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Krantidoot Kashi Review by Ms - Manu Singh Author DR - Manish Shrivastava
Krantidoot Kashi Review by Ms - Manu Singh Author DR - Manish Shrivastava
ू भाग-२)
समीक्षा – बिट्टी मनु ससांह
शेखर से चंद्रशेखर
भेषजं भवरोगिणांगिलपदामपहाररणं
भुगिमुगिफलप्रदं सकलाघसङ्िगनबहिणम्
“कभी वैद्य के रूप में समस्त संसार के संताप का हरण करने वाले, तो कभी क्रुद्ध वीरभद्र के के रूप में
अभभमानी दक्ष के यज्ञ के ध्वंसकताा, तीन गणु ों को धारण करने वाले भिलोचन, भिनकी दृभि भतू -भभवष्य-
वतामान तीनों कालों पर रहती है, िो भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करते हैं एवं संपणू ा पापराभि का संहार करते
हैं, वे भगवान चन्द्द्रिेखर हमारी रक्षा करें ।”
ऐसी वंदना के द्वारा भगवान भिव के परमसंदु र चंद्रिेखर रूप की स्तभु त करते हुए माका ण्डेय मभु न उनके भभन्द्न
स्वरूपों की स्तभु त करते हैं। उन्द्हीं चंद्रिेखर आितु ोष श्मसानवासी गृहस्थ भिव की भप्रय नगरी कािी में िेखर
के चंद्रिेखर बनने की यािा प्रारंभ होती है। भनडर, भनिंक, भवद्रोही भकिोर चंद्रिेखर का सचीन्द्द्रनाथ सान्द्याल
िैसा गरुु , आचाया नरें द्रदेव िैसा पारखी और भबभस्मल िैसा भमि और मागादिाक है तो उनके िीवन को एक
नई ऊिाावान भदिा एवं लक्ष्य दोनों भमल िाते हैं।
“कािी सवा प्रकाभिका” नाम के अनरू ु प कािी क्राभं तदतू ों के दपथ को प्रकाभित करते हुए उन्द्हें साहस,
सम्बल एवं नवीन ऊिाा से भर देती है। क्रांभतदतू -१ से क्रांभतदतू -२ तक हम चंद्रिेखर भगवान भिव की तरह
चद्रं िेखर आज़ाद के भी भवभभन्द्न स्वरूपों से पररभचत हो चक ु े हैं।
धमा के प्रेभमयों के भलए धमा ग्रन्द्थ रस हैं और आिादी के प्रेभमयों के भलए आिादी के दीवानों की कहाभनयााँ!
चंद्रिेखर आज़ाद के साथ साथ हम सभी भी उन मतवालों क्रांभतकाररयों की कथा में मंिमुग्ध से बंधे रह िाते
हैं भिनके नाम, पहचान, अभस्तत्व सब कुछ इस देि की हवा में भवलीन हो चक ु ा है। रह गयी है तो हवा में
उनकी सक ु ीभता की सगु न्द्ध िो समय के साथ-साथ हल्की पड़ने लगी है।
कािी िमघट है उन अलबेले मस्ताने लोगों का िो साधारण होकर भी असाधारण थे, िो साधनभवहीन
होकर भी असंभव स्वप्न देखते थे। िो भनधान थे भकन्द्तु साहस और भवचारों का वैभव रखते थे। िो उत्साही थे
भकन्द्तु भदिाहीन नहीं। उन क्रांभतकाररयों की क्रांभत की मिाल में उत्साह की लौ के साथ-साथ अक्षय देिप्रेम
और अध्ययन, ज्ञान तथा वैचाररक संपदा का ईधन ं भी था।
हमारे क्रांभतकारी भटके हुए भदिाहीन नौिवान नहीं थे, िैसा भक उस समय के कुछ बड़े नेताओ ं ने बयान
भदया था। अभपतु उनमें ज्ञान की, आगे बढ़ने की, देि-भवदेि की घटनाओ ं से सीखने की प्यास थी। सीभमत
संसाधनों से अपरािेय भिभटि साम्राज्य के सयू ा को अस्त कराने की ललक थी। संसार के सुख और परलोक
में मोक्ष को छोड़कर मातृभभू म की स्वतिं ता के भलए बार-बार बभलदान होकर पनु ः उसी धरती पर िन्द्म लेने
की चाह थी।
कािी (क्रांभतदतू भाग-२) में सुदरू बंगाल में चल रहे अनवरत क्रांभत संघषा से पररचय होता है। साभहत्यकारों,
क्राभं तकाररयों, भवचारकों, पिकारों ने बगं ाल में क्राभं त की ज्वाला कै से प्रखर बनाए रखी? कै से भकिोरों
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यवु कों, प्रौढ़ों, बाभलकाओ ं तक ने असाधारण कृ त्य कर भिभटि साम्राज्य की नींदें उड़ा रखीं? कै से क्रांभत की
मिाल महाराष्र, पंिाब, उत्तर भारत और भवदेिों तक में घूम घमू कर िलती रही, उसकी झांकी आपको
“कािी” में भमल िाती है।
पाठक क्रांभतदतू िृंखला में नए क्रांभतदतू ों से भमलने के भलए, अनाम नामों को िानने के भलए और अनकही
कहाभनयां सनु ने के भलए तथा अनिाने पथ पर बढ़ने के भलए उत्सक ु एवं अधीर होते िाते हैं।
कािी मागादिान करती है और आगामी पथ की भावी घटनाओ ं की की झलक भदखलाती है। कािी साक्षी
बनती है क्राभं तधभमायों के भमलन की।
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सिांक यह रहा
https://rzp.io/l/krantidoot
https://www.amazon.in/-/hi/Dr-Manish-
Shrivastva/dp/9393605041/ref=sr_1_2?qid=1653718115
समीक्षा - @Bitti_witty