीता और
उनके बेचन
ै मन को करार भी िमला। अजुन क जुदाई का शोक जाता रहा। बारह वष देखते-
ही-देखते बीत गए।

बारहव वष वे लोग िहमालय क ओर चल पड़े। वह अजुन के िमलने क संभावना थी। पांच


वष ं क जुदाई के बाद वहां अजुन का अपने भाइय से पुनिमलन हआ।

अजुन ने भाइय से कहा, ‘‘अब िचंता करने क आव यकता नह । देवताओं क असीम


शि यां हमारे साथ ह। कौरव हमारा कु छ नह िबगाड़ सकते।’’ इसके साथ ही उसने देवताओं
से जो िक म-िक म के िद या का ान ा िकया था, उनका यौरा भाइय को सुना िदया।

चार भाई व ौपदी अजुन क सफलता से अित स हए। लगा िक वे अपने श ुओं के
अ याय का अब ितशोध ले सकगे। उ ह मा सोच-समझकर योजना बनाने क आव यकता
थी। उ ह एक वष अब अ ातवास म यतीत करना था, उसके बाद अपना अ धकार वापस लेने
के लए कौरव से लड़ना था।

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िहमालय से वे वापस का यक वन क ओर चल पड़े।

का यक वन म ीकृ ण स यभामा के साथ पांडव से िमलने आए। अजुन क सफलता का


समाचार सुनकर वे स हए। उ ह ने पांडव को सूचना दी िक ा रका म अिभम यु व ौपदी
के पांच पु का लालन-पालन भली-भांित हो रहा है। यह भी कहा, ‘‘समय आने पर म तुम
लोग को अ याय के िव लड़ते हए अपना सहयोग अव य दग
ं ू ा।’’

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(नौ)

पांडव क गितिव धय क सूचनाएं ह तनापुर म बराबर आ रही थ । गु चर आकर बताते


थे िक पांडव वन-वन म बड़ी दीन-हीन दशा म अपना समय यतीत कर रहे ह।

इन समाचार से दयु धन को बड़ा संतोष होता था। एक बार तो शकु िन ने यहां तक कह


िदया, ‘‘जी चाहता है िक इस अवसर पर उनके पास जाकर उनक दीन-हीन दशा का खूब
उपहास उड़ाना चािहए। वे तो वनवास क शत पूरी करने को वचनब ह, हमारा कु छ िबगाड़
भी नह सकते।’’

‘‘हां मामा! आपक योजना तो आनंददायक है।’’ दयु धन बोला, ‘‘हम इसी समय चलकर
उ ह अपनी शानो-शौकत िदखाकर िचढ़ाना चािहए, पर महाराज धृतरा से अनुमित पाना बहत
किठन है।’’

धृतरा भी पांडव क गितिव धय से अनिभ नह थे। य वे पांडु पु क शोचनीय


अव था से दख
ु ी अव य थे, पर पांडव ने जस कौशल से देवताओं से अनुपम अ -श
ा िकए थे, उससे वे मन-ही-मन भयभीत भी थे। कु छ भी हो वे अपने पु का अिहत नह
चाहते थे। सच तो यह था िक या अ छा है या या बुरा इसका िनणय कर पाना उनके वश म
नह था। दयु धन िपता को दिु वधा त देखकर कभी-कभी सोच म पड़ जाता था िक कह
िपताजी अपने भतीज को वापस बुलाकर राज-पाट दबु ारा न स प द।

पांडव ने वनवास के बारह वष पूण कर लए थे और अब मा एक वष का अ ातवास शेष


था। अ ातवास म पांडव को ढू ढं िनकालना किठन था, अतः दयु धन उसके पहले ही उ ह मात
देना चाहता था। दयु धन ने इस िवषय पर अपने सा थय से िवचार-िवमश िकया। दयु धन का
िवचार था िक इस समय या िठकाना िक हमारे वृ और कमजोर राजा का दय उनका दःु ख
देखकर पसीज जाए।

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‘‘तु हारी बात से सहमत हं दयु धन!’’ शकु िन का उ र था, ‘‘लेिकन उनसे खुलेआम
टकराना किठन है। एक तो वे बदले क आग म जल रहे ह, दसरे
ू अजुन ने कई मारक ह थयार
ा कर लए ह। इसक बजाय हम य न उ ह तड़पा-तड़पाकर समा कर द।’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘वह ऐसे िक तुम हो ह तनापुर के वैभवशाली राजकु मार और वे दर-दर के िभखारी। बस,
पहच
ं जाओ राजसी ठाठ-बाट से उनके पास और उनक वतमान दशा पर खुलकर हंसो।’’

यह बात दयु धन व कण आिद को पसंद आ गई। धृतरा से बाहर जाने क अनुमित िमलना
सहज नह था, इस लए एक बहाना बनाने का अवसर उ ह िमल ही गया।

उ ह िदन का यक वन के आसपास गाय क सं या िगनने का अवसर आ पहच


ं ा। इसी क
देखरे ख करने के बहाने दयु धन, शकु िन व कण आिद का यक वन जाने लगे तो धृतरा ने
उनसे कहा, ‘‘सुना है, वह तु हारे चचेरे भाइय ने भी डेरा डाल रखा है, उनसे मत उलझना।
अब तो उनके पास िद या भी ह, इस लए अपना काम िनपटाकर चुपचाप चले आना।’’

‘‘हम उनसे या लेना-देना।’’ दयु धन बोला, ‘‘हम तो बस गणना करके सीधे लौट
आएंग।े ’’

कौरव ह तनापुर से चुपचाप िनकले, लेिकन उनके मन म पांडव को जलाने का प का


इरादा था। इस लए वे पूरा लाव-ल कर लेकर राजसी ठाठ-बाट से का यक वन पहच
ं े और
पांडव के डेरे से कु छ दरू नदी के इस पार अपना िशिवर लगा िदया। अब रात-िदन वे वहां
अपने राजसी वैभव का दशन करते, खूब नृ य-संगीत होता और रोशनी क जाती। दयु धन
चाहता था िक िकसी कार पांडव को उनके यहां आने का समाचार िमल जाए, पर जब पांडव
क ओर से कोई हलचल नह हई तो दयु धन ने एक संदेश वाहक को पांडव के पास भेजा,
तािक वे आकर िमल ल।

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संदेशवाहक नदी तट पर पहच
ं ा। वहां गंधव िच सेन अपनी अ सराओं के साथ आनंद मना
रहे थे। कौरव के सैिनक को वहां देखकर ु हो गया और सैिनक को अपमािनत करके
वापस भेज िदया।

बेचारा संदेशवाहक चुपचाप दयु धन के पास लौट आया। िच सेन क गु ताखी से दयु धन
बड़ा ो धत हआ और अपना लाव-ल कर लेकर गंधव सेना पर आ मण कर िदया। दोन
प म जमकर यु हआ। गंधव ं से ट कर भारी पड़ी। कौरव के अनेक सैिनक मारे गए।
गंधव ं ने दयु धन को बंदी बना लया। व तुतः गंधव ं को इं ने जान-बूझकर भेजा था, तािक
दयु धन ने जो इरादा बनाया था, उसे िवफल िकया जा सके और सबक सखाया जा सके।

दयु धन को बंदी बनाए जाने क सूचना पांडव को िमली तो यु धि र बहत िचंितत हए।
उ ह ने त काल भीम व अजुन को गंधव ं क कैद से दयु धन को छु ड़ाने का आदेश िदया। भीम
तो दयु धन क ददु शा से स था, िकंतु बड़े भाई का कहना था, ‘‘कु छ भी हो, वह हमारा खून
है और उसक र ा करना हमारा कत य है।’’ आदेश मानकर वह अजुन के साथ चुपचाप
चला गया। उन दोन ने गंधव ं से दयु धन को वतं करा िदया। िच सेन ने दयु धन को वतं
करते हए कहा, ‘‘पांडवो! तुम लोग मेरे िम हो इस लए म सहन नह कर सकता था िक
दयु धन अपना ऐ वय िदखाकर तुम लोग का अपमान करने के मनहस इरादे म सफल हो
जाए, पर तुम लोग क बात मानकर म इसे छोड़ता ह।ं ले जाओ इसे।’’

दोन भाई दयु धन के साथ यु धि र के पास पहच


ं े।

यु धि र ने उससे कहा, ‘‘दसरे


ू का बुरा चाहने वाला हमेशा मात खाता है। खैर, जो कु छ
हआ, उसे भूल जाओ और भिव य म ऐसा कोई काम न करो, जससे संकट का सामना करना
पड़े।’’

दयु धन इस घटना से अ यंत शिमदा हआ। उसने यु धि र को इस सहयोग के लए ध यवाद


िदया और अपने सा थय के साथ चुपचाप ह तनापुर लौट गया।

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पांडव भी ैतवन लौट गए।

□□

दयु धन इस अपमानजनक हार से बुरी कार टू ट गया था। वह तो अ -जल यागकर व


राज-पाट दःु शासन को स पकर आ मह या करने पर उता हो गया।

कण ने कहा, ‘‘बंधु! िह मत मत हारो। अगर पांडव को अपने िद या पर घमंड है तो हम


भी िकसी से कम नह । म अपनी चतुरंिगणी सेना से या नह कर सकता। म भी िद वजय
करके सबको मु ी म कर लूंगा।’’

दयु धन स होकर बोला, ‘‘तो देर िकस बात क है, अपनी चतुरंिगणी सेना लेकर िनकल
पड़ो िद वजय को।’’

और सचमुच कण एक िदन अपनी चतुरंिगणी सेना को लेकर ह तनापुर से जो िनकला तो


उसने चार िदशाओं म अपनी िवजयपताका फहरा दी और राजा ुपद आिद अनेक राजाओं को
बंदी बना लया।

कण िद वजय से वापस लौटा तो दयु धन क स ता का िठकाना नह रहा। अब तो उसे


यक न हो गया गया िक एक िदन वह पांडव को आसानी से मात दे सकता है।

कण क िद वजय क स ता म कौरव ने ह तनापुर म महाय का आयोजन िकया।


कौरव ने महाय म भाग लेने के लए पांडव के पास भी िनमं ण भेजा।

यु धि र ने उ र भेजा, ‘‘हम नह आ सकते, हमारी वनवास क अव ध भी समा नह हई


है।’’ भीमसेन ने यहां तक कहलवा भेजा, ‘‘तेरह वष समा होने दो िफर हम यु से इस
महाय क पूणाहित करगे।’’

कौरव ने पांडव के इन उ र को हंसी म उड़ा िदया। महाय सफलतापूवक समा हो


गया। कण ने ित ा क , ‘‘जब तक म पांडव को परा जत न कर द,ं ू तब तक तामसी व तुओं

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को हाथ भी नह लगाऊंगा और मुझसे इस अवसर पर कोई कु छ भी मांगे अव य दग
ं ू ा।’’

इस वचन का ही लाभ उठाकर एक िदन इं ने आकर कण से कवच और कुं डल ा कर


लए थे।

□□

पांडव का बारह वष य वनवास समा होने को आया। अब सम या थी अ ातवास क ।

अ ातवास आरं भ होने से पहले ही एक घटना हो गई।

वन म जहां पांडव रहते थे, पास ही एक ा ण भी रहता था, जो िनयम से पूजा-अचना


करता हआ समय यतीत करता था। एक िदन एक िहरण उसके डेरे के पास आया और अि
को व लत करने वाले यं ‘अरणी’ से खलवाड़ करने लगा। इससे अरणी उसके स ग म
फंस गई और वह अरणी लेकर वहां से नौ-दो- यारह हो गया। ा ण यह देख िचंता म पड़
गया िक िबना अि के पूजा-अचना कैसे हो पाएगी। वह दौड़ा-दौड़ा पांडव के पास गया और
यु धि र से बोला, ‘‘महाराज! िहरण मेरी अरणी लेकर भागा है, अब आप ही उससे अरणी
वापस िदला सकते ह।’’

यु धि र का ि य धम जाग पड़ा। ा ण क र ा करना उसका पहला कत य था।


इस लए उसने अजुन सिहत चार भाइय को आदेश िदया, ‘‘चलो! िहरण का पीछा कर और
ा ण क अरणी वापस लाएं।’’

चार भाई यु धि र के साथ िहरण के पीछे भाग चले, िकंतु िहरण क तेजी का मुकाबला
करना सरल नह था। वह एक पल को िदखाई देता तो दसरे
ू पल ही कु लांच मारकर गायब हो
जाता।

िहरण के पीछे दौड़ते-दौड़ते पांच भाई बुरी कार थक गए। शरीर से पसीना छू टने लगा था
और यास से गला सूख रहा था। नकु ल से नह रहा गया। वह बोला, ‘‘हमारी वीरता के भले

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ही चच ह , िकंतु एक िहरण का हम मुकाबला नह कर पा रहे ह, कैसा दभु ा य है!’’

‘‘यह सब संयोग है नकु ल! और संयोग के आगे िकसी का वश नह चलता।’’ यु धि र


बोले, ‘‘िफलहाल तो यास लगी है, कह से पानी का बंध करो, िफर व थ होकर िहरण का
पीछा करगे। नकु ल! तिनक इस वृ पर चढ़कर देखो, कह आस-पास पानी है?’’

नकु ल वृ पर चढ़ गया और दर-द


ू रू तक देखने लगा। एक जगह उसे हरी-भरी घास िदखाई
दी और उड़ते हए बगुले भी। नकु ल समझ गया िक वहां पानी अव य होगा। नकु ल वृ से
उतरकर उधर पानी लेने चला गया।

जब जलाशय आ गया तो नकु ल पानी भरने को नीचे झुका। तभी कह से गंभीर वर गूज
ं ा,
‘‘नकु ल! इस जलाशय पर मेरा अ धकार है अगर तुम मेरे न का सही-सही उ र दोगे, तभी
म पानी लेने क तु ह वीकृित दान क ं गा।’’

नकु ल ने चार ओर ि दौड़ाई, पर उसे बोलने वाला िदखाई नह िदया। नकु ल को बहत
यास लगी थी इस लए वह बोला, ‘‘पहले मुझे पानी पीने दो, िफर म तु हारे न का उ र
दग
ं ू ा।’’

इतना कहकर नकु ल ने जलाशय से अंजु ल भरी और पानी पी गया। पानी पीने के अगले
ण नकु ल क चेतना लु हो गई और वह जलाशय के िकनारे बेहोश हो गया।

उधर चार भाई नकु ल क ती ा कर रहे थे। बहत देर के बाद भी नकु ल वापस नह लौटा
तो यु धि र ने सहदेव को उसक खोज म भेजा। वह भी जब जलाशय के िनकट पहच
ं ा तो
अपनी यास बुझाने क इ छा को दबा न सका। अ य गंभीर वर ने उसे भी चेतावनी दी,
इसके बावजूद उसने पानी पी लया और बेहोश हो गया।

भीम व अजुन भी भाइय व पानी क खोज म गए, िकंतु उनक भी वही दशा हई, जो नकु ल
और सहदेव क हई थी।

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अब यु धि र घबराए और वयं उनक खोज म आगे बढ़े।

जलाशय के आस-पास उ ह ने अपने भाइय को खोजा तो वह उनके बेहोश शरीर िदखाई


िदए। भाइय क यह ददु शा देखकर यु धि र चिकत रह गए। उ ह समझ म नह आया िक
भाइय को िकसने और य इस हालत म पहच
ं ाया। यु धि र का गला यास से सूखा जा रहा
था। उ ह ने पहले पानी पीकर इस सम या पर सोचने का िन चय िकया।

यु धि र जैसे ही जलाशय के िकनारे पहच


ं कर पानी लेने को झुके िक उ ह भी गंभीर वर
सुनाई िदया, ‘‘यु धि र! पानी पीने से पहले मेरी बात यान से सुनो। इस जलाशय पर मेरा
अ धकार है, अगर तुम पानी पीना चाहते हो तो पहले मेरे न का उ र दो। तुमने मेरे सभी
न का सही उ र िदया तो पानी पीने क आ ा िमलेगी, वरना नह । अगर तुमने मेरी
अनुमित के बगैर पानी पीने का यास िकया तो तु हारी भी वही हालत होगी, जो तु हारे भाइय
क हई है।’’

यु धि र ने उ र िदया, ‘‘इस समय म अपने भाइय क दशा एवं अपनी यास से अ यंत
याकु ल ह।ं इस लए आप जैसा चाहगे, वैसा ही क ं गा। न पूिछए।’’

गंभीर वर म पूछा गया, ‘‘पृ वी से भारी व तु?’’

‘‘माता।’’

‘‘ वग से ऊंचा कौन?’’

‘‘िपता।’’

‘‘हवा से भी तेज?’’

‘‘मन।’’

‘‘खुली आंख से कौन सोता है?’’

‘‘मछली।’’

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‘‘संसार क सबसे आ चयजनक बात?’’

‘‘यही िक िकसी के मरने पर लोग ऐसे दख


ु ी होते ह, जैसे वे वयं कभी नह मरगे, जबिक
एक िदन उ ह भी मरना होता है।’’

‘‘तु छतम् व तु?’’

‘‘घास।’’

‘‘धनी कौन?’’

‘‘लालच से मु ाणी।’’

‘‘सुखी कौन?’’

‘‘िचंता से मु ाणी।’’

‘‘सबका यारा कौन?’’

‘‘गव से मु ाणी।’’

‘‘घर म सुख-दःु ख का साथी कौन?’’

‘‘प नी।’’

‘‘या ा म सहायक कौन?’’

‘‘िव ा।’’

‘‘बुि मान कौन?’’

‘‘जो बुि मान के साथ रहे।’’

‘‘मरणो मुख यि का िम ?’’

‘‘दान-पु य।’’

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‘‘सूय को कौन उिदत करता है और वह अ त य होता है?’’

‘‘सूय को उिदत करता है‒सृजनकता और वह अ त होता है‒अपने धम से।’’

नकता कोई और नह य था।

य ने इस कार पूरे एक सौ न यु धि र से पूछे, जनका यु धि र ने उिचत उ र िदया।


य ने सारे न शी ता से एक के बाद एक पूछे थे, जनका यु धि र ने उसी गित से उ र
िदया था। य यु धि र के सभी उ र से संतु था।

य ने कहा, ‘‘हे धमवीर! तु हारे उ र से म स हआ। तु हारे सामने तु हारे चार भाई
मृत पड़े ह। अब यह बताओ िक तुम िकसे जीिवत देखना चाहते हो? जसक ओर इशारा कर
दोगे, म उसी को पुनज िवत कर दग
ं ू ा।’’

‘‘हे य ! तुम मेरे सबसे छोटे भाई नकु ल को जीिवत कर दो।’’

‘‘यह या? नकु ल तो तु हारा सौतेला भाई है। तुम अपने सगे भाई भीम या अजुन को य
नह जीिवत देखना चाहते?’’

‘‘ य िक कुं ती से एक पु म तो जीिवत हं ही, म एक भाई मा ी को पु क िनशानी के तौर


पर जीिवत चाहता ह।ं ’’

यु धि र का यह याग एवं ातृ- नेह देखकर य बड़ा भािवत हआ। बोला, ‘‘यु धि र!
सचमुच तुम ध य हो। लो, म तु हारे चार भाइय को जीिवत कर देता ह।ं ’’

य ने यु धि र के चार भाइय को जीिवत कर िदया। पांच भाई िफर से एक-दसरे


ू को
पाकर स हए।

य ने कहा, ‘‘यु धि र! अब तुम मुझसे कोई वर मांगो।’’

यु धि र को त काल याद आया िक वह ा ण क अरणी क खोज म िनकले थे और अब


िहरण का दर-द
ू रू तक कोई िनशान नह था। यु धि र ने कहा, ‘‘हे य ! मुझे कु छ नह

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चािहए। बस, मुझे गरीब ा ण क अरणी िदला दी जए, तािक ा ण को िदया गया अपना
वचन म पूरा कर सकूं ।’’

‘‘तथा तु।’’

इस विन के साथ य सामने कट हो गया। य वयं धमदेव थे। यु धि र के िपता,


जनका कुं ती ने मं ारा आ ान िकया था। धमदेव यु धि र के धैय, साहस और शि क
परी ा लेना चाहते थे, इस लए उ ह ने िहरण का प धारण िकया था और ा ण क अरणी
लेकर भाग िनकले थे। वे देखना चाहते थे िक वनवास का क भोगने से कह यु धि र
धमाचरण से भटक तो नह गए ह।

यु धि र परी ा म एकदम खरे उतरे तो उ ह ने यु धि र को सब कु छ बता िदया और


ा ण क अरणी वापस देकर बोले, ‘‘आज म सचमुच बड़ा संतु हआ। म तुम लोग को
आशीवाद देता हं िक अ ातवास के दौरान तुम लोग का कोई बाल भी बांका नह कर सकेगा।
श ु तु ह खोजना चाहगे, तु हारा अिहत करना चाहगे, पर उ ह मुंह क खानी पड़ेगी।’’

पांच भाई धमदेव के सामने नत सर हो गए। धमदेव उ ह आशीवाद देकर अंतधान हो गए।

पांडव अरणी लेकर आ म क ओर लौट गए।

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(दस)

एक िदन वनवा सय ने देखा िक पांडव अपने आ म से लु हो गए ह। उ ह खोजने का


बहत यास िकया गया, पर पांडव का कह पता न चला।

पांडव का अ ातवास आरं भ हो गया था, अतएव वे रात को सबक िनगाह से बचकर लु
हो गए थे।

एक गु थान पर पहच
ं कर पांडव ने अपनी अगली योजना पर िवचार-िवमश िकया।

यु धि र बोले, ‘‘अ ातवास हम सबके लए किठन काल है। इस अवसर पर िकसी ने हम


पहचान लया या देख लया तो हम दबु ारा वनवास भोगना पड़ेगा। अतएव पूरी सावधानी
बरतना आव यक है।’’

‘‘ य न हम सब अलग-अलग िदशाओं क ओर िनकल जाएं और िछपकर रह।’’ भीम ने


कहा, ‘‘कह ऐसा न हो िक एक नारी के साथ हम पांच को एक साथ देखकर लोग हम सहज
ही पहचान ल।’’

‘‘यह आशंका तो है, पर हम अलग-अलग नह रहना चािहए। इससे तो हमारी शि बंट


जाएगी। बेहतर यही है िक हम एकजुट रह और िकसी क ि म न पड़।’’ यु धि र का
िवचार था।

‘‘वह कैसे?’’ भाइय ने पूछा।

कु छ देर तक सोचने के बाद यु धि र ने कहा, ‘‘हम वेश बदलकर रहना चािहए। हम यहां
से म य देश चलते ह। वहां के राजा िवराट वृ ह, उनके पास जाकर हम काम पाने का
यास करगे। मुझे िव वास है िक हम लोग पर दया करके वे हम अपने यहां अव य नौकरी
दगे।’’

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ौपदी वतमान थित से पहले ही बेचन
ै थी, यु धि र क बात सुनकर उसक आंख भर
आई।ं बोली, ‘‘कैसा भा य है हमारा, जो वयं एक िदन सैकड़ दास को आ य देते थे, वे
आज दर-दर भटक रहे ह और िकसी अ य राजा के दरबार म आ य पाने को िववश ह।’’

यु धि र ने सां वना देकर कहा, ‘‘घबराओ मत ौपदी! यह सब हमेशा के लए नह रहेगा।


हम िफर पुरानी थित ा कर लगे। अब मेरी योजना यानपूवक सुनो। हम सब वेश
बदलकर अलग-अलग म य देश म वेश करगे। पहले म राजा िवराट से िमलूंगा। म उनसे
कहग
ं ा िक जुआ क ड़ा म म पटु ह,ं योितष शा म िन णात ह,ं अतएव वे मुझे नौकरी पर
रख लगे तो म खाली समय म जुए क ड़ा से उनका मनोरं जन क ं गा और नीित व योितष
म उनको सहायता क ं गा। िवराट यह सुनकर मुझे अव य नौकरी दे दगे। वहां मेरा नाम होगा‒
कंक और तुम भीम! तुम कौन-सा वेश धारण करोगे? मुझे डर है िक तु हारा भारी-भरकम
शरीर देखकर लोग तु ह पहचान न ल।’’

भीम बोला, ‘‘घबराओ मत भैया! मेरा शरीर भारी-भरकम है तो म वयं को रसोइया बना
लूंगा। रसोइए तो होते ही -पु ह। म िवराट से कहग
ं ा िक उसे म बहत वािद यंजन
बनाकर खलाऊंगा बस, मेरी नौकरी प क । म अपना नाम ‘ब भ’ रख लूंगा। म वहां अपनी
शि का दशन करके राजा को स रखूंगा। ठीक है न?’’

‘‘हां एकदम ठीक है।’’ यु धि र िफर अजुन क ओर देखकर बोले, ‘‘और तु हारा या
िवचार है?’’

‘‘मुझे तो नारी का प धारण करना पड़ेगा, तािक िकसी को मेरे लड़ाकू होने का संदेह ही
नह रहे। मेरी बांह म धनुष के िनशान ह, ज ह म चूिड़य म िछपा लूंगा। म राजा िवराट से
अंतःपुर क नौकरी ा कर लूंगा और वहां क मिहलाओं के बीच रहकर उ ह कथा-
कहािनयां सुनाकर उनका मनोरं जन क ं गा। मेरा नाम रहेगा‒‘वृह ला’।’’ अजुन ने उ र
िदया।

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यु धि र को अजुन क यह योजना पसंद तो नह आई, पर िववशता म अपनी वीकृित दे
दी।

‘‘और म महाराज के अ तबल का रखवाला बन जाऊंगा।’’ नकु ल बोला, ‘‘म अपना नाम
‘ ं थक’ रख लूंगा और वहां घोड़ क देखभाल क ं गा। म राजा से कहग
ं ा िक इं थ के
नरे श यु धि र के पास भी म अ तबल म काम कर चुका ह।ं य भी घोड़ को साधने म मेरा
कोई जवाब नह ।’’

‘‘म राजा िवराट क गौशाला म नौकरी कर लूंगा और गाय व बैल क सेवा क ं गा। मेरा
पश होते ही गाएं पहले से अ धक दधू दगी।’’ सहदेव ने कहा।

अपनी इस योजना पर पांच भाई बारह वष म पहली बार जी भरकर हंसे। अब रह गई थी


केवल ौपदी। सबने ौपदी क ओर देखा। वह िवचार म खोई हई थी।

यु धि र ने धीरे से कहा, ‘‘तुमने अपने बारे म या सोचा है ौपदी? तुमने तो कभी कोई
काम नह िकया, िफर भला राजा िवराट के यहां कौन-सा काम मांगोगी?’’

ौपदी ढ़ वर म बोली, ‘‘आप मेरी िचंता न कर, म भी अपना कत य िनभाऊंगी। मुझे याद
आता है िक इं थ म मेरे पास एक दासी काम करती थी सैरं ी। म सैरं ी बनकर राजा िवराट
से िमलूंगी और नौकरी क याचना क ं गी। वे मुझे अव य अपने यहां काम पर रख लगे और
म भी अंतःपुर म राजकु मा रय व अ य मिहलाओं क सेवा-टहल क ं गी। इस कार वहां म
सुरि त भी रहग
ं ी।’’

पांच भाइय के सामने ौपदी का यह सुझाव मानने के अलावा और कोई चारा नह था।
उ ह ने अपने कु ल पुरोिहत से आशीवाद ा िकया और म य देश क ओर चल पड़े।

□□

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म य देश के िनकट पहच
ं ते ही पांडव ने अपने व ािद व अ -श नगर के बाहर एक
वृ क सबसे ऊंची डाल पर िछपाकर रख िदए। िफर अपना वेश बदलकर वे खाली हाथ
िवराट नरे श के दरबार म पहच
ं े और नौकरी क याचना क । उन सबक िवशेषता सुनकर राजा
िवराट ने उ ह त काल नौकरी पर रख लया। कोई भी उ ह पहचान न सका।

पांच भाई व ौपदी बड़ी लगन से िवराट के महल म काम कर रहे थे। उनक यो यता से
सब बड़े स थे‒िबना िकसी क िनगाह म पड़े उ ह ने कई महीने दरबार म िनिव न यतीत
कर िदए। पांडव स थे िक शी ही अ ातवास का उनका यह वष भी आराम से यतीत हो
जाएगा, िफर वे अपने रा य इं थ लौटने के यो य बन जाएंग।े

अ ातवास म अब कु छ ही िदन शेष रह गए थे। ौपदी व पांच भाई एक-एक िदन िगनते
हए इं थ लौटने क ती ा कर रहे थे, तभी पांडव िफर किठनाई म िघर गए।

महाराज िवराट के महल म रहता था क चक नामक एक राजा रहता था। वह महारानी


सुदे णा का भाई था। वह म य देश का सेनापित था और बहत शि शाली व आकषक था।
एक िदन महल म उसने सैरं ी बनी ौपदी को देख लया। थम ि म ही ौपदी उसे भा गई।
ौपदी न केवल सुंदर थी, ब क रानी क जस लगन से सेवा करती थी, उससे क चक अ यंत
भािवत हो गया। अब वह उसको आकिषत करने के यास म जुट गया।

क चक क हरकत ौपदी से िछपी नह थ , न ही पांडव इससे अनिभ थे, पर पांडव लाचार


थे। अगर उ ह ने क चक क हरकत पर नाराजगी कट क तो उनका भेद खुल जाने का डर
था। ौपदी से रहा नह गया तो उसने महारानी सुदे णा से िशकायत कर दी, ‘‘दे खए! अपने
भाई को मना कर दी जए िक वे मुझे छे ड़ा न कर। य भी म िववािहता हं और मुझे यह हरकत
पसंद नह , मेरा िववाह गंधव से हो चुका है। कह ऐसा न हो िक गंधव क चक क हरकत से
नाराज हो जाएं और क चक का अिहत कर बैठ।’’

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सुदे णा ौपदी का साथ पसंद करती थी। वह ौपदी को करना नह चाहती थी, इस लए
उसने क चक को मना तो कर िदया, िकंतु भाई तो अंततः भाई होता है, इस लए क चक पर
उसने कोई कड़ा ितबंध नह रखा। स चाई तो यह थी िक ौपदी क सुंदरता के कारण वह
मन-ही-मन डरती थी िक कह राजा िवराट भी उस पर मु ध न हो जाएं, इस लए क चक को
बीच म आते देखकर वह िन चंत हो गई थी, य िक िवराट वृ थे और क चक से दबते थे।

क चक को जब पता चला िक ौपदी ने उसका णय िनवेदन ठु करा िदया है तो वह आग-


बबूला हो गया। ‘‘हहं !’’ वह मन-ही-मन िवचार कर बोला, ‘‘एक साधारण-सी दासी को िकस
बात का घमंड है िक उसने एक सेनापित के ेम को ठु करा िदया। म उसे देख लूंगा।’’

एक िदन क चक ने अपनी बहन से कहा, ‘‘सुदे णा! तिनक सैरं ी को मेरे पास भेज देना,
कु छ िवशेष काय है।’’

पहले तो ौपदी झझक , िफर रानी के आदेश को मानकर चुपचाप क चक के पास चली
गई। क चक ने देखते ही ौपदी को बांह म भर लेना चाहा। ौपदी क चक का यह यवहार
देखकर िव मत रह गई। उसने क चक को एक ओर धकेल िदया और बोली, ‘‘तु ह एक
बेसहारा नारी पर अ याचार करते लाज नह आई? म तु हारी इन हरकत का वह मजा
चखाऊंगी िक जीवन भर याद रखोगे।’’

उ र म क चक अ हास कर उठा।

ौपदी ने क चक का जी भरकर अपमान िकया। लाज व शम के मारे ौपदी क आंख से


आंसू बह िनकले। वह अपने दभु ा य पर जोर-जोर से रोने लगी। िफर वह सीधे राजा िवराट के
क म जा पहच
ं ी। राजा िवराट उस समय यु धि र के साथ जुए का खेल खेलने म िनम थे।
ौपदी ने पास जाकर सुबकते हए क चक क एक-एक हरकत बयान कर दी।

राजा िवराट ने सुनकर भी यान नह िदया, य िक वह क चक के िव कोई कदम नह


उठा सकता था। और यु धि र? उसका तो रोयां-रोयां ोध से सुलग उठा, पर वह दांत

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भ चकर रह गया। इन प र थितय म वह खुलकर ौपदी क न तो कोई सहायता कर सकता
था और न समथन। उसने ौपदी क ओर आंख उठाकर भी नह देखा और पूववत् खेलता रहा।
बोला, ‘‘चाल संभा लए राजन!’’

ौपदी दोन को कु छ न बोलते देखकर ु ध हो गई। वह उसी समय रोती-कलपती भीम के


पास पहच
ं ी और बाली, ‘‘क चक मेरा अपमान करने पर तुला है और कोई भी मेरी सहायता
करने को तैयार नह । िवराट क बात तो जाने दो, यु धि र ने भी मेरी बात पर कोई यान नह
िदया। अब तु ह कु छ करो।’’

भीम का कसरती शरीर ौपदी क बात सुनकर ोध से एकदम दहु रा हो गया। वह बोला,
‘‘तुम िचंता न करो पांचाली! म क चक को इस करनी का आनंद चखाऊंगा। बस, तु ह थोड़ी
सहायता करनी पड़ेगी।’’

‘‘कैसी सहायता?’’

‘‘तुम क चक को आधी रात के समय एकांत म नृ यशाला म बुलाओ, शेष काय म िनपटा
दग
ं ू ा।’’

ौपदी ने भीम क बात मान ली। बाद म जब क चक उससे दबु ारा िमला तो ौपदी ने उससे
स यवहार िकया। ौपदी का बदला प देखकर क चक क बांछ खल गई।ं बोला, ‘‘तो
तुमने मेरा णय िनवेदन वीकार कर लया?’’

‘‘हां!’’ ौपदी ने कहा, ‘‘िदन म इस कार खुलेआम िमलना-जुलना ठीक नह । कोई देख
लेगा तो या कहेगा। ऐसा करो, आज आधी रात को नृ यशाला म िमलना, वह बात करगे।’’

क चक यही तो चाहता था। उसने कहा, ‘‘अव य आऊंगा सैरं ी!’’

आधी रात के समय क चक नृ यशाला पहच


ं ा। नृ यशाला म अंधरे ा था और एकांत था।
उसने एक बार सैरं ी क खोज म इधर-उधर ि दौड़ाई, िकंतु सैरं ी का कह नामो-िनशान

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नह था। ौपदी क बजाय वहां िछपा बैठा था भीम। भीम ने अवसर पाते ही क चक को अपनी
बांह म भर लया। अक मात् आ मण से क चक को संभलने का अवसर भी नह िमला और
भीम ने धरती पर पटक-पटककर क चक को मार डाला। क चक क लाश मांस के लोथड़े म
बदल गई थी।

दसरे
ू िदन जब क चक क लाश िमली तो उसे कोई पहचान भी नह सका। सारे म य नगर
म तहलका मच गया।

राजा िवराट को क चक क ददनाक मौत का पता चला तो वे एकदम िकंकत यिवमूढ़ हो


गए। बोले, ‘‘यह तो िकसी मानव का काम नह । क चक को मारने वाला अव य कोई रा स
होगा।’’

‘‘रा स ने नह ।’’ ौपदी ने आगे बढ़कर ऐलान िकया, ‘‘इसे मेरे गंधव पित ने मारा है।
इसने मुझ पर कु ि डाली थी। मुझ पर जो कोई नीयत िबगाड़ेगा, उसक यही दशा होगी।’’

अब तो ौपदी को सब ऐसे देखने लगे, जैसे वह अलौिकक शि य क वािमनी हो। िकसी


क िह मत न हई िक वह ौपदी का िवरोध कर सके या भ सना कर सके।

क चक के अंितम सं कार से िनपटकर राजा िवराट व रानी सुदे णा महल लौटे तो सैरं ी का
डर उनके मन म समाया हआ था।

सुदे णा ने ौपदी को बुलाकर कहा, ‘‘सैरं ी! हम तु हारी सेवा से भर गए। अब तुम हमारे
यहां से चली जाओ, तु हारे कारण मेरे भाई को जान से हाथ धोना पड़ा, कल हो सकता है िक
िकसी और को मरना पड़े। तु हारे गंधव पित का कोई िठकाना नह , वह कब िकसको संसार से
उठा दे। बेहतर यही है िक तुम महल से चली जाओ।’’

ौपदी भला कहां जाती! अ ातवास म कु छ ही िदन शेष रह गए थे। वह बोली, ‘‘महारानी!
ु ध न ह , क चक का मन पापी था, भला मेरा गंधव पित उसक करतूत को कैसे अनदेखा

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कर देता? अगर क चक मेरा स मान करता तो मेरे पित ने उसे हाथ भी न लगाया होता। मुझ
बेसहारा नारी पर कृपा क जए, महल से मत िनका लए। अ धक नह तो मा तेरह िदन रहने
क और मोहलत दी जए, िफर म वयं ही चली जाऊंगी।’’

‘‘मा तेरह िदन!’’ रानी सुदे णा ने आ चय से पूछा, ‘‘मा तेरह िदन ही य ?’’

‘‘यह म अभी नह बता सकती। बस, इतना जान ली जए िक एक िवशेष योजन से ही म


यहां ठहरी हई ह।ं ’’

कु छ सोचकर सुदे णा बोली, ‘‘ठीक है म तु ह तेरह िदन महल म रहने क अनुमित देती ह,ं
िकंतु अपने गंधव पित को महल से दरू ही रखना।’’

ौपदी मु कराकर बोली, ‘‘वे महल के समीप कभी नह आएंग।े ’’

□□

ह तनापुर म दयु धन अशांत था।

जैसे-जैसे पांडव के अ ातवास का समय समाि क ओर बढ़ रहा था, वैसे-वैसे दयु धन


क िचंता बढ़ती जा रही थी। अगर पांडव सकु शल वापस आ गए तो कौरव के लए वे हमेशा
के लए संकट बने रहगे। दयु धन िकसी कार उनका पता लगाकर उनका अिहत करने को
किटब था, िकंतु पांडव का कह पता नह था। वे अ ातवास के दौरान न जाने िव व के
िकस कोने म िछप गए थे।

दयु धन ने पांडव क खोज म चार ओर गु चर भेजे, िकंतु गु चर भी िनराश होकर


वापस लौट आए।

तभी दयु धन को म य देश से यह समाचार िमला िक महाराज िवराट का सेनापित क चक


मारा गया। उसे िकसी गंधव ने इतनी बुरी कार मारा था िक उसक लाश को पहचानना भी
किठन हो गया था। दयु धन यह सुनकर िचंता म पड़ गया िक क चक को मारने वाला कौन हो

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सकता है? क चक को केवल दो ही ाणी मार सकते थे‒बलराम और भीम। बलराम को या
पड़ी थी िक वह क चक को मारने जाता, रह गया भीम तो भीम ारा यह संभव था िक वह
क चक क ह या करे , य िक समाचार म बताया गया था िक क चक को मारने का कारण
थी‒सैरं ी नामक दासी, जो महल म रानी क सेवा म िनयु थी, यह गंधव उसी का पित था।
दयु धन को शक हआ िक हो-न-हो यह सैरं ी कोई और नह , ौपदी है। अगर वे दोन महल म
ह तो िन चत प से शेष चार भाई भी उसी महल म ह गे। अगर िकसी कार उ ह पहचान
लया जाए तो उसका काम सरलता से पूरा हो सकता था यानी शत के अनुसार पांडव को
िफर से तेरह वष ं का वनवास भोगने को बा य होना पड़ेगा।

दयु धन ने शी समथक का बुलाया और म य देश क नवीनतम सूचनाओं क जानकारी


देकर कहा, ‘‘अवसर अ छा है, हम इसी समय चलकर म य देश पर आ मण कर देना
चािहए और पांडव क पोल खोल देनी चािहए।’’

कण ने समथन िकया, ‘‘हां, यही ठीक है। हम दो िदशाओं से म य देश पर आ मण करना


चािहए, क चक के मर जाने के बाद राजा िवराट हमारा मुकाबला नह कर सकगे। ऐसी
अव था म पांडव का ि य र अव य उबाल मारे गा और वे िवराट क सहायता करने
अव य आगे बढ़गे। बस, तभी हम उ ह पहचान लगे और उ ह िफर से वनवास के लए िववश
कर दगे।’’

यह बात भी म, कृपाचाय आिद को पसंद न आई। उ ह ने कौरव को बहत समझाया िक इस


वैर-भाव म कु छ नह रखा, तुम लोग के पास सब कु छ है, पांडव को भी वनवास पूरा करके
अपने रा य म वापस लौटने दो, लेिकन वृ क राय को अनसुना कर िदया। दयु धन पांडव
को पुनः इं थ म िति त नह होने देना चाहता था।

कौरव क सहायता के लए ि गत देश का राजा सुशमा भी आया, जो राजा िवराट से


श ुता रखता था। क चक ने अपने समय म राजा सुशमा को बहत दःु ख पहच
ं ाया था, इस लए

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वह इस अवसर से लाभ उठाना चाहता था।

तय िकया गया िक म य देश पर उ र व दि ण दो िदशाओं से आ मण िकया जाए। पहले


ि गत के राजा सुशमा दि ण से म य देश पर आ मण करगे और उ र से राजा िवराट के
पशु-धन को लूट लगे।’’

□□

राजा िवराट को सूचना िमली तो वे अ यंत घबरा गए। क चक जैसा सेनापित खोकर तो वे
एकदम िन पाय हो गए थे। अब वे कौरव और ि गत क सेना का कैसे मुकाबला करगे?
िवराट का एक पु राजकु मार उ र था, जो यु -कला से सवथा अनिभ था। राजकु मार उ र
के अलावा राजा क एक पु ी राजकु मारी उ रा थी।

राजा िवराट िचंता से िघरे अपने क म बैठे थे। पास ही कंक बैठा था। कंक से राजा क
िचंता देखी नह गई, वह बोला, ‘‘महाराज! क चक नह है तो या हआ, अगर आप धैय खो
दगे तो काम कैसे चलेगा। आप चाह तो अभी भी बड़ी आसानी से श ुओं का मुकाबला िकया
जा सकता है।’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘दे खए! आपके महल म एक रसोइया काम करता है, ब भ। उसे आप मा साधारण
रसोइया ही मत सम झए, वह जतने बिढ़या यंजन बना सकता है, उतनी ही खूबी से द ु मन
को पछाड़ भी सकता है। िफर आपके अ तबल म एक ं थक नामक पशु पालक भी है, वह
भी एक यो ा ही है। गोशाला म िनयु तंितपाल नामक नया वाला भी एक लड़का है। अगर
आप आदेश द तो ये लोग श ुओं का बहादरु ी से मुकाबला कर सकते ह और महाराज! अगर
आपने मुझे भी अनुमित दी तो म भी दो-चार हाथ िदखा सकता ह।ं ’’

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राजा िवराट ने आ चय से कंक को देखा, ‘‘यह या कहते हो कंक! कहां ि गत और
कौरव क सुिशि त सेना और कहां तुम मामूली से लोग! भला तुम लोग उनका कैसे
मुकाबला करोगे?’’

कंक ने कहा, ‘‘दरअसल, हम कभी पांडव के यहां भी काम कर चुके ह। भला पांडव क
वीरता से कौन अनिभ है। हम पांडव से शौिकया थोड़ी-बहत यु -कला सीख चुके ह।
महाराज! आप अवसर द तो हम अपनी यु -कला का प रचय दे सकते ह।’’

राजा िवराट को भला या आप हो सकती थी। उसने कंक को यु म भाग लेने क


अनुमित दे दी।

□□

ि गत के राजा सुशमा ने अपनी सेना के साथ एक ओर से म य देश पर आ मण कर


िदया। दसरी
ू ओर से दयु धन अपने सा थय ‒भी म, कृपाचाय, कण एवं दःु शासन आिद के साथ
कू च करने को तैयार खड़ा था।

सुशमा ने उ साह से म य देश म वेश िकया। क चक का डर तो रहा नह , इस लए


आनन-फानन म उसने राजा िवराट क सेना के पैर उखाड़ िदए और राजा िवराट को बंदी
बनाकर अपने रथ पर ले चला।

तभी पांडव सुशमा क सेना से ट कर लेने पहच


ं े। भीम तो इतना आवेश म था िक वह एक
वृ को ही जड़ सिहत उखाड़कर श ु सेना पर धावा बोलना चाहता था, िकंतु यु धि र ने उसे
ऐसा करने से मना कर िदया, य िक डर था िक इस कारनामे से कह भीम को पहचान न
लया जाए।

इस लए भीम धनुष और बाण लेकर ही सुशमा के पीछे दौड़ा। धनुष-बाण चलाने का भीम
को कोई िवशेष अ यास नह था, लेिकन उसने इस कु शलता से सुशमा पर धावा बोल िदया िक

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सुशमा को भीम के आगे हार मानने को िववश होना पड़ा। भीम ने राजा िवराट को वतं करा
िदया और सुशमा को बंदी बना लया। सुशमा अपने कृ य से अ यंत शिमदा हआ और उसने
भीम से अकारण आ मण करने क मा मांग ली।

सुशमा को प चाताप करते देख यु धि र का दय पसीज गया। उसने भीम को आदेश


िदया, ‘‘इ ह सस मान छोड़ दो।’’

सुशमा वतं हो गया तो यु धि र ने उससे कहा, ‘‘आप अपने देश जा सकते ह। बस,
यान रहे िक भिव य म म य देश क ओर आंख कभी न उठाएं।’’

सुशमा ने हामी भर ली और अपनी सेना के साथ वापस चला गया।

दसरी
ू ओर सुशमा क हार से बेखबर कौरव म य देश का पशु-धन लूटने को आगे बढ़े।
उ ह ने देश भर का पशु-धन एक िकया और गाय-बैल हांक ले चले। देश क र ा करने को
कोई उप थत नह था, य िक राजा िवराट तो सुशमा से लड़ने िनकल गए थे और उनके साथ
भीम व यु धि र भी जा चुके थे।

महल म उप थत था केवल राजकु मार उ र। जब उसके पास यह समाचार पहच


ं ा िक दसरे

मोच पर देश के पशु-धन को लूटा जा रहा है तो उसके हाथ-पांव फूल गए। वह अभी नौजवान
था, उसका अ धक समय महल म सुंदर ना रय के बीच यतीत होता था। वह हमेशा उन
ना रय के सामने अपनी बहादरु ी क ड ग हांका करता था।

दसरे
ू मोच पर जो आ मण हआ था, उससे वह डर तो बहत गया था, िकंतु ना रय के
सामने अपनी कायरता क पोल नह खोलना चाहता था, इस लए तेज वर म बोला, ‘‘श ु क
िह मत कैसे हई हमारे पशु-धन को लूटने क । ठीक है, म उनका मुकाबला क ं गा। लाओ, मेरे
ह थयार लाओ, कवच लाओ!’’ िफर कु छ सोचकर बोला, ‘‘पर जाऊं कैसे? मेरा रथ कौन
चलाएगा। काश! मेरे पास कोई द सारथी होता, िफर म श ु-सेना म धड़धड़ाता घुस पड़ता।

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मेरी वीरता देखकर लोग को यक न हो जाता िक म अजुन से भी कम नह । उफ! म या
क ं ? िबना सारथी के तो मेरा यु भूिम म जाना असंभव है।’’

वह पर अजुन वृह ला के वेश म खड़ा था। वह राजकु मार उ र क बड़ी-बड़ी बात सुनकर
मन-ही-मन मु करा रहा था। वह जानता था िक कौरव से लड़ने का साहस इस लड़के म नह
हो सकता, लेिकन वह वयं हर हालत म म य देश क र ा करना चाहता था। उसने चुपके
से ौपदी के कान म कहा, ‘‘यह लड़का तो बात बनाने म ही समय यतीत कर देगा और
कौरव पशु-धन लेकर भाग िनकलगे। तुम जाकर राजकु मार उ र को िव वास िदलाओ िक
वृह ला को रथ चलाने का खूब अ यास है। यह भी कह देना िक अजुन के रथ को कई बार
चलाया है और एक बार खांडव वन म जब आग लग गई थी, तब रथ को तेज गित से भगाकर
अजुन क जान बचाई थी। अगर यह तु हारी बात मान गया तो शायद कौरव को मात दी जा
सके।’’

ौपदी ने उसी समय जाकर राजकु मार उ र से यह सब कह िदया। अब राजकु मार इनकार
कैसे करता? इस लए उसने वृह ला को बुलाकर कहा, ‘‘हऽं ऽऽ। तो तुम उ म सारथी भी हो।
बहत खूब! तो देर िकस बात क है? शी ता से मुझे यु भूिम म ले चलो। म कौरव को
अ छा सबक सखाऊंगा और अपना पशु-धन भी वापस लाऊंगा।’’

वृह ला ने पहले तो बड़ी आनाकानी क और कहा, ‘‘म भला या रथ चला सकूं गी। म तो
लड़िकय को गाना और नृ य सखाती ह।ं यु भूिम म रथ चलाना मेरे वश का नह ।’’

‘‘झूठ मत बोलो वृह ला!’’ राजकु मार उ र बोला, ‘‘मुझे सैरं ी ने तु हारे बारे म सब कु छ
बता िदया है। अब बहाने बनाने से काम नह चलेगा, तु ह मेरे साथ चलना ही पड़ेगा। त काल
यु क पोशाक पहनो और म भी तैयार होता ह।ं ’’

इतना कहकर राजकु मार उ र ने ह थयार ले लए और कवच धारण कर लया। उसका


िव वास था िक न तो वृह ला रथ क सारथी बनकर चल सकेगी और न ही वह यु भूिम म

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जाने का क उठाएगी। िफर भी वृह ला से बोला, ‘‘ज दी करो भई! तैयार हो जाओ, कह
ऐसा न हो िक कौरव अपनी करतूत म सफल हो जाएं।’’

वृह ला य सजने लगी, जैसे यु भूिम म जाने से बुरी कार डर रही हो। उसने कवच आिद
भी उ टे-सीधे धारण कर लए, तािक कोई उसक अस लयत न भांप सके। वृह ला क
हड़बड़ी और घबराहट से वहां खड़ी मिहलाएं खूब हंस रह थ और वृह ला का उपहास उड़ा
रही थ ।

थोड़ी देर म ही राजकु मार उ र तथा वृह ला तैयार होकर बाहर िनकले और रथ म सवार
होकर यु भूिम क ओर चल पड़े। वृह ला को डर था िक राजकु मार उ र जैसा अनाड़ी
लड़का यु कैसे लड़ सकेगा, इस लए वह उसे बार-बार समझाती थी िक यु म कैसे यवहार
करना चािहए। राजकु मार उ र ने ऊंची हांकते हए कहा, ‘‘घबराओ मत वृह ला! बस, तुम
केवल होिशयारी से रथ का संचालन करो। तुम तो अजुन क सारथी रह चुक हो, इस लए
डरने क आव यकता नह । बस, एक बार म यु भूिम म पहच
ं जाऊं, िफर देखना म कैसे
कौरव को परा त करता हं और उ ह बंदी बनाकर राजधानी लाता ह।ं जब महाराज िवराट को
मेरी वीरता का पता चलेगा तो िकतना स ह गे अपने पु क सफलता पर।’’

इ ह बात के बीच रथ यु भूिम के िनकट आ पहच


ं ा। राजकु मार उ र क ि दरू खड़ी
कौरव क सेना पर गई तो उसक सारी वीरता हवा हो गई। सेना के आगे दयु धन तो खड़ा ही
था, उसके साथ कण, भी म, दःु शासन व कृपाचाय जैसे वीर खड़े थे। घबराहट के मारे
राजकु मार उ र को पसीना आ गया। वह कांपते वर म बोला, ‘‘अरे वृह ला! इतनी तेजी से
तो रथ मत चलाओ। बस, रथ यह रोक दो। मुझे थोड़ा सोचने दो िक इनके साथ कैसे मोचबंदी
करनी चािहए।’’

वृह ला को समझते देर न लगी िक राजकु मार उ र डर गया है। यहां तक आकर
राजकु मार उ र ने पग पीछे ख च लए तो म य देश क र ा करना किठन हो जाएगा,

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इस लए उसने राजकु मार उ र क बात पर कोई यान नह िदया और रथ को गित के साथ
आगे बढ़ाता चला गया। राजकु मार उ र वृह ला के इस द ु साहस को देखकर तो और भी
बौखला गया। बोला, ‘‘म कहता हं िक रथ रोक दो। या तु ह मेरा आदेश सुनाई नह देता?’’

‘‘घबराओ मत राजकु मार!’’ वृह ला ने उ र िदया, ‘‘मुझे रथ को गित के साथ सेना के


बीच ले जाने दो, िफर देखना िक कौरव क सेना म कैसे भगदड़ मच जाती है। स चाई तो यह
है िक एक बार म रथ क लगाम पकड़ लेती हं तो रथ को ल य पर ही पहच
ं ाकर दम लेती ह।ं
आपने मुझे कौरव क सेना तक जाने का आदेश िदया, अब मेरा रथ वह जाकर केगा।’’

राजकु मार उ र का सारा शरीर पसीने से भीग गया। वह बोला, ‘‘नह -नह , तुम यह रथ
रोक दो। सुनो, अचानक मेरी तबीयत खराब हो गई है। म शायद कौरव के साथ न लड़ सकूं ।
बेहतर यही है िक तुम रथ को राजधानी वापस ले चलो। तु ह तो पता है िक साथ म हम सेना
भी नह लाए ह। सारी सेना राजा िवराट सुशमा से मुकाबला करने को लेकर चले गए ह।’’

‘‘अब तो वापस चलना नामुमिकन है। हम लड़ने आए ह, लड़कर ही रहगे।’’ वृह ला ने


ढ़ वर म कहा, ‘‘पर आप इस कदर घबरा य रहे ह। अभी तो लड़ाई भी शु नह हई है
और आप यथ िचंितत हो रहे ह। तिनक यह तो सोिचए िक आप िबना लड़े यहां से वापस चले
गए तो महल क ना रयां आपका िकतना उपहास उड़ाएंगी। अब तो हम पशु-धन को श ुओं के
हाथ से छु ड़ाकर ही राजधानी चलना होगा।’’

‘‘हंसने दो मिहलाओं को। पशु-धन क िचंता छोड़ो। बस, यहां से भाग चलो। कौरव को
जीत लेने दो मेरा देश, मुझे नह लड़ना इनके साथ। रथ मोड़ दो।’’

िकंतु वृह ला ने उसक बात पर यान नह िदया और वह रथ तेजी से आगे बढ़ाती रही।
राजकु मार उ र ने जब देखा िक वृह ला रथ को कौरव क सेना के बीच ले जाकर ही मानेगी
तो उसने आंख बंद करके रथ से छलांग लगा दी और राजधानी क ओर दौड़ पड़ा।

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िववश होकर अजुन को रथ रोकना पड़ा। वह रथ से कू दा और राजकु मार उ र के पीछे
दौड़ा। उसने दो ही छलांग म राजकु मार उ र को जा पकड़ा। राजकु मार उ र िगड़िगड़ाता रहा,
िकंतु अजुन ने उसे ख चकर रथ पर चढ़ा लया और रथ िफर दौड़ा िदया। राजकु मार उ र
समझ गया िक वृह ला से मुि पाना असंभव है। वृह ला ने उसे अभयदान देकर कहा, ‘‘सुनो
राजकु मार! तुम िन चंत होकर रथ म बैठो। तु ह लड़ने क आव यकता नह है, म अकेले ही
कौरव क सेना से मुकाबला कर लूंगी।’’

राजकु मार उ र क जान-म-जान आई, पर जब-जब उसक आंख के सामने कौरव सेना
के वीर क ध जाते, वह बुरी कार कांप उठता, ‘‘इस लड़के को भरोसा नह ।’’ अजुन ने
सोचा, ‘‘म अकेले ही कौरव का मुकाबला क ं गा।’’ इसके लए आव यकता थी िद या
क और िद या क गठरी रखी हई थी एक वृ क डाल पर। वृह ला ने अपना रथ उस
वृ क ओर दौड़ा िदया।

वृ आने पर वृह ला ने राजकु मार उ र से कहा, ‘‘राजकु मार! इस वृ क ऊंची डाल पर


जो गठरी रखी हई है, उसे उतारकर लाओ।’’

राजकु मार ने वृ क ओर देखकर कहा, ‘‘यह या कह रही हो वृह ला! भला एक


राजकु मार भी कभी वृ पर चढ़ता है। और िफर मने सुना है, इस गठरी म िकसी क लाश
पड़ी हई है। म तो गठरी को हाथ भी नह लगाऊंगा।’’

‘‘नह -नह ! यह लाश नह है राजकु मार!’’ वृह ला ने कहा, ‘‘सच तो यह है िक इस गठरी


म पांडव के िद या पड़े ह। बस, एक बार ये हाथ म आ गए तो िफर कौरव को मात देना
सरल हो जाएगा। शी ता से पेड़ पर चढ़ो और गठरी उतार लाओ।’’

राजकु मार उ र िववश होकर वृ पर चढ़ा और गठरी नीचे उतार दी। वृह ला ने त काल
गठरी खोली और िद या िनकाल लए। उसने गांडीव को अपने कंधे पर लटका लया और
कहा, ‘‘यह गांडीव ऐसा ह थयार है िक इसके सामने श ुओं के बड़े-बड़े अ फ के पड़

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जाएंग।े शेष ह थयार भी देवताओं ने स होकर पांडव को िदए ह। इनक सहायता से हम
श ुओं को शी ही परा त कर दगे।’’

राजकु मार उ र हैरानी से कभी वृह ला को देख रहा था तो कभी उन दमकते-चमकते हए


अ को। िफर बोला, ‘‘वृह ला! इन अ को देखकर तो मुझे भी िव वास हो रहा है िक
हमारी हार नह हो सकती। सच तो यह है िक मेरी कायरता भी दरू हो गई है, पर तुम रथ और
ह थयार दोन एक साथ कैसे चलाओगी? ठीक है, म रथ चलाऊंगा और तुम ह थयार चलाना,
य िक अजुन के साि य म रहकर तुम इनका संचालन सीख चुक हो।’’

अजुन ने वीकार कर लया। उसने अपने लहराते बाल क चोटी बांध ली और ह थयार से
लैस होकर रथ म जम गया।

राजकु मार ने रथ के घोड़ पर चाबुक मारते हए कहा, ‘‘अब यह रथ कौरव क सेना के


म य म जाकर रोकूं गा।’’

वृह ला ने स होकर अपना शंक फंू का, जसक गंभीर विन से सारा वातावरण गूज

उठा। शंख क तेज विन से राजकु मार घबरा गया और डर के मारे कांपने लगा।

वृह ला ने कहा, ‘‘अरे , तुम य कांपने लगे। यह तो श ुओं को डराने के लए बजाया


था।’’

‘‘उफ! िकतना भयंकर वर है इस शंख का। इसके वर से तो दश िदशाएं गूज


ं उठ और
पृ वी म कंप आ गया।’’

‘‘बहादरु बनो राजकु मार!’’ वृह ला ने कहा, ‘‘रथ को ठीक से चलाओ और दय को


सु ढ़ कर लो। म श ुओं को डराने के लए िफर शंख बजा रही ह।ं ’’

अजुन के शंख क विन एक बार िफर िदग्-िदगंत तक फैल गई। राजकु मार उ र एक बार
िफर कांप उठा, पर उसने घोड़ क लगाम से अपनी पकड़ ढीली नह होने दी।

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शंख क तेज विन कौरव क सेना म भी गूज
ं ती हई पहच
ं चुक थी। ोणाचाय ने त काल
शंख क विन पहचान ली। वे बोले, ‘‘अरे , यह तो िनःसंदेह अजुन के शंख क विन है।
इसका अथ है, वह कह आस-पास है। वह हमसे मुकाबला करने आ रहा है। दयु धन! उससे
लड़ने को तैयार हो जाओ।’’

दयु धन स होकर बोला, ‘‘अगर वह लड़ने आ रहा है तो हमने बाजी जीत ली। वे लोग
वनवास के बाद एक वष के अ ातवास के लए वचनब थे। अभी उनके अ ातवास का
समय पूरा नह हआ है। अगर वह हमसे लड़ने आया तो पहचान लया जाएगा और पांडव को
पुनः वनवास के लए िनकलना पड़ेगा। हम कोई जान-बूझकर तो पांडव को खोजने आए नह
थे। हम तो पता भी नह था िक पांडव म य देश म रहते ह। हम तो ि गत नरे श क सहायता
करने आए ह और उसक लूटी हई गाय को वापस लेने आए ह। अब हम लड़ने क या
आव यकता, पांडव ने तो कट होकर बाजी गंवा दी। आपका िवचार या है िपतामह?’’

‘‘इतने उतावले मत बनो दयु धन!’’ भी म बोले, ‘‘ योितष क गणना कहती है िक उ ह


अ ातवास पूरा िकए एक स ाह बीत चुका है।’’

कण ने दयु धन के िवचार का समथन िकया। ोणाचाय के पु अ व थामा ने कहा, ‘‘हम


यहां पांडव से लड़ने नह आए ह, कु छ भी हो पांडव ने अपने वचन का पालन िकया है। उनसे
लड़ने क या आव यकता?’’

भी म ने उ र िदया, ‘‘जब लड़ने आए हो तो बेहतर यही है िक हम सब िमलकर अजुन का


मुकाबला कर।’’

दयु धन मौन रहा। वह नह चाहता था िक अजुन के िद या का सामना करे । उसका अब


भी यही िवचार था िक पांडव अ ातवास को पूण िकए िबना ही कट हए ह, इस लए उ ह पुनः
अ ातवास के लए थान करना चािहए।’’

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तब तक अजुन का रथ कौरव क सेना से कु छ दरू रह गया था। अजुन ने दयु धन आिद को
िवचार म त ीन पाया तो अपना रथ एक जगह रोक िदया। उसने दयु धन क ओर अपना
यान कि त कर लया। वह देखना चाहता था िक दयु धन कौन-सा कदम उठाता है।

कु छ देर तक शांित छाई रही, िफर अजुन ने ही अपनी ओर से पहल क । उसने धनुष से तीर
छोड़े, कु छ तो ोणाचाय के कान के पास से िनकल गए और कु छ उनके चरण म जा िगरे ।
ोणाचाय स होकर बोले, ‘‘िकतना महान धनुधारी है अजुन! उसने कु छ तीर से मेरे कान
म संवाद पहच
ं ाया है और कु छ तीर से मेरे चरण म अपना णाम भेजा है।’’

‘‘ या संवाद भेजा है अजुन ने?’’ दयु धन ने पूछा।

‘‘वह कहता है िक जब तक गु ोणाचाय बाण नह चलाएंग,े तब तक अजुन यु आरं भ


नह करे गा।’’ ोणाचाय बोले।

इतना कहकर ोणाचाय ने तीर चलाकर अजुन को यु आरं भ करने क अनुमित दान कर
दी। अजुन ने तीर चलाकर ोणाचाय के तीर के वार को बचा लया। दोन ओर से अ का
आदान- दान आरं भ हो गया।

ोणाचाय के अलावा कृपाचाय और भी म भी अजुन क यु -कला देखकर भािवत हो रहे


थे, पर वे कौरव-प म थे। इस लए अजुन के िव ह थयार चलाने को िववश थे, लेिकन
उनके वार म न तो घृणा थी और न उ माद। बस, कला मक यु का दशन मा था। हां, कण
एवं दयु धन के हर वार से श ुता झलक रही थी।

लेिकन अजुन के िद या के सामने कोई भी िटक नह सका। कण के अ िनरथक


सािबत हए और दयु धन ने वहां से भागने म ही अपनी भलाई समझी। यही अवसर था िक
अजुन ने अपने मं - स अ के बल से श ु-प को जबरद त मात दे दी।

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अजुन ने राजकु मार उ र से कहा, ‘‘राजकु मार! हम जीत गए, यु समा हो गया। तुम
यहां श ुओं के शरीर से कु छ व उतारकर ले चलो, तािक महल म जीत क िनशानी
िदखाकर ना रय क वाह-वाही लूट सको।’’

राजकु मार उ र ने ऐसा ही िकया। िफर अपना पशु-धन लेकर वे राजधानी क ओर चल


पड़े।

वापसी म अजुन ने अपने ह थयार पुनः उसी वृ पर िछपा िदए, जहां पहले रखे थे।

महल के िनकट आने पर अजुन से राजकु मार उ र ने कहा, ‘‘हे पाथ! मा कर दी जए,
मुझे पता नह था िक वीर पांडव ने ौपदी के साथ बदले हए वेश म हमारे महल म ही आ य
लया है।’’

‘‘सुनो राजकु मार! यान रहे हमारी अस लयत िकसी पर कट मत करना। सबको यही
बताना िक यु तु ह ने अकेले जीता है।’’

□□

म य देश म समाचार पहच


ं चुका था िक कौरव क सेना परा त हो चुक है, राजकु मार
उ र पशु-धन लेकर और िवजयी होकर लौट रहे ह। पु क क ित-गाथा सुनकर राजा िवराट
क स ता क सीमा नह रही।

राजा िवराट ने सारे रा य म हष मनाने का आदेश दे िदया और झूमते हए बोले, ‘‘मेरे पु ने


तो कमाल कर िदया। कौरव क सेना के साथ बड़े-बड़े यो ा आए थे, पर उन सबको अकेले
मेरे पु ने परा त कर िदया।’’

पास ही यु धि र खड़ा था। वह बोला, ‘‘हां, जसके रथ का सारथी वृह ला हो, वह भला
सफल कैसे नह होगा!’’

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यु धि र क यह उि राजा को पसंद नह आई, िकंतु उस समय वे पु क सफलता से इस
कदर मदहोश थे िक यु धि र क उि क ओर िवशेष यान नह िदया।

सारे नगर म उ सव का सा वातावरण छा गया था। जब राजकु मार उ र अपने रथ पर सवार


नगर क सड़क से िनकला तो जनता म उसक जय-जयकार मच गई, सड़क के दोन ओर
लोग उसका वागत करने को उमड़ पड़े।

महल म राजा िवराट अपने िवजयी पु का वागत करने के लए ती ा म थे। समय


िबताने के लए वे अनमने भाव से यु धि र से जुए का खेल खेल रहे थे। खेल-खेल म बार-
बार अपने पु क शंसा के पुल बांध रहे थे। राजा िवराट क हर शंसा के उ र म यु धि र
वृह ला क शंसा करने से कभी नह चूकते। राजा िवराट से यह सहा नह गया िक यु धि र
वृह ला क शंसा तो कर रहा है, पर राजकु मार उ र क शंसा म एक श द भी नह बोल
रहा है। उनके ोध क सीमा नह रही। उ ह ने जुए क एक कौड़ी उठाकर यु धि र पर दे मारी
और बोले, ‘‘बंद करो वृह ला क रट! या राजकु मार उ र क वीरता का तु हारी ि म
कोई मू य नह ?’’

कौड़ी यु धि र के सर म जा लगी और वहां से र बहने लगा। ौपदी ने य देखा तो वह


दौड़कर पास पहच
ं ी और व से र प छने लगी, तािक धरती पर र क एक भी बूदं न
िगरे , य िक यु धि र को वर ा था िक जो भी यु धि र का र धरती पर बहाएगा, वह
मारा जाएगा।

तभी राजकु मार उ र ने क म वेश िकया। िवराट ने आगे बढ़कर पु को आ लंगन म ले


लया, लेिकन राजकु मार उ र ने यु धि र के सर से र बहते देखा तो उसका सारा उ साह
जाता रहा। उसने याकु ल वर म पूछा, ‘अरे ! इनके सर म चोट कैसे लगी?’’

‘‘व स!’’ राजा िवराट ने उ र िदया, ‘‘कंक को मने ही दंड िदया है। इसे सबक सखाना
आव यक था।’’

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राजकु मार उ र को यह अ छा नह लगा। वह पांडव क अस लयत जान चुका था, पर
अजुन क िनषेधा ा के कारण वह भेद नह खोल सकता था। बस, इतना ही कहा, ‘‘राजन!
एक ा ण का र बहाकर आपने अ छा नह िकया। कह ऐसा न हो िक ा ण क हाय से
हमारा अक याण हो।’’

राजा िवराट ने पु को स करने के लए यु धि र से मा मांगी और उसके घाव पर प ी


बांध दी।

यु धि र ने धीरे से कहा, ‘‘आप राजा ह, हम चाकर। हमसे मा मांगकर हम शिमदा मत


क जए, आपको दंड देने का पूरा अ धकार है।’’

राजा िवराट ने उसक बात का कोई उ र नह िदया। उ ह ने पु से पूछा, ‘‘हां, राजकु मार!
बताओ, तुमने यु कैसे जीता?’’

‘‘िपताजी! मुझे तो यु म कु छ भी करना नह पड़ा। बस, यु भूिम म एक देवदतू आ पहच


ं ा
और उसक सहायता से मने कौरव को परा त कर िदया।’’

‘‘अ छा!’’ राजा िवराट आ चय से बोले, ‘‘कहां है वह देवदत?


ू मुझे भी तो उसके दशन
कराओ।’’

‘‘यु क समाि पर वह त काल लु हो गया, लेिकन एकाध िदन म अव य िफर कट


हो जाएगा।’’

□□

अ ातवास का एक वष समा हो चुका था।

पांडव अभी तक राजा िवराट के महल म थे। िवजयो सव के बाद उ ह ने तय कर लया िक


अब उ ह कट हो जाना चािहए।

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एक िदन उ ह ने अपने चोले बदल लए और राजक य ठाट-बाट से राज दरबार म पहच
ं े।
वहां राज संहासन पर यु धि र को िबठाया गया, पास ही सैरं ी का प यागकर ौपदी भी
बैठी थी। शेष भाई उनके अगल-बगल म बैठ गए।

थोड़ी देर के प चात् राजा िवराट ने राजदरबार म वेश िकया। कंक को राज संहासन पर
बैठा देखकर उ ह आ चय हआ‒आ चय से अ धक ोध। वे कोई अपश द बोलते, तभी
अजुन अपने आसन से उठा और बोला, ‘‘महाराज! न ह । संहासन पर आसीन यि
संहासन के सवथा यो य ह। वे इं थ के नरे श धमराज यु धि र ह।’’

‘‘धमराज यु धि र?’’ राजा िवराट आ चय से बोले, ‘‘अगर ये धमराज यु धि र ह तो


इनके शेष भाई कहां ह, राजरानी ौपदी कहां है?’’

अजुन ने बताया, ‘‘महाराज! हम सब यह ह। हम िविभ वेश म आपके यहां अ ातवास


कर रहे थे। कंक, ब भ, वृह ला, ं थक और तंतपाल के प म हम पांच भाई ही यहां पर
िनयु थे और ौपदी सैरं ी बनकर अंतःपुर म काम करती थी। म ही वह सहायक ह,ं जो
राजकु मार उ र के साथ सारथी बनकर यु भूिम गया था और कौरव को परा त िकया था।’’

वा तिवकता जानकर राजा िवराट अ यंत स हए। वे बोले, ‘‘मेरा अहोभा य िक आप


जैसे वीर पु ष मेरे महल म रहे। आप लोग के साथ जो अ याय हआ है, उससे म अनिभ नह
ह।ं अपना वैभव ा करने के लए आपको मेरा जैसा भी सहयोग चािहए, म देने के लए
त पर ह,ं ब क म चाहता हं िक आपका और मेरा संबध
ं अटू ट र ते म बदल जाए। अजुन ने
हमारे रा य क र ा के लए जो कु छ िकया है, उससे म उनका अनु िहत ह।ं म चाहता हं िक
अजुन और राजकु मारी उ रा को िववाह-सू म बांधकर अपने नेह संबध
ं को अटू ट कर िदया
जाए। य धमराज यु धि र! आपका या िवचार है?’’

‘‘इसका उ र तो वयं अजुन ही दे सकता है।’’ यु धि र बोला।

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अजुन कु छ सोचकर बोला, ‘‘म तो राजकु मारी उ रा से िववाह करने को असमथ ह‒ं मने
इस ि से कभी उसे देखा नह । अंतःपुर म रहते हए मने उसे हमेशा अपनी पु ी क कार ही
समझा है। हां, मेरी प नी सुभ ा से उ प अिभम यु राजकु मारी उ रा के सवथा यो य है। अगर
आप चाह तो उनका िववाह हो सकता है।’’

भला राजा िवराट को या आप हो सकती थी।

त काल िववाह क तैया रयां शु हो गई।ं ारका से ीकृ ण वर अिभम यु एवं बलराम,
सा यिक आिद यादव वीर के साथ म य देश आ पहच
ं े। िववाह-समारोह म स म लत होने
ुपद भी अपने पु धृ ु न के साथ पधारे । बदले क आग म जल रही िशखंडी भी आई।
इसके अलावा यु धि र के अनेक िम नरे श भी पहच
ं े, जनम का सराज व िशिवराज भी
अपनी एक-एक अ ौिहणी सेना लेकर आए थे।

उ रा व अिभम यु का िववाह बड़ी धूमधाम से संप हो गया।

□□

िववाह के प चात् अगली योजनाओं पर िवचार-िवमश हआ।

पांडव के सभी िम नरे श ने वादा िकया िक ऐसे किठन समय म वे पांडव को हर कार
का सहयोग देने को तैयार ह।

ीकृ ण ने सबको संबो धत करते हए कहा, ‘‘पांडव के साथ जो अ याय हआ है, उसके
बारे म आप सब भली-भांित प रिचत ह। जुए म धोखे से यु धि र को हराकर उनका सारा
वैभव लूट लया गया और पांडव अपना वचन पूरा करते हए िपछले तेरह वष ं से दर-दर क
ठोकर खा रहे ह। अब उ ह ने अपना वचन सफलतापूवक पूरा कर लया है तो उ ह अपना
राज-पाट और वैभव वापस िमलना चािहए। इसके बाद ही हम कोई अगला कदम उठा सकते
ह। मेरा िवचार है िक पहले हम कौरव के पास अपना दतू भेजना चािहए। इस समय सारे रा य

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पर दयु धन का अ धकार है। हमारा दतू उससे दो टू क श द म आधा रा य पांडव को स पने
का अनुरोध करे गा। दयु धन का उ र आने तक हम ती ा करगे।’’

‘‘मुझे नह लगता िक दयु धन पांडव का अनुरोध वीकार करे गा।’’ बलराम का िवचार था,
‘‘कौरव ने हमेशा पांडव का अिहत चाहा है और थित सवथा उनके प म है, वे पांडव को
रा य म घुसने भी नह दगे।’’

सा यिक बोला, ‘‘अगर दयु धन ने हमारा अनुरोध ठु करा िदया तो हम संघष का रा ता


अपनाएंग।े यु धि र ने भलमनसाहत म अपना सब कु छ गंवा िदया, अब तो संघष का रा ता ही
बचा रहता है।’’

ुपद का भी िवचार था, ‘‘दयु धन चुपचाप पांडव को कु छ भी नह देगा। हमारे दतू को


दयु धन से िनडर होकर बात करनी चािहए और कोई िनणय होना चािहए।’’

अंततः यही तय िकया गया िक पहले िकसी सुयो य दतू को कौरव के पास भेजना चािहए।

िवचार-िवमश के प चात् ीकृ ण ारका जाने के लए तैयार हो गए। जाते-जाते यु धि र


से बोले, ‘‘हमारा पहला यास यही रहेगा िक कौरव से िम ता थािपत हो सके। अगर कौरव
ने हमारे अनुरोध को ठु करा िदया तो तुम सीधे मेरे पास आ जाना, िफर अपने सा थय के साथ
अगली योजना पर िवचार करगे।’’

□□

पांडव ने ह तनापुर क ओर िनडर दतू के प म एक पुरोिहत को रवाना कर िदया।


यु धि र को िव वास था िक दयु धन दतू के अनुरोध को अव य ठु करा देगा और संघष क
धमक देगा, अतः उ ह ने अनेक िम नरे श को सहायता करने का संदेश भेज िदया।

दयु धन भी मौन नह था। पांडव क येक गितिव ध पर उसक ि थी। उसने भी अपने
प के राजाओं से संभािवत यु के लए तैयार रहने को कह िदया था। तभी दयु धन को पता

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चला िक अजुन ा रका जा रहा है‒ ीकृ ण से सहयोग पाने। दयु धन ने एक पल भी नह
गंवाया, वह भी ारका के लए चल पड़ा। अंततः ीकृ ण के पास शि शाली सेना थी। अगर
पांडव ने उस पर क जा कर लया तो उसक सै य-शि म वृि हो जाएगी और यह दयु धन
चाहता नह था।

दयु धन और अजुन लगभग एक ही समय ारका पहच


ं े।

उस समय ीकृ ण अपने शयनक म सो रहे थे। दयु धन ने पहले शयनक म वेश
िकया। ीकृ ण को िन ाम देखकर उसने चुपचाप बैठ जाना उिचत समझा। दयु धन ने अपने
लए उिचत आसन क खोज म इधर-उधर ि डाली। ीकृ ण के सरहाने के पास एक
आसन पड़ा था, वह उसी पर बैठ गया। अजुन आया तो उसने ीकृ ण के चरण म ही बैठना
उिचत समझा, इस लए वह पायताने बैठ गया।

थोड़ी देर म ीकृ ण क न द खुली। आंख खुलते ही उनक ि सामने बैठे अजुन पर गई।
अजुन ने उनका अिभवादन िकया।

‘‘कैसे आए अजुन?’’ ीकृ ण ने पूछा।

अजुन के बोलने से पूव ही दयु धन बोला, ‘‘ ीकृ ण! पहले म आया ह,ं इस लए पहले
मुझसे बात करना ही उिचत है। कौरव व पांडव दोन के साथ आपको बराबरी का यवहार
करना चािहए, अजुन से प पात ठीक नह ।’’

‘‘अ छा! तो पहले आप आए ह।’’ ीकृ ण बोले, ‘‘पर म या क ं , मुझे पहले िदखाई तो
अजुन ही िदया। खैर! आप बताइए कैसे आगमन हआ?’’

दयु धन बोला, ‘‘मुझे लगता है िक भिव य म यु संभािवत है, अतः उस यु म म आपका


सहयोग ा करने आया ह।ं ’’

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ीकृ ण कु छ सोचकर बोले, ‘‘देखो दयु धन! म नह जानता िक पहले कौन आया। चूंिक
सबसे पहले मेरी ि अजुन पर गई, इस लए िनयमानुसार मुझे पहले अजुन क इ छा का
आदर करना पड़ेगा। तुम दोन मेरी सहायता पाने के लए आए हो। म दोन के साथ बराबरी का
ही यवहार क ं गा। मेरे पास बहत बड़ी सेना है, जसम बड़े-बड़े वीर ह, जो पल भर म द ु मन
का सफाया कर सकते ह। एक प को यह सेना िमलेगी और दसरे
ू प को अकेला म। हां
अजुन! पहले तुम बताओ िक तु ह या चािहए? म या मेरी बल सेना?’’

अजुन हाथ जोड़कर बोला, ‘‘म तो आपको ही चाहता ह?


ं आप िमल गए तो सब कु छ िमल
गया।’’

‘‘एवम तु।’’ ीकृ ण मु कराकर बोले, ‘‘और तुम या चाहते हो दयु धन?’’

दयु धन तो डर रहा था िक पहले अजुन क इ छा पूरी क जा रही है, कह वह ीकृ ण क


िवशाल सेना पर ही न अ धकार जमा ले। वह स होकर बोला, ‘‘म आपक सेना पाकर
संतु ह।ं ’’

इस कार अपनी-अपनी व तु पाकर दोन लौट गए।

□□

पांडव क दसरी
ू माता मा ी के िपता श य बहत ही शि शाली नरे श थे। उनके कान म भी
संभािवत यु क भनक पहच
ं चुक थी। जािहर था िक वे पांडव का िहत चाहते थे, इस लए
एक िदन वे अपने कु छ िव व त सा थय और सेना के साथ यु धि र से िवचार-िवमश करने
िनकल पड़े।

दयु धन को पता चला तो वह घबराया। वह िकसी कार श य का सहयोग वयं पाना


चाहता था, इस लए जस- जस माग से श य क सवारी िनकली, उसे दयु धन ने खूब सजा
िदया, श य का आदर-स कार िकया, वािद भो य साम ी से सबको संतु िकया। श य

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का िवचार था िक यह सारा आयोजन यु धि र ने िकया है, इस लए एक िदन उसने
आयोजनकताओं से कहा, ‘‘ जसने मेरे वागत का इतना उ म बंध िकया, म उससे िमलना
चाहता ह।ं उसे मेरे पास बुला लाओ, म भी उसे कु छ देना चाहता ह।ं ’’

सेवक ह तनापुर जाकर दयु धन को बुला लाए। श य को जब पता चला िक यह सारा


आयोजन दयु धन ने िकया है तो आ चयचिकत हआ। दयु धन ने कहा, ‘‘आपने वयं वचन
िदया है िक आप मुझे कु छ देना चाहते ह, इस लए वचन पूरा क जए।’’

तीर तरकश से िनकल चुका था। श य ने कहा, ‘‘बोलो! तुम मुझसे या चाहते हो?’’

‘‘म चाहता हं िक जब यु हो, तब आपक सेना मेरे अधीन रहे।’’ दयु धन ने कहा, ‘‘बस,
इसके अलावा म और कु छ नह चाहता।’’

‘‘ठीक है, म वचन देता हं िक यु म मेरी सेना तु हारे सुपुद होगी।’’

इसके बाद श य यु धि र के पास पहच


ं े और सारी बात बता दी। सुनकर यु धि र एक पल
सोचते रहे, िफर बोले, ‘‘महाराज! आप वचन दे चुके ह, इस लए आपको िन चत प से
उसका पालन करना चािहए। हां, एक िनवेदन म भी करना चाहता ह,ं जब यु हो तो आप ही
कण के सारथी बन। िफर यु के मैदान म कण से कु छ ऐसा कह, जससे वह ु ध हो जाए,
तािक अजुन उस अवसर का लाभ उठाकर उसका वध कर सके। यह सब कहना सवथा उिचत
नह , लेिकन म चाहता हं िक अजुन ही कण पर िवजय ा करे । आशा है िक इतना सहयोग
आप हमारे साथ अव य करगे।’’

श य ने अपनी वीकारोि दे दी।

पांडव म य देश के िनकट उपल य नामक नगर म बस गए। अब िछपकर रहने क


आव यकता नह थी, य िक अ ातवास समा हो चुका था।

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उ ह ती ा थी अपने दतू के वापस लौटने क , जो कौरव से वाता करने ह तनापुर गया
था।

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( यारह)

पांडव का दतू ह तनापुर पहच


ं ा तो उसका दरबार म यथायो य वागत िकया गया।

अपना आसन हण करने के प चात् दतू बोला, ‘‘म पांडव क ओर से कहने आया हं िक
हम यु नह चाहते। बस, हम तो यह चाहते ह िक रा य म हमारा जो अ धकार है, वह हम
सस मान िदया जाए। अगर आप लोग यु करने म उतावले ही ह तो हम भी अपने कदम पीछे
नह हटाएंग।े त संभािवत यु के लए हमने भी पूरी तैयारी कर ली है। सात अ ौिहणी सेना तो
लड़ने के लए एकदम त पर है, इसके अलावा अनेक िम नरे श क सैकड़ अ ौिहणी सेनाएं
आदेश िमलने क ती ा म ह। आपका या उ र है?’’

एक ण के लए राजदरबार म स ाटा छा गया। दतू क दो टू क बात सुनकर बड़े-बड़े


िद गज एक-दसरे
ू का मुंह ताकने लगे। भी म ने दतू क ओर देखकर धीरे -धीरे कहा, ‘‘हमने
तु हारी बात सुन ली, हष क बात है िक पांडव शांित से सारा मामला िनपटाना चाहते ह। हम
भी चाहते ह िक पांडव को उनका उिचत भाग िमलना चािहए।’’

कण से भी म क यह बात बदा त नह हो सक । वह ो धत होकर बीच म ही बोला,


‘‘कैसा उिचत भाग पांडव को िमलना चािहए? यह कौन नह जानता िक पांडव ने जुए म
अपना सव व गंवा िदया है। यह तो भा य क बात है, अगर दयु धन बाजी हारता तो उसे भी
वनवास व अ ावास भोगना पड़ता। इसम अ याय क या बात है। अगर पांडव को अपना
राजपाट चािहए था तो उ ह वचनानुसार पूरे काल तक वनवास व अ ातवास क अव ध पूण
करनी चािहए थी। अगर वे यु करने को इतने ही आतुर ह तो हमने भी अपने हाथ म कोई
चूिड़यां नह पहन रखी ह। यु का जवाब यु से िदया जाएगा। दत!
ू तुम हमारी बात पांडव
तक पहच
ं ा दो।’’

‘‘ठहरो दत!’’
ू भी म बीच म ही बोले, ‘‘कण! भला इसी म है िक शांित से काम लो। यह
मत भूलो िक अजुन अकेले कई लोग का मुकाबला कर सकता है। यु से िकसी का भला

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नह होगा। म य देश म एक बार परा जत होकर भी तुमने कु छ नह सीखा?’’

कण मन मसोसकर रह गया।

संहासन पर मौन बैठे धृतरा सब कु छ सुन रहे थे। बात बढ़ते देखकर वे थोड़ा कसमसाए।
अंितम िनणय उ ह ही करना था, लेिकन िफलहाल कु छ उ र देना उनके वश म नह था। वे
ू तुमने जो संदेश पहच
दतू से बोले, ‘‘सुनो दत! ं ाया, उस पर हम िवचार करने दो। शी ही मेरा
सारथी उ र लेकर पांडव से िमलेगा, अब तुम जा सकते हो।’’

दतू चला गया।

धृतरा ने संजय को अपने पास बुलवाया। कु छ देर िवचार-िवमश होता रहा। धृतरा समझ
नह पा रहे थे िक पांडव के पास या संदेश भेज? िफर वे संजय से बोले, ‘‘संजय! तुम
पांडव से जाकर िमलो। मेरा िवचार है िक दोन प म शांित ही रहे। बस, कु छ ऐसा यवहार
करना िक यह उ ेजना समा हो जाए।’’

संजय उपल य नगर जा पहच


ं ा।

पांडव ने संजय का दय से वागत िकया। आ मीय - वजन के हाल-चाल का आदान-


दान होने के प चात् यु धि र ने पूछा, ‘‘संजय! कैसे आगमन हआ?’’

‘‘हे धमराज!’’ संजय बोला, ‘‘मुझे महाराज धृतरा ने आपके पास भेजा है। वे चाहते ह
िक यु के जो बादल मंडराने लगे ह, उ ह साफ कर िदया जाए। वे कौरव-पांडव म शांित
चाहते ह। यु म िवनाश के अलावा िकसी को कु छ ा नह होगा।’’

‘‘हम तो वयं चाहते ह िक यु न हो।’’ यु धि र बोले, ‘‘पर दयु धन केवल यु क भाषा


म ही बात करना चाहता है। हम अ धकार दे दी जए, हम यु नह करगे। महाराज धृतरा भी
सारी स चाई जानते ह लेिकन उ ह ने अपनी आंख पर प ी बांध ली है, वे पु नेह के आगे

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िववश ह। उनसे जाकर कह दो, हमारा इं थ हम दे दो, वरना िनणय यु के मैदान म
होगा।’’

‘‘आपक मांग उिचत है।’’ संजय बोले, ‘‘लेिकन मेरा सुझाव है िक यु का िवचार याग
द। यु से िकसी का भला नह होगा। अगर यु करके ही आपको रा य ा करना था तो
तेरह वष ं तक दर-दर भटकने क या आव यकता थी। उिचत यही है िक दयु धन ने आपका
भाग देने से इनकार कर िदया तो इतने बड़े संसार म कह भी जाकर बाहबल से अपना रा य
थािपत क जए।’’

‘‘ऐसा नह हो सकता।’’ यु धि र बोले, ‘‘म ि य हं और ि य का यह पहला कत य है


िक अपने गए हए रा य को पुनः ा करे ।’’

‘‘तिनक यह भी तो सोिचए िक भाई-भाई म लड़ना कहां तक उिचत है! या आप अपने


बुजुग ं भी म, ोणाचाय, कृपाचाय आिद पर ह थयार उठाएंग?
े यह तो अधम है महाराज!’’
संजय बोला।

वह ीकृ ण बैठे थे। उनसे रहा नह गया। बोले, ‘‘संजय! आज तो तु हारे मुंह से धम क
बात सुनकर आ चय होता है, बुजुग ं क दहु ाई देते हैरत होती है, यह िकसी से िछपा नह है
िक पांडव ने अब तक धैय का ही प रचय िदया है। तुम जन बुजुग ं क दहु ाई देते हो, उ ह ने
अब तक कौन-सा आदश थािपत िकया है। जब ौपदी को भरे दरबार म िनव करके
अपमािनत िकया जा रहा था, तब इन बुजुग ं के हाथ-पांव य फूल गए थे, य नह िकसी ने
आगे बढ़कर दयु धन या दःु शासन को इस कु कृ य से दरू िकया? िफर भी पांडव अपनी ओर
से कोई पहल नह करगे। संजय! तुम जाकर राजा धृतरा से कह दो िक पांडव को इं थ
दे द, उनका उ र आने के बाद ही कोई िनणय होगा।’’

यु धि र बोले, ‘‘हां, हम इतना अव य कर सकते ह िक अगर वे हम पूरा रा य न द तो


कम-से-कम हम पांच भाइय के लए पांच गांव अव य दे द। बस, हम और कु छ नह चािहए।

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तब शांित अव य थािपत हो सकती है।’’

□□

संजय ह तनापुर लौट आए।

धृतरा ने पूछा, ‘‘संजय! या उ र लाए हो?’’

‘‘उ ह हर हालत म अपना रा य चािहए। वे आपक शांित क िनरथक योजना म आने वाले
नह ।’’

संजय ने आिद से अंत तक सारी बात धृतरा को सुना द । धृतरा िचंता म पड़ गए।
उनका िवचार था िक पांडव अपने रा य क मांग छोड़ दगे और शांित का रा ता अपनाएंग,े पर
अब या िकया जाए। दयु धन कभी भी पांडव को उनका अ धकार नह स पेगा और वे पु का
िवरोध नह कर सकगे।

उ ह ने उसी समय िवदरु को बुलवाया। महा मा िवदरु उ ह हमेशा संकट के समय उिचत
सलाह देते थे। यह अलग बात है िक धृतरा उस पर पूरी कार अमल नह कर पाते थे।

िवदरु आए तो धृतरा ने याकु ल वर म कहा, ‘‘म चाहता हं िक पांडव को याय िमले


और कौरव क भी कोई ित न हो, िकंतु संभािवत अिन क आशंका से मेरी रात क न द
और िदन का चैन न हो गया है। मुझे कु छ समझ म नह आ रहा है िक या क ं , या न
क ं ?’’

‘‘इसम अ धक सोचने क या आव यकता है।’’ िवदरु बोले, ‘‘जो थित उ प हई है,


उसके ज मेदार आप ह। आपने दयु धन पर रा य का कायभार स पकर आंख मूंद ली ह और
दयु धन शकु िन, कण व दःु शासन जैसे लोग के साथ िमलकर मनमानी कर रहा है। अब भी
समय है िक आप अपनी भूल सुधार ल। पांडव को उनका रा य देकर िन चंत हो जाइए। िफर
कोई यह भी नह कहेगा िक आपने याय क ओर से आंख फेर ली थ ।’’

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धृतरा शांत। ऐसा करना उनके वश म न था। दयु धन को करने क क पना मा से
वे कांप उठे ।

िवदरु बोले, ‘‘आप मौन य ह? अगर आपने मेरा सुझाव नह माना तो इस यु को टालना
असंभव हो जाएगा और यह तय है िक यु म अ यायी को ही मृ यु का वरण करना पड़ता है।
कह ऐसा न हो िक यु के अंत म अपने पु क मृ यु क सूचना पाकर आप खून के आंसू
रोएं। अंततः पांडव को उनका अ धकार देने म आपको आप या है?’’

धृतरा के ने के आगे अंधकार छा गया। उ ह ने कहा, ‘‘म अपनी बात झुठला नह


सकता। मेरे दय म वयं पांडु-पु के लए अपार नेह है, पर दयु धन क इ छाओं के
ितकू ल आचरण करना मेरे वश म नह । जो भा य म होगा, वह तो भोगना ही पड़ेगा। आपक
बात से मेरे िवि मन को शांित ही िमल रही है। आगे बो लए, म आपके िवचार को सुन
रहा ह।ं ’’

िवदरु को हैरानी हई। स चाई जानते हए भी धृतरा उिचत िनणय नह कर पा रहे थे।

वे रात भर धृतरा को समझाते रहे और धृतरा चुपचाप उनक बात को सुनते रहे।

□□

अगले िदन ातःकाल ही धृतरा ने भी म, ोणाचाय, संजय, कृपाचाय आिद को बुला


लया। दयु धन भी अपने भाइय व कण, शकु िन आिद के साथ पहच
ं ा।

धृतरा ने बोलना आरं भ िकया, ‘‘संजय पांडव से िमलकर आया है। संजय क बात से
प तीत होता है िक पांडव ने बड़े तर पर यु क तैया रयां कर रखी ह। वे अपना
रा या धकार ा करने को किटब ह। रात को िवदरु ने भी बताया िक हम उनका िह सा
उ ह स प देना चािहए। इस लए मेरा िवचार है िक पांडव को इं थ लौटाकर इस िववाद को
हमेशा के लए समा कर देना चािहए।’’

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यही तो भी म, िवदरु , ोणाचाय आिद भी चाहते थे। बुजुग ं ने त काल धृतरा के िवचार का
समथन िकया।

दयु धन को िपता के उ गार िबलकु ल नह भाए। वह ो धत होकर बोला, ‘‘अगर उ ह ने


यु क तैया रयां कर रखी ह तो हम इससे डरना नह चािहए। हम भी िकसी से कम नह ।
हमारे साथ भी बड़े-बड़े वीर ह। गु देव ोणाचाय, भी म िपतामह, कृपाचाय, कण और
अ व थामा जैसे वीर के रहते हए हम पांडव क धमिकय से डर कैसा? हाथ म आया रा य
छोड़ देना सरासर कायरता है। हम इं थ नह लौटाएंग।े वे तो हमारे वैभव से इस कदर
भयभीत ह िक केवल पांच गांव ही मांग रहे ह। अगर हम अपने इराद म ढ़ रहे तो उनक
पांच गांव क मांग भी नह रहेगी। शेष रहा यु का न, वे यु म हमारा मुकाबला नह कर
सकते।’’

पु क बात सुनकर धृतरा बुरा मान गए। ु ध होकर बोले, ‘‘अब इस दयु धन को कौन
समझाए। यह मूख पांडव क वीरता को कम करके आंक रहा है। या इसे यह भी नह मालूम
िक उनके पास िद या ह, अजुन के पास गांडीव है। पांडव केवल अपना अ धकार ही तो मांग
रहे ह। म तो चाहता हं िक इं थ देकर इस यु का खतरा टाल िदया जाए और चचेरे भाई
शांित और स मान के साथ रह।’’

दयु धन तैश म आकर बोला, ‘‘आप यथ ही पांडव क शि से डर रहे ह। अजुन के पास


गांडीव और िद या ह तो हमारे साथ कण है। कण ने भी िव धवत यु -गु आचाय परशुराम
से िद या ा िकए ह।’’

‘‘हां, मेरे पास भी ा ह।’’ कण ने गव के साथ कहा, ‘‘ ा के बल पर म अकेला


ही पांडव क सेना का नामो-िनशान िमटा सकता ह।ं ’’

भी म ने तेज वर म कहा, ‘‘इतना अहंकार मत करो कण! यही अहंकार मानव का सबसे
बड़ा श ु है, एक बार पहले भी तुम म य देश म अजुन के हाथ मात खा चुके हो और अगर

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अब यु हआ तो ीकृ ण तु हारे ा को भी न कर दगे।’’

‘‘हऽं ऽऽ। तो आप समझते ह िक म केवल बात बना रहा ह।ं ’’ कण बोला, ‘‘ली जए! आज
म ण करता हं िक मरते दम तक लडू ंगा और हे भी म िपतामह! जब तक आप जीिवत ह, म
अपने ह थयार को पश भी नह क ं गा। आप यु भूिम म अपना वार आजमाकर शांत हो
चुके ह गे, तब मेरा काम आरं भ होगा।’’

इतना कहकर कण तेज-तेज कदम से वहां से चला गया।

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(बारह)

यु क आशंका उ रो र बढ़ गई थी।

ह तनापुर म जो कु छ हो रहा था, उसक पूरी जानकारी पांडव के पास पहच


ं रही थी। जब
यह तय हो गया िक कौरव िबना यु के इं थ नह लौटाएंगे तो उ ह ने गंभीरता से इस नई
थित पर सोच-िवचार िकया। यु धि र के स मुख एक ही न था, या शांित से सम या का
िनदान नह हो सकता है? या समझाने का आधार एकमा यु है?

यु धि र ने अचानक ीकृ ण से पूछा, ‘‘मुझे तो इस यु म कोई लाभ िदखाई नह दे रहा


है। या इस यु को टाला नह जा सकता? यह तो तय है िक हम िन चत प से जीतगे,
िफर भी म इस यु के प म नह ह।ं भला यु म जीतकर हम या हा सल होगा‒ रा य?
भूिम? वैभव? कौरव हमारे चचेरे भाई ही तो ह, उनके प म हमारे सम त बुजुग और
आ मीय जन ह, उन सबको यु म मारकर रा य पाकर भला उसम स ता ा हो सकेगी?
म तो चाहता हं िक हम एक बार िफर शांित के साथ रह। यह सही है िक कौरव यु के लए
किटब ह और िबना यु के पांच गांव भी देना नह चाहते। म ि य हं और यु करना मेरा
धम है, िफर भी यु म िकसी का भला नह देख रहा ह।ं ’’

ीकृ ण के अधर पर मु कराहट तैर गई। वे बोले, ‘‘धमराज! म तु हारी भावनाओं का


आदर करता ह।ं तुम चाहते हो िक कौरव से शांित वाता का एक और यास करना चािहए तो
म वयं ह तनापुर जाकर कौरव से िमलूंगा। मेरा यास होगा िक तुम लोग के िहत को ित
पहच
ं ाए िबना दोन प म शांित थािपत करा सकूं ।’’

‘‘आप जा तो रहे ह, पर मुझे डर है िक ह तनापुर म आपको ित न पहच


ं ाई जाए।’’
यु धि र ने शंका कट क , ‘‘वहां दयु धन होगा, उसके कु िटल साथी ह गे। उनके बीच अकेले
जाना खतरनाक हो सकता है।’’

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‘‘मेरी िचंता मत करो यु धि र!’’ ीकृ ण बोले, ‘‘म अपनी र ा वयं कर लूंगा। बस, म
तो चाहता हं िक शांित का मेरा यह अंितम यास सफल हो जाए और कौरव-पांडव के बीच
शांित बनी रहे।’’

अगली सुबह ीकृ ण ह तनापुर जाने के लए तैयार हो गए। सा यिक ने उनके लए रथ


तैयार कर िदया और ीकृ ण क गदा, च , शंख व अ य अ -श रख लए। िफर ीकृ ण
ने अपने साथ दस वीर, एक हजार पैदल सैिनक व एक हजार अ वारोही सैिनक लेकर
ह तनापुर के लए थान कर िदया।

दयु धन क कु िटलता का कोई भरोसा नह था।

□□

ीकृ ण के आगमन क सूचना धृतरा को िमल चुक थी। उ ह खुशी हई िक ीकृ ण इस


संकट क बेला म आ रहे ह। उ ह ने अपने सेवक को आदेश िदया, ‘‘जाओ! ीकृ ण के
वागत क तैया रयां करो। यान रहे, उ ह माग म कह भी क न हो। हर जगह उनके िव ाम
और खाने-पीने का उ म बंध करो।’’

ऐसा ही िकया गया। ीकृ ण जस माग से आ रहे थे, वहां सारी सुिवधाएं जुटाई गई,ं साथ ही
ह तनापुर को अ छी कार सजा िदया गया।

िवदरु ने धृतरा को सुझाव िदया, ‘‘महाराज! ीकृ ण चाह तो सब कु छ ठीक हो सकता है।
वे वृक थल तक पहच
ं चुके ह, यहां आए तो आप उनसे कौरव और पांडव क भलाई का
उपाय पूछ।’’

‘‘हां।’’ धृतरा बोले, ‘‘म भी यही चाहता ह।ं कल तक वे ह तनापुर पहच


ं जाएंग।े देखो,
महल म उ ह कोई क नह पहच
ं े। उ ह दःु शासन के क म ठहराना उिचत होगा, य िक वह
क अ यंत भ य है, ीकृ ण के सवथा उपयु है।’’

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दयु धन को पता था िक ीकृ ण आ रहे ह, जब से उसने यह सुना था, उसका िदमाग अपनी
नई योजनाओं म ल हो गया। वह िपता से बोला, ‘‘महाराज! ीकृ ण ह तनापुर आ रहे ह,
हम यह अवसर गंवाना नह चािहए। हम ीकृ ण को पकड़कर बंदी बना लेना चािहए। जैसे ही
यह समाचार पांडव को िमलेगा, वे अपना यु का इरादा छोड़ दगे।’’

धृतरा ोध से तन गए। बोले, ‘‘यह या कहते हो दयु धन? ीकृ ण दतू के प म


ह तनापुर आ रहे ह। वे हमारे स मािनत अित थ ह। उ ह बंदी बनाने क बात कहते हए तु ह
शम नह आती? भला कोई दतू से भी ऐसा द ु यवहार करता है?’’

दयु धन बोला, ‘‘यही तो राजनीित है?’’

‘‘मौन रहो दयु धन!’’ भी म ने गरजकर कहा, ‘‘यह ष ं एक िदन तु हारी मृ यु का


कारण बनेगा। धृतरा ! अगर दयु धन ने ीकृ ण का कोई अिहत करना चाहा तो समझ लो
वह अपनी मृ यु को आमंि त कर रहा है।’’

इतना कहकर भी म वहां से चले गए।

□□

ीकृ ण ह तनापुर पहच


ं े तो उनका भ य वागत िकया गया। भी म, ोणाचाय व कृपाचाय
आिद ने आगे बढ़कर उनका अिभनंदन िकया।

सारा नगर उनके दशन के लए उमड़ आया था।

ीकृ ण सबसे पहले महल म जाकर धृतरा से िमले। धृतरा ने उ ह नेह से आ लंगन म
बांध लया।

वहां से ीकृ ण सीधे िवदरु के घर पहच


ं े, जहां पांडव क माता कुं ती रहती थी। कुं ती
ीकृ ण को अपने पास पाकर अित स हई। ीकृ ण ने कुं ती को पु व बह क कु शलता
का समाचार िदया। कुं ती तेरह वष ं से अपने पु व बह से दरू रही थी। उनक कु शलता

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जानकर वह स तो हई, साथ ही यह भी कहा, ‘‘देखो, उ ह ने इतना क भोगा। अपनी
ित ा भी पूरी कर ली, िफर भी उ ह अपने अ धकार से दरू िकया जा रहा है।’’

‘‘िचंता मत करो।’’ ीकृ ण बोले, ‘‘समय आ रहा है, जब तुम अपनी आंख से देखोगी िक
तु हारे पु पृ वी के मा लक ह गे और उनके श ुओं का नामो-िनशान तक िमट जाएगा।’’

ीकृ ण दयु धन से िमले तो दयु धन ने कहा, ‘‘ह तनापुर म आपका वागत है। कृपया
आज का भोजन मेरे साथ क जए।’’

‘‘नह , म तु हारा िनमं ण वीकार नह कर सकता।’’ ीकृ ण बोले।

‘‘ य ?’’ दयु धन ह भ रह गया। कहां तो वह ीकृ ण को वश म करने आया था और


ीकृ ण ने उसे हाथ भी नह रखने िदया।

ीकृ ण ने कहा, ‘‘दो कारण से लोग भोजन का िनमं ण वीकार करते ह। एक तो इस लए


िक आपस म ेम होता है, दसरा
ू इस लए िक िनमंि त यि भूखा व द र है। तुम जानते हो
िक म भूखा व द र नह हं और न तुम मुझसे ेम करते हो। सच तो यह है िक ‘जो पांडव से
घृणा करता है, वह मुझसे घृणा करता है, जो पांडव से ेम करता है, वह मुझसे ेम करता है।
इस लए मुझे मा करो, म तु हारे साथ भोजन नह कर सकता।’’

दयु धन के चेहरे पर का लख पुत गई।

ीकृ ण उसे वह छोड़कर िवदरु के घर गए और वहां भोजन िकया। िवदरु ने कहा, ‘‘मूख
दयु धन सोचता है िक वह अपने दल
ु य म सफल हो जाएगा। वह िकसी क बात मानता ही
नह । बस, कण व शकु िन क बात म आकर िवशाल सेना एक कर ली है और लड़ने को
किटब है। ऐसी हालत म आप यहां शांित का ताव लेकर आए ह, कौन सुनेगा आपक
बात? बेहतर यही है िक इस द ु से दरू रह।’’

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‘‘म तो कौरव क भलाई के लए यहां आया ह।ं ’’ ीकृ ण बोले, ‘‘मेरा ताव कौरव ने
मान लया तो अकाल मृ यु से बच जाएंग,े वरना उनक मृ यु िन चत है। अगर दयु धन ने
मेरा कोई अिहत करना चाहा तो इसका प रणमा भयानक होगा।’’

□□

अगले िदन राजदरबार म सभा बुलाई गई। धृतरा सिहत सभी अपने-अपने आसन पर बैठे
थे। भी म, ोण आिद बुजुग ं के अलावा स मािनत ऋिष-मुिन भी पधारे थे।

ीकृ ण ने सभी को संबो धत िकया, ‘‘म यहां शांित का अंितम यास करने आया ह।ं
पांडव ने मुझे सं ध का ताव तुत करने को भेजा है। मेरी राय है िक याय क मांग यही
है, पांडव को रा य स प िदया जाए और यु के खतरे को टाल िदया जाए। अगर ऐसा नह
िकया गया तो कु वंश न हो जाएगा।’’

सभा म उप थत अ धकांश लोग का मत भी यही था, िकंतु दयु धन को इन बात से गु सा


आ गया। वह ु ध होकर बोला, ‘‘मुझे समझ म नह आ रहा है िक लोग पांडव से इस कदर
सहानुभूित य रखते ह? जो कु छ हआ है, िनयमानुसार हआ है। एक बार जुए म गंवाकर
दबु ारा जुए खेलने क या आव यकता थी? पहली बार तो हमने उनका गंवाया हआ सब कु छ
लौटा िदया, िकंतु अब म उ ह कु छ देने के प म नह ह।ं अगर वे हमसे यु ही करना चाहते
ह तो हम भी तैयार ह।’’

ीकृ ण बोले, ‘‘दयु धन! यह िवचार मन से िनकाल दो िक तुम यु म जीत जाओगे। अगर
िबना लड़े तुम कोई िनणय नह करना चाहते तो बेहतर यही है िक अपने िकसी परमवीर से
अजुन को लड़ा दो, उ ह क हार-जीत से िनणय हो जाएगा। यथ ही वृहद यु का आयोजन
करने क या तुक? सबसे अ छी बात तो यह है िक पांडव को चुपचाप उनका अ धकार दे
दो और िमल-जुलकर रहो।’’

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भी म ने भी दयु धन को समझाया, ‘‘ ीकृ ण जो कु छ कह रहे ह, वह उिचत है। िमल-
जुलकर रहने म ही भलाई है।’’

सभी को ीकृ ण का समथन करते देखकर दःु शासन घबरा गया। वह धीरे से अपने भाई
दयु धन के कान म बोला, ‘‘भैया! यहां तो उ टी गंगा बह रही है। अगर तुमने ीकृ ण क बात
नह मानी और पांडव से सं ध थािपत नह क तो ोण, भी म और िपता ी आिद सब िमलकर
हम पांडव को स प दगे।’’

दयु धन का पूरा शरीर गु से से कांपने लगा। उसने एक बार तीखी ि से सबको देखा और
एक झटके से उठकर सभागार से चला गया। उसके साथ-साथ कण, शकु िन व दःु शासन आिद
भी चले गए। स मानीय दतू से िबना बात िकए बीच सभा म उठ जाने का सबने बुरा माना।

धृतरा इस िव न से आसन पर कसमसा रहे थे।

ीकृ ण ने धृतरा से कहा, ‘‘दयु धन क उ ंडता असहनीय है। बेहतर यही है िक उसे
रा या धकार से वंिचत कर दी जए व पांडव से सं ध थािपत क जए। यही एक उपाय है,
जससे कु वंश क र ा क जा सकती है।’’

एकाएक धृतरा क समझ म नह आया िक या उ र दे। उ ह ने िवदरु से कहा,


‘‘महा मन! तिनक गांधारी को बुला लाओ। इस संकट क बेला म वही मेरा मागदशन कर
सकती ह।’’

िवदरु सभा से उठकर चले गए और अगले पल ही अंतःपुर से गांधारी को बुला लाए।


गांधारी आसन पर बैठ गई तो धृतरा ने अपनी दिु वधा उसके सामने रखी। गांधारी अपने पु
क उ ंडता तथा पित क असहाय थित से पहले ही दख
ु ी थी। आज उसे अवसर िमला तो वह
बोली, ‘‘महाराज! प ोि के लए मा कर। स चाई तो यह है िक आपक कमजोरी व
ढु लमुल नीित से ही हमारे पु इस कदर उ ंड हए ह। पु को आप काबू म क जए और इस
यु से दरू क जए।’’

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यही नह , दयु धन वापस सभा म आया तो गांधारी ने पु को भी समझाया। दयु धन को माता
क एक भी बात पसंद नह आई। वह सांप क कार फुफकारता हआ लाल आंख से माता
क ओर देखता रहा। माता ने जोर देकर कहा, ‘‘पु ! अनीित का माग छोड़ दो। अधम पर
चलकर न तो तुम पांडव से जीत सकोगे और न ही अपने रा य क र ा कर सकोगे। अगर
सुख-शांित चाहते हो तो ीकृ ण का सं ध- ताव मान लो।’’

दयु धन से बदा त न हो सका, वह िबना कोई उ र िदए पैर पटकता हआ सभागार से


िनकल गया।

□□

दसरे
ू क म कण, शकु िन, दःु शासन आिद दयु धन क ती ा कर रहे थे। दयु धन ने वापस
आकर बताया िक पूरा वातावरण उनके िव है, अब या िकया जाए? उ ह ने गंभीरता से
इस िवषय पर िवचार-िवमश िकया और अंततः िनणय िकया िक ीकृ ण को बंदी बना लेना
चािहए। दयु धन बोला, ‘‘ ीकृ ण को हम बंदी बना लगे तो पांडव क िह मत टू ट जाएगी। िफर
हम बड़ी आसानी से पांडव का नाश कर दगे। मुझे परवाह नह िक महाराज धृतरा या अ य
कोई इस हरकत से स होता है या ।’’

सा यिक को िकसी कार दयु धन के इस ष ं का पता चल गया। वह त काल बाहर


िनकला और अपनी सेना को सतक रहने का आदेश िदया। िफर वह सभागार म पहच
ं ा और
संभािवत खतरे के बारे म ीकृ ण को सावधान कर िदया।

ीकृ ण ने धृतरा से कहा, ‘‘मुझे सूचना िमली है िक आपका पु दयु धन मुझे बंदी बनाने
क योजना बना रहा है। ठीक है, अगर ऐसा करना चाहता है तो मुझे बंदी बनाने आए। िफर म
भी िदखा दग
ं ू ा िक कौन िकसको बंदी बना सकता है। मुझे अपनी शि पर पूरा भरोसा है,
लेिकन म आप लोग क उप थित म अपनी शि का दशन करने नह आया ह।ं कृपया
दयु धन को समझा दी जए िक यह हरकत महंगी पड़ेगी।’’

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धृतरा दख
ु ी वर म बोले, ‘‘दयु धन को म समझा दग
ं ू ा। कृपया मुझे थोड़ा समय और
दी जए, शायद दयु धन यु के िवचार को याग दे।’’

तभी दयु धन अपने सा थय के साथ िफर सभागार म आया। धृतरा ने अपने पु को खूब
डांटा, लेिकन दयु धन पर इसका कोई असर नह हआ। इस पर ीकृ ण ने अपना िवराट प
िदखाया, जससे सारे सभागार म स ाटा छा गया।

ीकृ ण अपने आसन से उठकर बोले, ‘‘अब मेरा यहां रहना यथ है, म प देख रहा हं
िक आपका अपने पु पर ही अ धकार नह है। आप लोग पांडव से सं ध नह करना चाहते तो
वे भी यु के लए तैयार ह। म चला।’’

यह कहकर ीकृ ण सभागार से िनकले। िफर कुं ती से िमलकर वे उपल य नगर के लए


रवाना हो गए।

जाते-जाते वे एक बार कण से िमले और बोले, ‘‘कण! तुम भी कुं ती के पु हो, इस कार


पांडव के सबसे बड़े भाई तु ह हो। बेहतर यही है िक तुम भी मेरे साथ पांडव के पास चलो।
यु धि र को जैसे ही तु हारी स चाई का ान होगा, वह सारा रा य तु ह स प देगा। िफर
संभािवत यु को टाला जा सकता है।’’

कण बोला, ‘‘म आपक बात नह मान सकता। म कुं ती को अपनी माता कैसे मान सकता
ह,ं जसने मुझे ज म देते ही नदी म फक िदया था। मुझे मा क जए।’’

‘‘इसका अथ है िक यु को अब कोई नह टाल सकता।’’ ीकृ ण बोले, ‘‘ठीक है, कौरव


से कह देना िक आज से सातव िदन अमाव या आरं भ होगी और उसी िदन यु आरं भ होगा।’’

यह कहकर ीकृ ण ने सा यिक को आदेश िदया, ‘‘रथ उपल य नगर क ओर ले चलो।’’

□□

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कुं ती िवदरु के घर म िचंितत-सी बैठी थी। वह जानती थी िक अब यु को टालना असंभव
है, य िक कौरव ने ीकृ ण के शांित ताव को ठु करा िदया था। उसे सबसे अ धक दःु ख तो
इस बात का था िक कण अपने भाइय को छोड़कर अ यायी कौरव का साथ दे रहा था। वह
िकसी कार कण का मन जीतना चाहती थी।

अगले िदन वह कण के घर पहच


ं ी। बोली, ‘‘पु ! तुम अ याियय का साथ छोड़ दो। पांडव
मेरे पु ह और तुम भी मेरे पु हो। भाई-भाई आपस म िमलकर अ याय का मुकाबला करो।’’

कण बोला, ‘‘म आपका स मान करता हं और आपने जो कु छ कहा उस पर पूरा-पूरा


िव वास करता ह,ं लेिकन म आपको न माता के प म वीकार कर सकता हं और न आपका
कोई आदेश मान सकता ह।ं आप कैसी माता ह िक ज म लेते ही गोद म उठाने क बजाय मुझे
नदी म बहा िदया। मुझे सूत ने बचाया और मेरा लालन-पालन िकया, म तो सूत को अपना
िपता और उसक प नी को अपनी माता मानता ह।ं बस, अब चली जाइए, म अंितम सांस तक
दयु धन के प म लडू ंगा। हां, म यह कहता हं िक पांडव म से केवल एक से ही लडू ंगा, म
शेष चार से यु नह क ं गा, अजुन से ही लडू ंगा। िफर चाहे म जीतूं या अजुन‒आपके पांच
पु तो जीिवत रहगे ही। आप सवदा पांच पु क माता बनी रहगी।’’

कुं ती क आंख से आंसू िनकल आए। वह सुबकती हई बोली, ‘‘भा य के आगे कौन या
कर सकता है? मेरे चार पु को छोड़ देने के लए बहत-बहत ध यवाद। यु के मैदान म इस
वचन को याद रखना। मेरी शुभकामनाएं।’’

इतना कहकर कुं ती भरे मन से वहां से चली गई।

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(तेरह)

ीकृ ण उपल य नगर आ पहच


ं े।

पांडव ने उ ह िशिवर म घेर लया। ीकृ ण ने आिद से अंत तक कौरव क सभा का संपूण
वृ ांत सुना िदया।

एक ण के लए िशिवर म शांित छा गई। उनका यह अंितम यास भी यथ गया था। अब


होनी को कोई नह टाल सकता। यु धि र ने अपने भाइय क ओर देखा और बोले, ‘‘अभी-
अभी ीकृ ण ने जो कु छ कहा, वह सब तुम लोग ने सुन लया। इसका अथ यह हआ िक अब
यु के मैदान म ही भा य का िनपटारा होगा। इसके लए हम अपनी सेना संगिठत कर लेनी
चािहए।’’

पांडव के पास सात अ ौिहणी सेना थी। यु धि र ने सोच-िवचार कर इन सात सेनाओं का


अ धनायक ुपद, धृ ु न, भीमसेन, िवराट, िशखंडी, सा यिक, चेिकतान को िनयु कर
िदया।

‘‘अब संपूण सेना का सेनापित िकसे बनाया जाए?’’ ीकृ ण ने पूछा।

थोड़ी देर तक उनम िवचार-िवमश हआ। अनेक नाम सुझाए गए, पर कोई िकसी नाम पर
एकमत न हआ। अंत म ीकृ ण ने कहा, ‘‘मेरा िवचार है िक सेनापित के लए धृ ुन
उपयु रहेगा।’’

सबने ीकृ ण का सुझाव हष विन से वीकार कर लया। धृ ु न ने यह महान


उ रदािय व हण कर लया और सेना को सतक रहने का आदेश दे िदया।

□□

यु क तैयारी हो गई। सेनाएं कू च करने के लए तैयार खड़ी थ । चार ओर यु का उ माद


छा गया था। घोड़ के टाप व अ क झंकार से वातावरण गूज
ं रहा था। रथ इधर से उधर

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भाग रहे थे। शंख और नगाड़े क गंभीर विनयां िदग-िदगंत से टकरा रही थ । यु धि र चार
ओर घूम-घूमकर सेना का िनरी ण कर रहे थे।

उपल य नगर से चलने से पहले यु धि र ने ौपदी क सुर ा का पूरा बंध कर िदया था,
िफर िन चत िदन सेना यु े के लए रवाना हो गई। कु े जैसे समतल मैदान म पहच
ं कर
यु धि र ने तंबू गाड़ िदए। ीकृ ण सिहत पांडव के सम त सहयोगी नरे श यु े म तैनात
थे। पास ही िहर वती नदी बह रही थी।

यु का इतना बड़ा आयोजन देखकर यु धि र का मन भारी हो गया था। जब भाई आपस म


िमले तो यु धि र ने कहा, ‘‘यह हमारा कैसा दभु ा य है िक अपने ही आ मीय से लड़ने को
हम यहां एक हए ह, कु -वंश को बचाने के लए हमारे सारे यास िन फल गए।’’

अजुन बोला, ‘‘भैया! शोक यथ है। अगर कौरव थोड़े भी समझदार होते तो यह नौबत नह
आती। यह मत भूलो िक उ ह ने ीकृ ण का अंितम शांित यास भी ठु करा िदया। िफर हम तो
माता कुं ती का भी आदेश िमल चुका है िक हम अपना ि य धम िनभाकर रा य हा सल
कर।’’

हालांिक यु धि र मन-ही-मन दख
ु ी थे, िफर भी कौरव क कु िटलता याद आते ही वे यु
के लए तुत हो गए।

□□

ीकृ ण चेतावनी देकर ह तनापुर से जा चुके थे।

दयु धन आशंिकत था िक ीकृ ण पांडव के पास पहच


ं ते ही यु क तैयारी करने का
आदेश दे दगे, य िक ीकृ ण बहत ही होकर यहां से गए थे। अगली योजना बनाने के
लए उसने कण और शकु िन आिद को अपने क म बुलाया, ‘‘अब तो यु होकर ही रहेगा।

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ीकृ ण ने पांडव को सारा हाल कह सुनाया होगा। अब हम भी देर नह करनी चािहए, त काल
सेना एक करके कु े क ओर रवाना हो जाना चािहए।’’

बस, िफर या था। दयु धन क इ छानुसार ह तनापुर म यु क सरगम शु हो गई।


कौरव के पास यारह अ ौिहणी सेना थी। दयु धन का आदेश िमलते ही सेना ने कु े क
ओर कू च कर िदया। यारह अ ौिहणी सेना के लए जो अ धनायक िनयु िकए गए थे, उनके
नाम थे‒गु ोणाचाय, कृपाचाय, कण, श य, शकु िन, सुदि णा (कंबोज नरे श), जय थ,
अ व थामा, कृतवमा, भू र वा और वा ीकं धान सेनापित भी म िपतामह को िनयु िकया
गया।

भी म िपतामह ने कहा, ‘‘मुझे सेनापित बनने म कोई आप नह , िकंतु मेरे सेनापित रहते
कण यु म भाग नह ले सकता।’’

कण बोला, ‘‘आपक बात वीकार है। वैसे भी म ण कर चुका हं िक आपके रहते म


ह थयार नह उठाऊंगा। हां, जब आप जीिवत नह रहगे तो मुझे यु म भाग लेने से कोई नह
रोक सकता।’’

भी म िपतामह अपने अधीन सेना लेकर कु े पहच


ं े। पांडव क सेना भी पहच
ं चुक थी।

यु आरं भ होने से पहले दोन प क ओर से दतू आपस म िमले और यु म सवमा य


िनयम आिद पर िवचार-िवमश हआ। एक संिहता बनाई गई, जसका पालन दोन प के लए
आव यक था। संपूण यु को धमयु क सं ा दी गई। मुख िनयम ये थे‒कोई भी प यु म
छल-कपट नह करे गा, पैदल सैिनक से पैदल सैिनक लड़ेगा और घुड़सवार से घुड़सवार ही।
इसी कार रथ पर सवार सैिनक को केवल रथ पर सवार सैिनक से ही लड़ने का अ धकार
होगा। मरणास एवं शरणागत पर कोई ह थयार नह उठाएगा।

दोन प इन िनयम पर एकमत हो गए। अब ती ा थी केवल यु आरं भ होने क ।


आमने-सामने सेनाएं तैनात थ ‒िकसी भी ण उनम िभड़ंत हो सकती थी।

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दयु धन के िशिवर म मं णा चल रही थी। इस अवसर पर भी दयु धन अपना संतुलन नह
रख पा रहा था। आस-पास बैठे मंि य व सेनानायक क ओर देखकर कहा, ‘‘हम यु जीतना
ही है। इसके लए या करना चािहए?’’

आस-पास बैठे यो ा जानते थे िक दयु धन को कैसे स िकया जा सकता है। बोले,


‘‘महाराज! यु से पहले ही उन पर ऐसी चोट क जए िक वे ितलिमला उठ। आप एक काम
क जए, शकु िन के पु उलूक को दतू के प म भे जए जो पांडव का उपहास उड़ाए और
अपमान करे । बस, पांडव ो धत हो जाएंगे और कोई-न-कोई गलत कदम उठाकर मात खा
बैठगे।’’

दयु धन को यह योजना पसंद आ गई। त काल उलूक को बुलाया गया और उसे समझा-
बुझाकर पांडव क ओर भेज िदया।

उलूक पांडव के िशिवर के िनकट पहच


ं ा तो उसे कौरव का दतू जानकर यु धि र के पास
भेज िदया। यु धि र बोले, ‘‘हे कौरव के दत!
ू तुम या कहना चाहते हो?’’

‘‘म दयु धन का संदेश आप लोग के लए लाया ह।ं ’’ उलूक बोला, ‘‘अब आप लोग गु से
को भूलकर मेरी बात सुिनए।’’

उलूक के बोलने का ढंग िकसी को पसंद नह आया, पर चूंिक वह दतू था तो िनयमानुसार


उससे कु छ कहा भी न जा सकता था। यु धि र बोले, ‘‘तुम तो बड़े उ ंड हो, पर दतू होने के
नाते हम तु ह अभयदान देते ह, कहो।’’

उलूक बोला, ‘‘धमराज यु धि र! दयु धन ने कहा है िक जो धम क ऊंची-ऊंची बात करता


है, व तुतः सबसे बड़ा पापी वही होता है। िब ी भी ऊपर से ऐसी बनी रहती है जैसे भगत हो,
पर अवसर पाते ही चूहे पर झपट पड़ती है, आप भी ऐसे ही ह। अगर आप अपने को बहत बड़ा
बहादरु मानते ह तो तिनक यु के मैदान म उसका दशन क जए।’’

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यु धि र खून का घूटं पीकर रह गए। अब उलूक ने ीकृ ण क ओर देखकर कहा,
‘‘आपने ह तनापुर आकर तो बड़ी-बड़ी बात कर ल , अब तिनक यु के मैदान म िदखाइए
िक आपक बात म िकतना दम है। दयु धन ने कहा है िक आप उ ह कंस क कार िनबल न
समझ।’’

सब उलूक के द ु साहस से चिकत थे‒चिकत से अ धक ो धत, पर ो धत होकर वे अपना


धैय नह खोना चाहते थे। इससे उलूक का साहस बढ़ा। वह अजुन से बोला, ‘‘और तुम? जब
तुम जुए म हार गए थे तो तु हारा उ ार िकसने िकया था? ौपदी ने? इसी से कट हो जाता
है िक तुम कायर हो।’’

अब उलूक भीम से बोला, ‘‘दयु धन ने आपसे कहा है िक एक रसोइए को अपनी गदा पर


अिभमान का कोई अ धकार नह । आप तो रसोईघर म भोजन ही बनाइए, यु करना आपके
वश का नह । कह ऐसा न हो िक यु भूिम आपके लए हमेशा के लए िन ाभूिम बन जाए।’’

भीमसेन से यह सब सहा नह गया। वह उलूक को तािड़त करने के लए उठा ही था िक


ीकृ ण ने उसे रोक िदया।

ीकृ ण ने उलूक से कहा, ‘‘कौरव दत!


ू हमने तु हारी बात सुन ली, अब फौरन यहां से
चले जाओ। दयु धन से कहना िक उसने हमसे जैसी अपे ाएं रखी ह, उनका दशन हम
यु भूिम म ही करगे। अब जाओ।’’

उलूक जाने लगा तो यु धि र ने कहा, ‘‘दयु धन तक मेरा संदेश भी पहच


ं ा देना िक जो
जैसा होता है, वह दसरे
ू को भी वैसा ही समझता है। पापी कौन है, इसका िनणय यु भूिम म
होगा।’’

‘‘और सुनो।’’ अजुन ने भी टोका, ‘‘उसे घमंड है िक सारे बुजुग एवं गु जन उनक ओर ह,
िकंतु याद रहे उ ह देखकर हमारे ह थयार नह झुकगे। भी म जैसा परम सेनापित पाकर दयु धन
को अ धक उलझने क आव यकता नह , उनक मृ यु भी मेरे हाथ लखी है।’’

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उलूक अ धक देर तक वहां नह का। उसने दयु धन का संदेश पांडव तक पहच
ं ा िदयाथा,
अब पांडव का संदेश दयु धन तक पहच
ं ाना था।

□□

पांडव ने तो उलूक क सारी अपमानजनक बात परम धैय से सुन ली थ , लेिकन उलूक ने
जब पांडव का संदेश दयु धन को सुनाया तो दयु धन का ोध से बुरा हाल हो गया। वह
आवेश म कांपता हआ अपने सेना नायक से बोला, ‘‘जाओ, यु क तैयारी करो। कल सुबह
होते ही हम पांडव पर आ मण कर दगे।’’

सेनानायक त काल अपनी-अपनी सै य टु किड़य क ओर चल पड़े। दयु धन उलूक को


पांडव के पास भेजकर उ ह उ े जत करना चाहता था, पर वयं ही उ े जत हो गया। उसने
कई दतू को एक साथ पांडव क ओर भेज िदया‒यह सूचना देने क कल सुबह यु होगा।

दसरे
ू िदन जैसे ही नया सूय उदय हआ, दोन सेनाएं आमने-सामने डट गई।ं दोन सेनाओं के
आगे मह वपूण यो ा पूरे साजो-सामान के साथ स थे। एक ओर खड़ी थी कौरव क यारह
अ ौिहणी सेना तो दसरी
ू ओर खड़ी थी पांडव क सात औ िहणी सेना।

पांडव क सेना भले ही कम थी, पर उनके हौसले बुलदं थे। इसके अलावा यु धि र ने जो
मोचबंदी क थी, यु -कला के िहसाब से अि तीय थी। दरू से कौरव को ऐसा लग रहा था िक
पांडव के साथ मु ी भर सैिनक ही लड़ने आए ह, लेिकन गु देव ोणाचाय से पांडव क
कु शल मोचाबंदी िछपी न रह सक । उ ह ने मन-ही-मन यु धि र क शंसा क । पांडव क
सेना ने कौरव को चार ओर से घेर रखा था।

पांडव क ओर से यु आरं भ क घोषणा क गई। शंख क तेज विन से दस िदशाएं गूज



उठ । चार ओर यु पताका लए छोटी-छोटी सै य टु किड़यां मोच संभालने आगे बढ़ चल ।
सारे वातावरण म शोर मच गया। धूल का गु बार इतना घना था िक सूय का काश भी
अंधकार म बदल गया। लगा जैसे सुबह होते ही शाम हो गई हो।

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गु देव ोणाचाय के पास खड़े दयु धन ने कहा, ‘‘तिनक-सी सेना का इतना गुमान! भला ये
या िटक सकगे हमारी िवशाल सेना के सामने। सेनापित भी म आप शंखनाद क जए।’’

भी म ने भी शंखनाद करके यु आरं भ करने का आदेश िदया। कौरव क सेना म हलचल


मच गई। सेनानायक अपनी-अपनी सै य टु कड़ी लेकर पांडव क सेना से िभड़ने को आगे बढ़
चले।

अजुन अपने रथ म सवार आगे बढ़ता जा रहा था। उसके रथ के सारथी थे वयं ीकृ ण।
भी म के शंख के उ र म ीकृ ण ने अपना पांचज य शंख बजाया तो अजुन ने देवद नामक
शंख। इन दोन शंख क गगनभेदी विन सैिनक के कान म पहच
ं ी तो कु छ पल के लए उनके
कान सु हो गए।

अजुन ने ीकृ ण से कहा, ‘‘हे पाथ! तिनक रथ को मैदान के बीचोबीच ले च लए। म भी


देखंू िक दोन सेनाओं म कौन-कौन लड़ने आया है और कौन-सा वीर िकस वीर के साथ लड़
सकता है।’’

ीकृ ण ने रथ क िदशा मोड़ दी और दोन सेनाओं के बीच रथ को रोक िदया।

ीकृ ण ने दोन ओर उमड़ती-घुमड़ती यु ातुर सेनाओं को देखा। कौरव प क सेना क


अगली पंि म सभी वजन-प रजन, गु जन एवं बुजुग-आ मीय खड़े थे। उ ह देखकर अजुन
का दय भर आया। बोला, ‘‘यहां तो बड़े-बड़े यो ा यु म भाग लेने आए ह। म देख रहा हं
िक भी म िपतामह के अलावा गु देव ोणाचाय, कृपाचाय आिद आए ह।’’

‘‘तो या हआ?’’ ीकृ ण बोले, ‘‘यु म कोई भी भाग ले सकता है। वे श ु प क ओर


से लड़ने आए ह, इस लए इस समय वे तु हारे वजन नह , ब क श ु ह। उनके साथ श ुओं
जैसा ही यवहार करो।’’

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ीकृ ण क इस बात से अजुन को संतोष नह हआ। सामने श ु के प म जो खड़े थे, वे
एक ही प रवार के थे, संग-े संबध
ं ी। कोई मामा था तो कोई चचेरा भाई, कोई गु था तो कोई
िपतामह या िम था‒भला इन अपने ही लोग पर अजुन का बाण कैसे उठे गा? अजुन का दय
पसीज गया और यु से जी एकाएक उचाट हो गया। वह बोला, ‘‘हे भु! ऐसा रा य मुझे नह
चािहए, जो अपने ही सगे-संबं धय को मारकर पाया जाए। भला ऐसी िवजय से या सुख
िमलेगा? नह -नह , मुझसे अपने ही लोग पर धनुष नह उठे गा। रथ वापस ले च लए।’’

इतना कहकर अजुन ने याकु ल होकर अपने ह थयार व धनुष-बाण रथ के कोने म फक


िदए और नीचे बैठकर शोकम हो गया।

अजुन क यह दशा देखकर ीकृ ण मु कराए। अजुन का शोक वाभािवक था। उ ह ने


आगे बढ़कर अजुन को उठाया और बोले, ‘‘अजुन! कमजोर मत बनो। तुम ि य हो, ि य
धम का पालन करो। ऐसे अवसर परअपने मन से यह मोह-माया िनकाल दो। वीर क कार
कम करो‒अिववेक मत बनो।’’

‘‘म या क ं , मुझे तो कु छ समझ म नह आ रहा है।’’ अजुन याकु ल होकर बोला,


‘‘आप तो सव ानी ह, आप ही बताइए िक इस अवसर पर मेरा या कत य है।’’

ीकृ ण के अधर पर मु कराहट छा गई। उ ह ने अजुन के कंध को थपथपाते हए नेह से


कहना आरं भ िकया‒

‘‘अजुन! यह मत सोचो िक तु हारे मारने से ही ये मरगे। ाणी मा नाशवान है। एक िदन


सबको मरना है, लेिकन आ मा तो सदैव अमर रहती है। इस लए िम या माया-मोह म मत पड़ो।
ये सारे संबध
ं और र ते माया जाल ह, सुख-दःु ख क बात भी ामक ह। बस, एक ही बात
का यान रखो िक तु हारा धम या है। धम पर चलकर आचरण करना ही िववेक इंसान का
परम कत य है। तुम ि य हो और उसे रोक नह सकते, तुम तो िनिम मा हो, िनयंता तो
कोई और है। तु हारा जो कम है, उसे मोह-माया व ममता यागकर पूण करो और फल क

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िचंता मत करो। अपने मन को ढ़ करो, उठो अजुन! होश म आओ, उठाओ अपना धनुष-बाण
और टू ट पड़ो श ुओं पर। अगर तुम मेरा आदेश चाहते हो तो यही मेरा आदेश है।’’

अजुन क आंख खुल गई।ं हां, यह संसार असार है और जो कोई आया है, वह अपना-
अपना कत य िनभाकर चला जाएगा। ये र ते-नाते सब िनरथक ह। बस, उसने उठा लया
अपना धनुष-बाण और बोला, ‘‘हे भु! आज मने एक नए ही दशन को आ मसात िकया। अब
म मोह-माया को यागकर यु के लए तुत ह।ं ’’

ीकृ ण ने उसे यु म िवजयी होने का आशीवाद िदया।

□□

ह तनापुर के महल म धृतरा िचंतातुर बैठे थे। पास ही संजय बैठा उ ह यु भूिम क
नवीनतम गितिव धय से अवगत कराता जा रहा था।

धृतरा मन-ही-मन दख
ु ी थे। एक ही प रवार के लोग आज यु के मैदान म श ु बनकर
एक-दसरे
ू से मुकाबला करने को डट गए थे। उनके दःु ख का कोई अंत नह था।

ऐसे ही अवसर पर महिष यास ने वहां वेश िकया। धृतरा को शोकम देखकर महिष
यास बोले, ‘‘अब इतना िचंितत होने से या लाभ? पहले ही अगर आपने सतकता व
बुि मानी से काम लया होता तो यह नौबत नह आती। जो कु छ हो रहा है, वह सब आपक
कमजो रय के कारण ही हो रहा है। आज अगर एक ही प रवार के लोग यु करने को आतुर
ह तो सब आपक अनीित व अधम का प रणाम है, पर यह सब तो हमेशा से होता आया है।
कोई भी काल के वाह को रोक नह सकता। इस लए आप शोक न कर। हां, अगर आप
अंितम बार अपने आ मीय वजन को अपनी आंख से देखना चाहते ह तो म आपको िद य
ि दान कर सकता ह।ं ’’

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‘‘नह -नह , मुझम इतनी िह मत नह है िक यु भूिम म मरने-मारने पर उता अपने ही
संबं धय को अपनी आंख से देख सकूं ।’’ धृतरा बोले, ‘‘हां, कु छ ऐसी कृपा अव य
क जए िक यु भूिम म घटने वाली पल-पल क घटना क सूचना मुझे िमलती रहे।’’

‘‘एवम तु।’’ इतना कहकर महिष यास ने संजय क ओर देखकर कहा, ‘‘संजय! म तु ह
िद य- ि दान करता ह।ं तुम यह बैठे-बैठे यु भूिम का सारा हाल प देख सकोगे। िफर
यह आंख देखा हाल तुम धृतरा को भी सुनाते जाना।’’

‘‘जो आ ा महिष!’’ संजय ने कहा।

□□

यु भूिम म अजुन ने दबु ारा धनुष-बाण उठा लए थे और ीकृ ण ने रथ आगे बढ़ा िदया था।

दोन सेनाएं आमने-सामने खड़ी अंितम आदेश क ती ा कर रही थ । तभी अजुन सिहत
सभी पांडव ने देखा िक यु धि र अचानक अपने रथ से नीचे कू द पड़े ह। अपने ह थयार रथ म
ही छोड़ िदए और पैदल धीरे -धीरे चलते हए कौरव क ओर बढ़े।

अचानक यु धि र भी म िपतामह के सामने जा के। उ ह ने भी म के चरण- पश करके


कहा, ‘‘आदरणीय िपतामह! यु आरं भ करने क आ ा लेने आया ह।ं आशीवाद देकर कृताथ
कर।’’

यु धि र का यह आदर-भाव देखकर भी म ग गद ् हो उठे । उ ह ने आशीवाद देते हए कहा,


‘‘पु ! मेरा आशीवाद सदैव तु हारे साथ है। यु आरं भ करने क आ ा देता ह।ं जाओ, यु म
िवजयी होओ।’’

यु धि र बोले, ‘‘इस समय आपके माग िनदशन क अ यंत आव यकता है। हम उपदेश
दी जए।’’

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‘‘भला यह भी कोई अवसर है उपदेश देने का।’’ भी म बोले, ‘‘इस समय यु का संचालन
करो। िकसी और समय तु ह अव य उपदेश दग
ं ू ा।’’

यु धि र ने भी म िपतामह के अलावा वहां उप थत सभी बुजुग ं को नमन िकया। सभी


यु धि र के इस यवहार से अ यंत स हए। सब पांडव के ित पहले से ही सहानुभूित
रखते थे, यह तो कु छ प र थितयां ऐसी थ िक उ ह कौरव का प लेने को िववश होना पड़ा
था। ोणाचाय व कृपाचाय ने आशीवाद के साथ-साथ यु म िवजयी होने का भी आशीवाद
िदया। श य ने कहा, ‘‘मुझे धोखे से दयु धन ने अपने प म िमला तो लया है, पर मने कण
को िनर करने का जो वचन िदया है, उसे अव य िनभाऊंगा।’’

यु धि र सबका आशीवाद पाकर अपनी सेना म लौट आए।

आते समय वे बोले, ‘‘अगर कौरव क सेना म हमारा कोई शुभिचंतम हो तो हमारी ओर आ
जाए।’’

यह सुनते ही कौरव क सेना से एक सैिनक िनकला और पांडव क सेना म जा िमला। वह


युय ु सु था‒धृतरा क एक नाियका क संतान।

ीकृ ण ने उ ोषणा क , ‘‘यु आरं भ करो।’’

□□

यह यु कु े म अठारह िदन तक चलता रहा। यही यु महाभारत के यु के नाम से


आगे चलकर िव यात हआ। यु म कभी भी प िनणायक थित नह आई। कभी ऐसा
लगता जैसे यु म कौरव का पलड़ा भारी है तो कभी ऐसा अनुभव होता िक पांडव भारी पड़
रहे ह। िनयमानुसार यु ातःकाल आरं भ होता और शाम होते ही यु िवराम क घोषणा कर दी
जाती थ । सेनाएं अपने-अपने खेमातो म लौट जाती थी और िव ाम करती थ । सेनानायक
अगले िदन क मोचबंदी क योजनाओं म संल हो जाते थे। सैिनक रात भर गाते-बजाते और

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आराम करते तथा दसरे
ू िदन ताजा होरक िफर लड़ते। जैसे-जैसे िदन बढ़ते गए और यु का
उ माद जोर पकड़ता गया, वैसे-वैसे सारे िनयम व आचार संिहताएं भुला दी गई ं और यु िवराम
का भी बार-बार उ ंघन होने लगा। हालत यह हो गई िक कई बार यु देर रात तक जारी
रहता‒चार ओर आग और मशाल जला ली जात ।

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(चौदह)

पहले िदन सु ढ़ यूह रचना के साथ पांडव आगे बढ़े। भीमसेन ने मतवाले हाथी क कार
गरजते हए द ु मन पर धावा बोल िदया।

उधर भी म िपतामह अपनी सेना के साथ श ु-सेना पर िबजली क कार टू ट पड़े। दोन
सेनाओं म भीषण िभड़ंत हई। चार ओर भयंकर यु िछड़ गया।

यु म भाग लेने अजुन का पु अिभम यु भी आया था। उसक वीरता का आलम यह था िक


वह माता के गभ से ही यु -कौशल सीख आया था। उसने बड़ी वीरता से यु म अपने करतब
िदखाए। अिभम यु के तीर से कृपाचाय के साथ-साथ श य व कृतवमा भी घायल हो गए। इस
वीर बालक क वीरता व िनशानेबाजी देखकर भी म मन-ही-मन शंसा िकए िबना नह रह
सके। िफर उ ह ने धनुष उठाया और िनशाना साधकर अिभम यु क ओर छोड़ िदया। घायल
होने के बावजूद अिभम यु ने अपना धनुष भी म क ओर मोड़ लया और उसके तीर ने भी म
के रथ क पताका क िचिड़या उड़ा दी।

राजकु मार उ र भी पांडव के प म था। वह हाथी पर सवार था। उसने अपने हाथी को
आगे बढ़ाया और श य के रथ के घोड़ को कु चल िदया। श य के ोध क सीमा नह रही।
उसने लौह-शि का िनशाना साधकर राजकु मार उ र पर वार कर िदया। राजकु मार उ र इस
वार से बच न सका और यु भूिम म वीरगित को ा हआ।

दसरी
ू ओर भी म िपमामह के तेज बाण से पांडव क सेना म खलबली मच गई थी। भी म
िपतामह के बाण पांडव सैिनक को धराशायी करते जा रहे थे।

तब तक शाम हो गई। यु िवराम लागू हो गया।

पांडव म राजकु मार उ र क मृ यु का शोक छा गया।

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ीकृ ण ने पांडव को हतो सािहत नह होने िदया। वे बोले, ‘‘इन छोटी-छोटी बात से घबराने
क आव यकता नह । अंितम िवजय हमारी होगी।’’

दसरे
ू िदन सूय दय के साथ यु आरं भ हआ। दोन ओर क सेनाएं नए उ साह के साथ यु
म िपल पड़ ।

पहले िदन क भांित ही भी म िपतामह ने बाण क घनघोर वषा आरं भ कर दी। भी म


िपतामह क र ा के लए उनके चार ओर बड़े-बड़े वीर क र ा-पंि तैनात थी। भी म के
तीर पांडव के सैिनक को गाजर-मूली क कार काटते जा रहे थे। पांडव के धुरंधर
सेनानायक इस बाणवषा से अ यंत घबरा गए।

अजुन अपने रथ पर ीकृ ण के साथ बैठा था। अपने सैिनक को धड़ाधड़ िगरते देखकर वह
भी िचंितत था। ीकृ ण बोले, ‘‘अजुन! अगर भी म िपतामह का यह क र मा जारी रहा तो
हमारी सेना बेमौत मारी जाएगी। म रथ को भी म के समीप ले जाता ह।ं तुम अवसर पाते ही
भी म को रोको।’’

अजुन का रथ भी म के सामने जा का। अब दोन महान यो ा आमने-सामने थे। उ ह ने


एक-दसरे
ू को देखा और धनुष तान लए।

दोन महार थय क िभड़ंत देखने के लए सेना म उ सुकता छा गई। कई कौरव वीर लड़ना
भूलकर भी म और अजुन क ओर देखने लगे।

कौरव को लापरवाह देखकर भीम के कदम खुद-ब-खुद श ुओं क ओर बढ़ गए। उसने


अपने गदा- हार से एक-एक वार से अनिगनत सैिनक को धराशायी कर िदया। श ु-सेना म
भगदड़ मच गई। भीम ने कौरव को देखते-ही-देखते भारी ित पहच
ं ा दी।

अपनी सेना क यह दशा देखीतो सेनापित भी म िपतामह ने िफर से मोचा संभाल लया। वे
अजुन को छोड़कर भीम क ओर बढ़ चले। सा यिक ने भी म को आगे बढ़ते देखा तो अपना

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रथ आगे ले गए और भी म के सारथी को मार िगराया। अब भी म या करते? रथ चलाते या
ह थयार चलाते। इस लए उ ह ने अपनी सेना को आदेश िदया, ‘‘शाम हो रही है। यु िवराम
घोिषत कर दो और िशिवर को लौट चलो।’’

यु का अवसान हो गया। आज के यु म अिभम यु ने दयु धन के पु ल मण को घायल


कर िदया था।

तीसरा िदन अजुन का था।

उसने बाण क घनघोर वषा करके श ु-सेना को भारी ित पहच


ं ाई। गांडीव क एक-एक
टंकार से सैिनक भूिम पर िबछ जाते। कौरव क हालत नाजुक हो गई।

दयु धन से यह सहा नह गया। उसने भी म िपतामह के समीप पहच


ं कर कहा, ‘‘आपके रहते
अजुन क यह िह मत क हमारी सेना को न करता चला जाए। आज आपको या हो गया
है? यु के ित आप इतने उदासीन य ह? कह ऐसा तो नह िक आप पांडव से िमल गए
ह! अगर हम परा जत ही कराना है तो यु का आयोजन करने क आव यकता ही या
थी?’’

भी म को दयु धन का यह आरोप सुनकर गु सा तो आया, पर वे धैय से बोले, ‘‘दयु धन!


यु म हार-जीत चलती ही है। िफर पांडव को तुम कमजोर मत समझो, वे भी वीर ह। हम
अपना कत य िनभा रहे ह। यह आरोप िम या है िक म पांडव से िमल गया ह।ं इस आयु म
मुझसे जतना हो सकेगा, अव य क ं गा।’’

जो भी हो, दयु धन के कटु वचन का भी म पर बड़ा गहरा असर हआ। भी म के हाथ म


पुनः फूित आ गई और उनके धनुष से िनकलने वाले बाण पांडव सेना को धरती पर िबछाने
लगे। पांडव के तो होश उड़ गए।

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यह देखकर ीकृ ण अजुन का रथ लेकर भी म के पास जा पहच
ं े। अजुन चाहता तो वह
आज भी भी म को उकसाकर उनका यान भंग कर सकता था, पर आज उसम िवशेष उ साह
नह था। िफर भी भी म का यान अजुन क ओर बंट अव य गया था। इसका फल यह हआ
िक उनके बाण क वषा थोड़ी कम हो गई और पांडव-सेना ने थोड़ी राहत क सांस ली।

पांडव नए उ साह के साथ कौरव-सेना म घुस गए और अनेक सैिनक का वध कर डाला।

तीसरे िदन भी कौरव क अपार ित हई। शु क देश का नरे श अपने साथ जतने सैिनक
लाया था, वे सब काम आ गए। कु ल िमलाकर उस िदन कौरव के लगभग दस हजार रथ
िवन हो गए और सात सौ हाथी मारे गए।

दयु धन ने शाम होते ही यु िवराम क घोषणा कर दी।

□□

भारी ित के बावजूद कौरव अगले िदन नए उ साह के साथ यु भूिम म कू द पड़े।

अजुन ितिदन क कार श ु-संहार म लगा था, तभी उसने देखा िक उसका पु अिभम यु
कौरव यो ाओं से िघर गया है। अिभम यु के चार ओर अ व थामा व श य आिद अनुभवी
यो ा अ ताने खड़े थे। अजुन ने अपना रथ उस ओर मोड़ िदया और धृ ु न के साथ
िमलकर अिभम यु क र ा म संल हो गया। दयु धन ने यह देखा तो वह भी अपने भाइय के
साथ श य व अ व थामा क सहायता को आ पहच
ं े। भीम ने भी अपने पु घटो कच के साथ
अिभम यु क सहायता क ।

दयु धन ने पांडव वीर को िततर-िबतर करने के लए हा थय को आगे बढ़ा िदया। भीम ने


हा थय को िचंघाड़ते हए आगे बढ़ते देखा तो वह अपने रथ से कू द पड़ा और अपने लौह व
से हा थय पर आ मण कर िदया। ऐसा लग रहा था, जैसे कोई िवशाल पहाड़ हा थय पर टू ट

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पड़ा हो। हा थय म खलबली मच गई और वे अपनी ही सेना को र दते हए भागने लगे। भीम
पूरे जोश म था।

भीम अपने रथ पर जा चढ़ा और सारथी से बोला, ‘‘रथ को आगे बढ़ाओ, आज म इन धूत


कौरव को खूब सबक सखाऊंगा और यमलोक पहच
ं ा दग
ं ू ा।’’

उस िदन भीम ने धृतरा के आठ पु को मौत के घाट उतार िदया। दयु धन ने बड़ी वीरता
से जवाबी आ मण िकया, यहां तक भीम पर वार िकए, पर भीम का पु घटो कच मौत
बनकर कौरव पर टू ट पड़ा था। उसने कौरव क बहत बड़ी फौज को ने तनाबूद कर िदया।

भी म ने यह आलम देखा तो दयु धन से बोले, ‘‘इस रा स से लड़ना बहत किठन है। हमारी
सेना थक चुक है। यु िवराम क घोषणा कर दो।’’

□□

भी म के रहते पांडव का जीतना असंभव हो गया था। भी म के बाण क तेज मार के आगे
पांडव का कोई जोर नह चल रहा था। हालांिक अजुन लगभग हर रोज रथ को भी म के पास
ले जाता और भी म को अपनी ओर आकिषत करके कु छ देर के लए यु का पासा पलट देता
था, िकंतु भी म क उप थित पांडव सेना के लए िचंता का मुख िवषय थी।

छठे िदन अजुन ने तय कर लया िक भी म का वध आव यक है, वरना पांडव क ित क


भरपाई असंभव हो जाएगी।

अजुन ने िशखंडी को अपने पास बुलाया। यह िशखंडी वही था, जसने भी म को मारने का
ण िकया था। अजुन ने अपने रथ के आगे िशखंडी को िबठा िदया और रथ को भी म क ओर
बढ़ा िदया। भी म को ात था िक उनक मृ यु आ चुक है। िशखंडी को अजुन के रथ म आते
देख उ ह ने तय कर लया िक उस पर बाण नह चलाएंग,े य िक वह उनक ि म नारी थी
और नारी पर वार करना भी म के स ांत के िव था।

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भी म के पास पहच
ं ते ही अजुन ने िशखंडी क ओट से अपने धनुष से बाण क वषा कर
दी। भी म का सारा शरीर तीर से िबंध गया था। भी म वयं को संभाल नह सके और रथ से
नीचे िगर पड़े। तीर शरीर म इस कार चुभे थे िक वे धरती पर नह िगरे , ब क तीर क
श या पर धरती पर जा पड़े। वे समझ गए िक ये बाण िशखंडी ने नह छोड़े, ब क अजुन ने
छोड़े ह।

भी म क यह दशा देखकर दोन प म यु एकबारगी थम गया।

अजुन अपने रथ से उतरा और तेज-तेज कदम से भी म के पास जा पहच


ं ा। भी म का सर
नीचे लटक रहा था। अजुन ने एक तीर सरहाने पर छोड़ िदया और भी म का लटकता सर
तीर पर िटका िदया।

‘‘व स अजुन!’’ भी म धीरे से बोले, ‘‘ यास से गला सूख रहा है, तिनक पानी तो
िपलाओ।’’

अजुन ने उसी समय धरती पर एक तीर छोड़ा, वहां से पानी क बौछार िनकल पड़ी। वह
पानी क बौछार सीधे भी म के मुंह म जा िगरी। पानी पीकर भी म ने अपनी यास बुझाई। यह
पानी क धारा गंगा क थी, जो अंितम समय म अपने पु क यास बुझाने आई थी।

मरणास भी म िपतामह के चार ओर दोन प के वीर आकर एक हो गए। भी म बोले,


‘‘म आशा करता हं िक मेरी मृ यु के बाद इस यु का भी अंत हो जाएगा। म चाहता हं िक
तुम लोग िमल-जुलकर रहो। अब मुझे अपने मरने का तिनक भी दःु ख नह । जब सूय
उ रायण ह गे मेरा ाणांत हो जाएगा, तब तक शर-श या पर ही मुझे पड़ा रहने दो। िफलहाल
मेरी आ मा शरीर म ही बनी रहेगी। मेरे अंितम समय म जो जीिवत हो, वही मेरा दाह-सं कार
कर दे।’’

कण को भी म क दशा का पता चला तो वह दौड़ा-दौड़ा उनके अंितम दशन को आया।


उसने हाथ जोड़कर भी म से िनवेदन िकया, ‘‘मेरी भूल को मा कर दी जए। मने जो अपश द

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कहे थे, उनके लए शिमदा ह।ं ’’

‘‘सुनो कण!’’ भी म बोले, ‘‘पांडव से इस कदर घृणा मत करो। तुम सारथी-पु नह , सूय-
पु हो, पांडव के भाई हो, जाओ और उनसे िम ता का हाथ िमलाकर इस यु का अंत कर
दो।’’

कण को यह ताव पसंद नह आया। बोला, ‘‘जब सभी लोग मेरी हंसी उड़ा रहे थे, तब
दयु धन ने मुझे स मान िदया था। भला म दयु धन का साथ इस संकट-बेला म कैसे छोड़ द।ं ू म
वचनब हं और अपना वचन अव य िनभाऊंगा, ब क अगर आप मुझे यु म भाग लेने देते
तो म अजुन को आपका वध नह करने देता।’’

भी म क मृ यु होते ही कण ने यु का बाना पहनने म देर नह क । अब दयु धन का


हतो साह िफर अंगड़ाई लेकर नए उ साह म प रवितत हो गया। कण के आ जाने से उसक
सेना म नई जान आ गई थी।

दयु धन तो कण को ही सेनापित बनाना चाहता था, िकंतु कण के सुझाव पर उसने गु


ोणाचाय को सेनापित का उ रदािय व स प िदया।

□□

संजय यु े के येक पल का वृ ांत िद य- ि से ितिदन धृतरा को सुनाया करता


था। जस िदन भी म क मृ यु हई, उस िदन धृतरा बहत ममाहत हए।

□□

दयु धन को एकाएक तीत हआ‒अगर यु धि र को जीिवत पकड़ लया जाए तो यु को


जीता जा सकता है।

दयु धन ने ोणाचाय से कहा, ‘‘गु देव! आप िकसी कार यु धि र को जीिवत ही पकड़ने


का यास क जए। मुझे यु म पूरी िवजय क तिनक भी अिभलाषा नह । बस, यु धि र

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जीिवत ही हाथ लग जाए, यही मेरे लए बहत है।’’

ोणाचाय ने कहा, ‘‘यु धि र को जीते-जी पकड़ना आसान नह , िफर भी म तु हारी इ छा


पूरी करने का यास क ं गा।’’

पांडव पर कौरव ने ोणाचाय के नेतृ व म नए सरे से आ मण िकया। पांडव क सेना


बुरी कार मात खाने लगी। यु धि र ने अपनी सेना क र ा के लए कमर कस ली। तभी
शकु िन ने सहदेव पर धावा बोल िदया। अवसर देखकर ोणाचाय ने ुपद को जा पकड़ा और
सा यिक ने कृतवमा पर धावा बोल िदया। भीमसेन ने श य को अपने िशकंजे म जकड़ लया।

□□

यु धि र को जीिवत पकड़ने क जो योजना बनी थी। उसके अनुसार ोणाचाय ने ि गत


नरे श सुशमा को अजुन से लड़ने भेज िदया, तािक अजुन एक मोच पर य त रहे तो दसरी

ओर यु धि र को सरलता से पकड़ा जाए।

सुशमा से अजुन लड़ने चला तो उसने यु धि र से कहा, ‘‘मुझे पता चला है िक दयु धन
आपको जीिवत पकड़ना चाहता है। म तो ि गत नरे श से लड़ने जा रहा ह,ं आप अपनी सुर ा
का यान र खएगा। म स य जत को आपक सहायता के लए छोड़े जाता ह।ं हां, स य जत
जब लड़ते-लड़ते मर जाए तो आप त काल यु भूिम छोड़कर चले जाएं।’’

यह कह अजुन ि गत नरे श से लड़ने चल पड़ा। उसने बाण क धुआध


ं ार वषा करके ि गत
नरे श क सेना का िवनाश कर िदया। आधी सेना तो धराशायी हो गई और आधी सेना डरकर
भाग गई। जो थोडे़-बहत सैिनक बचे उ ह लेकर ि गत नरे श मोच पर डटा रहा। उसने अवसर
िमलते ही ीकृ ण पर बाण छोड़ िदए। सारथी पर बाण चलाना िनयम के िव था। अजुन का
ोध के मारे बुरा हाल हो गया। उसने अपना िद या चलाया, जससे ि गत नरे श के बचे-
खुचे सैिनक भी मारे गए।

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यह मोचा फतह करके अजुन यु धि र क र ा के लए वापस लौटा। वहां देखा तो
स य जत मारा जा चुका है और ोणाचाय आगे बढ़ रहे ह। अजुन ने कहा, ‘‘भैया! आप
त काल इस मोच से हट जाइए।’’

यु धि र चुपचाप यु भूिम से हट गए।

अजुन को अपने बीच पाकर पांडव म िफर नया जोश आ गया। वे नए उ साह से कौरव से
लड़ने लगे।

इस बीच शाम हो चली।

ोणाचाय ने िनराशा से यु िवराम क घोषणा कर दी। यु धि र को जीिवत पकड़ने का


अवसर पास आकर भी हाथ से िनकल गया था, इससे ोणाचाय बहत दख
ु ी थे।

इस िनराशा से उबरने के लए ोणाचाय ने मन-ही-मन तय कर लया िक अगले िदन


यु धि र को जीिवत पकड़कर ही रहगे, तभी आज क कसक िमट सकेगी।

□□

अगले िदन ोणाचाय ने एक भ य यूह क रचना क , तािक यु धि र को जीिवत बंदी


बनाकर दयु धन के सामने पेश कर सक। इस यूह का नाम था‒च यूह। इसम कोई फंस
गया तो उसका िनकलना मु कल था। इस यूह से िनकलने का भेद एक ही यि को मालूम
था‒वह था अजुन। इस यूह के बारे म जब यु धि र को पता चला तो वे िचंितत हए। अजुन
दसरे
ू मोच पर लड़ने जा चुका था।

अिभम यु बोला, ‘‘च यूह के अंदर तो म भी जा सकता ह,ं िकंतु बाहर िनकलने का भेद
मुझे मालूम नह ।’’

यु धि र ने कहा, ‘‘तो िफर तु ह च यूह म वेश करो और इसे तोड़ दो। तु हारी र ा के
लए कई वीर यहां तुत ह।’’

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यु धि र का आदेश पाते ही अिभम यु च यूह म कू द पड़ा। च यूह के ार पर र ा का
भार जय थ पर था। अिभम यु के जाने के बाद उसने िकसी अ य पांडव वीर को यूह के अंदर
वेश करने नह िदया।

च यूह म कौरव के सम त वीर मौजूद थे। अिभम यु को अंदर आते देखते ही दयु धन ने
अिभम यु पर आ मण कर िदया, लेिकन अिभम यु ने वीरता से दयु धन का मुकाबला िकया।
अिभम यु क वीरता देखकर दयु धन चिकत रह गया। दयु धन के लए जब अिभम यु के वार
सहना मु कल हो गया तो कृपाचाय, कण, अ व थामा, श य व कृतवमा आिद ने आकर
द ु ाेधन क सहायता क , लेिकन अिभम यु से लोहा लेते समय सारे वीर के पसीने छू ट गए।
अिभम यु ने अपने वार से इन वीर को नचा डाला। दःु शासन क तो यह हालत थी िक उसके
शरीर म अिभम यु के अनेक तीर चुभ चुके थे, जब उससे सहा नह गया तो वह मैदान छोड़कर
भाग गया।

कण ने िनशाना साधकर एक बाण अिभम यु पर छोड़ िदया। अिभम यु को तीर लगा तो


अव य, पर उसने मैदान नह छोड़ा, ब क घायल होने के बावजूद मैदान म डटा रहा।
अिभम यु के वार से अनेक वीर को मृ यु का वरण करना पड़ा, जनम कौशल देश के राजा
बृह ल के अलावा दयु धन का पु ल मण व म राज का पु म भी थे।

अिभम यु क यह वीरता देखकर कौरव वीर सटिपटा गए और उपाय नजर नह आया तो वे


गु ोणाचाय के पास पहच
ं े। गु ोणाचाय वीर बालक क रण-कु शलता से मन-ही-मन अित
स हए। िफर अपने सेनापित व का बोध हआ तो उ ह ने दयु धन को सुझाव िदया, ‘‘देखो!
जब इसके सम त ह थयार समा हो जाएं तब इस पर सब िमलकर चौरतफा आ मण कर
देना।’’

ोणाचाय क योजनानुसार दयु धन ने अिभम यु पर नया आ मण िकया। जब तक


अिभम यु के पास ह थयार रहे, वह कौरव का मुकाबला करता रहा। यहां तक ह थयार के

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समा हो जाने के बाद उसने रथ के पिहय से मुकाबला िकया, पर वह अकेला उन कई वीर
से कब तक लड़ता? अंततः उसे िन पाय देखकर िद गज वीर ने उस पर चौतरफा हमला
िकया और उसका वध कर िदया।

अिभम यु के मारे जाने से कौरव म हष क लहर दौड़ गई। उ ह ने शंख बजाकर यह


समाचार फैला िदया िक उनक जीत हो गई।

अिभम यु क मृ यु के समाचार से पांडव म शोक छा गया। शाम होते ही यु िवराम क


घोषणा हो गई।

□□

अपने िशिवर म पांडव अिभम यु क मृ यु से बहत संत थे। यु धि र को िवशेष दःु ख था,
य िक उसी ने अिभम यु को भेजा था।

तभी वहां आ पहच


ं े महिष यास। वे बोले, ‘‘दख
ु ी मत हो यु धि र! जो कु छ हआ है, वह
अटल था। दरअसल, भगवान िशव ने जय थ को वर िदया था िक तुम एक िदन पांडव को
परा जत तो अव य करोगे, पर अजुन का वध अव य अंसभव है। उसी वर का ताप था िक
अिभम यु मारा गया।’’

थोड़ी देर बाद जब मोच से अजुन लौटा तो वह भी अपने पु क मृ यु का समाचार सुनकर


शोक-िव ल हो गया। ीकृ ण ने उसे सां वना देते हए कहा, ‘‘वीर क मृ यु पर शोक नह
करते अजुन! अिभम यु तो िद यलोक गया है, जहां जाने क हर वीर क अिभलाषा होती है।’’

अजुन ने कहा, ‘‘म जय थ को नह छोडू ंगा। उसक मृ यु मेरे ही हाथ होगी। कल सूया त
से पहले म उसे यमपुरी पहच
ं ा दग
ं ू ा।’’

□□

अजुन के ण का समाचार कौरव के िशिवर म पहच


ं ा।

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जय थ को मारने का अजुन का ढ़ िन चय कभी िन फल नह हो सकता। इस लए कौरव
म थोड़ी हलचल छा गई। जय थ का तो डर के मारे बुरा हाल हो गया। उसने दयु धन से कहा,
‘‘मने आप लोग के लए अपनी जान क बाजी तक लगा दी। अब मेरी र ा का भार आपके
ऊपर है। बस, सूया त तक मुझे बचा ली जए।’’

‘‘घबराओ मत जय थ! हमारे रहते अजुन तु ह छू भी नह सकता।’’ दयु धन ने उसे


अभयदान िदया, ‘‘तु हारी र ा म कण, श य, अ व थामा और भू र वा जैसे वीर तैनात ह,
िफर डर कैसा?’’

ोणाचाय बोले, ‘‘अजुन को म तु हारे िनकट नह आने दग


ं ू ा। सारी सेना तु हारी र ा म
संल रहेगी। मेरे नए यूह को भेदकर कोई भी पांडव वीर तु हारे िनकट नह आ सकेगा,
अजुन भी नह ।’’

सचमुच यु आरं भ हआ तो जय थ को कौरव क सेना ने घेर लया। जय थ रथ , हा थय


और घुड़सवार के पीछे िछप गया। वह सुबह से केवल आकाश क ओर सर उठाए सूय क
ओर देख रहा था िक कब सूया त हो और कब यु िवराम हो जाए, य िक अजुन ने आज
शाम तक ही उसका वध करने क सौगंध खाई थी, िकंतु वह आज बच जाता है तो अजुन का
ण िनरथक जाएगा।

तभी सूय को बादल ने ढक लया। अजुन ने समझा िक सूया त हो गया। उसने चैन क
सांस ली। वह िनडर होकर अपने गु थान से िनकल आया। जैसे ही अजुन ने देखा, अपना
तीर चला िदया। तीर िनशाने पर लगा। जय थ आह भरकर धरती पर जा िगरा।

सूय िफर बादल के पीछे से िनकल आया और चार ओर तेज काश फैल गया। व तुतः
ीकृ ण ने ही अपने च से सूय को िछपाकर सूया त का म उ प िकया था, तािक जय थ
मारा जा सके।

जय थ के वध के साथ उस िदन का यु समा हो गया।

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□□

जस िदन भीम और कण म ट कर हई थी, उसी िदन दयु धन ने भीम को मात देने के लए


अपने कु छ भाइय को कण क सहायता म भेजा, पर भीम ने दयु धन के यारह भाइय को मौत
के घाट उतार िदया। भीम वह िदन भूला नह था, जस िदन भरे दरबार म खुलेआम ौपदी को
अपमािनत िकया गया था और उसने ण िकया था िक वह दयु यन क जांघ के टु कड़े-टु कड़े
कर देगा।

कण ने भी भीम को कम ित नह पहच
ं ाई। उसने भीम के ह थयार व धनुष-बाण को तोड़
िदया, उसके रथ को भी ित पहच
ं ाई। कण को भारी पड़ते देखकर भीम को मोच से भागकर
जगह-जगह अपनी र ा करनी पड़ी। भीम के हाथ म जो लगा, उसे उठाकर वह कण पर
फकता रहा।

कण ने कहा, ‘‘तुम कैसे ि य हो, जो भागकर अपनी जान बचाते हो। तु ह तो जंगल म
जाकर पशुओं को घास चरानी चािहए।’’

उस िदन दोन प म यु ो माद कु छ इतना बढ़ गया था िक यु िवराम क अव ध का भी


उ ह याल नह रहा और रात बहत देर तक वे लोग लड़ते रहे।

उस रात घटो कच भी यु के मैदान म था। उसने कण को अपने वार से घायल कर िदया।


कण दद से बुरी कार छटपटाने लगा। उसके पास इं का िदया हआ एक ऐसा अ था, जसे
अपने श ु पर फको तो उसका संहार िन चत था, िकंतु इसका योग सफ एक बार हो
सकता था। यह अ उसने अजुन का वध करने के लए रख छोड़ा था, लेिकन घटो कच ने
उसे इस कदर उ े जत कर िदया था िक कण ने अ छोड़ िदया, जससे घटो कच बच नह
सका। वह अजुन को सुर ा दान कर मर गया।

□□

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रात काफ गुजर गई थी।

यु का म जारी था। हर मोच पर घोर मार-काट मची थी। ोणाचाय अपना सेनापित व
बखूबी िनभा रहे थे। जहां उनक ज रत पड़ती, उधर ही पहच
ं जाते। जहां देखो, ोण के अ
क आवाज सुनाई पड़ती।

ीकृ ण गु ोणाचाय क चपलता से िचंितत थे, बोले, ‘‘ ोणाचाय के जीिवत रहते हमारा
यु जीतना किठन हो जाएगा। ये तो िबजली क गित से हर मोच पर पहच
ं जाते ह। इनक
वीरता का तो यह आलम है िक ये लगातार रात-िदन िबना थके लड़ सकते ह और जब तक
हमारी सेना को िवन नह कर दगे, तब तक इनके तरकश से तीर िनकलते ही रहगे। हम हर
हालत म ोणाचाय क शि को न करना चािहए। इ ह अपने पु अ व थामा पर बड़ा गव
है। अ व थामा को अभी मारना तो असंभव है, लेिकन अगर िकसी कार ोणाचाय के कान
तक यह भनक पहच
ं जाए िक उनका यारा पु मारा गया तो उनक सारी शि िनर त हो
जाएगी और वे बुरी कार टू ट जाएंग।े बस, ऐसे मौके पर ोणाचाय पर काबू पाया जा सकता
है।’’

‘‘पर यह तो धोखा है।’’ अजुन बोला, ‘‘म ऐसे यु म भाग नह ले सकता।’’

यु धि र ने जवाब देने से पहले कु छ देर तक सोचा। समय गुजरता जा रहा था और


ोणाचाय का नर-संहार जारी था। अपनी र ा के लए आव यक था िक कोई उपाय िकया
जाए, वरना र पात बंद होने वाला नह था।

यु धि र ने ीकृ ण से कहा, ‘‘हालांिक यह अधम है, िफर भी म यह करने के लए तैयार


ह,ं य िक तभी ोणाचाय र पात बंद करगे। भले ही मुझे इस झूठ के लए नक य न जाना
पड़े, म ोणाचाय के पास जाऊंगा। हे कृ ण! मुझे लगता है िक इसके अलावा और कोई चारा
नह ।’’

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अब म पैदा करने के लए भीम आगे बढ़ा। उसने अपनी गदा से एक हाथी का सर फोड़
िदया, जसका नाम ‘अ व थामा’ था, िफर चीखकर बोला, ‘‘मने अ व थामा को मार िदया।’’

उस समय ोणाचाय ऐसा शि शाली बाण छोड़ने जा रहे थे, जसका नाम ा था। इस
बाण क िवशेषता यह थी िक वह पांडव क सम त सेना न कर देता, लेिकन तभी भीम क
अ व थामा को मारने क उ ोषणा सुनी तो उ ह ने ा का हाथ नीचे झुका लया।

यु धि र पास पहच
ं चुका था। ोणाचाय ने कहा, ‘‘यु धि र! तुम कभी झूठ नह बोलते।
सच-सच बताओ, या अ व थामा मारा गया?’’

‘‘हां, यह सच है।’’ यु धि र बोले, साथ ही धीरे से फुसफुसाकर यह भी कहा, ‘‘पर यह


एक हाथी का नाम था।’’

ोणाचाय यु धि र का पहला वा य सुनकर ही स रह गए थे। अगला अ प वा य उनके


कान म नह पड़ सका, चूंिक तब तक वे अपना होश गंवा बैठे थे। उ ह लगा िक उनका सब
कु छ लुट चुका है, अब जंदा रहना यथ है। अपने ि य बेटे के िबना जंदा न रहने क क पना
मा से वे सहर उठे ।

भीम ने पास आकर कहा, ‘‘आप तो ज म से ा ण ह, लेिकन आपने ा ण के कम याग


ि य का कम अपनाया है, जो अपनी जाित से ोह है। आपको तो जन-जन म शांित का
सदपु देश देना चािहए, जबिक आप लोग को लड़ने-िभड़ने क िश ा देते ह। आपको आज
अपने कृ य का पूरा-पूरा बदला िमल गया।’’

ोणाचाय पहले ही अपने पु क मृ यु से ममाहत थे। भीम क बात ने उन पर जले पर


नमक का काम िकया। वे बुरी कार ितलिमला उठे । उ ह ने उसी समय अपने सम त ह थयार
नीचे फक िदए। वे रथ पर बैठकर िवचार म खो गए।

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तभी धृ ु न ोणाचाय के रथ पर कू दकर चढ़ा। िकसी के कु छ समझने या आगे बढ़कर
रोकने से पहले धृ ु न ने यान से तलवार िनकाली और ोणाचाय के सर को धड़ से अलग
कर िदया। इस कार उसने अपने िपता ुपद के अपमान का बदला चुका लया।

□□

गु देव ोणाचाय क मृ यु के बाद दयु धन ने कण को सेनापित बनाया।

अजुन के लए यह अवसर चुनौतीपूण था। वह भीम के साथ कण के खलाफ मैदान म उतर


पड़ा।

तभी दःु शासन मौका पाकर भीम के पास पहच


ं ा और बाण क वषा कर दी। भीम तो इसी
मौके क तलाश म था। वह भूला नह था िक दःु शासन ने ही ौपदी को िनव करने क
कु चे ा क थी। भीम क आंख म खून उतर आया और वह बुदबुदाया, ‘‘यही व है बदला
लेने का।’’ उसने तेजी से अपना रथ दःु शासन क ओर बढ़ा िदया और दःु शासन को अपने रथ
से घसीटकर नीचे उतार िदया। िफर उसके हाथ तोड़कर भीम बोला, ‘‘तुमने इ ह हाथ से
ौपदी को बाल से घसीटा था न?’’ इसके साथ ही उसने दःु शासन क छाती म तलवार घुसा
दी। दःु शासन आह भरकर नीचे जा िगरा और उसक छाती से खून बहने लगा। भीम ने खून क
अंज ल दयु धन के मुंह क ओर फकते हए कहा, ‘‘मने दःु शासन का खून पीने क ित ा क
थी, आज पूरी करने का समय आ गया है।’’

यह कहकर उसने दःु शासन क लाश के बहते हए खून को अंज ल से भरा और पी गया।
भीम का यह िवकराल प देखकर दयु धन तो स रह ही गया, बाक लोग भी स ाटे म आ
गए।

भीम के इस कृ य से पल भर के लए कण भी कांपकर रह गया। श य कण के रथ का


सारथी था, वह बोला, ‘‘म देख रहा हं िक आप कांप रहे ह। यह ठीक है िक थित नाजुक है,

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पर आप सेना के अ धनायक ह, आपको इस कार होश नह गंवाना चािहए। खुद को काबू म
क जए, यु क हार-जीत क पूरी ज मेदारी आप पर है।’’

कण होश म आ गया। उसने श य को आदेश िदया िक रथ को अजुन क ओर ले चलो।


श य ने अपने कथन से उसे उ े जत कर िदया था।

अजुन के िनकट पहच


ं ते ही कण ने अपने अ चलाने शु कर िदए। उसने सबसे पहले
नागबाण छोड़ा। बाण तेजी से उड़ता हआ अजुन के सर को धड़ से अलग करने जैसे ही पास
पहच
ं ा, उसी समय ीकृ ण ने अपनी शि से रथ को जमीन म पांच अंगुल नीचे धंसा िदया,
फल व प अजुन का सर कटने से बच गया, पर उसका मुकुट नीचे जा िगरा। इससे अजुन
को तेज गु सा आ गया। चेहरे पर ोध क लाली छा गई, अजुन ने कण क ओर ाणघातक
बाण छोड़ िदया।

कण इस बाण से िवच लत हो गया। तभी उसका रथ क चड़ म जा फंसा। वह रथ को


संभालते हए अजुन से बोला, ‘‘ठहरो, मुझे अपना रथ ठीक करने दो, िफर वार करना। मुझे
तुम पर िव वास है।’’

ीकृ ण बोले, ‘‘इन बात को रहने दो। तुम लोग ने कभी िकसी के िव वास के साथ याय
िकया है? तुम लोग हमेशा अ याय करते रहे हो या भूल गए वह िदन, जब खुलेआम ौपदी
का अपमान हो रहा था, जब पांडव को देश से िनकाल िदया गया और िनह थे अिभम यु का
कई-कई लोग ने िमलकर वध कर डाला। तब कहां था तु हारा याय?’’ इतना कहकर उ ह ने
अजुन को आदेश िदया, ‘‘अजुन! चलाओ अपना तीर और कण को ख म कर डालो।’’

तब तक कण अपने को संभाल चुका था और फुत से एक तीर अजुन पर चला चुका था।


अजुन उसक फूित से हैरान रह गया। कण मौका पाकर रथ से उतरा और पिहए को क चड़
से िनकालने लगा। जब क चड़ से पिहया न िनकल सका तो वह बदहवास हो गया। अब उसने
अजुन पर ा चलाने क सोची, पर इस घबराहट म वह भूल गया िक इसे िकस मं ो चार

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से चलाया जाता है। अजुन इस थित से नाजायज फायदा उठाने को िहचक रहा था, िकंतु
ीकृ ण ने कहा, ‘‘समय मत बरबाद करो, तीर चलाओ।’’

तब अजुन ने गांडीव उठाया और एक ही तीर से कण का सर धड़ से अलग कर िदया।

□□

कण क मृ यु का समाचार सुनने के बाद कौरव म हताशा फैल गई। अ व थामा ने दयु धन


को सुझाव िदया, ‘‘मुझे लगता है िक इस खून-खराबे से कोई लाभ नह होगा। बेहतर यही है
िक अब पांडव से सं ध कर लो। हमारे सारे चोटी के वीर मारे जा चुके ह।’’

‘‘नह ।’’ दयु धन ने एक ही श द म अ व थामा का सुझाव अमा य कर िदया। बोला, ‘‘म


पांडव से कैसे सं ध कर सकता ह,ं ज ह ने हमारे इतने ि य और वीर नेिहय को मौत के घाट
उतार िदया। म मरते दम तक पांडव से लडू ंगा।’’ िफर उसने श य क ओर देखकर कहा,
‘‘आज से हमारी सेना के सेनापित तुम हो।’’

श य अपने अधीन फौज लेकर आगे बढ़ा।

उधर से वयं यु धि र ने श य क सेना के हौसले प त कर िदए। सबका िवचार था िक


यु धि र मन से कोमल है, पर आज उनक शि देखकर सब हैरान रह गए। य श य भी
माना हआ वीर था लेिकन, यु धि र ने आज उसका एक भी दांव नह चलने िदया। यु धि र ने
अपनी शि का ऐसा भ य दशन िकया िक श य के पैर उखड़ गए और वह जमीन पर
च कर खाता हआ धूल म लोट-पोट होकर मारा गया।

भीम ने धृतरा के बचे-खुचे पु को यमलोक पहच


ं ा िदया, पर जब तक दयु धन जीिवत था
तो भीम के जलते दय को शांित कहां थी। वह अंत म दयु धन के पास पहच
ं ा, जो सब कु छ
गंवाकर लुटा-िपटा नजर आ रहा था। उसक सारी आशाएं ितरोिहत हो गई थ । भाइय के
अलावा उसका शुभिचंतक ि य मामा शकु िन भी सहदेव के हाथ मारा जा चुका था।

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दयु धन िचंताम बैठा था िक तभी उसके पास कृपाचाय व अ व थामा पहच
ं े। कौरव क
तरफ सफ यही तीन वीर बचे हए थे। दसरे
ू प म सात वीर जीिवत थे।

दयु धन ने श य क मृ यु के प चात् अ व थामा को सेनापित िनयु करते हए कहा,


‘‘अब तुम पर ही भरोसा है।’’

अ व थामा बोला, ‘‘िचंता मत करो, तुमने मुझे उ रदािय व स पा है, उसका पालन क ं गा
और पांडव का नामो-िनशान िमटाकर ही दम लूग
ं ा।’’

□□

दयु धन को अपने बचने क कोई उ मीद नह थी। इस लए एक िदन उसने अपना गदा उठाया
और एक झील के िकनारे जा पहच
ं ा। मं के बल से पानी म रा ता बनाया और तल म जाकर
िछपकर बैठ गया।

पांडव ने अंततः उसे खोज लया।

यु धि र ने कहा, ‘‘तु ह शम नह आई पानी म िछपते हए। बोलो, अपने वंश को समा


करके तु ह या िमला?’’

दयु धन बोला, ‘‘म िछपने के लए यहां नह बैठा ह।ं यह मत भूलो िक मेरा शरीर अब तक
बदले क आग से द ध हो रहा है, म तो यहां ठं डक पाने को बैठा ह।ं तुम लोग ने मेरे सभी
आ मीय - वजन को मार डाला। अब म िकसके लए लडू ं या जीऊं? मुझे राज-पाट नह
चािहए। सब कु छ तुम लोग ले लो। उफ! इसी रा य को पाने के लए तुम लोग ने इतना
नरसंहार िकया।’’

‘‘वाह! आज तो तुम बड़े दयालु बन रहे हो।’’ यु धि र बोले, ‘‘ या तुम भूल गए िक तु ह


ने सुई क नोक के बराबर भी भूिम देने से इनकार कर िदया था।’’

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दयु धन पानी के तल से बाहर िनकल आया। उसके हाथ म अपना ि य अ गदा था।
बोला, ‘‘म अकेला ह।ं अगर तुम लोग मुझसे लड़ने ही आए हो तो म एक-एक से अकेला
लडू ंगा। एक साथ मुझ पर आ मण करना अ याय होगा। देख रहे हो िक म िनह था और
अकेला ह।ं ’’

‘‘आज तु ह याय और अ याय क याद आ रही है।’’ यु धि र बोले, ‘‘ या तुम भूल गए


िक कैसे एक िनह थे और अकेले बालक अिभम यु को तुम लोग ने मार डाला। तुम लोग ने
उस अकेले पर भेिड़ए क कार आ मण िकया था। खैर, हम ऐसा नह करगे। तुम हमम से
जससे लड़ना चाहो, चुनाव कर लो। अगर तुम मारे गए तो सीधे वग जाओगे, जंदा रहे तो
राज-पाट तु ह स प िदया जाएगा।’’

ीकृ ण को यु धि र क बात म कोई तुक नजर नह आई। दयु धन के लए तो भीम ही


उपयु था। इस लए वे भीम से ज दी से बोले, ‘‘भीम! तैयार हो जाओ, तुमने दयु धन के वध
का ण िकया है।’’

भीम गदा लेकर दयु धन के सामने जाकर खड़ा हो गया। दोन गदा चलाने म िनपुण थे,
इस लए उनक गदा एक-दसरे
ू से टकरा गई। वार-पर-वार होने लगे, भीम दयु धन के वार बचा
लेता तो दयु धन भीम के। जैसे ही उनक गदाएं हवा म टकरात भयंकर िचंगारी फूट पड़त ।

काफ देर तक संघष चलता रहा तो ीकृ ण समझ गए िक हार-जीत का फैसला मु कल


है। तभी ीकृ ण को याद आया िक भीम ने दयु धन क जांघ तोड़ने क ित ा क थी।
हालांिक यु म शरीर के िनचले िह स पर गदा से वार करना िनयम िव था, िफर भी
ीकृ ण बोले, ‘‘अरे ! भीम ने तो दयु धन क जांघ तोड़ने क ित ा क थी, या वह अपनी
ित ा भूल गया।’’ साथ ही उ ह ने भीम को जांघ पर वार करने का इशारा िकया।

भीम को सब कु छ याद आ गया िक कैसे दयु धन ने ौपदी को जांघ पर बैठने का अ लील


संकेत िकया था और कैसे ोध म आकर उसने दयु धन क जांघ तोड़ने क ित ा क थी।

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बस, भीम नीचे झुका और गदा का भरपूर वार दयु धन क जांघ पर कर िदया। दयु धन
लड़खड़ाकर नीचे िगर पड़ा। भीम ने गदा के एक ही वार से दयु धन के सर को चकनाचूर कर
िदया।

यु धि र बोले, ‘‘बस करो, भीम! तु हारी ित ा पूरी हई।’’

□□

उसी रात अ व थामा ने पांडव के िशिवर म जाकर तबाही मचा डाली। न सफ उसने ौपदी
के पांच पु को सोते हए मार डाला, ब क पांडव क बची-खुची सेना को भी सोए-सोए ही
मार डाला। इस नरसंहार म कृपाचाय व कृतवमा ने भी उसका सहयोग िकया, हालांिक
कृपाचाय इस नरसंहार के खलाफ थे। इसक सूचना मरणो मुख दयु धन को देकर तीन लु
हो गए। दयु धन यह संवाद पाकर मर गया।

पांडव को नरसंहार का पता चला तो अ व थामा क खोज म िनकल पड़े। यु धि र बोले,


‘‘इस कांड से तो हम जीतकर भी हार गए।’’

अ व थामा गंगा के िकनारे यासा म म िछपा हआ था। भीमसेन ने उसे देखते ही ललकारा।
दोन म घोर सं ाम िछड़ गया। िफर अ व थामा अपनी पराजय वीकार करके जंगल क ओर
िनकल गया।

□□

इस यु का प रणाम यह हआ िक सारा ह तनापुर मद ं से खाली हो गया। वहां सफ औरत


और ब चे रह गए थे, जनके क ण िवलाप से वातावरण गूज
ं रहा था।

जबिक यु भूिम म कु े, सयार और िग लाश को नोच-नोचकर खा रहे थे।

यु समा हो गया।

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पांडव ह तनापुर आ गए। यु धि र सोच रहे थे िक इस ददनाक जीत के बाद महाराज
धृतरा को कैसे मुंह िदखाएं? गांधारी से कैसे िमल? वे अपने सौ पु को खोकर या पांडव
को सहज ही मा कर दगे?

जब पांडव राजदरबार म पहच


ं े तो धृतरा ने कहा, ‘‘भीम कहां है? उसे मेरे पास भेजो। म
उसका वागत करना चाहता ह।ं ’’

ीकृ ण पास खड़े थे। वे धृतरा के मनोभाव को समझ रहे थे। भीम ने ही उनके ि य पु
दयु धन का वध िकया था, जसे धृतरा कभी भी भुला नह सकते थे। इस लए ीकृ ण ने भीम
क जगह एक लौह ितमा धृतरा के सामने खड़ी कर दी।

धृतरा ने उसे इस कार आ लंगन म भर लया, जैसे नेहा ध य से िवच लत हो गए ह ।


उ ह ने लौह- ितमा पूरी शि से अपनी छाती से लगा ली। इसका नतीजा यह हआ िक ितमा
टु कड़े-टु कड़े होकर धरती पर जा िगरी। धृतरा अ यंत अफसोस के साथ बोले, ‘‘अरे -अरे ,
भीम को या हो गया? शायद मने भावावेश म तु ह यादा ही दबा िदया। तु ह कोई क तो
नह पहच
ं ा?’’

ीकृ ण धृतरा के नाटक से ु ध हए, लेिकन धीरे से बोले, ‘‘आपने भीम को नह , ब क


लोहे क ितमा को दबाया था। आशा है िक आपके बदले का उबाल कम हो गया होगा।’’

धृतरा मन-ही-मन शिमदा हए। थित संभालते हए बोले, ‘‘मुझे खुशी है िक भीम का
अिहत नह हआ। ीकृ ण! सच तो यह है िक मेरे शोक ने मुझे पागल बना िदया था। मुझे
खुशी है िक तु हारे कौशल से भीम क जान बच गई।’’

वे अपनी शिमदगी और शोक को दरू करने के लए पांडव के साथ भिव य क योजनाओं


के बारे म बात करने लगे।

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िकंतु गांधारी! वह तो माता थी। वह भला अपना शोक कैसे सहज भुला सकती थी। वह
ीकृ ण को देखकर सुबकती हई बोली, ‘‘अब तो तु ह शांित िमल गई ना हमारा िवनाश
करके। तु हारी चालािकय के कारण ही हमारा वंश बरबाद हो गया। तुमने जो अपराध िकया
है, उसक कोई सजा नह ।’’

‘‘ऐसा मत किहए।’’ ीकृ ण बोले, ‘‘यह तो कम ं का फल है। आपके बेट ने जैसा कम


िकया, उसका फल भोगा। उ ह अपने पाप क सजा िमल गई। आप शोक मत क जए, वे
वग म ही गए ह।’’

एक मास का शोक मनाने के लए पांडव ह तनापुर से बाहर एक नगर म चले गए। उ ह ने


नदी के िकनारे अपना डेरा डाला। उनके साथ धृतरा , िवदरु और संजय के अलावा महल क
सम त रािनयां भी थ ।

नदी के िकनारे रहकर उ ह ने िव धवत शोक मनाया और यु के िबछड़े हए आ मीय -


वजन क आ माओं क शांित के लए पूजा-पाठ िकया।

एक िदन उनके पास नारद एवं महिष यास के अलावा अनेक ऋिष-मुिन िमलने आए।

नारद मुिन यु धि र से बोले, ‘‘तुमने इतना बड़ा यु जीता, चार ओर तु हारा नाम फैल
गया, तुम खुश हो न इस िवजय से? अब तो कोई शोक नह रहा?’’

यु धि र कु छ सोचकर बोले, ‘‘कैसी िवजय मुिनवर! मने तो कु छ नह िकया, इस सारी


सफलता का य
े ीकृ ण को है। इसके अलावा अजुन और भीम क वीरता से ही सब कु छ
संभव हो सका। जहां तक मेरा सवाल है, म तो अपनी जंदगी का उ े य ही हार गया। दे खए
न, ौपदी के सारे पु मारे गए। सुभ ा का इकलौता बेटा अिभम यु भी नह रहा। दसरी
ू ओर
हमारे सारे वजन भी नह रहे। भला म उन माता-िपता से कैसे आंख िमला सकता ह,ं जनके
पु क मौत क ज मेदारी मुझ पर है। इसके अलावा एक और बात ने मुझे बहत क
पहच
ं ाया है। मुझे थोड़ी देर पहले तक मालूम नह था िक कण भी कुं ती का बेटा है, हमारा भाई

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है। म तो समझता था िक वह सारथी-पु है। अपने ही भाई को मारकर रा य ा करने क
लालसा करके मने भयंकर भूल क थी। उफ! यह िकतना भयावह पाप है! मुझे तो उसी समय
समझ जाना चािहए था, जब माता कुं ती पहली बार उसे देखकर अपना होश गंवा बैठी थी, पर
वह बेमौत मारा गया। मुझे अब भी समझ म नह आ रहा िक अचानक यु भूिम म उसका रथ
क चड़ म य धंस गया? यही नह , या कारण था िक वह ा चलाना भूल गया? आप
तो यह सब जानते ह गे। आप ही बताइए िक कण के दभु ा य का या कारण था?’’

नारद ने जवाब िदया, ‘‘सुनो यु धि र! म तु ह शु से बताता ह।ं ा भूलने का


एकमा कारण यही है िक वह ि य होकर ा ण के भेष म परशुराम से यु -िव ा सीखने
गया था। जहां तक रथ के क चड़ म फंस जाने क बात है। इसका कारण है िक एक बार उसने
भूल से िकसी क गाय मार दी थी, जसक थी तो उसने कण को शाप िदया था िक किठन
प र थितय म तु हारा रथ धरती म धंस जाएगा। इसका शोक मत करो। यह सब तो ार ध
था।’’

यु धि र ने संतोष क सांस ली, िफर अजुन क ओर देखकर बोले, ‘‘हमारे श ु तथा िम


मरकर वग चले गए, जबिक हम यहां नरक म जीने को िववश ह। शोक व दःु ख के अलावा
हम कु छ नह िमला। यह मत कहना िक यही ि य-धम है, दख
ु ी होने क ज रत नह । मुझे
इस जीत से जरा भी खुशी नह । अजुन! आज से राजपाट तुम संभालो, म तो जंगल म जाकर
तप क ं गा, मेरा दय उचाट हो चुका है।’’

अजुन बोला, ‘‘इतना खून बहाकर और वीर क ब ल चढ़ाकर अब तुम जंगल म जाकर
तप करना चाहते हो, यह नह होगा। यह राजपाट तु ह संभालना है। यह तु हारा कत य है िक
राजा बनकर जा क भलाई के काम करो, यही ि य धम है।’’

यु धि र ने िफर भी अपनी जंगल म जाने क इ छा दोहराई।

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भीम ने कहा, ‘‘भैया! यादा मत सोचो, इस समय तु हारे िदमाग म शोक छाया हआ है।
धीरे -धीरे सब ठीक हो जाएगा। श ुओं का नाश करना तो हम ि य का परम कत य है,
इसम दख
ु ी होने क या ज रत?’’

सबका यही िवचार था िक यु धि र शोक भूलकर अपने ि य-धम का पालन कर।

अंत म महिष यास ने कहा, ‘‘तु ह िन चत प से राजा बनकर राजपाट संभालना चािहए।
यही एकमा रा ता है तु हारे लए। राजा बनकर ि य धम का पालन करो और िनरथक
िवचार से अपने िदमाग को मत थकाओ। इसके अलावा और कोई चारा नह , खुशी-खुशी राज
करो।’’

जब इस बार भी यु धि र ने टाल-मटोल क तो ीकृ ण ने बुरा मानकर कहा, ‘‘इतना


शोक भी िकस काम का? भूल जाओ सब कु छ। कम-से-कम उन लोग के ब लदान के बारे म
तो सोचो, ज ह ने तु ह िवजय िदलवाई है। तु ह रा य-भार संभालना ही पड़ेगा।’’

कु छ देर तक सोचने के बाद अचानक यु धि र बोले, ‘‘हे कृ ण! अब म ठीक हं मुझे


आपका आदेश वीकार है।’’

यु धि र ने राजा बनना वीकार कर लया तो िव धवत् उ ह ह तनापुर का राजा बना िदया


गया।

सारे नगर म इस समाचार से हष क लहर दौड़ गई।

महल म रा य संहासन पर बैठते हए यु धि र ने घोषणा क , ‘‘महाराज धृतरा हमेशा इस


देश के सरपर त रहगे। अगर आप लोग मुझे खुश देखना चाहते ह तो महाराज धृतरा के
ित पहले वाला स मान और आ ाका रता बरकरार रख। हम बस महाराज धृतरा क सेवा
म ह।’’

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इसके साथ यु धि र ने भीम को युवराज और अपना उ रा धकारी घोिषत कर िदया। िवदरु
को मुख परामशदाता िनयु िकया गया, यु और र ा आिद का भारी भी उ ह स पा गया।
संजय के ज मे िव िवभाग िकया गया। सभी को यथोिचत पद स प िदए गए।

कौरव क सेना से जो युय ु सु नामक सैिनक पांडव क सेना म आ िमला था, वह जीिवत
था। यु धि र ने युय ु सु को धृतरा क देखभाल म लगा िदया। कृपाचाय भी धृतरा के पास
ही रहने लगा।

अनेक वष यतीत हो गए।

एक िदन ीकृ ण को अपने ही िवचार म खोया देखकर यु धि र ने पूछा, ‘‘ या बात है,


िकन िवचार म खोए ह?’’

ीकृ ण बोले, ‘‘मुझे लगता है, उ रायण के आते ही भी म अपनी जान दे दगे। वे ान के
िवराट सागर ह। उनक मृ यु से पहले तुम उनसे िमल लो और ान ा कर लो।’’

यु धि र को आ चय हआ िक इतने वष ं के बाद भी भला वे कैसे जीिवत िमलगे, िकंतु


ीकृ ण ने यु धि र को अपने पीछे आने का आदेश िदया और भी म से मुलाकात करा दी।

भी म शर-श या पर लेटे आ खरी सांस ले रहे थे। उ ह ने बड़े नेह से ीकृ ण व यु धि र


का वागत िकया। िफर वे बोले, ‘‘मने कहा था ना िक अवसर आने पर म तु ह उपदेश दग
ं ू ा।
सुनो, वह अवसर आज आ गया।’’ इसके बाद उ ह ने सदपु देश िदए और राजा के कत य के
बारे म मागदशन िकया। िफर भी म िपतामह ने आ खरी सांस ली और हमेशा के लए आंख
मूंद ल ।

यु धि र ने बाण क श या से उनका शरीर उठाया और िव धवत् अंितम सं कार िकया।


यु धि र ने गंगा के िकनारे जाकर भी म के शरीर को पिव नदी के हवाले कर िदया।

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यु धि र ने कु ल छ ीस वष तक रा य िकया।

एक िदन धृतरा ने यु धि र से कहा, ‘‘बेटे! अब मुझे मु कर दो। म गांधारी एवं पांडु-


प नी कुं ती के साथ जंगल म जाकर एकांत म रहना चाहता ह।ं ’’

यु धि र ने धृतरा क इ छा का अ रशः पालन िकया। पूरे इंतजाम के साथ धृतरा ,


गांधारी व माता कुं ती को वन म भेज िदया। बीच-बीच म वे खुद वन म जाकर उनका कु शल-
ेम पूछते।

एक िदन उस वन म आग लग गई। उसी आग म धृतरा , गांधारी एवं कुं ती भ म हो गए।

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उधर ीकृ ण के सम त यदवु श


ं ी आपस म लड़-लड़कर िवन हो गए। ीकृ ण ने भी धरा-
धाम को छोड़ देने का फैसला कर लया। एक िदन वे नदी के िकनारे गहरे सोच-िवचार म डू बे
रे त पर लेटे हए िव ाम कर रहे थे िक दरू से एक िशकारी ने उनके पैर को िचिड़या समझकर
तीर चला िदया। इस कार िव णु के आठव अवतार के प म उनका काल समा हो गया
और वे अंतधान हो गए।

ीकृ ण के अंतधान होने से यदवु श


ं ी एकदम टू ट गए और ा रका को समु के हवाले करके
खुद भी डू ब गए।

पांडव ने िनणय कर लया िक इस असार संसार को याग देना चािहए, इस लए वे


िहमालय-या ा पर िनकल गए। वह महा थान के पथ पर एक-एक करके पांच भाइय व
ौपदी ने मृ यु का वरण कर लया।

यु धि र मरणोपरांत अपने शरीर सिहत वग पहच


ं गए। वग म उ ह सभी मृत संबध
ं ी िमल
गए।

महाभारत के यु म अंत म कोई भी जीिवत नह बचा।

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हां, अिभम यु का पु परीि त एकमा जीिवत रह गया था। जब वह बड़ा हआ तो
ह तनापुर का स ाट बनकर उसने पांडव के वंश को आगे बढ़ाया।

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