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NCERT Solutions for Class 10

Hindi Sparsh

Chapter 2 - मीरा

(क) निम्ननिखित प्रश्नों के उत्तर दीनिए-

1. पहिे पद में मीरा िे हरर से अपिी पीडा हरिे की नििती नकस प्रकार की है?

उत्तर: पहले पद में मीरा ने अपनी पीडा हरने की विनती इस प्रकार की है वक हे ईश्वर! जैसे
आपने द्रौपदी की लाज रखी थी, गजराज को मगरमच्छ रूपी मृत्यु के मुख से बचाया था तथा
भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के वलए ही आपने नृवसिंह अितार वलया था, उसी तरह मुझे भी
सािं साररक सिंतापोिं से मुक्तक्त वदलाते हुए अपने चरणोिं में जगह दीवजए।

2. दू सरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्नों करिा चाहती हैं? स्पष्ट कीनिए।

उत्तर: मीरा श्री कृष्ण के समीप रहने के वलए उनकी दासी तक मैंने को तैयार है ।िह उनकी
पसिंद के बाग़ बगीचे बनाना चाहती है तावक श्री कृष्ण उसमे घूम सके। िृिंदािन की कुिंज गवलयोिं
में उनकी लीलाओिं का गुणगान करना चाहती हैं । इस प्रकार दासी के रूप में दर्शन, नाम
स्मरण और भाि-भक्तक्त रूपी जागीर प्राप्त कर अपना जीिन सफल बनाना चाहती हैं ।

3. मीराबाई िे श्रीकृष्ण के रूप-स द


ों र्य का िर्यि कैसे नकर्ा है?

उत्तर: मीरा ने कृष्ण के रूप-सौन्दयश का िणशन करते हुए कहा है की उनके सर पर मोर मिंख
का जो मुकुट है उसमे िह बहुत सूिंदर वदख रहे है उन्ोिंने वपले रिं ग के िर्स्त्श पहन रखे है और
गले में िैजन्ती माला डाल रखी है । िह बासुरी बजाते हुए गाय चारा रहे है और बहुत सूिंदर
लगते है ।

4. मीराबाई की भाषा शैिी पर प्रकाश डानिए।

उत्तर: मीराबाई ने अपने पदोिं में ब्रज, पिंजाबी, राजस्थानी, गुजराती आवद भाषाओिं का प्रयोग
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वकया गया है । भाषा अत्यिंत सहज और सुबोध है । र्ब्द चयन भािानुकूल है । भाषा में कोमलता,
मधुरता और सरसता के गुण विद्यमान हैं । अपनी प्रेम की पीडा को अवभव्यक्त करने के वलए
उन्ोिंने अत्यिंत भािानुकूल र्ब्दािली का प्रयोग वकया है । भक्तक्त भाि के कारण र्ािंत रस प्रमुख
है तथा प्रसाद गुण की भािावभव्यक्तक्त हुई है । मीराबाई श्रीकृष्ण की अनन्य उपावसका हैं । िे
अपने आराध्य दे ि से अपनी पीडा का हरण करने की विनती कर रही हैं । इसमें कृष्ण के प्रवत
श्रद्धा, भक्तक्त और विश्वास के भाि की अवभव्यिंजना हुई है । मीराबाई की भाषा में अनेक
अलिंकारोिं जैसे अनुप्रास, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, उदाहरण आवद अलिंकारोिं का सफल प्रयोग
हुआ है ।

5. िे श्रीकृष्ण कन पािे के निए क्ा-क्ा कार्य करिे कन तैर्ार हैं?

उत्तर: मीरा श्रीकृष्ण को पाने के वलए उनकी चाकर (नौकर) बनकर चाकरी करना चाहती हैं
अथाश त् उनकी सेिा करना चाहती हैं । िे उनके वलए बाग लगाकर माली बनने तथा अधशरावि में
यमुना-तट पर कृष्ण से वमलने ि िृिंदािन की कुिंज-गवलयोिं में घूम-घूमकर गोवििंद की लीला का
गुणगान करने को तैयार हैं ।

(ि) निम्ननिखित पोंखिर्नों का काव्य-स द


ों र्य स्पष्ट कीनिए-

1. हरर आप हरन िि री भीर ।

द्रनपदी री िाि रािी, आप बढार्न चीर।

भगत कारर् रूप िरहरर, धर्नोो आप सरीर।

उत्तर: इस पद में मीरा ने कृष्ण के भक्तो पर कृपा दृवि बनाए रखने िाले रूप का िणशन वकया
है िह कहती है 'हे हरी वजस तरह तुमने अपने भक्तो की पीडाओिं का वनिारण वकया है उसी
प्रकार मेरी भी वपडाए दू र करदो। वजस प्रकार आपने प्रल्हाद के वलए नवसिंग रूप धारण कर
उसकी रक्षा की उसी प्रकार मेरी भी रक्षा कीवजये'। इसकी भाषा ब्रज वमवश्रत रवजस्थानी है ।

वर्ल्प-सौिंदयश - भाषा – गुजराती वमवश्रत राजस्थानी भाषा

अलिंकार – उदाहरण अलिंकार

छिं द – “पद”
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रस – भक्तक्त रस

2. बूढतन गिराि राख्यन, काटी कुण्िर पीर ।

दासी मीरााँ िाि नगरधर, हरन म्हारी भीर ।

उत्तर: इस पिंक्तक्त में मीरा ने कृष्ण से अपने दु खो को दू र करने की प्राथशना की है । हे कृष्ण


ित्सल जैसे डूबता गजराज को बचाया और उसकी रक्षा भी की िैसे ही मीरा आपसे प्राथशना
करना चाहती है । की आप उसकी भी पीडाओिं को दू र करें गे। इसमें दास्य भक्तक्त रस करा
प्रयोग वकया गया है भाषा ब्रज वमवश्रत राजस्थानी है अनुप्रास अलिंकार का प्रयोग वकया है ि्
भाषा सराज पर सहज उपयोग में लाई गयी है ।

3. चाकरी में दरसर् पास्ूाँ, सुमरर् पास्ूाँ िरची ।

भाि भगती िागीरी पास्ूाँ, तीिू बातााँ सरसी ।

उत्तर: इस पिंक्तक्त में मीरा कृष्ण की चापलूसी करने के वलए तैयार है वजससे की िह कृष्ण की
भािभक्तक्त पा सकती है इस पिंक्तक्त में दास्य भाि दर्ाश या गया है भाषा ब्रज वमवश्रत राजस्थानी
है । अनुप्रास अलिंकार, रूपक अलिंकार का प्रयोग वकया गया है ।

भाषा अध्यर्ि

1. उदाहरर् के आधार पर पाठ में आए निम्ननिखित शब्नों के प्रचनित रूप निखिए-

उदाहरर्- भीर – पीडा/कष्ट/दु ि ; री – की

1. चीर – …….

2. बूढता – ……….

3. िगास्ूाँ – ……….

4. धर्ोो – ……….

5. कुण्िर – ……….
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6. नबन्दािि – ………

7. रहस्ूाँ – ………

8. रािन – ………

9. घर्ा – ……..

10. सरसी – ………

11. नहिडा – ……..

12. कुसुम्बी – ……….

उत्तर:

चीर – िर्स्त्

बूढ़ता – डूबते हुए

लगास्यूूँ – लगाऊूँगी

धयो – धारण वकया

कुण्जर – हाथी, हस्ती

वबन्दरािन – िृिंदािने

रहस्यूूँ – रहूँ गी

राखो – रक्षा करो

घणा – घना, बहुत

सरसी – पूणश हुई, सिंपूणश हुई

वहिडा – वहये हृदय

कुसुम्बी – कौर्ािं बी, लाल


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