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I PU All Hindi Notes
I PU All Hindi Notes
साहित्य गौरव
प्रथम पी.यू.सी हििं दी पाठ्यपुस्तक
Revised Edition
2021-2022
Sahitya Gaurav
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हवषय- क्रम
प्रथम सोपान [25 Marks]
पहित गद्य भाग (Detail Short Story)
क्र.सिं. पाि लेखक/कहव पृ.सिं.
1. बड़े घर की बेटी प्रेमचिंद ----------------------
2. युवाओिं से स्वामी हववेकानिंद ------------
3. हनिंदा रस िररशिंकर परसाई ------------
4. हबन्दा मिादे वी वमाा ----------------
5. बाबा सािेब डॉ. अम्बेडकर शान्ति स्वरूप बौद्ध ----------
6. हदल का दौरा और एिं जाइना डॉ. यतीश अग्रवाल ----------
7. मेरी बदरीनाथ यात्रा हवष्णु प्रभाकर----------------
8. नालायक हववेकी राय ------------------
9. राष्ट्र का स्वरूप वासुदेव शरण अग्रवाल--------
10. ररिसाल ओम प्रकाश आहदत्य----------
हितीय सोपान
पहित पद्य भाग [20 Marks]
(अ) मध्यकालीन कहवता (Ancient Poetry)
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तृतीय सोपान [15 Marks]
अपहित भाग ( किाहनयााँ-Non-Detail Story)
1. मधुवा जयशिंकर प्रसाद
2. श्मशान मन्नू भिंडारी
3. खून का ररश्ता भीष्म सािनी
4. शीतलिर जयप्रकाश कदा म
5. सीहलया सु शीला टाकभौरे
6. दोपिर का भोजन अमरकाि
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प्रथम सोपान
पहित गद्य भाग
( Detail Short Story )
1. बडे घर की बेटी (Daughter of Rich Family)
लेखक- प्रेमचिंद
III. हनम्नहलन्तखत वाक्य हकसने हकससे किे ? (Who said the following sentence to whom)
1. “जल्दी से पका दो मुझे भूख लगी िै ।”
उत्तर: यह वाक्य लालसबहारी ने आनन्दी से कहा।
2. “हजसके गुमान पर भूली हुई, उसे भी दे खूिंगा और तुम्हें भी।”
उत्तर: यह वाक्य लाल सबहारी ने आनन्दी से कहा ।
3. “बुन्तद्धमान लोग मूखों की बात पर ध्यान निी िं दे ते।”
उत्तर: यह वाक्य बेनीमाधव ससिंह ने श्रीकिंठ ससिंह से कहा।
4. “लाल हबिारी को मैं अब अपना भाई निी िं समझता।”
उत्तर: यह वाक्य श्रीकिंठ ससिंह ने अपने सपता बेनी माधव ससिंह से कहा।
5. “अब मेरा मुाँि निी िं दे खना चािते , इसहलए अब मैं जाता हाँ ।”
उत्तर: यह वाक्य लाल सबहारी ने आनन्दी से कहा।
6. “भैया अब कभी मत किना हक तुम्हारा मुाँि न दे खूिंगा।”
उत्तर यह वाक्य लाल सबहारी ने श्रीकिंठ ससिंह से कहा।
7. “मुझे जो कुछ अपराध हुआ िमा करना।”
उत्तर: यह वाक्य लाल सबहारी ने आनन्दी से कहा ।
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IV सिंदभा स्पष्ट्ीकरण कीहजए:
1. ‘अभी परसोिं िी घी आया िै , इतना जल्दी उि गया? ’
प्रसिंग: प्रस्तुत वाक्य को लेखक-प्रेमचिंद द्वारा सलखखत ‘बड़े घर की बेटी’ पाठ से सलया गया है ।
सिंदभा: इस वाक्य को लाल सबहारी ने आनन्दी से कहा
स्पष्ट्ीकरण: जब लालसबहारी आनन्दी से मािंस पकाने के सलए कहा। तब आनन्दी ने हााँ िी में दे खा सक पाव भर से
ज्यादा घी न था। उसने सारा घी मािंस में िाल सदया। जब लालसबहारी खाना खाने बैठा तो दाल में घी नहीिं था। तब
लालसबहारी ने आनिंसदत से कहा-भाभी दाल में घी क्योिं नहीिं छोड़ा? तब आनन्दी कहती हैं -मैनें सारा घी मािंस में िाल
सदया है । इससलए घी खत्म हो गया है । तब लालसबहारी ने गुस्से में आकर आनन्दी से कहा-अभी परसो हीिं घी आया
इतना जल्दी उठ गया।
हवशेषता: पररखस्थसत के अनुसार खचत करना चासहए।
2. ‘स्त्री गाहलयााँ सि लेती िै , मार भी सि लेती िै , पर मैके की हनिंदा उनसे सिी निी िं जाती।’
प्रसिंग: प्रस्तुत वाक्य को लेखक प्रेमचिंद द्वारा सलखखत ‘बड़े घर की बेटी’ पाठ से सलया गया है।
सिंदभा: प्रस्तुत वाक्य को आनन्दी ने लालसबहारी से कहा।
स्पष्ट्ीकरण: घी खत्म हो जाने के कारण आनिंदी दाल में घी नहीिं िाली। लालसबहारी ने भाभी से पूछा भाभी दाल में घी
क्योिं नहीिं िाला है। आनन्दी ने उिर सदया- आज तो कुल पाव भर हीिं घी रहा होगा। वह सब मैंने मास में िाल सदया।
तब लालसबहारी ने कहा-अभी परसोिं ही घी आया, इतनी जल्दी उठ गया। लालसबहारी ने उसके मायके के बारे में खरी-
खोटी सुना सदया और सफर कहा- शायद तुम्हारे मायके में तो घी की नसदयािं बहती हो। इस पर आनिंदी कहती है सक
स्त्री गासलयािं सह लेती है , मार भी सह लेती है , पर मायके की सनिंदा उससे नहीिं सही जाती।
हवशेषता: सकसी स्त्री के मायके के सिंबिंध में उल्टा-पल्टी की बाते नहीिं करनी चासहए।
4. ‘उससे जो कुछ भूल हुई, उसे तुम बड़े िोकर िमा करो। ’
प्रसिंग: प्रस्तुत वाक्य को लेखक प्रेमचिंद द्वारा सलखखत ‘बड़े घर की बेटी’ पाठ से सलया गया है।
सिंदभा: इस वाक्य को बेनीमाधव ससिंह ने श्रीकािं ठ ससिंह से कहा।
स्पष्ट्ीकरण: आनन्दी के प्रसत लालसबहारी का अभद्र। व्यवहार दे खकर श्रीकिंठ ससिंह अपमासनत महसूस करता है और
अपने सपता के पास जाता है । श्रीकिंठ ससिंह अपने-आपे से बाहर हो जाता है । अपने सपता से क्रोसधत अवस्था में बात
करते हुए कहता है । मैं इस घर में लालसबहारी के साथ नहीिं रह सकता हाँ । इस पर बेनीमाधव ससिंह श्रीकिंठ ससिंह को
समझाते हुए कहते हैं सक बेटा बुखिमान लोग मूखो की बात पर ध्यान नहीिं दे ते। लालसबहारी नासमझ लड़का है , उससे
जो कुछ भूल हुई है , उसे तुम्हें बिेे़ होकर िमा करो।
हवशेषता: क्रोध में आकर जल्दी कोई कदम नहीिं उठाना चासहए।
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स्पष्ट्ीकरण: लालसबहारी नाराज होकर घर से बाहर जा रहा था। आनन्दी ने श्रीकिंठ से कहती है सक लालसबहारी बहुत
रो रहा है उसे मना लो। मेरी जीभ में आग लगे, जो मैने कहााँ से यह झगड़ा उठाया। लालसबहारी ने आनिंदी से कहा-
भाभी, भैया से मेरा प्रणाम कहना। वे मेरा मुाँह नहीिं दे खना चाहते। इससलए मैं घर छोिकर जा रहा हाँ । आनन्दी अपने
कमरे से बाहर सनकली और लालसबहारी का हाथ पकड़ सलया और कहा सक तुम्हे मेरी कसम तुम कही नहीिं जाओगे।
सफर आनन्दी कहती हैं सक मैं ईश्वर को सािी मानकर कहती हाँ सक तुम्हारी ओर से मेरे मन में तसनक भी मैल नहीिं है ।
यह सब सुनकर श्रीकिंठ ससिंह का हृदय सपघल जाता है । वह बाहर आकर लालसबहारी को गले से लगा सलया। दोनोिं भाई
फूट-फूटकर रोने लगे। बेनीमाधव ससिंह बाहर से दोनोिं भाइयोिं को गले समलते हुए दे ख वह प्रसन्न होते हैं और बोल उठते
हैं सक बड़े घर की बेसटयााँ ऐसी हीिं होती है , जो सबगड़ते हुए काम को बना लेती है
हवशेषता: बड़े घर में जन्म लेने से कोई ‘बड़े घर की बेटी’ नहीिं होती है , वह अपने अच्छे गुण, स्वभाव, बुखिमती और
आचरण से बड़े घर की बेटी होती है ।
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VIII अन्य हलिंग रूप हलन्तखए: [Write other gender form.]
1)ठाकुर-ठाकुराइन, (2) पसत-पत्नी, (3) बेटा-बेटी, (4) स्त्री-पुरुष, (5) बुखिमान-बुखिमती, (6) हाथी-हसथनी,
(7) भाई-बहन,
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2. युवाओिं से (From Youth)
लेखक- स्वामी हववेकानन्द
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4. सवा धमा सहिष्णुता के बारे में स्वामी हववेकानन्द जी के क्या हवचार िै हलन्तखए।
उत्तर: सवत धमत ससहष्णुता के बारे में स्वामी सववेकानन्द जी का सवचार है सक हमें सभी धमों को स्वीकार करना चासहए।
हमें सभी धमों की पूजा करनी चासहए, हमें सभी धमतस्थलोिं में जाना चासहए, इसी के द्वारा हम आगे बढ़ सकते हैं ।
3. ‘भय से िी दु ख िोता िै, यि मृत्यु का कारण िै तथा इसी के कारण सारी बुराई तथा पाप िोता िै ।’
प्रसिंग: प्रस्तुत वाक्य को लेखक स्वामी सववेकानन्द जी द्वारा सलखखत युवाओिं पाठ से सलया गया है ।
सिंदभा: प्रस्तुत वाक्य के माध्यम से स्वामी सववेकानन्द जी भारत के नवयुवकोिं को जागृत होने के सलए कहा है ।
स्पष्ट्ीकरण: युवा पीढ़ी को स्वामी सववेकानन्द जी सहम्मत दे ते हुए कहते हैं सक तुम्हें कमजोर, भयभीत नहीिं होना
चासहए। सनभीकता से ही सकसी राष्ट्र की उन्नसत होती है । भय ही मृत्यु का कारण बनता है और इसी से पाप का जन्म
होता है ।
हवशेषता: मनुष्य को भय और मृत्यु को मन से हटाकर अपना करतब करना चासहए
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5. ‘मैं तुम सबसे यिी चािता हाँ हक तुम आत्म प्रहतष्ठा दलबिंदी और ईष्याा को सदा के हलए छोड़ दो।’
प्रसिंग: प्रस्तुत वाक्य को लेखक स्वामी सववेकानन्द जी द्वारा सलखखत युवाओिं पाठ से सलया गया है ।
सिंदभा: स्वामी सववेकानन्द जी ने लोगोिं से कहा है सक मनुष्य को स्वाथत त्यागकर कायत करना चासहए।
स्पष्ट्ीकरण: स्वामी जी स्वामी सववेकानन्द जी के अनुसार सिंगठन के सलए जो बातें चासहए आज उनका अभाव है दे श
भिोिं की एकता के सलए आपसी ईष्यात , द्वे ष, अहिंकार ये सारी बातें नहीिं होना चासहए। क्योिंसक ये एकता में बाधक
होता है ।
हवशेषता: मनुष्य को ईष्यात , द्वे ष, घृणा नहीिं करना चासहए।
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IX सूचना अनुसार काल बदहलए:
(Change the following sentences according to the instructions given.)
1. कल मेिमान आयेंगे । [भूतकाल में बदहलए-Change into Past Tense]
उत्तर: कल मेहमान आये थे।
2. सूरदास ने पद हलखें। [वतामान काल में बदहलए-Change into Present Tense]
उत्तर: सूरदास अनेक पत्र सलखते हैं ।
3. बालक खा रिा था। [भहवष्यत काल में बदहलए- Change into Future Tense]
उत्तर: बालक खाएगा।
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3. हनिंदा रस (Condemnation Juice)
लेखक-िररशिंकर परसाई
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4. हनिंदकोिं के सिंघ के बारे में हलन्तखए।
उत्तर: सजस प्रकार मज़दू रोिं की टर े ि यूसनयन होती है , वैसे ही सनिंदाको का भी एक सिंघ होता है। सिंघ के सदस्य इधर-
उधर की खबरें लाकर सिंघ को सौिंपते हैं । यह कच्चा माल माना जाता है । सिंघ इसे पक्का माल बनाकर, सभी सदस्योिं
को इस तरह बािंटते हैं जैसे उनकी दृसष्ट् में बहुजन सहत का कायत को हो।
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4. ‘हनिंदा का उद्गम िी िीनता और कमजोरी से िोता िै ।
प्रसिंग: प्रस्तुत वाक्य को लेखक-हररशिंकर परसाई द्वारा सलखखत ‘सनिंदा रस’ पाठ से सलया गया है ।
सिंदभा: प्रस्तुत वाक्य को लेखक ने लोगोिं से कहा है ।
स्पष्ट्ीकरण: हीनता और कमजोरी की भावना से सनिंदा की उत्पसि होती है। ऐसे लोग सदा दू सरोिं की बु राई करते रहते
हैं । ऐसे लोग अपने को अच्छा और दू सरोिं को बुरा मानते हैं। तब लेखक ने कहा-सनिंदा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी
से होता है ।
हवशेषता: जो व्यखि ईष्यात रखता है , उसे ही सनिंदा का उद्गम होता है ।
5. ‘ज्ोिं-ज्ोिं कमा िीण िोता जाता िै , त्योिं-त्योिं हनिंदा की प्रवृहत्त बढ़ती जाती िै ।
प्रसिंग: प्रस्तुत वाक्य को लेखक-हररशिंकर परसाई द्वारा सलखखत ‘सनिंदा रस’ पाठ से सलया गया है ।
सिंदभा: प्रस्तुत वाक्य को लेखक ने लोगोिं से कहा है ।
स्पष्ट्ीकरण: खुद आदमी हीन भावना से ग्रससत हो जाता है । तब वह केवल सनिंदा करना ही अपना परम कततव्य समझने
लगता है और धीरे -धीरे उसको झूठ बोलने की आदत बढ़ जाती है । तब लेखक ने कहा-ज्योिं-ज्योिं कमत िीण होता जाता
है , त्योिं-त्योिं सनिंदा की प्रवृसि बढ़ती जाती है ।
हवशेषता: मनुष्य में कमत िीण होने के कारण दू सरोिं में सनिंदा करने की प्रवृसि बढ़ती जाती है ।
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4. हबिंदा
लेन्तखका- मिादे वी वमाा
3. मिादे वी वमाा के कभी-कभी छत पर जाकर दे खने पर हबिंदा क्या-क्या करते हदखाई दे ती थी?
उत्तर: जब कभी महादे वी वमात छत पर जाकर दे खती तो सबिंदा झािू लगाती हुई, कभी आग जलती हुई, कभी आिं गन
से पीने का पानी भरती हुई, तो कभी नई मााँ को दू ध का कटोरा दे ती हुई सदखाई दे ती थी। ये सब बाजीगर के तमाशे
की तरह लगता था।
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4. हबन्दा अपनी नई अम्मा से हकस प्रकार डरती थी?
उत्तर: सबन्दा नई अम्मा से बहुत िरती थी। यहााँ तक सक थोड़ी बहुत ही आवाज आती अथवा आहट होती तो, वह
कािंपने लगती थी सक न जाने अब क्या होगा। नई अम्मा की आवाज सुनते ही सबिंदा थर-थर कािंपने लग जाती थी।
5. मिादे वी वमाा ने दोपिर के समय सबकी आिं ख बचाकर हबिंदा के घर पहुिंचने पर क्या दे खा?
उत्तर: महादे वी वमात एक सदन दोपहर को सबकी आिं ख बचाकर सबन्दा के घर पहुिंची, तो दे खा सक नीचे के सुनसान
खिंि में सबिंदा अकेली खाट पर पड़ी थी। आाँ खें धिंस गई थी। लेखखका चसकत चारोिं ओर दे खती रह गई। सबिंदा ने कुछ
सिंकेत और कुछ अस्पष्ट् शब्ोिं में बताया सक नई अम्मा मोहन के साथ ऊपर रहती है । शायद वह मेरी चेचक के िर
से ऊपर रहती है ।
6. हबन्दा के घर के सामने भीड़ दे खकर लेन्तखका के मन में क्या हवचार आने लगे ?
उत्तर: सबिंदा के घर के सामने भीड़ दे खकर लेखखका ने सोचा सक पिंसित जी का सववाह तो दू सरी पिंसिताइन चाची के
मरने के बाद होगा। मोहन तो अभी छोटा है । शायद सबिंदा का सववाह हो रहा होगा और उसने मुझे बुलाया तक नहीिं।
महादे वी वमात अपमासनत होकर सबिंदा को सकसी भी शुभ कायत में न बुलवाने की ठान ली।
III. हनम्नहलन्तखत वाक्य हकसने हकससे किे ? (Who said the following sentence to whom)
1. “क्या पिंहडताइन चाची तुम्हारी तरि निी िं िै ।”
उत्तर: इस वाक्य को महादे वी वमात ने अपनी मााँ से कहा।
2. “वि रिी मेरी अम्मा।”
उत्तर: इस वाक्य को सबिंदा ने महादे वी वमात से कहा।
3. “ तुम कभी तारा न बनना, चािे भगवान हकतना िी चमकीला तारा बनावें ।”
उत्तर: इस वाक्य को महादे वी वमात ने अपनी मााँ से कहा।
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3. ‘पिंहडताइन चाची के न्यायहवधान में न िमा का स्थान था, न अपील का अहधकार।’
प्रसिंग: प्रस्तुत वाक्य को लेखखका-महादे वी वमात द्वारा सलखखत ‘सबन्दा’ पाठ से सलया गया है ।
सिंदभा: प्रस्तुत वाक्य को लेखखका महादे वी वमात ने अपने -आप से कह रही है ।
स्पष्ट्ीकरण: एक सदन दू ध गमत करते समय दू ध उफनकर बाहर सनकलने लगा। सबिंदा उसे उठाने की कोसशश करने
लगी, पर वह दू ध उसके पैरोिं पर सगर गया और पैर जल गया। लेसकन मााँ के पास जाने की बजाय अपनी सहेली के घर
की कोठरी में छु प जाती है । तभी उन्ें पिंसिताइन चाची की उग्र आवाज सुनाई दे ती है । लेखखका की मााँ सबिंदा के जले
पैरोिं पर सतल का तेल लगाती है और उसे उसके घर सभजवा दे ती है । उसकी नई अम्मा उसके प्रसत सहानुभूसत न दशातते
हुए सेवा करने के बजाय कठोर शब्ोिं से िािंटना, मारना शुरू करती है। तब महादे वी वमात कहती है । लगता है सक
पिंसिताइन चाची के न्यायसवधान में न िमा का स्थान है न अपील का असधकार है।
हवशेषता: इस वाक्य में सौतेली मााँ के क्रूर व्यवहार का वणतन सकया गया है ।
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5. बाबासािेब डॉ. अम्बेडकर
लेखक-शािंहतस्वरुप बौि
2. अिंबेडकर जी को हशिा प्राप्त करते समय हकन-हकन समस्याओिं का सामना करना पड़ा?
उत्तर: िॉ. अिंबेिकर को सशिा प्राप्त करने में कई कसठनाइयोिं का सामना करना पड़ा। पाठशाला में उन्ें किा के
भीतर अन्य सवद्यासथतयोिं के साथ बैठने की मनाही थी। वे अपनी किा के बाहर सब छात्रोिं के जूतोिं के बीच दरवाजे के
बाहर बैठते थे। भीम राव को पानी के घड़े को भी छूने की इजाजत नहीिं थी। कारण यह था सक अछूतोिं को छू लेने से
घिे का जल भ्रष्ट् हो जाता है । सकतनी भी प्यास लगे बेशक प्यास के मारे प्राणी क्योिं न सनकल जाए, मगर प्यासा अछूते
घड़े से पानी लेकर नहीिं पी सकता था। सकसी चपरासी की कृपा हो गई तो पानी समल जाता, नहीिं तो घर आकर ही पानी
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पीते थे। एक बार स्कूल में गुरु के प्रश्न का उिर सलखने के सलए वे ब्लैक बोित की ओर चले त्योिं ही किा के सभी छात्रोिं
ने सवरोध सकया सक ब्लैक बोित के नीचे रखा भोजन इनके छूने से भ्रष्ट् हो जाएगा।
VII अन्य हलिंग रूप हलन्तखए: [Write the other gender form.]
1) पिंसित - पिंसिताइन, (2) सुबेदार - सूबेदारनी, (3) सपता - माता, (4) नायक - नासयका,
(5) गाय – बैल, (6) नर - नारी,
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6. हदल का दौरा और एनजाइना (Enjaina and Heart Attack)
4. हदल का दौरा पड़ने पर प्राथहमक उपचार के हलए क्या-क्या कदम उिाने चाहिए?
उत्तर: सदल का दौरा पड़ते ही िॉक्टर को बुलाना चासहए। समाधान के सलए तब तक कोई ददत सनवारण गोली दी जा
सकती है । पहले से ही यसद रोगी इसका सशकार है तो उसे साहबाटरट की गोली दे दे नी चासहए। यसद रोगी की धड़कन
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रुक गई है , तो उसे पीठ के बल सलटाकर उसके कपड़े ढीले करके छाती पर मासलश करनी चासहए। यथाशीघ्र अपनी
सािंस दे ने का प्रयास करनी चासहए।
7. हृदय रोग से बचने व काबू पाने के हलए क्या-क्या एिहतयात बरतनी चाहिए?
उत्तर: रोजाना व्यायाम करें । इसके सलए सुबह-शाम की सैर अच्छी होती है। अपने वजन पर कड़ी नजर रखना चासहए,
उसे सबल्कुल न बढने दें । मानससक तनाव को भी दू र रखे। ब्लि प्रेशर बढ़ा हुआ हो या शुगर तो ठीक समय दवा लेते
रहना चासहए। इससे सदल को राहत समलेगी। तले हुए असधक वसा वाले भोजन से बचकर रहें । घी, मक्खन अिंिे, सचकन,
फूिी, कचौड़ी, समोसे, फराठे , सटक्की पकौिंिोिं आसद से दू र रहे । जहााँ तक हो सके कॉफी और चाय भी कम से कम
लें। धूम्रपान और मसदरा पर रोक लगा दे । ऐसा करने से हृदय रोग से बचने का कुछ उपाय हो सकता है ।
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V हनम्नहलन्तखत मुिावरोिं को अथा के साथ जोड़कर हलन्तखए:
[Match the idioms with their meaning.]
1. पलकें सबछाना = प्रतीिा करना ;
2. पेट में चूहे कूदना = बहुत ज़ोर की भूख लगना ;
3. दाल न गलना = सफल न हो ना;
4. दु म दबाकर भागना = िरकर भाग जाना;
VII अन्य हलिंग रूप हलन्तखए: [Write the other gender form.]
1) चाचा - चाची , (2) नाना - नानी , (3) वर – वधू , (4) दादा - दादी , (5) श्रीमान - श्रीमती ,
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7. मेरी बद्रीनाथ यात्रा (My Trip to Badrinath Temple)
लेखक - हवष्णु प्रभाकर
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4. बद्रीनाथ की घाटी का हचत्रण कीहजए।
उत्तर: बद्रीनाथ की घाटी केदारनाथ जैसा सौिंदयत तो नहीिं है । परन्तु अलकनिंदा का रूप जाल जरूर है। यह नदी यहााँ
उछल-कूद मचाती है । गजतना करती है । जल प्रपात बनाते हुए आगे बढ़ती है । कहीिं-कहीिं बफीले प्राकृसतक पुल दे खने
लायक होते हैं ।
III. हनम्नहलन्तखत वाक्य हकसने हकससे किे ? (Who said the following sentence to whom)
1. अरे हबच्छू हबच्छू
उत्तर: यह वाक्य हुआ वयोवृद्व सज्जन ने दल के सदस्योिं से कहा।
2. कहिए हदल जम गया या बच गया।
उत्तर: यह वाक्य लेखक ने अपने समत्र से कहा।
3. मिंहजल पर पहुाँच जाने पर रोमािंच को िी आता िै ।
उत्तर: यह वाक्य लेखक ने पाठकोिं से कहा है ।
4. यात्रा का यि अस्थायी स्नेि भी हकतना पहवत्र िोता िै ।
उत्तर: यह वाक्य लेखक ने पाठकोिं से कहा है ।
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के एक वयो वृि सज्जन सजला उठे अरे सबच्छू सबच्छू सजसे सुनकर सभी चौिंक कर उस ओर दे खने लगे। दे खने पर सबच्छू
-सा कुछ सदखाई सदया। परिं तु उसमें कोई हरकत नहीिं थी। मोमबिी की रौशनी में ध्यान से दे खने पर ज्ञात हुआ सक
सजसे सब सबच्छू समझ रहे थे वह चासबयोिं का गुच्छा था। जो सज्जन की जेब से लटककर जााँघ पर आ गया था।
हवशेषता: लेखक ने गलतफेमी के बारे में बताया है ।
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8. नालायक (Unworthy)
लेखक- हववेकी राय
4. दौड़कर आते हुए उम्मीदवार ने क्या किा?उत्तर: दौिकर आते हुए उम्मीदवार ने गुस्से में कहा- साहब लोग
कहते हैं सक अध्यापक पद के सलए थित सिवीजनर नहीिं सलए जाएिं गे। क्योिं नहीिं सलए जाएिं गे ? सजसका ज्यादा वोट होगा
उसे सलया जाएगा। हम सभी फस्टत और सेकेंि सिसवजनर के खखलाफ़ आिं दोलन करें गे।
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5. थडा हडवीजनरोिं की व्यथा को प्रकट कीहजए।
उत्तर: थित सिवीजनरोिं का जीवन नरक के समान होता है । उनके सलए हर जगह दरवाजा बिंद रहता है । जैसे वे आदमी
नहीिं बैल है। उसकी उपेिा होती है । उन्ें नौकरी के सलए नाक रगड़नी पड़ती है। कदम-कदम पर सनराशा होती है।
अिंत: थित सिसवजनवालोिं को नालायक समझ कर नौकरी नहीिं दे ता है ।
III. हनम्नहलन्तखत वाक्य हकसने हकससे किे ? (Who said the following sentence to whom)
1. आपका उम्मीदवार हकस हडवीजन में पास िै ?
उत्तर: इस वाक्य को लेखक ने एक उम्मीदवार से कहा।
2. थडा हडवीजनर के हलए दु हनया में कोई जगि निी िं िै ।
उत्तर: इस वाक्य को लेखक ने ससफाररश लोगोिं से कहा।
3. ये लोग िम लोगोिं का िक मार रिे िैं ।
उत्तर: इस वाक्य को एक थित सिवीजनर ने लेखक से कहा।
4. िमारे हलए िर जगि दरवाजा बिंद िै ।
उत्तर: इस वाक्य को एक थित सिसवजनर ने सभी थित सिसवजनर युवकोिं से कहा।
3. िरहगज निी िं मानते िैं हक कागज की तीन लकीरोिं के कारण िम लोग नालायक िैं।
प्रसिंग: प्रस्तुत वाक्य को लेखक सववेकी राय द्वारा सलखखत नालायक पाठ से सलया गया है ।
सिंदभा: इस वाक्य थित सिसवजनर उम्मीदवार ने सभी थित सिसवजनर उम्मीदवार से कहा।
स्पष्ट्ीकरण: जब थित सिजाइनरोिं को खाररज कर सदया गया, तो वे लोग इसका दोष सशिा सवभाग तथा अध्यापकोिं पर
लगा रहे थे और कह रहे थे सक कागज पर थित सिसवजन सलख दे ने से हम नालायक नहीिं हो सकते।
हवशेषता: थित सिसवजनर लोग अपनी गलती और कमजोरी स्वीकार करने को तैयार नहीिं होते हैं ।
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स्पष्ट्ीकरण: थित सिसवजनरोिं के असधकार सछन जाने से वे उिेसजत हो गए और सभी समलकर थित सिसवजनर सजिंदाबाद
के नारे लगाते हुए आिं दोलन पर उतर आए और कह रहे थे सकसको समले मास्टरी चािंस थित सिसवजनल मैसटर क पास।
हवशेषता: मन के हारे हुए लोग हीिं नारे लगाते हैं ।
VII अन्य हलिंग रूप हलन्तखए: [Write the other gender form.]
1) शेर - शेरनी, (2) साहब - सासहबा, (3) अध्यापक - अध्यासपका, (4) मास्टर - मास्टरनी, (5) युवक- युवती ,
*****
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9. राष्ट्र का स्वरूप (Nation’s Beauty)
लेखक- वासुदेवशरण अग्रवाल
5. समन्वय युक्त जीवन के सिंबिंध में वासुदेव शरण अग्रवाल के हवचार प्रकट कीहजए।
उत्तर: माता अपने सब पुत्रोिं को समान भाव से चाहती है । इसी प्रकार पृथ्वी पर बसने वाले सभी जन बराबर है । उनमें
ऊिंच और नीच का भाव नहीिं है । ये जन अनेक प्रकार की भाषाएिं बोलने वाले और अनेक धमों को मानने वाले हैं । सफर
भी ये सब मातृभूसम के ही पुत्र हैं ।
4. सिंस्कृहत जन का मन्तस्तष्क िै ।
प्रसिंग: प्रस्तुत वाक्य को लेखक वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा सलखखत ‘राष्ट्र का स्वरूप’ नाम पाठ से सलया गया है ।
सिंदभा: प्रस्तुत वाक्य को लेखक ने सिंस्कृसत को मखस्तष्क कहा है ।
स्पष्ट्ीकरण: सिंस्कृसत जन का मखस्तष्क है । सबना सिंस्कृसत के जन की कल्पना नाम मात्र है । सिंस्कृसत के सवकास के द्वारा
ही राष्ट्र की वृखि सिंभव है । राष्ट्र के समग्र रूप में भूसम और जन की सिंस्कृसत का महत्वपूणत स्थान है ।
हवशेषता: लेखक के अनुसार सिंस्कृसत सारे जन समाज को जोड़ती है ।
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5. उन सब का मूल आधार पारस्पररक सहिष्णुता और समन्वय पर हनभार िै ।
प्रसिंग: प्रस्तुत वाक्य को लेखक वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा सलखखत ‘राष्ट्र का स्वरूप’ नाम पाठ से सलया गया है ।
सिंदभा: प्रस्तुसत में लेखक ने सिंस्कृसत के बारे में लोगोिं से कहा है
स्पष्ट्ीकरण: प्रत्येक जासत अपनी-अपनी सवशेषज्ञोिं के साथ सिंस्कृसत का सवकास करती है। प्रत्येक जन की अपनी-अपनी
भावनाओिं के अनुसार अलग-अलग सिंस्कृसतयािं राष्ट्र में सवकससत होती है । सब का मूल आधार पारस्पररक ससहष्णुता
और समिंवय में पर सनभतर है ।
हवशेषता: लेखक ने कहा है सक सिंस्कृसत ही राष्ट्र का स्वरूप बनाते हैं ।
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VIII हििंदी में अनुवाद कीहजए: (English-to-Hindi translation)
i) I couldn’t see that film .
उत्तर: मैं वह ससनेमा दे ख नहीिं सका।
ii) Mohan cannot see.
उत्तर: मोहन दे ख नहीिं सकता।
iii) Humour plays an important role in our life.
उत्तर: हाँसी मजाक का भी हमारे जीवन में उतना ही महत्व रखता है ।
iv) Ram couldn’t read the book.
उत्तर: राम से पुस्तक पढी न जा सकी।
v) Gopal always speaks the truth.
उत्तर: गोपाल सदा सत्य बोलता है ।
*****
37
10. ररिसाल
लेखक-ओम प्रकाश आहदत्य
पात्र-पररचय
38
2. वैद्य परमानिंद गाय की बीमारी दू र करने का क्या उपाय बताते िैं ?
उत्तर: वैद्य परमानिंद सकसान से कहा- तुम बीमार हो या तुम्हारी गाय मेरे सलए एक ही बात है । लाओ, अपना नब्ज
सदखाओ। सकसान बोला जी नब्ज मैं सदखाऊाँ? परमानिंद ने कहा-और कौन सदखाएगा? गाय तुम्हारी बीमार है या सकसी
और की? नब्ज दे खते हुए कहा- गाय की हालत सचिंताजनक है । उसे शीघ्र चारा खखलाओ। उसे उसी का दू ध सनकालकर
सपलाओ। अमर भास्कर चुणत गमत पानी के साथ खा लेना मैं और गाय को भी खखला दे ना। दोनोिं को लाभ पहुिंचेगा।
III. हनम्नहलन्तखत वाक्य हकसने हकससे किे ? (Who said the following sentence to whom)
1. परिेज िी तो असली इलाज िै ।
उत्तर: इस वाक्य को वैद्य परमानिंद ने बीमार स्त्री से कहा।
2. तुम भी खा लेना, गाय को भी न्तखला दे ना।
उत्तर: यह वाक्य वैद्य परमानिंद ने सकसान से कहा।
3. निी िं बेटे अपने बाप से भी बड़े िो जाते िैं ।
उत्तर: यह वाक्य वैद्य परमानिंद ने अध्यापक से कहा।
4. िीक तो िो जाएगा, पर िोश में निी िं आएगा।
उत्तर: यह वाक्य वैद्य परमानिंद ने रमेश की मााँ से कहा।
5. तुझे क्या िो गया था मेरे लाडले
उत्तर: यह वाक्य मााँ ने अपने पुत्र रमेश से कहा।
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IV सिंदभा स्पष्ट्ीकरण कीहजए:
1. मरना तो कोई नहीिं चाहता। लेसकन मैंने अपने रोसगयोिं को अक्सर मरते दे खा है ।
प्रसिंग: प्रस्तुत वाक्य लेखक-ओम प्रकाश ‘आसदत्य’ द्वारा सलखखत ररहसतल पाठ से सलया गया है ।
सिंदभा: इस वाक्य को वैद्य परमानिंद ने बीमार खस्थत इसे कहा।
स्पष्ट्ीकरण: वैद्य परमानिंद के पास एक अधेर उम्र की स्त्री आती है और आकर बेंच पर बैठ जाती है । वह बीमार है।
स्त्री वैद्य परमानिंद को बतलाती है सक मेरा सदल धड़कता है , नीिंद नहीिं आती है आसद। यह सुनकर वैद्य जी उस स्त्री से
कहते हैं सक तुम्हारा बचना मुखिल है । स्त्री मरना नहीिं चाहती। तब वह वैद्य परमानिंद से कहती है सक मेझे बचा लें।
तब वैध परमानिंद कहते हैं सक मरना तो कोई नहीिं चाहता। लेसकन मैंने अपने रोसगयोिं को अक्सर मरते दे खा है ।
हवशेषता: इस वाक्य में स्त्री के सदल की कमजोरी के बारे में बताया गया है ।
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V अन्य हलिंग रूप हलन्तखए: [Write the other gender form.]
1) हाथी - हसथनी, (2) शेर - शेरनी, (3) गाय - बैल, (4) सपता - माता,
(5) अध्यापक - अध्यासपका, (6) लड़का - लड़की (7) भगवान भगवती
*****
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I PU पत्र-लेखन (Letter Writing)
1. चार हदन का अवकाश मााँगते हुए अपने मिाहवद्यालय के प्रधानाचाया को एक आवेदन पत्र
हलन्तखए।
Write a letter to your principal asking for a leave of four days.
नाम:................................
पता:................................
..................................
हदनािंक:.............................
सेवा में,
प्राचाया मिोदय,
.....................
.....................
.....................
मिोदय,
ससवनय सनवेदन है सक सपछले दो सदनोिं से मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीिं है । मुझे बार-बार बुखार आ रहा
है । िॉ. से सदखाने पर िॉ. ने मुझे कुछ दवाइयााँ दी है और कहा है सक इस दवाई को खाइए और 3-4
सदनोिं तक आराम करने की सलाह दी है ।
अिंत: श्रीमान से प्राथतना है सक मुझे सदनािं क-............ से सदनािं क-............. तक मुझे अवकाश
प्रदान करने की कृपा करें । मैं इस कायत के सलए सदा आपका आभारी बना रहिं गा।
सधन्यवाद,
आपका आज्ञाकारी छात्र
नाम (Name)-
वगत (Class Combination, Section)-
क्रमााँ क (Reg No.)-
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2. परीिा में सफल िोने पर बधाई दे ते हुए अपने छोटे भाई को एक पत्र हलन्तखए।
Write a letter to your younger brother congratulation him on success succeeding in
the exam.
नाम:................................
पता:................................
................................
हदनािंक:.............................
हप्रय-................,
शुभ आशीवााद।
कल ही तुम्हारा पत्र समला। मैं उस पत्र को पढकर बहुत खुश हुआ। मुझे पता चला सक तुम सपछले
किा में प्रथम श्रेणी से उिीणत हुए हो और इसके सलए तुम्हें स्वणत पदक भी समलने वाला है । इस
सफलता के सलए ढे र सारी शुभकामनाएाँ दे ता हाँ । मुझे आशा है सक तुम इसी प्रकार कामयाब होते
रहोगे। मेरा आशीवात द तुम्हारे साथ हमेशा बना रहे गा।
तुम्हारा अग्रज
.....................
43
3. आहथाक सिायता मािंगते हुए अपने प्रधानाचाया जी को एक पत्र हलन्तखए।
Write an application to your principal asking for financial assistance.
नाम:................................
पता:................................
..................................
हदनािंक:.............................
सेवा में,
प्राचाया मिोदय,
.....................
.....................
.....................
मिोदय,
मैं प्रथम पी.यू.सी. कॉमसत का छात्र हाँ । मेरा नाम.............है । मैं हर साल प्रथम श्रेणी से उतीणत होता हाँ ।
मैं आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहता हाँ । लेसकन मेरे सपताजी का व्यवसाय कुछ कारणवश बिंद हो
गया है । सजसके कारण फीस दे ने में असमथत हाँ। अगर आप मेरी छात्रवृसि मिंजूर कर लेंगे तो आपकी
असत कृपा होगी। मेरी आसथतक खस्थसत ठीक नहीिं है । मैं इस कायत के सलए सादा आपका आभारी बना
रहिं गा।
सधन्यवाद,
आपका आज्ञाकारी
छात्र................
किा................
क्रमािंक............
44
4. नशीले पदाथों से बचें रिने का हनदे श दे ते हुए अपने हमत्र को एक पत्र हलन्तखए।
Write a letter to your friend instructing him to abstain (stay away) from drugs.
नाम:................................
पता:................................
..................................
हदनािंक:.............................
हप्रय हमत्र...........
नमस्ते!
कल हीिं तुम्हारा पत्र समला। उसे पढ़कर मैं बहुत खुश हुआ सक तुम परीिा में 95% अिंक प्राप्त सकए
होिं। इस पत्र के माध्यम से मैं तुम्हें एक सलाह दे ना चाहता हाँ सक आजकल कॉलेजोिं में सवद्यासथतयोिं को
नशा करने की बहुत आदतें पड़ गई है । बहुत सारे बच्चे गािंजा, भािं ग, चरस, हफीम, दारू, शराब, पान,
गुटका, सशखर आसद नशीले पदाथत का सेवन करते हैं । जो स्वास्थ्य के सलए बहुत हासनकारक है। मनुष्य
का असली सिंपसि उसका स्वास्थ्य होता है । अगर मनुष्य का स्वास्थ्य अच्छा नहीिं है , तो दु सनया का कोई
भी चीज़ अच्छा नहीिं लगता है । इससलए तुम नशा करने वाले सवद्यासथतयोिं से दू र रहना और तुम भी कोई
नशा न करना। यही तुमसे मेरी आशा है ।
तुम्हारा हमत्र
...................
45
5. बैंक में खाता खोलने के हलए प्रबिंधन के नाम आवेदन पत्र हलन्तखए।
To open an account in the bank, write an application letter in the name of the bank
Manager.
नाम:................................
पता:................................
..................................
हदनािंक:.............................
सेवा में,
शाखा प्रबिंधक,
.....................
.....................
.....................
मिोदय,
ससवनय सनवेदन है सक मैं यहााँ के एक स्थानीय कॉलेज में पढ रहा हाँ । यहााँ सकसी बैंक में मेरा खाता
नहीिं है । आज का मैं आपके बैंक में एक खाता खुलवाना चाहता हाँ । आपके सनयमानुसार पररचय पत्र,
घर का पता, आधार काित , और पैन काित , की छायाप्रसत है तथा पासपोटत साइज का फोटो इस आवेदन
पत्र के साथ सिंलग्न है । कृपया आप अपने बैंक में खाता खुलवाने का कृपा करें । मैं इस कायत के सलए
आपका आभारी बना रहिं गा।
सधन्यवाद,
भवदीय
नाम.......................
मो. न.
..............................
िस्तािर
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हितीय सोपान - पद भाग
मध्ययुगीन काव्य भाग
1. कबीरदास के दोिे
सिंत कहव- कबीरदास
47
3. दया और धमा के मित्व का वणान कीहजए।
उत्तर: दया और धमत के बारे में कबीरदास ने बताया है सक दया और धमत ये दोनोिं मनुष्य के अच्छे गुण है । जहााँ दया
होता है, वहााँ धमत होता है । जहााँ लोभ होता है , वहााँ पाप होता है । जहााँ क्रोध होता है , वह काल होता है । जहााँ िमा होता
,वहााँ ईश्वर होता है । इससलए ईश्वर की प्राखप्त के सलए दया और िमा को अपनाना चासहए और लोभ तथा क्रोध को त्याग
दे ना चासहए।
48
3. दु :ख में सुहमरन सब करै , सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुहमरन करै , तो दु :ख कािे िोय॥
प्रसिंग: प्रस्तुत दोहे को कसव- कबीरदास द्वारा सलखखत ‘कबीर के दोहे ’ पाठ से सलया गया है ।
सिंदभा: कबीरदास ने लोगोिं से कहा है सक सुख में सु समरन करो, तब दु ख कभी नहीिं आएगी।
स्पष्ट्ीकरण: प्रस्तुत दोहे में कबीरदास ने कहा है सक सभी लोग दु :ख में भगवान का सुसमरन करते हैं । सुख में भगवान
का सुसमरन कोई नहीिं करता है । इससलए भगवान दु :ख दे ते हैं । अगर हम सुख में भगवान का सुसमरन करते हैं , तो
दु :ख कभी नहीिं आएगी।
हवशेषता: कबीरदास ने लोगोिं से कहा है सक सुख में सु समरन करो, तब दु ख कभी नहीिं आएगी।
*****
49
2. तुलसीदास के दोिे
सिंत कहव-गोस्वामी तुलसीदास
*****
51
3. मीराबाई के पद
कवहयत्री- मीराबाई
52
3. मीराबाई ने जीवन की नश्वरता के सिंबिंध में क्या किा िै ?
उत्तर: मीराबाई के अनुसार धरती और आसमान में सजतनी दू र तक दृसष्ट् जाए सब कुछ नश्वर है । जो जन्म लेता है वह
एक-न-एक सदन अवश्य मरता है। यह शरीर नश्वर है। इस नाशवान शरीर के सलए कभी भी गवत नहीिं करना चासहए।
क्योिंसक यह शरीर समट्टी से बना है और समट्टी में समल जाएगी। यह जीवन सचसड़योिं का खेल है । सजस तरह से सचसड़या
सुबह होते सदखाई दे ती है और शाम होते -होते वह लुप्त हो जाती है । उसी तरह मनुष्य का जीवन है । जो जन्म लेता है ।
उसे एक सदन- न- एक सदन उसे मर जाना है , सफर क्योिं अपने शरीर पर गवत (घमण्ड) करना है ।
*****
53
4. शरण वचनामृत
कहव- आध्यात्म्योगी अल्लमप्रभु
कहव- मिात्मा बसवेश्वर
कवहयत्री- हशवशरणी अक्कमिादे वी
54
और सनिंदा से नहीिं िरना चासहए। मन में क्रोध न करके, हर हाल में समान भाव से शािंत सचत रखना चासहए। यही सजिंदगी
जीने का सही तरीका हैं ।
*****
55
5. रसखान के सवैये
कहव- रसखान
*****
57
आ) आधुहनक कहवता (Modern Poetry)
58
4. कुहटया में राजभवन कहवता का आशय सिंिेप में हलन्तखए।
उत्तर: कुसटया में राजभवन इस कसवता का आशय है सक सीताजी वन में भी राज-सुख भोगती है । श्री रामचन्द्र जी स्वयिं
सीताजी के साथ-रहते हैं । दे वर लक्ष्मण मिंत्री के रूप में कायत कर रहे हैं । यहााँ धन और राज्य वैभव का कोई मूल्य नहीिं
है ।
*****
59
2. तोड़ती पत्थर (Woman is Breaking Stone)
60
III सिंदभा स्पष्ट्ीकरण कीहजए:
1. ‘चढ रही थी धूप
गसमतयोिं के सदन
सदवा का तमतमाता रूप।
उठीिं झुलसाती हुई लू’
प्रसिंग: प्रस्तुत पद को कसव-सूयतकािंत सत्रपाठी ‘सनराला’ द्वारा सलखखत ‘तोिती पत्थर’ कसवता पाठ से सलया गया है ।
सिंदभा: कसव एक मजबूर स्त्री की परे शासनयोिं के बारे में सिंकेत सकया है ।
स्पष्ट्ीकरण: इलाहाबाद के पथ के सकनारे पत्थर तोड़ने वाली नारी झुलसाती धूप में पसीना टपकाती हुई, वह अपने
कायत में मग्न रहती है। उसकी सववशता पर कसव का मन दु खी होता है । सकिंतु उस नारी के धैयत तथा कायत में लगन
दे खकर उसके प्रसत सम्मान बढ़ जाता है ।
हवशेषता: कसव एक मजबूर स्त्री की परे शासनयोिं के बारे में सिंकेत सकया है ।
*****
61
3.उल्लास (Happiness)
कवहयत्री- सुभद्रा कुमारी चौिान
62
III सिंदभा स्पष्ट्ीकरण कीहजए:
1. ‘जीवन में न सनराशा मुझको,
कभी रुलाने को आई।
जग झूठा है , यह सवरखि भी,
नहीिं ससखाने को आई॥’
प्रसिंग: प्रस्तुत वाक्य को कवसयत्री- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा सलखखत ‘उल्लास’ कसवता पाठ से सलया गया है ।
सिंदभा: कवसयत्री ने जीवन में कभी सनराशा न लाने के सलए कहा है ।
स्पष्ट्ीकरण: प्रस्तुत पिंखियोिं में कवसयत्री का जीवन के प्रसत सकारात्मक दृसष्ट्कोण व्यि होता है । उनके अनुसार
जीवन आशा की भावना को दशातता है। सनराशा को उन्ोिंने अपने जीवन में स्थान नहीिं सदया है । जग के प्रसत झूठा होने
का अहसास उन्ें नहीिं हुआ है। जीवन के प्रसत उसे वैराग नहीिं बखल्क प्रेम है । उनकी नजर में मनुष्य का आशापूणत
मनोभाव ही उसके सुख की पूिंजी है। लौसकक जीवन में प्रत्येक जन या वस्तु के प्रसत सवश्वास रखकर सुख और शािंसत से
जीना चासहए।
हवशेषता: जीवन में प्रत्येक जन या वस्तु के प्रसत सवश्वास रखकर सुख और शािंसत से सजिंदगी जीना चासहए।
*****
63
4. तुम गा दो, मेरा गान अमर िो जाए
कहव- िररविंशराय ‘बच्चन’
64
III सिंदभा स्पष्ट्ीकरण कीहजए:
1. ‘जब-जब जग ने पर फैलाये
मैंने कोस लुटाया,
रिं क हुआ मैं सनज सनसध खोकर,
जगती ने क्या पाया?
प्रसिंग: प्रस्तुत पद को कसव-हररविंशराय बच्चन जी द्वारा सलखखत ‘तुम गा तो मेरा गान अमर हो जाए’ कसवता पाठ से
सलया गया है ।
सिंदभा: प्रस्तुत पद के माध्यम से कसव ने लोगोिं से बताया है सक मैं दु सनया के सलए अपना कोष लुटाया हाँ।
स्पष्ट्ीकरण: कसव कहते हैं सक जब भी इस जग ने हाथ फैलाए तो मैंने अपना कोष लुटाया और अपनी सिंपसि दू सरोिं
को दे कर मैं स्वयिं रिं क हो गया। आखखर इस सिंसार में मैंने क्या पाया।
हवशेषता: यश पाने के सलए इस सिंसार में कुछ दान-पुण्य करना पड़ता है ।
*****
65
5. प्रहतभा का मूल हबिंदु (The Beginning Point of Brilliancy)
कहव- डॉ. प्रभाकर ‘माचवे’
I एक शब्द या वाक्यािंश या वाक्य में उत्तर हलन्तखए:
1. कहव प्रहतभा से क्या पूछते िैं ?
उत्तर: कसव प्रसतभा से पूछते हैं सक तेरा जन्म किााँ हुआ िै ?
2. कहव ने हदवा स्वप्न की रानी हकसे किा िै ?
उत्तर: कसव प्रहतभा को सदवा स्वप्न की रानी कहा है ।
3. हशल्पी ने हकसकी ओर सिंकेत हकया िै ?
उत्तर: सशल्पी ने हमट्टी के लौदे की ओर सिंकेत सकया है ।
4. गाहयका क्या कि गई?
उत्तर: गासयका कह गई सक क्या-तुने हदव्य-स्वर की महदरा पी िै ।
5. प्रहतभा किााँ बसती िै ?
उत्तर: प्रसतभा यातना, कष्ट् सिन की ताकत में, सिंघषा में बसती है ।
6. प्रहतभा का मूल हबिंदु कहवता के कहव का नाम हलन्तखए।
उत्तर: प्रसतभा का मूल सबिंदु कसवता के कहव- डॉ. प्रभाकर ‘माचवे’ हैं।
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68
7. मत घबराना (Don’t Get Afraid)
69
4. मत घबराना कहवता का सिंदेश अपने शब्दोिं में हलन्तखए।
उत्तर: मत घबराना कसवता में कसव युवकोिं को सिंदेश दे ते हैं सक जीवन के पथ पर सदा आगे बढ़ते रहना चासहए। साथ
कोई हो या न हो प्रकृसत माता सदा हमारे साथ रहें गी। प्रकृसत से हमें प्रेरणा लेनी चासहए। यही कसवता का सिंदेश है।
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8. अहभनिंदनीय नारी (An Applauded Lady)
कहव-जयिंती प्रसाद नौहटयाल
71
III सिंदभा स्पष्ट्ीकरण कीहजए:
1. ‘इस धारा पर मृदुल रस धार- सी तुम सुख का सार होना नारी
तुम विंदनीय हो, असभनिंदनीय हो, सादर तुम्हें हे नारी......!
धरा सी सहनशील, जल- सी सनमतल, फूलोिं सी कोमल तुम नारी
जीवन की गसत, जीवन की रसत जीवन की मसत हो तुम नारी....!’
प्रसिंग: प्रस्तुत पद को कसव-िॉ. जयिंतीप्रसाद नौसटयाल द्वारा सलखखत ‘असभनिंदनीय नारी’ कसवता पाठ से सलया गया है ।
सिंदभा: प्रस्तुत पद के माध्यम से कसव ने पुरुष के जीवन में नारी के महत्व के बारे में बताया है ।
स्पष्ट्ीकरण: नारी पृथ्वी पर मृदुल रस की तरह है । नारी सूख का सागर है , नारी विंदनीय है , असभनिंदनीय है। इससलए
उसको मैं सादर प्रणाम करता हाँ। धरती की तरह नारी सहनशील है । जल की तरह सनमतल है । फूलोिं की तरह कोमल
है । नारी जीवन की गसत है ।नारी जीवन की बुखि है । नारी ने िमा,करुणा, स्नेह और अपनी सेवा से इस धरती को धन
बनाया है ।
हवशेषता: नारी के कोमलता, सहनशखि और सनमतलता के बारे में बताया गया है ।
*****
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तृतीय सोपान- अपहित भाग (किाहनयााँ)
1. मधुआ
लेखक- जैयशिंकर प्रसाद
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4. शराबी के जीवन में मधुआ के आने के बाद क्या पररवतान आया?
उत्तर: मधुआ के समलने से पहले शराबी का जीवन सदशाहीन तथा अस्त-व्यस्त था। वह ठाकुर सरदार ससिंह को
कहासनयााँ सुनाकर, समले हुए पैसोिं से शराब पीता था। जीवन में मधु आ के आने के बाद शराबी ने शराब पीना छोड़
सदया। उसे सजम्मेदारी का अहसास हुआ। पाररवाररक बिंधन का अथत समझ में आया। मधुआ के आने से शराबी इतना
सिंवेदनशील हो गया सक मधु आ को पालने के सलए कुछ-न-कुछ काम करना चाहा तथा हमेशा मधुआ को साथ रखने
का सनणतय सलया।
*****
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2. श्मशान (Graveyard)
कवहयत्री-मन्नू भिंडारी
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4. युवक अपनी तीसरी पत्नी की मृत्यु के उपरािंत उसे सबसे अहधक गुनी क्योिं समझता िै ?
उत्तर: युवक अपनी तीसरी पत्नी की मृत्यु के पश्चात उसके पहले वाले रूप में और आज के रूप में कोई अिंतर न था।
उसकी बातें भी वही थी केवल इतना ही अिंतर था सक आज सवशेषकर अपनी तीसरी पत्नी ही सबसे असधक गुनी सदखाई
दे रही थी। दावा कर रहा था सक तीसरी पत्नी से ही उसका सच्चा प्रे म था। पहले दो पसत्नयोिं का प्रेम बचपना था। नासमझी
थी। पहली पत्नी उसकी अनुगाहमनी(One who obeys) थी| दू सरी पत्नी सिगाहमनी (Who goes together)
थी। तीसरी पत्नी मेरा पथ-प्रदहशाका(One who leads) थी। सजसके सबना मैं एक िण भी जीसवत नहीिं रह सकता हाँ।
*****
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3. खून का ररश्ता (Blood Relation)
लेखक-भीष्म सािनी
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3. सिू का पररचय दीहजए।
उत्तर: सन्तु वीरजी के घर पर सिंतू नाम का एक नौकर था। इस घर का वह पुराना नौकर था। सन्तू बार-बार मिंगल
सेन से कहता था सक बाबूजी वीरजी की सगाई मैं आपको नहीिं ले जाएिं गे। यह कहकर मिंगलसेन का मजाक उड़ाया
करता था। मिंगलसेन का स्वप्न साकार होते दे ख वह बोला तुम जीत गए बस वेतन समलते ही तुम्हें ₹2 दे दू िं गा। जबसक
सिंतू नौकर था और मिंगलसेन समधी थे । सन्तू कभी-कभी कामकाजोिं में उदासीन भी रहता था। इससलए उसे िािंट खानी
पड़ती थी।
*****
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4. शीत लिर (Cold wave)
लेखक-डॉ. जय प्रकाश ‘कदा म’
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3. क्या हजिंदगी िै इन लोगोिं की....! चन्द्रप्रकाश के इस उदार पर हटप्पणी कीहजए।
उत्तर: जब चिंद्र प्रकाश की पत्नी सरकारी रै न बसेरोिं को दे खकर उनके प्रसत अपनी सहानुभूसत व्यि करती है तब चन्द्र
प्रकाश कहते हैं रै न बसेरोिं में वे रात गुजार सकते हैं जो सुसवधा शुल्क दे सकते हैं गरीब लोगोिं के सलए नहीिं है ये रै न
बसेरे इनके पास न खाने के सलए है न पहनने के सलए गुिंिा कुछ रुका और सफर धीरे से बुदबुदाया क्या सजिंदगी है इन
लोगोिं की।
*****
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5. हसहलया
लेन्तखका- डॉ. सुशीला टाकभौरे
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4. िेमलता की मौसी ने सीहलया के साथ कैसा बतााव हकया?
उत्तर: हेमलता ठाकुर सससलया के साथ ही पााँचवीिं किा में पढ़ती थी। एक सदन सससलया हे मलता ने सससलया को लेकर
अपनी बहन के घर आई थी। सससलया के हाथ में पानी का सगलास दे खकर मौसी ने पूछा- तुम कौन हो? सकसकी बेटी
हो? हे मलता ने कहा- मौसी जी मेरी सहेली है । हमारे साथ ही आई है । इसके मामा-मामी इधर कहते हैं । उनका पता
मालूम नहीिं है । मौसी ने सससलया की जाती पूछी। हेमलता ने धीरे से बता सदया। जासत का नाम सुनकर मौसीजी चौिंक
गयी। भैया ने पूछा गाड़ी मोहल्ला के पास रहते हैं । तब मौसी जी ने प्रेम से कहा-कोई बात नहीिं बेटी! मैं साइसकल पर
सबठा के वहााँ छोड़ आएाँ गे। ऐसा कहते हुए मौसीजी पानी ग्लास उसके हाथ से लेकर अिंदर चली गई।
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6. दोपिर का भोजन (Mid-Day Meal)
लेखक-अमरकािंत
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3. रामचन्द्र का पररचय दीहजए।
उत्तर: रामचन्द्र की पत्नी का नाम ससिे श्वरी था। उसके तीन लड़के थे। बड़ा लड़का का नाम मोहन था। उसकी उम्र
करीब 21 वषत का है । पतला गोरे रिं ग का लड़का था। सजसकी बड़ी-बड़ी आिं खें थी। वह सकसी अखबार में काम करता
था। वह स्वभाव से गिंभीर था। मझला लड़का मोहन 18 वषत का था। वह हाई स्कूल का प्राइवेट इम्तहान दे ने की तैयारी
कर रहा था। पढ़ाई में उसकी रुसच नहीिं थी। छोटा लड़का प्रमोद छह वषत का था, जो बहुत कमजोर और बीमार रहता
था। ससिे श्वरी का पसत मुिंशी चिंसद्रका प्रसाद 45 साल के थे। पाररवाररक समस्याओिं के कारण वे 50-55 साल के लगते
थे।
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