You are on page 1of 59

सज

ु ान-रसखान

रसखान

भक्ति-भावना

सवैया

मानुष हों तौ वही रसखानन बसौं ब्रज गोकुल गााँव के ग्वारन।

जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं ननत नंद की धेनु माँझारन।

पाहन हौं तो वही गगरर को जो धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन।

जो खग हौं बसेरो करौं ममल कामलंदी कूल कदं ब की डारन।।1।।

जो रसना रस ना बबलसै तेहह दे हु सदा ननदा नाम उचारन।

मो कत नीकी करै करनी जु पै कंु ज-कुटीरन दे हु बुहारन।

मसद्गध समद्
ृ गध सबै रसखानन नहौं ब्रज रे नुका-संग-साँवारन।

खास ननवास मलर्यौ जु पै तो वही कामलंदी-कूल-कदं ब की डारन।।2।।

बैन वही उनको गुन गाइ औ कान वही उन बैन सों सानी।

हाथ वही उन गात सरै अरु पाइ वही जु वही अनुजानी।

जान वही उन आन के संग और मान वही जु करै मनमानी।

त्र्यौं रसखान वही रसखानन जु है रसखानन सों है रसखानी।।3।।

दोहा

कहा करै रसखानन को, को चुगुल लबार।


जो पै राखनहार हे , माखन-चाखनहार।।4।।

ववमल सरल सरखानन, भई सकल रसखानन।

सोई नब रसखानन कों, गचत चातक रसखानन।।5।।

सरस नेह लवलीन नव, द्वै सुजानन रसखानन।

ताके आस बबसास सों पगे प्रान रसखानन।।6।।

कृष्ण का अलौकककत्व

सवैया

संकर से सुर जाहह भजैं चतुरानन ध्र्यानन धमम बढावैं।

नैंक हहर्यें जजहह आनत ही जड़ मूढ महा रसखान कहावैं।

जा पर दे व अदे व भ-ू अंगना वारत प्रानन प्रानन पावैं।

ताहह अहीर की छोहररर्यााँ छनछर्या भरर छाछ पै नाच नचावैं।।7।।

सेष, गनेस, महे स, हदनेस, सुरेसहु जाहह ननरं तर गावैं।

जाहह अनाहद अनंत अखंड अछे द अभेद सब


ु ेद बतावैं।

नारद से सक
ु ब्र्यास रहैं पगच हारे तऊ पनु न पार न पावैं।

ताहह अहीर की छोहररर्यााँ छनछर्या भरर छाछ पै नाच नचावैं।।8।।

गावैं सुनन गननका गंधरब्ब और सारद सेष सबै गुन गावत।

नाम अनंत गनंत गनेस ज्र्यौं ब्रह्मा बत्रलोचन पार न पावत।

जोगी जती तपसी अरु मसद्ध ननरं तर जाहह समानर्य लगावत।

ताहह अहीर की छोहररर्यााँ छनछर्या भरर छाछ पै नाच नचावत।।9।।


लार्य समागध रहे ब्रह्माहदक र्योगी भर्ये पर अंत न पावैं।

सााँझ ते भोरहहं भोर ते सााँझनत सेस सदा ननत नाम जपावैं।

ढूाँढ किरै नतरलोक में साख सुनारद लै कर बीन बजावैं।

ताहह अहीर की छोहररर्यााँ छनछर्या भरर छाछ पै नाच नचावैं।।10।।

गुंज गरें मसर मोरपखा अरु चाल गर्यंद की मो मन भावै।

सााँवरो नंदकुमार सबै ब्रजमंडली में ब्रजराज कहावै।

साज समाज सबै मसरताज औ लाज की बात नहीं कहह आवै।

ताहह अहीर की छोहररर्यााँ छनछर्या भरर छाछ पै नाच नचावै।।11।।

ब्रह्म मैं ढूाँढ़्र्यौ पुरानन गानन बेद-ररचा सुनन चौगुन चार्यन।

दे ख्र्यौ सुन्र्यौ कबहूाँ न ककतूाँ वह सरूप औ कैसे सुभार्यन।

टे रत हे रत हारर पर्यौ रसखानन बतार्यौ न लोग लुगार्यन।

दे खौ दरु ौ वह कंु ज-कुटीर में बैठी पलोटत रागधका-पार्यन।।12।।

कंस कुढ़्र्यौ सुन बानी आकास की ज्र्यावनहारहहं मारन धार्यौ।

भादव सााँवरी आठई कों रसखान महाप्रभु दे वकी जार्यौ।

रै नन अाँधेरी में लै बसुदेव महार्यन में अरगै धरर आर्यौ।

काहु न चौजुग जागत पार्यौ सो रानत जसोमनत सोवत पार्यौ।।13।।

कववत्‍ि

संभु धरै ध्र्यान जाको जपत जहान सब,

तातें न महान और दस
ू र अवरे ख्र्यौ मैं।

कहै दसखान वही बालक सरूप धरै ,


जाको कछु रूप रं ग अद्भुत अवलेख्र्यौ मैं।

कहा कहूाँ आली कछु कहती बनै न दसा,

नंद जी के अंगना में कौतुक एक दे ख्र्यौ मैं।

जगत को ठाटी महापरु


ु ष ववराटी जो,

ननरं जन ननराटी ताहह माटी खात दे ख्र्यौ मैं।।14।।

वेई ब्रह्म ब्रह्मा जाहह सेवत हैं रै न-हदन,

सदामसव सदा ही धरत ध्र्यान गाढे हैं।

वेई ववष्नु जाके काज मानी मढ


ू राजा रं क,

जोगी जती ह्वै कै सीत सह्र्यौ अंग डाढे हैं।

वेई ब्रजचंद रसखानन प्रान प्रानन के,

जाके अमभलाख लाख-लाख भााँनत बाढे हैं।

जसध
ु ा के आगे बसध
ु ा के मान-मौचन से,

तामरस-लोचन खरोचन को ठाढे हैं।।15।।

अनन्‍य‍भाव

सवैया

सेष सुरेस हदनेस गनेस अजेस धनेस महे स मनावौ।

कोऊ भवानी भजौ मन की सब आस सबै ववगध जोई परु ावौ।

कोऊ रमा भजज लेहु महाधन कोऊ कहूाँ मन वााँनछत पावौ।\

पै रसखानन वही मेरा साधन और बत्रलौक रहौ कक बसावौ।।16।।\

द्रौपदी अरु गननका गज गीध अजाममल सों ककर्यो सो न ननहारो।

गौतम-गेहहनी कैसी तरी, प्रहलाद को कैसे हर्यो दख


ु भारो।
काहे कौं सोच करै रसखानन कहा करर है रबबनंद ववचारो।

ताखन जाखन राखखर्यै माखन-चाखनहारो सो राखनहारो।।17।।|

दे स बदे स के दे खे नरे सन रीझ की कोऊ न बझ


ू करै गो।

तातें नतन्हैं तजज जानन गगरर्यौ गुन सौगुन गााँहठ परै गो।

बााँसरु ीबारो बड़ो ररझवार है स्र्याम जु नैसक


ु ढार ढरै गौ।

लाड़लौ छै ल वही तौ अहीर को पीर हमारे हहर्ये की हरै गौ।।18।।

संपनत सौं सकुचाइ कुबेरहहं रूप सौ दीनी गचनौती अनंगहहं।

भोग कै कै ललचाइ पुरंदर जोग कै गंगलई धर मंगहहं।

ऐसे भए तौ कहा रसखानन रसै रसना जौ जु मजु तत-तरं गहहं।

दै गचत ताके न रं ग रच्र्यौ जु रह्र्यौ रगच रागधका रानी के रं गहहं।।19।।

कंचन-मंहदर ऊाँचे बनाइ कै माननक लाइ सदा झलकर्यत।

प्रात ही तें सगरी नगरी नग मोनतन ही की तुलानन तुलर्य


ै त।

जद्र्यवप दीन प्रजान प्रजापनत की प्रभुता मधवा ललचैर्यत।

ऐसे भए तौ कहा रसखानन जौ सााँवरे ग्वार सों नेह न लैर्यत।।20।।

कववत्‍ि

कहा रसखानन सख
ु संपवि समार कहा,

कहा तन जोगी ह्वै लगाए अंग छार को।

कहा साधे पंचानल, कहा सोए बीच नल,

कहा जीनत लाए राज मसंधु आर-पार को।

जप बार-बार तप संजम वर्यार-व्रत,

तीरथ हजार अरे बूझत लबार को।


कीन्हौं नहीं प्र्यार नहीं सैर्यो दरबार, गचत्त,

चाह्र्यौ न ननहार्यौ जौ पै नंद के कुमार को।।21।।

कंचन के मंहदरनन दीहठ ठहरानत नाहहं,

सदा दीपमाल लाल-मननक-उजारे सों।

और प्रभुताई अब कहााँ लौं बखानौं प्रनत -

हारन की भीर भूप, टरत न द्वारे सों।

गंगाजी में न्हाइ मत


ु ताहलहू लुटाइ, वेद,

बीस बार गाइ, ध्र्यान कीजत, सबारे सों।

ऐरे ही भए तो नर कहा रसखानन जो पै,

गचत्त दै न कीनी प्रीनत पीतपटवारे सों।।22।।

सवैया

एक सु तीरथ डोलत है इक बार हजार पुरान बके हैं।

एक लगे जप में तप में इक मसद्ध समागधन में अटके हैं।

चेत जु दे खत हौ रसखान सु मूढ महा मसगरे भटके हैं।

सााँचहह वे जजन आपुनपौ र्यह स्र्याम गुपाल पै वारर दके हैं।।23।।|

सुननर्यै सब की कहहर्ये न कछू रहहर्यै इमम भव-बागर मैं।

कररर्यै ब्रत नेम सचाई मलर्ये जजन तें तररर्यै मन-सागर मैं।

मममलर्यै सब सों दरु भाव बबना रहहर्ये सतसंग उजागर मैं।

रसखानन गबु बंदहहं र्यौ भजजर्यै जजमम नागरर को गचत गागर मैं।।24।।

है छल की अप्रतीत की मरू नत मोद बढावै ववनोद कलाम में ।

हाथ न ऐसे कछू रसखान तू तर्यों बहकै ववष पीवत काम में ।

है कुच कंचन के कलसा न र्ये आम की गााँठ मठीक की चाम में ।


बैनी नहीं मग
ृ नैननन की र्ये नसैनी लगी र्यमराज के धाम में ।।25।।

मिलन

सवैया

मोर के चंदन मौर बन्र्यौ हदन दल


ू ह है अली नंद को नंदन।

श्री वष
ृ भानुसुता दल
ु ही हदन जोरर बनी बबधना सख
ु कंदन।

आवै कह्र्यौ न कछू रसखानन हो दोऊ बंधे छबब प्रेम के िंदन।

जाहह बबलोकें सबै सुख पावत र्ये ब्रजजीवन है दख


ु दं दन।।26।।

मोहहनी मोहन सों रसखानन अचानक भेंट भई बन माहीं।

जेठ की घाम भई सख
ु घाम आनंद हौ अंग ही अंग समाहीं।

जीवन को िल पार्यौ भटू रस-बातन केमल सों तोरत नाहीं।

कान्ह को हाथ कंधा पर है मुख ऊपर मोर ककरीट की छाहीं।।27।।

लाड़ली लाल लसैं लखख वै अमल कंु जनन पुंजनन मैं छबब गाढी।

उजरी ज्र्यों बबजुरी सी जुरी चहुं गुजरी केमल-कला सम बाढी।

त्र्यौ रसखानन न जानन परै सुखखर्या नतहुं लौकन की अनत बाढी।

बालक लाल मलए बबहर छहरैं बर मोरमुखी मसर ठाड़ी।।28।।

बाल-लीला

सवैया

लाल की आज छटी ब्रज लोग अनंहदत नंद बढ़्र्यौ अन्हवावत।


चाइन चारु बधाइन लै चहुं और कुटुंब अघात न र्यावत।

नाचत बाल बड़े रसखान छके हहत काहू के लाज न आवत।

तैसोइ मात वपताउ लह्र्यौ उलह्र्यो कुलही कुल ही पहहरावत।।29।।

'ता' जसुदा कह्र्यो धेनु की ओठ हढंढोरत ताहह किरैं हरर भूल।ैं

ढूाँवनन कूाँ पग चारर चलै मचलैं रज मांहह ववथरू र दक


ु ू लैं।

हे रर हाँसे रसखान तबै उर भाल तैं टारर कै बार लटूलैं।

सो छवव दे खख अनंदन नंदजू अंगन अंग समात न कूलैं।।30।।

आजु गई हुती भोर ही हौं रसखान रई वहट नंद के भौनहहं।

वाकौ जजर्यौ जुग लाख करोर जसोमनत को सुख जात कह्र्यौ नहहं।

तेल लगाइ लगाइ कै अाँजन भौंहें बनाइ बनाइ डडठौनहहं।

डामल हमेलनन हार ननहारत वारत ज्र्यों चुचकारत छौनहहं।।31।।

धूरर भरे अनत शोमभत श्र्यामजू तैसी बनी मसर सुंदर चोटी।

खेलत खात किरै अाँगना पर पैंजनी बाजनत पौरी कछोटी।

वा छबब को रसखानन बबलोकत वारत काम कला ननज-कोटी।

काग के भाग बड़े सजनी हरर-हाथ सों ले गर्यौ माखन रोटी।।32।।

रूप-िाधुरी

सवैया

मोनतन लाल बनी नट के, लटकी लटवा लट घूाँघरवारी।

अंग ही अंग जराव लसै अरु सीस लसै पगगर्या जरतारी।

पूरब पुन्र्यनन तें रसखानन सु मोहहनी मूरनत आनन ननहारी।

चारर्यौ हदसानन की लै छबब आनन के झााँकै झरोखे मैं बााँके बबहारी।।33।।


आवत हैं बन तें मनमोहन गाइन संग लसै ब्रज-ग्वाला।

बेनु बजावत गावत गीत अभीत इतै कररगौ कछु ख्र्याला।

हे रत टे रर थकै जहुं ओर तैं झााँकक झरोखन तें ब्रज-बाला।

दे खख सुर आनन कों रसखानन तज्र्यौ सब द्र्यौस को ताप-कसाला।।34।।

कववत्‍ि

गोरज ववराजै भाल लहलही बनमाल,

आगे गैर्यााँ पाछें ग्वाल मद


ृ ु तानन री।

तैसी धुनन बााँसुरी को मधुर मधुर जैसी,

बंग गचतवनन मंद मंद मुसकानन री।

कदम ववपट के ननकट तटनी के तट,

अटा चहढ चाहट पीत पट िहरानन री।

रस बरसावै तन तपनन बझ
ु ावै नैन,

प्राननन ररझावै वह आवै रसखानन री।।35।।

सवैया

अनत सुंदर री ब्रजराजकुमार महा मद


ृ ु बोलनन बोलत है ।

लखख नैन की कोर कटाक्ष चलाइ कै लाज की गााँठन खोलत हैं।

सुनन री सजनी अलबेलो लला वह कंु जनन कंु जनन डोलत है ।

रसखानन लखें मन बूडड़ गर्यौ मगध रूप के मसंधु कलोकत है ।।36।।

तैं न लख्र्यौ जब कंु जनन तें बननकै ननकस्र्यौ भटतर्यौ मटतर्यौ री।

सोहत कैसो हरा टटतर्यौ अठ कैसो ककरीट लसै लटतर्यौ री।

को रसखानन किरै भटतर्यौ हटतर्यौ ब्रज लोग किरै भटतर्यौ री।


रूप सबै हरर वा नट को हहर्यरे अटतर्यौ अटतर्यौ अटतर्यो री।।37।।

नैननन बंक बबसाल के बाननन झेमल सकै अस कौन नवेली।

बेचत है हहर्य तीछन कोर सुमार गगरी नतर्य कोहटक हेली।

छौड़ै नही नछनहूं रसखानन सु लागी किरै द्रम


ु सों जनु बेली।

रौरर परी छबब की ब्रजमंडल कंु डल गंडनन कंु तल केली।।38।।

अलबेली बबलोकनन बोलनन औ अलबेमलर्यै लोल ननहारन की।

अलबेली सी डोलनन गंडनन पै छबब सों ममली कंु डल बारन की।

भटू ठाढौ लख्र्यौ छबब कैसे कहौं रसखानन गहें द्रम


ु डारन की।

हहर्य मैं जजर्य मैं मुसकानन रसी गनत को मसखवै ननरवारन की।।39।।

बााँको बड़ी अाँखखर्यााँ बड़रारे कपोलनन बोलनन कौं कल बानी।

सुंदर रामस सध
ु ाननगध सो मख
ु मूरनत रं ग सुधारस-सानी।

ऐसी नवेली ने दे खे कहूाँ ब्रजराज लला अनत ही सुखदानी।

डालनन है बन बीगथन मैं रसखानन मनोहर रूप-लुभानी।।40।।

दृग इतने खखंचे रहैं कानन लौं लट आनन पै लहराइ रही।

छकक छें ल छबील छटा छहराह कै कौतुक कोहट हदखाइ रही।।

झुकक झमू म झमाकनन चूमम अमी चरर चााँदनी चंद चुराइ रहा।

मन भाइ रही रसखानन महा छबब मोहन की तरसाइ रही।।41।।

लाल लसै सब के सबके पट कोहट सग


ु ंधनन भीने।

अंगनन अंग सजे सब ही रसखानन अनेक जराउ नवीने।

मुकता गलमाल लसै सब ग्वार कुवार मसंगार सो कीने।

पै मसगरे ब्रज के हरर ही हरर ही कै हरैं हहर्यरा हरर लीने।।42।।


वह घेरनन धेनु अबेर सबेरनन िेरीन लाल लकुट्टनन की।

वह तीछन चच्छु कटाछन की छबब मोरनन भौंह भक


ृ ु ट्टनन की।।

वह लाल की चाल चुभी गचत मैं रसखानन संगीत उघट्


ु टनन की।

वह पीत पटतकनन की चटकानन लटतकनन मोर मुकुट्टनन की।।43।।

सााँझ समै जजहह दे खनत ही नतहह पेखन कौं मन मौं ललकै री।

ऊाँची अटान चढी ब्रजबाम सुलाज सनेह दरु ै उझकै री।।

गोधन धूरर की धूंधरर मैं नतनकी छबब र्यौं रसखानन तकै री।

पावक के गगरर तें बगु ध मानौ चाँव


ु ा-लपटी लपकै ललटै री।।44।।

दे खखक रास महाबन को इस गोपवधू कह्र्यौ एक बनू पर।

दे खनत हौ सखख मार से गोप कुमार बने जजतने ब्रज-भू पर।

तीछें ननटारर लखौ रसखानन मसंगार करौ ककन कोऊ कछू पर।

िेरर किरैं अाँखखर्यााँ ठहरानत हैं कारे वपतंबर वारे के ऊपर।।45।।

दमकैं रवव कंु डल दाममने से धुरवा जजमम गोरज राजत है ।

मुकताहल वारन गोपन के सु तौ बूाँदन की छबब छाजत है ।

ब्रजबाल नदी उमही रसखानन मर्यंकबधू दनु त लाजत है ।

र्यह आवन श्री मनभावन की बरषा जजमम आज बबराजत है ।।46।।

मोर ककरीट नवीन लसै मकराकृत कंु डल लोल की डोरनन।

ज्र्यों रसखान घने घन में दमकै बबबब दाममनन चाप के छोरनन।

मारर है जीव तो जीव बलार्य बबलोक बजार्य लौंनन की कोरनन।

कौन सुभार्य सों आवत स्र्याम बजावत बैनु नचावत मौरनन।।47।।


दोउ कानन कंु डल मोरपखा मसर सोहै दक
ु ू ल नर्यो चटको।

मननहार गरे सुकुमार धरे नट-भेस अरे वपर्य को टटको।

सुभ काछनी बैजनी पावन आवन मैन लगै झटको।

वह सुंदर को रसखानन अली जु गलीन मैं आइ अबैं अटको।।48।।

काटे लटे की लटी लकुटी दप


ु टी सि
ु टी सोउ आधे काँधाहीं।

भावते भेष सबै रसखान न जाननए तर्यों अाँखखर्यााँ ललचाहीं।

तू कछू जानत र्या छबब कों र्यह कौन है सााँबररर्या बनमाहीं।

जोरत नैंन मरोरत भौंह ननहोरत सैन अमेठत बााँही।।49।।

कैसो मनोहर बानक मोहन सोहन सुंदर काम ते आली।

जाहह बबलोकत लाज तजी कुल छूटो है नैननन की चल आली।

अधरा मुसकान तरं ग लसै रसखनन सुहाइ महाछबब छाली।

कंु ज गली मगध मोहन सोहन दे ख्र्यौ सखी वह रूप-रसीली॥50॥

दोहा

मोहन छबब रसखानन लखख, अब दृग अपने नाहहं।

ऐंचे आवत धनुष से, छूटे सर से जाहहं।।51।।

र्या छबब पै रसखानन अब वारौं कोहट मनोज।

जाकी उपमा कववन नहहं रहे सु खोज।।52।।

प्रेि‍लीला

कववत्‍ि
कदम करीर तरर पूछनन अधीर गोपी

आनन रुखोर गरों खरोई भरोहों सो।

चोर हो हमारो प्रेम-चौंतरा मैं हार्यौ

गराववन में ननकमस भाज्र्यौ है करर लजैरौं सो।

ऐसे रूप ऐसो भेष हमैहूं हदखैर्यौ, दे खख।

दे खत ही रसखानन नेननन चभ
ु ेरौं सो।

मक
ु ु ट झक
ु ोहों हास हहर्यरा हरौहों कहट,

िेटा वपपरोहों अंगरं ग सााँवरौहौं सौ।।53।।

सवैया

भौंह भरी सुथरी बरुनी अनत ही अधरानन रच्र्यौ रं ग रातो।

कंु डल लोल कपोल महाछबब कंु जन तैं ननकस्र्यौ मुसकातो।।

छूहट गर्यौ रसखानन लखै उर भूमल गई तन की सगु ध सातो।

िूहट गर्यौ मसर तैं दगध भाजन टूहटगौ नैनन लाज को नातो।।54।।

जात हुती जमुना जल कौं मनमोहन घेरर लर्यौ मग आइ कै।

मोद भर्यौ लपटाइ लर्यौ पट घूाँघट ढारर दर्यौ गचत चाइ कै।

और कहा रसखानन कहौं मख


ु चूमत घातन बात बनाइ कै।

कैसे ननभै कुल-कानन रही हहर्ये सााँवरी मूरनत की छबब छाइ कै।।55।।

जा हदन ते ननरख्र्यौ नंदनंदन कानन तजी कर बंधन टूट्र्यौ।

चारु बबलोककन कीनी सुमार सम्हार गई मन मोर ने लट्


ू र्यौ।

सागर कों समलला जजमम धावे न रोकी रुकै कुलको पुल टुट्र्यौ।

मत्त भर्यौ मन संग किरे रसखानन सरूप सुधारस घट्


ू र्यौ।।56।।
सुगध होत बबदा नर नाररन की दनु त दीहह परे बहहर्यााँ पर की।

रसखान बबलोकत गुंज छरानन तजैं कुल कानन दह


ु ू ाँ घर की।

सहरात हहर्यौ िहरात हवााँ गचतबैं कहरानन वपतंबर की।

र्यह कौन खरौ इतरात गहै बमल की बहहर्यााँ छहहर्यााँ बर की।।57।।

ए सजनी मनमोहन नागर आगर दौर करी मन माहीं।

सास के त्रास उसास न आवत कैसे सखी ब्रजवास बसाहीं।

माखी भई मधु की तरुनी बरनीन के बान बबंधीं ककत जाहीं।

बीगथन डोलनत हैं रसखानन रहैं ननज मंहदर में पल नाहीं।।58।।

सखख गोधन गावत हो इक ग्वार लख्र्यौ वहह डार गहें बट की।

अलकावमल राजनत भाल बबसाल लसै बनमाल हहर्ये टटकी।

जब तें वह तानन लगी रसखानन ननवारै को र्या मग हौं भटकी।

लटकी लट मों दृग-मीननन सों बनसी जजर्यवा नट की अटकी।।59।।

गाइ सुहाइ न र्या पैं कहूाँ न कहूाँ, र्यह मेरी गरी ननकर्यौ है ।

धीरसमीर कमलंदी के तीर खर्यौ रटै आजु री डीहठ पर्यौ है ।

जा रसखानन बबलोकत ही सहसा ढरर रााँग सो आाँग ढर्यौ है ।

गाइन घेरत हे रत सो पट िेरत टे रत आनन पर्यौ है ।।60।।

खंजन मीन सरोजन को मग


ृ को मद गंजन दीरघ नैना।

कंजन ते ननकस्र्यौ मुसकात सु पान पर्यौ मुख अमत


ृ बैना।।

जाइ रटे मन प्रान बबलोचन कानन में रगच मानत चैना।

रसखानन कर्यौ घर मो हहर्य में ननमसवासर एक पलौ ननकसै ना।।61।।


दोहा

मन लीनो प्र्यारे गचतै, पै छटााँक नहहं दे त।

र्यहै कहा पाटी पढी, दल को पीछो लेत।।62।।

मो मन माननक ले गर्यौ, गचते चोर नंदनंद।

अब बेमन मैं तर्या करूाँ, परी िेर के िंद।।63।।

नैन दलालनन चौहटें , मन माननक वपर्य हाथ।

रसखााँ ढोल बजाइके, बेच्र्यौ हहर्य जजर्य साथ।।64।।

सोरठा

प्रीतम नंदककशोर, जा हदन तें नेननन लग्र्यौ।

मन पावन गचत्त चोर, पलक ओट नहहं सहह सकौं।।65।।

बंक‍बबलोचन

सवैया

मैन मनोहर नैन बड़े सखख सैननन ही मनु मेरो हर्यौ है ।

गेह को काज तज्र्यौ रसखानन हहर्ये ब्रजराजकुमार अर्यौ है ।।

आसन-बासन सास के आसन पाने न सासन रं ग पर्यौ है ।

नैननन बंक बबसाल की जोहनन मत्त महा मन मत कर्यौ है ।।66।।

भटू सुंदर स्र्याम मसरोमनन मोहन जोहन मैं गचत्त चोरत है ।

अबलोकन बंक बबलोचन मैं ब्रजबालन के दृग जोरत है।।


रसखानन महावत रूप सलोने को मारग तें मन मोरत है ।

ग्रह काज समाज सबै कुल लाज लला ब्रजराज को तोरत है ।।67।।

आली लाल घन सों अनत सद


ंु र तैसो लसे वपर्यरो उपरै ना।

गंडनन पै छलकै छवव कंु डल मंडडत कंु तल रूप की सैना।

दीरघ बंक बबलोकनन की अबलोकनन चोरनत गचत्त को चैना।

मो रसखानन रट्र्यौ गचत्त री मस


ु काइ कहे अधरामत
ृ बैना।।68।।

वह नंद को सााँवरो छै ल अली अब तौ अनत ही इतरान लग्र्यौ।

ननत घाटन बाटन कंु जन मैं मोहहं दे खत ही ननर्यरान लग्र्यौ।

रसखानन बखान कहा कररर्यै तकक सैननन सों मुसकान लग्र्यौ।

नतरछी बरखी सम मारत है दृग-बान कमान मुकान लग्र्यौ।।69।।

मोहन रूप छकी बन डोलनत घूमनत री तजज लाज बबचारें ।

बंक बबलोकनन नैन बबसाल सु दं पनत कोर कटाछन मारैं।।

रं गभरी मुख की मुसकान लखे सखी कौन जु दे ह सम्हारे ।

ज्र्यौं अरबबंद हहमंत-करी झकझोरर कैं तोरर मरोरर कैं डारैं।।70।।

आज गई ब्रजराज के मंहदर स्र्याम बबलोतर्यौ री माई।

सोइ उठ्र्यौ पमलका कल कंचन बैठ्र्यो महा मनहार कन्हाई।।

ए सजनी मुसकान लख्र्यौ रसखानन बबलोकनन बंक सुहाई।

मैं तब ते कुलकानन तजौ सब


ु जी ब्रजमंडल मांह दह
ु ाई।।71।।

मोहन के मन की सब जाननत जोहन के मोहह मग मलर्यौ मन।

मोहन सुंदर आनन चंद तें कंु जनन दे ख्र्यौ में स्र्याम मसरोमन।

ता हदन तें मेरे नैननन लाज तजी कुलकानन की डोलत हौं बन।
कैसी करौं रसखानन लगी जक री पकरी वपर्य के हहत को पन।।72।।

लोक की लाज तज्र्यौ तबहहं जब दे ख्र्यो सखी ब्रजचंद सलौनो।

खंजन मीन सरोजन की छबब गंजन नैन लला हदन होनो।

हे र सम्हारर सकै रसखानन सो कौन नतर्या वह रूप सुठोनो।

भौंह कमान सौं जोहन को सर बेधत प्राननन नंद को छोनो।।73।।

िुस्‍कान‍िाधुरी

सवैया

वा मुख की मुसकान भटू अाँखखर्यानन तें नेकु टरै नहहं टारी।

जौ पलकैं पल लागनत हैं पल ही पल मााँझ पुकारैं पुकारी।

दस
ू री ओर तें नेकु गचतै इन नैनन नेम गह्र्यौ बजमारी।

प्रेम की बानन की जोग कलानन गही रसखानन बबचार बबचारी।।74।।

कानतग तवार के प्रात सरोज ककते बबकसात ननहारे ।

डीहठ परे रतनागर के दरके बहु दाममड़ बबंब बबचारे ।।

लाल सु जीव जजते रसखानन दरके गीत तोलनन मोलनन भारे ।

रागधका श्रीमुरलीधर की मधरु ी मुसकानन के ऊपर बारे ।।75।।

बंक बबलोचन हैं दख


ु -मोचन दीरघ रोचन रं ग भरे हैं।

घमत बारुनी पान ककर्यें जजमम झूमत आनन रूप ढरै हैं।

गंडनन पै झलकै छबब कंु डल नागरर-नैन बबलोकक भरे हैं।

बालनन के रसखानन हरे मन ईषद हास के पानन परे हैं।।76।।

कववत्‍ि
अब ही खररक गई, गाइ के दह
ु ाइबे कौं,

बावरी ह्वै आई डारर दोहनी र्यौ पानन की।

कोऊ कहै छरी कोऊ मौन परी कोऊ,

कोऊ कहै भरी गनत हरी अाँखखर्यानन की।।

सास व्रत टानै नंद बोलत सर्याने धाइ

दौरर-दौरर मानै-जानै खोरर दे वतानन की।

सखी सब हाँस ैं मरु झानन पहहचानन कहूाँ,

दे खी मस
ु कानन वा अहीर रसखानन की।।77।।

सवैया

मैन-मनोहर बैन बजै सु सजे तन सोहत पीत पटा है ।

र्यौं दमकै चमकै झमकैं दनु त दाममनन की मनौ स्र्याम घटा है ।

ए सजनी ब्रजराजकुमार अटा चहढ िेरत लाल बटा है ।

रसखानन महा मधुरी मख


ु की मुसकानन करै कुलकानन कटा है ।।78।।

जा हदन तें मुसकानन चुभी गचत ता हदन तें ननकसी न ननकारी।

कंु डल लोल कपोल महा छबब कंु जन तें ननकस्र्यो सख


ु कारी।।

हौ सखख आवत ही दगरें पग पैंड़ तजी ररझई बनवारी।

रसखानन परी मुसकानन के पाननन कौन गनै कुलकानन ववचारी।।79।।

काननन दै अाँगुरी रहहबो जबहीं मुरली धुनन मंद बजैहै।

मोहनी ताननन सों रसखानन अटा चहढ गोधन गैहै तौ गैहै।।

टे रर कहौं मसगरे ब्रज लोगनन काजहह कोऊ सु ककतौ समुझैहै।

माइ री वा मुख की मुसकानन सम्हारी न जैहे न जैहे न जैहे।।80।।


आजु सखी नंद-नंदन की तकक ठाढौ हों कंु जन की परछाहीं।

नैन बबसाल की जोहन को सब भेहद गर्यौ हहर्यरा जजन माहीं।

घाइल धूमम सुमार गगरी रसखानन सम्हारनत अाँगनन जाहीं।

एते पै वा मुसकानन की डौंड़ी बजी ब्रज मैं अबला ककत जाहीं।।81।।

दोहा

ए सजनी लोनो लला, लखौ नंद के दे ह।

गचतर्यौ मद
ृ ु मुस्काइ कै, हरी सबै सुगध दे ह।।82।।

कृष्‍ण‍सौंदयय

दोहा

जोहन नंदकुमार कों, गई नंद के गेह।

मोहहं दे खख मुसकाइ कै, बरस्र्यौ मेह सनेह।।83।।

सवैया

मोरपखा मसर कानन कंु डल कंु तल सों छबब गंडनन छाई।

बंक बबसाल रसाल बबलोचन हैं दख


ु मौचन मोहन माई।

आली नवीन र्यह घन सो तन पीट घट ज्र्यौं पठा बनन आई।

हौं रसखानन जकी सी रही कछु टोना चलाइ ठगौरी सी लाई।।84।।

जा हदन तें वह नंद को छोहरा र्या बन धेनु चराइ गर्यौ है ।

मोहनी ताननन गोधन गावत बेन बजाइ ररझाइ गर्यौ है ।


बा हदन सों कछु टोना सो कै रसखानन हहर्ये मैं समाइ गर्यौ है ।

कोऊ न काहू की कानन करै मसगरौ ब्रज वीर! बबकाइ गर्यौ है ।।85।।

आर्यौ हुतौ ननर्यरैं रसखानन कहा कहौं तू न गई वहह ठै र्या।

र्या ब्रज में मसगरी बननता सब बारनत प्राननन लेनत बलैर्या।

कोऊ न काहु की कानन करैं कछु चेटक सो जु ककर्यौ जदरु ैंर्या।

गाइ गौ तान जमाइ गौ नेह ररझाइ गौ प्रान चराइ गौ गैर्या।।86।।

कौन ठगौरी भरी हरर आजु बजाई है बााँसुननर्या रं ग-भीनी।

तान सुनीं जजनहीं नतनहीं तबहीं नतत साज बबदा कर दीनी।

घूमैं घरी नंद के द्वार नवीनी कहा कहूाँ बाल प्रवीनी।

र्या ब्रज-मंडल में रसखानन सु कौन भटू जू लटू नहहं कीनी।।87।।

बााँकी धरै कलगी मसर 'ऊपर बााँसुरी-तान कटै रस बीर के।

कंु डल कान लसैं रसखानन ववलोकन तीर अनंग तुनीर के।

डारर ठगौरी गर्यौ गचत चोरर मलए है सबैं सुख सोखख सरीर के।

जात चलावन मो अबला र्यह कौन कला है भला वे अहीर के।।88।।

कौन की नागरर रूप की आगरर जानत मलए संग कौन की बेटी।

जाको लसै मख
ु चंद-समान सु कोमल अाँगनन रूप-लपेटी।

लाल रही चुप लागग है डीहठ सु जाके कहूाँ उर बात न मेटी।

टोकत ही टटकार लगी रसखानन भई मनौ काररख-पेटी।।89।।

मकराकृत कंु डल गज
ुं की माल के लाल लसै पग पााँवररर्या।

बछरानन चरावन के ममस भावतो दै गर्यौ भावती भााँवररर्या।

रसखानन बबलोकत ही मसगरी भईं बावररर्या ब्रज-डााँवररर्या।


सजती ईहहं गोकुल मैं ववष सो बगरार्यौ हे नंद की सााँवररर्या।।90।।

रूप‍प्रभाव

सवैया

नवरं ग अनंग भरी छवव सौं वह मूरनत आाँखख गड़ी ही रहैं

बनतर्या मन की मन ही मैं रहे घनतर्या उर बीच अड़ी ही रहैं।

तबहूाँ रसखानन सुजान अली नमलनी दल बूाँद पड़ी ही रहै ।

जजर्य की नहहं जानत हौं सजनी रजनी अाँसुवान लड़ी ही रहै ।।91।।

मैन मनोहर ही दख
ु दं दन है सख
ु कंदन नंद को नंदा।

बंक बबलोचन की अवलोकनन है दख


ु र्योजन प्रेम को िंदा।

जा को लखैं मुख रूप अनुपम होत पराजर्य कोहटक चंदा।|

हौं रसखानन बबकाइ गई उन मोल लई सजनी सख


ु चंदा।।92।।

सोहत है चाँदवा मसर मोर के तैमसर्य सुंदर पाग कसी है ।

तैमसर्य गोरज भाल बबराजनत जैसी हहर्यें बनमाल लसी है ।

रसखानन बबलोकत बौरी भई दृगमूाँहद कै ग्वामल पुकारर हाँसी है ।

खोमल री नैननन, खोलौं कहा वह मूरनत नैनन मााँझ बसी है ।।93।।

सनु न री! वपर्य मोहन की बनतर्यााँ अनत दीठ भर्यौ नहहं कानन करै ।

ननमस बासरु औसर दे त नहीं नछनहीं नछन द्वार ही आनन अरै ।

ननकसी मनत नागरर डौंड़ी बजी ब्रज मंडल मैं र्यह कौन भरै ।

अब रूप की रौर परी रसखानन रहै नतर्य कौऊ न मााँझ धरै ।।94।।
रं ग भर्यौ मुसकान लला ननकस्र्यौ कल कंु जन ते सख
ु दाई।

मैं तबही ननकसी घर ते तनन नैन बबसाल की चोट चलाई।।

घूमम गगरी रसखानन तब हररनी जजमम बान लगैं गगर जाई।

टूहट गर्यौ घर को सब बंधन छूहटगौ आरज लाज बड़ाई।।95।।

खंजन नैन िाँदे वपंजरा छबब नाहहं रहैं गथर कैसे हुं भाई।

छूहट गई कुलकानन सखी रसखानन लखी मस


ु कानन सह
ु ाई।।

गचत्र कढे से रहे मेरे नैन न बैन कढे मख


ु दीनी दह
ु ाई।

कैसी करौं ककत जाऊाँ अली सब बोमल उठैं र्यह बावरी आई।।96।।

कंु ज‍लीला

सवैया

कंु जगली मैं अली ननकसी तहााँ सााँकरे ढोटा ककर्यौ भटभेरो।

माई री वा मुख की मुसकान गर्यौ मन बूहढ किरै नहहं िेरो।।

डोरर मलर्यौ दृग चोरर मलर्यौ गचत डार्यौ है प्रेम को िंद घनेरो।

कैसा करौं अब तर्यों ननकसों रसखानन पर्यौ तन रूप को घेरो।।97।।

सोरठा

दे ख्र्यौ रूप अपार, मोहन सुंदर स्र्याम को।

वह ब्रजराज कुमार, हहर्य जजर्य नैननन में बस्र्यौ।।98।।

नटखट‍कृष्‍

कववि
अंत ते न आर्यौ र्याही गााँवरे को जार्यौ,

माई बाप रे जजवार्यौ प्र्याइ दध


ू बारे बारे को।

सोई रसखानन पहहचानन कानन छांडड़ चाहे ,

लोचन नचावत नचर्या द्वारे द्वारे को।

मैर्या की सौं सोच कछू मटकी उतारे को न,

गोरस के ढारे को न चीर चीर डारे को।

र्यहै दख
ु भारी गहै डगर हमारी मााँझ,

नगर हमारे ग्वाल बगर हमारे को।।99।।

सवैया

एक ते एक लौं कानन में रहें ढीठ सखा सब लीने कन्हाई।

आवत ही हौं कहााँ लौं कहीं कोउ कैसे सहै अनत की अगधकाई।।

खार्यौ दही मेरो भाजन िोर्यौ न छाड़त चीर हदवाएाँ दह


ु ाई।

सोंह जसोमनत की रसखानन ते भागें मरु करर छूटन पाई।।100।।

आज महूं दगध बेचन जात ही मोहन रोकक मलर्यौ मग आर्यौ।

मााँगत दान में आन मलर्यौ सु ककर्यो ननलजी रस जोवन खार्यौ।।

काह कहूाँ मसगरी री बबथा रसखानन मलर्यौ हाँमस के मुसकार्यौ।

पाले परी मैं अकेली लली, लला लाज मलर्यो सु ककर्यौ मनभार्यौ।।101।

पहलें दगध लैं गई गोकुल में चख चारर भए नटनागर पै।

रसखानन करी उनन मैनमई कहैं दान दे दान खरे अर पै।।

नख तें मसख नील ननचोल पलेटे सखी सम भााँनत काँपे र पै।।

मनौ दाममनन सावन के घन में ननकसे नहीं भीतर ही तरपै।।102।।


दानी नए भए मााँगत दान सुने जु है कंस तौ बााँधे न जैहौ।

रोकत हौं बन में रसखानन पसारत हाथ महा दख


ु पैहो।

टूटें छरा बछराहदक गोधन जो धन है सु सबै पनु न रे हौ।

जै है जो भूषन काहू नतर्या को तो मौल छलाके लला न बबकैहौ।।103।।

छीर जौ चाहत चीर गहैं एजू लेउ न केनतक छीर अचैहौ।

चाखन के ममस माखन मााँगत खाउ न माखन केनतक खैहौ।

जाननत हौं जजर्य की रसखानन सु काहे कौ एनतक बात बढै हौ।

गोरस के ममस जो रस चाहत सो रस कान्हजू नेकु न पैहौ।।104।।

लंगर छै लहह गोकुल मैं मग रोकत संग सखा हढंग तै हैं।

जाहह न ताहह हदखावत आाँखख सु कौन गई अब तोसों करे हैं।

हााँसीं में हार हट्र्यौ रसखानन जु जौं कहूाँ नेकु तगा टुहट जै हैं।

एकहह मोती के मोल लला मसगरे ब्रज हाटहह हाट बबकै हैं।।105।।

काहु को माखन चाखख गर्यौ अरु काहू को दध


ू दही ढरकार्यौ।

काहू को चीर लै रूप चढ़्र्यौ अरु काहू को गुंजछरा छहरार्यौ।

मानै नही बरजें रसखानन सु जाननर्यै राज इन्हैं घर आर्यौ।

आवरी बूझ ैं जसोमनत सों र्यह छोहरा जार्यौ कक मेव मंगार्यौ।।106।।

िुरली‍प्रभाव

कववत्‍ि

दध
ू दह्
ु र्यौ सीरो पर्यौ तातो न जमार्यौ कर्यौ,

जामन दर्यौ सो धर्यौ, धर्यौई खटाइगौ।


आन हाथ आन पाइ सबही के तब ही तें ,

जब ही तें रसखानन ताननन सुनाइगौ।

ज्र्यौं ही नर त्र्यौंहों नारी तैसीर्यै तरुन बारी,

कहहर्ये कहा री सब बब्रज बबललाइगौ।

जाननर्यै न माली र्यह छोहरा जसोमनत को,

बााँसुरी बजाइ गौ कक ववष बगराइगौ।।107।।

जल की न घट भरैं मग की न पग धरैं,

घर की न कछु करैं बैठी भरैं सााँसुरी।

एकै सुनन लोट गईं एकै लोट-पोट भईं,\

एकनन के दृगनन ननकमस आग आाँसु री।

कहै रसखानन सो सबै ब्रज बननता वगध,

बगधक कहार्य हार्य भ्ई कुल हााँसु री।।

कररर्यै उपार्यै बााँस डाररर्यै कटार्य,

नाहहं उपजैगौ बााँस नाहहं बाजे िेरर बााँसुरी।।108।।

सवैया

चंद सों आनन मैन-मनोहर बैन मनोहर मोहत हौं मन

बंक बबलोकनन लोट भई रसखानन हहर्यो हहत दाहत हौं तन।

मैं तब तैं कुलकानन की मैंड़ नखी जु सखी अब डोलत हों बन।

बेनु बजावत आवत है ननत मेरी गली ब्रजराज को मोहन।।109।।

बााँकी बबलोकनन रं गभरी रसखानन खरी मुसकानन सुहाई।

बोलत बोल अमीननगध चैन महारस-ऐन सुनै सुखदाई।।

सजनी पुर-बीगथन मैं वपर्य-गोहन लागी किरैं जजत ही नतत धाई।


बााँसुरी टे रर सुनाइ अली अपनाइ लई ब्रजराज कन्हाई।।110।।

डोरर मलर्यौ मन मोरर मलर्यो गचत जोह मलर्यौ हहत तोरर कै कानन।

कंु जनन तें ननकस्र्यौ सजनी मुसकाइ कह्र्यो वह सुंदर आनन।।

हों रसखानन भई रसमत्त सखी सुनन के कल बााँसुरी कानन।

मत्त भई बन बीगथन डोलनत माननत काहू की नेकु न आनन।।111।।

मेरो सुभाव गचतैबे को माइ री लाल ननहारर कै बंसी बजाई।

वा हदन तें मोहह लागी ठगौरी सी लोग कहैं कोई बाबरी आई।।

र्यौं रसखानन नघर्यौ मसगरो ब्रज जानत वे कक मेरो जजर्यराई।

जौं कोउ चाहै भलौ अपने तौ सनेह न काहू सों कीजजर्यौ माई।।112।।

मोहन की मुरली सुननकै वह बौरर ह्वै आनन अटा चहढ झााँकी।

गोप बड़ेन की डीहठ बचाई कै डीहठ सों डीहठं ममली दह


ु ु ं झांकी।

दे खत मोल भर्यौ अंखखर्यान को को करै लाज कुटुंब वपता की।

कैसे छुटाइै छुटै अंटकी रसखानन दह


ु ु ं की बबलौकनन बााँकी।।113।।

बंसी बजावत आनन कढौ सो गली मैं अली! कछु टोना सौ डारे ।

हे रर गचते, नतरछी करर दृजष्ट चलौ गर्यौ मोहन मूहठ सी मारे ।।

ताही घरी सों परी धरी सेज पै प्र्यारी न बोलनत प्रानहूं वारे ।

रागधका जी है तो जी हैं सबे नतो पीहैं हलाहल नंद के द्वारे ।।114।।

काल काननन कंु डल मोरपखा उर पै बनमाल बबराजनत है ।

मुरलीकर मैं अधरा मुसकानन-तरं ग महा छबब छाजनत है ।।

रसखानन लखें तन पीत पटा सत दाममनन सी दनु त लाजनत है ।|

वहह बााँसुरी की धुनन कान परे कुलकानन हहर्यो तजज भाजनत है ।।115।।
काजहह भटू मुरली-धुनन में रसखानन मलर्यौ कहुं नाम हमारौ।

ता नछन ते भई बैररनन सास ककतौ ककर्यौ झााँकन दे नत न द्वारौ।।

होत चवाव बलाई सों आलो जो भरर शााँखखन भेहटर्ये प्र्यारौ।

बाट परी अब री हठठतर्यो हहर्यरे अटतर्यौ वपर्यरे पटवारौ।।116।।

आज भटू इक गोपबधू भई बावरी नेकु न अंग सम्हारै ।

माई सु धाइ कै टौना सो ढूाँढनत सास सर्यानी-सवानी पक


ु ारै ।

र्यौं रसखानन नघरौ मसगरौ ब्रज आन को आन उपार्य बबचारै ।

कोउ न कान्हर के कर ते वहह बैररनन बााँसररर्या गाहह जारै ।।117।।

कान्ह भए बस बााँसुरी के अब कौन सखख! हमको चहहहै ।

ननसद्र्यौस रहे संग साथ लगी र्यह सौनतन तापन तर्यौं सहहहै ।।

जजन मोहह मलर्यौ मन मोहन को रसखानन सदा हमको दहहहै ।

मममल आऔ सबै सखख! भागग चलै अब तौ ब्रज में बसरु ी रहहहै ।।118।।

ब्रज की बननता सब घेरर कहैं, तेरो ढारो बबगारो कहा कस री।

अरी तू हमको जम काल भई नैक कान्ह इही तौ कहा रस री।।

रसखानन भली ववगध आनन बनी बमसबो नहीं दे त हदसा दस री।

हम तो ब्रज को बमसबोई तजौ बस री ब्रज बेररन तू बस री।।119।।

बजी है बजी रसखानन बजी सुननकै अब गोपकुमारी न जीहै ।

न जीहै कोऊ जो कदागचत काममनी कान मैं बाकी जु तान कु पी है ।।

कुपी है ववदे स संदेस न पावनत मेरी डब दे ह को मौन सजी है ।

सजी है तै मेरो कहा बस है सुतौ बैररनन बााँसुरी िेरर बजी है ।।120।।


मोर-पखा मसर ऊपर राखखहौं गुंज की माला गरें पहहरौंगी।

ओहढ वपतंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनन संग किरौंगी।।

भाव तो वोहह मेरो रसखानन सो तेरे कहें सब स्वााँग करौंगी।

र्या मुरली मुरलीधर की अधरान धरीं अधरा न धरौंगी।।121।

कामलय‍दिन

कववत्‍ि

आपनो सो ढोटा हम सब ही को जानत हैं,

दोऊ प्रानी सब ही के काज ननत धावहीं।

ते तौ रसखानन जब दरू तें तमासो दे ख,ैं

तरननतनूजा के ननकट नहहं आवहीं

आन हदन बात अनहहतुन सों कहौं कहा,

हहतू जेऊ आए ते र्ये लोचन रावहीं।

कहा कहौं आली खाली दे त सग ठाली पर,

मेरे बनमाली कों न काली तें छुरावहीं।।122।।

सवैया

लोग कहैं ब्रज के मसगरे रसखानन अनंहदत नंद जसोमनत जू पर।

छोहरा आजु नर्यो जनम्र्यौ तुम सो कोऊ भाग भरर्यौ नहहं भू पर।

वारर कै दाम साँवार करौ अपने अपचाल कुचाल ललू पर।

नाचत रावरो लाल गज


ु ाल सो काल सों व्र्याल-कपाल के ऊपर।।123।।

चीर‍हरण
सवैया

एक समै जमुना-जल मैं सब मज्जन हे त धसीं ब्रज-गोरी।

त्र्यौं रसखानन गर्यौ मनमोहन लै कर चीर कदं ब की छोरी।।

न्हाइ जबै ननकसी बननता चहुाँ ओर गचतै गचत रोष करो री।

हार हहर्यें भरर भावन सों पट दीने लला बचनामत


ृ धोरी।।124।।

प्रेिासक्ति

सवैया

प्रान वही जू रहैं ररखझ वा पर रूप वही जजहह वाहह ररझार्यौ।

सीस वही जजन वे परसे पर अंक वही जजन वा परसार्यौ।।

दध
ू वही जु दह
ु ार्यौ री वाही दही सु सही जु वही ढरकार्यौ।=

और कहााँ लौं कहौं रसखानन री भाव वही जु वही मन भार्यौ।।125।।

दे खन कौं सखी नैन भए न सबै बन आवत गाइन पाछैं ।

कान भए प्रनत रोम नहीं सुननबे कौं अमीननगध बोलनन आछैं ।।

ए सजनी न सम्हारर भरै वह बााँकी बबलोकनन कोर कटाछै ।

भूमम भर्यौ न हहर्यो मेरी आली जहााँ हरर खेलत काछनी काछै ।।126।।

मोरपखा मुरली बनमाल लखें हहर्य कों हहर्यरा उमह्र्यौ री,

ता हदन ते इन बैररनन को कहह कौन न बोल कुबोल सह्र्यौ री।।

तौ रसखानन सनेह लग्र्यौ कोउ एक कह्र्यौ कोउ लाख कह्र्यौ री।।

और तो रं ग रह्र्यौ न रह्र्यौ इक रं ग राँगी सोह रं ग रह्र्यौरी।।127।।

बन बाग तड़ागनन कंु जगली अाँखखर्यााँ मख


ु पाइहैं दे खख दई।
अब गोकुल मााँझ बबलोककर्यैगी बह गोप सभाग-सुभार्य रई।।

मममलहै हाँमस गाइ कबै रसखानन कबै ब्रजबालनन प्रेम भई।

वह नील ननचोल के घूाँघट की छबब दे खबी दे खन लाज लई।।128।।

काजहह पर्यौ मुरली-धन मैं रसखानन जू कानन नाम हमारो।

ता हदन तें नहहं धीर रखौ जग जानन लर्यौ अनत कीनौ पाँवारो।।

गााँवन गााँवन मैं अब तौ बदनाम भई सब सों कै ककनारो।

तौ सजनी किरर िेरर कहौं वपर्य मेरो वही जग ठोंकक नगारो।।129।।

दे खख हौं आाँखखन सों वपर्य कों अरु कानन सों उन बैन को प्र्यारी।

बााँके अनंगनन रं गनन की सरु भीनी सुगंधनन नाक मैं डारी।

त्र्यौं रसखानन हहर्ये मैं धरौं वहह सााँवरी मूरनत मैन उजारी।

गााँव भरौ कोउ नााँव धरौं पुनन सााँवरी हों बननहों सुकुमारी।।130।।

तुम चाहो सो कहौ हम तो नंदवारै के संग ठईं सो ठईं।

तुम ही कुलबीने प्रवीने सबै हम ही कुछ छााँडड़ गईं सो गईं।

रसखान र्यों प्रीत की रीत नई सुकलंक की मोटैं लईं सो लईं।

र्यह गााँव के बासी हाँसे सो हाँसे हम स्र्याम की दासी भईं सो भईं।।131।।

मोर पखा धरे चाररक चारु बबराजत कोहट अमेठनन िैं टो।

गुंज छरा रसखान बबसाल अनंग लजावत अंग करै टो।

ऊाँचे अटा चहढ एड़ी ऊाँचाइ हहतौ हुलसार्य कै हौंस लपेटो।

हौं कब के लखख हौं भरर आाँखखन आवत गोधन धूरर धूरैटो।।132।।

कंु जनन कंु जनन गुंज के पुंजनन मंजु लतानन सौं माल बनैबो।

मालती मजहलका कंु द सौं गहूं द हरा हरर के हहर्यरा पहहरै बौ।
आली कबै इन भावने भाइन आपुन रीखझ कै प्र्यारे ररझैबो।

माइ झकै हरर हााँकररबो रसखानन तकै किरर के मुसकेबो।।133।।

सब धीरज तर्यों न धरौं सजनी वपर्य तो तुम सों अनुरागइगौ।

जब जोग संजोग को आन बनै तब जोग ववजोग को मानेइगौ।

ननसचै ननरधार धरौ जजर्य में रसखान सबै रस पावेइगौ।

जजनके मन सो मन लागग रहै नतनके तन सौं तन लागेइगो।।134।।

उनहीं के सनेहन सानी रहैं उनहीं के जु नेह हदवानी रहैं।

उनहीं की सुनै न औ बैन त्र्यौं सैंन सों चैन अनेकन ठानी रहैं।

उनहीं संग डोलन मैं रसखान सबै सुखमसंध अघानी रहैं।

उनहीं बबन ज्र्यों जलहीन ह्वै मीन सी आाँखख अंसुधानी रहैं।।135।।

प्रेि‍बंधन

सवैया

चंदन खोर पै गचत्त लगार्य कै कंु जन तें ननकस्र्यौ मुसकातो।

राजत है बनमाल गले अरु मोरपखा मसर पै िहरातो।

मैं जब तें रसखान बबलोकनत हो कजु और न मोहह सह


ु ातो।

प्रीनत की रीनत में लाज कहा सखख है सब सों बड़ नेह को नातो।।136।।

कौन को लाल सलोनो सखी वह जाकी बड़ी अाँखखर्यााँ अननर्यारी।

जोहन बंक बबसाल के बाननन बेधत हैं घट तीछन भारी।

रसखानन सम्हारर परै नहहं चोट सु कोहट उपार्य करें सख


ु कारी।

भाल मलख्र्यौ ववगध हे त को बंधन खोमल सकै ऐसो को हहतकारी।।137।।


नेत्रोपालंभ

सवैया

आली पग रं गे जे रं ग सााँवरे मो पै न आवत लालची नैना।

धावत हैं उतहीं जजत मोहन रोके रुके नहहं घूाँघट रोना।

काननन कौं कल नाहहं परै सखी प्रेम सों भीजे सुनैं बबन नैना।

रसखानन भई मधु की मनछर्यााँ अब नेह को बंधन तर्यों हूाँ छुटे ना।।138।

श्री वस
ृ भान की छान धज
ु ा अटकी लरकान तें आन लई री।

वा रसखान के पानन की जानन छुड़ावनत रागधका प्रेममई री।

जीवन मरु र सी नेज मलए इनहूाँ गचतर्यौ ऊनहूाँ गचतई री।

लाल लली दृग जोरत ही सरु झानन गुड़ी उरझार्य दई री।।139।।

आब सबै ब्रज गोप लली हठठकौं ह्वै गली जमुना-जल न्हाने।

औचक आइ ममले रसखानन बजावत बेनु सुनावत ताने।

हा हा करी मससकीं मसगरी मनत मैन हरी हहर्यरा हुलसाने।

चूमें हदवानी अमानी चकोर सों ओर सों दोऊ चलैं दृग बाने।।140।।

कववत्‍ि

छूट्र्यौ गह
ृ काज लोक लाज मन मोहहनी को,

भूहर्यौ मन मोहन को मुरली बजाइबौ।

दे खो रसखान हदन द्वै में बात िैमल जै है ,

सजनी कहााँ लौं चंद हाथन दरु ाइबौ।


कामल ही कामलंदी कूल गचतर्यौ अचानक ही,

दोउन की दोऊ ओर मुरर मुसकाइबौ।

दोऊ परै पैंर्या दोऊ लेत हैं बलैर्या, इन्हें

भूल गई गैर्या उन्हें गागर उठाइबौ।।141।।

सवैया

मंजु मनोहर मूरर लखैं तबहीं सबहीं पतहीं तज दीनी।

प्राण पखेरू परे तलिें वह रूप के जाल मैं आस-अधीनी।

आाँख सों आाँख लड़ी जबहीं तब सों र्ये रहैं अाँसुधा रं ग भीनी।

र्या रसखानन अधीन भई सब गोप-लली तजज लाज नवीनी।।142।।

नंद को नंदन है दख
ु कंदन प्रेम के िंदन बााँगध लई हों।

एक हदन ब्रजराज के मंहदर मेरी अली इक बार गई हौं।

हे र्यौ लला लचकाइ कै मोतन जोहन की चकडोर भई हौं।

दौरी किरौं दृग डोरन मैं हहर्य मैं अनुराग की बेमल बई हौं।।143।।

तीरथ भीर में भमू ल परी अली छूट गइ नेकु धार्य की बााँही।

हौं भटकी भटकी ननकसी सु कुटुंब जसोमनत की जजहहं धााँही।

दे खत ही रसखान मनौ सु लग्र्यौ ही रह्र्यौ कब कों हहर्यरााँही।

भााँनत अनेकन भूली हुती उहह द्र्यौस कौ भूलनन भूलत नााँहीं।।144।।

समुझे न कछू अजहूाँ हरर सो अज नैन नचाइ नचाइ हाँसै।

ननत सास की सीखै उन्मात बनै हदन ही हदन माइ की कांनत नसै।

चहूाँ ओर बबा की सौ, सोर सुनैं मन मेतेऊ आवनत री सकसै।

पै कहा करौं र्या रसखानन बबलोकक हहर्यो हुलसै हुलसै हुलसै।।145।।


मारग रोकक रह्र्यौ रसखानन के कान परी झनकार नई है ।

लोक गचतै गचत दै गचतए नख तैं मनन माहहं ननहाल भई है ।

ठोढी उठाई गचतै मस


ु काई ममलाइ कै नैन लगाई लई है ।

जो बबनछर्या बजनी सजनी हम मोल लई पुनन बेगच दई है ।।146।।

जमुना-तट बीर गई जब तें तब तें जग के मन मााँझ तहौं।

ब्रज मोहन गोहन लागग भटू हौं लूट भई लूट सी लाख लहौं।

रसखान लला ललचाइ रहे गनत आपनी हौं कहह कासों कहौं।

जजर्य आवत र्यों अबतों सब भााँनत ननसंक ह्वै अंक लगार्य रहौं।।147।।

औचक दृजष्ट परे कहु कान्ह जू तासो कहै ननदी अनुरागी।

सो सुनन सास रही मख


ु मोहहं जजठानी किरै जजर्य मैं ररस पागी।

नीके ननहारर कै दे खे न आाँखखन हौं कबहूाँ भरर नैन न जागी।

मो पनछतावो र्यहै जु सखी कक कलंक लग्र्यौ पर अंक न लागी।।148।।

सास की सासनहीं चमलबो चमलर्यै ननमसद्र्यौस चलावे जजही ढं ग।

आली चबाव लुगाइन के डर जानत नहीं न नदी ननदी-संग।

भावती औ अनभावती भीर मैं छवै न गर्यौ कबहूाँ अंग सों अंग।

घैरु करैं घरुहाई सबै रसखानन सौं मो सौं कहा कहा न भर्यो रं ग।।149।।

घर ही घर घैरु घनौ घररहह घररहाइनन आगें न सााँस भरौं।

लखख मेररर्यै ओर ररसाहहं सबैं सतराहहं जौं सौं हैं अनेक करौं।

रसखानन तो काज सबैं ब्रज तौ मेरौ बेरी भर्यौ कहह कासों लरौं।

बबनु दे खे न तर्यों हूाँ ननमेषै लगैं तेरे लेखें न हू र्या परे खें मरौं।।150।।
दोहा

स्र्याम सघन घन घेरर कै, रस बरस्र्यौ रसखानन।

भई हदवानी पानन करर, प्रेम-मद्र्य मन मानन।।151।।

सवैया

कोउ ररझावन कौ रसखानन कहै मुकतानन सौं मााँग भरौंगी।

कोऊ कहै गहनो अंग-अंग दक


ु ू ल सुगंध पर्यौ पहहरौंगी।

तूाँ न कहै न कहैं तौं कहौं हौं कहूाँ न कहााँ तेरे पााँर्य परौंगी।

दे खहह तूाँ र्यह िूल की माल जसोमनत-लाल-ननहाल करौंगी।।152।।

प्र्यारी पै जाइ ककतौ परर पाइ पची समझाइ सखी की सौं बेना।

बारक नंदककशोर की ओर कह्र्यौ दृग छोर की कोर करै ना।

ह्वै ननकस्र्यौ रसखान कहू उत डीठ पर्यौ वपर्यरौं उपरै ना।

जीव सो पार्य गई पगचवार्य ककर्यौ रुगच नेह गए लगच नैंना।।153।।

सखखर्यााँ मनुहारर कै हारर रही भक


ृ ु टी को न छोर लली नचर्यौ।

चहुवा घनघोर नर्यौ उनर्यौ नभ नार्यक ओर गचत्ते गचतर्यौ।

बबकक आप गई हहर्य मोल मलर्यौ रसखान हहतू न हहर्यों ररझर्यौ।

मसगरो दुःु ख तीछन कोहट कटाछन काहट कै सौनतन बााँहट हदर्यौ।।154।।

खेलै अलीजन के गन मैं उत प्रीतम प्र्यारे सों नेह नवीनो।

बैननन बोघ करै इत कौं उत सैननन मोहन को मन लीनो।

नैननत की चमलबी कछु जानन सखी रसखानन गचतैवे कौं कीनो।

जा लखख पाइ जंभाइ गई चट


ु की चटकाइ ववदा करर दीनो।।155।।
मोहन के मन भाइ गर्यौ इक भाइ सों ग्वामलनै गोधन बार्यो।

ताकों लग्र्यौ चट, चौहट सों दरु र औचक गात सों गात छबार्यौ।

रसखानन लही इनन चातुरता चुपचाप रही जब लों घर आर्यो।

नैन नचाई गचत्तै मुसकाइ सू ओठ ह्वै जाइ अाँगठ


ू ा हदखार्यौ।।156।।

कान परे मद
ृ ु बैन मरु करर मौन रहौ पल आगधक साधे।

नंद बबा घर कों अकुलार्य गई दगध लैं बबरहानल दाधे।

पार्य दह
ु ू ननन प्राननन प्रान सों लाज दबै गचतर्ये दृग आने।

नैननन ही रसखान सनेह सही ककर्यो लेउ दही कहह राधे।।157।।

केसररर्या पट, केसरर खौर, बनौ गर गुंज को हार ढरारो।

को हौ जू आपनी र्या छवव सों जुखरे अाँगना प्रनत डीहठ न डारो।

आनन बबकाऊ से होई रहे रसखानन कहै तम्


ु ह रौकक दव
ु ारो।

'है तो बबकाऊाँ जौ लेत बनैं हाँसबोल ननहारो है मोल हमारो।।158।।

एक समर्य इक ग्वामलनन कों ब्रजजीवन खेलत दृजष्ट पर्यौ है ।

बाल प्रबीन सकै करर कै सरकाइ के मौरन चीर धर्यौ है।

र्यौं रस ही रस ही रसखानन सखी अपनीमन भार्यो कर्यौ है ।

नंद के लाडड़ले ढााँकक दै सीस इहा हमरो बरु हाथ भर्यौ है ।।159।।

मैं रसखान की खेलनन जीनत के मालती माल उतार लई री।

मैरीर्ये जानन कै सगू ध सबै चुप है रही काहु न खई री।

भावते स्वेद की, बास सखी ननदी पहहचानन प्रचंड भई री।

मैं लखखबो के अाँखखर्यााँ मुसकार्य लचार्य नचाइ दई री।।160।।


ब्रषभान के गेह हदवारी के द्र्यौस अहीर अहीरनन भीर भई।

जजतही नततही धुनन गोधन की सब ही ब्रज ह्वै रह्र्यौ राग मई।।

रसखान तबै हरर रागधका र्यों कछु सैननन ही रस बेल बई।

उहह अंजन आाँखखन आाँज्र्यौ भटू इत कंु कुम आड़ मललार दई।।161।।

बात सन
ु ी न कहूाँ हरर की न कहूाँ हरर सों मख
ु बोल हाँसी है ।

काजहह ही गोरस बेचन कौं ननकसी ब्रजवामसनन बीच लसी है ।।

आजु ही बारक 'लेहु दही' कहह कै कछु नैनन मे बबहसी है ।

बैररनन वाहह भई मस
ु कानन जु वा रसखानन के प्रान बसी है ।।162।।

ग्वामलन द्वैक भज
ु ान गहैं रसखानन कौं लाईं जसोमनत पाहैं।|

लूटत हैं कहैं र्ये बन मैं मन मैं कहैं र्ये सुख लट


ू कहााँ हैं।।

अंग ही अंग ज्र्यौं ज्र्यौं ही लगैं त्र्यौं त्र्यौं ही न अंग ही अंग समाहैं।

वे पछलैं उलटै पग एक तौ वे पछलैं उलटै पग जाहैं।।163।।

दरू तें आई दरु े हीं हदखाइ अटा चहढ जाइ गह्र्यौ तहााँ आरौ।

गचत कहूाँ गचतवै ककतहूाँ, गचत्त और सौं चाहह करै चखवारौ।

रसखानन कहै र्यहह बीच अचानक जाइ मसढी चहढ खास पुकारो।

रूखख गई सक
ु ु वार हहर्यो हनन सैन पटू कह्र्यौ स्र्याम मसधारौ।।164।।

दोहा

बंक बबलोकनन हाँसनन मुरर, मधुर बैन रसखानन।

ममले रमसक रसराज दोउ, हरखख हहर्ये रसखानन।।165।।

प्रेि-वेदन
सवैया

वह गोधन गावत गोधन मैं जब तें इहह मारग ह्वै ननकस्र्यौ।

तब ते कुलकानन ककतीर्य करौ र्यह पापी हहर्यो हुलस्र्यौ हुलस्र्यौ।

अब तौ जू भईसु भई नहहं होत है लोग अजान हाँस्र्यौ सुहाँस्र्यौ।

कोउ पीर न जानत सो नतनके हहर्य मैं रसखानन बस्र्यौ।।166।।

वा मुसकान पै प्रान हदर्यौ जजर्य जान हदर्यौ वहह तान पै प्र्यारी।

मान हदर्यौ मन माननक के संग वा मुख मंजु पै जोबनवारी।।

वा तन कौं रसखानन पै री ताहह हदर्यौ नहह ध्र्यान बबचारी।

सो मुंह मौरर करी अब का हुए लाल लै आज समाज में ख्वारी।।167।।

मोहन सों अटतर्यौ मनु री कल जाते परै सोई तर्यौं न बतावै।

व्र्याकुलता ननरखे बबन मूरनत भागनत भख


ू न भूषन भावै।।

दे खे तें नैकु सम्हार रहै न तबै झुकक के लखख लोग लजावै।

चैन नहीं रसखानन दह


ु ु ाँ ववगध भूली सबैं न कछू बनन आवें।।168।।

भई बावरी ढूाँढनत वाहह नतर्या अरी लाल ही लाल भर्यौ कहा तेरो।

ग्रीवा तें छूहट गर्यौ अबहीं रसखानन तज्र्यौ घर मारग हेरो।

डररर्यैं कहै मार्य हमारौ बुरी हहर्य नेकु न सुनो सहै नछन मेरो।

काहे को खाइबो जाइबो है सजनी अनखाइबो सीस सहे रो।।169।।

मो मन मोहन कों मममल कै सबहीं मस


ु कानन हदखाइ दई।

वह मोहनी मरू नत रूपमई सबहीं जजतई तब हौं गचतई।।

उन तौ अपने घर की रसखानन चलौ बबगध राह लई।


कछु मोहहं को पाप पर्यौ पल मैं पग पावत पौरर पहार भई।।170।।

डोमलबो कंु जनन कंु जनन को अरु बेनु बजाइबौ धेनु चरै बो।

मोहहनी ताननन सों रसखानन सखानन के संग को गोधन गैबो।

र्ये सब डारर हदए मन मारर ववसारर दर्यौ सगरौ सख


ु पैबौ।

भल
ू त तर्यों करर नेहन ही को 'दही' कररबो मस
ु काई गचतैबो।।171।।

प्रेम मरोरर उठै तब ही मन पाग मरोरनन में उरझावै।

रूसे से ह्वै दृग मोसों रहैं लखख मोहन मूरनत मो पै न आवै।।

बोले बबना नहहं चैन परै रसखानन सुने कल श्रीनन पावै।

भौंह मरोररबो री रूमसबो झुककबो वपर्य सों सजनी ननखरावै।।171।।

बागन में मुरली रसखान सन


ु ी सुननकै जजर्य रीझ पचैगो।

धीर समीर को नीर भरौं नहहं माइ झकै और बबा सकुचैगो।।

आली दरु े धे को चोटनन नैम कहो अब कौन उपार्य बचैगौ।

जार्यबौ भााँनत कहााँ घर सों परसों वह रास परोस रचैगौ।।173।।

बेनु बजावत गोधन गावत ग्वालन संग गली मगध आर्यौ।

बााँसुरी मैं उनन मेरोई नााँव सुग्वामलनन के ममस टे रर सन


ु ार्यौ।।

ए सजनी सुनन सास के त्रासनन नंद के पास उसास न आर्यौ।

कैसी करौ रसखानन नहहं हहत चैनन ही गचतचोर चुरार्यौ।।174।।

सोरठा

एरी चतरु सज
ु ान भर्यौ अजान हह जान कै।

तजज दीनी पहचान, जान अपनी जान कौं।।175।।


सवैया

पूरब पुन्र्यनन तें गचतई जजन र्ये अाँखखर्यााँ मुसकानन भरी जू।

कोऊ रहीं पुतरी सी खरी कोऊ घाट डरी कोऊ बाट परी जू।।

जे अपने घरहीं रसखानन कहैं अरु हौंसनन जानत मरी जू।

लाख जे बाल बबहाल करी ते ननहाल करी न ववहाल करी जू।।176।।

आजु री नंदलला ननकस्र्यौ तुलसीबन तें बन कैं मुसकातो।

दे खें बनै न बनै कहतै अब सो सुख जो मुख मैं न समातो।।

हौं रसखानन बबलोककबे कौं कुलकानन के काज ककर्यौ हहर्य हातो।

आइ गई अलबेली अचानक ए भटू लाज को काज कहा तो।।177।।

अनत लोक की लाज समूह में छौंरर के राखख थकी वह संकट सों।

पल मैं कुलमानन की मेड नखी नहहं रोकी रुकी पल के पट सों।

रसखानन सु केतो उचाहट रही उचटी न संकोच की औचट सों।

अमल कोहट ककर्यो हटकी न रही अटकी अाँमलर्या लटकी औचट सों।।178।।

रास‍लीला

कववत्‍ि

अधर लगाइ रस प्र्याइ बााँसरु ी बजाइ,

मेरो नाम गाइ हाइ जाद ू ककर्यौ मन मैं।

नटखट नवल सध
ु र नंदनंदन ने,

करर कै अचेत चेत हरर कै जतन मैं।


झटपट उलट पुलट पट पररधान,

जानन लागीं लाजन पै सबै बाम बन मैं।

रस रास सरस राँगीलो रसखानन आनन,

जानन जोरर जुगुनत बबलास ककर्यौ जन मैं।।179।।

सवैया

काछ नर्यौ इकतौ बर जेउर दीहठ जसोमनत राज कर्यौ री।

र्या ब्रज-मंडल में रसखान कछू तब तें रस रास पर्यौ री।।

दे खखर्यै जीवन को िल आजु ही लाजहहं काल मसंगार हौं बोरी।

केते हदनानन पै जाननत हो अंखखर्यान के भागनन स्र्याम नच्चौरी।।180।।

आजु भटू इक गोपकुमार ने रास रच्र्यौ इक गोप के द्वारे ।

सुंदर बाननक सों रसखानन बन्र्यौ वह छोहरा भाग हमारे ।

ए बबधना! जो हमैं हाँसतीं अब नेकु कहूाँ उतकों पग धारैं।

ताहह बदौं किरर आबे घरै बबनही तन औ मन जौवन बारैं।।181।।

आज भटू मुरली-बट के तट नंद के सााँवरे रास रच्र्यौ री।

नैननन सैननन बैननन सों नहहं कोऊ मनोहर भाव बच्र्यौ री।।

जद्र्यवप राखन कौं कुल कानन सबै ब्रज-बालन प्रान पच्र्यौ री।

तद्र्यवप वा रसखानन के हाथ बबकानी कौं अंत लच्र्यौ पै लच्र्यौ री।।182।।

कीजै कहा जु पै लोग चबाव सदा कररबौ करर हैं बजमारौ।

सीत न रोकत राखत कागु सुगावत ताहहरी गावन हारौ।

आव री सीरी करैं अाँखखर्या रसखान धनै धन भाग हमारौ।

आवत है किरर आज बन्र्यौ वह रानत के रास को नाचन हारौ।।183।।


सासु अछै बरज्र्यौ बबहटर्या जु बबलोके अतीक लजावत है ।

मौहह कहै जु कहूाँ वह बात कही र्यह कौन कहावत है ।

चाहत काहू के मूाँड़ चढर्यौ रसखान झक


ु ै झुकक आवत है।

जब तैं वह ग्वाल गली में नच्र्यौ तब तै वह नाच नचावत है ।।184।।

दे खत सेज बबछी री अछी सु बबछी ववष सो मभहदगो मसगरे तन।

ऐसी अचेत गगरी नहहं चेत उपार्य करे मसगरी सजनी जन।

बोली सर्यानी सखख रसखानन बचै र्यौं सुनाइ कह्र्यौ जुवती गन।

दे खन कौं चमलर्यै री चलौ सब रस रच्र्यौ मनमोहन जू बन।।185।।

फाग-लीला

सवैया

खेलत िाग लख्र्यौ वपर्य प्र्यारी को ता मख


ु की उपमा ककहहं दीजै।

दे खत ही बनन आवै भलै रसखान कहा है जो बार न कीजै।।

ज्र्यौं ज्र्यौं छबीली कहै वपचकारी लै एक लई र्यह दस


ू री लीजै।

त्र्यौं त्र्यौं छबीलो छकै छबब छाक सों हे रै हाँसे न टरै खरौ भीजै।।186।।

खेलत िाग सह
ु ागभरी अनरु ागहहं लालन कौं झरर कै।

मारत कंु कुम केसरर के वपचकाररन मैं रं ग को भरर कै।

गेरत लाल गल
ु ाल लली मन मोहहनी मौज ममटा करर कै।

जात चली रसखानन अली मदमत्त मनी-मन कों हरर कै।।187।।

िागुन लाग्र्यो जब तें तब तें ब्रजमंडल धूम मच्र्यौ है ।


नारर नवेली बचैं नहहं एक बबसेख र्यहै सबै प्रेम अच्र्यौ है ।।

सााँझ सकारे वही रसखानन सुरंग गुलाल लै खेल रच्र्यौ है ।

को सजनी ननलजी न भई अब कौन भटू जजहहं मान बच्र्यौ है ।।188।।

कववत्‍ि

आई खेमल होरी ब्रजगोरी वा ककसोरी संग।

अंग अंग अंगनन अनंग सरकाइ गौ।

कंु कुम की मार वा पै रं गनत उद्दार उड़े,

बत
ु का औ गल
ु ाल लाल लाल बरसाइगौ।

छौड़े वपचकाररन वपाररन बबगोई छौड़ै,

तोड़ै हहर्य-हार धार रं ग तरसाइ गौ।

रमसक सलोनो ररझवार रसखानन आजु,

िागुन मैं औगुन अनेक दरसाइ गौ।।189।।

गोकुल को ग्वाल काजहह चौमुंह की ग्वामलन सों,

चाचर रचाइ एक धूमहहं मचाइ गौ।

हहर्यो हुलसाइ रसखानन तान गाइ बााँकी,

सहज सुभाइ सब गााँव ललचाइ गौ।

वपचका चलाइ और जुवती मभंजाइ नेह,

लोचन नचाइ मेरे अगहह नचाइ गौ।

सासहहं नचाइ भोरी नंदहह नचाइ खोरी,

बैरनन सचाइ गोरी मोहह सकुचाइ गौ।।190।।

सवैया

आवत लाल गुलाल मलर्यें मग सूने ममली इस नार नवीनी।


त्र्यौं रसखानन लगाइ हहर्यें मौज ककर्यौ मन माहहं अधीनी।

सारी िटी सक
ु ु मारी हटी अंगगर्या दर की सरकी रगभीनी।

गाल गुलाल लगाइ लगाइ कै अंक ररझाइ बबदा करर दीनी।।191।।

लीने अबीर भरे वपचका रसखानन खरौ बहु भार्य भरौ जू।

मार से गोपकुमार कुमार से दे खत ध्र्यान टरौ न टरौ ज।ू ।

परू ब पन्
ु र्यनन हाथ पर्यौ तम
ु राज करौ उहठ काज करौ ज।ू

ताहह सरौ लखख लाज जरौ इहह पाख पनतव्रत ताख धरौ ज।ू ।192।।

मममल खेलत िाग बढ़्र्यौ अनुराग सुराग सनी सुख की रमकैं ।

करर कंु कुम लै कर कंजमुखी वप्रर्य के दृग लावन कौं धमकैं ।।

रसखानन गुलाल की धूाँधर मैं ब्रजबालन की दनु त र्यौ दमकैं ।

मनौ सावन मााँझ ललाई के मांज चहूाँ हदमस तें चपला चमकैं ।।193।।

राधा‍का‍सौंदयय

कववत्‍ि

आजु बरसाने बरसाने सब आनंद सों,

लाडड़ली बरस गााँहठ आई छबब छाई है ।

कौतुक अपार घर घर रं ग बबसतार,

रहत ननहारर सुध बुध बबसराई है ।

आर्ये ब्रजराज ब्रजरानी दगध दानी संग,

अनत ही उमंगे रूप रामस लूहट पाई है ।

गुनी जन गान धन दान सनमान, बाजे -

पौरनन ननसान रसखान मन भाई है ।।194।।

कैं धो रसखान रस कोस दृग प्र्यास जानन,


आनन के वपर्यष
ू पूष कीनो बबगध चंद घर।

काँधों मनन माननक बैठाररबै को कंचन मैं,

जररर्या जोबन जजन गहढर्या सुघर घर।

कैं धों काम कामना के राजत अधर गचन्ह,

कैं धों र्यह भौर ज्ञान बोहहत गुमान हर।

एरी मेरी प्र्यारी दनु त कोहट रनत रं भा की,

वारर डारों तेही गचत चोरनन गचबुक पर।।195।।

सवैया|

श्री मुख र्यों न बखान सकै वष


ृ भान सुता जू को रूप उजारो।

हे रसखान तू ज्ञान संभार तरै नन ननहार जू रीझन हारो।

चारु मसंदरू को लाल रसाल लसै ब्रज बाल को भाल हटकारो।

गोद में मानौं बबराजत है घनस्र्याम के सारे को सारे को सारो।।196।।

अनत लाल गुलाल दक


ु ू ल ते िूल अली! अनत कंु तल रासत है ।

मखतूल समान के गुंज घरानन मैं ककं सक


ु की छवव छाजत है ।।

मुकता के कंदब ते अंब के मोर सुने सुर कोककल लाजत है ।

र्यह आबनन प्र्यारी जू की रसखानन बसंत-सी आज बबराजत है ।।197।।

न चंदन खैर के बैठी भटू रही आजु सुधा की सुता मनसी।

मनौ इंदब
ु धून लजावन कों सब ज्ञाननन काहढ धरी गन सी।।

रसखानन बबराजनत चौकी कुचौ बबच उत्तमताहह जरी तन सी।

दमकै दृग बान के घार्यन कों गगरर सेत के सगध के जीवन सी।।198।।

आज साँवारनत नेकु भटू तन, मंद करी रनत की दनु त लाजै।


दे खत रीखझ रहे रसखानन सु और छटा ववगधना उपराजै।

आए हैं न्र्यौतें तरै र्यन के मनो संग पतंग पतंग जू राजै।

ऐसें लसै मुकुतागन मैं नतत तेरे तरौना के तीर बबराजै।।199।।

प्र्यारी की चारु मसंगार तरं गनन जार्य लगी रनत की दनु त कूलनन।

जोबन जेब कहा कहहर्यै उर पै छवव मंजु अनेक दक


ु ू लनन।

कंचक
ु ी सेत मैं जावक बबंद ु बबलोकक मरैं मघवानन की सल
ू नन।

पज
ू े है आजु मनौ रसखान सु भत
ू के भप
ू बंधक
ू के िूलनन।।200।।

बााँकी मरोर गटी भक


ृ ु टीन लगीं अाँखखर्यााँ नतरछानन नतर्या की।

क सी लााँक भई रसखानन सुदाममनी तें दनु त दन


ू ी हहमा की।।

सोहैं तरं ग अनंग को अंगनन ओप उरोज उठी छमलर्या की।

जोबनन जोनत सु र्यौं दमकै उकसाइ दइ मनो बाती हदर्या की।।201।।

वासर तूाँ जु कहूाँ ननकरै रबब को रथ मााँझ आकाश अरै री।

रै न र्यहै गनत है रसखानन छपाकर आाँगन तें न टरै री।।\्

र्यौस ननस्वास चहर्यौई करै ननमस द्र्यौस की आसन पार्य धरै री।

तेजो न जात कछू हदन रानत बबचारे बटोही की बाट परै री।।202।।|्ा

को लसै मुख चंद समान कमानी सी भौंह गुमान हरै ।

दीरघ नैन सरोजहुाँ तैं मग


ृ खंजन मीन की पााँत दरै ।

रसखान उरोज ननहारत ही मुनन कौन समागध न जाहह टरै ।

जजहहं नीके नवै कहट हार के भार सों तासों कहैं सब काम करै ।।203।।

प्रेम कथानन की बात चलैं चमकै गचत चंचलता गचनगारी।

लोचन बंक बबलोकनन लोलनन बोलनन मैं बनतर्यााँ रसकारी।


सोहैं तरं ग अनंग को अंगनन कोमल र्यौं झमकै झनकारी।

पूतरी खेलत ही पटकी रसखानन सु चौपर खेलत प्र्यारी।।204।।

िानविी‍राधा

कववत्‍ि

वारनत जा पर ज्र्यौ न थकै चहुाँ ओर जजती नप


ृ ती धरती है ।

मान सखै धरती सों कहााँ जजहह रूप लखै रनत सी रती है ।

जा रसखान बबलोकन काजू सदाई सदा हरती बरती है ।

तो लगग ता मन मोहन कौं अाँखखर्यााँ ननमस द्र्यौस हहा करती है ।।205।।

मान की औगध है आधी घरी अरी जौ रसखानन डरै हहत कें डर।

कै हहत छोडड़र्ये पाररर्यै पाइनन एसे कटाछन हीं हहर्यरा-हर।।

मोहनलाल कों हाल बबलोककर्यै नेकु कछू ककनन छ्वै कर सों कर।

ना कररबे पर वारे हैं प्रान कहा करर हैं अब हााँ कररबे पर।।206।।|

तू गरबाइ कहा झगर रसखानन तेरे बस बाबरो होसै।|

तौ हूाँ न छाती मसराइ अरी करर झार इतै उतै बाखझन कोसै।

लालहह लाल ककर्यें अाँखखर्यााँ गहह लालहह काल सौं तर्यौ भई रोसै।

ऐ बबधना तू कहा री पढी बस राख्र्यौ गुपालहहं लाल भरोसै।।207।।

वपर्य सों तुम मान कर्यौ कत नागरर आजु कहा ककनहूाँ मसख दीनी।

ऐसे मनोहर प्रीतम के तरुनी बरुनी पग पोछ नवीनी।।

सुंदर हास सुधाननगध सो मख


ु नैननन चैन महारस भीनी।।

रसखानन न लागत तोहहं कछू अब तेरी नतर्या ककनहूाँ मनत दीनी।।208।।

कववत्‍ि
डहडही बैरी मंजु डार सहकार की पै,

चहचही चुहल चहूककत अलीन की।

लहलही लोनी लता लपटी तमालन पै,

कहकही तापै कोककला की काकलीन की।।

तहतही करर रसखानन के ममलन हे त,

बहबही बानन तजज मानस मलीन की।

महमही मंद-मंद मारुत ममलनन तैसी,

गहगही खखलनन गुलाब की कलीन को।।209।।

सवैया

जो कबहूाँ मग पााँव न दे तु सु तो हहत लालन आपुन गौनै।

मेरो कह्र्यौ करर मान तजौ कहह मोहन सों बमल बोल सलौने।

सौहें हदबावत हौं रसखानन तूाँ सौंहैं करै ककन लाखनन लौने।

नोखी तूाँ माननन मान कर्यौ ककन मान बसत मैं कीनी है कौनै।।210।।

सखी‍मिक्षा

सवैया

सोई है रास मैं नैसुक नाच कै नाच नचार्यौ ककतौ सबकों जजन।

सोई है री रसखानन ककते मनुहाररन सूाँघे गचतौत न हो नछन।।

तौ मैं धौं कौन मनोहर भाव बबलोकक भर्यौ बस हाहा करी नतन।

औसर ऐसौ ममलै न ममलै किर लगर मोड़ो कनौड़ौ करै नछन।।211।।

तौ पहहराइ गई चरु रर्या नतहहं को घर बादरी जार्य भरै री।


वा रसखान कों ऐतौ अधीन कैं मान करै चमल जाहह परै री।।

आबन कों पुततीत हठा करैं नैंननन धारर अखंड ढरै री।

हाथ ननहारर ननहारर लला मननहाररन की मनुहारर करै री।।212।।

मेरी सुनौ मनत आइ अली उहााँ जौनी गली हरर गावत है ।

हरर है बबलोकनत प्राननन कों पनु न गाढ परें घर आवत है ।।

उन तान की तान तनी ब्रज मैं रसखानन समान मसखावत है ।

तकक पार्य घरौं रपटार्य नहीं वह चारो सो डारर िाँदावत है ।।213।।

काहे कूाँ जानत जसोमनत के गह


ृ पोच भली घर हूाँ तो रई ही।

मानुष को डमसबौ अपुनो हाँमसबौ र्यह बात उहााँ न नई ही।।

बैररनन तौ दृग-कोरनन में रसखान जो बात भई न भई ही।

माखन सौ मन लैं र्यह तर्यों वह माखनचोर के ओर नई ही।।214।।

हे रनत बारहीं र्यार उसै तुव बाबरी बाल, कहा धौ करै गी।

जौं कबहूाँ रसखानन लखै किर तर्यों हूाँ न बीर ही धीर धरै गी।

मानन ऐ काहू की कानन नहीं, जब रूपी ठगी हनत रं ग ढरै गी।

र्यातैं कहौं मसख मानन भटू र्यह हे रनन तेरे ही पैड़े परै गी।।215।।

बााँके कटाक्ष गचतैबो मसख्र्यौ बहुधा बरज्र्यौ हहत कै हहतकारी।

तू अपने ढं ग की रसखानन मसखावनन दे नत न हौं पगचहारी।

कौन की सीख मसखीं सजनी अजहूाँ तजज दै बमल जाउाँ नतहारी।

नंद के नंदन के िंद अजाँू परर जैहै अनोखी ननहाररननहारी।।216।।

बैररन तूाँ बरजी न रहै अबही घर बाहहर बैरु बढै गौ।

टौना सुनंद छुटोना पढै सजनी तुहह दे खख बबसेवष पढै गौ।।


हाँमस है सखख गोकुल गााँव सतै रसखानन तबै र्यह लोक रढै गौ।

बैरु चढै धरहहं रहह बैहठ अटा न एढै बघनाम चढै गौ।।217।।

गोरस गााँव ही मैं बबगचबो तगचबौ नहीं नंद-मुखानल झारन।

गैल गहें चमलर्यै रसखानन तौ पाप बबना डररर्यै ककहह कारन।।

नाहह री ना भटू, तर्यों करर कै बन पैठत पाइवी लाज सम्हारन।

कंु जनन नंदकुमार बसै तहााँ मार बसै कचनार की डारन।।218।।

बार ही गोरस बेंगच री आजु तू माइ के मूढ चढै कत मौंड़ी।

आवत जात ही होइगी सााँझ भटू जमुना मतरौंड लौ औंड़ी।

पार गए रसखानन कहै अाँखखर्यााँ कहूाँ होहहंगी प्रेम कनौड़ी।

राधे बलाइ हलौं जाइगी बाज अबै ब्रजराज सनेह की डौंड़ी।।219।।

कववत्‍ि

ब्र्याहीं अनब्र्याहीं ब्रज माहीं सब चाही तासौं,

दन
ू ी सकुचाहीं दीहठ परै न जन्
ु है र्या की।

नेकु मुसकानन रसखानन को बबलोकनत ही,

चेरी होनत एक बार कंु जनन हदखैर्या की।

मेरो कह्र्यौ मानन अंत मेरो गुन माननहै री,

प्रात खात जात न सकात सोहैं मैर्या की।

माई की अटं क तौ लौं सासु की हटक जौ लौं,

दे खी ना लटक मेरे दल
ू ह कन्है र्या की।।220।।

सवैया
मो हहत तो हहत है रसखान छपाकर जानहहं जान अजानहहं।

सोच चबाव चहर्यौ चहुाँधा चमल री चमल रीखत रोहह ननदानहहं।

जो चहहर्यै लहहर्यै भरर चाहह हहर्ये उहहर्यै हहत काज कहा नहहं।

जान दे सास ररसान दै नंदहहं पानन दे मोहह तू कान दै तानहहं।।221।।

तेरी गलीन मैं जा हदन ते ननकसे मन मोहन गोधन गावत।

र्ये ब्रज लोग सो कौन सी बात चलाइ कै जो नहहं नैन चलावत।

वे रसखानन जो रीझहैं नेकु तौ रीखझ कै तर्यों न बनाइ ररझावत।

बावरी जौ पै कलंक लग्र्यौ तो ननसंक है तर्यौं नहीं अंक लगावत।।222।।

जाहु न कोऊ सखी जमुना जल रोके खड़ो मग नंद को लाला।

नैन नचाइ चलाइ गचतै रसखानन चलावत प्रेम को भाला।

मैं जु गई हुती बैरन बाहर मेरी करी गनत टूहट गौ माला।

होरी भई कै हरी भए लाल कै लाल गुलाल पगी ब्रजमाला।।223।।

सोरठा

अरी अनोखी बाम, तू आई गौने नई।

बाहर धरमस न पार्य, है छमलर्या तुव ताक मैं।।224।।

संयोग-वणयन

सवैया

बबहरैं वपर्य प्र्यारी सनेह सने छहरैं चुनरी के िवा कहरैं।

मसहरैं नव जोबन रं ग अनंग सुभंग अपांगनन की गहरैं।


बहरें रसखानन नदी रस की लहरैं बननता कुल हू भहरैं।

कहरैं बबरही जन आतप सों लहरैं लली लाल मलर्ये पहरैं।।225।।

सोई हुती वपर्य की छनतर्यााँ लगग बाल प्रबीन महा मद


ु मानै।

केस खुले छहरैं बहरैं िहरैं छबब दे खत मैन अमानै।

वा रस मैं रसखानन पगी रनत रै न जगी अाँखखर्यााँ अनम


ु ानै।

चंद पै बबंब औ बबंब कैरव कैरव पै मक


ु ता प्रर्यानै।।226।।

अंगनन अंग ममलाइ दोऊ रसखानन रहे मलपटे तरु घाहीं।

संगनन संग अनंग को रं ग सुरंग सनी वपर्य दै गल बाहीं।

बैन ज्र्यौं मैन सु ऐन सनेह को लूहट रहे रनत अंदर जाहीं।

नीबी गहै कुच कंचन कंु भ कहै बननता वपर्य नाही जु नाहीं।।227।।

आज अचानक रागधका रूप-ननधान सों भें ट भई बन माहीं।

दे खत दीहठ परे रसखानन ममले भरर अंक हदर्ये गलबाहीं।

प्रेम-पगी बनतर्यााँ दह
ु ु ाँ घााँ की दह
ु ु ाँ कों लगीं अनत ही जजत चाहीं।

मोहहनी मंत्र बसीकर जंत्र हटा वपर्य की नतर्य की नहहं नाही।।228।।

वह सोई हुती परजंक लली लला लोनो सु आह भुजा भररकै।

अकुलाइ कै चौंकक उठी सु डरी ननकरी चहैं अंकनन तें िररकै।

झटका झटकी मैं िटौ पटुका दर की अंगगर्या मुकता झररकै।

मुख बोल कढे ररस से रसखानन हटौ जू लला ननबबर्या धररकै।।229।।

अाँखखर्यााँ अाँखखर्यााँ सों सकाइ ममलाइ हहलाइ ररझाइ हहर्यो हररबो।

बनतर्या गचत चोरन चेटक सी रस चारु चररत्रन ऊगचरबो।।

रसखानन के प्रान सुधा भररबो अधरान पै त्र्यौं अधरा धररबो।


इतने सब मैन के मोहहनी जंत्र पै मंत्र वसीकर सो कररबौ।।230।।

बागन का को जाओ वपर्या, बैठी ही बाग लगाभ हदखाऊाँ।

एड़ी अनाकर सी मौरर रही, बररर्यााँ दोउ चंपे की डार नवाऊाँ।।

छातनन मैं रस के ननबुआ अरु घूाँघट खोमल कै दाख चखाऊाँ।

टााँगन के रस चसके रनत िूलनन की रसखानन लट


ू ाऊाँ।।231।।

ववयोग-वणयन

सवैया

िूलत िूल सवै बन बागन बोलत मौर बसंत के आवत।

कोर्यल की ककलकारी सन
ु ै सब कंत बबदे हन तें सब धावत।

ऐसे कठोर महा रसखान जु नेकुह मोरी र्ये पीर न पावत।

हक ही सालत है हहर्य में जब बैररन कोर्यल कूक सुनावत।।232।।

रसखान सुनाह ववर्योग के ताप मलीन महा दनु त दे ह नतर्या की।

पंकज सौ मख
ु गौ मुरझार्य लगी लपटैं बरै स्वााँस हहर्या की।

ऐसे में आवत कान्ह सुने हुलसै सुतनी तरकी अंगगर्या की।

र्यों जन जोनत उठी तन की उकसार्य दई मनौ बाती हदर्या की।।233।।

बबरहा की जू आाँच लगी तन में तब जार्य परी जमन


ु ा जल में ।

जब रे त िटी रु पताल गई तब सेस जर्यौ धरती-तल में ।

रसखान तबै इहह आाँच ममटे तब आर्य कै स्र्याम लगैं गल मैं।।234।।

बाल गुलाब के नीर उसीर सों पीर न जाइ हहर्यैं, जजन ढारी।
कंज की माल करौ जू बबछावत होत कहा पुनन चंदन गारौ।

एते इलाज बबकाज करौं रसखानन कों काहे कों जारे पै जारौ।

चाहत हौ जु नछवार्यौ भटू तौ हदखाबौं बड़ी बड़ी आाँखनवारो।।235।।

काह कहूाँ रनतर्यााँ की कथा बनतर्यााँ कहह आवत है न कछू री।

आइ गोपाल मलर्यौ भरर अंक ककर्यौ मनभार्यौ वपर्यौ रस कू री।

ताहह हदना सों गड़ी अाँखखर्यााँ रसखानन मेरे अंग अंग मैं परू ी।

पै न हदखाई परै अब बाबरी दै कै बबर्योग बबथा मजरू ी।।236।।

कववत्‍ि

काह कहूाँ सजनी संग की रजनी ननत बीतै मुकंु द कोंटे री।

आवन रोज कहैं मनभावन आवन की न कबौ करी िेरी।

सौनतन-भाग बढ़्र्यौ ब्रज मैं जजन लूटत हैं ननमस रं ग घनेरी।

मो रसखानन मलखी बबधना मन माररकै आर्यु बनी हौं अहे री।।237।।

सवैया

आर्ये कहा करर कै कहहए वष


ृ मान लली सों लला दृग जोरत।

ता हदन तें अाँसुवान की धार रुकी नहीं जद्र्यवप लोग ननहोरत।

बेगग चलो रसखान बलाइ लौं तर्यों अमभमानन भौंह मरोरत।

प्र्यारे ! सुंदर होर्य न प्र्यारी अबै पल अगधक में ब्रज बोरत।।238।।

गोकुल के बबछुरे को सखी दख


ु प्रान ते नेकु गर्यौ नहीं काढ़्र्यौ।

सो किर कोस हजार तें आर्य कै रूप हदखार्य दधे पर दाध्र्यौ।|

सो किर द्वाररका ओर चले रसखान है सोच र्यहै जजर्य गाढ़्र्यौ।


कौन उपार्य ककर्ये करर है ब्रज में बबरहा कुरुक्षेत्र को बाढ़्र्यौ।।239।।

गोकुल नाथ बबर्योग प्रलै जजमम गोवपन नंद जसोमनत जू पर।

बाहह गर्यौ अाँसुवान प्रवाह भर्यौ जल में ब्रजलोक नतहू पर।।

तीरथराज सी रागधका सु तो रसखान मनौं ब्रज भू पर।

परू न ब्रह्म ह्वै ध्र्यान रह्र्यौ वपर्य औगध अखैबट पात के ऊपर।।240।।

ए सजनी जब तें मैं सुनी मथुरा नगरी बरषा ररतु आई।

लै रसखान सनेह की ताननन कोककल मोर मलार मचाई।

सााँझ तें भोर लौं भोर तें सााँझ लौं गोवपन चातक ज्र्यौं रट लाई।

एरी सखी कहहर्ये तो कहााँ लगग बैर अहीर ने पीर न पाई।।241।।

मग हे रत धू धरे नैन भए रसना रट वा गुन गावन की।

अंगुरी-गनन हार थकी सजनी सगुनौती चलै नहह पावन की।

पगथकौ कोऊ ऐसाजु नाहहं कहै सुगध है रसखान के आवन की।

मनभावन आवन सावन में कहीं औगध करी डग बावन की।।242।।

सपत्‍नी-भाव

सवैया

वा रसखानन गन
ु ौं सनु न के हहर्यरा अत टूक ह्वै िाहट गर्यौ है ।

जाननत हैं न कछू हम ह्र्यााँ उनवााँ पहढ मंत्र कहा धौं दर्यौ है ।

सााँची कहैं जजर्य मैं ननज जानन कै जाननत हैं जस जैसो लर्यौ है ।

लोग लग
ु ाई सबै ब्रज मााँहह कहैं हरर चेरी को चेरो भर्यो है ।।243।।
जानै कहा हम मूढ सवै समझीन तबै जबहीं बनन आई।

सोचत हैं मन ही मन मैं अब कीजै कस बननर्यााँ जुगाँवाई।।

नीचो भर्यौ ब्रज को सब सीस मलीन भई रसखानन दह


ु ाई।

चेरी को चेटक दे खहु ही हाई चेरो ककर्यौ धौं कहा पहढ माई।।244।।

काइ सौं माई वह कररर्यै सहहर्यै सोई जो रसखान सहावैं।

नेर्य कहा जब और ककर्यौं तब नागचर्यै सोई जौ नचावैं।

चाहत है हम और कहा सखख तर्यों हू कहू वपर्य दे खन पावैं।

चररर्यै सौं जगप


ु ाल रच्र्यौ तौं भली ही सबै मममल चेरी कहावें।।245।।

भेती जू पें कुबरी ह्र्यााँ सखी भरी लातन मूका बकोटती लेती।

लेती ननकारर हहर्ये की सबै नक छे हद कौड़ी वपराइ कै दे ती।।

दे ती नचाइ कै नाच वा रााँड कौं लाल ररझावन को िल सेती।

सेती सदााँ रसखानन मलर्यें कुबरी के करे जनन सूलसी भेती।।246।।

कुबमलयापीड़-वध

सवैया

कंस के क्रोध की िैमल रही मसगरे ब्रजमंडल मााँझ िुकार सी।

आइ गए कछनी कनछकै तबहीं नट-नागरे नंद कुमार-सी।।

द्वैरद को रद खैंगच मलर्यौ रसखान हहर्ये माहह लाई ववमार-सी।

लीनी कुठौर लगी लखख तोरर कलंक तमाल तें कीरनत-डार सी।।247।।

उद्धव-उपदे ि

सवैया
जोग मसखावत आवत है वह कौन कहावत को है कहााँ को।

जाननत हैं बर नागर है पर नेकहु भेद लख्र्यौ नहहं ह्र्यााँ को।

जाननत ना हम और कछू मुख दे खख जजर्यै ननत नंदलला को।

जात नहीं रसखानन हमैं तजज राखनहारी है मोरपखा को।।248।।

अंजन मंजन त्र्यागौ अली अंग धारर भभूत करौ अनुरागै।

आपुन भाग कर्यौ सजनी इन बावरे ऊधो जू को कहााँ लागै।

चाहै सो और सबै कररर्यै जू कहै रसखान सर्यानप आगै।

जो मन मोहन ऐसी बसी तो सबै री कहौ मुर्य गोरस जागै।।249।।

लाज के लेप चढाइ कै अंग पची सब सीख को मंत्र सन


ु ाइ कै।

गारुड़ ह्वै ब्रज लोग भतर्यौ करर औषद बेसक सौहैं हदखाइ कै।।

ऊधौ सौं रसखानन कहै मलन गचत्त धरौ तुम एते उधाइ कै।

कारे बबसारे को चाहैं उतर्यौ अरे बबख बाबरे राख लगाइ कैं ।।250।।

सार की सारी सो पारीं लगै धररबे कहै सीस बघंबर पैर्या।

हााँसी सो दासी मसखाई लई है बेई जु बेई रसखानन कन्है र्या।

जोग गर्यौ कुबजा की कलानन मैं री कब ऐहै जसोमनत मैर्या।

हाहा न ऊधौ कुढाऔ हमें अब हीं कहह दै ब्रज बाजे बधैर्या।।251।।

ब्रज-प्रेि

सवैया

र्या लकुटी अरु कामररर्या पर राज नतहुाँ परु को तजज डारौं।


आठहु मसद्ध ननवौ ननगध को सुख नंद की गाइ चराइ बबसारौं।

ए रसखानन जबैं इन नैनन ते ब्रज के बन बाग तड़ाग ननहारौं।

कोहटक र्ये कलधौत के धाम करील की कंु जन ऊपर बारौं।।252।।

कववत्‍ि

ग्वालन संग जैबो बन एबौ सु गार्यन संग,

हे रर तान गैबो हा हा नैन कहकत हैं।

ह्र्यााँ के गज मोती माल वारौं गुंज मालन पै,

कंु ज सुगध आए हार्य प्रान धरकत हैं।

गोबर को गारौ सु तो मोहह लागै प्र्यारी कहा,

भर्यौ मौन सोने के जहटत मरकत हैं।

मंदर ते ऊाँचे र्यह मंहदर है द्वाररका के,

ब्रज के खखरक मेरे हहर्ये खरकत हैं।।253।।

गंगा‍िहहिा

सवैया

इक ओर ककरीट लसै दस
ु री हदमस नागन के गन गाजत री।

मुरली मधुरी धुनन आगधक ओठ पै आगधक नंद से बाजत री।

रसखानन वपतंबर एक कंधा पर एक वाघंबर राजत री।

कोउ दे खउ संगम लै बुड़की ननकसे र्यहह मेख सों छाजत री।।254।।

बैद की औषध खाइ कछू न करै बहु संजम री सनु न मोसें।

तो जल-पान ककर्यौ रसखानन सजीवन जानन मलर्यौ रस तोसें।


ए री सुधामई भागीरथी ननत पथ्र्य अपथ्र्य बनै तोहहं पोसें।

आक धतूरो चबात किरै बबख खात किरै मसब तेरै भरोसे।।255।।

मिव-िहहिा

सवैया

र्यह दे खख धतूरे के पात चबात औ गात सों धमू ल लगावत है ।।

चहुाँ ओर जटा अटकै लटके िनन सों किनी िहरावत हैं।।

रसखानन सोई गचतवै गचत दै नतनके दख


ु दं द भजावत हैं।

गज खाल की माल ववसाल सो गाल बजावत आवत हैं।।256।।

You might also like