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आचार्य प्रशांत संग संत सरिता

समझ दे ख मन मीत पियरवा

समझ दे ख मन मीत पियरवा, आशिक हो कर सोना क्या रे ?


पाया हो तो दें ले प्यारे , पाय पाय फिर खोना क्या रे ?
समझ दे ख…

रूखा सूखा गम का टुकड़ा, चिकना और सलोना क्या रे ?


समझ दे ख…

जब अं खियन में नींद घने री, तकिया और बिछौना क्या रे ?


समझ दे ख…

कहे कबीर प्रे म का मारग, सिर दे ना तो रोना क्या रे ?


समझ दे ख…

~संत कबीर दास


तोहि मोहि लगन लगाय रे फकीरवा

तोहि मोहि लगन लगाय रे फकीरवा

सोबत ही मैं अपने मं दिर में


सबद बान मारि, जगाये फकीरवा।

डू बत ही भव के सागर में
बहियां पकरि समुझाये रे फकीरवा।

एकै बचन बचन नहिं दूजा


तुम मोसे बं द छु ड़ाये रे फकीरवा।

कहे कबीर सुनो भाई साधो


प्राणन प्राण लगाये रे फकीरवा।

~संत कबीर दास


जिस तन लगिआ इश्क कमाल

जिस तन लगिआ इश्क कमाल, नाचे बे सरु ते बे ताल

दरदमन्द नूं कोई न छे ड़े , जिसने आपे दुःख सहे ड़े,


जम्मणा जीणा मूल उखे ड़े, बूझे अपणा आप खिआल ।
जिस तन…

जिसने बे स इश्क दा कीता, घुर दरबारों फतवा लीता,


जाद्दों हजूरों प्याला पीता, कु छ ना रहा सवाल जवाब ।
जिस तन…

जिसदे अन्दर वस्स्या यार, उठिया यार ओ यार पुकार,


ना ओह चाहे राग न तार, ऐवें बै ठा खे डे हाल।
जिस तन…

बुल्लाह शाह नगर सच पाया, झूठा रौला सब्ब मुकाया,


सच्चियां कारण सच्च सुणाया, पाया उसदा पाक जमाल।
जिस तन…

~बाबा बुल्ले शाह


कबीर साहब के दोहे

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पै ठ।


मैं बौरा डु बन डरा, रहा किनारे बै ठ ।।

लूट सके तो लूट ले , राम नाम की लूट ।


पाछे फिर पछताओगे , प्राण जाहिं जब छू ट ।।

यह तो घर है प्रे म का खाला का घर नाही।


सीश उतारे भूईं धरे , तब बै ठे घर माही ।।

प्रे म प्याला सो पिए, सीस दक्षिणा दे ।


लोभी सीस न दे सके, नाम प्रे म का ले ।।

प्रे म प्रे म सब कोई कहे , प्रे म न जाने कोय।


जा मार्ग साहे ब मिले , प्रे म कहावे सोय ।।
जा घट प्रे म न सं च रे , वा घट जान मसान।
जै से खाल लौहार की सां स ले त बिन प्राण ।।

राम बलावा भे जिया, दिया कबीरा रोये ।


जो सुख साधु सं ग में , सो बै कं ु ठ न होए ।।

गुरु को मानुष जानते , ते नार कहिए अन्ध।


होय दुखी सं सार मे , आगे जम की फन्द ।।

कबीरा ते नर अं ध हैं ,गुरु को कहते और।


हरि रूठे गुरु ठौर है ,गुरु रूठे नहीं ठौर ।।

सतगुरु मिले तो सब मिले , न तो मिला न कोई।


मात पिता सूत बां धवा, ये तो घर घर होए ।।

हर मरे तो हम मरे , और हमरी मरे बलाए।


साचे गुरु का बालका, मरे ना मारा जाए ।।
यह तन विष की बे लरी, गुरू अमृत की खान।
शीश दिए जो गुरु मिले , तो भी सस्ता जान ।।

सब धरती काजग करू, ले खनी सब वनराज ।


सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।।

गुरु कु म्हार शिष्य कुं भ है , गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट।


अं तर हाथ सहार दे , बाहर मारे चोट ।।

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