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कक्षा-10

विषय-ह द
िं ी

पाठ-2 मीरा (पद्य भाग)

कवि – मीरा

हदनािंक -24/06/2022 शिक्षक्षका-गननता


रोह ला

पाठ्यपस्
ु तक के प्रश्न-अभ्यास

(क) ननम्नशलखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


प्रश्न 1.
पहले पद में मीरा ने हरर से अपनी पीडा हरने की विनती ककस प्रकार की है?
उत्तर-
पहले पद में मीरा ने अपनी पीडा हरने की विनती इस प्रकार की है कक हे ईश्िर! जैसे आपने
द्रौपदी की लाज रखी थी, गजराज को मगरमच्छ रूपी मत्ृ यु के मुख से बचाया था तथा भक्त
प्रहलाद की रक्षा करने के ललए ही आपने नलृ सिंह अितार ललया था, उसी तरह मुझे भी सािंसाररक
सिंतापों से मक्ु क्त ददलाते हुए अपने चरणों में जगह दीक्जए।

प्रश्न 2.
दस
ू रे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती हैं? स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर-
मीरा श्री कृष्ण को सिवस्ि समवपवत कर चक
ु ी हैं इसललए िे केिल कृष्ण के ललए ही कायव करना
चाहती हैं। श्री कृष्ण की समीपता ि दर्वन हे तु उनकी दासी बनना चाहती हैं। िे चाहती हैं दासी
बनकर श्री कृष्ण के ललए बाग लगाएँ उन्हें िहाँ विहार करते हुए दे खकर दर्वन सख
ु प्राप्त करें ।
ििंद
ृ ािन की किंु ज गललयों में उनकी लीलाओिं का गण
ु गान करना चाहती हैं। इस प्रकार दासी के
रूप में दर्वन, नाम स्मरण और भाि-भक्क्त रूपी जागीर प्राप्त कर अपना जीिन सफल बनाना
चाहती हैं।

प्रश्न 3.
मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदयव का िणवन कैसे ककया है?
उत्तर-
मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदयव का अलौककक िणवन ककया है कक उन्होंने पीतािंबर (पीले िस्र
धारण ककए हुए हैं, जो उनकी र्ोभा को बढा रहे हैं। मक
ु ु ट में मोर पिंख पहने हुए हैं तथा गले में
िैजयिंती माला पहनी हुई है, जो उनके सौंदयव में चार चाँद लगा रही है। िे ग्िाल-बालों के साथ
गाय चराते हुए मरु ली बजा रहे हैं।

प्रश्न 4.
मीराबाई की भाषा र्ैली पर प्रकार् डाललए।
उत्तर-
मीराबाई ने अपने पदों में ब्रज, पिंजाबी, राजस्थानी, गज
ु राती आदद भाषाओिं का प्रयोग ककया गया
है। भाषा अत्यिंत सहज और सब
ु ोध है। र्ब्द चयन भािानक
ु ू ल है। भाषा में कोमलता, मधरु ता
और सरसता के गुण विद्यमान हैं। अपनी प्रेम की पीडा को अलभव्यक्त करने के ललए उन्होंने
अत्यिंत भािानक
ु ू ल र्ब्दािली का प्रयोग ककया है। भक्क्त भाि के कारण र्ािंत रस प्रमुख है तथा
प्रसाद गुण की भािालभव्यक्क्त हुई है। मीराबाई श्रीकृष्ण की अनन्य उपालसका हैं। िे अपने
आराध्य दे ि से अपनी पीडा का हरण करने की विनती कर रही हैं। इसमें कृष्ण के प्रतत श्रद्धा,
भक्क्त और विश्िास के भाि की अलभव्यिंजना हुई है। मीराबाई की भाषा में अनेक अलिंकारों जैसे
अनुप्रास, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, उदाहरण आदद अलिंकारों का सफल प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 5.
िे श्रीकृष्ण को पाने के ललए क्या-क्या कायव करने को तैयार हैं?
उत्तर-
मीरा श्रीकृष्ण को पाने के ललए उनकी चाकर (नौकर) बनकर चाकरी करना चाहती हैं अथावत ्
उनकी सेिा करना चाहती हैं। िे उनके ललए बाग लगाकर माली बनने तथा अधवरात्रर में यमुना-
तट पर कृष्ण से लमलने ि ििंद
ृ ािन की किंु ज-गललयों में घूम-घूमकर गोवििंद की लीला का गुणगान
करने को तैयार हैं।

(ि) ननम्नशलखित पिंजततयों का काव्य-सौंदयय स्पष्ट कीजिए-


प्रश्न 1.
हरर आप हरो जन री भीर ।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरर, धयोोो आप सरीर।
उत्तर-
काव्य-सौंदयय-
भाि-सौंदयय – हे कृष्ण! आप अपने भक्तों की पीडा को दरू करो। क्जस प्रकार आपने चीर बढाकर
द्रोपदी की लाज रखी, ि नरलसिंह रूप धारण कर भक्त प्रहलाद की पीडा (ददव) को दरू ककया, उसी
प्रकार आप हमारी परे र्ानी को भी दरू करो। आप पर पीडा को दरू करने िाले हो।
शिल्प-सौंदयय-

1. भाषा – गुजराती लमश्रश्रत राजस्थानी भाषा


2. अलिंकार – उदाहरण अलिंकार
3. छिं द – “पद”
4. रस – भक्क्त रस

प्रश्न 2.
बढ
ू तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर ।
दासी मीराँ लाल श्रगरधर, हरो म्हारी भीर ।
उत्तर-
भाि पक्ष-प्रस्तत
ु पिंक्क्तयों में मीराबाई अपने आराध्य श्रीकृष्ण का भक्तित्सल रूप दर्ाव रही हैं।
इसके अनुसार श्रीकृष्ण
ने सिंकट में फँसे डूबते हुए ऐराित हाथी को मगरमच्छ से मुक्त करिाया था। इसी प्रसिंग में िे
अपनी रक्षा के ललए भी श्रीकृष्ण से प्राथवना करती हैं।
कला पक्ष

1. राजस्थानी, गुजराती ि ब्रज भाषा का प्रयोग है।


2. भाषा अत्यिंत सहज िे सुबोध है ।
3. तत्सम और तद्भि र्ब्दों का सिंद
ु र लमश्रण है ।
4. दास्यभाि तथा र्ािंत रस की प्रधानता है।
5. भाषा में प्रिाहत्मकता और सिंगीतात्मकता का गुण विद्यमान है।
6. सरल र्ब्दों में भािनाओिं की सिंद
ु र अलभव्यक्क्त हुई है।
7. दृष्टािंत अलिंकार का प्रयोग है । |
8. ‘काटी कुण्जर’ में अनुप्रास अलिंकार है।

प्रश्न 3.
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची ।
भाि भगती जागीरी पास्यूँ, तीनू बाताँ सरसी ।
उत्तर-
भाि-सौंदयव-इन पिंक्क्तयों में मीरा दासी बनकर अपने आराध्य श्रीकृष्ण के दर्वन करना चाहती हैं।
इससे उन्हें प्रभु स्मरण, भक्क्त रूपी जागीर तथा दर्वनों की अलभलाषा रूपी सिंपवत्त की प्राक्प्त
होगी अथावत ् श्रीकृष्ण की भक्क्त को ही मीरा अपनी सिंपवत्त मानती हैं।
शिल्प-सौंदयय-

1. प्रभािर्ाली राजस्थानी भाषा का प्रयोग हुआ है ।


2. ‘भाि भगती’ में भ’ िणव की आिवृ त्त के कारण अनुप्रास अलिंकार है तथा ‘भाि भगती
जागीरो’ में रूपक अलिंकार है ।
3. मीराबाई की दास्य तथा अनन्य भक्क्त को दर्ावया गया है ।
4. “खरची’, ‘सरसी’ में पद मैरी है।

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