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संत शिरोमणि कवि रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी को


उत्तर प्रदे श के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। उनकी
माता का नाम कर्मा दे वी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रग्घ)ु
था। उनके दादा का नाम श्री कालरू ाम जी, दादी का नाम श्रीमती लखपती
जी, पत्नी का नाम श्रीमती लोनाजी और पुत्र का नाम श्रीविजय दास जी
है ।

 संत रविदास की महानतम 6 रचनाएं

1. निरं जन दे वा अबिगत नाथ निरं जन दे वा। मैं का जांनूं तुम्हारी सेवा।। ...
2. दरसन दीजै राम दरसन दीजै राम दरसन दीजै। ...
3. तम्
ु हारी आस जो तम
ु तोरौ रांम मैं नहीं तोरौं। ...
4. पार गया पार गया चाहै सब कोई। ...
5. तुम चंदन हम पानी अब कैसे छूटै राम नाम र लागी। ...
6. मन ही पूजा राम मैं पूजा कहा चढ़ाऊं 
संत रविदास ने अपनी कविताओं के लिए जनसाधारण की ब्रजभाषा का
प्रयोग किया है । साथ ही इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रे ख्ता
यानी उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है । रविदासजी के लगभग चालीस
पद सिख धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ 'गुरुग्रंथ साहब' में भी सम्मिलित किए गए
है ।
ब्राह्मण मत पुजिये जो होवे गुणहीन !
पजि
ु ये चरण चंडाल के जो होने गण
ु प्रवीण !!
अर्थ : इस दोहे के माध्यम से संत रै दास जी कहते है कि किसी मनुष्य को सिर्फ इसलिए नहीं
पूजना चाहिए कि वह किसी ऊँचे कुल में जन्मा है ! हमें उस व्यक्ति को नहीं पूजना चाहिए
जिसमे कोई गुण नहीं हो ! हमें ऐसे व्यक्ति को पूजना चाहिए जो गुणवान हो चाहे वह किसी
नीची जाती का ही क्यों न हो !
In English: Through this couplet, Saint Raidas ji says that no man should be worshipped
just because he is born into a high family. We should not worship a person who does not
have any qualities. We should worship such a person who is virtuous, even if he belongs
to a lower caste.
कह रै दास तेरी भगति दरि
ू है , भाग बड़े सो पावे !
तजि अभिमान मेटी आपा पर , पिपिलक हवे चनि
ु खावै !!
अर्थ : संत रै दास जी कहते है कि मनष्ु य को भगवान की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है !
जिस मनुष्य में थोडा सा भी अभिमान नहीं है उसका सफल होना निश्चित है ! यह ठीक उसी
प्रकार है जैसे एक विशाल हाथी शक्कर के दानो को नहीं बीन सकता , लेकिन एक छोटी से चीटी
शक्कर के दानो को आसानी से बीन लेती है !
In English: Saint Raidas ji says that man gets the devotion of God with great luck. A man
who does not have the slightest pride is sure to succeed. It’s just like a giant elephant
can’t glean sugar grains, but a small ant can easily pick up sugar granules.

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