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Chapter 10 सूरदास के पद
Chapter 10 सूरदास के पद
प्रश्न 2.
गोपिकाएँ किसे सं बोधित करते हुए बातें कर रही हैं ?
उत्तर:
गोपिकाएँ उद्धव को सं बोधित करते हुए बातें कर रही हैं ।
प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण के कान में किस आकार का कुंडल है ?
उत्तर:
श्रीकृष्ण के कान में मकर के आकार का कुंडल है ।
प्रश्न 4.
वाणी कहाँ रह गई?
उत्तर:
वाणी मु खद्वार तक आकर रुक गई।
प्रश्न 5.
कौन अं तर की बात जानने वाले हैं ?
उत्तर:
सूरदास के प्रभु कृष्ण अं तर की बात जानने वाले हैं ।
प्रश्न 6.
श्रीकृष्ण के अनु सार किसने सब माखन खा लिया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण के अनु या नान सखा ने सब माखन खा लिया हैं ।
प्रश्न 7.
सूरदास किसकी शोभा पर बलि जाते हैं ?
उत्तर:
सूरदास कृष्ण और गोपी की शोभा पर बलि जाते हैं ।
प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण के रूप सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सूरदास भगवान श्रीकृष्ण के रूप-सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं - गोपिकाओं ने यमु ना नदी
तट पर श्रीकृष्ण को दे ख लिया। वे मोर मु कुट पहने हुए हैं । कानों में मकराकृत कुण्डल धारण किये
हुए हैं । पीले रं ग के रे शमी वस्त्र पहने हुए हैं । उनके तन पर चन्दन-ले प है । वे अत्यं त शोभायमान
हैं । उनके दर्शन मात्र से गोपिकाएँ तृ प्त हुईं। हृदय की तपन बु झ गई। वे सु न्दरियाँ प्रेम-मग्न हो
गईं। उनका हृदय भर आया। सूरदास कहते हैं कि प्रभु श्रीकृष्ण अन्तर्यामी हैं और गोपिकाओं के
व्रत को पूरा करने के लिए ही पधारे हैं ।
प्रश्न 3.
सूरदास ने माखन चोरी प्रसं ग का किस प्रकार वर्णन किया है ?
उत्तर:
सूरदास गोपिकाओं के समर्पण भाव के बारे में बता रहे है । इसमें हमे यशोदा और ग्वालिनी के
वात्सल्य प्रेम के बारे में जान सकते है । चोरी करते हुए कान्हा पकडे गए गोपियाँ कहती है –
कान्हा तु म तो दिन-रात हमे सताते हो, आज जाके तु म हमारे हाथ आए हो। जितना भी माखन-
दही हो सब खा ले ते हो। अब तु म्हारा यह खे ल खत्म हुआ। मै तु म्हे भलीभाँ ति जानती हँ ।ू तु म्हीं
माखन चोर हो। कान्हा के हाथ पकडकर, ‘माखन जितना चाहे माँ ग के खाते ’ कहने पर बड़े ही
निरागसता से कान्हा कहते है – ‘तु म्हारी सौगं ध, माखन मै नें नहीं खाया मे रे सारे दोस्त ही खा ले ते
है और मे रा नाम बताते है ।’ उसके मु खपर लगा माखन दे खा और उसकी प्यारी, तु तलाती बोलों को
सु नकर गोपिका के हृदय ममता से भर उठता है । कान्हा का यह रूप उसे इतना लु भावना लगता है
कि उसका गु स्सा भाग जाता है और वह कान्हा को गोदी में उठा ले ती है । यह दृश्य दे खकर
सूरदास कहते है ऐसे कान्हा और गोपिका पर तो मैं बलि बलि जाऊँ।
सं दर्भ : प्रस्तु त पद में गोपियाँ उद्धव को सं बोधित करती हुई कहती हैं कि हे उद्धव! आज हम
स्वयं को बहुत भाग्यशाली मान रहे हैं क्योंकि जो आँ खे हमारे प्यारे कृष्ण के दर्शन करके आयीं हैं
उन्हीं आँ खों के दर्शन हमें मिल गए हैं ।
भाव स्पष्टीकरण : सूरदास ने भ्रमर गीत में ब्रज की गोपिकाओं की विरह-व्यथा का बहुत ही
मार्मिक ढं ग से वर्णन किया है । श्रीकृष्ण कंस को मारने मथु रा गए ले किन बहुत दिनों तक वापस
ब्रज नहीं आये । यहाँ श्रीकृष्ण के बिना गोपिकाएँ बहुत ही उदास थीं। वे कृष्ण की राह दे खती
थीं। श्रीकृष्ण अपने सखा उद्धव को ब्रज के बारे में जानने के लिए भे जते हैं । उद्धव से गोपिकाएँ
कहती हैं – ‘आज हम बहुत ही भाग्यशालिनी बन गईं। जिन आँ खों से तु मने श्याम को दे खा उन
आँ खों को दे खने का सौभाग्य हमें मिल रहा है । जै से फू ल सु गंध ले आता है , हवा प्यारे भौरे को,
वै से ही हमें श्रीकृष्ण का सं देश मिल गया है । श्रीकृष्ण के बारे में सु नकर बहुत ही आनं द हो रहा
है और हमारे अं ग-अं ग में सु ख का अनु भव हो रहा है नहीं तो हमारा विरह-व्यथा से जीना मु श्किल
हो जाता।
विशे ष : अनु पर् ास अलं कार, रूपक अलं कार। ब्रज भाषा।
गोपिकाओं का श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम व्यक्त हुआ है ।
प्रश्न 2.
जमु ना तट दे खे नँ द नं दन।
मोर-मु कुट मकराकृत-कुंडल, पीत-बसन तन चं दन।
लोचन तृ प्त भए दरसन नैं उर की तपनि बु झानी।
प्रेम-मगन तब भई सुं दरी, उर गदगद, मु ख-बानी।
उत्तर:
प्रसं ग : प्रस्तु त पद्यां श हमारी पाठ्य पु स्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘सूरदास के पद’ से लिया गया
है , जिसके रचयिता सूरदास जी हैं ।
प्रश्न 3.
चोरी करत कान्ह धरि पाए।
निसि-बासर मोहिँ बहुत सतायौ अब हरि अरि हाथहिँ आए।
माखन-दधि मे रौ सब खायौ, बहुत अचगरी कीन्ही।
अब तो घात परे हौ लालन, तु म्है भलै मैं चीन्ही।
दोउ भु ज पकरि, कहयौ कहँ जै हौ माखन ले उँ मँ गाइ।
उत्तर:
प्रसं ग : प्रस्तु त पद्यां श हमारी पाठ्य पु स्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘सूरदास के पद’ से लिया गया
है , जिसके रचयिता सूरदास जी हैं ।
सं दर्भ : उपरोक्त पद्यां श में एक ग्वालिन बाल कृष्ण को माखन चोरी करते हुए रं गे हाथों पकड़
ले ती है और उन पर क् रोध प्रकट करती है ।
व्याख्या : सूरदास इस पद में कृष्ण के माखन चोरी पर रूष्ट ग्वालिन के भावों का वर्णन करते हैं ।
कृष्ण की रोज़-रोज़ की माखन चोरी से एक गोपी बहुत परे शान थी। कई दिनों से इं तजार में थी कि
किसी प्रकार कृष्ण को रं गे हाथों पकड़ा जाय। आज कृष्ण पकड़ में आ गए तो गोपी कहने लगी –
हे कृष्ण, तु मने रात-दिन मु झे बहुत सताया है , रोज-रोज चोरी करके भाग जाते हो, किसी तरह
आज पकड़ में आए हो। मे रा सारा दही मक्खन खा लिया और शरारत अलग से की कि सारे बर्तन
फोड़कर चले गए। मैं अब-तक सही चोर को पहचान नहीं पाई थी, पर अब मे रे हाथ लगे हो। मैं ने
भी इस माखन चोर को भलीभाँ ति पहचान लिया है । इसके बाद गोपी ने कृष्ण के दोनों हाथ
पकड़कर कहा – बोलो, अब कहाँ जाओंगे? कहो तो तु म्हारी माँ से सारा दही-मक्खन मँ गवा लूँ,
जितना तु मने खाया है ।
सं दर्भ : श्रीकृष्ण को ग्वालिन ने माखन चु राते पकड़ लिया है । कन्है या को पकड़ ले ने के बाद वह
कहने लगी कि तु मने जितना माखन खाया है , वह यशोदा से मँ गवा लूंगी। तब कन्है या ग्वालिन
को उत्तर दे ते हैं ।
विशे ष : ब्रज भाषा। श्री कृष्ण के माखन चोरी प्रसं ग का सु न्दर वर्णन। सूरदास का बाल लीला
वर्णन अनु पम है ।