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Hindi Translation 45 Onwards
Hindi Translation 45 Onwards
सारांश
अगली सुबह, अपने प्रात: कालीन कर्तव्यों को पूरा करने के पश्चात ्, विश्वामित्र तथा अन्य
लोगों ने नाव से गंगा को पार किया और गंगा के उत्तरी तट पर विशाला नाम के एक शहर
को दे खा। जब श्री रामचंद्र ने विश्वामित्र से उस शहर के बारे में पूछा, तो ऋषि ने सर्व प्रथम
छीर सागर के मंथन का इतिहास बताया।
अध्याय 46
सारांश
दे वताओं द्वारा जब दिति के पुत्रों का वध किया गया था तब दिति ने अपने पति कश्यप से
यह प्रार्थना की कि वह उसे एक पुत्र प्रदान करे जो इंद्र का वध कर सके। दिति ने अपने पति
दिति की सेवा करना प्रारम्भ कर दिया। जब एक दिन दिति दोपहर में सो रही थी तब इंद्र ने
अपनी रहस्यमय शक्तियों के माध्यम से उसके गर्भ में प्रवेश किया और उसके गर्भ में स्थित
बच्चे को सात टुकड़ों में काट दिया। जब दिति सोकर उठी तो इंद्र ने उससे क्षमा की भीख
माँगी।
अध्याय 47
राजा सम
ु ति विश्वामित्र के पास पहुंचे
सारांश
दिति के आदे श से, इंद्र द्वारा काटे गए भ्रूण के सात भागों को सात क्षेत्रों का संरक्षक
बनाया। इन्हीं सात क्षेत्रों से ही हवाएँ का प्रवाह होता है । विश्वामित्र ने इस विषय का परिचय
इसलिए दिया था क्योंकि दिति ने इसी क्षेत्र में तपस्या की थी। इसी क्षेत्र में इक्ष्वाकु के पुत्र
विशाल ने विशाल नाम के शहर निर्माण किया था जिस पर वर्तमान में राजा विशाल के
वंशज राजा सम
ु ति का शासन था। राजा सम
ु ति ने विश्वामित्र के पास पहुंचकर सम्मानपूर्वक
सारांश
विश्वामित्र ने सम
ु ति को राम और लक्ष्मण बारे में सचि
ू त किया तथा सम
ु ति के यहाँ रात भर
विश्राम करने के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। अगले दिन विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के
साथ गौतम के आश्रम में गए। फिर उन्होंने इंद्र और अहिल्या से संबंधित उनका इतिहास
अध्याय 49
भगवान राम ने गौतम के आश्रम में प्रवेश किया। जैसे ही अदृश्य अहिल्या ने भगवान राम
को दे खा वह एक दिव्य साकार रूप में प्रकट हो गई तथा गौतम मुनि भी प्रकट हुए। तब
अध्याय 50
सारांश
जब जनक ने यह सन
ु ा कि विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण उनके नगर मिथिला की ओर
अग्रसर हो रहे हैं तो वे उन्हें सम्मानित करने हे तु सतानंद के साथ महल से बाहए आए।
विश्वामित्र ने जनक को राम के बारे में बताया तथा आग्रह किया कि वह भगवान शिव के
धनष
ु को दे खना चाहते थे।
अध्याय 51
सारांश
अध्याय 52
सारांश
वशिष्ठ की एक इच्छा-पूर्ति करने वाली गाय सबला की मनोकामना थी जो उनके यज्ञों में
उनकी सहायता करे । वशिष्ठ ने सबला को निर्देश दिया कि वह विश्वामित्र और उनकी सेना
अध्याय 53
सारांश
सबला ने फिर विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का निर्माण किया। उन्हें खाकर विश्वामित्र
और उनकी सेना पूरी तरह से संतुष्ट हो गई। फिर उन्होंने वशिष्ठ से अनुरोध किया कि वह
उन्हें सबला को बहुत से गायों, धन आदि के बदले में उन्हें दे दें । वशिष्ठ ने सबला को उन्हें
दे ने से इनकार कर दिया।
अध्याय 54
सारांश
समक्ष विलाप किया। वशिष्ठ के अनुरोध पर उसने सैनिकों को निर्माण किया तथा विश्वामित्र
की सेना को नष्ट किया। विश्वामित्र क्रोधित हुए तथा अपने हथियारों के बल पर उन्होंने उस
अध्याय 55
सारांश
वशिष्ठ के अनरु ोध पर सबला ने अपने शरीर से और अधिक म्लेच्छ तथा इसी तरह के परु
ु षों
का निर्माण किया। उन्होंने विश्वामित्र की सेना को नष्ट किया तथा उसने वैसा ही किया जैसा
वशिष्ठ ने कहा। जब विश्वामित्र के सौ पुत्रों ने वशिष्ठ को मारना चाहा तो विश्वामित्र ने
‘ह्म्म’ कहा और उन्हें जलाकर राख कर दिया। विश्वामित्र ने अपने एक शेष पत्र
ु को अपना
राज्य सौंप दिया तथा हिमालय पर तपस्या करने चले गए। तब उन्होंने महादे व से सभी
प्रकार के हथियार प्राप्त किए तथा वशिष्ठ के आश्रम आए तथा गर्व के साथ वहाँ रहने वाले
ऋषियों को अपना पराक्रम दिखाया। तब वशिष्ठ ने अपनी छड़ी लायी और उसके सामने रख
दी।
अध्याय 56
सारांश
अध्याय 57
सारांश
विश्वामित्र ब्राह्मण के स्वरूप को प्राप्त करने के लिए तपस्या हे तु अपनी पत्नी के साथ
दक्षिण की ओर गए। तत्पश्चात ् भगवान ब्रह्मा उनके आश्रम में प्रकट हुए और उन्हें एक
राजर्षि तथा एक महान संत के रूप में प्रमाणित किया तथा अपने गंतव्य निवास को प्रस्थान
कर गए। क्योंकि विश्वामित्र को वह नहीं मिला जो वे चाहते थे उन्होंने फिर से तपस्या की।
इसी समय त्रिशंकु नाम के एक राजा ने बिना अपना शरीर त्यागे स्वर्ग जाने की इच्छा की।
वे वशिष्ठ के पास पहुंचे और उनसे प्रार्थना की इस उद्देश्य के लिए यज्ञ करें । जब उनका
किया।
अध्याय 58
सारांश
जब वशिष्ठ के पुत्रों ने अपने पिता के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए यज्ञ करने को मना कर
दिया तब त्रिशंकु ने सूचित किया कि वह यज्ञ हे तु अन्य ऋषियों/पुजारियों की खोज करे गें।
तब वशिष्ठ के पुत्रों ने श्राप दिया और उसे चांडाल बना दिया। फिर त्रिशंकु विश्वामित्र के पास
पहुंचे तथा उन्हें इस विषय से अवगत कराया और अपने लिए वांछित यज्ञ करने के लिए
कहा।
अध्याय 59
सारांश
विश्वामित्र ने वादा किया कि वे त्रिशंकु को स्वशरीर स्वर्ग भेज दें गे तथा अपने शिष्यों को
यज्ञ के लिए विभिन्न आश्रमों से ऋषियों को लाने के लिए भेजा। उनके शिष्यों ने वैसा ही
किया जैसा उन्होंने कहा तथा वशिष्ठ के पुत्रों द्वारा उनके प्रयास का उपहास करने से
अवगत कराया। विश्वामित्र ने उन्हें निम्न जाति में जन्म लेने का श्राप दिया।
अध्याय 60
त्रिशंकु को आशिर्वाद
सारांश
विश्वामित्र ने एकत्रित हुए ऋषियों को अपने इरादों से अवगत कराया तथा उनकी सहायता से
यज्ञ प्रारम्भ किया। जब दे वतागण यज्ञ की आहुति को स्वीकार करने हे तु नहीं उपस्थित हुए
ने त्रिशंकु को स्वर्ग में प्रवेश करने से रोका तथा उसे उल्टा वापस भेज दिया तब त्रिशंकु रोया
तथा मदद के लिए ऋषि विश्वामित्र को जोर से पुकारा। विश्वामित्र ने उसे गिरने से रोका
दे वताओं ने तब उन्हें सांत्वना दिया तथा उनके द्वारा बनाए गए सितारों के निरं तर अस्तित्व
अध्याय 61
सारांश
जब अयोध्या के राजा अंबरीष ने यज्ञ शुरू किया तब इंद्र ने भेष बदलकर यज्ञ में बलि दिए
जाने वाले के पशु को चुरा लिया। यज्ञ के पुरोहित ने राजा को कहा कि या तो वह घोड़े को
खोजे और वापस लाए नहीं तो फिर एक इंसान को घोड़े के स्थान पर बलि दे ने कि लिए
लाए। राजा ऐसे मनुष्य को खरीदने के लिए यात्रा करने लगे तथा भग
ृ ुटुंडा में वह रिशिकाऋषि
से मिले। राजा ने ऋषि को 1,00,000 गायों की पेशकश की वे उनके तीन पत्र
ु ों में से किसी
एक को मानव पशु के रूप में बलि में चढ़ाए जाने के लिए बदले। जब माता और पिता ने
अपने बड़े और सबसे छोटे पुत्र को बेचने से इनकार कर दिया तब मझले बेटे सुनहसेपा ने
इस उद्देश्य के लिए खद
ु को प्रस्तत
ु किया। तब अंबरीष उसे अपने साथ ले गए।
अध्याय 62
सुनहसेपा की रक्षा
सारांश
कि विश्वामित्र तपस्या में लगे हुए हैं तब उसने अपनी स्थिति से उन्हें अवगत कराया। उसने
ऋषि से अनुरोध किया कि वे बिना राजा के प्रयासों में बाधा डाले उसकी रक्षा करें । विश्वामित्र
ने सन
ु हसेपा उसकी सरु क्षा हे तु जप करने के लिए दो मंत्र दिए। तब अम्बरीष सन
ु हसेपा के
साथ अपने नगर को लौट आए तथा तथा यज्ञ संस्कार को प्रारम्भ किया। सुनहसेपा को एक
बलि पशु के रूप में रखा गया। उसने विश्वामित्र द्वारा दिए गए दो मंत्रों का जाप किया तथा
इंद्र और उपें द्र को संतुष्ट किया। तब इंद्र प्रकट हुए और सुनहसेपा को रिहा कर दिया तथापि
अध्याय 63
सारांश
जब विश्वामित्र पुष्कर-तीर्थ में थे तब भगवान ब्रह्मा ने उन्हें दर्शन दिया तथा उन्हें एक ऋषि
के पद का स्थान दिया तथा ऋषि की उपाधि प्रदान की। विश्वामित्र ने पुष्कर में मेनका को
अध्याय 64
सारांश
पत्थर बनने का श्राप दिया। परं तु तब उन्होंने और अधिक तपस्या करके अपने क्रोध पर
अध्याय 65
सारांश
विश्वामित्र ने पूर्व में घोर तपस्या की। यह दे खकर भगवान ब्रह्मा और अन्य दे वताओं ने उन्हें
ब्रह्मर्षि के रूप में मान्यता दी। जब विश्वामित्र ने अपनी तपस्या को नहीं छोड़ा तब दे वताओं
के अनुरोध पर वशिष्ठ ने भगवान ब्रह्मा द्वारा विश्वामित्र को ब्रह्मर्षि के रूप में मान्यता
अध्याय 66
सारांश
अगले दिन विश्वामित्र ने जनक को रघु के दो वंशजों को अपना धनुष दिखाने का अनुरोध
किया। जनक ने उस धनुष की शक्ति और उन्हें यह कैसे प्राप्त हुआ विषय में विश्वामित्र को
सूचित किया। फिर उन्होंने यह बताया कि उन्हें सीता दे वी कैसे मिली आदि तथा राम को
धनष
ु पर प्रत्यंचा चढ़ाने का वाद किया।
अध्याय 67
भगवान राम ने भगवान शिव के धनुष को तोड़ा
सारांश
विश्वामित्र के अनुरोध पर जनक ने अपने सैनिकों को धनुष को ऋषि के पास लाने को कहा।
जनक और ऋषि की अनुमति से राम ने धनुष को उठाया, प्रत्यचा चढ़ायी और उसे दो भागों
अध्याय 68
सारांश
जनक के दत
ू अयोध्या पहुँचे। उन्होंने दशरथ को कि भगवान राम ने भगवान शिव के धनुष
को तोड़ने आदि को सूचित किया तथा जनक द्वारा दशरथ को सीता और राम के विवाह के
हुए और अगले ही दिन वशिष्ठ और अन्य लोगों के साथ मिथिला के लिए प्रस्थान करने का
फैसला किया।
अध्याय 69
सारांश
वशिष्ठ के नेतत्ृ व में दशरथ अपने परिवार के सदस्यों, सेना और पुजारियों के साथ मिथिला
पहुंचे। जनक अपने महल से बाहर आए तथा उन्हें सम्मानित किया। तब जनक और दशरथ
ने आपस में बात की। फिर सभी ने उन्हें आवंटित निवास स्थान में खश
ु ी-खुशी रात बिताई।
अध्याय 70
सारांश
जनक द्वारा दशरथ को मंत्री द्वारा आमंत्रित किया गया तब वे विश्वामित्र और अन्य लोगों
के साथ दरबार में पहुंचे। राजा के अनरु ोध पर वशिष्ठ ने राम को दशरथ के वंशज के रूप में
वर्णित किया।
अध्याय 71
सारांश
जनक ने अपने वंश का वर्णन किया और फिर राम और लक्ष्मण से सीता और उर्मिला का
अध्याय 72
सारांश
शत्रघ्
ु न को सौंपने का अनुरोध किया। जनक ने खुशी-खश
ु ी उनके अनुरोध की सराहना की और
इसे स्वीकार किया। तत्पश्चात दशरथ ने गोदान की प्रथा से विवाह को प्रारम्भ करने को
संचालित किया।
अध्याय 73
सारांश
अग्नि की उपस्थिति में जनक और कुशध्वज द्वारा वैदिक मन्त्रों द्वारा पवित्र जल को
छिड़कने के पश्चात ् उनके अनुरोध पर राम और उनके भाइयों ने सीता तथा उनकी बहनों का
क्रमशः हाथ स्वीकार किया। विवाह उत्सव के अवसर पर दे वताओं, गंधर्वों और अप्सराओं ने
अध्याय 74
परशुराम का आगमन
सारांश
विश्वामित्र ने राम तथा अन्य लोगों को आशीर्वाद दिया और जनक व दशरथ की अनुमति से
अपने आश्रम हे तु प्रस्थान किया। दशरथ, राम और अन्य लोगों ने जनक से जाने की
अनम
ु ति ली तथा दल्
ु हनों के रूप में उपहार लेकर अयोध्या के लिए प्रस्थान किया। रास्ते में
विभिन्न अपशगुन दे खकर दशरथ चंतित हो गए और उन्होंने वशिष्ठ से उनके बारे में पूछा।
वशिष्ठ ने उनके बारे में समझाया और उन्हें शांत किया। इसी बीच भगवान परशुराम प्रकट
तथा दस
ू रे सामान लेकर आए और परशुराम की पूजा की।
अध्याय 75
सारांश
दशरथ की प्रार्थना को दरकिनार करते हुए, परशुराम ने दशरथ के पुत्र राम को भगवान शिव
और भगवान विष्णु के धनुष के इतिहास के बारे में बताया। फिर उन्होंने प्रभु राम को विष्णु
के धनष
ु को उनकी शक्ति परीक्षण हे तु दिया तथा धनष
ु को मोड़ने तथा प्रत्यंचा चढ़ाने का
अनुरोध किया।
अध्याय 76
सारांश
राम ने धनुष लिया, प्रत्यंचा चढ़ायी तथा उस पर एक तीर को स्थापित करने के पश्चात ्
परशुराम से पूछा कि उन्हें कहाँ पर तीर चलाना चाहिए (क्योंकि एक बार धनुष पर तीर
स्थापित हो जाने के पश्चात ् उसे आवश्यक रूप से छोड़ने की आवश्यकता होती है । ) परशरु ाम
ने उन्हें संसार में उनके पवित्र गतिविधियाँ द्वारा अर्जित लक्ष्य पर तीर चला सकते हैं।
भगवान रामचंद्र ने वैसा ही किया जैसा कहा गया था। फिर दे वताओं और अन्य आकाशीयों
अपितु स्वयं स्वयं भगवान नारायण हैं तथा महें द्र पर्वत के लिए प्रस्थान किया।
अध्याय 77
नवविवाहित जोड़े अयोध्या पहुंचे
सारांश
जमदग्नि के पत्र
ु के चले जाने के पश्चात ् भगवान राम ने भगवान विष्णु का धनुष परशुराम
को सौंप दिया जिसे वरुण ने दिया था। परशुराम के चले जाने के समाचार को सुनकर दशरथ
प्रसन्न हुए तथा अपनी सेनाओं को अयोध्या जाने का निर्देश दिया। नागरिकों ने वाद्य यंत्र
बजाये और घोषणाएं कीं तब दशरथ ने राम और अन्य लोगों के साथ अयोध्या में प्रवेश
किया। राम और दशरथ के अन्य पुत्र प्रसन्न थे तथा अपनी-अपनी पत्नियों के साथ अपने
भरत और शत्रघ्
ु न को अपने राज्य ले गए। अपने पिता के आदे श पर श्री राम ने नागरिकों
पर शासन किया और श्री सीता के साथ अपने राज्य में प्रसन्न थे।
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