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ु ान-रसखान
रसखान
भक्ति-भावना
सवैया
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं ननत नंद की धेनु माँझारन।
मसद्गध समद्
ृ गध सबै रसखानन नहौं ब्रज रे नुका-संग-साँवारन।
बैन वही उनको गुन गाइ औ कान वही उन बैन सों सानी।
दोहा
कृष्ण का अलौकककत्व
सवैया
नारद से सक
ु ब्र्यास रहैं पगच हारे तऊ पनु न पार न पावैं।
कववत्ि
तातें न महान और दस
ू र अवरे ख्र्यौ मैं।
जसध
ु ा के आगे बसध
ु ा के मान-मौचन से,
अनन्यभाव
सवैया
तातें नतन्हैं तजज जानन गगरर्यौ गुन सौगुन गााँहठ परै गो।
कववत्ि
कहा रसखानन सख
ु संपवि समार कहा,
सवैया
कररर्यै ब्रत नेम सचाई मलर्ये जजन तें तररर्यै मन-सागर मैं।
रसखानन गबु बंदहहं र्यौ भजजर्यै जजमम नागरर को गचत गागर मैं।।24।।
हाथ न ऐसे कछू रसखान तू तर्यों बहकै ववष पीवत काम में ।
मिलन
सवैया
श्री वष
ृ भानुसुता दल
ु ही हदन जोरर बनी बबधना सख
ु कंदन।
जेठ की घाम भई सख
ु घाम आनंद हौ अंग ही अंग समाहीं।
लाड़ली लाल लसैं लखख वै अमल कंु जनन पुंजनन मैं छबब गाढी।
बाल-लीला
सवैया
वाकौ जजर्यौ जुग लाख करोर जसोमनत को सुख जात कह्र्यौ नहहं।
धूरर भरे अनत शोमभत श्र्यामजू तैसी बनी मसर सुंदर चोटी।
रूप-िाधुरी
सवैया
कववत्ि
रस बरसावै तन तपनन बझ
ु ावै नैन,
सवैया
तैं न लख्र्यौ जब कंु जनन तें बननकै ननकस्र्यौ भटतर्यौ मटतर्यौ री।
हहर्य मैं जजर्य मैं मुसकानन रसी गनत को मसखवै ननरवारन की।।39।।
सुंदर रामस सध
ु ाननगध सो मख
ु मूरनत रं ग सुधारस-सानी।
झुकक झमू म झमाकनन चूमम अमी चरर चााँदनी चंद चुराइ रहा।
सााँझ समै जजहह दे खनत ही नतहह पेखन कौं मन मौं ललकै री।
गोधन धूरर की धूंधरर मैं नतनकी छबब र्यौं रसखानन तकै री।
तीछें ननटारर लखौ रसखानन मसंगार करौ ककन कोऊ कछू पर।
दोहा
प्रेिलीला
कववत्ि
कदम करीर तरर पूछनन अधीर गोपी
दे खत ही रसखानन नेननन चभ
ु ेरौं सो।
मक
ु ु ट झक
ु ोहों हास हहर्यरा हरौहों कहट,
सवैया
िूहट गर्यौ मसर तैं दगध भाजन टूहटगौ नैनन लाज को नातो।।54।।
मोद भर्यौ लपटाइ लर्यौ पट घूाँघट ढारर दर्यौ गचत चाइ कै।
कैसे ननभै कुल-कानन रही हहर्ये सााँवरी मूरनत की छबब छाइ कै।।55।।
सागर कों समलला जजमम धावे न रोकी रुकै कुलको पुल टुट्र्यौ।
गाइ सुहाइ न र्या पैं कहूाँ न कहूाँ, र्यह मेरी गरी ननकर्यौ है ।
सोरठा
बंकबबलोचन
सवैया
ग्रह काज समाज सबै कुल लाज लला ब्रजराज को तोरत है ।।67।।
मोहन सुंदर आनन चंद तें कंु जनन दे ख्र्यौ में स्र्याम मसरोमन।
ता हदन तें मेरे नैननन लाज तजी कुलकानन की डोलत हौं बन।
कैसी करौं रसखानन लगी जक री पकरी वपर्य के हहत को पन।।72।।
िुस्कानिाधुरी
सवैया
दस
ू री ओर तें नेकु गचतै इन नैनन नेम गह्र्यौ बजमारी।
घमत बारुनी पान ककर्यें जजमम झूमत आनन रूप ढरै हैं।
कववत्ि
अब ही खररक गई, गाइ के दह
ु ाइबे कौं,
दे खी मस
ु कानन वा अहीर रसखानन की।।77।।
सवैया
दोहा
गचतर्यौ मद
ृ ु मुस्काइ कै, हरी सबै सुगध दे ह।।82।।
कृष्णसौंदयय
दोहा
सवैया
कोऊ न काहू की कानन करै मसगरौ ब्रज वीर! बबकाइ गर्यौ है ।।85।।
डारर ठगौरी गर्यौ गचत चोरर मलए है सबैं सुख सोखख सरीर के।
जाको लसै मख
ु चंद-समान सु कोमल अाँगनन रूप-लपेटी।
मकराकृत कंु डल गज
ुं की माल के लाल लसै पग पााँवररर्या।
रूपप्रभाव
सवैया
जजर्य की नहहं जानत हौं सजनी रजनी अाँसुवान लड़ी ही रहै ।।91।।
मैन मनोहर ही दख
ु दं दन है सख
ु कंदन नंद को नंदा।
सनु न री! वपर्य मोहन की बनतर्यााँ अनत दीठ भर्यौ नहहं कानन करै ।
ननकसी मनत नागरर डौंड़ी बजी ब्रज मंडल मैं र्यह कौन भरै ।
अब रूप की रौर परी रसखानन रहै नतर्य कौऊ न मााँझ धरै ।।94।।
रं ग भर्यौ मुसकान लला ननकस्र्यौ कल कंु जन ते सख
ु दाई।
खंजन नैन िाँदे वपंजरा छबब नाहहं रहैं गथर कैसे हुं भाई।
कैसी करौं ककत जाऊाँ अली सब बोमल उठैं र्यह बावरी आई।।96।।
कंु जलीला
सवैया
कंु जगली मैं अली ननकसी तहााँ सााँकरे ढोटा ककर्यौ भटभेरो।
डोरर मलर्यौ दृग चोरर मलर्यौ गचत डार्यौ है प्रेम को िंद घनेरो।
सोरठा
नटखटकृष्
ण
कववि
अंत ते न आर्यौ र्याही गााँवरे को जार्यौ,
र्यहै दख
ु भारी गहै डगर हमारी मााँझ,
सवैया
आवत ही हौं कहााँ लौं कहीं कोउ कैसे सहै अनत की अगधकाई।।
पाले परी मैं अकेली लली, लला लाज मलर्यो सु ककर्यौ मनभार्यौ।।101।
हााँसीं में हार हट्र्यौ रसखानन जु जौं कहूाँ नेकु तगा टुहट जै हैं।
एकहह मोती के मोल लला मसगरे ब्रज हाटहह हाट बबकै हैं।।105।।
िुरलीप्रभाव
कववत्ि
दध
ू दह्
ु र्यौ सीरो पर्यौ तातो न जमार्यौ कर्यौ,
जल की न घट भरैं मग की न पग धरैं,
सवैया
डोरर मलर्यौ मन मोरर मलर्यो गचत जोह मलर्यौ हहत तोरर कै कानन।
वा हदन तें मोहह लागी ठगौरी सी लोग कहैं कोई बाबरी आई।।
जौं कोउ चाहै भलौ अपने तौ सनेह न काहू सों कीजजर्यौ माई।।112।।
बंसी बजावत आनन कढौ सो गली मैं अली! कछु टोना सौ डारे ।
ताही घरी सों परी धरी सेज पै प्र्यारी न बोलनत प्रानहूं वारे ।
वहह बााँसुरी की धुनन कान परे कुलकानन हहर्यो तजज भाजनत है ।।115।।
काजहह भटू मुरली-धुनन में रसखानन मलर्यौ कहुं नाम हमारौ।
ननसद्र्यौस रहे संग साथ लगी र्यह सौनतन तापन तर्यौं सहहहै ।।
मममल आऔ सबै सखख! भागग चलै अब तौ ब्रज में बसरु ी रहहहै ।।118।।
कामलयदिन
कववत्ि
सवैया
छोहरा आजु नर्यो जनम्र्यौ तुम सो कोऊ भाग भरर्यौ नहहं भू पर।
चीरहरण
सवैया
न्हाइ जबै ननकसी बननता चहुाँ ओर गचतै गचत रोष करो री।
प्रेिासक्ति
सवैया
दध
ू वही जु दह
ु ार्यौ री वाही दही सु सही जु वही ढरकार्यौ।=
भूमम भर्यौ न हहर्यो मेरी आली जहााँ हरर खेलत काछनी काछै ।।126।।
ता हदन तें नहहं धीर रखौ जग जानन लर्यौ अनत कीनौ पाँवारो।।
दे खख हौं आाँखखन सों वपर्य कों अरु कानन सों उन बैन को प्र्यारी।
त्र्यौं रसखानन हहर्ये मैं धरौं वहह सााँवरी मूरनत मैन उजारी।
गााँव भरौ कोउ नााँव धरौं पुनन सााँवरी हों बननहों सुकुमारी।।130।।
मोर पखा धरे चाररक चारु बबराजत कोहट अमेठनन िैं टो।
कंु जनन कंु जनन गुंज के पुंजनन मंजु लतानन सौं माल बनैबो।
मालती मजहलका कंु द सौं गहूं द हरा हरर के हहर्यरा पहहरै बौ।
आली कबै इन भावने भाइन आपुन रीखझ कै प्र्यारे ररझैबो।
उनहीं की सुनै न औ बैन त्र्यौं सैंन सों चैन अनेकन ठानी रहैं।
प्रेिबंधन
सवैया
प्रीनत की रीनत में लाज कहा सखख है सब सों बड़ नेह को नातो।।136।।
सवैया
धावत हैं उतहीं जजत मोहन रोके रुके नहहं घूाँघट रोना।
काननन कौं कल नाहहं परै सखी प्रेम सों भीजे सुनैं बबन नैना।
श्री वस
ृ भान की छान धज
ु ा अटकी लरकान तें आन लई री।
चूमें हदवानी अमानी चकोर सों ओर सों दोऊ चलैं दृग बाने।।140।।
कववत्ि
छूट्र्यौ गह
ृ काज लोक लाज मन मोहहनी को,
सवैया
आाँख सों आाँख लड़ी जबहीं तब सों र्ये रहैं अाँसुधा रं ग भीनी।
नंद को नंदन है दख
ु कंदन प्रेम के िंदन बााँगध लई हों।
दौरी किरौं दृग डोरन मैं हहर्य मैं अनुराग की बेमल बई हौं।।143।।
तीरथ भीर में भमू ल परी अली छूट गइ नेकु धार्य की बााँही।
ननत सास की सीखै उन्मात बनै हदन ही हदन माइ की कांनत नसै।
ब्रज मोहन गोहन लागग भटू हौं लूट भई लूट सी लाख लहौं।
रसखान लला ललचाइ रहे गनत आपनी हौं कहह कासों कहौं।
जजर्य आवत र्यों अबतों सब भााँनत ननसंक ह्वै अंक लगार्य रहौं।।147।।
भावती औ अनभावती भीर मैं छवै न गर्यौ कबहूाँ अंग सों अंग।
घैरु करैं घरुहाई सबै रसखानन सौं मो सौं कहा कहा न भर्यो रं ग।।149।।
लखख मेररर्यै ओर ररसाहहं सबैं सतराहहं जौं सौं हैं अनेक करौं।
रसखानन तो काज सबैं ब्रज तौ मेरौ बेरी भर्यौ कहह कासों लरौं।
बबनु दे खे न तर्यों हूाँ ननमेषै लगैं तेरे लेखें न हू र्या परे खें मरौं।।150।।
दोहा
सवैया
तूाँ न कहै न कहैं तौं कहौं हौं कहूाँ न कहााँ तेरे पााँर्य परौंगी।
प्र्यारी पै जाइ ककतौ परर पाइ पची समझाइ सखी की सौं बेना।
ताकों लग्र्यौ चट, चौहट सों दरु र औचक गात सों गात छबार्यौ।
कान परे मद
ृ ु बैन मरु करर मौन रहौ पल आगधक साधे।
पार्य दह
ु ू ननन प्राननन प्रान सों लाज दबै गचतर्ये दृग आने।
नंद के लाडड़ले ढााँकक दै सीस इहा हमरो बरु हाथ भर्यौ है ।।159।।
उहह अंजन आाँखखन आाँज्र्यौ भटू इत कंु कुम आड़ मललार दई।।161।।
बात सन
ु ी न कहूाँ हरर की न कहूाँ हरर सों मख
ु बोल हाँसी है ।
बैररनन वाहह भई मस
ु कानन जु वा रसखानन के प्रान बसी है ।।162।।
ग्वामलन द्वैक भज
ु ान गहैं रसखानन कौं लाईं जसोमनत पाहैं।|
अंग ही अंग ज्र्यौं ज्र्यौं ही लगैं त्र्यौं त्र्यौं ही न अंग ही अंग समाहैं।
दरू तें आई दरु े हीं हदखाइ अटा चहढ जाइ गह्र्यौ तहााँ आरौ।
रसखानन कहै र्यहह बीच अचानक जाइ मसढी चहढ खास पुकारो।
रूखख गई सक
ु ु वार हहर्यो हनन सैन पटू कह्र्यौ स्र्याम मसधारौ।।164।।
दोहा
प्रेि-वेदन
सवैया
भई बावरी ढूाँढनत वाहह नतर्या अरी लाल ही लाल भर्यौ कहा तेरो।
डररर्यैं कहै मार्य हमारौ बुरी हहर्य नेकु न सुनो सहै नछन मेरो।
डोमलबो कंु जनन कंु जनन को अरु बेनु बजाइबौ धेनु चरै बो।
भल
ू त तर्यों करर नेहन ही को 'दही' कररबो मस
ु काई गचतैबो।।171।।
सोरठा
एरी चतरु सज
ु ान भर्यौ अजान हह जान कै।
पूरब पुन्र्यनन तें गचतई जजन र्ये अाँखखर्यााँ मुसकानन भरी जू।
कोऊ रहीं पुतरी सी खरी कोऊ घाट डरी कोऊ बाट परी जू।।
अनत लोक की लाज समूह में छौंरर के राखख थकी वह संकट सों।
अमल कोहट ककर्यो हटकी न रही अटकी अाँमलर्या लटकी औचट सों।।178।।
रासलीला
कववत्ि
नटखट नवल सध
ु र नंदनंदन ने,
सवैया
नैननन सैननन बैननन सों नहहं कोऊ मनोहर भाव बच्र्यौ री।।
जद्र्यवप राखन कौं कुल कानन सबै ब्रज-बालन प्रान पच्र्यौ री।
ऐसी अचेत गगरी नहहं चेत उपार्य करे मसगरी सजनी जन।
बोली सर्यानी सखख रसखानन बचै र्यौं सुनाइ कह्र्यौ जुवती गन।
फाग-लीला
सवैया
त्र्यौं त्र्यौं छबीलो छकै छबब छाक सों हे रै हाँसे न टरै खरौ भीजै।।186।।
खेलत िाग सह
ु ागभरी अनरु ागहहं लालन कौं झरर कै।
गेरत लाल गल
ु ाल लली मन मोहहनी मौज ममटा करर कै।
कववत्ि
बत
ु का औ गल
ु ाल लाल लाल बरसाइगौ।
सवैया
सारी िटी सक
ु ु मारी हटी अंगगर्या दर की सरकी रगभीनी।
लीने अबीर भरे वपचका रसखानन खरौ बहु भार्य भरौ जू।
परू ब पन्
ु र्यनन हाथ पर्यौ तम
ु राज करौ उहठ काज करौ ज।ू
ताहह सरौ लखख लाज जरौ इहह पाख पनतव्रत ताख धरौ ज।ू ।192।।
मनौ सावन मााँझ ललाई के मांज चहूाँ हदमस तें चपला चमकैं ।।193।।
राधाकासौंदयय
कववत्ि
सवैया|
मनौ इंदब
ु धून लजावन कों सब ज्ञाननन काहढ धरी गन सी।।
दमकै दृग बान के घार्यन कों गगरर सेत के सगध के जीवन सी।।198।।
प्र्यारी की चारु मसंगार तरं गनन जार्य लगी रनत की दनु त कूलनन।
कंचक
ु ी सेत मैं जावक बबंद ु बबलोकक मरैं मघवानन की सल
ू नन।
पज
ू े है आजु मनौ रसखान सु भत
ू के भप
ू बंधक
ू के िूलनन।।200।।
र्यौस ननस्वास चहर्यौई करै ननमस द्र्यौस की आसन पार्य धरै री।
तेजो न जात कछू हदन रानत बबचारे बटोही की बाट परै री।।202।।|्ा
जजहहं नीके नवै कहट हार के भार सों तासों कहैं सब काम करै ।।203।।
िानविीराधा
कववत्ि
मान सखै धरती सों कहााँ जजहह रूप लखै रनत सी रती है ।
मान की औगध है आधी घरी अरी जौ रसखानन डरै हहत कें डर।
मोहनलाल कों हाल बबलोककर्यै नेकु कछू ककनन छ्वै कर सों कर।
ना कररबे पर वारे हैं प्रान कहा करर हैं अब हााँ कररबे पर।।206।।|
तौ हूाँ न छाती मसराइ अरी करर झार इतै उतै बाखझन कोसै।
लालहह लाल ककर्यें अाँखखर्यााँ गहह लालहह काल सौं तर्यौ भई रोसै।
वपर्य सों तुम मान कर्यौ कत नागरर आजु कहा ककनहूाँ मसख दीनी।
कववत्ि
डहडही बैरी मंजु डार सहकार की पै,
सवैया
मेरो कह्र्यौ करर मान तजौ कहह मोहन सों बमल बोल सलौने।
सौहें हदबावत हौं रसखानन तूाँ सौंहैं करै ककन लाखनन लौने।
नोखी तूाँ माननन मान कर्यौ ककन मान बसत मैं कीनी है कौनै।।210।।
सखीमिक्षा
सवैया
सोई है रास मैं नैसुक नाच कै नाच नचार्यौ ककतौ सबकों जजन।
तौ मैं धौं कौन मनोहर भाव बबलोकक भर्यौ बस हाहा करी नतन।
औसर ऐसौ ममलै न ममलै किर लगर मोड़ो कनौड़ौ करै नछन।।211।।
आबन कों पुततीत हठा करैं नैंननन धारर अखंड ढरै री।
हे रनत बारहीं र्यार उसै तुव बाबरी बाल, कहा धौ करै गी।
जौं कबहूाँ रसखानन लखै किर तर्यों हूाँ न बीर ही धीर धरै गी।
र्यातैं कहौं मसख मानन भटू र्यह हे रनन तेरे ही पैड़े परै गी।।215।।
बैरु चढै धरहहं रहह बैहठ अटा न एढै बघनाम चढै गौ।।217।।
कववत्ि
दन
ू ी सकुचाहीं दीहठ परै न जन्
ु है र्या की।
दे खी ना लटक मेरे दल
ू ह कन्है र्या की।।220।।
सवैया
मो हहत तो हहत है रसखान छपाकर जानहहं जान अजानहहं।
जो चहहर्यै लहहर्यै भरर चाहह हहर्ये उहहर्यै हहत काज कहा नहहं।
सोरठा
संयोग-वणयन
सवैया
नीबी गहै कुच कंचन कंु भ कहै बननता वपर्य नाही जु नाहीं।।227।।
प्रेम-पगी बनतर्यााँ दह
ु ु ाँ घााँ की दह
ु ु ाँ कों लगीं अनत ही जजत चाहीं।
ववयोग-वणयन
सवैया
कोर्यल की ककलकारी सन
ु ै सब कंत बबदे हन तें सब धावत।
पंकज सौ मख
ु गौ मुरझार्य लगी लपटैं बरै स्वााँस हहर्या की।
ऐसे में आवत कान्ह सुने हुलसै सुतनी तरकी अंगगर्या की।
बाल गुलाब के नीर उसीर सों पीर न जाइ हहर्यैं, जजन ढारी।
कंज की माल करौ जू बबछावत होत कहा पुनन चंदन गारौ।
एते इलाज बबकाज करौं रसखानन कों काहे कों जारे पै जारौ।
ताहह हदना सों गड़ी अाँखखर्यााँ रसखानन मेरे अंग अंग मैं परू ी।
कववत्ि
काह कहूाँ सजनी संग की रजनी ननत बीतै मुकंु द कोंटे री।
सवैया
परू न ब्रह्म ह्वै ध्र्यान रह्र्यौ वपर्य औगध अखैबट पात के ऊपर।।240।।
सााँझ तें भोर लौं भोर तें सााँझ लौं गोवपन चातक ज्र्यौं रट लाई।
सपत्नी-भाव
सवैया
वा रसखानन गन
ु ौं सनु न के हहर्यरा अत टूक ह्वै िाहट गर्यौ है ।
जाननत हैं न कछू हम ह्र्यााँ उनवााँ पहढ मंत्र कहा धौं दर्यौ है ।
सााँची कहैं जजर्य मैं ननज जानन कै जाननत हैं जस जैसो लर्यौ है ।
लोग लग
ु ाई सबै ब्रज मााँहह कहैं हरर चेरी को चेरो भर्यो है ।।243।।
जानै कहा हम मूढ सवै समझीन तबै जबहीं बनन आई।
चेरी को चेटक दे खहु ही हाई चेरो ककर्यौ धौं कहा पहढ माई।।244।।
भेती जू पें कुबरी ह्र्यााँ सखी भरी लातन मूका बकोटती लेती।
कुबमलयापीड़-वध
सवैया
लीनी कुठौर लगी लखख तोरर कलंक तमाल तें कीरनत-डार सी।।247।।
उद्धव-उपदे ि
सवैया
जोग मसखावत आवत है वह कौन कहावत को है कहााँ को।
गारुड़ ह्वै ब्रज लोग भतर्यौ करर औषद बेसक सौहैं हदखाइ कै।।
ऊधौ सौं रसखानन कहै मलन गचत्त धरौ तुम एते उधाइ कै।
कारे बबसारे को चाहैं उतर्यौ अरे बबख बाबरे राख लगाइ कैं ।।250।।
ब्रज-प्रेि
सवैया
कववत्ि
गंगािहहिा
सवैया
इक ओर ककरीट लसै दस
ु री हदमस नागन के गन गाजत री।
मिव-िहहिा
सवैया