Professional Documents
Culture Documents
Vii Hindi SM Bhakti Ke Bhav Suman
Vii Hindi SM Bhakti Ke Bhav Suman
कक्षा : VII
पाठ का नाम : भक्ति के भाव – सुमन
मीराबाई :
रसखान :
1 LCS/VII/HINDI/SM/2021 -22
कठिन शब्दार्थ :
3 अमोलक बहुमूल्य
4 हरख प्रसन्न
5 लकुटि लाठी
7 तड़ाग सरोवर
रै दास
प्रभु जी , तम
ु चंदन हम पानी , जाकी अंग – अंग बास समानी
प्रभु जी , तम
ु मोती हम धागा , जैसे सोनहि मिलत सह
ु ागा |
भावार्थ : हे प्रभु ! हमारे मन में जो आपके नाम की रट लग गई है , वह कैसे छूट सकती है ? अब मैं
आपका परम भक्त हो गया हूँ | जो चंदन और पानी में होता है | चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी
सुगंध फैल जाती है , उसी प्रकार मेरे तन मन में आपके प्रेम की सुगंध व्याप्त हो गई है | आप आकाश में आ
छाए काले बादल के समान हैं , मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ | जैसे बरसात में घुमड़ते बादलों को दे खकर
मोर खुशी से नाचता है , उसी भाँति मैं आपके दर्शन को पा कर खश
ु ी से भावमुग्ध हो जाता हूँ | जैसे चकोर
2 LCS/VII/HINDI/SM/2021 -22
पक्षी सदा अपने चंद्रमा की ओर ताकता रहता है उसी भाँति मैं भी सदा आपका प्रेम पाने के लिए तरसता रहता
हूँ |
हे प्रभु ! आप दीपक हो , मैं आपकी बाती के समान सदा आपके प्रेम में जलता हूँ | प्रभु आप मोती के
समान उज्ज्वल , पवित्र और सुंदर हैं | मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ | आपका और मेरा मिलन सोने और
सुहागे के मिलन के समान पवित्र है | जैसे सुहागे के संपर्क से सोना खरा हो जाता है , उसी तरह मैं आपके
संपर्क से शुद्ध हो जाता हूँ | हे प्रभु ! आप स्वामी हो मैं आपका दास हूँ |
मीराबाई :
खरचे न खट
ू े , चोर न लट
ू े , दिन – दिन बढ़त सवायो |
भावार्थ : मीराबाई प्रेम और भक्ति में इतनी सराबोर है कि उसे राम नाम कि भक्ति प्राप्त होने के बाद उसे
दनि
ु या कि कोई और चिंता नहीं है | मीराबाई को राम नाम के रतन की प्राप्ति हो गई है ,जो अमल्
ू य है | ऐसी
अमल्
ू य वस्तु भक्ति के अलावा और कुछ नहीं हो सकती | जो गरु
ु के द्वारा प्राप्त हुई है , यह जन्म – जन्म
की पँज
ू ी अर्थात कमाई होती है |जिसे आसानी से प्राप्त नहीं की जा सकती , इसके लिए साधना की
आवश्यकता होती है |
यह ऐसी पँज
ू ी है जो लूटने का या खोने का भय नहीं होता ,यह सदै व भवसागर से पार लगाने का धन है | यह
केवल सत्य का आचरण और प्रभु की भक्ति के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है | यह पँज
ू ी नहीं खर्च की जाती है
और ना ही बांटी जाती है | यह सतगुरु से मिलने की एकमात्र निधि और कमाई है , मेरा जो अपने ईश्वर ,
मित्र , सखा और पति के रूप में कृष्ण की सदै व भक्ति करती है |वे अमल्
ू य निधि को प्राप्त कर स्वयं को
सौभाग्यशाली मान रही हैं |
3 LCS/VII/HINDI/SM/2021 -22
रसखान :
भावार्थ : रसखान जी कहते हैं कि श्री कृष्ण के हाथों की लकुटि और कंबल के लिए तीनों लोकों का राज भी
त्याज्य है | आठों सिद्धि और नवों निधि का सुख भी जब श्री कृष्ण नंद की गाय चराते हैं उस लीला रस के
आगे फीका है | भक्ति भाव में विभोर होकर रसखान कहते हैं कि यदि कभी इन आँखों से ब्रज के वन , बाग
कंु ज इत्यादि निहारने का अवसर मिले तो सोने से बने अनगिनत महलों को भी इन मधुवन की झाड़ियों के
ऊपर मैं न्योछावर कर दँ ू |
पत्र लेखन
पत्र लेखन एक कला है l इसमें लेखक और पाठक के मध्य आत्मीयता एवं सामीप्यता स्थापित होती है l यह
संदेश भेजने एव प्राप्त करने का सुगम एवं सस्ता साधन है l अधिक प्रभावशाली पत्र वही हो सकता है जिसकी
भाषा सरल एवं भाव स्पष्ट हों l औपचारिक पत्र कार्यालयों, संपादकों, सरकारी विभागों, व्यापारियों,कंपनियों आदि
को लिखे जाते हैं l
परीक्षा भवन
नई दिल्ली
प्रधानाचार्या जी
‘अ’ विद्यालय
4 LCS/VII/HINDI/SM/2021 -22
दिल्ली – 110085
विषय -
संबोधन(महोदय, महोदया)
पहला अनच्
ु छे द – पत्र लिखने का कारण
दस
ू रा अनच्
ु छे द – विषय का विस्तत
ृ वर्णन
धन्यवाद
क.ख.ग
5 LCS/VII/HINDI/SM/2021 -22