You are on page 1of 1

हनम

ु ान चालीसा चाहत सीय असोक सों आगि स,ु दै प्रभु मद्रि ु का सोक निवारो।
दोहा : बाण लगयो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सत ु रावन मारो।
श्रीगरु ु चरन सरोज रज, निज मनु मक ु ु रु सध ु ारि। लै गह ृ बैद्य सषु न
े समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
बरनऊं रघब ु र बिमल जस,ु जो दायकु फल चारि।। आनि सजीवन हाथ दिए तब, लछिमन के तम ु प्रान उबारो।
बद्ु धिहीन तनु जानिके, समि ु रौं पवन-कुमार। रावन जद् ु ध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो।
बल बद् ु धि बिद्या दे हु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।। श्रीरघनु ाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।
चौपाई : आनि खगेस तबै हनम ु ान ज,ु बंधन काटि सत्र ु ास निवारो।
जय हनम ु ान ज्ञान गन ु सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।। बंधू समेत जबै अहिरावन, लै रघन ु ाथ पताल सिधारो।
रामदत ू अतलि ु त बल धामा। अंजनि पत्र ु पवनसत ु नामा।। दे बिहिं पजि
ू भलि बिधि सों बलि, दे उ सबै मिलि मंत्र बिचारो।
महाबीर बिक्रम बजरं गी। कुमति निवार सम ु ति के संगी।। जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।
कंचन बरन बिराज सब ु ेसा। कानन कंु डल कंु चित केसा।। काज किए बड़ दे वन के तम ु , बीर महाप्रभु दे खि बिचारो।
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै। कांधे मज ंू जनेऊ साजै। कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तम ु सों नहिं जात है टारो।
शंकर सव ु न केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।। बेगि हरो हनम ु ान महाप्रभ,ु जो कछु संकट होए हमारो।
विद्यावान गन ु ी अति चातरु । राम काज करिबे को आतरु ।।
प्रभु चरित्र सनि ु बे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।। ।। दोहा।।
सक्ष् ू म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।। लाल दे ह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगरू ।
भीम रूप धरि असरु संहारे । रामचंद्र के काज संवारे ।। बज्र दे ह दानव दलन, जय जय जय कपि सरू ।।
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघब ु ीर हरषि उर लाये।।
रघप ु ति कीन्ही बहुत बड़ाई। तम ु मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तम् ु हरो यश गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।। बजरं ग बाण
सनकादिक ब्रह्मादि मन ु ीसा। नारद सारद सहित अहीसा।। दोहा :
यम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।। निश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करैं सनमान।
तम ु उपकार सग्र ु ीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।। तेहि के कारज सकल शभ ु , सिद्ध करैं हनम
ु ान॥
तम् ु हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जग ु सहस्र योजन पर भान।ू लील्यो ताहि मधरु फल जान।ू । चौपाई :
प्रभु मद्रि ु का मेलि मख ु माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।। जय हनम ु तं संत हितकारी। सनि ु लीजै प्रभु अरज हमारी॥
दर्गु म काज जगत के जेत।े सग ु म अनग्र ु ह तम् ु हरे तेत।े । जन के काज विलंब न कीजै। आतरु दौरि महा सख ु दीजै॥
राम दआ ु रे तम ु रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।। जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सरु सा बदन पैठि बिस्तारा॥
सब सख ु लहै तम् ु हारी सरना। तम ु रक्षक काहू को डर ना।। आगे जाय लंकिनी रोका। मारे हु लात गई सरु लोका॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांप।ै । जाय विभीषण को सख ु दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
भत ू पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सन ु ावै।। बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतरु यम कातर तोरा॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरं तर हनम ु त बीरा।। अक्षय कुमार को मार संहारा। लम ू लपेट लंक को जारा॥
संकट से हनम ु ान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।। लाह समान लंक जरि गई। जय जय ध्वनि सरु परु में भई॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तम ु साजा। अब विलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहुं उर अंतरयामी॥
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।। जय जय लछमन प्रान के दाता। आतरु होइ दख ु करहुं निपाता॥
चारों जग ु परताप तम् ु हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।। जै गिरधर जै जै सख ु सागर। सरु -समह ू -समरथ भट-नागर॥
साध-ु संत के तम ु रखवारे । असरु निकंदन राम दल ु ारे ।। ॐ हनु हनु हनु हनम ु तं हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीलें॥
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।। गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उचारो॥
राम रसायन तम् ु हरे पासा। सदा रहो रघप ु ति के दासा।। ओंकार हुंकार प्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो॥
तम् ु हरे भजन राम को पावै। जनम-जनम के दख ु बिसरावै।। ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनम ु ान कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु उर सीसा॥
अंतकाल रघब ु र परु जाई। जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।। सत्य होहु हरि शपथ पाय के। रामदत ू धरु मारु धाय के॥
और दे वता चित्त न धरई। हनम ु त सेइ सर्व सख ु करई।। जय जय जय हनम ु त ं अगाधा। द:ु ख पावत जन केहि अपराधा॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो समि ु रै हनम ु त बलबीरा।। पज
ू ा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत हों दास तम् ु हारा॥
जै जै जै हनम ु ान गोसाईं। कृपा करहु गरु ु दे व की नाईं।। वन उपवन मग गिरि गह ृ माहीं। तम् ु हरे बल हम डरपत नाहीं॥
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सख ु होई।। पायं परौं कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं॥
जो यह पढ़ै हनम ु ान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।। जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकर सव ु न वीर हनमु तं ा॥
तल ु सीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।। बदल कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भत ू प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल काल मारी मर॥
दोहा : इन्हें मारु तोहि शपथ राम की। राखु नाथ मर्याद नाम की॥
पवन तनय संकट हरण, मंगल मरू ति रूप। जनकसत ु ा हरि दास कहावौ। ताकी शपथ विलंब न लावौ॥
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सरु भप
ू ।। जै जै जै धनि ु होत अकाशा। समि ु रत होत दःु सह दःु ख नासा॥
चरन सरन करि जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं॥
हनम
ु ानष्टक उठु उठु चलु तोहि राम दह ु ाई। पायँ परौं कर जोरि मनाई॥
बाल समय रवि भक्ष लियो तब, तानहुं लोक भयो अंधियारों। ॐ चँ चँ चँ चँ चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनम ु त
ं ा॥
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो। ॐ हं हं हाँक दे त कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
दे वन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो। अपने जन को तरु ं त उबारौ। समि ु रत होय आनंद हमारौ॥
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो। यह बजरं ग बाण जेहि मारै । ताहि कहौ फिरि कौन उबारे ॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो। पाठ करै बजरं ग बाण की। हनम ु त रक्षा करै प्राण की॥
चौंकि महामनि ु शाप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो। यह बजरं ग बाण जो जापै। ताते भत ू प्रेत सब कापैं॥
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभ,ु सो तम ु दास के सोक निवारो। धपू दे य अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहै कलेशा॥
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो ज,ु बिना सधि ु लाये इहां पगु धारो। दोहा :
हे री थके तट सिन्धु सबे तब, लाए सिया-सधि ु प्राण उबारो। प्रेम प्रतीतहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।
रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो। तेहि के कारज सकल शभ ु , सिद्ध करैं हनम
ु ान।।
ताहि समय हनम ु ान महाप्रभ,ु जाए महा रजनीचर मरो।

You might also like